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पूव पाठ् य म अिभक प सिमित

पाठ् य म िवकास सिमित


ो. जी.एस.एल. देवड़ा ोफेसर ए.के . िसंह
कु लपित िग र इं टीट् यटू ऑफ डवलपमट टडीज
कोटा खुला िव िव ालय, कोटा लखनऊ
ोफेसर एस.एस. आचाय डॉ. मोद वमा,
िनदेशक, इंिडयन इं टीट् यटू ऑफ मैनेजमट
िवकास अ ययन सं थान, जयपुर अहमदाबाद
ोफेसर डी.डी. न ला डॉ. एम.के . घड़ोिलया (संयोजक)
मानद व र अ येता सह आचाय एवं िवभागा य , अथशा िवभाग
िवकास अ ययन सं थान जयपुर कोटा खुला िव िव ालय, कोटा
डॉ. याम नाथ डॉ. रामे र साद शमा
फ़े लो,एन.आई.पी.एफ़. पी, नई िद ली सहायक आचाय, अथशा िवभाग
कोटा खुला िव िव ालय, कोटा
ो. अिमताभ कु डु डॉ. जे.के . शमा
सी.एस.आर.डी. सहायक आचाय, अथशा िवभाग
जवाहर लाल नेह िव िव ालय कोटा खुला िव िव ालय, कोटा
नई िद ली
पाठ् य म सं शोधन अिभक प सिमित
अय
ो. एल.आर. गु जर
िनदेशक अकादिमक
वधमान महावीर खु ला िव िव ालय, कोटा (राज.)
संयोजक
डॉ. जे.के . शमा
आचाय, अथशा िवभाग
वधमान महावीर खु ला िव िव ालय, कोटा
ो. फरीदा शाह, डॉ एन. के . दशोरा,
आचाय, अथशा िवभाग, अथशा िवभाग, राजीव गाँधी जनजाित
मोहन लाल सु खािडया िव िव ालय , उदयपु र िव िव ालय, उदयपु र
डॉ. धीरेश कु ल े डॉ.हेमा मं गलानी,
सह - आचाय सहायक आचाय,
ह रयाणा के ीय िव िव ालय, मह गढ़ राज थान के ीय िव िव ालय, अजमेर
डॉ. सु रे कु मार कु ल े
सहायक आचाय, अथशा िवभाग
वधमान महावीर खु ला िव िव ालय, कोटा

