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जाना
नह …
सफलता क राह पर बढ़ते जाने के ेरक मं
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कई कहा नयाँ कई भाषाएँ

‘एका’ श द एकता का पयाय है। इसका ता पय है ‘कई’ को ‘एक’ के प म समे कत करना। व भ भारतीय
भाषा क बेहतरीन रचना को सं हत करने तथा व भ भाषा म पु तक के पठन को बढ़ावा दे ने के लए, दे श के
वचारशील य क रचना को का शत करने के उ े य से वे टलड के इस नवीन भाषाई काशन- च को बनाया
गया है। एका व भ भाषा म अनुवाद तथा अलग-अलग सं कृ तय एवं पृ भू म के लेखक और पाठक को संब
करते ए सा ह य को अ य व वधतापूण व जीवंत भाषाई बाजार तक प ंचाने के लए भी यासरत है। 23 आ धका रक
भाषा और 700 से अ धक बो लय वाले इस दे श म अनुवाद केवल ज़ रत क पू त का साधन नह है—ब क यह एक
ता का लक आव यकता है।

एका ारा दस भारतीय भाषा क मूल रचना का काशन कया जाएगा: जसम हद , उ , बंगाली, गुजराती, मराठ ,
ओ डया, क ड़, तेलुगु, त मल और मलयालम शा मल ह। यह इन भाषा म पर पर अनुवाद तथा इनके अं ेजी म
अनुवाद क व वधतापूण कताब का भी काशन करेगा। वष 2019 के लए ता वत 100 पु तक के मुख लेखक म
मनोरंजन यापारी (बंगाली), सरशो बंदोपा याय (बंगाली), ववेक शानभग (क ड़), वसुध (क ड़), पे मल मु गन
(त मल), कैफ़ आज़मी और जां नसार अ तर (उ ), बो गा (तेलुगु), उ ी आर. (मलयालम), वीजे जे स (मलयालम),
जॉनी मरांडा (मलयालम), व ास पाट ल (मराठ ), रणजीत दे साई (मराठ ), शवाजी सावंत (मराठ ), पवन के. वमा,
संजीव सा याल, अमीश, अ न सांघी, चेतन भगत, राजेश कुमार (त मल) तथा अनु सह चौधरी ( हद ) शा मल ह।

बीते वष म अनुवा दत रचना के े म वे टलड को आशातीत सफलता ा त ई है। एका अंतररा ीय तर पर


सवा धक बकने वाली पु तक के काशन के मह वाकां ी काय म का भी संचालन कर रहा है, जसके अंतगत नोबेल
पुर कार वजेता उप यासकार, काजओ इ शगुरो क पु तक हेन वी वेयर ऑफ स और द रमस ऑफ द डे , बड़े पैमाने पर
लोक य वी डश लेखक ट एग लासन क मले नयम लॉजी , जापानी लेखक केइगो हगा शनो क द डवोशन ऑफ
स पे ट ए स तथा जेफ़री आचर क केन एंड एबेल शा मल ह।

इस वष वे टलड हद यु म के साथ नई वाली हद के 12 लेखक क पु तक भी का शत करेगा। इन सभी लेखक क


कृ तयाँ मूल हद क ह गी जससे ‘एका’ के पाठक य संसार को एक नया आयाम मलेगा।

हम आपको वे टलड के इस ब कुल नए व रोमांचक सफ़र, अथात् एका के साथ जुड़ने के लए आमं त करते ह।
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जाना
नह …

नशा त जैन
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Published in Hindi as Ruk Jaana Nahin in 2019 by Hind Yugm and


Eka, an imprint of Westland Publications Private Limited

1st Floor, A Block, East Wing, Plot No. 40, SP Infocity, Dr MGR Salai,
Perungudi, Kandanchavadi, Chennai 600096

Hind Yugm
201 B, Pocket A, Mayur Vihar Phase-2, Delhi-110091
www.hindyugm.com

Westland, the Westland logo, Eka and the Eka logo are the
trademarks of Westland Publications Private Limited, or its affiliates.

Copyright © Nishant Jain, 2019

ISBN: 9789388754781

10 9 8 7 6 5 4 3 2 1

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तमाम सामा जक-आ थक-शै क संघष के बावजूद,


बना थके अपनी राह बनाने वाले
‘ हद मी डयम’ के लाख युवा क ह मत को सम पत
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अपनी बात

अपनी इस ब ती त कताब के बारे म कुछ लखना है। इसक शु आत के बारे म सोचना


शु कया तो पाया क कताब के बारे म पहली बार 2018 के नई द ली व ड बुक फ़ेयर
म वचार आया था। मुझे हर साल पु तक मेले म द ली जाने क आदत है। जब भी ग त
मैदान जाता ँ तो वाभा वक तौर पर युवा और परी ा थय से मलने और ब तयाने का
अवसर मलता ही है। अपनी आँख म चमक लए गाँव-क़ बे-छोटे शहर के उ साही युवा
क भीड़ जब उ मीद भरी नगाह से आपको घेर लेती है, तो एक दा य वबोध का एहसास
होता है। तभा से भरपूर ये युवा जीवन म आगे बढ़ना और कुछ कर दखाना चाहते ह। ये
भी एक बेहतर भ व य डज़व करते ह।
कताब के इस मेले म हर बार क तरह ‘नई वाली हद ’ के णेता हद के काशक
शैलेश भारतवासी और हद के ज़मीनी युवा लेखक नीलो पल मृणाल से मुलाक़ात ई। चचा
ई क मेरी ओर से युवा के लए एक मो टवेशनल कताब आनी चा हए, जो हद पट् ट
के युवा क इमोशनल ज़ रत को पूरा करे और उ ह ज़दगी के उतार-चढ़ाव के बीच
एक संबल, एक दशा दे सके। छोट से लेकर बड़ी तयोगी परी ा क तैयारी के लए
कमर कसने और जी-तोड़ मेहनत करने वाले युवा तैयारी के दौरान कभी-कभी कमज़ोर या
हताश-सा महसूस करते ह। ऐसे म उनम ऊजा का संचार करने के लए एक सकारा मक
टॉ नक क ज़ रत थी। मेरी को शश है क ‘ क जाना नह ’ कताब ऐसा ही एक टॉ नक
बने।
द ली, इलाहाबाद, बनारस जैसे हद के गढ़ म युवा व ा थय से संवाद के दौरान
भी कई बार मुझे ऐसा महसूस आ क हम युवा ज़दगी क दौड़ म आगे बढ़ने क या ा के
दौरान कई बार डाउन फ़ ल करते ह। ऐसा सबके साथ होता है। म भी आज भी कभी लो/
डाउन या कमज़ोर महसूस करता ँ और उलझन म फँस-सा जाता ।ँ ऐसे म कुछ लाइफ़
कल, कुछ नु ख़े इस उलझन से नकलने म मदद करते ह।
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मने ख़ुद अपने कै रयर म बीस-इ क स क उ से अट् ठाईस क उ म IAS बनने तक


तमाम तयोगी परी ाएँ द ह और सफलता-असफलता दोन का वाद चखा है। मेरी या ा
क एक दलच प बात यह भी रही क मने ुप सी, बी और ए तीन े णय क नौक रयाँ
क और हर जगह समपण से काम करते ए म नरंतर आगे बढ़ता गया और अंततः भारतीय
शास नक सेवा (आई.ए.एस.) का ह सा बन सका।
इस कताब म मने को शश क है क हद पट् ट के युवा के मनो व ान के अनु प
उनके मन क थाह ली जाए और फर उनक सकारा मक प से मदद क को शश क
जाए। इस कताब के छोटे -छोटे लाइफ़ मं इस कताब को ख़ास बनाते ह। ये छोटे -छोटे मं
जीवन म बड़ा बदलाव लाने क मता रखते ह। यह कताब तयोगी परी ा क तैयारी
करने वाले हद मी डयम के युवा को क म रखकर लखी गई है।
इस कताब क कुछ और ख़ा सयत भी ह। इसम पसनै लट डेवलपमट के ै टकल
नु ख़ के साथ े स मैनेजमट और टाइम मैनेजमट पर भी व तार से बात क गई है। चतन
या म छोटे -छोटे बदलाव लाकर अपने कै रयर और ज़दगी को काफ़ बेहतर बनाया जा
सकता है। व ा थय के लए री डग और राइ टग कल को सुधारने पर भी इस कताब म
बात क गई है। कुल मलाकर कताब म को शश क गई है क सरल और अपनी-सी लगने
वाली भाषा म युवा के मन को टटोलकर उनके मन के ऊहापोह और उलझन को
सुलझाया जा सके।
रही बात इस कताब को आपके सामने लाने क , तो हद यु म के शैलेश भारतवासी
और मनीष वंदेमातरम् के ो साहन के लए म उनका आभारी ।ँ ‘नई वाली हद ’ के युवा
ह ता र नीलो पल मृणाल ने शु आती दौर म इस कताब के कॉ से ट क सराहना क । हद
यु म आम तौर पर फ़ शन/नॉवेल के लए च चत है। मेरी यह कताब हद यु म के लए भी
एक नये अंदाज़ क नॉन- फ़ शन मो टवेशनल कताब है।

इस कताब क एक और ख़ास बात यह भी है क बाज़ार म उपल ध यादातर


मो टवेशनल कताब जहाँ मूल प से इं लश कताब के ांसलेशन ह, वहाँ मेरी यह कताब
मूल प से अपनी जबान म लखी गई एक दल से जुड़ने वाली ख़ा लस हद कताब है।
उ मीद है क ‘मुसा फ़र कैफ़े’ पर ‘मसाला चाय’ क चु कय के बीच ‘ ेम कबूतर’ से
ब तयाते ए अपनी शाम बताने वाले ‘ द ली दरबार’ के सभी ‘औघड़’ क़ म के ‘दे हाती
लड़क ’ को ये कताब ‘ क जाना नह ’ ज़ र पसंद आएगी।
म इस कताब के आ ख़री चै टर ‘सफलता के सफ़र क कुछ शानदार कहा नयाँ’ म
शा मल 26 ेरणादायक कहा नय के लए अपने साथी स वल सेवा अ धका रय का दल
से शु या कहना चाहता ँ, ज ह ने अपनी क़लम से अपनी अनकही कहा नयाँ लखी ह। ये
दलच प और अनूठ कहा नयाँ युवा के लए न य ही संजीवनी का काम करगी।
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वषय सूची

कैसे सँवार अपना व


अ त- त नह , त और म त रह…
पर परोप हो जीवानाम् : साथ नभाएँ
या पढ़ रहे ह आजकल?
सतह पर ही न रह, मम भी समझ
तकनीक से कर दो ती
परफ़े शन को कह ‘ना’
जीवन के तीन मागदशक
य अपनाएँ म यम माग?
अपनी लक र बड़ी कर
क जाना नह , तू कह हार के…
सतार के आगे जहां और भी है…
नई शु आत, नये संक प
मेरी कहानी : यूँ ही चला चल राही…
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सफलता के सफ़र क कुछ शानदार कहा नयाँ


आशीष कुमार, उ र दे श
आ द य, राज थान
आ द य कुमार झा, बहार
अन कुमार, बहार
अंसार शेख़, महारा
बालाजी डी.के., कनाटक
चेतन कुमार मीणा, राज थान
दे व चौधरी, राज थान
गंगा सह राजपुरो हत, राज थान
गौरव सह सोगरवाल, राज थान
इ मा अफ़रोज़, उ र दे श
कंचन का डपाल, उ राखंड
लखन सह यादव, राज थान
मोह मद मु ताक़, बहार
पूजा पाथ, राज थान
द प कुमार, ह रयाणा
रजत सकलेचा, म य दे श
राज प सया, राज थान
रतनद प गु ता, उ र दे श
स चन जैन, उ र दे श
सतदर सह, उ र दे श
शैल बाम नया, राज थान
सुक त माधव, बहार
सुरेश कुमार जगत, छ ीसगढ़
उ मुल ख़ैर, राज थान
वजय सह गुजर, राज थान
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कैसे सँवार अपना व

कॉ प टशन म सफलता क उ मीद म अपनी क़ मत आज़माने क चाहत लए छोटे -


छोटे शहर से, ख़ाली-बोर पहर से, झोला उठाकर चलने वाले युवा ऐसा या कर क
उनक सफलता क संभावनाएँ बढ़ जाएँ। युवा अ यथ अपने व म ऐसे कौन-से
बदलाव या सुधार लाने क को शश कर क उनके सपने साकार हो सक। इ ह से
जूझते युवा के कुछ सवाल के जवाब दे ने क ईमानदार को शश म अपने सी मत ान,
अनुभव व नज़ रये के आधार पर कर रहा ँ।
इसम कोई संदेह नह है क कोई भी युवा अपने सम व म कुछ भावी सुधार
लाकर ए ज़ाम ही नह , जीवन म भी ओवरऑल सफलता क अपनी संभावना को
कमोबेश बढ़ा तो सकता ही है। इनम से कुछ ज़ री बात ह:—

बनी रहे ज़दा दली…


हमने ऐसे तमाम जीवंत उदाहरण दे खे ह, जब लोग ने अपने जीवट और जुनून से
बड़ी-से-बड़ी चुनौ तय का सामना कर आगे क राह बनाई। मै थलीशरण गु त ने लखा है—
जतने क कंटक म है, जनका जीवन सुमन खला,
गौरव गंध उ ह उतना ही, य -त -सव मला ।

ज़दा दली और जुनून का आलम यह होना चा हए क मुझे हर हाल म आगे बढ़ना है


और अपना रा ता ख़ुद बनाना है।
यहाँ यह भी यान रखना ज़ री है क यह जुनून भी ‘आस ’ (attachment) से
भा वत नह होना चा हए। जब कोई सफलता क बल इ छा के साथ नतीजे क
सोचे बग़ैर आगे बढ़ता है, तो उसक सफलता क संभावना ब त बढ़ जाती है।
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इस तरह क सोच के साथ तैयारी करने पर थ के तनाव एवं दबाव से बचा जा


सकता है और बेहतरीन दशन को संभव बनाया जा सकता है। परी ा म सफलता मले या
न मले, ज़दगी कभी कती या थमती नह है और अपने जीवन म बेहतरी के लए
हमेशा यास जारी रखता है। मं ज़ल न सही, भले ही रा ता ही हो; य क ‘Success is a
journey, not a destination.’

मन म हो व ास…
परी ा क तैयारी क लंबी, उबाऊ और थकावट भरी या म कई बार ऐसा होता है
क आपके अपने मा यम/तरीक़े, अपनी क़ा ब लयत या ख़ुद पर ही आपक आ था
डगमगाने लगती है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है क यह परी ा या यह फ़ ड ‘मेरे बस का
रोग’ नह है। ऐसा महसूस होना वाभा वक है और इसम कोई द क़त भी नह है। पर कुछ
दो त अना था के संकट का बुरी तरह शकार होकर थत हो जाते ह और परी ा से जुड़े
हर पहलू को लेकर एक आशंकापूण और नकारा मक नज़ रये का नमाण कर लेते ह।
अना था इस हद तक क ‘मेरा तो चयन हो ही नह सकता’ या ‘म कभी अ छे उ र नह
लख सकता’ आ द। इस क़ म क अना था न त प से चता का वषय हो सकती है।
जब म अतीत म मुड़कर ख़ुद को दे खता ँ तो मुझे याद आता है क मुझे परी ा
णाली, अपने मी डयम, अपने वषय, अपनी क़ा ब लयत और सबसे बढ़कर—ख़ुद पर
भरपूर आ था रही है। अ सर मुझे लगता है क इस तरह क आ था परी ा म बेहतर दशन
म सहायता करती है। ख़ुद क क़ा ब लयत पर आ था आ म व ास को संबल दे ती है और
सफलता के नये तज खोलती है।
आ था के इस स दय को अ ेय क कालजयी क वता ‘असा य वीणा’ म कुछ इस
तरह अ भ कया गया है—
ेय नह कुछ मेरा,
म तो डू ब गया था वयं शू य म,
वीणा के मा यम से अपने को मने,
सब कुछ को स प दया था—
सुना आपने जो वह मेरा नह ,
न वीणा का था,
वह तो सब कुछ क तथता थी
महाशू य
वह महामौन
अ वभा य, अना त, अ वत, अ मेय,
जो श दहीन,
सब म गाता है ।
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ख़ुद को पहचान और जुट जाएँ


कृ त ने येक को कुछ वशेषताएँ और गुण दान कए ह, तो वाभा वक
तौर पर कुछ क मयाँ भी। य प यह तय है क हमारी क मयाँ या ख़ू बयाँ समय के साथ
बदलती रहती ह और कुछ यास से अपनी क मय और नुक़सान प ँचाने वाली आदत से
नजात भी पाई जा सकती है; परंतु इसके लए ख़ुद को पहचानना और ख़ुद के त एक
समझ वक सत करना ज़ री है। सरे श द म, इसी को ‘आ म- नरी ण’ या
‘आ मा वेषण’ कहते ह।
आ म- नरी ण के लए कसी को उपदे श दे ना जतना आसान है, उसे ावहा रक
तौर पर ख़ुद अमल म लाना उतना ही क ठन है। ख़ुद का अ वेषण और व ेषण करना
बड़ी ह मत का काम है और बड़े-बड़े तीसमार ख़ाँ इस काम म असफल हो जाते ह। इसका
सीधा-सा मनोवै ा नक कारण यह है क हम ऐसे लोग का साथ यादा पसंद करते ह, जो
हम ए शएट करते रह या हमारी क मय को नज़रअंदाज़ कर। अपने आलोचक का
स मान करने का साहस तो कबीर जैस म ही होता है—
नदक नयरे रा खए, आँगन कुट छवाय ।
बन पानी साबुन बना, नमल करे सुभाय ।।

क व दौलतराम ने ‘छहढाला’ म े का एक अनूठा गुण बताया है—‘ नज गुण


अ पर अवगुण ढाँके।’ यानी वह े है, जो अपने गुण और सर क क मयाँ
छपाए। शायर डॉ. नवाज़ दे वबंद ने तो यहाँ तक लखा है—
जससे ख़ुद के भीतर के भी ऐब दखाई दे ते ह ,
हमने ऐसा भी एक अपना च मा बनवा रखा है ।

इस तरह यह समझना अ नवाय ही है क हमारे व म ख़ुद क ताक़त और


कमज़ो रय को पहचानने का नर शा मल होना चा हए। ख़ास तौर पर, य द तैयारी के
शु आती दौर म ही यह मालूम हो जाए तो अपनी वशेषता व गुण को और नखारा जा
सकता है और क मय पर होमवक करके उ ह काफ़ हद तक बेअसर कया जा सकता है।

शानदार-ज़बरद त- ज़दाबाद!
आपने बहार के एक कमयोगी दशरथ माँझी क कहानी सुनी होगी। धुन के प के इस
श स ने अपनी ज़द से पहाड़ को चुनौती द और अकेले दम पर पहाड़ पर छे नी-हथौड़ा
चला-चलाकर राहगीर के लए रा ता बना ही डाला। उन पर बनी फ़ म ‘माँझी-द माउंटेन
मैन’ इस ज बे को बख़ूबी बयाँ करती है। जब भी कोई नरंतर मेहनत म जुटे दशरथ माँझी
को डमो टवेट करने या छे ड़कर हाल-चाल पूछता, तो वह यही नारा लगाते थे—‘शानदार,
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ज़बरद त, ज़दाबाद’
शव खेड़ा ने लखा भी है—Winners don’t do the different things, they
do the things differently.
चीज़ को अलग ढं ग से करने वाले वजेता क़ म के लोग दरअसल जो रणनी त
अपनाते ह, उनम नरंतरता (consistency या persistence) एक मुख त व होता है।
हमारे-आपके बीच ऐसे तमाम लोग होते ह, जो शु आत तो बड़ी शानदार और मह वाकां ी
ढं ग से करते ह, पर अपने उस ज बे या चगारी (spark) को क़ायम नह रख पाते। ऐसे भी
तमाम लोग से हम मलते ह, जो रा ते म छोट -मोट परेशा नय म धैय खोकर ढे र हो जाते
ह या प र थ तय पर ठ करा फोड़कर ख़ुद को ज टफ़ाई करके बेदाग़ नकलने क को शश
करने लगते ह।
हम यह समझना होगा क जीवन के तमाम े स हत स वल सेवा परी ा म सफल
अ य थय के ऐसे ढे र क़ से ह, जनम नरंतरता ायः सफलता का एक अ नवाय त व रहा
है।
आजकल क यो यता का आकलन करने के मानदं ड म काफ़ बदलाव आया
है। पहले जहाँ IQ (Intelligence Quotient) को ही क क़ा ब लयत का आधार
माना जाता था, वह बाद म इसम EQ (Emotional Quotient) का त व भी शा मल आ
और आजकल नयो ा अपने भावी अ धकारी/कमचारी के PQ (Persistence
Quotient) का आकलन करना ज़ री समझने लगे ह। य द कसी अ धकारी/कमचारी को
कोई ोजे ट स पा जाए और उसका शु आती उ साह व च कुछ दन म ख़ म हो जाए
तो उस ोजे ट क सफलता क संभावना न य ही कम हो जाती है। लहाज़ा, परी ा क
पूरी या के दौरान सतत उ साह और नरंतरता बनाए रखना सफलता क संभावना
को कई गुना बढ़ा सकता है। नरंतरता क इस ख़ूबी क ज़ रत को रेखां कत करते ए
क व सोहनलाल वेद ने लखा है—
जब तक न सफल हो, न द-चैन को यागो तुम,
संघष का मैदान छोड़कर, मत भागो तुम,
कुछ कए बना ही जय-जयकार नह होती,
को शश करनेवाल क कभी हार नह होती ।

हमेशा सीखते रह…


मनु य म एक ऐसा ख़ास गुण है, जो उसे बाक़ ा णय से भ बनाता है और जस
गुण के बल पर वह आज महाबली बन गया है। वह गुण है—सीखना (learning)। यह
इंसान क सीखने क भूख ही है, जो उसे नरंतर नये आ व कार करने, नरंतर आगे बढ़ने
और कुछ नया सुधार करने को े रत करती है। एक ब चे म भी बचपन से ही सीखने क
ज़बरद त वृ होती है और वह अनुकरण (imitation) से तेज़ी से चीज़ को सीखता है।
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इस तरह सीखने क यह या नरंतर चलती रहती है और हमारी सोच के आयाम का


व तार होता जाता है। हम अपने प रवार, दो त , श क , पास-पड़ोस, आस-पास के
पयावरण, अख़बार, प काएँ, इंटरनेट, सा ह य, व ान, खेल-कूद—सबसे नरंतर सीखते
ही जाते ह और दन- त दन प रप व (mature) होते जाते ह।
स वल सेवा परी ा क कृ त भी कुछ ऐसी है क इसके लए प रप वता
(maturity) का एक तर आव यक है, जसका हमारी शारी रक उ से कोई ख़ास लेना-
दे ना नह होता। हमम से ही कुछ साथी ऐसे होते ह, जो कम उ म ही संतु लत राय, खुला
दमाग़ और ापक कोण रखते ह और हमम से ही कुछ साथी अधेड़ उ म भी
संकु चत सोच के दायरे म रहकर कूपमंडूक बने रहते ह। इसी लए सफलता और उसके बाद
के सुद घ कै रयर म सफलता के लए एक वैचा रक प रप वता और नरंतर सीखने का
ज बा बेहद ज़ री है।
इसम कोई भी संदेह हम नह होना चा हए क ान का सागर अनंत व अथाह है और
हमने इसक कुछ बूँद ही चखी ह। सीखने क अद य ललक और लालसा कसी क भी राह
आसान कर सकती है। छोट से सीखने म संकोच ब कुल न कर और आस-पास के
वातावरण, दे श- नया म घट रही घटना को ऑ ज़व कर उनसे नरंतर सीखते रह।
सीखने का यह ज बा परी ा म ही नह , उ भर मदद करता है और जीवन भर सीखने
(Life long learning) और आ म- वकास (Self development) का आधार तैयार
करता है।
क व भवानी साद म ने लखा भी है—
कुछ लख के सो,
कुछ पढ़ के सो,
तू जस जगह जागा सवेरे,
उस जगह से बढ़ के सो ।

Attitude और Aptitude…
जीवन के येक े म सफलता के लए ज़ री है क आपक अ भवृ
(Attitude) और अ भ च (Aptitude) उस े क ओर सामा यतः ह । यानी आपका
झान या झुकाव उस े वशेष क ओर होना उस े म आपक सफलता क
संभावना को ब त हद तक बढ़ा दे ता है। वशेष ता (Specialization) के इस दौर म
य द आपको एक अ छा बंधक बनना है, तो आपके मैनेजमट ए ट ट् यूड का परी ण कया
जाता है और य द आपको एक अ छा श क या शोधाथ बनना है, तो आपका ट चग एवं
रसच ए ट ट् यूड जाँचा जाता है।
स वल सेवा परी ा, इस से तमाम अ य तयोगी परी ा से कुछ भ और
अनूठ (unique) है। इसम आपक कसी े वशेष म महारत क परी ा न होकर
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सामा य जीवन के सभी े क बे सक समझ और नज़ रये का परी ण करने क को शश


क जाती है। यानी आपसे एक वशेष (specialist) होने के थान पर एक सामा य
(generalist) होने क अपे ा क जाती है। स वल सेवा क कृ त भी कुछ ऐसी है क
इसम अपने आस-पास के पयावरण क सामा य समझ, ापक कोण और सीखने का
ज बा रखने वाले वज़नरी (Visionary) युवा क दरकार होती है, जनके कौशल
(skills) को उ कृ श ण के मा यम से नखारकर भ व य के चुनौतीपूण कै रयर के लए
तैयार कया जाता है।
अ भ च और अ भवृ के वकास क इस सतत या म अपने व नमाण
हेतु इन बात का भी यान रख—
(i) दे श- नया व समाज म लगातार घट रही घटना के व वध आयाम और उनके
सामा जक-आ थक-राजनी तक-सां कृ तक भाव के त एक जाग कता (awareness)
बनाए रख और लगातार ख़ुद को अपडेट रखने क आदत वक सत कर।
(ii) सामा जक सरोकार (social concerns) को अपनी सोच और ज़दगी का
अ नवाय ह सा मानकर चल। ज़ रतमंद लोग और वं चत वग के त अपने योगदान के
बारे म भी सोच और वॉय ऑफ़ ग वग का आनंद महसूस कर।
(iii) जब कभी अ नणय क थ त म ह या कुछ समझ न पा रहे ह तो कॉमन सस
का इ तेमाल कर। हमम से सबके पास कॉमन सस होता है, पर हम इसका ासं गक
इ तेमाल नह कर पाते। ‘Common sense is not so common.’ परी ा दे ते समय
तथा तैयारी के दौरान अनेक अवसर पर अ सर कॉमन सस ही हम राह दखाती है।
(iv) संकु चत कोण से बच और खुले दमाग़ से नये वचार का वागत करते रह
तथा नरंतर सीखते रह। ऋ वेद म भी लखा है क—
आ नो भ ाः तवो य तु व तः यानी— व भर से े वचार हमारी ओर आएँ।
अतः कसी भी क़ म क संक णता के दायरे म बँधने के बजाय ापक व संतु लत
कोण अपनाएँ और अपने व का च ँमुखी वकास कर।

हाड वक का कोई वक प नह
एक पुरानी कहावत है—
करत-करत अ यास ते जड़म त होत सुजान ।
रसरी आवत-जात ते, सल पर पड़त नसान ।।

यानी नरंतर अ यास से तो मूख भी बु मान हो जाते ह। जस कार र सी के बार-


बार रगड़ने से कुएँ के प थर पर भी नशान पड़ जाते ह। इस कथन का सीधा-सा अ भ ाय
यह है क अ यास और क ठन प र म का कोई वक प नह है।
इस बात म कोई दो राय नह है क ‘सफलता का कोई शॉटकट नह होता’ और नरंतर
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क़दम-दर-क़दम आगे बढ़ते रहने पर ही सफलता ा त होती है।


आपम कड़ी मेहनत करने क वृ होना इस लए भी ज़ री है, य क सफलता क
राह और उसके बाद सेवाकाल म भी हर मोड़ पर क ठन प र म व चुनौ तय का सामना
करना ही होता है। कहा भी जाता है—‘क ठन प र म का पुर कार है और अ धक
प र म।’ लहाज़ा मेहनत करने से क़तई न कतराएँ और आल य से बचते ए ख़ुशी-ख़ुशी
सहज भाव से भरपूर प र म कर।

वन ता सव े नी त है
व- नमाण क या म जो वशेषता वक सत करना अप रहाय है, वह है—
वन ता। वन ता एक ऐसा गुण है, जो आपको भी स बनाता है और आपसे जुड़े लोग
को भी। हम अपने आस-पास अ सर ऐसे सा थय को दे खते ह, जो परी ा का कोई चरण
उ ीण होने या अपने अ छे दशन पर वच लत हो जाते ह और ज़मीन पर पाँव भी नह
रखते। छोट -छोट ख़ु शय को जीना चा हए; पर अपनी छोट -छोट सफलता का गुमान
करना या थ म इतराना अथवा सर को नीचा दखाना भला कहाँ क समझदारी है!
और फर, हम ग़ र हो भी तो भला कस बात का! हम जतना पढ़ते जाते ह, पाते ह
क उससे कह यादा हमने पढ़ा ही नह है। अतः ान एवं सीखने क लालसा बनाए रख
और ख़ुद क लक र बड़ी कर आगे बढ़ने का य न कर।

अपने कौशल (Skills) वक सत कर


यूँ तो सभी य क मताएँ अनंत ह, पर हम य म भेद कैसे करते ह। हम
कैसे कसी को बेहतर या अ धक यो य समझते ह और कसी को कमतर? इसका
पैमाना होता है उसके व म न हत कौशल (skill)। मज़े क बात यह है क हम म से
कोई भी थोड़ी मेहनत और लगन से अपने कौशल को वक सत कर सकता है।
मैनेजमट म हम पढ़ते ह क मोटे तौर पर कल तीन तरह के होते ह—
(i) तकनीक कौशल (Technical skills)
(ii) सांबो धक या अवधारणा मक कौशल (Conceptual skills)
(iii) मानवीय कौशल (Human skills)
य द स वल सेवा परी ा क से एक वा य म इन तीन कौशल का अथ समझ तो
हमारी जानकारी, रणनी त, अ यास, रवीज़न आ द टे नकल कल के अंतगत; व भ
अवधारणा पर हमारी राय, समझ और व ेषण आ द कंसे चुअल कल के अंतगत;
और हमारी जजी वषा, सीखने का ज बा, एट ट् यूड व ए ट ट् यूड हमारे मन कल के
अंतगत आएँग।े कसी के संचार कौशल (communication skills) और
अंतवय क कौशल (interpersonal skills) भी उसके मानवीय कौशल क ेणी म
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आएँगे।
ख़ुद के सवागीण व को सँवारने के लए इन तीन े णय के कौशल क
दरकार है। लहाज़ा उ मीद से लबरेज़ युवा को शश कर क ये क स उनके वम
समा हत हो जाएँ और उनके व का थायी ह सा बनकर उसे सँवारते- नखारते जाएँ।

र ता तो बस नभाने म है…
र ते नभाना सीख। तैयारी क या और जीवन क दौड़ म आपके अपने हमेशा
आपका साथ नभाते ह। प रवार और दो त आपको मो टवेट कर ऊजा से भर सकते ह और
हर क़दम पर आपको ह मत बँधा सकते ह। ख़ुश रहने और पॉ ज ट वट बनाए रखने के
लए घर-प रवार और अ छे दो त से जुड़ाव बनाए रख। मने कह सुना था—
लाख मु कल ज़माने म है,
र ता तो बस नभाने म है ।

कॉ प टशन क तैयारी या ज़दगी के झंझावात के दौरान हमेशा ऐसा नह होता क


आप ‘सरल रेखा’ म जीवन जएँ। यानी परी ा क तैयारी शु करने से लेकर इस दौरान
अ सर उतार-चढ़ाव आते रहते ह। ऐसे म, आपको संबल दे न,े आपको सहज बनाए रखने के
लए कुछ अ छे र त क दरकार होती है। ये र ते आपके माता- पता एवं भाई-बहन के भी
हो सकते ह और क़रीबी दो त के भी।
तैयारी के दौरान तनाव-मु , दबाव-मु और स च रहने के लए र ते नभाना
और उ ह एं वॉय करना ब त मदद करता है। आप भी र ते नभाएँ और आपके इ जन भी
आपके सुख- ःख म आपका साथ नभाएँ, यह तैयारी ही नह , पूरी ज़दगी क एक
वाभा वक ज़ रत है।

सकारा मकता से भरपूर रह


मेरी समझ म सफलता के त तब कसी भी अ यथ का अद य सकारा मकता
से भरपूर होने का गुण उसे बाक़ अ य थय से काफ़ बेहतर थ त म प ँचा सकता है।
परी ा क लंबी व क ठन या के दौरान सकारा मकता और मो टवेशन लेवल बनाए
रखना इतना आसान भी नह है; पर थोड़े यास से इस तर को क़ायम रखा जा सकता है।
मेरी म, इस सकारा मकता के तर को बनाए रखने म ये कुछ तरीक़े कारगर हो सकते ह

(i) अमूमन ख़ुश रह और सर को भी ख़ुश रख। पढ़ाई को तनाव क तरह लेने के
बजाय एं वॉय कर और भीतर से स रह। एक शायर ने लखा है—
ख़ुलूस दल म, जबाँ पर मठास रहने दो,
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न ख़ुद रहो, न कसी को उदास रहने दो ।

(ii) छोट -छोट ख़ु शय को से ल ेट कर और आज क ख़ुशी कल के लए आर त न


कर। मेरा अ भ ाय यह है क ऐसा रवैया न बनाएँ क म तो फ़लाँ सफलता मलने पर ही
ख़ुश होऊँगा या से ल ेट क ँ गा। ज़दा दली बनी रहे, इसके लए ज़ री है क ख़ुश रहने के
लए कसी मौक़े का इंतज़ार क़तई न कर।
(iii) कसी से मलना मो टवेशनल लगता है और कसी से बात करके नराशा और
अवसाद मलता है। अतः को शश कर क पॉ ज़ टव सोच रखने वाल क संग त कर और
नगे ट वट से भरपूर लोग से एक सुर त री बनाए रख। यानी नकारा मक लोग से थ
के ववाद म उलझे बग़ैर अपनी राह म सकारा मक सोच के साथ आगे बढ़ते जाएँ। हाँ,
समालोचना मक ट पणी और सुधार के सुझाव का खुलकर वागत कर।
(iv) अपनी चयाँ वक सत कर। हमम से हर कसी का झान और अ भ चयाँ
अलग-अलग हो सकते ह। कसी को खेलना पसंद है तो कसी को नॉवेल पढ़ना, कसी को
योगा यास भाता है तो कसी को सनेमा-संगीत का शौक़ होता है। अपनी चय पर ब त
यादा व त न भी इ वे ट कर सक, पर दन म एक-दो घंटा तो इ ह दे ही सकते ह। ये
चयाँ व शौक़ न केवल आपको ख़ुशी और संतु दे ते ह, ब क तरोताज़ा एहसास भी
कराते ह। सकारा मकता बनाए रखने के लए ज़ री है क छोट -छोट ख़ु शयाँ से ल ेट कर
और छोट -छोट बात का तनाव न ल।
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अ त- त नह ,
त और म त रह…

एक ह ीमान ‘क’। कै रयर और ए ज़ाम क तैयारी के त पूण सम पत। न ा और


समपण म कोई कमी नह । सोने और खाने के लए बमु कल कुछ समय नकालकर, बाक़
समय बस पढ़ते ह। इतना पढ़ते ह क अड़ोस-पड़ोस के साथी इनसे लगभग भया ांत रहते
ह। लखते भी ठ क-ठाक ह और मरण श भी ब ढ़या है। सलेबस भी पूरा तैयार है।
इनके म पर इतनी कताब और नोट् स का अंबार है क आप दे खने मा से ही तनाव म आ
जाएँ।
पर आ यजनक प से पछले काफ़ समय से इ ह परी ा म अपे त सफलता
नह मल पा रही है। नतीजा हर बार वही सफ़र।
उनके क़रीबी दो त बताते ह क वे इतनी मेहनत के बावजूद अ नय मत और बेतरतीब
दनचया के शकार ह और वशेषकर परी ा के दन म बेहद तनाव और ता से त हो
जाते ह।
सरे ह ीमान ‘ख’। जीवन कुछ हद तक व थत-सा है इनका। अ सर त रहते
ह। पढ़ाई भी जमकर करते ह और कभी-कभार म ती भी। दो त के भी पसंद दा साथी ह
ीमान ‘ख’। टाइम मैनेजमट ऐसा क थोड़ा-ब त व त अपनी चय के लए भी नकाल
ही लेते ह। जब भी आप इनसे मलगे तो इनके चेहरे पर एक मंद मु कान तैरती ई मलेगी।
परी ा के दन म अ त र तनाव इनके लए अजीब-सी बात है और ये जनाब अपने
चरप र चत शांत वभाव को परी ा म भी क़ायम रखते ह। इनके बारे म एक और
दलच प बात यह है क जतना इनपुट ये दे ते ह, उससे यादा इनका आउटपुट रहता है। ये
महोदय ीमान ‘क’ जतना तो नह पढ़ पाते, पर जतना पढ़ते ह, व थत और नय मत
ढं ग से, वो भी रवीज़न के साथ।
य दो तो, हमारे आस-पास ीमान ‘क’ और ीमान ‘ख’ जैसे तमाम साथी मल
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जाएँग।े हो सकता है क आप म से भी कई सा थय के ल ण ीमान ‘क’ या ीमान ‘ख’


