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राष्टर्ीय सुरक्षा अिधिनयम, 1980

(1980 का अिधिनयम संख्यांक 65)


[27 िदसम्बर, 1980]
कु छ मामल म िनवारक िनरोध का और
उससे सम्ब िवषय का उपबन्ध
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के इकतीसव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
1. संिक्षप्त नाम और िवस्तार––(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम राष्टर्ीय सुरक्षा अिधिनयम, 1980 है ।
(2) इसका िवस्तार, जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय, सम्पूणर् भारत पर है ।
2. पिरभाषाएं––इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––
(क) के न्दर्ीय सरकार ारा िकए गए िनरोध-आदेश या ऐसे आदेश के अधीन िनरु व्यिक्त के संबंध म, “समुिचत
सरकार” से के न्दर्ीय सरकार अिभपर्ेत है, तथा िकसी राज्य सरकार ारा या िकसी राज्य सरकार के अधीनस्थ िकसी अिधकारी
ारा िकए गए िनरोध-आदेश के संबंध म या ऐसे आदेश के अधीन िनरु व्यिक्त के संबंध म, ऐसी राज्य सरकार अिभपर्ेत है;
(ख) “िनरोध-आदेश” से धारा 3 के अधीन िकया गया कोई आदेश अिभपर्ेत है;
(ग) “िवदेशी” का वही अथर् है जो िवदेिशय िवषयक अिधिनयम, 1946 (1946 का 31) म है;
(घ) “व्यिक्त” के अन्तगर्त कोई िवदेशी भी है;
(ङ) संघ राज्यक्षेतर् के संबंध म “राज्य सरकार” से, उसका पर्शासक अिभपर्ेत है ।
3. कु छ व्यिक्तय को िनरु करने का आदेश करने की शिक्त––(1) यिद के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार का,––
(क) िकसी व्यिक्त के सम्बन्ध म यह समाधान हो जाता है िक उसे भारत की सुरक्षा पर, भारत के िवदेशी सरकार
से सम्बध पर या भारत की सुरक्षा पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाली रीित से कायर् करने से रोकने की दृिष्ट से ऐसा करना
आवश्यक है, अथवा
(ख) िकसी िवदेशी के सम्बन्ध म यह समाधान हो जाता है िक भारत म उसके उपिस्थत बने रहने का िविनयमन
करने की दृिष्ट से या उसे भारत से बाहर िनकालने का इं तजाम करने की दृिष्ट से ऐसा करना आवश्यक है,
तो वह यह िनदेश देते हुए, आदेश कर सके गी िक उस व्यिक्त को िनरु कर िलया जाए ।
(2) यिद के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार का िकसी व्यिक्त के संबंध म यह समाधान हो जाता है िक उसे राज्य की
सुरक्षा पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाली रीित से कायर् करने से या लोक व्यवस्था बनाए रखने पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाली रीित से
कायर् करने से या समुदाय के िलए आवश्यक पर्दाय और सेवा को बनाए रखने पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाली रीित से कायर् करने से
िनवािरत करने की दृिष्ट से ऐसा करना आवश्यक है तो वह यह िनदेश देते हुए आदेश कर सके गी िक उस व्यिक्त को िनरु कर
िलया जाए ।
स्पष्टीकरण––इस उपधारा के पर्योजन के िलए, “समुदाय के िलए आवश्यक पर्दाय और सेवा को बनाए रखने पर पर्ितकू ल
पर्भाव डालने वाली रीित से कायर् करना” पद के अन्तगर्त चोरबाजारी िनवारण और आवश्यक वस्तु पर्दाय अिधिनयम, 1980
