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ू ण को स्पष्ट रूप से

वायु हमारी जिन्दगी का अत्यन्त आवश्यक तत्व है । वायु प्रदष


परिभाषित नहीं किया जा सकता। वायु कुछ गै सों का और नमी का मिश्रण है । इसमें
कुछ अक्रिय पदार्थ भी हैं ।
हम विश्व के किसी भी हिस्से में ‘शु द्ध वायु ’ नहीं प्राप्त कर सकते । जब हम सांस ले ते हैं
तो आक्सीजन के साथ-साथ कुछ अन्य गै सें और पदार्थ हमारे श्वशन तं तर् में प्रवे श
ू ण के बारे में बात करें , यह आवश्यक है कि हम जानें कि
करते हैं इससे पहले कि वायु प्रदष
शु द्ध वायु में क्या-क्या तत्व होते हैं ? शु द्ध वायु की सं रचना निम्न तालिका में दर्शायी गयी
है ।

शु द्ध वायु की सं रचना (समु दर् ी सतह के पास)

क्रम सं. अवयव संके तक ¼Symbol½ उपस्थिति प्रतिशत

1 नाइट्रोजन N2 78.09
2 ऑक्सीजन O2 20.94

3 ऑर्गन Ar 0.93

4 कार्बन डाई आक्साइड CO2 0.0318

5 निआन Ne 0.0018

6 हीलियम He 0.00052

7 क्रिप्टन Kr 0.0001

8 मीथेन CH4 0.00015

9 हाइड्रोजन H2 0.00005

10 कार्बन मोनो ऑक्साइड CO 0.00001

11 नाइट्रस आक्साइड N2O 0.00025

12 जिनान Xc 0.000008

13 ओजोन O3 0.000002

14 सल्फर डाइ आक्साइड SO2 0.000002

15 अमोनिया NH3 0.000001

16 नाइट्रोजन डाई आक्साइड N2O 0.000001

17 जल H2O 1-3

ू ण अग्नि के आविष्कार
वायु तत्व वस्तु तः प्राण ही है । ऐतिहासिक रूप से वायु का प्रदष
के साथ ही शु रू हो गया था। इसके बाद लौह और सोने की प्रोसे सिंग के साथ इसमें
् होने लगी और कोयले के उपयोग के साथ लगातार वृ दधि
वृ दधि ् हो रही है । 18 वीं
ू ण
शताब्दी के वाष्प इं जन के आविष्कार के साथ और औद्योगिक क् रान्ति के साथ प्रदष
् के साथ ही इसमें
के एक नये यु ग का प्रारम्भ हुआ। इस दौरान मोटर वाहनों में वृ दधि
् हुई है । वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य सं गठन (डब्लू.एच.ओ.) के अनु सार
बे तहाशा वृ दधि
ू ण एक एै सी स्थिति है जिसके अन्तर्गत बाह्य वातावरण में मनु ष्य तथा उसके
‘वायु प्रदष
ू रे शब्दों में
पर्यावरण को हानि पहुचाने वाले तत्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते हैं ।‘ दस
वायु के सामान्य सं गठन में मात्रात्मक या गु णातात्मक परिवर्तन, जो जीवन या
जीवनोपयोगी अजै विक सं घटकों पर दुष्प्रभाव डालता है , वायु प्रदष
ू ण कहलाता है ।
ू ण विश्व की राजनै तिक सीमाओं से परे हैं । यह अपने स्रोतों से दरू
वायु मण्डलीय प्रदष
के वायु मण्डलों और मानवीय बस्तियों को प्रभावित करता है । मानवीय क्रिया कलापों
ू ण में विद्यु त गृ ह (विशे षतः कोयले पर आधारित), अम्लीय वर्षा,
से उत्पन्न प्रदष
मोटरवाहन, कीटनाशक, जं गल की आग, कृषि कार्यों द्वारा उत्पन्न कचरा, सिगरे ट का
धु आं, रसोई का धु आं आदि प्रमु ख कारक हैं । इससे पूर्व इन कारकों पर विस्तार से चर्चा
ू ण का मनु ष्य के स्वास्थ्य एवं जीव-जन्तु ओं तथा पे ड़-पौधें पर क्या
करें , वायु प्रदष
दुष्प्रभाव पडता है इसको दे खें-

