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Raghuvansh
Raghuvansh
रघुवंश
(सं कृ त के सु िस महाका ‘रघुवंश’
का िह दी पा तर)
महाकिव कािलदास
पा तरकार
इ वाच पित
सोऽिधकारमिभकः कु लोिचतम्
का न वयमवतय समाः।
सि वे य सिचवे वत: परम्
ीिवधेय-नवयौवनो भवत्॥
कु छ समय तक तो अि वण ने अपने वंश के यो य कु शलता से रा य का संचालन
कया, उसके प ात् उसे कामुकता ने दबा िलया और रा य का काय मि य पर डाल
उसने अपना यौवन ि य को अपण कर दया।
जब कृ षक खेत क र ा छोड़कर िवषय-भोग म पड़ जाये तो जैसे जंगली पशु खेत
को खा जाते ह, राजा के कत युत होने पर रा क भी वैसी ही दशा हो जाती है;
राजा तो न हो ही जाता है। अि वण के पतन ने उसके रा य को भी दुदशा त कर
दया। उसक अपनी गित तो वही ई जो िवषयल पट ि य क आ करती है।
किव ने उसका वणन िन िलिखत प म कया है–
िजस समय ‘िव िजत्’ य म सव व दान करने के कारण स ाट् रघु का खज़ाना
िब कु ल खाली हो चुका था, उस समय वरत तु आचाय का िश य कौ स अपनी िश ा
समा करके गु दि णा क खोज म अयो या प च ं ा। सोने के सब बतन दए जा चुके
थे, अत: रघु ने िम ी के बतन म अ य तुत कया। अ य-पा आ द से उस तप वी का
स कार करके मािनय के मुख स ाट् रघु ने उसे आसन पर िबठाया और हाथ जोड़कर
कया–
हे कु शा बुि मुिनवर, जैसे सारा संसार सूय से जीवन ा करता है, वैसे ही
िजस म व ा के अ णी ॠिषवर से तुमने सब िव ाएं ा क है, वे कु शल से तो
ह? देवता के अिधपित को िहला देनेवाली मह ष क ि िवध तप या के माग म कोई
कावट तो नह आत ?
शरीर, वाणी और कम ारा देवता के राजा के आसन को िहला देनेवाला जो
ि िवद तप मह ष ने संिचत कया है, उसम कह िव बाधाएं तो उपि थत नह होत ?
शीतल छाया ारा थकान उतारनेवाले उन आ म के वृ को, िज ह
आ मवािसय ने आलवाल बनाकर तथा सब उपाय से स तान क तरह पाल-पोसकर
बड़ा कया है, वायु आ द के उप व से हािन तो नह प च ं ती?
ह रिणय क िजस स तित को मुिन लोग अपने ब से भी अिधक ेम करते ह,
िजनका ज म मुिनय क गोद से ही होता है, जो य ा द के िनिम से भी अलग नह
कये जाते, कु शल से तो ह?
िजन पिव जल से आप लोग दैिनक ाना द करते ह? िजनक अंजिलय से
िपतर का तपण होता है, और िजनक रे तीली तटभूिम अ के ष भाग पर लगे ए
राजकर के िच से अं कत है, वे जल उप व रिहत तो ह?
िजनसे आप अपना जीवन-िनवाह, और समय-समय पर आनेवाले अितिथय का
पूजन करते ह, उन नीवार यामाक आ द अ को भुस क खोज म आने वाले गौ-भस
आ द पालतू पशु तो न नह करते?
मह ष ने िव ा क समाि पर आपको गु कु ल से स तापूवक घर जाने क
अनुमित तो दे दी? य क अब वह समय आ गया है, जब आप अ य का उपकार करने
क यो यता के कारण ये आ म–गृह था म म वेश कर।
के वल आपके आने से ही मेरा मन स तु नह आ, म उ सुक ं क आपके कसी
आदेश का पालन भी क ं । आपने मुझपर अनु ह कया है क अपने गु क आ ा से
अथवा वयं जंगल से पधारकर मुझे कृ ताथ होने का अवसर दया है।
वरत तु मुिन के िश य कौ स ने अ य के पा को देखकर ही अनुमान लगा िलया
था क रघु सव व दान कर चुका है। राजा क उदार वाणी सुनकर भी कौ स क आशा
हरी नह ई और वह बोला–
हे राजन्, आ म म सब कार से कु शल-मंगल है। शासन क बागडोर आपके
हाथ म रहते जा को क हो ही कै से सकता है? जब सूय दमक रहा हो तब ािणय
क आंख को अंधेरा कै से ढक सकता है?