(1980 का 7) की धारा 3 की उपधारा (1) के स्पष्टीकरण म यथा पिरभािषत, “समुदाय के िलए आवश्यक वस्तु का पर्दाय बनाए
रखने पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाली िकसी रीित से कायर् करना” पद नह है और तद्नुसार इस अिधिनयम के अधीन कोई भी
िनरोध-आदेश उस आधार पर नह िकया जाएगा िजस पर उस अिधिनयम के अधीन कोई िनरोध-आदेश िकया जा सकता है ।
(3) यिद िकसी िजला मिजस्टर्ेट या िकसी पुिलस आयुक्त की अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िकसी क्षेतर् म
िव मान या िव मान हो सकने वाली पिरिस्थितय को ध्यान म रखते हुए, राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है िक ऐसा करना
आवश्यक है तो वह िलिखत आदेश ारा िनदेश दे सके गी िक ऐसी अविध के दौरान, जो ऐसे आदेश म िविनिदष्ट की जाए, ऐसा िजला
मिजस्टर्ेट या पुिलस आयुक्त भी, यिद उसका उपधारा (2) म उपबिन्धत रूप म समाधान हो जाता है तो, उक्त उपधारा ारा पर्द
शिक्तय का पर्योग कर सके गा :
परन्तु इस उपधारा के अधीन राज्य सरकार ारा िकए गए िकसी आदेश म िविनिदष्ट अविध, पर्थम बार म तीन मास से
अिधक की नह होगी, िकन्तु राज्य सरकार, यिद उसका पूव क्त रूप म यह समाधान हो जाता है िक ऐसा करना आवश्यक है तो, ऐसे
आदेश को, समय-समय पर संशोिधत करके ऐसी अविध को, एक बार म अिधक से अिधक तीन मास तक के िलए, बढ़ा सके गी ।
2

(4) जब इस धारा के अधीन कोई आदेश उपधारा (3) म विणत िकसी अिधकारी ारा िकया जाता है तो वह उस तथ्य की
िरपोटर् उस राज्य सरकार को तुरन्त भेजेगा िजसके वह अधीनस्थ है और साथ ही वे आधार, िजन पर वह आदेश िकया गया है और ऐसी
अन्य िविशिष्टयां, जो उसकी राय म मामले से संबंिधत ह, भी, भेजेगा और ऐसा कोई आदेश, उसके िकए जाने की तारीख से, बारह िदन
से अिधक तभी पर्वृ रहेगा जबिक इस बीच राज्य सरकार ने उसका अनुमोदन कर िदया है, अन्यथा नह :
परन्तु जहां िनरोध के आधार, आदेश करने वाले अिधकारी ारा िनरोध की तारीख से पांच िदन के पश्चात् िकन्तु
1 [पंदर्ह
िदन] के भीतर, धारा 8 के अधीन संसूिचत िकए जाते ह, वहां यह उपधारा इस उपान्तर के साथ लागू होगी िक “बारह िदन”
शब्द के स्थान पर 1[“बीस िदन”] शब्द रखे जाएंगे ।
(5) जब इस धारा के अधीन कोई आदेश राज्य सरकार ारा िकया जाता है या अनुमोिदत िकया जाता है तो राज्य सरकार
उस तथ्य की िरपोटर्, के न्दर्ीय सरकार को, सात िदन के भीतर भेजेगी और साथ ही वे आधार, िजन पर वह आदेश िकया गया है और ऐसी
अन्य िविशिष्टयां, जो राज्य सरकार की राय म उस आदेश की आवश्यकता से संबंिधत ह, भी भेजेगी ।
4. िनरोध-आदेश का िनष्पादन––िनरोध-आदेश का िनष्पादन भारत म िकसी भी स्थान पर उस रीित से िकया जा सके गा जो
दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) म िगरफ्तारी के वारण्ट के िनष्पादन के िलए उपबिन्धत है ।
5. िनरोध का स्थान तथा दशा का िविनयमन करने की शिक्त––पर्त्येक व्यिक्त, िजसके िवरु िनरोध-आदेश
िकया गया है, ––
(क) ऐसे स्थान पर और ऐसी दशा म, िजनके अन्तगर्त भरण-पोषण, अनुशासन तथा अनुशासन भंग करने के िलए