से मलते-जुलते ह । इसी बीच म आपसे एक सवाल भी पूछना चाहता ,ँ जसका ईमानदार
जवाब आपको ख़ुद को ही दे ना है।
या आपके साथ भी ऐसी ही सम या है क आप मेहनत तो ख़ूब करते ह, पर नतीजे
नह मल पाते? तैयारी भरपूर है पर इतनी अ व थत है क आपको ख़ुद नह मालूम क
मने फ़लाँ टॉ पक कतनी कताब से या कन- कन ोत से पढ़ा है? या आपको कभी-
कभी ऐसा लगता है, मेरा अमुक साथी जो मुझसे कम पढ़ता था, वह परी ा म सफल कैसे
हो गया? या मने जसे पढ़ाया, वही मुझे पीछे छोड़कर ख़ुद चय नत हो गया? या आपको
ऐसा लगता है क जतनी पढ़ाई मने क , उसके अनु प मुझे कभी प रणाम मला ही नह ।
या फर यह महसूस आ हो क मेरी तैयारी म ऐसी कौन-सी कमी है क सफलता मेरे पास
आकर भी र छटक जाती है?
अगर आपको ये सारे सवाल या इनम से कुछ सवाल भी मथते ह तो आपको न त
प से आ ममंथन कर लेना चा हए। हो सकता है क आपक थ त ीमान ‘क’ से
मलती-जुलती हो। हो सकता है क आप अ त- त तरीक़े से तैयारी करते ह और अ त-
त तरीक़े से ही उसे परी ा म लखकर आते ह ।
सा थयो, आप यह बात समझ रहे ह गे क दरअसल हम ीमान ‘क’ से ीमान ‘ख’
तक क या ा तय करनी है। सफलता क राह को ज टल न बनाकर उसे सरल और सहज
बनाते ए सफलता क संभावना को बढ़ाना है और आगे बढ़ते जाना है।
आपने समझा क ‘अ त- त’ तरीक़े से पढ़ाई और तैयारी के या- या साइड
इफ़े ट होते ह? जब क हमारे ही बीच कुछ साथी त और म त रहकर अपे ाकृत कम
तैयारी के बावजूद बेहतर नतीजे हा सल कर लेते ह।
आइए, चचा करते ह क ऐसा य होता है। दरअसल ‘ त’ रहना एक बात है, और
‘अ त- त’ रहना सरी बात। सफल होने और साथ ही ख़ुश रहने के लए, त रहना
न य ही ज़ री है, पर अ त- त तरीक़े से त रहना क़तई ज़ री नह है। इसके
बजाय म त रहते ए त रहना कई गुना बेहतर है। म त और त रहने का सीधा-सा
फ़ायदा यह होता है क आप थ के तनाव से बचे रहते ह और परी ा म भी शांत और
सहज मन से बेहतर दशन कर पाते ह।

आइए जान, ‘ त और म त’ रहने के ल ण और


फ़ायदे —
—आप अमूमन स रहते ह और आपम सकारा मक ऊजा का वाह बना रहता है।
—आप जो भी पढ़ते ह, उसे एं वॉय करते ह और तनावपूण समय म भी सहज रहते
ह।
—सहज और शांत रहने क इस आदत के चलते परी ा हॉल म भी आपका दशन
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औसत से बेहतर रहता है, य क आप दमाग़ पर अनाव यक भार रखे बना खुलकर लख
पाते ह।
—साथ-ही-साथ आप परी ा के प रणाम को लेकर यादा च तत भी नह होते और
हर प र थ त के लए तैयार रहते ह। एक कहावत भी है—‘Try for the best, prepare
for the worst.’
दरअसल त रहना एक नयामत क तरह है। और अगर म त रहकर त रहा
जाए, तो यह सोने पर सुहागा ही है। त रहने से आपको एक संतु का भाव महसूस
होता है और आप अपने दन को ज ट फ़ाई कर पाते ह।

पर आ ख़र ऐसे कौन-से तरीक़े ह, जनसे हम अपनी आदत म कुछ बदलाव लाते ए


बज़ी रहते ए भी ख़ुश रह सकते ह।
— दनचया को नय मत करने क को शश कर। ‘परफ़े ट’ दनचया जैसी कोई चीज़
नह होती। जहाँ तक संभव हो, एक ठ क-ठाक दनचया बनाकर उसका पालन करने क
को शश कर।
—अ त- त और अ व थत रहने क आदत से धीरे-धीरे छु टकारा पाएँ। जैसे क
आप टडी का एक शेड्यूल बना ल, जसम पढ़ाई के साथ-साथ अ यास, रवीज़न और
लेखन का भी समु चत थान हो।
—अपने व व और सहजता को बनाए रख। अपने शौक़ व चय और फ़टनेस व
हाईजीन का भी ख़याल रख। अपनी दनचया म योग व ाणायाम को शा मल करने का
यास कर।
— त रहना आपको शारी रक व मान सक प से व थ बनाए रखता है। पर साथ
ही स च और म त रहकर पढ़ाई करने का अपना ही आनंद है।
— वयं ख़ुश रह, तभी आप सर को भी ख़ुश कर सकते ह। स ता सं ामक होती
है। भीतर से ख़ुश रह और बाहर भी ख़ुश दख।
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पर परोप हो जीवानाम् :
साथ नभाएँ

ज़दगी क राह ब त सारे उतार-चढ़ाव और सम- वषम प र थ तय से भरी है। आप


बेहतरी के लए जो भी यास करते ह, उनम कोई-न-कोई बाधा आती ही है। कभी-कभी
आप महसूस करते ह क मु कल व म कसी दो त या संबंधी क मदद से आप उस
परेशानी का सामना कर पाए और फर से आपने ज़दगी क लय पकड़ ली। आप यह भी
महसूस करते ह क अगर इस व त म कोई अपना या कोई अ छा दो त आपका साथ दे ता
तो शायद आप उस मुसीबत से ज द और आसानी से नकल जाते।
कभी-कभी हम यह भी पाते ह क ान और अनुभव का महासागर अनंत और वराट
है और हम सबने अभी मु कल से इस सागर म एक-एक डु बक ही लगाई है। अतः कसी
एक इंसान के लए इस वराट सागर क थाह पाना मु कल ही नह नामुम कन है। शायद
इसी लए स दाश नक सुकरात ने एक बार कहा था—‘म सबसे यादा ानी इस अथ म
ँ क म ये जानता ँ क म कुछ भी नह जानता।’ यानी सुकरात को अपनी अ प ता और
अ कचनता का बोध हो गया था और वे इस बात को महसूस कर चुके थे क उ ह ने इस
वराट महासागर क कुछ बूँद ही चखी ह।
लहाज़ा हम भी सुकरात जतने ानी भले ही न ह , पर हम यह महसूस तो करते ही ह
क हम ान और अनुभव के इस वराट महासागर क थाह अकेले अपने दम पर नह पा
सकते। हम इतना समझते ह क हमारी जानकारी और समझ का दायरा सी मत है और दे श-
काल-प र थ तय क कुछ सीमाएँ ह, जनके चलते हम कभी भी सब कुछ नह जान
सकते। यहाँ यह भी समझना ज़ री है क न तो इस जगत म सव बनना संभव है और न
ही वांछनीय।
इस संबंध म जैन आचाय उमा वामी ने अपने ंथ ‘त वाथ सू ’ म एक सू लखा था
—‘पर परोप हो जीवानाम्।’ इसका अ भ ाय है क ‘इस जगत म ाणी एक सरे के
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सहयोग से लाभा वत होते ह (Living beings benefit by helping each other)।’


यह सू परी ा क तैयारी क या से लेकर जीवन के हर मोड़ पर काम आ सकता है।
अ सर तयोगी परी ा क तैयारी और त पधा के दौरान हम सोचते ह क
हम जो पता है, वो कसी को नह पता और हम अपना ान और अनुभव सबसे छपाकर
रखना चा हए। कुछ लोग यहाँ तक भी सोचते ह क अगर मने अपने वचार/नोट् स/ कताब/
रणनी त कसी दो त या सहपाठ से साझा कर ली, तो कह उसके अंक मुझसे यादा न आ
जाएँ। अगर कसी ने मेरे ान का फ़ायदा उठा लया और वह मुझसे पहले परी ा म सफल
हो गया, तो या होगा?
दो तो, दरअसल यह सोच एक संकु चत सोच है, जो आपको आगे बढ़ाने के थान पर
पीछे क ओर धकेलती है। इस तरह क सोच से न तो आपका कोई भला होने वाला है और
न ही कसी और का। वा त वकता तो यह है क स वल सेवा परी ा क कृ त कुछ ऐसी है
क इसम येक अ यथ के अंक उसके अपने अ ययन और कौशल के आधार पर आते ह,
न क महज़ कसी का अनुकरण करने से।
ब क म तो यह क ँगा क स वल सेवा परी ा जैसी त त परी ा के नवीनतम
पैटन म ‘पर परोप हो जीवानाम्’ का सू ब त काम का है और आपक तैयारी को अ धक
ापक, डायन मक और सम बना सकता है। अगर कसी टॉ पक वशेष पर आप बेहतर
जानते ह और कसी अ य टॉ पक पर आपके कसी साथी क समझ अ छ है, तो आप
दोन मलकर एक- सरे के सहयोग से लाभा वत हो सकते ह। ‘ ुप ड कशन’ इसका एक
बेहतरीन तरीक़ा है। ुप ड कशन से ान और समझ तो बढ़ते ही ह, साथ ही बोलने और
सुनने का कौशल भी वक सत होता है। इस तरह स वल सेवा परी ा म आप अपे ाकृत
फ़ायदे क थ त म होते ह।
शा कहते ह क ‘ व ा ही एकमा ऐसा धन है, जो बाँटने पर बढ़ता है।’ यह एक
ब त दलच प बात है। मने तैयारी के दौरान ब त बार यह महसूस कया क म अपने पढ़
ई वषयव तु को कसी अ य अ यथ के साथ बाँट पाऊँ। मनो व ान भी मानता है क
अगर हम अपना ान कसी से शेयर करते ह, तो हम उस ान को लंबे समय तक म त क
म टोर कर पाते ह। कसी से कुछ सुनना और कसी को कुछ सुनाना, दोन ही चीज़ को
याद रखने म मदद करते ह। साथ ही, पढ़ा आ या सीखा आ ान शेयर करने से हम भी
उसके नये आयाम पता चलते ह, जो शायद हमने पहले सोचे भी नह थे। इं लश क एक
कहावत भी है—
Tell me and I forget,
Teach me and I remember,
Involve me and I learn.

‘पर परोप हो जीवानाम्’ का यह सू पढ़ाई म ही नह , तैयारी क लंबी और थकाऊ


या क बाक़ ज टलता म भी आपके काम आता है और आपका मनोबल भी बढ़ाता
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है। मसाल के तौर पर, म अपने कुछ ऐसे सा थय को जानता ँ, जो इस तैयारी के दौरान
मलने वाली असफलता या तनाव से ब त भा वत हो गए और लगभग अवसाद या
ड ेशन जैसी हालत म प ँच गए। ज़दगी क दौड़ म अकेले आगे बढ़ने म कोई बुराई भी
नह है, पर नतांत एकाक हो जाना कभी-कभी सम या का कारण बन जाता है। आप
अपनी चताएँ/तनाव/परेशा नयाँ/ख़ु शयाँ/म तयाँ य द कभी कसी से साझा नह करते, तो
आप भीतर-ही-भीतर घुटने लगते ह और यह थ त कभी-कभी जब यादा बढ़ जाती है, तो
मनो वकार म प रणत हो जाती है। जब क य द आप एक- सरे का सहयोग करते ए,
हँसते-मु कुराते, आगे बढ़ते ह, तो ज़ रत या तनाव क थ त म आपका साथ दे ने के लए
आपके प रजन, दो त और सहपाठ आपके साथ होते ह। मत भू लए क महाबली हनुमान
को भी उनक भूली- बसरी श याँ याद दलाने के लए जांबवंत को ‘का चुप सा ध रहा
बलवाना’ कहना पड़ा था।
‘साथ-साथ क़दम बढ़ाना’ का यह संदेश हमारे वेद म भी दया गया है—
सं ग छ् वम् सं वद वम् सं वो मनां स जानताम् ।

यानी साथ-साथ चलो, साथ-साथ बोलो और साथ-साथ एक- सरे के मन को समझो।


इसका अथ य द थोड़ी गहराई से समझ, तो हम जान पाएँगे क ज़दगी क राह म हमारा
एक- सरे का साथ दे ना या एक- सरे के काम आना कतना ज़ री है। वशेषकर, तयोगी
परी ा क तैयारी म तो यह ब त उपयोगी है। एक- सरे से अपना ान-अनुभव-समझ-
कौशल बाँटने से ये सभी बढ़ते ही ह, घटने का तो कोई सवाल ही नह है।
कसक मदद क कब ज़ रत पड़ जाए, या कौन कब आपके काम आ जाए, इसका
कुछ पता नह । कभी-कभी तो कसी परी ा या अवसर क जानकारी हम कसी और से ही
होती है। इसी तरह कभी-कभी हम कसी क मदद से ही तैयारी क सही दशा और ग त
पकड़ पाते ह। दो तो, ‘बूँद-बूँद से ही सागर भरता है।’ एक- सरे के सहयोग से एक पर पर
ेम और सौहाद का अद्भुत वातावरण बनाएँ और ान व सूचना क नवीन ां त से
लाभा वत ह ।
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या पढ़ रहे ह आजकल?

‘ या पढ़ रहे ह आजकल?’ मने अपने एक दो त से यूँ ही एक शाम जब पूछा, तो


उसने मुझे एनसीईआरट और योजना प का से लेकर इं डया ईयरबुक और एम. ल मीकांत
तक न जाने कतने नाम गना दए। मने ह क -सी मु कान के साथ उससे दोबारा पूछा क
टे ट बु स और परी ा क त साम ी के अलावा या पढ़ रहे हो आजकल?
मेरा ये सवाल सुनकर वह च का और मुझे यान से दे खने लगा, जैसे मने कोई
अवां छत या अनपे त-सी बात पूछ ली हो। होना या था, फर वह शाम काफ़
वचारो ेजक और दलच प गुज़री। उस शाम क बातचीत क कुछ ज़ री और काम क
बात आपसे साझा कर रहा ँ।
हमम से यादातर लोग परी ा क तैयारी के दौरान बेहद सी मत और संक ण-सा
रवैया अपनाने के हमायती होते ह। हमम से अ धकतर लोग सोचते ह क कुछ नधा रत
टे ट बुक और चु नदा प -प काएँ पढ़ना एकदम पया त है और इसके अलावा अगर हम
कुछ भी रोचक-मनोरंजक फ़ शन या नॉन- फ़ शन या कोई और मैगज़ीन और अपनी च
से जुड़ा सा ह य पढ़ रहे ह, तो यह परी ा क गंभीर तैयारी के साथ अ याय जैसा है।
हालाँ क इसम कोई संदेह नह क तैयारी स वल सेवा परी ा क हो या अ य कसी
परी ा क , तैयारी फ़ोक ड और क त होनी ही चा हए, ता क बेहतर आउटपुट आ सके, पर
म साथ ही यह भी जोड़ना चा ँगा क नये पैटन और ड को दे खते ए री डग है बट एक
अ नवाय ज़ रत बनकर उभरी है। आइए समझते ह य और कैसे?
आपने स वल सेवा परी ा के हाल ही के प म महसूस कया क पूछे जाने वाले
सवाल का दायरा पहले से यादा ापक ही आ है और यह अंदाज़ा लगाना सचमुच
मु कल है क सवाल के ोत कतने व वध और बखरे ए हो सकते ह। इसका मतलब
यह आ क हमारी तैयारी का दायरा भी ठ क-ठाक ापक होना चा हए, जसम हम अपनी
आँख-कान खुले रखकर नई चीज़ को लगातार सीखते रह।
इस तरह अपने लेखन कौशल को नखारने के लए मुख तौर पर दो चीज़ क दरकार
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होती है, एक तो अ छ तरीय साम ी (content) और सरा भाषा पर अ धकार, जसम


हमारी श दावली (vocabulary) और शैली (style) मह वपूण भू मका नभाते ह। री डग
है बट यानी पढ़ने क आदत या पढ़ने का शौक़, इन दोन ज़ रत को पूरा करके लेखन
कौशल को नखारने म ज़बरद त मदद करता है। टे ट बुक से अलग कुछ और पढ़ते-पढ़ते
न केवल नई जानका रय और ान से -ब- होने का मौक़ा मलता है, ब क भाषा पर
पकड़ भी मज़बूत होती है। साथ ही एक बेहतरीन आदत का वकास होता है और आनंद क
अनुभू त भी होती है।
पढ़ना भी बाक़ चय (hobbies) क तरह एक शानदार और दलच प हॉबी है।
ले कन सवाल है क इस तरह क शौ क़या री डग कब कर और पढ़ तो या पढ़?
पहली बात का जवाब तो यह है क जब टे ट बुक पढ़ते-पढ़ते ऊब जाएँ, या फ़सत म
ह , या ै वल कर रहे ह , तो यूँ ही कोई भी कताब या मैगज़ीन, जो आपको पसंद हो या
आपको आक षत करे, उसे पढ़ने का व त नकाल।
ले कन हद म या पढ़, यह सवाल काफ़ ासं गक और वलंत-सा हो जाता है। म
इस सवाल का जवाब खोजने म आपक मदद करने क को शश करता ँ।
ऐसी कताब को आप सु वधा और च के अनुसार तीन-चार कैटे गरी म बाँट सकते
ह:—
पहली कैटे गरी म वे कताब आती ह, जो सीधे-सीधे परी ा के पाठ् य म से जुड़ी नह
ह, पर उ ह पढ़कर सामा य अ ययन या वषय पर अपनी पकड़ मज़बूत क जा सकती है
और सोच का दायरा बढ़ाने व चतन क गहराई बढ़ाने म मदद मलती है। ये कताब,
इ तहास, राजनी त, शासन, अंतररा ीय संबंध, अथशा , समाज, नी त और दशन पर
सामा य रीडस क च के हसाब से लखी जाती ह और आपक समझ को गहरा और
ापक बनाती ह। इन कताब म अम य सेन, रामचं गुहा, गुरचरन दास, याँ े ज़, रजनी
कोठारी, श श थ र, राम आ जा, यामाचरण बे, ताप भानु मेहता, ब पन चं ा, सुनील
खलनानी जैसे लेखक क कताब शा मल हो सकती ह।
इनम से यादातर कताब के बेहतरीन हद अनुवाद आजकल बाज़ार और अमेज़न
वेबसाइट पर उपल ध ह। इस तरह क ानवधक और ामा णक कताब के लए भारत
सरकार के नेशनल बुक ट और काशन वभाग क कताब भी बेहतर वक प ह।
सरी तरह क कताब ह एवर ीन रोचक सा ह यक कताब जैसे— ेमचंद, जैन
कुमार, च धर शमा गुलेरी, मोहन राकेश, धमवीर भारती, फणी रनाथ रेणु, ीलाल शु ल,
अमरकांत, ह रशंकर परसाई, शरद जोशी, काशीनाथ सह, उदय काश, च ा मुदगल, ्
मै ेयी पु पा आ द के उप यास, कहा नयाँ, नाटक और ं य। यह ला सक सा ह य आपको
व वध तरह के समाज के सामा जक-आ थक-राजनी तक और मनोवै ा नक जीवन और
सम या को समझने म मदद करके संवेदनशील बनाता है और भाषायी कौशल का
वकास होता है, सो अलग। अगर आप क वता म दलच पी रखते ह, तो नराला, साद,
महादे वी, पंत, दनकर, मु बोध, अ ेय, नागाजुन, राजेश जोशी क क वता से लेकर
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यंत कुमार, नदा फ़ाज़ली, जावेद अ तर और गुलज़ार क ग़ज़ल-न म आपका इंतज़ार


कर रही ह। हद और उसक सभी बो लय -उपभाषा के बेहतरीन सा ह य को इंटरनेट पर
पढ़ने के लए आप ‘क वता कोश’ और ‘ग कोश’ नामक दो बेहतरीन वेबसाइट का सहारा
ले सकते ह।
तीसरी तरह क कताब भी शौ क़या क़ म क कताब ह। ये है युवा ारा लखा
गया युवा पर क त नया और ताज़गी भरा सा ह य, जो ‘नई वाली हद ’ म युवा लेखक
ारा लखा गया है। यह यादातर कहा नयाँ, नॉवल या े वलॉग (या ा वृतांत) ह, जनसे
युवा पाठक ख़ुद को जोड़ पाते ह और इ ह हाथ -हाथ ले रहे ह।
मसाल के तौर पर ऐसी च चत कताब म नीलो पल मृणाल क ‘डाक हॉस’ व
‘औघड़’, द काश बे क ‘मसाला चाय’ और ‘मुसा फ़र कैफ़े’, स य ास क ‘ द ली
दरबार’ और ‘बनारस टाक ज़’, पंकज बे क ‘लूज़र कह का’, ल लत कुमार क ‘ वटा मन
ज़दगी’, अनुराधा बेनीवाल क ‘आज़ाद मेरा ा ड’, शशांक भारतीय क ‘दे हाती लड़के’
और गौरव सोलंक क ‘ यारहव ए के लड़के’ जैसी कताब शा मल ह। इस तरह के नये
क़ म के सा ह य के भीतर इं लश के लोक य लेखक ; चेतन भगत, अमीश पाठ ,
अ न सांघी, आनंद नीलकंठन, टोफ़र सी डॉयल क लोक य कताब के हद
अनुवाद भी शा मल कए जा सकते ह।
कताब के अलावा कुछ अ छ प काएँ भी ह, जो शौ क़या तौर पर पढ़ जा सकती
ह।
यूज़ मैगज़ीन म ‘इं डया टु डे’ और ‘आउटलुक’, सामा य च क प का म—
ह तान टाइ स समूह क प का ‘काद बनी’ और दै नक भा कर समूह क ‘अहा!
ज़दगी’ और सा ह यक प का म ‘नया ानोदय’, ‘आजकल’, ‘पाखी’ आ द भी कुछ
ऐसी ही प काएँ ह।
समय-समय पर बुक क चर को बढ़ावा दे ने के लए पु तक मेले और लटरेचर
फ़े टवल जैसे आयोजन आजकल काफ़ होने लगे ह। इनम टहलकर कताब क नया
क ताज़गी महसूस क जा सकती है और समकालीन सा ह यक और सूचना द व
ानवधक कताब व प का से -ब- आ जा सकता है।
कुल मलाकर बात इतनी-सी है क री डग है बट या पढ़ने का शौक़ आपक सोच और
समझ को व तृत और ापक बनाता है, आपको बेहतर ए सपोज़र दे ता है और भाषा पर
आपका अ धकार मज़बूत तो करता ही है।
ऊपर जो कुछ मने लखा है, उससे घबराएँ नह । ऊपर लखी कसी भी कताब को
पढ़ना यूपीएससी क परी ा या कसी अ य परी ा को वॉलीफ़ाई करने के लए क़तई
अ नवाय नह है। इनम से आप अपनी च और पसंद के मुता बक़ कताब चुनकर अपनी
एक ज़दगी भर चलने वाली शानदार हॉबी वक सत कर सकते ह, और कदा चत यह भी
संभव है क आपक परी ा के कसी चरण म इस पढ़ाई के शौक़ का कोई य -अ य
लाभ मल जाए।
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तो अब ख़ुद से और अपने दो त से गपशप करते ए पूछ ही ली जए—“ या पढ़ रहे


ह आजकल?”
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सतह पर ही न रह,
मम भी समझ

कसी नगर म चार ा ण रहते थे। उनम खासा मेल-जोल था। बचपन म ही उनके मन
म आया क कह चलकर पढ़ाई क जाए।
अगले दन वे पढ़ने के लए क ौज नगर चले गए। वहाँ जाकर वे कसी पाठशाला म
पढ़ने लगे। बारह वष तक मन लगाकर पढ़ने के बाद वे सभी अ छे व ान हो गए।
अब उ ह ने सोचा क हम जतना पढ़ना था पढ़ लया। अब अपने गु क आ ा लेकर
हम वापस अपने नगर लौटना चा हए। यह नणय करने के बाद वे गु के पास गए और
आ ा मल जाने के बाद अपनी कताब-पो थयाँ संभाले अपने नगर क ओर रवाना ए।
अभी वे कुछ ही र गए थे क रा ते म एक तराहा पड़ा। उनक समझ म यह नह आ
रहा था क आगे के रा त म से कौन-सा उनके अपने नगर को जाता है। अ ल कुछ काम न
दे रही थी। वे यह नणय करने बैठ गए क कस रा ते से चलना ठ क होगा। अब उनम से
एक पोथी उलटकर यह दे खने लगा क इसके बारे म इस पोथी म या लखा है।
संयोग कुछ ऐसा था क उसी समय पास के नगर म एक ब नया मर गया था। उसे
जलाने के लए ब त से लोग नद क ओर जा रहे थे। इसी समय उन चार म से एक ने पोथी
म अपने का जवाब भी पा लया। कौन-सा रा ता ठ क है कौन-सा नह , इसके वषय म
उसम लखा था, ‘महाजनो येन गतः स पंथा।’
कसी ने इस बात पर यान नह दया क यहाँ ‘महाजन’ का अथ या है और कस
माग क बात क गई है। ेणी या कारवाँ बनाकर नकलने के कारण ब नय के लए महाजन
श द का योग तो होता ही है, महान य के लए भी होता है, यह उ ह ने सोचने क
चता नह क । उस पं डत ने कहा, “महाजन लोग जस रा ते जा रहे ह उसी पर चल!” और
वे चार मशान क ओर जाने वाल के साथ चल दए।
मशान प ँचकर उ ह ने वहाँ एक गधे को दे खा। एकांत म रहकर पढ़ने के कारण
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उ ह ने इससे पहले कोई जानवर भी नह दे खा था। एक ने पूछा, “भई, यह कौन-सा जीव


है?”
अब सरे पं डत क पोथी दे खने क बारी थी। पोथे म इसका भी समाधान था। उसम
लखा था।
उ सवे सने ा ते भ े श ुसंकटे ।
राज ारे मशाने च यः त त सः बा धवः ।

बात सही भी थी, बंधु तो वही है जो सुख म, ख म, भ म, श ु का सामना


करने म, यायालय म और मशान म साथ दे ।
उसने यह ोक पढ़ा और कहा, “यह हमारा बंधु है।” अब इन चार म से कोई तो उसे
गले लगाने लगा, कोई उसके पाँव पखारने लगा।
अभी वे यह सब कर ही रहे थे क उनक नज़र एक ऊँट पर पड़ी। उनके अचरज का
ठकाना न रहा। वे यह नह समझ पा रहे थे क इतनी तेज़ी से चलने वाला यह जानवर है
या बला!
इस बार पोथी तीसरे को उलटनी पड़ी और पोथी म लखा था, ‘धम य व रता ग तः।’
धम क ग त तेज़ होती है। अब उ ह यह तय करने म या कावट हो सकती थी क
धम इसी को कहते ह। पर तभी चौथे को सूझ गया एक रटा आ वा य, ‘इ ं धमण
योजयेत’ यानी य को धम से जोड़ना चा हए।
अब या था। उन चार ने मलकर उस गधे को ऊँट के गले से बाँध दया।
अब यह बात कसी ने जाकर उस गधे के मा लक धोबी से कह द । धोबी हाथ म डंडा
लए दौड़ा आ आया। उसे दे खते ही वे वहाँ से चंपत हो गए।
वे भागते ए कुछ ही र गए ह गे क रा ते म एक नद पड़ गई। सवाल था क नद को
पार कैसे कया जाए। अभी वे सोच- वचार कर ही रहे थे क नद म बहकर आता आ
पलाश का एक प ा दख गया। संयोग से प े को दे खकर प े के बारे म जो कुछ पढ़ा आ
था वह उनम से एक को याद आ गया। ‘आग म य त य प ं त पारं तार य य त।’ यानी आने
वाला प ही पार उतारेगा।
अब कताब क बात ग़लत तो हो नह सकती थी। एक ने आव दे खा न ताव, कूदकर
उसी पर सवार हो गया। तैरना उसे आता नह था। वह डू बने लगा तो एक ने उसको चोट से
पकड़ लया। उसे चोट से उठाना क ठन लग रहा था। यह भी अनुमान हो गया था क अब
इसे बचाया नह जा सकता। ठ क इसी समय एक सरे को कताब म पढ़ एक बात याद आ
गई क य द सब कुछ हाथ से जा रहा हो तो समझदार लोग कुछ गँवाकर भी बाक़ को बचा
लेते ह। सब कुछ चला गया तब तो अनथ हो जाएगा।
यह सोचकर उसने उस डू बते ए साथी का सर काट लया।
अब वे तीन रह गए। जैसे-तैसे बेचारे एक गाँव म प ँच।े गाँववाल को पता चला क ये
ा ण ह तो तीन को तीन गृह थ ने भोजन के लए योता दया। एक जस घर म गया
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उसम उसे खाने के लए सेव द गई। उसके लंबे ल छ को दे खकर उसे याद आ गया क
द घसू ी न हो जाता है, ‘द घसू ी वन य त’। मतलब तो था क द घसू ी या आलसी
आदमी न हो जाता है पर उसने इसका सीधा अथ लंबे ल छे और सेव समझकर सोच
लया क य द उसने इसे खा लया, तो वह न हो जाएगा। वह खाना छोड़कर चला आया।
सरा जस घर म गया था वहाँ उसे रोट खाने को द गई। पोथी फर आड़े आ गई।
उसे याद आया क अ धक फैली ई चीज़ क उ कम होती है, ‘अ त व तार व तीण तद्
भवेत् न चरायुषम्।’ वह रोट खा लेता तो उसक उ घट जाने का ख़तरा था। वह भी भूखा
ही उठ गया।
तीसरे को खाने के लए ‘बड़ा’ दया गया। उसम बीच म छे द तो होता ही है। उसका
ान भी कूदकर उसके और बड़े के बीच म आ गया। उसे याद आया, ‘ छ े वनथा ब ली
भव त।’ छे द के नाम पर उसे बड़े का ही छे द दखाई दे रहा था। छे द का अथ भेद का
खुलना भी होता है, यह उसे मालूम ही नह था। वह बड़े खा लेता तो उसके साथ भी अनथ
हो जाता। बेचारा वह भी भूखा रह गया।
लोग उनके ान पर हँस रहे थे पर उ ह लग रहा था क वे उनक शंसा कर रहे ह।
अब वे तीन भूख-े यासे ही अपने-अपने नगर क ओर रवाना ए।
यह कहानी सुनाने के बाद वण स ने कहा, “तुम भी नयादार न होने के कारण ही
इस आफ़त म पड़े। इसी लए म कह रहा था शा होने पर भी मूख मूखता करने से बाज़
नह आते।”
पंचतं क यह रोचक कहानी वयं म ब त से न हताथ समेटे ए है। पढ़े - लखे होकर
भी लक र के फ़क़ र बने रहने वाले इन चार व ा थय क यह कहानी थोड़ी
अ तशयो पूण ज़ र लगती है, पर यह य -अ य तौर पर हम ज़दगी और साथ ही
परी ा और ज़दगी; दोन क तैयारी के लए दशा दे ने का काम भी करती है। आइए, चचा
कर—
आपने अँ ेज़ी का एक मुहावरा सुना होगा, ‘Reading between the lines.’ साथ
ही एक और मुहावरा है, ‘in black and white.’ पहले मुहावरे का अथ है, जो प तौर
पर लखा आ नह दख रहा है, उसके वा त वक अथ या मम (essence) को समझना।
सरे मुहावरे का अथ है, सब कुछ एकदम प होना और कोई कं यूज़न न होना।
‘reading between the lines’ क ासं गकता आजकल के दौर म इस लए यादा है
य क अब सब कुछ in black and white उपल ध नह होता। कहने का मतलब यह है
क कसी भी कथन या अ ययन साम ी का शा दक (literal) अथ पकड़कर लक र के
फ़क़ र बनने के बजाय उसका न हत अथ या वा त वक मम/अ भ ाय समझना ही आज
क माँग है।
संघ लोक सेवा आयोग/रा य लोक सेवा आयोग और अ य लगभग सभी परी ा के
नये पैटन म आप यह बदलाव महसूस करगे क अब लक र के फ़क़ र बने रहकर या चीज़
को केवल कंठ थ करके सफलता पाना संभव नह है, जब तक उनके अथ या मम को
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दयंगम न कर लया जाए। चाहे कसी अकाद मक वषय क अवधारणाएँ ह या करट


अफ़ेयस का आधारभूत सामा य अ ययन से संबंध; नबंध के लए सामा य समझ हो या
ए थ स म एक संतु लत कोण; इन सबके लए ही पाठ् य म के मम और अपे ा को
समझते ए अपनी समझ का व तार करना ज़ री है।
आइए, समझने क को शश कर क कन आसान तरीक़ क मदद से हम सतही ान
से गहन और मा मक ान क ओर बढ़कर सफलता क संभावना को बढ़ा सकते ह:—
—जब भी कोई नया वषय या टॉ पक पढ़, तो सबसे पहले उसे तस ली से सरसरी
तौर पर बना कसी दबाव के, पढ़ ल।
—इस दौरान को शश कर क मह वपूण ब या अंश को रेखां कत (underline)
या हाइलाइट करते चल। यान रहे, ब त यादा ह सा रेखां कत न हो।
—जब आपका कसी नये पा रभा षक श द (terminology) या नई अवधारणा
(concept) से प रचय हो तो उसको अलग से नोट करके उसका अथ समझने क को शश
कर। इसके लए कसी कोश या व कपी डया/इंटरनेट का भी सहारा ले सकते ह। य द
ज़ रत महसूस हो तो कसी संदभ ंथ (reference book) क भी मदद ले सकते ह।
—पढ़ना एक बात है और उसे समझना व उस पर मनन करना सरी। अ धगम
(learning) क या, पढ़ने के साथ-साथ रवीज़न, चतन-मनन और वण
(listening) और चचा (discussion) से होकर पूण होती है। अतः सतही ान से आगे
बढ़ने के लए पढ़ाई के इन आव यक घटक का भी भरपूर इ तेमाल कर। इस बात का भी
यान रख क आपको कई परी ा ; वशेषकर स वल सेवा परी ा म सफलता के लए
वशेष (specialist) नह , सामा य (generalist) ही बनना है।
—उप नषद म कहा गया है क ‘वाद- ववाद-संवाद से त वबोध होता है’, लहाज़ा चचा
के लए हमेशा सहज रह।
— सर के वचार का स मान करना सीख और स ह णु बन ता क नरंतर कुछ नया
सीख सक।
—हमेशा सीखने को तैयार रह और चार ओर से बेहतर वचार (ideas) को अपनी
ओर आने द।
—परी ा क तैयारी के दौरान सामा य अ ययन के व भ खंड (segments) को
बलकुल अलग-अलग मानकर न दे ख। इ ह पर पर कने ट करके समझ। ये व भ खंड
आपस म जुड़े होते ह और एक े म ए बदलाव का असर सरे े पर भी पड़ता है।
—अ ययन साम ी को व थत करना भी ज़ री है। एक टॉ पक के लए ब त सारे
ोत को पढ़ने क ज़ रत नह है। ोत म आव यकतानुसार व वधता रख और जो भी
टॉ पक जहाँ से भी पढ़, उसे कह डायरी म नोट भी कर ल।
—नए पैटन के मुता बक़, सतही ान आपको ब त आगे तक नह ले जा सकता।
आपके उ र पढ़कर आपके ान और समझ के तर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अतः अपने उ र को अ धक प रप व (mature) बनाने के लए सतही ान से आगे बढ़
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और मम तक प ँचने क को शश कर।
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तकनीक से कर दो ती

एक ज़माना था, जब अ सी के दशक म भारत म टे ली वज़न आया, तो खलबली-सी


मच गई। लोग के लए इस बात पर भरोसा करना मु कल था क एंट ना से स नल
पकड़कर कैसे ट वी न पर च हार या चल च दख सकता है। यह अ व ास केवल
तकनीक पर ही नह था, ब क अ व ास और आशंकाएँ इस नई तकनीक यानी ट वी के
समाज और वशेषकर युवा पर भाव को लेकर भी थ ।
कई लोग को लगता था क आने वाली पीढ़ इस ‘बु ब से’ के आकषण म फँसकर
बबाद हो जाएगी। यही क़ सा वष 2000 के बाद के दौर म भारत म मोबाइल फ़ोन के बढ़ते
चलन को लेकर भी दोहराया गया। न जाने कतने लोग को लगता था क यह हाथ म आने
वाला छोटा-सा यं तो युवा पीढ़ को बगाड़ने म कोई कसर नह छोड़ेगा। हालाँ क आज भी
ऐसा वचार रखने वाले लोग क सं या ठ क-ठाक है।
मोबाइल और इंटरनेट के सार के साथ सूचना ां त और मनोरंजन के नये युग का
सू पात भी आ। हर सवाल का जवाब ‘गूगल’ बाबा एक लक पर बताने लगे।
‘ वक पी डया’ पर ान- व ान का अथाह भंडार उपल ध आ। मु यधारा के मी डया के
साथ-साथ तेज़ी से एक नये क़ म के मी डया—‘सोशल मी डया’ का भी चलन तेज़ी से
बढ़ा, जहाँ अपनी बात साझा करने के लए संपादक जी से अनुरोध करने क भी
आव यकता नह है। समाज के वं चत वग और युवा को भी खुलकर अपनी बात रखने
का खुला मंच मला और वाद- ववाद-संवाद के नये अवसर सामने आने लगे। न संदेह इस
सबसे अ भ क वतं ता और पारद शता क सं कृ त को भी ख़ूब बढ़ावा मला।
ट वी से लेकर मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मी डया तक, संचार और सूचना ां त
का लंबा सफ़र तय कर चुके इस युग म या हमम से कोई व ान और तकनीक के इन
उपहार के बग़ैर अपनी रोज़मरा क ज़दगी बताने क क पना भी कर सकता है? वही
ढ़वाद क़ म के लोग, जो अपने-अपने युग म नई तकनीक के भाव को लेकर आशं कत
महसूस करते थे, या वही बाद म उस तकनीक के बड़े उपयोगकता नह बने? इसम कोई
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संदेह नह है क आज हम तकनीक के साधन के बग़ैर एक दन भी बताने क क पना नह


