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तनाव मुि

के सरल उपाय

eISBN: 978-93-8985-106-9
© काशकाधीन
काशक: भाकर काशन .
ए-55, मेन मदर डेयरी रोड,
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वेबसाइट: www.pharosbooks.in
सं करण: 2019
तनाव मुि के सरल उपाय
लेखक : शिशका त ‘सदैव’
यह पु तक य ?
आ ज शायद ही कोई होगा, जसे िकसी कार का कोई टशन न हो। िकसी का गु सा बढ़
रहा है, तो कोई घर से भाग जाना चाहता है। कोई आ मह या करना चाहता है, तो कोई
िकसी क जान लेना चाहता है। िकसी को त हा रहने का दख ु है, तो िकसी को िकसी के साथ
रहने का दख ु है। सच तो यह है, यहां गंवाने वाला तो दख
ु ी है ही, कमाने वाला भी संतु नजर
नह आता। य ? य िक सब म एक बात समान है और वह यह िक वह टशन का िशकार है।
पर टशन या है, यह य , िकससे व िकस बात क है, पता नह ? बस इतना पता है िक टशन
है। या टशन को ज मेदार ठहराने से सम या हल हो जायेगी? शायद नह । इसके लए हम
इसे समझना होगा िक यह या है? य होता है तथा इसके ल ण या ह? और यह पु तक
आपको यही समझाने का व उससे मु होने का एक यास है। य िक थोड़ा बहत टशन तो
एक छोटे ब चे से लेकर घर के बुजुग को रहता ही है, पर जब यही टशन अगर धीरे -धीरे जमा
होकर िड ेशन म बदल जाए, तो गंभीर सम या प धारण कर सकता है, और िड ेशन का
िशकार आदमी वयं के लए तथा दसर ू के लए भी परे शानी पैदा कर सकता है। यही कारण है
िक आज गरीब व मजबूर ही नह समृ व से लि टी वग के लोग को भी िकसी मनोिवकार का
िशकार होता हआ व आ मह या करते हए देखा जाता है। इतना ही नह घर-प रवार व समाज
एवं िव व आिद म बढ़ते उप व, दंग,े दरार व िहंसा, इंसान क मान सक थित को दशाते ह।
ये सब गवाह ह िक मनु य मान सक प से अ व थ है, जसका य व परो कारण है
उसके जीवन म बढ़ता तनाव व अवसाद यानी टशन व िड ेशन। इससे पहले िक टशन िड ेशन
का प धारण करे हम उस टशन को ही मात देनी होगी, जो सब क जड़ है और यह पु तक
आपको, इन दोन को जानकर इनसे उबरने क कला सखाती है।
दरअसल तनाव के कदम इतने छोटे व सू म ह िक यह िकस बहाने से जीवन म दा खल होता
जाता है और हम पता ही नह चलता। न कोई आहट न कोई द तक, इस होिशयारी से यह धीरे -
धीरे हमारे अंदर वेश करता है व अपना सा ा य फैलाता है िक हम कान -कान खबर नह
लगती। हमारी खुिशय को जैसे दीमक लगने लग जाती है। आज िकसी को ऑिफस क टशन
है, तो िकसी को आपसी संबध ं क , िकसी को जॉब क टशन है तो िकसी को अकेलेपन क ।
छोटी-छोटी कहासुनी, अधूरे काय व असफलता आिद हमको टशन दे देती है। पर सोचने क
बात तो यह है िक हम टशन लेते ह या कोई हम टशन देता है। आप अगर गहराई से सोचगे तो
पायगे िक टशन कोई देता नह , हम लेते ह। लोग व संसार तो हम टशन हमेशा दगे ही पर हम
इससे भािवत नह होना है, यह कैसे संभव है इसी बात को बखूबी समझाती है यह पु तक।
पु तक का मु य उ े य आपको सरल, सुखद, शांत व आन दत जीवन देना है और यह तभी
संभव है जब हमारा मन-म त क व थ होगा, तनाव रिहत होगा। जस तरह टशन व िड ेशन
होने के िविभ कारण ह, उसी तरह इससे मु होने के िविभ माग व िव धयां ह। इसे दवा के
साथ-साथ ाकृितक ढंग जैसे- योग, यान, मु ा िव ान, आयुवद, घरे लू नु खे, यायाम, रं ग,
संगीत, आ मस मोहन, ए यू ेशर एवं संगीत िचिक सा आिद के मा यम से भी ठीक िकया जा
सकता है। जो सब कु छ इस पु तक म उपल ध है। आशा है इस पु तक क मदद से आप अपने
टशन का बंधन कर पायगे, उसे िड ेशन नह बनने दगे व उससे मु हो पायगे।
॥ िवषय सूची ॥
1. या है तनाव और यह य होता है?
2. तनाव एक, कारण अनेक
3. या है तनाव के ल ण?
4. या आप मान सक प से व थ ह?
5. या आप हमेशा दख ु ी और नाखुश रहते ह?
6. ज री है तनाव क पहचान
7. कर तनाव का िव लेषण
8. तनाव के कारण होने वाले रोग
9. ऐसे कर तनाव को कम
10. तनाव मुि के उपाय
11. आहार जो तनाव भगाएं
12. ऐसे रह ऑिफस म तनाव
13. मान सक रोग और मिहलाएं
14. य हो जाती ह मिहलाएं िचड़िचड़ी?
15. पु ष अपना दद य िछपाते ह?
16. दांप य जीवन और तनाव
17. जान, ब च के तनाव को
18. डायरी लख तनाव से बच
19. तनाव मुि म सहायक यान उपचार
20. तनाव मुि म सहायक न द
21. तनाव मुि म सहायक िच कला
22. तनाव मुि म सहायक नान
23. तनाव मुि म सहायक रे ले सोलॉजी
24. वास म िछपा तनाव मुि का माग
25. तनाव का कारण तन का तनाव तो नह ?
26. तनाव मुि म सहायक सुर-संगीत
27. तनाव कम करने म सहायक मु ाएं
28. तनाव मुि म सहायक योग व मु ाएं
29. तनाव मुि म सहायक रं ग
30. तनाव मुि म सहायक सुगध ं
31. तनाव मुि म कर क पनाशि का योग
32. तनाव, सरदद व िड ेशन म उपयोगी आसन
33. पशुओं से दो ती दे तनाव से मुि
34. वा तु दोष भी देता है टशन
35. ह न भी हो सकते ह टशन क वजह
36. मान सक रोगी बनाता सोशल मीिडया
37. मान सक रोगी बना रहे ह टीवी सी रयल
38. िड ेशन-कारण, ल ण और िनवारण
39. िड ेशन म या खाएं, या न खाएं?
40. िड ेशन म सहायक योग मु ाएं
41. मान सक रोग है अ जाइमर
42. ेन को बचाएं अटैक से
43. िडमिशया को न ल ह के म
44. कह आप ओसीडी के िशकार तो नह ?
45. जब चकराने लगे सर
46. लेखक प रचय
या है तनाव और
यह य होता है?
त नाव आज हर इंसान क एक आम सम या बन गया है, िफर अमीर हो या गरीब, ब चा हो
या वृ , हर िकसी को िकसी न िकसी तनाव ने घेरा हआ है। आ खर तनाव या है और यह
य होता है? यह जानना बेहद ज री है।
आज क जीवन-शैली ऐसी हो गई है, जसम येक यि िकसी न िकसी प म तनाव से
त है। इसके कारण यि के लए जीवन एक बोझ बनकर रह गया है। बाहरी दबाव तथा
भीतरी मान सकता म तालमेल िबगड़ते ही हम तनाव घेर लेता है। इस थित म म त क इस
बेमेल थित को न तो समझ पाता है और न ही सुधार पाता है, परं तु हालात म थोड़ा-सा
बदलाव आते ही हम उन दशाओं पर िवचार कर सकते ह तथा यह सोच सकते ह िक या उन
थितय को टाला नह जा सकता था? इस तरह क परे शानी से िनपटने के लए हम भिव य म
या नीित अपनाएंग?े
जो तनाव से बचना नह जानता, वह मान सक ि से शि शाली नह हो सकता और
शारी रक ि से भी उसे काफ किठनाइयां उठानी पड़ती ह। शरीर का तनाव शरीर क शि
को ीण करता है। मान सक तनाव मन क शि को और भावना मक तनाव आ मा क शि
को ीण करता है।

तनाव या है?
तनाव से बचने या उसका मुकाबला करने के लए ज री है िक पहले हम यह जान ल िक
वा तव म तनाव है या? आप से जब कभी तनाव पैदा होता है, यह आपके शरीर के साथ-
साथ म त क को भी भािवत करता है। हालांिक यह भाव थायी नह होते परं तु तनाव क
मा ा जतनी अ धक होती है, भाव उतना ही गहरा होता है। धीरे -धीरे ऐसी थित आती है, जब
हम तनाव का कारण तक भूल जाते ह,परं तु उस थित म शरीर को उसके द ु भाव झेलने
पड़ते ह। अगर िचिक सक क भाषा म कह तो तनाव शरीर क मांग के ित क जाने वाली
एक ऐसी िति या है, जससे एडेनालाईन तथा नॉन एडेनालाईन य वािहत होने लगता है।
यह थित आशा और िव वास भरे ण म भी हो सकती है और डर या ोध भरे ण म भी।
यह एक ऐसी ाकृितक ि या है, जो हर अनुभव और काम के साथ आती-जाती रहती है।

य होता है तनाव?
जब कभी तनाव पैदा होता है, तो यह आपके शरीर के साथ-साथ म त क को भी भािवत
करता है। यह भाव थायी नह होते परं तु तनाव क मा ा जतनी अ धक होती है, भाव उतना
ही गहरा होता है। धीरे -धीरे हम तनाव का कारण तक भूल जाते ह, परं तु शरीर को उसके
द ु भाव झेलने पड़ते ह। बाहरी दबाव तथा भीतरी मान सकता म तालमेल िबगड़ते ही हम तनाव
घेर लेता है। इस थित म म त क इस बेमेल थित को न तो समझ पाता है और न ही सुधार
पाता है, जसके कारण तनाव पैदा होता है।
तनाव उस समय पैदा होता है, जब कोई नई िवकट प र थित हमारे सामने आती है। जैसे
हमारी इ छा पूरी नह होती या कोई काय हमारी इ छा के अनुकूल नह होता। तनाव क थित
म कृित हमारे शरीर म अ धक शि उ प करती है, तािक हम तनाव का सामना कर सक।
ऐसे म यिद हम तनाव का मुकाबला करने म सफल नह होते, तो यह शि हमारे मन-म त क
पर काबू कर लेती है, जससे हमारे भीतर भावना मक कमजोरी उ प होती है। इस कार
तनाव के येक झटके से हमारी शि उ रो र कम होती जाती है। इसके प रणाम व प एक
ऐसी थित आ जाती है, जससे हम िनराशावादी, भी , दबे-दबे या िचड़िचड़े बन जाते ह और
इस कार हमारा मन नकारा मक वृ य का सं हालय बन जाता है।
तनाव को अं ेजी म ‘ टे स' कहते ह और तनाव के अलावा ‘ टे स' का एक और अथ है
और वह है- ‘जोर देना'। देखा जाए, तो इस श द म ही इसका कारण और िनवारण िछपा हआ
है। यानी जस चीज पर हम जोर देते ह या ज रत से यादा हम जसक िचंता करते ह, वह
चीज हम तनाव देती है और िकसी चीज पर हम जोर तभी देते ह, जब हम उस चीज को सहज
भाव से, सरलता से वीकार नह करते या वयं को उसके अनुकूल नह पाते ह, तब हम खुद
पर चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने जोर देते ह, दबाव डालते ह। यही ेशर हमारे सुख-चैन म
बाधा बनता है तथा हम तनाव देता है। िफर यह तनाव, काय का भी हो सकता है, माहौल का
भी। आपसी र त का भी हो सकता है, पढ़ाई-रोजगार का भी। ज मेदा रय का भी हो सकता
है, तो अपे ाओं का भी। छोटी से छोटी बात भी हम तनाव त कर सकती ह। यिद वह बात
हमारे मन के, हमारी मताओं के िवपरीत हो तो। शायद यही कारण है िक कई बार बड़ी से
बड़ी बात भी हम तनाव नह देती, य िक या तो वह हमारे मन के या हमारे अनुसार होती है या
हम उनसे सहमत होते ह, उ ह पूण भाव से वीकार करते ह।
लेिकन जीवन इसी का नाम है। हम सभी चीज हमारी इ छाओं एवं ज रत के अनुसार नह
िमलती। हम चाहकर भी खुद को हर हाल एवं प र थित म खुश एवं संतु लत नह रख सकते।
हमारा शरीर, शरीर म िव मान ऊजा एवं जीवन का समय सीिमत है, जसके काय करने क
शि व दायरा भी सीिमत है, लेिकन हमारी इ छाएं, ज रत, सपने, उ मीद आिद सब असीिमत
ह। यह सब न केवल असीिमत ह, ब क इनसे जुड़े सारे माग व प रणाम भी इंसान के लए
अ ात व अनापेि त ह, इस लए इंसान जैसे ही उनको पूरा करने क सोचता है, तो वह अपनी
ही ऊजा एवं शि के खलाफ काय करने लगता है। इससे हमारा आनंद और सुकून दोन
िछनने लगते ह और हम वयं को तनाव त पाने लगते ह। इसी लए इसके लए ज री है िक
हम इस तनाव को समझ।
यह बात दखु द हो सकती है, लेिकन है सच ही िक आज तनाव का नकारा मक प और
द ु भाव ही हम अपने चार ओर देख पा रहे ह। इस लए अगर हम तनाव को सचमुच िनयंि त
करना चाहते ह, तो हम सबसे पहले इसके कारण को जानना होगा।
तनाव के कारण बहत मामूली से लेकर बहत बड़े तक हो सकते ह, जैसे- एक टू डट पर
अ छे अंक लाने का दबाव इतना यादा होता है िक वे खेल-कू द, मौज-म ती तक भूलकर
अपनी उ से यादा गंभीरता से पढ़ाई म जुटे रहते ह। यिद इसम कह जरा-सी भी कोताही रह
जाए तो छोटी उ के ब च ारा क जाने वाली आ मह या का ाफ िफर कु छ और बढ़ जाता
है। उ म कु छ बड़े लोग के लए नौकरी से संतु न होना या नौकरी छू ट जाने का डर,
आ थक संकट, ेम संबध ं या वैवािहक संबध ं क सम याएं, पा रवा रक अभाव, ब चे का
कू ल बदलवाने या नया मकान ढू ढ़ं ने से लेकर रटायरमट के डर तक छोटे-बड़े कारण क
एक लंबी ल ट है। इनके कारण चाहे-अनचाहे हर कोई तनाव क िगर त म आ ही जाता है।

तनाव का मुख कारण है िचंता


दखु और िचंता म जान बूझकर कौन जलना चाहता है? सभी इस िचता समान िच ता क
दहकती आग से बचना तो चाहते ह, लेिकन इससे न बच पाने के बहत से कारण होते ह और
लोग इस आग म चाहे-अनचाहे तरीके से जलकर न होते रहते ह।
दखु और िच ता का मुख कारण तो यही है िक हम उसके िवषय म सोचते अव य ह, इससे
दख
ु और िच ता और बढ़ जाती है। केवल िच ता को दरू करने क ही सोचते रह, तो भी यह
बढ़ती है। िच ता आप करते ही य ह? िच ता क आव यकता ही य आ पड़ी? डर के
कारण? रोग, गरीबी, घाटे या िकसी अ य अि य घटना जैसे, िक मृ यु क िच ता आिद। यिद
इनम से कु छ भी है, तो इ ह मन से िनकलना ही होगा। इ ह पीछे क ओर ढकेल देना है। लेिकन
ऐसे नह , य िक जब आप इ ह मन से िनकालने का य न करगे तो ये और भी गहरे ह गे,
य िक यह एक सामा य िनयम है- जस चीज से मन को हटाने का य न िकया जाता है, मन
बार-बार उसी म जाकर अटकता है। अतः िच ता को दरू भगाने के लए बार-बार यास न
क जए, य िक इससे वह बार-बार आप पर आ मण करे गी। जब आप चेतन मन के शांत,
व छ काश म इससे उिचत तरीके से िनपटगे और इसका सामना करगे, तभी वह भाग
सकेगी।
पहले तो यह दे खए िक िच ता का मूल या है? और िफर उसी मूल या जड़ को उखाड़
दी जए। जस कारण से यह जंदा है, उसी कारण को समा क जए। आ थक िचंता है तो शांत
मन से आय बढ़ाने के तरीके सोिचए। अपने यय को कैसे घटाय, बजट म या- या कमी कर,
यह िवचार क जए। इस कार से वयं म हए प रवतन को आप खुद ही महसूस कर पाएंग।े

⦿⦿⦿
तनाव एक कारण अनेक
य होता है तनाव? यिद हम तनाव से मु होना है तो पहले यह जानना आव यक है िक
यह य होता है? देखा जाए तो इसके कारण म ही इसका समाधान िछपा है।
अ. बाहरी कारण- मनु य एक सामा जक ाणी है, जो िविभ र त तथा दािय व से जुड़ा
होता है, इस लए बहत से बाहरी कारण होते ह जो तनाव को ज म देते ह, जैसे- पसंद क
सैलरी या जॉब न होना, काय या मेहनत का य े न िमलना, र त म खटास, इ यािद।
इसके अित र िन न बाहरी कारण भी तनाव उ प करते ह-
1. ाचार- शासन यव था म फैला ाचार भी मनु य के ोध को भड़का देता है
और तनाव का कारण बन जाता है। उदाहरण के लए, यिद हम पशन या िकसी अ य
सरकारी काय से जुड़े मामल म बस इस वजह से िवल ब का सामना करना पड़ता है,
य िक हमने र वत नह दी तो वह अ य प से हम िचड़िचड़ा बना देता है।
2. टै िफक तथा दषू ण- िवकास के साथ-साथ बहत सी असुिवधाओं का भी सामना हम
करना पड़ता है, उसम से टैिफक तथा दषण ू ऐसी सम याएं ह, जनका सामना हम
ितिदन करते ह। यादा देर तक टैिफक म फंसने पर मनु य वयं ही िचड़िचड़ा हो जाता
है और उसके साथ ही टैिफक का शोर तथा धुआ,ं ोध तथा तनाव को और अ धक बढ़ा
देता है।
3. अकेलापन- माना िक येक यि कभी-कभी अकेला रहना अव य पसंद करता है,
लेिकन अकेलापन यिद अ धक समय तक होता है, तो वह इंसान को काटने लगता है,
य िक हम िवचार िवमश के लए या सुख दख ु बांटने के लए िकसी के साथ क
ज रत पड़ती है, लेिकन जब हम वो नह िमलता, तो हम तनाव के िशकार हो जाते ह।
4. लोग क आदत- कई बार कु छ चीज हम इस हद तक नापसंद होती ह िक यिद उस
काम को कोई दसरा ू यि भी करता है, तो हम ो धत हो जाते ह या िफर हमारे अंदर
तनाव घर कर लेता है, जैसे- आहत करने वाले यं य, इधर-उधर कू ड़ा फकना, इ जाम
लगाना, बार-बार एक ही बात दोहराना, चुगली करना, काम म आलस या देरी करना
इ यािद।
5. मौसम- मौसम भी कई बार तनाव तथा गु से का कारण बन जाता है। लगातार बा रश,
तेज धूप, गरमी, अ य धक ठं ड, आंधी आिद मानव जीवन को अ त- य त कर देती है,
जससे कई बार हम भारी ित उठानी पड़ती है, जस वजह से तनाव उ प होता है। वह
दसरी
ू ओर अ छे मौसम से हमारा मन खल जाता है।
ब. भीतरी कारण- बहत सारे भीतरी कारण भी होते ह, जो हमारे अंदर ोध या तनाव उ प
करते ह, जैसे-
1. उ मीद- यह सच है िक येक यि िकसी दसरे ू यि से िकसी न िकसी चीज क
उ मीद अव य रखता है, लेिकन जब वो उ मीद िकसी वजह से पूरी नह होती, तो कई
बार हम िचंता एवं तनाव से सत हो जाते ह।
2. भरोसा- कई बार हम कु छ यि य पर बहत यादा भरोसा करते ह तथा उ ह अपना
व , पैसा के साथ-साथ ऊजा भी देते ह। लेिकन कभी-कभी ऐसा होता है िक हमारा
भरोसा टू ट जाता है, जससे हम दख
ु तो होता ही है, लेिकन साथ ही साथ तनाव भी उ प
हो जाता है।
3. अनपेि त प रणाम- कभी-कभी ऐसा होता है िक हम वयं से या िकसी और से कु छ
और अपे ा कर रहे होते ह तथा जब प रणाम िबलकु ल उसके िवपरीत आ जाते ह, तो
िफर हम तनाव त हो जाते ह। उदाहरण के लए िकसी यि ने परी ा या इंटर यू म
पास होने के लए बहत उ मीद लगा रखी हो तथा प रणाम मन मुतािबक न आये तो
यि के अंदर असंतोष का ज म हो जाता है तथा यि तनाव त हो जाता है।
4. असंतोष- यह आव यक नह है िक जीवन म हम हर वो चीज ा हो जो हम चाहते
ह, येक यि के जीवन म िकसी न िकसी चीज का अभाव अव य होता है, परं तु यिद
अभाव यादा हो या इ छाएं अ धक, तो िफर यि इसी िचंतन म य त रहता है िक उसे
या ा नह हआ (जैसे- कद काठी, आय, प रवार, जीवन साथी, रं ग- प आिद)
जसके प रणाम व प हमारे अंदर का असंतोष, ोध तथा तनाव को ज म देता है।
5. अिनयोजन- िकसी काय के लए उिचत योजना या बंधन को उिचत ढंग से न करना
भी तनाव का कारण बनता है। कई यि य को ये ही पता नह होता िक वो िकसी काय
को कर पाएंगे या नह ? िकतने समय म कर पायगे? िकस तरह से करना चािहए?
करने के लए िकन-िकन चीज का यान रखना चािहए? िकतना समय लगेगा? िकस
कार से सारा बंधन कर? तथा इन किमय क वजह से वह तनाव त एवं ो धत
होता है।
स. जीवनशैली- हमारी जीवनशैली का हमारे तनाव या ोध पर बहत गहरा भाव पड़ता है।
हमारी िदनचया, खान-पान, न द आिद का हमारे वा य पर बहत गहरा भाव पड़ता है
तथा यिद यह सब सही नह होता तो हमारे अंदर र चाप, मोटापा, तथा अ य िबमा रयां
ज म ले लेती ह, जससे यि के अंदर िचड़िचड़ापन तथा तनाव भी पैदा हो जाता है।

आजकल हमारी जीवनशैली ऐसी है िक हम अ धक समय तक क यूटर पर काम करना


पड़ता है, जससे कई बार रीढ़ क ह ी या गदन संबं धत सम याय उ प हो जाती ह। यह
भी िचड़िचड़ेपन, ोध एवं तनाव का कारक होता है।
1. काम का बोझ- यि क आव यकताय इतनी अ धक बढ़ गई ह िक वह उसक
आमदनी से पूरी नह हो रही ह। सम त आव यकताय भौितक सुख-सुिवधाओं से अ धक
जुड़ी हई ह, इस लए उन पर िनयं ण कर पाना मु कल है। इन आव यकताओं को पूरा
करने के लए यि को अपनी मता से अ धक काम करना पड़ रहा है। अ धक समय
तक काम का मतलब है िक जो समय आपको दसरे ू काय ं पर, आराम पर, मनोरं जन पर
खच करना चािहए था, उसे भी आप काम करने म खच कर रहे ह। लोग को लगता है
िक अगर वो यादा काम करगे तभी यादा पैसा आयेगा, यादा पैसा आयेगा तभी वो
अपनी आव यकताओं क पूित कर पाएंग,े लेिकन यादा काम के बोझ से शरीर थकता
है, टू टता है, िक तु हम उस पर यान नह दे रहे ह, प रणाम व प भीतर ही भीतर तनाव
उ प होने लगता है।
2. समय क कमी- काम के बोझ ने समय क कमी को उ प कर िदया है। समय तो
उतना ही है, िक तु काम बढ़ गए ह। जतने काय ं को पूरा करने का ल य रखा जाता है,
वे सभी पूरे नह हो पाते ह। रात को जब यि घर आता है, तो अनेक काय पूरे होने से
रह जाते ह। इनम से कु छ को यि घर ले जाता है तथा रात को बैठ कर ऑिफस का
काम िनपटाता है।
िदनचया एवं जीवनचया इतनी य त हो गयी है िक हर तरफ समय क कमी नजर आने
लगी है। आज हम कहते ह िक िदन के 24 घंटे कम ह, यिद िदन 36 घंटे का होता तो
अ छा रहता। इस बारे म मेरा मानना है िक यिद 36 घंटे का िदन हो जाये, तब भी समय
क कमी क थित म कोई सुधार नह होने वाला। हालात इसी कार के रहगे। समय
क कमी और काम के बोझ ने यि के भीतर तनाव को बढ़ाया है।
3. ब ़ती इ छाय- आज से 50-60 साल पहले यि क इ छाएं उसके िनयं ण म थ ,
आज यह िनयं ण समा हो गया है। हम अपनी आ थक थित के अनु प अपनी
इ छाओं को न रख कर इ छाओं के अनु प अपनी आ थक थित को रखने को मजबूर
ह। वाहन से लेकर फैशन के कपड़े, आभूषण आिद अनेक कार क चीज लेने को मन
मचलता है। इनम से कु छ चीज अपनी आव यकताओं क पूित के लए लेनी पड़ती ह,
तो कु छ इस लए लेनी पड़ती है िक वे चीज दसरू के पास ह, तो कु छ चीज दसरू पर रौब
जमाने के लए आव यक हो जाती ह। इनम से जो चीज पाने म सफलता िमलती है, तो
असली वजह से कभी-कभी आ थक बोझ बढ़ जाता है। जो नह िमल पाती, उनके लए
आ ोश बन जाता है। दोन ही थितय म तनाव तो पैदा होगा ही।
4. िबमा रय क सम या- लगभग हर समय घर म कोई न कोई यि िकसी न िकसी
बीमारी से पीिड़त रहता है। िबमा रयां यि पर दो तरफ से हमला करती ह। पहला
हमला आ थक प से होता है। यि के बजट का एक बड़ा िह सा िचिक सा यव था
पर खच हो जाता है। दसरा ू हमला यि क काय मता पर होता है। एक यि िदन
भर ऑिफस म काम करता है अथवा उसका वयं का यवसाय है, िदन भर काम करके
घर आता है, तो घर के िकसी सद य क बीमार क थित को देखकर उसके भीतर
तनाव पैदा होने लगता है। वह अपने इस तनाव को य तो नह करता, िकंतु इसे उ प
होने से रोक भी नह पाता।
कभी-कभी यि दसर ू क बीमारी के साथ-साथ वयं अपनी बीमारी से भी परे शान हो
जाता है। कु छ यि एक साथ अनेक िबमा रय से पीिड़त रहते ह, ढेर सारी दवाईयां
सुबह उठने के बाद से रात को सोते तक खानी पड़ती ह। यह थित तनाव तो पैदा करती
ही है, अवसाद जैसी हालत तक ख च कर ले जाती है।
5. सूचनाओं के कारण- दरसं ू चार के बढ़ते साधन के कारण सारी दिु नया मानो समट
कर रह गयी है। दिु नया के िकसी भी िह से म कोई घटना अथवा दघु टना हो, तुरंत यि
पर िविभ चैनल के मा यम से हम तक पहच ं जाती है। आज से कु छ समय पहले तक
यि को इनके लए समाचार प पर ही िनभर रहना पड़ता था, लेिकन आज हालात
बदल गए ह। िव व म घटी िकसी भी बड़ी घटना अथवा दघु टना का भाव हर देश के
अ धकांश लोग पर पड़ता है। कोई भी बड़ी घटना यापार तं को तुरंत भािवत करती
है। इसके अलावा िनरं तर बढ़ती आतंककारी घटनाओं के समाचार भी यि के भीतर
तनाव को पैदा करते ह। हम चाहे िकतनी भी कोिशश कर, इन घटनाओं के कारण उ प
होने वाले तनाव को रोक नह सकते ह।

तनाव के द ु भाव
जब भी हम तनाव म होते ह, तो हमारे बाक के अ य काम भी आसानी से नह हो पाते,
जसके कारण बाक काय ं का भी तनाव, हमारे तनाव म बढ़ोतरी कर देता है और हम वयं को
तनाव से िघरा पाते ह। तनाव दोगुना-चौगुना न हो और जड़ से समा हो जाए, इसके लए
ज री है असली तनाव क सही पहचान, य िक अमूमन तनाव िकसी एक-आध चीज का होता
है, पर उसका भाव हमारे बाक के काय ं एवं पूरी िदनचया पर पड़ता है, जसके चलते हम
और अ धक तनाव त हो जाते ह।

⦿⦿⦿
या ह तनाव के ल ण?
त नाव वतमान समय म एक ऐसी सम या है, जससे आज येक यि िकसी न िकसी प
म भािवत अव य होता है। यह एक ऐसा रोग है जसके ल ण हम सामा य प से बाहर
नजर नह आते परं तु भीतर ही भीतर यह कई रोग क जड़ बनकर हम खोखला कर देता है।
अगर हम बुखार होता है तो हम उसे शरीर के ताप से जान सकते ह। थमामीटर से नाप सकते
ह, परं तु अगर तनाव है, तो उसके ल ण बहत सू म होते ह, इस लए कैसे कर तनाव क
पहचान जानने के लए िन न ल ण पर गौर कर।
जस तरह तनाव के कारण क ल ट अ छी-खासी बड़ी है, उसी तरह इसके कारण होने
वाले नुकसान भी बहत यादा ह। इससे मामूली सरदद, गदन दद, थकान, सु ती, िचड़िचड़ापन
से लेकर बाल का तेजी से िगरना, दय रोग, िड ेशन, लड ेशर से लेकर न द न आना जैसे
नुकसान भी हो सकते ह।
अ सर यह देखने म आता है िक तनाव के शु आती ल ण को लोग अपने रोजमरा के
जीवन म बड़ी आसानी से वीकार कर लेते ह और इसके ित जाग क भी नह होते ह। हां,
मगर उनक जुबान पर हमेशा यह िशकायत ज र बनी रहती है िक आजकल उनक
काय मता काफ घटी हई है या िफर लगता है, जंदगी बेकार ही जा रही है। वगैरह-वगैरह।

1. कम हंसना- िबन वजह हंसने को लोग पागलपन समझते ह, लेिकन िकसी हंसने क बात
पर भी न हंसना, वयं म ही खोये रहना इस बात को दशाता है िक यि िकसी न िकसी
कार के तनाव से त है।
2. याददा त म कमी- लोग या चीज के नाम याद न रख पाना िकसी ने या कहा? कब
कहा? िकसको कहा? आिद याद रखने म परे शानी, बार-बार एक ही बात पूछना भी इस
बात को दशाता है िक आप िकसी न िकसी तनाव से पीिड़त ह।
3. अंजाना भय- यह सच है िक कोई भी सुपर हीरो नह होता, लेिकन छोटी-छोटी बात पर
डर जाना या अनजाना भय जैसे कह जान, िकसी काम को करने से पहले उसके िबगड़ने
का भय, िगरने का भय, िबना वजह डांट पड़ने का भय, भिव य का भय, पढ़ाई पूरी करने
के बाद जॉब न िमली तो या होगा या िफर शादी करने से पहले उसके असफल होने का
भय सताना, ये सब अगर होता है, तो इसका मतलब यि तनाव से भािवत है।
4. कं यूज रहना- अ सर कं यूज रहना, िबलकु ल भी िनणय नह ले पाना जैसे कोई काम
कैसे क ं ? क ं या न क ं ? या या सही है, या गलत? इन बात को लेकर हमेशा
क मकश म रहना इस बात को दशाता है िक आप तनाव के िशकार ह।
5. हकलाना- अगर िकसी यि को हकलाने क बीमारी नह है, िफर अचानक ही हकलाने
क सम या उ प हो गई है तो कई बार यह ल ण तनाव को भी दिशत करता है,
य िक हकलाना इस बात को दशाता है िक हम कहना कु छ चाहते ह, बोल कु छ और रहे
ह। इसका मतलब यह है िक आपके मन म कु छ इतनी ती ता से चल रहा है िक जुबान
आपका साथ ही नह दे रही अथात् आप तनाव त ह।
6. िकसी भी काम म िच न लेना- यह सच है िक येक काय हमारे मन के अनुसार हो
यह संभव नह है, लेिकन अचानक ही िकसी काम को मन से न करना, उसे न करने के
बहाने ढू ढ़ं ना, िचड़िचड़ाहट के साथ काम करना आिद अचानक पैदा हए ये ल ण तनाव के
भी हो सकते ह।
7. सीखने म देरी- पहले आप िकसी काम को आसानी से समझ लेते थे, अचानक उस काम
को करने म देरी या पहले क अपे ा िकसी चीज को सीखने म देरी इस बात को दशाती है
िक आप तनाव के िशकार ह।
8. रचना म ा का अभाव- येक यि क िच िकसी न िकसी रचना मक काय म
अव य होती है जैसे-नाचना, गाना, पिटंग, कु िकंग आिद परं तु यिद िकसी यि म
अचानक इन िचय का अभाव नजर आने लगे तो यह इस बात का ल ण भी हो सकता
है िक यि तनाव त है।
9. हाथ म पसीना आना- यिद िकसी क हथे लय पर हम पसीना देख, तो वह इंिगत करता
है िक उसका मान सक तथा शारी रक वा य कह न कह भािवत है। इसके अलावा
उं ग लयां ठं डी रहना भी तनाव को दशाता है ये बात और है िक ठं ड म उं ग लय का ठं डा
रहना एक सामा य सी बात है, लेिकन अगर हमेशा ही िकसी क उं ग लयां ठं डी रह तो वह
तनाव को दशाती है।
10. हाथ का कांपना- यिद कोई यि वृ है या उसके अंदर िकसी बीमारी या पोषक त व
क कमी क वजह से उसके हाथ कांपते ह, तो वह सामा य सी बात ह, लेिकन यिद यि
पूण प से व थ है और उसके बावजूद उसके हाथ कांपते ह, चाहे वह लखते व हो या
िकसी अ य काय को करते व तो उसका कारण तनाव भी हो सकता है।
11. मांसपेिशय म तनाव- सामा य प से मांसपेिशय का तनाव नजर नह आता है, लेिकन
वह िकसी अंग िवशेष म दद के प म उभर कर बाहर आता है, चाहे वह दद हाथ-पैर,
कान, पीठ, िपंड लयां आिद िकसी भी थान पर हो तो उसका संबध ं मान सक तनाव से हो
सकता है।
12. सांस का अिनयिमत रहना- हमारी सांस िभ -िभ थान पर िभ -िभ कार से
चलती ह, जब हम िच ाते ह, दौड़ते ह, सीिढ़यां चढ़ते ह या चुपचाप बैठते ह, इन सभी
प र थितय म हमारी सांस िभ -िभ होती ह, ये प रवतन िभ -िभ शारी रक काय ं क
वजह से ह, लेिकन यिद हम शांत ह और िफर भी हमारी सांस उखड़े या अिनयिमत हो तो
इसका मतलब यह है िक हमारे म त क म कु छ ऐसा चल रहा है, जो हम परे शान या
तनाव त कर रहा है।
13. बार-बार मू याग- यूं तो सिदय म पेशाब यादा आना एक सामा य सी बात है,
लेिकन आम तौर पर यह जब सामा य िदन म िबना िकसी कारण के होता है तो उसक
एक वजह तनाव भी हो सकता है।
14. पेट म ऐंठन- कभी-कभी यादा या कु छ उ टी-पु टी चीज खाने क वजह से पेट दद होना
सामा य सी बात है, लेिकन िबना वजह ही पेट म मरोड़ होना, नाभी के आस-पास ऐंठन
होना, पेट म कसाब आिद भी मान सक तनाव को दशाते ह।
15. दय गित और र चाप- हमारे दय क गित का िबना िकसी कारण बढ़ जाना या
र चाप का उ च हो जाना इस बात को दशाता है िक हम तनाव त ह, य िक िबना
िकसी शारी रक गितशीलता के यिद र चाप या दय गित बढ़ जाती है, तो उसका कारण
हमारे िवचार या मान सक तनाव भी हो सकता है।
16. िचड़िचड़ापन तथा गु सा- थोड़ा बहत गु सा या िचड़िचड़ापन तो सामा य सी बात होती
है, लेिकन हर छोटी सी बात पर िचड़िचड़ापन या गु सा करना बेवजह किमयां िनकालना,
िच ाना इस बात को दशाता है िक यि तनाव म है।
17. तक-िवतक- तक करना या तक देना समझदारी क िनशानी समझी जाती है लेिकन
बेबुिनयादी तक करना जस बात का कोई आधार न हो उस बात पर कु तक करना, पुरानी
बात उठाकर झगड़ना इस बात को दशाता है िक यि के अंदर बहत सी ऐसी बात चल
रही ह जो उसके अंदर तनाव पैदा कर रही ह।
18. अनाव यक आ ामकता- चीज को तोड़ना-फोड़ना, चांटा मारना, खुद को नुकसान
पहच ं ाना, चीज फेकना, गा लयां देना, चीखना जैसे आ ामक ल ण तनाव क वजह से
उ प होते ह।
19. न द का कम या न आना- िकसी कारण से कभी-कभार न द का न आना एक सामा य
सी बात है, लेिकन कई रात तक न द का न आना या बहत कम सो पाना भी तनाव को
दशाता है।
20. संबंध के ित उदासीनता- लोग से अनाव यक िशकायत चाहे वो पड़ोसी हो, सगे
संबध ं ी या ि यजन। इसने वो नह िकया, इसने वैसे नह िकया, उसने ऐसा िकया जैसी
िशकायत तथा उनके लए नकारा मक भाव रखना भी तनाव का ल ण है।
21. अकेले रहना- अकेले रहना, अकेला कमरा चुनना, अंधरे े म रहना, हमेशा भीड़ से बचने
क कोिशश करना तथा प रवहन के साधन (बस, टे न आिद) म भी कोने वाली सीट
चुनना भी इस बात का ही एक ल ण है िक यि तनाव म है।
22. नशा- यिद कोई यि अचानक ही नशे का िशकार हो जाए या बहत अ धक नशा करने
लगे तो यह इस बात को दशाता है िक यि िकसी कार के मान सक तनाव या दबाव से
गुजर रहा है।
23. भोजन- बहत अ धक भोजन करना या आव यकता से अ धक या कम भोजन करने लग
जाना भी यि के तनाव को िदखाता है।
24. तेज गाड़ी चलाना- माना िक कु छ लोग को तेज गाड़ी चलाना बहत पसंद होता है तथा
कु छ यि कभी-कभी या िवशेष प र थितय म तेज गाड़ी चलाना पसंद करते ह, लेिकन
कोई यि अचानक ही िबना िकसी कारण के तेज गाड़ी चलाने लगे तो वो ऐसा अपने
तनाव क वजह से भी कर सकता है तथा ऐसी थित ाय: दघु टनाओं क वजह बनती है।
25. हड़बड़ी- तनाव से त यि िकसी भी काय को सामा य प से नह कर पाता है।
इसी लए तनाव त यि अपने यवहार म हड़बड़ाहट बनाए रखते ह।
26. चेहरे पर तनाव- ऐसे यि य क मांसपेिशयां खंची हई रहती ह, िवशेष प से चेहरे
क । इस कारण चेहरा खंचा- खंचा सा, कु छ अजीब सा लगता है। ऐसे यि के चेहरे क
खंची मांसपेिशय को देख कर लगता है िक या तो वह िकसी से झगड़ा करके आया है,
साथ ही बात करते समय यि का मुंह सूखा-सूखा सा रहने लगता है। वह होठ पर बार-
बार जीभ िफराने लगता है।
27. अ धक शारी रक हलचल- तनाव के कारण ाय: यि क शारी रक हलचल बढ़
जाती है। तनाव त यि एक जगह पर भी सामा य प से खड़ा या बैठा नह रह पाता।
उसे पता भी नह चलता और शरीर के अ य अंग हरकत करने लगते ह, जैसे अगर बैठे ह
तो पांव अपने आप िहलने लगते ह, खड़े ह तो हथे लयां एक-दसरे
ू के साथ कसी रहती ह।
28. बड़बड़ाना- चेहरे के भाव बदलते रहते ह। मन म जो भाव आते ह, वह वर बनकर मुंह
से िनकलने लगते ह। चलते-चलते भी यि यूं बड़बड़ाने लगता है मानो िकसी से बात
कर रहा हो।
29. खोया रहना- यि एक थान पर बैठा होता है, िकंतु उसका मन दसरी ू जगह होता है।
मन ही मन वह तनाव म उलझा हआ रहता है व दसरी ू जगह पहच ं जाता है। जब वह
वा तिवक थित म आता है, तो च क पड़ता है।
30. गुमसुम रहना- प रवार के भीतर भी वह गुमसुम सा रहता है। वह अ य सद य प नी
अथवा ब च के साथ हंस-बोल नह पाता। िकसी का ऊंचा बोलना, खल खलाना उसे
अ छा नह लगता है। वह अपने आप म ही उलझा रहना चाहता है।
31. नाखून चबाना- कु छ यि अपनी उं ग लय के नाखून चबाने लगते ह। कई बार तो उ ह
पता नह चलता िक वे नाखून चबा रहे ह। दसरेू यि को टोकने और मना करने पर उ ह
पता चलता है िक वे या कर रहे ह।
32. थकान- तनाव से त यि हमेशा थका-थका सा रहता है। इसका कारण यह माना
जाता है िक तनाव क थित म यि काम करना नह चाहता, काम करने क इ छा नह
होती, िफर भी काम करना पड़ता है। इ छा के िबना िकये जाने वाले काम म उ साह का
अभाव होता है, इस लए यि को थोड़ा सा काम भी ज दी थका डालता है। इससे यि
थका-थका सा रहता है। कई बार जब तनाव क मा ा अ धक होती है, तो लगता है मानो
उसे िनचोड़ कर रख िदया गया है। ऐसी थित म और अ धक तनाव बनता है। तनाव क
थित यि के भीतर डर पैदा करती है, इस वजह से यि का आ मबल कम होता
जाता है, इस लए वह कोई भी काम करने से डरने लगता है। जस कारण से तनाव बना है,
उससे संबं धत कोई भी बात यि को झकझोर देती है।
33. डरावने सपने- तनाव त यि को या तो न द नह आती और यिद आती है, तो डरावने
सपने उसे परे शान िकये रहते ह। डरावने सपने भूत- ेत से नह होते ब क उन घटनाओं
से संबं धत होते ह, जनक वजह से तनाव बना है। मान लो एक यि ने िकसी से पैसा
उधार लया है और वह उसे चुका नह पा रहा है, तो रात को इसी बारे म उसे सपने िदखाई
देने लगते ह। कई बार तो यह सपने वा तिवकता के इतने िनकट होते ह िक वह न द म भी
डर के मारे पसीने-पसीने हो जाता है, या िफर घबराकर उठ जाता है।
34. असुर ा का भाव- तनाव के कारण यि वयं को असुरि त महसूस करने लगता है।
ऐसे लोग का आ मबल कमजोर होने के कारण बेचन ै ी और घबराहट रहने लगती है। उसे
हर पल लगता है िक वह िबलकु ल अकेला है, उसका साथ देने वाला कोई नह है।
असुर ा क भावना उसे परे शान करती रहती है।
35. नकारा मक सोच- यि म नकारा मक सोच पनपने लगती है। सकारा मक िवचार
गायब हो जाते ह। येक काय म वह इस सोच के कारण नकारा मक िवचारधारा को
पु ता कर लेता है और उसी के अनु प मन ही मन िवचार बनाने लग जाता है।
36. िम न बना पाना- जो यि तनाव से िघरे होते ह, वे अ छे िम नह बना पाते ह।
उनका यवहार इतना खराब रहता है िक कोई उनसे िम ता करना भी नह चाहता है। ऐसे
लोग क थित भीड़ म अकेले यि जैसी होती है। इस कार का एकांक पन यि के
तनाव को हर पल बढ़ाता रहता है। ऐसे लोग शारी रक प से चाहे जतने अ छे िदखाई द,
िकंतु वा तव म वे अनेक गंभीर िक म क िबमा रय के नजदीक होते ह।

⦿⦿⦿
या आप मान सक
प से व थ ह?
सा मा यतः यह समझा जाता है िक जब यि िकसी भी तरह क मान सक बीमारी से मु
होता है, तो उसे मान सक प से व थ समझा जाता है और इस अव था को मान सक
वा य क सं ा दी जाती है। परं तु कु छ िचिक सक का कहना है िक ‘मान सक वा य को
मान सक बीमारी मु कहना उपयु नह है, य िक मान सक प से व थ यि म भी
कभी-कभी मान सक बीमारी के ल ण जैसे आवेगशीलता, सांवेिगक अ थरता, अिन ा के
ल ण िदखाई पड़ते ह।'
इस लए आधुिनक मनोवै ािनक ने मान सक वा य को समायोजन शीलता क मता को
मु य कसौटी मानकर प रभािषत िकया है। ‘मान सक वा य' का ता पय वैसे सीखे गये
यवहार से होता है, जो सामा जक प से अनुकूल होते ह और जो यि को अपनी जंदगी के
साथ पया मुकाबला करने क अनुमित देता है। मान सक वा य म कई आयाम स म लत
होते ह। आ म स मान, अपनी अंत:शि य का अनुभव, साथक एवं उ म संबध ं रखने क
मता तथा मनोवै ािनक े ता। मान सक बीमारी से उ प िचंतन, भाव एवं यवहार यि
के लए दख ु दायी या िवघटनकारी होता है। यि म सम या िकसी न िकसी द ु या से उ प
होती है। मन या उसके शरीर का कोई न कोई पहलू उस ढंग से काम नह करता है, जस ढंग
से उसे काय करना चािहए।
िवशेषताएं- नैदािनक मनोवै ािनक ने मान सक प से व थ यि य क कु छ िवशेषताओं
का उ ेख िकया है। जनम कु छ िन नांिकत ह-
1. आ म- ान- मान सक प से व थ यि क एक मुख िवशेषता यह है िक उसे अपनी
ेरणा, इ छा, भाव, आकां ाओं आिद का पूण ान होता है। वह यह पूणतः समझता है िक
वह या कर रहा है, उसम अमुक ढंग का भाव य उ प हो रहा है। उसक आकां ाएं
या ह आिद-आिद।
2. आ म-मू यांकन- मान सक प से व थ यि अपने गुणदोष क परख कर लेता है।
वह अपने येक यवहार को तट थ होकर अ ययन करता है तथा अपने यवहार क
प रसीमाओं क परख करता है।
3. आ म- ा- मान सक प से व थ यि म आ म ा अ धक होती है। जस कारण
उसम आ मिव वास, आ मबल तथा अपने भाव को वीकार करते हए काय करने क
मता होती है।
4. सुर ा का भाव- मान सक प से व थ यि म यह ती भावना होती है िक वह
समाज का वीकृत सद य है तथा लोग उसके भाव का आदर करते ह। वह दसर ू के साथ
िनडर होकर अंत: ि या करता है तथा खुलकर हंसी-मजाक करता है। समूह का दबाव
पड़ने के बावजूद भी वह अपनी इ छाओं को दिमत नह करता है।
5. संतोष जनक संबंध रखने क मता- मान सक प से व थ यि क एक िवशेषता
यह है िक वह दसरू के साथ संतोषजनक संबध ं बनाये रखने से स होते ह। वह कभी भी
दसर
ू के सामने अवा तिवक मांग नह करता है। फल व प, उसका संबध ं दसर
ू के साथ
हमेशा संतोष जनक बना रहता है।
6. शारी रक इ छाओं क संतुि - मान सक प से व थ यि क यह भी एक िवशेषता
है िक वह अपने शारी रक अंग के काय ं के ित एक व छ एवं धना मक मनोवृ रखता
है। वह पूण पेण अवगत रहते हए भी उसम िकसी कार क आसि नह िदखलाता है।
7. उ पादी एवं खुश रहने क मता- मान सक प से व थ यि अपनी मता को
उ पादी काय म लगाते ह तथा उससे वे काफ खुश रहते ह। वह ऐसे काय ं म अ छा
उ साह एवं मनोबल िदखलाते ह और अपने को खुशिमजाज सािबत करते है।
8. तनाव एवं अितसंवेदनशीलता का दमन- मान सक प से व थ यि म मान सक
तनाव उ प नह हो पाता है। यिद उ प हआ भी तो वह तुरंत ही िनयंि त कर लया जाता
है। ऐसे यि दसर ू ारा िकये गये शंसा या आलोचना का भाव अपने ऊपर नह पड़ने
देते ह। इनम संवेदनशीलता के गुण क कमी होती है।
9. ठोस स ांत- मान सक प से व थ यि अपने जीवन म कु छ ठोस स ांत बनाये
रखते ह और वे हमेशा उसी स ांत के अनुकूल काय करते ह। ऐसे यि य के स ांत म
मान सक संघष, िवरोधाभास जैसी चीज क सवथा कमी होती है।
10. वा तिवक य ण- मान सक प से व थ यि िकसी व तु घटना या चीज का
य ण व तुिन ढंग से करते ह। वे इन चीज का य ण ठीक उसी ढंग से करने क
कोिशश करते ह, जो वा तिवक होता है। वे ऐसे समय कु छ का पिनक त य का सहारा
नह लेते ह।
11. प जीवन ल य- मान सक प से व थ यि का एक प जीवन ल य होता है।
वह यि अपने जीवन ल य को िनधा रत करके उसे ा करने का संभव यास करता
है, वह जसम अपनी मताओं, यो यताओं एवं दबु लताओं पर नजर रखता है।
अतः इस कार प हआ िक मान सक प से व थ यि क कु छ िवशेषताएं होती ह,
जसके आधार पर उसक पहचान क जाती है तथा उसे एक मान सक रोगी से िभ समझा
जाता है।

⦿⦿⦿
या आप हमेशा दख
ु ी
और नाखुश रहते ह?
जी वन म एक तरफ यिद सुख है, तो दसरी
िक तु हर समय दख

ु ी रहना, िकसी से संबध
तरफ यि हमेशा खुश रहे यह संभव नह ,
ं न रखना आिद, गंभीर रोग के ल ण ह।

या धन, पद या सामा जक स मान जीवन म आपको आनंद नह देते?