स पादन एवं पाठ लेखन


सं पादक
डॉ. एम.के . घड़ोिलया
सह आचाय एवं िवभागा य
अथशा िवभाग
पाठ के लेखक
डॉ. के .पी.एम. सु दरम डॉ. जी.डी. माथु र
नई िद ली अलवर
डॉ. धमश शमा डॉ. एल.एन. अ वाल
डू ं गरपुर कृ िष अथशा िवभाग , राज थान कृ िष
िव िव ालय, जोबनेर
डॉ. ल मीनारायण नाथू रामका डॉ. के .के . स सेना
जयपुर आई.आई.टी. कानपुर
डॉ. अयो या िसंह डॉ. ए.ए. िस क
सेवािनवृ ोफे सर अलीगढ़
बनारस िह दू िव िव ालय, बनारस
डॉ. एम.सी. गु ा ोफेसर आर.के . अ वाल
जयपुर जबलपुर
ो. अिमताभ कु डु डॉ. एच.एल. भािटया
जवाहर लाल नेह िव िव ालय, नई नई िद ली
िद ली
डॉ. मं सरू अली सीमा सोरल
ड़क िव िव ालय कोटा
ड़क
डॉ. एस.सी. ीवा तव ी के . आर. चौधरी, (इकाई 13,14, 29,31 )
िवलासपुर सहायक आचाय,
कोटा िव िव ालय, कोटा
ी िशव शमा, (इकाई 27, 28) ी राके श कु मार,
या याता अथशा , (इकाई 1, 2, 6, 7, 9, 10, 11 )
राजक य महािव ालय,थानागाजी, सहायक आचाय, कॉलेज ऑफ वोके शनल
अलवर टडीज, िद ली िव िव ालय
डॉ.राजेश जांिगड (इकाई 24,25) डॉ. मानक िसंगा रया (इकाई 36, 37)
या याता अथशा , या याता अथशा ,
राजक य एल. बी.एस. महािव ालय, राजक य महािव ालय,जैतारण,
कोटपूतली, जयपुर पाली
अनु वाद
डॉ. एम.एम. जैन ो. मं सरू अली
कोटा ड़क
ीमती अ णा कौिशक ीमती का ता सोनी
कोटा अजमेर
डॉ. मोहन िसंहल
जोधपुर
अकादिमक एवं शासिनक यव था
ो.अशोक शमा ो.(डॉ.) एल.आर. गु जर डॉ अरिवंद पारीक
कु लपित िनदेशक, अकादिमक िनदेशक, साम ी उ पादन और िवतरण
वधमान महावीर खु ला वधमान महावीर खु ला वधमान महावीर खु ला
िव िव ालय, कोटा िव िव ालय, कोटा िव िव ालय, कोटा
पुनःउ पादन : मई 2017 ISBN NO- 13/978-81-8496-452-3
इस साम ी के िकसी भी अं श को व. म. खु. िव., कोटा क िलिखत अनुमित के िबना िकसी भी प मे ‘िमिमयो ाफ ’
(च मु ण) ारा या अ य पुनः तु त करने क अनुमित नह है।व. म. खु. िव., कोटा के िलये कु लसिचव व. म. खु.
िव., कोटा (राज.) ारा मु ि त एवं कािशत।
MAEC-06
वधमान महावीर खु ला िव िव ालय, कोटा
अनु मिणका
ख ड -1
भारतीय अथ यव था का िवकास
इकाई सं. इकाई का नाम पृ सं या
ख ड -1 : आिथक िवकास
इकाई - 1 आिथक वृि एवं िवकास : आधारभूत अवधारणाएं 1-15
इकाई - 2 समावेशी िवकास 16-19
इकाई - 3 िवकास का िति त िस ांत 20-29
इकाई - 4 काल मा स का आिथक िवकास मॉडल 30-42
इकाई - 5 आिथक िवकास का महालनोिबस मॉडल 43-48
ख ड -2 : आिथक सं वृ ि के िस ा त
इकाई - 6 आथर लुइस: म क असीिमत पूित से आिथक िवकास का मॉडल 49-54
इकाई - 7 फाइ-रेिनस का दोहरी अथ यव था का िस ा त 55-65
इकाई - 8 जॉन रािब सन का पूँजी सं चय िस ा त 66-75
इकाई - 9 अ तजात सं विृ िस ा त 76-82
इकाई - 10 हैरड- डोमर के मॉडल 83-100
इकाई- 11 सोलो मॉडल 101-109
ख ड -3 : भारतीय अथ यव था एवं िनयोजन
इकाई - 12 भारतीय अथ यव था म वृि क वृि यां 110-132
इकाई -13 भारतीय अथ यव था म सं रचना मक प रवतन 133-151
इकाई -14 भारत म आधारभूत सं रचना का िवकास 152-188
इकाई -15 भारत म िनयोजन एवं िवकास ि या-िनयोिजत िवकास क समी ा 189-208
इकाई -16 िवके ि त िनयोजन-प ित 209-227
इकाई -17 भारत म िश ा का िवकास 228-238
इकाई -18 जनसांि यक य आयाम एवं आिथक िवकास 239-265
ख ड -4 : िनधनता, बेरोजगारी , कृ िष एवं उ ोग
इकाई -19 भारत म िनधनता व असमानता आकार, कृ ित, कारण तथा इनको 266-290
कम करने के उपाय
इकाई -20 बेरोजगारी व प तथा आकार-उ ोगीकरण तथा रोजगार एवं 291-313
रोजगारनीित
इकाई -21 कृ िष भूिम स ब ध एवं भूिम सुधार 314-340
इकाई -22 ह रत ाि त 341-350
इकाई -23 भारतीय कृ िष िवकास क उपलि धयां तथा किमयाँ 351-362
इकाई -24 खा सुर ा तथा सावजिनक िवतरण णाली 363-377
इकाई -25 िव यापार सं गठन व भारतीय कृ िष 378-390
इकाई -26 भारत म औ ोगक िवकास क वृित एवं सम याएं क 391-399
इकाई -27 नइ औ ोिगक नीित 400-407
इकाई -28 लघु एवं कु टीर उ ोग का मह व व सम याएँ 408-418
ख ड -5 : आिथक नीित
इकाई -29 नवीन आिथक नीित : एक िव ेषण 417-444
इकाई -30 भारतवष म बहरा ीय िनगम 445-456
इकाई -31 िविश आिथक े : एक अवलोकन 457-471
इकाई -32 भारतवष क समाना तर अथ यव था 472-483
इकाई -33 भारत का भुगतान स तुलन 484-503
इकाई -34 िनयात स ब न और आयात ित थापन 504-523
इकाई -35 भारत म सावजिनक यय का उदभव, वृि , वृि याँ एवं मू यांकन 524-537
इकाई -36 नीित आयोग 538-551
इकाई -37 चौदहव िव आयोग क िसफा रश 552-567
ख ड प रचय
इस पु तक के थम दो ख ड म आिथक िवकास से सं बं िधत िस ा त का अवलोकन िकया
जायेगा। िजसम सव थम इकाई 1 म आिथक वृि एवं िवकास क अवधारणाओं का अ ययन करगे
तथा वतमान म सबसे मह वपूण समावेशी िवकास का अ ययन इकाई 2 म िकया जायेगा । इसके बाद
िवकास के िति त िस ा त का अ ययन इकाई 3 म करगे िजसम इकाई 4 म काल मा स के आिथक
िवकास माडल का अ ययन िकया जायेगा। अथ यव था के दो े ीय माडल िजसम कृ िष और उ ोग
दो मह वपूण े होते है। इनका अ ययन लुईस के ि कोण को इकाई 6 व फाई रेिनस के ि कोण को
इकाई 7 म पढ़ा जायेगा । आिथक िवकास म पूं जी का एक मह वपूण थान है। तथा समय समय पर
िविभ न माडल इस बात का प रचय देते रहे है। िजसम जान रोिबनसन के माडल का अ ययन इकाई 8 म
व इकाई 9 म अ तजात सं विृ माडल का अ ययन िकया जायेगा। हैरड. डोमर के मॉडल का अ ययन
इकाई 10 म व सोलो मॉडल का अ ययन इकाई 11 म िकया जायेगा।
इकाई 12 म भारतीय अथ यव था म वृि क वृि यां क िपछले स र वष म
उपलि धयां एवं वृि य पर काश डाला गया है। इस त य से तो हम सभी प रिचत ह िक वतं ता
ाि के प ात् भारत ने ु त आिथक िवकास के उ े य से िनयोजन माग चुना।
इकाई 13 भारतीय अथ यव था म सं रचना मक प रवतन इकाई 14 भारत म आधारभूत
सं रचना का िवकास अ ययन िकया जायेगा
अब तक हम बारहव पंचवष य योजनाएं पूरी कर चुके ह । इन वष म िविभ न योजना के ल य
एवं उपलि धय पर इकाई 15 म चचा क गई है। िनयोजन के दौरान अिजत वृि दर को िविभ न दशक
म अलग-अलग दिशत िकया गया है। इस प क साम ी म आकड़ क अनुपल धता व तेजी से
प रवतन होते ह। अत: आपसे अपे ा है िक आप अपने ोतो से नवीनतम जानकारी एकि त कर पाठ् य
साम ी म उसे यथा थान यु कर। ितवष कािशत होने वाले थ जैसे भारत, आिथक सव ण,
रजव बक से कािशत आँकड़ का आप आसानी से योग कर सकते ह।
भारत म िनयोजन एवं िवकास ि या व िनयोिजत िवकास क उपलि धय क चचा इकाई
सं या म दो म क गई है। इस इकाई म िनयोिजत आिथक िवकास क िवशेषताओं एवं उपलि धय क
चचा के साथ-साथ िनयोजन क िवफलताओं पर भी काश डाला गया है। हम इन िवफलताओं से
सबक लेकर िवकास के माग क बाधाओं को दूर करने का यास करना चािहए।
इकाई सं या तीन म िवकास क यूह रचनाओं भारी उ ोग बनाम मजदूरी व तुओ ं क चचा
क गई है। िवकास के ये िविभ न माग स र के दशक म काफ चचा म रहे। भारत क थम पंचवष य
योजना म ा सफलता के कारण आयोजन अिधकारी कृ िष को छोड़कर िवकास के आधार भूत ढाँचे के
िनमाण के िलए भारी उ ोग पर बल देना चाहते थे। ो. शा त च महालनोिबस ने ि तीय योजना म
भारी उ ोग म डल पर आधा रत िवकास माग अपनाने क सलाह दी। इसे भारत के त कालीन
धानमं ी पि डत जवाहरलाल नेह ने काफ पसंद िकया। इसके िवपरीत िवकास का एक माग मजदूरी
व तुओ ं पर आधा रत था। िजसे व तुत : लागू नह िकया गया। पर तु भारतीय प रि थितय म यह आज
भी िवचारणीय एवं ासं िगक है। इन िविभ न मॉडल के बारे म आप इस ख ड म जानकारी ा करगे।
इसके अित र चतुथ इकाई मे आपका प रचय एक अ य िवकास यूह रचना से कराया जाएगा। इसम
के ि त एवं िवके ि त िनयोजन प ित का अथ एवं इसक उपलि धय एवं सम याओं क चचा क
जाएगी। इकाई पाँच म भारत मे िश ा का िवकास िवषय पर चचा क गई है। आज के बढ़ते वै ािनक युग
म िश ा के मह व से इ कार नह िकया जा सकता। जीवन के येक े म िश ा क अहम भूिमका है।
आज क यूटर ांित के युग म पार प रक िश ा के साथ -साथ सूचना े मे हो रही ांित के साथ
चलना होगा। इसके िलए हमे अपने पाठ् य म मे भी आव यक प रवतन लाना होगा। िशि त वग ही
इस तकनीक का समुिचत योग कर िवकास क दोड़ म आगे िनकल सकता है।
िवकास के िलए आव यक आधारभूत सं रचना के िनमाण म आ रही बाधाओं एवं अ य
सम याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, आय क असमानता, पूजँ ी क कमी व जनसं या क वृि जैसी
सम याओं एवं आिथक िवकास के साथ इन चर क अ ति याओं पर इस ख ड म आपका यान
आकिषत िकया जाएगा।
इकाई सं या 18 म जनसांि यक आयाम एवं आिथक िवकास के अ तस ब ध क चचा क
गई है। जनसं या एवं आिथक िवकास म अ यो याि त स ब ध है। इस इकाई म जनसं याके िविभ न
आयाम जैसे ज मदर, आ वास एवं उ वास एवं आिथक िवकास के म य स ब ध म भारत ि गोचर
वृि य क चचा क गई है।
इकाई सं या 19 म भारत क सवािधक मह वपूण सम या िनधनता एवं असमानता का
अ ययन िकया गया है। िनधनता एक ऐसी सम या है िजसे सभी अनुभव करते ह। यह एक सापे श द
है। हर यि अपने से धनी यि को देखकर अपने को गरीब समझता है। पर तु अथशाि य के िलए
इसका िवशेष अथ है। िनधनता क प रभाषा िनधनता-रेखा के स ब ध म क जाती है। िनधनता क
प रभाषा जीवनिनवाह के िलए आव यक यूनतम कै लोरी भोजन के िलए आव यक आय के स दभ म
क गई है। इसे समय-समय पर सूचकांक के साथ बढ़ाया जाता रहा है। िनधनता एवं असमानता के
कारण का अ ययन करने के बाद इस इकाई म सम या के हल के िलए कु छ सु झाव िदए गए है।
इकाई 20 म आज के युवा वग के िलए सवािधक वलं त सम या बेरोजगारी क चचा क गई
है। िनधनता क तरह बेरोजगारी क प रभाषा करना भी किठन काय है। इस इकाई म आपको बेरोजगारी
के व प एवं इसके िलए उ रदायी कारण क जानकारी दी गई है। इकाई के अ त म औ ोिगकरण तथा
रोजगार एवं भारत सरकार क रोजगार नीित क चचा क गई है।
इकाई सं या 21 म कृ िष भूिम स ब ध एवं भूिम सुधार काय म का िववेचन िकया गया है। इस
इकाई म कृ िष भूिम स ब ध का अथ, इसके िविभ न कार को वणन करने के बाद समय के साथ इन
स ब ध मे हए प रवतन क चचा क गई है। इसके साथ ही भूिम सुधार का अथ तथा िविभ न भूिम
सुधार काय म क चचा करने के बाद भूिम सुधार क असं तोषजनक गित के कारण पर काश
डाला गया है।
इकाई सं या 22 म ह रत ांित का अथ तथा इसके िविभ न अवयव का वणन करने के बाद
ह रत ांित के आिथक व सामािजक भाव क चचा क गई है।
इकाई सं या 23 म भारतीय कृ िष िवकास क उपलि धय एवं किमय क चचा क गई है।
िनयोजन काल म कृ िष क उपलि धय म कृ िष उ पादन म वृि , कृ िष का आधु िनकरण एवं खा ा न म
आ मिनभरता मुख रही ह। इसक मुख किमय म े ीय असं तलु न मुख है। इकाई सं या 24 म
खा ा न आहरण व सुरि त भ डार बनाने क भारत सरकार क नीित के बारे म िववेचन िकया गया है
एवं सावजिनक िवतरण णाली पर िव तार से चचा क गई है।
भारतीय अथ यव था के िवकास के म म भारत म औ ोिगक िवकास एवं कृ िष तथा उ ोग
के म य यापार शत का अ ययन िकया गया है। उदारीकरण के वतमान युग म बहरा ीय िनगम क
भूिमका बढ़ती जा रही है। िव के िवकिसत देश यापार के साथ कई शत जोड़ना चाहते ह, पर तु
िवकासशील देश इनका िवरोध कर रहे ह। इस कार िव राजनीित म अब उ ोग एवं यापार का शीष
थान हो गया है। आज िव का कोई देश िव यापार सं गठन से बाहर रहकर अपने देश के उ ोग ध ध
को िवकिसत नह कर सकता है। न बे के दशक म उ ोग क सम याएं भी बदल गयी ह। आज
िवकासशील देश िशशु उ ोगो का तक देकर अपने उ ोग को सं र ण नह दे सकते है। िव म समान
यापार सं िहताएं एवं मानद ड लागू िकए जा रहे ह। अमे रका म िव यापार सं गठन म िसएटल म हई
मं ी तरीय बैठक म म मानद ड एवं पयावरण के मु को यापार के साथ जोड़ने का भारत ने कड़ा
िवरोध िकया। भारत के साथ अ य िवकासशील देश ारा परमाणु परी ण िकए जाने के तुर त बाद
लगाए गए आिथक ितब धो से उ ोग एवं यापार के सम याएं बढ़ गई ह। इन ितब धो म अब धीरे–
धीरे छू ट दी जा रही है।
इकाई सं या 26 म भारत म सं तिु लत औ ोिगक िवकास क नीितय पर चचा क गई है।
वत ता ाि के समय भारत को उ ोग का एक कमजोर एवं िपछड़ा हआ ढाँचा िवरासत म िमला।
इस ढांचे को व रत करना एक बड़ा काय था। 1950 म योजना आयोग िक थापना के बाद देश म
िनयोिजत िवकास का माग अपनाया गया। इसम े ीय सं तलु न पर अिधक बल िदया गया। साधन के
सं तिु लत ह ता तरण के िलए योजना आयोग एवं िव आयोग बनाए गए। इस बात पर िवशेष बल िदया
गया िक आिथक स ा का के ीयकरण मु ीभर लोग के हाथ म न ह । िपछड़ े ो म उ ोगो को
ो सािहत िकया गया। लाइसेि सग नीित के ारा उ ोग िक थापना का थान िनधारण को भािवत
िकया गया। वत ता के बाद लगभग चालीस वष तक सरकारी िनय ण एवं िनयमन का युग रहा पर तु
न बे के दशक के ार भ से उदारीकरण िक ि या ार भ िक गई व भारतीय उ ोग को िव ित पधा
के िलए खुला छोड़ िकया गया।
इकाई -27 नइ औ ोिगक नीित, इकाई -28 लघु एवं कु टीर उ ोग का मह व व सम याएँ,
इकाई -29 नवीन आिथक नीित : एक िव ेषण का अ ययन िकया जायेगा
इकाई 30 म भारत वष म कायरत बहरा ीय िनगम के वेश व िवकास के माग म आई
बाधाओं का िववेचन िकया गया है। अब उदारीकरण के युग म सभी रा य सरकार अपने –अपने रा य म
िवदेशी य िनवेश को आकिषत करने िक योजनाएं बना रही ह। आधारभू त एवं भरी उ ोग म
बहरा ीय िनगम को आमि त िकया जा रहा है।
इकाई 32 म भारतवष िक समाना तर अथ यव था एवं इसके आकार िक चचा क गई है। इस
इकाई म कालेधन क उ पि के कारण एवं इसके िनवारण के उपाय क चचा क गई है। देश म चल
रहा ाचार कालेधन के बढ़ने का मुखकारण है।
इकाई सं या 33 म िविभ न योजना अविधय म भुगतान स तुलन क ि थित क चचा क गई
है। वतं ता ाि के बाद लगातार भारत का भुगतान स तु लन िवप म रहा है। इस इकाई म भु गतान
स तुलन को ठीक करने क उपाय पर भी चचा क गई है।
इकाई सं या 34 म भारत म िनयात सं व न के िलये िकए गए यास क चचा क गई है।
आयात ित थापन साठ के दशक म भारत क मुख नीित रही। भारतीय उ ोग को सं र ण देकर
िवदेशी ित पधा से उनक र ा कर आयात ित थापन व तुओ ं का उ पादन देश म ही िकया गया।
वतमान समय म सरकार ने भूम डलीकरण (Globalization) तथा उदारीकरण क नीित
अपनाई है। अब देश के उ ोग को िवदेशी चुनौती के िलए तैयार रहने को कहा जा रहा है। भारत
िव यापार सं गठन का सद य है एवं अंतरा ीय मु ा कोष तथा िव बक के िनदशन म आिथक सुधार
का दूसरा दौर ार भ कर चुका है। इकाई सं या 35 भारत म सावजिनक यय का उदभव, वृि ,
वृि याँ एवं मू यांकन, इकाई सं या 36 नीित आयोग इकाई सं या 37 चौदहव िव आयोग क
िसफा रश काय णाली अ ययन िकया जायेगा
इकाई - 1
आिथक वृ ि एवं िवकास : आधारभू त अवधारणाएं
(Economic Growth and Development: Basic Concepts)
इकाई क परेखा
1.1 उेय
1.2 तावना
1.3 आिथक वृि : आशय एवं प रभाषा
1.4 आिथक िवकास क अवधारणा
1.5 आिथक िवकास का आधुिनक ि कोण
1.6 िवकास के तीन मु य मू य
1.7 आिथक िवकास के मापद ड
1.8 कु ल रा ीय उ पाद या आय के मापद ड म सावधािनयां
1.9 सूचकांक का चुनाव
1.10 मानव िवकास सूचकां क
1.11 यि गत सूचकां क का िनमाण
1.12 जीवन गुणव ा सूचकांक
1.13 आिथक सं विृ और िवकास म अ तर
1.14 सारां श
1.15 सं दभ थ
1.15 सं दभ थ
1.1 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप
 आिथक वृि : आशय एवं प रभाषा समझ सकगे।
 आिथक िवकास क अवधारणा या जान सके ग।

