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अनक्र
ु भणणका
प्रस्तावना 10
10
: 11
12
13
13
15
-ज - - - 17
17
: 18
- 19
ज - 20
ज 21
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22
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26
27
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द्खद ननभॊत्रण 58
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ख 63
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95
प्रसन्नता औय हास्म 97
- 99
- 99
100
101
102
102
103
104
108
110
- 116
जागत
ृ हो बायत साया... 122
ज ... 127
आयती ॐ ज ज 128
/ 130
आज आ ,
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आ :
ज
प्रस्तावना
ज आ फारक
आगे चरकय जी जैसे वीयों, एकनाथजी जैसे सॊत-भहाऩुरूषों एवॊ श्रवण कुभाय जैसे
भात-ृ पऩतब
ृ क्तों के जीवन का अनुसयण कयके सवाांगीण उन्नतत कय सकें इस हे तु फारकों भें
उत्तभ सॊस्काय का ससॊचन फहुत आवश्मक है । फचऩन जज ,
ज , ज
हॉसते-खेरते फारकों भें शुब सॊस्कायों का ससॊचन ककमा जा सकता है । नन्हा फारक कोभर
ऩौधे की तयह होता है , उसे जजस ओय भोड़ना चाहें , भोड़ सकते हैं। फच्चों भें अगय फचऩन से ही
शुब सॊस्कायों का ससॊचन ककमा जाए तो आगे चरकय वे फारक पवशार वटवऺ
ृ के सभान
पवकससत होकय बायतीम सॊस्कृतत के गौयव की यऺा कयने भें सभथथ हो सकते हैं।
पवद्माथॉ बायत का बपवष्म, पवश्व का गौयव एवॊ अऩने भाता-पऩता की शान है । उसके
अॊदय साभर्थमथ का असीभ बॊडाय छुऩा हुआ है । उसे प्रगट कयने हे तु आवश्मक है सस
ु ॊस्कायों का
ससॊचन, उत्तभ चारयत्र्म-तनभाथण औय बायतीम सॊस्कृतत के गौयव का ऩरयचम। इन्हीॊ पवषमों ऩय
प्रकाश डारा गमा है । उन्हीॊ के आधाय ऩय सयर, सफ
ु ौध शैरी भें फाराऩमोगी साभग्री का सॊकरन
कयके फार सॊस्काय नाभ ददमा गमा है । मह ऩस्
ु तक प्रत्मेक भाता-पऩता एवॊ फारकों के सरए
उऩमोगी ससद्ध होगी, ऐसी आशा है ।
पवनीत
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ददनचमाथ
1. फारकों को प्रात् सम
ू ोदम से ऩहरे ही उठ जाना चादहए। - आ
ज
ॐ ज ज |
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2. शौच-स्नानादद से तनवत्त
ृ होकय प्राणामाभ, जऩ, ध्मान, त्राटक, बगवदगीता का ऩाठ कयना
चादहए।
5. अध्ममन से ऩहरे थोड़ी दे य ध्मान भें फैठें। इससे ऩढा हुआ सयरता से माद यह जाएगा। जो बी
पवषम ऩढो वह ऩूणथ एकाग्रता से ऩढो।
6. बोजन कयने से ऩूवथ हाथ-ऩैय धो रें। बगवान के नाभ का इस प्रकाय स्भयण कयें -
ॐ ब्रह्भाऩथणॊ ब्रह्भ हपवब्रह्भाग्नौ ब्रह्भणा हतभ ्। ब्रह्भैव तेन गन्तव्मॊ ब्रह्भकभथसभाधधना।।
प्रसन्नचचत्त होकय बोजन कयना चादहए। फाजारू चीज़ नहीॊ खानी चादहए। बोजन भें हयी सब्जी
का उऩमोग कयना चादहए।
7. फच्चों को स्कूर भें तनमसभत रूऩ से जाना चादहए। अभ्माभ भें ऩूणथ रूऩ से ध्मान दे ना चादहए।
स्कूर भें योज-का-योज कामथ कय रेना चादहए।
8. शाभ को सॊध्मा के सभम प्राणामाभ, जऩ, ध्मान एवॊ सत्सादहत्म का ऩठन कयना चादहए।
प्रात् ऩानी प्रमोग कयने से रृदम, रीवय, ऩेट, आॉत के योग एवॊ ससयददथ , ऩथयी, भोटाऩा,
वात-पऩत्त-कप आदद अनेक योग दयू होते हैं। भानससक दफ
ु र
थ ता दयू होती है औय फुद्चध तेजस्वी
फनती है । शयीय भें काॊतत एवॊ स्पूततथ फढती है ।
1. भ्राभयी प्राणामाभ्
पवधध् सवथप्रथभ दोनों हाथों की उॉ गसरमों को कन्धों के ऩास ऊॉचा रे जामें। दोनों हाथों की
उॉ गसरमाॉ कान के ऩास यखें। गहया श्वास रेकय तजथनी उॉ गरी से दोनों कानों को इस प्रकाय फॊद
कयें कक फाहय का कुछ सुनाई न दे । अफ होंठ फॊद कयके बॉवये जैसा गॊज
ु न कयें । श्वास खारी होने
ऩय उॉ गसरमाॉ फाहय तनकारें।
राब् वैऻातनकों ने ससद्ध ककमा है कक भ्राभयी प्राणामाभ कयते सभम बॉवये की तयह
गुॊजन कयने से छोटे भजस्तष्क भें स्ऩॊदन ऩैदा होते हैं। इससे एसीटाईरकोरीन, डोऩाभीन औय
प्रोटीन के फीच होने वारी यासामतनक प्रकक्रमा को उत्तेजना सभरती है । इससे स्भतृ तशजक्त का
पवकास होता है । मह प्राणामाभ कयने से भजस्तष्क के योग तनभर
ूथ होते हैं। अत् हय योज़ सुफह
8-10 प्राणामाभ कयने चादहए।
3. सूमथ को अर्घमथ् सूमोदम के कुछ सभम फाद जर से बया ताॉफे का करश हाथ भें रेकय
सम
ू थ की ओय भख
ु कयके ककसी स्वच्छ स्थान ऩय खड़े हों। करश को छाती के सभऺ
फीचोफीच राकय करश भें बये जर की धाया धीये -धीये प्रवादहत कयें । इस सभम करश
के धाया वारे ककनाये ऩय दृजष्टऩात कयें गे तो हभें हभें सम
ू थ का प्रततत्रफ्फ एक छोटे से
त्रफॊद ु के रूऩ भें ददखेगा। उस त्रफॊद ु ऩय दृजष्ट एकाग्र कयने से हभें सप्तयॊ गों का वरम
ददखेगा। इस तयह सम
ू थ के प्रततत्रफ्फ (त्रफॊद)ु ऩय दृजष्ट एकाग्र कयें । सम
ू थ फद्
ु चधशजक्त के
स्वाभी हैं। अत् सम
ू ोदम के सभम सम
ू थ को अर्घमथ दे ने से फद्
ु चध तीव्र फनती है ।
4. सूमोदम के फाद तुरसी के ऩाॉच-सात ऩत्ते चफा-चफाकय खाने एवॊ एक ग्रास ऩानी ऩीने
से बी फच्चों की स्भतृ तशजक्त फढती है । तुरसी खाकय तुयॊत दध
ू न ऩीमें। मदद दध
ू
ऩीना हो तो तुरसी ऩत्ते खाने के एक घण्टे के फाद ऩीय़ें।
5. यात को दे य यात तक ऩढने के फजाम सुफह जल्दी उठकय, ऩाॉच सभनट ध्मान भें फैठने
के फाद ऩढने से फारक जो ऩढता है वह तुयॊत माद हो जाता है ।
प्राणामाभ
जजस प्रकाय एरौऩैथी भें फीभारयमों का कायण जीवाणु, प्राकृततक चचककत्सा भें पवजातीम
तत्त्व एवॊ आमव
ु ेद भें आभ यस (आहाय न ऩचने ऩय नस-नाडड़मों भें जभा कच्चा यस) भाना गमा
है उसी प्रकाय प्राण चचककत्सा भें योगों का कायण तनफथर प्राण भाना गमा है । प्राण के तनफथर हो
जाने से शयीय के अॊग-प्रत्मॊग ढीरे ऩड़ जाने के कायण ठीक से कामथ नहीॊ कय ऩाते। शयीय भें
यक्त का सॊचाय प्राणों के द्वाया ही होता है । अत् प्राण तनफथर होने से यक्त सॊचाय भॊद ऩड़ जाता
है । ऩमाथप्त यक्त न सभरने ऩय कोसशकाएॉ क्रभश् कभजोय औय भत
ृ हो जाती हैं तथा यक्त ठीक
तयह से रृदम भें न ऩहुॉचने के कायण उसभें पवजातीम द्रव्म अचधक हो जाते हैं। इन सफके
ऩरयणाभस्वरूऩ पवसबन्न योग उत्ऩन्न होते हैं।
प्राणामाभ के राब्
3. प्राणामाभ कयने से ऩाऩ कटते हैं। जैसे भेहनत कयने से कॊगारी नहीॊ यहती है ,
ऐसे ही प्राणामाभ कयने से ऩाऩ नहीॊ यहते हैं।
प्राणामाभ भें श्वास को रेने का, अॊदय योकने का, छोड़ने का औय फाहय योकने के सभम
का प्रभाण क्रभश् इस प्रकाय है ् 1-4-2-2 अथाथत मदद 5 सैकेण्ड श्वास रेने भें रगामें तो 20
सैकेण्ड योकें औय 10 सैकेण्ड उसे छोड़ने भें रगाएॊ तथा 10 सैकेण्ड फाहय योकें मह आदशथ
अनुऩात है । धीये -धीये तनमसभत अभ्मास द्वाया इस जस्थतत को प्राप्त ककमा जा सकता है ।
3. कॊ बक् अथाथत श्वास को योकना। श्वास को बीतय योकने कक कक्रमा को आॊतय कॊु बक
तथा फाहय योकने की कक्रमा को फदहकांु बक कहते हैं।
2. ऊजाथमी प्राणामाभ् इसको कयने से हभें पवशेष ऊजाथ (शजक्त) सभरती है , इससरए इसे
ऊजाथमी प्राणामाभ कहते हैं। इसकी पवचध है ्
ऩद्भासन मा सख
ु ासन भें फैठ कय गद
ु ा का सॊकोचन कयके भर
ू फॊध रगाएॊ। कपय नथन
ु ों,
कॊठ औय छाती ऩय श्वास रेने का प्रबाव ऩड़े उस यीतत से जल्दी श्वास रें । अफ नथन
ु ों को खर
ु ा
यखकय सॊबव हो सके उतने गहये श्वास रेकय नासब तक के प्रदे श को श्वास से बय दें । इसके
फाद एकाध सभनट कॊु बक कयके फाॉमें नथन
ु े से श्वास धीये -धीये छोड़ें। ऐसे दस ऊजाथमी प्राणामाभ
कयें । इससे ऩेट का शर
ू , वीमथपवकाय, स्वप्नदोष, प्रदय योग जैसे धातु सॊफॊधी योग सभटते हैं।
ध्मान भदहभा
ध्मान के सभान कोई तीथथ नहीॊ। ध्मान के सभान कोई दान नहीॊ। ध्मान के सभान कोई
मऻ नहीॊ। ध्मान के सभान कोई तऩ नहीॊ। अत् ध्मान कयना चादहए।
सफ
ु ह सम
ू ोदम से ऩहरे उठकय, तनत्मकभथ कयके गयभ कॊफर अथवा टाट का आसन
त्रफछाकय ऩद्भासन भें फैठें। ॐ, , ज
आ आ ज कपय दोनों हाथों को
ऻानभुद्रा भें घुटनों ऩय यखें। थोड़ी दे य तक को दे खते-दे खते त्राटक कयें ।
ऩहरे खर
ु ी आॉख आऻाचक्र भें ध्मान कयें । कपय आॉखें फॊद कयके ध्मान कयें ।
फाद भें गहया श्वास रेकय थोड़ी दे य अॊदय योक यखें , कपय ॐ... दीघथ उच्चायण कयते
हुए श्वास को धीये -धीये फाहय छोड़ें। श्वास को बीतय रेते सभम भन भें बावना कयें - भैं सदगुण,
बजक्त, तनयोगता, भाधम ु ,थ आनॊद को अऩने बीतय बय यहा हूॉ। औय श्वास को फाहय छोड़ते सभम
ऐसी बावना कयें - भैं द्ु ख, चचॊता, योग, बम को अऩने बीतय से फाहय तनकार यहा हूॉ। इस प्रकाय
सात फाय कयें । ध्मान कयने के फाद ऩाॉच-सात सभनट शाॉत बाव से फैठे यहें ।
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भॊत्र-भदहभा
भन की भनन कयने की शजक्त अथाथत एकाग्रता प्रदान कयके जऩ द्वाया सबी बमों का
पवनाश कयके, ऩूणथ रूऩ से यऺा कयनेवारे शब्दों को भॊत्र कहा जाता है । ऐसे कुछ भॊत्र औय उनकी
शजक्त तन्न प्रकाय है ्
1. हरय ॐ
हरय शब्द फोरने से मकृत ऩय गहया प्रबाव ऩड़ता है औय हरय के साथ मदद ॐ सभरा कय
उच्चायण ककमा जाए तो हभायी ऩाॉचों ऻानेजन्द्रमों ऩय अच्छी असय ऩड़ती है। सात फाय हरय ॐ का
गॊज
ु न कयने से भर
ू ाधाय केन्द्र ऩय स्ऩॊदन होते हैं औय कई योगों को कीटाणु बाग जाते हैं।
2. याभ्
यभन्ते मोगीन् मक्स्भन ् स याभ्। जजसभें मोगी रोग यभण कयते हैं वह है याभ। योभ योभ
भें जो चैतन्म आत्भा है वह है याभ। ॐ याभ... ॐ याभ... का हययोज एक घण्टे तक जऩ कयने
से योग प्रततकायक शजक्त फढती है , भन ऩपवत्र होता है , तनयाशा, हताशा औय भानससक दफ
ु र
थ ता दयू
होने से शायीरयक स्वास्र्थम प्राप्त होता है ।
3. ॐ सूमाथम नभ्।
4. ॐ सायस्वत्मै नभ्।
6. ॐ गॊ गणऩतमे नभ्।
इन भॊत्रों के जऩ से कोई बी कामथ ऩूणथ कयने भें आने वारे पवर्घनों का नाश होता है ।
ॐ ज ।ॐ ।ॐ ज ।
। ॐ। ज ॐ।
ज ज ,आ
ज
ज ज
आज ज , ज ,
ज औ
9. सगण भॊत्र् ॐ श्री याभाम नभ्। ॐ नभो बगवते वासदे वाम। ॐ नभ् लशवाम।
मे सगुण भॊत्र हैं, जो कक ऩहरे सगुण साऺातकाय कयाते हैं औय अॊत भें तनगण
ुथ
साऺात्काय।
जऩ-भदहभा
बगवान श्रीकृष्ण ने गीता भें कहा है , मऻानाभ ् जऩमऻो अक्स्भ। मऻों भें जऩमऻ भैं हूॉ।
श्री याभ चरयत भानस भें बी आता है ्
इस करमग
ु भें बगवान का नाभ ही आधाय है । जो रोग बगवान के नाभ
का जऩ कयते हैं, वे इस सॊसाय सागय से तय जाते हैं।
जऩ अथाथत क्मा? ज = जन्भ का नाश, ऩ = ऩाऩों का नाश।
ऩाऩों का नाश कयके जन्भ-भयण कयके चक्कय से छुड़ा दे उसे जऩ कहते हैं। ऩयभात्भा के
साथ सॊफॊध जोड़ने की एक करा का नाभ है जऩ। एक पवचाय ऩूया हुआ औय दस ू या अबी उठने
को है उसके फीच के अवकाश भें ऩयभ शाॊतत का अनुबव होता है । ऐसी जस्थतत राने के सरए जऩ
फहुत उऩमोगी साधन है । इसीसरए कहा जाता है ्
ज :
<> आ आ ज !!
<> ज ज !!
<> ज , औ !!
<> 12 !!
<> आ , , ,आ
!!
<> आ !!
<> !!
त्रत्रकार सॊध्मा
प्रात् सम
ू ोदम के 10 सभनट ऩहरे से 10 सभनट फाद तक, दोऩहय के 12 फजे से 10
सभनट ऩहरे से 10 सभनट फाद तक एवॊ शाभ को सम
ू ाथस्त के 10 सभनट ऩहरे से 10 सभनट फाद
तक का सभम सॊचधकार कहराता है । इड़ा औय पऩॊगरा नाड़ी के फीच भें जो सुषु्ना नाड़ी है , उसे
अध्मात्भ की नाड़ी बी कहा जाता है । उसका भुख सॊचधकार भें उध्वथगाभी होने से इस सभम
प्राणामाभ, जऩ, ध्मान कयने से सहज भें ज़्मादा राब होता है ।
अत् सुफह, दोऩहय एवॊ साॊम- इन तीनों सभम सॊध्मा कयनी चादहए। त्रत्रकार सॊध्मा कयने
वारों को असभट ऩुण्मऩुॊज प्राप्त होता है । त्रत्रकार सॊध्मा भें प्राणामाभ, जऩ, ध्मान का सभावेश
होता है । इस सभम भहाऩरू
ु षों के सत्सॊग की कैसेट बी सन
ु सकते हैं। आध्माजत्भक उन्नतत के
सरए त्रत्रकार सॊध्मा का तनमभ फहुत उऩमोगी है । त्रत्रकार सॊध्मा कयने वारे को कबी योज़ी-योटी
की चचॊता नहीॊ कयनी ऩड़ती। त्रत्रकार सॊध्मा कयने से असाध्म योग बी सभट जाते हैं। ओज़, तेज,
फुद्चध एवॊ जीवनशजक्त का पवकास होता है । हभाये ऋपष-भुतन एवॊ श्रीयाभ तथा श्रीकृष्ण आदद बी
त्रत्रकार सॊध्मा कयते थे। इससरए हभें बी त्रत्रकार सॊध्मा कयने का तनमभ रेना चादहए।
वाणी के सॊमभ हे तु भौन अतनवामथ साधन है । भनु ्ष्म अन्म इजन्द्रमों के उऩमोग से जैसे
अऩनी शजक्त खचथ कयता है ऐसे ही फोरकय बी वह अऩनी शजक्त का फहुत व्मम कयता है ।
मे नौ गुण इस प्रकाय हैं। 1. ककसी की तनॊदा नहीॊ होगी। 2. असत्म फोरने से फचें गे। 3.