या आप हमेशा अपराध बोध से त रहते ह?
या आप पािटय म जाकर भी ऊबने लगते ह?
कह भी मन नह लगता।

अगर उपरो सभी सवाल का जवाब हां म है तो आप ऐसी स ता रिहत थित से त ह


जसे ीक भाषा म ‘ए हेडोिनया' कहते ह यानी रोग मुंह लटकाने का। इस सम या का कारण
है िच ता, अपराध बोध, अ य धक मह वाकां ा, मान सक थकान, लोकि यता क चाह,
कामना या िफर आन द से डर लगना। ए हेडोिनया जंदगी म आन द के मह व को न समझने
वाली दशा है, इसके तहत न तो हम हष क नैसिगक चाह को पूरा करने म समथ होते ह। न
उस चाह को मह व ही देते ह।
पर यह बात एकदम गलत है। जीवन म सफ दख ु का ताना नह , उसे बुनने के लए सुख
का बाना भी चािहए। अगर आप िकसी भी छोटे-बड़े उ सव म सहष भाग नह लेते, यिद
आपको रोजाना के छोटे-छोटे ि याकलाप म जरा भी आनंद नह आता तो यह एक
मनोवै ािनक सम या है। जंदगी म हमेशा धन, पैसा, तबा या सोशल रीकॉगनाइजेशन आन द
नह देते। ि टेन क राजकु मारी डायना को ही ली जए या भूतपूव ए टे स रे खा के पूव पित
मुकेश अ वाल को, ये दोन भरे -पूरे जीवन म असंतु ही रहे। स अमे रक गायक बॉबी
मैकफै रन का लोकि य ‘गीत डो ट वरी, बी हैपी', यानी ज दगी हंसने-गाने के लए है।
इस लए इतना लोकि य हआ य िक यह आम आदमी को आन द का वातावरण बनाने का
संदेश देता है। आन द एक जैिवक ज रत है। आन द एक स ल है िक हमारा शरीर,
म त क और दय सही थित म काम कर रहे ह। ज ह आनंद लेना नह आता, वे अ व थ
ह। कोई खुशी क खबर आने पर टचवुड या लकड़ी छू ना भी इसी आशंका का प रणाम है।
ए हेडोिनया एक तरह का अंधिव वास ही है जो हम स चे आन द से दरू करता है। अगर आप
सचमुच इस रोग से और अंधिव वास से मुि चाहते ह तो इन िट स पर अमल कर।

खुशी को कभी पीछे न धकेल


अ सर हम लोग सोचते ह िक जब पैसा होगा, तब फलां जगह घूमने जाएंग,े ऐसा सोचना ही
पूरी तरह गलत है। िबना बहत यादा पैसे के भी आप अपने शहर के सु दर व दशनीय थल
को य टालते ह। जब हम लड़क क शादी कर लगे, तभी अपने बारे म कु छ सोचगे, यह
सोचना भी गलत है। अपने को ने ले ट करते रहने से आपक एनज ज र कम होगी और
आप शादी क यव था ठीक से नह कर पाएंग।े सार सं ेप यही है िक आज क खुशी कल
पर कतई न टाल।

उ च- तरीय आनंद ही ल य नह
आन द को लेकर बहत ऊंचा तर न िफ स कर। हमेशा फाइव टार, उ कृ या बहत महंगे
सुख क खोज ठीक नह होती। ऐसा आन द, रोजाना या हर एक को मय सर नह होता, यानी
हताशा ही हाथ लगती है। छोटे और सहज सुख बहत थायी आन द देते ह। उदाहरण के लए
िकसी साफ-सुथरे ढाबे पर बैठकर खाना, कोई पुरानी िफ म देखना अ छी िट क या चाट
खाना, अ छी िकताब िमल जाना, अपने बगीचे म फूल का खलना, इ यािद।

िवला सता आनंद नह


महंगे कपड़े, खच ले टू र, महंगे फन चर, गहने, मोबाइल फोन, लेटे ट कार और इन जैसी
अनेक चीज आन द का पूण िवराम नह । इस आन द म थािय व नह है। सहज सामा य
आन द थायी भी होता है और कम खच ला भी ताजगी ब श भी! हर समझदार, कला मक
और बुि मान यि बहत सादगी से रहना पसंद करता है।

वा तः सुखाय ज री है
हर समय अ छा काम करके तारीफ पाना और आनंिदत होना, सही नह , य िक आम
आदमी इतने उदार नह होते िक हर समय आपके काम क तारीफ कर। ऐसे म या आप मुंह
लटकाकर जएंग? े आपको खुद अपने काम म आन द लेने क आदत डालनी होगी, तभी बात
बनेगी।

जो काम िच दे वही कर
जस काम म आपको िदलच पी हो, उसे करना ही आन द है और उसे करके ही ए हेडोिनया
से बच सकते ह। आन द के अलावा, जस काम को करने म आपको गव का अनुभव हो, वही
आपका आन द है।

आनंद को अपराध बोध से न जोड़


जब आप ह के मूड म िकसी भी चीज का आन द ले रहे ह , तो उस समय दसर ू के अभाव
के बारे म िब कु ल न सोच। जैसे, जब आप िकसी दशनीय थल क या ा पर िनकले ह , तो
पीछे छू टे हए यि य के बारे म यह सोचकर दख
ु ी न ह िक हाय बेचारे , वे नह आ सके।

आनंद क असीिमत प रभाषा लख


हमेशा खुश रहने वाले लोग को गौर से देख। वे हर छोटी बात म आन द खोज लेते ह।
उनके लए ब च से बात करना, घर क सफाई करना, नौकर से बातचीत करना, स जी
लाना, आन द के ोत हो सकते ह। कु छ लोग थोड़ा सा घूम-टहलकर, पेड़-पौध क देखभाल
करके भी खुश हो लेते ह। कु छ मिहलाएं नई-नई रे सीपीज आजमाकर, कु छ वयं नई रे सपी
बनाकर बहत आनंिदत होती ह। कु छ मिहलाएं कपड़ के नए िडजाइन पर काफ अ छी चचा
कर लेती ह, तो कु छ पुरानी व तुओं को नया करने के तरीके सोचती ह। आन द का संसार
असीिमत है।
ल बोलुआब (सार) यही है िक आप हर समय खुश नह रह सकते, लेिकन आप कभी भी
खुश नह होते या कोई भी बात आपको खुशी नह देती तो यह बहत दख ु द है। यह भी याद रहे
िक हर समय खुश रहने के लए अपने आपको मजबूर भी न कर। कभी शांत, गंभीर,
िचंतनशील रहना चाह तो यह भी आपका अ धकार है।

⦿⦿⦿
ज री है तनाव क पहचान
त नाव मु होने के लए ज री है िक तनाव को समझा जाए, य िक तनाव से मु तभी
हआ जा सकता है, जब हम पता हो िक हम तनाव िकस बात का है। तनाव कोई ऐसी
सम या नह , जसके बंध-े बंधाए उ र ह , य िक हर इंसान के लए उसक प रभाषा अलग हो
सकती है, उसके तनाव के कारण अलग हो सकते ह, इस लए तनाव को समझना ज री है।
इसी समझ म ही तनाव का हल िछपा है।
यिद हम यह समझ म आ जाए िक हम तनाव िकस बात का है, तो हम उससे मु होने का
माग भी ढू ढं सकते ह। साथ ही हम यह भी पता चल जाएगा िक यह तनाव िकसी कारणवश है
या अकारण या िफर हम बेवजह ही िचंितत ह। जैसे ही हम अपने तनाव को समझ लेते ह, वैसे
ही हम पाते ह िक तनाव भी कम हो गया। और एक बार हम तनाव िदख जाए तो हम उसका
बंधन भी कर सकते ह।
उदाहरण के लए यिद कोई यि जान ले िक बंध क अ यव था के कारण गाड़ी देर से
आएगी, य िक उसने अपनी परे शानी का कारण जान लया। इस लए रे लवे कमचा रय पर
आने वाला ोध भी कम होगा। बाक बचे तनाव को दरू करने के लए आप देरी के लए
मान सक प से तैयार हो जाएंग।े संभािवत िवलंब से बचने के लए सही समय पर आएंग।े
लंिबत िवलंब िकसी भी कारण से हो सकते ह। तथा समय काटने के लए िकसी िकताब का
सहारा भी लया जा सकता है। जलवायु प रवतन, वषा तथा गम आिद से उ प परे शािनय के
कारण तनाव न ल। इनका भी आप कु छ न कु छ अनुमान तो लगा ही सकते ह।
यिद आपका बॉस खा है तो उसक शैली, पसंद-नापसंद आिद जानने के लए अपने ऊपर
भी यान द। हो सकता है िक आपम बदलाव क ज रत हो। िनजी तथा यावसाियक जीवन को
अलग करके देख, हो सकता है आपके ही काम म कोई कमी हो या आपका बॉस ही एक िभ
यि व है। इस पूरी सोच के बाद आपके कायगत संबध ं म सुधार हो सकता है।
जब भी हम तनाव म होते ह, तो हमारे बाक के अ य काम भी आसानी से नह हो पाते,
जसके कारण बाक काय ं का भी तनाव हमारे तनाव म बढ़ोतरी कर देता है और हम वयं को
तनाव से िघरा पाते ह। तनाव दोगुना-चौगुना न हो और जड़ से समा हो जाए, इसके लए
ज री है असली तनाव क सही पहचान, य िक अमूमन तनाव िकसी एक-आध चीज का होता
है, पर उसका भाव हमारे बाक के काय ं एवं पूरी िदनचया पर पड़ता है, जसके चलते हम
तनाव त हो जाते ह।
आप तनावमु हो सक, इसके लए एक सादा, खाली कागज ल, उस पर वह सारे दख ु ,
क , िचंता, काय, मुसीबत आिद लख, जनसे आप परे शान ह। छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी हर
बात जो आपको चुभती है या अधूरी है, उसको िबना िकसी म के, इ छानुसार य का य
लख। जैसे- ऑिफस का तनाव, ब च क पढ़ाई का तनाव, ेमी का या आपसी संबध ं का
तनाव, बढ़ता गु सा एवं िचड़िचड़ाहट, पैसे क तंगी व अकेलापन आिद जो भी है सब लख।
सारी बात लखने के बाद हर िवषय पर यान द और सोच इतनी सारी सम याओं म से कौन-
सी सम या है, जस पर यान देना ज री है। जस पर यिद आप न सोच या न पूरा कर, तो
आपका जीवन भािवत होगा। जसके करने से आपको लगता है िक इसम आपका लाभ, उ ित
व सुख िछपा है। कौन-सा िवषय ऐसा हो जसे आपने पहले नह िकया तो बाद म पछताना
पड़ेगा। िफर कौन से िवषय ऐसे ह, जो आपने बे-वजह मन म रखे हए ह। जनके न करने से या
पहले न करने से आपके सुख म बाधा नह होगी।
गहन सोच-िवचार के बाद आपको इस बात का एहसास होगा िक िकतने ही िवषय या तनाव
ऐसे ह, जो बे-बुिनयादी ह। वह बस आपने िनरथक ढोए हए ह। जनको करने न करने से
आपके जीवन म या आनंद म कोई बाधा नह पड़ेगी। आप पाएंगे िकतने तनाव तो हमने यूं ही
पाले हए थे। इस लए एक नई ल ट बनाएं, जस पर ाथिमकता अनुसार तनाव या िवषय को
मब कर। आपको एहसास होगा िक सम याएं कम हो गई ं और तनाव कम हो गया। अब
चुने हए नए मब तनाव पर िवचार कर।
तनाव व तनाव से िघरे लोग को हम तीन भाग म बांट सकते ह। कम तनाव, अ धक तनाव
व गंभीर तनाव। तीन तरह के तनाव म हमारा यवहार व बताव िभ होता है। िन न ल खत म
से आप अपने तनाव के तर को पहचान सकते ह-

1. कम तनाव
िव ान का मानना है िक थोड़ा-बहत तनाव तो यि म होना ही चािहए। इस लए कम तनाव
को एक आदश थित माना गया है। ऐसे यि य म तनाव तो होता है िक तु वे उससे िवच लत
नह होते और न ही तनाव का भाव अपने ऊपर होने देते ह। दसरे
ू श द म ऐसा कह सकते ह
िक ऐसे यि तनाव पर िनयं ण कर लेते ह। ऐसे यि य क मह वकां ाय अ धक नह होती
ह। मोह-माया से उनका लगाव तो होता है, िक तु उसे ा करने के लए कु छ भी गलत करने
को तैयार नह होते ह। वे अपने यवहार से िकसी को तकलीफ देना भी नह चाहते। ऐसे यि
अ य त सौ य भाव से अपना काय करते ह और अ य त सामा य तरीके से जीवन जीते ह।
इसे तनाव क बहत अ छी थित तो माना जा सकता लेिकन ऐसे यि य का कु ल ितशत
बहत ही कम है। हमारी आपक जंदगी म कई बार ऐसे लोग से सामना हो जाता है, जनसे
िमलकर अ छा लगता है। ऐसे लोग का मानना है िक उ ह भी कभी-कभी तनाव तो होता है
लेिकन हवा के झ के क तरह आता है और िनकल जाता है। तनाव उ ह भािवत नह कर पाता
है।

2. अ धक तनाव
जन लोग क मह वकां ाय उनक साम य एवं साधन से अ धक बड़ी होती ह या कम समय
म बहत अ धक पाना चाहते ह, वह तनाव म रहते ह। वे चाहते ह िक जो भी वे करना चाहते ह,
पाना चाहते ह, उसम िकसी कार क कावट या अड़चन नह आये। लेिकन यह हो पाना संभव
नह होता है। जब हम अपनी साम य से अ धक कु छ पाना चाहते ह तो एक नह , अनेक कार
क सम याय आती ह। मु य प से यही तनाव का कारण बन जाता है। ऐसे लोग कम साधन
क पूित अपने अ धक म से करना चाहते ह। इस लये वे शरीर क मता से अ धक म
करते ह। हर समय कोई न कोई काम उ ह घेरे रहता है। काम क अ धकता के कारण वे
प रवार को पया समय नह दे पाते ह, मनोरं जन के ऐसे अ धकांश अवसर से दरू रहते ह, जो
उनके तनाव को कम कर सकते ह जस कारण उनके मन म खुशी और उमंग का अभाव बना
रहता है। ऐसे यि अ धकांशतः तनाव से िघरे रहते ह।

3. गंभीर तनाव
इस ण े ी म आने वाले लोग का ितशत धीरे -धीरे बढ़ रहा है। इस कार के यि एक
समय म एक से अ धक काम म उलझे रहते ह। हर काम क अपनी सम याय होती ह। अनेक
कार क सम याय जब एक ही यि को घेर लेती ह, तो वह अ य धक तनाव क थित म
पहच ं जाता है। ऐसे यि जब तनाव को सहन नह कर पाते, तब ऐसी हरकत करने लगते ह,
जो उ ह नह करनी चािहए थ जैसे-बुरी-बुरी गा लयां देना। अपनी असफलता के लए दसर ू
को िच ा-िच ाकर दोषी ठहराना कई बार तो तनाव के कारण इनका गु सा इतना बढ़ जाता
है िक सारा शरीर कांपने लगता है मुंह से थूक व झाग बाहर आने लगते ह। चीज को उठा-
उठाकर फकना तोड़ना, यहां तक िक हाथापाई पर भी उतर आते ह।
आप अपना मू यांकन कर िक आप िकस कार के तनाव से त ह। जब आप अपनी ण े ी
तय कर ल, तो िफर बचाव का रा ता तलाश करने का यास कर। यिद आप ईमानदारी से
ऐसा कर पाते ह तो यह आपके लए ही एक अ छी बात होगी।

⦿⦿⦿
कर तनाव का िव लेषण
आ जहै िकके समय म कोई यि पूण
आप भी िकसी न िकसी
प से तनाव मु नह हो सकता, इस लए यह िन चत
कार के तनाव से अव य ही त ह गे। इसक जांच
आपको वयं तथा वयं के लए करनी है, इस लए यह जांच िन प भाव से ही कर। इस बारे
म जब तक आप वयं िकसी को नह बताते ह, तब तक इस बात का पता िकसी को नह
लगेगा, इस लए खुले िदल से आप वयं का मू यांकन कर। िविभ थितय म आपके तनाव
क या थित है, यह जान लेने के बाद इससे मुि के उपाय आसान हो जाएंग।े
तनाव का िव लेषण कर और सोच िक फलां िवषय पर म इतना िचंितत, तनाव त य ह? ं
या म यावहा रक प से संबं धत काय या सम या को सुलझाने का कोई काम या कोिशश
कर रहा ह? ं या िफर बस यूं ही दख
ु ी हो रहा ह।ं यिद म कोई कोिशश कर रहा हं तो या वह
कोिशश योजनाब है या नह ? म उस सम या से बचने क कोिशश म लगा हं या उससे
उबरने क कोिशश म लगा ह? ं
इतना सब सोच कर यह भी सोच िक या कारण है िक यह काम या थित मुझे बोझ लग
रही है? िफर उन कारण को भी लख जसके कारण आप वयं को अनुकूल नह बना पा रहे
ह और तनाव को बढ़ा रहे ह। जो भी कारण सामने िनकल कर आएं उन पर गंभीरता से,
िन प ता से सोच िक उसका ज मेदार कौन है, आप वयं या िफर कोई दसरा? ू
यिद आपके तनाव का कारण कोई दसरा ू है, तो आशावादी ि कोण रखते हए उसे समझाएं,
बात कर और हल िनकालने क कोिशश कर, परं तु यिद यह संभव नह है, तो वयं को
पांत रत कर और इस तरह ढाल िक प र थित एवं सामने वाले का आप पर कोई भाव न
पड़े और धैय एवं कोिशश के साथ आप इस सकारा मक सोच से अपने ऊपर काम कर। सोच
िक ‘हम िकसी को नह बदल सकते। सफ वयं को, वयं क सोच को िव तार देकर अपने
तनाव को कम कर सकते ह और अपने िह से का सुख जुटा सकते ह।'
तनाव के िव लेषण और वयं के िनरी ण के बाद आपको अपने म या अपनी योजनाओं म
जो कमी नजर आई है, उ ह ाथिमकतानुसार एक-एक करके पूरा कर। हाथ म ली गई िकसी
भी सम या को बीच अधर म न छोड़, य िक बीच म छोड़ा गया कोई भी काय हमको हमारे
अगले काय को पूरा करने म तंग करता है और हमारे अंदर एक नकारा मक िवचार घर करने
लगता है िक ‘मुझसे नह होगा या म नह कर सकता' और िफर हम तनाव से भर जाते ह। इस
तरह से तनाव को समझकर, उसका िव लेषण कर आप अपने तनाव को कम कर सकते ह।

⦿⦿⦿
तनाव के कारण होने वाले रोग
जी वन क भागम-भाग म इंसान अनेक िचंताओं से त रहता है। जब यही िचंताएं चार
ओर से उसे घेर लेती ह, तो यि तनावपूण थित म आ जाता है। ऐसे म शरीर के
वा तिवक रसायन ठीक से काम नह करते, प रणाम व प तनाव के कारण नयी-नयी
िबमा रयां हम घेर लेती ह। हमारे साथ एक मुख सम या यह है िक हम म से अ धकांश लोग
तनाव को कोई सम या ही नह मानते। इसी कारण इसे गंभीरता से भी नह लेते, जबिक
हक कत म तनाव िविभ रोग का जनक है। िविभ अ ययन म तनाव के कारण अनेक
वा य स बंधी सम याएं उजागर हई ह। तनाव से मोटापा, अ जाइमर, दय स बंधी सम याएं,
अवसाद, गैस स बंधी परे शानी, अ थमा, िचड़िचड़ाहट आिद अनेक सम याएं पैदा होती ह। यहां
तक िक उसे अपनी जंदगी से भी हाथ धोना पड़ सकता है। आइये जानते ह तनाव के कारण
होने वाली कु छ िबमा रय को जनके िवषय म हम सोच भी नह सकते।

सरदद व माइ ेन
सरदद तनाव से होने वाली बेहद आम सम या है। तनाव का बुरा भाव सबसे पहले सरदद
के तौर पर ही कट होता है। यह चीज आपने भी महसूस क होगी िक आपको जब कोई बात
बुरी लगी या आप गहरी िचंता म लीन ह, तो सबसे पहले सर भारी होने का अहसास होता है।
लेिकन उस समय आप एक दद िनवारक गोली खाकर उस दद से छु टकारा पा लेते ह। सरदद
के कारण क तरफ आपका यान ही नह जाता। लेिकन बहत ल बे समय तक तनाव क
थित बने रहने पर यही सरदद आपको िबमा रय का घर बना देता है। सरदद का िवकराल
प माइ ेन भी तनाव क ही देन है।

अवसाद एवं याकुलता


तनाव के कारण यि अवसाद जसे िड ेशन भी बोलते ह से िघर जाता है। यह तनाव का
भयंकर प होता है। इस थित म यि का मान सक संतुलन िबगड़ जाता है। यानी तनाव का
सीधा स बंध अवसाद से है, जससे िचंता, बेचन ै ी, िचड़िचड़ाहट जैसी सम याएं जुड़ी रहती ह।
याकु लता बहत यादा होती है। हाल म आए एक अ ययन के मुतािबक वे लोग ज ह नौकरी
स बंधी परे शानी होती है, उनम कु छ ही वष ं म अवसाद से िघरने क गुज ं ाइश 80 ितशत उन
लोग से अ धक होती है, जो छोटे-मोटे तनाव से पीिड़त होते ह।

अ जाइमर
उ च तनाव से पीिड़त लोग म अ य िबमा रय के मुकाबले अ जाइमर होने का खतरा अ धक
होता है। चूंिक तनाव सीधे तौर पर हमारी भावनाओं से जुड़ा है, जसम म त क पर भाव
पड़ता है। ऐसी थित म इंसान चीज को भूलने लगता है। शु आत म छोटी-छोटी चीज को
भूलने से होने वाली यह बीमारी अंत म बहत खतरनाक प ले लेती है। यहां तक िक इंसान
अपना नाम व पहचान तक भूल जाता है। जानवर पर हए एक अ ययन से भी यह बात
िनकलकर सामने आई है िक तनाव से अ जाइमर बीमारी होने का खतरा यादा बढ़ जाता है।

उ से अ धक िदखना
यह बात एकदम स य है िक तनाव हमारी उ को भािवत करता है। जािहर सी बात है तनाव
से पीिड़त इंसान के चेहरे क रौनक खुद-ब-खुद चली जायेगी, जसके चलते उसका मुरझाया
सा चेहरा उ दराज लगने लगता है। एक अ ययन म यह सािबत भी हो चुका है िक तनाव त
माताओं का डीएनए िबमा रय से त ब चे के ज म का कारण बन जाता है। जबिक
तनावरिहत ी व थ ब चे को ज म देती है। तनाव के चलते इंसान अपनी उ से 9-17 वष
अ धक उ दराज िदखता है।

अिन ा
तनाव के चंगुल म फंसा इंसान न द क सम या से पीिड़त रहता है। उसे अिन ा घेर लेती है।
रात को टू टी-टू टी न द आना व बेचन
ै ी रहना तनाव त यि क साधारण सी सम या है
लेिकन इसे ह के म नह लेना चािहए।

पे टक अ सर
पे टक अ सर पाचन तं के अ तर पर घाव को कहा जाता है। ये अ ल (ए सड) क
अ धकता के कारण अमाशय या आंत म होने वाले घाव के कारण होते ह। अ ल तथा पेट ारा
बनाये गये अ य रस पाचन पथ के अ तर को जलाकर अ सर होने म योगदान कर सकते ह।
यह तब होता है जब शरीर बहत यादा अ ल बनाता है या पाचन पथ का अ तर िकसी वजह
से ित त हो जाए। यि म शारी रक या भावना मक तनाव पहले से ही उप थत अ सर
को बढ़ा सकते ह।

जीण थकान
तनाव त इंसान ज दी थकान महसूस करने लगता है। तनाव का हमला जतना यादा उस
पर होता जाता है, वह उतनी यादा थकान महसूस करने लगता है। छोटे-छोटे काम भी उसे
थका देते ह।

िदमाग बदलना
तनाव त यि का िदमाग अ थर रहता है। वह अपने िकसी िनणय पर िटक नह पाता।
जस काम को करने के िवषय म सोचता है उसके कु छ िमनट बाद ही उसे ना करने का िनणय
ले लेता है। िफर दोबारा सोचने लगता है। यानी उसके िदमाग म ज दी-ज दी प रवतन होते ह।
इ छाओं पर काबू नह रह पाता।
उ च र चाप
तनाव से िघरे इंसान म लड ेशर क बीमारी आम है। इसम उ च र चाप व िन न र चाप
या दोन ही उसे घेर सकती ह।

खान-पान स बंधी आदत म बदलाव


तनाव त यि का अपनी भूख व खान-पान संबध ं ी आदत पर िनयं ण नह रहता। एक
पल म उसे खाने क इ छा नह होती, तो दसरे
ू पल वह बगैर भूख के ढेर सारा खाना खा लेता
है। कभी-कभी तो उसे कई िदन तक भूख का अहसास ही नह होता। खाते समय भी उसे पता
नह चलता िक या अ छा है या बुरा। िकतना खाना है आिद।

रोग ितरोधक मता िबगड़ जाना


तनाव के कारण रोग ितरोधक मता घट जाती है, जसके चलते िकसी भी बीमारी का
सं मण ज दी होने क संभावना बढ़ जाती है। अ ययन के मुतािबक तनाव से पीिड़त यि म
वेत र किणकाओं का तर िगर जाता है। इस कारण बुखार व सद जैसी बीमारी ज दी ही
इंसान को घेर लेती है।

बहत यादा ठं ड या गम लगना


तनाव से पीिड़त यि को वातावरण से सामंज य िबठाने म भी परे शानी होती है। उसे
सामा य तापमान पर भी यादा गम व ठं ड का अहसास होने लगता है।
तनाव त यि जब अ धक तनाव ले लेता है, तो उसे कभी-कभी बुखार आने जैसा
आभास होने लगता है। कई बार यह सम या बहत बढ़ जाती है।

नशे क लत
तनाव त यि अपना तनाव कम करने के लए नशे क िगर त म बहत ज दी आ जाता
है। धीरे -धीरे वह शराब का आदी हो जाता है। एक थित ऐसी भी आती है िक जब वह िबना
शराब के रह ही नह पाता। तनाव से पीिड़त यि धू पान भी करता है। ह का, बीड़ी, सगरे ट
उसके लए आव यक आव यकता बन जाती है। जबिक यह बेहद गंदी लत है। कई बार इंसान
ड स एिड ट भी हो जाता है।

पेट स बंधी सम याएं


अनेक शोध से यह बात सामने आई है िक अनेक यि य म पेट संबध ं ी सम याएं िकसी
शारी रक बीमारी के कारण नह , ब क तनाव के कारण होती ह। इसे आईबीएस अथात्
इ रटेबल बाउल संडोम के नाम से जाना जाता है। यादातर वय क इस रोग क चपेट म ह। इस
बीमारी से परे शान लोग लगातार इससे छु टकारा पाने के लए अनेक कार के चूण, दवाओं एवं
घरे लू उपचार करते नजर आते ह। इस समय लगभग अ सी ितशत वय क बेवजह तनाव और
िचंता त रहते ह। तनाव या िचंता के कारण सीिमत नह होते ह। मान सक तनाव, िचंता,
हड़बड़ी, दख ु इ यािद अनेक कारण से आंत क गित म बदलाव होने लगता है, जससे क ज,
द त, अपच, पेटदद इ यािद अनेक सम याएं उ प हो जाती ह।

भावना मक अिनयं ण
तनाव न केवल हम भावना मक प से कमजोर बनाता है, ब क धीरे -धीरे अपनी पैठ
जमाकर यह हम मान सक रोगी भी बना देता है। नतीजतन हम शारी रक रोग से भी िघर जाते
ह।

दय रोग
अ ययनकता ल बे समय से इस बात को लेकर आशंिकत रहे ह िक तनाव लोग म दय
स बंधी सम याओं के लए एक ज मेवार कारक है। इसके अलावा तनाव उ च र चाप क
सम या भी बढ़ाता है। यह पूरी तरह संभव है िक तनाव अनेकानेक रोग के लए उ रदायी है।
तनाव दय वाहिनय पर सीधे तौर पर भाव डालता है, लेिकन तनाव के कारण पनपने वाली
धू पान व मिदरापान जैसी आदत तनाव त यि को दय रोगी बना ही देती ह। डॉ टर के
मुतािबक मान सक तनाव हाटअटैक समेत कई गंभीर सम याओं का कारण है। जो लोग दय
रोगी ह, उ ह तो खासतौर पर तनाव से कोस दरू रहने क सलाह दी जाती है।

अ थमा
कई शोध से यह बात पहले ही सामने आ चुक है िक तनाव अ थमा का कारण है। कु छ
मामल म तो यह भी पता चला है िक माता-िपता म तनाव क आदत ब च म अ थमा होने का
खतरा बढ़ा देती है। एक अ ययन से सामने आया है िक अिभभावक क तनाव स बंधी सम या
उनके ब च को कैसे भािवत करती है। इसके अलावा कु छ िकशोर उ के ब चे जो दिषत ू
वातावरण के स पक म रहते ह या मां ने गभाव था के समय धू पान िकया है, वह भी अ थमा
के िशकार हो सकते ह।

मोटापा
तनाव त यि पर मोटापा भी आ मण कर देता है। तनाव से पीिड़त इंसान के पैर व
कू ह पर चब चढ़ने क संभावना अ धक रहती है। ऐसा हाम नल प रवतन के कारण होता है।

मधुमेह
मधुमेह को तो कहा ही जाता है टशन क बीमारी और टशन का कारण है तनाव। मधुमेह
मुख तौर पर दो कारण से होता है। पहला अिनयिमत खान-पान और दसरा
ू कारण है तनाव।
जसके चलते शरीर म लूकोज का तर बढ़ जाता है।

बचपन म हो तनाव, तो हो सकता है िदल का रोग


ब च क सेहत का असर बाद म उनके जीवन पर पड़ता है। एक शोध कहता है िक अगर
बचपन तनाव म बीता हो, तो इस बात क संभावना बढ़ जाती है िक बाद म चलकर ये िदल क
बीमारी का प ले ले। सात वष क उ म तनाव बड़े होने पर िदल क बीमारी के जो खम को
बढ़ा देता है।

तनाव के कारण सं मण का खतरा


जी हां, अनेक अ ययन से प हआ है िक लगातार तनाव से पीिड़त यि य म सं ामक
िबमा रयां होने क आशंका अ धक रहती है। हालांिक यान देने क बात यह है िक यि क
यि गत, भावना मक व मनोवै ािनक बनावट के कारण हरे क म तनाव का तर अलग-अलग
होता है। इसी लए एक थित जो िकसी एक के लए तनाव उ प करती हो, दसरे ू पर उसका
शायद कोई भाव ना पड़े या यादा पड़े।

वचा पर भाव
तनाव के कारण शरीर म र संचार पर फक पड़ता है। र हमारी वचा व मांसपेिशय से
दरू रहने लगता है। इसके कारण हमारी वचा खी, बेजान व मुरझाई सी हो जाती है।

बाल झड़ना
तनाव म बाल झड़ने क सम या भी घेर लेती है। तनाव के कारण बाल कमजोर हो जाते ह।
ह के से कंघी करने या ख चने पर ही टू टकर िगरने लगते ह।

आंख क रोशनी पर भाव


तनाव आंख क रोशनी पर भी भाव डालता है। तनाव म यि सोचता अ धक है। यादा
सोचने या तनाव लेने से आंख क रोशनी भािवत होती है। कई बार इंसान अंधा तक हो जाता
है।

र त पर बुरा भाव
एक तर पर तनाव जीवन म आनंद के तर को बहत ही कम कर देता है। तनाव त र ता
कभी फलता-फूलता ही नह । ऐसे समय म र ता बो झल लगने लगता है। तनाव के चलते
अ छे -खासे हंसते-खेलते प रवार टू टकर िबखर जाते ह।

कसर
कसर व तनाव भी एक-दसरे
ू से जुड़ी सम याएं ह। एक अ ययन के मुतािबक एक वतं या
अिववािहत कसर के रोगी म शादीशुदा कसर रोगी से अ धक ठीक होने क संभावना होती है।
चूंिक उसम तनाव का तर कम होता है।

आंत क सम या
िदमाग तथा आंत एक-दसरेू से जुड़ी रहती ह तथा नवस स टम व अनेक हाम स ारा दोन
पर िनयं ण रहता है। इसम च कने क कोई बात नह िक तनाव हमारी पाचन शि को कमजोर
कर देता है।

मांसपेिशय व जोड़ म दद
तनावपूण थितय म इंसान को कई बार शरीर क मांसपेिशय म दद का अहसास होता है,
जसे नजरअंदाज कर िदया जाता है। कमर व कंध म उठने वाले दद का एक मुख कारण
तनाव है। सवाइकल का दद भी तनाव के कारण होता है।

से सुअल जीवन पर भाव


तनाव आपके शादीशुदा जीवन को भी भािवत करता है। डॉ टर के मुतािबक तनाव क
थित म लोग के अंदर से स क इ छा घट जाती है। जो उनके शादीशुदा र ते के लए बड़ा
खतरा है। अ धकतर मरीज म से सुअल इ छा का कम होना बड़ी सम या है। यादातर म
इसका मुख कारण तनाव होता है।

जनन मता का घटना


तनाव के कारण जहां से स क इ छा घटती है, वह जनन मता पर भी असर पड़ता है।
आदमी जहां शी पतन जैसी सम याओं से िघरता है, वह मिहलाएं शु ाणुओं को कंसीव ही
नह कर पाती ह।

गभाव था पर भाव
गभाव था म मिहला ारा लया गया तनाव होने वाले ब चे के लए घातक होता है। मां का
लगातार तनाव गभपात क संभावना को बढ़ा देता है। इसके अलावा ब चे के वजन म कमी या
समय से पूव िडलीवरी होने क भी आशंका रहती है। गभवती ी का तनाव गभ थ िशशु के
म त क तथा नवस स टम को भी भािवत करता है। इस लए गभवती ी को अपने तथा होने
वाले िशशु के वा य के लए तनाव नह लेना चािहए।

माहवारी अिनयिमतता
मिहलाओं म तनाव के चलते मा सक धम म अिनयिमतता देखी गई है। डॉ टर के मुतािबक
मा सक धम क अिनयिमतता से संबं धत मामल म तनाव एक मुख कारण है। अ धकतर
मिहलाएं इसके कारण पी रयड क सम या से जूझती ह।

दांत व मसूड़ पर भाव


तनाव दांत तथा मसूड़ से संबं धत कई िबमा रय क भी वजह होता है। इसके कारण दांत
ज दी िगर सकते ह तथा कई बार यह बीमारी िदल क बीमारी से भी जुड़ी हो सकती है।

एकांक व िचड़िचड़ापन
तनाव से पीिड़त यि िचड़िचड़ा हो जाता है तथा उसे अकेले रहना सुखदायी लगने लगता
है। िकसी का साथ उसे अ छा नह लगता।

समय पूव मृ यु या अ पायु म मृ यु


हर समय तनाव से पीिड़त यि तमाम तरह क सम याय व िबमा रय से िघर जाता है। कई
बार बीमारी इतनी गंभीर हो जाती है िक वह लाइलाज हो जाती है जस कारण तनाव त यि
को अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता है। चूंिक तनाव मान सक तौर पर भी नकारा मक भाव
डालता है। ऐसे म यि के मन म अनेक नकारा मक िवचार व याल आते ह। प रणाम व प
वह खुद को ख म कर लेता है। वह अकाल मृ यु व समय से पहले ही मौत के मुंह म समा
जाता है। इस लए तनाव को ह क -फु क सम या समझकर नजरअंदाज नह करना चािहए।
तनाव म त क म मौजूद िविभ नकारा मक िवचार से यु भावनाएं ह। इंसान को िविभ
गलत काय कराने के लए उकसाती ह तथा उसे मनोवै ािनक तौर पर धमिकयां देती ह।
एक िचिक सीय शोध के मुतािबक िबमा रय और तनाव म गहरा नाता होता है। 40-80
ितशत मरीज तनाव जिनत िबमा रय के कारण डॉ टर के पास जाते ह। आप अपने आप से
एक सवाल पूछ िक कह आप भी इसी सांचे म तो नह िफट हो रहे। इससे पहले िक तनाव
आपको जंदगी से दरू करे , आप तनाव को अपनी जंदगी से दरू कर दी जए। एक व थ मन व
शरीर के मा लक बिनए।

⦿⦿⦿
ऐसे कर तनाव को कम
संतु लत िदनचया
अपने िदन क शु आत मॉिनग वॉक या ह क -फु क ए सरसाइज या योग- यान से
क जए। िदन भर म पानी जतना यादा से यादा पी सक, िपएं। खासतौर पर संतरे या न बू
िनयिमत प से अपने खाने म शािमल कर। िदन भर काम के बीच म हंसने-मु कु राने म
कंजूसी न कर। न ही िदन भर को ह के बैल बने रह, ब क अपने िदन को इस तरह लॉन
क जए िक आप बीच-बीच म ह का-फु का संगीत सुनने, प रवार या दो त के साथ ग पे
मारने या िफर अपने ब चे या पालतू कु े-िब ी के साथ खेलने का व िनकाल सक। जब
भी मौका लगे गहरी सांस ली जए। बेशक यह कु छ उपाय बड़े या छोटे लग सकते ह, लेिकन
यह भी सच है िक हजार कदम का फासला तय करने क शु आत भी पहले कदम से ही
होती है।

िनयिमत ए सरसाइज कर
अगर आप िकसी तरह के मान सक तनाव से गुजर रहे ह, तो आप दवाइयां लेने के साथ
ए सरसाइज भी कर। यह आपके टे स को काफ हद तक कम करे गा।
आप रोज िनयिमत प से योग या कोई भी ए सरसाइज कर। इसके लए आप िकसी
िफटनेस ए सपट क सलाह ले सकते ह।
योग म आप अनुलोम-िवलोम या मेिडटेशन कर। इससे आप खुद को अंदर से े श और
रलै स फ ल करगे। इसके अलावा आप जॉिगंग, मॉिनग वॉक, बागवानी इ यािद को भी अपना
सकते ह। शु आत म एकदम से यादा योग या ए सरसाइज न कर।

डायट चाट तैयार कर


अ सर लोग अपनी य त िदनचया म खाने-पीने का यान नह रख पाते ह, जो सेहत के
लए बेहद हािनकारक होता है। इन सब चीज से बचने के लए आप डायिटिशयन क सलाह
से अपना डायट चाट तैयार कर और कु छ बात का यान रख जैसे-

ेकफा ट करना कभी न भूल और ना ते म दध, ू दही, फल और जूस जैसी चीज लेने क
कोिशश कर।
खाने म सलाद ज र ल।
जंक फूड से दरू रहने क कोिशश कर।
पॉजीिटव थंिकंग रख
टे स का सबसे बड़ा कारण है, हमारी नकारा मक सोच, जो हम यादा सोचने पर मजबूर
कर देती है और टे स को ज म देती है। इस लए हमेशा पॉजीिटव थंिकंग ही रख।
छोटी-छोटी बात म टशन लेने क जगह उसे इ ोर करने क कोिशश कर। आप हर काम
को खुश होकर कर और जतना हो सकता है खुश रह।

लाइफ़ टाइल बदल


टे स और टशन का सबसे बड़ा कारण होता है ओवर वकलोड। इससे बचने के लए आप
अपना डे शे ूल तैयार कर और सब काम उसी के िहसाब से कर।
आप अपने डे शे ूल म काम और खाने दोन का टाइम िफ स कर ल और उसी समय म
उस काम को कर।
ओवर वकलोड से बचने के लए आप अपने काम को भी टु कड़ म बांट और उसे एक-
एक कर के पूरा कर।
अपने डे शे ूल म से कु छ समय आप यायाम के लए भी िनकाल।
छु ी वाले िदन ऑिफस का कोई काम न कर। आप सफ वही कर जससे आपका
मनोरं जन होता हो।
लेट नाइट वक करने से बच।

⦿⦿⦿
तनाव मुि के उपाय
म नय कािप तनाव से गहरा नाता है, इस लए आपको वयं को तनावमु रखना सीखना होगा।
इस आपाधापी से भरे जीवन म आसानी से ऐसा नह िकया जा सकता। लेिकन
िन न ल खत उपाय के पालन से आप िदन- ितिदन के िबखरे जीवन के बीच भी अपने मन से
तनाव का बोझ हटा सकते ह।

सदा एक सी िदनचया भी तनाव पैदा करती है। एकरसता से जीवन नीरस हो जाता है व
लगातार एक ही थित से तनाव होने लगता है इस लए अपने जीवन म नवीनता लाएं।
काम करने के तौर-तरीके म बदलाव लाएं। कु छ लीक से हटकर कर, आपको अ छा
लगेगा।
आपक एक यारी सी मु कान तनाव दरू भगा सकती है। हंसने से शारी रक व मान सक
वा य पर सकारा मक भाव पड़ता है।
स होने पर संपूण दख
ु का अभाव हो जाता है तथा स िच मनु य क बुि शी ही
भली-भांित थर हो जाती है। हंसने से म त क का भावना मक क भािवत होता है तथा
यूरोकैिमकल संतुलन बना रहता है। अतः स ता ही तनाव दरू करने का सव म साधन
है।
तनाव त होते ही हम एकांति य हो जाते ह। मन को सारे संपक सू से काट देते ह,
नतीजतन तनाव बढ़ता ही जाता है। अतः िकसी ि य तथा िव वासपा के आगे आपको
अपने मन का बोझ ह का कर देना चािहए। यिद ऐसा कोई पा न िमले तो आप ई वर से
भी अपना दख ु बांट सकते ह।
जब मन िचंता व तनाव से िघर जाए और आपको कोई राह न सूझे तो अपने इ देव का
मरण कर। मान सक जप व ाथना से आपको आ मिव वास िमलेगा िक भु संकट क
हर घड़ी म आपके साथ ह और आपको सहारा दे रहे ह।
अगर आपका मन ोध से भरा हो तो थोड़ा ठहर। िफर शारी रक म से मन का गुबार
िनकाल द। यिद इस भावना मक तनाव को दबाने क कोिशश क जाए तो इसके बड़े बुरे
प रणाम सामने आते ह, इस लए यायाम के मा यम से मन ह का कर ल।
जीवन प रवतन का ही दसराू नाम है। इसम बदलाव आते ही रहते ह। यिद हम उ ह पूरे
उ साह व उमंग से वीकार तो वे हमारे लए फायदेमदं ही होते ह। इस लए बदलाव क
चुनौती को मु मन से वीकार।
िचंता क बजाए िचंतन कर, सम याओं पर िचंता करने क बजाय सोच-िवचार कर, तािक
संभािवत हल तलाशा जा सके। इस िव ध से आपक सम या ण भर म दरू हो जाएगी।
अ ययन से पता चला है िक खाली िदमाग से भी तनाव पैदा होता है। इस लए जब भी यह
आपको यहां-वहां भटकाए, इसे य त कर द। मन को सावजिनक व रोचक काय ं म लगा
द। चूंिक मन एक समय म एक ही काय कर सकता है, इस लए उसका यान तनाव से हट
जाएगा।
वयं को सकारा मक आ म सुझाव द। नकारा मक सोच आपके बने-बनाए काम िबगाड़
सकती है। नकारा मक आ म सुझाव से मन म एक ऐसा भयावह िच बनता है, जो मन
क सुख-शांित न कर देता है।
आ म सुझाव का अथ है िक आप मन को अपने अनुसार आचरण के लए िववश कर द।
ऐसा तभी संभव है, जब हमारी संक प शि ढ़ हो। प श द म िदए गए आ म सुझाव,
मन को ितकू ल प र थितय म भी वश म कर लेते ह।
तनाव दरू करने के लए मान सक िचतंन का भी िवशेष मह व है। जब भी अवसर िमले तो
आंख मूंदकर क पना कर िक आप सुनहरे समु तट पर ह, रं ग-िबरं गे फूल के बीच ह या
ि य पा के साथ घूम रहे ह।
इसके अलावा आप कोई भी मनचाही क पना कर सकते ह। आप अपने लए जो सोचते
ह, वही पाते ह तथा वही बनते ह, इस लए सदा अपने लए े क कामना कर और
इससे िन चत आप े पाएंग।े
चंचल मन बहत भटकता है। यह पल भर म कह का कह पहच ं जाता है। जब भी यह
भटकने लगे तो िकसी एक थान पर इसे कि त करने का यास कर। िकसी भी व तु को
उठाकर यान से देख, उसके हर पहलू पर गौर कर। मुंह म कु छ खाने क चीज डाल ल।
कहने का ता पय यह है िक नकारा मक भाव मन म आते ही उ ह रोकने का कोई न कोई
उपाय कर ल, तािक मन सकारा मकता क ओर कि त हो सके।
कई बार मान सक ं क थित से भी तनाव पैदा होता है। यि ऊपर से शांत िदखाई
देता है, लेिकन उसके भीतर िनरं तर एक मान सक संघष िछड़ा रहता है। इसी ऊहापोह क
थित म कोई भी िनणय लेना किठन हो जाता है।
ऐसी अव था म िकसी बुि मान के परामश से िवषय के प -िवप म पया िवचार करके
िकसी एक िवक प को अपनाना चािहए तािक मन शांित भाव से दसरी ू ओर यान लगा
सके।
आपक सोच सकारा मक होनी चािहए। जब भी कोई परे शानी आए तो पूरे आ मिव वास
से उसका सामना कर। अपने मन म यह धारणा िबठा ल िक आपका बुरा हो ही नह
सकता। यिद कु छ बुरा हआ भी तो आने वाले समय म उसम उसक कोई भलाई िछपी
होगी। इसी आशावािदता के गुण को अपने जीवन का अिभ अंग बना ल।
यिद आपको कु छ ऐसा ा हो जो आनंद क बजाय दख ु पहच ं ाए, जसके ा होने से
आपके मन म नकारा मक त य आएं तो आपको उस त य से सबक लेना चािहए और
खुश होना चािहए िक आपको अपनी ुिट सुधारने के लए सीख िमली है।
यिद आप लाभ-हािन दोन ही दशाओं म ई वर को ध यवाद देकर अपना काय करते रहने
म िव वास करने लगते ह तब मान सक तनाव खुद ख म हो जाता है। मान सक तनाव से
राहत पाने के सबसे कारगर साधन ह रोजाना िनरं तर अपने सम त काय ं को ई वर को
समिपत कर द। सुबह या शाम जब भी आपको व िमले कु छ पल अलग बैठकर अपने
कायकलाप को इ देव को अपण कर।
जीवन म कृित द उपहार , ेम, शंसा, देखभाल, यार, नेह आिद का लेन-देन करते
रह। जससे भी िमल उसे हंसी-खुशी का उपहार देना ना भूल। खल- खलाकर मु कु राने से
पाचन शि द ु त रहती है, जबिक िचंता तथा तनाव से पाचन शि कमजोर होती है।
हंसने से चेहरा बेहतर लगता है। जबिक ोध करने से मुखाकृित िवभ स िदखाई देती है।
राि को ज दी सोने व सुबह ज दी उठने से चेहरा खला हआ एवं ने रसीले बने रहते ह।
कोिशश कर िक आप एकदम िचंता से रिहत रह। य िक हरदम तनाव त रहने से तमाम
या धयां काया को जकड़ लेती ह, इस लए सदैव स रहने क कोिशश कर।
संसार को हंसाने वाले एवं खुद मु कु राते रहने वाले लोग औसत मानव क तुलना म
अ य धक ल बी आयु ा करते ह। हंसना आपके तनाव रिहत होने का प रचायक है।
यह मु कान ही है, जो आपको एक नवीन चेतना देती है। आपक जंदगी घुट-घुटकर जीने
के लए नह ब क हंस-हंसकर गुजारने के लए है। मु कान एक तरह का से टीवॉ व है,
जसके न होने से यि कु हला जाता है, मुरझा जाता है। जीवन म नकारा मक हो जाता
है, आ मघाती हो जाता है, गंभीर हो जाता है। गंभीरता भी एक बीमारी है। नकारा मक प
से बच। इस लए हंस, खल खला कर हंस, सहज होकर हंस।
मनु य को अपनी मन: थित को थर एवं एकि त करके िचंताओं से दरू रहना चािहए,
य िक इन कारण से से स (काम) शि यून हो जाती है एवं शरीर का कोई िह सा ऐसा
नह होता जो िश थल न पड़ जाता हो। इस लए िचंता को दरू करने के लए उतना ही काम
करना चािहए, जतना सरलता से पूरा हो जाए। यादा काम सवाय परे शानी पैदा करने के
और कु छ नह करता।
आपने शायद कभी एहसास या िवचार िकया हो िक मान सक तनाव जतना अ धक होगा,
से स क उतनी ही अ धक आव यकता होगी तथा तनाव जतना कम होगा, से स क
आव यकता भी कम ही महसूस होगी, य िक िचंता व तनाव से पीिड़त मानव अ धक
उ े जत रहता है और आराम पाने के लए से स क ज रत महसूस करता है। इस लए
जहां जतनी िचंता और भागदौड़ है, जतना तनाव है उतनी ही अ धक वहां कामुकता
(से सयुअ लटी) पनपी हई है। काल के असर से बा याव था एवं जराव था तनाव रिहत
होती है। इस लए इस उ म कामुकता भी नह होती। िच जतना शांत और तनाव रिहत
अव था म रहेगा उतना ही कामुकता से दरू रहेगा तब उतनी ऊजा खच नह होती, जतनी
कामुक बने रहने से होती है।
आज क भाग-दौड़ भरी जंदगी म यादातर लोग तनाव क िगर त म रहते ह, तमाम
या धय क मूल है। इस लए तनावपूण अव था म अपने आपको िकसी और काम म
लगाने क कोिशश कर तािक आप तनाव रिहत रह सक।
सम त किठनाइय तथा सम याओं को एक साथ हल करने क कोिशश करके उलझना
नह चािहए। एक समय म एक सम या का िनदान कर। आप अपनी साम य से आगे न
सोिचए, न काम करने का िवचार क रए। आपक नजर म जो उपयोगी व योग करने
यो य हो वही क जए।
ई या न करो, ई वर का मनन करो। ई या करने से तो मन जलता है, लेिकन ई वर का
मनन करने से मन असीम शीतलता का अनुभव करता है।
जतना हो सके उतना अ य लोग क किठनाइय व सम याओं के समाधान करने का
भरसक यास क जए। दसर ू क सम याओं के िनदान म सहयोग देने से आप अपनी
िचंताओं को खुद ही भूल जाएंग।े
मन एवं चेतना म जो दषण ू पनप गया है, उसके ित हम सम यान नह दे रहे ह।
भौितक दषण ू से अ धक ज री है मान सक दषण ू से बचना। िबना अंद नी दषण ू खम
िकए बाहरी दषण ू से िनजात नह िमल सकती है।
तनाव और अिन ा का पर पर संबध ं है, इस लए तनाव त रहना अ छा नह है,
अक मात तनाव से राहत पाना संभव नह है पर धीरे -धीरे इस तरफ कोिशश करनी
चािहए। हर व गंभीरता का चोला ढंके रहना भी अ छा नह है, इस लए आपको ह के-
फु के रहने क आदत डालनी चािहए। अिन ा पर अंकुश पाने के लए खान-पान पर
िनयं ण के साथ-साथ थोड़ा-सा शारी रक म भी िनतांत आव यक है। संतु लत भोजन का
सेवन िकया जाए एवं उसे सरलता से पचाया जाए, तो िफर शायद न द क कोई सम या
नह होगी तथा संगीत क सुमधुर विन न द लाने म सहायक होती है।
जब आप िनराशा के पल म ह , तो जीवन आधा रत उपयोगी िनणय न ल। यिद ऐसा कर
भी तो अपने िकसी िव वासपा से परामश ज र ल।
म पान करना छोड़ द एवं िचिक सक के सुझाव का पालन कर। ‘जैसा खाएं अ वैसा
होगा मन इस लोकोि के मुतािबक शाकाहार एवं खासतौर से सा वक शाकाहार से
मान सक वा य ा करने म पूण सहायता िमलती है। इस लए मान सक िनरोगता और
धािमक आ या मक िवकास के लए शाकाहार ही सव म है।
मान सक तनाव से राहत पाने म यायाम िवशेष लाभकारी है, इस लए िन य यायाम
अव य कर।
ाकृितक जीवन शैली िबमा रय को ख म नह करती, ब क काया तथा मन को ऐसा
िवक सत करने म सहयोग देती है िक बीमारी खुद न हो जाती है और नूतन बीमारी पैदा
नह होती।
हमारी जीवनशैली के तनाव त होने के कारण यह यादातर रोग के पैदा होने म अहम
भूिमका िनभाती है। अतः इन रोग से बचाव का यथे साधन यही है िक हम ज रत के
मुतािबक अपनी जीवन शैली म बदलाव लाएं तथा तनाव को पैदा न होने द, सामा जक
बन। िनयिमत भोजन तथा समय पर न द ल तथा जीवन के ित सकारा मक ख अपनाएं।
पुरानी याद ताजा कर, फोटो एलबम देख, अपने पुराने सुकून भरे सुख के िदन याद कर,
अपने पुर कार एवं उपल धय का पुनः अवलोकन कर।
अपने काम का टाइमटेबल बनाएं, उसी के अनुसार अपनी िदनचया एवं, योजनाओं को
यावहा रक प से पूरा कर।
शु , संतु लत िनयिमत भोजन क आदत डाल, जतना हो सके दषण ू रिहत वातावरण म
वास कर, जल का अ धक से अ धक सेवन कर। िचकने, तले भोजन से बच एवं एक
समय पर एक ही काय कर, जस काय को शु कर उसे पूरा ज र कर, बीच म न छोड़।
अपनी आशाओं, अपे ाओं एवं मह वाकां ाओं पर िनयं ण रख। दसरे ू से होड़, तुलना,
ई या और ित पधा को कम कर। सहनशीलता, धैय और मा जैसे गुण को अपनाएं व
बढ़ाएं।
जीवन का ल य िनधा रत कर। िकसी को अपना आदश बनाएं। उसक एवं अ य सफल
लोग क संघष एवं चुनौतीपूण जीवनी पढ़। अपनी अलमा रय एवं दीवार आिद पर महान
लोग क त वीर व उनके िवचार आिद लगाएं।
आ मशि को बढ़ाएं। वयं क समय-असमय परी ा लेते रह। तर जांचते रह, सि य
रह।
मन को शांत एवं एका करने के लए यान-साधना, मं -जाप आिद का सहारा ल।
तनाव दरू करने के लए नान एवं मसाज थैरेपी को अपनाएं। शरीर को ह का रखने के
लए कपड़े भी ऐसे पहन जो खुद को सुकून दे।
ढीले, साफ, ी िकए हए कपड़े पहन। शरीर को साफ व सुग ं धत रख, इ का योग
कर।
हर एक से न तो उ मीद रख न ही हर एक को खुश करने क कोिशश कर। हां िकसी से
िबगाड़े नह , लेिकन इसका अथ यह नह िक हर एक को अपना बनाने म लगे रह।
इस लए सही आदमी क परवाह कर, हर एक क परवाह म खुद को दख ु ी न रख। याद
रख ‘एक आदमी चाहकर भी हर एक को खुश नह कर सकता।'
तनाव को कम करने के लए हथे लय को ह के हाथ से आंख तथा कान पर रख, हाथ
क गुनगुनाहट को महसूस कर। बाहर क रोशनी एवं शोर को भीतर वेश न करने द।
तनाव को कम करने के लए खाली प े पर, अपने मन एवं उ ेग अनुसार आड़ी-ितरछी
लक र ख च।
सारी कोिशश के साथ मन म इस बात का होश रख िक सब ठीक हो जाएगा तथा जो
होता है अ छे के लए होता है। यह सोचकर कु छ िनयित या भा य के हाथ छोड़ द, तनाव
कम हो जाएगा।
अपनी िववेक बुि को पाने के लए ोध शांत होने क ती ा कर। दस तक िगनती िगन
तथा गहरी सांस ल। इससे आप कु छ संतु लत हो पाएंग।े इस कार तीखी िति या य
कर देने से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
अपनी भावनाओं को दबाने क कोिशश न कर। िकसी िम या सहकम से मन क बात
कर और मन क भड़ास िनकाल।
अपने अहम् से बचने तथा अपराधबोध से बचाव के लए आप मा करने क कला सीख
ल। दसरे
ू यि क बुि क सीमाओं को जान लेने के बाद अनेक तनावपूण थितय से
छु टकारा पाया जा सकता है। यही सहनशीलता तथा आ मपरी ण आपके जीवन क िदशा
बदल सकते ह।

