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Vikramovarshi
Vikramovarshi
िवराज
भूिमका
िव मोवशीय
मालिवकाि िम
भूिमका
कािलदास का काल
कािलदास का काल िनणय करने म सबसे बड़ा आधार िव मा द य का है। न के वल
जन ुित यह चली आ रही है क कािलदास उ ियनी के महाराज िव मा द य क
राजसभा के नवर म से एक थे, अिपतु ‘अिभ ान शाकु तल’ के ार भ म सू धार
भी आकर यह घोषणा करता है क ‘आज रस और भाव के िवशेष महाराज
िव मा द य क सभा म बड़े-बड़े िव ान एकि त ए ह। इस सभा म आज हम लोग
कािलदास-रिचत नवीन नाटक ‘अिभ ान शाकु तल’ का अिभनय तुत करगे।’ इससे
इस िवषय म स देह नह रहता क ‘अिभ ान शाकु तल’ क रचना महाराज
िव मा द य क सभा म अिभनय करने के िलए ई थी। कािलदास के नाटक
‘िव मोवशीय’ म ‘िव म’ नामक योग भी इसी बात को सूिचत करता है क
िव मा द य के साथ कािलदास का घिन स ब ध था और ‘िव म’ श द का योग
करने म उ ह िवशेष आन द आता था। इस आन द का मूल स भवत: यह रहा हो क
जब वे नाटक राजसभा म तुत कए जाते थे, तो ‘िव म’ श द आते ही रं गशाला
तािलय क गड़गड़ाहट से गूँज उठती होगी।
िव मा द य का थान और काल
फ यूसन का मत
गु कालीन मत
57 ई वी पूव का मत
कािलदास का ि व
कािलदास का किव व
नाटककार कािलदास
मालिवकाि िम क कथा के ोत
िव मोवशीय क कथा के ोत
पु ष
पु रवा : ित ान का राजा; नाटक का नायक
माणवक :िवदूषक; राजा का अ तरं ग िम
आयु :पु रवा का पु
नारद :देव ष; ा के पु
िच रथ :ग धव का राजा
प लव गालव :भरत मुिन के िश य
सू धार :रं गमंच का व थापक
पा रपा क :सू धार का सहायक
ि याँ
उवशी : वग क अ सरा; नाटक क नाियका
िच लेखा :अ सरा; उवशी क अंतरं ग सखी
सहज या,
र भा
मेनका तथा :उवशी क सखी अ य अ सराएँ
अ य अ सराएँ
महारानी :कािशराज क क या; पु रवा क रानी
िनपुिणका :रानी क दासी
स यवती :एक तपि वनी
दािसयाँ :रानी क दािसयाँ
यवनी :राजा क सेिवका
अय
इ :देवता का राजा
के शी :असुर का राजा
भरत :नाट् यशा के णेता
पहला अंक
वेदा त म पु ष एक िज ह उचारा,
है ा भूिम िजनसे दव-लोक सारा,
जो ह यथाथ शुभ ई र नामधारी,
ह खोजते दय म िजनको पुजारी
मो े छु ; जो सुलभ ह ि थर भि ारा,
वे थाणु देव िशव इ कर तु हारा।।
[ना दी समा होने पर]
सू धार :बस करो भाई ब त आ। (नेप य क ओर देखकर) मा रष, ज़रा
इधर तो आना।
[ वेश करके ]
पा रपा क :भाव, लीिजए, म आ गया। आ ा क िजए।
सू धार :मा रष, िव ान क यह प रषद् पहले किवय क रसपूण कृ ितय को
तो देख चुक है। म आज इस प रषद् के सामने कािलदास ारा
रिचत एक नया नाटक तुत क ँ गा। पा से कह दो क वे अपने-
अपने पाठ को सावधानी से तैयार कर ल।
पा रपा क :जैसी आपक आ ा। (बाहर जाता है।)
सू धार :तब तक म इन स दय महानुभाव को सूचना दे दू।ँ ( णाम करके )
स दय वृ द, अपने ेिमय पर दयालु होने के कारण, अथवा अ छी
व तु और अ छे पु ष का आदर करने क दृि से आप कािलदास क
इस कृ ित को द िच होकर सुिनए।
[नेप य म]
बचाओ-रे -बचाओ, कोई बचाओ। जो भी कोई देवता के प का
समथक हो या िजसक भी आकाश म गित हो, हम आकर बचाओ।
सू धार :( यान से सुनने का अिभनय करके ) अरे यह या! मेरी सूचना के
तुर त बाद ही आकाश म िच लाती ई कु र रय का सा शोर सुनाई
पड़ने लगा। कभी तो यह आवाज ऐसी लगती है क जैसे फू ल का रस
पीकर म ए भ रे गुँजार कर रहे ह ; कभी ऐसा लगता है क रह-
रहकर कोयल बोल रही हो; और कभी ऐसा लगता है क देवता से
भरे ए आकाश म देव-ना रयाँ मधुर वर म गीत गा रही ह ।
आिखर यह है या? (सोचकर) ठीक है! समझ गया। नारायण मुिन
क जाँघ से पैदा ई अ सरा उवशी कै लाशनाथ कु बेर क सेवा करके
वापस लौट रही थी; उसे बीच रा ते म ही असुर पकड़कर ले भागे ह।
इसीिलए अ सरा का दल चीख-पुकार मचा रहा है।
[बाहर िनकल जाता है]
[ तावना]
[अ सरा का वेश]
अ सराएँ :आय बचाओ, बचाओ! जो भी देवता का प पाती हो या िजसक
भी आकाश म गित हो, ज दी आकर बचाओ।
[िबना पटा ेप के रथ पर चढ़े ए राजा पु रवा और सारिथ का
वेश]
राजा :रोओ नह , रोओ नह । म राजा पु रवा ।ँ सूय क उपासना करके
लौट रहा ।ँ मेरे पास आकर किहए क आपक कससे र ा करनी
है।
र भा :असुर के आ मण से।
राजा :असुर ने आपपर आ मण कया है?
र भा :सुिनए महाराज! हमारी ि य सखी उवशी को तो सारा संसार
जानता है। बड़े-बड़े तपि वय के तप से शं कत होने पर सुकुमार
अ के प म इ उसीका योग करते ह। अपने सौ दय से ग वत
ल मी और पावती भी उसको देखकर लजा जाती ह। वह इस सारी
सृि का सु दर अलंकार है। वही उवशी कु बेर के भवन से वापस लौट
रही थी क बीच रा ते म ही कोई दानव उसे और िच लेखा को
पकड़कर ले भागा है।
राजा :कु छ मालूम है क वह पापी कस दशा म गया है?
अ सराएँ :उ र-पूव क ओर गया है।
राजा :तब आप दुःखी न ह । म आपक सखी को लौटा लाने का य
करता ।ँ
अ सराएँ :सोमवंशी राजा को यही शोभा देता है।
राजा :अ छा, आप मेरी ती ा कहाँ करगी?
अ सराएँ :यह हेमकू ट पवत का िशखर दीखता है, वह ।
राजा :सारिथ, घोड़ को पूव र दशा क ओर तेजी से बढ़ाओ।
सारिथ :जो िचरं जीव क आ ा। (घोड़ को हाँकता है।)
राजा :(रथ के वेग क अनुभूित का अिभनय करते ए) शाबाश-शाबाश!
इतने तेज दौड़ते रथ से तो म आगे जाते ए ग ड़ को भी पकड़
सकता ,ँ फर इ का अपकार करनेवाले उस दानव का तो कहना
ही या! मेरे रथ के आगे जो बादल छाए ए ह, वे चूर-चूर होकर
धूल-से बनते जा रहे ह। पिहय के तेजी से घूमने के कारण ऐसा म
होता है क अर के बीच म और नए अरे बन गए ह। घोड़ के िसर
पर लगी ई चंव रयाँ रथ के वेग के कारण ऐसी ि थर हो गई ह क
मानो िच म अं कत ह और वायु के ती वेग के कारण वजा का
व वजद ड और अपने छोर के बीच तनकर ि थर-सा हो गया है।
[रथ पर चढ़े ए राजा और सारिथ का थान]
सहज या :सिख, राज ष तो गए। चलो, हम भी वह चलकर बैठ, जहाँ िमलने
को हमने राजा से कहा है।
मेनका :ठीक है सखी; यही करती ह।
[हेमकू ट िशखर पर चढ़ने का अिभनय करती ह।]
र भा :देख, यह राज ष हमारे मन क था िमटा पाते ह या नह ?
मेनका :सखी, इस िवषय म स देह मत कर!
र भा :दानव को जीत पाना बड़ा क ठन है।
मेनका :जब कभी इ पर भी िवपि पड़ती है, तो वह भी बड़े आदर के
साथ मनु य-लोक से इ ह को बुलाकर देवता क िवजय के िलए
इ ह सेनापित बनाता है।
र भा :मेरी तो यही कामना है क वे िवजयी ह ।
मेनका :( ण-भर ककर) सिखयो, धीरज धरो; धीरज धरो। वह उस
राज ष का ह रण- वज फहराता आ सोमद रथ दखाई पड़ रहा
है। मुझे तो लगता है क वे िबना काम पूरा कए वापस नह लौटते
ह गे।
[शुभ शकु न जताकर उसी ओर देखती ई खड़ी रहती ह।]
[रथ पर चढ़े ए राजा और सारिथ का वेश। उवशी क आँख भय
के मारे मुँदी ई ह और उसने दािहने हाथ से िच लेखा का सहारा
िलया आ है।]
िच लेखा :सखी, धीरज धरो, शा त होओ।
राजा :सु द र, िनि त होओ। दानव का भय जाता रहा है। इ क
मिहमा तीन लोक क र ा करती है। अब अपनी इन बड़ी-बड़ी
आँख को उसी कार खोल दो, जैसे िनशा क समाि पर कमल-
लता कमल को खोल देती है।
िच लेखा :ओफ! इसे तो अब भी चेतना नह लौट रही। के वल इसके ास-
ास से ही इतना पता चलता है क यह अभी जीिवत है।
राजा :ये ब त अिधक डर गई ह। तभी तो बार-बार गहरा साँस लेते और
छोड़ते ए इन बड़े-बड़े तन के बीच म पड़ी ई यह म दार कु सुम
क माला बार-बार काँप-काँप उठती है, िजससे पता चलता है क
इनका दय अब तक काँप रहा है।
िच लेखा :(सक ण वर म) सखी उवशी, होश म आओ। इस दशा म तो तुम
अ सरा-सी तीत नह होती।
राजा :अभी भी भय क कँ पकँ पी इनके फू ल जैसे सुकुमार दय को छोड़
नह रही; और वह कँ पकँ पी तन के बीच म िसहर उठनेवाले व
के छोर से रह-रहकर झलक उठती है।
[उवशी क चेतना लौट आती है।]
राजा :( स होकर) िच लेखा, बधाई हो। तु हारी ि य सखी होश म आ
गई। देखो न, जैसे च मा के उदय होने पर राि अ धकार से मु
होकर चमक उठती है, या राि म जलती ई अि क िशखा धुआँ
समा होने पर दमक उठती है, या गंगा का जल कगार से टू टकर
िगरने से मिलन होने के प ात् फर धीरे -धीरे िनमल हो जाता है,
उसी कार यह सु दरी भी बेहोशी से मु होने पर फर व थ ई
दखाई दे रही है।
िच लेखा :सखी उवशी, िनि त होओ। दुःखी जन पर दया करनेवाले
महाराज ने देवता के श ु दानव को परा त करके दूर भगा दया
है।
उवशी :(आँख खोलकर) या अद्भुत भावशाली देवराज महे ने मेरी
र ा क है?
िच लेखा :महे ने नह , क तु महे के समान ही परा मी राज ष पु रवा
ने।
उवशी :(राजा क ओर देखकर मन-ही-मन) तब तो दानवराज ने आ मण
करके भी मेरा उपकार ही कया।
राजा :(उवशी को देखकर मन-ही-मन) नारायण ऋिष को लुभाने के िलए
जो अ सराएँ गई थ , उनका नारायण क जाँघ से उ प ई इस
अ सरा को देखकर लजा जाना ठीक ही था। मुझे तो ऐसा लगता है
क यह उस तप वी क रचना नह है। य क इसका िनमाण करते
ए तो काि त बरसानेवाला च मा ही ा बना होगा; या फर
शृंगार रस के देवता कामदेव ने इसका सृजन कया होगा; अथवा
पु प से लदे वस त ने इसक रचना क होगी। यह कै से हो सकता है
क ऐसा मनोहर प वेद रटते-रटते कुं ठत हो गए और भोग-िवलास
से दूर रहनेवाले वे बु े मुिन नारायण रच पाए ह ।
उवशी :सखी िच लेखा, बाक सिखयाँ कहाँ ह गी?