कर सकते।
जब हम रोज़मरा के जीवन और सुख-सु वधा के उपभोग म व ान और तकनीक
के साधन का जमकर उपयोग करते ह, तो ानाजन म तकनीक के उपयोग को लेकर
झझक कैसी। य द युवा ारा स वल सेवा परी ा और अ य तयोगी परी ा क
तैयारी के संदभ म बात कर, तो अपने नॉलेज और ल नग के व तार और ए सपोज़र के
लए तकनीक का मह व और भी अ धक पढ़ जाता है।
डा वन के ‘यो यतम क उ रजी वता’ (Survival of the fittest) के स ांत क
तज़ पर हम समझना होगा क तेज़ी से बदलती तकनीक के इस दौर म तकनीक से
क़दमताल करना व त क माँग है। कसी शायर ने लखा भी है,
इस मशीनी दौर म र तार ही पहचान है,
धीरे-धीरे जो चलोगे, गुमशुदा हो जाओगे ।

य द स वल सेवा परी ा के वशेष संदभ म बात कर, तो हम समझना होगा इस परी ा


क कृ त डायन मक और ापक है। इस परी ा क तैयारी के व भ प को कवर करने
के लए व भ ासं गक ोत को फ़ॉलो करना अप रहाय हो जाता है। इनम कताब और
अख़बार-प का के अलावा ट वी, इंटरनेट पर उपयोगी वेबसाइट , यूट्यूब वी डयो आ द का
ववेकपूण उपयोग भी शा मल है। आज भारत सरकार क अनेक वेबसाइट और ढे र अ य
नजी वेबसाइट परी ा क तैयारी के लए भरपूर ासं गक और ामा णक साम ी उपल ध
करा रही ह। बस शत यह है क जो भी वेबसाइट फ़ॉलो कर, उसक साख और त ा भी
जाँच ल।
हालाँ क तकनीक क आँधी के इस दौर म उसके ववेकपूण ढं ग से उपयोग से उसे
संभालना भी उतना ही ज़ री है। तकनीक आप का कल सँवार भी सकती है और आपके
हाथ जला भी सकती है।
दनकर ने लखा भी है—
सावधान मनु य य द व ान है तलवार,
तो इसे दे फक तजकर मोह मृ त के पार,
खेल सकता तू नह , ले हाथ म तलवार,
काट लेगा अंग, है तीखी बड़ी यह धार ।

यह भी समझना ज़ री है क तकनीक का अ ववेकपूण और अ य धक उपयोग


घातक भी हो सकता है। सोशल मी डया का ही उदाहरण ल। एक ओर सोशल मी डया ने
संवाद क सं कृ त को बढ़ावा दया है, वह सरी ओर इसक लत आज के युग क बड़ी
मनोवै ा नक सम या बनकर उभरी है। हम चै टग या स फ़ग करते व त ये अंदाज़ा ही नह
रहता क दन म कतने घंटे हमने क यूटर या मोबाइल पर आँख गड़ाए बता दए। फ़ेसबुक
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और हॉट् सएप के अ तशय उपयोग क लत ने ढे र युवा को तनाव और अवसाद क ओर


धकेला है।
लहाज़ा तकनीक के इ तेमाल को लेकर थ ही आशं कत रहने वाल को यह
समझना होगा क तकनीक से दो ती करके ही हम नये दौर क र तार से समांज य बैठाकर
सवाइव कर सकते ह। पर यह भी यान रहे क तकनीक क आँधी म बहकर तकनीक का
अंधाधुंध उपयोग भी कोई लाभ दे ने वाला नह है। तकनीक पर अ य धक नभरता एक लत
का प लेकर नये क़ म क सम या को ज म दे सकती है।
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परफ़े शन को कह ‘ना’

भारतीय सं वधान म अनु छे द 51 (क) म उ ल खत मूल कत म से एक कत है



‘ गत और सामू हक ग त व धय के सभी े म उ कष क ओर बढ़ने का सतत
यास करना, जससे रा नरंतर बढ़ते ए य न और उपल ध क नई ऊँचाइय को छू
ले।’
यानी इसम कोई भी संदेह नह है क येक को अपने नजी और सावज नक
जीवन म बेहतरी क ओर बढ़ने का यास करते रहना चा हए और जीवन म उ कृ ता क
उपल ध करने म कोई कसर नह छोड़नी चा हए।
हम अपने आस-पास के माहौल म यह भी नरंतर दे खते ह क येक
यथासंभव कुछ-न-कुछ यास करके ऊँचाई को छू ने क को शश करता ही है। एक कसान
चाहता है क अगली बार वह बेहतर प तय और संसाधन का योग कर पहले से यादा
और गुणव ापूण फ़सल उगा सके। ापारी चाहता है क उसके ाहक बढ़ते जाएँ और
बैलस शीट शखर को छू जाए। नौकरीपेशा कमचारी का वाब है क उसका लं बत मोशन
ज द -से-ज द हो और उसके वेतन ेड म आशातीत बढ़ोतरी हो जाए। इसी तरह कसी भी
परी ाथ का इस दशा म भरपूर यास है क वह परी ा म सफलता के लए वां छत सभी
चरण म उ कृ दशन कर अपने सपन को साकार कर ले।
उ कृ ता और बेहतरी क यह चाहत वाभा वक है और यह जीवन क साथकता क
ओर ले जाने म न य ही सहायक होती है। अँ ेज़ी के क व RW Emerson ने इसी लए
युवा के वषय म लखा भी है—
Brave men who work while others sleep,
Who dare while others fly,
They build a nation’s pillars deep,
And lift them to the sky.
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पर कभी-कभी आगे बढ़ने और ल य ा त करने का यह एक जुनून या फर उससे भी


यादा एक फ़तूर का प लेने लगता है। कुछ परी ा थय को ऐसा लगने लगता है क य द
उ ह यूपीएससी क इस त त और सव च मानी जाने वाली परी ा म पास होना है तो
उ ह हर काम परफ़े शन के साथ करना होगा। इसी धुन म वे ‘परफ़े श न ट’ या
‘अ तमानव’ बनने क को शश करने लगते ह। वे यह भूल जाते ह क ‘परफ़े ट’ जैसा कुछ
भी नह होता और न ही इस परी ा या कसी भी परी ा म सफलता के लए आपको
परफ़े ट बनने क दरकार है।
परफ़े श न ट बनने का यह आ ह ही ख़ुद से एक यादती है। य क कोई भी चीज़
या कोई भी वयं म पूण या परफ़े ट नह होता। एक कहावत भी है—
There is no perfect way,
There are many good ways.

हमम से कोई भी अ तमानव या ‘सुपरमैन’ नह है और न ही ऐसा बनना वांछनीय है।


ज़ रत है तो सकारा मक सोच के साथ, ापक व संतु लत नज़ रया अपनाकर सही दशा
म नरंतर यास करते जाने क , ता क जस ल य क चाह है, वह हा सल हो सके।
परफ़े शन के इसी जुनून के च कर म कुछ अ यथ ब त मह वाकां ी और ग़ैर-
ावहा रक योजनाएँ बनाते ह। ये हवाई लान ज ीन से कोस र होने के कारण
वा त वकता म प रणत न तो होने थे और न ही हो पाते ह। आपने अपने आस-पास ऐसे
अ यथ ज़ र दे खे ह गे, जो ला नग ब त बड़ी-बड़ी करते ह, पर लागू करने म ब त पीछे
रह जाते ह।
कभी-कभी परी ा क तैयारी के दौरान हम परफ़े ट बनना चाहते ह और हर चीज़ को
बे ट तरीक़े से करना चाहते ह। जैस-े हमारा टडी मैटे रयल, को चग, टे ट सरीज़, रवीज़न,
नोट् स, दनचया सभी कुछ सव े होना चा हए, तभी हमारी बे ट रक आएगी और हम
टॉपर बनगे।
इस तरह अ तशय भावुकता म हम बड़ी-बड़ी योजनाएँ और आदश दनचया का
शेड्यूल तो बना लेते ह, पर जब उनके या वयन क बारी आती है तो शु आती उ साह
धीरे-धीरे ढ ला पड़ने लगता है और हम अपने ल य से पीछे होते जाते ह, जससे ल य
लं बत होने लगते ह और एक के बाद एक बैकलॉग बढ़ता जाता है।
इस बैकलॉग का वाभा वक प रणाम धीरे-धीरे खीझ, कुंठा और तनाव के प म
सामने आता है और हम नाहक़ ही परेशान और रहने लगते ह। इस े स और ता
का असर हमारी पढ़ाई और तैयारी पर वाभा वक तौर पर पड़ता ही है और आदशवाद
ल य पाना तो र, हम सामा य से ल य को पाने म ही ख़ुद को अ म पाने लगते ह।
लाख टके का सवाल यह है क अनाव यक प से उपजी इस मुसीबत और
नकारा मकता से छु टकारा पाने के लए हम पहले से ही या कर, या न कर और कैसे
कर?
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इस थ त से बचने के लए बेहतर समाधान यह हो सकता है क जब भी हम योजनाएँ


या टडी लान बनाएँ तो उसम अपनी मता, साम यक प र थ तयाँ, अपने उद्दे य ,
अपनी मह वाकां ा का तर और उपल ध समय आ द को यान म रखते ए ला नग कर।
यह ला नग ावहा रकता और वा त वकता के धरातल पर रहकर बनाएँ, न क ख़ुद को
‘सुपरमैन’ समझकर। हर अ यथ क मताएँ और अ ययन व अ यास का तर व कौशल
भ - भ होते ह। येक वयं म व श होता है। कसी भी सफल या टॉपर
को य -का- य कॉपी करने के च कर म अपने लए अ ावहा रक और कुछ हद तक
‘असंभव’ योजनाएँ बनाना कहाँ क समझदारी है!
कसी सफल से ेरणा लेना या उससे मागदशन लेना अ छ बात है, पर अपने
व और तैयारी के तर को अनदे खा करके ‘परफ़े शन’ के पीछे भागना आपके ल य
को वा त वकता से र ले जा सकता है। परी ा क तैयारी के दौरान कभी-कभी एक और
उलझन होती है। हम हर महीने नये टॉपर का इंटर ू पढ़ते ह और हर टॉपर से भा वत होते
ह। यह वाभा वक है और उससे ेरणा और मो टवेशन लेने म कोई सम या भी नह है। पर
कभी-कभी हम कसी या टॉपर को परफ़े ट समझने के च कर म हम आँख बंद
करके उसका अनुकरण करने लगते ह। मेरा यही आ ह है क ‘ ेरणा ल, पर अंधानुकरण न
कर’।
यहाँ यह भी समझना ज़ री है क टॉपर और अ य थय म कोई ब त यादा फ़क़
नह होता। यादातर टॉपर सफलता के बाद ख़ुद वीकारते ह क उ ह इस बात का अंदाज़ा
नह था क वे ऐसा असाधारण दशन करगे। कोई भी समझदार अ यथ सही तरीक़े से
प र म और पु षाथ के ारा टॉपर बन सकता है।
पर टॉपर के इंटर ू पढ़कर कई अ यथ यह सोचकर कन यूज़ हो जाते ह क कौन-
सी रणनी त सव े है? कारण यह है क हर टॉपर क पृ भू म, व और रणनी त
अलग-अलग होती है। उदाहरण के तौर पर, कसी टॉपर ने कसी जॉब के साथ तैयारी क
थी, कसी ने पढ़ाई करते-करते तैयारी क , तो कोई सब कुछ छोड़कर सम पत प से तैयारी
करके सफल आ। अब य द हम सभी टॉपर का एक साथ अनुकरण करने लगगे तो
ऊहापोह होना तय है।
म आपसे यही क ँगा क आपके लए वही रणनी त े है जो आपके व और
अ ययन-अनुभव-तैयारी के तर के अनुकूल हो। बस इतना-सा करना है क एक बेहतर और
ावहा रक रणनी त बनाकर उसका या वयन कर और सुधार क को शश हमेशा जारी
रख। छोटे -छोटे ावहा रक ल य बनाएँ और उ ह धीरे-धीरे पूरा करते जाएँ और तनावमु
रह।
जब हम ‘परफ़े शन’ पर बात कर ही रहे ह तो हम यह भी समझ लेना चा हए क हम
भले ही का प नक ‘परफ़े शन’ से र रह, पर अपना ‘बे ट’ दे ने म भी कोई कसर न छोड़।
अगर आप अपने ल य को लेकर गंभीर ह तो आप अपनी पूरी मता और पूरे मनोयोग से
तैयारी कर और अपना ‘सव े ’ द ता क आप अपना ‘सव े ’ दशन कर वां छत
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प रणाम हा सल कर सक। ये और बात है क प रणाम आपके प म आए या नह पर कम-


से-कम यह तस ली तो रहेगी क मने अपना बे ट कया और अपनी को शश म कोई कसर
नह छोड़ी। य द आपने पूरे मन और व ास से पु षाथ करते ह, तो आपक सफलता क
संभावनाएँ कई गुना बढ़ जाती ह।
अपने प र म और अ यवसाय क या ा को म ती के साथ एं वॉय करते ए जब आप
आगे बढ़गे तो आपको महसूस होगा क कभी-कभी ‘सफ़र मं ज़ल से भी यादा ख़ूबसूरत
होता है।’
कसी शायर ने लखा भी है—
मं ज़ल मले या नह मुझे उसका ग़म नह ,
मं ज़ल क जु तजू म मेरा कारवाँ तो है ।

अतः ‘चरैवे त-चरैवे त’ का मं अपनाएँ और ‘यूँ ही चला चल राही’ क तज़ पर अपना


‘बे ट’ दे ते ए अपने सपन क राह पर सही दशा म पूरी ह मत के साथ बढ़ते जाएँ।
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जीवन के तीन मागदशक

जीवन के येक े म सफलता क ऊँचाइयाँ छू ने के लए भारतीय दशन के तीन


मागदशक स ांत (Three Guiding Principles) मुझे वशेष तौर पर आक षत करते ह
और मेरी सफलता म इन तीन स ांत का बेहद मह वपूण योगदान है।
इनम पहला स ांत है—गीता का ‘ न काम कमयोग’। ‘गीता’ म कहा गया है—
कम येवा धकार ते मा फलेषु कदाचन
मा कमफलहेतुभूः मा ते संगो व कम ण ।

सामा य भाषा म इस ‘ न काम कमयोग’ के स ांत को इस प म समझा और


बताया जाता है, ‘कम करते रहो, फल क इ छा मत करो।’ इस स ांत का शा दक अथ ही
हण करने पर अ सर यह सवाल उठता है क जब फल क इ छा ही नह है तो कम करने
के लए मो टवेशन कहाँ से लाएँ।
जहाँ तक म इस शानदार स ांत को समझ पाया ँ, ‘ न काम कमयोग’ फल क
इ छा रखने पर तबंध नह लगाता, ब क यह तो फल क ा त के लए बना आस ए
कम म लगे रहने क ेरणा दे ता है। धमवीर भारती ने ‘अंधा युग’ म ‘ न काम कमयोग’ क
श को इस कार कया है—
जब कोई भी मनु य
अनास होकर चुनौती दे ता है इ तहास को,
उस दन न क दशा बदल जाती है ।
नय त नह है पूव नधा रत
उसको हर ण मानव- नणय बनाता- मटाता है ।

नतीजे के बारे म ही सोचते रहने का यह भी भाव होता है क हम पढ़ाई या नौकरी


म हर रोज़ जो कुछ नया सीखते ह, उसे एं वॉय नह करते, उसका आनंद भी नह उठा पाते।
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लहाज़ा, मं ज़ल क ओर बढ़ने क या म थर व मज़बूत बने रहने के लए वम


‘ न काम कमयोग’ का समावेश ज़ री ही है।
मेरे लए सरा मागदशक स ांत है—जैन दशन का ‘अनेकांतवाद’। इस अनूठे
स ांत का अ भ ाय है क ‘स य को सभी लोग अपने अलग-अलग नज़ रये से दे खते ह,
परंतु कोई भी नज़ रया न तो पूरी तरह सही है और न ही पूरी तरह ग़लत।’ आपको एक
हाथी और सात अंध वाला उदाहरण याद है न? सड़क पर बैठे एक हाथी के शरीर के अलग-
अलग अंग को छू कर सात अंधे हाथी को वैसा ही अलग-अलग समझने क भूल कर
बैठते ह, जैसे कोई उसक पूँछ पकड़कर उसे झाड समझता है तो कोई उसका कान छू कर
उसे पंखा समझ बैठता है।
अनेकांतवाद सखाता है क सफ़ अपने ही वचार को सही मानना और सर के
वचार को सरे से नकारना अपने-आप म ग़लत है। ऐसा करना आपको एक ड फ़क ट
पसन बनाता है।
आप एक ड फ़क ट इंसान ह या नह , इसे जाँचने के लए यह टे ट आज़मा सकते ह,
जो मुझे सोशल मी डया पर कह पढ़ने को मला।

एक ड फ़क ट पसन कौन होता है?


1. अगर आपको लगता है क हर कोई ग़लत है और आप हमेशा सही ह। तो आप
अपने आप को एक ड फ़क ट पसन बना रहे ह।
2. जब आपके पास हर अ छे या व तु के बारे म कहने को कुछ ग़लत हो, तो
आप सफ़ एक ड फ़क ट पसन हो सकते ह।
3. अगर धीरे-धीरे आपको ख़ुश करना मु कल काम होता जा रहा है। तो सावधान,
आप एक ड फ़क ट पसन बनते जा रहे ह।
4. जब आप हर चीज़ के बारे म तक- वतक करने लगते ह, वो भी तब, जब उसक
कोई आव यकता नह होती है। सावधान हो जाएँ, आप एक ड फ़क ट पसन बनने लगे ह।
5. सरे या कर रहे ह, य कर रहे ह, इसका कारण या है…मुझे सब मालूम है…
सोचकर एक माइंड रीडर के प म आप गव महसूस करने लगते ह… या आप भगवान ह?
बेशक, आप नह ह; आप सफ़ एक ड फ़क ट पसन ह।
6. अगर आपसे अ धकतर लोग कटने लगे ह। वे आपसे बात करने से कतराने लगे
ह…तो आप ड फ़क ट पसन ह।
7. य द आपके पास सभी के लए कुछ न कुछ सुधार क राय है, ले कन वयं के लए
एक भी नह …तो आप एक ड फ़क ट पसन ह।
8. अगर आप कभी भी ‘I am Sorry’ नह कहते ह; या यह कहने म द क़त महसूस
करते ह…तो आप एक ड फ़क ट पसन ह।
9. य द आप सर क छोट -छोट ग़ल तय को लंबे अरसे तक याद रखते ह या माफ़
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करने म अ ड़यल रवैया रखते ह…तो आप एक ड फ़क ट पसन ह।


10. य द सुनी ई हर बात सर से बताए बना आपको बैचैनी होती ह तो आप एक
ड फ़क ट पसन ह।
एक ड फ़क ट पसन को ब त सावधान रहना होगा; अ यथा जीवन या ा के कसी
पड़ाव म आप अचानक पाएँगे क अरे आप तो अकेले ही चल रहे ह।
अगर आपको सामा जक ाणी के प म सबके बीच समुदाय के साथ रहना है और
एक ख़ुशहाल इंसान बनना है तो ड फ़क ट पसन न बन और अनेकांतवाद को जीवन म
उतारने क को शश कर।
इस तरह अनेकांतवाद सर के वचार का स मान करना और वीकायता
(acceptance) सखाता है। इस तरह से हम पाते ह क ‘ वीकार करना’ (Acceptance)
दरअसल सभी सम या के हल क कुंजी है। इसे इस तरह समझ:—

Acceptance:
When we don’t accept an undesired event, it becomes Anger,
when we accept it, it becomes Tolerance.
When we don’t accept uncertainty, it becomes Fear,
when we accept it, it becomes Adventure.
When we don’t accept other’s bad behaviour towards us, it
becomes Hatred;
when we accept it, it becomes Forgiveness.
When we don’t accept other’s Success, it becomes Jealousy; when
we accept it, it becomes Inspiration.

अनेकांतवाद का स ांत परी ा म भी हर क़दम पर साथ नभाता है। ल खत परी ा


और इंटर ू म तो अनेकांतवाद का वचार एक संजीवनी है। जब हम कसी का उ र
लखते या बताते समय अ तवाद (extermist) ए बग़ैर, संतु लत तरीक़े से सर के
वचार का स मान करते ह तो उसका एक सकारा मक भाव पड़ना तय ही है। परी ा म
सफलता के पहले भी और बाद भी सर के वचार और नज़ रये का स मान करना
स ह णुता को बढ़ावा दे ता है और हर े म सफलता क राह को आसान बनाता है।
मेरा तीसरा य मागदशक स ांत है—बौ दशन का ‘म यम माग’। इसे ‘Middle
path’ या ‘golden mean’ भी कहा जाता है। बु दोन अ तय क उपे ा कर बीच का
रा ता नकालने क सलाह दे ते ह। एक कहावत है—‘Excess of everything is bad!’
‘अ त सव वजयेत्’। यानी अ धकता हर चीज़ क बुरी होती है।’ म यम माग हर तरह के
झगड़ - ववाद के सरल और मै ीपूण समाधान क राह सुझाता है।
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परी ा क तैयारी म भी म यम माग, एक कृत कोण (integrated approach)


और संतु लत मत (balanced view) के नमाण म मदद करता है। य द हमारे वम
संतुलन का त व शा मल हो तो जीवन के येक े म सहजता के साथ सफलता क राह
आसान हो जाती है। म यम माग के स ांत का योग परी ा क तैयारी म हर मोच पर
कया जा सकता है। जैसे—सहज और सरल भाषा का योग करना; न अ धक क ठन और
न ही अ धक कामचलाऊ भाषा; श द सीमा का पालन करना; और न अ धक लंबा उ र न
ही अ धक छोटा; इंटर ू म रे डकल होने से बचना आ द। इस कार जीवन के हर े म
सफलता क संभावना बढ़ाने के लए ‘ न काम कमयोग’, ‘अनेकांत’ और ‘म यम माग’ के
स ांत का व म समावेश एक बेहतरीन रा ता है। इन तीन गाइड् स को हमेशा अपने
साथ र खए और एक बेहतरीन ज़दगी क इबारत बे झझक ल खए।
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य अपनाएँ म यम माग?

या कभी हमने यह भी सोचा है क हम स वल सेवा परी ा या अ य तयोगी


परी ा म स म लत य होते ह? य हम दन-रात एक कर, नरंतर क ठन प र म कर
परी ा म सफलता के लए पूरा ज़ोर लगा दे ते ह? य हम चौतरफ़ा दबाव और तनाव के
बीच तपकर इस कंटक पथ पर चलकर सब कुछ सम पत कर दे ते ह?
य प सबक ाथ मकताएँ और उद्दे य अलग-अलग हो सकते ह, पर अगर कभी
फ़सत म ठं डे दमाग़ से इस सवाल का जवाब सोच, तो मोटे तौर पर कुछ बात सामने आती
ह, जैस—

—एक बेहतर और सुखमय जीवन क कामना,
—जीवन म उ कृ ता के लए को शश
—अ छे और त त कै रयर क तलाश
—माता- पता/प रवार/ श क क अपे ा पर खरा उतरने का वाब
—अपने सपन को साकार करने क इ छा, आ द।
अपने इन सपन को साकार करने के यास क राह ब त क ठन नह है, परंतु इतनी
सरल और एकरेखीय भी नह है। जस तरह ज़दगी ब प ीय और ब आयामी है, उसी तरह
स वल सेवा परी ा क तैयारी क या भी ठ क-ठाक लंबी और उलझाऊ-सी है। मेरी
गत राय है क इस उलझन, बोझ, ऊहापोह और तनाव से नपटने का शानदार और
ज़बरद त रा ता बु के ‘म यम माग’ म छपा है।
बौ दशन के मुख स ांत म से एक म यम माग को पाली सा ह य म ‘म झमा
प रपदा’ कहा गया है, जसे सामा य तौर पर अँ ेज़ी म ‘Middle Path’ या ‘golden
mean’ भी कहा जाता है। बु ने अ त ‘काय लेश’ और ‘भोगवाद’ के बीच का ‘म यम
माग’ सुझाया और वयं भी उसी पर आगे बढ़े । बु का यह म यम माग का दशन भारतीय
उप नषद क समावेशी (inclusive) और स ह णु (tolerant) चतन या के काफ़
नज़द क है।
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म यम माग का यह स ांत तीथकर महावीर के ‘अनेकांतवाद’ व ‘ यादवाद’ के भी


काफ़ नज़द क है। अनेकांतवाद सखाता है क कोई भी कथन वयं म पूण (absolute)
नह है। कसी भी बात या धारणा को एक नह , ब क अनेक पहलु से समझा जा सकता
है। हर बात को समझने के कई कोण या नज़ रये हो सकते ह। सात अंधे जब एक हाथी
को अलग-अलग अंग पर पश करते ह, तो उसक आकृ त को लेकर अपनी अलग-अलग
धारणाएँ बनाते ह। कोई हाथी क पूँछ को छू कर उसे ‘झाड’ समझता है, तो कोई उसके कान
छू कर उसे ‘पंखा’। उन सात बा धत य का अपना-अपना स य है, जो उनके
नज़ रये से भले ही ठ क हो, पर ज़ा हर है क यह स य अधूरा है। इसी लए अँ ेज़ी म एक
कहावत भी है—‘Truth lies somewhere in between.’
आप पाएँगे क स य दे श-काल-समाज-प र थ त सापे भी हो सकता है। उदाहरण
के तौर पर पूरब क नै तकता के मानदं ड प म के मानदं ड से काफ़ भ ता रखते ह। कह
मृ युदंड अवैध और अनै तक भी है, तो कह यायसंगत और वैध; कह समल गक ववाह
क़ानूनन व नै तक तौर पर वीकाय है, तो कह इस बारे म सोचना भी अनै तक माना जाता
है। इस तरह के तमाम उदाहरण हमारे आस-पास दखते ह, जनसे हम आसानी से समझ
सकते ह, क कैसे अपने-अपने नज़ रये के आधार पर लोग अपने सच का संसार न मत
करते जाते ह।
अनेकांतवाद और म यम माग क इन अवधारणा को सं ेप म समझने के बाद अब
हम यह समझने क को शश करते ह क स वल सेवा परी ा या अ य तयोगी परी ा
स हत ज़दगी के हर मोड़ पर, कस तरह ये दोन पर पर पूरक से दखने वाले स ांत
आपक मु कल राह को आसान और सहज बनाने म मदद करते ह।
— ल खत परी ा म नबंध या सामा य अ ययन के के उ र लखते व त एक
बड़ा कं यूज़न इस बात को लेकर रहता है क वचार का संतुलन कैसे बनाएँ। इसम
न संदेह म यम माग मदद करता है।
—एक बेहतर नबंध तभी लखा जा सकता है, जब उसम उस वषय के सभी संभव
पहलु और प - वप पर पया त काश डालते ए, वचार को व थत ढं ग से
अभ कया गया हो। इसम अनेकांतवाद और म यम माग, दोन काफ़ सहायक सा बत
हो सकते ह।
—परी ा क तैयारी के दौरान सीखने क वृ (learner’s attitude) होना काफ़
काम आता है। य द आप अ तय (extremes) क ओर न झुककर म यम माग के हमायती
ह, तो आप नई चीज़ सीखने के त त पर रहते ह, और सर के वचार का भी स मान
करना सीखते ह।
— ल खत परी ा और इंटर ू म अनेक बार कसी टॉ पक का व ेषण करते व
न कष म कोई प मत करना होता है। उस व ेषण को ेय मलता है, जसम
टॉ पक के व वध पहलु को व थत ढं ग से व े षत कर अंत म एक संतु लत राय
क जाए। प है क ये दोन स ांत इस संतु लत कोण के नमाण म काफ़ मदद
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करते ह।
—तैयारी क लंबी और उबाऊ या म कई बार असफलता का सामना भी करना
पड़ सकता है। छोट -छोट असफलता को संभालना और उनसे वच लत ए बग़ैर थर
रहना आज के तनाव भरे दौर म थोड़ा मु कल है। तैयारी के दौरान रोज़मरा क दनचया म
भी समय-समय पर व भ कारण से तनाव, नराशा या कुंठा क थ तयाँ पैदा होती रहती
ह। ऐसा होना वाभा वक भी है। पर इन थ तय से नपटने म अनेकांतवाद और म यम
माग के साथ-साथ गीता का ‘ न काम कमयोग’ भी काफ़ सहायता करते ह। नतीज के त
आस (attach) ए बना पूण मनोयोग और पु षाथ से काम करना, स वल सेवा परी ा
या कसी भी तयोगी परी ा के लए बेहद ज़ री और लगभग अ नवाय प है।
—परफ़े शन क ज़द और सब कुछ बे ट पाने क चाहत आज के दौर म युवा पर
जुनून बनकर सवार है। पर जब आप अनेकांतवाद क मदद से यह समझ पाते ह क कुछ
भी बे ट नह है और कोई भी धारणा शत तशत स य नह है, तो आप यादा सहज होकर
तैयारी कर पाते ह।
—इंटर ू के दौरान आपक वन ता और सहजता आपक परफ़ॉरमस पर काफ़
सकारा मक असर डालती है। जब आप सर के वचार और ान के अथाह भंडार का
स मान करते ए, आप ख़ूब पढ़ते- लखते और समझते ह, तो आपको ान क वराटता व
ख़ुद क अ प ता का एहसास होता है। इसका असर यह होता है आप और वन होते जाते
ह। कसी व ान ने कहा भी है—‘ श ा अपने अ ान क ग तशील खोज है।’
सच तो यह है क भारतीय दशन के ये तीन स ांत- न काम कमयोग, अनेकांतवाद
और म यम माग; स वल सेवा परी ा स हत कसी भी तयोगी परी ा म ही नह , ब क
ज़दगी के हर मोड़ पर आपको अ धक प रप व, सहज, संयत, स ह णु और स म बनाते
ह।
ज़ रत है तो बस इनके सही अथ को समझकर, रोज़मरा के जीवन म इनका समावेश
करने क ।
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अपनी लक र बड़ी कर

आपने एक कहानी ज़ र सुनी होगी। एक बार एक लास म म पढ़ाई के दौरान एक


श क ने लैकबोड पर एक लक र ख ची और ब च से कहा क अब कोई आकर इस
लक र को छोटा कर दे । कई लड़क ने को शश क । कसी ने ड टर से एक लक र का एक
सरा मटाया तो कसी ने सरा। पर जस छा से मा टर जी सबसे यादा भा वत ए,
उस छा ने सफ़ इतना-सा कया क ड टर का इ तेमाल लए बग़ैर चाक उठाई और उस
लक र के नीचे एक उससे बड़ी लक र ख च द । वाभा वक तौर पर अब पुरानी वाली लक र
नई लक र क तुलना म छोट हो गई।
बाद म मा टर जी ने यह सबक़ सखाया क अगर ज़दगी म आगे बढ़ना है तो अपनी
लक र बड़ी करने क को शश कर, सरे क लक र को छोटा करके या मटाकर आगे बढ़ने
क को शश क़तई ना कर। कसी बु मान या समुदाय के गहरे अनुभव से उपजी यह
कहावत हम हद मी डयम टाइप छोटे शहर के लोग पर ब त हद तक सट क बैठती है।
बात कले टर या एसपी बनने के लए यूपीएससी का ए ज़ाम नकालने तक सी मत
नह है। चाहे आईएएस का ए ज़ाम नकालने का सपना हो या डॉ टर/इंजी नयर/सीए बनने
का हर आम भारतीय छा का वाब या फर कसी अ य पेशे म क़ मत आज़माने का
वाब; लाख टके का सवाल ये है क छोटे शहर के सामा य सामा जक/आ थक बैक ाउंड
के ब च के लए वह कौन-सी संजीवनी बूट है, जसक सहायता से हम हद वाले नराशा,
घबराहट, आशंका और हताशा से ऊबरकर अपनी ताक़त को पहचान और सही दशा म जुट
जाएँ। अपनी सोच को कस दशा म मोड़ क हम सर के बारे म सोचने से बचते ए अपने
ग तपथ पर कुछ इस तरह आगे बढ़ क हमारी ख़ुद क लक र बड़ी हो जाए और हमारी
उड़ान को खुले पंख मल सक।
कुछ साल पहले, स वल सेवा परी ा म हद मी डयम म थम थान (ओवरऑल
13व रक) ा त होने के बाद ऐसे कई अवसर आए, जब मेरा संवाद हद मी डयम के युवा
अ य थय से आ। हर बार मुझे एक बात महसूस ई क हम हद मी डयम वाल म न तो
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तभा क कोई कमी है और न ही जुनून क । ले कन एक बात, जो मुझे थोड़ा बेचैन करती


है, वह है—हमम पसरी एक अजीब-सी घबराहट और आशंका। ‘कह हम अ छ रक ला
पाएँगे या नह ?’ ‘कह हम इं लश मी डयम वाल से पीछे तो नह ह?’ जैसी तमाम
आशंकाएँ हमारे मन को मथती रहती ह।
आइए, इन सब वाभा वक सम या से उबरने के लए अपनी लक र बड़ी करके
आगे बढ़ने के कुछ ठोस उपाय पर एक-एक करके चचा कर। सबसे पहली बात यह है क
अँ ेज़ी से डरने, भागने या मुँह छपाने क आदत से जतनी ज द हो सके, छु टकारा पाने
क को शश कर। अँ ेज़ी कोई हौवा नह है, ब क यह एक सरल भाषा है, जसम कुल 26
अ र ह और जसे आप बचपन से अब तक लगातार पढ़ते रहे ह। अँ ेज़ी भाषा से डरने का
प रणाम UPSC, SSC स हत तमाम तयोगी परी ा म आजकल होने वाले इं लश
के अ नवाय पेपर म असफल होना भी हो सकता है, जो वयं म एक ःखद थ त है।
कसी भी फ़ ड म सफल होने के लए अमूमन इं लश का ए सपट बनने क दरकार
क़तई नह है। हाँ, इतनी अपे ा ज़ र होती है क आप सामा य अँ ेज़ी समझ सक, सरल
और बोधग य तरीक़े से पढ़ व लख सक। कम-से-कम ऐसी अँ ेज़ी, जसम पे लग और
ामर क ग़ल तयाँ कम-से-कम ह । आपको सामा य और बोधग य श द का योग करते
ए सरल अँ ेज़ी के योग क आदत वक सत करनी है। इतना भर कर लगे तो न तो
घबराहट होगी और न ही कसी क़ म क हीन भावना उपजेगी।
एक और चतनीय पहलू यह भी है क हम अनाव यक प से इं लश वाल से एक
अनजाना और ग़ैर-ज़ री दबाव महसूस करते ह। हम अ सर यह महसूस करते ह क हम
उनसे कुछ कमतर या कमज़ोर ह। मुझे इस रवैये पर घोर आप है। जब म यू.पी.एस.सी.
क तैयारी कर रहा था तो अ सर मुझे भी ऐसी बन माँगी सलाह और हतो सा हत करने
वाली बात सुनने को मलती थ , जो कसी को भी हताश करने के लए काफ़ ह। आप
भरोसा कर तो म आपको बताना चाहता ँ क बमु कल एकाध मौक को छोड़कर म शायद
ही कभी इन नराशाजनक बात से भा वत आ। मुझे शायद ही कभी यह महसूस आ हो
क मेरी सफलता को मेरा मी डयम भा वत कर सकता है।
मेरा ढ़ व ास था क मेरी क़ा ब लयत ही मुझे सफलता तक प ँचा सकती है, कसी
भाषा वशेष का मा यम नह । लहाज़ा मा यम वही चुन, जसम आप सहज ह और जसम
आप ख़ुद को बेहतर ढं ग से अ भ कर सक। मेरे अपने भाषा-मा यम को लेकर
आ म व ास के कुछ आधार भी थे, जो मुझे लगता है आप सबके लए भी समझना बेहतर
होगा। मसलन—भाषा पर अ धकार, लेखन कौशल और अ ययन साम ी क उपल धता।
आइए, इन ब पर मवार बात करते ह। सव थम यह क आप यू.पी.एस.सी. क
परी ा जस भी भाषा के मा यम म द, उस भाषा पर आपका ठ क-ठ क अ धकार होना
चा हए। मने यू.पी.एस.सी. टॉपस म जो कुछ कॉमन कल पाए ह, उनम भाषा पर अ धकार
और लेखन कौशल मुख है।
स अँ ेज़ी नबंधकार ां सस बेकन ने लखा है—‘Reading makes a full
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man, conference a ready man and writing an exact man.’ ले कन पठन,


