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Ruk Jaana Nahin - Nishant Jain
Ruk Jaana Nahin - Nishant Jain
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क
जाना
नह …
सफलता क राह पर बढ़ते जाने के ेरक मं
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‘एका’ श द एकता का पयाय है। इसका ता पय है ‘कई’ को ‘एक’ के प म समे कत करना। व भ भारतीय
भाषा क बेहतरीन रचना को सं हत करने तथा व भ भाषा म पु तक के पठन को बढ़ावा दे ने के लए, दे श के
वचारशील य क रचना को का शत करने के उ े य से वे टलड के इस नवीन भाषाई काशन- च को बनाया
गया है। एका व भ भाषा म अनुवाद तथा अलग-अलग सं कृ तय एवं पृ भू म के लेखक और पाठक को संब
करते ए सा ह य को अ य व वधतापूण व जीवंत भाषाई बाजार तक प ंचाने के लए भी यासरत है। 23 आ धका रक
भाषा और 700 से अ धक बो लय वाले इस दे श म अनुवाद केवल ज़ रत क पू त का साधन नह है—ब क यह एक
ता का लक आव यकता है।
एका ारा दस भारतीय भाषा क मूल रचना का काशन कया जाएगा: जसम हद , उ , बंगाली, गुजराती, मराठ ,
ओ डया, क ड़, तेलुगु, त मल और मलयालम शा मल ह। यह इन भाषा म पर पर अनुवाद तथा इनके अं ेजी म
अनुवाद क व वधतापूण कताब का भी काशन करेगा। वष 2019 के लए ता वत 100 पु तक के मुख लेखक म
मनोरंजन यापारी (बंगाली), सरशो बंदोपा याय (बंगाली), ववेक शानभग (क ड़), वसुध (क ड़), पे मल मु गन
(त मल), कैफ़ आज़मी और जां नसार अ तर (उ ), बो गा (तेलुगु), उ ी आर. (मलयालम), वीजे जे स (मलयालम),
जॉनी मरांडा (मलयालम), व ास पाट ल (मराठ ), रणजीत दे साई (मराठ ), शवाजी सावंत (मराठ ), पवन के. वमा,
संजीव सा याल, अमीश, अ न सांघी, चेतन भगत, राजेश कुमार (त मल) तथा अनु सह चौधरी ( हद ) शा मल ह।
हम आपको वे टलड के इस ब कुल नए व रोमांचक सफ़र, अथात् एका के साथ जुड़ने के लए आमं त करते ह।
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क
जाना
नह …
नशा त जैन
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1st Floor, A Block, East Wing, Plot No. 40, SP Infocity, Dr MGR Salai,
Perungudi, Kandanchavadi, Chennai 600096
Hind Yugm
201 B, Pocket A, Mayur Vihar Phase-2, Delhi-110091
www.hindyugm.com
Westland, the Westland logo, Eka and the Eka logo are the
trademarks of Westland Publications Private Limited, or its affiliates.
ISBN: 9789388754781
10 9 8 7 6 5 4 3 2 1
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अपनी बात
वषय सूची
मन म हो व ास…
परी ा क तैयारी क लंबी, उबाऊ और थकावट भरी या म कई बार ऐसा होता है
क आपके अपने मा यम/तरीक़े, अपनी क़ा ब लयत या ख़ुद पर ही आपक आ था
डगमगाने लगती है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है क यह परी ा या यह फ़ ड ‘मेरे बस का
रोग’ नह है। ऐसा महसूस होना वाभा वक है और इसम कोई द क़त भी नह है। पर कुछ
दो त अना था के संकट का बुरी तरह शकार होकर थत हो जाते ह और परी ा से जुड़े
हर पहलू को लेकर एक आशंकापूण और नकारा मक नज़ रये का नमाण कर लेते ह।
अना था इस हद तक क ‘मेरा तो चयन हो ही नह सकता’ या ‘म कभी अ छे उ र नह
लख सकता’ आ द। इस क़ म क अना था न त प से चता का वषय हो सकती है।
जब म अतीत म मुड़कर ख़ुद को दे खता ँ तो मुझे याद आता है क मुझे परी ा
णाली, अपने मी डयम, अपने वषय, अपनी क़ा ब लयत और सबसे बढ़कर—ख़ुद पर
भरपूर आ था रही है। अ सर मुझे लगता है क इस तरह क आ था परी ा म बेहतर दशन
म सहायता करती है। ख़ुद क क़ा ब लयत पर आ था आ म व ास को संबल दे ती है और
सफलता के नये तज खोलती है।
आ था के इस स दय को अ ेय क कालजयी क वता ‘असा य वीणा’ म कुछ इस
तरह अ भ कया गया है—
ेय नह कुछ मेरा,
म तो डू ब गया था वयं शू य म,
वीणा के मा यम से अपने को मने,
सब कुछ को स प दया था—
सुना आपने जो वह मेरा नह ,
न वीणा का था,
वह तो सब कुछ क तथता थी
महाशू य
वह महामौन
अ वभा य, अना त, अ वत, अ मेय,
जो श दहीन,
सब म गाता है ।
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शानदार-ज़बरद त- ज़दाबाद!
आपने बहार के एक कमयोगी दशरथ माँझी क कहानी सुनी होगी। धुन के प के इस
श स ने अपनी ज़द से पहाड़ को चुनौती द और अकेले दम पर पहाड़ पर छे नी-हथौड़ा
चला-चलाकर राहगीर के लए रा ता बना ही डाला। उन पर बनी फ़ म ‘माँझी-द माउंटेन
मैन’ इस ज बे को बख़ूबी बयाँ करती है। जब भी कोई नरंतर मेहनत म जुटे दशरथ माँझी
को डमो टवेट करने या छे ड़कर हाल-चाल पूछता, तो वह यही नारा लगाते थे—‘शानदार,
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ज़बरद त, ज़दाबाद’
शव खेड़ा ने लखा भी है—Winners don’t do the different things, they
do the things differently.
