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नक्षत्रों 

(Nakshatron) की क्या विशे षताएं हैं  ?
अश्विन नक्षत्र–
नक्षत्रों में अश्विन नक्षत्र पहला नक्षत्र है । अश्विन का अर्थ ‘घु ड़सवारि का या एक घोड़े का
जन्म’ तथा अश्विन नक्षत्र का प्रतीक ‘एक घोड़े का सिर’ होता है । इस नक्षत्र का स्वामी
ग्रह केतु हैं और नक्षत्र दे वता अश्विन कुमार हैं ।

अश्विन नक्षत्र में जन्मे जातक सामान्यतः सु न्दर , चतु र,  सौभाग्यशाली एवं स्वतं तर्
विचारों वाले होते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे जातक साज– सज्जा में अधिक विश्वास रखते हैं
इसलिए सदा ही आकर्षक मँ हगी और आरामदायक वस्तु ओं में रुचि रखते हैं ।

भरणी नक्षत्र–
नक्षत्रों की कड़ी में भरणी नक्षत्र को द्वितीय नक्षत्र माना जाता है । इस नक्षत्र का
ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक महत्व होता है । भरणी का अर्थ‘धारक’ होता है तथा इस
नक्षत्र का प्रतीक ‘त्रिकोण’ होता है । भरणी नक्षत्र का स्वामी ग्रह शु क्र होता है और
नक्षत्र दे वता यम होते हैं ।

इस नक्षत्र के जातक सु ख-सु विधाओं एवं आराम चाहने वाले होते हैं । ये कला के प्रति
आकर्षित रहते हैं और सं गीत,  नृ त्य, चित्रकला आदि में सक्रिय रूप से भाग ले ते हैं । ये
स्वतं तर् प्रकृति के एवं सु धारात्मक दृष्टि कोण रखने वाले होते हैं ।

कृतिका नक्षत्र–
कृतिका नक्षत्र आकाश मण्डल में तीसरा नक्षत्र है । कृतिका का अर्थ‘वह जो काटता है ’ तथा
इस नक्षत्र का प्रतीक ‘कुल्हाड़ी, ज्वाला, उस्तरा होता है । इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह सूर्य
होता है तथा नक्षत्र दे वता अग्नि हैं ।

कृतिका नक्षत्र पृ थ्वी से दे खने पर आस-पास दिखने वाले कई तारों के इस समूह को भारतीय
खगोलशास्त्र और हिन्द ू धर्म में सप्तऋषि की पत्नियां भी कह गया है ।इस नक्षत्र में पै दा
हुए जातक साहसी होते है , शारीरिक रूप से काफी सक्रिय व ऊर्जावान होते है । इनकी वाणी
ू रों की
तीक्ष्ण होती है परन्तु फिर भी उनके पास अद्भुत इच्छा शक्ति,  स्वतं तर् ता व दस
सहायता करने की शक्ति होती है । यह नक्षत्र साहस, जागरूकता व शु दधि ् करण से सम्बं धित
है ।

रोहिणी नक्षत्र–
रोहिणी नक्षत्र आकाश मण्डल में चौथा नक्षत्र है । रोहिणी का अर्थ ‘लाल वर्ण वाला, बढ़ने
वाला’होता है तथा इस नक्षत्र का प्रतीक एक बै लगाड़ी, रथ होता है । इस नक्षत्र का स्वामी
ग्रह चन्द्रमा होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता ब्रह्मा हैं ।

इस नक्षत्र में जन्मे जातक की शारीरिक बनावट साधारण होती है । ये मृ दुभाषी व प्रसिद्ध
् मान और कुशल होते हैं । इस नक्षत्र
व्यक्ति होते हैं । इनका गु ण कोमल व स्वभाव सभ्य, बु दधि
के जातक को इमानदारी और वफादारी पसं द होता है ।

मृ गशिरा नक्षत्र–
नक्षत्रों के गणना क् रम में मृ गशिरा नक्षत्र का पाँचवाँ स्थान है । मृ ग शिरा का अर्थ‘हिरण का
सिर या उदार’ होता है तथा इस नक्षत्र का प्रतीक ‘हिरण का सिर’ होता है ।इस नक्षत्र का
स्वामी ग्रह मं गल होता है । इसके नक्षत्र दे वता चन्द्रमा हैं ।

