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◌्िवषय िहंद

प्र नप सं एवं शीषर्क . P5: भाषािव ान


इकाई सं एवं शीषर्क . M3: वनिव ान : प रभाषा एवं व प
इकाई टै ग HND_P5_M3

िनमाता समूह
प्रमुख अ वेषक प्रो. गर वर म
कुलपित, महा मा गांधी अंतररा य हंद व व व यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : misragirishwar@gmail.com
प्र नप सम वयक डॉ. उमाशंकर उपा याय
पूवर् प्रोफेसर, भाषा व यापीठ
महा मा गांधी अंतररा य हंद व व व यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : usupadhyay@gmail.com
इकाई लेखक- प्रो. प्रमोद कुमार पा डेय
प्रोफेसर, भाषा व ान क , भाषा, सा ह य एवं सं कृित व यापीठ
जवाहरलाल नेह व व व यालय, नई द ल 110067
ईमेल : pkspandey@yahoo.com; pkspandey@gmail.com
इकाई समी क डॉ. उमाशंकर उपा याय
पव
ू र् प्रोफेसर, भाषा व यापीठ
महा मा गांधी अंतररा य हंद व व व यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : usupadhyay@gmail.com
भाषा संपादक प्रो. गर वर म
कुलपित, महा मा गांधी अंतररा य हंद व व व यालय, वधार् (महारा ) 442001
ईमेल : misragirishwar@gmail.com

पाठ का प्रा प
1. पाठ का उ े य
2. प्र तावना
3. भाषा मु यत: वा चक प म
4. भाषाई व लेषण के तर के प म
5. िन कषर्

HND : िहंद P5: भाषािव ान


M3: वनिव ान : प रभाषा एवं व प
1. पाठ का उ े य
इस पाठ के अ ययन के उपरांत आप जान सकगे क -
• वन व ान क अवधारणा या है?
• भाषा का मल
ू वा चक प कस प्रकार का होता है ।
• वन व ान के प्रकार कौन कौन से है ।
• विन का अ ययन कतने तर पर कया जाता है ।

2. प्र तावना
जब भी हम कोई नई, अनजानी भाषा सन
ु ते ह तो हम उसके श द के, वा य के अथर् को नह समझ पाते। ले कन
जो बोला जा रहा है, वह कोई भाषा है , इसम हम कोई संदेह नह ं होता। इससे यह सा बत होता है क विभ न
विनय को सन
ु कर समझने क , बोलने क और कसी भाषा से उ ह जोड़ने क मता हमारे अंदर ज मजात होती
है । विन का यह ान इस पाठ का वषय है ।

3. भाषा मख्
ु यत: वा चक प म
भाषा को हम मूलत: लेखन से जोड़ते ह या िल खत भाषा को हम प्राथिमकता दे ते ह। ले कन िनर ण से यह पाया
गया है क भाषा म प्राथिमकता उसके िल खत प क नह ं ह बि क ि थित ठ क उसके वपर त है । भाषा म
प्राथिमकता बोलने क है और लेखन वतीयक (Secondary) है । िन न त य से इसे समझा जा सकता है :

