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भारतीय दं ड संहिता.

1860
(1860 का अधिनियम सं. 45)

विषय- सच
ू ी
धारा विषय

अध्याय- 1 प्रारं भभक

अध्याय 1

प्रस्तािना

1. संहिता का िाम और उसके प्रवतति का ववस्तार


2. भारत के भीतर ककए गए अपरािों का दं ड
3. भारत से परे ककए गए ककन्तु उसके भीतर ववधि के अिस
ु ार ववचारणीय अपरािों का दं ड
4. राज्य क्षेत्रातीय अपरािों पर संहिता का ववस्तार
5. कुछ ववधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव ि डाला जािा

अध्याय 2
साधारण स्पष्टीकरण
6. संहिता में की पररभाषाओं का अपवादों के अध्यिीि समझा जािा
7. एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव
8. ललंग
9. वचि
10. “परु
ु ष” “स्त्री”
11. “व्यक्तत”
12. “लोक”
13. “तवीि”
14. “सरकार का सेवक”
15. “ब्रिहटश इंडडया”
16. “भारत सरकार”
17. “सरकार”
18. “भारत”
19. “न्यायािीश”
20. “न्यायालय”
21. “लोकसेवक”
22. “जंगम संपवि”

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23. '”सदोष अलभलाभ”
24. “बेईमािी से”
25. “कपटपव
ू क
त ”
26. “ववश्वास करिे का कारण”
27. “पत्िी, ललवपक या सेवक के कब्जे में संपवि”
28. “कूटकरण”
29. “दस्तावेज”
29(क) इलेतरानिक अलभलेख
30. “मल्
ू यवाि प्रनतभनू त'”
31. “ववल”
32. कायो का निदे श करिे वाले शब्दों के अंतगतत अवैि लोप आता िै
33. “कायत”, “लोप”
34. सामान्य आशय को अग्रसर करिे में कई व्यक्ततयों द्वारा ककए गए कायत
35. जबकक ऐसा कायत इस कारण आपराधिक िै कक वि आपराधिक ज्ञाि या आशय से ककया गया िै
36. अंशत: कायत द्वारा या अंशत: लोप द्वारा काररत पररणाम
37. ककसी अपराि को गहित करिे वाले कई कायो में से ककसी एक को करके सियोग करिा
38. आपराधिक कायत में संपत
ृ त व्यक्तत ववलभन्ि अपरािों के दोषी िो सकेंगे
39. “स्वेच्छया”
40. “अपराि”
41. “ववशेष ववधि”
42. “स्थािीय ववधि”
43. “अवैि”, “करिे के ललए वैि रुप से आबद्ि”
44. “क्षनत”
45. “जीवि”
46. “मत्ृ य”ु
47. “जीवजन्त”ु
48. “जलयाि”
49. “वषत मास”
50. “िारा”
51. “शपथ”
52. “सद्भावपव
ू क
त ”

52(क) “संश्रय”

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अध्याय 3
दण्डों के विषय में
53. “दण्ड”

53(क) निवातसि के प्रनत निदे श का अथत लगािा

54. मत्ृ यु दण्डादे श का लघक


ु रण
55. आजीवि कारावास के दं डादे श का लघक
ु रण

55(क) “समधु चत सरकार” की पररभाषा

56. [ निरस्त.........]
57. दं डाववधियों की लभन्िे
58. ( ***लप्ु त)
59. ( ***लप्ु त)
60. दं डाहदष्ट करावास के कनतपय मामलों में संपण
ू त कारावास या उसका कोई भाग कहिि या सादा िो
सकेगा
61. [***निरस्त की गई]
62. [***निरस्त की गई]
63. जम
ु ातिे की रकम
64. जुमातिा ि दे िे पर कारावास का दण्डादे श
65. जबकक कारावास और जुमातिा दोिों आहदष्ट ककये जा सकते िैं, तब जुमातिा ि दे िे पर कारावास की
अवधि
66. जुमातिा ि दे िे पर ककस भांनत का कारावास हदया जाय
67. जुमातिा ि दे िे पर कारावास,जबकक अपराि केवल जुमातिे से दण्डिीय िो
68. जुमातिा दे िे पर कारावास का पयतवसाि िो जािा
69. जम
ु ातिे के आिप
ु ानतक भाग के हदये जािे की दशा में कारावास का पयतवसाि
70. जुमातिे का छि वषत के भीतर या कारावास के दौराि में उद्ग्रिणीय िोिा- सम्पवि को दानयत्व से
मत्ृ यु उन्मत
ु त ििीं करती
71. कई अपरािों से लमलकर बिे अपराि के ललये दण्ड की अवधि
72. कई अपरािों में से एक के दोषी व्यक्तत के ललये दण्ड जबकक निणतय में यि कधथत िै कक यि
सन्दे ि िै कक वि ककस अपराि का दोषी िै
73. एकान्त परररोि
74. एकान्त परररोि की अवधि

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75. पव
ू त दोषलसद्धि के पश्चात ् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अिीि कनतपय अपरािों के ललये वधितत
दण्ड

अध्याय 4
साधारण अपिाद
76. ववधि द्वारा आबद्ि या तथ्य की भल
ू के कारण अपिे आपको ववधि द्वारा आबद्ि िोिे का
ववश्वास करिे वाले व्यक्तत द्वारा ककया गया कायत
77. न्यानयकत: कायत करिे िे तु न्यायािीश का कायत
78. न्यायालय के निणतय या आदे श के अिस
ु रण में ककया गया कायत
79. ववधि द्वारा न्यायािम
ु त या तथ्य की भल
ू से अपिे को ववधि द्वारा न्यायािम
ु त िोिे का ववश्वास
करिे वाले व्यक्तत द्वारा ककया गया कायत
80. ववधिपण
ू त कायत करिे में दघ
ु ट
त िा
81. कायत, क्जससे अपिानि काररत िोिा सम्भाव्य िै , ककन्तु जो आपराधिक आशय के ब्रबिा और अन्य
अपिानि के निवारण के ललये ककया गया िै
82. सात वषत से कम आयु के लशशु का कायत
83. सात वषत से ऊपर ककन्तु बारि वषत से कम आयु के अपररपतव समझ के लशशु का कायत
84. ववकृि धचि व्यक्तत का कायत
85. ऐसे व्यक्तत का कायत जो अपिी इच्छा के ववरुद्ि मिता में िोिे के कारण निणतय पर पिुंचिे में
असमथत िै

86. ककसी व्यक्तत द्वारा, जो मिता में िै , ककया गया अपराि क्जसमें ववशेष आशय या ज्ञाि का िोिा
अपेक्षक्षत िै
87. सम्मनत से ककया गया कायत क्जसमें मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत करिे का आशय ि िो और ि
उसकी सम्भाव्यता का ज्ञाि िो
88. ककसी व्यक्तत के फायदे के ललये सम्मनत से सद्भाविापव
ू क
त ककया गया कायत क्जससे मत्ृ यु काररत
करिे का आशय ििीं िै
89. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मनत से लशशु या उन्मि व्यक्तत के फायदे के ललये सदभाव-पव
ू क

ककया गया कायत
90. सम्मनत, क्जसके सम्बन्ि में यि ज्ञात िो कक वि भय या भ्रम के अिीि दी गई िै
91. ऐसे कायों का अपवजति जो काररत अपिानि के ब्रबिा भी स्वत: अपराि िै
92. सम्मनत के ब्रबिा ककसी व्यक्तत के फायदे के ललये सद्भाविापव
ू क
त ककया गया कायत
93. सद्भावपव
ू क
त दी गई संसच
ू िा
94. वि कायत क्जसको करिे के ललये कोई व्यक्तत िमककयों द्वारा वववश ककया गया िै
95. तच्
ु छ अपिानि काररत करिे वाला कायत

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प्राइिेट प्रततरक्षा के अधधकार के विषय में
96. प्राइवेट प्रनतरक्षा में की गई बातें
97. शरीर तथा सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार
98. ऐसे व्यक्तत के कायत के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार जो ववकृतधचि आहद िो
99. कायत, क्जिके ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा का कोई अधिकार ििीं िै
100. शरीर की प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का ववस्तार मत्ृ यक
ु ाररत करिे पर कब िोता िै
101. कब ऐसे अधिकार का ववस्तार मत्ृ यु से लभन्ि कोई अपिानि काररत करिे तक िोता िै
102. शरीर की प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बिा रििा
103. कब सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का ववस्तार मत्ृ यक
ु ाररत करिे तक का िोता िै
104. ऐसे अधिकार का ववस्तार मत्ृ यु से लभन्ि कोई अपिानि काररत करिे तक का कब िोता िै
105. सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बिा रििा
106. घातक िमले के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार जबकक निदोष व्यक्तत को अपिानि िोिे की
जोखखम िै
अध्याय 5
दष्ु प्रेरण के विषय में
107. ककसी बात का दष्ु प्रेरण
108. दष्ु प्रेरक
108क. भारत से बािर के अपरािों का भारत में दष्ु प्रेरण

109. दष्ु प्रेरण का दं ड, यहद दष्ु प्रेररत कायत उसके पररणामस्वरुप ककया जाए, और जिां कक उस दं ड के
ललए अलभव्यतत उं पबंि ििीं िै
110. दष्ु प्रेरण का दं ड, यहद दष्ु प्रेररत व्यक्तत दष्ु प्रेरक के आशय से लभन्ि आशय से कायत करता िै
111. दष्ु प्रेरक का दानयत्व जब एक कायत का दष्ु प्रेरण ककया गया िै और उससे लभन्ि कायत ककया गया िै
112. दष्ु प्रेरक कब दष्ु प्रेररत कायत के ललए और ककए गए कायत के ललए आकललत दं ड से दं डिीय िै
113. दष्ु प्रेररत कायत से काररत उस प्रभाव के ललए दष्ु प्रेरक का दानयत्व जो दष्ु प्रेरक द्वारा आशनयत से
लभन्ि िो
114. अपराि ककए जाते समय दष्ु प्रेरक की उपक्स्थनत
115. मत्ृ यु या आजीवि कारावास से दं डिीय अपराि का दष्ु प्रेरण यहद अपराि ििीं ककया जाता
116. कारावास से दं डिीय अपराि का दष्ु प्रेरण, यहद अपराि ि ककया जाए
117. लोक सािारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्ततयों द्वारा अपराि ककए जािे का दष्ु प्रेरण
118. मत्ृ यु या आजीवि कारावास से दं डिीय अपराि करिे की पररकल्पिा को नछपािा
119. ककसी ऐसे अपराि के ककए जािे की पररकल्पिा का लोक-सेवक द्वारा नछपाया जािा, क्जसका
निवारण करिा उसका कितव्य िै
120. कारावास से दं डिीय अपराि करिे की पररकल्पिा को नछपािा

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अध्याय 5क
आपराधधक षड्यंत्र
120क. आपराधिक षड्यंत्र की पररभाषा
120ख. आपराधिक षड्यंत्र का दण्ड

अध्याय 6
राज्य के विरुद्ध अपराधों के विषय में
121. भारत सरकार के ववरुद्ि यद्
ु ि करिा या यद्
ु ि करिे का प्रयत्ि करिा या यद्
ु ि करिे का दष्ु प्रेरण
करिा
121क. िारा 121 द्वारा दं डिीय अपरािों को करिे का षड्यंत्र
122. भारत सरकार के ववरुद्ि यद्
ु ि करिे के आशय से आयि
ु आहद संग्रि करिा
123. यद्
ु ि करिे की पररकल्पिा को सक
ु र बिािे के आशय से नछपािा
124. कसी ववधिपण
ू त शक्तत का प्रयोग करिे के ललए वववश करिे या उसका प्रयोग अवरोधित करिे के
आशय से राष्रपनत, राज्यपाल आहद पर िमला करिा
124क. राजद्रोि
125. भारत सरकार से मैत्री संबि
ं रखिे वाली ककसी एलशयाई शक्तत के ववरुद्ि यद्
ु ि करिा
126. भारत सरकार के साथ शांनत का संबि
ं रखिे वाली शक्तत के राज्यक्षेत्र में लट
ू -पाट करिा
127. िारा 125 और 126 में वखणतत यद्
ु ि या लट
ू -पाट द्वारा ली गई संपवि प्राप्त करिा
128. लोक-सेवक का स्वेच्छया राजकैदी या यद्
ु ि कैदी को निकल भागिे दे िा
129. उपेक्षा से लोक-सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागिा सिि करिा
130. ऐसे कैदी के निकल भागिे में सिायता दे िा, उसे छुड़ािा या संश्रय दे िा

अध्याय 7
सेना, नौसेना और िायुसन
े ा से संबंधधत अपराधों के विषय में

131. ववद्रोि का दष्ु प्रेरण या ककसी सैनिक, िौसैनिक या वायस


ु नै िक को कितव्य से ववचललत करिे का
प्रयत्ि करिा
132. ववद्रोि का दष्ु प्रेरण, यहद उसके पररणामस्वरुप ववद्रोि ककया जाए
133. सैनिक, िौसैनिक या वायस
ु नै िक द्वारा अपिे वररष्ि ऑकफसर पर जबकक वि ऑकफसर अपिे पद
निष्पादि में िो, िमले का दष्ु प्रेरण
134. ऐसे िमले का दष्ु प्रेरण, यहद िमला ककया जाए
135. सैनिक, िौसैनिक या वायस
ु नै िक द्वारा अलभत्यजि का दष्ु प्रेरण
136. अलभत्याजक को संश्रय दे िा
137. मास्टर की उपेक्षा से ककसी वाखणक्ज्यक जलयाि पर नछपा िुआ अलभत्याजक
138. सैनिक, िौसैनिक या वाय-ु सैनिक द्वारा अििीिता के कायत का दष्ु प्रेरण
138क. [निरलसत]

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139. कुछ अधिनियमों के अध्यिीि व्यक्तत
140. सैनिक, िौसैनिक या वायु सैनिक द्वारा उपयोग में लाई जािे वाली पोशाक पिििा या टोकि
िारण करिा

अध्याय 8
लोक-प्रशांतत के विरुद्ध अपराधों के विषय में
141. ववधिववरुद्ि जमाव
142. ववधिववरुद्ि जमाव का सदस्य िोिा
143. दण्ड
144. घातक आयि
ु से सक्ज्जत िोकर ववधिववरूद्ि जमाव में सक्म्मललत िोिा
145. ककसी ववधिववरुद्ि जमाव में यि जािते िुये कक उसके ब्रबखर जािे का समादे श दे हदया गया िै ,
सक्म्मललत िोिा या उसमें बिे रििा
146. बल्वा करिा
147. बल्वा करिे के ललये दण्ड
148. घातक आयि
ु से सक्ज्जत िोकर बल्वा करिा
149. ववधिववरुद्ि जमाव का िर सदस्य, सामान्य उद्दे श्य को अग्रसर करिे में ककये गये अपराि का
दोषी
150. ववधिववरुद्ि जमाव में सक्म्मललत करिे के ललये व्यक्ततयों का भाड़े पर लेिा या भाड़े पर लेिे के
प्रनत मौिािक
ु ू लता
151. पांच या अधिक व्यक्ततयों के जमाव को ब्रबखर जािे का समादे श हदए जािे के पक्षात ् उसमें जािते
िुए सक्म्मललत िोिा या बिे रििा
152. लोक-सेवक जब बल्वा इत्याहद को दबा रिा िो तब उस पर िमला करिा या उसे बाधित करिा
153. बल्वा करािे के आशय रो स्वैररता से प्रकोपि दे िा, यहदबल्वा ककया जाये- यहद बल्वा ि ककया
जाये
153क. िमत, मल
ू वंश, जन्म-स्थाि, निवासस्थाि, भाषा इत्याहद के आिारों पर ववलभन्ि समि
ू ों के बीच
शत्रत
ु ा का संप्रवतति और सौिाद्रत बिे रििे पर प्रनतकूल प्रभाव डालिे वाले कायत करिा
153कक. ककसी जल
ु स
ू में जािबझ
ू कर आयि
ु ले जािे या ककसी सामहू िक डिल या सामहू िक प्रलशक्षण का
आयि
ु सहित संचालि या आयोजि करिा या उसमें भाग लेिे के ललये दण्ड
153ख राष्रीय अखण्डता पर प्रनतकूल प्रभाव डालिे वाले लांछि, प्राख्याि
154. उस भलू म का स्वामी या अधिभोगी, क्जस पर ववधिववरुद्ि जमाव ककया गया िै
155. उस व्यक्तत का दानयत्व, क्जसके फायदे के ललए बल्वा ककया जाता िै
156. उस स्वामी या अधिभोगी के अलभकतात का दानयत्व, क्जसके फायदे के ललए बल्वा ककया जाता िै
157. ववधिववरुद्ि जमाव के ललए भाड़े पर लाए गए व्यक्ततयों को संश्रय दे िा
158. ववधिववरुद्ि जमाव या बल्वे में भाग लेिे के ललए भाड़े पर जािा
159. दं गा
160. दं गा करिे के ललए दण्ड

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अध्याय 9
लोक सेिकों द्िारा या उनसे सम्बन्धधत अपराधों के विषय में

िारा 161 से िारा 165क को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 संख्या 49 द्वारा निरलसत
ककया गया ।
166. लोक सेवक, जो ककसी व्यक्तत को क्षनत काररत करिे के आशय से ववधि की अवज्ञा करता िै
166क. लोक-सेवक जो ववधि के अिीि के निदे श की अवज्ञा करता
166ख. पीडड़त का उपचार ि करिे के ललए दं ड
167. लोक सेवक,जो क्षनत करिे के आशय से अशद्
ु ि दस्तावेज रचता िै
168. लोक सेवक, जो ववधिववरुद्ि रूप से व्यापार में लगता िै
169. लोक सेवक, जो ववधिववरुद्ि रूप से सम्पवि क्रय करता िै या उसके ललये बोली लगाता िै
170. लोक-सेवक का प्रनतरुपण
171. कपटपण
ू त आशय से लोक-सेवक के उपयोग की पोशाक पिििा या टोकि को िारण करिा

अध्याय 9 क
तनिााचन सम्बधधी अपराधों के विषय में

171क. “अभ्यथी”, “निवातचि अधिकार” पररभावषत


171ख. ररश्वत
171ग. निवातचिों में असम्यक् असर डालिा
171घ. निवातचिों में प्रनतरूपण
171ङ ररश्वत के ललये दण्ड
171च. निवातचि में असम्यक् असर डालिे या प्रनतरूपण के ललये दण्ड
171छ. निवातचि के लसललसले में लमथ्या कथि
171ज. निवातचि के लसललसले में अवैि संदाय
171झ. निवातचि-लेखा रखिे में असफलता
अध्याय 10
लोक सेिकों के विधधपण
ू ा प्राधधकार के अिमान के विषय में

172. समिों की तामील या अन्य कायतवािी से बचिे के ललये फरार िो जािा


173. समि की तामील का या अन्य कायतवािी का या उसके प्रकाशि का निवारण करिा
174. लोक-सेवक का आदे श ि मािकर गैरिाक्जर रििा
174क. 1974 के अधिनियम 2 की िारा 82 के अिीि ककसी उद्घोषणा के उिर में गैर-िाक्जरी
175. दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख पेश करिे के ललए वैि रुप से आबद्ि व्यक्तत का लोक-सेवक
को दस्तावेज पेश करिे का लोप
176. सच
ू िा या इविला दे िे के ललए वैि रुप से आबद्ि व्यक्तत द्वारा लोक-सेवक को सच
ू िा या इविला

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दे िे का लोप
177. लमथ्या इविला दे िा
178. शपथ या प्रनतज्ञाि से इंकार करिा जबकक लोक-सेवक द्वारा वि वैसा करिे के ललए सम्यक् रुप से
अपेक्षक्षत ककया जाए
179. प्रश्ि करिे के ललए प्राधिकृत लोक-सेवक का उिर दे िे से इंकार करिा
180. कथि पर िस्ताक्षर करिे से इंकार
181. शपथ हदलािे या प्रनतज्ञाि करािे के ललए प्राधिकृत लोक-सेवक के या व्यक्तत के समक्ष शपथ या
प्रनतज्ञाि पर लमथ्या कथि
182. इस आशय से लमथ्या इविला दे िा कक लोक-सेवक अपिी ववधिपण
ू त शक्तत का उपयोग दस
ू रे
व्यक्तत की क्षनत करिे के ललए करे
183. लोक-सेवक के ववधिपण
ू त प्राधिकार द्वारा संपत्त्क्ााा ललए जािे का प्रनतरोि
184. लोक-सेवक के प्राधिकार द्वारा ववक्रय के ललए प्रस्थावपत की गयी संपवि के ववक्रय में
उपक्स्थत करिा
185. लोक-सेवक के प्राधिकार द्वारा ववक्रय के ललए प्रस्थावपत की गई संपवि का अवैि क्रय या उसके
ललए अवैि बोली लगािा
186. लोक-सेवक के लोक कृत्यों के निवतिि में बािा डालिा
187. लोक-सेवक की सिायता करिे का लोप जबकक सिायता दे िे के ललए ववधि द्वारा आबद्ि िो
188. लोक-सेवक द्वारा सम्यक रूप से प्रख्यावपत आदे श की अवज्ञा
189. लोक-सेवक को क्षनत करिे की िमकी
190. लोक-सेवक से संरक्षा के ललए आवेदि करिे से ववरत रििे के ललए ककसी व्यक्तत को उत्प्रेररत
करिे के ललए क्षनत की िमकी

अध्याय 11
भमथ्या साक्ष्य और लोक धयाय के विरुद्ध अपराधों के विषय में

191. लमथ्या साक्ष्य दे िा


192. लमथ्या साक्ष्य गढ़िा
193. लमथ्या साक्ष्य के ललए दं ड
194. मत्ृ यु से दं डिीय अपराि के ललए दोषलसद्ि करािे के आशय से लमथ्या साक्ष्य दे िा या गढ़िा
195. आजीवि कारावास या कारावास से दं डिीय अपराि के ललए दोषलसद्ि करािे के आशय से लमथ्या
साक्ष्य दे िा या गढ़िा
195क. ककसी व्यक्तत को लमथ्या साक्ष्य दे िे के ललए िमकािा
196. उस साक्ष्य को काम में लािा क्जसका लमथ्या िोिा ज्ञात िै
197. लमथ्या प्रमाण पत्र जारी करिा या िस्ताक्षररत करिा
198. प्रमाण पत्र को क्जसका लमथ्या िोिा ज्ञात िै सच्चे के रुप में काम में लािा
199. ऐसी घोषणा में , जो साक्ष्य के रुप में ववधि द्वारा ली जा सके ककया गया लमथ्या कथि
200. ऐसी घोषणा का लमथ्या िोिा जािते िुए सच्ची के रुप में काम में लािा

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201. अपराि के साक्ष्य का ववलोपि, या अपरािी को प्रनतच्छाहदत करिे के ललए लमथ्या इविला दे िा
202. इविला दे िे के ललए आबद्ि व्यक्तत द्वारा अपराि की इविला दे िे का साशय लोप
203. ककए गए अपराि के ववषय में लमथ्या इविला दे िा
204. साक्ष्य के रूप में ककसी [दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] का पेश ककया जािा निवाररत करिे के
ललए उसको िष्ट करिा
205. वाद या अलभयोजि में ककसी कायत या कायतवािी के प्रयोजि से लमथ्या प्रनतरुपण
206. संपवि को समपिरण ककए जािे में या निष्पादि में अलभगि
ृ ीत ककए जािे से निवाररत करिे के ललए
उसे कपटपव
ू क
त िटािा या नछपािा
207. संपवि पर उसके समपिरण ककए जािे में या निष्पादि में अलभगि
ृ ीत ककए जािे से निवाररत करिे
के ललए कपटपव
ू क
त दावा
208. ऐसी रालश के ललए जो शोध्य ि िो कपटपव
ू क
त डडक्री िोिे दे िा सिि करिा
209. बेईमािी से न्यायालय में लमथ्या दावा करिा
210. ऐसी रालश के ललए जो शोध्य ििीं िै . कपटपव
ू क
त डडक्री अलभप्राप्त करिा
211. क्षनत काररत करिे के आशय से अपराि का लमथ्या आरोप
212. अपरािी को संश्रय दे िा
213. अपरािी को दं ड से प्रनतच्छाहदत करिे के ललए उपिार आहद लेिा
214. अपरािी के प्रनतच्छादि के प्रनतफलस्वरुप उपिार की प्रस्थापिा या संपवि का प्रत्यावतति
215. चोरी की संपवि इत्याहद के वापस लेिे में सिायता करिे के ललए उपिार लेिा
216. ऐसे अपरािी को संश्रय दे िा, जो अलभरक्षा से निकल भागा िै या क्जसको पकड़िे का आदे श हदया
जा चुका िै
216क् . लट
ु े रों या डाकुओं को संश्रय दे िे के ललए शक्तत
216ख. (.....................निरलसत)
217. लोक-सेवक द्वारा ककसी व्यक्तत को दं ड से या ककसी संपवि को समपिरण से बचािे के आशय से
ववधि के निदे श की अवज्ञा
218. ककसी व्यक्तत को दं ड से या ककसी संपवि को समपिरण से बचािे के आशय से लोक-सेवक द्वारा
अशद्
ु ि अलभलेख या लेख की रचिा
219. न्यानयक कायतवािी में ववधि के प्रनतकूल ररपोटत आहद का लोक-सेवक द्वारा भ्रष्टतापथ
ू क
त ककया जािा
220. प्राधिकार वाले व्यक्तत द्वारा जो यि जािता िै कक वि ववधि के प्रनतकूल कायत कर रिा िै,
ववचारण के ललए या परररोि करिे के ललए सप
ु द
ु तगी
221. पकड़िे के ललए आबद्ि लोक-सेवक द्वारा पकड़िे का साशय लोप
222. दं डादे श के अिीि या ववधिपव
ू क
त सप
ु द
ु त ककए गए व्यक्तत को पकडिे के ललए आबद्ि लोक-सेवक
द्वारा पकड़िे का साशय लोप
223. लोक-सेवक द्वारा उपेक्षा से परररोि या अलभरक्षा में से निकल भागिा सिि करिा
224. ककसी व्यक्तत द्वारा ववधि के अिस
ु ार अपिे पकड़े जािे में प्रनतरोि या बािा
225. ककसी अन्य व्यक्तत के ववधि के अिस
ु ार पकड़े जािे में प्रनतरोि या बािा
225क. उि दशाओं में क्जिके ललए अन्यथा उपबंि ििीं िै लोक-सेवक द्वारा पकड़िे का लोप या निकल
भागिा सिि करिा

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225ख. अन्यथा अिप
ु बंधित दशाओं में ववधिपव
ू क
त पकड़िे में प्रनतरोि या बािा या निकल भागिा या
छुड़ािा
226. [***]निरलसत
227. दं ड के पररिार की शतत का अनतक्रमण
228. न्यानयक कायतवािी में बैिे िुए लोक-सेवक का साशय अपमाि या उसके कायत में ववघ्ि
228क. कनतपय अपरािों आहद से पीडड़त व्यक्तत की पिचाि का प्रकटीकरण
229. जूरी सदस्य या असेसर का प्रनतरुपण
229क. जमाित या बन्िपत्र पर छोड़े गए व्यक्तत द्वारा न्यायालय में िाक्जर िोिे में असफलता

अध्याय 12
भसक्कों और सरकारी स्टाम्पों से संबंधधत अपराधों के विषय में
230. लसतका की पररभाषा
231. लसतके का कूटकरण
232. भारतीय लसतके का कूटकरण
233. लसतके के कूटकरण के ललए उपकरण बिािा या बेचिा
234. भारतीय लसतके के कूटकरण के ललए उपकरण बिािा या बेचिा
235. लसतके के कूटकरण के ललए उपकरण या सामग्री उपयोग में लािे के प्रयोजि से उसे कब्जे में
रखिा
236. भारत से बािर लसतके के कूटकरण का भारत में दष्ु प्रेरण
237. कूटकृत लसतके का आयात या नियातत
238. भारतीय लसतके की कूटकृनतयों का आयात या नियातत
239. लसतके का पररदाि क्जसका कूटकृत िोिा कब्जे में आिे के समय ज्ञात था
240. उस भारतीय लसतके का पररदाि क्जसका कूटकृत िोिा कब्जे में आिे के समय ज्ञात था
241. ककसी लसतके का असली लसतके के रुप में पररदाि, क्जसका पररदाि करिे वाला उस समय जब वि
उसके कब्जे में पिली बार आया था, कूटकृत िोिा ििीं जािता था
242. कूटकृत लसतके पर ऐसे व्यक्तत का कब्जा जो उस समय उसका कूटकृत िोिा जािता था, जब वि
उसके कब्जे में आया था
243. भारतीय लसतके पर ऐसे व्यक्तत का कब्जा जो उसका कूटकृत िोिा उस समय जािता था जब वि
उसके कब्जे में आया था
244. टकसाल में नियोक्जत व्यक्तत द्वारा लसतके का उस वजि का या लमश्रण से लभन्ि काररत ककया
जािा जो ववधि द्वारा नियत िै
245. टकसाल से लसतका बिािे का उपकरण ववधिववरुद्ि रुप से लेिा
246. कपटपव
ू क
त या बेईमािी से लसतके का वजि कम करिा या लमश्रण पररवनततत करिा
247. कपटपव
ू क
त या बेईमािी से भारतीय लसतके का वजि कम करिा या लमश्रण पररवनततत करिा
248. इस आशय से ककसी लसतके का रुप पररवनततत करिा कक वि लभन्ि प्रकार के लसतके के रुप में चल
जाए
249. इस आशय से भारतीय लसतके का रूप पररवनततत करिा कक वि लभन्ि प्रकार के लसतके के रुप में

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चल जाए
250. ऐसे लसतके का पररदाि जो इस ज्ञाि के साथ कब्जे में आया िो कक उसे पररवनततत ककया गया िै
251. भारतीय लसतके का पररदाि जो इस ज्ञाि के साथ कब्जे में आया िो कक उसे पररवनततत ककया गया
िै -
252. ऐसे व्यक्तत द्वारा लसतके पर कब्जा जो उसका पररवनततत िोिा उस समय जािता था जब वि
उसके कब्जे में आया
253. ऐसे व्यक्तत द्वारा भारतीय लसतके पर कब्जा जो उसका पररवनततत िोिा उस समय जािता था जब
वि उसके कब्जे में आया
254. लसतके का असली लसतके के रुप में पररदाि क्जसका पररदाि करिे वाला उस समय जब वि उसके
कब्जे में पिली बार आया था, पररवनततत िोिा ििीं जािता था
255. सरकारी स्टाम्प का कूटकरण
256. सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के ललये उपकरण या सामग्री कब्जे में रखिा
257. सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के ललये उपकरण बिािा या बेचिा
258. कूटकृत सरकारी स्टाम्प का ववक्रय
259. सरकारी कूटकृत स्टाम्प को कब्जे में रखिा
260. ककसी सरकारी स्टाम्प को, कूटकृत जािते िुए जो असली स्टाम्प के रुप में उपयोग में लािा
261. इस आशय से कक सरकार को िानि काररत िो, उस पदाथत पर से क्जस पर सरकारी स्राम्प लगा
िुआ िै , लेख लमटािा या दस्तावेज से वि स्टाम्प िटािा जो उसके ललए उपयोग में लाया गया िै
262. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग क्जसके बारे में ज्ञात िै कक उसका पिले उपयोग िो चक
ु ा िै -
263. स्टाम्प के उपयोग ककये जा चुकिे के द्योतक धचंि का छीलकर लमटािा
263क. बिावटी स्टाम्पो का प्रनतषेि

अध्याय 13
बाटों और मापों से सम्बन्धधत अपराधों के विषय में
264. तोलिे के ललये खोटे उपकरणों का कपटपव
ू क
त उपयोग
265. खोटे बाट या माप का कपटपव
ू क
त उपयोग
266. खोटे बाट या माप को कब्जे में रखिा
267. खोटे बाट या माप को बिािा या बेचिा

अध्याय 14
लोक-स्िास्थ्य. क्षेम. सुविधा, भशष्टता और सदाचार पर प्रभाि डालने िाले अपराधो
विषय में
268. लोक न्यस
ू स
ें
269. उपेक्षापण
ू त कायत क्जससे जीवि के ललये संकटपण
ू त रोग का संक्रम फैलिा सम्भाव्य िो
270. पररद्वेषपण
ू त कायत क्जससे जीवि के ललये संकटपण
ू त रोग का संक्रम फैलिा सम्भाव्य िै
271. करन्तीि के नियम की अवज्ञा
272. ववक्रय के ललये आशनयत खाद्य या पेय का अपलमश्रण

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273. अपायकर खाद्य या पेय का ववक्रय
274. औषधियों का अपलमश्रण
275. अपलमधश्रत औषधियों का ववक्रय
276. औषधि का लभन्ि औषधि या निलमतनत के तौर पर ववक्रय
277. लोक जल-स्त्रोत या जलाशय का जल कलवु षत करिा
278. वायम
ु ण्डल को स्वास्थ्य के ललये अपायकर बिािा
279. लोक मागत पर उतावलेपि से वािि चलािा या िााँकिा
280. जलयाि का उतावलेपि से चलािा
281. भ्रामक प्रकाश, धचह्ि या बोये का प्रदशति
282. अक्षेमकर या अनत-लदे िुये जलयाि में भाड़े के ललये जलमागत से ककसी व्यक्तत का प्रविण
283. लोकमागत या िौपररविि पथ में संकट या बािा
284. ववषैले पदाथत के सम्बन्ि में उपेक्षापण
ू त आचरण
285. अक्‍ि या ज्वलिशील पदाथत के समबन्ि में उपेक्षापण
ू त आचरण
286. ववस्फोटक पदाथत के बारे में उपेक्षापण
ू त आचरण
287. मशीिरी के सम्बन्ि में उपेक्षापण
ू त आचरण
288. ककसी निमातण को धगरािे या उसकी मरम्मत करिे के सम्बन्ि में उपेक्षापण
ू त आचरण
289. जीवजन्तु के सम्बन्ि में उपेक्षापण
ू त आचरण
290. अन्यथा अिप
ु बंधित मामलों में लोक न्यस
ू ेन्स के ललये दण्ड
291. न्यस
ू ेन्स बन्द करिे के व्यादे श के पश्चात ् उसका चालू रखिा
292. अश्लील पस्
ु तकों आहद का ववक्रय आहद
293. तरुण व्यक्तत को अश्लील वस्तओ
ु ं का ववक्रय आहद
294. अश्लील कायत और गािे
294क. लाटरी कायातलय रखिा

अध्याय 15
धमा से सम्बन्धधत अपराधों के विषय में

295. ककसी वगत के िमत का अपमाि करिे के आशय से उपासिा के स्थाि को क्षनत काररत करिा या
अपववत्र करिा
295क. ववमलशतत और ववद्वेशपण
ू त कायत जो ककसी वगत के िमत या िालमतक ववश्वासों का अपमाि करके उसकी
िालमतक भाविाओं को आित करिे के आशय से ककये गये िों
296. िालमतक जमाव में ववघ्ि करिा
297. कब्रिस्तािों आहद में अनतचार करिा
298. िालमतक भाविाओं को िे स पिुाँचािे के ववमलशतत आशय से शब्द उच्चाररत करिा आहद

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अध्याय 16
मानि शरीर पर प्रभाि डालने िाले अपराधों के विषय में जीिन के भलये संकटकारी
अपराधों के विषय में
299. आपराधिक मािव वि
300. ित्या
301. क्जस व्यक्तत की मत्ृ यु काररत करिे का आशय था, उससे लभन्ि व्यक्तत की मत्ृ यु करके
आपराधिक मािव वि
302. ित्या के ललये दण्ड
303. आजीवि लसद्िदोष द्वारा ित्या के ललये दण्ड
304. ित्या की कोहट में ि आिे वाले आपराधिक मािव वि के ललए दं ड
304क. उपेक्षा द्वारा मत्ृ यु काररत करिा
304ख. दिे ज मत्ृ यु
305. लशशु या उन्मि व्यक्तत की आत्मित्या का दष्ु प्रेरण
306. आत्मित्या का दष्ु प्रेरण
307. ित्या करिे का प्रयत्ि
308. आपराधिक मािव वि करिे का प्रयत्ि
309. आत्मित्या करिे का प्रयत्ि
310. िग
311. दण्ड

गभापात काररत करने, अजात भशशुओं को क्षतत काररत करने, भशशुओं को अरक्षक्षत छोड़ने और जधम
तछपाने के विषय में
312. गभतपात काररत करिा
313. स्त्री की सम्मनत के ब्रबिा गभतपात काररत करिा
314. गभतपात काररत करिे के आशय से ककए गए कायो द्वारा काररत मत्ृ यु
315. लशशु का जीववत पैदा िोिा रोकिे या जन्म के पश्चात ् उसकी मत्ृ यु काररत करिे के आशय से
ककया गया कायत
316. ऐसे कायत द्वारा जो आपराधिक मािव वि की कोहट में आता िै , ककसी सजीव अजात लशशु की
मत्ृ यु काररत करिा
317. लशशु के वपता या माता या उसकी दे ख-रे ख रखिे वाले व्यक्तत द्वारा बारि वषत से कम आयु के
लशशु का अरक्षक्षत डाल हदया जािा और पररत्याग
318. मत
ृ शरीर के गप्ु त व्ययि द्वारा जन्म नछपािा

उपितत के विषय में

319. उपिनत
320. घोर उपिनत

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321. स्वेच्छया उपिनत काररत करिा
322. स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिा
323. स्वेच्छया उपिनत काररत करिे के ललए दं ड
324. खतरिाक आयि
ु ों या साििों द्वारा स्वेच्छया उपिनत काररत करिा
325. स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिे के ललये दण्ड
326. खतरिाक आयि
ु ों या साििों द्वारा स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिा
326क. अम्ल आहद का प्रयोग कर स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिा
326ख. स्वेच्छया अम्ल फेंकिा या फेंकिे का प्रयोग करिा
327. सम्पवि उद्दावपत करिे के ललए या अवैि कायत करािे को मजबरू करिे के ललए स्वेच्छया उपिनत
काररत करिा
328. अपराि करिे के आशय से ववष इत्याहद द्वारा उपिनत काररत करिा
329. सम्पवि उद्दावपत करिे के ललये या अवैि कायत करािे को मजबरू करिे के ललये स्वेच्छया घोर
उपिनत काररत करिा
330. संस्वीकृनत उद्दावपत करिे या वववश करके सम्पवि का प्रत्यावतति करािे के ललये स्वेच्छया उपिनत
काररत करिा
331. संस्वीकृनत उद्दावपत करिे के ललये या वववश करके सम्पवि का प्रत्यावतति करािे के ललये स्वेच्छया
घोर उपिनत काररत करिा
332. लोक-सेवक को अपिे कितव्य से भयोपरत करिे के ललये स्वेच्छया उपिनत काररत करिा
333. लोक-सेवक को अपिे कितव्यों से भयोपरत करिे के ललये स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिा
334. प्रकोपि पर स्वेच्छया उपिनत काररत करिा
335. प्रकोपि पर स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिा
336. कायत क्जससे दस
ू रों का जीवि या वैयक्ततक क्षेम संकटापन्ि िो
337. ऐसे कायत द्वारा उपिनत करिा, क्जससे दस
ू रों का जीवि का या वैयक्ततक क्षेम संकटापन्ि िो जाए
338. ऐसे कायत द्वारा घोर उपिनत काररत करिा क्जससे दस
ू रों का जीवि या वैयक्ततक क्षेम संकटापन्ि
िो जाए
सदोष अिरोध और सदोष परररोध के विषय में
339. सदोष अवरोि
340. सदोष परररोि
341. सदोष अवरोि के ललए दं ड
342. सदोष परररोि के ललए दं ड
343. तीि या अधिक हदिों के ललए सदोष परररोि
344. दस या अधिक हदिों के ललए सदोष परररोि
345. ऐसे व्यक्तत का सदोष परररोि, क्जसके छोडिे के ललए ररट निकल चक
ु ा िै
346. गप्ु त स्थाि में सदोष परररोि
347. संपवि उद्यावपत करिे के ललए या अवैि कायत करिे के ललए मजबरू करिे के ललए सदोष परररोि
348. संस्वीकृनत उद्यावपत करिे के ललए या वववश करके संपवि का प्रत्यावतति करिे के ललए सदोष
परररोि

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आपराधधक बल और िमले के विषय में
349. बल
350. आपराधिक बल
351. िमला
352. गंभीर प्रकोपि िोिे से अन्यथा िमला करिे या आपराधिक बल का प्रयोग करिे के ललए दं ड
353. लोक-सेवक को अपिे कितव्य के निवतिि से भयोपरत करिे के ललए िमला या आपराधिक बल का
प्रयोग
354. स्त्री की लज्जा भंग करिे के आशय से उस पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग
354क. लैंधगक उत्पीडि और लैंधगक उत्पीडि के ललए दण्ड
354ख. वववस्त्र करिे के आशय से स्त्री पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग
354ग. दृश्यरनतकता
354घ. पीछा करिा
355. गंभीर प्रकोपि िोिे से अन्यथा ककसी व्यक्तत का निरादर करिे के आशय से उस पर िमला या
आपराधिक बल का प्रयोग
356. ककसी व्यक्तत द्वारा ले जाई जािे वाली संपवि की चोरी के प्रयत्िों में िमला या आपराधिक बल
का प्रयोग
357. ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि करिे के प्रयत्िों में िमला या आपराधिक बल का प्रयोग
358. गंभीर प्रकोपि लमलिे पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग

व्यपिरण, अपिरण, दासत्ि और बलात्रम के विषय में

359. व्यपिरण
360. भारत में से व्यपिरण
361. ववधिपण
ू त संरक्षकता में से व्यपिरण
362. अपिरण
363. व्यपिरण के ललए दं ड
363क. भीख मांगिे के प्रयोजि के ललए अप्राप्तवय का व्यपिरण या ववकलांगीकरण
364. ित्या करिे के ललए व्यपिरण या अपिरण
364क. मक्ु तत-िि आहद के ललए व्यपिरण
365. ककसी व्यक्तत का गप्ु त रीनत से और सदोष परररोि करिे के आशय से व्यपिरण या अपिरण
366. वववाि आहद के करिे को वववश करिे के ललए ककसी स्त्री को व्यपहृत करिा, अपहृत करिा या
उत्प्रेररत करिा
366क. अप्राप्तवय लड़की का उपापि
366ख. ववदे श से लड़की का आयात करिा
367. व्यक्तत को घोर उपिनत, दासत्व, आहद का ववषय बिािे के उद्दे श्य से व्यपिरण या अपिरण
368. व्यपहृत या अपहृत व्यक्तत को सदोष नछपािा या परररोि में रखिा
369. दस वषत से कम आयु के लशशु के शरीर पर से चोरी करिे के आशय से उसका व्यपिरण या
अपिरण

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370. दास के रुप में ककसी व्यक्तत का खरीदिा या व्ययि करिा
370क. ऐसे व्यक्तत का, क्जसका दव्ु यातपार ककया गया िै , शोषण
371. दासों का आभ्यालसक व्यौिार करिा
372. वेश्यावक्ृ त्त आहद के प्रयोजि के ललए अप्राप्तवय को बेचिा
373. वेश्यावक्ृ त्त के प्रयोजि के ललए अप्राप्तवय का खरीदिा आहद
374. ववधिववरुद्ि अनिवायत श्रम-

यौन अपराध
375. बलात्संग
376. बलात्संग के ललए दण्ड
376क. पथ
ृ क रििे के दौराि ककसी परु
ु ष द्वारा अपिी पत्िी के साथ संभोग
376ख. लोक-सेवक द्वारा अपिी अलभरक्षा में की ककसी स्त्री के साथ संभोग
376ग. जेल, प्रनतप्रेषणगि
ृ आहद के अिीक्षक द्वारा संभोग
376घ. अस्पताल के प्रबंिक या कमतचारीवद
ं ृ आहद के ककसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में ककसी स्त्री के
साथ संभोग
376ङ. पि
ु रावक्ृ त्तकतात अपराधियों के ललए दण्ड

प्रकृतत-विरुद्ध अपराधों के विषय में

377. प्रकृनत-ववरुद्ि अपराि

अध्याय 17
सम्पवि के विरुद्ध अपराधों के विषय में
चोरी के विषय में
378. चोरी
379. चोरी के ललए दं ड
380. निवास-गि
ृ आहद में चोरी
381. ललवपक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की संपवि की चोरी
382. चोरी करिे के ललए मत्ृ य,ु उपिनत या अवरोि काररत करिे की तैयारी के पश्चात ् चोरी

उद्दापन के विषय में


383. उद्दापि
384. उद्दापि के ललए दं ड
385. उद्यापि करिे के ललए ककसी व्यक्तत को क्षनत के भय में डालिा
386. ककसी व्यक्तत को मत्ृ यु या घोर उपिनत के भय में डालकर उद्दापि
387. उद्दापि करिे के ललए ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु या घोर उपिनत के भय में डालिा
388. मत्ृ यु या आजीवि कारावास, आहद से दं डिीय अपराि का अलभयोग लगािे की िमकी दे कर
उद्दापि
389. उद्दापि करिे के ललए ककसी व्यक्तत को अपराि का अलभयोग लगािे के भय में डालिा
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लूट और डकैती के विषय में
390. लट

391. डकैती
392. लट
ू के ललए दं ड
393. लट
ू करिे का प्रयत्ि
394. लट
ू करिे में स्वेच्छया उपिनत काररत करिा
395. डकैती के ललए दं ड
396. ित्या सहित डकैती
397. मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत करिे के प्रयत्ि के साथ लट
ू या डकैती
398. घातक आयि
ु से सक्ज्जत िोकर लट
ू या डकैती करिे का प्रयत्ि
399. डकैती करिे के ललए तैयारी करिा
400. डाकुओं की टोली का िोिे के ललए दं ड
401. चोरों की टोली का िोिे के ललए दं ड
402. डकैती करिे के प्रयोजि से एकब्रत्रत िोिा

सम्पवि के आपराधधक दवु िातनयोग के विषय में


403. संपवि का बेईमािी से दवु वतनियोग
404. ऐसी संपवि का बेईमािी से दवु वतनियोग जो मत
ृ व्यक्तत की मत्ृ यु के समय उसके कब्जे में थी

आपराधधक धयासभंग के विषय में


405. आपराधिक न्यासभंग
406. आपराधिक न्यासभंग के ललए दं ड
407. वािक, आहद द्वारा आपराधिक न्यासभंग
408. ललवपक या सेवक द्वारा आपराधिक न्यासभंग
409. लोक-सेवक द्वारा या बैंकर, व्यापारी या अलभकतात द्वारा आपराधिक न्यासभंग

चरु ाई िुई संपवि प्राप्त करने के विषय में


410. चुराई िुई संपवि
411. चुराई िुई संपवि को बेईमािी से प्राप्त करिा
412. ऐसी संपवि को बेईमािी से प्राप्त करिा जो डकैती करिे में चुराई गई िै -
413. चुराई िुई संपवि का अभ्यासत: व्यापार तविा
414. चरु ाई िुई संपवि नछपािे में सिायता करिा
छल के विषय में
415. छल
416. प्रनतरुपण द्वारा छल
417. छल के ललए दं ड
418. इस ज्ञाि के साथ छल करिा कक उस व्यक्तत को सदोष िानि िो सकती िै क्जसका हित संरक्षक्षत

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रखिे के ललए अपरािी आबद्ि िै
419. प्रनतरुपण द्वारा छल के ललए दं ड
420. छल करिा और संपवि पररदि करिे के ललए बेईमािी से उत्प्रेररत करिा

कपटपूणा विलेखों और संपन्त्त-व्ययनों के विषय में


421. लेिदारों में ववतरण निवाररत करिे के ललए संपक्त्त का बेईमािी से या कपटपण
ू त अपसारण या
नछपािा
422. ऋण को लेिदारों के ललए उपलब्ि िोिे से बेईमािी से या कपटपव
ू क
त निवाररत करिा
423. अंतरण ऐसे ववलेख का, क्जसमें प्रनतफल के संबि
ं में लमथ्या कथि अंतववतष्ट िै बेईमािी से या
कपटपव
ू क
त निष्पादि
424. संपवि का बेईमािी से या कपटपव
ू क
त अपसारण या नछपाया जािा

ररन्ष्ट के विषय में

425. ररक्ष्ट
426. ररक्ष्ट के ललए दं ड
427. ररक्ष्ट क्जससे पचास रुपये का िक
ु साि िोता िै
428. दस रुपये के मल्
ू य के जीव-जन्तु को वि करिे या उसे ववकलांग करिे द्वारा ररक्ष्ट
429. ककसी मल्
ू य के ढोर आहद की या पचास रुपये के मल्
ू य के ककसी जीव-जन्तु को वि करिे या उसे
ववकलांग करिे द्वारा ररक्ष्ट
430. लसंचि संकमत को क्षनत करिे या जल को दोषपव
ू क
त मोडिे द्वारा ररक्ष्ट
431. लोक सड़क, पल
ु , िदी या जल- सारणी को क्षनत पिुाँचाकर ररक्ष्ट
432. लोक जल-निकास में िक
ु सािप्रद जलप्लावि या बािा काररत करिे द्वारा ररक्ष्ट
433. ककसी दीपगि
ृ या समद्र
ु ी धचन्ि को िष्ट करिे, िटाकर या कम उपयोगी बिाकर ररक्ष्ट
434. लोक प्राधिकारी द्वारा लगाए गए भलू म-धचन्ि को िष्ट करिे या िटािे आहद द्वारा ररक्ष्ट
435. सौ रुपये का या (कृवष-उपज की दशा में) दस रुपये का िक
ु साि काररत करिे के आशय से अक्‍ि
या ववस्फोटक पदाथत द्वारा ररक्ष्ट
436. गि
ृ आहद को िष्ट करिे के आशय से अक्‍ि या ववस्फोटक पदाथत द्वारा ररक्ष्ट
437. तल्लायत
ु ि या बीस टि बोझ वाले जलयाि को िष्ट करिे या सापद बिािे के आशय से ररक्ष्ट
438. िारा 437 में वखणतत अक्‍ि या ववस्फोटक पदाथत द्वारा की गयी ररक्ष्ट के ललए दं ड
439. चोरी आहद करिे के आशय से जलयाि को साशय भलू म या ककिारे पर चढा दे िे के ललए दं ड
440. मत्ृ यु या उपिनत काररत करिे की तैयारी के पश्चात ् की गयी ररक्ष्ट

आपराधधक अततचार के विषय में


441. आपराधिक अनतचार
442. गि
ृ -अनतचार
443. प्रच्छन्ि गि
ृ - अनतचार
444. रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार

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445. गि
ृ -भेदि
446. रात्रौ गि
ृ -भें दि
447. आपराधिक अनतचार के ललए दं ड
448. गि
ृ -अनतचार के ललए दं ड
449. मत्ृ यु से दं डिीय अपराि को करिे के ललए गि
ृ - अनतचार
450. आजीवि कारावास से दं डिीय अपराि को करिे के ललए गि
ृ -अनतचार
451. कारावास से दं डिीय अपराि को करिे के ललए गि
ृ -अनतचार
452. उपिनत, िमला या सदोष अवरोि की तैयारी के पश्चात ् गि
ृ -अनतचार
453. प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या गिृ -भेदि के ललए दं ड
454. कारावास से दं डिीय अपराि करिे के ललए प्रच्छन्ि गिृ - अनतचार या गि
ृ -भेदि
455. उपिनत, िमले या सदोष अवरोि की तैयारी के पश्चात ् प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या गि
ृ -भेदि
456. रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौ गि
ृ - भेदि के ललए दं ड
457. कारावास से दं डिीय अपराि करिे के ललए रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौ गिृ -भेदि
458. उपिनत, िमला या सदोष अवरोि की तैयारी के पश्चात ् रात्री प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौ गि
ृ -
भेदि
459. प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या गिृ - भेदि करते समय घोर उपिनत काररत िो
460. रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौ गि
ृ -भेदि में संयत
ु तत: संपत
ृ त समस्त व्यक्तत दं डिीय िैं,
जबकक उिमें से एक द्वारा मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत की िो
461. ऐसे पात्र को क्जसमें संपवि िै , बेईमािी से तोडकर खोलिा
462. उसी अपराि के ललए दं ड, जबकक वि ऐसे व्यक्तत द्वारा ककया गया िै क्जसे अलभरक्षा न्यस्त की
गई िै

अध्याय 18
दस्तािेजों और संपवि धचधिों संबंधी अपराधों के विषय में
463. कूटरचिा
464. लमथ्या दस्तावेज रचिा
465. कूटरचिा के ललए दं ड
466. न्यायालय के अलभलेख की या लोक रक्जस्टर आहद की कूटरचिा
467. मल्
ू यवाि प्रनतभनू त, ववल इत्याहद की कूटरचिा
468. छल के प्रयोजि से कूटरचिा
469. ख्यानत को अपिानि पिुाँचािे के आशय से कूटरचिा
470. कूटरधचत दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख
471. कूटरधचत दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख का असली के रुप में उपयोग में लािा
472. िारा 467 के अिीि दं डिीय कूटरचिा के आशय के कूटकृत मद्र
ु ा आहद का बिािा या कब्जे में
रखिा
473. अन्यथा दं डिीय कूटरचिा करिे के आशय से कूटकृत मद्र
ु ा आहद का बिािा या कब्जे में रखिा
474. िारा 466 या 467 में वखणतत दस्तावेज को, उसे कूटरधचत जािते िुए और उसे असली के रुप में
उपयोग में लािे का आशय रखते िुए कब्जे में रखिा
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475. िारा 467 में वखणतत दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के ललए उपयोग में लायी जािे वाली
अलभलक्षणा या धचन्ि की कूटकृनत बिािा या कूटकृत धचन्ियत
ु त पदाथत को कब्जे में रखिा
476. िारा 467 में ववणतत दस्तावेजों से लभन्ि दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के ललए उपयोग में लायी
जािे वाली अलभलक्षणा या धचन्ि को कूटकृती बिािा या कूटकृत धचन्ियत
ु त पदाथत को कब्जे में
रखिा
477. ववल, दिक ग्रिण प्राधिकारपत्र या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त को कपटपव
ू क
त रद्द, िष्ट आहद करिा
477क. लेखा का लमथ्याकरण

संपवि धचधिों और अधय धचधिों के विषय में


478. (...................) निरलसत
479. संपवि धचन्ि
480. लमथ्या व्यापार धचन्ि का प्रयोग ककया जािा
481. लमथ्या संपवि-धचन्ि को उपयोग में लािा
482. लमथ्या संपवि-धचन्ि का उपयोग करिे के ललए दं ड
483. अन्य व्यक्तत द्वारा उपयोग में लाए गए संपवि धचन्ि का कूटकरण
484. लोक-सेवक द्वारा उपयोग में लाए गए धचन्ि का कूटकरण
485. संपवि धचन्ि के कूटकरण के ललए कोई उपकरण बिािा या उस पर कब्जा
486. कूटकृत संपवि धचन्ि से धचक्न्ित माल का ववक्रय
487. ककसी ऐसे पात्र के ऊपर लमथ्या धचन्ि बिािा क्जसमें माल रखा िै
488. ककसी ऐसे लमथ्या धचन्ि को उपयोग में लािे के ललए दं ड
489. क्षनत काररत करिे के आशय से संपवि धचन्ि को ब्रबगाड़िा

करें सी नोटों और बैंक नोटों के विषय में


489क. करें सी िोटों या बैंक िोटों का कूटकरण
489ख. कूटरधचत या कूटकृत करें सी िोटों या बैंक िोटों को असली के रुप में उपयोग में लािा
489ग. कूटरधचत या कूटकृत करें सी िोटों या बैंक िोटों को कब्जे में रखिा
489घ. करें सी िोटों या बैंक िोटों की कूटरचिा या कूटकरण के ललए उपकरण या सामग्री बिािा या
कब्जे में रखिा
489ङ. करें सी िोटों या बैंक िोटों से सादृश्य रखिे वाले दस्तावेजों की रचिा या उपयोग

अध्याय 19
सेिा संविदाओं के आपराधधक भंग के विषय में
490. (...........) निरलसत
491. असिाय व्यक्तत की पररचयात करिे की और उसकी आवश्यकताओं की पनू तत करिे की संववदा का
भंग
492. (............) निरलसत

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अध्याय 20
वििाि संबंधी अपराधों के विषय में
493. ववधिपण
ू त वववाि का प्रवंचिा से ववश्वास उत्पेररत करिे वाले परु
ु ष द्वारा काररत सिवास
494. पनत या पत्िी के जीवि काल में पि
ु : वववाि करिा
495. विी अपराि पव
ू व
त ती वववाि को उस व्यक्तत को नछपाकर क्जसके साथ पश्चात्वती वववाि ककया
जाता िै
496. ववधिपण
ू त वववाि के ब्रबिा कपटपव
ू क
त वववािकमत परू ा कर लेिा
497. जारकमत
498. वववाहिता स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जािा, या ले जािा या निरुद्ि रखिा

अध्याय 20-क
पतत या पतत के नातेदारों द्िारा क्रूरता के विषय में
498क. ककसी स्त्री के पनत या पनत के िातेदार द्वारा उसके प्रनत क्रूरता करिा

अध्याय 21
मानिातन के विषय में
499. माििानि
500. माििानि के ललए दं ड
501. माििानिकारक जािी िुई बात को महु द्रत या उत्कीणत करिा
502. माििानिकारक ववषय रखिे वाले महु द्रत या उत्कीणत पदाथत का बेचिा

अध्याय 22
आपराधधक अभभत्रास, अपमान और क्षोभ के विषय में
503. आपराधिक अलभत्रास
504. लोक शांनत भंग करिे को प्रकोवपत करिे के आशय से साशय अपमाि
505. लोक ररक्ष्ट कारक वततव्य
506. आपराधिक अलभत्रास के ललए दं ड
507. अिाम संसच
ू िा द्वारा आपराधिक अलभत्रास
508. व्यक्तत को यि ववश्वास करिे के ललए उत्प्रेररत करके कक वि दै वी अप्रसाद का भाजि िोगा, कराया
गया कायत
509. शब्द, अंगववक्षेप या कायत जो ककसी स्त्री की लज्जा का अिादर करिे के ललए आशनयत िै
510. मि व्यक्तत द्वारा लोक-स्थाि में अवचार

अध्याय 23
अपराधों को करने के प्रयत्नों के विषय में
511. आजीवि कारावास या अन्य कारावास से दं डिीय अपरािों को करिे के प्रयत्ि करिे के ललए दं ड

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भारतीय दं ड संहिता 1860
(1860 का अधधतनयम सं. 45)

6 अक्टूबर, 1860

अध्याय 1

प्रस्तािना

उद्दे भशका- 1[भारत] के ललए एकसािारण दण्ड संहिता का उपबंि करिा समीचीि िै ; अत: यि निम्िललखखत
रुप में अधिनियलमत ककया जाता िै ,

धारा- 1- संहिता का नाम और उसके प्रितान का विस्तार- यि अधिनियम भारतीय दं ड संहिता किलाएगा
और इसका 3[ववस्तार 4[जम्म-ू कश्मीर राज्य के लसवाय] संपण
ू त भारत पर िोगा।

1. शब्द “ब्रिहटश भारत” अिक्र


ु मशः भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम एवं अध्यादे श अिक
ु ू लि)
आदे श, 1948, ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 और 1951 के अधिनियम अिक
ु ू लि संख्यांक 3 द्वारा
संशोधित ||
2. मल
ू शब्द अिक्र
ु मशः 1891 के अधिनियम सं. 12 एवं अिस
ु च
ू ी 1, भारत शासि (भारतीय ववधि
अिक
ु ू लि) आदे श, 1937, भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम एवं अध्यादे श अिक
ु ू लि) आदे श,
1948 एवं ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 द्वारा संशोधित |
3. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-2- भारत के भीतर ककए गए अपराधों का दं ड- िर व्यक्तत इस संहिता के उपबंिो के प्रनतकूल िर


कायत या लोप के ललए क्जसका वि 1[भारत] के भीतर दोषी िोगा, इसी संहिता के अिीि दं डिीय िोगा अन्यथा ििीं|

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-3- 1[भारत] से परे ककए गए ककधतु उसके भीतर विधध के अनस


ु ार विचारणीय अपराधों का दं ड- भारत से
परे ककए गए अपराि के ललए जो कोई व्यक्तत ककसी भारतीय ववधि के अिस
ु ार ववचारण का पात्र िो, ¹[भारत] से परे
ककए गए ककसी कायत के ललए उससे इस संहिता के उपबंिों के अिस
ु ार ऐसा बरता (समक्षा) जाएगा, मािो वि कायत
¹[ भारत] के भीतर ककया गया था।

धारा-4- राज्यक्षेत्रातीय अपराधों पर संहिता का विस्तार- इस संहिता के उपबंि-

3
[(1) भारत से बािर और परे ककसी स्थाि में भारत के ककसी िागररक द्वारा;

(2) भारत में रक्जस्रीकृत ककसी पोत या ववमाि पर, चािे वि किीं भी िो, ककसी व्यक्तत द्वारा ककए गए
ककसी अपराि को भी लागू िै |

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5
[(3 भारत में अवक्स्थत कंप्यट
ू र सािि को लक्ष्य बिाकर भारत के बािर और परे ककसी स्थाि में ककसी
व्यक्तत द्वारा कोई अपराि काररत करिा]

5
(स्पष्टीकरण)- इस िारा में-

(क) “अपराध” शब्द के अन्तगतत भारत से बािर ककया गया ऐसा िर कायत आता िै , जो यहद भारत में
ककया जाता तो, इस संहिता के अिीि दं डिीय िोता;

(ख) “कम्प्यट
ू र साधन” पद का विी अथत िै जो, सच
ू िा प्रौद्योधगकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की
िारा 2 की उपिारा (1) के खंड (ट) में समिहु दष्ट िै

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा खण्ड (1) के द्वारा खंड (1) से (4) के ललए प्रनतस्थावपत |
3. सच
ू िा प्रौद्योधगकी (संशोिि) अधिनियम, 2009 के सं. 10 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 27.10.2009.
से प्रभावी |

“13[धारा-5- कुछ विधधयों पर इस अधधतनयम द्िारा प्रभाि न डाला जाना- इस अधिनियम में की कोई बात
भारत सरकार की सेवा के ऑकफसरों, सैनिकों, िौसैनिकों या वायस
ु नै िकों द्वारा ववद्रोि और अलभत्यजि को दं डडत
करिे वाले ककसी अधिनियम के उपबंिों, या ककसी ववशेष या स्थािीय ववधि के उपबंिों पर प्रभाव ििीं डालेगी।]

अध्याय 2

साधारण स्पष्टीकरण

धारा-6- संहिता में की पररभाषाओं का अपिादों के अध्यधीन समझा जाना- इस संहिता में सवतत्र अपराि की
िर पररभाषा, िर दं ड उपबंि और िर ऐसी पररभाषा या दं ड उपबंि का िर दृष्टांत, “सािारण अपवाद” शीषकत वाले
अध्याय में अंतववतष्ट अपवादों के अध्यिीि समझा जाएगा, चािे उि अपवादों को ऐसी पररभाषा, दं ड उपबंि या
दृष्टांत में दिु राया ि गया िो।

1. 1951 के अधिनियम सं. 10 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.9.1957 से प्रभावी |


2. 1957 के अधिनियम सं. 36 द्वारा “(क)” कोष्िकों व अक्षर लप्ु त | हदिांक 17.9.1957 से प्रभावी |
3. 1948 के ववधि अिक
ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
4. 1950 के ववधि अिक
ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
5. 1951 के अधिनियम सं. 3 द्वारा प्रररस्थावपत |
6. 1950 के ववधि अिक
ु ू लि आदे श द्वारा उदािरण (ख), (ग) एवं (घ) लप्ु त ककए गए |
7. 1950 के ववधि अिक
ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-7- एक बार स्पष्टीकृत पद का भाि- िर पद, क्जसका स्पष्टीकरण इस संहिता के ककसी भाग में ककया
गया िै , इस संहिता के िर भाग में उस स्पष्टीकरण के अिरू
ु प िी प्रयोग ककया गया िै ।

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धारा-8- भलंग- पक्ु ल्लंग वाचक शब्द जिां प्रयोग ककए गए िैं, वे िर व्यक्तत के बारे में लागू िैं, चािे वि िर
िो या िारी।

धारा-9- िचन- जब तक कक संदभत से तत्प्रनतकूल प्रतीत ि िो, एक वचि द्योतक शब्दों के अंतगतत बिुवचि
आता िै , और बिुवचि द्योतक शब्दों के अंतगतत एकवचि आता िै ।

धारा-10- “परु
ु ष“, “स्त्री” – “ परु
ु ष” शब्द ककसी भी आयु के मािव िर का द्योतक िै ; “स्त्री” शब्द ककसी भी
आयु की मािव िारी का द्योतक िै ।

धारा-11- “व्यन्क्त” - कोई भी कंपिी या संगम, या व्यक्तत निकाय चािे वि निगलमत िो या ििीं, “ व्यक्तत”
शब्द के अंतगतत आता िै ।

धारा-12- “लोक” - लोक का कोई भी वगत या समद


ु ाय “लोक” शब्द के अंतगतत आता िै ।

धारा-13 – “क्िीन” – (अिक


ु ू लि आदे श, 1950 द्वारा निरलसत ।)

1
[धारा-14- “सरकार का सेिक” – “सरकार का सेवक” शब्द सरकार के प्राधिकार के द्वारा या अिीि भारत के
भीतर उस रुप में बिे रििे हदए गए, नियत
ु त ककए गए, या नियोक्जत ककए गए ककसी भी ऑकफसर या सेवक के
द्योतक िै ।]

धारा-15 - “ ब्रिहटश इंडडया” – (ववधि अिक


ु ू लि आदे श 1937 द्वारा निरलसत ।)

धारा-16- “भारत सरकार” – (भारतीय ववधि अिक


ु ू ल आदे श, 1937 द्वारा निरलसत |)

धारा-17- “सरकार” - “सरकार” शब्द केंन्द्रीय सरकार या ककसी 3[***] राज्य की सरकार का द्योतक िै |]

5
[धारा-18- “भारत” - “भारत” से जम्म-ू कश्मीर राज्य के लसवाय भारत का राज्यक्षेत्र अलभप्रेत िै ।]

धारा-19- “धयायाधीश” – “न्यायािीश” शब्द ि केवल िर ऐसे व्यक्तत का द्योतक िोता िै , जो पद रुप से
न्यायािीश अलभहित िो, ककं तु उस िर व्यक्तत का द्योतक िै ,

जो ककसी ववधि कायतवािी में , चािे वि लसववल िो या दांडडक, अंनतम निणतय या ऐसा निणतय, जो उसके
ववरुद्ि अपील ि िोिे पर अंनतम िो जाए, या ऐसा निणतय, जो ककसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पष्ु ट ककए जािे पर
अंनतम िो जाए, दे िे के ललए ववधि द्वारा सशतत ककया गया िो अथवा

जो उस व्यक्तत-निकाय में से एक िो, जो

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 1951 के अधिनियम सं. 3 द्वारा शब्दों “भाग क” को लप्ु त ककया गया
3. 1951 के अधिनियम सं. तीसरी पास द्वारा प्रनतस्थावपत |

व्यक्तत-निकाय ऐसा निणतय दे िे के ललए ववधि द्वारा सशतत ककया गया िो ।

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धारा-20- “धयायालय” - “न्यायालय” शब्द उस न्यायािीश का, क्जसे अकेले िी का न्यानयकत: कायत करिे के
ललए ववधि द्वारा सशतत ककया गया िो, या उस न्यायािीश-निकाय का, क्जसे एक निकाय के रूप में न्यानयकत:
कायत करिे के ललए ववधि द्वारा सशतत ककया गया िो, जब कक ऐसा न्यायािीश या न्यायािीश-निकाय न्यानयकत:
कायत कर रिा िो, द्योतक िै।

धारा-21- “लोकसेिक” – “लोकसेवक” शब्द उस व्यक्तत का द्योतक िै जो एतक्स्मि ् पश्चात ् निम्िगत वणतिों
में से ककसी में आता िै , अथातत :-

1
[***]

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रथम खंड निरलसत

दस
ू रा- भारत की [***]सेिा, िौसेिा या वायस
1
ु ेिा का िर आयत
ु त ऑकफसर;

3
[तीसरा- िर न्यायािीश क्जसके अन्तगतत ऐसा कोई भी व्यक्तत आता िै जो ककन्िीं न्याय- निणातनयक कृत्यों
का चािे स्वयं या व्यक्ततयों के ककसी निकाय के सदस्य के रुप में निवतिि करिे के ललए ववधि द्वारा सशतत ककया
गया िो;]