1
 िवकास के तीन मु य मू य कौन कौन से है समझ सके ग।
 आिथक िवकास के मापद ड क जानकारी हािसल कर सकगे।
 कु ल रा ीय उ पाद या आय के मापद ड म सावधािनयां कौनसी है जानकारी ा कर सके ग।
 सूचकांक का चुनाव व मानव िवकास सूचकांक के बारे म समझ सके गे।
 यि गत सूचकां क का िनमाण व जीवन गुणव ा सूचकांक के बारे म समझ सकगे।
1.2 तावना (Introduction)
आज के गितशील आधुिनक युग क सबसे मह वपूण सम या आिथक िवकास क
सम या जो वतमान शता दी का के िब दु माना जा चुका है। िवकास का अथशा अ पिवकिसत
देश के आिथक िवकास क सम याओं से सं बं ध रखता है। य िप आिथक िवकास के अ ययन ने
वािण यवािदय तथा एडम ि मथ से लेकर मा स और के ज तक सभी अथशाि य का यान
आकिषत िकया था, िफर भी उनक िदलच पी मुख प से ऐसी सम याओं म रही िजनक कृ ित
िवशेषतया थैितक थी और िवशेषत: अिधकतर सामािजक और सां कृ ितक सं थाओं के पि म
यूरोपीय ढ़ाचे से सं बं ध रखती थी। 20व शता दी के पॉचवे दशक म और िवशेष प से दूसरे िव
यु के बाद ही अथशाि य ने अ िवकिसत देश के आिथक िवकास म अिधक िच लेना शु
िकया। इसका मुख कारण िवकिसत व स प न रा इस बात का अनुभव करने लगे थे। ‘‘िकसी
थान क द र ता अ य थान क स प नता के िलए खतरा है ।’’
मायर एवं बा डिवन के अनुसार ‘‘रा क िनधनता का अ ययन रा के धन के अ ययन से भी
मह वपूण है’’ पर तु अ पिवकिसत देश क िवशाल द र ता को दूर करने म धनी रा क िकसी
मानव िहतवादी उ े य को लेकर नह जा त हइ है । अ य देश के मुकाबले म अिधक सहायता देने
का वचन देकर येक देश अ पिवकिसत देश का समथन और वफादारी ा करने का य न
करता है ।
आज िव अमीर और गरीब रा के बीच बटा हआ है एक तरफ िवकिसत तथा अमीर रा और
दूसरी तरफ अ पिवकिसत या िनधन रा का समूह है िजनके िनवािसय क यूनतम आव यकताएं
पूरी नह होती है । इसे ही पॉल डैमनी ने उ र - दि ण क सम या कहा है ।
इस अ याय म हम आिथक समृि और िवकास क अवधारणाओं का अ ययन करने जा
रहे ह। ार भ म आिथक सं विृ और िवकास का एक अथ िनकाला जाता या दोन को एक ही
समझा जाता था िक ित यि आय म वृि या रा ीय आय और उ पादन म वृि से िलया जाता
था। पर तु समय के साथ-साथ नये खोजो से यह जानकारी ा हइ िक दोन म भेद है ।

2
1.3 आिथक वृ ि : आशय एवं प रभाषा
आिथक सं विृ (Growth) से अिभ ाय िकसी समयाविध म िकसी देश क अथ यव था
म होने वाली वा तिवक आय क वृि से है । सामा यतया यिद सकल रा ीय उ पाद, सकल घरेलू
उ पाद तथा ित यि आय म वृि हो रही हो तो हम कह सकते ह िक आिथक सं विृ को
आिथक िवकास के एक भाग के प म देखा जाता है । सं विृ एक सं कुिचत और प रमाणा मक
प रवतन से सं बं िधत है जो एक व तुिन अवधारणा है । आिथक सं विृ चाहे िकतना भी मह वपूण
य न हो पर यह अपने म सा य नह हो सकता है । आिथक सं विृ (Economic Growth)
के वल प रणा मक प रवतन (रा ीय उ पादन के आकार म प रवतन) (आिथक चर , िजनका
प रमाण मक माप सं भव हो, म प रवतन)
ो. साइमन कु जनेट्स (Simon Kuznets) ने आिथक सं विृ क प रभाषा देते हए इसे ित
यि अथवा ित िमक उ पादन क ि थर वृि से सं बं िधत िकया जो बहधा जनसं या म होने
वाली वृि एवं सं रचना मक प रवतन के पूणाक के साथ-साथ होती है । तदुपरा त कु जनेट्स ने एक
दम क आिथक सं विृ (Economic Growth) को पूित मता म होने वाली दीघकालीन वृि के
ारा प रभािषत िकया िजसके ारा जनसं या को िविभ न आिथक व तुओ ं क पूित करना सं भव
बनता है । यह बढ़ी हइ उ पादन मता तकनीक के उ नत होने एवं सं थागत व वैचा रक समायोजन
पर िनभर करती है जो इसक मां ग करते ह।
साइमन कु जनेट्स क प रभाषा म तीन घटक मह वपूण है -
I. एक रा क आिथक सं विृ व तुओ ं क पूित म होने वाली वृि के ारा अिभ य क
जा सकती है ।
II. तकनीक के यापक व समथ योग एवं इसे िवकास हेतु सं थागत एवं वैचा रक समायोजन
आव यक है ।
III. आिथक वृि हेतु उ नत तकनीक मह वपूण घटक है । उ नत(High) तकनीक िजसे
कु जनेट्स ने Permissive source of growth कहा है ।
आिथक सं विृ के ल ण (Main Feature of Economic Growth) आिथक सं विृ के मु य
ल ण िन न िब दुओं ारा य िकए जा सकते है । जो िन न है-
I. यह बढ़ती हइ रा ीय एवं ित यि आय को सूिचत करती है ।
II. सह िमक व दीघकाल म ि थर रहती है ।
III. इसके अधीन णाली के एक या अिधक आयाम म िव तार होता है ।
IV. साम यत: इसे िवकिसत देश क सम याओं से सं बं िधतिकया जाता है ।
V. यह एक मा ा मक ि या है ।
VI. आिथक सं विृ धना मक के साथ-साथ कभी-कभी ऋणा मक भी हो सकती है ।
VII. नवीन तकनीक एक सं थागत सुधार का अभाव
3
आिथक सं विृ के मापक - आिथक सं विृ के मापक जो इस कार ह-
1. वा तिवक रा ीय आय - मौि क आय को जब मू य तर से भाग देते ह तो वा तिवक घरेलू
आय ा होती है
= x 100
= सकल घरेलू उ पाद चालू समय म
− 1 = सकल घरे लू उ पाद एक वष पहले
2. ित यि आय (Per Capita income)- ित यि आय आिथक सं विृ का दूसरा
मह वपूण मापक है । इसके अ तगत रा ीय आय को जनसं या िवभ करते ह
= , ित यि आय = कु लजनसं
रा ीय आय
या

