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वायु हमारी जिन्दगी का अत
वायु हमारी जिन्दगी का अत
1 नाइट्रोजन N2 78.09
2 ऑक्सीजन O2 20.94
3 ऑर्गन Ar 0.93
5 निआन Ne 0.0018
6 हीलियम He 0.00052
7 क्रिप्टन Kr 0.0001
9 हाइड्रोजन H2 0.00005
12 जिनान Xc 0.000008
13 ओजोन O3 0.000002
17 जल H2O 1-3
ू ण अग्नि के आविष्कार
वायु तत्व वस्तु तः प्राण ही है । ऐतिहासिक रूप से वायु का प्रदष
के साथ ही शु रू हो गया था। इसके बाद लौह और सोने की प्रोसे सिंग के साथ इसमें
् होने लगी और कोयले के उपयोग के साथ लगातार वृ दधि
वृ दधि ् हो रही है । 18 वीं
ू ण
शताब्दी के वाष्प इं जन के आविष्कार के साथ और औद्योगिक क् रान्ति के साथ प्रदष
् के साथ ही इसमें
के एक नये यु ग का प्रारम्भ हुआ। इस दौरान मोटर वाहनों में वृ दधि
् हुई है । वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य सं गठन (डब्लू.एच.ओ.) के अनु सार
बे तहाशा वृ दधि
ू ण एक एै सी स्थिति है जिसके अन्तर्गत बाह्य वातावरण में मनु ष्य तथा उसके
‘वायु प्रदष
ू रे शब्दों में
पर्यावरण को हानि पहुचाने वाले तत्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते हैं ।‘ दस
वायु के सामान्य सं गठन में मात्रात्मक या गु णातात्मक परिवर्तन, जो जीवन या
जीवनोपयोगी अजै विक सं घटकों पर दुष्प्रभाव डालता है , वायु प्रदष
ू ण कहलाता है ।
ू ण विश्व की राजनै तिक सीमाओं से परे हैं । यह अपने स्रोतों से दरू
वायु मण्डलीय प्रदष
के वायु मण्डलों और मानवीय बस्तियों को प्रभावित करता है । मानवीय क्रिया कलापों
ू ण में विद्यु त गृ ह (विशे षतः कोयले पर आधारित), अम्लीय वर्षा,
से उत्पन्न प्रदष
मोटरवाहन, कीटनाशक, जं गल की आग, कृषि कार्यों द्वारा उत्पन्न कचरा, सिगरे ट का
धु आं, रसोई का धु आं आदि प्रमु ख कारक हैं । इससे पूर्व इन कारकों पर विस्तार से चर्चा
ू ण का मनु ष्य के स्वास्थ्य एवं जीव-जन्तु ओं तथा पे ड़-पौधें पर क्या
करें , वायु प्रदष
दुष्प्रभाव पडता है इसको दे खें-
ू क:
वायु के प्रमु ख प्रदष
1- सल्फर डाई आक्साइड (SO2)
2- नाइट् रोजन आक्साइड (NO)
3- कार्बन मोनो आक्साइड (CO)
4- सालिड पार्टिकुले ट मै टेरियल (Solid Particulate material)
5- लौह कण
6- ओजोन (O3)
7- कार्बन डाई आक्साइड (CO2)
8- हाइड्रोकार्बन्स
9- मीथे न
10- कुछ धातु यें
11- विकिरण।
1 एल्डीहाइडस श्वशन तेल, वसा, ग्लीसराल का तापीय ऊपरी श्वशन तंत्र और संस्थान में जलन
विच्छेदन (Thermal Decomposition)
2 आर्सेनिक पीलिया कोयला और तेल की भट्ठियां (Glass फे फड़ों को नुकसान (फे फड़ों और त्वचा का कैं सर)
Manufacturing)
3 अमोनिया पीलिया रासायनिक प्रक्रिया - डाइस का बनना, विस्फोटक, फे फड़ों को नुकसान (फे फड़ों और त्वचा का कैं सर )
उर्वरक सामग्री