दण्ड भी है, िनरु िकया जा सके गा जो समुिचत सरकार साधारण या िवशेष आदेश ारा िविनिदष्ट करे ; और
(ख) िनरोध के एक स्थान से िनरोध के दूसरे स्थान को, चाहे वह उसी राज्य म हो या दूसरे राज्य म, समुिचत
सरकार के आदेश ारा हटाया जा सके गा :
परन्तु राज्य सरकार िकसी व्यिक्त को एक राज्य से दूसरे राज्य को हटाने का खण्ड (ख) के अधीन आदेश उस अन्य राज्य की
सरकार की सम्मित के िबना नह करे गी ।
[5क. िनरोध के आधार का पृथक् िकया जाना––जहां कोई व्यिक्त धारा 3 के अधीन ऐसे िनरोध-आदेश के [चाहे वह राष्टर्ीय
2

सुरक्षा (दूसरा संशोधन) अिधिनयम, 1984 के पर्ारम्भ के पूवर् या उसके पश्चात् िकया गया हो] अनुसरण म, जो दो या अिधक आधार
पर िकया गया है, िनरु िकया गया है वहां ऐसे िनरोध-आदेश के बारे म यह समझा जाएगा िक वह ऐसे आधार म से पर्त्येक आधार पर
अलग-अलग िकया गया है और तद्नुसार :––
(क) ऐसे आदेश के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह के वल इस कारण अिविधमान्य या अपर्वतर्नीय है िक ऐसे
आधार म से एक या कु छ आधार :––
(i) स्पष्ट नह ह ;
(ii) िव मान नह ह;
(iii) सुसंगत नह ह;
(iv) उस व्यिक्त से संब नह ह या उससे िनकटत: संब नह ह; या
(v) िकसी भी अन्य कारण से अिविधमान्य ह,
और इस कारण यह अिभिनधार्िरत करना संभव नह है िक ऐसा आदेश करने वाली सरकार या अिधकारी का वैसा समाधान हो गया था
जैसा िक शेष आधार या आधार के पर्ित धारा 3 म उपबंिधत है और उसने िनरोध-आदेश िकया था;
(ख) िनरोध-आदेश करने वाली सरकार या अिधकारी के बारे म यह समझा जाएगा िक उसने उक्त धारा के अधीन िनरोध
आदेश अपना वैसा समाधान हो जाने के पश्चात् िकया था जैसा िक शेष आधार या आधार के पर्ित उस उपधारा म उपबंिधत है ।]
6. िनरोध-आदेश का कु छ आधार पर अिविधमान्य या अपर्वतर्नशील न होना––कोई िनरोध-आदेश के वल इस कारण
अिविधमान्य या अपर्वतर्नशील नह होगा िक––
(क) उसके अधीन िनरु िकया जाने वाला व्यिक्त आदेश करने वाली सरकार या अिधकारी की क्षेतर्ीय अिधकािरता
की सीमा के बाहर है, अथवा
(ख) ऐसे व्यिक्त के िनरोध का स्थान उक्त सीमा के बाहर है ।

1
1984 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 3 ारा (5-4-1984 से) पर्ितस्थािपत । 
2
1984 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 2 ारा (21-6-1984 से) अन्त:स्थािपत ।
3

7. फरार व्यिक्तय के संबध


ं म शिक्तयां––(1) यिद, यथािस्थित, के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार या धारा 3 की उपधारा
(3) म विणत अिधकारी के पास यह िवश्वास करने का कारण है िक िजस व्यिक्त के संबंध म िनरोध-आदेश िकया गया है वह फरार हो
गया है या अपने को िछपा रहा है िजससे उस आदेश का िनष्पादन नह हो सकता तो वह सरकार या अिधकारी––
(क) उस तथ्य की िलिखत िरपोटर् उस महानगर मिजस्टर्ेट या पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट को देगा जो उस स्थान पर
अिधकािरता रखता है जहां उक्त व्यिक्त मामूली तौर पर िनवास करता है;
(ख) राजपतर् म अिधसूिचत आदेश ारा उक्त व्यिक्त को िनदेश दे सके गा िक वह ऐसे अिधकारी के समक्ष ऐसे