⦿⦿⦿
आहार जो तनाव भगाएं
ह म अ सर सुनते ह िक उ यि को तनाव है या कहते ह िक हम तनाव म है। लेिकन
या आप जानते ह िक आपके आस-पास का वातावरण ही आपक इस अव था के लए
ज मेदार ह तथा हम अपने खान-पान क आदत म सुधार करके तनाव से राहत पा सकते ह।
जब आप तनाव म होते ह तो सबसे पहले जो चीज घिटत होती है, वह यह है िक आपक
र िशराओं म अचानक संकुचन होने लगता है, इससे आपका र चाप बढ़ जाता है तथा उदर
और अंतिड़य म पहच ं ने वाले र क मा ा भी कम हो जाती है। अतः आप जो कु छ भोजन
हण करते ह और यिद इसम चब क मा ा यादा होती है तो इसका पाचन ठीक तरह से नह
हो पाता। इसका नतीजा यह होता है िक भोजन सही ढंग से पचने क बजाय अंतिड़य म खमीर
बनने लगता है जससे पेट फूलने क िशकायत पैदा होने लगती है। तनाव क थित म दसरी

जो चीज उ प होती है वह है ‘हाम नल अलट' या इसे दसरे ू श द म कहा जाए िक अब
आपको र म अ धक-से-अ धक लूकोज क ज रत पड़ेगी और ऐसी दशा म आपको
अ धक भूख लगती है, इससे आपको अ धक मा ा म काब हाइडेट, चाहे वह चीनी हो या टाच
लेना पड़ सकता है। पर तु यिद यह तनाव मनोवै ािनक है तो इससे आपको सफ अित र
कैलोरी (भार म बढ़ो री) ा होती है।

या खाएं, या न खाएं
1. नमक कम खाएं- खाना खाते समय नमक और सोिडयम से यु अ य पदाथ ं का
इ तेमाल कम कर द, य िक इनसे उ च र चाप क िशकायत पैदा होती है। यान र खए
िक प रर क म भी सोिडयम क मा ा हो सकती है।
2. चाय-कॉफ कम िपएं- कॉफ और चाय कम मा ा म ली जए और याद र खए िक दोन
म कैफ न पाया जाता है। जब आप चाय तैयार कर तो इसे अ धक देर तक न घुलने द।
3. तरल पदाथ ं का सेवन- आपको एक िदन म आठ िगलास तरल पदाथ लेने चािहए। यह
िकसी भी प म िकसी तरह का पेय हो सकता है।
4. पोटै िशयम यु आहार- संतरे और केले जैसे पोटैिशयम यु आहार का सेवन कर।
शरीर के तरल पदाथ ं म खिनज त व का समुिचत संतुलन बनाए रखने के लए
पोटैिशयम बड़ा आव यक होता है और साथ ही मांसपेिशय के संकुचन म बड़ी अहम
भूिमका भी िनभाता है।
5. िवटािमन सी- तनाव म िवटािमन सी बहत आव यक है, य िक इससे कोिशका क
दीवार म लचीलापन बरकरार रहता है और आपक र िशराओं म बहत अ धक संकुचन
होने लगता है, य िक तनाव क हालत म िवटािमन सी क मा ा कम होने लगती है।
6. िवटािमन बी- ऊजा उ पादन म िवटािमन बी कॉ पले स उ ेरक का काम करता है। अतः
तनाव क दशा म सम त िवटािमन बी ाण संजीवनी का काम करते ह।
7. ोटीन- तनाव क हालत म नाइटोजन का य होने लगता है, जबिक यह शरीर म ोटीन
का मु य आधार है। अतः तनाव क थित म ोटीन क मा ा दस ितशत बढ़ा देनी
चािहए, इसके साथ ही भोजन से पूव आराम अव य फरमाएं, खाना खाने के लए टेबल
पर बैठ जाइए और उस समय िच ता िवमु अव य हो जाइए।
8. फल तथा स जयां- आप अपने आहार म िबना िछले सेब, केले, बंदगोभी, फूलगोभी,
न बू, सलाद, िभंडी, संतरे , आलू, टमाटर आिद अव य ल। इनम पोटैिशयम क मा ा
अ धक तथा सोिडयम क मा ा कम होती है।
9. िनयिमत आहार- पूरे िदन म ना ते से आरं भ कर कम से कम चार-पांच बार भोजन ल।
भोजन क मा ा चाहे कम हो, परं तु िनयिमत अंतराल पर कु छ न कु छ लेते रह। इस
िदनचया से आप अ धक भोजन करने क लत से छु टकारा पा सकते ह। रात के भोजन को
ह का-फु का ही रख, य िक इसके प चात् आपक गितिव धयां मंद पड़ जाती ह। इसी
तरह ना ते का पौि क होना आव यक है, य िक इसी से पूरे िदन के लए ऊजा ा
होती है। शरीर क मांग के अनुसार उिचत संतु लत मा ा म िकया गया भोजन शरीर के
वजन को भी िनयंि त रखता है तथा तनाव म भी उपयोगी होता है।
10. रे शायु भोजन- काब हाइडेट तथा रे शेदार भोजन क पया मा ा ल। चीनी तथा शहद
से साधारण काब हाइडेट लेने क बजाए अनाज, फल तथा स जय से काब हाइडेट क
िम त मा ा ल। अंकु रत दाल तथा अनाज को अपने भोजन म शािमल कर। ब स, मटर,
सेब, संतरा तथा गाजर आिद म पाया जाने वाला रे शा शरीर म शुगर के तर को िनयंि त
रखता है। इससे कोले टॉल का तर भी िनयं ण म रहता है। रे शेदार भोजन म कैलोरी
अ धक नह होती। यिद इ ह चबा कर आराम से खाया जाए तो पेट अ धक समय तक भरा
रहता है।
11. वसायु भोजन के इ तेमाल से बच- वसायु भोजन का कम से कम योग कर।
लाल मांस, मछली, िचकेन तथा अंडे आिद का योग कम से कम कर, य िक वसायु
मांसाहारी भोजन से तनाव म वृि होती है।
12. चीनी, नमक तथा मसाले कम मा ा म ल- हाई ब ड ेशर के रोिगय को नमक का
अ धक मा ा म सेवन नह करना चािहए। न बू का रस, धिनया, पुदीना तथा इमली के
योग से आप वाद बढ़ा सकते ह। तेज िमचयु भोजन आपके लए हािनकारक है। चीनी
के अ धक योग से लड शुगर क मा ा बढ़ सकती है जो िक मधुमेह के लए घातक है,
अगर आप को िकसी भी कार का तनाव है तो ऐसे खा पदाथ ं से दरू रह।
13. वजन का आदश तर बनाए रख- अित र वजन क मा ा दय भार को बढ़ा देती है।
शरीर का एक व थ वजन बनाए रखना ज री है। इस लए वजन कम करने के लए
भोजन करने क आदत म बदलाव लाना होगा। भोजन को धीरे -धीरे चबा-चबा कर खाएं।
सही कार के भोजन से शारी रक मता म वृि होगी तथा अित र वसा न हो जाएगी
और आपका मन शांत तथा तनाव मु होगा।
14. भोजन क एकरसता से बच- ाय: सभी भोजन पोषक त व से भरपूर होते ह, िकंतु
अ छे वा य के लए केवल एक ही भो य पदाथ पर आ त नह रह सकते। पांच मुख
भो य समूह (काब हाइडेट, ोटीन, वसा, िवटािमन तथा खिनज) से ा संतु लत आहार
से ही सारे पोषक त व क पूित हो सकती है, जससे शरीर व थ रहता है और दबु लता
से पैदा होने वाले तनाव से भी बचा जा सकता है।
15. ीन टी का सेवन कर- तनाव से बचने के लए अ धकतर लोग क आदत होती है,
चाय-काफ पीते रहना। लोग इसे तनाव मुि का एक सीधा, स ता और सरल उपाए
मानते ह। उ ह लगता है चाय-काफ उ ह चु त व ऊजावान रखती है। मगर सच तो ये है,
चाय-कॉफ म कैफ न होता है िवशेष तौर पर कॉफ म। जससे ए सिडटी क सम या
उ प होती है और ए सिडटी तनाव को बढ़ाती है, इस लए ज रत से यादा इनका सेवन
न कर और यिद करना ही है, तो ीन टी का योग कर। ीन टी न केवल ताजगी देती है,
ब क तनाव भी कम करती है। जब भी काम का दबाव हो या न द क सम या हो तो इसे
लया जा सकता है।

⦿⦿⦿
ऐसे रह ऑिफस म टशन
ह महमारेअपनेलएपूरबहे िदनत हीममहजतने घंटे भी अपने काय थल या ऑिफस म यतीत करते ह, वो
वपूण होते ह, इस लए यह बहत ही आव यक है िक हम ऑिफस म
चु त द ु त रह, जससे हमारी काय मता पर सकारा मक भाव पड़े और हम अपना काय पूरी
लगन से कर पाएं। तो आइए इस जान िक कैसे चु त रह ऑिफस म।
कायालय का जीवन म बहत बड़ा मह व माना गया है, हर इंसान के जीवन का एक क मती
समय ऑिफस म ही गुजरता है, इस लए ज री है िक आप खुद को ऑिफस म काय करने के
लए चु त व द ु त रख। आप िन न बात को अपनाकर ऑिफस म खुद को चु त द ु त रख
सकते ह, तो देर ना कर, अपनाएं िन न बात और अपने ऑिफस टाइम को यादगार व
सफलताओं से भरा पल बनाय।

भरपूर न द
एक पूण न द न केवल शरीर क थकावट से दरू करती है, ब क इंसान क काय मता को
भी बढ़ाती है। एक आम इंसान को अपने काय पर लगभग पूरे स ाह म अपनी तरफ से लगभग
40 घंटे देने ही पड़ते ह, ये बहत ही तनावपूण व भागमभाग से भरे होते ह जब हम पूण प से
न द लेने के बाद अपना काय करगे तो पूरी िशद के साथ और तनाव रिहत मु ा म सही प
से करगे, जसका असर हमारे काय पर भी पड़ेगा और वो सही तरह से पूरा होगा, इससे हम
अपने काय े म तो सफल ह गे ही साथ ही हमारा वा य भी उ म होगा, जससे हम स ता
व सफलता भी अनुभव करगे जीवन म। इसके िवपरीत अगर न द भरपूर मा ा म नह लगे, तो
हमारे बैठने का अंदाज काय थल पर ना केवल टेड़ा-मेड़ा होगा, ब क उबाऊ और थकावट भरा
भी होगा, इस लए ज री है िक ात: होने से अथात् सूय क िकरण के आगमन से पूव 6-7
घंटे क भरपूर न द ली जाये। िदल व िदमाग व पेट को पूण आराम देने के लए वै ािनक का
मानना है िक भरपूर न द इंसान के पूण यि व पर सकारा मक भाव डालती है।

अ छा व शु भोजन
अ छा खाना अ छे वा य क िनशानी माना गया है, कहते ह- जैसा खाए अ , वैसा हो
जाए मन यानी एक पूण स तु लत भोजन इंसान को भरपूर मान सक शांित देने के लए काफ
होता है। जब मन शा त रहेगा, तो यि अपने काय ं को पूरी एका ता के साथ कर पायेगा,
खाना जतना शाकाहारी व कम िमच-मसाले का होगा, वह उतनी ही सकारा मक ऊजा दान
करे गा ही साथ ही साथ आपक सेहत को सही रखकर आपके धन ास को रोककर धन वृि
करे गा और आपके काय थल पर आपक कु शल छिव बनाने म मदद भी करे गा।

अ य धक कॉफ -चाय से परहेज


ऑिफस म तनाव मु रहने के लए ज री है िक कॉफ -चाय आिद गम पदाथ ं के सेवन से
बच। ितिदन ऑिफस म 2 कप चाय-कॉफ से यादा का सेवन न कर, य िक कॉफ व चाय
म पाया जाने वाला कैफ न का यादा सेव-न िडहाइडेशन व इनडाइजेशन खराब करने का
कारण होता है।

घर से लाएं लंच अपना


आज ऑिफस कै टीन लंच का चलन बहत जोर पर है, ये चलन वा य के लए नासूर
क तरह से है जो िक धीरे -धीरे वा य पर अपना असर डालता है, य िक ऑिफस कै टीन म
आपके पास खा पदाथ ं को चयन करने क िगनती आपक इ छा व वा यनु प हो ऐसा
संभव नह होता, आपको वही खाना होगा जो िक कै टीन म उपल ध होगा। अ धकतर वहां पर
हाई कैलोरी व वसा यु भोजन ही होता है, जो िक वा य के लए हािनकारक माना जाता है,
इस लए जतना हो सके घर का बना लंच ही कर।

यायाम
रोजाना कु छ देर िकया गया यायाम आपको हमेशा ऑिफस म चु त‐द ु त रखेगा। ये हम
सभी जानते ह िक यायाम करने से न केवल शरीर चु त व मजबूत होता है, ब क सुडौल
होता है। सुडौलता के कारण जब लोग शंसा करते ह, तो उससे गजब का आ मिव वास बढ़ता
है और ऑिफस म अ धक फुत के साथ यि काम करता है।

पानी का सेवन
अ धक व चुर मा ा म पानी का सेवन िडहाइडेशन को रोकता है, जसके कारण शरीर म
तनाव काफ कम मा ा म होता है और जब तनाव रिहत इंसान होगा तो िन चत प से ही
काफ अ छे तरीके से अपना काय करे गा। इस लए ऑिफस म कम से कम 5-6 िगलास पानी
िपएं साथ ही जब आपको लगे िक आपका गला सूख रहा है, आप िकसी भी वजह से तनाव म
ह, तो पानी तुर त िपएं। इससे तनाव मु ह गे आप। हो सके तो अपनी डे क पर हमेशा पानी
क भरी बोतल रख और समय-समय पर पानी िपएं, ऑिफस के साथ-साथ घर पर भी पानी
खूब िपएं।

ेक टाइम
ऑिफस म काम करते व आप हमेशा इस बात पर यान द िक काम करते व लगातार
काम ना कर, इससे आप ज दी थक जाएंग।े इस लए आप थोड़ा काम कर, िफर थोड़ा रले स
कर। रले स करने से आप अ धक ऊजा के साथ काम कर पाएंग।े

लाभकारी ीन टी
जब भी आपको ऑिफस म लगे िक आप तनाव त ह और कमजोरी महसूस कर रहे ह, तो
उस व आपके लए ज री है िक आप ीन टी का सेवन कर। ीन टी आपके शरीर क ना
केवल थकावट दरू करे गी, ब क आपके शरीर के एंटीऑ सीडट भी िनकालेगी, साथ ही
कोले टॉल को भी नामल रखेगी।

फल का सेवन
फल का सेवन अपने भोजन म ज र कर, फल ना केवल फूित देते ह, ब क शरीर को
मजबूती भी दान करते ह। इस लए अपने भोजन म ितिदन दो फल का सेवन ज र कर।

सूखे मेवे
ितिदन एक मु ी सूखे मेव , यानी बादाम, काजू, अखरोट, मुन का का सेवन ज र कर ये
हि य को मजबूती दान करते ह, जसके कारण शरीर म फूित बनी रहती है।

आंख का यायाम
एका ता से काम करने के कारण सबसे यादा भाव पड़ता है, आंख क पुत लय पर जो
िक एक टक एक ही िदशा म लगातार देखती ह। इस लए ज री है िक इनको आई योगा ारा
थोड़ा सा िव ाम िदया जाये, आई योगा से ना केवल आंख को आराम िमलेगा, ब क आपको
आंख क रोशनी भी तेज होगी।

सीि ़य का योग
ऑिफस म ल ट क जगह सीिढ़य का योग कर तो ये एक तरह का यायाम ही होगा
जोिक आपक फूित को और भी बढ़ायेगा, आपको पूरी तरह से िफट रखेगा।

काम को खुश होकर कर


आप जो भी काय ऑिफस म कर रहे ह, उसको पूरी एका ता व खुशी के साथ कर अगर
आप अपने काय को करते समय पूरी लगन िदखायगे तो अपने काय थल पर खुश रहगे।
अपने काय थल पर एक खुशनुमा माहौल बनाकर रख। खुश रह व दसर
ू को भी खुश रख।

⦿⦿⦿
मान सक रोग और मिहलाएं
मा नइनसेसक रोगसतयूंपाईतो िकसी को भी हो सकते ह, लेिकन हमारे यहां अ धकतर मिहलाएं ही
जाती ह। संभवतः इनके पीछे मूल कारण उनके आस-पास का
वातावरण, पा रवा रक माहौल या परव रश संबध ं ी िवसंगितयां हो सकती ह।
मान सक रोग िकसी भी आयु वग के लोग म िबना िकसी भेद के हो सकते ह। ब चे से लेकर
बड़े-बूढ़े तक इनक चपेट म देखे जा सकते ह। हां कु छ िवशेष कारण क वजह से ये ब च
और य को अ धक परे शानी म डाल देते ह।
मिहला वग म मन तंि का ताप (साइको यूरो सस) तथा सव के उपरा त होने वाला मन ताप
(साइ ो सस) मु य है। मन तंि का तापी अवसाद (िह टी रया िड ेशन) तथा घबराहट
(दधु चता तंि का ताप) के रोगी ही अ धक सं या म देखे जाते ह।

ल ण
िह टी रया के ल ण िकसी भी रोगी के रोग म िमल सकते ह। बेसुध हो जाना, दांत बंद करके
घंट उसी हालत म पड़े रहना, हाथ-पैर म सूजन आ जाना, िकसी अंग िवशेष म कमजोरी,
िहचक , दद, लगातार डकार आना, बोली बंद हो जाना तथा तरह-तरह क आवाज मुंह से
िनकलने म यह रोग प रलि त होता है।
िड ेशन म रोगी उदास रहता है। बार-बार रोता है, न द नह आती, िकसी काय को करने म
मन नह लगता, एक थान पर केवल पड़े रहने क इ छा होती है। यह रोग ाय: सदमे के
कारण होता है। इसके मुख कारण िकसी िनकटतम यि क मृ यु, धन-हािन, परी ा म
असफल होना, नौकरी या रोजगार का चले जाना तथा मानहािन हो सकते ह।
घबराहट (एं जाइटी) म िदल क धड़कन तेज हो जाती है। सीने म घुटन और मन म भारीपन
बढ़ता ही जाता है। सांस क गित बढ़कर मौत का अहसास कराने लगती है। िदल के दौरे म भी
इसी कार के ल ण िदखाई देते ह। ई.सी.जी. तथा अ य िकसी कार क जांच से िकसी भी
तरह क खराबी का पूरा पता नह चलता है।
सव के बाद कई बार मन ताप म रोगी मनोिवदलता ( सजो े िनया), उ मादी अवसादी
मन तापी (मैिनक िड े सव साईको सस) तथा अंिगक मन ताप (ऑगिनक साइको सस) इ यािद
से पीिड़त हो सकता है। इसके ल ण म न द नह आना या आकर उचट जाना, ठीक से नह
बोलना, तोड़फोड़ करना, लगातार रोना या हंसते रहना, खाने-पीने, मल-मू यागने का यान
नह रखना, दसर ू को श ु समझना, नवजात िशशु के पालन व दल ु ार का यान नह रखना भी
शािमल है।
इन रोग के कारण के बारे म िन चयपूवक तो कु छ भी कहना किठन है। लेिकन अ धकतर
इनके पीछे पुराने रीित- रवाज क िवसगंितयां ही पाई जाती ह। यह रोग गरीबी, असीिमत
प रवार, पा रवा रक दबाव, अिश ा, काम के बोझ, पित क अनुप थित के कारण से उ प
होते ह।
िह टी रया म रोगी को यिद बेहोशी आ जाए, तो उसे कु छ समय के लए अकेला छोड़ देना
चािहए। सुग धत पदाथ ं को सुंघाने क अपे ा रोग के कारण को तुरंत पता लगाकर ही िनदान
करना चािहए।
मनोिचिक सा (साईकोथेरैपी) एवरशन थेरैपी तथा अ य औष धय क सहायता से उपचार
करना चािहए। आसपास के वातावरण म सुधार भी करना चािहए। िड ेशन को दरू करने म,
औष धय का उपयोग, मनोिचिक सा, यायाम, घुमाने के लए बाहर जाना, धािमक िश ा
इ यािद मह वपूण हो सकते ह।
सव के बाद मन ताप म परे शान रोगी को िन चत ही िकसी िचिक सालय म भत करा देना
चािहए। वहां पर औष धय का उिचत सेवन, खान-पान का यान तथा ई.सी.जी. क
आव यकता को भी समझना चािहए। उसके ित आ मीय वातावरण भी बनाए रख।
अगर य म इस तरह के रोग क कमी करना चाहते ह, तो उनके ित अपने ि कोण को
बदलकर आ मीयता का भाव कट करना चािहए। उनके मान सक वा य को ठीक रखने के
लए सा वक िवचार धान, मनोवै ािनक, धािमक सािह य भी पढ़ने को देना चािहए। इससे
उनम वैचा रक प रवतन आएगा।

⦿⦿⦿
य हो जाती ह
मिहलाएं िचड़िचड़ी?
िच ड़िचड़ापन इंसान क भीतरी असंतु ता को दशाता है और इंसान कभी भी पूरी तरह
संतु नह होता, शायद यही कारण है िक वह कभी-न-कभी वजह-बेवजह झ ा उठता
है या यूं कह िचड़िचड़ा हो जाता है, लेिकन मिहलाओं के अंदर िचड़िचड़ापन कु छ यादा ही
देखने को िमलता है। अधेड़ उ क अव था के आसपास पहच ं ते ही वह और भी िचड़िचड़ी हो
जाती है। मिहलाएं य हो जाती ह िचड़िचड़ी? इसके कई मान सक, शारी रक, सामा जक एवं
यि गत कारण ह, आइये डालते ह इन पर एक नजर।
पु ष के मुकाबले मिहलाओं के अ धक िचड़िचड़े होने का एक कारण है उनक परव रश।
मिहलाओं को बचपन से ही भेदभाव के साथ पाला जाता है। लड़क को जतनी वतं ता दी
जाती है, लड़िकय पर उतनी ही पाबंदी होती है। लड़िकयां कभी वतं होकर नह जी पात ।
हर काय के लए या तो उ ह िकसी पर िनभर होना पड़ता है या िफर अपनी खुिशय को पाने
के लए ज ोजहद करनी पड़ती है। घर म भाई एवं िपता क नजर एवं संर ण म होती ह, तो
शादी के बाद पित एवं नए प रवार क पाबंिदय म।
जब तक मिहलाएं छोटी यानी लड़िकय के प म होती ह तब तक यादा सोच-समझ नह
पात या यूं कह िक वह िव ोह या िति या नह कर पाती और तो और िववाह को समाज एवं
सं कार का ज री अंग मानकर उन पर थोप िदया जाता है, िबना ये जाने िक वे या चाहती ह
या नह और िफर वह एक घर क नह , दो घर क इ जत बन जाती ह। न केवल नया घर,
ब क नई ज मेदा रयां, नए र ते आिद उसी के कंधे पर आकर लद जाते ह। यह सारे
प रवतन एवं भेदभाव लड़क से यादा लड़िकय क झोली म अ धक आते ह।
लड़क भले ही िकतनी ही पढ़ी- लखी, कमाऊ एवं सुंदर-सुशील हो, शादी म दहेज आिद भी
खूब लाई हो, उसे िफर भी इस बात का अहसास रहता है िक पित उसे कु छ भी कह-सुना
सकता है। यह बात उसे सदा याद रहती है िक यिद उसे समाज म चैन व इ जत से जीना है तो
पित को हर हाल म वीकार करना पड़ेगा। पु ष धान देश म वयं का तर देखकर उसे
खीज होती है तथा इन सबके ित वयं को वह लाचार एवं मजबूर पाती है और मन म समाज,
पु ष एवं वयं के ित िचड़िचड़ापन घर करने लगता है।
इन सबको वह देखती रहती है, सहती रहती है। कई बार िति या करती है कभी नह भी
करती। यिद िति या करती भी हो तो भी उसे भला-बुरा सुनना पड़ता है। उसे तेज, बदतमीज
या िनल ज आिद कहा जाता है, जसके चलते भीतर ही भीतर वह घुटती रहती है। कभी
ब च , तो कभी घर क ज मेदा रय म खुद को बांटती रहती है, खुद को उलझाती रहती है
तािक घर-प रवार एवं पित-ब चे आिद सब ठीक से चलते रह। इस बीच उनके अंदर बहत
कु छ इक ा होता रहता है।
मिहलाएं न केवल र त एवं ज मेदा रय म उलझकर एवं बंधकर रह जाती ह, ब क
अपने बारे म ठीक से सोच भी नह पात । अ धकतर मिहलाओं क वािहश, सपने, शौक एवं
उ े य आिद यूं ही धरे के धरे रह जाते ह। ितभा-हनर सब दबी क दबी रह जाती है। ले-
देकर यिद कु छ मिहलाएं अपना अ त व या वजूद बनाने क कोिशश भी करती ह, तो उ ह
अमूमन या तो कई समझौते करने पड़ते ह या िफर कई र त एवं सुकून से उ ह हाथ धोना
पड़ता है। वतं ता और वीकृित, वजूद और घर-प रवार उ ह एक साथ सरलता से नह
िमलते।
घुटन और िनभरता का यह सल सला चलता रहता है। ब चे बड़े होने लगते ह, कमाने लगते
ह। जेनरे शन गैप के कारण िवचार एवं रहन-सहन म अंतर व भेदभाव उभरने लगता है। ब चे
अपने अंदाज से कमाते व पैसा खच करते ह। िफर घर के नए पद ह या िफर रसोई का
सामान आिद सभी चीज पर मिहलाओं को पित या ब च पर आ त होना पड़ता है। छोटी-
छोटी चीज के लए अपन का मोहताज होना पड़ता है। उसका अपनी खुद क कमाई पर भी
उतना अ धकार नह होता, जतना पित अपनी कमाई पर रखता है।
भले ही आज क मिहलाएं कार या कू टर चला रही ह , लेिकन उ के पड़ाव के बाद उ ह
भी अपने बह-बेटे पर आ त होना ही पड़ता है। कह जाना हो तो वह इस लए नह जा पात
िक कार कौन चलाएगा? भारी समान कौन उठाएगा आिद? पु ष तो बाहर घूमकर, द तर या
काम-धंधे म जाकर लोग के बीच अपना िदन गुजार लेते ह तथा मन को शांत कर लेते ह,
लेिकन मिहलाएं घर म अकेलेपन के कारण और िचड़िचड़ी होने लगती ह।
िचड़िचड़ेपन के तमाम कारण म से एक कारण कई बार घर क ‘बह' भी बन जाती है,
अथात् जस घर व बेटे को उसने अपने ढंग से संवारा व संभाला था, उसे वह अपने से िछनता
हआ पाती है। जीवन क हर यवहा रकता को समझते-बूझते भी इस स य को सरलता से
वीकार नह कर पाती िक उसके बेटे पर अब उसका नह उसक बह का हक यादा है। जब
वह अपने ही बेटे को कई बात पर अपने खलाफ व बह के साथ पाती है, तो उसे यक न नह
होता, जसके चलते उसम जंदगी एवं र त के ित एक िचड़िचड़ेपन का भाव घर करने
लगता है।
मिहलाओं म सबसे अ धक िचड़िचड़ापन 40-45 वष क उ के आसपास देखने को िमलता
है, जब वह मेनोपॉज से गुजर रही होती ह। मेनोपॉज अथात् रजोिनवृ । यानी मा सक धम का
क जाना। िकशोराव था म ार भ हआ मा सक धम 40-45 वष क उ के आस-पास
समा हो जाता है। इसी के साथ मिहलाओं म जनन करने क अव ध एवं मता भी समा
हो जाती है या होने लगती है। जसके कारण यौन शि या यौन आनंद म भी उनक िच ीण
होने लगती है।
रजोिनवृ के चलते मिहलाओं म कई शारी रक एवं मान सक प रवतन आते ह, ज ह वह
वीकार नह कर पात और िचंता एवं िचड़िचड़ेपन का िशकार हो जाती ह। जैसे हॉट लशेज
अथात् शरीर म ज रत से यादा गम लगना। न द न आना या रात म िब तर से उठ जाना,
अ धक पसीना आना, नायु तनाव, िड ेशन, थकान, च कर आना, शरीर म कंप महसूस
करना या शरीर का स हो जाना, वजन बढ़ जाना, तन का लटक जाना, चेहरे पर अनचाहे
बाल का उग जाना, झाइयां पड़ जाना आिद।
रजोिनवृ का मिहलाओं पर शारी रक भाव जो पड़ता है सो पड़ता है, लेिकन इसका
मान सक भाव मिहलाओं को अ धक भािवत करता है, जसके कारण मिहलाएं वयं को
िनभर और असुरि त महसूस करती ह जसक वजह से िचड़िचड़ापन और बढ़ने लगता है।

मिहलाओं को लगने लगता है िक अब उनम पहले वाली वो बात नह रही वह से स के


लए नह बच , इस लए उनका पित उनम िच नह िदखाता। ऐसे म छोटी नोक-झ क भी
उ ह बड़ी लगती है और वभाव और िचड़िचड़ा होने लगता है।
वयं के शरीर म आए बदलाव को मिहलाएं वीकार नह कर पाती, उ ह अपना स दय
एवं ताकत खोती हई मालूम पड़ती है, जसके चलते वह वयं को असहाय एवं िनभर पाती
ह।
उ और रजोिनवृ के चलते मिहलाएं वह सारे काम उतनी फुत से नह कर पात ,
जतना पहले करती थ । इसके चलते या तो काय पूरे नह हो पाते या िफर ठीक से नह हो
पाते। ऐसे म उ ह अपने ही काम से संतुि नह िमलती और मन िचड़िचड़ा होने लगता है।
मेनोपॉज के कारण जो प रवतन आते ह सो तो आते ही ह, परं तु कई और अ य, बाहरी
कारण भी होते ह जनके कारण मिहलाएं िचड़िचड़ी हो जाती ह। जैसे-
मेनोपॉज क जो उ होती है यह लगभग वही उ होती है, जब ब चे बड़े हो जाते ह।
अपनी इ छा से अपनी उ से जीना चाहते ह या तो वह मां का कहना नह मानते या िफर
अपनी पढ़ाई- लखाई के लए घर से बाहर रहने लगते ह या िफर शादी हो जाती है, तो वह
अपने जीवनसाथी के साथ अ धक य त हो जाते ह और उनक ाथिमकताएं बदल जाती
ह।
इसी उ के आसपास या तो सास-ससुर ख म हो जाते ह या िफर उ ह कोई ऐसा रोग घेरे
रहता है िक जसक सेवा उससे नह हो पाती और यिद वह गुजर जाते ह, तो वह अकेली
हो जाती ह।
लगभग इसी उ के आसपास पित भी रटायर होता है, जसके कारण वह अपना
अ धकतर समय घर म ही िबताते ह, जसके चलते काम भी बढ़ जाते ह और रोज क
िचकिचक भी।

इ ह तमाम कारण को पु ष नह समझ पाता और उ टा यह कहता है िक तुम पहले जैसी


नह रही, तुम िकतनी िचड़िचड़ी हो गई हो, कोई भी काम ठीक से नह करती, हर बात पर
बहस करती हो या शक करती हो, गु सा तु हारी नाक पर रखा रहता है आिद, तो ी को
और भी बुरा लगता है िक जसके साथ उसने इतना व िबताया है, वही उसे नह समझता तो
पु ष का यही वभाव ी के िचड़िचड़े वभाव म घी का काम करता है।
⦿⦿⦿
पु ष अपना दद
य िछपाते ह?
क हते ह िक ‘दद बांटने से बंट जाता है' पर य क तुलना म यह बात पु ष पर गलत
सािबत होती है, य िक पु ष दद को बांटने क बजाय उसे िछपाने म यक न रखते ह। यह
उनक आदत है या अहम? जािनए
हमारे समाज म ी और पु ष क जो प रभाषा दी गई है, कह न कह पु ष के ारा अपना
दद िछपाने म उस प रभाषा या मा यता का योगदान रहा है। जहां एक ओर ी बात-बात पर रो
देती है या सरलता से कह देती है, वह पु ष रोने को, आंसू बहाने को अपनी कमजोरी समझता
है। इतना ही नह , शारी रक ि से भी दोन आपस म िभ ह। ी का शरीर कोमल व नाजुक
है, उसक हि य और शरीर का जो ढांचा है, उसक जो कोमलता है, वह उतना सब कु छ
बदा त नह कर सकती, जतना एक पु ष कर सकता है। पु ष का शारी रक ढांचा मिहलाओं
से अलग है। वह लड़ भी सकता है, वजन भी उठा सकता है, ब ल है, इन िविभ ताओं को
देखते हए कु दरत ने भी कह न कह ी-पु ष को िभ बनाया है। ये ल ण ी म कु दरती तौर
पर मौजूद ह िक जब वह िकसी दद को सहती है, तो वह सरलता से िकसी से भी कह देती है,
य िक उसे उ मीद होती है िक कोई उसके दद को सुनने वाला है। कह न कह उसे सहानुभूित
भी चािहए होती है। हर मिहला खुद को भले ही झांसी क रानी समझती हो, लेिकन दद िछपाने
म पु ष मिहलाओं से अ धक कु शल ह। वे अपने चेहरे पर िशकन तक नह आने देते, य िक
वे खुद को मजबूत पु ष के प म िदखाना चाहते ह।

दद िछपाने के कारण
पु ष अपना दद य िछपाते ह, इसके पीछे भी कई कारण ह जैसे-

सामा जक प रवेश
हमारे समाज म आंसू बहाना या सहानुभूित मांगना ी के गुण माने जाते ह। कह कोई उ ह
ी कहकर संबो धत न कर दे, यह डर भी पु ष को अपना दद िछपाए रखने के लए मजबूर
करता है। ी जब सहानुभूित मांगती है, तो उसको हम कमजोर नह कहते। वह जब पु ष
अपने द:ु ख का िढंढोरा पीटता है, अपना दद जताता है, तो बदले म उसे सहानुभूित नह िमलती
ब क उसक तुलना ी से क जाती है।

परव रश क भूिमका
कह न कह हमारे समाज म बचपन से मन म यह भर िदया जाता है िक रोना व दख ु -
तकलीफ जताना यह तो लड़िकय का काम है, यह लड़क को शोभा नह देता। लड़के को चोट
लग जाए तो यादा िचंता नह क जाती लेिकन अगर लड़क के चेहरे पर जरा सा दाग भी लग
जाए तो मां-बाप को िचंता सताने लगती है। इसक शादी करनी है। इसके चेहरे पर चोट लग गई
उसका िनशान जाएगा िक नह जाएगा। कृित और हमारी परव रश काफ हद तक ज मेदार
है, जसके कारण पु ष अपना दख ु केवल अपने तक ही िछपाकर रखता है।

जगहंसाई का डर
पु ष को हमेशा यह डर लगा रहता है िक यिद म अपना दद सबसे बांटूंगा या िकसी के आगे
रोऊंगा तो लोग या कहगे? यहां पु ष का अहं और वािभमान पु ष को अपना दद बांटने से
रोकता है। हालांिक वािभमान य म भी होता है, लेिकन मिहलाओं के लए रोना उनक
बेबसी को दशाता है, उनक संवेदनशीलता का प रचय देता है। मिहलाएं अ धक संवेदनशील
होती ह, इस लए वे बात-बात पर रो पड़ती ह। पु ष अपने काम-धंधे म, आने-जाने म, लोग से
िमलने के दौरान वह अपने दद को भूल सा जाता है। इस लए वो रो नह पाता है।

संर क क भूिमका
पु ष को समाज म संर क व पालक क भूिमका म देखा जाता है। उसके ऊपर उसके
प रवार क ज मेदा रय का भार होता है। ऐसे म वह अपना दद बयां करके खुद को कमजोर
नह सािबत करना चाहता। पु ष अपने दद को िकसी से नह बांटता। िफर चाहे वह प रवार क
सम या हो, बॉस से अनबन या यवसाय म नुकसान हो, वह िकसी को कु छ नह बताता। वो
अपनी ज मेदा रयां व मान सक तनाव को िकसी और के ऊपर नह डाल सकता। उसे लगता है
िक यिद वह िकसी को अपने शारी रक या मान सक क के बारे म बताएगा तो वह कमजोर
िगना जाएगा। इस लए वह खुद ही घुटता रहता है।

यवहा रक होना
यां अपना दद बहत ज दी िकसी से भी कह देती ह। वह पहले िकसी एक सहेली को
बताती है िफर िकसी और को। लेिकन पु ष इस मामले म बहत यवहा रक होते ह, वह पहले
तो न िकसी से ज दी दो ती करते ह और न ही िकसी दो त पर भरोसा करके उसे सब कु छ
कहते ह। बहत ही कम लोग से वह अपने िदल क कोई गहरी बात बयां कर पाते ह। वह
र त म ज दी िव वास नह करते। वह बहत यादा यवहा रक होते ह। इस लए वह रोने-धोने
जैसे पचड़ म नह पड़ता। लेिकन ी रोती-धोती है। एक ही बात को कई बार कहती है। हो
सकता है िक वह उस बात को कई िदन , महीन व वष ं तक भी ख चे। जबिक पु ष एक बात
को बार-बार न कहना और न सुनना पसंद करता है।

आ मिनभर होना
पु ष हमेशा से आ मिनभर रहा है। इस लए वह अपने िदल क बात िकसी से ज दी नह
कहता। ी हमेशा से िनभर रही है। वह बचपन से लेकर बुढ़ापे तक अपने माता-िपता व पित
पर िनभर रहती है। उसे लगता है िक जब तक म अपने िदल क बात िकसी को बता नह दग ं ू ी,
तब तक ह क नह होऊंगी। जबिक पु ष जानता है िक अगर म यह बात िकसी एक से कहग ं ा
तो यह और चार लोग तक फैल ही जाएगी। पु ष को अपनी छिव क भी बहत िफ रहती है।
वह जानता है िक दद बताने से सफ उसक जगहंसाई ही होगी। वह अपने दद को ही नह अपने
अहं, वािभमान व अपनी छिव को िछपाता है। य िक जो छिव हमने पु ष क बनाई है, गढ़ी है
वह दद के बयां करते ही अपनी छिव म खरा नह उतरे गा। पु ष क सश छिव इसी म
बरकरार रहती है िक वह दद को सहे, बदा त करे , यवहा रक हो, ी क तरह बात को न
बढ़ाए संवेदनशील न हो और न ही आंसू बहाए।

⦿⦿⦿
दांप य जीवन और तनाव
ज स तरह का आजकल जीवन व जीवन शैली है, उससे इंसान को तनाव न हो ऐसा हो
नह सकता। एक छोटे से कू ली ब चे को भी अपनी तरह का एक तनाव होता है। ऐसे
म िफर वय क कैसे बच सकते ह और वो भी पित-प नी। शादी के बाद तो दा प य जीवन म
तनाव तो जैसे जीवन का एक अहम िह सा हो जाता है, और उसम भी अगर पित-प नी जॉब
पर ह, तो तनाव का दगु ना होना लाजमी है। ऐसे म पित-प नी या कर, कैसे दा प य सुख म
आ रहे तनाव को दरू कर यह जानना ज री है? कैसा हो एक दसरे ू का एक दसरे ू के ित
यवहार व बताव िक तनाव न रहे, इसके लए ज री है िक दोन िन न बात पर गौर कर।

ऑिफस का तनाव
पित-प नी दोन कामकाजी ह तो हो सकता है िक अ सर ऑिफस म ऐसी घटनाएं ह ,
जससे मूड खराब हो जाए। ऐसे म घर-आकर ऑिफस के तनाव से एक-दसरे ू का मूड खराब
करना ठीक नह है। अ सर जब प नी कामकाजी नह होती है, तब पित के घर आते ही सारे
िदन के घरे लू समाचार क झड़ी लगा देती है या ब च क िशकायत और पड़ो सय क बात
शु कर देती है। ऐसे म पित का मूड अगर िकसी बात से ऑिफस म खराब हआ है, तो वो
और यादा िबगड़ जाता है, िफर वो ऑिफस क िचड़िचड़ाहट ब च पर िनकलता है या िकसी
बात पर प नी से झगड़ा शु हो जाता है।
एक फम म इंजीिनयर आशीष अ वाल अपनी प नी ि या क घर आते ही काम बताने क
आदत से काफ परे शान ह। आशीष बताते ह, ‘एक िदन ऑिफस म इतनी बड़ी बात हो गई िक
मने सोचा म नौकरी ही छोड़ दगं ू ा, ऐसे मूड म जब घर आया तो ि या ने अपनी नई साड़ी
िनकाल के कहा, अभी बाहर जाइएगा, तो फॉल वाले के यहां दे दी जएगा। मने गु से म साड़ी
ही फाड़ दी, बाद म मुझे अफसोस हआ पर उस व म खुद पर कंटोल नह कर पाया।' ि या
जैसी कई यां होती ह, जो पित के घर आते ही िबना मूड जाने शु हो जाती ह और अपनी
इस छोटी-सी नासमझी के कारण घर का माहौल भी खराब कर लेती ह।

पा रवा रक तनाव
कभी-कभी पित-प नी के बीच तनाव का कारण यि गत न होकर पा रवा रक होता है।
प रवार क िकसी घटना को लेकर उनके बीच भी तनाव हो जाता है। िद ी म एक कॉल
सटर म काम कर रही िहमांशी को जब पता चला िक उसका देवर कु छ िदन के लए िकसी
परी ा क तैयारी के सल सले म िद ी म रहेगा और उसक ननद भी िडलीवरी के लए
उसके पास िद ी आना चाहती है। िहमांशी क काल सटर म िश ट बदलती रहती है, इस लए
िहमांशी को सोच-सोचकर काफ तनाव हो गया िक अगर वो ठीक से केयर नह कर पाई तो
प रवार म उसक बुराई होगी। उसक खुद क नौकरी ऐसी है िक उससे अपने ही काम ठीक से
नह हो पाते ह। िहमांशी ने जब अपने पित नवीन से कहा तो उ ह अ छा नह लगा। नवीन ने
कहा कु छ िदन क तो बात है, अब िहमांशी समझ नह पा रही थी िक वो कैसे समझाए िक वो
ठीक से यान न दे पाई तो उसे िकतनी िशकायत सुनने को िमलेगी। अ सर ऐसा होता है िक
पित-प नी के कामकाजी होने पर िकसी ी के लए अ य भूिमकाएं पूरी पूणता के साथ
िनभाना मु कल हो जाता है। जबिक पित अपने प रवार के सद य के साथ हर हाल म पूरे
मान-स मान क अपे ा अपनी प नी से रखता है। ऐसे म कभी-कभी प रवार को लेकर भी
पित-प नी के बीच तनाव हो जाता है।

ब च क सम याएं
पित-प नी के बीच म ब च क सम याओं को लेकर भी तनाव हो जाता है। यादातर ब चे
कोई गलती कर तो प नी को सुनने को िमलता है िक ‘ या सखाया है तुमने ब च को', कोई
अ छा काम करे तो पित सारा ये ‘आ खर ब चा िकसका है' कहकर खुद ले लेते ह। ऐसे म
ब च क पढ़ाई- लखाई या उनक अ य सम याओं से भी पित-प नी के बीच म तनाव आ
जाता है। ब च क ज मेदारी पित-प नी दोन क ही होती है, इस लए एक-दसरे ू पर लांछन
लगाना उिचत नह है। पित-प नी दोन कामकाजी ह, तो ब च का यान थोड़ा-थोड़ा दोन को
ही रखना पड़ेगा। उनके होमवक, उनक िनजी सम याओं के ित दोन को ही जाग क रहना
पड़ेगा। अगर प नी हाउसवाइफ है, तो प नी ब च को यादा अ छी तरह रख सकती है,
लेिकन िफर भी पित को िपता का कत य िनभाना ज री है। चाहे िकतनी ही य तता हो, उसे
समय िनकालकर ब च से उनके कू ल का हाल, उनका होमवक इन बात क जानकारी लेनी
ही चािहए। इससे ब च को भी लगेगा िक आप उनम िदलच पी ले रहे ह। साथ ही आपका मूड
भी ब च से बात करके ठीक हो जाएगा।

समझदारी है ज री
पित-प नी के बीच िकसी भी कारण से उपजा तनाव उनके दा प य म दरार न डाल दे, इसके
लए ज री है िक उनम आपस म समझदारी हो। ऐसा भी नह करना चािहए िक सारी
सम याओं को, तनाव को वयं तक सीिमत रख, एक-दसरे ू से न कह। पित-प नी अपनी
सम याएं एक-दसरेू के साथ नह शेयर करगे तो कहां करगे? बस ज रत इस बात को
समझने क है िक उस बात को कब और कैसे बताया जाए? कु छ लोग का मानना है िक
ऑिफस को घर पर लेकर नह आना चािहए, ये बात कु छ हद तक तो ठीक है, लेिकन अगर
कोई बात ऑिफस म ऐसी हो गई, िक जसक वजह से मूड यादा खराब है, तो यि घर म
वैसे ही मूड से आएगा। कोई भी यि यं नह है िक घर आते ही अपना बटन दबा दे सब
भूल जाए। सारे िदन होने वाली घटनाओं का असर तो होगा, इस लए पित-प नी घर आकर
कु छ समय िनकाल कर अपनी सम याएं एक-दसरे ू को बता कर ह के हो सकते ह। प नी
अगर गृिहणी है, तो उसे भी समझना चािहए िक पित के आते ही सम याओं, िशकायत का
िपटारा खोल कर नह बैठ जाना। पित जब े श हो जाए, तब मौका देखकर अपनी बात
कहनी चािहए।

समझ उनके िदल क भी


आमतौर पर पित अपने ऑिफस क सम याएं प नी को बताकर ह के हो जाते ह, लेिकन
प नी क सम याएं नह सुनते ह। उ ह इतनी ाथिमकता नह देते ह। एक ाइवेट बक म
कायरत र म ने जब अपने पित उदय को ऑिफस म एक सहकम ारा िकए द ु यवहार क
बात बताई तो उदय ने कहा र म तु हारे साथ तो हमेशा कु छ-न-कु छ होता रहता है, कह
तुमम ही कोई कमी तो नह । र म उदय क बात से काफ आहत हई। ऐसा अ सर होता है िक
प नी अपने ऑिफस क सम याएं बताए तो पित ‘ लीज बोर मत करो, या ये िघसी-िपटी बात
लेकर बैठ गई।' कहकर बात टालना चाहते ह, लेिकन जब पित को वयं कोई तनाव हो तो
‘मूड बहत खराब है, कोई बात अ छी नह लग रही', फौरन कह देते ह। इस तरह का यवहार
एकदम अनुिचत है। अगर प नी कामकाजी है तो उसक परे शािनयां और तनाव भी उतने ही
मह वपूण ह, जतने िक पित के होते ह। प नी क बात को नजरअंदाज करगे तो ऑिफस का
तनाव तो रहेगा, उसे घर पर भी तनाव महसूस होगा। इस लए पित-प नी दोन को ही एक-दसरे

क मन: थित समझकर समझदारी िदखानी होगी।

यूं दरू कर तनाव


एक-दजेू के तनाव और परे शािनय को आपस म शेयर ज र कर। मन क बात कह देने
से मन ह का हो जाता है।
िकसी बाहरवाले से पित-प नी को एक-दसरे
ू क कोई बात पता चले, इससे बेहतर है खुद
ही एक-दसरे
ू को बता द।
अगर कोई ऐसी सम या है जसे आपस म सुलझाना संभव नह है, तो िकसी खास दो त या
काउं सलर क सहायता ले सकते ह।
ऑिफस से आने के बाद टीवी देखकर कह घूमने का काय म बनाकर या ब च के साथ
खेलकर मूड ठीक करने का यास कर।
अगर प नी गृिहणी है, तो पित का मूड ठीक करने के लए उसक पसंदीदा िडश बना
सकती ह या उ ह कोई सर ाइज दे सकती है।
अगर प नी का मूड खराब है, तो पित अपनी प नी के लए चाय बनाकर या कह घुमाने
ले जाकर मन बहला सकता है।
जीवन म तमाम खूबसूरत बात भी ह, सफ तनावपूण बात को सोच-सोच कर जीवन
बो झल बनाना ठीक नह है।
संवाद ज री
काउं सलर मधुमती संह के अनुसार पु ष और य का रलै स करने का तरीका अलग
होता है। पु ष को ऑिफस से आने के बाद थोड़ा समय चािहए, वो समाचार-प पढ़ते ह या
टीवी देखते ह, इसके बाद बातचीत शु करते ह। इस लए प नय को चािहए िक जब पित
थोड़ा रलै स कर ले, तब यि गत बात शु कर या वो खुद ही कु छ देर बाद पूछना शु
कर देते ह। तनाव को कम करने के आपस म संवाद होना बहत ज री है। कु छ ए टिवटी
पित-प नी क एक साथ होनी चािहए, जैसे वॉक पर जाना, लब या विमंग के लए जाना
इ यािद। एक और मह वपूण बात है िक से सुअल लाइफ भी अ छी होनी चािहए। इससे भी
तनाव दरू होता है। अ छी से स लाइफ, आपसी संवाद इ यािद से ... तनाव दरू करने म
सहायता िमलती है।

⦿⦿⦿
जान, ब च के तनाव को
ह मिचंतलगता है तनाव सफ बड़े लोग को ही होता है ब च को नह , ब च को िकस बात क
ा। उनको कौन सा घर-गृह थी चलानी है या र ते स भालने ह। पर यवहार म आए
बदलाव जैसे गु सा, िचड़िचड़ापन, भूख न लगना, न द न आना, कम अंक आना आिद बताते
ह िक वह भी तनाव त है।
आठ वष य अमन िपछले कु छ समय से िचड़िचड़ा, शांत व सु त-सा रहने लगा था। अमन
के इस यवहार से उसक मां बहत परे शान थी। उ ह समझ नह आ रहा था, आ खर अमन को
परे शानी या है? काफ परे शान होने पर अमन क म मी उसे मनोिचिक सक के पास ले गई।
शारी रक प से व थ अमन से बातचीत के दौरान मनोिचिक सक अमन के िचड़िचड़ेपन
और उदासी का कारण जानने म सफल हो पाए। दरअसल, अमन को पढ़ाई म अ वल रहने के
साथ-साथ ि केट म भी अ छा दशन करने के लए घरवाल क तरफ से लगातार दबाव
बना हआ था, जससे अमन दबा जा रहा था। उ भले ही छोटी थी, लेिकन घरवाल क
अपे ाओं पर खरा न उतर पाने का दख ु उसे अंदर से कचोटता जा रहा था, जस कारण उसके
भीतर कुं ठा और िचड़िचड़ाहट घर कर गई थी और धीरे -धीरे वो टे स म चला गया। सुनने म
बड़ा अजीब ज र लगता है, लेिकन आजकल के लाइफ टाइल और ब चे को ऑलराउं डर
बनाने क कोिशश म अ सर मां-बाप जाने-अनजाने म ब चे को टे स के गत म धकेल देते
ह।
यिद आप चाहते ह िक आपका ब चा पढ़ाई और खेल-कू द म अ छा दशन करे , तो उसके
लए ज रत है िक आप अपने ब चे को जानने क कोिशश कर। छोटे-छोटे ब च पर
कंपटीशन के कारण इतना दबाव बना रहता है िक इतनी छोटी उ म उनके लए इससे
िनपटना थोड़ा मु कल हो जाता है, लेिकन अिभभावक ब च क मनो थित और मता को
समझने क कोिशश कर और अपनी अपे ाओं को ब चे पर न लाद। इस तरह के टे स को
लाइफ टाइल टे स कहा जा सकता है, जसम ब चे पर इस बात का ेशर यादा होता है िक
वो फलां ब चे जैसा पढ़ने म तेज य नह है या िफर तुम पो स और यू जकल ए टिविटज
म बेहतर दशन य नह करते।