िच लेखा :यह तो हमारी र ा करनेवाले महाराज ही जानते ह।
राजा :(उवशी को देखकर) आपक सिखयाँ गहरे िवषाद म डू बी ई ह।
िजसने आपके सु दर प को कभी एक बार भी देखकर अपने नयन
को सफल कया है; वह भी आपके िवयोग म बेचैन हो उठे गा; फर
अ यिधक ेम करनेवाली सिखय का तो कहना ही या!
उवशी :(मन-ही-मन) आपके वचन अमृत ह; या फर च मा से अमृत झरे ह,
इसम आ य ही या है। ( कट) इसीिलए तो उ ह देखने को मेरा
दय ज दी मचा रहा है।
राजा :(हाथ से संकेत करके दखाता आ) सु द र, वे तु हारी सिखयाँ
हेमकू ट िशखर पर खड़ी उ सुक नयन से तु ह उसी कार देख रही
ह, जैसे हण से मु ए च मा को मनु य देखा करते ह।
[उवशी राजा क ओर अिभलाषा-भरे नयन से देखती है।]
िच लेखा :देखो, सिख देखो!
उवशी :दुःख म साथ देनेवाला नयन से मेरा पान-सा कर रहा है।
िच लेखा :(मु कराकर) कौन है री वह?
उवशी :वही, सिखय का दल।
र भा :(आन द के साथ देखकर) सखी िच लेखा के साथ-साथ हमारी ि य
सखी उवशी को लेकर राज ष उसी कार चले आ रहे ह, जैसे दो
िवशाखा न के साथ च मा उ दत आ हो।
मेनका :(भली-भाँित देखकर) सखी, ये तो दोन ही बात हमारी मनचाही हो
ग । एक तो हमारी ि य सखी वापस लौट आई, दूसरे राज ष का भी
बाल-बाँका नह आ।
सहज या :सखी, ठीक कहती हो। वे दानव सचमुच ही बड़े भयानक ह।
राजा :सारिथ, यही वह पवत-िशखर है। रथ को नीचे उतार दो।
सारिथ :जैसी िचरं जीव क आ ा। (रथ को नीचे उतारता है)।
[रथ के उतरने पर झटके का अिभनय करती ई उवशी डरकर
राजा का सहारा लेती है।]
राजा :(मन-ही-मन) इस िवषम भूिम पर रथ को झटके के साथ उतरना भी
मेरे िलए भला ही आ। रथ के झटके खाने के कारण इस बड़ी-बड़ी
आँख वाली उवशी ने अपने शरीर से मेरा शरीर जो छु आ, तो उससे
ऐसा रोमांच हो उठा है, जैसे शरीर के ऊपर ेम के अंकुर फू ट आए
ह।
उवशी :सखी, थोड़ा उधर को तो सरक जाओ।
िच लेखा :मुझसे नह िहला जाता।
र भा :आओ; थोड़ा आगे बढ़कर अपना ि य करनेवाले इन राज ष का
वागत कर।
[सब आगे बढ़ती ह।]
राजा :सारिथ, रथ को रोक दो; िजससे अपनी सिखय से िमलने के िलए
उ सुक सु दर भ ह वाली यह उवशी अपनी उ कं ठत सिखय से उसी
कार फर िमल सके , जैसे वस त क छटा फर वन क लता म
आकर िमलती है।
[सारिथ रथ को रोक देता है।]
अ सराएँ :महाराज को िवजय क बधाई हो।
राजा :और आपको अपनी सखी से िमलन क बधाई हो।
उवशी :(िच लेखा का सहारा लेकर रथ से उतरकर) आओ सिखयो, मेरी
छाती से लग जाओ। मुझे तो यह भरोसा ही नह था क अब फर
कभी सिखय को देख भी सकूँ गी।
[सिखयाँ गले िमलती ह।]
मेनका :( शंसा करते ए) महाराज, आप सौ-सौ क प तक इस पृ वी का
पालन करते रह।
सारिथ :िचरं जीव, पूव दशा म कसी रथ के आने क बड़ी जोर क आवाज़
सुनाई पड़ रही है और यह तपे ए सोने सा अन त भुजा म बाँधे न
जाने कौन आकाश से उसी कार उतर रहा है, जैसे िबजली से भरा
आ बादल पहाड़ पर उतरता है।
अ सराएँ :(उस ओर देखती ई) अरे , यह तो िच रथ है!
[िच रथ का वेश]
िच रथ :(राजा को देखकर आदर के साथ) महाराज, बधाई हो। आपका
परा म इतना महान है क आप देवराज इ का भी उपकार कर
पाते ह।
राजा :अरे , ग धवराज ह? (रथ से उतरकर) ि य िम का वागत है।
[दोन एक-दूसरे का हाथ छू ते ह।]
िच रथ :िम , नारद के मुख से यह सुनकर क उवशी को के शी नामक दानव
हर ले गया है, इ ने उसे वापस लाने के िलए ग धवसेना को आदेश
दया था। बीच म हम चारण से तु हारे िवजय-गीत को सुनकर
यहाँ आ प च ँ े ह। अब आप इसे लेकर चल और हमारे साथ ही इ के
दशन कर। आपने सचमुच ही इ का अ य त ि य काय कया है।
देिखए, पहले तो नारायण मुिन ने इ के िलए इसका सृजन कया;
और अब आप जैसे िम ने दै य के हाथ से छीन लाकर फर सृजन-
सा कया है।
राजा :िम , ऐसा न कहो। यह देवराज इ का बल है क िजससे उसके प
के समथक लोग श ु पर िवजय ा करते ह। वनराज संह के
गजन क पवत क क दरा म गूँजनेवाली ित विन भी हािथय
को डराकर भगा देती है।
िच रथ :ठीक है, ठीक है। िनरिभमानता परा म क शोभा है।
राजा :िम , इस समय इ के दशन करने का अवसर नह है। इसिलए तुम
ही इ ह देवराज के पास ले जाओ।
िच रथ :जैसी आपक इ छा। आप सबक सब इधर आइए।
[सब अ सराएँ चल पड़ती ह]
उवशी :(धीरे -से) सखी िच लेखा, उपकार करनेवाले इन राज ष से िवदा
लेते मुझे संकोच हो रहा है। तो इस समय तू ही मेरा मुख बन जा।
िच लेखा :(राजा के पास) महाराज, उवशी कहती है क आपक अनुमित हो तो
म महाराज क क त को अपनी ि य सखी क भाँित देवलोक ले
जाऊँ।
राजा :जाइए, फर दशन दीिजएगा।
[सब अ सराएँ ग धव के साथ आकाश क ओर उड़ने का अिभनय
करती ह।]
उवशी :(उड़ने म बाधा का अिभनय करके ) अरे , मेरी यह मोितय क
एकलड़ी माला लता क शाखा म उलझ गई! (बहाना बनाकर पास
जाकर राजा को देखती ई) सखी िच लेखा, ज़रा इसे छु ड़ा तो दे।
िच लेखा :(देखकर और हँसकर) ओह, यह तो ब त कसकर उलझ गई है। यह
छु ड़ाए न छू टेगी।
उवशी :चल, प रहास ब त आ। अब इसे छु ड़ा दे।
िच लेखा :हाँ, इसका छू टना क ठन ही दीखता है, फर भी छु ड़ाने का य
करती ।ँ
उवशी :(मु कराकर) ि य सखी, अपनी इस बात को याद रखना।
राजा :(मन-ही-मन) हे लता, तुमने इसके जाने म ण-भर का िव
डालकर मेरा ि य काय ही कया; य क इसी कारण म बड़े-बड़े
ने वाली इस अ सरा को उस समय देख सका जब वह मेरी ओर
आधा मुंह मोड़कर खड़ी ई थी।
[िच लेखा छु ड़ाती है, उवशी राजा क ओर देखती ई गहरा साँस
छोड़कर आकाश म उड़ती ई अपनी सिखय को देखती है।]
सारिथ :िचरं जीव, यह तु हारा वाय अ इ के अपराधी दै य को खारे
समु म पटककर फर तु हारे तरकस म ठीक वैसे ही आ घुसा है,
जैसे सपराज अपनी बाँबी म घुस जाता है।
राजा :ठीक है। रथ को ज़रा रोककर खड़ा करो; म ऊपर चढ़ता ।ँ
[सारिथ वैसा ही करता है। राजा रथ पर चढ़ने का अिभनय करता
है।]
उवशी :(लालसा के साथ राजा को देखती ई) फर भी कभी या इस
उपकारी के दशन कर पाऊँगी!
[ग धव और सिखय के साथ थान]
राजा :(उवशी के जाने के रा ते क ओर देखते ए) अहो, ेम भी उन
व तु क कामना करता है, जो दुलभ ह। यह उवशी िपतृ-सदृश
इ के म यम लोक क ओर उड़कर जाती ई मेरे मन को शरीर से
उसी कार अलग करके बलपूवक ख चे िलए जा रही है, जैसे
राजहंसी कमल-नाल के अगले िह से को काटकर उसम से पतला-सा
सू ख चकर ले जाती है।
[सारिथ और राजा का थान]
दूसरा अंक
[िवदूषक का वेश]
[घूम- फरकर एक जगह बैठ जाता है और दोन
हाथ से अपना मुँह ब द करके बैठा रहता है।]
िवदूषक :हा-हा-हा! जैसे िनम ण पाए ए ा ण का पेट खीर खा-खाकर
फटने लगता है, उसी कार राजा के ेम-रह य से भरा पेट फटा जा
रहा है और लोग के बीच म भी उस रह य को कहने से म अपनी
जीभ को रोक नह सकता। इसिलए जब तक राजा धमासन से
उठकर यहाँ नह आ जाते, तब तक म इस देवछ दक महल म ऊपर
चढ़कर बैठता ,ँ य क यहाँ लोग का आना-जाना नह है।
[चेटी का वेश]
चेटी :कािशराज क पु ी महारानी ने मुझे आदेश दया है क अरी
िनपुिणका, जब से महाराज भगवान सूय क पूजा करके लौटे ह, तब
से वह कु छ अनमने-अनमने-से दीख पड़ते ह। तो तू कसी तरह आय
माणवक से उनक इस उदासी के कारण का पता चला। तो, अब इस
बु धू ा ण के पेट से बात कै से िनकाली जाए? वैसे तो मेरा याल
है क जैसे घास क नोक पर पड़ी ओस क बूँद देर तक टकती नह ,
उसी तरह इसके मन म भी राजा का रह य देर तक टके गा नह ।
अ छा चलूँ; पहले उसे खोजूँ तो। (थोड़ा चलकर और एक ओर
देखकर) अरे , यह तो िच म बने ए ब दर क तरह एका त म ही
बैठे कु छ बोलते ए आय माणवक बैठे ह। अ छा तो इनके पास ही
चलती ।ँ (पास जाकर) आय, णाम करती ।ँ
िवदूषक :आपका क याण हो। (मन-ही-मन) इस दु चेटी को देखकर तो राजा
के ेम का वह रह य मेरे दय को फाड़कर बाहर आ जाना-सा
चाहता है। (मुख को थोड़ा ढककर। कट) य िनपुिणकाजी, आज
गाना-बजाना छोड़कर कस ओर चली ह?
चेटी :महारानीजी के आदेश से आपके ही दशन करने आ रही थी।
िवदूषक : य , रानीजी का या आदेश है?
चेटी :महारानीजी ने कहा है क आजकल आप हमपर कृ पालु नह ह। हम
इतना क उठाना पड़ रहा है और फर भी आप हम देखने तक नह
आते।
िवदूषक :िनपुिणका, या बात ई? महाराज ने महारानी के ितकू ल तो कोई
काम नह कया?
चेटी :आजकल महाराज िजस सु दरी के िलए उ कं ठत ह, उसीका नाम
लेकर उ ह ने एक बार महारानीजी को पुकारा।
िवदूषक :(मन-ही-मन) तो या वयं महाराज ने ही सारा भेद खोल दया है?
तो अब म बेचारा ा ण अपनी जीभ कै से रोककर रख सकता ।ँ
( कट) तो या महाराज ने महारानीजी को उवशी नाम लेकर
बुलाया?