संवाद और लेखन के इस कौशल को वक सत करने के लए भाषा पर ठ क-ठ क अ धकार
अप रहाय है। आप सही लख, टू द पॉइंट लख, सं त लख और सारग भत लख। ‘भाषा
पर अ धकार’ से मेरा अ भ ाय क ठन श द के योग से बलकुल नह है। सवाल सफ़
इतना-सा है क आप भाषा का अवबोध (comprehension) बख़ूबी कर पाएँ और अवसर
के अनुकूल सरल, सहज एवं ासं गक श द का योग करते ए व थत ढं ग से वाह
(flow) के साथ अपनी बात लख पाएँ।
लेखन कौशल पर बात करने से पहले मुझे यह भी याद दलाना है क मनोवै ा नक
और भाषा वद का यह भी मानना है क बेहतर समझ के लए मातृभाषा म पढ़ाई बेहतर
मा यम है। आपने य द हद मी डयम म अपनी कूल-कॉलेज क पढ़ाई क है तो इसका यह
अथ नह है क आप घाटे म ह। इसका एक अथ यह भी हो सकता है क य द आपने अपनी
कूल-कॉलेज क पढ़ाई संतोषजनक ढं ग से क है तो आप कमोबेश फ़ायदे म ही ह और
आपका हद भाषा पर ठ क-ठाक अ धकार है।
ज़ रत है तो अ यास क । राइ टग कल के उ कृ तर को ा त करने का एक ही
सव े तरीक़ा है, वह है नरंतर अ यास। बेहतर लेखन कौशल के दो मह वपूण पहलू ह
—‘ या लखना है’ और ‘कैसे लखना है।’ ‘ या लखना है’, इसका उ र को ठ क से
समझने म छपा है। को ठ क से समझ लेने से उ र लखने क सही दशा मल जाती
है। के यथासंभव सभी पहलु को कवर करते ए मब और व थत ढं ग से उ र
लख तो न य ही यह उ र अ छे अंक आक षत करेगा ही। ‘कैसे लखना है’ भी उतना ही
मह वपूण है, जतना क ‘ या लखना है।’
‘कैसे लखना है’ के लए कुछ उपयोगी बात इस कार है—
1. व थत और मब ढं ग से लख।
2. लेखन म एक वाह (flow) वक सत कर। छोटे -छोटे पैरा ाफ़ म लख। को शश
कर क दो लगातार पैरा ाफ़ म एक कने शन हो।
3. सरल, सहज और बोधग य भाषा का योग कर। अनाव यक और अ ासं गक
श द को थोपने का यास न कर।
4. ज़ रत पड़ने पर उदाहरण , आँकड़ या कथन /उ य का योग बे झझक कर।
यान रख, ये सभी आपके उ र म सहज प से समा हत होने चा हए।
5. लेखन कौशल अ यास से ही बेहतर होता है। यह रात रात ा त हो सकने वाला
कौशल नह है। अ यास कल से नह , आज से ही शु कर। ‘Tomorrow never
comes.’
हद मी डयम के अ यथ अपनी इन ताक़त को पहचान और भाषा पर अ धकार व
लेखन कौशल का अ यास वक सत करके कसी भी कार से ख़ुद को कमतर आँकने क
आदत से छु टकारा पाएँ।
उपयु दोन बात के अलावा मेरे म त क म एक और बात ब त प थी, वह थी
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‘अ ययन साम ी क कमी’ क सतत आशंका। य प इसम कोई संदेह नह है क अँ ेज़ी


मा यम क तुलना म हद मा यम म अ ययन साम ी, वशेषकर तकनीक और व ान
ौ ो गक से जुड़े वषय पर साम ी क काफ़ कमी है; पर इस थ त म हमारे सामने या
तो सतत शकायत करके ःखी रहने का वक प है या कुछे क क मय को दर कनार करके
‘उपल ध संसाधन का अनुकूलतम उपयोग’ करके अपना सव े यास करने का वक प
और उ मीद है। हम सरा वक प ही चुनगे। हमेशा शकायत करने क वृ से भी कुछ
हा सल होनेवाला नह है। यह भी यान रख क अ ययन साम ी क से हद मी डयम
के छा अ य भारतीय भाषा के छा से कह बेहतर थ त म ह।
हम नह भूलना चा हए क रदशन, ऑल इं डया रे डयो, रा यसभा व लोक सभा
ट .वी. जैसे इले ॉ नक मा यम और एन.सी.ई.आर.ट ., एन.बी.ट . जैसे तमाम सरकारी
काशन व वेबसाइट अब हद म भी उपल ध ह। नजी े के त त काशक हद म
कताब और प काएँ उपल ध करा रहे ह, जसके बाद करट अफ़ेयस के लए यादा तनाव
लेने क ज़ रत नह है। लहाज़ा, अब सही अ ययन साम ी को पहचानकर अ ययन कर
और ‘ या पढ़ना है’ क आधारभूत सम या से छु टकारा पाएँ।
हद मा यम के साथी अगर कह पीछे रह जाते ह तो वह तभा और कमठता नह ,
आ म व ास क कमी है। मेहनत करने म हमारा कोई सानी नह है, पर मनोवै ा नक तर
पर ख़ुद को कमतर आँकने क आदत संभा वत सफलता को र ले जाती है। कहते ह क
‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’ इस बात को जतनी ज द समझ ल, उतना बेहतर
है। मनोवै ा नक बढ़त और भरपूर आ म व ास आधी लड़ाई जता सकता है। अगर मन म
यह भरोसा है क अ छे उ र लखने पर अ छे अंक मलगे, अ छा दशन करने पर चयन
सु न त है तो सोचने का नज़ रया ही बदल जाएगा। आपके उ र म एक प ता व
मज़बूती दखेगी और परी ा के हर तर— ारं भक परी ा, मु य परी ा और व
परी ण म बेहतर दशन क संभावनाएँ कई गुना बढ़ जाएँगी।
मुझे लगता है क अगर हम हद मी डयम के अ यथ अ ययन साम ी क उपल धता,
वषय चयन, लेखन कौशल, भाषा पर अ धकार जैसे मुदद् पर उलझन और ऊहापोह से
मु पा सक तो सफलता क राह और आसान हो जाएगी। सोच-समझकर भाषा मा यम
चुन और अगर हद मा यम चुन ही लया है तो उसम अपना अ ययन, अ यास और
अपे त कौशल वक सत कर बना कसी ऊहापोह और तनाव के अपनी लक र बड़ी करते
ए ग त पथ पर बढ़ते जाएँ।
अपनी मातृभाषा को लेकर हीनता या राव महसूस करने क वृ पर मुझे व र
क व और ानपीठ पुर कार वजेता ी केदारनाथ सह क क वता ‘मातृभाषा’ का उ लेख
यहाँ ज़ री लगता है। आइए, अपनी लक र बड़ी करते ए, बना कसी कुंठा या हीन
भावना के, अद य साहस और भरपूर सकारा मकता के साथ डटकर तैयारी कर और सफल
ह—
जैसे च टयाँ लौटती ह
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बल म
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते ह एक के बाद एक
लाल आसमान म डैने पसारे ए
हवाई-अड् डे क ओर

ओ मेरी भाषा
म लौटता ँ तुम म
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
खने लगती है
मेरी आ मा।

राम क ‘श -पूजा’ म नराला हम अपनी लक र बड़ी करने क सीख कुछ इस तरह


दे ते ह:-
आराधन को ढ़ आराधन से दो उ र,
तुम वरो वजय संयत ाण से ाण पर ।
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क जाना नह ,
तू कह हार के…

जीवन क काली रात ह , आशा स रता सूख चली हो,


सरस सरोवर मानस का जब मृगतृ णा क म थली हो ।
अं तम ास लेती हो जब, ये मेरी मट् ट क काया,
पर या मेरे ान द प को, कोई कभी बुझाने पाया ।
जग के लय त मर म मेरे, अंतद प जला करते ह,
अ भशाप म वरदान के व णम फूल खला करते ह ।

हद के आ या मक क व जुगल कशोर जी क ये पं याँ नराशा के हर च ूह से


नकालकर आशा से सराबोर कर दे ती ह।
बजली के ब ब के आ व कारक ए डसन का उदाहरण आपको याद ही होगा। नरंतर
मेहनत और सकड़ -हज़ार योग के बाद उस धैय के सपाही ने ब ब जला ही डाला।
नया म तमाम बड़े काम कुछ इसी तरह अथक प र म, नरंतरता और मो टवेशन से हो
सके ह।
अ सर यह भी होता है क हम आगे बढ़ना या मेहनत करना उस समय छोड़ते ह या
उस समय गव-अप करते ह, जब हम सफलता के ब त क़रीब होते ह। युवा क व चराग़
जैन क जा ई पं याँ बड़ी सट क बात कहती ह:—
जसको तुम नाकामी कहकर थक कर बैठ रहे हो ना,
उससे केवल चार क़दम पर मं ज़ल का दरवाज़ा है ।

नीचे कुछ ऐसी ही जा ई-सी लगने वाली पर वा त वक कहा नयाँ पढ़कर आप


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रोमां चत हो जाएँग—

बेनो जैफ न :
100 तशत ने हीन बेनो जैफ न भारतीय टे ट बक म ोबेशनरी अ धकारी थ । वे
बचपन से बेहद स य रह । व भ वाद- ववाद तयो गता म ह सा लेना उनका शौक़
रहा। बेनो ने स वल सेवा परी ा क तैयारी शु क , पर ेल ल प म साम ी क भारी कमी
थी। बेनो ने अपनी वकलांगता को कभी अपनी तैयारी म आड़े नह आने दया और
आ ख़रकार यू.पी.एस.सी. क स वल सेवा परी ा म अं तम प से चय नत । मलनसार
और मृ वभाव क धनी बेनो आज भारतीय वदे श सेवा (आई.एफ.एस.) क पहली
ने हीन अ धकारी ह। वह अपनी सफलता का ेय, वशेष तौर पर, अपने माता- पता और
दो त को दे ती ह, ज ह ने घंट उ ह कताब पढ़-पढ़कर सुना ।

राजा गणप त रामासामी :


मे डकल कॉलेज क पढ़ाई पूरी करने के बाद स वल सेवा परी ा क तैयारी करने
चे ई प ँच।े पहले यास म तैयारी पर उतना फ़ोकस न बन सका। काफ़ ऊहापोह और
उलझन भी सतात । जब भी परेशान होते तो पताजी का चेहरा आँख के सामने घूमने
लगता। वही पताजी, जो यू.पी.एस.सी. क तैयारी के लए बड़े शहर म छोड़ने आए थे। वही
पताजी, ज ह पूरा भरोसा था क मेरा बेटा थम यास म ही आई.ए.एस. बनेगा। ख़ैर,
जैस-े जैसे पहला यास दया। ारं भक परी ा का प रणाम आया, ले कन तकूल रहा।
धीरे-धीरे दो त अपने-अपने कै रयर म सेटल होने लगे। एक क़ म क कुंठा जनम रही थी,
पर राजा गणप त अब भी पढ़ रहे थे। र तेदार सवाल दागने लगे थे क आपका बेटा य
ख़ाली घूम रहा है? पर पताजी को फर वही भरोसा था क बेटा सरे यास म आई.ए.एस.
बनेगा।
सरे यास म ‘सी-सैट’ आया। राजा ग णत म पहले से ही कुछ कमज़ोर थे। ग णत म
कमज़ोरी फ़ो बया बन गई। सरे यास म भी नतीजा सफ़र रहा और ी ल स म ही
असफल हो गए। अब थ त बदतर होने लगी। घरवाल से पढ़ाई के लए पैसे नह माँग
सकते थे, अपराध-बोध-सा महसूस होने लगा। एक तयोगी प का म कुछ लखकर कुछ
रा श कमाने लगे, जससे कुछ ख़चा नकलने लगा। इधर प रजन पर शाद का दबाव बढ़ता
जा रहा था, पर राजा के हाथ म कोई नौकरी नह थी। एक दन तो राजा क माँ उनके सामने
ख़ूब रो क यह स वल सेवा छोड़ और कोई थायी नौकरी कर ले। पर राजा का व
आई.ए.एस. बनना ही था। कह पढ़ाने क नौकरी शु क और थोड़ा ठ क-ठाक कमाने
लगे।
फर तीसरा यास आया; पर इस बार फर असफलता…। राजा क क़ मत उनका
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साथ नह दे रही थी और चौतरफ़ा दबाव बढ़ता जा रहा था। बना आँसू के ख़ूब रोए और
जीवन क वषमता व तकूलता से सा ा कार करना सीखा। चौथे यास म राजा को
पूरा भरोसा था क इस बार वे ी ल स उ ीण कर ही लगे; पर भा य ऐसा क चौथी बार
भी ी ल स उ ीण न कर सके। बेहद मज़बूत पताजी उनके सामने पहली बार रोए। पर
इसी बीच राजा ने रा य लोक सेवा आयोग क परी ा 15व रक के साथ उ ीण कर ली
और इस लेटफ़ॉम के सहारे उ ह ने यू.पी.एस.सी. के लए अपने पाँचव यास के लए कमर
कस ली। बड़े भाई ने मो टवेट कया। ी ल स उ ीण आ, मु य परी ा और फर इंटर ू
भी। वष 2014 क स वल सेवा परी ा म सफल ए राजा गणप त रामासामी को
आई.ए.एस. म उ र दे श कैडर मला। राजा अपनी कहानी को ‘असफलता क कहानी’
कहते ह और सबको एक ही संदेश दे ते ह—
Never never never give up.

घन याम मीणा :
जयपुर से आनेवाले घन याम इंजी नय रग ेजुएट ह। सपना था स वल सेवक बनने
का। आर.ए.एस. और आई.ए.एस. दोन परी ा के लए यास कया। सौभा य से
राज थान शास नक सेवा म ब कर वभाग म चय नत हो गए। पर यू.पी.एस.सी. के
थम यास म ी ल स ही उ ीण न कर सके। सरे यास म मु य परी ा द । जब
प रणाम आया तो पता चला क अ नवाय हद का -प ही वॉलीफ़ाई नह कर सके।
अपनी नौकरी के साथ-साथ रोज़ शाम को और वीकड पर यू.पी.एस.सी. क तैयारी जारी
रखी और तीसरे यास म इंटर ू क कॉल आ गई। अं तम सफलता न मल सक ; पर
घन याम का व अभी जी वत था। चौथे यास म ारं भक परी ा और मु य परी ा
उ ीण क । हद मा यम म इंटर ू दया। अं तम प से चय नत ए और 2015 बैच म
बहार कैडर के आई.ए.एस. के प म चय नत हो गए। घन याम अपने जीवन म सफलता
का आधार सकारा मक सोच और ज़मीन से जुड़े रहने को मानते ह।

स चन कुमार वै य :
साधारणता से कया गया संघष कैसे आपको असाधारण सफलता क ओर ले जा
सकता है, यह बताती है यू.पी.एस.सी. क स वल सेवा परी ा 2014 म 94व रक हा सल
करने वाले उ र दे श के तापगढ़ ज़ले के स चन कुमार वै य क कहानी। तमाम आ थक-
सामा जक परेशा नय के बावजूद पापा ने हर संभव को शश करके स चन को पढ़ाया।
आई.आई.ट . के लए को चग नह ले पाए तो यू.पी.ट .यू. के कॉलेज म ही एड मशन ले
लया। प रवार व र तेदार के सहयोग से पढ़ाई आगे बढ़ती रही।
क़ मत ने भरपूर इ तहान लया और उनके जीवन म असफलता क कोई कमी
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नह रही। स चन SCRA क परी ा म असफल ए तो महज़ एक चूक के चलते GATE क


परी ा म भी सफल न हो सके। ले कन स चन ने ह मत नह हारी और द ली आकर ‘लोक
शासन’ वैक पक वषय लेकर तैयारी शु कर द । अँ ेज़ी मा यम से परी ा दे ने वाले
स चन अपने नय मत अ ययन और रवीज़न के बल पर पहले यास म ही महज़ 22 वष
10 महीने क उ म भारतीय शास नक सेवा म अपना मुक़ाम बनाने म सफल ए।
ऊपर लखी कहा नय क ही तरह, मेरी कहानी म भी एक त व ऐसा रहा है, जो इन
सब कहा नय म भी उप थत है, वह है— नरंतरता (Persistance)। स वल सेवा परी ा
क कृ त ही कुछ ऐसी है। इसम अ न तता क थ त बनी ही रहती है। ऐसे असं य
उदाहरण ह, जब यू.पी.एस.सी. क स वल सेवा परी ा म अनेक अ यथ कसी यास म
इंटर ू तक गए, तो कसी यास म मु य परी ा या ारं भक परी ा ही उ ीण न कर सके;
पर इन उदाहरण म यह भी दे खा गया क जो अ यथ अं तम प से चय नत ए, उनम से
अ धकांश पूव म परी ा के कसी-न- कसी चरण म असफल हो चुके थे। ऊपर लखी
कहा नय से हम कुछ बात सीखने को मलती ह, जो इस कार ह—
जीवन म सफलता का मूल मं है— नरंतरता (Persistance)। आज व भ
परी ा म उ मीदवार के नरंतरता गुणांक (Persistance Quotient) को भी आँका
जाने लगा है। कसी भी काम को शु करना आसान है, पर उसे सतत जारी रखना उतना
सरल नह ।
हमारे आस-पास ऐसे न जाने कतने दो त मलगे, जो योजना ब त अ छ बनाते ह,
पर जब उन योजना के या वयन और उनको जारी रखने क बात आती है तो वे कई
बार पीछे हट जाते ह या आल य का शकार होकर समय थ करने लगते ह। अ छे लानर
बनने के साथ-साथ कमशील भी बन। नरंतरता के मं को न भूल और ग त-पथ पर सतत
आगे बढ़ते रह।
नराला क मश र लंबी क वता ‘राम क श -पूजा’ आपने पढ़ होगी। नह पढ़ हो
तो अभी क वता कोश वेबसाइट खोलकर पढ़ डा लए। क वता म राम ‘ धक् जीवन को जो
पाता ही आया है वरोध’ से ‘वह एक और मन रहा राम का जो न थका’ से होते ए
‘आराधन का ढ़ आराधन से दो उ र’ से आगे बढ़ते ए ‘होगी जय, होगी जय, हे पु षो म
नवीन’ तक क या ा यूँ ही नह तय कर पाते। इसके पीछे उनके अद य आ म व ास, सघन
सकारा मकता और अ डग नरंतरता जैसे गुण क बड़ी भू मका रही है।
कुछ सा थय म एक और सम या दखती है, वह है अपे ा क अ य धकता। जैसा
क मने पहले ही कहा क इस त त और अ य धक त पधा वाली परी ा क कृ त ही
कुछ ऐसी है, जहाँ तीन चरण म सु न त सफलता क गारंट नह द जा सकती। यह
न संदेह संभव है क आपको अनपे त प से कसी चरण म च काने वाली असफलता
का सामना करना पड़े।
मने कह पढ़ा था क कसी सेना क एक ऐसी वग है, जहाँ भरती के लए जीवन म
कभी-न-कभी असफल होना अ नवाय होता है। वहाँ के नयु अ धका रय का यह मानना
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है क जो फेल होकर नराशा से उबरना नह जानता, वह ख़राब थ तय का सामना


करने म स म नह हो पाएगा। म अपने वयं के अनुभव से यह बात कहने म कोई संकोच
अनुभव नह करता क अपने व ाथ जीवन क तमाम छोट -बड़ी सफलता से यादा
मने अपनी इकलौती असफलता ( थम यास म स वल सेवा ारं भक परी ा उ ीण न
कर पाना) से सीखा है।
जस तरह का आ पानी सड़ जाता है, वैसे ही का आ जीवन थक जाता है।
‘चलती का नाम गाड़ी’ क कहावत के अनु प चाहे कतनी भी असफलताएँ और
तकूलताएँ मल , ज़दगी कभी न थकती है, न कती है। समय का प हया हर सफलता
और असफलता के बाद भी नरंतर चलता रहता है। इस लए म अ सर कहता ँ क अपने
मन म एक कै रयर वक प का नधारण ज़ र कर। कुछ लोग रोज़गार ा त करके, उसे
छोड़कर या वहाँ से अवकाश लेकर स वल सेवा परी ा क तैयारी करते ह। कुछ अ यथ
अपनी नौकरी के साथ-साथ इस परी ा के लए क़ मत आज़माते ह तो कुछ पढ़ाई के तुरंत
बाद अपनी रोज़गार पाने क मता (एं लॉय ब लट ) को तय कर मनोयोगपूवक परी ा क
तैयारी म जुट जाते ह।
य द आपने सरकारी या नजी े म कोई क रयर वक प ा त कर लया है या सोच
लया है तो इससे तनाव-मु और दबाव-मु तैयारी करने म भारी मदद मलती है। आपने
मेरी कहानी समेत तमाम उपयु कहा नय म दे खा क रोज़गार क संभावना/ न तता के
बाद अ यथ के लए सफलता क राह पहले से अ धक आसान हो गई। अतः मुझे लगता है
क अपना सव े दे ने के बाद भी तकूल नतीज के लए ख़ुद को तैयार रखना आपको
मज़बूत और स म बनाता है। अँ ेज़ी म एक बड़े काम क और समझदारी भरी कहावत है

Try for the best, Prepare for the worst.

मने अनेक बार ऐसा भी महसूस कया है क कुछ साथी तैयारी उस समय आकर बंद
कर दे ते ह, जब वे सफलता के काफ़ क़रीब होते ह। यू.पी.एस.सी. क तैयारी एक तर क
प रप वता क माँग करती है। जब हम उसके काफ़ नज़द क होते ह, तब हम नराश होकर
यास करना ही छोड़ दे ते ह। थॉमस अ वा एडीसन ने लखा है—
Many of life’s failure are people, who did not realise how close they
were to success when thew gave up.

उपयु कहा नय म एक और कॉमन बात है, जो मुझे बेहद आक षत करती है, वह है


—‘ जजी वषा’ यानी नरंतर आगे बढ़ने क बल इ छा। भारतीय वां मय म लखा है:—
‘कुव ेवेह कमा ण जजी वषे छतम् समाः।’ यानी इस लोक म कम करते ए ही सौ
वष जीने क इ छा करनी चा हए। कसी भी सफल ने कभी भी आगे बढ़ने क और
कुछ बेहतर करने क इ छा कभी नह छोड़ी। यह जजी वषा ही है, जसने सफल
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अ य थय का मनोबल और मो टवेशन लेवल बनाए रखा।


यान रहे क स वल सेवा परी ा क तैयारी के दौरान असफलता का सामना करने पर
ही नह , ब क उसके अलावा भी अनेक ऐसे अवसर आते ह, जब मो टवेशन क ज़ रत
महसूस होती है। अतः सकारा मक वातावरण न मत कर और नकारा मकता, अवसाद और
कुंठा से बचने क को शश कर। ‘अंत भला, सो सब भला’ क कहावत को यान म रखते
ए न भूल क—
मु कल सब पर आती ह,
कोई बखर जाता है,
कोई नखर जाता है ।

अगर कसी असफलता का सामना करना पड़ ही जाए, तो उसे सहज वीकार कर,
उससे काम के सबक़ सीख, मु कुराएँ, अपने काम म और शद्दत से जुट जाएँ और आगे
बढ़ते जाएँ। क व वजयदे व नारायण साही क यह मा मक क वता मुझे याद आती है:—
सच मानो य
इन आघात से टू ट-टू टकर
रोने म कुछ शम नह ,
कतने कमर म बंद हमालय रोते है ।
मेज़ से लगकर सो जाते कतने पठार
कतने सूरज गल रहे ह अंधेर म छपकर
हर आँसू कायरता क खीझ नह होता ।

हमने सफल अ य थय के व क एक और ख़ा सयत दे खी है क उ ह ने


संसाधन क कमी, शारी रक वकलांगता या अ य कसी अभाव के बावजूद उसे हावी नह
होने दया और अपने सपन को मरने नह दया। साथ ही उनम से यादातर ने असफलता
को इस तरह संभाला क वह सफलता ा त कर उसे भी बख़ूबी संभाल सके। असफलता म
वच लत न होने वाले सफलता पाकर उसे ठ क से ह डल कर पाते ह और बना वच लत
ए आगे क अनवरत या ा जारी रखते ह।
इस लए मुझे लगता है क हम छोट -बड़ी सफलता या असफलता को दल पर न ल
और जजी वषा के साथ ज़दा सपन को मन म बसाए, आगे बढ़ने और कुछ बेहतर करने
क इ छा को बनाए रखते ए सकारा मक सोच से आगे बढ़, तो न य ही हम अपने यास
म वां छत सफलता मलने क संभावना ब त सीमा तक बढ़ जाएगी।
इस लए कुछ भी कर, पर कसी भी क़ मत पर कत पथ से न भाग। हद फ़ म
‘इ तहान’ का ये गीत गुनगुनाते जाएँ, त और म त रहते ए आगे बढ़ते जाएँ:—
क जाना नह , तू कह हार के,
काँट पे चल के, मलगे साए बहार के ।
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सतार के आगे जहां और भी है…

कसी शायर ने लखा है—


मं ज़ल मले न मले मुझे उसका ग़म नह ,
मं ज़ल क जु तजू म मेरा कारवाँ तो है ।

ज़दगी एक सतत या ा है। इसी लए कहा जाता है क चलती का नाम ज़दगी है। का
आ पानी सड़ जाता है जब क ग तमान पानी नरंतर व छ और नमल बने रहते ए
वा हत होता जाता है। अँ ेज़ी म भी एक कहावत है—‘Success is a journey, not a
destination.’
जीवन म आगे बढ़ने और कुछ कर गुज़रने क ललक हर कसी म होती है और होनी
भी चा हए। हर कोई जीवन म कुछ नया, कुछ बड़ा और कुछ ख़ास करना चाहता है।
ख़ासकर युवाव था म तो आगे बढ़ने और कुछ कर गुज़रने का ये ज बा अपने उफ़ान पर
होता है। हर कोई युवा सफलता के शखर पर तो प ँचना चाहता ही है, और साथ ही उस
शखर पर बने रहना भी चाहता है।
यूँ तो सफलता क कोई तय प रभाषा नह है और न ही ऐसी कोई प रभाषा गढ़ जा
सकती है, पर फर भी मोटे तौर पर इतना तो कहा ही जा सकता है क अगर आप कसी
स मानजनक आजी वका (जॉब/ बज़नेस आ द) से अपना ठ क-ठाक जीवन-यापन कर रहे
ह और अपने पा रवा रक व सामा जक जीवन से कमोबेश संतु ह, तो आप सफल ह। अगर
आपक अपने काम या वभाव/ वहार के चलते अ छ त ा और पहचान भी है तो सोने
पर सुहागा। इसके साथ-साथ अगर आप नजी जीवन और अंतमन के तर पर भी शांत और
सहज ह, तो आपसे ख़ुश और सफल शायद ही कोई हो।
यहाँ मुझे माज़लो का आव यकता का परा मड (Maslow’s Need Hierarchy
Theory) यान आता है। इस दलच प परा मड म पाँच आव यकताएँ शा मल ह;—
सबसे बु नयाद आव यकता है दै हक आव यकता, जैसे भूख- यास आ द।
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मनु य क इस बु नयाद ज़ रत क पू त के बाद नंबर आता है सुर ा क आव यकता


का। यानी उसके भीतर डर पैदा करने वाली थ तय से नपट सके।
इसके बाद तीसरी मह वपूण आव यकता है ेम और लगाव (attachment) क ।
इसम रलेशन शप और साथ नभाने (togetherness) क ज़ रत शा मल ह।
इन तीन ज़ रत क पू त के बाद जो ज़ रत को महसूस होती ह, वह है
आ मस मान और साथकता के एहसास क ।
सबसे अंत म आती है आ मानुभू त क आ या मक आव यकता।
आदश थ त यह हो सकती है क य द कोई चार आव यकताएँ कमोबेश पूरी
कर कभी-कभी पाँचव आव यकता के क़रीब प ँच जाता है, तो वह सफल है। ावहा रक
प म, अगर आप यादा मह वाकां ी नह ह और आप इनम से शु क तीन
आव यकताएँ भी पूरी कर लेते ह, तो आप जीवन म ठ क-ठाक सफल माने जा सकते ह।
ऊपर लखे ए सफलता के ल ण को पाने के लए जीवन म कोई ख़ास पद ा त
करना ज़ री नह है। कोई , चाहे वह नौकरीपेशा हो या वसायी, खेती- कसानी से
जुड़ा हो या अ धकारी, प कार हो या श क; वह उ आव यकता क पू त कह भी
रहकर कर सकता है और तमाम लोग ऐसा करते भी ह।
सफलता क इस चचा के बीच अगर भारत क हद पट् ट के लाख युवा के वशेष
संदभ म बात कर, तो तयोगी परी ाएँ (आई.आई. ट ., नीट, लैट, कैट, नेट-जेआरएफ़
और यूपीएससी आ द) उ ीण करना या उनम टॉप करने का सपना लगभग हर युवा क
आँख म तैरता दे खा जा सकता है।
तमाम कै रयर वक प क मौजूदगी के बावजूद स वल सेवा परी ा (आई.ए.एस.)
उ ीण कर अ धकारी बनने का ज़बद त चाम युवा म है। सरकारी सेवा म बढ़ती चुनौ तय
और जवाबदे ही के बावजूद यह आकषण घटा नह है, ब क अब यह आकषण दे श के
लगभग सभी ह स म फैल-सा गया है। पहले जहाँ स वल सेवा के अ धकारी यू.पी.-
बहार से अ य धक सं या म चुने जाते थे, वह अब पूव र और गुजरात और ज मू-क मीर
जैसे रा य से भी अ धकारी सले ट हो रहे ह। राज थान, त मलनाडु , कनाटक, महारा
आ द रा य से तवष काफ़ युवा आई.ए.एस.आ द स वल सेवा म एं ले रहे ह।
इन स वल सेवा म कुछ तो ऐसा है जो हर आय वग, हर जा त-धम, हर े -भाषा
के लोग को अपनी ओर ख चता है। मुझे लगता है क आई.ए.एस./आई.पी.एस. आ द
सेवा के काय े का ापक दायरा, काम के व वधतापूण अवसर, जनता से सीधे
जुड़ाव व ए सपोज़र, ज़बद त सामा जक त ा और रा नमाण म सीधे योगदान का
मौक़ा आ द, कुछ ऐसे कारण ह, जो इस ज़माने म भी युवा के सपन म स वल सेवा
को ख़ास जगह दे ते ह।
अपने भीतर आई.ए.एस.अफ़सर बनने का यह जुनून लए हर साल हज़ार -लाख युवा
तैयारी के लए द ली या फर जयपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, पटना, इंदौर, चे ई, बगलु ,
हैदराबाद आ द शहर का ख़ करते ह। इस थीम पर नीलो पल मृणाल का नॉवल ‘डाक
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हॉस’ और पंकज बे का नॉवल ‘लूज़र कह का’ च चत भी ए ह।


कुछ युवा द ली या कसी बड़े शहर का ख़ करते ह तो कुछ अपने होम टाउन म
रहकर पढ़ाई या नौकरी के साथ-साथ इस परी ा क तैयारी करते ह। हालाँ क इन दन
इंटरनेट पर भरपूर साम ी उपल ध होने से बना को चग के सफल होने वाले युवा क
सं या बढ़ है, पर फर भी तैयारी के लए अ यथ को चग- कताब -हॉ टल आ द पर घर
वाल का ठ क-ठाक पैसा भी ख़च करते ह। कुछ अ यथ दो-तीन साल का समय इस
परी ा क तैयारी पर दे ते ह, तो कुछ लोग अंतहीन ढं ग से पंचवष य योजना-सी बना डालते
ह।
मने अ सर ऐसा महसूस कया है क म य वग य, न न-म यम वग य या कमज़ोर
आ थक पृ भू म के अ यथ इस बात को लेकर काफ़ उलझन और तनाव म रहते ह क
अगर यू.पी.एस.सी. म चयन नह आ तो या होगा, फर म या क ँ गा? घरवाल को या
मुँह दखाऊँगा? ज़दगी कैसे चलेगी, आ द आ द। कुछ ऐसे अ यथ भी होते ह, जो जोश
नह , जुनून क हद तक तनाव लेकर, ता (anxiety) या आस (Possessiveness)
के शकार हो जाते ह। कुछ लोग को लगता है, अगर म आई.ए.एस. नह बना तो फर मेरा
जीवन थ है या फर उसके बाद मेरे जीवन का कोई ल य ही नह है।
ये युवा ऐसा इस लए सोच रहे होते ह, य क उ ह ने कभी कोई ठ क-ठाक कै रयर
वक प नह सोचा होता या उनके पास कोई एं लॉय ब लट नह होती। य प म इस बात से
सहमत ँ क यू.पी.एस.सी. क परी ा म सफल होने के लए संक प, ढ़ता, लगन और
एका ता होना अ नवाय है; पर मुझे यह भी लगता है क अगर आपके पास कोई
स मानजनक क रयर ऑ शन है तो फर आप थ के तनाव, अवसाद, अटकल और
उलझन से ब त सीमा तक बच सकते ह।
अगर आपके पास कै रयर वक प है या आपको मालूम है क मेरे पास इतनी अहता
(eligibility) या रोज़गार पाने क यो यता (employability) है क य द कसी बुरी थ त
म यू.पी.एस.सी. म मेरा चयन न हो सके तो भी म एक स मानजनक रोज़गार अपनाकर एक
अ छा और ग रमापूण जीवन बता सकता ँ, तो न त तौर पर आप काफ़ हलका महसूस
करगे और आपको एक ख़ास क़ म का सुकून व बे फ़ का एहसास होगा। आप एक बार
ख़ुद ही सोच क अगर ऐसा हो तो आप कतने तनाव मु हो जाएँग।े
य प यह अ नवाय नह है क यू.पी.एस.सी. क तैयारी करने के लए एक कै रयर
वक प होना ही चा हए। तमाम ऐसे उदाहरण ह, जब कुछ युवा अ य थय ने यू.पी.एस.सी.
को एकमा वक प मानकर तैयारी क और सफल भी रहे; पर इस बात म पया त
समझदारी है क परी ा क अ न तता और गलाकाट त पधा को दे खते ए रोज़गार
(employment) या रोज़गार पाने क मता (employability) अ जत कर ली जाए,
अ यथा उस थ त क क पना करके दे खए, जब पढ़ाई से यादा आपका समय इस टशन
म ही बीत रहा हो क य द सेले शन नह आ तो या होगा? घरवाल और दो त से होने
वाली बात-चीत हो या रात को सताने वाले सपने, हर ओर आप तनाव और ता से घरे
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ह। अतः बेहतर यही है क तमाम चता से मु रहकर तनाव-मु और दबाव-मु


होकर, सहज रहकर तैयारी कर।
चलती का नाम ही ज़दगी है और ज़दगी कभी थमती नह है, अतः कै रयर वक प
मन म रखना एक बेहतरीन तरीक़ा हो सकता है। आइए, हम कुछ ऐसी परी ा या क रयर
वक प क चचा करते ह, ज ह आप अपने यू.पी.एस.सी. क तैयारी के साथ-साथ या
सफल न हो सकने क दशा म अपनाकर एक बेहतर जीवन बता सकते ह। इसी को
‘बैकअप लान’ भी कहते ह। एक मश र कहावत भी है—
“Don’t put all eggs in one basket.” यानी सारे रा ते एक ही वक प तक
सी मत करके नह रखने चा हए। लहाज़ा ज़ री है क आप अपनी अ भ चय ,
मह वाकां ा और यो यता के अनु प वैक पक कै रयर वक प भी तलाश ल। इस
संबंध म कुछ मह वपूण काम क बात इस कार ह—
(I) यू.पी.एस.सी. क अ य तयोगी परी ाएँ— स वल सेवा परी ा के अ यथ
अपनी अहता (eligibility) और अ भ च (aptitude) के अनु प संघ लोक सेवा आयोग
ारा ायः तवष आयो जत क जाने वाली अ य तयोगी परी ा , जैसे—
(i) भारतीय वन सेवा (IFos)
(ii) भारतीय इंजी नय रग सेवा (IES)
(iii) भारतीय सां यक सेवा (ISS)
(iv) भारतीय आ थक सेवा (IES)
(v) क य च क सा सेवा (CMS)
(vi) पेशल लास रेलवे अ टस (SCRA)
(vii) क य पु लस बल, सहायक कमांडट (CAPF)
आ द क भी परी ा दे सकते ह। उपयु सभी परी ाएँ भारत सरकार क ुप ‘ए’
सेवाएँ ह, जो एक बेहद त त व चुनौतीपूण कै रयर वक प उपल ध कराती ह।
(II) रा य लोक सेवा आयोग (State PSCs) क परी ाएँ—भारत के रा य के लोक
सेवा आयोग भी अपनी रा य स वल सेवा परी ा आयो जत करने के साथ-साथ ुप ‘ए’
एवं ुप ‘बी’ के व भ राजप त/गैरराजप त पद के लए परी ाएँ आयो जत करते ह।
हद पट् ट के अ य थय के लए उ र दे श, राज थान, बहार, उ राखंड, म य दे श,
छ ीसगढ़, झारखंड, ह रयाणा, हमाचल दे श रा य क स वल सेवा परी ा क तैयारी
का वक प है। इसके अ त र रा य के लोक सेवा आयोग अ य पद के लए भी समय-
समय पर व ापन नकालते ह।
मेरा मानना है क कोई भी अ यथ यू.पी.एस.सी. स वल सेवा क तैयारी के साथ-
साथ अपने गृह रा य क रा य स वल सेवा परी ा (पी.सी.एस.) क भी तैयारी कर सकता
है। मने भी उ र दे श पी.सी.एस. परी ा क तैयारी क थी। ायः सभी रा य म उनक
राज भाषा का भी एक पेपर होता है।
(III) अ य व वध तयोगी परी ाएँ—उपयु लोक सेवा आयोग के अ त र क
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व रा य सरकार के अनेक बोड/आयोग व भ पद पर भरती के लए परी ाएँ आयो जत