चौथा- न्यायालय का िर ऑकफसर, 3[क्जसके अन्तगतत समापक, ररसीवर या कलमश्िर आता िै ] क्जसका ऐसे
ऑकफसर के िाते यि कितव्य िो कक ववधि या तथ्य के ककसी मामले में अन्वेषण या ररपोटत करे , या कोई दस्तावेज
बिाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे, या ककसी संपवि का भार संभाले या उस संपवि का व्ययि करे , या ककसी
न्यानयक आदे लशका का निष्पादि करे , या कोई शपथ ग्रिण कराए या निवतचि करे , या न्यायालय में व्यवस्था बिाए
रखे और िर व्यक्तत, क्जसे ऐसे कितव्यों में से ककन्िीं का पालि करिे का प्राधिकार न्यायालय द्वारा ववशेष रूप से
हदया गया िो;

पााँचिााँ- ककसी न्यायालय या लोक- सेवक की सिायता करिे वाला िर जरू ी सदस्य, असेसर या पंचायत का
सदस्य ।

छठा- िर मध्यस्थ या अन्य व्यक्तत, क्जसको ककसी न्यायालय द्वारा, या ककसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी
द्वारा कोई मामला या ववषय, ववनिश्चय या ररपोटत के ललए, निदे लशत ककसी गया िो;

सातिााँ- िर व्यक्तत जो ककसी ऐसे पद को िारण करता िो, क्जसके आिार से वि ककसी व्यक्तत को परररोि
में करिे या रखिे के ललए सशतत िो ;

आठिााँ- सरकार का िर ऑकफसर क्जसका ऐसे ऑकफसर के िाते यि कितव्य िो कक वि

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा शब्द “डोमेनियम” लप्ु त |
2. 1964 के अधिनियम सं. 40 द्वारा अंत: स्थावपत | हदिांक 18.12.1964 से प्रभावी |

अपरािों का निवारण कर अपरािों की इविला दे , अपराधियों को न्याय के ललए उपक्स्थत करे , या लोक-स्वास्थ्य,
क्षेम या सवु विा की संरक्षा करे ;
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निााँ- िर ऑकफसर क्जसका ऐसे ऑकफसर के िाते यि कितव्य िो कक वि सरकार की ओर से ककसी संपवि
को ग्रिण करे , प्राप्त करे , रखे, या व्यय करे , या सरकार की ओर से कोई सवेक्षण, नििातरण या संववदा करे , या
ककसी राजस्व आदे लशका का निष्पादि करे या सरकार के िि संबिी हितों पर प्रभाव डालिे वाले ककसी मामले में
अन्वेषण या ररपोटत करे या सरकार के िि संबिी हितों से संबधं ित ककसी दस्तावेज को बिाए, अधिप्रमाणीकृत करे
या रखे, या सरकार 1[***]के िि संबि
ं ी हितों की संरक्षा के ललए ककसी ववधि के व्यनतक्रम को रोके ;

दसिााँ- िर ऑकफसर, क्जसका ऐसे ऑकफसर के िाते यि कितव्य िो कक वि ककसी ग्राम, िगर या क्जले के
ककसी िमतनिरपेक्ष सामान्य प्रयोजि के ललए ककसी संपवि को ग्रिण करे , प्राप्त करे , रखे, या व्यय करे , कोई सवेक्षण
या नििातरण करे , या कोई रे ट या उद्गि
ृ ीत करे , या ककसी ग्राम, िगर या क्जले के लोगों के अधिकारों के अलभनिश्चयि
के ललए कोई दस्तावेज बिाए, अधिप्रामाणीकृत करे या रखे ;

3
[ग्यारििां- िर व्यक्तत जो कोई ऐसा पद िारण करता िो, क्जसके आिार से वि निवातचक िामावली तैयार
करिे, प्रकालशत करिे, बिाए रखिे या पि
ु रीक्षक्षत करिे के ललए या निवातचि के ककसी भाग को संचाललत करिे के
ललए सशतत िो;]

5
[बारििााँ- िर व्यक्तत, जो -

(क) सरकार की सेवा या वेति में िो या ककसी लोक-कितव्य के पालि के ललए सरकार से फीस
या कमीशि के रूप में पाररश्रलमक पाता िो;

1. 1964 के अधिनियम सं. 40 द्वारा कनतपय शब्द लप्ु त ककए गए | हदिांक 18.12.1964 से प्रभावी |
2. 1920 के अधिनियम सं.39 द्वारा अंत:स्थावपत |
3. 1964 के अधिनियम सं.40 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 18.12.1964 से प्रभावी |

(ख) स्थायीि प्राधिकारी की, अथवा केंद्र, प्रांत या राज्य के अधिनियम के द्वारा या अिीि स्थावपत निगम की
अथवा कंपिी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की िारा 617 में यथा पररभावषत सरकारी कंपिी की, सेवा या वेति
में िो|]

1
[स्पष्टीकरण 3.- “निवातचि” शब्द ऐसे ककसी वविायी, िगरपाललका या अन्य लोक प्राधिकारी के िाते चािे
वि कैसे िी स्वरुप का िो, सदस्यों के वरणाथत निवातचि का द्योतक िै , क्जसके ललए वरण करिे की पद्िनत ककसी
ववधि के द्वारा या अिीि निवातचि के रूप ववहित की गई िो।

3
[***]

राज्य संशोधन

राजस्थान- िारा 21 में खंड 12 के उपरांत निम्ि िवीि खंड जोडा जाएगा-

“तेरिवााँ- ककसी ववधि के द्वारा मान्यताप्राप्त या अिम


ु ोहदत ककसी परीक्षा के संचालि एवं पयतवेक्षण में ककसी
लोक निकाय द्वारा नियोक्जत अथवा लगाया गया प्रत्येक व्यक्तत-

स्पष्टीकरण- लोक निकाय में शालमल िैं-


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(क) केन्द्रीय या राज्य अधिनियम के द्वारा या उसके अिीि या भारतीय संवविाि के प्राविािों के अन्तगतत
गहित या सरकार के द्वारा गहित ववश्वववद्यालय, परीक्षा मंडल या अन्य निकाय; एवं

(ख) एक स्थािीय प्राधिकरण

( राजस्थाि अधिनियम सं. 4 वषत 1993 के द्वारा । हदिांक 11 -2-1993 से प्रभावी ।)

1. 1920 के अधिनियम सं.39 द्वारा अंत:स्थावपत |


2. 1964 के अधिनियम सं.40 द्वारा स्पष्टीकरण 4 लप्ु त | हदिांक 18.12.1964 से प्रभावी

धारा-22- “जंगम संपन्त्त” – “जंगम संपवि” शब्दों से यि आशनयत िै कक इिके अंतगतत िर भांनत की मत
ू त
संपवि आती िै , ककं तु भलू म और वे चीजें, जो भब
ू द्ि िों या भब
ू द्ि ककसी चीज से स्थायी रुप से जकड़ी िुई िों, इिके
अंतगतत ििीं आती।

धारा-23 – “सदोष अभभलाभ” - “सदोष अलभलाभ” ववधि-ववरुद्ि साििों द्वारा ऐसी संपवि का अलभलाभ िै ,
क्जसका वैि रूप से िकदार अलभलाभ प्राप्त करिे वाला व्यक्तत ि िो।

“सदोष िातन” - “सदोष िानि” ववधि ववरुद्ि साििों िारा ऐसी संपवि की िानि िै , क्जसका वैि रुप से िकदार
िानि उिािे वाला व्यक्तत िो।

सदोष अभभलाभ प्राप्त करना, सदोष िातन उठाना- कोई व्यक्तत सदोष अलभलाभ प्राप्त करता िै , यि तब किा
जाता िै जबकक वि व्यक्तत सदोष रखे रिता िै और तब भी जबकक वि व्यक्तत सदोष अजति करता िै । कोई व्यक्तत
सदोष िानि उिाता िै , यि तब किा जाता िै जबकक उसे ककसी संपवि से सदोष अलग रखा जाता िै और तब भी
जबकक उसे ककसी संपवि से सदोष, वंधचत ककया जाता िै ।

धारा-24 – “बेईमानी से” - जो कोई इस आशय से कोई कायत करता िै कक एक व्यक्तत को सदोष अलभलाभ
काररत करे या अन्य व्यक्ततयों को सदोष िानि काररत करे , वि उस कायत को “बेईमानी से” करता िै यि किा जाता
िै ।

धारा-25- ”कपटपि
ू क
ा ” - कोई व्यक्तत ककसी बात को कपटपव
ू क
त करता िै यि किा जाता िै , यहद वि उस बात
को कपट करिे के आशय से करता िै , अन्यथा ििीं।

धारा-26 – “विश्िास करने का कारण” - कोई व्यक्तत ककसी बात के “ववश्वास करिे का कारण” रखता िै , यि
तब किा जाता िै , जब वि उस बात के ववश्वास करिे का पयातप्त िे तक
ु रखता िै, अन्यथा ििीं।

धारा-27- “पत्नी, भलवपक या सेिक के कब्जे में संपवि” - जबकक संपवि ककसी व्यक्तत के निलमि उस व्यक्तत
की पत्िी, ललवपक या सेवक के कब्जे में िै , तब वि इस संहिता के अथत के अंतगतत उस व्यक्तत के कब्जे में िै ।

स्पष्टीकरण- ललवपक या सेवक के िाते अस्थाई रुप से या ककसी ववलशष्ट अवसर पर नियोक्जत व्यक्तत इस
िारा के अथत के अन्तगतत ललवपक या सेवक िै ।

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धारा-28 – “ कूटकरण” - जो व्यक्तत एक चीज को दस
ू री चीज के सदृश इस आशय से करता िै कक वे उस
सदृश से प्रवंचिा करे , या यि संभाव्य जािते िुए करता िै कक तद्द्वारा प्रवंचिा की जाएगी, वि “कूटकरण” करता
िै , यि किा जाता िै ।

स्पष्टीकरण 1.- कूटकरण के ललए यि आवश्यक ििीं िै कक िकल िीक वैसी िी िो।

स्पष्टीकरण 2.- जबकक कोई व्यक्तत एक चीज को दस


ू री चीज के सदृश कर दे और सदृश ऐसा िै कक
तद्द्वारा ककसी व्यक्तत को प्रवंचिा िो सकती िो, तो जब तक कक तत्प्रनतकूल साब्रबत ि ककया जाए, यि उपिारणा
की जाएगी कक जो व्यक्तत एक चीज को दस
ू री चीज के इस प्रकार सदृश बिाता िै उसका आशय उस सदृश द्वारा
प्रवंचिा करिे का था या वि यि संभाव्य जािता था कक एतद्द्वारा प्रवंचिा की जाएगी|

धारा-29 - “दस्तािेज” – “ दस्तावेज” शब्द ककसी भी ववषय का द्योतक िै क्जसको ककसी पदाथत पर अक्षरों,
अंको या धचन्िों के सािि द्वारा, या उिमें एक से अधिक साििों द्वारा अलभव्यतत या वखणतत ककया गया िो जो
उस ववषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग ककए जािे को आशनयत िो या उपयोग ककया जा सके।

स्पष्टीकरण 1.- यि तत्विीि िै कक ककस सािि द्वारा या ककसी पदाथत पर अक्षर, अंक या धचन्ि बिाए गए
िैं या यि कक साक्ष्य ककसी न्यायालय के ललए आशनयत िै या ििीं, या उसमें उपयोग ककया जा सकता िै अथवा
ििीं।

स्पष्टीकरण 2- अक्षरों, अंकों या धचन्िों से जो कुछ भी वाखणक्ज्यक या अन्य प्रथा के अिस


ु ार व्याख्या करिे
पर अलभव्यतत करिे पर अलभव्यतत िोता िै , वि इस िारा के अथत के अन्तगतत ऐसे अक्षरों, अंकों या धचन्िों से
अलभव्यतत िुआ समझा जाएगा, चािे वि, वस्तत
ु : अलभव्यतत ि भी ककया गया िो।

[धारा 29क. इलेक्रातनक अभभलेख- “इलेतरानिक अलभलेख” शब्दों का विी अथत िोगा, जो उन्िें सच
1
ू िा
प्रोद्योधगकी अधिनियम, 2000 की िारा 2 की उपिारा (1) के खण्ड (ि) में समिद
ु े लशत ककया गया िै |]

धारा-30– “मल्
ू यिान प्रततभतू त” - “मल्
ू यवाि प्रनतभनू त” शब्द उस दस्तावेज के द्योतक िै , जो ऐसा दस्तावेज िै ,
या िोिा तात्पनयतत िै , क्जसके द्वारा कोई ववधिक अधिकार सक्ृ जत, ववस्तत
ृ , अंतररत, निबंधित, निवातवपत ककया जाए,
छोडा जाए या क्जसके द्वारा कोई व्यक्तत यि अलभस्वीकार करता िै कक वि ववधिक दानयत्व के अिीि िै , या अमक

ववधिक अधिकार ििीं रखता िै ।

धारा-31- “विल” – “ववल” शब्द ककसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक िै।

धारा-32- कायो का तनदे श करने िाले शब्दों के अंतगात अिैध लोप आता िै - जब तक कक संदभत से
तत्प्रनतकूल आशय प्रतीत ि िो, इस संहिता के िर भाग में ककए गए कायों का निदे श करिे वाले शब्दों का ववस्तार
अवैि लोपों पर भी िै ।

धारा-33- “काया”, “लोप” – “कायत” शब्द कायातवली का द्योतक उसी प्रकार िै क्जस प्रकार एक कायत का, “लोप”
शब्द लोपावली का द्योतक उसी प्रकार िै क्जस प्रकार एक लोप का|

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा अंत:स्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

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धारा-34- सामाधय आशय को अग्रसर करने में कई व्यन्क्तयों द्िारा ककए गए काया- जबकक कोई आपराधिक
कायत कई व्यक्ततयों द्वारा अपिे सब के सामान्य आशय को अग्रसर करिे में ककया जाता िै , तब ऐसे व्यक्ततयों में
से िर व्यक्तत उस कायत के ललए उसी प्रकार दानयत्व के अिीि िै , मािो वि कायत अकेले उसी िे िी ककया िो।

धारा-35- जबकक ऐसा काया इस कारण आपराधधक िै कक िि आपराधधक ज्ञान या आशय से ककया गया िै -
जब कभी कोई कायत, जो आपराधिक ज्ञाि या आशय से ककए जािे के कारण िी आपराधिक िै , कई व्यक्ततयों द्वारा
ककया जाता िै , तब ऐसे व्यक्ततयों में से िर व्यक्तत, जो ऐसे ज्ञाि या आशय से उस कायत में सक्म्मललत िोता िै , उस
कायत के ललए उसी प्रकार दानयत्व के अिीि िै , मािो वि कायत उस ज्ञाि या आशय से अकेले उसी के द्वारा ककया
गया िो।

धारा-36- अंशत: काया द्िारा या अंशत: लोप द्िारा काररत पररणाम- जिां किीं ककसी कायत द्वारा या ककसी
लोप द्वारा ककसी पररणाम का काररत ककया जािा या उस पररणाम को काररत करिे का प्रयत्ि करिा अपराि िै ,
विां यि समझा जाता िै कक उस पररणाम का अंशत: कायत द्वारा और अंशत: लोप द्वारा काररत ककया जािा विी
अपराि िै ।

धारा-37- ककसी अपराध को गहठत करने िाले कई कायों में से ककसी एक को करके सियोग करना- जब कक
कोई अपराि कई कायों द्वारा ककया जाता िै , तब जो कोई या तो अकेले या ककसी अन्य व्यक्तत के साथ सक्म्मललत
िोकर उि कायो में से कोई एक कायत करके उस अपराि के ककए जािे में साशय सियोग करता िै , वि उस अपराि
को करता िै ।

धारा-38- आपराधधक काया में संपक्


ृ त व्यन्क्त विभभधन अपराधों के दोषी िो सकेंगे- जिां कक कई व्यक्तत
ककसी आपराधिक कायत को करिे में लगे िुए या संपत
ृ त िैं, विां वे उस कायत के आिार पर ववलभन्ि अपरािों के दोषी
िो सकेंगे।

धारा-39- “स्िेच्छया” - कोई व्यक्तत ककसी पररणाम को “स्वेच्छया” काररत करता िै यि तब किा जाता िै , जब
वि उसे साििों के द्वारा काररत करता िै , क्जिके द्वारा उसे काररत करिा उसका आशय था या उि साििों द्वारा
काररत करता िै क्जि साििों को काम में लाते समय वि यि जािता था, या यि ववश्वास करिे का कारण रखता
था, कक उिसे उसका काररत िोिा संभाव्य िै ।

धारा 40- “अपराध” - इस िारा के खंड 2 और 3 में वखणतत अध्यायों और िाराओं के लसवाय “अपराि” शब्द
इस संहिता द्वारा दं डिीय की गई ककसी बात का द्योतक िै ।

अध्याय 4, अध्याय 5-क और निम्िललखखत िाराएं अथातत ् िारा 64,65, 66, 67,71,109, 110,112, 114, 115,
116, 117, 1118,

1. अधिनियम सं. 10 वषत 2009 की िारा 51 (ख) द्वारा अंत:स्थावपत | हदिांक 27.10.2009 से प्रभावी |

119,और 120], 187,194,195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223, 224, 225, 327, 328, 329, 330,
331, 347, 348, 388, 389 और 445 में “अपराि” शब्द इस संहिता के अिीि या एतक्स्मि ् पश्चात ् यथा
पररभावषत ववशेष या स्थािीय ववधि के अिीि दं डिीय बात का द्योतक िै ।

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और िारा 141, 176, 177, 201, 202, 212, 216, और 441 में “अपराि” शब्द का अथत उस दशा में विी िै
क्जसमें कक ववशेष या स्थािीय ववधि के अिीि दं डिीय बात ऐसी ववधि के अिीि छि मास या उससे अधिक अवधि
के कारावास से, चािे वि जम
ु ातिे सहित िो या रहित, दं डिीय िो।

धारा 41 – “विशेष विधध” – “ववशेष ववधि” वि ववधि िै जो ककसी ववलशष्ट ववषय को लागू िो।

धारा 42 – “ स्थानीय विधध”- “स्थािीय ववधि” वि ववधि िै जो 1[2 [भारत ]3 [***] के ककसी ववलशष्ट भाग को
िी लागू िो।

धारा 43 – “अिैध”, “करने के भलए िैध रूप से आबद्ध” - “अवैि” शब्द उस िर बात को लागू िै , जो अपराि
िो, या जो ववधि द्वारा प्रनतवषद्धि िो या जो लसववल कायतवािी के ललए आिार उत्पन्ि करती िो; और कोई व्यक्तत
उस बात को “करिे के ललए वैि रूप से आबद्ि” किा जाता िै क्जसका लोप करिा उसके ललए अवैि िै ।

धारा 44- “क्षतत” - “क्षनत” शब्द ककसी प्रकार की अपिानि का द्योतक िै , जो ककसी व्यक्तत के शरीर, मि,
ख्यानत या संपवि को अवैि कप से काररत िुई िो।

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1948 के द्वारा “ब्रिहटश इंडडया” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत |
2. 1951 के अधिनियम सं. 3 द्वारा “राज्यों” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत |
3. 1952 के अधिनियम सं. 48 द्वारा “में समाववष्ट राज्य क्षेत्रों” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत |

धारा 45- “जीिन” - जब तक कक संदभत से तत्प्रनतकूल प्रतीत ि िो, “जीवि” शब्द मािव के जीवि का
द्योतक िै ।

धारा 46- “मत्ृ य”ु - जब तक कक संदभत से तत्प्रनतकूल प्रतीत ि िो, “मत्ृ य”ु शब्द मािव की मत्ृ यु का द्योतक
िै ।

धारा 47- “जीिजधत”ु - “जीवजन्त”ु शब्द मािव से लभन्ि ककसी जीविारी का द्योतक िै ।

धारा 48- “जलयान” – “जलयाि” शब्द ककसी चीज का द्योतक िै , जो मािवों के या संपवि के जल द्वारा
प्रविण के ललए बिाई गई िो।

धारा 49 – “िषा, मास” - जिां किीं “वषत” शब्द या “मास” शब्द का प्रयोग ककया गया िै विां यि समझा
जाता िै कक वषत या मास की गणिा ब्रिहटश कलैण्डर के अिक
ु ू ल की जािी िै ।

धारा 50 – “धारा” – “िारा” शब्द इस संहिता के ककसी अध्याय के उि भागों में से ककसी एक का द्योतक िै ,
जो लसरे पर लगे संख्याकों द्वारा सलु भन्ि ककए गए िैं ।

धारा 51 – “शपथ” – “शपथ” के ललए ववधि द्वारा प्रनतस्थावपत सत्यनिष्ि प्रनतज्ञाि और ऐसी कोई घोषणा,
क्जसका ककसी लोक-सेवक के समक्ष ककया जािा या न्यायालय में या अन्यत्र सबत
ू के प्रयोजि के ललए उपयोग
ककया जािा ववधि द्वारा अपेक्षक्षत या प्राधिकृत िो, “शपथ” के अंतगतत आती िै ।

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धारा 52 – “सद्भािपि
ू क
ा ” - कोई बात “सद्भावपव
ू क
त ” की गई या ववश्वास की गई ििीं किीं जाती जो सम्यक
सतकतता और ध्याि के ब्रबिा की गई या ववश्वास की गई िो।

1
[धारा 52क. “संरय- िारा 157 में के लसवाय और िारा 130 में विााँ के लसवाए जिााँ कक संश्रय संधश्रत
व्यक्तत की पत्िी या पनत द्वारा

1. 1942 के अधिनियम सं. 8 के द्वारा अंत:स्थावपत |

हदया गया िो “संश्रय” शब्द के अन्तगतत ककसी व्यक्तत को आश्रय, भोजि, पेय, िि, वस्त्र, आयि
ु , गोलाबारुद या प्रविि
के सािि दे िा, या ककन्िीं साििों से चािे वे उसी प्रकार के िों या ििीं, क्जस प्रकार के इस िारा में पररगखणत िैं,
ककसी व्यक्तत की सिायता पकडे जािे से बचिे के ललए करिा, आता िै ।]

अध्याय 3

दण्डों के विषय में

धारा 53- “दण्ड” - अपरािी इस संहिता के उपबंिों के अिीि क्जि दं डों से दं डिीय िै , वे ये िैं-

पिला- मत्ृ य;ु

1
[दस
ू रा- आजीवि कारावास;]

3
[***]

चौथा- कारावास जो दो भााँनत का िै अथातत-

(1) कहिि, अथातत किोर श्रम के साथ.

(2) सादा;

पााँचिााँ- संपवि का समपिरण;

छटा- जुमातिा।

5
[धारा 53क- तनिाासन के प्रतत तनदे श का अथा लगाना- (1) उपिारा (2) के और उपिारा (3) के उपबंिों के
अध्यिीि ककसी अन्य तत्समय प्रवि
ृ ववधि में , या ककसी ऐसी ववधि या ककसी निरलसत अधिनियलमत के आिार पर
प्रभावशील ककसी ललखखत या आदे श में “आजीवि निवातसि” के प्रनत निदे श का अथत लगाया जाएगा, कक वि
“आजीवि कारावास” के प्रनत निदे श िै ।

(2) िर मामले में , क्जसमें कक ककसी अवधि के ललए निवातसि का दं डादे श द.प्र.सं. (संशोिि) अधिनियम,
[1955] (1955 का 26) के प्रारं भ के पव
1
ू त हदया गया िै , अपरािी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मािो वि उसी अवधि
के ललए कहिि कारावास के ललए दं डाहदष्ट ककया गया िो|

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(3) ककसी अन्य तत्समय प्रवि
ृ ववधि में ककसी अवधि के ललए निवातसि या ककसी लघत
ु र अवधि के ललए
निवातसि के प्रनत (चािे उसे कोई भी िाम हदया गया िो) कोई निदे श लप्ु त कर हदया गया समझा जाएगा।

(4) ककसी अन्य समय तत्समय प्रवि


ृ ववधि में निवातसि के प्रनत जो कोई निदे श िो-

(क) यहद उस पद से आजीवि निवातसि अलभप्रेत िै , तो उसका अथत आजीवि कारावास के प्रनत निदे श िोिा
लगाया जाएगा;

(ख) यहद उस पद से लघत


ु र अवधि के ललए निवातसि अलभप्रेत िै तो यि समझा जाएगा कक वि लप्ु त कर
हदया गया िै |

धारा 54- मत्ृ यु दण्डादे श का लघक


ु रण- िर मामले में , क्जसमें मत्ृ यु का दं डादे श हदया गया िो, उस दं ड को
अपरािी की सम्मनत के ब्रबिा भी 3[समधु चत सरकार] इस संहिता द्वारा उपबंधित ककसी अन्य दं ड में लघक
ु ृ त कर
सकेगी।

धारा 55- आजीिन कारािास के दं डादे श का लघक


ु रण- िर मामले में क्जसमें आजीवि [कारावास] का दं डादे श
5

हदया गया िो, अपरािी की सम्मनत के ब्रबिा भी 3[समधु चत सरकार] उस दं ड को ऐसी अवधि के ललए, जो 14 वषत से
अधिक ि िो, दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास में लघक
ु ृ त कर सकेगी।

1. 1957 के अधिनियम सं 36के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.9.1957 से प्रभावी |


2. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
3. 1955 के अधिनियम सं. 26 द्वारा प्रनतस्थावपत |

[55 क- “समधु चत सरकार” की पररभाषा- िारा 54 और 65 में “समधु चत सरकार” पद से-


1

(क) उि मामलों में केंद्रीय सरकार अलभप्रेत िै , क्जिमें दं डादे श मत्ृ यु का दं डादे श िै , या ऐसे ववषय से, क्जस पर
संघ की कायतपालि शक्तत का ववस्तार िै , संबधं ित ककसी ववधि के ववरुद्ि अपराि के ललए िै ; तथा

(ख) उि मामलों में उस राज्य की सरकार, क्जसके अंदर अपरािी दं डाहदष्ट िुआ िै , अलभप्रेत िै , जिां कक
दं डादे श (चािे मत्ृ यु का िो या ििीं) ऐसे ववषय से, क्जस पर राज्य की कायतपालि शक्तत का ववस्तार िै , संबधं ित
ककसी ववधि के ववरुद्ि अपराि के ललए िै ।

धारा 56- 3[निरस्त...........]

धारा 57- दण्डािधधयों की भभधनें- दं डावधियों की लभन्िों की गणिा करिे में , आजीवि 5[कारावास] को बीस
वषत के 5[कारावास] के तल्
ु य धगिा जाएगा।

धारा 58- 7
(***लप्ु त)

धारा 59- 7 (***लप्ु त)

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धारा 60- दं डाहदष्ट करािास के कततपय मामलों में संपण
ू ा कारािास या उसका कोई भाग कहठन या सादा िो
सकेगा- िर मामले में , क्जसमें अपरािी दोिों में ककसी भााँनत के कारावास से दं डिीय िै , वि न्यायालय, जो ऐसे
अपरािी को दं डादे श दे गा, सक्षम िोगा कक दं डादे श में यि निहदत ष्ट करें कक ऐसा संपण
ू त कारावास कहिि िोगा, या यि
कक ऐसा संपण
ू त कारावास सादा िोगा, या

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. आपराधिक ववधि (मल
ू वंशीय ववभेदों का निराकरण) अधिनियम, 1949 के द्वारा निरस्त | हदिांक 6-4-
1949 से प्रभावी |
3. 1955 के अधिनियम सं. 26 द्वारा प्रनतस्थावपत |
4. 1955 के अधिनियम सं. 26 द्वारा लप्ु त | हदिांक 1.1.1956 से प्रभावी |

यि कक ऐसे कारावास का कुछ भाग कहिि िोगा और शेष सादा।

धारा 61 – 1[*** निरस्त की गई]

धारा 62– 1[*** निरस्त की गई]

धारा 63- जुमााने की रकम- जिां कक वि रालश अलभव्यतत ििीं की गई िै क्जतिी तक जुमातिा िो सकता िै
विां अपरािी क्जस रकम के जुमातिा का दायी िै , वि अमयातहदत िै ककं तु अत्यधिक ििीं िोगी ।

धारा 64- जुमााना न दे ने पर कारािास का दण्ड़ादे श- कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय अपराि के िर
मामले में , क्जसमे अपरािी कारावास सहित या रहित, जम
ु ातिे से दण्डाहदष्ट िुआ िै,

तथा कारावास या जम
ु ातिे अथवा केवल जम
ु ातिे से दण्डिीय अपराि के िर मामले में , क्जसमें अपरािी जम
ु ातिे
से दण्डाववष्ट िुआ िै ,

वि न्यायालय, जो ऐसे अपरािी को दण्डाववष्ट करे गा, सक्षम िोगा कक दण्डादे श द्वारा निदे श दे कक जुमातिा
दे िे में व्यनतक्रम िोिे की दशा में , अपरािी अमक
ु अवधि के ललये कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य
कारावास के अनतररतत िोगा क्जसके ललये वि दण्डाहदष्ट िुआ िै या क्जससे वि दण्डादे श के लघक
ु रण पर दण्डिीय
िै ।

धारा 65- जबकक कारािास और जुमााना दोनों आहदष्ट ककये जा सकते िैं, तब जुमााना न दे ने पर कारािास
की अिधध- यहद अपराि कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय िो, तो वि अवधि, क्जसके ललये जुमातिा दे िे में
व्यनतक्रम िोिे की दशा के ललये न्यायालय अपरािी को कारावालसत करिे का निदे श दे , कारावास की उस अवधि की
एक-चौथाई से अधिक ि िोगी जो अपराि के ललये अधिकतम नियत िै ।

1. भारतीय दं ड संहिता (संशोिि) अधिनियम, 1921 सं. 16 के द्वारा निरलसत |

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धारा 66- जुमााना न दे ने पर ककस भांतत का कारािास हदया जाये- वि कारावास, क्जसे न्यायालय जुमातिा
दे िे में व्यनतक्रम िोिे के ललये अधिरोवपत करे , ऐसा ककसी भांनत का िो सकेगा, क्जससे अपरािी को उस अपराि के
ललये दण्डाववष्ट ककया जा सकता था ।

धारा 67- जम
ु ााना न दे ने पर कारािास,जबकक अपराध केिल जम
ु ााने से दण्डनीय िो- यहद अपराि केवल
जुमातिे से दण्डिीय िो तो वि कारावास, क्जसे न्यायालय जुमातिा दे िे में व्यनतक्रम िोिे की दशा के ललये अधिरोवपत
करे , सादा िोगा और वि अवधि, क्जसके ललये जुमातिा दे िे में व्यनतक्रम िोिे की दशा के ललये न्यायालय अपरािी
को कारावालसत करिे का निदे श दे ; निम्ि मापमाि से अधिक ििीं िोगी, अथातत ्, - जबकक जम
ु ातिे का पररमाण
पचास रूपये से अधिक ि िो तब दो मास से अिधिक कोई अवधि, तथा जबकक जुमातिे का पररमाण एक सौ रूपये
से अधिक ि िो तब चार मास से अिधिक कोई अवधि, तथा ककसी अन्य दशा मे छि मास से अिधिक कोई अवधि

धारा 68- जुमााना दे ने पर कारािास का पयािसान िो जाना- जुमातिा दे िे में व्यनतक्रम िोिे की दशा के ललये
अधिरोवपत कारावास तब पयतवलसत िो जायेगा, जब वि जम
ु ातिा या तो चक
ु ा हदया जाये या ववधि की प्रककया द्वारा
उद्गि
ृ ीत कर ललया जाये ।

सार-संग्रि

जुमातिा जमा करिे की जो अवधि िै उसमें ववस्तार करिे का न्यायालय को अधिकार ििीं मािा गया|
याधचकाकारगण को भारतीय दं ड सहिता की िारा 68 के प्राविाि के तित उपचार िालसल करिा चाहिए। इस आशय
का (प्रहृलाद लसंि बिाम स्टे ट ऑफ एम.पी. 2009 (3) म.प्र.लॉ. ज. 435 म.प्र.)

धारा 69- जुमााने के आनप


ु ाततक भाग के हदये जाने की दशा में कारािास का पयािसान- यहद जुमातिे दे िे में
व्यनतक्रम िोिे की दशा के ललये नियत की गई कारावास की अवधि का अवसाि िोिे से पव
ू त जुमातिे का ऐसा
अिप
ु ात चुका हदया या उद्गि
ृ ीत कर ललया जाये कक दे िे में व्यनतक्रम िोिे पर कारावास की जो अवधि भोगी जा
चक
ु ी िो, वि जम
ु ातिे के तब तक ि चक
ु ाये गये भाग के आिप
ु ानतक से कम ि िो तो कारावास पयतवलसत िो जायेगा

धारा 70- जुमााने का छि िषा के भीतर या कारािास के दौरान में उद्गि


ृ णीय िोना- सम्पवि को दातयत्ि से
मत्ृ यु उधमक्
ु त निीं करती- जुमातिा या उसका कोई भाग, जो चुकाया ि गया िो, दण्डादे श हदये जािे के पश्चात ् छि
वषत के भीतर ककसी भी समय, और यहद अपरािी दण्डादे श के अिीि छि वषत से अधिक के कारावास से दण्डिीय िो
तो उस कालावधि के अवसाि से पव
ू त ककसी भी समय, उद्गि
ृ ीत ककया जा सकेगा, और अपरािी की मत्ृ यु ककसी भी
सम्पवि को, जो उसकी मत्ृ यु के पश्चात ् उसके ऋणों के ललये वैि रूप से दायी िो, इस दानयत्व से उन्मत
ु त ििीं
करती ।

धारा 71 - कई अपराधों से भमलकर बने अपराध के भलये दण्ड की अिधध- जिां कक कोई बात, जो अपराि
िै , ऐसे भागों से, क्जिमें का कोई भाग स्वयं अपराि िै , लमलकर बिी िै , विां अपरािी अपिे ऐसे अपरािों में से
एक से अधिक के दण्ड से दक्ण्डत ि ककया जायेगा, जब तक कक ऐसा अलभव्यतत रूप से उपबंधित ि िो ।

जिां कक कोई बात अपरािों को पररभावषत या दक्ण्डत करिे वाली ककसी तत्समय प्रवि
ृ ववधि की दो या
अधिक पथ
ृ क पररभाषाओं में आिे वाला अपराि िै , अथवा

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जिां कक कई कायत, क्जसमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाधिक से अपराि गहित िोता िै , लमलकर लभन्ि
अपराि गहित करते िैं;

विां अपरािी को उससे गरु


ु िर दण्ड से दक्ण्डत ि ककया जायेगा, जो ऐसे अपरािों में से ककसी भी एक के
ललये वि न्यायालय, जो उसका ववचारण करे , उसे दे सकता िो ।

धारा 72- कई अपराधों में से एक के दोषी व्यन्क्त के भलये दण्ड जबकक तनणाय में यि कधथत िै कक यि
सधदे ि िै कक िि ककस अपराध का दोषी िै - उि सब मामलों में क्जिमें यि निणतय हदया जाता िै कक कोई व्यक्तत
उस निणतय में ववनिहदतष्ट कई अपरािों में से एक अपराि का दोषी िै , ककन्तु यि संदेिपण
ू त िै कक वि उि अपरािों
में से ककस अपराि का दोषी िै , यहद विी दण्ड सब अपरािों के ललये उपबंधित ििीं िै तो वि अपरािी उस अपराि
के ललये दक्ण्डत ककया जायेगा, क्जसके ललये कम से कम दण्ड उपबंधित ककया गया िै ।

धारा 73- एकाधत परररोध- जब कभी कोई व्यक्तत ऐसे अपराि के ललये दोषलसद्धि ििराया जाता िै क्जसके
ललये न्यायालय को इस संहिता के अिीि उसे कहिि कारावास से दण्डाहदष्ट करिे की शक्तत िै , तो न्यायालय
अपिे दण्डादे श द्वारा आदे श दे सकेगा कक अपरािी को उस कारावास के, क्जसके ललये वि दण्डाहदष्ट ककया गया िै ,
ककसी भाग या भागों के ललये, जो कुल लमलाकर तीि मास से अधिक के ि िोंगे निम्ि मापमाि के अिस
ु ार एकान्त
परररोि में रखा जायेगा, अथातत-

यहद कारावास की अवधि छि मास से अधिक ि िो तो एक मास से अिधिक समय;

यहद कारावास की अवधि छि मास से अधिक िो और एक वषत से अधिक ि िो तो दो मास से अिधिक


समय,

यहद कारावास की अवधि एक वषत से अधिक िो तो तीि मास से अिधिक समय ;

धारा 74- एकाधत परररोध की अिधध- एकान्त परररोि के दण्डादे श के निष्पादि में ऐसा परररोि ककसी दशा
में भी एक बार में चौदि हदि से अधिक ि िोगा, साथ िी ऐसे एकान्त परररोि की कालावधियों के बीच में उि
कालावधियों से अन्यि
ू अन्तराल िोंगे और हदया गया कारावास तीि मास से अधिक िो, तब हदये गये सम्पण
ू त
कारावास के ककसी एक मास में एकान्त परररोि सात हदि से अधिक ि िोगा, साथ िी एकान्त परररोि की
कालावधियों के बीच में उन्िीं कालावधियों के अन्यि
ू अन्तराल िोंगे ।

धारा 75 - पि
ू ा दोषभसद्धध के पश्चात ् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कततपय अपराधों के भलये िधधात
दण्ड- जो कोई व्यक्तत-

(क) [भारत] में के ककसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अिीि तीि वषत
1

या उससे अधिक की अवधि के ललये दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से दण्डिीय अपराि के ललये, 2[***]

(ख) [***]
5

दोषलसद्धि ििराये जािे के पश्चात ् उि दोिों अध्यायों में से ककसी अध्याय के अिीि उतिी िी अवधि के
ललये वैसे िी कारावास से दण्डिीय ककसी अपराि का दोषी िो, तो वि िर ऐसे पश्चातवती
् अपराि के ललये
[आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,
7

दण्डिीय िोगा ।
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अध्याय 4

साधारण अपिाद

धारा 76- विधध द्िारा आबद्ध या तथ्य की भल


ू के कारण अपने आपको विधध द्िारा आबद्ध िोने का
विश्िास करने िाले व्यन्क्त द्िारा ककया गया काया- कोई बात अपराि ििीं िै , जो ककसी ऐसे व्यक्तत द्वारा की जाये
जो उसे करिे के ललये ववधि द्वारा आबद्ि िो या जो तथ्य की भल
ू के कारण ि कक ववधि की भल
ू के कारण,
सद्भावपव
ू क
त ववश्वास करता िो कक वि उसे करिे

1. 1951 के अधिनियम सं. 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1951 के अधिनियम सं. 3 के द्वारा शब्द”अथवा” का लोप
3. 1951 के अधिनियम सं. 3 के द्वारा लोप
4. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 1.1.1956 से प्रभावी |

के ललए ववधि द्वारा आबद्ि िै |

धारा 77– धयातयकत: काया करने िे तु धयायाधीश का काया- कोई बात अपराि ििीं िै , जो न्यानयकत: कायत
करते िुये न्यायािीश द्वारा ऐसी ककसी शक्तत के प्रयोग में की जाती िै , जो या क्जसके बारे में उसे सद्भावपव
ू क

ववश्वास िै कक वि उसे ववधि द्वारा दी गई िै ।

धारा 78- धयायालय के तनणाय या आदे श के अनस


ु रण में ककया गया काया- कोई बात, जो न्यायालय के
निणतय या आदे श के अिस
ु रण में की जाये या उसके द्वारा अधिहदष्ट िो, यहद वि उस निणतय या आदे श से प्रवि

रिते की जाये, अपराि ििीं िै , चािे उस न्यायालय को ऐसा निणतय या आदे श दे िे की अधिकाररता ि रिी िो, परन्तु
यि तब जबकक वि कायत करिे वाला व्यक्तत सद्भावपव
ू क
त ववश्वास करता िो कक उस न्यायालय को वैसी
अधिकाररता थी ।

धारा 79- विधध िारा धयायानम


ु त या तथ्य की भल
ू से अपने को विधध द्िारा धयायानम
ु त िोने का विश्िास
करने िाले व्यन्क्त द्िारा ककया गया काया- कोई बात अपराि ििीं िै , जो ऐसे व्यक्तत द्वारा की जाये, जो उसे करिे
के ललये ववधि द्वारा न्यायािम
ु त िो, या तथ्य की भल
ू के कारण, ि कक ववधि की भल
ू के कारण, सद्भावपव
ू क

ववश्वास करता िो कक वि उसे करिे के ललये ववधि द्वारा न्यायािम
ु त िै ।

धारा 80- विधधपण


ू ा काया करने में दघ
ु ट
ा ना- कोई बात अपराि ििीं िै जो दघ
ु ट
त िा या दभ
ु ात‍य से और ककसी
आपराधिक आशय या ज्ञाि के ब्रबिा ववधिपण
ू त प्रकार से ववधिपण
ू त साििों द्वारा और उधचत सतकतता और साविािी
के साथ ववधिपण
ू त कायत करिे में िी िो जाती िै ।

धारा 81- काया, न्जससे अपिातन काररत िोना सम्भाव्य िै , ककधतु जो आपराधधक आशय के ब्रबना और अधय
अपिातन के तनिारण के भलये ककया गया िै - कोई बात केवल इस कारण अपराि ििीं िै कक वि यि जािते िुये की
गई िै कक उससे अपिानि काररत िोिा सम्भाव्य िै , यहद वि अपिानि काररत करिे के ककसी आपराधिक आशय के

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ब्रबिा और व्यक्तत या सम्पवि को अन्य अपिानि का निवारण या पररवजति करिे के प्रयोजि से सद्भावपव
ू क
त की
गई िो ।

स्पष्टीकरण- ऐसे मामले में यि तथ्य का प्रश्ि िै कक क्जस अपिानि का निवारण या पररवजति ककया जािा
िै तया वि ऐसी प्रकृनत की और इतिी आसन्ि थी कक वि कायत, क्जससे यि जािते िुये कक उससे अपिानि काररत
िोिा संभाव्य िै , करिे की जोखखम उिािा न्यायािम
ु त या माफी यो‍य था |

धारा 82- सात िषा से कम आयु के भशशु का काया- कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात से कम आयु के
लशशु द्वारा की जाती िै ।

धारा 83- सात िषा से ऊपर ककधतु बारि िषा से कम आयु के अपररपक्ि समझ के भशशु का काया- कोई बात
अपराि ििीं िै , जो सात वषत से ऊपर और बारि वषत से कम आयु के ऐसे लशशु द्वारा की जाती िै क्जसकी समझ
इतिी पररपतव ििीं िुई िै कक वि उस अवसर पर अपिे आचरण की प्रकृनत और पररणामों का निणतय कर सकें |

धारा 84- विकृत धचि व्यन्क्त का काया- कोई बात अपराि ििीं िै जो ऐसे व्यक्तत द्वारा की जाती िै , जो
उसे करते समय धचि-ववकृनत के कारण उस कायत की प्रकृनत, या यि कक जो कुछ वि कर रिा िै , वि दोषपण
ू त या
ववधि के प्रनतकूल िै , जाििे में असमथत िै ।

धारा 85- ऐसे व्यन्क्त का काया जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मिता में िोने के कारण तनणाय पर पिुंचने में
असमथा िै - कोई बात अपराि ििीं िै , जो ऐसे व्यक्तत द्वारा की जाती िै , जो उसे करते समय मिता के कारण उस
कायत की प्रकृनत, या यि कक जो कुछ वि कर रिा िै , वि दोषपण
ू त या ववधि के प्रनतकूल िै , जाििे में असमथत िै,
परन्त,ु यि तब कक वि चीज, क्जससे उसकी मिता िुई िै उसके अपिे ज्ञाि के ब्रबिा या इच्छा के ववरुद्ि दी गई थी

धारा 86- ककसी व्यन्क्त द्िारा, जो मिता में िै , ककया गया अपराध न्जसमें विशेष आशय या ज्ञान का िोना
अपेक्षक्षत िै - उि दशाओं, में जिां कक कोई ककया गया कायत अपराि ििीं िोता जब तक कक वि ककसी ववलशष्ट ज्ञाि
या आशय से ि ककया गया िो । कोई व्यक्तत जो कायत वि मिता की िालत में करता िै , इस प्रकार बरते जािे के
दानयत्व के अिीि िो मािों उसे विी ज्ञाि था जो उसे िोता यहद वि मिता में ि िोता जब तक कक वि चीज,
क्जससे उसे मिता िुई थी, उसे उसके ज्ञाि के ब्रबिा या उसकी इच्छा के ववरुद्ि ि दी गई िो ।

धारा 87 - सम्मतत से ककया गया काया न्जससे मत्ृ यु या घोर उपितत काररत करने का आशय न िो और न
उसकी सम्भाव्यता का ज्ञान िो- कोई बात, जो मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत करिे के आशय से ि की गई िो और
क्जसके बारे में किात को यि ज्ञात ि िो कक उससे मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत िोिा सम्भाव्य िै , ककसी ऐसी
उपिानि के कारण अपराि ििीं िै जो उस बात से अिारि वषत से अधिक आयु के व्यक्तत को, क्जसिे वि अपिानि
सिि करिे की चािे अलभव्यतत या चािे वववक्षक्षत सम्मनत दे दी िो, काररत िो या काररत िोिा किात द्वारा आशनयत
िो अथवा क्जसके बारे में किात को ज्ञाि िो कक वि उपयततत जैसे ककसी व्यक्तत को, क्जसिे उस अपिानि की
जोखखम उिािे की सम्मनत दे दी िै , उस बात द्वारा काररत िोिी सम्भाव्य िै ।

धारा 88- ककसी व्यन्क्त के फायदे के भलये सम्मतत से सद्भािनापि


ू क
ा ककया गया काया न्जससे मत्ृ यु काररत
करने का आशय निीं िै - कोई बात, जो मत्ृ यु काररत करिे के आशय से ि की गई िो, ककसी ऐसी अपिानि के कारण
ििीं िै जो उस बात से ककसी ऐसे व्यक्तत को, क्जसके फायदे के ललये वि बात सद्भाविापव
ू क
त की जाये और क्जसिे

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उस अपिानि को सििे, या उस अपिानि की जोखखम उिािे के ललये चािे अलभव्यतत चािे वववक्षक्षत सम्मनत दे दी
िो, काररत िो या काररत करिे का कतात का आशय िो या काररत िोिे की सम्भाव्यता कतात को ज्ञात िो ।

धारा 89- संरक्षक द्िारा या उसकी सम्मतत से भशशु या उधमि व्यन्क्त के फायदे के भलये सद्भाि-पि
ू क

ककया गया काया- कोई बात, जो बारि वषत से कम आयु के या ववकृत-धचि व्यक्तत के फायदे के ललये सद्भावपव
ू क

उसके संरक्षक के, या ववधिपण
ू त भारसािक ककसी दस
ू रे व्यक्तत के द्वारा, या कक अलभव्यतत या वववक्षक्षत सम्मनत से
की जाये, ककसी ऐसी अपिानि के कारण, अपराि ििीं िै , जो उस बात से उस व्यक्तत को काररत िो, या काररत करिे
का किात का आशय िो या काररत िोिे की सम्भाव्यता किात को ज्ञात िो:

परधतक
ु - परन्तु -

पिला- इस अपवाद का ववस्तार साशय मत्ृ यु काररत करिे या मत्ृ यु काररत करिे का प्रयत्ि करिे पर ि
िोगा ;

दस
ू रा- इस अपवाद का ववस्तार मत्ृ यु या घोर उपिनत के निवारण के या ककसी घोर रोग या अंग-शैधथल्य से
मत
ु त करिे के प्रयोजि से लभन्ि ककसी प्रयोजि के ललये ककसी ऐसी बात के करिे पर ि िोगा क्जसे करिे वाला
व्यक्तत जािता िो कक इससे मत्ृ यु काररत िोिा सम्भाव्य िै ;

तीसरा- इस अपवाद का ववस्तार स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करिे, घोर उपिनत काररत करिे का प्रयत्ि
करिे पर ि िोगा जब तक कक वि मत्ृ यु या घोर उपिनत के निवारण के, या ककसी घोर रोग या अंग-शैधथल्य से
मत
ु त करिे के प्रयोजि से ि की गई िो;

चौथा- इस अपवाद का ककसी ऐसे अपराि के दष्ु प्रेरण पर ि िोगा क्जस अपराि के ककये जािे पर इसका
ववस्तार ििीं िै ।

धारा 90- सम्मतत, न्जसके सम्बधध में यि ज्ञात िो कक िि भय या भ्रम के अधीन दी गई िै - कोई सम्मनत
ऐसी सम्मनत ििीं िै जैसी इस संहिता की ककसी िारा से आशनयत िै यहद वि सम्मनत ककसी व्यक्तत िे क्षनत भय
के अिीि, या तथ्य के भ्रम के अिीि दी िो, और यहद कायत करिे वाला व्यक्तत यि जािता िो या उसके पास
ववश्वास करिे का कारण िो कक ऐसे भय या भ्रम के पररणामस्वरुप वि सम्मनत दी गई थी; अथवा

उधमि व्यन्क्त की सम्मतत- यहद वि सम्मनत ऐसे व्यक्तत िे दी िो जो धचि-ववकृनत या मिता के कारण
उस बात की, क्जसके ललये वि अपिी सम्मनत दे ता िै , प्रकृनत और पररणाम को समझिे में असमथत िो, अथवा

भशशु की सम्मतत- जब तक कक सन्दभत से तत्प्रनतकूल प्रतीत ि िो, यहद वि सम्मनत ऐसे व्यक्तत िे दी िो
जो बारि वषत से कम आयु का िै ।

धारा 91- ऐसे कायों का अपिजान जो काररत अपिातन के ब्रबना भी स्ित: अपराध िै - िारा 87, 88 और 89
के अपवादों का ववस्तार उि कायो पर ििीं िै जो उस अपिानि के ब्रबिा भी स्वत: अपराि िै जो उस व्यक्तत को,
जो सम्मनत दे ता िै या क्जसकी ओर से सम्मनत दी जाती िै , उि कायों से काररत िो, या काररत ककए जािे का
आशय िो, या काररत िोिे की सम्भाव्यता, ज्ञात िो।

धारा 92- सम्मतत के ब्रबना ककसी व्यन्क्त के फायदे के भलये सद्भािनापि


ू क
ा ककया गया काया- कोई बात जो
ककसी व्यक्तत के फायदे के ललये सद्भावपव
ू क
त , यद्यवप उसकी सम्मनत के ब्रबिा, की गई िै , ऐसी ककसी अपिानि के
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कारण, जो उस बात से उस व्यक्तत को काररत िो जाये, अपराि ििीं िै , यहद पररक्स्थनतयां ऐसी िों कक उस व्यक्तत
के ललये यि असम्भव िो कक वि अपिी सम्मनत प्रकट करे या वि व्यक्तत सम्मनत दे िे के ललये असमथत िो और
उसका कोई संरक्षक या उसका ववधिपण
ू त भारसािक कोई दस
ू रा व्यक्तत ि िो क्जससे ऐसे समय पर सम्मनत
अलभप्राप्त करिा सम्भव िो कक वि बात फायदे के साथ की जा सके ;

परधतक
ु - परन्त-ु

पिला- इस अपवाद का ववस्तार साशय मत्ृ यु काररत करिे या मत्ृ यु काररत करिे का प्रयत्ि करिे पर ि
िोगा;

दस
ू रा- इस अपवाद का ववस्तार मत्ृ यु या घोर उपिनत के निवारण के या ककसी घोर रोग या अंग-शैधथल्य से,
मत
ु त करिे के, प्रयोजि से लभन्ि ककसी प्रयोजि के ललए ककसी ऐसी बात के करिे पर ि िोगा, क्जसे करिे वाला
व्यक्तत जिता िो कक उससे मत्ृ यु काररत िोिा सम्भाव्य िै ;

तीसरा- इस अपवाद का ववस्तार मत्ृ यु या उपिनत के निवारण के प्रयोजि से लभन्ि ककसी प्रयोजि के ललए
स्वेच्छया उपिनत काररत करिे या उपिनत काररत करिे का प्रयत्ि करिे पर ि िोगा;

चौथा- इस अपवाद का ववस्तार ककसी ऐसे अपराि के दष्ु प्रेरण पर ि िोगा क्जस अपराि के ककये जािे पर
इसका ववस्तार ििीं िै |

स्पष्टीकरण- केवल िि सम्बन्िी फायदा वि फायदा ििीं िै , जो िारा 88, 89 और 92 के अथत के भीतर
आता िै ।

धारा 93- सद्भािपि


ू क
ा दी गई संसच
ू ना- सद्भावपव
ू क
त दी गई संसच
ू िा उस अपिानि के कारण अपराि ििीं
िै , जो उस व्यक्तत को िो क्जसे वि दी गई िै , यहद वि उस व्यक्तत के फायदे के ललये दी गई िो ।

धारा 94- िि काया न्जसको करने के भलये कोई व्यन्क्त धमककयों द्िारा वििश ककया गया िै - ित्या और
मत्ृ यु से दण्डिीय उि अपरािों को जो राज्य के ववरुद्ि िै , छोडकर कोई बात अपराि ििीं िै , जो ऐसे व्यक्तत द्वारा
की जाये, जो उसे करिे के ललये ऐसी िमककयों से वववश ककया गया िो क्जिसे उस बात को करते समय उसको
यक्ु ततयत
ु त रूप से यि आशंका काररत िो गई िो कक कायत का पररणाम यि िोगा कक उस व्यक्तत की तत्काल मत्ृ यु
िो जाये, परन्तु यि तब जबकक उस कायत को करिे वाले व्यक्तत िे अपिी िी इच्छा से या तत्काल मत्ृ यु से कम
अपिी अपिानि की यक्ु ततयत
ु त आशंका से अपिे को उस क्स्थनत में ि डाला िो, क्जससे कक वि ऐसी मजबरू ी के
अिीि पड़ गया िै ।

स्पष्टीकरण-1- वि व्यक्तत, जो स्वयं अपिी इच्छा से, या पीटे जािे की िमकी के कारण डाकुओं की टोली
में उिके शील को जािते िुये सक्म्मललत िो जाता िै , इस आिार पर िी इस अपवाद का फायदा उिािे का िकदार
ििीं िै कक वि अपिे साधथयों द्वारा ऐसी बात करिे के ललये वववश ककया गया था जो ववधििा अपराि िै ।

स्पष्टीकरण-2- डाकुओं की एक टोली द्वारा अलभगि


ृ ीत और तत्काल मत्ृ यु की िमकी द्वारा ककसी बात के
करिे के ललये, जो ववधििा अपराि िै , वववश ककया गया व्यक्तत, उदािरणाथत, एक लि
ु ार, जो अपिे औजार लेकर
एक गि
ृ का द्वार तोड़िे को वववश ककया जाता िै क्जसमें डाकू उसमें प्रवेश कर सकें और उसे लट
ू सकें, इस अपवाद
का फायदा उिािे के ललये िक दार िै ।

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धारा 95- तच्
ु छ अपिातन काररत करने िाला काया- कोई बात इस कारण से अपराि ििीं िै कक उससे कोई
अपिानि काररत िोती िै या काररत की जािी आशनयत िै या काररत िोिे की संभाव्यता ज्ञात िै , यहद वि इतिी
तच्
ु छ िै कक मामल
ू ी समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्तत उसकी लशकायत ि करे गा ।

प्राइिेट प्रततरक्षा के अधधकार के विषय में

धारा 96- प्राइिेट प्रततरक्षा में की गई बातें - कोई बात अपराि ििीं िै , जो प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार के
प्रयोग में की जाती िै ।

धारा 97- शरीर तथा सम्पवि की प्राइिेट प्रततरक्षा का अधधकार- िारा 99 में अन्तववतष्ट निबतन्ििों के
अध्यिीि, िर व्यक्तत को अधिकार िै की वि-

पिला- मािव शरीर पर प्रभाव डालिे वाले ककसी अपराि के ववरुद्ि अपिे शरीर और ककसी अन्य व्यक्तत
के शरीर की प्रनतरक्षा करे ;

दस
ू रा- ककसी ऐसे कायत के ववरुद्ि, जो चोरी, लट
ू , ररक्ष्ट या आपराधिक अनतचार की पररभाषा में आिे वाला
अपराि िै , या जो चोरी, लट
ू , ररक्ष्ट या आपराधिक अनतचार करिे का प्रयत्ि िै , अपिी या ककसी अन्य व्यक्तत की,
चािे जंगम, चािे स्थावर सम्पवि की प्रनतरक्षा करे ।

धारा 98- ऐसे व्यन्क्त के काया के विरुद्ध प्राइिेट प्रततरक्षा का अधधकार जो विकृतधचि आहद िो- जबकक
कोई कायत, जो अन्यथा कोई अपराि िोता, उस कायत को करिे वाले व्यक्तत के बालकपि, समझ की पररपतवता के
अभाव, धचि-ववकृनत या मिता के कारण, या उस व्यक्तत के ककसी भ्रम के कारण, अपराि ििीं िै , तब िर व्यक्तत
उस कायत के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा का विी अधिकार रखता िै जो वि उस कायत के वैसा अपराि िोिे की दशा में
रखता ।

धारा 99- काया, न्जनके विरुद्ध प्राइिेट प्रततरक्षा का कोई अधधकार निीं िै - यहद कोई कायत, क्जससे मत्ृ यु या
घोर उपिनत की आशंका यक्ु ततयत
ु त रूप से काररत ििीं िोती, सद्भावपव
ू क
त अपिे पदाभास में कायत करते िुये लोक-
सेवक द्वारा ककया जाता िै या ककये जािे का प्रयत्ि ककया जाता िै तो उस कायत के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा का
कोई अधिकार ििीं िै , चािे वि कायत ववधि अिस
ु ार सवतथा न्यायािम
ु त ि भी िो ।

यहद कोई कायत, क्जससे मत्ृ यु या घोर उपिनत की आशंका यक्ु ततयत
ु त रूप से काररत ििीं िोती, सद्भावपव
ू क

अपिे पदाभास में कायत करते िुये लोक-सेवक के निदे श से ककया जाता िै , या ककये जािे का प्रयत्ि ककया जाता िै ,
तो उस कायत के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा का कोई अधिकार ििीं िै , चािे वि निदे श ववधि-अिस
ु ार सवतथा न्यायािम
ु त
ि भी िो ।

उि दशाओं में , क्जिमें सरु क्षा के ललये लोक-प्राधिकाररयों की सिायता प्राप्त करिे के ललये समय िै , प्राइवेट
प्रनतरक्षा का कोई अधिकार ििीं िै ।

इस अधधकार के प्रयोग का विस्तार- ककसी दशा में भी प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का ववस्तार उतिी
अपिानि से अधिक अपिानि करिे पर ििीं िै , क्जतिी प्रनतरक्षा के प्रयोजि से करिी आवश्यक िै ।

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स्पष्टीकरण 1- कोई व्यक्तत ककसी लोक-सेवक द्वारा ऐसे लोक-सेवक के िाते ककये गये, या ककये जािे के
ललये प्रयनतत, कायत के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार से वंधचत ििीं िोता, जब तक कक वि यि ि जािता िो
या ववश्वास करिे का कारण ि रखता िो, कक उस कायत को करिे वाला व्यक्तत ऐसा लोक-सेवक िै ।

स्पष्टीकरण 2- कोई व्यक्तत ककसी लोक-सेवक के निदे श से ककये गये, या ककये जािे के ललये प्रयनतत, ककसी
कायत के ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार से वंधचत ििीं िोता, तब तक कक वि यि ि जािता िो, या ववश्वास
करिे का कारण ि रखता िो, कक उस कायत को करिे वाला व्यक्तत ऐसे निदे श से कायत कर रिा िै , या जब तक कक
वि व्यक्तत उस प्राधिकार का कथि ि कर दे क्जसके अिीि वि कायत कर रिा िै , या यहद उसके पास ललखखत
प्राधिकार िै , जो जब तक कक वि ऐसे प्राधिकार को मांगे जािे पर पेश ि कर दे |

धारा 100- शरीर की प्राइिेट प्रततरक्षा के अधधकार का विस्तार मत्ृ यक


ु ाररत करने पर कब िोता िै - शरीर की
प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का ववस्तार, पव
ू व
त ती अंनतम िारा में वखणतत निबतन्ििों के अिीि रखते िुये, िमलावर की
स्वेच्छया मत्ृ यक ु ाररत करिे या कोई अन्य अपिानि काररत करिे तक िै , यहद वि अपराि, क्जसके कारण उस
अधिकार के प्रयोग का अवसर आता िै , एतक्स्मिपश्चात ् प्रगखणत भांनतयों में से ककसी भी भांनत का िै , अथातत -

पिला- ऐसा िमला क्जससे यक्ु ततयत


ु त रूप से यि आशंका काररत िो कक अन्यथा ऐसे िमले का पररणाम
मत्ृ यु िोगा;

दस
ू रा- ऐसा िमला क्जससे यक्ु ततयत
ु त रूप से यि आशंका काररत िो कक अन्यथा ऐसे िमले का पररणाम
घोर उपिनत िोगा;

तीसरा- बलात्संग करिे के आशय से ककया गया िमला;

चौथा- प्रकृनत-ववरुद्ि काम-तष्ृ णा की तक्ृ प्त के आशय से ककया गया िमला;

पांचिां- व्यपिरण या अपिरण करिे के आशय से ककया गया िमला;

छटा- इस आशय से ककया गया िमला कक ककसी व्यक्तत का ऐसी पररक्स्थनतयों में सदोष परररोि ककया
जाए, क्जिसे उसे यक्ु ततयत
ु त रूप से यि आशंका काररत िो कक वि अपिे को छुड़वािे के ललये लोक-प्राधिकाररयों की
सिायता प्राप्त ििीं कर सकेगा ।

1[सातिां- अम्ल फेंकिे या दे िे का कृत्य या अम्ल फेंकिे या दे िे का प्रयास करिा क्जससे यक्ु ततयत
ु त रूप से
यि आशंका काररत िो कक ऐसे कृत्य के पररणामस्वरुप अन्यथा घोर उपिनत काररत िोगी |]

धारा 101- कब ऐसे अधधकार का विस्तार मत्ृ यु से भभधन कोई अपिातन काररत करने तक िोता िै - यहद
अपराि पव
ू ग
त ामी अंनतम िारा में प्रगखणत भांनतयों में से ककसी भांनत का ििीं िै , तो शरीर की प्राइवेट प्रनतरक्षा के
अधिकार का ववस्तार िमलावर की मत्ृ यु स्वेच्छया काररत करिे तक का ििीं िोता, ककन्तु इस अधिकार का ववस्तार
िारा 99 में वखणतत निबतन्ििों के अध्यिीि िमलावर की मत्ृ यु से लभन्ि कोई अपिानि स्वेच्छया काररत करिे तक
का िोता िै ।

धारा 102- शरीर की प्राइिेट प्रततरक्षा के अधधकार का प्रारम्भ और बना रिना- शरीर की प्राइवेट प्रनतरक्षा का
अधिकार उसी क्षण प्रारम्भ िो जाता िै , जब अपराि करिे के प्रयत्ि या िमकी से शरीर के संकट की यक्ु ततयत
ु त

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आशंका पैदा िोती िै , चािे वि अपराि ककया ि गया िो, और वि तब तक बिा रिता िै जब तक शरीर के संकट की
ऐसी आशंका बिी रिती िै ।

धारा 103- कब सम्पवि की प्राइिेट प्रततरक्षा के अधधकार का विस्तार मत्ृ यक


ु ाररत करने तक का िोता िै -
सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का ववस्तार, िारा 99 में वखणतत निबन्ििों के अध्यिीि दोषकिात की मत्ृ यु
या अन्य अपिानि स्वेच्छया काररत करिे तक का िै , यहद वि अपराि क्जसके ककये जािे के, या ककये जािे के
प्रयत्ि के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता िै , एतक्स्मिपश्चात ् प्रगखणत भांनतयों में से ककसी भी
भांनत का िै , अथातत-

पिला- लट

दस
ू रा- राब्रत्र गि
ृ -भेदि,

तीसरा- अक्‍ि या अक्‍ि द्वारा ररक्ष्ट, जो ककसी ऐसे निमातण, तम्बू या जियाि को की गई िै , जो मािव
आवास के रूप में या सम्पवि की अलभरक्षा के स्थाि के रूप में उपयोग में लाया जाता िै ,

चौथा- चोरी, ररक्ष्ट या गि


ृ अनतचार, जो ऐसी पररक्स्थनतयों में ककया गया िै , क्जिसे यक्ु ततयत
ु त रूप से यि
आशंका काररत िो कक यहद प्राइवेट प्रनतरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग ि ककया गया तो पररणाम मत्ृ यु या घोर
उपिनत िोगा ।

राज्य संशोधन

उिर प्रदे श- िारा 103 में , चतथ


ु त खंड के उपरांत निम्िािस
ु ार खंड जोड़े-

“पांचवााँ-अक्‍ि या ववस्फोटक पदाथत से इि पर काररत ररक्ष्ट-

(क) शासि या स्थािीय प्राधिकारी या शासि के स्वत्वािीि या नियंब्रत्रत अन्य निगम के प्रयोजि के ललए
उपयोधगत या उपयोधगत िोिे के ललए आशनयत, या ।

(ख) भारतीय रे ल अधिनियम, 1890 की िारा 3 के खंड (4) में यथा पररभावषत कोई रे लवे या रे लवे स्टोर (
ववधिववरुद्ि आधिपत्य) अधिनियम, 1555 में यथा पररभावषत रे लवे स्टोसत, या

(ग) मोटर याि अधिनियम, 1939 की िारा 2 के खंड (33) में यथापररभावषत कोई पररविि याि (उतत
संशोिि उ.प्र. अधिनियम 1970 सं. 29 के द्वारा ककया गया । 17.7.1970 से प्रभावी ।)

_____________

वततमाि में मोटर याि अधिनियम, 1988 की िारा 2(47)


*

धारा 104- ऐसे अधधकार का विस्तार मत्ृ यु से भभधन कोई अपिातन काररत करने तक का कब िोता िै - यहद
वि अपराि, क्जसके ककये जािे या क्जसके ककये जािे के प्रयत्ि से प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर
आता िै , ऐसी चोरी, ररक्ष्ट या आपराधिक अनतचार िै जो पव
ू ग
त ामी अंनतम िारा में प्रगखणत भांनतयों में से ककसी
भांनत की ि िो, तो उस अधिकार का ववस्तार स्वेच्छा मत्ृ यु काररत करिे तक का ििीं िोता,ककन्तु उसका ववस्तार

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िारा 99 में वखणतत निबतन्ििों के अध्यिीि दोषकतात को मत्ृ यु से लभन्ि कोई अपिानि स्वेच्छया काररत करिे तक
का िोता िै |

धारा 105- सम्पवि की प्राइिेट प्रततरक्षा के अधधकार का प्रारम्भ और बना रिना- सम्पवि की प्राइवेट
प्रनतरक्षा का अधिकार तब प्रारम्भ िोता िै , जब सम्पवि के संकट की यक्ु तत-यत
ु त आशंका प्रारम्भ िोती िै ।

सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार चोरी के ववरुद्ि अपरािी के सम्पवि सहित पिुंच से बािर िो जािे
तक अथवा या तो लोक-प्रधिकाररयों की सिायता अलभप्राप्त कर लेिे या सम्पवि प्रत्यद्ु ित
ृ िो जािे तक बिा-रिता
िै ।

सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार लट


ू के ववरुद्ि तब तक बिा रिता िै , जब तक अपरािी ककसी
व्यक्तत की मत्ृ यु या उपिनत या सदोष अवरोि काररत करता रिता या काररत करिे का प्रयत्ि करता रिता िै ,
अथवा जब तक तत्काल मत्ृ यु का, या तत्काल उपिनत का, या तत्काल वैयक्ततक अवरोि का भय बिा रिता िै ।

सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार आपराधिक अनतचार या ररक्ष्ट के ववरुद्ि तब तक बिा रिता िै ,
जब तक अपरािी आपराधिक अनतचार या ररक्ष्ट करता रिता िै ।

सम्पवि की प्राइवेट प्रनतरक्षा का अधिकार राब्रत्र गि


ृ भेदि के ववरुद्ि तब तक बिा रिता िै , जब तक ऐसे
गि
ृ भेदि से आरम्भ िुआ गि
ृ अनतचार िोता रिता िै ।

धारा 106- घातक िमले के विरुद्ध प्राइिेट प्रततरक्षा का अधधकार जबकक तनदोष व्यन्क्त को अपिातन िोने
की जोखखम िै - क्जस िमले से मत्ृ यु की आशंका यक्ु ततयत
ु त रूप से काररत िोती िै , उसके ववरुद्ि प्राइवेट प्रनतरक्षा के
अधिकार का प्रयोग करिे में यहद प्रनतरक्षक ऐसी क्स्थनत में िो कक निदोष व्यक्तत की अपिानि की जोखखम के ब्रबिा
वि उस अधिकार का प्रयोग कायतसािक रूप से ि कर सकता िो तो उसके प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार का ववस्तार
वि जोखखम उिािे तक का िै ।