स्थान पर और ऐसी अविध के भीतर, जो आदेश म िविनिदष्ट की जाए, हािजर हो ।
(2) उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन िकसी व्यिक्त के िवरु कोई िरपोटर् कर िदए जाने पर, दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973
(1974 का 2) की धारा 82, 83, 84, और 85 के उपबन्ध ऐसे व्यिक्त और उसकी सम्पि के सम्बन्ध म इस पर्कार लागू ह गे मानो उसे
िनरु करने का आदेश, मिजस्टर्ेट ारा जारी िकया गया वारण्ट हो ।
(3) यिद कोई व्यिक्त उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन जारी िकए गए िकसी आदेश का अनुपालन करने म असफल रहता
है तो, जब तक िक वह यह सािबत नह कर देता है िक उसका अनुपालन करना उसके िलए सम्भव नह था और उसने आदेश म विणत
अिधकारी को आदेश म िविनिदष्ट अविध के भीतर उस कारण की, िजससे उसका अनुपालन असम्भव था, तथा अपने पते-िठकाने की
सूचना दे दी थी, वह कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, या दोन से, दण्डनीय होगा ।
(4) दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) म िकसी बात के होते हुए भी, उपधारा (3) के अधीन पर्त्येक अपराध
संज्ञेय होगा ।
8. आदेश से पर्भािवत व्यिक्त को िनरोध-आदेश के आधार का पर्कट िकया जाना––(1) जब कोई व्यिक्त िकसी िनरोध-आदेश
के अनुसरण म िनरु है तब आदेश करने वाला पर्ािधकारी, यथाशक्य शीघर्, िकन्तु िनरोध की तारीख से मामूली तौर पर पांच िदन के
भीतर तथा असाधारण पिरिस्थितय म और ऐसे कारण से, जो लेखब िकए जाएंगे, 1 [पन्दर्ह िदन] के भीतर, उसे वे आधार संसूिचत
करे गा िजन पर वह आदेश िकया गया है और उसे समुिचत सरकार से उस आदेश के िवरु अभ्यावेदन करने का शीघर्तम अवसर देगा ।
(2) उपधारा (1) की कोई बात पर्ािधकारी से यह अपेक्षा न करे गी िक वह ऐसे तथ्य पर्कट करे िजन्ह पर्कट करना वह लोक िहत
के िवरु समझता है ।
9. सलाहकार बोड का गठन––(1) जब भी आवश्यकता हो, कदर्ीय सरकार और पर्त्येक राज्य सरकार इस अिधिनयम के
पर्योजन के िलए एक या अिधक सलाहकार बोड का गठन करे गी ।
(2) ऐसा पर्त्येक बोडर् ऐसे तीन व्यिक्तय से िमलकर गिठत होगा जो िकसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ह या रह चुके ह या
िनयुक्त िकए जाने के िलए अिहत ह और ऐसे व्यिक्त समुिचत सरकार ारा िनयुक्त िकए जाएंगे ।
(3) समुिचत सरकार सलाहकार बोडर् के सदस्य म से एक ऐसे सदस्य को उक्त बोडर् का अध्यक्ष िनयुक्त करे गी जो िकसी उच्च
न्यायालय का न्यायाधीश है या रह चुका है और िकसी संघ राज्यक्षेतर् के मामले म सलाहकार बोडर् म िकसी व्यिक्त की िनयुिक्त, जो
िकसी ऐसे राज्य के उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, सम्बिन्धत राज्य सरकार के पूवर् अनुमोदन से की जाएगी ।
10. सलाहकार बोड को िनदश––इस अिधिनयम म अिभव्यक्त रूप से जैसा उपबंिधत है उसके िसवाय, ऐसे पर्त्येक मामले म,
िजसम इस अिधिनयम के अधीन िनरोध का आदेश िकया गया है, उस आदेश के अधीन िकसी व्यिक्त के िनरोध की तारीख से तीन
सप्ताह के भीतर समुिचत सरकार, धारा 9 के अधीन अपने ारा गिठत सलाहकार बोडर् के समक्ष वे आधार, िजन पर वह आदेश िकया