(क) भाषा सावर्भौिमक है जब क लेखन कुछ समद


ु ाय (Communities) तक ह सीिमत है । व व म, खासतौर
से एिशया, अ का तथा ऑ े िलया म ऐसी अनेक जनजाितयाँ ह जहाँ कसी भी िल प का इ तेरमाल नह ं
होता। ऐसा कह सकते ह क यहाँ िल खत भाषा का कोई प्रचलन नह ं है । भारत म भी कई जनजाितयाँ,
जैसे अंडमान वीप क ‘जारवा’ और ‘ओंगे’ जनजाित क अपनी कोई िल प नह ं है । अथार्त ये भाषाएं िसफर्
बोल जाती ह। इन जनजाितय के लोग दे वनागर िल प म अब िलखना और पढ़ना सीख रहे ह।
(ख) पढ़े िलखे और िश त समाज म भी हम िलखने से बहुत पहले बोलना सीखते ह।
(ग) मनु य के वकास के इितहास को दे ख तो पता चलता है क मनु य ने भाषा बोलना, िलखने के बहुत पहले
ह सीख िलया था। िल प या िलखने क प्र या बोलने क तुलना म बहुत बाद क है। जीव वै ािनक के
अनुसार बोल जाने वाल भाषा का इितहास 50,000 साल पुराना है जब क िल प का िसफर् 3,000 साल।
(भारतीय परं परा म यह बात मा य नह ं है । ले कन इसम कोई ववाद नह ं क िल प वा चक भाषा के बहुत
बाद जिनत हुई। बोलना हम वाभा वक तरह से सीख लेते ह। छोटे ब च को माता- पता बोलना िसखाते
ज र ह। न भी िसखाएं तो भी ब चा बोलना तो सीख ह लेता है । ले कन िलखने क िश ा दे नी पड़ती
है ।

इस तरह के अनेक त य यह िस करते ह क मनु य को ‘बोलने और िलखने म’ बोलना अपे ाकृत वाभा वक प
से आता है ।

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वन व ान के अ ययन म यह आव यक है क हम विन क प्र या (Phenomenon) और इकाइय (Units) के
अंतर को समझ ल। इ ह दो प्रकार के प म जाना जाता है खंडा मक (Segmental) और अ धखंडा मक
(Suprasegmental)।

खंडा मक इकाइयाँ ‘ वर’ और ‘ यंजन’ होती ह। ‘ वर’ और ‘ यंजन’ तो हम सब जानते ह। ‘ वर’ वह विन है जो
मुख- ववर (Oral cavity) म बना कसी अवरोध के िनकलती है । उदाहरण –‘अ’, ‘ओ’।
’ यंजन’ वह विन है िजसक उ पि त के समय मुख ववर म अवरोध होता है । जैसे-‘ ’, ‘ब ्’ ।

खंडा मक प्र कयाएँ एकल खंड से संबध


ं रखती ह। जैसे- ‘अ’, ‘ ’। दो व’र के बीच जब ‘ ’ आता है तो वह ‘ ’
हो जाता है । इस प्र या को उि तीकरण (Flapping) कहते ह। यह प्र या एकल वािन से संबंध रखती है । जैसे
– सं कृत म, ‘अघोष’ यंजन, दो वर के बीच म आते ह तो वह ‘घोष’ हो जाते ह—
सत ् + आचार = सदाचार
वाक् + ईश = वागीश

इस प्र या को घोषीकरण (Voicing) कहते ह। उि तीहकरण और घोषीकरण प्र याएँ एकल खंड से संबध
ं रखती


त् —

वर और यंजन के अलावा वाक् म ऐसी प्र याएँ भी होती ह जो एक साथ कई खंड से संबंध रखती ह। इसीिलए
इ ह अ धखंडा मक कहा जाता ह।

एक अ धखंडा मक वनगुण तान (Tone) है । एक श द के कई अलग अथ को बताने के िलए अलग सुर के


उपयोग को तान कहते है । उन भाषाओं को िजनम एक श द के अनेक अथ को बताने के िलए कई अलग सरु
(Pitches) का उपयोग कया जाता है, तान भाषा कहते ह। तान भाषा का सबसे अ छा उदाहरण चीनी भाषा है ।
उस भाषा म ऐसे अनेक श द ह िजनम वर और यंजन तो एक से ह ह, ले कन सुर अलग ह। जैसे- ‘मा’।
इसका चार अलग तरह से कया गया उ चारण चार अलग अथर् – ‘माता’, ‘डाँट’ ‘भाग’, ‘घोड़ा’ बताता है । भारतीय-
आयर् भाषा, पंजाबी म वकिसत सुर ह। जैसे- ‘कर’ श द– को एक तरह से उ चा रत कर तो उसका मतलब ‘करना’
( कया) होता है तो दस
ू र तरह से ‘घर’।

