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:प्रस्तुतकर्ता यास्क अजय नेहरा

शोध सार संक्षिप्तिका


Implication of Recent Trends in
Agriculture : A Case Study of
Rohtak Area.

परिचयः-
भारतीय पारंपरिक कृषि की अपेक्षा वर्तमान विश्व में कृषि में प्रचलित
आधनि ु क उपायों द्वारा विकसित देशों के किसान अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। वैज्ञानिक
शोधों पर आधारित आणविक प्रजनन और प्राविधिकियों से वाणिज्यिक पशु पालन,
बागवानी कृषि, वक्षृ ारोपण कृषि, औषधिय पौध उत्पादन, कृषि वानिकी आदि के माध्यम
से कृषि में नई क्रातिं लाई जा सकती है। कृषि भमि ू के वह्ृ द स्तरीय वाणिज्यिकरण,
सामदु ायिक व अनबु ंध खेती आदि माध्यमों से कृषि क्षेत्र में लगे अतिरिक्त श्रम को खाद्य
प्रस्संकरण, भंडारण तथा सेवा कार्यों की तरफ हस्तांतरित लिया जा सकता है।

भारतीय हरित क्राति


ं मख्ु यतः खाद्यान फसलों पर आधारित होने से
कृषि क्षेत्र पर कुछ गिनि-चनु ी फसलों का आधिपत्य हो गया है। इससे सतं लि
ु त आहार के
अभाव से बच्चों तथा यवु ाओ ं में पोषणीय कमी प्रतिरूपित होती है तथा कृषिय भमि ू की
उर्वरता का हनन भी फसल विविधिकरण की अनपु स्थिति में बढ़ता जा रहा है। खाद्यानों की
प्रति हेक्टेयर उपज कम हो रही है। अत्यधिक सिचि ं त फसलों के उत्पादन से हरियाणा की
48% भमि ू लवणीय व क्षारीय हो गई है।

विदेशी बाजारों में खाद्यानों की अपेक्षा अन्य कृषि उत्पादों की माँग


अधिक है और इनके मल्ू य भी उच्च हैं। जिससे भारत को विदेशी मद्रु ा सग्रं हण में भी फायदा
होगा। कृषि एवं प्रसस्ं कृत खाद्य उत्पाद प्राधिकरण (APEDA) के अनसु ार कृषि उत्पादों
के प्रसंस्करण के लिए भारत भविष्य में करोड़ों की संपत्ति के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
को आकृषित करने में सक्षम है तथा मात्र वर्ष 2022 तक 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर के
कृषि निर्यातों की संभावना है।
प्रमुख समस्याएँ-
 फसल विविधिकरण की अनपु स्थिति में भमि
ू क्षमता का ह्रास
 प्रति हेक्टेयर उत्पादन में निरंतर कमी
 मल्ू य अभिवद्धि
ृ में कमी
 पौष्टिक आहार की अनपु ल्बधता
 लघु जोत आकार
 सेम तथा जलभराव की स्थिति
 फसल उत्पादों में रसायनों का संकेंद्रण
 कृषकों को वैज्ञानिक कृषि पद्धति का ज्ञान न होना

ू क्षमता का ह्रासः-
1)भमि
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि एक ही प्रकार की खेती करने से भमि ू
से उस फसल के लिए आवश्यक तत्वों की कमी हो जाती है। अधिकत्तर हरियाणा – पजं ाब
के क्षेत्र में हरित क्राति
ं के प्रथम दौर से ही गेहूँ और चावल का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो रहा
है।
चित्र 1. रोहतक शहर का कृषिय प्रतिरूप
शेष
9%

नकदी फसलें
12%

खाद्यान
79%

चित्र से स्पष्ट है कि अधिकत्तर क्षेत्र पर कुछ प्रमख


ु फसलों का
आधिपत्य है। इसके अतिरिक्त रोहतक में 44.26% क्षेत्र गेहू,ँ 17.10% धान, 10.00%
बाजरा व 2.00% गन्ना के अधीन आता है।

धान और गेहूँ की फसल में अधिक सिंचाई के कारण के शिका कर्षण


ू की लवणीयता और क्षारियता बढ़ती जा रहै है। रोहतक जिले की 48.8% भमि
से भमि ू
निम्न व मध्यम लवणीयता से प्रभावित है।