गया है, और यिद आदेश से पर्भािवत व्यिक्त ने कोई अभ्यावेदन िकया है तो वह अभ्यावेदन और जब आदेश धारा 3 की उपधारा (3) म
िनिदष्ट िकसी अिधकारी ारा िकया गया है तब उस अिधकारी ारा उस धारा की उपधारा (4) के अधीन दी गई िरपोटर् भी, रखेगी ।
11. सलाहकार बोड की पर्िकर्या––(1) सलाहकार बोडर्, अपने समक्ष रखी गई सामगर्ी पर िवचार करने के पश्चात् तथा
समुिचत सरकार से या समुिचत सरकार के माध्यम से इस पर्योजनाथर् बुलाए गए िकसी व्यिक्त से या संब व्यिक्त से ऐसी अितिरक्त
जानकारी मांगने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझे और यिद िकसी िविशष्ट मामले म वह ऐसा करना आवश्यक समझता है अथवा
यिद संब व्यिक्त चाहता है िक उसे सुना जाए तो स्वयं उसे सुनने के पश्चात्, समुिचत सरकार को अपनी िरपोटर् संब व्यिक्त के
िनरोध की तारीख से सात सप्ताह के भीतर देगा ।
(2) सलाहकार बोडर् की िरपोटर् के एक अलग भाग म उसकी यह राय िविनिदष्ट की जाएगी िक संब व्यिक्त के िनरोध के
िलए पयार्प्त कारण है या नह ।
(3) जब सलाहकार बोडर् के सदस्य म मतभेद हो तब ऐसे सदस्य की बहुसंख्या की राय को बोडर् की राय समझा जाएगा ।

1
1984 के अिधिनयम सं० 24 की धारा 4 ारा (5-4-1984 से) पर्ितस्थािपत । 
4

(4) इस धारा की कोई बात उस व्यिक्त को, िजसके िवरु िनरोध-आदेश िकया गया है, इस बात का हकदार न बनाएगी िक
वह सलाहकार बोडर् को िनदश से संबंिधत िकसी मामले म िविध-व्यवसायी ारा हािजर हो तथा सलाहकार बोडर् की कायर्वाही और
उसकी िरपोटर्, उसके उस भाग के िसवाय िजसम बोडर् की राय िविनिदष्ट हो, गोपनीय होगी ।
12. सलाहकार बोडर् की िरपोटर् पर कारर् वाई––(1) िकसी ऐसे मामले म, िजसम सलाहकार बोडर् ने िरपोटर् दी है िक िकसी
व्यिक्त के िनरोध के िलए उसकी राय म पयार्प्त कारण है, समुिचत सरकार िनरोध-आदेश को पुष्ट कर सके गी तथा संब व्यिक्त को
उतनी अविध-पयर्न्त िनरु रख सके गी, िजतनी वह ठीक समझे ।
(2) िकसी ऐसे मामले म, िजसम सलाहकार बोडर् ने िरपोटर् दी है िक िकसी व्यिक्त के िनरोध के िलए उसकी राय म पयार्प्त
कारण नह है, समुिचत सरकार िनरोध-आदेश वापस ले लेगी तथा उस व्यिक्त को तुरन्तु छु ड़वा देगी ।
13. िनरोध की अिधकतम अविध––धारा 12 के अधीन पुष्ट िकए गए िकसी िनरोध-आदेश के अनुसरण म िकसी व्यिक्त को
िजस अिधकतम अविध-पयर्न्त िनरु रखा जा सके गा वह िनरोध की तारीख से बारह मास की होगी :
परन्तु इस धारा की कोई बात िनरोध-आदेश को पहले ही िकसी समय वापस लेने या उपांतिरत करने की समुिचत सरकार की
शिक्त पर पर्भाव नह डालेगी ।
14. िनरोध-आदेश वापस लेना––(1) साधारण खण्ड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 21 के उपबन्ध पर पर्ितकू ल
पर्भाव डाले िबना, िकसी िनरोध-आदेश को िकसी भी समय,––
(क) इस बात के होते हुए भी िक आदेश, धारा 3 की उपधारा (3) म विणत िकसी अिधकारी ारा िकया गया है,
उस राज्य सरकार ारा, िजसके वह अिधकारी अधीनस्थ है या के न्दर्ीय सरकार ारा वापस िलया जा सके गा या उपांतिरत
िकया जा सके गा;
(ख) इस बात के होते हुए भी िक आदेश िकसी राज्य सरकार ारा िकया गया है, के न्दर्ीय सरकार ारा वापस िलया