4 बैंजीन तेल शोधक कारखाने, मोटर वाहन (Smellcis) लम्बे समय तक सम्पर्क से ल्यूकीनिया की संभावना
10 हाइड्रोसायनाइड Fumigation ब्रास भट्टियां Blast Furnaces; आंखों पर प्रभाव, गले में खराश, सिरदर्द, फे फड़ों
Chemical Manufacturing रासायनिक पर प्रभाव
उद्योग
11 हाइड्रोजन क्लोराइड Fumigation ब्रास भट्टियां Blast Furnaces; आंखों पर प्रभाव, गले में खराश, सिरदर्द, फे फड़ों
Chemical Manufacturing रासायनिक पर प्रभाव
उद्योग
12 हाइड्रोजन फ्लोराइड पेट्रोलियम शोधक कारखाने, उर्वरक त्वचा में जलन, आंखों में जलन
13 हाइड्रोजन सल्फाइड रिफाइनरीज तेलशोधक, मल संसोधन ( Sewage आंखों में जलन, मितली, दुर्गंध
Treatment)
14 मैगनीज स्टील प्लांट ताप विद्युत गृह अधिक दिनों तक असुरक्षित अवस्था में रहने से
पार्कि सन बीमारी होने का खतरा
16 नाइट्रोजन ऑक्साइड साफ्ट कोल, मोटर वाहनों का उत्सर्जन खांसी, दमा इन्फलूएंजा
17 ओजोन प्रकाश की उपस्थिति में नाइट्रोजन के आक्साइड्स और आँखों में जलन, अस्थमा को बढ़ावा
हाइड्रोंकार्बन्स से प्राप्त
19 लैड स्मैल्टर्स मोटर वाहनों का धुआं मस्तिष्क की खराबी, उच्च रक्तचाप, शारीरिक वृद्धि
रोकता है
20 सल्फर डाई आक्साइड स्मैल्टर्स कोयला और तेल के प्रज्जवलन से सांस में रुकावट, जलन आदि
21 Suspended solids विभिन्न उत्पादनरत इकाइयों से हवा में रबर के कण Emphysema आंखों में जलन, सम्भवतः कैं सर
भी ( जैसे धुआं, राख इत्यादि )
ू ण के स्रोत -
वायु प्रदष
ू त होने की प्रक्रिया वायु प्रदष
प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से वायु के दषि ू ण
ू ण के दो मु ख्य स्रोत हैं : प्राकृतिक एवं मानवीय।
कहलाती है । अतः वायु प्रदष
प्राकृतिक स्रोत -
ू त करते हैं । यथा ज्वालामु खी क्रिया,
प्रकृति में ऐसे कई स्रोत हैं जो वायु मण्डल को दषि
दावाग्नि (वनों की की आग), जै विक अपशिष्ट इत्यादि। ज्वालामु खी विस्फोट के दौरान
उत्सर्जित लावा, चट् टानों के टु कड़े , जल वाष्प, राख, विभिन्न गै सें इत्यादि वायु मण्डल
ू त करते हैं । दावाग्नि या वनों की आग के कारण राख, धुं आ गै सें इत्यादि वायु को
को दषि
ू त करतीं है । दलदली क्षे तर् ों में जै विक पदार्थो के सड़ने के कारण मीथे न गै स
प्रदषि
ू त करती है । इसके अतिरिक्त कोहरा, उल्कापात, सूक्ष्मजीव,
वायु मण्डल को दषि
ू ण में अहम भूमिका निभाते हैं । किन्तु प्राकृतिक
परागकण, समु दर् ी खनिज भी वायु प्रदष
ू ण अपे क्षाकृत सीमित एवं कम हानिकारक हैं ।
स्रोतों से होने वाला वायु प्रदष
मानवीयस्रोत -
ू ण निरन्तर बढ़ रहा है ।
मानव (मनु ष्य जाति) के विभिन्न क्रिया कलापों द्वारा वायु प्रदष
ू ण के प्रमु ख मानवीय स्रोत निम्न हैं -
वायु प्रदष
1- वनों का विनाश –
3- परिवहन –
4- घरे लू कार्यों से –
मनव जीवन के सं चालन हे तु ऊर्जा की आवश्यकता होती है । इनमें घरे लू कार्य, उद्योग,
