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पुष् प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वे दी

चाह नहीं, मैं सुरबाला के


गहनों में गँथ
ू ा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं दे वों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मझ
ु े तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर दे ना तुम फेंक!
मात-ृ भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

POET:
माखनलाल चतर्वे
ु दी की लिखी इन पंक्तियों से यह जाना जा सकता है  कि वह ‘
पष्ु प की अभिलाषा’ के माध्यम से अपने अंतस की बात कह रहे  हैं।
मातभ
ृ ूमि के लिए उनकी यह भावना मात्र कविताओं तक ही सीमित नहीं है , मा
खनलाल चतुर्वेदी ने महात्मा गांधी द्वारा आहूत सन 1920 के 'असहयोग आंद
ोलन' में  महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी दी थी। सन ् 1930 के सविनय
अवज्ञा आंदोलन में भी वह गिरफ़्तार हुए। इस कविता के माध्यम से हम
माखनलाल चतुर्वे दी जी के बारे में यह भी जान सकते है की वे दे श भक्ति की
भावना को दिल और दिमाग से अपना चुके थे।

'पष्ु प की अभिलाषा' और 'अमर राष्ट्र' जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस


महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद
उपाधि से विभूषित किया।

1963 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया। उनके काव्य


संग्रह 'हिमतरं गिणी' के लिये 1955 में हिन्दी के 'साहित्य अकादमी पुरस्कार'
से सम्मानित किया गया।

OR

माखन लाल चतुर्वेदी का जन्म ४ अप्रैल १८८८ में भारत के मध्य प्रदे श शहर के
होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था| उनके पिता जी का नाम नन्द लाल
चतुर्वेदी था| उनके पिता जी गांव के प्राइमरी स्कूल के हिंदी के अध्यापक थे|
माखन लाल चतर्वे
ु दी को हिंदी, संस्कृत, बंगला ,अंग्रेजी ,गज
ु रती आदि सभी
भाषा का ज्ञान था| उनकी क्रांतिकारी कविताओं ने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों
के मन में दे शभक्ति के रं ग उजागर किये थे| इसी के चलते उन्हें कई बार
अंग्रेज़ो द्वारा जेल भी जाना पड़ा|

SUMMARY :

माखनलाल चतुर्वेदी जी की विश्व प्रसिद्ध कविता पुष्प की अभिलाषा हर उस


व्यक्ति के जुबान पर रहता है जो हिन्दी साहित्य में थोड़ी भी रूचि लेते हैं।

पष्ु प की अभिलाषा कविता माखन लाल चतर्वे


ु दी जी की कलम यानी हिन्दी
साहित्य के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा है ।

कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी पुष्प या फूल के रूप मे कहते हैं की मुझे कोई चाह
नहीं है की मैं किसी स्त्री के गहनों में गँूथ जाऊं, मुझे कोई इच्छा नहीं है की मैं
किसी महिला के बालों का गजरा बनँ।ू

मुझे कोई इच्छा नहीं की मैं किसी प्रेमी युगलों का माला बनँ।ू मुझे इसकी
बिलकुल चाह नहीं है की मैं फूल बनकर किसी राजा या सम्राट के शव पर
चढ़ाया जाऊं।

इसकी भी इच्छा नहीं है की मझ


ु े भगवान के मस्तक पर अर्पित किया जाय
जिससे मुझे अपने भाग्य पर गर्व हो।

मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ की हे वनमाली तुम मुझे तोड़कर उस मार्ग पर फ़ेक
दे ना जिस मार्ग पर वीर दे शभक्त, शरू वीर इस भमि
ू की रक्षा के लिए अपने आप
को अर्पण करने जाते हों ,जो इस भमि
ू के लिए अपना शीष अर्पण करने जाते
हों।