हे राजन्, पू य के ित भि क भावना रखना तु हारे कु ल क था है। अपनी
िवशाल दयता के कारण तुमने अपने पूव-पु ष को भी मात दे दी है। मुझे इतना ही
दु:ख है क म समय बीत जाने पर अपनी अ यथना लेकर यहां प च ं ा ।ं
हे नरे , वनवािसय ारा अ िनकाल लेने पर जैसे नीवार का खोखला त भ
(सूखा पौधा) शोभायमान होता है, स पा को सव व दान देकर तुम वैसे ही
शोभायमान हो रहे हो।
च वत सा ा य ा करके आज दान के कारण तु हारी यह धनहीनता
शोभाजनक ही है। देवता ारा अमृत िपए जाने पर च मा क ीणता उसक वृि
से कह अिधक शंसनीय होती है।
सो राजन्, म कसी अ य थान से गु दि णा ा करने का य क ं गा। मुझे तो
इस समय इसके अित र कोई काय नह है। भगवान तु हारा क याण कर। बरसकर
खाली ए बादल से तो चातक भी पानी नह मांगता।
यह कहकर जब कौ स िवदा होने लगा तो राजा ने उसे रोककर पूछा–हे िव ान,
आप यह तो बताइए क गु क सेवा म आपको या व तु कतनी रािश म भट करनी
है?
िव िजत् य को सफलतापूवक सफल करके भी अिभमान से शू य, वणा म क
र ा करनेवाले उस पित के को सुनकर वह ातक क गया और बोला–
िव ा ययन समा करके मने मह ष से िनवेदन कया था क मुझे गु दि णा भट
करने क आ ा दी जाए। गु ने मेरी िचरकाल तक क ई भि पूण सेवा को ही पया
समझा। फर भी म गु दि णा का आ ह करता गया। इससे अस तु होकर मह ष ने
कहा क य द तेरा ऐसा ही आ ह है तो हण क ई चौदह िव ा के बदले म चौदह
करोड़ मु ाएं गु दि णा के प म उपि थत कर। हे राजन्, पूजा के मृ मय पा से मने
जान िलया है क तु हारा के वल ‘ भु’ नाम ही शेष है, और मेरी मांग ब त बड़ी है, इस
कारण म तुमसे आ ह करने का साहस नह कर सकता।
वेदवे ा म े ा ण क इस कार क बात सुनकर तेज वी और िव ान्
स ाट् ने िनवेदन कया–
भगवन्, िव ा पी समु को पार करके एक ातक गु दि णा क खोज म रघु के
पास आया और िनराश होकर कसी दूसरे दानी के पास चला गया, यह अपक त मेरे
िलए एक नई व तु होगी, जो मुझसे सहन नह हो सके गी। अत: आप दो-तीन दन तक
मेरे य गृह म चतुथ अि क भांित आदरपूवक िनवास करने का अनु ह कर। इस बीच
म म आपक अभी धनरािश जुटाने का य करता ।ं
रघु के वचन को अटल ित ा के समान मानकर कौ स स तापूवक क गया।
इधर यह सोचकर क पृ वी का सार ख चकर तो म दान कर चुका ,ं राजा ने कै लास के
वामी कु बेर से अभी धनरािश लेने का संक प कया। जैसे वायु क सहायता ा होने
पर अि क गित अमोघ हो जाती है, उसी कार विस मुिन के वरदान से रघु के रथ
क गित न समु म कती थी, न आकाश म म द होती थी और न पवत पर ढीली
पड़ती थी। उस रात रघु श से सुसि त रथ म ही सोया, मानो वह ात:काल अपने
कसी साधारण साम त को जीतने के िलए यास करनेवाला हो। जब वह ात:काल
सोकर उठा तो कोषगृह के रखवाल ने सूचना दी क आज रात कोषगृह म आकाश से
सोने क वषा हो गई है। वह धनरािश इतनी थी क मानो िबजली क चोट खाकर सुमे
पवत क च ान टू ट पड़ी हो। रघु ने वह स पूण धन कौ स क सेवा म भट कर दया।
अयो या के िनवासी यह दृ य देखकर च कत और कृ तकृ य हो रहे थे क याचक