कृषि, परिवहन आदि सम्मिलित हैं । घरे लू कार्यों जै से भोजन पकाना, पानी गर्म करना
आदि में कोयला, लकड़ी, उपले , मिट् टी का ते ल, गै सें इत्यादि का प्रयोग ईंधन के रूप में
होता है । इन जै विक ईधनों के दहन के फलस्वरूप विभिन्न विषै ली गै सों का निर्माण होता
ू त करतीं हैं । इनसे कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो
है , जो कि वायु मण्डल को प्रदषि
आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट् रोजन आक्साइड, कार्बनिक कण, धुं आ इत्यादि
ू क निकलते हैं । परम्परागत ईंधन (लकड़ी, कोयला, उपला) की तु लना में रसोई
जै से प्रदष
ू ण करती है । आधु निक घरों में रे फ् रीजरे टर, एअर
गै स (एलपीजी) गै स अधिक प्रदष
कण्डीशनरों का प्रयोग एक सामान्य सी बात है । इन विद्यु त चालित उपकरणों से
निकलने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गै स (सीएफसी) वायु मण्डल में उपस्थित ओजोन
परत की विनाश का सबसे अधिक उत्तरदायी कारक है ।
5- ताप विद्यु त गृ ह
दे श में हरित क् रान्ति के फलस्वरूप कृषि कार्यों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ा है ।
इसके साथ ही फसलों में विभिन्न कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है । इन
रासायनिक कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान ये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप् से
वायु मण्डल में प्रविष्ट होकर शु द्ध वायु मण्डल सं घटन को खराब करती हैं । अने क
कीटनाशी रसायनों का स्थायी प्रभाव अधिक खतरनाक है क्योंकि ये अपघटित होने में
बहुत लम्बा समय ले ते है या अपघटित नहीं होते जै से सीडीटी, बीएचसी, डिएल्ड्रिन,
एण्डोसल्फास आदि।
7 - खनन –
8 - रे डियो धर्मिता
रे डियोधर्मी पदार्थों से अल्फा, वीटा तथा गामा विकिरण अनवरत निकलते रहते हैं , जो
पृ थ्वी पर रहने वाले जीवधारियों के लिये अत्यन्त हानिकारक हैं । आणविक विस्फोटों एवं
आणविक हथियारों के परीक्षण के दौरान रे डियोधर्मी पदार्थों से निकलने वाले विकिरण एवं
ू त करती है । परमाणु ऊर्जा सं यत्रों में तकनीकी एवं मानवीय
उष्मा वायु मण्डल को दषि
ू ण का कारण
त्रुटियों में जब कभी रे डियोधर्मी विकिरण बाहर निकलते हैं तो वे वायु प्रदष
बनते हैं ।
9- रासायनिक पदार्थों एवं विलायकों द्वारा प्रकृति में पाये जाने वाले या सं श्ले षित कुछ
ू ण होता है ।
ऐसे पदार्थ होते हैं । जिसके भौतिक या रासायनिक होने से भी वायु प्रदष
रसायनशालाओं तथा उद्योगों में प्रयु क्त किये जाने वाले अने क विलायकों द्वारा भी
ू ण फैलता है । रसायनों से सम्बधित कुछ उद्योगों से जै से रबर, पे ण्ट, प्लास्टिक
प्रदष
आदि के निर्माण के दौरान विषै ले उपउत्पाद प्राप्त होते हैं , जो वाष्पीकरण क्रिया के
ू त करते हैं ।