2)प्रति हेक्टेयर उत्पादन में निरंतर कमीः-


ृ के अनसु ार हम गेहूँ,
वर्तमान जनसख्ं या के कायिक घनत्व में वद्धि
धान, बाजरा तथा अन्य खाद्यानों के उत्पादन में आशितित वद्धि
ृ प्राप्त करनें में असफल हो
रहे हैं।

फसल 2006-07 2007-08 2008-09 2009-10 2010-11


गेहूँ 3958 3510 4349 4058 4552
चावल 1833 2253 1276 1415 1502
गड़ु 5190 7055 5472 5954 6708
बाजरा 2110 2276 1734 1567 1408
*Source : Ministry of Agriculture, Govt. of India, New Delhi.
तालिका 1 – मख्ु य फसलों की औसत उपज किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
प्रस्ततु तालिका से साफ है कि विगत वर्षों में चावल व बाजरा की
प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम हुई है और गेहूँ की उत्पादकता में भी वद्धिृ न्यनू है। इसके
विपरित वर्ष 2010-11 में सिर्फ रोहतक जिले के लिए 30636 टन रसायनिक खाद व
484 टन दवाओ ं का प्रयोग हुआ जो पिछले वर्षों की अपेक्षा लगातार बढ़ रहा है।

रसायनिक खादों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के प्रतिवर्ष


बढ़ते आकं ड़ों से साफ है कि कृषि उत्पादों की अपेक्षा निवेशों में वद्धि
ृ अधिक होती जा रही
है जिससे किसानों का आय कम होती जा रही है।
ृ में कमीः-
3) मल्ू य अभिवद्धि
विश्व व्यापार संगठन (WTO) में खाद्यानों के निर्यात के लिए संघर्ष
कर रहे विकासशील देशों को कुछ हाथ नहीं लगा बल्कि इसके विपरित विकसित देशों ने
अपने कृषकों को और अधिक सब्सिडी देकर अपने खाद्यानों के दाम अतं र्राष्ट्रीय बाजारों में
कम कर दिए। जिसका भारत जैसे देशों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

Commodity WPI for WPI for WPI, A Base : 2004-2005 = 100


the Month the Month Year ago Percent Change During
of March of Feb. A Month A Year
2012 2012
(1) (2) (3) (4) (5) (6)
Rice 174.9 173.0 167.0 1.10 4.73
Wheat 171.9 169.7 173.1 1.30 -0.69
Jowar 238.0 250.8 206.2 -5.10 15.42
Bajra 204.4 199.9 178.3 2.25 14.64
Maize 219.3 213.8 191.9 2.57 14.28
Barley 200.6 188.8 184.3 6.25 8.84
Ragi 218.7 216.1 180.3 1.20 21.30
Cereals 179.9 178.0 172.3 1.07 4.41
Pulses 210.2 208.7 191.0 0.72 10.05
Food Grans 185.3 183.4 175.6 1.04 5.52
*Source : Office for the Economic Adviser, M/O Commerce and Industry
सारणी 2 : All India Wholesale Price Index (WPI) Number
सारणी से प्रस्ततु है कि कुछ फसलों रागी, मक्का, बाजरा तथा दालों
के मल्ू यों में वद्धि
ृ जरूर हुई है किन्तु यह भी हमारे देश के आतं रिक उपभोग से है क्यकि
ंू
इनकी उपज कम तथा मांग अधिक है।

4) पौष्टिक आहार की अनपु ल्बधताः-


वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनसु ार भारत का विश्व में कुपोषण
सचू काक ं नीचे से तीसरे स्थान पर है। जिसका प्रमखु कारण यह है कि कुछ फसलों में हरित
क्रांति की वजह से हमने अन्य उच्च पौष्टिक वस्तओ ु ं के उत्पादन में कमी कर दी है। दालें
प्रोटीन की सबसे उत्तम स्त्रोत हैं तथा दधू कै ल्सियम का। इस तरह पौष्टिक आहार के
उत्पादन में कमी होने से विशेषकर बच्चों तथा यवु ाओ ं को अनेक बिमारियाँ हो जाती हैं।
सांस्कृतिक कारण भी अन्य प्रोटीन, विटामिन तथा कै लोरी के ग्रहण में
रूकावट पैदा करते हैं। जैसे उत्तरी भारत के ज्यादातर लोग शाकाहारी आहार के कारण
मछली तथा मर्गेु का माँस नहीं खाते जो उच्च प्रोटीन स्त्रोत है। इसी तरह पर्वो
ू तर भारत में
लोग दधू का सेवन नहीं करते।

