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ी परमामने नम:
ी पचदशी
थकार : ी वारय वामी
यायाकार : वामी शंकरानद
!तावना
मानव मा" के #लए क&याणकार( जीवन जीने का वधान वेद मे संह(त है । वेद क.
ह( अितम #श1ा वेदात है । उसे उप3नषद भी कहते ह6। उसका परम पव" 7ान
मन8य
ु ु कर आनद, शाित और पण?
को सब क&मष से म< ु ता !दान कर दे ता है ।
!ब@द
ु लोग !ाBचन काल से ह( उसका आदर करते आ रहे ह6। पहले यह 7ान भारत
मC ह( केिDत था, Eकतु अब संसार क. सभी भाषाओं मC यह 7ान उपलGध है ।
वै7ा3नक वकास के साथ आवागमन और सHपक? के साधन बढे और उसी के साथ
यह 7ान भी दरु-दरु फैला। अय दे शL मC इसका आदर होते दे खकर हम भारतवा#सयL
ने भी अपने पव?
ू जL के Pारा आिज?त ् इस सHपQ का म&य
ू समझा और इसका
अ@ययन कर इसे अपने जीवन मC लाने का !यास कर रहे ह6।
ू
'कटथद(प ' नामक आठवC अ@याय मC कटथ
ू आमा का पन
ु : 3नoपण Eकया है और
उसके सवा?Bध{ान, 3नव?कार, 3नलप
और अवनाशी ल1णL क. तक? के Pारा थापना
क. है । उQम अBधकार( पiष
ु वचार Pारा ह( उसका 7ान !ा] कर लेते ह6 Eकतु
म@यम अBधकार( Bचतन Pारा अपना BचQ उसमC थापत करते ह6। इस Bचतन
!कया
ृ का वण?न '@यानद(प' नामक नवC अ@याय मC Eकया गया है । उसमC सHवाद( और
वसHवाद( sम का अतर बता कर यह Tदखाया गया है क. @यान-साधना सHवाद(
sम का एक !कार है और उससे सत ् क. !ा3] होना सहज वाभवक है । 3नग?ुण qr
का Bचतन करने पर Bचतनीय वतु यप मन क. क&पना है , Eकतु उसके
फलवoप सवoप qr क. उपलिGध होती है ।
-वामी शंकरानद
मंधना,
कानपरु २०९२१७
१० #सतHबर - १९९४
ॐ तसत।
ी परमामने नम:।
अ@याय १
!यक् -तव-ववेक
मंगलाचरण
नम:
नम: ीशंकरानद गiपादाHबजमने
ु ु ।
सवलास महामोह ाहासैक कम?णे।।
कोई भी वा गi
ु -कपा
ृ से ह( !ा] होती है । वेदात 7ान तो गi
ु से ह( !ा] होता है ।
गi
ु क. कपा
ृ से ह( अ7ान नY होकर दय मC श@द
ु 7ान और आनद का !काश
होता ह6 इस#लए अ@याम वा के िज7ासु #श8य को अपने गi
ु मC ईxर भाव रखकर
भf< करनी चाTहए।
3तयाँ
ु आमा और परमामा क. एकता का 7ान कराती है । गi
ु -कपा
ृ से वह 7ान
दय मC !कट होता है । 3तयL
ु ने वयं इस बात पर बल Tदया है । छादोeय
उप3नषX के अनसार
ु 'आचाय?वान ् पiषो
ु वेद'-अथा?त आचाय? (गi
ु ) क. सेवा करने वाले
को ह( यह 7ान !ा] होता है । मडक
ु उप3नषX मC कहा गया है Eक तव 7ान क.
िज7ासा होने पर गi
ु के पास जाना चाTहए। 'तTP7ानाथ स
ु वा#भगछे स#मपाण: ो"यं qr3न{म ्'-अथा?त िज7ासु को हाथ मC स#मधा
गiमे
लेकर ो"य और qr3न{ गi ु क. शरण मे जाना चाTहए। इस 3त
ु -वचन मC सi
ु के
ल1ण भी बता Tदये गये ह6।
अवायमतरे वत?माना:
वयं धीरा: पिडHमयमाना:।
दDHयमाणा: प_रयित मढा
ू
अधेनैव नीयमाना यथाधा:।।
तापय? यह है Eक मन8य
ु को ऐसे गi
ु के पास जाना चाTहए िजसके 7ान के ने" खले
ु
हL और वयं मोहम<
ु होकर आमानद मC रमण कर रहा हो। ी शंकरानद महाराज
ऐसे ह( गi
ु ह6। उनके चरण कमलL क. कपा
ृ से मोह और उसके प_रणामवoप होने
वाले द:ु ख आTद सब #मट जाते ह6। वारय वामी को इसका यf<गत अनभव
ु है ।
तपादाHबoह
ु PP सेवा3नम?ल चेतसाम।्
सखबोधाय
ु तवय ववेकोsयं वधीयते।।२।।
'उन दोनL पाद-पL क. सेवा से िजनका BचQ 3नम?ल हो गया है उहC सखपव?