करते ह—
(i) भारतीय संसद (संयु भरती को ) (JRC)
(ii) SSC—कमचारी चयन आयोग क CGL परी ा
(iii) DSSSB ( द ली अधीन थ सेवा चयन बोड)
(iv) RRBs (रेलवे भत बोड)
(v) SBI व IBPS (ब कग) आ द।
उपयु और इनके अ त र अ य तयोगी परी ाएँ भी स मानजनक कै रयर का
वक प उपल ध कराती ह। इनम ायः चार वषय—सामा य जानकारी (GK), अँ ेज़ी,
रीज़ नग और अंकग णत के पूछे जाते ह, जो कुछ हद तक यू.पी.एस.सी. के सी-सैट से
मेल खाते ह।
(IV) अ य वैक पक कै रयर वक प— स वल सेवा परी ा क तैयारी के इ छु क या
उसका बैकअप लान तैयार कर रहे अ य थय के लए अ य आकषक कै रयर वक प ह—
(i) UGC-NET-JRF ( श ण व शोध काय)—यह एक बेहद स मानजनक कै रयर है।
नेट पास कर आप यू नव सट या कॉलेज म अ स टट ोफ़ेसर के लए आवेदन कर सकते
ह। जेआरएफ़ भी पास होने पर रसच (एम. फ़ल/पीएचडी) के लए फ़ेलो शप मलती है।
(ii) मी डया व जनसंचार
(iii) व ापन व जनसंपक
(iv) रे डयो व ट .वी.
(v) भाषांतरण/अनुवाद व ए टव राइ टग,
(vi) आप वयं उ मी बनकर अपना वसाय भी कर सकते ह और सर को
रोज़गार दे कर रा - नमाण म अपनी भू मका अदा कर सकते ह।
(vii) एक अ य उभरता आ कै रयर वक प है—समाज काय (Social work)।
आप कसी अ छे एन.जी.ओ. से जुड़कर या पाट टाइम जॉब करके न केवल कुछ अ जत
कर सकते ह, ब क समाज के वकास म अपना योगदान भी दे सकते ह। अनेक अ यथ
मु य परी ा दे ने के बाद और इंटर ू से पहले सामा जक अनुभव ा त करने के लए
समाज-सेवा से जुड़ भी जाते ह।
(V) ड लोमा/पो ट ेजुएशन/ रसच या आगे क पढ़ाई—कुछ अ यथ स वल सेवा
परी ा क तैयारी के दौरान या उसके बाद ड टस एजुकेशन के मा यम से अपनी आगे क
पढ़ाई भी जारी रखते ह। इससे तीन फ़ायदे होते ह—पहला, आप अपने ख़ाली माने जाने
वाले वष का ोफाइल तैयार कर पाते ह; सरे, अपने ऑ शनल स जे ट या जी.एस. म भी
मदद मल सकती है और तीसरा, ड ी/ ड लोमा ा त हो जाने से एं लॉय ब लट व
आ म व ास बढ़ता है। मने भी इ नू (IGNOU) से पी.जी.डी.ट . (अनुवाद म नातको र
ड लोमा) ा त कया था। उसके बाद संसद म ांसलेटर क नौकरी भी क थी।
ड टस ल नग के लए इं दरा गांधी रा ीय मु व व ालय (इ नू) सव े वक प
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है। इ नू के कोस क अ ययन साम ी उ कृ तर क होती है और कसी भी ऑ शनल


स जे ट क तैयारी म मदद कर सकती है। इ नू के अ धकांश पी.जी. कोस हद मी डयम म
भी उपल ध ह। वैसे रा य के मु व व ालय से ड टस ल नग कोस का भी वक प
उपल ध है; जैस— े उ. . राज ष टं डन मु व व ालय, इलाहाबाद; वधमान महावीर मु
व व ालय, कोटा तथा अ य रा य क ओपन यू नव सट आ द।
उपयु के अ त र कोई मा यता ा त कं यूटर कोस भी कया जा सकता है। पी.जी.
ड लोमा इन कं यूटर ए लकेशंस (PGDCA) या DOEACC के कोस अ छे वक प हो
सकते ह।
यान रहे क इन सब वैक पक कै रयर वक प म उलझकर कं यूज़ नह होना है।
ऐसा न हो क आप ब त सारे वक प अपनाने के च कर म मु य व ाथ मक े से
वच लत हो जाएँ। ये ढे र सारे आकषक कै रयर/ टडी वक प मने इस लए बताए ह, ता क
आप यह समझ पाएँ क ‘ सतार के आगे जहाँ और भी है’ और कसी दन- वशेष पर कसी
परी ा- वशेष म असफल रहने से ज़दगी कती या थमती नह है। ‘चरैवे त-चरैवे त’ का
मं अपनाते ए नरंतर चलते जाना ही जीवन है।
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नई शु आत, नये संक प

हर नई सुबह, हर नया ह ता, हर नया महीना और हर नया साल ख़ुद म नई ऊजा, नई


उ मीद और नई आकां ा को समेटे ए, गुज़रे व त के तनाव और अवसाद से मु
एक नई शु आत क उ मीद लेकर आता है।
आप दे खते ही ह यू ईयर पर अख़बार, ट .वी., सोशल मी डया, सब ओर संक प
(resolutions) क बाढ़ आ जाती है।
हम भी इसी उ साह म कुछ पुरानी आदत से छु टकारा पाने और नई आदत को गले
लगाने का संक प करते ह, ता क हम भी इस नये व त म कसी से पीछे न छू ट जाएँ। साथ
ही, ये संक प करते व त ऐसा लगता है क अब एक नई ज़दगी क शु आत होगी और हम
कल से ही यकायक इन सारे नये संक प का अ रशः पालन करना शु कर दगे। यह
उ मीद तो होती है, क अब इस नये जीवन म पुरानी पीड़ा और मुसीबत से छु टकारा
मलेगा, और जीवन म सफलता व ख़ु शय का नव उ कष भी होगा।
कसी क व ने ब त ख़ूब लखा भी—
सुख क क पनाएँ ह, सृजन के गीत लाए ह,
तु हारे वा ते मन म, ब त शुभकामनाएँ ह,
तु हारी ज़दगी म कल न कोई पल घटे ऐसा,
उदासी म जो पल पछले दन तुमने बताए ह ।

या कभी आपने यह भी सोचा है क पछले साल नववष के अवसर पर आपने जो


संक प (resolutions) लए थे, उनक ग त रपोट या है? मतलब उनम से कतने
संक प वहार म प रणत ए और कतने ठं डे ब ते म चले गए। जस तरह रेल बजट म हर
साल नई-नई रेलगा ड़य क घोषणा के साथ-साथ पछले बजट म घो षत रेलगा ड़य का
समयब संचालन भी ज़ री है; उसी तरह नये साल पर नये संक प संजोने के साथ-साथ
पुराने साल के पुराने से पड़ गए संक प को ावहा रक धरातल पर उतरना भी। बशत क
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वे पुराने संक प अब भी काम के ह और ासं गक भी ह ।


चाहे आप पुराने संक प वहार म उतार पाएँ या नह , पर फर भी नया वष नये
संक प का उ साह साथ लाता ही है। लहाज़ा नये साल म नये संक प के बारे म सोचना
बेहद वाभा वक भी है और आपक जीवंतता का तीक भी। म भी पछले कई साल से यू
ईयर रेज़ो यूशन लेता रहा ँ और इस बार भी लूँगा। अंतर बस इतना ही होता है, क हर
साल हमारी ाथ मकताएँ और ज़ रत बदलती जाती ह।
आइए, बात करते ह 10 ऐसे संक प क , जो हर युवा अ यथ के लए ेरक हो सकते
ह, और ज ह वहार म उतारना यादा मु कल भी नह है। आइए नये साल का इंतज़ार
कए बग़ैर आज क इस नई सुबह से ही इन नये संक प को दल से लगाकर अपना ल:—
1. जीवन म ‘ नरंतरता’ को अपनाने क को शश कर। कोई अ छा काम या अ छ
आदत शु करके उसे जारी रखना भी सीख। अ छ आदत को sustain कर।
2. ह क -सी मु कान हमेशा बनाए रख। इससे आपको मुसीबत का सामना करने
और नत आगे बढ़ते जाने म मदद मलेगी। ‘Never Never Never Give up’
3. आज क ख़ुशी को आज ही enjoy करना सीख। ख़ु शय को कल पर न टाल।
वतमान म जीने क आदत डाल, अतीत से सीखते रह और भ व य क दशा म
क़दम बढ़ाते जाएँ।
4. छोटे -छोटे ल य बनाए और उनके पूरा होने पर मलने वाली ख़ु शय को महसूस
कर। इन छोट -छोट ख़ु शय को से ल ेट करना न भूल।
5. जीवन म सर के वचार का स मान करने क आदत वक सत कर।
‘अनेकांतवाद’ से उपजे धैय और स ह णुता जैसे गुण आपके व क
मे यो रट को बढ़ाएँगे। वचार क अ त (extreme) से बचते ए ‘म यम माग’
अपनाएँ।
6. भरपूर पु षाथ कर पर फल (प रणाम) को लेकर ब त यादा च तत न ह ।
नतीज म आस (attach) न होकर ‘ न काम कमयोग’ को वक सत करने का
अ यास कर।
7. नए दो त बनाएँ पर पुराने र त को भी नभाना सीख। ‘लाख मु कल ज़माने
म है, र ता तो बस नभाने म है।’ यानी प रवार और दो त के साथ ‘ वॉ लट
टाइम’ बताएँ।
8. एक- सरे के काम आएँ और पर पर सहयोग क आदत वक सत कर। त वाथ
सू म लखा भी है—‘पर परोप हो जीवानाम’।
9. को शश कर क कसी ज़ रतमंद क मदद कर पाएँ। ‘Joy of Giving’ यानी
दे ने के सुख का कोई मुक़ाबला नह है। कसी के चेहरे पर मु कान लाने पर
आपको जो संतोष मलेगा, वह अतु य है। मसाल के तौर पर, व त मलने पर
अगर आप कसी ज़ रतमंद ब चे को पढ़ाते ह, तो यह उसके जीवन म बड़ा
बदलाव भी ला सकता है।
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10. अपनी चय /शौक़/हॉबीज़ को जएँ। जीवन ब त सुंदर है। ‘ डयर ज़दगी’ से


यार करना सीख। हमेशा कुछ नया सीखने क ललक बनाए रख। सीखने म
हच कचाएँ नह और े वचार को सभी दशा से आने द। ऋ वेद म लखा
भी है—‘आ नो भ ा तवो यंतु व तः।’
ये उपयु दस संक प रात रात वक सत नह ह गे। म भी नरंतर इनका अ यास
करता ँ। आप भी इ ह ै टस म लाएँ, फर दे खए, आपका जीवन कतना ऊजावान,
सुखमय और सहज होता जाएगा।
अंत म इसी सकारा मकता से भरपूर मेरी एक क वता, जो मने IAS क परी ा क
तैयारी के दन म लखी थी:—

सकारा मक सोच
सकारा मक सोच संग उ साह और उ लास लए,
जीतगे हर हारी बाज़ी, मन म यह व ास लए ।

ऊहापोह-अटकल-उलझन, अवसाद का कर अवसान,


ह बाधाएँ कतनी पथ म, चेहर पर बस हो मु कान ।

अंतमन म भरी हो ऊजा, नई श का हो संचार,


डटकर, चुनौ तय से लड़कर, जीतगे सारा संसार ।

ल संक प सृजन का मन म, उ मीद से हो भरपूर,


धुन के प के उस राही से, मं ज़ल है फर कतनी र ।

जग ान और ेम धरा पर, गूँजे कुछ ऐसा संदेश,


नई चेतना से जागृत हो, सु त पड़ा यह मेरा दे श
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मेरी कहानी:
यूँ ही चला चल राही…

“जब आप कोई चीज़ शद्दत से पाना चाहते ह और समय-समय पर मलने वाले


संकेत को फ़ॉलो करते ए आगे बढ़ते जाते ह तो पूरी कायनात आपक मदद करने म जुट
जाती है।” मुझे लगता है पाओलो कोएलो क मश र कताब ‘अलके म ट’ का यह संदेश
मेरी संघष या ा और सफलता क अनकही कहानी पर बख़ूबी फट बैठता है।
पुराने शहर के एक मोह ले के एक साधारण प रवार म ज मा। दादाजी कचहरी म
पेशकार क नौकरी करते थे। हद दज के ईमानदार आदमी। सुबह खाना लेकर घर से
कचहरी पैदल जाते और आते। हद -अँ ेज़ी-उ तीन भाषा पर अ छा अ धकार था
उनका। दाद यादा पढ़ - लखी तो नह थ , पर पढ़ाई और ान क क़ मत बख़ूबी समझती
थ । मेरे पताजी चार भाइय म सरे नंबर पर थे। एक ाइवेट नौकरी करते और जो मलता,
उसी म संतु रहना उनक फ़तरत थी। माँ को भी कम ख़च म घर चलाना बख़ूबी आता था।
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कुल मलाकर एक साधारण से न न-म यम वग य प रवार म पला-बढ़ा। पापा हाई कूल


तक जैस-े तैसे पढ़े थे पर माँ अपने ज़माने क ेजुएट थ । लहाज़ा घर म पढ़ाई- लखाई पर
काफ़ ज़ोर था। हम तीन भाई-बहन म म मझला ँ।
उन दन क बात है जब म आठव या नौव क ा म पढ़ता था। हम राशन क सरकारी
पी.डी.एस. कान पर सामान लेने जाते थे। कानदार यादातर ग़ायब रहता था। गोल-मोल
के क़ से भी सुनते थे हम उसके। म पीले राशन काड को पढ़ता था तो नीचे लखा होता था
—‘खा और रसद अ धकारी’। म सोचता क य द अ धकारी बनकर अ नय मतता और
वसंग तय को र कया जा सकता है तो मुझे भी अ धकारी बनना है। घर पर बताया भी।
बात आई-गई हो गई।
उस दौर म, मेरठ म एक ज़ला धकारी (डीएम) रहे थे लोक य आई.ए.एस. अ धकारी
ी अवनीश अव थी। मुझे अख़बार पढ़ने का शौक़ तब भी था। रोज़ अख़बार म पढ़ता क
आज उ ह ने या- या अ छे काम कए। मेरा कशोर मन उनक पहल , सुधार और काम-
काज से काफ़ भा वत था। अब मेरे मन म यह बात घर करने लगी थी क मुझे भी
कले टर बनना है। भैया ने बताया क इसके लए आई.ए.एस. क परी ा पास करनी होगी,
जो ब त मु कल होती है। व त बीतता गया
ख़ैर, कॉमस म से बारहव क ा उ ीण क हद मी डयम के एक सरकारी इंटर
कॉलेज से। सौभा य से ज़ले म सबसे यादा अंक भी हा सल कए। हालाँ क मुझे साइंस
और कॉमस भी अ छे लगते थे, पर शु से ही मुझम मै नट ज़ के वषय जैसे सामा जक
व ान और भाषा- सा ह य को लेकर एक ाकृ तक झान-सा था। 11व -12व क ा तक
यह बात मुझे समझ आने लगी थी। उधर चूँ क आई.ए.एस. क तैयारी का सपना भी ज़ोर
मार रहा था और हद पट् ट े म उन दन यह धारणा भी थी क आट् स म के छा
UPSC म बेहतर दशन करते ह। जहाँ मेरे सारे दो त सी.ए. (चाटड एकाउंटट) का फ़ॉम भर
रहे थे, वहाँ मने तथा मेरे दो और दो त ने नणय लया क हम मेरठ कॉलेज से बी.ए. करगे।
द ली या इलाहाबाद यू नव सट जाने के बारे म इस लए नह सोच पाए, य क वहाँ बाहर
रहकर पढ़ने के ख़च काफ़ यादा ह गे।
इस तरह इ तहास, राजनी त व ान और इं लश लटरेचर वषय के साथ ेजुएशन
कया और हद लटरेचर म पो ट ेजुएशन। मेरठ कॉलेज के दन बेहद यादगार रहे। पढ़ाई
के साथ ए ाक रकुलर ए ट वट म हम ब त त रहते थे। ेजुएशन के दौरान तो मने
दजन रा ीय व रा य तर के वाद- ववाद, नबंध, क वता पाठ, वज़ तयो गता म
ह सा लया और यादातर म शीष थान भी पाया। एन.सी.सी. और एन.एस.एस. म भी
बढ़-चढ़कर ह सा लया। मुझे याद है क कैसे रा ीय सेवा योजना के कप म हमने घर-घर
जाकर लोग के इ तेमाल म न आनेवाली दवा को ज़ रतमंद लोग के लए इकट् ठा
कया था। मेरठ कॉलेज क वा षक प का ‘अ भ ’ म लगातार छा -संपादक रहा।
भरपूर ए सपोज़र मला और भरपूर कॉ फ़डस भी। इस सबके बावजूद यू नव सट क
मे रट ल ट म थान भी मल गया।
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मेरठ कॉलेज के श क को भी म कभी नह भूलता। ख़ास तौर पर हमारे सपल


डॉ.एस.के.अ वाल और हद वभाग के श क डॉ. रामय मौय। ेजुएशन म हालाँ क
हद , सं कृत, उ और दशनशा मेरे वषय नह थे, पर इन वषय म मेरी च के चलते
मेरा इन वभाग म आना-जाना ख़ूब रहता। सपल सर जैसे कमठ और स दय
आसानी से नह मलते। सकारा मक मो टवेशन दे ना तो कोई उनसे सीखे। जब म और मेरा
साथी डबेट म पहला पुर कार और शी ड जीतकर लौटे तो परे टाफ़ को अपनी जेब से
जलेबी खलाकर सपल सर ने हमारा उ साह कई गुना बढ़ा दया था।
सपने बड़े थे, पर कुछ आ थक सम याएँ भी थ । मुझे याद है क म और मेरे दो दो त
दसव क ा के बाद से ही लखने-पढ़ने क कोई पाट टाइम जॉब करते रहे थे। जैसे कताब
क ूफ़ री डग और ए टव राइ टग। इन छोट -छोट पाट टाइम नौक रय ने ज़दगी के बड़े
सबक़ सखाए। हम तीन दो त क कहानी कम फ़ मी नह है। ी इ डयट् स क तरह तीन
राही अपने-अपने मन क राह पर चल नकले थे। सु मत का मन लखने म रमता था तो
वतन को काटू न उकेरना भाता था। मेरा मन पढ़ाई- लखाई और क वता म यादा रमता
था। तीन ने साथ ेजुएशन क और साथ-साथ ये पाट टाइम नौक रयाँ करते रहे। तीन
अपनी-अपनी साइ कल पर शहर क सड़क नापा करते थे। तीन साथ म तयाँ करते,
नया-जहान क दाश नक बात और लाइफ़ के फ़ंडे; सब कुछ ड कस होता था हम तीन
दो त के बीच। च लए अपनी कहानी पर वा पस लौटता ँ। बाद म तीन का या आ, ेक
के बाद बताता ँ।
पो ट ेजुएशन के दौरान घटा एक बड़ा दलच प क़ सा म कभी नह भूल पाता और
कभी-कभी मुझे लगता है क यह घटना मेरी ज़दगी का ट नग पॉ ट बन गई। मेरे एक
स दय सी नयर थे। वह अ सर मेरा हाल-चाल पूछते और े रत करते। एक बार उ ह ने
मुझसे कहा क “ कसी बजली के ब ब को अगर एक कमरे म ज़मीन के पास लाकर लटका
दया जाए तो वह कतनी रौशनी दे गा और य द उसी ब ब को ऊपर द वार पर लटकाया
जाए, तब वह कतनी रोशनी दे गा।” उनका संकेत प था, य द तुमम उ च तर पर जाकर
योगदान करने क मता है तो तु ह न य ही इसके लए यास करना चा हए।
मने हद सा ह य वषय से यू.जी.सी. नेट-जे.आर.एफ. परी ा क तैयारी शु क
और पहले यास म सौभा य से उ ीण भी हो गया। उधर द ली यू नव सट क एम. फल.
वेश परी ा द और वॉ लफ़ाई भी हो गया। बे झझक डी.यू. म वेश लया और अपने
सपन को सच करने क उ मीद लए आ ख़रकार द ली प ँच ही गया। थोड़ा नॉ टे जक
टाइप का, होम सक-सा था म। दे र से ही सही, पर पहली बार घर छोड़कर बाहर (हालाँ क
मेरठ से द ली यादा र नह है) पढ़ने गया था। मुझे याद है, माँ और घर को मस करते-
करते मेरे मन से एक क वता उपजी थी—‘एक पैग़ाम माँ के नाम’। वह आपसे साझा कर
रहा ँ, य क हमम से यादातर युवा ख़ुद को इस क वता से जोड़ पाएँगे, जो मेरी ही तरह
छोटे -छोटे शहर क ख़ाली-बोर पहर से झोला उठाकर क रयर बनाने क चाह लए बड़े
शहर का ख़ करते ह। क वता कुछ इस तरह है—
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भाव क तू अजब पटारी, अरमान का तू सागर,


नाजक से एहसास क एक, नम-मुलायम-सी चादर ।

खट् ट -मीठ फटकार और कभी पलटकर वही लार,


जीवन का हर पल तुझम माँ, तुझसे है सारा संसार ।

जसक ख़ा तर सब कुछ वारा, अपनी ख़ु शयाँ जान ना,


व त कहाँ उस पर अब माँ, तेरे ःख-दद चुराने का ।
उ मीद को पंख लगाने, बड़े शहर को नकला जब,
छु पी लाई दे खी तेरी, यार का तब समझा मतलब ।

मट् ट क तू स धी ख़ुशबू, संबंध क नम नमी,


नए शहर म हर मुक़ाम पर, बस तेरी ही खली कमी ।

हैरत है हर चेहरे पर थे, कई मुखौटे और नक़ाब,


तुझसा भी या कोई होगा, चलती- फरती खुली कताब ।

र त क गरमाहट तुझसे, तुझसे यार भरा एहसास,


ले भरपूर आएँ अपनी, हरदम थी तू मेरे पास ।

कसने कहा फ़ र त के जग म द दार नह होते,


माँ क गोद म एक झपक , सपने साकार सभी होते ।’

डी.यू. म डेढ़ साल क अव ध म मुझे लगता है क मने ब त कुछ सीखा। द ली


व व ालय के एकेड मक माहौल और हद वभाग के श क से जीवन एवं सोच के
आयाम का व तार करने क सीख मलती। सा ह य-आलोचना जगत् के बड़े-बड़े द गज
का सा य मलना, भावभू म, चेतना और संवेदना का व तार करता है।
एम. फल. के साथ-साथ वष 2013 क संघ लोक सेवा आयोग क स वल सेवा
ारं भक परी ा द और साथ ही अपने गृह रा य उ र दे श के पी.सी.एस. क ारं भक
परी ा भी। तैयारी भी ठ क-ठाक थी और हौसला भी ज़बरद त था। आज तक जीवन क
हर एकेड मक और तयोगी परी ा म अ छे अंक लाकर सफल होता रहा था। पर आ
कुछ और ही। दोन ही ारं भक परी ा म म 2 से 5 अंक के फ़ासले से असफल रहा।
यह मेरे लए शायद पहली बार था क म कसी परी ा म असफलता का वाद चख रहा था।
एक बार को तो ऐसा लगा जैसे सब टू ट-सा गया। ह मत टू ट रही थी और मन अवसाद से
त होने लगा था। शायद म अपनी असफलता को संभाल नह पा रहा था। यह मेरी या ा
का बेहद क ठन दौर था।
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अ न ता बढ़ रही थी और अपने कै रयर को डाँवाँडोल-सा महसूस कर रहा था। उन


दन एक दन महानगरीय जीवन के सं ास पर बैठे-बैठे एक क वता लख बैठा—‘म शहर
ँ’, जो बाद म ‘कादं बनी’ प का म छपी भी।
मुसकान का बोझा ढोए,
धुन म अपनी खोए-खोए,
ढूँ ढ़ता कुछ पहर ँ,
म शहर ँ ।

बेमुर वत भीड़ म,
परछाइय क नगहबानी,
भागता-सा हाँफता-सा
शाम कब ँ, कब सहर ँ,
म शहर ँ ।

सपन के बाज़ार म या,


ख़ूब सज कृ म मुसकान,
आँख म आँख, बात -म-बात,
खट् ट -मीठ तान,
नज़द क म एक फ़ासला,
मन-मन म ही घुला ज़हर ँ,
म शहर ँ ।

मन के नाजक से मौसम म,
भारी-भरकम बोझ उठाए,
काग़ज़ क क ती से शायद,
आ है अरसा साथ नभाए,
ख़ुद के एहसास पर तारी,
ँ सुकूँ या फर क़हर ँ,
म शहर ँ ।

ले कन इस क ठन व त म मेरा प रवार— वशेषकर मेरे भैया शांत और मेरे कुछ


दो त—संकटमोचक बनकर सामने आए। मुझे भावना मक संबल दया और साथ ही मुझम
व ास भी जताया। म कह सकता ँ क मेरे प रवार और इन शुभ चतक को मुझ पर मुझसे
यादा भरोसा था। कुछ ह मत बँधी और सरी ओर एक अ य तयोगी परी ा (लोकसभा
स चवालय म ‘ ांसलेटर’) म मेरी सफलता क ख़बर भी मली। एम. फल. का लघु शोध
बंध जमा करके मने संसद भवन म अपनी यह नौकरी वॉइन कर ली।
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इस नौकरी ने भी ब त कुछ सखाया और आ म व ास बढ़ाया, सो अलग। साथ ही


कै रयर को लेकर एक क़ म क बे फ़ भी मली। मुझे लगता है क इस नौकरी क
तता के बावजूद मुझे UPSC क तैयारी तनाव-मु और दबाव-मु होकर करने म और
सहज भाव से परी ा दे ने म मदद मली। वष 2014 म भी मने UPSC क परी ा फर से
द । इस बार क़ मत ने साथ दया और UPSC का इंटर ू कॉल आ गया। ोफेसर एच.सी.
गु ता के बोड म क़रीब पतीस मनट मेरा इंटर ू चला। इंटर ू के दौरान और उसके बाद भी
मेरा मन शांत व सहज था।
अब हर दन प रणाम क ती ा रहती थी। अं तम प से चयन के इतने क़रीब होना
एक अलग ही एहसास दे ता है। कभी-कभी बड़ी घबराहट होती क अगर अं तम प से
चयन नह आ तो? या या सचमुच एक दन म मेरी ज़दगी बदल जाएगी? ऐसे तमाम
सवाल और ऊहापोह मन को मथते रहते थे। पर म अ सर अपने मन को ऐसे समझाता क
पछले यास म तो ी ल स परी ा ही उ ीण नह ई थी। इस बार तो इंटर ू तक प ँचा,
यही या कम है? और फर अपने पास एक स मानजनक नौकरी तो है ही।
वष 2015 क 3 जुलाई क गरम दोपहर क बात है। इलाहाबाद गया था यू.पी.
पी.सी.एस. क मु य परी ा दे न।े हालाँ क इस बीच पछले साल क पी.सी.एस. क परी ा
क इंटर ू कॉल आ चुक थी। संगम के दशन कर द ली लौटा तो मालूम आ क कल
यानी 4 जुलाई को UPSC के स वल स वस ए ज़ाम का अं तम प रणाम आ रहा है।
श नवार को ऑ फ़स क छु ट् ट थी तो सोचा, मेरठ म घर पर जाकर ही प रणाम दे खूँ। सुबह
आनंद वहार बस अड् डे से मेरठ क बस पकड़कर घर प ँच गया। दोपहर म मालूम आ
क कुछ दे र म ही रज़ ट आने क संभावना है। घर वाले मुझसे यादा नवस थे। एक बजे
एक फ़ोन आया और मालूम आ क 13व रक आई है और हद मा यम म पहला थान।
हद मा यम म काफ़ समय बाद ऊँची रक आई थी। उसके बाद तो बधाइय का ताँता
लगना ही था, सो लगा ही। बाद म आई अंक ता लका से मालूम आ क मुझे मु य परी ा
म तीसरे सवा धक अंक ा त ए थे। साथ ही नबंध म 160 और वैक पक वषय ( हद
सा ह य) म 313 अंक मले, जो संभवतया इनम अब तक के सवा धक अंक ह। ए थ स के
पेपर म भी 124 अंक मले और सामा य अ ययन म कुल मलाकर 378 अंक। कुल
मलाकर अंक थे 1001, जो मेरे लए कसी शुभ शगुन से कम नह थे।
सफलता अपने साथ ब त सारी अपे ाएँ और ज़ मेदा रयाँ लेकर आती है। इनम से
एक है—सफलता को संभालने क अपे ा। हमम से ब त से साथी छोट -सी सफलता से
वच लत होकर अपने वहार को बदल बैठते ह और कभी-कभी तो ख़ुशी से फूलकर हमारे
पाँव भी ज़मीन पर नह पड़ते। सफलता थोड़ी प रप वता और समझदारी क भी माँग
करती है। मुझे तस ली है क इस सफलता के बाद मले स मान और पहचान को म अपने
प रवार, श क एवं दो त क मदद से संभाल पाया और अमूमन सहज बना रहा।
इस दौरान अनेक स मान-समारोह ए और अनेक अवसर पर युवा से संवाद का
मौक़ा भी मला। पर जो दन शायद मेरी ज़दगी के सबसे बड़े दन म से एक था, वह था—
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त कालीन लोकसभा अ य ीमती सु म ा महाजन ारा संसद भवन के बालयोगी


सभागार म मेरा अ भनंदन समारोह। इस समारोह म त कालीन माननीय संसद य काय
रा यमं ी ी राजीव ताप डीजी, लोकसभा महास चव ी अनूप म ा उप थत थे।
सभागार म उप थत थे लोकसभा स चवालय के सभी अ धकारी और कमचारी, जनके
साथ म पछले दो साल से काम कर रहा था। मुझे लगता है क यह स मान एक के
प म महज़ मेरा स मान नह था, यह एक साधारण पृ भू म और हद मा यम से पढ़कर
नकले एक अ यथ क उपल ध का स मान था और साधारण पृ भू म के संघष से
नकलकर कई तरह के पछड़ेपन का सामना करके आगे बढ़ने वाले हद व भारतीय
भाषा के छा का भी स मान था।
आज जब इस सुनहरी याद को मुड़कर दे खता ँ तो कभी-कभी लगता है, ब त कुछ
बदला है; तो कभी लगता है क कुछ भी तो नह बदला। बदला यह क अब बार-बार कोई
नौकरी का फ़ॉम नह भरना पड़ेगा। घर वाले भी कै रयर को लेकर न त हो गए और
वाभा वक तौर पर सामा जक स मान म भी कुछ बढ़ोतरी ई; पर ब त कुछ ऐसा भी है,
जो ब कुल नह बदला और इ छा है क कभी न बदले—आगे बढ़ने और कुछ अ छा करते
रहने क इ छा, नरंतर ग तशील रहने और काम करते रहने का ज बा और नई चुनौ तय
से जूझने क पुरज़ोर को शश।
मुझे लगता है क मुझे जन तीन कारण ने UPSC म उ च रक दलाई—एक तो मेरा
अब तक का व तृत नॉलेज बेस और अनुभव, सरा राइ टग कल और तीसरा सम व
संतु लत कोण। साथ ही मुझे यह भी लगता है क मेरी हर नौकरी, हर श ण सं था, हर
श क और हर साथी ने मुझे कुछ-न-कुछ ही नह , ब त कुछ सखाया। मेरे दो त का
कहना था क ‘मेरी तैयारी ख़ामोश थी, पर सफलता ने शोर मचाया।’
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मेरे सपन क मं ज़ल मसूरी म दो साल तक आई.ए.एस. क े नग क और तमाम नये


दो त बनाए। आधु नक और अँ ेज़ीदा माहौल म भी अपनी हद वाली पहचान नह छोड़ी
और हद को अपनी मजबूरी न बनाकर मज़बूती बनाया। ऐकेडमी म पढ़ाई के साथ-साथ
सां कृ तक काय म क हद म एंक रग भी क और अपनी एक अलग पहचान बनाई।
राज थान कैडर मला, और अब तक अलवर, कोटड़ा (उदयपुर), माउंट आबू और अजमेर
म पो टं ग ई। कोटड़ा सबसे दलच प पो टं ग रही। राज थान का सबसे पछड़ा लॉक
कोटड़ा सु र आ दवासी अंचल म थत है। लोग क ज़दगी को ब त क़रीब से दे खा।
को शश यही रही क अपनी ओर से एक संवेदनशील और सजग शासन दे पाऊँ।
इस बीच आई.ए.एस. क े नग और बाद म नौकरी के साथ राइ टग का शौक़ बद तूर
जारी है। कई कताब का शत ई ह और यूट्यूब पर वी डयो काफ़ लोक य ए ह।
स वल सेवा परी ा क तैयारी पर मेरी कताब ‘मुझे बनना है UPSC टॉपर’ बेहद लोक य
ई और बाद म इं लश और मराठ म भी छपी। नेशनल बुक ट से ‘राजभाषा के प म
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हद ’ कताब और भात काशन से ब च क क वता क कताब ‘शाद बंदर मामा


क ’ भी छपी ह। पहले जन चीज़ को जीवन म ब त बड़ा माना करते थे, वो धीरे-धीरे सहज
लगने लग । UPSC म हद मी डयम से टॉपर बनने के बाद रदशन, AIR, लोक सभा ट वी,
बीबीसी हद और लगभग सभी बड़े हद -इं लश अख़बार-चैनल पर बोलने- लखने का
अवसर मला।
ख़ैर, आपको बता ँ क आज उन ी इ डयट् स म से एक सु मत बॉलीवुड का एक
सफल ट राइटर है, सरा दो त वतन एक बड़े यूज़ चैनल म सफल काटू न ट और
तीसरा म नाचीज़, एक आई.ए.एस. अ धकारी और लेखक। मुझे कभी कसी सी नयर ने
कहा था क ‘हमेशा बड़ा सोचो, तुम एक दन ख़ुद बड़े बन जाओगे।’ म बड़ा बन पाया या
नह , ये तो मालूम नह , पर उनक ये बात अब बड़े काम क लगती है।
मुझे लगता है क जहाँ भी, जैसे भी रह, जो कुछ भी कर, ख़ुश रहकर कर, त रह
और म त रह। नराशा क बात करने वाल क बात सुन-सुनकर हताश न ह । अंत म, हद
ग़ज़ल स ाट यंत कुमार क वे चार पं याँ, जो मेरे संपूण संघष या ा म मेरा साथ
नभाती रह —
इस नद क धार से ठं डी हवा आती तो है,
नाव जजर ही सही लहर से टकराती तो है ।
एक चनगारी कह से ढूँ ढ़ लाओ ए दो तो,
इस दए म तेल से भीगी ई बाती तो है ।।
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सफलता के सफ़र क
कुछ शानदार कहा नयाँ
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के न तू, थके न तू
आशीष कुमार, उ र दे श

म आशीष कुमार, उ र दे श के उ ाव ज़ले से ।ँ वष 2017 क स वल सेवा परी ा


म हद मा यम और हद सा ह य वषय के साथ रक 817 के साथ चय नत आ ँ। यह
मेरा नौवाँ और अं तम यास था। इससे पहले पाँच मु य परी ा और दो इंटर ू दे चुका था।
उ ाव ज़ले के मु यालय से क़रीब 35 कलोमीटर र मेरा गाँव है। मेरी पूरी पढ़ाई
गाँव व उ ाव ज़ले म ही ई है। ग णत वषय के साथ नातक, इ तहास वषय के साथ
परा नातक ँ। म कभी भी पढ़ने म ब त अ छा नह रहा ,ँ ायः तीय ेणी म ही पास
होता रहा ँ।
अगर म यह क ँ क स वल सेवा म आने का मेरा बचपन से सपना रहा है, तो ग़लत
होगा। दरअसल एक आम ामीण प रवार क तरह मेरी इ छा बस एक अदद सरकारी
नौकरी तक ही थी। इसी लए मने पहले वनडे तयोगी परी ा क तैयारी से शु आत क
थी। उन दन म ही स वल सेवा के बारे म पता चला तो म 2009 से ही इस परी ा म बैठने
लगा। तमाम र तेदार , म ने मज़ाक उड़ाया क ‘एक नौकरी तक मलती नह , सीधे
आईएएस बनने का वाब दे खने लगे’।
घर के आ थक हालात ब त अ छे नह थे। इसे सौभा य कह या मेहनत कह, मुझे 23
साल क उ म ही सरकारी नौकरी मल गई। इससे पहले भी म 17 साल क आयु से
ट् यूशन पढ़ाकर, काफ़ हद तक आ म नभर हो चुका था।
सरकारी नौकरी मलने से आ थक स बल तो मला, पर अब समय कम पड़ने लगा। 1
साल अ यापक क नौकरी, 1 साल ऑ डटर (कमचारी चयन आयोग) के बाद, 2010 म
ए साइज़ एंड क टम वभाग म इं पे टर क नौकरी के साथ मने एक दवसीय परी ाएँ दे ना
बंद कर दया। अब इकलौता ल य स वल सेवा था।
मेरी नौकरी ग़ैर हद भाषी रा य (गुजरात) म होने के चलते, हद से जुड़ी साम ी
मलना ज़रा मु कल था। धीरे-धीरे चीज़ व थत । स वल सेवा म लगातार उतार-
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चढ़ाव लगे रहे। 2010 म मु य परी ा, 2011 म इंटर ू, 2016 म फर ारं भक परी ा
फेल होना, मुझे कुछ हद तक अंदर से तोड़ चुका था।
2017 म अं तम बार स वल म बैठना था। पछले अनुभव से, कमज़ो रय को र
करते ए, अपना सव म दे ने का यास कया। अंततः मुझे अपना नाम चय नत सूची म
दे खने को मला। रक अपे ा के अनु प नह मली, पर म ब त ख़ुश ।ँ मुझे हमेशा से
चीज़ के सुखद प को दे खने क आदत है। इस साल मुझे हद सा ह य म 296 अंक मले
ह, इसका ेय सा ह य के त अपने झान को ँ गा।
इस कताब के पाठक से एक वशेष बात साझा करना चा ँगा क म मुखज नगर,
द ली से र, बग़ैर कोई को चग कए, नौकरी करते ए स वल सेवा म सफल आ ँ।
इस लए तमाम मथक जैसे अ छे व व ालय, महंगी को चग, ब त मेधावी होना क
यादा परवाह करने क ज़ रत नह है। हर साल UPSC म कम सं या म ही सही, पर बेहद
सामा य प रवेश म पले-बढ़े हम जैसे लोग सफल होते ही ह।
नशांत जैन को अनंत ध यवाद दे ना चाहता ँ, उनक व णम सफलता हद मा यम
के सैकड़ सफल उ मीदवार क तरह मेरे लए भी ब त बड़ी ेरणा रही है।
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संघष से जूझकर पाई सफलता क राह


