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Constitution of India Hindi
Constitution of India Hindi
संिवधान, ज म-ू क मीर रा य को, अनु छे द 370 और संिवधान (ज म-ू क मीर को लागू होना)
आदे श, 1954 म यथा उपबंिधत कुछ अपवाद और उपांतरण के साथ लागू होता है । यह आदे श, िनदश
की सुिवधा के िलए पिरिश 1 म सि मिलत िकया गया है । अपवाद और उपांतरण का पुनकर्थन
पिरिश 2 म अंतिवर् िकया गया है ।
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015, भारत सरकार और बांग्ला दे श के म य अिजर्त
िकए गए और अंतिरत िकए गए, रा यक्षेत्र के यौरे अंतिवर् करते हुए, पिरिश 5 म सि मिलत िकया
गया है ।
प0
ृ ................................................................... पृ ।
िवषय सच
ू ी
उ िे शका
अनु छे द पृ
भाग 1
संघ और उसका रा यक्षेत्र
1. संघ का नाम और रा यक्षेत्र ............................................................ 2
2. नए रा य का प्रवेश या थापना...................................................... 2
[2क. िसिक्कम का संघ के साथ सहयुक्त िकया जाना – िनरिसत ।]….......... 2
3. नए रा य का िनमार्ण और वतर्मान रा य के क्षेत्र , सीमाओं या नाम
म पिरवतर्न ................................................................................. 2
4. पहली अनुसच ू ी और चौथी अनुसच ू ी के संशोधन तथा अनुपरू क,
आनषु ंिगक और पािरणािमक िवषय का उपबंध करने के िलए अनु छे द
2 और अनु छे द 3 के अधीन बनाई गई िविधयां …………………….............. 3
भाग 2
नागिरकता
5. संिवधान के प्रारं भ पर नागिरकता ................................................... 4
6. पािक तान से भारत को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के
नागिरकता के अिधकार ................................................................. 4
7. पािक तान को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार ...................................................................................... 5
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ यिक्तय के
नागिरकता के अिधकार .................................................................. 5
9. िवदे शी रा य की नागिरकता वे छा से अिजर्त करने वाले यिक्तय का
नागिरक न होना....................................................................... 5
10. नागिरकता के अिधकार का बना रहना ............................................ 5
11. संस द्वारा नागिरकता के अिधकार का िविध द्वारा िविनयमन िकया जाना 5
िवषय सूची (ii)
अनु छे द पृ
भाग 3
मूल अिधकार
साधारण
मंित्र-पिरष
74. रा पित को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष .................. 30
75. मंित्रय के बारे म अ य उपबंध ......................................................... 30
अ याय 2--कायर्पािलका
रा य पा ल
मंित्र-पिरष
163. रा यपाल को सहायता और सलाह दे ने के िलए मंित्र-पिरष ………………….. 66
रा य का महािधवक्ता
165. रा य का महािधवक्ता ......................................................……………..... 67
रा य के िवधान-मंडल के अिधकारी
178. िवधान सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष ............................................. 73
179. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया जाना
.………………….……………………………………………………. 73
180. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त ……………………….. 74
181. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना ……………………………………….. 74
182. िवधान पिरष का सभापित और उपसभापित ..................................... 74
183. सभापित और उपसभापित का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना.............................................................................................. 75
184. सभापित के पद के कतर् य का पालन करने या सभापित के प म
कायर् करने की उपसभापित या अ य यिक्त की शिक्त ...................... 75
185. जब सभापित या उपसभापित को पद से हटाने का कोई संक प
िवचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना ....................................... 75
186. अ यक्ष और उपा यक्ष तथा सभापित और उपसभापित के वेतन और भ े .. 76
187. रा य के िवधान-मंडल का सिचवालय.................................................. 76
कायर् संचालन
188. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान....................................................... 76
189. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की
शिक्त और गणपूितर् ........................................................................ 76
सद य की िनरहर्ताएं
190. थान का िरक्त होना....................................................................... 77
िवषय सूची (xii)
अनु छे द पृ
भाग 11
संघ और रा य के बीच संबंध
अ याय 1--िवधायी संबंध
िवधायी शिक्तय का िवतरण
245. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय का
िव तार... .......................................................................................... 133
246. संस द्वारा और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय की िवषय- 133
व तु ........................................................................................
246क. माल और सेवा कर के संबंध म िवशेष उपबंध ....................................... 134
247. कुछ अितिरक्त यायालय की थापना का उपबंध करने की संस की शिक्त....
........................................................................................... 134
248. अविश िवधायी शिक्तयां ................................................................. 134
249. रा य सच ू ी म के िवषय के संबध ं म रा ीय िहत म िविध बनाने की संस
की शिक्त ......................................................................................... 134
250. यिद आपात की उद्घोषणा प्रवतर्न म हो तो रा य सच ू ी म के िवषय के
संबंध म िविध बनाने की संस की शिक्त ......................................…….. 135
251. संस द्वारा अनु छे द 249 और अनु छे द 250 के अधीन बनाई गई िविधय
और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िविधय म असंगित.. 135
252. दो या अिधक रा य के िलए उनकी सहमित से िविध बनाने की संस की
शिक्त और ऐसी िविध का िकसी अ य रा य द्वारा अंगीकार िकया जाना… 136
253. अंतररा ीय करार को प्रभावी करने के िलए िवधान ............................. 136
254. संस द्वारा बनाई गई िविधय और रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िविधय म असंगित ..................................................................... 136
255. िसफािरश और पव ू र् मंजरू ी के बारे म अपेक्षाओं को केवल प्रिक्रया के िवषय
मानना................................................................................................ 137
अ याय 2--प्रशासिनक संबंध
साधारण
256. रा य की और संघ की बा यता .......................................................... 137
257. कुछ दशाओं म रा य पर संघ का िनयंत्रण .......................................... 137
[257क. संघ के सश बल या अ य बल के अिभिनयोजन द्वारा रा य की 138
सहायता – िनरिसत ।] ........................................................................
258. कुछ दशाओं म रा य को शिक्त प्रदान करने आिद की संघ की शिक्त…... 138
िवषय सूची (xviii)
अनु छे द पृ
जल संबंधी िववाद
262. अंतरराि यक निदय या नदी-दन
ू के जल संबंधी िववाद का यायिनणर्यन… 139
रा य के बीच सम वय
263. अंतर-रा य पिरष के संबंध म उपबंध................................................... 140
भाग 12
िव , संपि , संिवदाएं और वाद
अ याय 1--िव
साधारण
264. िनवर्चन ............................................................................................ 141
265. िविध के प्रािधकार के िबना कर का अिधरोपण न िकया जाना ................ 141
266. भारत और रा य की संिचत िनिधयां और लोक लेखे ............................. 141
267. आकि मकता िनिध ............................................................................ 141
प्रकीणर् िव ीय उपबंध
282. संघ या रा य द्वारा अपने राज व से िकए जाने वाले यय .................... 151
283. संिचत िनिधय , आकि मकता िनिधय और लोक लेखाओं म जमा
धनरािशय की अिभरक्षा आिद ............................................................. 151
284. लोक सेवक और यायालय द्वारा प्रा वादकतार्ओं की जमा रािशय और
अ य धनरािशय की अिभरक्षा ............................................................. 152
285. संघ की संपि को रा य के कराधान से छूट ......................................... 152
286. माल के क्रय या िवक्रय पर कर के अिधरोपण के बारे म िनबर्ंधन ............ 152
287. िवद्युत पर कर से छूट ...................................................................... 153
288. जल या िवद्युत के संबंध म रा य द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म छूट.. 154
289. रा य की संपि और आय को संघ के कराधान से छूट ......................... 154
290. कुछ यय और पशन के संबंध म समायोजन ...................................... 155
290क. कुछ दे व वम ् िनिधय को वािषर्क संदाय ............................................... 155
[291. शासक की िनजी थैली की रािश – िनरिसत ।]...................................... 155
309. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की भतीर् और सेवा की शत..... 162
310. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की पदाविध ....................... 162
311. संघ या रा य के अधीन िसिवल है िसयत म िनयोिजत यिक्तय का पद युत
िकया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म अवनत िकया जाना …............ 163
312. अिखल भारतीय सेवाएं ....................................................................... 163
312क. कुछ सेवाओं के अिधकािरय की सेवा की शत म पिरवतर्न करने या उ ह
प्रितसं त करने की संस की शिक्त ................................................... 164
313. संक्रमणकालीन उपबंध ........................................................................ 165
[314. कुछ सेवाओं के िवद्यमान अिधकािरय के संरक्षण के िलए उपबंध –
िनरिसत ।] ....................................................................................... 165
भाग 15
िनवार्चन
324. िनवार्चन के अधीक्षण, िनदे शन और िनयंत्रण का िनवार्चन आयोग म 174
िनिहत होना .....................................................................................
325. धमर्, मल
ू वंश, जाित या िलंग के आधार पर िकसी यिक्त का िनवार्चक-
नामावली म सि मिलत िकए जाने के िलए अपात्र न होना और उसके द्वारा
िकसी िवशेष िनवार्चक-नामावली म सि मिलत िकए जाने का दावा न िकया
जाना ................................................................................... 175
326. लोक सभा और रा य की िवधान सभाओं के िलए िनवार्चन का वय क
मतािधकार के आधार पर होना ........................................................... 175
327. िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन के संबंध म उपबंध करने की संस की शिक्त
............................................................................................... 175
328. िकसी रा य के िवधान-मंडल के िलए िनवार्चन के संबंध म उपबंध करने
की उस िवधान-मंडल की शिक्त .......................................................... 175
329. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न .................. 176
[329क. प्रधान मंत्री और अ यक्ष के मामले म संस के िलए िनवार्चन के बारे म
िवशेष उपबंध --िनरिसत ।] ................................................................ 176
भाग 16
कुछ वग के संबंध म िवशेष उपबंध
330. लोक सभा म अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत जनजाितय के िलए
थान का आरक्षण ............................................................................ 177
331. लोक सभा म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रितिनिध व ........................... 177
332. रा य की िवधान सभाओं म अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत
जनजाितय के िलए थान का आरक्षण ............................................... 178
333. रा य की िवधान सभाओं म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रितिनिध व ...... 179
334. थान के आरक्षण और िवशेष प्रितिनिध व का स र वषर् के प ात ् न रहना 179
335. सेवाओं और पद के िलए अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत जनजाितय
के दावे ............................................................................................. 179
336. कुछ सेवाओं म आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के िलए िवशेष उपबंध ................. 180
337. आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के फायदे के िलए शैिक्षक अनद
ु ान के िलए िवशेष
उपबंध ............................................................................................. 180
िवषय सूची (xxiii)
अनु छे द पृ
378क. आंध्र प्रदे श िवधान सभा की अविध के बारे म िवशेष उपबंध ................... 229
[379. अ तकार्लीन संस तथा उसके अ यक्ष और उपा यक्ष के बारे म उपबंध -
िनरिसत ।] .......................................................................................
भाग 22
अनुसिू चयां
पहली अनुसच
ू ी ................................................................................................... 231
1. रा य ...............................................................................................
दस
ू री अनुसच
ू ी .................................................................................................... 237
तीसरी अनुसच
ू ी--शपथ या प्रितज्ञान के प्र प ........................................................... 242
चौथी अनुसच
ू ी--रा य सभा म थान का आबंटन..................................................... 246
िवषय सूची (xxviii)
अनु छे द पृ
पांचवीं अनुसच
ू ी--अनुसिू चत क्षेत्र और अनुसिू चत जनजाितय के प्रशासन और िनयंत्रण
के बारे म उपबंध . . . . .. . . .. . . .. . . .. . . .. .. . . . .. . . .. . . .. . . .. . . .. .. . . . .. . . . 248
भाग क -- साधारण
भाग ख -- अनुसिू चत क्षेत्र और अनस
ु िू चत जनजाितय का प्रशासन
और िनयंत्रण
भाग ग -- अनुसिू चत क्षेत्र
भाग घ -- अनस
ु च
ू ी का संशोधन
छठी अनुसच
ू ी-- असम, मेघालय, ित्रपरु ा और िमजोरम रा य के जनजाित क्षेत्र के
प्रशासन के बारे म उपबं◌ेध 252
...................................................................
सातवीं अनुसच
ू ी .................................................................................................................. 277
सच
ू ी 1 -- संघ सच
ू ी
सच
ू ी 2 -- रा य सच
ू ी
सच
ू ी 3 -- समवतीर् सच
ू ी
आठवीं अनस
ु च
ू ी -- भाषाएं .................................................................................. 291
नवीं अनस
ु च
ू ी--कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण ........................... 292
दसवीं अनस
ु च
ू ी--दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर्ता के बारे म उपबंध .................... 309
ग्यारहवीं अनस
ु च
ू ी--पंचायत की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ......................... 313
बारहवीं अनस
ु च
ू ी--नगरपािलकाओं, आिद की शिक्तयां, प्रािधकार और उ रदािय व ……. 314
पिरिश
पिरिश 1-- संिवधान (ज म-ू क मीर को लागू होना) आदे श, 1954 315
पिरिश 2-- संिवधान के, उन अपवाद और उपांतरण के िजनके अधीन संिवधान 332
ज म-ू क मीर रा य को लागू होता है , वतर्मान पाठ के प्रित िनदश से,
पन
ु कर्थन
पिरिश 3 – संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 से उद्धरण 355
पिरिश 4 – संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 357
पिरिश 5 – संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 358
उपाबंध – संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015 िजसम भारत सरकार और
बांग्लादे श सरकार के बीच अिजर्त और अंतिरत रा यक्षेत्र के यौरे अ तिवर्
ह
िवषय सूची (xxix)
अनु छे द पृ
भारत का संविधान
उद्देशिका
और उपासना की स्ितंत्रता,
तथा उन सब में
बढाने के शलए
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के थान पर (1-11-1956 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंतः थािपत ।
2
भारत का संिवधान 3
1
[परं तु इस प्रयोजन के िलए कोई िवधेयक रा पित की िसफािरश के िबना और
जहां िवधेयक म अंतिवर् प्र थापना का प्रभाव 2***रा य म से िकसी के क्षेत्र, सीमाओं
या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस रा य के िवधान-मंडल द्वारा उस पर अपने
िवचार, ऐसी अविध के भीतर जो िनदश म िविनिदर् की जाए या ऐसी अितिरक्त अविध
के भीतर जो रा पित द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट िकए जाने के िलए वह िवधेयक
रा पित द्वारा उसे िनदिशत नहीं कर िदया गया है और इस प्रकार िविनिदर् या अनुज्ञात
अविध समा नहीं हो गई है , संस के िकसी सदन म पुरः थािपत नहीं िकया जाएगा ।]
3
[ प ीकरण 1–इस अनु छे द के खंड (क) से खंड (ङ) म, “रा य” के अंतगर्त संघ
रा यक्षेत्र है , िकं तु परं तुक म “रा य” के अंतगर्त संघ रा यक्षेत्र नहीं है ।
प ीकरण 2–खंड (क) द्वारा संस को प्रद शिक्त के अंतगर्त िकसी रा य या संघ
रा यक्षेत्र के िकसी भाग को िकसी अ य रा य या संघ रा यक्षेत्र के साथ िमलाकर नए
रा य या संघ रा यक्षेत्र का िनमार्ण करना है ।]
(2) पूव क्त प्रकार की कोई िविध अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान
का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।
1. संिवधान (पांचवां संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 2 द्वारा परं तुक के थान पर (24-12-1955 से) प्रित थािपत
।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या
भाग ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
3. संिवधान (अठारहवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (27-8-1966 से) अंतः थािपत ।
भाग 2
नागिरकता
5. संिवधान के प्रारं भ पर नागिरकता–इस संिवधान के प्रारं भ पर प्र येक यिक्त िजसका
भारत के रा यक्षेत्र म अिधवास है और–
(क) जो भारत के रा यक्षेत्र म ज मा था, या
(ख) िजसके माता या िपता म से कोई भारत के रा यक्षेत्र म ज मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले कम से कम पांच वषर् तक भारत के रा यक्षेत्र
म मामल
ू ी तौर से िनवासी रहा है ,
भारत का नागिरक होगा ।
6. पािक तान से भारत को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के
अिधकार–अनु छे द 5 म िकसी बात के होते हए भी, कोई यिक्त िजसने ऐसे रा यक्षेत्र से जो
इस समय पािक तान के अंतगर्त है , भारत के रा यक्षेत्र को प्र जन िकया है , इस संिवधान के
प्रारं भ पर भारत का नागिरक समझा जाएगा–
(क) यिद वह अथवा उसके माता या िपता म से कोई अथवा उसके िपतामह या
िपतामही या मातामह या मातामही म से कोई (मल
ू प म यथा अिधिनयिमत) भारत
शासन अिधिनयम, 1935 म पिरभािषत भारत म ज मा था ; और
(ख) (i) जबिक वह यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 से पहले इस
प्रकार प्र जन िकया है तब यिद वह अपने प्र जन की तारीख से भारत के रा यक्षेत्र म
मामल ू ी तौर से िनवासी रहा है ; या
(ii) जबिक वह यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 को या उसके प ात ्
इस प्रकार प्र जन िकया है तब यिद वह नागिरकता प्राि के िलए भारत डोिमिनयन
की सरकार द्वारा िविहत प्र प म और रीित से उसके द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से
पहले ऐसे अिधकारी को, िजसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त िकया है ,
आवेदन िकए जाने पर उस अिधकारी द्वारा भारत का नागिरक रिज ट्रीकृत कर िलया
गया है :
परं तु यिद कोई यिक्त अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास
भारत के रा यक्षेत्र म िनवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रिज ट्रीकृत नहीं िकया जाएगा ।
7. पािक तान को प्र जन करने वाले कुछ यिक्तय के नागिरकता के अिधकार–
अनु छे द 5 और अनु छे द 6 म िकसी बात के होते हुए भी, कोई यिक्त िजसने 1 माचर्, 1947
के प ात ् भारत के रा यक्षेत्र से ऐसे रा यक्षेत्र को, जो इस समय पािक तान के अंतगर्त है ,
प्र जन िकया है , भारत का नागिरक नहीं समझा जाएगा :
परं तु इस अनु छे द की कोई बात ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो ऐसे रा यक्षेत्र को,
4
भारत का संिवधान 5
1. संिवधान (चौबीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा (5-11-1971 से) अंतः थािपत ।
6
भारत का संिवधान 7
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 2 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (ितरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2005 की धारा 2 द्वारा (20-1-2006 से) अ तः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 2 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 8
दब
ु ल
र् वगर्'' वे ह गे, जो रा य द्वारा कुटुंब की आय और आिथर्क अलाभ के अ य सच
ू क के
आधार पर समय-समय पर अिधसिू चत िकए जाएं ।]
16. लोक िनयोजन के िवषय म अवसर की समता–(1) रा य के अधीन िकसी पद पर
िनयोजन या िनयिु क्त से संबंिधत िवषय म सभी नागिरक के िलए अवसर की समता होगी ।
(2) रा य के अधीन िकसी िनयोजन या पद के संबंध म केवल धमर्, मल ू वंश, जाित,
िलंग, उद्भव, ज म थान, िनवास या इनम से िकसी के आधार पर न तो कोई नागिरक अपात्र
होगा और न उससे िवभेद िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से िनवािरत नहीं
करे गी जो 1[िकसी रा य या संघ रा यक्षेत्र की सरकार के या उसम के िकसी थानीय या अ य
प्रािधकारी के अधीन वाले िकसी वगर् या वग के पद पर िनयोजन या िनयुिक्त के संबंध म ऐसे
िनयोजन या िनयुिक्त से पहले उस रा य या संघ रा यक्षेत्र के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती है ।]
(4) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िपछड़े हुए नागिरक के िकसी वगर् के पक्ष म,
िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार् नहीं है , िनयुिक्तय या
पद के आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
2
[(4क) इस अनु छे द की कोई बात रा य को अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत
जनजाितय के पक्ष म, िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार्
नहीं है , रा य के अधीन सेवाओं म 3[िकसी वगर् या वग के पद पर, पािरणािमक ये ता सिहत,
प्रो नित के मामल म] आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
4
[(4ख) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िकसी वषर् म िक हीं न भरी गई ऐसी
िरिक्तय को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन िकए गए आरक्षण के िलए िकसी उपबंध के
अनुसार उस वषर् म भरी जाने के िलए आरिक्षत ह, िकसी उ रवतीर् वषर् या वष म भरे जाने के
िलए पथ ृ क् वगर् की िरिक्तय के प म िवचार करने से िनवािरत नहीं करे गी और ऐसे वगर् की
िरिक्तय पर उस वषर् की िरिक्तय के साथ िजसम वे भरी जा रही ह, उस वषर् की िरिक्तय की
कुल संख्या के संबध ं म पचास प्रितशत आरक्षण की अिधकतम सीमा का अवधारण करने के
िलए िवचार नहीं िकया जाएगा ।]
(5) इस अनु छे द की कोई बात िकसी ऐसी िविध के प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी जो
यह उपबंध करती है िक िकसी धािमर्क या सांप्रदाियक सं था के कायर्कलाप से संबंिधत कोई
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य के या उसके क्षेत्र म िकसी थानीय या अ य प्रािधकारी के अधीन उस रा य के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती हो” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पचासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 2 द्वारा भत
ू लक्षी प्रभाव से (17-6-1995 से) कितपय
श द के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (इक्यासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 9
पदधारी या उसके शासी िनकाय का कोई सद य िकसी िविश धमर् का मानने वाला या िविश
संप्रदाय का ही हो ।
1
[(6) इस अनु छे द की कोई बात, रा य को िवद्यमान आरक्षण के अितिरक्त तथा
प्र येक प्रवगर् म पद के अिधकतम दस प्रितशत के अ यधीन, खंड (4) म उि लिखत वग से
िभ न नागिरक के आिथर्क प से दब र् िक हीं वग के पक्ष म िनयुिक्तय और पद के
ु ल
आरक्षण के िलए कोई भी उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
(2) भारत का कोई नागिरक िकसी िवदे शी रा य से कोई उपािध वीकार नहीं करे गा ।
वातं य-अिधकार
19. वाक् - वातं य आिद िवषयक कुछ अिधकार का संरक्षण–(1) सभी नागिरक को–
(ख) शांितपूवक
र् और िनरायुध स मेलन का,
1. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 3 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 10
1
[और]
2
(च)* * * *
(छ) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने का,
अिधकार होगा ।
3
[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के
प्रयोग पर 4[भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता,] रा य की सरु क्षा, िवदे शी रा य के साथ मैत्रीपूणर्
संबंध , लोक यव था, िश ाचार या सदाचार के िहत म अथवा यायालय-अवमान, मानहािन
या अपराध-उ ीपन के संबंध म युिक्तयक्त ु िनबर्ंधन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर्ंधन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभुता और अखंडता या] लोक यव था के िहत म युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक
कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे
िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभत ु ा और अखंडता या] लोक यव था या सदाचार के िहत म युिक्तयक्त ु
िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव
नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं
करे गी ।
(5) उक्त खंड के 6[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए
गए अिधकार के प्रयोग पर साधारण जनता के िहत म या िकसी अनुसिू चत जनजाित के िहत
के संरक्षण के िलए युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां
तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध
बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर साधारण जनता के िहत म यिु क्तयक्त
ु िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
6. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और
उपखंड (च)” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 11
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी और िविश तया 1[उक्त उपखंड की कोई बात–
(i) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने के िलए आव यक विृ क
या तकनीकी अहर्ताओं से, या
(ii) रा य द्वारा या रा य के वािम व या िनयंत्रण म िकसी िनगम द्वारा कोई
यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागिरक का पणू त
र् ः या भागतः अपवजर्न करके या
अ यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई िवद्यमान िविध संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या
इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
20. अपराध के िलए दोषिसिद्ध के संबंध म संरक्षण–(1) कोई यिक्त िकसी अपराध के
िलए तब तक िसद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक िक उसने ऐसा कोई कायर् करने के
समय, जो अपराध के प म आरोिपत है , िकसी प्रव ृ िविध का अितक्रमण नहीं िकया है या
उससे अिधक शाि त का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के िकए जाने के समय प्रव ृ िविध
के अधीन अिधरोिपत की जा सकती थी ।
(2) िकसी यिक्त को एक ही अपराध के िलए एक बार से अिधक अिभयोिजत और
दं िडत नहीं िकया जाएगा ।
(3) िकसी अपराध के िलए अिभयुक्त िकसी यिक्त को वयं अपने िव द्ध साक्षी होने के
िलए बा य नहीं िकया जाएगा ।
21. प्राण और दै िहक वतंत्रता का संरक्षण–िकसी यिक्त को उसके प्राण या दै िहक
वतंत्रता से िविध द्वारा थािपत प्रिक्रया के अनस
ु ार ही वंिचत िकया जाएगा, अ यथा नहीं ।
2
[21क. िशक्षा का अिधकार–रा य, छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु वाले सभी
बालक के िलए नःशु क और अिनवायर् िशक्षा दे ने का ऐसी रीित म, जो रा य िविध द्वारा,
अवधािरत करे , उपबंध करे गा ।]
22. कुछ दशाओं म िगर तारी और िनरोध से संरक्षण–(1) िकसी यिक्त को जो िगर तार
िकया गया है , ऐसी िगर तारी के कारण से यथाशीघ्र अवगत कराए िबना अिभरक्षा म िन द्ध
नहीं रखा जाएगा या अपनी िच के िविध यवसायी से परामशर् करने और प्रितरक्षा कराने के
अिधकार से वंिचत नहीं रखा जाएगा ।
(2) प्र येक यिक्त को, जो िगर तार िकया गया है और अिभरक्षा म िन द्ध रखा गया
है , िगर तारी के थान से मिज ट्रे ट के यायालय तक यात्रा के िलए आव यक समय को
छोड़कर ऐसी िगर तारी से चौबीस घंटे की अविध म िनकटतम मिज ट्रे ट के समक्ष पेश िकया
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा कितपय श द के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 2 द्वारा (1-4-2010 से) अ तः थािपत ।
भारत का संिवधान 12
जाएगा और ऐसे िकसी यिक्त को मिज ट्रे ट के प्रािधकार के िबना उक्त अविध से अिधक अविध
के िलए अिभरक्षा म िन द्ध नहीं रखा जाएगा ।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो–
(क) त समय शत्रु अ यदे शीय है ; या
(ख) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िगर तार या
िन द्ध िकया गया है ।
(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का तीन मास से
अिधक अविध के िलए तब तक िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक–
(क) ऐसे यिक्तय से, जो उ च यायालय के यायाधीश ह या यायाधीश रहे
ह या यायाधीश िनयुक्त होने के िलए अिहर्त ह, िमलकर बने सलाहकार बोडर् ने तीन
मास की उक्त अविध की समाि से पहले यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म
ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु इस उपखंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध से
अिधक अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड
(ख) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िविहत की गई है ; या
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से,
जो िक अिधसिू चत नहीं हुई है ) खंड (4) के थान पर िन निलिखत प्रित थािपत िकया जाएगा,--
'(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का दो मास से अिधक की
अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक समिु चत उ च यायालय के मख्
ु य
यायमूितर् की िसफािरश के अनुसार गिठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास की अविध की समाि से पहले
यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु सलाहकार बोडर् एक अ यक्ष और कम से कम दो अ य सद य से िमलकर बनेगा और
अ यक्ष समुिचत उ च यायालय का सेवारत यायाधीश होगा और अ य सद य िकसी उ च यायालय के
सेवारत या सेवािनव ृ यायाधीश ह गे :
परं तु यह और िक इस खंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध के िलए िन द्ध
िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
िविहत की जाए ।
प ीकरण--इस खंड म, “समुिचत उ च यायालय” से अिभप्रेत है --
(i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी द्वारा िकए गए िनरोध
आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म, िद ली संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च यायालय ;
(ii) (संघ रा यक्षेत्र से िभ न) िकसी रा य सरकार द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म
िन द्ध यिक्त की दशा म, उस रा य के िलए उ च यायालय ; और
(iii) िकसी संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी
द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म वह उ च यायालय जो संस द्वारा
इस िनिम बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन िविनिदर् िकया जाए ।' ।
भारत का संिवधान 13
(ख) ऐसे यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संस
द्वारा बनाई गई िविध के उपबंध के अनुसार िन द्ध नहीं िकया जाता है ।
(5) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िकए गए आदे श के
अनुसरण म जब िकसी यिक्त को िन द्ध िकया जाता है तब आदे श करने वाला प्रािधकारी
यथाशक्य शीघ्र उस यिक्त को यह संसिू चत करे गा िक वह आदे श िकन आधार पर िकया गया
है और उस आदे श के िव द्ध अ यावेदन करने के िलए उसे शीघ्राितशीघ्र अवसर दे गा ।
(6) खंड (5) की िकसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खंड म िनिदर् है , करने वाले
प्रािधकारी के िलए ऐसे त य को प्रकट करना आव यक नहीं होगा िज ह प्रकट करना ऐसा
प्रािधकारी लोकिहत के िव द्ध समझता है ।
* संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (क) का लोप िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक
अिधसूिचत नहीं हुई है ) बड़ी को क म के श द के थान पर “खंड (4)” श द, को क और अंक रखे जाएंगे ।
भारत का संिवधान 14
अिधकार होगा ।
27. िकसी िविश धमर् की अिभविृ द्ध के िलए कर के संदाय के बारे म वतंत्रता–िकसी
भी यिक्त को ऐसे कर का संदाय करने के िलए बा य नहीं िकया जाएगा िजनके आगम िकसी
िविश धमर् या धािमर्क संप्रदाय की अिभविृ द्ध या पोषण म यय करने के िलए िविनिदर् प
से िविनयोिजत िकए जाते ह ।
28. कुछ िशक्षा सं थाओं म धािमर्क िशक्षा या धािमर्क उपासना म उपि थत होने के
बारे म वतंत्रता–(1) रा य-िनिध से पण
ू त
र् ः पोिषत िकसी िशक्षा सं था म कोई धािमर्क िशक्षा
नहीं दी जाएगी ।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी िशक्षा सं था को लागू नहीं होगी िजसका प्रशासन
रा य करता है िकं तु जो िकसी ऐसे िव यास या यास के अधीन थािपत हुई है िजसके
अनस
ु ार उस सं था म धािमर्क िशक्षा दे ना आव यक है ।
(3) रा य से मा यताप्रा या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िशक्षा सं था म
उपि थत होने वाले िकसी यिक्त को ऐसी सं था म दी जाने वाली धािमर्क िशक्षा म भाग लेने
के िलए या ऐसी सं था म या उससे संलग्न थान म की जाने वाली धािमर्क उपासना म
उपि थत होने के िलए तब तक बा य नहीं िकया जाएगा जब तक िक उस यिक्त ने, या यिद
वह अवय क है तो उसके संरक्षक ने, इसके िलए अपनी सहमित नहीं दे दी है ।
सं कृित और िशक्षा संबंधी अिधकार
29. अ पसंख्यक-वग के िहत का संरक्षण–(1) भारत के रा यक्षेत्र या उसके िकसी
भाग के िनवासी नागिरक के िकसी अनुभाग को, िजसकी अपनी िवशेष भाषा, िलिप या
सं कृित है , उसे बनाए रखने का अिधकार होगा ।
(2) रा य द्वारा पोिषत या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िकसी िशक्षा सं था म
प्रवेश से िकसी भी नागिरक को केवल धमर्, मल
ू वंश, जाित, भाषा या इनम से िकसी के आधार
पर वंिचत नहीं िकया जाएगा ।
30. िशक्षा सं थाओं की थापना और प्रशासन करने का अ पसंख्यक-वग का
अिधकार–(1) धमर् या भाषा पर आधािरत सभी अ पसंख्यक-वग को अपनी िच की िशक्षा
सं थाओं की थापना और प्रशासन का अिधकार होगा ।
1
[(1क) खंड (1) म िनिदर् िकसी अ पसंख्यक-वगर् द्वारा थािपत और प्रशािसत िशक्षा
सं था की संपि के अिनवायर् अजर्न के िलए उपबंध करने वाली िविध बनाते समय, रा य यह
सिु नि त करे गा िक ऐसी संपि के अजर्न के िलए ऐसी िविध द्वारा िनयत या उसके अधीन
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 16
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीषर् "संपि का अिधकार"
का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 17
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा (20-6-1964 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से उपखंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 18
1
[31ख. कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण–अनु छे द 31क म
अंतिवर् उपबंध की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, नवीं अनुसच ू ी म िविनिदर्
अिधिनयम और िविनयम म से और उनके उपबंध म से कोई इस आधार पर शू य या कभी
शू य हुआ नहीं समझा जाएगा िक वह अिधिनयम, िविनयम या उपबंध इस भाग के िक हीं
उपबंध द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी से असंगत है या उसे छीनता है या यन ू करता है
और िकसी यायालय या अिधकरण के िकसी प्रितकूल िनणर्य, िडक्री या आदे श के होते हुए भी,
उक्त अिधिनयम और िविनयम म से प्र येक, उसे िनरिसत या संशोिधत करने की िकसी सक्षम
िवधान-मंडल की शिक्त के अधीन रहते हुए, प्रव ृ बना रहे गा ।]
2
[31ग. कुछ िनदे शक त व को प्रभावी करने वाली िविधय की याविृ –अनु छे द 13
म िकसी बात के होते हुए भी, कोई िविध, जो 3[भाग 4 म अिधकिथत सभी या िक हीं त व ]
को सिु नि त करने के िलए रा य की नीित को प्रभावी करने वाली है , इस आधार पर शू य
नहीं समझी जाएगी िक वह 4[अनु छे द 14 या अनु छे द 19] द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी
5
से असंगत है या उसे छीनती है या यनू करती है [और कोई िविध, िजसम यह घोषणा है िक
वह ऐसी नीित को प्रभावी करने के िलए है , िकसी यायालय म इस आधार पर प्र गत नहीं
की जाएगी िक वह ऐसी नीित को प्रभावी नहीं करती है ]:
परं तु जहां ऐसी िविध िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस
अनु छे द के उपबंध उस िविध को तब तक लागू नहीं ह गे जब तक ऐसी िविध को, जो
रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखी गई है , उसकी अनुमित प्रा नहीं हो गई है ।
6
31घ. [रा िवरोधी िक्रयाकलाप के संबंध म िविधय की याविृ ।]–संिवधान
(ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
सांिवधािनक उपचार का अिधकार
32. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए उपचार–(1) इस भाग
द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए समिु चत कायर्वािहय द्वारा उ चतम यायालय
म समावेदन करने का अिधकार प्र याभत ू िकया जाता है ।
(2) इस भाग द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए उ चतम
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (प चीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) “अनु छे द 39 के खंड (ख) या
खंड (ग) म िविनिदर् िसद्धांत ” के थान पर प्रित थािपत । धारा 4 को उ चतम यायालय द्वारा, िमनवार् िम स
िल0 और अ य बनाम भारत संघ और अ य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 म अिविधमा य घोिषत कर िदया
गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
5. उ चतम यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल रा य ए.आई.आर. 1973, एस0सी0 1461 म ितरछे टाइप म
िदए गए उपबंध को अिविधमा य घोिषत कर िदया है ।
6. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 19
यायालय को ऐसे िनदे श या आदे श या िरट, िजनके अंतगर्त बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श,
प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उप्रेषण िरट ह, जो भी समिु चत हो, िनकालने की शिक्त होगी ।
(3) उ चतम यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रद शिक्तय पर प्रितकूल
प्रभाव डाले िबना, संस , उ चतम यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्त य िक हीं या सभी
शिक्तय का िकसी अ य यायालय को अपनी अिधकािरता की थानीय सीमाओं के भीतर
प्रयोग करने के िलए िविध द्वारा सशक्त कर सकेगी ।
(4) इस संिवधान द्वारा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, इस अनु छे द द्वारा प्र याभत
ू
अिधकार िनलंिबत नहीं िकया जाएगा ।
1
32क. [रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता पर अनु छे द 32 के अधीन कायर्वािहय
म िवचार न िकया जाना ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 3
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
2
[33. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार का, बल आिद को लागू होने म, उपांतरण करने
की संस की शिक्त–संस , िविध द्वारा, अवधारण कर सकेगी िक इस भाग द्वारा प्रद अिधकार
म से कोई,–
(क) सश बल के सद य को, या
(ख) लोक यव था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बल के सद य को, या
(ग) आसच ू ना या प्रित आसच
ू ना के प्रयोजन के िलए रा य द्वारा थािपत
िकसी यूरो या अ य संगठन म िनयोिजत यिक्तय को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) म िनिदर् िकसी बल, यूरो या संगठन के प्रयोजन के
िलए थािपत दरू संचार प्रणाली म या उसके संबंध म िनयोिजत यिक्तय को,
लागू होने म, िकस िव तार तक िनबर्ि धत या िनराकृत िकया जाए िजससे उनके कतर् य का
उिचत पालन और उनम अनुशासन बना रहना सिु नि त रहे ।]
34. जब िकसी क्षेत्र म सेना िविध प्रव ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद अिधकार पर
िनबर् धन–इस भाग के पव ू ग
र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, संस िविध द्वारा संघ
या िकसी रा य की सेवा म िकसी यिक्त की या िकसी अ य यिक्त की िकसी ऐसे कायर् के
संबंध म क्षितपूितर् कर सकेगी जो उसने भारत के रा यक्षेत्र के भीतर िकसी ऐसे क्षेत्र म, जहां
सेना िविध प्रव ृ थी, यव था के बनाए रखने या पुनः थापन के संबंध म िकया है या ऐसे
क्षेत्र म सेना िविध के अधीन पािरत दं डादे श, िदए गए दं ड, आिद समपहरण या िकए गए
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 6 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (पचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनु छे द 33 के थान पर (11-9-1984 से)
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 20
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनु छे द 38 को
उसके खंड (1) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
21
भारत का संिवधान 22
1
[(च) बालक को वतंत्र और गिरमामय वातावरण म व थ
िवकास के अवसर और सुिवधाएं दी जाएं और बालक और अ पवय
यिक्तय की शोषण से तथा नैितक और आिथर्क पिर याग से रक्षा की जाए
।]
2
[39क. समान याय और िनःशु क िविधक सहायता–रा य यह सुिनि त
करे गा िक िविधक तंत्र इस प्रकार काम करे िक समान अवसर के आधार पर
याय सल ु भ हो और वह, िविश तया, यह सिु नि त करने के िलए िक आिथर्क
या िकसी अ य िनय ग्यता के कारण कोई नागिरक याय प्रा करने के अवसर
से वंिचत न रह जाए, उपयुक्त िवधान या कीम द्वारा या िकसी अ य रीित से
नःशु क िविधक सहायता की यव था करे गा ।]
40. ग्राम पंचायत का संगठन–रा य ग्राम पंचायत का संगठन करने के
िलए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शिक्तयां और प्रािधकार प्रदान करे गा जो उ ह
वाय शासन की इकाइय के प म कायर् करने योग्य बनाने के िलए आव यक
ह ।
41. कुछ दशाओं म काम, िशक्षा और लोक सहायता पाने का अिधकार–
रा य अपनी आिथर्क साम यर् और िवकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के,
िशक्षा पाने के और बेकारी, बढ़
ु ापा, बीमारी और नःशक्तता तथा अ य अनहर् अभाव
की दशाओं म लोक सहायता पाने के अिधकार को प्रा कराने का प्रभावी उपबंध
करे गा ।
42. काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं का तथा प्रसूित सहायता
का उपबंध–रा य काम की यायसंगत और मानवोिचत दशाओं को सुिनि त करने
के िलए और प्रसूित सहायता के िलए उपबंध करे गा ।
43. कमर्कार के िलए िनवार्ह मजदरू ी आिद–रा य, उपयुक्त िवधान या
आिथर्क संगठन द्वारा या िकसी अ य रीित से कृिष के, उद्योग के या अ य प्रकार
के सभी कमर्कार को काम, िनवार्ह मजदरू ी, िश जीवन तर और अवकाश का
संपूणर् उपभोग सुिनि त करने वाली काम की दशाएं तथा सामािजक और
सां कृितक अवसर प्रा कराने का प्रयास करे गा और िविश तया ग्राम म कुटीर
उद्योग को वैयिक्तक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करे गा ।
3
[43क. उद्योग के प्रबंध म कमर्कार का भाग लेना–रा य िकसी उद्योग म
लगे हुए उपक्रम , थापन या अ य संगठन के प्रबंध म कमर्कार का भाग
लेना सुिनि त करने के िलए उपयुक्त िवधान द्वारा या िकसी अ य रीित से कदम
उठाएगा ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 23
1
[43ख. सहकारी सोसाइिटय का संवधर्न–रा य, सहकारी सोसाइिटय की
वैि छक िवरचना, उनके वशासी कायर्करण, लोकतांित्रक िनयंत्रण और विृ क
प्रबंधन का संवधर्न करने का प्रयास करे गा ।]
44. नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता–रा य, भारत के सम त
रा यक्षेत्र म नागिरक के िलए एक समान िसिवल संिहता प्रा कराने का प्रयास
करे गा ।
2
[45. छह वषर् से कम आयु के बालक के िलए प्रारं िभक बा याव था दे ख-
रे ख और िशक्षा का उपबंध–रा य सभी बालक के िलए छह वषर् की आयु परू ी
करने तक, प्रारं िभक बा याव था दे ख-रे ख और िशक्षा दे ने के िलए उपबंध करने का
प्रयास करे गा ।]
46. अनस ु ूिचत जाितय , अनुसूिचत जनजाितय और अ य दब ु ल
र् वग के
िशक्षा और अथर् संबंधी िहत की अिभविृ द्ध–रा य, जनता के दब ु ल
र् वग के,
िविश तया, अनस ु िू चत जाितय और अनस ु िू चत जनजाितय के िशक्षा और अथर्
संबंधी िहत की िवशेष सावधानी से अिभविृ द्ध करे गा और सामािजक अ याय और
सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करे गा ।
47. पोषाहार तर और जीवन तर को ऊंचा करने तथा लोक वा य
का सुधार करने का रा य का कतर् य–रा य, अपने लोग के पोषाहार तर और
जीवन तर को ऊंचा करने और लोक वा य के सुधार को अपने प्राथिमक
कतर् य म मानेगा और रा य, िविश तया, मादक पेय और वा य के िलए
हािनकर ओषिधय के, औषधीय प्रयोजन से िभ न, उपभोग का प्रितषेध करने का
प्रयास करे गा ।
48. कृिष और पशप ु ालन का संगठन–रा य, कृिष और पशप ु ालन को
आधुिनक और वैज्ञािनक प्रणािलय से संगिठत करने का प्रयास करे गा और
िविश तया गाय और बछड़ तथा अ य दध ु ा और वाहक पशुओं की न ल के
पिररक्षण और सध ु ार के िलए और उनके वध का प्रितषेध करने के िलए कदम
उठाएगा ।
3
[48क. पयार्वरण का संरक्षण तथा संवधर्न और वन तथा व य जीव की
रक्षा–रा य, दे श के पयार्वरण के संरक्षण तथा संवधर्न का और वन तथा व य
जीव की रक्षा करने का प्रयास करे गा ।]
1. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 3 द्वारा (15-2-2012 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 3 द्वारा (1-4-2010 से) “अनु छे द 45” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 24
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत” के थान
पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
1
[भाग 4क
मूल कतर् य
51क. मल
ू कतर् य–भारत के प्र येक नागिरक का यह कतर् य होगा िक वह–
(क) संिवधान का पालन करे और उसके आदश , सं थाओं, रा वज और
रा गान का आदर करे ;
(ख) वतंत्रता के िलए हमारे रा ीय आंदोलन को प्रेिरत करने वाले उ च
आदश को दय म संजोए रखे और उनका पालन करे ;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षु ण
रखे ;
(घ) दे श की रक्षा करे और आ ान िकए जाने पर रा की सेवा करे ;
(ङ) भारत के सभी लोग म समरसता और समान भ्रात ृ व की भावना का
िनमार्ण करे जो धमर्, भाषा और प्रदे श या वगर् पर आधािरत सभी भेदभाव से परे
हो, ऐसी प्रथाओं का याग करे जो ि य के स मान के िव द्ध है ;
(च) हमारी सामािसक सं कृित की गौरवशाली परं परा का मह व समझे
और उसका पिररक्षण करे ;
(छ) प्राकृितक पयार्वरण की, िजसके अंतगर्त वन, झील, नदी और व य
जीव ह, रक्षा करे और उसका संवधर्न करे तथा प्रािण मात्र के प्रित दयाभाव रखे ;
(ज) वैज्ञािनक ि कोण, मानववाद और ज्ञानाजर्न तथा सुधार की भावना
का िवकास करे ;
(झ) सावर्जिनक संपि को सुरिक्षत रखे और िहंसा से दरू रहे ;
(ञ) यिक्तगत और सामूिहक गितिविधय के सभी क्षेत्र म उ कषर् की ओर
बढ़ने का सतत प्रयास करे िजससे रा िनरं तर बढ़ते हुए प्रय और उपलि ध की
नई ऊंचाइय को छू ले ;]
2
[(ट) यिद माता-िपता या संरक्षक है , छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु
वाले अपने, यथाि थित, बालक या प्रितपा य के िलए िशक्षा के अवसर प्रदान
करे ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 4 द्वारा (1-4-2010 से) अंतः थािपत ।
25
भाग 5
संघ
अ याय 1–कायर्पािलका
रा पित और उपरा पित
52. भारत का रा पित–भारत का एक रा पित होगा ।
53. संघ की कायर्पािलका शिक्त–(1) संघ की कायर्पािलका शिक्त रा पित म िनिहत
होगी और वह इसका प्रयोग इस संिवधान के अनुसार वयं या अपने अधीन थ
अिधकािरय के द्वारा करे गा ।
(2) पूवग
र् ामी उपबंध की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, संघ के रक्षा
बल का सव च समादे श रा पित म िनिहत होगा और उसका प्रयोग िविध द्वारा
िविनयिमत होगा ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात–
(क) िकसी िवद्यमान िविध द्वारा िकसी रा य की सरकार या अ य
प्रािधकारी को प्रदान िकए गए कृ य रा पित को अंतिरत करने वाली नहीं समझी
जाएगी ; या
(ख) रा पित से िभ न अ य प्रािधकािरय को िविध द्वारा कृ य प्रदान करने
से संस को िनवािरत नहीं करे गी ।
54. रा पित का िनवार्चन–रा पित का िनवार्चन ऐसे िनवार्चकगण के सद य करगे
िजसम–
(क) संस के दोन सदन के िनवार्िचत सद य ; और
(ख) रा य की िवधान सभाओं के िनवार्िचत सद य,
ह गे ।
[ प ीकरण–इस अनु छे द और अनु छे द 55 म, “रा य” के अंतगर्त िद ली
1
1. संिवधान (स रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतः थािपत ।
* पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 3 द्वारा (1-10-2006 से) अब यह पुडुचेरी है ।
26
भारत का संिवधान 27
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) प ीकरण के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 2 द्वारा “2000” के थान पर (21-2-2002 से)
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 28
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख”
श द का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 29
परं तु िजस िकसी अविध के दौरान उपरा पित, अनु छे द 65 के अधीन रा पित के
प म कायर् करता है या रा पित के कृ य का िनवर्हन करता है , उस अविध के दौरान
वह रा य सभा के सभापित के पद के कतर् य का पालन नहीं करे गा और वह अनु छे द
97 के अधीन रा य सभा के सभापित को संदेय वेतन या भ े का हकदार नहीं होगा ।
65. रा पित के पद म आकि मक िरिक्त के दौरान या उसकी अनुपि थित म
उपरा पित का रा पित के प म कायर् करना या उसके कृ य का िनवर्हन–(1) रा पित
की म ृ यु, पद याग या पद से हटाए जाने या अ य कारण से उसके पद म हुई िरिक्त की
दशा म उपरा पित उस तारीख तक रा पित के प म कायर् करे गा िजस तारीख को ऐसी
िरिक्त को भरने के िलए इस अ याय के उपबंध के अनुसार िनवार्िचत नया रा पित
अपना पद ग्रहण करता है ।
(2) जब रा पित अनुपि थित, बीमारी या अ य िकसी कारण से अपने कृ य का
िनवर्हन करने म असमथर् है तब उपरा पित उस तारीख तक उसके कृ य का िनवर्हन
करे गा िजस तारीख को रा पित अपने कतर् य को िफर से संभालता है ।
(3) उपरा पित को उस अविध के दौरान और उस अविध के संबंध म, जब वह
रा पित के प म इस प्रकार कायर् कर रहा है या उसके कृ य का िनवर्हन कर रहा है ,
रा पित की सभी शिक्तयां और उ मुिक्तयां ह गी तथा वह ऐसी उपलि धय , भ और
िवशेषािधकार का जो संस , िविध द्वारा, अवधािरत करे , और जब तक इस िनिम इस
प्रकार उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक ऐसी उपलि धय , भ और िवशेषािधकार का,
जो दस ू री अनुसूची म िविनिदर् ह, हकदार होगा ।
66. उपरा पित का िनवार्चन–(1) उपरा पित का िनवार्चन 1[संस के दोन सदन
के सद य से िमलकर बनने वाले िनवार्चकगण के सद य ] द्वारा आनुपाितक प्रितिनिध व
पद्धित के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे िनवार्चन म मतदान गु
होगा ।
