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Clubfoot Hindi
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कारण: इस रोग के संभावित कारणों में इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रीटार्डेशन और न्यूरल ट्यूब डिफे क्ट्स को शामिल किया जाता है। दूसरे शब्दों मंें कहने का आशय यह है कि बच्चा
जब मां की बच्चेदानी में विकसित हो रहा होता है, तब शिशु के विकास की प्रक्रिया अवरोधित हो जाती है। इस वजह से उसके पैरों में विकृ ति आ जाती है।
लक्षण
1. इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में पैर अंदर की तरफ मुड़ता है। मुड़ने की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इस कारण बच्चा लंगड़ाकर चलता है।
दुष्प्रभाव
मां-बाप के लिए बच्चे के पैरों का जन्म से विकारग्रस्त होना चिंता और परेशानी का कारण बन जाता है। बच्चों को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे देर से
चलना शुरू करना, पैर टेढ़ा रखना, एड़ी जमीन पर न पड़ना, पैर का विकास सामान्य से कम होना, सामान्य जूता-चप्पल का प्रयोग न कर पाना आदि। खेल-कू द में भी बच्चा
असमर्थता महसूस करता है।
इन सब कारणों से बच्चे के मन में हीन-भावना पैदा हो जाती है। यही नहीं, वयस्क होकर वह कई नौकरियों के लिए भी अयोग्य करार दिया जाता है।
जांच: पैदा होने से पूर्व भावी मां की अल्ट्रा सोनोग्राफी, बाद में एडवांस के सेज में एक्स-रे, सी.टी. स्कै न और एम.आर.आई. जांचें कराई जाती हैं।
सामान्य चिकित्सा
शुरुआती दौर में डॉक्टरी सलाह के अनुसार प्लास्टर चढ़ाने और स्ट्रेपिंग(हाथ से पंजे को सीधा करने का प्रयास करना और मालिश करना) आदि के प्रयोग से इस बीमारी को
90 प्रतिशत तक ऑपरेशन के बगैर ठीक किया जा सकता है। इसके लिए पीड़ित बच्चे को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता। फिजियोथेरेपी भी इस समस्या के समाधान में
सहायक है।
सर्जिकल चिकित्सा
पैर का टेढ़ापन बहुत अधिक होने पर या इलाज देर से प्रारंभ करने पर ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है। आयु के अनुरूप ऑपरेशन की विभिन्न स्थितियां हैं, जो 9 महीने से
लेकर 10 वर्ष की आयु के बच्चों पर की जाती हैं। अत्याधुनिक ऑपरेशन पद्धति द्वारा यह ऑपरेशन एक छोटे से चीरे से ही संभव है। ऑपरेशन के बाद पीड़ित बच्चे को के वल
दो दिनों तक ही अस्पताल में रहना पड़ता है। पैर लगभग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। बच्चे के चलना शुरू करने की उम्र से पहले ही यह ऑपरेशन करना बेहतर होता है।