ु ु क तव
का 7ान कराने के #लए इस ववेक क. रचना क. जा रह( है ।'
ऐसे BचQ-श@द
ु अBधकार( को तवबोध कराने के #लए थकार '!यक् -तव-ववेक'
नामक इस !करण क. रचना करते है । उपाBध रTहत 3नम?ल श@द
ु वतु को तव
कहते ह6। यहां तव का तापय? सिचदानद घन परqr है । वह( अपना सवoप है ।
शर(र आTद उपाBधयL से पथक
ृ ् कर उसका अनभव
ु !ा] करना तव-ववेक है ।
जीव का श@द
ु वoप आमा है । सत ्, Bचत ्, और आनद उसके ल1ण ह6। यिvQ
ु और
अनभव
ु के Pारा इनका बोध कराने के #लए पहले आमा क. सयता #स@द करते ह6।
इस पक?ृ या से 7ात से अ7ात क. ओर जाते ह6।
पहले जात ् अवथा मC हो रहे 7ान का वचार करC । इस समय ो", वक् , ने", िजहा
और ना#सका से jमश: शGद, पश?, oप, रस और गंध पाँच वषयL का 7ान होता है ।
जगत ् क. सभी वतओं
ु का 7ान इह(ं पाँच oपL मे होता है । वषयL के पाँच oप होने
के कारण 7ान भी पाँच !कार का होता है, जैसे शGद7ान, पश? 7ान आTद। Eकतु
श@द
ु 7ान एक ह( है । वह( एक 7ान शGद हण करने पर शGद7ान है और पश?
हण करने पर पश?7ान है । हम अपने अनभव
ु से जानते ह6 Eक हमारे एक 7ान मC
ह( शGद आTद वषय एक के बाद एक आते ह6। वषय बदलते रहते ह6, Eकतु उनको
हण करने वाला एक ह( रहता है । वषय के बदलने के साथ 7ान नह(ं बदलता। जैसे
एक Eकलो बाँट से एक Eकलो गेहूँ तौलने के बाद, एक Eकलो चीनी और Eफर एक
Eकलो दाल तौलते ह6, तो तौल( हईु वतु बदलती जाती है Eकतु एक Eकलो का बाँट
वह( रहता है, वैसे ह( एक ह( 7ान से सब वषय जाने जाते ह6। वषयL के बदलने पर
7ान नह(ं बदलता।
'वन मC भी तPत ् है । यहाँ वे वषय िथर नह(ं होते Eकतु जात ् अवथा मC
िथर होते ह6। इस#लये दोनL अवथाओं मC भेद है । Eकतु दोनL अवथाओं का संवत ्
(7ान)एक oप है । उसमC भेद नह(ं है ।'
वन क. वतओं
ु का अिथर वभाव दे खकर ह( हम वन को #मyया कहते ह6।
जात ् क. वतयC
ु उसक. अपे1ा अBधक िथर ह6 इस#लये हम इसे सय समझते ह6।
vया इन दोनL अवथाओं का 7ान एक दसरे
ू से #भन है? vया वन का 7ान दसरा
ू
है और जात ् का 7ान दस
ू रा है ? vया वन का 7ान भी वन क. वतओं
ु के
समान अिथर और नxर है ? यप वन के वषय #भन-#भन !कार के और
अिथर ह6, तो भी उनका 7ान एकoप और िथर है । इस#लए यप वन #मyया
समझा जाता है Eकतु वन का 7ान #मyया नह(ं होता। वन का 7ान भी वह( है
जो जात ् मC हम वषय से पथक
ृ ् कर श@द
ु oप मC अनभव
ु करते ह6। एक ह( 7ान
से हम वन और जात ् क. पथक
ृ ् अवथाओं का अनभव
ु करते ह6। जो जात ् का
DYा है वह( वन का DYा है । अपने एक ह( 7ान मC हम दोनL अवथाओं को आते-
जाते दे खते ह6। इस#लए 7ान क. एकता जात ् से वन तक एक समान है ।
स]ोिथतय
ु सौष]
ु तमबोधो भवेम3त
ृ : ।