(2) उपरा पित संस के िकसी सदन का या िकसी रा य के िवधान-मंडल के
िकसी सदन का सद य नहीं होगा और यिद संस के िकसी सदन का या िकसी रा य के
िवधान-मंडल के िकसी सदन का कोई सद य उपरा पित िनवार्िचत हो जाता है तो यह
समझा जाएगा िक उसने उस सदन म अपना थान उपरा पित के प म अपने पद
ग्रहण की तारीख से िरक्त कर िदया है ।
(3) कोई यिक्त उपरा पित िनवार्िचत होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नागिरक है ,
(ख) पतीस वषर् की आयु पूरी कर चुका है , और
(ग) रा य सभा का सद य िनवार्िचत होने के िलए अिहर्त है ।
1. संिवधान (ग्यारहवां संशोधन) अिधिनयम, 1961 की धारा 2 द्वारा “संयुक्त अिधवेशन म समवेत संस के दोन सदन
के सद य ” के थान पर (19-12-1961 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 31
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख”
श द का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 32
1. अनु छे द 71, संिवधान (उनतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से) और त प ात ्
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से) संशोिधत होकर उपरोक्त प
म आया ।
भारत का संिवधान 33
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (1-1-2004 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 35
1. दे िखए समय-समय पर यथा संशोिधत अिधसूचना सं. का.आ.2297, तारीख 3 नवंबर, 1958, भारत का राजपत्र,
असाधारण, 1958, भाग 2, अनुभाग 3(ii), प ृ 1315 ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 14 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंतः थािपत िकया
गया था और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 12 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 36
1. संिवधान (पतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) “रा य सभा” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (छ ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के
उपबंध के अधीन रहते हुए” श द का लोप िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 37
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख म
िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा “पहली अनुसूची के भाग ग म िविनिदर् रा य ” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा अनु छे द 81 और अनु छे द 82 के थान पर
प्रित थािपत ।
4. संिवधान (पतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) “अनु छे द 331 के उपबंध के
अधीन रहते हुए” के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (छ ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “और दसवीं अनुसूची के पैरा 4”
श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
6. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ
प चीस सद य " के थान पर प्रित थािपत ।
7. संिवधान (इकतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1973 की धारा 2 द्वारा “प चीस सद य ” के थान पर (17-10-1973
से) प्रित थािपत ।
8. संिवधान (इकतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1973 की धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) प चीस सद य के थान पर
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 38
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 3 द्वारा “2000” के थान पर (21-2-2002 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 3 द्वारा कितपय श द के थान पर (21-2-2002 से)
प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सतासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा "1991" के थान पर (22-6-2003 से
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
6. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 4 द्वारा "2000" (21-2-2002 से) प्रित थािपत ।
7. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 4 द्वारा कितपय श द के थान पर (21-2-2002 से)
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 39
(2) लोक सभा, यिद पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम
अिधवेशन के िलए िनयत तारीख से 2[पांच वषर्] तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं और
2
[पांच वषर्] की उक्त अविध की समाि का पिरणाम लोक सभा का िवघटन होगा :
84. संस की सद यता के िलए अहर् ता–कोई यिक्त संस के िकसी थान को
भरने के िलए चुने जाने के िलए अिहर्त तभी होगा जब–
3
[(क) वह भारत का नागिरक है और िनवार्चन आयोग द्वारा इस िनिम
प्रािधकृत िकसी यिक्त के समक्ष तीसरी अनुसूची म इस प्रयोजन के िलए िदए गए
प्र प के अनुसार शपथ लेता है या प्रितज्ञान करता है और उस पर अपने
ह ताक्षर करता है ;]
1. संिवधान (सतासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा "1991" के थान पर (22-6-2003 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) “छह वषर्” श द के थान
पर प्रित थािपत । संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्”
मूल श द के थान पर “छह वषर्” श द प्रित थािपत िकए गए थे ।
3. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 40
(ग) उसके पास ऐसी अ य अहर् ताएं ह जो संस द्वारा बनाई गई िकसी
िविध द्वारा या उसके अधीन इस िनिम िविहत की जाएं ।
1
[85. संस के सत्र, सत्रावसान और िवघटन—(1) रा पित समय-समय पर, संस
के प्र येक सदन को ऐसे समय और थान पर, जो वह ठीक समझे, अिधवेशन के िलए
आहूत करे गा, िक तु उसके एक सत्र की अंितम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक
के िलए िनयत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा ।]
(2) रा पित, समय-समय पर–
(क) सदन का या िकसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) लोक सभा का िवघटन कर सकेगा ।
86. सदन म अिभभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा पित का अिधकार–
(1) रा पित, संस के िकसी एक सदन म या एक साथ समवेत दोन सदन म
अिभभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के िलए सद य की उपि थित की अपेक्षा कर
सकेगा ।
(2) रा पित, संस म उस समय लंिबत िकसी िवधेयक के संबंध म संदेश या
कोई अ य संदेश, संस के िकसी सदन को भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश
इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा िवचार करने के िलए अपेिक्षत िवषय
पर सुिवधानुसार शीघ्रता से िवचार करे गा ।
87. रा पित का िवशेष अिभभाषण–(1) रा पित, 2[लोक सभा के िलए प्र येक
साधारण िनवार्चन के प ात ् प्रथम सत्र के आरं भ म और प्र येक वषर् के प्रथम सत्र के
आरं भ म] एक साथ समवेत संस के दोन सदन म अिभभाषण करे गा और संस को
उसके आ ान के कारण बताएगा ।
(2) प्र येक सदन की प्रिक्रया का िविनयमन करने वाले िनयम द्वारा ऐसे
अिभभाषण म िनिदर् िवषय की चचार् के िलए समय िनयत करने के िलए 3***
उपबंध
िकया जाएगा ।
88. सदन के बारे म मंित्रय और महा यायवादी के अिधकार–प्र येक मंत्री और
भारत के महा यायवादी को यह अिधकार होगा िक वह िकसी भी सदन म, सदन की
िकसी संयुक्त बैठक म और संस की िकसी सिमित म, िजसम उसका नाम सद य के
प म िदया गया है , बोले और उसकी कायर्वािहय म अ यथा भाग ले, िक तु इस
अनु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नहीं होगा ।
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 7 द्वारा “प्र येक सत्र” के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 7 द्वारा “और सदन के अ य कायर् पर इस चचार् को अग्रता
दे ने के िलए” श द का (18-6-1951 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 41
संस के अिधकारी
89. रा य सभा का सभापित और उपसभापित–(1) भारत का उपरा पित रा य
सभा का पदे न सभापित होगा ।
(2) रा य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने िकसी सद य को अपना उपसभापित चन
ु े गी
और जब-जब उपसभापित का पद िरक्त होता है तब-तब रा य सभा िकसी अ य सद य
को अपना उपसभापित चुनेगी ।
90. उपसभापित का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया जाना–रा य सभा
के उपसभापित के प म पद धारण करने वाला सद य–
(क) यिद रा य सभा का सद य नहीं रहता है तो अपना पद िरक्त कर
दे गा ;
(ख) िकसी भी समय सभापित को संबोिधत अपने ह ताक्षर सिहत लेख
द्वारा अपना पद याग सकेगा ; और
(ग) रा य सभा के त कालीन सम त सद य के बहुमत से पािरत संक प
द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
पर तु खंड (ग) के प्रयोजन के िलए कोई संक प तब तक प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा जब तक िक उस संक प को प्र तािवत करने के आशय की कम से कम चौदह
िदन की सूचना न दे दी गई हो ।
91. सभापित के पद के कतर् य का पालन करने या सभापित के प म कायर्
करने की उपसभापित या अ य यिक्त की शिक्त–(1) जब सभापित का पद िरक्त है या ऐसी
अविध म जब उपरा पित, रा पित के प म कायर् कर रहा है या उसके कृ य का
िनवर्हन कर रहा है , तब उपसभापित या यिद उपसभापित का पद भी िरक्त है तो, रा य
सभा का ऐसा सद य िजसको रा पित इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त करे , उस पद के
कतर् य का पालन करे गा ।
(2) रा य सभा की िकसी बैठक से सभापित की अनपु ि थित म उपसभापित, या
यिद वह भी अनुपि थत है तो ऐसा यिक्त, जो रा य सभा की प्रिक्रया के िनयम द्वारा
अवधािरत िकया जाए, या यिद ऐसा कोई यिक्त उपि थत नहीं है तो ऐसा अ य यिक्त,
जो रा य सभा द्वारा अवधािरत िकया जाए, सभापित के प म कायर् करे गा ।
92. जब सभापित या उपसभापित को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना–(1) रा य सभा की िकसी बैठक म, जब उपरा पित को
उसके पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब सभापित, या जब उपसभापित को
उसके पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब उपसभापित, उपि थत रहने पर
भी, पीठासीन नहीं होगा और अनु छे द 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्र येक बैठक के
संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे उस बैठक के संबंध म लागू होते ह िजससे,
यथाि थित, सभापित या उपसभापित अनुपि थत है ।
भारत का संिवधान 42
(2) संस , िविध द्वारा, संस के प्र येक सदन के सिचवीय कमर्चािरवंद
ृ म भतीर्
का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन कर सकेगी ।
कायर् संचालन
99. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान–संस के प्र येक सदन का प्र येक सद य
अपना थान ग्रहण करने से पहले, रा पित या उसके द्वारा इस िनिम िनयक्त
ु यिक्त के
समक्ष, तीसरी अनुसूची म इस प्रयोजन के िलए िदए गए प्र प के अनस
ु ार, शपथ लेगा
या प्रितज्ञान करे गा और उस पर अपने ह ताक्षर करे गा ।
100. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की शिक्त
और गणपूितर्–(1) इस संिवधान म यथा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, प्र येक सदन की
बैठक म या सदन की संयुक्त बैठक म सभी प्र का अवधारण, अ यक्ष को अथवा
सभापित या अ यक्ष के प म कायर् करने वाले यिक्त को छोड़कर, उपि थत और मत
दे ने वाले सद य के बहुमत से िकया जाएगा ।
(2) संस के िकसी सदन की सद यता म कोई िरिक्त होने पर भी, उस सदन को
कायर् करने की शिक्त होगी और यिद बाद म यह पता चलता है िक कोई यिक्त, जो ऐसा
करने का हकदार नहीं था, कायर्वािहय म उपि थत रहा है या उसने मत िदया है या
अ यथा भाग िलया है तो भी संस की कोई कायर्वाही िविधमा य होगी ।
1
[(3) जब तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक संस के प्र येक
सदन का अिधवेशन गिठत करने के िलए गणपूितर् सदन के सद य की कुल संख्या का
दसवां भाग होगी ।
सद य की िनरहर्ताएं
101. थान का िरक्त होना–(1) कोई यिक्त संस के दोन सदन का सद य नहीं
होगा और जो यिक्त दोन सदन का सद य चुन िलया जाता है उसके एक या दस
ू रे
सदन के थान को िरक्त करने के िलए संस िविध द्वारा उपबंध करे गी ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 18 द्वारा (तारीख अिधसूिचत नहीं हुई थी) खंड (3) और
खंड (4) को लोप िकया गया गया िक तु संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा
(20-6-1978 से) उक्त संशोधन को िनरिसत कर िदया गया ।
भारत का संिवधान 45
(4) यिद संस के िकसी सदन का कोई सद य साठ िदन की अविध तक सदन
की अनुज्ञा के िबना उसके सभी अिधवेशन से अनुपि थत रहता है तो सदन उसके थान
को िरक्त घोिषत कर सकेगा :
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
ु ूची द्वारा “ऐसे िकसी रा य”
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनस के थान पर
प्रित थािपत ।
3. दे िखए, िविध मंत्रालय की अिधसूचना संख्या एफ.46/50-सी, तारीख 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प ृ 678 म प्रकािशत समसामियक सद यता प्रितषेध िनयम,1950 ।
4. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) “अनु छे द 102 के खंड (1)” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) प्रित थािपत ।
6. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 46
(ङ) यिद वह संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन
इस प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
2
[ प ीकरण–इस खंड के प्रयोजन के िलए,] कोई यिक्त केवल इस कारण भारत
सरकार के या िकसी रा य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं
समझा जाएगा िक वह संघ का या ऐसे रा य का मंत्री है ।
3
[(2) कोई यिक्त संस के िकसी सदन का सद य होने के िलए िनरिहर्त होगा
यिद वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार िनरिहर्त हो जाता है ।]
4
[103. सद य की िनरहर् ताओं से संबंिधत प्र पर िविन य–(1) यिद यह प्र
उठता है िक संस के िकसी सदन का कोई सद य अनु छे द 102 के खंड (1) म विणर्त
िकसी िनरहर्ता से ग्र त हो गया है या नहीं तो वह प्र रा पित को िविन य के िलए
िनदिशत िकया जाएगा और उसका िविन य अंितम होगा ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 19 द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) को (तारीख
अिधसूिचत नहीं की गई) से प्रित थािपत िकया गया । इस संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया गया ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनु छे द के प्रयोजन के
िलए” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंतः थािपत ।
4. अनु छे द 103, संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 20 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत
और त प ात ् संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 14 द्वारा (20-6-1979 से) संशोिधत
होकर उपरोक्त प म पिठत ।
भारत का संिवधान 47
(2) ऐसे िकसी प्र पर िविन य करने के पहले रा पित िनवार्चन आयोग की राय
लेगा और ऐसी राय के अनुसार कायर् करे गा ।]
1
[(3) अ य बात म संस के प्र येक सदन की और प्र येक सदन के सद य
और सिमितय की शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां ऐसी ह गी जो संस , समय-
समय पर, िविध द्वारा, पिरिनि त करे और जब तक वे इस प्रकार पिरिनि त नहीं की
जाती ह तब तक 2[वही ह गी जो संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की
धारा 15 के प्रव ृ होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सद य और सिमितय
की थीं ।]]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 21 द्वारा कितपय श द को "तारीख अिधसूिचत नहीं की
गई)" प्रित थािपत नहीं िकया गया । इस संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 48
(2) अनु छे द 108 और अनु छे द 109 के उपबंध के अधीन रहते हुए, कोई
िवधेयक संस के सदन द्वारा तब तक पािरत िकया गया नहीं समझा जाएगा जब तक
संशोधन के िबना या केवल ऐसे संशोधन सिहत, िजन पर दोन सदन सहमत हो गए ह,
उस पर दोन सदन सहमत नहीं हो जाते ह ।
(3) संस म लंिबत िवधेयक सदन के सत्रावसान के कारण यपगत नहीं होगा ।
(4) रा य सभा म लंिबत िवधेयक, िजसको लोक सभा ने पािरत नहीं िकया है ,
लोक सभा के िवघटन पर यपगत नहीं होगा ।
(5) कोई िवधेयक, जो लोक सभा म लंिबत है या जो लोक सभा द्वारा पािरत कर
िदया गया है और रा य सभा म लंिबत है , अनु छे द 108 के उपबंध के अधीन रहते
हुए, लोक सभा के िवघटन पर यपगत हो जाएगा ।
108. कुछ दशाओं म दोन सदन की संयुक्त बैठक–(1) यिद िकसी िवधेयक के
ू रे सदन को पारे िषत िकए जाने के प ात ्,–
एक सदन द्वारा पािरत िकए जाने और दस
(क) दस
ू रे सदन द्वारा िवधेयक अ वीकर कर िदया गया है , या
(ख) िवधेयक म िकए जाने वाले संशोधन के बारे म दोन सदन अंितम
प से असहमत हो गए ह, या
(ग) दस
ू रे सदन को िवधेयक प्रा होने की तारीख से उसके द्वारा िवधेयक
पािरत िकए िबना छह मास से अिधक बीत गए ह,
भारत का संिवधान 49
तो उस दशा के िसवाय, िजसम लोक सभा का िवघटन होने के कारण िवधेयक यपगत
हो गया है , रा पित िवधेयक पर िवचार-िवमशर् करने और मत दे ने के प्रयोजन के िलए
सदन को संयुक्त बैठक म अिधवेिशत होने के िलए आहूत करने के अपने आशय की
सचू ना, यिद वे बैठक म ह तो संदेश द्वारा या यिद वे बैठक म नहीं ह तो लोक
अिधसूचना द्वारा दे गा :
पर तु इस खंड की कोई बात धन िवधेयक को लागू नहीं होगी ।
(2) छह मास की ऐसी अविध की गणना करने म, जो खंड (1) म िनिदर् है ,
िकसी ऐसी अविध को िहसाब म नहीं िलया जाएगा िजसम उक्त खंड के उपखंड (ग) म
िनिदर् सदन सत्राविसत या िनरं तर चार से अिधक िदन के िलए थिगत कर िदया जाता
है ।
(3) यिद रा पित ने खंड (1) के अधीन सदन को संयुक्त बैठक म अिधवेिशत
होने के िलए आहूत करने के अपने आशय की सूचना दे दी है तो कोई भी सदन िवधेयक
पर आगे कायर्वाही नहीं करे गा, िक तु रा पित अपनी अिधसच
ू ना की तारीख के प ात ्
िकसी समय सदन को अिधसूचना म िविनिदर् प्रयोजन के िलए संयुक्त बैठक म
अिधवेिशत होने के िलए आहूत कर सकेगा और, यिद वह ऐसा करता है तो, सदन
तद्नस
ु ार अिधवेिशत ह गे ।
(4) यिद सदन की संयुक्त बैठक म िवधेयक ऐसे संशोधन सिहत, यिद कोई ह ,
िजन पर संयुक्त बैठक म सहमित हो जाती है , दोन सदन के उपि थत और मत दे ने
वाले सद य की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पािरत हो जाता है तो इस संिवधान के
प्रयोजन के िलए वह दोन सदन द्वारा पािरत िकया गया समझा जाएगा :
पर तु संयुक्त बैठक म–
(क) यिद िवधेयक एक सदन से पािरत िकए जाने पर दस ू रे सदन द्वारा
संशोधन सिहत पािरत नहीं कर िदया गया है और उस सदन को, िजसम उसका
आरं भ हुआ था, लौटा नहीं िदया गया है तो ऐसे संशोधन से िभ न (यिद कोई
ह ), जो िवधेयक के पािरत होने म दे री के कारण आव यक हो गए ह, िवधेयक
म कोई और संशोधन प्र थािपत नहीं िकया जाएगा ;
(ख) यिद िवधेयक इस प्रकार पािरत कर िदया गया है और लौटा िदया
गया है तो िवधेयक म केवल पूव क्त संशोधन, और ऐसे अ य संशोधन, जो उन
िवषय से सस ु ंगत ह िजन पर सदन म सहमित नहीं हुई है , प्र थािपत िकए
जाएंगे,
और पीठासीन यिक्त का इस बारे म िविन य अंितम होगा िक कौन से संशोधन इस
खंड के अधीन ग्रा ह ।
(5) सदन की संयक्तु बैठक म अिधवेिशत होने के िलए आहूत करने के अपने
आशय की रा पित की सूचना के प ात ्, लोक सभा का िवघटन बीच म हो जाने पर भी,
इस अनु छे द के अधीन संयुक्त बैठक हो सकेगी और उसम िवधेयक पािरत हो सकेगा ।
109. धन िवधेयक के संबंध म िवशेष प्रिक्रया–(1) धन िवधेयक रा य सभा म
पुरः थािपत नहीं िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 50
(4) यिद लोक सभा, रा य सभा की िकसी भी िसफािरश को वीकार नहीं करती
है तो धन िवधेयक, रा य सभा द्वारा िसफािरश िकए गए िकसी संशोधन के िबना, दोन
सदन द्वारा उस प म पािरत िकया गया समझा जाएगा िजसम वह लोक सभा द्वारा
पािरत िकया गया था ।
(5) यिद लोक सभा द्वारा पािरत और रा य सभा को उसकी िसफािरश के िलए
पारे िषत धन िवधेयक उक्त चौदह िदन की अविध के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया
जाता है तो उक्त अविध की समाि पर वह दोन सदन द्वारा, उस प म पािरत िकया
गया समझा जाएगा िजसम वह लोक सभा द्वारा पािरत िकया गया था ।
(च) भारत की संिचत िनिध या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्रा करना
अथवा ऐसे धन की अिभरक्षा या उसका िनगर्मन अथवा संघ या रा य के लेखाओं
की संपरीक्षा ; या
115. अनप
ु ूरक, अितिरक्त या अिधक अनद
ु ान–(1) यिद–
ु ार बनाई गई िकसी िविध द्वारा
(क) अनु छे द 114 के उपबंध के अनस
िकसी िविश सेवा पर चालू िव ीय वषर् के िलए यय िकए जाने के िलए
प्रािधकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन के िलए अपयार् पाई जाती है या उस
वषर् के वािषर्क िव ीय िववरण म अनु यात न की गई िकसी नई सेवा पर
अनप ु रू क या अितिरक्त यय की चालू िव ीय वषर् के दौरान आव यकता पैदा हो
गई है , या
(ख) िकसी िव ीय वषर् के दौरान िकसी सेवा पर, उस वषर् और उस सेवा
के िलए अनदु ान की गई रकम से अिधक कोई धन यय हो गया है ,
तो रा पित, यथाि थित, संस के दोन सदन के समक्ष उस यय की प्राक्किलत रकम को
दिशर्त करने वाला दस
ू रा िववरण रखवाएगा या लोक सभा म ऐसे आिधक्य के िलए मांग
प्र तत
ु करवाएगा ।
भारत का संिवधान 54
(2) ऐसे िकसी िववरण और यय या मांग के संबंध म तथा भारत की संिचत िनिध
म से ऐसे यय या ऐसी मांग से संबंिधत अनद ु ान की पिू तर् के िलए धन का िविनयोग
प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िकसी िविध के संबंध म भी, अनु छे द 112,
अनु छे द 113 और अनु छे द 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी ह गे जैसे वे वािषर्क िव ीय
िववरण और उसम विणर्त यय या िकसी अनुदान की िकसी मांग के संबध ं म और भारत
की संिचत िनिध म से ऐसे यय या अनद ु ान की पिू तर् के िलए धन का िविनयोग प्रािधकृत
करने के िलए बनाई जाने वाली िविध के संबंध म प्रभावी ह ।
ु ान और अपवादानुदान–(1) इस अ याय के पव
116. लेखानुदान, प्र ययानद ू ग
र् ामी
उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को–
शिक्त होगी और िजन प्रयोजन के िलए उक्त अनुदान िकए गए ह उनके िलए भारत की
संिचत िनिध म से धन िनकालना िविध द्वारा प्रािधकृत करने की संस को शिक्त होगी ।
(2) खंड (1) के अधीन िकए जाने वाले िकसी अनुदान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाली िकसी िविध के संबंध म अनु छे द 113 और अनु छे द 114 के उपबंध
वैसे ही प्रभावी ह गे जैसे वे वािषर्क िव ीय िववरण म विणर्त िकसी यय के बारे म कोई
अनद ु ान करने के संबंध म और भारत की संिचत िनिध म से ऐसे यय की पिू तर् के िलए
धन का िविनयोग प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िविध के संबंध म प्रभावी
ह ।
(2) कोई िवधेयक या संशोधन उक्त िवषय म से िकसी के िलए उपबंध करने
भारत का संिवधान 55
120. संस म प्रयोग की जाने वाली भाषा–(1) भाग 17 म िकसी बात के होते हुए
संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 22 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
कर िदया गया ।
भारत का संिवधान 56
भी, िक तु अनु छे द 348 के उपबंध के अधीन रहते हुए, संस म कायर् िह दी म या अंग्रेजी
म िकया जाएगा :
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 16 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) का लोप िकया
गया, इससे पव
ू र् यह खंड संिवधान (अड़तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 2 द्वारा (भत
ू लक्षी प्रभाव से)
अंतः थािपत िकया गया था ।
2. उ चतम यायालय ( यायाधीश संख्या) संशोधन अिधिनयम, 2008 (2009 का 11) की धारा 2 "सात" के थान
पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) "उ चतम यायालय के और
रा य के उ च यायालय के ऐसे यायाधीश से परामशर् करने के प ात ्, िजनसे रा पित इस प्रयोजन के िलए
परामशर् करना आव यक समझे" श द के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन
िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श
द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
4. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) पहले पर तुक का लोप िकया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है
। संशोधन के पूवर् यह िन नानुसार था--
“पर तु मुख्य यायमूितर् से िभ न िकसी यायाधीश की िनयुिक्त की दशा म भारत के मुख्य यायमूितर् से
सदै व परामशर् िकया जाएगा :”।
5. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “पर तु यह और िक” श द
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा
अिभखंिडत कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 58
1. संिवधान (प द्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अ तः थािपत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म
उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 59
1. संिवधान (चौवनवां संशोधन) अिधिनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 60
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 4 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य यायमूितर्
रा पित की पूवर् सहमित से” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर्
एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख
16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
2. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 5 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य यायमूितर्,”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा
अिभखंिडत कर िदया गया है ।
3. संिवधान (प द्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 61
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 5 द्वारा पर तुक के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत
।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 23 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “यिद उ च यायालय
प्रमािणत कर दे ” के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (2) का लोप िकया गया
।
भारत का संिवधान 62
(3) जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे िदया गया है *** वहां उस मामले म कोई पक्षकार इस
1
आधार पर उ चतम यायालय म अपील कर सकेगा िक पूव क्त िकसी प्र का िविन य
गलत िकया गया है 4***।
प ीकरण–इस अनु छे द के प्रयोजन के िलए, “अंितम आदे श” पद के अंतगर्त ऐसे
िववाद्यक का िविन य करने वाला आदे श है जो, यिद अपीलाथीर् के पक्ष म िविनि त
िकया जाता है तो, उस मामले के अंितम िनपटारे के िलए पयार् होगा ।
133. उ च यायालय से िसिवल िवषय से संबंिधत अपील म उ चतम यायालय
की अपीली अिधकािरता–2[(1) भारत के रा यक्षेत्र म िकसी उ च यायालय की िसिवल
कायर्वाही म िदए गए िकसी िनणर्य, िडक्री या अंितम आदे श की अपील उ चतम
यायालय म होगी 3[यिद उ च यायालय अनु छे द 134क के अधीन प्रमािणत कर दे ता
है िक]–
(क) उस मामले म िविध का यापक मह व का कोई सारवान ् प्र अंतवर्िलत
है ; और
(ख) उ च यायालय की राय म उस प्र का उ चतम यायालय द्वारा
िविन य आव यक है ।]
(2) अनु छे द 132 म िकसी बात के होते हुए भी, उ चतम यायालय म खंड (1) के
अधीन अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधार म यह आधार भी बता
सकेगा िक इस संिवधान के िनवर्चन के बारे म िविध के िकसी सारवान ् प्र का िविन य
गलत िकया गया है ।
(3) इस अनु छे द म िकसी बात के होते हुए भी, उ च यायालय के एक
यायाधीश के िनणर्य, िडक्री या अंितम आदे श की अपील उ चतम यायालय म तब तक
नहीं होगी जब तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे ।
134. दांिडक िवषय म उ चतम यायालय की अपीली अिधकािरता–(1) भारत के
रा यक्षेत्र म िकसी उ च यायालय की दांिडक कायर्वाही म िदए गए िकसी िनणर्य,
अंितम आदे श या दं डादे श की अपील उ चतम यायालय म होगी यिद–
(क) उस उ च यायालय ने अपील म िकसी अिभयुक्त यिक्त की दोषमुिक्त के
आदे श को उलट िदया है और उसको म ृ यु दं डादे श िदया है ; या
(ख) उस उ च यायालय ने अपने प्रािधकार के अधीन थ िकसी यायालय से
िकसी मामले को िवचारण के िलए अपने पास मंगा िलया है और ऐसे िवचारण म
अिभयुक्त यिक्त को िसद्धदोष ठहराया है और उसको म ृ यु दं डादे श िदया है ; या
(ग) वह उ च यायालय 4[अनु छे द 134क के अधीन प्रमािणत कर दे ता है ]
िक मामला उ चतम यायालय म अपील िकए जाने योग्य है :
पर तु उपखंड (ग) के अधीन अपील ऐसे उपबंध के अधीन रहते हुए होगी जो
अनु छे द 145 के खंड (1) के अधीन इस िनिम बनाए जाएं और ऐसी शत के अधीन
रहते हुए होगी जो उ च यायालय िनयत या अपेिक्षत करे ।
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “यिद उ च यायालय
प्रमािणत करे ” के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमािणत करता है ” के थान
पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 63
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 20 द्वारा (1-8-1979 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 64
(2) यिद संस िविध द्वारा उ चतम यायालय द्वारा ऐसी अिधकािरता और शिक्तय
के प्रयोग का उपबंध करती है तो उ चतम यायालय को िकसी िवषय के संबंध म ऐसी
अितिरक्त अिधकािरता और शिक्तयां ह गी जो भारत सरकार और िकसी रा य की सरकार
िवशेष करार द्वारा प्रदान करे ।
139. कुछ िरट िनकालने की शिक्तय का उ चतम यायालय को प्रद िकया जाना–
संस िविध द्वारा उ चतम यायालय को अनु छे द 32 के खंड (2) म विणर्त प्रयोजन से
िभ न िक हीं प्रयोजन के िलए ऐसे िनदे श, आदे श या िरट, िजनके अंतगर्त बंदी
प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध, अिधकार प ृ छा और उप्रेषण िरट ह, या उनम से कोई
िनकालने की शिक्त प्रदान कर सकेगी ।
1
[139क. कुछ मामल का अंतरण–2[(1) यिद ऐसे मामले, िजनम िविध के समान
या सारतः समान प्र अंतवर्िलत ह, उ चतम यायालय के और एक या अिधक उ च
यायालय के अथवा दो या अिधक उ च यायालय के समक्ष लंिबत ह और उ चतम
यायालय का वप्रेरणा से अथवा भारत के महा यायवादी द्वारा या ऐसे िकसी मामले के
िकसी पक्षकार द्वारा िकए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है िक ऐसे प्र यापक
मह व के सारवान ् प्र ह तो, उ चतम यायालय उस उ च यायालय या उन उ च
यायालय के समक्ष लंिबत मामले या मामल को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी
मामल को वंय िनपटा सकेगा :
पर तु उ चतम यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उक्त िविध के प्र का
अवधारण करने के प ात ् ऐसे प्र पर अपने िनणर्य की प्रितिलिप सिहत उस उ च
यायालय को, िजससे मामला मंगा िलया गया है , लौटा सकेगा और वह उ च यायालय
उसके प्रा होने पर उस मामले को ऐसे िनणर्य के अनु प िनपटाने के िलए आगे
कायर्वाही करे गा ।]
(2) यिद उ चतम यायालय याय के उ े य की पूितर् के िलए ऐसा करना
समीचीन समझता है तो वह िकसी उ च यायालय के समक्ष लंिबत िकसी मामले, अपील
या अ य कायर्वाही का अंतरण िकसी अ य उ च यायालय को कर सकेगा ।]
140. उ चतम यायालय की आनुषंिगक शिक्तयां–संस , िविध द्वारा, उ चतम
यायालय को ऐसी अनुपूरक शिक्तयां प्रदान करने के िलए उपबंध कर सकेगी जो इस
संिवधान के उपबंध म से िकसी से असंगत न ह और जो उस यायालय को इस
संिवधान द्वारा या इसके अधीन प्रद अिधकािरता का अिधक प्रभावी प से प्रयोग करने
के योग्य बनाने के िलए आव यक या वांछनीय प्रतीत ह ।
141. उ चतम यायालय द्वारा घोिषत िविध का सभी यायालय पर आबद्धकर होना–
उ चतम यायालय द्वारा घोिषत िविध भारत के रा यक्षेत्र के भीतर सभी यायालय पर
आबद्धकर होगी ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 24 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 21 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 65
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) “अनु छे द 131क और अनु छे द
139क” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3) के उपबंध ” के
थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) कितपय श द , अंक और
अक्षर का लोप िकया गया ।
5. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “ यूनतम संख्या” के थान
पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 67
(4) उ चतम यायालय प्र येक िनणर्य खल ु े यायालय म ही सुनाएगा, अ यथा नहीं
और अनु छे द 143 के अधीन प्र येक प्रितवेदन खुले यायालय म सुनाई गई राय के
अनुसार ही िदया जाएगा, अ यथा नहीं ।
(5) उ चतम यायालय द्वारा प्र येक िनणर्य और ऐसी प्र येक राय, मामले की
सुनवाई म उपि थत यायाधीश की बहुसंख्या की सहमित से ही दी जाएगी, अ यथा
नहीं, िक तु इस खंड की कोई बात िकसी ऐसे यायाधीश को, जो सहमत नहीं है , अपना
िवस मत िनणर्य या राय दे ने से िनवािरत नहीं करे गी ।
(2) संस द्वारा बनाई गई िविध के उपबंध के अधीन रहते हुए, उ चतम यायालय के
अिधकािरय और सेवक की सेवा की शत ऐसी ह गी जो भारत के मख् ु य यायमूितर् या उस
यायालय के ऐसे अ य यायाधीश या अिधकारी द्वारा, िजसे भारत के मुख्य यायमूितर् ने
इस प्रयोजन के िलए िनयम बनाने के िलए प्रािधकृत िकया है , बनाए गए िनयम द्वारा
िविहत की जाएं :
कतर् य का पालन और ऐसी शिक्तय का प्रयोग करे गा िज ह संस द्वारा बनाई गई िविध
द्वारा या उसके अधीन िविहत िकया जाए और जब तक इस िनिम इस प्रकार उपबंध नहीं
िकया जाता है तब तक, संघ के और रा य के लेखाओं के संबंध म ऐसे कतर् य का
पालन और ऐसी शिक्तय का प्रयोग करे गा जो इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले
क्रमशः भारत डोिमिनयन के और प्रांत के लेखाओं के संबंध म भारत के महालेखापरीक्षक
को प्रद थीं या उसके द्वारा प्रयोक्त य थीं ।
1
[150. संघ के और रा य के लेखाओं का प्र प–संघ के और रा य के लेखाओं को
ऐसे प्र प म रखा जाएगा जो रा पित, भारत के िनयंत्रक-महालेखापरीक्षक 2[की सलाह पर]
िविहत करे ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 27 द्वारा (1-4-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 22 द्वारा (20-6-1979 से) “से परामशर् के प ात ्” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” श द का (1-
11-1956 से) लोप िकया गया ।
भाग 6
1* * *
रा य
अ याय 1–साधारण
152. पिरभाषा–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद 2[के अंतगर्त ज म-ू क मीर रा य नहीं है ] ।
अ याय 2–कायर्पािलका
रा यपाल
153. रा य के रा यपाल–प्र येक रा य के िलए एक रा यपाल होगा :
[पर तु इस अनु छे द की कोई बात एक ही यिक्त को दो या अिधक रा य के
3
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के
भाग क म के” श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “का अथर् पहली अनुसूची के भाग
क म उि लिखत रा य है ” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 6 द्वारा जोड़ा गया ।
70
भारत का संिवधान 71
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 7 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 72
1. संिवधान (चौरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2006 की धारा 2 द्वारा (12-6-2006 से) “िबहार” के थान पर
प्रित थािपत ।
2 उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 (2011 का 15) की धारा 4 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (1-1-2004 से) अंतः थािपत ।
4. दे िखए अिधसूचना सं. का.आ. 21(अ), तारीख 7-1-2004 ।
भारत का संिवधान 74
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) खंड 4 अंतः थािपत िकया
गया था और उसका संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 75
167. रा यपाल को जानकारी दे ने, आिद के संबंध म मुख्यमंत्री के कतर् य–प्र येक
रा य के मख्
ु यमंत्री का यह कतर् य होगा िक वह–
(क) रा य के काय के प्रशासन संबंधी और िवधान िवषयक प्र थापनाओं
संबंधी मंित्र-पिरष के सभी िविन य रा यपाल को संसूिचत करे ;
(ख) रा य के काय के प्रशासन संबंधी और िवधान िवषयक प्र थापनाओं
संबंधी जो जानकारी रा यपाल मांगे, वह दे ; और
(ग) िकसी िवषय को िजस पर िकसी मंत्री ने िविन य कर िदया है िकं तु
मंित्र-पिरष ने िवचार नहीं िकया है , रा यपाल द्वारा अपेक्षा िकए जाने पर पिरष
के समक्ष िवचार के िलए रखे ।
अ याय 3–रा य का िवधान-मंडल
साधारण
168. रा य के िवधान-मंडल का गठन–(1) प्र येक रा य के िलए एक िवधान-
मंडल होगा जो रा यपाल और–
(क) 1*** 2[आंध्र प्रदे श], िबहार, 3*** 4[म य प्रदे श,] 5*** 6[महारा ],
[कनार्टक] 8*** 9*** [10[तिमलनाडु, तेलंगाना] 11[और उ र प्रदे श] रा य म दो
7
सदन से ;
1. “आंध्र प्रदे श” श द का आंध्र प्रदे श िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1985 (1985 का 34) की धारा 4 द्वारा
(1-6-1985 से) लोप िकया गया ।
2. आंध्र प्रदे श िवधान पिरष अिधिनयम, 2005 (2006 का 1) की धारा 3 द्वारा (30-3-2007 से) अंतः थािपत ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई” श द का लोप िकया
गया ।
4. इस उपखंड म “म य प्रदे श” श द के अंतः थापन के िलए संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा
8(2) के अधीन कोई तारीख िनयत नहीं की गई है ।
5. तिमलनाडु िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से)
“तिमलनाडु” श द का लोप िकया गया ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) अंतः थािपत ।
7. मैसूर रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) “मैसूर” के
थान पर प्रित थािपत, िजसे संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 8(1) द्वारा (1-11-1956 से)
अंतः थािपत िकया गया था ।
8. पंजाब िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) “पंजाब” श द
का लोप िकया गया ।
9. तिमलनाडु िवधान पिरष अिधिनयम, 2010 (2010 का 16) की धारा 3 द्वारा (तारीख बाद म अिधसूिचत की
जाएगी) अंतः थािपत ।
10. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 (2014 का 6) की धारा 96 द्वारा (1-6-2014 से) "तिमलनाडु" के थान
पर प्रित थािपत ।
11. बंगाल िवधान पिरष (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) “उ र प्रदे श
और पि मी बंगाल” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 76
हुए, प्र येक रा य की िवधान सभा उस रा य म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र से प्र यक्ष
िनवार्चन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनिधक और साठ से अ यून सद य से िमलकर
बनेगी ।
(2) खंड (1) के प्रयोजन के िलए, प्र येक रा य को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म
ऐसी रीित से िवभािजत िकया जाएगा िक प्र येक िनवार्चन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको
आबंिटत थान की संख्या से अनप
ु ात सम त रा य म यथासा य एक ही हो ।
[ प ीकरण–इस खंड म “जनसंख्या” पद से ऐसी अंितम पव
2
ू व
र् तीर् जनगणना म
अिभिनि त की गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रकािशत हो गए ह :
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 9 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) प ीकरण के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 77
परं तु इस प ीकरण म अंितम पूवव र् तीर् जनगणना के प्रित िजसके सुसंगत आंकड़े
प्रकािशत हो गए ह, िनदश का, जब तक सन ् 1[2026] के प ात ् की गई पहली
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकािशत नहीं हो जाते ह, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह
2
[2001] की जनगणना के प्रितिनदश है ।]
(3) प्र येक जनगणना की समाि पर प्र येक रा य की िवधान सभा म थान
की कुल संख्या और प्र येक रा य के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन का ऐसे
प्रािधकारी द्वारा और ऐसी रीित से पुनःसमायोजन िकया जाएगा जो संस िविध द्वारा
अवधािरत करे :
परं तु ऐसे पुन: समायोजन से िवधान सभा म प्रितिनिध व पद पर तब तक कोई
प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय िवद्यमान िवधान सभा का िवघटन नहीं हो जाता है
:
3
[परं तु यह और िक ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो रा पित
आदे श द्वारा िविनिदर् करे और ऐसे पन
ु : समायोजन के प्रभावी होने तक िवधान सभा के
िलए कोई िनवार्चन उन प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन:
समायोजन के पहले िवद्यमान ह :
परं तु यह और भी िक जब तक सन ् 1[2026] के प ात ् की गई पहली जनगणना
के सुसंगत आंकड़े प्रकािशत नहीं हो जाते ह तब तक इस खंड के अधीन,–
(i) प्र येक रा य की िवधान सभा म 1971 की जनगणना के आधार पर
पुन: समायोिजत थान की कुल संख्या का ; और
(ii) ऐसे रा य के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन का, जो 2[2001] की
जनगणना के आधार पर पन ु : समायोिजत िकए जाएं,
4
[पन
ु : समायोजन आव यक नहीं होगा ।]
171. िवधान पिरषद की संरचना–(1) िवधान पिरष वाले रा य की िवधान
पिरष के सद य की कुल संख्या उस रा य की िवधान सभा के सद य की कुल संख्या
के 5[एक-ितहाई] से अिधक नहीं होगी :
1. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के थान पर
प्रित थािपत । संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) मूल अंक
"1971 के थान पर "1991"" अंक प्रित थािपत िकए गए थे ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) "2000" अंक के थान पर
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक चौथाई” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 78
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वषर्” के थान पर
प्रित थािपत । संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल श द
“पांच वषर्” के थान पर “छह वषर्” प्रित थािपत िकए गए थे ।
2. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 80
1
[174. रा य के िवधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और िवघटन–(1) रा यपाल,
समय-समय पर, रा य के िवधान-मंडल के सदन या प्र येक सदन को ऐसे समय और
थान पर, जो वह ठीक समझे, अिधवेशन के िलए आहूत करे गा, िकं तु उसके एक सत्र
की अंितम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के िलए िनयत तारीख के बीच छह
मास का अंतर नहीं होगा ।
(2) रा यपाल, समय-समय पर,–
(क) सदन का या िकसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) िवधान सभा का िवघटन कर सकेगा ।]
175. सदन या सदन म अिभभाषण का और उनको संदेश भेजने का रा यपाल
का अिधकार–(1) रा यपाल, िवधान सभा म या िवधान पिरष वाले रा य की दशा म
उस रा य के िवधान-मंडल के िकसी एक सदन म या एक साथ समवेत दोन सदन म,
अिभभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के िलए सद य की उपि थित की अपेक्षा कर
सकेगा ।
(2) रा यपाल, रा य के िवधान-मंडल म उस समय लंिबत िकसी िवधेयक के
संबंध म संदेश या कोई अ य संदेश, उस रा य के िवधान-मंडल के सदन या सदन को
भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश
द्वारा िवचार करने के िलए अपेिक्षत िवषय पर सुिवधानस
ु ार शीघ्रता से िवचार करे गा ।
176. रा यपाल का िवशेष अिभभाषण–(1) रा यपाल, 2[िवधान सभा के िलए
प्र येक साधारण िनवार्चन के प ात ् प्रथम सत्र के आरं भ म] और प्र येक वषर् के प्रथम
सत्र के आरं भ म िवधान सभा म या िवधान पिरष वाले रा य की दशा म एक साथ
समवेत दोन सदन म अिभभाषण करे गा और िवधान-मंडल को उसके आ ान के कारण
बताएगा ।
(2) सदन या प्र येक सदन की प्रिक्रया का िविनयमन करने वाले िनयम द्वारा ऐसे
अिभभाषण म िनिदर् िवषय की चचार् के िलए समय िनयत करने के िलए 3*** उपबंध
िकया जाएगा ।
177. सदन के बारे म मंित्रय और महािधवक्ता के अिधकार–प्र येक मंत्री और
रा य के महािधवक्ता को यह अिधकार होगा िक वह उस रा य की िवधान सभा म या
िवधान पिरष वाले रा य की दशा म दोन सदन म बोले और उनकी कायर्वािहय म
अ यथा भाग ले और िवधान-मंडल की िकसी सिमित म, िजसम उसका नाम सद य के
प म िदया गया है , बोले और उसकी कायर्वािहय म अ यथा भाग ले, िक तु इस
अनु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नहीं होगा ।
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 8 द्वारा (18-6-1951 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “प्र येक सत्र” के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “तथा सदन के अ य कायर् पर इस चचार् को अग्रता
दे ने के िलए” श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 81
रा य के िवधान-मंडल के अिधकारी
178. िवधान सभा का अ यक्ष और उपा यक्ष–प्र येक रा य की िवधान सभा,
यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सद य को अपना अ यक्ष और उपा यक्ष चुनेगी और जब-जब
अ यक्ष या उपा यक्ष का पद िरक्त होता है तब-तब िवधान सभा िकसी अ य सद य को,
यथाि थित, अ यक्ष या उपा यक्ष चनु े गी ।
179. अ यक्ष और उपा यक्ष का पद िरक्त होना, पद याग और पद से हटाया
जाना–िवधान सभा के अ यक्ष या उपा यक्ष के प म पद धारण करने वाला सद य–
(क) यिद िवधान सभा का सद य नहीं रहता है तो अपना पद िरक्त कर
दे गा ;
(ख) िकसी भी समय, यिद वह सद य अ यक्ष है तो उपा यक्ष को
संबोिधत और यिद वह सद य उपा यक्ष है तो अ यक्ष को संबोिधत अपने
ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा अपना पद याग सकेगा ; और
(ग) िवधान सभा के त कालीन सम त सद य के बहुमत से पािरत
संक प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के िलए कोई संक प तब तक प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा जब तक िक उस संक प को प्र तािवत करने के आशय की कम से कम चौदह
िदन की सूचना न दे दी गई हो :
परं तु यह और िक जब कभी िवधान सभा का िवघटन िकया जाता है तो िवघटन
के प ात ् होने वाले िवधान सभा के प्रथम अिधवेशन के ठीक पहले तक अ यक्ष अपने
पद को िरक्त नहीं करे गा ।
180. अ यक्ष के पद के कतर् य का पालन करने या अ यक्ष के प म कायर्
करने की उपा यक्ष या अ य यिक्त की शिक्त–(1) जब अ यक्ष का पद िरक्त है तो
उपा यक्ष, या यिद उपा यक्ष का पद भी िरक्त है तो िवधान सभा का ऐसा सद य,
िजसको रा यपाल इस प्रयोजन के िलए िनयुक्त करे , उस पद के कतर् य का पालन
करे गा ।
(2) िवधान सभा की िकसी बैठक से अ यक्ष की अनुपि थित म उपा यक्ष, या
यिद वह भी अनुपि थत है तो ऐसा यिक्त, जो िवधान सभा की प्रिक्रया के िनयम द्वारा
अवधािरत िकया जाए, या यिद ऐसा कोई यिक्त उपि थत नहीं है तो ऐसा अ य यिक्त,
जो िवधान सभा द्वारा अवधािरत िकया जाए, अ यक्ष के प म कायर् करे गा ।
181. जब अ यक्ष या उपा यक्ष को पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है
तब उसका पीठासीन न होना–(1) िवधान सभा की िकसी बैठक म, जब अ यक्ष को उसके
पद से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब अ यक्ष, या जब उपा यक्ष को उसके पद
से हटाने का कोई संक प िवचाराधीन है तब उपा यक्ष, उपि थत रहने पर भी, पीठासीन
नहीं होगा और अनु छे द 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्र येक बैठक के संबंध म वैसे
ही लागू ह गे जैसे वह उस बैठक के संबंध म लागू होते ह िजससे, यथाि थित, अ यक्ष या
उपा यक्ष अनुपि थत है ।
भारत का संिवधान 82
कायर् संचालन
188. सद य द्वारा शपथ या प्रितज्ञान–रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष
का प्र येक सद य अपना थान ग्रहण करने से पहले, रा यपाल या उसके द्वारा इस
िनिम िनयुक्त यिक्त के समक्ष, तीसरी अनुसूची म इस प्रयोजन के िलए िदए गए प्र प
के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्रितज्ञान करे गा और उस पर अपने ह ताक्षर करे गा ।
189. सदन म मतदान, िरिक्तय के होते हुए भी सदन की कायर् करने की शिक्त
और गणपूितर्–(1) इस संिवधान म यथा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, िकसी रा य के
िवधान-मंडल के िकसी सदन की बैठक म सभी प्र का अवधारण, अ यक्ष या सभापित
को अथवा उस प म कायर् करने वाले यिक्त को छोड़कर, उपि थत और मत दे ने वाले
सद य के बहुमत से िकया जाएगा ।
अ यक्ष या सभापित, अथवा उस प म कायर् करने वाला यिक्त प्रथमत: मत नहीं
दे गा, िकं तु मत बराबर होने की दशा म उसका िनणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग
करे गा ।
(2) रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन की सद यता म कोई िरिक्त होने पर
भी, उस सदन को कायर् करने की शिक्त होगी और यिद बाद म यह पता चलता है िक
कोई यिक्त, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कायर्वािहय म उपि थत रहा है या उसने
मत िदया है या अ यथा भाग िलया है तो भी रा य के िवधान-मंडल की कायर्वाही
िविधमा य होगी ।
1
[(3) जब तक रा य का िवधान-मंडल िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक
रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन का अिधवेशन गिठत करने के िलए गणपूितर् दस
सद य या सदन के सद य की कुल संख्या का दसवां भाग, इसम से जो भी अिधक हो,
होगी ।
(4) यिद रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष के अिधवेशन म िकसी समय
गणपूितर् नहीं है तो अ यक्ष या सभापित अथवा उस प म कायर् करने वाले यिक्त का
यह कतर् य होगा िक वह सदन को थिगत कर दे या अिधवेशन को तब तक के िलए
िनलंिबत कर दे जब तक गणपूितर् नहीं हो जाती है ।]
सद य की िनरहर्ताएं
190. थान का िरक्त होना–(1) कोई यिक्त रा य के िवधान-मंडल के दोन सदन
का सद य नहीं होगा और जो यिक्त दोन सदन का सद य चुन िलया जाता है उसके
एक या दस ू रे सदन के थान को िरक्त करने के िलए उस रा य का िवधान-मंडल िविध
द्वारा उपबंध करे गा ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 31 द्वारा कितपय श द को "तारीख अिधसूिचत नहीं की
गई)" प्रित थािपत नहीं िकया गया । इस संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया गया ।
भारत का संिवधान 85
1. दे िखए िविध मंत्रालय की अिधसूचना सं0 एफ0 46/50-सी, िदनांक 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प ृ 678 म प्रकािशत समसामियक सद यता प्रितषेध िनयम, 1950 ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनु छे द 191 के खंड (1)” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (19-5-1974 से) के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 86
1
[(क) यिद वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर िजसको धारण करने वाले का
िनरिहर्त न होना रा य के िवधान-मंडल ने िविध द्वारा घोिषत िकया है , कोई लाभ
का पद धारण करता है ;]
(ख) यिद वह िवकृतिच है और सक्षम यायालय की ऐसी घोषणा िवद्यमान
है ;
(ग) यिद वह अनु मोिचत िदवािलया है ;
(घ) यिद वह भारत का नागिरक नहीं है या उसने िकसी िवदे शी रा य की
नागिरकता वे छा से अिजर्त कर ली है या वह िकसी िवदे शी रा य के प्रित िन ा
या अनुषिक्त को अिभ वीकार िकए हुए है ;
(ङ) यिद वह संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस
प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
[ प ीकरण–इस खंड के प्रयोजन के िलए,] कोई यिक्त केवल इस कारण भारत
2
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 31 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया
गया ।
2. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनु छे द के प्रयोजन के
िलए” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंतः थािपत ।
4. अनु छे द 192, संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 33 द्वारा (3-1-1977 से) और त प ात ्
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 25 द्वारा (20-6-1979 से) संशोिधत होकर उपरोक्त प
म आया ।
भारत का संिवधान 87
न होते हुए या िनरिहर्त िकए जाने पर बैठने और मत दे ने के िलए शाि त–यिद िकसी
रा य की िवधान सभा या िवधान पिरष म कोई यिक्त अनु छे द 188 की अपेक्षाओं का
अनुपालन करने से पहले, या यह जानते हुए िक म उसकी सद यता के िलए अिहर्त नहीं
हूं या िनरिहर्त कर िदया गया हूं या संस या रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई
िकसी िविध के उपबंध द्वारा ऐसा करने से प्रितिषद्ध कर िदया गया हूं, सद य के प म
बैठता है या मत दे ता है तो वह प्र येक िदन के िलए जब वह इस प्रकार बैठता है या
मत दे ता है , पांच सौ पए की शाि त का भागी होगा जो रा य को दे य ऋण के प म
वसूल की जाएगी ।
1
[(3) अ य बात म रा य के िवधान-मंडल के िकसी सदन की और ऐसे िवधान-
मंडल के िकसी सदन के सद य और सिमितय की शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मिु क्तयां
ऐसी ह गी जो वह िवधान-मंडल, समय-समय पर, िविध द्वारा पिरिनि त करे और जब तक
वे इस प्रकार पिरिनि त नहीं की जाती ह तब तक 2[वही ह गी जो संिवधान (चवालीसवां
संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 26 के प्रव ृ होने से ठीक पहले उस सदन की और
उसके सद य और सिमितय की थीं ।]
1.