इस नक्षत्र के जातक दृढ़ निश्चयी होते हैं । ये आकर्षक व्यक्तित्व और रुप के स्वामी होते हैं ।
ये हमे शा सावधान एवं सचे त रहते हैं । ये मानसिक तौर पर बु दधि ् मान और शारीरिक तौर पर

तं दरुस्त होते है । ये सं सारिक सु खों का उपभोग करने वाले होते हैं ।

आर्द्रा नक्षत्र–
आर्द्रा नक्षत्र का नक्षत्रों में छठवां नक्षत्र है । आर्द्रा का अर्थ नम होता है तथा इस नक्षत्र
का स्वामी ग्रह राहु होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता शिव होते हैं ।

इस नक्षत्र में जन्मे जातक चं चल स्वभाव के, हँ समु ख, अभिमानी, दुख पाने वाले , बु रे विचारों
वाले व्यसनी होते हैं ।ये लोग राजनीति में पराक् रमी, चतु र, चालाक अपने विरोधियों को
परास्त करने वाले होते हैं ।

पुनर्वसु  नक्षत्र–
पु नर्वसु नक्षत्र आकाश मण्डल में सातवां नक्षत्र है ।पु नर्रका अर्थ आवृ त्ति है तथा वसु का अर्थ
प्रकाश की किरण है । इस प्रकार पु नर्वसु का अर्थ‘पु नः प्रकाश बनने से है ’ होता है । इस
नक्षत्र का प्रतीक ‘तीरों का तरकश ’है जो इच्छाओं और महत्वाकां क्षाओं के प्रति प्रयास
करने की क्षमता को दर्शाता है । इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह बृ हस्पति होता है तथा इस नक्षत्र
के दे वता आदित्य होते हैं ।

पु नर्वसु निवास से सम्बं धित नक्षत्र है इसलिए इस नक्षत्र में उत्पन्न लोग प्रायः अपने घर
में रहना पसं द करते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे जातक धर्म निष्ठ, उत्तम व्यवहार, शांत, धै र्यवान,
बौद्धिक और अध्यात्मिक ज्ञान से यु क्त होते हैं ।

पु ष्य नक्षत्र–
पु ष्य नक्षत्र , नक्षत्रों के कड़ी में आठवां नक्षत्र है । सभी नक्षत्रों में पु ष्य नक्षत्र को सबसे
अच्छा माना जाता है । पु ष्य का अर्थ ‘पोषण करने वाला, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने वाला’
होता है ।विद्वान इस नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह ‘गाय का थन’ मानते हैं ।

पु ष्य नक्षत्र के स्वामी ग्रह शनि होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता बृ हस्पति हैं । ज्योतिष
शास्त्र में पु ष्य नक्षत्र को बहुत शु भ और कल्याणकारी माना जाता है ।

ू रों की भलाई के लिए सदै व तत्पर रहते हैं । ये मे हनत और


इस नक्षत्र में जन्मे जातक दस
परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटते हैं । ये अध्यात्म में काफी रुचि रखते हैं । ये चं चल मन और
यात्रा और भ्रमण के शौकीन होते हैं ।

अश्ले षा नक्षत्र–
अश्ले षा नक्षत्र, नक्षत्रों में नौवां नक्षत्र है ।अश्ले षा का अर्थ ‘किसी प्रकार की कुंडली मारने
से ’ लिया जाता है । अश्ले षा नक्षत्र का प्रतीक ‘एक सर्प’ को माना जाता है । जिसके कारण
अश्ले षा नक्षत्र को सर्पों तथा उनके गु णों के प्रभाव में आने वाले नक्षत्र के रूप में दे खा
जाता है ।
अश्ले षा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बु ध होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता नाग हैं । इस नक्षत्र
में पै दा हुए जातक सफल व्यापारी, चतु र अधिवक्ता, भाषण कला में निपु ण होते हैं । ये स्वभाव
में हठीले एवं जिद्दी होते हैं ।

मघा नक्षत्र–
नक्षत्रों के कड़ी में मघा नक्षत्र का दसवां स्थान है । मघा का अर्थ ‘महान’ होता है तथा इस
नक्षत्र का प्रतीक‘राज सिं हासन’ होता है । मघा नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु होता है तथा इस
नक्षत्र के दे वता पितर होते हैं ।