जा सके गा या उपांतिरत िकया जा सके गा ।
[(2) िकसी िनरोध-आदेश के (िजसे इस उपधारा म इसके पश्चात् पूवर्वत िनरोध-आदेश कहा गया है) अवसान या वापस
1

िलए जाने के कारण [चाहे ऐसा पूवर्वत िनरोध-आदेश राष्टर्ीय सुरक्षा (दूसरा संशोधन) अिधिनयम, 1984 के पर्ारम्भ के पूवर् या उसके
पश्चात् िकया गया हो] उसी व्यिक्त के िवरु धारा 3 के अधीन दूसरे िनरोध-आदेश का (िजसे इस उपधारा म इसके पश्चात् पश्चात्वत
िनरोध-आदेश कहा गया है) िकया जाना विजत नह होगा :
परन्तु यिद ऐसे व्यिक्त के िवरु िकए गए पूवर्वत िनरोध-आदेश के अवसान या वापस िलए जाने के पश्चात् कोई नए तथ्य
उत्पन्न नह हुए ह तो ऐसी अिधकतम अविध, िजसके िलए ऐसा व्यिक्त पश्चात्वत िनरोध-आदेश के अनुसरण म िनरु िकया जा
सके गा, िकसी भी दशा म, पूवर्वत िनरोध-आदेश के अधीन िनरोध की तारीख से बारह मास की अविध के अवसान के परे नह बढ़ाई
जाएगी ।]
[14क. वे पिरिस्थितयां िजनम व्यिक्तय को सलाहकार बोड की राय पर्ाप्त िकए िबना, तीन मास से अिधक अविध के िलए
2

िन◌ेरोध म रखा जा सके गा––(1) इस अिधिनयम के पूवर्गामी उपबंध म, या िकसी न्यायालय या अन्य पर्ािधकारी के िकसी िनणर्य,
िडकर्ी या आदेश म, िकसी बात के होते हुए भी, उस व्यिक्त को, िजसके संबंध म 3 [8 जून, 1989] से पहले िकसी समय इस अिधिनयम
के अधीन कोई िनरोध आदेश िकया गया है, सलाहकार बोडर् की राय पर्ाप्त िकए िबना, उसके िनरोध की तारीख से तीन मास से अिधक
िकन्तु छह मास से अनिधक की अविध के िलए उस दशा म िनरोध म रखा जा सके गा जब ऐसे व्यिक्त की िकसी िवक्षुब्ध क्षेतर् म,––
(i) आतंकवादी और िवध्वंसक िकर्याकलाप से िनपटने म सरकार के पर्यास म हस्तक्षेप करने से; और
(ii) (क) भारत की रक्षा; या
(ख) भारत की सुरक्षा; या
(ग) राज्य की सुरक्षा; या
(घ) लोक व्यवस्था बनाए रखने; या
(ङ) समुदाय के िलए आवश्यक पर्दाय सेवा को बनाए रखने,
पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाली रीित से कायर् करने से िनवािरत करने की दृिष्ट से िनरु िकया गया है ।
स्पष्टीकरण 1––धारा 3 की उपधारा (2) के स्पष्टीकरण के उपबंध इस उपधारा के पर्योजन के िलए उसी पर्कार लागू ह गे
जैसे वे उस उपधारा के पर्योजन के िलए लागू होते ह ।

1
1984 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 3 ारा (21-6-1984 से) पर्ितस्थािपत ।
2
1987 के अिधिनयम सं० 27 की धारा 3 ारा (9-6-1987 से) अंत:स्थािपत ।
3
1988 के अिधिनयम सं० 43 की धारा 2 ारा (26-5-1988 से) पर्ितस्थािपत ।
5

स्पष्टीकरण 2––इस उपधारा म, “िवक्षुब्ध क्षेतर्” से ऐसा क्षेतर् अिभपर्ेत है जो पंजाब िवक्षुब्ध क्षेतर् अिधिनयम, 1983
(1983 का 32) की धारा 3 के अधीन या चंडीगढ़ िवक्षुब्ध क्षेतर् अिधिनयम, 1983 (1983 का 33) की धारा 3 के अधीन, अिधसूचना
ारा, तत्समय िवक्षुब्ध क्षेतर् घोिषत िकया जाता है ।
स्पष्टीकरण 3––इस उपधारा म, “आतंकवादी और िवध्वंसक िकर्याकलाप” से आतंकवादी और िवध्वंसक िकर्याकलाप
(िनवारण) अध्यादेश, 1987 (1987 का 2) के अथर् म “आतंकवादी कायर्” और “िवध्वंसक िकर्याकलाप” अिभपर्ेत ह ।