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 88
िलए पारे िषत धन िवधेयक उक्त चौदह िदन की अविध के भीतर िवधान सभा को नहीं
लौटाया जाता है तो उक्त अविध की समाि पर वह दोन सदन द्वारा उस प म पािरत
िकया गया समझा जाएगा िजसम वह िवधान सभा द्वारा पािरत िकया गया था ।
199. “धन िवधेयक” की पिरभाषा–(1) इस अ याय के प्रयोजन के िलए, कोई
िवधेयक धन िवधेयक समझा जाएगा यिद उसम केवल िन निलिखत सभी या िक हीं
िवषय से संबंिधत उपबंध ह, अथार्त ् :–
(4) जब धन िवधेयक अनु छे द 198 के अधीन िवधान पिरष को पारे िषत िकया
भारत का संिवधान 91
शिक्त होगी और िजन प्रयोजन के िलए उक्त अनुदान िकए गए ह उनके िलए रा य की
संिचत िनिध म से धन िनकालना िविध द्वारा प्रािधकृत करने की रा य के िवधान-मंडल को
शिक्त होगी ।
(2) खंड (1) के अधीन िकए जाने वाले िकसी अनुदान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाली िकसी िविध के संबंध म अनु छे द 203 और अनु छे द 204 के उपबंध
वैसे ही प्रभावी ह गे जैसे वे वािषर्क िव ीय िववरण म विणर्त िकसी यय के बारे म कोई
अनुदान करने के संबंध म और रा य की संिचत िनिध म से ऐसे यय की पूितर् के िलए
धन का िविनयोग प्रािधकृत करने के िलए बनाई जाने वाली िविध के संबंध म प्रभावी
ह ।
संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 22 द्वारा "(िजसके अ तगर्त सदन की बैठक का गठन
करने के िलए गणपूितर् सि मिलत है )" श द और को क (तारीख अिधसूिचत नहीं की गई) से अंत थािपत । इस
संशोधन का संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर िदया
गया ।
भारत का संिवधान 96
संबंध म यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम आने वाले “पंद्रह वषर्” श द के
थान पर “प चीस वषर्” श द रख िदए गए ह :]
[परं तु यह और िक 4-5[अ णाचल प्रदे श, गोवा और िमजोरम रा य के िवधान-
3
मंडल ]] के संबंध म यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम आने वाले “पंद्रह वषर्”
श द के थान पर “चालीस वषर्” श द रख िदए गए ह ।]
211. िवधान-मंडल म चचार् पर िनबर्ंधन–उ चतम यायालय या िकसी उ च
यायालय के िकसी यायाधीश के अपने कतर् य के िनवर्हन म िकए गए, आचरण के
1. िहमाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 46 द्वारा (25-1-1971 से ) अंतः थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “िहमाचल प्रदे श
रा य के िवधान-मंडल” के थान पर प्रित थािपत ।
3. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
4. अ णाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (30-5-1987 से) “िमजोरम रा य के
िवधान-मंडल” के थान पर प्रित थािपत ।
5. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अ णाचल
प्रदे श और िमजोरम” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 97
परं तु रा यपाल, रा पित के अनुदेश के िबना, कोई ऐसा अ यादे श प्रख्यािपत नहीं
करे गा यिद–
(क) वैसे ही उपबंध अंतिवर् करने वाले िवधेयक को िवधान-मंडल म
पुर: थािपत िकए जाने के िलए रा पित की पूवर् मंजूरी की अपेक्षा इस संिवधान
के अधीन होती ; या
(ख) वह वैसे ही उपबंध अंतिवर् करने वाले िवधेयक को रा पित के िवचार
के िलए आरिक्षत रखना आव यक समझता ; या
(ग) वैसे हर उपबंध अंतिवर् करने वाला रा य के िवधान-मंडल का
अिधिनयम इस संिवधान के अधीन तब तक अिविधमा य होता जब तक रा पित
के िवचार के िलए आरिक्षत रखे जाने पर उसे रा पित की अनुमित प्रा नहीं हो
गई होती ।
1. संिवधान (अड़तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 3 द्वारा (11-8-1975 से) खंड (4) अंतः थािपत िकया
गया था और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 27 द्वारा (20-6-1979 से) लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु ूची द्वारा को क और अंक “(1)” का लोप
िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) और खंड (3) का लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 99
आव यक समझे ।
1
* * * *
217. उ च यायालय के यायाधीश की िनयुिक्त और उसके पद की शत–(1)
2
[अनु छे द 124क म िनिदर् रा ीय याियक िनयिु क्त आयोग की िसफािरश पर, रा पित]
अपने ह ताक्षर और मुद्रा सिहत अिधपत्र द्वारा उ च यायालय के प्र येक यायाधीश को
िनयुक्त करे गा और वह यायाधीश 3[अपर या कायर्कारी यायाधीश की दशा म अनु छे द
224 म उपबंिधत प म पद धारण करे गा और िकसी अ य दशा म तब तक पद धारण
करे गा जब तक वह 4[बासठ वषर्] की आयु प्रा नहीं कर लेता है :]]
परं त–
ु
(क) कोई यायाधीश, रा पित को संबोिधत अपने ह ताक्षर सिहत लेख द्वारा
अपना पद याग सकेगा ;
(ख) िकसी यायाधीश को उ चतम यायालय के यायाधीश को हटाने के
िलए अनु छे द 124 के खंड (4) म उपबंिधत रीित से उसके पद से रा पित द्वारा
हटाया जा सकेगा ;
(ग) िकसी यायाधीश का पद, रा पित द्वारा उसे उ चतम यायालय का
यायाधीश िनयुक्त िकए जाने पर या रा पित द्वारा उसे भारत के रा यक्षेत्र म
िकसी अ य उ च यायालय को, अंतिरत िकए जाने पर िरक्त हो जाएगा ।
(2) कोई यिक्त, िकसी उ च यायालय के यायाधीश के प म िनयुिक्त के िलए
तभी अिहर्त होगा जब वह भारत का नागिरक है और–
(क) भारत के रा यक्षेत्र म कम से कम दस वषर् तक याियक पद धारण
कर चुका है ; या
(ख) िकसी 5*** उ च यायालय का या ऐसे दो या अिधक यायालय का
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 11 द्वारा (1-11-1956 से) पर तुक का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 6 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य यायमूितर्
से, उस रा य के रा यपाल से और मुख्य यायमूितर् से िभ न िकसी यायाधीश की िनयुिक्त की दशा म उस उ च
यायालय के मुख्य यायमूितर् से परामशर् करने के प ात ्, रा पित” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम
यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 12 द्वारा “तब तक पद धारण करे गा जब तक िक वह साठ
वषर् की आयु प्रा न कर ले” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (5-10-1963 से)
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य म के” श द का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 100
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) श द “या” और उपखंड (ग)
अंतः थािपत िकए गए और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से)
उनका लोप िकया गया ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को खंड (कक) के
प म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) “ यािययक पद धारण िकया
हो” के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 101
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “िकसी रा य म” श द का (1-11-
1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 13 द्वारा प्रित थािपत ।
3. 1 नव बर, 1956 ।
4. संिवधान (चौवनवां संशोधन) अिधिनयम, 1986 की धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 102
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 7 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य यायमूितर्
से परामशर् करने के प ात ्” के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर्
एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर,
2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा “भारत के रा यक्षेत्र म के” श द का (1-11-1956
से) लोप िकया गया ।
3. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत । संिवधान (सातवां
संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा मूल खंड (2) का लोप (1-11-1956 से) िकया गया ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 15 द्वारा अनु छे द 224 के थान पर (1-11-1956 से)
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तो रा पित स यक्त प से”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत
कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 103
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तब रा पित स यक् प से”
के थान पर प्रित थािपत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत
कर िदया गया है ।
2. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 6 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (5-10-1963 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 7 द्वारा अंतः थािपत ।
4. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 9 द्वारा (13-4-2015 से) “िकसी रा य के उ च
यायालय का मुख्य यायमूितर्, िकसी भी समय, रा पित की पूवर् सहमित से” के थान पर प्रित थािपत । यह
संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म
उ चतम यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
भारत का संिवधान 104
1
[परं तु राज व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने म आिद या िकए गए िकसी
कायर् संबंधी िवषय की बाबत उ च यायालय म से िकसी की आरं िभक अिधकािरता का
प्रयोग, इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले, िजस िकसी िनबर्ंधन के अधीन था वह
िनबर्ंधन ऐसी अिधकािरता के प्रयोग को ऐसे प्रारं भ के प ात ् लागू नहीं होगा ।]
2
[226. कुछ िरट िनकालने की उ च यायालय की शिक्त – (1) अनु छे द 32 म
िकसी बात के होते हुए भी 3*** प्र येक उ च यायालय को उन रा यक्षेत्र म सवर्त्र,
िजनके संबंध म वह अपनी अिधकािरता का प्रयोग करता है , 3[भाग 3 द्वारा प्रद
अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए और िकसी अ य प्रयोजन के िलए] उन
रा यक्षेत्र के भीतर िकसी यिक्त या प्रािधकारी को या समुिचत मामल म िकसी सरकार
को ऐसे िनदे श, आदे श या िरट िजनके अंतगर्त 4[बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध,
अिधकार-प ृ छा और उ प्रेषण िरट ह, या उनम से कोई] िनकालने की शिक्त होगी ।]
(2) िकसी सरकार, प्रािधकारी या यिक्त को िनदे श, आदे श या िरट िनकालने की
खंड (1) द्वारा प्रद शिक्त का प्रयोग उन रा यक्षेत्र के संबंध म, िजनके भीतर ऐसी शिक्त
के प्रयोग के िलए वादहे तुक पूणत र् : या भागत: उ प न होता है , अिधकािरता का प्रयोग
करने वाले िकसी उ च यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए भी िकया जा सकेगा िक
ऐसी सरकार या प्रािधकारी का थान या ऐसे यिक्त का िनवास- थान उन रा यक्षेत्र के
भीतर नहीं है ।
5
[(3) जहां कोई पक्षकार, िजसके िव द्ध खंड (1) के अधीन िकसी यािचका पर या
उससे संबंिधत िकसी कायर्वाही म यादे श के प म या रोक के प म या िकसी अ य
रीित से कोई अंतिरम आदे श–
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 29 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत । संिवधान
(बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 37 द्वारा (1-2-1977 से) मूल परं तुक का लोप िकया गया था ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से) अनु छे द 226 के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) “िकं तु अनु छे द 131क और
अनु छे द 226क के उपबंध के अधीन रहते हुए” श द , अंक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) “िजनके अंतगर्त बंदी
प्र यक्षीकरण, परमादे श, प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उ प्रेषण के प्रकार के लेख भी ह अथवा उनम से िकसी को”
श द से आरं भ होकर “ याय की सारवान ् िन फलता हुई है , िकसी क्षित के प्रिततोष के िलए” श द के साथ समा
होने वाले भाग के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5)
और खंड (6) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 105
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4) के प
म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 39 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) और त प ात ् संिवधान
(चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) प्रित थािपत होकर उपरोक्त खंड (1)
प म आया ।
भारत का संिवधान 106
परं तु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई िनयम, िविहत िकए गए
कोई प्र प या ि थर की गई कोई सारणी त समय प्रव ृ िकसी िविध के उपबंध से
असंगत नहीं होगी और इनके िलए रा यपाल के पव ू र् अनम
ु ोदन की अपेक्षा होगी ।
(4) इस अनु छे द की कोई बात उ च यायालय को सश बल से संबंिधत
िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन गिठत िकसी यायालय या अिधकरण पर अधीक्षण की
शिक्तयां दे ने वाली नहीं समझी जाएगी ।
1
(5)* * * *
228. कुछ मामल का उ च यायालय को अंतरण–यिद उ च यायालय का यह
समाधान हो जाता है िक उसके अधीन थ िकसी यायालय म लंिबत िकसी मामले म
इस संिवधान के िनवर्चन के बारे म िविध का कोई सारवान ् प्र अंतवर्िलत है िजसका
अवधारण मामले के िनपटारे के िलए आव यक है 2[तो वह 3***उस मामले को अपने पास
मंगा लेगा और–]
(क) मामले को वयं िनपटा सकेगा, या
(ख) उक्त िविध के प्र का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे
प्र पर िनणर्य की प्रितिलिप सिहत उस यायालय को, िजससे मामला इस प्रकार
मंगा िलया गया है , लौटा सकेगा और उक्त यायालय उसके प्रा होने पर उस
मामले को ऐसे िनणर्य के अनु प िनपटाने के िलए आगे कायर्वाही करे गा ।
4
[228क. रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता से संबंिधत प्र के िनपटारे के
बारे म िवशेष उपबंध ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 10
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
229. उ च यायालय के अिधकारी और सेवक तथा यय–(1) िकसी उ च
यायालय के अिधकािरय और सेवक की िनयिु क्तयां उस यायालय का मख्
ु य यायमिू तर्
करे गा या उस यायालय का ऐसा अ य यायाधीश या अिधकारी करे गा िजसे वह िनिद
करे :
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंतः थािपत िकया
गया और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप िकया
गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 41 द्वारा (1-2-1977 से) “तो वह उस मामले को अपने
पास मंगा लेगा तथा --” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) “अनु छे द 131क के उपबंध
के अधीन रहते हुए” श द , अंक और अक्षर का लोप िकया गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 107
1
(क) * * * *
परं तु यिद ऐसा मुख्य थान िकसी संघ रा यक्षेत्र म है तो अनु छे द 219 और
अनु छे द 229 म रा य के रा यपाल, लोक सेवा आयोग, िवधान-मंडल और संिचत िनिध
के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे क्रमश: रा पित, संघ लोक सेवा
आयोग, संस और भारत की संिचत िनिध के प्रित िनदश ह ।]
1. संिवधान (िन यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2014 की धारा 10 द्वारा (13-4-2015 से) खंड (क) का लोप िकया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोके स आन िरकाडर् एसोिसएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म उ चतम यायालय के तारीख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अिभखंिडत कर िदया गया है ।
संशोधन के पूवर् खंड (क) िन नानुसार था :--
“(क) अनु छे द 217 म उस रा य के रा यपाल के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह उन सभी
रा य के रा यपाल के प्रित िनदश है िजनके संबंध म वह उ च यायालय अिधकािरता का प्रयोग करता है ;”
भारत का संिवधान 109
1
[233क. कुछ िजला यायाधीश की िनयुिक्तय का और उनके द्वारा िकए गए
िनणर्य आिद का िविधमा यकरण–िकसी यायालय का कोई िनणर्य, िडक्री या आदे श होते
हुए भी, –
(क) (i) उस यिक्त की जो रा य की याियक सेवा म पहले से ही है या
उस यिक्त की, जो कम से कम सात वषर् तक अिधवक्ता या लीडर रहा है , उस
रा य म िजला यायाधीश के प म िनयुिक्त की बाबत, और
(ii) ऐसे यिक्त की िजला यायाधीश के प म पद थापना, प्रो नित या
अंतरण की बाबत,
जो संिवधान (बीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले िकसी समय
अनु छे द 233 या अनु छे द 235 के उपबंध के अनुसार न करके अ यथा िकया
गया है , केवल इस त य के कारण िक ऐसी िनयुिक्त, पद थापना, प्रो नित या
अंतरण उक्त उपबंध के अनुसार नहीं िकया गया था, यह नहीं समझा जाएगा िक
वह अवैध या शू य है या कभी भी अवैध या शू य रहा था ;
(ख) िकसी रा य म िजला यायाधीश के प म अनु छे द 233 या
अनु छे द 235 के उपबंध के अनस ु ार न करके अ यथा िनयक्त ु , पद थािपत,
प्रो नत या अंतिरत िकसी यिक्त द्वारा या उसके समक्ष संिवधान (बीसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले प्रयुक्त अिधकािरता की, पािरत िकए गए या
िदए गए िनणर्य, िडक्री, दं डादे श या आदे श की और िकए गए अ य कायर् या
कायर्वाही की बाबत, केवल इस त य के कारण िक ऐसी िनयुिक्त, पद थापना,
प्रो नित या अंतरण उक्त उपबंध के अनुसार नहीं िकया गया था, यह नहीं समझा
जाएगा िक वह अवैध या अिविधमा य है या कभी भी अवैध या अिविधमा य रहा
था ।]
234. याियक सेवा म िजला यायाधीश से िभ न यिक्तय की भतीर्–िजला
यायाधीश से िभ न यिक्तय की िकसी रा य की याियक सेवा म िनयुिक्त उस रा य
के रा यपाल द्वारा, रा य लोक सेवा आयोग से और ऐसे रा य के संबंध म अिधकािरता
का प्रयोग करने वाले उ च यायालय से परामशर् करने के प ात ्, और रा यपाल द्वारा
इस िनिम बनाए गए िनयम के अनुसार की जाएगी ।
235. अधीन थ यायालय पर िनयंत्रण–िजला यायालय और उनके अधीन थ
यायालय का िनयंत्रण, िजसके अंतगर्त रा य की याियक सेवा के यिक्तय और िजला
यायाधीश के पद से अवर िकसी पद को धारण करने वाले यिक्तय की पद थापना,
प्रो नित और उनको छुट्टी दे ना है , उ च यायालय म िनिहत होगा, िकं तु इस अनु छे द
की िकसी बात का यह अथर् नहीं लगाया जाएगा िक वह ऐसे िकसी यिक्त से उसके
अपील के अिधकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शत का िविनयमन करने वाली
िविध के अधीन उसे है या उ च यायालय को इस बात के िलए प्रािधकृत करती है िक
वह उससे ऐसी िविध के अधीन िविहत उसकी सेवा की शत के अनस ु ार यवहार न करके
अ यथा यवहार करे ।
1. संिवधान (बीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (22-12-1966 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 110
111
भाग 8
1
[संघ रा यक्षेत्र]
2
[239. संघ रा यक्षेत्र का प्रशासन–(1) संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा यथा
अ यथा उपबंिधत के िसवाय, प्र येक संघ रा यक्षेत्र का प्रशासन रा पित द्वारा िकया
जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे पदािभधान सिहत, जो वह िविनिदर् करे , िनयुक्त िकए
गए प्रशासक के मा यम से उस मात्रा तक कायर् करे गा िजतनी वह ठीक समझता है ।
(2) भाग 6 म िकसी बात के होते हुए भी, रा पित िकसी रा य के रा यपाल को
िकसी िनकटवतीर् संघ रा यक्षेत्र का प्रशासक िनयुक्त कर सकेगा और जहां कोई रा यपाल
इस प्रकार िनयुक्त िकया जाता है वहां वह ऐसे प्रशासक के प म अपने कृ य का प्रयोग
अपनी मंित्र-पिरष से वतंत्र प से करे गा ।
[239क. कुछ संघ रा यक्षेत्र के िलए थानीय िवधान-मंडल या मंित्र-पिरषद का
3
या दोन का सजृ न–(1) संस , िविध द्वारा [ [पुडुचेरी,]] संघ रा यक्षेत्र के िलए,] –
4 5
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 17 द्वारा “पहली अनुसूची के भाग ग म के रा य” शीषर्क के
थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 17 द्वारा अनु छे द 239 और अनु छे द 240 के थान पर
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (चौदहवां संशोधन) अिधिनयम, 1962 की धारा 4 द्वारा (28-12-1962 से) अंतः थािपत ।
4. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “गोवा,
दमण और दीव, और पांिडचेरी संघ रा यक्षेत्र म से िकसी के िलए” श द के थान पर प्रित थािपत ।
5. पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पांिडचेरी” के थान
पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (उनहतरवां संशोधन) अिधिनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतः थािपत ।
112
भारत का संिवधान 113
(ख) िवधान सभा म थान की कुल संख्या, अनुसूिचत जाितय के िलए आरिक्षत
थान की संख्या, रा ीय राजधानी रा यक्षेत्र के प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभाजन
(िजसके अंतगर्त ऐसे िवभाजन का आधार है ) तथा िवधान सभा के कायर्करण से संबंिधत
सभी अ य िवषय का िविनयमन, संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िकया जाएगा ।
(ख) उपखंड (क) की िकसी बात से संघ रा यक्षेत्र या उसके िकसी भाग के िलए
िकसी भी िवषय के संबंध म इस संिवधान के अधीन िविध बनाने की संस की शिक्त का
अ पीकरण नहीं होगा ।
(ग) यिद िवधान सभा द्वारा िकसी िवषय के संबंध म बनाई गई िविध का कोई
उपबंध संस द्वारा उस िवषय के संबंध म बनाई गई िविध के, चाहे वह िवधान सभा द्वारा
भारत का संिवधान 114
1. संिवधान (स रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) “(7)” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 115
1. संिवधान (स रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतः थािपत ।
2. पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पांिडचेरी” के थान
पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सताईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतः थािपत ।
4. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अनु छे द
239क के खंड (1) म िनिदर् संघ रा यक्षेत्र ” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 116
1. पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पांिडचेरी" के
थान पर प्रित थािपत ।
2. खंड (4) संिवधान (अड़तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प से) अंतः थािपत िकया
गया था और संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 32 द्वारा (20-6-1979 से) लोप िकया
गया ।
भारत का संिवधान 117
2
[(ग) दादरा और नागर हवेली ;]
3
[(घ) दमण और दीव ;]
4
[(ङ) 5[पुडुचेरी] ;]
6
(च)* * * *
7
(छ)* * * *
1. लक्कादीव, िमिनकोय और अमीनदीवी द्वीप (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1973 (1973 का 34) की धारा 4 द्वारा
(1-11-1973 से) प्रिवि (ख) के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (दसवां संशोधन) अिधिनयम, 1961 की धारा 3 द्वारा अंतः थािपत ।
3. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) प्रिवि (घ)
के थान पर प्रित थािपत । संिवधान (बारहवां संशोधन) अिधिनयम, 1962 की धारा 3 द्वारा (20-12-
1961 से) प्रिवि (घ) अंतः थािपत की गई थी ।
4. संिवधान (चौदहवां संशोधन) अिधिनयम, 1962 की धारा 5 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से) अंतः थािपत ।
5. पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पांिडचेरी” के थान
पर प्रित थािपत ।
6. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) िमजोरम संबंधी प्रिवि
(च) का लोप िकया गया ।
7. अ णाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) अ णाचल प्रदे श
संबंधी प्रिवि (छ) का लोप िकया गया ।
8. संिवधान (चौदहवां संशोधन) अिधिनयम, 1962 की धारा 5 द्वारा (28-12-1962 से) अंतः थािपत ।
9. संिवधान (स ाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “गोवा, दमण और दीव या
पांिडचेरी संघ रा यक्षेत्र” श द के थान पर प्रित थािपत ।
10. संिवधान (स ाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतः थािपत ।
11. पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पांिडचेरी" के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 118
बना सकेगा ।]
(2) इस प्रकार बनाया गया कोई िविनयम संस द्वारा बनाए गए िकसी अिधिनयम
या 1[िकसी अ य िविध] का, जो उस संघ रा यक्षेत्र को त समय लागू है , िनरसन या
संशोधन कर सकेगा और रा पित द्वारा प्रख्यािपत िकए जाने पर उसका वही बल और
प्रभाव होगा जो संस के िकसी ऐसे अिधिनयम का है जो उस रा यक्षेत्र को लागू होता है
।]
241. संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च यायालय–(1) संस िविध द्वारा, िकसी 2[संघ
रा यक्षेत्र] के िलए उ च यायालय गिठत कर सकेगी या 3[ऐसे रा यक्षेत्र] म िकसी
यायालय को इस संिवधान के सभी या िक हीं प्रयोजन के िलए उ च यायालय घोिषत
कर सकेगी ।
(2) भाग 6 के अ याय 5 के उपबंध, ऐसे उपांतरण या अपवाद के अधीन रहते
हुए, जो संस िविध द्वारा उपबंिधत करे , खंड (1) म िनिदर् प्र येक उ च यायालय के
संबंध म वैसे ही लागू ह गे जैसे वे अनु छे द 214 म िनिदर् िकसी उ च यायालय के
संबंध म लागू होते ह ।
4
[(3) इस संिवधान के उपबंध के और इस संिवधान द्वारा या इसके अधीन
समुिचत िवधान-मंडल को प्रद शिक्तय के आधार पर बनाई गई उस िवधान-मंडल की
िकसी िविध के उपबंध के अधीन रहते हुए, प्र येक उ च यायालय, जो संिवधान (सातवां
संशोधन) अिधिनयम, 1956 के प्रारं भ से ठीक पहले िकसी संघ रा यक्षेत्र के संबंध म
अिधकािरता का प्रयोग करता था, ऐसे प्रारं भ के प ात ् उस रा यक्षेत्र के संबंध म उस
अिधकािरता का प्रयोग करता रहे गा ।
(4) इस अनु छे द की िकसी बात से िकसी रा य के उ च यायालय की
अिधकािरता का िकसी संघ रा यक्षेत्र या उसके भाग पर िव तार करने या उससे अपवजर्न
करने की संस की शिक्त का अ पीकरण नहीं होगा ।]
242. [कुगर् ।]–संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और
अनुसूची द्वारा िनरिसत ।
1. संिवधान (स ाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “िकसी िवद्यमान िविध” श द
के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग ग म िविनिदर् रा य” श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसा रा य” श द
के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (3) और खंड
(4) के थान पर प्रित थािपत ।
1
[भाग 9
पंचायत
243. पिरभाषाएं–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,–
(क) “िजला” से िकसी रा य का िजला अिभप्रेत है ;
(ख) “ग्राम सभा” से ग्राम तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समािव
िकसी ग्राम से संबिं धत िनवार्चक नामावली म रिज ट्रीकृत यिक्तय से िमलकर
बना िनकाय अिभप्रेत है ;
(ग) “म यवतीर् तर” से ग्राम और िजला तर के बीच का ऐसा तर
अिभप्रेत है िजसे िकसी रा य का रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक
अिधसूचना द्वारा, म यवतीर् तर के प म िविनिदर् करे ;
(घ) “पंचायत” से ग्रामीण क्षेत्र के िलए अनु छे द 243ख के अधीन गिठत
वाय शासन की कोई सं था (चाहे वह िकसी भी नाम से ज्ञात हो) अिभप्रेत है ;
(ङ) “पंचायत क्षेत्र” से पंचायत का प्रादे िशक क्षेत्र अिभप्रेत है ;
(च) “जनसंख्या” से ऐसी अंितम पव ू व
र् तीर् जनगणना म अिभिनि त की
गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसग
ं त आंकड़े प्रकािशत हो गए ह ;
(छ) “ग्राम” से रा यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक
अिधसच ू ना द्वारा, ग्राम के प म िविनिदर् ग्राम अिभप्रेत है और इसके अंतगर्त
इस प्रकार िविनिदर् ग्राम का समूह भी है ।
243क. ग्राम सभा–ग्राम सभा, ग्राम तर पर ऐसी शिक्तय का प्रयोग और ऐसे
कृ य का पालन कर सकेगी, जो िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा, िविध द्वारा, उपबंिधत
िकए जाएं ।
243ख. पंचायत का गठन–(1) प्र येक रा य म ग्राम, म यवतीर् और िजला तर
पर इस भाग के उपबंध के अनस
ु ार पंचायत का गठन िकया जाएगा ।
(2) खंड (1) म िकसी बात के होते हुए भी, म यवतीर् तर पर पंचायत का उस
रा य म गठन नहीं िकया जा सकेगा िजसकी जनसंख्या बीस लाख से अनिधक है ।
243ग. पंचायत की संरचना–(1) इस भाग के उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी
रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, पंचायत की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा :
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119
भारत का संिवधान 120
243ङ. पंचायत की अविध, आिद–(1) प्र येक पंचायत, यिद त समय प्रव ृ िकसी
िविध के अधीन पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अिधवेशन के
िलए िनयत तारीख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं ।
(2) त समय प्रव ृ िकसी िविध के िकसी संशोधन से िकसी तर पर ऐसी पंचायत
का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पवू र् कायर् कर रही है , तब तक िवघटन नहीं होगा जब तक
खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध समा नहीं हो जाती ।
(3) िकसी पंचायत का गठन करने के िलए िनवार्चन,–
(क) खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध की समाि के पव
ू र् ;
(ख) उसके िवघटन की तारीख से छह मास की अविध की समाि के पूव,र्
परू ा िकया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अविध, िजसके िलए कोई िवघिटत पंचायत बनी रहती, छह
मास से कम है वहां ऐसी अविध के िलए उस पंचायत का गठन करने के िलए इस खंड
के अधीन कोई िनवार्चन कराना आव यक नहीं होगा ।
(4) िकसी पंचायत की अविध की समाि के पव ू र् उस पंचायत के िवघटन पर
गिठत की गई कोई पंचायत, उस अविध के केवल शेष भाग के िलए बनी रहे गी िजसके
िलए िवघिटत पंचायत खंड (1) के अधीन बनी रहती, यिद वह इस प्रकार िवघिटत नहीं की
जाती ।
243च. सद यता के िलए िनरहर्ताएं–(1) कोई यिक्त िकसी पंचायत का सद य
चुने जाने के िलए और सद य होने के िलए िनरिहर्त होगा, –
(क) यिद वह संबंिधत रा य के िवधान-मंडल के िनवार्चन के प्रयोजन के
िलए त समय प्रव ृ िकसी िविध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर
िदया जाता है :
परं तु कोई यिक्त इस आधार पर िनरिहर्त नहीं होगा िक उसकी आयु
प चीस वषर् से कम है , यिद उसने इक्कीस वषर् की आयु प्रा कर ली है ;
(ख) यिद वह रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या
उसके अधीन इस प्रकार िनरिहर्त कर िदया जाता है ।
(2) यिद यह प्र उठता है िक िकसी पंचायत का कोई सद य खंड (1) म विणर्त
िकसी िनरहर्ता से ग्र त हो गया है या नहीं तो वह प्र ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित
से, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, उपबंिधत करे , िविन य के िलए िनदिशत
िकया जाएगा ।
भारत का संिवधान 123
1
[(3क) अनसु िू चत जाितय के िलए थान के आरक्षण से संबंिधत अनु छे द
243घ की कोई बात अ णाचल प्रदे श रा य को लागू नहीं होगी ।]
(4) इस संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –
(क) खंड (2) के उपखंड (क) म िनिदर् िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, इस भाग का िव तार, खंड (1) म िनिदर् क्षेत्र के िसवाय, यिद कोई
ह , उस रा य पर उस दशा म कर सकेगा जब उस रा य की िवधान सभा इस
आशय का एक संक प उस सदन की कुल सद य संख्या के बहुमत द्वारा तथा
उस सदन के उपि थत और मत दे ने वाले सद य के कम से कम दो-ितहाई
बहुमत द्वारा पािरत कर दे ती है ;
(ख) संस , िविध द्वारा, इस भाग के उपबंध का िव तार, खंड (1) म
िनिदर् अनसु िू चत क्षेत्र और जनजाित क्षेत्र पर, ऐसे अपवाद और उपांतरण के
अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी िविध म िविनिदर् िकए जाएं और ऐसी
िकसी िविध को अनु छे द 368 के प्रयोजन के िलए इस संिवधान का संशोधन
नहीं समझा जाएगा ।
243ढ. िवद्यमान िविधय और पंचायत का बना रहना – इस भाग म िकसी बात
के होते हुए भी, संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 के प्रारं भ के ठीक पूवर्
िकसी रा य म प्रव ृ पंचायत से संबंिधत िकसी िविध का कोई उपबंध, जो इस भाग के
उपबंध से असंगत है , जब तक सक्षम िवधान-मंडल द्वारा या अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा
उसे संशोिधत या िनरिसत नहीं कर िदया जाता है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक वषर्
समा नहीं हो जाता है , इनम से जो भी पहले हो, तब तक प्रव ृ बना रहे गा :
परं तु ऐसे प्रारं भ के ठीक पूवर् िवद्यमान सभी पंचायत, यिद उस रा य की िवधान
सभा द्वारा या ऐसे रा य की दशा म, िजसम िवधान पिरष है , उस रा य के िवधान-
मंडल के प्र येक सदन द्वारा पािरत इस आशय के संक प द्वारा पहले ही िवघिटत नहीं कर
दी जाती ह तो, अपनी अविध की समाि तक बनी रहगी ।
243ण. िनवार्चन संबंधी मामल म यायालय के ह तक्षेप का वजर्न – इस
संिवधान म िकसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनु छे द 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के िलए ता पियर्त
िकसी ऐसी िविध की िविधमा यता, जो िनवार्चन-क्षेत्र के पिरसीमन या ऐसे
िनवार्चन-क्षेत्र को थान के आबंटन से संबंिधत है , िकसी यायालय म प्र गत
नहीं की जाएगी ;
(ख) िकसी पंचायत के िलए कोई िनवार्चन, ऐसी िनवार्चन अजीर् पर ही
प्र गत िकया जाएगा जो ऐसे प्रािधकारी को और ऐसी रीित से प्र तुत की गई है ,
िजसका िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके
अधीन उपबंध िकया जाए, अ यथा नहीं ।]
1. संिवधान (ितरासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (8-9-2000 से) अंतः थािपत ।
1
[भाग 9क
नगरपािलकाएं
243त. पिरभाषाएं – इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न
हो, –
(क) “सिमित” से अनु छे द 243ध के अधीन गिठत सिमित अिभप्रेत है ;
(ख) “िजला” से िकसी रा य का िजला अिभप्रेत है ;
(ग) “महानगर क्षेत्र” से दस लाख या उससे अिधक जनसंख्या वाला ऐसा
क्षेत्र अिभप्रेत है िजसम एक या अिधक िजले समािव ह और जो दो या अिधक
नगरपािलकाओं या पंचायत या अ य संलग्न क्षेत्र से िमलकर बनता है तथा
िजसे रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए, लोक अिधसूचना द्वारा, महानगर
क्षेत्र के प म िविनिदर् करे ;
(घ) “नगरपािलका क्षेत्र” से रा यपाल द्वारा अिधसिू चत िकसी नगरपािलका
का प्रादे िशक क्षेत्र
अिभप्रेत है ;
(ङ) “नगरपािलका” से अनु छे द 243थ के अधीन गिठत वाय शासन
की कोई सं था अिभप्रेत है ;
(च) “पंचायत” से अनु छे द 243ख के अधीन गिठत कोई पंचायत अिभप्रेत
है ;
(छ) “जनसंख्या” से ऐसी अंितम पूवव र् तीर् जनगणना म अिभिनि त की
गई जनसंख्या अिभप्रेत है िजसके सुसंगत आंकड़े प्रकािशत हो गए ह ।
243थ. नगरपािलकाओं का गठन – (1) प्र येक रा य म, इस भाग के उपबंध के
अनस
ु ार,–
(क) िकसी संक्रमणशील क्षेत्र के िलए, अथार्त ्, ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र
म संक्रमणगत क्षेत्र के िलए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह िकसी भी नाम से
ज्ञात हो) ;
(ख) िकसी लघुतर नगरीय क्षेत्र के िलए नगरपािलका पिरष का ; और
ृ र नगरीय क्षेत्र के िलए नगर िनगम का,
(ग) िकसी वह
गठन िकया जाएगा :
1. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतः थािपत ।
127
भारत का संिवधान 128
परं तु इस खंड के अधीन कोई नगरपािलका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके िकसी भाग
म गिठत नहीं की जा सकेगी िजसे रा यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र म िकसी
औद्योिगक थापन द्वारा दी जा रही या िदए जाने के िलए प्र तािवत नगरपािलक सेवाओं
और ऐसी अ य बात को, जो वह ठीक समझे, यान म रखते हुए, लोक अिधसूचना
द्वारा, औद्योिगक नगरी के प म िविनिदर् करे ।
(2) इस अनु छे द म, “संक्रमणशील क्षेत्र”, “लघुतर नगरीय क्षेत्र” या “वह ृ र
नगरीय क्षेत्र” से ऐसा क्षेत्र अिभप्रेत है िजसे रा यपाल, इस भाग के प्रयोजन के िलए,
उस क्षेत्र की जनसंख्या, उसम जनसंख्या की सघनता, थानीय प्रशासन के िलए उ प न
राज व, कृिष से िभ न िक्रयाकलाप म िनयोजन की प्रितशतता, आिथर्क मह व या ऐसी
अ य बात को, जो वह ठीक समझे, यान म रखते हुए, लोक अिधसूचना द्वारा,
िविनिदर् करे ।
243द. नगरपािलकाओं की संरचना – (1) खंड (2) म जैसा उपबंिधत है उसके
िसवाय, िकसी नगरपािलका के सभी थान, नगरपािलका क्षेत्र म प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र
से प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा चन
ु े हुए यिक्तय द्वारा भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के िलए,
प्र येक नगरपािलका क्षेत्र को प्रादे िशक िनवार्चन-क्षेत्र म िवभािजत िकया जाएगा जो वाडर्
के नाम से ज्ञात ह गे ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, –
(क) नगरपािलका म, –
(i) नगरपािलका प्रशासन का िवशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले
यिक्तय का ;
(ii) लोक सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान सभा के
ऐसे सद य का, जो उन िनवार्चन-क्षेत्र का प्रितिनिध व करते ह िजनम
कोई नगरपािलका क्षेत्र पण
ू त
र् ः या भागतः समािव ह ;
(iii) रा य सभा के ऐसे सद य का और रा य की िवधान पिरष के
ऐसे सद य का, जो नगरपािलका क्षेत्र के भीतर िनवार्चक के प म
रिज ट्रीकृत ह ;
(iv) अनु छे द 243ध के खंड (5) के अधीन गिठत सिमितय के
अ यक्ष का,
प्रितिनिध व करने के िलए उपबंध कर सकेगा :
परं तु पैरा (i) म िनिदर् यिक्तय को नगरपािलका के अिधवेशन म मत दे ने
का अिधकार नहीं होगा ;
(ख) िकसी नगरपािलका के अ यक्ष के िनवार्चन की रीित का उपबंध कर
सकेगा ।
भारत का संिवधान 129
243ध. वाडर् सिमितय , आिद का गठन और संरचना – (1) ऐसी नगरपािलका के,
िजसकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अिधक है , प्रादे िशक क्षेत्र के भीतर वाडर् सिमितय
का गठन िकया जाएगा, जो एक या अिधक वाड से िमलकर बनेगी ।
(ख) उस रीित की बाबत िजससे िकसी वाडर् सिमित म थान भरे जाएंगे,
उपबंध कर सकेगा ।
(3) वाडर् सिमित के प्रादे िशक क्षेत्र के भीतर िकसी वाडर् का प्रितिनिध व करने वाला
िकसी नगरपािलका का सद य उस सिमित का सद य होगा ।
(3) प्र येक नगरपािलका म प्र यक्ष िनवार्चन द्वारा भरे जाने वाले थान की कुल
संख्या के कम से कम एक-ितहाई थान (िजनके अंतगर्त अनुसूिचत जाितय और
अनुसूिचत जनजाितय की ि य के िलए आरिक्षत थान की संख्या भी है ) ि य के
िलए आरिक्षत रहगे और ऐसे थान िकसी नगरपािलका के िभ न-िभ न िनवार्चन-क्षेत्र को
चक्रानुक्रम से आबंिटत िकए जा सकगे ।
(4) नगरपािलकाओं म अ यक्ष के पद अनुसिू चत जाितय , अनस
ु िू चत जनजाितय
और ि य के िलए ऐसी रीित से आरिक्षत रहगे, जो रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा,
उपबंिधत करे ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन थान का आरक्षण और खंड (4) के अधीन
अ यक्ष के पद का आरक्षण (जो ि य के िलए आरक्षण से िभ न है ) अनु छे द 334 म
िविनिदर् अविध की समाि पर प्रभावी नहीं रहे गा ।
(6) इस भाग की कोई बात िकसी रा य के िवधान-मंडल को िपछड़े हुए नागिरक
के िकसी वगर् के पक्ष म िकसी नगरपािलका म थान के या नगरपािलकाओं म अ यक्ष
के पद के आरक्षण के िलए कोई उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
243प. नगरपािलकाओं की अविध, आिद – (1) प्र येक नगरपािलका, यिद
त समय प्रव ृ िकसी िविध के अधीन पहले ही िवघिटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने
प्रथम अिधवेशन के िलए िनयत तारीख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अिधक नहीं :
परं तु िकसी नगरपािलका का िवघटन करने के पूवर् उसे सुनवाई का उिचत अवसर
िदया जाएगा ।
(2) त समय प्रव ृ िकसी िविध के िकसी संशोधन से िकसी तर पर ऐसी
नगरपािलका का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूवर् कायर् कर रही है , तब तक िवघटन नहीं
होगा जब तक खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध समा नहीं हो जाती ।
(3) िकसी नगरपािलका का गठन करने के िलए िनवार्चन, –
(क) खंड (1) म िविनिदर् उसकी अविध की समाि के पूवर् ;
(ख) उसके िवघटन की तारीख से छह मास की अविध की समाि के पव
ू ,र्
पूरा िकया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अविध, िजसके िलए कोई िवघिटत नगरपािलका बनी रहती,
छह मास से कम है वहां ऐसी अविध के िलए उस नगरपािलका का गठन करने के िलए
इस खंड के अधीन कोई िनवार्चन कराना आव यक नहीं होगा ।
(4) िकसी नगरपािलका की अविध की समाि के पूवर् उस नगरपािलका के
िवघटन पर गिठत की गई कोई नगरपािलका, उस अविध के केवल शेष भाग के िलए
बनी रहे गी िजसके िलए िवघिटत नगरपािलका खंड (1) के अधीन बनी रहती, यिद वह
इस प्रकार िवघिटत नहीं की जाती ।
243फ. सद यता के िलए िनरहर् ताएं – (1) कोई यिक्त िकसी नगरपािलका का
भारत का संिवधान 131
फीस िकसी नगरपािलका को, ऐसे प्रयोजन के िलए, तथा ऐसी शत और िनबर्ंधन
के अधीन रहते हुए, समनुिद कर सकेगा ;
(ग) रा य की संिचत िनिध म से नगरपािलकाओं के िलए ऐसे सहायता-
ु ान दे ने के िलए उपबंध कर सकेगा ; और
अनद
(घ) नगरपािलकाओं द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्रा िकए गए सभी
धन को जमा करने के िलए ऐसी िनिधय का गठन करने और उन िनिधय म से
ऐसे धन को िनकालने के िलए भी उपबंध कर सकेगा,
जो िविध म िविनिदर् िकए जाएं ।
243म. िव आयोग – (1) अनु छे द 243झ के अधीन गिठत िव आयोग
नगरपािलकाओं की िव ीय ि थित का भी पुनिवर्लोकन करे गा और जो–
(क)(i) रा य द्वारा उ ग्रहणीय ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के ऐसे
शद्ध
ु आगम के रा य और नगरपािलकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनम
िवभािजत िकए जाएं, िवतरण को और सभी तर पर नगरपािलकाओं के बीच ऐसे
आगम के त संबंधी भाग के आबंटन को ;
(ii) ऐसे कर , शु क , पथकर और फीस के अवधारण को, जो
नगरपािलकाओं को समनुिद की जा सकगी या उनके द्वारा िविनयोिजत की जा
सकगी ;
(iii) रा य की संिचत िनिध म से नगरपािलकाओं के िलए सहायता
ु ान को, शािसत करने वाले िसद्धांत के बारे म ;
अनद
(ख) नगरपािलकाओं की िव ीय ि थित को सुधारने के िलए आव यक
अ युपाय के बारे म ;
(ग) नगरपािलकाओं के सु ढ़ िव के िहत म रा यपाल द्वारा िव आयोग
को िनिदर् िकए गए िकसी अ य िवषय के बारे म,
रा यपाल को िसफािरश करे गा ।
(2) रा यपाल इस अनु छे द के अधीन आयोग द्वारा की गई प्र येक िसफािरश को,
उस पर की गई कारर् वाई के प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष
रखवाएगा ।
243य. नगरपािलकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा – िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा, नगरपािलकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के
बारे म उपबंध कर सकेगा ।
भारत का संिवधान 133
(3) प्र येक िजला योजना सिमित, िवकास योजना प्रा प तैयार करने म,–
(4) प्र येक िजला योजना सिमित का अ यक्ष, वह िवकास योजना, िजसकी ऐसी
सिमित द्वारा िसफािरश की जाती है , रा य सरकार को भेजेगा ।
243यङ. महानगर योजना के िलए सिमित – (1) प्र येक महानगर क्षेत्र म, संपण
ू र्
महानगर क्षेत्र के िलए िवकास योजना प्रा प तैयार करने के िलए, एक महानगर योजना
सिमित का गठन िकया जाएगा ।
(3) प्र येक महानगर योजना सिमित, िवकास योजना प्रा प तैयार करने म, –
(4) प्र येक महानगर योजना सिमित का अ यक्ष, वह िवकास योजना, िजसकी
ऐसी सिमित द्वारा िसफािरश की जाती है , रा य सरकार को भेजेगा ।
भारत का संिवधान 136
1. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 4 द्वारा (15-2-2012 से) अंतः थािपत ।
137
भारत का संिवधान 138
परं तु बोडर्, बोडर् की आकि मक िरिक्त को नामिनदशन द्वारा उसी वगर् के सद य म से,
िजसके संबंध म आकि मक िरिक्त हुई है , भर सकेगा, यिद बोडर् की पदाविध उसकी मल
ू
पदाविध के आधे से कम है ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, ऐसे संपरीक्षक और संपरीक्षा करने वाली
ऐसी फम की, जो सहकारी सोसाइिटय के लेखाओं की संपरीक्षा करने के िलए पात्र ह गी,
यूनतम अहर्ताएं और अनुभव अिधकिथत करे गा ।
(3) प्र येक सहकारी सोसाइटी, सहकारी सोसाइटी के साधारण िनकाय द्वारा िनयुक्त, खंड
(2) म िनिदर् िकसी संपरीक्षक या संपरीक्षा करने वाली फम द्वारा संपरीक्षा करवाएगी :
(4) प्र येक सहकारी सोसाइटी के लेखाओं की संपरीक्षा उस िव ीय वषर् की, िजससे ऐसे
लेखे संबंिधत ह, समाि के छह मास के भीतर की जाएगी ।
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम रा य” के
थान पर प्रित थािपत ।
2. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा” श द
के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा “और मेघालय” श द के थान पर (1-4-1985
से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
5. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा रा य
और िमजोरम संघ रा यक्षेत्र” श द के थान पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (बाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969 की धारा 2 द्वारा (25-9-1969 से) अंतः थािपत ।
7. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के थान
पर प्रित थािपत ।
143
भारत का संिवधान 144
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म” श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 2 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
145
भारत का संिवधान 146
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 3 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 4 द्वारा “संस ” के थान पर (16-9-2016 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 147
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 5 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 148
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग
ख म िविनिदर् ” श द और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 149
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 150
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 18 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 151
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
152
भारत का संिवधान 153
268. संघ द्वारा उद्गहीतृ िकए जाने वाले िकं तु रा य द्वारा संगहृ ीत और
िविनयोिजत िकए जाने वाले शु क – (1) ऐसे टांप-शु क 2*** जो संघ सच ू ी म विणर्त
ह, भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ िकए जाएं गे , िकं तु –
संगह
ृ ीत िकए जाएंगे ।
(2) िकसी रा य के भीतर उ ग्रहणीय िकसी ऐसे शु क के िकसी िव ीय वषर् म
आगम, भारत की संिचत िनिध के भाग नहीं ह गे, िक तु उस रा य को स प िदए
जाएंगे ।
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 6 द्वारा (16-9-2016 से) "तथा औषधीय और प्रसाधन
िनिमर्ितय पर ऐसे उ पाद-शु क, " श द का लोप िकया गया ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग ग म
िविनिदर् रा य” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
4. संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा अंतः थािपत (प्रव ृ नहीं हुआ है ) ।
भारत का संिवधान 154
2
[अनु छे द 269क म यथा उपबंिधत के िसवाय,] माल के क्रय] या िवक्रय पर कर और
माल के परे षण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह
ृ ीत िकए जाएंगे िक तु खंड
(2) म उपबंिधत रीित से रा य को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके प ात ् स प िदए
जाएंगे या स प िदए गए समझे जाएंगे ।
प ीकरण – इस खंड के प्रयोजन के िलए –
(क) “माल के क्रय या िवक्रय पर कर” पद से समाचारपत्र से िभ न माल
के क्रय या िवक्रय पर उस दशा म कर अिभप्रेत है िजसम ऐसा क्रय या िवक्रय
अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है ;
(ख) “माल के परे षण पर कर” पद से माल के परे षण पर (चाहे परे षण
उसके करने वाले यिक्त को या िकसी अ य यिक्त को िकया गया हो) उस दशा
म कर अिभप्रेत है िजसम ऐसा परे षण अंतरराि यक यापार या वािण य के
दौरान होता है ।
ु आगम वहां तक के िसवाय, जहां
(2) िकसी िव ीय वषर् म िकसी ऐसे कर के शद्ध
तक वे आगम संघ रा यक्षेत्र से प्रा हुए आगम माने जा सकते ह, भारत की संिचत
िनिध के भाग नहीं ह गे, िकं तु उन रा य को स प िदए जाएंगे िजनके भीतर वह कर उस
वषर् म उ ग्रहणीय ह और िवतरण के ऐसे िसद्धांत के अनुसार, जो संस िविध द्वारा
बनाए, उन रा य के बीच िवतिरत िकए जाएंगे ।]
3
[(3) संस , यह अवधािरत करने के िलए िक 4[माल का क्रय या िवक्रय या
परे षण] कब अंतरराि यक यापार या वािण य के दौरान होता है , िविध द्वारा िसद्धांत बना
सकेगी ।]
5
[269क. अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म माल और सेवा कर
का उ ग्रहण और संग्रहण--(1) अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म प्रदाय
पर माल और सेवा कर भारत सरकार द्वारा उद्गहीत
ृ और संगहृ ीत िकया जाएगा तथा ऐसा
कर उस रीित म, जो संस द्वारा, िविध द्वारा, माल और सेवा कर पिरष की िसफािरश
पर उपबंिधत की जाए, संघ और रा य के बीच प्रभािजत िकया जाएगा ।
1. संिवधान (अठारहवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 खंड (1) और खंड (2) के थान पर (9-6-2000 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 8 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (11-9-1956 से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (िछयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1982 की धारा 2 द्वारा (2-2-1983 से) “माल का क्रय या िवक्रय”
श द के थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 9 द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 155
1. संिवधान (अ सीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 3 द्वारा (9-6-2000 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (अट्ठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (प्रव ृनहीं हुआ और पुनः प्रित थािपत होने पर)
"अनु छे द 268 और अनु छे द 269" श द के थान पर "अनु छे द 268, अनु छे द 268क और अनु छे द 269"
प्रित थािपत िकए जाएंगे ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 156
प्रितशत, जो िविहत िकया जाए, भारत की संिचत िनिध का भाग नहीं होगा, िक तु उन
रा य को स प िदया जाएगा िजनके भीतर वह कर या शु क उस वषर् म उ ग्रहणीय है
और ऐसी रीित से और ऐसे समय से, जो खंड (3) म उपबंिधत रीित से िविहत िकया
जाए, उन रा य के बीच िवतिरत िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द म, “िविहत” से अिभप्रेत है –
(i) जब तक िव आयोग का गठन नहीं िकया जाता है तब तक रा पित
द्वारा आदे श द्वारा िविहत ; और
(ii) िव आयोग का गठन िकए जाने के प ात ् िव आयोग की िसफािरश
पर िवचार करने के प ात ् रा पित द्वारा आदे श द्वारा िविहत ।]
271. कुछ शु क और कर पर संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार – अनु छे द
269 और अनु छे द 270 म िकसी बात के होते हुए भी, संस , 1[अनु छे द 246क के
अधीन माल और सेवा कर के िसवाय,] उन अनु छे द म िनिदर् शु क या कर म से
िकसी म िकसी भी समय संघ के प्रयोजन के िलए अिधभार द्वारा विृ द्ध कर सकेगी और
िकसी ऐसे अिधभार के संपूणर् आगम भारत की संिचत िनिध के भाग ह गे ।
272. [कर जो संघ द्वारा उद्गहीत
ृ और संगह ृ ीत िकए जाते ह तथा जो संघ और
रा य के बीच िवतिरत िकए जा सकगे ।] –संिवधान (अ सीवां संशोधन) अिधिनयम,
2000 की धारा 4 द्वारा (9-6-2000 से) लोप िकया गया ।
273. जूट पर और जूट उ पाद पर िनयार्त शु क के थान पर अनुदान – (1)
जूट पर और जूट उ पाद पर िनयार्त शु क के प्र येक वषर् के शुद्ध आगम का कोई भाग
असम, िबहार, 2[ओिड़शा] और पि मी बंगाल रा य को स प िदए जाने के थान पर उन
रा य के राज व म सहायता अनुदान के प म प्र येक वषर् भारत की संिचत िनिध पर
ऐसी रािशयां भािरत की जाएंगी जो िविहत की जाएं ।
(2) जूट पर और जूट उ पाद पर जब तक भारत सरकार कोई िनयार्त शु क
उद्गहीत
ृ करती रहती है तब तक या इस संिवधान के प्रारं भ से दस वषर् की समाि तक,
इन दोन म से जो भी पहले हो, इस प्रकार िविहत रािशयां भारत की संिचत िनिध पर
भािरत बनी रहगी ।
(3) इस अनु छे द म, “िविहत” पद का वही अथर् है जो अनु छे द 270 म है ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 11 (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
2. उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 (2011 का 15) की धारा 5 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 157
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के थान
पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969 की धारा 3 द्वारा (25-9-1969 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 159
1. संिवधान (साठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा “दो सौ पचास पए” श द के थान पर (20-
12-1988 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (साठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा पर तुक का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 160
1
[279क. माल और सेवा कर पिरष –(1) रा पित, संिवधान (एक सौ एकवां
संशोधन) अिधिनयम, 2016 के प्रारं भ की तारीख से साठ िदन के भीतर, आदे श द्वारा,
माल और सेवा कर पिरष के नाम से ज्ञात एक पिरष का गठन करे गा ।
(2) माल और सेवा कर पिरष िन निलिखत सद य से िमलकर बनेगी,
अथार्त ् :--
(क) संघ का िव मंत्री -- अ यक्ष ;
(ख) संघ का राज व या िव का भारसाधक रा यमंत्री -- सद य ;
(ग) प्र येक रा य सरकार द्वारा नामिनिदर् िव या कराधान का भारसाधक
मंत्री या कोई अ य मंत्री -- सद य ।
(3) खंड (2) के उपखंड (ग) म िनिदर् माल और सेवा कर पिरष के सद य,
यथाशीघ्र अपने म से एक सद य को ऐसी अविध के िलए, जो वे िविनि त कर, पिरष
का उपा यक्ष चुनगे ।
(4) माल और सेवा कर पिरष िन निलिखत के संबंध म संघ और रा य को
िसफािरश करे गी--
(क) संघ, रा य और थानीय िनकाय द्वारा उद्गहीत
ृ कर, उपकर और
अिधभार, जो माल और सेवा कर म सि मिलत िकए जा सकगे ;
(ख) माल और सेवाएं जो माल और सेवा कर के अ यधीन हो सकगी या
िज ह माल और सेवा कर से छूट प्रा हो सकेगी ;
(ग) आदशर् माल और सेवा कर िविधयां, अनु छे द 269क के अधीन
अ तरराि यक यापार या वािण य के अनुक्रम म प्रदाय माल पर उदगह ृ ीत माल
और सेवा कर के उ ग्रहण, प्रभाजन के िसद्धांत तथा वे िसद्धांत जो प्रदाय के
थान को शािसत करते ह ;