चेटी :आय, यह उवशी कौन है?
िवदूषक :यह उवशी एक अ सरा है। उसके दशन से महाराज को ऐसा उ माद-
सा हो गया है क उसके कारण वे न के वल महारानी को दुःख दे रहे
ह, खाना-पीना भूलकर मुझ ा ण को भी बड़ा क दे रहे ह।
चेटी :(मन-ही-मन) ठीक है! महाराज के रह य का भेद तो मने पा िलया।
तो अब चलकर यह सब महारानी को बतला दू।ँ (चलने को तैयार
होती है।)
िवदूषक :िनपुिणका, मेरी ओर से कािशराज क पु ी से कहना क म तो
महाराज को इस मरीिचका से वापस लौटाने का य कर-करके थक
गया। अब तो य द वे आपके मुख-कमल का दशन कर, तभी उनका
मन वापस फर सकता है।
चेटी :जो आय क आ ा। (बाहर जाती है।)
[नेप य म वैतािलक का गीत]
महाराज क जय हो। इन जा क तमोवृि को संसार से हटाने के
िलए आपका और भगवान सूय का अिधकार समान ही है। योितय
का राजा सूय भी आकाश म कु छ समय िव ाम करता है; उसी कार
आप भी दन के छठे भाग म िव ाम का अवसर पाते ह।
िवदूषक :(कान लगाकर सुनता है) अ छा, हमारे ि य िम महाराज धमासन
से उठकर इसी ओर आ रहे ह। ठीक है! तो उ ह के पास प च
ँ ता ।ँ
[ वेशक]
[उ कं ठत राजा और उसके साथ िवदूषक का वेश]
राजा :जब से मने उस देवलोक क सु दरी अ सरा को देखा है, तब से ही
कामदेव के अचूक बाण से बने ए माग ारा वह मेरे दय म िव
हो गई है।
िवदूषक :(मन-ही-मन) तब तो कािशराज क पु ी पर गाज ही िगर पड़ी।
राजा :(भली-भाँित देखकर) य जी, तुमने हमारा रह य तो गु रखा है
न?
िवदूषक :(मन-ही-मन) हाय-हाय, वह दु दासी िनपुिणका मुझे ठग ले गई!
नह तो महाराज मुझसे यह य पूछते?
राजा : य जी, तुम चुप य हो?
िवदूषक :मने जीभ को ऐसा कसकर बाँधा है क आपको भी उ र देते नह
बनता।
राजा :ठीक है! अब यह बताओ क मनोिवनोद के िलए या कया जाए।
िवदूषक :तो चिलए पाकशाला चलते ह।
राजा :वहाँ या होगा?
िवदूषक :वहाँ पाँच कार के पकवान को तैयार होते देखकर हम लोग क
उदासी कु छ बहल जाएगी।
राजा :वहाँ तु हारी मनचाही चीज होने से तु हारा मन तो स हो
जाएगा, पर तु मेरा मन कै से बहलेगा; िजसक चाही चीज कसी
तरह ा ही नह हो सकत ?
िवदूषक :अ छा, यह तो बताइए क उवशीजी ने भी आपको देखा है या नह ?
राजा : य , इसका या होगा?
िवदूषक :मुझे ऐसा लगता है क उसे पाना आपके िलए क ठन नह है।
राजा :सौ दय ने उसके साथ जैसा प पात कया है, वह भी अलौ कक ही
है।
िवदूषक :आपके इस कार कहने से मेरे मन म एक कु तूहल जाग उठा है। या
उवशीजी सु दरता म वैसी ही अनुपम ह, जैसा म कु पता म?
राजा :माणवक, समझ लो क उसके अंग- यंग का वणन कर पाना स भव
नह है। इसिलए सं ेप म कहे देता ;ँ सुनो।
िवदूषक :किहए; म सुन रहा ।ँ
राजा :उसका शरीर आभूषण -का-आभूषण है; शृंगार क िविधय का
शृंगार है; और सौ दय जताने के िलए यु होनेवाले उपमान का
एक नया उपमान है।
िवदूषक :इसीिलए द रस क अिभलाषा से आपने यह चातक का त
धारण कर िलया। अब आप कधर चल रहे ह?
राजा :उदास ि के िलए एका त छोड़कर और कोई शरण नह है। चलो,
मुझे मदवन ले चलो।
िवदूषक :(मन-ही-मन) अब उपाय या है! ( कट) इधर आइए महाराज,
इधर।
[दोन चलने का अिभनय करते ह।]
िवदूषक :यह मदवन आ गया। दि ण पवन ने त को झुकाकर आपका
वागत कया है।
राजा :(सामने देखकर) इस वायु का दि ण (दि ण या िश ) िवशेषण
यथाथ है, य क माधवी लता क शोभा को ेह से स चता आ
और कु द क बेल को नचाता आ अपने ेम और सौज य के कारण
मुझे तो यह दि ण पवन कसी ेमी जैसा ही तीत हो रहा है।
िवदूषक :इसका और आपका ेम एक ही जैसा है। (कु छ चलकर) यह मदवन
है। आइए, इसके अ दर चल।
राजा :चलो, आगे बढ़ो।
[दोन मदवन म घुसने का अिभनय करते ह।]
राजा :(घबराहट का अिभनय करते ए) िम , मने तो मन म सोचा था क
उ ान म प च ँ ने पर मेरी िवपि कु छ कम हो जाएगी, पर यह तो
ठीक उ टा ही आ। अपनी था को शा त करने के िलए यहाँ
उ ान म आकर तो मने ऐसा ही कया, जैसे नदी क धार म बहा जा
रहा ि पानी से बाहर आने के िलए उलटा–बहाव के ितकू ल ही
तैरने लगे।
िवदूषक :वह कै से?
राजा :दुलभ व तु क अ य त ती लालसा से भरे मेरे इस मन को कामदेव
पहले ही जजर कए दे रहा है, और यहाँ उपवन म मलयपवन से
आम के पीले प े झड़ गए ह और उनम नए अंकुर दखाई पड़ रहे
ह। इ ह देखकर मेरे मन को शाि त कै से िमल सकती है?
िवदूषक :महाराज, खेद न क िजए। शी ही यह कामदेव ही आपके मन क
कामना पूरी करने म आपका सहायक बनेगा।
राजा : ा ण का आशीवाद िसर-माथे!
[दोन घूमने का अिभनय करते ह।]
िवदूषक :देिखए, मदवन कतना सु दर हो उठा है! सब ओर वसंत छाया
आ दीख पड़ता है।
राजा :हाँ, एक-एक पौधे को देख रहा ।ँ वह सामने कु रबक का पौधा है,
िजसके फू ल दोन कनार से साँवले और बीच म से ि य के नाखून
के समान लाल ह। उस ओर लाल अशोक का फू ल िखलने को तैयार
ही है। उसक लािलमा कतनी भली तीत हो रही है! आम के पेड़
पर नई मंज रयाँ आ गई ह, िजनक नोक पर पीले-पीले पराग के
कण लगे ए ह। िम , मुझे तो ऐसा लग रहा है, जैसे वस त क
शोभा मु धता और यौवन के बीच म खड़ी ई हो।
िवदूषक :देिखए, उधर वह चमेली क लता का म डप आपको िनमि त-
सा कर रहा है। उसके अ दर मिणिशला क चौक िबछी ई है।
उसके फू ल पर मर के झु ड-के -झु ड गुँजार कर रहे ह। ऐसा तीत
होता है क वह आपका वागत कर रहा है। चिलए, इसे कृ ताथ
क िजए।
राजा :चलो, जैसी तु हारी इ छा।
[थोड़ा चलकर बैठ जाते ह।]
िवदूषक :अब यहाँ आन द से बैठकर इन सु दर लता क छिव िनहारते ए
आप उवशीजी के कारण ई उदासी को भूल जाइए।
राजा :(गहरी साँस लेकर) िम , फू ल के बोझ से दबी जा रही इन उपवन
क लता को देखकर भी उस सौ दय को देखने के िलए अधीर मेरी
आँख को चैन नह िमल रहा है। इसिलए कोई उपाय सोचो, िजससे
मेरी इ छा पूरी हो जाए।
िवदूषक :(हँसकर) जैसे अह या को चाहनेवाले इ को सलाह देते समय
च मा क बुि थ रही थी, उसी कार उवशीजी को पाने के
िलए अधीर आपको सलाह देने म भी मेरी बुि कु छ काम नह कर
रही है।
राजा :ऐसा न कहो। ती ेम काय-साधन का कोई-न-कोई उपाय िनकाल
ही लेता है। अब कोई उपाय सोचो।
िवदूषक :अ छा, सोचता ।ँ पर अब बीच-बीच म हायतोबा मचाकर आप
मेरी समािध म िव न डाल (सोचने का अिभनय करता है।)
राजा :(शुभ शकु न दीखने का अिभनय करके ; मन-ही-मन) वह पूनो के
च मा के समान मुखवाली सु दरी कसी कार सुलभ नह है। फर
भी कामदेव मुझे कु छ भले शकु न दखा रहा है। मेरा मन एकाएक
इस कार शा त हो गया है, जैसे मेरे मन क कामनाएँ अभी पूण हो
जानेवाली ह।
[आशा से भर उठता है।]
[आकाशयान पर बैठी ई उवशी और िच लेखा का वेश]
िच लेखा :सखी, िबना कु छ कारण बताए इस कार कस ओर चली जा रही
हो?
उवशी :( ेम क था का अिभनय करते ए; ल ा के साथ) सखी, जब
हेमकू ट िशखर पर लता क शाखा म व उलझ जाने से मुझे आकाश
म उड़ने म थोड़ा िवल ब हो गया था, तब तो तुमने मेरी हँसी उड़ाई
थी; और अब पूछती हो क कहाँ जा रही ?ँ
िच लेखा :अ छा; तो तुम उस राज ष पु रवा के पास चली हो?
उवशी :और या, अब तो म सारी ल ा यागकर यही करने चली ।ँ
िच लेखा :तो तुमने अपने आगमन क सूचना देने के िलए पहले कसे भेजा है?
उवशी :अपने दय को।
िच लेखा :एक बार फर भली भाँित सोच-समझ लो।
उवशी :सखी, यह तो ेम ही मुझे ख चे िलए जा रहा है। इसम सोच-िवचार
का अवसर ही कहाँ है?
िच लेखा :इससे अिधक म और या क !ँ
उवशी :अ छा, तो उस माग से ले चलो, िजससे हमारे जाते ए बीच म कोई
बाधा न पड़े।
िच लेखा :सखी, इससे िनि त रहो। देवता के गु भगवान बृह पित ने
अपरािजता नाम क जूड़ा बाँधने क िव ा िसखाकर हम ऐसा कर
दया है क देवता के श ु अब हमपर हाथ नह डाल सकते।
उवशी :(सकु चाकर) अरे , यह तो म भूल ही गई थी!
[दोन घूमने- फरने का अिभनय करती ह।]
िच लेखा :सखी, देखो, उधर देखो। यह भगवती भागीरथी और यमुना के संगम
पर िवशेष पिव ए जल म अपना ितिब ब-सा देखता आ उस
राज ष का महल खड़ा है। यह इस सारे ित ान नगर क मुकुटमिण
के समान शोभा दे रहा है। हम दोन इस महल के पास आ ही प च
ँ ी
ह।
उवशी :(चाव से साथ देखकर) यह तो कहना चािहए क वग ही आकर
दूसरी जगह बस गया है। (कु छ सोचकर) सखी, दुिखय पर दया
करनेवाले राज ष इस समय कहाँ ह गे?
िच लेखा :न दनवन के एक भाग के समान सु दर यह मदवन दीख रहा है।
पहले इसम उतरती ह। फर वह से पता करगी।
[दोन नीचे उतरती ह।]
िच लेखा :(राजा को देखकर स ता के साथ) सखी, तो यह राज ष यहाँ बैठे
वैसे ही तु हारी ती ा कर रहे ह, जैसे पहले उ दत होकर च मा
चाँदनी क ती ा कया करता है।
उवशी :(देखकर) सखी, इस समय तो महाराज उससे भी अिधक सु दर दीख
रहे ह, िजतना क थम िमलन के समय दीख पड़े थे।
िच लेखा :ठीक है! आओ, तो फर इनके पास चल।
उवशी :नह , इस तरह पास नह जाऊँगी। ितर क रणी िव ा से अपने-
आपको िछपाकर इनके पास प चँ कर यह सुनूँगी क ये पास बैठे ए
अपने इस िम के साथ एका त म या बातचीत कर रहे ह!