चीज़ को अलग ढं ग से करने वाले वजेता क़ म के लोग दरअसल जो रणनी त
अपनाते ह, उनम नरंतरता (consistency या persistence) एक मुख त व होता है।
हमारे-आपके बीच ऐसे तमाम लोग होते ह, जो शु आत तो बड़ी शानदार और मह वाकां ी
ढं ग से करते ह, पर अपने उस ज बे या चगारी (spark) को क़ायम नह रख पाते। ऐसे भी
तमाम लोग से हम मलते ह, जो रा ते म छोट -मोट परेशा नय म धैय खोकर ढे र हो जाते
ह या प र थ तय पर ठ करा फोड़कर ख़ुद को ज टफ़ाई करके बेदाग़ नकलने क को शश
करने लगते ह।
हम यह समझना होगा क जीवन के तमाम े स हत स वल सेवा परी ा म सफल
अ य थय के ऐसे ढे र क़ से ह, जनम नरंतरता ायः सफलता का एक अ नवाय त व रहा
है।
आजकल क यो यता का आकलन करने के मानदं ड म काफ़ बदलाव आया
है। पहले जहाँ IQ (Intelligence Quotient) को ही क क़ा ब लयत का आधार
माना जाता था, वह बाद म इसम EQ (Emotional Quotient) का त व भी शा मल आ
और आजकल नयो ा अपने भावी अ धकारी/कमचारी के PQ (Persistence
Quotient) का आकलन करना ज़ री समझने लगे ह। य द कसी अ धकारी/कमचारी को
कोई ोजे ट स पा जाए और उसका शु आती उ साह व च कुछ दन म ख़ म हो जाए
तो उस ोजे ट क सफलता क संभावना न य ही कम हो जाती है। लहाज़ा, परी ा क
पूरी या के दौरान सतत उ साह और नरंतरता बनाए रखना सफलता क संभावना
को कई गुना बढ़ा सकता है। नरंतरता क इस ख़ूबी क ज़ रत को रेखां कत करते ए
क व सोहनलाल वेद ने लखा है—
जब तक न सफल हो, न द-चैन को यागो तुम,
संघष का मैदान छोड़कर, मत भागो तुम,
कुछ कए बना ही जय-जयकार नह होती,
को शश करनेवाल क कभी हार नह होती ।
Attitude और Aptitude…
जीवन के येक े म सफलता के लए ज़ री है क आपक अ भवृ
(Attitude) और अ भ च (Aptitude) उस े क ओर सामा यतः ह । यानी आपका
झान या झुकाव उस े वशेष क ओर होना उस े म आपक सफलता क
संभावना को ब त हद तक बढ़ा दे ता है। वशेष ता (Specialization) के इस दौर म
य द आपको एक अ छा बंधक बनना है, तो आपके मैनेजमट ए ट ट् यूड का परी ण कया
जाता है और य द आपको एक अ छा श क या शोधाथ बनना है, तो आपका ट चग एवं
रसच ए ट ट् यूड जाँचा जाता है।
स वल सेवा परी ा, इस से तमाम अ य तयोगी परी ा से कुछ भ और
अनूठ (unique) है। इसम आपक कसी े वशेष म महारत क परी ा न होकर
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हाड वक का कोई वक प नह
एक पुरानी कहावत है—
करत-करत अ यास ते जड़म त होत सुजान ।
रसरी आवत-जात ते, सल पर पड़त नसान ।।
वन ता सव े नी त है
व- नमाण क या म जो वशेषता वक सत करना अप रहाय है, वह है—
वन ता। वन ता एक ऐसा गुण है, जो आपको भी स बनाता है और आपसे जुड़े लोग
को भी। हम अपने आस-पास अ सर ऐसे सा थय को दे खते ह, जो परी ा का कोई चरण
उ ीण होने या अपने अ छे दशन पर वच लत हो जाते ह और ज़मीन पर पाँव भी नह
रखते। छोट -छोट ख़ु शय को जीना चा हए; पर अपनी छोट -छोट सफलता का गुमान
करना या थ म इतराना अथवा सर को नीचा दखाना भला कहाँ क समझदारी है!
और फर, हम ग़ र हो भी तो भला कस बात का! हम जतना पढ़ते जाते ह, पाते ह
क उससे कह यादा हमने पढ़ा ही नह है। अतः ान एवं सीखने क लालसा बनाए रख
और ख़ुद क लक र बड़ी कर आगे बढ़ने का य न कर।
आएँगे।
ख़ुद के सवागीण व को सँवारने के लए इन तीन े णय के कौशल क
दरकार है। लहाज़ा उ मीद से लबरेज़ युवा को शश कर क ये क स उनके वम
समा हत हो जाएँ और उनके व का थायी ह सा बनकर उसे सँवारते- नखारते जाएँ।
र ता तो बस नभाने म है…
र ते नभाना सीख। तैयारी क या और जीवन क दौड़ म आपके अपने हमेशा
आपका साथ नभाते ह। प रवार और दो त आपको मो टवेट कर ऊजा से भर सकते ह और
हर क़दम पर आपको ह मत बँधा सकते ह। ख़ुश रहने और पॉ ज ट वट बनाए रखने के
लए घर-प रवार और अ छे दो त से जुड़ाव बनाए रख। मने कह सुना था—
लाख मु कल ज़माने म है,
र ता तो बस नभाने म है ।
अ त- त नह ,
त और म त रह…
औसत से बेहतर रहता है, य क आप दमाग़ पर अनाव यक भार रखे बना खुलकर लख
पाते ह।
—साथ-ही-साथ आप परी ा के प रणाम को लेकर यादा च तत भी नह होते और
हर प र थ त के लए तैयार रहते ह। एक कहावत भी है—‘Try for the best, prepare
for the worst.’
दरअसल त रहना एक नयामत क तरह है। और अगर म त रहकर त रहा
जाए, तो यह सोने पर सुहागा ही है। त रहने से आपको एक संतु का भाव महसूस
होता है और आप अपने दन को ज ट फ़ाई कर पाते ह।
पर परोप हो जीवानाम् :
साथ नभाएँ
है। मसाल के तौर पर, म अपने कुछ ऐसे सा थय को जानता ँ, जो इस तैयारी के दौरान
मलने वाली असफलता या तनाव से ब त भा वत हो गए और लगभग अवसाद या
ड ेशन जैसी हालत म प ँच गए। ज़दगी क दौड़ म अकेले आगे बढ़ने म कोई बुराई भी
नह है, पर नतांत एकाक हो जाना कभी-कभी सम या का कारण बन जाता है। आप
अपनी चताएँ/तनाव/परेशा नयाँ/ख़ु शयाँ/म तयाँ य द कभी कसी से साझा नह करते, तो
आप भीतर-ही-भीतर घुटने लगते ह और यह थ त कभी-कभी जब यादा बढ़ जाती है, तो
मनो वकार म प रणत हो जाती है। जब क य द आप एक- सरे का सहयोग करते ए,
हँसते-मु कुराते, आगे बढ़ते ह, तो ज़ रत या तनाव क थ त म आपका साथ दे ने के लए
आपके प रजन, दो त और सहपाठ आपके साथ होते ह। मत भू लए क महाबली हनुमान
को भी उनक भूली- बसरी श याँ याद दलाने के लए जांबवंत को ‘का चुप सा ध रहा
बलवाना’ कहना पड़ा था।
‘साथ-साथ क़दम बढ़ाना’ का यह संदेश हमारे वेद म भी दया गया है—
सं ग छ् वम् सं वद वम् सं वो मनां स जानताम् ।
या पढ़ रहे ह आजकल?