(घ) आवतर् की वह अवसीमा िजसके नीचे माल और सेवाओं को माल और
सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी ;
(ङ) माल और सेवा कर के समूह के साथ दर िजनके अंतगर्त यूनतम
दर भी ह ;
(च) िकसी प्राकृितक िवपि या आपदा के दौरान अितिरक्त संसाधन जुटाने
के िलए िकसी िविनिदर् अविध के िलए कोई िवशेष दर या दर ;
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 12 द्वारा (12-9-2016 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 161
1. संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग) को उपखंड (घ) के
प म पुनःअक्षरांिकत िकया गया ।
भारत का संिवधान 163
प्रा होती है या उसके पास िनिक्ष की जाती है , यथाि थित, भारत के लोक लेखे म या
रा य के लोक लेखे म जमा की जाएगी ।
285. संघ की संपि को रा य के कराधान से छूट – (1) वहां तक के िसवाय,
जहां तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध करे , िकसी रा य द्वारा या रा य के भीतर
िकसी प्रािधकारी द्वारा अिधरोिपत सभी कर से संघ की संपि को छूट होगी ।
(2) जब तक संस िविध द्वारा अ यथा उपबंध न करे तब तक खंड (1) की कोई
बात िकसी रा य के भीतर िकसी प्रािधकारी को संघ की िकसी संपि पर कोई ऐसा कर,
िजसका दािय व इस संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले, ऐसी संपि पर था या माना जाता
था, उद्गहीत
ृ करने से तब तक नहीं रोकेगी जब तक वह कर उस रा य म उद्गहीत ृ होता
रहता है ।
286. माल के क्रय या िवक्रय पर कर के अिधरोपण के बारे म िनबर्ंधन – (1)
रा य की कोई िविध, 1[माल के या सेवाओं के या दोन के प्रदाय पर, जहां ऐसा प्रदाय]–
(क) रा य के बाहर, या
(ख) भारत के रा यक्षेत्र म 2[माल के या सेवाओं के या दोन के आयात
अथवा माल के या सेवाओं के या दोन के] बाहर िनयार्त के दौरान,
होता है वहां, कोई कर अिधरोिपत नहीं करे गी या अिधरोिपत करना प्रािधकृत नहीं
करे गी ।
3
[* * * *]
4
[(2) संस , यह अवधािरत करने के िलए िक 5[माल का या सेवाओं का या दोन
का प्रदाय] खंड (1) म विणर्त रीितय म से िकसी रीित से कब होता है िविध द्वारा, िसद्धांत
बना सकेगी ।
6
[(3)* * * *]
287. िवद्युत पर कर से छूट – वहां तक के िसवाय, जहां तक संस िविध द्वारा
अ यथा उपबंध करे , िकसी रा य की कोई िविध (िकसी सरकार द्वारा या अ य यिक्तय
द्वारा उ पािदत) िवद्यतु के उपभोग या िवक्रय पर िजसका –
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13 (i) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के क्रय या
िवक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या िवक्रय" श द के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(ii)(आ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के आयात
या उसके" श द के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (1) के प ीकरण का लोप
िकया गया ।
4. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (2) और खंड (3) के थान पर
प्रित थािपत ।
5. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(ii) द्वारा (16-9-2016 से) "माल का क्रय या
िवक्रय" श द के थान पर प्रित थािपत ।
6. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 13(iii) द्वारा (16-9-2016 से) खंड (3) का लोप
िकया गया ।
भारत का संिवधान 165
(क) भारत सरकार द्वारा उपभोग िकया जाता है या भारत सरकार द्वारा
उपभोग िकए जाने के िलए उस सरकार को िवक्रय िकया जाता है , या
(ख) िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म भारत सरकार या
िकसी रे ल कंपनी द्वारा, जो उस रे ल को चलाती है , उपभोग िकया जाता है अथवा
िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म उपभोग के िलए उस सरकार या
िकसी ऐसी रे ल कंपनी को िवक्रय िकया जाता है ,
कोई कर अिधरोिपत नहीं करे गी या कर का अिधरोपण प्रािधकृत नहीं करे गी और िवद्युत के
िवक्रय पर कोई कर अिधरोिपत करने या कर का अिधरोपण प्रािधकृत करने वाली कोई
ऐसी िविध यह सुिनि त करे गी िक भारत सरकार द्वारा उपभोग िकए जाने के िलए उस
सरकार को, या िकसी रे ल के िनमार्ण, बनाए रखने या चलाने म उपभोग के िलए
यथापूव क्त िकसी रे ल कंपनी को िवक्रय की गई िवद्युत की कीमत, उस कीमत से जो िवद्युत
का प्रचुर मात्रा म उपभोग करने वाले अ य उपभोक्ताओं से ली जाती है , उतनी कम होगी
िजतनी कर की रकम है ।
288. जल या िवद्युत के संबंध म रा य द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म छूट
– (1) वहां तक के िसवाय जहां तक रा पित आदे श द्वारा अ यथा उपबंध करे , इस
संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले िकसी रा य की कोई प्रव ृ िविध िकसी जल या िवद्यत ु
के संबंध म, जो िकसी अंतरराि यक नदी या नदी-दन ू के िविनयमन या िवकास के िलए
िकसी िवद्यमान िविध द्वारा या संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा थािपत िकसी
प्रािधकारी द्वारा संिचत, उ पािदत, उपभुक्त, िवतिरत या िवक्रीत की जाती है , कोई कर
अिधरोिपत नहीं करे गी या कर का अिधरोपण प्रािधकृत नहीं करे गी ।
प ीकरण – इस खंड म, “िकसी रा य की कोई प्रव ृ िविध” पद के अंतगर्त
िकसी रा य की ऐसी िविध होगी जो इस संिवधान के प्रारं भ से पहले पािरत या बनाई
गई है और जो पहले ही िनरिसत नहीं कर दी गई है , चाहे वह या उसके कोई भाग उस
समय िब कुल या िविश क्षेत्र म प्रवतर्न म न ह ।
(2) िकसी रा य का िवधान-मंडल, िविध द्वारा, खंड (1) म विणर्त कोई कर
अिधरोिपत कर सकेगा या ऐसे कर का अिधरोपण प्रािधकृत कर सकेगा, िक तु ऐसी
िकसी िविध का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक उसे रा पित के िवचार के िलए
आरिक्षत रखे जाने के प ात ् उसकी अनमु ित न िमल गई हो और यिद ऐसी कोई िविध
ऐसे कर की दर और अ य प्रसंगितय को िकसी प्रािधकारी द्वारा, उस िविध के अधीन
बनाए जाने वाले िनयम या आदे श द्वारा, िनयत िकए जाने का उपबंध करती है तो वह
िविध ऐसे िकसी िनयम या आदे श के बनाने के िलए रा पित की पूवर् सहमित अिभप्रा
िकए जाने का उपबंध करे गी ।
289. रा य की संपि और आय को संघ के कराधान से छूट – (1) िकसी रा य
की संपि और आय को संघ के कर से छूट होगी ।
भारत का संिवधान 166
(2) खंड (1) की कोई बात संघ को िकसी रा य की सरकार द्वारा या उसकी ओर
से िकए जाने वाले िकसी प्रकार के यापार या कारबार के संबंध म अथवा उससे संबंिधत
िक हीं िक्रयाओं के संबंध म अथवा ऐसे यापार या कारबार के प्रयोजन के िलए प्रयुक्त
या अिधभुक्त िकसी संपि के संबंध म अथवा उसके संबंध म प्रोद्भत ू या उद्भत
ू िकसी आय
के बारे म, िकसी कर को ऐसी मात्रा तक, यिद कोई हो, िजसका संस िविध द्वारा उपबंध
करे , अिधरोिपत करने या कर का अिधरोपण प्रािधकृत करने से नहीं रोकेगी ।
(3) खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यापार या कारबार अथवा यापार या
कारबार के िकसी ऐसे वगर् को लागू नहीं होगी िजसके बारे म संस िविध द्वारा घोषणा
करे िक वह सरकार के मामूली कृ य का आनुषंिगक है ।
290. कुछ यय और पशन के संबंध म समायोजन – जहां इस संिवधान के
उपबंध के अधीन िकसी यायालय या आयोग के यय अथवा िकसी यिक्त को या उसके
संबंध म, िजसने इस संिवधान के प्रारं भ से पहले भारत म क्राउन के अधीन अथवा ऐसे
प्रारं भ के प ात ् संघ के या िकसी रा य के कायर्कलाप के संबंध म सेवा की है , संदेय
पशन भारत की संिचत िनिध या िकसी रा य की संिचत िनिध पर भािरत है वहां, यिद –
(क) भारत की संिचत िनिध पर भािरत होने की दशा म, वह यायालय
या आयोग िकसी रा य की पथ ृ क् आव यकताओं म से िकसी की पूितर् करता है
या उस यिक्त ने िकसी रा य के कायर्कलाप के संबंध म पूणत र् ः या भागतः सेवा
की है , या
(ख) िकसी रा य की संिचत िनिध पर भािरत होने की दशा म, वह
यायालय या आयोग संघ की या अ य रा य की पथ ृ क् आव यकताओं म से िकसी
की पूितर् करता है या उस यिक्त ने संघ या अ य रा य के कायर्कलाप के संबंध म
पूणतर् ः या भागतः सेवा की है ,
तो, यथाि थित, उस रा य की संिचत िनिध पर अथवा, भारत की संिचत िनिध अथवा
अ य रा य की संिचत िनिध पर, यय या पशन के संबंध म उतना अंशदान, िजतना
करार पाया जाए या करार के अभाव म, िजतना भारत के मुख्य यायमूितर् द्वारा िनयुक्त
म य थ अवधािरत करे , भािरत िकया जाएगा और उसका उस िनिध म से संदाय िकया
जाएगा ।
1
[290क. कुछ दे व वम ् िनिधय को वािषर्क संदाय – प्र येक वषर् िछयालीस लाख
पचास हजार पए की रािश केरल रा य की संिचत िनिध पर भािरत की जाएगी और उस
िनिध म से ित वांकुर दे व वम ् िनिध को संद की जाएगी और प्र येक वषर् तेरह लाख
पचास हजार पए की रािश 2[तिमलनाडु] रा य की संिचत िनिध पर भािरत की जाएगी
और उस िनिध म से 1 नवंबर, 1956 को उस रा य को ित वांकुर-कोचीन रा य से
अंतिरत रा यक्षेत्र के िहंद ू मंिदर और पिवत्र थान के अनुरक्षण के िलए उस रा य म
थािपत दे व वम ् िनिध को संद की जाएगी ।]
291. [शासक की िनजी थैली की रािश ।] – संिवधान (छ बीसवां संशोधन)
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 19 द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
2. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 167
परं तु –
1. संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 20 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 170
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भाग 13
भारत के रा यक्षेत्र के भीतर यापार, वािण य और समागम
301. यापार, वािण य और समागम की वतंत्रता – इस भाग के अ य उपबंध
के अधीन रहते हुए, भारत के रा यक्षेत्र म सवर्त्र यापार, वािण य और समागम अबाध
होगा ।
302. यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन अिधरोिपत करने की संस की
शिक्त – संस िविध द्वारा, एक रा य और दस
ू रे रा य के बीच या भारत के रा यक्षेत्र के
िकसी भाग के भीतर यापार, वािण य या समागम की वतंत्रता पर ऐसे िनबर्ंधन
अिधरोिपत कर सकेगी जो लोक िहत म अपेिक्षत ह ।
303. यापार और वािण य के संबंध म संघ और रा य की िवधायी शिक्तय पर
िनबर्ंधन – (1) अनु छे द 302 म िकसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनुसूची की सूिचय
म से िकसी म यापार और वािण य संबंधी िकसी प्रिवि के आधार पर, संस को या
रा य के िवधान-मंडल को, कोई ऐसी िविध बनाने की शिक्त नहीं होगी जो एक रा य को
दस ू रे रा य से अिधमान दे ती है या िदया जाना प्रािधकृत करती है अथवा एक रा य और
दसू रे रा य के बीच कोई िवभेद करती है या िकया जाना प्रािधकृत करती है ।
(2) खंड (1) की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से नहीं रोकेगी जो
कोई ऐसा अिधमान दे ती है या िदया जाना प्रािधकृत करती है अथवा कोई ऐसा िवभेद
करती है या िकया जाना प्रािधकृत करती है , यिद ऐसी िविध द्वारा यह घोिषत िकया जाता
है िक भारत के रा यक्षेत्र के िकसी भाग म माल की कमी से उ प न िकसी ि थित से
िनपटने के प्रयोजन के िलए ऐसा करना आव यक है ।
304. रा य के बीच यापार, वािण य और समागम पर िनबर्ंधन – अनु छे द
301 या अनु छे द 303 म िकसी बात के होते हुए भी, िकसी रा य का िवधान-मंडल,
िविध द्वारा,–
(क) अ य रा य 1[या संघ रा यक्षेत्र ] से आयात िकए गए माल पर कोई
ऐसा कर अिधरोिपत कर सकेगा जो उस रा य म िविनिमर्त या उ पािदत वैसे ही
माल पर लगता है , िक तु इस प्रकार िक उससे इस तरह आयात िकए गए माल
और ऐसे िविनिमर्त या उ पािदत माल के बीच कोई िवभेद न हो ; या
(ख) उस रा य के साथ या उसके भीतर यापार, वािण य और समागम की
वतंत्रता पर ऐसे युिक्तयुक्त िनबर्ंधन अिधरोिपत कर सकेगा जो लोक िहत म
अपेिक्षत ह :
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतः थािपत ।
171
भारत का संिवधान 172
परं तु खंड (ख) के प्रयोजन के िलए कोई िवधेयक या संशोधन रा पित की पूवर्
मंजरू ी के िबना िकसी रा य के िवधान-मंडल म परु ः थािपत या प्र तािवत नहीं िकया
जाएगा ।
[305. िवद्यमान िविधय और रा य के एकािधकार का उपबंध करने वाली
1
िविधय की याविृ – वहां तक के िसवाय जहां तक रा पित आदे श द्वारा अ यथा िनदे श
दे अनु छे द 301 और अनु छे द 303 की कोई बात िकसी िवद्यमान िविध के उपबंध पर
कोई प्रभाव नहीं डालेगी और अनु छे द 301 की कोई बात संिवधान (चौथा संशोधन)
अिधिनयम, 1955 के प्रारं भ से पहले बनाई गई िकसी िविध के प्रवतर्न पर वहां तक कोई
प्रभाव नहीं डालेगी जहां तक वह िविध िकसी ऐसे िवषय से संबंिधत है , जो अनु छे द 19
के खंड (6) के उपखंड (ii) म िनिदर् है या वह िविध ऐसे िकसी िवषय के संबंध म, जो
अनु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म िनिदर् है , िविध बनाने से संस या िकसी
रा य के िवधान-मंडल को नहीं रोकेगी ।]
306. [पहली अनुसूची के भाग ख के कुछ रा य की यापार और वािण य पर
िनबर्ंधन के अिधरोपण की शिक्त ।] – संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की
धारा 29 और अनुसूची द्वारा िनरिसत ।
307. अनु छे द 301 से अनु छे द 304 के प्रयोजन को कायार्ि वत करने के िलए
प्रािधकारी की िनयुिक्त – संस िविध द्वारा, ऐसे प्रािधकारी की िनयुिक्त कर सकेगी जो वह
अनु छे द 301, अनु छे द 302, अनु छे द 303 और अनु छे द 304 के प्रयोजन को
कायार्ि वत करने के िलए समुिचत समझे और इस प्रकार िनयुक्त प्रािधकारी को ऐसी
शिक्तयां प्रदान कर सकेगी और ऐसे कतर् य स प सकेगी जो वह आव यक समझे ।
1. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 4 द्वारा (27-4-1955 से) प्रित थािपत ।
भाग 14
संघ और रा य के अधीन सेवाएं
अ याय 1 – सेवाएं
308. िनवर्चन – इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद 1[के अंतगर्त ज म-ू क मीर रा य नहीं है ।]
309. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की भतीर् और सेवा की शत –
इस संिवधान के उपबंध के अधीन रहते हुए, समुिचत िवधान-मंडल के अिधिनयम संघ
या िकसी रा य के कायर्कलाप से संबंिधत लोक सेवाओं और पद के िलए भतीर् का और
िनयक्त
ु यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन कर सकगे :
परं तु जब तक इस अनु छे द के अधीन समुिचत िवधान-मंडल के अिधिनयम द्वारा
या उसके अधीन इस िनिम उपबंध नहीं िकया जाता है तब तक, यथाि थित, संघ के
कायर्कलाप से संबंिधत सेवाओं और पद की दशा म रा पित या ऐसा यिक्त िजसे वह
िनिद करे और रा य के कायर्कलाप से संबंिधत सेवाओं और पद की दशा म रा य का
रा यपाल 2*** या ऐसा यिक्त िजसे वह िनिद करे , ऐसी सेवाओं और पद के िलए भतीर्
का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत का िविनयमन करने वाले िनयम बनाने के
िलए सक्षम होगा और इस प्रकार बनाए गए िनयम िकसी ऐसे अिधिनयम के उपबंध के
अधीन रहते हुए प्रभावी ह गे ।
310. संघ या रा य की सेवा करने वाले यिक्तय की पदाविध – (1) इस
संिवधान द्वारा अिभ यक्त प से यथा उपबंिधत के िसवाय, प्र येक यिक्त जो रक्षा सेवा
का या संघ की िसिवल सेवा का या अिखल भारतीय सेवा का सद य है अथवा रक्षा से
संबंिधत कोई पद या संघ के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , रा पित के
प्रसादपयर्ंत पद धारण करता है और प्र येक यिक्त जो िकसी रा य की िसिवल सेवा का
सद य है या रा य के अधीन कोई िसिवल पद धारण करता है , उस रा य के रा यपाल
3
*** के प्रसादपयर्ंत पद धारण करता है ।
(2) इस बात के होते हुए भी िक संघ या िकसी रा य के अधीन िसिवल पद धारण
करने वाला यिक्त, यथाि थित, रा पित या रा य के रा यपाल 2*** के प्रसादपयर्ंत पद
धारण करता है , कोई संिवदा िजसके अधीन कोई यिक्त जो रक्षा सेवा का या अिखल
भारतीय सेवा का या संघ या रा य की िसिवल सेवा का सद य नहीं है , ऐसे िकसी पद को
धारण करने के िलए इस संिवधान के अधीन िनयक्त ु िकया जाता है , उस दशा म, िजसम,
यथाि थित, रा पित या रा यपाल 4*** िवशेष अहर्ताओं वाले िकसी यिक्त की सेवाएं प्रा
173
भारत का संिवधान 174
1. संिवधान (प द्रहवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1963 की धारा 10 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के थान पर प्रित थािपत
।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ श द के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 175
312. अिखल भारतीय सेवाएं – (1) 1[भाग 6 के अ याय 6 या भाग 11] म िकसी
बात के होते हुए भी, यिद रा य सभा ने उपि थत और मत दे ने वाले सद य म से कम
से कम दो-ितहाई सद य द्वारा समिथर्त संक प द्वारा यह घोिषत िकया है िक रा ीय िहत
म ऐसा करना आव यक या समीचीन है तो संस , िविध द्वारा, संघ और रा य के िलए
सि मिलत एक या अिधक अिखल भारतीय सेवाओं के 2[(िजनके अंतगर्त अिखल भारतीय
याियक सेवा है )] सज
ृ न के िलए उपबंध कर सकेगी और इस अ याय के अ य उपबंध के
अधीन रहते हुए, िकसी ऐसी सेवा के िलए भतीर् का और िनयुक्त यिक्तय की सेवा की शत
का िविनयमन कर सकेगी ।
[(3) खंड (1) म िनिदर् अिखल भारतीय याियक सेवा के अंतगर्त अनु छे द
2
(4) पूव क्त अिखल भारतीय याियक सेवा के सजृ न के िलए उपबंध करने वाली
िविध म भाग 6 के अ याय 6 के संशोधन के िलए ऐसे उपबंध अंतिवर् हो सकगे जो उस
िविध के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए आव यक ह और ऐसी कोई िविध अनु छे द
368 के प्रयोजन के िलए संिवधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी ।]
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) “भाग 11” के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 176
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 178
1. संिवधान (प द्रहवां संशोधऩ) अिधिनयम, 1963 की धारा 11 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (इकतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा “साठ वषर्” के थान पर (7-9-1976 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 179
जाना – (1) खंड (3) के उपबंध के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या
िकसी अ य सद य को केवल कदाचार के आधार पर िकए गए रा पित के ऐसे आदे श से
उसके पद से हटाया जाएगा जो उ चतम यायालय को रा पित द्वारा िनदश िकए जाने
पर उस यायालय द्वारा अनु छे द 145 के अधीन इस िनिम िविहत प्रिक्रया के अनस
ु ार
की गई जांच पर, यह प्रितवेदन िकए जाने के प ात ् िकया गया है िक, यथाि थित,
अ यक्ष या ऐसे िकसी सद य को ऐसे िकसी आधार पर हटा िदया जाए ।
(2) आयोग के अ यक्ष या िकसी अ य सद य को, िजसके संबंध म खंड (1) के
अधीन उ चतम यायालय को िनदश िकया गया है , 1*** संघ आयोग या संयक्तु आयोग
की दशा म रा पित और रा य आयोग की दशा म रा यपाल उसके पद से तब तक के
िलए िनलंिबत कर सकेगा जब तक रा पित ऐसे िनदश पर उ चतम यायालय का
प्रितवेदन िमलने पर अपना आदे श पािरत नहीं कर दे ता है ।
(3) खंड (1) म िकसी बात के होते हुए भी, यिद लोक सेवा आयोग का,
यथाि थित, अ यक्ष या कोई अ य सद य –
(क) िदवािलया यायिनणीर्त िकया जाता है , या
(ख) अपनी पदाविध म अपने पद के कतर् य के बाहर िकसी सवेतन
िनयोजन म लगता है , या
(ग) रा पित की राय म मानिसक या शारीिरक शैिथ य के कारण अपने
पद पर बने रहने के िलए अयोग्य है ,
तो रा पित, अ यक्ष या ऐसे अ य सद य को आदे श द्वारा पद से हटा सकेगा ।
(4) यिद लोक सेवा आयोग का अ यक्ष या कोई अ य सद य, िनगिमत कंपनी
के सद य के प म और कंपनी के अ य सद य के साथ सि मिलत प से अ यथा,
उस संिवदा या करार से, जो भारत सरकार या रा य सरकार के द्वारा या िनिम की गई
या िकया गया है , िकसी प्रकार से संपक्त
ृ या िहतबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या
उससे उद्भत
ू िकसी फायदे या उपलि ध म भाग लेता है तो वह खंड (1) के प्रयोजन के
िलए कदाचार का दोषी समझा जाएगा ।
318. आयोग के सद य और कमर्चािरवंद ृ की सेवा की शत के बारे म िविनयम
बनाने की शिक्त – संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा म रा पित और रा य आयोग
की दशा म उस रा य का रा यपाल 1*** िविनयम द्वारा –
(क) आयोग के सद य की संख्या और उनकी सेवा की शत का अवधारण
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 180
कर सकेगा ; और
(ख) आयोग के कमर्चािरवंद
ृ के सद य की संख्या और उनकी सेवा की
शत के संबंध म उपबंध कर सकेगा :
परं तु लोक सेवा आयोग के सद य की सेवा की शत म उसकी िनयुिक्त के प ात ्
उसके िलए अलाभकारी पिरवतर्न नहीं िकया जाएगा ।
319. आयोग के सद य द्वारा ऐसे सद य न रहने पर पद धारण करने के संबंध
म प्रितषेध – पद पर न रह जाने पर –
(क) संघ लोक सेवा आयोग का अ यक्ष भारत सरकार या िकसी रा य की
सरकार के अधीन िकसी भी और िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(ख) िकसी रा य लोक सेवा आयोग का अ यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के
अ यक्ष या अ य सद य के प म अथवा िकसी अ य रा य लोक सेवा आयोग
के अ यक्ष के प म िनयुक्त होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(ग) संघ लोक सेवा आयोग के अ यक्ष से िभ न कोई अ य सद य संघ
लोक सेवा आयोग के अ यक्ष के प म या िकसी रा य लोक सेवा आयोग के
अ यक्ष के प म िनयक्त
ु होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी
रा य की सरकार के अधीन िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ;
(घ) िकसी रा य लोक सेवा आयोग के अ यक्ष से िभ न कोई अ य
सद य संघ लोक सेवा आयोग के अ यक्ष या िकसी अ य सद य के प म
अथवा उसी या िकसी अ य रा य लोक सेवा आयोग के अ यक्ष के प म िनयुक्त
होने का पात्र होगा, िक तु भारत सरकार या िकसी रा य की सरकार के अधीन
िकसी अ य िनयोजन का पात्र नहीं होगा ।
320. लोक सेवा आयोग के कृ य – (1) संघ और रा य लोक सेवा आयोग का
यह कतर् य होगा िक वे क्रमशः संघ की सेवाओं और रा य की सेवाओं म िनयुिक्तय के
िलए परीक्षाओं का संचालन कर ।
(2) यिद संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अिधक रा य ऐसा करने का
अनरु ोध करते ह तो उसका यह भी कतर् य होगा िक वह ऐसी िक हीं सेवाओं के िलए,
िजनके िलए िवशेष अहर्ताओं वाले अ यथीर् अपेिक्षत ह, संयुक्त भतीर् की कीम बनाने और
उनका प्रवतर्न करने म उन रा य की सहायता करे ।
(3) यथाि थित, संघ लोक सेवा आयोग या रा य लोक सेवा आयोग से –
(क) िसिवल सेवाओं म और िसिवल पद के िलए भतीर् की पद्धितय से
भारत का संिवधान 181
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, रा यपाल या
राजप्रमुख” श द के थान पर उपरोक्त प से रखा गया ।
भारत का संिवधान 182
(5) रा पित या िकसी रा य के रा यपाल 1*** द्वारा खंड (3) के परं तुक के
अधीन बनाए गए सभी िविनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, यथाि थित, संस के
प्र येक सदन या रा य के िवधान-मंडल के सदन या प्र येक सदन के समक्ष कम से कम
चौदह िदन के िलए रखे जाएंगे और िनरसन या संशोधन द्वारा िकए गए ऐसे उपांतरण के
अधीन ह गे जो संस के दोन सदन या उस रा य के िवधान-मंडल का सदन या दोन
सदन उस सत्र म कर िजसम वे इस प्रकार रखे गए ह ।
321. लोक सेवा आयोग के कृ य का िव तार करने की शिक्त – यथाि थित,
संस द्वारा या िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अिधिनयम संघ लोक
सेवा आयोग या रा य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की या रा य की सेवाओं के संबंध म
और िकसी थानीय प्रािधकारी या िविध द्वारा गिठत अ य िनगिमत िनकाय या िकसी
लोक सं था की सेवाओं के संबंध म भी अितिरक्त कृ य के प्रयोग के िलए उपबंध कर
सकेगा ।
322. लोक सेवा आयोग के यय – संघ या रा य लोक सेवा आयोग के यय,
िजनके अंतगर्त आयोग के सद य या कमर्चािरवंद
ृ को या उनके संबंध म संदेय कोई
वेतन, भ े और पशन ह, यथाि थित, भारत की संिचत िनिध या रा य की संिचत िनिध
पर भािरत ह गे ।
323. लोक सेवा आयोग के प्रितवेदन – (1) संघ आयोग का यह कतर् य होगा
िक वह रा पित को आयोग द्वारा िकए गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और
रा पित ऐसा प्रितवेदन प्रा होने पर उन मामल के संबंध म, यिद कोई ह , िजनम
आयोग की सलाह वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अ वीकृित के कारण को प करने
वाले ज्ञापन सिहत उस प्रितवेदन की प्रित संस के प्र येक सदन के समक्ष रखवाएगा ।
(2) रा य आयोग का यह कतर् य होगा िक वह रा य के रा यपाल 1*** को
आयोग द्वारा िकए गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह
कतर् य होगा िक ऐसे रा य म से प्र येक के, िजनकी आव यकताओं की पिू तर् संयुक्त
आयोग द्वारा की जाती है , रा यपाल 1*** को उस रा य के संबंध म आयोग द्वारा िकए
गए कायर् के बारे म प्रितवषर् प्रितवेदन दे और दोन म से प्र येक दशा म ऐसा प्रितवेदन
प्रा होने पर, रा यपाल 2*** उन मामल के संबंध म, यिद कोई ह , िजनम आयोग की
सलाह वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अ वीकृित के कारण को प करने वाले ज्ञापन
सिहत उस प्रितवेदन की प्रित रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा ।
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का
(1-11-1956 से) लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाि थित, रा यपाल या या
राजप्रमुख” श द के थान पर उपरोक्त प से रखा गया ।
भाग 15
निर्ााचि
324. निर्ााचिों के अधीक्षण, निदे शि और नियंत्रण का निर्ााचि आयोग में
निहित िोिा--(1) इस संवर्धाि के अधीि संसद् और प्रत्येक राज्य के वर्धाि-मंडल के
ललए कराए जािे र्ाले सभी निर्ााचिों के ललए तथा राष्ट्रपनत और उपराष्ट्रपनत के पदों के
ललए निर्ााचिों के ललए निर्ााचक-िामार्ली तैयार करािे का और उि सभी निर्ााचिों के
संचालि का अधीक्षण, निदे शि और नियंत्रण, 1*** एक आयोग में निहित िोगा (जजसे
इस संवर्धाि में निर्ााचि आयोग किा गया िै) ।
(2) निर्ााचि आयोग मुख्य निर्ााचि आयक्त ु और उतिे अन्य निर्ााचि आयक्त ु ों से,
यहद कोई िों, जजतिे राष्ट्रपनत समय-समय पर नियत करे , लमलकर बिेगा तथा मुख्य
निर्ााचि आयक्तु और अन्य निर्ााचि आयक्त ु ों की नियक्तु क्त, संसद् द्वारा इस निलमत्त बिाई
गई वर्धध के उपबंधों के अधीि रिते िुए, राष्ट्रपनत द्वारा की जाएगी ।
(3) जब कोई अन्य निर्ााचि आयक्त
ु इस प्रकार नियक्त ु ककया जाता िै तब मुख्य
निर्ााचि आयक्त
ु निर्ााचि आयोग के अध्यक्ष के रूप में काया करे गा ।
(4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य की वर्धाि सभा के प्रत्येक साधारण
निर्ााचि से पिले तथा वर्धाि पररषद् र्ाले प्रत्येक राज्य की वर्धाि पररषद् के ललए
प्रथम साधारण निर्ााचि से पिले और उसके पश्चात ् प्रत्येक हद्वर्ावषाक निर्ााचि से पिले,
राष्ट्रपनत निर्ााचि आयोग से परामशा करिे के पश्चात ्, खंड (1) द्वारा निर्ााचि आयोग को
सौंपे गए कृत्यों के पालि में आयोग की सिायता के ललए उतिे प्रादे लशक आयक्त ु ों की भी
नियक्तु क्त कर सकेगा जजतिे र्ि आर्श्यक समझे ।
(5) संसद् द्वारा बिाई गई ककसी वर्धध के उपबंधों के अधीि रिते िुए, निर्ााचि
आयक्त
ु ों और प्रादे लशक आयक्तु ों की सेर्ा की शतें और पदार्धध ऐसी िोंगी जो राष्ट्रपनत
नियम द्वारा अर्धाररत करे :
परन्तु मुख्य निर्ााचि आयक्त ु को उसके पद से उसी रीनत से और उन्िीं आधारों
पर िी िटाया जाएगा, जजस रीनत से और जजि आधारों पर उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश को िटाया जाता िै अन्यथा ििीं और मुख्य निर्ााचि आयक्त ु की सेर्ा की
शतों में उसकी नियक्तु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी पररर्ताि ििीं ककया जाएगा :
1. संवर्धाि (उन्िीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा “जजसके अंतगात संसद् के और राज्य के वर्धाि-
मंडलों के निर्ााचिों से उद्भत
ू या संसक्त संदेिों और वर्र्ाद के निणाय के ललए निर्ााचि न्यायाधधकरण की नियुक्तक्त
भी िै” शब्दों का (11-12-1966 से) लोप ककया गया ।
186
भारत का संवर्धाि 187
1. संवर्धाि (सातर्ां संशोधि) अधधनियम, 1956 की धारा 29 और अिुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संवर्धाि (इकसठर्ां संशोधि) अधधनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा “इक्कीस र्षा” के स्थाि पर (28-3-1989 से)
प्रनतस्थावपत ।
भारत का संवर्धाि 188
328. ककसी राज्य के वर्धाि-मंडल के ललए निर्ााचिों के संबध ं में उपबंध करिे
की उस वर्धाि-मंडल की शक्तक्त–इस संवर्धाि के उपबंधों के अधीि रिते िुए और जिां
तक संसद् इस निलमत्त उपबंध ििीं करती िै र्िां तक, ककसी राज्य का वर्धाि-मंडल
समय-समय पर, वर्धध द्वारा, उस राज्य के वर्धाि-मंडल के सदि या प्रत्येक सदि के
ललए निर्ााचिों से संबधं धत या संसक्त सभी वर्षयों के संबध
ं में , जजिके अंतगात निर्ााचक-
िामार्ली तैयार करािा और ऐसे सदि या सदिों का समयक् गठि सनु िजश्चत करिे के
ललए अन्य सभी आर्श्यक वर्षय िैं, उपबंध कर सकेगा ।
1. संवर्धाि (उितालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1975 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थाि पर (10-8-1975 से)
प्रनतस्थावपत ।
2. संवर्धाि (चर्ालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1978 की धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परन्तु अिुच्छे द 329क के
उपबंधों के अधीि रिते िुए” शब्दों, अंकों और अक्षर का लोप ककया गया ।
3. संवर्धाि (उितालीसर्ां संशोधि) अधधनियम, 1975 की धारा 4 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्थावपत ।
भाग 16
कुछ वगों के संबंध में ववशेष उपबंध
330. लोक सभा में अनस ु ूचित जाततयों और अनस ु ूचित जनजाततयों के ललए
स्थानों का आरक्षण–(1) लोक सभा में –
(क) अनस ु चू ित जाततयों के ललए,
1
[(ख) असम के स्वशासी जजलों की अनस ु ूचित जनजाततयों को छोड़कर
अन्य अनस ु ूचित जनजाततयों के ललए, और]
(ग) असम के स्वशासी जजलों की अनस ु ूचित जनजाततयों के ललए,
स्थान आरक्षक्षत रहें गे ।
(2) खंड (1) के अधीन ककसी राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] में अनस ु ूचित जाततयों
या अनस ु ूचित जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप ु ात, लोक सभा में
उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] को आबंटित स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही
होगा जो, यथाजस्थतत, उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] की अनस ु चू ित जाततयों की अथवा
उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] की या उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के भाग की
अनस ु ूचित जनजाततयों की, जजनके संबध ं में स्थान इस प्रकार आरक्षक्षत हैं, जनसंख्या का
अनप ु ात उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] की कुल जनसंख्या से है ।
3
[(3) खंड (2) में ककसी बात के होते हुए भी, लोक सभा में असम के स्वशासी
जजलों की अनस ु ूचित जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप ु ात, उस
राज्य को आबंटित स्थानों की कुल संख्या के उस अनप ु ात से कम नहीं होगा जो उक्त
स्वशासी जजलों की अनस ु ूचित जनजाततयों की जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य की कुल
जनसंख्या से है ।]
4
[स्पष्टीकरण–इस अनच् ु छे द में और अनच् ु छे द 332 में , “जनसंख्या” पद से ऐसी
अंततम पव ू व
व ती जनगणना में अलभतनजित की गई जनसंख्या अलभप्रेत है जजसके सुसंगत
आंकड़े प्रकालशत हो गए हैं :
परन्तु इस स्पष्टीकरण में अंततम पव ू व
व ती जनगणना के प्रतत, जजसके सस ु ंगत
आंकड़े प्रकालशत हो गए हैं, तनदे श का, जब तक सन ् 5[2026] के पिात ् की गई पहली
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकालशत नहीं हो जाते हैं, यह अथव लगाया जाएगा कक वह
6
[2001] की जनगणना के प्रतत तनदे श है ।]
1. संववधान (इक्यावनवां संशोधन) अचधतनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर
प्रततस्थावपत ।
2. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थावपत ।
3. संववधान (इकतीसवां संशोधन) अचधतनयम, 1973 की धारा 3 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्थावपत ।
4. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थावपत ।
5. संववधान (िौरासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2001 की धारा 6 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्रततस्थावपत ।
6. संववधान (सतासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा “1991” के स्थान पर (22-6-2003 से)
प्रततस्थावपत ।
189
भारत का संववधान 190
1. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूिी के
भाग क या भाग ख में ववतनटदव ष्ट” शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संववधान (इक्यावनवां संशोधन) अचधतनयम, 1984 की धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) प्रततस्थावपत ।
3. संववधान (सत्तावनवां संशोधन) अचधतनयम, 1987 की धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से) अंतःस्थावपत ।
4. संववधान (िौरासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2001 की धारा 6 द्वारा “2000” के स्थान पर (21-2-2002 से)
प्रततस्थावपत ।
भारत का संववधान 191
1
[(3ख) खंड (3) में ककसी बात के होते हुए भी, सन ् 2[2026] के पिात ् की गई
पहली जनगणना के आधार पर, त्रत्रपरु ा राज्य की ववधान सभा में स्थानों की संख्या के,
अनच् ु छे द 170 के अधीन, पन ु ःसमायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान उस ववधान
सभा में अनस ु चू ित जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत ककए जाएंगे वे उतने स्थान होंगे
जजनकी संख्या का अनप ु ात, स्थानों की कुल संख्या के उस अनप ु ात से कम नहीं होगा जो
ववद्यमान ववधान सभा में अनस ु ूचित जनजाततयों के सदस्यों की, संववधान (बहत्तरवां
संशोधन) अचधतनयम, 1992 के प्रवत्त ृ होने की तारीख को यथाववद्यमान संख्या का
अनप ु ात उक्त तारीख को उस ववधान सभा में स्थानों की कुल संख्या से है ।]
(4) असम राज्य की ववधान सभा में ककसी स्वशासी जजले के ललए आरक्षक्षत
स्थानों की संख्या का अनप ु ात, उस ववधान सभा में स्थानों की कुल संख्या के उस
अनप ु ात से कम नहीं होगा जो उस जजले की जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य की कुल
जनसंख्या से है ।
(5) 3*** असम के ककसी स्वशासी जजले के ललए आरक्षक्षत स्थानों के तनवाविन-क्षेत्रों
में उस जजले के बाहर का कोई क्षेत्र समाववष्ट नहीं होगा ।
(6) कोई व्यक्तक्त जो असम राज्य के ककसी स्वशासी जजले की अनस ु ूचित जनजातत
का सदस्य नहीं है, उस राज्य की ववधान सभा के ललए उस जजले के ककसी तनवाविन-क्षेत्र
से तनवावचित होने का पात्र नहीं होगा :
4
[परं तु असम राज्य की ववधान सभा के तनवाविनों के ललए, बोडोलैंड प्रादे लशक
पररषद् क्षेत्र जजला में सजममललत तनवाविन-क्षेत्रों में अनस ु ूचित जनजाततयों और गैर-
अनस ु ूचित जनजाततयों का प्रतततनचधत्व, जो उस प्रकार अचधसूचित ककया गया था और
बोडोलैंड प्रादे लशक क्षेत्र जजला के गठन से पव ू व ववद्यमान था, बनाए रखा जाएगा ।]
333. राज्यों की ववधान सभाओं में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतततनचधत्व–
अनच् ु छे द 170 में ककसी बात के होते हुए भी, यटद ककसी राज्य के राज्यपाल *** की
5
1. संववधान (बहत्तरवां संशोधन) अचधतनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंतःस्थावपत ।
2. संववधान (िौरासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2001 की धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत ।
3. पूवोत्तर क्षेत्र (पुनगवठन) अचधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) कततपय शब्दों का
लोप ककया गया ।
4. संववधान (नब्बेवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (28-9-2003 से) अंतःस्थावपत ।
5. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
6. संववधान (तेईसवां संशोधन) अचधतनयम, 1969 की धारा 4 द्वारा “उस ववधान सभा में उस समुदाय के जजतने सदस्य
वह समुचित समझे नामतनदे लशत कर सकेगा” के स्थान पर (23-1-1970 से) प्रततस्थावपत ।
भारत का संववधान 192
1. संववधान (पिानवेवां संशोधन) अचधतनयम, 2009 की धारा 2 द्वारा (25-1-2010 से) “साठ वषव” के स्थान पर
प्रततस्थावपत ।
2. संववधान (बयासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (6-9-2000 से) अंतःस्थावपत ।
भारत का संववधान 193
1. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “पहली अनुसूिी के भाग क या
भाग ख में ववतनटदव ष्ट” शब्दों और अक्षरों का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
2. संववधान (नवासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पार्श्व शीषव के स्थान पर
प्रततस्थावपत ।
3. संववधान (पैंसठवां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान
पर खंड (1) से खंड (9) तक प्रततस्थावपत ककए गए ।
4. संववधान (नवासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) खंड (1) और (2) के स्थान
पर प्रततस्थावपत ।
भारत का संववधान 194
के संबध
ं में ऐसे अन्य कृत्यों का तनववहन करे जो राष्ट्रपतत, संसद् द्वारा बनाई गई
ककसी ववचध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, तनयम द्वारा ववतनटदवष्ट करे ।
(6) राष्ट्रपतत ऐसे सभी प्रततवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा
और उसके साथ संघ से संबचं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने के ललए प्रस्थावपत
कारववाई तथा यटद कोई ऐसी लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को
स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसा प्रततवेदन, या उसका कोई भाग ककसी ऐसे ववषय से संबचं धत
है जजसका ककसी राज्य सरकार से संबध ं है तो ऐसे प्रततवेदन की एक प्रतत उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके
साथ राज्य से संबचं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने के ललए प्रस्थावपत कारववाई
तथा यटद कोई ऐसी लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को स्पष्ट
करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
1. संववधान (नवासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसूचित जनजाततयों”
शब्दों का लोप ककया गया ।
भारत का संववधान 195
(8) आयोग को खंड (5) के उपखंड (क) में तनटदवष्ट ककसी ववषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) में तनटदवष्ट ककसी पररवाद के बारे में जांि करते समय,
ववलशष्टतया तनमनललखखत ववषयों के संबध
ं में , वे सभी शक्तक्तयां होंगी जो वाद का वविारण
करते समय लसववल न्यायालय को हैं, अथावत ् :–
(क) भारत के ककसी भी भाग से ककसी व्यक्तक्त को समन करना और हाजजर
कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;
(ख) ककसी दस्तावेज को प्रकि और पेश करने की अपेक्षा करना ;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना ;
(घ) ककसी न्यायालय या कायावलय से ककसी लोक अलभलेख या उसकी प्रतत
की अपेक्षा करना ;
(ङ) साक्षक्षयों और दस्तावेजों की परीक्षा के ललए कमीशन तनकालना ;
(ि) कोई अन्य ववषय जो राष्ट्रपतत, तनयम द्वारा, अवधाररत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनसु ूचित जाततयों *** को प्रभाववत करने
1
4
[338क. राष्ट्रीय अनस ु ूचित जनजातत आयोग–(1) अनस ु ूचित जनजाततयों के ललए
एक आयोग होगा जो राष्ट्रीय अनस ु चू ित जनजातत आयोग के नाम से ज्ञात होगा ।
(2) संसद् द्वारा इस तनलमत्त बनाई गई ककसी ववचध के उपबधों के अधीन रहते हुए,
आयोग एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगा और इस प्रकार
तनयक्त
ु ककए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शतें और पदावचध
ऐसी होंगी जो राष्ट्रपतत, तनयम द्वारा अवधाररत करे ।
1. संववधान (नवासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसूचित जनजाततयों”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संववधान (पैंसठवां संशोधन) अचधतनयम,1990 की धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को खंड (10) के रूप में
पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
3. संववधान (एक सौ दोवां संशोधन) अचधतनयम, 2018 की धारा 2 द्वारा (11-8-2018 से) "ऐसे अन्य वपछड़े वगों के
प्रतत तनदे श, जजनको राष्ट्रपतत अनुच्छे द 340 के खंड (1) के अधीन तनयुक्त आयोग के प्रततवेदन की प्रातप्त पर आदे श
द्वारा ववतनटदव ष्ट करे , और आंग्ल-भारतीय समुदाय प्रतत तनदे श भी है " शब्दों, अंकों और कोष्ठकों के स्थान पर
प्रततस्थावपत ।
4. संववधान (नवासीवां संशोधन) अचधतनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (19-2-2004 से) अंतःस्थावपत ।
भारत का संववधान 196
(3) राष्ट्रपतत, अपने हस्ताक्षर और मद्रु ा सटहत अचधपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष,
उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को तनयक्त ु करे गा ।
(4) आयोग को अपनी प्रकिया स्वयं ववतनयलमत करने की शक्तक्त होगी ।
(5) आयोग का यह कतवव्य होगा कक वह,–
(क) अनसु ूचित जनजाततयों के ललए इस संववधान या तत्समय प्रवत्त
ृ ककसी
अन्य ववचध या सरकार के ककसी आदे श के अधीन उपबंचधत रक्षोपायों से संबचं धत
सभी ववषयों का अन्वेषण करे और उन पर तनगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के
कायवकरण का मल ू यांकन करे ;
(ख) अनसु ूचित जनजाततयों को उनके अचधकारों और रक्षोपायों से वंचित
करने के समबन्ध में ववतनटदवष्ट लशकायतों की जांि करे ;
(ग) अनस ु चू ित जनजाततयों के सामाजजक-आचथवक ववकास की योजना
प्रकिया में भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और ककसी राज्य के अधीन
उनके ववकास की प्रगतत का मल ू यांकन करे ;
(घ) उन रक्षोपायों के कायवकरण के बारे में प्रततवषव और ऐसे अन्य समयों
पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपतत को ररपोिव प्रस्तुत करे ;
(ङ) ऐसी ररपोिों में उन उपायों के बारे में , जो उन रक्षोपायों के प्रभावपण ू व
कायावन्वयन के ललए संघ या ककसी राज्य द्वारा ककए जाने िाटहएं, तथा अनस ु ूचित
जनजाततयों के संरक्षण, कलयाण और सामाजजक-आचथवक ववकास के ललए अन्य
उपायों के बारे में लसफाररश करे ; और
(ि) अनस ु ूचित जनजाततयों के संरक्षण, कलयाण और ववकास तथा
उन्नयन के संबध
ं में ऐसे अन्य कृत्यों का तनववहन करे जो राष्ट्रपतत, संसद् द्वारा
बनाई गई ककसी ववचध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, तनयम द्वारा ववतनटदवष्ट करे
।
(6) राष्ट्रपतत ऐसी सभी ररपोिों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा
और उनके साथ संघ से संबचं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने के ललए प्रस्थावपत
कारववाई तथा यटद कोई ऐसी लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को
स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसी ररपोिव या उसका कोई भाग, ककसी ऐसे ववषय से संबचं धत है
जजसका ककसी राज्य सरकार से संबध ं है तो ऐसी ररपोिव की एक प्रतत उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके
साथ राज्य से संबचं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने के ललए प्रस्थावपत कारववाई
तथा यटद कोई ऐसी लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को स्पष्ट
करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
भारत का संववधान 197
(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) में तनटदवष्ट ककसी ववषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) में तनटदवष्ट ककसी पररवाद के बारे में जांि करते समय,
ववलशष्टतया तनमनललखखत ववषयों के संबध
ं में , वे सभी शक्तक्तयां होंगी, जो वाद का वविारण
करते समय लसववल न्यायालय को हैं, अथावत ् :–
(क) भारत के ककसी भी भाग से ककसी व्यक्तक्त को समन करना और हाजजर
कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;
(ख) ककसी दस्तावेज को प्रकि और पेश करने की अपेक्षा करना ;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना ;
(घ) ककसी न्यायालय या कायावलय से ककसी लोक अलभलेख या उसकी प्रतत
की अध्यपेक्षा करना ;
(ङ) साक्षक्षयों और दस्तावेजों की परीक्षा के ललए कमीशन तनकालना ;
(ि) कोई अन्य ववषय, जो राष्ट्रपतत, तनयम द्वारा अवधाररत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनस
ु ूचित जनजाततयों को प्रभाववत करने
वाले सभी महत्वपण
ू व नीततगत ववषयों पर आयोग से परामशव करे गी ।]
[338ख. वपछड़े वगों के ललए राष्टरीय आयोग–(1) सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से
1
वपछड़े वगों के ललए एक आयोग होगा जो राष्टरीय वपछड़ा वगव आयोग के नाम से ज्ञात
होगा ।
(2) संसद् द्वारा इस तनलमत्त बनाई गई ककसी ववचध के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
आयोग एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगा और इस प्रकार
तनयक्
ु त ककए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शतें और पदावचध
ऐसी होंगी, जो राष्टरपतत, तनयम द्वारा अवधाररत करे ।
(3) राष्टरपतत, अपने हस्ताक्षर और मद्रु ा सटहत अचधपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष,
उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को तनयक् ु त करे गा ।
(4) आयोग को अपनी प्रकिया स्वयं ववतनयलमत करने की शजक्त होगी ।
(5) आयोग का यह कतवव्य होगा कक वह,—
(क) सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से वपछड़े वगों के ललए इस संववधान या
तत्समय प्रवत्तृ ककसी अन्य ववचध या सरकार के ककसी आदे श के अधीन उपबंचधत
रक्षोपायों से संबचं धत सभी ववषयों का अन्वेषण करे और उन पर तनगरानी रखे
तथा ऐसे रक्षोपायों के कायवकरण का मूलयांकन करे ;
(ख) सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से वपछड़े वगों को उनके अचधकारों
और रक्षोपायों से वंचित करने के संबध
ं में ववतनटदवष्टि लशकायतों की जांि करे ;
1. संववधान (एक सौ दोवां संशोधन) अचधतनयम, 2018 की धारा 3 द्वारा (11-8-2018 से) अंतःस्थावपत ।
भारत का संववधान 198
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से वपछड़े वगों
को प्रभाववत करने वाले सभी महत्वपणू व नीततगत ववषयों पर आयोग से परामशव करे गी ।]
339. अनसु ूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनस
ु ूचित जनजाततयों के कलयाण के बारे
में संघ का तनयंत्रण–(1) राष्ट्रपतत 1*** राज्यों के अनस ु चू ित क्षेत्रों के प्रशासन और
अनस ु ूचित जनजाततयों के कलयाण के बारे में प्रततवेदन दे ने के ललए आयोग की तनयक्तु क्त,
आदे श द्वारा, ककसी भी समय कर सकेगा और इस संववधान के प्रारं भ से दस वषव की
समातप्त पर करे गा ।
आदे श में आयोग की संरिना, शक्तक्तयां और प्रकिया पररतनजित की जा सकेंगी
और उसमें ऐसे आनष ु चं गक या सहायक उपबंध समाववष्ट हो सकेंगे जजन्हें राष्ट्रपतत
आवश्यक या वांछनीय समझे ।
(2) संघ की कायवपाललका शक्तक्त का ववस्तार 2[ककसी राज्य] को ऐसे तनदे श दे ने
तक होगा जो उस राज्य की अनस ु चू ित जनजाततयों के कलयाण के ललए तनदे श में
आवश्यक बताई गई स्कीमों के बनाने और तनष्टपादन के बारे में है ।
340. वपछड़े वगों की दशाओं के अन्वेषण के ललए आयोग की तनयक्तु क्त–
(1) राष्ट्रपतत, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सामाजजक और शैक्षक्षक दृवष्ट से वपछड़े वगों की
दशाओं के और जजन कटठनाइयों को वे झेल रहे हैं उनके अन्वेषण के ललए और उन
कटठनाइयों को दरू करने और उनकी दशा को सुधारने के ललए संघ या ककसी राज्य द्वारा
जो उपाय ककए जाने िाटहएं उनके बारे में और उस प्रयोजन के ललए संघ या ककसी राज्य
द्वारा जो अनद ु ान ककए जाने िाटहएं और जजन शतों के अधीन वे अनद ु ान ककए जाने
िाटहएं उनके बारे में लसफाररश करने के ललए, आदे श द्वारा, एक आयोग तनयक्त ु कर
सकेगा जो ऐसे व्यक्तक्तयों से लमलकर बनेगा जो वह ठीक समझे और ऐसे आयोग को
तनयक्तु करने वाले आदे श में आयोग द्वारा अनस ु रण की जाने वाली प्रकिया पररतनजित की
जाएगी ।
(2) इस प्रकार तनयक्त
ु आयोग अपने को तनदे लशत ववषयों का अन्वेषण करे गा और
राष्ट्रपतत को प्रततवेदन दे गा, जजसमें उसके द्वारा पाए गए तथ्य उपवखणवत ककए जाएंगे
और जजसमें ऐसी लसफाररशें की जाएंगी जजन्हें आयोग उचित समझे ।
(3) राष्ट्रपतत, इस प्रकार टदए गए प्रततवेदन की एक प्रतत, उस पर की गई कारववाई
को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सटहत, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा ।
1. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “पहली अनुसूिी के भाग क और
भाग ख में ववतनटदव ष्ट” शब्दों और अक्षरों का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
2. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “ककसी ऐसे राज्य” के स्थान पर (1-
11-1956 से) प्रततस्थावपत ।
भारत का संववधान 200
341. अनस ु ूचित जाततयां–(1) राष्ट्रपतत, [ककसी राज्य [या संघ राज्यक्षेत्र] के
1 2
संबध
ं में और जहां वह 3*** राज्य है वहां उसके राज्यपाल 4*** से परामशव करने के
पिात ्] लोक अचधसूिना5 द्वारा, उन जाततयों, मूलवंशों या जनजाततयों, अथवा जाततयों,
मूलवंशों या जनजाततयों के भागों या उनमें के यथ ू ों को ववतनटदवष्ट कर सकेगा, जजन्हें इस
संववधान के प्रयोजनों के ललए 2[यथाजस्थतत,] उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के संबध ं में
अनस ु ूचित जाततयां समझा जाएगा ।
(2) संसद्, ववचध द्वारा, ककसी जातत, मूलवंश या जनजातत को अथवा जातत,
मूलवंश या जनजातत के भाग या उसमें के यथ ू को खंड (1) के अधीन तनकाली गई
अचधसूिना में ववतनटदवष्ट अनस ु ूचित जाततयों की सूिी में सजममललत कर सकेगी या उसमें
से अपवजजवत कर सकेगी, ककन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके लसवाय उक्त खंड के
अधीन तनकाली गई अचधसूिना में ककसी पिातवती अचधसूिना द्वारा पररवतवन नहीं ककया
जाएगा ।
342. अनस ु ूचित जनजाततयां–(1) राष्ट्रपतत, [ककसी राज्य [या संघ राज्यक्षेत्र] के
6 2
संबधं में और जहां वह 7*** राज्य है वहां उसके राज्यपाल 4*** से परामशव करने के
पिात ्] लोक अचधसूिना5 द्वारा, उन जनजाततयों या जनजातत समुदायों अथवा जनजाततयों
या जनजातत समुदायों के भागों या उनमें के यथ ू ों को ववतनटदवष्ट कर सकेगा, जजन्हें इस
संववधान के प्रयोजनों के ललए, 8[यथाजस्थतत,] उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के संबध ं में
अनस ु ूचित जनजाततयां समझा जाएगा ।
1. संववधान (पहला संशोधन) अचधतनयम, 1951 की धारा 10 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशव
करने के पिात ्” के स्थान पर (18-6-1951 से) प्रततस्थावपत ।
2. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थावपत ।
3. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “पहली अनुसूिी के भाग क या
भाग ख में ववतनटदव ष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया ।
4. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “या राजप्रमुख” शब्दों का लोप
ककया गया ।
5. संववधान (अनुसूचित जाततयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 19), संववधान (अनुसूचित जाततयां) (संघ राज्यक्षेत्र) आदे श,
1951 (सं.आ. 32), संववधान (जममू-कश्मीर) अनुसचू ित जाततयां आदे श, 1956 (सं.आ. 52), संववधान (दादरा और
नागर हवेली) अनुसूचित जाततयां आदे श, 1962 (सं.आ. 64). संववधान (पांक्तडिेरी) अनुसूचित जाततयां आदे श,
1964 (सं.आ. 68), संववधान (गोवा, दमण और दीव) अनुसूचित जाततयां आदे श, 1968 (सं.आ. 81) और
संववधान (लसजक्कम) अनुसूचित जाततयां आदे श, 1978 (सं.आ. 110) दे खखए ।
6. संववधान (पहला संशोधन) अचधतनयम, 1951 की धारा 11 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशव
करने के पिात ्” के स्थान पर (18-6-1951 से) प्रततस्थावपत ।
7. संववधान (सातवां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “पहली अनुसूिी के भाग क या
भाग ख में ववतनटदव ष्ट” शब्दों और अक्षरों का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
8. संववधान (अनुसचू ित जनजाततयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 22), संववधान (अनुसचू ित जनजाततयां) (संघ राज्यक्षेत्र)
आदे श, 1951 (सं.आ. 33), संववधान (अंडमान और तनकोबार द्वीप) अनुसूचित जनजाततयां आदे श, 1959 (सं.आ.
58), संववधान (दादरा और नागर हवेली) अनुसूचित जनजाततयां आदे श, 1962 (सं.आ. 65), संववधान (अनुसूचित
जनजाततयां) (उत्तर प्रदे श) आदे श, 1967 (सं.आ. 78), संववधान (गोवा, दमण और दीव) अनुसूचित जनजाततयां
आदे श, 1968 (सं.आ. 82), संववधान (नागालैंड) अनुसूचित जनजाततयां आदे श, 1970 (सं.आ. 88) और संववधान
(लसजक्कम) अनुसचू ित जनजाततयां आदे श, 1978 (सं.आ. 111) दे खखए ।
भारत का संववधान 201
(2) संसद्, ववचध द्वारा, ककसी जनजातत या जनजातत समुदाय को अथवा ककसी
जनजातत या जनजातत समुदाय के भाग या उसमें के यथ ू को खंड (1) के अधीन तनकाली गई
अचधसूिना में ववतनटदवष्ट अनस
ु चू ित जनजाततयें की सूिी में सजममललत कर सकेगी या उसमें से
अपवजजवत कर सकेगी, ककन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके लसवाय उक्त खंड के अधीन
तनकाली गई अचधसूिना में ककसी पिातवती अचधसूिना द्वारा पररवतवन नहीं ककया जाएगा ।
1
[342क. सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से वपछड़े वगव–(1) राष्टरपतत, ककसी राज्य
या संघ राज्यक्षेत्र के संबधं में और जहां वह राज्य है, वहां उसके राज्यपाल से परामशव
करने के पश्िात ् लोक अचधसि ू ना द्वारा, सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से ऐसे वपछड़े वगों
को ववतनटदवष्टि कर सकेगा, जजन्हें इस संववधान के प्रयोजनों के ललए, यथाजस्थतत, उस
राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबधं में सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से वपछड़ा वगव समझा
जाएगा ।
(2) संसद्, ववचध द्वारा, ककसी सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से वपछड़े वगव को खंड
(1) के अधीन तनकाली गई अचधसूिना में ववतनटदवष्टि सामाजजक और शैक्षक्षक दृजष्टि से
वपछड़े वगों की केन्द्रीय सूिी में सजममललत कर सकेगी या उसमें से अपवजजवत कर
सकेगी, ककन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके लसवाय उक्त खंड के अधीन तनकाली गई