ककसी से वैय नहीॊ होगा। 4. ककसी से ऺभा नहीॊ भाॉगनी ऩड़ेगी। 5. फाद भें आऩको ऩछताना नहीॊ
ऩड़ेगा। 6. सभम का दरू
ु ऩमोग नहीॊ होगा। 7. ककसी कामथ का फॊधन नहीॊ यहे गा। 8. अऩने
वास्तपवक ऻान की यऺा होगी। अऩना अऻान सभटे गा। 9. अॊत्कयण की शाॉतत बॊग नहीॊ होगी।
सुषुप्त शजक्तमों को पवकससत कयने का अभोघ साधन है भौन। मोग्मता पवकससत कयने के सरए
भौन जैसा सुगभ साधन दस
ू या कोई नहीॊ हैं।
सूमन
थ भस्काय
ऩजश्चभी वैऻातनक गाडथनय यॉनी ने कहा् सूमथ श्रैष्ठ औषध है । उससे सदॊ, खाॉसी,
न्मुभोतनमा औय कोढ जैसे योग बी दयू हो जाते हैं।
डॉक्टय सोरे ने कहा् सूमथ भें जजतनी योगनाशक शजक्त है उतनी सॊसाय की अन्म ककसी
चीज़ भें नहीॊ।
हे आदददे व सम
ू न
थ ायामण! भैं आऩको नभस्काय कयता हूॉ। हे प्रकाश प्रदान कयने वारे दे व!
आऩ भुझ ऩय प्रसन्न हों। हे ददवाकय दे व! भैं आऩको नभस्काय कयता हूॉ। हे तेजोभम दे व! आऩको
भेया नभस्काय है ।
मह प्राथथना कयने के फाद सूमथ नभस्काय आ कयें । कपय चचत्रों कें तनददथ ष्ट 12 जस्थततमों का
क्रभश् आवतथन कयें । मह एक सूमथ नभस्काय हुआ।
- ज ज
:-
1. ॐ लभत्राम नभ्।
2. ॐ यवमे नभ्।
3. ॐ सूमाथम नभ्।
4. ॐ बानवे नभ्।
5. ॐ खगाम नभ्।
6. ॐ ऩष्ू णे नभ्।
7. ॐ दहयण्मगबाथम नभ्।
8. ॐ भयीचमे नभ्।
9. ॐ आददत्माम नभ्।
11. ॐ :
: ज ज
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मौधगक चक्र
चक्र् चक्र आध्माजत्भक शजक्तमों के केन्द्र हैं। स्थूर शयीय भें मे चक्र चभथचऺुओॊ से नहीॊ
ददखते हैं। क्मोंकक मे चक्र हभाये सूक्ष्भ शयीय भें होते हैं। कपय बी स्थर
ू शयीय के ऻानतॊतुओ-ॊ
स्नामुकेन्द्रों के साथ सभानता स्थापऩत कयके उनका तनदे श ककमा जाता है ।
हभाये शयीय भें सात चक्र हैं औय उनके स्थान तन्नाॊककत हैं -
1. भूराधाय चक्र् गुदा के नज़दीक भेरूदण्ड के आणखयी त्रफन्द ु के ऩास मह चक्र होता है ।
7. सहस्राय चक्र् ससय के ऊऩय के बाग भें जहाॉ सशखा यखी जाती है वहाॉ मह चक्र होता
है ।
कछ उऩमोगी भद्राएॉ
प्रात् स्नान आदद के फाद आसन त्रफछा कय हो सके तो ऩद्भासन भें अथवा सुखासन भें फैठें।
ऩाॉच-दस गहये साॉस रें औय धीये -धीये छोड़ें। उसके फाद शाॊतचचत्त होकय तन्न भुद्राओॊ को दोनों
हाथों से कयें । पवशेष ऩरयजस्थतत भें इन्हें कबी बी कय सकते हैं।
लरॊग भद्रा् दोनों हाथों की उॉ गसरमाॉ ऩयस्ऩय बीॊचकय अन्दय की ओय यहते हुए
अॉगूठे को ऊऩय की ओय सीधा खड़ा कयें ।
ऩथ्
ृ वी भद्रा् कतनजष्ठका मातन सफसे छोटी उॉ गरी को अॉगूठे के नुकीरे बाग से
स्ऩशथ कयामें। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् शायीरयक दफ
ु र
थ ता दयू कयने के सरए, ताजगी व स्पूततथ के सरए मह भुद्रा
ऩथ्
ृ वी भद्रा अत्मॊत राबदामक है । इससे तेज फढता है ।
सूमभ
थ द्रा् अनासभका अथाथत सफसे छोटी उॉ गरी के ऩास वारी उॉ गरी को भोड़कय
उसके नख के ऊऩय वारे बाग को अॉगूठे से स्ऩशथ कयामें।
शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् शयीय भें एकत्रत्रत अनावश्मक चफॉ एवॊ स्थूरता को दयू कयने के सरए मह
सूमभ
थ द्रा एक उत्तभ भुद्रा है ।
ऻान भद्रा् तजथनी अथाथत प्रथभ उॉ गरी को अॉगूठे के नुकीरे बाग से स्ऩशथ
कयामें। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् भानससक योग जैसे कक अतनद्रा अथवा अतत तनद्रा, कभजोय मादशजक्त,
क्रोधी स्वबाव आदद हो तो मह भद्र
ु ा अत्मॊत राबदामक ससद्ध होगी। मह भद्र
ु ा
कयने से ऩज
ू ा ऩाठ, ध्मान-बजन भें भन रगता है ।
ऻान भद्रा इस भद्र
ु ा का प्रततददन 30 सभनठ तक अभ्मास कयना चादहए।
वरुण भद्रा् भध्मभा अथाथत सफसे फड़ी उॉ गरी के भोड़ कय उसके नुकीरे बाग को
अॉगूठे के नुकीरे बाग ऩय स्ऩशथ कयामें। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् मह भुद्रा कयने से जर तत्त्व की कभी के कायण होने वारे योग जैसे कक
यक्तपवकाय औय उसके परस्वरूऩ होने वारे चभथयोग व ऩाण्डुयोग (एनीसभमा) आदद
दयू होते है ।
वरुण भद्रा
प्राण भद्रा् कतनजष्ठका, अनासभका औय अॉगूठे के ऊऩयी बाग को ऩयस्ऩय एक
साथ स्ऩशथ कयामें। शेष दो उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् मह भुद्रा प्राण शजक्त का केंद्र है । इससे शयीय तनयोगी यहता है। आॉखों के
योग सभटाने के सरए व चश्भे का नॊफय घटाने के सरए मह भुद्रा अत्मॊत
प्राण भद्रा् राबदामक है ।
वाम भद्रा् तजथनी अथाथत प्रथभ उॉ गरी को भोड़कय ऊऩय से उसके प्रथभ ऩोय ऩय
अॉगठ
ू े की गद्दी स्ऩशथ कयाओ। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् हाथ-ऩैय के जोड़ों भें ददथ , रकवा, ऩऺाघात, दहस्टीरयमा आदद योगों भें राब
होता है । इस भुद्रा के साथ प्राण भुद्रा कयने से शीघ्र राब सभरता है ।
वाम भद्रा्
अऩानवाम भद्रा् अॉगूठे के ऩास वारी ऩहरी उॉ गरी को अॉगूठे के भूर भें
रगाकय अॉगूठे के अग्रबाग की फीच की दोनों उॉ गसरमों के अग्रबाग के साथ
सभराकय सफसे छोटी उॉ गरी (कतनजष्ठका) को अरग से सीधी यखें।
इस जस्थतत को अऩानवामु भुद्रा कहते हैं। अगय ककसी को रृदमघात आमे मा
रृदम भें अचानक ऩीड़ा होने रगे तफ तयु न्त ही मह भुद्रा कयने से रृदमघात को
अऩानवाम भद्रा बी योका जा सकता है ।
राब् रृदमयोगों जैसे कक रृदम की घफयाहट, रृदम की तीव्र मा भॊद गतत, रृदम का धीये
धीय फैठ जाना आदद भें थोड़े सभम भें राब होता है ।
ऩेट की गैस, भेद की वद्
ृ चध एवॊ रृदम तथा ऩयू े शयीय की फेचन
ै ी इस भद्र
ु ा के अभ्मास से
दयू होती है । आवश्मकतानस
ु ाय हय योज़ 20 से 30 सभनट तक इस भद्र
ु ा का अभ्मास
ककमा जा सकता है ।
मोगासन
2. उग्रासन (ऩादऩक्चचभोत्तानासन)- :आ
ज
उग्रासन (ऩादऩक्चचभोत्तानासन) ज औ -
आज
सफ आसनों भें मह सवथश्रेष्ठ है । इस आसन से शयीय का कद फढता है । शयीय भें अचधक स्थर
ू ता
हो तो कभ होती है । दफ
ु र
थ ता दयू होती है , शयीय के सफ तॊत्र फयाफय कामथशीर होते हैं औय योगों का
नाश होता है । इस आसन से ब्रह्त्तभचमथ की यऺा होती है ।
3. सवाांगासन् बूसभ ऩय सोकय सभस्त शयीय को ऊऩय उठामा जाता है
इससरए इसे सवाांगासन कहते हैं।
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ज औ -
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सवाांगासन ज औ
आ औ ज आ
औ
आ आ
सवाांगासन के तनत्म अभ्मास से जठयाजग्न तेज होती है । शयीय की त्वचा ढीरी नहीॊ होती। फार
सपेद होकय चगयते नहीॊ हैं। भेधाशजक्त फढती है । नेत्र औय भस्तक के योग दयू होते हैं।
: ज औ
हरासन ज
औ
आ
इस आसन से रीवय ठीक हो जाता है । छाती का पवकास होता है । श्वसनकक्रमा तेज होकय अचधक
आक्सीजन सभरने से यक्त शद्
ु ध फनता है । गरे के ददथ , ऩेट की फीभायी, सॊचधवात आदद दयू होते
हैं।ऩेट की चफॉ कभ होती है । ससयददथ दयू होता है । यीढ रचीरी फनती है ।
5. चक्रासन् इस आसन भें शयीय की जस्थतत चक्र जैसी फनती है
इससरए इसे चक्रासन कहते हैं।
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ज औ
चक्रासन
-
ज आ ज
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ज
6. भत्स्मासन् भत्सम का अथथ है भछरी। इस आसन भें शयीय का आकाय भछरी जैसा
फनता है । अत् भत्स्मासन कहराता है ।
: ज
ज आ
ज
भत्स्मासन
ज
आज
प्रापवनी प्राणामाभ के साथ इस आसन की जस्थतत भें र्फे सभम तक ऩानी भें तैय सकते हैं।
भत्स्मासनसे ऩूया शयीय भजफूत फनता है । गरा, छाती, ऩेट की तभाभ फीभारयमाॉ दयू होती हैं।
आॉखों की योशनी फढती है । ऩेट के योग नहीॊ होते। दभा औय खाॉसी दयू होती है । ऩेट की चफॉ
कभ होती है ।
7. ऩवनभततासन् मह आसन कयने से शयीय भें जस्थत
ऩवन (वामु) भुक्त होता है । इससे इसे ऩवन भुक्तासन कहा
जाता है । :
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ऩवनभततासन
(Nose) 10 30
आ आ -
-
ऩवनभक्
ु तासन के तनमसभत अभ्मास से ऩेट की चफॉ कभ हो जाती है । ऩेट की वामु नष्ट होकय
ऩेट पवकाय यदहत फनता है । कब्ज दयू होती है । इस आसन से स्भयणशजक्त फढती है । फौद्चधक
कामथ कयने वारे डॉक्टय, वकीर, सादहत्मकाय, पवद्माथॉ तथा फैठकय प्रवपृ त्त कयने वारे भुनीभ,
व्माऩायी, क्रकथ आदद रोगों को तनमसभत ऩवनभुक्तासन अवश्म कयना चादहए।
बोजन के फाद इस आसन भें फैठने से ऩाचनशजक्त तेज होती है । बोजन जल्दी हज्भ होता है ।
कब्जी दयू होकय ऩेट के तभाभ योग नष्ट होते हैं। कभय औय ऩैय का वामुयोग दयू होता है ।
स्भयणशजक्त भें वद्
ृ चध होती है । वज्रनाड़ी अथाथत वीमथधाया भजफूत होती है ।
9. धनयासन् इस आसन भें शयीय की आकृतत खीॊचे हुए धनुष जैसी
फनती है , अत् इसको धनुयासन कहा जाता है ।
: ज
(Hips) आ (Ankle)
धनयासन औ
ज
(Thighs) औ ज ज
आ
औ
धनुयासन से छाती का ददथ दयू होता है । रृदम भजफूत फनता है । गरे के तभाभ योग नष्ट होते हैं।
आवाज़ भधयु फनती है । भख
ु ाकृतत सन्
ु दय फनती है । आॉखों की योशनी फढती है । ऩाचन शजक्त
फढती है । बख
ू खर
ु ती है । ऩेट की चफॉ कभ होती है ।
10. शशाॊकासन् आ ( )
ज आ ज
:
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शशाॊकासन आ ज आ
औ
( ) -
आ
शशाॊकआसन श्रोणी प्रदे श की ऩेसशमो के सरए अत्मन्त राबदामक है । एडिनर ग्रन्थी के कामथ
तनमसभत होते हैं, कोष्ठ- फद्धता औय सामदटका से याहत सभरती है तथा क्रोध ऩय तनमन्त्रण आता
है , फजस्त प्रदे श का स्वस्थ पवकास होता है तथा मौन सभस्माएॉ दयू होती हैं।
11. ताडासन् : ज आ
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ताडासन आ
औ आज
12 शवासन् ज
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शवासन : ज
6 8
आ औ
आ
अन्म आसन कयने के फाद अॊगों भें जो तनाव ऩैदा होता है उसको दयू कयने के सरए अॊत भें 3
से 5 सभनट तक शवासन कयना चादहए। इस आसन से यक्तवादहतनमों भें , सशयाओॊ भें यक्तप्रवाह
तीव्र होने से सायी थकान उतय जाती है । नाड़ीतॊत्र को फर सभरता है । भानससक शजक्त भें वद्
ृ चध
होती है ।
आ
, ज
प्राणवान ऩॊक्ततमाॉ
फच्चों के जीवन भें सषप्त अवस्था भें छऩे हए उत्साह, तत्ऩयता, ननबथमता
औय प्राणशक्तत को जगाने के लरए उऩमोगी प्राणवान सूक्ततमाॉ
भैं छुई भई
ु का ऩौधा नहीॊ, जो छूने से भयु झा जाऊॉ।
भैं वो भाई का रार नहीॊ, जो हौवा से डय जाऊॉ।।5।।
जो फीत गमी सो फीत गमी, तकदीय का सशकवा कौन कये ।
जो तीय कभान से तनकर गमी, उस तीय का ऩीछा कौन कये ।।6।।
खन
ू ऩसीना फहाता जा, तान के चादय सोता जा।
मह नाव तो दहरती जाएगी, तू हॉ सता जा मा योता जा।।9।।
ज
है ।।10।।
1. एक, ऩयभात्भा है एक् जैसे सोने के आबूषण अरग-अरग होते हैं, कपय बी भूर भें
सोना तो एक ही है । इसी तयह ऩयभात्भा का नाभ औय रूऩ अरग-अरग है । जैसे , ,
, ऩयन्तु तत्त्वरूऩ भें तो एक ही ऩयभात्भा है औय वह अऩना आत्भा है । ऐसा एक हभें
सभझाता है ।
4. चाय, मोग के लरए हो जाओ तैमाय् 84 से बी अचधक आसन हैं , ऩयन्तु उन भें से
थोड़े आसनों को बी जो तनमसभत रूऩ से कयता है तो उसको शायीरयक एवॊ भानससक स्वास्र्थम के
सरए खफ
ू राबदामी होता है । मोगासन कयने से डॉक्टय की गुराभी नहीॊ कयनी ऩड़ती है । इससरए
हययोज़ मोगासन कयना चादहए। ऐसा चाय हभें सभझाता है ।
5. ऩाॉच, प्रकृनत के तत्त्व हैं ऩाॉच् हभाया मह शयीय प्रकृतत का है जो ऩाॉच तत्त्वों आकाश,
तेज, वाम,ु जर औय ऩर्थ
ृ वी का फना हुआ है । जफ भत्ृ मु होती है , तफ मह शयीय ऩाॉच तत्त्वों भें सभर
जाता है , तफ बी इसभें यहने वारा आत्भा कबी भयता नहीॊ है । वस्तत ु ् हभ चैतन्म आत्भा हैं
शयीय नहीॊ है । ऐसा ऩाॉच हभें माद ददराता है ।
7. सात, दगण
थ ों को भायो रात् फच्चों को अऩने जीवन भें से दग
ु ण
ुथ ों को जैसे कक झूठ
फोरना, चोयी कयना, तनॊदा कयना, ऩान-भसारा खाना, अऩनी फुद्चध त्रफगाड़े ऐसी कपल्भें टी.वी.