ू क:
वायु के प्रमु ख प्रदष
1- सल्फर डाई आक्साइड (SO2)
2- नाइट् रोजन आक्साइड (NO)
3- कार्बन मोनो आक्साइड (CO)
4- सालिड पार्टिकुले ट मै टेरियल (Solid Particulate material)
5- लौह कण
6- ओजोन (O3)
7- कार्बन डाई आक्साइड (CO2)
8- हाइड्रोकार्बन्स
9- मीथे न
10- कुछ धातु यें
11- विकिरण।

ू क, उनके स्रोत एवं उनका मनु ष्यों के स्वास्थ्य पर प्रभाव


सामान्य वायु प्रदष

क्र.सं. प्रदूषक स्रोत मनुष्य के स्वास्थ्य/शरीर पर प्रभाव

1 एल्डीहाइडस श्वशन तेल, वसा, ग्लीसराल का तापीय ऊपरी श्वशन तंत्र और संस्थान में जलन
विच्छेदन (Thermal Decomposition)

2 आर्सेनिक पीलिया कोयला और तेल की भट्ठियां (Glass फे फड़ों को नुकसान (फे फड़ों और त्वचा का कैं सर)
Manufacturing)

3 अमोनिया पीलिया रासायनिक प्रक्रिया - डाइस का बनना, विस्फोटक, फे फड़ों को नुकसान (फे फड़ों और त्वचा का कैं सर )
उर्वरक सामग्री

4 बैंजीन तेल शोधक कारखाने, मोटर वाहन (Smellcis) लम्बे समय तक सम्पर्क से ल्यूकीनिया की संभावना

5 कै डमियम कोयला और तेल संचालित की भट्ठियां लम्बे समय तक सम्पर्क से


वृक्कों ( kidneys) की खराबी
6 कार्बन मोनोआक्साइड मोटर वाहनों द्वारा छोड़े जाना वाला धुआं। इस्पात के फे फड़ों में खराबी, हड्डियों की कमजोरी होना, शरीर
कारखाने, कोयला और तेल की भट्टियां में आक्सीजन की कमी, और हृदय पर विपरीत
प्रभाव

7 क्लोरीन रासायनिक कारखाने श्वसंन संस्थान पर व्यापक


दुष्प्रभाव (Mucous)

8 फ्लोराइड आइंस (Ions ) स्टील इस्पात कारखाना दांतों की क्षति

9 हाइड्रोकार्बन्स अधजली गैसोलीन वाष्प श्वसन संस्थान को प्रभावित करते हैं

10 हाइड्रोसायनाइड Fumigation ब्रास भट्टियां Blast Furnaces; आंखों पर प्रभाव, गले में खराश,  सिरदर्द, फे फड़ों
Chemical Manufacturing रासायनिक पर प्रभाव
उद्योग

11 हाइड्रोजन क्लोराइड Fumigation ब्रास भट्टियां Blast Furnaces; आंखों पर प्रभाव, गले में खराश,  सिरदर्द, फे फड़ों
Chemical Manufacturing रासायनिक पर प्रभाव
उद्योग

12 हाइड्रोजन फ्लोराइड पेट्रोलियम शोधक कारखाने, उर्वरक त्वचा में जलन, आंखों में जलन

13 हाइड्रोजन सल्फाइड      रिफाइनरीज तेलशोधक, मल संसोधन ( Sewage आंखों में जलन, मितली, दुर्गंध
Treatment)