आ द य, राज थान

म स वल सेवा परी ा 2017 से भारतीय पु लस सेवा (IPS) म चय नत आ ँ। म


राज थान के ामीण प रवार से आता ँ और मेरी अ धकतर पढ़ाई गाँव म सरकारी कूल म
ई है और बाद म BA और BEd मेरी तहसील मु यालय भादरा, ज़ला हनुमानगढ़,
राज थान म ई। मेरे माता- पता दोन श क ह।
क ा 11 म दो त और प रवार के दबाव म च न होते ए भी ग णत वषय चुना
परंतु बेहतर न कर सका और इसको दे खते ए मने आट् स म जाने का फ़ैसला कया।
अ सर इस संबंध म मने लोग क काफ़ बात को सुना तो मने ख़ुद के नणय को सा बत
करने के लए टाउन के नजी कॉलेज से BA कया और संघ लोक सेवा आयोग क परी ा
दे ने का फ़ैसला कया।
जब शु आत क तो चुनौ तय का सामना करना पड़ा, जसम एक तो सारी पढ़ाई हद
मी डयम कूल से होने के कारण अँ ेज़ी का आधारभूत ढाँचा कमज़ोर रहा, कूली श ा म
अ धक यान न दे ने के कारण मेरे बे सक कमज़ोर थे। हद मा यम म 2013 म पैटन
प रवतन के कारण कंटट का अभाव, 2013 म हद मा यम से सबसे कम चयन से एक
नकारा मक माहौल, एक अ छे अख़बार क कमी, गाइडस का अभाव मुख कारण रहे।
2014 से पहली बार अँ ेज़ी अख़बार को पढ़ा, तकनीक का उपयोग करना सीखा,
जसम अनेक पोटल, वेबसाइट थी। 2014 से 2017 तक मने 4 यास कए, जसम पहली
बार म ारं भक परी ा म असफल रहा। फर सुधार कया और सरे म काफ़ उ सा हत था,
य क न केवल ारं भक वरन मु य परी ा को थम यास म पास कर सा ा कार तक
प ँचा, परंतु थम सा ा कार म अनुभव क कमी और अ यास न होने पर बेहतर अंक
ा त न कर पाया। तीसरे यास म मने सोचा तो था क बेहतर होगा, परंतु भा य को कुछ
और मंज़ूर था। म मु य परी ा म असफल रहा, जसका कारण नबंध और इ तहास म कम
अंक रहे। इतने मनोवै ा नक दबाव का सामना मुझे पहले कभी नह करना पड़ा था।
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वयं को े रत करने और अ य वक प तलाशने के लए राज थान स वल सेवा समेत


अनेक पेपर दए, परंतु असफलता ने नरंतरता जारी रखी। माता- पता के सहयोग, मेरे
ढ़संक प और आ म व ास से मने फर चौथा यास दया, जसम पूववत क मय को
कम करने के लए अथक मेहनत क । मेहनत रंग लाई और सफलता को आ ख़रकार हा सल
कया।
इस परी ा क तैयारी के दौरान मुझम अनेक क मयाँ रह , जसम पहले के यास म
रवीज़न के बजाय पढ़ने पर यान दे ना, ल खत अ यास म कमी, अ त आ म व ास, नबंध
पर यान न दे ना और वैक पक वषय इ तहास म कमी और सा ा कार म ुप मॉक पर
अ धक यान न दे ना, बोलने का अ यास न होना इ या द रहे।
इन सब अनुभव के आधार पर युवा अ य थय को मेरी सलाह है क बे सक पर यान
द, कंटट को सी मत रख, समसाम यक पर यान द और नरंतर अपडेट रह। वैक पक
वषय का चुनाव अंकदायी, च, समझ और उपल ध वषयव तु के आधार पर कर।
सा ा कार म समूह चचा, मॉक पर यान आव यक है। सा ा कार म आ म व ास क
सवा धक भू मका होती है, अतः उन त व पर अ धक यान द, जहाँ से आ म व ास को
सकारा मक बल मले।
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चरैवे त-चरैवे त
आ द य कुमार झा, बहार

‘ स वल सेवा’ यह श द सामने आते ही भारत के ामीण म यमवग य प रवार के ब चे


क आँख अद्भुत रोमांच के साथ चमक-सी उठती ह। बहार के सु र मधुबनी ज़ले के एक
गाँव लखनौर म ारं भक बा यकाल बताने वाला म भी उसी अद्भुत स वल सेवा के व ,
कवदं ती, त ा के रोमांच से अ भभूत आ। मेरे पताजी सं कृत के ोफ़ेसर ह। घर म अब
तक सभी सं कृत के व ान श क ही ए ह। ज़ा हर-सी बात है मेरे पताजी के मन म हम
3 भाइय के लए कुछ अलग बनने क आकां ा थी। फलतः मुझे क ा 6 म बड़े भाई के
साथ इलाहाबाद भेज दया गया। जब इलाहाबाद प ँचा तो मानो स वल सेवा के त
बचपन से पड़े आकषण के बीज ने इलाहाबाद के उवर मट् ट के संपक म आकर पौधे का
प धारण कर लया। मेरे अनुशासन य अ ज ख़ुद UPSC क तैयारी म जुटे थे, तो यह
सं ामक रोग ब त शु आत म ही मुझे लग चुका था।
ख़ैर अब म इंटरमी डएट म प ँच चुका था। वषय के प म भूगोल, सं कृत एवं
राजनी त व ान को BA के वषय के प म चय नत कया।
MA करने के प ात अब द ली आ चुका था। उस समय सीसैट का अद्भुत आतंक
था। कमकांड के मुता बक़ द ली के को चग म भी गया। घ टया, गुणव ाहीन एवं तरहीन
को चग मागदशन के कारण तैयारी UPSC के मुता बक़ नह हो पाई। इसी बीच 2013 म
पाठय म म बदलाव ने रणनी त, आ म व ास को तोड़कर रख दया। इन कारण से 2013
का अटे पट नह लेकर वैक पक क रयर के लए रा य स वल सेवा क ओर ख कया।
इसी बीच IB म सहायक स ल इंटे लजस ऑ फ़सर के प म पहली सफलता ा त ई।
यह नणय कया क IB वॉइन नह करनी है। इस बात पर मेरे पताजी ब त ख़फ़ा
ए। ख़ैर उनक असुर ाबोध, नाराज़गी के बीच यह जुआ मने खेला।
सीसैट के त मान सक भय व हद मा यम म नग य रज़ ट ने मलकर मेरा सम त
आ म व ास तोड़ डाला था। कतु 2015 अद्भुत ऊजा के साथ सामने आया। इस वष
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हद मा यम म नशांत जैन ारा 13व रक क ा त, सीसैट आंदोलन क सफलता ने मेरे


जैसे लाख उ मीदवार को नवीन ऊजा दान क ।
3 वष क नराशा पूणतया समा त ई। स वल सेवा परी ा म थम यास 2015
क मु य परी ा पूरे उ साह से दया। अनेक प र मी म का स कल भी तब तक बन
चुका था। साथ ही UPPCS म ज़ला बचत अ धकारी के प म सरी सफलता ा त ई।
2015 क मु य परी ा म चूकने के प ात गुने उ साह से 2016 क परी ा द । अब
तक वैक पक वषय सं कृत पर ठोस पकड़ बन चुक थी। टे ट सीरीज़, सामा य अ ययन
भी औसत से बेहतर हो चली थी। मु य परी ा म संतोषजनक दशन के उपरांत एटा ज़ले
म ज़ला बचत अ धकारी के प म वॉइन करके नये उ साह से तैयारी को आगे बढ़ाया।
मु य परी ा म सफल होने पर प रवार स हत सभी से इस ख़ुशख़बरी को साझा
कया। तभी उसी रात लगभग 9 बजे एक घातक घटना म पैर ै चर हो गया। म शी ही
अ पताल तक प ँच गया। फर अगले दो माह ब तर पर पड़े-पड़े इंटर ू क अद्भुत तैयारी
हो पाई। मॉक इंटर ू के लए हीलचेयर पर अपनी बड़ी द द के साथ मुखज नगर से
राज नगर जगह-जगह घूमा। फर 21 अ ैल को स सेना सर के बोड म हीलचेयर पर ही
इंटर ू म स म लत आ। इंटर ू ब त ही औसत आ तथा सफलता क कोई आशा नह
थी।
अं तम प रणाम म जैसे ही अपना नाम 503व थान पर दे खा तो सहसा व ास नह
आ। जीवन म जो आँसू दजन परी ा म फेल होकर नह बाहर नकले, वो सहसा ही
तीय यास म सफलता के प ात फूट पड़े। ख़ैर अब मेरा जीवन पूणतः बदल चुका था।
मेरे पताजी के जीवन क सबसे बड़ी साधना एक हद तक पूण होती दख रही थी।
इसी उ साह को नरंतर रखते ए स वल सेवा परी ा 2017 क मु य परी ा द और
IRAS के श ण को वॉइन कया। 2017 क स वल सेवा परी ा म 431 रक पर
DANICS सेवा हेतु चयन ा त आ। इस कार लगातार सरी बार चयन आ म व ास
बढ़ाने वाला स आ। वतमान म, DANICS सेवा म सेवारत ँ। ‘चरैवे त चरैवे त’ के
स ांत पर येक दन, येक अटे पट से कुछ नया सीखकर नरंतर आगे बढ़ने के लए
यासरत ।ँ
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प त-प नी ने साथ पढ़कर पाई सफलता


अन कुमार, बहार

मेरा पालन-पोषण व ारं भक श ा-द ा बहार के जहानाबाद ज़ले के एक छोटे से


गाँव म ई। यह वही जहानाबाद ज़ला है, जो कभी न सल ग त व धय का गढ़ आ करता
था। आए दन गाँव-के-गाँव नरसंहार क भट चढ़ जाते, हम सब काफ़ डरे रहते थे क कब
हमारे गाँव का नंबर आ जाए। मेरी ाथ मक व उ च ाथ मक क श ा गाँव के ही कूल म
ई।
फर पताजी को कानपुर म रेलवे म एक ठे के का काम मला और पूरा प रवार कुछ
समय बाद कानपुर आ गया। अतः 10व व उसके बाद क मेरी पढ़ाई कानपुर म ई। म
पढ़ने म ारंभ से ही अ छा था, अतः सबक उ मीद के अनु प दशन का दबाव बढ़ता
गया और ग़ैर शै णक ग त व धय (खेल व अ य सां कृ तक ग त व धय ) से म र होता
गया, इसका मलाल आज भी मुझे है। पढ़ाई के साथ अ य ग त व धय का व के
वकास म मह वपूण योगदान होता है।
म आम म यमवग य क तरह इंजी नय रग व MBA जैसी ोफ़ेशनल ड ी ा त
कर कसी म ट नेशनल कंपनी म काम करना चाहता था, पर एक घटना ने मेरे पथ क दशा
बदल द ।
आ यह क कानपुर म पताजी ने अपनी कमाई जोड़कर एक छोट सी ज़मीन ली थी,
पर कुछ राजनी तक जुड़ाव रखने वाले दबंग ने इस पर क़ ज़ा जमा लया। पापा ने काफ़
हाथ-पैर चलाए, पु लस म शकायत भी दज कराई, पर कोई असर नह आ। फर हम सीधे
पु लस अधी क (SP) महोदय से मले, ज ह हमने अपनी परेशानी बताई। उ ह ने त काल
कारवाई का आ ासन दया। ऊपर से बने दबाव ने शासन के काम म तेज़ी ला द और हम
हमारी ज़मीन वापस मल गई। इस घटना ने मेरी सोच को ही बदल दया, और म
इंजी नय रग के बाद स वल सेवा क तैयारी करने लगा।
मुझे शु आती चरण म सफलता भी मलने लगी पर पूण सफलता नह मली। अतः
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नराश होकर म रा य लोक सेवा पर यान दे ने लगा। इसी दौरान वा ण य कर अ धकारी


(UPPCS-2012), अ स टट क म र वा ण य कर (UPPCS-2013) व पु लस उपाधी क
(DSP, UPPCS-2014) के पद पर चयन भी आ। पर कह -न-कह दल म वो कसक
अभी भी थी क म UPSC लीयर नह कर पाया।
इसी दौरान एक सुखद घटना यह ई क 2015 म मेरा ववाह आरती सह से आ।
हम दोन पहले से काफ़ अ छे दो त थे। वो उ र दे श म BDO के पद पर कायरत थी, पर
UPSC न पास करने क पीड़ा उनके मन म भी थी। बस फर या था, दोन के मलने से
श भी नी हो गई, साथ ही मनोबल और लालसा भी। मलकर बेहतर े टेजी से तैयारी
क व 2016 क UPSC परी ा म दोन उ ीण ए, उ ह AIR-118 के कारण IPS मला
और मुझे AFHQ मला। मने ह मत नह हारी और गुनी मेहनत से फर तैयारी क तथा
2017 क परी ा म AIR-146 के साथ म हद मा यम म टॉपर भी बना।

संसाधन के अभाव से सफलता तक का सफ़र


अंसार शेख़, महारा

मेरा ज म तथा पालन-पोषण महारा के जलना म शैलगाँव ाम म एक ब ती म


ब त-ही गरीब और वं चत प रवार म आ था। मेरे पता ऑटो र शा चलाते थे और मेरी माँ
एक गृ हणी थ । मुझे सभी कार क क ठनाइय का सामना करना पड़ा था। हालाँ क, म
पढ़ने- लखने म अ छा था, इस लए मेरे तीन भाई-बहन के वपरीत म अपनी पढ़ाई करता
रहा।
मने अपने गाँव के एक सरकारी कूल म पहली क ा से 10व क ा क पढ़ाई पूरी
क । मने 76.20 फ़ सद अंक के साथ 10व पास क । फर, म मान वक म 11व तथा
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12व क ा क पढ़ाई करने के लए ब नारायण बरवाले कॉलेज, जलना चला गया। इस


समय तक मने पुणे जाकर संघ लोक सेवा आयोग परी ा क तैयारी करने का मन बना लया
था। मने 91.50 तशत अंक ा त कए और फ़ यूसन कॉलेज, पुणे चला गया। अपने
बी.ए. राजनी त व ान के सरे वष म, मने यू.पी.एस.सी. क एक को चग लास म जाना
शु कर दया। मने जून 2015 म 73 तशत अंक के साथ नातक क पढ़ाई पूरी क ।
उसी वष अग त म, मने UPSC CSE क ारं भक परी ा द , जसे मने पास भी कर लया।
मुझे हमेशा कड़ी मेहनत करने क आदत थी। हालाँ क मेरी ख़राब आ थक पृ भू म
मेरी या ा म मुख बाधा म से एक थी। एक ऐसा समय भी था, जब मेरे पास पूरे दन
खाने के लए कुछ नह था। एक समय ऐसा भी था जब मेरे पास कताब ख़रीदने तक के
लए पैसे नह थे। मेरे लए भाषा एक और सम या थी। म मराठ मा यम म तैयारी कर रहा
था, ले कन मुझे 60 तशत से अ धक पाठ् य म अँ ेज़ी म पढ़ना पड़ता था और उसे
मराठ म अनुवाद करना पड़ता था। मेरे लए यह ब त मु कल था, य क मने 12व तक
अपनी संपूण श ा मराठ मा यम म क थी। ले कन हर सम या का समाधान अव य होता
है।
म जब 10व क ा म था, तब मने एक अ धकारी बनने का फ़ैसला कया। मेरे
गत अनुभव के साथ-साथ मेरी क ा के श क, ज ह ने उसी वष महारा
पी.एस.सी. परी ा पास क थी, मेरे लए ेरणा के ोत थे। हालाँ क मुझे यू.पी.एस.सी. के
बारे म बु नयाद जानकारी दे ने वाले मेरे कॉलेज के सरे श क थे, उस समय तक म
यू.पी.एस.सी. और अ य परी ा के बारे म अनजान था।
मने अपने पहले ही यास म इस परी ा को लीयर कर लया इस लए मुझे इस
परी ा म वफलता का सामना नह करना पड़ा। ले कन हाँ, कुछ असफलताएँ थ । मने
मु कुराते ए उन असफलता का सामना कया। म वयं े रत था, इस लए मेरे लए वयं
को सां वना दे ना और अपने काय पर वापस लौटना आसान था। और वैसे भी असफलता म
सफलता का माग छपा होता है। यह आपको आ म नरी ण तथा आ म-मू यांकन करने
और अपनी कमज़ो रय को र करने का मौक़ा दे ता है।
युवा को मेरा संदेश है क य द मेरे जैसा एक अभाव त और जीवन म सभी कार
क क ठनाइय का सामना करने वाला UPSC म सफलता ा त कर सकता है, तो
आप भी कर सकते ह। UPSC और जीवन म सफलता कसी का एका धकार नह है।’
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इं लश पर बनाई पकड़ और पाई सफलता


बालाजी डी. के., कनाटक

आईएएस लयर करना बचपन से ही मेरा सपना था। यह सब तब शु आ जब 5व


क ा म मेरी अपने पता जी के साथ लड़ाई हो गई थी। पताजी मुझ पर ग़ सा हो गए थे
और उ ह ने मुझे पीटा भी था। म रोते-रोते ससक रहा था। तभी ट .वी. पर GK का पूछा
गया था। मने इसका सही उ र दया, जससे मेरे पताजी ब त ख़ुश ए। उ ह ने मुझे गले से
लगा लया। उनका ग़ सा गव और ख़ुशी म बदल गया था। इससे मुझे एहसास आ क
सामा य ान क मदद से कसी को भी जीता जा सकता है। फर, मने GK म इतनी गहरी
च वक सत क , जससे क म दे श क सबसे क ठन GK परी ा (म इस तरह सोच रहा
था) को लयर कर सकूँ। फर, मुझे बताया गया क IAS एक ऐसी परी ा है, जसम सबसे
क ठन GK आता है।
म ी स चदानंद राव सर से नजी ट् यूशन ले रहा था। वे हमेशा कहा करते थे क
को अपना जीवन ऐसा बनाना चा हए क उसक मृ यु के 4 दन बाद तक कम-से-
कम 4 उसे याद रख। इन श द ने IAS बनने के मेरे संक प को मज़बूत कर दया।
इसके साथ ही, एक अ य श क ी जगद शैया के.एस. सर भी सफल IAS, IPS
उ मीदवार क कहा नयाँ सुनाते थे। यह सोने पर सुहागे क तरह था।
उसके बाद, जब मने 10व क ा क परी ा द थी, तभी मेरे गृहनगर (कोरटगेर,े
ज़ला-तुमकुर, कनाटक) से ी जगद श के.जे. ने ऑल इं डया रक 58 के साथ IAS क
परी ा पास क । मेरे लए यह प संकेत था क मुझे अपने गृहनगर का अगला जगद श
बनना चा हए। अब IAS बनने का सपना औपचा रक प से शु हो गया था।
फर मेरी 10व क ा का प रणाम आया। मने ग णत म 100% अंक के साथ
93.76% से दसव क ा पास क । सभी ने सुझाव दया क मुझे यारहव और बारहव
क ा के लए व ान का वक प चुनना चा हए। ले कन, मेरे दल ने कहा क मुझे अपने
आईएएस बनने के सपने को आगे बढ़ाने के लए मान वक का चयन करना चा हए।
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जैसा क आप सभी जानते ह, साइंस म रोज़गार के बेहतर अवसर दान करती है।
एक म यम वग य प रवार (मेरे पता ब त ग़रीब प रवार से ह। मेरे दादा जी प रवार से र
हो गए थे। मेरी दाद ने दहाड़ी मज़ र के प म काम करके मेरे पताजी का पालन-पोषण
कया। मेरे पताजी कई जगह पर काम करते थे और कसी तरह उ ह ामीण बक म एक
नौकरी मल गई। मेरी माँ भी आ थक प से कमज़ोर प रवार से ह) क पृ भू म से होने को
यान म रखते ए, मेरे लए एक अ छ नौकरी खोजना ब त मह वपूण था। फर भी, म
अपने आईएएस के सपने को आगे बढ़ाना चाहता था। आ यजनक प से, मेरे माता- पता
ने मुझे पूण सहयोग दया और मुझे अपना सपना साकार करने का अवसर दया। सभी ने
मेरे माता- पता को पागल कहा। फर भी, वे मेरे साथ खड़े रहे।
11व क ा म वेश पाने के पहले स ताह म कताब क एक कान पर लटक ई
प का ने मेरा यान आक षत कया। उस अंक के कवर पेज पर ी एस. नागराजन
(रक-1, CSE 2005) क त वीर छपी ई थ । इन त वीर ने मुझे उस प का को ख़रीदने
के लए मजबूर कर दया। परंतु अफ़सोस इस बात का था क मुझे उस प का म कुछ भी
समझ नह आया। मुझे तब एहसास आ क मेरी अँ ेज़ी कतनी ख़राब है। मने फ़ैसला
कया क IAS परी ा को लयर करने के लए मुझे पहले इं लश सीखनी चा हए। मने
अपनी रणनी त तैयार क ।
उस समय, म रोज़ाना बस से 26 कमी र कॉलेज (जो तुमकुर म था) क या ा करता
था। मने केवल वी डयो-कोच-बस से या ा करने का फ़ैसला कया। मने क ड़ और तेलुगु
फ म के संवाद का अनुवाद अँ ेज़ी म करना शु कर दया। जब भी मुझे कसी क ठनाई
का सामना करना पड़ता था, तो म उस वा य को लख लेता था और अगले दन अँ ेज़ी के
श क के साथ चचा करके उ ह समझ लेता था। म हमेशा मन ही मन अँ ेज़ी के वा य को
बनाता रहता था। मने 3 महीने तक सफ़ और सफ़ अँ ेज़ी को जया। इससे मुझे अँ ेज़ी
पर पकड़ बनाने म वा तव म मदद मली।
जब म 12व क ा म था तो दो वचार मुझे बार-बार परेशान करते थे।
पहला—अगर म IAS लयर नह कर पाया तो या होगा? या म जीवन को
व थत कर पाऊँगा?
सरा—म इन मान वक वषय को ख़ुद ही पढ़ सकता था। या मुझे इसे एक
नय मत पाठ् य म के प म आगे पढ़ना चा हए? या मुझे कोई अ य ोफ़ेशनल कोस
करना चा हए?
फर, मेरे कॉलेज के सपल ी एन.पी. रव नाथ जी ने सभी शंका को र करते
ए मुझे आ म व ास दान कया। उ ह ने मुझे बैचलर ऑफ़ बजनेस मैनेजमट (बीबीएम)
करने और फर एमबीए करने का सुझाव दया।
एमबीए करने के बाद, मुझे एक सामुदा यक संगठन के बारे म पता चला जो IAS
उ मीदवार के लए मु त बो डग, लॉ जग और को चग क सु वधा दे ता था। जब मने उनसे
संपक कया, तो मुझे अपमा नत कया गया। इसने फर से मेरे संक प को मज़बूत कर
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दया। अंत म मेरा संक प सफल आ और म आं दे श कैडर म आई.ए.एस. अ धकारी


ँ।
मेरी ओर से सुझाव यह है क एक ही वषय के लए कई पु तक के पीछे न भाग। याद
रख क एक पु तक को दो बार पढ़ना दो पु तक को एक बार पढ़ने से बेहतर है।

BPL से युवा आई.ए.एस. तक क या ा


चेतन कुमार मीणा, राज थान

27 दसंबर, 2017 का दन था और शाम के 5 बजे थे, तभी बाबा ( पताजी को


संबोधन) को मेरा कॉल आता है, मेरे कहे कुछ श द का जवाब दे ते ह “ध यवाद बेटा, तूने
इस बूढ़े बाप का नाम रौशन कर दया, तूने मुझे तरा दया।” ये श द शायद मेरे जीवन के
अनमोल ख़ुशी दे ने वाले मोती थे। रज़ ट आने क ख़ुशी इस क़दर थी क एक तरफ माता-
पता, चाचा आ द तो सरी तरफ़ म, ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे।
मेरा IAS म सेले शन होना मेरे से यादा उन लोग के लए मह वपूण था, ज ह ने
मुझे बनाने म ख़ुद को खपा दया। मेरा ज म राज थान के दौसा ज़ले के गाज़ीपुर गाँव के
कसान प रवार म आ। माता- पता दोन कसान थे और क़लम कैसे चलाई जाती है, उ ह
नह पता था। आ थक संसाधन का अभाव हमेशा से रहा, कतु संयु प रवार होने के
कारण यह कमी कुछ कम खलती रही। शायद यही संयु प रवार का सबसे बड़ा फ़ायदा
रहा हो। मेरा प रवार B.P.L. म शा मल रहा, इस लए सरकारी मदद प रवार के ख़च के लए
संजीवनी का काम करती रही।
मने अपनी व ालयी श ा अपने पास के गाँव के व ालय से ली। 12व के बाद IIT
क तैयारी का मन था, ले कन आ थक अभाव के कारण यह संभव नह हो पाया। यह वह
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दौर था, जब घर का ख़च चलाने के लए खेती अपया त सा बत हो रही थी, तब त वष


भस बेचकर मु कल से ख़च चलाया जा रहा था। वह संग मेरी आँख के सामने दौड़ आता
है, जब मेरी कूल क ेस लाने के लए माँ ने अपने चांद के ज़ेवर बेच दए। ख़ुद भले ही
अनपढ़ रहे ह , ले कन अपने ब च के लए ऊँचे वाब दे खे। वे जीवन क तमाम वकट
प र थ तय से लड़ते रहे, पर उन प र थ तय क छाया को मुझसे र रखने क भरपूर
को शश करते रहे।
शु से सपना था क सीधे ही IAS क तैयारी क ँ , जसके लए नातक के तुरंत बाद
द ली जाऊँ। ले कन द ली म त माह 10 हज़ार पए खच करना मु कल था, इस लए
जयपुर म ही रहकर SSC म पहले जॉब पाने का फ़ैसला कया। SSC म जॉब लगते ही मानो
वाब को पंख लग गए ह , य क अब पैसा आगे माग म बाधा बनने वाला नह था। जॉब
लगते ही म BPL ल ट से बाहर आ गया था।
अब व त था जॉब के साथ CSE क पढ़ाई करने का, समय क कमी तो होती थी, पर
अब सारे सपने खुली आँख से दे खने लगा और येक ण को पढ़ाई म लगा दया। सबसे
बड़ी मुसीबत तब आन पड़ी, जब नवंबर 2017 म डॉ टर ने दल दहला दे ने वाली बात
बताई क आपके पता को फेफड़े का कसर है और उनके पास यादा समय नह है। यह वह
समय था, जब स वल सेवा मु य परी ा का रज़ ट आ चुका था और सबसे मह वपूण
प -सा ा कार बाक़ था। यह समय अ यंत तनावपूण था, रोज़-रोज़ अपने पता को मरते
दे खना और तैयारी करना बेहद मु कल था। कतु जब अं तम प से मेरा चयन आ तो
उ ह ने ई र को ध यवाद दया और बोले क अब मेरी साधना पूण ई, अब मुझे जीने क
चाह नह । कुछ दन बाद उ ह ने दे ह याग कर दया।
एक वा क़या और ज़ेहन म आता है क एक ने मुझे पहले गत और
जा तसूचक गा लय से बेहद अपमा नत कया था, सेले शन के प ात जब मने उनका पैर
छु आ तो बोले, “बेटा। तूने अपने गाँव का नाम रौशन कर दया।” मेरे लए उनसे सबसे बड़ा
तशोध यही था।
जब मेरे चयन पर सब लोग मुझे साफा बाँध रहे थे तो मेरे ारा कोने म खड़ी
तथाक थत अछू त म हला के पैर छू कर उनको गले लगाना गाँव के क थत उ च वण के लोग
के लए अजीब था। मन-ही-मन उ ह खीझ भी थी, ले कन उस म हला का यह कहना क
“बेटा। आज पहली बार मुझे स मान मला है”, मेरे लए ज़ मेदार स वल सेवक का पहला
आभास था।
‘बीपीएल’, ‘मनरेगा’, ‘उ वला’, ‘ व छ भारत’ आ द योजना का गत प
से लाभ लेना महसूस कराता है क कस कार सरकार के यास लोग के जीवन म
प रवतन ला सकते ह। एक आई.ए.एस. अ धकारी के प म यही यास होगा क येक
वं चत तक इनका लाभ प ँचाने म मदद क ँ ता क उनके सपन को उड़ान मले।
अंत म उन पं य को उ त करना समीचीन होगा, जो सदै व मुझे ेरणा दे ती रह —
जो मु कुरा रहा है उसे दद ने पाला होगा
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जो चल रहा है पाँव म उसके भी छाला होगा,


बना संघष के कोई चमक नह सकता, यार
जो जलेगा उसी द ये म ही तो उजाला होगा ।

नरंतरता सफलता क कुंजी है


दे व चौधरी, राज थान

स वल स वस का सपना भारत क युवा जनसं या के एक बड़े तबक़े म होता है, वैसा


ही कुछ सपना मेरा भी था। राज थान के प मी रे ग तान के पछड़े ज़ले बाड़मेर के एक
गाँव से ारं भक कूली श ा हण क । पताजी अ यापक थे और बेहतर श ा के लए
गाँव से शहर आ गए तथा आगे क कूली श ा शहर म ही ई। 11व से आगे फर से
सरकारी कूल और फर बाड़मेर कॉलेज से ही बी.एस-सी. कया।
यूँ तो स वल स वस का सपना बचपन से ही था, ले कन उसके लए तैयारी नातक
पूण होने के बाद ही ारंभ ई। शु आत म काफ़ क ठनाइयाँ आ ; जैसे या पढ़ना है, या
नह ? लेखन म कैसे सुधार करना है? साथ-साथ अ छा टडी मैटे रयल इं लश म होने के
कारण इं लश को भी अ छे से सीखना हद मा यम के अ यथ के सामने एक चुनौती क
तरह होता है, उसको भी पार कया।
थम यास वष 2012 म दया और ी ल स पास कर लया; ले कन मस नह आ।
अपनी ग़ल तय को सुधारा और 2013 म पुनः यास कया। उस समय ी ल स, मस दोन
पास हो गए, ले कन अं तम प से चयन नह आ। 2014 म अं तम चयन भी हो गया,
ले कन स वस म आई.ए.एस. का जो सपना था, वह पूरा नह आ। फर 2015 म चौथे
यास म आई.ए.एस. बनने का सपना साकार आ।
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शु आती असफलता ने नराश भी कया, ले कन मन म कह -न-कह एक आशा


हमेशा रही क इस बार नह तो अगली बार। ले कन ल य से पहले हार नह माननी है। साथ
ही जब और लोग चय नत हो सकते ह तो म य नह ? य प मुझे अ य नौकरी जैसे वचार
नह आए। पर यू.पी.एस.सी. क अ न तता को दे खते ए अ य नौकरी रखने का वचार
भी ख़राब नह है।
अब समय के साथ यू.पी.एस.सी. अपनी परी ा णाली म नरंतर बदलाव कर रही है।
ऐसे म नये अ यथ भी समय के अनु प अपनी रणनी त म फेर-बदल करते रह। रटने के
बजाय समझने पर यादा यान दे ना और साम यक घटना क पूरी जानकारी रखना ही
सबसे मह वपूण है। जहाँ तक मा यम क बात है, हद म पाठ् य साम ी कम उपल ध है।
ले कन नराश होने क बजाय इन चुनौ तय से पार पाया जा सकता है। वष 2014 के हद
मा यम टॉपर नशांत जैन क इस बात से सहमत होना ज़ री है क जीतने के लए सरे क
लक र को छोटा करने क बजाय ख़ुद क लक र को बड़ा करना मह वपूण है।
अब, जब एक पड़ाव पूरा हो गया है तो भ व य के लए भी ख़ुद को तैयार करना
ज़ री है। जैसा क मेरा कहना है क इस परी ा को पास करना तो मह वपूण है, ले कन
उससे यादा मह वपूण इसके बाद मलने वाली चुनौ तय , समाज और दे श को अपना
योगदान दे ने के अवसर ह। यह को शश हमेशा रहेगी क मेहनत, ईमानदारी व संवेदनशीलता
के साथ काय करते ए दे श और समाज को कुछ दे सकूँ। सभी पाठक से भी नवेदन है क
जो भी प रवतन आप समाज म दे खना चाहते ह, उसक शु आत ख़ुद से ही कर। नै तकता
के साथ हमेशा सकारा मक बने रह और आगे बढ़। आपका जो ल य है, वह आपको ज़ र
मलेगा।

हद मी डयम म पढ़कर बने अ धकारी


गंगा सह राजपुरो हत, राज थान
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म राज थान के बाड़मेर ज़ले का रहने वाला ।ँ मेरा बचपन गाँव म बीता और
हाई कूल तक क पढ़ाई ामीण कूल म ई। प रवार म स वल सेवा म तो कोई नह था,
ले कन कई लोग व भ सरकारी सेवा म थे। 2009 म जब मने दसव लास म कूल
टॉप कया, तो मेरे श क ने मुझे व ान वषय चुनने के लए ो सा हत कया। मेरे
अ भभावक ने शु आत से ही मुझे वतं ता द क म अपनी च का वषय पढूँ ।
इंटरमी डयट म मने ज़ला तर पर छठा थान हा सल कया।
इसके बाद सबने मुझे कहा क आपको कोटा जाकर आई.आई.ट . क तैयारी करनी
चा हए। ले कन मने जयनारायण ास व व ालय, जोधपुर म बी.एस.सी. म दा ख़ला ले
लया। इसके पीछे कारण यह था क अपनी पृ भू म के कारण म सरकारी श ण सं थान
और हद मा यम के साथ यादा सहज था। बी.एस.सी. के अं तम वष 2014 म मने
स वल सेवा परी ा के बारे म सोचा, य क अब तक मुझे समझ आ चुका था क यह सेवा
बेहद व तृत लेटफ़ॉम पर काय करने का अवसर दान करती है। साथ ही, मेरे जैसी
पृ भू म के लोग नथमल जी और कानाराम जी को मने सफल होते दे खा था, तो मेरा
व ास और सु ढ़ हो गया।
बी.एस.सी. करने के साथ मने सी.डी.एस. और अ स टट कमांडट के ए ज़ाम दए,
साथ ही मुझे 2-3 बार एस.एस.बी. इंटर ू दे ने का भी मौक़ा मला, ले कन उसम सफलता
नह मली। ेजुएशन पूरी होने के बाद म द ली आ गया। अ ू बर 2014 म मने न य
कया क अगले वष स वल सेवा परी ा म ह सा लूँगा। इसी दौरान मने जे.एन.यू. म
एम.ए. हद म वेश ले लया और हद सा ह य को वैक पक वषय चुनकर तैयारी शु
कर द । पहले यास म ही ारं भक परी ा उतीण होने से मेरा आ म व ास काफ़ बढ़
गया। ले कन पाठ् य म के पूण नह हो पाने तथा समय बंधन क सम या के कारण म
उ र लेखन अ यास नह कर पाया। इस वजह से म मु य परी ा म महज़ 16 अंक से
असफल हो गया।
थम यास म असफलता से म ब कुल भी वच लत नह आ और मने अगले
यास के लए कमर कस ली। जे.एन.यू. म मेरी क ा के सा थय के सकारा मक सहयोग,
पु तकालय के सा थय के मागदशन और ोफ़ेसस क पढ़ाने क शैली ने मेरी समझ को
वक सत कया, जससे मेरी राह काफ़ सुगम हो गई। सरे यास के लए मेरी अ छ -
ख़ासी तैयारी हो गई थी। साथ ही मेरे एम.ए. हद के सहपा ठय के साथ दे श- नया के
समसाम यक मुदद् पर व थ बहस ने मेरी जानकारी को बढ़ाया और मेरे व को भी
नखारा। इसी का प रणाम था क इस बार मुझे ज़बद त सफलता मली और मने स वल
सेवा परी ा 2016 म ऑल इं डया 33व रक ा त क । मुझे IAS म गुजरात कैडर मला
है।
स वल सेवा परी ा क तैयारी करने वाले परी ा थय को मेरी यही सलाह है क
नकारा मकता एवं डर को अपने ज़ेहन म थान न द। आपक पृ भू म और परी ा का
मा यम आ द आपक सफलता म बाधा नह ह। यू.पी.एस.सी. म सफल होने हेतु अनवरत
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प र म करते रह एवं आ म व ास बनाकर रख। मुझे लगता है क जब म कर सकता ,ँ तो


आप भी कर सकते ह। साथ ही, सम त युवा सा थय से मेरा आ ह है क अपनी सोच को
हमेशा सकारा मक रख। कसी भी कार के बहकावे म न आते ए वतं चतन कर और
अपने े म उ कृ दशन कर। रा का सश करण युवा के सश करण से ही संभव
है।

असफलता से सफलता तक क राह


गौरव सह सोगरवाल, राज थान

भरतपुर ज़ले के गाँव जघीना के खेती- कसानी के दे हाती प रवेश म मेरा बचपन
बीता। बचपन से ही पताजी ने स वल सेवा के त आकषण पैदा कया। ामीण पृ भू म
के कारण स वल सेवा के त मेरा आकषण नरंतर बढ़ता रहा। आमजन क सम या के
समाधान एवं रा - नमाण के प म स वल सेवा मेरे लए एक मशन बन गया था।
मेरी पा रवा रक पृ भू म एक न न-म यवग य ामीण प रवार से जुड़ी ई है। बचपन
से ही कृ ष एवं अ य ग त व धय म मेरा य अनुभव रहा है। पताजी अ यापक थे और
माताजी गृ हणी। हम तीन भाई-बहन ह। बड़ी बहन ने जीव- व ान म पीजी कया है और
छोटा भाई एम.बी.ए. के बाद बगलु म एक ब रा ीय कंपनी म कायरत है। स वल सेवा म
जाने का सपना मेरे साथ मेरे पताजी का भी था। एक सड़क घटना म पताजी के
आक मक दे हावसान के बाद नया काफ़ बदल गई। प रवार एवं आ थक संघष के प म
जीवन के कई सारे उतार-चढ़ाव को दे खा। परंतु स वल सेवा म जाने का सपना अब और
भी यादा ढ़ हो गया। पुणे से इंजी नय रग करने के बाद अपनी व ीय बा यता को पूरा
करने के लए लगभग तीन वष तक नौकरी क । वष 2013 म द ली आ गया।
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संघष के दन म अपनी पढ़ाई एवं पा रवा रक दा य व के साथ सामंज य था पत