फलस्वरूप वायु मण्डल को प्रदषि
11- अन्य –
ू ण का वनस्पतियों पर प्रभाव –
वायु प्रदष
जन्तु ओं पर –
वायु मण्डल पर –
1- सभी महानगरों (10 लाख या अधिक आबादी वाले ) के आवासीय क्षे तर् ों में पूर्व
ू ण फैलाने वाले उद्योगों को तत्काल पूर्व निर्धारित स्थानों में (औद्योगिक
स्थापित प्रदष
बस्तियों में ) स्थानान्तरित किया जाना चाहिये । इससे उपलब्ध भूमि को बे चने मात्र से ही
नवीन स्थान पर उद्योग स्थापित करने से भी कहीं ज्यादा आर्थिक लाभ भी होगा।
2- वायु मण्डल में घूल, नमी एवं धुं आ से उत्पन्न होने वाले घूम-कोहरा पर नियं तर् ण हे तु
अधिक धुं आ उगलने वाली चिमनियों की उंचाई 80-100 मी. कर दी जाये एवं उन पर धुं ये
से पु नः ठोस उप उत्पादन पै दा करने के सं केन्द्रण सं यन्त्र लगाये जायें । दिल्ली, बम्बई
एवं अन्य महानगरों में ऐसे प्रयास किये जाने भी लगे हैं ।
3- 25 लाख से अधिक जनसं ख्या वाले महानगरों में किसी भी स्थिति में 50 किमी. के घे रे
ू ण पै दा करने वाले सभी प्रकार के
में धुं आ उगलने वाले एवं वायु मण्डल में विशे ष प्रदष
उद्योगों की स्थापना पर राष्ट् रीय स्तर पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लागू किया जायें । 10 लाख
से 25 लाख जनसं ख्या वाले बडे नगरों में भी ऐसी ही व्यवस्था का यथासम्भव पालन
किया जाये ।
4- जहां की मशीनों महीन कण उगलती हैं वहां उनको वायु मण्डल में फैलाने से रोकने हे तु
मशीन-कपड़े या विशे ष फिल्टर जालियों द्वारा उन्हें रोककर ऐसे पदार्थों को विशे ष
ू ण के बचाव हे तु किये गये खर्चे
प्रक्रिया द्वारा पु नः एकत्रित किया जाये जिससे कि प्रदष
अलाभकृत नहीं रहें । सीमें ट व पत्थर के पाउडर उद्योग आदि में इसे अनिवार्य किया जाना
चाहिये ।
6- वाहनों से निकलने वाले धुं ए को नियं त्रित करना एवं उनसे होने वाले सभी प्रकार के
रिसाव को नियं त्रित करना प्रथम आवश्यकता से भी सभी वाहन निश्चित मापदण्ड से
कम धुं आ उगलने वाले होने चाहिये अन्यथा उनमें ऊर्जा परिकरण एवं धुं आ नियं तर् ण हे तु
विशे ष सु धार किये जायें , जिन क्षे तर् ों में यातायात सं गर् न्थियों पर धुं ए का प्रतिशत
विशे ष बढ जायें वहां फौरन वाहनों के प्रभाव को नियं त्रित किया जाये । ऐसे स्थलों को
एक दिशा प्रवाह मार्ग घोषित कर, वहां तत्काल सहायक मार्ग विकसित किये जायें ।
7-नहर सडक मार्गो व रे ल मार्गों के आसपास हरी पट् टी का अनिवार्यतः विकास किया
जाये । पे ड़ नियमित रूप से लगाकर उनका पूरा-पूरा रख-रखाव किया जाय और रिकार्ड
रखा जाये । भवनों में जहां भी स्थान उपलब्ध हो पे ड़ आवश्यक रूप से लगाये जायें ।
8- जहरीली गै स की आण्विक सं स्थानों में पूर्णतः मु क्त प्रणाली (Full proof Device)
निश्चित की जाये जिससे उसकी व्यवस्था प्रणाली की क्रियाशीलता का एक
निर्णायक नियं तर् ण बना रहे ।