सीरयमर दे खना तथा उन्हें दे खकय, उसके पवऻाऩन दे खकय पैशन का कचया घय भें राना आदद
दग
ु ण
ुथ ों को जीवन भें से दयू कयना चादहए। ऐसा सात हभें कहता है।
9. नौ, कयो आत्भानबव् हभ अऩने जीवन भें सुख-द्ु ख, भान-अऩभान, राब-हातन आदद
फहुत से अनुबव कयते हैं, ऩयन्तु भनुष्म-जन्भ का उद्दे श्म साथथक कयने के सरए भैं शयीय नहीॊ
ऩयन्तु चैतन्म आत्भा हूॉ, ऐसा अनुबव कय रो। मही साय है । ऐसा नौ हभें माद ददराता है ।
10. दस, यहो आत्भानॊद भें भस्त् बगवान आनॊदस्वरूऩ हैं , द्ु ख, चचॊता मा ग्रातनस्वरूऩ
नहीॊ। इससरए सदा आनॊद भें यहना चादहए। सदा सभ औय प्रसन्न यहना ईचवय की सवोऩरय
बक्तत है - कैसी बी पवकट ऩरयजस्थतत मा द्ु ख आ ऩड़े तो बी रृदम की शाॊतत मा आनन्द गॉवाना
(खोना) नहीॊ चादहए ऩयॊ तु सभचचत्त औय प्रसन्न यहना चादहए। ऐसा दस का अॊक हभें सभझाता
है ।
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बावाथथ् गीता के श्रोक के ऩाठ से, बगवान श्री कृष्ण के स्भयण कयने से, कीतथन से औय
सॊतों के दशथनभात्र से कयोड़ों तीथों का पर प्राप्त होता है ।
बावाथथ् उद्मभ, साहस, धीयज, फुद्चध, शजक्त औय ऩयाक्रभ मे छ् गुण जजस व्मजक्त के
जीवन भें हैं उन्हें दे वता (ऩयब्रह्त्तभ ऩयभात्भा) सहामता कयते हैं
बावाथथ् जजसके अन्दय गुरूबजक्त है उसकी भाता धन्म है , उसके पऩता धन्म हैं, उसका
गोत्र धन्म है , उसके वॊश भें जन्भ रेने वारे धन्म हैं औय सभग्र धयती भाता धन्म है ।
अऻानभूरहयणॊ जन्भकभथननवायकभ ्।
ऻानवैयाग्म लसद् ध्मथां गरूऩादोदकॊ पऩफेत ्।।
बावाथथ् अऻान के भर
ू को हयने वारे, अनेक जन्भों के कभों का तनवायण कयने वारे,
ऻान औय वैयाग्म को ससद्ध कयने वारे गुरूचयणाभत
ृ का ऩान कयना चादहए।
अबमॊ सत्त्वसॊशद्धधऻाथनमोगव्मवक्स्थनत्।
दानॊ दभचच स्वाध्मामस्तऩ आजथवभ ्।।
बावाथथ् तनबथमता, अॊत्कयण की शुद्चध, ऻान औय मोग भें तनष्ठा, दान, इजन्द्रमों ऩय काफू,
मऻ औय स्वाध्माम, तऩ, अॊत्कयण की सयरता का बाव मे दै वी स्ऩपत्त वारे भनुष्म के रक्ष्ण
हैं।
बावाथथ् तनत्म फड़ों की सेवा औय प्रणाभ कयने वारे ऩुरुष की आमु, पवद्मा, मश औय फर
मे चाय फढते हैं।
साणखमाॉ
बमनाशन दभ
ु तथ त हयण, कसर भें हरय का नाभ।
तनशददन नानक जो जऩे, सपर होवदहॊ सफ काभ।।
फच्चा सहज, सयर, तनदोष औय बगवान का प्माया होता है । फच्चों भें भहान होने के
ककतने ही गण
ु फचऩन भें ही नज़य आते हैं। जजससे फच्चे को आदशथ फारक कहा जा सकता है ।
मे गण
ु तन्नसरणखत हैं-
1. वह शाॊत स्वबाव होता है ् जफ सायी फातें उसके प्रततकूर हो जाती हैं मा सबी तनणथम
उसके पवऩऺ भें हो जाते हैं, तफ बी वह क्रोचधत नहीॊ होता।
2. वह उत्साही होता है ् जो कुछ वह कयता है , उसे अऩनी मोग्मता के अनुसाय उत्तभ से
उत्तभ रूऩ भें कयता है । असपरता का बम उसे नहीॊ सताता।
3. वह सत्मननष्ठ होता है् सत्म फोरने भें वह कबी बम नहीॊ कयता। उदायतावश कटु व
अपप्रम सत्म बी नहीॊ कहता।
4. वह धैमश
थ ीर होता है ् वह अऩने सतकभथ भें दृढ यहता है । अऩने सतकभों का पर
दे खने के सरए बरे उसे र्फे सभम तक प्रतीऺा कयनी ऩड़े, कपय बी वह धैमथ नहीॊ छोड़ता,
तनरूत्सादहत नहीॊ होता है। अऩने कभथ भें डटा यहता है ।
5. वह सहनशीर होता है् सहन कये वह सॊत इस कहावत के अनुसाय वह सबी द्ु खों को
सहन कयता है । ऩयॊ तु कबी इस पवषम भें सशकामत नहीॊ कयता है ।
6. वह अध्मवसामी होता है ् वह अऩने कामथ भें कबी राऩयवाही नहीॊ कयता। इस कायण
उसको वह कामथ बरे ही र्फे सभम तक जायी यखना ऩड़े तो बी वह ऩीछे नहीॊ हटता।
8. वह साहसी होता है ् सन्भागथ ऩय चरने भें , रोक-कल्माण के कामथ कयने भें , धभथ का
अनुसयण व ऩारन कयने भें , भाता-पऩता व गुरूजनों की सेवा कयने व आऻा भानने भें ककतनी
बी पवर्घन-फाधाएॉ क्मों न आमें, वह जया-सा बी हताश नहीॊ होता, वयन ् दृढता व साहस से आगे
फढता है ।
11. वह स्वाध्मामी होता है ् वह सॊमभ, सेवा, सदाचाय व ऻान प्रदान कयने वारे उत्कृष्ट
सदग्रन्थों तथा अऩनी कऺा के ऩायपमऩस्
ु तकों का अध्ममन कयने भें ही रूचच यखता है औय उसी
भें अऩना उचचत सभम रगाता है , न कक व्मथथ की ऩस्
ु तकों भें जो कक उसे इन सदगण
ु ों से हीन
कयने वारे हों।
12. वह उदाय होता है ् वह दस
ू यों के गुणों की प्रशॊसा कयता है , दस
ू यों को सपरता प्राप्त
कयने भें मथाशजक्त सहामता दे ने के सरए फयाफय तत्ऩय यहता है तथा उनकी सपरता भें खसु शमाॉ
भनाता है । वह दस
ू यों की कसभमों को नज़यॊ दाज कयता है ।
15. वह एक सच्चा लभत्र होता है ् वह पवश्वसनीम, स्वाथथयदहत प्रेभ दे नेवारा, अऩने सभत्रों
को सही यास्ता ददखाने वारा तथा भुजश्करों भें सभत्रों का ऩूया साथ दे ने वारा सभत्र होता है ।
माद यखें
जीवना का सभझ रो साय - व्मसन से कयो नहीॊ प्माय।
हरयनाभ की रे रो घुट्टी - गुटके को दे दो छुट्टी।।
सत्सॊग की सभठास न्मायी - ककससरए रें त्फाकू सुऩायी।
ऩान-भसारे से सॊफॊध छोड़ो - हरयनाभ से सॊफॊध जोड़ो।।
द्खद ननभॊत्रण
अशब पववाह
स्नेही स्वजन
धच.कैंसय कभाय उपथ राइराज भयकट
(कऩत्र-श्री असॊमभ लसॊह एवॊ त्फाकू दे वी)
ननवास स्थान् व्मसनऩय
सॊग
सौ. फीडी कभायी उपथ लसगये ट दे वी
कऩत्री-चयभदास एवॊ कोकीन फहन)
ननवास स्थान् द्खनगय
का अशुब पववाह तम हो गमा है । अत् इस बमॊकय प्रसॊग ऩय ककभाभ काका, कॉपी काकी,
गुटखा भाभा, ऩान-भसारा भाभी, शयाफ पूपा, चट
ु की फूआ, गाॉजा भौसा, चाम भौसी, स्भैक
फहनोई, हे योइन फहन, चूना दादा, खैनी दादी जैसे दष्ु ट फुजुगों की उऩजस्थतत भें नव द्ऩपत्त को
असबशाऩ प्रदान कयने हे तु आऩ सबी भहानुबाव सादय आभॊत्रत्रत हैं।
पववाह स्थर
आने से ऩहरे खफ
ू सोच-पवचाय रो क्मोंकक आना सुरब है ऩय वाऩस जाना...??
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
बायतीम सॊस्कृनत की ऩय्ऩयाओॊ का भहत्त्व
तभ
ु दोनों हाथ जोड़कय उॉ गसरमों को रराट ऩय यखते हो। आॉखें अधोजन्भसरत यहती हैं,
दोनों हाथ जड़
ु े यहते हैं एवॊ रृदम ऩय यहते हैं। मह भद्र
ु ा त्
ु हाये पवचायों ऩय सॊमभ, वपृ त्तमों ऩय
अॊकुश एवॊ असबभान ऩय तनमन्त्रण राती है । तुभ अऩने व्मजक्तत्व एवॊ अजस्तत्व को पवश्वास के
आश्रम ऩय छोड़ दे ते हो औय पवश्वास ऩाते बी हो। नभस्काय की भुद्रा के द्वाया एकाग्रता एवॊ
तदाकायता का अनुबव होता है । सफ सभट जाते हैं।
पवनमी ऩुरूष सबी को पप्रम होता है । वॊदन तो चॊदन के सभान शीतर होता है । वॊदन
द्वाया दोनों व्मजक्त को शाॊतत, सुख एवॊ सॊतोष प्राप्त होता है । वामु से बी ऩतरे एवॊ हवा से बी
हरके होने ऩय ही श्रेष्ठता के स्भुख ऩहुॉचा जा सकता है औय मह अनुबव भानों, नभस्काय की
भद्र
ु ा के द्वाया ससद्ध होता है ।
जफ नभस्काय द्वाया अऩना अहॊ ककसी मोग्म के साभने झुक जाता है , तफ शयणागतत एवॊ
सभऩथण-बाव बी प्रगट होता है ।
भें नभस्काय को स्वीकाय ककमा गमा है । रोग छाती ऩय हाथ यखकय
शीश झुकाते हैं। फौद्ध बी भस्तक झुकाते हैं। ज भें बी भस्तक नवा कय वॊदना की जाती है
ऩयन्तु अऩने वैददक धभथ की नभस्काय कयने की मह ऩद्धतत अतत उत्तभ है । दोनों हाथों को
जोड़ने से एक सॊकुर फनता है , जजससे जीवनशजक्त एवॊ तेजोवरम का ऺम योकने वारा एक चक्र
फन जाता है । इस प्रकाय का प्रणाभ पवशेष राबकायी है जफकक एक-दस
ू ये से हाथ सभराने भें
जीवनशजक्त का ह्रास होता है तथा एक के सॊक्रसभत योगी होने की दशा भें दस
ू ये को बी उस योग
का सॊक्रभण हो सकता है ।
दीऩक
भनुष्म के जीवन भें चचह्त्तनों औय सॊकेतों का फहुत उऩमोग है । बायतीम सॊस्कृतत भें सभट्टी
के ददमे भें प्रज्जवसरत ज्मोत का फहुत भहत्त्व है ।
दीऩक हभें अऻान को दयू कयके ऩूणथ ऻान प्राप्त कयने का सॊदेश दे ता है । दीऩक अॊधकाय
दयू कयता है । सभट्टी का दीमा सभट्टी से फने हुए भनुष्म शयीय का प्रतीक है औय उसभें यहने
वारा तेर अऩनी जीवनशजक्त का प्रतीक है । भनष्ु म अऩनी जीवनशजक्त से भेहनत कयके सॊसाय
से अॊधकाय दयू कयके ऻान का प्रकाश पैरामे ऐसा सॊदेश दीऩक हभें दे ता है । भॊददय भें आयती
कयते सभम दीमा जराने के ऩीछे मही बाव यहा है कक बगवान हभाये भन से अऻान रूऩी
अॊधकाय दयू कयके ऻानरूऩ प्रकाश पैरामें। गहये अॊधकाय से प्रबु! ऩयभ प्रकाश की ओय रे चर।
दीऩावरी के ऩवथ के तनसभत्त रक्ष्भीऩूजन भें अभावस्मा की अन्धेयी यात भें दीऩक जराने
के ऩीछे बी मही उद्दे श्म तछऩा हुआ है । घय भें तर
ु सी के क्माये के ऩास बी दीऩक जरामे जाते
हैं। ककसी बी नमें कामथ की शुरूआत बी दीऩक जराने से ही होती है । अच्छे सॊस्कायी ऩुत्र को बी
कुर-दीऩक कहा जाता है । अऩने वेद औय शास्त्र बी हभें मही सशऺा दे ते हैं- हे ऩयभात्भा! अॊधकाय
से प्रकाश की ओय, भत्ृ मु से अभयता की ओय हभें रे चरो। ज्मोत से ज्मोत जगाओ इस आयती
के ऩीछे बी मही बाव यहा है । मह है बायतीम सॊस्कृतत की गरयभा।
करश
बायतीम सॊस्कृतत की प्रत्मेक प्रणारी औय प्रतीक के ऩीछे कोई-ना-कोई यहस्म तछऩा हुआ
है , जो भनुष्म जीवन के सरए राबदामक होता है ।
ऐसा ही प्रतीक है करश। पववाह औय शुब प्रसॊगों ऩय उत्सवों भें घय भें करश अथवा घड़े
वगैयह ऩय आभ के ऩत्ते यखकय उसके ऊऩय नारयमर यखा जाता है । मह करश कबी खारी नहीॊ
होता फजल्क दध
ू , घी, ऩानी अथवा अनाज से बया हुआ होता है । ऩूजा भें बी बया हुआ करश ही
यखने भें आता है । करश की ऩजू ा बी की जाती है ।
करश अऩना सॊस्कृतत का भहत्त्वऩूणथ प्रतीक है । अऩना शयीय बी सभट्टी के करश अथवा
घड़े के जैसा ही है । इसभें जीवन होता है । जीवन का अथथ जर बी होता है । जजस शयीय भें जीवन
न हो तो भुदाथ शयीय अशुब भाना जाता है । इसी तयह खारी करश बी अशुब है । शयीय भें भात्र
श्वास चरते हैं, उसका नाभ जीवन नहीॊ है , ऩयन्तु जीवन भें ऻान, प्रेभ, उत्साह, त्माग, उद्मभ,
उच्च चरयत्र, साहस आदद हो तो ही जीवन सच्चा जीवन कहराता है । इसी तयह करश बी अगय
दध
ू , ऩानी, घी अथवा अनाज से बया हुआ हो तो ही वह कल्माणकायी कहराता है । बया हुआ
करश भाॊगसरकता का प्रतीक है ।
बायतीम सॊस्कृतत ऻान, प्रेभ, उत्साह, शजक्त, त्माग, ईश्वयबजक्त, दे शप्रेभ आदद से जीवन
को बयने का सॊदेश दे ने के सरए करश को भॊगरकायी प्रतीक भानती है ।
स्वजस्तक
जभथनी भें दहटरय की नाजी ऩाटॊ का तनशान स्वजस्तक था। दहटरय ने राखों महूददमों को
भाय डारा। वह जफ हाय गमा तफ जजन महूददमों की हत्मा की जाने वारी थी वे सफ भुक्त हो
गमे। तभाभ महूददमों का ददर दहटरय औय उसकी नाजी ऩाटॊ के सरए तीव्र घण ृ ा से मुक्त यहे
मह स्वाबापवक है । उन दष्ु टों का तनशान दे खते ही उनकी क्रूयता के दृश्म रृदम को कुये दने रगे
मह स्वाबापवक है । स्वजस्तक को दे खते ही बम के कायण महूदी की जीवनशजक्त ऺीण होनी
चादहए। इस भनोवैऻातनक तर्थम के फावजूद बी डामभण्ड के प्रमोगों ने फता ददमा कक स्वजस्तक
का दशथन महूदी की बी जीवनशजक्त को फढाता है । स्वजस्तक का शजक्तवधथक प्रबाव इतना प्रगाढ
है ।
शॊख
बायत के भहान वैऻातनक श्री जगदीशचन्द्र फसु ने ससद्ध कयके ददखामा कक शॊख फजाने
से जहाॉ तक उसकी ध्वतन ऩहुॉचती है वहाॉ तक योग उत्ऩन्न कयने वारे हातनकायक जीवाणु
(फैक्टीरयमा) नष्ट हो जाते हैं। इसी कायण अनादद कार से प्रात्कार औय सॊध्मा के सभम भॊददयों
भें शॊख फजाने का रयवाज चरा आ यहा है ।
गॉग
ू ेऩन भें शॊख फजाने से एवॊ तुतरेऩन, भुख की काॊतत के सरए, फर के सरए,
ऩाचनशजक्त के सरए औय बूख फढाने के सरए, श्वास-खाॉसी, जीणथज्वय औय दहचकी भें शॊखबस्भ
का औषचध की तयह उऩमोग कयने से राब होता है ।
ॐ काय का अथथ एवॊ भहत्त्व
ससख भें बी एको ओॊकाय सनतनाभ...... कहकय उसका राब उठामा जाता है । ससख
धभथ का ऩहरा ग्रन्थ है , जऩुजी औय जऩुजी का ऩहरा वचन है ् एको ओॊकाय सनतनाभ.........