4. भाषाई िव लेषण के तर के प म
वनिव ान और विनमिव ान
विन का अ ययन दो तर पर कया जाता है —
(क) वन व ान (Phonetics) और (ख) विनम व ान (Phonemics) वन व ान का उ े य कसी भी विन के
भौितक त य— उ चारण (मख
ु के अंदर), संचरण या प्रसारण (हवा म), और हण या प्रित ह (कान और मि त क
के वारा) का िन पण करना ह। ये भौितक त व कसी भी श द म विन के व प का सामा यीकरण करने म
सहायक होते ह। उदाहरण व प—‘प ्’ और ‘फ् ’। ये दोन विनयाँ अं ेजी और हंद भा षय क बोिलय म पाई

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जाती है। इनका भौितक व प दोन भाषाओं म लगभग एक-सा ह है । ले कन अं जी म, कसी श द के उ चारण
म ये विनयाँ य द पार प रक प से बदल जाएँ, तो भी श द के अथर् पर उसका असर नह ं पड़ता। अत: ये
विनयाँ एक दस
ू रे का प्रकार समझी जाती ह, अलग नह ।ं हंद भाषा मे इन विनय के अलग प्रयोग से श द का
अथर् बदल जाता है । अत: ये एक विन का प्रकार नह ,ं अलग विनयाँ मानी जाती ह।

वन व ान और विनम व ान का दस
ू रा अंतर भी इ ह ं उदाहरण से समझा जा सकता है । ‘प ्’ और ‘फ् ’ के
व या मक वणर्न इनके भौितक व प को दशार्ते ह जो क लगभग समान ह, ले कन इनका विनमवै ािनक
वणर्न िभ न होगा य क इन विनय का संबंध अलग है । अं ेजी म इन विनय का व प प रपूरक होता है ।
श द म कई संदभ म ये उपि थत होती ह। ‘फ् ’ विन हमेशा बलाघाितत अ र (Stressed Syllable) म होती है
जब क ‘प’ बलाघाितत अ र म कभी नह ं होता। हंद म ये विनयाँ श द के शु म भी होती ह। तब श द का
अथर् बदल जाता है । जैसे— पल, फल।

जैसा क पहले बताया गया है , विन के भौितक प के अ ययन के तीन प ह — (1) उ चारण, (2) प्रसारण, (3)
प्रित हण। तदनस
ु ार वन व ान के भी तीन भाग ह —
(1) उ चारणा मक वन व ान (Articulatory Phonetics)
(2) भौितक वन व ान (Acoustic Phonetics)
(3) वणा मक वन व ान (Auditory Phonetics)

इन तीन भाग के अ ययन से विनय के बारे म मह वपण


ू र् सच
ू नाएँ प्रा त होती है । उदाहरण के वारा इ ह
समझा जा सकता है । सबसे पहले हम उ चारणा मक वनिव ान को लेते ह। उदाहरणत: ‘काम’। इस श द म तीन
विनयाँ है— ‘क् ’, ‘आ’, ‘म ्’। ( यान रहे क िल खत दे वनागर म प्रयु त अ र क अवधारणा, विन से िभ न
होती है और यहाँ हम विन क चचार् कर रहे ह।

