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चतथ

ु कंध, अ याय 22

सत पु ष का वागत कैसे कर
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जब राजा पथ ृ ु के यहाँ सयू के समान चार तेज वी मु न ी आये तब राजा के ाण सन कुमारो के दशन करते ह
उ ह रोकने के लए उनक और चल पड़े। अपने अनय ु ा यय के साथ उठकर अध अ पत कया, मु नगण को
आसन पर वराजमान कराया , गदन झक ु ाकर उनक व धवत पज ू ा क , फर उनके चरण दक को अपने सर पर
छड़का। इस कार श टजन चत आदर स कार करके यह श ा द क स पु ष का कैसे वागत स कार करना
चा हए। सनका द मु न भगवान शव के अ ज ह।
सोने के संहासन पर वराजमान मु नगण से राजा पथ ृ ु ने कहा क आपके दशन तो यो गय को भी दल ु भ ह, मने
ऐसा कौन सा पु य कया िजससे आपके दशन ा त हुए। िजनके घर म आप जैसे पू य पु ष, उनका जल, tran,
प ृ वी, गह ृ वामी अथवा सेवक आ द कसी भी पदाथ को वीकर कर ले, वे ह थ धनह न होने पर भी धनवान
होते ह। िजन घर म भगवत भ त के चरण न पड़े ह , वह सब कार क र ध - स धीय से भरे होने पर भी ऐसे
व ृ के समान ह िजन पर साँप रहते ह। संत और भ त क चरण धू ल से घर मं दर बन जाता है ।आपका वागत
है ।
राजा पथ ृ ु का सनकाद मु नय से न
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वामी, हम लोग अपने कम के वशीभत ू वप य के इस संसार म पड़े हुए इि य के भोग को ह परम पु षाथ
मान रहे ह, आप हमारे क याण का कोई उपाय बताइए। आप सदै व आ मा म ह रहते ह अतः आप से यह पछ ू ना
क या कुशल और या अकुशल है , वैसे अनु चत है , परं तु आप संसार के जीव के त सु द ह, अतः यह साहस
कर आपसे पछ ू रहा हूँ। आ मा के प का शत अज मे भगवान नारायण ह अपने भ त पर कृपा कर ने के लए
आप जैसे स ध परु ष के प म प ृ वी पर आते ह।
सन कुमार जी का राजा पथ ृ ु को उपदे श
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* स पु ष का समागम ोता और व ता दोन के लए लाभदायक होता है , य क उनके नो र सभी का
क याण करते ह।
* राजन, ीमधस ु दू न के चरण कमल म कसी को भी ी त ा त होना बहुत क ठन है , परं तु ा त हो जाने पर यह
उसके मन म रहने वाले वासना प मल को सवथा न ट कर दे ती है , और कसी उपाय से जीव ज द मिु त नह ं
पाता।
* जीव के क याण के लए शा म बताया गया है , क आ मा दे ह से भ न है , अतः दे ह के त वैरा य तथा
अपने आ म व प नगण ु म म सु ढ़ अनरु ाग ह क याण का नि चत साधन है । शा के अनसु ार गु और
शा के वचन म व वास रखने, भागवत धम का पालन करने, ानयोग म न ठा, त व िज ासा एवं योगे वर
ी ह र क उपासना, न य त भगवान क पावन कथाओं को सन ु ने , जो लोग धन और इं य के भोग म डूबे
रहते ह उनके संग न रहने, उ ह य पदाथ का आसि त पव ू क सं ह और भोग न करने, भगवदगण ु का
अमत ृ पान करने के अ त र त सारे समय आ मा म ह संतु ट रहते हुए एकांत म स न रहने, कसी भी जीव को
क ट न दे ने, नव ृ न ठा, आ म हत का अनस ु ध
ं ान करते रहने, ी ह र के प व च र प े ठ अमत ृ का
आ वादन करने, न काम भाव से यम - नयम का पालन करने, पर - नंदा न करने, योग ेम के लए य न
करने, शीत - उ ण आ द वं व को सहन करने, ी ह र के गण ु का बार बार गण ु गान करने से और बढ़ते हुए
भि तभाव से संपण ू जड पंच से वैरा य हो जाता है और अनायास आ म व प नगण ु पर म म मनु य क ीत
हो जाती है ।
* पर म म ी त हो जाने पर मनु य स गु क शरण लेता है , फर ान और वैरा य के बल वेग के कारण
वासनाशु य हुये अपने पाँच कार के लेश और अपने अहं कार यु त लंग शर र को वह उसी कार भ म कर दे ता
है , जैसे अि न लकड़ी से कट होकर फर उसी को जला दे ती है ।
* व नाव था म कुछ भी दे खने के बाद जागने पर वह व तु दखाई नह ं दे ती, उसी कार वह मनु य भी शर र के
बाहर दखाई दे ने वाले घट - पटा द और अपने अंदर होने वाले सख ु - दख ु ा द का अनभ ु व नह ं करता। इस अव था