14 मैगनीज स्टील प्लांट ताप विद्युत गृह अधिक दिनों तक असुरक्षित अवस्था में रहने से
पार्कि सन बीमारी होने का खतरा

15 निकिल स्मैल्टर्स, कोयले और तेल की भट्ठियां फे फड़ों के कै सर की संभावना

16 नाइट्रोजन ऑक्साइड साफ्ट कोल, मोटर वाहनों का उत्सर्जन खांसी, दमा इन्फलूएंजा

17 ओजोन प्रकाश की उपस्थिति में नाइट्रोजन के आक्साइड्स और आँखों में जलन, अस्थमा को बढ़ावा
हाइड्रोंकार्बन्स से प्राप्त

18 फास्जीन विभिन्न रासायनों और Dye उत्पादन से खांसी, जलन, फे फड़ों की घातक बीमारी

19 लैड स्मैल्टर्स मोटर वाहनों का धुआं मस्तिष्क की खराबी, उच्च रक्तचाप, शारीरिक वृद्धि
रोकता है

20 सल्फर डाई आक्साइड स्मैल्टर्स कोयला और तेल के प्रज्जवलन से सांस में रुकावट, जलन आदि

21 Suspended solids विभिन्न उत्पादनरत इकाइयों से हवा में रबर के कण Emphysema आंखों में जलन, सम्भवतः कैं सर
भी ( जैसे धुआं, राख इत्यादि )
ू ण के स्रोत -
वायु प्रदष
ू त होने की प्रक्रिया वायु प्रदष
प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से वायु के दषि ू ण
ू ण के दो मु ख्य स्रोत हैं : प्राकृतिक एवं मानवीय।
कहलाती है । अतः वायु प्रदष
प्राकृतिक स्रोत -
ू त करते हैं । यथा ज्वालामु खी क्रिया,
प्रकृति में ऐसे कई स्रोत हैं जो वायु मण्डल को दषि
दावाग्नि (वनों की की आग), जै विक अपशिष्ट इत्यादि। ज्वालामु खी विस्फोट के दौरान
उत्सर्जित लावा, चट् टानों के टु कड़े , जल वाष्प, राख, विभिन्न गै सें इत्यादि वायु मण्डल
ू त करते हैं । दावाग्नि या वनों की आग के कारण राख, धुं आ गै सें इत्यादि वायु को
को दषि
ू त करतीं है । दलदली क्षे तर् ों में जै विक पदार्थो के सड़ने के कारण मीथे न गै स
प्रदषि
ू त करती है । इसके अतिरिक्त कोहरा, उल्कापात, सूक्ष्मजीव,
वायु मण्डल को दषि
ू ण में अहम भूमिका निभाते हैं । किन्तु प्राकृतिक
परागकण, समु दर् ी खनिज भी वायु प्रदष
ू ण अपे क्षाकृत सीमित एवं कम हानिकारक हैं ।
स्रोतों से होने वाला वायु प्रदष
मानवीयस्रोत -
ू ण निरन्तर बढ़ रहा है ।
मानव (मनु ष्य जाति) के विभिन्न क्रिया कलापों द्वारा वायु प्रदष
ू ण के प्रमु ख मानवीय स्रोत निम्न हैं -
वायु प्रदष
1- वनों का विनाश –

् के कारण कृषि भूमि, आवासीय भूमि, औद्योगीकरण इत्यादि


जनसं ख्या में निरन्तर वृ दधि
मानवीय मां गों की पूर्ति बढ़ी है । जिसकी आपूर्ति वनों को काटकर की जा रही है । वनों की
उपस्थिति में पर्यावरण पारिस्थितिकी तं तर् सं तुलित रहता है वनों के विनाश के कारण यह
असं तुलित हो गया है ।