िच लेखा :चलो, जैसी तु हारी इ छा।
[दोन ऐसा ही करती ह।]
िवदूषक :अजी, मने वह उपाय सोच िनकाला, िजससे आपका उस दुलभ
ि यतमा से िमलन हो सकता है।
[राजा चुप रहता है।]
उवशी :(ई यापूवक) कौन है वह ध य ी िजसका जीवन इनके चाहने के
कारण सफल हो गया है?
िच लेखा :सखी, तुम यह या मनु य क सी बात करने लगती हो?
उवशी :सखी, म अपने द भाव से इस रह य को जानने म थोड़ा िहचक
रही ।ँ
िवदूषक :अजी, म कह रहा ँ क मने उपाय खोज िनकाला है।
राजा :तो फर बताओ न।
िवदूषक :आप िन ा का सेवन क िजए, िजससे व म ि यतमा से िमलन हो
सके ; या फर िच फलक पर उवशीजी का िच बनाकर उसे बैठे
देखा क िजए।
उवशी :( स होकर मन-ही-मन) अरे , अनुदार दय, धीरज रख; तस ली
रख।
राजा :ये दोन ही उपाय ठीक नह रहे। य क देखो, मेरा यह दय
कामदेव के बाण से ऐसा बंधा आ है क इसम सदा कसक होती
रहती है। इसिलए व म ि या का िमलन करानेवाली िन ा मुझे
कै से ा य हो सकती है? और िच म भी उस सु दरी ि यतमा को म
पूरा इसिलए नह बना पाऊँगा, य क बीच-बीच म मेरी आँख म
आँसू भर आएँग।े
िच लेखा :सुन ली तुमने इनक बात?
उवशी :सखी, सुन तो ली; पर जी नह भरा।
िवदूषक :मेरी बुि क दौड़ तो यह तक थी।
राजा :(गहरी साँस लेकर) या तो वह मेरी इस अ य त क ठन मनो था को
जानती नह है; या अपने भाव से मेरे ेम को जानकर भी मेरी
अवहेलना कर रही है। उसके साथ िमलन क मेरी इस इ छा को
िन फल और नीरस बनाकर ही अगर कामदेव का जी भरता हो तो
भर ले।
िच लेखा :सखी, सुन िलया तुमने?
उवशी :ओफ-ओफ! ये मुझे ऐसा समझते ह? (सखी क ओर देखकर) सखी,
अब इनके सामने जाकर उ र देना तो मेरे बस का नह । म चाहती ँ
क अपने द भाव से एक भोजप बनाकर उसपर िलखकर उ ह
उ र दे दूग
ँ ी।
िच लेखा :मुझे भी यही ठीक लगता है।
[उवशी ज दी-ज दी हड़बड़ाहट म िलखकर राजा और िवदूषक के
बीच म प फकने का अिभनय करती है।]
िवदूषक :(देखकर और हड़बड़ाकर) हाय रे बाप रे ! यह या बला है? या यह
साँप क कचुली मुझे खाने के िलए आ िगरी है?
राजा :( यान से देखकर और हँसकर) िम , यह साँप क कचुली नह है।
यह तो भोजप पर िलखे ए कु छ अ र से दीख रहे ह।
िवदूषक :अरे , यह भी तो हो सकता है क अदृ य प से खड़ी ई उवशी ने ही
आपके रोने-कलपने को सुनकर आपके -से ही अपने ेम क भी सूचना
देने के िलए यह अ र िलखकर डाल दए ह ।
राजा :मनोरथ क कोई सीमा नह है। (भोजप को उठाकर और पढ़कर
स ता के साथ) िम , तु हारी सूझ ठीक िनकली।
िवदूषक :ही-ही-ही! अजी ा ण के वचन भी कभी झूठे होते ह? तो अब
स हो जाइए। अ छा, इसम या िलखा है, वह भी तो ज़रा
सुनाइए।
उवशी :शाबाश, आप भी अ छे ेमी ह।
राजा :िम , सुनो।
िवदूषक :किहए, म यान से सुन रहा ।ँ
राजा :लो सुनो। ‘ वािमन्, आप मेरे मन क बात नह जानते। य द म
इतना अिधक ेम करनेवाले आपके ित वैसी ही होऊँ, जैसा आपने
मुझे समझा है, तो यह बताइए क सु दर पा रजात क सेज पर लेटने
पर भी न दनवन क पवन मेरे शरीर म लू क तरह य लगती है?’
उवशी :देखती ,ँ अब ये या कहते ह।
िच लेखा :जो कहना था, वह तो मुरझाई ई कमल-नाल जैसे इनके अंग-
यंग ने कह ही दया है।
िवदूषक :यह तो ब त भला आ क भा य से इस उदासी म आपको यह
आ ासन ठीक वैसा ही िमल गया, जैसे भूख लगने पर मुझे ब ढ़या
भोजन िमल जाए।
राजा :इसे आ ासन या कहते हो? यह सु दर अथ को बतलानेवाला मेरी
ि या के तु य अनुराग का सूचक प मुझे तो ऐसा लग रहा है, जैसे
उस मद-भरी आँख वाली ि या का मुख ती ा म खुली पलक वाले
मेरे मुख से आ लगा हो।
उवशी :तब तो यहाँ हम दोन क ही ीित बराबर है।
राजा :िम , अँगुिलय के पसीने से ये अ र खराब हो जाएँगे। मेरी
ि यतमा का यह ह तलेख ज़रा तुम स भाल लो।
िवदूषक :(प को लेकर) िजन उवशीजी ने आपके मनोरथ पर ये फू ल िखलाए
ह, वे अब उनका फल देने म या आनाकानी करगी!
उवशी :सखी, इनके समीप जाते ए मेरा दय कु छ डर रहा है। जब तक म
अपने िच को शा त करती ,ँ तब तक तू इनके स मुख कट होकर
मेरी ओर से जो भी उिचत हो वह कह दे।
िच लेखा :ठीक है। (ितर क रणी को हटाकर राजा के पास प च ँ कर) महाराज
क जय हो!
राजा :(देखकर और स होकर) वागत है आपका (उसके आस-पास
देखकर) भ ,े िबना अपनी सखी को साथ िलए आप दृि -गोचर ई
ह, इससे मुझे पूरा आन द नह हो रहा, जैसे संगम पर गंगा के िबना
पहले-पहल यमुना को देखकर पूरा आन द नह आता।
िच लेखा :पहले मेघमाला दखाई पड़ती है और उसके बाद िबजली क चमक।
िवदूषक :(मुँह के सामने आड़ करके ) अ छा! तो ये उवशीजी नह ह! ये उनक
ि य सखी ही ह।
राजा :यह आसन है; आइए बै ठए।
िच लेखा :उवशी िसर झुकाकर महाराज से िनवेदन करती है।
राजा : या आ ा देती है?
िच लेखा :कहती है क उस समय दानव ारा कए गए उ पात म महाराज ने
ही मुझे शरण दी थी। उस समय आपके दशन करके मेरे मन म आपके
ित ती ेम उ प हो गया है। अब महाराज फर मुझपर दया
कर।
राजा :हे शुभवचने, तुम उस सु दरी को मेरे िलए बेचैन बतला रही हो,
क तु उसके िलए आतुर इस पु रवा को तुम नह देखत ? यह ती
ेम तो दोन ओर ही एक समान है। तपा आ लोहा ही तपे ए लोहे
के साथ जुड़ने यो य होता है।
िच लेखा :(उवशी के पास जाकर) सखी, आओ; तुमसे भी अिधक ती तु हारे
ि यतम के ेम को देखकर उसक दूती बनकर म तु हारे पास आई
।ँ
उवशी :(ितर क रणी को हटाकर) यह या, तू मेरा यान न रखकर मुझे
छोड़कर चली गई?
िच लेखा :(मु कराकर) सखी, अभी कु छ ही देर म पता चल जाएगा क कौन
कसको छोड़ता है! पहले महाराज को अिभवादन तो कर लो।
उवशी :(हड़बड़ाहट के साथ राजा के पास जाकर णाम करके ल ा के
साथ) महाराज क जय हो!
राजा ( स ता के साथ) सु दरी, सचमुच ही मेरी जय ई समझो; य क
:तुमने मेरे िलए ‘जय’ श द कहा है और इससे पहले तुमने इ के
िसवाय और कसी पु ष के िलए यह श द नह कहा।
[हाथ से पकड़कर उसे अपने पास िबठाता है।]
िवदूषक : य जी, या बात है? आपने महाराज के ि य िम ा ण को
नम कार नह कया?
[उवशी मु कराकर णाम करती है।]
िवदूषक :आपका क याण हो!
[नेप य म देवदूत]
िच लेखा! उवशी को ज दी लेकर आओ; ज दी करो! भरत मुिन ने
आठ रस से यु जो नया नाटक आपको िसखाया है, उसके सु दर
अिभनय को लोकपाल -समेत देवराज इ आज देखना चाहते ह।
[सब कान देकर सुनते ह। उवशी िवषाद का अिभनय करती है।]
िच लेखा :सखी, तुमने देवदूत का वचन सुन िलया न? तो अब महाराज से िवदा
लो।
उवशी : या क ँ ? मेरी जीभ ही नह खुलती।
िच लेखा :महाराज, उवशी िनवेदन करती है क हम लोग पराधीन ह। य द
महाराज अनुमित दे द तो म इस समय चली जाऊँ और देवता के
स मुख अपराधी िगनी जाने से बच जाऊँ।
राजा :(जैसे-तैसे अपनी वाणी को वश म करके ) आप लोग को म आपके
वामी क आ ा का उ लंघन करने को नह कह सकता। फर भी
हम याद अव य रिखएगा।
[उवशी िवयोग के दुःख का अिभनय करती ई राजा क ओर
देखती ई सखी के साथ चली जाती है।]
राजा :(गहरी साँस लेकर) िम , ऐसा लगता है क अब मेरी दोन आँख
थ हो गई ह।
िवदूषक :(प दखाने क इ छा करके ) यह है न! (इतना बोलकर बीच म ही
िवषाद के साथ मन-ही-मन) हाय-हाय, उवशी के दशन से म तो
इतना च कत हो गया क मुझे यह भी याल न रहा क वह भोजप
मेरे हाथ से कब िगर पड़ा।
राजा : य िम , या कहना चाहते हो?
िवदूषक :यही कहने लगा था क अब आप हताश न ह । य क उवशी भी
आपसे ेम करती है और वह इस ेम म ढील न आने देगी।
राजा :मेरा मन भी यही कहता है। उसके शरीर पर तो उसका अपना वश
था नह , क तु दय पर उसका वश अव य था। सो, जाते समय वह
अपने उस दय को गहरी साँस लेने के कारण कि पत होते ए तन
ारा मुझे स प-सी गई है।
िवदूषक :(मन-ही-मन) मेरा दय तो यह सोच-सोचकर काँप रहा है क बस
अब महाराज उस भोजप का नाम लेने ही वाले ह।
राजा :िम , अब अपनी दृि को कस तरह बहलाऊँ? ( मरण-सा करके )
हाँ, ज़रा मुझे वह भोजप तो देना।
िवदूषक :(सब ओर देखकर, िवषाद कट करते ए) ओह, वह तो कह दीख
नह रहा। अजी, वह तो द भोजप था। उवशी जी के ही साथ
चला गया।
राजा :(खीझकर) मूख कह के ! तुम सदा ऐसी लापरवाही करते हो। जाओ,
ढू ँढ़ो उसे।
िवदूषक :(उठकर) शायद इधर पड़ा हो! देखूँ कह उधर न हो! उस ओर तो
नह है! (इस कार भोजप को ढू ंढ़ने का अिभनय करता है।)
[अपनी अनुच रय के साथ कािशराज क पु ी महारानी और
दासी का वेश।]
महारानी :अरी िनपुिणका, तूने स य ही कहा था क तूने आय माणवक के साथ
आयपु को इस लता-गृह म िव होते देखा था?
िनपुिणका :नह तो या, मने पिहले कभी महारानी को झूठी सूचना दी है?
महारानी :अ छा, म लता क आड़ म खड़ी होकर सुनती ँ क ये या बात
कर रहे ह। पता चल जाएगा क तूने जो कहा, वह स य है या नह ।
िनपुिणका :जैसी आपक इ छा!