अचधसूिना में ककसी पश्िातवती अचधसूिना द्वारा पररवतवन नहीं ककया जाएगा ।]
1. संववधान (एक सौ दोवां संशोधन) अचधतनयम, 2018 की धारा 4 द्वारा (11-8-2018 से) प्रततस्थावपत ।
भाग 17
राजभाषा
अध्याय 1 – संघ की भाषा
343. संघ की राजभाषा – (1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि दे वनागरी
िोगी ।
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग िोने वािे अंकों का रूि भारतीय अंकों
का अंतरराष्ट्रीय रूि िोगा ।
(2) खंड (1) में ककसी बात के िोते िुए भी, इस संपवधान के प्रारं भ से िन्रि वषष
की अवधध तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग
ककया जाता रिे गा जजनके लिए उसका ऐसे प्रारं भ से ठीक िििे प्रयोग ककया जा रिा
था :
िरन्तु राष्ट्रितत उक्त अवधध के दौरान, आदे श1 द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में
से ककसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अततररक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के
अंतरराष्ट्रीय रूि के अततररक्त दे वनागरी रूि का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा ।
(3) इस अनच् ु छे द में ककसी बात के िोते िुए भी, संसद् उक्त िन्रि वषष की अवधध
के िश्चात ्, पवधध द्वारा –
(क) अंग्रेजी भाषा का, या
(ख) अंकों के दे वनागरी रूि का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उिबंधधत कर सकेगी जो ऐसी पवधध में पवतनहदषष्ट ककए जाएं
।
344. राजभाषा के संबध ं में आयोग और संसद् की सलमतत – (1) राष्ट्रितत, इस
संपवधान के प्रारं भ से िांच वषष की समाति िर और तत्िश्चात ् ऐसे प्रारं भ से दस वषष की
समाति िर, आदे श द्वारा, एक आयोग गहठत करे गा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनस ु ूची
में पवतनहदषष्ट पवलभन्न भाषाओं का प्रतततनधधत्व करने वािे ऐसे अन्य सदस्यों से लमिकर
बनेगा जजनको राष्ट्रितत तनयक्त ु करे और आदे श में आयोग द्वारा अनस ु रण की जाने वािी
प्रकिया िररतनजश्चत की जाएगी ।
(2) आयोग का यि कतषव्य िोगा कक वि राष्ट्रितत को –
(क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधधकाधधक
प्रयोग,
(ख) संघ के सभी या ककन्िीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के
प्रयोग िर तनबंधनों,
(ग) अनच् ु छे द 348 में उजलिखखत सभी या ककन्िीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग
की जाने वािी भाषा,
1. सं.आ. 41 दे खखए ।
202
भारत का संपवधान 203
िरन्तु यहद दो या अधधक राज्य यि करार करते िैं कक उन राज्यों के बीच ित्राहद
की राजभाषा हिन्दी भाषा िोगी तो ऐसे ित्राहद के लिए उस भाषा का प्रयोग ककया जा
सकेगा ।
347. ककसी राज्य की जनसंख्या के ककसी अनभ ु ाग द्वारा बोिी जाने वािी भाषा
के संबध
ं में पवशेष उिबंध – यहद इस तनलमत्त मांग ककए जाने िर राष्ट्रितत का यि
समाधान िो जाता िै कक ककसी राज्य की जनसंख्या का ियाषि भाग यि चािता िै कक
उसके द्वारा बोिी जाने वािी भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वि तनदे श दे
सकेगा कक ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सवषत्र या उसके ककसी भाग में ऐसे प्रयोजन
के लिए, जो वि पवतनहदषष्ट करे , शासकीय मान्यता दी जाए ।
अध्याय 3 – उच्चतम न्यायािय, उच्च न्यायाियों, आहद की भाषा
348. उच्चतम न्यायािय और उच्च न्यायाियों में और अधधतनयमों, पवधेयकों
आहद के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा – (1) इस भाग के िव ू ग
ष ामी उिबंधों में ककसी
बात के िोते िुए भी, जब तक संसद् पवधध द्वारा अन्यथा उिबंध न करे तब तक –
(क) उच्चतम न्यायािय और प्रत्येक उच्च न्यायािय में सभी कायषवाहियां
अंग्रेजी भाषा में िोंगी,
(ख) (i) संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य के पवधान-मंडि के सदन
या प्रत्येक सदन में िरु ःस्थापित ककए जाने वािे सभी पवधेयकों या प्रस्तापवत
ककए जाने वािे उनके संशोधनों के,
(ii) संसद् या ककसी राज्य के पवधान-मंडि द्वारा िाररत सभी अधधतनयमों
के और राष्ट्रितत या ककसी राज्य के राज्यिाि 1*** द्वारा प्रख्यापित सभी
अध्यादे शों के, और
(iii) इस संपवधान के अधीन अथवा संसद् या ककसी राज्य के पवधान-मंडि
द्वारा बनाई गई ककसी पवधध के अधीन तनकािे गए या बनाए गए सभी आदे शों,
तनयमों, पवतनयमों और उिपवधधयों के,
प्राधधकृत िाठ अंग्रेजी भाषा में िोंगे ।
(2) खंड (1) के उिखंड (क) में ककसी बात के िोते िुए भी, ककसी राज्य का
राज्यिाि 1*** राष्ट्रितत की िवू ष सिमतत से उस उच्च न्यायािय की कायषवाहियों में ,
जजसका मुख्य स्थान उस राज्य में िै, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय
प्रयोजनों के लिए प्रयोग िोने वािी ककसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा :
1. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का िोि ककया गया ।
भारत का संपवधान 205
िरन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायािय द्वारा हदए गए ककसी तनणषय,
क्तडिी या आदे श को िागू निीं िोगी ।
(3) खंड (1) के उिखंड (ख) में ककसी बात के िोते िुए भी, जिां ककसी राज्य के
पवधान-मंडि ने, उस पवधान-मंडि में िरु ःस्थापित पवधेयकों में या उसके द्वारा िाररत
अधधतनयमों में अथवा उस राज्य के राज्यिाि 1*** द्वारा प्रख्यापित अध्यादे शों में अथवा
उस उिखंड के िैरा (iii) में तनहदषष्ट ककसी आदे श, तनयम, पवतनयम या उिपवधध में प्रयोग
के लिए अंग्रेजी भाषा से लभन्न कोई भाषा पवहित की िै विां उस राज्य के राजित्र में उस
राज्य के राज्यिाि 1*** के प्राधधकार से प्रकालशत अंग्रेजी भाषा में उसका अनव ु ाद इस
अनच्ु छे द के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधधकृत िाठ समझा जाएगा ।
349. भाषा से संबधं धत कुछ पवधधयां अधधतनयलमत करने के लिए पवशेष प्रकिया –
इस संपवधान के प्रारं भ से िन्रि वषष की अवधध के दौरान, अनच्
ु छे द 348 के खंड (1) में
उजलिखखत ककसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वािी भाषा के लिए उिबंध करने वािा
कोई पवधेयक या संशोधन संसद् के ककसी सदन में राष्ट्रितत की िव ू ष मंजरू ी के बबना
िरु ःस्थापित या प्रस्तापवत निीं ककया जाएगा और राष्ट्रितत ककसी ऐसे पवधेयक को
िरु ःस्थापित या ककसी ऐसे संशोधन को प्रस्तापवत ककए जाने की मंजरू ी अनच् ु छे द 344 के
खंड (1) के अधीन गहठत आयोग की लसफाररशों िर और उस अनच् ु छे द के खंड (4) के
अधीन गहठत सलमतत के प्रततवेदन िर पवचार करने के िश्चात ् िी दे गा, अन्यथा निीं ।
अध्याय 4 – पवशेष तनदे श
350. व्यथा के तनवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वािी भाषा –
प्रत्येक व्यक्तक्त ककसी व्यथा के तनवारण के लिए संघ या राज्य के ककसी अधधकारी या
प्राधधकारी को, यथाजस्थतत, संघ में या राज्य में प्रयोग िोने वािी ककसी भाषा में अभ्यावेदन
दे ने का िकदार िोगा ।
2
[350क. प्राथलमक स्तर िर मातभ ृ ाषा में लशक्षा की सुपवधाएं – प्रत्येक राज्य और
राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधधकारी भाषाई अलिसंख्यक वगों के बािकों को लशक्षा
के प्राथलमक स्तर िर मातभ ृ ाषा में लशक्षा की ियाषि सुपवधाओं की व्यवस्था करने का
प्रयास करे गा और राष्ट्रितत ककसी राज्य को ऐसे तनदे श दे सकेगा जो वि ऐसी सपु वधाओं
का उिबंध सतु नजश्चत कराने के लिए आवश्यक या उधचत समझता िै ।
1. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का िोि ककया गया ।
2. संपवधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 21 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थापित ।
भारत का संपवधान 206
भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो िह उद्घोषणा द्वारा
2
[संपण
ू ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबध
ं में जो उद्घोषणा में वितनदिणष्ट
ककया जाए] इस आशय की घोषणा कर सकेगा ।
[स्पष्टीकरण – यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक यद्ध
3
ु या बाह्य
आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सजननकट है तो यह घोवषत करने िाली आपात की
उद्घोषणा कक यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सुरक्षा संकट में है, यद्ध
ु या ऐसे ककसी आक्रमण या विद्रोह के िास्ति में
होने से पहले भी की जा सकेगी ।]
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा में ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा
4
(3) राष्ट्रपतत, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने
िाली उद्घोषणा तब तक नहीं करे गा जब तक संघ के मंत्रत्रमंडल का (अर्ाणत ् उस पररषद्
का जो अनच् ु छे ि 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मंत्रत्रमंडल स्तर के अनय मंत्रत्रयों से
लमलकर बनती है) यह वितनश्चय कक ऐसी उद्घोषणा की जाए, उसे ललखखत रूप में संसचू ित
नहीं ककया जाता है ।
(4) इस अनच्
ु छे ि के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सिन के
समक्ष रखी जाएगी और जहां िह पि ू ि
ण ती उद्घोषणा को िापस लेने िाली उद्घोषणा नहीं है
िहां िह एक मास की समाति पर, यदि उस अिचध की समाति से पहले संसद् के िोनों
सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोिन नहीं कर दिया जाता है तो, प्रितणन में नहीं
रहे गी :
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आभ्यंतररक अशाजनत” के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और
खंड (3) के स्र्ान पर खंड (2) से खंड (8) प्रततस्र्ावपत ककए गए ।
207
भारत का संविधान 208
(8) जहां खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररितणन करने
िाली उद्घोषणा का, यर्ाजस्र्तत, अननम
ु ोिन या उसको प्रित्त
ृ बनाए रखने का अननम ु ोिन
करने िाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूिना लोक सभा की कुल
सिस्य संख्या के कम से कम िसिें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके ललखखत रूप में ,–
(क) यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या
(ख) यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपतत को,
िी गई है िहां ऐसे संकल्प पर वििार करने के प्रयोजन के ललए लोक सभा की विशेष
बैठक, यर्ाजस्र्तत, अध्यक्ष या राष्ट्रपतत को ऐसी सूिना प्राि होने की तारीख से िौिह
दिन के भीतर की जाएगी ।]
[ [(9)] इस अनच्
1 2
ु छे ि द्वारा राष्ट्रपतत को प्रित्त शक्तक्त के अंतगणत, यद्ध
ु या बाह्य
आक्रमण या 2[सशस्त्र विद्रोह] के अर्िा यद्ध ु या बाह्य आक्रमण या [सशस्त्र विद्रोह] का
3
संकट सजननकट होने के विलभनन आधारों पर विलभनन उद्घोषणाएं करने की शक्तक्त होगी
िाहे राष्ट्रपतत ने खंड (1) के अधीन पहले ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी
उद्घोषणा प्रितणन में है या नहीं ।
4
[* * * *]
353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाि – जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब
–
(क) संविधान में ककसी बात के होते हुए भी, संघ की कायणपाललका शक्तक्त
का विस्तार ककसी राज्य को इस बारे में तनिे श िे ने तक होगा कक िह राज्य
अपनी कायणपाललका शक्तक्त का ककस रीतत से प्रयोग करे ;
(ख) ककसी विषय के संबध ं में विचधयां बनाने की संसद् की शक्तक्त के
अंतगणत इस बात के होते हुए भी कक िह संघ सूिी में प्रगखणत विषय नहीं है,
ऐसी विचधयां बनाने की शक्तक्त होगी जो उस विषय के संबध ं में संघ को या संघ के
अचधकाररयों और प्राचधकाररयों को शक्तक्तयां प्रिान करती हैं और उन पर कतणव्य
अचधरोवपत करती हैं या शक्तक्तयों का प्रिान ककया जाना और कतणव्यों का
अचधरोवपत ककया जाना प्राचधकृत करती है :
1
[परनतु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केिल ककसी भाग में
1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आभ्यंतररक अशाजनत” के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) को खंड (9) के रूप
में पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) का लोप ककया गया
।
भारत का संविधान 210
प्रितणन में है िहां यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की
सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें आपात की
उद्घोषणा प्रितणन में है , होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है तो और िहां तक,–
(i) खंड (क) के अधीन तनिे श िे ने की संघ की कायणपाललका शक्तक्त का, और
(ii) खंड (ख) के अधीन विचध बनाने की संसद् की शक्तक्त का,
विस्तार ककसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से लभनन है जजसमें या जजसके
ककसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है ।]
354. जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब राजस्िों के वितरण संबंधी
उपबंधों का लागू होना – (1) जब आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है तब राष्ट्रपतत, आिे श
द्वारा, यह तनिे श िे सकेगा कक इस संविधान के अनच् ु छे ि 268 से अनच्
ु छे ि 279 के
सभी या कोई उपबंध ऐसी ककसी अिचध के ललए, जो उस आिे श में वितनदिण ष्ट की जाए
और जो ककसी भी िशा में उस वित्तीय िषण की समाति से आगे नहीं बढे गी, जजसमें ऐसी
उद्घोषणा प्रितणन में नहीं रहती है , ऐसे अपिािों या उपानतरणों के अधीन रहते हुए
प्रभािी होंगे , जो िह ठीक समझे ।
(2) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आिे श, ककए जाने के पश्चात ् यर्ाशक्य
शीध्र, संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखा जाएगा ।
355. बाह्य आक्रमण और आंतररक अशांतत से राज्य की संरक्षा करने का संघ का
कतणव्य – संघ का यह कतणव्य होगा कक िह बाह्य आक्रमण और आंतररक अशाजनत से
प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों
के अनस ु ार िलाया जाना सुतनजश्चत करे ।
356. राज्यों में सांविधातनक तंत्र के विफल हो जाने की िशा में उपबंध – (1)
यदि राष्ट्रपतत का ककसी राज्य के राज्यपाल 2*** से प्रततिेिन लमलने पर या अनयर्ा, यह
समाधान हो जाता है कक ऐसी जस्र्तत उत्पनन हो गई है जजसमें उस राज्य का शासन इस
संविधान के उपबंधों के अनस ु ार नहीं िलाया जा सकता है तो राष्ट्रपतत उद्घोषणा द्वारा –
(क) उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और 3[राज्यपाल] में या
राज्य के विधान-मंडल से लभनन राज्य के ककसी तनकाय या प्राचधकारी में तनदहत
या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तक्तयां अपने हार् में ले सकेगा ;
1. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (सातिां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “या राजप्रमुख” शब्िों का (1-
11-1956 से) लोप ककया गया ।
3. संविधान (सातिां संशोधन) अचधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूिी द्वारा “यर्ाजस्र्तत, या राजप्रमुख” शब्िों के
स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 211
उद्घोषणा के ककए जाने की तारीख से छह मास] की अिचध की समाति पर प्रितणन में नहीं
रहे गी :
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "खंड (3) के अधीन उद्घोषणा
का अनुमोिन करने िाले संकल्पों में से िूसरे के पाररत हो जाने की तारीख से एक िषण" के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्ि "छह मास" के स्र्ान
पर "एक िषण" शब्ि प्रततस्र्ावपत ककए गए र्े ।
भारत का संविधान 212
परनतु यदि और जजतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन
करने िाला संकल्प संसद् के िोनों सिनों द्वारा पाररत कर दिया जाता है तो और उतनी
बार िह उद्घोषणा, यदि िापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जजसको िह इस खंड
के अधीन अनयर्ा प्रितणन में नहीं रहती, 1[छह मास] की अिचध तक प्रित्त ृ बनी रहेगी,
ककनतु ऐसी उद्घोषणा ककसी भी िशा में तीन िषण से अचधक प्रित्त
ृ नहीं रहेगी :
परनतु यह और कक यदि लोक सभा का विघटन 2[छह मास] की ऐसी अिचध के
िौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए
रखने के संबधं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अिचध के िौरान पाररत नहीं ककया
गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से, जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म
बार बैठती है, तीस दिन की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की
अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा को प्रित्तृ बनाए रखने का अनम ु ोिन करने िाला
संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है :
[परनतु यह भी कक पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के
2
अधीन की गई उद्घोषणा की िशा में , इस खंड के पहले परनतुक में “तीन िषण” के प्रतत
तनिे श का इस प्रकार अर्ण लगाया जाएगा मानो िह 3[“पांि िषण”] के प्रतत तनिे श हो ।]
4
[(5) खंड (4) में ककसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनम ु ोदित
उद्घोषणा के ककए जाने की तारीख से एक िषण की समाति से आगे ककसी अिचध के ललए
ऐसी उद्घोषणा को प्रित्त
ृ बनाए रखने के संबध ं में कोई संकल्प संसद् के ककसी सिन द्वारा
तभी पाररत ककया जाएगा जब–
(क) ऐसे संकल्प के पाररत ककए जाने के समय आपात की उद्घोषणा,
यर्ाजस्र्तत, संपणू ण भारत में अर्िा संपण
ू ण राज्य या उसके ककसी भाग में प्रितणन में
है ; और
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "एक िषण" के स्र्ान पर
प्रततस्र्ावपत । संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" मूल
शब्िों के स्र्ान पर "एक िषण" शब्ि प्रततस्र्ावपत ककए गए र्े ।
2. संविधान (िौसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (सड़सठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (4-10-1990 से) प्रततस्र्ावपत और तत्पश्चात ्
संविधान (अड़सठिां संशोधन) अचधतनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा (12-3-1991 से) संशोचधत होकर ितणमान रूप में
आया ।
4. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 6 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) खंड (5) अंतःस्र्ावपत और
तत्पश्चात ् संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) खंड 5 के स्र्ान
पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 213
1. संविधान (ततरसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1989 की धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप ककया गया जजसे संविधान
(िौसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्र्ावपत ककया गया र्ा ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) प्रततस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे ि 358 को उसके
खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांककत ककया गया ।
भारत का संविधान 214
1. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा
प्रितणन में है” शब्िों के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात की उद्घोषणा”
शब्िों के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
4. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
5. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) “भाग 3 द्वारा प्रित्त
अचधकारों” के स्र्ान पर प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 215
1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 7 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) अंतःस्र्ावपत ।
2. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
3. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्र्ावपत ।
4. संविधान (बयालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 216
प्रितणन में है िहां ककसी ऐसे आिे श का विस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी अनय भाग
पर तभी होगा जब राष्ट्रपतत, यह समाधान हो जाने पर कक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबध ं में , जजसमें
आपात की उद्घोषणा प्रितणन में है, होने िाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है, ऐसा
विस्तार आिश्यक समझता है ।]
(3) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आिे श, ककए जाने के पश्चात ् यर्ाशक्य
शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखा जाएगा ।
1
359क. [इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना ।] – संविधान (ततरसठिां
संशोधन) अचधतनयम, 1989 की धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) तनरलसत ।
360. वित्तीय आपात के बारे में उपबंध – (1) यदि राष्ट्रपतत का यह समाधान हो
जाता है कक ऐसी जस्र्तत उत्पनन हो गई है जजससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी
भाग का वित्तीय स्र्ातयत्ि या प्रत्यय संकट में है तो िह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की
घोषणा कर सकेगा ।
2
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा–
(क) ककसी पश्चातिती उद्घोषणा द्वारा िापस ली जा सकेगी या पररिततणत की
जा सकेगी ;
(ख) संसद् के प्रत्येक सिन के समक्ष रखी जाएगी ;
(ग) िो मास की समाति पर, प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उस अिचध की
समाति से पहले संसद् के िोनों सिनों के संकल्पों द्वारा उसका अनम ु ोिन नहीं कर
दिया जाता है :
परनतु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन
हो गया है या लोक सभा का विघटन उपखंड (ग) में तनदिणष्ट िो मास की अिचध के िौरान
हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनम ु ोिन करने िाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत
कर दिया गया है, ककनतु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस
अिचध की समाति से पहले पाररत नहीं ककया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से,
जजसको लोक सभा अपने पन ु गणठन के पश्चात ् प्रर्म बार बैठती है, तीस दिन की समाति
पर प्रितणन में नहीं रहे गी यदि उक्त तीस दिन की अिचध की समाति से पहले उद्घोषणा का
अनमु ोिन करने िाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर दिया जाता है ।]
(3) उस अिचध के िौरान, जजसमें खंड (1) में उजल्लखखत उद्घोषणा प्रित्त ृ रहती है,
1. संविधान (उनसठिां संशोधन) अचधतनयम, 1988 की धारा 3 द्वारा (30-3-1988 से) अंतःस्र्ावपत । यह, इस
अचधतनयम के प्रारं भ से, अर्ाणत ् 1988 के मािण के तीसिें दिन से िो िषण की अिचध की समाति के पश्चात ् प्रित्त
ृ
नहीं रहे गी ।
2. संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) प्रततस्र्ावपत ।
भारत का संविधान 217
संघ की कायणपाललका शक्तक्त का विस्तार ककसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबध ं ी ऐसे
लसद्धांतों का पालन करने के ललए तनिे श िे ने तक, जो तनिे शों में वितनदिणष्ट ककए जाएं,
और ऐसे अनय तनिे श िे ने तक होगा जजनहें राष्ट्रपतत उस प्रयोजन के ललए िे ना आिश्यक
और पयाणि समझे ।
(4) इस संविधान में ककसी बात के होते हुए भी, –
(क) ऐसे ककसी तनिे श के अंतगणत–
(i) ककसी राज्य के कायणकलाप के संबध ं में सेिा करने िाले सभी या
ककसी िगण के व्यक्तक्तयों के िेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने िाला
उपबंध ;
(ii) धन विधेयकों या अनय ऐसे विधेयकों को, जजनको अनच् ु छे ि
207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पाररत ककए जाने
के पश्चात ् राष्ट्रपतत के वििार के ललए आरक्षक्षत रखने के ललए उपबंध,
हो सकेंगे ;
(ख) राष्ट्रपतत, उस अिचध के िौरान, जजसमें इस अनच् ु छे ि के अधीन की
गई उद्घोषणा प्रित्त ृ रहती है, संघ के कायणकलाप के संबध ं में सेिा करने िाले सभी
या ककसी िगण के व्यक्तक्तयों के, जजनके अंतगणत उच्ितम नयायालय और उच्ि
नयायालयों के नयायाधीश हैं, िेतनों और भत्तों में कमी करने के ललए तनिे श िे ने
के ललए सक्षम होगा ।
1
(5)* * * * *
1. संविधान (अड़तीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाि से) खंड (5) अंतःस्र्ावपत ककया
गया र्ा और उसका संविधान (ििालीसिां संशोधन) अचधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
ककया गया ।
भाग 19
प्रकीर्ण
361. राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमख
ु ों का संरक्षर् – (1) राष्ट्रपति अथवा
राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और किणव्यों के पालन
के ललए या उन शक्तियों का प्रयोग और किणव्यों का पालन करिे हुए अपने द्वारा ककए
गए या ककए जाने के ललए िात्पतयणि ककसी कायण के ललए ककसी न्यायालय को उत्तरदायी
नह ं होगा :
परन्िु अनच् ु छे द 61 के अधीन आरोप के अन्वेषर् के ललए संसद् के ककसी सदन
द्वारा तनयि
ु या अलभहहि ककसी न्यायालय, अधधकरर् या तनकाय द्वारा राष्ट्रपति के
आचरर् का पन ु र्वणलोकन ककया जा सकेगा :
परन्िु यह और कक इस खंड की ककसी बाि का यह अथण नह ं लगाया जाएगा कक
वह भारि सरकार या ककसी राज्य की सरकार के र्वरुद्ध समुधचि कायणवाहहयां चलाने के
ककसी व्यक्ति के अधधकार को तनबंधधि करिी है ।
(2) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** के र्वरुद्ध उसकी पदावधध के
दौरान ककसी न्यायालय में ककसी भी प्रकार की दांक्तडक कायणवाह संस्थथि नह ं की जाएगी
या चालू नह ं रखी जाएगी ।
(3) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** की पदावधध के दौरान उसकी
धगरफ्िार या कारावास के ललए ककसी न्यायालय से कोई आदे लशका तनकाल नह ं
जाएगी ।
(4) राष्ट्रपति या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** के रूप में अपना पद ग्रहर् करने
से पहले या उसके पश्चाि ्, उसके द्वारा अपनी वैयक्तिक हैलसयि में ककए गए या ककए जाने
के ललए िात्पतयणि ककसी कायण के संबध ं में कोई लसर्वल कायणवाहहयां, स्जनमें राष्ट्रपति या
ऐसे राज्य के राज्यपाल 1*** के र्वरुद्ध अनि ु ोष का दावा ककया जािा है, उसकी पदावधध
के दौरान ककसी न्यायालय में िब िक संस्थथि नह ं की जाएगी जब िक कायणवाहहयों की
प्रकृति, उनके ललए वाद हेिक ु , ऐसी कायणवाहहयों को संस्थथि करने वाले पक्षकार का नाम,
वर्णन, तनवास-थथान और उस अनि ु ोष का स्जसका वह दावा करिा है, कथन करने वाल
ललखखि सूचना, यथास्थथति, राष्ट्रपति या राज्यपाल 2*** को पररदत्त ककए जाने या उसके
कायाणलय में छोडे जाने के पश्चाि ् दो मास का समय समाप्त नह ं हो गया है ।
1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
2. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
218
भारि का संर्वधान 219
1
[361क. संसद् और राज्यों के र्वधान-मंडलों की कायणवाहहयों के प्रकाशन का
संरक्षर्–(1) कोई व्यक्ति संसद् के ककसी सदन या, यथास्थथति, ककसी राज्य की र्वधान
सभा या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के ककसी सदन की ककन्ह कायणवाहहयों के सारिः
सह र्ववरर् के ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के संबध ं में ककसी न्यायालय में ककसी भी
प्रकार की लसर्वल या दांक्तडक कायणवाह का िब िक भागी नह ं होगा जब िक यह साबबि
नह ं कर हदया जािा है कक प्रकाशन र्वद्वे षपव
ू क
ण ककया गया है :
परन्िु इस खंड की कोई बाि संसद् के ककसी सदन या, यथास्थथति, ककसी राज्य
की र्वधान सभा या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल के ककसी सदन की गुप्त बैठक की
कायणवाहहयों के र्ववरर् के प्रकाशन को लागू नह ं होगी ।
(2) खंड (1) ककसी प्रसारर् केन्र के माध्यम से उपलब्ध ककसी कायणक्रम या सेवा
के भागरूप बेिार िारयांबत्रकी के माध्यम से प्रसाररि ररपोर्टों या सामग्री के संबध
ं में उसी
प्रकार लागू होगा स्जस प्रकार वह ककसी समाचारपत्र में प्रकालशि ररपोर्टों या सामग्री के
संबधं में लागू होिा है ।
थपष्टीकरर् – इस अनच्
ु छे द में , “समाचारपत्र” के अंिगणि समाचार एजेंसी की ऐसी
ररपोर्टण है स्जसमें ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के ललए सामग्री अंिर्वणष्ट है ।]
[361ख. लाभप्रद राजनीतिक पद पर तनयक्तु ि के ललए तनरहणिा – ककसी
2
राजनीतिक दल का ककसी सदन का कोई सदथय, जो दसवीं अनस ु ूची के पैरा 2 के अधीन
सदन का सदथय होने के ललए तनरहहणि है, अपनी तनरहणिा की िार ख से प्रारं भ होने वाल
और उस िार ख िक स्जसको ऐसे सदथय के रूप में उसकी पदावधध समाप्त होगी या उस
िार ख िक स्जसको वह ककसी सदन के ललए कोई तनवाणचन लडिा है, और तनवाणधचि
घोर्षि ककया जािा है, इनमें से जो भी पव
ू ि
ण र हो, की अवधध के दौरान, कोई लाभप्रद
राजनीतिक पद धारर् करने के ललए भी तनरहहणि होगा ।
थपष्टीकरर् – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए, –
(क) “सदन” पद का वह अथण है जो उसका दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के
खंड (क) में है ;
(ख) “लाभप्रद राजनीतिक पद” अलभव्यक्ति से अलभप्रेि है, –
(i) भारि सरकार या ककसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहां
ऐसे पद के ललए वेिन या पाररश्रलमक का संदाय, यथास्थथति, भारि
सरकार या राज्य सरकार के लोक राजथव से ककया जािा है ; या
1. संर्वधान (चवाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 42 द्वारा (20-6-1979 से) अंिःथथार्पि ।
2. संर्वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (1-1-2004 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 220
1. संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (28-12-1971 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 221
तनजी थैल का अंि ककया जािा है और तनजी थैल की बाबि सभी अधधकार,
दातयत्व और बाध्यिाएं तनवाणर्पि की जािी हैं और िद्नस
ु ार खंड (क) में तनहदणष्ट,
यथास्थथति, शासक या ऐसे शासक के उत्तराधधकार को या अन्य व्यक्ति को ककसी
रालश का तनजी थैल के रूप में संदाय नह ं ककया जाएगा ।]
364. महापत्तनों और र्वमानक्षेत्रों के बारे में र्वशेष उपबंध – (1) इस संर्वधान में
ककसी बाि के होिे हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधधसच ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक ऐसी
िार ख से, जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट की जाए,–
(क) संसद् या ककसी राज्य के र्वधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई र्वधध
ककसी महापत्तन या र्वमानक्षेत्र को लागू नह ं होगी अथवा ऐसे अपवादों या
उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए लागू होगी जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट ककए
जाएं ; या
(ख) कोई र्वद्यमान र्वधध ककसी महापत्तन या र्वमानक्षेत्र में उन बािों के
लसवाय प्रभावी नह ं रहे गी स्जन्हें उि िार ख से पहले ककया गया है या करने का
लोप ककया गया है अथवा ऐसे पत्तन या र्वमानक्षेत्र को लागू होने में ऐसे अपवादों
या उपांिरर्ों के अधीन रहिे हुए प्रभावी होगी जो उस अधधसूचना में र्वतनहदणष्ट
ककए जाएं ।
(2) इस अनच्
ु छे द में–
(क) “महापत्तन” से ऐसा पत्तन अलभप्रेि है स्जसे संसद् द्वारा बनाई गई ककसी
र्वधध या ककसी र्वद्यमान र्वधध द्वारा या उसके अधीन महापत्तन घोर्षि ककया गया
है और इसके अंिगणि ऐसे सभी क्षेत्र हैं जो उस समय ऐसे पत्तन की सीमाओं के
भीिर हैं ;
(ख) “र्वमानक्षेत्र” से वायु मागों, वायय
ु ानों और र्वमान चालन से संबधं धि
अधधतनयलमतियों के प्रयोजनों के ललए यथा पररभार्षि र्वमानक्षेत्र अलभप्रेि है ।
365. संघ द्वारा हदए गए तनदे शों का अनपु ालन करने में या उनको प्रभावी करने में
असफलिा का प्रभाव – जहां इस संर्वधान के ककसी उपबंध के अधीन संघ की
कायणपाललका शक्ति का प्रयोग करिे हुए हदए गए ककन्ह ं तनदे शों का अनपु ालन करने में या
उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल रहिा है वहां राष्ट्रपति के ललए यह मानना
र्वधधपर्
ू ण होगा कक ऐसी स्थथति उत्पन्न हो गई है स्जसमें उस राज्य का शासन इस
संर्वधान के उपबंधों के अनस ु ार नह ं चलाया जा सकिा है ।
366. पररभाषाएं – इस संर्वधान में , जब िक कक संदभण से अन्यथा अपेक्षक्षि न
हो, तनम्नललखखि पदों के तनम्नललखखि अथण हैं, अथाणि ् :–
(1) “कृर्ष-आय” से भारिीय आय-कर से संबधं धि अधधतनयलमतियों के
प्रयोजनों के ललए यथा पररभार्षि कृर्ष-आय अलभप्रेि है ;
(2) “आंग्ल-भारिीय” से ऐसा व्यक्ति अलभप्रेि है स्जसका र्पिा या र्पि-ृ
भारि का संर्वधान 222
परं परा में कोई अन्य परु ु ष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, ककन्िु जो भारि के
राज्यक्षेत्र में अधधवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे मािा-र्पिा से जन्मा है या
जन्मा था जो वहां साधारर्िया तनवासी रहे हैं और केवल अथथायी प्रयोजनों के
ललए वास नह ं कर रहे हैं ;
(3) “अनच्
ु छे द” से इस संर्वधान का अनच्
ु छे द अलभप्रेि है ;
(4) “उधार लेना” के अंिगणि वार्षणककयां दे कर धन लेना है और “उधार” का
िद्नस
ु ार अथण लगाया जाएगा ;
1
[(4क)* * * *]
(5) “खंड” से उस अनच्
ु छे द का खंड अलभप्रेि है स्जसमें वह पद आिा है ;
(6) “तनगम कर” से कोई आय पर कर अलभप्रेि है, जहां िक वह कर
कंपतनयों द्वारा संदेय है और ऐसा कर है स्जसके संबध
ं में तनम्नललखखि शिें परू
होिी हैं, अथाणि ् :–
(क) वह कृर्ष-आय के संबध
ं में प्रभायण नह ं है ;
(ख) कंपतनयों द्वारा संदत्त कर के संबध
ं में कंपतनयों द्वारा व्यर्ष्टयों
को संदेय लाभांशों में से ककसी कर्टौिी का ककया जाना उस कर को लागू
अधधतनयलमतियों द्वारा प्राधधकृि नह ं है ;
1. संर्वधान (बयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (4क) अन्िःथथार्पि
ककया गया और उसका संर्वधान (िैंिाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप
ककया गया ।
भारि का संर्वधान 223
1. संर्वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधधतनयम, 2016 की धारा 14(i) द्वारा (16-9-2016 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 224
1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (21) का
लोप ककया गया ।
2. संर्वधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (28-12-1971 से) प्रतिथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 225
1
[(26क) “सेवाओं” से माल से लभन्न कुछ भी अलभप्रेि है ;
(26ख) “राज्य” के अंिगणि, अनच् ु छे द 246क, अनच् ु छे द 268, अनच्
ु छे द
269, अनच्ु छे द 269क और अनच् ु छे द 279क के संदभण में , र्वधान-मंडल वाला कोई
संघ राज्यक्षेत्र भी आिा है ;]
[(26ग) ‘‘सामास्जक और शैक्षक्षक दृस्ष्र्ट से र्पछडे वगों’’ से ऐसे र्पछडे
2
1. संर्वधान (बयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (26क) अंिःथथार्पि
ककया गया था और उसका संर्वधान (िैंिाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से)
लोप ककया गया और संर्वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधधतनयम, 2016 की धारा 14(ii) द्वारा
(16-9-2016 से) अंिःथथार्पि ।
2. संर्वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अधधतनयम, 2018 की धारा 5 द्वारा (11-8-2018 से) अंिःथथार्पि ।
3. संर्वधान (तछयाल सवां संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 4 द्वारा (2-2-1983 से) अंिःथथार्पि ।
भारि का संर्वधान 226
1. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा खंड (30) के थथान पर (1-
11-1956 से) प्रतिथथार्पि ।
2. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल अनुसूची के भाग क या भाग
ख में र्वतनहदण ष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया ।
3. संर्वधान (सािवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया ।
4. संर्वधान (र्वदे शी राज्यों के बारे में घोषर्ा) आदे श, 1950, (सं. आ. 2) दे खखए ।
भाग 20
संविधान का संशोधन
368. 1[संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया]
– [(1) इस संविधान में क्रकसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी संविधायी शक्ति का
2
1. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा "संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया" के
स्िान पर (5-11-1971 से) प्रनतस्िावपत ।
2. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्िावपत ।
3. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा अनुच्छे द 368 को खंड (2) के रूप में
पुनःसंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
4. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा “तब िह राष्ट्रपनत के समक्ष उसकी अनुमनत के
लिए रखा जाएगा तिा विधेयक को ऐसी अनुमनत दी जाने के पश्चात ्” के स्िान पर प्रनतस्िावपत ।
5. संविधान (एक सौ एकिां संशोधन) अधधननयम, 2016 की धारा 15 द्वारा (16-9-2016 से) "अनुच्छे द 162 या
अनुच्छे द 241" के स्िान पर प्रनतस्िावपत ।
227
भारत का संविधान 228
1
*** कम से कम आधे राज्यों के विधान-मंडिों द्वारा पाररत इस आशय के संकल्पों द्वारा
उन विधान-मंडिों का अनस
ु मिधन भी अपेक्षक्षत होगा ।
2
[(3) अनच्
ु छे द 13 की कोई बात इस अनच्
ु छे द के अधीन क्रकए गए क्रकसी
संशोधन को िागू नहीं होगी ।]
[(4) इस संविधान का (स्जसके अंतगधत भाग 3 के उपबंध हैं) इस अनच्
3
ु छे द के
अधीन संविधान (बयािीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 55 के प्रारं भ से पहिे
या उसके पश्चात ् क्रकया गया या क्रकया गया तात्पनयधत कोई संशोधन क्रकसी न्यायािय में
क्रकसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं क्रकया जाएगा ।
(5) शंकाओं को दरू करने के लिए यह घोवित क्रकया जाता है क्रक इस अनच् ु छे द के
अधीन इस संविधान के उपबंधों का पररिधधन, पररितधन या ननरसन के रूप में संशोधन
करने के लिए संसद् की संविधायी शक्ति पर क्रकसी प्रकार का ननबधन्धन नहीं होगा ।]
1. संविधान (सातिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहिी अनुसूची
के भाग क और भाग ख में विननददध ष्ट” शब्दों और अक्षरों का िोप क्रकया गया ।
2. संविधान (चौबीसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्िावपत ।
3. अनुच्छे द 368 में खंड (4) और खंड (5) संविधान (बयािीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 55 द्वारा (3-
1-1977 से) अंतःस्िावपत क्रकए गए िे । उच्चतम न्यायािय ने लमनिाध लमल्स लिलमटे ड और अन्य बनाम भारत
संघ और अन्य एआईआर 1980, एस.सी. 1789 के मामिे में इस धारा को अविधधमान्य घोवित क्रकया है ।
भाग 21
1
[अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध]
369. राज्य सूची के कुछ विषयों के संबध ं में विधध बनाने की संसद् की इस
प्रकार अस्थायी शक्ति मानो िे समिर्ती सच ू ी के विषय हों – इस संविधान में ककसी बार्त
के होर्ते हुए भी, संसद् को इस संविधान के प्रारं भ से पांच िषष की अिधध के दौरान
ननम्नललखिर्त विषयों के बारे में विधध बनाने की इस प्रकार शक्ति होगी मानो िे विषय
समिर्ती सूची में प्रगखणर्त हों, अथाषर्त ् :–
(क) सर्त
ू ी और ऊनी िस्त्रों, कच्ची कपास (जिसके अंर्तगषर्त ओटी हुई रुई
और बबना ओटी रुई या कपास है), बबनौले, कागि (जिसके अंर्तगषर्त अिबारी
कागि है), िाद्य पदाथष (जिसके अंर्तगषर्त िाद्य नर्तलहन और र्तेल हैं), पशओ
ु ं के
चारे (जिसके अंर्तगषर्त िली और अन्य सारकृर्त चारे हैं), कोयले (जिसके अंर्तगषर्त
कोक और कोयले के व्यत्ु पाद हैं), लोहे , इस्पार्त और अभ्रक का ककसी राज्य के
भीर्तर व्यापार और िाखणज्य र्तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और विर्तरण ;
(ि) िंड (क) में िखणषर्त विषयों में से ककसी विषय से संबधं धर्त विधधयों के
विरुद्ध अपराध, उन विषयों में से ककसी के संबध ं में उच्चर्तम न्यायालय से लभन्न
सभी न्यायालयों की अधधकाररर्ता और शक्तियां, र्तथा उन विषयों में से ककसी के
संबधं में फीस ककं र्तु इसके अंर्तगषर्त ककसी न्यायालय में ली िाने िाली फीस नहीं
है,
ककं र्तु संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधध, जिसे संसद् इस अनच्
ु छे द के उपबंधों के अभाि में
बनाने के ललए सक्षम नहीं होर्ती, उि अिधध की समानि पर अक्षमर्ता की मात्रा र्तक उन
बार्तों के लसिाय प्रभािी नहीं रहेगी जिन्हें उस अिधध की समानि के पहले ककया गया है
या करने का लोप ककया गया है ।
370. िम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
2
ं में अस्थायी उपबंध – (1) इस संविधान में
ककसी बार्त के होर्ते हुए भी, –
1. संविधान (र्तेरहिां संशोधन) अधधननयम, 1962 की धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) “अस्थायी र्तथा अंर्तःकालीन
उपबंध” के स्थान पर प्रनर्तस्थावपर्त ।
2. इस अनुच्छे द द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करर्ते हुए राष्ट्रपनर्त ने िम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा की
लसफाररश पर यह घोषणा की कक 17 निंबर, 1952 से उि अनुच्छे द 370 इस उपांर्तरण के साथ प्रिर्तषनीय होगा
कक उसके िंड (1) में स्पष्टीकरण के स्थान पर ननम्नललखिर्त स्पष्टीकरण रि ददया गया है, अथाषर्त ् :–
“स्पष्टीकरण – इस अनुच्छे द के प्रयोिनों के ललए राज्य की सरकार से िह व्यक्ति अलभप्रेर्त है जिसे राज्य
की विधान सभा की लसफाररश पर राष्ट्रपनर्त ने राज्य की र्तत्समय पदारूढ़ मंबत्र-पररषद् की सलाह पर कायष करने
िाले िम्मू-कश्मीर के सदरे ररयासर्त के रूप में मान्यर्ता प्रदान की हो ।”।
* अब “राज्यपाल” (विधध मंत्रालय आदे श सं0 सं.आ. 44, ददनांक 15 निंबर, 1952) ।
229
भारर्त का संविधान 230
(क) अनच्
ु छे द 238 के उपबंध िम्मू-कश्मीर राज्य के संबध
ं में लागू नहीं
होंगे ;
(ि) उि राज्य के ललए विधध बनाने की संसद् की शक्ति,–
(i) संघ सच ू ी और समिर्ती सच
ू ी के उन विषयों र्तक सीलमर्त होगी
जिनको राष्ट्रपनर्त, उस राज्य की सरकार से परामशष करके, उन विषयों के
र्तत्स्थानी विषय घोवषर्त कर दे , िो भारर्त डोलमननयन में उस राज्य के
अधधलमलन को शालसर्त करने िाले अधधलमलन पत्र में ऐसे विषयों के रूप
में विननददषष्ट हैं जिनके संबध
ं में डोलमननयन विधान-मंडल उस राज्य के
ललए विधध बना सकर्ता है; और
(ii) उि सूधचयों के उन अन्य विषयों र्तक सीलमर्त होगी िो
राष्ट्रपनर्त, उस राज्य की सरकार की सहमनर्त से, आदे श द्वारा, विननददषष्ट करे
।
स्पष्टीकरण – इस अनच् ु छे द के प्रयोिनों के ललए, उस राज्य की सरकार से
िह व्यक्ति अलभप्रेर्त है जिसे राष्ट्रपनर्त से, िम्मू-कश्मीर के महारािा की 5 माचष,
1948 की उद्घोषणा के अधीन र्तत्समय पदस्थ मंबत्र-पररषद् की सलाह पर कायष
करने िाले िम्मू-कश्मीर के महारािा के रूप में र्तत्समय मान्यर्ता प्राि थी ;
(ग) अनच्
ु छे द 1 और इस अनच्
ु छे द के उपबंध उस राज्य के संबध
ं में लागू
होंगे ;
(घ) इस संविधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपिादों और उपांर्तरणों के
अधीन रहर्ते हुए, िो राष्ट्रपनर्त आदे श1 द्वारा विननददषष्ट करे , उस राज्य के संबध
ं में
लागू होंगे :
परं र्तु ऐसा कोई आदे श िो उपिंड (ि) के पैरा (i) में ननददषष्ट राज्य के
अधधलमलन पत्र में विननददषष्ट विषयों से संबधं धर्त है, उस राज्य की सरकार से परामशष
करके ही ककया िाएगा, अन्यथा नहीं :
परं र्तु यह और कक ऐसा कोई आदे श िो अंनर्तम पिू ि
ष र्ती परं र्तुक में ननददषष्ट विषयों
से लभन्न विषयों से संबधं धर्त है, उस सरकार की सहमनर्त से ही ककया िाएगा, अन्यथा
नहीं ।
(2) यदद िंड (1) के उपिंड (ि) के पैरा (ii) में या उस िंड के उपिंड (घ) के
दसू रे परं र्तुक में ननददषष्ट उस राज्य की सरकार की सहमनर्त, उस राज्य का संविधान बनाने
के प्रयोिन के ललए संविधान सभा के बल ु ाए िाने से पहले दी िाए र्तो उसे ऐसी
संविधान सभा के समक्ष ऐसे विननश्चय के ललए रिा िाएगा िो िह उस पर करे ।
(3) इस अनच्
ु छे द के पि
ू ग
ष ामी उपबंधों में ककसी बार्त के होर्ते हुए भी, राष्ट्रपनर्त
1. समय-समय पर यथासंशोधधर्त संविधान (िम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदे श, 1954 (सं. आ. 48)
पररलशष्ट 1 में दे खिए ।
भारर्त का संविधान 231
लोक अधधसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कक यह अनच् ु छे द प्रिर्तषन में नहीं रहे गा या ऐसे
अपिादों और उपांर्तरणों सदहर्त ही और ऐसी र्तारीि से, प्रिर्तषन में रहे गा, िो िह
विननददषष्ट करे :
परं र्तु राष्ट्रपनर्त द्वारा ऐसी अधधसूचना ननकाले िाने से पहले िंड (2) में ननददषष्ट उस
राज्य की संविधान सभा की लसफाररश आिश्यक होगी ।
1
[371. 2*** महाराष्ट्र और गुिरार्त राज्यों के संबध
ं में विशेष उपबंध – 3* * *
(2) इस संविधान में ककसी बार्त के होर्ते हुए भी, राष्ट्रपनर्त, 4[महाराष्ट्र या गुिरार्त
राज्य] के संबध
ं में ककए गए आदे श द्वारा :–
(क) यथाजस्थनर्त, विदभष, मराठिाडा 5[और शेष महाराष्ट्र या] सौराष्ट्र, कच्छ
और शेष गुिरार्त के ललए पथ ृ क् विकास बोडों की स्थापना के ललए, इस उपबंध
सदहर्त कक इन बोडों में से प्रत्येक के कायषकरण पर एक प्रनर्तिेदन राज्य विधान
सभा के समक्ष प्रनर्तिषष रिा िाएगा,
(ि) समस्र्त राज्य की आिश्यकर्ताओं का ध्यान रिर्ते हुए, उि क्षेत्रों के
विकास व्यय के ललए ननधधयों के साम्यापण
ू ष आबंटन के ललए, और
(ग) समस्र्त राज्य की आिश्यकर्ताओं का ध्यान रिर्ते हुए, उि सभी क्षेत्रों
के संबध
ं में , र्तकनीकी लशक्षा और व्यािसानयक प्रलशक्षण के ललए पयाषि सवु िधाओं
की और राज्य सरकार के ननयंत्रण के अधीन सेिाओं में ननयोिन के ललए पयाषि
अिसरों की व्यिस्था करने िाली साम्यापण ू ष व्यिस्था करने के ललए,
राज्यपाल के ककसी विशेष उत्तरदानयत्ि के ललए उपबंध कर सकेगा ।]
6
[371क. नागालैंड राज्य के संबध ं में विशेष उपबंध – (1) इस संविधान में ककसी
बार्त के होर्ते हुए भी, –
(क) ननम्नललखिर्त के संबध ं में संसद् का कोई अधधननयम नागालैंड राज्य
को र्तब र्तक लागू नहीं होगा िब र्तक नागालैंड की विधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा
विननश्चय नहीं करर्ती है, अथाषर्त ्,–
(i) नागाओं की धालमषक या सामाजिक प्रथाएं ;
1. संविधान (सार्तिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 22 द्वारा (1-11-1956 से) प्रनर्तस्थावपर्त ।
2. संविधान (बत्तीसिां संशोधन) अधधननयम, 1973 की धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) “आंध्र प्रदे श,” शब्दों का लोप
ककया गया ।
3. संविधान (बत्तीसिां संशोधन) अधधननयम, 1973 की धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) िंड (1) का लोप ककया गया ।
4. मुंबई पुनगषठन अधधननयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई राज्य” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त ।
5. मुंबई पुनगषठन अधधननयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “शेष महाराष्ट्र” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त ।
6. संविधान (र्तेरहिां संशोधन) अधधननयम, 1962 की धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 232
पररषद् के सदस्य चन
ु े िाएंगे :
परं र्तु त्यए
ु नसांग जिले का उपायि
ु प्रादे लशक पररषद् का पदे न
अध्यक्ष होगा और प्रादे लशक पररषद् का उपाध्यक्ष उसके सदस्यों द्वारा अपने
में से ननिाषधचर्त ककया िाएगा ;
(ii) प्रादे लशक पररषद् के सदस्य चन
ु े िाने के ललए और सदस्य होने
के ललए अहषर्ताएं ;
(iii) प्रादे लशक पररषद् के सदस्यों की पदािधध और उनको ददए िाने
िाले िेर्तन और भत्ते, यदद कोई हों ;
(iv) प्रादे लशक पररषद् की प्रकक्रया और कायष संचालन ;
(v) प्रादे लशक पररषद् के अधधकाररयों और कमषचाररिद
ंृ की ननयक्तु ि
और उनकी सेिा की शर्तें ; और
(vi) कोई अन्य विषय जिसके संबध
ं में प्रादे लशक पररषद् के गठन
और उसके उधचर्त कायषकरण के ललए ननयम बनाने आिश्यक हैं ।
(2) इस संविधान में ककसी बार्त के होर्ते हुए भी, नागालैंड राज्य के ननमाषण की
र्तारीि से दस िषष की अिधध र्तक या ऐसी अनर्तररि अिधध के ललए जिसे राज्यपाल,
प्रादे लशक पररषद् की लसफाररश पर, लोक अधधसूचना द्वारा, इस ननलमत्त विननददषष्ट करे ,–
(क) त्यए
ु नसांग जिले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया िाएगा ;
(ि) िहां भारर्त सरकार द्वारा नागालैंड सरकार को, संपण ू ष नागालैंड राज्य
की आिश्यकर्ताओं की पनू र्तष के ललए कोई धन ददया िार्ता है िहां, राज्यपाल अपने
वििेक से त्यएु नसांग जिले और शेष राज्य के बीच उस धन के साम्यापण ू ष आबंटन
के ललए प्रबंध करे गा ;
(ग) नागालैंड विधान-मंडल का कोई अधधननयम त्यए ु नसांग जिले को र्तब
र्तक लागू नहीं होगा िब र्तक राज्यपाल, प्रादे लशक पररषद् की लसफाररश पर, लोक
अधधसच ू ना द्वारा, इस प्रकार ननदे श नहीं दे र्ता है और ऐसे ककसी अधधननयम के
संबध ं में ऐसा ननदे श दे र्ते हुए राज्यपाल यह ननददष्ट कर सकेगा कक िह अधधननयम
त्यएु नसांग जिले या उसके ककसी भाग को लागू होने में ऐसे अपिादों या उपांर्तरणों
के अधीन रहर्ते हुए, प्रभािी होगा जिन्हें राज्यपाल प्रादे लशक पररषद् की लसफाररश
पर विननददषष्ट करे :
परं र्तु इस उपिंड के अधीन ददया गया कोई ननदे श इस प्रकार ददया िा
सकेगा कक उसका भर्त ू लक्षी प्रभाि हो ;
(घ) राज्यपाल त्यए
ु नसांग जिले की शांनर्त, उन्ननर्त और सुशासन के ललए
भारर्त का संविधान 234
1. संविधान (कदठनाइयों का ननराकरण) आदे श, सं0 10 के पैरा 2 में यह उपबंध है कक भारर्त के संविधान का
अनुच्छे द 371क इस प्रकार प्रभािी होगा मानो उसके िंड (2) के उपिंड (ङ) के पैरा (i) में ननम्नललखिर्त परं र्तुक
(1-12-1963) से िोड ददया गया हो, अथाषर्त ् :--
“परं र्तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर, ककसी व्यक्ति को त्युएनसांग कायष मंत्री के रूप में ऐसे समय र्तक के
ललए ननयुि कर सकेगा, िब र्तक कक नागालैंड की विधान सभा में त्युएनसांग जिले के ललए, आबंदटर्त स्थानों को भरने
के ललए विधध के अनुसार व्यक्तियों को चुन नहीं ललया िार्ता है” ।
भारर्त का संविधान 235
परं र्तु ऐसा कोई आदे श नागालैंड राज्य के ननमाषण की र्तारीि से र्तीन िषष की
समानि के पश्चार्त ् नहीं ककया िाएगा ।
स्पष्टीकरण – इस अनच् ु छे द में , कोदहमा, मोकोकचग
ुं और त्यए
ु नसांग जिलों का
िही अथष है िो नागालैंड राज्य अधधननयम, 1962 में है ।]
[371ि. असम राज्य के संबध
1
ं में विशेष उपबंध – इस संविधान में ककसी बार्त
के होर्ते हुए भी, राष्ट्रपनर्त, असम राज्य के संबधं में ककए गए आदे श द्वारा, उस राज्य की
विधान सभा की एक सलमनर्त के गठन और कृत्यों के ललए, िो सलमनर्त छठी अनस ु ूची के
पैरा 20 से संलग्न सारणी के 2[भाग 1] में विननददषष्ट िनिानर्त क्षेत्रों से ननिाषधचर्त उस
विधान सभा के सदस्यों से और उस विधान सभा के उर्तने अन्य सदस्यों से लमलकर
बनेगी जिर्तने आदे श में विननददषष्ट ककए िाएं र्तथा ऐसी सलमनर्त के गठन और उसके
उधचर्त कायषकरण के ललए उस विधान सभा की प्रकक्रया के ननयमों में ककए िाने िाले
उपांर्तरणों के ललए उपबंध कर सकेगा ।]
1. संविधान (बाईसिां संशोधन) अधधननयम, 1969 की धारा 4 द्वारा (25-9-1969 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
2. पूिोत्तर क्षेत्र (पुनगषठन) अधधननयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान
पर प्रनर्तस्थावपर्त ।
3. संविधान (सत्ताईसिां संशोधन) अधधननयम, 1971 की धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 236
1. संविधान (बत्तीसिां संशोधन) अधधननयम, 1973 की धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगषठन अधधननयम, 2014 की धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त ।
3. आंध्र प्रदे श पुनगषठन अधधननयम, 2014 की धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) प्रनर्तस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 237
(ii) उपिंड (ि) में ननददषष्ट ऐसे विश्वविद्यालय या अन्य लशक्षा संस्था
में िो इस ननलमत्त आदे श में विननददषष्ट की िाए, प्रिेश के विषय में ,
अधधमान ददया िाएगा या उनके ललए आरक्षण ककया िाएगा ।
(3) राष्ट्रपनर्त, आदे श द्वारा, 1[आंध्र प्रदे श राज्य के ललए और र्तेलग
ं ाना राज्य के
ललए] एक प्रशासननक अधधकरण के गठन के ललए उपबंध कर सकेगा िो अधधकरण
ननम्नललखिर्त विषयों की बाबर्त ऐसी अधधकाररर्ता, शक्ति और प्राधधकार का जिसके अंर्तगषर्त
िह अधधकाररर्ता, शक्ति या प्राधधकार है िो संविधान (बत्तीसिां संशोधन) अधधननयम,
1973 के प्रारं भ से ठीक पहले (उच्चर्तम न्यायालय से लभन्न) ककसी न्यायालय द्वारा
अथिा ककसी अधधकरण या अन्य प्राधधकारी द्वारा प्रयोिव्य था प्रयोग करे गा िो आदे श में
विननददषष्ट ककया िाए, अथाषर्त ् :–
(क) राज्य की लसविल सेिा में ऐसे िगष या िगों के पदों पर अथिा राज्य
के अधीन ऐसे िगष या िगों के लसविल पदों पर अथिा राज्य के भीर्तर ककसी
स्थानीय प्राधधकारी के ननयंत्रण के अधीन ऐसे िगष या िगों के पदों पर िो आदे श
में विननददषष्ट ककए िाएं, ननयक्तु ि, आबंटन या प्रोन्ननर्त ;
(ि) राज्य की लसविल सेिा में ऐसे िगष या िगों के पदों पर अथिा राज्य
के अधीन ऐसे िगष या िगों के लसविल पदों पर अथिा राज्य के भीर्तर ककसी
स्थानीय प्राधधकारी के ननयंत्रण के अधीन ऐसे िगष या िगों के पदों पर िो आदे श
में विननददषष्ट ककए िाएं, ननयिु , आबंदटर्त या प्रोन्नर्त व्यक्तियों की ज्येष्ठर्ता ;
(ग) राज्य की लसविल सेिा में ऐसे िगष या िगों के पदों पर अथिा राज्य
के अधीन ऐसे िगष या िगों के लसविल पदों पर अथिा राज्य के भीर्तर ककसी
स्थानीय प्राधधकारी के ननयंत्रण के अधीन ऐसे िगष या िगों के पदों पर ननयि ु ,
आबंदटर्त या प्रोन्नर्त व्यक्तियों की सेिा की ऐसी अन्य शर्तें िो आदे श में विननददषष्ट
की िाएं ।
(4) िंड (3) के अधीन ककया गया आदे श–
(क) प्रशासननक अधधकरण को उसकी अधधकाररर्ता के भीर्तर ककसी विषय
से संबधं धर्त व्यथाओं के ननिारण के ललए ऐसे अभ्यािेदन प्राि करने के ललए, िो
राष्ट्रपनर्त आदे श में विननददषष्ट करे और उस पर ऐसे आदे श करने के ललए िो िह
प्रशासननक अधधकरण ठीक समझर्ता है, प्राधधकृर्त कर सकेगा ;
1. आंध्र प्रदे श पुनगषठन अधधननयम, 2014 की धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य के ललए” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 238
उच्चर्तम न्यायालय ने पी. सांबमूनर्तष और अन्य बनाम आंध्र प्रदे श राज्य और एक अन्य 1987 (1) ए.आई.आर.