ब च म तनाव के ल ण
ब चे का बात-बात पर िचड़िचड़ाना।
हर व खोए-खोए रहना, िकसी भी ए टिविटज म यान न देना।
जरा-जरा सी बात पर रो पड़ना, नाखून काटना, ह ठ चबाना इ यािद।
िफ जिशयन डॉ. अशोक रामपाल के अनुसार टे स य िप मान सक रोग है, लेिकन इसका
असर ब चे के शारी रक िवकास पर भी पड़ सकता है। जैसे-
ब चे के पेट म बार-बार दद उठना।
ब चे म अितसार जैसा रोग भी हो सकता है।
शारी रक तौर पर ब चे क ोथ म भी बाधा आ सकती है।
टे स के कारण ब चा या तो बहत अ धक मोटा हो जाता है या िफर अ य धक पतला हो
जाता है। मनोिचिक सक का मानना है िक यिद ब चा टेस के दौर से गुजर रहा हो
तो उसके साथ िन न तरीके से अपनाकर, यवहार कर उसे टेस से बाहर
िनकाला जा सकता है:-
टे स के दौरान ब चे के साथ अ धक-से-अ धक समय गुजारने क कोिशश कर। उसे यार
व दल ु ार द तथा ब चे को यह महसूस न होने द िक वो िकसी कार क बीमारी से त
है।
मनोिचिक सक के परामश अनुसार दवाइय का इ तेमाल कर।
अिभभावक को चािहए िक वे ब चे से खुलकर बात कर। उसक अनकही सम याओं को
िबना पूछे समझने क कोिशश कर।
ब चे पर अपनी बात मनवाने के लए दबाव न बनाए, ब क उसे समझाकर मनाने क
कोिशश कर।
ब चे को बाहर घुमाने ले जाएं, उसे नई-नई चीज िदखाएं व अलग-अलग थान पर
घुमाएं, इससे उसके म त क म नए-नए िवचार आएंग,े जससे टे स को कम करने म
मदद िमलेगी।
सबसे ज री बात मनोिचिक सक के अनुसार टे स के दौरान ब चे म हाम स ं भी
असंतु लत हो सकते ह, इस लए ब चे के खान-पान पर िवशेष यान द।

⦿⦿⦿
डायरी लख, तनाव से बच
यूं तोमोबाइल
हर इंसान कु छ न कु छ लखता ही रहता है, िफर वह कं यूटर पर हो या कागज पर,
म हो या डायरी म, पर या आप जानते ह िक लखना जसे हम अपनी रोजमरा
क ज रत समझते ह, यिद उसे िनयिमत भावानुसार लख तो वह लखना हमारे लए औष ध
बन सकता है। हम हमारे तनाव से मु कर सकता है।
कहने को जनसं या िदन- ितिदन बढ़ रही है, भीड़ बढ़ रही है। इस भीड़ म साथ रहने और
साथ िनभाने वाले तो कई ह, लेिकन साथ देने वाले और मन को समझने वाले बहत कम।
आदमी भीड़ का िशकार इतना हआ है िक वह अपने म समटकर त हा हो गया है और उसक
यही त हाई उसके कई दख ु का कारण हो गई है, जसके कारण वह न केवल शारी रक एवं
मान सक दोन तौर पर ण हआ है, ब क इससे उसके यि व एवं आ मिव वास का भी
ास हआ है।
सच तो यह है आज आदमी क मजबूरी भी अजीब होती जा रही है। उसे उन लोग के साथ
रहना पड़ रहा है, जसका साथ उसे चुभता है। ऐसे म वह अपनी िदल क बात कहे तो
िकससे? जब कहने का मन होता है तो कोई सुनने-समझने वाला नह िमलता और कभी कोई
भूले-भटके िमल भी जाए तो खुद क य तताएं इतनी हो जाती ह िक कु छ भी कहने का मूड
नह होता। कभी माहौल नह िमलता तो कभी हालात नह मेल खाते। रोज-रोज क त हाई और
उससे उपजी घुटन अवसाद का प लेने लगती है और थित इतनी बदतर होने लगती है िक
सीने म सांस बोझ और जीवन बंधन लगने लगता है। अकेले रहने का मन करता है, तो कभी
मन हताश होकर खुदकु शी का िवचार बुनने लगता है। जब अनकही और अकेलेपन का यह
सल सला इतना गहराने लगता है तो मान सक एवं शारी रक रोग के प म शरीर गवाही देने
लगता है।
रोग भले ही शारी रक हो लेिकन उसक जड़ आदमी के मन से ही जुड़ी होती ह। बड़े-बड़े
जिटल एवं असा य रोग अ य प से मन से ही जुड़े होते ह, यहां तक िक से स संबं धत
75 ितशत रोग भी मन से ही संबध ं रखते ह। इस लए कहते ह न ‘ व थ मन ही व थ तन
का आधार है' और ‘पहला सुख िनरोगी काया' यिद मन व थ है तो तन व थ है और तन
व थ है, तो जीवन सुंदर है। इस लए कह सकते ह ‘ व थ मन ही सुखी जीवन का आधार
है।' और आज व थ व व छ मन कम ही देखने को िमलते ह। िमलावट व दषण ू बाहरी
चीज तक ही सीिमत नह है, वह कह न कह आदमी के मन तक भी अपनी पहच ं बना चुका
है। मन जो िक आधार है, वह कब और कैसे ण हो जाता है पता ही नह चलता। और
य िक मन िदखता नह है, इस लए हम उसक न तो सेहत पर यान देते ह, न ही उसक
खुराक पर। पर जब धीरे -धीरे शरीर रोग क चपेट म आता है तो उन रोग से पता चलता है
िक खराबी कु छ मन म है, कावट कह मन क है, जो तन पर रोग के प म उभर कर आ
रही है।
इस लए मन को व थ रखना बहत ज री है और मन क व थता के लए ज री है
‘बातचीत'। मन म दबी इ छाओं एवं भावनाओं को दबाने क बजाए समय-समय पर कट
करना चािहए। बहत कम बोलना, चुप-चुप रहना, अकेले रहना, िकसी काम म मन न लगना,
आलस और थकावट महसूस करना, या तो बहत न द आना या बहत कम आना, ज रत से
यादा भूख लगना या भूख उड़ जाना, अपने आप से बात करते रहना, समूह से बचना, बेवजह
िचड़िचड़े रहना या गु से से भरे रहना, नजर िमलाकर बात न करना, खोए-खोए रहना,
याददा त का कम होना, जीवन जीने म कोई झान न होना आिद िड ेशन के ल ण ह। यह
सब ल ण दशाते ह िक आप न केवल िड ेशन म ह, ब क त हा और दख ु ी भी ह।
आप न केवल अकेले ह, ब क आप खाली भी ह, यानी न तो आपके पास कोई बात शेयर
करने के लए है और न ही आप िकसी ि एिटकव ए टिवटी म शािमल ह, जसके कारण
आप अपने तक ही सीिमत ह। िफर मन क बात ह या भीतर क ऊजा दोन को ही जब कोई
िकनारा नह िमलता तो आदमी िड ेशन का िशकार होने लगता है पूरी तरह से न सही आंिशक
प से ही सही। यही हालत आदमी को न उसके काय थल पर संतुि देती है न ही आपसी
र त म। आज यही तो हो रहा है अ धकतर लोग न तो अपने काय या यवसाय से खुश ह न
ही अपने संबधं या साथी से।
यह हालत लगभग सभी क होती जा रही है और हो भी जाएगी य िक िकसी के पास िकसी
के लए व तो बहत दरू क बात है, इंसान के पास खुद अपने लए व नह है। जमाना होड़
और ितयोिगता का है, दशन और पहच ं का है। ऐसे म पैसा और टेटस यादा ज री हो
गया है। और इन सब के आगे शौक मरते ह तो मर जाएं, र ते िबखरते ह तो िबखर जाएं,
बस यही सोच रह गई है। यह आज का सच है। पर ‘सच' है, इसका मतलब यह नह िक सही
है। सही होता तो आदमी क आज जो हालत है वह न होती। लेिकन अब न उठता है कर तो
कर या? इस थित को सच या झूठ कहकर दर-िकनार तो नह िदया जा सकता। और रहा
सवाल आदमी का, जन आदत एवं रहन-सहन या लाइफ टाइल का वह आिद हो गया है,
उसे सरलता से रात -रात नह बदला जा सकता। न तो उसको जबद ती संवेदनशील बनाया
जा सकता है, न ही रचना मक। यह उसका वयं का चुनाव और झान है। ऐसी थित म या
िकया जाए? कैसे इंसान अपने मन के जाल से बाहर िनकले? कैसे बचे अवसाद से और
उनसे जुड़े व होने वाले रोग से?
जहां न तो दसरे
ू के पास व है न आपसी संबध ं म िव वास है वहां ‘डायरी लखना' एक
औष ध है या यूं कह अवसाद का रामबाण इलाज है ‘डायरी राईिटंग'। िनयिमत डायरी लखने
से न केवल मान सक शांित िमलती है, ब क यि व का भी िवकास होता है। इसके साथ-
साथ डायरी लेखन के और भी कई लाभ ह। डायरी लखना हमारे लए िकस तरह, य व
िकस हद तक मददगार सािबत हो सकता है जािनए िन न िव लेषण से : -

1. कु छ भी लखने के लए एकाि त होना ज री है, भले ही वह हमारी सुबह से शाम तक


क बात ही य न ह । कु छ देर के लए ही सही हम चुप रहना भी सीखने लगते ह। अपने
बारे म सोचने का साहस करते ह। बहाना बेशक डायरी लखना हो परं तु जब यही लखना
रोज िनयिमत िदनचया का िह सा बन जाता है, तो मन एका होने क कला भी सीखने
लगता है।
2. सोचने और लखने म बहत फक है। लखने क आदत हमारे अंदर धैय के गुण को ज म
देती है। सोचने के लए हम एक सेकड म कु छ भी सोच सकते ह। हमारे मन के िवचार
क गित कलम क गित से कई गुना यादा होती है, परं तु जब हम लखते ह तो मन-
िवचार ठहरना सीखते ह। एक धैय पनपने लगता है। यिद अंदर कोई गु सा या कुं ठा होती
है तो कागज तक आते-आते काफ हद तक शांत होने लगती है।
3. लखना एक आईने क तरह है, जो बात हमारे भीतर पूरे िदनभर भरी रहती है तथा
जसको सोचते व कई बार हम ज बाती व प पाती हो जाते ह, लखते व कही व
सही बात के मायने या त वीर साफ होने लगते ह। हमारी त कालीन भावनाएं कागज पर
उतरते-उतरते काफ हद तक छन जाती ह।
4. डायरी लखते समय एक बात का िवशेष यान रख, वो यह िक वयं को स चा व साफ
रख यानी लखने म कु छ बनावटी या नकलीपन न हो। जैसा िदन भर मन म चला है,
अ छा-बुरा जैसा भी य का य लख। जैसे भाव, जैसे श द उठ रहे ह उ ह वैसा ही
लख याद रख िक आप अपने लए लख रहे ह, िकसी को िदखाने या वयं को लेखक
सािबत करने के लए नह । इस लए लखने म समझदारी का नह ईमानदारी का याल
रख।
5. यिद ईमानदारी को कायम रखगे, तो आप वयं को ह का पाएंगे य िक आदमी के दख ु
का कारण है उसका बनावटीपन। आदमी के भले ही िकतने ही िनकट संबध ं य न ह , वह
सामने वाले को बोलकर कभी भी सौ ितशत नह दे पाता और यिद बोलता भी है तो
संतु नह रह पाता, इस लए यिद आप डायरी लखते ह, तो धीरे -धीरे आ म-संतुि क
ओर बढ़ने लगते ह।
6. सगा कब गैर बन जाए कहना मु कल है। कौन आपक बात अपने पेट म कब तक
पचाएगा, यह जानना मु कल है। पीठ पीछे आपक बात को कौन िकतना मजाक
बनाएगा, यह जानना मु कल है। ऐसे म डायरी लखने से मन म जो असुर ा का भाव
होता है धीरे -धीरे कम होने लगता है। हम अपने को क यूज कम अपने आपको कॉ फडट
महसूस करने लगते ह। हमारी बात हम तक ही रहती ह।
7. संबधं भले ही िकतने ही गहरे व पुराने य न हो, हम दसरे
ू पर िनभर बनाते ह। जब तक
हम सामने वाले को िदल क बात कह नह लेते हम चैन नह पड़ता और यह आदत भीतर
इतनी घर कर जाती है िक साथी यिद दरू हो जाए या आपक बात को तव जो न दे या
कम दे तो उसका भाव हमारे र ते पर तो पड़ता ही है, हमारी मान सकता एवं यि व
पर भी पड़ता है। डायरी लेखन हम आ मिनभर बनाता है। हम िदल क बात कहने के लए
िकसी दसरेू का इंतजार नह करना पड़ता और न सामने वाले के मूड या य तता का
खयाल रखना पड़ता है।
8. डायरी लखना हम आ मिनभर ही नह ौढ़ यानी मै योर भी बनाता है। लेिकन इसके लए
ज री है िक डायरी को न केवल िनयिमत लखा जाए, ब क कु छ िदन के अंतराल म या
स ाहांत उसे िनयिमत पढ़ा भी जाए। जब हम अपना लखा हआ पढ़ते ह, तो सरलता से
खुद को देख पाते ह। अपने मनोभाव का मू यांकन कर पाते ह, अपनी थित-प र थित
म तुलना कर पाते ह। हम अपने ारा पूव म िकए गए बताव व रवैया का सही-गलत का
पता चलने लगता है। अपनी किमयां हम खुद िदखने लगती ह। अफसोस हो या िव वास
हम सब कु छ साफ नजर आने लगता है। हम हमारी न केवल किमयां िदखने लगती ह
ब क हमारे अंदर चयन एवं िनणय करने क मता का भी िवकास होने लगता है। हमारे
लए या ज री है या नह , या ाथिमक है, या गौण आिद सभी कु छ समझ आने
लगता है यिद हम अपनी लखी हई डायरी को िनयिमत प से लखने के बाद पढ़ते रहे
तो।
9. डायरी लखने से इंसान के भीतर अिभ य करने का हनर भी आने लगता है। जन बात
को हम कह नह पाते या कहकर भी ह के नह हो पाते डायरी लखने से ऐसा संभव हो
पाता है। मन के सपने, इ छाएं एवं फटेसी आिद हम सब अपनी इ छानुसार लख सकते ह
यहां तक िक अपने अंदर दबी गा लयां, िशकायत, गु सा व कुं ठाएं आिद सभी कु छ
अिभ य कर सकते ह। जब तक मन लबालब भरा रहेगा, तब तक भीतर एक ‘मवाद'
इक ा होता रहेगा और यिद इस मवाद को समय पर बहने का माग नह िमलता तो यह
मान सक रोग क श ल लेने लगता है। हमारी डायरी हमारी एक ऐसी िम सािबत हो
सकती है, जो हम य का य वीकार लेती है। हम खुद को जािहर करने का पूरा मौका
देती है। इस लए हम धीरे -धीरे उसे भी अिभ य करने म मािहर हो जाते ह जसे या तो
हम सबसे िछपाते ह या जसका सामना नह करना चाहते। सच तो यह है जब हम अपने
मन क कर लेते ह तो वयं को ह का महसूस करते ह य िक डायरी इसका हम पूरा
मौका देती है।
10. डायरी लखने से तनाव ही कम नह होता याददा त भी द ु त होती है य िक जस बात
को हम सोचने के साथ-साथ लखते भी ह कह न कह वह हमारे अंदर प क हो जाती है
इस लए कू ली ब च को जनको याद करने म िद कत आती है उ ह िश क लख-
लखकर याद करने क सलाह देते ह और तो और लखते- लखते इंसान क भाषा, भाषा
शैली व श दावली भी िनखरने लगती है।
11. इतना ही नह लखने का एक अपना जाद ू भी है य िक लक र को ख चने का, िभ -िभ
आकार बनाने का अपना ही मह व है जसे ‘लाइन थेरेपी, कहा जाता है। आपने वयं
अनुभव िकया होगा जब खाली बैठे होते ह या फोन पर िकसी से बात कर रहे होते ह कु छ
न कु छ आकार बनाने रहते ह या आड़ी-ितरछी लक रे ख चते रहते ह या अपना पसंदीदा
अ र लख- लखकर गाढ़ा करते रहते ह। ये लक रे , ये आकार या ये श द यूं ही नह
खंच जाते इनके पीछे हमारी मनोदशा व मनोभाव होते ह। जस तरह के हमारे भाव होते ह
या वतमान थित होती है, उसी तरह क लाईन, टो स उनक बनावट या आकार बनते
चले जाते ह। जो िक हमारे जीवन के अंदर या जीवन म चल रहे उतार-चढ़ाव को दशाते
ह। इस लए जब हम सोचकर मनानुसार लखते ह, तो िवचार तो िनकलते ही ह, जाने
अनजाने श द के आकार, उनके घुमाव हमारी मान सक कसरत भी करते ह, जससे
हमारा तनाव भी झरने लगता है। और जब तनाव कम होगा तो मन खुश होगा। मन खुश
रहेगा तो मान सक रोग हम नह ह गे और मान सक रोग नह ह गे तो हम शारी रक रोग भी
नह घटगे और अगर घटगे भी तो उनके ित हमारा नज रया सकारा मक होगा। हमारे
भीतर रोग से लड़ने क ढ़ संक पता होगी, य िक हमारा मन व थ होगा। इस लए
डायरी ल खए और अपने जीवन को और वयं को व थ व सुंदर बनाइए।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म
सहायक यान उपचार
त नाव का मु य कारण मान सक िचंता, तनाव, शारी रक थकावट व अिन ा आिद होता है।
जसके चलते हमारी मांसपेिशयां तन जाती ह, शरीर म र व ऑ सीजन का वाह कम
हो जाता है और सर भारी होने लगता है। यान हमारे तन-मन को एका कर उसे शांत करने
म मदद करता है। यान से हमारे मन म चल रही िचंताएं व िवचार आिद िवलीन होने लगते ह,
शरीर िश थल होने लगता है।
यान करने के तरीके िकतने ह या हो सकते ह और वह कौन-कौन से ह? सबको बताना
संभव नह पर यान के े म जो स , मुख िव धयां ह उनक संि जानकारी िन न
कार से है। जसम आपको सुिवधा हो आप उस िव ध को अपना सकते ह और अपने मन को
शांत कर तनाव से मुि पा सकते ह।

ि या जसे आमतौर पर लोग यान के लए उपयोग म लाते ह, वह ह अपनी दोन भौह


के बीच का थान। आंख बंद करके सुख आसन या प ासन म बैठ जाएं और माथे पर
जहां िबंदी लगाई जाती है उस थान पर यान लगाएं। वहां काश को देखने क कोिशश
कर। इस ि या का िनरं तर अ यास कर और मन को शांत व एका कर।
कु छ लोग आंख खोलकर यान करते ह। ऐसे म या तो वह दीवार पर िबंद ू या आ या मक
िच लगाकर या सामने कोई व तु जैसे मोमब ी क लौ, धीमी रोशनी वाला ब ब आिद
पर नजर गड़ाकर अपने िच को एका एवं शांत करने क कोिशश करते ह।
कु छ लोग अपनी सांस पर यान कि त करके वयं को एका करने क कोिशश करते
ह। इसम वह अपनी सांस के आवागमन पर यान देते ह। नथुन से नािभ तक जाती सांस
तथा नािभ से नथुने तक िनकलती सांस पर, सांस क या ा पर अपना यान कि त करके
मन को थर करने क कोिशश करते ह।
कु छ लोग अपने ई के नाम को अपने यान का मा यम बनाते ह। उस नाम को लखकर
या बोलकर उस पर अपना यान कि त करते ह। जैसे ‘ऊं नम: िशवाय' या ‘ऊं साई
राम।' कु छ लोग इसे लख- लख कर वयं को एका करने क कोिशश करते ह, तो
कु छ लोग मन म ‘ऊं साई राम' दहु राते ह और हर श द एवं मा ा पर अपना यान कि त
करते हए उसक िनरं तर पुन ि करते रहते ह तािक मन उस नाम से जरा भी न हटे न ही
भटके।
कु छ लोग यान के लए शरीर म िव मान सात च व संबं धत रं ग का सहारा लेते ह।
इसके लए वह एक-एक करके च पर यान कि त करते ह और अपने भीतर रं ग को
अनुभव करते ह। इन च क या ा कर वह अपनी ऊजा को मूलाधार से सह ार तक ले
जाने क कोिशश करते ह और मन को एका करते ह।
बहत लोग मन को एका करने के लए, यान म जाने के लए योग का सहारा लेते ह।
योग म कई आसन व चरण ह जसके मा यम से लोग अपने तन और मन दोन को शु
करते ह। योग के, यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, यान और समा ध के
ज रए वयं को साधते ह व यान को उपल ध होते ह।
कई लोग मं जाप के मा यम से वयं को एका करते ह, िफर यान साधना के लए
शि जुटाते ह। मं ऊजा के भंडार होते ह। उसके हर श द म शि िछपी होती है। उनके
उ चारण से, िनयिमत जाप से न केवल मन बाहर भटकना बंद करता है, ब क शि भी
अ जत करता है। िफर वह मं सा वक हो या तांि क लोग उ ह सं या अनुसार, माला के
मा यम से जपते ह। माला के हर मनके पर, हर मं पर अपना यान कि त करते हए
अपनी एका ता को बढ़ाते ह, तािक यान करने म आसानी हो।
कई लोग यान के लए मौन या एकांत का सहारा लेते ह। वयं को बाहर और अंदर से
इतना मौन कर लेते ह िक भीतर का नाद सुन सक और उस नाद म वयं को डु बा सक,
एका कर सक। य िक बोलने सुनने से िवचार ज म लेते ह और िवचार मन म हलचल
देते ह, इस लए कई लोग एकांत म मौन ारा ही यान करने क कोिशश करते ह।
िचंतन-मनन के ारा भी कई लोग वयं को यान के लए एका करते ह। जबिक यह भी
मौन साधना का एक अंग है। इसम जातक अपने िवचार का िव लेषण करता है, उसका
िनरी ण परी ण करता है। उनसे होने वाले लाभ, हािन पर िचंतन करता है। कैसे और
य ? वह उनसे भािवत होता है, इस बारे म सोचता है तथा वह उन सब िवचार से
अछू ता रह, उसका उन पर कोई भाव न हो, बाहर कु छ भी हो, लेिकन मन क प र ध म
कोई आहट न हो, ऐसा वयं को बनाता है। इस लए हर थित एवं प र थित का मूक
दशक बनता है। जो थित जैसी है, उसे वैसी ही वीकारता है। अपने आपको उनसे जुड़ने
से बचाते हए ा भाव को जगाता है। िवचार को आने देता है, उनसे भागता नह अपने
जागरण का मा यम बनाता है, तािक उनका भाव उस पर न पड़े और मन यान म लग
सके।
कु छ लोग ऐसे भी ह, जो भि के ारा वयं को या जीवन को साधते ह। भि ही उनका
यान का मा यम होती है। शा म भि के नौ ढंग बताए गए ह। और वह नौ ह, वण,
क तन, मरण, पादसेवन, अचन, वंदना, हा य, स य और आ मिचंतन। भि के इन नौ
या इनम से िकसी एक प म भ वयं को जोड़कर रखता है, उसी म मन को रमाए
रहता है तािक मन न भटके, एका रहे और उस एका ता को भगवान के यान म पूण
तरह से समिपत कर सके और संसार म भटकने से बच सके।
कु छ लोग कला को ही यान का मा यम बना लेते ह। िफर वह नृ य हो, गायन हो,
िच कारी हो, िश पकारी हो या कु छ भी, कोई भी कला हो। य िक कला कोई भी हो वह
तभी उभरती है, जब मन एका हो या यूं कह िकसी भी कला म िनपुणता तभी िमलती है
जब मन शांत और एका िच हो। स चा कलाकार सांसा रक वासनाओं से परे होता है,
उसका मन बात-बात पर भटकता नह है। वह अपनी कला के ज रए ही वयं को एका
करना सीख लेता है। उसक एका ता ही उसका यान बन जाती है और उसका यही यान
परमा मा से िमलन का मा यम बनता है।
कु छ लोग जीवन को, कृित को भु मानते ह। उनके लए यह जीवन जीना ही एक
साधना होती है, इस लए वह िकसी एक खास ि या या िव ध को ही यान क एका ता
का ज रया नह बनाते, ब क वह हर काय को ही यान बना लेते ह। वह हर काय को
पूरी सहजता से वीकारते ह। िदन के हर काय म आनंद तलाशते ह। इस लए वह जस
समय जस काय को करते ह उस समय केवल उसी काय पर कि त होने क कोिशश
करते ह। मन को इधर-उधर भटकने नह देते। ऐसे लोग जो भी, जैसे भी काय या
प र थित के बीच होते ह, उसे पूरे जोश एवं होश के साथ जीते ह। वह वतमान क थित
को तव जो देते ह। वह यान को बो झल नह बनाते, उसे यावहा रक जीवन म हर पल
जीते ह और परमा मा को अपने आसपास महसूस करते ह। ऐसे लोग का हर काय ही
यान होता है या बन जाता है।

एका ता क इन तमाम िव धय म से आप िकसी को भी अपनी सह लयत अनुसार अपना


सकते ह और जससे आपका मन सहमत हो उस िव ध का िनयिमत अ यास कर, तािक
आपका एका मन और सं िहत शि यान के लए तैयार हो सके और आप परमशि ,
परमा मा का अनुभव कर सक।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म सहायक न द
ह मारे शरीर के लए जतना आव यक भोजन है उतनी ही आव यक न द भी है य िक,
न द न केवल हमारे शारी रक ब क मान सक वा य के लए भी बहत आव यक है,
य िक वतमान समय म हम भूलना, िचड़िचड़ापन, तनाव, अवसाद तथा एका ता म कमी
जैसी सम याओं का सामना अ सर करते ह, परं तु इस बात से अनजान रहते ह िक इन सभी
सम याओं का कारण हमारी अधूरी न द भी हो सकती है। सच तो यह है न द हम तरोताजा ही
नह करती हम वा य भी दान करती है डॉ टर भी मानते ह िक कोई दवा भी अपना असर
शी तभी िदखाती है, जब रोगी दवाई के साथ-साथ अ छी गहरी न द भी लेता है। तनाव के
मामले म तो इसका िवशेष मह व है, य िक अगर अ छी गहरी न द तनाव को कम करती है
तो इसक कमी इसे और बढ़ाती है, इस लए तनाव मु होने के लए न द ज री है।

य ज री है न द?
हमारा शरीर िनरोगी हो इसके लए बहत आव यक है िक हम पौि क भोजन के साथ-साथ
अपनी न द अव य पूरी कर। िवशेष का मानना है िक अ छी न द न सफ हमारे अ छे
वा य का आधार है, ब क इससे हमारे िदमाग को भी पोषण िमलता है, परं तु न द पूरी न
होने क वजह से हमारा शरीर पूरी तरह रलै स नह हो पाता है और यिद हम न द पूरी िकए
िबना ही लगातार काम करते ह, तो हमारे शरीर को अ य धक ऊजा क आव यकता पड़ती है
एवं हमारा र मांसपेिशय क ओर बहने लगता है, इस कारण म त क म ऑ सीजन क
कमी होती है और इस वजह से वहां थत तंि काओं म तनाव उ प हो जाता है, जो कई
शारी रक तथा मान सक रोग क वजह बनता है। अगर हम पूरी तथा अ छी न द लेते ह, तो
वह हमारे संपूण शरीर के लए ईधं न के समान काय करती है। इस संदभ म िवशेष का
कहना है िक हमारी न द कई टु कड़ म बटी होती है, सव थम हमारी भुजाओं, पैर एवं गदन
क बड़ी मांसपेिशयां सोती ह तथा अंत म ह ठ एवं पलक क छोटी मांसपेिशयां। इसी कार
हमारे चेतना क भी एक-एक कर के सोते ह, सबसे पहले सूंघने क शि उसके बाद देखने
एवं सुनने क शि अवचेतना के आगोश म समा जाती है, परं तु इस अव था म भी हमारे
मह वपूण अंग जैसे- दय, म त क एवं नाड़ी ि याशील रहते ह। िकंतु इनक ि याशीलता
थोड़ी मंद पड़ जाती है, इससे हमारे संपूण शरीर क मांसपेिशय को आराम िमल जाता है तथा
हम जगते ह तो ऊजा से प रपूण होते ह।
इसके िवपरीत यिद कोई यि लंबे समय तक जगता है तो थकान के कारण वह िचड़िचड़ा
होने लगता है एवं उसका शरीर तथा म त क सुचा प से काय नह कर पाता है।
न द िव ान के जनक ‘िव लयमिडमट' ने अपने एक अ ययन के बाद बताया िक पूरी न द
लेने वाले यि ऊजावान, आ मिव वासी, द एवं कु शल होते ह।
न द क उपयोिगता से जीव-जंतु भी भली-भांित प रिचत ह, तभी चमगादड़ जैसे िनशाचर
िदन को सोते ह, डॉलिफन मछली तैरते हए ही अपनी न द पूरी कर लेती है तो वह िहरन खड़े
रह कर ही सो लेते ह, परं तु इसके िवपरीत साधन से स प हम मनु य अपनी न द के जैिवक
च को भी पूरा नह कर पा रहे ह।
एक सव ण के अनुसार भारत म शहरी आबादी के 64 ितशत लोग सुबह सात बजे से
पहले उठ जाते ह, जो िव व म सवा धक है, इसके साथ ही 61 फ सदी नगरीय े के लोग
ितिदन 7 घंटे से भी कम सोते ह। इसके अित र हमारे देश म अब केवल 4 फ सदी लोग
के सोने का समय परं परागत तरीके अथात् सूरज क रोशनी से तय होता है, जबिक 29
ितशत ने माना िक वो आधी रात के बाद न द क शरण म जाते ह और 45 ितशत लोग
का कहना था िक वो अपने काम के अनुसार ही न द का समय तय करते ह। इन आंकड़ को
देखते हए हम आसानी से समझ सकते ह िक य हर दसरा ू यि वतमान समय म अनेक
शारी रक रोग के साथ-साथ तनाव, अवसाद, एका ता म कमी जैसी सम याओं से जूझ रहा
है।

िकस उ म िकतना सोएं?


येक यि क उ के अनुसार उसके लए न द क आव यकता भी िभ -िभ होती है।
ब च को वय क क तुलना म अ धक न द क आव यकता होती है, य िक ब च क
अ धकांश ऊजा खेलने म जाती है तथा उनको िवकास के लए भी अ धक ऊजा क
आव यकता पड़ती है। यिद िकसी ब चे क आयु एक वष है, तो उसके लए बारह घंटे क
न द आव यक है तथा िकशोरव था के लए दस घंटे क न द आव यक है, परं तु एक वय क
के लए छह-आठ घंटे तथा बुजुग के लए पांच-छह घंटे क न द या होती है।

न द से लाभ
1. तनाव म राहत- एक शोध से यह पता चला है िक तनाव से मुि के लए अ छी न द
रामबाण स होती है। जब हम सोते ह तो अवचेतन अव था म रहते ह जस कारण हमारे
म त क क मांसपेिशयां िश थल हो जाती ह, जससे तनाव कम होता है। इतना ही नह
यिद हम पूरी न द लेते ह तो ‘अवसाद' (तनाव का जिटल व प) से भी बच सकते ह।
2. एका ता म वृि - हम िकतनी न द लेते ह, इसका हमारी एका ता पर बहत गहरा भाव
पड़ता है। ाय: यह देखा गया है िक जन यि य म अिन ा क सम या पाई जाती है,
उनम एका मता कम होती है। इसके िवपरीत जो लोग न द पया मा ा म लेते ह,
उनक एका ता अ छी होती है। इस लए डॉ टस का ये मानना होता है िक पूरी न द लेने से
एका मता म तो सुधार होता ही है साथ ही साथ हमारा िदमाग भी तेज होता है।
3. रोग ितरोधक मता म वृि - अमे रका म हए एक शोध के अनुसार हमारी सोने क
आदत का हमारी सेहत पर बहत गहरा भाव पड़ता है। िकशोर पर िकए गए इस शोध म
यह पाया गया िक उनम गै टोइंटे टाइन, जुखाम तथा लू जैसी वा य सम याएं आज
न द पूरी न होने क वजह से आम हो गई ह। डॉ टस का ये मानना है िक अगर हम पया
न द लेते ह, तो हमारे पूरे शरीर क मांसपेिशय को आराम तो िमलता है, जससे हमारी
रोग ितरोधक मता भी बढ़ती है तथा इसके प रणाम व प हमारा शरीर पूण प से
व थ रहता है, इस लए डॉ टस येक बीमार यि को दवाई लेने के साथ-साथ अ छी
तरह सोने क सलाह भी देते ह।
4. मोटापे से मुि - शोधकताओं के अनुसार यिद न द अधूरी रहे तो भूख महसूस करने वाले
हाम सं का तर बदल जाता है तथा पेट भरने वाले और भोजन क मा ा को िनयंि त करने
वाले ‘ले टन हाम न' के तर म कमी आ जाती है एवं भूख, मोटापे तथा वसा को बढ़ावा
देने वाले ‘ े लन हाम न' का तर बढ़ जाता है, जससे यि म भूख तथा खाने क इ छा
बढ़ जाती है प रणाम व प यि मोटापे का िशकार हो जाता है, इस लए मोटापे से मुि
के लए यह आव यक है िक खान-पान तथा यायाम का यान रखने के साथ-साथ न द
भी पूरी ल।
5. मान सक वा य- अधूरी न द हमारे शरीर के साथ-साथ हमारे मान सक वा य के
लए भी घातक होती है। एक शोध के मुतािबक अ छी न द म त क क कोिशकाओं
व थ रखने म सहायक होती है, परं तु अगर न द पूरी नह होती तो िदमाग को नुकसान
पहचं ाने वाले मॉ ल यू स अपने काम म लग जाते ह, साथ ही पूरी न द न लेने वाले यि
ही यादातर पागलपन के िशकार होते ह। अतः पूरी न द लेकर हम वयं को मान सक
प से भी व थ रख सकते ह।
6. बु ़ापे का श ु- अगर न द पूरी होती है, तो बुढ़ापा हमसे कोस दरू रहता है।
शोधकताओं के अनुसार, अधूरी न द के कारण चेहरे पर झु रयां, महीन रे खाएं एवं उदासी
भी नजर आने लगती है, जसक वजह से यि थका हआ नजर आने लगता है तथा
उनके चेहरे का जवांपन फ का पड़ने लगता है, जबिक पूरी न द लेने से चेहरे पर ताजगी
रहती है एवं उ का असर भी देरी से नजर आता है।

अिन ा के कारण
1. बदलती जीवन शैली - वतमान समय म हमारी जीवनशैली बहत बदल गई है, पुराने
समय म जहां लोग ज दी सोने तथा ज दी जागने को ाथिमकता देते थे वह आज देर रात
तक पाट तथा सोशल नेटविकग साइ स पर चैिटंग करना आम बात हो गई है इन सब के
साथ ही आज-कल नव धना वग और उ च वग ने ‘िदन को काम और रात को मौज'
करने के फलसफे को अपने जीवन का मूलमं बना लया है, प रणाम व प देर रात
पािटय का आयोजन तथा उसम शािमल होने वाले लोग का ितशत बढ़ा है एवं इस
कार लोग के सोने के घंट म कटौती हई है। इसके साथ ही जहां पहले हम केवल
पौि क भोजन को ही मह व देते थे वह आज फा ट फूड और जंक फूड हमारे जीवन के
अिभ अंग बन चुके ह, यही कारण है िक हम न द से दरू होते जा रहे ह और िफर हम
न द के लए िविभ कार क दवाइय , वाइन आिद का सहारा लेने लगते ह जसके
प रणाम व प अनेक िबमा रय क सौगात हम िमल जाती है।
2. अ धक चाय-कॉफ का सेवन -अ धक चाय-कॉफ का सेवन भी हमारी न द के लए
घातक होता है। कॉफ म कैफ न पाया जाता है जो हमारे म त क को सि य कर देता है,
जस वजह से हम न द नह आती, इस कारण से छा परी ा के दौरान देर रात तक जगने
के लए चाय-कॉफ का सेवन करते ह परं तु इस बात से अनजान होते ह िक अ धक मा ा
म इसका सेवन हम अिन ा का रोगी बना देता है। हम इस बात का यान रखना चािहए िक
सोने और चाय-कॉफ के सेवन के म य आठ घंटे का अंतराल अव य रहे।
3. अ यव थत मनोदशा- सबसे आगे िनकलने क चाह तथा िवकास के शीष पर पहच ं ने
क ललक ने मनु य को िनरं तर ि याशील रहने के लए े रत अव य िकया है, परं तु इस
य तता से कई बार हम अपने यि गत तथा यवसाियक जीवन म तालमेल नह बैठा
पाते ह और न ही वयं के लए समय िनकाल पाते ह, प रणाम व प ज म होता है तनाव
का तथा हमारी मनोदशा भी यव थत नह रह पाती और हम अिन ा के िशकार हो जाते
ह।
4. रोग- कई बार हम शारी रक प से अ व थ होने के कारण भी अिन ा के िशकार हो
जाते ह। िकसी भी कार क शारी रक पीड़ा या या ध क वजह से हमारा म त क
तनावमु नह हो पाता है तथा म त क म शारी रक पीड़ा क वजह से म त क म अनेक
िवचार िनरं तर चलते रहते ह, जससे हम न द आने म परे शानी होती है।
5. वातावरण- कई बार हमारे सोने के कमरे म फैली अ यव था अथवा आस-पास का
शोरगुल भरा वातावरण हमारे न द म बाधक बनता है, य िक न द के लए एक शांत तथा
शोरमु वातावरण क आव यकता होती है, साथ ही कमरे म फैली गंदगी तथा अ यव था
भी न द म बाधक होती है।
6. या ाएं- वतमान समय म या ाएं मनु य के जीवन का एक अंग बन गई ह, चाहे वह
यवसाय से संबं धत हो या िफर िकसी अ य काय से। कई बार ऑिफस से घर क दरी ू
काफ अ धक होती है और व क पाबंदी के कारण लोग समय पर पहच ं ने के लए कु छ
घंटे अपनी न द से कम कर देते ह, जसका खािमयाजा उ ह तनाव तथा एका ता म कमी
के प म चुकाना पड़ता है।

अ छी न द के लए उपाय
1. यव थत िदनचया - अ छी न द के लए आव यक है िक सोने तथा जगने का एक
िन चत समय िनधा रत कर तथा छु ी वाले िदन भी अगर संभव हो तो उसका पालन
अव य कर। इससे आपको न द भी समय पर एवं अ छी आएगी और आप वयं को एक
नई ऊजा से प रपूण भी पाएंग।े
2. िचंता से बच- अ य धक िचंता ‘िचता' का काम करती है, इस लए वयं को जतना
अ धक हो पाए िचंता से दरू रख तथा जब भी िब तर पर सोने जाएं तो केवल उन बात का
ही मरण कर, जससे आपको खुशी िमले।
3. नशे से दरू रह- चाय, कॉफ , शराब तथा िकसी भी कार का नशा न द का द ु मन होता
है। शराब म या ए कोहल से हमारे म त क क गितिव धयां मंद हो जाती ह, जससे
शु म तो न द आती है, परं तु बाद म न द टू टने लगती है तथा हम अिन ा के िशकार हो
जाते ह। इसके साथ ही कोिशश कर िक जतना हो सके न द क दवा से दरू रह, य िक
यह हमारे लए बहत घातक है और इसके लगातार योग से न द क दवाओं का सेवन
हमारे लए एक लत बन जाती है तथा इस बात को हम भली-भांित जानते ह िक िकसी भी
कार क लत हमारे लए िकतनी घातक स होती है।
4. योग तथा यायाम- यायाम से हमारा वा य तो अ छा रहता ही है, साथ ही अगर हम
शाम के समय यायाम कर तो थकान क वजह से हम न द ज दी व अ छी आएगी। इसके
साथ ही योग, यान तथा आ मस मोहन क िव ध का योग भी अ छी न द के लए
उपयोगी स होता है। इन सब के अित र योग तथा यान का एक लाभ यह भी है िक
इनको अ यास म उतार लेने के बाद न द कम लेने के बावजूद भी फूित एवं ताजगी को
बनाए रखा जा सकता है। इसके अित र िब तर पर जाने के उपरांत गहरी-गहरी सांस
लेने से भी हम तनाव से दरू तथा न द के िनकट पहचं जाते ह।
5. सुपा य भोजन- अ छी न द के लए यह आव यक है िक रात के समय िकसी भी कार
का ग र भोजन न कर, साथ ही इस बात का यान रखना भी आव यक है िक रात को
हमेशा भूख से कम खाएं और यिद संभव हो, तो सोने से दो घंटे पहले ही भोजन कर ल,
परं तु हम इस बात का भी यान रखना चािहए िक हम भूखे न सोएं, य िक भूख क वजह
से हम न द नह आती है और पेट खाली होने क वजह से हम पेट म जलन तथा गैस आिद
सम याओं का सामना भी करना पड़ सकता है।
6. व छ वातावरण- अ छी न द के लए आव यक है िक हमारा कमरा तथा िब तर साफ
हो तथा कमरे म म छर या खटमल न ह साथ ही इस बात का यान रखना भी आव यक
है िक िब तर न तो आव यकता से अ धक मुलायम हो न अ धक कड़क तथा इस बात का
भी यान रख िक अ धक भड़क ले रं ग का योग कमरे म न कर।
7. न द आने पर ही लेट- यिद आप अ छी न द लेना चाहते ह, तो यह आव यक है िक जब
आपको न द आने लगे तो ही िब तर पर जाएं। अगर आपको िब तर पर लेटने के 20
िमनट बाद भी न द नह आती तो िब तर से िनकल कर टहल या कोई पु तक पढ़ ऐसा
करने से आपको शी ही न द आने लगेगी।
8. िब तर पर काम न कर- कई यि य क आदत होती है िक वो िब तर पर बैठ के
अपने कई काय करते ह, तो वह कु छ लोग को िब तर पर भोजन करने क आदत होती
है, यिद आपके अंदर भी ऐसी कोई आदत है, तो तुरंत ही उसे याग द, य िक न द पर
इसका ितकू ल भाव पड़ता है।
9. लखने क आदत डाल- िवशेष का मानना है िक मन म यिद िकसी तरह क भावना
घुटन पैदा कर रही है, तो उसे सोने से पहले लख ल, य िक लखने से हमारे मन को
सुकून िमलता है और मन शांत हो जाता है, जससे न द ज दी आती है।
10. बाथ ल- अगर आप अिन ा से सत ह, तो सोने से पहले बाथ या हॉट बाथ लेना आपके
लए उपयोगी स हो सकता है, य िक बाथ से आपके िदन भर क थकान दरू होती है।
यिद आप हॉट बाथ लेते ह, तो आपके शरीर का तापमान बढ़ जाता है तथा इससे आपको
राहत तो िमलेगी ही तथा आपको न द भी अ छी आएगी।
11. माहौल- अ छी न द म हमारे आस-पास का वातावरण बहत मह वपूण भूिमका िनभाता है।
अगर वातावरण शांत हो, तो हम न द अ छी आती है साथ ही काश का भी हमारी न द
पर बहत गहरा भाव पड़ता है, कु छ लोग को िबलकु ल अंधरे े कमरे म न द आती है, तो
कु छ को कम काश म सोने क आदत होती है, जन लोग को काश म सोने क आदत
हो वो ह के काश वाले ब ब का योग कर सकते ह। साथ ही सोने के पहले यिद आप
अपनी पसंद का संगीत सुने तो भी वह न द म सहायक होता है, परं तु इस बात का यान
रख क संगीत ह का हो।
12. मसाज- िब तर पर जाने के 10 िमनट पहले अपने सर का ह के हाथ से मसाज कर।
अगर आप चाह तो िकसी तेल का योग भी कर सकते ह। मसाज से सर क मांसपेिशय
को राहत िमलती है तथा नस िश थल होती ह जो न द म सहायक ह।
13. गैजे स से दरू ी- वतमान समय म फोन, कं यूटर, टी.वी. इ यािद हमारे जीवन के अिभ
अंग बन चुके ह, लेिकन हम इस बात से िबलकु ल अनजान होते ह िक इनके योग क
लत के कारण हम अिन ा के िशकार होते जा रहे ह, इस लए यह आव यक है िक हम
सोने के पहले इन चीज से िबलकु ल दरू रह।
14. सुगंध का योग- चंदन, लैवडर तथा गुलाब आिद कु छ ऐसी खुशबुएं ह, जो हमारी न द
म सहायक होती ह। अगर आप चाह तो इन खुशबुओं का योग अपने सोने वाले कमरे म
िकसी भी प (अगरब ी, तेल, े आिद) म करके इसका लाभ उठा सकते ह।
15. तरल पदाथ ं के सेवन से बच- अ छी न द के लए यह आव यक है िक रात के समय
अ धक मा ा म तरल पदाथ ं के सेवन से बच, य िक तरल पदाथ ं के अ धक सेवन क
वजह से बार-बार मु याग क आव यकता होती है, जस वजह से न द म अवरोध उ प
होता है।
16. सूय का काश- िवशेष का मानना है िक ितिदन 30 िमनट तक सन बाथ लेने से न
केवल हम िवटािमन-डी ा होता है ब क इससे ‘सेरोटोिनन' का तर भी बढ़ जाता है
जससे न द आने म सुिवधा होती है।

अिन ा म सहायक भोजन


‘जैसा अ वैसा मन' ये कहावत तो आप सभी ने सुनी होगी, लेिकन या आप जानते ह िक
हम जो भी खाते ह, उसका हमारी न द पर गहरा भाव पड़ता है तथा हमारी भोजन संबं धत
आदत से हमारी न द भी भािवत होती है। इस संबध
ं म शोधकतओं का मानना है िक अ छी
न द म हमारे खान-पान क भूिमका बहत अहम है।
वै ािनक ने 4500 वय क को खान-पान और सोने क आदत का िव लेषण िकया तथा
यह पाया िक रोजाना सात से आठ घंटे सोने के लए शरीर म कै शयम, पोटैिशयम तथा
सेलेिनयम जैसे िमनर स क आपूित बहत आव यक है। दध, ू बादाम, आलू तथा केले म ये
िमनर स चुर मा ा म पाया जाता है एवं इनके सेवन से अधूरी न द क संभावना म 15 से 20
फ सदी क कमी आती है। न द पूरी होने से अगले िदन सुबह ताजगी का अनुभव तो होता ही
है, साथ ही तनाव भी दरू होता है, जससे हमारी एका ता म वृि होती है तथा िदमाग भी तेज
होता है। अतः हम िन न ल खत खा पदाथ ं को अपने भोजन म शािमल करके अ छी न द के
साथ-साथ एका ता को भी ा कर सकते ह-

1. दधू - जन यि य को न द आने म सम या होती है, वो यिद सोने से पहले गम दधू का


सेवन कर तो न द अ छी आती है। इसका कारण यह है िक दधू म चुर मा ा म कै शयम
होता है, जो न द म सहायक होता है। इसके अलावा चीज, योगट तथा अ य डेयरी के
पदाथ भी न द के लए उपयोगी होते ह।
2. बादाम- आम तौर पर लोग बादाम का सेवन िदमाग तेज करने के लए करते ह लेिकन
हाल ही म हए एक शोध म यह बात सामने आई है िक बादाम के सेवन से हमारे शरीर म
उन रसायन क पूित होती है, जो हमारी न द म सहायक होते ह, इस कारण से बादाम का
सेवन हमारी न द म सहायक होता है।
3. चावल- आपने यह बात ज र महसूस क होगी िक चावल के सेवन के बाद हमारा शरीर
भारी सा होने लगता है तथा हम आलस का आभास होता है परं तु हाल ही म हए
ऑ टे लया के एक शोध म यह बात पता चली है िक सफेद चावल म चुर मा ा म
‘ लेसिमक इंडे स' होता है, जो हमारी न द म सहायक होता है।
4. हबल टी- कैमोमाइल टी तथा अ य भी कई हबल चाय ऐसी ह, जनके पीने से हमारी नस
को आराम िमलता है, जस वजह से हम न द सरलता से आ जाती है।
5. शहद- शहद म ाकृितक प से श कर तथा लूकोज पाया जाता है, जो हमारी न द के
लए उपयोगी होता है इस लए हम शहद को अपने आहार म शािमल करके बेहतर न द पा
सकते ह। आप अगर चाह तो इसे कैमोमाइल टी अथवा दधू के साथ भी ले सकते ह।
6. गम पेय पदाथ- गम पेय पदाथ हमारी न द म उपयोगी होते ह, परं तु गम पदाथ से हमारा
ता पय चाय अथवा कॉफ नह है। गम पेय पदाथ के प म आप हॉट चॉकलेट या गरम
दधू का सेवन कर सकते ह, य िक यह हमारी न द के लए उपयोगी होते ह।
7. अनाज तथा दाल- अनाज तथा दाल से काब हाईडेट तथा ोटीन जैसे मह वपूण पोषण
त व पया मा ा म होते ह तथा यह सरलता से ा हो जाते ह, जो हमारी न द के लए
उपयोगी होते ह।
8. वसा- वसा को ाय: हम मोटापे से जोड़ कर ही देखते ह, परं तु ऐसा नह है। कु छ वसा
यु पदाथ जैसे ना रयल तेल तथा एमसीटी तेल हमारी न द के लए बहत उपयोगी ह।
साथ ही कु छ वन पित तेल भी इसके लए कारगर ह।
9. चेरी- िवशेष का कहना है िक ितिदन एक िगलास चेरी के जूस का सेवन अिन ा के
रोग को पूरी तरह ख म कर देता है। अतः आप चेरी के सेवन ारा अिन ा से मुि पा
सकते ह।
10. सलाद के प े- सलाद के प का सेवन भी हमारी न द के लए बहत उपयोगी है। इसका
सेवन आप पुदीने के साथ भी कर सकते ह।
11. अखरोट- अखरोट से हम काफ मा ा म ‘िट टोफैन' ा होता है, इसका योग न द के
लए बहत कारगर होता है।
12. मछली का तेल- िविभ शोध ारा यह बात स हई है िक मछली के तेल का सेवन न
सफ हमारे दय तथा म त क के लए उपयोगी होता है, ब क यह हमारी न द म भी
सहायक होता है।