महारानी :(थोड़ा चलकर और आगे क ओर देखकर) अरी िनपुिणका, यह पुराने
कपड़े जैसी या चीज़ दि ण वायु म उड़ी इधर आ रही है?
िनपुिणका :(अ छी तरह देखकर) महारानीजी, यह तो भोजप है। हवा म
उड़ता उ टा-सीधा होकर आ रहा है। पर ऐसा लगता है क इसपर
कु छ अ र िलखे ए ह। अरे , यह आकर आपके िबछु ए क नोक म ही
अटक गया। (उठाकर) लीिजए, इसे पढ़ लीिजए?
महारानी :तू ही पढ़। य द यह अनुिचत न होगा, तो सुन लूँगी।
िनपुिणका :(पढ़कर) यह तो वही ेम- ापार मालूम होता है। मुझे तो लगता है
क महाराज को ल य करके उवशी ने ही यह का -रचना क है।
आय माणवक क लापरवाही से यह हमारे हाथ म आ पड़ा है।
महारानी :तब तो म अव य सुनूँगी।
[िनपुिणका पढ़कर सुनाती है।]
महारानी :(सुनकर) अ छा, तब तो यही उपहार लेकर अ सरा पर लट् टू
होनेवाले महाराज के दशन क ँ गी।
िनपुणका :ठीक है।
[अनुच रय के साथ लता-म डप क ओर जाती ह।]
िवदूषक :(सामने क ओर देखकर) िम , वह देखो; उधर मदवन के पास म
ड़ा पवत के छोर पर हवा म या उड़ा जा रहा है?
राजा :(उठकर) हे वस त के ि य दि ण पवन, य द तु ह सुवास के िलए
कु छ चािहए ही तो इन लता के फू ल के पराग को ले लो। मेरी
ि यतमा ारा ेमपूवक िलखे गए इस प को लेने से तु हारा या
काम िस होगा? तुमने भी तो कभी अंजना से ेम कया था;
इसिलए तुम अव य जानते होगे क ेमी लोग इसी कार के छोटे-
मोटे मनोिवनोद ारा अपना समय िबताया करते ह।
िनपुिणका :महारानीजी, देिखए-देिखए; यह इसीक खोज हो रही है।
महारानी :ठीक है, देखती ।ँ ज़रा चुपचाप खड़ी रह।
िवदूषक :(िवषाद के साथ) हाय रे , ध ेरे क ! यह तो मोर का पँख है, िजसका
रं ग मैला पड़ गया है। इसीसे मुझे धोखा हो गया।
राजा :तब तो मर ही गए।
महारानी :(एकाएक प चँ कर) आयपु , घबराइए नह , वह भोजप यह रहा।
राजा :(हड़बड़ाकर), अरे महारानी ह! महारानी का वागत है!
िवदूषक :(ओट करके ) इस समय तो दुरागत ही आ समझो।
राजा :(धीरे से) िम , अब या कया जाए?
िवदूषक :(ओट करके ) लूट के माल के साथ पकड़ा गया चोर जवाब ही या दे
सकता है?
राजा :(धीरे से) मूख, यह प रहास का समय नह । ( कट) महारानी, म इसे
नह ढू ँढ़ रहा था। हम लोग तो कु छ और ही ढू ँढ़ रहे थे।
महारानी :ठीक है, आपको अपने सौभा य को िछपाना ही चािहए।
िवदूषक :महारानीजी, ज दी से इनके भोजन का ब ध क िजए, िजससे
इनका िप कु छ कम हो।
महारानी :िनपुिणका, देख तो इस ा ण ने अपने िम को बचाने का या
सु दर उपाय िनकाला है!
िवदूषक :महारानीजी, आप तो वयं जानती ह क भोजन से तो िपशाच तक
भी शा त हो जाते ह।
राजा :मूख, मुझे य ही बेबात अपराधी ठहराए दे रहा है।
महारानी :आपका अपराध नह है; अपरािधनी तो म ही ,ँ जो आपके न चाहते
आपके सामने आकर खड़ी ।ँ अ छा लीिजए, म चली जाती ।ँ
िनपुिणका, आ चल। ( ोध का अिभनय करते ए चल पड़ती है।)
राजा :(उसके पीछे जाकर) हे सु दरी, म ही अपराधी ।ँ तुम इस कार
ोध न करो। य क जब से वामी कु िपत हो गया हो, तो दास
िनरपराध कै से हो सकता है?
[पैर पर िगर पड़ता है।]
महारानी :(मन-ही-मन) म इतनी छोटे दलवाली नह ँ क इस अनुनय-िवनय
के झाँसे म आ जाऊँ। क तु मुझे डर यही लग रहा है क य द इस
समय कु छ उ टा-सीधा कठोर वहार कर बैठँू गी, तो उसके िलए
बाद म पछतावा मुझे ही होगा।
[राजा को छोड़कर सब अनुच रय -समेत चली जाती है।]
िवदूषक :बरसाती नदी क भाँित मिलनमुख होकर महारानी तो चली गई,
अब आप उ ठए।
राजा :(उठकर) िम , यह जो कु छ आ, कु छ गलत नह आ। य क ेमी
लोग िबना स े ेम के ि य से चाहे कतने ही मीठे श द म
अनुनय-िवनय य न कर, क तु वह अनुनय-िवनय ि य के मन म
पैठती ही नह । ठीक वैसे ही जैसे ऊपर से चढ़ाया आ रं ग मिण के
अ दर तक नह पैठता और कु शल जौहरी उसे चट पहचान लेते ह।
िवदूषक :चिलए, यह भी आपके िलए भला ही आ! य क आँख दुखनी आई
ह तो सामने जलती दीप-िशखा भी अ छी नह लगती।
राजा :नह , ऐसा न कहो। यह ठीक है क इस समय मेरा मन उवशी म लगा
आ है, फर भी म महारानी का पहले िजतना ही आदर करता ।ँ
क तु य क आज इ ह ने मेरे अनुनय-िवनय क भी उपे ा कर दी,
इसिलए अब म कु छ समय के िलए चु पी साध जाऊँगा।
िवदूषक :अजी, आप चु पी को छोिड़ए एक ओर। पहले कसी तरह भूख से
कु लबुलाते ए मुझ ा ण के ाण क र ा क िजए। अब ान और
भोजन का समय हो चुका है।
राजा :(ऊपर क ओर देखकर) अरे , आधा दन समा हो चुका! इसीिलए
गम से घबराया आ मोर पेड़ क जड़ के आसपास बने थांवले क
ठ डक म बैठा आ है; भ रा कनेर क किलय का मुख खोलकर
उसम िछपने का य कर रहा है; यह कार डव प ी तालाब के गम
पानी को छोड़कर कनारे पर लगी ई कमिलनी क छाया म जा
बैठा है; और हमारे ड़ागार म पंजड़े म बैठा आ यह तोता यास
से ाकु ल होकर पानी माँग रहा है।
[दोन बाहर जाते ह।]
तीसरा अंक
[ स मु ा म िवदूषक का वेश]
िवदूषक :आहा-हा! यह भला आ क हमारे िम महाराज ब त समय तक
उवशी के साथ न दन वन इ या द देवता के उ ान म िवहार
करके वापस लौट आए। उनके लौट आने पर जा ने नगर म उनका
खूब वागत-स कार कया। अब वे बड़े आन द के साथ रा य कर रहे
ह। बस, एक स तान को छोड़कर अब उ ह और कोई कमी नह है।
आज िवशेष पव होने के कारण गंगा-यमुना के संगम म रािनय के
साथ ान करके वह अभी राजमहल म िव ए ह। इस समय वह
लेप-माला इ या द से अपना शृंगार कर रहे ह गे। तो चलूँ, चलकर
उसम से अपना िह सा पहले ही ले लूँ। (चलने का अिभनय करता
है।)
[नेप य म]
हाय-हाय! म महारानीजी के िसर पर धारण करने के र को ताड़ के
प क िपटारी म रे शम का टु कड़ा िबछाकर, िसर पर रखकर िलए
जा रही थी क माँस के टु कड़े के म म एक िग उसे लेकर उड़
गया।
िवदूषक :( यान से सुनने का अिभनय करके ) बुरा आ, बुरा आ! य क
संगमनीय नाम क वह चूड़ामिण तो महाराज को ब त ि य है।
इसीिलए साज- संगार िबना पूरा कए ही महाराज आसन से उठकर
इसी ओर आ रहे ह। तो चलूँ इ ह के पास प च
ँ ।ूं (बाहर जाता है)
[ वेशक]
[घबराए ए अनुचर के साथ राजा का वेश]
राजा :वेधक, अपनी मृ यु को बुलानेवाला वह चोर प ी कहाँ गया? इस
मूख ने पहली चोरी जा के र क राजा के ही घर म कर डाली।
करात :वह देिखए उधर! वह च च म सोने क जंजीर से बँधी मिण को थामे
ए आकाश म रे खा-सी ख चता आ म डरा रहा है।
राजा :हाँ, वह दीख रहा है। वह मुख म सोने क जंजीर म लटक ई मिण
को थामे ए तेजी से म डलाकर उड़ता आ मिण के रं ग क रे खा से
आकाश म वैसा ही च -सा बना रहा है, जैसा जलती ई लकड़ी को
तेजी से घुमाने पर बन जाता है। अब या कया जाए?
िवदूषक :(पास प चँ कर) अजी, यहाँ दया का काम नह । अपराधी को द ड ही
देना चािहए।
राजा :ठीक कहते हो। अ छा, धनुष लाओ धनुष।
यवनी :अभी लेकर आती ँ (बाहर जाती है।)
राजा :िम , अब तो वह क ब त प ी दीख ही नह रहा। कहाँ गया?
िवदूषक :अजी, वह नीच, माँसभोजी दि ण दशा क ओर गया है।
राजा :(मुड़कर और देखकर) हाँ, अब दीखा। वह प ी काि त से दमकती
ई इस दशा को उसी कार सुशोिभत कर रहा है, मानो वह दशा
के बाल म अशोक के फू ल का गु छा सजा रहा हो।
यवनी :(धनुष हाथ म िलए वेश करके ) महाराज, यह है ह तर क और
धनुष।
राजा :अब धनुष से या होगा? वह माँसभोजी बाण क मार से दूर िनकल
गया। अब तो उसी प ी ारा दूर ले जायी जाती ई वह मिण इस
कार चमकती दीख रही है, जैसे घने बादल के बीच म रात म
मंगल ह चमक रहा हो। (कं चुक क ओर मुड़कर) आय लात !
कं चुक :आ ा क िजए महाराज!
राजा :मेरी ओर से सब नाग रक को कहलवा दो क प ी सायंकाल के
समय अव य ही कसी वृ पर आ य लेगा। इसिलए उस समय इस
चोर क खोज कर।
कं चुक :महाराज क जैसी आ ा!
िवदूषक :अजी, अब आप बै ठए। आिखर वह र का चोर आपके शासन से
बचकर जाएगा कहाँ?
राजा :(िवदूषक के साथ बैठकर) िम , िजस मिण को यह प ी लेकर उड़
गया है, वह मुझे इसिलए ि य नह है क वह ब मू य र है, अिपतु
वह संगमनीय मिण मुझे इसिलए ि य है य क उसने ि या के साथ
मेरा िमलन कराया था।
िवदूषक :ठीक है! यह सब तो आप पहले बता ही चुके ह।
[तीर से बंधी ई मिण को िलए कं चुक का वेश]
कं चुक :महाराज क जय हो! वह वध के यो य प ी इस बाण ारा बंधकर
नीचे िगर पड़ा। ऐसा तीत होता है क आपका ोध ही यह बाण
बनकर उसी प ी को जा लगा। उसे अपने अपराध का उिचत द ड
ा आ और वह चूड़ामिण के साथ-साथ आकाश से भूिम पर आ
िगरा।
[सब आ य का अिभनय करते ह।]
कं चुक :महाराज, इस मिण को जल से धोकर साफ कर िलया है। अब इसे
कहाँ प च
ँ ाया जाए?
राजा :वेधक, जाओ और इसे अि ारा शु करके स दूक म रख दो।
करात :जो महाराज क आ ा (मिण को लेकर बाहर जाता है।)
राजा :आय लात , या आप कह सकते ह क यह बाण कसका है?