OR
वैसे तो माखनलाल चतर्वे
ु दी जी ने कई ऐसी रचना करि जो आज के समय में भी
बहुत प्रसिद्ध हैं और जिन्हे आज के कवी भी अपनी कविताओं में इस्तेमाल
करते हैं लेकिन एक ऐसी कविता हैं जिसने पुरे भारत वर्ष के लोगो ने सरहाया|
पुष्प की अभिलाषा कविता उनकी अबतक की सबसे प्रसिद्ध रचना थी|इस
कविता की रचना कारण इ के पीछे उनका एक मल
ू कारण था| जब हमारे भारत
दे श के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेज़ो से भारत की आजादी के लिए लड़ाई कर रहे थे
तब उनको और भारत की जनता को लड़ाई में सहयोग दे ने के प्रोत्साहन के लिए
इस कविता की रचना की थी|

इस कविता द्वारा माकन लाल जी ने यह बताने की कोशिश की हैं कि जब कभी


माली अपने बगीचे से फूल तोड़ने जाता है तो जब माली फूल से पछ
ू ता है कि
तुम कहाँ जाना चाहते हो? माला बनना चाहते हो या भगवान के चरणों में
चढ़ाया जाना चाहते हो तो इस पर फूल कहता है

– मेरी इच्छा ये नहीं कि मैं किसी सूंदर स्त्री के बालों का गजरा बनँू मुझे चाह
नहीं कि मैं दो प्रेमियों के लिए माला बनँू मुझे ये भी चाह नहीं कि किसी राजा के
शव पे मझ
ु े चढ़ाया जाये मझ
ु े चाह नहीं कि मझ
ु े भगवान पर चढ़ाया जाये और
मैं अपने आपको भागयशाली मानूं हे वनमाली तुम मुझे तोड़कर उस राह में
फेंक दे ना जहाँ शूरवीर मातभ
ृ ूमि की रक्षा के लिए अपना शीश चढाने जा रहे हों।
मैं उन शरू वीरों के पैरों तले आकर खद
ु पर गर्व महसस
ू करूँगा।

THEME :
" पष्ु प की अभिलाषा " कविता के रचयिता माखनलाल चतर्वे
ु दी ने इस छोटी
सी कविता की रचना कर यह सिद्ध कर दिया है कि वे वास्तव में " एक भारतीय
आत्मा " के नाम से विभूषित किए जाने के सच्चे अधिकारी हैं। यहां हमने पुष्प
की अभिलाषा कविता के कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय,पुष्प की
अभिलाषा कविता, शब्दार्थ , भावार्थ, एवं कुछ महत्वपर्ण
ू प्रश्नों के उत्तर  सरल
और सुबोध भाषा शैली में दिए  हैं।  यह कविता हिमतरं गिनी काव्य संग्रह में
प्रकाशित है । माखनलाल चतुर्वेदी ने इस कविता की रचना विलासपुर जेल में
की थी।उस समय असहयोग आंदोलन का दौर था। इस तरह इस कविता के सौ
साल परू े हो गए।

यह कविता पाठकों में दे शभक्ति और दे श के लिए उत्सर्ग होने का भाव जाग्रत


करने में सफल है । 

कविवर माखनलाल चतर्वे


ु दी की यह दे श भक्ति रचना मातभ
ृ मि
ू के श्रीचरणों में
समर्पित है ।  एक पष्ु प मातभ
ृ मि
ू की रक्षा करने वाले वीर सैनिकों की सेवा करने
में ही अपने जीवन की सार्थकता के बारे में बताता है । वह नहीं चाहता है कि उसे
किसी सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं। सदियों से प्रेमी अपने प्रेमिकाओं को
पष्ु प प्रदान कर अपने प्रेम का इजहार करता है । यह परं परा आज भी प्रचलित
है । लेकिन यहां फूल अपने आप को इस कार्य के लिए भी समर्पित नहीं करना
चाहता। वह नहीं चाहता है कि  किसी प्रेमी द्वारा उसकी प्रेमिका को उसे दिया
जाए।  इसी तरह वह किसी के राजे महाराजे के शव पर या किसी दे वी दे वताओं
के सिर पर चढ़कर भाग्यशाली नहीं बनना चाहता है । वह तो चाहता है कि कोई
उसे तोड़ कर उस रास्ते पर फेंक दें जिस रास्ते से होकर वीर सैनिक गुजरते हैं ।
वह  तो अपनी मातभ
ृ ूमि के काम आने में ही अपने जीवन को सफल मानता है ।

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