अध्याय 5

दष्ु प्रेरण के विषय में

धारा 107- ककसी बात का दष्ु प्रेरण- वि व्यक्तत ककसी बात के ककये जािे का दष्ु प्रेरण करता िै , जो-

पिला- उस बात को करिे के ललये ककसी व्यक्तत को उकसाता िै ; अथवा

दस
ू रा- उस बात को करिे के ललये ककसी षड्यन्त्र में एक या अधिक अन्य व्यक्तत या व्यक्ततयों के साथ
सक्म्मललत िोता िै , यहद उस षड्यन्त्र के अिस
ु रण में, और उस बात को करिे के उद्दे श्य से, कोई कायत या अवैि
लोप घहटत िो जाय; अथवा

तीसरा- उस बात के ककये जािे में ककसी कायत या अवैि लोप द्वारा साशय सिायता करता िै |

स्पष्टीकरण 1- जो कोई व्यक्तत जाि-बझ


ू कर दव्ु यतपदे शि द्वारा, या ताक्त्वक तथ्य, क्जसे प्रकट करिे के ललये
वि आबद्ि िै , जािबझ
ू कर नछपािे द्वारा, स्वेच्छया ककसी बात का ककया जािा काररत या उपाप्त करता िै , अथवा
काररत या उपाप्त करिे का प्रयत्ि करता िै , वि उस बात का ककया जािा उकसाता िै , यि किा जाता िै ।

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स्पष्टीकरण 2- जो कोई या तो ककसी कायत के ककये जािे से पव
ू त या ककये जािे के समय, उस कायत के ककये
जािे को सक
ु र बिािे के ललये कोई बात करता िै , और एतद्द्वारा उसके ककये जािे को सक
ु र बिाता िै , वि उस
कायत करिे में सिायता करता िै , यि किा जाता िै ।

धारा 108- दष्ु प्रेरक- वि व्यक्तत अपराि का दष्ु प्रेरण करता िै , जो अपराि के ककये जािे का दष्ु प्रेरण करता
िै या ऐसे कायत के ककये जािे का दष्ु प्रेरण करता िै , जो अपराि िोता, यहद वि कायत अपराि करिे के ललये ववधि
अिस
ु ार समथत व्यक्तत द्वारा उसी आशय या ज्ञाि से, जो दष्ु प्रेरक का िै , ककया जाता ।

स्पष्टीकरण 1- ककसी कायत के अवैि लोप का दष्ु प्रेरण अपराि .की कोहट में आ सकेगा, चािे दष्ु प्रेरक उस
कायत को करिे के ललये स्वयं आबद्ि ि िो ।

स्पष्टीकरण 2- दष्ु प्रेरण का अपराि गहित िोिे के ललये यि आवश्यक ििीं िै कक दष्ु प्रेररत कायत ककया जाए
या अपराि गहित करिे के ललये अपेक्षक्षत प्रभाव काररत िो ।

स्पष्टीकरण 3- यि आवश्यक ििीं िै कक दष्ु प्रेररत व्यक्तत अपराि करिे के ललये ववधि अिस
ु ार समथत िो, या
उसका विी दवू षत आशय या ज्ञाि िो, जो दष्ु प्रेरक का िै , या कोई भी संवपत आशय या ज्ञाि िो ।

स्पष्टीकरण- 4– अपराि का दष्ु प्रेरण अपराि िोिे के कारण ऐसे दष्ु प्रेरण भी अपराि िै |
स्पष्टीकरण- 5– षड्यंत्र द्वारा दष्ु प्रेरण का अपराि करिे के ललए यि आवश्यक ििीं िैं कक दष्ु प्रेरक उस
अपराि को रोकिे वाले व्यक्तत के साथ लमलकर उस अपराि की योजिा बिाय | यि पयातप्त िै की उस षड्यंत्र में
सक्म्मललत िो क्जसके अिस
ु रण में वि अपराि ककया जाता िै |

धारा 108क– भारत से बािर के अपराधों का भारत में दष्ु प्रेरण- वि व्यक्तत इस संहिता के अथत के अंतगतत
अपराि का दष्ु प्रेरण करता िै , जो, 1[भारत] से बािर और उससे परे ककसी ऐसे कायत के ककए जािे का 1[भारत] में
दष्ु प्रेरण करता िै , जो अपराि िोगा, यहद 1[भारत]में ककया जाए ।

धारा 109- दष्ु प्रेरण का दं ड, यहद दष्ु प्रेररत काया उसके पररणामस्िरुप ककया जाए, और जिां कक उस दं ड के
भलए अभभव्यक्त उपबंध निीं िै - जो कोई ककसी अपराि का दष्ु प्रेरण करता िै , यहद दष्ु प्रेररत कायत दष्ु प्रेरण के
पररणामस्वरूप ककया जाता िै , और ऐसे दष्ु प्रेरण के दं ड के ललए इस संहिता द्वारा कोई अलभव्यतत उपबंि ििीं
ककया गया िै , तो वि उस दं ड से दक्ण्डत ककया जाएगा, जो उस अपराि के ललए उपबंधित िै ।

स्पष्टीकरण- कोई कायत या अपराि दष्ु प्रेरण के पररणामस्परूप ककया गया तब किा जाता िै , जब वि उस
उकसािट के पररणामस्वरूप या उस षड्यंत्र के अिस
ु रण में या उस सिायता से ककया जाता िै , क्जससे दष्ु प्रेरण
गहित िोता िै ।

धारा 110- दष्ु प्रेरण का दं ड, यहद दष्ु प्रेररत व्यन्क्त दष्ु प्रेरक के आशय से भभधन आशय से काया करता िै - जो
कोई ककसी अपराि के ककए जािे का दष्ु प्रेरण करता िै , यहद दष्ु प्रेररत व्यक्तत िे दष्ु प्रेरक के आशय या ज्ञाि से
लभन्ि आशय या ज्ञाि से वि कायत ककया िो, तो वि उसी दं ड से दं डडत ककया जाएगा, जो उस अपराि के ललए
उपबंधित िै , जो ककया जाता यहद वि कायत दष्ु प्रेरक के िी आशय या ज्ञाि से, ि कक ककसी अन्य आशय से या ज्ञाि
से ककया जाता ।

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धारा- 111- दष्ु प्रेरक का दातयत्ि जब एक काया का दष्ु प्रेरण ककया गया िै और उससे भभधन काया ककया गया
िै - जब कक ककसी एक कायत का दष्ु प्रेरण ककया जाता िै और कोई लभन्ि कायत ककया जाता िै तब दष्ु प्रेरक उस ककए
गए कायत के ललए उसी प्रकार से और उसी ववस्तार तक दानयत्व के अिीि िै , मािो उसिे सीिे उसी कायत का
दष्ु प्रेरण ककया िो :

परं तक
ु - पंरतु यि तब जबकक ककया गया कायत दष्ु प्रेरण का अधिसंभाव्य पररणाम था और उस उकसािट के
असर के अिीि या उस सिायता से या उस षड्यंत्र के अिस
ु रण में ककया गया था क्जससे वि दष्ु प्रेरण गहित िोता
िै ।

धारा 112- दष्ु प्रेरक कब दष्ु प्रेररत काया के भलए और ककए गए काया के भलए आकभलत दं ड से दं डनीय .िै-
यहद वि कायत, क्जसके ललए दष्ु प्रेरक अंनतम पव
ू ग
त ामी िारा के अिस
ु ार दानयत्व के अिीि िै , दष्ु प्रेररत कायत के
अनतररतत ककया जाता िै और वि कोई सलु भन्ि अपराि गहित करता िै , तो दष्ु प्रेरक उि अपराि में से िर एक के
ललए दं डिीय िै ।

धारा 113- दष्ु प्रेररत काया से काररत उस प्रभाि के भलए दष्ु प्रेरक को दातयत्ि जो दष्ु प्रेरक द्िारा आशतयत से
भभधन िो- जबकक कायत का दष्ु प्रेरण दष्ु प्रेरक द्वारा ककसी ववलशष्ट प्रभाव को काररत करिे के आशय से ककया जाता
िै और दष्ु प्रेरण के पररणामस्वरूप क्जस कायत के ललए दष्ु प्रेरक दानयत्व के अिीि िै , वि कायत दष्ु प्रेरक द्वारा
आशनयत प्रभाव से लभन्ि प्रभाव काररत करता िै तब दष्ु प्रेरक काररत प्रभाव के ललए उसी प्रकार से और उसी
ववस्तार तक दानयत्व के अिीि िै मािो उसिे उस कायत के दष्ु प्रेरण उसी प्रभाव से काररत करिे के आशय से ककया
िो परं तु यि तब जबकक वि यि जािता था कक दष्ु प्रेररत कायत से यि वि प्रभाव काररत िोिा संभाव्य िै ।

धारा 114- अपराध ककए जाते समय दष्ु प्रेरक की उपन्स्थतत- जब कभी कोई व्यक्तत, जो अिप
ु क्स्थत िोिे
पर दष्ु प्रेरक के िाते दं डिीय िोता, उस समय उपक्स्थत िो जब वि कायत या अपराि ककया जाए क्जसके ललए वि
दष्ु प्रेरण के पररणामस्परूप दं डिीय िोता तब यि समझा जाएगा कक उसिे ऐसा कायत या अपराि ककया िै ।

धारा 115- मत्ृ यु या आजीिन कारािास से दं डनीय अपराध का दष्ु प्रेरण यहद अपराध निीं ककया जाता- जो
कोई मत्ृ यु या 1
[आजीवि कारावास] से दं डिीय अपराि के ककए जािे का दष्ु प्रेरण करे गा, यहद वि अपराि उस
दष्ु प्रेरण के पररणामस्वरूप ि ककया जाए और ऐसे दष्ु प्रेरण के दं ड के ललए कोई अलभव्यतत उपबंि इस संहिता में
ििीं ककया गया िो तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दडिीय िोगा ;

यहद अपिातन करने िाला काया पररणामस्िरुप ककया जाता िै - और यहद ऐसा कोई कायत कर हदया जाए,
क्जसके ललए दष्ु प्रेरक उस दष्ु प्रेरण के पररणामस्वरूप दानयत्व के अिीि िो और क्जससे ककसी व्यक्तत को उपिनत
काररत िो, तो दष्ु प्रेरक दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 14 वषत तक िो सकेगी, दं डिीय िोगा
और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ;

धारा 116- कारािास से दं डनीय अपराध का दष्ु प्रेरण, यहद अपराध न ककया जाए- जो कोई कारावास से
दं डिीय अपराि का दष्ु प्रेरण करे गा, यहद वि अपराि उस दष्ु प्रेरण के पररणामस्वरुप ि ककया जाए और ऐसे दष्ु प्रेरण
के दं ड के ललए कोई अलभव्यतत उपबंि इस संहिता में ििीं ककया गया िै तो वि उस अपराि के ललए उपबंधित
ककसी भााँनत के कारावास से ऐसी अवधि के ललए, जो उस अपराि के ललए उपबंधित दीघततम अवधि के एक चौथाई
भाग तक की िो सकेगी, या ऐसे जुमातिे से, जो उस अपराि के ललए उपबंधित िै , या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।
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यहद दष्ु प्ररे क या दष्ु प्रेररत व्यन्क्त ऐसा लोकसेिक िै, न्जसका किाव्य अपराध तनिाररत करना िो- और यहद
दष्ु प्रेरक या दष्ु प्रेररत व्यक्तत ऐसा लोकसेवक िो, क्जसका कितव्य ऐसे अपराि के ककए जािे को निवाररत करिा िो,
तो वि दष्ु प्रेरक उस अपराि के ललए, उपबंधित ककसी भााँनत के कारावास से ऐसी अवधि के ललए, जो उस अपराि के
ललए उपबंधित दीघततम अवधि के ललए आिे भाग तक की िो सकेगी, या ऐसे जुमातिे से, जो अपराि के ललए
उपबंधित िै , या दोिों दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 117- लोक साधारण द्िारा या दस से अधधक व्यन्क्तयों द्िारा अपराध ककए जाने का दष्ु प्रेरण- जो
कोई लोक सािारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्ततयों की ककसी भी संख्या या वगत द्वारा ककसी अपराि के ककए
जािे का दष्ु प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या
जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 118- मत्ृ यु या आजीिन कारािासप से दं डनीय अपराध करने की पररकल्पना को तछपाना- जो कोई
मत्ृ यु या 1[आजीवि कारावास] से दं डिीय अपराि का ककया जािा सक
ु र बिािे के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा
सक
ु र बिाएगा, यि जािते िुए;

ऐसे अपराि के ककए जािे की 3[ऐसे अपराि के ककए जािे की पररकल्पिा के अक्स्तत्व को ककसी कायत या
लोप या ववगढ़
ू ि द्वारा अथवा कोई अन्य रचिा प्रच्छन्ि सािि के उपयोग द्वारा स्वेच्छया नछपायेगा या ऐसी
पररकल्पिा के बारे में ऐसा व्यपदे शि करे गा क्जसका लमथ्या िोिा वि जािता िै ,

यहद अपराध कर हदया जाए- यहद अपराध निीं ककया जाए- यहद ऐसा अपराि कर हदया जाए, तो वि दोिों
में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, अथवा यहद अपराि ि ककया जाए,
तो वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और दोिों दशाओं में से िर एक में जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 119- ककसी ऐसे अपराध के ककए जाने की पररकल्पना का लोक-सेिक द्िारा तछपाया जाना, न्जसका
तनिारण करना उसका किाव्य िै - जो कोई लोक-सेवक िोते िुए उस अपराि का ककया जािा, क्जसका निवारण करिा
ऐसे लोक-सेवक के िाते उसका कितव्य िै , सक
ु र बिािे के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा सक
ु र बिाएगा, यि
जािते िुए,

ऐसे अपराि के ककए जािे की 1[ऐसे अपराि के ककए जािे की पररकल्पिा के अक्स्तत्व को ककसी कायत या
लोप या ववगढ़
ू ि द्वारा अथवा कोई अन्य रचिा प्रच्छन्ि सािि के उपयोग द्वारा स्वेच्छया नछपायेगा] या ऐसी
पररकल्पिा के बारे में ऐसा व्यपदे शि करे गा क्जसका लमथ्या िोिा वि जािता िै ,

यहद अपराध कर हदया जाए- यहद अपराि कर हदया जाए, तो वि उस अपराि के ललए उपबंधित ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि ऐसे कारावास की दीघततम अवधि से आिी तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो उस
अपराि के ललए उपबंधित िै , या दोिों से;

यहद अपराध मत्ृ यु आहद से दं डनीय िै - अथवा यहद वि अपराि मत्ृ यु या 3[आजीवि कारावास] से दं डिीय
िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी;

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यहद अपराध निीं ककया जाए- अथवा यहद वि अपराि ििीं ककया जाए, तो वि उस अपराि के ललए
उपबंधित ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि ऐसे कारावास की दीघततम अवधि की एक-चौथाई तक की िो
सकेगी या ऐसे जम
ु ातिे से, जो उस अपराि के ललए उपबंधित िै , या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 120- कारािास से दं डनीय अपराध करने की पररकल्पना को तछपाना- जो कोई उस अपराि का ककया
जािा, जो कारावास से दं डिीय िै , सक
ु र बिािे के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा सक
ु र बिाएगा, यि जािते िुए;

ऐसे अपराि के ककए जािे की पररकल्पिा के अक्स्तत्व को ककसी कायत या अवैि लोप द्वारा स्वेच्छया
नछपायेगा या ऐसी पररकल्पिा के बारे में ऐसा व्यपदे शि करे गा, क्जसका लमथ्या िोिा वि जािता िै ,

यहद अपराध कर हदया जाए- यहद अपराध निीं ककया जाए- यहद ऐसा अपराि कर हदया जाए तो वि उस
अपराि के ललए उपबंधित भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि ऐसे कारावास की दीघततम अवधि की एक-चौथाई
तक की िो सकेगी और यहद वि अपराि ििीं ककया जाए, तो वि ऐसे कारावास से क्जसकी अवधि ऐसे कारावास की
दीघततम अवधि के आिवें भाग तक की िो सकेगी, या ऐसे जुमातिे से, जो कक उस अपराि के ललए उपबंधित िै , या
दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

अध्याय 5 क

आपराधधक षड़यंत्र

120 क- आपराधधक षड्यंत्र की पररभाषा- जब कक दो या अधिक व्यक्तत-

1. कोई अवैि कायत, अथवा


2. कोई ऐसा कायत, जो अवैि ििीं िै , अवैि साििों द्वारा,
करिे या करवािे को सिमत िोते िैं, तब ऐसी सिमनत आपराधिक षड्यंत्र किलाती िै : परं तु ककसी अपराि
को करिे की सिमनत के लसवाय कोई सिमनत आपराधिक षड्यंत्र तब तक ि िोगी, जब तक कक सिमनत के अलावा
कोई और कायत उसके अिस
ु रण में उस सिमनत के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा ििीं कर हदया जाता ।

स्पष्टीकरण- यि तत्विीि िै कक अवैि कायत ऐसी सिमनत का चरम उद्दे श्य िै या उस उद्दे श्य का
आिष
ु धं गक मात्र िै ।

120- ख- आपराधधक षड्यंत्र का दण्ड- 1. जो कोई मत्ृ य,ु 1[आजीवि कारावास] या दो वषत या उससे अधिक
अवधि के कहिि कारावास से दं डिीय अपराि करिे के आपराधिक षड्यंत्र में शरीक िोगा, यहद ऐसे षड्यंत्र के दं ड के
ललए इस संहिता में कोई अलभव्यतत उपबंि ििीं िै , तो वि उसी प्रकार से दं डडत ककया जाएगा, मािो उसिे ऐसे
अपराि का दष्ु प्रेरण ककया था ।

2. जो कोई पव
ू ोतत रूप से दं डिीय अपराि को करिे के आपराधिक षड्यंत्र से लभन्ि ककसी आपराधिक
षड्यंत्र में शरीक िोगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 6 माि से अधिक की ििीं िोगी,
या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

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अध्याय 6
राज्य के विरुद्ध अपराधों के विषय में

धारा 121- भारत सरकार के विरुद्ध यद्


ु ध करना या यद्
ु ध करने का प्रयत्न करना या यद्
ु ध करने का
दष्ु प्रेरण करना- जो कोई 1[भारत सरकार] के ववरुद्ि यद्
ु ि करे गा, या ऐसा यद्
ु ि करिे का प्रयत्ि करे गा या ऐसा
यद्
ु ि करिे का दष्ु प्रेरण करे गा, वि मत्ृ यु या [आजीवि कारावास] से दं डडत ककया जाएगा और जम
2
ु ातिे से भी दं डिीय
िोगा ।

121 क. धारा 121 द्िारा दं डनीय अपराधों को करने का षड्यंत्र- जो कोई िारा 121 द्वारा दं डिीय अपरािों
में से कोई अपराि करिे के ललए भारत के भीतर 1[***] या बािर षड्यंत्र करे गा, या केंद्रीय सरकार को या ककसी
राज्य की सरकार को आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदशति द्वारा आतंककत करिे का षड्यंत्र करे गा
वि 2[आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से) भी दं डिीय िोगा ।

1. 1950 के ववधि के अिक


ु ू ल आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
3. 1957 के अधिनियम सं. 36 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
4. 1957 के अधिनियम सं. 36 द्वारा कोष्टक व अक्षर “(क)” लप्ु त |

स्पष्टीकरण- इस िारा के अिीि षड्यंत्र पहित िोिे के ललए यि आवश्यक ििीं िै कक इसके अिस
ु रण में
कोई कायत या अवैि लोप घहटत िुआ िो ।

धारा 122- भारत सरकार के विरुद्ध यद्


ु ध करने के आशय से आयध
ु आहद संग्रि करना- जो कोई [भारत
5

सरकार] के ववरुद्ि या तो यद्


ु ि करिे, यद्
ु ि करिे की तैयारी करिे के आशय से परु
ु ष, आयि
ु या गोला बारूद संग्रि
करे गा या अन्यथा यद्
ु ि करिे की तैयारी करे गा, वि [आजीवि कारावास] से या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
6

से, क्जसकी अवधि दस वषत से अधिक की ििीं िोगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 123- यद्


ु ध करने की पररकल्पना को सक
ु र बनाने के आशय से तछपाना- जो कोई भारत सरकार के
ववरुद्ि यद्
ु ि करिे की पररकल्पिा के अक्स्तत्व को ककसी कायत द्वारा, या

1. 1950 के ववधि अिक


ु ू ल आदे श द्वारा कनतपय शब्द लप्ु त |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
3. 1950 के ववधि अिक
ु ू ल आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
4. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |

ककसी अवैि लोप द्वारा, इस आशय से कक इस प्रकार नछपािे के द्वारा ऐसे यद्
ु ि करिे को सक
ु र बिाये, या यि
संभाव्य जािते िुए कक इस प्रकार नछपािे के द्वारा ऐसे यद्
ु ि करिे को सक
ु र बिाएगा, नछपायेगा, वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम ु ातिे से भी दं डडत
िोगा ।

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धारा 124- ककसी विधधपण
ू ा शन्क्त का प्रयोग करने के भलए वििश करने या उसका प्रयोग अिरोधधत करने
के आशय से राष्रपतत, राज्यपाल आहद पर िमला करना- जो कोई भारत के [राष्रपनत] या ककसी राज्य के
1

2
[राज्यपाल] को ऐसे राष्रपनत या राज्यपाल [***] की ववधिपण
3
ू त शक्ततयों में से ककसी शक्तत का ककसी प्रकार प्रयोग
करिे के ललए या प्रयोग करिे से ववरत रििे के ललए उत्पेररत करिे या वववश करिे के आशय से, ऐसे राष्रपनत या
4
[राज्यपाल] 5[***] पर िमला करे गा, या उसका सदोष अवरोि करे गा, या सदोष अवरोि करिे का प्रयत्ि करे गा या
उसे आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल प्रदशति के द्वारा आतंककत करे गा या ऐसे आतंककत करिे का प्रयत्ि
करे गा,

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी, दं डिीय िोगा ।

124 क. राजद्रोि- जो कोई बोले गये या

1. 1950 के ववधि के अिक


ु ू ल आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |
3. 1956 के ववधि के अिक
ु ू ल आदे श द्वारा “या राजप्रमख
ु ” शब्द लप्ु त |
4. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |
5. 1956 के ववधि के अिक
ु ू ल आदे श द्वारा “या राजप्रमख
ु ” शब्द लप्ु त |

ललखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों के द्वारा या दृश्यरुपण द्वारा या अन्यथा 1[***] 2[भारत] [***] में ववधि द्वारा
स्थावपत सरकार के प्रनत घण
ृ ा या अवमाि पैदा करे गा, या पैदा करिे का प्रयत्ि करे गा, या अप्रीनत प्रदीप्त करे गा या
प्रदीप्त करिे का प्रयत्ि करे गा, वि 3[आजीवि कारावास] से क्जसमें जुमातिा जोड़ा जा सकेगा, या तीि वषत तक के
कारावास से क्जसमें जुमातिा जोड़ा जा सकेगा, या जुमातिे से दं डडत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-1- “अप्रीनत” पद के अंतगतत अभक्तत और शत्रत


ु ा की समस्त भाविाएाँ आती िै |

स्पष्टीकरण-2- घण
ृ ा, अवमाि या अप्रीनत को प्रदीप्त ककए ब्रबिा या प्रदीप्त करिे का प्रयत्ि ककए ब्रबिा,
सरकार के कामों के प्रनत ववधिपण
ू त साििों द्वारा उिको पररवनततत करािे की दृक्ष्ट से अिम
ु ोदि प्रकट करिे वाली
टीका-हटप्पखणयााँ इस िारा के अिीि अपराि ििीं िैं ।

स्पष्टीकरण-3- घण
ृ ा, अवमाि या अप्रीनत को प्रदीप्त ककए ब्रबिा या प्रदीप्त करिे का प्रयत्ि ककए ब्रबिा
सरकार के प्रशासनिक या अन्य कक्रया के प्रनत अिम
ु ोदि प्रकट करिे वाली टीका-हटप्पखणयााँ इस िारा के अिीि
अपराि गहित ििीं करती िैं ।

धारा 125- भारत सरकार से मैत्री संबध


ं रखने बाली ककसी एभशयाई शन्क्त के विरुद्ध यद्
ु ध करना- जो कोई
7
[भारत सरकार] से मैत्री या शांनत का संबि
ं रखिे वाली ककसी एलशयाई शक्तत

1. 1950 के ववधि के अिक


ु ू ल आदे श द्वारा शब्द “िर मजेस्री” लप्ु त |
2. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |
3. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |
4. 1950 के ववधि के अिक
ु ू ल आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
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की सरकार के ववरुद्ि यद्
ु ि करे गा, या ऐसा यद्
ु ि करिे का प्रयत्ि करे गा, या ऐसा यद्
ु ि करिे के ललए दष्ु प्रेरण
करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, क्जसमें जुमातिा जोड़ा जा सकेगा, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 126- भारत सरकार के साथ शांतत का संबध


ं रखने िाली शन्क्त के राज्यक्षेत्र में लट
ू -पाट करना- जो
कोई [भारत सरकार] से मैत्री का या शांनत का संबि
4
ं रखिे वाली ककसी शक्तत के राज्यक्षेत्र में लट
ू -पाट करे गा, या
लट
ू पाट करिे की तैयारी करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और वि जुमातिे से और ऐसी लट
ू पाट करिे के ललए उपयोग में लाई गई या उपयोग में
लाई जािे के ललए आशनयत, या ऐसी लट
ू -पाट द्वारा अक्जतत संपवि के समपिरण से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 127- धारा 125 और 126 में िखणात यद्


ु ध या लट
ू -पाट द्िारा ली गई संपवि प्राप्त करना- जो कोई
ककसी संपवि को यि जािते िुए प्राप्त करे गा कक वि िारा 125 और 126 में वखणतत अपरािों में से ककसी के ककए
जािे में ली गई िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत
ककया जाएगा और जुमातिे से और इस प्रकार से प्राप्त की गई संपवि के समपिरण से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 128 -लोक-सेिक का स्िेच्छया राजकैदी या यद्


ु ध कैदी को तनकल भागने दे ना- जो कोई लोक-सेवक
िोते िुए और ककसी राजकैदी या यद्
ु ि कैदी को अलभरक्षा में रखते िुए,

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |


2. 1950 के ववधि के अिक
ु ू ल आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

स्वेच्छया ऐसे कैदी को ककसी ऐसे स्थाि से क्जसमें ऐसा कैदी परररुद्ि िै , निकल भागिे दे गा, वि 1
[आजीवि
कारावास] से या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 129- उपेक्षा से लोक-सेिक का ऐसे कैदी का तनकल भागना सिन करना- जो कोई लोक-सेवक िोते िुए
और ककसी राजकैदी या यद् ु ि कैदी की अलभरक्षा में रखते िुए उपेक्षा में ऐसे कैदी को ककसी ऐसे परररोि स्थाि से
क्जसमें ऐसी कैदी परररुद्ि िै , निकल भागिा सिि करे गा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की
िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 130- ऐसे कैदी के तनकल भागने में सिायता दे ना, उसे छुड़ाना या संरय दे ना- जो कोई जािते िुए
ककसी राजकैदी या यद्
ु ि कैदी को ववधिपण
ू त अलभरक्षा से निकल भागिे में मदद या सिायता दे गा, या ककसी ऐसे कैदी
को छुड़ाएगा या छुड़ािे का प्रयत्ि करे गा, या ककसी ऐसे कैदी को, जो ववधिपण
ू त अलभरक्षा से निकल भागा िै , संश्रय
दे गा या नछपायेगा या ऐसे कैदी के कफर से पकड़े जािे का प्रनतरोि करे गा या करिे का प्रयत्ि करे गा, वि 1[आजीवि
कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण – कोई राजकैदी या यद्


ु ि कैदी, क्जसे अपिे पैरोल पर [भारत] मे कनतपय सीमाओं के भीतर
5

यथेच्छ ववचरण की अिज्ञ


ु ा िै ,

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1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |
3. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |

ववधिपण
ू त अलभरक्षा से निकल भगा िै , यि तब किा जाता िै , जब वि उि सीमाओ से परे चला जाता िै, क्जिके
भीतर उसे यथेच्छ ववचरण की अिज्ञ
ु ा िै |

अध्याय 7

सेना, नौसेना और िायस


ु ेना से संबधं धत अपराधों के विषय में

धारा 131 - विद्रोि का दष्ु प्रेरण या ककसी सैतनक, नौसैतनक या िायस


ु तै नक को किाव्य से विचभलत करने का
प्रयत्न करना- जो कोई 1
[भारत] सरकार की सेिा, िौसेिा या वायस
ु ेिा के ककसी ऑकफसर सैनिक, िौसैनिक या
वायस
ु नै िक द्वारा ववद्रोि ककया जािे का दष्ु प्रेरण करे गा, या ककसी ऐसे ऑकफसर, सैनिक, िौसैनिक या वायस
ु नै िक को
उसकी राजनिष्िा या उसके कितव्य से ववचललत करिे का प्रयत्ि करे गा वि 2
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- इस िारा में “ऑकफसर”, “ सैनिक”, और “वायस


ु नै िक” शब्दों के अंतगतत कोई भी व्यक्तत आता िै ,
जो यथाक्स्थनत, आमी ऐतट, सेिा अधिनियम, 1950 (1950 का 46), िेवलडडलसक्प्लि एतट, इंडडयि िेवी
(डडलसक्प्लि) ऐतट 1934 (1934 का 34) एयरफोसत एतट या वायस
ु ेिा अधिनियम 1950 (1950 का 45) के
अध्यिीि िो ।

धारा 132- विद्रोि का दष्ु प्रेरण यहद उसके पररणामस्िरूप विद्रोि ककया जाए - जो कोई 5
[भारत सरकार] की
सेिा, िौसेिा या वायस
ु ेिा के ककसी ऑकफसर, सैनिक,

1. 1950 के ववधि के अिक


ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |
3. ववधिपण
ू त अिक
ु ू ल आदे श 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

िौसैनिक या वायस
ु नै िक द्वारा ववद्रोि ककए जािे का दष्ु प्रेरण करे गा, यहद उस दष्ु प्रेरण के ववद्रोि िो जाए, तो वि
मत्ृ यु से या 1
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की
िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी, दं डिीय िोगा ।

धारा 133 – सैतनक, नौसैतनक या िायस


ु तै नक द्िारा अपने िररष्ठ ऑकफसर पर जबकक िि ऑकफसर अपने
पद तनष्पादन में िो, िमले का दष्ु प्रेरण - जो कोई 4[भारत सरकार] की सेिा, िौसेिा या वायस
ु ेिा के ककसी ऑकफसर,
सैनिक, िौसैनिक, या वायस
ु नै िक द्वारा ककसी वररष्ि ऑकफसर पर, जबकक वि ऑकफसर अपिे पद निष्पादि में िो,
िमले का दष्ु प्रेरण करे गा, वि दोिों में ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत
ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी, दं डिीय िोगा ।

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धारा 134- ऐसे िमले का दष्ु प्रेरण, यहद िमला ककया जाए- जो कोई 4[भारत सरकार] की सेिा , िौसेिा या
वायस
ु ेिा के ऑकफसर, सैनिक, िौसेिा, या वायस
ु नै िक द्वारा ककसी वररष्ि ऑकफसर पर, जबकक वि ऑकफसर अपिे पद
निष्पादि में िो, िमले का दष्ु प्रेरण करे गा, यहद ऐसा िमला उस दष्ु प्रेरण के पररणामस्वरुप ककया जाए, तो वि दोिों
में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से
भी, दक्ण्डत िोगा |

धारा 135– सैतनक, नौसैतनक या िायस


ु तै नक अभभत्यजन का दष्ु प्रेरण- जो कोई
4
[भारत सरकार] की सेिा,
िौसेिा या वायस
ु ेिा के ककसी ऑकफसर, सैनिक, िौसैनिक या वायस
ु नै िक द्वारा अलभत्यजि ककए जािे का दष्ु प्रेरण
करे गा, वि दोिों में ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि दो वषत

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |


2. 1950 के ववधि के अिक
ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 136- अभभत्याजक को संरय दे ना- जो कोई लसवाय एतक्स्मि ् पश्चात ् यथा-अपवाहदत के, यि जािते
िुए या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक 1[ भारत सरकार] की सेिा, िौसेिा या वायस ु ेिा के ककसी
ऑकफसर, सैनिक, िौसैनिक या वायसु नै िक िे अलभत्यजि ककया िै , ऐसे ऑकफसर, सैनिक, िौसैनिक या वायस ु नै िकं
को संश्रय दे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से,
या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

अपिाद- इस उपबंि का ववस्तार उस मामले पर ििीं िै , क्जसमें पत्िी द्वारा अपिे पनत को संश्रय हदया
जाता िै ।

धारा 137- मास्टर की उपेक्षा से ककसी िाखणन्ज्यक जलयान पर तछपा िुआ अभभत्याजक- ककसी ऐसे
वाखणक्ज्यक जलयाि का, क्जस पर 1[भारत सरकार] की सेिा, िौसेिा या वायसु ेिा का कोई अलभत्याजक नछपा िुआ
िो मास्टर या भार-सािक व्यक्तत, यद्यवप वि ऐसे नछपिे के संबि
ं में अिलभज्ञ िो, ऐसी शाक्स्त से दं डिीय िोगा,
जो पांच सौ रुपये से अधिक ििीं िोगी, यहद उसे ऐसे नछपिे का ज्ञाि िो सकता था, ककं तु केवल इस कारण ििीं
िुआ कक ऐसे मास्टर या भार-सािक व्यक्तत के िाते उसके कितव्य में कुछ उपेक्षा िुई या उस जलयाि पर अिश
ु ासि
का कुछ अभाव था ।

धारा 138- सैतनक, नौसैतनक या िायस


ु तै नक द्िारा अनधीनता के काया का दष्ु प्रेरण- जो कोई ऐसी बात का
दष्ु प्रेरण करे गा क्जसे कक वि 1[भारत सरकार] की सेिा, िौसेिा या वायस
ु ेिा के ककसी ऑकफसर, सैनिक, िौसैनिक
या वायस
ु नै िक द्वारा अििीिता का कायत जािता िो, यहद अििीिता का ऐसा कायत उस

1. 1950 के ववधि के अिक


ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

दष्ु प्रेरण के पररणामस्वरुप ककया जाए, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक
की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

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धारा 138- क ...... 1
[ निरलसत]

धारा 139- कुछ अधधतनयमों के अध्यधीन व्यन्क्त- कोई व्यक्तत जो आमी एतट, या सेिा अधिनियम, 1950
(1950 का 46) िेवलडडलसक्प्लि एतट, इंडडयि िेवी डडलसक्प्लि एतट, 1934 (1934 का 34) एयरफ़ोसत एतट या
वायस
ु ेिा अधिनियम, 1950 (1950 का 45) के अध्यिीि िै , इस अध्याय में पररभावषत अपरािों में से ककसी के
ललए इस संहिता के अिीि दं डिीय ििीं िै ।

धारा 140- सैतनक, नौसैतनक या िायु सैतनक द्िारा उपयोग में लाई जाने िाली पोशाक पिनना या टोकन
धारण करना- जो कोई 3[भारत सरकार] की सैन्य, िाववक या वायस
ु ेिा का सैनिक, िौसैनिक या वायु सैनिक ि िोते
िुए, इस आशय से कक यि ववश्वास ककया जाए कक वि ऐसा सैनिक, िौसैनिक या वायस ु नै िक िै , ऐसी कोई पोशाक
पििेगा या ऐसा टोकि िारण करे गा जो ऐसे सैनिक, िौसैनिक या वायस
ु नै िक द्वारा उपयोग में लाई जािे वाली
पोशाक या टोकि के सदृश्य िो, वि दोिों में से ककसी भी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की
िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो पााँच सौ रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा।

अध्याय 8

लोक-प्रशांतत के विरूद्ध अपराधों के विषय में

धारा 141 - विधधविरुद्ध जमाि- पााँच या अधिक व्यक्ततयों का जमाव “ववधिववरुद्ि जमाव” किा जाता िै
यहद उि व्यक्ततयों का,

1. 1934 के संशोधित अधिनियम सं. 35 द्वारा निरलसत |


2. 1950 के ववधि के अिक
ु ू ल आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

क्जिसे वि जमाव गहित िुआ िै , सामान्य उद्दे श्य िो-

पिला- 1[ केंद्रीय सरकार को या ककसी राज्य सरकार को या संसद को, या ककसी राज्य के वविाि मंडल] को
या ककसी लोक-सेवक को जब कक ककसी ऐसे लोक-सेवक की ववधिपण
ू त शक्तत का प्रयोग कर रिा िो, आपराधिक बल
द्वारा या आपराधिक बल के प्रदशति द्वारा आतंककत करिा, अथवा

दस
ू रा- ककसी ववधि के, या ककसी वैि आदे लशका के, निष्पादि का प्रनतरोि करिा, अथवा

तीसरा- ककसी ररष्टी या आपराधिक अनतचार या अन्य अपराि का करिा, अथवा

चौथा- ककसी व्यक्तत पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदशति द्वारा, ककसी संपवि का कब्जा
लेिा, या अलभप्राप्त करिा या ककसी व्यक्तत को ककसी मागत के अधिकार के उपभोग से, या जल का उपभोग करिे के
अधिकार या अन्य अमत
ू त अधिकार से क्जसका वि कब्जा रखता िो या उपभोग करता िो वंधचत करिा या ककसी
अधिकार या अिम
ु नत अधिकार को प्रवनततत करािा, अथवा -

पााँचिााँ- आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदशति द्वारा ककसी व्यक्तत को वि करिे के ललए,
क्जसे करिे के ललए वि वैि रुप से आबद्ि ि िो या उसका लोप, करिे के ललए क्जसे करिे का वि वैि रुप से
िकदार िो वववश करिा ।

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स्पष्टीकरण- कोई जमाव, जो इत्िा िोते समय ववधिववरुद्ि ििीं था, बाद को ववधिववरुद्ि जमाव िो
सकेगा।

धारा 142- विधधविरुद्ध जमाि का सदस्य िोना- जो कोई उि तथ्यों से पररधचत िोते िुये जो ककसी जमाव
को ववधि ववरुद्ि जमाव बिाते िैं, उस जमाव में साशय सक्म्मललत िोता िै या उसमें बिा रिता िै , वि ववधि
ववरुद्ि जमाव का सदस्य िै , यि किा जाता िै ।

धारा 143- दण्ड- जो कोई ववधिववरुद्ि जमाव का सदस्य िोगा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 144- घातक आयध


ु से सन्ज्जत िोकर विधधविरुद्ध जमाि में सन्म्मभलत िोना- जो कोई ककसी घातक
आयि
ु से ,या ककसी ऐसी चीज से, क्जससे आक्रामण आयि
ु के रुप में उपयोग ककये जािे पर मत्ृ यु काररत िोिी
संभाव्य िै , सक्ज्जत िोते िुये ककसी ववधिववरुद्ि जमाव का सदस्य िोगा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 145- ककसी विधधविरुद्ध जमाि में यि जानते िुये कक उसके ब्रबखर जाने का समादे श दे हदया गया िै ,
सन्म्मभलत िोना या उसमें बने रिना- जो कोई ककसी ववधिववरुद्ि जमाव में यि जािते िुये कक ऐसे ववधिववरुद्ि
जमाव को ब्रबखर जािे का समादे श ववधि द्वारा ववहित प्रकार से हदया गया िै , सक्म्मललत िोगा, या बिा रिे गा,वि
दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो जम
ु ातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जायेगा ।

धारा 146- बल्िा करना- जब कभी ववधिववरुद्ि जमाव द्वारा या उसके ककसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के
सामान्य उद्दे श्य को अग्रसर करिे मे बल या हिंसा का प्रयोग ककया जाता िै तब ऐसे जमाव का िर सदस्य बल्वा
करिे के अपराि का दोषी िोगा |

धारा 147 – बल्िा करने के भलये दण्ड - जो कोई बल्वा करिे का दोषी िोगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

म.प्र./ छिीसगढ़ राज्य संशोधन- म.प्र. राज्य के वषत 1999 के अधिनियम क्रमाक 17 हदिांक 21.5.1999
से प्रभावी, संशोिि के द्वारा भा.द.सं की िारा 148 के अपराि को न्यायालय की अिम
ु नत से, उस व्यक्तत द्वारा
क्जसके ववरुद्ि अपराि काररत करते समय बल या हिंसा प्रयत
ु त की गई िै शमिीय ककया गया िै परन्तु अलभयत
ु त
ऐसे अन्य अपराि के ललए आरोवपत ििीं ककया गया िो, जो शमिीय ििीं िै ।

धारा 148- घातक आयध


ु से सन्ज्जत िोकर बल्िा करना- जो कोई घातक आयि
ु से, या ककसी ऐसी चीज से
क्जससे आक्रामक आयि
ु के रूप में उपयोग ककए जािे पर मत्ृ यु काररत िोिी सम्भाव्य िो, सक्ज्जत िोते िुए बल्वा
करिे का दोषी िोगा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या
जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

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राज्य संशोधन

म.प्र./छिीसगढ़ राज्य संशोधन- म.प्र. राज्य के वषत 1999 के अधिनियम क्रमांक 17 हदिांक 21.5.1999 से
प्रभावी, संशोिि के द्वारा भा.द.सं. की िारा 148 के अपराि को न्यायालय की अिम
ु नत से उस व्यक्तत द्वारा
क्जसके ववरुद्ि अपराि काररत करते समय बल या हिंसा प्रयत
ु त की गई िै शमिीय ककया गया िै परन्तु अलभयत
ु त
ऐसे अन्य अपराि के ललए आरोवपत ििीं ककया गया िो जो शमिीय ििीं िै ।

धारा 149 - विधधविरुद्ध जमाि का िर सदस्य, सामाधय उद्दे श्य को अग्रसर करने में ककये गये अपराध
का दोषी- यहद ववधिववरुद्ि तमाव के ककसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्दे श्य को अग्रसर करिे में
अपराि ककया जाता िै , या कोई ऐसा अपराि ककया जाता िै , क्जसका ककया जािा उस जमाव के सदस्य उस उद्दे श्य
को अग्रसर करिे में सम्भाव्य जािते थे, तो िर व्यक्तत, जो उस अपराि के ककये जािे के समय उस जमाव का
सदस्य िै , उस अपराि का दोषी िोगा ।

धारा 150- विधधविरुद्ध जमाि में सन्म्मभलत करने के भलये व्यन्क्तयों का भाड़े पर लेना या भाड़े पर लेने
के प्रतत मौनानक
ु ू लता- जो कोई ककसी व्यक्तत को ककसी ववधिववरुद्ि जमाव में सक्म्मललत िोिे या उसका सदस्य
बििे के ललये भाड़े पर लेगा या वचिबद्ि या नियोक्जत करे गा या भाड़े पर ललए जािे का वचिबद्ि या नियोक्जत
करिे का संप्रवतति करे गा या उसके प्रनत मौिािक
ु ू ल बिा रिे गा, वि ऐसे ववधिववरुद्ि जमाव के सदस्य के रुप में ,
और ककसी ऐसे व्यक्तत द्वारा ऐसे ववधिववरुद्ि जमाव के सदस्य के िाते ऐसे भाड़े पर लेिे, वचिबद्ि या नियोजि
के अिस
ु रण में ककए गए ककसी भी अपराि के ललए उसी प्रकार दण्डिीय िोगा, मािो वि ऐसे ववधिववरुद्ि जमाव का
सदस्य रिा था या ऐसा अपराि उसिे स्वयं ककया था ।

धारा 151- पांच या अधधक व्यन्क्तयों के जमाि को ब्रबखर जाने का समादे श हदए जाने के पश्चात ् उसमें
जानते िुए सम्मभलत िोना या बने रिना- जो कोई पााँच या अधिक व्यक्ततयों के ककसी जमाव में , क्जससे लोक
शाक्न्त में ववघ्ि काररत िोिा सम्भाव्य िो, ऐसे जमाव को ब्रबखर जािे का समादे श ववधिपव
ू क
त दे हदये जािे पर,
जािते िुये सम्मललत िोगा या बिा रिे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक
की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

स्पष्टीकरण- यहद वि जमाव िारा 141 के अथत के अन्तगतत ववधिववरुद्ि जमाव िो, तो अपरािी िारा 145
के अिीि दण्डिीय िोगा ।

धारा 152- लोक-सेिक जब बल्िा इत्याहद को दबा रिा िो, तब उस पर िमला करना या उसे बाधधत करना-
जो कोई ऐसे ककसी लोक-सेवक पर, जो ववधिववरुद्ि जमाव के ब्रबखरिे का, या बल्वे या दं गे को दबािे का प्रयास
ऐसे लोक-सेवक के िाते अपिे कत्ततव्य के निवतिि में कर रिा िो, िमला करे गा या उसको िमले की िमकी दे गा या
उसके काम में बािा डालेगा या बािा डालिे का प्रयत्ि करे गा या ऐसे लोक-सेवक पर आपराधिक बल का प्रयोग
करे गा या करिें की िमकी दे गा, या करिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि तीि बषत तक की िोगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जायेगा ।

धारा 153- बल्िा कराने के आशय से स्िैररता से प्रकोपन दे ना, यहद बल्िा ककया जाये-यहद बल्िा न ककया
जाये- जो कोई अवैि बात करिे द्वारा ककसी व्यक्तत को पररद्वेष से या स्वैररता से प्रकोवपत इस आशय से या यि
सम्भाव्य जािते िुये करे गा कक ऐसे प्रकोपि के पररणामस्वरुप बल्वे का अपराि ककया जायेगा, यहद ऐसे प्रकोपि, के
पररणामस्वरूप बल्वे का अपराि ककया जाये तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत
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तक की िो सकेगी, या जुमातिे से या दोिों से, और यहद बल्वे का अपराि ि ककया जाये तो वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से,क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी,या जुमातिे से या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

1
[धारा 153-क. धमा, मल
ू िंश, जधम- स्थान, तनिासस्थान, भाषा इत्याहद के आधारों पर विभभधन समि
ू ों के बीच
शत्रत
ु ा का संप्रितान और सौिाद्रा बने रिने पर प्रततकूल प्रभाि डालने िाले काया करना- (1) जो कोई-

(क) बोले गये या ललखे गये शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृष्यरुपणों द्वारा या अन्यथा ववलभन्ि
िालमतक, मल
ू वंशीय या भाषायी या प्रादे लशक समि
ू ों, जानतयों या समद
ु ायों के बीच असौिाद्रत अथवा शत्रत
ु ा,
घण
ृ ा या वैमिस्य की भाविायें, िमत, मल
ू वंश, जन्म-स्थाि, निवास स्थाि, भाषा, जानत या समद
ु ाय के
आिारों पर या अन्य ककसी भी आिार पर संप्रवनततत करे गा या संप्रवनततत करिे का प्रयत्ि करे गा,
अथवा

(ख) कोई ऐसा कायत करे गा, जो ववलभन्ि िालमतक, मल


ू वंशीय, भाषाई या प्रादे लशक समि
ू ों या जानतयों या
समद
ु ायों के बीच सौिाद्रत बिे रििे पर प्रनतकूल प्रभाव डालिे वाला िै और जो लोक- प्रशांनत में ववघ्ि डालता िै , या
क्जससे उसमें ववघ्ि पड़िा सम्भाव्य िो, [ अथवा]
3

3
(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आन्दोलि, कवायद या अन्य वैसा िी कक्रयाकलाप इस आशय से संचाललत करे गा
कक ऐसे कक्रयाकलाप में भाग लेिे वाले व्यक्तत ककसी िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई या प्रादे लशक समि
ू या जानत या
समद
ु ाय के ववरुद्ि आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करे या प्रयोग करिे के ललये प्रलशक्षक्षत ककये जाऐगे या यि
सम्भाव्य जािते िुये संचाललत करे गा कक ऐसे कक्रयाकलाप में भाग लेिे वाले व्यक्तत ककसी िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई
या प्रादे लशक समि
ू या जानत या समद ु ाय के ववरुद्ि आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के
ललये प्रलशक्षक्षत ककये जाएंगे अथवा ऐसे कक्रयाकलाप में इस आशय से भाग लेगा कक

1. िारा 153क अधिनियम सं. 41 द्वारा (12.9.196 से प्रभावी | ) प्रनतस्थावपत एवं 1969 के अिनियम
सं. 35 द्वारा (4.9.1969 से प्रभावी ) पव
ू त की िारा के स्थाि पर पि
ु ः प्रनतस्थावपत |
2. 1972 के अधिनियम सं. 31 द्वारा अन्तः स्थावपत | 14.6.1972 से प्रभावी |

ककसी िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषायी या प्रादे लशक समि
ू या गीत या समद
ु ाय के ववरुद्ि आपराधिक बल या हिंसा का
प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के ललये प्रलशक्षक्षत ककया जाए,
या यि सम्भाव्य जािते िुये भाग लेगा कक ऐसे
कक्रयाकलाप मे भाग लेिे वाले व्यक्तत ककसी िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई या प्रादे लशक समि
ू या जानत या समद
ु ाय के
ववरुद्ि आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करें गे या प्रयोग करिे के ललये प्रलशक्षक्षत ककये जाएंगे और ऐसे
कक्रयाकलाप से ऐसी िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई या प्रादे लशक समि
ू या जानत या समद
ु ाय के सदस्यों के बीच, चािे
ककसी भी कारण से भय या संत्रास या असरु क्षा की भाविा उत्पन्ि िोती िै या उत्पन्ि िोिी संभाव्य िै ,]

वि कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम


ु ातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया
जाएगा ।

(2) पज
ू ा के स्थान आहद में ककया गया अपराध - जो कोई उपिारा (1) में ववनिहदत ष्ट अपराि ककसी पज
ू ा के
स्थाि में या ककसी जमाव मे, जो िालमतक पज ू ा या िालमतक कमत करिे में लगा िुआ िो, करे गा, वि कारावास से जो
पााँच वषत तक का िो सकेगा, दक्ण्डत ककया जाएगा और जम ु ातिे से भी दण्डिीय िोगा ।]

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1
[153 -कक. ककसी जुलस
ू में जानबझ
ू कर आयध
ु ले जाने या ककसी सामहू िक डिल या सामहू िक प्रभशक्षण का
आयध
ु सहित संचालन या आयोजन करना या उसमें भाग लेने के भलये दण्ड- जो कोई ककसी सावतजनिक स्थाि में ,
दण्ड प्रकक्रया संहिता, 1973 (1974 का 2) की िारा 144-क के अिीि जारी की गई ककसी लोक सच
ू िा या ककए गए
ककसी आदे श के उल्लंघि में ककसी जुलस
ू में जािबझ
ू कर आयि
ु ले जाता िै या सामहू िक डिल या सामहू िक प्रलशक्षण
या आयि
ु सहित जािबझ
ू कर संचालि, आयोजि करता िै और उसमें भाग लेता िै तो वि कारावास से, क्जसकी
अवधि छि मास तक की िो सकेगी और जम
ु ातिे से, जो दो िजार रुपए तक का िो सकेंगा दं डडत ककया जाएगा ।

1. 2005 के अधिनियम सं. 25 द्वारा अन्तः स्थावपत |

स्पष्टीकरण- “आयि
ु ” से अपराि या बचाव के ललए िधथयार के रुप में डडजाइि की गई या अपिाई गई
ककसी भी प्रकार की कोई वस्तु अलभप्रेत िै और इसके अन्तगतत अक्‍ि शस्त्र, िक
ु ीली िार वाला िधथयार, लािी, डण्डा
और छड़ी भी िै ।]

1
[153-ख. राष्रीय अखण्डता पर प्रततकूल प्रभाि डालने िाले लांछन, प्राख्यान- (1) जो कोई बोले गए या
ललखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृष्यरुपणों द्वारा या अन्यथा-

(क) ऐसा कोई लांछि लगाएगा या प्रकालशत करे गा कक ककसी वगत के व्यक्तत इस कारण से कक वे ककसी
िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई या प्रादे लशक समि
ू या जानत या समद
ु ाय के सदस्य िैं, ववधि द्वारा स्थावपत भारत के
संवविाि के प्रनत सच्ची श्रद्िा और निष्िा ििीं रख सकते या भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता की मयातदा ििीं बिाए
रख सकते, अथवा

(ख) यि प्राख्याि करे गा, परामशत दे गा, सलाि दे गा, प्रचार करे गा या प्रकालशत करे गा कक ककसी वगत के
व्यक्ततयों को इस कारण से कक वे ककसी िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई या प्रादे लशक समि
ू या जानत या समद
ु ाय के
सदस्य िैं, भारत के िागररक के रुप में उिके अधिकार ि हदए जाएाँ या उन्िें उिसे वंधचत ककया जाए, अथवा

(ग) ककसी वगत के व्यक्ततयों की बाध्यता के सम्बन्ि में इस कारण से कक वे ककसी िालमतक, मल
ू वंशीय,
भाषाई या प्रादे लशक समि
ू या जानत या समद
ु ाय के सदस्य िैं, कोई प्राख्याि करे गा, परामशत दे गा, अलभवाक् करे गा
या अपील करे गा अथवा प्रकालशत करे गा और ऐसे प्राख्याि, परामशत, अलभवाक् या अपील से ऐसे सदस्यों

1. अधिनियम संख्या 31 सि ् 1972 द्वारा अन्तः स्थावपत | 14.6.1972 से प्रभावी |

तथा अन्य व्यक्ततयों के बीच असामंजस्य अथवा शत्रत


ु ा या घण
ृ ा या वैमिस्य की भाविाएं उत्पन्ि िोती िैं या
उत्पन्ि िोिी सम्भाव्य िैं,

वि कारावास से, जो तीि वषत तक का िो सकेगा, या जुमातिे से, या अथवा दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

(2) जो कोई उपिारा (1) में ववनिहदत ष्ट कोई अपराि ककसी उपासिा स्थल में या िालमतक उपासिा अथवा
िालमतक कमत करिे में लगे िुए ककसी जमाव में करे गा वि कारावास से, जो पांच वषत तक का िो सकेगा, दक्ण्डत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा | ]

154. उस भभू म का स्िामी या अधधभोगी, न्जस पर विधधविरुद्ध जमाि ककया गया िै - जब कभी कोई
ववधिववरुद्ि जमाव या बल्वा िो, तब क्जस भलू म पर ऐसा ववधिववरुद्ि जमाव िो या ऐसा बल्वा ककया जाए, उसका
स्वामी या अधिभोगी और ऐसी भलू म में हित रखिे वाला या हित रखिे का दावा करिे वाला व्यक्तत एक िजार
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रूपए से अिधिक जुमातिे से दण्डिीय िोगा, यहद वि या उसका अलभकतात या प्रबन्िक यि जािते िुए कक ऐसा
अपराि ककया जा रिा िै या ककया जा चकु ा िै या इस बात का ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक ऐसे अपराि
का ककया जािा सम्भाव्य िै , उस बात को अपिी शक्ततभर शीघ्रतम सच
ू िा निकटतम पलु लस थािे के प्रिाि
ऑकफसर को दे या ि दें और उस दशा में , क्जसमें कक उसे या उन्िें यि ववश्वास करिे का कारण िो कक यि
लगभग ककया िी जािे वाला िै , अपिी शक्ततभर सब ववधिपण
ू त साििों का उपयोग उसका निवारण करिे के ललए
ििीं करता या ििीं करते और उसके िो जािे पर अपिी शक्ततभर सब ववधिपण
ू त साििों का उस ववधिववरुद्ि जमाव
को ब्रबखरिे या बल्वे को दबािे के ललए उपयोग ििीं करता या करते |

155. उस व्यन्क्त का दातयत्ि, न्जसके फायदे के भलए बल्िा ककया जाता िै - जब कभी ककसी ऐसे व्यक्तत
के फायदे के ललए या उसकी ओर से बल्वा ककया जाए, जो ककसी भलू म का, क्जसके ववषय में ऐसा बल्वा िो, स्वामी
या अधिभोगी िो या जो ऐसी भलू म में या बल्वे को पैदा करिे वाले ककसी वववादग्रस्त ववषय में कोई हित रखिे का
दावा करता िो या जो उससे कोई फायदा प्रनतगि
ृ ीत कर या पा चक
ु ा िो, तब ऐसा व्यक्तत, जुमातिे से दण्डिीय िोगा,
यहद वि या उसका अलभकतात या प्रबन्िक इस बात का ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक ऐसा बल्वा ककया
जािा सम्भाव्य था, या कक क्जस ववधिववरुद्ि जमाव द्वारा ऐसा बल्वा ककया गया था, वि जमाव ककया जािा
सम्भाव्य था, अपिी शाक्ततभर सब ववधिपण
ू त साििों का ऐसे जमाव या बल्वे का ककया जािा निवाररत करिे के ललए
और उसे दबािे और ब्रबखरिे के ललए उपयोग ििीं करता या करते ।

156. उस स्िामी या अधधभोगी के अभभकताा का दातयत्ि, न्जसके फायदे के भलए बल्िा ककया जाता िै - जब
कभी ऐसे व्यक्तत के फायदे के ललए या ऐसे व्यक्तत की ओर से बल्वा ककया जाए, जो ककसी भलू म का, क्जसके ववषय
में ऐसा बल्वा िो, स्वामी िो, या अधिभोगी िो या जो ऐसी भलू म में या बल्वे को पैदा करिे वाले ककसी वववादग्रस्त
ववषय में कोई हित रखिे का दावा करता िो या जो उससे कोई फायदा प्रनतगि
ृ ीत कर या पा चक
ु ा िो,
तब उस व्यक्तत का अलभकतात या प्रबन्िक जुमातिे से दण्डिीय िोगा, यहद ऐसा अलभकतात या प्रबन्िक यि ववश्वास
करिे का कारण रखते िुए कक ऐसे बल्वे का ककया जािा सम्भाव्य था, या कक क्जस ववधि ववरुद्ि जमाव द्वारा ऐसा
बल्वा ककया गया था उसका ककया जािा सम्भाव्य था, अपिी शक्ततभर सब ववधिपण ू त साििों का ऐसे बल्वे या जमाव
का ककया जािा निवाररत करिे के ललए और उसको दबािे और ब्रबखरिे के ललए उपयोग ििीं करता या करते ।

157. विधधविरुद्ध जमाि के भलए भाड़े पर लाए गए व्यन्क्तयों को संरय दे ना- जो कोई अपिे अधिभोग या
भारसािि, या नियन्त्रण के अिीि ककसी गि ृ या पररसर में ककन्िीं व्यक्ततयों को, यि जािते िुए कक वे व्यक्तत
ववधि ववरुद्ि जमाव में सक्म्मललत िोिे या सदस्य बििे के ललए भाड़े पर लाए गए, वचिबद्ि या नियोक्जत ककए
गए िै या भाड़े पर लाए जािे, वचिबद्ि या नियोक्जत ककए जािे वाले िैं, संश्रय दे गा, आिे दे गा या सलमललत
करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या
दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

158. विधधविरुद्ध जमाि या बल्िे में भाग लेने के भलए भाड़े पर जाना- जो कोई िारा 141 मे ववनिहदत ष्ट
कायों में से ककसी को करिे के ललए या करिे में सिायता दे िे के ललए वचिबद्ि ककया या भाड़े पर ललया जाएगा
या भाड़े पर ललए जािे या वचिबद्ि ककए जािे के ललए अपिी प्रस्थापिा करे गा या प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा,

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या सशस्त्र चलना- तथा जो कोई पव
ू ोतत प्रकार से वचिबद्ि िोिे या भाड़े पर ललए जािे पर, ककसी घातक
आयि
ु से या ऐसी ककसी चीज से, क्जससे आक्रामक आयि
ु के रुप में उपयोग ककए जािे पर मत्ृ यु काररत िोिी
सम्भाव्य िै , सक्ज्जत िोकर चलेगा या सक्ज्जत चलिे के ललए वचिबद्ि िोगा या अपिी प्रस्थापिा करे गा, वि दोिों
में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा ।

159 दं गा- जबकक दो या अधिक व्यक्तत लोक स्थाि में लड़ कर लोक शाक्न्त में ववघ्ि डालते िैं, तब यि
किा जाता िै -कक वे ‘दं गा’ करते िैं ।

160 दं गा करने के भलए दण्ड- जो कोई दं गा करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक सौ रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा ।

अध्याय 9
लोक सेिकों द्िारा या उनसे सम्बन्धधत अपराधों के विषय में
धारा 161 से धारा 165क को भ्रष्टाचार तनिारण अधधतनयम, 1988 संख्या 49 द्िारा तनरभसत ककया गया ।

धारा 166 - लोक सेिक, जो ककसी व्यन्क्त को क्षतत काररत करने के आशय से विधध की अिज्ञा करता िै -
जो कोई लोक-सेवक िोते िुए ववधि के ककसी ऐसे निदे श की जो उस ढं ग के बारे में िो क्जस ढं ग से लोक-सेवक के
िाते उसे आचरण करिा िै जािते िुए अवज्ञा इस आशय से या यि सम्भाव्य जािते िुये करे गा कक ऐसी अवज्ञा से
वि ककसी व्यक्तत को क्षनतकाररत करे गा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी,या
जुमातिे से या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा ।

1
[धारा 166 क. लोक-सेिक जो विधध के अधीन के तनदे श की अिज्ञा करता िै - जो कोई लोक-सेवक िोते
िुए-

(क) ववधि के ककसी ऐसे निदे श की, जो उसको अपराि या ककसी अन्य मामले में अन्वेषण के प्रयोजि के
ललए, ककसी व्यक्तत की ककसी स्थाि पर उपक्स्थनत की अपेक्षा ककए जािे से प्रनतवषद्ि करता िै , जािते िुए अवज्ञा
करता िै ;

दं ड ववधि (संशोिि) अधिियम, 2013 द्वारा अन्तः स्थावपत | हदिांक 3.2.13 से प्रभावी |

या

(ख) ककसी ऐसी रीनत को, क्जसमे वि ऐसा अन्वेषण करे गा, ववनियलमत करिे वाली ववधि के ककसी अन्य
निदे श की, ककसी व्यक्तत पर प्रनतकूल प्रभाव डालिे के ललए, जािते िुय अवज्ञा करता िै ; या

(ग) दण्ड प्रकक्रया संहिता, 1973 (1974 का 2) की िारा 154 की उपिारा (1) के अिीि और ववलशष्टतया
िारा 326क, िारा 326ख, िारा 354, िारा 354क की उपिारा (2) और उपिारा (3), िारा 354ख, िारा 354ग,
िारा 354घ की उपिारा (2), िारा 370क ,िारा 376, िारा 376क, िारा 376ख, िारा 376ग, िारा 376घ. िारा
376ङ या िारा 509 के अिीि दं डिीय संज्ञेय अपराि के सम्बन्ि में उसे दी गयी ककसी सच
ू िा को लेखबद्ि करिे
में असफल रिता िै ,

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वि किोर कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास से कम की ििीं िोगी ककं तु जो 2 वषत तक की िो सकेगी,
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा |

166ख. पीडड़त का उपचार न करने के भलए दण्ड- जो कोई ऐसे ककसी लोक या प्राइवेट अस्पताल का, चािे
वि केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थािीय निकाय या ककसी अन्य व्यक्तत द्वारा चलाया जा रिा िो, भारसािक
िोते िुए दण्ड प्रकक्रया संहिता, 1973 (1974 का 2) की िारा 357ख के उपबन्िों का उल्लंघि करे गा, वि कारावास
से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी या जम ु ातिे से या दोिों से दं डडत ककया जाएगा | ]

धारा 167– लोक सेिक, जो क्षतत करने के आशय से अशद्


ु ध दस्तािेज रचता िै- जो कोई लोक-सेवक िोते
िुए और 1 [ऐसे लोक-सेवक के िाते ककसी दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख की रचिा या अिव
ु ाद करिे का भार
विि करते िुए उस दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख का

1. वषत 2000 के अधिनियम सं. 21 द्वारा प्रनतस्थावपत |

ववनिमातण, रचिा या अिव


ु ाद] ऐसे प्रकार से क्जसे वि जिता िो या ववश्वास करता िो कक अशद्
ु ि िै , इस आशय से,
या यि संभाव्य जािते िुए करे गा कक एतद्द्वारा वि ककसी व्यक्तत को क्षनत काररत करे , वि दोिों में से ककसी
भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा
|

धारा 168- लोक सेिक, जो विधधविरुद्ध रूप से व्यापार में लगता िै – जो कोई लोक-सेवक िोते िुए और
ऐसे लोक-सेवक के िाते इस बात के ललए वैि रूप से आबद्ि िोते िुए कक वि व्यापार में ि लगे, व्यापार में
लगेगा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जायेगा

धारा 169- लोक सेिक, जो विधधविरुद्ध रूप से सम्पवि क्रय करता िै या उसके भलये बोली लगाता िै – जो
कोई लोक-सेवक िोते िुए और ऐसे लोक-सेवक के िाते इस बात के ललये वैि रूप से आबद्ि िोते िुए कक वि
अमकु सम्पवि को ि तो क्रय करे और ि उसके ललये बोली लगाये, या तो अपिे निजी िाम मे या ककसी दस
ू रे के
िाम मे, अथवा दस
ू रों के साथ संयत
ु त रूप से या अंशों में , उस सम्पवि को क्रय करे गा, या उसके ललए बोली
लगाएगा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा, और यहद वि सम्पवि क्रय कर ली गई िै , तो वि अधिहृत कर ली जाएगी ।

धारा 170 – लोक सेिक का प्रततरूपण – जो कोई ककसी ववलशष्ट पद को लोक सेवक के िातेिारण करिे का
अपदे श यि जािते िुए करे गा कक वि ऐसा पद िारण ििीं करता िै या ऐसा पद िारण करिे वाले ककसी अन्य
व्यक्तत का हृदय प्रनतरूपेण करे गा और ऐसा बिावटी रूप में ऐसे पदाभास से कोई कायत करे गा या करिे का प्रयत्ि
करे गा वि दोिो में से ककसी भांनत के कारावास से क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी या जम
ु ातिे से या दोिो
से दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 171 - कपटपण


ू ा आशय से लोक-सेिक के उपयोग की पोशाक पिनना या टोकन को धारण करना- जो
कोई लोक सेवकों के ककसी खास वगत का ि िोते िुये, इस आशय से कक यि ववश्वास ककया जाए, या इस ज्ञाि से
कक सम्भाव्य िै कक यि ववश्वास ककया जाये, कक वि लोक सेवकों के उस वगत का िै , लोक सेवकों के उस वगत द्वारा
उपयोग मे लायी जािे वाली पोशाक के सदृश पोशाक पििेगा, या टोकि के सदृश कोई टोकि िारण करे गा, वि दोिों

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में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो दो सौ रुपये तक
का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

अध्याय 9-क
तनिााचन सम्बधधी अपराधों के विषय में
धारा 171 क. “ अभ्यथी”, ”तनिााचन अधधकार” पररभावषत- इस अध्याय के प्रयोजिों के ललये-

1
[( क) “अभ्यथी” से वि व्यक्तत अलभप्रेत िै जो ककसी निवातचि में अभ्यथी के रुप में िाम निदे लशत ककया
गया िो; ]

(ख) “निवातचि अधिकार” से ककसी निवातचि में अभ्यथी के रुप में खड़े िोिे या खड़े ि िोिे या अभ्यथतिा से
अपिा िाम वापस लेिे या मत दे िे या मत दे िे से ववरत रििे का ककसी व्यक्तत का अधिकार अलभप्रेत िै ।

धारा 171-ख. ररश्ित- (1) जो कोई-

(i) ककसी व्यक्तत को इस उद्दे श्य से पररतोषण दे ता िै कक वि उस व्यक्तत को या ककसी अन्य व्यक्तत
को ककसी निवातचि अधिकार का प्रयोग करिे के ललये उत्प्रेररत करे या ककसी व्यक्तत को इसललये
इिाम दे कक उसिे ऐसे अधिकार का प्रयोग ककया िै ; अथवा

1. 1975 के अधिनियम सं. 40 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 6.8.1975 से प्रभावी |

(ii) स्वयं अपिे ललये या ककसी अन्य व्यक्तत के ललये कोई पररतोषण ऐसे ककसी अधिकार को प्रयोग में
लािे के ललये या ककसी अन्य व्यक्तत को ऐसे ककसी अधिकार को प्रयोग में लािे के ललये उत्प्रेररत
करिे या उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि करिे के ललये इिाम के रुप में प्रनतगि
ृ ीत करता िै ,