2- उद्योग/कल कारखाने (लघु , मध्यम, वृ हद) –

ू ण के स्रोतो में उद्योग मु ख्य कारक है । औद्योगिक क् रान्ति के फलस्वरूप


वायु प्रदष
ू ण जै सी गम्भीर
सम्पूर्ण विश्व में औद्योगीकरण हुआ परन्तु साथ ही वायु मण्डलीय प्रदष
समस्या में बढ़ोत्तरी हुई है । उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाली विभिन्न गै सें जै से
कार्बन डाई आक्साइड, सल्फर मोनो आक्साइड, सल्फर के. आक्साइड, हाइड्रोकार्बन्स,
ू ण का मु ख्य कारक हैं ।
धूल के कण, वाष्प कणिकायें , धुं आ इत्यादि वायु प्रदष

3- परिवहन –

ू ण का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कारण है । जनसं ख्या वृ दधि


परिवहन वायु प्रदष ् के साथ ही
् हुयी है । स्वचालित वाहनों में प्रयु क्त
परिवहन के साधनों में भी बहुतायत से वृ दधि
ू कों की उत्पत्ति होती है यथा
पे ट्रोल एवं डीजल के दहन के फलस्वरूप कई वायु प्रदष
कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट् रोजन एवं सल्फर के आक्साइड, धुं आ, शीशा आदि। एक
स्वचालित वाहन द्वारा एक गै लन पे ट्रोल के दहन से लगभग 5x20 लाख घनफीट वायु
ू त
प्रदषि होती है ।
् हो रही है और उससे उत्पन्न
विश्व के सभी दे शों में वाहनों की सं ख्या में निरन्तर वृ दधि
परिणाम समय समय पर (यथा कोहरा बनना) परिलक्षित हो रहे हैं । एक अध्ययन के
ू ण वाहनों से निकलने वाले धुं ये के कारण होता है । विश्व
अनु सार 33 प्रतिशत वायु प्रदष
स्वास्थ्य सं गठन की एक रिपोर्ट के अनु सार दे श के बडे शहरों में निर्धारित मानकों से वायु
ू ण का स्तर दो-तीन गु ना अधिक है । एक अनु मान के अनु सार दिल्ली में 70 लाख
प्रदष
वाहन, मु म्ब्ई में दो लाख से ज्यादा आटो रिक्शा, 9 लाख से ज्यादा यात्री कारें , करीब
10000 टै क्सियां और 25 हजार से ज्यादा बसें और 3 लाख से ज्यादा वाणिज्यिक वाहन हैं ।
लखनऊ में सडक पर मौजूद 10 लाख वाहनों में हर रोज 200 नये वाहन जु ड़ जाते है ।
जयपु र में 15 लाख वाहन बं गलु रू में 31 लाख वाहन हैं ।

4- घरे लू कार्यों से –

मनव जीवन के सं चालन हे तु ऊर्जा की आवश्यकता होती है । इनमें घरे लू कार्य, उद्योग,
कृषि, परिवहन आदि सम्मिलित हैं । घरे लू कार्यों जै से भोजन पकाना, पानी गर्म करना
आदि में कोयला, लकड़ी, उपले , मिट् टी का ते ल, गै सें इत्यादि का प्रयोग ईंधन के रूप में
होता है । इन जै विक ईधनों के दहन के फलस्वरूप विभिन्न विषै ली गै सों का निर्माण होता
ू त करतीं हैं । इनसे कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो
है , जो कि वायु मण्डल को प्रदषि
आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट् रोजन आक्साइड, कार्बनिक कण, धुं आ इत्यादि
ू क निकलते हैं । परम्परागत ईंधन (लकड़ी, कोयला, उपला) की तु लना में रसोई
जै से प्रदष
ू ण करती है । आधु निक घरों में रे फ् रीजरे टर, एअर
गै स (एलपीजी) गै स अधिक प्रदष
कण्डीशनरों का प्रयोग एक सामान्य सी बात है । इन विद्यु त चालित उपकरणों से
निकलने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गै स (सीएफसी) वायु मण्डल में उपस्थित ओजोन
परत की विनाश का सबसे अधिक उत्तरदायी कारक है ।