सा चावब@द
ु वषयाSव ब@दं
ु तQदा तम: ।।५।।
सष3]
ु ु अवथा मC रहने वाला श@द
ु 7ान वह( है जो जात ् और वन अवथाओं मC
था-
स बोधो वषयाX #भनो न बोधावनबोधवत।्
एवं थान"यSयेका संवQPTmनांतरे ।।६।।
'वह बोध वषय से #भन है , Eकतु जैसे वन का बोध #भन नTहं है वैसे ह( जात ्
के 7ान से यह #भन नह(ं है । इन तीनL अवथाओं मC 7ान एक ह( है । उसी !कार
दसरे
ू Tदन भी वह( एक 7ान रहता है ।'
वषय भेद से हमार( तीन अवथायC ह6। जब हमC िथर वषयL का 7ान होता है तो
वह जात ् अवथा है, जब अिथर वषयL का 7ान होता है तो वह वन अवथा है ।
जब िथर-अिथर Eकसी वषय का बोध नह(ं होता तो वह सष3]
ु ु अवथा है । इन
तीनL क. जानकार( 7ान मC ह( होती है । इससे #स@द होता है Eक एक ह( 7ान तीनL
अवथाओ मC वमान रहता है। उसमC भेद और पथकता
ृ कभी नह(ं होती। वह
3नरतर, शावत और 3नय है ।
चौबस घटे अथा?त ् एक Tदन-रात मC तीन ह( अवथायC होती ह6। उन तीनL अवथाओं
मC 7ान सतत ् बना रहता है । इस श@द
ु 7ान क. 3नरतरता पहचाननी चाTहए। जैसे
यह एक Tदन-रात मC अखड और सतत ् बना रहता है वैसे ह( वह दसरे
ू Tदन-रात भी
बना रहता है । उसका न अभाव होता है और न वह बदलता ह( है ।
आमा क. वयं!काशoपता
काशoपता
मासाGदयगक&पे
ु षु गतागHये8वनेकधा।
नोदे 3त नातमेयेका संवदे षा वयं!भा।।७।।
यTद कहो Eक शGद 7ान के बाद पश? या oप का 7ान होता है अथा?त ् एक 7ान नY
होकर दसरा
ू 7ान उपन होता है तो ऐसा कहना उBचत नह(ं है । हम पहले ह( दे ख
चक
ु े ह6 Eक वषय (शGद आTद) आते जाते ह6, उनका उदय-अत होता है Eकतु 7ान
एक ह( रहता है । वह बार-बार नY होकर उTदत नह(ं होता।
यTद 7ान को उTदत और नY होने वाला मानो तो यह बताना होगा Eक उसके उदय-
अत का 7ाता कौन है? यTद कहो Eक 7ान ह( 7ान के उदय-अत का 7ाता है तो
यह मानना उBचत नह(ं है । 7ान का उदय होने से पव?
ु और उसके नY होने के बाद
उसका जानने वाला उससे पथक
ृ ् होना चाTहये तभी वह 7ान सHभव होगा। इस
समया से बचने के #लए यTद कहो Eक एक 7ान के उदय-अत का जानने वाला
दसरा
ू 7ान हो सकता है, तो यह भी उBचत वचार नह(ं है। हम दे खते ह6 Eक 7ान और
उसके Pारा !का#शत होने वाले वषय तो पथक
ृ ् ह6, Eकतु 7ान मC न भेद है और न
उसक. दो पथक
ृ ् सQायC ह6। यह अनभव
ु से #सn ह( है , तक? से भी #सn हो सकता है।
यTद 7ान का 7ाता दस
ू रा 7ान मानC तो उसका 7ाता भी उससे पथक
ृ ् अय 7ान
मानना आवhयक हो जायेगा। इस jम का कह(ं अत न होगा और अनावथा नामक
दोष उपिथत होगा। इस#लये 7ान को एक ह( मानना तक?संगत है ।
7ान के एक होने और उसके अप_रवत?नीय होने का बोध उसी 7ान से होता है । 7ान
एक !कार का Tदय !काश है । जैसे सय?