ज औ , ,
आ , ज , औ ज
ज औ ज ज
, , , , औ
ज
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ज , औ
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ज ज , ज ज ज
, , , औ ज
ज , , , औ
आ
ज ज, औ
, औ
जैस-े जैसे ऩयीऺाएॉ नज़दीक आने रगती हैं, वैसे-वैसे पवद्माथॉ चचॊततत व तनावग्रस्त होते
जाते हैं, रेककन पवद्माचथथमों को कबी बी चचॊततत नहीॊ होना चादहए। अऩनी भेहनत व बगवत्कृऩा
ऩय ऩण
ू थ पवश्वास यखकय प्रसन्नचचत्त से ऩयीऺा की तैमायी कयनी चादहए। सपरता अवश्म सभरेगी,
ऐसा दृढ पवश्वास यखना चादहए।
3. योज सुफह सूमोदम के सभम खारी ऩेट तुरसी के 5-7 ऩत्ते चफाकय एक चगरास ऩानी ऩीने से
मादशजक्त फढती है ।
4. सूमद
थ े व को भॊत्रसदहत अर्घमथ दे ने से मादशजक्त फढती है ।
9. मदद ककसी प्रश्न का उत्तय न आमे तो घफयाए त्रफना शाॊतचचत्त होकय प्रबु से प्राथथना कयें व
अॊदय दृढ पवश्वास यखें कक भझ
ु े इस प्रश्न का उत्तय बी आ जाएगा। अॊदय से तनबथम यहें एवॊ
बगवदस्भयण कयके एकाध सभनट शाॊत हो जाएॊ। कपय सरखना शुरू कयें । धीये -धीये उन प्रश्नों के
उत्तय बी आ जाएॊगे।
10. दे य यात तक न ऩढें । सुफह जल्दी उठकय, स्नान कयके ध्मान कयने के ऩश्चात ऩढने से
जल्दी माद होगा।
11. गामत्री भॊत्र का तनमसभत जऩ कयने से मादशजक्त भें चभत्कारयक राब होता है ।
एक वषथ की कड़ी भेहनत के फाद पवद्माचथथमों को डेढ भाह की छुट्दटमों का सभम सभरता
है जजसभें कुछ कयने व सोचने-सभझने का अच्छा-खासा अवसय सभर जाता है । रेककन प्राम् ऐसा
दे खा गमा है कक पवद्माथॉ इस कीभती सभम को टी.वी., ससनेभा आदद दे खने भें तथा गन्दी व
पारतू ऩस्
ु तकें ऩढने भें फयफाद कय दे ते हैं। जो अऩने सभम को फयफाद कयता है उसका जीवन
फयफाद हो जाता है । जो अऩने सभम का सदऩ
ु मोग कयता है उसका जीवन आफाद हो जाता है ।
अत् सभरी हुई मोग्मता एवॊ सभरे हुए सभम का सदऩ ु मोग उत्तभ-से-उत्तभ कामों के सॊऩादन भें
कयना चादहए। फड़े धनबागी होते हैं वे पवद्माथॉ जो सभम का सदऩ ु मोग कय अऩने जीवन को
उन्नत फना रेते हैं।
1. अऩने से छोटी कऺा वारे पवद्माचथथमों को ऩढाना चादहए। फारकों को अच्छी-अच्छी सशऺाप्रद
कहातनमाॉ सुनानी चादहए। अऩने साथी-सभत्रों के साथ अच्छी-अच्छी सशऺाप्रद कहातनमाॉ सुनने व
सुनाने से ऩयभात्भप्राजप्त भें भदद सभरती है । सा पवद्मा मा पवभततमे। असरी पवद्मा वही है जो
भुजक्त प्रदान कये ।
2. अऩने साचथमों के साथ अऩने गरी-भोहल्रे भें सपाई असबमान चराना चादहए।
3. पऩछड़े हुए ऺेत्रों भें जाकय वहाॉ के रोगों को सशऺा दे ना तथा के प्रतत जागरूक
कयना चादहए।
4. अस्ऩतारों भें जाकय भयीजों की सेवा कयनी चादहए। कयो सेवा, लभरे भेवा।
5. अऩने से अचधक मोग्मता व सशऺावारे पवद्माचथथमों के साथ यहकय पवनोद सशऺा स्फॊधी चचाथ
कयनी चादहए।
7. प्राचीन ऐततहाससक धासभथक स्थरों भें जाकय अऩने पववेक-पवचाय को फढाना चादहए।
8. अऩनी ऩढाई को छुट्टी के दौयान एकदभ नहीॊ छोड़ना चादहए। योज़ थोड़ा-थोड़ा अध्ममन कयते
ही यहना चादहए।
फच्चों को अऩना जन्भददन भनाने का फड़ा शौक होता है औय उनभें उस ददन फड़ा उत्साह
होता है रेककन अऩनी ऩयतॊत्र भानससकता के कायण हभ उस ददन बी फच्चे के ददभाग ऩय
अॊग्रजजमत की छाऩ छोड़कय अऩने साथ, उनके साथ व दे श तथा सॊस्कृतत के साथ फड़ा अन्माम
कय यहे हैं.
फच्चों के जन्भददन ऩय हभ केक फनवाते हैं तथा फच्चे को जजतने वषथ हुए हों उतनी
भोभफपत्तमाॉ केक ऩय रगवाते हैं। उनको जराकय कपय पॉू क भायकय फुझा दे ते हैं।
ज़या पवचाय तो कीजजए के हभ कैसी उल्टी गॊगा फहा यहे हैं! जहाॉ दीमे जराने चादहए वहाॉ
फुझा यहे हैं। जहाॉ शुद्ध चीज़ खानी चादहए वहीॊ पॉू क भायकय उड़े हुए थक
ू से जूठे फने हुए केक
को हभ फड़े चाव से खाते हैं! जहाॉ हभें गयीफों को अन्न णखराना चादहए वहीॊ हभ फड़ी ऩादटथ मों का
आमोजन कय व्मथथ ऩैसा उड़ा यहे हैं! कैसा पवचचत्र है आज का हभाया सभाज?
1. भान रो, ककसी फच्चे का 11 वाॉ जन्भददन है तो थोड़े-से अऺत ् (चावर) रेकय उन्हें हल्दी,
कॊु कुभ, गुरार, ससॊदयू आदद भाॊगसरक द्रव्मों से यॊ ग रे एवॊ उनसे स्वजस्तक फना रें। उस
स्वजस्तक ऩय 11 छोटे -छोटे दीमे यख दें औय 12 वें वषथ की शुरूआत के प्रतीकरूऩ एक फड़ा दीमा
यख दें । कपय घय के फड़े सदस्मों से सफ दीमे जरवामें एवॊ फड़ों को प्रणाभ कयके उनका आशीवाथद
ग्रहण कयें ।
2. ऩादटथ मों भें पारतू का खचथ कयने के फजाए फच्चों के हाथों से गयीफों भें , अनाथारमों भें बोजन,
वस्त्रादद का पवतयण कयवाकय अऩने धन को सत्कभथ भें रगाने के सुसॊस्काय सुदृढ कयें ।
3. रोगों के ऩास से चीज-वस्तुएॉ रेने के फजाए हभ अऩने फच्चों के हाथों दान कयवाना ससखाएॉ
ताकक उनभें रेने की वपृ त्त नहीॊ अपऩतु दे ने की वपृ त्त को फर सभरे।
4. हभें फच्चों से नमे कामथ कयवाकय उनभें दे शदहत की बावना का सॊचाय कयना चादहए। जैसे,
ऩेड़-ऩौधे रगवाना इत्मादद।
5. फच्चों को इस ददन अऩने गत वषथ का दहसाफ कयना चादहए मातन कक उन्होंने वषथ बय भें क्मा-
क्मा अच्छे काभ ककमे? क्मा-क्मा फुये काभ ककमे? जो अच्छे कामथ ककमे उन्हें बगवान के चयणों
भें अऩथण कयना चादहए एवॊ जो फुये कामथ हुए उनको बूरकय आगे उसे न दोहयाने व सन्भागथ ऩय
चरने का सॊकल्ऩ कयना चादहए।
6. उनसे सॊकल्ऩ कयवाना चादहए कक वे नए वषथ भें ऩढाई, साधना, सत्कभथ, सच्चाई तथा
ईभानदायी भें आगे फढकय अऩने भाता-पऩता व दे श के गौयव को फढामेंगे।
लशष्टाचाय के ननमभ
1. अऩने से उम्र भें फड़े व्मजक्त को आऩ कहकय तथा अऩने फयाफय तथा अऩने से छोटी उम्र के
व्मजक्त को तभ
ु कहकय फोरना चादहए।
2. हभाये शास्त्रों भें उल्रेख है कक गुरूजनों को तनत्म प्रणाभ कयने से तथा उनकी सेवा कयने से
आमु, फर, पवद्मा औय मश की वद्
ृ चध होती है । इससरए दोनों हाथ जोड़कय, भस्तक झुका कय
इन्हें प्रणाभ कयना चादहए। बोजन, स्नान, शौच, दातुन आदद कयते सभम एवॊ शव रे जाते
सभम नभस्काय नहीॊ कयना चादहए। स्वमॊ इन जस्थततमों भें हो तो प्रणाभ न कयें औय जजनको
प्रणाभ कयना है वे इन जस्थततमों भें हों तो बी प्रणाभ न कयें । इसके अततरयक्त साष्टाॊग दण्डवत
प्रणाभ कयना मह असबवादन की सवथश्रेष्ठ ऩद्धतत है ।
3. अऩने से फड़ों के आने ऩय खड़े होकय प्रणाभ कयके उन्हें भान दे ना चादहए। उनके फैठ जाने ऩय
ही स्वमॊ फैठना चादहए।
4. ऩरयजस्थततवश अगय भाता-पऩता आऩकी कोई वस्तु की भाॉग ऩयू ी न कय सकें तो उस वस्तु के
सरए मा उस फात के सरए हठ नहीॊ कयना चादहए। उनके साभने कबी बी उरटकय उत्तय न दें ।
सदगणों के पामदे
सदगण पामदे
1.प्रात्कार ब्रह्त्तभभुहूतथ भें शुब चचन्तन तथा हभ जैसा सोचते हैं, वैसा होने रगता है ।
शुब सॊकल्ऩ कयने से .....
2. प्राथथना कयने से .... रृदम ऩपवत्र फनता है , ऩयोऩकाय की बावना
का पवकास होता है ।
चॊचर भन शाॊत यहता है औय आत्भफर
3. ॐ काय का दीघथ उच्चायण कयने से...
फढता है ।
4. ध्मान कयने से..... एकाग्रता की शजक्त की फढती है ।
5. भ्राभयी प्राणामाभ कयने से..... स्भयणशजक्त फढती है ।
6. भौन यखने से.... आॊतरयक शजक्तमों का पवकास होता है औय
भनोफर भजफूत होता है ।
7. फार-सॊस्काय केन्द्र भें तनमसभत जाने अनेक दोष-दग
ु ण
ुथ दयू होकय व्मजक्तत्व का
से..... पवकास होता है ।
3. शयीय भें तेर रगाते सभम ऩहरे नासब एवॊ हाथ-ऩैय की उॉ गसरमों के नखों भें बरी प्रकाय तेर
रगा दे ना चादहए।
4. ऩैयों को मथासॊबव खर
ु ा यखो। प्रात्कार कुछ सभम तक हयी घास ऩय नॊगे ऩैय टहरो। गसभथमों
भें भोजे आदद से ऩैयों को भत ढॉ को।
6. ऩाउडय, स्नो आदद त्वचा के स्वाबापवक सौंदमथ को नष्ट कयके उसे रूखा एवॊ कुरूऩ फना दे ते
हैं।
7. फहुत कसे हुए एवॊ नामरोन आदद कृत्रत्रभ तॊतुओॊ से फने हुए कऩड़े एवॊ चटकीरे बड़कीरे गहये
यॊ ग से कऩड़े तन-भन के स्वास्र्थम के हातनकायक होते हैं। तॊग कऩड़ों से योभकूऩों को शुद्ध हवा
नहीॊ सभर ऩाती तथा यक्त-सॊचयण भें बी फाधा ऩड़ती है । फैल्ट से कभय को ज़्मादा कसने से ऩेट
भें गैस फनने रगती है। ढीरे-ढारे सूती वस्त्र स्वास्र्थम के सरए अतत उत्तभ होते हैं।
8. कहीॊ से चरकय आने ऩय तुयॊत जर भत पऩमो, हाथ ऩैय भत धोओ औय न ही स्नान कयो।
इससे फड़ी हातन होती है । ऩसीना सूख जाने दो। कभ-से-कभ 15 सभनट पवश्राभ कय रो। कपय
हाथ-ऩैय धोकय, कुल्रा कयके ऩानी ऩीमो। तेज गभॉ भें थोड़ा गुड़ मा सभश्री खाकय ऩानी ऩीमो
ताकक रू न रग सके।
11. ककसी की बी वस्तु रें तो उसे सॉबार कय यखो। कामथ ऩूया हो कपय तुयन्त ही वापऩस दे दो।
12. सभम का भहत्त्व सभझो। व्मथथ फातें , व्मथथ काभ भें सभम न गॉवाओ। तनमसभत तथा सभम
ऩय काभ कयो।
ज ज आ ‟‟ ज
, , , ,आ ,
ज ज,आ आ ज
, , आ आ
ज ज
ज , - आज
„„ आज , आज ,
‟‟
16. अऩने भन के गर
ु ाभ नहीॊ ऩयन्तु भन के स्वाभी फनो। तच्
ु छ इच्छाओॊ की ऩतू तथ के सरए कबी
स्वाथॉ न फनो।
17. ककसी का ततयस्काय, उऩेऺा, हॉसी-भजाक कबी न कयो। ककसी की तनॊदा न कयो औय न सुनो।
18. ककसी बी व्मजक्त, ऩरयजस्थतत मा भुजश्कर से कबी न डयो ऩयन्तु दह्भत से उसका साभना
कयो।
19. सभाज भें फातचीत के अततरयक्त वस्त्र का फड़ा भहत्त्व है । शौकीनी तथा पैशन के वस्त्र, तीव्र
सुगॊध के तेर मा सेंट का उऩमोग कयने वारों को सदा सजे-धजे पैशन यहने वारों को सज्जन
रोग आवाया मा र्ऩट आदद सभझते हैं। अत् तु्हें अऩना यहन सहन, वेश-बूषा सादगी से
मुक्त यखना चादहए। वस्त्र स्वच्छ औय सादे होने चादहए। ससनेभा की असबनेत्रत्रमों तथा
असबनेताओॊ के चचत्र छऩे हुए अथवा उनके नाभ के वस्त्र को कबी भत ऩहनो। इससे फुये सॊस्कायों
से फचोगे।
20. पटे हुए वस्त्र ससर कय बी उऩमोग भें रामे जा सकते हैं, ऩय वे स्वच्छ अवश्म होने चादहए।
21. तभ
ु जैसे रोगों के साथ उठना-फैठना, घभ
ू ना-कपयना आदद यखोगे, रोग त्
ु हें बी वैसा ही
सभझेंगे। अत् फयु े रोगों का साथ सदा के सरए छोड़कय अच्छे रोगों के साथ ही यहो। जो रोग
फयु े कहे जाते हैं, उनभें त्
ु हे दोष न बी ददखें , तो बी उनका साथ भत कयो।
22. प्रत्मेक काभ ऩूयी सावधानी से कयो। ककसी बी काभ को छोटा सभझकय उसकी उऩेऺा न
कयो। प्रत्मेक काभ ठीक सभम ऩय कयो। आगे के काभ को छोड़कय दस
ू ये काभ भें सत रगो।
तनमत सभम ऩय काभ कयने का स्वबाव हो जाने ऩय कदठन काभ बी सयर फन जाएॉगे। ऩढने भें
भन रगाओ। केवर ऩयीऺा भें उत्तीणथ होने के सरए नहीॊ, अपऩतु ऻानवद्
ृ चध के सरए ऩूयी ऩढाई
कयो। उत्तभ बायतीम सदग्रॊथों का तनत्म ऩाठ कयो। जो कुछ ऩढो, उसे सभझने की चेष्टा कयो।
जो तुभसे श्रेष्ठ है , उनसे ऩूछने भें सॊकोच भत कयो।
23. अॊधे, काने-कुफड़े, रूरे-रॉ गड़े आदद को कबी चचढाओ भत, फजल्क उनके साथ औय ज़्मादा
सहानुबूततऩूवक
थ फताथव कयो।
24. बटके हुए याही को, मदद जानते हो तो, उचचत भागथ फतरा दे ना चादहए।
27. फस भें ये र के डडब्फे भें , धभथशारा व भॊददय भें तथा सावथजतनक बवनों भें अथवा स्थरों भें न
तो थक
