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गजानन माधव मु ि बोध क कहानी ' रा स का िश य'

उस महाभ य भवन क आठव मंिजल के जीने से सातव मंिजल के जीने क सूनी -सूनी सीिढ़य
पर उतरते हए, उस िव ाथ का चेहरा भीतर से िकसी काश से लाल हो रहा था। वह चम कार
उसे भािवत नह कर रहा था, जो उसने हाल-हाल म देखा। तीन कमरे पार करता हआ वह
िवशाल व बाह हाथ उसक आँख के सामने िफर से िखंच जाता। उस हाथ क पिव ता ही
उसके खयाल म जाती िक तु वह चम कार, चम कार के प म उसे भािवत नह करता था। उस
चम कार के पीछे ऐसा कु छ है, िजसम वह घुल रहा है, लगातार घुलता जा रहा है। वह 'कु छ' या
एक महापि डत क िज दगी का स य नह है? नह , वही है! वही है!
िक तु य - य वह छ द सूने भवन म गूँजता, घूमता गया य - य िव ाथ के दय म अपने गु क तसवीर और भी
ती ता से चमकने लगी।
भा यवान है वह िजसे ऐसा गु िमले !
जब वह िचिड़य के घ सल और बर के छ -भरे सूने ऊँचे िसं हा ार के बाहर िनकला तो एकाएक राह से गुजरते हए
लोग 'भूत ' 'भूत ' कह कर भाग खड़े हए। आज तक उस भवन म कोई नह गया था। लोग क धारणा थी िक वहाँ एक
रा स रहता है।
बारह साल और कु छ िदन पहले –
सड़क पर दोपहर के दो बजे, एक देहाती लड़का, भूखा- यासा अपने सूखे होठ पर जीभ फे रता हआ, उसी बगल वाले
ऊँचे सेमल के वृ के नीचे बैठा हआ था। हवा के झोक से, फू ल के फल का रेशमी कपास हवा म तैरता हआ, दूर-
दूर तक और इधर-उधर िबखर रहा था। उसके माथे पर िफ गुँथ-िबं ध रही थ । उसने पास म पड़ी हई एक मोटी ईटं
िसरहाने रखी और पेड़-तले लेट गया।
पाँचवी मंिजल से चौथी मंिजल पर उतरते हए , चारी िव ाथ , उस ाचीन भ य भवन क सूनी-सूनी सीिढ़य पर
यह ोक गाने लगता है। मेघैमदुरम बरं वनभव: यामा तमाल ु मै: - इस भवन से ठीक बारह वष के बाद यह िव ाथ
बाहर िनकला है। उसके गु ने जाते समय, राधा-माधव क यमुना-कू ल- ड़ा म घर भूली हई राधा को बुला रहे न द
के भाव कट िकये ह। गु ने एक साथ ं ृगार और वा स य का बोध िव ाथ को करवाया। िव ा ययन के बाद, अब
उसे िपता के चरण छू ना है। िपताजी! िपताजी! माँ! माँ! यह विन उसके दय से फू ट िनकली।
धीरे-धीरे, उसक िवचार-म नता को तोड़ते हए कान के पास उसे कु छ फु सफु साहट सुनाई दी। उसने यान से सुनने क
कोिशश क । वे कौन थे?