न द म सहायक िवटािम स
िन न ल खत िवटािम स तथा िमनर स के सेवन से आप अिन ा को दरू भगा सकते ह-
1. कै शयम- कम वसायु योगट दध, ू चीज तथा संतरा इ यािद।
2. जंक- पटसन के बीज, लहसन, डाक चॉकलेट, ाउन राइस, मटर इ यािद।
3. कॉपर- अनाज, ब स, न स, आलू हरे साग इ यािद।
4. आयरन- क तूरी, आंवला, हरी स जयां, जक मीट, पालक इ यािद।
5. िवटािमन बी- केला, आलू, िचकन, शलगम।
6. मैगनीिशयम- मछली, क ू के बीज तथा हरे साग इ यािद।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म
सहायक िच कला
अ धकतर लोग यही सोचते ह िक िच कारी करना या तो ब च का शौक है या िफर यह
उ ह के लए ज री है, जो िच कार बनना चाहते ह। और तो और िच एवं पिटं स आिद
को हम मा साज-सजावट का ही एक मा यम समझते ह, परं तु सच तो यह है िच बनाना या
देखना दोन ही एक कार क िचिक सा है, जो न केवल हमारे मन को शांत व एका करती
है, ब क हम व थ भी रखती है। इतना ही नह इसके िनयिमत अ यास से ोध, िचड़िचड़ापन,
तनाव, अकेलापन तथा याददा त संबध ं ी रोग को भी ठीक िकया जा सकता है। पर कैसे आइए
जानते ह।
कभी आपने सोचा है य हम िकसी िच , इंसान, मूित या कृित के आकार-उभार, उनके
कोण-घुमाव, उनक बनावट व रं ग संयोजन आिद आकिषत करते ह? और जो एक को
आकिषत करते ह या अ छे लगते ह, वह ज री नह िक दसरे ू को भी अ छे लग, य ? या
चीज सुंदर-असुंदर होती ह या िफर हमारी पसंद िभ -िभ होती है। और अगर एक ही चीज के
ित पसंद िभ होती है तो इसका मतलब भेद कह बाहर नह भीतर है। य िकसी को पहाड़
के िशखर क चोिटयां देखना अ छा लगता है, तो िकसी को बहती नदी क गहराई भाती है?
य कोई िच हम डरा देता है, तो कोई िच हम अपने म डु बो देता है? इसका मतलब कह न
कह आकार का, लक र व रं ग से बने िच का हमारी मान सकता व मनोभाव से संबध ं होता
है। िकतनी अजीब बात है लक र से ख चे गए आकार और उनम भरे रं ग हमारे मन को
भािवत कर जाते ह। सच तो यह है जसे हम आड़ी-ितरछी लक र कहते ह या उनसे िनिमत
िविभ िच कारी कहते ह, उनका संबध ं हमारे मन, म त क, िवचार, यवहार, वभाव एवं
मनोदशा से होता है। यही कारण है हर इंसान आिट ट न होते हए भी जाने-अनजाने कु छ न कु छ
िचि त करता ही रहता है। भले ही उसक लक र िकसी पिटंग का प ले पाएं या न ले पाएं,
परं तु मन को य तो करती ही ह और उसे ह का भी करती ह।
जी हां लक र को ख चने का, िभ -िभ आकार बनाने का अपना ही मह व है, जसे ‘लाइन
थैरेपी' कहा जाता है। आपने वयं अनुभव िकया होगा जब आप खाली बैठे होते ह या फोन पर
िकसी से बात कर रहे होते ह, तो कु छ न कु छ आकार बनाते रहते ह या आड़ी-ितरछी लक र
ख चते रहते ह या िफर अपना पसंदीदा अ र लख- लखकर गाढ़ा करते रहते ह, या िकसी
बने-बनाए िच पर उसे पेन-प सल से गाढ़ा करते रहते ह। कभी गोल, कभी चौकोर तो कभी
कोई काटू न या फूल-प ी आिद बनाते रहते ह ये लक र, या आकार यूं ही नह खंच जाते,
इनके पीछे हमारी मनोदशा व मनोभाव होते ह।
जस तरह के हमारे भाव होते ह या वतमान थित होती है, उसी तरह क लाइन, टो स
उनक बनावट या आकार बनते चले जाते ह। जो िक हमारे जीवन के अंदर या जीवन म चल
रहे उतार-चढ़ाव को दशाते ह, इस लए जब भी हम कु छ जाने-अनजाने बनाते ह तो लक र व
लक र के आकार हमारी मान सक कसरत भी कर देते ह, जससे तनाव कम होने लगता है
और जब तनाव कम होगा, तो मन खुश होगा, मन खुश होगा तो मन सरलता से शांत और
एका हो सकेगा। इस लए कभी-कभार ही सही हम िच कारी भी करनी चािहए, तािक मन शांत
और एका हो सके।
िच का भाव तो हम पर बा यकाल से ही पड़ना शु हो जाता है। िकसी भी ब चे क
िश ा का आरं भ ही िच से होता है, य िक श द क तुलना म िच ज दी याद होते ह। रं ग
से भरे िच ब चे को े रत करते ह, िकताब को देखने एवं पढ़ने के लए। िच को देखते-
देखते ब चा कब पढ़ना सीख जाता है, उसे वयं पता नह चलता। जीवन क िकसी भी अव था
म िच का बहत मह व है। कहने व सुनने से ज दी कोई भी िच ज दी असर करता है।
िच एवं िच कारी यह दो ऐसी प ितयां ह जनके ारा यि अपने मन क बात एक सफेद
कागज पर रं ग के ारा उकेर देता है। वह मान सक प से अपने को शांत कर पाता है। िकसी
िच कारी को करते हए वह अपे मन म चल रहे न के उ र खुद ही सुलझाने म लगा रहता
है। अ छे िच को देखने से जहां एक ओर मान सक तनाव कम होता है और मन ेरणा से भर
जाता है वह दसरी
ू ओर िच बनाने से मन के भाव कट होते ह तथा मान सक एवं शारी रक
संतुलन ठीक होता है। िच कारी करने से न केवल मन को खुशी िमलती है, ब क िनणय लेने
क मता का िवकास होता है तथा मान सक संतुलन ठीक रहता है। अगली बार जब भी िकसी
िच को देख तो उसके भाव क ओर गहराई से जानने क कोिशश कर तथा अपने आसपास
ऐसे िच लगाएं जो आपको े रत कर। जो आपको एहसास कराएं जीवन का, आपको आपसे
प रिचत कराएं।
कला िचिक सा एक पूणतः मनोवै ािनक प ित है िचिक सा क । यह पूरी तरह मनोिव ान
का अंग है। यह मनु य के त, यावहा रक, पा रवा रक एवं िववरणा मक इ यािद कार क हो
सकती है।
जब हम िकसी िच , वा तुकला अथवा मूित कला को देखते ह, तो हमारे िदमाग म
इले टोलाइ सस अथवा लाइट इ पल सस होने लगती है, जो िक हमारे िदमाग पर सकारा मक व
नकारा मक दोन तरह के भाव डालती है। हमारे शरीर पर उस िच का सकारा मक व
नकारा मक दोन तरह का भाव पड़ने लगता है। िकसी भी िच कला को देखकर हमारे मन
एवं िदमाग म बहत कार के भाव उ प होने लगते ह। िकसी एक पिटंग को देखने का हर
यि का नज रया अलग-अलग हो सकता है। हर िच अपनी एक अलग भावना रखता है।
आव यक नह क उसक उस भावना को येक यि समझ सके।
िच िचिक सा के अ तगत िच के भाव को गहराई से समझा जाता है। उनके मम को महसूस
िकया जाता है। यह िचिक सा भावकारी ही तभी होती है, जब इसको पूण भावना मक होकर
समझा एवं िकया जाए, य िक यह आधा रत ही मनोिव ान पर है। कोई यि अपने भाव को
िच से जोड़ कर ही उसको महसूस कर सकता है। हर िच का एक येय होता है। जब हम
कोई िच देखते है तो उसके आधार को समझने क कोिशश करते ह। हम समझना चाहते ह
िक िच कार हमसे या कहना चाहता है? या उ े य था उसका इस िच को बनाने का? यही
भावनाएं हमारे मन म उथल-पुथल मचाने लगती ह। इस लए कभी िकसी िच को देखकर हम
रोष से भर जाते ह, तो कभी उ साह से। कभी हमारा दय भर जाता है, दख ु और पीड़ा से तो
कभी फुि त हो जाता है।
कला िचिक सा को देखा जाए तो यह भारत म बहत ाचीन है। भारतीय म दर, वा तु कला
एवं िच कला इसका एक जीव त उदाहरण है। चाहे वह अज ता एवं एलोरा क िच शैली हो या
खुजराहो क वा तु कला। दोन ही बहत ही भािवत करने वाली कला थी व इन कलाओं को
ाचीन काल से ही बढ़ावा िदया गया, य िक ये कह न कह मानव जीवन पर भाव डालती
थ । मनु य क ेरणा ोत बनती थ । आधुिनक काल म कला िचिक सा क शु आत बीसव
शता दी के म य म हई थी। िचिक सक ने इस प ित का भाव मनु य के मनोिव ान, पुनवास,
कला िश ा एवं बा य अव था आिद पर देखा। ि िटश कलाकार ऐड रन िहल ने 1942 म
इसको कला िचिक सा (आट थैरेपी) का नाम िदया। उ ह ने य रोिगय पर िच एवं िच कारी
का सकारा मक भाव देखा। इस िवषय पर 1945 म उ ह ने एक िकताब भी लखी ‘आट
वॢसस इलनस'। यह िचिक सा प ित िवशेष प से मन क पीड़ा से सत यि य के लए
लाभकारी सािबत हई है।
जापान के एक िचिक सालय म लकवे के मरीज के इलाज का एक िह सा िच िचिक सा भी
है। जन मरीज के हाथ-पैर म संतुलन नह था अथवा कंपन था, उनसे िच कारी करवाई जाती
है। वह जब िच कारी करते ह, तो उनके शरीर म पहले क तुलना म कम कंपन अथवा अ धक
संतुलन िदखाई देता है। रोज िच कारी करने से उनके मान सक एक शारी रक िवकास म एक
अिव वनीय प रवतन देखा गया है। आ खर यह िच बनाने एवं देखने से हमारे अ दर ऐसा या
प रवतन होता है, जो हम स , दख ु ी, उ सािहत, हतो सािहत, नाराज अथवा गु सा कर देता है।
जीवन का आधार ऊजा है। यह ऊजा हम िकसी िच , िकसी आकार या बनावट तथा उसके रं ग
से भी ा होती है।
रं ग का हमारे जीवन पर िकतना भाव है, यह हम सभी जानते ह। हरा रं ग देखकर मन को
सुकून िमलता है। पीला रं ग देखकर मन उ साह से भर जाता है। नीला रं ग े रत करता है। लाल
रं ग कभी ेम का तो कभी गु से का तीक बन जाता है। रं ग का भाव तो हमारे यवहार तक
को बदल देता है।
हर िच क अपनी एक भाषा एवं शैली होती है। िच क भाषा म श द नह होते वहां तो
भावना होती है। यह भी आव यक नह िक वह भाषा हर कोई पढ़ सके अथवा हर कोई एक ही
तरीके से पढ़े। जब हम कोई िच देखते ह, तो उसके भाव क गहराई को अपनी मान सकता,
मान सक मता एवं यवहार के अनुसार समझने क कोिशश करते ह। एक िच िकसी यि
को उ सािहत कर सकता है िकंतु उसम मता होनी चािहए उसको समझने क । इसका उदाहरण
यिद िदया जाए तो पि काओं एवं अखबार म आने वाले राजनीितक काटू न हमको गुदगुदाते ह,
परं तु या एक राजनीित से अनिभ यि अथवा बालक को वो समझ आएगा? नह न,
य िक वह उस िवषय को समझने क मान सक मता नह रखता। िच िचिक सा के अंतगत
यि क पीड़ा को यान म रखकर िच बनाए जाते ह। इससे उसक मान सकता एवं मान सक
मता का िवशेष यान रखा जाता है। जब कोई पीिड़त यि िकसी पिटंग को देखता है तो वह
उससे मन ही मन बात करने लगता है। उस यि का उस िच के साथ एक अनदेखा सा
र ता जुड़ जाता है। वह उसम अपनी पीड़ा का एहसास करने लगता है। उसे ऐसा लगता है िक
िच कार ने यह िच सफ उसके लए बनाया है। उसे उस िच म अपने जीवन का ितिब ब
िदखाई देता है और वह उस पीड़ा से बाहर आने लगता है। यह प ित तनाव, मान सक पीड़ा,
अवसाद, िवषाद एवं िकसी अि य घटना से सत मृितय को ठीक करने म िवशेष कारगर है।

⦿⦿⦿
तनाव म मुि म
सहायक नान
यूं तो हम सब पानी का योग रोज खाने-पीने, नहाने-धोने आिद के लए करते ही ह, पर सच
तो यह है पानी हमारी यास बुझाने के साथ-साथ हमारे तनाव को कम करने म भी हमारी
मदद करता है। तनाव से राहत पाने के लए गम व ठ डे पानी, दोन का उपयोग िकया जाता है।
गम-गुनगुना पानी न केवल शरीर के रोम िछ को खोलता है, ब क कसी व जमी हई र
न लकाओं को भी ढीला करता है जससे शरीर के साथ-साथ म त क म र का वाह ठीक
हो जाता है। नस म तनाव ह का होने लगता है और सरदद म आराम िमलने लगता है। गुनगुने
पानी से नहाने के बाद यिद आप ठ डे पानी से नहाते ह, तो यह ठ डा पानी न केवल आपके
खुले रोमिछ को बंद कर देता है, ब क आपक रीढ़, म त क व पूरे नायु तं को भी द ु त
करता है। गरम-ठ डे पानी क यह िव ध तनाव, सरदद, माइ ेन, िचंता व अिन ा आिद रोग म
बहत कारगर है।
यान रहे गम व ठ डे पानी का तापमान उतना ही रख जतना सरलता से सहन हो। ज रत से
यादा गम व ज रत से यादा ठ डे पानी का योग न कर। म गम के बाद ठ डे पानी का
हो, ठ डे के बाद गम का नह । आप चाह तो नहाने क बजाए आप गम-ठ डी प ी का भी योग
कर सकते ह। इसके लए आप तौ लए या प ी को गम पानी म िभगाएं और िफर रोगी के चेहरे
माथे, सर एवं गदन या दद वाले िह से पर 15-20 िमनट तक रखते रह, िफर इसी ि या को
ठ डे पानी से दहु राएं यानी पहले गम पानी क पि य का सेक द, िफर 15-20 िमनट तक
ठ डे पानी क पि य का सेक द। िकसी एक के योग से ही रोगी को वचा म जलन क
िशकायत हो सकती है, इस लए गम व ठ डे दोन पानी का योग बताया जाता है।
नािड़य एवं कोिशकाओं को िश थल व शरीर म र को उपयु प से संचा रत करने के
लए आप अपने पंज को िपंड लय तक, सहनीय गम पानी म डालकर भी रख सकते ह।
बेहतर प रणाम के लए आप पानी म एक च मच सरस के पाउडर को िमला ल और आधे घ टे
तक इस पानी का सेक अपने एड़ी एवं पंज को द और िफर देख कैसे सरदद िमनट म दरू
होता है।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म सहायक
रे ले सोलॉजी
मा नव शरीर पी यं िविभ अंग से िमलकर बना है। येक अंग िविभ धमिनय और
र वािहिनय ारा एक दसरे ू से जुड़े होते ह। हमारे तलव , हथे लय , म तक, व
इ यािद के साथ-साथ शरीर के अ य अंग म भी कु छ ऐसे िवशेष िबंद ु होते ह जन पर यिद
िनधा रत समय तथा िव ध के अनुसार अंगूठे या उं ग लय ारा दबाव बनाया जाए तो िविभ
कार के रोग से मुि पाने म सहायता िमलती है, यह िव ध ‘रे ले सोलॉजी' कहलाती है। यहां
हम शरीर म िव मान कु छ ऐसे िबंदओु ं को बता रहे ह, जो सरदद के साथ-साथ आपको तनाव,
माइ ेन, अवसाद एवं अिन ा जैसी सम याओं से िनजात िदलाएंग।े
िन न िबंदओ
ु ं पर आप अंगूठे या उं ग लय के मा यम से 15-20 िमनट तक दबाएं। इसे आप
िदन म 4-5 बार या आव यकतानुसार कर सकते ह, सही थान या िबंद ु पहचानने के लए िच
म थत अंक का सहारा ल।

1. ठीक सर के नीचे, जहां खोपड़ी का आधार होता है।


2. खोपड़ी और गदन के आधार के ठीक बीच बीच या यूं कह पहले िबंद ु से तीन उं गल
नीचे।
3. तना (िनपल) के ठीक ऊपर सीध म कंधे क ह ी के पास।
4. दोन भ ह के ठीक म य म जहां नाक और माथा आपस म िमलते ह।
5. चौथे िबंद ु से लगभग एक उं गल छोड़कर, जहां भ ह का
उभार ारं भ होता है।
6. नाक के दोन नथुन से लगभग एक उं गल दरू जहां
गाल क ह ी जबड़े क ह ी से िमलती है।
7. ऊपरी होठ और नाक के ठीक नीचे, बीच का थान।
8. भ हो से लगभग दो उं गल दरू कान क तरफ।
9. माथे के म य म दोन भ हो से दो उं गल ऊपर।
10. पांव के अंगूठे व पहली उं गली के बीच के थान से
एक उं गल ऊपर।
11. पांव के अंगूठे क जड़ से तीन उं गल ऊपर तलव के
ओर।
12. पांव क चौथी व पांचवी उं गली के बीच से तीन उं गल
ऊपर का थान।
13. हंसुली (कॉलर बोन) से तीन उं गल नीचे।
14. सीने के बीच -बीच का थान।
15. कलाई से तीन-चार उं गल ऊपर, बाजुओं म अंदर क
तरफ।
16. घुटने से दो इंच नीचे एवं िपंडली क ह ी से एक उं गल
बाहर क तरफ।
17. बाजु के ऊपरी भाग पर, कलाई से तीन उं गल ऊपर,
दोन नस के बीच।
18. हथेली के ऊपरी भाग पर अंगूठे व तजनी उं गली के म य का थान।
वास म िछपा तनाव मुि का माग
ह मारे तनाव व िचंता का कारण हमारा अशांत व बेचन
ै मन होता है, परं तु यह मन हम
िदखता नह है इस लए हम इसे सीधे शांत नह कर सकते। यह हमारे शरीर म रहता है,
यिद हम शरीर को शांत कर ल तो मन को भी शांत िकया जा सकता है, य िक शरीर खाली
शरीर नह है, इस शरीर म म त क भी है जो सोचता है, िवचारता है। चंचल मन भी है, जो
पल-पल बदलता और भटकता है। लेिकन इन सब क अव था क खबर हमारे शरीर म चल
रही वास दे देती ह। मतलब हमारा शरीर, मन एवं म त क िकतना िचंितत है, िकतना तनाव
म है, िकतना भयभीत है, िकतना दबाव म, िकतना आनंिदत है, सबक खबर हमारी सांस दे
देती ह। बेचनै सांस, घबराई सांस, भयभीत सांस, गु से क सांस, खुशी क सांस आिद सब
तरह क सांस हमारी भीतरी अव था को दशाती ह।
सच तो यह है िक हमारे शरीर, मन-म त क एवं सांस का आपस म गहरा संबध ं है तथा
सब एक दसरे ू से जुड़े ह व एक दसरेू को भािवत करते ह। यिद हमारी वास िश थल और
शांत होगी तो हमारे िवचार भी िश थल और शांत ह गे। हमारा शरीर शांत होगा तो हमारी नस
तथा उनम खंचाव व तनाव शांत होगा।
सांस हमारे जीने का ही नह हमारे बेहतर, िवशेष तौर पर मान सक वा य का आधार है।
मान सक तौर पर व थ रहने के लए यानी तनाव, अवसाद, िचंता आिद से मु रहने के लए
ज री है िक म त क म ऑ सीजन का वाह ठीक ढंग से हो, य िक जस ढंग से हम
ह क -अधूरी सांस लेते ह, उससे म त क म ऑ सीजन क कमी हो जाती है, जो हमारे
म त क क नस म तनाव, खंचाव व संकुचन पैदा करती है, जसके कारण सरदद व तनाव
इ यािद पैदा होता है।
वास का हमारे जीवन से गहरा संबध ं है, यही वह पहला और आ खरी काम है, जो इंसान
करता है, यानी जब हम पैदा होते ह तो जो सबसे पहला काम हम करते ह वह है सांस लेना
और जब हम मरते ह, तो सबसे आ खरी म जो हम करते ह वह है सांस छोड़ना। तभी तो कहते
ह यह जीवन सांस का खेल है। यह सांस न केवल हमारे जीवन का आधार ह, ब क क भी
ह। इ ह वास के मा यम से ब चा मां के गभ म पलता व पनपता है। वास को िश थल
करने के कई तरीके ह। आप चाह तो िन न िव धय का सहारा ले सकते ह।

वास को िश थल करने के लए िकसी शांत वातावरण का चुनाव कर। कोिशश कर वह


क या थान व छ, साफ, दगु ध रिहत हो।
क म अ धक तेज रोशनी न हो।
अ यास के लए आप िगनती का योग कर सकते ह। वास लेने क गित एक से छह
तक हो और छोड़ने क गित सात से बारह तक यानी जब आप वास भर तब मन म एक
से छह तक िगन तथा जब आप वास छोड़, तब मन म सात से बारह तक िगन। वास के
आवागमन को इसी म अनुसार रख। धीरे -धीरे आप पाएंगे िक मन शांत होने लगा है,
िवचार कम होने लगे ह, वास िश थल और शांत होने लगी है। कु छ िदन के िनयिमत
अ यास से आप न केवल वयं को अित र सकारा मक ऊजा से भरा पाएंग,े ब क
शांत एवं एका भी पाएंग।े
वास को िश थल और मन को शांत करने के लए आप इस िव ध को भी अपना सकते
ह। इसम वास क गित को आपको पूव िव ध अनुसार रखनी है, बस छोड़ते व वास
नाक से न छोड़कर मुंह से छोड़नी है। और वास छोड़ते व आपको महसूस करना है िक
िनकलती वास के साथ-साथ आपका तनाव, आपक थकावट, आपके रोग, क एवं
नकारा मक िवचार आिद भी वास के साथ बाहर िनकल रहे ह और आप शांत, ह के,
व थ और िनरोगी हो रहे ह। साथ ही जब आप वास भर तब महसूस कर िक हर नई
वास आपको ताजा व नया कर रही है, आप नई ऊजा व िद यता से भर रहे ह। आती-
जाती वास म इन िवचार को बनाए रख। और आप पाएंगे िक आपका शरीर शांत, वास
िश थल और मन िवचार शू य होने लगा है।
वास को िश थल करने के लए आप इस िव ध का योग भी कर सकते ह। इस िव ध म
वास क गित उपयु बताई गई िव ध अनुसार रहेगी। इस िव ध म आपको नाक के दोन
िछ से न तो सांस लेनी है, न ही छोड़नी है, यानी वास को एक नथुने से लेना है और
दसरे
ू नथुने से छोड़ना है। उं गली के दबाव से बाएं नथुने को बंद कर और दाएं नथुने से
वास भर और वास छोड़ने के लए दाएं नथुने को उं गली के दबाव से बंद कर और बाएं
से वास को छोड़। इस ि या को कम से कम आठ-दस बार दोहराएं, िफर इसका उ टा
कर, यानी बाएं नथुने से सांस भर और दाएं से छोड़, इसे भी आठ-दस बार कर। इस पूरी
िव ध को कम से कम पांच बार दोहराएं। ऐसा करने से न केवल आपक वास ऊजा
संतु लत होती है, ब क सु मना नाड़ी के मा यम से आपके सात च म ऊजा वािहत
होती है, जो यान व एका ता म आपक मदद करती है तथा हम शांत व एका िच
करती है।

नािभ पर वास देख


शरीर िश थल हो जाने के बाद सुखासन म शांत बैठ जाएं। आंख बंद, पीठ सीधी व हाथ
यान मु ा म, घुटन पर रख। बंद आंख से सारा का सारा यान अपनी नािभ पर लाएं। नािभ
को देख। नािभ के आस-पास पेट को देख। जतनी गहराई से आप देखगे आप महसूस करगे
िक आपका पेट आपक वास के साथ-साथ उठ-बैठ रहा है। ऊपर-नीचे, अंदर-बाहर हो रहा
है। उठते-बैठते इस पेट को देख। इसी थान पर यिद आप और गहराई से यान दगे तो आप
पाएंगे िक वास के साथ-साथ आपक नािभ भी ऊपर-नीचे हो रही है। न केवल ऊपर-नीचे हो
रही है, ब क फैलती और सकु ड़ती भी है। नािभ के इस फैलने- सकु ड़ने को देख। महसूस
कर िकतनी आिह ता यह वास के उतार-चढ़ाव के साथ बड़ी होती है, छोटी होती है। इस िव ध
म आपको बस यही करना है। वयं को िकसी समय सीमा म न बांध। जतनी देर तक हो सके,
वास को नािभ पर उठता-बैठता देख। धीरे -धीरे आपका यान सधता जाएगा और आप यान
म उतरते जाएंग।े

वास के साथ या ा कर
इस िव ध म भी आपको सुखासन म, आंख बंद करके, सीधे बैठना है। आप चाह तो यान
मु ा म बैठ या िफर अपनी दोन हथे लय को एक के ऊपर एक गोद म रख ल। यान ारं भ
करने से पहले तीन बार गहरी ल बी वास ल और छोड़। कु छ पल क। अब नाक से नािभ
तक जाती और नािभ से नाक तक आती-जाती वास के साथ या ा कर। यानी वास को
कदम-दर-कदम, नािभ तक खसकता, सरकता महसूस कर जैसे वास को नाक से गले, गले
से छाती, छाती से पेट और पेट से नािभ तक तथा नािभ से पेट, पेट से छाती, छाती से गले और
गले से नथुन तक आता-जाता महसूस कर। जतनी गहराई से आप देखगे उतना यान गहराता
जाएगा। शरीर और वास िश थल होता जाएगा और आप अपने भीतर एक गहन शांित
अनुभव करने लगगे।

नथुन पर वास देख


इस िव ध म भी आपको सुखासन म, आंख बंद करके, सीधे बैठना है। आप चाह तो यान
मु ा म बैठ या िफर अपनी दोन हथे लय को एक के ऊपर एक गोद म रख। यान ारं भ
करने से पहले तीन बार गहरी ल बी वास ल और छोड़। कु छ पल क। अब बंद आंख से
अपने नाक के नथुन को देख। सारा का सारा यान नाक के िछ पर कि त कर। िछ पर
ही ठहरे रह और िछ म आती-जाती वास को देख। जतनी गहराई से आप नथुन पर यान
दगे, उतनी ही सरलता से आप वास को आता-जाता, सरकता- खसकता महसूस कर पाएंग।े
इतना ही नह वास का गुनगुना पन, उसक भाप को भी महसूस कर पाएंग।े बस इस िव ध म
आपको यही करना है। नाक के िछ पर पहरा देना है, तािक आती-जाती वास को देख सक,
महसूस कर सक।
शु -शु म यिद आपको वास महसूस करने म िद कत हो, तो आप अपनी नाक और
होठ के बीच म अपनी िकसी एक उं गली को लेटाकर रख। ऐसा करने से आप वास को
आसानी से अपने नाक के िछ म आता-जाता महसूस कर पाएंगे तथा वहां यान कि त करने
म आपको सुिवधा होगी। वास महसूस हो जाने के बाद आप चाह तो उं गली को हटा सकते ह।
अब िबना उं गली के वास को आता-जाता िछ म देख। इस िव ध क भी कोई समय सीमा
नह है। जतना यादा आप इस िव ध को करते ह, उतना यादा यान गहराने लगता है और
आपको लाभ होने लगता है।

शरीर को वास लेने द


ऊपर क िव धय म हमने वास को शरीर के िभ -िभ िह स म देखा व महसूस िकया।
इस िव ध म हम अपने शरीर को देखना है िक वह कब वास लेता है कब वास छोड़ता है।
वयं सांस लेन-े छोड़ने क िफ नह करनी।
इस िव ध के लए भी आप सुखासन म बैठ जाएं। आंख बंद व पीठ सीधी रख। हथे लय को
एक के ऊपर एक अपनी गोद म रख। शरीर को िश थल व शांत कर। इसके लए ऊपर बताई
गई, शरीर को िश थल करने वाली िव ध का योग कर। शरीर िश थल हो जाए तो वयं को
यूं ही बैठा रहने द। आंख बंद रख और बंद आंख से पूरे शरीर को देख, बैठे रह, छोड़ द
ढीला शरीर को, कु छ नह कर, बस शरीर क िनगरानी कर। शरीर कब सांस लेता है, कब
सांस छोड़ता है। यान रख। न वयं सांस ल न छोड़। बस बैठे रह, शरीर को देखते रह, आप
पाएंगे िक आपका शरीर वयं वास लेगा और वयं वास छोड़ देगा। वास आने के बाद न
तो आपको वास रोक कर रखनी है, न ही वयं से उसे छोड़ने का यास करना है। आप
पाएंगे िक आपका शरीर वयं वास छोड़ देगा। जतना आप अपनी वास के आवागमन को
शरीर पर छोड़ते जाएंग,े उसे देखते जाएंग,े उतना आपका शरीर शांत, वास िश थल और मन
िनिवचार होता चला जाएगा। और आप गहन यान म समाते चले जाएंग।े इस िव ध को जतना
िकया जाए उतना अ छा है।

जब तनाव का कारण सरदद हो


जब भी म त क को ऑ सीजन ज रत अनुसार कम या नह पहच ं ेगी तो सर दद होगा,
इस लए सर दद न हो, गहरी, ल बी, नािभ तक, वास को भर। पूरी छाती को वास से
भर ल और िफर मता व साम य अनुसार वास को छाती म ही रोक और वास को
देख, उसक हरकत को महसूस कर। जब आपको वास रोकना मु कल लगे या जब
वास छोड़ना ज री हो जाए तभी छोड़ और वह भी नाक से। इस ि या को 6-7 बार
लगातार कर। िफर बीच म िवराम ले, ल यानी वास को साधारण तरीके से चलने द और
कु छ देर बाद िफर इस िव ध को अपनाएं। राहत िमलने पर क जाएं। एक बार म ज रत
से यादा भी इसी िव ध को न कर।
सर दद के कारण यिद तनाव महसूस कर रहे ह, तो आप इस िव ध को भी अपना सकते
ह। वास को पूरी गहराई से मुंह से ल और अपने मुख को पूरी हवा से भर ल। सांस भरने
से आपका मुंह गु बारे क तरह फूल जाएगा। वास को भरा रहने द। अंगूठे और उं गली
के मा यम से अपनी नाक को, छे द को बंद कर ल तथा मुंह म भरी सांस को कान से
बाहर फकने का य न कर यानी नाक और मुंह को बंद रख और अंदर क हवा कान के
रा ते से बाहर धकेल। हालांिक कान से वास बाहर िनकलेगी नह बस कान और
म त क म उसका दबाव पड़ेगा। थोड़ी देर बाद िफर नाक और मुंह को खोल द और वास
को बाहर िनकल जान द। इस ि या को एक बार म छह-सात बार से अ धक न कर। ऐसा
करने से न केवल आपके म त क म ऑ सीजन पहच ं ेगी, ब क उसम र का सही
संचार भी होगा। जससे सर दद म आपको राहत िमलेगी और आप अपना यान िकसी
एक ओर कि त कर सकते ह।

⦿⦿⦿
तनाव का कारण
तन का तनाव तो नह ?
ह मारे तन का संबधं सीधा मन से है। देखा जाए तो दोन का एक दसरे
दोन क थितयां एक दसरे
ू से पर पर संबध
ू को भािवत करती ह। काफ संभावना है िक हमारा सरदद
ं है।

हमारे तन के तनाव के कारण हो। िफर वह हमारे उठने-बैठने का ढंग हो या सोने का। घ ट
क यूटर पर काम करना हो या टेलीफोन पर बात करने का। शरीर क जतनी अ धक नस
तनी रहगी, उतना उनम तनाव अ धक रहेगा और यही तनाव िफर सरदद का कारण बन
जाएगा।
तनाव का कारण शरीर म नस व वास क जकड़न भी हो सकती है, इस लए जो लोग एक
जगह पर अ धक बैठे रहते ह, उ ह तनाव होने क संभावना अ धक बढ़ जाती है। इस लए
अपने शरीर को एक जगह अ धक समय तक न िटकाएं हो सक तो थोड़े अंतराल के बाद न
केवल अपने शरीर को िहलाते-डु लाते रह, उनक थित व मु ाएं बदलते रह, ब क अपना
थान छोड़कर थोड़ा सा चहलकदमी भी कर आएं, बाहर ताजी हवा ल, कु छ देर नीले आकाश
को िनहार, पानी िपएं और िफर काम शु कर। यिद आपका काय िदनभर बैठने का अ धक
है, तो रोज सुबह उठकर योगा या ए सरसाइज अव य कर। चाहे कसरत ह क -फु क ही हो
पर िनयिमत ज र कर।
यान रहे हमारा म त क शरीर से अलग नह है दोन एक दसरे ू से जुड़े ह, इस लए यिद
शरीर म अकड़न होगी, तो म त क म जकड़न होगी। शरीर म तनाव रहेगा, तो म त क म
दद रहेगा। इस लए जब भी बैठ आरामदायक कु स व आसन पर सीधे बैठ। जब भी आप को
लगे िक शरीर म, िवशेषतौर पर कंध और कमर म भारीपन या तनाव सा हो रहा है, तो अपने
दोन कंध को पांच िमनट के लए एक दम ढीला छोड़ द, जैसे िक वह है ही नह । हथे लय ,
जबड़ और ह ठ को पूरी तरह ढीला छोड़ द। यिद मान सक एवं शारी रक तनाव व दद से
बचना है, तो इस ए सरसाइज को अपनी िनयिमत िदनचया म शािमल कर ल।
ऐसे ही यिद आपका काय क यूटर पर काम करने का अ धक है, तो अपने कु स -टेबल क
ऊंचाई व दरीू पर िवशेष यान द। क बोड, माऊस आिद िकस कोण व ऊंचाई पर ह यह भी
यान द। क यूटर क न का कलर व ाइटनेस यादा तेज न ह । जहां पर न हो वहां
काश क अ छी सुिवधा हो। ज रत से यादा िबना पलक झपकाए न को न िनहार।
इससे आपक आंख क नस कमजोर होती ह, जो बाद म सरदद का कारण बनती ह। इस लए
बीच-बीच म आंख को न केवल न से हटाएं ब क हो सक तो दोन हथे लय को रगड़कर
दोन पलक पर रख, इससे आंख को आराम िमलेगा। आंख म ठ डे पानी के छ टे मार तथा
पुत लय का यायाम भी कर, तािक उनका तनाव कम हो सके।
जस तरह कु स -टेबल व हमारे बैठने के ढंग का संबध ं हमारे तनाव से है, ऐसे ही हमारे
िब तर-तिकए व सोने का ढंग भी हमारी मांसपेिशय को भािवत करता है। जो न केवल हम
रात भर बेचन
ै ी व अधूरी न द देता है, ब क हमारे बदन व सरदद का कारण भी बन जाता है।
इसी लए ज रत से यादा मुलायम ग ा व ऊंची तिकया भी हमारी रीढ़ क ह ी को भािवत
करती है, जो िक आधार है हमारी पीठ और गदन म होने वाले दद का और यिद यह दद जकड़
जाए, तो सर म दद होना लाजमी है। ऐसे ही जो लोग घ ट मोबाइल पर लगे रहते है, उ ह
गदन तो टेड़ी, रखनी पड़ती ही है साथ ही उन फोन से िनकलने वाली हािनकारक तरं ग का भी
सामना करना पड़ता है, जो हमारे नायु तं को कमजोर बनाती ह। हम तनाव व सरदद देती
है, इस लए हम इनका योग कम से कम या ज रत अनुसार एक सीमा म करना चािहए,
तािक दद को िनमं ण न िमले।

शरीर को शांत कर
वास को िश थल करने से पहले यिद आप शरीर को िश थल कर ल तो वास को
िश थल करना आसान होगा तथा आपको प रणाम अ छे व शी ा ह गे। शरीर को
िश थल करने के लए सबसे पहले एक शांत क का चयन कर। उस कमरे म काश को
कम रख। आंख को बंद कर ल और बंद आंख से शरीर को पांव के अंगूठे से देखना
चालू कर। इस ि या को आप लेटकर, सुखासन म या कु स पर बैठकर कैसे भी कर
सकते ह। पांव के अंगूठे से शु कर। बंद आंख से अंगूठे को देख, वहां ठहर, देख कह
कोई खंचाव, तनाव, ऐंठन या जकड़न आिद तो नह है। कह कोई बेचन ै ी तो नह । कह
कोई नस आिद तो नह दब रही? ठीक से देख। उस िह से या अंग को ढीला कर और
िफर आगे बढ़। बंद आंख से शरीर के हर अंग को ऐसे ही देख, उस पर ठहर और ढीला
कर। ऐसे ही धीरे -धीरे पूरे शरीर को देख और िश थल कर।

इसे म अनुसार इस तरह देख


पांव का अंगूठा, अंगूठे से जुड़ी उं ग लयां, पंजा, ऐड़ी, तलवा, िप ड लयां, घुटने, घुटने का
अंद नी भाग, जांघ, कमर, पीठ, पेट, छाती, कंधे, गदन, गला, जबड़ा, जीभ, ह ठ, थोड़ी,
गाल, नाक, आंख, पलक, पुतली, भौएं, माथा, सर। हर अंग पर ठहर, क, उसे शांत और
िश थल कर धीरे -धीरे आप पाएंगे िक आपका पूरा शरीर शांत हो रहा है। न केवल शरीर शांत
हो गया है, ब क आपक वास भी शांत हो गई। सच तो यह है िक शरीर को िश थल करते-
करते आपक वास भी िश थल हो जाती है और आप एक गहन शांित व ऊजा से भर जाते ह।
एक बार शरीर िश थल हो जाए तो आप यान व एका ता के लए िन न िव धयां अपना
सकते ह, जससे न केवल आपक वास िश थल ह गी ब क आपका यान भी गहराएगा।
आपक एका ता म सुधार आएगा। इसके लए आप वास को िन न थान पर अनुभव कर।

यिद आपको शरीर को िश थल करने म िद कत आ रही है, तो आप ऐसा भी कर सकते


ह। सुिवधा अनुसार बैठ या लेट जाएं। आंख बंद रख बंद आंख से सारा का सारा यान
अपने सीधे पैर पर लाएं जतना हो सके मांसपेिशय को जकड़, कस उसम तनाव व
खंचाव बनाएं। इस तनाव को यूं ही एक से बारह तक िगनती िगनने तक बनाए रख िफर
आिह ता-आिह ता पैर को िश थल कर और ढीला छोड़ द। यही ि या शरीर के अ य अंग
के साथ सर से पांव तक दोहराएं। यहां तक िक चेहरे के, होठ, नाक, कान, जबड़े, जीभ,
आंख, पलक, भौएं एवं माथा आिद के साथ यही कर, उ ह कस, तनाव से भर और िफर
उ ह भी धीरे -धीरे िश थल कर। धीरे -धीरे आप पाएंगे िक आपका पूरा शरीर शांत होने लगा
है। न केवल शरीर, आपक वास भी शांत और ह क होने लगी ह तथा िवचार भी कम
होने लगे ह और आप गहन शांित म जाने लगे ह, शांत हो गए ह।
शरीर को शांत और वास को िश थल करने के लए यह बहत ज री है िक वह आपक
वतः ही ज रत बन जाए यानी शरीर को इतना थका ल िक वह शांत होने क , िश थल
होने क मांग करने लगे। इसके लए आप िकसी नृ य, क तन या संगीत का योग कर।
उस पर खूब नाच, उछल-कू द। कम से कम बीस से प चीस िमनट तक िबना के अव य
नाच या तब तक नाच-झूम जब तक आपके लए नाचना मु कल न हो जाए। िफर
इ छानुसार या तो लेट जाएं या बैठ जाएं और छोड़ द खुद को, कु छ न कर। िकसी बात
क शी ता न कर। ढीला छोड़ द खुद को और जो भी भीतर हो रहा है। उसके सा ी बन।
जतना आप उसके सा ी बनगे उतना आप शांत और िश थल होते जाएंग।े सच तो यह है
िक इतनी थकावट या रे चन के बाद आपका शरीर अपने आप शांत होने लगेगा। वास
धीरे -धीरे वतः ही शांत होने लगगी। आप अपने भीतर एक गहन शांित का अनुभव करने
लगगे। इसके लए आप ओशो क सि य यान िव ध का भी उपयोग कर सकते ह।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म सहायक सुर-संगीत
व िनउठाकर
के दो कार होते ह, एक ि य और दसरीू अि य। जैसे- कोई यि जब प थर
िकसी खंभे पर हार करता है तो उससे उ प विन यि िवशेष को अि य
लगती है, परं तु जो विन वा से उ प होती है, वह सभी यि अथवा ािणय को ि य
लगती है एवं अपनी ओर आकिषत करती है। यही विन ‘संगीत' कहलाती है।
हर वा क अपनी विन होती है, जो हम पर अपना िवशेष भाव छोड़ती है, साथ ही उ ह
यिद िकसी िवशेष सुर म अ य वा के साथ बजाया जाए तो वह और भी गहराई से असर
करती है और यही कारण है जब हम कोई वा िबना सुर के बजाते ह, तो हम उनक विन
ककश व तनाव पूण लगती है। ऐसे ही जब कोई बेसुरा गाता है तो उसका गाना हमको चुभता
है, सर म दद उ प करता है। सुर, ताल, लय, श द सब िमलकर एक ऊजा व कंपन पैदा
करते ह, जससे शरीर के रोग व हमारी मान सक अशांित ठीक होती है।
कंपन भी एक कार क िचिक सा है जसे ‘वाई ेशन थैरेपी' कहा जाता है। इस थैरेपी से
शरीर म खून का बहाव बढ़ जाता है, गांठ खुलने लगती ह। नस म ऐंठन कम होने लगती है,
उनका बल िनकल जाता है। यिद खून का बहाव शरीर के हर िह से म सही से होने लगे तो
शरीर क सभी िबमा रयां कम होने लगती ह। शरीर व थ होने लगता है। संगीत के सुर-ताल
एवं वा का कंपन हमारी नस को िश थल करता है व र के संचार को बेहतर बनाता है।
सच तो यह है संगीत से िदल व िदमाग को आराम िमलता है। म त क सि य व स म होने
के साथ-साथ शांत और िश थल भी होता है।
संगीत भावनाओं और संवेग क भाषा है। इसके ारा मानव अनेक कार के मनोभाव को
प र कृत प म कािशत करता है। सुख-दख ु , आशा-िनराशा, आसि -िवरि , जय-पराजय
आिद अपने मनोभाव को अिभ य कर मनु य कई मान सक िवकार से बच सकता है।
संगीत से मानव भौितक बंधन से दरू होकर शांित व आनंद का अनुभव करता है। इससे भाव
को जगाया जा सकता है।
संगीत से अवसाद, शारी रक पीड़ा और थकान म राहत तो िमलती ही है, इसके अित र
यह हमारे याददा त को भी तेज करता है व साथ ही इसके मा यम से अ व थ शरीर व मन के
कारण जतने भी रोग उ प ह, उनको भी ठीक िकया जा सकता है।
वयं को एका , शांत व तनाव रिहत करने के लए भी कई राग ह, जनके िनयिमत वण
व गायन से मान सक एवं शारी रक रोग को ठीक िकया जा सकता है।
सरदद होने के कई कारण ह जैसे- िचंता, तनाव, अवसाद, थकावट, र चाप, अिन ा,
सरदद आिद। इन सब म कौन सा राग सहायक है, यह आप िन न सूची से जान सकते ह।
यिद आप इन राग को गाना नह जानते ह, तो बाजार म उपल ध सी.डी. के मा यम से भी
राग को सुन सकते ह व रोग को दरू कर सकते ह। आप चाह तो इन राग पर आधा रत गीत,
गजल या भजन आिद को भी सुन या गा कर लाभ ा कर सकते ह।
1. तनाव- राग क याणी भजन, केदाराम, सुधा धनयासी, दरबारी, भैरवी, यमन।
2. दय रोग -राग िशवरं जनी, राग भैरवी, अ हैया िबलावल, करहारा ि या, वकु लाभरानम्,
वराली भजन, वास त या वास ता।
3. र चाप- ल लत राग, राग दरबारी, आन द भैरवी, वास त, आसावरी।
4. मान सक रोग- राग केदार, राग ल लत शंकरामरनम्, सौरात, जय-जयवंती ।
5. अिन ा- नीला बरी, मधुविषनी, कोिकलम्, सं या क याणी, ुित, भूप, दरबारी कनारा।
6. िड ेशन- किप, वकु लाभरानम्।
7. सरदद- मधुविषनी।
8. तंि का िवकार- करहारा ि या, मधुविषनी।
9. आ या मक ऊजा- देश।
10. यान एवं एका ता- क रवाणी, िहंडोला।
11. ऊजा दायक- केदाराम, शनमुखि या, सुधा धनयासी।

⦿⦿⦿
तनाव कम करने
म सहायक मु ाएं
खा ने के लए व िकसी काम को करने के लए हाथ का योग करना एक आम बात है,
िफर इनक सहायता से कोई वा बजाना हो या कोई िच बनाना, लखने-पढ़ने से
लेकर इशारे आिद करने म इनका भरपूर उपयोग होता है, परं तु इनका इतना उपयोग इनका
पूरा व सही उपयोग नह है।
यह हथेली, अंगूठा और उं ग लयां कृित का सू म प ह। जो िद य ऊजा पंच त व के प
म पूरे ांड म या है। वह अपने पूण गुण के साथ हमारे हाथ म भी िव मान है परं तु हम
इसका ान नह है। ‘मु ा िव ान' या ‘मु ा िचिक सा' के मा यम से हम न केवल बेहतर
मान सक व शारी रक वा य पा सकते ह, ब क यान एवं योग म इन मु ाओं क सहायता
से परमा मा को या परम सुख को भी उपल ध हो सकते ह।
ांड अि , वायु, आकाश, पृ वी और जल इन पंच त व से िमलकर बना है और मानव
शरीर भी इ ह पांच त व से िमलकर बना है। हथेली म मौजूद उं ग लयां व अंगूठे पांच त व
क ऊजा को अपने भीतर िछपाए हए ह, ज ह मु ाओं के मा यम से उपयोग म लाया जा
सकता है। पांच उं ग लयां पांच त व का ितिन ध व करती ह जैसे-
1. अंगूठा अि त व को 2. तजनी यानी दसरी ू उं गली वायु त व को, 3. तीसरी यानी
म यमा उं गली आकाश त व को, 4. चौथी यानी अनािमका उं गली पृ वी त व को तथा पांचव
यानी किन का उं गली जल त व को दशाती है।

कैसे व कब कर?
मु ाओं को कभी भी, कह भी उठते-बैठते, चलते-िफरते यहां तक िक लेटे-लेटे भी कर
सकते ह, परं तु इनका लाभ प ासन, सुखासन या व ासन म करने से अ धक ा होता है।
सुबह हो या शाम, रात हो या िकसी या ा के दौरान इ ह बाहर, बगीचे म, बंद कमरे म या
ऑिफस म कह भी िकया जा सकता है। इ ह एक ही समय म दोन हाथ से िकया जा सकता
है। मु ा के दौरान उं ग लय को साधारण रख उनम कोई तनाव, खंचाव या कसाव न हो।

िकतनी देर तक कर?


मु ाओं से लाभ ा करने के लए िकसी भी मु ा को ारं भ म कम से कम दस िमनट तक
अव य करना चािहए, िफर चाहे तो इस अव ध को तीस िमनट से लेकर एक घंटे तक बढ़ाया
जा सकता है। यिद एक साथ ल बे समय के लए इ ह करना मु कल हो तो आप इ ह दो-तीन
बार म भी कर सकते ह। यिद इन मु ाओं को जीवन म िनयिमत प से िकया जाए तो
साधारण कान के दद से लेकर हाटअटैक जैसे गंभीर रोग तक को ठीक िकया जा सकता है। यूं
तो रोग के अनुसार एक दजन से भी अ धक मु ाएं ह, परं तु हम यहां केवल उ ह मु ाओं का
उ ेख कर रहे ह, जो तनाव को कम कर एका ता और आ मिव वास को बढ़ाती ह। जैसे-
ान मु ा, यान मु ा, अपान मु ा, उ र बो ध मु ा, यानी मु ा, हािकनी मु ा, ि मुख मु ा,
िशव लंग मु ा तथा अह कारा मु ा आिद।

1. ान मु ा
िव ध- आराम से बैठ। अपनी पीठ और गदन को सीधी रख। त वीर अनुसार अपनी तजनी
यानी पहली उं गली और अंगूठे के िटप यानी अ भाग को ह के दबाव के साथ िमलाएं और
शेष तीन उं ग लय को सीधा व ढीला रख। सुखासन या प ासन म बैठकर, हथेली को अपने
दोन घुटन पर आकाशो मुख रख। रोज बीस से तीस िमनट तक इस मु ा का अ यास कर।

लाभ- इस मु ा के िनयिमत अ यास से मन शांत और थर होता है। याददा त व एका ता


बढ़ती है। तनाव, अवसाद, िचंता, भय और अिन ा जैसे रोग दरू होते ह। आ या मक उ ित या
आ म जागरण के लए यह मु ा िवशेष उपयोगी है।

2. यान मु ा
िव ध- आराम से बैठ। अपनी पीठ और गदन को सीधी रख। िच अनुसार अपनी तजनी
एवं म यमा उं गली के अ भाग को अंगूठे के अ भाग से ह के दबाव के साथ िमलाएं तथा
शेष दोन उं ग लयां सीधा व ढीली रख। सुखासन म बैठकर, हथेली अपने दोन घुटन को
आकाशो मुख रख। रोज पं ह से बीस िमनट तक इस मु ा का अ यास कर।
लाभ- इस मु ा के िनयिमत अ यास से तनाव व उ च र चाप क सम या दरू होती है, जो
िक अ छी पढ़ाई व एका ता के लए ज री है।

3. अपान मु ा
िव ध- आराम से सुखासन या प ासन म बैठ। अपनी पीठ और गदन को सीधा रख। िच
अनुसार म यमा एवं अनािमका उं गली के अ भाग को अंगूठे के अ भाग से ह के दबाव के
साथ िमलाएं तथा शेष उं ग लय को सीधा व िश थल रख। हथे लय को दोन घुटन पर
आकाशो मुख रख। रोज पं ह से बीस िमनट तक इस मु ा का अ यास कर।

लाभ- इस मु ा के िनयिमत अ यास से लवर एवं गॉल- लैडर संबध ं ी सम याएं तो दरू होती
ही ह साथ ही आ मिव वास, धैय, थरता एवं िदमागी संतुलन म भी सुधार होता है।

4. उ र बो ध मु ा
िव ध- दोन हाथ क उं ग लय को एक दसरे
ू म फंसाए। तजनी उं गली एवं अंगूठे को अलग
करके दोन उं ग लय एवं अंगूठे के अ भाग को जोड़ ले। मु ा को कु छ इस तरह बनाएं िक
उं ग लयां आकाश क ओर ह तथा अंगूठा धरती क ओर हो। इस मु ा को गोद म नािभ के
पास रख। इस मु ा को कह भी, कभी भी, िकतनी भी देर के लए िकया जा सकता है।
लाभ- इस मु ा से शरीर व मन म ऊजा का संचार होता है। आलस दरू होता है, तन-मन नई
ताजगी से भरता है, जो िक एका ता व काय एवं पढ़ाई आिद म सफलता के लए ज री है।
इससे अशांत और बेचन ै मन शांत होता है। फेफड़ म वास का उिचत संचार होता है जससे
भीतर ताजगी बनी रहती है। तनी हई नस व वास िश थल होती है। परी ा, मंच या इंटर यू
आिद का भय नह रहता। वयं से जुड़ने के लए, यान एवं आ म पांतरण के लए भी यह
मु ा भावशाली है।

5. यानी मुु ा
िव ध- दोन हथे लय को अपनी गोद म ऐसे रख िक वह एक कटोरे का आकार ल। बाय
हथेली को नीचे और दाय हथेली को उसके ऊपर रख। दोन अंगूठ के अ भाग को ह के
दबाव के साथ िमला ल। इसे सुखासन या पदम्आसान म जतनी देर कर सक उतना अ छा है।

लाभ- यान व साधना के लए एक ाचीन व पारं प रक मु ा है इससे एका ता शि बढ़ती


है, मन िवचार शू य और शांत होता है। यह मु ा जीवन म संतुलन लाती है।

6. हािकनी मु ा
आज के समय म अ सर लोग िशकायत करते ह िक वे हमेशा कु छ न कु छ भूल जाते ह।
लेिकन हािकनी मु ा ारा आप अपने िदमाग क मता और मरण शि बढ़ा सकते ह। यह
मु ा यि के एका ता के तर को बढ़ाने म काफ भावी मानी गई है। हािकनी मु ा का
संबधं छठे च यानी तीसरी आंख से है। बहत पहले िमले िकसी यि के बारे म याद करने
या कु छ समय पहले पढ़ी गई िकसी बात को याद करने म यह मु ा काफ मददगार सािबत हो
सकती है। कु छ नया सोचने पर भी इस मु ा को करने से बेहतर आइिडया आपके िदमाग म आ
सकते ह। बहत सारे काम एक साथ करने पर या यादा मान सक काय करने पर भी इस मु ा
को करके लाभ ा िकया जा सकता है।
िव ध- अपने दोन हाथ क उं ग लय और अंगूठ के अ भाग को आपस म िमलाएं व हाथ
के बीच दरी
ू बनाए रख। इस बात का िवशेष यान रख िक आपक हथे लयां आपस म जुड़ने
न पाएं।
िदमाग और मरण शि बढ़ाने के लए रोजाना 45 िमनट हािकनी मु ा का अ यास कर या
िफर 15-15 िमनट करके िदन म तीन बार अ यास करना पया है।
हािकनी मु ा के अ यास के लए कोई िवशेष समय तय नह है। िकसी भी समय इस मु ा
का अ यास िकया जा सकता है।

यह मु ा िदमाग के दाएं और बाएं िह से के बीच संतुलन थािपत करने का काम करती है।
िदमाग का बायां िह सा तािकक िवचार से संबं धत है, जबिक दायां िह सा सृजन से।
िदमाग के दोन िह से जब एक साथ िमलकर काम करते ह तो प रणाम बेहतर ही आते ह।
यह मु ा मरण शि बढ़ाती है।
इससे एका ता के तर म वृि होती है।
यह धैय म वृि करने म सहायक है।
इस मु ा के अ यास से िवचार म प ता आती है तथा िनणय लेने क मता म वृि होती
है।
यह मु ा वसन ि या म भी सुधार लाती है, जससे िदमाग को पया मा ा म
ऑ सीजन ा होती है। िदमाग म ऑ सीजन का पया संचरण िदमाग के वा य के
लए अ छा है।
यह मु ा िव ा थय के लए भी उपयोगी है। इस मु ा से एका ता म वृि होती है, जससे
ले चर के समय सुनी गई बात उ ह ठीक से याद रहती ह और उनके परी ा प रणाम भी
बेहतर होते ह।

7. ि मुख मु ा
ि मुख मु ा बेहद भावशाली व पारं प रक मु ा है, जो िक एका ता का तर तथा मरण
शि बढ़ाने के लए उपयोग म लाई जाती है।
िव ध- दोन हाथ क म यिमका, अनािमका और किन का उं ग लय के पोर को आपस म
जोड़कर रख। यान रहे हथे लयां आपस म जुड़ने न पाएं। इस मु ा का अ यास करने के लए
िबलकु ल सीधे रीढ़ क ह ी पर िबना कोई दबाव डाले आरामदायक थित म बैठ। ितिदन
दस िमनट का अ यास लाभदायक है।
लाभ-

आ या मक िवकास व उ ित म सहायक।
एका ता, यान तथा मरण शि बढ़ाने हेतु उपयोगी।
सर दद म कमी या पूरी तरह इससे छु टकारा िदलाने म मददगार।
शरीर के आरो य म वृि हेतु लाभदायक।

8. िशव लंग मु ा
िशव लंग मु ा को ऊजादायक मु ा भी कहा जाता है। जब भी आप तनाव या िकसी बात से
परे शान ह , तो ऐसे म आप इस मु ा के अ यास से वयं को बहत ही ऊजा वत महसूस करते
ह। इसके अलावा इस मु ा के अ यास से आरो य म भी वृि होती है।
िव ध- अपने बाएं हाथ को याले (बाउल) क आकृित जैसा बनाएं। इसके बाद दाएं हाथ का
मु का बनाकर बाएं हाथ के ऊपर रख, अंगूठा ऊपर उठा होना चािहए। अपने हाथ को पेट क
सीध म रखते हए इस मु ा का अ यास कर।

इस मु ा को आप अपनी इ छानुसार िकतनी भी देर तक कर सकते ह। वैसे िदन म दो बार


4 िमनट के लए इस मु ा का अ यास करना फायदेमदं है।
लाभ-

इस मु ा को ऊजा संवधक मु ा माना जाता है। ऐसे म थकान, असंतुि या सु ती होने पर


इस मु ा के अ यास ारा आप वयं को ऊजा वत कर सकते ह।
अवसाद क थित से िनपटने के लए यह मु ा काफ भावशाली है।
िकसी भी कार के मान सक तनाव व दबाव क थित म भी यह मु ा आपके लए
उपयोगी है।

9. वीकार मु ा
िव ध- तजनी उं गली को मोड़कर अंगूठे के बीच जगह बनाए रख। अंगूठे के नाखून का
बाहरी िनचला िह सा छोटी (किन का) उं गली के नाखून से िमलाते हए यह मु ा बनाएं।
लाभ- इस मु ा से भावना मक व आ या मक तर पर लाभ होता है। िनराशा व िवरोधी
प र थितय क थित म खुद को मजबूत बनाने तथा हताशा के भाव से बाहर िनकालने के
लए इस मु ा का अ यास कर।

10. अह कारा मु ा
िव ध- अपनी तजनी उं गली को धीरे से मोड़ और अंगूठे का ऊपरी िह सा तजनी उं गली के
बीचोबीच ऊपरी िह से पर रख। बाक सभी उं ग लयां सीधी रख।
लाभ- इस मु ा के अ यास से आ मिव वास व आ म ढ़ता म वृि होती है। िकसी भी
कार के भय का सामना करने के लए इस मु ा के अ यास से िह मत िमलती है।

11. ाण मु ा
िव ध- किन का और अनािमका दोन उं ग लय को अंगूठे से पश कर। इसके बाद बाक
उं ग लय को सीधा रख।
लाभ- ाण मु ा हम शि व फूित दान करने म सहायक है।
12. शू य मु ा
िव ध- म यमा उं गली को हथे लय क ओर मोड़ते हए अंगूठे से उसके थम पोर को दबाते
हए बाक उं ग लय को सीधा रख।
लाभ- इस मु ा के अ यास से जाग कता बढ़ती है तथा यह मु ा यि को धैय जैसा गुण
भी दान करती है।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म
सहायक योग व मु ाएं
िचं ता, तनाव, सरदद, माइ ेन, िड ेशन आिद सब एक दसरे
दसरे
ू से संबं धत ह, तभी सब एक
ू को भािवत भी करते ह। इन सब से राहत पाने के लए कई िचिक साएं व प ितयां
ह, उ ह म से एक है योग मु ा या मु ा िव ान। कौन सी मु ा हम इन सब से मु करने म
सहायक होती है, आइये जाने।

कैसे, कब व िकतनी देर तक कर?