ू ो, न रघुशॊका आदद कयो औय न वहाॉ परों के तछरके मा कागज आदद डारो। वहाॉ ककसी
बी प्रकाय की गॊदगी भत कयो। वहाॉ के तनमभों का ऩूया ऩारन कयो।
28. हभेशा सड़क की फामीॊ ओय से चरो। भागथ भें चरते सभम अऩने दादहनी ओय भत थक
ू ो, फाईं
ओय थक
ू ो। भागथ भें खड़े होकय फातें भत कयो। फात कयना हो तो एक ककनाये हो जाएॊ। एक दस
ू ये
के कॊधे ऩय हाथ यखकय भत चरो। साभने से .मा ऩीछे से अऩने से फड़े-फुजुगों के आने ऩय फगर
हो जाओ। भागथ भें काॉटें, काॉच के टुकड़े मा कॊकड़ ऩड़े हों तो उन्हें हटा दो।
29. दीन-हीन तथा असहामों व ज़रूयतभॊदों की जैसी बी सहामता व सेवा कय सकते हो, उसे
अवश्म कयो, ऩय दस
ू यों से तफ तक कोई सेवा न रो जफ तक तुभ सऺभ हो। ककसी की उऩेऺा
भत कयो।
32. मदद ककसी के महाॉ अततचथ फनो तो उस घय के रोगों को तु्हाये सरए कोई पवशेष प्रफन्ध न
कयना ऩड़े, ऐसा ध्मान यखो। उनके महाॉ जो बोजनादद सभरे, उसे प्रशॊसा कयके खाओ।
34. चाकू से भेज भत खयोंचो। ऩेजन्सर मा ऩेन से इधय-उधय दाग भत कयो। दीवाय ऩय भत
सरखो।
35. ऩस्
ु तकें खर
ु ी छोड़कय भत जाओ। ऩस्
ु तकों ऩय ऩैय भत यखो औय न उनसे तककए का काभ
रो। धभथग्रन्थों को पवशेष आदय कयते हुए स्वमॊ शद्
ु ध, ऩपवत्र व स्वच्छ होने ऩय ही उन्हें स्ऩशथ
कयना चादहए। उॉ गरी भें थकू रगा कय ऩस्ु तकों के ऩष्ृ ठ भत ऩरटो।
36.हाथ-ऩैय से बूसभ कुये दना, ततनके तोड़ना, फाय-फाय ससय ऩय हाथ पेयना, फटन टटोरते यहना,
वस्त्र के छोय उभेठते यहना, झूभना, उॉ गसरमाॉ चटखाते यहना- मे फुये स्वबाव के चचह्त्तन हैं। अत्
मे सवथथा त्माज्म हैं।
37.भुख भें उॉ गरी, ऩेजन्सर, चाकू, पऩन, सुई, चाफी मा वस्त्र का छोय दे ना, नाक भें उॉ गरी
डारना, हाथ से मा दाॉत से ततनके नोचते यहना, दाॉत से नख काटना, बौंहों को नोचते यहना- मे
गॊदी आदते हैं। इन्हें मथाशीघ्र छोड़ दे ना चादहए।
39. दे वता, वेद, सच्चे भहात्भा, गुरू, ऩततव्रता, मऻकत्ताथ, तऩस्वी आदद की तनॊदा-ऩरयहास न कयो
औय न सुनो। - ज ज , ज
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40. अशुब वेश न धायण कयो औय न ही भुख से अभाॊगसरक वचन फोरो।
41. कोई फात त्रफना सभझे भत फोरो। जफ तु्हें ककसी फात की सच्चाई का ऩूया ऩता हो, तबी
उसे कयो। अऩनी फात के ऩक्के यहो। जजसे जो वचन दो, उसे ऩूया कयो। ककसी से जजस सभम
सभरने का मा जो कुछ काभ कयने का वादा ककमा हो वह वादा सभम ऩय ऩूया कयो। उसभें पवरॊफ
भत कयो।
42. तनमसभत रूऩ से बगवान की प्राथथना कयो। प्राथथना से जजतना भनोफर प्राप्त होता है उतना
औय ककसी उऩाम से नहीॊ होता।
44. नेत्रों की यऺा के सरए न फहुत तेज प्रकाश भें ऩढो, न फहुत भॊद प्रकाश भें । दोनों हातनकायक
हैं। इस प्रकाय बी नहीॊ ऩढना चादहए कक प्रकाश सीधे ऩस् ु तक के ऩष्ृ ठों ऩय ऩड़े। रेटकय, झक
ु कय
मा ऩस्
ु तक को नेत्रों के फहुत नज़दीक राकय नहीॊ ऩढना चादहए। जरनेतत से चश्भा नहीॊ रगता
औय मदद चश्भा हो तो उतय जाता है ।
45. जजतना सादा बोजन, सादा यहन-सहन यखोगे, उतने ही स्वस्थ यहोगे। पैशन की वस्तुओॊ का
जजतना उऩमोग कयोगे मा जजह्त्तवा के स्वाद भें जजतना पॉसोगे, स्वास्र्थम उतना ही दफ
ु र
थ होता
जाएगा।
मदद पवद्माथॉ उचचत ददनचमाथ एवॊ उऩयोक्त तनमभों के अनुसाय जीवन जजमेगा तो तनश्चम
ही भहान फनता जाएगा।
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दाॉतो औय हड्डडमों के दचभन् फाजारू शीतर ऩेम
क्मा आऩ जानते हैं कक जजन फाजारु ऩेम ऩदाथों को आऩ फड़े शौक से ऩीते हैं, वे आऩके
दाॉतों तथा हड्डडमों को गराने के साधन हैं ? इन ऩेम ऩदाथों का „ऩीएच‟ (सान्द्रता) साभान्मत्
3.4 होता है , जो कक दाॉतों तथा हड्डडमों को गराने के सरमे ऩमाथप्त है ।
रगबग 30 वषथ की आमु ऩूयी कयने के फाद हभाये शयीय भें हड्डडमों के तनभाथण की
प्रकक्रमा फॊद हो जाती है । इसके ऩश्चात ् खाद्म ऩदाथों भें एससडडटी (अ्रता) की भात्रा के अनुसाय
हड्डडमाॉ घुरनी प्रायॊ ब हो जाती हैं।
मदद स्वास्र्थम की दृजष्ट से दे खा जामे तो इन ऩेम ऩदाथों भें पवटासभन अथवा खतनज
तत्त्वों का नाभोतनशान ही नहीॊ है । इनभें शक्कय, काफोसरक अ्र तथा अन्म यसामनों की ही
प्रचयु भात्रा होती है । हभाये शयीय का साभान्म ताऩभान 37 डडग्री सेजल्समस होता है जफकक ककसी
शीतर ऩेम ऩदाथथ का ताऩभान इससे फहुत कभ, महाॉ तक कक शन् ू म डडग्री सेजल्समस तक बी
होता है । शयीय के ताऩभान तथा ऩेम ऩदाथों के ताऩभान के फीच इतनी अचधक पवषभता व्मजक्त
के ऩाचन-तॊत्र ऩय फहुत फयु ा प्रबाव डारती है । ऩरयणाभस्वरूऩ व्मजक्त द्वाया खामा गमा बोजन
अऩचा ही यह जाता है जजससे गैस व फदफू उत्ऩन्न होकय दाॉतों भें पैर जाती है औय अनेक
फीभारयमों को जन्भ दे ती है ।
एक प्रमोग के दौयान एक टूटे हुए दाॉत को ऐसे ही ऩेम ऩदाथथ की एक फोतर भें डारकय फॊद कय
ददमा गमा। दस ददन फाद उस दाॉत को तनयीऺण हे तु तनकारना था ऩयन्तु वह दाॉत फोतर के
अन्दय था ही नहीॊ अथाथत ् वह उसभें घुर गमा था। जया सोचचमे कक इतने भजफूत दाॉत बी ऐसे
हातनकायक ऩेम ऩदाथों के दष्ु प्रबाव से गर-सड़कय नष्ट हो जाते हैं तो कपय उन कोभर तथा नभथ
आॉतों का क्मा हार होता होगा जजनभें मे ऩेम ऩदाथथ ऩाचन-कक्रमा के सरए घॊटों ऩड़े यहते हैं।
कोल्ड डिॊक्स भें डी.डी.टी. (कैंसयकायक), सरण्डेन (फच्चों के भजस्तष्क को ऺततग्रस्त कयता है ),
क्रोयऩामरयपोस (गबथवती भदहराओॊ के सरए घातक), भेराचथमोन (तॊत्रत्रका-तॊत्र के सरए
हातनकायक) के अततरयक्त अन्म घातक यसामन जैसे कैपीन, कोककन, अल्कोहर, ऩोटे सशमभ
फेंजोएट, पॉस्पोरयक अ्र बी ऩामे जाते हैं। इनके सेवन से हड्डडमों का गरना, भोटाऩा, गुदों भें
ऩथयी आदद खतयनाक फीभारयमाॉ बी हो सकती हैं।
चाम-कापी भें दस प्रकाय के जहय
1. टे तनन नाभ का जहय 18 % होता है , जो ऩेट भें छारे तथा ऩैदा कयता है ।
2. चथन नाभक जहय 3 % होता है , जजससे खश्ु की चढती है तथा मह पेपड़ों औय ससय भें
बायीऩन ऩैदा कयता है ।
3. कैपीन नाभक जहय 2.75 % होता है , जो शयीय भें एससड फनाता है तथा ककडनी को
कभजोय कयता है ।
इससरए चाम अथवा कॉपी कबी नहीॊ ऩीनी चादहए औय अगय ऩीनी हो तो आमुवैददक
चाम ऩीनी चादहए।
फनफ्शा, छामा भें सुखामे तुरसी के ऩत्ते, दारचीनी, छोटी इरामची, सौंप, ब्राह्त्तभी के सूखे ऩत्ते,
तछरी हुई मजष्टभधु – प्रत्मेक वस्तु एक तोरा (रगबग 12-12 ग्राभ)
इन सफको अरग-अरग ऩीसकय सभश्रण फनाकय यखें। जफ चाम ऩीने की इच्छा हो तफ आधा
तोरा (रगबग 6 ग्राभ) चण
ू थ को एक यतर (450 ग्राभ) ऩानी भें उफारें । आधा ऩानी शेष यहे तफ
छानकय उसभें दध
ू , सभश्री सभराकय पऩमें। इससे भजस्तष्क भें शजक्त, शयीय भे स्पूततथ औय बूख
फढती है ।
14 फहुभूल्म औषचधमों के सॊमोग से फनी मह चाम ऺुधावधथक, भेध्म व रृदम के सरए फरदामक
है । मह भनोफर को फढाती है । भजस्तष्क को तनावभुक्त कयती है , जजससे नीॊद अच्छी आती है ।
मह मकृत के कामथ को सुधाय कय यक्त की शुद्चध कयती है ।
एक आधा घॊटा ऩहरे अथवा यात को ऩानी भें सबगोकय यखी हुई चाम सुफह उफारें तो उसका औय
अचधक गुण आमेगा।
हभाये शास्त्रों ने बी कहा है ् जैसा अन्न वैसा भन। इससरए अऩपवत्र वस्तुओॊ से तथा
अऩपवत्र वातावयण भें फननेवारे पास्टपूड आदद से अऩने ऩरयवाय को फचाओ।
हभें पवसबन्न प्रकाय के तेर, क्रीभ, शै्ऩू एवॊ इत्र आदद जो आकषथक डडब्फे एवॊ फोतरों भें
ऩैक ककमे हुए सभरते हैं, उनभें हजायों-हजायों तनयऩयाध फेजुफान प्राणणमों की भूक चीखें तछऩी हुई
होती हैं। भनुष्म की चभड़ी को खफू सयू त फनाने के सरए कई तनदोष प्राणणमों की हत्मा........ मही
इन प्रसाधनों की सच्चाई है ।
सेंट के उत्ऩादन भें त्रफल्री के आकाय के त्रफज्जू नाभ के प्राणी को फेंतों से ऩीटा जाता है ।
अत्मचधक भाय से उद्पवग्न होकय त्रफज्जू की मौन-ग्रॊचथ से एक सुगॊचधत ऩदाथथ स्रापवत होता है ।
जजसको धायदाय चाकू से तनभथभताऩूवक
थ खयोंच सरमा जाता है जजसभें अन्म यसामन सभराकय
पवसबन्न प्रकाय के इत्र फनामे जाते हैं।
ऩुरुषों की दाढी को सजाने भें जजन रोशनों का उऩमोग होता है उसकी सॊवेदनशीरता की
ऩयीऺा के सरए चह
ू े की जातत वारे चगनी पऩग हैं, जजनकी जान री जाती है ।
रेभूय जातत के रोरयस नाभक छोटे फॊदय की बी सुन्दय आॉखों औय जजगय को ऩीसकय
सौन्दमथ प्रसाधन फनामे जाते हैं। इसी तयह केस्टोरयमभ नाभ की गन्ध प्राप्त कयने के सरए चह
ू े
के आकाय के फीफय नाभ के एक प्राणी को 15-20 ददन तक बख
ू ा यखकय, तड़ऩा-तड़ऩाकय
तकरीप दे कय हत्मा की जाती है ।
भनुष्म की प्राणेजन्द्रम की ऩरयतजृ प्त के सरए त्रफल्री की जातत के सीवेट नाभ के प्राणी को
इतना क्रोचधत ककमा जाता है कक अॊत भें वह अऩने प्राण गॊवा दे ता है । तफ उसका ऩेट चीयकय
एक ग्रॊचथ तनकारकय, आकषथक डडज़ाईनों भें ऩैक कयके सौन्दमथ प्रसाधन की दक
ु ानों भें यख दे ते
हैं।
अनेक प्रकाय के यसामनों से फने हुए शै्ऩू की क्वासरटी को जाॉच कयने के सरए इसे
तनदोष खयगोश की सुॊदय, कोभर आॊखों भें डारा जाता है । जजससे उसकी आॉखों से खन ू तनकरता
है औय अॊत भें वह तड़ऩ-तड़ऩकय प्राण छोड़ दे ता है ।
इसके अततरयक्त काजर, क्रीभ, सरऩजस्टक, ऩावडय आदद तथा अन्म प्रसाधनों भें ऩशुओॊ
की चफॉ, अनेक ऩैरोकैसभकल्स, कृत्रत्रभ सुगॊध, इथाइर, जजयनाइन, अल्कोहर, कपनाइर,
ससरोनेल्स, हाइिाक्सीससरोन आदद उऩमोग ककमे जाते हैं। जजनसे चभथयोग जैसे कक एरजॉ, दाद,
सपेद दाग आदद होने की आशॊका यहती है ।
इसके अततरयक्त आइसक्रीभ भें ऐसे अनेक यासामतनक ऩदाथथ बी सभरामे जाते हैं जो
ककसी जहय से कभ नहीॊ होते। जैसे ऩेऩयोतनर, इथाइर एससटे ट, फुराडडहाइड, एसभर एससटे ट,
नाइरे ट आदद। उल्रेखनीम है कक इनभें से ऩेऩयोतनर नाभक यसामन कीड़े भायने की दवा के रूऩ
भें बी प्रमोग ककमा जाता है । इथाइर एससटे ट के प्रमोग से आइसक्रीभ भें अनानास जैसा स्वाद
आता है ऩयन्तु इसके वाष्ऩ के प्रबाव से पेपड़े, गुदे एवॊ ददर की बमॊकय फीभारयमाॉ उत्ऩन्न होती
हैं। ऐसे ही शेष यसामतनक ऩदाथों के बी अरग-अरग दष्ु प्रबाव ऩड़ते हैं।
आइसक्रीभ का तनभाथण एक अतत शीतर कभये भें ककमा जाता है । सवथप्रथभ चफॉ को
सख्त कयके यफय की तयह रचीरा फनामा जाता है ताकक जफ हवा बयी जामे तो वह उसभें सभा
सके। कपय चफॉमक्
ु त इस सभश्रण को आइसक्रीभ का रूऩ दे ने के सरए इसभें ढे य सायी अन्म
हातनकायक वस्तए
ु ॉ बी सभराई जाती हैं। इनभें एक प्रकाय का गोंद बी होता है जो चफॉ से सभरने
ऩय आइसक्रीभ को चचऩचचऩा तथा धीये -धीये पऩघरनेवारा फनाता है । मह गोंद जानवयों के ऩॉछ
ू ,
नाक, थन आदद अॊगों को उफार कय फनामा जाता है ।
एक कभये से दस
ू ये तक रे जाने की प्रकक्रमा भें कुछ आइसक्रीभ पशथ ऩय बी चगय जाती
है । भजदयू ों के जूतों तरे यौंदे जाने से कुछ सभम फाद उनभें से दग
ु न्
थ ध आने रगती है । अत् उसे
तछऩाने के सरमे चाकरेट आइसक्रीभ तैमाय की जाती है ।
क्मा आऩका ऩेट कोई गटय मा कचयाऩेटी है , जजसभें आऩ ऐसे ऩदाथथ डारते हैं। ज़या
सोचचए तो?