1.4 आिथक िवकास क अवधारणा


आिथक िवकास क िनि त और सवमा य प रभाषा देना किठन है । य िक िविभ न लेखक ने
इसक प रभाषा आिथक िवकास के िविभ न माप पर दी है । सुिवधा क ि से हम इन िविभ न
प रभाषाओं का अ ययन दो ि कोण से करते ह
आिथक िवकास स ब धी ि कोण
पर परागत ि कोण आधुिनक ि कोण
1. पर परागत ि कोण - पर परागत ि कोण से सं बधं ी अथशा ी समझते है िक आिथक
िवकास क प रभाषा रा ीय या ित यि आय म वृि होने के प म क जाती है । जो ो.
साइमन कु जनेट्स, पॉल अ बट, यो सन ओर मेयर एवं वा डिवन।
कु छ अथशा ी समझते ह िक आिथक िवकास ित यि आय म वृि से सं बं िधत है जो है
िहिग स, आथर लुइस,लीिब टीन आिद।
ी मेयर बा डिवन के श द म ‘‘आिथक िवकास एक ि या है िजसके ारा दीघकाल म एक
अथ यव था क वा तिवक रा ीय आय म वृि होती है ।
उपयु प रभाषाओं से तीन बात पर अिधक जोर िदया गया -
1- ि या, 2- वा तिवक रा ीय आय, 3- दीघकाल
आलोचना-
1- आिथक िवकास क ये प रभाषाएं भी सं कुिचत प रभाषाएं ह इसके आिथक िवकास के वल
एक प अथात् ित यि आय का ही अ ययन िकया गया है ।
2- ित यि आय म होने वाली वृि से यह आव यक नह िक जीवन तर ऊं चा हो
जाएगा। य िक हो सकता है िक रा ीय आय का बं टवारा उिचत प से न हो।
3- िकसी िवदेशी मु ा के प म एक अथ यव था क ित यि आय को य करके
आिथक िवकास क अ तररा ीय तुलना सदैव उिचत नह होती है ।
4
1.5 आिथक िवकास का आधु िनक ि कोण
1960 तक आिथक सािह य म आिथक वृि को आिथक िवकास के पयाय के प म
योग करते थे। आिथक िवकास क धारणा आिथक िवकास सामािजक, सां कृ ितक, आिथक,
गुणा मक एवं प रमाणा मक सभी प रवतन से सं बं िधत है । आिथक िवकास आिथक वृि के
अित र मह वपूण दर म िनि त प रवतन है जो लोग के जीवन को बेहतर बनाते है । इसिलए
आिथक िवकास प रमाणा मक तथा गुणा मक दोन कार के प रवतन से सं बं िधत है और
यि िन अवधारणा है और आिथक िवकास तभी कहा जाएगा जबिक जीवन गुणव ा म सुधार
हो। आिथक िवकास के िलए आिथक सं विृ आव यक है तथा आिथक िवकास क ाि म
मददगार िस होगा।
सं यु रा सं घ (U.N.O.) के अनुसार ‘‘िवकास मनु य क के वल भौितक आव यकताओं
से नह बि क उसके जीवन क सामािजक दशाओं क समु नित से भी सं बं िधतहै । िवकास का अथ
के वल आिथक वृि नह है बि क उसम सामािजक, सां कृ ितक सं थागत तथा आिथक प रवतन
भी सि मिलत है ।’’
1.6 िवकास के तीन मु य मू य
ो. गौलेट और अ य के अनुसार आिथक िवकास के अित र अथ समझने के िलए तीन मु य
घटक जो क त य आधा रत और यवहा रक िदशा िनदश है उसे समझना चािहए।
1- जीवन िनवाह (Life Substance) - सभी लोग िक यूनतम आव यकताएं है िजनके िबना
जीना मुि कल है । िजसम भोजन, मकान, वा य और सुर ा। सभी देश अभाव त और
िनधन लोग को भोजन, मकान, वा य और सुर ा उपल ध करता है । इसिलए आिथक
िवकास जीवन क गुणव ा म सुधार क आव यक दशा है ।
2- आ म स मान - अ छी जीवन के िलए दूसरा सावभौिमक घटक है व-स मान ।
3- गुलामी से वतं ता - तीसरा सावभौिमक मू य वतं ता है ।
1.7 आिथक िवकास के मापद ड
आिथक िवकास दीघकालीन प रवतन क ि या है य िप आिथक िवकास के मापद ड के
अनेक मापद ड और िस ा त है आर0जी0 िल से ने बरकरार रखा क देश के िवकास क िड ी के
कइ सं भव माप है । ित यि आय, िबना योग िकये साधन का ितशत, ित यि पूँजी, ित
यि बचत, सामािजक पूं जी क मा ा आिद। पर तु आिथक िवकास के माप के कइ सामा य
मापद ड है जैसे रा ीय आय म वृि , ित यि रा ीय आय तुलना मक त य, जीने का तर और
समुदाय का आिथक क याण आिद।

5
1. रा ीय आय (National Income) -
कु छ अथशा ी रा ीय आय म वृि को आिथक िवकास का सही माप मानते है जैसे
साइमन कु जनेट्स मायर और वा डिवन आिद। ो. कु जनेट्स इस प ित के आधार पर आिथक
िवकास के माप का समथन करते है ।
िकसी देश म एक वष के अ दर पैदा िक गयी सम त व तुओ ं और सेवाओं के मौि क मू य को कु ल
रा ीय उ पादन करने के िलए िजन उपकरण का योग िकया जाता है । उसम िघसावट या मू य
ास होता है । अत: यिद कु ल रा ीय उ पादन म से स पित क िघसावट का मू य घटा िदया जाये
तो शेष शु रा ीय उ पादन होगा। पर कु ल रा ीय उ पादन आिथक िवकास क उिचत कसौिट
नह है । य िक कु ल रा ीय उ पादन म स पित क ित थापना पर यान नह िदया जाता है शु
रा ीय उ पादन या आय ही आिथक िवकास का मापद ड है । यिद िकसी रा म शु रा ीय
उ पाद बढ़ रहा है तो वह उसक बढ़ती हइ रा ीय आय व आिथक िवकास का सं केतक है ।
1.8 कु ल रा ीय उ पाद या आय के मापद ड म सावधािनयां
1- आिथक िवकास के िलए ि थर मू य पर आय क गणना के आधार पर मू यां कन उपयु
होगा।
2- उ पादन के सही आंकड़े सं किलत िकये जाने चािहए।
3- रा ीय आय म दोहरी गणना क सम या का समापन करना चािहए।
4- िजन उ पाद का बाजार म िव य नह होता है उन व तुओ ं के मू य को अनुमािनत िकया
जाये।
5- आय मापां कन के िलए िविभ न िविधयाँ जैसे उ पादन गणना, आय गणना, िमि त
मू यां कन णािलय का स तुिलत योग करके रा ीय आय का सही अनुमान लगाया
जाना चािहए।
रा ीय आय वृ ि मापद ड प म तक - आिथक िवकास क माप के िलए इसके समथक
अथशा ी वा तिवक रा ीय आय क वृि को आिथक िवकास क सव े कसौटी मानते ह।
1- िवकास क वा तिवक एवं तुलना मक ि थित का अ ययन हम रा ीय आय के आधार पर
कर सकते ह ित यि आय के आधार पर नह ।
2- ित यि आय रा ीय आय पर िनभर करती है । चूं िक ित यि आय म करने के िलए
वा तिवक रा ीय आय म वृि करना आव यक होता है । इसिलए मायर एवं बा दिवन
का मत है िक ित यि आय क अपे ा रा ीय वृि को आिथक िवकास का
अिभसूचक मानना े होगा।
सीमाएं (Limitation) - िकसी देश क रा ीय आय का आंकलन करना किठन सम या है ।
िजसम िन न किठनाइयां पायी जाती है :-

6
1- दोहरी गणना।
2- ह तां तरण भुगतान - रा ीय आय म ह तां तरण भुगतान आिद को सि मिलत करने म
किठनाइ उ प न होती है ।
3- सावजिनक सेवाएं - रा ीय आय िक प रगणना म बहत सी सावजिनक सेवाएं जैसे पुिलस
व सैिनक सेवाएं भी ली जाती है । िजनका ठीक से िहसाब लगाना किठन है ।
4- अवैध ि याएं - रा ीय आय म अवैध ि याओं से ा आय सि मिलत नह क जाती है।
5- पूँजीगत लाभ क जिटलताएं - जो स पि मािलक को उनक पूं जी प रसंपि य के
बाजार मू य म वृि , कमी या मां ग प रवतन से होती है वे GNP म शािमल नह क जाती
है । य िक ये प रवतन चालू आिथक ि याओं के कारण नह होते ह।
2. ित यि आय (Per Capita Income) -
कु छ अथशाि य का मानना है िक रा ीय आय को आिथक िवकास का ोतक नह
माना जा सकता। इस कार वे कहते है आिथक िवकास का अथ है िक सम उ पादन म वृि इस
कार आिथक िवकास प रभािषत िकया जा सकता िक दीघकाल तक ित यि आय म वृि क
ि या है । कु छ अथशा ी लेिब टन, रा ो, बाटन, बुकैजन आिद ित यि आय को आिथक
िवकास के सूचक के प म योग करने के प म है । िकड बजर ने भी ित यि आय को
आिथक िवकास के माप के प म सुझाया है ।
ित यि आय के प म तक -
1- जीवन तर म सुधार
2- आिथक क याण म वृि
3- ित यि उ पादन म वृि
ित यि आय के िवप म तक
1- ित यि आय के वल औसत - ित यि आय औसत है । जो रा ीय आय को
जनसं या के ारा िवभाजन से ा होती है । पर तु यह समूह क सरं चना तथा उसके
िवतरण का प रचायक नह है ।
2- अिव सनीय माप - ित यि आय म वृि रहन सहन के तर का िव सनीय माप नह है
। यह ज री नह है िक PCIम वृि से रहन सहन सुधरेगा। यिद आप इसका बड़ा अंश
उपभोग क बजाय बचत म लगा देते हो तो रहन सहन का तर नह सुधरेगा।
3- जनसं या का व प - ित यि आय ात करने के िलए रा ीय आय को जनसं या से
िवभािजत करते ह और यह ात नह िकया जाता है िक कु ल जनसं या म िकतना अनुपात
उ पादक है और अनुउपा दक।