गु दि णा क मा ा से अिधक लेने से इ कार करता था, और दाता कु बेर से ा
सम त धनरािश देने पर तुला आ था।
राजा ने वह धनरािश सैकड़ ऊंट और ख र पर लादकर कौ स के सुपुद करते
ए झुककर णाम कया। स तु होकर िव ान् ा ण ने राजा को आशीवाद दया–
राजन्, तुम जैसे जा का पालन करने वाले शासक के िलए पृ वी कामधेनु हो, यह तो
वाभािवक ही है। पर तु तु हारा भाव अिच तनीय है, िजसने आकाश को भी दुह
िलया। संसार क सब िवभूितयां तु ह ा ह, अ य जो भी शुभकामना क जाएगी वह
पुन ि मा होगी। इस कारण मेरा इतना ही आशीवाद है क जैसे तु हारे यो य िपता
ने तु ह ा कया था वैसे ही तुम भी अपने अनु प पु ा करो।
इस कार आशीवाद देकर गु दि णा के साथ ा ण गु के पास चला गया।
जैसे संसार सूय से काश ा करता है, वैसे राजा ने भी भगवान् क दया से पु र
ा कया।
महारानी ने ा मु त म क द के समान तेज वी कु मार को ा कया। इस
कारण स ाट् ने उसका नाम ा के नाम पर ‘अज’ रखा।
अज म वही तेज वी प, वही बल और वही वाभािवक उदार भाव था। कु मार
अपने िपता से उसी कार अिभ था, जैसे दीये से जला आ दीया। जब गु से
िविधपूवक ा क ई िश ा और युवाव था के भाव से अज पूण प से सु दर और
ग भीर हो उठा, तब य िप रा य ी उसके गले म हार पहनाने को उ सुक थी, तो भी
ल ाशील क या क तरह िपता क अनुमित क ती ा कर रही थी। इस समय िवदभ
के राजा भोज के िव ान् दूत ने रघु के पास आकर िनवेदन कया क राजकु मार अज को
पु ी इ दुमित के वयंवर म भाग लेने को भेिजए। स ब ध उ म है और कु मार क
अव था िववाह के यो य हो गई है, यह िवचारकर राजा ने अज को सेना के साथ धन-
धा य से भरी ई िवदभ देश क राजधानी क ओर भेज दया। माग म युवराज ने जहां
पड़ाव कए वहां राजा के यो य ब मू य त बु के महल बनाए गए थे, िजनम नगर
से लाकर उ मो म साम ी इक ी क गई थी, और िज ह वा टका और िवहार थान से
सुखकारी बनाया गया था। उसका एक पड़ाव नमदा नदी के तीर पर आ, जहां माग क
धूल से सनी ई सेना को नदी जल से आ , और न माल के पश से ठं डे पवन से
शाि त ा ई।
जब नमदा के तट पर अज का डेरा पड़ा आ था, तब एक जंगली हाथी–िजसके
ग ड थल जल से धुल जाने के कारण िनमल हो गए थे, पर तु पानी के ऊपर मंडराते
ए भ र को देखकर यह सूिचत होता था क पानी म जाने से पूव उसके म तक से मद
बह रहा था–नदी के जल से िनकलता दखाई दया। उसके मद क ती बास से परा त
ए सेना के हाथी, हाथीवान के हाथ से िनकलने लगे। उसके भय से सेना के वाहन
र सी तुड़ाकर भागने लगे; िजससे रथ उलटकर टू टने लगे और िसपाही लोग ि य क
र ाम त हो गए। इस लोक था का आदर करते ए क जंगली हाथी राजा के िलए
अव य है, अज ने के वल उसे रोकने के िलए धनुष क यंचा को ह का सा ख चकर
उसके कु भ थल पर तीर मारा आ य से च कत सेना ने देखा क तीर से िव होकर
उस हाथी का प बदल गया, और वह चमचमाते तेज के म डल से िघरे ए
आकाशवासी ग धव के प म दखलाई देने लगा। उसने पहले राजकु मार पर क प प ु