करना बड़ा कर रहा। आ या मकता ने मेरा ब त साथ दया। ‘ ीमद्भगवद् गीता’ का
नय मत पाठन एवं इ कॉन के साथ जुड़ाव मेरे लए मागदशक क भू मका म सहयोगी रहे।
पहले यास म मेरा ारं भक परी ा म 1 अंक से चयन क गया, तो वह सरे यास म 1
अंक से मु य परी ा म चय नत नह हो पाया। इन असफलता ने मुझे काफ़ वच लत
कया। परंतु अपने संघष के दन क याद करके और आ या मकता का सहारा लेकर मने
ढ़ संक पत हो फर से तैयारी क । इस दौरान मेरा चयन अ स टट कमांडट के प म
BSF म हो चुका था, अतः रोज़गार क चता अब यादा नह रही। अपने तीसरे यास म
मने मु य परी ा के लए उ र लेखन-शैली पर यान दया और अपनी कमज़ो रय को र
करने का यास कया।
मेरी रणनी त म समाचार-प एक मह वपूण थान नभाते ह। मने आसपास घटने
वाली घटना पर बारीक से अपनी समझ वक सत करने क को शश क तथा अपनी
पृ भू म और अपने अनुभव को भी अपने उ र म स म लत कया, जसके प रणाम व प
मुझे सामा य अ ययन मु य परी ा म बेहतर अंक मले। नबंध के लए समय बंधन व
लेखन-शैली म भी सुधार कया। आ ख़र मुझे IAS म उ र दे श कैडर मला।
आसपास हो रही घटना पर अपनी समझ वक सत कर। मुददे् पर नवाचारी
समाधान एवं य अनुभव को वक सत करके उ र म शा मल कर। महापु ष क
जीव नयाँ एवं आ या मकता आपके व को संतु लत करने म मददगार सा बत हो
सकती ह। ‘ न काम कमयोग’ क वचारधारा को भी वीकार करने क को शश कर।

कसान क बेट का सफ़र :


मुरादाबाद से Oxford होते ए IPS तक
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इ मा अफ़रोज़, उ र दे श

मेरा नाम इ मा अफ़रोज़ है। स वल सेवा परी ा म 217 रक के साथ मुझे भारतीय
पु लस सेवा ( हमाचल दे श कैडर) आवं टत क गई। मेरा घर क़ बा कु दरक , ज़ला
मुरादाबाद म है। नया भर म मुरादाबाद पीतलनगरी के नाम से मश र है। हमारे यहाँ के
नरमंद कारीगर बड़ी मेहनत से ह त श प बनाते ह। मुरादाबाद क ग लय म अपने फ़न म
मस फ़ कारीगर से ‘स टे नेबल ोड ट् स’ का पहला पाठ सीखा।
मेरे पता एक कसान थे। हर साल अ ैल म कूल का नया स शु होता। अ ैल म
ही गे ँ क फ़सल सरकारी लेवी पर दे कर मेरे बाबा, फर फ़ौरन ही शहर जाके मेरी और भाई
क कताब, प सल लाते थे। मुझे MSP का फ़ल फ़ॉम तो नह पता था तब, ले कन मेरी
कताब का बंडल ज़ र आ जाता था।
कभी कसी काम से बाबा अगर ज़ला कल े ट या SDM साहब के कायालय जाते थे,
तो म भी साथ चली जाती थी। गाँव-गाँव से ज़ रतमंद क भीड़ आई होती थी।
म 14 साल क थी जब मेरे बाबा का दे हांत हो गया। मेरी अ मी ने मेरे छोटे भाई क
और मेरी परव रश ख़ुद क । उ ह अ सर सुनना पड़ता था क, “ल डया को इतना सर पे
मत बठाओ। यह तो जाने क चीज़ है, सरे के घर क हो जागी।”
अ मी ने मुझे जीवन म संघष एवं कड़ी मेहनत, लगन एवं अटू ट व ास के ज़ रये
अपने पैर के नीचे क ज़मीन ढूँ ढ़ने क , नरंतर आगे बढ़ने क सीख द । शकायत करने,
क मयाँ नकालने के बजाय व त और हालात क आँख म आँख डालकर मुक़ाबला करना
सखाया। ख़ा मयाँ, चुनौ तयाँ चाह कतनी भी ह , अ मी हमेशा सखाती ह क, तुझे अजुन
जी क तरह सफ़ मछली क आँख दखनी चा हए।
एक बार छा वृ के काम से म कल े ट गई थी। द तर के बाहर खड़े सफ़ेद वद
वाले अदली ने कहा “ कसी बड़े के साथ आओ। ब च का या काम..?” म सीधे अंदर चली
गई। कूल क वद म एक छा ा को दे खकर डीएम साहब मु कुराये, मेरे फ़ॉम पर ह ता र
कया और बोले—“ स वल स वसेज वॉइन करो इ मा!”
द ली यू नव सट के त त सट ट फ़स कॉलेज से मने दशनशा म बी. ए. ऑनस
ड ी हा सल क । जो तीन साल मने सट ट फ़स कॉलेज के ांगण म बताए वो अब तक
क मेरी ज़दगी के सबसे यारे साल ह।
सट ट फ़स कॉलेज म हर शु वार क दोपहर होने वाली दशनशा स म त क
बैठक म मने ख़ुद से पेपर लखकर, वषय व तु पर लाजवाब व ान से शा ाथ करने का
अनूठा अनुभव ा त कया। सट ट फ़स कॉलेज म दशनशा क लास म जैन दशन के
‘अनेकांतवाद’ एवं ‘ यादवाद’ को पढ़ा था। ऑ सफ़ोड यू नयन म वाद- ववाद करते ए,
यहाँ वचार क व वधता म, जीवन शै लय क ब लता म भारतीय दशन को आ मसात
करने का लाभ मला। भारतीय दशन वषय मने कमयोग पढ़ा। कम येवा धकार ते मा
फलेषु कदाचन…यानी आस र हत होकर कम करना चा हए।
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ऑ सफ़ोड व व ालय, इं लड के वु सन कॉलेज से मने नातको र उपा ध ा त


क । नया भर से आए छा से वचार का आदान- दान करना, उनके नज़ रये को
समझना, नया म नत नये नवाचार से ेरणा लेना मने ऑ सफ़ोड यू नयन म सीखा।
उसके बाद यूयॉक सट म काय करने का अनुभव ा त कया।
यूयॉक क चमक-दमक के बीच हमेशा अपन का ख़याल आता था क अ मी वहाँ
कु दरक म अकेली ह, उनको मेरी ज़ रत है। या मेरी श ा इस लए है क वह कसी सरे
मु क क ोथ टोरी का ह सा बने? जब भी म कभी छु ट् टय म घर वापस आती थी, लोग
क आँख मुझे दे खकर चमक जात —“हमारी ल ली जहाज म उड़ के गई थी पढ़ने!” क
शायद मेरी श ा से उनक ज़दगी म कुछ सुकून आ जाए….मने दे श वापस आने का
फ़ैसला कर लया।
अपने भाई के ो साहन पर मने स वल सेवा क परी ा द । स वल सेवा क परी ा
म अपने आस-पास क घटना पर पैनी नज़र रखने से ब त मदद मलती है। पु तकालय/
री डग क जाना अ छा रहता है। स वल सेवा परी ा म मेरा वैक पक वषय दशनशा
था। मने केवल बी.ए. (दशनशा ) म सट ट फ़स कॉलेज म पढ़ गई कताब को दोहराया।
अ यथ अ सर व व ालय म बी.ए. पाठ् य म म पढ़ाई जाने वाली चु नदा मु य कताब
पढ़ने के बजाय तमाम तरह के नोट् स, गाइड बु स का अ बार कमरे म लगा लेते ह।
सट ट फ़स कॉलेज म पहले दन मने कॉलेज के सभागार म मोटे -मोटे अ र म लखा
आ पढ़ा था—“स यमेव वजयते नानृतम” (मु डक उप नषद)। यह कॉलेज म मेरा पहला
पाठ था और हमेशा मुझे रा ता दखाएगा।

पहाड़-सी चुनौ तय से लड़कर बने अ धकारी


कंचन का डपाल, उ राखंड
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श द व भाव का संघष स दय से चला आ रहा है। भाव क सट क अ भ के


लए श द जतनी ऊँची छलांग लगाते ह, भावनाएँ उससे कई गुनी ऊँची द वार खड़ी कर
दे ती ह, श द थक-हारकर चूर हो जाते ह और ‘ य गूँगा मीठे फल को र सया’ वाली बात
कहकर मन को संतोष करना पड़ता है। 31 मई, 2017 का दन मेरे लए कुछ ऐसा ही था,
शाम के लगभग 7 बजे थे, नैनीताल क ग मय क ‘ठं डी हवा’ के बीच UPSC के फ़ाइनल
रज़ ट क PDF म अपना नाम दे खना, सचमुच म अ व मरणीय, अवणनीय पल था। ई र
क अनुक पा, प रजन के आशीवाद व गु जन के सहयोग ने जीवन को एक नया मंच दे
दया था, वष से जस पद क ओर टकटक लगाकर दे खा करते थे, आज वही IPS का पद
अपने हाथ म था।
मेरा ज म 1994 म नैनीताल म आ और शै णक माहौल परंपरा से मलने के कारण
सव े अंक के साथ अपनी कूली श ा पूण क । क ा 10 म रा य वरीयता सूची म
तीसरा थान व 12व म रा य म थम थान ा त आ। उसी वष रा य के त त
पंतनगर व व ालय म बी.टे क. पाठ् य म म वेश लया, वष 2015 म नातक पूरा होने
के साथ ही कै पस लेसमट हाथ म था, जब सभी साथी नौकरी पकड़कर मौज-म ती क
भावी योजनाएँ बना रहे थे, उसी समय मन म एक ख़याल आया, ज म से मृ यु तक क या ा
तो सबको तय करनी है। हमारे इंसान होने क साथकता इसी बात म है क समाज को हम
या स पकर जाते ह। बस यही वचार स वल सेवा क तरफ़ अं तम ेरणा सा बत आ
और कताब क , मागदशन क खोज ने मुझे UPSC के म का यानी क द ली प ँचा
दया।
युवा के मन म UPSC लयर करने के सपन , एक नये कल क उ मीद के अलावा
यहाँ द ली म एक भय अंदर-ही-अंदर सबको खाए जा रहा था, वह था— हद मा यम के
साथ यू.पी.एस.सी का भेदभाव। मुखज नगर प ँचते ही एक बात सबने मन म बैठा द ,
हद मा यम से परी ा उ ीण करना उतना ही मु कल है, जतना कसी बॉलीवुड फ़ म
को ऑ कर से नवाज़ा जाना। इसी भय के बीच कुछ सुझाव मा यम बदल लेने के लए भी
े रत कर रहे थे, हद मा यम का परी ाफल वष-दर-वष ख़राब होता जा रहा था और कुछ
परी ाथ या तो अपने सपन को तलांजली दे ने को मजबूर हो रहे थे, तो वह कुछ इस
पहाड़ सरीखी चुनौती से लड़ने-झगड़ने को भी तैयार थे। इ ह जुझा परी ा थय म से ही
कुछ ‘ करण कौशल, नशांत जैन, ेम सुख डेलू’ बनकर ेरणा के प म भी था पत हो
चुके थे।
बस, ‘दे द चुनौती सधु को, तब धार या, मझधार या?’ और हम भी कूद पड़े इस
‘महासं ाम’ म और सा थय , सच बताना चा ँगा, हद इस पूरी या ा म कमज़ोरी नह ,
ब क एक ताक़त के प म साथ रही।
2016 माच म उ र दे श स वल सेवा ारं भक परी ा, अग त म UPSC स वल
सेवा ारं भक परी ा, सत बर म राज थान व जनवरी-2017 म उ राखंड स वल सेवा
ारं भक परी ा म लगातार उ ीण होता चला गया। उ साह अपने चरम पर था और इसी
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उ साह के बीच दो रा य क मु य परी ा व यू.पी.एस.सी. का इंटर ू दया।


मई 2017 म 263व रक के साथ IPS सेवा क ा त ई, और उस दन उन सारे
भय, आशंका का भी अंत हो गया, जो छोटे शहर के युवा , सापे क प से कम
संसाधन संप े ीय भाषा के परी ा थय को बड़े सपने दे खने से रोकती है। दो रा य
क स वल सेवा क इंटर ू कॉल तथा IPS एक वष के भीतर मलना य द संभव आ,
तो इसका सीधा-सा अथ है क अगर ढ़ न य, कुशल रणनी त व बेहतर मागदशन से
अनवरत य न कया जाएँ तो सफलता न त प से आपके क़दम चूमेगी।
युवा सा थय से यही क ँगा क—
ऊँचाइयाँ अगर बुलंद हो,
तो मौजूद ह रा ते,
हम तो नकलना है बस,
तर क़ के वा ते ।

सर क ग़ल तय से सीखना ज़ री
लखन सह यादव, राज थान

मेरी कूल क पढ़ाई मेरे क़ बे खेरली, अलवर से ही ई। म कूल म व ान वषय का


व ाथ रहा। कूल के बाद मने इंजी नय रग कॉलेज बीकानेर से बी.टे क. कया। बी.टे क. म
मेरा वषय स वल इंजी नय रग रहा। कूल म अ छा व ाथ होने के बावजूद इंजी नय रग
म मेरा दशन औसत से काफ़ कम रहा। मने अपनी इंजी नय रग का 4 साल का कोस 6
वष म कया और आ ख़री तशत लगभग 59% रहा।
मने अपने इस सफ़र क शु आत SSC के MTS परी ा के साथ क । हालाँ क म
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जानता था क इससे अ छा तो म ज़ र कर पाऊँगा। इस लए मने आगे भी परी ा दे ना चालू


रखा। इसी म म कई बार SSC जू नयर इंजी नयर क परी ा पास क । इंटेलीजस यूरो म
ACIO क परी ा म भी सफलता ा त क । इसके बाद मने अपनी पहली नौकरी राज थान
व ुत सारण नगम म जू नयर इंजी नयर के तौर पर क । वहाँ लगभग एक वष के लए
रहा। इसके बाद SSC ेजुएट लेवल क परी ा पास करके मने लगभग ढाई साल तक
इनकम टै स इं पे टर के तौर पर काम कया। इस बीच मेरा राज थान शास नक सेवा म
भी 2 बार चयन आ, ले कन अ छ रक और स वस नह मलने के कारण मने उसे वॉइन
नह कया और आ ख़र म भारतीय शास नक सेवा परी ा 2017 म 565 रक के साथ
चय नत आ और IPS सेवा ा त ई।
इंजी नय रग म ख़राब दशन दे खकर न तो मने ही अपने लए कुछ ऊँचे सपने दे खे थे
और न ही मेरे प रवारजन ने मुझसे कुछ ऐसी उ मीद क थी। सबक बस एक ही इ छा थी
क कसी भी तरह मेरी ड ी पूरी हो जाए और म कोई भी छोटा-मोटा रोज़गार पा लू।ँ
मने पहली बार UPSC के बारे म ठ क से 2012 म जानकारी ा त क और उसके
बाद ही स वल सेवक बनने का वचार मन म आया। ले कन इतनी सामा य पृ भू म और
इस परी ा से जुड़ी अनेक ां तय के कारण मेरी ह मत ही नह थी क म सीधे यही परी ा
ँ । जससे बात क , उसने यही बताया क यह परी ा ब त क ठन है और मेरे जैसे के
लए तो लगभग असंभव है और मने अ ानवश इन बात को मान भी लया। इस लए मने
छोटे तर क परी ा से शु आत क और धीरे-धीरे करके यहाँ तक प ँचा। प ँचने म
सबसे बड़ी सम या सही मागदशन क भी रही। मने जो कुछ कया, लगभग वो सभी अपने
ही अनुभव से कया। हालाँ क मने एक को चग सं थान से सामा य अ ययन क को चग क
थी, ले कन यह ब त नाकाफ़ था।
मुझे तय सफलता मेरे पाँचव यास म मली। 2014 म मने अपनी पहली मु य परी ा
द । कभी-कभी हम दौड़ म शा मल होते ही अपने आप को हारा आ मान लेते ह। ऐसा ही
कुछ मेरे साथ आ। मुझे लगा था क UPSC जैसी परी ा मुझसे पास नह हो सकती। इसी
हार क वीकायता के साथ ही मने अपना मस ए ज़ाम लखा। सामा य अ ययन के चार
प म मलाकर लगभग 26-27 ऐसे थे, जो मने अटे ट नह कए। इसके अलावा
वैक पक वषय म प से जुड़े दशा नदश नह पढ़ने के कारण मुझे ये नह पता था क
कौन-से लखने ह और कौन-से नह । इसके बावजूद जब अंक आए तो वह इतने अ छे
थे क उसे दे खकर म सोचता रह गया क अगर कोई मुझे यह बताने वाला होता क अ छे से
पेपर ँ तो मेरा चयन हो जाएगा तो शायद म उसी वष चय नत हो जाता।
इसके बाद 2015 म म 0.66 अंक से ारं भक परी ा म फ़ेल हो गया। इसका कारण
भी लापरवाही ही थी। को ठ क से नह पढ़ा और इसी कारण कई म ठ क वक प
का चयन नह कर पाया।
इतना सब होने के बाद 2017 म मेरे सामने सब कुछ प था क कन ग़ल तय से
बचना है और कहाँ-कहाँ सुधार करना है। मने पूरा मन लगाकर पढ़ाई क और वैक पक
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वषय पर वशेष यान दया। और आ ख़र म 565 रक के साथ सफल सूची म थान बना
पाया।
मेरी सफलता कोई सही रणनी त या तभा क कहानी नह है, ब क असफलता और
उससे मले अनुभव क कहानी है। एक मेरे जैसे होते ह, जो अपने अनुभव से सीखते
ह। अनुभव से सीखना अ छा होता है, ले कन इसम सम या यह है क आप अपने जीवन के
कुछ अमू य वष बबाद कर दे ते ह। इस लए ज़ री नह क ख़ुद क ग़ल तय से ही सीखा
जाए। जो लोग ग़लती कर चुके ह, हम उनक ग़ल तय से सीख लेनी चा हए। आशा करता ँ
क आपको मेरी ग़ल तय से सीख मलेगी।
अ य थय को मेरी सलाह यही रहेगी क परी ा से जुड़ी ग़लतफ़ह मय से र रह।
अपने आप पर भरोसा कर। चाहे आपका पहला यास हो या आ ख़री, उसे पूरे मन से द।
अपने आप को कसी से कम न समझ। जस मा यम म परी ा दे रहे ह, उस मा यम के लए
बे फ़ रह। ऐसी संगत को याग, जो हमेशा नराशावाद बात करती ह। पढ़ाई के दौरान
सोशल मी डया से र रहगे तो अ छा होगा, परंतु अपने आप पर अ याचार भी न कर। एक
सीमा तक लोग से मल और बात भी कर। य क आपको एक दन या एक ह ते नह
पढ़ना ब क कई महीन तक पढ़ना है। मनोरंजन हम ऊजा दे ता है। सफ़ इकलौता येय
UPSC ही नह हो सकता। कुछ-न-कुछ योजना भी होनी चा हए। म आपको मायूस नह
करना चाहता, पर अ छा योजनाकार वही होता है, जो आगे का आपदा बंधन आज ही
करके चले। म अपने अनुभव से यह बता सकता ँ क तैयारी के दौरान मुझे कभी यह चता
नह ई क य द आईएएस म चयन नह आ तो या होगा। य क मेरे पास एक अ छा
जीवन बताने के लए जैसी नौकरी चा हए, वैसा रोज़गार था।

गाँव के सरकारी कूल से पढ़कर बने अफ़सर


मोह मद मु ताक़, बहार
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बचपन म मने कह पढ़ा था क ‘ ज़द करो, नया बदल सकती है।’ ले कन उस समय


ये मेरे लए मा श द थे। ले कन आज यह एहसास होता है क ये मा श द ही नह ह,
ब क आपके जीवन को प रव तत करने क मता रखते ह। मेरी सफलता क कहानी
काफ़ हद तक इसी ज़द के आस-पास घूमती है।
म एक अ त साधारण ामीण प रवार से ँ। बहार का एक ऐसा गाँव, जहाँ बजली
तक नह थी। मेरी कूली श ा (मै क, इंटरमी डएट) गाँव के ही एक सरकारी कूल से
ई। नातक मने पटना व व ालय से प ाचार के मा यम से वष 2008 म कया।
स वल सेवा का वचार तो इंटरमी डएट के समय ही आ गया था, ले कन कोई
मागदशन दे ने वाला, तैयारी के बारे म बताने वाला नह था। शु आती दौर म प रवार भी इस
े क अ न तता को लेकर च तत था। मेरे साथ पढ़ने वाले अ धकतर म भारतीय
वायुसेना, आम , नौसेन म मै क करने के बाद चले गए। अतः मने भी शु आत म एन.डी.ए.
म जाने का नणय कया। ले कन अँ ेज़ी तो आती नह थी, इस लए पी.ट . म ही असफल
हो गया। इस तरह तयोगी परी ा क शु आत असफलता के साथ ई।
एन.डी.ए. म असफलता ने मेरी ज़द को और भी मज़बूत कर दया। मने तय कया क
मुझे अब स वल सेवा क तैयारी ही करनी है। वष 2009 म 21 साल क उ म स वल
सेवा का पी.ट . दया, वह भी बना मु य परी ा क तैयारी के। थम यास म पी.ट . म
पास भी हो गया। अब तो लगने लगा क म स वल सेवक बन ही गया ँ। कतु यह ब त
बड़ी भूल थी। प रणाम भी तय था। म मु य परी ा म असफल रहा।
सबसे बड़ा आघात तो वष 2011 म सी-सैट के साथ PT म असफलता से लगा। अब
तो चार तरफ़ तनाव, नराशा, वयं के ऊपर व ास का कम होना, अकेले पाक म बैठना
और ख़ुद से बात करना—यही मेरी दनचया बन गई थी। घरवाल क तरफ़ से भी दबाव था
क कोई अ य नौकरी य नह करते।
मेरे प रवारवाल , म व गु जन के नरंतर ो साहन और सहयोग से म इस नराशा
से नकल सका। ख़ैर, मने CPF क परी ा द और पहले यास म मेरी वष 2011 क
परी ा म 121व रक आ गई। इससे मेरा टू टा आ मनोबल व आ म व ास वापस आ गया।
अगले साल फर से यू.पी.एस.सी. क परी ा द । इस साल तैयारी पहले से कुछ बेहतर
थी। अंततः इस साल मेरा चयन आई.आर.एस. के लए हो गया। यह आ य था। एक ऐसी
सफलता, जसका कसी को भरोसा नह था। ले कन मेरी ज़द, कठोर मेहनत, हार न मानने
क ढ़ इ छा, घर वाल का नरंतर सहयोग, म का भरोसा, गु जन का आशीवाद और
अ छे मागदशन ने अंततः मुझे स वल सेवक बना ही दया।
हालाँ क मने यहाँ भी हार नह मानी और नरंतर आगे बढ़ने का यास करता रहा।
इसी के फल व प स वल सेवा परी ा 2015 म एक बार पुनः मेरा चयन आई.पी.एस. के
लए आ है।
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बना कसी को चग के 23 साल क उ म बन IAS


पूजा पाथ, राज थान

मुझे स वल सेवा परी ा 2014 म 163वाँ थान मला। म आई.ए.एस. सेवा के लए


चुनी गई और मुझे राज थान कैडर मला। म अपने माता- पता और पाँच भाई-बहन के साथ
रही ।ँ मेरे पता मे डकल कॉलेज म लाइ े रयन ह, अतः मुझे प रवार म सदै व शै क
वातावरण मला।
दसव क ा तक म थानीय ( हद मा यम) व ालय म पढ़ । उसके प ात् मेरे पता
ने मुझे ड लोमा इंजी नय रग कराने का नणय कया। अतः मने थानीय राजक य
पॉ लटे नक कॉलेज, कोटा म इले ॉ न स एंड क यु नकेशन शाखा म वेश लया।
इसके प ात् मने वष 2011 म जानक दे वी बजाज राजक य क या महा व ालय,
कोटा म बी.ए. म वेश लया। मने थम वष के साथ ही पटवारी क परी ा भी द थी,
जसम म अनु ीण रही। ेजुएशन मने इ तहास, समाजशा व दशनशा वषय से उ ीण
कया। मने बी.ए. तृतीय वष म पुनः पटवारी क परी ा द और उ ीण कया। मुझे पटवारी
के प म वॉइ नग लेटर मला, परंतु मने वॉइन नह कया।
स वल सेवा म आने का वचार मेरे मन म व ालय समय से ही था। मेरे पता का
मानना था क मुझे अपने पैर पर खड़े होना चा हए। वे एक पता और मागदशक के प म
हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे, य क म एक सामा य म यमवग य प रवार से ँ और पाँच
भाई-बहन म पली-बढ़ ।ँ परंतु वे हमेशा मुझे पढ़ने के लए े रत करते रहे।
ेजुएशन के प ात चूँ क म 21 वष क नह थी, अतः मने पहले एम.ए. म
समाजशा वषय के साथ वेश कया। इसी के साथ वष 2013 म मने राज थान क
RAS (Pre) परी ा द । उसी समय से मने सामा य ान से संबं धत तैयारी शु कर द थी।
एम.ए. फ़ाइनल के साथ मने IAS (Pre) 2014 का ए ज़ाम दया। करंट अफ़ेयस के लए म
सबसे यादा यूज़पेपर ( हद ) पढ़ती थी। ‘ तयो गता दपण’ प का म नय मत प से
पढ़ती रहती थी। इसी के साथ सी-सैट के ग णत संबंधी सवाल के लए मने शॉट क
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मेथड् स का योग कया। ी ल स के तुरंत बाद मने अपने वषय पर फ़ोकस कया, ता क
य द ी ल स लयर न हो तो एम.ए. फ़ाइनल के लए समाजशा तैयार हो सके।
अ ू बर म ी म चयन हो जाने के बाद मने चार सामा य ान के पेपस पर यान
दया। इन सबके साथ प काएँ और यूज़पेपस के ारा नवीनतम जानका रयाँ, दे श- नया
म होने वाली घटनाएँ, उन पर वशेष के लेख आ द के ारा राय बनाने म मदद मली।
नबंध के लए मने अलग से कसी वशेष टॉ पक पर तैयारी नह क ; परंतु कसी भी
वषय पर लेख लखने का तरीक़ा मवार होना चा हए, यह ‘ तयो गता दपण’ के लेख से
सीखा। मने कसी भी वषय क शु आत व भ पहलू और अंत म न कष लखते ए
नबंध लखना सीखा।
इंटर ू के लए मने करट अफ़ेयस पर सबसे यादा यान दया। व भ मुदद् पर
या और कैसे राय रखी जाए, इस पर ै टस क । य प मने कसी सं थान म कोई मॉक
इंटर ू नह दया, परंतु अपने पता के सम सा ा कार क ै टस क । मेरा सा ा कार
हेमचंद गु ता सर के बोड म था। बोड ने मुझसे मेरे DAF फ़ॉम, गुजर आंदोलन, रा ीय
या यक आयोग, बाल अपराधी क उ कम करने, सी रय स का समाज पर भाव,
26/11 के आतंक हमले के समय मी डया क भू मका एवं क मीर सम या जैसे मुदद् पर
कया। मेरा सा ा कार पूण प से हद म आ। इस कार मने पूरी तैयारी म बग़ैर
कसी को चग के सी.एस.ई. 2014 परी ा का च पूरा कया।

ड य और नौक रय से स वल सेवा तक का सफ़र


द प कुमार, ह रयाणा

मेरा ज म गाँव सरड़-अलीपुर, हसार (ह रयाणा) म एक साधारण म यवग य प रवार


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म आ। गाँव से ही दसव क ा पास क । उन दन मागदशन का अ यंत अभाव था। बस,


जो ब चे अ छे नंबर से पास होते थे, वे साइंस ले लेते थे। मने बारहव नॉन-मे डकल
डी.ए.वी. कॉलेज, हसार से पास क और फर बस पढ़ता ही गया—बी.एस-सी., एम.एस-
सी., बी.एड., एम.एड., एम. फल. और पी-एच.डी.।
जब भी थकान होती तो माँ क कपड़े सलती मशीन क आवाज़ कान म गूँजती, तो
पापा का दन भर के काम के बाद रात के दो-दो बजे तक ेस करना। एम.एड. के बाद मने
सर वती कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, हसार म बतौर ा यापक सेवा शु क । वष 2011 म
र ा मं ालय म से शन ऑ फ़सर और अगले साल आयकर वभाग म इं पे टर के पद पर
नयु आ। अन य म संजीव क ेरणा से स वल सेवा क तैयारी करने का मन आ तो
र ा मं ालय म ही मेरे म अजीत बसंत, आई.ए.एस. क सफलता ने इस सेवा को एकमा
ल य बनाने का साहस दया।
मुझे लगता है क इस परी ा क सफलता म सबसे बड़ी भू मका आपक लगन, धैय
और उ चत मागदशन क होती है। मेरी रणनी त म समय बंधन एक मुख घटक रहा है।
अपनी ाथ मकता को तय करना और फर अनुशा सत ढं ग से तैयारी करना इन सेवा
क सफलता का मूल मं है। यह सफलता मने अपने चौथे यास म अ जत क । मुझे IRS
मला है।
जब सफलता मल जाती है तो पता नह चलता क कस यास क कौन-सी मेहनत
काम आई। वा तव म, यह एक सं चत तैयारी का प रणाम होता है। आप अपनी ग़ल तय से
सीखते ह। अ छा है, अगर सर क ग़ल तय से सीखकर अपनी सफलता- ा त म
लगनेवाले समय को कम कर ल।

‘ माट टडी’ बनाएगी सफल


रजत सकलेचा, म य दे श
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जसने भी ‘जब वी मेट’ दे खी है, वे मेरे शहर रतलाम से प र चत ह गे। हालाँ क यह


एक फ़ म है और रतलाम का वणन तो उसम और भी यादा फ़ मी है। सच बात तो यह है
क रतलाम सेव, नमक न और सोने के शु कला मक आभूषण के लए दे श भर म स
है और यह से मने अपनी व ालयी श ा पूरी क ।
यह मेरे पताजी भारतीय टे ट बक म कायरत ह और घर म म मी, छोटा भाई एवं
दादा-दाद भी ह। छोटे शहर म जनमे लड़के भी पराए धन क तरह होते ह और एक-न-एक
दन घर छोड़कर लगभग हमेशा के लए ही नकल पड़ते ह, पढ़ने के लए, कुछ करने के
लए। मने भी इंदौर से स वल इंजी नय रग क और बचपन से स वल सेवा म आने के सपने
को पूरा करने द ली आ गया। शु आत वष 2012 से क थी और हर बार एक क़दम आगे
बढ़ते ए पहली बार ी, सरी बार मस और तीसरी बार अंततः आई.पी.एस. म चयन आ।
मन म स वल सेवा का वचार बचपन से था। कई कारण थे। सबसे बड़ा था मेरा
बचपन से अख़बार पढ़ने का च का। शहर, दे श और नया क हर ख़बर पढ़ते-पढ़ते ही
सामा य ान बढ़ता गया। रोज़मरा क मु कल से पाला पड़ा और समझ आया क कुछ
बेहतर करना है समाज के लए, प रवार के लए तो यह सव े तरीक़ म से एक है।
सफलता अजन म सफ़ क ठन प र म ही नह , अनेक और उ ेरक भी लगते ह।
भा य के अलावा प रवार एवं म का नरंतर साथ और कभी भी असफलता पर नराशा
नह , ब क और भी यादा जोश से तैयारी म जुट जाना क चलो, बस, अब कुछ ही अंक
का फ़ासला और बचा है। यह वचार ही मुझे इस मुक़ाम तक ले आया है। स वल सेवा
परी ा क तैयारी म सबसे आव यक है आपका अपने आसपास घ टत होने वाली चीज़ के
बारे म ान और व ेषणा मक कोण। इसे ा त करने के लए दै नक अख़बार, कुछ
सा ता हक प काएँ, वक पी डया, quora वेबसाइट और गूगल अ यंत मददगार ह। साथ
ही इसी ान को बेहतर तरीक़े से तुत करने के लए Insightsonindia और IASbaba
जैसी वेबसाइट् स पर आप ो र अव य लखना शु कर। मने वयं अ धकांशतः
ऑनलाइन ही पढ़ा है, य क मुझे को चग के नोट् स बो झल लगते थे। फर भी, मेरा मानना
है क अगर समझदारीपूवक कुछ नोट् स को पढ़ा जाए तो वे आपका ब मू य समय बचाते
ही ह। मूल सार यह है क एक ही वषय के लए अनेक ोत न रख और जो भी पढ़, उसका
रवीज़न करते रह।
आप 7-8 घंटे भी रोज़ त मयता से पढ़गे तो पया त है, ऐसा मेरा मानना है। कभी-कभी
पढ़ने क बजाय को शश कर क नरंतरता बनाए रख। आज जब हमने बस, परी ा पास ही
क है, तभी से च ँओर इतना स मान पाया है क उसे श द म बयाँ करना मु कल होगा।
मन म कुछ करने का ज बा हो, जीवन के अथ ढूँ ढ़ना हो, दे श के लए कुछ करते ए ख़ुद के
भी उ थान का यास करना हो तो उसका एक रा ता शायद इन सेवा से भी गुज़रता है।
शायद ओशो का मो यह न हो, पर गांधी और टे रेसा का मो तो इसी रा ते, समाज क
बेहतरी का यास करते ए ही मलता है।
उद्दे य नेक हो, यास म ईमानदारी हो और सही राह पकड़ी हो तो सफलता अव य
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आपके पग चूमेगी। आज जब सबकुछ इंटरनेट पर लगभग मु त ही उपल ध है तो बस आप


ही ह, जो ख़ुद को सफल होने से रोक सकते ह, वरना तो पूरा संसार ही आपके हाथ म है।

ट चर, बीडीओ, एसडीएम और फर आई.ए.एस.