भाउन्ट जज़ओन मूतन. ऑप केसरपोतनथमा भें हुए शोध के अनुसाय भाॊसाहाय भें जो एससड
होता है , उसे ऩचाने के सरए फेज़ की ज़रूयत होती है । रीवय के ऩास ऩमाथप्त फेज़ न हो तो वह
फेज़ हड्डडमों से रेता है , क्मोंकक हड्डडमाॉ फेज़ औय कैजल्शमभ से फनी होती हैं। इसका भतरफ
रीवय भाॊस ऩचाने के सरए ऩमाथप्त फेज़ ऩैदा नहीॊ कय सकता है तो हड्डडमों भें से वह सभरने
रगता है औय अॊत भें हड्डडमाॉ पऩसती जाती हैं. छोटी बी फनती जाती हैं औय कभजोय बी होती
जाती हैं। इससरए हड्डडमों का फ्रैकचय बी अचधक भाॊस खाने वारों को होता है । इससरए इस
शोध भें शाकाहाय को ही ज़्मादा भहत्त्व ददमा गमा है ।
डॉ. फेंज ने अऩने अनेक प्रमोगों के आधाय ऩय तो महाॉ तक कहा है ् “ भनष्ु म भें क्रोध,
उद्दॊ डता, आवेग, अपववेक, अभानष
ु ता, अऩयाचधक प्रवपृ त्त तथा काभक
ु ता जैसे दष्ु ट कभों को
बड़काने भें भाॊसाहाय का अत्मॊत भहत्त्वऩण
ू थ हाथ होता है क्मोंकक भाॊस रेने के सरए जफ ऩशओ
ु ॊ
की हत्मा की जाती है उस सभम उनभें आमे हुए बम, क्रोध, चचॊता, णखन्नता आदद का प्रबाव
भाॊसाहाय कयने वारे व्मजक्तमों ऩय अवश्म ऩड़ता है । “
अभेरयका की स्टे ट मूतन. ऑप न्मूमाकथ, फपैरो भें ककमे हुए अनेक शोध के ऩरयणाभस्वरूऩ
वहाॉ के पवशेषऻों ने कहा है ् “ अभेरयका भें हय सार 47000 से बी ज़्मादा ऐसे फारक जन्भ रेते
हैं, जजनके भाता-पऩता के भाॊसाहायी होने के कायण फारकों को जन्भजात अनेक घातक फीभारयमाॉ
रगी हुई होती हैं। “
भाॊसाहाय से होने वारे घातक ऩरयणाभों के पवषम भें प्रत्मेक धभथग्रॊथ भें फतामा गमा है ।
भाॊसाहाय का पवयोध आमथद्रष्टा ऋपषमों ने, सॊतों-कथाकायों ने सत्सॊग भें बी ककमा है , मही पवयोध
अबी पवऻान के ऺेत्र भें बी हुआ है । कपय बी, अगय आऩको भाॊसाहाय कयना हो, अऩनी आने
वारी ऩीढी को कैन्सयग्रस्त कयना हो, अऩने को फीभारयमों का सशकाय फनाना हो तो आऩकी
इच्छा। अगय आऩको अशाॊत, णखन्न, ताभसी होकय जल्दी भयना हो तो कयो भाॊसाहाय! नहीॊ तो
आज ही दह्भत कयके सॊकल्ऩ कयो औय भाॊसाहाय छोड़ दो।
चाकरेट का नाभ सन
ु ते ही फच्चों भें गद
ु गद
ु ी न हो, ऐसा हो ही नहीॊ सकता। फच्चों को
खश
ु कयने का प्रचसरत साधन है चाकरेट। फच्चों भें ही नहीॊ, वयन ् ककशोयों तथा मव
ु ा वगथ भें बी
चाकरेट ने अऩना पवशेष स्थान फना यखा है । पऩछरे कुछ सभम से टॉकपमों तथा चाकरेटों का
तनभाथण कयने वारी अनेक कॊऩतनमों द्वाया अऩने उत्ऩादों भें आऩपत्तजनक अखाद्म ऩदाथथ सभरामे
जाने की खफये साभने आ यही हैं। कई कॊऩतनमों के उत्ऩादों भें तो हातनकायक यसामनों के साथ-
साथ गामों की चफॉ सभराने तक की फात का यहस्मोदघाटन हुआ है ।
गुजयात के सभाचाय ऩत्र गुजयात सभाचाय भें प्रकासशत एक सभाचाय के अनुसाय नेस्रे
मू.के.सरसभटे ड द्वाया तनसभथत ककटकेट नाभक चाकरेट भें कोभर फछड़ों के ये नेट (भाॊस) का
उऩमोग ककमा जाता है । मह फात ककसी से तछऩी नहीॊ है कक ककटकेट फच्चों भें खफ
ू रोकपप्रम है ।
अचधकतय शाकाहायी ऩरयवायों भें बी इसे खामा जाता है । नेस्रे मू.के.सरसभटे ड की न्मूदरशन
आकपसय श्रीभतत वार एन्डसथन ने अऩने एक ऩत्र भें फतामा् “ ककटकेट के तनभाथण भें कोभर
फछड़ों के ये नेट का उऩमोग ककमा जाता है । परत् ककटकेट शाकाहारयमों के खाने मोग्म नहीॊ है । “
इस ऩत्र को अन्तयाथष्टीम ऩत्रत्रका मॊग जैन्स भें प्रकासशत ककमा गमा था। सावधान यहो, ऐसी
कॊऩतनमों के कुचक्रों से! टे सरपवज़न ऩय अऩने उत्ऩादों को शुद्ध दध
ू से फनते हुए ददखाने वारी
नेस्रे सरसभटे ड के इस उत्ऩाद भें दध ू तो नहीॊ ऩयन्तु दध
ू ऩीने वारे अनेक कोभर फछड़ों के भाॊस
की प्रचयु भात्रा अवश्म होती है । हभाये धन को अऩने दे शों भें रे जाने वारी ऐसी अनेक पवदे शी
कॊऩतनमाॉ हभाये ससद्धान्तों तथा ऩय्ऩयाओॊ को तोड़ने भें बी कोई कसय नहीॊ छोड़ यही हैं।
व्माऩाय तथा उदायीकयण की आड़ भें बायतवाससमों की बावनाओॊ के साथ णखरवाड़ हो यहा है ।
हारैण्ड की एक कॊऩनी वैनेभैरी ऩूये दे श भें धड़ल्रे से फ्रूटे रा टॉपी फेच यही। इस टॉपी भें
गाम की हड्डडमों का चयू ा सभरा होता है , जो कक इस टॉपी के डडब्फे ऩय स्ऩष्ट रूऩ से अॊककत
होता है । इस टॉपी भें हड्डडमों के चण
ू थ के अरावा डारडा, गोंद, एससदटक एससड तथा चीनी का
सभश्रण है , ऐसा डडब्फे ऩय पाभर
ूथ े (सूत्र) के रूऩ भें अॊककत है । फ्रूटे रा टॉपी ब्राजीर भें फनाई जा
यही है तथा इस कॊऩनी का भुख्मारम हारैण्ड के जुडडआई शहय भें है । आऩपत्तजनक ऩदाथों से
तनसभथत मह टॉपी बायत सदहत सॊसाय के अनेक अन्म दे शों भें बी धड़ल्रे से फेची जा यही है ।
चीनी की अचधक भात्रा होने के कायण इन टॉकपमों को खाने से फचऩन भें ही दाॉतों का
सड़ना प्रायॊ ब हो जाता है तथा डामत्रफटीज़ एवॊ गरे की अन्म फीभारयमों के ऩैदा होने की सॊबावना
यहती है । हड्डडमों के सभश्रण एवॊ एससदटक एससड से कैंसय जैसे बमानक योग बी हो सकते हैं।
सन ् 1847 भें अॊग्रजों ने कायतूसों भें गामों की चफॉ का प्रमोग कयके सनातन सॊस्कृतत को
खजण्डत कयने की साजजश की थी, ऩयन्तु भॊगर ऩाण्डेम जैसे वीयों ने अऩनी जान ऩय खेरकय
उनकी इस चार को असपर कय ददमा। अबी कपय मह नेस्रे कॊऩनी चारें चर यही है । अबी
भॊगर ऩाण्डेम जैसे वीयों की ज़रूयत है । ऐसे वीयों को आगे आना चादहए। रेखकों, ऩत्रकायों को
साभने आना चादहए। दे शबक्तों को साभने आना चादहए। दे श को खण्ड-खण्ड कयने के भसरन
भुयादे वारों औय हभायी सॊस्कृतत ऩय कुठायाघात कयने वारों के सफक ससखाना चादहए।
दे व सॊस्कृतत बायतीम सभाज की सेवा भें सज्जनों को साहसी फनना चादहए। इस ओय सयकाय का
बी ध्मान णखॊचना चादहए।
आजकर फाजाय भें त्रफकने वारे अचधकाॊश टूथऩेस्टों भें परोयाइड नाभक यसामन का
प्रमोग ककमा जाता है । मह यसामन शीशे तथा आयसेतनक जैसा पवषैरा होता है । इसकी थोड़ी-सी
भात्रा बी मदद ऩेट भें ऩहुॉच जाए तो कैंसय जैसे योग ऩैदा हो सकते हैं।
अभेरयका के खाद्म एवॊ स्वास्र्थम पवबाग ने फ्रोयाइड का दवाओॊ भें प्रमोग प्रततफॊचधत
ककमा है । फ्रोयाइड से होने वारी हातनमों से सॊफॊचधत कई भाभरे अदारत तक बी ऩहुॉचे हैं।
इसेक्स (इॊग्रैण्ड) के 10 वषॉम फारक के भाता-पऩता को कोरगेट ऩाभोसरव कॊऩनी द्वाया 264
डॉरय का बुगतान ककमा गमा क्मोंकक उनके ऩुत्र को कोरगेट के प्रमोग से फ्रोयोससस नाभक
दाॉतों की फीभायी रग गमी थी।
अभेरयका के नेशनर कैंसय इन्स्टीच्मूट के प्रभुख यसामनशास्त्री द्वाया ककमे गमे एक शोध
के अनस
ु ाय अभेरयका भें प्रततवषथ 10 हजाय से बी ज़्मादा रोग फ्रोयाइड से उत्ऩन्न कैंसय के
कायण भत्ृ मु को प्राप्त होते हैं।
हभाये ऩव
ू ज
थ प्राचीन सभम से ही नीभ तथा फफर
ू की दातन
ु का उऩमोग कयते यहे हैं।
दातुन कयने से अऩने-आऩ भॉह
ु भें राय फनती है जो बोजन को ऩचाने भें सहामक है एवॊ आयोग्म
की यऺा कयती है ।
दाॉतों की सयऺा ऩय ध्मान दें
जहाॉ तक सॊबव हो, दाॉत साप कयने के सरए फाजारू टूथब्रशों तथा टूथऩेस्टों का उऩमोग
नहीॊ कयना चादहए। टूथब्रशों के कड़े, छोटे -फड़े तथा नुकीरे योभ दाॉतों ऩय रगे णझल्रीनुभा
प्राकृततक आवयण को नष्ट कय दे ते हैं, जजससे दाॉतों की प्राकृततक चभक चरी जाती है औय
उनभें कीड़े रगने रगते हैं।
अचधकतय टूथऩेस्ट बी दाॉतों के सरए राबदामक नहीॊ होते। कुछ टूथऩेस्टों भें हड्डडमों का
ऩावडय सभरामे जाने की फातों का यहस्मोदघाटन हुआ है । कई पवदे शी कॊऩतनमाॉ तो धन फटोयने के
सरए न ससपथ उऩबोक्ताओॊ के स्वास्र्थम के साथ णखरवाड़ कय यही हैं वयन ् कानून का बी
उल्रॊघन कयती जा यही हैं। ऩाञ्चजन्म नाभक सभाचाय ऩत्र भें ददनाॊक 17 जनवयी 1999 को
प्रकासशत एक सभाचाय के अनुसाय बायतीम खाद्म एवॊ दवा प्राचधकयण ने दहन्दस्
ु तान रीवय,
प्रोक्टय एण्ड गै्फर औय कोरगेट ऩाभोसरव को नोदटस बेजकय ऩूछा कक, “ उन्होंने अऩने
टूथऩेस्ट तथा शै्ऩू के फाये भें चचककत्सा सॊफॊधी दावे क्मों ककमे जफकक उन्हे तो ससपथ सौन्दमथ-
प्रसाधन सॊफॊधी दावे कयने की ही अनुभतत है । “
इस प्रकाय के टूथऩेस्ट अथवा टूथब्रश भॉहगे होने के साथ-साथ हातनप्रद बी होते हैं। इन्हीॊ
उत्ऩादों द्वाया पवदे शी कॊऩतनमाॉ बायत से अयफों की स्ऩपत्त को रूटकय अऩने दे शों भें रे जा यही
हैं। अत् सुयक्षऺत तथा सस्ते साधनों का ही उऩमोग कयना चादहए।
अण्डा जहय है
अॊडे अऩने अवगुणों से हभाये शयीय के जजतने ज़्मादा हातनकायक औय पवषैरे हैं उन्हें प्रचाय
भाध्मभों द्वाया उतना ही अचधक पामदे भॊद फताकय इस जहय को आऩका बोजन फनानो की
साजजश की जा यही है ।
अण्डा शाकाहायी नहीॊ होता रेककन क्रूय व्मावसातमकता के कायण उसे शाकाहायी ससद्ध
ककमा जा यहा है । सभसशगन मूतनवससथटी के वैऻातनकों ने ऩक्के तौय ऩय सात्रफत कय ददमा है कक
दतु नमा भें कोई बी अण्डा चाहे वह सेमा गमा हो मा त्रफना सेमा हुआ हो, तनजॉव नहीॊ होता।
अपसरत अण्डे की सतह ऩय प्राप्त इरैजक्रक एजक्टपवटी को ऩोरीग्राप ऩय अॊककत कय वैऻातनकों
ने मह सात्रफत कय ददमा है कक अपसरत अण्डा बी सजीव होता है । अण्डा शाकाहाय नहीॊ, फजल्क
भुगॉ का दै तनक (यज) स्राव है ।
मह सयासय गरत व झूठ है कक अण्डे भें प्रोटीन, खतनज, पवटासभन औय शयीय के सरए
जरूयी सबी एसभनो एससडस बयऩूय हैं औय फीभायों के सरए ऩचने भें आसान है ।
केसरपोतनथमा के डडमयऩाकथ भें सेंट हे रेना हॉजस्ऩटर के राईप स्टाइर एण्ड न्मूदरशन
प्रोग्राभ के तनदे शक डॉ. जोन ए. भेक्डूगर का दावा है कक शाकाहाय भें जरूयत से बी ज्मादा
प्रोटीन होते हैं।
1972 भें हावथडथ मूतनवससथटी के ही डॉ. एप. स्टे य ने प्रोटीन के फाये भें अध्ममन कयते हुए
प्रततऩाददत ककमा कक शाकाहायी भनुष्मों भें से अचधकाॊश को हय योज की जरूयत से दग ु ना प्रोटीन
अऩने आहाय से सभरता है । 200 अण्डे खाने से जजतना पवटासभन सी सभरता है उतना पवटासभन
सी एक नायॊ गी (सॊतया) खाने से सभर जाता है । जजतना प्रोटीन तथा कैजल्शमभ अण्डे भें हैं उसकी
अऩेऺा चने, भॉग
ू , भटय भें ज्मादा है ।
त्रब्रदटश हे ल्थ सभतनस्टय सभसेज एडवीना क्मयू ी ने चेतावनी दी कक अण्डों से भौत सॊबापवत
है क्मोंकक अण्डों भें सारभोनेरा पवष होता है जो कक स्वास्र्थम की हातन कयता है । अण्डों से हाटथ
अटै क की फीभायी होने की चेतावनी नोफेर ऩयु स्काय पवजेता अभेरयकन डॉ. ब्राउन व डॉ.
गोल्डस्टीन ने दी है क्मोंकक अण्डों भें कोरेस्रार बी फहुत ऩामा जाता है .
डॉ. ऩी.सी. सेन, स्वास्र्थम भॊत्रारम, बायत सयकाय ने चेतावनी दी है कक अण्डों से कैंसय
होता है क्मोंकक अण्डों भें बोजन तॊतु नहीॊ ऩामे जाते हैं तथा इनभें डी.डी.टी. पवष ऩामा जाता है ।
जानरेवा योगों की जड़ है ् अण्डा। अण्डे व दस
ू ये भाॊसाहायी खयु ाक भें अत्मॊत जरूयी
ये शातत्त्व (पाईफसथ) जया बी नहीॊ होते हैं। जफकक हयी साग, सब्जी, गेहूॉ, फाजया, भकई, जौ, भॉग
ू ,
चना, भटय, ततर, सोमाफीन, भॉूगपरी वगैयह भें मे कापी भात्रा भें होते हैं।
भुगॉ के अण्डों का उत्ऩादन फढे इसके सरमे उसे जो हाभोन्स ददमे जाते हैं उनभें स्टीर
फेस्टे योर नाभक दवा भहत्त्वऩण
ू थ है । इस दवावारी भग
ु ॉ के अण्डे खाने से जस्त्रमों को स्तन का
कैंसय, हाई ब्रडप्रैशय, ऩीसरमा जैसे योग होने की स्बावना यहती है । मह दवा ऩरू
ु ष के ऩौरूषत्व
को एक तनजश्चत अॊश भें नष्ट कयती है । वैऻातनक ग्रास के तनष्कषथ के अनस
ु ाय अण्डे से खज
ु री
जैसे त्वचा के राइराज योग औय रकवा बी होने की सॊबावना होती है ।
1981 भें जाभा ऩत्रत्रका भें एक खफय छऩी थी। उसभें कहा गमा था कक शाकाहायी बोजन
60 से 67 प्रततशत रृदमयोग को योक सकता है । उसका कायण मह है कक अण्डे औय दस
ू ये
भाॊसाहायी बोजन भें चफॉ ( कोरेस्रार) की भात्रा फहुत ज्मादा होती है ।
केसरपोतनथमा की डॉ. केथयीन तन्भो ने अऩनी ऩुस्तक हाऊ हे ल्दीमय आय एग्ज़ भें बी
अण्डे के दष्ु प्रबाव का वणथन ककमा गमा है ।
अनेक अनुसॊधानों से ऩता चरा है कक हभाये दे श भें कैंसय से ग्रस्त योचगमों की सॊख्मा का
एक ततहाई बाग त्फाकू तथा गुटखे आदद का सेवन कयने वारे रोगों का है । गुटखा खाने वारे
व्मजक्त की साॉसों भें अत्मचधक दग
ु न्
थ ध आने रगती है तथा चन
ू े के कायण भसूढों के पूरने से
ऩामरयमा तथा दॊ तऺम आदद योग उत्ऩन्न होते हैं। इसके सेवन से रृदम योग, यक्तचाऩ, नेत्रयोग
तथा रकवा, टी.फी जैसे बमॊकय योग उत्ऩन्न हो जाते हैं।
त्फाकू भें तनकोदटन नाभ का एक अतत पवषैरा तत्त्व होता है जो रृदम, नेत्र तथा
भजस्तष्क के सरए अत्मन्त घातक होता है । इसके बमानक दष्ु प्रबाव से अचानक आॉखों की
ज्मोतत बी चरी जाती है । भजस्तष्क भें नशे के प्रबाव के कायण तनाव यहने से यक्तचाऩ उच्च हो
जाता है ।
टी.वी.-कपल्भों का प्रबाव
22 अप्रैर को आगया से प्रकासशत सभाचाय ऩत्र दै तनक जागयण भें ददनाॊक 21 अप्रैर
1999 को वासशग ॊ टन (अभेरयका) भें घटी एक घटना प्रकासशत हुई थी। इस घटना के अनस ु ाय
ककशोय उम्र के दो स्कूरी पवद्माचथथमों ने डेनवय (कॉरये डो) भें दोऩहय को बोजन की आधी छुट्टी
के सभम भें कोरॊफाइन हाई स्कूर की ऩुस्तकारम भें घुसकय अॊधाधुॊध गोरीफायी की, जजससे
कभ-से-कभ 25 पवद्माचथथमों की भत्ृ मु हुई, 20 घामर हुए। पवद्माचथथमों की हत्मा के फाद
गोरीफायी कयने वारे ककशोयों ने स्वमॊ को बी गोसरमाॉ भायकय अऩने को बी भौत के घाट उताय
ददमा। हॉरीवुड की भाया-भायीवारी कपल्भी ढॊ ग से हुए इस अबूतऩूवथ काॊड के ऩीछे बी चरचचत्र ही
(कपल्भ) भूर प्रेयक तत्त्व है , मह फहुत ही शभथनाक फात है । बायतवाससमों को ऐसे सध
ु ये हुए याष्र
औय आधतु नक कहरामे जाने वारे रोगों से सावधान यहना चादहए।
एक सवे के अनस
ु ाय तीन वषथ का फच्चा जफ टी.वी. दे खना शरू
ु कयता है औय उस घय भें
केफर कनैक्शन ऩय 12-13 चैनर आती हों तो, हय योज ऩाॉच घॊटे के दहसाफ से फारक 20 वषथ
का हो तफ तक इसकी आॉखें 33000 हत्मा औय 72000 फाय अश्रीरता औय फरात्काय के दृश्म
दे ख चक
ु ी होंगी।
फच्चों के सोने के आठ ढॊ ग
1. कुछ फच्चे ऩीठ के फर सीधे सोते हैं। अऩने दोनों हाथ ढीरे छोड़कय मा ऩेट ऩय यख
रेते हैं। मह सोने का सफसे अच्छा औय आदशथ तयीका है । प्राम् इस प्रकाय सोने वारे फच्चे
अच्छे स्वास्र्थम के स्वाभी होते हैं। न कोई योग न कोई भानससक चचॊता। इन फच्चों का
पवकास अचधकतय यात्रत्र भें होता ही है ।
2. कुछ फच्चे सोते वक्त अऩने दोनों हाथ उठाकय ससय ऩय ऱख रेते हैं। इस प्रकाय शाॊतत
औय आयाभ प्रदसशथत कयने वारा फच्चा अऩने वातावयण से सॊतोष, शाॊतत चाहता है । अत् फड़ा
होने ऩय उसे ककसी जज्भेदायी का काभ एकदभ न सौंऩ दे , क्मोकक ऐसे फच्चे प्राम् कभजोय
सॊकल्ऩशजक्तवारे होते हैं। उसे फचऩन से ही अऩना काभ स्वमॊ कयने का अभ्मास कयवामें
ताकक धीये -धीये उसके अॊदय सॊकल्ऩशजक्त औय आत्भपवश्वास ऩैदा हो जाए।
4. कुछ फच्चे तककमे से सरऩटकय मा तककमे को ससय के ऊऩय यखकय सोते हैं। मह
फताता है कक फच्चे के भजस्तष्क भें कोई गहया बम फैठा हुआ है । फड़े प्माय से छुऩा हुआ बम
जानने औय उसे दयू कयने का शीघ्राततशीघ्र प्रमत्न कयें ताकक फच्चे का उचचत पवकास हो।
ककसी सदगुरू से प्रणव का भॊत्र ददरवाकय जाऩ कयावें ताकक उसका बापव जीवन ककसी बम से
प्रबापवत न हो।
5. कुछ फच्चे कयवट रेकय दोनों ऩाॉव भोड़कय सोते हैं। ऐसे फच्चे अऩने फड़ों से
सहानुबूतत औय सुयऺा के असबराषी होते हैं। स्वस्थ औय शजक्तशारी फच्चे बी इस प्रकाय सोते
हैं। उन फच्चों को फड़ों से अचधक स्नेह औय प्माय सभरना चादहए।
6. कुछ फच्चे तककमे मा त्रफस्तय की चादय भें छुऩकय सोते हैं। मह इस फात का सॊकेत है
कक वे रजज्जत हैं। अऩने वातावयण से प्रसन्न नहीॊ हैं। घय भें मा फाहय उनके सभत्रों के साथ
ऐसी फाते हो यहीॊ हैं, जजनसे वे सॊतुष्ट मा प्रसन्न नहीॊ हैं। उनसे ऐसा कोई शायीरयक दोष,
कुकभथ मा कोई ऐसी छोटी-भोटी गरती हो गमी है जजसके कायण वे भॉह
ु ददखाने के कात्रफर
नहीॊ हैं। उनको उस ग्रातन से भुक्त कीजजए। उनको चारयत्र्मवान औय साहसी फनाइमे.