1987 एस.सी., प.ृ 663 में अनुच्छे द 371घ के िंड (5) और उसके परं र्तुक को असंिैधाननक और शून्य घोवषर्त
ककया ।
भारर्त का संविधान 239
ननरं र्तर बने रहना आिश्यक नहीं है र्तो राष्ट्रपनर्त आदे श द्वारा प्रशासननक अधधकरण का
उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठीक पहले अधधकरण के समक्ष लंबबर्त मामलों
के अंर्तरण और ननपटारे के ललए ऐसे आदे श में ऐसे उपबंध कर सकेगा िो िह ठीक
समझे ।
(9) ककसी न्यायालय, अधधकरण या अन्य प्राधधकारी के ककसी ननणषय, क्तडक्री या
आदे श के होर्ते हुए भी,–
(क) ककसी व्यक्ति की कोई ननयक्तु ि, पदस्थापना, प्रोन्ननर्त या अंर्तरण की
बाबर्त िो–
(i) 1 निंबर, 1956 से पहले यथाविद्यमान हैदराबाद राज्य की
सरकार के या उसके भीर्तर ककसी स्थानीय प्राधधकारी के अधीन उस
र्तारीि से पहले ककसी पद पर ककया गया था, या
(ii) संविधान (बत्तीसिां संशोधन) अधधननयम, 1973 के प्रारं भ से
पहले आंध्र प्रदे श राज्य की सरकार के अधीन या उस राज्य के भीर्तर
ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के अधीन ककसी पद पर ककया गया
था, और
(ि) उपिंड (क) में ननददषष्ट ककसी व्यक्ति द्वारा या उसके समक्ष की गई
ककसी कारषिाई या बार्त की बाबर्त,
केिल इस आधार पर कक ऐसे व्यक्ति की ननयक्तु ि, पदस्थापना, प्रोन्ननर्त या अंर्तरण, ऐसी
ननयक्तु ि, पदस्थापना, प्रोन्ननर्त या अंर्तरण की बाबर्त, यथाजस्थनर्त, हैदराबाद राज्य के भीर्तर
या आंध्र प्रदे श राज्य के ककसी भाग के भीर्तर ननिास के बारे में ककसी अपेक्षा का उपबंध
करने िाली र्तत्समय प्रित्त ृ विधध के अनस ु ार नहीं ककया गया था, यह नहीं समझा िाएगा
कक िह अिैध या शन् ू य है या कभी भी अिैध या शन् ू य रहा था ।
(10) इस अनच् ु छे द के और राष्ट्रपनर्त द्वारा इसके अधीन ककए गए ककसी आदे श के
उपबंध इस संविधान के ककसी अन्य उपबंध में या र्तत्समय प्रित्त ृ ककसी अन्य विधध में
ककसी बार्त के होर्ते हुए भी प्रभािी होंगे ।
371ङ. आंध्र प्रदे श में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना – संसद् विधध द्वारा, आंध्र
प्रदे श राज्य में एक विश्वविद्यालय की स्थापना के ललए उपबंध कर सकेगी ।]
1
[371च. लसजक्कम राज्य के संबध
ं में विशेष उपबंध – इस संविधान में ककसी
बार्त के होर्ते हुए भी, –
(क) लसजक्कम राज्य की विधान सभा कम से कम र्तीस सदस्यों से लमलकर
बनेगी ;
1. संविधान (छत्तीसिां संशोधन) अधधननयम, 1975 की धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 240
प्रनर्त ननदे शों का यह अथष लगाया िाएगा कक िे [चार िषष] की अिधध के प्रनर्त
2
ननदे श हैं और 2[चार िषष] की उि अिधध ननयर्त ददन से प्रारं भ हुई समझी िाएगी
;
(घ) िब र्तक संसद् विधध द्वारा अन्य उपबंध नहीं करर्ती है र्तब र्तक
लसजक्कम राज्य को लोक सभा में एक स्थान आबंदटर्त ककया िाएगा और
लसजक्कम राज्य एक संसदीय ननिाषचन-क्षेत्र होगा जिसका नाम लसजक्कम संसदीय
ननिाषचन-क्षेत्र होगा ;
(ङ) ननयर्त ददन को विद्यमान लोक सभा में लसजक्कम राज्य का प्रनर्तननधध
लसजक्कम राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ननिाषधचर्त ककया िाएगा ;
1. संविधान (चिालीसिां संशोधन) अधधननयम, 1978 की धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “छह िषष” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त । संविधान (बयालीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच िषष”
मूल शब्दों के स्थान पर “छह िषष” शब्द प्रनर्तस्थावपर्त ककए गए थे ।
2. संविधान (चिालीसिां संशोधन) अधधननयम, 1978 की धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “पांच िषष” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त । संविधान (बयालीसिां संशोधन) अधधननयम, 1976 की धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “चार िषष” मूल
शब्दों के स्थान पर “पांच िषष” शब्द प्रनर्तस्थावपर्त ककए गए थे ।
भारर्त का संविधान 241
स्थानों की संख्या के ललए िो ऐसे अनभ ु ागों के अभ्यधथषयों द्वारा भरे िा सकेंगे और
ऐसे सभा ननिाषचन-क्षेत्रों के पररसीमन के ललए, जिनसे केिल ऐसे अनभ ु ागों के
अभ्यथी ही लसजक्कम राज्य की विधान सभा के ननिाषचन के ललए िडे हो सकेंगे,
उपबंध कर सकेगी ;
(झ) लसजक्कम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में ननयर्त ददन से ठीक पहले
उच्च न्यायालय के रूप में कायषरर्त उच्च न्यायालय ननयर्त ददन को और से
लसजक्कम राज्य का उच्च न्यायालय समझा िाएगा ;
(ट) लसजक्कम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्र में या उसके ककसी भाग में
ननयर्त ददन से ठीक पहले प्रित्त
ृ सभी विधधयां िहां र्तब र्तक प्रित्त
ृ बनी रहें गी िब
र्तक ककसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा उनका संशोधन या
ननरसन नहीं कर ददया िार्ता है ;
(ठ) लसजक्कम राज्य के प्रशासन के संबध ं में ककसी ऐसी विधध को, िो
िंड (ट) में ननददषष्ट है, लागू ककए िाने को सकु र बनाने के प्रयोिन के ललए और
ककसी ऐसी विधध के उपबंधों को इस संविधान के उपबंधों के अनरू ु प बनाने के
प्रयोिन के ललए राष्ट्रपनर्त, ननयर्त ददन से दो िषष के भीर्तर, आदे श द्वारा, ऐसी
विधध में ननरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनक ु ू लन और उपांर्तरण
भारर्त का संविधान 242
1. संविधान (पचपनिां संशोधन) अधधननयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 244
1. संविधान (छप्पनिां संशोधन) अधधननयम, 1987 की धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
2
संविधान (अठानिेिां संशोधन) अधधननयम, 2012 की धारा 2 द्वारा (1-10-2013 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 245
कर ददया िार्ता है ।
(2) भारर्त के राज्यक्षेत्र में ककसी प्रित्त
ृ विधध के उपबंधों को इस संविधान के
उपबंधों के अनरू ु प बनाने के प्रयोिन के ललए राष्ट्रपनर्त, आदे श द्वारा, ऐसी विधध में
1
ननरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनक ु ू लन और उपांर्तरण कर सकेगा िो
आिश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध कर सकेगा कक िह विधध ऐसी र्तारीि से िो
आदे श में विननददषष्ट की िाए, इस प्रकार ककए गए अनक ु ू लनों और उपांर्तरणों के अधीन
रहर्ते हुए प्रभािी होगी और ककसी ऐसे अनक ु ू लन या उपांर्तरण को ककसी न्यायालय में
प्रश्नगर्त नहीं ककया िाएगा ।
(3) िंड (2) की कोई बार्त–
(क) राष्ट्रपनर्त को इस संविधान के प्रारं भ से 2[र्तीन िषष] की समानि के
पश्चार्त ् ककसी विधध का कोई अनक ु ू लन या उपांर्तरण करने के ललए सशि करने
िाली, या
(ि) ककसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी को, राष्ट्रपनर्त
द्वारा उि िंड के अधीन अनक ु ू ललर्त या उपांर्तररर्त ककसी विधध का ननरसन या
संशोधन करने से रोकने िाली,
नहीं समझी िाएगी ।
स्पष्टीकरण 1 – इस अनच् ु छे द में , “प्रित्त
ृ विधध” पद के अंर्तगषर्त ऐसी विधध है िो
इस संविधान के प्रारं भ से पहले भारर्त के राज्यक्षेत्र में ककसी विधान-मंडल द्वारा या अन्य
सक्षम प्राधधकारी द्वारा पाररर्त की गई है या बनाई गई है और पहले ही ननरलसर्त नहीं कर
दी गई है, भले ही िह या उसके कोई भाग र्तब पण ू र्त
ष ः या ककन्हीं विलशष्ट क्षेत्रों में प्रिर्तषन
में न हों ।
स्पष्टीकरण 2 – भारर्त के राज्यक्षेत्र में ककसी विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम
प्राधधकारी द्वारा पाररर्त की गई या बनाई गई ऐसी विधध का, जिसका इस संविधान के
प्रारं भ से ठीक पहले राज्यक्षेत्रार्तीर्त प्रभाि था और भारर्त के राज्यक्षेत्र में भी प्रभाि था,
यथापि ू ोि ककन्हीं अनक ु ू लनों और उपांर्तरणों के अधीन रहर्ते हुए, ऐसा राज्यक्षेत्रार्तीर्त
1. दे खिए, अधधसूचना सं0 का0नन0आ0 115, र्तारीि 5 िून 1950, भारर्त का रािपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग
3, प0
ृ 51; अधधसूचना सं0 का0नन0आ0 870, र्तारीि 4 निंबर, 1950, भारर्त का रािपत्र, असाधारण, भाग 2,
अनुभाग 3, प0
ृ 903; अधधसूचना सं0 का0नन0आ0 508, र्तारीि 4 अप्रैल, 1951, भारर्त का रािपत्र, असाधारण,
भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 287; अधधसूचना सं0 का0नन0आ0 1140ि, र्तारीि 2 िुलाई, 1952, भारर्त का रािपत्र,
असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 616/I; और त्रािणकोर-कोचीन भूलम अिषन विधध अनुकूलन आदे श, 1952,
र्तारीि 20 निंबर, 1952, भारर्त का रािपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 923 द्वारा यथासंशोधधर्त विधध
अनुकूलन आदे श, 1950, र्तारीि 26 िनिरी, 1950, भारर्त का रािपत्र, असाधारण, प0
ृ 449 ।
2. संविधान (पहला संशोधन) अधधननयम, 1951 की धारा 12 द्वारा (18-6-1951 से) “दो िषष” के स्थान पर
प्रनर्तस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 246
1. संविधान (सार्तिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 23 द्वारा (1-11-1956 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
2. दे खिए 1956 और 1957 के विधध अनुकूलन आदे श ।
भारर्त का संविधान 247
उन िंडों में संसद् द्वारा बनाई गई विधध के प्रनर्त ननदे श के स्थान पर राष्ट्रपनर्त द्वारा ककए
गए आदे श के प्रनर्त ननदे श रि ददया गया हो ।
374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपररषद्
दहि मिेस्टी के समक्ष लंबबर्त कायषिादहयों के बारे में उपबंध--(1) इस संविधान के प्रारं भ
से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के पद धारण करने िाले न्यायाधीश, यदद िे अन्यथा
ननिाषचन न कर चक ु े हों र्तो, ऐसे प्रारं भ पर उच्चर्तम न्यायालय के न्यायाधीश हो िाएंगे
और र्तब ऐसे िेर्तनों और भत्तों र्तथा अनप ु जस्थनर्त छुट्टी और पेंशन के संबध
ं में ऐसे
अधधकारों के हकदार होंगे िो उच्चर्तम न्यायालय के न्यायाधीशों के संबध ं में अनच्
ु छे द
125 के अधीन उपबंधधर्त हैं ।
(2) इस संविधान के प्रारं भ पर फेडरल न्यायालय में लंबबर्त सभी लसविल या
दांक्तडक िाद, अपील और कायषिादहयां, उच्चर्तम न्यायालय को अंर्तररर्त हो िाएंगी और
उच्चर्तम न्यायालय को उनको सन ु ने और उनका अिधारण करने की अधधकाररर्ता होगी
और फेडरल न्यायालय द्वारा इस संविधान के प्रारं भ से पहले सुनाए गए या ददए गए
ननणषयों और आदे शों का िही बल और प्रभाि होगा मानो िे उच्चर्तम न्यायालय द्वारा
सन ु ाए गए हों या ददए गए हों ।
(3) इस संविधान की कोई बार्त भारर्त के राज्यक्षेत्र के भीर्तर ककसी न्यायालय के
ककसी ननणषय, क्तडक्री या आदे श की या उसके संबध ं में अपीलों और याधचकाओं को
ननपटाने के ललए सवपरषद् दहि मिेस्टी द्वारा अधधकाररर्ता के प्रयोग को िहां र्तक
अविधधमान्य नहीं करे गी िहां र्तक ऐसी अधधकाररर्ता का प्रयोग विधध द्वारा प्राधधकृर्त है
और ऐसी अपील या याधचका पर इस संविधान के प्रारं भ के पश्चार्त ् ककया गया सपररषद्
दहि मिेस्टी का कोई आदे श सभी प्रयोिनों के ललए ऐसे प्रभािी होगा मानो िह उच्चर्तम
न्यायालय द्वारा उस अधधकाररर्ता के प्रयोग में िो ऐसे न्यायालय को इस संविधान द्वारा
प्रदान की गई है, ककया गया कोई आदे श या क्तडक्री हो ।
(4) इस संविधान के प्रारं भ से ही पहली अनस ु ूची के भाग ि में विननददषष्ट ककसी
राज्य में वप्रिी कौंलसल के रूप में कायषरर्त प्राधधकारी की उस राज्य के भीर्तर ककसी
न्यायालय के ककसी ननणषय, क्तडक्री या आदे श की या उसके संबध ं में अपीलों और
याधचकाओं को ग्रहण करने या ननपटाने की अधधकाररर्ता समाि हो िाएगी और उि
प्राधधकारी के समक्ष ऐसे प्रारं भ पर लंबबर्त सभी अपीलें और अन्य कायषिादहयां उच्चर्तम
न्यायालय को अंर्तररर्त कर दी िाएंगी और उसके द्वारा ननपटाई िाएंगी ।
(5) इस अनच्ु छे द के उपबंधों को प्रभािी करने के ललए संसद् विधध द्वारा और
उपबंध कर सकेगी ।
375. संविधान के उपबंधों के अधीन रहर्ते हुए न्यायालयों, प्राधधकाररयों और
अधधकाररयों का कृत्य करर्ते रहना – भारर्त के राज्यक्षेत्र में सिषत्र लसविल, दांक्तडक और
रािस्ि अधधकाररर्ता िाले सभी न्यायालय और सभी न्यानयक, कायषपालक और
अनसु धचिीय प्राधधकारी और अधधकारी अपने-अपने कृत्यों को, इस संविधान के उपबंधों के
अधीन रहर्ते हुए, करर्ते रहें गे ।
भारर्त का संविधान 248
1. संविधान (पहला संशोधन) अधधननयम, 1951 की धारा 13 द्वारा (18-6-1951 से) िोडा गया ।
भारर्त का संविधान 249
1. संविधान (सार्तिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 24 द्वारा (1-11-1956 से) अंर्तःस्थावपर्त ।
भारर्त का संविधान 250
1. संवििान (अठािनिां संशोिन) अधिननयम, 1987 की िारा 2 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्थावपत ।
2. संवििान (अठािनिां संशोिन) अधिननयम, 1987 की िारा 3 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्थावपत ।
251
अनुसूची
1[पहली
(अनुच्छे द 1 और अनुच्छे द 4)
1. राज्य
नाम राज्यक्षेत्र
2
1. आंध्र प्रदे श [वे राज्यक्षेत्र जो आंध्र राज्य अधिननयम, 1953 की िारा 3 की उपिारा
(1) में , राज्य पुनर्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 3 की उपिारा (1)
में , आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1959 की प्रथम
अनुसूची में और आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम,
1968 की अनुसूची में ववननर्दग ष्ट हैं, ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं
हैं जो आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1959 की
र्िर्ीय अनुसूची में 3[र्था आंध्र प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2014 की
िारा 3 में ] ववननर्दग ष्ट हैं ।]
2. असम वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले असम प्रांर्, खासी
राज्यों और असम जनजानर् क्षेत्रों में समाववष्ट थे, ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके
अंर्र्गर् नहीं हैं जो असम (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1951 की
4
अनुसच ू ी में ववननर्दग ष्ट हैं [और वे राज्यक्षेत्र भी इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो
नार्ालैंड राज्य अधिननयम, 1962 की िारा 3 की उपिारा (1) में
ववननर्दग ष्ट हैं] 4[और वे राज्यक्षेत्र] भी इसके अंर्र्गर् नहीं हैं 5
[जो पवू ोत्तर
क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 की िारा 5, िारा 6 और िारा 7 में
ववननर्दग ष्ट हैं । 6[और वे राज्यक्षेत्र भी इसके अंर्र्गर् नहीं हैं], जो संवविान
(नवां संशोिन) अधिननयम, 1960 की िारा 3 के खंड (क) में अंर्ववगष्ट
ककसी बार् के होर्े हुए भी, जहां र्क उसका संबंि संवविान (एक सौवां
संशोिन) अधिननयम, 2015 की दस ू री अनुसूची के भार् 1 में ननर्दग ष्ट
राज्यक्षेत्रों से है , संवविान (एक सौवां संशोिन) अधिननयम, 2015 की
दस
ू री अनुसूची के भार् 1 में ननर्दग ष्ट हैं ।]
1. संवविान (सार्वां संशोिन) अधिननयम, 1956 की िारा 2 िारा पहली अनुसूची के स्थान पर (1-11-1956 से)
प्रनर्स्थावपर् ।
2. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1968 (1968 का 36) की िारा 4 िारा (1-10-1968 से)
पूवव
ग र्ी प्रवववष्ट के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
3. आंध्र प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2014 (2014 का 6) की िारा 10 िारा (2-6-2014 से) अंर्ःस्थावपर् ।
4. नार्ालैंड राज्य अधिननयम, 1962 (1962 का 27) की िारा 4 िारा (1-12-1963 से) जोडा र्या ।
5. पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 (1971 का 81) की िारा 9 िारा (21-1-1972 से) जोडा र्या ।
6. संवविान (एक सौवां संशोिन) अधिननयम, 2015 की िारा 3 िारा (31-7-2015 से) अंर्ःस्थावपर् ।
252
भारर् का संवविान 253
नाम राज्यक्षेत्र
1
3. बबहार [वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले या र्ो बबहार प्रांर्
में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशाससर् थे मानो वे उस प्रांर् के भार् रहे हों
और वे राज्यक्षेत्र जो बबहार और उत्तर प्रदे श (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम,
1968 की िारा 3 की उपिारा (1) के खंड (क) में ववननर्दग ष्ट हैं, ककं र्ु वे
राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो बबहार और पश्चिमी बंर्ाल (राज्यक्षेत्र
अंर्रण) अधिननयम, 1956 की िारा 3 की उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं
और वे राज्यक्षेत्र भी इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो प्रथम वर्णगर् अधिननयम की
िारा 3 की उपिारा (1) के खंड (ख) में ववननर्दग ष्ट हैं 2[और वे राज्यक्षेत्र जो
बबहार पुनर्गठन अधिननयम, 2000 की िारा 3 में ववननर्दग ष्ट हैं ।]]
3
[4. र्ुजरार् वे राज्यक्षेत्र जो मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 की िारा 3 की उपिारा
(1) में ननर्दग ष्ट हैं ।]
1. बबहार और उत्तर प्रदे श (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1968 (1968 का 24) की िारा 4 िारा (10-6-1970 से)
पूवव
ग र्ी प्रवववष्ट के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
2. बबहार पुनर्गठन अधिननयम, 2000 (2000 का 30) की िारा 5 िारा (15-11-2000 से) जोडा र्या ।
3. मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 (1960 का 11) की िारा 4 िारा (1-5-1960 से) प्रवववष्ट 4 के स्थान पर
प्रनर्स्थावपर् ।
4. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1959 (1959 का 47) की िारा 4 िारा
(1-10-1959 से) अंर्ःस्थावपर् ।
5. मध्य प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 (2000 का 28) की िारा 5 िारा (1-11-2000 से) जोडा र्या ।
भारर् का संवविान 254
नाम राज्यक्षेत्र
1
[7. र्समलनाडु] वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले या र्ो मद्रास प्रांर्
में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशाससर् थे मानो वे उस प्रांर् के भार् रहे
हों और वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पन ु र्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 4 में
2
[र्था आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1959 की
र्िर्ीय अनस ु च
ू ी में ] ववननर्दग ष्ट हैं,] ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं
हैं जो आंध्र राज्य अधिननयम, 1953 की िारा 3 की उपिारा (1) और
3
िारा 4 की उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं और [वे राज्यक्षेत्र भी इसके
अंर्र्गर् नहीं हैं जो राज्य पन
ु र्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 5 की
उपिारा (1) के खंड (ख), िारा 6 और िारा 7 की उपिारा (1) के खंड
(घ) में ववननर्दग ष्ट हैं और वे राज्यक्षेत्र भी इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो आंध्र
प्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1959 की प्रथम अनस ु ूची
में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
4
[8. महाराष्ट्र वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 8 की
उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं, ककन्र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो
मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 की िारा 3 की उपिारा (1) में ननर्दग ष्ट
हैं ।]
5 6
[ [9.] कनागटक] वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्ठग न अधिननयम, 1956 की िारा 7 की
उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं, 7[ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो
आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1968 की अनुसूची
में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
1. मद्रास राज्य (नाम-पररवर्गन) अधिननयम, 1968 (1968 का 53) की िारा 5 िारा (14-1-1969 से) “7. मद्रास” के
स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
2. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1959 (1959 का 56 ) की िारा 6 िारा (1-4-1960 से)
अंर्ःस्थावपर् ।
3. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1959 (1959 का 56) की िारा 6 िारा (1-4-1960 से)
कनर्पय शब्दों के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
4. मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 (1960 का 11) की िारा 4 िारा (1-5-1960 से) अंर्ःस्थावपर् ।
5. मैसूर राज्य (नाम-पररवर्गन) अधिननयम, 1973 (1973 का 31) की िारा 5 िारा (1-11-1973 से) “9. मैसूर” के
स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
6. मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 (1960 का 11) की िारा 4 िारा (1-5-1960 से) प्रवववष्ट 8 से 14 र्क को
प्रवववष्ट 9 से 15 र्क के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या ।
7. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1968 (1968 का 36) की िारा 4 िारा (1-10-1968 से)
अंर्ःस्थावपर् ।
भारर् का संवविान 255
नाम राज्यक्षेत्र
1 2
[10.] [ओडडशा] वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारम्भ से ठीक पहले या र्ो उडीसा प्रांर्
में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशाससर् थे मानो वे उस प्रांर् के भार् रहे
हों ।
1
[11.] पंजाब वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 11 में
ववननर्दग ष्ट हैं 3[और वे राज्यक्षेत्र जो अश्चजगर् राज्यक्षेत्र (ववलयन) अधिननयम,
1960 की प्रथम अनुसूची के भार् 2 में ननर्दग ष्ट हैं,] 4[ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र
इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो संवविान (नवां संशोिन) अधिननयम, 1960 की
5
पहली अनुसच ू ी के भार् 2 में ननर्दग ष्ट हैं ] [और वे राज्यक्षेत्र भी इसके
अंर्र्गर् नहीं हैं जो पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966 की िारा 3 की
उपिारा (1), िारा 4 और िारा 5 की उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
3
[12.] राजस्थान वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 10 में
ववननर्दग ष्ट हैं, 6[ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो राजस्थान और
मध्य प्रदे श (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1959 की प्रथम अनुसूची में
ववननर्दग ष्ट हैं ।]
1. मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 (1960 का 11) की िारा 4 िारा (1-5-1960 से) प्रवववष्ट 8 से 14 र्क को
प्रवववष्ट 9 से 15 र्क के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या ।
2. उडीसा (नाम पररवर्गन) अधिननयम, 2011 की िारा 6 िारा (1-11-2011 से) “उडीसा” के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
3. अश्चजगर् राज्यक्षेत्र (ववलयन) अधिननयम, 1960 (1960 का 64) की िारा 4 िारा (17-1-1961 से) अंर्ःस्थावपर् ।
4. संवविान (नवां संशोिन) अधिननयम, 1960 की िारा 3 िारा (17-1-1961 से) जोडा र्या ।
5. पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966 (1966 का 31) की िारा 7 िारा (1-11-1966 से) अंर्ःस्थावपर् ।
6. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1959 (1959 का 47) की िारा 4 िारा (1-
10-1959 से) अंर्ःस्थावपर् ।
भारर् का संवविान 256
नाम राज्यक्षेत्र
1 2
[13.] उत्तर प्रदे श [वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले या र्ो संयुक्त प्रांर्
नाम से ज्ञार् प्रांर् में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशाससर् थे मानो वे उस
प्रांर् के भार् रहे हों, वे राज्यक्षेत्र जो बबहार और उत्तर प्रदे श (सीमा-
पररवर्गन) अधिननयम, 1968 की िारा 3 की उपिारा (1) के खंड (ख) में
ववननर्दग ष्ट हैं और वे राज्यक्षेत्र जो हररयाणा और उत्तर प्रदे श (सीमा-
पररवर्गन) अधिननयम, 1979 की िारा 4 की उपिारा (1) के खंड (ख) में
ववननर्दग ष्ट हैं, ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो बबहार और उत्तर
प्रदे श (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1968 की िारा 3 की उपिारा (1) के
खंड (क) 3[र्था उत्तर प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 की िारा 3] में
ववननर्दग ष्ट हैं और वे राज्यक्षेत्र भी इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो हररयाणा और
उत्तर प्रदे श (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1979 की िारा 4 की उपिारा
(1) के खंड (क) में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
1
[14.] पश्चिमी वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले या र्ो पश्चिमी
बंर्ाल बंर्ाल प्रांर् में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशाससर् थे मानो वे उस प्रांर्
के भार् रहे हों और चंद्रनर्र (ववलयन) अधिननयम, 1954 की िारा 2 के
खंड (र्) में यथा पररभाविर् चंद्रनर्र का राज्यक्षेत्र और वे राज्यक्षेत्र भी
जो बबहार और पश्चिमी बंर्ाल (राज्यक्षेत्र अंर्रण) अधिननयम, 1956 की
4
िारा 3 की उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं [और वे राज्यक्षेत्र भी, जो
पहली अनुसच ू ी के भार् 3 में ननर्दग ष्ट हैं ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर्
नहीं हैं, जो संवविान (नवां संशोिन) अधिननयम, 1960 की िारा 3 के
खंड (र्) में अंर्ववगष्ट ककसी बार् के होर्े हुए भी, जहां र्क उसका संबंि
संवविान (एक सौवां संशोिन) अधिननयम, 2015 की पहली अनुसूची के
भार् 3 में ननर्दग ष्ट राज्यक्षेत्रों और दस
ू री अनुसूची के भार् 3 में ननर्दग ष्ट
राज्यक्षेत्रों से है , संवविान (एक सौवां संशोिन) अधिननयम, 2015 की
दस
ू री अनुसूची के भार् 3 में ननर्दग ष्ट हैं ।]
1. मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 (1960 का 11) की िारा 4 िारा (1-5-1960 से) प्रवववष्ट 8 से 14 र्क को
प्रवववष्ट 9 से 15 र्क के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या ।
2. हररयाणा और उत्तर प्रदे श (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1979 (1979 का 31) की िारा 5 िारा (15-9-1983 से)
“13. उत्तर प्रदे श” के सामने की प्रवववष्ट के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
3. उत्तर प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 (2000 का 29) की िारा 5 िारा (9-11-2000 से) अंर्ःस्थावपर् ।
4. संवविान (एक सौवां संशोिन) अधिननयम, 2015 की िारा 3 िारा (31-7-2015 से) जोडा र्या ।
भारर् का संवविान 257
नाम राज्यक्षेत्र
1
[15.] जम्म-ू कश्मीर वह राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले जम्म-ू कश्मीर दे शी
राज्य में समाववष्ट था ।
2
[16. नार्ालैंड वे राज्यक्षेत्र जो नार्ालैंड राज्य अधिननयम, 1962 की िारा 3 की उपिारा
(1) में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
3 4
[17. हररयाणा [वे राज्यक्षेत्र जो पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966 की िारा 3 की
उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं और वे राज्यक्षेत्र जो हररयाणा और उत्तर प्रदे श
(सीमा-पररवर्गन) अधिननयम,1979 की िारा 4 की उपिारा (1) के खंड
(क) में ववननर्दग ष्ट हैं, ककं र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं जो उस
अधिननयम की िारा 4 की उपिारा (1) के खंड (ख) में ववननर्दग ष्ट हैं ।]]
5
[18. र्हमाचल प्रदे श वे राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले इस प्रकार प्रशाससर्
थे मानो वे र्हमाचल प्रदे श और बबलासपुर के नाम से ज्ञार् मुखय आयुक्त
वाले प्रांर् रहे हों और वे राज्यक्षेत्र जो पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966
की िारा 5 की उपिारा (1) में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
6
[19. मर्णपुर वह राज्यक्षेत्र जो इस संवविान के प्रारं भ से ठीक पहले इस प्रकार
प्रशाससर् था मानो वह मर्णपुर के नाम से ज्ञार् मुखय आयुक्त वाला प्रांर्
रहा हो ।]
1. मुंबई पुनर्गठन अधिननयम, 1960 (1960 का 11) की िारा 4 िारा (1-5-1960 से) प्रवववष्ट 8 से 14 र्क को
प्रवववष्ट 9 से 15 र्क के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या ।
2. नार्ालैंड राज्य अधिननयम, 1962 (1962 का 27) की िारा 4 िारा (1-12-1963 से) अंर्ःस्थावपर् ।
3. पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966 (1966 का 31) की िारा 7 िारा (1-11-1966 से) अंर्ःस्थावपर् और र्त्पिार् ्
हररयाणा और उत्तरप्रदे श (सीमा पररवर्गन) अधिननयम, 1979 (1979 का 31) की िारा 5 िारा (15-9-1983
से) प्रवववष्ट को संशोधिर् ककया र्या ।
4. हररयाणा और उत्तर प्रदे श (सीमा-पररवर्गन) अधिननयम, 1979 (1979 का 31) की िारा 5 िारा (15-9-1983 से)
“17. हररयाणा” के सामने की प्रवववष्ट के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
5. र्हमाचल प्रदे श राज्य अधिननयम, 1970 (1970 का 53) की िारा 4 िारा (25-1-1971 से) अंर्ःस्थावपर् ।
6. पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 (1971 का 81) की िारा 9 िारा (21-1-1972 से) अंर्ःस्थावपर् ।
भारर् का संवविान 258
नाम राज्यक्षेत्र
21. मेघालय वे राज्यक्षेत्र जो पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 की िारा 5 में
ववननर्दग ष्ट हैं 1[और वे राज्यक्षेत्र, जो पहली अनुसूची के भार् 1 में ननर्दग ष्ट
हैं ककन्र्ु वे राज्यक्षेत्र इसके अंर्र्गर् नहीं हैं, जो संवविान (एक सौवां
संशोिन) अधिननयम, 2015 की दस
ू री अनुसूची के भार् 2 में ननर्दग ष्ट हैं
।]
2
[22. ससश्चककम वे राज्यक्षेत्र जो संवविान (छत्तीसवां संशोिन) अधिननयम, 1975 के प्रारं भ
से ठीक पहले ससश्चककम में समाववष्ट थे ।]
3
[23. समजोरम वे राज्यक्षेत्र जो पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 की िारा 6 में
ववननर्दग ष्ट हैं ।]
4
[24. अरुणाचल वे राज्यक्षेत्र जो पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 की िारा 7 में
प्रदे श ववननर्दग ष्ट हैं ।]
5
[25. र्ोवा वे राज्यक्षेत्र जो र्ोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिननयम, 1987 की
िारा 3 में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
1. संवविान (एक सौवां संशोिन) अधिननयम, 2015 की िारा 3 िारा (31-7-2015 से) अंर्ःस्थावपर् ।
2. संवविान (छत्तीसवां संशोिन) अधिननयम, 1975 की िारा 2 िारा (26-4-1975 से) अंर्ःस्थावपर् ।
3. समजोरम राज्य अधिननयम, 1986 (1986 का 34) की िारा 4 िारा (20-2-1987 से) अंर्ःस्थावपर् ।
4. अरुणाचल प्रदे श राज्य अधिननयम, 1986 (1986 का 69) की िारा 4 िारा (20-2-1987 से) अंर्ःस्थावपर् ।
5. र्ोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिननयम, 1987 (1987 का 18) की िारा 5 िारा (30-5-1987 से) अंर्ःस्थावपर्
।
भारर् का संवविान 259
नाम राज्यक्षेत्र
1
[26. छत्तीसर्ढ़ मध्य प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 की िारा 3 में ववननर्दग ष्ट राज्यक्षेत्र
।]
2
[27. 3[उत्तराखंड] वे राज्यक्षेत्र जो उत्तर प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 की िारा 3 में
ववननर्दग ष्ट हैं ।]
4
[28. झारखंड वे राज्यक्षेत्र जो बबहार पुनर्गठन अधिननयम, 2000 की िारा 3 में
ववननर्दग ष्ट हैं ।]
5
[29. र्ेलंर्ाना वे राज्यक्षेत्र जो आंध्र प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2014 की िारा 3 में
ववननर्दग ष्ट हैं ।]
2. संघ राज्यक्षेत्र
नाम ववस्र्ार
1. मध्य प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 (2000 का 28) की िारा 5 िारा (1-11-2000 से) अंर्ःस्थावपर् ।
2. उत्तर प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2000 (2000 का 29) की िारा 5 िारा (9-11-2000 से) अंर्ःस्थावपर् ।
3. उत्तरांचल (नाम पररवर्गन) अधिननयम, 2006 (2006 का 52) की िारा 4 िारा (1-1-2007 से) “उत्तरांचल” शब्द के
स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
4. बबहार पुनर्गठन अधिननयम, 2000 (2000 का 30) की िारा 5 िारा (15-11-2000 से) अंर्ःस्थावपर् ।
5. आंध्र प्रदे श पुनर्गठन अधिननयम, 2014 (2014 का 6) की िारा 10 िारा (2-6-2014 से) अंर्ःस्थावपर् ।
6. र्हमाचल प्रदे श राज्य अधिननयम, 1970 (1970 का 53) की िारा 4 िारा (25-1-1971 से) “र्हमाचल प्रदे श” से
संबंधिर् प्रवववष्ट 2 का लोप ककया र्या और पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 (1971 का 81) की िारा 9
िारा (21-1-1972 से) मर्णपुर और बत्रपुरा से संबंधिर् प्रवववष्टयों का लोप ककया र्या ।
7. पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 (1971 का 81) की िारा 9 िारा (21-1-1972 से) प्रवववष्ट 2 और 3 लोप
ककया र्या और प्रवववष्ट 4 से 9 र्क को प्रवववष्ट 2 से 7 र्क के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या ।
भारर् का संवविान 260
नाम ववस्र्ार
1 2
[3.] [लक्षिीप] वह राज्यक्षेत्र जो राज्य पन
ु र्गठन अधिननयम, 1956 की िारा 6 में
ववननर्दग ष्ट है ।
3 1
[ [4.] दादरा और नार्र वह राज्यक्षेत्र जो 11 अर्स्र्, 1961 से ठीक पहले स्वर्ंत्र दादरा
हवेली और नार्र हवेली में समाववष्ट था ।]
4 1
[ [5.] दमण और दीव वे राज्यक्षेत्र जो र्ोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिननयम, 1987
की िारा 4 में ववननर्दग ष्ट हैं ।]
5 1
[ [6.] 6[पुडुचेरी] वे राज्यक्षेत्र जो 16 अर्स्र्, 1962 से ठीक पहले भारर् में
पांडडचेरी, काररकल, माही और यनम के नाम से ज्ञार् फ्ांसीसी
बश्चस्र्यों में समाववष्ट थे ।]
7 1
[ [7.] चंडीर्ढ़ वे राज्यक्षेत्र जो पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966 की िारा 4 में
ववननर्दग ष्ट हैं ।]
8 1
[ [* * * *
1. पूवोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिननयम, 1971 (1971 का 81) की िारा 9 िारा (21-1-1972 से) क्रमशः प्रवववष्ट 4 से 9
र्क को प्रवववष्ट 2 से 7 र्क के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या ।
2. लककादीव, समननकोय और अमीनदीवी िीप (नाम-पररवर्गन) अधिननयम, 1973 (1973 का 34) की िारा 5 िारा (1-
11-1973 से) “लककादीव, समननकोय, अमीनदीवी िीप” के स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
3. संवविान (दसवां संशोिन) अधिननयम, 1961 की िारा 2 िारा (11-8-1961 से) अंर्ःस्थावपर् ।
4. र्ोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिननयम, 1987 (1987 का 18) की िारा 5 िारा (30-5-1987 से) प्रवववष्ट 5 के
स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
5. संवविान (चौदहवां संशोिन) अधिननयम, 1962 की िारा 3 िारा (16-8-1962 से) अंर्ःस्थावपर् ।
6. पांडडचेरी (नाम पररवर्गन) अधिननयम, 2006 (2006 का 44) की िारा 5 िारा (1-10-2006 से) “पांडडचेरी” शब्द के
स्थान पर प्रनर्स्थावपर् ।
7. पंजाब पुनर्गठन अधिननयम, 1966 (1966 का 31) की िारा 7 िारा (1-11-1966 से) अंर्ःस्थावपर् ।
8. समजोरम राज्य अधिननयम, 1986 (1986 का 34) की िारा 4 िारा (20-2-1987 से) समजोरम संबंिी प्रवववष्ट 8 का
लोप ककया र्या और अरुणाचल प्रदे श संबंिी प्रवववष्ट 9 को प्रवववष्ट 8 के रूप में पुनःसंखयांककर् ककया र्या और
अरुणाचल प्रदे श संबंिी प्रवववष्ट 8 का अरुणाचल प्रदे श अधिननयम, 1986 (1986 का 69) की िारा 4 का (20-2-1987
से) लोप ककया र्या ।
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6. {ÉÖbÖSÉä®ÉÒ ´Éä ®ÉVªÉFÉäjÉ VÉÉä 16 +ÉMɺiÉ, 1962 ºÉä ~ÉÒBÉE {ÉcãÉä £ÉÉ®iÉ àÉå
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7. SÉÆbÉÒMÉfà ´Éä ®ÉVªÉFÉäjÉ VÉÉä {ÉÆVÉÉ¤É {ÉÖxÉMÉÇ~xÉ +ÉÉÊvÉÉÊxɪÉàÉ, 1966 BÉEÉÒ vÉÉ®É 4
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* * * *
दस
ू री अनुसूची
[अनच्
ु छे द 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221]
भाग क
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग क में वितनर्दा ष्ट” शधदों और अक्षर का लोप ककया गया ।
*
वित्त अधधतनयम, 2018 (2018 का 13) की धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “पांच लाि रुपए” है ।
**
वित्त अधधतनयम, 2018 (2018 का 13) की धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “िीन लाि पचास हजार
रुपए” है ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे वितनर्दा ष्ट” शधदों का लोप (1-
11-1956 से) ककया गया ।
3. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 द्वारा “ऐसे राज्यों” के ्र्ान पर (1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
4. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 द्वारा भाग ि का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
261
भारि का संविधान 262
भाग ग
1. संविधान (साििां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची
के भाग क में के ककसी राज्य का” शधदों और अक्षर का लोप ककया गया ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ककसी ऐसे राज्य” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
3. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क में
वितनर्दा ष्ट ककसी राज्य का” शधदों और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
4. संविधान (साििां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “कोई ऐसा राज्य” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 263
भाग घ
उच्चिम न्यायालय और 1*** उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
9. 2[(1) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों को िा्िविक सेिा में बबिाए समय
के ललए प्रति मास तनम्नललखिि दर से िेिन का संदाय ककया जाएगा, अर्ााि ् : –
मुख्य न्यायमूतिा 3
[10,000 रुपए]
कोई अन्य न्यायाधीश 4
[9,000 रुपए:]**
परं िु यर्द उच्चिम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्तु ि के समय भारि
सरकार की या उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की अर्िा राज्य की सरकार की या
उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की पि ू ा सेिा के संबधं में (तनःशििा या क्षति पें शन
से लभन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है िो उच्चिम न्यायालय में सेिा के ललए उसके
िेिन में से 5[तनम्नललखिि को घटा र्दया जाएगा, अर्ााि ् : –
(क) उस पेंशन की रकम ; और
(ि) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबध
ं में अपने
को दे य पें शन के एक भाग के बदले उसका संरालशि मूल्य प्राप्त ककया है िो पें शन
के उस भाग की रकम ; और
(ग) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबधं में तनिवृ त्त-
उपदान प्राप्त ककया है िो उस उपदान के समिुल्य पें शन ।
(2) उच्चिम न्यायालय का प्रत्सयेक न्यायाधीश, बबना ककराया र्दए, शासकीय
तनिास के उपयोग का हकदार होगा ।
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) की कोई बाि उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान
के प्रारं भ से ठीक पहले–
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क में के
राज्यों में ” शधदों और अक्षर का (1-11-1956 से) लोप ककया गया ।
2. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उपपैरा (1)” के ्र्ान पर (1-11-1956 से)
प्रति्र्ावपि ।
3. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “5,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 6 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “2,80,000 रुपए” है ।
4. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
** उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 6 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “2,50,000 रुपए” है ।
5. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उस पें शन की रालश घटा दी जाएगी” के ्र्ान पर
(1-11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 264
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (1) के ्र्ान पर (1-11-1956 से)
प्रति्र्ावपि ।
2. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 2 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “दो लाि पचास हजार रुपए” है ।
3. संविधान (चौिनिां सशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) “3,500 रुपए” के ्र्ान पर
प्रति्र्ावपि ।
उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018 का
10) की धारा 2 के अनुसार (1-11-1956 से) अब यह “दो लाि पच्चीस हजार रुपए” है ।
भारि का संविधान 265
परं िु यर्द ककसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्तु ि के समय
भारि सरकार की या उसकी पि ू िा िी सरकारों में से ककसी की अर्िा राज्य की सरकार
की या उसकी पि ू ि
ा िी सरकारों में से ककसी की पि ू ा सेिा के संबध
ं में (नःशििा या क्षति
पें शन से लभन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है िो उच्च न्यायालय में सेिा के ललए उसके
िेिन में से तनम्नललखिि को घटा र्दया जाएगा, अर्ााि ् : –
(क) उस पेंशन की रकम ; और
(ि) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि
ू ा सेिा के संबध ं में अपने
को दे य पें शन के एक भाग के बदले में उसका संरालशि मल् ू य प्राप्त ककया है िो
पें शन के उस भाग की रकम ; और
(ग) यर्द उसने ऐसी तनयक्तु ि से पहले, ऐसी पि ू ा सेिा के संबध
ं में तनिवृ त्त-
उपदान प्राप्त ककया है िो उस उपदान के समिल् ु य पें शन ।]
(2) ऐसा प्रत्सयेक व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले–
(क) ककसी प्रांि के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद
धारर् कर रहा र्ा और ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 376 के िंड (1) के अधीन
ित्स्र्ानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूतिा बन गया है, या
(ि) ककसी प्रांि के उच्च न्यायालय के ककसी अन्य न्यायाधीश के रूप में
पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि िंड के अधीन ित्स्र्ानी
राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमूतिा से लभन्न) न्यायाधीश बन गया है,
यर्द िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट दर से उच्चिर दर
पर िेिन प्राप्त कर रहा र्ा िो, यर्ाब््र्ति, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा या अन्य न्यायाधीश के
रूप में िा्िविक सेिा में बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट िेिन
के अतिररि विशेष िेिन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार
वितनर्दाष्ट िेिन और ऐसे िेिन के अंिर के बराबर है जो िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्राप्त
कर रहा र्ा ।
1
[(3) ऐसा कोई व्यक्ति, जो संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ
से ठीक पहले, पहली अनस ु ूची के भाग ि में वितनर्दाष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायमूतिा के रूप में पद धारर् कर रहा र्ा और जो ऐसे प्रारं भ पर उि अधधतनयम
द्वारा यर्ासंशोधधि उि अनस ु ूची में वितनर्दाष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य
न्यायमूतिा बन गया है , यर्द िह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले अपने िेिन के अतिररि भत्ते के
रूप में कोई रकम प्राप्त कर रहा र्ा िो, ऐसे मुख्य न्यायमूतिा के रूप में िा्िविक सेिा में
बबिाए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में वितनर्दाष्ट िेिन के अतिररि भत्ते के रूप में
िही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा ।
1. संविधान (साििां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (3) और उपपैरा (4) के ्र्ान पर (1-
11-1956 से) प्रति्र्ावपि ।
भारि का संविधान 266
तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक (किाव्य, शक्तियां िर्ा सेिा की शिें) अधधतनयम, 1971 (1971 का 56) की धारा 3 द्वारा
भारि के तनयंत्रक-महालेिापरीक्षक को उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर िेिन का संदाय ककया जाएगा
। उच्च न्यायालय और उच्चिम न्यायालय न्यायाधीश (िेिन और सेिा शिा) संशोधन अधधतनयम, 2018 (2018
का 10) की धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) उच्चिम न्यायालय के न्यायाधीशों का िे िन “दो लाि पचास हजार
रुपए” प्रति मास िक बढा र्दया गया है ।
भाग 3
मूल अिधकार
साधारण
12. पिरभाषा–इस भाग म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो, “रा य” के
अंतगर्त भारत की सरकार और संस तथा रा य म से प्र येक रा य की सरकार और िवधान-
मंडल तथा भारत के रा यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के िनयंत्रण के अधीन सभी थानीय
और अ य प्रािधकारी ह ।
13. मल ू अिधकार से असंगत या उनका अ पीकरण करने वाली िविधयां–(1) इस
संिवधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत के रा यक्षेत्र म प्रव ृ सभी िविधयां उस मात्रा तक शू य
ह गी िजस तक वे इस भाग के उपबंध से असंगत ह ।
(2) रा य ऐसी कोई िविध नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को छीनती
है या यून करती है और इस खंड के उ लंघन म बनाई गई प्र येक िविध उ लंघन की मात्रा
तक शू य होगी ।
(3) इस अनु छे द म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,--
(क) “िविध” के अंतगर्त भारत के रा यक्षेत्र म िविध का बल रखने वाला कोई
अ यादे श, आदे श, उपिविध, िनयम, िविनयम, अिधसच
ू ना, िढ़ या प्रथा है ;
(ख) “प्रव ृ िविध” के अंतगर्त भारत के रा यक्षेत्र म िकसी िवधान-मंडल या
अ य सक्षम प्रािधकारी द्वारा इस संिवधान के प्रारं भ से पहले पािरत या बनाई गई िविध
है जो पहले ही िनरिसत नहीं कर दी गई है , चाहे ऐसी कोई िविध या उसका कोई भाग
उस समय पण
ू त
र् या या िविश क्षेत्र म प्रवतर्न म नहीं है ।
1
[(4) इस अनु छे द की कोई बात अनु छे द 368 के अधीन िकए गए इस संिवधान के
िकसी संशोधन को लागू नहीं होगी ।]
समता का अिधकार
14. िविध के समक्ष समता–रा य, भारत के रा यक्षेत्र म िकसी यिक्त को िविध के
समक्ष समता से या िविधय के समान संरक्षण से वंिचत नहीं करे गा ।
15. धमर्, मल
ू वंश, जाित, िलंग या ज म थान के आधार पर िवभेद का प्रितषेध–(1)
रा य, िकसी नागिरक के िव द्ध केवल धमर्, मलू वंश, जाित, िलंग, ज म थान या इनम से
िकसी के आधार पर कोई िवभेद नहीं करे गा ।
(2) कोई नागिरक केवल धमर्, मल
ू वंश, जाित, िलंग, ज म थान या इनम से िकसी के
आधार पर–
1. संिवधान (चौबीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा (5-11-1971 से) अंतः थािपत ।
6
भारत का संिवधान 7
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 2 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (ितरानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2005 की धारा 2 द्वारा (20-1-2006 से) अ तः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 2 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 8
दब
ु ल
र् वगर्'' वे ह गे, जो रा य द्वारा कुटुंब की आय और आिथर्क अलाभ के अ य सच
ू क के
आधार पर समय-समय पर अिधसिू चत िकए जाएं ।]
16. लोक िनयोजन के िवषय म अवसर की समता–(1) रा य के अधीन िकसी पद पर
िनयोजन या िनयिु क्त से संबंिधत िवषय म सभी नागिरक के िलए अवसर की समता होगी ।
(2) रा य के अधीन िकसी िनयोजन या पद के संबंध म केवल धमर्, मल ू वंश, जाित,
िलंग, उद्भव, ज म थान, िनवास या इनम से िकसी के आधार पर न तो कोई नागिरक अपात्र
होगा और न उससे िवभेद िकया जाएगा ।
(3) इस अनु छे द की कोई बात संस को कोई ऐसी िविध बनाने से िनवािरत नहीं
करे गी जो 1[िकसी रा य या संघ रा यक्षेत्र की सरकार के या उसम के िकसी थानीय या अ य
प्रािधकारी के अधीन वाले िकसी वगर् या वग के पद पर िनयोजन या िनयुिक्त के संबंध म ऐसे
िनयोजन या िनयुिक्त से पहले उस रा य या संघ रा यक्षेत्र के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती है ।]
(4) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िपछड़े हुए नागिरक के िकसी वगर् के पक्ष म,
िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार् नहीं है , िनयुिक्तय या
पद के आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।
2
[(4क) इस अनु छे द की कोई बात रा य को अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत
जनजाितय के पक्ष म, िजनका प्रितिनिध व रा य की राय म रा य के अधीन सेवाओं म पयार्
नहीं है , रा य के अधीन सेवाओं म 3[िकसी वगर् या वग के पद पर, पािरणािमक ये ता सिहत,
प्रो नित के मामल म] आरक्षण के िलए उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
4
[(4ख) इस अनु छे द की कोई बात रा य को िकसी वषर् म िक हीं न भरी गई ऐसी
िरिक्तय को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन िकए गए आरक्षण के िलए िकसी उपबंध के
अनुसार उस वषर् म भरी जाने के िलए आरिक्षत ह, िकसी उ रवतीर् वषर् या वष म भरे जाने के
िलए पथ ृ क् वगर् की िरिक्तय के प म िवचार करने से िनवािरत नहीं करे गी और ऐसे वगर् की
िरिक्तय पर उस वषर् की िरिक्तय के साथ िजसम वे भरी जा रही ह, उस वषर् की िरिक्तय की
कुल संख्या के संबध ं म पचास प्रितशत आरक्षण की अिधकतम सीमा का अवधारण करने के
िलए िवचार नहीं िकया जाएगा ।]
(5) इस अनु छे द की कोई बात िकसी ऐसी िविध के प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी जो
यह उपबंध करती है िक िकसी धािमर्क या सांप्रदाियक सं था के कायर्कलाप से संबंिधत कोई
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची म िविनिदर् िकसी
रा य के या उसके क्षेत्र म िकसी थानीय या अ य प्रािधकारी के अधीन उस रा य के भीतर िनवास िवषयक कोई
अपेक्षा िविहत करती हो” के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सतह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पचासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2001 की धारा 2 द्वारा भत
ू लक्षी प्रभाव से (17-6-1995 से) कितपय
श द के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (इक्यासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 9
पदधारी या उसके शासी िनकाय का कोई सद य िकसी िविश धमर् का मानने वाला या िविश
संप्रदाय का ही हो ।
1
[(6) इस अनु छे द की कोई बात, रा य को िवद्यमान आरक्षण के अितिरक्त तथा
प्र येक प्रवगर् म पद के अिधकतम दस प्रितशत के अ यधीन, खंड (4) म उि लिखत वग से
िभ न नागिरक के आिथर्क प से दब र् िक हीं वग के पक्ष म िनयुिक्तय और पद के
ु ल
आरक्षण के िलए कोई भी उपबंध करने से िनवािरत नहीं करे गी ।]
(2) भारत का कोई नागिरक िकसी िवदे शी रा य से कोई उपािध वीकार नहीं करे गा ।
वातं य-अिधकार
19. वाक् - वातं य आिद िवषयक कुछ अिधकार का संरक्षण–(1) सभी नागिरक को–
(ख) शांितपूवक
र् और िनरायुध स मेलन का,
1. संिवधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अिधिनयम, 2019 की धारा 3 द्वारा (14-1-2019 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सतानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 10
1
[और]
2
(च)* * * *
(छ) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने का,
अिधकार होगा ।
3
[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के
प्रयोग पर 4[भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता,] रा य की सरु क्षा, िवदे शी रा य के साथ मैत्रीपूणर्
संबंध , लोक यव था, िश ाचार या सदाचार के िहत म अथवा यायालय-अवमान, मानहािन
या अपराध-उ ीपन के संबंध म युिक्तयक्त ु िनबर्ंधन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर्ंधन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभुता और अखंडता या] लोक यव था के िहत म युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक
कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे
िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर 5[भारत की प्रभत ु ा और अखंडता या] लोक यव था या सदाचार के िहत म युिक्तयक्त ु
िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव
नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं
करे गी ।
(5) उक्त खंड के 6[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए
गए अिधकार के प्रयोग पर साधारण जनता के िहत म या िकसी अनुसिू चत जनजाित के िहत
के संरक्षण के िलए युिक्तयुक्त िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत करती है वहां
तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली कोई िविध
बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा िदए गए अिधकार के प्रयोग
पर साधारण जनता के िहत म यिु क्तयक्त
ु िनबर् धन जहां तक कोई िवद्यमान िविध अिधरोिपत
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान (सोलहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतः थािपत ।
6. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और
उपखंड (च)” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 11
करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे िनबर् धन अिधरोिपत करने वाली
कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी और िविश तया 1[उक्त उपखंड की कोई बात–
(i) कोई विृ , उपजीिवका, यापार या कारबार करने के िलए आव यक विृ क
या तकनीकी अहर्ताओं से, या
(ii) रा य द्वारा या रा य के वािम व या िनयंत्रण म िकसी िनगम द्वारा कोई
यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागिरक का पणू त
र् ः या भागतः अपवजर्न करके या
अ यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई िवद्यमान िविध संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नहीं डालेगी या
इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई िविध बनाने से रा य को िनवािरत नहीं करे गी ।]
20. अपराध के िलए दोषिसिद्ध के संबंध म संरक्षण–(1) कोई यिक्त िकसी अपराध के
िलए तब तक िसद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक िक उसने ऐसा कोई कायर् करने के
समय, जो अपराध के प म आरोिपत है , िकसी प्रव ृ िविध का अितक्रमण नहीं िकया है या
उससे अिधक शाि त का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के िकए जाने के समय प्रव ृ िविध
के अधीन अिधरोिपत की जा सकती थी ।
(2) िकसी यिक्त को एक ही अपराध के िलए एक बार से अिधक अिभयोिजत और
दं िडत नहीं िकया जाएगा ।
(3) िकसी अपराध के िलए अिभयुक्त िकसी यिक्त को वयं अपने िव द्ध साक्षी होने के
िलए बा य नहीं िकया जाएगा ।
21. प्राण और दै िहक वतंत्रता का संरक्षण–िकसी यिक्त को उसके प्राण या दै िहक
वतंत्रता से िविध द्वारा थािपत प्रिक्रया के अनस
ु ार ही वंिचत िकया जाएगा, अ यथा नहीं ।
2
[21क. िशक्षा का अिधकार–रा य, छह वषर् से चौदह वषर् तक की आयु वाले सभी
बालक के िलए नःशु क और अिनवायर् िशक्षा दे ने का ऐसी रीित म, जो रा य िविध द्वारा,
अवधािरत करे , उपबंध करे गा ।]
22. कुछ दशाओं म िगर तारी और िनरोध से संरक्षण–(1) िकसी यिक्त को जो िगर तार
िकया गया है , ऐसी िगर तारी के कारण से यथाशीघ्र अवगत कराए िबना अिभरक्षा म िन द्ध
नहीं रखा जाएगा या अपनी िच के िविध यवसायी से परामशर् करने और प्रितरक्षा कराने के
अिधकार से वंिचत नहीं रखा जाएगा ।
(2) प्र येक यिक्त को, जो िगर तार िकया गया है और अिभरक्षा म िन द्ध रखा गया
है , िगर तारी के थान से मिज ट्रे ट के यायालय तक यात्रा के िलए आव यक समय को
छोड़कर ऐसी िगर तारी से चौबीस घंटे की अविध म िनकटतम मिज ट्रे ट के समक्ष पेश िकया
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा कितपय श द के थान पर (18-6-1951 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (िछयासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2002 की धारा 2 द्वारा (1-4-2010 से) अ तः थािपत ।
भारत का संिवधान 12
जाएगा और ऐसे िकसी यिक्त को मिज ट्रे ट के प्रािधकार के िबना उक्त अविध से अिधक अविध
के िलए अिभरक्षा म िन द्ध नहीं रखा जाएगा ।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात िकसी ऐसे यिक्त को लागू नहीं होगी जो–
(क) त समय शत्रु अ यदे शीय है ; या
(ख) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िगर तार या
िन द्ध िकया गया है ।
(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का तीन मास से
अिधक अविध के िलए तब तक िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक–
(क) ऐसे यिक्तय से, जो उ च यायालय के यायाधीश ह या यायाधीश रहे
ह या यायाधीश िनयुक्त होने के िलए अिहर्त ह, िमलकर बने सलाहकार बोडर् ने तीन
मास की उक्त अविध की समाि से पहले यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म
ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु इस उपखंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध से
अिधक अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड
(ख) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा िविहत की गई है ; या
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से,
जो िक अिधसिू चत नहीं हुई है ) खंड (4) के थान पर िन निलिखत प्रित थािपत िकया जाएगा,--
'(4) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली कोई िविध िकसी यिक्त का दो मास से अिधक की
अविध के िलए िन द्ध िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जब तक िक समिु चत उ च यायालय के मख्
ु य
यायमूितर् की िसफािरश के अनुसार गिठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास की अविध की समाि से पहले
यह प्रितवेदन नहीं िदया है िक उसकी राय म ऐसे िनरोध के िलए पयार् कारण ह :
परं तु सलाहकार बोडर् एक अ यक्ष और कम से कम दो अ य सद य से िमलकर बनेगा और
अ यक्ष समुिचत उ च यायालय का सेवारत यायाधीश होगा और अ य सद य िकसी उ च यायालय के
सेवारत या सेवािनव ृ यायाधीश ह गे :
परं तु यह और िक इस खंड की कोई बात िकसी यिक्त का उस अिधकतम अविध के िलए िन द्ध
िकया जाना प्रािधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा
िविहत की जाए ।
प ीकरण--इस खंड म, “समुिचत उ च यायालय” से अिभप्रेत है --
(i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी द्वारा िकए गए िनरोध
आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म, िद ली संघ रा यक्षेत्र के िलए उ च यायालय ;
(ii) (संघ रा यक्षेत्र से िभ न) िकसी रा य सरकार द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म
िन द्ध यिक्त की दशा म, उस रा य के िलए उ च यायालय ; और
(iii) िकसी संघ रा यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीन थ िकसी अिधकारी या प्रािधकारी
द्वारा िकए गए िनरोध आदे श के अनुसरण म िन द्ध यिक्त की दशा म वह उ च यायालय जो संस द्वारा
इस िनिम बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन िविनिदर् िकया जाए ।' ।
भारत का संिवधान 13
(ख) ऐसे यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संस
द्वारा बनाई गई िविध के उपबंध के अनुसार िन द्ध नहीं िकया जाता है ।
(5) िनवारक िनरोध का उपबंध करने वाली िकसी िविध के अधीन िकए गए आदे श के
अनुसरण म जब िकसी यिक्त को िन द्ध िकया जाता है तब आदे श करने वाला प्रािधकारी
यथाशक्य शीघ्र उस यिक्त को यह संसिू चत करे गा िक वह आदे श िकन आधार पर िकया गया
है और उस आदे श के िव द्ध अ यावेदन करने के िलए उसे शीघ्राितशीघ्र अवसर दे गा ।
(6) खंड (5) की िकसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खंड म िनिदर् है , करने वाले
प्रािधकारी के िलए ऐसे त य को प्रकट करना आव यक नहीं होगा िज ह प्रकट करना ऐसा
प्रािधकारी लोकिहत के िव द्ध समझता है ।
* संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (क) का लोप िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक अिधसूिचत
नहीं हुई है ) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के प म पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।
संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 3 द्वारा (अिधसूचना की तारीख से, जो िक
अिधसूिचत नहीं हुई है ) बड़ी को क म के श द के थान पर “खंड (4)” श द, को क और अंक रखे जाएंगे ।
भारत का संिवधान 14
अिधकार होगा ।
27. िकसी िविश धमर् की अिभविृ द्ध के िलए कर के संदाय के बारे म वतंत्रता–िकसी
भी यिक्त को ऐसे कर का संदाय करने के िलए बा य नहीं िकया जाएगा िजनके आगम िकसी
िविश धमर् या धािमर्क संप्रदाय की अिभविृ द्ध या पोषण म यय करने के िलए िविनिदर् प
से िविनयोिजत िकए जाते ह ।
28. कुछ िशक्षा सं थाओं म धािमर्क िशक्षा या धािमर्क उपासना म उपि थत होने के
बारे म वतंत्रता–(1) रा य-िनिध से पण
ू त
र् ः पोिषत िकसी िशक्षा सं था म कोई धािमर्क िशक्षा
नहीं दी जाएगी ।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी िशक्षा सं था को लागू नहीं होगी िजसका प्रशासन
रा य करता है िकं तु जो िकसी ऐसे िव यास या यास के अधीन थािपत हुई है िजसके
अनस
ु ार उस सं था म धािमर्क िशक्षा दे ना आव यक है ।
(3) रा य से मा यताप्रा या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िशक्षा सं था म
उपि थत होने वाले िकसी यिक्त को ऐसी सं था म दी जाने वाली धािमर्क िशक्षा म भाग लेने
के िलए या ऐसी सं था म या उससे संलग्न थान म की जाने वाली धािमर्क उपासना म
उपि थत होने के िलए तब तक बा य नहीं िकया जाएगा जब तक िक उस यिक्त ने, या यिद
वह अवय क है तो उसके संरक्षक ने, इसके िलए अपनी सहमित नहीं दे दी है ।
सं कृित और िशक्षा संबंधी अिधकार
29. अ पसंख्यक-वग के िहत का संरक्षण–(1) भारत के रा यक्षेत्र या उसके िकसी
भाग के िनवासी नागिरक के िकसी अनुभाग को, िजसकी अपनी िवशेष भाषा, िलिप या
सं कृित है , उसे बनाए रखने का अिधकार होगा ।
(2) रा य द्वारा पोिषत या रा य-िनिध से सहायता पाने वाली िकसी िशक्षा सं था म
प्रवेश से िकसी भी नागिरक को केवल धमर्, मल
ू वंश, जाित, भाषा या इनम से िकसी के आधार
पर वंिचत नहीं िकया जाएगा ।
30. िशक्षा सं थाओं की थापना और प्रशासन करने का अ पसंख्यक-वग का
अिधकार–(1) धमर् या भाषा पर आधािरत सभी अ पसंख्यक-वग को अपनी िच की िशक्षा
सं थाओं की थापना और प्रशासन का अिधकार होगा ।
1
[(1क) खंड (1) म िनिदर् िकसी अ पसंख्यक-वगर् द्वारा थािपत और प्रशािसत िशक्षा
सं था की संपि के अिनवायर् अजर्न के िलए उपबंध करने वाली िविध बनाते समय, रा य यह
सिु नि त करे गा िक ऐसी संपि के अजर्न के िलए ऐसी िविध द्वारा िनयत या उसके अधीन
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 16
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीषर् "संपि का अिधकार"
का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के थान पर
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 17
1. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा (20-6-1964 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से उपखंड (क) के थान पर
प्रित थािपत ।
4. मद्रास रा य (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 18
1
[31ख. कुछ अिधिनयम और िविनयम का िविधमा यकरण–अनु छे द 31क म
अंतिवर् उपबंध की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, नवीं अनुसच ू ी म िविनिदर्
अिधिनयम और िविनयम म से और उनके उपबंध म से कोई इस आधार पर शू य या कभी
शू य हुआ नहीं समझा जाएगा िक वह अिधिनयम, िविनयम या उपबंध इस भाग के िक हीं
उपबंध द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी से असंगत है या उसे छीनता है या यन ू करता है
और िकसी यायालय या अिधकरण के िकसी प्रितकूल िनणर्य, िडक्री या आदे श के होते हुए भी,
उक्त अिधिनयम और िविनयम म से प्र येक, उसे िनरिसत या संशोिधत करने की िकसी सक्षम
िवधान-मंडल की शिक्त के अधीन रहते हुए, प्रव ृ बना रहे गा ।]
2
[31ग. कुछ िनदे शक त व को प्रभावी करने वाली िविधय की याविृ –अनु छे द 13
म िकसी बात के होते हुए भी, कोई िविध, जो 3[भाग 4 म अिधकिथत सभी या िक हीं त व ]
को सिु नि त करने के िलए रा य की नीित को प्रभावी करने वाली है , इस आधार पर शू य
नहीं समझी जाएगी िक वह 4[अनु छे द 14 या अनु छे द 19] द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी
5
से असंगत है या उसे छीनती है या यनू करती है [और कोई िविध, िजसम यह घोषणा है िक
वह ऐसी नीित को प्रभावी करने के िलए है , िकसी यायालय म इस आधार पर प्र गत नहीं
की जाएगी िक वह ऐसी नीित को प्रभावी नहीं करती है ]:
परं तु जहां ऐसी िविध िकसी रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस
अनु छे द के उपबंध उस िविध को तब तक लागू नहीं ह गे जब तक ऐसी िविध को, जो
रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रखी गई है , उसकी अनुमित प्रा नहीं हो गई है ।
6
31घ. [रा िवरोधी िक्रयाकलाप के संबंध म िविधय की याविृ ।]–संिवधान
(ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
सांिवधािनक उपचार का अिधकार
32. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए उपचार–(1) इस भाग
द्वारा प्रद अिधकार को प्रवितर्त कराने के िलए समिु चत कायर्वािहय द्वारा उ चतम यायालय
म समावेदन करने का अिधकार प्र याभत ू िकया जाता है ।
(2) इस भाग द्वारा प्रद अिधकार म से िकसी को प्रवितर्त कराने के िलए उ चतम
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (प चीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) “अनु छे द 39 के खंड (ख) या
खंड (ग) म िविनिदर् िसद्धांत ” के थान पर प्रित थािपत । धारा 4 को उ चतम यायालय द्वारा, िमनवार् िम स
िल0 और अ य बनाम भारत संघ और अ य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 म अिविधमा य घोिषत कर िदया
गया ।
4. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) “अनु छे द 14, अनु छे द 19
या अनु छे द 31” के थान पर प्रित थािपत ।
5. उ चतम यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल रा य ए.आई.आर. 1973, एस0सी0 1461 म ितरछे टाइप म
िदए गए उपबंध को अिविधमा य घोिषत कर िदया है ।
6. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 19
यायालय को ऐसे िनदे श या आदे श या िरट, िजनके अंतगर्त बंदी प्र यक्षीकरण, परमादे श,
प्रितषेध, अिधकार-प ृ छा और उप्रेषण िरट ह, जो भी समिु चत हो, िनकालने की शिक्त होगी ।
(3) उ चतम यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रद शिक्तय पर प्रितकूल
प्रभाव डाले िबना, संस , उ चतम यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्त य िक हीं या सभी
शिक्तय का िकसी अ य यायालय को अपनी अिधकािरता की थानीय सीमाओं के भीतर
प्रयोग करने के िलए िविध द्वारा सशक्त कर सकेगी ।
(4) इस संिवधान द्वारा अ यथा उपबंिधत के िसवाय, इस अनु छे द द्वारा प्र याभत
ू
अिधकार िनलंिबत नहीं िकया जाएगा ।
1
32क. [रा य िविधय की सांिवधािनक वैधता पर अनु छे द 32 के अधीन कायर्वािहय
म िवचार न िकया जाना ।]–संिवधान (ततालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1977 की धारा 3
द्वारा (13-4-1978 से) िनरिसत ।
2
[33. इस भाग द्वारा प्रद अिधकार का, बल आिद को लागू होने म, उपांतरण करने
की संस की शिक्त–संस , िविध द्वारा, अवधारण कर सकेगी िक इस भाग द्वारा प्रद अिधकार
म से कोई,–
(क) सश बल के सद य को, या
(ख) लोक यव था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बल के सद य को, या
(ग) आसच ू ना या प्रित आसच
ू ना के प्रयोजन के िलए रा य द्वारा थािपत
िकसी यूरो या अ य संगठन म िनयोिजत यिक्तय को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) म िनिदर् िकसी बल, यूरो या संगठन के प्रयोजन के
िलए थािपत दरू संचार प्रणाली म या उसके संबंध म िनयोिजत यिक्तय को,
लागू होने म, िकस िव तार तक िनबर्ि धत या िनराकृत िकया जाए िजससे उनके कतर् य का
उिचत पालन और उनम अनुशासन बना रहना सिु नि त रहे ।]
34. जब िकसी क्षेत्र म सेना िविध प्रव ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद अिधकार पर
िनबर् धन–इस भाग के पव ू ग
र् ामी उपबंध म िकसी बात के होते हुए भी, संस िविध द्वारा संघ
या िकसी रा य की सेवा म िकसी यिक्त की या िकसी अ य यिक्त की िकसी ऐसे कायर् के
संबंध म क्षितपूितर् कर सकेगी जो उसने भारत के रा यक्षेत्र के भीतर िकसी ऐसे क्षेत्र म, जहां
सेना िविध प्रव ृ थी, यव था के बनाए रखने या पुनः थापन के संबंध म िकया है या ऐसे
क्षेत्र म सेना िविध के अधीन पािरत दं डादे श, िदए गए दं ड, आिद समपहरण या िकए गए
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 6 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (पचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनु छे द 33 के थान पर (11-9-1984 से)
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 20
सारणी
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1965 से) चौथी अनुसच
ू ी के थान पर
प्रित थािपत ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 की धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) “18” के थान पर प्रित थािपत।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 की धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) अ तः थािपत ।
4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 की धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक की प्रिवि य को क्रमशः 3
से 31 तक की प्रिवि य के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
5. िबहार पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 30) की धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) “22” के थान पर
प्रित थािपत ।
6. िबहार पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 30) की धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) अंतः थािपत ।
7. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) अंतः थािपत ।
8. िबहार पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 30) की धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्रिवि 4 से 29 को क्रमशः
प्रिवि 5 से 30 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
9. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) प्रिवि 4 (प्रिवि 6 के प म
पुनःसंख्यांिकत) के थान पर प्रित थािपत ।
10. पंजाब पुनगर्ठन अिधिनयम, 1966 (1966 का 31) की धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) अंतः थािपत ।
271
भारत का संिवधान 272
1. िबहार पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 30) की धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्रिवि 4 से 29 को क्रमशः
प्रिवि 5 से 30 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 की धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक की प्रिवि य को क्रमशः
3 से 31 तक की प्रिवि य के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3. म य प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 28) की धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) “16” के थान पर
प्रित थािपत ।
4. म य प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 28) की धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) अंतः थािपत ।
5. मद्रास रा य (नाम-पिरवतर्न) अिधिनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “8. मद्रास” (“11”
के प म पुनःसंख्यांिकत) के थान पर प्रित थािपत ।
6. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-पिरवतर्न) अिधिनयम, 1959 (1959 का 56) की धारा 8 द्वारा (1-4-1960 से) “17” के
थान पर प्रित थािपत ।
7. मुंबई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) अंतः थािपत ।
8. मैसूर रा य (नाम-पिरवतर्न) अिधिनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “10. मैसूर” (“13”
के प म पुनःसंख्यांिकत) के थान पर प्रित थािपत ।
9. उड़ीसा (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2011 की धारा 7 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के थान पर प्रित थािपत।
10. पंजाब पुनगर्ठन अिधिनयम, 1966 (1966 का 31) की धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) “11” के थान पर
प्रित थािपत ।
11. उ र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 29) की धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के थान पर
प्रित थािपत ।
12. उ र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 29) की धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के थान पर
अंतः थािपत ।
13. उ रांचल (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 52) की धारा 41 द्वारा (1-1-2007 से) “उ रांचल” के
थान पर प्रित थािपत ।
14. नागालड रा य अिधिनयम, 1962 (1962 का 27) की धारा 6 द्वारा (1-12-1963 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 273
1. िहमाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 5 द्वारा (25-1-1971 से) अंतः थािपत ।
2. िबहार पुनगर्ठन अिधिनयम, 2000 (2000 का 30) की धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्रिवि 4 से 29 को क्रमशः
प्रिवि 5 से 30 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अिधिनयम, 2014 (2014 का 16) की धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक की
प्रिवि य को क्रमशः 3 से 31 तक की प्रिवि य के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (छ ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 4 द्वारा (26-4-1975 से) अंतः थािपत ।
5. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
6. अ णाचल प्रदे श रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
7. पांिडचेरी (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पांिडचेरी” के थान
पर प्रित थािपत ।
8. गोवा, दमण और दीव पुनगर्ठन अिधिनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) “232” के
थान पर प्रित थािपत ।
पांचवीं अनुसच
ू ी
[अनु छे द 244 (1)]
अनुसूिचत क्षेत्र और अनुसूिचत जनजाितय के प्रशासन और िनयंत्रण के बारे म उपबंध
भाग क
साधारण
1. िनवर्चन – इस अनुसूची म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,
“रा य” पद के अंतगर्त 1*** 2[असम, 3[4[मेघालय, ित्रपुरा और िमजोरम]] रा य] नहीं
ह ।
2. अनुसूिचत क्षेत्र म िकसी रा य की कायर्पािलका शिक्त – इस अनुसूची के
उपबंध के अधीन रहते हुए, िकसी रा य की कायर्पािलका शिक्त का िव तार उसके
अनुसूिचत क्षेत्र पर है ।
3. अनुसिू चत क्षेत्र के प्रशासन के संबंध म रा पित को रा यपाल 5*** द्वारा
प्रितवेदन – ऐसे प्र येक रा य का रा यपाल 5***, िजसम अनुसूिचत क्षेत्र ह, प्रितवषर् या
जब भी रा पित इस प्रकार अपेक्षा करे , उस रा य के अनुसूिचत क्षेत्र के प्रशासन के
संबंध म रा पित को प्रितवेदन दे गा और संघ की कायर्पािलका शिक्त का िव तार रा य
को उक्त क्षेत्र के प्रशासन के बारे म िनदे श दे ने तक होगा ।
भाग ख
अनुसूिचत क्षेत्र और अनुसूिचत जनजाितय का प्रशासन और िनयंत्रण
4. जनजाित सलाहकार पिरष – (1) ऐसे प्र येक रा य म, िजसम अनुसूिचत
क्षेत्र ह और यिद रा पित ऐसा िनदे श दे तो, िकसी ऐसे रा य म भी, िजसम अनुसूिचत
जनजाितयां ह िकं तु अनुसूिचत क्षेत्र नहीं है , एक जनजाित सलाहकार पिरष थािपत की
जाएगी जो बीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी िजनम से यथाशक्य िनकटतम
तीन-चौथाई उस रा य की िवधान सभा म अनुसूिचत जनजाितय के प्रितिनिध ह गे :
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख म िविनिदर् रा य अिभप्रेत है परं तु” श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम रा य” के
थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 3 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” के थान पर
प्रित थािपत ।
4. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और ित्रपुरा” के
थान पर प्रित थािपत ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
श द का लोप िकया गया ।
274
भारत का संिवधान 275
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथाि थित,
रा यपाल या राजप्रमुख” श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसच
ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” श द का (1-
11-1956 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 276
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” श द का लोप (1-
11-1956 से) िकया गया ।
2. अनुसूिचत क्षेत्र (भाग क रा य) आदे श, 1950 (सं.आ. 9), अनुसूिचत क्षेत्र (भाग ख रा य) आदे श, 1950 (सं.आ.