विनय के उ चारण म कौन से करण (Articulators) कस प्रकार से प्रयु त होते ह, इसके अ ययन के आधार पर
विनक नामप (Phonetic label) का उपयोग होता है । विनयाँ बड़े या छोटे समूह म हो सकती ह। जैसे – प,् ब,्
त,् , क् ,ग ् । इ ह फोट (Plosives) कहते ह। उनम से प ्, त ्, क् , एक छोटा समूह है िजसे हम ‘अघोष फोट
कहते ह। इसी प्रकार से हम इ, ई, उ, ऊ, को उ च संवत
ृ वर (High Close Vowel) कहते ह। ये नामप
(Label) उ चारण के मु य गुण पर आधा रत ह। इस बात पर खास यान दे ना ज र होता है क ये नामप
सभी प्रकार क विनय का वणर्न करते ह। दो िभ न विनयाँ एक नामप से नह ं जानी जा सकती ह । जैसे- हम
प ्, त ्, क् , को अलग करना होगा, उसी प्रकार हम इ, ई, उ, ऊ, को अलग करना होगा। उदाहरणत: हंद के प ्, फ् ,
ब ्, भ ्, विनय के िलए चतुनार्िमक नामप (Four-term Label) क आव यककता होगी –
प - अ पप्राण, अघोष, ओ य, फोट
फ – महाप्राण, अघोष, ओ य, फोट
ब – अ पप्राण, सघोष, ओ य, फोट
भ – महाप्राण, सघोष, ओ य, फोट

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उ चारणा मक वन व ान भाषा विनय क उ चारण-प्र या का अ ययन करता है । इसम उ चारण म प्रयु त
करण अथार्त वह चल अवयव जो विनय के उ चारण के समय विभ न ि थितयाँ हण करते ह। यथा- िज वा
और ओ ठ आ द तथा उ चारण थान अथार्त वह अचल उ चारण अवयव िजसक ओर करण या तो अ सर होता
है या िजसका वह पशर् करता है , के आधार पर यंजन का वणर्न और वग करण कया जाता है। सं कृत याकरण
ंथ के अनस
ु ार करण चल ह और थान अचल- ‘य उप यते त थानम ्। येनोप यते त करणम ्’। इसी प्रकार
करण कस प्रकार उ चारण प्र या म प्रयु त होता है और वास के मागर् म कस प्रकार का संक णर्न करता है,
यह भी उ चारण प्रय न के प म यंजन के वणर्न और वग करण का आधार बनता है । उ चारण प्र या म
प्रयु त करण और उ चारण थान क जानकार के िलए वागवयव या वाग्यं से प र चत होना आव यक है -

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व र् य प्रदे श
ऊपर मसूडा

नािसका ववर

दांत

तालु

कोमल तालु

अिलिज वा

ओ ठ
गलतुं डका

िज वा

सनी

अिभकाकल
वरतं याँ
काकल

िन न हनु वरयं

अवटु उपाि थ
िसका

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आपके सामने वाग्यं का च प्रदिशर्त है । इस च के िनचले भाग म आप दे ख सकते ह क मख
ु क दशा म
आगे क ओर वास निलका है , िजसम से होकर वास फेफड़ म पहुँचती है और उसी से प्र वास के प म बाहर
िनकलती है । भाषाओं क अ धकांश यंजन विनयाँ प्र वास को बा धत करके ह उ प न क जाती ह।

वास निलका के पीछे भोजन निलका है, जो आमाशय तक जाती है। वास निलका और भोजन निलका को एक
द वाल अलगाती है । भोजन निलका के ववर के साथ वास निलका क ओर उ मुख एक छोट -सी िज वा है , िजसे
अिभकाकल कहते ह। भोजन या पानी आ द हण करते समय अिभकाकल वास निलका को बंद कर दे ता है ता क
भोजन या पानी वास निलका म न जा सके।

अिभकाकल से कुछ नीचे विन उ प न करने वाला एक प्रधान अवयव, वरयं है । वरयं म पतल झ ल से
बने दो परदे ह, िज ह वरतं याँ या घोषतं याँ कहा जाता है। वरतं य के बीच के खल
ु े भाग को वरयं मुख
या काकल कहते ह। वास लेने क सामा य अव था म या बोलते समय वास काकल से होकर ह आती-जाती है ।
वरतं य क विभ न ि थितय के प रणाम व प काकल के विभ न आकार हण करने से ह अघोष, घोष,
ममर्र, काकलरं जन, फुसफुसाहट और काक य पशर् क उ पि त होती है ।