मघा नक्षत्र में पै दा हुए जातक विद्या में ते ज, जु बान के पक्के होते हैं । ये स्थानीय राजनीति में
अधिक सफल होते हैं । ये निर्भिक, साहसी और घमं डी होते हैं ले किन स्वयं के कार्य में फुर्तीले
होते हैं । ऐसे लोग विद्वानों के बीच सम्मानीय होते हैं ।

पूर्वा  फाल्गुनी नक्षत्र–
पूर्वा फाल्गु नी नक्षत्र 11 वाँ नक्षत्र है । पूर्वा फाल्गु नी का अर्थ पहले का लाल होता है तथा
इस नक्षत्र का प्रतीक ‘पलं ग का पै र वाला हिस्सा या बिस्तर का झल ू ा’ होता है । इस नक्षत्र
स्वामी ग्रह शु क्र है तथा दे वता भगा हैं ।

इस नक्षत्र में जन्मे जातक मनमोहक छवि और मीठा बोलने वाले होते हैं । ये दस ू रों की मदद
के लिए सदै व तत्पर रहते हैं । इनकी सरकारी क्षे तर् में कार्य करने की सम्भावना अधिक होती
है । ये स्वभाव से चं चल एवं त्यागी होते हैं । ये अनु शासन में रहना पसं द करते हैं ।

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र–
नक्षत्रों में 12 वाँ नक्षत्र है । उत्तरा फाल्गु नी का अर्थ ‘बाद का लाल’ होता है तथा इस
नक्षत्र का प्रतीक ‘पलं ग का पै र का हिस्सा या बिस्तर का झल ू ा ‘होता है ।

इस नक्षत्र के स्वामी ग्रह सूर्य है तथा इसके दे वता आर्यमन हैं । इस नक्षत्र में जन्मे जातक
स्वभाव वश शांत, सु व्यवस्थित और दृढ़ निश्चयी होते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे जातक
अधिकतर दाँतों की समस्याओं, पे ट-सम्बन्धी परे शानियों व शारीरिक थकान से ग्रसित रहते
हैं । ये धार्मिक,  ऊर्जा व ज्ञान के भण्डार, दानी, उदार व परोपकारी प्रवृ त्ति के होते हैं ।

हस्त नक्षत्र–
 हस्त नक्षत्र का नक्षत्रों में 13 वाँ स्थान है । हस्त का अर्थ ‘हाथ’ होता है । इस नक्षत्र का
प्रतीक ‘हाथ का पं जा’ होता है । यह आकाश में हाथ के पं जे के आकार में फैला है ।
हस्त नक्षत्र का स्वामी ग्रह चन्द्रमा होता है तथा इसके दे वता आदित्य हैं । यह नक्षत्र
समझौते और अभिवादन का प्रतीक है क्योंकि इन्हें हाथ मिलाकर प्रदर्शित किया जाता है ।

हस्त नक्षत्र एक आशावादी नक्षत्र हैं जिसमें निर्माण करने की एक अद्वितीय क्षमता है । इस
नक्षत्र में पै दा हुए लोग अपने हाथों द्वारा इच्छित वस्तु की पूर्ति करने का सामर्थ्य रखते हैं । ये
लोग मे हनती,  बु दधि ् मान और तर्क शील होते हैं ।

चित्रा नक्षत्र–
चित्रा नक्षत्र 14 वाँ नक्षत्र है । चित्रा का अर्थ ‘चमकदार, उज्जवल’होता है तथा इस
नक्षत्र का प्रतीक ‘एक उज्जवल आभूषण या चमकदार ज्योति’ होता है । चित्रा नक्षत्र का
स्वामी ग्रह मं गल है तथा इस नक्षत्र के दे वता ते जस्वी हैं ।

इस नक्षत्र में जन्मे लोग रूप, सौंदर्य, कला और सं रचना से प्रभावित होते हैं । चित्रा
नक्षत्र विपरीत लिं ग को आकर्षित करने की क्षमता प्रदान करता है । इस नक्षत्र के लोग
ऊपरी तौर पर व्यवस्थित दिखाई दे ने की कोशिश करते हैं ले किन आं तरिक रूप से वे
अव्यवस्थित या निराशावादी हो सकते हैं ।

स्वाति नक्षत्र–
स्वाति नक्षत्र का नक्षत्रों में 15 वाँ स्थान है । स्वातिका अर्थ’ स्वतं तर् होता है । इस नक्षत्र
का प्रतीक ‘हवा में लहराता एक छोटा पौधा,  तलवार ’ है जो लचीले पन,  चपलता वबै चेनी
को दर्शाता है ।

