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Name of the author: Swami Vedarthananda.

(सस्वाममी ववदस्वारस्वारननन)
Address: Ramakrishna Mission Vivekananda University, Belur Math,
Howrah, West Bengal – 711 202.

र ल्पनस्वा य स्वान पस्वा च मीनससंसस्कृ तशस्वास्त्रग्रनव कस्कृ तस्य पययोगस्य


।। तत्रितवधस्वा य स्वान पपव क
दृषस्वा न्त सस्वा न मवक मतधकस्कृ त्य तवचस्वा र न।।

(A Case Study Of The Three Types Of Hypothesis As Employed In The


Ancient Sanskrit Works.)

भपत मकस्वा ।

स व शयोधकमण्डलमीष स । अस्यस्वान पययोगन


र ल्पनस्वायस्वान (Hypothesis) समस्वाश्रयणसं सतवतदतमव
शयोधपवस्कृतत्तौ तत्रितवधस्वायस्वान पपवक

ससंसस्कृतसस्वातहित्यवऽतप शस्वास्त्रकस्वारनर कस्कृ त इत्यधमीतशस्वास्त्रस्वाणस्वा सं स्पषम म। अदरतववदस्वान्तदशरनस्य नस्वायपसस्वानगतम मअतधकरणमवकसं

र ल्पनस्वातत्रितयस्य कमीदृशन पययोगयो जस्वात इतत कश्चन तवचस्वारयोऽत्रि तवतनतव ।


दृषस्वान्तसस्वानतवन समवलम्ब्य ससंसस्कृतशस्वास्त्र व पपवक

र ल्पनस्वा ।
1. तत्रितवधस्वा पपव क

समस्यस्वातनधस्वाररणम म (Problem Definition), तथ्यसङ्ग्रहिन (Data Collection), तथ्यतवचस्वारन (Data

स स्वातन सयोपस्वानस्वातन शयोधपवस्कृतत्तौ गण्यन्तव । तत्रि समस्यस्वायस्वा सं


Analysis), तनणरयन (Conclusion) चवतत चतस्वातर खलु मख

तनधस्वारतरतस्वायस्वा सं समस्वातवतसं समस्वाधस्वान सं तकतञ्चिदस्वातश्रत्य अतग्रमसयोपस्वानस्वानतधरयोहितत शयोधकन। समस्वाधस्वानसमस्वावनसं तस्य

र ल्पनस्वातत्रितयमस्वातश्रत्य तक्रियतव । तस्वाश्च पपवक


पतरष्करणञ्चि पपवक र ल्पनस्वान यरस्वा -- कस्वायक
र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वा (Working

र ल्पनस्वा (Null Hypothesis), वरकतल्पकपपवक


Hypothesis), तवरुद्धपपवक र ल्पनस्वा (Alternate Hypothesis)

चवतत । समस्यस्वातनधस्वाररणस्वाय शयोधकव न यस्वावत मतथ्यसङ्ग्रहिणतवशकलनस्वातदकसं कस्कृ तसं तदस्वातश्रत्य समस्यस्वासमस्वाधस्वानरूपण


व परमतन

1
र स्वातरपपवक
ततकर्कि तन कश्चन पक्ष एव कस्वायक र ल्पनस्वा । अस्य परमयोपसस्वातपतस्य पक्षस्य ययो तवरुद्धन पक्षन स एव

र ल्पनस्वा अरवस्वा शपनपपवक


तवरुद्धपपवक र ल्पनतव त व्यपतदश्यतव । तवरुद्धपपवक र म म पतरष्कस्कृ तस्वा यस्वा
र ल्पनस्वायस्वान तनरसनपपवक

र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा सस्वा भवतत वरकतल्पकपपवक र ल्पनस्वायस्वान तनरसनम,म कस्वायक
र ल्पनस्वा । तवरुद्धपपवक र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वायस्वान

दयोषपतरहिस्वारपपवक म
र म पतरष्कस्वारश्च तनधस्वारतरतसमस्यस्वायस्वान तवषयवण सम्बद्धस्य तथ्यसवरसस्य सङ्ग्रहितवशकलनस्वाभस्वा सं तक्रियतव । एवसं