अिभकाकल के ऊपर ि थत सनी को संक णर् कर सनीय यंजन का उ चारण कया जाता है । सनी के ऊपर एक
खाल थान है जहाँ से आगे दो ववर ह मुख ववर और नािसका ववर। िजस प्रकार भोजन निलका के साथ वास
निलका क ओर झुक हुई छोट -सी जीभ अिभकाकल है, उसी प्रकार इस खाल थान के ऊपर मख ु ववर और
ू ती हुई एक छोट -सी जीभ के आकार का एक पंड है िजसे अिलिज वा कहते
नािसका ववर के माग के बीच झल
ह। अिभकाकल क भाँित यह भी कोमलतालु के साथ नािसका ववर के मागर् को पण
ू त
र् ः या आंिशक प से बंद कर
दे ती है । बोलते समय इसके िश थल रहने क ि थित म नािसका ववर खुला रहता है और नािस य यंजन का
उ चारण होता है जब क इसके आंिशक प से िश थल रहने क ि थित म अनुनािसक वर का उ चारण होता है ।
कोमलतालु के साथ इसके तने रहने पर नािसका ववर बंद हो जाता है और मौ खक विनयाँ उ प न होती ह।
इसके अित र त अिलिज वा अिलिज वीय यंजन के उ चारण म भी प्रयु त होती है ।

मुख ववर म ऊपर क ओर प्र वास के मागर् म मशः कोमलताल,ु तालु, व यर्प्रदे श, दाँत और ओ ठ है । मुख ववर
के िनचले भाग म िज वा है िजसे विनय के वणर्न क सु वधा के िलए मशः िज वामल
ू , िज वाप च,
िज वाम य, िज वा और िज वानोक कहा जाता है । िज वा प्रमुख करण के प म मुख ववर के ऊपर भाग के
विभ न थान को पशर् कर या उनक ओर विभ न प्रकार से अ सर होकर विभ न विनय का उ पादन करती
है ।

मुख ववर के िनचले भाग म िज वा के बाद मशः नीचे के दाँत और ओ ठ ह। विनय के उ पादन म ऊपर के
दाँत का ह अ धक प्रयोग होता है। नीचे का ओ ट और दाँत करण के प म कायर् करते ह।

भौितक वनिव ान (Acoustic Phonetics)


विनय के उ चारणा मक अिभल ण (Articulatory Features) क तरह भौितक अिभल ण (Acoustic
features) भी होते ह जो उ ह एक दस
ू रे से िभ न करते ह। ये गण
ु हवा के भार म जो छोटे बदलाव होते ह, उनसे

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संबंध रखते ह। उन वभेद (Variants) को हमारे कान अनुभव करते ह िजनका हम विन पे ो ाफ (Sound
Spectrograph) और ऑिसलो ाफ (Oscillograph) वारा अ ययन करते ह। ये जो बदलाव ह, इनम प्रमुख ह मूल
आविृ त (Fundamental Frequency), आयाम (Amplitude) और आविृ त बड (Formants)। मल
ू आविृ त बड
हवा के भार क आविृ तय (Cycles) के दोहराव होते है । यह हर यि त का अपना होता है। इस प्रकार पु ष, ी
और उनम वय क और अवय क के भी प्रश त व तार (Broad Range) होते ह। वय क पु ष म विनय क
मूल आविृ त 50-155 आविृ त प्रित सेकंड होती है िज ह ‘ह जर्’ (Hz) कहते ह। म हलाओं म यादातर 765 -255
(Hz) होते ह और 5 वषर् से कम उ के ब च म 400-600 (Hz) पाए जाते ह। शा ीय संगीत म विभ न राग
को अलग-अलग मूल आविृ तय म गाया जाता है । गायक इ ह अपनी मूल आविृ तय के अनस
ु ार प्र तुत करते ह।