पूर्ववर्ती अध्ययनों की समीक्षाः-


विकसित देशों में जहाँ कृषि के आधनि ु क प्रचलनों को प्राथमिक
क्रियाओ ं में पर्णू तः समाहित कर लिया है वहीं भारत में शोध की कमी से इसमें बहुत कम
कार्य हुआ है। हालाकि ं हमारे नीति निर्धारक वैज्ञानिक कृषि के लाभों से परिचित हैं इसलिए
सरकारी नीतियों में नवीन प्राविधिकियों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रयास किए जाते हैं।
किन्तु धरातलीय अध्ययनों के अभाव में ये प्रयास कभी अपने लक्ष्यों के समीप भी नहीं
पहुचँ पाते, पर्वू वर्ती अध्ययन में रोहतक क्षेत्र में विशिष्ट सदं र्भ में तो शोध कार्य अधिक
उपलब्ध नहीं है, किन्तु अन्य महत्तवपर्णू शोध निम्नलिखित हैः-
1) हरियाणा में कृषिय फसल विविधता अध्ययन, CRRID द्वाराः-
 हरित क्राति ं के पश्चात हरियाणा में मोनोक्रॉपिगं फसल पद्धति के विकास चरणों के
संबंध में।
 हरियाणा राज्य का तीन भागों में विभाजन करके उनकी क्षेत्रीय फसल विविधता का
सांख्यिकी विधियों से आकलन।
 हरियाणा राज्य में जिलेवार विभिन्न शस्योत्पादन की उपयक्त
ु ा और प्रदर्शन।

2) स्मार्ट कृषि : पौराणिक बद्धि


ु मता और आधनि
ु क प्राविधिकी,
रावत पब्लिके शन द्वाराः-
 नगरीय तथा परिनगरीय क्षेत्रों में कृषिय अन्तर।
 कृषि क्षेत्र में नवाचार प्राविधिकी और प्रथाओ ं का प्रचलन।
 स्मार्ट नगरीय कृषि तथा कृषि का भविष्य।

3) स्मार्ट कृषि, हमदर्द विश्वविद्यालय, 2015.


 नवीन तकनीक को अपनाने में अप्रशिक्षित कृषकों की सामाजिक-आर्थिक
चनु ौतिया।ं
 संवेदकों पर आधारित स्वचालित सिंचाई प्रबंधन (SNAIMS) - यह पर्यावरण का
तापमान, वायु आर्द्रता, पौध के पत्तों की नमी तथा मिट्टी की नमी पर आधारित सवं ेदक होते
हैं।
 परू क सिंचाई विधि तथा टपकन सिंचाई विधि आदि द्वारा कृषि उपजों का
आधिकारिक उत्पादन।
 सचू ना प्रौद्योगिकी के माध्यम से ई-फार्मिंग द्वारा किसानों की बाजार से पहुचँ को
सल
ु भ बनाने के बारे में।
इन सब के अतिरिक्त बागवानी कृषि में आणविक प्रजनन से संबंधित
अनेक नवीन तकनीकों का विकास हुआ है।
बागवानी पौधों को कठोर पर्यावरण तथा लवणता के अनक ु ू ल बनाने
के भी शौध कार्य किए जा रहे हैं। पशपु ालन में कम्पयटू र आधारित तकनीकों का प्रयोग
करके पशओ ु ं के स्वास्थ्य की निगरानी तथा आहार प्रबधं न के कार्य सगु म बनाने पर शोध
हैं। जिसके लिए पशओ ु ं के कानों में इलैक्ट्रोनिक उपकरण पहनाए जाते हैं।

उद्देश्यः-

 क्षेत्रीय विशिष्टताओ ं के आधार पर फसलों का चयन।


 वाणिज्यिक पशपु ालन को प्रोत्साहित करना।
 उचित प्रोद्यौगिकी का प्रयोग करना।
 आधारभतू संरचना के विकास की योजना बनाना।
 अनबु ंध खेती की संभावनाएं जाँचना।
 सरकार की बागवानी तथा पशपु ालन नीतियों का उद्देश्य न प्राप्त कर सकने की
समालोचना करना।
 नवीन प्रचलनों के सदं र्भ में सास्ं कृतिक अवरोधों व सभं ावनाओ ं को जाँचना।