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3 तु लना मक अवधारणा (Comparative Concept)-
आिथक िवकास तुलना मक अवधारणा है और इसे आसानी से समझा और मापा जा सकता है ।
तुलना मकता को दो तरीके से समझा जा सकता है-
i. देश म तुलना मक अ ययन
ii. देश का दूसरे देश के साथ तुलना
i-देश म तुलना मक अ ययन - िकसी देश के आिथक िवकास क तुलना िकसी समय म कर सकते
ह। हम एक समय अविध लेगे और िभ न िभ न भाग म बां ट लेते ह।
उदाहरण के िलए िकसी देश क रा ीय आय 1970 म 1000 करोड़ थे जो 1975 म बढ़कर 1200
करोड़ और 1980 म 1800 करोड़ पये हो गयी। तथा 1985 म यह रािश बढ़कर 2250 करोड़
पये हो गयी। इसिलए पांच वष क अविध म 1970 से 75, रा ीय आय म वृि 20 ितशत हइ
है । 1975 से 80 तक 50 ितशत क वृि हइ थी। 1980 से 1985 म 25 ितशत क वृि हइ
थी। इसे रेखािच क सहायता से समझा जा सकता है ।
2400 D
2200
2000
1800 C
1600
1400 B
1200
1000
A
800
600
400
200

0 1970 1975 1980 1985

Time Period
रेखािच 1.1 से प है िक रा ीय 1970 म 1000 करोड़ 0 जो 1975 म 10 ितशत बढ़कर
1200 करोड़ 0 और 1980 म 1800 करोड़ 0 हो गयी।
ii दू सरे देश के साथ तु लना
दूसरे देश के साथ तुलना को िन न रेखािच के ारा समझा जा सकता है ।

8
P’ P(A) 1
M(B)
E
500

400 M

300

200
P
100
x
0 1 2 3 4 5
समय अविध
रेखािच 1.2 म Ox अ पर समय अविध और Oy अ पर रा ीय आय को िलया गया है । व
pp1 देश A के आिथक िवकास के प को िदखाता है और व mm1 देश B के आिथक िवकास
के प को िदखाता है । ारि भक तर पर देश क रा ीय आय देश A क रा ीय आय से अिधक
है । पर तु उसी समय के दौरान देश A क िवकास दर देश B से यादा है । िब दु E, समय अविध 5
पर दोन देश क रा ीय आय समान है । दीघकाल म िब दु E के बाद रा ीय आय देश A का देश
B से अिधक है । रेखािच के ारा हम कह सकते ह िक देश A यादा िवकास वाला देश है देश B
क तुलना है ।
4 आिथक क याण
कु छ अथशाि य ने आिथक क याण को आिथक िवकास का उिचत मापद ड माना है उनके
अनुसार ऐसी ि या को आिथक िवकास माना जाता है । िजससे ित यि वा तिवक आय व
उपभोग म वृि होती है । और उसके साथ-साथ आय क असमानताओं का अ तर कम होता है
तथा देश के िनवािसय को अिधकतम सं तिु िमलती है । सं ेप म हम कह सकते है िक जीवन तर
मु यत: उपभोग के तर पर िनभर करता है । इसिलए देश म बढ़ता हए उपभोग का जीवन तर ही
आिथक िवकास का अिभसूचक है ।
सीमाएं (Limitation) :-
1. यह आव यक नह िक वा तिवक रा ीय वृि का अथ क याण म सुधार ही हो य िक
हो सकता है िक वा तिवक रा ीय आय बढ़ने पर भी उसका िवतरण सही नह िजसके
फल व प गरीब के उपभोग तर म िकसी कार क वृि न हो।

9
2. उपभोग व जीवन तर अ यं त ही ामक श द है िजनक िनरपे माप सं भव नह है ।
5. जीवन तर मापद ड (Standard of living criterion)-
एक अ य मापद ड जीवन तर जो आिथक िवकास का मापक है । इस ि कोण के
अनुसार जीवन तर और ित यि आय म वृि नह हो तथा रा ीय आय को आिथक िवकास
का सं केतक समझना चािहए। आिथक िवकास मु य ल य लोग को अ छा जीवन दान करना,
जीवन तर म सुधार के ारा दूसरे श द म इस मतलब है यि गत उपभोग तर म वृि ।
िवकास के सूचक (Indicator of Development) - िवकास के तर के माप के तीन मह वपूण
सं केतक है:-
i- जीवन क भौितक गुणव ा सूचक (Physical quality of life Index PQLI) )
ii- मानव िवकास का सूचक (Human Development Index)
iii- जीवन क गुणव ा का सूचक( Quality of Life Index)
अथशाि य ने तीन सं केत को लेकर मानव िवकास के सीिमत सूचक के िनमाण के िलए मूल
आव यकताओं के सामािजक सूचक को मापने का यास िकया है । भौितक जीवन-कौिट
िनदेशांक (Physical quality of life Index PQLI) ) मौ रस डी. मौ रस ने 1979 म िमि त
जीवन क भौितक गुणव ा सूचकां क का िनमाण िकया। उ ह ने जीवन याशा तथा मृ युदर,
सा रता दर तीन सूचकांको को लेकर इस आधार पर 23 िवकिसत और िवकासशील देश के
आिथक िवकास का तुलना मक अ ययन तुत िकया।
1.9 सू चकां क का चु नाव
i- जीवन याशा सूचकां क (Life Expectancy Index)
ii- िशशु मृ यु दर सूचकां क (Infant Mortality rate Index)
iii- आधारभूत सा रता दर सूचकांक (Literacy rate Index)
येक सूचकां क के तीन घटक को शू य से 100 तक के पैमाने पर रखा गया है । िजसम शू य
को िन नतम तथा 100 को सव म दशन के प म प रभािषत िकया गया है । HDI क गणना
तीन घटक को समान भार देते हए औसत िनकाल कर क जाती है तथा सूचक को भी शू य से
100 के पैमाने पर रखा गया है । इन िनदशांक के आधार पर देश म िवकास होने या न होने का पता
चलता है । यिद जीवन िनदशांक म थायी तौर से वृि होती है जो िक स भव है जबिक देश म कु ल
रा ीय उ पादन का िवतरण और उपभोग इस ढं ग से हो िक अिधकािधक लोग लाभ उठा सके और
फल व प िशशु मृ यु दर घटे तथा यािशत आयु और सा रता बढ़े तो यह इस बात का सूचक
होगा िक देश म आिथक िवकास हो रहा है ।
मौ रस के अनुसार तीन सूचक म येक सूचक प रणाम है । उसके अ ययन के अनुसार-
10
1. जीवन याशा और िशशु मृ यु दर म उ च िड ी का ऋणा मक सह स ब ध गुणां क
ा है ।
2. िश ा और िशशु मृ यु दर म भी उ च िड ी का ऋणा मक सह स ब ध ा है ।
3. िश ा और जीवन याशा म उ च िड ी का धना मक सह स ब ध ा है अथात्
िश ा के साथ-साथ जीवन याशा म वृि होती है ।
सीमाएं-
1. PQLI मूल आव यकताओं को के वल एक सीमा तक ही मापता है । यह आिथक
वृि को मापने का काम भी नह करता है ।
2. यह मापद ड सामािजक और आिथक सं गठन के बदलते हए ढ़ां चे को भी नह दिशत
करता है । अत: यह आिथक िवकास को नह मापता है ।
3. इसके अ तगत के वल तीन सूचक को िलया गया है और अनेक सूचक को छोड़ िदया
गया है जो जीवन क गुणव ा को मािणत करते ह।
4. PQLI कु ल क याण को नह मापता।
उपयु सीमाओं के होते हए भी PQLI जीवन क गुणव ा को मापता है जो गरीब के िलए बहत
आव यक है । साथ ही यह अ पिवकास के उन िवशेष े का पता लगाने तथा सामािजक नीितय
क असफलता तथा उपे ा क िशकार समाज के िविभ न े क जानकारी ा करने म सहायक
हो सकता है । सरकार ऐसी नीितयां अपना सकती है िजससे PQLI म भी शी वृि हो तथा
आिथक िवकास व रत हो।
1.10 मानव िवकास सू चकां क (Human Development Index)
1990 म सं यु रा िवकास सं गठन (UNDP) के साथ जुड़े हए अथशा ी महबूत -उल-हक तथा
उनके अ य सहयोगी अथशा ी मुखतया नोबल पुर कार स मािनत ए.के .सेन तथा ो. िसं गर हंस
के नेतृ व म अथशाि य ने एक समूह ने मानव िवकास सूं चकां किवकिसत िकया।
मानव िवकास सूचक (HDI) तीन सामािजक, अिभसूचक अथवा मापदं ड का एक िमि त सूचक
है । िजसम वा तिवक ित यि GDP का भी यान रखा जाता है । िकसी देश के HDI का मू य
िनकालने के िलए िन निलिखत तीन सूचक को िलया जाता है ।
1- दीघायु (Longevity) - इसे ज म के समय जीवन क याशा ारा मापा जाता है । िजसे
वतमान समय म अथशाि य ारा यूनतम 23 वष तथा अिधकतम 85 वष दशाया जा
रहा है ।
2- शै िणक उपलि धयां - शै िणक उपलि धय क माप िन निलिखत दो चर ारा क
जाती है ।