यस्वा वरकतल्पकपपवक म
र ल्पनस्वा व्यवसस्वाप्यतव तस्वामस्वातश्रत्यवर शयोधतनणरयस्य पणयनम भवतत ।

2. तवलक्षणतस्वा त धकरणव भस्वाष्यकस्वारभगवतस्वादरन तसद्धस्वान्तयोन्नयनस्वा य समस्वातश्रतस्वा रमीततन।

ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यस्य तदतमीयस्वाधस्वायस्य परमपस्वादस्य तवलक्षणतस्वातधकरणतमतत नस्वामस्वा पतसद्धव तस्कृतमीयस्वातधकरणव भस्वाष्यकस्वारस्वान

श्रमीशङ्करभगवतपज्यपस्वादस्वान ब्रह्म जगतयो तनतमतयोपस्वादस्वानयोभयतवधकस्वारणतमतत ववदस्वान्तयोपदवशसं तवषयमीकस्कृ त्य


पक्षपततपक्षस्वाद सपनस्वासपरस स्सरम आक्षव म
पस्वान अपहिस्वाय तसद्धस्वान्तमस्वातवष्कसवरतन्त ।

ब्रह्म जगतयो तनतमतम म पकस्कृ ततश्चवतत आपस्वाततयो बयोधयतन्त यस्वातन ववदस्वान्तवस्वाकस्वातन तस्वानवव तवलक्षणतस्वातधकरणस्य तवषयन।

स स्वा क्षयोदक्षमतमतस्ति न
तत्रि ब्रह्म जगतयो तनतमतपकस्कृ तमी इतत तसद्धस्वान्त व ववदस्वातन्तनस्वा समीकस्कृ तव ब्रह्म पकस्कृ तततरतत यदुकसं तस्य यक

ववतत कस्यस्वातञ्चित म शङ्कस्वायस्वा सं समतन्नस्वा


स यस्वाम म अतधकरणस्यस्वास्य परमतदतमीयसपत्रिस्वाभस्वाम म पपवपर क्षन समपस नस्तिन। तस्कृतमीयसपत्रिण

स क्षपव सं कतञ्चिदवधस्वाय र पतरहिस्वारन चतरस स


तसद्धस्वान्तपक्षन। तत्रि पनरस्वा र त्रिप ण स क्षपव उन्नमीयतव पञ्चिमसपत्रिण
व । पनरस्वा व । तस्य पतरहिस्वारन षषवन

। तसद्धस्वान्त व पयोकस्वानस्वा सं दयोषस्वाणस्वाम पपम वपर क्षव ससंययोजनतमत्यस्वातदकसं सप्तमस्वाषमसपत्रिस्वाभस्वा सं कस्कृ तम ।म

3. अतधकरणवऽ तस्मिन मकस्कृ तस्य पपव क


र ल्पनस्वाश्रयणस्य सरूपम म ।

स ररसमन्वयमतभपवत्य परमतन समस्वातवतसं तदवव कस्वायक


अत्रि ब्रह्म जगतन पकस्कृ तततरतत यद म ववदस्वातन्तनस्वा श्रत्य र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वा

(Working Hypothesis) भवतत । तरस्वा तहि अदरतस्य ब्रह्मण एव जगतन्नतमततसं जगदुपस्वादस्वानतञ्चि बयोधयन्तमीष स

2
श्रतस तष स तसतस्वास स एकस्यवर कस्वारणस्य सस्य कस्वायमर म पतत तनतमततयोपस्वादस्वानतव उभवऽप्यपतसद्धव लयोकव इत्यतन श्रतस तपस्वामस्वाण्यसं


स न्नस्वायस्वा सं तद्व्यवसस्वामनसतन्धित
करसं व्यवसस्वापनमीयतमतत समस्यस्वायस्वा सं समत र गवतस्वादनर शस्वास्त्रस्वाचस्वायर्योपतदषस्वानस्वाम म
तस भरस्वाचस्वायभ

पस्वामस्वाण्यस्वापस्वामस्वाण्यतवषयसम्बद्धस्वानस्वा सं तथ्यस्वानस्वाम म सपक्ष्मतवचस्वारण