वि ररश्वत का अपराि करता िै

परन्तु लोकिीनत की घोषणा या लोक- कायतवािी का वचि इस िारा के अिीि अपराि ि िोगा ।

(2) जो व्यक्तत पररतोषण दे िे की प्रस्थापिा करता िै या दे िे को सिमत िोता िै या उपाप्त करिे की


प्रस्थापिा या प्रयत्ि करता िै , यि समझा जाएगा कक वि पररतोषण दे ता िै ।

(3) जो व्यक्तत पररतोषण अलभप्राप्त करता िै या प्रनतगि


ृ ीत करिे को सिमत िोता िै या अलभप्राप्त करिे
का प्रयत्ि करता िै , यि समझा जाएगा कक वि पररतोषण प्रनतगि
ृ ीत करता िै और जो व्यक्तत वि बात करिे के
ललये क्जसे करिे का उसका आशय ििीं िै , िे तु स्वरुप, या जो बात उसिे ििीं की िै उसे करिे के ललये इिाम के
रूप में पररतोषण प्रनतगि
ृ ीत करता िै , यि समझा जाएगा कक उसिे पररतोषण को इिाम के रुप में प्रनतगि
ृ ीत ककया
िै ।

धारा 171-ग. तनिााचनों में असम्यक् असर डालना- (1) जो कोई ककसी निवातचि अधिकार के निबाति प्रयोग
में स्वेच्छया िस्तक्षेप करता िै या िस्तक्षेप करिे का प्रयत्ि करता िै , वि निवातचि में असम्यक् असर डालिे का
अपराि करता िै ।

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(2) उपिारा (1) के उपबन्िों की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाव डाले ब्रबिा जो कोई-

(क) ककसी अभ्यथी या मतदाता को, या ककसी ऐसे व्यक्तत को क्जससे अभ्यथी या मतदाता हितबद्ि िै ,
ककसी प्रकार की क्षनत करिे की िमकी दे ता िै , अथवा

(ख) ककसी अभ्यथी या मतदाता को यि ववश्वास करिे के ललये उत्प्रेररत करता िै या उत्प्रेररत करिे का
प्रयत्ि करता िै कक वि या कोई ऐसा व्यक्तत, क्जससे वि हितबद्ि िै , दै वीय अप्रसाद या आध्याक्त्मक पररनिन्दा का
भाजि िो जाएगा या, बिा हदया जाएगा,

यि समझा जाएगा कक वि उपिारा (1) के अथत के अन्तगतत ऐसे अभ्यथी या मतदाता के निवातचि अधिकार
के निबाति प्रयोग में िस्तक्षेप करता िै ।

(3) लोक िीनत की घोषणा या लोक कायतवािी का वचि या ककसी वैि अधिकार का प्रयोग मात्र, जो ककसी
निवतचि अधिकार में िस्तक्षेप करिे के आशय के ब्रबिा िै , इस िारा के अथत के अन्तगतत िस्क्षेप करिा ििीं समझा
जाएगा ।

धारा 171-घ. तनिााचनों में प्रततरुपण- जो कोई ककसी निवातचि में ककसी अन्य व्यक्तत के िाम से, चािे वि
जीववत िो या मत
ृ , या ककसी कक्ल्पत िाम से, मत-पत्र के ललए आवेदि करता या मत दे ता िै , या ऐसे निवातचि में
एक बार मत दे चुकािे के पश्चात ् उसी निवातचि में अपिे िाम के मत-पत्र के ललए आवेदि करता िै , और जो कोई
ककसी व्यक्तत द्वारा ककसी ऐसे प्रकार से मतदाि को दष्ु प्रेररत करता िै , उपाप्त करता िै , या उपाप्त करिे का
प्रयत्ि करता िै , वि निवातचि में प्रनतरुपण का अपराि करता िै :

1
[परं तु यि तब जबकक, इस िारा में का कुछ भी, उस व्यक्तत को लागू ििीं िोगा, क्जसको तत्समय प्रवि

ककसी ववधि के तित, ककसी मतदाता के ललए, परोक्षी के रुप में , मतदाि करिे के ललए प्राधिकृत ककया गया िै , जिााँ
तक, वि ऐसे मतदाि के ललए एक परोक्षी के रुप में मतदाि करता िै । ]

धारा 171-ङ. ररश्ित के भलये दण्ड- जो कोई ररश्वत का अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा : परन्तु
सत्कार के रुप में ररश्वत केवल जुमातिे से िी दक्ण्डत की जाएगी ।

स्पष्टीकरण- ‘सत्कार’ से ररश्वत का वि रुप अलभप्रेत िै जो पररतोषण, खाद्य, पेय,मिोरं जि या रसद के


रुप में िै ।

धारा 171-च. तनिााचन में असम्यक् असर डालने या प्रततरुपण के भलये दण्ड- जो कोई ककसी निवातचि में
असम्यक् असर डालिे या प्रनतरुपण का अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 171-छ. तनिााचन के भसलभसले में भमथ्या कथन- जो कोई निवातचि के पररणाम पर प्रभाव डालिे के
आशय से ककसी अभ्यथी के वैयक्ततक शील या आचरण के सम्बन्ि में तथ्य का कथि तात्पनयतत िोिे वाला कोई
ऐसा कथि करे गा या प्रकालशत करे गा, जो लमथ्या िै , और क्जसका लमथ्या िोिा वि जािता या ववश्वास करता िै
अथवा क्जसके सत्य िोिे का वि ववश्वास ििीं करता िै, वि जुमातिे से दक्ण्डत ककया जाएगा ।

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धारा 171-ज तनिााचन के भसलभसले में अिैध संदाय- जो कोई ककसी अभ्यथी के सािारण या ववशेष ललखखत
प्राधिकार के ब्रबिा ऐसे अभ्यथी का निवातचि अग्रसर करिे या निवातचि करा दे िे के ललये कोई सावतजनिक सभा
करिे में या ककसी ववज्ञापि, पररपत्र या प्रकाशि पर या ककसी भी अन्य ढं ग से व्यय करे गा या करिा प्राधिकृत
करे गा, वि जुमातिे से जो पााँच सौ रूपये तक का िो सकेगा, दक्ण्डत ककया जाएगा:

परन्तु यहद कोई व्यक्तत, क्जसिे प्राधिकार के ब्रबिा कोई ऐसे व्यय ककये िों, जो कुल लमलाकर दस रुपये से
अधिक ि िो, उस तारीख से, क्जस तारीख को ऐसे व्यय ककये गये िों, दस हदि के भीतर उस अभ्यथी का ललखखत
अिम
ु ोदि अलभप्राप्त कर ले, तो यि समझा जायेगा कक उसिे ऐसे व्यय उस अभ्यथी के प्राधिकार से ककये िैं |

धारा 171-झ. तनिााचन-लेखा रखने में असफलता- जो कोई ककसी तत्समय प्रवि
ृ ववधि द्वारा या ववधि का
बल रखिे वाले ककसी नियम द्वारा इसके ललए अपेक्षक्षत िोते िुए कक वि निवातचि में या निवातचि के सम्बन्ि में
ककए गए व्ययों का लेखा रखे, ऐसा लेखा रखिे में असफल रिे गा, वि जमु ातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक िो सकेगा,
दक्ण्डत ककया जाएगा ।

अध्याय 10

लोक सेिकों के विधधपण


ू ा प्राधधकार के अिमान के विषय में

धारा 172. समनों की तामील या अधय कायािािी से बचने के भलये फरार िो जाना- जो कोई ककसी ऐसे
लोक-सेवक द्वारा निकाले गये समि, सच
ू िा या आदे श की तामील से बचिे के ललए फरार िो जाएगा, जो ऐसे लोक-
सेवक के िाते ऐसे समि, सच
ू िा या आदे श को निकालिे के ललए वैि रुप से सक्षम िो, वि सादा कारावास से,
क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से,

अथवा यहद समि या सच


ू िा या आदे श [ककसी न्यायालय में स्वयं या अलभकिात द्वारा िाक्जर िोिे के ललए,
1

या दस्तावेज अथवा इलेतरानिक अलभलेख पेश करिे के ललये िो] तो वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि छि
मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूप ये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 173. समन की तामील का या अधय कायािािी का या उसके प्रकाशन का तनिारण करना- जो कोई
ककसी लोक-सेवक द्वारा जो लोक-सेवक उस िाते कोई समि, सच
ू िा या आदे श निकालिे के ललये वैि रुप से सक्षम
िो निकाले गए समि, सच
ू िा या आदे श की तामील अपिे पर या ककसी अन्य व्यक्तत पर िोिा ककसी प्रकार साशय
निवाररत करे गा,

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

अथवा ककसी ऐसे समि, सच


ू िा या आदे श का ककसी स्थाि में ववधिपव
ू क
त लगाया जािा साशय निवाररत
करे गा,

अथवा ककसी ऐसे समि, सच


ू िा या आदे श को ककसी ऐसे स्थाि से, जिां कक वि ववधिपव
ू क
त लगाया िुआ िै ,
साशय िटाएगा,

अथवा ककसी ऐसे लोक-सेवक के प्राधिकारािीि की जािे वाली ककसी उद्घोषणा का ववधिपव
ू क
त ककया जािा
साशय निवाररत करे गा, जो ऐसे लोक-सेवक के िाते ऐसी उद्घोषणा का ककया जािा निहदत ष्ट करिे के ललये वैि रुप
से सक्षम िो,
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वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी,या जुमातिे से जो पााँच सौ रुपये तक का
िो सकेगा, या दोिों से,

अथवा यहद समि, सच


ू िा, आदे श या उद्घोषणा [ ककसी न्यायालय में स्वयं या अलभकतात द्वारा िाक्जर िोिे
1

के ललए या दस्तावेज अथवा इलेतरानिक अलभलेख पेश करिे के ललए िो] तो वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि
छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा ।

धारा 174. लोक-सेिक का आदे श न मानकर गैरिान्जर रिना- जो कोई ककसी लोक-सेवक द्वारा निकाले गये
उस समि, सच
ू िा, आदे श या उद्घोषणा के पालि में , क्जसे ऐसे लोक-सेवक के िाते निकालिे के ललये वि वैि रुप से
सक्षम िो, ककसी निक्श्चत स्थाि और समय पर स्वयं या अलभकिात द्वारा िाक्जर िोिे के ललए वैि रुप से आबद्ि
िोते िुए,

2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

उस स्थाि या समय पर िाक्जर िोिे का साशय लोप करे गा, या उस स्थाि से, जिां िाक्जर िोिे के ललये वि
आबद्ि िै , उस समय से पव
ू त चला जाएगा, क्जस समय चला जािा उसके ललये ववधिपण
ू त िोता,

वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक
का िो सकेगा, या दोिों से,

अथवा यहद समि, सच


ू िा,आदे श या उद्घोषणा ककसी न्यायालय में स्वयं या ककसी अलभकतात द्वारा िाक्जर
िोिे के ललये िै , तो वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार
रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा |

3
[174 क- 1974 के अधधतनयम 2 धारा 82 के अधीन ककसी उद्घोषणा उिर में गैर-िान्जरी- जो कोई दण्ड
प्रकक्रया संहिता, 1973 (1974 का 2) िारा 82 की उपिारा (1) के अिीि प्रलशत ककसी उद्घोषणा की अपेक्षािस
ु ार
ववनिहदतष्ट समय पर िाक्जर िोिे में असफल रिता िै , तो वि कारावास से,

1. 1950 के ववधि अिक


ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 2005 के अधिनियम सं. 25 के द्वारा अंतःस्थावपत | हदिांक 23-6-2006 से प्रभावी |

क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा और जिााँ उस िारा की
उपिारा (4) के अिीि कोई ऐसी घोषणा की गई िै क्जसमें उसे उद्घोवषत अपरािी के रुप में घोवषत ककया गया िै ,
विााँ वि कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे का भी दायी
िोगा ।]

धारा-175 – 1[ दस्तािेज या इलेक्रातनक अभभलेख] पेश करने के भलए िैध रुप से आबद्ध व्यन्क्त का लोक-
सेिक को दस्तािेज पेश करने का लोप- जो कोई ककसी लोक-सेवक को, ऐसे लोक-सेवक के िाते ककसी 1[ दस्तावेज
या इलेतरानिक अलभलेख] को पेश करिे या पररदि करिे के ललए वैि रुप से आबद्ि िोते िुए, उसको इस प्रकार
पेश करिे या पररदि करिे का साशय
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1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

लोप करे गा, वि सदा कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रूपये
तक का िो सकेगा, या दोिों से,

अथवा यहद वि 1[ दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] ककसी न्यायालय में पेश या पररदि की जािी िो, तो
वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूपये तक का िो
सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-176 -सच
ू ना या इविला दे ने के भलए िैध रुप से आबद्ध व्यन्क्त द्िारा लोक-सेिक को सच
ू ना या
इविला दे ने का लोप- जो कोई ककसी लोक-सेवक को ऐसे लोक-सेवक के िाते ककसी ववषय पर कोई सच
ू िा दे िे या
इविला दे िे के ललए वैि रुप से आबद्ि िोते िुए, ववधि द्वारा अपेक्षक्षत प्रकार से और समय पर ऐसी सच
ू िा या
इविला दे िे का साशय लोप करे गा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जम ु ातिे से,
जो पााँच सौ रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से,

अथवा यहद दी जािे के ललए अपेक्षक्षत सच


ू िा या इविला ककसी अपराि के ककए जािे के ववषय में िो, या
ककसी अपराि के ककए जािे का निवारण करिे के प्रयोजि से या ककसी अपरािी को पकड़िे के ललए अपेक्षक्षत िो,
तो वि सादा करावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो
सकेगा, या दोिों से,

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |


2. 1950 के ववधि अिक
ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

अथवा यहद दी जािे के ललए अपेक्षक्षत सच


ू िा या इविला दं ड प्रकक्रया संहिता, 1898 (1898 का 5) की िारा
565 की उपिारा (1) के अिीि हदए गए आदे श द्वारा अपेक्षक्षत िै , तो वि दोिों में से ककसी भी भााँनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से,
दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-177- भमथ्या इविला दे ना- जो कोई ककसी लोक-सेवक को ऐसे लोक-सेवक के िाते ककसी ववषय पर
इविला दे िे के ललए वैि रुप से आबद्ि िोते िुए उस ववषय पर सच्ची इविला के रुप में ऐसी इविला दे गा क्जसका
लमथ्या िोिा वि जािता िै या क्जसके लमथ्या िोिे का ववश्वास करिे का कारण उसके पास िै , वि सादा कारावास
से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से,

अथवा यहद वि इविला, क्जसे दे िे के ललए वि वैि रुप से आबद्ि िो, कोई अपराि ककए जािे के ववषय में
िो, या ककसी अपराि के ककए जािे का निवारण करिे के प्रयोजि से, या ककसी अपरािी को पकड़िे के ललए अपेक्षक्षत
िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकण- िारा 176 में और इस िारा में , “अपराि” शब्द के अंतगतत 1[भारत] से बािर ककसी स्थाि पर
ककया गया कोई ऐसा कायत आता िै जो यहद 1[भारत] में ककया जाता, तो निम्िललखखत िारा, अथातत 302, 304,
382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459, और 460

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में से ककसी िारा के अिीि दं डिीय िोता; और “अपरािी” शब्द के अंतगतत कोई भी ऐसा व्यक्तत आता िै , जो कोई
ऐसा कायत करिे का दोषी अलभकधथत िो ।

धारा-178 - शपथ या प्रततज्ञान से इंकार करना जबकक लोक-सेिक द्िारा िि िैसा करने के भलए सम्यक्
रुप से अपेक्षक्षत ककया जाए- जो कोई सत्य कथि करिे के ललए शपथ या प्रनतज्ञाि द्वारा अपिे आपको आबद्ि
करिे से इंकार करे गा, जबकक उससे अपिे को इस प्रकार आबद्ि करिे की अपेक्षा ऐसे लोक-सेवक द्वारा की जाए
जो यि अपेक्षा करिे के ललए वैि रूप से सक्षम िो कक वि व्यक्तत इस प्रकार अपिे को आबद्ि करे , वि सादा
कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक कीं िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या
दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-179-प्रश्न करने के भलए प्राधधकृत लोक-सेिक का उिर दे ने से इंकार करना- जो कोई ककसी लोक-सेवक
से ककसी ववषय पर सत्य कथि करिे के ललए वैि रुप से आबद्ि िोते िुए, ऐसे लोक-सेवक की वैि शक्ततयों के
प्रयोग में उस लोक-सेवक द्वारा उस ववषय के बारे में उससे पछ
ू े गए ककसी प्रश्ि का उिर दे िे से इंकार करे गा, वि
सादा कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा,
या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-180-कथन पर िस्ताक्षर करने से इंकार- जो कोई अपिे द्वारा ककए गए ककसी कथि पर िस्ताक्षर
करिे को ऐसे लोक-सेवक द्वारा अपेक्षा ककए जािे पर, जो उससे यि अपेक्षा करिे के ललए वैि रुप से सक्षम िो कक
वि उस कथि पर िस्ताक्षर करे , उस कथि पर िस्ताक्षर करिे से इंकार करे गा, वि सादा कारावास से, क्जसकी
अवधि तीि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रूपये तक िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया
जाएगा ।

धारा-181 - शपथ हदलाने या प्रततज्ञान कराने के भलए प्राधधकृत लोक-सेिक के, या व्यन्क्त के समक्ष शपथ
या प्रततज्ञान पर भमथ्या कथन- जो कोई ककसी लोक-सेवक या ककसी अन्य व्यक्तत से, जो ऐसे शपथ हदलािे या
प्रनतज्ञाि दे िे के ललए ववधि द्वारा प्राधिकृत िो, ककसी ववषय पर सत्य कथि करिे के ललए शपथ या प्रनतज्ञाि द्वारा
वैि रुप से आबद्ि िोते िुए ऐसे लोक-सेवक या यथापव ू ोतत अन्य व्यक्तत से उस ववषय के संबि ं में कोई ऐसा
कथि करे गा, जो लमथ्या िै , और क्जसके लमथ्या िोिे का या तो उसे ज्ञाि िै , या ववश्वास िै या क्जसके सत्य िोिे का
उसे ववश्वास ििीं िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत
ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा- 182 - इस आशय से भमथ्या इविला दे ना कक लोक-सेिक अपनी विधधपण


ू ा शन्क्त का उपयोग दस
ू रे
व्यन्क्त की क्षतत करने के भलए करे - जो कोई ककसी लोक-सेवक को कोई ऐसी इविला, क्जसके लमथ्या िोिे का उसे
ज्ञाि या ववश्वास िै , इस आशय से दे गा कक वि उस लोक-सेवक को प्रेररत करे या यि संभाव्य जािते िुए दे गा कक
वि उसको एतद्द्वारा प्रेररत करे गा कक वि लोक सेवक-

(क) कोई ऐसी बात करे या करिे का लोप करे क्जसे वि लोक सेवक, यहद उसे इस संबि
ं मे, क्जसके बारे में
ऐसी इविला दी गई िै , तथ्यों की सिी क्स्थनत का पता िोता तो ि करता या करिे का लोप ि करता,
अथवा
(ख) ऐसे लोक-सेवक की ववधिपण
ू त शक्तत का उपयोग करे क्जस उपयोग से ककसी व्यक्तत को क्षनत या क्षोभ
िो,

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वि दोिों में से, ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो
एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-183 - लोक-सेिक के विधधपण


ू ा प्राधधकार द्िारा संपवि भलए जाने का प्रततरोध- जो कोई ककसी लोक-
सेवक के ववधिपण
ू त प्राधिकार द्वारा ककसी संपवि के ले ललए जािे का प्रनतरोि यि जािते िुए या यि ववश्वास करिे
का कारण रखते िुए करे गा कक वि ऐसा लोक-सेवक िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा

धारा-184 -लोक-सेिक के प्राधधकार द्िारा विक्रय के भलए प्रस्थावपत की गयी संपवि के विक्रय में बाधा
उपन्स्थत करना- जो कोई ऐसी ककसी संपवि के ववक्रय में , जो ऐसे लोक-सेवक के िाते ककसी लोक-सेवक के
ववधिपण
ू त प्राधिकार द्वारा ववक्रय के ललए प्रस्थावपत की गई िो, साशय बािा डालेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक का िो सकेगा, या
दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-185 -लोक-सेिक के प्राधधकार द्िारा विक्रय के भलए प्रस्थावपत की गई संपवि का अिैध क्रय या उसके
भलए अिैध बोली लगाना- जो कोई संपवि के ककसी ऐसे ववक्रय में , जो लोक-सेवक के िाते लोक-सेवक के ववधिपण
ू त
प्राधिकार द्वारा िो रिा िो, ककसी ऐसे व्यक्तत के निलमि चािे वि व्यक्तत वि स्वयं िो, या अन्य कोई िो, ककसी
संपवि का क्रय करे गा, या ककसी संपवि के ललए बोली लगायेगा, क्जसके बारे में वि यि जािता िो कक वि व्यक्तत
उस ववक्रय में उस संपवि के क्रय करिे के बारे में ककसी ववधिक असमथतता के अिीि िै या ऐसी संपवि के ललए यि
आशय रखकर बोली लगाएगा कक ऐसी बोली लगािे से क्जि बाध्यताओं के अिीि वि अपिे आपको को डालता िै
उन्िें उसे परू ा ििीं करिा िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो
सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो दो सौ रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-186 -लोक-सेिक के लोक कृत्यों के तनिािन में बाधा डालना- जो कोई ककसी लोक-सेवक के लोक कृत्यों
के निवतिि में स्वेच्छया बािा डालेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक
की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

राज्य संशोधन

म.प्र. एिं छिीसगढ़ संशोधन- अधिसच


ू िा क्रमांक 33205-F.No.6-59-74B-XXI 19.11.1975 के द्वारा
िारा 186 के तित अपराि संज्ञेय िै । ( अवलोकि करे –म.प्र. राजपत्र, भाग 1 हदिांक 12.3.1976)

धारा-187- लोक-सेिक की सिायता करने का लोप जबकक सिायता दे ने के भलए विधध द्िारा आबद्ध िो- जो
कोई ककसी लोक-सेवक को, उसके लोक कितव्य के निष्पादि में सिायता दे िे या पिुाँचािे के ललए ववधि द्वारा
आबद्ि िोते िुए, ऐसी सिायता दे िे का साशय लोप करे गा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की
िो सकेगी, या जुमातिे से, जो दो सौ रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

और यहद ऐसी सिायता की मााँग उससे एक लोक-सेवक द्वारा, जो ऐसी मााँग करिे के ललए वैि रुप से
सक्षम िो, न्यायालय द्वारा वैि रुप से निकाली गई ककसी आदे लशका के निष्पादि, के या अपराि के ककए जािे का
निवारण करिे के या बल्वे या दं गे को दबािे के, या ऐसे व्यक्तत को, क्जस पर अपराि का आरोप िै या जो अपराि

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का या ववधिपण
ू त अलभरक्षा से निकल भागिे का दोषी िै , पकड़िे के प्रयोजि से की जाए, तो वि सादा कारावास से
क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पांच सौ रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से दं डडत
ककया जाएगा ।

धारा-188 -लोकसेिक द्िारा सम्यक् रुप से प्रख्यावपत आदे श की अिज्ञा- जो कोई यि जािते िुए कक वि
ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यावपत ककसी आदे श से, जो ऐसे आदे श को प्रख्यावपत करिे के ललए ववधिपव
ू क
त सशतत िै ,
वि कोई कायत करिे से ववरत रििे के ललए या अपिे कब्जे में की, या अपिे प्रबंिािीि, ककसी संपवि के बारे में कोई
ववशेष व्यवस्था करिे के ललए निहदतष्ट ककया गया िै , ऐसे निदे श की अवज्ञा करे गा |

यहद ऐसी अवज्ञा ववधिपव


ू क
त नियोक्जत ककन्िीं व्यक्ततयों को बािा, क्षोभ, या क्षनत, अथवा बािा क्षोभ या
क्षनत की जोखखम, काररत करे , या काररत करिे की प्रववृ ि रखती िो, तो वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक
मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो दो सौ रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

और यहद ऐसी अवज्ञा मािव जीवि, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट काररत करे , या काररत करिे की प्रववृ ि
रखती िो, या बल्वा या दं गा काररत करती िो, या काररत करिे की प्रववृ ि रखती िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूपये तक का िो सकेगा,
या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- यि आवश्यक ििीं िै कक अपरािी का आशय अपिानि उत्पन्ि करिे का िो या उसके ध्याि में
यि िो कक उसकी अवज्ञा करिे से अपिानि िोिा संभाव्य िै । यि पयातप्त िै कक क्जस आदे श की वि अवज्ञा करता
िै उस आदे श का उसे ज्ञाि िै , और यि भी ज्ञाि िै कक उसके अवज्ञा करिे से अपिानि उत्पन्ि िोती या िोिी
संभाव्य िै ।

राज्य संशोधन

म.प्र. एिं छिीसगढ़ संशोधन- अधिसच


ू िा क्रमांक 33207-F.No.6-59-74-B-XXI हदिांक 19.11.1975 के
द्वारा िारा 188 के तित अपराि अजमाितीय िै । (अवलोकि करें -म.प्र. राजपत्र, भाग 1 हदिांक 12.3.1976)

धारा-189 -लोक-सेिक को क्षतत करने की धमकी- जो कोई ककसी लोक-सेवक को या ऐसे ककसी व्यक्तत को
क्जससे उस लोक-सेवक के हितबद्ि िोिे का उसे ववश्वास िो, इस प्रयोजि से क्षनत की कोई िमकी दे गा कक उस
लोक-सेवक को उत्प्रेररत ककया जाए कक वि ऐसे लोक-सेवक के कृत्यों के प्रयोग से संसतत कोई कायत करे , या करिे
से प्रववरत रिे , या करिे में ववलंब करे , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की
िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

राज्य संशोधन

म.प्र. एिं छिीसगढ़ संशोधन- अधिसच


ू िा क्रमांक 33207-F.No.6-59-74-B-XXI हदिांक 19.11.1975 के
द्वारा िारा 188 के तित अपराि अजमाितीय िै । ( अवलोकि करें -म.प्र. राजपत्र, भाग 1 हदिांक 12.3.1976)

धारा -190 - लोक-सेिक से संरक्षा के भलए आिेदन करने से विरत रिने के भलए ककसी व्यन्क्त को उत्प्रेररत
करने के भलए क्षतत की धमकी- जो कोई ककसी व्यक्तत को इस प्रयोजि से क्षनत की कोई िमकी दे गा कक वि उस
व्यक्तत को उत्प्रेररत करे कक वि ककसी क्षनत से संरक्षा के ललए कोई वैि आवेदि ककसी ऐसे लोक-सेवक से करिे से

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ववरत रिे , या प्रनतववरत रिे जो ऐसे लोक-सेवक के िाते ऐसी संरक्षा करिे या करािे के ललए वैि रुप से सशतत िो,
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से
दं डडत ककया जाएगा ।

राज्य संशोधन

म.प्र. एिं छिीसगढ़ संशोधन- अधिसच


ू िा क्रमांक 33205-F.No.6-59-74-B-XXI हदिांक 19.11.1975 के
द्वारा िारा 190 के तित अपराि संज्ञेय िै । (अवलोकि करें -म.प्र. राजपत्र, भाग 1 हदिांक 12.3.1976)

अध्याय 11

भमथ्या साक्ष्य और लोक धयाय के विरुद्ध

अपराधों के विषय में

धारा-191 -भमथ्या साक्ष्य दे ना- जो कोई शपथ द्वारा या ववधि के ककसी अलभव्यतत उपबंि द्वारा सत्य
कथि करिे के ललए वैि रुप से आबद्ि िुए, या ककसी ववषय पर घोषणा करिे के ललए ववधि द्वारा आबद्ि िोते
िुए, ऐसा कोई कथि करे गा, जो लमथ्या िै , और या तो क्जसके लमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या ववश्वास िै , या क्जसके
सत्य िोिे का उसे ववश्वास ििीं िै , वि लमथ्या साक्ष्य दे ता िै , यि किा जाता िै ।

स्पष्टीकरण- 1 -कोई कथि चािे वि मौखखक िो, या अन्यथा ककया गया िो, इस िारा के अथत के अंतगतत
आता िै ।

स्पष्टीकरण- 2 - अिप्र
ु माखणत करिे वाले व्यक्तत के अपिे ववश्वास के बारे में लमथ्या कथि इस िारा के
अथत के अंतगतत आता िै और कोई व्यक्तत यि कििे से कक उसे उस बात का ववश्वास िै , क्जस बात का उसे ववश्वास
ििीं िै तथा यि कििे से कक वि उस बात को जािता िै क्जस बात को वि ििीं जािता, लमथ्या साक्ष्य का दोषी िो
सकेगा ।

धारा-192 - भमथ्या साक्ष्य गढ़ना- जो कोई इस आशय से ककसी पररक्स्थनत को अक्स्तत्व में लाता िै , या
[ककसी पस्
1
ु तक या अलभलेख में या इलेतरानिक अलभलेख में कोई लमथ्या प्रववक्ष्ट करता िै , या लमथ्या कथि
अंतववतष्ट करिे वाली कोई दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख रचता िै ] कक ऐसी पररक्स्थनत, लमथ्या प्रववक्ष्ट या
लमथ्या कथि न्यानयक कायतवािी में , या ऐसी ककसी कायतवािी में , जो लोक-सेवक के समक्ष उसके

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

उस िाते या मध्यस्थ के समक्ष ववधि द्वारा की जाती िै , साक्ष्य में दलशतत िो और कक इस प्रकार साक्ष्य में दलशतत
िोिे पर ऐसी पररक्स्थनत, लमथ्या प्रववक्ष्ट या लमथ्या कथि के कारण कोई व्यक्तत, क्जसे ऐसी कायतवािी में साक्ष्य के
आिार पर राय कायम करिी िै , ऐसी कायतवािी के पररणाम के ललए ताक्त्वक ककसी बात के संबि
ं में गलत राय
बिाए, वि “लमथ्या साक्ष्य गढता िै ” यि किा जाता िै ।

धारा-193 - भमथ्या साक्ष्य के भलए दं ड - जो कोई साशय ककसी न्यानयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में
लमथ्या साक्ष्य दे गा या ककसी न्यानयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में उपयोग में लाये जािे के प्रयोजि से, लमथ्या

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साक्ष्य गढ़े गा वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा,

और जो कोई ककसी अन्य मामले में साशय लमथ्या साक्ष्य दे गा या गढ़े गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- 1 - सेिा न्यायालय के समक्ष ववचारण न्यानयक कायतवािी िै ।

स्पष्टीकरण- 2 - न्यायालय के समक्ष कायतवािी प्रारं भ िोिे के पव


ू त जो ववधि द्वारा निहदत ष्ट अन्वेषण िोता
िै , वि न्यानयक कायतवािी का एक प्रक्रम िै , चािे वि अन्वेषण ककसी न्यायालय के सामिे ि भी िो ।

स्पष्टीकरण-3- न्यायालय द्वारा ववधि के अिस


ु ार निहदत ष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अिीि संचाललत
अन्वेषण न्यानयक कायतवािी का एक प्रक्रम िै , चािे वि अन्वेषण ककसी न्यायालय के सामिे ि भी िो ।

धारा 194- मत्ृ यु से दं डनीय अपराध के भलए दोषभसद्ध कराने के आशय से भमथ्या साक्ष्य दे ना या गढ़ना-
जो कोई 1[ भारत] में तत्समय प्रवि
ृ ववधि के द्वारा मत्ृ यु से दं डिीय अपराि के ललए ककसी व्यक्तत को दोषलसद्ि
करािे के आशय से या संभाव्यतः एतद्द्वारा दोषलसद्ि कराएगा, यि जािते िुए लमथ्या

साक्ष्य दे गा या गढ़े गा वि 2[आजीवि कारावास] से, या कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद तनदोष व्यन्क्त एतद्द्िारा दोषभसद्ध ककया जाए और उसे फााँसी दी जाए- और यहद ककसी निदोष
व्यक्तत को ऐसे लमथ्या साक्ष्य के पररणामस्वरुप दोषलसद्ि ककया जाए, और उसे फााँसी दे दी जाए, तो उस व्यक्तत
को, जो ऐसा लमथ्या साक्ष्य दे गा, या तो मत्ृ यद
ु ं ड या एतक्स्मन्पव
ू त वखणतत दं ड हदया जाएगा ।

धारा 195 - आजीिन कारािास या कारािास से दं डनीय अपराध के भलए दोषभसद्ध कराने के आशय से
भमथ्या साक्ष्य दे ना या गढ़ना- जो कोई इस आशय से या यि संभाव्य जािते िुए कक एतद्द्वारा वि ककसी व्यक्तत
को ऐसे अपराि के ललए, जो भारत में तत्समय प्रवि
ृ ककसी ववधि द्वारा मत्ृ यु से दं डिीय ि िो ककं तु [आजीवि
2

कारावास] या सात वषत या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दं डिीय िो, दोषलसद्ि कराए, लमथ्या साक्ष्य दे गा
या गढ़े गा, वि वैसे िी दं डडत ककया जाएगा जैसे वि व्यक्तत दं डिीय िोता जो उस अपराि के ललए दोषलसद्ि िोता ।

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

[ धारा 195 क. 4[ ककसी व्यन्क्त को भमथ्या साक्ष्य दे ने के भलए धमकाना]- जो कोई, ककसी दस
3
ू रे व्यक्तत को,
उसके शरीर, ख्यानत या संपवि को अथवा ऐसे व्यक्तत के शरीर या ख्यानत को, क्जसमें वि व्यक्तत हितबद्ि िै , यि
काररत करिे के आशय से कोई क्षनत करिे की िमकी दे ता िै , कक वि व्यक्तत लमथ्या साक्ष्य दे तो वि दोिों में से
ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से या दोिों से दक्ण्डत ककया
जाएगा;

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और यहद कोई निदोष व्यक्तत ऐसे लमथ्या साक्ष्य के पररणामस्वरूप मत्ृ यु से या सात वषत से अधिक के
कारावास से दोषलसद्ि और दण्डाहदष्ट ककया जाता िै तो ऐसा व्यक्तत, जो िमकी दे ता िै , उसी दण्ड से दक्ण्डत ककया
जाएगा और उसी रीनत में और उसी सीमा तक दण्डाहदष्ट ककया जाएगा जैसे निदोष व्यक्तत दक्ण्डत और दण्डाहदष्ट
ककया गया िै ।

धारा 196- उस साक्ष्य को काम में लाना न्जसका भमथ्या िोना ज्ञात िै - जो कोई ककसी साक्ष्य को, क्जसका
लमथ्या िोिा या गढ़ा िोिा वि जािता िै , सच्चे या असली साक्ष्य के रुप में भ्रष्टतापव
ू क
त उपयोग में लाएगा, या
उपयोग में लािे का प्रयत्ि करे गा, वि ऐसे दं डडत ककया जाएगा मािो उसिे लमथ्या साक्ष्य हदया िो या गढ़ा िो ।

धारा-197 -भमथ्या प्रमाण पत्र जारी करना या िस्ताक्षररत करना- जो कोई ऐसा प्रमाण पत्र, क्जसका हदया
जािा या िस्ताक्षररत ककया जािा ववधि द्वारा अपेक्षक्षत िो, या जो ककसी ऐसे तथ्य से संबधं ित िो क्जसका वैसा
प्रमाण-पत्र ववधि द्वारा साक्ष्य में ग्राह्य िो, यि जािते िुए या ववश्वास करते िुए कक वि ककसी ताक्त्वक बात के
बारे में लमथ्या िै , वैसा प्रमाण-पत्र जारी करे गा या िस्ताक्षररत करे गा, वि उसी प्रकार दं डडत ककया जाएगा, मािो
उसिे लमथ्या साक्ष्य हदया िो ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 2006 के अधिनियम सं. 2 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 16.4.2006 से प्रभावी |
3. शद्
ु धि पत्र हदिांककत 3 माचत 2006 के द्वारा दरु
ु स्त |

धारा-198 - प्रमाण पत्र को न्जसका भमथ्या िोना ज्ञात िै सच्चे के रूप में काम में लाना- जो कोई ककसी ऐसे
प्रमाण पत्र को यि जािते िुए कक वि ककसी ताक्त्वक बात के संबि ं में लमथ्या िै , सच्चे प्रमाण पत्र के रुप में
भ्रष्टतापव
ू क
त उपयोग में लाएगा या उपयोग में लािे का प्रयत्ि करे गा, वि ऐसे दं डडत ककया जाएगा, मािो उसिे
लमथ्या साक्ष्य हदया िो ।

धारा-199- ऐसी घोषणा में , जो साक्ष्य के रुप में विधध द्िारा ली जा सके, ककया गया भमथ्या कथन- जो
कोई अपिे द्वारा की गई या िस्ताक्षररत ककसी घोषणा मे, क्जसको ककसी तथ्य के साक्ष्य के रुप में लेिे के ललए
कोई न्यायालय, या कोई लोक-सेवक या अन्य व्यक्तत ववधि द्वारा आबद्ि या प्राधिकृत िो कोई ऐसा कथि करे गा,
जो ककसी ऐसी बात के संबि
ं में , जो उस उद्दे श्य के ललए ताक्त्वक िो क्जसके ललए वि घोषणा की जाए या उपयोग
में लाई जाए, लमथ्या िै , और क्जसके लमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या ववश्वास िै , या क्जसके सत्य िोिे का उसे ववश्वास
ििीं िै , वि उसी प्रकार से दं डडत ककया जाएगा, मािो उसिे लमथ्या साक्ष्य हदया िो ।

धारा-200- ऐसी धोषणा का भमथ्या िोना जानते िुए सच्ची के रुप में काम में लाना- जो कोई ककसी ऐसी
घोषणा को, यि जािते िुए कक वि ककसी ताक्त्वक बात के संबि
ं में लमथ्या िै , भ्रष्टतापव
ू क
त सच्ची के रूप में उपयोग
में लाएगा, या उपयोग में लािे का प्रयत्ि करे गा, वि उसी प्रकार दं डडत ककया जाएगा, मािो उसिे लमथ्या साक्ष्य हदया
िो|

स्पष्टीकरण- कोई घोषणा, जो केवल ककसी अप्ररुवपता के आिार पर अग्राह्य िै िारा 199 और िारा 200 के
अथत के अंतगतत घोषणा िै ।

धारा-201- अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रततच्छाहदत करने के भलए भमथ्या इविला दे ना-
जो कोई यि जािते िुए, या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक कोई अपराि ककया गया िै , उस अपराि के

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ककए जािे के ककसी साक्ष्य का ववलोप इस आशय से काररत करे गा कक अपरािी को वैि दं ड से प्रनतच्छाहदत करे या
उस आशय से उस अपराि से संबधं ित कोई ऐसी इविला दे गा, क्जसके लमथ्या िोिे का उसे ज्ञाि या ववश्वास िै ।

यहद अपराध मत्ृ यु से दं डनीय िो- यहद वि अपराि क्जसके ककए जािे का उसे ज्ञाि या ववश्वास िै , मत्ृ यु से
दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद आजीिन कारािास से दं डनीय िो- और यहद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] से, या ऐसे कारावास से,
जो दस वषत तक का िो सकेगा, दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि
वषत तक की िो सकेगी दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद दस िषा से कम के कारािास से दं डनीय िो- और यहद वि अपराि ऐसे कारावास से उतिी अवधि के
ललए दं डिीय िो, जो दस वषत तक की ि िो, तो वि उस अपराि के ललए उपबंधित भााँनत के कारावास से उतिी
अवधि के ललए, जो उस अपराि के ललए उपबंधित कारावास की दीघततम अवधि की एक-चौथाई तक की िो सकेगी या
जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 202- इविला दे ने के भलए आबद्ध व्यन्क्त द्िारा अपराध की इविला दे ने का साशय लोप- जो कोई यि
जािते िुए या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक कोई अपराि ककया गया िै , उस अपराि के बारे में कोई
इविला क्जसे दे िे के ललए वि वैि रुप से आबद्ि िो, दे िे का साशय लोप करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि छ मास तक की िो सकेगी या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 203- ककए गए अपराध के विषय में भमथ्या इविला दे ना- जो कोई यि जािते िुए, यि ववश्वास करिे
का कारण रखते िुए, कक कोई अपराि ककया गया िै उस अपराि के बारे में कोई ऐसी इविला दे गा, क्जसके लमथ्या
िोिे का उसे ज्ञाि या ववश्वास िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो
सकेगी, या जम
ु ातिे से या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- िारा 201 और 202 में और इस िारा में “अपराि” शब्द के अंतगतत भारत से बािर ककसी
स्थाि पर ककया गया कोई भी ऐसा कायत आता िै , जो यहद भारत में ककया जाता तो निम्िललखखत िारा अथातत ् 302,
304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459, तथा
460 में से ककसी भी िारा के अिीि दं डिीय िोगा ।

धारा 204 - साक्ष्य के रुप में ककसी 1[दस्तािेज या इलेक्रातनक अभभलेख] का पेश ककया जाना तनिाररत
करने के भलए उसको नष्ट करना- जो कोई ककसी ऐसे 1[ दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] को नछपाएगा या िष्ट
करे गा क्जसे ककसी न्यायालय में या ऐसी कायतवािी में , जो ककसी लोक-सेवक के समक्ष उसकी वैसी िैलसयत में
ववधिपव
ू क
त की गई िै , साक्ष्य के रुप में पेश करिे के ललए उसे ववधिपव
ू क
त वववश ककया जा सके, या पव
ू ोतत न्यायालय
या लोक-सेवक के समक्ष साक्ष्य के रुप में पेश ककए जािे या उपयोग में लाये जािे से निवाररत करिे के आशय से,
या उस प्रयोजि के ललए उस 1[ दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख], को पेश करिे को उसे ववधिपव
ू क
त समनित या
अपेक्षक्षत ककए जािे के पश्चात ् ऐसी संपण
ू त [ दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] को, या उसके ककसी भाग को
1

लमटाएगा, या ऐसा बिाएगा, जो पढ़ा ि जा सके, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत
तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

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1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा 205- िाद या अभभयोजन में ककसी काया या कायािािी के प्रयोजन से भमथ्या प्रततरूपण- जो कोई ककसी
दस
ू रे का लमथ्या प्रनतरूपण करे गा और ऐसे िरे िुए रुप में ककसी वाद या आपराधिक अलभयोजि में कोई स्वीकृनत
या कथि करे गा, या दावे की संस्वीकृनत करे गा, या कोई आदे लशका निकलवायेगा या जमाितदार या प्रनतभू बिेगा, या
कोई अन्य कायत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारवास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या
जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा |

धारी 206- संपवि को समपिरण ककए जाने में या तनष्पादन में अभभगि
ृ ीत ककए जाने से तनिाररत करने के
भलए उसे कपटपि
ू क
ा िटाना या तछपाना-. जो कोई ककसी संपवि को, या उसमें के ककसी हित को इस आशय से
कपटपव
ू क
त िटाएगा, नछपाएगा या ककसी व्यक्तत को अंतररत या पररदि करे गा, कक तद्द्वारा वि उस संपवि या उसमे
के ककसी हित का ऐसे दं डादे श के अिीि जो न्यायालय या ककसी अन्य के समक्ष प्राधिकारी द्वारा सि
ु ाया जा चुका
िै या क्जसके बारे में वि जािता िै कक न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सि
ु ाया जािा संभाव्य िै ,
समपिरण के रूप में या जम
ु ातिे के चक
ु ािे के ललए ललया जािा या ऐसी डडक्री या आदे श के निष्पादि में , जो लसववल
वाद में न्यायालय द्वारा हदया गया िो या क्जसके बारे में वि जािता िै कक लसववल वाद में न्यायालय द्वारा उसका
सि
ु ाया जािा संभाव्य िै , ललया जािा निवाररत करे , वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो
वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 207- संपवि पर उसके समपिरण ककए जाने में या तनष्पादन में अभभगिृ ीत ककए जाने से तनिाररत
करने के भलए कपटपि
ू क
ा दािा - जो कोई ककसी संपवि को, या उसमें के ककसी हित को, यि जािते िुए कक ऐसी
संपवि हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपण ू त दावा ििीं िै , कपटपव
ू क
त प्रनतगि
ृ ीत करे गा, या उस पर दावा
करे गा अथवा ककसी संपवि या उसमें ककसी हित पर ककसी अधिकार के बारे में इस आशय से प्रवंचिा करे गा कक
तद्द्वारा वि उस संपवि या उसमें के हित का ऐसे दं डादे श के अिीि, जो न्यायालय या ककसी अन्य सक्षम
प्राधिकारी द्वारा सि
ु ाया जा चुका िै या क्जसके बारे में वि जािता िै कक न्यायालय या ककसी अन्य समक्ष प्राधिकारी
द्वारा उसका सि
ु ाया जािा संभाव्य िै , समपिरण के रुप में या जम
ु ातिे के चक
ु ािे के ललए ललया जािा, या ऐसी
डडक्री या आदे श के निष्पादि में , जो लसववल वाद में न्यायालय द्वारा हदया गया िो, या क्जसके बारे में वि जािता
िै कक लसववल वाद में न्यायालय द्वारा उसका हदया जािा संभाव्य िै , ललया जािा निवाररत करे , वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से दं डडत ककया
जाएगा ।

धारा 208- ऐसी राभश के भलए जो शोध्य न िो कपटपि


ू क
ा डडक्री िोने दे ना सिन करना- जो कोई ककसी
व्यक्तत के वाद में ऐसी रालश के ललए, जो ऐसे व्यक्तत को शोध्य ि िो या शोध्य रालश से अधिक िो, या ककसी ऐसी
संपवि या संपवि के हित के ललए, क्जसका ऐसा व्यक्तत िकदार ि िो, अपिे ववरुद्ि कोई डडक्री या आदे श कपटपव
ू क

पाररत करवायेगा, या पाररत ककया जािा सिि करे गा अथवा ककसी डडक्री या आदे श को उसके तष्ु ट कर हदये जािे के
पश्चात ् या ककसी ऐसी बात के ललए, क्जसके ववषय में उस डडक्री या आदे श की तक्ु ष्ट कर दी गई िो, अपिे ववरुद्ि
कपटपव
ू क
त निष्पाहदत करवायेगा या ककया जािा सिि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

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धारा 209- बेईमानी से धयायालय में भमथ्या दािा करना- जो कोई कपटपव
ू क
त या बेईमािी से या ककसी
व्यक्तत को क्षनत या क्षोभ काररत करिे के आशय से न्यायालय में कोई ऐसा दवा करे गा, क्जसका लमथ्या िोिा वि
जािता िो, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 210- ऐसी राभश के भलए जो शोध्य निीं िै कपटपि


ू क
ा डडक्री अभभप्राप्त करना- जो कोई ककसी व्यक्तत
के ववरुद्ि ऐसी रालश के ललए, जो शोध्य ि िो, या जो शोध्य रालश से अधिक िो, या ककसी संपवि या संपवि के हित
के ललए, क्जसका वि िकदार ि िो, डडक्री या आदे श को कपटपव
ू क
त अलभप्राप्त कर लेगा या डडक्री या आदे श को,
उसके तष्ु ट कर हदये जािे के पश्चात ् या ऐसी बात के ललए, क्जसके ववषय में उस डडक्री या आदे श की तक्ु ष्ट कर दी
गई िो, ककसी व्यक्तत के ववरुद्ि कपटपव
ू क
त निष्पाहदत करवायेगा या अपिे िाम में कपटपव
ू क
त ऐसा कोई कायत ककया
जािा सिि करे गा या ककए जािे की अिज्ञ
ु ा दे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत
तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 211- क्षतत काररत करने के आशय से अपराध का भमथ्या आरोप- जो कोई ककसी व्यक्तत को यि
जािते िुए कक उस व्यक्तत के ववरुद्ि ऐसी कायतवािी या आरोप के ललए कोई न्यायसंगत या ववधिपण ू त आिार ििीं िै
क्षनत काररत करिे के आशय से उस व्यक्तत के ववरुद्ि कोई दांडडक कायतवािी संक्स्थत करे गा या करवाएगा या उस
व्यक्तत पर लमथ्या आरोप लगाएगा कक उसिे अपराि ककया िै वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा;

तथा यहद ऐसी दांडडक कायतवािी मत्ृ य,ु 1


[ आजीवि कारावास] या सात वषत या उससे अधिक के कारावास से
दं डिीय अपराि के लमथ्या आरोप पर संक्स्थत की जाए, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-212 -अपराधी को संरय दे ना- जबकक कोई अपराि ककया जा चुका िो, तब जो कोई ककसी ऐसे व्यक्तत
को, क्जसके बारे में वि जािता िो या ववश्वास करिे का कारण रखता िो कक वि अपरािी िै , वैि दं ड से प्रनतच्छाहदत
करिे के आशय से संश्रय दे गा या नछपाएगा;

यहद अपराध मत्ृ सु से दं डनीय िो- यहद वि अपराि मत्ृ यु से दं डिीय िो तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद अपराध आजीिन कारािास से या कारािास से दं डनीय िो- और यहद वि अपराि 1[आजीवि कारावास]
से, या दस वषत तक के कारावास से, दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के करावास से, क्जसकी अवधि तीि
वषत तक िो सकेगी, दं डडि ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा;

और यहद वि अपराि एक वषत तक, ि कक दस वषत तक के कारावास से दं डिीय िो, तो यि उस अपराि के


ललए उपबंधित भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि उस अपराि के ललए उपबंधित कारावास की दीघततम अवधि की
एक-चौथाई तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

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इस िारा में “अपराि” के अंतगतत 1[भारत] से बािर ककसी स्थाि पर ककया गया ऐसा कायत आता िै , जो
यहद 1[भारत] में ककया जाता तो निम्िललखखत िारा, अथातत 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397,
398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 और 460 में से ककसी िारा के अिीि दं डिीय िोता
और िर एक ऐसा कायत इस िारा के प्रयोजिों के ललए ऐसे दं डिीय समझा जाएगा, मािो अलभयत
ु त व्यक्तत उसे
[भारत] में करिे का दोषी था ।
1

अपिाद- इस उपबंि का ववस्तार ककसी ऐसे मामले पर ििीं िै क्जसमे अपरािी िो संश्रय दे िा या नछपािा
उसके पनत या पत्िी द्वारा िो ।

धारा 213- अपराधी को दं ड से प्रततच्छाहदत करने के भलए उपिार आहद लेना- जो कोई अपिे या ककसी
अन्य व्यक्तत के ललए कोई पररतोषण या अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत के ललए ककसी संपवि का प्रत्यास्थापि, ककसी
अपराि के नछपािे के ललए या ककसी व्यक्तत को ककसी अपराि के ललए वैि दं ड से प्रनतच्छाहदत करिे के ललए, या
ककसी व्यक्तत के ववरुद्ि वैि दं ड हदलािे के प्रयोजि से उसके ववरुद्ि की जािे वाली कायतवािी ि करिे के ललए,
प्रनतफलस्वरूप प्रनतगि
ृ ीत करे गा या अलभप्राप्त करिे का प्रयत्ि करे गा या प्रनतगि
ृ ीत करिे के ललए करार करे गा,

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

यहद अपराध मत्ृ यु से दं डनीय िो- यहद वि अपराि मत्ृ यु से दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद आजीिन कारािास या कारािास से दं डनीय िो- तथा यहद वि अपराि 1[आजीवि कारावास] या दस वषत
तक के कारावास से दं डिीय िो तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

तथा यहद वि अपराि दस वषत से कम तक के कारावास से दं डिीय िो, तो वि उस अपराि के ललए


उपबंधित भााँनत के कारावास से इतिी अवधि के ललए, जो अपराि के ललए उपबंधित कारावास की दीघततम अवधि की
एक चौथाई तक की िो सकेगी या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 214- अपराधी के प्रततच्छादन के प्रततफलस्िरूप उपिार की प्रस्थापना या संपवि का प्रत्याितान - जो


कोई ककसी व्यक्तत को कोई अपराि उस व्यक्तत द्वारा नछपाए जािे के ललए या उस व्यक्तत द्वारा

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

ककसी व्यक्तत को ककसी अपराि के ललए वैि दं ड से प्रनतच्छाहदत ककए जािे के ललए या उस व्यक्तत द्वारा ककसी
व्यक्तत को वैि दं ड हदलािे के प्रयोजि से उसके ववरुद्ि की जािे वाली कायतवािी ि की जािे के ललए प्रनतफलस्वरुप
कोई पररतोषण दे गा या हदलवाएगा या दे िे या हदलािे की प्रस्थापिा या करार करे गा, या 1[ कोई संपवि प्रत्यावनततत
करे गा या कराएगा ];

यहद अपराध मत्ृ यु से दं डनीय िो- यहद वि अपराि मत्ृ यु से दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;
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यहद आजीिन कारािास या कारािास से दं डनीय िो- तथा यहद वि अपराि 3[आजीवि कारावास] से या दस
वषत तक के कारावास से दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक
की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा;

तथा यहद वि अपराि दस वषत से कम तक के कारावास से दं डिीय िो, तो वि उस अपराि के ललए


उपबंधित भााँनत के कारावास से इतिी अवधि के ललए, जो उस अपराि के ललए उपबंधित कारावास की दीघततम अवधि
की एक-चौथाई तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाता ।

अपिाद- िारा 213 और 214 के उपबंिों का ववस्तार ककसी ऐसे मामले पर ििीं िै , क्जसमें कक अपवाद का
शमि ववधिपव
ू क
त ककया जा सकता िै |

धारा 215-चोरी की संपवि इत्याहद के िापस लेने में सिायता करने के भलए उपिार लेना- जो कोई ककसी
व्यक्तत की ककसी ऐसी जंगम संपवि के वापस करा लेिे में , क्जससे इस संहिता के अिीि दं डिीय ककसी अपराि
द्वारा वि व्यक्तत वंधचत कर हदया गया िो, सिायता करिे के बिािे या सिायता करिे की बाबत कोई पररतोषण
लेगा या लेिे का करार करे गा या लेिे को सिमत िोगा, वि, जब तक कक अपिी शक्तत में के सब साििों को
अपरािी को पकड़वािे के ललए और अपराि के ललए दोषलसद्ि करािे के ललए उपयोग में ि लाए, दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

1. 1953 के अधिनियम संख्यांक 42 के द्वारा प्रनतस्थावपत|


2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

धारा 216-ऐसे अपराधी को संरय दे ना, जो अभभरक्षा से तनकल भागा िै या न्जसको पकड़ने का आदे श हदया
जा चक
ु ा िै - जब ककसी अपराि के ललए दोषलसद्ि या आरोवपत व्यक्तत उस अपराि के ललए वैि अलभरक्षा में िोते
िुए ऐसी अलभरक्षा से निकल भागे;

अथवा जब कभी कोई लोक-सेवक ऐसे लोक-सेवक की ववधिपण ू त शक्ततयों का प्रयोग करते िुए ककसी अपराि
के ललए ककसी व्यक्तत को पकड़िे का आदे श दे , तब जो कोई ऐसे निकल भागिे को या पकड़े जािे के आदे श को
जािते िुए, उस व्यक्तत को पकड़ा जािा निवाररत करिे के आशय से उसे संश्रय दे गा या नछपाएगा, वि निम्िललखखत
प्रकार से दं डडत ककया जाएगा, अथातत-

यहद अपराध मत्ृ यु से दं डनीय िो- यहद वि अपराि, क्जसके ललए वि व्यक्तत अलभरक्षा में था या पकड़े जािे
के ललए आदे लशत िै , मत्ृ यु से दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत
तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद आजीिन कारिास या कारािास से दं डनीय िो- यहद वि अपराि 1[ आजीवि कारावास] से या दस वषत
के कारावास से दं डिीय िो, तो वि जुमातिे सहित या रहित दोिों में ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि
वषत की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा;

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

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तथा यहद वि अपराि ऐसे कारावास से दं डिीय िो, जो एक वषत तक का, ि कक दस वषत तक का िो सकता
िै , तो वि उस अपराि के ललए उपबंधित भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि उस अपराि के ललए उपबंधित
कारावास की दीिततम अवधि की एक-चौथाई तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

इस िारा में “अपराि” के अंतगतत कोई भी ऐसा कायत या लोप भी आता िै , क्जसका कोई व्यक्तत 1[भारत] से
बािर दोषी िोिा अलभकधथत िो, जो यहद वि 1[ भारत] में उसका दोषी िोता, तो अपराि के रुप में दं डिीय िोता और
क्जसके ललए वि प्रत्यपतण से संबधं ित ककसी ववधि के अिीि या अन्यथा 1[भारत] में पकड़े जािे या अलभरक्षा में
निरुद्ि ककए जािे के दानयत्व के अिीि िो, और िर ऐसा कायत या लोप इस िारा के प्रयोजिों के ललए ऐसे दं डिीय
समझा जाएगा, मािों अलभयत
ु त व्यक्तत [ भारत] में उसका दोषी िुआ था ।
1

अपिाद- इस उपबंि का ववस्तार ऐसे मामले पर ििी िै , क्जसमें संश्रय दे िा या नछपािा पकड़े जािे वाले
व्यक्तत के पनत या पत्िी द्वारा िो ।

216 क- लट ु े रों या डाकुओं को संरय दे ने के भलए शान्स्त- जो कोई यि जािते िुए या ववश्वास करिे का
कारण रखते िुए कक कोई व्यक्तत लट ू या डकैती िाल िी में करिे वाले िैं या िाल िी में लट
ू या डकैती कर चक
ु े िैं,
उिको या उिमें से ककसी को, ऐसी लट
ू या डकैती का ककया जािा सक
ु र बिािे के, या उिको या उिमें से ककसी
को दं ड से प्रनतच्छाहदत करिे के आशय से संश्रय दे गा, वि कहिि कारावास से क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

स्पष्टीकरण- इस िारा के प्रयोजिों के ललए यि तत्विीि िै कक लट


ू या डकैती [ भारत] में करिी आशनयत
1

िै या की जा चुकी िै या 1[ भारत] के बािर ।

अपिाद- इस उपबंि का ववस्तार ऐसे मामले पर ििीं िै क्जसमें संश्रय दे िा या नछपािा अपरािी के पनत या
पत्िी द्वारा िो ।

216-ख- भारतीय दं ड संहिता (संशोिि) अधिनियम, 1942 अधिनियम संख्या 8 सि ् 1942 िारा 3 द्वारा
निरलसत की गई ।

धारा 217- लोक-सेिक द्िारा ककसी व्यन्क्त को दं ड से या ककसी संपवि को समपिरण से बचाने के आशय
से विधध के तनदे श की अिज्ञा- जो कोई लोक-सेवक िोते िुए ववधि के ऐसे ककसी निदे श की, जो उस संबिं में िो कक
उससे ऐसे लोक-सेवक के िाते ककस ढं ग का आचरण करिा चाहिए, जािते िुए अवज्ञा ककसी व्यक्तत को वैि दं ड से
बचािे के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यि जािते िुए अथवा उतिे दं ड की अपेक्षा, क्जससे वि दं डिीय
िै , तद्द्वारा कम दं ड हदलवाएगा या संभाव्य जािते िुए अथवा ककसी संपवि को ऐसे समपिरण या ककसी भार से,
क्जसके ललए वि संपवि ववधि के द्वारा दानयत्व के अिीि िै बचािे के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा
यि जािते िुए करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या
जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

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धारा 218- ककसी व्यन्क्त को दं ड से या ककसी संपवि को समपिरण से बचाने के आशय से लोक-सेिक
द्िारा अशद्
ु ध अभभलेख या लेख की रचना- जो कोई लोक-सेवक िोते िुए और ऐसे लोक-सेवक के िाते कोई
अलभलेख या अन्य लेख तैयार करिे का भार रखते िुए, उस अलभलेख या लेख की इस प्रकार से रचिा, क्जसे वि
जािता िै कक अशद्
ु ि िै । लोक को या ककसी व्यक्तत को िानि या क्षनत काररत करिे के आशय से या संभाव्यतः
तद्द्वारा काररत करे गा यि जािते िुए अथवा ककसी व्यक्तत को वैि दं ड से बचािे के आशय से या संभाव्यतः
तद्द्िारा बचायेगा यि जािते िुए अथवा ककसी सम्पवि के ऐसे समपिरण या अन्य भार से, क्जसके दानयत्व के
अिीि वि संपवि ववधि के अिस ु ार िै , बचािे के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यि जािते िुए करे गा,
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम ु ातिे से, या दोिों से
दं डडत ककया जाएगा ।

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

धारा-219- धयातयक कायािािी में विधध के प्रततकूल ररपोटा आहद का लोक-सेिक द्िारा भ्रष्टतापि
ू क
ा ककया
जाना- जो कोई लोक-सेवक िोते िुए, न्यानयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में कोई ररपोटत , आदे श, अधिमत या
ववनिश्चय क्जसका ववधि के प्रनतकूल िोिा वि जािता िो, भ्रष्टतापव
ू क
त या ववद्वेषपव
ू क
त दे गा, या सि
ु ाएगा, वि दोिों में
से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया
जाएगा ।

धारा 220- प्राधधकार िाले व्यन्क्त द्िारा जो यि जानता िै कक िि विधध के प्रततकूल काया कर रिा िै,
विचारण के भलए या परररोध करने के भलए सप ु द
ु ा गी- जो कोई ककसी ऐसे पद पर िोते िुए, क्जससे व्यक्ततयों को
ववचारण या परररोि के ललए सप
ु द
ु त करिे का, या व्यक्ततयों को परररोि में रखिे का उसे वैि प्राधिकार िो ककसी
व्यक्तत को उस प्राधिकार के प्रयोग में यि जािते िुए भ्रष्टतापव
ू क
त या ववद्वेषपवू क
त ववचारण या परररोि के ललए
सपु द
ु त करे गा या परररोि में रखेगा कक ऐसा करिे में वि ववधि के प्रनतकूल कायत कर रिा िै , वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा- 221 -पकड़ने के भलए आबद्ध लोक-सेिक द्िारा पकड़ने का साशय लोप- जो कोई ऐसा लोक-सेवक
िोते िुए, जो ककसी अपराि के ललए आरोवपत या पकड़े जािे के दानयत्व के अिीि ककसी व्यक्तत को पकड़िे या
परररोि में रखिे के ललए लोक-सेवक के िाते वैि रुप से आबद्ि िै , ऐसे व्यक्तत को पकड़िे का साशय लोप करे गा
या ऐसे परररोि में ऐसे व्यक्तत का निकल भागिा साशय सिि करे गा या ऐसे व्यक्तत को निकल भागिे में या
निकल भागिे के ललए प्रयत्ि करिे में साशय मदद करे गा, वि निम्िललखखत रुप से दं डडत ककया जाएगा, अथातत,

यहद परररुद्ि व्यक्तत या जो व्यक्तत पकड़ा जािा चाहिए था वि मत्ृ यु से दं डिीय अपराि के ललए आरोवपत
या पकड़े जािे के दानयत्व के अिीि िो, तो वि जम
ु ातिे सहित या रहित दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, अथवा

यहद परररुद्ि व्यक्तत या जो व्यक्तत पकड़ा जािा चाहिए था, वि 1[ आजीवि कारावास] या दस वषत तक की
अवधि के कारावास से दं डिीय अपराि के ललए आरोवपत या पकड़े जािे के दानयत्व के अिीि िो, तो वि जुमातिे
सहित या रहित दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, अथवा

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यहद परररुद्ि व्यक्तत या जो पकड़ा जािा चाहिए था वि दस वषत से कम की अवधि के ललए कारावास से
दं डिीय अपराि के ललए आरोवपत या पकड़े जािे के दानयत्व के अिीि िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा।

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

धारा-222- दं डादे श के अधीन या विधधपि


ू क
ा सप
ु द
ु ा ककए गए व्यन्क्त को पकड़ने के भलए आबद्ध लोक-सेिक द्िारा
पकड़ने का साशय लोप-. जो कोई ऐसा लोक-सेवक िोते िुए, जो ककसी अपराि के ललए न्यायालय के दं डादे श के
अिीि या अलभरक्षा में रखे जािे के ललए ऐसे ववधिपव
ू क
त सप
ु द
ु त ककए गए ककसी व्यक्तत को पकड़िे या परररोि में
रखिे के ललए ऐसे लोक-सेवक के िाते वैि रुप से आबद्ि िै , ऐसे व्यक्तत को पकडिे का साशय लोप करे गा, या ऐसे
परररोि में से साशय ऐसे व्यक्तत का निकल भागिा सिि करे गा या ऐसे व्यक्तत के निकल भागिे में या निकल
भागिे का प्रयत्ि करिे में मदद करे गा, वि निम्िललखखत रुप से दं डडत ककया जाएगा, अथातत

यहद परररुद्ि व्यक्तत या जो व्यक्तत पकड़ा जािा चाहिए था, वि मत्ृ यु दं डादे श के अिीि िो, तो वि
जुमातिे सहित या रहित 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि चौदि वषत
तक की िो सकेगी; अथवा

यहद परररुद्ि व्यक्तत या जो व्यक्तत पकड़ा जािा चाहिए था वि न्यायालय के दं डादे श से, या ऐसे दं डादे श
से लघक
ु रण के आिार पर [आजीवि कारावास] या दस वषत तक की या उससे अधिक की अवधि के ललए कारावास
1

के अिीि िो, तो वि जुमातिे सहित या रहित, दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि सात वषत तक
की िो सकेगी, अथवा

यहद परररुद्ि व्यक्तत या जो व्यक्तत पकड़ा जािा चाहिए था वि न्यायालय के दं डादे श से दस वषत कम की
अवधि के ललए कारावास के अिीि िो या यहद वि व्यक्तत अलभरक्षा में रखे जािे के ललए ववधिपव
ू क
त सप
ु द
ु त ककया
गया िो, तो दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों
से |

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

धारा 223 -लोक-सेिक द्िारा उपेक्षा से परररोध या अभभरक्षा में से तनकल भागना सिन करना- जो कोई
ऐसा लोक-सेवक िोते िुए, जो अपराि के ललए आरोवपत या दोषलसद्ि 1[ या अलभरक्षा में रखे जािे के ललए
ववधिपव
ू क
त सप
ु द
ु त ककए] गए ककसी व्यक्तत को परररोि में रखिे के ललए ऐसे लोक-सेवक के िाते वैि रुप से आबद्ि
िो, ऐसे व्यक्तत का परररोि में से निकल भागिा उपेक्षा से सिि करे गा, वि सादा कारावास से; क्जसकी अवधि दो
वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 224 -ककसी व्यन्क्त द्िारा विधध के अनस


ु ार अपने पकड़े जाने में प्रततरोध या बाधा- जो कोई ककसी
ऐसे अपराि के ललए, क्जसका उस पर आरोप िो, या क्जसके ललए वि दोषलसद्ि ककया गया िो, ववधि के अिस
ु ार
अपिे पकड़े जािे में साशय प्रनतरोि करे गा, या अवैि बािा डालेगा, या ककसी ऐसी अलभरक्षा से, क्जसमें वि ककसी
ऐसे अपराि के ललए ववधिपव
ू क
त निरुद्ि िो, निकल भागेगा, या निकल भागिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से

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ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया
जाएगा ।

स्पष्टीकरण- इस िारा में उपबंधित दं ड उस दं ड के अनतररतत िै क्जससे वि व्यक्तत, क्जसे पकड़ा जािा िो,
या अलभरक्षा में निरुद्ि रखा जािा िो, उस अपराि के ललए दं डिीय था, क्जसका उस पर आरोप लगाया गया था या
क्जसके ललए वि दोषलसद्ि ककया गया था ।

धारा 225 -ककसी अधय व्यन्क्त के विधध के अनस


ु ार पकड़े जाने में प्रततरोध या बाधा- जो कोई ककसी
अपराि के ललए ककसी दस
ू रे व्यक्तत के ववधि के अिस
ु ार पकड़े जािे में साशय

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

प्रनतरोि करे गा या अवैि बािा डालेगा, या ककसी दस


ू रे व्यक्तत को ककसी ऐसी अलभरक्षा से, क्जसमें वि व्यक्तत
ककसी अपराि के ललए ववधिपव
ू क
त निरुद्ि िो, साशय छुड़ायेगा या छुड़ािे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से, ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा;

अथवा यहद उस व्यक्तत पर, क्जसे पकड़ा जािा िो या जो छुडाया गया िो, या क्जसे छुडािे के ललए प्रयत्ि
ककया गया िो, 1[ आजीवि कारावास] से, या दस वषत तक की अवधि के कारावास से, दं डिीय अपराि का आरोप िो
या वि उसके ललए पकड़े जािे के दानयत्व के अिीि िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा,