7. कुछ फच्चे तककम, चादय औय त्रफस्तय तक यौंद डारते हैं। कैसी बी ठॊ डी मा गभॉ हो,
वे फड़ी कदठनाई से यजाई मा चादय आदद ओढना सहन कयते हैं। वे एक जगह जभकय नहीॊ
सोते, ऩूये त्रफस्तय ऩय रोट-ऩोट होते हैं। भाता-पऩता औय अन्म रोगों ऩय अऩना हुकुभ चराने
का प्रमत्न कयते हैं। ऐसे फच्चे दफाव मा जफयदस्ती कोई काभ नहीॊ कयें गे। फहुत ही स्नेह से,
मुजक्त से उनका सुधाय होना चादहए।
8. कुछ फच्चे तककमे मा चादय से अऩना ऩूया शयीय ढॊ ककय सोते हैं। केवर एक हाथ
फाहय तनकारते हैं। मह इस फात का प्रतीक है कक फच्चा घय के ही ककसी व्मजक्त मा सभत्र
आदद से सख्त नायाज़ यहता है । वह ककसी बीतयी दपु वधा का सशकाय है । ऐसे फच्चों का गहया
भन चाहता है कक कोई उनकी फातें औय सशकामतें फैठकय सहानुबूतत से सुन,े उनकी चचॊताओॊ
का तनयाकयण कये ।
ऐसे फच्चों के गुस्से का बेद प्माय से भारूभ कय रेना चादहए, उनको सभझा-फुझाकय
उनकी रूष्टता दयू कयने का प्रमत्न कयना चादहए। अन्मथा ऐसे फच्चे आगे चरकय फहुत बावुक
औय क्रोधी हो जाते हैं, जया-जया सी फात ऩय बड़क उठते हैं।
ऐसे फच्चे चफा-चफाकय बोजन कयें , ऐसा ध्मान यखना चादहए। गस्
ु सा आमे तफ हाथ की
भट्
ु दठमाॉ इस प्रकाय बीीँच दे नी चादहए ताकक नाखन
ू ों का फर हाथ की गद्दी ऩय ऩड़े.... ऐसा
अभ्मास फच्चों भें डारना चादहए। ॐ शाॊतत् शाॊतत्... का ऩावन जऩ कयके ऩानी भें दृजष्ट डारें
औय वह ऩानी उन्हें पऩरामें। फच्चे स्वमॊ मह कयें तो अच्छा है , नहीॊ तो आऩ कयें ।
सॊसाय के सबी फच्चे इन आठ तयीकों से सोते हैं। हय तयीका उनकी भानससक जस्थतत
औय आन्तरयक अवस्था प्रकट कयता है । भाता-पऩता उनकी अवस्था को ऩहचान कय मथोचचत
उनका सभाधान कय दें तो आगे चरकय मे ही फच्चे सपर जीवन त्रफता सकते हैं।
प्रसन्नता औय हास्म
(गीता् 2.65)
खश
ु ी जैसी खयु ाक नहीॊ औय चचॊता जैसा गभ नहीॊ। हरयनाभ, याभनाभ, ओॊकाय के उच्चायण
से फहुत सायी फीभारयमाॉ सभटती हैं औय योगप्रततकायक शजक्त फढती है । हास्म का सबी योगों ऩय
औषचध की नाई उत्तभ प्रबाव ऩड़ता है । हास्म के साथ बगवन्नाभ का उच्चायण एवॊ बगवद् बाव
होने से पवकाय ऺीण होते हैं, चचत्त का प्रसाद फढता है एवॊ आवश्मक मोग्मताओॊ का पवकास होता
है । असरी हास्म से तो फहुत साये राब होते हैं।
बोजन के ऩूवथ ऩैय गीरे कयने तथा 10 सभनट तक हॉ सकय कपय बोजन का ग्रास रेने से
बोजन अभत
ृ के सभान राब कयता है । ऩूज्म श्री रीराशाहजी फाऩू बोजन के ऩहरे हॉ सकय फाद
भें ही बोजन कयने फैठते थे। वे 93 वषथ तक नीयोग यहे थे।
ददर का योग, रृदम की धभनी का योग, ददर का दौया, आधासीसी, भानससक तनाव,
ससयददथ , खयाथटे, अ्रपऩत्त(एससडडटी), अवसाद(डडप्रेशन), यक्तचाऩ(ब्रड प्रेशय), सदॊ-जुकाभ, कैंसय
आदद अनेक योगों भें हास्म से फहुत राब होता है ।
ददन की शुरुआत भें 20 सभनट तक हॉ सने से आऩ ददनबय तयोताजा एवॊ ऊजाथ से बयऩूय
यहते हैं। हास्म आऩका आत्भपवश्वास फढाता है ।
खफ
ू हॉसो बाई ! खफ
ू हॉ सो, योते हो इस पवध तमों प्माये ?
जो ददर के ऩुयाने योगी हों, जजनको पेपड़ों से स्फजन्धत योग हों, ऺम(टी.फी.) के भयीज
हों, गबथवती भदहरा मा प्रसव भें ससजजरयमन ऑऩये शन कयवामा हो, ऩेट का ऑऩये शन कयवामा हो
एवॊ ददर के दौये वारे(हाटथ अटै क के) योचगमों को जोय से हास्म नहीॊ कयना चादहए, ठहाके नहीॊ
भायने चादहए।
फार-कहाननमाॉ
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„ ‟ज ज ? ॐ ...ॐ ... ॐ...... !
| आ औ ज |‟ – -
औ |
, ज ४०-५० औ - |
ज ज - - आ
ज | औ आ -
ज औ आ ज |
|एकाग्रता का प्रबाव
स्वाभी पववेकानॊद ने कहा् ऩढने के सरए ज़रुयी है एकाग्रता औय एकाग्रता के सरए ज़रूयी
है ध्मान, इजन्द्रमों का सॊमभ। फच्चों को ककसी बी ऺेत्र भें आगे फढने के सरए योज ध्मान औय
त्राटक का अभ्मास कयना चादहमे।
याजस्थान के डूग
ॊ यऩुय जजरे के यास्तऩार गाॉव की 19 जून, 1947 की घटना है ्
उस गाॉव की 10 वषॉम कन्मा कारी अऩने खेत से चाया ससय ऩय उठाकय आ यही थी। हाथ भें
हॉससमा था। उसने दे खा कक 'रक के ऩीछे हभाये स्कूर के भास्टय साहफ फॉधे हैं औय घसीटे जा यहे
हैं।'
कारी का शौमथ उबया, वह रक के आगे जा खड़ी हुई औय फोरी्
"भेये भास्टय को छोड़ दो।"
ससऩाही् "ऐ छोकयी ! यास्ते से हट जा।"
"नहीॊ हटूॉगी। भेये भास्टय साहफ को रक के ऩीछे फाॉधकय क्मों घसीट यहे हो?"
"भख
ू थ रड़की ! गोरी चरा दॉ ग
ू ा।"
ससऩादहमों ने फॊदक
ू साभने यखी। कपय बी उस फहादयु रड़की ने उनकी ऩयवाह न की औय भास्टय
को जजस यस्सी से रक से फाॉधा गमा था उसको हॉ ससमे काट डारा !
रेककन तनदथ मी ससऩादहमों ने, अॊग्रेजों के गुराभों ने धड़ाधड़ गोसरमाॉ फयसामीॊ। कारी नाभ की उस
रड़की का शयीय तो भय गमा रेककन उसकी शूयता अबी बी माद की जाती है ।
कारी के भास्टय का नाभ था सेंगाबाई। उसे क्मों घसीटा जा यहा था? क्मोंकक वह कहता था कक
'इन वनवाससमों की ऩढाई फॊद भत कयो औय इन्हें जफयदस्ती अऩने धभथ से च्मुत भत कयो।'
अॊग्रेजों ने दे खा कक 'मह सेंगाबाई हभाया पवयोध कयता है सफको हभसे रोहा रेना ससखाता है तो
उसको रक से फाॉधकय घसीटकय भयवा दो।'
वे दष्ु ट रोग गाॉव के इस भास्टय की इस ढॉ ग से भत्ृ मु कयवाना चाहते थे कक ऩूये डूग
ॊ यऩुय जजरे
भे दहशत पैर जाम ताकक कोई बी अॊग्रेजों के पवरुद्ध आवाज न उठामे। रेककन एक 10 वषथ की
कन्मा ने ऐसी शूयता ददखाई कक सफ दे खते यह गमे !
कैसा शौमथ ! कैसी दे शबजक्त औय कैसी धभथतनष्ठा थी उस 10 वषॉम कन्मा की। फारको ! तुभ
छोटे नहीॊ हो।
हभ फारक हैं तो क्मा हुआ, उत्साही हैं हभ वीय हैं।
हभ नन्हें -भुन्ने फच्चे ही, इस दे श की तकदीय हैं।।
तभ
ु बी ऐसे फनो कक बायत कपय से पवश्वगरु
ु ऩद ऩय आसीन हो जाम। आऩ अऩने जीवनकार भें
ही कपय से बायत को पवश्वगरु
ु ऩद ऩय आसीन दे खो... हरयॐ....ॐ....ॐ....ॐ
असॊबव कछ बी नहीॊ
आ आ , , , ,आ ,
, आ , ज
इससरए दफ
ु र
थ नकायात्भक पवचाय छोड़कय उच्च सॊकल्ऩ कयके प्रफर ऩुरूषाथथ भें रग
जाओ, साभर्थमथ का खजाना तु्हाये ऩास ही है । सपरता अवश्म तु्हाये कदभ चभ
ू ेगी।
फारक श्रीयाभ
हभाये दे श भें बगवान श्री याभ के हजायों भॊददय हैं। उन बगवान श्री याभ का फाल्मकार
कैसा था, मह जानते हो?
फारक श्री याभ के पऩता का नाभ याजा दशयथ तथा भाता का नाभ कौशल्मा था। याभ जी
के बाइमों के नाभ रक्ष्भण, बयत औय शत्रर्घ
ु न था। फारक श्रीयाभ फचऩन से ही शाॊत, धीय, गॊबीय
स्वबाव के औय तेजस्वी थे। वे हय-योज़ भाता-पऩता को प्रणाभ कयते थे। भाता-पऩता की आऻा का
उल्रॊघन कबी बी नहीॊ कयते थे। फचऩन से ही गरू
ु वसशष्ठ के आश्रभ भें सेवा कयते थे। श्रीयाभ
तथा रक्ष्भण गुरू जी के ऩास आत्भऻान का सत्सॊग सुनते थे। गुरूजी की आऻा का ऩारन कयके
तनमसभत त्रत्रकार सॊध्मा कयते थे। सॊध्मा भें प्राणामाभ, जऩ-ध्मान आदद तनमसभत यीतत से कयते
थे। गुरू जी की आऻा भें यहने से, उनकी सेवा कयने से श्री वसशष्ठजी खफ
ू प्रसन्न यहते थे।
इससरए गुरू जी ने आत्भऻान, ब्रह्त्तभऻानरूऩी सत्सॊग अभत
ृ का ऩान उन्हें कयामा था।
श्री याभ बगवान की तयह ऩूजे जा यहे हैं क्मोंकक उनभें फाल्मकार भें ऐसे सदगुण थे औय
गुरू जी की कृऩा उनके साथ थी।
फारक ध्रव
याजा उत्तानऩाद की दो यातनमाॉ थीॊ। पप्रम यानी का नाभ सुऱूची औय अपप्रम यानी का नाभ
सुभतत था। दोनों यातनमों को एक-एक ऩुत्र था। एक फाय यानी सुभतत का ऩुत्र ध्रव
ु खेरता-खेरता
अऩने पऩता की गोद भें फैठ गमा। यानी ने तुयॊत ही उसे पऩता की गोद से नीचे उताय कय कहा्
पऩता की गोद भें फैठने के सरए ऩहरे भेयी कोख से जन्भ रे। ध्रव
ु योता-योता अऩना भाॉ
के ऩास गमा औय सफ फात भाॉ से कही। भाॉ ने ध्रव
ु को सभझामा् फेटा! मह याजगद्दी तो नश्वय
है ऩयॊ तु तू बगवान का दशथन कयके शाश्वत गद्दी प्राप्त कय। ध्रव
ु को भाॉ की सीख फहुत अच्छी
रगी। औय तयु ॊ त ही दृढ तनश्चम कयके तऩ कयने के सरए जॊगर भें चरा गमा। यास्ते भें दहॊसक
ऩशु सभरे कपय बी बमबीत नहीॊ हुआ। इतने भें उसे दे वपषथ नायद सभरे। ऐसे घनघोय जॊगर भें
भात्र 5 वषथ को फारक को दे खकय नायद जी ने वहाॉ आने का कायण ऩछ ू ा। ध्रव
ु ने घय भें हुई सफ
फातें नायद जी को फता दीॊ औय बगवान को ऩाने की तीव्र इच्छा प्रकट की।
नायद जी ने ध्रव
ु को सभझामा् “तू इतना छोटा है औय बमानक जॊगर भें ठण्डी-गभॉ
सहन कयके तऩस्मा नहीॊ कय सकता इससरए तू घय वाऩस चरा जा।“ ऩयन्तु ध्रव
ु दृढतनश्चमी
था। उसकी दृढतनष्ठा औय बगवान को ऩाने की तीव्र इच्छा दे खकय नायदजी ने ध्रव
ु को ॐ नभो
बगवते वासदे वाम ‟ का भॊत्र दे कय आशीवाथद ददमा् “ फेटा! तू श्रद्धा से इस भॊत्र का जऩ कयना।
बगवान ज़रूय तुझ ऩय प्रसन्न होंगे।“ ध्रव
ु तो कठोय तऩस्मा भें रग गमा। एक ऩैय ऩय खड़े
होकय, ठॊ डी-गभॉ, फयसात सफ सहन कयते-कयते नायदजी के द्वाया ददए हुए भॊत्र का जऩ कयने
रगा।
पतेह ससॊह तथा जोयावय ससॊह ससख के दसवें गुरू गोपवॊदससॊह जी के सुऩुत्र थे।
आनॊदऩुय के मुद्ध भें गुरू जी का ऩरयवाय त्रफखय गमा था। उनके दो ऩुत्र अजीतससॊह एवॊ
जुझायससॊह की तो उनसे बें ट हो गमी, ऩयन्तु दो छोटे ऩुत्र गुरूगोपवॊद ससहॊ की भाता गुजयीदे वी के
साथ अन्मत्र त्रफछुड़ गमे।
आनॊदऩयु छोड़ने के फाद पतेह ससॊह एवॊ जोयावय ससॊह अऩनी दादी के साथ जॊगरों, ऩहाड़ों
को ऩाय कयके एक नगय भें ऩहुॉच।े उस सभम जोयावयससॊह की उम्र भात्र सात वषथ ग्मायह भाह एवॊ
पतेहससॊह की उम्र ऩाॉच वषथ दस भाह थी।
कोतवार ने गॊगू के साथ ससऩादहमों को बेजा तथा दोनों फारकों सदहत भाता गुजयीदे वी
को फॊदी फना सरमा। एक यात उन्हें भुरयॊडा की जेर भें यखकय दस
ू ये ददन सयदहॊद के नवाफ के
ऩास रे जामा गमा। इस फीच भाता गुजयीदे वी दोनों फारकों को , उनके
दादा गुरू तेग फहादयु एवॊ पऩता गुरुगोपवॊदससॊह की वीयताऩूणथ कथाएॉ सुनाती यहीॊ।
सुफह सैतनक फच्चों को रेने ऩहुॉच गमे। दोनों फारकों ने दादी के चयणस्ऩशथ ककमे एवॊ
सपरता का आशीवाथद रेकय चरे गए। दोनों फारक नवाफ वजीयखान के साभने ऩहुॉचे तथा ससॊह
की तयह गजथना कयते फोरे् “वाहे गुरु जी का खारसा, वाहे गुरू जी की पतेह।“
चायों ओय से शत्रओ
ु ॊ से तघये होने ऩय बी इन नन्हें शेयों की तनबॉकता को दे खकय सबी
दयफायी दाॉतो तरे उॉ गरी दफाने रगे। शयीय ऩय केसयी वस्त्र एवॊ ऩगड़ी तथा कृऩाण धायण ककए
इन नन्हें मोद्धाओॊ को दे खकय एक फाय तो नवाफ का बी रृदम बी पऩघर गमा।
नवाफ की ऩहरी चार फेकाय गमी। फच्चे नवाफ की भीठी फातों एवॊ रारच भें नहीॊ पॉसे।
अफ उसने दस
ू यी चार खेरी। नवाफ ने सोचा मे दोनों फच्चे ही तो हैं, इन्हें डयामा धभकामा जाम
तो अऩना काभ फन सकता है ।
उसने फच्चों से कहा् “तुभने हभाये दयफाय का अऩभान ककमा है । हभ चाहें तो तु्हें कड़ी
सजा दे सकते हैं ऩयन्तु तु ््हे एक अवसय कपय से दे ते हैं। अबी बी सभम है मदद जज़ॊदगी चाहते
हो तो भुसरभान फन जाओ वनाथ....”