1. फसलों का चयनः-
वर्तमान समय में कृषकों की आय में बढ़ोतरी तथा जनसंख्या की
आहार पौष्टिकता को ध्यान में रखकर खाद्यानों के साथ बागवानी फसलों, दालों तथा
वक्ष
ृ ारोपण फसलों को भी योजनाबद्ध तरीके से बढ़ावा देने की आवश्यकता है। विभिन्न
साख्यि
ं की आक ं ड़ों की मदद से निश्चित भौगोलिक क्षेत्रों कि लिए उत्तम फसलों का चयन
करना। शस्य क्षेत्र की अवस्थिति के आधार पर अधिकतम लाभ की फसलों को बीजना।
शहरों के अतिरिक्त सीमांत क्षेत्रों तक भी योजनाबद्ध तरीके से परिवहन साधन विकसित
करके उनसे भी अधिकारिक लाभ प्राप्त करना चाहिए। बागवानी तथा वक्ष ृ ारोपण कृषि से
प्रति ईकाई क्षेत्र से कृषक की आय बढ़ने के साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं क्योंकि
इसमें खाद्यान कृषि की अपेक्षा अधिक श्रम लगता है।

निम्नलिखित चित्र से साफ है कि हरियाणा में बागवानी कृषि उत्पादन


अन्य राज्यों की तल
ु ना में पिछड़ा हुआ है किन्तु इसके विस्तार की संभावनाएं प्रयाप्त हैं।
इसलिए इस दिशा में कार्य योजना बनाना जरूरी है।

*Source: Ministry of Agriculture


चित्र : 2 – बागवानी उत्पादन का राज्यवार विवरण

2. पशपु ालनः-
रोहतक क्षेत्र में वर्ष 2010-2011 के आकं ड़ों के अनसु ार प्रति हजार व्यक्ति 65 गाय, 296
भैंसे, 11 भेड़, 11 बकरियां और गधे, घोड़े या टट्टू मात्र 1 ही हैं। कृषक सिर्फ स्वयं उपभोग
के लिए ही पशपु ालन करते हैं किन्तु जिले में वाणिज्यिक पशपु ालन की अपार संभावनाएं
हैं। इसके अतिरिक्त जिले में मर्गी
ु पालन, भेड़ पालन, सअ ू र पालन तथा जलभराव के क्षेत्रों में
मछली पालन की संभावनाएं हैं। जिले की दरू ी राजधानी क्षेत्र से मात्र 78 कि.मी. होने से
इनका परिवहन भी कम खर्च पर किया जा सकता है।

3. उचित प्रौद्योगिकी का प्रयोगः-


वर्तमान समय में वैज्ञानिक शोधों ने कृषिय क्षेत्र की उपज को कई गनु ा
बढ़ा दिया है। किन्तु भारत में विकसित देशों के मक ु ाबले उत्पादकता अभी भी आधी से कम
है। उत्पादन वद्धि
ृ के लिए हमारे भौगोलिक तथा पर्यावरणीय दशाओ ं के अनक ु ू ल जैनेटिक
मोडिफाईड (GM) बीजों को प्रत्येक कृषक तक पहुचं ाना जो रोगाणु रोधक भी है और उपज
भी अत्याधिक दे सके । इसके अलावा किसानों द्वारा शस्य उत्पादन के सभी कार्य भी
आधनि ु क यत्रं ों से ही पर्णू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए क्यकि ंू इनसे उत्पादन में
वद्धि
ृ होती है।
संदरू संवेदन (GIS) से फसलों की निगरानी तथा प्रबंधन से किसानों
को समय-समय पर विशेषज्ञों की सलाह से काफी फायदा हो सकता है।
फसलों के लिए जैविक खादों के निर्माण तथा प्रयोग के साथ कीट
प्रबन्धन के लिए इटि ं ग्रेटिड पैस्ट मैनेजमेंट सिस्टम की योजनाएं बनाना लाभकारी है।
पशपु ालन के लिए जीन रूपातं रित नस्लों (GMO) के प्रयोग से लाभ
को अधिकत्तम किया जा सकता है। कृषकों को पशओ ु ं के आहार तथा रख-रखाव संबंधी
प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होना चाहिए क्यकि ंू आणविक प्रजनन नस्लों (GMO) की उच्च
उत्पादकता उचित तंत्र द्वारा ही संभव है।