11
I. ौढ़ सा रता दर - इसम 15 वष या उससे अिधक आयु के 100 यि य म से िकतने
यि साधारण कथन को पढ़ िलख सकते ह। उसे ौढ़ सा रता दर कहते ह।
II. सकल नामां कन दर - (GER) कु ल जनसं या का वह भाग िजसका नामां कन
ाथिमक कू ल िमिडल कू ल, हायर सैके डरी कू ल या िव िव ालय तर पर हआ है
। उसे सकल नामांकन दर कहते ह।
शै िणक यो यताओं क ाि ौढ़ िश ा का 2/3 भार तथा ाथिमक, मा यिमक व
ै ीय िव ालय म नामां कन अनुपात के 2/3 भार के िम ण के प म मापा जाता है ।
3- वा तिवक ित यि (GNI) - जीवन तर को यशि मता पर आधा रत ित
यि GNI ारा मापा जाता है । H.D.R. 2010 के पूव इन तीन चर के आधार पर
िन नांिकत सू के आधार पर HDI क गणना क जाती है ।
1.11 यि गत सू चकां क का िनमाण
HDI के िनमाण के िलए आव यक है िक तीन सूचकां क का अलग अलग सूचकां क का िनमाण
िकया जाये। यि गत सूचकांक के िनमाण के िलए िन न आयाम (िव तार) सू िन न कार है –
वा तिवक मू य − यूनतम मू य
सूचकां क =
अिधकतम मू य − यूनतम मू य
हम येक चर का सूचकां क ात करते ह। इस कार हम तीन सूचकांक को जीवन
याशा सूचकां क, शै िणक उपलि ध सूचकां क तथा य शि समायोिजत ित यि सकल
घरेलू आय सूचकांक ा करते ह।
तीन सू चकांक का सरल औसत लेना –
HDI = (जीवन याशा सूचकां क + शै िणक उपलि ध सूचकांक + य शि समायोिजत
ित यि सकल रा ीय आय सूचकां क)
HDR 2010 तथा उसके बाद तीन नये बहआयामी मापक - मानव िवकास रपोट 2010 म
UNDP ने िवषमता तथा गरीबी के तीन बहआयामीय माप को तुत िकया, ये ह -
a. िवषमता समायोिजत HDI
b. िलं िगक िवषमता सूचकांक (Gender inequality Index GII)
c. बहआयामी गरीबी सूचकां क (Multi poverty Index)
तीन सूचकांक जीवन याशा सूचकां क (High life Expectancy), िश ा (Education)
तथा GNI सूचकां क समि त सूचकांक या औसत सूचकां क है । HDR 2010 के अनुसार HDI इन
तीन आयाम के सूचकांक के सूचकाक का यािमतीय औसत है -

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HDI = I = Index
यािमतीय औसत के योग के कारण अिधकतम मू य सापेि त मू य को नह मािणत
करते ह।
HDI क गणना के िलए रपोट के िविभ न आयाम के सं बं धिन न मू य िलये गए है
उ लेखनीय है िक HDI का अथ मू य 0 और 1 के बीच होता है, तथा अिधकतम मू य 1 के
बराबर है ।
सं केतक यूनतम मू य अिधकतम मू य
i. जीवन याशा 25 85
ii. ौढ़ सा रता दर 0% 100%
iii. सकल नामांकन दर 0% 100%
iv. य शि मता पर पर आधा रत दर $100 $40000
HDI के स ब ध म HDR 2013 के कु छ मह वपूण िन कष:- 2012 म HDI क गणना के स ब ध
म 186 देश को िलया गया है ।
HDI के मू य के आधार पर HDR 2013 म देश को चार वग म रखा गया है
(I). 0.773 और उससे अिधक, अ यिधक उ च HDI वाले देश
(II). 0.466 से 0.773 तक उ च मानव िवकास वाले देश
(III). 0.466 से 0.640 म यम िवकास वाले देश
(IV). 0.466 से कम अ प मानव िवकास वाला देश
186 देश म भारत को HDI 0.554 के साथ 136 थान ा हआ। अत: भारत म यम िवकास
वाला देश है ।
सीमाएं -
(i). िविभ न काल म इन तीन सूचकां क के आंकड़े अपया व अधूरे हो सकते ह।
(ii). आिथक िवकास िक ि या म इन तीन सूचकां क के अलावा, देश क सामािजक
और राजनीितक ि थित को भी शािमल करना चािहए।
(iii). आिथक सं थाएं बदलती रहती ह या बदलती हइ प रि थितय अपनाती है िजसके
कारण िवकास का मब माप सं भव नह है ।
1.12 जीवन गु णव ा सू चकां क
अथ यव था म लोग के जीवन तर के माप के िलए जीवन गुणव ा सूचकांक आव यक है
। यह रा ीय आय हमारे लोग के ित यि आय ारा भािवतहै । कु छ अ य घटक जैसे उपभोग,
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िश ा, उ पादन, वा य, पयावरण, िश ा, वतं ता सुर ा, शां त माहोल आिद आिथक िवकास
य और अ य प से भािवत करता है । रा ीय आय अके ला क याण का मापक नह है ये
सारे घटक सं यु प से जीवन क गुणव ा के मापक है । पर तु यह आव यक नह है िक सारे
घटक एक साथ उपयोग िकये जाते हो।
1.13 आिथक सं वृ ि और िवकास म अ तर
ल बे समय तक ‘आिथक िवकास’ श द का योग आिथक सं विृ , आिथक गित,
आिथक क याण आिद श द म समानाथ श द के योग प म योग िकया जाता रहा है ।
शु पीटर ने अपनी पु तक “The Theory of Growing Development” म आिथक सं विृ
तथा आिथक िवकास इन दोन श द को अलग अलग प प से प रभािषत िकया।
आिथक सं वृ ि एवं आिथक िवकास म अ तर
.सं. आधार आिथक सं विृ आिथक िवकास
1 कृ ित आिथक सं विृ आिथक िवकास े रत एवं औसतन
सं भािवत िमक व ि थर गितवाला प रवतन होता है ।
गित वाला प रवतन होता है इसके उ पादन म वृि के साथ-साथ
तकनीक एवं सं थागत प रवतन का
होना आव यक है ।
2 समािजक याय आिथक सं विु के आिथक िवकास म उ पादन एवं आय
साथ-साथ सामािजक याय म वृि के साथ-साथ सामािजक
आव यक नह है । याय क आव यकता है ।
3 माप आिथक सं विृ मा ा मक आिथक िवकास मा ा मक के साथ
सुधार से स बं िधत है | साथ गुणा मक सुधार से समबि धत है
4 धना मक व आिथक सं विृ धना मक आिथक िवकास क क पना
ऋणा मक और ऋणा मक हो सकती है सामा यत: धना मक वृि के प म
। क जाती है ।
1.14 सारां श
स पूण अ ययन से हम इस बात पर पहँचे है िक आिथक िवकास आिथक सं विृ दोन
अलग-अलग ह। ार भ म कइ अथशा ी एक प म योग करते थे। पर बाद म दोन का अथ
अलग-अलग प हआ है । आिथक सं विृ का एक आयाम है उ पादन अथवा रा ीय आय म
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वृि लेिकन यह नह बताता क आय म वृि सभी लोग क हो रही है या इसम िवषमता है ।
लेिकन आिथक िवकास बहआयामी अवधारणा है । इसम आिथक सं विृ के साथ साथ सामािजक
क याण का भी यान रखा जाता है ।
1.15 सं दभ थ
1- डॉ. मृगेश पा डे - आिथक वृि एवं िवकास िस ा त नीित एवं सम याऐं
2- एम.एल. िझगन - आिथक िवकास का अथशा एवं आयोजन
3- डॉ. वी.सी. िस हा - आिथक सं विृ और िवकास
4- पुरी व एस.एन. लाल - भारतीय अथ यव था
5- डॉ. एस.के . लाल - सव ण एवं िव ेषण
6- आर.के . लेखी - The Economics of Development and Planning
1.16 िनब धा मक
1- आिथक िवकास को प रभािषत क िजए। आिथक िवकास के िविभ न माप का िववेचन
क िजए। इनम से आप िकसको सवािधक उपयु समझते ह और य ?
2- या आप सोचते ह िक आिथक वृि और आिथक िवकास म कोइ अ तर है । आप इस
अ तर को कै से प करेग। समझाइय।
3- आिथक सं विृ और िवकास म अ तर प क िजए। आप आिथक िवकास को कै से
मापेग?

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इकाई 2
समावेशी िवकास
Inclusive Growth
इकाई क परेखा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 समावेशी िवकास के माप
2.3 समावेशी िवकास को ा करने क चुनौितयाँ
2.4 सारां श
2.5 स दभ थ
2.6 िनब धा मक
2.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप िन न िब दुओं के बारे म जान सकगे —
 समावेशी िवकास के माप
 समावेशी िवकास को ा करने क चुनौितयाँ
2.1 तावना
समावेशी िवकास, िवकास का मु य िवचार बन चुका है । समावेशी िवकास का अथ
सामा यत: दो श द म िकया जा सकता है जो दोन है एक अथ यव था क गित और ढ़ॉचा। इस
िवषय पर सािह य य आय िवतरण या साझा िवकास और समावेशी िवकास के बीच भेद करता
है । समावेशी िवकास एक दीघकालीन प र े य है जो उ पादक य रोजगार पर जोर देता है बजाय
य आय िवतरण के इसके अथ है जो समूह बाहर है उनक आय वृि करना। समावेशी िवकास,
िवकास का िववरणा मक पहल जो के वल इससे स बि धत नह िक आिथक वृि दर या, िकतनी
ऊँची और न के वल इसम सं बं िधत है िक जीवन क गुणव ा म सुधार हो रहा है िक नह और न ही
इससे सं बं िधत क मानव िवकास सूचकां क उ च रहा है िक या नह । बि क इससे सं बं िधत है । क
उ च आिथक वृि दर से अथ यव था का अिधक बड़ा वग जो गरीबी तथा जीवन क
आव यकताओं क स तुि से वं िचत है । लाभाि वत हो रहा है या नह ।
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हम कह सकते है िक समावेशी िवकास एक बहआयामी अवधारणा है जो अथ यव था मे पायी
जाने वाली असमानता जैसे गरीब-अमीर, ी-पु ष, ामीण-शहरी आिद को शािमल करती है ।
िजनका आिथक िवकास क मु य धारा म सबको जोड़ना होता है िजससे आिथक िवकास से सभी
समान प से लाभाि वत हो सक। कोई वं िचत न रह ना जाये इसे समावेशी िवकस कहते ह।
समावेशी िवकास क नीितयाँ जो सरकारी रणनीितयाँ का मह वपूण घटक है िटकाऊ िवकास के
िलए है । उदाहरण के िलए एक देश क अथ यव था एक दशक से लगातार वृि कर रही है लेिकन
गरीबी म पया कमी नह हइ है तो आव यकता है िवशेष तोर से इसके िवकास रणनीित के
समावेशन क ।
समावेशी िवकास क ि या के तीन पहलू होगे -
1- आिथक िवकास क ऊॅची वृि दर िजससे रा ीय उ पाद का आकार बढ़े।
2- आिथक िवकास से उ प न लाभ का बं टवारा िजससे शहरी तथा ामीण कमजोर वग
अिधक लाभाि वत हो।
3- िव ीय समावेशन िजससे, िवकास क ि या तथा सरकार क िविभ न योजनाओं से
लोग को ा आय का उन लोग तक पहंचना सुिनि त हो।
यूएनडीपी ने समावेशी क वकालत शु कर दी, जब अवधारणा प प से प रभािषत नह है
िवशेषत: िवकासशील देश म इस लाभ को ा करने के िलए िवकास नीित म वीकृ त दान कर
दी है । यह अ तिनिहत िव ास है िक इसका मु य ल य एक रणनीित बनाना है जो आिथक और
सामािजक प से वं िचत लोग को अथ यव था क मु य धारा म शािमल करना और इसे िवकास
ि या से जोड़ना। ‘समावेशी िवकास क रणनीित का नीित मू यां कन जो इस कार आय और
उपभोग क अभाव तता से सं बं िधत माप जैसे ित यि आय और उपभोग इस स दभ म बड़े
पैमाने पर बाहर आये ह। इस कार यह मह वपूण है िक समावेशी िवकास क अवधारणा को
प रभािषत करे और इसक सां यक य माप करने से पहले समावेशी िवकास के िलए नीित िनमाण
आव यक है जो िक आिथक प से जारी है । समावेशी िवकास के िलए यह आव यक है िक ऊॅची
वृि दर के साथ आय का भावी िवतरण हो। इसिलए समावेशी िवकास के िलए बाजार और रा य
क सं बं िधत भूिमका आव यक है । इस वग क आव यक व तुओ ं और सेवाओं क सुपदु गी
सरकार सुिनि त नह कर सकती है । इसिलए रा य क बाजार तथा िनजी े के सुचा प से
ि याशीलन म भूिमका िनभानी चािहए िजससे सरकार
1- बाजार के िलए एक वातावरण पैदा करे िजससे यि गत उ मी बढ़े।
2- उन लोग क सहायता करना जो अपने से अ छा नह कर सकते।
इस कार हम ऐसी सरकार चािहए तो यूनतम ह त ेप के साथ खड़ी रहे तथा साथ ही गरीब क
िश ा, वा य सेवाएं तथा पया मा ा म पोषण तथा भोजन य मुहयै ा कराने म मह वपूण
भूिमका अदा करे। पर इतना िनि त है िक समावेशी िवकास क ि या म रा य क भूिमका