(2) ऐसे िकसी व्यिक्त की दशा म िजसे उपधारा (1) लागू होती है, धारा 3, धारा 8 और धारा 10 से धारा 14 तक,
िनम्निलिखत उपान्तरण के अधीन रहते हुए, पर्भावी ह गी, अथार्त् :––
(क) धारा 3 म,––
(i) उपधारा (4) के परं तुक म,––
(अ) “दस िदन” शब्द के स्थान पर, “पन्दर्ह िदन” शब्द रखे जाएंगे;
(आ) “पन्दर्ह िदन” शब्द के स्थान पर, “बीस िदन” शब्द रखे जाएंगे;
(ii) उपधारा (5) म, “सात िदन” शब्द के स्थान पर, “पन्दर्ह िदन” शब्द रखे जाएंगे;
(ख) धारा 8 की उपधारा (1) म, “दस िदन” शब्द के स्थान पर, “पन्दर्ह िदन” शब्द रखे जाएंगे;
(ग) धारा 10 म, “तीन सप्ताह के भीतर” शब्द के स्थान पर, “चार मास और दो सप्ताह के भीतर” शब्द
रखे जाएंगे;
(घ) धारा 11 म,––
(i) उपधारा (1) म, “सात सप्ताह के भीतर” शब्द के स्थान पर, “पांच मास और तीन सप्ताह”
शब्द रखे जाएंगे;
(ii) उपधारा (2) म, “संब व्यिक्त के िनरोध” शब्द के स्थान पर, “संब व्यिक्त के िनरं तर िनरोध”
शब्द रखे जाएंगे;
(ङ) धारा 12 म, “िनरोध के िलए” शब्द के स्थान पर, उन दो स्थान पर, जहां वे आते ह, “िनरं तर िनरोध के
िलए” शब्द रखे जाएंगे;
(च) धारा 13 म, “बारह मास” शब्द के स्थान पर, “दो वषर्” शब्द रखे जाएंगे;
(छ) धारा 14 की उपधारा (2) के परं तुक म “बारह मास” शब्द के स्थान पर, “दो वषर्” शब्द रखे जाएंगे ।]
15. िनरु व्यिक्तय का अस्थायी तौर पर छोड़ा जाना––(1) समुिचत सरकार िकसी भी समय िनदेश दे सके गी िक
िनरोध-आदेश के अनुसरण म िनरु कोई व्यिक्त, या तो िबना शत के या िनदेश म िविनिदष्ट ऐसी शत पर, िजन्ह वह व्यिक्त
स्वीकार करे , िकसी िविनिदष्ट अविध के िलए छोड़ िदया जाए और उसका छोड़ा जाना वह िकसी भी समय र कर सके गी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िकसी व्यिक्त के छोड़े जाने का िनदेश देते समय, समुिचत सरकार उससे अपेक्षा कर सके गी िक वह
िनदेश म िविनिदष्ट शत के उिचत पालन के िलए पर्ितभु सिहत या उनके िबना बंधपतर् िनष्पािदत करे ।
(3) उपधारा (1) के अधीन छोड़ा गया कोई व्यिक्त अपने को उस समय और स्थान पर और उस पर्ािधकारी के समक्ष अभ्यिपत
करे गा जो, यथािस्थित, उसके छोड़ जाने का िनदेश देने वाले या उसका छोड़ा जाना र करने वाले आदेश म िविनिदष्ट हो ।
(4) यिद पयार्प्त कारण के िबना कोई व्यिक्त उपधारा (3) म िविनिदष्ट रीित से अपने को अभ्यिपत करने म असफल रहेगा
तो वह कारावास से, िजसको अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दण्डनीय होगा ।
(5) यिद उपधारा (1) के अधीन छोड़ा गया कोई व्यिक्त उस पर उक्त उपधारा के अधीन अिधरोिपत शत पर उसके ारा
िनष्पािदत बन्धपतर् की शत म से िकसी को पूरा करने म असफल रहेगा तो उन बन्धपतर् का समपह्त िकया जाना घोिषत कर िदया
जाएगा और उसके ारा आब व्यिक्त उसम दी गई शािस्त का देनदार होगा ।
16. स ावपूवक
र् की गई कारर् वाई के िलए संरक्षण––इस अिधिनयम के अनुसरण म स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए
आशियत िकसी बात के बारे म कोई वाद या अन्य िविधक कायर्वाही के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार के िवरु नह होगी और न