स्वाति नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता पवन दे व हैं । स्वाति
नक्षत्र के लिए एक कहावत है जब स्वाति नक्षत्र में ओंस की बूंद सीप पर गिरती है तो मोती
बन जाता है । इसका मतलब मोती नहीं बनता बल्कि ऐसा जातक मोती के समान चमकता है ।

इस नक्षत्र में जन्मे लोग एक मजबूत व सौम्य प्रकृति प्रदान करते हैं । ये विनम्र तथा
कू टनितिज्ञ होते हैं । सं सार का सं चालन करने के लिए ये अपनी आकर्षण शक्ति का प्रयोग
करते हैं । ऐसे लोगों का सामाजिक शिष्टाचार में दृढ़ विश्वास होता है ।

विशाखा नक्षत्र–
विशाखा नक्षत्र 16 वाँ नक्षत्र है । विशाखा का अर्थ ‘विभाजित शाखा या एक से अधिक
शाखाओं वाला’ होता है । इस नक्षत्र का प्रतीक ‘प्रवे श द्वार’ होता है ।विशाखा नक्षत्र का
स्वामी ग्रह बृ हस्पति होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता इं दर् दे व और अग्नि दे व हैं ।

इस नक्षत्र में जन्मे जातक सदाचारी और न्याय प्रिय होते हैं । इनमें धर्म के प्रति विशे ष रुचि
दे खी जा सकती है । ये व्यक्ति मधु र वाचक होते हैं । इन लोगों में ज्ञान प्राप्ति के लिए
उत्सु कता बनी रहती है , जिससे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करते हैं ।

ये व्यक्ति बहुत ही महत्वाकां क्षी, धनवान और शक्तिशाली होते हैं । ये व्यक्ति पारिवारिक एवं
सामाजिक तौर पर मिलनसार, मितभाषी और मददगार होते हैं ।

अनुराधा नक्षत्र–
 अनु राधा नक्षत्र का नक्षत्रों में 17 वाँ स्थान है । अनु राधा का अर्थ ‘अनु वर्ती सफलता’ होता
है तथा इस नक्षत्र का प्रतीक ‘कमल पु ष्प या एक कुंड’ होता है ।
अनु राधा नक्षत्र सफलता से सम्बन्धित है तथा यह विशे ष रूप से सहयोग द्वारा प्रसिद्धि व
मान्यता प्रदान करता है ।

अनु राधा नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता मित्र हैं । इस
नक्षत्र में पै दा हुए लोग मानवता को सहयोग व बढ़ावा दे ते हैं तथा बड़े समूहों की अगु वाई
करने या उन्हें व्यवस्थित करने में सक्षम होते हैं । इस नक्षत्र में सं कट के समय कमल पु ष्प के
समान फलने -फू लने व दृढ़ बने रहने की क्षमता होती है । विदे शी यात्रा व सफलता भी इस
नक्षत्र द्वारा समर्पित है ।

ज्ये ष्ठा नक्षत्र–
ज्ये ष्ठा नक्षत्र 18 वाँ नक्षत्र है । ज्ये ष्ठा का अर्थ‘ज्ये ष्ठ अर्थात सबसे बड़ा’ होता है । इस
नक्षत्र का प्रतीक ‘लटके हुए झुमके या छाते की तरह’ होता है । छाते का प्रयोग धूप तथा
वर्षा से रक्षा के लिए किया जाता है । उसी प्रकार ज्ये ष्ठा को रक्षा, सु रक्षा, परिपक्वता,
पारलौकिक तथा प्रभु त्व के साथ जु ड़े एक नक्षत्र के रूप में दे खा जा सकता है ।

ज्ये ष्ठा नक्षत्र गं डमूल नक्षत्र कहलाता है । ज्ये ष्ठा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बु ध होता है
तथा इस नक्षत्र के दे वता इं दर् हैं । इस नक्षत्र में जन्मे जातक प्रत्ये क बात को काफी सोच –
विचार कर बोलने वाले व भाषा में सं तुलित होते हैं । इनकी वाणी में चतु राई दे खने को मिलती
है । इनकी इच्छा शक्ति बहुत प्रबल होती है । इस नक्षत्र का व्यक्ति बहुत ही क्रियाशील
होता है ।