1
उनम से एक कह रहा था, "अरे, वह भ । िनता त मूख है और द भी भी। मने जब उसे ईशावा योपिनषद् क कु छ
पं ि य का अथ पूछा, तो वह बौखला उठा। इस काशी म कै से-कै से द भी इक े हए ह?
वातालाप सुनकर वह लेटा हआ लड़का खट से उठ बैठा। उसका चेहरा धूल और पसीने से लान और मिलन हो गया
था, भूख और यास से िनज व।
वह एकदम, बात करनेवाल के पास खड़ा हआ। हाथ जोड़े, माथा जमीन पर टेका। चेहरे पर आ य और ाथना के
दयनीय भाव! कहने लगा, ' हे िव ान ! म मूख हँ। अपढ़ देहाती हँ िक तु ान- ाि क मह वाकां ा रखता हँ। हे
महाभागो! आप िव ाथ तीत होते ह। मुझे िव ान गु के घर क राह बताओ।'
पेड़-तले बैठे हए दो बटु क िव ाथ उस देहाती को देखकर हँसने लगे; पूछा –
'कहाँ से आया है?'
'दि ण के एक देहात से! पढ़ने-िलखने से मने बैर िकया तो िव ान् िपताजी ने घर से िनकाल िदया। तब मने प का
िन य कर िलया िक काशी जाकर िव ा ययन क ँ गा। जं गल-जं गल घूमता, राह पूछता, म आज ही काशी पहँचा हँ।
कृ पा करके गु का दशन कराइए।'
अब दोन िव ाथ जोर-जोर से हँसने लगे। उनम-से एक, जो िवदूषक था, कहने लगा –
'देख बे सामने िसंह ार है। उसम घुस जा, तुझे गु िमल जायेगा।' कह कर वह ठठाकर हँस पड़ा।
आशा न थी िक गु िबलकु ल सामने ही है। देहाती लड़के ने अपना डे रा-ड डा सँभाला और िबना णाम िकये तेजी से
कदम बढ़ाता हआ भवन म दािखल हो गया।
दूसरे बटु क ने पहले से पूछा, 'तुमने अ छा िकया उसे वहाँ भेज कर?' उसके दय म खेद था और पाप क भावना।
दूसरा बटु क चुप था। उसने अपने िकये पर िख न होकर िसफ इतना ही कहा, 'आिखर रा स का रह य भी तो
मालूम हो।'

िसं ह ार क लाल-लाल बर गूँ- गूँ करती उसे चार ओर से काटने के िलए दौड़ी; लेिकन य ही उसने उसे पार कर
िलया तो सूरज क धूप म चमकनेवाली भूरी घास से भरे , िवशाल, सूने आँगन के आस-पास, चार ओर उसे बरामदे
िदखाई िदये -- िवशाल, भ य और सूने बरामदे िजनक छत म फानूस लटक रहे थे। लगता था िक जैसे अभी-अभी
उ ह कोई साफ करके गया हो! लेिकन वहाँ कोई नह था।

2
आँगन से दीखनेवाली तीसरी मंिजल क छ जेवाली मुँडेरे पर एक िब ली सावधानी से चलती हई िदखाई दे रही थी।
उसे एक जीना भी िदखाई िदया, ल बा-चौड़ा, साफ-सुथरा। उसक सीिढ़याँ ताजे गोबर से पुती हई थ । उसक महक
नाक म घुस रही थी। सीिढ़य पर उसके चलने क आवाज गूँजती; पर कह , कु छ नह !
वह आगे-आगे चढ़ता-बढ़ता गया। दूसरी मंिजल के छ जे िमले जो बीच के आँगन के चार ओर फै ले हए थे। उनम
सफे द चादर लगी गि याँ दूर-दूर तक िबछी हई थ । एक ओर मृदं ग, तबला, िसतार आिद अनेक वा -य करीने से
रखे हए थे। रं ग-िबरं गे फानूस लटक रहे थे और कह अगरबि याँ जल रही थ ।
इतनी ब ध- यव था के बाद भी उसे कह मनु य के दशन नह हए। और न कोई पैर क आवाज सुनाई द , िसवाय
अपनी पग- विन के । उसने सोचा शायद ऊपर कोई होगा।
उसने तीसरी मंिजल पर जाकर देखा। िफर वही सफे द-सफे द गि याँ, िफर वही फानूस , िफर वही अगरबि याँ। वही
खाली-खालीपन, वही सूनापन, वही िवशालता, वही भ यता और वही 'मनु य-हीनता।'
अब उस देहाती के िदल म से आह िनकली। यह या? यह कहाँ फँ स गया; लेिकन इतनी यव था है तो कह कोई
और ज र होगा। इस खयाल से उसका डर कम हआ और वह बरामदे म से गुजरता हआ अगले जीने पर चढ़ने लगा।