अथवा यहद उस व्यक्तत पर, क्जसे पकड़ा जािा िो, या जो छुड़ाया गया िो, या क्जसके छुड़ािे का प्रयत्ि
ककया गया िो, मत्ृ यद
ु ं ड से दं डिीय अपराि का आरोप िो या वि उसके ललए पकड़े जािे के दानयत्व के अिीि िो,
तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

अथवा यहद वि व्यक्तत क्जसे पकड़ा जािा िो, या जो छुड़ाया गया िो, या क्जसके छुड़ािे का प्रयत्ि ककया
गया िो, ककसी न्यायालय के दं डादे श के अिीि, या वि ऐसे दं डादे श के लघक
ु रण के आिार पर [आजीवि कारावास]
1

या दस वषत या उससे अधिक अवधि के कारावास से दं डिीय िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

अथवा यहद वि व्यक्तत, क्जसे पकड़ा जािा िो, या जो छुड़ाया गया िो या क्जसके छुडािे का प्रयत्ि ककया
गया िो, मत्ृ यु दं डादे श के अिीि िो, तो वि 1[ आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
इतिी अवधि के ललए जो दस वषत से अिधिक िै , दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

225 क-उन दशाओं में न्जनके भलए अधयथा उपबंध निीं िै लोक-सेिक द्िारा पकड़ने का लोप या तनकल
भागना सिन करना- जो कोई ऐसा लोक-सेवक िोते िुए जो ककसी व्यक्तत को पकड़िे या परररोि में रखिे के ललए
लोक-सेवक के िाते वैि रुप से आबद्ि िो उस व्यक्तत को ककसी ऐसी दशा में , क्जसके ललए िारा 221, िारा 222,
या िारा 223 अथवा ककसी अन्य तत्समय प्रवि
ृ ववधि में कोई उपबंि ििीं िै , पकड़िे का लोप करे गा या परररोि में
से निकल भागिा सिि करे गा-

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(क) यहद वि ऐसा साशय करे गा, तो वि दोिों में से, ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत
तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, तथा
(ख) यहद वि ऐसा उपेक्षा पव
ू क
त करे गा तो वि सादा कारावास, से क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी,
या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

225 ख- अधयथा अनप


ु बंधधत दशाओं में विधधपि
ू क
ा पकड़ने में प्रततरोध या बाधा या तनकल भागना या
छुड़ाना- जो कोई स्वयं अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत के ववधिपव
ू क
त पकड़े जािे में साशय कोई प्रनतरोि करे गा या
अवैि बािा डालेगा या ककसी अलभरक्षा में से, क्जसमें वि ववधिपव
ू क
त निरुद्ि िो, निकल भागेगा या निकल भागिे का
प्रयत्ि करे गा या ककसी अन्य व्यक्तत को ऐसी अलभरक्षा में से, क्जसमें वि व्यक्तत ववधिपव
ू क
त निरुद्ि िो, छुड़ायेगा
या छुड़ािे का प्रयत्ि करे गा, वि ककसी ऐसी दशा में , क्जसके

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

ललए िारा 224 या िारा 225 या ककसी अन्य तत्समय प्रवि


ृ ववधि में उपबंि ििीं िै , दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा- 226- [*** ] 1955 के अधिनियम 26 द्वारा निरलसत ।

धारा- 227- दं ड के पररिार की शता का अततक्रमण- जो कोई दं ड का सशतत पररिार प्रनतगि


ृ ीत कर लेिे पर
ककसी शतत का क्जस पर ऐसा पररिार हदया गया था, जािते िुए, अनतक्रमण करे गा, यहद वि उस दं ड का, क्जसके ललए
वि मलू त: दं डहदष्ट ककया गया था, कोई भाग पिले िी ि भोग चुका िो, तो वि दं ड से और यहद वि उस दं ड का
कोई भाग भोग चुका िो तो वि उस दं ड के उतिे भाग से, क्जतिे को वि पिले िी ि भोग चुका िो, दं डडत ककया
जाएगा|

धारा- 228- धयातयक कायािािी में बैठे िुए लोक-सेिक का साशय अपमान या उसके काया में विघ्न- जो कोई
ककसी लोक-सेवक का उस समय, जब कक ऐसा लोक-सेवक न्यानयक कायतवािी के ककसी प्रक्रम में बैिा िुआ िो,
साशय कोई अपमाि करे गा या उसके कायत में कोई ववघ्ि डालेगा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास
तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

राज्य संशोधन

म.प्र. एिं छिीसगढ़ संशोधन- अधिसच


ू िा क्रमांक 33205-F.No.6-59-74-XXI हदिांक 19.11.1975 के
द्वारा िारा 228 के तित अपराि संज्ञेय िै | (अवलोकि करें – म.प्र. राजपत्र, भाग 1 हदिांक 12.3.1976)

[ 228–क-कततपय अपराधों आहद से पीडड़त व्यन्क्त कक पिचान का प्रकटीकरण- (1) जो कोई ककसी िाम या
1

अन्य बात को, क्जससे ककसी ऐसे व्यक्तत की (क्जसे इस िारा में इसके पश्चात ् पीडड़त व्यक्तत किा गया िै ) पिचाि
िो सकती िै , क्जसके ववरुद्ि 2[िारा 376, िारा 376क, िारा 376ख, िारा 376ग या िारा 376घ या िारा 376ङ] के
अिीि ककसी अपराि का ककया जािा अलभकधथत िै या ककया गया पाया गया िै , महु द्रत या प्रकालशत करे गा वि दोिों
में से ककसी भांनत के करावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दं डिीय िोगा |

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(2) उपिारा (1) की ककसी भी बात का ववस्तार ककसी िाम या ककसी अन्य बात के मद्र
ु ण या प्रकाशि पर,
यहद उससे पीडड़त व्यक्तत की पिचाि िो सकी िै , तब ििीं िोता िै जब ऐसा मद्र
ु ण या प्रकाशि-

(क) पलु लस थािे के भारसािक अधिकारी के या ऐसे अपराि का अंवेषण करिे वाले पलु लस अधिकारी के, जो
ऐसे अंवेषण के प्रयोजि के ललए सद्भावपव
ू क
त कायत करता िै , द्वारा या उसके ललखखत आदे श के अिीि
ककया जाता िै; या

(ख) पीडड़त व्यक्तत द्वारा' या उसके ललखखत प्राधिकार से ककया जाता िै ; या

(ग) जिां पीडड़त व्यक्तत की मत्ृ यु िो चक


ु ी िै अथवा वि अवयस्क या ववकृत धचि िै , विां, पीडड़त व्यक्तत के
निकट संबि
ं ी द्वारा या उसके ललखखत प्राधिकार से, ककया जाता िै : परं तु
निकट संबि
ं ी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार ककसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगिि के अध्यक्ष या
सधचव से, चािे उसका जो भी िाम िो, लभन्ि ककसी भी अन्य व्यक्तत को ििीं हदया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- इस उपिारा के प्रयोजिों के ललए, “मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगिि” से केंद्रीय या
राज्य सरकार द्वारा इस उपिारा के प्रयोजिों के ललए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगिि
अलभप्रेत िै ।

1. 1983 के अधिनियम सं. 43 के द्वारा अंतः स्थावपत | 25.12.1983 से प्रभावी |

2. दं ड ववधि (संशोिि) अधिनियम, 2013 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 3.2.13 से प्रभावी |

(3) जो कोई उपिारा (1) में निहदत ष्ट ककसी अपराि की बाबत ककसी न्यायालय के समक्ष ककसी कायतवािी के संबि

में कोई बात, उस न्यायलय की पव
ू त अिज्ञ
ु ा के ब्रबिा महु द्रत या प्रकालशत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा|

स्पष्टीकरण- ककसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायलय के निणतय का मद्र


ु ण या प्रकाशि इस िारा के अथत में
अपराि की कोहट में ििीं आता िै | ]

धारा -229- जूरी सदस्य या असेसर का प्रततरूपण – जो कोई ककसी मामले में प्रनतरूपण द्वारा या अन्यथा
अपिे को यि जािते िुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में ताललकांककत, पेिललत या गि ृ ीतशपथ साशय कराएगा या
िोिे दे गा जािते िुए सिि करे गा कक वि इस प्रकार तललकांककत, पेिललत या गि ृ ीतशपथ िोिे का ववधि द्वारा
िक़दार ििीं िै या यि जािते िुए कक वि इस प्रकार तललकांककत, पेिललत या गि ृ ीतशपथ ववधि के प्रनतकूल िुआ िै
ऐसी जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छया सेवा करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँती के कारावास से, क्जसकी
अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा |

1
[229क. जमानत या बंधपत्र पर छोड़े गए व्यन्क्त द्िारा धयायलय में िान्जर िोने में असफलता – जो कोई,
ककसी अपराि से आरोवपत ककए जािे पर और जमाित पर या अपिे बंिपत्र पर छोड़ हदए जािे पर जमाित या
बंिपत्र के निबंििों के अिस
ु ार न्यायलय में पयातप्त कारणों के ब्रबिा िाक्जर िोिे में (वि साब्रबत करिे का भार उस
पर िोगा ) असफल रिे गा वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी
या जुमातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा |

स्पष्टीकरण- इस िारा के अिीि दण्ड –


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(क) उस दण्ड के अनतररतत िै , क्जसके ललए अपरािी उस अपराि के ललए क्जसके ललए उसे आरोवपत ककया गया िै ,
दोषलसद्धि पर दायी िोगा; और
(ख) न्यायालय की बन्िपत्र के समपिरण का आदे श करिे की शक्तत पर प्रनतकूल प्रभाव डालिे वाला ििीं िै ।]

1. 2005 के अधिनियम सं. 25 के द्वारा अंतः स्थावपत | हदिांक 23.6.2006 से प्रभावी |

अध्याय 12

भसक्कों और सरकारी स्टाम्पों से संबधं धत अपराधों के विषय में


धारा-230- भसक्का की पररभाषा- लसतका, तत्समय िि के रुप में उपयोग में लाई जा रिी और इस प्रकार
उपयोग में लाये जािे के ललए ककसी राज्य या संपण
ू त प्रभत्ु वसंपन्ि शक्तत के प्राधिकार द्वारा, स्टाक्म्पत और प्रचाललत
िातु िै ।

भारतीय भसक्का- 1[भारतीय लसतका िि के रुप में उपयोग में लाये जािे के ललए भारत सरकार के प्राधिकार
द्वारा स्टाक्म्पत और प्रचाललत िातु िै ; और इस प्रकार स्टाक्म्पत और प्रचाललत िातु इस अध्याय के प्रयोजिों के
ललए भारतीय लसतका बिी रिे गी, यद्यवप िि के रुप में उसका उपयोग में लाया जािा बंद िो गया िो ।]

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-231 -भसक्के का कूटकरण- जो कोई लसतके का कूटकरण करे गा या जािते िुए लसतके के कूटकरण की
प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- जो व्यक्तत असली लसतके को ककसी लभन्ि लसतके के जैसा हदखलाई दे िे वाला इस आशय से
बिाता िै कक प्रवंचिा की जाए या यि संभाव्य जािते िुए बिाता िै कक एतद्द्वारा प्रवंचिा की जाएगी, वि यि
अपराि करता िै ।

धारा-232 - भारतीय भसक्के का कूटकरण- जो कोई भारतीय लसतके का कूटकरण करे गा या जािते िुए
भारतीय लसतके के कूटकरण की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, वि 1[आजीवि का करावास] से, या दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दं डिीय िोगा ।

धारा-233 -भसक्के के कूटकरण के भलए उपकरण बनाना या बेचना- जो कोई ककसी डाई या उपकरण को
लसतके के कूटकरण के ललए उपयोग में लाए जािे के प्रयोजि, से या यि जािते िुए या यि ववश्वास करिे का
कारण रखते िुए कक वि लसतके के कूटकरण में उपयोग में लाए जािे के ललए आशनयत िै , बिाएगा या सि
ु ारे गा या
बिािे या सि
ु ारिे की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, अथवा खरीदे गा, बेचेगा या व्ययनित करे गा, वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दं डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत|

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धारा-234 -भारतीय भसक्के के कूटकरण के भलए उपकरण बनाना या बेचना- जो कोई ककसी डाई या उपकरण
को भारतीय लसतके के कूटकरण के ललए उपयोग में लाए जािे के प्रयोजि से, या यि जािते िुए या वि ववश्वास
करिे का कारण रखते िुए कक वि 1[ भारतीय लसतके] के कूटकरण में उपयोग में लाए जािे के ललए आशनयत िै ,
बिाएगा या सि
ु ारे गा, या बिािे या सि
ु ारिे की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा अथवा खरीदे गा, बेचेगा या व्ययनित
करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-235 -भसक्के के कूटकरण के भलए उपकरण या सामग्री उपयोग में लाने के प्रयोजन से उसे कब्जे में
रखना- जो कोई ककसी उपकरण या सामग्री को लसतके के कूटकरण में उपयोग में लाए जािे के प्रयोजि से या यि
जािते िुए या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि उस प्रयोजि के ललए उपयोग में लाए जािे के ललए
आशनयत िै , अपिे कब्जे में रखेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

यहद भारतीय भसक्का िो- और यहद कूटकरण ककए जािे वाला लसतका [ भारतीय लसतका] िो, तो वि दोिों में
3

से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दडिीय िोगा ।

1. 1950 के ववधि अिक


ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत|
2. 1950 के ववधि अिक
ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत|

धारा-236 -भारत से बािर भसक्के के कूटकरण का भारत में दष्ु प्रेरण- जो कोई भारत में िोते िुए भारत से
बािर लसतके के कूटकरण का दष्ु प्रेरण करे गा, वि ऐसे दं डडत ककया जाएगा, मािो उसिे ऐसे लसतके के कूटकरण का
दष्ु प्रेरण भारत में ककया िो ।

धारा-237 -कूटकृत भसक्के का आयात या तनयाात- जो कोई ककसी कूटकृत लसतके का यि जािते िुए या
ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि कूटकृत िै, 1[ भारत] में आयात करे गा या भारत से बािर नियातत करे गा,
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-238 -भारतीय भसक्के की कूटकृततयों का आयात या तनयाात- जो कोई ककसी कूटकृत लसतके को, यि
जािते िुए या ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि 3[ भारतीय लसतके] की कूटकृनत िै , 1[ भारत] में आयात
करे गा या भारत से नियातत करे गा, वि 4[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के करावास से, क्जसकी
अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा- 239 - भसक्के का पररदान न्जसका कूटकृत िोना कब्जे में आने के समय ज्ञात था- जो कोई अपिे
पास कोई ऐसा कूटकृत लसतका िोते िुए क्जसे वि उस समय, जब वि उसके कब्जे में आया था, जािता था कक वि
कूटकृत िै , कपटपव
ू क
त , या इस आशय से कक कपट ककया जाए, उसे ककसी व्यक्तत को पररदि करे गा, या ककसी व्यक्तत
को उसे लेिे के ललए उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास में से, क्जसकी अवधि
पााँच वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

1. 1951 के अधिनियम सं. 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |


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2. ववधि अिक
ु ू लि आदे श 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
3. 1955 के अधिनियम सं. 26 द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |

धारा-240- उस भारतीय भसक्के का पररदान न्जसका कूटकृत िोना कब्जे में आने के समय ज्ञात था- जो
कोई अपिे पास कोई ऐसा कूटकृत लसतका िोते िुए, जो 1[ भारतीय लसतके] की कूटकृनत िो और क्जसे वि उस समय,
जब वि उसके कब्जे में आया था, जािता था कक वि 1[ भारतीय लसतके] की कूटकृनत िै , कपटपव
ू क
त , या इस आशय से
कक कपट ककया जाए, उसे ककसी व्यक्तत को पररदि करे गा या ककसी व्यक्तत को उसे लेिे के ललए उत्प्रेररत करिे का
प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जम
ु ातिे भी दं डिीय िोगा ।

धारा-241 -ककसी भसक्के का असली भसक्के के रुप में पररदान, न्जसका पररदान करने िाला उस समय जब
िि उसके कब्जे में पिली बार आया था, कूटकृत िोना निीं जानता था- जो कोई ककसी दस
ू रे व्यक्तत को कोई ऐसा
कूटकृत लसतका, क्जसका कूटकृत िोिा वि जािता िो, ककं तु क्जसका वि उस समय, जब उसिे उसे अपिे कब्जे में
ललया, कूटकृत िोिा ििीं जािता था, असली लसतके के रुप में पररदाि करे गा या ककसी दस
ू रे व्यक्तत को उसे असली
लसतके के रुप में लेिे के ललए उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या इतिे जुमातिे से, जो कूटकृत लसतके के मल्
ू य के दस गि
ु े तक का िो सकेगा, या
दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

1. 1950 के ववधि अिक


ु ू लि द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-242 – कूटकृत भसक्के पर ऐसे व्यन्क्त का कब्जा जो उस समय उसका कूटकृत िोना जानता था, जब
िि उसके कब्जे में आया था- जो कोई ऐसे कूटकृत लसतके को, क्जसे वि उस समय, जब वि लसतका उसके कब्जे
में आया था, जािता था कक वि कूटकृत िै , कपटपव
ू क
त या इस आशय से कक कपट ककया जाए, कब्जे में रखेगा, वि
दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे
से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-243 - भारतीय भसक्के पर ऐसे व्यन्क्त का कब्जा जो उसका कूटकृत िोना उस समय जानता था जब
िि उसके कब्जे में आया था- जो कोई ऐसे कूटकृत लसतके को, जो 1[ भारतीय लसतके] की कूटकृनत िै और क्जसे वि
उस समय, जब वि लसतका उसके कब्जे में आया था, जािता था कक वि 1
[ भारतीय लसतके] की कूटकृनत िै ,
कपटपव
ू क
त या इस आशय से कक कपट ककया जाए, कब्जे में रखेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

1. 1950 ववधि अिक


ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-244- टकसाल में तनयोन्जत व्यन्क्त द्िारा भसक्के का उस िजन का या भमरण से भभधन काररत ककया
जाना जो विधध द्िारा तनयत िै - जो कोई 1[ भारत] में ववधिपव
ू क
त स्थावपत ककसी टकसाल में से नियोक्जत िोते िुए
इस आशय से कोई कायत करे गा, या उस कायत का लोप करे गा, क्जसे करिे के ललए वैि रुप से आबद्ि िो, कक उस
टकसाल में प्रचललत कोई लसतका ववधि द्वारा नियत वजि या लमश्रण से लभन्ि लमश्रण या लभन्ि वजि काररत िो,

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वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-245- टकसाल से भसक्का बनाने का उपकरण विधधविरुद्ध रुप से लेना- जो कोई 1[ भारत] में ववधि
पव
ू क
त स्थावपत ककसी टकसाल में से लसतका बिािे के ककसी औजार या उपकरण को ववधिपण
ू त प्राधिकार के ब्रबिा
बािर निकाल लायेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 246- कपटपि


ू क
ा या बेईमानी से भसक्के का िजन कम करना या भमरण पररिततात करना- जो कोई
कपटपव
ू क
त या बेईमािी से ककसी लसतके पर कोई ऐसी कक्रया करे गा, क्जससे उस लसतके का वजि कम िो जाए, या
उसका लमश्रण पररवनततत िो जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जायेगा और जम
ु ातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- वि व्यक्तत, जो लसतके के ककसी भाग को खुरच कर निकाल दे ता िै , और उस गड्ढे में कोई
अन्य वस्तु भर दे ता िै , उस लसतके का लमश्रण पररवनततत करता िै ।

1. 1951 के अधिनियम सं. 3 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा 247- कपटपि


ू क
ा या बेईमानी से भारतीय भसक्के का िजन कम करना या भमरण पररिततात करना- जो
कोई कपटपव
ू क
त या बेईमािी से 1[ ककसी भारतीय लसतके] पर कोई ऐसी कक्रया करे गा क्जससे उस लसतके का वजि
कम िो जाए या उसका लमश्रण पररवनततत िो जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात
वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 248- इस आशय से ककसी भसक्के का रुप पररिततात करना कक िि भभधन प्रकार के भसक्के के रुप में
चल जाए- जो कोई ककसी लसतके पर इस आशय से कक वि लसतका लभन्ि प्रकार के लसतके के रुप में चल जाए,
कोई ऐसी कक्रया करे गा, क्जससे उस लसतके का रूप पररवनततत िो जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 249- इस आशय से भारतीय भसक्के का रुप पररिततात करना कक िि भभधन प्रकार के भसक्के के रूप
में चल जाए- जो कोई 1[ ककसी भारतीय लसतके] पर इस आशय से कक वि लसतका लभन्ि प्रकार के लसतके के रूप
में चल जाए, कोई ऐसी कक्रया करे गा क्जससे उस लसतके का रुप पररवनततत िो जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 250- ऐसे भसक्के का पररदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया िो कक उसे पररिततात ककया गया
िै - जो कोई ककसी ऐसे लसतके को कब्जे में रखते िुए, क्जसके बारे में िारा 246 या िारा 248 में पररभावषत अपराि
ककया गया िो, और क्जसके बारे में उस समय, जब वि लसतका उसके कब्जे में आया था, वि यि जािता था कक ऐसा
अपराि उसके बारे में ककया गया िै , कपटपव
ू क
त या इस आशय से कक कपट ककया जाए, ककसी अन्य व्यक्तत को वि
लसतका पररदि

1950 ववधि अिक


ु ू लि आदे श द्वारा प्रनतस्थावपत |

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करे गा, या ककसी अन्य व्यक्तत को उसे लेिे के ललये उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा

धारा 251- भारतीय भसक्के का पररदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया िो कक उसे पररिततात ककया
गया िै - जो कोई ककसी ऐसे लसतके को कब्जे में रखते िुये, क्जसके बारे में िारा 247 या 249 में पररभावषत
अपराि ककया गया िो, और क्जसके बारे में उस समय, जब वि लसतका उसके कब्जे में आया था, वि यि जािता
था कक ऐसा अपराि उसके बारे में ककया गया िै , कपटपव
ू क
त , या इस आशय से कक कपट ककया जाये, ककसी अन्य
व्यक्तत को वि लसतका पररदि करे गा या ककसी अन्य व्यक्तत को उसे लेिे के ललये उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि करे गा,
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 10 वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और
जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 252- ऐसे व्यन्क्त द्िारा भसक्के पर कब्जा जो उसका पररिततात िोना उस समय जानता था जब िि
उसके कब्जे में आया- जो कोई कपटपव
ू क
त , या इस आशय से कक कपट ककया जाये, ऐसे लसतके को कब्जे में रखेगा,
क्जसके बारे में िारा 246 या 248 में से ककसी में पररभावषत अपराि ककया गया िो और जो उस समय, जब वि
लसतका उसके कब्जे में आया था, यि जािता था कक उस लसतके के बारे में ऐसा अपराि ककया गया िै , वि दोिों में
से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।

धारा 253- ऐसे व्यन्क्त द्िारा भारतीय भसक्के पर कब्जा जो उसका पररिततात िोना उस समय जानता था
जब िि उसके कब्जे में आया- जो कोई कपटपव
ू क
त , या इस आशय से कक कपट ककया जाये, ऐसे लसतके को कब्जे में
रखेगा, क्जसके बारे में िारा 247 या 249 में से ककसी में पररभावषत अपराि ककया गया िो और जो उस समय, जब
वि लसतका उसके कब्जे में आया था, यि जािता था कक उस लसतके के बारे में ऐसा अपराि ककया गया िै , वि दोिों
में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से
भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 254– भसक्के का असली भसक्के के रुप में पररदान न्जसका पररदान करने िाला उस समय जब िि
उसके कब्जे में पिली बार आया था, पररिततात िोना निीं जानता था- जो कोई ककसी दस
ू रे व्यक्तत को कोई लसतका,
क्जसके बारे में वि जािता िो कक कोई ऐसी कक्रया, जैसी िारा 246, 247 या 249 में वखणतत िै , की जा चुकी िै
ककन्तु क्जसके बारे में वि उस समय, जब उसिे उसे अपिे कब्जे में ललया था, यि ि जािता था कक उस पर ऐसी
कक्रया कर दी गई िै , असली के रुप में , या क्जस प्रकार का वि िै उससे लभन्ि प्रकार के लसतके के रुप में , पररदि
करे गा या असली के रुप में, या क्जस प्रकार का वि िै उससे लभन्ि प्रकार के लसतके के रुप में , ककसी व्यक्तत को
उसे लेिे के ललये उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत
तक की िो सकेगी, या इतिे जुमातिे से, जो उस लसतके की कीमत के दस गि
ु े तक का िो सकेगा क्जसके बदले में
पररवनततत लसतका चलाया गया िो या चलािे का प्रयत्ि ककया गया िो, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 255- सरकारी स्टाम्प का कूटकरण- जो कोई सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललए प्रचाललत
ककसी स्टाम्प का कूटकरण करे गा या जािते िुए उसके कूटकरण की प्रकक्रया के ककसी भाग को करे गा, वि 1[अजीवि
का कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत
ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।
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1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

स्पष्टीकरण- वि व्यक्तत इस अपराि को करता िै , जो एक अलभिाि के ककसी असली स्टाम्प को लभन्ि


अलभिाि के असली स्टाम्प के समाि हदखाई दे िे वाला बिाकर कूटकरण करता िै ।

धारा 256- सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के भलये उपकरण या सामग्री कब्जे में रखना- जो कोई सरकार के
द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललये प्रचाललत ककसी स्टाम्प के कूटकरण के ललये उपयोग में लाये जािे के प्रयोजि से,
या यि जािते िुए या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि ऐसे कूटकरण के ललये उपयोग में लाये जािे
के ललये आशनयत िै , कोई उपकरण या सामग्री अपिे कब्जे में रखेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जम
ु ातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 257- सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के भलये उपकरण बनाना या बेचना- जो कोई, सरकार द्वारा राजस्व
के प्रयोजि के ललये प्रचाललत ककसी स्टाम्प के कूटकरण के ललए उपयोग में लाये जािे के प्रयोजि से, या यि
जािते िुए या ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि ऐसे कूटकरण के ललए उपयोग में लाये जािे के ललए
आशनयत िै , कोई उपकरण बिायेगा या बिािे की प्रकक्रया के ककसी भाग को करें गा या ऐसे ककसी उपकरण को
खरीदे गा, या बेचेगा या व्ययनित करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक
की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 258– कूटकृत सरकारी स्टाम्प का विक्रय- जो कोई ककसी स्टाम्प को यि जािते िुए या यि ववश्वास
करिे का कारण रखते िुए बेचेगा या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा कक वि सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललये
प्रचाललत ककसी स्टाम्प की कूटकृनत िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक
की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 259 - सरकारी कूटकृत स्टाम्प को कब्जे में रखना- जो कोई असली स्टाम्प के रुप में उपयोग में लािे
के या व्ययि करिे के आशय से, या इसललए कक वि असली स्टाम्प के रुप में उपयोग में लाया जा सके, ककसी ऐसे
स्टाम्प को अपिे कब्जे में रखेगा, क्जसे वि जािता िै कक वि सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललए प्रचाललत
स्टाम्प की कूटकृनत िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी,
दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 260 - ककसी सरकारी स्टाम्प को, कूटकृत जानते िुए उसे असली स्टाम्प के रुप में उपयोग में लाना-
जो कोई ककसी ऐसे स्टाम्प को, क्जसे वि जािता िै कक वि सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललए प्रचाललत
स्टाम्प की कूटकृनत िै , असली स्टाम्प के रुप में उपयोग में लाएगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 261- इस आशय से कक सरकार को िातन काररत िो, उस पदाथा पर से न्जस पर सरकारी स्टाम्प लगा
िुआ िै , लेख भमटाना या दस्तािेज से िि स्टाम्प िटाना जो उसके भलए उपयोग में लाया गया िै - जो कोई
कपटपवू कत , या इस आशय से कक सरकार को िानि काररत की जाए, ककसी पदाथत पर से, क्जस पर सरकार द्वारा
राजस्व के प्रयोजि के ललए प्रचाललत कोई स्टाम्प लगा िुआ िो, ककसी लेख या दस्तावेज को, क्जसके ललए ऐसा
स्टाम्प उपयोग में लाया गया िो, िटाएगा या लमटाएगा या ककसी लेख या दस्तावेज पर से उस लेख या दस्तावेज के

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ललए उपयोग में लाया गया स्टाम्प इसललए िटाएगा कक ऐसा स्टाम्प ककसी लभन्ि लेख या दस्तावेज के ललए उपयोग
में लाया जाए वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से,
या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा।

धारा 262- ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग न्जसके बारे में ज्ञात िै कक उसका पिले उपयोग िो चक
ु ा िै - जो
कोई कपटपव
ू क
त , या इस आशय से कक सरकार को िानि काररत की जाये, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललये
प्रचाललत ककसी स्टाम्प को, क्जसके बारे में वि जािता िै कक वि स्टाम्प उससे पिले उपयोग में लाया जा चुका िै ,
ककसी प्रयोजि के ललये उपयोग में लायेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक
की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 263- स्टाम्प के उपयोग ककये जाने चुकने के द्योतक धचधि का छीलकर भमटाना- जो कोई कपटपव
ू क
त ,
या इस आशय से कक सरकार को िानि काररत की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजि के ललए प्रचाललत स्टाम्प
पर से उस धचह्ि को छीलकर लमटायेगा या िटायेगा, जो ऐसे स्टाम्प पर यि द्योतक करिे के प्रयोजि से कक वि
उपयोग में लाया जा चुका िै , लगा िुआ या छावपत िो या ऐसे ककसी स्टाम्प को, क्जस पर से ऐसा धचन्ि लमटाया या
िटाया गया िो, जािते िुए अपिे कब्जे में रखेगा या बेचग
े ा या व्ययनित करे गा, या ऐसे ककसी स्टाम्प को, जो वि
जािता िै कक उपयोग में लाया जा चुका िै , बेचेगा या व्ययनित करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि तीि वषत की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 263-क. बनािटी स्टाम्पों का प्रततषेध- (1) जो कोई ककसी बिावटी स्टाम्प को-

(क) बिायेगा, जािते िुये चलायेगा, उसका व्यौिार करे गा या उसका ववक्रय करे गा या उसे डाक सम्बन्िी
ककसी प्रयोजि के ललये जािते िुये उपयोग में लायेगा, अथवा

(ख) ककसी ववधिपण


ू त प्रनतिेतु के ब्रबिा अपिे कब्जे में रखेगा, अथवा

(ग) बिािे की ककसी डाई, प्टी, उपकरण या सामधग्रयों को बिायेगा, या ककसी ववधिपण
ू त प्रनत िे तु के ब्रबिा
अपिे कब्जे में रखेगा,

वि जुमातिे से, जो दो सौ रुपये तक का िो सकेगा, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

(2) कोई ऐसा स्टाम्प, कोई बिावटी स्टाम्प बिािे की डाई, प्टी, उपकरण या सामधग्रयााँ, जो ककसी व्यक्तत
के कब्जे में िों 1[अलभगि
ृ ीत की जा सकेंगी और अलभगिृ ीत की जाएाँ] तो समपहृत कर ली जाएंगी ।

(3) इस िारा में 'बिावटी स्टाम्प' से ऐसा कोई स्टाम्प अलभप्रेत िै , क्जससे वि लमथ्या रूप से तात्पनयतत िो
कक सरकार िे डाक मिसल
ू की दर के द्योतक के प्रयोजि से उसे प्रचाललत ककया िै या जो सरकार द्वारा उस
प्रयोजि से प्रचाललत ककसी स्टाम्प की, कागज पर या अन्यथा, अिलु लवप, अिक
ु ृ नत या समरुपण िो ।

(4) इस िारा में और िारा 255 से लेकर 263 तक में भी, क्जिमें ये दोिों िारायें भी समाववष्ट िैं “सरकार”
शब्द के अन्तगतत, जब भी वि डाक मिसल
ू की दर के द्योतक के प्रयोजि से प्रचाललत ककये गये ककसी स्टाम्प के
संसगत या निदे शि में उपयोग ककया गया िै , िारा 17 में ककसी बात के िोते िुए भी वि या वे व्यक्तत समझे जायेंगे
जो भारत के ककसी भाग में और िर मैजस् े टी की डोलमनियिों के ककसी भाग में , या ककसी ववदे श में भी, कायतपाललका
सरकार का प्रशासि चलािे के ललये ववधि द्वारा प्राधिकृत िो ।

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1. 1953 के अधिनियम सं. 42 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

अध्याय 13

बाटो और मापों से सम्बन्धधत अपराधों के विषय में

धारा 264- तोलने के भलये खोटे उपकरणों का कपटपि


ू क
ा उपयोग- जो कोई तोलिे के ललये ऐसे ककसी
उपकरण का क्जसका खोटा िोिा वि जािता िै , कपटपव
ू क
त उपयोग करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 265- खोटे बाट या माप का कपटपि


ू क
ा उपयोग- जब कोई ककसी खोटे बाट का या लम्बाई या िाररता
के ककसी खोटे माप का कपटपव
ू क
त उपयोग करे गा, या ककसी बाट का, या लम्बाई या िाररता के ककसी माप का उससे
लभन्ि बाट या माप के रुप में कपटपव
ू क
त उपयोग करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 266- खोटे बाट या माप को कब्जे में रखना- जो कोई तोलिे के ऐसे ककसी उपकरण या बाट को, या
लम्बाई या िाररता के ककसी माप को, क्जसका खोटा िोिा वि जािता िै , 1[***] इस आशय से कब्जे में रखेगा कक
उसे कपटपव
ू क
त उपयोग में लाया जाये वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की
िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 267- खोटे बाट या माप को बनाना या बेचना- जो कोई तोलिे के ऐसे ककसी उपकरण या बाट को या
लम्बाई या िाररता के ऐसे ककसी माप को, क्जसका खोटा िोिा वि जािता िै , इसललये कक उसका खरे की तरि
उपयोग ककया जाये, या यि सम्भाव्य जािते िुये कक उसका खरे की तरि उपयोग ककया जाये, बिायेगा, बेचेगा या
व्ययनित करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे
से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

1. 1953 के अधिनियम सं. 42 के द्वारा शब्द “और” लप्ु त | 23.12.1953 से प्रभावी |

अध्याय 14

लोक-स्िास्थ्य, क्षेम, सवु िधा, भशष्टता और सदाचार पर प्रभाि डालने िाले अपराधों के विषय में

धारा 268- लोक धयस


ू स
ें - वि व्यक्तत लोक न्यस
ू स
ें का दोषी िै जो कोई ऐसा कायत करता िै , या ककसी ऐसे
अवैि लोप का दोषी िै , क्जससे लोक को या जिसािारण को जो आस-पास में रिते िों या आस-पास की सम्पवि पर
अधिभोग रखते िों, कोई सामान्य क्षनत, संकट या क्षोभ काररत िो या क्जसमें उि व्यक्ततयों का क्जन्िें ककसी लोक-
अधिकार को उपयोग में लािे का मौका पड़े, क्षनत, बािा, संकट या क्षोभ काररत िोिा अवश्यम्भावी िो ।

कोई सामान्य न्यस


ू स
ें इस आिार पर माफी यो‍य ििीं िै कक उससे कुछ सवु विा या भलाई कररत िोती िै |

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धारा 269- उपेक्षापण
ू ा काया न्जससे जीिन के भलये संकटपण
ू ा रोग का संक्रम फैलना सम्भाव्य िो- जो कोई
ववधिववरुद्ि रुप से या उपेक्षा से ऐसा कोई कायत करे गा, क्जससे कक और क्जससे वि जािता या ववश्वास करिे का
कारण रखता िो कक, जीवि के ललये संकटपण
ू त ककसी रोग का संक्रम फैलिा संभाव्य िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि छि माि तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 270- पररद्िेषपण


ू ा काया न्जससे जीिन के भलये संकटपण
ू ा रोग का संक्रम फैलना सम्भाव्य िै - जो कोई
पररद्वेष से ऐसा कोई कायत करे गा क्जससे कक, और क्जससे कक वि जािता या ववश्वास करिे का कारण रखता िो कक
जीवि के ललये संकटपण
ू त ककसी रोग का संक्रम फैलािा सम्भाव्य िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 271- करधतीन के तनयम की अिज्ञा- जो कोई ककसी जलयाि को करन्तीि की क्स्थनत में रखे जािे
के, या करन्तीि की क्स्थनत वाले जलयािों का ककिारे से या अन्य जलयािों से समागम ववनियलमत करिे के, या
ऐसे स्थािों के, जिां कोई संक्रामक रोग फैल रिा िो और अन्य स्थािों के बीच समागम ववनियलमत करिे के ललये
सरकार द्वारा बिाये गये और प्रख्यावपत ककसी नियम को जािते िुये अवज्ञा करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 272- विक्रय के भलये आशतयत खाद्य या पेय का अपभमरण- जो कोई ककसी खािे या पीिे की वस्तु
को इस आशय से कक वि ऐसी वस्तु को खाद्य या पेय के रुप में बेचे या यि सम्भाव्य जािते िुये कक वि खाद्य
या पेय के रुप में बेची जायेगी, ऐसे अपलमधश्रत करे गा कक ऐसी वस्तु खाद्य या पेय के रुप में अपायकर बि जाये,
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक
िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन
उिरप्रदे श- उिर प्रदे श अधिनियम सं. 47 वषत 1975 की िारा 5 (हदिांक 15.9.1975 से प्रभावी |) के
द्वारा िारा 272, 273, 274, 275 एवं 276 मे शब्दों “दोिों मे से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 6
मास तक की िो सकेगी या जम
ु ातिे से, जो कक एक िजार रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा” के ललए निम्िललखखत को प्रनतस्थावपत ककया जाएगा-
“आजीवि कारावास से दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे के ललए भी दायी िोगा, परं तु प्रनतबंि यि िै कक
न्यायालय, निणतय में उक्ल्लखखत ककए जािे वाले समधु चत कारणों के ललए, कारावास का दण्ड अधिरोवपत कर
सकेगा, जो आजीवि कारवास से कम िो ।”

धारा 273- अपायकर खाद्य या पेय का विक्रय- जो कोई ककसी ऐसी वस्तु को, जो अपायकर कर दी गई िो,
या िो गई िो, या खािे-पीिे के ललये अिपु यत
ु त दशा में िो, यि जािते िुये या यि ववश्वास करिे का कारण रखते
िुये कक वि खाद्य या पेय के रुप में अपायकर िै , खाद्य या पेय के रुप में बेचग
े ा, या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा, या
बेचिे के ललये अलभदलशतत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो
सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

उिरप्रदे श- उिर प्रदे श अधिनियम सं. 47 वषत 1975 की िारा 5 (हदिांक 15.9.1975 से प्रभावी |) के
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द्वारा िारा 272, 273, 274, 275 एवं 276 मे शब्दों “दोिों मे से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 6
मास तक की िो सकेगी या जुमातिे से, जो कक एक िजार रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा” के ललए निम्िललखखत को प्रनतस्थावपत ककया जाएगा-
“आजीवि कारावास से दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे के ललए भी दायी िोगा, परं तु प्रनतबंि यि िै
कक न्यायालय, निणतय में उक्ल्लखखत ककए जािे वाले समधु चत कारणों के ललए, कारावास का दण्ड अधिरोवपत कर
सकेगा, जो आजीवि कारवास से कम िो ।”

धारा 274- औषधधयों का अपभमरण- जो कोई औषधि या भेषजीय निलमतनत में अपलमश्रण इस आशय से कक
या यि सम्भाव्य जािते िुये कक वि ककसी औषिीय प्रयोजि के ललये ऐसे बेची जायेगी या उपयोग की जायेगी, मािो
उसमें ऐसा अपलमश्रण ि िुआ िो, ऐसे प्रकार से करे गा कक उस औषधि या भेषजीय निलमतनत की प्रभावकाररता कम
िो जाये, कक्रया बदल जाये या वि अपायकर िो जाये, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि छ:
मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

उिरप्रदे श- उिर प्रदे श अधिनियम सं. 47 वषत 1975 की िारा 5 (हदिांक 15.9.1975 से प्रभावी |) के
द्वारा िारा 272, 273, 274, 275 एवं 276 मे शब्दों “दोिों मे से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 6
मास तक की िो सकेगी या जुमातिे से, जो कक एक िजार रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा” के ललए निम्िललखखत को प्रनतस्थावपत ककया जाएगा-
“आजीवि कारावास से दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे के ललए भी दायी िोगा, परं तु प्रनतबंि यि िै कक
न्यायालय, निणतय में उक्ल्लखखत ककए जािे वाले समधु चत कारणों के ललए, कारावास का दण्ड अधिरोवपत कर
सकेगा, जो आजीवि कारवास से कम िो” ।“

धारा 275- अपभमधरत औषधधयों का विक्रय- जो कोई यि जािते िुये कक ककसी औषधि या भेषजीय निलमतनत
में इस प्रकार से अपलमश्रण ककया गया िै कक उसकी प्रभावकाररता कम िो गई िै , या उसकी कक्रया बदल गई िै , या
वि अपायकर बि गई िै उसे बेचग
े ा या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा या बेचिे के ललये अलभदलशतत करे गा, या ककसी
औषिालय से औषिीय प्रयोजिों के ललये उसे अिपलमधश्रत के तौर पर दे गा या उसका अपलमधश्रत िोिा ि जाििे
वाले व्यक्तत द्वारा औषिीय प्रयोजिों के ललये उसका उपयोग काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से,
दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

उिरप्रदे श- उिर प्रदे श अधिनियम सं. 47 वषत 1975 की िारा 5 (हदिांक 15.9.1975 से प्रभावी |) के
द्वारा िारा 272, 273, 274, 275 एवं 276 मे शब्दो ““दोिों मे से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि 6 मास तक की िो सकेगी या जुमातिे से, जो कक एक िजार रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत
ककया जाएगा” के ललए निम्िललखखत को प्रनतस्थावपत ककया जाएगा-
“आजीवि कारावास से दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे के ललए भी दायी िोगा, परं तु प्रनतबंि यि िै कक

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न्यायालय, निणतय में उक्ल्लखखत ककए जािे वाले समधु चत कारणों के ललए, कारावास का दण्ड अधिरोवपत कर
सकेगा, जो आजीवि कारवास से कम िो।”

धारा 276- औषधध का भभधन औषधध या तनभमात के तौर पर विक्रय- जो कोई ककसी औषधि या भेषजीय
निलमतनत को, लभन्ि औषधि या भेषजीय निलमतनत के तौर पर जािते िुये बेचेगा या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा या
बेचिे के ललये अलभदलशतत करे गा या औषिीय प्रयोजिों के ललये औषिालय से दे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या
दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

उिरप्रदे श- उिर प्रदे श अधिनियम सं. 47 वषत 1975 की िारा 5 (हदिांक 15.9.1975 से प्रभावी |) के
द्वारा िारा 272, 273, 274, 275 एवं 276 मे शब्दो “दोिों मे से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
6 मास तक की िो सकेगी या जुमातिे से, जो कक एक िजार रुपए तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया
जाएगा” के ललए निम्िललखखत को प्रनतस्थावपत ककया जाएगा-
“आजीवि कारावास से दक्ण्डत ककया जाएगा और जम
ु ातिे के ललए भी दायी िोगा, परं तु प्रनतबंि यि िै कक
न्यायालय, निणतय में उक्ल्लखखत ककए जािे वाले समधु चत कारणों के ललए, कारावास का दण्ड अधिरोवपत कर
सकेगा, जो आजीवि कारवास से कम िो ।”

धारा 277- लोक जल-स्त्रोत या जलाशय का जल कलवु षत करना- जो कोई लोक जल-स्त्रोत या जलाशय के
जल को स्वेच्छया इस प्रकार भ्रष्ट या कलवु षत करे गा कक वि उस प्रयोजि के ललये, क्जसके ललये वि मामल
ू ी तौर
पर उपयोग मे आता िो, कम उपयोगी िो जाये, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि
मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 278- िायम


ु ण्डल को स्िास्थ्य के भलए अपायकर बनाना- जो कोई ककसी स्थाि को वायम
ु ण्डल को
स्वेच्छया इस प्रकार दवू षत करे गा कक वि जि सािारण के स्वास्थ्य के ललये, जो पड़ोस में निवास या कारबार करते
िों, या लोक-मागत से आते-जाते िों, अपायकर बि जाये, वि जुमातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक का िो सकेगा, दक्ण्डत
ककया जायेगा ।

धारा 279- लोक मागा पर उतािलेपन से िािन चलाना या िााँकना- जो कोई ककसी लोक मागत पर ऐसे
उतावलेपि या उपेक्षा से कोई वािि चलायेगा या सवार िोकर िााँकेगा क्जससे मािव जीवि संकटापन्ि िो जाये या
ककसी अन्य व्यक्तत को उपिनत या क्षनत काररत िोिा सम्भाव्य िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से
क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से
दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 280- जलयान का उतािलेपन से चलाना- जो कोई ककसी जलयाि को ऐसे उतावलेपि या उपेक्षा से
चलायेगा, क्जससे मािव जीवि संकटापन्ि िो जाये या ककसी अन्य व्यक्तत को उपिनत या क्षनत काररत करिा

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सम्भाव्य िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे
से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 281- भ्रामक प्रकाश, धचह्न या बोये का प्रदशान- जो कोई ककसी भ्रामक प्रकाश धचन्ि या बोये का
प्रदशति इस आशय से, या यि सम्भाव्य जािते िुये करे गा, कक ऐसा प्रदशति ककसी िौपररवािक को मागत भ्रष्ट कर
दे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से या दोिों
से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 282- अक्षेमकर या अतत-लदे िुये जलयान में भाड़े के भलये जलमागा से ककसी व्यन्क्त का प्रििण- जो
कोई ककसी व्यक्तत को ककसी जलयाि में जलमागत से, जािते िुये या उपेक्षापव
ू क
त भाड़े पर तब प्रविण करे गा या
करायेगा, जब वि जलयाि ऐसी दशा में िो या इतिा लदा िुआ िो क्जससे उस व्यक्तत का जीवि संकटापन्ि िो
सकता िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो
एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 283- लोकमागा या नौपररििन पथ में संकट या बाधा- जो कोई ककसी कायत को करके या अपिे कब्जे
में की, या अपिे भारसािि के अिीि ककसी, सम्पवि की व्यवस्था करिे का लोप करिे द्वारा ककसी लोक मागत या
िौपररविि के लोकपथ में ककसी व्यक्तत को संकट बािा या क्षनत काररत करे गा वि जुमातिे से, जो दो सौ रूपये तक
का िो सकेगा, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 284- विषैले पदाथा के सम्बधध में उपेक्षापण


ू ा आचरण- जो कोई ककसी ववषैले पदाथत से कोई कायत ऐसे
उतावलेपि या उपेक्षा से करे गा, क्जससे मािव जीवि संकटापन्ि िो जाये, या क्जससे ककसी व्यक्तत को उपिनत या
क्षनत काररत िोिा सम्भाव्य िो,

या अपिे कब्जे में के ककसी ववषैले पदाथत की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो ऐसे ववषैले पदाथत से मािव जीवि
को ककसी अधिसम्भाव्य संकट से बचािे के ललये पयातप्त िो, जािते िुये या उपेक्षापव
ू क
त लोप करे गा,

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो
एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 285- अन्ग्न या ज्िलनशील पदाथा के समबधध में उपेक्षापण


ू ा आचरण- जो कोई अक्‍ि या ककसी
ज्वलिशील पदाथत से कोई कायत ऐसे उतावलेपि या उपेक्षा से करे गा क्जससे मािव-जीवि संकटापन्ि िो जाये या
क्जससे ककसी अन्य व्यक्तत को उपिनत या क्षनत काररत िोिा सम्भाव्य िो,

अथवा अपिे कब्जे में की अक्‍ि या ककसी ज्वलिशील पदाथत की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो ऐसी अक्‍ि
या ज्वलिशील पदाथत से मािव जीवि को ककसी अधिसम्भाव्य संकट से बचािे के ललये पयातप्त िो, जािते िुये या
उपेक्षापव
ू क
त लोप करे गा,

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो
एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

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धारा 286- विस्फोटक पदाथा के बारे में उपेक्षापण
ू ा आचरण- जो कोई ककसी ववस्फोटक पदाथत, से कोई कायत
ऐसे उतावलेपि या उपेक्षा से करे गा, क्जससे मािव जीवि संकटापन्ि िो जाये या क्जससे ककसी अन्य व्यक्तत को
उपिनत या क्षनत काररत िोिा सम्भाव्य िो,

अथवा अपिे कब्जे में के ककसी ववस्फोटक पदाथत की ऐसी व्यवस्था करिे का जैसी ऐसे पदाथत से मािव
जीवि को अधिसम्भाव्य संकट से बचािे के ललये पयातप्त िो, जािते िुये या उपेक्षापव
ू क
त लोप करे गा,

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो
एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 287- मशीनरी के सम्बधध में उपेक्षापण


ू ा आचरण- जो कोई ककसी मशीिरी से कोई कायत ऐसे
उतावलेपि या उपेक्षा से करे गा क्जससे मािव जीवि संकटापन्ि िो जाय या क्जससे ककसी अन्य व्यक्तत को उपिनत
या क्षनत कररत िोिा सम्भाव्य िो,

अथवा अपिे कब्जे में की या अपिी दे खरे ख के अिीि की ककसी मशीिरी की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो
ऐसी मशीिरी से मािव जीवि को ककसी अधिसम्भाव्य संकट से बचािे के ललये पयातप्त िो, जािते िुये या
उपेक्षापव
ू क
त लोप करे गा,

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो
एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 288- ककसी तनमााण को धगराने या उसकी मरम्मत करने के सम्बधध में उपेक्षापण
ू ा आचरण- जो कोई
ककसी निमातण को धगरािे या उसकी मरम्मत करिे में उस निमातण की ऐसी व्यवस्था करिे का, जो उस निमातण के
या उसके ककसी भाग के धगरिे से मािव जीवि को ककसी अधिसम्भाव्य संकट से बचािे के ललये पयातप्त िो जािते
िुये या उपेक्षापव
ू क
त लोप करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो
सकेगी, या जुमातिे से जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 289- जीिजधतु के सम्बधध में उपेक्षापण


ू ा आचरण- जो कोई अपिे कब्जे में के ककसी जीवजन्तु के
सम्बन्ि में ऐसी व्यवस्था करिे का, जो ऐसे जीवजन्तु से मािव जीवि को अधिसम्भाव्य संकट या घोर उपिनत के
ककसी अधिसम्भाव्य संकट से बचािे के ललये पयातप्त िो जािते िुये या उपेक्षापव
ू क
त लोप करे गा, वि दोिों मे से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो
सकेगा, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 290- अधयथा अनप


ु बन्धधत मामलों में लोक धयस
ू ेधस के भलये दण्ड- जो कोई ककसी ऐसे मामले में
लोक न्यस
ू ेन्स करे गा जो इस संहिता द्वारा अन्यथा दण्डिीय ििीं िै , वि जुमातिे से, जो दो सौ रूपये तक का िो
सकेगा, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 291- धयस


ू ध
े स बधद करने के व्यादे श के पश्चात ् उसका चालू रखना- जो कोई ककसी लोक-सेवक द्वारा,
क्जसको ककसी न्यस
ू ेन्स की पि
ु राववृ ि ि करिे या उसे चालू ि रखिे के ललये व्यादे श प्रचाललत करिे का प्राधिकार
िो, ऐसे व्याहदष्ट ककये जािे पर, ककसी लोक न्यस
ू ेन्स की पि
ु रावनृ त करे गा, या उसे चालू रखेगा, वि सादा कारावास
से, क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

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धारा 292- अश्लील पस्
ु तकों आहद का विक्रय आहद- [(1) उपिारा (2) के प्रयोजिाथत ककसी पस्
1
ु तक,
पक्ु स्तका, कागज, लेख, रे खाधचत्र, रं गधचत्र, रूपण, आकृनत या कोई अन्य वस्तु को अश्लील समझा जायेगा यहद वि
कामोद्दीपक िै या कामक
ु व्यक्ततयों के ललये रुधचकर िै या उसका या (जिां उसमें दो या अधिक सलु भन्ि मदे
समाववष्ट िैं विां) उसकी ककसी मद का प्रभाव, समग्र रुप से ववचार करिे पर, ऐसा िै जो उि व्यक्ततयों को दरु ाचारी
तथा भ्रष्ट बिाये क्जसके द्वारा उसमें अन्तववतष्ट या सक्न्िववष्ट ववषय का पढा जािा, दे खा जािा या सि
ु ा जािा सभी
सस
ु ग
ं त पररक्स्थनतयों को ध्याि में रखते िुये सम्भाव्य िै ।]

[( 2) जो कोई-
3

(क) ककसी अश्लील पस्


ु तक, पक्ु स्तका, कागज, रे खाधचत्र, रं गधचत्र, रूपण या आकृनत या ककसी भी अन्य अश्लील
वस्तु को, चािे वि कुछ भी िो, बेचेगा, भाड़े पर दे गा, ववतररत करे गा, लोक-प्रदलशतत करे गा, या उसको ककसी भी प्रकार
पररचाललत करे गा, या उसे ववक्रय, भाड़े, ववतरण, लोक-प्रदशति या पररचालि के प्रयोजिों के ललए रचेगा, उत्पाहदत
करे गा या अपिे कब्जे में रखेगा, अथवा

1. 1969 के अधिनियम सं. 36 के द्वारा अंतः स्थावपत | हदिांक 7.9.1969 से प्रभावी |


2. 1969 के अधिनियम सं. 36 के द्वारा अंत: उपिारा (2) के रूप में पि
ु ः क्रमांककत | हदिांक 7.9.1969 से
प्रभावी |

(ख) ककसी अश्लील वस्तु का आयात या नियातत या प्रविण पव


ू ोतत प्रयोजिों में से ककसी प्रयोजि के ललये
करे गा या यि जािते िुये, या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुये करे गा कक ऐसी वस्तु बेची, भाड़े पर दी,
ववतररत या लोक-प्रदलशतत या ककसी प्रकार से पररचाललत की जायेगी, अथवा

(ग) ककसी ऐसे कारबार में भाग लेगा या उससे लाभ प्राप्त करे गा, क्जस कारबार में वि यि जािता िै या यि
ववश्वास करिे का कारण रखता िै कक कोई ऐसी अश्लील वस्तय
ु ें पव
ू ोतत प्रयोजिों में से ककसी प्रयोजि के ललये रची
जातीं, उत्पाहदत की जाती, क्रय की जाती, रखी जाती, आयत की जाती, नियातत की जाती, प्रविण की जाती, लोक -
प्रदलशतत की जाती या ककसी भी प्रकार से पररचाललत की जाती िैं, अथवा

(घ) यि ववज्ञावपत करे गा या ककन्िीं सििों द्वारा चािे वे कुछ भी िों यि ज्ञात करायेगा कक कोई व्यक्तत
ककसी ऐसे कायत में , जो इस िारा के अिीि अपराि िै , लगा िुआ िै , या लगिे के ललये तैयार िैं, या यि कक कोई
ऐसी अश्लील वस्तु ककसी व्यक्तत से या ककसी व्यक्तत के द्वारा प्राप्त की जा सकती िै , अथवा

(ङ) ककसी ऐसे कायत को, जो इस िारा के अिीि अपराि िै , करिे की प्रस्थापिा करे गा या करिे का प्रयत्ि
करे गा,

[प्रथम दोषलसद्धि पर दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से क्जसकी अवधि दो वषत तक िी िो सकेगी
1

तथा जुमातिे से, जो दो िजार रूपये तक का िो सकेगा, तथा द्ववतीय या पश्चातवती


् दोषलसद्धि की दशा में दोिों में
से ककसी भााँनत के करावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी और जुमातिे से भी जो पााँच िजार रुपये
तक िो सकेगा] दक्ण्डत ककया जायेगा ।

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1. 1969 के अधिनियम सं. 36 के द्वारा अंतः स्थावपत | हदिांक 7.9.1969 से प्रभावी |
2. 1969 के अधिनियम सं. 36 के द्वारा अंत: उपिारा (2) के रूप में पि
ु ः क्रमांककत | हदिांक 7.9.1969
से प्रभावी |

[ अपिाद- इस िारा का ववस्तार निम्िललखखत पर ि िोगा-


3

(क) कोई ऐसी पस्


ु तक, पक्ु स्तका, कागज, लेख, रे खाधचत्र, रूपण या आकृनत-

(i) क्जसका प्रकाशि लोकहित में िोिे के कारण इस आिार पर न्यायोधचत साब्रबत िो गया िै कक
ऐसी पस्
ु तक, पक्ु स्तका, कागज, लेख, रे खाधचत्र, रं गधचत्र, रुपण या आकृनत ववज्ञाि, साहित्य, कला या ववद्या या सवतजि
सम्बन्िी अन्य उद्दे श्यों के हित में िै , अथवा

(ii) जो सद्भावपव
ू क
त िालमतक प्रयोजिों के ललये रखी या उपयोग में लाई जाती िै :

(ख) कोई ऐसा रूपण जो-

(i) प्राचीि संस्मारक तथा परु ातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (1958 का 24) के अथत में
प्राचीि संस्मारक पर या उसमें , अथवा

(ii) ककसी मंहदर पर या उसमें या मनू ततयों के प्रविण के उपयोग में लाये जािे वाले या ककसी िालमतक
प्रयोजि के ललये रखे या उपयोग में लाये जािे वाले ककसी रथ पर, तक्षक्षत, उत्कीणत, रं गधचब्रत्रत या अन्यथा रुवपत िों ।

1
[ धारा 293- तरुण व्यन्क्त को अश्लील िस्तओ
ु ं का विक्रय आहद- जो कोई बीस वषत से कम आयु के
ककसी व्यक्तत को कोई ऐसी अश्लील वस्त,ु जो अक्न्तम पव
ू ग
त ामी िारा में निहदत ष्ट िै , बेचेगा, भाड़े पर दे गा, ववतरण
करे गा, प्रदलशतत करे गा या पररचाललत करे गा या ऐसी करिे की प्रस्थापिा या प्रयत्ि करे गा, 1
[प्रथम दोषलसद्धि पर
दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी और जम
ु ातिे से, जो दो िजार
रुपये तक का िो सकेगा और द्ववतीय या पश्चातवती
् दोषलसद्धि की दशा में दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी और जुमातिे से भी, जो पांच िजार रूपये तक का िो सकेगा, दक्ण्डत
ककया जायेगा ] | ]

1. 1925 के अधिनियम सं. 8 के द्वारा मल


ू िारा के स्थाि पर प्रनतस्थावपत |

धारा 294- अश्लील काया और गाने - जो कोई-

(क) ककसी लोक स्थाि में कोई अश्लील कायत करे गा, अथवा

(ख) ककसी लोक स्थाि में या उसके समीप कोई अश्लील गािे, पवााँडे या शब्द गाएगा, सि
ु ाएगा या
उच्चाररत करे गा, क्जससे दस
ू रों को क्षोभ िोता िो,

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वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से या
दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

म.प्र./ छ.ग. - भा.द.वव. की िारा 294 के अपराि को न्यायालय की अिम


ु नत से उस व्यक्तत द्वारा अपराि
का शमियो‍य ककया जा सकता िै क्जसके ववरुद्ि अश्लील कायत ककए गए थे या अश्लील शब्दों का प्रयोग ककया
गया था । (दे खें – म.प्र. अधिनियम सं. 17 वषत 1999 (हदिांक 21.5.1999 से प्रभावी ।)

धारा 294-क. लाटरी कायाालय रखना- जो कोई ऐसी लाटरी, जो ि तो राज्य लाटरी िो और ि तत्सम्बक्न्ित
राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत लाटरी िो, निकालिे के प्रयोजि के ललये कोई कायातलय या स्थाि रखेगा, वि दोिों में
से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि छि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया
जायेगा;

तथा जो कोई ऐसी लाटरी में ककसी हटकट, लाट, संख्यांक या आकृनत को निकालिे से सम्बक्न्ित या लागू
िोिे वाली ककसी घटिा या पररक्स्थनत पर ककसी व्यक्तत के फायदे के ललये ककसी रालश को दे िे की, या ककसी माल
के पररदाि की, या ककसी बात को करिे की, या ककसी बात से प्रववरत रििे की कोई प्रस्थापिा प्रकालशत करे गा, वि
जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

राज्य संशोधन

उ.प्र.- उप्र. में िारा 294क अप्रयोज्य की गयी िै । (दे खें- उ.प्र. अधिनियम सं. 24 वषत 1995)

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अध्याय 15

धमा से सम्बन्धधत अपराधों के विषय में

धारा 295 - ककसी िगा के धमा का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षतत काररत करना
या अपवित्र करना- जो कोई ककसी उपासिा स्थाि को या व्यक्ततयों के ककसी वगत द्वारा पववत्र मािी गई ककसी
वस्तु को िष्ट, िक
ु सािग्रस्त या अपववत्र इस आशय से करे गा कक ककसी वगत के िमत का तद्द्वारा अपमाि ककया
जाय या यि सम्भाव्य जािते िुए करे गा कक व्यक्ततयों का कोई वगत ऐसे िाश, िक ु साि या अपववत्र ककये जािे को
अपिे िमत के प्रनत अपमाि समझेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो
सकेगी, या जुमातिे से, या दोिो से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 295 क. विमभशात और विद्िेषपण


ू ा काया जो ककसी िगा के धमा या धाभमाक विश्िासों का अपमान करके
उसकी धाभमाक भािनाओं को आित करने के आशय से ककये गये िों- जो कोई 1[भारत के िागररकों के] ककसी वगत
की िालमतक भाविाओं को आित करिे के ववमलशतत और ववद्वेषपण
ू त आशय से उस वगत के िमत या िालमतक ववश्वासों
का अपमाि 2[उच्चाररत या ललखखत शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा] करे गा या करिे
का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि 3[ तीि] वषत तक की िो सकेगी, या
जुमातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 296- धाभमाक जमाि में विघ्न करना- जो कोई िालमतक उपासिा या िालमतक संस्कारो में वैिरुप से लगे
िुये ककसी जमाव में स्वेच्छया ववघ्ि काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक
वषत तक की िो सकेगी, या जम ु ातिे से या दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा।

धारा 297- कब्रिस्तानों आहद में अततचार करना- जो कोई ककसी उपासिा स्थाि में , या ककसी कब्रिस्ताि पर,
या अत्येक्ष्ट कक्रयाओं के ललये या मत
ृ कों के अवशेषों के ललये निक्षेप स्थाि के रुप में पथ
ृ क रखे गये ककसी स्थाि में
अनतचार या ककसी मािव शव की अविे लिा या अत्येक्ष्ट संस्कारों के ललये एकब्रत्रत ककन्िीं व्यक्ततयों को ववघ्ि
काररत,

इस आशय से करे गा कक ककसी व्यक्तत की भाविाओं को िे स पिुाँचाये या ककसी व्यक्तत के िमत का अपमाि
करे , या यि सम्भाव्य जािते िुये करे गा कक तद्द्वारा ककसी व्यक्तत की भाविाओं को िे स पिुाँचेगी, या ककसी व्यक्तत
के िमत का अपमाि िोगा,

1. ववधि अिक
ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 1961 के अधिनियम सं. 41 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 27.9.1969 से प्रभावी |
3. 1961 के अधिनियम सं. 41 के द्वारा “दो वषत” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत | 27.9.1969 से प्रभावी |

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से या
दोिों से, दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 298- धाभमाक भािनाओं को ठे स पिुाँचाने के विमभशात आशय से शब्द उच्चाररत करना आहद- जो कोई
ककसी व्यक्तत की िालमतक भाविाओं को िे स पिुाँचािे के ववमलशतत आशय से उसकी श्रवणगोचरता में कोई शब्द
उच्चाररत करे गा या कोई ध्वनि करे गा या उसकी दृक्ष्टगोचरता में कोई अंगववक्षेप करे गा, या कोई वस्तु रखेगा, वि

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दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से,
दक्ण्डत ककया जायेगा ।

अध्याय 16
मानि शरीर पर प्रभाि डालने िाले अपराधों के विषय में जीिन के भलये
संकटकारी अपराधों के विषय में
धारा 299- आपराधधक मानि िध- जो कोई मत्ृ यु काररत करिे के आशय से, या ऐसी शारीररक क्षनत काररत
करिे के आशय से क्जससे मत्ृ यु काररत िो जािा सम्भाव्य िो, या यि ज्ञाि रखते िुये कक यि सम्भाव्य िै कक वि
उस कायत से मत्ृ यु काररत कर दे , कोई कायत करके मत्ृ यु काररत कर दे ता िै , वि आपराधिक मािव वि का अपराि
करता िै ।

स्पष्टीकरण 1- वि व्यक्तत,जो ककसी दस


ू रे व्यक्तत को, जो ककसी ववकार रोग या अंगशैधथल्य से ग्रस्त िै ,
शारीररक क्षनत काररत करता िै और तद्द्वारा उस दस
ू रे व्यक्तत की मत्ृ यु त्वररत कर दे ता िै , उसकी मत्ृ यु काररत
करता िै यि समझा जायेगा ।

स्पष्टीकरण 2- जिााँ कक शारीररक क्षनत से मत्ृ यु काररत की गई िो, विााँ क्जस व्यक्तत िे ऐसी शारीररक क्षनत
काररत की िो, उसिे वि मत्ृ यु काररत की िै , यि समझा जायेगा, यद्यवप उधचत उपचार और कौशलपण
ू त धचककत्सा
करिे से वि मत्ृ यु रोकी जा सकती थी ।

स्पष्टीकरण 3- मााँ के गभत में क्स्थत ककसी लशशु की मत्ृ यु काररत करिा मािव वि ििीं िै , ककन्तु ककसी
जीववत लशशु की मत्ृ यु काररत करिा आपराधिक मािव वि की कोहट में आ सकेगा, यहद उस लशशु का कोई भाग
बािर निकल आया िो, यद्यवप उस लशशु िे श्वास ि ली िो या वि पण
ू त
त : उत्पन्ि ि िुआ िो ।

धारा 300- ित्या- एतक्स्मि ् पश्चात ् अपवाहदत दशाओं को छोड़कर आपराधिक मािव वि ित्या िै , यहद वि
कायत, क्जसके द्वारा मत्ृ यु काररत की गई िो, मत्ृ यु काररत करिे के आशय से ककया गया िो, अथवा

दस
ू रा- यहद वि ऐसी शारीररक क्षनत काररत करिे के आशय से ककया गया िो क्जससे अपरािी जािता िो
कक उस व्यक्तत की मत्ृ यु काररत करिा सम्भाव्य िै क्जसको वि अपिानि काररत की गई िै , अथवा

तीसरा- यहद वि ककसी व्यक्तत को शारीररक क्षनत काररत करिे के आशय से ककया गया िो और वि
शारीररक क्षनत, क्जसके काररत करिे का आशय िो, प्रकृनत के मामल
ू ी अिक्र
ु म में मत्ृ यु काररत करिे के ललये पयातप्त
िो, अथवा

चौथा- यहद कायत करिे वाला व्यक्तत यि जािता िो कक वि कायत इतिा आसन्िसंकट िै कक परू ी
अधिसंभाव्यता िै कक वि मत्ृ यु काररत कर िी दे गा या ऐसी शारीररक क्षनत काररत कर िी दे गा क्जससे मत्ृ यु काररत
िोिा सम्भाव्य िै और वि मत्ृ यु काररत करिे या पव
ू ाततत रुप से क्षनत काररत करिे की जोखखम उिािे के ललये
ककसी प्रनतिे तु के ब्रबिा ऐसा कायत करे ।

अपिाद 1- आपराधधक मानि िध कब ित्या निीं िै - आपराधिक मािव वि ित्या ििीं िै , यहद अपरािी
उस समय जबकक वि गम्भीर और अचािक प्रकोपि से आत्म-संयम की शक्तत से वंधचत िो, उस व्यक्तत की,
क्जसिे कक वि प्रकोपि हदया था, मत्ृ यु काररत करे या ककसी अन्य व्यक्तत की मत्ृ यु भल
ू या दघ
ु ट
त िावश काररत
करे ।
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ऊपर का अपवाद निम्िललखखत परन्तक
ु ों के अध्यिीि िै -

पिला- यि कक वि प्रकोपि ककसी व्यक्तत का वि करिे या अपिानि करिे के ललये अपरािी द्वारा प्रनतिे तु
के रुप में इक्प्सत ि िो या स्वेच्छया प्रकोवपत ि िो ।

दस
ू रा- यि कक वि प्रकोपि ककसी ऐसी बात द्वारा ि हदया गया िो जो ववधि के पालि में या लोक-सेवक
द्वारा ऐसे लोक-सेवक की शक्ततयों के ववधिपण
ू त प्रयोग में , की गई िो ।

तीसरा- यि कक वि प्रकोपि ककसी ऐसी बात द्वारा ि हदया गया िो, जो प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार के
ववधिपण
ू त प्रयोग में की गई िो ।