मु ाओं को कभी भी, कह भी उठते-बैठते, चलते-िफरते यहां तक िक लेटे-लेटे भी कर
सकते ह, परं तु इनका लाभ प ासन, सुखासन या व ासन म करने से अ धक ा होता है।
सुबह हो या शाम, रात हो या िकसी या ा के दौरान इ ह बाहर, बगीचे म, बंद कमरे म या
ऑिफस म कह भी िकया जा सकता है। इ ह एक ही समय म दोन हाथ से िकया जा सकता
है। मु ा के दौरान उं ग लय को साधारण रख, उनम कोई तनाव, खंचाव या कसाव न हो।
मु ाओं से लाभ ा करने के लए िकसी भी मु ा को ारं भ म कम से कम दस िमनट तक
अव य करना चािहए िफर चाहे तो इस अव ध को तीस िमनट से लेकर एक घंटे तक बढ़ाया जा
सकता है। यिद एक साथ ल बे समय के लए इ ह करना मु कल हो, तो आप इ ह दो-तीन बार
म भी कर सकते ह। यिद इन मु ाओं को जीवन म िनयिमत प से िकया जाए तो साधारण कान
के दद से लेकर हाटअटैक जैसे गंभीर रोग तक को ठीक िकया जा सकता है। यूं तो रोग के
अनुसार एक दजन से भी अ धक मु ाएं ह, परं तु हम यहां केवल उ ह मु ाओं का उ ेख कर
रहे ह, जो तनाव को कम कर एका ता और आ मिव वास को बढ़ाती ह।

1. अपान वायु मु ा
ये मु ा करना बहत आसान है। हाथ के अंगूठे, म यमा, अनािमका के अ भाग (िटप) को
आपस म िमलाएं और तजनी उं गली के िटप को अंगूठे के आधार पर रख इस मु ा को 1-3
िमनट तक कर। ये मु ा शरीर म बनने वाली गैस को भी कम करती है। यिद आपके सरदद का
कारण गैस है तो यह मु ा लाभकारी है।
2. महाशीष मु ा
तजनी और म यमा क िटप को अंगूठे क िटप के साथ जोड़ ल और अनािमका क िटप को
अंगूठे के आधार पर रख और छोटी उं ग लय को जतने बाहर क तरफ हो खंच कर रख।
अपने हाथ को गोद म रखकर हाथ ऊपर आकाश क तरफ रख। अपने वास पर यान
लगाएं। इस मु ा को 3 िमनट तक कर।

3. वात नाशक मु ा
तजनी और म यमा को अंगूठे के आधार पर रख और अंगूठे से रोकते हए दबाएं। सरदद,
दांत दद, गले म दद पर काबू पाने म मदद करता है। जन लोग म वात यादा बनता है उनके
लए बहत उपयोगी है।
4. अनुलोम-िवलोम
अनुलोम-िवलोम बहत ही सरल णायाम है। इससे पुराने से पुराना साइनस सही हो जाता है।
पहले हम दाएं हाथ क अनािमका अंगुली से नाक के बाएं िछ को दबा ल। िफर दाएं िछ से
गहरी सांस ल और रोक ल। इसके प चात् दाएं हाथ के अंगूठे से दाएं िछ बंद कर ल िफर
बाएं िछ को खोलकर वास छोड़ द। िफर बाएं िछ से ही वास ल, उसे अनािमका अंगुली से
बंद कर और दाएं िछ से अंगूठा हटाकर वास छोड़ द। इस कार इस ि या को 25 से 30
बार कर।

5. वायु मु ा
तजनी अंगुली को अंगूठे के आधार पर रख और दबाएं। वायु के अ य धक हो जाने पर
सरदद होता है और अगर इस मु ा को िकया जाए तो शरीर से वायु का कोप कम होता है
और सरदद नह होता। इस मु ा को 3 िमनट तक कर। और अ छे प रणाम पाने के लए
अव ध बढ़ा सकते ह।
6. ान मु ा
आराम से बैठ। अपनी पीठ और गदन को सीधी रख। त वीर अनुसार अपनी तजनी यानी
पहली उं गली और अंगूठे के िटप यानी अ भाग को ह के दबाव के साथ िमलाएं और शेष तीन
उं ग लय को सीधा व ढीला रख। सुखासन या प ासन म बैठकर, हथेली को अपने दोन घुटन
पर आकाशो मुख रख। रोज बीस से तीस िमनट तक इस मु ा का अ यास कर।

7. यानी मु ा
दोन हथे लय को अपनी गोद म ऐसे रख िक वह एक कटोरे का आकार ल। बाय हथेली को
नीचे और दाय हथेली को उसके ऊपर रख। दोन अंगूठ के अ भाग को ह के दबाव के साथ
िमला ल। इसे सुखासन या प ासन म जतनी देर कर सक उतना अ छा है।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म सहायक रं ग
रं गरोगसफसे मुस दयकरनेबढ़ानेम हमारी
या आकषण पैदा करने के लए ही नह होते, ब क यह हम कई
मदद भी करते ह। मान सक एवं शारी रक वा य तथा यान
व एका ता म कौन से रं ग कैसे व िकतने सहायक होते ह या हो सकते ह, आइए जानते ह।
वै ािनक शोध बताते ह काश न केवल हमारी वचा व हि य के लए मह वपूण है, ब क
हमारे मान सक वा य के लए भी बेहद ज री है। जो इंसान रोशनी से बचता है या अंधरे ा
पसंद करता है वह आम आदमी क तुलना म न केवल कम ि याशील व ऊजावान होता है
ब क तनाव, अवसाद जैसे रोग से भी सत रहता है। जस तरह रोशनी के अभाव से खा -
िम ी म लगा हरा पौधा भी मुरझा जाता है, वैसे ही िबना रोशनी के सेवन से मनु य का तन-मन
भी मुरझा जाता है, इस लए जसे हम धूप, काश या रोशनी कह कर संबो धत करते ह व
अपने चार ओर देखते ह, वह हमारे लए एक तरह से औष ध है।
लेिकन यह भी सच है िक जस धूप, रोशनी या काश को हम औष ध कह रहे ह उसका
संबधं सफ उसके पीले-सफेद रं ग या उसक गमाहट से ही नह है ब क उन सात रं ग से भी
है, जो उसम िनिहत है यानी लाल, नारं गी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बगनी रं ग। देखा
जाए ‘रं ग िचिक सा' कु छ और नह काश के मा यम से ा हए रं ग ारा िचिक सा है,
य िक हर रं ग क अपनी आवृ ( व सी) तरं ग (वेवलै थ) व ऊजा (एनज ) शि होती
है, जसके मा यम से वह औष ध के प म हमारे वा य व सेहत को लाभ पहच ं ाते ह।

तनाव, सरदद, िड ेशन आिद म सहायक रं ग


यूं तो िकरण से ा सात रं ग का िविभ रोग म अपना िवशेष मह व और उपयोग है,
परं तु हम यहां आपको उ ह रं ग के बारे म बता रहे ह जो हम कमजोर नायु तं के कारण
होते ह, जैसे तनाव, अिन ा, ोध, असंतोष, अवसाद एवं अधैय आिद। इसी लए हम उ ह रं ग
का उ ेख करगे जो हम शांत व तनाव मु करने म हमारी मदद करते ह, जैसे-

हरा
यह रं ग आ मिनयं ण और संतुलन दान करने के साथ-साथ शांित, संतोष और धैय भी
िदलाता है। तनाव को कम कर हम िव ाम क थित म लाने म यह हमारी मदद करता है।
इतना ही नह हरा रं ग हमारे आ मिव वास एवं एका ता म भी वृि करता है।

नीला व आसमानी
यह रं ग िदमागी संतुलन और समझदारी बढ़ाने वाला, म त क को शांत रखने वाला होता है।
इस रं ग का संबधं हमारी आ मा से भी होता है। इस रं ग क मदद से मनु य क क पना शि
व हण मता म भी वृि होती है। गहरी न द, सर दद, अवसाद, बेचन ै ी व ा के लए तो
यह रं ग िवशेष भावशाली है। इतना ही नह नीला रं ग दय गित एवं वास को शांत कर
र चाप को द ु त करने म भी सहायक है।

बगनी
आ मक तर पर काय करने वाला यह रं ग यान एवं योग करने क शि को कई गुना
बढ़ा देता है। इस रं ग के मा यम से इंसान के िवचार शु होने के साथ-साथ सृजना मक भी
होते ह। यह रं ग उ ेजना को कम कर, एका ता को बढ़ाता है। इतना ही नह बगनी रं ग
बो रयत और िचड़िचड़ापन भी दरू करता है और हम उदार व क णावान बनाता है।

सफेद
हालांिक रं ग िचिक सा म सफेद रं ग का थान नह है, परं तु यान एवं एका ता बढ़ाने म
सफेद रं ग का उपयोग िकया जा सकता है, जैसे सफेद रं ग क दीवार, सफेद पद व सफेद व
यहां तक िक माथे पर चंदन का सफेद टीका भी उपयोग म लाया जा सकता है। आप चाह तो
सफेद फूल का भी उपयोग कर सकते ह। सफेद रं ग को देखकर न केवल मन म सफाई व
व छता का भाव जगता है ब क मन ह का, िनभार, िश थल और शांत भी होता है।

नारं गी या संतरी
यह नायु तं (नवस स टम) को उ े जत करता है। शरीर म कमजोरी, बेचन
ै ी, न द न
आना, अवसाद, िचंता जैसी सम याओं म यह लाभ पहच
ं ाता है।

कैसे कर रं ग का सेवन?
यह तो हमने जान लया िक रं ग और मनु य का गहरा संबध
ं है तथा या है रं ग िचिक सा का
िव ान? पर अब न उठता है िक इन रं ग का हम सेवन या उपयोग कैसे कर िक हम इनका
लाभ ा हो सके। इसके लए आप सहायक रं ग का योग अपने दैिनक जीवन म
िन न ल खत तरीक से कर सकते ह-

रोग से संबं धत रं ग क खा साम ी अपने आहार म शािमल कर।


संबं धत रं ग के कपड़े और गहने पहन। संबं धत रं ग से जुड़े र न भी पहने जा सकते ह।
िविभ कार क रोशनी वाले लै स का इ तेमाल कर।
रं ग िचिक सा म इ तेमाल होने वाले रं ग-िबरं गे िगलास म पानी िपएं।
रं ग िचिक सा म उपयोग आने वाले नान तेल का योग कर।
संबं धत रं ग के िब तर, चादर व तिकय का इ तेमाल कर।
घर क दीवार व फन चर को रोग संबं धत रं ग का बनाएं।
आप अपने घर का इंटी रयर डेकोरे शन भी आव यक रं ग के अनुसार कर सकते ह।
जतना हो सके संबं धत रं ग को आंख बंद करके सोच, उसक क पना कर मन-ही-मन
उस रं ग का एहसास कर। हो सके तो रं ग से संबं धत थान, फल, फूल, कपड़ा, आिद क
गहरी क पना भी कर सकते ह।
आप चाह तो अपने सन लासेज यानी धूप के च म तथा धूप म योग होने वाले छाते को
भी संबं धत रं ग का चुन सकते ह।
रं ग िचिक सा से ज दी व भावशाली तरीके से फायदा पाने का सबसे आसान उपाय है,
पानी को स बं धत रं ग क बोतल या िगलास म भरकर उसे कु छ घंट के लए सूरज क
रोशनी म रख और िफर इसका इ तेमाल कर। इससे उसम सूय क र मय का भी
समावेश हो जाता है, जस कारण इस िचिक सा का प रणाम अ धक कारगर होता है। आप
इस पानी को रोज थोड़ी-थोड़ी मा ा म पी सकते ह या इससे वचा क मा लश कर सकते
ह। दोन ही तरीके काफ लाभदायक ह।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म सहायक सुगंध
या आपदानजानते ह जन सुगध
ं का योग हम वयं एवं वातावरण को महकाने व ताजगी
करने के लए करते ह, उनके उपयोग से सरदद, तनाव, िचंता, िड ेशन एवं
माइ ेन जैसे रोग को भी ठीक िकया जा सकता है?
सुगध
ं का मनु य के जीवन म बहत मह व है। यह सुगध ं न केवल हमको दगु ध से बचाती है,
ब क हम ताजगी का एहसास भी कराती है। सच तो यह है िक सुगध ं का मनु य के म त क
एवं मूड से गहरा संबध ं िकसी खाने क हो या फूल क , िकसी के
ं है। यही कारण है सुगध
शरीर क हो या सट-पर यूम क , हमारा यान वतः ही अपनी ओर अकिषत कर लेती है व
हम एका कर हम ताजा कर देती है।
जसे हम सुगध ं का आकषण कह रहे ह वह और कु छ नह हमारे म त क एवं नस का
एक करण है, यानी जैसे ही हमारी नाक िकसी सुगधं के आगोश म आती है तो मन, म त क,
िवचार आिद सब तरफ से हट कर एक ओर थर होने लगते ह, यही ‘अरोमा थैरेपी' यानी
‘सुगध
ं िचिक सा का िव ान' है।

सुगंध िचिक सा का िव ान
मह व- य िक मनु य का सुगध
ं को हण करने का तार सीधा उसके म त क से जुड़ा होता
है, इस लए सुगध ं िव ान ज दी काय करता है। साथ ही म त क को सही तरीके से काय
करने के लए अ धक मा ा म ऑ सीजन क आव यकता होती है और एक यि जसे
पया ऑ सीजन नह िमलती उसे एका िच होने म परे शानी आ सकती है। अरोमा थैरेपी
गहरी सांस लेने के लए ो सािहत करती है, जससे यि को अ धक ऑ सीजन ा होती
है और अ धक ऑ सीजन से न केवल म त क क नस िश थल व शांत रहती ह, ब क
इससे तनाव एवं सरदद से भी राहत िमलती है।
लाभ- यूं तो सरदद व अवसाद आिद के कई कारण ह पर उनम से जो मु य कारण है, वो
है न द क कमी, बढ़ता तनाव और शरीर म ऊजा क कमी। अरोमा थैरेपी यानी सुगध ं
िचिक सा इ ह तीन आधार पर काय कर हमारी एका मता एवं याददा त को बढ़ाती है।

सहायक सुगंध
यूं तो सुगध
ं िचिक सा के मा यम से कई रोग को ठीक िकया जा सकता है, परं तु हम यहां
उ ह सुगध ं का उ ेख कर रहे ह, जो जनके योग से हमारे नायु तं को, हमारे मन-
म त क को राहत िमलती है। य िक सरदद का कारण अिन ा, तनाव व िचंता है, इसी लए
हम यहां तीन म सहायक सुगध ं का उ ेख कर रहे ह, जो इस कार है।

1. अिन ा- न द पूरी न होने क वजह से एका ता म कमी आती है, चंदन, न बू लैवडर,
मारजोरम क खुशबू से अिन ा क सम या को दरू िकया जा सकता है।
2. तनाव- चैमोमाइल, साइटस, लैवडर, यूके ल टस, अदरक लैक पेपर के खुशबुओं के
योग से तनाव क सम या को दरू िकया जा सकता है।
3. याददा त तथा एका ता- रोजमेरी, िपपरमट, न बू, तुलसी, चंदन, पाईन तथा ल ग क
खुशबू एका ता बढ़ाने म सहायक तो स होती ही है साथ ही इन खुशबुओं के योग से
याददा त भी तेज होती है।

कैसे कर सुगंध का सेवन?


िकस रोग म कौन सी सुगध
ं लाभदायक है, यह तो पता चल गया, परं तु सुगध
ं का उपयोग या
सेवन कैसे कर? यह जानना भी ज री है। सुगधं िचिक सा (अरोमा थैरेपी) का लाभ आप
िकसी ोफेशनल अरोमाथैरेिप ट क सहायता से तो उठा ही सकते ह, साथ ही संबं धत सुगधं
का लाभ आप िन न ल खत िव धय ारा घर पर वयं भी ा कर सकते ह-

1. े- े क खाली बोतल म पानी के साथ कु छ बूदं अरोमा तेल क िमला ल। इसका


योग आप म े शनर क तरह कर सकते ह। अगर आप चाह तो इसे अपने कपड़ पर
इ क तरह भी लगा सकते ह।
उदाहरण- अगर आप अ छी एका ता के लए इसका योग करना चाहते ह तो चंदन या
लैवडर के तेल को पानी के साथ िमला कर े क तरह उसका योग कर सकते ह।
2. मोमब ी -इस िव ध का योग आप बाजार म िमलने वाली ‘अरोमा कड स' क सहायता
से भी कर सकते ह या िफर जस भी सुगध ं का योग आप करना चाहते ह, तो उस तेल
क दो बूदं जलती हई मोमब ी के ऊपरी िह से (िपघले हए मोम पर) पर डाल। इसक
खुशबू पूरे कमरे म फैल जाएगी।
3. ई ारा -अरोमा तेल क कु छ बूदं ई के फोहे (टु कड़े) पर डाल कर इसे घर के िविभ
थान पर रख सकते ह। अगर आप चाह तो इस टु कड़े को अपने पस म भी रख सकते ह।
4. नहाने के पानी म -बेहतर लाभ के लए अरोमा तेल क 6-7 बूदं नहाने के पानी म
डालकर भी इसका योग कर सकते ह।
5. प ी ारा- िकसी कपड़े या माल को मोड़ कर एक प ी का प द। इस पर 6-7 बूदं
संबं धत तेल क डाल। जब भी इसका योग करना चाह तो इस प ी को अपने ललाट पर
रख।
6. अरोमा लै प-सुगध ं िचिक सा म अरोमा लै प का योग आजकल आम है। इसम अरोमा
ऑयल क कु छ बूदं को पानी म िमलाकर, दीए क लौ या िबजली के मा यम से पैदा हई
सुग ं धत गम पानी क भाप से ा िकया जाता है, इससे वातावरण म चार ओर सुगध ं
फैलती रहती है।
7. अगरब ी -सुगध ं फैलाने व ा करने का सबसे स ता, सरल व आम मा यम है
अगरब यां। यह न केवल आराम से िमल जाती ह ब क इनका उपयोग भी सरल है।
सुगध
ं िचिक सा के लए इनका उपयोग भी िकया जा सकता है।
8. ाकृितक फूल व फल -कृि म तेल व पर यूम आिद भले ही अ छी खुशबू देते ह , परं तु
जो बात ाकृितक व तुओं से ा सुगध ं म है वह बनावटी सुगधं म नह । ाकृितक
व तुओं से ा सुगध ं न केवल शु होती है ब क इसका असर भी गहरा होता है।
इस लए संबं धत सुगधं का यिद ाकृितक सेवन संभव है, तो उनका उपयोग अव य कर।
यानी संबं धत फूल से घर या टेबल को सजाएं जससे न केवल घर सुंदर लगेगा ब क
महकेगा भी। ऐसे ही आप सुगधं के लए संबं धत फल का उपयोग भी कर सकते ह, यानी
उ ह खाने से पहले जी भरकर सूंघ भी।
सावधानी- येक यि क कृित एक दसरे ू से िभ होती है, इस लए हो सकता है िक
आपको िकसी िवशेष सुगध ं से एलज हो, जो आपको पता न हो इस लए िकसी िचिक सक
या िवशेष क सलाह भी आव यक है।

⦿⦿⦿
तनाव मुि म कर
क पनाशि का योग
स रदद का एक अहम कारण हमारा मान सक तनाव है, जो िकसी एक बात का मन म घर
कर जाने से होता है। जसके कारण मन न केवल िवचार से भरा रहता है ब क उस
थित, य, संवाद आिद को बार-बार सोचता रहता है। हमारा मन िकसी एक या सीिमत
िवचार म बंध जाता है, उसी एक बात को लेकर बैठा रहता है और यह थित इतनी गहरी हो
जाती है या हमारे अवचेतन मन तक िव कर जाती है िक आदमी सोते-जागते हर काय म
उसी िवचार या बात से खुद को िघरा पाता है। ऐसे म मन को तनाव दे रहे िवचार या िवचार
से खुद को खाली करना बहत ज री है। अपने मन को एक िवचार से िनकालकर दसरे ू
िवचार म लगाने के लए हम अपनी क पनाशि का योग करना चािहए तािक मन को कह
और उलझाया जा सके। भले ही सरदद या तनाव से मुि पाने का यह थाई योग नह है,
पर यिद हमारे तनाव या सरदद का कारण हमारे िवचार ह, तो यह एक असरकारक योग है।
यिद मन अपनी क पनाओं या नए िवचार के मा यम से वयं को वतमान थित से दरू रखने
म स म होना सीख जाए तो वह तनाव मु रह सकता है।
एक तरीके से हम इसे आ मस मोहन क िव ध भी कह सकते ह।

या है आ मस मोहन?
मन को वयं के सुझाव या क पना से एक जगह कि त करने का नाम ही आ मस मोहन है।
आ मस मोहन के ज रए हम वयं को इतना स मोिहत कर लेते ह या कर सकते ह िक वयं
वैसा ही महसूस करने लगते ह, जैसा हम क पना करते ह। वयं को तनाव रिहत महसूस
करना हो या हवाओं म उड़ता हआ देखना। वयं को पहाड़ क वािदय म महसूस करना हो या
िफर समु क लहर म िहलोरे खाते हए देखना। आ मस मोहन के मा यम से वयं को िकसी
स यि से लेकर िकसी हीरो क तरह भी खुद को महसूस िकया जा सकता है।
हम िकतनी गहराई से िकसी िच , िवचार या क पना म शािमल होते ह तथा उसे िकतना
जीवंत महसूस कर पाते ह, इसका भी बहत भाव पड़ता है। यान रख आप जस भी चीज क
क पना कर, उसे इतनी बारीक से, छोटी-छोटी चीज के साथ ऐसे अनुभव कर जैसे िक वह
आपके साथ घट रही है।
मान ली जए आप अपनी रोजमरा क एक जैसी िदनचया से ऊब गए ह या इतने य त ह िक
घूमने का या मन अनुसार कु छ करने का समय ही नह है या िफर िकसी बात या काम को
लेकर बहत तनाव म ह, ऐसे म जो चीज, थान, इंसान या उपल ध आिद आपको राहत और
संतुि दे सकती थी, जसे आप नह कर पा रहे ह, तो उसके बारे म सोच।

कुछ उपयोगी योग


यिद आपको पहाड़ का शौक है, तो आंख बंद कर ल और महसूस कर िक आप बड़ी-बड़ी
पहािड़य क चोिटय पर घूम रहे ह। चार ओर घना जंगल है, गहन शांित म पि य क
आवाज आपके कान म पड़ रही है, वह भी िभ -िभ पि य क । आप सूरज और बादल
के इतने करीब ह िक जैसे िक वह आपके हाथ म आ जाएंग।े नदी क कल-कल, झरन
का शोर, गीली िम ी और हरी घास क खुशबू। खलते फूल व रं ग िबरं गी ितत लयां।
ठं डी-सुहानी, ताजी-खुली हवा और इस हवा म आप खुलकर अगंड़ा रहे ह, आपका मन-
म त क एवं तन नई ताजगी व ऊजा से भर रहा है। वहां आपको तंग करने वाला कोई
नह है बस आप अकेले या इ छानुसार साथी के साथ ह। आप वह कर रहे ह, जो आप
करना चाहते ह जैसे, आप यान करना चाहते ह या चुपचाप बैठकर कृित को िनहारना
चाहते ह, गीत गुनगुनाना चाहते ह, कोई िकताब पढ़ना चाहते ह। बांसुरी-िगटार आिद कोई
वा बजाना चाहते ह। कार या बाइक पर उन रा त पर डाइव करना चाहते ह आिद जैसी
भी इ छा है, उस काम म वयं को संल कर व उसे महसूस कर। अपने आप इस
क पना के मा यम से आप पाएंगे िक न केवल मन एका व शांित से भर गया ब क
तनाव रिहत होकर नई ऊजा से भी भर गया। इतना ही नह ब क आप ऐसा महसूस करगे
िक जैसे िक आप वह से आए ह। यान रख आपक क पना जतनी वा तिवकता के
िनकट होगी आप पर आ म स मोहन का उतना ही सकारा मक असर होगा।
आप चाह तो अपनी क पनाओं के मा यम से िकसी मंिदर म भी वेश कर सकते ह तथा
सा ात् दशन जैसा आनंद अनुभव ा कर सकते ह।
आंख बंद करके बैठ या लेट जाएं। शरीर को ढीला कर िफर जस मंिदर म जाकर आपको
सुकून िमलता है उस मंिदर के दशन आंख बंद करके कर। एक-एक िच को बंद आंख
से देख। देख, मंिदर क सीिढ़यां, सीिढ़य के िकनारे बैठे लोग व सजी दक ु ान, आंगन म
भ क कतार। शंख एवं घंट का नाद। आरती एवं पूजा के वर। फूल एवं आभूषण से
सजी मूितयां। चार ओर से उठती अगरब ी एवं फूल क सुगध ं और लोग क ता लय ,
भजन-मं आिद का वर आपको भि मय माहौल म डु बा रहा है। और आप यान और
म ती म डू बते चले जा रहे ह। इसी भाव और अव था से आप अपने इ क मूित को
िनहार यानी एक-एक अंग पर आिह ता-आिह ता यान द और सर से पाव तक देख जैसे
सर, माथा, आंख, नाक, गला, ह ठ, थोड़ी, गदन... शरीर क मु ा, व , ृग ं ार आिद
सबको अपनी बंद आंख से िनहार और महसूस कर िक आप उनके सम ह और उनक
कृपा आप पर बरस रही है। ऐसा करके जब आप अपनी आंख खोलगे तो आप वा तव म
अपने भीतर एक पांतरण अनुभव करगे।
आप चाह तो अपने घर क सजावट क क पना भी कर सकते ह िक कैसा घर बनाएंग,े
उसम कैसे व िकतने कमरे ह गे, उन कमर का आकार व रं ग कैसा होगा? कहां व कैसा
सोफा होगा, घर कैसी जगह म होगा? आिद क क पना म जा सकते ह और वयं को
एका कर सकते ह।
आप चाह तो अपने ेमी या दो त से हई मुलाकात के बारे म क पनाओं के ज रए गहराई
से सोच सकते ह और वही ताजगी पा सकते ह, जो आपको उसम पहली बार िमलने पर
हई थी या िफर जैसी मुलाकात आप भिव य म चाहते ह, उस इ छा को क पत कर सकते
ह। सब कु छ ऐसे िवजुवलाइज कर िक जैसे वह सब आपके साथ घट रहा है और आप
पाएंगे िक आपके ेमी या दो त से आपक कोई भी दरी
ू नह वह सदा आपके पास, आपके
साथ ह।

आ मस मोहन के मा यम से न केवल हमारी एका मता बढ़ती है, ब क मन शांत और


आनंिदत भी रहने लगता है। जीवन म िशकायत कम होने लगती ह व आ मसंतुि का भाव
जागने लगता है।

⦿⦿⦿
तनाव, सरदद व िड ेशन म उपयोगी आसन
त नाव चाहे शारी रक हो या मान सक हमेशा ही हमारे लए हािनकारक होता है। जब हम बहत
अ धक तनाव त होते ह तो सरदद के िशकार होते ह और जब यही तनाव जिटल हो
जाता है तो िड ेशन का प ले लेता है। ऐसे म हम आपको बता रहे ह कु छ ऐसे आसन के
बारे म जो हम इन सम याओं से मुि िदलवा सकते ह।
1. बाल आसन- घुटने मोड़कर व आसन म बैठ जाएं और अपने दोन हाथ आगे क
तरफ ख चते हए वास को बाहर िनकाल द और हाथ को दबु ारा वापस ख चते हए वास
लेते हए वापस व आसन म आ जाएं। इस आसन को 3 से 5 बार कर। ये आसन सारे
शरीर म िश थलता लाता है और शरीर के तंि का तं को शांत करता है। इसक अव ध
एक बार म 10-15 सेक ड तक रख।

2. सेतुबंध या कंधार आसन- कमर के बल शव आसन म लेट जाएं और अपने घुटने मोड़
ल। घुटने मोड़कर धीरे -धीरे अपने टखन को पकड़ ल और वास लेते हए अपनी कमर
को उठाएं। धीरे -धीरे वास िनकालते हए वापस आ जाएं। इस कार इस आसन को 3 से
5 बार कर। इस आसन से िचंता, थकान, पीठदद, सर दद, अिन ा, यहां तक िक उ च
र चाप जैसी सम याओं से भी छु टकारा पाया जा सकता है। इसक अव ध एक बार म 15
से 20 सेके ड रख।

3. उ ान आसन- सीधे खड़े हो कर वास को धीरे -धीरे बाहर क तरफ िनकालते हए


अपने पैर क तरफ झुक और वापस वास लेते हए हाथ को ऊपर क तरफ ख चते हए
िफर सीधे खड़े हो जाएं। इस कार इस आसन को 2 से 4 बार करना। इस आसन को दो
आसन के बीच एक सं मण क तरह िकया जाता है। ये आसन जांघ के लए, कू ह के
लए, तनाव, थकान और ह के अवसाद को दरू करने म सहायक है। ये हमारे शरीर के
र वाह को भी सहज करता है। इसक अव ध एक बार म 5 से 10 सेके ड रख।

4. ग ण आसन- सीधे खड़े हो जाएं, िफर दाएं टांग के ऊपर बाई ं टांग को ले आएं। िफर
दाएं हाथ के ऊपर बाएं हाथ से लपेट ल और वास को अ छे से बाहर िनकाल द। इस
आसन को 2 से 3 बार कर। इसक अव ध एक बार म 5 से 10 सेके ड रख। ये पीठ के
ऊपरी िह से और कू ह को खोलने म सहायक है। एका ता और संतुलन बढ़ाने और
बनाए रखने म ये आसन बहत लाभकारी है।
5. शव आसन- सीधे कमर के बल लेट जाएं। हाथ क हथे लयां आकाश क ओर शरीर से
एक फुट दरू रख, टांग के बीच भी एक से दो फ ट दरी
ू रख।
पूरे शरीर को ढीला छोड़ते हए वास को अ छे से पेट के अंदर ल और धीरे -धीरे बाहर
िनकाल। इस आसन को 3 से 5 िमनट या 10 िमनट तक भी कर सकते ह। ये आसन
शरीर को पूणतः आराम देता है। ये आसन वास को धीमे-धीमे करते हए तंि का को गित
दान करता है।

6. ि कोण आसन- सीधे खड़े हो जाएं, िफर दोन टांग को 2 फ ट तक खोल। अब िकसी
भी एक तरफ (दाएं या बाएं) झुक और जस तरफ झुक ह, उसी ओर का हाथ जमीन पर
रख द और दसरा ू हाथ ऊपर क ओर ले जाएं और वास को बाहर िनकाल द। इस कार
ये आसन दोन ओर से कर (दाएं और बाएं)। इसक अव ध 15 से 20 सेके ड एक बार म
रख। यह पाचन तं पर भाव डालता है। ये िचंता, ऑ टय पोरो सस और साइऐिटक
(sciatic)) जैसी बीमारी के ल ण को दरू करने म मदद करता है।
7. िवपरीतकरणी आसन- जमीन पर लेट जाएं और टांग को िकसी दीवार पर ऊपर क
तरफ उठा ल और अपने शरीर को िबलकु ल ढीला छोड़ द। इस आसन से दय क
मांसपेिशय को आराम िमलता है और तन-मन को जीवनीशि िमलती है। इस आसन को
5-10 िमनट तक करना चािहए।

8. मजय आसन- अपने हाथ और घुटन को फश पर (catpose) चारपाया जानवर क


तरह रखते हए खड़े ह । अब वास को अंदर क तरफ ख चते हए ऊपरी कमर को उठाएं
और िफर धीरे -धीरे वास छोड़े। रीढ़ क ह ी को अ छे से ऊपर क तरफ ख च वास को
अ छे से ल और छोड। ये आसन आपक रीढ़ क ह ी को आराम देता है। आपक िनचली
कमर और ऊपरी कमर दोन को लचीला बनाता है। इस आसन को लगातार 10 से 20
बार कर। इसक अव ध एक बार म 5 से 10 सेके ड तक हो।

9. हा य योग- हा य योग आपको सबसे ज दी तनाव रिहत करता है। िदन म कम से कम


एक बार 5 िमनट तक खुलकर हंसे। कोई ऐसी घटना याद कर या कोई चुटकु ला याद कर,
जससे आप को खुलकर हंसी आये। हा य योग से हमारे पूरे फेफड़े और पेट अ छे से
िहलते ह और हमारे शरीर से सारे िवजातीय य और िवजातीय वांस बाहर आ जाते ह।

10. सुखासन- अगर आप योगासन करते ह तो आपको पता होगा िक यह योग क सबसे
आसान िव ध है इस लए इसे सुखासन के नाम से जाना जाता है। यह योग वास- वास
और यान पर आधा रत है। इसको करने से घुटने 90 िड ी मुड़ते ह, जससे उ ह दद से
आराम िमलता है। सुखासन से पैर का र -संचार कम हो जाता है और अित र र
अ य अंग क ओर संचा रत होने लगता है, जससे उनम ि याशीलता बढ़ती है। यह
तनाव हटाकर िच को एका कर सकारा मक ऊजा को बढ़ाता है। इससे आपको अ धक
मान सक शांित िमलती है।

िव ध- इस योग को आप जमीन पर बैठकर अथवा कु स पर बैठकर भी कर सकते ह। योग


करते समय सर और रीढ़ क ह ी सीधी होनी चािहए। अ यास के दौरान नाक से सांस लेना
और छोड़ना चािहए। योग अ यास के दौरान इस बात का याल रख िक छाती थर हो और
पेट म सांस के उतार चढ़ाव का एहसास हो। पालथी लगाकर बैठ एवं दोन पैर को एक दसरे ू
के ऊपर लाएं। दोन हाथ को घुटन पर और हथे लय को आकाशो मुख ऊपर क ओर रख।
कंध को आरामदायक थित म झुकाएं और कोहिनय को थोड़ा पीछे रख एवं छाती को ऊपर
क ओर तानकर फैलाएं। इस आसन का अ यास कम से कम 5-10 िमनट अव य कर बाक
अ धकतम क कोई सीमा नह है।
11. प ासन- इस आसन को करना बड़ा ही आसान है, इस लये आप इसे िब तर पर बैठे-
बैठे भी कर सकते ह। दािहने पैर के अंगूठे को बाएं हाथ से पकड़कर घुटने मोड़ते हए
दािहने पैर के पंजे को बाई ं जांघ के मूल पर र खए। िफर बाएं पैर के अंगूठे को दािहने हाथ
से पकड़कर घुटने मोड़ते हए बाएं पैर के पंजे को दािहनी जांघ के मूल पर र खए। दोन
घुटने भूिम पर िटके ह और पैर के तलवे आकाश क ओर उ मुख ह । रीढ़, गदन व सर
सीधा रख। हथे लय को घुटन पर र खए या एक हथेली को दसरी ू पर रखकर गोद म
र खए। आंख बंद कर सांस को गहरा ख चते हए सामा य गित कर ल।
आसन से वापस लौटने के लए पहले बाएं पैर के पंजे को दािहने हाथ से पकड़कर लंबा कर
द। िफर दािहने पैर के पंजे को बाएं हाथ से पकड़कर लंबा कर द और पुनः दंडासन क थित
म आ जाए। यह एक ओर से िकया गया आसन है, अब आप पहले बाएं पैर को जंघा पर
रखकर इस आसन को कर।
अव ध/दोहराव- ारं भ म यह आसन 30 सेकंड के लए करना चािहए, िफर सुिवधानुसार
समय को बढ़ाया जा सकता है। इस आसन म पारं गत होने के लए इसे दो से तीन बार करना
चािहए।
सावधानी- पैर म िकसी भी कार का अ य धक क हो तो यह आसन न कर। साइिटका
अथवा रीढ़ के िनचले भाग के आसपास िकसी कार का दद हो या घुटने क गंभीर बीमारी म
इसका अ यास न कर।

12. शीषासन- शीष यानी सर। सर के आधार पर िकए जाने के कारण इस आसन को
शीषासन कहते ह। शीषासन से र का वाह ठीक होता है, पूरे शरीर क मांसपेिशयां
ए टव हो जाती है। र वाह बढ़ने से िदमाग सि य होता है, मरण शि काफ अ धक
बढ़ जाती है, ं थय क काय णाली द ु त होती है, िड ेशन (अवसाद) के िशकार लोग
के लए भी यह फायदेमदं है।
िव ध- शीषासन करने के लए सबसे पहले दरी िबछा कर समतल थान पर व ासन क
अव था म बैठ जाएं। अब आगे क ओर झुककर दोन हाथ क कोहिनय को जमीन पर िटका
द। दोन हाथ क उं ग लय को आपस म जोड़ ल। अब सर को दोन हथे लय के म य धीरे -
धीरे रख। सांस सामा य रख। सर को जमीन पर िटकाने के बाद धीरे -धीरे शरीर का पूरा वजन
सर पर छोड़ते हए शरीर को ऊपर क ओर उठाना शु कर। शरीर का भार सर पर ल। शरीर
को सीधा कर ल। इस अव था को शीषासन कहा जाता है। कु छ देर इसी अव था म रहने के
बाद पुनः उसी अव था म आने के लए पहले पैर को घुटने से मोड़ते हए धीरे -धीरे घुटन को पेट
क तरफ लाते हए पंज को भूिम पर रख देते ह। िफर माथे को भूिम पर िटकाकार कु छ देर इसी
थित म रहने के बाद सर को भूिम से उठाते हए व ासन म बैठकर पूव थित म आ जाए।
ज ह लड ेशर क िशकायत है वह इस आसन को न कर। अगर आंख क कोई बीमारी है,
तो भी इसे नह करना चािहये। साथ ही वे लोग ज ह गदन म दद या कोई अ य सम या है, उ ह
भी यह आसन नह करना चािहये।

⦿⦿⦿
पशुओं से दो ती
दे तनाव से मुि
भ ले ही पशुओं आप को अपने शौक, मनोरं जन, र ा या भोजन हेतु पाल पर या आप
जानते ह िक पालतू पशु हम तनाव मु रखने म भी सहायक होते ह। इनक मौजूदगी न
केवल हमारा यान आकिषत कर हमारा मनोरं जन करती है ब क यह हमारे शरीर एवं
वातावरण क नकारा मक ऊजा को सकारा मक प म बदलकर हम तनाव से दरू भी रखते ह।
इसका योग आजकल ‘पैट थेरेपी' के प म भी िकया जा रहा है।
िवदेश म पैट थेरेपी पर काफ काम िकया जा रहा है। इसके तहत जो त य सामने आए ह, वे
यही प करते ह िक पालतू जानवर आ ामक मनोवृ के इंसान को भी पालतू यानी
अना मक बनाने म सहायक होते ह। इसके अित र मान सक प से परे शान ब चे या
भावना मक तर पर तनाव झेलते ब चे, जानवर के संग साथ म, अपना दख ु भूलकर या उनके
साथ समय बांटकर, सहज होने का यास करते देखे गए ह।
डॉ टर के अनुसार पशु न केवल मनोवै ािनक लाभ देते ह। ब क इनके साि य म
दयगित भी असामा य से सामा य होती पाई गई है। कहते ह िक पालतू जानवर पालने वाले
दयरोगी दसर
ू क अपे ा अ धक िदन जीिवत रहते ह। यह भी देखा गया है िक जनके घर म
पशु प ी होते ह। और जो उ ह स चा नेह देते ह, वे कम बीमार पड़ते ह। िन चत प से आने
वाली सदी म पालतू जानवर का साि य रोिगय के लए एक स ता उपचार सािबत होगा। मेरा
पाठक से अनुरोध है िक वे अपने ब च को एक छोटा-मोटा जानवर पालने से न रोके। िवकास
क ि या म यह पशु-प ी का ेम िन चत प से उ ह मदद करे गा। जो ब चे जानवर पालते
ह, वे उनक देखभाल करके शु से ही दसर ू क ज मेवारी उठाने का पाठ सहज ही सीख
जाते ह। जो नेही एवं उदार होते ह, वे ही जानवर पाल सकते ह। अपने ि य जानवर को समय
पर पूरा खाना देना, उसे नहलाना-साफ करना, उसके रहने क तथा खाने के बतन क सफाई,
उसके वा य क िचंता करना, उसे ितिदन टहलाना, उससे बात करना व खेलना यह सभी
ि याकलाप ब चे को अनुशा सत व जवाबदेह बनाते ह।
कामकाज से थककर लौटने पर घर म घुसते ही अपने पालतू पशु प ी का हष माद, उसक
आंख से यार से भरा वागत और वह भी साल के तीन सौ पसठ िदन तो अपने ब चे या घर
के अ य सद य भी नह कर सकते। पर इनका िन चल ेम पाकर थकान काफूर हो जाती है।
भीतर का अवसाद पल भर म दरू हो जाता है।
छोटे पालतू जानवर के साि य से बीमार लोग को वा य लाभ कराने क योजना साल
1790 म इं लड के सेनटे ो रयम म शु क गई थी। आज थित यह है िक वै ािनक को इस
योरी के ठोस माण बराबर िमल रहे ह िक पालतू जानवर के संग-साथ व नेह के कारण
दय गित सामा य होती है। मौन रहने वाले लोग बातचीत करने लगते ह। शैतान व सदैव
अशांत रहने वाले ब चे शांत हो जाते ह। चार साल क आयु का एक ब चा असामा य था। वह
चुपचाप घंट बैठा रहता, उसे आसपास िबखरे खलौन म तिनक भी िच न थी। उसके परे शान
माता-िपता उसे पैट थेरेिप ट के पास ले गए। थेरेिप ट अपने पालतू कु े को लीिनक म ले
आया। कु े को देखकर अचानक सदा चुपचाप रहने वाला ब चा बोला टॉमी-टॉमी उस िदन के
बाद से वह ब चा न केवल कु े से, ब क उस थेरेिप ट से भी खुल गया लगभग दस महीने के
बाद वह सामा य ब च क तरह बोलने, हंसने व खेलने लगा।
शायद इसके पीछे जानवर का िन चय यार ही होता है, जो मनु य को सहज बनाने म मदद
करता है। जानवर न तो आपको जवाब देते ह। न आपसे झगड़ते ह, न ही आपक आलोचना
करते ह और न ही आप पर रौब जमाते ह। उनके यही सब गुण आपको अप रिमत आनंद देते
ह। अगर आपम से कु छ लोग ने पालतू जानवर पाल रखे ह। तो आपको िन चत प से उनके
साि य म शारी रक और मान सक सुख अव य िमलता होगा और भौितक अथ म अकेला होने
पर भी अकेलेपन का अहसास नह होता होगा।

⦿⦿⦿
वा तु दोष भी देता है टशन
वा आती
तु दोष एक ऐसा दोष है, जससे न केवल हमारी जंदगी म िविभ कार क मुसीबत
ह, ब क यह हमारे टशन व िड ेशन का कारण भी बन सकता है, लेिकन यह भी
सच है िक वा तु के िविभ उपाय ारा हम इससे मुि भी पा सकते ह। तुत है वा तु
स ब धी कु छ उपाय।
वा तुशा एक गहन शा है, जसम भूखड ं व भवन के बहत से ि कोण जैसे ढलान,
ऊंचाई, िव तार कटाव, िम ी क गुणव ा, िनमाण म योग होने वाले सामान क गुणव ा,
ह का भारी, भूखडं का आकार आिद जैसे भूखड ं का िवकृत आकार भी रोग व यहां तक क
मृ यु तक देने क मता रखते ह।
वा तुशा के िनयम कृित के स ांत पर आधा रत ह। जैसे वा तुशा म कृित म या
उ री ुव क चुंबक य शि को मानव के सर के समक तथा दि ण ुव को मानव के पैर
के समक माना गया है। कृित और मानव जीवन के इसी सामंज य के समीकरण िनिहत
उ े य क ाि के लए कु छ िनयम , का ितपादन वा तुशा ंथ म िकया गया है।
िनज व कहे जाने वाले पंचमहाभूत पर आधा रत वा तुशा क िवशेषता है िक इसम िनज व
का कोई थान ही नह है। वा तुशा भूखड ं म या भवन म केवल सजीवता का ि कोण
रखता है। जस कार शरीर म आ मा क क पना क जाती है, उसी कार वा तुशा भवन
म देवताओं के वास को मा यता देता है।
ईशान िदशा म चूंिक वा तुपु ष का सर माना जाता है, जसम आ ा ( ाउन) च थत
होता है। इस िदशा म िकसी कार के वा तु िनयम क अवहेलना करने पर मान सक क ,
उ माद, िमग , पागलपन, सरदद, मान सक िचंता व तनाव उ प हो सकता है पर तु इन रोग
के इन िनमाण स ब धी आंत रक कारण के आलावा बाहरी कारण भी हो सकते है जैसे-

भूखड
ं के आस-पास क िम ी यिद काले रं ग स य है, तो मान सक रोग अव य भावी है।
भूखड
ं के आसपास कारखाने व उ ोग आिद ह तो वहां दषण ू के कारण वायु दिषत
ू होगी
जो सरदद व अ य दषणू ज य रोग दे सकते ह।
भूखड
ं या आवास का मशान के समीप होना भी अशुभ व नाना कार के रोग को
आमंि त करता है।
आवासीय भवन का िकसी धािमक सं थान जैसे मंिदर, म जद, गु ारे , अथवा िग रजाघर
के पास होना भी आपक शांित व न द को भंग कर सकता है जसके कारण उसम रहने
वाले सरदद व तनाव से सत हो सकते ह।

िनमाण संबंधी कारण


ईशान िदशा म शौचालय का िनमाण करने से घर के सभी सद य भािवत हो सकते ह
और उ माद व पागलपन, जड़बुि हो सकते ह तथा यह रोग समय के साथ‐साथ बढ़ते
जाते ह व कु छ समय प चात् उ प धारण कर लेते ह जनका इलाज भी किठन हो
जाता है।
ईशान िदशा म िकसी कार का कटाव संतान म शारी रक व मान सक िवकृित देता है।
इसके अित र इस िदशा म भारी सामान भी न रख।
पूव िदशा म वा तु स मत िनमाण न होने से म त क का दौरा हो सकता है।
आ ेय (South East) िदशा म से टक टक िवशेषतः मिहला सद य म मान सक उ माद,
िड ेशन देता है।
आ ेय (South East) िदशा म कुं आ या बो रं ग मान सक संताप व अवसाद देते ह दि ण
िदशा म यिद उ र िदशा क अपे ा अ धक ढलान है, तो मान सक िचंता व अवसाद आिद
भवन म रहने वाले पु ष सद य को होता है।
नैऋ य (South-West) िदशा म बो रं ग अथवा ग ा होने पर फोिबया व िकसी िवशेष
व तु, थान व काय से डरने क बीमारी क बल स भावना होती है।
उ र-प चम (North West) िदशा म वा तु दोष होने पर यि को बड़बड़ाने व छोटी-
छोटी बात को भूलने क बीमारी हो सकती है।
दि ण िदशा यिद ईशान क अपे ा अ धक नीची है तो आक मक दौरे , व पागलपन तक
हो सकता है।
ईशान िदशा के उ री िदशा म से टक टक मान सक रोग तथा अ य शारी रक रोग को
बनाये रखता है व घर म कोई न कोई सद य बीमार रहता है।
ईशान िदशा म ओवरहेड टक तनाव देता है।

िकसी भी उपरो उि खत केवल एक वा तु दोष का िवचार कर दोष बताना समझदारी


नह है। वा तु दोष का िवचार िशि त वा तु परामशकता ारा भूखड ं व आवास के सम
िनमाण व कमर क यव था को देखने के बाद िकया जाने वाला तकनीक काय है।
इसी कार जहां तक इन वा तु दोष के िनदान क बात है, तो सबसे सरल उपाय तो िनमाण
संबं धत दोष को दरू करके िनदान िकया जा सकता है, पर तु यिद िकसी भी कारणवश संभव
न हो, तो अ य वैिदक प रहार जैसे वा तु शांित, ह दोष िनवारण पूजा, मं जाप, दान, हवन
आिद ारा करने चािहए इसके आलावा फग-शुई, िपरािमड य , ि टल आिद क सहायता
भी ली जा सकती है। य िप आजकल आधुिनक क युिनकेशन के साधन ारा ऐसे बहत से
वा तु दोष िनदान टेलीिवजन इंटरनेट आिद के मा यम से बताये जाते ह, जो या तो कभी-कभी
गलत या यथ होते ह।
जस कार िबना िचिक सक को िदखाए वयं िचिक सा करना रोग के िनदान क जगह रोग
को बढ़ा सकता है। उसी कार िबना ठीक कार से वा तु दोष का प रहार वयं िबना िकसी
िशि त वा तुिवद के करना भी अवांिछत प रणाम दे सकता है।
िनवारण के उपाय
ईशान कोण म फ वारे , झरने व फूल-पौधे लगाने से भी मान सक उलझने कम होती ह।
पूव िदशा म तुलसी का पौधा लगाएं।
सुबह के समय पूजा अव य कर व घर को धूप अगरब ी आिद से सुग ं धत कर।
वा तुशा के अनुसार घर म सफेद, नीला, गुलाबी व ह का बगनी रं ग का योग
म त क को शांत रखता है।
भवन िनमाण करते समय इस बात का यान रख िक घर के उ र िदशा म बड़ी खड़िकयां
व प चम िदशा म छोटी खड़िकय का िनमाण कराएं।
उ र िदशा म जल िचि त पिटंग न लगाएं व घर म यु आिद से संबं धत िच का योग
भी सजावट हेतु न कर।
अ ेय कोण म रसोई घर का िनमाण कराएं।
घर क साफ-सफाई का यान रख।
दीवार पर अगर सीलन या जाल ह तो फौरन उसे दरू कर।