सतह पर ही न रह,
मम भी समझ
कसी नगर म चार ा ण रहते थे। उनम खासा मेल-जोल था। बचपन म ही उनके मन
म आया क कह चलकर पढ़ाई क जाए।
अगले दन वे पढ़ने के लए क ौज नगर चले गए। वहाँ जाकर वे कसी पाठशाला म
पढ़ने लगे। बारह वष तक मन लगाकर पढ़ने के बाद वे सभी अ छे व ान हो गए।
अब उ ह ने सोचा क हम जतना पढ़ना था पढ़ लया। अब अपने गु क आ ा लेकर
हम वापस अपने नगर लौटना चा हए। यह नणय करने के बाद वे गु के पास गए और
आ ा मल जाने के बाद अपनी कताब-पो थयाँ संभाले अपने नगर क ओर रवाना ए।
अभी वे कुछ ही र गए थे क रा ते म एक तराहा पड़ा। उनक समझ म यह नह आ
रहा था क आगे के रा त म से कौन-सा उनके अपने नगर को जाता है। अ ल कुछ काम न
दे रही थी। वे यह नणय करने बैठ गए क कस रा ते से चलना ठ क होगा। अब उनम से
एक पोथी उलटकर यह दे खने लगा क इसके बारे म इस पोथी म या लखा है।
संयोग कुछ ऐसा था क उसी समय पास के नगर म एक ब नया मर गया था। उसे
जलाने के लए ब त से लोग नद क ओर जा रहे थे। इसी समय उन चार म से एक ने पोथी
म अपने का जवाब भी पा लया। कौन-सा रा ता ठ क है कौन-सा नह , इसके वषय म
उसम लखा था, ‘महाजनो येन गतः स पंथा।’
कसी ने इस बात पर यान नह दया क यहाँ ‘महाजन’ का अथ या है और कस
माग क बात क गई है। ेणी या कारवाँ बनाकर नकलने के कारण ब नय के लए महाजन
श द का योग तो होता ही है, महान य के लए भी होता है, यह उ ह ने सोचने क
चता नह क । उस पं डत ने कहा, “महाजन लोग जस रा ते जा रहे ह उसी पर चल!” और
वे चार मशान क ओर जाने वाल के साथ चल दए।
मशान प ँचकर उ ह ने वहाँ एक गधे को दे खा। एकांत म रहकर पढ़ने के कारण
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उसम उसे खाने के लए सेव द गई। उसके लंबे ल छ को दे खकर उसे याद आ गया क
द घसू ी न हो जाता है, ‘द घसू ी वन य त’। मतलब तो था क द घसू ी या आलसी
आदमी न हो जाता है पर उसने इसका सीधा अथ लंबे ल छे और सेव समझकर सोच
लया क य द उसने इसे खा लया, तो वह न हो जाएगा। वह खाना छोड़कर चला आया।
सरा जस घर म गया था वहाँ उसे रोट खाने को द गई। पोथी फर आड़े आ गई।
उसे याद आया क अ धक फैली ई चीज़ क उ कम होती है, ‘अ त व तार व तीण तद्
भवेत् न चरायुषम्।’ वह रोट खा लेता तो उसक उ घट जाने का ख़तरा था। वह भी भूखा
ही उठ गया।
तीसरे को खाने के लए ‘बड़ा’ दया गया। उसम बीच म छे द तो होता ही है। उसका
ान भी कूदकर उसके और बड़े के बीच म आ गया। उसे याद आया, ‘ छ े वनथा ब ली
भव त।’ छे द के नाम पर उसे बड़े का ही छे द दखाई दे रहा था। छे द का अथ भेद का
खुलना भी होता है, यह उसे मालूम ही नह था। वह बड़े खा लेता तो उसके साथ भी अनथ
हो जाता। बेचारा वह भी भूखा रह गया।
लोग उनके ान पर हँस रहे थे पर उ ह लग रहा था क वे उनक शंसा कर रहे ह।
अब वे तीन भूख-े यासे ही अपने-अपने नगर क ओर रवाना ए।
यह कहानी सुनाने के बाद वण स ने कहा, “तुम भी नयादार न होने के कारण ही
इस आफ़त म पड़े। इसी लए म कह रहा था शा होने पर भी मूख मूखता करने से बाज़
नह आते।”
पंचतं क यह रोचक कहानी वयं म ब त से न हताथ समेटे ए है। पढ़े - लखे होकर
भी लक र के फ़क़ र बने रहने वाले इन चार व ा थय क यह कहानी थोड़ी
अ तशयो पूण ज़ र लगती है, पर यह य -अ य तौर पर हम ज़दगी और साथ ही
परी ा और ज़दगी; दोन क तैयारी के लए दशा दे ने का काम भी करती है। आइए, चचा
कर—
आपने अँ ेज़ी का एक मुहावरा सुना होगा, ‘Reading between the lines.’ साथ
ही एक और मुहावरा है, ‘in black and white.’ पहले मुहावरे का अथ है, जो प तौर
पर लखा आ नह दख रहा है, उसके वा त वक अथ या मम (essence) को समझना।
सरे मुहावरे का अथ है, सब कुछ एकदम प होना और कोई कं यूज़न न होना।
‘reading between the lines’ क ासं गकता आजकल के दौर म इस लए यादा है
य क अब सब कुछ in black and white उपल ध नह होता। कहने का मतलब यह है
क कसी भी कथन या अ ययन साम ी का शा दक (literal) अथ पकड़कर लक र के
फ़क़ र बनने के बजाय उसका न हत अथ या वा त वक मम/अ भ ाय समझना ही आज
क माँग है।
संघ लोक सेवा आयोग/रा य लोक सेवा आयोग और अ य लगभग सभी परी ा के
नये पैटन म आप यह बदलाव महसूस करगे क अब लक र के फ़क़ र बने रहकर या चीज़
को केवल कंठ थ करके सफलता पाना संभव नह है, जब तक उनके अथ या मम को
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और मम तक प ँचने क को शश कर।
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तकनीक से कर दो ती
परफ़े शन को कह ‘ना’
Acceptance:
When we don’t accept an undesired event, it becomes Anger,
when we accept it, it becomes Tolerance.
When we don’t accept uncertainty, it becomes Fear,
when we accept it, it becomes Adventure.
When we don’t accept other’s bad behaviour towards us, it
becomes Hatred;
when we accept it, it becomes Forgiveness.
When we don’t accept other’s Success, it becomes Jealousy; when
we accept it, it becomes Inspiration.
य अपनाएँ म यम माग?
करते ह।
—तैयारी क लंबी और उबाऊ या म कई बार असफलता का सामना भी करना
पड़ सकता है। छोट -छोट असफलता को संभालना और उनसे वच लत ए बग़ैर थर
रहना आज के तनाव भरे दौर म थोड़ा मु कल है। तैयारी के दौरान रोज़मरा क दनचया म
भी समय-समय पर व भ कारण से तनाव, नराशा या कुंठा क थ तयाँ पैदा होती रहती
ह। ऐसा होना वाभा वक भी है। पर इन थ तय से नपटने म अनेकांतवाद और म यम
माग के साथ-साथ गीता का ‘ न काम कमयोग’ भी काफ़ सहायता करते ह। नतीज के त
आस (attach) ए बना पूण मनोयोग और पु षाथ से काम करना, स वल सेवा परी ा
या कसी भी तयोगी परी ा के लए बेहद ज़ री और लगभग अ नवाय प है।
—परफ़े शन क ज़द और सब कुछ बे ट पाने क चाहत आज के दौर म युवा पर
जुनून बनकर सवार है। पर जब आप अनेकांतवाद क मदद से यह समझ पाते ह क कुछ
भी बे ट नह है और कोई भी धारणा शत तशत स य नह है, तो आप यादा सहज होकर
तैयारी कर पाते ह।
—इंटर ू के दौरान आपक वन ता और सहजता आपक परफ़ॉरमस पर काफ़
सकारा मक असर डालती है। जब आप सर के वचार और ान के अथाह भंडार का
स मान करते ए, आप ख़ूब पढ़ते- लखते और समझते ह, तो आपको ान क वराटता व
ख़ुद क अ प ता का एहसास होता है। इसका असर यह होता है आप और वन होते जाते
ह। कसी व ान ने कहा भी है—‘ श ा अपने अ ान क ग तशील खोज है।’
सच तो यह है क भारतीय दशन के ये तीन स ांत- न काम कमयोग, अनेकांतवाद
और म यम माग; स वल सेवा परी ा स हत कसी भी तयोगी परी ा म ही नह , ब क
ज़दगी के हर मोड़ पर आपको अ धक प रप व, सहज, संयत, स ह णु और स म बनाते
ह।
ज़ रत है तो बस इनके सही अथ को समझकर, रोज़मरा के जीवन म इनका समावेश
करने क ।
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अपनी लक र बड़ी कर
बल म
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते ह एक के बाद एक
लाल आसमान म डैने पसारे ए
हवाई-अड् डे क ओर
ओ मेरी भाषा
म लौटता ँ तुम म
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
खने लगती है
मेरी आ मा।
क जाना नह ,
तू कह हार के…
रोमां चत हो जाएँग—
े
बेनो जैफ न :
100 तशत ने हीन बेनो जैफ न भारतीय टे ट बक म ोबेशनरी अ धकारी थ । वे
बचपन से बेहद स य रह । व भ वाद- ववाद तयो गता म ह सा लेना उनका शौक़
रहा। बेनो ने स वल सेवा परी ा क तैयारी शु क , पर ेल ल प म साम ी क भारी कमी
थी। बेनो ने अपनी वकलांगता को कभी अपनी तैयारी म आड़े नह आने दया और
आ ख़रकार यू.पी.एस.सी. क स वल सेवा परी ा म अं तम प से चय नत । मलनसार
और मृ वभाव क धनी बेनो आज भारतीय वदे श सेवा (आई.एफ.एस.) क पहली
ने हीन अ धकारी ह। वह अपनी सफलता का ेय, वशेष तौर पर, अपने माता- पता और
दो त को दे ती ह, ज ह ने घंट उ ह कताब पढ़-पढ़कर सुना ।
साथ नह दे रही थी और चौतरफ़ा दबाव बढ़ता जा रहा था। बना आँसू के ख़ूब रोए और
जीवन क वषमता व तकूलता से सा ा कार करना सीखा। चौथे यास म राजा को
पूरा भरोसा था क इस बार वे ी ल स उ ीण कर ही लगे; पर भा य ऐसा क चौथी बार
भी ी ल स उ ीण न कर सके। बेहद मज़बूत पताजी उनके सामने पहली बार रोए। पर
इसी बीच राजा ने रा य लोक सेवा आयोग क परी ा 15व रक के साथ उ ीण कर ली
और इस लेटफ़ॉम के सहारे उ ह ने यू.पी.एस.सी. के लए अपने पाँचव यास के लए कमर
कस ली। बड़े भाई ने मो टवेट कया। ी ल स उ ीण आ, मु य परी ा और फर इंटर ू
भी। वष 2014 क स वल सेवा परी ा म सफल ए राजा गणप त रामासामी को
आई.ए.एस. म उ र दे श कैडर मला। राजा अपनी कहानी को ‘असफलता क कहानी’
कहते ह और सबको एक ही संदेश दे ते ह—
Never never never give up.