राज प सया, राज थान

भारत के म थलीय दे श राज थान के सु र उ र म पा क तानी सीमा के पास बसा


एक छोटा-सा क़ बा ीकरणपुर। इतना छोटा क यहाँ के नवा सय के सपने भी ब त छोटे
से ह। इ ह म से म एक ।ँ आसपास का माहौल कृ ष का था तो पढ़ाई से हमेशा र भागते
थे, जसका माण यह है क सेकडरी क वा षक परी ा के दन हम सभी दो त बेर तोड़ने
गए थे। इस तरह श ा के त जाग कता का अभाव था।
म जब कसी सरकारी कमचारी को दे खता तो यह सोचता क हे ई र! मुझे भी
पटवारी, ाम स चव, लक, अ यापक आ द बना दे । म क ा म हमेशा औसत दज का रहा
और कभी सपने म भी नह सोचा क यह मुक़ाम मेरे लए बना है। मने बी.कॉम. कया तो म
नजी े म जाने का इ छु क था। मने एम.कॉम. और सी.एस. के लए एड मशन ले लया
था। तब मेरी मुलाक़ात संयोगवश बलकरण सर से ई। उ ह ने मुझे बताया क य द बी.एड.
कर ल तो सरकारी अ यापक बना जा सकता है। इस लए मने इन दोन को छोड़कर बी.एड.
क । इसके तुरंत बाद म सरकारी अ यापक बना। उस दन मेरी ख़ुशी का कोई ठकाना नह
था। उस दन हमारे घर और न नहाल म दावत द गई; य क न नहाल-द दहाल के कुल 15
ब च म सरकारी नौकरी पाने वाला म थम ब चा था। इस सफलता के बाद मेरे कुछ
अ यापक ने मुझे े रत कया और सफलता को नये पंख लगे। इसके बाद मने अ यापक
का दो वष का ोबेशन पूरा कया और आर.ए.एस. क तैयारी के लए जयपुर आ गया।
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उस समय ेरक वचार के साथ-साथ कुछ नराश व हतो साही य ने मुझसे


कहा क यह परी ा ब त क ठन है। तु हारी तरह जयपुर हर वष सैकड़ अ यथ तैयारी के
लए आते ह और एक-दो वष म तैयारी करके चले जाते ह। मुझे भी इन वचार से हताशा
ई। कतु मुझे एक बात पता थी—‘कम येवा धकार ते मा फलेषु कदाचन ।’ मेरी इ छा थी
क बस, एक बार आर.ए.एस. परी ा म पास होकर इं पे टर ही लग जाऊँ। कतु नय त को
कुछ और ही मंज़ूर था। म आर.ए.एस. के थम सा ा कार और ले चरर के सा ा कार म
असफल रहा। इस पर मेरे म ने मुझसे कहा, “य द आज तु हारे साथ अ छा नह हो रहा
तो याद रखो क आगे ब त अ छा होने वाला है।” बस, यही सोचकर म अपनी पूव म रही
क मय को सुधारकर दोगुनी मेहनत के साथ जुट गया क य द चयन नह आ तो करने
वाले ताने मारगे क ‘बन गया न एस.डी.एम.’।
मन म आशा थी क मेहनत का फल अव य मलेगा। इसी आशा व व ास का
प रणाम रहा क म सरी बार बी.डी.ओ. और तीसरी बार एस.डी.एम. बना। इस बार मुझे
अटू ट व ास आ क म आई.ए.एस. भी बन सकता ँ। कतु आर.ए.एस. क े नग, फर
पो टं ग और आई.ए.एस. क परी ा म लगातार चार असफलता के बाद मेरे मन म यह
धारणा बल ई क मेरा ल य अब पूरा नह होगा और म आर.ए.एस. ही र ँगा।
इसी दौरान घन याम मीणा और अ नता यादव (अब दोन हमसफ़र ह और
आई.ए.एस. भी) का साथ मुझे मला तो सपने फर मचलने लगे। म और घन याम दोन
ऑ फ़स के बाद शाम को 6 बजे से लेकर रा 12 बजे तक नय मत तैयारी करते और
सोचते क भगवान् हमारा चयन IRS तक तो करवा दे ना। दोन के सहयोग और पर पर
तैयारी का भाव इतना अ धक आ क दोन एक साथ आई.ए.एस. बने, जो असंभव-सा
था। इसके बाद मेरी एक दशक क अथक-अनवरत मेहनत सफल ई। इस तरह मेरी
सफलता क या ा म उतार-चढ़ाव क पगडंडी ब त लंबी और संघष भरी रही। ले कन अंत
भला तो सब भला।
आज म गव के साथ कह सकता ँ क म भी ‘भारतीय शास नक सेवा’ का सद य
।ँ कभी हार न मानकर अजुन क तरह केवल मछली क आँख को ही ल य मानकर य द
धैय, व ास और कठोर मेहनत के साथ तैयारी कर तो सफलता न त ही नह , सु न त
है। म कहना चा ँगा क ‘मने अपनी तैयारी के लए उन पल को खो दया, जनके लए लोग
जया करते ह।’
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मुसीबत और अभाव को हराकर पाई मं ज़ल


रतन द प गु ता, उ र दे श

मेरा नाम रतन द प गु ता है। मै मूलतः उ र दे श के गो डा ज़ले के एक छोटे से क़ बे


नवाबगंज का रहने वाला ँ। ारं भक श ा मने एक थानीय व ालय से ा त क । पता
जी क एक छोट -सी कान थी और माता जी एक गृ हणी। तीन भाई बहन म म सबसे बड़ा
।ँ
मेरा बचपन तो ठ क रहा ले कन जैसे-जैसे म बड़ा आ, घर क आ थक थ त और
मेरी पढ़ाई का तर दोन ही गरता गया। 10व म मुझे मा 66 तशत अंक मले, 11व म
फ़ेल होते-होते बचा और 12व म सफ़ 51 तशत से ही संतोष करना पड़ा।
जीवन का यह दौर बेहद नराशा से भरा आ था। घर क आमदनी का एकमा
ोत पता जी क कान बंद हो चुक थी। कॉलेज म दा ख़ला लेने के पैसे नह थे, घर म
बजली का कने शन कट चुका था और दो जून के भोजन क सम या उ प हो गई थी।
मुझे कुछ भी समझ नह आ रहा था क घर का ख़च कैसे चलेगा।
कुछ महीने यास करने के बाद मुझे 100 पये त माह पर एक ट् यूशन मल गया।
ले कन ये 100 पये मेरे जीवन को बदलने वाले सा बत ए। मुझे याद है क पहली बार
इ ह पैस से मने ‘ तयो गता दपण’ नामक मा सक प का ख़रीद थी जसम स वल सेवा
म चय नत अ य थय के सा ा कार का शत ए थे। सा ा कार पढ़कर मेरे मन म आस
जगी, मुझे लगा क अगर म भी मेहनत क ँ तो मेरा भी जीवन बदल सकता है।
और इस तरह शु आ मेरा यूपीएससी ेम। मने न य कया क म भी पढूँ गा।
कॉलेज क फ़ स दो त ने भर द । मने भी एक थानीय व ालय म 600 पये त माह
पर अ यापन शु कर दया। घर क आ थक थ त को सुधारने के लए पाट टाइम म
सड़क के कनारे कभी मोमब याँ बेची तो कभी झंडे बेचे। रात को समय नकालकर
पढ़ता रहा।
इसी बीच मेरा चयन पहले टे ट बक ऑफ़ इं डया और फर एस. एस. सी. के मा यम
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से अकाउंटट के पद के लए हो गया। मुझे लगा क अब शायद स वल सेवा क राह आसान


हो जाएगी। ले कन ऐसा आ नह । अपने पहले यास म म मु य परी ा पास नह कर
सका, अगले वष एक अ त गंभीर वा य सम या के चलते ारं भक परी ा भी उ ीण नह
कर सका।
मुझे लगा क शायद व अधूरा ही रह जाएगा। बीमारी के चलते ना तो म ऑ फ़स का
काम ठ क से कर पाता था और ना ही पढ़ाई। इन घोर नराशा और असफलता के ण म
भी मेरा प रवार, मेरे म और मेरे सहकम मेरा उ साह सदै व बढ़ाते रहे। म अपने तीसरे और
चौथे यास म सा ा कार से बाहर हो गया। अब तक म बलकुल नराश हो चुका था,
ले कन मेरी छोट बहन बार-बार मुझसे कहती थी क भैया आपका सले शन ज़ र होगा
और मुझे ो सा हत करते ए कहा करती थी क—
“को शश कर हल नकलेगा
आज नह तो कल नकलेगा
अजुन के तीर सा सध,
म थल से भी जल नकलेगा।”
और मेरा आ म व ास वापस आ जाया करता था। अंततः मने अपने 5व यास म
सफलता ा त कर ही ली। वतमान म म भरतीय रेल प रवहन सेवा (आई.आर.ट .एस.) का
अ धकारी ।ँ
अंत म यही कहना चा ँगा क यह केवल आपके ान क ही नह ब क आपके धैय,
संघषशीलता और संयम क भी परी ा है। आप जब इस अ न म जलगे तो खरा सोना
बनकर नकलगे। कसी भी प र थ त म अपने आप को वच लत न होने द और जब भी
वच लत ह तो मन ही मन गुन-गुना ली जए—
“वह पथ या, प थक कुशलता या
य द पथ म बखरे शूल ना ह ,
ना वक क धैय परी ा या
य द धाराएँ तकूल ना हो।”
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मेहनत कभी थ नह जाती


स चन जैन, उ र दे श

यू.पी.एस.सी. क स वल सेवा परी ा 2015 म मेरी ऑल इं डया 286व रक आई


और आई.आर.एस. अलॉट आ। म प मी उ र दे श के बागपत ज़ले के क़ बे बड़ौत का
रहनेवाला ँ। मेरे पता अकाउंटट ह और माँ होम मेकर ह। मने अपनी पढ़ाई अपने होम
टाउन के हद मी डयम कूल से क । म शु से ही ग णत म अ छा था, इस लए मुझे
इंजी नय रग म आई.ई.ट ., लखनऊ म दा ख़ला मल गया। हालाँ क वहाँ शु आत म मुझे
तमाम परेशा नयाँ झेलनी पड़ , ख़ासकर अँ ेज़ी और कं यूटर सीखने म। कपस लेसमट के
ारा मुझे व ो, हैदराबाद म नौकरी मल गई; हालाँ क वहाँ पर वक ेशर ब त यादा था।
इसी दौरान मेरे मन म ख़याल आया क जब म इतनी मेहनत कर सकता ँ तो य नह
भारत क बे ट जॉब के लए तैयारी क ँ ।
उसके बाद मने नौकरी छोड़कर द ली म स वल स वस क तैयारी शु कर द । अपने
पहले ही यास म मेरा पी.ट . लयर हो गया और मुझे लगा क म सातव आसमान पर
प ँच गया ँ। ले कन उसके बाद मेरी असफलता का सल सला शु हो गया। म लगातार
चार बार मु य परी ा म असफल आ और मेरे चार यास ख़ म हो गए।
क़ मत से मुझे यूनाइटे ड इं डया इं योरस कंपनी, इंदौर म नौकरी मल गई थी। उस
नौकरी म मुझे पढ़ने के लए काफ़ समय मल जाता और पैसे क सम या भी र हो गई।
इसके साथ ही मने सुबह और शाम स वल के टू डट् स को पढ़ाना भी शु कर दया।
को चग दे ने के दौरान मने सभी अ छ कताब से अ छे नोट् स बना लए। आ ख़रकार एक
दन ख़बर आई क सरकार ने स वल सेवा परी ा म दो यास बढ़ा दए ह। यह ख़बर सुनते
ही मने ट चग रोक द और नौकरी से छु ट् ट लेकर दोबारा द ली आ गया। इस बार मेरी
मेहनत ने रंग दखाया और यू.पी.एस.सी. 2014 म मुझे ऑल इं डया 714व रक मली।
ले कन मने ह मत नह हारी और अपने आ ख़री यास म 286व रक मली। मेरी यह या ा
काफ़ मु कल रही, ले कन इसने मुझे काफ़ कुछ सखाया।
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स वल सेवा परी ा क तैयारी कर रहे अपने सा थय से म यही कहना चाहता ँ क


टडड कताब को कम-से-कम तीन बार प ढ़ए और रोज़ाना लखने क तैयारी क जए।
यह सोचने म अपना समय न मत क जए क कौन-सी को चग बे ट है, कौन-सी कताब
बे ट है, कौन-सी वेबसाइट बे ट है और कौन-सा यास बे ट है। इन चीज़ पर शु आत म
रसच करने के बाद अपने ऑ शनल स जे ट क भी तैयारी शु कर द जए और रोज़ाना
सोने से पहले कुछ नोट् स बनाने क आदत डाल ल। सोचना बंद क जए और काम करना
शु क जए। अगर आप ईमानदारी से यास करगे तो यक़ न मा नए क सफलता र नह
है।

बचपन म आँख खोकर भी,


मजबूरी को बनाया अपनी मज़बूती
सतदर सह, उ र दे श

मेरा ज म प मी उ र दे श के अमरोहा ज़ले के एक ामीण े म आ। जब म


क़रीब डेढ़ साल का था, तो नमो नया बीमारी म एक ग़लत इंजे शन दए जाने से मेरी आँख
हमेशा के लए चली ग ।
बचपन म म को शश करता था क म अपनी उ के ब च को उनके खेल म हरा सकूँ।
इस तरह म अपनी हीनता के असर को कम करने क को शश करता था। मेरे भीतर
असीम ऊजा हलोरे मार रही थी और म भी बलकुल अपने सा थय क ही तरह पढ़ना और
लखना चाहता था। म उ ह वणमाला और पहाड़े दोहराते ए सुनता और उनसे पहले इन
चीज़ को याद कर लेता।
खेलते व त भी मेरे ये दो त मेरी मदद कया करते थे। कभी आवाज़ करने वाली बॉल
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के सहारे म केट खेलता तो कभी मुझे कबड् डी या दौड़ का रेफ़री बना दया जाता ता क
म उनके झगड़े नपटा सकूँ। इस सब के दौरान मने हमेशा यह महसूस कया क ब च का
रवैया बड़ क अपे ा यादा सहयोगा मक होता है।
मेरे माता- पता मेरी पढ़ाई को लेकर ब त च तत रहते थे। मेरी म मी को कभी पढ़ने-
लखने का मौक़ा नह मला और मेरे पापा बस पाँचव क ा तक पढ़ सके। उ ह ऐसा कोई
तरीक़ा मालूम नह था जससे एक बा धत ब चे को पढ़ाया जा सके। एक दन मेरे
द ली म नौकरी करने वाले एक ताऊ जी डीट सी क बस म या ा कर रहे थे। उ ह ने एक
ने हीन लड़के को हाथ म एक घड़ी पहने दे खा, जो घड़ी को छू कर व त बता रहा था। मेरे
ताऊ जी यह दे खकर च के और उ ह ने उससे पूछ-ताछ क । इस तरह वह ने हीन ब च का
एक कूल ढूँ ढ़ पाए और यह मेरी ज़दगी का एक ‘ट नग वाइंट’ बन गया।
इस कूल ने मेरी ज़दगी बदल द । इस कूल म तकनीक का योग कर पढ़ाई को
आसान बनाया जाता था। मने पहले ेल पढ़ और फर क यूटर पर काम कया। म
रकॉडड कताब के ओ डयो ख़ूब सुनता था। मेरे कूल ने मुझे आ म व ास और
आ म नभरता सखायी और सखाया क ‘कुछ भी नामुम कन नह है।’
आज जब म मुड़कर दे खता ँ तो पाता ँ क हमारी ज़दगी म छोट से छोट घटना
बड़ा बदलाव ला सकती है। न मेरे ताऊ जी उस दन उस लड़के को ेल घड़ी पहने दे खते
और न मुझे कभी मेरा लाइंड कूल मलता। आज म एक 27 साल का ने हीन कसान
होता, जो ख़ुद को अपने सा थय के सामने माट दखाने क को शश कया करता था।
जब म बारहव म था, तो मने द ली यू नव सट के सट ट फ़ंस कॉलेज के बारे म सुन
रखा था। म उस कॉलेज म वेश लेना चाहता था और आ ख़रकार मेरा उसी कॉलेज म वेश
हो गया। मेरा कूल एक हद मी डयम कूल था, जब क मेरा कॉलेज पूरी तरह अँ ेज़ी
मी डयम। मुझे इं लश यादा नह आती थी। जतनी दे र म म अपने श क के कहे एक
वा य का मतलब समझ पाता, उतने म तो वे श क पाँच वा य और बोल दया करते थे।
मने इं लश बोलने क को शश क तो ब त से दो त ने मेरा मज़ाक़ उड़ाया। मेरे कुछ दो त
ने सलाह द क म ये कॉलेज ॉप कर कसी हद मी डयम कॉलेज म वेश ले लू।ँ पर म
वह पढ़ना चाहता था।
इस सम या से नपटने के लए मने एक तरीक़ा नकाला। मने NCERT क कताब
इं लश म डाउनलोड क । ये कताब मने हद म पढ़ रख थ , अब मने ये कताब (तीसरी
क ा से लेकर बारहव तक) इं लश म पढ़नी शु क । जैस-े जैसे म इन कताब को पढ़ते-
पढ़ते बारहव क इ तहास क कताब तक प ँचा, मने पाया क मुझे लास के ले चर
समझ म आने लगे थे। श क भी अब मेरी शंसा करने लगे।
मने जेएनयू से राजनी त और अंतररा ीय स ब ध म एम.ए. कया। म हमेशा एक
ोफ़ेसर बनना चाहता था। मुझे 2015 म एक मौक़ा मल भी गया। मुझे ी अर बद कॉलेज
म एड हॉक अ स टट ोफ़ेसर चुन लया गया। तब से अब तक म वहाँ पढ़ा रहा ।ँ पढ़ाना
मेरा पसंद दा काम है और म इसे एंजोय भी कर रहा था।
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इस बीच लगा क ज़दगी म कुछ अधूरापन है। मुझे महसूस आ क मुझे अपने लए
एक यादा ापक पहचान क ज़ रत है, जससे म चीज़ म सकारा मक बदलाव ला
सकूँ। मने बचपन से वकलांगता के बारे म तमाम पूवा ह, प पात और ट रयो टाइप दे खे
थे, ज ह म तोड़ना चाहता था। तो मने स वल सेवा क परी ा द ।
पहले यास को ग भीरता से न लेने के कारण असफल रहा। सरे यास म काफ़
बीमार रहने से नुक़सान आ और इंटर ू कॉल पाने से 9 अंक से चूक गया। तीसरे यास
म सब ठ क रहा और 714व रक मली। अब मुझे लगता है क मुझे बेहतर रक मल सकती
थी। इस लए, अब पूरी तरह सम पत होकर दोबारा यास क ँ गा।
म आपसे यही क ँगा क हम सबक कुछ क मयाँ और सीमाएँ होती ह। पर उ ह
अपनी राह म बाधा न बनने द।
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असंभव को कर दखाया संभव


शैल बाम नया, राज थान

मेरे पताजी राजक य कॉलेज, करौली (राज थान) म वन प त- व ान के ले चरर ह


और माँ गृ हणी ह। घर म चार भाई-बहन (दो बहन एवं एक छोटा भाई) म म तीसरा ँ। मेरी
एम.एस-सी. तक क पढ़ाई करौली ज़ले म हद मा यम से ही ई। मने कभी अँ ेज़ी क
उपयो गता पर यान भी नह दया। अँ ेज़ी से सामना सीधे स वल सेवा म ही आ। पढ़ाई
के दौरान आ थक प से तो वशेष परेशानी नह ई, य क पताजी सरकारी सेवा म थे।

क रयर के प म नातक के दौरान पताजी ने मुझे स वल सेवा म आने के लए


े रत कया। इस लए मने बी.एस-सी. के बाद लोक शासन से एम.ए. कया। तब लोक
शासन वषय स वल सेवा म अ यंत लोक य वषय था। ऐसा मने सुना था। चूँ क दो
वैक पक वषय चुनने थे, इस लए मने बॉटनी से भी एम.एस-सी. कर लया।
स वल सेवा के दौरान असफलता भी मल सकती है, इसे यान म रखकर मने दोन ही
वषय से नेट भी कया, जससे ले चरर के प म मेरे पास एक वक प हमेशा था। साथ म
म एस.एस.सी., बक और आर.पी.एस.सी. क परी ाएँ भी दे ता रहता था। उनम मेरा चयन
भी आ। इसके अलावा, सबसे मह वपूण यह था क म असफलता के समय वयं को ख़ुद
ही े रत करता था क मुझम मता है स वल सेवा पास करने क और म कर सकता ।ँ
मेरे माता- पता और भाई-बहन ने भी मुझे हमेशा े रत कया तथा असफलता के समय
हताश नह होने दया। स वल सेवा म मेरा यह सातवाँ यास था।
शु म बॉटनी एवं लोक शासन वषय को वैक पक वषय के प म रखा था। वष
2015 म वन प त व ान को चुना और मुझे 249 अंक मले। य प मुझे मालूम था क म
वन प त व ान म अ छा ँ, ले कन मेरे मन म कह -न-कह ऐसी आशंका थी क बॉटनी
जैसे वषय केवल इं लश मी डयम के अ य थय के लए ही ह, जो क शायद मेरी सबसे
बड़ी ग़लती भी थी। इस वष मने अपना वैक पक वषय लोक शासन से बदलकर
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वन प त व ान लया तथा सफलता हा सल क ।


चूँ क वन प त व ान म हद मा यम म कोई भी को चग, नोट् स एवं पु तक स वल
सेवा क तैयारी के लए उपल ध नह ह, अतः मने नातक तर क हद मा यम क पु तक
से वयं के नोट् स बनाने शु कए। ले कन उनम से केवल 30-40 तशत सलेबस को ही
पूरा कया जा सकता था, इस लए मने अ य टॉ प स के लए ऑनलाइन ढूँ ढ़ना शु कया
तथा जस कसी भी वेबसाइट पर जो भी कुछ मलता, उसका हद अनुवाद करके उसी
व त नोट् स बना लेता था। इसके अलावा, मने मुखज नगर म इवो यूशन को चग के नोट् स
बाज़ार से ख़रीदे तथा बचे ए टॉ प स के नोट् स उनके हद अनुवाद करके तैयार कए। इस
सबके दौरान मेरे पताजी (जो ख़ुद बॉटनी के ट चर ह) ने मेरी ब त मदद क ।
इस तरह मने अं तम समय म रवीज़न के लए वन प त व ान के सं त नोट् स
केवल तीन र ज टर म हद म तैयार कए, ता क सब कुछ अ यंत कम समय म परी ा के
दौरान पूरा कया जा सके। इन सं त नोट् स ने मुझे परी ा म सफलता दलाने म अ यंत
मह वपूण भू मका नभाई।
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ज़दा दली और ज बे से नकली सफलता क राह


सुक त माधव, बहार

हाफ़ पट और मटमैला बुशट पहन धूल उड़ाते ए मवे शय को चरते जाते दे खना या
सबके साथ बस खेलते रहना। कभी पुरानी कताब के ढे र से कोई कहानी क कताब ढूँ ढ़
नकालना और धूल साफ़ कर एक बार म पढ़ जाना। कभी कट पतंग के पीछे भागना, कभी
गौरेया का पीछा करना। मछली पकड़ना, बेर तोड़ना, कलेवा लेके खेत पे बाबा के पास
जाना और मौक़ा मलते ही खेत के ट् यूबवेल पे नहाना। झोला लेके कूल जाना, बोरे पे
बैठना और अं तम घंट बजने का इंतज़ार करना। गरमी म खुले आसमान के नीचे तारे गन
सोना, बा रश म भीगना और खेलना, ठं ड म पुआल क गम म ब तर बना लेना और उन द
रात म बड़े-बड़े सपने दे खना। कुछ ऐसा सुनहरा था मेरा बचपन।
दे खते-दे खते बचपन बीत गया और नातक और फर MBA भी हो गया। 2010 म
MBA पूरा करते ही कोल इं डया ल मटे ड म नौकरी लग गई। 2010 एक और वजह से
यादगार साल रहा। इसी साल मेरे पताजी क नौकरी भी माननीय सु ीम कोट के आदे श से
बहाल ई, 22 साल क लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद। बहरहाल इस 22 साल के संघष ने
काफ़ कुछ सखाया-बताया। माता- पता ने खेती कसानी क , अभाव दे खे, मु कल व त
बताया, ले कन हम हमेशा बड़े सपने दे खने को े रत कया।
म बहार के एक ज़ले जमुई के एक गाँव मलयपुर से ँ। बहारी होने के नाते स वल
स वस के बारे म ब त सुन रखा था। मेरे पताजी हमेशा से ये चाहते थे क म UPSC ँ और
लोक सेवा के े म आऊँ, हालाँ क म अपने आप को औसत छा मानते ए इस प रचचा
से र रखने क को शश करता था।
MBA के बाद कोल इं डया ल मटे ड क अ छ नौकरी। शायद जतना मने सोचा था
या जतना म अपने को यो य मानता था, उस से बेहतर। म ख़ुश था और इसी तरह दन,
महीने और कुछ साल बीत गए। ले कन कह कुछ तो ऐसा था, जो चुभ रहा था। कई सवाल
मन म उमड़-घुमड़ रहे थे। या मुझे कह और होना चा हए? या म कह और बेहतर कर
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सकता ँ? या म ज़दगी को और साथकता दे सकता ? ँ या मुझे सपने दे खने चा हए?


या मुझे उन सपन का पीछा करना चा हए, जो मेरे पताजी ने मेरे लए दे ख?
े और इस तरह
मेरा मन आकुल और अधीर होने लगा।
ले कन कैसे? UPSC? जहाँ सबसे तेज़, सबसे तभाशाली लोग तभाग करते ह।
आ थक बा यता क वजह से न तो नौकरी छोड़ना संभव था और न नौकरी के साथ
कोलकाता म को चग करना। या म ये कर पाऊँगा-पता नह । ले कन या ऐसे ही छोड़ ँ ।
कम-से-कम ईमानदारी से भरा एक यास तो कर लूँ। कभी ये पछतावा तो नह रहेगा क
काश एक बार को शश कर ली होती। और इस ऊहापोह और उधेड़बुन के रा ते से
नकलकर मेरी या ा शु ई, UPSC क ओर, जी-जान से, जोशो-ख़रोश से। नौकरी के
साथ तैयारी शु कर द और हर एक गुज़रते दन के साथ न य और ढ़, और मज़बूत
होता गया। कुछ परेशा नयाँ आ , ले कन इससे ेरणा और बढ़ती गई।
थम यास म IRS म चयन हो गया और फर अगली बार IPS म। मने सपना दे खा,
ख़ुद पे भरोसा कया, मेहनत क और घरवाल के अटू ट संबल और सबके आशीवाद से मेरी
या ा एक सुखद पड़ाव पर आके क -लोक सेवा, दे श सेवा के पड़ाव पे।
दो तो! बड़े सपने दे ख, ख़ुद पर भरोसा व आ म व ास रख, मेहनत कर, आप न त
प से सफल ह गे।
दे खे जो सपने पीछा कर,
हद को अपनी ख चा कर,
बीती ता ह बसार के,
नए सपन क बात तो कर,
मं ज़ल तो मल ही जाएगी,
एक क़दम बढ़ा, शु आत तो कर ।
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आ दवासी अंचल से बने आई.ए.एस. अ धकारी


सुरेश कुमार जगत, छ ीसगढ़

म परसदा गाँव, ज़ला कोरबा, छ ीसगढ़ का रहने वाला ँ। यह एक अ त पछड़ा


ाइबल गाँव है, जो मैकाल ेणी पर बसा है। म शु से ही मेधावी छा रहा ँ। और शायद
यही वजह थी क म गाँव से बाहर नकल पाया और एक बड़ा सपना दे ख पाया। हाई कूल
तक क मेरी पढ़ाई काफ़ मु कल भरी रही। कुछ क ा म एक भी श क नह थे।
मेरी पढ़ाई गाँव के जनभागीदारी कूल से ई। जैसा क नाम से ही पता चलता है क
यह कूल गाँव क जनता के सहयोग से चलाया जाता था, जसम श क क भारी कमी
थी। जैस-े तैसे मने अपने सहपा ठय के साथ हाई कूल क पढ़ाई पूरी क । यहाँ भी मने
अ छे तशत (90%) से परी ा पास क । अगली चुनौती थी आगे क पढ़ाई कहाँ से और
कैसे क जाए। मेरे भाइय ने इसम काफ़ मदद क और बलासपुर के भारत माता हद
मा यम कूल म मेरा दा ख़ला आ। वहाँ भी काफ़ क ठनाइय का सामना करते ए पढ़ाई
करनी पड़ी। 12व म मुझे रा य म 5वाँ थान मला। यही वो ण था, जब मुझे आगे कुछ
कर गुज़रने का आ म व ास मला।
मने हमेशा से यही समझा था क ामीण प रवेश के व ा थय म व ास क कमी का
सबसे बड़ा कारण होता है अँ ेज़ी और ग णत के वषय। इस लए मने इन दोन वषय पर
ख़ास यान दया। AIEEE पास करके NIT रायपुर म दा ख़ला मला और वहाँ भी अपनी
मेहनत से 81% के साथ मैके नकल ड ी हा सल क । वहाँ सबसे बड़ा चैलज अँ ेज़ी का
था। म एक कसान प रवार से र ता रखता ँ, तो वाभा वक सी बात थी क मेरा पहला
ल य कसी नौकरी को पाकर आ थक प से स म होना था। कपस से मेरा सेले शन
ONGC म आ और GATE ए ज़ाम से NTPC म आ और मने NTPC वॉइन कया। इस
व त तक म स वल सेवा परी ा के लए तैयार नह था, हालाँ क अंदर से एक आवाज़
ज़ र आ रही थी। NTPC म 3 साल काम करके मने नणय लया क अब स वल सेवा क
परी ा दे नी चा हए।
भारतीय इंजी नय रग सेवा क परी ा पास करके क य जल आयोग भुवने र म मेरी
पो टं ग ई और इस तरह मेरा द ली जाकर तैयारी करने का सपना अधूरा रह गया। नौकरी
करते-करते दो यास हद मा यम से दे ने के बाद मेरे मन म ख़याल आया क मुझे अँ ेज़ी
मा यम से परी ा दे नी चा हए। इसके 2 कारण थे, पहला क मुझे द ली से र रहने क
वजह से इंटरनेट का सहारा लेना था और सरा अँ ेज़ी से पढ़ाई को म एक चुनौती क तरह
लेता था और जब तक चैलज नह रहेगा, तब तक रा ते का मज़ा नह है। भूगोल वषय से
मने हद म तैयारी शु क थी और अँ ेज़ी म भी भूगोल वषय जारी रखा। 2016 क
परी ा म मुझे सफलता मली और मुझे IRTS मला, ले कन आईएएस क चाह म चौथे
यास म मुझे आईएएस मला। ये सारे यास मने फ़लटाइम नौकरी करते ए दए और
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कसी भी चरण म को चग का सहारा नह लया।


शु से ही गाँव म रहने के कारण गाँव क सम या से अवगत था। आईएएस
अफ़सर जो हमारे गाँव म आते थे, उ ह दे खकर मन म कुछ हलचल-सी उठती थी। घर क
आ थक और सामा जक थ त ठ क नह होना भी एक कारण था। दादाजी मेरे ेरणा ोत
रहे ह, उनक मेहनत और कोट-कचहरी के च कर ने मुझे इस दशा म यास करने के लए
ववश कर दया।
पहली ग़लती मेरी ये रही क मने हद मा यम से तैयारी क पूरी को शश नह क ।
अगर हद सा ह य वषय से परी ा दे ता तो सफलता पहले ही मल गई होती। नोट् स नह
बनाना सरी ग़लती थी, जसके प रणाम व प रवीज़न म द क़त आई। शु के यास
अ त आ म व ास से दया, जससे असफलता मली। नबंध और ए थ स पेपर म बना
अ यास के यास करना भी एक ग़लती थी। ल खत अ यास नह करना भी एक भूल थी।
सम या से घरकर जब मं ज़ल हा सल होती है, तो उसका मज़ा ही कुछ और होता
है। परेशा नय से घरा एक जतना मज़बूत होता है, उतना कोई और नह हो सकता,
तैयारी के दौरान ये बात यान म रहनी चा हए।

वो ज़दगी या ज़दगी जो सफ़ पानी सी बही


उ मुल ख़ैर, राज थान

मेरा ज म राज थान के पाली ज़ले म एक गाँव सोजत म आ था। प रवार म मेरी माँ,
बड़ी बहन और बड़ा भाई थे। मेरी माँ एक पढ़े - लखे क मीरी प रवार से थी। मेरे ज म के
दस महीने प ात ही मेरे पता जी द ली चले गए थे। पता जी के द ली जाने के बाद मेरी
माँ ने पास के छोटे से कूल म पढ़ाना शु कर दया। पतृस ा मक समाज म अकेली माँ
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का संघष बढ़ जाता है। इ ह वपरीत प र थ तय से लड़ते-लड़ते मेरी माँ अपना मान सक


संतुलन खो बैठ जस के कारण उनक नौकरी चली गई। घर म जब आ थक थ त और
अ धक ख़राब ई तो मुझे अपने पता और नयी माँ के पास द ली भेज दया गया। उस
समय म लगभग पाँच साल क थी।
पता जी क थ त ऐसी नह थी क वो मुझे कॉपी, पेन इ या द भी दला सक। इसके
लए मने सातव क ा से अपने आस-पास के ब च को ट् यूशन पढ़ाना शु कर दया। नयी
माँ मुझे यादा पढ़ाने के प म नह थ । उन का मानना था क पाँचव क ा तक पढ़ने के
बाद मुझे सलाई वग़ैरह सीखनी चा हए ता क म घर पर रह कर ही कुछ क ँ । म हर क ा
के बाद उनसे कहती क बस इस साल कूल जाऊँगी और अगले साल मेरा कूल से नाम
कटवा दे ना। इस तरह कसी तरह मने आठव क ा तक पढ़ाई क । न वी क ा म कूल म
वेश के लए घर से बलकुल भी अनुम त नह मली और मुझे राज थान भेजने क
तैया रयाँ होने लगी तो मने अपनी ब ती म पास म ही एक छोटा-सा कमरा कराये पर ले
लया और ट् यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई नरंतर रखने का न य कया। यह फ़ैसला न व
क ा क छा ा के लए ब त मु कल था मगर बना पढ़े - लखे अपने भ व य क क पना
करना भी मेरे लए असंभव था।
स वल स वसेज़े का प रचय मुझे अपनी ाथ मक क ा म ही हो गया था परंतु व भ
ज़ मेदा रय , जैसे त दन आठ-आठ घंटे के ट् यूशन पढ़ाने के चलते म बी.ए. के बाद
परी ा नह दे पाई। उस समय मेरा सारा यान श ा अजन म था ता क य द कभी
आव यकता पड़े तो एक अ छ नौकरी मल सके। इस बीच भारत के द ांग जन के
अ धकार एवं अंतररा ीय तर पर उनके नेतृ व के लए मने कई दे श क या ाएँ भी क
और व भ अंतरा ीय अ धवेशन म भाग भी लया। JNU से एम.ए. तथा नेट JRF होने से
जब आ थक थ त सु ढ़ ई तो मने परी ा दे ने का न य कया तथा ई र क कृपा से
पहले ही यास म सफलता ा त क ।
परी ा क तैयारी के व त हर समय अ यंत आ म अनुशासन और समय बंधन के
अ त र मुझे और कोई सम या नह ई य क जेएनयू के पु तकालय म दन रात पढ़ते
रहने से अ छा समय मेरे जीवन म पहले कम ही आया था। मेरे पूव संघष क तुलना म ये
एक आरामदायक एवं पूरी तरह आ म ग त को सम पत समय था।
तैयारी के समय मेरी सब से बड़ी ग़लती आ मअनुशासन क अ त थी। मुझे पता था
क म बार-बार परी ा नह दे पाऊँगी इस लए मने थम यास म अपने आप को बाहरी
वातावरण से बलकुल काट दया था जससे न केवल मेरा अकेलापन बढ़ा ब क अपनी
ग़ल तय को सुधारने के लए आव यक इनपुट भी कम ही मल पाए। परी ा थय से
अनुरोध है क तैयारी के दौरान अपने त अ त अनुशा सत एवं कठोर होने क वृ से
थोड़ा बच, य क यह आप को ज द ही कर सकती है। इस लए थोड़ा समय
नकालकर कुछ अ य काय जैसे ायाम, शाम को टहलना, थोड़े समय के लए पास म घूम
आना इ या द कदा प न छोड़। अंत म यह याद रखना आव यक है क प र म, आ म
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अनुशासन एवं सूझ-बूझ से बनी रणनी त सफलता क गारंट है।


म 2017 बैच क ँ और वतमान समय म आई.आर.एस. (अ य कर) अ धकारी
ँ।
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कां टे बल से आई.पी.एस. तक का सफ़र


वजय सह गुजर, राज थान

म राज थान के झुंझुनूं ज़ले के दे वीपुरा गाँव का नवासी ।ँ पताजी ी ल मण सह


कसान ह एवं माताजी ीमता च दा दे वी गृ हणी है। 5 भाई-बहन म म तीसरा ।ँ आरं भक
श ा गाँव म ही ई है। पढ़ाई म म शु से ही औसत था, 11व क ा म पताजी ने सं कृत
कूल म दा ख़ला दलवाया, य क सं कृत पढ़ने के बाद अ यापक बनना आसान होता था
और पापा चाहते थे क म श क बनकर प रवार का सहारा बनूँ। सं कृत कॉलेज से शा ी
(बी.ए ऑनस) करने के बाद म सरकारी नौकरी के लए तैयारी करने लगा। ले कन राज थान
म श क क भत , सेना क भत , राज थान पु लस कां टे बल क भत म म असफल रहा,
तभी 2009 म द ली पु लस कां टे बल क भत नकली। मेरा एक दो त पहले से द ली
पु लस म सपाही था, उसने मुझे द ली आकर को चग वॉइन करने क सलाह द । द ली
पु लस म कां टे बल के पो ट पर मेरा चयन हो गया। जस दन मेरा कां टे बल का प रणाम
आया था, मने अपने पताजी को अपनी ज़दगी म सबसे यादा ख़ुश दे खा।
सभी म यमवग य ब चे क तरह मेरे भी मन म आया क काश म भी आईएएस या
आईपीएस होता। थोड़े दन बाद मेरा सब-इं पे टर का प रणाम आया, जसम म पास हो
गया था। इस प रणाम ने मुझम आ म व ास बढ़ाया और मने न य कया क म भी
स वल सेवा क तैयारी क ँ गा।
मने एस.एस.सी. नातक तर का पेपर दया। े नग से पासआउट होने के बाद एक
साल के लए मुझे द ली के संगम वहार पु लस टे शन म पो टं ग मली। वहाँ हर सब-
इं पे टर दन म 15-16 घंटे काम करता था, थाने म आकर पढ़ाई से नाता टू ट-सा गया।
10-11 महीने के बाद मेरा एस.एस.सी. का प रणाम आया और मुझे क य उ पाद एवं
सीमा शु क, केरल मला था। मने 2 महीने म द ली पु लस से यागप दे दया और केरल
म काय हण कया। केरल आने के बाद थोड़ा यादा समय पढ़ाई को दे ने लगा, ले कन
हद मा यम के मै ट रयल के लए द ली जाना पड़ता था, साथ ही अकेले तैयारी करने के
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कारण म हतो सा हत हो जाता था। मने बारा एस.एस.सी. क परी ा द , इस बार मेरी
अ छ रक होने के कारण मुझे द ली म आयकर नरी क का पद मला। फ़रवरी 2014 म
मने द ली वॉइन कया।
द ली आने के बाद मने कुछ को चग म लासेज़ ली, ले कन उनके पढ़ाने के तरीक़े
मुझे पसंद नह आए तो मने से फ़ टडी का ही नणय लया। तीन यास म म ारं भक
परी ा भी नह उ ीण कर पाया था। मेरा ख़ुद से व ास उठने लगा था, सारी ऊजा लगाने
के बाद भी कुछ प रणाम नह नकल रहा था।
इसी बीच घर वाले शाद के लए दबाव बनाने लगे, य क मेरी सगाई 2012 म ही हो
गई थी तो 2015 म मेरी शाद हो गई। शाद के बाद मेरी प नी और मेरे एक म ने मुझे
अगले यास के लए न केवल ो सा हत कया, ब क हमेशा मेरा हौसला भी बढ़ाया, मेरी
क मयाँ र करने म मेरी मदद क । 2016 म मुझे सा ा कार के लए बुलाया गया। फर वही
आ, अं तम प रणाम म म 8 नंबर से बाहर हो गया। 31 मई को प रणाम आया था, मने तय
कर लया था क अब और नह ।
2 दन तक यही सोचता रहा क कताब कबाड़ी को बेच दे ता ँ। एक दोपहर अपने घर
के बालकनी म कबाड़ी का इंतज़ार कर रहा था क पीछे से प नी सुनीता आई और बोली,
“इतने दन टडी क है, बस 4 महीने क बात है, एक बार और को शश करो।” उसके इस
व ास ने मेरा दमाग़ बदला और मने पूरी मेहनत से एक बार फर परी ा म बैठने का
फ़ैसला लया। इस बार मने अपने पछले यास क क मय को र कया और आ ख़रकार
574 रक के साथ चय नत आ। मेरे आस पास के 15 गाँव म मेरा आज तक का पहला
चयन था। जब म घर गया तो क़रीब 2-3 हज़ार लोग मेरे वागत के लए खड़े थे। पूरे गाँव ने
साथ रहकर मेरी सफलता का ज मनाया।
मने हमेशा अपने चयन को सफलता न मानकर बस एक अवसर माना है, जो मुझे उन
लोग के ख र करने म स म बनाएगा, जनक परेशा नय को मने नज़द क से जाना है।
अंत म इतना ही क ँगा…
ज़दगी क असली उड़ान अभी बाक़ है,
ज़दगी का असली इ तहान अभी बाक़ है ।
अभी तो नापी है मुट्ठ भर ज़मीन हमने,
अभी तो सारा आसमान बाक़ है ।

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