मूल नक्षत्र–
मूलनक्षत्र 19 वाँ नक्षत्र है । मूल का अर्थ ‘जड़’ होता है । इस नक्षत्र का प्रतीक‘अं कुश’
होता है । इस नक्षत्र का  स्वामी ग्रह केतु होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता नै त्र्मृ तिदे व हैं ।

मूल नक्षत्र के जातक आमतौर परलक्ष्य केन्द्रित होते हैं तथा ये जातक कठिन से कठिन
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहते हैं । ये आर्थिक रूप से सफल और
आरामदायक जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं । इस नक्षत्र में लोक वक्ता, दार्शनिक,  डाक्टर,
राजनीतिज्ञ, आध्यात्मिक अध्यापक जन्म ले ते हैं ।

पूर्वा षाढ़ा नक्षत्र–
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र 20 वाँ नक्षत्र है । इस नक्षत्र को जलम् या तोयम् भी कहा जाता है ।
पूर्वाषाढ़ा का अर्थ ‘विजय से पूर्व ’होता है । इस नक्षत्र का प्रतीक ‘बाल्टी अथवा हाथी दाँत’
है । इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शु क्र होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता जल हैं ।

इस नक्षत्र के जातक सं वेदनशील, कोमल हृदय के स्वामी और दस ू रों की सहायता करने वाले
होते हैं । इनमें एक विशिष्ट गु ण होता है कि एक बार जो निर्णय ले ते हैं फिर उससे पीछे नहीं
हटते । यह नक्षत्र धन, कला,  सौंदर्य प्रसाधन, चिकित्सा, काम वासना आदि का कारक है ।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र–
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का नक्षत्रों में 21 वाँ स्थान है । उत्तराषाढ़ा का अर्थ ‘विजय के बाद’ होता
है । इस नक्षत्र का प्रतीक ’हाथी के दाँत’ होता है । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का स्वामी ग्रह सूर्य
होता है । इस नक्षत्र के दे वता विश्व दे वा हैं ।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातकों में कृतज्ञता की भावना विशे ष रूप से पाई जाती है । ऐसे व्यक्ति
धार्मिक आस्था प्रवृ त्ति के होते हैं । ऐसे व्यक्तियों को शिल्प कला जै से वास्तु कार, मिस्त्री,
इं जीनियर, भवन निर्माण करने वाले कार्य अच्छा लगता है । ये लोग सं स्कारी, साफ दिल के
और मृ दुभाषी होते हैं ।
श्रवण नक्षत्र–
 इस नक्षत्र का नक्षत्रों में 22 वाँ स्थान है । श्रवण का अर्थ ‘सु नना’ होता है । इस नक्षत्र का
प्रतीक का न होता है । श्रवण नक्षत्र का स्वामी ग्रह चन्द्रमा होता है तथा इस नक्षत्र के
दे वता विष्णु हैं ।
श्रवण नक्षत्र के जातक सामाजिक व्यवहार में कुशल होते हैं । व्यापार में क् रय- विक् रय से
लाभ उठाने वाला, भूमि सम्बन्धी कार्यों में निपु ण एवं धार्मिक कार्यों में उत्साह दिखाने वाला
होता है ।

ये प्रोद्यौगिकी,  इं जीनियरिं ग, ते ल से सम्बं धित व्यवसाय भी अच्छी तरह से कर सकते हैं ।
श्रवण नक्षत्र में जन्मे जातक कृतज्ञ, सु न्दर, दाता, लक्ष्मी वान, पं डित, धनवान और विख्यात
होता है ।

धनिष्ठा नक्षत्र–
धनिष्ठा नक्षत्र 23 वाँ नक्षत्र हैं । धनिष्ठा का अर्थ ‘सबसे धनवान’ होता है । इस नक्षत्र का
प्रतीक ड्रम, बाँसुरी होता है । धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी ग्रह मं गल होता है तथा इस के
दे वता अष्टवसु हैं ।

धनिष्ठा नक्षत्र के जातक ऊर्जावान, ते जस्वी, पराक् रमी,परिश्रम के द्वारा सफलता पाने वाले
होते हैं । ऐसे जातक पर जीवन भर मं गल और शनि का प्रभाव रहता है ।

इस नक्षत्र में उत्पन्न हुए लोगों में सं गीत के प्रति प्राकृतिक योग्यता होती है तथा जीवन
के समस्त पहलु ओं से उनका उत्तमताल मे ल होता है । ऐसे लोग की साहसिक प्रकृति तथा वे
यात्राएं करने में रुचि रखते हैं ।