ू का !काश वयं अपने को !का#शत करता
है , उसे !का#शत करने के #लए द(पक आTद Eकसी अय !काश क. आवhयकता नह(ं
होती वैसे ह( 7ान वत: अपने को !का#शत करता है, उसे !का#शत करने के #लए
Eकसी अय 7ान क. आवhयकता नह(ं है । इस#लए 7ान को वयं !काशवoप
समझना चाTहए।
आमा क. परमानदता
याया--वह 7ान िजसमC ववध वषयL और तीनL अवथाओं का बोध होता है , 3नय
और वयं !काश है । हम उसे अपने आप से अपथक
ृ ् अनभव
ु करते ह6, इस#लये यह
आमा है । यTद म6 अपने को 7ान से पथक
ृ ् मानंू तो मझे
ु वीकार करना पड़ेगा Eक
म6 या तो जड़ हूँ या Eफर उस 7ान से पथक
ृ दसरा
ू कोई 7ान हंू । अपने को जड़
मानकर म6 Eकसी 7ान को अपना 7ान वीकर नह(ं कर सकता। 7ान से पथक
ृ ् अपने
को जड़ मानना भी 'वदतो याघात' दोष है । यह कहना उसी !कार है जैसे म6 कहूँ Eक
मेरे मह
ँु मC िजहा नह(ं है। इसी#लये म6 अपने को 7ान से पथक
ृ ् मान ह( नह(ं सकता।
यTद म6 कहूँ Eक म6 वषयL को हण करने वाले 7ान से पथक
ृ ् कोइ दसरा
ू 7ान हूँ तो
यह मानना पड़ेगा Eक इन दोनL 7ानL मC वभाजक रे खा vया है? यह हम दे ख चक
ु े ह6
Eक 7ान का ल1ण अवभ< रहना है, जो यिकंBचत ् वभाजन !तीत होते ह6 वे 7ेय
क. उपाBध के कारण भा#सत होते ह6, 7ान वत: अवभा~य है । इस#लए यह( मानना
उBचत है Eक 7ान मझसे
ु अ#भन है और वयं !का#शत होने के कारण 7ान से ह(
7ान का अनभव
ु हो रहा है । एक शGद मC कह सकते है Eक 7ान आमा है ।
आमा मC परम !ेम होने के कारण उसके आनदवoप होने का !माण 3त
ु भी दे ती
है । उसे उnृत करते हए
ु आचाय? कहते ह6-
त!ेमामाथ?मय" नैवमयाथ?माम3न।
अततपरमं तेन परमानंदताSSमन:।।9।।
'वह !ेम अय" भी आमा के #लए ह( है, Eकतु आमा मC जो !ेम है वह अय के
#लए नह(ं है । इस#लए आमा का !ेम परम !ेम है । इस कारण आमा क.
परमानदता #सn होती है ।'
याया--हम दे ख चक
ु े ह6 Eक सख
ु और !ी3त का 3नय सHबध है । जहां कह(ं सख
ु
का अनभव
ु होता है उसी के !3त हमार( !ी3त भी होती है। इस#लए िजस वतु या
यf< मC सख
ु पाने क. आशा होती है उसी से !ेम Eकया जाता है । द:ु ख से !ीती
Eकसी को नह( है । न कोई द:ु ख चाहता है और न कोई द:ु ख दे ने वाले वतु चाहता है ।
इस 3नयम से हम अपनी !ी3त को दे खकर सख
ु का ोत खोज सकते ह6। वह ोत
हमC चाहे सख
ु कभी न दे Eकतु उसमC सख
ु क. क&पना ह( हमारे मन मC उसके !3त
!ी3त उपन कर दे ती है । यTद हमारे मन मC Eकसी वतु या यf< के !3त !ी3त है
तो यह 3नय मान लेना चाTहए Eक उसमC सख
ु !ा] करने क. आशा करते ह6।
मान लो, हमC धन मC !ी3त है । हम अपने मन मC उस !ी3त का अनभव
ु करते ह6।
इससे यह संकेत #मलता है Eक हम धन मे सख
ु दे ने क. सामyय? समझते ह6। इसी
!कार यTद हम मकान या फनचर मे !ी3त करते ह6 या गाय, घोडे आTद पशु मे !ी3त
रखते ह6 तो वहां भी सख
ु क. आशा करते है । यTद माता-पता या प3त-पी या प"
ु -
पौ" मC हमार( !ी3त है तो वहां भी हम सख