26), अनुसूिचत क्षेत्र (िहमाचल प्रदे श) आदे श, 1975 (सं.आ. 102) और अनुसूिचत क्षेत्र (िबहार, गुजरात, म य
प्रदे श और उड़ीसा रा य) आदे श, 1977 (सं.आ. 109) दे िखए ।
3. मद्रास अनुसूिचत क्षेत्र (समाि ) आदे श, 1950 (सं.आ. 30) और आंध्र अनुसूिचत क्षेत्र (समाि ) आदे श, 1955
(सं.आ. 50) दे िखए ।
4. संिवधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 277
भाग घ
अनस
ु च
ू ी का संशोधन
1. संिवधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतः थािपत ।
छठी अनुसूची
[अनु छे द 244(2) और अनु छे द 275(1)]
1
[असम, मेघालय, ित्रपुरा और िमजोरम रा य ] के जनजाित क्षेत्र के प्रशासन
के बारे म उपबंध
1. वशासी िजले और वशासी प्रदे श – (1) इस पैरा के उपबंध के अधीन रहते
2
1. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) कितपय श द के थान पर
प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 1 म उप-पैरा (2) के प ात ् िन निलिखत परं तुक अंतः थािपत कर संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
“पर तु इस उप-पैरा की कोई बात, बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले को (7-9-2003 से) लागू नहीं होगी ।”।
3. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "भाग क" के थान पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) "भाग 1 और भाग 2" के थान
पर प्रित थािपत ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
278
भारत का संिवधान 279
परं तु रा यपाल इस उप-पैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के
अधीन कोई आदे श इस अनुसच
ू ी के पैरा 14 के उप-पैरा (1) के अधीन िनयक्त
ु आयोग के
प्रितवेदन पर िवचार करने के प ात ् ही करे गा, अ यथा नहीं :
1
परं तु यह और िक रा यपाल द्वारा इस उप-पैरा के अधीन िकए गए आदे श म ऐसे
आनष
ु ंिगक और पािरणािमक उपबंध (िजनके अंतगर्त पैरा 20 का और उक्त सारणी के
िकसी भाग की िकसी मद का कोई संशोधन है ) अंतिवर् हो सकगे जो रा यपाल को उस
आदे श के उपबंध को प्रभावी करने के िलए आव यक प्रतीत ह ।
2-3-4
2. िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद का गठन –5[(1) प्र येक वशासी
िजले के िलए एक िजला पिरष होगी जो तीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी
िजनम से चार से अनिधक यिक्त रा यपाल द्वारा नामिनदिशत िकए जाएंगे और शेष
वय क मतािधकार के आधार पर िनवार्िचत िकए जाएंगे ।
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के िलए
पैरा 2 म उप-पैरा (1) के प ात ् िन निलिखत परं तुक अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह िक बोडोलड प्रादे िशक पिरष िछयालीस से अनिधक सद य से िमलकर बनेगी िजनम से
चालीस सद य को वय क मतािधकार के आधार पर िनवार्िचत िकया जाएगा, िजनम से तीस अनुसूिचत
जनजाितय के िलए, पांच गैर जनजातीय समुदाय के िलए, पांच सभी समुदाय के िलए आरिक्षत ह गे तथा शेष
छह रा यपाल द्वारा नामिनदिशत िकए जाएंगे िजनके अिधकार और िवशेषािधकार, िजनके अंतगर्त मत दे ने के
अिधकार भी ह, वही ह गे जो अ य सद य के ह, बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के उन समुदाय म से, िजनका
प्रितिनिध व नहीं है , कम से कम दो मिहलाएं ह गी :” ।
3. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 2 म उप-पैरा (3) के प ात ् िन निलिखत परं तक
ु अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु उ री कछार पहाड़ी िजले के िलए गिठत िजला पिरष , उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष कहलाएगी
और काबीर् आंगलांग िजले के िलए गिठत िजला पिरष , काबीर् आंगलांग वशासी पिरष कहलाएगी ।”;
.
4 संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा आसाम म लागू होने के
िलए पैरा 2 के उप-पैरा (3) म पर तक
ु के प ात ् िन निलिखत परं तक ु अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह और िक बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के िलए गिठत िजला पिरष बोडोलड प्रादे िशक पिरष
कहलाएगी ।” ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) उप-पैरा (1) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 280
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) "ऐसी पिरषद " के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 281
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 282
परं तु जब तक िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा इस उप-पैरा के अधीन िनयम
नहीं बनाए जाते ह तब तक रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (6) के अधीन बनाए गए
िनयम, प्र येक ऐसी पिरष के िलए िनवार्चन , उसके अिधकािरय और कमर्चािरय तथा उसकी
प्रिक्रया और उसके कायर् संचालन के संबंध म प्रभावी ह गे ।
1
* * * *
2-3-4
3. िविध बनाने की िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद की शिक्त – (1) वशासी प्रदे श की
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) िद्वतीय पर तुक का लोप िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 3
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (3) िन निलिखत प से
प्रित थािपत हो सके, अथार्त ् :--
“(3) पैरा 3क के उप-पैरा (2) या पैरा 3ख के उप-पैरा (2) म जैसा अ यथा उपबंिधत है , उसके िसवाय
इस पैरा या पैरा 3क के उप-पैरा (1) या पैरा 3ख के उप-पैरा (1) के अधीन बनाई गई सभी िविधयां रा यपाल के
समक्ष तुर त प्र तत
ु की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक प्रभावी नहीं ह गी ।”।
“3क. उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और काबीर् आंगलांग वशासी पिरष की िविध बनाने की
अितिरक्त शिक्तयां--(1) पैरा 3 के उपबंध पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, उ री कछार पहाड़ी वशासी पिरष और
काबीर् आंगलांग वशासी पिरष को, संबंिधत िजल के भीतर िन निलिखत की बाबत िविधयां बनाने की शिक्त
होगी, अथार्त ् :--
(क) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 7 और प्रिवि 52 के उपबंध के अधीन रहते हुए, उद्योग ;
(ग) पशुधन का पिररक्षण, संरक्षण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोग का िनवारण, पशु िचिक सा
प्रिशक्षण और यवसाय ; कांजी हाउस ;
(ङ) कृिष िजसके अंतगर्त कृिष िशक्षा और अनुसंधान, नाशक जीव से संरक्षण और पादप रोग का
िनवारण है ;
(च) म य उद्योग ;
(छ) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 56 के उपबंध के अधीन रहते हुए, जल, अथार्त ्, जल प्रदाय,
भारत का संिवधान 283
प्रादे िशक पिरष को ऐसे प्रदे श के भीतर के सभी क्षेत्र के संबंध म और वशासी िजले
उपबंध के अधीन रहते हुए मादक िलकर, अफीम और यु प न ; (xiii) िसंचाई ; (xiv) म और रोजगार ; (xv)
भूिम और राज व ; (xvi) पु तकालय सेवाएं (रा य सरकार द्वारा िव पोिषत और िनयंित्रत) ; (xvii) लाटरी (सातवीं
अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 40 के उपबंध के अधीन रहते हुए), ना यशाला, ना य प्रदशर्न और िसनेमा (सातवीं
अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 60 के उपबंध के अधीन रहते हुए) ; (xviii) बाजार और मेले; (xix) नगर िनगम,
सुधार यास, िजला बोडर् और अ य थानीय प्रािधकारी ; (xx) रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत संग्रहालय और
पुरात व िवज्ञान सं थान, संस द्वारा बनाई गई िकसी िविध द्वारा या उसके रा ीय मह व के घोिषत िकए गए
प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख से िभ न, प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ;
(xxi) पंचायत और ग्रामीण िवकास ; (xxii) योजना और िवकास ; (xxiii) मुद्रण और लेखन सामग्री ; (xxiv) लोक
वा य इंजीिनयरी ; (xxv) लोक िनमार्ण िवभाग; (xxvi) प्रचार और लोक संपकर्; (xxvii) ज म और मृ यु का
रिज ट्रीकरण ; (xxviii) सहायता और पुनवार्स ; (xxix) रे शम उ पादन ; (xxx) सातवीं अऩुसूची की सूची 1 की
प्रिवि7 और प्रिवि 52 के उपबंध के अधीन रहते हुए, लघु, कुटीर और ग्रामीण उद्योग ; (xxxi) समाज क याण
; (xxxii) मद
ृ ा संरक्षण ; (xxxiii) खेलकूद और युवा क याण ; (xxxiv) सांिख्यकी ; (xxxv) पयर्टन ; (xxxvi)
पिरवहन (सड़क, पुल, फेरी और अ य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची की सूची 1 म िविनिदर् नहीं ह,
नगरपािलका ट्राम, र जम
ु ागर्, अ तदशीय जलमाग के संबंध म सातवीं अनुसूची की सूची 1 और सूची 3 के उपबंध
के अधीन रहते हुए, अ तदशीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नोिदत यान से िभ न यान) ; (xxxvii) रा य
सरकार द्वारा िनयंित्रत और िव पोिषत जनजाित अनस
ु ंधान सं थान ; (xxxviii) शहरी िवकास-नगर और ग्रामीण
योजना) ; (xxxix) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रिवि 50 के उपबंध के अधीन रहते हुए बाट और माप ;
और (xl) मैदानी जनजाितय और िपछड़े वग का क याण :
परं तु ऐसी िविधय की कोई बात, --
(क) इस अिधिनयम के प्रारं भ की तारीख पर िकसी नागिरक के उसकी भूिम के संबंध म िवद्यमान
अिधकार और िवशेषािधकार को समा या उपांतिरत नहीं करे गी ; और
(ख) िकसी नागिरक को िवरासत, आबंटन, यव थापन के प म या अंतरण की िकसी अ य रीित
से भूिम अिजर्त करने से अनुज्ञात नहीं करे गी यिद ऐसा नागिरक बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के भीतर भूिम
के ऐसे अजर्न के िलए अ यथा पात्र है ।
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी िविधयां, जहां तक उनका संबध
ं सातवीं अनुसूची
की सूची 3 म िविनिदर् िवषय से है , रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत की जाएंगी जो उ ह रा पित के िवचार के
िलए आरिक्षत रखेगा ।
(3) जब कोई िविध रा पित के िवचार के िलए आरिक्षत रख ली जाती है , तब रा पित घोिषत करे गा िक वह
उक्त िविध पर अनुमित दे ता है या अनुमित रोक लेता है :
परं तु रा पित रा यपाल को यह संदेश दे सकेगा िक वह िविध को, बोडोलड प्रादे िशक पिरष को ऐसे संदेश के
साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे िक उक्त पिरष िविध या उसके िक हीं िविनिदर् उपबंध पर पुनिवर्चार करे
और िविश तया, िक हीं ऐसे संशोधन को पुरः थािपत करने की वांछनीयता पर िवचार करे िजनकी उसने अपने
संदेश म िसफािरश की है और जब िविध इस प्रकार लौटा दी जाती है तब उक्त पिरष , ऐसे संदेश की प्राि की
तारीख से छह मास की अविध के भीतर ऐसी िविध पर तदनुसार िवचार करे गी और यिद िविध उक्त पिरष द्वारा,
संशोधन सिहत या उसके िबना, िफर से पािरत कर दी जाती है तो उसे रा पित के समक्ष उसके िवचार के िलए
िफर से प्र तुत िकया जाएगा ।”।
भारत का संिवधान 285
की िजला पिरष को ऐसे क्षेत्र को छोड़कर जो उस िजले के भीतर की प्रादे िशक पिरषद
के, यिद कोई ह , प्रािधकार के अधीन ह, उस िजले के भीतर के अ य सभी क्षेत्र के
संबंध म िन निलिखत िवषय के िलए िविध बनाने की शिक्त होगी, अथार्त ् :–
(क) िकसी आरिक्षत वन की भूिम से िभ न अ य भूिम का, कृिष या
चराई के प्रयोजन के िलए अथवा िनवास के या कृिष से िभ न अ य प्रयोजन के
िलए अथवा िकसी ऐसे अ य प्रयोजन के िलए िजससे िकसी ग्राम या नगर के
िनवािसय के िहत की अिभविृ द्ध संभा य है , आंबटन, अिधभोग या उपयोग अथवा
अलग रखा जाना :
परं तु ऐसी िविधय की कोई बात 1[संबंिधत रा य की सरकार को] अिनवायर्
अजर्न प्रािधकृत करने वाली त समय प्रव ृ िविध के अनुसार िकसी भूिम का, चाहे
वह अिधभोग म हो या नहीं, लोक प्रयोजन के िलए अिनवायर् अजर्न करने से
िनवािरत नहीं करे गी ;
(ख) िकसी ऐसे वन का प्रबंध जो आरिक्षत वन नहीं है ;
(ग) कृिष के प्रयोजन के िलए िकसी नहर या जलसरणी का उपयोग ;
(घ) झम ू की पद्धित का या पिरवतीर् खेती की अ य पद्धितय का
िविनयमन ;
(ङ) ग्राम या नगर सिमितय या पिरषद की थापना और उनकी शिक्तयां
;
(च) ग्राम या नगर प्रशासन से संबंिधत कोई अ य िवषय िजसके अंतगर्त
ग्राम या नगर पुिलस और लोक वा य और व छता है ;
(छ) प्रमख
ु या मिु खय की िनयिु क्त या उ रािधकार ;
(ज) संपि की िवरासत ;
2
[(झ) िववाह और िववाह-िव छे द ;]
(ञ) सामािजक िढ़यां ।
(2) इस पैरा म, “आरिक्षत वन” से ऐसा क्षेत्र अिभप्रेत है जो असम वन िविनयम,
1891 के अधीन या प्र गत क्षेत्र म त समय प्रव ृ िकसी अ य िविध के अधीन आरिक्षत
वन है ।
(3) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी िविधयां रा यपाल के समक्ष तुर त प्र तुत
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) "खंड झ" के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 286
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 4
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (5) के प ात ्
िन निलिखत अंतः थािपत िकया जा सके, अथार्त ् :--
“(6) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परं तुक के अधीन गिठत बोडोलड
प्रादे िशक पिरष को लागू नहीं होगी ।”।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम के" श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 287
करने के प ात ्] अिधसूचना द्वारा, इस िनिम िनयत करे , यह पैरा ऐसे वशासी िजले या
वशासी प्रदे श के संबंध म, जो उस अिधसूचना म िविनिदर् िकया जाए, इस प्रकार प्रभावी
होगा मानो –
(i) उप-पैरा (1) म, “जो ऐसे पक्षकार के बीच ह िजनम से सभी पक्षकार
ऐसे क्षेत्र के भीतर की अनुसूिचत जनजाितय के ह तथा जो उन वाद और मामल
से िभ न ह िजनको इस अनुसच ू ी के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते
ह,” श द के थान पर, “जो इस अनुसूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) म िनिदर्
प्रकृित के ऐसे वाद और मामले नहीं ह िज ह रा यपाल इस िनिम िविनिदर् करे ,”
श द रख िदए गए ह ;
(ii) उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3) का लोप कर िदया गया हो ;
(iii) उप-पैरा (4) म–
(क) “यथाि थित, प्रादे िशक पिरष या िजला पिरष , रा यपाल के
पूवर् अनुमोदन से, िन निलिखत के िविनयमन के िलए िनयम बना सकेगी,
अथार्त ् :–” श द के थान पर, “रा यपाल िन निलिखत के िविनयमन के
िलए िनयम बना सकेगा, अथार्त ् :–” श द रख िदए गए ह ; और
(ख) खंड (क) के थान पर, िन निलिखत खंड रख िदया गया हो,
अथार्त ् :–
“(क) ग्राम पिरषद और यायालय का गठन, इस पैरा के
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
1
[(4) रा पित द्वारा िकसी वशासी िजले या वशासी प्रदे श के संबंध म पैरा 4 के
उप-पैरा (5) के अधीन िनयत तारीख को और से, उस िजले या प्रदे श को लागू होने म
इस पैरा की िकसी बात के बारे म यह नहीं समझा जाएगा िक वह िकसी िजला पिरष
या प्रादे िशक पिरष को या िजला पिरष द्वारा गिठत यायालय को इस पैरा के उप-पैरा
(1) म िनिदर् शिक्तय म से कोई शिक्त प्रदान करने के िलए रा यपाल को प्रािधकृत
करती है ।]
2
[6. प्राथिमक िवद्यालय, आिद थािपत करने की िजला पिरष की शिक्त – (1)
वशासी िजले की िजला पिरष िजले म प्राथिमक िवद्यालय , औषधालय , बाजार ,
3
[कांजी हाउस ,] फेरी, मीनक्षेत्र , सड़क , सड़क पिरवहन और जलमाग की थापना,
िनमार्ण और प्रबंध कर सकेगी तथा रा यपाल के पव
ू र् अनम
ु ोदन से, उनके िविनयमन और
िनयंत्रण के िलए िविनयम बना सकेगी और, िविश तया, वह भाषा और वह रीित िविहत
कर सकेगी, िजससे िजले के प्राथिमक िवद्यालय म प्राथिमक िशक्षा दी जाएगी ।
7. िजला और प्रादे िशक िनिधयां – (1) प्र येक वशासी िजले के िलए एक िजला
िनिध और प्र येक वशासी प्रदे श के िलए एक प्रादे िशक िनिध गिठत की जाएगी िजसम
क्रमशः उस िजले की िजला पिरष द्वारा और उस प्रदे श की प्रादे िशक पिरष द्वारा इस
संिवधान के उपबंध के अनसु ार, यथाि थित, उस िजले या प्रदे श के प्रशासन के अनक्र
ु म
म प्रा सभी धनरािशयां जमा की जाएंगी ।
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) पैरा 6 के थान पर प्रित थािपत ।
3. िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1974 (1974 का 56) की धारा 4 द्वारा "कांजी हाउस" के थान पर प्रित थािपत
।
4. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "यथाि थित, आसाम या मेघालय" श द का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 290
[(2) रा यपाल, यथाि थित, िजला िनिध या प्रादे िशक िनिध के प्रबंध के िलए और
1
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) उप-पैरा (2) के थान पर प्रित थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कितपय श द के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 291
(1) िकसी वशासी िजले के भीतर के िकसी क्षेत्र के संबंध म 6[रा य की सरकार] द्वारा
खिनज के पव ू क्षण या िन कषर्ण के प्रयोजन के िलए दी गई अनज्ञ
ु ि य या पट्ट से
प्र येक वषर् प्रोद्भत
ू होने वाले वािम व का ऐसा अंश, िजला पिरष को िदया जाएगा जो
उस 3[रा य की सरकार] और ऐसे िजले की िजला पिरष के बीच करार पाया जाए ।
(2) यिद िजला पिरष को िदए जाने वाले ऐसे वािम व के अंश के बारे म कोई
िववाद उ प न होता है तो वह रा यपाल को अवधारण के िलए िनदिशत िकया जाएगा
और रा यपाल द्वारा अपने िववेक के अनुसार अवधािरत रकम इस पैरा के उप-पैरा (1) के
अधीन िजला पिरष को संदेय रकम समझी जाएगी और रा यपाल का िविन य अंितम
होगा ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(i) द्वारा (16-9-2016 से) "और" श द का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 16(iii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतः थािपत ।
4. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-
4-1970 से) अंतः थािपत ।
5. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (2) के प ात ् िन निलिखत
उप-पैरा अंतः थािपत िकया जा सके, अथार्त ् :--
“(3) रा यपाल, आदे श द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन िजला पिरष को िदया जाने वाला
वािम व का अंश उस पिरष को, यथाि थित, उप-पैरा (1) के अधीन िकसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन
िकसी अवधारण की तारीख से एक वषर् की अविध के भीतर िकया जाएगा ।”।
6. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "आसाम सरकार" के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 292
1
[(3) रा यपाल, आदे श द्वारा, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन िजला
पिरष को िदया जाने वाला वािम व का अंश उस पिरष को, यथाि थित, उप-पैरा (1)
के अधीन िकसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन िकसी अवधारण की तारीख से एक वषर्
की अविध के भीतर िदया जाएगा ।]
2
10. जनजाितय से िभ न यिक्तय की साहूकारी और यापार के िनयंत्रण के िलए
िविनयम बनाने की िजला पिरष की शिक्त – (1) वशासी िजले की िजला पिरष उस
िजले म िनवासी जनजाितय से िभ न यिक्तय की उस िजले के भीतर साहूकारी या
यापार के िविनयमन और िनयंत्रण के िलए िविनयम बना सकेगी ।
(2) िविश तया और पूवग
र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, ऐसे
िविनयम–
(ख) साहूकार द्वारा प्रभािरत या वसूल िकए जाने वाले याज की अिधकतम
दर िविहत कर सकगे ;
(ग) साहूकार द्वारा लेखे रखे जाने का और िजला पिरषद द्वारा इस िनिम
िनयुक्त अिधकािरय द्वारा ऐसे लेखाओं के िनरीक्षण का उपबंध कर सकगे ;
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म संशोिधत िकया गया, यथा संशोिधत उप-पैरा (2) के प ात ् उप-पैरा (3) अंतः थािपत
िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया :--
(क) शीषर्क म से “जनजाितय से िभ न यिक्तय की” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ख) उप-पैरा (1) म से “जनजाितय से िभ न” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ग) उप-पैरा (2) म, खंड (घ) के थान पर, िन निलिखत खंड रखा जाएगा, अथार्त ् :--
“(घ) िविहत कर सकगे िक कोई यिक्त, जो िजले म िनवासी है िजला पिरष द्वारा इस िनिम दी गई
अनुज्ञि के अधीन कोई थोक या फुटकर यापार करे गा अ यथा नहीं ।”।
भारत का संिवधान 293
िजला पिरष की कुल सद य संख्या के कम से कम तीन चौथाई बहुमत द्वारा पािरत नहीं
कर िदए जाते ह :
परं तु यह और िक ऐसे िक हीं िविनयम के अधीन िकसी ऐसे साहूकार या यापारी
को जो ऐसे िविनयम के बनाए जाने के पहले से उस िजले के भीतर कारबार करता रहा
है , अनुज्ञि दे ने से इंकार करना सक्षम नहीं होगा ।
1
[(3) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी िविनयम रा यपाल के समक्ष तुर त
प्र तुत िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे दे ता है तब तक उनका
कोई प्रभाव नहीं होगा ।]
(4) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के पर तुक के
अधीन गिठत बोडोलड प्रादे िशक पिरष को लागू नहीं होगी ।
11. अनुसूची के अधीन बनाई गई िविधय , िनयम और िविनयम का प्रकाशन –
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष द्वारा इस अनस
ु च
ू ी के अधीन बनाई गई सभी िविधयां,
िनयम और िविनयम रा य के राजपत्र म तुर त प्रकािशत िकए जाएंगे और ऐसे प्रकाशन
पर िविध का बल रखगे ।
2-3
12. 4[असम रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और असम
रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना] –(1) इस संिवधान म िकसी बात के
होते हुए भी, –
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 आसाम रा य को
लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजसम उप-पैरा (3) के प ात ् िन निलिखत अंतः थािपत
िकया गया :--
"(4) इस पैरा की कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के पर तुक के अधीन गिठत बोडोलड प्रादे िशक पिरष
को लागू नहीं होगी ।"।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 आसाम रा य को
लागू करने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म, “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म ऐसे िवषय के प म
िविनिदर् िकया गया है ” श द , अंक और अक्षर के थान पर, “इस अनस
ु ूची के पैरा 3 या पैरा 3क या पैरा 3ख
म ऐसे िवषय के प म िविनिदर् िकया गया है ” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;"।
3. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 आसाम रा य को
लागू करने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म, “ इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म ऐसे िवषय के प म
िविनिदर् िकया गया है ” श द , अंक और अक्षर के थान पर, “इस अनुसूची के पैरा 3क या पैरा 3ख म ऐसे
िवषय के प म िविनिदर् िकया गया है ” श द, अंक और अक्षर रखे जाएंगे ;"।
4. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से)
शीषर्क के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 294
(2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िदया गया कोई िनदे श इस प्रकार िदया
जा सकेगा िक उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
3
[12क. मेघालय रा य म वशासी िजल और वशासी प्रदे श को संस के और
मेघालय रा य के िवधान-मंडल के अिधिनयम का लागू होना – इस संिवधान म िकसी
बात के होते हुए भी –
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "रा य का िवधान-मंडल" के थान पर प्रित थािपत ।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) अंतः थािपत ।
3. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 12क के थान पर पैरा 12क और पैरा 12ख प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 295
1. पैरा 12कक संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत िकया
गया । त प ात ् संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-
1988 से) पैरा 12कक और 12ख के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 296
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम" श द का लोप िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 14 आसाम रा य म
लागू होने के िलए िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया, अथार्त ् :--
"पैरा 14 के उप-पैरा (2) म, “रा यपाल की उससे संबंिधत िसफािरश के साथ” श द का लोप िकया जाएगा ।"।
भारत का संिवधान 298
संबंिधत िसफािरश के साथ, उस पर 1[रा य की सरकार] द्वारा की जाने के िलए प्र तािवत
कारर् वाई के संबंध म प ीकारक ज्ञापन सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखेगा ।
(3) रा यपाल रा य की सरकार के कायर् का अपने मंित्रय म आबंटन करते
समय अपने मंित्रय म से एक मंत्री को रा य के वशासी िजल और वशासी प्रदे श के
क याण का िवशेषतया भारसाधक बना सकेगा ।
2
15. िजला पिरषद और प्रादे िशक पिरषद के काय और संक प का िनप्रभाव या
िनलंिबत िकया जाना – (1) यिद रा यपाल का िकसी समय यह समाधान हो जाता है िक
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष के िकसी कायर् या संक प से भारत की सुरक्षा का
संकटाप न होना संभा य है 3[या लोक यव था पर प्रितकूल प्रभाव पड़ना संभा य है ] तो
वह ऐसे कायर् या संक प को िनप्रभाव या िनलंिबत कर सकेगा और ऐसी कारर् वाई (िजसके
अंतगर्त पिरष का िनलंबन और पिरष म िनिहत या उसके द्वारा प्रयोक्त य सभी या
िक हीं शिक्तय को अपने हाथ म ले लेना है ) कर सकेगा जो वह ऐसे कायर् को िकए जाने
या उसके चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संक प को प्रभावी िकए जाने का िनवारण करने
के िलए आव यक समझे ।
(2) रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िकया गया आदे श, उसके
िलए जो कारण ह उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष यथासंभवशीघ्र रखा
जाएगा और यिद वह आदे श, रा य के िवधान-मंडल द्वारा प्रितसं त नहीं कर िदया जाता है
तो वह उस तारीख से, िजसको वह इस प्रकार िकया गया था, बारह मास की अविध तक
प्रव ृ बना रहे गा :
पर तु यिद और िजतनी बार, ऐसे आदे श को प्रव ृ बनाए रखने का अनम ु ोदन
करने वाला संक प रा य के िवधान-मंडल द्वारा पािरत कर िदया जाता है तो और उतनी
बार वह आदे श, यिद रा यपाल द्वारा र नहीं कर िदया जाता है तो, उस तारीख से,
िजसको वह इस पैरा के अधीन अ यथा प्रवतर्न म नहीं रहता, बारह मास की और अविध
तक प्रव ृ बना रहे गा ।
4
16. िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष का िवघटन – 1
[(1) रा यपाल, इस
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "आसाम सरकार" के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 15 ित्रपुरा और िमजोरम
रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया है :--
"(क) आरं िभक भाग म, “रा य के िवधान-मंडल द्वारा” श द के थान पर, “रा यपाल द्वारा” श द रखे जाएंगे
;
(ख) पर तुक का लोप िकया जाएगा ।"।
3. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अिधिनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतः थािपत ।
4. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 16
भारत का संिवधान 299
अनुसूची के पैरा 14 के अधीन िनयुक्त आयोग की िसफािरश पर, लोक अिधसूचना द्वारा,
िकसी िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष का िवघटन कर सकेगा, और–
उपबंध के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह, यथाि थित, िजला पिरष या
प्रादे िशक पिरष म िनिहत या उसके द्वारा प्रयोक्त य सभी या कोई कृ य या शिक्तयां, लोक
अिधसूचना द्वारा, छह मास से अनिधक अविध के िलए अपने हाथ म ले सकेगा और यह
घोषणा कर सकेगा िक ऐसे कृ य या शिक्तयां उक्त अविध के दौरान ऐसे यिक्त या प्रािधकारी
द्वारा प्रयोक्त य ह गी िजसे वह इस िनिम िविनिदर् करे :
पर तु रा यपाल आरं िभक आदे श का प्रवतर्न, अितिरक्त आदे श या आदे श द्वारा,
एक बार म छह मास से अनिधक अविध के िलए बढ़ा सकेगा ।
(3) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन िकया गया प्र येक आदे श, उसके िलए जो
कारण ह उनके सिहत, रा य के िवधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और वह आदे श उस
तारीख से िजसको रा य िवधान-मंडल उस आदे श के िकए जाने के प ात ् प्रथम बार
बैठता है , तीस िदन की समाि पर प्रवतर्न म नहीं रहे गा यिद उस अविध की समाि से
पहले रा य िवधान-मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर िदया जाता है ।]
1
17. वशासी िजल म िनवार्चन-क्षेत्र के बनाने म ऐसे िजल से क्षेत्र का अपवजर्न –
रा यपाल, 2[असम या मेघालय 3[या ित्रपरु ा 4[या िमजोरम]] की िवधान सभा] के िनवार्चन
के प्रयोजन के िलए, आदे श द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा िक, 5[यथाि थित, असम या
मेघालय 3[या ित्रपुरा 4[या िमजोरम]] रा य म] िकसी वशासी िजले के भीतर का कोई क्षेत्र
ऐसे िकसी िजले के िलए िवधान सभा म आरिक्षत थान या थान को भरने के िलए
िकसी िनवार्चन-क्षेत्र का भाग नहीं होगा, िक तु िवधान सभा म इस प्रकार आरिक्षत न
िकए गए ऐसे थान या थान को भरने के िलए आदे श म िविनिदर् िनवार्चन-क्षेत्र का
भाग होगा ।
6
[18.* * * *]
7
19. संक्रमणकालीन उपबंध – (1) रा यपाल, इस संिवधान के प्रारं भ के प ात ्
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 17 आसाम रा य को
लागू करने म िन निलिखत पर तुक अंतः थािपत िकया गया, अथार्त ् :--
“पर तु इस पैरा की कोई बात बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजला को लागू नहीं होगी ।”।
2. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम की िवधान सभा" के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
4. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतः थािपत ।
5. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम की िवधान सभा" के थान पर अंतः थािपत ।
6. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 18 का लोप िकया गया ।
7. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 19
आसाम रा य को लागू करने म िन निलिखत प से संशोिधत िकया गया िजससे उप-पैरा (3) के प ात ्
िन निलिखत अंतः थािपत िकया गया अथार्त ् :--
भारत का संिवधान 301
यथासंभव शीघ्र, इस अनुसूची के अधीन रा य म प्र येक वशासी िजले के िलए िजला
पिरष के गठन के िलए कारर् वाई करे गा और जब तक िकसी वशासी िजले के िलए
िजला पिरष इस प्रकार गिठत नहीं की जाती है तब तक ऐसे िजले का प्रशासन
रा यपाल म िनिहत होगा और ऐसे िजले के भीतर के क्षेत्र के प्रशासन को इस अनुसूची
के पूवग
र् ामी उपबंध के थान पर िन निलिखत उपबंध लागू ह गे, अथार्त ् : –
(2) रा यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (क) के अधीन िदया गया
कोई िनदे श इस प्रकार िदया जा सकेगा िक उसका भूतलक्षी प्रभाव हो ।
(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी िविनयम
रा पित के समक्ष तुर त प्र तुत िकए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनुमित नहीं दे
दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा ।
"(4) इस अिधिनयम के प्रारं भ के प ात ्, यथाशीघ्र आसाम म बोडोलड प्रादे िशक क्षेत्र िजले के िलए एक
अंतिरम कायर्पालक पिरष , रा यपाल द्वारा बोडो आ दोलन के नेताओं म से, िजनके अंतगर्त समझौते के ज्ञापन के
ह ताक्षरकतार् भी ह, बनाई जाएगी और उसम उस क्षेत्र के गैर जनजातीय समुदाय को भी पयार् प्रितिनिध व िदया
जाएगा :
परं तु अ तिरम पिरष छह मास की अविध के िलए होगी िजसके दौरान पिरष का िनवार्चन कराने का
प्रयास िकया जाएगा ।
प ीकरण--इस उप-पैरा के प्रयोजन के िलए, “समझौते का ज्ञापन” पद से भारत सरकार, आसाम सरकार
और बोडो िलबरे शन टाइगसर् के बीच 10 फरवरी, 2003 को ह ताक्षिरत ज्ञापन अिभप्रेत है ।"।
भारत का संिवधान 302
1
[20. जनजाित क्षेत्र – (1) नीचे दी गई सारणी के भाग 1, भाग 2, 2[भाग 2क]
और भाग 3 म िविनिदर् क्षेत्र क्रमशः असम रा य, मेघालय रा य, 2[ित्रपुरा रा य] और
िमजोरम 3[रा य] के जनजाित क्षेत्र ह गे ।
पर तु इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 के उप-पैरा (1) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा 4,
पैरा 5, पैरा 6, पैरा 8 के उप-पैरा (2), उप-पैरा (3) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ)
और उप-पैरा (4) तथा पैरा 10 के उप-पैरा (2) के खंड (घ) के प्रयोजन के िलए,
िशलांग नगरपािलका म समािव क्षेत्र के िकसी भाग के बारे म यह नहीं समझा जाएगा
िक वह 5[खासी पहाड़ी िजले] के भीतर है ।
2
[(3) नीचे दी गई सारणी के भाग 2क म “ित्रपरु ा जनजाित क्षेत्र िजला” के प्रित
िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ित्रपुरा जनजाित क्षेत्र वशासी िजला पिरष
अिधिनयम, 1979 की पहली अनुसूची म िविनिदर् जनजाित क्षेत्र म समािव रा यक्षेत्र
के प्रित िनदश है ।]
सारणी
भाग 1
1. उ री कछार पहाड़ी िजला ।
1. पूव र क्षेत्र (पुनगर्ठन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-
1-1972 से) पैरा 20 और 20क के थान पर प्रित थािपत । पैरा 21क को त प ात ् भारत संघ रा यक्षेत्र
(संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) प्रित थािपत िकया गया था ।
2. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
3. िमजोरम रा य अिधिनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) "संघ रा यक्षेत्र" के थान
पर प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) प्रित थािपत ।
5. मेघालय सरकार की अिधसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तारीख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 303
1. आसाम सरकार द्वारा तारीख 14-10-1976 की अिधसूचना सं. टी.ए.डी./आर. 115/74/47 द्वारा "िमकीर पहाड़ी िजला"
के थान पर प्रित थािपत ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा अंतः थािपत ।
3. मेघालय सरकार की अिधसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तारीख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्रित थािपत ।
4. संिवधान (उनचासवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतः थािपत ।
5. संघ रा यक्षेत्र शासन (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) "िमजो
िजला" श द का लोप िकया गया ।
6. िमजोरम का राजपत्र 1972. तारीख 5 मई, 1972, िज द 1, भाग 2, प.ृ 17 म प्रकािशत िमजोरम िजला पिरष
(प्रकीणर् उपबंध) आदे श, 1972 द्वारा (29-4-1972 से) अंतः थािपत ।
7. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) क्रम सं0
2 और 3 तथा उनसे संबंिधत प्रिवि य के थान पर प्रित थािपत ।
.
8 संघ रा यक्षेत्र शासन (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) पैरा 20क
के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 304
(ख) िक हीं ऐसी िविधक कायर्वािहय म, िजनम िवद्यमान प्रादे िशक पिरष
एक पक्षकार है , िवद्यमान प्रादे िशक पिरष के थान पर त थानी नई िजला
पिरष का पक्षकार के प म रखा जाना ;
(घ) िवद्यमान प्रादे िशक पिरष द्वारा बनाई गई और िविहत तारीख से ठीक
पहले प्रव ृिक हीं िविधय का, ऐसे अनुकूलन और उपांतरण के, चाहे वे िनरसन
के प म ह या संशोधन के प म, अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस
भारत का संिवधान 306
-- रा यपाल, इस अनस ु च
ू ी के पैरा 1 के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3), पैरा 2 के उप-
पैरा (1) और उप-पैरा (7), पैरा 3 का उप-पैरा (3), पैरा 4 का उप-पैरा (4), पैरा 5, पैरा
6 का उप-पैरा (1), पैरा 7 का उप-पैरा (2), पैरा 9 का उप-पैरा (3), पैरा 14 का उप-पैरा
(1), पैरा 15 का उप-पैरा (1) और पैरा 16 का उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2) के अधीन
अपने कृ य के िनवर्हन म, मंित्र-पिरष से और यिद वह आव यक समझे तो संबंिधत
िजला पिरष या प्रादे िशक पिरष से परामशर् करने के प ात ्, ऐसी कारर् वाई करे गा, जो
वह विववेकानुसार आव यक समझे ।]
1. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) आसाम म
लागू होने के िलए पैरा 20खक अंतः थािपत िकया गया ।
2. संिवधान छठी अनुसूची (संशोधन) अिधिनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) ित्रपुरा
और िमजोरम रा य को लागू करने म, पैरा 20ख के प ात ् िन निलिखत पैरा अंतः थािपत िकया गया ।
भारत का संिवधान 307
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
308
भारत का संिवधान 309
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) "पहली अनूसूची
या भाग क या भाग ख म िविनिदर् " श द और अक्षर का लोप िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा प्रिवि 33 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 311
1. संिवधान (ब ीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1973 की धारा 4 द्वारा (1-7-1974 से) "िद ली िव िवद्यालय और" के
थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 312
64. भारत सरकार द्वारा पूणतर् ः या भागतः िव पोिषत और संस द्वारा, िविध
द्वारा, रा ीय मह व की घोिषत वैज्ञािनक या तकनीकी िशक्षा सं थाएं ।
65. संघ के अिभकरण और सं थाएं जो–
(क) विृ क, यावसाियक या तकनीकी प्रिशक्षण के िलए ह िजसके अंतगर्त
पुिलस अिधकािरय का प्रिशक्षण है ; या
(ख) िवशेष अ ययन या अनुसंधान की अिभविृ द्ध के िलए ह ; या
(ग) अपराध के अ वेषण या पता चलाने म वैज्ञािनक या तकनीकी
सहायता के िलए ह ।
66. उ चतर िशक्षा या अनुसंधान सं थाओं म तथा वैज्ञािनक और तकनीकी
सं थाओं म मानक का सम वय और अवधारण ।
67. 1[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के
[घोिषत] प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख तथा परु ात वीय थल और
1
अवशेष ।
68. भारतीय सवक्षण, भारतीय भू-वैज्ञािनक, वन पित िवज्ञान, प्राणी िवज्ञान और
मानव शा सवक्षण ; मौसम िवज्ञान संगठन ।
69. जनगणना ।
70. संघ लोक सेवाएं ; अिखल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग ।
71. संघ की पशन, अथार्त ् भारत सरकार द्वारा या भारत की संिचत िनिध म से
संदेय पशन ।
72. संस के िलए, रा य के िवधान-मंडल के िलए तथा रा पित और उपरा पित
के पद के िलए िनवार्चन; िनवार्चन आयोग ।
73. संस सद य के, रा य सभा के सभापित और उपसभापित के तथा लोक
सभा के अ यक्ष और उपा यक्ष के वेतन और भ े ।
74. संस के प्र येक सदन की और प्र येक सदन के सद य और सिमितय की
शिक्तयां, िवशेषािधकार और उ मुिक्तयां; संस की सिमितय या संस द्वारा िनयुक्त
आयोग के समक्ष सा य दे ने या द तावेज पेश करने के िलए यिक्तय को हािजर कराना
।
75. रा पित और रा यपाल की उपलि धयां, भ े, िवशेषािधकार और अनप ु ि थित
छुट्टी के संबंध म अिधकार ; संघ के मंित्रय के वेतन और भ े ; िनयंत्रक-
महालेखापरीक्षक के वेतन, भ े और अनुपि थित छुट्टी के संबंध म अिधकार और सेवा की
अ य शत ।
1. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा "संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत" के थान पर (1-
11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 313
1. संिवधान (पंद्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1963 की धारा 12 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 314
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रिवि 92 का
लोप िकया गया ।
2. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) अंतः थािपत ।
3. संिवधान (िछयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1982 की धारा 5 द्वारा (2-2-1983 से) अंतः थािपत ।
4. प्रिवि92ग संिवधान (अठासीवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (जो प्रव ृ नहीं हुई) अंतः थािपत की
गई थी उसका संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से)
लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 315
सचू ी 2 – रा य सच
ू ी
1. लोक यव था (िकं तु इसके अंतगर्त िसिवल शिक्त की सहायता के िलए
1
[नौसेना, सेना या वायु सेना या संघ के िकसी अ य सश बल का या संघ के िनयंत्रण
के अधीन िकसी अ य बल का या उसकी िकसी टुकड़ी या यूिनट का प्रयोग] नहीं है ) ।
2
[2. सच
ू ी 1 की प्रिवि 2क के उपबंध के अधीन रहते हुए पिु लस (िजसके
अंतगर्त रे ल और ग्राम पुिलस है )।]
3. 3*** उ च यायालय के अिधकारी और सेवक; भाटक और राज व यायालय
की प्रिक्रया ; उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय म ली जाने वाली फीस ।
4. कारागार, सध
ु ारालय, बौ टर् ल सं थाएं और उसी प्रकार की अ य सं थाएं और
उनम िन द्ध यिक्त ; कारागार और अ य सं थाओं के उपयोग के िलए अ य रा य से
ठहराव ।
5. थानीय शासन, अथार्त ् नगर िनगम , सुधार यास , िजला बोड , खनन-ब ती
प्रािधकािरय और थानीय वशासन या ग्राम प्रशासन के प्रयोजन के िलए अ य
थानीय प्रािधकािरय का गठन और शिक्तयां ।
6. लोक वा य और व छता ; अ पताल और औषधालय ।
7. भारत से बाहर के थान की तीथर्यात्राओं से िभ न तीथर्यात्राएं ।
8. मादक िलकर, अथार्त ् मादक िलकर का उ पादन, िविनमार्ण, क जा, पिरवहन,
क्रय और िवक्रय ।
9. िनःशक्त और िनयोजन के िलए अयोग्य यिक्तय की सहायता ।
10. शव गाड़ना और किब्र तान; शव-दाह और मशान ।
4
11* * * * *
12. रा य द्वारा िनयंित्रत या िव पोिषत पु तकालय, संग्रहालय या वैसी ही अ य
सं थाएं; 5[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के 5[घोिषत]
िकए गए प्राचीन और ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख से िभ न प्राचीन और
ऐितहािसक सं मारक और अिभलेख ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा कितपय श द के थान पर (3-1-1977 से)
प्रित थािपत ।
2. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा प्रिवि 2 के थान पर (3-1-1977 से)
प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
4. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 11 का लोप िकया
गया ।
5. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संस द्वारा िविध द्वारा घोिषत"
प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 316
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 19 और 20 का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 28 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 317
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रिवि 29 का लोप िकया गया
।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्रिवि 36 का लोप िकया गया
।
भारत का संिवधान 318
45. भ-ू राज व िजसके अंतगर्त राज व का िनधार्रण और संग्रहण, भ-ू अिभलेख रखना,
राज व के प्रयोजन के िलए और अिधकार के अिभलेख के िलए सवक्षण और राज व का
अ य संक्रामण है ।
46. कृिष आय पर कर ।
47. कृिष भूिम के उ रािधकार के संबंध म शु क ।
48. कृिष भूिम के संबंध म संपदा-शु क ।
49. भूिम और भवन पर कर ।
50. संस द्वारा, िविध द्वारा, खिनज िवकास के संबंध म अिधरोिपत िनबर् धन के
अधीन रहते हुए, खिनज संबंधी अिधकार पर कर ।
51. रा य म िविनिमर्त या उ पािदत िन निलिखत माल पर उ पाद-शु क और
भारत म अ यत्र िविनिमर्त या उ पािदत वैसे ही माल पर उसी दर या िन नतर दर से
प्रितशु क–
(क) मानवीय उपभोग के िलए ऐ कोहाली िलकर ;
(ख) अफीम, इंिडयन हप और अ य वापक ओषिधयां तथा वापक
पदाथर्,
िक तु िजसके अंतगर्त ऐसी ओषिधयां और प्रसाधन िनिमर्ितयां नहीं ह िजनम ऐ कोहाल
या इस प्रिवि के उपपैरा (ख) का कोई पदाथर् अंतिवर् है ।
1
[52. * * * * *]
53. िवद्युत के उपभोग या िवक्रय पर कर ।
2
[54. अपिर कृत पैट्रोिलयम, उ च गित डीजल, मोटर ि पिरट (सामा य प से
पेट्रोल के प म ज्ञात), प्राकृितक गैस, िवमानन टबार्इन ईंधन और मानवीय उपभोग के
िलए ए कोहाली िलकर के िवक्रय पर कर िकं तु इसके अंतगर्त ऐसे माल का
अ तरराि यक यापार या वािण य के अनक्र ु म म िवक्रय या अ तररा ीय यापार या
वािण य के दौरान िवक्रय नहीं आता है ।]
3
[55. * * * * *]
56. सड़क या अ तदशीय जलमाग द्वारा ले जाए जाने वाले माल और याित्रय पर
कर ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्रिवि 52 का लोप
िकया गया ।
2. संिवधान (छठा संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) प्रित थािपत तथा पुनः संिवधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-2-1977 से) अंतः थािपत और संिवधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 319
िकसी नगरपािलका या िकसी प्रादे िशक पिरष या िकसी िजला पिरष द्वारा उद्गहीत
ृ और
संगह
ृ ीत िकया जाए ।]
63. टांप-शु क की दर के संबंध म सच ू ी 1 के उपबंध म िविनिदर् द तावेज
से िभ न द तावेज के संबंध म टांप-शु क की दर ।
64. इस सच
ू ी के िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध
।
65. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सच
ू ी के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ।
66. इस सचू ी के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।
सच
ू ी 3 – समवतीर् सच
ू ी
1. दं ड िविध िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ पर
ू ी 1 या सच
भारतीय दं ड संिहता के अंतगर्त आते ह, िक तु इसके अंतगर्त सच ू ी 2 म
िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध और िसिवल
शिक्त की सहायता के िलए नौसेना, सेना या वायुसेना अथवा संघ के िकसी अ य सश
बल का प्रयोग नहीं है ।
2. दं ड प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसे सभी िवषय ह जो इस संिवधान के प्रारं भ पर
दं ड प्रिक्रया संिहता के अंतगर्त ह ।
3. िकसी रा य की सुरक्षा, लोक यव था बनाए रखने या समुदाय के िलए
आव यक प्रदाय और सेवाओं को बनाए रखने संबध ं ी कारण से िनवारक िनरोध, इस
प्रकार िनरोध म रखे गए यिक्त ।
4. बंिदय , अिभयुक्त यिक्तय और इस सूची की प्रिवि 3 म िविनिदर् कारण से
िनवारक िनरोध म रखे गए यिक्तय का एक रा य से दस ू रे रा य को हटाया जाना ।
1. संिवधान (एक सौ एकवां संशोधन) अिधिनयम, 2016 की धारा 17(ख)(iv) द्वारा (16-9-2016 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 320
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 321
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रित थािपत ।
2. संिवधान (तीसरा संशोधन) अिधिनयम, 1954 की धारा 2 द्वारा (22-2-1955 से) प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 322
1
[33क. बाट और माप, िजनके अंतगर्त मानक का िनयत िकया जाना नहीं
है ।]
34. कीमत िनयंत्रण ।
35. यंत्र नोिदत यान िजसके अंतगर्त वे िसद्धा त ह िजनके अनुसार ऐसे यान पर
कर उद्गहीत
ृ िकया जाना है ।
36. कारखाने ।
37. बायलर ।
38. िवद्युत ।
39. समाचारपत्र, पु तक और मुद्रणालय ।
40. 2[संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन] रा ीय मह व के
2
[घोिषत] पुरात वीय थल और अवशेष से िभ न परु ात वीय थल और अवशेष ।
41. ऐसी संपि की (िजसके अंतगर्त कृिष भूिम है ) अिभरक्षा, प्रबंध और ययन
जो िविध द्वारा िन क्रांत संपि घोिषत की जाए ।
3
[42. संपि का अजर्न और अिधग्रहण ।]
43. िकसी रा य म, उस रा य से बाहर उद्भत ू कर से संबंिधत दाव और अ य
लोक मांग की वसलू ी िजनके अंतगर्त भ-ू राज व की बकाया और ऐसी बकाया के प म
वसूल की जा सकने वाली रािशयां ह ।
44. याियक टांप के द्वारा संगह
ृ ीत शु क या फीस से िभ न टांप-शु क,
िक तु इसके अंतगर्त टांप-शु क की दर नहीं ह ।
45. सूची 2 या सूची 3 म िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय़ के प्रयोजन के
िलए जांच और आंकड़े ।
46. उ चतम यायालय से िभ न सभी यायालय की इस सूची के िवषय म से
िकसी िवषय के संबंध म अिधकािरता और शिक्तयां ।
ू ी के िवषय म से िकसी िवषय के संबंध म फीस, िक तु इसके
47. इस सच
अंतगर्त िकसी यायालय म ली जाने वाली फीस नहीं है ।
1. संिवधान (बयालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा "संस द्वारा बनाई गई िविध द्वारा या उसके अधीन
घोिषत" के थान पर (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
3. संिवधान (सातवां संशोधन) अिधिनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्रित थािपत ।
आठवीं अनुसच
ू ी
[अनु छे द 344(1) और अनु छे द 351]
भाषाएं
1. असिमया ।
2. बंगला ।
1
[3. बोडो ।
4. डोगरी ।]
2
[5.] गज
ु राती ।
3
[6.] िह दी ।
3
[7.] क नड ।
3
[8.] क मीरी ।
4 3
[ [9.] क कणी ।]
1
[10. मैिथली ।]
5
[11.] मलयालम ।
4 6
[ [12.] मिणपुरी ।]
6
[13.] मराठी ।
4 6
[ [14.] नेपाली ।]
6
[15.] 7[ओिडया]
6
[16.] पंजाबी ।
6
[17.] सं कृत ।
1. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अ तः थािपत ।
2. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 3 को प्रिवि 5 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
3. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 4 से 7 को प्रिवि 6 से
प्रिवि 9 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (इकह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (31-8-1992 से) अ तः थािपत ।
5. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 8 को प्रिवि 11 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
6. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 9 से प्रिवि 14 को प्रिवि 12 से प्रिवि
17 के प म पुनःसंख्यांिकत (7-1-2004 से) िकया गया ।
7. संिवधान (िछयानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा “उिड़या” के थान पर (23-9-2011 से)
प्रित थािपत।
323
भारत का संिवधान 324
1
[18. संथाली ।]
2 3
[ [19.] िसंधी ।]
4
[20.] तिमल ।
5
[21.] तेलग
ु ू ।
5
[22.] उदर् ू ।
1. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अ तः थािपत ।
2. संिवधान (इक्कीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1967 की धारा 2 द्वारा (10-4-1967 से) जोड़ा गया ।
3. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 15 को प्रिवि 19 के प
म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
4. संिवधान (बानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्रिवि 16 से प्रिवि 18 को
प्रिवि 20 से प्रिवि 22 के प म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
[नवीं अनस
1
ु च
ू ी
[अनु छे द 31ख]