स्पष्टीकरण- प्रकोपि इतिा गम्भीर और अचािक था या ििीं कक अपराि को ित्या की कोहट में जािे से
बचा दे , यि तथ्य का प्रश्ि िै ।

अपिाद 2- आपराधिक मािव वि ित्या ििीं िै यहद अपरािी, शरीर या सम्पवि की प्रनतरक्षा के अधिकार
को सद्भाविापवू क
त प्रयोग में लाते िुये ववधि द्वारा उसे दी गई शक्तत का अनतकमण कर दे , और पव
ू धत चन्ति ब्रबिा
ओर ऐसी प्रनतरक्षा के प्रयोजि से क्जतिी अपिानि आवश्यक िो उससे अधिक अपिानि करिे ककसी आशय के ब्रबिा
उस व्यक्तत की मत्ृ यु काररत कर दे क्जसके ववरुद्ि वि प्रनतरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रिा िो ।

अपिाद 3- आपराधिक मािव वि ित्या ििीं िै , यहद वि अपरािी ऐसा लोक-सेवक िोते िुये, या लोक-सेवक
को मदद दे ते िुये, जो लोक न्याय की अग्रसरता में कायत कर रिा िै उसे ववधि द्वारा दी गई शक्तत से आगे बढ
जाये, और कोई ऐसा कायत करके क्जसे वि ववधिपण
ू त और ऐसे लोक-सेवक के िाते उसके कितव्य के सम्यक् निवतिि
के ललये आवश्यक िोिे का सद्भावपव
ू क
त ववश्वास करता िै , और उस व्यक्तत के प्रनत क्जसकी कक मत्ृ यु काररत की
गई िै , वैमिस्य के ब्रबिा मत्ृ यु काररत करे ।

अपिाद 4- आपराधिक मािव वि ित्या ििीं िै यहद वि मािव वि अचािक झगड़ा जनित आवेश की
तीव्रता में िुई अचािक लड़ाई में पव ू धत चन्ति ब्रबिा और अपरािी द्वारा अिधु चत लाभ उिाये ब्रबिा या क्रूरतापण
ू त या
अप्रानयक रीनत से कायत ककये ब्रबिा ककया गया िो ।

स्पष्टीकरण- ऐसी दशाओं में यि तत्विीि िै कक कौि पक्ष प्रकोपि दे ता िै या पिला िमला करता िै ।

अपिाद 5- आपराधिक मािव वि ित्या ििीं िै , यहद वि व्यक्तत क्जसकी मत्ृ यु काररत की जाये, अिारि वषत
से अधिक आयु का िोते िुये, अपिी सम्मनत से मत्ृ यु िोिा सिि करे , या मत्ृ यु की जोखखम उिाये ।

धारा 301- न्जस व्यन्क्त की मत्ृ यु काररत करने का आशय था, उससे भभधन व्यन्क्त की मत्ृ यु करके
आपराधधक मानि िध- यहद कोई व्यक्तत कोई ऐसी बात करिे द्वारा, क्जससे उसका आशय मत्ृ यु काररत करिा िो,
या क्जससे वि जािता िो कक मत्ृ यु काररत िोिा सम्भाव्य िै , ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु काररत करके, क्जसकी मत्ृ यु
काररत करिे का ि तो उसका आशय िो और ि यि सम्भाव्य जािता िो कक वि उसकी मत्ृ यु काररत करे गा
आपराधिक मािव-वि करे , तो अपरािी द्वारा ककया गया आपराधिक मािव- वि उसी भााँनत का िोगा क्जस भााँनत
का वि िोता, यहद वि उस व्यक्तत की मत्ृ यु काररत करता क्जसकी मत्ृ यु काररत करिा उसके द्वारा आशनयत था या
वि जािता था कक उसके द्वारा उसकी मत्ृ यु काररत िोिा सम्भाव्य िै ।

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धारा 302- ित्या के भलये दण्ड- जो कोई ित्या करे गा, वि मत्ृ यु या 1
[आजीवि का करावास] से दक्ण्डत
ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |

1
धारा 303 - आजीिन भसद्धदोष द्िारा ित्या के भलये दण्ड- जो कोई 2[ आजीवि कारावास] के दण्डादे श के
अिीि िोते िुये ित्या करे गा, वि मत्ृ यु से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

304. ित्या की कोहट में न आने िाले अपराधधक मानि िध के भलए दं ड- जो कोई ऐसा आपराधिक मािव
वि करे गा, जो ित्या की कोहट में ििीं आता िै , यहद वि कायत क्जसके द्वारा मत्ृ यु काररत की गई िै , मत्ृ यु या ऐसी
शारीररक क्षनत, क्जससे मत्ृ यु िोिा सम्भाव्य िै , काररत करिे के आशय से ककया जाए, तो वि 2[आजीवि कारावास] से,
या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा;

अथवा यहद वि कायत इस ज्ञाि के साथ कक उससे मत्ृ यु काररत करिा सम्भाव्य िै , ककन्तु मत्ृ यु ऐसी
शारीररक क्षनत, क्जससे मत्ृ यु काररत करिा सम्भाव्य िै , काररत करिे के ककसी आशय के ब्रबिा ककया जाए, तो वि
दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से,
दक्ण्डत ककया जाएगा ।

1. िारा 303 को उच्चतम न्यायालय द्वारा लम्टू बिाम स्टे ट ऑफ पंजाब, ए.आई.आर. 1983 सु.को. 473
में अमान्य कर हदया गया |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 1.1.1956 से प्रभावी |

304 क. उपेक्षा द्िारा मत्ृ यु काररत करना- जो कोई उतावलेपि के या उपेक्षापण


ू त ककसी ऐसे कायत से ककसी
व्यक्तत की मत्ृ यु काररत करे गा जो आपराधिक मािव वि की कोहट में ििीं आता, वि दोिों में से ककसी भांनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

1
[304ख.दिे ज मत्ृ यु - - (1) जिां ककसी स्त्री की मत्ृ यु ककसी दाि या शारीररक क्षनत द्वारा काररत की जाती िै
या उसके वववाि के सात वषत के भीतर सामान्य पररक्स्थनतयों से अन्यथा िो जाती िै और यि दलशतत ककया जाता िै
कक उसकी मत्ृ यु के कुछ समय पव
ू त उसके पनत िे या उसके पनत के िातेदार िे, दिे ज की ककसी मांग के ललए, या
उसके संबि
ं में उसके साथ क्रूरता की थी, या उसे तंग ककया था विा ऐसी मत्ृ यु को ” दिे ज मत्ृ य”ु किा जाएगा, और
ऐसा पनत या िातेदार उसकी मत्ृ यु काररत करिे वाला समझा जायेगा।

स्पष्टीकरण- इस उपिारा के प्रयोजिों के ललए “दिे ज” का विी अथत िै जो दिेज प्रनतषेि अधिनियम, 1961 (1961
का 28) की िारा 2 में िै |

1. 1986 के अधिनियम सं. 43 की िारा 10 द्वारा (19-11-1986 से ) अंतः स्थावपत |

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(2) जो कोई दिे ज मत्ृ यु काररत करे गा वि कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत से कम की ििीं िोगी
ककन्तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा। ]

305. भशशु या उधमि व्यन्क्त की आत्मित्या का दष्ु प्रेरण- यहद कोई अिारि वषत से कम आयु का व्यक्तत,
कोई उन्मि व्यक्तत, कोई ववपयतस्त धचि व्यक्तत, कोई जड़ व्यक्तत या कोई व्यक्तत, जो मिता की अवस्था में िै
आत्मित्या कर ले तो जो कोई ऐसी आत्मित्या के ककए जािे का दष्ु प्रेरण करे गा, वि मत्ृ य,ु या 1
[आजीवि का
कारावास] या कारावास से क्जसकी अवधि दस वषत से अधिक की ि िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से
भी दण्डिीय िोगा ।

306. आत्मित्या का दष्ु प्रेरण- यहद कोई व्यक्तत आत्मित्या करे , तो जो कोई ऐसी आत्मित्या का दष्ु प्रेरण
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

307. ित्या करने का प्रयत्न- जो कोई ककसी कायत को ऐसे आशय या ज्ञाि से और ऐसी पररक्स्थनतयों में
करे गा कक यहद वि उस कायत द्वारा मत्ृ यु काररत कर दे ता तो वि ित्या का दोषी िोता, वि दोिों में से ककसी भांनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा,
और यहद ऐसे कायत द्वारा ककसी व्यक्तत को उपिनत काररत िो जाए, तो वि अपरािी या तो 1[आजीवि कारावास] से
या ऐसे दण्ड से दण्डिीय िोगा, जैसा एतक्स्मिपव
ू त वखणतत िै ।

आजीिन भसद्धदोष द्िारा प्रयत्न- जबकक िारा में वखणतत अपराि करिे वाला कोई व्यक्तत 1
[आजीवि
कारावास] के दण्डादे श के अिीि िो, तब यहद उपिनत काररत िुई िो, तो वि मत्ृ यु से दक्ण्डत ककया जा सकेगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

308. आपराधधक मानि िध करने का प्रयत्न- जो कोई ककसी कायत को ऐसे आशय या ज्ञाि से और ऐसी
पररक्स्थनतयों में करे गा कक यहद उस कायत से वि मत्ृ यु काररत कर दे ता िै तो वि ित्या की कोहट में ि आिे वाले
आपराधिक मािव वि का दोषी िोता, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की
िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा, और यहद ऐसे कायत द्वारा ककसी व्यक्तत को उपिनत िो
जाए तो वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

309 .आत्मित्या करने का प्रयत्न- जो कोई आत्मित्या करिे का प्रयत्ि करे गा, और उस अपराि के करिे
के ललए कोई कायत करे गा, वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों
से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

310. ठग- जो कोई इस अधिनियम के पाररत िोिे के पश्चात ् ककसी समय ित्या द्वारा या ित्या सहित लट

या लशशओ
ु ं की चोरी करिे के प्रयोजि के ललए अन्य व्यक्तत या अन्य व्यक्ततयों से अभ्यस्तत:, सियत
ु त रिता िै
वि िग िै ।

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311. दण्ड- जो कोई, िग िोगा, वि 1
[आजीवि कारावास] से दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।

गभापात काररत करने, अजात भशशओ


ु ं को क्षतत काररत करने, भशशओ
ु ं
को अरक्षक्षत छोड़ने और जधम तछपाने के विषय में

312. गभापात काररत करना- जो कोई गभतवती स्त्री का स्वेच्छया गभतपात काररत करे गा, यहद ऐसा गभतपात
उस रत्री का जीवि बचािे के प्रयोजि से सद्भावपव
ू क
त , काररत ि ककया जाए, तो वि दोिों में से ककसी भांनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा, और यहद
वि स्त्री स्पन्दिगभात िो, तो वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- जो स्त्री स्वयं अपिा गभतपात काररत करती िै , वि इस िारा के अथत के अंतगतत आती िै ।

313. स्त्री की सम्मतत के ब्रबना गभापात काररत करना- जो कोई उस स्त्री की सम्मनत के ब्रबिा, चािे वि स्त्री
स्पन्दिगभात िो या ििीं, अक्न्तम िारा में पररभावषत अपराि करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी
भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दण्डिीय
िोगा ।

314 गभापात काररत करने के आशय से ककए गए कायो द्िारा काररत मत्ृ य-ु जो कोई गभतवती स्त्री का
गभतपात काररत करिे के आशय से कोई ऐसा कायत करे गा, क्जससे ऐसी स्त्री कक मत्ृ यु काररत िो जाए, वि दोिों में
से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दण्डिीय िोगा |

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

यहद िि काया स्त्री की सम्मतत के ब्रबना ककया जाए- और यहद वि कायत उस स्त्री की सम्मनत के ब्रबिा
ककया जाए, तो वि 1[आजीवि कारावास] से, या ऊपर बताए िुए दण्ड से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- इस अपराि के ललए यि आवश्यक ििीं िै कक अपरािी जािता िो कक उस कायत से मत्ृ यु


काररत सम्भाव्य िै ।

315. भशशु का जीवित पैदा िोना रोकने या जधम के पश्चात ् उसकी मत्ृ यु काररत करने के आशय से ककया
गया काया- जो कोई ककसी लशशु के जन्म से पव
ू त कोई कायत इस आशय से करे गा कक उस लशशु का जीववत पैदा िोिा
तद्द्वारा रोका जाए या जन्म के पश्चात ् तद्द्वारा उसकी मत्ृ यु काररत िो जाए, और ऐसे कायत से उस लशशु का
जीववत पैदा िोिा रोकेगा, या उसके जन्म के पश्चात ् उसकी मत्ृ यु काररत कर दे गा, यहद वि कायत माता के जीवि को
बचािे के प्रयोजि से साद्भावपव
ू क
त ििीं ककया गया िो, तो वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

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316. ऐसे काया द्िारा जो आपराधधक मानि िध की कोहट में आता िै , ककसी सजीि अजात भशशु की मत्ृ यु
काररत करना- जो कोई ऐसा कोई कायत ऐसी पररक्स्थनतयों में करे गा कक यहद वि तद्द्वारा मत्ृ यु काररत कर दे गा, तो
वि अपराधिक मािव वि का दोषी िोता और ऐसे कायत द्वारा ककसी सजीव अजात लशशु की मत्ृ यु काररत करे गा, वि
दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा, और जुमातिे
से भी, दण्डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

317. भशशु के वपता या माता या उसकी दे ख-रे ख रखने िाले व्यन्क्त द्िारा बारि िषा से कम आयु के भशशु
का अरक्षक्षत डाल हदया जाना और पररत्याग- जो कोई बारि वषत से कम आयु के लशशु का वपता या माता िोते िुए,
या ऐसे लशशु की दे खरे ख का भार रखते िुए, ऐसे लशशु का पण
ू त
त : पररत्याग करिे के आशय से उस लशशु को ककसी
स्थाि में अरक्षक्षत डाल दे गा या छोड दे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत
तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- यहद लशशु अरक्षक्षत डाल हदए जािे के पररणामस्वरुप मर जाए, तो यथाक्स्थनत, ित्या या
आपराधिक मािव वि के ललए अपरािी का ववचारण निवाररत करिा इस िारा से आशनयत ििीं िै ।

राज्य संशोधन

मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 317 अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै | (दे खें-दं ड
प्रकक्रया संहिता मप्र संशोिि अधिनियम, 2007 (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं 2 वषत
2008)

318. मत
ृ शरीर के गप्ु त व्ययन द्िारा जधम तछपाना- जो कोई ककसी लशशु के मत
ृ शरीर के गप्ु त रूप से
गाड़कर या अन्यथा उसका व्ययि करके, चािे ऐसे लशशु की मत्ृ यु उसके जन्म से पव
ू त या पश्चात ् या जन्म के दौराि
में िुई िो, ऐसे लशशु के जन्म को साशय नछपाएगा या नछपािे का प्रयास करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के
कारावास से, क्जस की अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

राज्य संशोधन

मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 318 अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै | (दे खें-दं ड
प्रकक्रया संहिता मप्र संशोिि अधिनियम, 2007 (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं 2 वषत
2008)

उपितत के विषय में

319. उपितत- जो कोई ककसी व्यक्तत को शारीररक पीड़ा, रोग या अंत- शैधथल्य काररत करता िै , वि उपिनत
करता िै , यि किा जाता िै |

320. घोर उपितत- उपिनत की केवल िीचे ललखी ककस्मे “घोर” किलाती िैं-

पिला- पस
ुं त्विरण ।

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दस
ू रा- दोिों में से ककसी िेत्र की दृक्ष्ट का स्थायी ववच्छे द ।

तीसरा- दोिों में से ककसी भी काि की श्रवणशक्तत का स्थायी ववच्छे द ।

चौथा- ककसी भी अंग या जोड़ का ववच्छे द ।

पांचिां- ककसी भी अंग या जोड़ की शक्ततयों का िाश या स्थायी हृास

छठा- लसर या चेिरे या स्थायी ववद्रप


ू ीकरण ।

सातिां- अक्स्थ या दांत का भंग ववसंिाि ।

आठिां - कोई उपिनत जो जीवि को संकटापन्ि करती िै या क्जसके कारण उपिनत व्यक्तत बीस हदि तक
तीव्र शारीररक पीड़ा में रिता िै या अपिे मामल
ू ी कामकाज को करिे के ललए असमथत रिता िै ।

321. स्िेच्छया उपितत काररत करना- जो कोई ककसी कायत को इस आशय से करता िै कक तद्द्वारा ककसी
व्यक्तत को उपिनत काररत करे या इस ज्ञाि के साथ करता िै कक यि सम्भाव्य िै कक वि तद्द्वारा ककसी व्यक्तत
को उपिनत काररत करे और तद द्वारा ककसी व्यक्तत को उपिनत काररत करता िै , वि “स्वेच्छया उपिनत करता िै ”,
यि किा जाता िै ।

322. स्िेच्छया घोर उपितत काररत करना- जो कोई स्वेच्छया उपिनत काररत करता िै , यहद वि उपिनत,
क्जसे, काररत करिे का उसका आशय िै या क्जसे वि जािता िै कक उसके द्वारा उसका ककया जािा सम्भाव्य िै
और घोर उपिनत िै , और यहद वि उपिनत, जो वि काररत करता िै , घोर उपिनत िो, तो वि “स्वेच्छया घोर उपिनत
करता िै ”, यि किा जाता िै ।

स्पष्टीकरण - कोई व्यक्तत स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करता िै , यि ििीं किा जाता िै । लसवाय जबकक
वि घोर उपिनत काररत करता िै और घोर उपिनत काररत करिे का उसका आशय िो या घोर उपिनत काररत िोिा
वि सम्भाव्य जािता िो; ककन्तु यहद वि यि आशय रखते िुए या वि सम्भाव्य जािते िुए कक वि ककसी एक
ककस्म की घोर उपिनत काररत कर दे वास्तव में दस
ू रे िी ककस्म की घोर उपिनत काररत िै तो वि “स्वेच्छया घोर
उपिनत काररत करता िै ”, यि किा जाता िै ।

323. स्िेच्छया उपितत काररत करने के भलए दं ड- उस दशा के लसवाय, क्जसके ललए िारा 334 में उपबंि िै ,
जो कोई स्वेच्छया उपिनत काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक
की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो एक िजार रुपए एक का िो सकेगा,या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

324. खतरनाक आयध


ु ों या साधनों द्िारा स्िेच्छया उपितत काररत करना- उस दशा के लसवाय, क्जसके ललए
िारा 334 में उपबंि िै , जो कोई असि, वेिि या काटिे के ककसी उपकरण द्वारा या ककसी ऐसे उपकरण द्वारा जो
यहद आक्रामक आयि
ु के तौर पर उपयोग में लाया जाए, तो उससे मत्ृ यु काररत िोिा सम्भाव्य िै , या अक्‍ि या
ककसी तप्त पदाथत द्वारा, या ककसी ववष या ककसी संक्षारक पदाथत द्वारा या ककसी ववस्फोटक पदाथत द्वारा या ककसी
ऐसे पदाथत द्वारा, क्जसका श्वास में जािा या निगलिा या रति में पिुंचिा मािव शरीर के ललए िानिकारक िै , या
ककसी जीवजंतु द्वारा स्वेच्छया उपिनत काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

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धारा 325 - स्िेच्छया घोर उपितत काररत करने के भलये दण्ड- उस दशा के लसवाय, क्जसके ललये िारा 335
में उपबन्ि िै , जो कोई स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जम
ु ातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 326- खतरनाक आयध


ु ों या साधनों द्िारा स्िेच्छया घोर उपितत काररत करना- उस दशा के लसवाय,
क्जसके ललए िारा 335 में उपबन्ि िै , जो कोई असि, वेिि या काटिे के ककसी उपकरण द्वारा, या ककसी ऐसे
उपकरण द्वारा, जो यहद आक्रामक आयि
ु के तौर पर उपयोग में लाया जाए, तो उससे मत्ृ यु काररत िोिा सम्भाव्य
िै , या अक्‍ि या ककसी तप्त पदाथत द्वारा, या ककसी ववष या संक्षारक पदाथत द्वारा, या ककसी ववस्फोटक पदाथत
द्वारा, या ककसी ऐसे पदाथत द्वारा, क्जसका श्वास में जािा या निगलिा या रतत में पिुाँचिा मािव-शरीर के ललए
िानिकारक िै , या ककसी जीव-जन्तु द्वारा स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करे गा, वि 1अजीवि कारावास से, या दोिों
में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।

राज्य संशोधन

मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 326 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै । (
दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता ( म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 ( म. प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

[326क. अम्ल आहद का प्रयोग कर स्िेच्छया घोर उपितत काररत करना- जो कोई ककसी व्यक्तत के शरीर
1

के ककसी भाग या ककन्िीं भागों को उस व्यक्तत पर अस्ल फेंककर या उसे अम्ल दे कर या ककन्िीं अन्य साििों का,
ऐसा काररत करिे के आशय से या ज्ञाि से कक यि संभाव्य िै कक वि ऐसी क्षनत या उपिनत काररत करे , प्रयोग
करके स्थायी या आंलशक िक
ु साि काररत करता िै या अंगववकार करता िै या जलाता िै या ववकलांग बिाता िै या
ववद्रवू पत करता िै या नि:शतत बिाता िै या घोर उपिनत काररत करता िै , वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि दस वषत से कम की ििीं िोगी ककन्तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा;

परन्तु ऐसा जुमातिा पीडड़त के उपचार के धचककत्सीय खचों को परू ा करिे के ललए न्यायोधचत और यक्ु ततयत
ु त
िोगा;

परन्तु यि और कक इस िारा के अिीि अधिरोवपत कोई जम


ु ातिा पीडड़त को संदि ककया जाएगा

1. दं ड ववधि (संशोिि), 2013 द्वारा अंतः स्थावपत | हदिांक 3.2.13 से प्राभावी |

326ख स्िेच्छया अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना- जो कोई, ककसी व्यक्तत को स्थायी या आंलशक
िक
ु साि काररत करिे या उसका अंगववकार करिे या जलािे या ववकलांग बिािे या ववद्रवू पत करिे या नि:शतत
बिािे या घोर उपिनत काररत करिे के आशय से उस व्यक्तत पर अम्ल फेंकता िै या फेंकिे का प्रयास करता िै या
ककसी व्यक्तत को अम्ल दे ता िै या अम्ल दे िे का प्रयत्ि करता िै , वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि पांच वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

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स्पष्टीकरण 1- िारा 326क तक और इस िारा के प्रयोजिों के ललए “अम्ल” में कोई ऐसा पदाथत सक्म्मलत
िै जो एसे अम्लीय या संक्षारक स्वरुप या ज्वलि प्रकृनत का िै , जो ऐसी शारीररक क्षनत करिे यो‍य िै , क्जससे
क्षतधचन्ि बि जाते िैं या ववद्रप
ू ता या अस्थायी या स्थायी नि:शततता िो जाती िै ।

स्पष्टीकरण 2- िारा 326क और इस िारा के प्रयोजिों के ललए स्थायी या आंलशक िक


ु साि या अंगववकार
का अपररवततिीय िोिा आवश्यक ििीं िोगा ।]

धारा 327- सम्पवि उद्दावपत करने के भलए या अिैध काया कराने को मजबरू करने के भलए स्िेच्छया
उपितत काररत करना- जो कोई इस प्रयोजि से स्वेच्छया उपिनत काररत करे गा कक उपित व्यक्तत से, या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत से, कोई सम्पवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त उद्यावपत की जाये, या उपित व्यक्तत को या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत को कोई ऐसी बात, जो अवैि िो, या क्जससे ककसी अपराि का ककया जािा सक
ु र िोता िो,
करिे के ललये मजबरू ककया जाये, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक िी िो
सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 328- अपराध करने के आशय से विष इत्याहद तद्द्िारा उपितत काररत करना- जो कोई इस आशय से
कक ककसी व्यक्तत को उपिनत काररत की जाए या अपराि करिे के, या ककए जािे को सक
ु र बिािे के आशय से, या
यि सम्भाव्य जािते िुए कक वि तद्द्वारा उपिनत काररत करे गा, कोई ववष या जडड़माकारी, िशा करिे वाली या
अस्वास्थ्यकर औषधि या अन्य चीज उस व्यक्तत को दे गा या उसके द्वारा ललया जािा काररत करे गा, वि दोिों में
से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि दस वषत तक िी िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।

धारा 329- सम्पवि उद्दावपत करने के भलये या अिैध काया कराने को मजबरू करने के भलये स्िेच्छया घोर
उपितत काररत करना- जो कोई इस प्रयोजि से स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करे गा कक उपित व्यक्तत से या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत से कोई सम्पवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त उद्दावपत की जाए, या उपित व्यक्तत को या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत को कोई बात, जो अवैि िो या क्जससे ककसी अपराि का ककया जािा सक
ु र िोता िो, करिे के
ललए मजबरू ककया जाए, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस
वषत की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा 330- संस्िीकृतत उद्दावपत करने या वििश करके सम्पवि का प्रत्याितान कराने से भलये स्िेच्छया
उपितत काररत करना- जो कोई इस प्रयोजि से स्वेच्छया उपिनत काररत करे गा कक उपित व्यक्तत से या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत से कोई संस्वीकृनत या कोई जािकारी, क्जससे ककसी अपराि अथवा अवचार का पता चल
सके, उद्दावपत की जाए, अथवा उपित व्यक्तत या उससे हितबद्ि व्यक्तत को मजबरू ककया जाये कक वि कोई
सम्पवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त प्रत्यावनततत करे , या करवाए, या ककसी दावे या मााँग की तक्ु ष्ट करे , या ऐसी जािकारी
दे , क्जससे ककसी सम्पवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त का प्रत्यावतति कराया जा सके, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

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धारा 331 - संस्िीकृतत उद्दावपत करने के भलये या वििश करके सम्पवि का प्रत्याितान कराने के भलये
स्िेच्छया घोर उपितत काररत करना- जो कोई इस प्रयोजि से स्वेच्छया घोर उपिनत काररत करे गा कक उपित
व्यक्तत से या उससे हितबद्ि ककसी व्यक्तत से कोई संस्वीकृनत या कोई जािकारी, क्जससे कक ककसी अपराि अथवा
अवचार का पता चल सके, उद्दावपत की जाए, अथवा उपित व्यक्तत या उससे हितबद्ि व्यक्तत को मजबरू ककया
जाए कक वि कोई सम्पवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त प्रत्यावनततत करे या करवाए, या ककसी दावे या मााँग की तक्ु ष्ट करे ,
या ऐसी जािकारी दे , क्जससे ककसी सम्पवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त का प्रत्यावतति कराया जा सके, वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दण्डिीय िोगा ।

धारा 332 - लोक-सेिक को अपने किाव्य से भयोपरत करने के भलये स्िेच्छया उपितत काररत करना ककसी
ऐसे- जो कोई व्यक्तत को जो लोक- सेवक िो, उस समय जब वि वैसे लोक- सेवक के िाते अपिे कितव्य का
निवतिि कर रिा िो अथवा इस आशय से कक उस व्यक्तत को या ककसी अन्य लोक-सेवक को वैसे लोक-सेवक के
िाते उसके अपिे कितव्य के निवतिि से निवाररत या भयोपरत करे अथवा वैसे लोक-सेवक के िाते उस व्यक्तत द्वारा
अपिे कितव्य के ववधिपण
ू त निवतिि में की गई या ककए जािे के ललए प्रयनतत ककसी बात के पररणामस्वरूप स्वेच्छया
उपिनत काररत करे गा, वि दोिों में से, ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या
जम
ु ातिे से, या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा

धारा 333 - लोक-सेिक को अपने किाव्यों से भयोपरत करने के भलये स्िेच्छया घोर उपितत काररत करना-
जो कोई ककसी ऐसे व्यक्तत को, जो लोक-सेवक िो, उस समय जब वि, वैसे लोक-सेवक के िाते अपिे कितव्य का
निवतिि कर रिा िो, अथवा इस आशय से कक उस व्यक्तत को, या ककसी अन्य लोक-सेवक को, लोक-सेवक के िाते
उसके अपिे कितव्य के निवतिि से निवाररत करे या भयोपरत करे , अथवा वैसे लोक-सेवक के िाते उस व्यक्तत द्वारा
अपिे कितव्य के ववधिपण
ू त निवतिि में की गई या ककए जािे के ललए प्रयनतत ककसी बात के पररणामस्वरूप स्वेच्छया
घोर उपिनत काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,
दक्ण्डत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

धारा 334 - प्रकोपन पर स्िेच्छया उपितत काररत करना- जो कोई गम्भीर और अचािक प्रकोपि पर
स्वेच्छया उपिनत काररत करे गा, यहद ि तो उसका आशय उस व्यक्तत से लभन्ि, क्जसिे प्रकोपि हदया था, ककसी
व्यक्तत को उपिनत काररत करिे का िो और ि वि अपिे द्वारा ऐसी उपिनत काररत ककया जािा सम्भाव्य जािता
िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो
पााँच सौ रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

धारा 335 - प्रकोपन पर स्िेच्छया घोर उपितत काररत करना- जो कोई गम्भीर और अचािक प्रकोपि पर
स्वेच्छया और घोर उपिनत काररत करे गा, यहद ि तो उसका आशय उस व्यक्तत से लभन्ि, क्जसिे प्रकोपि हदया था,
ककसी व्यक्तत को घोर उपिनत काररत करिे का िो और ि वि अपिे द्वारा ऐसी उपिनत काररत ककया बािा
सम्भाव्य जािता िो, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि चार वषत तक की िो सकेगी, या
जुमातिे से जो दो िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जायेगा ।

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स्पष्टीकरण- अक्न्तम दो िारायें उन्िीं परन्तक
ु ों के अध्यिीि िैं, क्जिके अध्यिीि िारा 300 का अपवाद 1
िै ।

धारा 336- काया न्जससे दस


ू रों का जीिन या िैयन्क्तक क्षेम संकटापधन िो- जो कोई इतिे उतावलेपि या
उपेक्षा से कोई कायत करे गा कक उससे मािव- जीवि या दस
ू रों का वैयक्ततक क्षेम संकटापन्ि िोता िो, वि दोिों में
से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो ढाई सौ रुपये तक
का िो सकेगा, या दोिों से दक्ण्डत ककया जाएगा ।

धारा 337- ऐसे काया द्िारा उपितत करना, न्जससे दस


ू रों का जीिन या िैयन्क्तक क्षेम संकटापधन िो जाए-
जो कोई ऐसे उतावलेपि या उपेक्षा से कोई कायत करिे द्वारा मािव-जीवि या दस
ू रों का वैयक्ततक क्षेम संकटापन्ि
िो जाए, ककसी व्यक्तत को घोर उपिनत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि छ: मास
तक की िो सकेगी, या जुमातिे से जो पााँच सौ रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-338- ऐसे काया द्िारा घोर उपितत काररत करना न्जससे दस


ू रों का जीिन या िैयन्क्तक क्षेम
संकटापधन िो जाए- जो कोई ऐसे उतावलेपि या उपेक्षा से कोई कायत करिे द्वारा, क्जससे मािव जीवि या दस
ू रों
का वैयक्ततक क्षेम संकटापन्ि िो जाए, ककसी व्यक्तत को घोर उपिनत काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या
दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।
सदोष अिरोध और सदोष परररोध के विषय में

धारा-339 सदोष अिरोध- जो कोई ककसी व्यक्तत को स्वेच्छया ऐसे बािा डालता िै कक उस व्यक्तत को उस
हदशा में , क्जसमें उस व्यक्तत को जािे का अधिकार िै , जािे से निवाररत कर दे , वि उस व्यक्तत का सदोष अवरोि
करता िै , यि किा जाता िै ।
अपिाद- भलू म के या जल के ककसी प्राईवेट मागत में बािा डालिा क्जसके संबि
ं में ककसी व्यक्तत को
सद्भावपव
ू क
त ववश्वास िै कक विााँ बािा डालिे का उसे ववधिपण
ू त अधिकार िै , इस िारा के अथत के अंतगतत अपराि
ििीं िै ।
धारा-340- सदोष परररोध- जो कोई ककसी व्यक्तत का इस प्रकार सदोष अवरोि करता िै , कक उस व्यक्तत
को निक्श्चत पररसीमा से परे जािे से निवाररत कर दे , वि उस व्यक्तत का “सदोष परररोि” करता िै यि किा जाता
िै |
धारा-341- सदोष अिरोध के भलए दण्ड- जो कोई ककसी ऐसे व्यक्तत का सदोष अवरोि करे गा, वि सादा
कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रूपए तक का िो सकेगा, या
दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा |

धारा-342- सदोष परररोध के भलए दं ड- जो कोई ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि करे गा, वि दोिों में ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रुपये तक का िो
सकेगा या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

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धारा-343- तीन या अधधक हदनों के सदोष परररोध- जो कोई ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि तीि या
अधिक हदिों के ललए करे गा वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी,
या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-344- दस या अधधक हदनों के भलए सदोष परररोध- जो कोई ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि दस या
अधिक हदिों के ललए करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो
सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-345- ऐसे व्यन्क्त का सदोष परररोध, न्जसके छोड़ने के भलए ररट तनकल चक
ु ा िै - जो कोई यि जािते
िुए ककसी व्यक्तत को सदोष परररोि में रखेगा कक उस व्यक्तत को छोड़िे के ललए ररट सम्यक् रुप से निकल चुका
िै वि ककसी अवधि के उस कारावास के अनतररतत, क्जससे कक वि इस अध्याय की ककसी अन्य िारा के अिीि
दं डिीय िो, दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-346-गप्ु त स्थान में सदोष परररोध- जो कोई ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि इस प्रकार करे गा क्जससे
यि आशय प्रतीत िोता िो कक ऐसे परररुद्ि व्यक्तत से हितबद्ि ककसी व्यक्तत को या ककसी लोक-सेवक को ऐसे
व्यक्तत के परररोि की जािकारी ि िोिे पाए या एतक्स्मि पव
ू त वखणतत ककसी ऐसे व्यक्तत या लोक-सेवक को, ऐसे
परररोि के स्थाि की जािकारी ि िोिे पाए या उसका पता वि ि चला पाए, वि उस दं ड के अनतररतत क्जसके ललए
वि ऐसे सदोष परररोि के ललए दं डिीय िो, दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की
िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-347- संपवि उद्दावपत करने के भलए या अिैध काया करने के भलए मजबरू करने के भलए सदोष
परररोध- जो कोई ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि इस प्रयोजि से करे गा कक, उससे परररुद्ि व्यक्तत से, या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत से, कोई संपवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त उद्दावपत की जाए अथवा उस परररुद्ि व्यक्तत को
या उससे हितबद्ि ककसी व्यक्तत को कोई ऐसी अवैि बात करिे के ललये, या कोई ऐसी जािकारी दे िे के ललए,
क्जससे अपराि का ककया जािा सक
ु र िो जाए, मजबरू ककया जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी, दं डिीय िोगा ।

धारा-348- संस्िीकृतत उद्दावपत करने के भलए या वििश करके संपवि का प्रत्याितान करने के भलए सदोष
परररोध- जो कोई ककसी व्यक्तत का सदोष परररोि इस प्रयोजि से करे गा. कक उस परररुद्ि व्यक्तत से, या उससे
हितबद्ि ककसी व्यक्तत से, कोई संस्वीकृनत या कोई जािकारी, क्जससे ककसी अपराि या अवचार का पता चल सके
उद्यवपत की जाए, या वि परररुद्ि व्यक्तत या उससे हितबद्ि कोई व्यक्तत मजबरू ककया जाए कक वि ककसी संपवि
या ककसी मल्
ू यवाि प्रनतभनू त को प्रत्यावनततत करे या करवाए या ककसी दावे या मांग की तक्ु ष्ट करे या कोई ऐसी
जािकारी दे क्जससे ककसी संपवि या ककसी मल्
ू यवाि प्रनतभनू त का प्रत्यावतति कराया जा सके, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय
िोगा ।

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आपराधधक बल और िमले के विषय में

धारा-349-बल- कोई व्यक्तत ककसी अन्य व्यक्तत पर बल का प्रयोग करता िै , यि तब किा जाता िै , यहद
उस अन्य व्यक्तत में गनत, गनत पररवतति या गनतिीिता काररत कर दे ता िै या यहद वि ककसी पदाथत में ऐसी गनत,
गनत पररवतति या गनतिीिता काररत कर दे ता िै , क्जससे उस पदाथत का स्पशत उस अन्य व्यक्तत के शरीर के ककसी
भाग से या ककसी चीज से, क्जसे वि अन्य व्यक्तत पििे िुए िै या ले जा रिा िै , या ककसी ऐसी चीज से जो इस
प्रकार क्स्थत िै कक ऐसे संस्पशत से उस अन्य व्यक्तत की संवेदि शक्तत पर प्रभाव पड़ता िै , िो जाता िै |
परं तु यि तब जबकक गनतमाि, गनत पररवतति, या गनतिीि करिे वाला व्यक्तत उस गनत, गनत पररवतति या
गनतिीिता को एतक्स्मिपश्चात ् वखणतत तीि तरीकों में से ककसी एक द्वारा काररत करता िै , अथातत
पिला- अपिी निजी शारीररक शक्तत द्वारा
दस
ू रा- ककसी पदाथत के इस प्रकार व्ययि द्वारा कक उसके अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत द्वारा कोई अन्य
कायत के ककए जािे के ब्रबिा िी गनत या गनत पररवतति या गनतिीिता घहटत िोती िै ।
तीसरा- ककसी जीव जन्तु को गनतमाि िोिे, या गनत पररवतति करिे या गनतिीि िोिे के ललए उत्प्रेरण
द्वारा ।

धारा-350- आपराधधक बल- जो कोई ककसी व्यक्तत पर उस व्यक्तत की सम्मनत के ब्रबिा बल का प्रयोग
ककसी अपराि को करिे के ललए या उस व्यक्तत को, क्जस पर ऐसे बल का प्रयोग ककया जाता िै , क्षनत, भय, या
क्षोभ, ऐसे बल के प्रयोग से काररत करिे के आशय से, या ऐसे बल के प्रयोग से संभाव्यतः काररत करे गा यि
जािते िुए साशय करता िै , वि उस अन्य व्यक्तत पर आपराधिक बल का प्रयोग करता िै , यि किा जाता िै ।

धारा-351-िमला- जो कोई, कोई अंगववक्षेप या कोई तैयारी इस आशय से करता िै या यि संभाव्य जािते
िुए करता िै कक ऐसे अंगववक्षेप या ऐसी तैयारी करिे से ककसी उपक्स्थत व्यक्तत को यि आशंका िो जाएगी कक जो
वैसा अंगववक्षेप या तैयारी करता िै , वि उस व्यक्तत पर आपराधिक बल का प्रयोग करिे िी वाला िै , वि िमला
करता िै , यि किा जाता िै ।

स्पष्टीकरण- केवल शब्द िमले की कोहट में ििीं आते, ककं तु जो शब्द कोई व्यक्तत प्रयोग करता िै , वे उसके
अंगववक्षेप या तैयाररयों को ऐसा अथत दे सकते िैं क्जससे वे अंगववक्षेप या तैयाररयााँ िमले की कोहट में आ जाएाँ ।

धारा-352- गंभीर प्रकोपन िोने से अधयथा िमला करने या आपराधधक बल का प्रयोग करने के भलए दं ड- जो
कोई ककसी व्यक्तत पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्तत द्वारा गंभीर और अचािक प्रकोपि हदए
जािे पर करिे से अन्यथा करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की िो
सकेगी, या जुमातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।
स्पष्टीकरण- इस िारा के अिीि ककसी अपराि के दं ड में कमी गंभीर और अचािक प्रकोपि के कारण ि
िोगी, यहद वि प्रकोपि अपराि करिे के ललए प्रनतिे तु के रुप में अपरािी द्वारा इक्प्सत स्वेच्छया या प्रकोवपत ककया
गया िो, अथवा
यहद वि प्रकोपि ककसी ऐसी बात द्वारा हदया गया िो जो ववधि के पालि में या ककसी लोक-सेवक द्वारा
ऐसे लोक-सेवक की शक्तत के ववधिपण
ू त प्रयोग में की गयी िो, अथवा
यहद वि प्रकोपि ककसी ऐसी बात द्वारा हदया गया िो जो प्राइवेट प्रनतरक्षा के अधिकार के ववधिपण
ू त प्रयोग

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में की गयी िो ।
प्रकोपि अपराि को कम करिे के ललए पयातप्त गंभीर और अचािक था या ििीं, यि तथ्य का प्रश्ि िै ।

धारा-353- लोक-सेिक को अपने किाव्य के तनिािन से भयोपरत करने के भलए िमला या आपराधधक बल
का प्रयोग- जो कोई ककसी ऐसे व्यक्तत पर, जो लोक-सेवक िो, उस समय जब वैसे लोक-सेवक के िाते वि उसके
अपिे कितव्य का निष्पादि कर रिा िो, या इस आशय से कक उस व्यक्तत को वैसे लोक-सेवक के िाते अपिे कितव्य
के निवतिि से निवाररत करे या भयोपरत करे या ऐसे लोक-सेवक के िाते उसके अपिे कितव्य के ववधिपण
ू त निवतिि
में की गयी या की जािे के ललए प्रयनतत ककसी बात के पररणामस्वरूप िमला करे गा या आपराधिक बल का प्रयोग
करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या
दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-354- स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर िमला या आपराधधक बल का प्रयोग- जो कोई
ककसी स्त्री की लज्जा भंग करिे के आशय से यि संभाव्य जािते िुए कक तद्द्वारा वि उसकी लज्जा भंग करे गा,
उस स्त्री पर िमला करे गा या आपराधिक बल का प्रयोग करे गा 1[वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि एक वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो पााँच वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा |

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- - िारा 354 के पश्चात ् निम्िललखखत िई िारा अंत:स्थावपत की जाए, अथातत ् :-
“354-क.” ककसी स्त्री के कपड़े उतारने के आशय से उस पर िमला या आपराधधक बल प्रयोग - - जो कोई
ककसी स्त्री की लज्जा भंग करिे के आशय से या यि संभाव्य जािते िुए कक ऐसे िमले द्वारा वि ककसी सावतजनिक
स्थाि पर उसके कपड़े उतारकर या उसे ि‍ि िोिे के ललए वववश करके, उसकी लज्जा भंग करे गा या करवाएगा,
उस स्त्री पर िमला या आपराधिक बल प्रयोग करे गा या स्त्री पर िमला करिे के ललए दष्ु प्रेरण या षड्यंत्र करे गा या
ऐसा आपराधिक बल प्रयोग करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के करावास से, क्जसकी अवधि एक वषत से कम की
ििीं िोगी, ककन्तु क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे का भी दायी िोगा |”
(दे खें म.प्र. अधिनियम सं 14 सि ् 2004 की िारा 3 (2-12-2004 से प्रभावशील) । म.प्र. उधचत
(असािारण) हदिांक 2-12-2004 पेज 1037-1038 पर प्रकालशत ।)

1
[354क लैंधगक उत्पीड़न और लैंधगक उत्पीड़न के भलए दं ड- (1) ऐसा कोई निम्िललखखत कायत अथातत ् : -
(i) शारीररक संपकत और अग्रकक्रयाएाँ करिे, क्जिमें अवांछिीय और लैंधगक संबि
ं बिािे संबि
ं ी स्पष्ट
प्रस्ताव अंतवतललत िों; या
(ii) लैंधगक स्वीकृनत के ललए कोई मांग या अिरु ोि करिे; या
(iii) ककसी स्त्री की इच्छा के ववरुद्ि बलात ् अश्लील साहित्य हदखािे; या
(iv) लैंधगक आभासी हटप्पखणयााँ करिे,
वाला परु
ु ष लैंधगक उत्पीड़ि के अपराि का दोषी िोगा ।
(2) ऐसा कोई परु
ु ष, जो उपिारा (1) के खंड (i) या खंड (ii) या खंड (iii) में ववनिहदत ष्ट अपराि करे गा, वि
किोर कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

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(3) ऐसा कोई परु
ु ष, जो उपिारा (1) के खंड (iv) में ववनिहदतष्ट अपराि करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

354ख वििस्त्र करने के आशय से स्त्री पर िमला या आपराधधक बल का प्रयोग- ऐसा कोई परु
ु ष, जो ककसी
स्त्री को ककसी सावतजनिक स्थाि में वववस्त्र करिे या निवतस्त्र िोिे के ललए बाध्य करिे के आशय से उस पर िमला

1. दं ड ववधि (संशोिि) अधिनियम, 2013 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 3.2.13 से प्रभावी |

करे गा या उसके प्रनत आपराधिक बल का प्रयोग करे गा या ऐसे कृत्य का दष्ु प्रेरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत से कम ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

354ग दृश्यरततकता- ऐसा कोई परु


ु ष, जो कोई ऐसी ककसी स्त्री को, जो उि पररक्स्थनतयों के अिीि, क्जिमें
वि यि प्रत्याशा करती िै कक इसे अपराि करिे वाला या अपराि करिे वाले के कििे पर कोई अन्य व्यक्तत दे ख
ििीं रिा िोगा, ककसी प्राइवेट कृत्य में लगी ककसी स्त्री को एकटक दे खेगा या उसका धचत्र खींचेगा अथवा इस धचत्र
को प्रसाररत करे गा, प्रथम दोषलसद्धि पर दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत से कम
की ििीं िोगी ककं तु जो तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा िौर जम
ु ातिे से भी दं डडत ककया जाएगा और
द्ववतीय अथवा पश्चातवती
् ककसी दोषलसद्धि पर दोिों में से ककसी भांनत के कारवास से, क्जसकी अवधि तीि वषत से
कम की ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण 1- इस िारा के प्रयोजिों के ललए “प्राइवेट कृत्य” के अंतगतत ऐसे ककसी स्थाि में दे खिे का
कायत ककया जाता िै , क्जसके संबि
ं में , पररक्स्थनतयों के अिीि, यक्ु ततयत
ु ि रुप से यि प्रत्याशा की जाती िै कक विााँ
एकांतता िोगी और जिााँ कक पीडड़ता के जििांगों, नितंबों या वक्षस्थलों को अलभदलशतत ककया जाता िै या केवल
अिोवस्त्र से ढका जाता िै अथवा जिााँ कक पीडड़ता ककसी शौचघर का प्रयोग कर रिी िै ; या जिााँ पीडड़ता ऐसा कोई
लैंधगक कृत्य कर रिी िै तो ऐसे प्रकार का ििीं िै जो सािारणतया सावतजनिक तौर पर ककया जाता िै ।

स्पष्टीकरण 2- जिााँ पीडड़ता धचत्रों या ककसी अलभिय के धचत्र को खींचिे के ललए सम्मनत दे ती िै ककं तु
अन्य व्यक्ततयों को उन्िें प्रसाररत करिे की सम्मनत ििीं दे ती िै और जिााँ उस धचत्र या कृत्य का प्रसारण ककया
जाता िै विााँ ऐसे प्रसारण को इस िारा के अिीि अपराि मािा जाएगा ।

354घ पीछा करना- (1) ऐसा कोई परु


ु ष, जो-
(i) ककसी स्त्री या उससे व्यक्ततगत अन्योन्यकक्रया को आगे बढ़ािे के ललए उस स्त्री द्वारा स्पष्ट रुप से
अनिच्छा उपदलशतत ककए जािे के बावजूद, बारं बार पीछा करता िै और संपकत करता िै या संपकत
करिे का प्रयत्ि करता िै ; अथवा
(ii) जो कोई ककसी रत्री द्वारा इंटरिेट, ई-मेल या ककसी अन्य प्ररुप की इलेतरानिक संसच
ू िा का प्रयोग
ककए जािे को मािीटर करता िै ,

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वि पीछा करिे का अपराि करता िै
परं तु ऐसा आचरण पीछा करिे की कोहट में ििीं आएगा, यहद वि परु
ु ष, जो ऐसा करता िै , यि साब्रबत कर
दे ता िै कक-
(i) ऐसा कायत अपराि के निवारण या पता लगािे के प्रयोजि के ललए ककया गया था और पीछा करिे
के अलभयत
ु त परु
ु ष को राज्य द्वारा उस अपराि के निवारण और पता लगािे का उिरदानयत्व सौंपा
गया था; या
(ii) ऐसा ककसी ववधि के अिीि या ककसी ववधि के अिीि ककसी व्यक्तत द्वारा अधिरोवपत ककसी शतत या
अपेक्षा का पालि करिे के ललए ककया गया था; या
(iii) ववलशष्ट पररक्स्थनतयों में ऐसा आचरण कायत यक्ु ततयत
ु त और न्यायोधचत था ।
(2) जो कोई पीछा करिे का अपराि करता िै , वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, जो तीि वषत
तक का िो सकेगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा एवं द्ववतीय एवं पश्चात्वती दोषलसद्धि पर वि दोिों में से
ककसी भांनत के कारावास से, जो पांच वषत तक का िो सकेगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।]

धारा-355-गंभीर प्रकोपन िोने से अधयथा ककसी व्यन्क्त का तनरादर करने के आशय से उस पर िमला या
आपराधधक बल का प्रयोग- जो कोई ककसी व्यक्तत पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्तत द्वारा गंभीर
और अचािक प्रकोपि हदए जािे पर करिे से अन्यथा, इस आशय से करे गा कक तद्द्वारा उसका अिादर ककया
जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों
से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-356- ककसी व्यन्क्त द्िारा ले जाई जाने िाली संपवि की चोरी के प्रयत्नों में िमला आपराधधक बल
का प्रयोग- जो कोई ककसी व्यक्तत पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग ककसी ऐसी संपवि की चोरी करिे के
प्रयत्ि में करे गा, क्जसे वि व्यक्तत उस समय पििे िुए िो, या ललए जा रिा िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-357- ककसी व्यन्क्त का सदोष परररोध करने के प्रयत्नों में िमला या आपराधधक बल का प्रयोग- जो
कोई ककसी व्यक्तत पर िमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्तत का सदोष परररोि करिे का प्रयत्ि करिे
में करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से,
जो एक िजार रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-358- गंभीर प्रकोपन भमलने पर िमला या आपराधधक बल का प्रयोग- जो कोई ककसी व्यक्तत पर
िमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्तत द्वारा हदए गए गंभीर और अचािक प्रकोपि पर करे गा, वि सादा
कारावास से, क्जसकी अवधि एक मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो दो सौ रूपये तक का िो सकेगा, या
दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- अंनतम िारा उसी स्पष्टीकरण के अध्यिीि िै क्जसके अध्यिीि िारा 352 िै ।

व्यपिरण, अपिरण, दासत्ि और बलात ्-रम के विषय में

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धारा-359- व्यपिरण- व्यपिरण दो ककस्म का िोता िै 1[भारत] में से व्यपिरण और ववधिपण
ू त संरक्षकता में
से व्यपिरण ।

धारा-360- भारत में से व्यपिरण- जो कोई ककसी व्यक्तत का उस व्यक्तत की, या उस व्यक्तत की ओर से
सम्मनत दे िे के ललए वैि रुप से प्राधिकृत ककसी व्यक्तत की सम्मनत के ब्रबिा, 1[भारत] की सीमाओं से परे प्रविण
कर दे ता िै , वि 1[भारत] में से उस व्यक्तत का व्यपिरण करता िै , यि किा जाता िै ।

धारा-361- विधधपण
ू ा संरक्षकता में से व्यपिरण- जो कोई ककसी अप्राप्तवय को, यहद वि िर िो तो सोलि
वषत से कम आयु वाले को, या यहद वि िारी िो तो वि अिारि वषत से कम आयु वाली को या ककसी ववकृतधचि
व्यक्तत को ऐसे अप्राप्तवय या ववकृतधचि व्यक्तत के ववधिपण
ू त संरक्षकता में से ऐसे संरक्षक की सम्मनत के ब्रबिा ले
जाता िै या बिका ले जाता िै , वि ऐसे अप्राप्तवय या ऐसे व्यक्तत का ववधिपण
ू त संरक्षकता में से व्यपिरण करता िै ,
यि किा जाता िै ।

स्पष्टीकरण- इस िारा में “ववधिपण


ू त संरक्षक” शब्दों के अंतगतत ऐसा व्यक्तत आता िै क्जस पर ऐसे
अप्राप्तवय या अन्य व्यक्तत की दे ख-रे ख या अलभरक्षा का भार ववधिपव
ू क
त न्यस्त ककया गया िै ।

अपिाद- इस िारा का ववस्तार ककसी ऐसे व्यक्तत के कायत पर ििीं िै , क्जसे सद्भावपव
ू क
त यि ववश्वास िै कक
वि ककसी अिमतज लशशु का वपता िै , या क्जसे सद्भावपव
ू क
त यि ववश्वास िै कक वि ऐसे लशशु की ववधिपण
ू त अलभरक्षा
का िकदार िै , जब तक कक ऐसा कायत दरु ाचाररक या ववधिववरुद्ि प्रयोजि के ललए ि ककया जाए ।

धारा 362-अपिरण- जो कोई ककसी व्यक्तत को ककसी स्थाि से जािे के ललए बल द्वारा वववश करता िै , या
ककन्िीं प्रवचिापण
ू त उपयों द्वारा उत्प्रेररत करता िै , वि उस व्यक्तत का अपिरण करता िै , यि किा जाता िै ।

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा-363- व्यपिरण के भलए दं ड- जो कोई 1[भारत] में से या ववधिपण


ू त संरक्षकता में से ककसी व्यक्तत का
व्यपिरण करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- िारा 363 का अपराि ‘सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य’ िै । ( अवलोकि करें म.प्र. अधिनियम
सं.2 वषत 2008 । (इसका प्रकाशि म.प्र. राजपत्र (असािारण) में हदिांक 22.2.2008 को ककया गया ।
उिरप्रदे श- िारा 363 के अिीि अपराि अजमाितीय ककया गया । ( अवलोकि करें उ.प्र. अधिनियम क्र. 1
वषत 1984 (हदिांक 1.5.1984 से प्रभावी ।)

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[363 क भीख मांगने के प्रयोजन के भलए अप्राप्तिय का व्यपिरण या विकलांगीकरण- (1) जो कोई ककसी
1

अप्राप्तवय का इसललए व्यपिरण करे गा या अप्राप्तवय का ववधिपण ू त संरक्षक स्वयं ि िोते िुए अप्राप्तवय की
अलभरक्षा इसललए अलभप्राप्त करे गा कक ऐसे अप्राप्तवय भीख मांगिे के प्रयोजिों के ललए नियोक्जत या प्रयत
ु त ककया
जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डिीय िोगा और
जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
(2) जो कोई ककसी अप्राप्तवय को ववकलांग इसललए करे गा कक ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगिे के प्रयोजिों
के ललए नियोक्जत या प्रयत
ु त ककया जाए, वि आजीवि कारावास से दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय
िोगा ।
(3) जिााँ कक कोई व्यक्तत, जो अप्राप्तवय का ववधिपण
ू त संरक्षक ििीं िै , उस अप्राप्तवय को भीख मांगिे के
प्रयोजि के ललए नियोक्जत या प्रयत
ु त करे गा विााँ जब तक कक तत्प्रनतकूल साब्रबत ि कर हदया जाए, यि उपिारणा
की जाएगी कक उसिे इस उद्दे श्य से उस अप्राप्तवय का व्यपिरण ककया था या अन्यथा उसकी अलभरक्षा अलभप्राप्त
की थी कक वि अप्राप्तवय भीख मांगिे के प्रयोजिों के ललए नियोक्जत या प्रयत
ु त ककया जा सके ।
(4) इस िारा में , -
(क) भीख मांगिे से अलभप्रेत िै -
(1) लोक स्थाि में लभक्षा की याचिा या प्राक्प्त चािे गािे, िाचिे, भा‍य बतािे करतब हदखािे या चीजें
बेचिे के बिािे अथवा अन्यथा करिा,
(2) लभक्षा की याचिा या प्राक्प्त करिे के प्रयोजि से ककसी प्राइवेट पररसर में प्रवेश करिा,

1. 1959 के अधिनियम सं. 52 के द्वारा अंतःस्थावपत | हदिांक 15.1.1960 से प्रभावी |


(3) लभक्षा अलभप्राप्त या उद्दावपत करिे के उद्दे श्य से अपिा या ककसी अन्य व्यक्तत का या जीव-जन्तु का
कोई व्रण, घाव, क्षनत, ववरूपता या रोग अलभदलशतत या प्रदलशतत करिा,
(4) लभक्षा की याचिा या प्राक्प्त के प्रयोजि से अप्राप्तवय का प्रदलशतत के रुप में प्रयोग करिा,
(ख) अप्राप्तवय से वि व्यक्तत अलभप्रेत िै , जो
(i) यहद िर िै , तो सोलि वषत से कम आयु का िै ; तथा
(ii) यहद िारी िै तो अिारि वषत से कम आयु की िै ।]

राज्य संशोधन

मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 363क के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै ।
( दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा-364- ित्या करने के भलए व्यपिरण या अपिरण- जो कोई इसललए ककसी व्यक्तत का व्यपिरण या
अपिरण करे गा कक ऐसे व्यक्तत की ित्या की जाए या उसको ऐसे व्ययनित ककया जाए कक वि अपिी ित्या िोिे के
खतरे में पड़ जाए, वि 1[आजीवि कारावास] से या कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |

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1
[364क. मन्ु क्त-धन आहद के भलए व्यपिरण- जो कोई ककसी व्यक्तत का व्यपिरण या अपिरण करे गा या
ऐसे व्यपिरण या अपिरण के पश्चात ् ऐसे व्यक्तत को निरोि में रखेगा और ऐसे व्यक्तत को मत्ृ यु काररत करिे या
उपिनत करिे के ललए िमकी दे गा या अपिे इस आचरण से ऐसी यक्ु ततयत
ु त आशंका पैदा करे गा कक ऐसे व्यक्तत
की मत्ृ यु िो सतती िै या उपिनत की जा सकती िै या कोई कायत करिे या कोई कायत करिे से प्रववरत रििे के ललए
या मक्ु तत िि दे िे के ललए सरकार 2[या ककसी ववदे शी राज्य या अंतर राष्रीय अंतर सरकारी संगिि या ककसी अन्य
व्यक्तत] को वववश करिे के ललए ऐसे व्यक्तत को उपिनत करे गा या मत्ृ यु काररत करे गा, वि मत्ृ यु से या आजीवि
कारावास से दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा |]

1. 1993 के अधिनियम सं 42 द्वारा (22-5-1993) अन्तः स्थावपत |


2. 1995 अधिनियम सं 24 द्वारा “कोई एिी व्यक्तत” के ललए प्रनतस्थावपत | 26-5-1995 से प्रभावी

धारा-365-ककसी व्यन्क्त का गप्ु त रीतत से और सदोष परररोध करने के आशय से व्यपिरण या व्यपिरण-
जो कोई इस आशय से ककसी व्यक्तत का व्यपिरण या अपिरण करे गा कक उसका गप्ु त रीनत से और सदोष परररोि
ककया जाए, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 365 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै ।
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा-366- वििाि आहद के करने को वििश करने के भलए ककसी स्त्री को व्यपहृत करना, अपहृत करना या
उत्प्रेररत करना- जो कोई ककसी स्त्री का व्यपिरण या अपिरण उसकी इच्छा के ववरुद्ि ककसी व्यक्तत से वववाि
करिे के ललए उस स्त्री को वववश करिे के आशय से या वि वववश की जाएगी, यि संभाव्य जािते िुए अथवा
अयत
ु त संभोग करिे के ललए उस स्त्री को वववश या ववलब्ु ि करिे के ललए या वि स्त्री अयत
ु त संभोग करिे के
ललए वववश या ववलब्ु ि की जाएगी, यि संभाव्य जािते िुए करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा, और जो कोई
ककसी स्त्री को ककसी अन्य व्यक्तत से अयत
ु त संभोग करिे के ललए वववश या ववलब्ु ि करिे के आशय से या वि
वववश या ववलब्ु ि की जाएगी, यि संभाव्य जािते िुए इस संहिता में यथा पररभावषत आपराधिक अलभत्रास द्वारा
अथवा प्राधिकार के दरु
ु पयोग या वववश करिे के अन्य सािि द्वारा उस स्त्री को ककसी स्थाि से जािे को उत्प्रेररत
करे गा, वि भी पव
ू ोतत प्रकार से दं डडत ककया जाएगा ।

366-क-अप्राप्तिय लड़की का उपापन- जो कोई अिारि वषत से कम आयु की अप्राप्तवय की लड़की को,
अन्य व्यक्तत से अयत
ु त संभोग करिे के ललए वववश या ववलब्ु ि करिे के आशय से या तद्द्वारा वववश या ववलब्ु ि
ककया जाएगा, यि संभाव्य जािते िुए ऐसी लडकी को ककसी स्थाि से जािे को या कोई कायत करिे को, ककसी भी
सािि द्वारा उत्प्रेररत करे गा, वि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

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366-ख-विदे श से लड़की का आयात करना- जो कोई इतकीस वषत से कम आयु की ककसी लड़की को 1[भारत]
के बािर के ककसी दे श से या 1[जम्म-ू काश्मीर राज्य से] आयात, उसे ककसी अन्य व्यक्तत से अयत
ु त संभोग करिे के
ललए वववश या ववलब्ु ि करिे के आशय से या तद्द्वारा वि वववश या ववलब्ु ि की जाएगी, वि संभाव्य जािते िुए
करे गा, 2[***] वि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दं डिीय िोगा |

1. 1951 के अधिनियम संख्यांक 3 द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1951 के अधिनियम सं.3 के द्वारा कनतपय शब्द लप्ु त |

धारा-367- व्यन्क्त को घोर उपितत, दासत्ि, आहद का विषय बनाने के उद्दे श्य से व्यपिरण या अपिरण-
जो कोई ककसी व्यक्तत का व्यपिरण या अपिरण इसललए करे गा कक उसे घोर उपिनत या दासत्व का या ककसी
व्यक्तत की प्रकृनत ववरुद्ि काम वासिा का ववषय बिाया जाए या बिाये जािे के खतरे में वि जैसे पड़ सकता िै
वैसे उसे व्ययनित ककया जाए या यि संभाव्य जािते िुए करे गा कक ऐसे व्यक्तत को उपयत ुत त बातों का ववषय बिाया
जाएगा या उपयत ुत त रूप से व्ययनित ककया जाएगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस
वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-368- व्यपहृत या अपहृत व्यन्क्त को सदोष तछपाना या परररोध में रखना- जो कोई यि जािते िुए कक
कोई व्यक्तत व्यपहृत या अपहृत ककया गया िै , ऐसे व्यक्तत को सदोष नछपाएगा या परररोि में रखेगा, वि उसी
प्रकार दं डडत ककया जाएगा मािो उसिे उसी आशय या ज्ञाि या प्रयोजि से ऐसे व्यक्तत का व्यपिरण या अपिरण
ककया िो क्जससे उसिे ऐसे व्यक्तत को नछपाया या परररोि में निरुद्ि रखा िै ।

धारा-369- दस िषा से कम आयु के भशशु के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका व्यपिरण या
अपिरण- जो कोई दस वषत से कम आयु के ककसी लशशु का इस आशय से व्यपिरण या अपिरण करे गा कक ऐसे
लशशु के शरीर पर से कोई जंगम संपवि बेईमािी से ले ले, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
1
[370 व्यन्क्त का दव्ु याापार- (1) जो कोई, शोषण के प्रयोजि के ललए,- ककसी व्यक्तत

1. दं ड ववधि (संशोिि) अधिनियम, 2013 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 3.2.13 से प्रभावी |

ककन्िीं व्यक्ततयों को (क) भती करता िै , (ख) पररविनित करता िै , (ग) संश्रय दे ता िै , (घ) स्थािांतररत करता िै ,
(ङ) या गि
ृ ीत करता िै ,

पिला- िमककयों का प्रयोग करके या


दस
ू रा- बल या ककसी भी अन्य प्रकार के प्रपीडि प्रयोग करके या
तीसरा- अपिरण द्वारा, या
चौथा- कपट का प्रयोग करके या प्रवंचिा द्वारा; या
पााँचिा- शक्तत का दरु
ु पयोग करके; या

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छठिां- उत्प्रेरणा द्वारा, क्जसके अंतगतत ऐसे व्यक्तत की, जो भती ककए गए, पररविनित, संधश्रत, स्थािांतररत
या गि
ृ ीत व्यक्तत पर नियंत्रण रखता िै , सम्मनत प्राप्त करिे के ललए भग
ु ताि या दे िा या प्राप्त करिा भी आता िै ,

वि दव्ु यातपार का अपराि करता िै ।


स्पष्टीकरण 1– “शोषण” पद के अंतगतत शारीररक शोषण का कोई कृत्य या ककसी प्रकार का लैंधगक शोषण,
दासता या दासता, अधिसेववता के समाि व्यविार या अंगों का बलात ् अपसारण भी िै ।
स्पष्टीकरण 2- दव्ु यातपार के अपराि के अविारण में पीडड़त की सम्मनत मित्विीि िै ।
(2) जो कोई दव्ु यातपार का अपराि करे गा वि किोर कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत से कम की ििीं
िोगी ककं तु जो दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
(3) जिााँ अपराि में एक से अधिक व्यक्ततयों का दव्ु यातपार अंतवतललत िै , विां वि किोर कारावास से,
क्जसकी अवधि दस वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
(4) जिााँ अपराि में ककसी अवयस्क का दव्ु यातपार अंतवतललत िै विााँ वि किोर कारावास से, क्जसकी अवधि
दस वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से
भी दं डिीय िोगा ।
(5) जिााँ अपराि में एक से अधिक अवयस्को का दत्ु यातपार अंतवतललत िै , विााँ वि किोरा कारावास से,
क्जसकी अवधि चौदि वषत से कम की ििीं िो गी ककन्तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
(6) यहद ककसी व्यक्तत को अवयस्क का एक से अधिक अवसरों पर दव्ु यातपार ककए जािे के अपराि के ललए
लसद्िदोष ििराया जाता िै तो ऐसा व्यक्तत आजीवि कारावास से, क्जससे उस व्यक्तत के शेष प्राकृत जीविकाल के
ललए कारावास अलभप्रेत िोगा, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे रो भी दं डिीय िोगा ।
(7) जिााँ कोई लोक-सेवक या कोई पलु लस अधिकारी ककसी व्यक्तत के दव्ु यातपार में अंतवतललत िै , विााँ ऐसा
लोक-सेवक या पलु लस अधिकारी आजीवि कारावास से, क्जससे उस व्यक्तत के शेष प्राकृत जीविकाल के ललए
अलभप्रेत िोगा, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

370क ऐसे व्यन्क्त का, न्जसका दव्ु याापार ककया गया िै . शोषण- (1) जो कोई यि जािते िुए या इस बात
का ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक ककसी अवयस्क का दव्ु यातपार ककया गया िै , ऐसे अवयस्क को ककसी भी
रीनत में लैंधगक शोषण के ललए रखेगा वि किोर कारावास से क्जसकी अवधि पााँच वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु
जो सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
(2) जो कोई यि जािते िुए या इस बात का ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक ककसी व्यक्तत का
दव्ु यातपार ककया गया िै , ऐसे व्यक्तत को ककसी भी रीनत में लैंधगक शोषण के ललए रिे गा, वि किोर कारावास से,
क्जसकी अवधि तीि वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो पााँच वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।]

धारा-371- दासों का अभ्याभसक ब्यौिार करना- जो कोई अभ्यासत: दासों को आयात करे गा, नियातत करे गा,
अपसाररत करे गा, खरीदे गा, बेचेगा या उिका दव्ु यातपार या ब्यौिार करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों मे
से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत से अधिक ि िोगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दं डिीय िोगा ।

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धारा-372- िेश्यािन्ृ त्त आहद के प्रयोजन के भलए अप्राप्तिय को बेचना- जो कोई अिारि वषत से कम आयु के
ककसी व्यक्तत को इस आशय से कक ऐसा व्यक्तत ककसी आयु में भी वेश्याववृ ि या ककसी व्यक्तत से अयत
ु त संभोग
करिे के ललए या ककसी ववधिववरुद्ि या दरु ाचाररक प्रयोजि के ललए काम में लाया या उपयोग ककया जाए या यि
संभाव्य जािते िुए कक ऐसा व्यक्तत, ककसी आयु में भी ऐसे ककसी प्रयोजि के ललए काम में लाया जाएगा या
उपयोग ककया जायेगा, बेचग
े ा, भाड़े पर दे गा या अन्यथा व्ययनित करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण-1- जब कक अिारि वषत से कम आयु की िारी ककसी वेश्या को या ककसी अन्य व्यक्तत को, जो
वेश्यागि
ृ चलाता िो या उसका प्रबंि करता िो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए, या अन्यथा व्ययनित की जाए, तब इस
प्रकार ऐसी िारी को व्ययनित करिे वाले व्यक्तत के बारे में , जब तक कक तत्प्रनतकूल साब्रबत ि कर हदया जाए, यि
उपिारणा की जाएगी कक उसिे उसको इस आशय से व्ययनित ककया िै कक