इन बरामद म कोई सजावट नह थी। िसफ द रयाँ िबछी हई थ । कु छ तैल-िच टँगे थे। िखड़िकयाँ खुली हई थ
िजनम-से सूरज क पीली िकरण आ रही थ । दूर ही से िखड़क के बाहर जो नजर जाती तो बाहर का हरा -भरा ऊँचा-
नीचा, ताल-तलैय , पेड़ -पहाड़ वाला नजारा देखकर पता चलता िक यह मंिजल िकतनी ऊँची ह और िकतनी िनजन।

अब वह देहाती लड़का भयभीत हो गया। यह िवशालता और िनजनता उसे आतं िकत करने लगी। वह डरने लगा।
लेिकन वह इतना ऊपर आ गया था िक नीचे देखने ही से आँख म च कर आ जाता। उसने ऊपर देखा तो िसफ एक ही
मंिजल शेष थी। उसने अगले जीने से ऊपर क मंिजल चढ़ना तय िकया।
ड डा क धे पर रखे और गठरी ख से वह लड़का धीरे-धीरे अगली मंिजल का जीना चढ़ने लगा। उसके पैर क आवाज
उसी से जाने या फु सलाती और उसक रीढ़ क हड् डी म-से सद सं वदे नाएँ गुजरने लगत ।
जीना ख म हआ तो िफर एक भ य बरामदा िमला, िलपा-पुता और अग -ग ध से महकता हआ। सभी ओर मृगासन,
या ासन िबछे हए। एक ओर योजन िव तार- य देखती, िखड़क के पास देव-पूजा म सं ल न-मन मुँदी आँख वाले
ऋिष-मनीिष क मीर क क मती शाल ओढ़े यान थ बैठे।

3
लड़के को हष हआ। उसने दरवाजे पर म था टेका। आन द के आँसू आँख म िखल उठे । उसे वग िमल गया।

' यान-मु ा' भं ग नह हई तो मन-ही-मन माने हए गु को णाम कर लड़का जीने क सव च सीढ़ी पर लेट गया।
तुर त ही उसे न द आ गयी। वह गहरे सपन म खो गया। थिकत शरीर और स तु मन ने उसक इ छाओं को मूत - प
िदया। वह िव ान् बन कर देहात म अपने िपता के पास वापस पहँच गया है। उनके चरण को पकड़े, उ ह अपने
आँसओ ु ं से तर कर रहा है और आ - दय हो कर कह रहा है, 'िपताजी! म िव ान बन कर आ गया, मुझे और
िसखाइए। मुझे राह बताइए। िपताजी! िपताजी! और माँ अंचल से अपनी आँख प छती हई, पु के ान-गौरव से भर
कर, उसे अपने हाथ से ख चती हई गोद म भर रही है। सा मु ख
ु िपता का वा स य-भरा हाथ उसके शीश पर आशीवाद
का छ बन कर फै ला हआ है।

वह देहाती लड़का चल पड़ा और देखा िक उस 'तेज वी ा ण' का दैिद यमान चेहरा, जो अभी-अभी मृद ु और
कोमल होकर उस पर िकरन िबखेर रहा था, कठोर और अजनबी होता जा रहा है।
ा ण ने कठोर होकर कहा, 'तुमने यहाँ आने का कै से साहस िकया? यहाँ कै से आये?'
लड़के ने म था टेका, 'भगवन्! म मूढ़ हँ, िनर र हँ, ानाजन करने के िलए आया हँ।'
ा ण कु छ हँसा। उसक आवाज धीमी हो गयी िक तु ढ़ता वही रही। सूखापन और कठोरता वही।
'तूने िन य कर िलया है?'
'जी!'
'नह , तुझे िन य क आदत नह है; एक बार और सोच ले! जा िफलहाल नहा-धो उस कमरे म, वहाँ जाकर भोजन कर
लेट, सोच-िवचार! कल मुझ से िमलना।'

दूसरे िदन युष काल म लड़का गु से पूव जागृत हआ। नहाया-धोया। गु क पूजा क थाली सजायी और
आ ाकारी िश य क भां ित आदेश क ती ा करने लगा। उसके शरीर म अब एक नयी चेतना आ गयी थी। ने
काशमान थे।
िवशालबाह पृथु-व तेज वी ललाटवाले अपने गु क चया देखकर लड़का भावुक- प से मु ध हो गया था। वह
छोटे-से-छोटा होना चाहता था िक िजससे लालची च टी क भाँित जमीन पर पड़ा, िम ी म िमला, ान क श कर का
एक-एक कण साफ देख सके और तुर त पकड़ सके !