म आने से पव ू ये पदाथ ह जीवा मा और परमा मा के बीच भेद करते ह।
* अंत:करण प उपा ध के कारण पु ष को जीवा मा और इि य का, और इन दोन को जोड़ने वाला अहं कार का
अनभ ु व होता है । संसार वषय म आस त लोग क इि यां व भ न वषय म फंसी रहने पर, मन को भी उनक
ओर आक षत कर लेती ह, फर यह इि य म फंसा मन बु धी क वचारशि त हर लेता है । वचारशि त के न ट
हो जाने पर म ृ त नह ं रहती और म ृ त के चले जाने से ान नह ं रहता है । अ य सब पदाथ म यता का बोध,
आ मा का वयं वारा नाश है । इससे बड़ी वाथ हा न और दस ू र नह ं होती।
* धन और इि य के वषय का चंतन सभी पु षाथ का नाश कर मनु य, ान और व ान से ट होकर व ृ
आ द यो नय म ज म पाता है । अतः अ ान के अंधकार से पार होने के लये वषय म आसि त कभी नह ं होनी
चा हए, यूँ क यह धम, अथ, काम और मो क ाि त म बड़ी बाधक है । इन चार पु षाथ म मो ह सव े ठ
है , य क अ य तीन को काल भगवान कुचलते रहते ह।
* राजन, ीभगवान दे ह, इं य, ाण, बु धी और अहं कार से भरे सभी ा णय के दय म अ तयामी आ मा प से
सा ात व यमान ह, उ ह तम ु 'वह मै ह हूँ' ऐसा मानो। माया पंच, कमफल-कलु षत कृ त से परे , न यमु त,
नमल और ान व प परमा मा को म ा त हो रहा हूँ, ऐसा मानो। तम ु सवा य भगवान वासद ु े व का भजन करो।
तम ु भगवान के व वसनीय चरणकमल को नौका बना कर इस द ु तर समु को पर कर लो।
आ मत व का उपदे श पाकर राजा पथ ृ ु वारा सन कुमार जी क शंसा एवं पज ू ा
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द नदयाल ीह र क मझ ु पर बड़ी कृपा है जो आप यहाँ पधारे । भ,ु ी, पु , सब कार क सम ृ ध से संप न यह
राजभवन, रा य, सेना, प ृ वी और कोष - यह सब कुछ आप लोग का है , अतः आपके चरण म अ पत है । वा तव
म तो रा य, द ड वधान, और स पण ू लोक पर शासन करने का अ धकार तो वेद शा के ाता ा हण को ह
है । ीय आ द तो उनक कृपा से अ न खा पाते ह। आप वेद के परगामी ह, अ या मत व के ान से आपने हम
समझा दया क भगवान क अन य अभेद - भि त ह उनक उपल धी का परम साधन है । इस उपकार का बदला
कोई या दे सकता है , अ पतु ऐसी क पना भी करना मख ू ता है ।
राजा पथ ृ ु वारा आ मोपदे श का अन स
ु रण
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आ मोपदे श पाकर महाराज पथ ृ ु एका ता से आ मा म ल न रहने के कारण वयं को कृताथ समझने लगे और
ा मण - य बु धी से समय, थान, शि त, याय और धन के अनस ु ार सभी कम कर उनका फल परमा मा को
अ पत कर, आ मा को कम का सा ी एवं कृ त से अतीत दे ख सकने से वह सवथा न ल त हो गए। िजस कार
सय ू दे व सव काश करने पर भी सभी व तओ ु ं के गण
ु - दोष से न ल त रहते ह उसी कार ह थ आ म म रहते
हुए भी अहं कारशू य ह ने के कारण इि य म आस त नह ं हुए।
ी मै य े जी वारा महाराज पथ ृ ु के स गण ु क शंसा
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राजा पथ ृ ु वयं भगवान के अंश थे। उदार मन, यवदम, मनोहर मत ू , सौ य गण ु से जा का रं जन करते थे। सय

िजस तरह ी म ऋतु म प ृ वी का जल खींचकर वषा ऋतु म पन ु ः प ृ वी पर बरसा दे ता है , उसी कार वे भी कर प
म जा से धन लेकर आप म उ ह ं के हत म लगा दे ते थे। वे अि न के समान तेज, इं के समान अजेय, प ृ वी
के समान माशील और वग के समान मनु य क संपण ू कामनाएँ पण ू करने वाले थे। वे समु के समान गंभीर
और सम ु े के समान धैयवान थे। राजा पथ ृ ु द ु ट का दमन करने म यमराज के, कोष क सम ृ ध म कुबेर के, और
धन को छपाने म व ण के समान थे। स दय म कामदे व, उ साह म संह, वा स य म मन,ु मनु य के आ धप य
म मा जी के समान थे। म वचार म बह ृ प त, इि य पर वजय म सा ात ीह र, तथा गौ ा मण,
गु जन एवं भगवद - भ त क भि त, लाज, वनय, शील एवं परोपकार गण ु म अनप ु म थे। लोक म उनक
क त का गान था।
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