5- ताप विद्यु त गृ ह

् एवं बढ़ते औद्योगीकरण के अनु पात में बिजली की मां ग भी बढ़ी है


जनसं ख्या वृ दधि
जिसकी पूर्ति कोयला, प्राकृतिक गै सों, खनिज ते लों, रे डियोधर्मी पदार्थां द्वारा की जाती है ।
ताप बिजलीघरों में कोयले , ते ल एवं गै स का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है । इनकी
ू ण
चिमनियों से निकलने वाली विभिन्न गै सें, कोयले की राख के कण वायु मण्डलीय प्रदष
की मु ख्य कारक है । 1000 मे गावाट की क्षमता वाले ताप विद्यु त गृ ह को एक वर्ष में दो
लाख साठ हजार टन से 104000 टन तक राख निकलती है । भारत में 54 प्रतिशत बिजली
का उत्पादन कोयला आधारित विद्यु त गृ हों (लगभग 80 हजार मे गावाट) से ही होता है ।
5- कृषि कार्य –

दे श में हरित क् रान्ति के फलस्वरूप कृषि कार्यों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ा है ।
इसके साथ ही फसलों में विभिन्न कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है । इन
रासायनिक कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान ये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप् से
वायु मण्डल में प्रविष्ट होकर शु द्ध वायु मण्डल सं घटन को खराब करती हैं । अने क
कीटनाशी रसायनों का स्थायी प्रभाव अधिक खतरनाक है क्योंकि ये अपघटित होने में
बहुत लम्बा समय ले ते है या अपघटित नहीं होते जै से सीडीटी, बीएचसी, डिएल्ड्रिन,
एण्डोसल्फास आदि।

7 - खनन –

खनिज गतिविधि के दौरान विभिन्न विस्फोटकों का प्रयोग होता है जो कि वायु


ू ण का कारण है । विभिन्न खनिजों के उत्खनन से उत्पन्न महीन कण भी
मण्डलीय प्रदष
ू त करते हैं । भूमिगत खदानों से निकलने वाली हानिकारक गै सें भी
वायु मण्डल को प्रदषि
वायु मण्डल के लिये हानिकारक हैं । नाभिकीय खनिजों के उत्खनन के समय उनसे निकलने
वाले विकिरण विभिन्न व्याधियों का कारण है ।

8 - रे डियो धर्मिता

रे डियोधर्मी पदार्थों से अल्फा, वीटा तथा गामा विकिरण अनवरत निकलते रहते हैं , जो
पृ थ्वी पर रहने वाले जीवधारियों के लिये अत्यन्त हानिकारक हैं । आणविक विस्फोटों एवं
आणविक हथियारों के परीक्षण के दौरान रे डियोधर्मी पदार्थों से निकलने वाले विकिरण एवं
ू त करती है । परमाणु ऊर्जा सं यत्रों में तकनीकी एवं मानवीय
उष्मा वायु मण्डल को दषि
ू ण का कारण
त्रुटियों में जब कभी रे डियोधर्मी विकिरण बाहर निकलते हैं तो वे वायु प्रदष
बनते हैं ।
9- रासायनिक पदार्थों एवं विलायकों द्वारा प्रकृति में पाये जाने वाले या सं श्ले षित कुछ
ू ण होता है ।
ऐसे पदार्थ होते हैं । जिसके भौतिक या रासायनिक होने से भी वायु प्रदष
रसायनशालाओं तथा उद्योगों में प्रयु क्त किये जाने वाले अने क विलायकों द्वारा भी
ू ण फैलता है । रसायनों से सम्बधित कुछ उद्योगों से जै से रबर, पे ण्ट, प्लास्टिक
प्रदष
आदि के निर्माण के दौरान विषै ले उपउत्पाद प्राप्त होते हैं , जो वाष्पीकरण क्रिया के
ू त करते हैं ।
फलस्वरूप वायु मण्डल को प्रदषि