ु पाने क. आशा रखते ह6। यह मनोव7ान
का एक सरल #सnात है ।
'सहोवाच न वा अरे पय:ु कामाय प3त: !यो भव3त। आमनतु कामाय प3त: !यो
भव3त। न वा अरे जायायै कामाय जाया !या भव3त। आमनतु कामाय जाया !या
भव3त। न वा अरे प"ाणां
ु कामाय प"
ु : !या भवित। आमनतु कामाय प"ा
ु : !या
भवित। न वा अरे वQय कामाय वQं !यं भव3त। आमतु कामाय वQं !यं
भव3त। न वा अरे पशनां
ु कामाय पशव: !या भवयामनतु कामाय पशव: !या
भवित।'
उहोने कहा-अर( मै"3े य! यह 3नय है Eक प3त के !योजन के #लए प3त !य नTहं
होता, अपने ह( !योजन #लए प3त !य होता है ; पी के !योजन के #लए पी !य
नह(ं होती, अपने ह( !योजन के #लए पी !य होती है; प"L
ु के !योजन के #लए प"
ु
!य नTहं होते, अपने ह( !योजन के #लए प"
ु !य होते है; धन के !योजन के #लए
धन !य नह( होता, अपने ह( !योजन के #लए धन !य होता है, पशओं
ु के #लए पशु
!य नह(ं होते, अपने ह( !योजन के #लए पशु !य होते ह6।
या7व&vय आगे कहते ह6 Eक सबके !योजन के #लए सब !य नTहं होते, अपने ह(
!योजन के #लए सब !य होते ह6। यह आमा परम !ेमवoप है । यह( दश?नीय,
वणीय, मन3नय और @यान करने योeय है ।
!ेम और सख
ु का 3नय सHबध होने के कारण यह भी #सn हो जाता है Eक परम
!ेमवoप आमा ह( परम आनदवoप है ।
आमा और qr क. एकता
'इस !कार यf< ु Pारा आमा सत ्-Bचत ् और परानदoप (#सn हआ ु )।' उसी वBध
परqr भी है । इस#लए उन दोनL क. एकता का उपदे श उप3नषदL मC Eकया गया है । '
वतत
ू : हर यf< अपने आप को जानता है vयLEक वह चेतन है, 7ान वoप है ।
Eकतु उसे यह 7ात नह(ं होता Eक वह तो अपने शn
ु oप मC परमामा है । यह 7ान
ू , यf<
3त ु और अनभव
ु !माण से !ा] होता है । अगले tोक मC बताते ह6 Eक अपने
आमा Eक यथाथ? 7ान मC बाधा vया है ।
याया--यf<
ु !माण और शा} !माण से यह तो #सn हो गया Eक हम अपने
सवoप मC परqr परमामा ह6, इस#लए 3नय म<
ु और आनद वoप ह6, Eकतु
अब दे खना चाTहए Eक हम अपने अनभव
ु मे vया पाते ह6। vया हम अपने अतत?म
मC परमानद का रस ले रहे ह6? vया हमे कोई अभाव और द:ु ख पीड़ा नह(ं दे रहा है?
यTद हमे अपने आप से परम !ेम है ,यह वाभावक और सय है , तो हमे वयं
आनद वoप होना ह( चाTहए अयथा !ेम और सख
ु के 3नय सHबध का 3नयम
विछन होता है । Eकतु अनभव
ु से यह #स@द नह(ं होता। यTद हम आमानद का
अनभव
ु करते तो वषयL क. कामना होने का !¢ ह( नह(ं था। हमC जो 1ुD वषय
सखL
ु क. कामना होते है , उससे #सn होता है Eक हमC आम के आनद का पY 7ान
नह(ं है ।
अ@येतवग?
ृ म@यथ प"ा@ययन
ु शGदवत।्
भानेयभानं भान8य !3तबंधेनयु~यते।।12।।
इसी !कार अपने आमा का आनद अपने आपमे परम !ेम होने के कारण भा#सत
तो होता है Eकतु वह पY अनभव
ु मे नह(ं आता। इससे 7ात होता है Eक उसके
साथ कोई !3तबंध अवhय है । !3तबंध रहने तक हमC अपने आनद पY अनभव
ु नह(ं
होता और हम सांसा_रक सख
ु पाकर अपने को सखी
ु बनाना चाहते ह6।