घन याम मीणा :
जयपुर से आनेवाले घन याम इंजी नय रग ेजुएट ह। सपना था स वल सेवक बनने
का। आर.ए.एस. और आई.ए.एस. दोन परी ा के लए यास कया। सौभा य से
राज थान शास नक सेवा म ब कर वभाग म चय नत हो गए। पर यू.पी.एस.सी. के
थम यास म ी ल स ही उ ीण न कर सके। सरे यास म मु य परी ा द । जब
प रणाम आया तो पता चला क अ नवाय हद का -प ही वॉलीफ़ाई नह कर सके।
अपनी नौकरी के साथ-साथ रोज़ शाम को और वीकड पर यू.पी.एस.सी. क तैयारी जारी
रखी और तीसरे यास म इंटर ू क कॉल आ गई। अं तम सफलता न मल सक ; पर
घन याम का व अभी जी वत था। चौथे यास म ारं भक परी ा और मु य परी ा
उ ीण क । हद मा यम म इंटर ू दया। अं तम प से चय नत ए और 2015 बैच म
बहार कैडर के आई.ए.एस. के प म चय नत हो गए। घन याम अपने जीवन म सफलता
का आधार सकारा मक सोच और ज़मीन से जुड़े रहने को मानते ह।
स चन कुमार वै य :
साधारणता से कया गया संघष कैसे आपको असाधारण सफलता क ओर ले जा
सकता है, यह बताती है यू.पी.एस.सी. क स वल सेवा परी ा 2014 म 94व रक हा सल
करने वाले उ र दे श के तापगढ़ ज़ले के स चन कुमार वै य क कहानी। तमाम आ थक-
सामा जक परेशा नय के बावजूद पापा ने हर संभव को शश करके स चन को पढ़ाया।
आई.आई.ट . के लए को चग नह ले पाए तो यू.पी.ट .यू. के कॉलेज म ही एड मशन ले
लया। प रवार व र तेदार के सहयोग से पढ़ाई आगे बढ़ती रही।
क़ मत ने भरपूर इ तहान लया और उनके जीवन म असफलता क कोई कमी
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मने अनेक बार ऐसा भी महसूस कया है क कुछ साथी तैयारी उस समय आकर बंद
कर दे ते ह, जब वे सफलता के काफ़ क़रीब होते ह। यू.पी.एस.सी. क तैयारी एक तर क
प रप वता क माँग करती है। जब हम उसके काफ़ नज़द क होते ह, तब हम नराश होकर
यास करना ही छोड़ दे ते ह। थॉमस अ वा एडीसन ने लखा है—
Many of life’s failure are people, who did not realise how close they
were to success when thew gave up.
अगर कसी असफलता का सामना करना पड़ ही जाए, तो उसे सहज वीकार कर,
उससे काम के सबक़ सीख, मु कुराएँ, अपने काम म और शद्दत से जुट जाएँ और आगे
बढ़ते जाएँ। क व वजयदे व नारायण साही क यह मा मक क वता मुझे याद आती है:—
सच मानो य
इन आघात से टू ट-टू टकर
रोने म कुछ शम नह ,
कतने कमर म बंद हमालय रोते है ।
मेज़ से लगकर सो जाते कतने पठार
कतने सूरज गल रहे ह अंधेर म छपकर
हर आँसू कायरता क खीझ नह होता ।
ज़दगी एक सतत या ा है। इसी लए कहा जाता है क चलती का नाम ज़दगी है। का
आ पानी सड़ जाता है जब क ग तमान पानी नरंतर व छ और नमल बने रहते ए
वा हत होता जाता है। अँ ेज़ी म भी एक कहावत है—‘Success is a journey, not a
destination.’