व स ररस्यस्वापस्वामस्वाण्यस्वासमवमवव बहुधस्वा तनतश्चतवतदन
श्रत्य

स न पकस्कृ तसलवऽतप श्रतस मीनस्वा सं यरस्वाश्रतस मवव तस्वातयर स्यस्वातदतत कस्वाचन पपवक
तदस्वानगस ण्यव र ल्पनस्वा समस्वाधस्वानतवन समपस सस्वाप्यतव ।

उपसस्वाप्य चवमम म पक्षम म भगवतपज्यपस्वादस्वान अस्य तकर न परमीक्षणमीयतस्वा सं वदतन्त । अस्यस्वान परमीक्षस्वायस्वान यतस कयक
स तस्वायस्वा सं


सतनहिस्वानस्वानतद्दिश्य श्रतस तबयोतधतवऽप्यरर्थे सतकर
स स्यस्वादतरव्यतस्वाऽतप हिवततस भन पदतशरतस्वा । तस्मिस्वाद म ब्रह्म यरस्वाश्रतस त जगदुपस्वादस्वान सं

र ल्पनतव त तसद्धम ।म
र स्वातरपपवक
स्यस्वातदतत ययो ववदस्वान्तपक्षयो भस्वाष्यकस्वारभगवतस्वादरर तधकरणस्वादत्तौ तवनस्तिन स कस्वायक

र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वायस्वान क्षयोदक्षमतपरमीक्षणस्वाय तवरुद्धपपवक स स्वावनमीयस्वा भवतत ।
र ल्पनस्वा (Null Hypothesis) समद

म वपर क्षसं रचयतन्त । तरस्वा च भस्वाष्यवस्वाकम म


स स्य ववदस्वान्तपक्षस्य तवरुद्धम पप
इममवव नयमस्वातश्रत्य भगवतपज्यपस्वादस्वा अतप परममक


– “यदुकसं चवतनम ब्रह्म म तततरतत तन्नयोपपदतव । कस्मिस्वात ।म तवलक्षणतस्वादस्य तवकस्वारस्य पकस्कृ त्यस्वान। इदसं
जगतन कस्वारणम पकस्कृ

म तनम अश
र नव स्वातभपवयमस्वाण सं जगद म ब्रह्मतवलक्षणम अचव
तहि ब्रह्मकस्वायत म द्ध
स ञ्चि दृश्यतव । ब्रह्म च जगतदलक्षणसं चवतनसं शद्ध
स ञ्चि श्रपयतव

। न च तवलक्षणतव पकस्कृ तततवकस्वारभस्वावयो दृषन।” (ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम म 2.1.4, पस्कृ.290) इतत । परमयोकपक्षस्य तवरुद्धम म

पततजस्वाय यतस कतभरुपगतस मतयोऽयम म पपवपर क्षन ववदस्वान्तनयस्वानगस ण्स यवनस्वादत्तौ समपस सस्वातपतस्वायस्वान कस्वायक
र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वायस्वान तनतरस्वा सं

र ल्पनस्वा भवतत ।
तवरुद्धपपवक

र ल्पनस्वायस्वान
तवरुद्धपपवक पत्यस्वाखस्वाननव तहि र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा पततषस्वाप्यतव । तत्प्रत्यस्वाखस्वानकस्वालव च

र ल्पनस्वायस्वामस्वातवष्कस्कृ तस्वानस्वा सं दयोषस्वाणस्वाम म अत्रिस्वातप समवस्वादस्वा तवरुद्धपपवक


तवरुद्धपपवक र ल्पनस्वा सं समस्वातश्रतवतदरनवर स्वार वस्वातदतभरत्रि

स स्वावनस्वादस्वा इयसं कस्वायक


दयोषस्वाणस्वामद र ल्पनस्वाऽतप परमीक्ष्य पतरष्करणमीयस्वा भवतत । अस्यस्वाम मपणस्वालस्वा सं यदस्वाऽनसन्धिस्वा
र स्वातरपपवक स तस्वा वस्वादमी

वस्वा तवजवतस्वा भवतत तदस्वा र ल्पनस्वायस्वान


तवरुद्धपपवक र म म पतरष्कस्वारमस्वापन्नस्वा
पतरत्यस्वागपपवक र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा

3
र ल्पनस्वायस्वान यरस्वायरम म
र ल्पनस्वातनव (Alternate Hypothesis) समीकस्वारययोग्यस्वा भवतत । यतद तवरुद्धपपवक
वरकतल्पकपपवक


पत्यस्वाखस्वान वऽनसन्धिस्वा म तवनयोदस्वातवतस्वा कस्वायक
तस्वा वस्वादमी वस्वा न समरनर स्यस्वात ततहिर्कि र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वा पतरत्यस्वाज्यस्वा भवतत ।

स स्वातवतन पपवपर क्षयो भगवतपज्यपस्वादनर सतवशदय


र ल्पनस्वातनव समद
पकस्कृ तव तवरुद्धपपवक स तस कतभतवरस्तिरवण खण्ड्यतव । तरस्वा च भस्वाष्यम म

– “यदुकसं तवलक्षणतस्वान्नदव सं जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकतमतत, नस्वायमवकस्वान्तन। […] अत्यन्तसस्वारूप्यव च पकस्कृ तततवकस्वारभस्वाव एव

पलमीयवत ।” (ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम म 2.1.6, पस्कृ.294) इतत । तवरुद्धपपवक स सं दुषतञ्चि पदश्यरत व –


र ल्पनयस्वा यदुदस्वातवतसं तस्य सतरस्वा

स न सं तवलक्षणतमतभपवयतव
“तवलक्षणतवन च कस्वारणवन ब्रह्मपकस्कृ ततकतसं जगतयो दूषयतस्वा तकमशवषस्य ब्रह्मसभस्वावस्य अननवतर

उत यस्य कस्यतचत म अर चतर नस्यवतत वकव्यम म । परमव तवकल्पव समस्तिपकस्कृ तततवकस्वारभस्वावयोचवदपसङन, […] तदतमीयव

चस्वातसद्धतम, म […] तस्कृतमीयव त स दृषस्वान्तस्वाभस्वावन।” (ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम 2.1.6,


म पस्कृ.295) इतत ।

र ल्पनस्वायस्वान असस्वाङत्यम म पदश्यर वरकतल्पकपपवक


एवसं तवरुद्धपपवक स
र ल्पनस्वामतप पस्तिवतन्त भगवतपज्यपस्वादस्वान। तरस्वा च भस्वाष्यम म –

“ययोऽतप चवतनकस्वारणश्रवणबलवन रव समस्तिस्य स क्ष


जगतश्चवतनतस्वामत्प्र व तव तस्यस्वातप ‘तवजस्वानञ्चिस्वातवजस्वानञ्चि’ इतत

चवतनस्वाचतव नतवभस्वागश्रवणसं तवभस्वावनस्वातवभस्वावनस्वाभस्वा सं चतर नस्य शकत एव ययोजतयतमस म । […] पत्यकतस्वा


स त स तवलक्षणतस्य

स स्वा एव चवतनसं कस्वारणसं ग्रहिमीतव्यम म भवतत ।” (ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम म 2.1.6, पस्कृ.296) इतत । जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकतमतत
यरस्वाश्रत्य

बयोधयन्तमीनस्वा सं श्रतस मीनस्वाम म पस्वामस्वाण्यस्वातवरयोधस्वाय समस्तिस्य जगतश्चवतनतमत्रि कतल्पतम म । इदम म मतम म भगवतस्वादनर

र ल्पनस्वायस्वान दूषणकस्वालव मधसस्वातभपस्वायरूपवण समद


तवरुद्धपपवक र म। तवरुद्धपपवक
स स्वातवतस्वा पपवम स
र ल्पनस्वा सं खण्डयतदस्ति रन पनतरदमव

र स्वातरपपवक
मतसं सपततजस्वातस्वायस्वान कस्वायक स
र ल्पनयस्वा सस्वाकसं तनदर्योषतखस्वापनपरस्सरम रस रमीकस्कृ त्य वरकतल्पकपपवक
र ल्पनस्वारूपवण


समपसस्वाप्यतव । तवरुद्धपपवक स
र ल्पनस्वानपपततपदशर र स्वातरपपवक
न वन परमयोकस्वायस्वान कस्वायक र ल्पनस्वायस्वान तनदर्योषतव सस्वातधतवऽतप यतद तत्रि