4. आधारभतू सरं चना का विकासः-


आधनि ु क वैज्ञानिक किस्मों के उत्पादन तथा वितरण में सबसे महत्तवपर्णू कारक उनके लिए
उपलब्ध आधारभतू संरचना है। क्यंक ू ी शीघ्र खराब होने वाले उत्पादों को परिवहन और
शीत ग्रह भडं ारण की आवश्यकता है। अन्य सभी उत्पादों के लिए भी विक्रेता-खरीददार तत्रं
विकसित करना आवश्यक है। इसके लिए किसानों को ऋण उपलब्ध करवाना या सहकारी
समितियों के माध्यम से निर्माण योजनाएं तैयार करना आवश्यक है। सरकार के पास निजि
संस्थाओ ं को प्रोत्साहन देकर या सार्वजनिक – निजि साझेदारी से भी आधारभतू सवि ु धाएं
उपलब्ध कराने की नितियों के विकल्प मौजदू हैं।
अध्ययन में प्रयुक्त विधिः-
प्रस्ततु अध्ययन में द्वितियक आकं ड़ों का प्रयोग किया गया है। शोध
प्रस्तति
ु का में प्रकाशित एवं अप्रकाशित दोनों ही तरह के आक ं ड़े लिए गए हैं।
शोध समस्या संबंधित नवीनतम आक ं ड़ों का सक ं लन मख्ु यतः
सरकारी वेबसाइटों, अखबार, पत्रिका आदि से किया गया है।
शोध में प्रयक्त
ु सारणी तथा चित्रों को विशेष तौर पर राज्य तथा के न्द्र
की आधिकारिक वेबसाईटों से ही लिया गया है।

अध्ययन क्षेत्र का निर्माणः-


वास्तव में हरियाणा के दक्षिणी-पश्चिमी अर्द्ध मरूस्थलीय क्षेत्र की कुछ
विशेष शष्ु क कृषि संबंधी समस्याओ ं को छोड़कर सम्पर्णू हरियाणा में लगभग समान
समस्याएं ही हैं। इस शोध का प्रमख ु क्षेत्र रोहतक जिला है। यह जिला भौगोलिक क्षेत्र दृष्टि से
हरियाणा के मध्य में स्थित है, जिससे इसकी भौतिक पर्यावरणीय तथा सामाजिक
विशिष्टताओ ं का प्रभाव आस-पास के सभी जिलों में भी दृष्टिगत है।
दसू रा कारण यह भी है कि शोधार्थी अजय नेहरा का निवास स्थान
जिले के गावं में है जिससे वह जिले की कृषि सबं धि ं त समस्याओ ं से पहले भी अवगत है
तथा आक ं ड़े एकत्रित करने में शोधार्थी को भाषाई व सांस्कृतिक लाभ मिल सके गा।

शोध परिणामः-
भारत की दो-तिहाई जनसख्ं या कृषि तथा उससे सल ं ग्न कार्यों में लगी
हुई है किन्तु उनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है। यह शोध वर्तमान विश्व में प्रचलित
नवाचारों को भारतीय परिपेक्ष्य में स्थापित करने की कठिनाईयाँ ज्ञात करने तथा उनके
प्रबधं न के सझु ाव देने से सबं धि
ं त है।
यह शोध क्षेत्र की सम्पर्णू समस्याओ ं तथा विशिष्टताओ ं का धरातलीय
अध्ययन करके योजनाओ ं के कार्यन्वयन के लिए आधार प्रस्ततु करे गा।
शोध क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक उत्थान तथा उत्पादन बढ़ाने के
सदं र्भ में सहायता प्राप्त होगी।
सदं र्भ सच
ू ीः-
1. Economic Survey of Haryana 2019-2020.
2. Report on Diversification of Agricultural crops in Haryana by
CRRID.
3. District fact book Rohtak by Datanet India Pvt. Ltd.
4. Report on performance and Suitability of Growing crops in
Haryana by Dr. Ranphul.
5. Report on Haryana Agriculture and farmers welfare by ICFA.
6. Wikipedia.com
7. Agriculture Export of India by APEDA.
8. UN Report on Malnutrition’s among Children in India.
9. Agricultural Geography by Dr. Alka Gautam.

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