जीवन म आगे बढ़ने और कुछ कर गुज़रने क ललक हर कसी म होती है और होनी
भी चा हए। हर कोई जीवन म कुछ नया, कुछ बड़ा और कुछ ख़ास करना चाहता है।
ख़ासकर युवाव था म तो आगे बढ़ने और कुछ कर गुज़रने का ये ज बा अपने उफ़ान पर
होता है। हर कोई युवा सफलता के शखर पर तो प ँचना चाहता ही है, और साथ ही उस
शखर पर बने रहना भी चाहता है।
यूँ तो सफलता क कोई तय प रभाषा नह है और न ही ऐसी कोई प रभाषा गढ़ जा
सकती है, पर फर भी मोटे तौर पर इतना तो कहा ही जा सकता है क अगर आप कसी
स मानजनक आजी वका (जॉब/ बज़नेस आ द) से अपना ठ क-ठाक जीवन-यापन कर रहे
ह और अपने पा रवा रक व सामा जक जीवन से कमोबेश संतु ह, तो आप सफल ह। अगर
आपक अपने काम या वभाव/ वहार के चलते अ छ त ा और पहचान भी है तो सोने
पर सुहागा। इसके साथ-साथ अगर आप नजी जीवन और अंतमन के तर पर भी शांत और
सहज ह, तो आपसे ख़ुश और सफल शायद ही कोई हो।
यहाँ मुझे माज़लो का आव यकता का परा मड (Maslow’s Need Hierarchy
Theory) यान आता है। इस दलच प परा मड म पाँच आव यकताएँ शा मल ह;—
सबसे बु नयाद आव यकता है दै हक आव यकता, जैसे भूख- यास आ द।
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सकारा मक सोच
सकारा मक सोच संग उ साह और उ लास लए,
जीतगे हर हारी बाज़ी, मन म यह व ास लए ।
मेरी कहानी:
यूँ ही चला चल राही…
बेमुर वत भीड़ म,
परछाइय क नगहबानी,
भागता-सा हाँफता-सा
शाम कब ँ, कब सहर ँ,
म शहर ँ ।
मन के नाजक से मौसम म,
भारी-भरकम बोझ उठाए,
काग़ज़ क क ती से शायद,
आ है अरसा साथ नभाए,
ख़ुद के एहसास पर तारी,
ँ सुकूँ या फर क़हर ँ,
म शहर ँ ।
सफलता के सफ़र क
कुछ शानदार कहा नयाँ
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के न तू, थके न तू
आशीष कुमार, उ र दे श
चढ़ाव लगे रहे। 2010 म मु य परी ा, 2011 म इंटर ू, 2016 म फर ारं भक परी ा
फेल होना, मुझे कुछ हद तक अंदर से तोड़ चुका था।
2017 म अं तम बार स वल म बैठना था। पछले अनुभव से, कमज़ो रय को र
करते ए, अपना सव म दे ने का यास कया। अंततः मुझे अपना नाम चय नत सूची म
दे खने को मला। रक अपे ा के अनु प नह मली, पर म ब त ख़ुश ।ँ मुझे हमेशा से
चीज़ के सुखद प को दे खने क आदत है। इस साल मुझे हद सा ह य म 296 अंक मले
ह, इसका ेय सा ह य के त अपने झान को ँ गा।
इस कताब के पाठक से एक वशेष बात साझा करना चा ँगा क म मुखज नगर,
द ली से र, बग़ैर कोई को चग कए, नौकरी करते ए स वल सेवा म सफल आ ँ।
इस लए तमाम मथक जैसे अ छे व व ालय, महंगी को चग, ब त मेधावी होना क
यादा परवाह करने क ज़ रत नह है। हर साल UPSC म कम सं या म ही सही, पर बेहद
सामा य प रवेश म पले-बढ़े हम जैसे लोग सफल होते ही ह।
नशांत जैन को अनंत ध यवाद दे ना चाहता ँ, उनक व णम सफलता हद मा यम
के सैकड़ सफल उ मीदवार क तरह मेरे लए भी ब त बड़ी ेरणा रही है।
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चरैवे त-चरैवे त
आ द य कुमार झा, बहार
जैसा क आप सभी जानते ह, साइंस म रोज़गार के बेहतर अवसर दान करती है।
एक म यम वग य प रवार (मेरे पता ब त ग़रीब प रवार से ह। मेरे दादा जी प रवार से र
हो गए थे। मेरी दाद ने दहाड़ी मज़ र के प म काम करके मेरे पताजी का पालन-पोषण
कया। मेरे पताजी कई जगह पर काम करते थे और कसी तरह उ ह ामीण बक म एक
नौकरी मल गई। मेरी माँ भी आ थक प से कमज़ोर प रवार से ह) क पृ भू म से होने को
यान म रखते ए, मेरे लए एक अ छ नौकरी खोजना ब त मह वपूण था। फर भी, म
अपने आईएएस के सपने को आगे बढ़ाना चाहता था। आ यजनक प से, मेरे माता- पता
ने मुझे पूण सहयोग दया और मुझे अपना सपना साकार करने का अवसर दया। सभी ने
मेरे माता- पता को पागल कहा। फर भी, वे मेरे साथ खड़े रहे।
11व क ा म वेश पाने के पहले स ताह म कताब क एक कान पर लटक ई
प का ने मेरा यान आक षत कया। उस अंक के कवर पेज पर ी एस. नागराजन
(रक-1, CSE 2005) क त वीर छपी ई थ । इन त वीर ने मुझे उस प का को ख़रीदने
के लए मजबूर कर दया। परंतु अफ़सोस इस बात का था क मुझे उस प का म कुछ भी
समझ नह आया। मुझे तब एहसास आ क मेरी अँ ेज़ी कतनी ख़राब है। मने फ़ैसला
कया क IAS परी ा को लयर करने के लए मुझे पहले इं लश सीखनी चा हए। मने
अपनी रणनी त तैयार क ।
उस समय, म रोज़ाना बस से 26 कमी र कॉलेज (जो तुमकुर म था) क या ा करता
था। मने केवल वी डयो-कोच-बस से या ा करने का फ़ैसला कया। मने क ड़ और तेलुगु
फ म के संवाद का अनुवाद अँ ेज़ी म करना शु कर दया। जब भी मुझे कसी क ठनाई
का सामना करना पड़ता था, तो म उस वा य को लख लेता था और अगले दन अँ ेज़ी के
श क के साथ चचा करके उ ह समझ लेता था। म हमेशा मन ही मन अँ ेज़ी के वा य को
बनाता रहता था। मने 3 महीने तक सफ़ और सफ़ अँ ेज़ी को जया। इससे मुझे अँ ेज़ी
पर पकड़ बनाने म वा तव म मदद मली।
जब म 12व क ा म था तो दो वचार मुझे बार-बार परेशान करते थे।
पहला—अगर म IAS लयर नह कर पाया तो या होगा? या म जीवन को
व थत कर पाऊँगा?
सरा—म इन मान वक वषय को ख़ुद ही पढ़ सकता था। या मुझे इसे एक
नय मत पाठ् य म के प म आगे पढ़ना चा हए? या मुझे कोई अ य ोफ़ेशनल कोस
करना चा हए?
फर, मेरे कॉलेज के सपल ी एन.पी. रव नाथ जी ने सभी शंका को र करते
ए मुझे आ म व ास दान कया। उ ह ने मुझे बैचलर ऑफ़ बजनेस मैनेजमट (बीबीएम)
करने और फर एमबीए करने का सुझाव दया।
एमबीए करने के बाद, मुझे एक सामुदा यक संगठन के बारे म पता चला जो IAS
उ मीदवार के लए मु त बो डग, लॉ जग और को चग क सु वधा दे ता था। जब मने उनसे
संपक कया, तो मुझे अपमा नत कया गया। इसने फर से मेरे संक प को मज़बूत कर
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म राज थान के बाड़मेर ज़ले का रहने वाला ।ँ मेरा बचपन गाँव म बीता और