कं चुक :इसपर नाम तो िलखा दीख पड़ता है, क तु दृि कमजोर होने के
कारण अ र मुझसे पढ़े नह जाते।
राजा :अ छा, तो बाण यहाँ लाओ। म ही पढ़ता ।ँ (कं चुक बाण देता है।
राजा बाण के अ र को पढ़कर कु छ िवचार म पड़ जाता है।)
कं चुक :अ छा, म भी चलूँ और अपना काम क ँ । (बाहर जाता है।)
िवदूषक :आप कस सोच म पड़ गए।
राजा :इस तीर को छोड़नेवाले का नाम सुनो।
िवदूषक :किहए, म सुन रहा ।ँ
राजा :सु नो। (पढ़कर सुनाता है।) यह बाण धनुधारी पु रवा के उवशी से
उप ए पु कु मार आयु का है, जो श ु क आयु का हरण
करनेवाला है।
िवदूषक :( स तापूवक) तब तो आपको स तान होने क बधाई हो।
राजा :िम , यह आ कै से? नैिमषेय य को छोड़कर और कभी म उवशी से
अलग नह रहा। मने कभी उवशी म गभाव था के िच न भी नह
देख।े फर यह स तान कै से ई? क तु इतना अव य है क उसका
शरीर के वल कु छ दन के िलए लवली के प के समान ह का
पीला-सा पड़ गया था; तन के अ भाग काले पड़ गए थे और आँख
कु छ आल य से भरी रहती थ ।
िवदूषक :आप द ि य म सारे मनु योिचत गुण क आशा न कर। उनके
च रत अपने द भाव से िछपे ही रहते ह।
राजा :हो सकता है क जो तुम कहते हो, वह ठीक ही हो। पर पु ज म क
बात को िछपाने म उसका या योजन हो सकता है?
िवदूषक :कह मुझे वृ ा समझकर राजा छोड़ न द, यही।
राजा :चलो, मजाक रहने दो। सोचो क या कारण हो सकता है?
िवदूषक :देवता के रह य को कौन कतना सोचे।
[कं चुक का वेश]
कं चुक :महाराज क जय हो! महाराज, यवन ऋिष के आ म से एक कु मार
को लेकर कोई तापसी आई ह। वे आपके दशन करना चाहती ह।
राजा :दोन को अिवल ब यहाँ ले आओ।
कं चुक :जो आ ा महाराज क । (बाहर जाता है और धनुष हाथ म िलए ए
कु मार तथा तापसी के साथ फर वेश करता है।)
कं चुक :भगवती, इधर आइए इधर। (सब चलने का अिभनय करते ह।)
िवदूषक : या यह वही ि य कु मार है, िजसके नाम से अं कत बाण ने िग
को ल य बनाकर ब ध डाला था? इसक आकृ ित आपसे ब त
िमलती-जुलती है।
राजा :शायद ऐसा ही हो। इसीिलए इसपर पड़ते ही मेरी दृि आँसु से
धुँधली हो उठी है। दय म इसके ित वा स य जाग रहा है; मन
आन द से भर उठा है, मेरा अंग-अंग सारा धीरज छोड़कर काँप-सा
रहा है और इ छा हो रही है क इसे कसकर छाती से लगा लूँ।
कं चुक :भगवती, आप यह कए।
[तापसी और कु मार दोन ककर खड़े हो जाते ह।]
राजा :माताजी णाम!
तापसी :महाभाग सोमवंश का िव तार करनेवाले बनो! (मन-ही-मन) अरे !
यह तो इस राज ष और इस कु मार आयु का स ब ध िबना बताए भी
प मालूम हो जाता है। ( कट) बेटा, अपने िपता को नम कार
करो।
[कु मार हाथ म धनुष पकड़े-पकड़े हाथ जोड़कर नम कार करता
है।]
राजा :बेटा िचरं जीव रहो।
कु मार :(मन-ही-मन) य द मुझे यह सुनकर ही इतना आन द हो रहा है क ये
मेरे िपता ह और म इनका पु ,ँ तो उन बालक को अपने माता-
िपता से कतना ेम होता होगा, जो उनक गोद म रहकर ही पलते
और बड़े होते ह।
राजा :भगवती, कस योजन से आपका यहाँ आगमन आ?
तापसी :सुिनए महाराज। इस िचरं जीव कु मार आयु को उवशी ने ज म देते ही
न जाने कस कारण मेरे पास धरोहर के प म रखवा दया था।
ि य बालक के िलए जातकम इ या द जो भी सं कार कए जाने
होते ह, इस बालक के वे सब सं कार मह ष यवन ने यथािविध कर
दए ह। िश ा समा करने के बाद इसे धनुवद का अ यास भी करा
दया है।
राजा :तब तो यह बड़ा भा यशाली है।
तापसी :आज फू ल, सिमधाएँ और कु शा लाने के िलए यह ऋिष-कु मार के
साथ वन म गया था। वहाँ इसने ऐसा काम कर डाला, जो
आ मवासी के िलए उिचत नह था।
िवदूषक :(घबराकर) वह या?
तापसी :इसने पेड़ क चोटी पर माँस का टु कड़ा िलए बैठे ए एक िग को
देखा और उसे तीर का िनशाना बना दया।
[िवदूषक राजा क ओर देखता है।]
राजा :उसके बाद या आ?
तापसी :उसके बाद जब मह ष यवन को यह सारा वृ ा त ात आ, तो
उ ह ने मुझे आदेश दया क उवशी क इस धरोहर को उवशी को ही
लौटा दो। इसिलए म रानी उवशी से िमलना चाहती ।ँ
राजा :अ छा, तो आप इस आसन पर िवरािजए।
[तापसी लाए ए आसन पर बैठ जाती है।]
राजा :आय लात , उवशी को बुला लाओ।
कं चुक :जो महाराज क आ ा। (बाहर जाता है)
राजा :(कु मार क ओर देखकर) आओ बेटा, यहाँ आओ। कहते ह क पु का
पश सारे शरीर को आनि दत कर देता है। तो आओ और अपने पश
से मुझे वैसा ही आनि दत करो, जैसे च मा क करण च का त
मिण को स कर देती है।
तापसी :बेटा, जाओ; िपता को सुखी करो।
[कु मार राजा के पास जाकर पैर छू ता है।]
राजा :(कु मार को छाती से लगाकर और चौक पर िबठाकर) बेटा, ये
तु हारे िपता के ि य िम ा ण बैठे ह; इ ह भी िनभय होकर
णाम करो।
िवदूषक :भय उसे य होगा? वह आ म म रहता रहा है, इसिलए ब दर को
तो भली भाँित जानता-पहचानता होगा।
कु मार :(मु कराकर) तात, णाम!
िवदूषक :तु हारा क याण हो! दन - दन तु हारी ी-वृि हो।
[उवशी और कं चुक का वेश]
उवशी :(कु मार को देखकर) अरे , यह कौन है, जो धनुष िलए चौक पर बैठा
है और िजसके बाल को महाराज वयं संवार रहे ह? (तापसी को
देखकर) ओह, इस स यवती को देखकर तो यही लगता है क यह
मेरा बेटा आयु है। अब तो यह ब त बड़ा हो गया!
[ स होकर आगे बढ़ती है।]
राजा :(उवशी को देखकर) बेटा, यह तु हारी माँ आ प च ँ ी ह, जो टकटक
लगाए तु हारी ओर देख रही है और िजसक चोली ेह के कारण
टपकते ए दूध से गीली हो उठी है।
तापसी :बेटा, आओ अपनी माँ का वागत करो। (कु मार के साथ उवशी के
पास जाती है।)
उवशी :माताजी, चरण म णाम करती ।ँ
तापसी :बेटी, तु ह पित का ेम ा हो!
कु मार :माताजी णाम!
उवशी :(ऊपर मुँह उठाए ए कु मार को छाती से लगाकर) बेटा, तुम िपता
को स करनेवाले बनो। (राजा के पास प च ँ कर) महाराज क जय
हो।
राजा :पु वती उवशी का वागत है। आओ यहाँ बैठो। (उसे अपने आसन के
ही आधे भाग पर िबठाता है।)
[उवशी बैठ जाती है, बाक लोग भी यथोिचत थान पर बैठ जाते
ह।]
तापसी :बेटी, यह आयु पढ़-िलखकर अब कवच धारण करने यो य हो गया है।
तो अब यह तेरी धरोहर तेरे पित के स मुख ही तुझे लौटाए देती ।ँ
और अब म िवदा चाहती ।ँ मेरे आ म के काम को देर होती होगी।
उवशी :ब त दन बाद आज आपको देखा है, इसीसे आपको देखकर जी नह
भर रहा है। आपको िवदा देते मुझसे नह बनता; पर आपको रोकना
भी अ याय होगा। तो अब आप जाइए, पर फर दशन अव य
दीिजएगा।
राजा :माताजी, मह ष यवन को मेरा णाम किहएगा।
तापसी :अ छा, अव य क गँ ी।
कु मार :य द आप सचमुच ही वापस लौट रही ह , तो मुझे भी अपने साथ
आ म ले चिलए।
राजा :बेटा, अब तुम पहले आ म म िनवास कर चुके हो। अब तु हारा
ि तीय आ म म रहने का समय आया है।
तापसी :बेटा, अपने िपता क आ ा का पालन करो।
कु मार :अ छा, तो फर मेरे उस मिणक ठक मोर को मेरे पास अव य भेज
दीिजएगा, जो मेरी गोदी म आकर सोया करता था और िसर
खुजलाने पर खूब स होता था। अब तो उस मोर के पँख भी
िनकल आए ह।
तापसी :(हँसकर) अ छा, भेज दूग
ँ ी।
उवशी :भगवती, चरण म णाम करती !ँ
राजा :भगवती, णाम!
तापसी :आपका क याण हो!
[बाहर जाती है।]
राजा :(उवशी से) हे क याणी, िजस कार शची से उ प ए जय त के
कारण इ पु वाले िपता म े िगन जाते ह, उसी कार तु हारे
पु के कारण म भी आज सब पु वाल म े बन गया ।ँ
[उवशी कसी पुरानी बात का मरण करके रोने लगती है।]
िवदूषक :(देखकर, घबराहट के साथ) अजी, यह या आ क ये तो एकाएक
रोने लगी।
राजा :(घबराकर) सु द र, आज इस महान हष के अवसर पर जब क मुझे
मेरा वंशधर ा आ है, तुम रोने य लग ? तु हारे इन पीन
पयोधर पर पहले ही मोितय क माला पड़ी ई है, अब उसके
ऊपर आँसु के ये मोती और य िगरा रही हो?
[उसके आँसू प छता है।]
उवशी :सुिनए महाराज! पहले तो म इस पु के दशन के आन द म अपने-
आपको भूल बैठी थी, पर तु जब आपने अब इ का नाम िलया, तो
मुझे एक शत याद आ गई, िजसके कारण मेरा दय फट-सा रहा है।
राजा :वह शत ही या थी?
उवशी :ब त पहले क बात है। मेरा मन महाराज क ओर लगा आ था।
उस समय गु भरत मुिन के शाप से म कं कत िवमूढ़ हो गई थी।
तब इ ने यह कहा था।
राजा : या?
उवशी :उ ह ने कहा था क जब मेरे ि य िम राज ष पु रवा तुमसे उ प
अपने वंशधर पु का मुख देख लगे, तब तु ह फर वापस मेरे पास
लौट आना होगा।
इस पर महाराज के िवयोग से बचने के िलए मने इसे उ प होते ही
िव ा ययन के िनिम भगवान यवन के आ म म आया स यवती
के हाथ म स प दया था और यह बात कसी-को बताई नह थी।
उसने आज यह समझकर क अब यह अपने िपता क सेवा करने के
यो य हो गया है, यह मेरा चंरजीव पु आयु मुझे लौटा दया है।
महाराज के साथ मेरा इतने दन रहना ही िलखा था!
[सब िवषाद का अिभनय करते ह; राजा मू छत हो जाता है।]
िवदूषक :बुरा आ, बुरा आ।
कं चुक :धीरज ध रए, महाराज, धीरज ध रए!