शतभिषा नक्षत्र–
 शतभिषा नक्षत्र, नक्षत्रों में 24 वाँ स्थान है । शतभिषा का अर्थ सौ चिकित्सक अथवा
सौचिकित्सा होता है । इस नक्षत्र का प्रतीक‘चक् र अथवा वृ त‘ होता है । शतभिषा नक्षत्र का
स्वामी ग्रह राहु होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता वरुण दे व हैं ।
इस नक्षत्र में जातक व्यसन यु क्त, बिना विचार करने वाला, किसी के वश में न होने वाला
तथा शत्रुओं को जीतने वाला होता है । इसके साथ ही जातक कृपण पर स्त्रीगामी तथा
विदे श में रहने की कामना करने वाला होता है । ऐसे जातक सत्यनिष्ठ, सत्य के लिए बलिदान
दे ने से भी पीछे नहीं हटने वाले और नि:स्वार्थ प्रवृ त्ति के होते हैं ।

पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र–


पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र 25 वाँ नक्षत्र है । पूर्वाभाद्रपद का अर्थ’ शु भ पद यानि भाग्यशाली पावों
वाला’। भाद्र या भद्र का अर्थ होता है सज्जन, शु भ, कल्याणकारी या भाग्य में वृ दधि ् करने
वाला और पद का अर्थ चरण या पाँ व से है । इस प्रकार पूर्वाभाद्रपद ऐसा नक्षत्र है , जिसके
आगमन से लोगों का कल्याण हो और लोगों के लिए शु भ हो । इस नक्षत्र का प्रतीक‘सोफे
के अगले पाये ’ होता है ।

इस नक्षत्र का ग्रह स्वामी बृ हस्पति होता है तथा इस नक्षत्र के दे वता अजै कपाद हैं ।
इस नक्षत्र में जन्मे जातक दयालु और ने कदिल होने के साथ-साथ खु ले विचारों वाले व्यक्ति
ू रों की मदद करने में सदा आगे रहते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे
होते हैं । ये बहुत साहसी और दस
लोग अपने आदर्शों और सिद्धांतों पर ही आजीवन चलना पसं द करते हैं ।

उत्तराभाद्र पद नक्षत्र–
 उत्तराभाद्र पद नक्षत्र 26 वाँ नक्षत्र है । इसका अर्थ ‘जिसके पाँ व भाग्यशाली हो’ होता है ।
इस नक्षत्र का प्रतीक ‘एक पलं ग के पिछले दो पै र’ होता है । यह एक सोफे के पिछले पाये
की तरह दिखाई दे ता है ।
उत्तराभाद्र पद नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि होता है तथा इस नक्षत्र के स्वामी अहिर्बुधन्य
् मान और
हैं । इस नक्षत्र के जातक निष्पक्ष व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं । ये बहुत बु दधि
विवे कशील व्यक्ति होते हैं ।

ये किसी भी कार्य क्षे तर् में उच्च पद को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं । ऐसे लोग दयालु व
धार्मिक और मानवतावादी कार्यों की ओर आकर्षित होते हैं ।

रे वती नक्षत्र–
रे वती नक्षत्र 27 वाँ और नक्षत्रों में आखिरी नक्षत्र है । रे वती का अर्थ‘धनवान’ होता है । इस
नक्षत्र का प्रतीक ‘एक ढ़ोल या समु दर् में तै रती एक मछली’होता है । रे वती नक्षत्र का
स्वामी ग्रह बु ध होता है । तथा इस नक्षत्र के दे वता पूषा हैं ।

इस नक्षत्र में विद्या का आरं भ, गृ हप्रवे श, विवाह, सम्मान प्राप्ति, दे व प्रतिष्ठा इत्यादि
कार्य सम्पन्न किए जाते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे जातक बहुत समृ द्ध होते हैं । ये आकर्षक और
सामाजिक होते हैं । ये स्वतं तर् और अतिमहत्वकां क्षी होते हैं ।

इस नक्षत्र के जातक मधु रभाषी,  व्यवहार-कुशल और स्वतं तर् प्रवृ त्ति के होते हैं । यह
नक्षत्र सु रक्षित व सार्थक यात्राओं से भी सम्बं धित है । रे वती सर्वाधिक आशावादी नक्षत्रों
में से एक है जो विशाल लक्ष्य बनाकर उन्हें प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करता है ।

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