4
गु ने सं शयपूण ि से देख उसे डपट कर पूछा; 'सोच-िवचार िलया?'
'जी!' क डरी हई आवाज!
कु छ सोच कर गु ने कहा, 'नह , तुझे िन य करने क आदत नह है। एक बार पढ़ाई शु करने पर तुम बारह वष तक
िफर यहाँ से िनकल नह सकते।
सोच-िवचार लो। अ छा, मेरे साथ एक बजे भोजन करना, अलग नह !'
और गु या ासन पर बैठकर पूजा-अचा म लीन हो गये। इस कार दो िदन और बीत गये। लड़के ने अपना एक
काय म बना िलया था, िजसके अनुसार वह काम करता रहा। उसे तीत हआ िक गु उससे स तु ह।
एक िदन गु ने पूछा, 'तुमने तय कर िलया है िक बारह वष तक तुम इस भवन के बाहर पग नह रखोगे ?'
नतम तक हो कर लड़के ने कहा, 'जी!'
गु को थोड़ी हँसी आयी, शायद उसक मूखता पर या अपनी मूखता पर, कहा नह जा सकता। उ ह लगा िक या इस
िनरे िनर र के आँख नह है? या यहाँ का वातावरण सचमुच अ छा मालूम होता है ? उ ह ने अपने िश य के मुख का
यान से अवलोकन िकया। एक सीधा, भोला-भाला िनर र बालमुख! चेहरे पर िन कपट, िन छल योित!
अपने चेहरे पर गु क गड़ी हई ि से िकं िचत िवचिलत होकर िश य ने अपनी िनर र बुि वाला म तक और नीचा
कर िलया।
गु का दय िपघला! उ ह ने िदल दहलाने वाली आवाज से, जो काफ धीमी थी, कहा, ' देख! बारह वष के भीतर तू
वेद, सं गीत, शा , पुराण, आयुवद, सािह य, गिणत आिद-आिद सम त शा और कलाओं म पारं गत हो जावेगा।
के वल भवन याग कर तुझे बाहर जाने क अनु ा नह िमलेगी। ला, वह आसन। वहाँ बैठ।'
और इस कार गु ने पूजा-पाठ के थान के समीप एक कु शासन पर अपने िश य को बैठा, पर परा के अनुसार पहले
श द- पावली से उसका िव ा ययन ार भ कराया।
गु ने मृद ुता ने कहा , -- 'बोलो बेटे –
राम:, रामौ, रामा:
और इस बाल-िव ाथ क अ फु ट दय क वाणी उस भयानक िन:सं ग, शू य, िनजन, वीरान भवन म गूँज- गूँज
उठती।
सारा भवन गाने लगा –
'राम: रामौ रामा: -- थमा!'

5
धीरे-धीरे उसका अ ययन ' िस ा तकौमुदी' तक आया और िफर अनेक िव ाओं को आ मसात् कर, वष एक-के -
बाद-एक बीतने लगे। िनयिमत आहार-िवहार और सं यम के फल व प िव ाथ क देह पु हो गयी और आँख म
नवीन ता य क चमक फु िटत हो उठी। लड़का, जो देहाती था अब गु से सं कृ त म वातालाप भी करने लगा।

के वल एक ही बात वह आज तक नह जान सका। उसने कभी जानने का य न नह िकया। वह यह िक इस भ य-


भवन म गु के समीप इस छोटी-सी दुिनया म यिद और कोई यि नह है तो सारा मामला चलता कै से है? िनि त
समय पर दोन गु -िश य भोजन करते। सु यवि थत प से उ ह सादा िक तु सुचा भोजन िमलता। इस आठव
मंिज़ल से उतर सातव मंिज़ल तक उनम से कोई कभी नह गया। दोन भोजन के समय अनेक िववाद त पर
चचा करते। यहाँ इस आठव मंिज़ल पर एक नयी दुिनया बस गयी।