⦿⦿⦿
हन भी हो सकते ह
टशन क वजह
वै िदक शा म ‘यथा िप डे तथा ा डे' का स ांत ाचीनकाल से च लत है, अथात्
जो िनयम सौर जगत म जैसे सूय, च मा आिद ह कृित का संचालन करते ह, ठीक
वही िनयम शरीर म थत सौर जगत क इकाई का संचालन करते ह।
योितष शा म सभी बारह रािशयां शरीर के िकसी न िकसी शारी रक अंग का ितिन ध व
करती ह और सभी ह क भी अपने-अपने त व जैसे पृ वी, अि , वायु जल इ यािद होते ह।
कुं डली के िविभ भाव का भी अपना वभाव यह िनधा रत करता है िक उप थत बीमारी
थर, अ थर या आती-जाती रहेगी, य िक बारह भाव थर, अ थर व ि वभाव के सूचक
ह। िकसी भी रोग का िनधारण करते समय भाव, उसम उप थत रािश व उसक कृित तथा
ह क कृित, ह का पार प रक स ब ध व ि संबध ं को सम प से िवचार िकया
जाता है िक रोग ठीक होगा अथवा नह , या होगा तो िकतने समय म ठीक होगा। िकसी एक
अवयव का िवचार करके रोग का आकलन करना ुिटपूण होगा बारह रािशय म मेष रािश
िवशेष प से म त क, माथा, शरीर का ितिन ध व करती है। मेष रािश से िवशेषतः सरदद,
मान सक तनाव, उ माद एवं अिन ा तथा मुख व ने रोग आिद का िवचार िकया जाता है।
जस कार िकसी भवन क न व उसको िचरआयु दान करने म अपनी मह वपूण भूिमका
िनभाती है, ठीक उसी कार िकसी क कुं डली उसके शरीर क न व का आकलन करने म
सहायक होती है, जो ह हमारी कुं डली म िनबल ह, वे ह के कम अंश, च लत अव था, या
कुं डली म िकसी नीच रािश या भाव म या श ु रािश आिद म होने के कारण उस रािश तथा
भाव संबं धत रोग देने क मता रखते ह।

योितष संबं धत कारण


सौरजगत म थत ह न के साथ हमारा सतत संबध
ं ह क गित, थित एवं
रासायिनक प रवतन के अनु प हम भािवत करता रहता है। यह बात य मािणत है िक
जलवायु प रवतन, ऋतुप रवतन, भूक प तथा वारभाट का, सूय तथा चं मा क कलाओं से
सीधा संबधं है। जसके कारण िविभ कार के रोग हो सकते ह जैसे- पागलपन, उ माद,
सरदद, िमग , बड़बड़ाना, आिद मान सक रोग के कारण का आकलन केवल एक ह से
नह िकया जा सकता पर तु ‘च मा' क भूिमका क भी उपे ा नह क जा सकती। च मा
का मनु य क भावनाओं एवं आकां ाओं आिद से कारक प म संबध ं है। कुं डली का चतुथ
भाव-भावनाओं का भी ितिन ध व करता है। इसी कार ह म बुध और भाव म थम व
पंचम बुि के ोतक ह।
जैसे च मा क कलाएं समु के जल को भािवत करती ह, उसी कार शरीर म हमारे
र वाह को भी भािवत करती ह, र क असामा यता अ य िदन क अपे ा पूिणमा को
िमग , उ माद, र चाप तथा मान सक रोग अपनी पराका ा पर होते ह।
िनबल च मा सामा य सरदद, तनाव, अवसाद तथा अ य ह से पीिड़त होने पर उनक
कृित के अनुसार बहत सी अ धक समय तक रहने वाली मान सक िबमा रय का कारण होता
है।
सूय ह से च मा का संबधं माइ ेन (आधासीसी) देता है।
िनबल मंगल ह से होने वाला सरदद अ धक प र म के कारण या तनाव के कारण हो
सकता है।
वात िप आिद के कोप से मन म त क म दबाव या तनाव से तथा सर म चोट लगने से
सरदद होता है, वात, िप आिद से उ प सरदद का िवचार सूय से, मान सक तनाव से
उ प सरदद का िवचार च मा से तथा चोट से होने वाले सरदद का िवचार मंगल आिद पाप
ह से करना चािहए। फ लत ंथ म सरदद, तनाव के िन न योग का वणन िकया गया है,
इन योग म उ प यि सरदद से दख ु ी रहता है, ये योग इस कार ह-

राह, मंगल एवं शिन तीन एक ही रािश म थत ह ।


सूय क दशा म शु के अ तदशा आने पर सरदद होता है।
तृतीयेश जस नवांश म हो उस रािश का वामी जस नवांश म हो, उस रािश का वामी
क म पाप ह के साथ हो एवं हो।
कुं डली म ल म पाप ह क रािश हो तथा गु एवं च मा पाप ह के साथ ह ।
बुध क दशा म मंगल क अ तदशा आने पर सरदद होता है।
शिन ल ेश होकर ल म बैठा हो तथा वह पाप ह से युत एवं हो, तो सर म चोट
क संभावना होती है।
ल म राह हो व पाप ह से युित व हो।
मंगल ल ेश होकर ल म बैठा हो तथा वह पाप ह से युित संबध ं बनाये एवं हो,
तो भी सर म चोट लगने क बल संभावना होती है।
सूय क महादशा म सूय क अ तदशा म सर से संबं धत रोग होते है।
सूय क महादशा म बुध (नीच) क अ तदशा म िड ेशन व तनाव होता है।
च मा क महादशा म यिद च मा (नीच) क अ तदशा हो या च मा पाप ह से संबध ं
बनाये तो यि िड ेशन से सत हो सकता है।
च मा क दशा म केतु क अ तदशा मान सक रोग देती है।
मंगल क दशा म मंगल से ि क थान म थत सूय क अ तदशा मान सक रोग, सर म
चोट के कारण सरदद देती है।
गु क दशा म शिन (ि क थान म या नीच) क अ तदशा मान सक रोग दे सकती है।
गु क दशा म सूय (गु से 6,8,12 म थत) क अ तदशा सरदद देती है।
शिन क दशा म शु (6,8,12 म थत, नीच या अ त) क अ तदशा या पापी ह से
युत शिन मान सक क , भय, याकु लता आिद देता है।
शिन क दशा म शिन (8,12 या अ त या पाप ह से युत) क अ तदशा मान सक क
देती है।
शिन क दशा म राह क अ तदशा मान सक रोग दान करती है।
केतु क दशा म केतु से 6,8,12 म थत सूय क अ तदशा घोर मान सक क देती है।
केतु क दशा म बुध क अ तदशा जो ि क थान म बैठा हो और पापी ह से यु हो
मान सक संताप व उ माद देता है।
शु क दशा म सूय क अ तदशा जो पापी व नीच रािश म 6 व 8 भाव म बैठा हो
िविभ कार के मान सक रोग, गु सा, सरदद व माइ ेन आिद देता है।
शु क दशा म (शु से 8, 11) म पापी केतु क अ तदशा सरदद, मनोरोग व िड ेशन
देती है।

िनदान
ह के अशुभ भाव से िनदान पाने के लए र न, मं , औष ध, दान एवं नान आिद का
वणन शा म िकया गया है, जसे ह िचिक सा कहा जाता है, र न धारण करते समय
ह के अनुकूल व ितकू ल भाव का िवचार करके ही र न धारण करना चािहए। इसी
कार ह के म का जाप भी लाभ दान करता है, पर तु वा य लाभ के लए ल ेश
का र न िवशेष लाभ देता है।
सूय नम कार व गाय ी मं का जाप सभी कार के मान सक रोग का अचूक िनदान है व
अ य बहत सम याओं का समाधान है।
माता का आशीवाद ितिदन ा कर तथा घर से जाते समय माता का चरण पश अव य
कर।
चांदी क बनी व तुएं िकसी से उपहार म न ल तथा दध,
ू चीनी व सफेद व तुओं का दान
िकसी ी को कर।
सफेद कपड़े न पहने।
ना रयल पानी िपय व िपलाय।
अपने अित थ को पानी अव य िपलाय

फिटक क माला दान कर


‘ओम ाम स: सोमाय नम:' मं का जाप सोमवार व िवशेषतः पूणमासी को
अव य कर।
घर म शंख नाद भी लाभ द होता है।
पानी अ धक िपय, हरी घास पर चल, छोटी इलायची व स फ का सेवन कर।
गौ सेवा अ धका धक कर।

मोती, च कांत मिण


च मा का र न ाकृितक मोती अथवा उपर न च कांत मिण है, जो मनोबल को बढ़ाने म
सहायक होता है। च मा मन का कारक है। मोती शीतलता दायक र न है। िदमाग को ठं डा
रखने के साथ-साथ यि को तनाव मु व ोध मु रखने म भी बड़ा ही सहायक है। यहां
तक िक र चाप जैसी ग भीर िबमा रय म भी इसका लाभ देखा गया है।

सातमुखी ा
मनोबल व आ मिव वास को बढ़ाने म इसका लाभ चम का रक प से माना गया है।
िड ेशन व तनाव मुि म इसका योग अमोघ है। इससे यि का िचड़िचड़ापन भी दरू हो
जाता है।

वेताक
वेत आकड़ा क जड़ को लाल रं ग के कपड़े म डालकर दािहनी भुजा पर शिनवार के िदन
पहनने से आ मिव वास म बढ़ोतरी होती है। वेताक से िड ेशन व तनाव भी कम िकया जाता
है। इससे इ फ रीऑ रटी कां ले स भी समा होता है। इसके अित र कई िद य र न, जिड़या
तथा ा , भ ा और यं ािद ह, जो िक यि को अनेकानेक मान सक या धय से मु
करते ह। आ मिव वास, ि याशीलता तथा रचना मकता का िवकास कर यि को ऊजावान
व सतत ि याशील बनाने म भी सहायता दान करते ह।

⦿⦿⦿
मान सक रोगी बनाता
सोशल मीिडया
क हते ह न अित िकसी भी चीज क अ छी नह होती। िकसी व तु का ज रत से यादा
इ तेमाल हम नुकसान पहच ं ा सकता है। आज सोशल मीिडया का अ धक योग हम िकस
कार हािन पहचं ा रहा है, इससे हम सभी प रिचत ह।
आज के समय म कोई इंसान आपको कह िमले न िमले पर हा सएप, फेसबुक, ि टर,
इं टा ाम, पर ज र िमलेगा। इन सोशल ऐप क दीवानगी लोग के सर चढ़कर बोल रही है
और यही दीवानगी कई िबमा रय का आधार भी बन रही है। एिड शन बन चुके यह ऐप लोग
को मान सक रोगी बना रहे ह। आज लोग क िदन क शु आत इ ह ऐप से ही शु होती है
और इ ह पर ख म होती है। सुबह उठते ही सबसे पहला काम इन ऐप पर या हलचल चल रही
है, उसको चेक करना होता है, और धीरे -धीरे यह आदत कब बीमारी बन जाती है, इसका हम
एहसास ही नह होता। वचुअल दिु नया म लोग इस कदर खो गए ह िक असली दिु नया उ ह
नकली लगने लगी है। लोग जब तक इन ऐप पर रहते ह, तब तक तो वह लोग से अपने को
जुड़ा हआ महसूस करते ह, लेिकन इससे बाहर आते ही वह अकेले पन का िशकार हो जाते ह।
जससे वा तिवक र त पर असर पड़ता है। ऌफल व प तनाव, िचंता, अिन ा, िचड़िचड़ापन
आम रोग बन चुके ह। िदन के कई घ टे हम इन ऐप का योग करने म बबाद करते ह, जसका
असर हमारे िदमाग पर पड़ता है। फेसबुक या अ य सोशल साइट पर हमारे टेटस पर िकये गये
नकारा मक कमट हमको िवच लत करते ह।
कै लफोिनया यूिनव सटी म िकए अ ययन म यह बात सामने आई थी िक फेसबुक पो ट पर
यादा सं या म लाइक न िमलने पर यि तनाव म आ जाता है। यहां तक िक वो अपने दो त
से फोटो पर लाइक करने को भी बोलते ह। यिद हम िकसी भी कारणवश फेसबुक या हा सएप
चेक नह कर पाते तो हम बैचेन हो जाते ह। यह बेचन ै ी हम आ ामक, िचड़िचड़ा बना रही है।
ब चे, युवा तो इससे सबसे यादा भािवत देखे जा सकते ह।
वह इसका अ धक योग हमारी याददा त और एका ता को भी भािवत करता है। हर समय
ऑनलाइन रहने से हमारा िदमाग हमेशा य त रहता है। जससे हमारे म त क को आराम
िबलकु ल नह िमलता। जससे म त क को जानकारी सुरि त रखने का समय नह िमल पाता
और हमारी याददा त भािवत होती है।
कहते ह न, अित िकसी भी चीज क अ छी नह होती, यही बात इसके साथ भी लागू होती है।
यह बात सही है िक इसके योग से दरू बैठे लोग के साथ हमारी द ू रयां कम हई ह, पर यह
बात भी उतनी ही सच है िक साथ बैठे लोग के साथ हमारी द ू रयां बड़ी ह।
आज हम अपना अ धकांश समय इ ह साइ स का इ तेमाल करने म बबाद करते ह। खाना
खाते समय, टी.वी. देखते हए या आपस म ही िकसी से बात य न कर रहे ह , िफर भी हम
बीच-बीच म अपना फोन चेक करते रहते ह। यह िड जटल र ते हमारे वा तिवक र त को
भािवत कर रहे ह। इसके कारण हमारे यवहार, जीवनशैली म कई नकारा मक भाव देखे जा
सकते ह।
यह बात सच है िक सोशल मीिडया सूचना तं का एक भावी मा यम है। जसके मा यम से
खबर बहत ज दी फैलती ह। अब इसी बात का फायदा कई असामा जक त व भी उठाते ह। वो
सामा जक, धािमक उ माद फैलाने वाली गलत खबर फैलाते ह। जसके कारण लोग क
मान सकता पर भाव पड़ता है और कई लोग तो भड़काऊ संदेश देखने के बाद िघनौना अपराध
भी कर बैठते ह।
सोशल मीिडया आज लोग क जंदगी का अहम िह सा बन चुका है। इनसे दरू होते ही हम
बेचनै हो जाते ह। सोशल मीिडया का यह नशा हमारे वा य, हमारे संबधं को खराब कर रहा
है। हम इसके गुलाम बन बैठे ह। बस, टे न, मेटो आिद म सफर के दौरान आप एक बार नजर
उठाकर देख तो जान जाएंगे िक िकस हद तक हम इसक िगर त म ह। अ धकांश लोग आपको
अपने मोबाइल का इ तेमाल करते ही िदखगे। इसम कोई शक नह इसके योग से हम कई
फायदे ह, िक तु बात बस इसके सही योग क है। अब यह हमारे हाथ म है िक हम इसका
उपयोग कैसे करते ह।

⦿⦿⦿
मान सक रोगी बना रहे ह टीवी सी रयल
आ जआयाके हैबदलते माहौल म बदलाव सफ तकनीक सुिवधाओं या फैशन को लेकर नह
। हमारे मनोरं जन क दिु नया म भी यापक तर पर बदलाव हए ह, ज ह ने
हमारी मान सकता को काफ हद तक बदलकर रख िदया है। हमारी इस बदली मान सकता का
खािमयाजा भुगत रहे ह, हमारे र ते और खुद हम। टीवी क दिु नया म आदश ं व बुराइय का
िच ण इतने यापक पैमाने पर िकया जाने लगा है िक हम उसी को हक कत मानकर उस दिु नया
म जीने लगे ह। इस दिु नया से बाहर िनकलकर जब हमारा सामना वा तिवक दिु नया से होता है,
तो हमारा अबोध मन उसका सामना करने से कतराता है। हम टीवी के र त क तुलना अपने
र त से करने लगते ह और जब वे र ते हमारी उ मीद पर खरे नह उतरते तो उनम दरार आ
जाती है या िफर हम खुद ही कई मान सक िबमा रय के िशकार हो जाते ह।

का पिनक दिु नया म जीते ह दशक


टीवी के इस ितल मी संसार म या तो सारे र ते बहत अ छे िदखाए जाते ह या िफर अपने ही
अपन के खलाफ सा जश करते नजर आते ह। दरअसल, आज िविभ चैनल व उन पर
सा रत होने वाले काय म क बाढ़ सी आ गई है। इन काय म म िदखाए गए प रवार को
देखकर आम जन इनके मोह जाल म फंसता जा रहा है। आज हर लड़क अपनी होने वाली
सास म टीवी सी रयल क सास क जैसी छिव ढू ढं ती है लेिकन जब टीवी के मोह पाश से बंधन
टू टता है, तो वे स चाई का सामना करने म सहज नह हो पाती ह। यही असहजता या तो उनके
पा रवा रक र त म दरार लाती है या िफर मान सक रोग के लए अवसर उपल ध कराती है।
ऐसा ही कु छ हाल युवाओं का अपने जीवन साथी को लेकर भी है। इन सी रय स का उनके
िदलो-िदमाग पर ऐसा असर पड़ा है िक वे अपने जीवन साथी म वही संभावनाएं ढू ढ़ं ने लगते ह,
जो िक तथाक थत टीवी सी रयल म िदखाई जाती है। टीवी-सी रयल म बढ़ा-चढ़ाकर िदखाई
गई चीज लोग के म त क पर कु छ यादा ही हावी हो गई ह। इन सी रय स क दा तां सफ
लोग के र त म आई दरार तक ही सीिमत नह रह गई है। दशक म इन सी रयल म िदखाए
गए िकरदार से इस क अपनापन व भावना मक लगाव हो गया है िक वे इ ह अपने अपन क
तरह चाहने लगे ह। सी रयल क कहानी म इनके साथ कु छ भी गलत होने पर दशक के दय
पर भी चोट लगती है। वे भी भावना मक प से आहत होते ह।

संदेह के घेरे म र ते
इन सी रयल म अपन ारा अपन के लए ही सा जश क जाने क वृ से आज लोग
अपने संबं धय व िम को संदेह क ि से देखने लगे ह, जो िक िन चत प से समाज के
लए अ छा नह है। इससे आपसी र त म बुराइयां यादा पनप रही ह। इसका सबसे बड़ा
द ु प रणाम ये हो रहा है िक हम एकाक होते जा रहे ह। अपने र त पर से ही हमारा िव वास
उठता जा रहा है। सी रय स के कारण हमारी जंदगी म आया ये अकेलापन हमारे िदल -िदमाग
पर हावी होता जा रहा है। इसके कारण य व परो प से न केवल हमारे दैिनक काय,
काय मता, ितभा भािवत हो रही है, ब क हम कई रोग क चपेट म आते जा रहे ह।

एकाक पन का िशकार होते लोग


आजकल तो लोग पर सी रयल का ऐसा जाद ू चढ़ा है िक अपने पसंदीदा सी रयल के सारण
के समय वे अपने प रवार वाल से बात करना भी पसंद नह करते। जबिक रात का वह समय
जब सभी अपने-अपने काय थल से लौटते ह तो ऐसे म प रवार के लोग को एक-दसरे ू के
साथ क यादा ज रत होती है। ऐसे म बजाय एक दसरे ू का साथ देने के वे आपस म अपने-
अपने पसंदीदा काय म को लेकर लड़ते रहते ह। बेचारा टीवी का रमोट इस हाथ से उस हाथ
उलझता रहता है। पर आप मान या न मान लेिकन इस झगड़े का परो प रणाम आपके र ते
पर भी पड़ता है, पर हम इनसे अनजान रहते ह। इसके अलावा टीवी के समय म वे िकसी का
आना या िकसी के घर जाना पसंद नह करते। सी रयल के च कर म बस टीवी के सामने
िचपके रहते ह। इससे लोग म से अपन व का भाव समा हो रहा है। शायद समाज म बढ़ रहे
अपराध व िकसी के साथ हई दघु टना के बाद लोग का अंसवेदनशील रवैया इसी ‘बॉलीवुड'
क देन है। यही कारण है िक आज जब हमारी आंख के सामने िकसी के साथ कु छ भी गलत
हो जाए, तो हम आंख मूंदे खड़े रहते ह, य िक मानवीय र त के साथ तो हमारी
संवेदनशीलता समा हो चुक है। अगर कह संवेदनशीलता बची है, तो वह है सी रय स के
िकरदार के साथ।

दशक म पनपता रोष व हीनता भाव


इसके अलावा सी रय स म लगातार र त , रीित- रवाज व र म का मजाक बनाया जाता
है। यहां पर एक ही ी व पु ष का अनेक बार दसरे
ू लोग के साथ िववाह होना िदखाया जाता
है। प र थित व सी रयल क कहानी के अनु प नाियका का िववाह कई बार करवाया जाता है।
वो भी पूरी शानो-शौकत से। हमारे समाज म जैसा िववाह सं ा त घराने म होता है, इन
धारावािहक म एक गरीब प रवार भी वैसा िववाह बड़े आराम से कर लेता है। हर चैनल के
धारावािहक म यार और पैसा खेलने क चीज हो गए ह। यहां हर समय करोड़ पय क बात,
आलीशान महल, महंगे जेवरात, क मती प रधान ऐसे िदखाए जाते ह मानो यही हमारे भारत का
सच है, शेष गरीब लोग तो इस दिु नया के ाणी है ही नह । जबिक ये हमारे भारत के सच से
कोस दरू है। भारत का आम आदमी तो सी रयल क इस चकाच ध को सफ सी रयल म ही
देख सकता है। वा तिवक जीवन म तो उसका इन सब चीज से कोई सरोकार है ही नह । हमारे
समाज का आम आदमी अपने लए दो व क रोटी क जुगत म ही अपना जीवन िबता देता है।
इस तरह के आलीशान िववाह व आम आदमी का भी इस तरह शान से जीना तो सफ टीवी
सी रयल म ही िदखाया जा सकता ह। पर बावजूद इसके िववाह के समय काफ धूमधाम व
लेन-देन आिद कु थाएं इन धारावािहक म आम हो गई ह। टीवी पर इस तरह क चीज िदखाकर
हम न केवल अपनी स यता व सं कृित पर हार कर रहे ह, ब क समाज को गलत राह भी
िदखा रहे ह। इनम िदखाई जाने वाली धूमधाम व लेन-देन के चलते समाज म दहेज था को
बढ़ावा िमल रहा है। न केवल समाज म दहेज था जैसा गलत संदेश जा रहा है, ब क वयं
भावी द ू हा-द ु हन भी अपने वैसे ही िववाह के सपने बुनने लगते ह। अपनी इन वािहश के
पूरा न होने पर उनम एक झुझ ं लाहट, रोष व हीनता क भावना पनपने लगती है जो िक उनके
भिव य व वा य के लए सही नह है।
इसके अलावा जो खा सयत इन धारावािहक क है, वो है पा रवा रक कहलाए जाने वाले इन
सी रयल म अ लीलता व रोमांस क पराका ा। इन पा रवा रक धारावािहक क खा सयत
होती जा रही है िक आप इ ह पूरे प रवार व ब च के साथ बैठकर नह देख सकते। नायक-
नाियकाओं का हर समय रोमांस सी रय स क टी.आर.पी. बढ़ाने का एक ज रया बन गया है।
जबिक स चाई तो यह है िक ये हमारे समाज पर नकारा मक भाव डाल रहे ह, अपराध को
बढ़ावा दे रहे ह। रोमांस क सभी सीमाओं को लांघते इन सी रयल को अपना दायरा समझना
होगा। य िक हमारे ारा देखी गई हर चीज हमारे िदलो-िदमाग पर कह न कह यापक प म
असर करती है।

अवसाद त बनाते रय लटी शोज


इन सबसे हटकर अगर हम बात कर रय लटी शोज क , तो यहां भी प रणाम िनराशाजनक
ही ह। इन िदन टीवी चैन स पर रय लटी शोज क बाढ़ सी आ गई है। चाहे वह शो डांस का
हो, गाने का, कॉमेडी का या िफर खाने का। बड़ से लेकर ब चे तक इसक चकाच ध म अपने
जीवन म अंधकार भरते जा रहे ह। रय लटी शोज क इस बढ़ती र तार के कारण आज ब चे
व बड़े पढ़ाई व कॅ रयर पर यान देने क बजाय इन शोज म भाग लेना ही अपने जीवन का
उ े य बना चुके ह। सभी अपने ल य से भटकते जा रहे ह।
इस भटकाव के बीच देश के ब चे, बूढ़े, युवा सभी जुटे ह, िकसी भी तरह से इनम भाग लेने
के लए। जन लोग को इस शो का ितभागी बनने का मौका िमल जाता है, वे ण भर के
लए खुश हो जाते ह तथा ज ह मौका नह िमलता वे िनराश होकर हीनता बोध से त होते
जाते ह। मान सक तर पर वे कई रोग का िशकार हो जाते ह। हालांिक ज ह इन शोज का
िह सा बनने को िमलता है, उनका जीवन भी वण आभा से उ वल नह होता। शो म भाग लेने
के बाद बीच शो से िनकलना उनम कुं ठा व अवसाद को ज म देता है। रही बात िवजेताओं क ,
तो सच तो ये है िक उनके जीवन म भी सदा के लए चांदनी नह आती। शो ख म होने के बाद
लोग बड़ी आसानी से उ ह भी भूल जाते ह। उनम से कु छ क िक मत अ छी होती है, ज ह
जीवन म दोबारा कोई अवसर िमलता है, अ यथा बाक तो गुमनामी के अंधरे म ही अपना
जीवन गुजार देते ह। इसके कारण लोग अवसाद का िशकार होते जा रहे ह।

समाज म ब ़ती आपरा धक वृ


रय लटी शो के नाम पर दशक व ितभािगय क मान सकता के साथ जो खलवाड़ होता है,
उसे तो वे ही बेहतर समझ सकते ह जो इन शोज का िह सा रह चुके ह या जनके प रवार के
सद य ऐसे शोज का िह सा बनने के लए लालाियत ह। दसरी ू तरफ अगर हम बात कर इन
शोज क सफलता क , तो हम देखगे िक अपने शो को िहट बनाने के लए काय म के
िनमाता-िनदशक हर सीमा का उ ंघन कर रहे ह। कभी अ लील कॉमेडी ारा मनोरं जन तो
कभी इन शोज म मिहलाओं क छिव को धूिमल करते यं य, तो कभी िकसी रय लटी शो म
छोटे-छोटे अबोध ब च से अ लील नृ य करवाना या खतरनाक टंट करवाना। इन सबके बीच
आ खर कु छ है जो नह िदख रहा है, तो वह है युवाओं का समाज से कटना, अपनी िश ा
छोड़कर इस चकाच ध म वयं को अवसाद त करना। और तो और लाइट, कैमरा और
ए शन के इस खेल म मासूम ब च से उनका बचपन छीना जा रहा है। जो उनका मान सक
अिहत तो कर ही रहे ह साथ ही साथ उनका बचपन छीनकर समाज को मान सक प से
िवकलांग नाग रक दे रहे ह, जसक प रणित होती है िविभ अपराध म।
आज समाज म बढ़ रहे अपराध के लए काफ हद तक टीवी काय म क बदलती परे खा
व िवषय व तु ही ज मेदार है। यिद समय रहते इसे नह रोका गया तो एक िवि समाज के
लए कोई और नह , ब क हम सब उ रदायी ह गे। य िक अगर दोष काय म व चैन स के
िनमाता-िनदशक का है, तो उससे कह यादा हम उ ह बढ़ावा देने के लए दोषी ह। य िक वो
हम ही ह जो अपने ब च के साथ बैठकर इस तरह के काय म का आनंद लेते ह। जसक
वजह से इन काय म क टी.आर.पी. बढ़ती है और चैन स को यादा से यादा मा ा म ऐसे
काय म परोसने का अवसर िमलता है। अगर हम वयं अपने व अपने प रवार के लए अपनी
सीमा, अपनी मयादा िनधा रत कर द तो टीवी म बढ़ती अ लीलता व उसके ारा उ प
मान सक िवि ता या अपंगता को रोका जा सकता है।
सच तो यह है िक हमारे मनोरं जन के लए सी रयल एक अ छा मा यम है, लेिकन सी रय स
का तुतीकरण अ छा होना भी एक अिनवाय शत है, तािक समाज म एक अ छा संकेत जा
सके। हालांिक कई चैन स क तरफ से समाज म अ छे संदेश सा रत करने वाले काय म
क शु आत हई थी, पर बदलते प रवेश म वे भी अपने ल य से भटक गए और खािमयाजा
भुगतना पड़ा दशक क मान सकता को। टीवी देखना कोई बुरी बात नह है लेिकन आपको ही
इस बात का यान रखना है िक इन काय म क िवषय व तु को आप वयं पर हावी न होने द
तथा िकसी भी क मत पर इससे आपक मान सकता भािवत न हो या आप िकसी भी कार के
मान सक रोगी बनने से बच। इसी म आपका व समाज का िहत िनिहत है।

⦿⦿⦿
िड ेशन-कारण,
ल ण और िनवारण
व तमान समय म यि का जीवन बहत बदल गया है। पहले जहां यि अपने जीवन म
संतोष को मह व देता था, आज वो इतना अ धक मह वकां ी हो गया है िक वह आराम
को भूल कर केवल भाग-दौड़ म यक न करने लगा है प रणाम व प वह चैन तथा सुकून से
कोस दरू चला गया है और यह भी एक वजह है िक आज िड ेशन (अवसाद) जैसी सम या
आम हो गई है। कभी दखु , तकलीफ, बीमारी तो कभी इ छत काय ं म सफलता न िमलने पर
िनराश तो हम सभी होते ह, लेिकन कभी-कभी िनराशा या हताशा इतनी अ धक बढ़ जाती है
िक वो िड ेशन का प ले लेती है। ये एक भयंकर मान सक थित है, जसम रोगी आ मह या
तक कर सकता है।

या है िड ेशन?
उलझे सवाल, िनराशा से भरे उ र िकसी भी इंसान को उस मोड़ पर ले आते ह, जहां उ मीद
ख म हो जाती ह, या बहत ही कम रह जाती है। जब थित ऐसे नाजुक मोड़ पर पहच ं जाती
है, तो प रणाम बहत ही घातक या िफर जानलेवा हो जाते ह। ऐसे म ज रत है, तो इस थित
पर व रहते अंकुश लगाने क , य िक ये थित ज म देती है िड ेशन को। िड ेशन क
सबसे बड़ी वजह होती है िचंता व तनाव। िड ेशन सफ बीमारी नह है और न ही िदमागी कमी
है, ब क ये तो ऐसी मान सक थित है, जसम सकारा मक नतीजे तक पहच ं ने क इंसान क
मता समा हो जाती है और नकारा मक सोच इतनी अ धक बढ़ जाती है िक सब कु छ ख म
सा लगता है। इसे कहते ह िड ेशन। मनोिचिक सक के अनुसार साइकोलॉ जकल,
बायोलॉ जकल सोशल कारण िमलकर ही िकसी यि को िड ेशन का िशकार बनाते ह,
य िक ये िदमाग म सरोजोिनन लेवल कम होने पर होता है। ये सम या वृ , जवान, ब चे,
ी, पु ष िकसी को भी कभी भी अपनी चपेट म ले सकती है। परं तु इसका इलाज संभव है
और ये िनयम से दवा खाने पर पूरी तरह से ठीक भी हो जाता है। िनयिमत उपाय से इसके
दोबारा उभरने क संभावना भी नह होती है। िड ेशन को शु आती अव था म ही पहचान लया
जाए और उसका इलाज शु कर िदया जाए। िड ेशन से त यि के पा रवा रक लोग का
अपन व व यार भरा यवहार िड ेशन क पहली दवा होती है, जो मरीज के लए दआ ु व दवा
दोन का काय करता है।

या होता है िड ेशन?
हर यि कभी न कभी उदास या परे शान अव य होता है तथा अपने जीवन म कभी-कभी
िकसी सम या का सामना करने से वह नकारा मक भी हो जाता है, लेिकन यह सब कु छ समय
के लए होता है जो िक एक सामा य बात है, लेिकन यह भावना यिद लंबे समय तक आपका
साथ न छोड़े तो उसे ह के म न ल, य िक यह अवसाद का ल ण हो सकता है। दसरे ू शद
म अगर बोल तो अवसाद एक ऐसा िवकार है, जसके कारण यि म उदासी, िनराशा,
आ मस मान म कमी अकेलापन जैसी भावनाएं उ प हो जाती ह तथा यि सामा जक प
से वयं को असुरि त महसूस करने लगता है। कहने को तो वह केवल मान सक प से
बीमार होता है, परं तु यिद लंबे समय तक इसका इलाज नह िकया गया तो प रणाम बहत
घातक हो सकते ह। िविभ छोटे-छोटे कारण तथा थितय क वजह से यि य म िड ेशन
क सम या उ प होती है, जैसे-
1. अकेलापन- यह सच है िक मनु य एक सामा जक ाणी है तथा वह चाहे वीकार करे
या न करे उसे िकसी न िकसी के साथ क आव यकता अव य पड़ती है। अकेलापन कु छ
समय तक भले अ छा लगे, परं तु एक समय के बाद उसी अकेलेपन से यि घबराने
लगता है। अपनी भावनाओं को य करने के लए तथा भावना मक सहयोग के लए
मनु य को िकसी के साथ क ज रत होती है, लेिकन जब वह नह िमलता तो यि के
अंदर क भावनाएं उसे नकारा मक होने लगती ह तथा वह िड ेशन का िशकार हो जाता
है।
2. लाचारी- लाचारी भी िकसी यि को भावना मक प से कमजोर तथा नकारा मक
बनाती है, िफर वह लाचारी यि के अंदर िकसी अपंगता के कारण उ प हई हो या
िफर बुढ़ापे म ीण हई ऊजा क वजह से, य िक अपंग, अपािहज तथा वृ यि य को
िकसी न िकसी काय के लए दसर ू पर आ त होना पड़ता है। जसके कारण कभी-कभी
उ ह लोग ारा उपे ा का सामना करना पड़ता है, जसक वजह से वो तनाव त हो जाते
ह तथा कभी-कभी यह िड ेशन का कारण भी बनता है।
3. सामा जक सहयोग क कमी- येक यि उसी जगह पर सुरि त महसूस करता है,
जहां पर उसे अपनेपन का एहसास हो तथा सामा जक प से सहयोग ा हो, परं तु जब
इन चीज क कमी होती है, तो वह वयं को असुरि त महसूस करता है तथा िड ेशन का
िशकार हो जाता है।
4. असफलता- कई यि य क आदत होती है िक वह खुद को बस कामयाब देखना
चाहते ह तथा थोड़ी सी भी असफलता को वो वीकार नह कर पाते और वयं को िनराशा
के रसातल म धकेल देते ह, यह प र थित िड ेशन का कारण बन जाती है।
5. कटु अतीत- सुख तथा दख ु जीवन के दो पिहए ह, जो जीवन भर हमारे साथ रहते ह,
परं तु कभी-कभी मनु य को कु छ ऐसे कटु अनुभव हो जाते ह, जनसे मनु य चाहकर भी
नह िनकल पाता तथा लगातार कटु अतीत क याद म रहने के कारण िड ेशन क चपेट
म आ जाता है।
6. र त म खटास- कई बार र त म आई खटास भी मनु य को िड ेशन क चपेट म ले
जाती ह। मनोवै ािनक का मानना है िक आजकल क भागदौड़ भरी जंदगी म र ते
स हालना मनु य के लए किठन हो गया है, जससे मनु य भावना मक प से आहत होता
है, इस वजह से आज िड ेशन अ धक देखने को िमलता है।
7. लगातार तनावपूण अनुभव- लगातार तनावपूण अनुभव लोग म िड ेशन को बढ़ा रहा
है, िफर चाहे वह काम तथा प रवार म सामंज य बैठाने से संबं धत हो या िफर पढ़ाई या
असफलता से।
8. अ य धक ेशर (दबाव)- कई बार काय, पढ़ाई या ज मेदा रय का अ य धक ेशर
भी लोग म िड ेशन को ज म देता है तथा असफलता का कारण बन जाता है।
9. बेरोजगारी- रोटी, कपड़ा और मकान इंसान क मूलभूत आव यकता है, जो पूरी होती
है रोजगार से, परं तु जब यि बेरोजगार होता है तथा अपनी आव यकताओं और
ज मेदा रय को पूरा नह कर पाता तो िड ेशन का िशकार हो जाता है।
10. अ य धक कज- जब िकसी यि के ऊपर अ य धक कज होता है और उसे उतारने
का कोई ज रया नह होता, तो वह लगातार िचंता म डू बा रहता है तथा वयं को उस
थित से िनकाल पाने म असमथ पाता है, तो िड ेशन क चपेट म आ जाता है।
11. बीमारी- कोई भी यि आजीवन िबलकु ल व थ रहे यह एक दल ु भ बात है, परं तु
यिद कोई यि लगातार लंबे समय तक बीमार रहता है तथा व थ नह हो पाता है, तो
उसके अंदर क ऊजा ीण होने लगती है तथा वह नकारा मक भी हो जाता है एवं कई
बार वह नकारा म ा से लंबे समय तक िनकल नह पाता तथा िड ेशन का िशकार बन
जाता है।
12. िनराशावादी ि कोण- मनोवै ािनक का मानना है िक िनराशावादी लोग म ही ाय:
िड ेशन क सम या देखने को िमलती है। इसका कारण यह होता है िक वह अपने
िनराशावादी रवैये के कारण सम याओं तथा चुनौितय को और जिटल बना देते ह तथा
अपनी हार का िनधारण पहले ही कर लेते ह, जस वजह से इनम तनाव तथा िड ेशन
अ धक पाया जाता है।
13. मौसम- मौसम का यि के मूड पर बहत गहरा भाव पड़ता है। मानसून के दौरान
यि य म िड ेशन क संभावना अ धक होती है, य िक मानसून के दौरान वातावरण म
आ ता उमस क अ धकता होती है, जो यि के अंदर बेचन ै ी पैदा कर देती है। इस
कार के िड ेशन को ‘मानसून िड ेशन' के नाम से जाना जाता है।

िड ेशन के कार
1. मेजर िड ेशन- ऐसा िकसी दख ु द घटना के घटने के कारण होता है। इसे इमोशनल
िडसऑडर कहते ह। इस अव था म कभी-कभी रोगी खुदखुशी भी कर बैठता है।
2. िटिपकल िड ेशन- ये वो िड ेशन है, जसम बीमार खुशी व गम िकसी से भी शेयर
नह करता। ए जॉय श द उसके जीवन म होता ही नह है वो अपने म ही उलझा रहता है।
3. साइकॉिटक िड ेशन- इस िड ेशन म बीमार को अनजान आवाज सुनायी देती ह,
का पिनक चीज िदखाई देती ह। हर बात पर शक रहता है और खुद से बात करता है।
4. िड थीिमया- इस िड ेशन म इंसान सब कु छ सही होते हए भी खुशी महसूस नह करना
चाहता। अ ात भय से वो बेवजह परे शान रहता है।
5. पो टऌपाटम- ये िड ेशन िड लवरी के बाद मिहलाओं म होता है, जसम लगता है िक
वो ब चे को संभालने म स म है।
6. मेिनया- इस िड ेशन म हताशा कारण होती है, जैसे फेल होना, परी ा म, यापार म,
तर क न होना, शादी न होना आिद।

िड ेशन के ल ण
कु छ ल ण के आधार पर िड ेशन क पहचान क जा सकती है-
1. भूख बहत अ धक या िबलकु ल कम लगना।
2. लगातार नकारा मक िवचार आना तथा चाहकर भी सकारा मक नह सोच पाना।
3. अिन ा या अ य धक न द आना।
4. िचड़िचड़ापन तथा छोटी-छोटी बात पर गु सा आना।
5. जीवन का यथ लगना तथा आ मह या का यास करना।
6. सामा जक जीवन से खुद को अलग कर लेना।
7. अचानक िकसी कार के नशे का िशकार हो जाना या पहले से अ धक नशा करना।
8. सरल से सरल काय को करने के लए एका न हो पाना।
9. िबना वजह रोने क इ छा होना।
10. खुद को अकेला तथा असहाय समझना।
11. अचानक आ मिव वास म िगरावट।
12. अचानक खुश तथा अचानक ही उदास हो जाना।
13. वयं म ऊजा का अभाव महसूस करना।
14. िकसी भी चीज को याद न रख पाना।
15. वयं को बेवजह ही अपराध बोध से त कर लेना।
16. सर दद, पाचन ि या म गड़बड़ी आिद शारी रक ल ण का उपचार के बाद भी ठीक न
होना।
17. खुद क साज-स जा या व छता का यान रखना बंद कर देना।
18. अचानक वजन का बढ़ना या कम होना।

िड ेशन के उपचार
िड ेशन या अवसाद के रोगी को िकसी मनोिचिक सक या डॉ टर से इलाज तो कराना ही
चािहए, परं तु अपने तर पर भी िन न ल खत उपाय ारा िड ेशन से छु टकारा पाया जा सकता
है, जैसे-
1. सकारा मक सोच- नकारा मक िवचार को जतना अ धक हो सके वयं से दरू रख,
य िक िड ेशन क जड़ ही नकारा मक िवचार होते ह। सकारा मक िवचार से मन को
पोषण तथा शरीर को ऊजा ा होती है। सकारा मक सोच म सहयोग के लए आप
अ छी तथा सकारा मक िकताब भी पढ़ सकते ह एवं मनोरं जक िफ म देख कर भी वयं
को सकारा मक रख सकते ह।
2. कला मक काय- िड ेशन से िनकलने के लए कला मक काय ं से बहत अ धक
सहायता िमलती है जैसे-पिटंग, संिगंग, डां संग, कु िकंग, गाडिनंग आिद। इन काय ं म
अगर आपक िच है तो आप इसे वतं प से भी कर सकते ह या िफर इसके लए
कोई लास भी वाइन कर सकते ह।
3. र त को समय द- िड ेशन त यि वयं को अपनी ही बनाई नकारा मक दिु नया
म कैद कर लेता है और अपने र त से दरू होता जाता है। जो िक बहत घातक है, य िक
मनु य को यिद भावना मक सहयोग िमलता है, तो वह िकसी भी कार क शारी रक या
मान सक सम या से आसानी से छु टकारा ा कर लेता है, इस लए आव यक है िक वह
अपने र त को समय दे।
4. सामा जक बन- िड ेशन या अवसाद से िनकलने के लए यह आव यक है िक
सामा जक प से वयं को ि याशील बनाया जाए। लोग से िमलना-जुलना, ब च एवं
वृ के साथ समय िबताना तथा पालतू पशुओं के साथ खेलने से न केवल मान सक
संतोष तथा खुशी िमलती है ब क एक कार क सकारा मक ऊजा का भी िवकास होता
है, जससे अवसाद से िनकलने म आसानी होती है।
5. मदद मांगे- कोई भी यि वयं म संपूण नह होता है, येक यि म कोई न कोई
कमी अव य होती है। यिद आप िकसी भी काय को वतं प से करने म स म नह ह,
तो उसे जबरद ती तनाव म आकर न कर, िकसी िक मदद से उसे समझने क कोिशश
कर तथा िफर उस काय को कर। चाहे तो काय आपके यि गत जीवन से संबं धत हो या
यवसाियक। िव ा थय के लए भी यह आव यक है िक यिद कोई िवषय उ ह पसंद न
हो, िकसी दबाव म आकर उसे न पढ़ और माता-िपता को अपनी सम या के बारे म
अव य बताएं।
6. अकेले न रह- अवसाद त यि य के लए यह आव यक है िक वह अकेले न रह।
कोिशश कर िक उन यि य के साथ रह जनके साथ आपको खुशी िमले परं तु ये भी
सच है िक हमेशा कोई साथ हो ऐसा संभव नह है, ऐसी अव था म वयं को अपनी िच
के काय ं म य त रख, जससे नकारा मकता आप पर हावी न हो पाए।
7. असफलता को वीकार- असफलता का शोक मनाने क अपे ा ये सोच क
असफलता से आपने या सीखा, य िक यह आव यक नह है िक जीवन म हर चीज
आप के अनु प हो, इसी लए सदैव आशावादी ि कोण रख।
8. धैय रख- जीवन म यिद हम धैय रख तो काफ सारी सम याएं दरू हो सकती ह, इस लए
यह आव यक है िक िकसी भी प र थित या असफलता से न घबराएं धैय बनाए रख,
इससे अवसाद से िनकलने म भी सहायता िमलती है।
9. इ छाशि - ढ़ इ छा शि के बल पर मनु य बड़ी से बड़ी सम या से आसानी से
िनकल सकता है, इस लए यह आव यक है िक अपने अंदर इ छाशि का िवकास कर,
इस कार आप सरलता से िड ेशन से िनकल सकते ह।
10. नजरअंदाज करना सीख- अगर आप िड ेशन से बचना या मु होना चाहते ह, तो
छोटी-छोटी सम याओं को नजर अंदाज करना सीख। कई बार हम छोटी-छोटी बात पर
इतने परे शान हो जाते ह िक वो सम याय और बड़ी लगने लगती ह।
11. मण- सकारा मक भावनाओं के संचार म मण का बहत मह वपूण योगदान होता है।
मण का ता पय ये िबलकु ल नह है िक आप देश-िवदेश ही घूमने जाएं आप थोड़ी देर
छत पर या बगीचे म टहल कर भी वयं के अंदर हए प रवतन को खुद भी महसूस कर
पाएंग।े
12. आहार- िड ेशन से त लोग के लए यह आव यक है िक वह सा वक भोजन ही
कर, जससे अपने मन पर िनयं ण रखना सरल हो तथा जतना हो सके तले-भुने भोजन
तथा फा ट फूड से बच। भोजन म फल तथा स जय को अ धक से अ धक शािमल
कर।
13. योग तथा यान- ामरी ाणायाम, यान तथा अ य भी कई आसन ह, जनक सहायता
से िड ेशन को बड़ी सरलता से दरू िकया जा सकता है।
14. भावनाओं को न दबाएं- कु छ भावनाएं ऐसी होती ह, ज ह अगर लगातार दबाया जाए
तो वो जिटल प धारण कर लेती ह, इस लए यह आव यक है िक आप उन भावनाओं
या बात को िकसी करीबी यि को बता द या यिद ऐसा संभव न हो तो डायरी म लख
ल ऐसा करने से मन ह का हो जाता है तथा िड ेशन क स भावना कम हो जाती है। आप
डायरी म अपनी खूिबय को भी लख सकते ह जससे आ मिव वास बढ़ता है तथा
िड ेशन से लड़ने म सहायता िमलती है।
15. अपनी मताओं को पहचान- कोई भी यि अगर सव गुण संप नह होता, तो
िबलकु ल नकारा भी नह होता, इस लए खुद क किमय पर यान कि त करने से बेहतर
है िक आप अपनी मताओं को पहचान एवं वयं को े रत करने का यास कर, इससे
आप ज द से ज द िड ेशन से बाहर आ पाएंग।े
16. ल य िनधा रत कर- वयं के अंदर इस भावना को न आने द िक आप के जीवन का
कोई उ े य नह अपने ितिदन के ल य का िनधारण कर तथा उसे पूरा करने का यास
कर।
17. यथ क िचंता न पाल- कई यि अपने भिव य क िचंता म इस कदर डू ब जाते ह
िक वतमान को खराब कर लेते ह, जंदगी बहत खूबसूरत है तथा उसे खुशी-खुशी जीकर
आप और भी खूबसूरत बना सकते ह।
18. पुराने दो त से जुड़- जंदगी के हर कदम पर नए-नए र ते बनते ह, लेिकन पुराने
र त तथा बचपन के दो त िक बात ही कु छ और होती है लेिकन कई बार हम अपनी
य तताओं या ईगो क वजह से इनसे दरू होते जाते ह। अगर आप भी िकसी ऐसी उलझन
क वजह से पुराने र त से दरू हो गए ह, तो फौरन उनसे बाहर िनकल और जंदगी को
िफर से खुलकर जीएं।
19. न द पूरी ल- पूरी न द लेने से िड ेशन क सम या ज द से ज द दरू होती है, य िक
जब हम सोते ह तो पूरे शरीर को तो आराम िमलता ही है साथ ही जब हम सोते ह, तो
म त क क नस िश थल होती ह, नस को आराम िमलता है तथा हमारी ऊजा हम वापस
िमल जाती है, जससे तनाव तथा िड ेशन म राहत िमलती ह, लेिकन इस बात का यान
रख िक कभी भी न द क गो लय पर िनभर न रह अ छी न द के लए िकताब पढ़ना,
बाथ लेना, जैसे उपाय का योग कर सकते ह।
20. अरोमा थेरेपी- न द लान तथा अ य कई िबमा रय से युि िदलाने के साथ-साथ यह
िड ेशन को दरू करने म भी कारगर होती है, लेिकन इसके योग के लए कु शल अरोमा
थेरेिप ट क मदद अव य ल।
21. पा तथा मसाज- पा तथा मसाज से हमारे शरीर को बहत अ धक आराम िमलता है
तथा र संचार भी सुचा प से होता है, जसक वजह से िड ेशन जैसे मान सक
िवकार को दरू करने म आसानी होती है।
22. नकारा मक श द का योग न कर- यह बात मनोवै ािनक प से स हो चुक है
िक हम जन भी श द का योग करते ह उनका हमारे यि व पर बहत गहरा भाव
पड़ता है, इस लए जतना हो सके नकारा मक श द के योग से बच और कोिशश कर
िक सकारा मक ही बोल।
23. सम या को पहचान- कु छ यि लगातार परे शान रहते ह तथा कई बार वो िड ेशन के
िशकार हो जाते ह, लेिकन उ ह असल म यह पता नह होता है िक वो असल म िकस
सम या के लए परे शान ह। इस लए ये आव यक है िक वह सबसे पहले उस सम या को
जान तािक उसे सरलता से दरू िकया जा सके।
24. खेल- मनोवै ािनक का मानना है िक जो भी यि खेल म अ धक सि य रहते ह, वो
िड ेशन का िशकार नह होते। यानी िड ेशन से बचने के लए आप अगर चाहे तो अपने
पसंद के खेल खेलने के साथ-साथ पालतू जानवर के साथ खेलकर अपने वा य को
ठीक कर सकते ह।

िड ेशन का आयुवद म इलाज


आयुवदाचार आ.पी. र तोगी के अनुसार-आयुवद म िड ेशन के इलाज के लए रसायन
औष ध खाने क सलाह दी जाती है। ये रसायन आंवला, ा ी, घृत, शंखपु पी, बृहती,
कंठकारी, हरड़, सोनाक, कंभारी,पृषपण , बला, शालपण , जीवंती, मूदपड़नी तावरी, मेघा,
महामेधा, वृ भक, मु ा, िपपली से बनाए जाते ह। इसम उपरो चीज को उिचत मा ा म
िमलाया जाता है, परं तु इन दवाओं का सेवन िकसी िव ान वै क सलाहनुसार ही कर अ यथा
ये नुकसान भी कर सकती है।

हो योपैथी म इलाज
हो योपैथी डॉ. रिव भूषण के अनुसार हम िकसी भी यि क थित को देखकर ही िड ेशन
क कैटेगरी िन चत करते ह और उसी िहसाब से अलग-अलग दवा भी देते ह। जैसे भावुक
श स को- इ ेिशया, टशन से िघरे श स को- न स वोिमका, दसर ू के कारण दख
ु ी यि
को- पु सित ला, (Pulsatila) जसे बेवजह िनराशा होती है उसे आसिनकम ए बम
(Arsenicom Album) जैसी दवा दी जाती है। ये दवाएं खाने से पूव डॉ टरी सलाह ज री
होती है, य िक डॉ टर ही मरीज क थित देखकर उसक दवा व उसक मा ा तय करता है।

िड ेशन का योग म इलाज


िड ेशन को जड़ से िमटाने का सबसे कारगर उपाय योग साधना माना जाता है। वष ं से
हमारे ऋिष-मुिन अपने-मन म त क को योग से संतु लत रखते आए ह। योगाचाय अनुराग का
कहना है िक योग के ज रये आप काफ हद तक िड ेशन से खुद को बचा सकते ह। सूय
ाणायाम व कपालभाित दो सव म ाणायाम ह व इसके अलावा ताड़ासन, किटच ासन,
उ ान पादासान, भरकटासन, भुजगांसन, धनुरासन, मंडूकासन आिद योग िड ेशन को दरू
करने म बहत ही लाभकारी माने जाते ह। सूय नम कार िड ेशन के लए वरदान है, य िक
सूय नम कार एक संपूण ए सरसाइज है। इसे सुबह के व सूय क तरफ मुंह करके करते
ह। इससे शरीर को ऊजा व िवटािमन-डी भरपूर मा ा म िमलती है। िदमाग को फूित िमलती है
जो िड ेशन को दरू करती है। सूय नम कार मशः 12 खंड म बंटा हआ योग है। ये 12
खंड शरीर के सभी अंग पर अपना-अलग भाव डालते ह। दय रोगी, गभवती मिहलाएं,
वृ , रोगी, ब चे सभी पहले योगाचाय से पूछ ल, तभी सूय नम कार कर।

िड ेशन का योितषीय इलाज


िड ेशन का योितषीय उपाय भी है, जो रोगी को सही करने म बहत उपयोगी माना गया है।
योितष कहता है िक राह-केतु व बु चं मा के कमजोर या दिषत ू होने पर ही मान सक
असंतुलन पैदा होता है, जो िक अवसाद को ज म देता है। इस लए िकसी अ छे योितषाचाय से
ज मप ी िदखाकर राह, केतु, बु , चं मा क थित जाने व उसके िहसाब से दान कर व गृह
शांित कराएं। हवन भी काफ लाभकारी स होते है। अवसाद दरू करने वाले हवन म िवशेष
हवन साम ी का योग िकया जाता है, जो अपना िवशेष भाव डालता है। मरीज अगर
िड ेशन से िघरे ह तो ये कर।