1. िबहार भूिम सुधार अिधिनयम, 1950 (1950 का िबहार अिधिनयम 30) ।
2. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम अिधिनयम, 1948 (1948 का मुंबई अिधिनयम
67)।
3. मुंबई मािलकी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई अिधिनयम
61)।
4. मुंबई तालुकदारी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई
अिधिनयम 62)।
5. पंच महल मेहवासी भूधिृ त उ सादन अिधिनयम, 1949 (1949 का मुंबई
अिधिनयम 63)।
6. मुंबई खेती उ सादन अिधिनयम, 1950 (1950 का मुंबई अिधिनयम 6)।
7. मुंबई परगना और कुलकणीर् वतन उ सादन अिधिनयम, 1950 (1950 का
मुंबई अिधिनयम 60)।
8. म य प्रदे श सांपि क अिधकार (संपदा, महल, अ य संक्रांत भूिम) उ सादन
अिधिनयम, 1950 (म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 1 सन ् 1951)।
9. मद्रास संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) अिधिनयम, 1948
(1948 का मद्रास अिधिनयम 26)।
10. मद्रास संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) संशोधन अिधिनयम,
1950 (1950 का मद्रास अिधिनयम 1)।
11. 1950 ई0 का उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश और भूिम- यव था अिधिनयम
(उ र प्रदे श अिधिनयम संख्या 1, 1951)।
12. है दराबाद (जागीर उ सादन) िविनयम, 1358फ (1358 फसली का सं0 69)।
13. है दराबाद जागीर (पिरवतर्न) िविनयम, 1359फ (1359 फसली का सं0 25)।
2
[14. िबहार िव थािपत यिक्त पुनवार्स (भूिम अजर्न) अिधिनयम, 1950 (1950
का िबहार अिधिनयम 38) ।
15. संयुक्त प्रांत के शरणािथर्य को बसाने के िलए भूिम प्रा करने का ऐक्ट, 1948
ई0 (संयुक्त प्रांतीय ऐक्ट संख्या 26, 1948) ।
16. िव थािपत यिक्त पुनवार्स (भूिम अजर्न) अिधिनयम, 1948 (1948 का
अिधिनयम 60) ।
17. बीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1950 (1950 का अिधिनयम 47) की धारा 42
द्वारा य़था अंतः थािपत बीमा अिधिनयम, 1938 (1938 का अिधिनयम 4) की धारा
52क से धारा 52छ ।
18. रे ल कंपनी (आपात उपबंध) अिधिनयम, 1951 (1951 का अिधिनयम 51) ।
1. संिवधान (पहला संशोधन) अिधिनयम, 1951 की धारा 14 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (चौथा संशोधन) अिधिनयम, 1955 की धारा 5 द्वारा (27-4-1955 से) जोड़ा गया ।
325
भारत का संिवधान 326
1. संिवधान (सत्रहवां संशोधन) अिधिनयम, 1964 की धारा 3 द्वारा (20-6-1964 से) जोड़ा गया ।
भारत का संिवधान 327
52. उड़ीसा भूिम सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का उड़ीसा अिधिनयम 16) ।
53. उड़ीसा िवलीन रा यक्षेत्र (ग्राम-पद उ सादन) अिधिनयम, 1963 (1963 का
उड़ीसा अिधिनयम 10) ।
54. पंजाब भू-धिृ त सुरक्षा अिधिनयम, 1953 (1953 का पंजाब अिधिनयम
10) ।
55. राज थान अिभधिृ त अिधिनयम, 1955 (1955 का राज थान अिधिनयम
3) ।
56. राज थान जमींदारी और िब वेदारी उ सादन अिधिनयम, 1959 (1959 का
राज थान अिधिनयम 8) ।
57. कुमायंू तथा उ राखंड जमींदारी िवनाश तथा भिू म- यव था अिधिनयम,
1960 (उ र प्रदे श अिधिनयम 17, 1960) ।
58. उ र प्रदे श अिधकतम जोत-सीमा आरोपण अिधिनयम, 1960 (उ र प्रदे श
अिधिनयम संख्या 1, 1961)।
59. पि मी बंगाल संपदा अजर्न अिधिनयम, 1953 (1954 का पि मी बंगाल
अिधिनयम 1) ।
60. पि मी बंगाल भूिम सुधार अिधिनयम, 1955 (1956 का पि मी बंगाल
अिधिनयम 10) ।
61. िद ली भिू म सध ु ार अिधिनयम, 1954 (1954 का िद ली अिधिनयम 8) ।
62. िद ली भिू म जोत (अिधकतम सीमा) अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 24) ।
63. मिणपुर भू-राज व और भूिम सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 33) ।
64. ित्रपरु ा भ-ू राज व और भिू म सुधार अिधिनयम, 1960 (1960 का के द्रीय
अिधिनयम 43) ।
1
[65. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल अिधिनयम
35) ।
66. केरल भिू म सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (1971 का केरल अिधिनयम
25) ।]
2
[67. आंध्र प्रदे श भूिम सुधार (अिधकतम कृिष जोत सीमा) अिधिनयम, 1973
(1973 का आंध्र प्रदे श अिधिनयम 1) ।
68. िबहार भिू म सध ु ार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भिू म अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1973 का िबहार अिधिनयम 1) ।
1. संिवधान (उनतीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (9-6-1972 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (च तीस संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (7-9-1974 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 329
69. िबहार भूिम सुधार (अिधकतम सीमा िनधार्रण और अिधशेष भूिम अजर्न)
(संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का िबहार अिधिनयम 9) ।
70. िबहार भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का िबहार
अिधिनयम सं0 5) ।
71. गुजरात अिधकतम कृिष भूिम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1974
का गुजरात अिधिनयम 2) ।
72. हिरयाणा भूिम जोत की अिधकतम सीमा अिधिनयम, 1972 (1972 का
हिरयाणा अिधिनयम 26) ।
73. िहमाचल प्रदे श अिधकतम भूिम जोत सीमा अिधिनयम, 1972 (1973 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 19) ।
74. केरल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का केरल
अिधिनयम 17) ।
75. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (म य
प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 12 सन ् 1974) ।
76. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (िद्वतीय संशोधन) अिधिनयम, 1972
(म य प्रदे श अिधिनयम क्रमांक 13 सन ् 1974) ।
77. मैसूर भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1974 का कनार्टक
अिधिनयम 1) ।
78. पंजाब भूिम सुधार अिधिनयम, 1972 (1973 का पंजाब अिधिनयम 10) ।
79. राज थान कृिष जोत पर अिधकतम सीमा अिधरोपण अिधिनयम, 1973
(1973 का राज थान अिधिनयम 11)।
80. गड ु लरू ज मम ् संपदा (उ सादन और रै यतवाड़ी म संपिरवतर्न) अिधिनयम,
1969 (1969 का तिमलनाड़ु अिधिनयम 24)।
81. पि मी बंगाल भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 12) ।
82. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अिधिनयम, 1964 (1964 का पि मी
बंगाल अिधिनयम 22) ।
83. पि मी बंगाल संपदा अजर्न (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 33) ।
84. मंब
ु ई अिभधिृ त और कृिष भिू म (गजु रात संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1973
का गुजरात अिधिनयम 5) ।
85. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (1974 का उड़ीसा
अिधिनयम 9) ।
86. ित्रपरु ा भ-ू राज व और भिू म सधु ार (दसू रा संशोधन) अिधिनयम, 1974
(1974 का ित्रपुरा अिधिनयम 7) ।]
भारत का संिवधान 330
1-2
[87. * * * * *]
88. उद्योग (िवकास और िविनयमन) अिधिनयम, 1951 (1951 का के द्रीय
अिधिनयम 65) ।
89. थावर संपि अिधग्रहण और अजर्न अिधिनयम, 1952 (1952 का के द्रीय
अिधिनयम 30) ।
90. खान और खिनज (िविनयमन और िवकास) अिधिनयम, 1957 (1957 का
के द्रीय अिधिनयम 67) ।
91. एकािधकार तथा अवरोधक यापािरक यवहार अिधिनयम, 1969 (1969 का
1. संिवधान (उनतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (10-8-1975 से) अंतः थािपत ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 87 का लोप िकया
गया ।
प्रित पधार् अिधिनयम, 2002 (2003 का 12) की धारा 66 द्वारा (1-9-2009 से) िनरिसत ।
3. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 92 का लोप िकया
गया ।
िवदे शी मुद्रा प्रबंध अिधिनयम, 1999 (1999 का 42) की धारा 49 द्वारा (1-6-2000 से) िनरिसत ।
भारत का संिवधान 331
1. संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (27-5-1978 से) प्रिवि 125 से प्रिवि 188 तक
अंतः थािपत ।
* अब मोटर यान अिधिनयम, 1988 (1988 का 59) के सुसंगत उपबंध दे ख ।
2. संिवधान (चवालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रिवि 130 का लोप िकया
गया ।
भारत का संिवधान 333
131. लेवी चीनी समान कीमत िनिध अिधिनयम, 1976 (1976 का के द्रीय
अिधिनयम 31) ।
132. नगर-भूिम (अिधकतम सीमा और िविनयमन) अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 33) ।
133. संघ लेखा िवभागीकरण (कािमर्क अंतरण) अिधिनयम, 1976 (1976 का
के द्रीय अिधिनयम 59) ।
134. असम अिधकतम भूिम जोत सीमा िनयतन अिधिनयम, 1956 (1957 का
असम अिधिनयम 1) ।
135. मुंबई अिभधिृ त और कृिष भूिम (िवदभर् क्षेत्र) अिधिनयम, 1958 (1958 का
मुंबई अिधिनयम 99) ।
136. गुजरात प्राइवेट वन (अजर्न) अिधिनयम, 1972 (1973 का गुजरात
अिधिनयम 14) ।
137. हिरयाणा भूिम-जोत की अिधकतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1976
(1976 का हिरयाणा अिधिनयम 17) ।
138. िहमाचल प्रदे श अिभधिृ त और भूिम सुधार अिधिनयम, 1972 (1974 का
िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 8) ।
139. िहमाचल प्रदे श ग्राम शािमलाती भूिम िनधान और उपयोजन
अिधिनयम, 1974 (1974 का िहमाचल प्रदे श अिधिनयम 18) ।
140. कनार्टक भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन और प्रकीणर् उपबंध) अिधिनयम, 1974
(1974 का कनार्टक अिधिनयम 31) ।
141. कनार्टक भूिम सुधार (दस ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का कनार्टक
अिधिनयम 27) ।
142. केरल बेदखली िनवारण अिधिनयम, 1966 (1966 का केरल
अिधिनयम 12) ।
143. ित पुवारम ् संदाय (उ सादन) अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल
अिधिनयम 19) ।
144. ी पादम ् भूिम िवमुिक्त अिधिनयम, 1969 (1969 का केरल अिधिनयम
20) ।
145. ीपणडारवका भूिम (िनधान और िवमुिक्त) अिधिनयम, 1971 (1971 का
केरल अिधिनयम 20) ।
146. केरल प्राइवेट वन (िनधान और समनुदेशन) अिधिनयम, 1971 (1971 का
केरल अिधिनयम 26) ।
147. केरल कृिष कमर्कार अिधिनयम, 1974 (1974 का केरल अिधिनयम 18) ।
148. केरल काजू कारखाना (अजर्न) अिधिनयम, 1974 (1974 का केरल
अिधिनयम 29) ।
भारत का संिवधान 334
167. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1971 (1971 का तिमलनाडु अिधिनयम 41) ।
168. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 10) ।
ू रा संशोधन
169. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 20) ।
170. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) तीसरा संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 37) ।
171. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) चौथा संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1972 का तिमलनाडु अिधिनयम 39) ।
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) छठा संशोधन
172. तिमलनाडु भिू म सध
अिधिनयम, 1972 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 7) ।
173. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) पांचवां संशोधन
अिधिनयम, 1972 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 10) ।
174. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 15) ।
175. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) तीसरा संशोधन
अिधिनयम, 1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 30) ।
176. तिमलनाडु भिू म सध
ु ार (अिधकतम भिू म सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1974 (1974 का तिमलनाडु अिधिनयम 32) ।
177. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1975 (1975 का तिमलनाडु अिधिनयम 11) ।
178. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1975 (1975 का तिमलनाडु अिधिनयम 21) ।
179. उ र प्रदे श भूिम-िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1971 (उ र प्रदे श अिधिनयम
संख्या 21,1971) तथा उ र प्रदे श भिू म-िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1974 (उ र प्रदे श
अिधिनयम संख्या 34,1974) द्वारा 1950 ई0 का उ र प्रदे श जमींदारी िवनाश और भूिम-
यव था अिधिनयम (उ र प्रदे श अिधिनयम संख्या 1,1951) म िकए गए संशोधन ।
180. उ र प्रदे श अिधकतम जोत-सीमा आरोपण (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (उ र
प्रदे श अिधिनयम संख्या 20,1976) ।
181. पि मी बंगाल भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1972 (1972 का
पि मी बंगाल अिधिनयम 28) ।
182. पि मी बंगाल अ य संक्रात भूिम का प्र यावतर्न अिधिनयम, 1973 (1973
का पि मी बंगाल अिधिनयम 23) ।
भारत का संिवधान 336
1. संिवधान (सतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 189 से प्रिवि 202 तक (26-8-
1984 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 337
1. संिवधान (िछयासठवां संशोधन) अिधिनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा प्रिवि 203 से 257 तक (7-6-1990 से)
अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 338
230. म य प्रदे श कृिषक जोत उ चतम सीमा (संशोधन) अिधिनयम, 1989 (1989
का म य प्रदे श अिधिनयम 8)।
231. महारा भू-राज व संिहता, 1966 (1966 का महारा अिधिनयम 41) धारा
36, धारा 36क और धारा 36ख ।
232. महारा भ-ू राज व संिहता और महारा अनस
ु िू चत जनजाित भिू म प्र यावतर्न
(दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1977 का महारा अिधिनयम 30) ।
233. महारा कितपय भूिम म खान और खिनज के िवद्यमान सांपि क अिधकार
का उ सादन अिधिनयम, 1985 (1985 का महारा अिधिनयम 16) ।
234. उड़ीसा अनस
ु ूिचत क्षेत्र (अनुसूिचत जनजाितय द्वारा) थावर संपि अंतरण
िविनयम, 1956 (1956 का उड़ीसा िविनयम 2) ।
235. उड़ीसा भिू म सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1975 (1976 का उड़ीसा
अिधिनयम 29) ।
236. उड़ीसा भूिम सुधार (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अिधिनयम
30) ।
237. उड़ीसा भूिम सुधार (दस
ू रा संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा
अिधिनयम 44) ।
238. राज थान उपिनवेशन (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का राज थान
अिधिनयम 12) ।
239. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1984 (1984 का राज थान
अिधिनयम 13) ।
240. राज थान अिभधिृ त (संशोधन) अिधिनयम, 1987 (1987 का राज थान
अिधिनयम 21) ।
241. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1979 (1980 का तिमलनाडु अिधिनयम 8) ।
242. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1980 (1980 का तिमलनाडु अिधिनयम 21) ।
243. तिमलनाडु भिू म सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) संशोधन अिधिनयम,
1981 (1981 का तिमलनाडु अिधिनयम 59) ।
244. तिमलनाडु भूिम सुधार (अिधकतम भूिम सीमा िनयतन) दस
ू रा संशोधन
अिधिनयम, 1983 (1984 का तिमलनाडु अिधिनयम 2) ।
245. उ र प्रदे श भूिम िविध (संशोधन) अिधिनयम, 1982 (1982 का उ र प्रदे श
अिधिनयम 20) ।
भारत का संिवधान 340
1. संिवधान (िछह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1994 की धारा 2 द्वारा (31-8-1994 से) अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 341
1. संिवधान (अठहतरवां संशोधन) अिधिनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (30-8-1995 से) प्रिवि 258 से प्रिवि 284
तक अंतः थािपत ।
भारत का संिवधान 342
1. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा "पैरा 3, 4, और 5" के थान प्रित थािपत ।
343
भारत का संिवधान 344
1. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) पैरा 3 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 345
7. यायालय की अिधकािरता का वजर्न – इस संिवधान म िकसी बात के होते
हुए भी, िकसी यायालय को इस अनुसूची के अधीन सदन के िकसी सद य की िनरहर् ता
से संबंिधत िकसी िवषय के बारे म कोई अिधकािरता नहीं होगी ।
8. िनयम – (1) इस पैरा के उप-पैरा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, सदन
का सभापित या अ यक्ष, इस अनुसूची के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए िनयम
बना सकेगा तथा िविश तया और पूवग र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले
िबना, ऐसे िनयम म िन निलिखत के िलए उपबंध िकया जा सकेगा, अथार्त ् : –
(क) सदन के िविभ न सद य िजन राजनीितक दल के सद य ह, उनके
बारे म रिज टर या अ य अिभलेख रखना ;
(ख) ऐसा प्रितवेदन जो सदन के िकसी सद य के संबंध म िवधान-दल का
नेता, उस सद य की बाबत पैरा 2 के उप-पैरा (1) के खंड (ख) म िनिदर् प्रकृित
की माफी के संबंध म दे गा, वह समय िजसके भीतर और वह प्रािधकारी िजसको
ऐसा प्रितवेदन िदया जाएगा ;
(ग) ऐसे प्रितवेदन िज ह कोई राजनीितक दल सदन के िकसी सद य को
ऐसे राजनीितक दल म प्रिव करने के संबंध म दे गा और सदन का ऐसा
अिधकारी िजसको ऐसे प्रितवेदन िदए जाएंगे ; और
(घ) पैरा 6 के उप-पैरा (1) म िनिदर् िकसी प्र का िविन य करने की
प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसी जांच की प्रिक्रया है , जो ऐसे प्र का िविन य करने
के प्रयोजन के िलए की जाए ।
(2) सदन के सभापित या अ यक्ष द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन बनाए
गए िनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस िदन की अविध
के िलए रखे जाएंगे । यह अविध एक सत्र म अथवा दो या अिधक आनुक्रिमक सत्र म
परू ी हो सकेगी । वे िनयम तीस िदन की उक्त अविध की समाि पर प्रभावी ह गे जब
तक िक उनका सदन द्वारा पिरवतर्न सिहत या उनके िबना पहले ही अनुमोदन या
अननुमोदन नहीं कर िदया जाता है । यिद वे िनयम इस प्रकार अनुमोिदत कर िदए जाते
ह तो वे, यथाि थित, ऐसे प म िजसम वे रखे गए थे या ऐसे पिरवितर्त प म ही
प्रभावी ह गे । यिद िनयम इस प्रकार अननुमोिदत कर िदए जाते ह तो वे िन प्रभाव हो
जाएंगे ।
(3) सदन का सभापित या अ यक्ष, यथाि थित, अनु छे द 105 या अनु छे द 194
के उपबंध पर और िकसी ऐसी अ य शिक्त पर जो उसे इस संिवधान के अधीन प्रा है ,
प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन बनाए गए
िनयम के िकसी यिक्त द्वारा जानबूझकर िकए गए िकसी उ लंघन के बारे म उसी रीित
से कारर् वाई की जाए िजस रीित से सदन के िवशेषािधकार के भंग के बारे म की जाती है
।]
पैरा 7 को िकहोतो होलोहन बनाम जेिच हु और अ य ए.आई.आर. 1993, एस.सी. 412 म बहुमत की राय के अनुसार
अनु छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अनुसमथर्न के अभाव म अिविधमा य घोिषत िकया गया ।
1[दसवीं अनुसूची
[अनु छे द 102(2) और अनु छे द 191(2)]
दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर्ता के बारे म उपबंध
1. िनवर्चन – इस अनुसूची म, जब तक िक संदभर् से अ यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “सदन” से, संस का कोई सदन या िकसी रा य की, यथाि थित,
िवधान सभा या, िवधान-मंडल का कोई सदन अिभप्रेत है ;
(ख) सदन के िकसी ऐसे सद य के संबंध म जो, यथाि थित, पैरा 2 या
2
*** पैरा 4 के उपबंध के अनुसार िकसी राजनीितक दल का सद य है , “िवधान-
दल” से, उस सदन के ऐसे सभी सद य का समूह अिभप्रेत है जो उक्त उपबंध के
अनुसार त समय उस राजनीितक दल के सद य ह ;
(ग) सदन के िकसी सद य के संबंध म, “मल ू राजनीितक दल” से ऐसा
राजनीितक दल अिभप्रेत है िजसका वह पैरा 2 के उप-पैरा (1) के प्रयोजन के िलए
सद य है ;
(घ) “पैरा” से इस अनस
ु च
ू ी का पैरा अिभप्रेत है ।
2. दल पिरवतर्न के आधार पर िनरहर् ता – (1) 3[पैरा 4 और पैरा 5] के उपबंध
के अधीन रहते हुए, सदन का कोई सद य, जो िकसी राजनीितक दल का सद य है ,
सदन का सद य होने के िलए उस दशा म िनरिहर्त होगा िजसम–
(क) उसने ऐसे राजनीितक दल की अपनी सद यता वे छा से छोड़ दी है ;
या
(ख) वह ऐसे राजनीितक दल द्वारा िजसका वह सद य है अथवा उसके
द्वारा इस िनिम प्रािधकृत िकसी यिक्त या प्रािधकारी द्वारा िदए गए िकसी िनदे श
के िव द्ध, ऐसे राजनीितक दल, यिक्त या प्रािधकारी की पूवर् अनज्ञ
ु ा के िबना, ऐसे
सदन म मतदान करता है या मतदान करने से िवरत रहता है और ऐसे मतदान
या मतदान करने से िवरत रहने को ऐसे राजनीितक दल, यिक्त या प्रािधकारी ने
ऐसे मतदान या मतदान करने से िवरत रहने की तारीख से पंद्रह िदन के भीतर
माफ नहीं िकया है ।
प ीकरण – इस उप-पैरा के प्रयोजन के िलए, –
(क) सदन के िकसी िनवार्िचत सद य के बारे म यह समझा जाएगा िक
वह ऐसे राजनीितक दल का, यिद कोई हो, सद य है िजसने उसे ऐसे सद य के
प म िनवार्चन के िलए अ यथीर् के प म खड़ा िकया था;
(ख) सदन के िकसी नामिनदिशत सद य के बारे म, –
1. संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया ।
2. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) कितपय श द का लोप िकया
गया ।
3. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा "पैरा 3, 4, और 5" के थान प्रित थािपत ।
343
भारत का संिवधान 344
1. संिवधान (इक्यानवेवां संशोधन) अिधिनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) पैरा 3 का लोप िकया गया ।
भारत का संिवधान 345
7. यायालय की अिधकािरता का वजर्न – इस संिवधान म िकसी बात के होते
हुए भी, िकसी यायालय को इस अनुसूची के अधीन सदन के िकसी सद य की िनरहर् ता
से संबंिधत िकसी िवषय के बारे म कोई अिधकािरता नहीं होगी ।
8. िनयम – (1) इस पैरा के उप-पैरा (2) के उपबंध के अधीन रहते हुए, सदन
का सभापित या अ यक्ष, इस अनुसूची के उपबंध को कायार्ि वत करने के िलए िनयम
बना सकेगा तथा िविश तया और पूवग र् ामी शिक्त की यापकता पर प्रितकूल प्रभाव डाले
िबना, ऐसे िनयम म िन निलिखत के िलए उपबंध िकया जा सकेगा, अथार्त ् : –
(क) सदन के िविभ न सद य िजन राजनीितक दल के सद य ह, उनके
बारे म रिज टर या अ य अिभलेख रखना ;
(ख) ऐसा प्रितवेदन जो सदन के िकसी सद य के संबंध म िवधान-दल का
नेता, उस सद य की बाबत पैरा 2 के उप-पैरा (1) के खंड (ख) म िनिदर् प्रकृित
की माफी के संबंध म दे गा, वह समय िजसके भीतर और वह प्रािधकारी िजसको
ऐसा प्रितवेदन िदया जाएगा ;
(ग) ऐसे प्रितवेदन िज ह कोई राजनीितक दल सदन के िकसी सद य को
ऐसे राजनीितक दल म प्रिव करने के संबंध म दे गा और सदन का ऐसा
अिधकारी िजसको ऐसे प्रितवेदन िदए जाएंगे ; और
(घ) पैरा 6 के उप-पैरा (1) म िनिदर् िकसी प्र का िविन य करने की
प्रिक्रया िजसके अंतगर्त ऐसी जांच की प्रिक्रया है , जो ऐसे प्र का िविन य करने
के प्रयोजन के िलए की जाए ।
(2) सदन के सभापित या अ यक्ष द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन बनाए
गए िनयम, बनाए जाने के प ात ् यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस िदन की अविध
के िलए रखे जाएंगे । यह अविध एक सत्र म अथवा दो या अिधक आनुक्रिमक सत्र म
परू ी हो सकेगी । वे िनयम तीस िदन की उक्त अविध की समाि पर प्रभावी ह गे जब
तक िक उनका सदन द्वारा पिरवतर्न सिहत या उनके िबना पहले ही अनुमोदन या
अननुमोदन नहीं कर िदया जाता है । यिद वे िनयम इस प्रकार अनुमोिदत कर िदए जाते
ह तो वे, यथाि थित, ऐसे प म िजसम वे रखे गए थे या ऐसे पिरवितर्त प म ही
प्रभावी ह गे । यिद िनयम इस प्रकार अननुमोिदत कर िदए जाते ह तो वे िन प्रभाव हो
जाएंगे ।
(3) सदन का सभापित या अ यक्ष, यथाि थित, अनु छे द 105 या अनु छे द 194
के उपबंध पर और िकसी ऐसी अ य शिक्त पर जो उसे इस संिवधान के अधीन प्रा है ,
प्रितकूल प्रभाव डाले िबना, यह िनदे श दे सकेगा िक इस पैरा के अधीन बनाए गए
िनयम के िकसी यिक्त द्वारा जानबूझकर िकए गए िकसी उ लंघन के बारे म उसी रीित
से कारर् वाई की जाए िजस रीित से सदन के िवशेषािधकार के भंग के बारे म की जाती है
।]
पैरा 7 को िकहोतो होलोहन बनाम जेिच हु और अ य ए.आई.आर. 1993, एस.सी. 412 म बहुमत की राय के अनुसार
अनु छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अनुसमथर्न के अभाव म अिविधमा य घोिषत िकया गया ।
1
[ग्यारहवीं अनुसच
ू ी
(अनु छे द 243छ)
1. कृिष, िजसके अंतगर्त कृिष-िव तार है ।
2. भूिम िवकास, भूिम सुधार का कायार् वयन, चकबंदी और भूिम संरक्षण ।
3. लघु िसंचाई, जल प्रबंध और जलिवभाजक क्षेत्र का िवकास ।
4. पशुपालन, डेरी उद्योग और कुक्कुट-पालन ।
5. म य उद्योग ।
6. सामािजक वािनकी और फामर् वािनकी ।
7. लघु वन उपज ।
8. लघु उद्योग, िजनके अंतगर्त खाद्य प्रसं करण उद्योग भी ह ।
9. खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग ।
10. ग्रामीण आवासन ।
11. पेय जल ।
12. ईंधन और चारा ।
13. सड़क, पुिलया, पुल, फेरी, जलमागर् और अ य संचार साधन ।
14. ग्रामीण िवद्युतीकरण, िजसके अंतगर्त िवद्युत का िवतरण है ।
15. अपारं पिरक ऊजार् ोत ।
16. गरीबी उ मूलन कायर्क्रम ।
17. िशक्षा, िजसके अंतगर्त प्राथिमक और मा यिमक िवद्यालय भी है ।
18. तकनीकी प्रिशक्षण और यावसाियक िशक्षा ।
19. प्रौढ़ और अनौपचािरक िशक्षा ।
20. पु तकालय ।
21. सां कृितक िक्रयाकलाप ।
22. बाजार और मेले ।
23. वा य और व छता, िजनके अंतगर्त अ पताल, प्राथिमक वा य के द्र
और औषधालय भी है ।
24. पिरवार क याण ।
25. मिहला और बाल िवकास ।
26. समाज क याण, िजसके अंतगर्त िवकलांग और मानिसक प से मंद
यिक्तय का क याण भी है ।
27. दब ु ल
र् वग का और िविश तया, अनुसूिचत जाितय और अनुसूिचत
जनजाितय का क याण ।
28. सावर्जिनक िवतरण प्रणाली ।
29. सामुदाियक आि तय का अनुरक्षण ।]
1. संिवधान (ितह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (24-4-1993 से) जोड़ा गया ।
347
1
[बारहवीं अनुसच
ू ी
(अनु छे द 243ब)
1. नगरीय योजना िजसके अंतगर्त नगर योजना भी है ।
2. भिू म उपयोग का िविनयमन और भवन का िनमार्ण ।
3. आिथर्क और सामािजक िवकास योजना ।
4. सङक और पल
ु ।
5. घरे लू, औद्योिगक और वािणि यक प्रयोजन के िलए जल प्रदाय ।
6. लोक वा य, व छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध ।
7. अिग्नशमन सेवाएं ।
8. नगरीय वािनकी, पयार्वरण का संरक्षण और पािर थितकी आयाम की अिभविृ द्ध
।
9. समाज के दबु ल
र् वग के, िजनके अंतगर्त िवकलांग और मानिसक प से मंद
यिक्त भी ह, िहत की रक्षा ।
10. गंदी-ब ती सुधार और प्रो नयन ।
11. नगरीय िनधर्नता उ मूलन ।
12. नगरीय सख
ु -सिु वधाओं और सिु वधाओं, जैसे पाकर्, उद्यान, खेल के मैदान की
यव था ।
13. सां कृितक, शैक्षिणक और स दयर्परक आयाम की अिभविृ द्ध ।
14. शव गाड़ना और किब्र तान; शवदाह और मशान और िवद्यत
ु शवदाह गह
ृ ।
15. कांजी हाउस ; पशुओं के प्रित क्रूरता का िनवारण ।
16. ज म-मरण सांिख्यकी, िजसके अंतगर्त ज म और म ृ यु रिज ट्रीकरण भी
है ।
17. सावर्जिनक सख
ु -सुिवधाएं, िजनके अंतगर्त सड़क पर प्रकाश, पािकर्ंग थल,
बस टाप और जन सुिवधाएं भी ह ।
18. वधशालाओं और चमर्शोधनशालाओं का िविनयमन ।]
1. संिवधान (चौह रवां संशोधन) अिधिनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) जोड़ा गया ।
348
पिरिश 1
1
संिवधान (ज मू-क मीर को लागू होना) आदे श, 1954
सं.आ. 48
रा पित, संिवधान के अनु छे द 370 के खंड (1) द्वारा प्रद शिक्तय का प्रयोग
करते हुए, ज मू-क मीर रा य की सरकार की सहमित से, िन निलिखत आदे श करते
ह :–
1. (1) इस आदे श का संिक्ष नाम संिवधान (ज मू-क मीर को लागू होना)
आदे श, 1954 है ।
(2) यह 14 मई, 1954 को प्रव ृ होगा, और ऐसा होने पर संिवधान (ज मू-
क मीर को लागू होना) आदे श, 1950 को अिधक्रांत कर दे गा ।
2. 2[संिवधान के अनु छे द 1 तथा अनु छे द 370 के अितिरक्त उसके 20 जन
ू ,
1964 को यथा प्रव ृ और संिवधान (उ नीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1966, संिवधान
(इक्कीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1967, संिवधान (तेईसवां संशोधन) अिधिनयम, 1969
की धारा 5, संिवधान (चौबीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1971, संिवधान (प चीसवां
संशोधन) अिधिनयम, 1971 की धारा 2, संिवधान (छ बीसवां संशोधन) अिधिनयम,
1971, संिवधान (तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972, संिवधान (इकतीसवां संशोधन)
अिधिनयम, 1973 की धारा 2, संिवधान (ततीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1974 की धारा
2, संिवधान (अड़तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 की धारा 2, 5, 6 और 7, संिवधान
(उनतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975, संिवधान (चालीसवां संशोधन) अिधिनयम,
1976, संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985 की धारा 2, 3 और 6 और
संिवधान (इकसठवां संशोधन) अिधिनयम, 1988 द्वारा यथासंशोिधत, जो उपबंध ज म-ू
क मीर रा य के संबंध म लागू ह गे और वे अपवाद और उपांतरण िजनके अधीन वे इस
प्रकार लागू ह गे, िन निलिखत ह गे :–]
(1) उ िे शका ।
1. िविध मंत्रालय की अिधसूचना सं0 का0िन0आ0 1610, तारीख 14 मई, 1954 भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग
2, धारा 3, प0
ृ 821 म प्रकािशत ।
2. प्रारं भ म आने वाले श द संिवधान आदे श 56, संिवधान आदे श 74, संिवधान आदे श 76, संिवधान आदे श 79,
संिवधान आदे श 89, संिवधान आदे श 91, संिवधान आदे श 94, संिवधान आदे श 98, संिवधान आदे श 104,
संिवधान आदे श 105, संिवधान आदे श 108,संिवधान आदे श 136 और त प ात ् संिवधान आदे श 141 द्वारा
संशोिधत होकर उपरोक्त प म आए ।
349
भारत का संिवधान 350
(2) भाग 1
अनु छे द 3 म िन निलिखत और परं तक
ु जोड़ा जाएगा, अथार्त ् :–
“परं तु यह और िक ज मू-क मीर रा य के क्षेत्र को बढ़ाने या
घटाने या उस रा य के नाम या उसकी सीमा म पिरवतर्न करने का
उपबंध करने वाला कोई िवधेयक उस रा य के िवधान-मंडल की सहमित
के िबना संस म परु ः थािपत नहीं िकया जाएगा ।” ।
(3) भाग 2
(क) यह भाग ज मू-क मीर रा य के संबंध म 26 जनवरी, 1950 से
लागू समझा जाएगा ।
(ख) अनु छे द 7 म िन निलिखत और परं तक
ु जोड़ा जाएगा, अथार्त ् :–
“परं तु यह और िक इस अनु छे द की कोई बात ज मू-क मीर रा य
के ऐसे थायी िनवासी को लागू नहीं होगी जो ऐसे रा यक्षेत्र को जो इस
समय पािक तान के अंतगर्त है , प्र जन करने के प ात ् उस रा य के क्षेत्र
को ऐसी अनज्ञ ु ा के अधीन लौट आया है जो उस रा य म पन ु वार्स के िलए
या थायी प से लौटने के िलए उस रा य के िवधान-मंडल द्वारा बनाई
गई िकसी िविध के प्रािधकार द्वारा या उसके अधीन दी गई है , तथा ऐसा
प्र येक यिक्त भारत का नागिरक समझा जाएगा ।”।
(4) भाग 3
(क) अनु छे द 13 म, संिवधान के प्रारं भ के प्रित िनदश का यह अथर्
लगाया जाएगा िक वे इस आदे श के प्रारं भ के प्रित िनदश ह ।
1
(ख)* * * * *
(ग) अनु छे द 16 के खंड (3) म, रा य के प्रित िनदश का यह अथर्
लगाया जाएगा िक उसके अंतगर्त ज मू-क मीर रा य के प्रित िनदश नहीं है ।
(घ) अनु छे द 19 म, इस आदे श के प्रारं भ से 2[3[प चीस] वषर्] की अविध
के िलए,–
(i) खंड (3) और (4) म, “अिधकार के प्रयोग पर” श द के प ात ्,
“रा य की सुरक्षा या” श द अंतः थािपत िकए जाएंगे ;
1. संिवधान आदे श 124 द्वारा (4-2-1985 से) खंड (ख) का लोप िकया गया ।
2. संिवधान आदे श 69 द्वारा “दस वषर्” के थान पर प्रित थािपत ।
3. संिवधान आदे श 97 द्वारा “बीस” के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 351
1. संिवधान आदे श 98 द्वारा खंड (क) और खंड (ख) के थान पर प्रित थािपत ।
भारत का संिवधान 354
1
[(ग) अनु छे द 133 म खंड (1) के प ात ् िन निलिखत खंड अंतः थािपत
िकया जाएगा, अथार्त ् : –
‘(1क) संिवधान (तीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1972 की धारा 3 के
उपबंध ज मू-क मीर रा य के संबंध म इस उपांतरण के अधीन लागू ह गे
िक उसम “इस अिधिनयम”, “इस अिधिनयम के प्रारं भ”, “यह अिधिनयम
पािरत नहीं िकया गया हो” और “इस अिधिनयम द्वारा यथा संशोिधत उस
खंड के उपबंध की” के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे
क्रमशः “संिवधान (ज मू-क मीर को लागू होना) दस ू रा संशोधन आदे श,
1974”, “उक्त आदे श के प्रारं भ”, “उक्त आदे श पािरत नहीं िकया गया हो”
और “उक्त खंड के उपबंध , जैसे िक वे उक्त आदे श के प्रारं भ के प ात ् ह ”
के प्रित िनदश ह’ ।]
2
[(घ)] अनु छे द 134 के खंड (2) म “संस ” श द के प ात ् “रा य के
िवधान-मंडल के अनुरोध पर” श द अंतः थािपत िकए जाएंगे ।
2
[(ङ)] अनु छे द 135 3*** और 139 का लोप िकया जाएगा ।
4
(च)* * * *
4
(छ)* * * *
5
[(5क) भाग 6
6
[(क) अनु छे द 153 से 217 तक, अनु छे द 219, अनु छे द 221,
अनु छे द 223, 224, 224क और 225 तथा अनु छे द 227 से 237 तक का लोप
िकया जाएगा ।]
(ख) अनु छे द 220 म, संिवधान के प्रारं भ के प्रित िनदश का यह अथर्
लगाया जाएगा िक वे संिवधान (ज मू-क मीर को लागू होना) संशोधन आदे श, 1960
के प्रित िनदश ह ।
7
[(ग) अनु छे द 222 म, खंड (1) के प ात ् िन निलिखत नया खंड
अंतः थािपत िकया जाएगा, अथार्त ् :–
“(1क) प्र येक ऐसा अंतरण जो ज मू-क मीर के उ च यायालय से
अथवा उस उ च यायालय को हो, रा यपाल के परामशर् के प ात ् िकया
जाएगा ।”।]
(6) भाग 11
1
[(क) अनु छे द 246 के खंड (1) म आने वाले “खंड (2) और खंड (3)”
श द, को क और अंक के थान पर “खंड (2)” श द, को क और अंक रखे
जाएंगे और खंड (2) म आने वाले “खंड (3) म िकसी बात के होते हुए भी”
श द, को क और अंक का तथा संपूणर् खंड (3) और खंड (4) का लोप िकया
जाएगा ।]
[ [(ख) अनु छे द 248 के
2 3
थान पर िन निलिखत अनु छे द रखा जाएगा,
अथार्त ् :–
“248. अविश िवधायी शिक्तयां – संस को,–
[(क) िविध द्वारा थािपत सरकार को आतंिकत करने या
4
1
[ प ीकरण–इस अनु छे द म, “आतंकवादी कायर्” से बम , डायनामाइट या
अ य िव फोटक पदाथ या वलनशील पदाथ या अग् यायुध या अ य प्राणहर
आयध ु या िवष का या अपायकर गैस या अ य रसायन या पिरसंकटमय प्रकृित
के िक हीं अ य पदाथ का (चाहे वे जैव ह या अ य) उपयोग करके िकया गया
कोई कायर् या बात अिभप्रेत है ।]
(9) भाग 14
1
[अनु छे द 312 म, “रा य के” श द के प ात ्, “(िजनके अंतगर्त ज मू-
क मीर रा य भी है )” को क और श द अंतः थािपत िकए जाएंगे ।]
2
[(10) भाग 15
(क) अनु छे द 324 के खंड (1) म, ज मू-क मीर के िवधान-मंडल के
दोन सदन म से िकसी सदन के िनवार्चन के बारे म संिवधान के प्रित िनदश
का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ज मू-क मीर के संिवधान के प्रित िनदश
है ।
3
[(ख) अनु छे द 325, 326, 327 और 329 म रा य के प्रित िनदश का
यह अथर् लगाया जाएगा िक उसके अंतगर्त ज मू-क मीर रा य के प्रित िनदश
नहीं है ।
(ग) अनु छे द 328 का लोप िकया जाएगा ।]
(घ) अनु छे द 329 म, “या अनु छे द 328” श द और अंक का लोप िकया
जाएगा । ]]
4
[(ङ) अनु छे द 329क म, खंड (4) और (5) का लोप िकया जाएगा ।]
(11) भाग 16
5
* * * * *
[(क)] अनु छे द 331, 332, 333,
6 7
[336 और 337] का लोप िकया
जाएगा ।
[(ख)] अनु छे द 334 और 335 म रा य या रा य के प्रित िनदश का
6
(12) भाग 17
से संबंिधत ह ।
(13) भाग 18
(17) भाग 22
अनु छे द 394 और 395 का लोप िकया जाएगा ।
(18) पहली अनुसूची
(19) दस
ू री अनुसूची
1
* * * * *
(20) तीसरी अनुसूची
प्र प 5, 6, 7 और 8 का लोप िकया जाएगा ।
(21) चौथी अनुसूची
2
[(22) सातवीं अनुसूची
(क) संघ-सूची म,–
(i) प्रिवि 3 के थान पर “3. छाविनय का प्रशासन” प्रिवि रखी
जाएगी ;
3
[(ii) प्रिवि 8, 9, 4[और 34], प्रिवि 5**** 79 और प्रिवि 81
म, “अंतररा यीय प्र जन” श द का लोप िकया जाएगा ;
6
* * * * *
7
[(iii) प्रिवि 72 म,–
(क) िकसी ऐसी िनवार्चन यािचका म िजसके द्वारा उस रा य
के िवधान-मंडल के दोन सदन म से िकसी सदन के िलए
िनवार्चन प्र गत है , ज म-ू क मीर रा य के उ च यायालय द्वारा
िकए गए िकसी िविन य या आदे श के िव द्ध उ चतम यायालय
को अपील के संबंध म रा य के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया
जाएगा िक उसके अंतगर्त ज मू-क मीर रा य के प्रित िनदश ह ;
(ख) अ य मामल के संबंध म रा य के प्रित िनदश का
यह अथर् लगाया जाएगा िक उसके अंतगर्त उस रा य के प्रित
िनदश नहीं है ; 8[और]
1
[(iv) प्रिवि 97 के थान पर, िन निलिखत प्रिवि रखी जाएगी,
अथार्त ् :–
“2[97. (क) िविध द्वारा थािपत सरकार को आतंिकत करने
या लोग या लोग के िकसी अनुभाग म आतंक उ प न करने या
लोग के िकसी अनुभाग को पथ ृ क् करने या लोग के िविभ न
अनभ ु ाग के बीच समरसता पर प्रितकूल प्रभाव डालने वाले
आतंकवादी काय को अंतवर्िलत करने वाले,
(ख) भारत की प्रभुता तथा प्रादे िशक अखंडता को
अनअंगीकृत, प्र गत या िवि छ न करने, अथवा भारत रा यक्षेत्र के
िकसी भाग का अ यपर्ण कराने अथवा भारत रा यक्षेत्र के भाग को
संघ से िवलग कराने अथवा भारत के रा ीय वज, भारतीय रा गान
और इस संिवधान का अपमान करने वाले िक्रयाकलाप को रोकना,
समद्र
ु या वायु द्वारा िवदे श यात्रा, अंतदशीय िवमान यात्रा और डाक व तुओं
पर िजनके अंतगर्त मनीआडर्र, फोनतार और तार ह, कर ।
प ीकरण – इस प्रिवि म, “आतंकवादी कायर्” का वही अथर् है जो
अनु छे द 248 के प ीकरण म है ।”]]
(ख) रा य सूची का लोप िकया जाएगा ।
3
[(ग) समवतीर् सूची म,–
4
[(i) प्रिवि 1 के थान पर िन निलिखत प्रिवि रखी जाएगी,
अथार्त ् :–
“1. दं ड िविध, (िजसके अंतगर्त सूची 1 म िविनिदर् िवषय़
म से िकसी िवषय से संबंिधत िविधय के िव द्ध अपराध और
िसिवल शिक्त की सहायता के िलए नौ सेना, वायु सेना या संघ के
िक हीं अ य सश बल के प्रयोग नहीं है ) जहां तक ऐसी दं ड
िविध इस अनस ु च
ू ी म िविनिदर् िवषय म से िकसी िवषय म से
िकसी िवषय से संबंिधत िविध के िव द्ध अपराध से संबंिधत है
।”;
[ [(iक) प्रिवि 2 के थान पर िन निलिखत प्रिवि रखी जाएगी,
5 6
अथार्त ् :–
“2. दं ड प्रिक्रया (िजसके अंतगर्त अपराध को रोकना तथा
1
[(iv) प्रिवि 45 म, “सूची 2 या सूची 3” के थान पर, “इस
सूची” श द रखे जाएंगे ।]
(23) आठवीं अनुसच ू ी
2
[(24) नवीं अनुसच ू ी
3
[(क) प्रिवि 64 के प ात ्, िन निलिखत प्रिवि यां जोड़ी जाएंगी, अथार्त ्
:–
[64क.] ज म-ू क मीर रा य कुठ अिधिनयम (संवत ् 1978 का
4
सं0 1) ;
[64ख.] ज मू-क मीर अिभधिृ त अिधिनयम (संवत ् 1980 का
4
सं0 2) ;
4
[64ग.] ज मू-क मीर भूिम अ यसंक्रामण अिधिनयम (संवत ् 1995
का सं0 5);
5
* * * *
[64घ.] ज मू-क मीर बह
6
ृ भू-संपदा उ सादन अिधिनयम (संवत ्
2007 का सं0 17) ;
7
[64ङ.] जागीर और भ-ू राज व के अ य समनुदेशन , आिद के
पुनग्रर्हण के बारे म 1951 का आदे श सं. 6-एच, तारीख 10 माचर्, 1951 ;
[64च.] ज मू-क मीर बंधक संपि
8
की वापसी अिधिनयम, 1976
(1976 का अिधिनयम 14) ;
64छ. ज मू-क मीर ऋणी राहत अिधिनयम, 1976 (1976 का
अिधिनयम 15) ।
9
[(ख) संिवधान (उनतालीसवां संशोधन) अिधिनयम, 1975 द्वारा अंतः थािपत
प्रिवि 87 से 124 तक को क्रमशः प्रिवि 65 से 102 के प म पनु ःसंख्यांिकत िकया
जाएगा ।]
1
[(ग) प्रिवि 125 से 188 तक को क्रमशः प्रिवि 103 से 166 के प म
पुनःसंख्यांिकत िकया जाएगा ।]
2
[(25) दसवीं अनुसूची
(क) “अनु छे द 102(2) और अनु छे द 191(2)” श द , को क और अंक के
थान पर, “अनु छे द 102(2)” को क, श द और अंक रखे जाएंगे ;
(ख) पैरा 1 के खंड (क) म, “या िकसी रा य की, यथाि थित, िवधान सभा या
िवधान-मंडल का कोई सदन” श द का लोप िकया जाएगा ;
(ग) पैरा 2 म, –
(i) उपपैरा (1) म, प ीकरण के खंड (ख) के उपखंड (ii) म,
“यथाि थित, अनु छे द 99 या अनु छे द 188” श द और अंक के थान
पर, “अनु छे द 99” श द और अंक रखे जाएंगे ;
(ii) उपपैरा (3) म, “यथाि थित, अनु छे द 99 या अनु छे द 188”
श द और अंक के थान पर, “अनु छे द 99” श द और अंक रखे
जाएंगे ;
(iii) उपपैरा (4) म, संिवधान (बावनवां संशोधन) अिधिनयम, 1985
के प्रारं भ के प्रित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह संिवधान
(ज म-ू क मीर को लागू होना) संशोधन आदे श, 1989 के प्रारं भ के प्रित
िनदश है ;
(घ) पैरा 5 म, “अथवा िकसी रा य की िवधान पिरष के सभापित या उप
सभापित अथवा िकसी रा य की िवधान सभा के अ यक्ष या उपा यक्ष” श द का लोप
िकया जाएगा ;
(ङ) पैरा 6 के उपपैरा (2) म, “यथाि थित, अनु छे द 122 के अथर् म संस की
कायर्वािहयां ह या अनु छे द 212 के अथर् म रा य के िवधान-मंडल की कायर्वािहयां ह”
श द और अंक के थान पर “अनु छे द 122 के अथर् म संस की कायर्वािहयां ह” श द
और अंक रखे जाएंगे;
(च) पैरा 8 के उपपैरा (3) म, “यथाि थित, अनु छे द 105 या अनु छे द 194”
श द और अंक के थान पर, “अनु छे द 105” श द और अंक रखे जाएंगे ।
392
भारत का संिवधान 393
तारीख अिधसूिचत की जानी है ।
394
पिरिश 5
संिवधान (एक सौवां संशोधन) अिधिनयम, 2015
[28 मई, 2015]
395
भारत का संिवधान 396
पहली अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(क), धारा 2(ख) और धारा 3 दे िखए]
भाग 1
भाग 2
भाग 3
दस
ू री अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(ख), धारा 2(घ) और धारा 3 दे िखए]
भाग 1
भाग 2
भाग 3
तीसरी अनुसच
ू ी
[धारा 2(ग) दे िखए]
अनु छे द 2 :
ए क्लेव
संयुक्त प से स यािपत और डी.जी.एल.आर.एंड एस., बांग्लादे श तथा
डी.एल.आर.एंड एस., पि मी बंगाल (भारत) के तर पर अप्रैल, 1997 म
ह ताक्षर िकए गए भू-कर ए क्लेव मानिचत्र के अनुसार बांग्लादे श म के 111
भारतीय ए क्लेव और भारत म के 51 बांग्लादे श ए क्लेव का बांग्लादे श म जाने
वाले अितिरक्त क्षेत्र के िलए प्रितकर का दावा िकए िबना आदान-प्रदान िकया
जाएगा ।
अनु छे द 3 :
(I) 1974 के करार के अनु छे द 2 को िन नानुसार कायार्ि वत िकया
जाएगा :
भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच यह करार हुआ है िक
प्रितकूल क जे म धािरत रा यक्षेत्र के िलए, जैसा िक संयुक्त सवक्षण के
मा यम से अवधािरत िकया गया था और अपने-अपने प्रितकूल क जा भू-
क्षेत्र सूचक मानिचत्र (एपीएल मानिचत्र) म, िजसे िदस बर, 2010 और
अग त, 2011 के बीच दोन दे श के भ-ू अिभलेख और सवक्षण िवभाग
द्वारा अंितम प िदया गया है , पूणत र् या िचित्रत िकया गया था, िजनका
पूणत र् या वणर्न नीचे खंड (क) से खंड (घ) म िकया गया है , एक िनयत
सीमा के प म सीमा रे खा खींची जाएगी ।
सुसंगत सीमा पट्टी से मानिचत्र को मुिद्रत िकया जाएगा और उन
पर पूणार्िधकािरय द्वारा ह ताक्षर िकए जाएंगे और रा यक्षेत्रीय अिधकािरता
का अ तरण ए क्लेव के आदान-प्रदान के साथ-साथ पूणर् िकया जाएगा ।
ऊपर विणर्त सच ू क मानिचत्र म यथा िचित्रत सीमा का अ यंकन
िन नानुसार होगा :
(क) पि मी बंगाल सेक्टर
(i) बौसमारी-मधुगरी (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 154/5-एस से 157/1-एस
से होते हुए मथबंगा नदी के पुराने बहाव मागर् के म य
तक, जैसा िक 1962 के चकबंदी मानिचत्र म िचित्रत है
एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून, 2011 म
संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और सहमित हुई थी
।
(ii) अंधारकोटा (कुि तया-नािडया) क्षेत्र
िवद्यमान सीमा तंभ सं0 152/5-एस से सीमा तंभ
सं0 153/1-एस से होते हुए िवद्यमान मथबंगा नदी के
िकनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसािक जून,
2011 म संयुक्त प से सवक्षण िकया गया था और
सहमित हुई थी ।
भारत का संिवधान 400
(कक) नलजूरी-I
(कख) नलजूरी-III
1 2 3 4 5 6
क. वतंत्र िछट वाले ए क्लेव
1. गराटी 75 पोचागर ह दीबाड़ी 58.23
2. गराटी 76 पोचागर ह दीबाड़ी 0.79
3. गराटी 77 पोचागर ह दीबाड़ी 18
4. गराटी 78 पोचागर ह दीबाड़ी 958.66
5. गराटी 79 पोचागर ह दीबाड़ी 1.74
6. गराटी 80 पोचागर ह दीबाड़ी 73.75
7. िबंगीमारी भाग-I 73 पोचागर ह दीबाड़ी 6.07
भारत का संिवधान 404
1 2 3 4 5 6
8. नजीरगंज 41 बोडा ह दीबाड़ी 58.32
9. नजीरगंज 42 बोडा ह दीबाड़ी 434.29
10. नजीरगंज 44 बोडा ह दीबाड़ी 53.47
11. नजीरगंज 45 बोडा ह दीबाड़ी 1.07
12. नजीरगंज 46 बोडा ह दीबाड़ी 17.95
13. नजीरगंज 47 बोडा ह दीबाड़ी 3.89
14. नजीरगंज 48 बोडा ह दीबाड़ी 73.27
15. नजीरगंज 49 बोडा ह दीबाड़ी 49.05
16. नजीरगंज 50 बोडा ह दीबाड़ी 5.05
17. नजीरगंज 51 बोडा ह दीबाड़ी 0.77
18. नजीरगंज 52 बोडा ह दीबाड़ी 1.04
19. नजीरगंज 53 बोडा ह दीबाड़ी 1.02
20. नजीरगंज 54 बोडा ह दीबाड़ी 3.87
21. नजीरगंज 55 बोडा ह दीबाड़ी 12.18
22. नजीरगंज 56 बोडा ह दीबाड़ी 54.04
23. नजीरगंज 57 बोडा ह दीबाड़ी 8.27
24. नजीरगंज 58 बोडा ह दीबाड़ी 14.22
25. नजीरगंज 60 बोडा ह दीबाड़ी 0.52
26. पुटीमारी 59 बोडा ह दीबाड़ी 122.8
27. दै खाता छट 38 बोडा ह दीबाड़ी 499.21
28. स बरी 37 बोडा ह दीबाड़ी 1188.93
29. काजल िदघी 36 बोडा ह दीबाड़ी 771.44
30. नटकटोका 32 बोडा ह दीबाड़ी 162.26
31. नटकटोका 33 बोडा ह दीबाड़ी 0.26
32. बेउलाडांगा छट 35 बोडा ह दीबाड़ी 0.83
33. बलापारा इगराबार 3 दे बीगंज ह दीबाड़ी 1752.44
34. बला खनिकखरीजा 30 िडमला ह दीबाड़ी 7.71
िसतलदहा
भारत का संिवधान 405
1 2 3 4 5 6
35. बला खनिकखरीजा 29 िडमला ह दीबाड़ी 36.83
िसतलदहा
36. बराखनगीर 28 िडमला ह दीबाड़ी 30.53
37. नगरजीकोबरी 31 िडमला ह दीबाड़ी 33.41
38. कुचलीबारी 26 पटग्राम मेकलीगंज 5.78
39. कुचलीबारी 27 पटग्राम मेकलीगंज 2.04
40 बरा कुचलीबारी थाना पटग्राम मेकलीगंज 4.35
मेकलीगंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
41. जमालोहा- 6 पटग्राम मेकलीगंज 5.24
बेलापुखारी
42. उपनचौकी 115/2 पटग्राम मेकलीगंज 0.32
कुचलीबारी
43. उपनचौकी 7 पटग्राम मेकलीगंज 44.04
कुचलीबारी
44. भोथनरी 11 पटग्राम मेकलीगंज 36.83
45. बालापुखारी 5 पटग्राम मेकलीगंज 55.91
46. बाराखानगीर 4 पटग्राम मेकलीगंज 50.51
47. बाराखानगीर 9 पटग्राम मेकलीगंज 87.42
48. छठ बोगडोकरा 10 पटग्राम मेकलीगंज 41.7
49. रतनपुर 11 पटग्राम मेकलीगंज 58.91
50. बोगडोकरा 12 पटग्राम मेकलीगंज 25.49
51. पुलकर डाबरी थाना पटग्राम मेकलीगंज 0.88
मेकलीगंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
भारत का संिवधान 406
1 2 3 4 5 6
52. खरखरीया 15 पटग्राम मेकलीगंज 60.74
53. खरखरीया 13 पटग्राम मेकलीगंज 51.62
54. लोटामारी 14 पटग्राम मेकलीगंज 110.92
55. भूतबारी 16 पटग्राम मेकलीगंज 205.46
56. कोमट चांग्रबधा 16ए पटग्राम मेकलीगंज 42.8
57. कोमट चांग्रबधा 17ए पटग्राम मेकलीगंज 16.01
58. पनीसाला 17 पटग्राम मेकलीगंज 137.66
59. द्वािरकामारी 18 पटग्राम मेकलीगंज 36.5
खासबाश
60. पनीसाला 153/पी पटग्राम मेकलीगंज 0.27
61. पनीसाला 153/ओ पटग्राम मेकलीगंज 18.01
62. पनीसाला 19 पटग्राम मेकलीगंज 64.63
63. पनीसाला 21 पटग्राम मेकलीगंज 51.4
64. लोटामारी 20 पटग्राम मेकलीगंज 283.53
65. लोटामारी 22 पटग्राम मेकलीगंज 98.85
66. द्वािरकामारी 23 पटग्राम मेकलीगंज 39.52
67. द्वािरकामारी 25 पटग्राम मेकलीगंज 45.73
68. छट भोथाट 24 पटग्राम मेकलीगंज 56.11
69. बाकाटा 131 पटग्राम हथभंगा 22.35
70. बाकाटा 132 पटग्राम हथभंगा 11.96
71. बाकाटा 130 पटग्राम हथभंगा 20.48
72. भोग्रामगुरी 133 पटग्राम हथभंगा 1.44
73. चेनाकाटा 134 पटग्राम मेकलीगंज 7.81
74. बांसकाटा 119 पटग्राम मथबंगा 413.81
75. बांसकाटा 120 पटग्राम मथबंगा 30.75
76. बांसकाटा 121 पटग्राम मथबंगा 12.15
77. बांसकाटा 113 पटग्राम मथबंगा 57.86
78. बांसकाटा 112 पटग्राम मथबंगा 315.04
79. बांसकाटा 114 पटग्राम मथबंगा 0.77
भारत का संिवधान 407
1 2 3 4 5 6
80. बांसकाटा 115 पटग्राम मथबंगा 29.2
81. बांसकाटा 122 पटग्राम मथबंगा 33.22
82. बांसकाटा 127 पटग्राम मथबंगा 12.72
83. बांसकाटा 128 पटग्राम मथबंगा 2.33
84. बांसकाटा 117 पटग्राम मथबंगा 2.55
85. बांसकाटा 118 पटग्राम मथबंगा 30.98
86. बांसकाटा 125 पटग्राम मथबंगा 0.64
87. बांसकाटा 126 पटग्राम मथबंगा 1.39
88. बांसकाटा 129 पटग्राम मथबंगा 1.37
89. बांसकाटा 116 पटग्राम मथबंगा 16.96
90. बांसकाटा 123 पटग्राम मथबंगा 24.37
91. बांसकाटा 124 पटग्राम मथबंगा 0.28
92. गोटामारी िछट 135 हाितबंधा िसतलकुची 126.59
93. गोटामारी िछट 136 हाितबंधा िसतलकुची 20.02
94. बनापचाई 151 लालमोिनरहाट िदनहाटा 217.29
95. बनापचाई 152 लालमोिनरहाट िदनहाटा 81.71
भीतरकुथी
96. दिसआर छारा 150 फुलबारी िदनहाटा 1643.44
97. दकुरहाट- 156 कुरीग्राम िदनहाटा 14.27
दिकिनरकुथी
98. कलामती 141 भुंगामारी िदनहाटा 21.21
99. भाहोबगंज 153 भुंगामारी िदनहाटा 31.58
100. बाओितकुरसा 142 भुंगामारी िदनहाटा 45.63
101. बरा कोआचु का 143 भुंगामारी िदनहाटा 39.99
102. गावचु का II 147 भुंगामारी िदनहाटा 0.9
103. गावचु का I 146 भुंगामारी िदनहाटा 8.92
104. िदघालतरी II 145 भुंगामारी िदनहाटा 8.81
105. िदघालतरी I 144 भुंगामारी िदनहाटा 12.31
106. छोटूगरलझोरा II 149 भुंगामारी िदनहाटा 17.85
भारत का संिवधान 408
1 2 3 4 5 6
107. छोटू गरलझोरा I 148 भुंगामारी िदनहाटा 35.74
108. जे0एल0सं0 38 157 पटग्राम मथभंगा 3.5
के दिक्षणी छोर
और जे0एल0सं0
39 के दिक्षणी
छोर पर िबना
नाम और
जे0एल0सं0 का
1 िछट ( थानीय
प से
अशोकाबाड़ी** के
प म ज्ञात)
ख. अपखंड िछट वाले ए क्लेव
109 (i) बेवलाडांगा 34 ह दीबाड़ी बोडा 862.46
(ii) बेवलाडांगा अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
110. (i) कोतभाजनी 2 ह दीबाड़ी दे बीगंज 2012.27
(ii) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iii) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iv) कोतभाजनी अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
111. (i) दहाला खागराबारी ह दीबाड़ी दे बीगंज 2650.35
(ii) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iii) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(iv) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
29 िसत बर, 2002 से 2 अक्तूबर, 2002 तक कोलकाता म आयोिजत एक सौ पचासव (चौवनव) भारत-बांग्लादे श
सीमा स मेलन द्वारा संशोिधत ।
**
18 िसत बर, 2003 से 20 िसत बर, 2003 तक कूच िबहार (भारत) म आयोिजत एक सौ बावनव (छ पनव)
भारत-बांग्लादे श सीमा स मेलन द्वारा संशोिधत ।
भारत का संिवधान 409
1 2 3 4 5 6
(v) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
(vi) दहाला अपखंड ह दीबाड़ी दे बीगंज
17160.63
ुर् क्रम
िट पण : क्षेत्र सीमन काल 1996-97 के दौरान संयुक्त भूिम स यापन द्वारा उपयक्त
सं0 108 के ए क्लेव के नाम की अशोकाबाड़ी ए क्लेव के प म पहचान की गई ।
29. दग
ु ार्पुर िदनहाटा कालीगंज 83 20.96
1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 412
1 2 3 4 5 6
भारत का संिवधान 413