10 - विकसित दे शों की निर्यात सामग्री –

विकाससील दे श विकसित राष्ट् रों से जो कि प्रौद्योगिकी एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न


होते हैं । अने क वस्तु ओं का आयात करते हैं । विकसित दे शों से सस्ते में मशीन एवं अन्य
ू ण फैलाती हैं । विकसित राष्ट् रों में अने क
सामग्री घटिया एवं पु रानी होने के कारण प्रदष
प्रतिबं धित घातक रसायन विकासशील राष्ट् रों को सस्ते दामों पर या दान में दिये जाते
ू ण का मु ख्य कारण होते हैं ।
हैं , जो कि वायु प्रदष

11- अन्य –

इसके अतिरिक्त निर्माण कार्यों, आग्ने य अस्त्रों के प्रयोग, आतिशबाजी इत्यादि से भी


ू ण होता है ।
वायु -प्रदष

ू ण का वनस्पतियों पर प्रभाव –
वायु प्रदष

ू ण से उतनी ही प्रभावित हैं । वायु प्रदष


मानव के साथ ही वनस्पति भी वायु प्रदष ू ण का
प्रभाव वनस्पति पर स्पष्ट रूप् से परिलक्षित होता है । अम्लीय वर्षा, घूप कोहरा, सल्फर
डाई आक्साइड, फ्लोराइड्स, ओजोन, कार्बन मोनो आक्साइड इत्यादि पौधों की श्वसन
् , पु ष्पीकरण, फलों का बनना आदि क्रियाओं मां बाधक बनते हैं । सल्फर डाई
वृ दधि
् रुकती है । पत्तियों में पर्णरहित कम होकर हरित हीनता रोग
आक्साइड से पादप वृ दधि
उत्पन्न होता है । परागकणों के अं कुरण में कमी, बीज व फल बनने में बाधक है ।
नाइट् रोजन आक्साइड से पत्तियों का छोटा होना इत्यादि समस्यायें उत्पन्न होती हैं ।
फलोराइड्स से पत्तियों के किनारों एवं शीर्ष कोशिकाओं की क्षति होती है । परआक्सी
एसिटाइल नाइट् रेट पत्तियों में स्टार्च की मात्रा को कम करता है । सीसा, पारा,
् को
कैडमियम जै से कणीय पदार्थ पौधों में हरितहीनता रोग उत्पन्न करते हैं एवं वृ दधि
रोकते है । सीमें ट व कोयले क्षे तर् में कलियों का मृ त होना भी एक समस्या है ।

जन्तु ओं पर –

ू कों का दुष्प्रभाव जीव-जन्तु ओं पर भी स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है ।


वायु प्रदष
ू क घास स्थूलों में जमा होकर खाद्य श्रख
फलोराइड यौगिक प्रदष ृं ला में प्रवे श करके
जन्तु ओं को प्रभावित करते हैं जिससे पारिस्थितिकी सं तुलन बिगड़ता है ।

वायु मण्डल पर –

ू को का सर्वाधिक प्रभाव वायु मण्डल पर पड़ता है । विभिन्न जहरीली गै सें,


वायु प्रदष
ू कों से वायु मण्डल के आदर्श गै सीय सं गठन में कई
कणीय पदार्थ इत्यादि वायु प्रदष
गड़बड़ियां उत्पन्न हो गयीं हैं ।