के फू ल क वषा क , और फर िनवेदन कया–
हे राजकु मार, म ि यदशन नाम के ग धवराज का पु ि यंवद ।ं मेरे दुरिभमान
से होकर मतंग मुिन ने मुझे शाप दे दया, िजससे मुझे हाथी का प धारण करना
पड़ा। शाप िमलने पर मने अनुनय-िवनय कया तो वे शा त हो गए। पानी चाहे आग
और धूप के संयोग से गम हो जाए, पर तु वह वभाव से तो शीतल ही है। शा त होकर
तप वी ने शाप को कम करते ए कहा क इ वाकु वंश का राजकु मार अज जब बाण से
तेरे म तक को छेद देगा, तब तुझे अपना शरीर वापस िमल जाएगा। सो तुमने मुझे शाप
से छु ड़ाकर मुझपर बड़ा उपकार कया। इसके बदले म य द म युपकार न क ं , तो
मेरा िनज प म आना थ ही होगा। हे िम , मेरे पास स मोहन नाम का ग धव अ
है, िजसक सबसे बड़ी िवशेषता यह है क श ु क हंसा नह करनी पड़ती और जीत
हाथ म आ जाती है। यह अ म तु ह देता ।ं इसम ल ा क कोई बात नह है। तुमने
तीर का हार करते ए मुझपर मु त-भर जो दया का भाव द शत कया, उसने मेरे
दय म अपनापन पैदा कर दया है। कृ पया इस भट को लेने से इ कार न करना।
राजकु मार ने ि यंवद क बात वीकार कर ली और पूवािभमुख हो नमदा के जल
का आचमन करके स मोहना हण कया। इस कार दैव ने उन दोन को माग म
िमलाकर िम बना दया। अ - हण के प ात् वह चै रथ नाम के ग धव के
िनवास थान क ओर चला गया, और दूसरे ने उ म शासन के कारण सुखी और समृ
िवदभ देश क दशा क ओर थान कया।
जब अज िवदभ क राजधानी के पास प च ं ा, तो जैसे लहर क भुजा को
बढ़ाकर समु च मा का वागत करता है, वैसे ही िवदभराज ने स दय से उसका
वागत कया। िवदभराज भोज ने नगर वेश के समय ऐसी न ता से वहार कया,
िजससे सब अ यागत लोग ने अज को गृह वामी और भोज को अितिथ समझा।
वहां प च ं कर अिधकारी पु ष राजकु मार को िजस नविन मत और सु दर
राजमहल म ठहराने के िलए ले गए, उसके पूव ार पर जल से भरे ए घड़े थािपत
कए गए थे। उस भवन म अज ऐसा शोभायमान आ मानो सा ात् कामदेव युवाव था
म िनवास कर रहा हो।
राि के समय राजकु मार को ब त मीठी न द आई। उषाकाल म वैतािलक लोग
ने मधुर और ग भ तुितय ारा उसका उ ोधन कया। उ ह ने कहा–रात समा हो
गई। हे बुि मान के िशरोमिण! अब श या को छोिड़ए। इस पृ वी का बोझ िवधाता ने
दो क ध पर रखा है। एक कं धा तु हारे सदा जाग क िपता का है, और दूसरा तु हारा।
देखो, अभी भगवान भा कर आकाश म अवतीण भी नह ए क उनके सारिथ अ ण ने
अ धकार को िछ -िभ कर दया। ठीक भी है, हे वीर, जब तुम मैदान म उतर आओगे,
तो तु हारे गु को हिथयार उठाने क या आव यकता है! राजकु मार, कल सायंकाल
तैयार कए गए फू ल के हार िबखर रहे ह, दीपक क योित म द पड़ गई है, और पंजरे
म ब द तु हारा सु गा हमारे बोध वा य को मीठे गले से दोहरा रहा है। अब उठो।
इस कार तुितवा य से अज क न द टू ट गई और वह िब तर छोड़कर उठ
बैठा। उठकर शा ो रीित से उसने िन यकम का अनु ान कया। कु शल प रचारक
ने उसे सभा के यो य वेशभूषा से प र कृ त कया, िजसके प ात् वह िनयत समय पर
वयंवर के म डप क ओर ि थत आ।
इ दुमती का वयंवर