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(सस्वाममी ववदस्वारस्वारननन)
Address: Ramakrishna Mission Vivekananda University, Belur Math,
Howrah, West Bengal – 711 202.
भपत मकस्वा ।
र ल्पनस्वा ।
1. तत्रितवधस्वा पपव क
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र स्वातरपपवक
ततकर्कि तन कश्चन पक्ष एव कस्वायक र ल्पनस्वा । अस्य परमयोपसस्वातपतस्य पक्षस्य ययो तवरुद्धन पक्षन स एव
र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा सस्वा भवतत वरकतल्पकपपवक र ल्पनस्वायस्वान तनरसनम,म कस्वायक
र ल्पनस्वा । तवरुद्धपपवक र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वायस्वान
दयोषपतरहिस्वारपपवक म
र म पतरष्कस्वारश्च तनधस्वारतरतसमस्यस्वायस्वान तवषयवण सम्बद्धस्य तथ्यसवरसस्य सङ्ग्रहितवशकलनस्वाभस्वा सं तक्रियतव । एवसं
यस्वा वरकतल्पकपपवक म
र ल्पनस्वा व्यवसस्वाप्यतव तस्वामस्वातश्रत्यवर शयोधतनणरयस्य पणयनम भवतत ।
म
पक्षपततपक्षस्वाद सपनस्वासपरस स्सरम आक्षव म
पस्वान अपहिस्वाय तसद्धस्वान्तमस्वातवष्कसवरतन्त ।
ब्रह्म जगतयो तनतमतम म पकस्कृ ततश्चवतत आपस्वाततयो बयोधयतन्त यस्वातन ववदस्वान्तवस्वाकस्वातन तस्वानवव तवलक्षणतस्वातधकरणस्य तवषयन।
स स्वा क्षयोदक्षमतमतस्ति न
तत्रि ब्रह्म जगतयो तनतमतपकस्कृ तमी इतत तसद्धस्वान्त व ववदस्वातन्तनस्वा समीकस्कृ तव ब्रह्म पकस्कृ तततरतत यदुकसं तस्य यक
(Working Hypothesis) भवतत । तरस्वा तहि अदरतस्य ब्रह्मण एव जगतन्नतमततसं जगदुपस्वादस्वानतञ्चि बयोधयन्तमीष स
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श्रतस तष स तसतस्वास स एकस्यवर कस्वारणस्य सस्य कस्वायमर म पतत तनतमततयोपस्वादस्वानतव उभवऽप्यपतसद्धव लयोकव इत्यतन श्रतस तपस्वामस्वाण्यसं
स
स न्नस्वायस्वा सं तद्व्यवसस्वामनसतन्धित
करसं व्यवसस्वापनमीयतमतत समस्यस्वायस्वा सं समत र गवतस्वादनर शस्वास्त्रस्वाचस्वायर्योपतदषस्वानस्वाम म
तस भरस्वाचस्वायभ
स न पकस्कृ तसलवऽतप श्रतस मीनस्वा सं यरस्वाश्रतस मवव तस्वातयर स्यस्वातदतत कस्वाचन पपवक
तदस्वानगस ण्यव र ल्पनस्वा समस्वाधस्वानतवन समपस सस्वाप्यतव ।
उपसस्वाप्य चवमम म पक्षम म भगवतपज्यपस्वादस्वान अस्य तकर न परमीक्षणमीयतस्वा सं वदतन्त । अस्यस्वान परमीक्षस्वायस्वान यतस कयक
स तस्वायस्वा सं
स
सतनहिस्वानस्वानतद्दिश्य श्रतस तबयोतधतवऽप्यरर्थे सतकर
स स्यस्वादतरव्यतस्वाऽतप हिवततस भन पदतशरतस्वा । तस्मिस्वाद म ब्रह्म यरस्वाश्रतस त जगदुपस्वादस्वान सं
र ल्पनतव त तसद्धम ।म
र स्वातरपपवक
स्यस्वातदतत ययो ववदस्वान्तपक्षयो भस्वाष्यकस्वारभगवतस्वादरर तधकरणस्वादत्तौ तवनस्तिन स कस्वायक
र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वायस्वान क्षयोदक्षमतपरमीक्षणस्वाय तवरुद्धपपवक स स्वावनमीयस्वा भवतत ।
र ल्पनस्वा (Null Hypothesis) समद
म
– “यदुकसं चवतनम ब्रह्म म तततरतत तन्नयोपपदतव । कस्मिस्वात ।म तवलक्षणतस्वादस्य तवकस्वारस्य पकस्कृ त्यस्वान। इदसं
जगतन कस्वारणम पकस्कृ
म तनम अश
र नव स्वातभपवयमस्वाण सं जगद म ब्रह्मतवलक्षणम अचव
तहि ब्रह्मकस्वायत म द्ध
स ञ्चि दृश्यतव । ब्रह्म च जगतदलक्षणसं चवतनसं शद्ध
स ञ्चि श्रपयतव
। न च तवलक्षणतव पकस्कृ तततवकस्वारभस्वावयो दृषन।” (ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम म 2.1.4, पस्कृ.290) इतत । परमयोकपक्षस्य तवरुद्धम म