ू ण नियं तर् ण के उपाय –


वायु प्रदष

ू ण के घातक प्रभावों को दे खते हुये विश्व के विकसित दे शों में 1950-60 के


वायु प्रदष
ू ण के नियं तर् ण के उपाय व विकसित तकनीक का
दशक के बाद से ही ते जी से वायु प्रदष
सहारा लिया जा रहा है । यहां सभी सं पर्क क्षे तर् ों या नाभिक स्थलीय उद्योगों, विकेन्द्री
ू ण क्षे तर् ों के निकट अने क प्रकार के नियं तर् ण एवं प्रबं धन सम्बन्धी
एवं सम्भावित प्रदष
कार्य प्रारम्भ किये गये हैं । यहां ऐसे सभी स्थानों एवं भीड़ वाली सड़कों के किनारे
ू ण मापन यन्त्र लगाये जा चु के हैं । प्रदष
प्रदष ू ण की सभी दशाओं में अधिकतम
ू ण पै दा
सहनशीलता की सीमा भी व्यापक रूप से निशिचित की जा चु की है । सभी प्रदष
ू ण नियं तर् ण एवं प्रबं ध हे तु वहां की सरकारों व प्रशासन
करने वाले कारखानों द्वारा प्रदष
के द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनु सार उपकरण व विशिष्ट तकनीक का उपयोग भी किया
जाने लगा है ।

ू ण के व्यापक प्रभावों के बारे में विशे ष अध्ययन


भारत में भी 1970 के दशक से ही प्रदष
ू ण मापन के
किये गये हैं । वर्तमान में सभी महानगरों एवं औद्योगिक केन्द्रों में प्रदष
यन्त्र लगाना प्रशासन ने अनिवार्य कर दिया है । दे श की कई सं स्थायें इस काम में लगी
हुई है । इनमें से नागपु र की (राष्ट् रीय पारिस्थितिकी एवं परिवे श शोध सं स्थान), प्रमु ख
विश्वविद्यालयों के पर्यावरण विभाग, भारतीय टे क्नालाजी सं स्थान, भाभा आणविक शोध
केन्द्र, बम्बई, पर्यावरण नियोजन एवं समन्वयय की राष्ट् रीय समिति, भारत सरकार का
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं श्रम मं तर् ालय आदि के नाम उल्ले खनीय हैं । इन सभी कार्यों का
परिवे श एवं नियोजन एवं समन्वय की राष्ट् रीय समिति से समन्वित कर उनके आधार पर
ू ण नियं तर् ण व तकनीक व
विभिन्न प्रकार के नियम व कानून बनाने की एवं विशे ष प्रदष
उपकरण काम में लाने या आयात करने की सलाह दी जाती है । ऐसे सभी कार्यों के
समन्वित करने के उद्दे श्य से केन्द्रीय व राज्यों में पर्यावरण प्रबं धन सं गठन की स्थापना
की है ।

ू ण नियं तर् ण हे तु विशे ष कार्यवाही 1980 के दशक से ही विचारणीय


भारत में वायु प्रदष
बनी एवं इस बारे में महानगरों में कुछ प्रारम्भिक कार्यवाही भी की जाने लगी है । 2-3
दिसम्बर 1984 को रात में हुयी भोपाल गै स दुर्घटना के बाद इस ओर विशे ष प्रयास किये
ू ण नियं तर् ण हे तु निम्न प्रयास एवं कार्यवाही की आवश्यकता है ।
जाने लगे हैं । वायु प्रदष

1- सभी महानगरों (10 लाख या अधिक आबादी वाले ) के आवासीय क्षे तर् ों में पूर्व
ू ण फैलाने वाले उद्योगों को तत्काल पूर्व निर्धारित स्थानों में (औद्योगिक
स्थापित प्रदष
बस्तियों में ) स्थानान्तरित किया जाना चाहिये । इससे उपलब्ध भूमि को बे चने मात्र से ही
नवीन स्थान पर उद्योग स्थापित करने से भी कहीं ज्यादा आर्थिक लाभ भी होगा।

2- वायु मण्डल में घूल, नमी एवं धुं आ से उत्पन्न होने वाले घूम-कोहरा पर नियं तर् ण हे तु
अधिक धुं आ उगलने वाली चिमनियों की उंचाई 80-100 मी. कर दी जाये एवं उन पर धुं ये
से पु नः ठोस उप उत्पादन पै दा करने के सं केन्द्रण सं यन्त्र लगाये जायें । दिल्ली, बम्बई
एवं अन्य महानगरों में ऐसे प्रयास किये जाने भी लगे हैं ।