मूल आविृ त के अलावा हवा के भार म अ धकता और कमी से भी विनयाँ अलग होती ह िज ह वायुकण (Air
Particles) के व ाम बंद ु (Point of Rest) से अ धकतम दरू के आधार पर मापा जाता है । इस दरू के व तार
को आयाम (Amplitude) कहते ह िजसे डेिसबल (Decibels)/db म मापा जाता है ।

अ ध वरक (Overtones) या अनन


ु ाद आविृ तयाँ (Resonance Frequencies) विनय के िलए बहुत मह वपण
ू र्
होते ह। ये अ ध वरक म Fo क गुणज (Multiples) होती है । बहुत सारे अ ध वरक म शु के 3-4 अ ध वरक
विनय को िभ न करने के िलए मह वपूणर् होते ह। विनय के उ चारण म ये 3-4 आविृ तयाँ एक साथ विनत
होती ह। वशेष प से वर के उ चारण म। इ ह ं 3-4 अ ध वरक म अंतर के कारण हम वर को अलग-अलग
सुनते ह। इन अनुनाद आविृ तय (Resonance Frequencies) को आविृ त बड (Formants) कहते ह। प्रथम
तीन आविृ त बड – f1, f2, f3 िन न तीन गण
ु से एक-एक का संबंध रखते ह-

f1 – वाक् -पथ (Vocal Tract) के खुलेपन से


f2 वाक् -पथ म अ -प च भेद से
f3 उ च व ओठ क ि थित से

f1 - वर म जैसे इ, ई, उ, ऊ, म कम होता है जैसे पु ष म 400 Hz और नीचे वर ‘आ’ म 700 Hz


f2 - प च वर (उ, ओ,) के उ चारण म f2 नीचे होता है जैसे 1100Hz और अ वर म ऊँचा होता है जैसे
1400Hz
f3 - ओ ठो क ि थित को बताता है । वतिुर् लत वर म f3 नीचे होता है , अ यथा ऊपर होता है ये तीन आविृ त
बड (Formants) म दे खे जा सकते ह। जैसे हंद के िन न वा य के पे ो ाफ या औिसलो ाफ म –

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आदमी एक टे बुल खींच रहा है । /a:dmi: e:k ʈe:bul kʰĩ:ʧ rəha: hæ:/

वणा मक वनिव ान (Auditory Phonetics)


वणा मक वन व ान शाखा का े , उ चारणा मक वन व ान और भौितक वन व ान क तुलना म अ प ट
और वकासशील है । फर भी इस व या के मह व का भाषा व ान और वन व ान म कम नह ं समझा जाना
चा हए। उदाहरणत: िन न बात पर यान द- कसी भी विन के उ चारण म विभ न यि त या एक ह यि त
के मुख के अलग आकार हो सकते ह, जैसे तालु से जबड़े क दरू म थोड़ा बदलाव आ सकता है या होठ को यादा
कड़े या नमर् तरह से रखा जा सकता है । फर भी मुख क इन विभ न ि थितय म होने के बावजूद हम उ ह
पहचान लेते ह जैसे ‘ई’ या ‘फ’। (आप इन विनय के उ चारण म मख
ु के आकार म थोड़ी-थोड़ी िभ नता लाकर
इस बात को दे ख सकते ह।)

भा षक विनयाँ प रवेश क कई अ य विनय के साथ सुनाई दे ती ह ले कन हम भाषा क विनय को अ य


विनय से अलग कर लेते है।

इन बात पर यान दे ने पर पता चलता है क वणा मक वन व ान भाषा क हमार मता को समझने के िलए
कतना मह वपण
ू र् है ।

5. िन कष
वाक् का अ ययन भाषा के अ ययन का अिभ न भाग है । विनक इकाइय और प्र याय के दो मु य प्रकार ह-
खंडा मक और रागीय (Prosodic) वाक् के अ ययन के दो मु य तर ह- वन व ान और विनम व ान।
वन व ान के तीन मु य भाग ह- उ चारणा मक वन व ान, भौितक वन व ान और वणा मक वन व ान।

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