कोई वाद, अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही िकसी व्यिक्त के िवरु होगी ।
17. अिधिनयम का राज्य िविधय के अधीन िनरु व्यिक्तय के संबध ं म पर्भावी न होना––(1) इस अिधिनयम की कोई बात,
िकसी राज्य िविध के अधीन िकए गए ऐसे िनरोध-आदेश के संबंध म, जो राष्टर्ीय सुरक्षा अध्यादेश, 1980 (1980 का 11) के पर्ारम्भ के
ठीक पूवर् पर्वृ ह, लागू या िकसी पर्कार पर्भावी नह होगी और तदनुसार ऐसा पर्त्येक व्यिक्त, िजसके संबंध म िकसी राज्य िविध के
अधीन िकया गया कोई िनरोध-आदेश, ऐसे पर्ारम्भ के ठीक पूवर् पर्वृ है, ऐसे िनरोध के संबंध म ऐसी राज्य िविध के उपबन्ध ारा या
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जहां िजस राज्य िविध के अधीन ऐसा िनरोध-आदेश िकया गया है, वह उस राज्य के राज्यपाल ारा पर्ख्यािपत कोई अध्यादेश है (िजसे
इसम इसके पश्चात् राज्य अध्यादेश कहा गया है) और ऐसे राज्य अध्यादेश का स्थान,––
(i) ऐसे पर्ारम्भ के पूवर्, उस राज्य के िवधान-मण्डल ारा पािरत िकसी अिधिनयिमित ने ले िलया है, वहां
ऐसी अिधिनयिमित ारा, या
(ii) ऐसे पर्ारम्भ के पश्चात्, उस राज्य के िवधान-मण्डल ारा पािरत िकसी ऐसी अिधिनयिमित ने ले िलया है
िजसका लागू होना ऐसे राज्य अध्यादेश के अधीन ऐसे पर्ारम्भ के पूवर् िकए गए िनरोध-आदेश तक सीिमत है, वहां ऐसी
अिधिनयिमित ारा,
उसी पर्कार शािसत होगा मानो यह अिधिनयम अिधिनयिमत ही न िकया गया हो ।
(2) इस धारा की िकसी बात के बारे म यह नह समझा जाएगा िक वह उपधारा (1) म िनिदष्ट िकसी व्यिक्त के िवरु , धारा
3 के अधीन िकसी िनरोध-आदेश के िकए जाने का उस दशा म वजर्न करती है जब ऐसे व्यिक्त के संबंध म राष्टर्ीय-सुरक्षा अध्यादेश,
1980 (1980 का 11) के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् यथापूव क्त पर्वृ िनरोध-आदेश िकसी भी कारणवश, पर्वृ नह रह जाता है ।
स्पष्टीकरण––इस धारा के पर्योजन के िलए, “राज्य िविध” से कोई ऐसी िविध अिभपर्ेत है जो, उन सभी या उनम से िकसी
आधार पर, िजन पर धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन कोई िनरोध-आदेश िकया जा सकता है, िनवारक िनरोध के िलए उपबन्ध करती
है और जो उक्त अध्यादेश के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् िकसी राज्य म पर्वृ है ।
18. िनरसन और व्यावृि ––राष्टर्ीय सुरक्षा अध्यादेश, 1980 (1980 का 11) इसके ारा िनरिसत िकया जाता है ।
(2) ऐसे िनरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कारर् वाई, इस अिधिनयम के तत्स्थानी
उपबन्ध के अधीन इस पर्कार की गई समझी जाएगी मानो यह अिधिनयम 23 िसतम्बर, 1980 को पर्वृ हो गया हो और िविशष्टत:
उक्त अध्यादेश की धारा 10 के अधीन िकए गए िकसी िनदश म, जो उस तारीख से, िजसको इस अिधिनयम को राष्टर्पित की अनुमित
पर्ाप्त होती है, ठीक पूवर् िकसी सलाहकार बोडर् के समक्ष लिम्बत है, उस तारीख के पश्चात् उस बोडर् ारा कारर् वाई इस पर्कार चालू रखी
जा सके गी मानो ऐसा बोडर् इस अिधिनयम की धारा 9 के अधीन गिठत िकया गया हो ।

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