अ य सुझाव
शराब, सगरे ट व नशे क सभी चीज से दरू रह।
लोग से िमल-जुल, उनसे दरू न रह।
अपनी पसंद क िफ म देख िवशेषकर कॉमेडी व गाने सुन साथ ही अ छी िकताब पढ़।
खुद को नकारा मक सोच से हमेशा बचाकर रख। ये ही िड ेशन से बचने का सबसे बड़ा
ह थयार होता है।
ेरणादायक िकताब पढ़।

⦿⦿⦿
िड ेशन म या खाएं,
या न खाएं?
क हने को तो िड ेशन तनाव का ही एक प है, लेिकन िफर भी यह तनाव से बहत िभ है,
य िक जब यि ल बे समय तक तनाव त रहता है तो उसका तनाव एक बेहद ही
खतरनाक प धारण कर लेता है तथा िनराशा यि के अंदर घर कर लेती है व यि
मान सक प से बेहद य थत हो जाता है। यह अव था बहत ही घातक होती है। ऐसी अव था
म यि को न केवल अ छे यवहार व माहौल क ज रत होती है, ब क इलाज क भी बहत
आव यकता होती है। इसके साथ ही यि का खान-पान भी ऐसा होना चािहए िक जससे
यि को उिचत पोषण िमले जससे वह सरलता से िड ेशन से बाहर आ पाए। िड ेशन से
िनपटने के लए अ छी व संतु लत डाइट भी असरदार होती है। काब हाइडेट, िमनरल व ोटीन
से भरपूर भोजन, जंक फूड, फॉ ट फूड से दरी, ू हरी स जय , फल, दधू तथा व छ पानी
िड ेशन से बचाता है। तो आइए जानते ह कु छ ऐसे ही खा पदाथ ं के बारे म।

िड ेशन म या खाएं?
ीन टी
आज-कल ीन टी ने लोग के बीच बहत लोकि यता ा कर ली है, य िक इसम बहत से
ऐसे गुण पाए जाते ह, जो हम मोटापा व डायिबटीज आिद से बचाते ह। इसके साथ ही अभी हाल
ही म हए एक शोध म यह पता चला है िक ीन टी म कु छ ऐसे त व पाए जाते ह जो टे स को
तो कम करते ही ह, साथ ही यह अवसाद के लए भी बेहद उपयोगी सािबत होते ह।

ह दी
यूं तो ह दी गुण क खान है। जुकाम हो या िफर वचा संबं धत कोई सम या, ह दी इन सब
को फौरन ही दरू कर देती है। लेिकन शायद आप ह दी के इस गुण से वािकफ नह ह गे िक
इसका सेवन हमारे मूड पर भी काफ अ छा भाव डालता है व ह दी के सेवन से िड ेशन से
िनकलने म भी सहायता िमलती है।

अखरोट
अखरोट म ओमेगा-3 फैटी ए सड चुर मा ा म पाया जाता है और कु छ अ ययन म यह पता
चला है िक इसी कारण से यह िड ेशन को दरू करने म बहत कारगर है।

डाक चॉकलेट
हमम से बहत से लोग को डाक चॉकलेट बेहद ही पसंद होती है। अगर आप भी उनम से एक
ह, तो यह जानकर आपके चेहरे पर मु कान ज र आ जाएगी िक डाक चॉकलेट म ऐसे त व
होते ह, जो टे स को दरू कर के हमारे मूड को अ छा करते ह। यही कारण है िक डाक चॉकलेट
खाने से अवसाद बहत ही कम होता है व अवसाद क अव था से िनकलना भी सरल होता है।

मश म
मश म का सेवन हमारे मान सक वा य के लए बहत ही अ छा होता है, इस लए आप
मश म को भी अपने आहार म स म लत कर अवसाद से सरलता से मु हो सकते ह।

कम वसा वाले डे यरी उ पाद


कम वसा वाले डेयरी उ पाद जैसे- दही, दध,
ू चीज आिद म बहत ही अ छी मा ा म
कै शयम, िवटािमन-डी और ोटीन जो न केवल हमारे शरीर को पोषण देता है, ब क यह हम
िविभ रोग के साथ-साथ िड ेशन से लड़ने क भी मता देते ह।

टमाटर
कु छ शोध के िन कष यह बताते ह िक टमाटर का सेवन भी मूड को अ छा करने के साथ-
साथ िड ेशन दरू करने म मददगार होता है, इस लए िड ेशन को दरू करने के लए अपने
भोजन म पया मा ा म टमाटर को शािमल कर।

मछली
मछली ओमेगा-3 फैटी ए सड चुर मा ा म पाया जाता है, िवशेष तौर पर सालमन, लूिफश
व टु ना िफश ऐसे सुलभ ोत ह, जनके मा यम से आप सरलता से इसे ा कर सकते ह,
य िक ओमेगा-3 फैटी ए सड िड ेशन से मुि िदलाने म बहत ही मह वपूण भूिमका िनभाता है।

टोफू
िवटािमन-डी एक ऐसा िवटािमन है जो अगर हमारे शरीर म उिचत मा ा म हो, तो िड ेशन
जैसी सम या होने क स भावना बहत कम होती है। टोफू एक ऐसा खा पदाथ है, जसम
िवटािमन-डी पया मा ा म होता है। ऐसे म आप अपने भोजन म टोफू को शािमल कर के
िड ेशन क स भावना को कम कर सकते ह।

हरी प ेदार स जयां


कु छ िचिक सक का यह मानना है िक हरी प ेदार स जयां िविभ िवटािमन िमनरल जैसे-ए,
सी, ई व के का बेहतरीन ोत होती है व मान सक तनाव व िड ेशन दरू करने म इन िवटािमन
क भूिमका बहत मह वपूण होती है। इस कारण से हरी प ेदार स जय का सेवन हम पूण प
से व थ रखने व अवसाद दरू करने म बहत मह वपूण भूिमका िनभाता है।

बेरी
िविभ बे रज जैसे टॉबेरी, लैकबेरी व लूबरे ी काफ बेहतरीन एंटीऑ सीडट का ोत है,
जसका योग म त क को तनावमु करने म बेहद मह वपूण भूिमका िनभाता है। यही कारण
है िक बेरी का सेवन िड ेशन दरू करने म बेहद कारगर होता है।

सेब
यादातर डॉ टर क यह सलाह होती है िक हम सभी को हर रोज कम-से-कम एक सेब
ज र खाना चािहए, य िक सेब म भी बेरी क तरह ही बेहद उ च मा ा म एंटीऑ सीड स होते
ह व फाइबर भी बहत उ च मा ा म होता है, इस कारण से यह म त क म कै शयम क कमी
को पूरा करने म स म है, जसके कारण म त क को तनाव िड ेशन से मुि िमलती है।

िड ेशन म या न खाएं?
जस तरह कु छ खा पदाथ ं का सेवन िड ेशन से मुि िदलाने म सहायक होता है, वह कु छ
खा पदाथ व पेय ऐसे होते ह, जनसे अगर दरू ही रहा जाए तो ही बेहतर है अ यथा बात बनने
के थान पर िबगड़ सकती है, इस लए जतना िड ेशन क अव था म जतना आव यक सही
भोजन का चुनाव है, उतना ही आव यक यह भी है िक हम उन खा पदाथ ं क जानकारी भी
हो जनका सेवन िड ेशन क अव था म नह करना चािहए।

कैफ न
हमम से बहत सारे लोग ऐसे ह जनके लए कैफ न से दरू रहना बहत मु कल होगा, य िक
यह न केवल थकान को दरू करके फौरन ही हम ताजगी से भर देता है, ब क न द को भी
हमसे कोस दरू कर देता है। न द भगाने का यह गुण िड ेशन से भािवत लोग के लए
हािनकारक स होता है, य िक जब कोई यि िड ेशन म होता है, तो उसके लए अ छी व
पया न द बहत आव यक होती है, जससे यि के म त क को आराम िमल पाए, लेिकन
कैफ न क वजह से उसक न द पर नकारा मक भाव पड़ता है, जो िक बहत घातक है।

नशीले पदाथ
आज-कल क य त िदनचया म हर यि िकसी न िकसी कार के तनाव का सामना
अव य कर रहा है। ऐसे म कु छ लोग ऐसे ह, जो इससे भागने के लए अलकोहल का सेवन
करना ार भ कर देते ह या अ य िकसी कार के ड स को इसका िवक प बना लेते ह, जससे
न केवल हमारी न द पर बुरा भाव पड़ता है, ब क यह यि के मूड को भी िचड़िचड़ा बना
देते ह, जो िकसी भी िड ेशन से भािवत यि के लए घातक होता है। वह िड ेशन से मु
होने के लए अगर यि िकसी कार क दवाई का सेवन कर रहा होता है, तो यह भी स भव
है िक नशीले पदाथ ं के सेवन के कारण उन दवाइय का असर न हो। इस लए बेहतर होगा िक
िड ेशन त यि िकसी भी कार का नशा न करे ।

संरि त खा पदाथ
आज हमारी जीवनशैली ऐसी हो चुक है िक हम अपनी य तता क वजह से िविभ कार
के ड बा बंद पदाथ ं पर आ त हो चुके ह। जनको संरि त करने के लए िविभ कार के
केिमक स का योग िकया जाता है, जनका आव यकता से अ धक योग हमारी सेहत पर
बेहद हािनकारक भाव डालता है। इसके अित र डोन स, बगर व िप जा आिद का सेवन
हमारे शरीर म सु ती लाता है व हमारे मूड को िचड़िचड़ा बनाता है, इसक पुि िविभ शोध
के मा यम से हो चुक है। यही कारण है िक िड ेशन से मु होने के लए इस कार के खा
पदाथ ं के सेवन से बचना बेहद ज री है।

कृि म िमठास
आज-कल िविभ खा पदाथ ं म कृि म िमठास का चलन बेहद आम है, जो िक हमारी सेहत
के लए बहत ही नुकसानदायक होता है, य िक इसम Aspartame नाम का पदाथ िमला होता
है, जो िड ेशन बढ़ाने म सहायक स होता है।

अ य धक वसा
कु छ लोग को तले-भुने खाने का बहत अ धक शौक होता है, लेिकन मुंह के वाद के साथ-
साथ इस बात का यान रखना भी आव यक है िक खाने म अ धक वसा यु भोजन से
धमिनय म संकुचन पैदा होता है, जससे हमारी धमिनयां म त क तक पया मा ा म र नह
पहचं ा पात व म त क म ऑ सीजन क कमी हो जाती है, जो िड ेशन भािवत लोग के लए
बेहद घातक है। इस लए िड ेशन से ज दी से मु होने के लए यह आव यक है िक उ च वसा
यु सभी डेयरी उ पाद के साथ-साथ च ाइज, ाइड िचकन आिद के सेवन से भी दरू रह।

⦿⦿⦿
िड ेशन म सहायक योग मु ाएं
िड ेशन को दरू करने के कई मा यम ह, उ ह म से एक है योग-मु ा। कौन सी योग-मु ा
िड ेशन म सहायक है तथा इ ह कैसे कर आइये जानते ह।
1. ान मु ा- इस मु ा को ाणायाम के दौरान िकया जाता है। अंगूठे और तजनी के
अ भाग (िटप) को लगातार दबाए रख। यह मु ा मन को शांत और तनाव को दरू करने म
मदद करती है। िड ेशन को दरू करने म यह एक बहत लाभकारी मु ा है। इस मु ा को कम
से कम 3 िमनट तक कर।

2. योग मु ा- पहले सुख आसन म बैठ जाएं िफर दोन हाथ पीछे ले जाकर दाएं हाथ से बाएं
हाथ क कलाई पकड़ ल। अब छाती म वास भर ल िफर धड़ को आगे क ओर झुकाते
हए वास बाहर छोड़ द और कोिशश कर आप माथा जमीन पर छू जाए। इस कार इस
मु ा को 5 से 10 बार कर।

3. उनमानी मु ा- प ासन म बैठ और दोन आंख बंद करके आंख के बीच म यान लगाय
और कोिशश कर िदमाग म कोई िवचार ना आए। सारा यान दोन आंख के बीच आ ा
च पर रहे। इस मु ा को एक से तीन िमनट तक कर। इस मु ा को िदन -िदन करने से
िड ेशन दरू होने लगता है।
4. शि चालनी मु ा- सुख आसन या प ासन म बैठ जाएं। िफर सारे यान को अपने मू
णाली पर ले आएं। और उसको अंदर क ओर खीच या सकोड़ िफर बाहर क ओर
फैलाएं या छोड़े। इसको 10-20 बार कर। इस मु ा से कु डलिन च सि य होता है।
इससे ऊजा का संचार होता है और िड ेशन दरू होता है।

5. मु ी मु ा- अपने हाथ क मु ी बनाएं और अ छे से दबाव बनाए रख। 5 से 10 िमनट


तक इस मु ा को कर। यह मु ा दबा हआ ोध, हताशा और नकारा मक भावनाओं को
बाहर िनकालती है।
⦿⦿⦿
मान सक रोग है अ जाइमर
व तमान समय म आधुिनक जीवन शैली के चलते मनु य को कई िबमा रय ने घेर लया है।
आधुिनक जीवन शैली द ऐसा ही एक मान सक रोग है‐ अ जाइमर। यूं तो यह रोग 60
वष से अ धक उ के लोग को होता है, पर तु बदलते समय व प र थितय म युवा भी इसक
चपेट म आने लगे ह। ऐसे म ज री हो जाता है िक समय पर इसके ल ण का पता लगाकर
इस रोग को िनयंि त िकया जाये। या है अ जाइमर, इसके ल ण तथा बचाव इ यािद आइए
जानते ह।
अ जाइमर रोग ‘भूलने का रोग' है। इसका नाम ‘अलोइस अ जाइमर' पर रखा गया है,
ज ह ने सबसे पहले इस बीमारी के बारे म बताया था। इस बीमारी के ल ण म याददा त क
कमी होना, िनणय न ले पाना, बोलने म िद कत आना तथा िफर इसक वजह से सामा जक
और पा रवा रक सम याओं क गंभीर थित आिद शािमल है। र चाप, मधुमेह, आधुिनक
जीवनशैली और सर म कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने क आशंका बढ़ जाती
है। म त क के नायुओं के रण से रोिगय क बौि क मता और यावहा रक ल ण पर भी
असर पड़ता है।

या है अ जाइमर?
अ जाइमर एक मान सक रोग है, जो म त क कोिशकाओं पर आ मण कर याददा त, सोच
और यवहार को भािवत करता है। यह िडमिशया क ाथिमक थित है।
अ जाइमर रोग म त क का धीरे -धीरे बढ़ने वाला रोग है, जसे मरण शि के समा होने
और तक शि िनयोजन, भाषा व सोच म यवधान उ प होने से पहचाना जाता है। अ जाइमर
म त क म एक िविश ोटीन के उ पादन म वृि या उसके एक होने का प रणाम है, जससे
तंि का कोिशकाएं न होती ह।
हम जैसे-जैसे बूढ़े होते ह, हमारी सोचने और याद करने क मता भी कमजोर होती है।
लेिकन इसका गंभीर होना और हमारे िदमाग के काम करने क मता म गंभीर बदलाव उ
बढ़ने का सामा य ल ण नह है। यह इस बात का संकेत है िक हमारे िदमाग क कोिशकाएं मर
रही ह। िदमाग म एक सौ अरब कोिशकाएं यूरॉन होती ह। हरे क कोिशका बहत सारी अ य
कोिशकाओं से संवाद कर एक नेटवक बनाती ह। इस नेटवक का काम िवशेष होता है। कु छ
सोचती ह, सीखती ह और याद रखती ह। अ य कोिशकाएं हम देखने, सुनने, सूंघने आिद म
मदद करती ह। इसके अलावा अ य कोिशकाएं हमारी मांसपेिशय को चलने का िनदश देती ह।
अपना काम करने के लए िदमाग क कोिशकाएं लघु उ ोग क तरह काम करती ह। वे
स लाई लेती ह, ऊजा पैदा करती ह, अंग का िनमाण करती ह और बेकार चीज को बाहर
िनकालती ह। कोिशकाएं सूचनाओं को जमा करती ह और िफर उनका सं करण भी करती ह।
शरीर को चलते रहने के लए सम वय के साथ बड़ी मा ा म ऑ सीजन और ईधं न क ज रत
होती है।
अ जाइमर रोग म कोिशकाएं व उनके कु छ िह से काम करना बंद कर देते ह, जससे दसरे

काम पर भी असर पड़ता है। जैसे-जैसे नुकसान बढ़ता है, कोिशकाओं म काम करने क
ताकत कम होती जाती है और अंततः वे मर जाती ह।

अव था
इस रोग क तीन अव थाएं होती ह। म द, म यम और गंभीर। पहली मंद अव था म नाम
अथवा सं या भूलना और मान सक संतुलन म गड़बड़ी होना हो सकता है। म यम अव था म
घबराहट, उलझन, अ त- य तता तथा रोगी के यि व म प रवतन नजर आता है, उसके
मान सक संतुलन म भी अ य धक गड़बड़ी िदखती है। तीसरी और अ तम अव था ग भीर होती
है और रोगी को इसम कपड़े पहनने तथा मू और शौच याग आिद का भी यान नह रहता।
भोजन से लेकर सोने तक वह सब कु छ भूल जाता है।

कारण
अगर प रवार म कोई भी इस बीमारी से पीिड़त हो, तो खतरे क संभावना बढ़ जाती है,
अथात् यह बीमारी आनुवांिशक कारण से भी होती है। र चाप, मधुमेह, मोटापा, यादा जंक
फूड खाने से, आधुिनक जीवनशैली और सर म कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने
क आशंका बढ़ जाती है। इस लए अपने सर को हमेशा बचाकर रखना चािहए। संतु लत
भोजन क कमी से भी यह हो सकता है। अ जाइमर से त लोग म िवटािमन बी 12,
िवटािमन ए, ई, केरोटॉनाइ स और जंक क कमी देखने को िमलती है। इस लए आप हमेशा
कोिशश कर िक आपके शरीर म इन त व क कमी न होने पाए।

युवा भी अ जाइमर क चपेट म


अ जाइमर के शु आती दौर म छोटी-छोटी बात को भूलना आम होता है। पहले 60 साल के
बाद इस बीमारी के ल ण िदखने शु होते थे जो िक करीब 70 साल के बाद पूरी तरह
िवक सत होते थे लेिकन अब युवाओं म भी इसके ल ण िदखने लगे ह। युवा आयु वग म इसके
ल ण ज द िदखने के कारण चीज को भूलना, देर से याद आना व कं यूजन लाइफ का िह सा
बन गया है। डॉ टर का मानना है िक यह बीमारी भले ही 70 साल के बाद पूरी तरह िवक सत
हो लेिकन इसके युवा आयु म पनपने वाले ल ण के कारण लोग क लाइफ म कं यूजन बढ़
रहा है।

ल ण
1. नाम भूलना, चीज को गुमा देना, अपने िनयोजन को भूलना, श द को याद ना रख पाना,
चीज को सीखने म और उ ह याद रखने म किठनाई होना एक आम बात हो जाती है। ती
उ माद के कारण आपक पूरी दीघका लक और अ पका लक मृित का नाश हो सकता है,
अतः आप अपने ि यजन , र तेदार या दो त को पहचानने म भी असमथ हो सकते ह।
2. सोचने और तक-िवतक करने म किठनाई होना इस बीमारी का ल ण है। रोगी के लए
अ र और अंक को पहचानना किठन हो सकता है ।
3. इस रोग म शरीर पर िनयं ण ना होने के कारण आप िगर सकते ह तथा खाना पकाने म,
डाइिवंग करने म या घर के अ य काम को पूरा करने म भी आपको किठनाइय का सामना
करना पड़ सकता है। अगर उ माद बहत ती हो जाए तो आप अपने रोज के काम जैसे
नहाना, कपड़े पहनना, तैयार होना, खाना खाना, शौचालय जाना जैसे काम भी िबना िकसी
सहायता के नह कर पाएंग।े
4. आप म तक करने क मता नह रहती, आप िवक प के बीच िनणय नह ले पाते।
5. िदन, तारीख और समय भी याद नह रहता और प रिचत लोग को तथा थान को
पहचानने म भी अस म हो सकते ह। आप अपने घर का पता भी भूल सकते ह, आप कहां
रहते ह या या काम करते ह या िफर चलते‐चलते ही रा ता भूल सकते ह।
6. आप शायद एक भाषा भी ठीक से न बोल पाएं, अपनी बात को श द म न य कर
पाएं या आपको बात को या ल खत अ र को समझने म किठनाई हो सकती है।
7. आप बेवजह बहत अ ामक, िचंितत या संिद ध हो सकते ह। सामा जक तौर पर आप एक
आम यि ही रहते ह, पर अचानक आपके यि व म ये बदलाव आते ह और जब आप
इससे बाहर िनकलते ह, आप िफर से एक शांत यि बन जाते ह।
8. आपके बताव म बदलाव नजर आता है, आपका िमजाज एकदम से बदल जाता है,
बेवजह आपको गु सा आ जाता है। आप अनुिचत यवहार कट कर सकते ह, आप
उ े जत होकर लोग के साथ बुरा यवहार भी कर सकते ह।
9. अ जाइमर का मरीज बेहद िन य, टीवी के सामने घंट बैठने वाला, बहत अ धक सोने
वाला या सामा य गितिव धय को पूरा करने म अिन छु क हो सकता है।
10. आप बेवजह दसर ू क मंशा पर शक करने लगते ह। अ य धक िचंता और भय के कारण
यि म उ माद बढ़ता है। इसके कारण म बढ़ता है और आप भावुक, संिद ध, िचड़िचड़े,
अंतमुखी, उदास, ज ी, ई यालु, वाथ , एकांति य और कड़वे वभाव के हो जाते ह।

उपचार
िविभ शोध के मा यम से सामने आई जानकारी से पता चलता है िक िव व क कु ल
आबादी का एक बहत बड़ा भाग इस बीमारी से त है। इस बीमारी से त रोगी पर सतत
यान देने क ज रत है। य िप, इस बीमारी के ल ण का पता चल जाने के बाद कई दवाइयां
उपल ध ह, जससे यि क मान सक थित म सुधार िकया जा सकता है। लेिकन इस बीमारी
को पूरी तरह ख म करना स भव नह है। सफ आपसी नेह व देखभाल से आप रोगी क
मान सक थित को संतु लत रख सकते ह। इसके अलावा िन न तरीक से भी अ जाइमर को
िनयंि त िकया जा सकता है।

अपन क कर देखभाल
इस बीमारी म याददा त क कमजोरी के कारण कई बार रोगी को िकसी जो खम या मुसीबत
का सामना भी करना पड़ सकता है। ऐसे म आपक देख-रे ख ही उ ह िकसी संभािवत दघु टना से
बचा सकती है। अ जाइमर रोिगय क सुर ा का पहलू अ यंत मह वपूण है, य िक ऐसे रोगी
अ सर घर से बाहर िनकल जाते ह। रा ता भूल जाते ह। भटक जाते ह।

लाइफ़ टाइल म कर बदलाव


युवा आयु वग म इसके ल ण कं यूजन बढ़ाते ह। ऐसे म लाइफ टाइल म बदलाव ज री है।
युवा आयु म जब ऐसे ल ण िदखने लग तो लोग को खान-पान से लेकर रहन-सहन म
बदलाव करना चािहए। पौि क खाना खाना चािहए और डेली टीन को पूरी तरह ए टव
रखना चािहए।

गे स खेलना है ज री
युवाओं को अगर इस बीमारी के ज द िवक सत होने से बचना है तो ज री है िक िदमाग को
पूरी तरह ए टव रख। 40 से 50 साल के लोग को भी गे स खेलने चािहए. तािक उनका
िदमाग ए टव रहे। यही नह अलग-अलग माइंड क ए टिवटी म खुद को शािमल कर इसको
ज द िवक सत होने से रोका जा सकता है।

योग भी है समाधान
भागदौड़ भरी जीवनशैली के कारण मनु य आज यायाम व योग से दरू होता जा रहा है।
लेिकन सच तो यह है िक यिद हम सभी अपनी जीवनचया म योग जैसी शारी रक ि या को
थान द, तो सफ अ जाइमर ही नह , ब क अ य कई शारी रक व मान सक रोग से भी
बचाव स भव है।

तनाव को कह ना
अ धकतर मान सक रोग क जड़ तनाव ही है। आज मनु य क बढ़ती मह वाकां ाओं व
असंतुि के भाव ने उसे तनाव त कर िदया है। यिद हम अपने जीवन से तनाव को दरू कर
द, तो अ जाइमर जैसे रोग से बचने क स भावनाएं काफ बढ़ जाती है।

नई-नई चीज सीख


कई शोध ने यह सािबत िकया है िक म त क भी मांसपेिशय के समान ही काय करता है।
जतना यादा आप इसका इ तेमाल करगे, उतना ही यह शि शाली होगा। मान सक यायाम
नई म त क कोिशकाओं के िनमाण म मदद कर मान सक वा य को द ु त रखते ह। नई
जिटल चीज सीख जैसे कोई नई भाषा, चुनौतीपूण खेल या शतरं ज वगैरह खेल। ेन गेम जैसे
सुडोकू , ॉस वड बेहतरीन मान सक यायाम है।

इनसे कर तौबा
वजन न बढ़ने द। धू पान न कर। शराब का सेवन न कर या कम कर। लड ेशर और
कोले टॉल को िनयंि त रखकर इसके खतरे से बच सकते ह। सर को चोट लगने से बचाएं।

⦿⦿⦿
ेन को बचाएं अटै क से
े नहै, अटैजोकअचानक
या ेन टोक का नाम सुनते ही लोग काफ घबरा जाते ह। यह एक ऐसा अटैक
से आपके शरीर पर हमला करके आपके शरीर का पूरा स टम िबगाड़
देता ह। आजकल ेन अटैक न केवल वृ को ब क युवाओं को भी अपनी चपेट म ले रहा
है।

या है ेन टोक?
िदमाग क कोई आटरी (नस) अचानक लॉक हो जाए या फट जाए, तो उसे ेन टोक कहा
जाता है। हाट अटैक क तरह इसे ेन अटैक भी कहा जा जाता है। ऐसा होने पर िदमाग को
खून क स लाई क जाती है और िदमाग के काम पर असर पड़ता है। यह बेहद इमरजसी क
थित होती है। ेन टोक िकसी भी व हो सकता है, लेिकन इसके बहत सारे मामले सुबह के
व होते ह, य िक उस व लड ेशर यादा होता है। ेन टोक दो तरह का होता है- 1.
िमनी टोक, 2. फुल लै ड टोक।

ेन टोक के ल ण
चेहरे , हाथ या पैर म अचानकसे सु पन िवशेष तौर पर एक तरफ का शरीर।
अचानक से बोलने या समझने म िद कत।
अचानक से दोन आंख से साफ देखने म तकलीफ ।
अचानक से चलने या बैलस करने म परे शानी, च कर आना।
अचानक से िबना कारण सर म तेज दद।

इलाज
अटैक के साढ़े चार घंटे के भीतर अगर मरीज को इलाज मुहय ै ा हो जाए तो उसके ठीक
होने के चांस काफ बढ़ जाते ह।
अ पताल पहच ं ने पर सबसे पहले मरीज का सी.टी. कैन िकया जाता है। इससे पता
लगता है िक उसे दौरा तो नह पड़ा, लीिडंग तो नह हो रही या खून गाढ़ा तो नह हो रहा।
साथ ही, लवर या िकसी और अंग पर िकतना असर पड़ा है।
अगर लॉकेज है तो डॉ टर खून पतला करने क दवा देकर लॉक को िडसॉ व कर देते
ह। हालांिक देरी होने पर अगर यही इलाज िकया जाए तो ेन हेम रज के चांस बढ़ जाते
ह। हेम रज म यह दवा नह दी जाती, य िक खून पतला होने से थित और िबगड़ जाती
है। तब ऑ ेशन करना पड़ता है। हेम रज के मरीज को भत कर उसका लड ेशर और
ेन पर ेशर मॉिनटर िकया जाता है।
अगर टोक बड़ा है यानी पूरी आटरी लॉक हो गई है, तो वह िदमाग को दबाने लगती है।
इससे िदमाग पर ेशर कम करने के लए सजरी करनी पड़ती है। अगर शरीर म अकड़न
हो जाती है, तो कई बार बोटॉ स का इंजे शन भी देते ह।
अ सर ेन टोक के मरीज को पूरी जंदगी खून पतला करने वाली दवा खानी पड़ती है।

ेन को हे दी बनाने के तरीके
िकसी भी बीमारी से बचने के लए सबसे ज री होता है सही खान-पान। ओमेगा-3 फै टी
ए सड (मछली के तेल म पाया जाने वाला त व) एंटी ऑ सीडट, फल और ताजी स जय
का सेवन, िवटािमन बी, कम वसा वाले भोजन और काब हाइडेट के तर को सीिमत रखने
से हम िदमाग को व थ बना सकते ह।
िदमाग क पावर बढ़ाने के लए िनयिमत ए सरसाइज ज री है। इससे हमारे शरीर म र
संचार सुचा प से होता है। आप नृ य ारा भी अपने िदमाग को व थ रख सकते ह।
एरोिबक ए सरसाइज आपके ेन को द ु त रखती ह।
शांत िच रहकर भी आप अपने ेन को व थ रख सकते ह।
मनोरं जक गितिव धय से िदमाग सि य होता है।
सामा जक दायरा बढ़ाएं। टैव लंग और दो ती आपके म त क को बढ़ाती है।
भरपूर न द ल, इससे म त क को पूरा आराम िमलता है और अगले काम के लए आप
खुद को े श पाते ह।
तनाव दरू रखने के लए योग कर, दो त के साथ समय यतीत कर, इसके अलावा कई
ऐसे काय ह जससे आप तनाव से दरू रह सकते ह और ेन को सि य बना सकते ह।
खराब आदत से दरू रह। मोिकंग, हैवी िडंि ं ग और ड स से बच। इससे िडमिशया के
खतरे से बच सकते ह।

⦿⦿⦿
िडमिशया को न ल ह के म
िड मिशया एक ऐसा श द है। जो िकसी भी इंसान को सजीव होते हए भी िनज व कर देता
है। िकतना किठन है अपनी याद को खो देना, ये ऐसी सम या है जो इंसान के पूरे
यि व पर निच ह लगा देती है और उसको हर बात भूलने पर मजबूर कर देती है। यहां
तक िक कभी-कभी तो िडमिशया से सत लोग अपने नाम अपने प रवार अपने काय तक
को भूल जाते ह। भारत म िडमिशया से पीिड़त लोग क सं या तेजी से बढ़ रही है, सही
जानकारी का ना होना व आरं िभक ल ण को नजरअंदाज करना ही इस बीमारी को बढ़ाने का
एकमा कारण है।

मुख ल ण
1. मृित का हास होना पुरानी कु छ बात का याद रहना बािक सभी बात को भूल जाना,
नवीन बात को समझने व याद रखने म भी किठनाई होना।
2. सही श द को बोलने म या बातचीत करने म िद कत महसूस होना।
3. िकसी भी काय को सुचा प से करने म परे शानी महसूस होना।
4. पा रवा रक बात को समझने म परे शानी व सद य को पहचानने म कमी आना।
5. सामा जक बात म अपनी सहमित देने म सकु चाना या ऐसी बात म कु छ न कहना।
6. तक-िवतक करने क मता का ास होना।

अ जाइमर एंड रलेिटड िडसॉडस सोसायटी ऑफ इंिडया के अनुसार ‘हमारे देश भारत म
60 से अ धक उ के लोग जनक सं या 40-80 लाख के बीच तक पहच ं चुक है, परं तु
अफसोस इस बात का है िक भारत म इस बीमारी से लड़ने के लये िकसी भी बड़े तर पर
डॉ टरी सुिवधाओं व सामा जक सं थाओं का अभाव सा ही है और जो ह भी, वह अपने काय
को करने म स म नह ह।' जन प रवार म प रवार के सद य ऐसे बुजुग ं को संभालने म
असमथ हो जाते ह, तो वे उनका प र याग कर देते ह। यूरो सजन डॉ. आर के च ा का
कहना है िक ‘िडमिशया क शु आत भूल जाने से शु होती है परं तु लोग इसको बढ़ती उ
का पड़ाव मानकर नजरअंदाज कर देते ह जो िक गलत है, य िक अगर कोई यि भूलने
लगे, तो उसे तुरंत डॉ टर के पास लेकर जाय और िडमिशया क जांच कराएं।'
डॉ. ि यंका का कहना है िक िडमिशया के मरीज को कभी ये एहसास न कराय क उनम
कोई कमी आ गयी है ऐसा करने से उनक बीमारी कई गुना बढ़ जायेगी। इस लए ऐसे लोग
को घर से बाहर िनकाल, उनके प रिचत लोग से िमलवाएं, वे जतना लोग से बात करगे
उनके लए उतना ही अ छा होगा तािक उनक पुरानी याद ताजी रह।'
मनोिचिक सक डॉ. माधुरी ने िडमिशया के मरीज को स हालने के लए िन न ल खत सुझाव
िदए ह-
1. उनके हाथ म पहचान के लए नाम पता लख र टबड होने चािहए व उस पर फोन न. भी
लख सकते ह।
2. उनक बिनयान व शट या साड़ी के प े पर भी नाम पता फोन न. लख सकते ह।
3. उनके हाथ या पैर पर भी नाम पता फोन न. लख सकते ह, ये सभी उपाय उनके गुम होने
या रा ता भूल जाने पर काम आ सकते ह।

उपचार
ऐसे लोग को िदमागी तौर पर य त रख। इसको तेज करने के लए सुडोकू , उ टी िगनती,
जोड़ना घटाना, पजल जैसे खेल खलाएं जो िदमाग को सि य रखे।
ितिदन यायाम कराएं, पुरानी फोटो व कागज आिद उनको िदखाएं, उनको हर काय म
आगे रख। िडमिशया को एक बार शु होने पर जड़ से ख म करना किठन ही नह ब क
नामुमिकन है, परं तु िदमाग को सि य रखकर उसको थर िकया जा सकता है। िडमिशया से
सत लोग यार के अ धकारी होते ह, ितर कार के नह । रोना ड रीगन, मागरे ट थैचर, रीटा
हेवथ वो नामचीन ह तयां ह जो िक िडमिशया का िशकार बनी। इसी लए िडमिशया से डर नह
ब क उसको समझकर उससे बचने का उपाय सीख। डर नह िह मत ही इसका उपाय है।

⦿⦿⦿
कह आप ओसीडी
के िशकार तो नह ?

क ऐसा करते ह, तो हो सकता है आप ओसीडी से पीिड़त ह । या होता है ओ.सी.डी.?
छ लोग ऐसे होते ह, जो िकए गए िकसी भी काम को बार-बार करते ह। अगर आप भी

आइए जानते ह।
िव व वा य संगठन के मुतािबक यह दल ु भ कर देने वाली 10 बड़ी िबमा रय म से एक है।
1.21 करोड़ देशवासी िकसी न िकसी िडसऑडर से पीिड़त ह। कु ल जनसं या के 2 ितशत
ब चे भी इस बीमारी से पीिड़त ह। इलाज के बाद 40 फ सदी लोग पूणतया ठीक हो सकते ह
और 30 ितशत म सुधार लाया जा सकता है, पर इसका इलाज लंबा है। इस रोग से कई नामी
चेहरे भी पीिड़त ह, जनम फुटबाल के महानायक ‘डैिवड बेखम' जो अपने ि ज म चीज को
एक कतार म लगाते ह। हॉलीवुड अिभने ी ‘कामरन िदयाज' भी सं मण के डर से अपनी
कोहनी से दरवाजा खोलती ह।

ओसीडी एक सनक
ओसीडी, ‘ऑ से सव कंप सव िडसऑडर' नामक बीमारी से सत होने वाले मरीज क
सं या म लगातार इजाफा होता जा रहा है। ऐसा नह है िक पहले ऐसी िबमा रयां नह होती थ ,
पर तब कोई इसे बीमारी मानने को तैयार नह था। ऐसे लोग को लोग सनक कहते थे, पर
सनक का भी इलाज िकया जा सकता है, यह लोग को मालूम नह था। सनक लोग क
पहचान कैसे क जाती है, इसके लए कु छ उदाहरण पर गौर कर। सनक िकसी भी चीज क हो
सकती है। जैसे िकसी को बार-बार अपना काम देखने क आदत होती है। उनको लगता है जो
काम उ ह ने िकया है, वह शायद ठीक नह है। कोई-न-कोई कमी उसम छू ट गई है। कह कोई
कमी न िनकाल दे, इस लए वह बार-बार अपने काम क पड़ताल करते ह, िफर भी गलती
चली जाती है। इसी तरह िकसी को बार-बार हाथ धोने क आदत होती है, कोई डर के कारण
चाकू अपने साथ रखकर सोता है और कोई हर सम या का िनदान पाने के लए भगवान के
भरोसे रहता है। अगर घर म कोई िवप आ जाए तो उसके लए भी वह भगवान को वयं से
नाराज मानता है। कु छ लोग को हर काम म परफे शन चािहए, कु छ ऐसे भी लोग ह जो बार-
बार दरवाजा चेक करते ह। गैस बंद करने के बाद बार-बार देखते ह िक गैस खुली तो नह ,
िफर बनर पर भी हाथ रखते ह। यह िन चत करने के लए िक वह ठं डे हो चुके ह या नह ।
इसी तरह बहत सारी मिहलाओं को शॉिपंग का च का होता है। बाजार जाना, खरीदारी का जुनून
उन पर इस कदर हावी रहता है िक वह पड़ोसी या िकसी र तेदार के साथ अपनी तुलना करने
लगती ह। वह उनक आमदनी के बारे म नह सोचती, िदन‐रात इसी उधेड़बुन म रहती ह िक
जैसे उनके पास वे चीज ह, वैसी ही चीज मेरे पास आ जाए, िफर चाहे वह साड़ी हो, गहना हो,
गाड़ी हो या िफर िकचन का ही कोई सामान य न हो। उनक सोच होती है िक अगर हम
बाहरी चमक-दमक म एक जैसे ह, तो हम उनक बराबरी कर रहे ह, खुद को िकसी से कम
नह समझना उनक एक तरह क सनक या किहए जद है। उनके लए पैसा खच करने के
लए ही होता है, वह कल या होगा इस पर िवचार नह करत । अगर उनको एक साड़ी भी
खरीदनी हो तो पूरा िदन साड़ी ही खोजगी। इतनी खोजबीन के बाद साड़ी खरीदी जाएगी, लेिकन
घर आने तक उनके लए वह साड़ी मामूली हो जाएगी, उनको लगेगा इसका रं ग ठीक नह है या
यह बहत महंगी है। दसरे
ू िदन दक ु ान खुलते ही वह िफर से उस दक
ु ान म ह गी जहां वह पहले
िदन 2 घंटे लगाकर आई थ । वह िफर से साड़ी खोज रही ह गी। इसी तरह वह अपने वा य
को लेकर भी बेहद संजीदा होती ह, जरा सा कु छ हआ नह िब तर पकड़ लगी, तुरंत डॉ टर के
पास चली जाएंगी, उनको हमेशा डर लगा रहता है िक कह उनको कोई बीमारी न हो और यह
डर उनको डॉ टर के पास ले जाता है। ये सब ओसीडी के ल ण ह।

य होता है यह?
अगर आपको लगता है िक कह न कह आपके यवहार म भी इस तरह क असंगत चीज ह,
लेिकन आप चाहकर भी अपने यवहार से इनको नह हटा पा रहे ह तो आपको मनोवै ािनक से
िमल लेना चािहए। अगर आपके आस-पास कु िकंग गैस के सलडर के फटने से िकसी क मौत
हई है, इस लए आप इस अनहोनी से बचने के लए बार-बार गैस बंद करते ह, चैक करते ह तो
इसका मतलब है िक आप सदमे का िशकार ह और आपके भीतर डर समा गया है, इस लए सो
जाने के बाद भी जैसे ही आंख खुलती है आप दरवाजा चैक करते ह, सलडर देखते ह, बंद
लाइट को जलाते-बुझाते ह और िफर से वह फाइल देखते ह जस पर आपने काम िकया था।
आपको लगता है, कं यूटर म सेव क गई आपक फाइल उस िदन क तरह िफर से उड़ तो नह
गई? जब आपके साथ कोई हादसा हआ ही नह , िफर य आप डरे ह। पड़ोस म िकसी को
सद -जुकाम हो रहा है, तो आप बाहर से ही हैलो करते ह, आपको लगता है िक कह आपको
भी जुकाम न हो जाए। एक काम को लगातार करते रहना, र ी इक ा करना, टू ट चुक चीज
को भी इस लए सं िहत करना िक हो सकता है, भिव य म यह काम आ सके। यह सब ओसीडी
के ल ण ह। ओसीडी से पीिड़त यि को कोई न कोई िवचार या छिव लगातार परे शान करती
रहती है, इस लए वह लगातार वही यवहार करता है। मनोवै ािनक का कहना है िक ‘अचेतन
मन पर छाए रहने वाले िवचार हर मनु य के मन म होते ह। पर यादातर लोग खुद को इतना
य त रखते ह िक ये िवचार उन पर हावी नह हो पाते। पर जनको यह बीमारी है वह इस तरह
क चीज म उलझे रहते ह। चाहकर भी वह इससे बाहर नह िनकल पाते।' मरीज के भीतर डर,
अपराध बोध, आशंका, भयावह छिवयां, हताशा और हर छोटी- सी बात म पराजय बोध तथा
हंगामा खड़ा करने क वृ पैदा हो जाती है। सनक कई बार िनजी कारण से भी िवकृत प
ले लेती है। िकसी को खुशहाल देखकर खुश होने के बजाय वैमन य के बीज बोना, झगड़ा
करवाना, द ू रयां पैदा करना, कटु ता पैदा करने क वृ बढ़ती जाती है। ऐसी बीमारी से सत
यि कभी खुश नह रहते और दसर ू को खुश देखकर इनको जलन होती है और इसी के
प रणाम व प यह अपने ही सग के बीच दीवार बनकर खड़े होने क कोिशश करते ह। इनका
पूरा समय दसर
ू क बुराई करने म ही समा होता है। धीरे -धीरे इनके भीतर बुराई करने का
नशा सा हो जाता है, सुबह उठते ही यह बुराई करना शु कर देते ह। पाक, मंिदर कोई जगह
ऐसी नह होगी, जहां पर यह िनंदा का रस न लेते ह । डॉ टर के अनुसार ाय: रोगी खुद को
रोगी नह मानते और यिद उनसे इलाज के बारे म कहा जाए, तो सलाहकार को ही रोगी सािबत
करने लगते ह।

शारी रक अंग ज मेदार


इस तरह के िवकार के लए कई बार शारी रक अंग भी ज मेदार होते ह, आिबटो ं टल
कोट स, टएटम, एटी रयर संगुलम और थैलासम। उ ेजक प र थितय के ित आपक
िति या और डराने तथा हताश करने वाली थितय म िचंता को िनयिमत करने का ज मा
इन तार का है। इस सिकट म असंतुलन है तो यि अपने यवहार को रोक नह पाता है।
सिकट दीपावली म जलाई जाने वाली लड़ी क तरह है िक अगर एक ब व बुझ गया तो पूरी
लड़ी बुझ जाती है, ऐसा य हआ यह कह पाना संभव नह , हां अगर वह एक ब ब समझ म
आ गया तो पूरी लड़ी को िफर से जलाया जा सकता है, पर यह बहत पेचीदगी भरा काम है। पर
आज इस तरह के रह य को सुलझाया जा रहा है।

⦿⦿⦿
जब चकराने लगे सर
स रकाकासामना
चकराना या च कर आना एक ऐसी सम या है, जससे कभी ना कभी हर िकसी
होता है। कभी यह कमजोरी क वजह से होता है, तो कभी िकसी बीमारी क
वजह से। कारण चाहे जो भी हो इस सम या को कभी भी नजरअंदाज नह करना चािहए,
य िक च कर आना कोई बीमारी भले न हो लेिकन इस पर यान दे कर आप अपने वा य
को अव य बेहतर बना सकते ह।
य आते ह च कर?- सर चकराना, तंि का तं म आयी िकसी िवशेष खराबी के कारण
होता है। खून क कमी व पानी क कमी आिद के कारण आये च कर से आप आसानी से
राहत पा सकते ह, परं तु कु छ िवशेष तरह के च कर म आपको थोड़ी सावधानी लेकर उनका
इलाज कराना भी ज री होता है। अ यथा ये घातक प रणाम देते ह।

कारण
1. बेहोशी क अव था- पानी क कमी, बी.पी. तेज या कम होना िदल क धड़कन कम या
यादा होने पर या नवस स टम के भािवत होने पर भी च कर आते ह।
2. असंतुलन क अव था- कान म कोई खराबी होने पर, अ धक शराब पीने, पािकसन क
बीमारी, सवाइकल पॉ डलो सस आिद क अव था म शरीर के अ थर होने म च कर
आते ह।
3. विटगो- ये च कर अंद नी कान या सटल नवस स टम म गड़बड़ी आने से होता है,
साथ ही मोशन सकनेस, साइबर सकनेस, माइ ेन के कारण भी ऐसे ही च कर आते ह,
ये कु छ िम ट से कु छ घंट तक अपना भाव डालते ह।
4. सर म शू यता का होना- ऐसी अव था म अपने आस-पास क बात म ाय: िच नह
होती है तनाव, घबराहट, बेचनै ी, िदल क धड़कन बढ़ने के कारण च कर आने लगते ह।
सर के च कर के एक नह अनेक कारण ह। सही ल ण जानकर ही सही इलाज स भव
होता है, च कर क जांच के लये एम आर आई, ए स-रे , कान-नाक क जांच, हाम न क
जांच करायी जाती है। मरीज ारा बतायी गयी बात के आधार पर ही डॉ टर बीमारी और
उसका उपचार तय करता है।

उपचार
90 ितशत च कर के आने के कारण को जानकर डॉ टर उनको थायी प से सही
करने का दावा करता है। अ धकांशतः च कर दवाई ारा सही हो जाते ह, परं तु कु छ अ धक
उपचार क ज रत होती है।
खराब जीवनशैली क वजह से सवाइकल पॉ डलो सस क सम या हो जाती है, जससे
मांसपेिशयां कमजोर हो जाती ह और उनको मजबूती देने के लए ाय: डॉ टर मा लश व
यायाम क सलाह देते ह। िदनभर म एक दो बार ठं डी हवा म टहलने से भी च कर दरू हो
जाते ह। डॉ. ि यंका का कहना है िक ‘जीवन म येक यि को कभी न कभी विटगो और
च कर आने क सम या का सामना करना ही पड़ता है। 10-15 ितशत लोग दिु नयाभर म
सर चकराने क सम या से सत ह, आधुिनक जीवनशैली के कारण सर चकराने के मामले
अ धक बढ़ रहे ह। ये आज क आम सम या है, जो िक कभी भी घातक प ले सकती है,
अगर समय पर उसका इलाज ना कराया जाये तो।
सर चकराने क थित म ाय: लोग घबराने लगते ह। इस थित म उनको ये नह सूझता
िक वे या कर। इस थित म यूरो सजन डॉ. अनु रमा व मनोिचिक सक डॉ. ज ासा ने
च कर से बचने हेतु िन न उपाय बताए ह-

1. सर चकराने के समय, समय सीमा, ती ता का िववरण डॉ टर को अव य द।


2. जीवनशैली म बदलाव लाएं, झटके से मुड़ने से बच, धीरे -धीरे चले, उठ-बैठ िनयिमत प
से आंख, सर, शरीर के यायाम कर।
3. सर चकराने के दौरान खूब पानी िपएं व फल खाएं व जूस िपएं ।
4. िकसी भी एक चीज पर यान लगाएं, जससे मन शा त होगा और च कर कम आयगे।
5. जब भी च कर आये तो तुरंत बैठ जाएं या थोड़ी देर के लए लेट जाएं और अपनी आंख
बंद कर ल। इससे तुरंत आराम िमलेगा नीचे िगरने क थित से भी आप बचगे।

तो सार प म कह सकते ह िक समयानुसार च कर को समझ उनका उपचार कराएं और


व थ रह।

⦿⦿⦿
॥ लेखक प रचय ॥
िवल ण एवं िविभ ितभाओं के धनी शिशकांत ‘सदैव' अपने यि व एवं िविभ काय ं
के लए पहचाने जाते ह। िकसी के लए आप एक संपादक-प कार ह, तो िकसी के लए
लेखक, किव-शायर। कोई आपको आपक कािशत पु तक के मा यम से जानता है, तो कोई
टी.वी. पर मेहमान िवशेष के प म पहचानता है। आप एक ेरक व ा होने के साथ - साथ
यान के कु शल िश क भी ह। िफर वह वकशॉप के प म हो या वचन के प म, आपके
व य कू ल, कॉलेज, कॉप रे ट से टर, मंिदर-आ म एवं धािमक तथा गैर सरकारी सं थाओं
आिद म होते ही रहते ह। आप स ह वष ं तक ‘डायमंड पॉकेट बु स' ारा कािशत मा सक
पि का ‘साधना पथ' म संपादक व गृहल मी म, सलाहकार संपादक के प म अपनी सेवाएं दे
चुके ह। इससे पूव, आप दो वष ं तक अपनी सेवाएं ‘ Indiatimes.com ' म भी दे चुके ह।
िव व भर के नामी प /पि काओं म आपके आलेख, तंभ, ग़ज़ल व किवताएं आिद कािशत
होते रहते ह। इतना ही नह िविभ िवषय पर अब तक आपक तीन दजन से भी अ धक
पु तक कािशत हो चुक ह।

कािशत पु तक
यि व िवकास एवं आ म पांतरण
सब संभव है, अ छा इंसान सफल िवजेता कैसे बने?, मैनज
े मट के मूल मं , यि व
िनखार भिव य सुधार, मन चाही सफलता पाएं अपनी एका मता बढ़ाएं, वयं को और
दसर
ू को पहचानने क कला, सीख जीवन जीने क कला।

ओशो
कौन है ओशो?, म य आया था-ओशो?, ओशो क जीवन या ा, ओशो के बाद का
िववाद, ओशो का योगदान, ओशो पर लगे आरोप और उनक स चाई, स ह तय और
बुि जीिवय क नज़र म ओशो।

धम-अ या म
कौन है गु ?, गु का मह व?, यान एक मा समाधान, इ क क खुशबू है सूफ़ ,
आधुिनक संत क आ या मक या ा, त-उपवास का आ या मक एवं मनोिव ािनक मह व,
युगपु ष महिष दयानंद सर वती, भारत के स मंिदर, भारत के स तीथ और धाम, पव ं
का महा पव-दीपावली, संपािदत पु तक-धन और सुख-समृि क देवी ल मी, दगु ा एवं नवरा
क मिहमा एवं मह व।
वा य एवं आरो यता
सरदद और माइ ेन से मुि , ऐसे पाएं मोटापे से मुि , कर योग रह िनरोग, तनाव मुि के
सरल उपाय, आहार से कर उपचार, आपका आहार वा य का आधार।

का य एवं ग़ज़ल सं ह
तेरे साथ क आदत, ी क कु छ अनकही, दद क कतरन, दद के इद-िगद, रसता हआ
दद। का य संकलन - इं धनुष रचते ह ता र, द तक नई पीढ़ी क ।

समाज व समसामियक
कु ल का कल ह बेिटयां, गाय, गंगा, गौरी है हमारी ज मेदारी, नयी ी क पुरानी कहानी।

प -पि काओं म कािशत लेख व तंभ


नवभारत टाइ स, हैलो िद ी, दैिनक िह द ु तान, पंजाब केसरी, दैिनक जागरण, दैिनक
भा कर, अमर उजाला, जागरण सटी लस, गगनांचल आज समाज, तथाअ तु, वेल बीइंग,
साधना पथ, गृहल मी, ओशो व ड, िह दी जगत, कादंिबनी, वूमेन ऑन टॉप, मेरी तुलसी,
वासी टु डे, ानोदय, शु वार, इंिडया यूज, यथावत, मेरी तुलसी, संपादक, गृहनंदनी, यूचर
समाचार, सुख-समृि , कु मुदम भि , समय सारांश, गु जी, क लय को खलने दो तथा इंिडया
टाइ स एवं फैब वुमनै डॉट कॉम आिद कई अ य े ीय प -पि काओं म काशन।

टी.वी. चैनल एवं रे िडयो पर उप थित


दरदशन,
ू इंिडया यूज, सहारा समय, साधना, ा, सुदशन, ए टू जेड, वी.आई.पी. एवं जैन
टी.वी. तथा एफ.एम. रे नबो एवं मानव रचना रे िडयो।

स मान
गौरव भाषा वाणी स मान 2011 (इं थ सािह य भारती-िद ी), सािह यकार स मान
2010 ( ज कला क -मथुरा), सािह यकार स मान 2009, ( वामी नेक याम मृित-
वृदं ावन)।

संपक सू
9/60, गली नं. 12, तुगलकाबाद ए सटशन, कालकाजी, नई िद ी-19,
दरू भाष-9810388549
E-mail: shashikantsadaiv@gmail.com ,
visit:- http://www.shashikantsadaiv.blogspot.com

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