राजा :(होश म आकर, एक गहरी साँस लेकर) ओह, भा य भी सुख का कै सा
श ु है! सु द र, पु पाने के कारण मुझे अभी कु छ धीरज बँधा ही था
क अब तुरंत तुमसे िवयोग का ण आ उपि थत आ; जैसे
ी मकाल म थम वृि से कसी वृ का धूप का लेश समा आ
हो और उसके साथ ही उसपर िबजली िगर पड़े।
िवदूषक :यह सुघटना तो दुघटना को लेकर आई। अब मुझे लगता है क
महाराज व कल धारण करके तपोवन को चले जाएँगे।
उवशी :और महाराज मुझ अभािगनी के िवषय म भी यही सोचते ह गे क
पढ़ा-िलखा पु ा होने पर अपना काय समा आ जानकर यह
वग को चली जा रही है।
राजा :नह सु द र, ऐसा न कहो। िजस पराधीनता म िवयोग इतनी
आसानी से हो जाता है, उसम ि अपना मनचाहा नह कर
सकता। इसिलए तुम जाओ; अपने भु क आ ा का पालन करो। म
भी आज ही तु हारे पु को रा य स पकर उन बन क ओर िनकल
जाऊँगा, िजनम पशु के झु ड-के -झु ड घूमा करते ह।
कु मार :तात, िजस भार को े बैल ख चता रहा हो, उसम बछड़े को
जोतना उिचत नह है।
राजा :बेटा, ऐसा न कहो। य क ग धराज छोटा होने पर भी दूसरे
हािथय को हरा देता है। नाग के ब े का िवष भी बड़े साँप जैसा ही
च ड होता है। उसी कार राजा बालक होने पर भी सारी पृ वी
क र ा करने म समथ होता है। यह अपने काय को िनबाहने क
शि अव था से नह , अिपतु ज म से ही आती है। आय लात !
कं चुक :आ ा क िजए महाराज।
राजा :मेरी ओर से अमा य-प रषद् से कहो क कु मार आयु के रा यािभषेक
क तैयारी क जाए।
कं चुक :जो महाराज क आ ा। (दु:खी होकर बाहर जाता है।) [सब लोग
आँख चुंिधयाने का अिभनय करते ह।]
राजा :(आकाश क ओर देखकर) यह या, िबना बादल के ही आकाश से
िबजली िगर रही है!
उवशी :(देखकर) ओह, यह तो भगवान नारद आ रहे ह।
राजा :( यान से देखकर) अ छा, भगवान नारद है! यह गोरोचना के समान
ह क भूरी जटा वाले और च मा क कला के शु य ोपवीत
पहने और मोितय क माला से अपना शृंगार कए ऐसे दखाई पड़
रहे ह मानो कोई चलता- फरता क पवृ हो, िजसम से सोने क
शाखाएँ फू ट रही ह । अ छा, तो इनक पूजा के िलए साम ी लाओ।
उवशी :(राजा के कथनानुसार साम ी लाकर) यह भगवान नारद क पूजा
के िलए साम ी है।
[नारद का वेश। सब उठ खड़े होते ह।]
नारद :म यम लोक के लोकपाल क जय हो।
राजा :(उवशी के हाथ से पूजा क साम ी लेकर और पूजा करके ) भगवन्,
अिभवादन करता ।ँ
उवशी :भगवन्, णाम करती ।ँ
नारद :तुम दोन पित-प ी को कभी एक-दूसरे का िवरह न सहना पड़े।
राजा :(मन-ही-मन) काश, क ऐसा हो सकता! (कु मार को छाती से
लगाकर। कट) बेटा, भगवान नारद को णाम करो।
कु मार :भगवन्, उवशी का पु आयु णाम करता है!
नारद :िचरं जीव होओ!
राजा :यह आसन है; इसपर पधा रए।
नारद :ठीक है। (बैठ जाते ह।)
[सब नारदजी के प ात् अपने-अपने आसन पर बैठते ह।]
राजा :(िवनयपूवक) भगवन्, किहए कस योजन से आपका आगमन आ?
नारद :महाराज इ ने एक स देश भेजा है; वह सुिनए।
राजा :किहए; म सुन रहा ।ँ
नारद :इ ने अपने भाव से यह जान िलया क आप वन जाने क सोच
रहे ह। इसिलए उनका आपसे यह अनुरोध है क...
राजा : या आ ा है उनक ?
नारद :ि कालदश मुिनय ने बताया है क शी ही देवता और असुर म
एक महान यु िछड़नेवाला है और आप यु म हमारी सहायता
कया करते ह। इसिलए आप श - याग न कर, यह उवशी
आयुपय त आपक प ी रहेगी।
उवशी :(ओट करके ) आह, मेरे दल का काँटा-सा िनकल गया!
राजा :म तो देवराज इ का आ ाकारी ही ।ँ
नारद :ठीक है। आप इ का काम करते रिहए और वे आपका ि य काय
करते रह। सूय अि क काि त को बढ़ाता है और अि सूय के तेज
को बढ़ाती है। (आकाश क ओर देखकर) र भा, आयु के युवराज-
अिभषेक के िलए वयं इ ारा भेजी गई सामि याँ ले आओ।
[हाथ म सामि याँ िलए ए अ सरा का वेश]
अ सराएँ :भगवन् ये ह अिभषेक क सामि याँ।
नारद :िचरं जीव आयु को भ पीठ पर िबठाओ।
र भा :इधर आओ बेटा। (कु मार को भ पीठ पर िबठाती है।)
नारद :(कु मार के िसर पर पानी का घड़ा उँ ड़ेलकर) र भा, बाक िविध पूरी
कर दो।
र भा :(नारद के कहे अनुसार िविध स प करके ) बेटा, भगवान नारद को
और अपने माता-िपता को णाम करो!
[कु मार मश: तीन को णाम करता है।]
नारद :तु हारा क याण हो!
राजा :तुम अपने कु ल क शोभा बढ़ाओ!
उवशी :अपने िपता क सेवा करनेवाले बनो!
[नेप य म दो वैतािलक]
वैतािलक :युवराज क िवजय हो!
पहला वैतािलक :जैसे ाजी से देव-मुिन अि का ज म आ और अि के पु
च मा और च मा के पु बुध और बुध के पु महाराज पु रवा
ए, उसी कार तुम भी अपने लोक-आ लादक गुण ारा अपने
िपता के अनु प बनो। इसके अित र और सब आशीवाद तो
तु हारे वंश म पहले ही फलीभूत हो चुके ह।
दूसरा वैतािलक :उ त म भी अ णी िगने जानेवाले तु हारे िपता महाराज पु रवा
और अटल धैयवाले और साहसी वयं तु हारे बीच इस समय यह
राजल मी उसी कार और भी अिधक सुशोिभत हो रही है, जैसे
िहमालय और समु दोन म ही अपना पानी बाँटकर बहती ई गंगा
सुशोिभत होती है।
अ सराएँ :(उवशी के पास जाकर) ि य सखी के पु के युवराज-अिभषेक क
और पित के िवयोग न होने क बधाई हो!
उवशी :इस सौभा य क तो तु ह भी बधाई हो! (कु मार का हाथ पकड़कर)
आओ बेटा, चलकर बड़ी माँ को भी णाम कर आओ।
[कु मार चलने को तैयार होता है।]
राजा :थोड़ा ठहरो, हम सब साथ ही महारानी के पास चलते ह।
नारद :इस समय तु हारे इस कु मार आयु का युवराज-पद पर अिभषेक मुझे
उस अवसर क याद दला रहा है, जब देवराज इ ने कु मार
का तके य को देवसेना के सेनापित-पद पर अिभिष कया था।
राजा :यह सब इ क कृ पा है।
नारद :किहए राजन्, इस समय इ आपका और या ि य काय कर सकते
ह।
राजा :य द देवराज इ मुझसे स ह, तो इसके अित र और भला मुझे
या चािहए? पर फर भी यह हो जाए, तो और भी भला।
[भरत वा य]
जो ल मी और सर वती सदा एक-दूसरे क िवरोिधनी ह, और
िजनका एक थान पर िमलकर रह पाना क ठन है, वे ल मी और
सर वती स न के क याण के िलए पर पर िमलकर रहने लग।
और साथ ही सब लोग क ठनाइय को पार कर जाएँ; सब लोग के
भले दन आ जाएँ; सबक कामनाएँ पूरी ह ; और सब सदा आन द
मनाते रह!
[सब बाहर जाते ह।]
मालिवकाि िम
पा
पु ष
सू धार :नाटक का ब धक
पा रपा क :सू धार का सहायक
राजा :िव दशा नरे श अि िम
वाहतक :म ी
िवदूषक :राजा का िम गौतम
कं चुक :अ तःपुर का अ य
गणदास :नाट् याचाय
हरद
सारस :कु बड़ा नौकर
वैतािलक : तुित पाठक
ि याँ
मालिवका :मालव नरे श माधवसेन क बिहन
धा रणी :अि िम क पटरानी
इरावती :अि िम क दूसरी रानी
प र ािजका :माधवसेन के म ी सुमित क बिहन कौिशक
बकु लाविलका :धा रणी क सेिवका; मालिवका क सखी
मधुक रका :मािलन
कौमु दका :दासी
समािहितका :प र ािजका क दासी
िनपुिणका :इरावती क दासी
जयसेना : ितहारी
चेटी :दासी
मदिनका :िवदभ देश क िश पी क याएं
योि का
पहला अंक
दूसरी :सुिनए महाराज! जब राजकु मार माधवसेन अपने चचेरे भाई के पास
कै द हो गए, तब उनके अमा य सुमित हम प रचा रका को
छोड़कर इ ह चुपचाप ले आए।
राजा :यह म पहले सुन चुका ।ँ फर या आ?
दूसरी :महाराज, इससे आगे मुझे मालूम नह ।
प र ािजका :इससे आगे क बात म अभािगन सुनाऊँगी।
दोन :राजकु मारी, यह तो आया कौिशक क सी आवाज मालूम होती है?
अरे , ये तो वही ह।
मालिवका :और नह तो या!
दोन :प र ािजका का वेश पहने ए आचाया कौिशक बड़ी क ठनता से
पहचानी जाती ह। भगवती, नम ते!
प र ािजका :तुम दोन का क याण हो!
राजा :यह या बात है? या भगवती इन दोन को पहले से जानती ह?
प र ािजका :जी हाँ। यही बात है।
िवदूषक :अ छा, भगवती, अब आप मालिवकाजी का सारा वृ ा त सुना
डािलए।
प र ािजका :(दु:खी होने का अिभनय करते ए) अ छा तो सुिनए। माधवसेन के
सिचव सुमित मेरे बड़े भाई ह।
राजा :समझ गया। अ छा, फर या आ?
प र ािजका :वे इसे और मुझे साथ लेकर इसका स ब ध आपके साथ कराने के
िलए िव दशा क ओर आनेवाले ापा रय के एक दल म सि मिलत
हो गए।
राजा :ठीक है। फर?
प र ािजका :कु छ दूर चलने पर ापा रय का वह दल एक घने जंगल म जा
प च ँ ा।
राजा : फर?
प र ािजका :उसके बाद और या होना था! क ध पर तरकस लटकाए और पीठ
पर घुटन तक लटकते ए मोर के पँख बाँधे ए, हाथ म धनुष
िलए िच लाता और ललकारता आ डाकु का दल हमपर एकाएक
इस तरह टू ट पड़ा क मुकाबला कर पाना अस भव हो गया।
[मालिवका भयभीत होने का अिभनय करती है।]
िवदूषक :अजी, ड रए नह ; ये तो बीती ई बात सुना रही ह।
राजा : फर?
प र ािजका :इसके बाद कु छ ही देर म ापा रय के दल के यो ा को डाकु
ने हराकर भगा दया।
राजा :ओफ! या इससे भी अिधक दुःखद बात सुननी होगी?
प र ािजका :तब मेरे वे भाई श ु के आ मण से घबराई ई इस मालिवका क
र ा करते ए वगवासी हो गए और उ ह ने अपने ाण देकर अपने
वामी का ऋण चुका दया।
पहली :तो या सुमित मारे गए?
दूसरी :अहो! तभी हमारी राजकु मारी क यह दशा ई।
[प र ािजका रोने लगती है।]
राजा :भगवती, सभी शरीरधा रय क अ त म यही गित होनी है। अपने
वामी का अ सफल करने वाले सुमित के िलए आपको शोक नह
करना चािहए। फर या आ?
प र ािजका :उसके बाद म बेहोश हो गई। जब मुझे होश आया, तो मालिवका
कह दखाई नह पड़ी।
राजा :तब तो आपने ब त क सहा।
प र ािजका :उसके बाद भाई के शरीर का अि -सं कार करके म आपके देश म आ
प चँ ी। यहाँ मेरे िवधवापन का दुःख फर से ताजा हो उठा और मने
सं यास लेकर ये गे ए कपड़े पहन िलए।
राजा :ठीक है। भले आदिमय का यही माग है। फर या आ?