हाई कूल तक क पढ़ाई ामीण कूल म ई। प रवार म स वल सेवा म तो कोई नह था,
ले कन कई लोग व भ सरकारी सेवा म थे। 2009 म जब मने दसव लास म कूल
टॉप कया, तो मेरे श क ने मुझे व ान वषय चुनने के लए ो सा हत कया। मेरे
अ भभावक ने शु आत से ही मुझे वतं ता द क म अपनी च का वषय पढूँ ।
इंटरमी डयट म मने ज़ला तर पर छठा थान हा सल कया।
इसके बाद सबने मुझे कहा क आपको कोटा जाकर आई.आई.ट . क तैयारी करनी
चा हए। ले कन मने जयनारायण ास व व ालय, जोधपुर म बी.एस.सी. म दा ख़ला ले
लया। इसके पीछे कारण यह था क अपनी पृ भू म के कारण म सरकारी श ण सं थान
और हद मा यम के साथ यादा सहज था। बी.एस.सी. के अं तम वष 2014 म मने
स वल सेवा परी ा के बारे म सोचा, य क अब तक मुझे समझ आ चुका था क यह सेवा
बेहद व तृत लेटफ़ॉम पर काय करने का अवसर दान करती है। साथ ही, मेरे जैसी
पृ भू म के लोग नथमल जी और कानाराम जी को मने सफल होते दे खा था, तो मेरा
व ास और सु ढ़ हो गया।
बी.एस.सी. करने के साथ मने सी.डी.एस. और अ स टट कमांडट के ए ज़ाम दए,
साथ ही मुझे 2-3 बार एस.एस.बी. इंटर ू दे ने का भी मौक़ा मला, ले कन उसम सफलता
नह मली। ेजुएशन पूरी होने के बाद म द ली आ गया। अ ू बर 2014 म मने न य
कया क अगले वष स वल सेवा परी ा म ह सा लूँगा। इसी दौरान मने जे.एन.यू. म
एम.ए. हद म वेश ले लया और हद सा ह य को वैक पक वषय चुनकर तैयारी शु
कर द । पहले यास म ही ारं भक परी ा उतीण होने से मेरा आ म व ास काफ़ बढ़
गया। ले कन पाठ् य म के पूण नह हो पाने तथा समय बंधन क सम या के कारण म
उ र लेखन अ यास नह कर पाया। इस वजह से म मु य परी ा म महज़ 16 अंक से
असफल हो गया।
थम यास म असफलता से म ब कुल भी वच लत नह आ और मने अगले
यास के लए कमर कस ली। जे.एन.यू. म मेरी क ा के सा थय के सकारा मक सहयोग,
पु तकालय के सा थय के मागदशन और ोफ़ेसस क पढ़ाने क शैली ने मेरी समझ को
वक सत कया, जससे मेरी राह काफ़ सुगम हो गई। सरे यास के लए मेरी अ छ -
ख़ासी तैयारी हो गई थी। साथ ही मेरे एम.ए. हद के सहपा ठय के साथ दे श- नया के
समसाम यक मुदद् पर व थ बहस ने मेरी जानकारी को बढ़ाया और मेरे व को भी
नखारा। इसी का प रणाम था क इस बार मुझे ज़बद त सफलता मली और मने स वल
सेवा परी ा 2016 म ऑल इं डया 33व रक ा त क । मुझे IAS म गुजरात कैडर मला
है।
स वल सेवा परी ा क तैयारी करने वाले परी ा थय को मेरी यही सलाह है क
नकारा मकता एवं डर को अपने ज़ेहन म थान न द। आपक पृ भू म और परी ा का
मा यम आ द आपक सफलता म बाधा नह ह। यू.पी.एस.सी. म सफल होने हेतु अनवरत
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भरतपुर ज़ले के गाँव जघीना के खेती- कसानी के दे हाती प रवेश म मेरा बचपन
बीता। बचपन से ही पताजी ने स वल सेवा के त आकषण पैदा कया। ामीण पृ भू म
के कारण स वल सेवा के त मेरा आकषण नरंतर बढ़ता रहा। आमजन क सम या के
समाधान एवं रा - नमाण के प म स वल सेवा मेरे लए एक मशन बन गया था।
मेरी पा रवा रक पृ भू म एक न न-म यवग य ामीण प रवार से जुड़ी ई है। बचपन
से ही कृ ष एवं अ य ग त व धय म मेरा य अनुभव रहा है। पताजी अ यापक थे और
माताजी गृ हणी। हम तीन भाई-बहन ह। बड़ी बहन ने जीव- व ान म पीजी कया है और
छोटा भाई एम.बी.ए. के बाद बगलु म एक ब रा ीय कंपनी म कायरत है। स वल सेवा म
जाने का सपना मेरे साथ मेरे पताजी का भी था। एक सड़क घटना म पताजी के
आक मक दे हावसान के बाद नया काफ़ बदल गई। प रवार एवं आ थक संघष के प म
जीवन के कई सारे उतार-चढ़ाव को दे खा। परंतु स वल सेवा म जाने का सपना अब और
भी यादा ढ़ हो गया। पुणे से इंजी नय रग करने के बाद अपनी व ीय बा यता को पूरा
करने के लए लगभग तीन वष तक नौकरी क । वष 2013 म द ली आ गया।
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इ मा अफ़रोज़, उ र दे श
मेरा नाम इ मा अफ़रोज़ है। स वल सेवा परी ा म 217 रक के साथ मुझे भारतीय
पु लस सेवा ( हमाचल दे श कैडर) आवं टत क गई। मेरा घर क़ बा कु दरक , ज़ला
मुरादाबाद म है। नया भर म मुरादाबाद पीतलनगरी के नाम से मश र है। हमारे यहाँ के
नरमंद कारीगर बड़ी मेहनत से ह त श प बनाते ह। मुरादाबाद क ग लय म अपने फ़न म
मस फ़ कारीगर से ‘स टे नेबल ोड ट् स’ का पहला पाठ सीखा।
मेरे पता एक कसान थे। हर साल अ ैल म कूल का नया स शु होता। अ ैल म
ही गे ँ क फ़सल सरकारी लेवी पर दे कर मेरे बाबा, फर फ़ौरन ही शहर जाके मेरी और भाई
क कताब, प सल लाते थे। मुझे MSP का फ़ल फ़ॉम तो नह पता था तब, ले कन मेरी
कताब का बंडल ज़ र आ जाता था।
कभी कसी काम से बाबा अगर ज़ला कल े ट या SDM साहब के कायालय जाते थे,
तो म भी साथ चली जाती थी। गाँव-गाँव से ज़ रतमंद क भीड़ आई होती थी।
म 14 साल क थी जब मेरे बाबा का दे हांत हो गया। मेरी अ मी ने मेरे छोटे भाई क
और मेरी परव रश ख़ुद क । उ ह अ सर सुनना पड़ता था क, “ल डया को इतना सर पे
मत बठाओ। यह तो जाने क चीज़ है, सरे के घर क हो जागी।”
अ मी ने मुझे जीवन म संघष एवं कड़ी मेहनत, लगन एवं अटू ट व ास के ज़ रये
अपने पैर के नीचे क ज़मीन ढूँ ढ़ने क , नरंतर आगे बढ़ने क सीख द । शकायत करने,
क मयाँ नकालने के बजाय व त और हालात क आँख म आँख डालकर मुक़ाबला करना
सखाया। ख़ा मयाँ, चुनौ तयाँ चाह कतनी भी ह , अ मी हमेशा सखाती ह क, तुझे अजुन
जी क तरह सफ़ मछली क आँख दखनी चा हए।
एक बार छा वृ के काम से म कल े ट गई थी। द तर के बाहर खड़े सफ़ेद वद
वाले अदली ने कहा “ कसी बड़े के साथ आओ। ब च का या काम..?” म सीधे अंदर चली
गई। कूल क वद म एक छा ा को दे खकर डीएम साहब मु कुराये, मेरे फ़ॉम पर ह ता र
कया और बोले—“ स वल स वसेज वॉइन करो इ मा!”