1. 1955 के अधिियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


वि वेश्याववृ ि के उपयोग में लाई जाएगी ।
स्पष्टीकरण-2- “अयत
ु ि संभोग” से इस िारा के प्रयोजिों के ललए ऐसे व्यक्ततयों में मैथुि अलभप्रेत िै जो
वववाि से संयत
ु त ििीं िै , या ऐसे ककसी संयोग या बंिि से संयत
ु त ििीं िैं, जो यद्यवप वववाि की कोहट में तो ििीं
आता तथावप उस समद
ु ाय की, क्जसके वे िैं या यहद वे लभन्ि समद
ु ायों के िैं, तो ऐसे दोिों समद
ु ायों की, स्वीय
ववधि या रुहढ द्वारा उिके बीच वववाि-सदृश संबि
ं अलभज्ञात ककया जाता िै ।

धारा-373- िेश्यािवृ ि के प्रयोजन के भलए अप्राप्तिय का खरीदना आहद- जो कोई अिारि वषत से कम आयु
के ककसी व्यक्तत को इस आशय से कक ऐसा व्यक्तत ककसी आयु में भी वेश्याववृ ि या ककसी व्यक्तत से अयत
ु त
संभोग करिे के ललए या ककसी ववधिववरुद्ि दरु ाचाररक प्रयोजि के ललए काम में लाया या उपयोग ककया जाए या
यि संभाव्य जािते िुए कक ऐसा व्यक्तत ककसी आयु में भी ऐसे ककसी प्रयोजि के ललए काम में लाया जाएगा या
उपयोग ककया जाएगा, खरीदे गा, भाड़े पर लेगा या अन्यथा उसका कब्जा अलभप्राप्त करे गा, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय
िोगा ।

स्पष्टीकण-1- अिारि वषत से कम आयु की िारी को खरीदिे वाली, भाड़े पर लेिे वाली या अन्यथा उसका
कब्ज़ा अलभप्राप्त करिे वाली ककसी वेश्या के या वेश्यागि
ृ चलािे या उसका प्रबंि करिे वाले ककसी व्यक्तत के बारे
में , जब तक कक तत्प्रनतकूल साब्रबत ि कर हदया जाए, यि उपिारणा की जाएगी कक ऐसी िारी का कब्ज़ा उसिे इस
आशय से अलभप्राप्त ककया िै कक वि वेश्याववृ ि के प्रयोजिों के ललए उपयोग में लाई जाएगी ।

स्पष्टीकरण-2– “अयत
ु त संभोग” का विी अथत िै , जो िारा 372 में िै ।

धारा-374- विधधविरुद्ध अतनिाया रम- जो कोई ककसी व्यक्तत को उस व्यक्तत की इच्छा के ववरुद्ि श्रम
करिे के ललए ववधिववरुद्ि तौर पर वववश करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक
वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, दक्ण्डत ककया जाएगा |

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1
[यौन अपराध]

3
[375 बलात्संग- यहद परु
ु ष –
(क) ककसी स्त्री की योनि, उसके माँि
ु , मत्र
ू मागत या गद
ु ा में अपिा ललंग ककसी भी सीमा तक प्रवेश करता िै
या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत के साथ कराता िै ; या
(ख) ककसी स्त्री की योनि, मत्र
ू मागत या गद
ु ा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो ललंग ि िो,
ककसी सीमा तक अिप्र
ु ववष्ट करता िै या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत के साथ कराता िै ; या
(ग) ककसी स्त्री के शारीर के ककसी भाग का इस प्रकार िस्तसािि करता िै क्जससे कक उस स्त्री की योनि,
गद
ु ा, मत्र
ू मागत या शारीर के ककसी भाग में प्रवेशि करीत ककया जा सके या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत
के साथ कराता िै ; या
(घ) ककसी स्त्री की योनि, गद
ु ा, मत्र
ू मागत पर माँि
ु लगाता िै या उससे ऐसा अपिे या ककसी अन्य व्यक्तत के
साथ कराता िै ,
तो उसके बारे में यि किा जाएगा कक उसिे बलात्संग ककया िै , जिााँ ऐसा निम्िललखखत सात भांनत की
पररक्स्थनतयों में से ककसी के अिीि िोता िै : -
पिला- उस स्त्री की इच्छा के ववरुद्ि ।
दस
ू रा- उस स्त्री की सम्मनत के ब्रबिा ।
तीसरा- उस स्त्री की सम्मनत से, जब उसकी सम्मनत उसे या ऐसे ककसी व्यक्तत को, क्जससे वि हितबद्ि
िै , मत्ृ यु या उपिनत के भय में डालकर अलभप्राप्त की गई िै ।

1. 1983 के अधिनियम सं. 43 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 25.12.1983 से प्रभावी |


2. दं ड ववधि (संशोिि) अधिनियम, 2013 द्वारा िारा 375,376,376क, 376ख, 376ग, 376घ के स्थाि
िवीि िाराएाँ 375,376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ, एवं 376ङ प्रनतस्थावपत | हदिांक 3.2.13 से
प्रभावी |

चौथा- उस स्त्री की सम्मनत से, जब कक वि परु


ु ष यि जािता िै कक वि उसका पनत ििीं िै और उसिे
सम्मनत इस कारण दी िै कक वि यि ववश्वास करती िै कक वि ऐसा अन्य परु
ु ष िै क्जससे वि ववधिपव
ू क
त वववाहित
िै या वववाहित िोिे का ववश्वास करती िै ।
पााँचिा- उस स्त्री की सम्मनत से, जब ऐसी सम्मनत दे िे के समय, वि ववकृतधचत्तता या मिता के कारण
या उस परू
ु ष द्वारा व्यक्ततगत रूप से या ककसी अन्य के माध्यम से कोई संज्ञाशन्
ू यकारी या अस्वास्थ्यकर पदाथत
हदए जािे के कारण, उस बात की, क्जसके बारे में वि सम्मनत दे ती िै प्रकृनत और पररणामों को समझिे में असमथत
िै ।
छठिााँ- उस स्त्री की सम्मनत से या उसके ब्रबिा, जब वि अिारि वषत से कम आयु की िै ।
सातिााँ- जब यि स्त्री सम्मनत संसधू चत करिे में असमथत िै ।

स्पष्टीकरण 1 -इस िारा के प्रयोजिों के ललए, “योनि” के अंतगतत वि


ृ ि ् भगौष्ि भी िै ।
स्पष्टीकरण 2 - सम्मनत से कोई स्पष्ट स्वैक्च्छक सिमनत अलभप्रेत िै , जब स्त्री शब्दों, संकेतों या ककसी
प्रकार की मौखखक या अमौखखक संसच
ू िा द्वारा ववनिहदत ष्ट लैंधगक कृत्य में शालमल िोिे की इच्छा व्यतत करती िै :

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परं तु ऐसी स्त्री के बारे में , जो प्रवेशि के कृत्य का भौनतक रुप से ववरोि ििीं करती िै , मात्र इस तथ्य के
कारण यि ििीं समझा जाएगा कक उसिे ववनिहदत ष्ट लैंधगक कक्रयाकलाप के प्रनत सिमनत प्रदाि की िै ।

अपिाद 1 - ककसी धचककत्सीय प्रकक्रया या अंतःप्रवेशि से बलात्संग गहित ििीं िोगा ।


अपिाद 2 - ककसी परु
ु ष का अपिी स्वयं की पत्िी के साथ, यहद पत्िी पंद्रि वषत से कम आयु की ि िो,
बलात्संग ििीं िै ।

376 बलात्संग के भलए दं ड- (1) जो कोई, उपिारा (2) में उपबंधित मामलों के लसवाय, बलात्संग करे गा, वि
दोिों में से ककसी भांनत के किोर कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत, से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि
सावास तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।
(2) जो कोई-
(क) पलु लस अधिकारी िोते िुए-

(i) उस पलु लस थािे की, क्जसमें ऐसा पलु लस अधिकारी नियत


ु त िै , सीमाओं के भीतर; या
(ii) ककसी भी थािे के पररसर में ; या
(iii) ऐसे पलु लस अधिकारी की अलभरक्षा में या ऐसे पलु लस अधिकारी के अिीिस्थ ककसी पलु लस अधिकारी की
अलभरक्षा में , ककसी स्त्री से बलात्संग करे गा; या
(ख) लोक-सेवक िोते िुए, ऐसे लोक-सेवक की अलभरक्षा में या ऐसे लोक-सेवक के अिीिस्थ ककसी लोक-
सेवक की अलभरक्षा में की ककसी स्त्री से बलास्तंग करे गा; या
(ग) केन्द्रीय या ककसी राज्य सरकार द्वारा ककसी क्षेत्र में अलभनियोक्जत सशस्त्र बलों का कोई सदस्य िोते
िुए, उस क्षेत्र में बलात्संग करे गा; या
(घ) तत्समय प्रवि ृ ककसी ववधि द्वारा या उसके अिीि स्थावपत ककसी जेल, प्रनतप्रेषण गि
ृ या अलभरक्षा के
अन्य स्थाि के या क्स्त्रयों या बालको की ककसी संस्था के प्रबंितंत्र या कमतचारीवद
ं ृ में िोते िुए, ऐसी जेल, प्रनतप्रेषण
गि
ृ , स्थाि या संस्था के ककसी निवासी से बलात्संग करे गा; या
(ङ) ककसी अस्पताल के प्रबंितंत्र या कमतचारीवद
ं ृ में िोते िुए, उस अस्पताल में ककसी स्त्री से बलात्संग
करे गा; या
(च) स्त्री का िातेदार, संरक्षक या अध्यापक अथवा उसके प्रनत न्यास या प्राधिकारी की िै लसयत में का कोई
व्यक्तत िोते िुए, उस स्त्री से बलात्संग करे गा; या
(छ) सांप्रदानयक या पंथीय हिंसा के दौराि बलात्संग करे गा; या
(ज) ककसी स्त्री से यि जािते िुए कक वि गभतवती िै बलात्संग करे गा; या
(झ) ककसी स्त्री से, जब वि सोलि वषत से कम आयु की िै , बलात्संग करे गा; या
(ञ) उस स्त्री से, जो सम्मनत दे िे में असमथत िै , बलात्संग करे गा, या
(ट) ककसी स्त्री पर नियंत्रण या प्रभाव रखिे की क्स्थनत में िोते िुए, उस स्त्री से बलात्संग करे गा; या
(ि) मािलसक या शारीररक नि:शततता से ग्रलसत ककसी स्त्री से बलात्संग करे गा; या
(ड) बलात्संग करते समय ककसी स्त्री को गंभीर शारीररक अपिानि काररत करे गा या ववकलांग बिाएगा या
ववद्रवू पत करे गा या उसके जीवि को संकटापन्ि करे गा; या
(ढ) उस स्त्री से बारबार बलात्संग करे गा, वि किोर कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत से कम की ििीं

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िोगी, ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, क्जससे उस व्यक्तत के शेष प्राकृत जीविकाल के ललए
कारावास अलभप्रेत िोगा, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- इस उपिारा के प्रयोजिों के ललए,-


(क) “सशस्त्र बल” से िौसैनिक, सैनिक और वायु सैनिक अलभप्रेत िै और इसके अंतगतत तत्समय प्रवि

ककसी ववधि के अिीि गहित सशस्त्र बलों का, क्जसमें ऐसे अितसनै िक बल और कोई सिायक बल भी िैं, जो केन्द्रीय
सरकार या राज्य सरकार के नियंत्रणािीि िै , कोई सदस्य भी िै ;
(ख) “अस्पताल” से अस्पताल का अिाता अलभप्रेत िै और इसके अंतगतत ककसी ऐसी संस्था का अिाता भी िै ,
जो स्वास्थय लाभ कर रिे व्यक्ततयों को या धचककत्सीय दे खरे ख या पि
ु वातस की अपेक्षा रखिे वाले व्यक्ततयों के
प्रवेश और उपचार करिे के ललए िै ;
(ग) “पलु लस अधिकारी” का विी अथत िोगा जों पलु लस अधिनियम, 1861 (1861 का 5) के अिीि “पलु लस”
पद में उसका िै ;
(घ) “क्स्त्रयों या बालकों की संस्था” से क्स्त्रयों और बालकों को ग्रिण करिे और उिकी दे खभाल करिे के
ललए स्थावपत और अिरु क्षक्षत कोई संस्था अलभप्रेत िै चािे उसका िाम अिाथालय िो या उपेक्षक्षत क्स्त्रयों या बालकों
के ललए गि
ृ िो या वविवाओं के ललए गि
ृ या ककसी अन्य िाम से ज्ञात कोई संस्था िो ।

376क पीडड़ता की मत्ृ यु या लगातार विकृतशील दशा काररत करने के भलए दं ड- जो कोई, िारा 376 की
उपिारा (1) या उपिारा (2) के अिीि दं डिीय कोई अपराि करता िै और ऐसे अपराि के दौराि ऐसी कोई क्षनत
पिुाँचाता िै क्जससे स्त्री की मत्ृ यु काररत िो जाती िै या क्जसके कारण उस स्त्री की दशा लगातार ववकृतशील िो
जाती िै , वि ऐसी अवधि के किोर कारावास से, क्जसकी अवधि बीस वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि
कारावास तक की िो सकेगी, क्जससे उस व्यक्तत के शेष प्राकृत जीविकाल के ललए कारावास अलभप्रेत िोगा, या
मत्ृ यद
ु ं ड से दं डडत ककया जाएगा ।

376ख पतत द्िारा अपनी पत्नी के साथ पथ


ृ क्करण के दौरान मैथन
ु - जो कोई अपिी पत्िी के साथ, जो
पथ
ृ तकरण की डडक्री के अिीि या अन्यथा पथ
ृ क् रि रिी िै , उसकी सिमनत के ब्रबिा मैथुि करे गा, वि दोिों में से
ककसी भांनत के कारावास से क्जसकी अवधि दो वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो सात वषत तक की िो सकेगी,
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।
स्पष्टीकरण- इस िारा में “मैथुि” से िारा 375 के खंड (क) से खंड (घ) में वखणतत कोई कृत्य अलभप्रेत िै

376ग प्राधधकार में ककसी व्यन्क्त द्िारा मैथुन- जो कोई, -


(क) प्राधिकार की ककसी क्स्थनत या वैश्वालसक संबि
ं रखते िुए; या
(ख) कोई लोक-सेवक िोते िुए; या
(ग) तत्समय प्रवत
ृ ककसी ववधि द्वारा या उसके अिीि स्थावपत ककसी जेल, प्रनतप्रेषण-गि
ृ या अलभरक्षा के
अन्य स्थाि का या क्स्त्रयों या बालकों की ककसी संस्था का अिीक्षक या प्रबंिक िोते िुए; या
(घ) अस्पताल के प्रबंितंत्र या ककसी अस्पताल का कमतचारीवद ं ृ िोते िुए,

ऐसी ककसी स्त्री को, जो उसकी अलभरक्षा में िै या उसके भारसािि के अिीि िै या पररसर में उपक्स्थत िै ,
अपिे साथ मैथुि करिे िे त,ु जो बलात्संग के अपराि की कोहट में ििीं आता िै , उत्प्रेररत या ववलब्ु ि करिे के ललए
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ऐसी क्स्थनत या वैश्वासलसक संबि
ं का दरू
ु प योग करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, जो पााँच वषत
से कम का ििीं िोगा ककं तु जो दस वषत तक का िो सकेगा, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण 1- इस िारा में “मैथुि” से िारा 375 के खंड (क) से खंड (घ) में वखणतत कोई कृत्य अलभप्रेत
िोगा ।
स्पष्टीकरण 2- इस िारा के प्रयोजिों के ललए, िारा 375 का स्पष्टीकरण 1 भी लागू िोगा ।
स्पष्टीकरण 3- ककसी जेल, प्रनतप्रेषण-गि
ृ या अलभरक्षा के अन्य स्थाि या क्स्त्रयों या बालकों की ककसी
संस्था के संबि
ं में , “अिीक्षक” के अंतगतत कोई ऐसा व्यक्तत िै , जो जेल, प्रनतप्रेषण-गि
ृ , स्थाि या संस्था में ऐसा
कोई पद िारण करता िै क्जसके आिार पर वि उसके निवालसयों पर ककसी प्राधिकार या नियंत्रण का प्रयोग कर
सकता िै ।
स्पष्टीकरण 4– “अस्पताल” और “क्स्त्रयों या बालकों की संस्था” पदों का क्रमश: विी अथत िोगा जो िारा
376 की उपिारा (2) के स्पष्टीकरण में उिका िै ।

376घ सामहू िक बलात्संग- जिााँ ककसी स्त्री से, एक या अधिक व्यक्ततयों द्वारा, एक समि
ू गहित करके या
सामान्य आशय को अग्रसर करिे में कायत करते िुए बलात्संग ककया जाता िै , विााँ उि व्यक्ततयों में से प्रत्येक के
बारे में यि समझा जाता कक उसिे बलात्संग का अपराि ककया िै और वि ऐसी अवधि के किोर कारावास से,
क्जसकी अवधि बीस वषत से कम की ििीं िोगी ककं तु जो आजीवि कारावास तक की िो सकेगी, क्जससे उस व्यक्तत
के शेष प्राकृत जीविकाल के ललए कारावास अलभप्रेत िोगा, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा:
परं तु ऐसा जुमातिा पीडड़ता के धचककत्सकीय खचों को परू ा करिे और पि
ु वातस के ललए न्यायोधचत और
यक्ु ततयत
ु त िोगा:
परं तु यि और कक इस िारा के अिीि अधिरोवपत कोई जुमातिा पीडडता को संदि क्तया जाएगा ।

376ङ पन
ु रािवृ िकताा अपराधधयों के भलए दं ड- जो कोई, िारा 376 या िारा 376क या िारा 376घ के अिीि
दं डिीय ककसी अपराि के ललए पव
ू त में दं डडत ककया गया िै और तत्पश्चात ् उतत िाराओं में से ककसी के अिीि
दं डिीय ककसी अपराि के ललए लसद्िदोष ििराया जाता िै , आजीवि कारावास से, क्जससे उस व्यक्तत के शेष प्राकृत
जीविकाल के ललए कारावास अलभप्रेत िोगा, या मत्ृ यद
ु ं ड से दं डडत ककया जाएगा ।]

प्रकृतत-विरुद्ध अपराधों के विषय में

धारा-377- प्रकृतत -ववरुद्ि अपराि- जो कोई, ककसी परु


ु ष, स्त्री या जीव-जन्तु के साथ प्रकृनत की व्यवस्था
के ववरुद्ि स्वेच्छया इंहद्रय- भोग करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि पांच वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- इस िारा में वखणतत अपराि के ललए आवश्यक इक्न्द्रयभोग गहित करिे के ललए प्रवेशि पयातप्त िै

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 377 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै ।
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)
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अध्याय 17
सम्पवि के विरुद्ध अपराधों के विषय में
चोरी के विषय में

धारा-378-चोरी- जो ककसी व्यक्तत के कब्जे में से, उस व्यक्तत की सम्पवि के ब्रबिा, कोई जंगम सम्पवि
बेईमािी से ले लेिे का आशय रखते िुए वि संपवि ऐसे लेिे के ललए िटाता िै , वि चोरी करता िै , यि किा जाता िै

स्पष्टीकण 1- जब तक कोई वस्तु भब
ू द्ि रिती िै , जंगम संपवि ि िोिे से चोरी का ववषय ििीं िोती, ककं तु
ज्यों िी वि भलू म से पथ
ृ क की जाती िै , वि चोरी का ववषय िोिे यो‍य िो जाती िै ।

1. 1956 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत ।

स्पष्टीकरण-2- िटािा, जो उसी कायत द्वारा ककया गया िै क्जससे पथ


ृ तकरण ककया गया िै , चोरी िो सकेगा

स्पष्टीकरण-3- कोई व्यक्तत ककसी चीज का िटािा काररत करता िै , यि किा जाता िै जब वि उस बािा
को िटाता िै जो उस चीज को िटािे से रोके िुए िो या जब वि उस चीज को ककसी दस
ू री चीज से पथ
ृ क करता िै
तथा जब वि वास्तव में उसे िटाता िै ।
स्पष्टीकरण-4- वि व्यक्तत जो ककसी सािि द्वारा ककसी जीव-जन्तु का िटािा काररत करता िै , उस जीव-
जन्तु को िटाता िै ; और यि किा जाता िै कक वि ऐसी िर एक चीज को िटाता िै जो इस प्रकार उत्पन्ि की गई
गनत के पररणामस्वरूप उस जीव-जन्तु द्वारा िटायी जाती िै |
स्पष्टीकरण-5- पररभाषा में वखणतत सम्मनत अलभव्यतत या वववक्षक्षत िो सकती िै , और वि या तो कब्जा
रखिे वाले व्यक्तत द्वारा, या ककसी ऐसे व्यक्तत द्वारा, जो उस प्रयोजि के ललये अलभव्यतत या वववक्षक्षत प्राधिकार
रखता िै , दी जा सकती िै ।

धारा-379- चोरी के ललए दं ड - जो कोई चोरी करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा |

धारा-380-तनिास-गि
ृ , आहद में चोरी- जो कोई ऐसे ककसी निमातण, तम्बू या जलयाि में चोरी करे गा, जो
निमातण, तम्बू या जलयाि मािव निवास के रुप में , या संपवि की अलभरक्षा के ललए, उपयोग में आता िो, वि दोिों
में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से
भी दं डिीय िोगा ।

धारा-381- ललवपक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की संपवि की चोरी- जो कोई ललवपक या सेवक िोते
िुए, या ललवपक या सेवक की िै लसयत से नियोक्जत िोते िुए, अपिे माललक या नियोतता के कब्जे की ककसी संपवि
की चोरी करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत
ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

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धारा-382- चोरी करने के भलए मत्ृ य,ु उपितत या अिरोध काररत करने की तैयारी के पश्चात ् चोरी- जो कोई
चोरी करिे के ललए, या चोरी करिे के पश्चात ् निकल भागिे के ललए, या चोरी द्वारा ली गई संपवि को रखिे के
ललए, ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु या उसे उपिनत या उसका अवरोि काररत करिे की, या मत्ृ यु का, उपिनत का या
अवरोि का भय काररत करिे की तैयारी करके चोरी करे गा, वि कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की
िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

उद्दापन के विषय में


धारा 383 उद्दापन- जो कोई ककसी व्यक्तत को स्वयं उस व्यक्तत को या ककसी अन्य व्यक्तत को कोई क्षनत
करिे के भय में साशय डालता िै , और एतद्द्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्तत को, कोई संपवि या मल्
ू यवाि
या िस्ताक्षररत या मद्र
ु ांककत कोई चीज, क्जसे मल्
ू यवाि प्रनतभनू त में प्रनतवनततत ककया जा सके, ककसी व्यक्तत को
पररदि करिे के ललए बेईमािी से उत्प्रेररत करता िै , “उद्दापि” करता िै |
धारा-384- उद्दापन के भलए दं ड- जो कोई उद्दापि करे गा वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-385- उद्दापन करने के भलए ककसी व्यन्क्त को ककसी क्षतत के भय में डालना- जो कोई उद्दापि करिे
के ललए ककसी व्यक्तत को ककसी क्षनत के पिुाँचािे के भय में डालेगा या भय में डालिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में
से, ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया
जाएगा ।
धारा-386- ककसी व्यन्क्त को मत्ृ यु या घोर उपितत के भय में डालकर उद्दापन- जो कोई ककसी व्यक्तत को
स्वयं उसकी या ककसी अन्य व्यक्तत की मत्ृ यु या घोर उपिनत के भय में डालकर उद्दापि करे गा, वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दं डिीय िोगा ।
धारा-387- उद्दापन करने के भलए ककसी व्यन्क्त की मत्ृ यु या घोर उपितत के भय में डालना- जो कोई
उद्दापि करिे के ललए ककसी व्यक्तत को स्वयं उसकी या ककसी अन्य व्यक्तत की मत्ृ यु या घोर उपिनत के भय में
डालेगा या भय में डालिे का प्रयत्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत
तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।
धारा-388- मत्ृ यु या आजीिन कारािास, आहद से दं डनीय अपराध का अभभयोग लगाने की धमकी दे कर
उद्दापन- जो कोई ककसी व्यक्तत को स्वयं उसके ववरुद्ि या ककसी अन्य व्यक्तत के ववरुद्ि यि अलभयोग लगािे के
भय में डालकर कक उसिे कोई ऐसा अपराि ककया िै , या करिे का प्रयत्ि ककया िै , जो मत्ृ यु से या 1[अजीवि
कारावास] से या ऐसे कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डिीय िै , अथवा यि कक उसिे
ककसी अन्य व्यक्तत को ऐसा अपराि करिे के ललए उत्प्रेररत करिे का प्रयत्ि ककया िै , उद्दापि करे गा, वि दोिों में
से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अववधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दं डिीय िोगा, तथा यहद यि अपराि ऐसा िो जो इस संहिता की िारा 377 के अिीि दं डिीय िै , तो वि 1[आजीवि
कारावास] से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-389- उद्दापन करने के भलए ककसी व्यन्क्त को अपराध का अभभयोग लगाने के भय में डालना- जो
कोई उद्दापि करिे के ललए ककसी व्यक्तत को, स्वयं उसके ववरुद्ि या ककसी अन्य व्यक्तत के ववरुद्ि यि अलभयोग

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लागािे का भय हदखलाएगा या यि भय हदखलािे का प्रयत्ि करे गा कक उसिे ऐसा अपराि ककया िै या करिे का
प्रयत्ि ककया िै , जो मत्ृ यु से या 1[आजीवि कारावास] से या दस वषत तक के कारावास से दं डिीय िै , वि दोिों मे से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दं डिीय िोगा, तथा यहद वि अपराि ऐसा िो जो इस संहिता की िारा 377 के अिीि दं डिीय िै , तो वि 1[आजीवि
कारावास] से दं डडत ककया जाएगा ।

लट
ू और डकैती के विषय में
धारा-390-लट
ू - सब प्रकार की लट
ू में या तो चोरी या उद्दापि िोता िै ।

चोरी कब लट
ू िै- चोरी “लट
ू ” िै , यहद उस चोरी को करिे के ललए, या उस चोरी के करिे में या उस चोरी
द्वारा अलभप्राप्त संपवि को ले जािे का प्रयत्ि करिे में , अपरािी उस उद्दे श्य से स्वेच्छया ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु
या उपिनत या उसको सदोष अवरोि या तत्काल मत्ृ यु का, या तत्काल उपिनत का, या तत्काल सदोष अवरोि के
भय काररत करता िै या काररत करिे का प्रयत्ि करता िै ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

उद्दापन कब लट
ू िै - उदृापि “लट
ू ” िै , यहद अपरािी वि उद्दापि करते समय भय में डाले गए व्यक्तत की
उपक्स्थनत में िै , और उस व्यक्तत को स्वयं उसका या ककसी अन्य व्यक्तत की तत्काल मत्ृ यु या तत्काल उपिनत या
तत्काल सदोष अवरोि के भय में डालकर वि उद्दापि करता िै और इस प्रकार भय में डालकर इस प्रकार के भय
में डाले गए व्यक्तत को उद्दापि की जािे वाली चीज उसी समय और विां िी पररदि करिे के ललए उत्प्रेररत करता
िै ।
स्पष्टीकरण- अपरािी का उपक्स्थत िोिा किा जाता िै , यहद वि उस अन्य व्यक्तत को तत्काल मत्ृ यु के,
तत्काल उपिनत के, या तत्काल सदोष अवरोि के भय में डालिे के ललए पयातप्त रुप से निकट िो ।

धारा-391-डकैती- जब कक पााँच या अधिक व्यक्तत संयत


ु त िोकर लट
ू करते िैं या करिे या प्रयत्ि करते िैं
या जिााँ कक वे व्यक्तत, जो संयत
ु त िोकर लट
ू करते िैं, या करिे का प्रयत्ि करते िैं, और वे व्यक्तत जो उपक्स्थत िैं
और ऐसे लट
ू के ककए जािे या ऐसे प्रयत्ि में मदद करते िैं, कुल लमलाकर पााँच या अधिक िैं, तब िर व्यक्तत जो
इस प्रकार लट
ू करता िै , या उसका प्रयत्ि करता िै या उसमें मदद करता िै , किा जाता िै कक वि “डकैती” करता िै

धारा-392- लट
ू के भलए दं ड- जो कोई लट
ू करे गा, वि कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की
िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा, और यहद लट
ू राजमागत पर सय
ू ातस्त और सय
ू ोदय
के बीच की जाए तो कारावास चौदि वषत तक का िो सकेगा ।

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 392 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै । (
दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

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धारा-393-लट
ू करने का प्रयत्न- जो कोई लट
ू करिे का प्रयत्ि करे गा, वि कहिि कारावास से, क्जसकी
अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 393 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै ।
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 394 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै ।
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा-395- डकैती के भलए दं ड- जो कोई डकैती करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या वि कहिि कारावास
से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-396-ित्या सहित डकैती- यहद ऐसे पााँच व्यक्तत या अधिक व्यक्ततयों में से, जो संयत
ु त िोकर डकैती
कर रिे िों, कोई एक व्यककत इस प्रकार डकैती करिे में ित्या कर दे गा, तो उि व्यक्ततयों में से िर व्यक्तत मत्ृ यु
से या 1[आजीवि कारावास] से, या कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-397- मत्ृ यु या घोर उपितत काररत करने के प्रयत्न के साथ लट


ू या डकैती- यहद लट
ू या डकैती करते
समय अपरािी ककसी घातक आयि
ु का उपयोग करे गा, या ककसी व्यक्तत को घोर उपिनत काररत करे गा, या ककसी
व्यक्तत की मत्ृ यु काररत करिे या उसे घोर उपिनत काररत करिे का प्रयत्ि करे गा, तो वि कारावास, क्जससे ऐसा
अपरािी दक्ण्डत ककया जाएगा, सात वषत से कम का ििीं िोगा ।

धारा-398- घातक आयध


ु से सन्ज्जत िोकर लट
ू या डकैती करने का प्रयत्न- यहद लट
ू या डकैती करिे का
प्रयत्ि करते समय, अपरािी ककसी घातक आयि
ु से सक्ज्जत िोगा, तो वि कारावास, क्जससे ऐसा अपरािी दं डडत
ककया जाएगा, सात वषत से कम का ििीं िोगा ।
धारा-399-डकैती करने के भलए तैयारी करना- जो कोई डकैती करिे के ललए कोई तैयारी करे गा, वि कहिि
कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा, और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-400- डाकुओं की टोली का िोने के भलए दं ड- जो कोई इस अधिनियम के पाररत िोिे के पश्चात ् ककसी
भी समय ऐसे व्यक्ततयों की टोली का िोगा, जो अभ्यासत: डकैती करिे के प्रयोजि से सियत
ु त िों, वि [आजीवि
1

कारावास] से, या कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे
से भी दं डिीय िोगा ।

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धारा-401- चोरों की टोली का िोने के भलए दं ड- जो कोई इस अधिनियम के पाररत िोिे के पश्चात ् ककसी
भी समय ऐसे व्यक्ततयों की ककसी घम
ू ती-कफरती या अन्य टोली का िोगा, जो अभ्यासत: चोरी या लट
ू करिे के
प्रयोजि से सियत
ु त िों और वि टोली िगों या डाकुओं की टोली ि िो, वि कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि सात
वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-402- डकैती करने के प्रयोजन से एकब्रत्रत िोना- जो कोई इस अधिनियम के पाररत िोिे के पश्चात ्
ककसी भी समय डकैती करिे के प्रयोजि से एकब्रत्रत पांच या अधिक व्यक्ततयों में से, एक िोगा, वि कहिि
कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जायेगा और जुमातिे से भी दण्डिीय िोगा ।

सम्पवि के आपराधधक दवु िातनयोग के विषय में

धारा-403-संपवि का बेईमानी से दवु िातनयोग- जो कोई बेईमािी से ककसी जंगम संपवि का दवु वतनियोग करे गा
या उसको अपिे उपयोग के ललए सम्पररवनततत कर लेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

1. 1955 के अलशनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

स्पष्टीकरण-1- केवल कुछ समय के ललए बेईमािी से दवु वतनियोग करिा इस िारा के अथत के अंतगतत
दवु वतनियोग िै ।

स्पष्टीकरण-2- क्जस व्यक्तत को ऐसी संपवि पड़ी लमल जाती िै , जो ककसी अन्य व्यक्तत के कब्जे में ििीं िै
और वि उसके स्वामी के ललए उसको संरक्षक्षत रखिे या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावनततत करिे के प्रयोजि से ऐसी
सम्पवि को लेता िै , वि ि तो बेईमािी से उसे लेता िै और ि बेईमािी से उसका दवु वतनियोग करता िै , और ककसी
अपराि का दोषी ििीं िै , ककं तु वि ऊपर पररभावषत अपराि का दोषी िै , यहद वि उसके स्वामी को जािते िुए या
खोज निकालिे के सािि रखते िुए अथवा उसके स्वामी को खोज निकालिे और सच ू िा दे िे के यक्ु ततयत
ु त सािि
उपयोग में लािे और उसके स्वामी को उसकी मांग करिे को समथत करिे के ललए उस संपवि को यक्ु ततयत
ु त समय
तक रखे रििे के पव
ू त उसको उपिे ललए ववनियोक्जत कर लेता िै ।
ऐसी दशा में यक्ु ततयत
ु ि सािि तया िै , या यक्ु ततयत
ु त समय तया िै , यि तथ्य का प्रश्ि िै ।
यि आवश्यक ििीं िै कक पािे वाला यि जािता िो कक संपवि का स्वामी कौि िै या यि कक कोई ववलशष्ट
व्यक्तत उसका स्वामी िै । यि पयातप्त िै कक उसको ववनियोक्जत करते समय उसे यि ववश्वास ििीं िै कक वि
उसकी अपिी संपवि िै , या सद्भावपव
ू क
त यि ववश्वास िै कक उसका असली स्वामी ििीं लमल सकता ।

धारा-404- ऐसी संपवि का बेईमानी से दवु िातनयोग जो मत


ृ व्यन्क्त की मत्ृ यु के समय उसके कब्जे में थी-
जो कोई ककसी संपवि को, यि जािते िुए कक ऐसी संपवि ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु के समय उस मत ृ व्यक्तत के
कब्जे में थी, और तब से ककसी व्यक्तत के कब्जे में ििीं रिी िै , जो ऐसे कब्जे का वैि रुप से िकदार िै , बेईमािी
से दवु वतनियोक्जत करे गा या अपिे उपयोग मे संपररवनततत कर लेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,

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क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा, और यहद वि
अपरािी ऐसे व्यक्तत की मत्ृ यु के समय ललवपक या सेवक के रुप में उसके द्वारा नियोक्जत था, तो कारावास सात
वषत तक का िो सकेगा ।

आपराधधक धयासभंग के विषय में


धारा-405- आपराधधक धयासभंग- जो कोई संपवि या सम्पवि पर कोई अख्तयार ककसी प्रकार अपिे को
न्यस्त ककए जािे पर उस संपवि का बेईमािी से दवु वतनियोग कर लेता िै या उसे अपिे उपयोग में संपररवनततत कर
लेता िै या क्जस प्रकार ऐसा न्यास निवतिि ककया जािा िै , उसको ववहित करिे वाली ववधि के ककसी निदे श का, या
ऐसे न्यास के निवतिि के बारे में उसके द्वारा की गई ककसी अलभव्यतत या वववक्षक्षत वैि संववदा का अनतक्रमण
करके बेईमािी से उस संपवि का उपयोग या व्ययि करता िै , या जािबझ
ू कर ककसी अन्य व्यक्तत का ऐसा करिा
सिि करता िै , वि “आपराधिक न्यासभंग” करता िै ।

[स्पष्टीकरण 2[1]-- जो व्यक्तत 3[ककसी स्थापि का नियोजक िोते िुए, चािे वि स्थापि कमतचारी भववष्य
1

निधि और प्रकीणत उपबंि अधिनियम, 1962 (1952 का 19) की िारा 17 के अिीि छूट प्राप्त िै या ििीं],
तत्समय प्रवत
ृ ककसी ववधि द्वारा स्थावपत भववष्य निधि या कुटुंब पें शि-निधि में जमा करिे के ललए कमतचारी-
अलभदाय की कटौती कमतचारी को संदेय मजदरू ी में से करता िै उसके बारे में यि समझा जाएगा कक उसके द्वारा
इस प्रकार कटौती ककए गए अलभदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई िै और यहद वि उतत निधि में ऐसे अलभदाय
का संदाय करिे में , उतत ववधि का अनतक्रमण करके व्यनतक्रम करे गा तो उसके बारे में यि समझा जाएगा कक उसिे
यथापव
ू ोतत ववधि के ककसी निदे श का अनतक्रमण करके उतत अलभदाय की रकम का बेईमािी से उपयोग ककया िै ।]

1. 1973 के अधिनियम सं. 40 की िारा 9 द्वारा (1-11-1973 से) अन्तः स्थावपत |


2. 1975 के अधिनियम सं. 38 की िारा 9 द्वारा (1-9-1-1975 से) के स्पष्टीकरण 1 के रूप में
संख्यांककत|
3. 1988 के अधिनियम सं. 33 की िारा 27 द्वारा (1-8-1988 से ) अन्तः स्थावपत |

[स्पष्टीकरण 2-- जो व्यक्तत, नियोजक िोते िुए, कमतचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34)
1

के अिीि स्थावपत कमतचारी राज्य बीमा निगम द्वारा िाररत और शालसत कमतचारी राज्य बीमा निगम निधि में
जमा करिे के ललए कमतचारी को संदेय मजदरू ी में से कमतचारी-अलभदाय की कटौती करता िै , उसके बारे में यि
समझा जाएगा कक उसे अलभदाय की वि रकम न्यस्त कर दी गई िै , क्जसकी उसिे इस प्रकार कटौती की िै और
यहद वि उतत निधि में ऐसे अलभदाय के संदाय करिे में , उतत अधिनियम का अनतक्रमण करके, व्यनतक्रम करता
िै , तो उसके बारे में यि समझा जाएगा कक उसिे यथापव
ू ोतत ववधि के ककसी निदे श का अनतक्रमण करके उतत
अलभदाय की रकम का बेईमािी से उपयोग ककया िै ।]

1. 1975 के अधिनियम सं. 38 की िारा (1-9-1975 से) अंतः स्थावपत |

धारा-406- आपराधधक धयासभंग के भलए दं ड- जो कोई आपराधिक न्यासभंग करे गा, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा

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धारा-407-िािक आहद द्िारा आपराधधक धयासभंग- जो कोई वािक, घाटवाल या भांडागाररक के रुप में
अपिे पास संपवि न्यस्त ककए जािे पर ऐसी संपवि के ववषय में आपराधिक न्यासभंग करे गा, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय
िोगा ।
धारा-408-भलवपक या सेिक द्िारा आपराधधक धयासभंग- जो कोई ललवपक या सेवक िोते िुए, या ललवपक या
सेवक के रूप में नियोक्जत िोते िुए, और इस िाते ककसी प्रकार संपवि, या संपवि पर कोई भी अख्तयार अपिे मे
न्यस्त िोते िुए, उस संपवि के ववषय में आपराधिक न्यासभंग करे गा, यि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा-409-लोक-सेिक द्िारा या बैंकर, व्यापारी या अभभकताा द्िारा आपराधधक धयासभंग- जो कोई लोक-
सेवक के िाते अथवा बैकर, व्यापारी, फैतटर, दलाल, अटािी या अलभकतात के रुप में अपिे कारबार के अिक्र
ु म में
ककसी प्रकार संपवि, या संपवि पर कोई भी अख्तयार अपिे को न्यस्त िोते िुए उस संपवि के ववषय में आपराधिक
न्यासभंग करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत
तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संशोधन
(म.प्र.)– म.प्र. में म.प्र. अधिनियम सं 2 वषत 2008 की िारा 4 के द्वारा भा.द.वव. की िारा 409 के अिीि
अपराि “सत्र न्यायालय” द्वारा ववचारणीय ककया गया िै ।
(उतत अधिनियम का प्रकाशि म.प्र. राजपत्र (असािारण) हदिांककत 22.2.2008 पेज 157-158 पर िै ।

चुराई िुई संपवि प्राप्त करने के बारे में

धारा-410- चरु ाई िुई संपवि- वि संपवि, क्जसका कब्जा चोरी द्वारा या उद्दापि द्वारा या लट
ू द्वारा
अंतररत ककया गया िै , और वि संपवि क्जसका आपराधिक दवु वतनियोग ककया गया िै , या क्जसके ववषय में
आपराधिक न्यासभंग ककया गया िै , “चुराई िुई संपवि” किलाती िै चािे वि अंतरण या वि दवु वतनियोग या न्यासभंग
भारत के भीतर ककया गया िो या बािर । ककं तु यहद ऐसी संपवि तत्पश्चात ् ऐसे व्यक्तत के कब्जे में पिुंच जाती िै ,
जो उसके कब्जे के ललए वैि रुप से िकदार िै , तो वि चरु ाई संपवि ििीं रि जाती |

धारा-411-चुराई िुई सम्पवि को बेईमानी से प्राप्त करना- जो कोई ऐसी चुराई िुई संपवि को, यि जािते िुए
या ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि चरु ाई िुई संपवि िैं, बेईमािी से प्राप्त करे गा या रखेगा, वि दोिों में
से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया
जाएगा |

धारा-412-ऐसी संपवि को बेईमानी से प्राप्त करना जो डकैती करने में चुराई गई िै - जो कोई ऐसी चुराई िुई
संपवि को बेईमािी से प्राप्त करे गा या रखेगा, क्जसके कब्जे के ववषय में वि यि जािता िै या ववश्वास करिे का

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कारण रखता िै कक वि डकैती द्वारा अंतररत की गई िै , अथवा ऐसे ककसी व्यक्तत से, क्जसके संबि
ं में वि यि
जािता िै या ववश्वास करिे का कारण रखता िै कक वि डाकुओ कक टोली का िै या रिा िै , ऐसी संपवि, क्जसके
ववषय में वि यि जािता िै या ववश्वास करिे का कारण रखता िै कक वि चरु ाई िुई िै , बेईमािी से प्राप्त करे गा,
वि 1[आजीवि कारावास] से, या कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक कक िो सकेगी, दक्ण्डत ककया
जाएगा, और जुमातिे से भी, दं डिीय िोगा |

धारा 413-चुराई िुई संपवि का अभ्यासतः व्यापार करना– जो कोई ऐसी संपवि, क्जसके संबि ं में , वि यि
जािता िै , या ववश्वास करिे का कारण रखता िै कक वि चरु ाई िुई संपवि िै , अभ्यासत: प्राप्त करे गा या अभ्यासत:
उसमें व्यविार करे गा, वि, 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस
वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा |

धारा-414- चरु ाई िुई संपवि तछपाने में सिायता करना- जो कोई ऐसी सम्पवि को नछपािे में , या व्ययनित
करिे में , या इिर-उिर करिे में स्वेच्छया सिायता करे गा, क्जसके ववषय में वि यि जािता िै या ववश्वास

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

करिे का कारण रखता िै कक वि चुराई िुई संपवि िै , वि दोिों में से, ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

छल के विषय में
धारा-415-छल- जो कोई ककसी व्यक्तत से प्रवंचिा कर उस व्यक्तत को, क्जसे इस प्रकार प्रवंधचत ककया गया
िै , कपटपव
ू क
त या बेईमािी से उत्प्रेररत करता िै कक वि कोई संपवि ककसी व्यक्तत को पररदि कर दे , या यि
सम्मनत दे दे कक कोई व्यक्तत ककसी संपवि को रखे या साशय उस व्यक्तत को, क्जसे इस प्रकार प्रवंधचत ककया गया
िै , उत्प्रेररत करता िै कक वि ऐसा कोई कायत करे , या करिे का लोप करे क्जसे वि यहद इस प्रकार प्रवंधचत ि ककया
गया िोता तो, ि करता, या करिे का लोप ि करता, और क्जस कायत या लोप से उस व्यक्तत को शारीररक,
मािलसक, ख्यानत-संबि
ं ी, या सांपविक िक
ु साि या अपिानि काररत िोती िै , या काररत िोिी संभाव्य िै , वि “छल”
करता िै , यि किा जाता िै ।

स्पष्टीकरण- तथ्यों का बेईमािी से नछपािा इस िारा के अंतगतत प्रवंचिा िै ।

धारा-416- प्रततरुपण द्िारा छल- कोई व्यक्तत “प्रनतरूपण द्वारा छल करता िै ”, यि तब किा जाता िै , जब
वि यि अपदे श करके कक वि कोई अन्य व्यक्तत िै , या एक व्यक्तत को ककसी अन्य व्यक्तत के रुप में जािते िुए
प्रनतस्थावपत करके, या यि व्यपहदष्ट करके कक वि या कोई अन्य व्यक्तत, कोई ऐसा व्यक्तत िै , जो वस्तत
ु : उससे
या अन्य व्यक्तत से लभन्ि िै , छल करता िै ।
स्पष्टीकरण- यि अपराि िो जाता िै चािे वि व्यक्तत क्जसका प्रनतरुपण ककया गया िै , वास्तववक व्यक्तत
िो या काल्पनिक ।

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धारा-417- छल के भलए दं ड- जो कोई छल करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारवास से, क्जसकी
अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-418- इस ज्ञान के साथ छल करना कक उस व्यन्क्त को सदोष िातन िो सकती िै न्जसका हित संरक्षक्षत
रखने के भलए अपराधी आबद्ध िै - जो कोई इस ज्ञाि के साथ छल करे गा कक यि संभाव्य िै कक वि तद्द्वारा उस
व्यक्तत को सदोष िानि पिुाँचाए, क्जसका हित उस संव्यविार में क्जससे वि छल संबधं ित िै , संरक्षक्षत रखिे के ललए
वि या तो ववधि के द्वारा या वैि संववदा द्वारा, आबद्ि था, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारवास से क्जसकी
अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-419- प्रततरूपण द्िारा छल के भलए दं ड- जो कोई प्रनतरुपण द्वारा छल करे गा, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-420-छल करना और संपवि पररदि करने के भलए बेईमानी से उत्प्रेररत करना- जो कोई छल करे गा, या
तद्द्वारा उस व्यक्तत को, क्जसे प्रवंधचत ककया गया िै , बेईमािी से उत्प्रेररत करे गा कक वि कोई संपवि ककसी व्यक्तत
को पररदि कर दे , या ककसी भी मल्
ू यवाि प्रनतभनू त को या ककसी चीज को, जो िस्ताक्षररत या मद्र
ु ांककत िै , और जो
मल्
ू यवाि प्रनतभनू त में संपररवनततत ककये जािे यो‍य िै पण
ू त
त ः या अंशत: रच दे , पररवनततत कर दे , या िष्ट कर दे ,
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
वि जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

कपटपण
ू ा विलेखों और संपाल-व्ययनों के विषय में

धारा 421- लेनदारों में वितरण तनिाररत करने के भलए संपवि का बेईमानी से या कपटपण
ू ा अपसारण या
तछपाना- जो कोई ककसी संपवि का अपिे लेिदारों या ककसी अन्य व्यक्तत के लेिदारों के बीच ववधि के अिस
ु ार
ववतररत ककया जािा तद्द्वारा निवाररत करिे के आशय से, या तद्द्वारा संभाव्यतः निवाररत करे गा यि जािते िुए
उस संपवि को बेईमािी से या कपटपव ू क
त अपसाररत करे गा या नछपायेगा या ककसी व्यक्तत को पररदि करे गा या
पयातप्त प्रनतफल के ब्रबिा ककसी व्यक्तत को अंतररत करे गा या करायेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से
क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 422- ऋण को लेनदारों के भलए उपलब्ध िोने से बेईमानी से या कपटपि


ू क
ा तनिाररत करना- जो कोई
ककसी ऋण का या मांग का, जो स्वयं उसको या ककसी अन्य व्यक्तत को शोध्य िो, अपिे या ऐसे अन्य व्यक्तत के
ऋणों को चुकािे के ललए ववधि के अिस
ु ार उपलब्ि िोिा कपटपव
ू क
त या बेईमािी से निवाररत करे गा, वि दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी या जम
ु ातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया
जाएगा |

धारा 423- अंतरण ऐसे विलेख का, न्जसमें प्रततफल के संबध


ं में भमथ्या कथन अंतविाष्ट िै , बेईमानी से या
कपटपि
ू क
ा तनष्पादन- जो कोई बेईमािी से या कपटपव
ू क
त ककसी ऐसे ववलेख को या ललखखत को िस्ताक्षररत करे गा या
निष्पाहदत करे गा या उसका पक्षकार बिेगा, क्जससे ककसी संपवि का, या उसमें के ककसी हित का अंतररत ककया

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जािा या ककसी भार के अिीि ककया जािा तात्पनयतत िै और क्जसमें ऐसे अंतरण या भार के प्रनतफल से संबधं ित या
उस व्यक्तत या उि व्यक्ततयों से संबधं ित, क्जसके या क्जिके उपयोग या फायदे के ललए उसका प्रवनततत िोिा
वास्तव में आशनयत िै , कोई लमथ्या कथि अंतववतष्ट िै , वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 424- संपवि का बेईमानी से या कपटपि


ू क
ा अपसारण या तछपाया जाना- जो कोई बेईमािी से या
कपटपव
ू क
त अपिी या ककसी अन्य व्यक्तत की ककसी संपवि को नछपायेगा या अपसाररत करे गा, या उसके नछपाये
जािे में या अपसाररत ककए जािे में बेईमािी से या कपटपव
ू क
त सिायता करे गा, या बेईमािी से ककसी ऐसी मांग या
दावे को, क्जसका वि िकदार िै , छोड दे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक
की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

ररन्ष्ट के विषय में

धारा 425- ररन्ष्ट- जो कोई इस आशय से, या यि संभाव्य जािते िुए कक, वि लोक को या ककसी व्यक्तत
को सदोष िानि या िक ु साि काररत करे , ककसी संपवि का िाश या ककसी संपवि में या उसकी क्स्थनत में ऐसी
तब्दीली काररत करता िै , क्जससे उसका मल्
ू य या उपयोधगता िष्ट या कम िो जाती िै या उस पर क्षनत कारक
प्रभाव पड़ता िै , वि ‘ररक्ष्ट' करता िै ।
स्पष्टीकरण 1- ररक्ष्ट अपराि के ललए यि आवश्यक ििीं िै कक अपरािी क्षनतग्रस्त या िष्ट संपवि के
स्वामी को िानि, या िक
ु साि काररत करिे का आशय रखे । यि पयातप्त िै कक उसका यि आशय िै या वि यि
संभाव्य जािता िै कक वि ककसी संपवि को क्षनत करके ककसी व्यक्तत को, चािे वि संपवि उस व्यक्तत की िो या
ििीं सदोष िानि या िक
ु साि काररत करे ।
स्पष्टीकरण 2- ऐसी संपवि पर प्रभाव डालिे वाले कायत द्वारा, जो उस कायत को करिे वाले व्यक्तत की िो,
या संयत
ु त रुप से उस व्यक्तत की और अन्य व्यक्ततयों की िो, ररक्ष्ट की जा सकती िै ।

धारा 426- ररन्ष्ट के भलए दं ड- जो कोई ररक्ष्ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि तीि मास तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 427- ररन्ष्ट न्जससे पचास रुपये का नक


ु सान िोता िै - जो कोई ररक्ष्ट करे गा और तद्द्वारा पचास
रुपये या उससे अधिक ररक्ष्ट की िानि या िक
ु साि काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 428- दस रुपये के मल्


ू य के जीि-जधतु को िध करने या उसे विकलांग करने द्िारा ररन्ष्ट- जो कोई
दस रुपये या उससे अधिक के मल्
ू य के ककसी जीव-जन्तु या जीव-जन्तओ
ु ं को वि करिे, ववष दे िे या ववकलांग
करिे या निरुपयोगी बिािे द्वारा ररक्ष्ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत
तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 429- ककसी मल्


ू य के ढोर आहद की या पचास रुपये के मल्
ू य के ककसी जीि-जधतु को िध करने या

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उसे विकलांग करने द्िारा ररन्ष्ट- जो कोई ककसी िाथी, ऊाँट, घोड़े, खच्चर, भैस, सााँड़, गाय, या बैल को, चािे उसका
कुछ भी मल्
ू य िो, या पचास रुपये या उससे अधिक मल्
ू य के ककसी अन्य जीव-जन्तु को वि करिे ववष दे िे या
ववकलांग करिे या निरुपयोगी बिािे द्वारा ररक्ष्ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 430- भसंचन संकमा को क्षतत करने या जल को दोषपि


ू क
ा मोड़ने द्िारा ररन्ष्ट- जो कोई ककसी ऐसे कायत
के करिे द्वारा ररक्ष्ट करे गा, क्जससे कृवषक प्रयोजिों के ललए, या मािव-प्राखणयों के या उि जीव-जन्तओ
ु ं के, जो
संपवि िै , खािे या पीिे के, या सफाई के या ककसी ववनिमातण को चलािे के जलप्रदाय में कमी काररत िोती िो, या
कमी काररत िोिा वि संभाव्य जािता िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक
की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 431- लोक सड़क, पल ु , नदी या जल- सारणी को क्षतत पिुाँचाकर ररन्ष्ट- जो कोई ककसी ऐसे कायत के
करिे के द्वारा ररक्ष्ट करे गा, क्जससे ककसी लोक सड़क, पल ु , िाव्य िदी या प्राकृनतक या कृब्रत्रम जल सरणी को
यात्रा या संपवि प्रविण के ललए अगम्य या कम निरूप द बिा हदया जाए या बिा हदया जािा वि संभाव्य जािता
िो, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों
से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 432- लोक जल-तनकास में नक


ु सानप्रद जलप्लािन या बाधा काररत करने द्िारा ररन्ष्ट- जो कोई ककसी
ऐसे कायत के करिे द्वारा ररक्ष्ट करे गा, क्जससे ककसी लोक जल-निकास में क्षनतप्रद या िक
ु सािप्रद जलप्लावि या
बािा काररत िो जाए, या िोिा वि संभाव्य जािता िो, वि दोिों मे से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
पााँच वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 433- ककसी दीपगि


ृ या समद्र
ु ी धचधि को नष्ट करने, िटाकर या कम उपयोगी बनाकर ररन्ष्ट- जो कोई
ककसी दीपगि
ृ को या समद्र
ु ी धचन्ि के रुप में उपयोग में आिे वाले अन्य प्रकाश के, या ककसी समद्र
ु ी धचन्ि या बोया
या अन्य चीज के, जो िौकां-चालकों के ललए मागत प्रदशति के ललए रखी गयी िो, िष्ट करिे या, िटािे के द्वारा
अथवा कोई ऐसा कायत करिे द्वारा, क्जससे ऐसा दीपगि
ृ , समद्र
ु ी धचन्ि, बोया या पव
ू ोतत जैसी अन्य चीज िौ-चालकों
के ललए मागत प्रदशतक के रुप में कम उपयोगी बि जाए, ररक्ष्ट करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा

धारा 434- लोक प्राधधकारी द्िारा लगाए गए भभू म-धचधि को नष्ट करने या िटाने आहद द्िारा ररन्ष्ट- जो
कोई लोक-सेवक के प्राधिकार द्वारा लगाए गए ककसी भलू म-धचन्ि को िष्ट करिे या िटािे द्वारा अथवा कोई ऐसा
कायत करिे द्वारा, क्जससे ऐसा भलू म-धचन्ि, ऐसे भलू म धचन्ि के रुप में कम उपयोगी बि जाए, ररक्ष्ट करे गा, वि
दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से,
दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 435- सौ रुपये का या (कृवष-उपज की दशा में) दस रुपये का नक


ु सान काररत करने के आशय से
अन्ग्न या अन्ग्न विस्फोटक पदाथा द्िारा ररन्ष्ट- जो कोई ककसी संपवि को, एक सौ रुपये या उससे अधिक का या

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(जिााँ कक संपवि कृवष-उपज िो, विााँ) दस रुपये या उससे अधिक का िक
ु साि काररत करिे के आशय से, या यि
संभाव्य जािते िुए कक वि तद्द्वारा ऐसा िक ु साि काररत करे गा, अक्‍ि या ककसी ववस्फोटक पदाथत द्वारा ररक्ष्ट
करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

म.प्र. राज्य संशोधन


धारा 435 का अपराि “”सत्र न्यायालय”” द्वारा ववचारणीय ककया गया िै । (अवलोकि करे म.प्र.
अधिनियम सं. 2 वषत 2008, िारा 4 । इसका प्रकाशि म.प्र. राजपत्र (असािारण) में हदिांक 22.2.2008 पेज 157
- 158 पर ककया गया ।)

धारा 436- गि
ृ आहद को नष्ट करने के आशय से अन्ग्न या विस्फोटक पदाथा द्िारा ररन्ष्ट- जो कोई ककसी
ऐसे निमातण का, जो मामल
ू ी तौर पर उपासिा-स्थाि के रुप में या मािव- निवास के रुप में या संपवि की अलभरक्षा
के स्थाि के रुप में उपयोग में आता िो, िाश काररत करिे के आशय से, या यि संभाव्य जािते िुए कक वि
तद्द्वारा उसका िाश काररत करे गा, अक्‍ि या ककसी ववस्फोटक पदाथत के द्वारा ररक्ष्ट करे गा, वि 1[आजीवि
कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 437- तल्लायक्


ु ि या बीस टन बोझ िाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से ररन्ष्ट-
जो कोई ककसी तल्लायत
ु ि जलयाि या बीस टि या उससे अधिक बोझ वाले जलयाि को िष्ट करिे या सापद बिा
दे िे के आशय से, या यि संभाव्य जािते िुए कक वि तद्द्वारा उसे िष्ट करे गा, या सापद बिा दे गा उस जलयाि
की ररक्ष्ट करे गा, वि दोिों में ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 438- धारा 437 में िखणात अन्ग्न या विस्फोटक पदाथा द्िारा की गई ररन्ष्ट के भलए दं ड - जो कोई
अक्‍ि या ककसी ववस्फोटक पदाथत द्वारा ऐसी ररक्ष्ट करे गा या करिे का प्रयत्ि करे गा, जैसी अंनतम पव
ू व
त ती िारा में
वखणतत िै , वि 3[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की
िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत ।


2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत ।

धारा 439 -चोरी आहद करने के आशय से जलयान को साशय भभू म या ककनारे पर चढ़ा दे ने के भलए दं ड-
जो कोई ककसी जलयाि को यि आशय रखते िुए कक वि उसमें अंतववतष्ट ककसी सम्पक्त्त की चोरी करे या बेईमािी
से ऐसी ककसी संपवि का दवु वतनियोग करे , या इस आशय से कक ऐसी चोरी या सम्पवि का दवु वतनियोग ककया जाए,
साशय भलू म पर चढ़ा दे गा या ककिारे से लगा दे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस
वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

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धारा 440 -मत्ृ यु या उपितत काररत करने कक तैयारी के पश्चात ् की गयी ररन्ष्ट- जो कोई ककसी व्यक्तत को
मत्ृ यु या उसे उपिनत या उसका सदोष अवरोि काररत करिे की, अथवा मत्ृ यु का, या उपिनत का, या सदोष अवरोि
का भय काररत करिे की, तैयारी करके ररक्ष्ट करे गा, वि दोिों में से, ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
दस वषत तक की िो सकेगी, से दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

आपराधधक अततचार के विषय में

धारा 441 -आपराधधक अततचार- जो कोई ककसी ऐसी संपवि में या ऐसी संपवि पर, जो ककसी दस
ू रे के
कब्जे में िै , इस आशय से प्रवेश करता िै , कक वि कोई अपराि करे , या ककसी व्यक्तत को, क्जसके कब्जे में ऐसी
संपवि िै , अलभत्रस्त, अपमानित या क्षुब्ि करे ,
अथवा ऐसी संपवि में या ऐसी संपवि पर, ववधिपव
ू क
त प्रवेश करके विााँ ववधिववरुद्ि रुप में इस आशय से
बिा रिता िै कक तद्द्वारा वि ककसी ऐसे व्यक्तत को अलभत्रस्त, अपमानित या क्षुब्ि करे या इस आशय से बिा
रिता िै , कक वि कोई अपराि करे ,
वि “आपराधिक अनतचार” करता िै यि किा जाता िै ।

राज्य संशोधन
उिर प्रदे श- धारा 441 के स्थान पर तनम्न धारा प्रततस्थावपत की जाएगी-
“धारा- 441 -आपराधधक अततचार- जो कोई ऐसी संपवि में या ऐसी संपवि पर, जो ककसी दस
ू रे के कब्जे में
िै , इस आशय से प्रवेश करता िै कक वि कोई अपराि करे या ककसी व्यक्तत को, क्जसके कब्जे में ऐसी संपवि िै ,
अलभत्रस्त, अपमानित या क्षुब्ि करे , अथवा ऐसी संपवि में या संपवि पर, ववधिपव
ू क
त प्रवेश करके विााँ ववधिववरुद्ि
रुप में इस आशय से बिा रिता िै कक तद्द्वारा वि ककसी ऐसे व्यक्तत को अलभत्रस्त, अपमानित या क्षुब्ि करे या
इस आशय से बिा रिता िै कक वि कोई अपराि करे ,
अथवा ऐसी संपवि में या संपवि पर या आपराधिक ववधि (उिरप्रदे श-संशोिि) अधिनियम 1961 के प्रचललत
िोिे के पव
ू त या पश्चात ् ऐसी संपवि का अिधिकृत कब्जा लेिे या उिका अिधिकृत उपयोग करिे के आशय से प्रवेश
कर चुका िै , ऐसी संपवि को वापस करिे या कब्जा छोडिे या उपयोग छोड़िे में असमथत िो जाता िै जबकक उसको
ककसी अन्य व्यक्तत द्वारा ललखखत िोहटस (सच
ू िा) दी गई िै और सच
ू िा में नििातररत नतधथ तक ऐसा करिे के ललए
किा गया िै -
तो वि “”आपराधिक अनतचार”” करता िै , यि किा जाता िै ।
(उिर प्रदे श अधिनियम सं. 31 वषत 1961 द्वारा ककया गया । हदिांक 13-11-1961 से प्रभावी ।)

धारा 442 गि
ृ -अततचार- जो कोई ककसी निमातण, तम्बू या जलयाि में , जो मािव-निवास के रुप में उपयोग
में आता िै या ककसी निमातण में , जो उपासिा के स्थाि के रुप में या ककसी संपवि के अलभरक्षा के स्थाि के रुप में
उपयोग में आता िै , प्रवेश करके या उसमें बिा रिकर, आपराधिक अनतचार करता िै वि ““गि
ृ -अनतचार”” करता िै ,
यि किा जाता िै ।
स्पष्टीकरण- आपराधिक अनतचार करिे वाले व्यक्तत के शरीर के ककसी भाग का प्रवेश गि
ृ -अनतचार गहित
करिे के ललए पयातप्त प्रवेश िै ।

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धारा 443- प्रच्छधन गि
ृ -अततचार- जो कोई यि पव
ू ातविािी बरतिे के पश्चात ् गिृ -अनतचार करता िै कक ऐसे
गि
ृ -अनतचार को ककसी ऐसे व्यक्तत से नछपाया जाए क्जसे उस निमातण, तम्बू या जलयाि में से, जो अनतचार का
ववषय िै अनतचारी को अपवक्जतत करिे या बािर कर दे िे का अधिकार िै वि “प्रच्छन्ि गि
ृ - अनतचार” करता िै यि
किा जाता िै ।

धारा 444- रात्रौ प्रच्छधन गि


ृ -अततचार- जो कोई सय
ू ातस्त के पश्चात ् और सय
ू ोदय के पव
ू त प्रच्छन्ि गि
ृ -
अनतचार करता िै वि “रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार” करता िै , यि किा जाता िै |

धारा 445- गि
ृ -भेदन- जो व्यन्क्त गि
ृ - अनतचार करता िै वि “गि
ृ -भेदि” करता िै , यि किा जाता िै यहद
उस गि
ृ में या उसके ककसी भाग में एतक्स्मि ् पश्चात ् वखणतत छ: तरीकों में से ककसी तरीके से प्रवेश करता िै अथवा
यहद वि उस गि ृ में या उसके ककसी भाग में अपराि करिे के प्रयोजि से िोते िुए, या विााँ अपराि कर चक ु िे पर,
उस गिृ से या उसके गि ृ के ककसी भाग से ऐसे छ: तरीकों में से ककसी तरीके से बािर निकलता िै , अथातत ्: -
पिला- यहद वि ऐसे रस्ते में प्रवेश करता िै या बािर निकलता िै जो स्वंय उसिे या उस गि
ृ अनतचार के
ककसी दष्ु प्रेरक िे वि गि
ृ -अनतचार करिे के ललए बिाया िै ।
दस
ू रा- यहद वि ककसी ऐसे रास्ते से, जो उसे या उस अपराि के दष्ु प्रेरक से लभन्ि ककसी व्यक्तत द्वारा
मािव-प्रवेश के ललए आशनयत ििीं िै , या ककसी ऐसे रास्ते से, क्जस तक की वि ककसी दीवार या निमातण पर सीढ़ी
द्वारा या अन्यथा चढ़कर पिुाँचा िै प्रवेश करता या बािर निकलता िै ।
तीसरा- यहद वि ककसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता िै या बािर निकलता िै क्जसको उसिे या उस गि
ृ -
अनतचार के ककसी दष्ु प्रेरक िे वि गि
ृ -अनतचार करिे के ललए ककसी ऐसे सािि के द्वारा खोला िै , क्जसके द्वारा
उस रास्ते को खोला जािा उस गि
ृ के अधिभोगी द्वारा आशनयत ििीं था ।
चौथा- यहद उस गि
ृ -अनतचार करिे के ललए या गि
ृ -अनतचार के पश्चात ् उस गि
ृ से निकल जािे के ललए वि
ककसी ताले को खोलकर प्रवेश करता िै या बािर निकलता िै ।
पााँचवााँ-यहद वि आपराधिक बल का प्रयोग या िमले या ककसी व्यक्तत पर िमला करिे की िमकी द्वारा
अपिा प्रवेश करता िै या प्रस्थाि करता िै ।
छिााँ-यहद वि ककसी ऐसे रास्ते में प्रवेश करता िै या बािर निकलता िै क्जसके बारे में वि जािता िै कक ऐसे
प्रवेश या प्रस्थाि को रोकिे के ललए बंद ककया िुआ िै और अपिे द्वारा या उस गि
ृ -अनतचार के दष्ु प्रेरक द्वारा
खोला गया िै ।
स्पष्टीकरण- कोई उपगि
ृ या निमातण, जो ककसी गि
ृ के साथ-साथ अधिभोग में िै और क्जसके और ऐसे गि

के बीच आिे-जािे का अव्यवहित भीतरी रास्ता िै इस िारा के अथत के अंतगतत उस गि
ृ का भाग िै ।

धारा 446- रात्रौ गि


ृ -भेदन- जो कोई सय
ू ातस्त के पश्चात ् और सय
ू ोदय के पव
ू त गि
ृ -भेदि करता िै , वि “”रात्रौ
गि
ृ -भेदि”” करता िै , यि किा जाता िै ।

धारा 447- आपराधधक अततचार के भलए दं ड- जो कोई आपराधिक अनतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी
भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, जो पााँच सौ रुपये तक का िो

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सकेगा या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 448- गि
ृ -अततचार के भलए दं ड- जो कोई गि
ृ -अनतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास
से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, जो एक िजार रूपये तक का िो सकेगा, या दोिों से
दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 449 -मत्ृ यु से दं डनीय अपराध को करने के भलए गि


ृ -अततचार- जो कोई मत्ृ यु से दं डिीय कोई अपराि
करिे के ललए गि
ृ -अनतचार करे गा, वि [आजीवि कारावास] से, या कहिि कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत से
1

अधिक की ििीं िोगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 450 -आजीिन कारािास से दं डनीय अपराध को करने के भलए गि


ृ -अततचार- जो कोई [आजीवि
1

कारावास] से दं डिीय कोई आपराि करिे के ललए गि


ृ - अनतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

क्जसकी अवधि दस वषत से अधिक की ििीं िोगी, दं डडत ककया जाएगा और जम


ु ातिे से भी दं डिीय िोगा |

धारा 451- कारािास से दं डनीय अपराध को करने के भलए गि


ृ -अततचार- जो कोई कारावास से दं डिीय-कोई
अपराि करिे के ललए गि
ृ - अनतचार करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक
की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा तथा यहद वि अपराि, क्जसका ककया जािा
आशनयत िो, चोरी िो, तो कारावास की अवधि सात वषत तक की िो सकेगी ।