प र ािजका :उसके बाद यह डाकु से होती ई वीरसेन के पास और वीरसेन के
पास से महारानी के पास आ गई। जब म महारानी के पास प च
ँ ी,
तो मने इसे यहाँ पाया। यही है इसक कहानी।
मालिवका :(मन-ही-मन) अब देख,ूँ महाराज या कहते ह?
राजा :हाय, िवपि आने पर मनु य क दशा कतनी िगर जाती है! कहाँ तो
यह सा वी रानी कहलाने यो य थी और कहाँ इससे दासी का काम
िलया गया। यह तो पशमीने से अंगोछे का काम लेने क बात ई।
धा रणी :भगवती, आपने मुझे यह न बताकर क मालिवका ऊँचे कु ल क है,
भला नह कया।
प र ािजका :ऐसा न किहए। एक खास कारण था, िजससे म इस कार अपने दल
को प थर कए रही।
धा रणी :वह कारण या था?
प र ािजका :जब इसके िपता जीिवत थे, तब तीथया ा से लौटे ए एक
भिव यदश साधु ने मेरे सामने ही इसके िवषय म बताया था क
एक वष तक यह कह दासी के प म काम करे गी और उसके बाद
इसे उपयु पित िमलेगा। जब मने यह देखा क उसक बात इस प
म स ी हो रही है और यह आपके यहाँ सेवा करके समय िबता रही
है, तो मुझे लगता है क मने चुपचाप रहकर ती ा करके भला ही
कया।
राजा :आपक यह ती ा ठीक ही रही।
कं चुक :महाराज, इस कथा के कारण म एक बात कहना भूल गया। अमा य
ने कहलावाया है क िवदभ के स ब ध म जो कु छ ब ध करना था,
वह कर दया गया है। पर म महाराज क इ छा भी जान लेना
चाहता ।ँ
राजा :मौद्ग य, मेरी इ छा है क म य सेन और माधवसेन दोन के दो
अलग-अलग रा य बना दूँ और वे दोन वरदा नदी के उ री और
दि ण तट पर उसी कार रा य करते रह, जैसे सूय और च मा
रात और दन का बँटवारा करके सुशोिभत होते ह।
कं चुक :ठीक है महाराज। म यही बात अमा य-प रषद से िनवेदन कर आता
।ँ
[राजा अँगुली से अनुमित देने का संकेत करता है। कं चुक बाहर
जाता है।]
पहली दासी :(धीरे से) राजकु मारीजी, बधाई हो! अब तो महाराज ने राजकु मार
को आधा रा य दलवा दया है।
मालिवका :यह बड़ी बात है क उनके ाण बच गए।
[ वेश करके ]
कं चुक :महाराज क जय हो। अमा य ने कहलाया है क महाराज का िवचार
िबलकु ल ठीक है। म ी-प रषद क स मित भी यही है। िजस कार
रथ के दोन घोड़े सारथी के िनय ण म रहकर चलते ह, उसी कार
दो भाग म बँटी ई रा य ी का उपभोग करते ए और एक-दूसरे
से षे न रखते ए ये दोन भी आपके िनय ण म बन रहगे।
राजा :तो जाकर म ी-प रषद से कहो क सेनापित वीरसेन को िलख भेज
क वे ऐसा ही कर द।
कं चुक :जो महाराज क आ ा। (बाहर जाता है और उसके बाद उपहार -
समेत एक प लेकर फर आता है।) महाराज क आ ा का पालन
कर दया गया है। यह महाराज के सेनापित पु यिम के पास से
दुशाले के उपहार के साथ प आया है। महाराज इसे देख ल।
[राजा उठकर िश ाचार- दशन के साथ उपहार-समेत प को
लेता है और एक सेवक को स प देता है। सेवक प को खोलने का
अिभनय करता है।]
धा रणी :(मन-ही-मन) ओह! मेरा दय भी इसीको सुनने के िलए अधीर हो
रहा है। गु जन का कु शल-वृ ा त सुनने के बाद वसुिम का हाल
सुनूँगी। सेनापित ने भी मेरे बालक को बड़ा भयानक काम स प दया
है।
राजा :(बैठकर आदर के साथ प को लेकर पढ़ता है।) वि त! य के घोड़े
के साथ-साथ चलनेवाले सेनापित पु यिम िव दशा म ि थत पु
िचरं जीव अि िम को ेहपूवक आ लंगन करके िलखते ह, आपको
यह मालूम हो क अ मेध य क दी ा लेकर मने एक वष के िलए
जो खुला घोड़ा छोड़ा था, और िजसक र ा के िलए वसुिम क
अधीनता म सैकड़ राजकु मार को लगाया था, वह घोड़ा जब िस धु
के दि णी कनारे पर फर रहा था, तब उसे यवन क अ ारोही
सेना ने पकड़ िलया। उसके बाद दोन सेना म जमकर भीषण यु
आ।
[धा रणी दुःखी होने का अिभनय करती है।]
राजा :अरे , मामला या यहाँ तक बढ़ गया? ( फर आगे पढ़ता है।) तब
धनुधर वुसिम ने श ु को परा त करके मेरे िछने ए घोड़े को
बलपूवक वापस लौटा िलया।
धा रणी :यह सुनकर दय को कु छ आ ासन िमला।
राजा :(शेष प को पढ़ता है।) अब म इस घोड़े को लौटाकर उसी कार
अ मेध य क ँ गा, जैसे सगर के पौ अंशुमान के घोड़े को लौटा
लाने पर सगर ने य कया था। अब आप अिवल ब अपना सारा
ोध भूलकर ब को साथ लेकर इस य म भाग लेने के िलए आ
जाइए।
राजा :यह िलखकर उ ह ने बड़ी कृ पा क है।
प र ािजका :आप दोन को पु क िवजय के िलए बधाई हो! महारानी, आपके
पित ने आपको वीरपि य म सबसे ऊँचा थान दलाया, और
आपके पु ने आपको वीर माता का पद भी दलवा दया है।
धा रणी :भगवती, मुझे तो यही बड़ा स तोष है क मेरा बेटा अपने िपता के
समान ही िनकला।
राजा :मौद्ग य, यह तो इस हाथी के ब े ने यूथपित का सा काम कर
दखाया।
कं चुक :महाराज, कु मार के इस वीरोिचत परा म म हम कोई आ य नह
हो रहा, य क जैसे बड़वानल से समु को सोखनेवाले उ ज मा
ऋिष उ प ए थे, उसी कार आप जैसे अपरािजत वीर के पु का
ऐसा परा मी होना वाभािवक ही है।
राजा :मौद्ग य, य सेन के साले मौयसिचव तथा अ य सब कै दय को
आज छोड़ दया जाए।
कं चुक :जो महाराज क आ ा। (बाहर जाता है।)
धा रणी :जयसेना, जा। इरावती इ या द अ य सब रािनय को भी जाकर पु
का यह वृ ा त तो सुना आ।
[ ितहारी चल पड़ती है।]
धा रणी :जरा सुन तो।
ितहारी :(लौटकर) आ गई, किहए।
धा रणी :(धीरे से) मने अशोक क इ छा पूण करने के िलए मालिवका को
िनयु करते समय जो वचन दया था, उसे और इसक कु लीनता के
िवषय म बताकर इरावती से मेरी ओर से अनुरोध करना क वह
कु छ ऐसा न करे , िजससे मुझे झूठा बनना पड़े।
ितहारी :जो महारानी क आ ा। (बाहर जाकर वेश करके ) वािमनी,
राजकु मार क िवजय के वृ ा त को सुनकर रािनय को इतना
आन द आ है क म तो गहन क िपटारी ही बन गई ।ँ
धा रणी :इसम आ य क या बात है? इसम तो मेरा और उनका समान ही
बड़ पन है।
ितहारी :(धीरे से) वािमनी, इरावतीजी ने कहलवाया है क आपने अपने
बड़ पन के अनुकूल ही सोचा है। आपने जो वचन दया आ है, उसे
अव य पूरा क िजए।
धा रणी :भगवती, य द आप अनुमित द तो म चाहती ँ क आय सुमित ने जो
मालिवका को आयपु को देने का संक प कया था, उसे पूण कर दू।ँ
प र ािजका :अब तो आपका ही इनपर अिधकार है।
धा रणी :(मालिवका का हाथ पकड़कर) आयपु , आपने ि य समाचार
सुनाया है, तो उसके उपयु यह पुर कार वीकार क िजए।
[राजा ल ा का अिभनय करता है।]
धा रणी :(मु कराकर) या आयपु इस भट को वीकार नह करना चाहते?
िवदूषक :अजी, यह तो लोकाचार है। सभी नए वर इसी तरह लजाया ही करते
ह।
[राजा िवदूषक क ओर देखता है।]
िवदूषक :महाराज चाहते ह क आप ही इ ह बड़े ेम के साथ रानी कहकर
बुलाएँ, तभी वे इ ह हण करगे।
धा रणी :ये तो पहले से ही राजकु मारी ह, अपने कु ल के कारण ही इ ह रानी
का पद ा है, फर उसे दुहराने क या आव यकता है।
प र ािजका :ऐसा न किहए। भले ही र खान म उ प आ हो और अ छी को ट
का भी हो, फर भी उसे सोने म जड़ना ही पड़ता है।
धा रणी :(कु छ मरण-सा करके ) भगवती, मा क िजए। पु क िवजय कथा
के आन द म मुझे उिचत बात भी यान न रही। जयसेना, जा तू
ज दी से ऊन और रे शम का जोड़ा तो ले आ।
ितहारी :जो महारानी क आ ा। (बाहर जाती है और पशमीने का जोड़ा
लेकर फर वेश करती है।) लीिजए महारानीजी, यह है।
धा रणी :(मालिवका के िसर पर कपड़ा डालकर उसका घूँघट कर देती है।)
आय पु अब इसे वीकार क िजए।
राजा :तु हारा आदेश तो मानना ही होगा। (ओट करके ) यह तो मने पहले
से ही वीकार क ई थी।
िवदूषक :अहा, महारानी भी कतनी कृ पालु ह!
[महारानी सेवक क ओर देखती ह।]
ितहारी :(मालिवका के पास जाकर) वािमनी, आपक जय हो!
[धा रणी प र ािजका क ओर देखती है।]
प र ािजका :यह उदारता आपके िलए कु छ नई नह है। पित से ेह करनेवाली
सा वी ि याँ सौत लाकर भी पित को स रखती ह; जैसे बड़ी-
बड़ी न दयाँ अ य छोटी न दय के जल को भी समु तक प च ँ ा देती
ह।
[ वेश करके ]
िनपुिणका :महाराज क जय हो। इरावतीजी ने कहलाया है क उस समय मने
िश ाचार का उ लंघन करके जो अपराध कया था, वह सब मने
आपके काय-साधन के िलए ही कया था। अ आपका मनोरथ पूण
आ, इसिलए आशा है क आप अपनी स ता ारा मुझे अनुगृहीत
करगे।
धा रणी :िनपुिणका, उ ह ने महाराज क जो सेवा क है, उसे ये भूलगे नह ।
िनपुिणका :सुनकर कृ ताथ ई।
प र ािजका :महाराज, म चाहती ँ क जाकर माधवसेन को इस उिचत स ब ध
का समाचार सुनाकर स क ँ ।
धा रणी :भगवती, हम छोड़कर यहाँ से आपका जाना ठीक नह ।
राजा :भगवती, म अपनी ओर से जो प भेजूँगा, उसीम आपक ओर से भी
बधाई िलख भेजूँगा।
प र ािजका :म तो अब आप दोन के ेम के वश म ही ।ँ
धा रणी :आयपु , किहए, अब आपका और कौन-सा ि य काय क ँ ?
राजा :देवी, म तो दय से के वल इतना ही चाहता ँ क तुम सदा मुझपर
स बनी रहो। फर भी ऐसा हो जाए क–
[भरत वा य]
जब तक अि िम रा य करते रह, तब तक जा को कसी कार
का भय या क न हो।
[सब बाहर जाते ह।]
सं कृ त का अमर सािह य (िह दी म)
□ अिभ ानशाकु तल :कािलदास
□ कु मारसंभव :कािलदास
□ िव मोवशी तथा मालिवकाि िम :कािलदास
□ व वासवद ा तथा ित ायौग धरायण:भास
□ दशकु मारच रत :द डी
□ मृ छक टक :शू क
□ मु ारा स :िवशाखद
□ उ ररामच रत :भवभूित