द ली यू नव सट के त त सट ट फ़स कॉलेज से मने दशनशा म बी. ए. ऑनस
ड ी हा सल क । जो तीन साल मने सट ट फ़स कॉलेज के ांगण म बताए वो अब तक
क मेरी ज़दगी के सबसे यारे साल ह।
सट ट फ़स कॉलेज म हर शु वार क दोपहर होने वाली दशनशा स म त क
बैठक म मने ख़ुद से पेपर लखकर, वषय व तु पर लाजवाब व ान से शा ाथ करने का
अनूठा अनुभव ा त कया। सट ट फ़स कॉलेज म दशनशा क लास म जैन दशन के
‘अनेकांतवाद’ एवं ‘ यादवाद’ को पढ़ा था। ऑ सफ़ोड यू नयन म वाद- ववाद करते ए,
यहाँ वचार क व वधता म, जीवन शै लय क ब लता म भारतीय दशन को आ मसात
करने का लाभ मला। भारतीय दशन वषय मने कमयोग पढ़ा। कम येवा धकार ते मा
फलेषु कदाचन…यानी आस र हत होकर कम करना चा हए।
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सर क ग़ल तय से सीखना ज़ री
लखन सह यादव, राज थान
वषय पर वशेष यान दया। और आ ख़र म 565 रक के साथ सफल सूची म थान बना
पाया।
मेरी सफलता कोई सही रणनी त या तभा क कहानी नह है, ब क असफलता और
उससे मले अनुभव क कहानी है। एक मेरे जैसे होते ह, जो अपने अनुभव से सीखते
ह। अनुभव से सीखना अ छा होता है, ले कन इसम सम या यह है क आप अपने जीवन के
कुछ अमू य वष बबाद कर दे ते ह। इस लए ज़ री नह क ख़ुद क ग़ल तय से ही सीखा
जाए। जो लोग ग़लती कर चुके ह, हम उनक ग़ल तय से सीख लेनी चा हए। आशा करता ँ
क आपको मेरी ग़ल तय से सीख मलेगी।
अ य थय को मेरी सलाह यही रहेगी क परी ा से जुड़ी ग़लतफ़ह मय से र रह।
अपने आप पर भरोसा कर। चाहे आपका पहला यास हो या आ ख़री, उसे पूरे मन से द।
अपने आप को कसी से कम न समझ। जस मा यम म परी ा दे रहे ह, उस मा यम के लए
बे फ़ रह। ऐसी संगत को याग, जो हमेशा नराशावाद बात करती ह। पढ़ाई के दौरान
सोशल मी डया से र रहगे तो अ छा होगा, परंतु अपने आप पर अ याचार भी न कर। एक
सीमा तक लोग से मल और बात भी कर। य क आपको एक दन या एक ह ते नह
पढ़ना ब क कई महीन तक पढ़ना है। मनोरंजन हम ऊजा दे ता है। सफ़ इकलौता येय
UPSC ही नह हो सकता। कुछ-न-कुछ योजना भी होनी चा हए। म आपको मायूस नह
करना चाहता, पर अ छा योजनाकार वही होता है, जो आगे का आपदा बंधन आज ही
करके चले। म अपने अनुभव से यह बता सकता ँ क तैयारी के दौरान मुझे कभी यह चता
नह ई क य द आईएएस म चयन नह आ तो या होगा। य क मेरे पास एक अ छा
जीवन बताने के लए जैसी नौकरी चा हए, वैसा रोज़गार था।
मेथड् स का योग कया। ी ल स के तुरंत बाद मने अपने वषय पर फ़ोकस कया, ता क
य द ी ल स लयर न हो तो एम.ए. फ़ाइनल के लए समाजशा तैयार हो सके।
अ ू बर म ी म चयन हो जाने के बाद मने चार सामा य ान के पेपस पर यान
दया। इन सबके साथ प काएँ और यूज़पेपस के ारा नवीनतम जानका रयाँ, दे श- नया
म होने वाली घटनाएँ, उन पर वशेष के लेख आ द के ारा राय बनाने म मदद मली।
नबंध के लए मने अलग से कसी वशेष टॉ पक पर तैयारी नह क ; परंतु कसी भी
वषय पर लेख लखने का तरीक़ा मवार होना चा हए, यह ‘ तयो गता दपण’ के लेख से
सीखा। मने कसी भी वषय क शु आत व भ पहलू और अंत म न कष लखते ए
नबंध लखना सीखा।
इंटर ू के लए मने करट अफ़ेयस पर सबसे यादा यान दया। व भ मुदद् पर
या और कैसे राय रखी जाए, इस पर ै टस क । य प मने कसी सं थान म कोई मॉक
इंटर ू नह दया, परंतु अपने पता के सम सा ा कार क ै टस क । मेरा सा ा कार
हेमचंद गु ता सर के बोड म था। बोड ने मुझसे मेरे DAF फ़ॉम, गुजर आंदोलन, रा ीय
या यक आयोग, बाल अपराधी क उ कम करने, सी रय स का समाज पर भाव,
26/11 के आतंक हमले के समय मी डया क भू मका एवं क मीर सम या जैसे मुदद् पर
कया। मेरा सा ा कार पूण प से हद म आ। इस कार मने पूरी तैयारी म बग़ैर
कसी को चग के सी.एस.ई. 2014 परी ा का च पूरा कया।
के सहारे म केट खेलता तो कभी मुझे कबड् डी या दौड़ का रेफ़री बना दया जाता ता क
म उनके झगड़े नपटा सकूँ। इस सब के दौरान मने हमेशा यह महसूस कया क ब च का
रवैया बड़ क अपे ा यादा सहयोगा मक होता है।
मेरे माता- पता मेरी पढ़ाई को लेकर ब त च तत रहते थे। मेरी म मी को कभी पढ़ने-
लखने का मौक़ा नह मला और मेरे पापा बस पाँचव क ा तक पढ़ सके। उ ह ऐसा कोई
तरीक़ा मालूम नह था जससे एक बा धत ब चे को पढ़ाया जा सके। एक दन मेरे
द ली म नौकरी करने वाले एक ताऊ जी डीट सी क बस म या ा कर रहे थे। उ ह ने एक
ने हीन लड़के को हाथ म एक घड़ी पहने दे खा, जो घड़ी को छू कर व त बता रहा था। मेरे
ताऊ जी यह दे खकर च के और उ ह ने उससे पूछ-ताछ क । इस तरह वह ने हीन ब च का
एक कूल ढूँ ढ़ पाए और यह मेरी ज़दगी का एक ‘ट नग वाइंट’ बन गया।
इस कूल ने मेरी ज़दगी बदल द । इस कूल म तकनीक का योग कर पढ़ाई को
आसान बनाया जाता था। मने पहले ेल पढ़ और फर क यूटर पर काम कया। म
रकॉडड कताब के ओ डयो ख़ूब सुनता था। मेरे कूल ने मुझे आ म व ास और
आ म नभरता सखायी और सखाया क ‘कुछ भी नामुम कन नह है।’
आज जब म मुड़कर दे खता ँ तो पाता ँ क हमारी ज़दगी म छोट से छोट घटना
बड़ा बदलाव ला सकती है। न मेरे ताऊ जी उस दन उस लड़के को ेल घड़ी पहने दे खते
और न मुझे कभी मेरा लाइंड कूल मलता। आज म एक 27 साल का ने हीन कसान
होता, जो ख़ुद को अपने सा थय के सामने माट दखाने क को शश कया करता था।
जब म बारहव म था, तो मने द ली यू नव सट के सट ट फ़ंस कॉलेज के बारे म सुन
रखा था। म उस कॉलेज म वेश लेना चाहता था और आ ख़रकार मेरा उसी कॉलेज म वेश
हो गया। मेरा कूल एक हद मी डयम कूल था, जब क मेरा कॉलेज पूरी तरह अँ ेज़ी
मी डयम। मुझे इं लश यादा नह आती थी। जतनी दे र म म अपने श क के कहे एक
वा य का मतलब समझ पाता, उतने म तो वे श क पाँच वा य और बोल दया करते थे।
मने इं लश बोलने क को शश क तो ब त से दो त ने मेरा मज़ाक़ उड़ाया। मेरे कुछ दो त
ने सलाह द क म ये कॉलेज ॉप कर कसी हद मी डयम कॉलेज म वेश ले लू।ँ पर म
वह पढ़ना चाहता था।
इस सम या से नपटने के लए मने एक तरीक़ा नकाला। मने NCERT क कताब