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आव यक होगी य िक लाभ दर से िनदिशत बाजार समावेशी िवकास नह दान कर सकता और
यह मानकर चलना क आिथक वृि दर वत: नीचे तक पहच जायेगी यह बेमानी होगी।
समावेशी िवकास थािपत करने के िन न मह वपू ण घटक
समावेशी िवकास ा करने के िलए िन न पर बल देना आव यक है
i. आधारभूत आव यक व तुओ ं तक सभी क पहँच।
ii. शहरी और ामीण े म रहने वाले बेरोजगार लोग को रोजगार दान करना।
iii. कृ िष और ामीण िवकास सुिनि त करना िजसके िलए इस े म िनवेश म वृि तथा
इसके प रणाम व प आय म वृि होगी।
iv. अ पसं यक या िकसी कमजोर वग तथा िनधन , मिहलाओं तथा ब च का सामािजक
और आिथक सशि करण करना।
v. िश ा, वा य, आवास तथा खा सुर ा पर सावजिनक यय करना।
vi. कमजोर वग के सभी लोग के सं बं ध म ऐसे उपाय सुिनि त करना िजससे उनके ऊपर मू य
तर म फ ितक वृि का भाव कम से कम हो।
2.2 समावेशी िवकास के माप
समावेशी िवकास के माप का भावी तरीका देश के िवकास को इसके िनचले तबके तक मापना।
समावेशी िवकास मूलत: जनसं या के िनचले गरीब तबके से सं बं िधत है जो ती आिथक से
लाभाि वत हआ िक नह , हआ तो कहां तक लाभाि वतहआ इससे सं बं िधत है ओर इन लोग क
गरीबी म कमी आयी क नह और इन लोगो के जीवन क गुणव ा म सुधार हआ क नह इसके
अ ययन से सं बं िधत है । यिद सामािजक े के िविभ न घटक मु यत: िश ा, वा य पोषक
खाने क उपल धता, सामािजक सुर ा आिद म होने वाला सुधार इन लोग क गुणव ा म सुधार
लाता है । और ित यि आय बढ़ रही हो तो हम कह सकते ह िक समावेशी िवकास हआ है ।
समावेशी िवकास को हम िन न आधार पर माप सकते ह:-
1. ित यि आय के आधार पर - हम ित यि आय को कु ल रा ीय आय म जनसं या
का भाग को ा करते ह। यिद ित यि आय के जनसं या के िनचले िह से क भी आय
बढ़ रही है तो हम कह सकते है िक समावेशी िवकास हो रहा है । प है िक अथ यव था म
ऊॅची वृि दर के साथ ही यिद इस िनचले तबके क आय बढ़ रही है तो यह कहा जा सकता है
िक आिथक वृि के साथ साथ् ही समावेशी िवकास हो रहा है । इस वग क ित यि आय
म वृि यह सुिनि त नह करती क इस वग क जीवन गुणव ा म सुधार हो रहा है ।
2. मानव िवकास सू चकां क के आधार पर -मानव िवकास सूचकांक को आिथक िवकास का
सबसे िव सनीय माप माना जाता है । य िक यह अथ यव था के सभी चर दीघ आयु, िश ा
य शि मता को आधार मानता है जो सामािजक े के िवकास को भािवतकरते ह।
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सम प से मानव िवकास सूचकां क इस पर काश डालता है िक आिथक िवकास हो रहा है
और लोग क जीवन गुणव ा म सुधार हो रहा है ।
3. बहआयामी गरीबी सू चकां क -HDI रपोट 2010 म िवकिसत िकया गया। िजसके अनुसार
गरीबी का अथ यह नह क हम कै लोरी के आधार पर गरीबी का माप कर। उ ह ने गरीबी को
अभाव तता से जोड़ा। उनके अनुसार बहआयामी गरीबी का अथ है िक भोजन के अलावा,
िश ा, वा य और व छ पानी आिद एक यि को ा हो रहे ह क नह । 2010 म
आंकिलत MPI के आधार पर भारत म 41.6% गरीबी अनुपात है ।
4. सामािजक और ामीण े म होने वाला यय - आिथक िवषमता ने ामीण और शहर
के बीच काफ अ तर पैदा कर िदया जो एक नुकसान देह है । इस भेद करने के िलए या सरकार
ामीण े िनवेश कर रही है िक नह ? यह सभी बात समावेशी िवकास को भािवत करती है
। भारत सरकार 12व पंचवष य योजना से सबसे यादा यय सामािजक योजनाओं पर कर रही
है ।
5. ामीण े म वा तिवक मजदू री म वृ ि - ऐसी अथ यव था जहां अिधकतर 50% से
ऊपर जनसं या ामीण े म िवकास करती है और वहां इस े मे बढ़ती वा तिवक मजदूरी
को समावेशी के प म देखा जा सकता है ।
2.3 समावेशी िवकास को ा करने क चु नौितयाँ
भौितकवादी युग म समावेशी िवकास को ा करने म अनेक चुनौितय का सामना करना पड़ता है-
1. जनसं या म अ यिधक वृि 2. बढ़ती आिथक और सामािजक अि थरता
3. ाचार 4. गुड गवन स का अभाव
2.4 सारां श
समावेशी िवकास एक बहआयामी अवधारणा है यह देश क समृि के िलए आव यक है । िन न
चुनौितय के बावजूद अगर सरकार क इ छा शि ढ़ हो तो इसे ा िकया जा सकता है ।
2.5 स दभ थ
1. Rahul Anam, Mishra, J.Peiis ‘Inclusive Growth : Measurement and
Development’
2. K.C. Chakrabarty “What is Inclusive Growth”
3. Raneiriand Ramos “ Inclusive Growth : A Building up a concept”
2.6 िनब धा मक
1- समावेशी िवकास या है? इसके माप और चुनौितय को समझाइये?

19
इकाई – 3
िवकास का िति त िस ां त
Classical Theories of Development
इकाई क परेखा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 एडम ि मथ का िवकास िस ा त
3.2.1 मु य िवशेषताएँ
3.2.2 किमयाँ
3.3 डेिवड रकाड का आिथक िवकास िस ा त
3.4 जे.एस. िमल का आिथक िवकास िस ा त
3.5 सारां श
3.6 बोध
3.7 कु छ उपयोगी पु तक
3.0 उ े य
इस इकाई का उ े य एडम ि मथ, डेिवड रकाड एवं जॉन टु अट िमल जैसे िति त
अथशाि य के आिथक िवकास सं बं धी िवचार से आपको अवगत करना है ।
3.1 तावना
िति त अथशाि य से,पूव कृ ितवादी अथशाि य ने आिथक िवकास के सं बधं म अपनी
िवचारधारा तुत क िजसे प रमािजत करने का ेय िति त अथशाि य को रहा, तथा उ होने
दीघकालीन आिथक िवकास के व प के ित िच कट क ।
3.2 एडम ि मथ का िवकास िस ा त Adam Smith Theory For
Development
एडम ि मथ को, राजनीितक अथशा का जनक माना जाता है। उ ह एक लािसकल
अथशा ी के प म जाना जाता है। उनक मु य पु तक (An inquiry into the nature and
causes of the wealth of nation) है जो मु यतः आिथक िवकास क सम याओं से स बि धत
है।