3- 25 लाख से अधिक जनसं ख्या वाले महानगरों में किसी भी स्थिति में 50 किमी. के घे रे
ू ण पै दा करने वाले सभी प्रकार के
में धुं आ उगलने वाले एवं वायु मण्डल में विशे ष प्रदष
उद्योगों की स्थापना पर राष्ट् रीय स्तर पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लागू किया जायें । 10 लाख
से 25 लाख जनसं ख्या वाले बडे नगरों में भी ऐसी ही व्यवस्था का यथासम्भव पालन
किया जाये ।

4- जहां की मशीनों महीन कण उगलती हैं वहां उनको वायु मण्डल में फैलाने से रोकने हे तु
मशीन-कपड़े या विशे ष फिल्टर जालियों द्वारा उन्हें रोककर ऐसे पदार्थों को विशे ष
ू ण के बचाव हे तु किये गये खर्चे
प्रक्रिया द्वारा पु नः एकत्रित किया जाये जिससे कि प्रदष
अलाभकृत नहीं रहें । सीमें ट व पत्थर के पाउडर उद्योग आदि में इसे अनिवार्य किया जाना
चाहिये ।

ू ण प्राकृतिक व मानवीय सम्मिलित


5- जिस उद्योग में या निकट परिवे श में यदि प्रदष
कारणों से बढ जाये तो वहां पर श्रमिकों को विशे ष नकाब काम में लाने चाहियें ।

6- वाहनों से निकलने वाले धुं ए को नियं त्रित करना एवं उनसे होने वाले सभी प्रकार के
रिसाव को नियं त्रित करना प्रथम आवश्यकता से भी सभी वाहन निश्चित मापदण्ड से
कम धुं आ उगलने वाले होने चाहिये अन्यथा उनमें ऊर्जा परिकरण एवं धुं आ नियं तर् ण हे तु
विशे ष सु धार किये जायें , जिन क्षे तर् ों में यातायात सं गर् न्थियों पर धुं ए का प्रतिशत
विशे ष बढ जायें वहां फौरन वाहनों के प्रभाव को नियं त्रित किया जाये । ऐसे स्थलों को
एक दिशा प्रवाह मार्ग घोषित कर, वहां तत्काल सहायक मार्ग विकसित किये जायें ।

7-नहर सडक मार्गो व रे ल मार्गों के आसपास हरी पट् टी का अनिवार्यतः विकास किया
जाये । पे ड़ नियमित रूप से लगाकर उनका पूरा-पूरा रख-रखाव किया जाय और रिकार्ड
रखा जाये । भवनों में जहां भी स्थान उपलब्ध हो पे ड़ आवश्यक रूप से लगाये जायें ।

8- जहरीली गै स की आण्विक सं स्थानों में पूर्णतः मु क्त प्रणाली (Full proof Device)
निश्चित की जाये जिससे उसकी व्यवस्था प्रणाली की क्रियाशीलता का एक
निर्णायक नियं तर् ण बना रहे ।

9- आण्विक इकाइयों से निकलने वाले सभी रे डियोधर्मी पदार्थों को विशे ष प्रक्रिया


द्वारा ठोस ईंटों में बदलकर पोलीथीन में उन्हें बन्द कर, विशे ष डिब्बों में बन्द कर, दोहरे
कवर वाले विशे ष डिब्बों में भण्डारित किया जाये । इन्हें सागर तली में डालने से पूर्व
सीमें ट की या कंक् रीट की टं कियों में सील कर समु दर् में डाल दिया जाये जिससे कि
वह महासागरीय तलों में भी रे डियोधर्मिता जल्दी नहीं बढ़ सके।

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