पततजस्वाय यतस कतभरुपगतस मतयोऽयम म पपवपर क्षन ववदस्वान्तनयस्वानगस ण्स यवनस्वादत्तौ समपस सस्वातपतस्वायस्वान कस्वायक
र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वायस्वान तनतरस्वा सं
र ल्पनस्वा भवतत ।
तवरुद्धपपवक
र ल्पनस्वायस्वान
तवरुद्धपपवक पत्यस्वाखस्वाननव तहि र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा पततषस्वाप्यतव । तत्प्रत्यस्वाखस्वानकस्वालव च
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र ल्पनस्वायस्वान यरस्वायरम म
र ल्पनस्वातनव (Alternate Hypothesis) समीकस्वारययोग्यस्वा भवतत । यतद तवरुद्धपपवक
वरकतल्पकपपवक
स
पत्यस्वाखस्वान वऽनसन्धिस्वा म तवनयोदस्वातवतस्वा कस्वायक
तस्वा वस्वादमी वस्वा न समरनर स्यस्वात ततहिर्कि र स्वातरपपवक
र ल्पनस्वा पतरत्यस्वाज्यस्वा भवतत ।
– “यदुकसं तवलक्षणतस्वान्नदव सं जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकतमतत, नस्वायमवकस्वान्तन। […] अत्यन्तसस्वारूप्यव च पकस्कृ तततवकस्वारभस्वाव एव
स न सं तवलक्षणतमतभपवयतव
“तवलक्षणतवन च कस्वारणवन ब्रह्मपकस्कृ ततकतसं जगतयो दूषयतस्वा तकमशवषस्य ब्रह्मसभस्वावस्य अननवतर
उत यस्य कस्यतचत म अर चतर नस्यवतत वकव्यम म । परमव तवकल्पव समस्तिपकस्कृ तततवकस्वारभस्वावयोचवदपसङन, […] तदतमीयव
स स्वा एव चवतनसं कस्वारणसं ग्रहिमीतव्यम म भवतत ।” (ब्रह्मसपत्रिभस्वाष्यम म 2.1.6, पस्कृ.296) इतत । जगद म ब्रह्मपकस्कृ ततकतमतत
यरस्वाश्रत्य
बयोधयन्तमीनस्वा सं श्रतस मीनस्वाम म पस्वामस्वाण्यस्वातवरयोधस्वाय समस्तिस्य जगतश्चवतनतमत्रि कतल्पतम म । इदम म मतम म भगवतस्वादनर
र स्वातरपपवक
मतसं सपततजस्वातस्वायस्वान कस्वायक स
र ल्पनयस्वा सस्वाकसं तनदर्योषतखस्वापनपरस्सरम रस रमीकस्कृ त्य वरकतल्पकपपवक
र ल्पनस्वारूपवण
स
समपसस्वाप्यतव । तवरुद्धपपवक स
र ल्पनस्वानपपततपदशर र स्वातरपपवक
न वन परमयोकस्वायस्वान कस्वायक र ल्पनस्वायस्वान तनदर्योषतव सस्वातधतवऽतप यतद तत्रि
पततवस्वातदन आक्षवपस्वान न क्षमीयवरन, म ततहिर्कि तवन मधसमतसं वस्वा सवस्वारक्षपव रतहितसं समीतक्रियतस्वातमतत भस्वाष्यवस्वाकरर तभनयन्तयो
र स्वातरपपवक
भगवतपज्यपस्वादस्वान कस्वायक स श्य अवतस्वारयन्तमीत्यतयो “दृश्यतव
र ल्पनयस्वा अभमीतप्सितमरमर वव मधसयोकमतशरमीरवऽनपवव
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त”स (ब्रह्मसपत्रिम म 2.1.6) इत्यत्रियोपसङस्वातदृरषस्वान्तबलवन दृढमीकस्कृ तस्वा र स्वातरपपवक
कस्वायक र ल्पनस्वा एवङ्क्रमवण
र ल्पनस्वायस्वान सरूपतमदमवगतम –म
स स्वायस्वान तत्रितवधपपवक
एवञ्चि तवलक्षणतस्वातधकरणव पयक
उपससंहि स्वा र न।
र ल्पनस्वामवव स्वाधस्वारमीकस्कृ त्य अग्रवऽप्यतधकरणस्वातन तदरदर स्वारपर रमीक्षकस्वातण रतचतस्वातन । अस्यवर तसद्धस्वान्तस्य
वरकतल्पकपपवक
स
भस्कृशमनमयोदनसं कस्कृ तसं यतस कतभतरतन तकतञ्चिदग्रव सम्प्रदस्वायपतसद्धव आरमणस्वातधकरणव (ब्रह्मसपत्रिम म 2.1.14-20) ।
म
स तमतत तशवम ।।
सदशर
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आतश्रतग्रनसपचमी ।
स द्ररस णम )म ।
1910 –तमव वषर्थे पकस्वातशतस्य पनम
स तमीमद्रस णस्वालयन (Gujarati Printing
2. अदरतमञ्जरमी । ससंशयोधकन (Editor) – महिस्वादवव गङस्वाधर बस्वाक्रिव । गजरस्वा
स । 1914 ।
Press) । मम्बई
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