धारा 452- उपितत, िमला या सदोष अिरोध की तैयारी के पश्चात ् गि


ृ - अततचार- जो कोई ककसी व्यक्तत
की उपिनत काररत करिे की या ककसी व्यक्तत पर िमला करिे की या ककसी व्यक्तत का सदोष अवरोि करिे की
अथवा ककसी व्यक्तत को उपिनत के, या िमले के या सदोष अवरोि के भय में डालिे की तैयारी करके गि
ृ -अनतचार
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के करावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 453- प्रच्छधन गि


ृ -अततचार या गि
ृ -भेदन के भलए दं ड - जो कोई प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या गि
ृ -भेदि
करे गा वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा
और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 454- कारािास से दं डनीय अपराध करने के भलए प्रच्छधन गि


ृ - अततचार या गि
ृ - भेदन- जो कोई
कारावास से दं डिीय अपराि करिे के ललए प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या गि
ृ -भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा,
तथा यहद वि अपराि क्जसका ककया जािा आशनयत िै , चोरी िो, तो कारावास की अवधि दस वषत तक की िो
सकेगी ।

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धारा 455- उपितत, िमले या सदोष अिरोध की तैयारी के पश्चात ् प्रच्छधन गि
ृ -अततचार या गि
ृ -भेदन- जो
कोई ककसी व्यक्तत को उपिनत काररत करिे की या ककसी व्यक्तत पर िमला करिे की या ककसी व्यक्तत का सदोष
अवरोि करिे की अथवा ककसी व्यक्तत की उपिनत के, या िमले के, या सदोष अवरोि करिे के भय में डालिे की
तैयारी करके, प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या गि
ृ -भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि
दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 456- रात्रौ प्रच्छधन गि


ृ -अततचार या रात्रौ गि
ृ -भेदन के भलए दं ड- जो कोई रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ - अनतचार
या रात्रौ गि
ृ -भेदि करे गा वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी,
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 457- कारािास से दं डनीय अपराध करने के भलए रात्रौ प्रच्छधन गि


ृ -अततचार या रात्री गि
ृ -भेदन- जो
कोई कारावास से दं डिीय कोई अपराि करिे के ललए रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौं गि
ृ -भेदि करे गा, वि दोिों
में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से
भी दं डिीय िोगा, तथा यहद वि अपराि क्जसका ककया जािा आशनयत िो, चोरी िो, तो कारावास की अवधि चौदि
वषत तक की िो सकेगी |

राज्य संशोधन
उिरप्रदे श- िारा 457 को उसकी उपिारा (1) के रुप में पि
ु : संख्यांककत ककया जाए और इस प्रकार
पि
ु ःसंख्यांककत उपिारा (1) के पश्चात ् निम्िललखखत उपिारा जोड़ी, अथातत ्:-
“(2) जो कोई ककसी इमारत में जो पज
ू ा स्थल के रुप में उपयोग की जाती िै । ऐसी इमारत से कोई मनू तत
या प्रनतमा चुरािे का अपराि करिे के ललए रात्रौ गि
ृ प्रच्छन्ि आनतचार या रात्रौ गि
ृ -भेदि करता िै , वि उपिारा
(1) में ककसी बात के िोते िुए भी किोर कारावास से, जो 3 वषत से कम ििीं िोगा, ककं तु क्जसकी अवधि 14 वषत
तक की िो सकेगी और जम ु ातिे से, जो पांच िजार रुपए से कम का ििीं िोगा, दक्ण्डत ककया जाएगा |
परं तु यि कक पयातप्त और ववशेष कारणों से क्जिका उल्लेख निणतय मेँ ककया जाएगा । न्यायालय 3 वषत से
कम कारावास का दण्डादे श अधिरोवपत कर सकेगा।“
[दे खें उिरप्रदे श अधिनियम संख्यांक 24 सि ् 1995 िारा 11]

धारा 458- उपितत, िमला या सदोष अिरोध की तैयारी के पश्चात ् रात्रौ प्रच्छधन गि
ृ -अततचार या रात्रौ गि
ृ -भेदन-
जो कोई ककसी व्यक्तत की उपिनत काररत करिे की या ककसी व्यक्तत पर िमला करिे की या ककसी व्यक्तत का
सदोष अवरोि करिे की अथवा ककसी व्यक्तत को उपिनत के, या िमला के, या सदोष अवरोि में भय में डालिे की
तैयारी करके रात्रौ प्रच्छन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौ गिृ -भेदि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से
क्जसकी अवधि चौदि वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 459- प्रच्छधन गि


ृ - अततचार या गि
ृ -भेदन करते समय घोर उपितत काररत िो- जो कोई प्रच्छन्ि गि
ृ -
अनतचार या गि
ृ -भेदि करते समय ककसी व्यक्तत को घोर उपिनत काररत करे गा या ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु या घोर
उपिनत काररत करिे का प्रयत्ि करे गा वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,

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क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 460- रात्रौ प्रच्छधन गि


ृ -अततचार या रात्रौ गि
ृ -भेदन में संयक्
ु तत: सम्प्रक्त समस्त व्यन्क्त दं डनीय िैं,
जबकक उनमें से एक द्िारा मत्ृ यु या घोर उपितत काररत की िो- यहद रात्रौ प्रच्नन्ि गि
ृ -अनतचार या रात्रौ गि
ृ -भेदि
करते समय ऐसे अपराि का दोषी कोई व्यक्तत-स्वेच्छया से ककसी व्यक्तत की मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत करे गा
या मत्ृ यु या घोर उपिनत काररत करिे का प्रयत्ि करे गा, तो ऐसे रात्रौ प्रच्छन्ि गिृ -अनतचार या रात्रौ गि
ृ -भेदि करिे
में संयत
ु तत: सम्प्रतत िर व्यक्तत,
1
[आजीवि कारावास] से,या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 461 -ऐसे पात्र को न्जसमें संपवि िै , बेईमानी से तोड़कर खोलना- जो कोई ऐसे बंद पात्र को, क्जसमें
संपवि िो या क्जसमें संपवि िोिे का उसे ववश्वास िो, बेईमािी से या ररक्ष्ट करिे के आशय से तोड़कर खोलेगा या
उद्बंधित करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे
से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 462 -उसी अपराध के भलए दं ड, जबकक िि ऐसे व्यन्क्त द्िारा ककया गया िै न्जसे अभभरक्षा धयस्त की
गई िै - जो कोई ऐसा बंद पात्र, क्जसमें संपवि िो या क्जसमें संपवि िोिे का उसे ववश्वास िो, अपिे पास न्यस्त ककए

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

जािे पर उसको खोलिे का प्राधिकार ि रखते िुए, बेईमािी से या ररक्ष्ट करिे के आशय से, उस पात्र को तोड़कर
खोलेगा या उद्बंधित करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो
सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

अध्याय 18
दस्तािेजों और संपवि 1[***] धचधिों संबध
ं ी
अपराधों के विषय में

धारा 463- कूटरचना- 3[जो कोई ककसी लमथ्या दस्तावेज या लमथ्या इलेतरानिक अलभलेख अथवा दस्तावेज
या इलेतरानिक अलभलेख के ककसी भाग को इस आशय से रचता िै ] कक लोक को या ककसी व्यक्तत को िक
ु साि या
क्षनत काररत की जाए, या ककसी दावे या ककसी िक का समथति ककया जाए, या यि काररत ककया जाए कक कोई
व्यक्तत, संपवि अलग करे या कोई अलभव्यतत या वववक्षक्षत संववदा करे या इस आशय से रचता िै कक कपट करे ,
या कपट ककया जा सके, वि कूट-रचिा करता िै ।

धारा 464- भमथ्या दस्तािेज रचना- 3


[उस व्यक्तत के बारे में यि किा जाता िै कक वि व्यक्तत लमथ्या
दस्तावेज या लमथ्या इलेतरानिक अलभलेख रचता िै ।
पिला - जो बेईमािी से या कपटपव
ू क
त इस आशय से-
(क) ककसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रधचत, िस्ताक्षररत, मद्र
ु ांककत या निष्पाहदत करता िै ; (ख)

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ककसी इलेतरानिक अलभलेख को या इलेतरानिक अलभलेख के भाग को रधचत या सम्प्रेवषत करता िै ;
(ग) ककसी इलेतरनिक अलभलेख पर कोई 5[इलेतरानिक धचंहृक] करता िै ;

1. 1958 के अधिनियम सं. 43 के द्वारा शब्दों “व्यापार या” का लोप| हदिांक 25.11.1959 से
प्रनतस्थावपत|
2. 2000 के अधिनियम सा. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |
3. अधिनियम, क्रमांक 10 सि ् 2009 द्वारा “अंकीय धचहृक” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत | 27-10-2009 से
प्रभावी |

(घ) ककसी दस्तावेज का निष्पादि या 1[इलेतरानिक धचंहृक] की प्रमाखणकता द्योति करिे वाला कोई धचन्ि
लगाता िै , कक वि ववश्वास क्तया जाए कक ऐसी दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इलेतरानिक अलभलेख या
[इलेतरानिक धचहृक] की रचिा, िस्ताक्षरण, मद्र
1
ु ाकि, निष्पादि, सम्प्रेषण या संयोजि ऐसे व्यक्तत द्वारा या ऐसे
व्यक्तत के प्राधिकार द्वारा ककया गया था । क्जसके द्वारा या क्जसके प्राधिकार द्वारा उसकी रचिा, िस्ताक्षरण,
मद्र
ु ांक या निष्पादि, सम्प्रेषण या संयोजि ि िोिे की बात वि जािता िै ; अथवा

दस
ू रा- जो ककसी दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख के ककसी ताक्त्वक भाग में पररवतति, उसके द्वारा या
ककसी अन्य व्यक्तत द्वारा, चािे ऐसा व्यक्तत ऐसे पररवतति के समय जीववत िो या ििीं, उस दस्तावेज या
इलेतरानिक अलभलेख के रधचत, निष्पाहदत या 1[इलेतरानिक धचहृक] से संयोक्जत ककये जािे के पश्चात ् उसे रद्द
करिे द्वारा या अन्यथा, ववधिपव
ू क
त प्राधिकार के ब्रबिा बेईमािी से या कपटपव
ू क
त करता िै ; अथवा

तीसरा- जो ककसी व्यक्तत द्वारा, यि जािते िुए कक ऐसा व्यक्तत दस्तावेज या इलेकरोनिक अलभलेख की
ववषयवस्तु को पररवतति के रुप को, धचिववकृत या मिता की िालत में िोिे के कारण जाि ििीं सकता या उस
प्रवंचिा के कारण, जो उससे की गई िै , जािता ििीं िै , उस दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख को बेईमािी से, या
कपटपव
ू क
त िस्ताक्षररत मद्र
ु ांक्तत, निष्पाहदत या पररवनततत क्तया जािा या इलेतरनिक अलभलेख पर अपिे
[इलेतरानिक धचहृक] ककया जािा कररत करता िै ;]
1

1. अधिनियम, क्रमांक 10 सि ् 2009 द्वारा ““अंकीय धचंहृक”” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत | 27-10-2009 से


प्रभावी|

स्पष्टीकरण 1 - ककसी व्यक्तत का स्वयं अपिे िाम का िस्ताक्षर करिा कूटरचिा की कोहट में आ सकेगा ।
स्पष्टीकरण 2 - कोई लमथ्या दस्तावेज ककसी कक्ल्पत व्यक्तत के िाम से इस आशय से रचिा कक यि
ववश्वास कर ललया जाए कक वि दस्तावेज एक वास्तववक व्यक्तत द्वारा रची गयी थी या ककसी मत
ृ व्यक्तत के िाम
से इस आशय से रचिा कक यि ववश्वास कर ललया जाए कक वि दस्तावेज उस व्यक्तत द्वारा उसके जीवि-काल में
रची गयी थी, कूटरचिा की कोहट में आ सकेगा ।
1
[स्पष्टीकरण 3 -- इस िारा के प्रयोजिों के ललए 2[इलेतरानिक धचंहृक] करिा अलभव्यक्तत का विी अथत
िोगा जो उसे सच
ू िा प्रौद्योधगकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की िारा 2 की उपिारा (1) के खंड (घ) में
समिद
ु े लशत िै ।

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1. 2000 के अधिनियम सं. 21 की िारा 1 तथा अिस
ु च
ू ी I द्वारा (17-10-2000 से) अंतः स्थावपत|
2. सि ् 2009 के अधिनियम सं. 10 द्वारा “अंकीय धचन्िक” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत | 27-10-2009 से
प्रभावी |

धारा 465- कूटरचना के भलए दं ड- जो कोई कूटरचिा करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जम
ु ातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 466- धयायालय के अभभलेख की या लोक रन्जस्टर आहद की कूटरचना- 1[जो कोई ऐसी दस्तावेज या
इलेतरानिक अलभलेख की], क्जसका ककसी न्यायालय का या न्यायालय में अलभलेख या कायतवािी िोिा या जन्म,
बाक्प्तसमा, वववाि या अन्त्येक्ष्ट का रक्जस्टर, या लोक-सेवक द्वारा लोक-सेवक के िाते रखा गया रक्जस्टर िोिा
तात्पनयतत िो अथवा ककसी प्रमाण पत्र की या ऐसी दस्तावेज की, क्जसके बारे में यि तात्पनयतत िो कक वि ककसी
लोक-सेवक द्वारा उसकी पदीय िै लसयत में रची गई िै , या जो ककसी वाद में संस्वीकृत कर लेिे का प्राधिकार िो या
कोई मख्
ु तारिामा िो, कूटरचिा करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक
की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा 1
1
[स्पष्टीकरण- इस िारा के प्रयोजि के ललए “रक्जस्टर” में कोई सच
ू ी आंकड़ा या ककसी प्रववक्ष्ट का अलभलेख
शालमल िै , जो इलेतरानिक रूप में रखा गया िै , जैसा कक सच
ू िा प्रौद्योधगकी अधिनियम 2000 की िारा 2 की उप-
िारा (1) के खंड (द) में पररभावषत िै ।]
राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 466 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया
िै । ( दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत । 17.10.2000 से प्रभावी ।


धारा 467- मल्
ू यिान प्रततभतू त, विल इत्याहद की कूटरचना – जो कोई ककसी ऐसे दस्तावेज की, क्जसका कोई
मल्
ू यवाि प्रनतभनू त या ववल या पत्र
ु के दिकग्रिण का प्राधिकार िोिा तात्पनयतत िो, अथवा क्जसका ककसी मल्
ू यवाि
प्रनतभनू त की रचिा या अंतरण का, या उस पर के मल
ू िि, ब्याज या लाभांश को प्राप्त करिे का, या ककसी िि,
जंगम संपवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त को प्राप्त करिे या पररदि करिे का प्राधिकार िोिा तात्पनयतत िो, अथवा ककसी
दस्तावेज को, क्जसका िि हदये जािे की अलभस्वीकृनत करिे वाला निस्तारणपत्र या रसीद िोिा, या ककसी जंगम
संपवि या मल्
ू यवाि प्रनतभनू त के पररदाि के ललए निस्तारणपत्र या रसीद िोिा तात्पनयतत िो, कूट रचिा करे गा, वि
[आजीवि कारावास] से, या दोिो में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,
1

दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दक्ण्डत िोगा |

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 466 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै । (
दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा 468 -छल के प्रयोजन से कूटरचना- जो कोई कूटरचिा इस आशय से करे गा कक 1[वि दस्तावेज या
इलेतरानिक अलभलेख, क्जसकी कूटरचिा की जाती िै ], छल के प्रयोजि से उपयोग में लायी जाएगी, वि दोिो में से
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ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी
दं डिीय िोगा ।

राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव.की िारा 468 के अंतगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै |(दे ख-े
दं ड प्रकक्रया संहिता(म.प्र.संसोिि) अधिनियम,2007 (म.प्र.अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा 469- ख्यातत को अपिातन पिुचानें के आशय से कूटरचना -1[जो कोई कूटरचिा इस आशय से करे गा
कक वि दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] क्जसकी कूटरचिा की जाती िै ,ककसी पक्षकार की ख्यानत की अपिानि
करे गी,या यि संभाव्य जािते िुए कक इस प्रयोजि से उसका उपयोग ककया जाये,

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | 17.10.2000 से प्रभावी |

वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, और जुमातिे से भी दं डिीय
िोगा ।

धारा 470- कूटरधचत [दस्तािेज या इलेक्रातनक अभभलेख] - वि लमथ्या


1 1
[दस्तावेज या इलेतरानिक
अलभलेख], जो पण
ू त
त : या भागत: कूटरचिा द्वारा रची गयी िै , कूटरधचत 1
[दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख
किलाती िै |

धारा 471- कूटरधचत 1[दस्तािेज या इलेक्रातनक अभभलेख] का असली के रूप में उपयोग लाना - जो कोई
ककसी ऐसी 1[दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] को, क्जसके बारे में वि यि जािता या ववश्वास का कारण रखता िै
कक वि कूटरधचत 1[दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] िै , कपटपव
ू क
त या बेईमािी से असली के रुप में उपयोग में
लाएगा, वि उसी प्रकर दं डडत ककया जाएगा मािो उसिे ऐसी 1[दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] की कूटरचिा की
िो ।

राज्य संशोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 471 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै
|(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र.अधिनियम सं.2 वषत 2008)

1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

इस आशय से ककसी ऐसी मद्र


ु ा, प्टी या अन्य उपकरण को उसे कूटकृत जािते िुए अपिे कब्जे में रखेगा
वि [आजीवि कारावास] से या दोिो में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
1

सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जम


ु ातिे से भी दं डिीय िोगा |

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राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 472 के अंतगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै |
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि), 2007(म.प्र. अधिनियम सं.2 वषत 2008)

धारा 473- अधयथा दं डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकृत मद्र


ु ा आहद का बनाना या कब्जे में रखना-
जो कोई ककसी मद्र
ु ा, प्टी या छाप लगािे के अन्य उपकरण को उस आशय से बिाएगा या उसकी कूटकृनत करे गा
कक उसे कोई ऐसी कूटरचिा करिे के प्रयोजि के ललए उपयोग में लाया जाए जो िारा 467 से लभन्ि इस अध्याय
की िारा के अिीि दडिीय िै या इस आशय से ककसी ऐसी मद्र
ु ा, प्टी या अन्य उपकरण को उसे कूटकृत जािते
िुए अपिे कब्जे में रखेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी
दं डडत ककया जाएगा और जम ु ातिे से भी दं डिीय िोगा |

राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 472 के अंतगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै |
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि), 2007(म.प्र. अधिनियम सं.2 वषत 2008)

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

धारा 474- धारा 466 या 467 में िखणात दस्तािेज को, उसे कूटरधचत जानते िुए और उसे असली के रुप में
उपयोग में लाने का आशय रखते िुए कब्जे में रखना- 1[जो कोई ककसी दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख को, उसे
कूटरधचत जािते िुए और यि आशय रखते िुए कक वि कपटपव ू क
त या बेईमािी से असली के रूप मे उपयोग में लाई
जाएगी, अपिे कब्जे में रखेगा ' यहद वि दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख इस संहिता की िारा 466 में वखणतत
भांनत का िो], तो वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से,क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी,दं डडत
ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ,तथा यहद वि दस्तावेज िारा 467 में वखणतत भांनत की िो, तो वि
[आजीवि कारावास]से, या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी,
2

दक्ण्डत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा |

राज्य संसोधन

मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 474 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै |
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007( म.प्र. अधिनियम सं.2 वषत 2008)

धारा 475- धारा 467 में िखणात दस्तािेजों के अधधप्रमाणीकरण के भलए उपयोग में लायी जाने िाली
अभभलक्षणा या धचधि की कूटकृतत बनाना या कूटकृत धचधियक्
ु त पदाथा को कब्जे में रखना- जो कोई ककसी पदाथत के
ऊपर या उसके उपादाि में , ककसी ऐसी अलभलक्षणा या धचन्िों को, क्जसे इस संहिता की िारा 467 में वखणतत ककसी
दस्तावेज के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजि के ललए उपयोग

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1. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

में लाया जाता िो, कूटकृनत यि आशय रखते िुए बिाएगा कक ऐसी अलभलक्षणा या ऐसे धचन्ि,ऐसे पदाथत पर उस
समय कूटरधचत की जा रिी िो या उसके पश्चात ् कूटरधचत की जािे की ककसी दस्तावेज को अधिप्रमाणीकृत का
आभास प्रदाि करिे के प्रयोजि से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से, कोई ऐसा पदाथत अपिे कब्जे में
रखेगा, क्जस पर या क्जसके उपादाि मे ऐसी अलभलक्षणा को या ऐसे धचन्ि की कूटकृनत बिायी गयी िो, वि
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
1

सकेगी,दक्ण्डत ककया जाएगा और जम


ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संसोधन

मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 475 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै । (
दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम, 2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा 476- धारा 467 मेँ िखणात दस्तािेजों से भभधन दस्तािेजों के अधधप्रमाणीकरण के भलए उपयोग में
लायी जाने िाली अभभलक्षणा या धचधि को कूटकृतत बनाना या कूटकृत धचधियक्
ु त पदाथा को कब्जे में रखना- जो
कोई ककसी पदाथत के ऊपर, या उसके उपादाि में , ककसी अलभलक्षणा या धचन्ि को, क्जसे इस संहिता की िारा 467
में वखणतत दस्तावेजों से लभन्ि 3[ककसी दस्तावेज या इलेतरानिक अलभलेख] के अलभप्रमाणीकरण के प्रयोजि के ललए
उपयोग में लाया जाता िो, कूटकृनत यि आशय रखते िुए बिाएगा कक वि ऐसी अलभलक्षणा या ऐसे धचन्ि को, ऐसे
पदाथत पर उस समय कूटरधचत की जा रिी िो या उसके पश्चात ् कूटरधचत की जािे वाली 3[ककसी दस्तावेज या

1. 1950 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 17.10.2000 से प्रभावी |

इलेतरानिक अलभलेख] को अधिप्रमाणीकृत का आभास प्रदाि करिे के प्रयोजि से उपयोग में लाया जाएगा या जो
ऐसे आशय से कोई ऐसे पदाथत अपिे कब्जे में रखेगा क्जस पर या क्जसके उपादाि में ऐसी अलभलक्षणा या ऐसे
धचन्ि की कूटकृनत बिाई गयी िो,वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो
सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 476 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै |
(दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता म.प्र. संशोिि) अधिनियम,2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

धारा 477 -विल, दिक ग्रिण प्राधधकारपत्र या मल्


ू यिान प्रततभतू त को कपटपि
ू क
ा रद्ध, नष्ट आहद करना- जो
कोई कपटपव
ू क
त या बेईमािी से, या लोक को या ककसी व्यक्तत को िक
ु साि या क्षनत काररत करिे के आशय से,
ककसी ऐसी दस्तावेज को जो ववल या पत्र
ु के दिकग्रिण करिे का प्राधिकारपत्र या कोई मल्
ू यवाि प्रनतभनू त िो, या

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िोिा तात्पनयतत िो, रद्द, िष्ट या ववरुवपत करिे का प्रयत्ि करे गा, या नछपायेगा या नछपािे का प्रयत्ि करे गा या
ऐसी दस्तावेज के ववषय पर ररक्ष्ट करे गा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से,
क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दक्ण्डत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 477 के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै । (
दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता म.प्र. सशोिि) अधिनियम ,2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

[477क लेखा का भमथ्याकरण- जो कोई, ललवपक, ऑकफसर या सेवक िोते िुए, या ललवपक, ऑकफसर या
1

सेवक के िाते नियोक्जत िोते िुए या कायत करते िुए,ककसी ऐसी 2[पस्
ु तक, इलेतरानिक अलभलेख, कागज, लेख]
मल्
ू यवाि प्रनतभनू त या लेखा को, जो उसके नियोजक का िो या उसके नियोजक के कब्जे में िो, या क्जसे उसके
नियोजक के ललए या उसकी ओर से प्राप्त ककया िो, जािबझ
ू कर और कपट करिे के आशय से िष्ट,
पररवनततत,ववकृत या लमथ्याकृत करे गा अथवा ककसी ऐसी 2[पस्
ु तक, इलेतरानिक अलभलेख, कागज, लेख], मल्
ू यवाि
प्रनतभनू त या लेखा में जािबझ
ू कर और कपट करिे के आशय से कोई लमथ्या प्रववक्ष्ट करे गा या करिे के ललए
दष्ु प्रेरण करे गा, या उसमें से या उसमें ककसी ताक्त्वक ववलशष्ट का लोप या पररवतति करे गा या करिे का दष्ु प्रेरण
करे गा, वि दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या
दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- इस िारा के अिीि ककसी आरोप में ककसी ववलशष्ट व्यक्तत का, क्जससे कपट करिा आशनयत
था,िाम बताए ब्रबिा या ककसी ववलशष्ट ििरालश का क्जसके ववषय में कपट ककया जािा आशनयत था या ककसी
ववलशष्ट हदि का, क्जस हदि अपराि ककया गया था ववनिदे श ककए ब्रबिा, कपट करिे के सािारण आशय का
अलभकथि पयातप्त िोगा ।]

राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 477क के अन्तगतत अपराि सत्र न्यायालय द्वारा ववचारयो‍य ककया गया िै ।
( दे खें-दं ड प्रकक्रया संहिता (म.प्र. संशोिि) अधिनियम-2007 (म.प्र. अधिनियम सं. 2 वषत 2008)

1. 1895 के अधिनियम सं. 3 के द्वारा जोड़ा गया |


2. 2000 के अधिनियम सं. 21 के द्वारा (17.10.2000 से) प्रनतस्थावपत |

1[संपवि 2[***] धचधिों और अधय धचधिों के विषय में


धारा 478- (.........) व्यापार और पण्य धचन्ि अधिनियम, 1958(1958 का 43) द्वारा निरलसत ।
(उतत संशोिि हदिांक 25-11-1959 से प्रभावी ।

धारा 479- संपवि धचधि- वि धचन्ि जो यि द्योति करिे के ललए उपयोग में लाया जाता िै कक जंगम
संपवि ककसी ववलशष्ट व्यक्तत की िै , संपवि धचन्ि किा जाता िै ।

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धारा 480- भमथ्या व्यापार धचधि का प्रयोग ककया जाना- (...........) व्यापार और पण्य धचन्ि अधिनियम,
1958(1958 का 43) द्वारा निरलसत । हदिांक 25-11-1959 से प्रभावी ।

धारा 481- भमथ्या संपवि-धचधि को उपयोग में लाना- जो कोई ककसी जंगम संपवि या माल को या ककसी
पेटी, पैकेज, या अन्य पात्र को, क्जसमें जंगम सम्पवि या माल रखा िै , ऐसी रीनत से धचक्न्ित करता िै या ककसी
पेटी, पैकेज या अन्य पात्र को, क्जस पर कोई धचन्ि िै , ऐसी रीनत से उपयोग में लाता िै , जो इसललए यक्ु ततयत
ु त
रूप से प्रकक्ल्पत िै कक उससे यि ववश्वास काररत िो जाए कक इस प्रकार धचक्न्ित सपवि या माल या इस प्रकार
धचक्न्ित ककसी ऐसे पात्र में रखी िुई कोई संपवि या माल, ऐसे व्यक्तत का िै क्जसका वि ििीं िै , लमथ्या संपवि-
धचन्ि का उपयोग करता िै यि किा जाता िै ।

1. 1889 के अधिनियम सं. 4 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1958 के अधिनियम सं. 43 के द्वारा शब्दों “व्यापार धचन्ि” का लोप | इस संशोिि को हदिांक
25.11.1959 से प्रभावी |

धारा 482- भमथ्या संपवि-धचधि का उपयोग करने के भलए दं ड- जो कोई 1[***] ककसी लमथ्या संपवि-धचन्ि
का उपयोग करे गा, जब तक कक वि यि साब्रबत ि कर दे कक उसिे कपट करिे के आशय के ब्रबिा कायत ककया िै
वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से
दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 483- अधय व्यन्क्त द्िारा उपयोग में लाए गए संपवि धचधि का कूटकरण- जो कोई ककसी [***]
3

सम्पवि धचन्ि का, जो ककसी अन्य व्यक्तत द्वारा उपयोग में लाया जाता िो, कूटकरण करे गा, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 484- लोक-सेिक द्िारा उपयोग मे लाए गए धचधि का कूटकरण- जो कोई ककसी संपवि धचन्ि का, जो
लोक-सेवक द्वारा उपयोग में लाया जाता िो, या ककसी ऐसे धचन्ि का, जो लोक-सेवक द्वारा यि द्योति करिे के
ललए उपयोग में लाया जाता िो कक कोई सपवि ककसी ववलशष्ट व्यक्तत द्वारा या ककसी ववलशष्ट समय या स्थाि पर
ववनिलमतत की गयी िै , या यि कक वि संपवि ककसी ववलशष्ट तवाललटी की िै या ककसी ववलशष्ट कायातलय में से पाररत
िो चक
ु ी िै या यि कक वि ककसी छूट की िकदार िै , कूटकरण करे गा, या ककसी ऐसे धचन्ि को उसे कूटकृत जािते
िुए असली के रूप में उपयोग में लाएगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक
की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

5
[धारा- 485-सम्पवि धचधि के कूटकरण के भलए कोई उपकरण बनाना या उस पर कब्जा- जो कोई संपवि
धचन्ि के कूटकरण के प्रयोजि से कोई डाई, प्टी या अन्य उपकरण बिाएगा या अपिे कब्जे मेँ रखेगा, अथवा यि

1. 1958 के अधिनियम सं. 43 के द्वारा शब्दों “ककसी लमथ्या व्यापार धचन्ि” का लोप | 25.11.1959 से

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प्रभावी |
2. 1958 के अधिनियम सं. 43 के द्वारा शब्दों “व्यापार धचन्ि” का लोप | इस संशोिि को हदिांक
25.11.1959 से प्रभावी |
3. 1958 के अधिनियम सं. 43 के प्रनतस्थावपत | हदिांक 25.11.1959 से प्रभावी |

द्योति करिे के प्रयोजि से कक कोई माल ऐसे व्यक्तत का िै क्जसका वि ििीं िै ककसी संपवि धचन्ि को अपिे
कब्जे में रखेगा, वि दोिों .में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे
से या दोिों से दं डडत ककया जाएगा |]

धारा 486- कूटकृत संपवि धचधि से धचन्धित माल का विक्रय- 1[जो कोई ककसी माल या चीजों को स्वयं उि
पर या ककसी पेटी, पैकेज जा अन्य पात्र पर, क्जसमें ऐसा माल रखा िो कोई कूटकृत संपवि धचन्ि लगा िुआ या
छपा िुआ बेचेगा या बेचिे के ललए अलभदलशतत करे गा या अपिे कब्जे में रखेगा ] जब तक कक वि यि साब्रबत ि
कर दे कक-

(क) इस िारा के ववरुद्ि अपराि ि करिे को सब यक्ु ततयत


ु त पव
ू ातविािी बरतते िुए, धचन्ि के असलीपि
के संबि
ं में संदेि करिे के ललए उसके पास कोई कारण अलभकधथत अपराि करते समय ििीं था तथा

(ख) अलभयोजक द्वारा या उसकी ओर से मााँग ककए जािे पर, उसिे उि व्यक्ततयों के ववषय में , क्जससे
उसिे ऐसा माल या चीजें अलभप्राप्त की थी, वि सब जािकारी दे दी थी,जो उसकी शक्तत में थी, अथवा

(ग) अन्यथा उसिे निदोवषतापव


ू क
त कायत ककया था, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि एक वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 487 -ककसी ऐसे पात्र के ऊपर भमथ्या धचधि बनाना न्जसमें माल रखा िै - जो कोई ककसी पेटी, पैकेज
या अन्य पात्र के ऊपर, क्जसमें माल रखा िुआ िो ऐसी रीनत से कोई ऐसा लमथ्या धचन्ि बिाएगा, जो इसललए
यक्ु ततयत
ु त रूप से प्रकक्ल्पत िै कक उससे ककसी लोक-सेवक को या ककसी अन्य व्यक्तत को यि ववश्वास काररत िो
जाए

1. 1958 के अधिनियम सं. 43 के प्रनतस्थावपत | 25.11.1959 से प्रभावी |

कक ऐसे पात्र में ऐसा माल िै , जो उसिे ििीं िै या यि कक उसमे ऐसा माल ििीं िै जो उसमें िै या यि कक ऐसे
पात्र में रखा िुआ माल ऐसी प्रकृनत या तवाललटी का िै , जो उसकी वास्तववक प्रकृनत या तवाललटी से लभन्ि िै िै ,
जब तक कक वि यि साब्रबत ि कर दे कक उसिे वि कायत कपट करिे के आशय के ब्रबिा ककया िै , वि दोिों में से
ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया
जाएगा ।

धारा 488- ककसी ऐसे भमथ्या धचधि को उपयोग में लाने के भलए दं ड- जो कोई अंनतम पव
ू ग
त ामी िारा द्वारा
प्रनतवषद्ि ककसी प्रकार से ककसी ऐसे लमथ्या धचन्ि का उपयोग करे गा, जब तक कक वि यि साब्रबत ि कर दे कक
उसिे वि कायत कपट करिे के आशय के ब्रबिा ककया िै वि उसी प्रकार दं डडत ककया जायेगा, मािो कक उसिे उस

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िारा के ववरुद्ि अपराि ककया िो ।

धारा 489- क्षतत काररत करने के आशय से संपवि धचधि को ब्रबगाड़ना- जो कोई ककसी संपवि धचन्ि को, यि
आशय रखते िुए, या यि संभाव्य जािते िुए कक वि तद्द्वारा ककसी व्यक्तत को क्षनत करे , ककसी संपवि धचन्ि को
अपसाररत करे गा, िष्ट करे गा, ववरूवपत करे गा या उसमें कुछ जोड़ेगा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास
से क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से, या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा ।

करें सी नोटों और बैंक नोटों के विषय में

धारा 489-क-करें सी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरण- जो कोई ककसी करें सी िोट या बैंक िोट का कूटकरण
करे गा, या जािते िुए करें सी िोट या बैंक िोट के कूटकरण की प्रकक्रया के ककसी भाग को संपाहदत करे गा, वि
1
[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,
दं डडत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी दं डिीय िोगा ।

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

स्पष्टीकरण- इस िारा के और िारा 489-ख, 1[489 -ग, 489-घ, और 489 – ङ] के प्रयोजि के ललए “बैंक
िोट” पद से उसके वािक की मााँग पर िि दे िे के ललए ऐसा वचिपत्र या वचि-बंि अलभप्रेत िै , जो संसार के ककसी
भी भाग में बैंककारी करिे वाले ककसी व्यक्तत द्वारा प्रचाललत ककया गया िो या ककसी राज्य या संपण
ू त प्रभत्ु वसंपन्ि
शक्तत द्वारा या उसके प्राधिकार के अिीि प्रचाललत ककया गया िो, और जो िि के समतल्
ु य या स्थािापन्ि के रूप
में उपयोग में लाए जािे के ललए आशनयत िो |

धारा 489-ख-कूटरधचत या कूटकृत करें सी नोटों या बैंक नोटों को असली के रुप में उपयोग में लाना- जो
कोई ककसी कूटरधचत या कूटकृत करें सी िोट या बैंक िोट को, यि जािते िुए, या ववश्वास करिे का कारण रखते
िुए कक वि कूटरधचत या कूटकृत िै , ककसी अन्य व्यक्तत को बेचेगा या उससे खरीदे गा या प्राप्त करे गा या अन्यथा
उसका दव्ु यातपार करे गा या असली के रुप में उसे उपयोग में लाएगा, वि 3[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से
ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी,दक्ण्डत ककया जाएगा और जम
ु ातिे से भी
दं डिीय िोगा |

धारा 489-ग-कूटरधचत या कूटकृत करें सी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में रखना- जों कोई ककसी कूटरधचत
या कूटकृत करें सी िोट या बैंक िोट को, यि जािते िुए या यि ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक वि

1. 1950 के अधिनियम सं. 35 के द्वारा प्रनतस्थावपत |


2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

कूटरधचत या कूटकृत िै और यि आशय रखते िुए कक उसे असली के रूप मे उपयोग में लाए या वि असली
के रूप में उपयोग मे लायी जा सके, अपिे कब्जे में रखेगा,वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी
अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।
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धारा 489-घ-करें सी नोटों या बैंक नोटों की कूटरचना या कूटकरण के भलए उपकरण या सामग्री बनाना या
कब्जे में रखना- जो कोई ककसी मशीिरी, उपकरण या सामग्री को ककसी करें सी या बैंक िोट की कूटरचिा या
कूटकरण के ललए उपयोग में लाये जािे के प्रयोजि से या यि जािते िुए या ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक
वि ककसी करें सी िोट या बैंक िोट की कूटरचिा या कूटकरण के ललए उपयोग में लाए जािे के ललए आशनयत िै ,
बिाएगा, या बिािे की प्रकक्रया के ककसी भाग का संपादि करे गा, या खरीदे गा, या बेचेगा, या व्ययनित करे गा, या
अपिे कब्जे में रखेगा, वि 1[आजीवि कारावास] से, या दोिों में से, ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस
वषत तक की िो सकेगी, और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 489-ङ- करें सी नोटों या बैंक नोटों से सादृश्य रखने िाले दस्तािेजों की रचना या उपयोग- (1) जो कोई
ककसी दस्तावेज को, जो करें सी िोट या बैंक िोट िोिा तात्पनयतत िो या करें सी िोट या बैंक िोट के ककसी भी प्रकार
सदृश िो या इतिे निकटत: सदृश िो कक प्रवंचिा िो जािा प्रकक्ल्पत िो रचेगा या रचवाएगा, या ककसी भी प्रयोजि
के ललए उपयोग में लाएगा या ककसी व्यक्तत को पररदि करे गा, वि जुमातिे से,जो एक सौ रुपये तक का िो

1. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |

सकेगा, दं डडत ककया जाएगा ।

(2) यहद कोई व्यक्तत क्जसका िाम ऐसी दस्तावेज पर िो क्जसकी रचिा उपिारा (1) के अिीि अपराि िै
ककसी पलु लस ऑकफसर को या उस व्यक्तत का िाम और पता क्जसके द्वारा वि महु द्रत की गयी थी या अन्यथा रची
गयी थी, बतािे के ललए अपेक्षक्षत ककए जािे पर उसे ववधिपण
ू त प्रनतिे तु के ब्रबिा बतािे से इंकार करे गा, वि जुमातिे
से, जो दो सौ रुपये तक का िो सकेगा, दं डडत ककया जाएगा ।
(3) जिााँ कक ककसी ऐसे दस्तावेज पर क्जसके बारे में ककसी व्यक्तत पर उपिारा (1) के अिीि अपराि का
आरोप लगाया गया िो, या ककसी अन्य दस्तावेज पर, जो उस दस्तावेज के संबि
ं में उपयोग में लायी गयी िो, या
ववतररत की गयी िो, ककसी व्यक्तत का िाम िो, विााँ जब तक तत्प्रनतकूल साब्रबत ि कर हदया जाए, यि उपिारणा
की जा सकेगी. कक उसी व्यक्तत िे वि दस्तावेज रचवाई िै ।

अध्याय 19
सेिा संविदाओं के आपराधधक भंग के विषय में

धारा 490- (..............) कमतकार संववदा भंग (निरसि) अधिनियम, 1925 (1925 का 3) द्वारा निरलसत

धारा 491- असिाय व्यन्क्त की पररचयाा करने की और उसकी आिश्यकताओ की पतू ता करने की संविदा का
भंग - जो कोई ककसी ऐसे व्यक्तत की, जो ककशोरावस्था या धचिववकृनत या रोग या शारीररक दव
ु ल
त ता के कारण
असिाय िै , या अपिे निजी क्षेम की व्यवस्था या अपिी निजी आवश्यकताओं की पनू तत करिे के ललए असमथत िै ,
पररचयात करिे के ललए या उसकी आवश्यकताओं की पनू तत करिे के ललए ववधिपण ू त संववदा द्वारा आबद्ि िोते िुए,
स्वेच्छया ऐसा करिे का लोप करे गा वि दोिों में से ककसी भांनत के करावास से, क्जसकी अवधि तीि मास तक की
िो सकेगी, या जुमातिे से, जो दो सौ रूपये तक का िो सकेंगा या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा |

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धारा 492- (...........) कमतकार संववदा भंग (निरसि) अधिनियम,1925(1925 का 3) द्वारा निरलसत

अध्याय -20
वििाि संबध
ं ी अपराधो के विषय में

धारा 493- विधधपण


ू ा वििाि की प्रिंचना से विश्िास उत्प्रेररत करने िाले परु
ु ष द्िारा काररत सििास- िर
परु
ु ष, जो ककसी स्त्री को, जो ववधिपव
ू क
त उससे वववाहित ि िो, प्रवंचिा से यि ववश्वास काररत करे गा कक वि
ववधिपव
ू क
त उससे वववाहित िै और इस ववश्वास में उस स्त्री को अपिे साथ सिवास या मैथि
ु काररत करे गा, वि
दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे
से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 494- पतत या पत्नी के जीिन काल में पन ु : वििाि करना- जो कोई पनत या पत्िी के जीववत िोते िुए
ककसी ऐसी दशा में वववाि करे गा क्जसमें ऐसा वववाि इस कारण शन्ू य िै कक वि ऐसे पनत या पत्िी के जीवि काल
में िोता िै वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया
जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा |

अपिाद– इस िारा का ववस्तार ककसी ऐसे व्यक्तत पर ििीं िै , क्जसका ऐसे पनत या पत्िी के साथ वववाि
सक्षम अधिकाररता के न्यायालय द्वारा शन्
ू य घोवषत कर हदया गया िो, और ि ककसी ऐसे व्यक्तत पर िै ,जो पव
ू त
पनत या पत्िी के जीवि काल में वववाि कर लेता िै । यहद ऐसा पनत या पक्त्ि उस पश्चात्वती वववाि के समय ऐसे
व्यक्तत से सात वषत तक निरं तर अिप
ु क्स्थत रिा िो, और उस काल के भीतर ऐसे व्यक्तत िे यि ििीं सि
ु ा िो कक
वि जीववत िै , परं तु यि तब जब कक ऐसा पश्चात्वती वववाि करिे वाला व्यक्तत उस वववाि के िोिे से पव
ू त उस
व्यक्तत को, क्जसके साथ ऐसा वववाि िोता िै , तथ्यों की वास्तववक क्स्थनत की जािकारी जिााँ तक कक उिका ज्ञाि
उसको िो, दे

धारा 495- ििी अपराध पि


ू ि
ा ती वििाि को उस व्यन्क्त को तछपाकर न्जसके साथ पश्चात्िती वििाि ककया
जाता िै - जो कोई पव
ू व
त ती अंनतम िारा में पाररभावषत अपराि अपिे पव
ू त वववाि की बात उस व्यक्तत से नछपाकर
करे गा, कक क्जससे पश्चात्वती वववाि ककया जाए वि दोिों मे से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दस वषत
तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 496- विधधपण


ू ा वििाि के ब्रबना कपटपि
ू क
ा वििािकमा परू ा कर लेना- जो कोई बेईमािी से या कपटपण
ू त
आशय से वववाहित िोिे का कमत यि जािते िुए परू ा करे गा कक तद्द्वारा वि ववधिपव
ू क
त वववाहित ििीं िुआ िै , वि
दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और
जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

धारा 497- जारकमा- जो कोई ऐसे व्यक्तत के साथ, जो कक ककसी अन्य परु
ु ष की पत्िी िै , और क्जसका
ककसी अन्य परु
ु ष की पत्िी िोिा वि जािता िै या ववश्वास करिे का कारण रखता िै उस परू
ु ष की सम्मनत या
मौिािक
ु ू लता के ब्रबिा ऐसा मैथि
ु करे गा, जो बलात्संग के अपराि की कोहट में ििीं आता, वि जारकमत के अपराि

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का दोषी िोगा, और दोिों में से ककसी भांनत के कारावास से क्जसकी अवधि पााँच वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे
से,या दोिों से, दं डडत ककया जाएगा । ऐसे मामले में पत्िी दष्ु प्रेरक के रूप में दं डिीय ििीं िोगी।

धारा 498- वििाहिता स्त्री को आपराधधक आशय से फुसलाकर ले जाना, या ले जाना या तनरुद्ध रखना- जो
कोई ककसी स्त्री को, जो ककसी अन्य परु
ु ष की पत्िी िै , और क्जसका अन्य परु
ु ष की पत्िी िोिा वि जािता िै , या
ववश्वास करिे का कारण रखता िै , उस परु
ु ष के पास से, या ककसी ऐसे व्यक्तत के पास से, जो उस परु
ु ष की ओर
से उसकी दे ख-रे ख करता िै , इस आशय से ले जाएगा, या फुसलाकर ले जाएगा कक वि ककसी व्यक्तत के साथ
अयत
ु त संभोग करे या इस आशय से ऐसी ककसी स्त्री को नछपाएगा या निरुद्ि करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत
के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा |

1
[अध्याय 20 –क]
पतत या पतत के नातेदारों द्िारा क्रूरता के विषय में
धारा 498 –क. ककसी स्त्री के पतत या पतत के नातेदार द्िारा उसके प्रतत क्रूरता करना- जो कोई, ककसी स्त्री
का पनत या पनत का िातेदार िोते िुए, ऐसी स्त्री के प्रनत क्रूरता करे गा, वि कारावास से, क्जसकी अवधि तीि वषत
तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।

स्पष्टीकरण- इस िारा के प्रयोजिों के ललए “”क्रूरता”” से निम्िललखखत अलभप्रेत िै :--


(क) जािबझ
ू कर ककया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृनत का िै क्जससे उस स्त्री को आत्मित्या करिे के
ललए प्रेररत करिे की या उस स्त्री के जीवि, अंग या स्वास्थ्य को (जो चािे मािलसक िो या शारीररक) गंभीर क्षनत
या खतरा काररत करिे की सम्भाविा िै ; या
(ख) ककसी स्त्री को इस दृक्ष्ट से तंग करिा कक उसको या उसके ककसी िातेदार को ककसी संपवि या
मल्
ू यवाि प्रनतभनू त की कोई मांग परू ी करिे के ललए प्रपीडड़त ककया जाए या ककसी स्त्री को इस कारण तंग करिा
कक उसका कोई िातेदार ऐसी मांग परू ी करिे में असफल रिा िै ।

अध्याय 21
मानिातन के विषय में
धारा 499-मानिातन- जो कोई बोले गये या पढ़े जािे के ललए आशनयत शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या
दृष्यरुपणों द्वारा ककसी व्यक्तत के बारे में लांछि इस आशय से लगाता या प्रकालशत करता िै कक ऐसे लांछि से
ऐसे व्यक्तत की ख्यानत की अपिानि की जाए, या यि जािते िुए या ववश्वास करिे का कारण रखते िुए लगाता या
प्रकालशत करता िै कक ऐसे लांछि से ऐसे व्यक्तत की ख्यानत की अपिानि िोगी, एतक्स्मि ् पश्चात ् अपवाहदत दशाओं
के लसवाय उसके बारे में किा जाता िै कक वि उस व्यक्तत की माििानि करता िै ।

स्पष्टीकरण 1. ककसी मत
ृ व्यक्तत को कोई लांछि लगािा माििानि की कोहट में आ सकेगा यहद वि लांछि
उस व्यक्तत की ख्यानत की, यहद वि जीववत िोता, अपिानि करता, और उसके पररवार या अन्य निकट संबधं ियों की
भाविाओं को उपित करिे के ललए आशनयत िो ।

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स्पष्टीकरण 2. ककसी कंपिी या संगम या व्यक्ततयों के समि
ू के संबि
ं में उसकी वैसी िै लसयत में कोई
लांछि लगािा माििानि की कोहट में आ सकेगा ।

स्पष्टीकरण 3. अिक
ु ल्प के रूप में , या व्यं‍योक्तत के रूप में अलभव्यतत लांछि माििानि की कोहट में आ
सकेगा ।

स्पष्टीकरण 4. कोई लांछि ककसी व्यक्तत की ख्यानत की अपिानि करिे वाला ििीं किा जाता जब तक कक
वि लांछि दस
ू रों की दृक्ष्ट में प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उस व्यक्तत के सदाचाररक या बौद्धिक स्वरूप को िेय ि
करे या उस व्यक्तत की जानत के या उसकी आजीववका के संबि
ं में उसके शील को िे य ि करे या उस व्यक्तत की
साख को िीचे ि धगराए या यि ववश्वास ि कराए कक उस व्यक्तत का शरीर घण
ृ ोत्पादक दशा में िै या ऐसी दशा में
िै जो सािारण रूप से निकृष्ट समझी जाती िै ।

पिला अपिाद- सत्य बात का लांछन, न्जसका लगाया जाना या प्रकाभशत ककया जाना लोक कल्याण के भलए
अपेक्षक्षत िै- ककसी ऐसी बात का लांछि लगािा, जो ककसी व्यक्तत के संबि
ं में सत्य िो, माििानि ििीं िै , यहद यि
लोक कल्याण के ललए िो कक वि लांछि लगाया जाए या प्रकालशत ककया जाए । वि लोक कल्याण के ललए िै या
ििीं यि तथ्य का प्रश्ि िै ।

दस
ू रा अपिाद-लोक सेिकों का लोकाचरण- उसके लोककृत्यों के निवतिि में लोकसेवक के आचरण के ववषय
में , या उसके शील के ववषय में , जिााँ तक उसका शील उस आचरण से प्रकट िोता िो ि कक उससे आगे कोई राय,
चािे वि कुछ भी िो, सद्भावपव
ू क
त अलभव्यतत करिा माििानि ििीं िै ।

तीसरा अपिाद- ककसी लोक प्रश्न के संबध


ं में ककसी व्यन्क्त का आचरण-ककसी लोक प्रश्ि के संबि
ं में ककसी
व्यक्तत के आचरण के ववषय में , और उसके शील के ववषय में ,जिााँ तक कक उसका शील उस आचरण से प्रकट िोता
िो, ि कक उसके आगे, कोई राय, चािे वि कुछ भी िो सद्भावपव
ू क
त अलभव्यतत करिा माििानि ििीं िै ।

चौथा अपिाद- धयायालयों की कायािाहियों की ररपोटों का प्रकाशन- ककसी न्यायालय की कायतवाहियों की या


ककन्िीं ऐसी कायतवाहियों के पररणाम की सारत: सिी ररपोटत को प्रकालशत करिा माििानि ििीं िै ।

स्पष्टीकरण- कोई जक्स्टस ऑफ दी पीस या अन्य ऑकफसर, जो ककसी न्यायालय में ववचारण से पव
ू त की
प्रारं लभक जााँच खुले न्यायालय मे कर रिा िो, उपयत
ुत त िारा के अथत के अंतगतत न्यायालय िै ।

पााँचिााँ अपिाद- न्यायालय में ववनिक्श्चत मामले के गण


ु ागण
ु या साक्षक्षयों तथा सपत
ृ त अन्य व्यक्ततयों का
आचरण-ककसी ऐसे मामले मे गण
ु ागण
ु के ववषय में , चािे वि लसववल िो या दांडडक जो ककसी न्यायालय द्वारा
ववनिक्श्चत िो चुका िो, या ककसी ऐसे मामले के पक्षकार, साक्षी या अलभकतात के रूप में ककसी व्यक्तत के आचरण
के ववषय में या ऐसे व्यक्तत के शील के ववषय में , जिााँ तक कक उसका शील उस आचरण से प्रकट िोता िो ि कक
उससे आगे कोई राय, चािे वि कुछ भी िो, सद्भावपव
ू क
त अलभव्यतत करिा माििानि ििीं िै ।

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छठााँ अपिाद-लोक कृतत के गण
ु ागण
ु - ककसी ऐसी कृनत के गण
ु ागण
ु के ववषय में , क्जसको उसके कतात िे
लोक के निणतय के ललए रखा िो या उसके कतात के शील के ववषय में , जिााँ तक कक उसका शील ऐसी कृनत में प्रकट
िोता िो ि कक उसके आगे कोई राय सद्भावपव
ू क
त अलभव्यतत करिा माििानि ििीं िै ।

स्पष्टीकरण- कोई कृनत लोक के निणतय के ललए अलभव्यतत रूप से या कतात की ओर से ककए गए कायों
द्वारा, क्जिसे लोक के निणतय के ललए ऐसा रखा जािा वववक्षक्षत िो रखी जा सकती िै ।

सातिााँ अपिाद- ककसी अधय व्यन्क्त के ऊपर विधधपण


ू ा प्राधधकार रखने िाले व्यन्क्त द्िारा सद्भािपि
ू क
ा की
गयी पररतनंदा- ककसी ऐसे व्यक्तत द्वारा, जो ककसी अन्य व्यक्तत के ऊपर कोई ऐसा प्राधिकार रखता िो जो या तो
ववधि द्वारा प्रदि िो या उस अन्य व्यक्तत के साथ की गयी ककसी ववधिपण
ू त संववदा से उद्द्यत िो, ऐसे ववषयों में ,
क्जिसे कक ऐसा ववधिपण
ू त प्राधिकार संबधं ित िो. उस अन्य व्यक्तत के आचरण की सद्भावपव
ू क
त की गयी कोई
पररनिंदा माििानि ििीं िै ।

आठिााँ अपिाद- प्राधिकृत व्यक्तत के समक्ष सद्भावपव


ू क
त अलभयोग लगािा- ककसी व्यक्तत के ववरुद्ि कोई
अलभयोग ऐसे व्यक्ततयों मे से ककसी व्यक्तत के समक्ष सद्भावपव
ू क
त लगािा, जो उस व्यक्तत के ऊपर अलभयोग की
ववषय वस्तु के संबि
ं में ववधिपण
ू त प्राधिकार रखते िों, माििानि ििीं िै ।
निााँ अपिाद- अपने या अधय के हितों की संरक्षा के भलए ककसी व्यन्क्त द्िारा सद्भािपि
ू क
ा लगाया गया
लांछन-ककसी अन्य के शील पर लांछि लगािा माििानि ििीं िै परं तु यि तब जब कक उसे लागािे वाले व्यक्तत के
या ककसी अन्य व्यक्तत के हित की संरक्षा के ललए, या लोक कल्याण के ललए, वि लांछि सद्भावपव
ू क
त लगाया गया
िो ।

दसिााँ अपिाद- सािधानी, जो उस व्यन्क्त की भलाई के भलए, न्जसे कक िि दी गयी िै या लोक कल्याण के
भलए आशीयत िै - एक व्यक्तत को दस
ू रे व्यक्तत के ववरुद्ि सद्भावपव
ू क
त साविाि करिा माििानि ििीं िै परं तु यि
तब जबकक ऐसी साविािी उस व्यक्तत की भलाई के ललए, क्जसे वि दी गयी िो या ककसी ऐसे व्यक्तत की भलाई के
ललए क्जससे वि व्यक्तत हितबद्ि िो या लोक कल्याण के ललए आशनयत िो ।

धारा 500 -मानिातन के भलए दं ड- जो कोई ककसी अन्य व्यक्तत की माििानि करे गा, वि सादा कारावास से,
क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा 501- मानिातनकारक जानी िुई बात को महु द्रत या उत्कीणा करना- जो कोई ककसी बात को यि जािते
िुए, या ववश्वास करिे का कारण रखते िुए कक ऐसी बात ककसी व्यक्तत के ललए माििानिकारक िै महु द्रत करे गा, या
उत्कीणत करे गा, वि सादा कारावास से क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत
ककया जाएगा ।

धारा 502- मानिातनकारक विषय रखने िाले महु द्रत या उत्कीणा पदाथा का बेचना- जो कोई ककसी महु द्रत या
उत्कीणत पदाथत को क्जसमें माििानिकारक ववषय अंतववतष्ट िै यि जािते िुए कक उसमें ऐसा ववषय अंतववतष्ट िै ,
बेचेगा, या बेचिे की प्रस्थापिा करे गा वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से
या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

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अध्याय 22
आपराधधक अभभत्रास, अपमान और क्षोभ के विषय में
धारा 503- आपराधधक अभभत्रास- जो कोई ककसी अन्य व्यक्तत के शरीर, ख्यानत या संपवि को या, ककसी
ऐसे व्यक्तत के शरीर या ख्यानत को क्जससे कक वि व्यक्तत हितबद्ि िो कोई क्षनत करिे की िमकी उस अन्य
व्यक्तत को इस आशय से दे ता िै कक उसे संत्रास काररत ककया जाए, या उससे ऐसी िमकी के निष्पादि का
पररवजति करिे के सािि स्वरूप कोई ऐसा कायत कराया जाए, क्जसके करिे के ललए वि वैि रूप से आबद्ि ि िो,
या ककसी ऐसे कायत करिे का लोप कराया जाए, क्जसके करिे के ललए वि वैि रूप से िकदार िो, वि आपराधिक
अलभत्रास करता िै ।
स्पष्टीकरण- ककसी ऐसे मत
ृ व्यक्तत की ख्यानत को क्षनत करिे की िमकी क्जससे वि व्यक्तत, क्जसे िमकी
दी गई िै , हितबद्ि िो इस िारा के अंतगतत आता िै ।

धारा 504 -लोक शांतत भंग करने को प्रकोवपत करने के आशय से साशय अपमान- जो कोई ककसी व्यक्तत
को साशय अपमानित करे गा और तद्द्वारा उस व्यक्तत को इस आशय से, या यि संभाव्य जािते िुए प्रकोवपत
करे गा कक ऐसे प्रकोपि से वि लोक शांनत भंग या कोई अन्य अपराि काररत करे गा, वि दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमािे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

धारा-505-लोक ररन्ष्ट कारक िक्तव्य-


1
[(1)] जो कोई ककसी कथि, जिश्रुनत या ररपोटत को-
(क) इस आशय से कक, या क्जससे यि संभाव्य िो कक 1[भारत की] सेिा, िौसेिा या वायस
ु ेिा का कोई

1. 1969 के अधिनियम सं. 35 के द्वारा िारा 505 उपिारा (1) के रूप में पि
ु ः क्रमांककत |

(ख) ऑकफसर, सैनिक, िाववक या वायस


ु नै िक ववद्रोि करे या अन्यथा वि अपिे उस िाते अपिे कितव्य की
अविे लिा करे या उसके पालि में असफल रिे ; अथवा
(ग) इस आशय से कक, या क्जससे यि संभाव्य िो कक, लोक या लोक के ककसी भाग को ऐसा भय या
संत्रास काररत िो क्जससे कोई व्यक्तत राज्य के ववरुद्ि या लोक प्रशांनत के ववरुद्ि अपराि करिे के
ललए उत्प्रेररत िो अथवा
(घ) इस आशय से कक या क्जससे यि संभाव्य िो कक, उससे व्यक्ततयों का कोई वगत या समद
ु ाय के ववरुद्ि
अपराि करिे के ललए उद्दीप्त ककया जाए
रचेगा, प्रकालशत करे गा, या पररचाललत करे गा, वि कारावास से, जो 3[तीि वषत] तक का िो सकेगा, या
जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

5
[2.विभभधन िगों के बीच शत्रत
ु ा, धण
ृ ा या िैमनस्य पैदा या सम्प्रिततात करने िाले कथन- जो कोई जिश्रनु त
या संत्रासकारी समाचार अंतववतष्ट करिे वाले ककसी कथि या ररपोटत को इस आशय से कक या क्जससे यि संभाव्य िो
कक, ववलभन्ि िालमतक, मल
ू वंशीय, भाषाई, या प्रादे लशक समि
ू ों या जानतयों या समद
ु ायों के बीच शत्रत
ु ा, घण
ृ ा या
वैमिस्य की भाविाएाँ, िमत, मल
ू वंश, जन्म स्थाि, निवास स्थाि, भाषा, जानत या समद
ु ाय के आिारों पर या अन्य
ककसी भी आिार पर पैदा या सम्प्रवनततत िो, रचेगा, प्रकालशत करे गा, वि कारावास से, जो तीि वषत तक का िो

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सकेगा, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।
2. पज
ू ा के स्थान आहद में ककया गया

1. 1950 के ववधि अिक


ु ू लि आदे श, 1950 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
2. 1961 के अधिनियम सं. 41 के द्वारा “दो वषत” के स्थाि पर प्रनतस्थावपत | हदिांक 12.9.1961 से
प्रभावी |
3. 1969 के अधिनियम सं. 35 के द्वारा अंतः स्थावपत | हदिांक 4.6.1961

उपधारा (2) के अधीन अपराध- जो कोई उपिारा (2) में ववनिहदतष्ट अपराि ककसी पज
ू ा के स्थाि में या
ककसी जमाव में जो िालमतक पज ू ा या िालमतक कमत करिे में लगा िुआ िो करे गा, वि कारावास से जो पााँच वषत तक
का िो सकेगा. दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा ।]
अपिाद- ऐसा कोई कथि,जिश्रुनत या ररपोटत इस िारा के अथत के अंतगतत अपराि की कोहट में ििीं आती,
जब उसे रचिे वाले, प्रकालशत करिे वाले या पररचाललत करिे वाले व्यक्तत के पास इस ववश्वास के ललए यक्ु ततयत
ु ि
आिार िो कक ऐसा कथि, जिश्रुनत या ररपोटत सत्य िै और 1[वि उसे सद्भावपव
ू क
त तथा पव
ू ोति जैसे ककसी आशय
के ब्रबिा] रचता िै प्रकालशत करता िै या पररचाललत करता िै

राज्य संसोधन
मध्यप्रदे श/छिीसगढ़- भा.द.वव. की िारा 505(1) के अन्तगतत अपराि संज्ञेय िै । (अवलोकि करें अधिसच
ू िा
क्रमांक 33205-एफ. क्रमांक 6-59-74-बी-XXIXXI हदिांक 19.11.1975 | (म.प्र. राजपत्र हदिांक 12.3.1976 को
प्रकालशत ।)
धारा 506 -आपराधधक अभभत्रास के भलए दं ड- जो कोई आपराधिक अलभत्रास करे गा, वि दोिों में से ककसी
भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, या जुमातिे से, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा।
यहद धमकी, मत्ृ यु या घोर उपितत इत्याहद काररत करने की िो-यहद िमकी मत्ृ यु या घोर ' उपिनत काररत
करिे की या अक्‍ि द्वारा ककसी संपवि का िाश काररत करिे की या मत्ृ यद
ु ं ड से या [आजीवि कारावास] से, या
3

सात वषत की अवधि तक के कारावास से दं डिीय अपराि काररत करिे की या ककसी स्त्री पर असतीत्व का लांछि

1. 1969 के अधिनियम सं. 35 के द्वारा अंतःस्थावपत | हदिांक 4.6.1969 से प्रभावी |


2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
लगािे की िो, तो वि दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से, क्जसकी अवधि सात वषत तक की िो सकेगी
या जुमातिे से या दोिों से दं डडत ककया जाएगा |

राज्य संसोधन
म.प्र. एिं छिीसगढ़ - अधिसच
ू िा क्रमांक 33205-FF.No.6-59-74-B-XXIXXI हदिांक 19.11.1975) के
द्वारा िारा 506 के तित अपराि संज्ञेय िै । (अवलोकि करें – म.प्र. राजपत्र भाग 1 हदिांक 12.3.1976

उिरप्रदे श- भा.द.वव. की िारा 506 के अपराि को संज्ञय


े एवं अजमाितीय ककया गया ।
(*अधिसच
ू िा क्रमांक 777/VIII 9 -4 (2)-87 हदिांककत 31-7-1989 के द्वारा । इसका प्रकाशि उ. प्र. राजपत्र
असािारण में हदिांक 2 अगस्त 1989 को ककया गया ।)

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धारा 507-अनाम संसच
ू ना द्िारा आपराधधक अभभत्रास- जो कोई अिाम संसच
ू िा द्वारा या उस व्यक्तत का
क्जसिे िमकी दी िो, िाम या निवास स्थाि नछपािे की पव
ू ातविािी करके आपराधिक अलभत्रास का अपराि करे गा,
वि पव
ू व
त ती अंनतम िारा द्वारा उस अपराि के ललए उपबंधित दं ड के अनतररतत या दोिों में से ककसी भााँनत के
कारावास से, क्जसकी अवधि दो वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा।

राज्य संसोधन
म.प्र. एिं छिीसगढ़- अधिसच
ू िा क्रमांक 33205-F.No.6-59-74-B-XXI हदिांक 19.11.1975 (म.प्र. राजपत्र,
भाग 1 हदिांक 12.3.1976 को प्रकालशत) के द्वारा िारा 507 के तित अपराि संज्ञेय िै ।

धारा 508 -व्यन्क्त को यि विश्िास करने के भलए उत्प्रेररत करके कक िि दै िी अप्रसाद का भाजन िोगा,
कराया गया काया- जो कोई ककसी व्यक्तत को यि ववश्वास करिे के ललए उत्प्रेररत करके या उत्प्रेररत करिे का
प्रयत्ि करके. कक यहद वि उस बात को ि करे गा, क्जसे उससे करािा अपरािी का उद्दे श्य िो या यहद वि उस बात
को करे गा, क्जसका उससे लोप करािा अपरािी का उिे श्य िो तो वि या कोई व्यक्तत क्जससे वि हितबद्ि िै ,
अपरािी के ककसी कायत से दै वी अप्रसाद का भाजि िो जाएगा या बिा हदया जाएगा, स्वेच्छया उस व्यक्तत से कोई
ऐसी बात करवाएगा या करवािे का प्रयत्ि करे गा, क्जसे करिे के ललए वि वैि रूप से आबद्ि ि िो, या ककसी ऐसी
बात के करिे का लोप करवाता या करवािे का प्रयत्ि करे गा क्जसके करिे के ललए वि वैि रुप से िकदार िो. वि
दोिों में से ककसी भााँनत के कारावास से क्जसकी अवधि एक वषत तक की िो सकेगी या जुमातिे से या दोिों से दं डडत
ककया जाएगा ।

धारा 509 - शब्द, अंगविक्षेप या काया जो ककसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के भलए आशतयत िै - जो
कोई ककसी स्त्री की लज्जा का अिादर करिे के आशय से कोई शब्द किे गा, कोई ध्वनि या अंगववक्षेप करे गा, या
कोई वस्तु प्रदलशतत करे गा, इस आशय से कक .ऐसी स्त्री द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सि
ु ी जाए या ऐसा अंगववक्षेप या
वस्तु दे खी जाए अथवा ऐसी स्त्री की एकांतता का अनतक्रमण करे गा, 1[वि सादा कारावास से, क्जसकी अवधि तीि
वषत तक की िो सकेगी, दं डडत ककया जाएगा और जुमातिे से भी दं डिीय िोगा]

धारा 510 - मि व्यन्क्तयों द्िारा लोक- स्थान में अिचार- जो कोई मिता की िालत में ककसी लोक-स्थाि
में , या ककसी ऐसे स्थाि मे क्जसमें उसका प्रवेश करिा अनतचार िो आएगा और विााँ इस प्रकार का आचरण करे गा,
क्जससे ककसी व्यक्तत को क्षोभ िो, वि सादा कारावास से. क्जसकी अवधि चौबीस घंटे तक की िो सकेगी, या जुमातिे
से, जो दस रुपये तक का िो सकेगा, या दोिों से दं डडत ककया जाएगा ।

अध्याय 23
अपराधों को करने के प्रयत्नों के विषय में
धारा 511 - आजीिन कारािास या अधय कारािास से दं डनीय अपराधों को करने के प्रयत्न करने के भलए
दं ड- जो कोई इस संहिता द्वारा 3[आजीवि कारावास] या अन्य कारावास से दं डिीय अपराि करिे का या ऐसा
अपराि काररत ककये जािे का प्रयत्ि करे गा, और ऐसे प्रयत्ि में अपराि करिे की हदशा में कोई कायत करे गा, जिााँ
कक
1. दं ड ववधि (संशोिि) अधिनियम, 2013 द्वारा प्रनतस्थावपत | हदिांक 3.2.13 से प्रभावी |
2. 1955 के अधिनियम सं. 26 के द्वारा प्रनतस्थावपत |
ऐसे प्रयत्ि के दं ड के ललए कोई अलभव्यतत उपबंि इस संहिता द्वारा ििीं ककया गया िै , विााँ वि उस
अपराि के ललए उपबंधित ककसी भांनत के कारावास से उस अवधि के ललए, जो यथाक्स्थनत, आजीवि कारावास से

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आिे तक की या उस अपराि के ललए उपबंधित दीघततम अवधि के आिे तक की िो सकेगी,या ऐसे जम
ु ातिे से,जो
उस अपराि के ललए उपबंधित िै , या दोिों से, दक्ण्डत ककया जाएगा |

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