पततवस्वातदन आक्षवपस्वान न क्षमीयवरन, म ततहिर्कि तवन मधसमतसं वस्वा सवस्वारक्षपव रतहितसं समीतक्रियतस्वातमतत भस्वाष्यवस्वाकरर तभनयन्तयो

र स्वातरपपवक
भगवतपज्यपस्वादस्वान कस्वायक स श्य अवतस्वारयन्तमीत्यतयो “दृश्यतव
र ल्पनयस्वा अभमीतप्सितमरमर वव मधसयोकमतशरमीरवऽनपवव

4
त”स (ब्रह्मसपत्रिम म 2.1.6) इत्यत्रियोपसङस्वातदृरषस्वान्तबलवन दृढमीकस्कृ तस्वा र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा एवङ्क्रमवण

म वसन्नस्वा सतमी वरकतल्पकपपवक


समस्तिजगचवतनतयोत्प्रवक्षस्वायस्वाम पयर स सं वकसम ।म
र ल्पनस्वातसं लभतव इतत यक

र ल्पनस्वायस्वान सरूपतमदमवगतम –म
स स्वायस्वान तत्रितवधपपवक
एवञ्चि तवलक्षणतस्वातधकरणव पयक

 कस्वायक र ल्पनस्वा – जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकम ।म


र स्वातरपपवक

 र ल्पनस्वा – जगन्न ब्रह्मपकस्कृ ततकम ।म


तवरुद्धपपवक
 र ल्पनस्वा – समस्तिसं जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकसं चतर नमस्वात्रिसरूपञ्चि इतत ।
वरकतल्पकपपवक

उपससंहि स्वा र न।

तवलक्षणतस्वातधकरणव पतरतनष्पन्नस्वा सं ‘समस्तिसं जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकसं चतर नमस्वात्रिस्वरूपञ्चि’ इतत

र ल्पनस्वामवव स्वाधस्वारमीकस्कृ त्य अग्रवऽप्यतधकरणस्वातन तदरदर स्वारपर रमीक्षकस्वातण रतचतस्वातन । अस्यवर तसद्धस्वान्तस्य
वरकतल्पकपपवक


भस्कृशमनमयोदनसं कस्कृ तसं यतस कतभतरतन तकतञ्चिदग्रव सम्प्रदस्वायपतसद्धव आरमणस्वातधकरणव (ब्रह्मसपत्रिम म 2.1.14-20) ।

श्रमीशङ्करभगवतपज्यपस्वादनर श्रतस तपस्वामस्वाण्यस्वातवरयोधतसतद्धम म अनसतन्धित


स तस भन तदनसन्धिस्वा
स नस्वाय कस्कृ तव शस्वारमीरकममीमस्वास
सं स्वाशस्वास्त्रस्य

तदतमीयस्वाधस्वायस्य भस्वाष्य व क्वतचदवकत्रिस्वातधकरणव तनर ससटमस्वातश्रतस्वा इयम म पपवक


र ल्पनस्वापययोगपणस्वालमी आतधकरणस्वान्तरवष स

अधस्वायस्वान्तरभस्वाष्यऽव तप च दरमीदृश्यतव । शस्वास्त्रस्वान्तरवऽपमीयम म पणस्वालमी पस्वाचमीन रन ससंसस्कृतशस्वास्त्रकस्वारनर समस्वातश्रतवतत सपक्षदतशरनस्वा सं


स तमतत तशवम ।।
सदशर

5
आतश्रतग्रनसपचमी ।

स म । चवन्न र । 1999 (वस्वाणमीतवलस्वासमद्रस णस्वालयवन


1. ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम म । श्रमीशङ्करग्रनस्वावलमी, भस्वागन 7 । समतस्वा बक

स द्ररस णम )म ।
1910 –तमव वषर्थे पकस्वातशतस्य पनम
स तमीमद्रस णस्वालयन (Gujarati Printing
2. अदरतमञ्जरमी । ससंशयोधकन (Editor) – महिस्वादवव गङस्वाधर बस्वाक्रिव । गजरस्वा

स । 1914 ।
Press) । मम्बई

***

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