इं लश म डाउनलोड क । ये कताब मने हद म पढ़ रख थ , अब मने ये कताब (तीसरी
क ा से लेकर बारहव तक) इं लश म पढ़नी शु क । जैस-े जैसे म इन कताब को पढ़ते-
पढ़ते बारहव क इ तहास क कताब तक प ँचा, मने पाया क मुझे लास के ले चर
समझ म आने लगे थे। श क भी अब मेरी शंसा करने लगे।
मने जेएनयू से राजनी त और अंतररा ीय स ब ध म एम.ए. कया। म हमेशा एक
ोफ़ेसर बनना चाहता था। मुझे 2015 म एक मौक़ा मल भी गया। मुझे ी अर बद कॉलेज
म एड हॉक अ स टट ोफ़ेसर चुन लया गया। तब से अब तक म वहाँ पढ़ा रहा ।ँ पढ़ाना
मेरा पसंद दा काम है और म इसे एंजोय भी कर रहा था।
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इस बीच लगा क ज़दगी म कुछ अधूरापन है। मुझे महसूस आ क मुझे अपने लए
एक यादा ापक पहचान क ज़ रत है, जससे म चीज़ म सकारा मक बदलाव ला
सकूँ। मने बचपन से वकलांगता के बारे म तमाम पूवा ह, प पात और ट रयो टाइप दे खे
थे, ज ह म तोड़ना चाहता था। तो मने स वल सेवा क परी ा द ।
पहले यास को ग भीरता से न लेने के कारण असफल रहा। सरे यास म काफ़
बीमार रहने से नुक़सान आ और इंटर ू कॉल पाने से 9 अंक से चूक गया। तीसरे यास
म सब ठ क रहा और 714व रक मली। अब मुझे लगता है क मुझे बेहतर रक मल सकती
थी। इस लए, अब पूरी तरह सम पत होकर दोबारा यास क ँ गा।
म आपसे यही क ँगा क हम सबक कुछ क मयाँ और सीमाएँ होती ह। पर उ ह
अपनी राह म बाधा न बनने द।
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हाफ़ पट और मटमैला बुशट पहन धूल उड़ाते ए मवे शय को चरते जाते दे खना या
सबके साथ बस खेलते रहना। कभी पुरानी कताब के ढे र से कोई कहानी क कताब ढूँ ढ़
नकालना और धूल साफ़ कर एक बार म पढ़ जाना। कभी कट पतंग के पीछे भागना, कभी
गौरेया का पीछा करना। मछली पकड़ना, बेर तोड़ना, कलेवा लेके खेत पे बाबा के पास
जाना और मौक़ा मलते ही खेत के ट् यूबवेल पे नहाना। झोला लेके कूल जाना, बोरे पे
बैठना और अं तम घंट बजने का इंतज़ार करना। गरमी म खुले आसमान के नीचे तारे गन
सोना, बा रश म भीगना और खेलना, ठं ड म पुआल क गम म ब तर बना लेना और उन द
रात म बड़े-बड़े सपने दे खना। कुछ ऐसा सुनहरा था मेरा बचपन।
दे खते-दे खते बचपन बीत गया और नातक और फर MBA भी हो गया। 2010 म
MBA पूरा करते ही कोल इं डया ल मटे ड म नौकरी लग गई। 2010 एक और वजह से
यादगार साल रहा। इसी साल मेरे पताजी क नौकरी भी माननीय सु ीम कोट के आदे श से
बहाल ई, 22 साल क लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद। बहरहाल इस 22 साल के संघष ने
काफ़ कुछ सखाया-बताया। माता- पता ने खेती कसानी क , अभाव दे खे, मु कल व त
बताया, ले कन हम हमेशा बड़े सपने दे खने को े रत कया।
म बहार के एक ज़ले जमुई के एक गाँव मलयपुर से ँ। बहारी होने के नाते स वल
स वस के बारे म ब त सुन रखा था। मेरे पताजी हमेशा से ये चाहते थे क म UPSC ँ और
लोक सेवा के े म आऊँ, हालाँ क म अपने आप को औसत छा मानते ए इस प रचचा
से र रखने क को शश करता था।
MBA के बाद कोल इं डया ल मटे ड क अ छ नौकरी। शायद जतना मने सोचा था
या जतना म अपने को यो य मानता था, उस से बेहतर। म ख़ुश था और इसी तरह दन,
महीने और कुछ साल बीत गए। ले कन कह कुछ तो ऐसा था, जो चुभ रहा था। कई सवाल
मन म उमड़-घुमड़ रहे थे। या मुझे कह और होना चा हए? या म कह और बेहतर कर
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मेरा ज म राज थान के पाली ज़ले म एक गाँव सोजत म आ था। प रवार म मेरी माँ,
बड़ी बहन और बड़ा भाई थे। मेरी माँ एक पढ़े - लखे क मीरी प रवार से थी। मेरे ज म के
दस महीने प ात ही मेरे पता जी द ली चले गए थे। पता जी के द ली जाने के बाद मेरी
माँ ने पास के छोटे से कूल म पढ़ाना शु कर दया। पतृस ा मक समाज म अकेली माँ
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कारण म हतो सा हत हो जाता था। मने बारा एस.एस.सी. क परी ा द , इस बार मेरी
अ छ रक होने के कारण मुझे द ली म आयकर नरी क का पद मला। फ़रवरी 2014 म
मने द ली वॉइन कया।
द ली आने के बाद मने कुछ को चग म लासेज़ ली, ले कन उनके पढ़ाने के तरीक़े
मुझे पसंद नह आए तो मने से फ़ टडी का ही नणय लया। तीन यास म म ारं भक
परी ा भी नह उ ीण कर पाया था। मेरा ख़ुद से व ास उठने लगा था, सारी ऊजा लगाने
के बाद भी कुछ प रणाम नह नकल रहा था।
इसी बीच घर वाले शाद के लए दबाव बनाने लगे, य क मेरी सगाई 2012 म ही हो
गई थी तो 2015 म मेरी शाद हो गई। शाद के बाद मेरी प नी और मेरे एक म ने मुझे
अगले यास के लए न केवल ो सा हत कया, ब क हमेशा मेरा हौसला भी बढ़ाया, मेरी
क मयाँ र करने म मेरी मदद क । 2016 म मुझे सा ा कार के लए बुलाया गया। फर वही
आ, अं तम प रणाम म म 8 नंबर से बाहर हो गया। 31 मई को प रणाम आया था, मने तय
कर लया था क अब और नह ।
2 दन तक यही सोचता रहा क कताब कबाड़ी को बेच दे ता ँ। एक दोपहर अपने घर
के बालकनी म कबाड़ी का इंतज़ार कर रहा था क पीछे से प नी सुनीता आई और बोली,
“इतने दन टडी क है, बस 4 महीने क बात है, एक बार और को शश करो।” उसके इस
व ास ने मेरा दमाग़ बदला और मने पूरी मेहनत से एक बार फर परी ा म बैठने का
फ़ैसला लया। इस बार मने अपने पछले यास क क मय को र कया और आ ख़रकार
574 रक के साथ चय नत आ। मेरे आस पास के 15 गाँव म मेरा आज तक का पहला
चयन था। जब म घर गया तो क़रीब 2-3 हज़ार लोग मेरे वागत के लए खड़े थे। पूरे गाँव ने
साथ रहकर मेरी सफलता का ज मनाया।
मने हमेशा अपने चयन को सफलता न मानकर बस एक अवसर माना है, जो मुझे उन
लोग के ख र करने म स म बनाएगा, जनक परेशा नय को मने नज़द क से जाना है।
अंत म इतना ही क ँगा…
ज़दगी क असली उड़ान अभी बाक़ है,
ज़दगी का असली इ तहान अभी बाक़ है ।
अभी तो नापी है मुट्ठ भर ज़मीन हमने,
अभी तो सारा आसमान बाक़ है ।