नवाफ अऩनी फात ऩयू ी कये इससे ऩहरे ही मे नन्हें वीय गयज कय फोर उठे ् “नवाफ! हभ
उन गरू
ु तेगफहादयु जी के ऩोते हैं जो धभथ की यऺा के सरए कुफाथन हो गमे। हभ उन गरू
ु गोपवॊदससॊह
जी के ऩुत्र हैं जजनका नाया है ् धचडडमों से भैं फाज रडाऊॉ, सवा राख से एक रडाऊॉ। जजनका एक-
एक ससऩाही तेये सवा राख गुराभों को धर
ू चटा दे ता है , जजनका नाभ सुनते ही तेयी सल्तनत
थय-थय काॉऩने रगती है । तू हभें भत्ृ मु का बम ददखाता है । हभ कपय से कहते हैं कक हभाया धभथ
हभें प्राणों से बी प्माया है । हभ प्राण त्माग सकते हैं ऩयन्तु अऩना धभथ नहीॊ त्माग सकते।“
इतने भें दीवान सुच्चानॊद ने फारकों से ऩूछा् “अच्छा! मदद हभ तु्हे छोड़ दें तो तुभ
क्मा कयोगे?”
फारक जोयावय ससॊह ने कहा् “हभ सेना इकट्ठी कयें गे औय अत्माचायी भुगरों को इस दे श
से खदे ड़ने के सरए मुद्ध कयें गे।“
दीवान् “मदद तभ
ु हाय गमे तो?”
काजी् “मे फारक भुगर शासन के दश्ु भन हैं औय इस्राभ को स्वीकाय कयने को बी
तैमाय नहीॊ हैं। अत्, इन्हें जजन्दा दीवाय भें चन
ु वा ददमा जामे।“
शैतान नवाफ तथा काजी के क्रूय पैसरे के फाद दोनों फारकों को उनकी दादी के ऩास बेज
ददमा गमा। फारकों ने उत्साहऩव
ू क
थ दादी को ऩयू ी घटना सन
ु ाई। फारकों की वीयता को दे खकय
दादी गदगद हो उठी औय उन्हें रृदम से रगाकय फोरी् “भेये फच्चों! तभ
ु ने अऩने पऩता की राज
यख री।“
दस
ू ये ददन दोनों वीय फारकों को ददल्री के सयकायी जल्राद सशशार फेग औय पवशार फेग
को सुऩुदथ कय ददमा गमा। फारकों को तनजश्चत स्थान ऩय रे जाकय उनके चायों ओय दीवाय फननी
प्राय्ब हो गमी। धीये -धीये दीवाय उनके कानों तक ऊॉची उठ गमी। इतने भें फड़े बाई जोयावयससॊह
ने अॊततभ फाय अऩने छोटे बाई पतेहससॊह की ओय दे खा औय उसकी आॉखों से आॉसू छरक उठे ।
जोयावय ससॊह की इस अवस्था को दे खकय वहाॉ खड़ा काजी फड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सभझा
कक मे फच्चे भत्ृ मु को साभने दे खकय डय गमे हैं। उसने अच्छा भौका दे खकय जोयावयससॊह से
कहा् “फच्चों! अबी बी सभम है । मदद तुभ भुसरभान फन जाओ तो तु्हायी सजा भाप कय दी
जाएगी।“
जोयावय ससॊह ने गयजकय कहा् “भूखथ काजी! भैं भौत से नहीॊ डय यहा हूॉ। भेया बाई भेये फाद इस
सॊसाय भें आमा ऩयन्तु भझ
ु से ऩहरे धभथ के सरए हो यहा है । भुझे फड़ा बाई होने ऩय बी
मह सौबाग्म नहीॊ सभरा, इससरए भुझे योना आता है ।“
सात वषथ के इस नन्हें से फारक के भुख से ऐसी फात सुनकय सबी दॊ ग यह गमे। थोड़ी
दे य भें दीवाय ऩूयी हुई औय वे दोनों नन्हें धभथवीय उसभें सभा गमे।
कुछ सभम ऩश्चात दीवाय को चगया ददमा गमा। दोनों फारक फेहोश ऩड़े थे, ऩयन्तु
अत्माचारयमों ने उसी जस्थतत भें उनकी हत्मा कय दी।
पवश्व के ककसी बी अन्म दे श के इततहास भें इस प्रकाय की घटना नहीॊ है , जजसभें सात
एवॊ ऩाॉच वषथ के दो नन्हें ससॊहों की अभय वीयगाथा का वणथन हो।
जोयावय ससॊह एवॊ पतेहससॊह पऩता से त्रफछुड़ कय शत्रओॊ की कैद भें ऩहुॉच चुके थे। छोटी
सी उम्र भें ही उन्हें इतने फड़े सॊकट का साभना कयना ऩड़ा। धभथ छोड़ने के सरए ऩहरे रारच
औय कठोय मातनाएॉ दी गईँ ऩयन्तु मे दोनों वीय अऩने धभथ ऩय अडडग यहे । धन्म हैं ऐसे
धभथतनष्ठ फारक!
प्रत्मेक भनुष्म को अऩने धभथ के प्रतत श्रद्धा एवॊ आदय होना चादहए। बगवान श्री कृष्ण
ने कहा है ्
“अच्छी प्रकाय आचयण ककमे हुए दसू ये के धभथ से ऩयाजजत गुणयदहत बी अऩना धभथ अतत
उत्तभ है । अऩने धभथ भें तो भयना बी कल्माणकायक है औय दस ू ये का धभथ बम को दे ने वारा है ।“
(गीता् 3.35)
तेयह वषॉम हकीकत याम स्मारकोट के एक छोटे से भदयसे भें ऩढता था। एक ददन कुछ
फच्चों ने सभर कय हकीकत याम को गासरमाॉ दीॊ। ऩहरे तो वह चऩ
ु यहा। वैसे बी सहनशीरता हो
दहन्दओ
ु ॊ का गुण है ही.... ककन्तु जफ उन उद्दण्ड फच्चों ने दहॊदओ
ु ॊ के नाभ की औय दे वी-दे वताओॊ
के नाभ की गासरमाॉ दे नी शुरु की तफ उस वीय फारक से अऩने धभथ का अऩभान सहा नहीॊ गमा।
हकीकत याम ने कहा् “अफ तो हद हो गमी! अऩने सरमे तो भैंने सहनशजक्त का उऩमोग
ककमा रेककन भेये धभथ, गुरू औय बगवान के सरए एक बी शब्द फोरोगे ते मह भेयी सहनशजक्त
से फाहय की फात है । भेये ऩास बी जुफान है । भैं बी तु्हें फोर सकता हूॉ।“
हकीकत याम ने बी उनको दो-चाय कटु शब्द सुना ददमे। फस, उन्हीॊ दो-चाय शब्दों को
सुनकय भुल्रा-भौरपवमों का खन
ू उफर ऩड़ा। वे हकीकत याम को ठीक कयने का भौका ढूॉढने
रगे। सफ रोग एक तयप औय हकीकत याम अकेरा दस
ू यी तयप। उस सभम भुगरों का शासन
था। इससरए हकीकत याम को जेर भें कैद कय ददमा गमा।
भुगर शासकों की ओय से हकीकत याम को मह पयभान बेजा गमा् “अगय तुभ करभा
ऩढ रो औय भुसरभान फन जाओ तो तु्हें अबी भाप कय ददमा जाएगा औय मदद तुभ
भुसरभान नहीॊ फनोगे तो तु ््हाया ससय धड़ से अरग कय ददमा जामेगा।“
हकीकत याम के भाता-पऩता जेर के फाहय आॉसू फहा यहे थे् “फेटा! तू भुसरभान फन जा।
कभ से कभ हभ तुझे जीपवत तो दे ख सकेंगे! “… रेककन उस वीय हकीकत याम ने कहा्
हकीकत याम् ”तो कपय भैं अऩने धभथ भें ही भयना ऩसन्द करूॉगा। भैं जीते-जी दस
ू यों के
धभथ भें नहीॊ जाऊॉगा।“
क्रूय शासकों ने हकीकत याम की दृढता दे खकय अनेकों धभककमाॉ दीॊ रेककन उस फहादयु
ककशोय ऩय उनकी धभककमों का जोय न चर सका। उसके दृढ तनश्चम को ऩूया याज्म-शासन बी
न डडगा सका।
अॊत भें भुगर शासक ने प्ररोबन दे कय अऩनी ओय खीॊचना चाहा रेककन वह फुद्चधभान व
वीय ककशोय प्ररोबनों भें बी नहीॊ पॉसा।
आणखय क्रूय भुसरभान शासकों ने आदे श ददमा् “अभुक ददन फीच भैदान भें हकीकत याम
का सशयोच्छे द ककमा जाएगा।“
वह तेयह वषॉम ककशोय जल्राद के हाथ भें चभचभाती हुई तरवाय दे खकय जया-बी
बमबीत न हुआ वयन ् वह अऩने गुरू के ददए हुए ऻान को माद कयने रगा् “मह तरवाय
ककसको भाये गी? भाय-भाय इस ऩॊचबौततक शयीय को ही भाये गी औय ऐसे ऩॊचबौततक शयीय तो कई
फाय सभरे औय कई फाय भय गमे।..... तो क्मा मह तरवाय भुझे भाये गी? नहीॊ भैं तो अभय आत्भा
हूॉ.... ऩयभात्भा का सनातन अॊश हूॉ। भझ
ु े मह कैसे भाय सकती है ? ॐ... ॐ.... ॐ
हकीकत याम गुरु के इस ऻान का चचॊतन कय यहा था, तबी क्रूय काजजमों ने जल्राद को
तरवाय चराने का आदे श ददमा। जल्राद ने तरवाय उठाई रेककन उस तनदोष फारक को दे खकय
उसकी अॊतयात्भा थयथया उठी। उसके हाथों से तरवाय चगय ऩड़ी औय हाथ काॉऩने रगे।
इतने भें जल्राद ने तरवाय चराई औय हकीकत याम का ससय धड़ से अरग हो गमा।
हकीकत याम ने 13 वषथ की नन्हीॊ सी उम्र भें धभथ के सरए अऩनी कुफाथनी दे दी। उसने
शयीय छोड़ ददमा रेककन धभथ न छोड़ा।
हकीकत याम ने तो धभथ के सरए फसरवेदी ऩय चढ गमा रेककन उसकी कुफाथनी ने बायत के
हजायों-राखों जवानों भें एक जोश बय ददमा कक „धभथ की खाततय प्राण दे ना ऩड़े तो दें गे रेककन
पवधसभथमों के आगे नहीॊ झुकेंगे। बरे ही अऩने धभथ भें बूखे प्मासे भयना ऩड़े तो स्वीकाय है
रेककन ऩय धभथ को कबी स्वीकाय नहीॊ कयें गे।„
ऐसे वीयों के फसरदान के परस्वरूऩ ही हभें आजादी प्राप्त हुई है औय ऐसे राखों-राखों
प्राणों की आहूतत द्वाया प्राप्त की गमी इस आजादी को हभ कहीॊ व्मसन, पैशन एवॊ चरचचत्रों से
प्रबापवत होकय गॉवा न दें ! अत् दे शवाससमों को सावधान यहना होगा।
ॐ ॐ
आज ज
ज ज , आ आ, आ
ज
-ज आ आ, ज
ज ,ज
ज -
।
1 ( 2/3)
ज ! , ज !
ज 1
ज ।
2 ( 2/13)
ज ज ,ज औ ,
, 2
ज ।
ज 3 ( 2/20)
आ ज औ
ज , , औ , ज
ज 3
ज ।
ज 4 ( 2/22)
ज , ज
||4||
।
5 ( 2/23)
आ , आ ज , ज औ
5
ख ख ज ज ।
6 ( 2/38)
ज - ज , - औ - , ज,
6
।
7 ( 2/47)
,
आ 7
ज ।
8 ( 2/48)
ज ! आ औ
आ , (ज ज , औ
' ' ) 8
।
ख ख 9 ( 2/15)
! - ज औ
, 9
ज ।
10 ( 3/21)
ज -ज आ , - आ ज
, - ज ( ,
' ' 10
ज ज ।
11 ( 5/7)
ज ,ज ज औ
आ ज आ , आ 11
।
12 ( 4/38)
आ -आ आ 12
।
13 ( 4/39)
ज , औ
- ज 13
।
14 ( 18/17)
ज ' ' ज औ
, औ
(ज , औ ज आ
, ज औ
ज , औ
ज , आ , औ
आ
, ' ' ) 14
।
15 ( 3/35)
आ
औ 15
।
16 ( 6/5)
- औ आ
औ आ 16
ज ।
17 ( 6/6)
ज ज औ ज आ , ज आ
औ ज ज , आ
17
।
ख 18 ( 6/17)
आ - ,
औ ज 18
ज ।
19 ( 9/27)
ज ! ज ,ज ,ज ,ज औ ज ,
19
ज ज ।
20 ( 12/15)
ज ज औ ज ज
ज , ( ' ' ), औ
- 20
।
ज 21 ( 16/21)
, - ( औ
, औ ' ' )आ
ज 21
ज ज ।
22 ( 15/7)
ज (ज आ
- , आ -
, ज ' '
)औ औ आ 22
।
ज 23 ( 8/13)
ॐ आऔ
आ ज , 23
।
ज 24 ( 18/78)
ज !ज औ ज - ज , , ज ,
औ -
-
हे प्रब! आनन्ददाता!!
शीघ्र साये दग
ु ण
ुथ ों को दयू हभसे कीजजमे।। हे प्रबु......
कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा। सदा प्रेभ के गीत गाता चरा जा।।
तेये भागथ भें वीय ! काॉटें फड़े हैं। सरमे तीय हाथों भें वैयी खड़े हैं।
फहादयु सफको सभटाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।
तू सॊदेश सख
ु का सन
ु ाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।
मव
ु ा वीय हैं दनदनाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।
जो त्रफछुड़े हुए हैं उन्हें तू सभरा जा। जो सोमे ऩड़े हैं उन्हें तू जगा जा।।
तू आनॊद डॊका फजाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
फुद्चध खफ
ू कुशाग्र फनेगी तनत्म प्रसन्न यहें गे।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
शौमथ-गीत
हो जाओ तैमाय
धभथ के नाभ ऩय रट
ू चरी है , पवधभोमों के हाथ। हो जाओ...
दफ
ु र
थ पवचाय कुचर डारो कयो उच्च पवचाय,
ऩद्भासन हभें सह
ु ाता है , आत्भफर वह फढाता है ।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जागत
ृ हो बायत साया...
जागत
ृ हो बायत साया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।
गीत गाते खश
ु ी भनाते, खेर खेर भें सशऺा ऩाते।
नाच नाचते धभ
ू भचाते, भीठे -भीठे बजन बी गाते।
प्रेयक सॊद
ु य कहानी सन
ु ाते, श्वास रेते अॊक चगनाते।
जागत
ृ हो बायत साया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।।2।।
केन्द भें ऐसा आनन्द आता, ʹफार सॊस्कायʹ भें भैं तनत जाता।
जागत
ृ हो बायत साया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।।3।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जन्भददन तभ ऐसा भनाओ...
बायतीम सॊस्कृतत तभ
ु अऩनाओ, जन्भददन तभ
ु ऐसा भनाओ।।2।।
बायतीम सॊस्कृतत तभ
ु अऩनाओ, जन्भददन तभ
ु ऐसा भनाओ।।3।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जन्भ ददन फधाई गीत
जन्भददवस ऩय दे ते हैं तभ
ु को हभ फधाई
जीवन का हय इक र्हा हो तभ
ु को सख
ु दामी
जर सख
ु दामी हो ऩवन सख
ु दामी
दशथन सख
ु दामी हो ससु भयन सख
ु दामी
तन भन सुखदामी हो जीवन सुखदामी
सभ
ु तत सख
ु दामी हो सत्ऻान सख
ु दामी
गभ की धऩ
ू रगे न तुझको दे ते हभ दहु ाई
फधाई हो फधाई शब
ु ददन की फधाई
फधाई हो फधाई शब
ु ददन की फधाई
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
अजुन
थ की तयह एकाग्रता, अऩने भन भें राना।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
तो कृऩा भझ
ु ऩे कीजजमे, भझ
ु को फार सॊस्काय भें बेजजमे।
पऩता जी इतना कीजजमे.... भाता जी इतना कीजजमे....।।1।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आयती
ॐज ज
ज ज , ज ज ,
ज ज ज
ज , ,
आ , ज ज …
ज ,आ ज | ज ज …
, | ज ज ….
, ,
, | ज ज …
, ,
, | ज ज …
, ,
| ज ज …
, ,
, | ज ज …
|| ज ज ||
ज ...?
ज आ
आ औ
आ ज ज
ज
|
ज , ज ज |
( ) ज
0 0 0
A/C no :- 4579002100002930
IFSC - PUNB 0457900
Branch Code 457900
ज |
<> ज ( , ज
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ज 08126396457 |
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