जब गु उसे कोई छ द िसखलाते और जब िव ाथ म दा ा ता या शदूिलवा िड़त गाने लगता तो एकाएक उस


भवन म हलके -हलके मृदं ग और वीणा बज उठती और वह वीरान, िनजन, शू य भवन वह छ द गा उठता।

एक िदन गु ने िश य से कहा, 'बेटा! आज से तेरा अ ययन समा हो गया है। आज ही तुझे घर जाना है। आज बारहव
वष क अि तम ितिथ है। नान-स यािद से िनवृ हो कर आओ और अपना अि तम पाठ लो।'

पाठ के समय गु और िश य दोन उदास थे। दोन ग भीर। उनका दय भर रहा था। पाठ के अन तर यथािविध भोजन
के िलए बैठे।
दूसरे क म वे भोजन के िलए बैठे थे। गु और िश य दोन अपनी अि तम बातचीत के िलए वयं को तैयार करते हए
कौर मुँह म डालने ही वाले थे िक गु ने कहा, 'बेट,े िखचड़ी म घी नह डाला है?'
िश य उठने ही वाला था िक गु ने कहा, 'नह , नह , उठो मत!' और उ ह ने अपना हाथ इतना बढ़ा िदया िक वह क
पार जाता हआ, अ य क म वेश कर ण के भीतर, घी क चमचमाती लुिटया लेकर िश य क िखचड़ी म घी
उड़ेलने लगा। िश य काँप कर ति भत रह गया। वह गु के कोमल वृ मुख को कठोरता से देखने लगा िक यह कौन
है? मानव है या दानव? उसने आज तक गु के यवहार म कोई अ ाकृ ितक चम कार नह देखा था। वह भयभीत,
ति भत रह गया।

6
गु ने दु:खपूण कोमलता से कहा, ' िश य! प कर दूँ िक म रा स हँ िक तु िफर भी तु हारा गु हँ। मुझे तु हारा
नेह चािहए। अपने मानव-जीवन म मने िव क सम त िव ा को मथ डाला िक तु दुभा य से कोई यो य िश य न िमल
पाया िक िजसे म सम त ान दे पाता। इसीिलए मेरी आ मा इस सं सार म अटक रह गयी और म रा स के प म
यहाँ िवराजमान रहा।'
'तुम आये , मने तु ह बार-बार कहा, लौट जाओ। कदािचत् तुमम ान के िलए आव यक म और सं यम न हो िक तु
मने तु हारी जीवन-गाथा सुनी। िव ा से वैर रखने के कारण, िपता- ारा अनेक ताड़नाओं के बावजूद तुम गँवार रहे और
बाद म माता-िपता- ारा िनकाल िदये जाने पर तु हारे यिथत अहंकार ने तु ह ान -लोक का पथ खोज िनकालने क
ओर वृ िकया। म वृि वादी हँ, साधु नह । सकड़ मील जं गल क बाधाएँ पार कर तुम काशी आये। तु हारे चेहरे
पर िज ासा का आलोक था। मने अ ान से तु हारी मुि क । तुमने मेरा ान ा कर मेरी आ मा को मुि िदला दी।
ान का पाया हआ उ रदािय व मने पूरा िकया। अब मेरा यह उ रदािय व तुम पर आ गया है। जब तक मेरा िदया तुम
िकसी और को न दोगे तब तक तु हारी मुि नह ।'
'िश य, आओ, मुझे िवदा दो।'
'अपने िपताजी और माँजी को णाम कहना।'
िश य ने सा मु ख
ु य ही चरण पर म तक रखा आशीवाद का अि तम कर- पश पाया और य ही िसर ऊपर उठाया
तो वहाँ से वह रा स ितरोधान हो गया।
वह भयानक वीरान, िनजन बरामदा सूना था। िश य ने रा स गु का या ासन िलया और उनका िसखाया पाठ
मन-ही-मन गुनगुनाते हए आगे बढ़ गया।

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