20
एडम ि मथ ने अपने िवकास िस ा त को य करने के िलए एक साधारण उ पादक
फलन का उपयोग िकया जो इस कार है।
y  f  L, K , N  यहाँ y = उ पादन, N = भूिम, K = पूं जी, L = िमक
यह फलन यह य करता है िक उ पादन म, भूिम और पूं जी आिद पर िनभर करता है।
मा यताएँ (Assumption)
1. जनसं या, िजसे ारि भक समय म अ तजात चर माना जाता था।
2. िनवेश भी अ तजात चर है जो बचत क दर पर िनभर करता है।
3. भूिम िवकास जो नई भूिम पर िनभर करती है। जो क बं जर भूिम को तकनीिक सुधार ारा
उसक उवरता को बढ़ाया जा सकता है।
4. तकनीिक गित जो क स पूण वृि दर के तर को बढ़ा सकती ह।
5. ि मथ ने पाया क तकनीिक सुधार और अ तरा ीय यापार वृि के इंजन है।
6. ि मथ ने पूण ितयोिगता के अि त व को वीकार िकया।
3.2.1 मु य िवशेषताएँ (Main Feature)
1. म िवभाजन (Division of Labour) - आिथक िवकास क दर म और म क
उ पादकता के आकार ारा िनधा रत होती है और म क उ पादकता देश तकनीिक गित पर
िनभर करती है और तकनीिक गित म िवभाजन पर िनभर करती है इसी कारण से ि मथ ने म
िवभाजन को आिथक ि या म मु य थान िदया। म िवभाजन और िविश ीकरण से िन न लाभ
है।
(a) िमक क काय कु शलता म वृि होती है।
(b) व तुओ ं के िनमाण म कम समय लगता है।
(c) अ छी मशीन और उपकरण का आिव कार होता है।
म िवभाजन से िनपुणता और काय कु शलता बढ़ती है जो िक उ पादन के तर को बढ़ाने
के िलए आव यक है। म िवभाजन से व तुओ ं का आदान- दान है िजसम व तुओ ं के यापार को
ो साहन िमलता है और बाजार का आकार भी िव तृत होता है।
2. ाकृ ितक िनयम (Natural Law) - एडम ि मथ ने अपने िस ा त म ाकृ ितक िनयम
को तुत िकया। उ ह ने वतं और रोक-टोक रिहत काय करने क नीित क वकालत क । उनके
अनुसार समाज म येक यि को आिथक ि याओं को करने क आजादी हो तो वह अपनी
यो यता से अिधक उ पादन कर सकता है यह समाज क बेहतरी के िलए अ छा होता।
ि मथ ने आिथक ि याओं सरकारी ह त ेप का िवरोध िकया साथ ही वह मु यापार
नीित और अह त ेप नीित का समथन िकया। उनका मानना था िक ाकृ ितक िनयम रा य के ारा
बनाये िनयम से सव परी है और वैधािनक िनयम और इंसान ारा बनाये गये िनयम कभी भी समाज
के िलए पूण और लाभकारी नह हो सकते ह।
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3. अह त ेप नीित (Laissez Fair)- ि मथ का िवकास िस ा त मु यतः अह त ेप
नीित पर आधा रत है िजसके िलए आव यक है िक रा य को यि गत वतं ता पर रोक नह
लगाना चािहए उनके अनुसार िवकास का िस ा त बचत, म िवभाजन और बाजार के िव तार पर
आधा रत है। बचत और पूँजी सं चय इसके शु आती िब दु है। अह त ेप नीित उ पादक को छु ट
देती क वह चाहे िजतना उ पादन कर सकता है और इ छा के अनुसार आय कमा सकता है और
जीतना चाहे बचत कर सकता है। एडम ि मथ का िव ास था िक ‘‘अ य ह त’’ ारा
अथ यव था का सं चालन और िनयं ण हमेशा सुरि त होता है अथात् ितयोिगता क शि य को
काम क छु ट हो तो िवकास हेतु बचत और िनवेश अिधकतम हो सकता है।
4. पू ँजी सं चय (Capital Accumulation) - एडम ि मथ के िस ा त का के िब दु पूँजी
सं चय है और वृि फलना मक प से िनवेश क दर से स बि धत है।एडम ि मथ के अनुसार
धन-स पि को बढ़ाने को मु य साधन उ पादन है िजसे अिधक पूं जी िनवेश के ारा बढ़ाया जा
सकता है िजसके िलए अिधक पूँजी और अिधक पूँजी के िलए यादा बचत करनी चािहए। इसिलए
ि मथ बचत पर यादा यान िदया य िक यह पूँजी सं चय का आधार है।
5. िवकास का एजट (Agents of Growth)- ि मथ के अनुसार िकसान उ पादक और
यवसायी आिद आिथक िवकास के मु य एजट है। इन तीन का काय एक-दूसरे से स बि ध है।
कृ िष का िवकास जो क िनमाण काय और वािण य म वृि करता है। आिथक िवकास के
प रणाम व प जब कृ िष आिध य म वृि होती है तो इससे वािण य सेवाओं और िविनमाण
व तुओ ं क मां ग म वृि होती है इससे वािण य गित और िविनमाण उधोग क थापना होती है।
दुसरी तरफ इनका िवकास कृ िष े के उ पादन म वृि करता है और िकसान उ नत तकनीिक का
योग करता है।
6. ाकृ ितक संसाधन क कमी- ि मथ के अनुसार िवकास क ि या सं चयी होती है।
कृ िष, िविनमाण उ ोग और वािण य म गित के कारण समाज म समृि आती है। िजससे पूं जी
सं चय, तकनीिक गित, बाजार िव तार, म िवभाजन और लाभ म वृि होती है। लेिकन यह
ि या अनं त नह है। य िक ाकृ ितक सं साधन के दुलभता के कारण एक िदन आिथक िवकास
अव होना ही है। यवसायीय के बीच ितयोिगता लाभ म कमी लाती है इससे िनवेश म कमी
होगी िजसके प रणाम व प पूं जीवाद गितिहन, लाभ िन नतम, मजदुरी जीवन िनवाह तर पर होगी।
इससे ित यि आय उ पादन म कोई प रवतन नह होगा और इससे अथ यव था गितहीन हो
जायेगी।
आलोचना मक मू यां कन
ि मथ ने आिथक िवकास िस ा त म मह वपूण िब दु िचि त िकये िक ‘‘कै से आिथक
वृि होगी और कौन से साधन और नीितयाँ इसे अव करेगी।’’ उ ह ने अपने िस ा त म बचत,
पूं जी सं चय, तकनीिक गित म िवभाजन, बाजार िव तार और िकसान, यापारी और उ पादन के
बीच अ तर िनभरता क स तुलन िक ि या आिद के मह व का वणन िकया था।

22
3.2.2 किमयाँ
1. ि थर मॉडल- िह स के अनुसार ि मथ का मॉडल िवकास का मॉडल है यह जैसा लगता है
लेिकन वा तिवकता म है नह इसके कोई प रणाम िदखाई नह देते इसिलए यह ि थर मॉडल है।
2. रा य क भूिमका को नजरअंदाज िकया है।
3. यह एक तरफा बचत आधा रत मॉडल है।
4. पू ण ितयोिगता क अवा तिवक मा यता पर आधा रत- ि मथ ने अपने िस ा त म
पूण ितयोिगता क अह त ेप नीित को अपनाया जो िक िकसी अथ यव था म नही अपनाया है।
य िक रा य नीिज े पर बहत से ितब ध लगाता रहता है।
5. समाज का कठोर िवभाजन- ि थम का िस ा त सामािजक और आिथक वातावरण पर
आधा रत है। उ ह ने माना िक समाज म पूं जीपित और िमक के िबच िवभाजन का अि त व है
पर तु आधुिनक समाज म म यम वग का अि त व है जो यह िस ा त नजरअंदाज करता है।
3.3 डेिवड रकाड का आिथक िवकास िस ा त (Ricardian
Theory of Economic Development)
डेिवड रकाड (1772-1823) का यि व-बहमुखी ितभा का धनी था। वे अपनी
तकशैली और िव ेषणा मक ि कोण के िलए िस था। उ ह ने िवकास के पुराने िस ा त को
अपनी तकशैली से नया प िदया। िवकास के बारे म उनके िवचार िस पु तक। (Principal of
Political Economy and Taxation) 1817 म िमलते है। आिथक िवकास के बारे म उनके
िवचार कु छ िभ न थे।
एडम ि थम का अिधक यान रा क स पि बढ़ाने क ओर था जबिक रकाड का
यान आय के िवतरण और िवदेशी यापार पार अिधक के ि त रहा था। इस कार ि मथ का
िवकास मॉडल लासीकल समय म मुख िस ा त रहा था इसको रकाड ने (1817) म सं शोिचत
िकया साथ ही इसम भूिम के घटते ितफल को शािमल िकया।
मा यताएँ
1. भूिम का योग अनाज उ पादन के िलए िकया जायेगा
2. भूिम पर घटते ितफल का िनयम लागु होगा
3. अनाज क माँग क लोच पूणयता बेलोच है
4. भूिम और पूँजी दोन पर चर आगम है
5. तकनीिक को िदया हआ माना गया
6. सभी मजदुर को जीवन िनवाह मजदुरी दी जायेगी
7. अथ यव था म पूण ितयोिगता क ि थित है
8. िमक क माँग पूँजी सं जय पर िनभर करती है।
9. माँग और पूित क क मत म क सीमा त उ पादकता से वतं है
23
10. म क पूित को िदया हआ या ि थर माना गया है
11. पूँजी सं चय लाभ का प रणाम है।
रकाड ने कृ िष को अथ यव था का सबसे मह वपूण ोत माना गया है उ ह ने माना िक
िकसी देश म सबसे मह वपूण सम या बढ़ती हई जनसं या के िलए योजन क यव था करना।
रकाड के अनुसार अथ यव था के तीन मु य समुह भूिम मािलक पूँजीपित और िमक िजनके
बीच उपजाऊ भूिम का िवतरण िकया जायेगा। पूँजीपित अपने लाभ अथ यव था म पुनः िनवेश
करके आिथक िवकास ि या क शु आत करता है और इस कार पूँजी िनमाण म वृि होती है।
1. लगान, लाभ और मजदु री-
(a) लगान जो भूिम के उ पादन का िह सा जो भूिम मािलक को ा होता है। रकाड औसत
उ पादन और सीमा त उ पादन म भेद करता है।
(b) मजदुरी दर जो मजदुरी फं ड को मजदुर जो जीवन िनवाह मजदुरी पर काम कर रहे उसे
िवभ कर िनधा रत िक जाती है।
उ पादन फलन
y  f  L, K , N  यहाँ y = उ पादन, N = भूिम, K = पूं जी, L = िमक
यह उ पादन फलन हासमान सीमा त उ पादकता पर आधा रत है।
2 f 2 f 2 f
 0, 2  0, 2  0
K 2 L N
2. पू ँजी सं चय (Capital Accumulation) - रकाड के अनुसार पूँजी संचय लाभ का
प रणाम है जो बचन के िलए े रत करता है जो बाद म पूँजी िनमाण के िलए उपयोग क जाती है
पूँजी िनमाण बचत और बचत क मता पर िनभर करती है जो बहत मह वपूण है। लाभ आिध य
िजतना बड़ा होगा उतनी ही बचत करने क मता होगी।
3. लाभ क दर (The Profit Rate)- लाभ क दर कायरत पूँजी के लाभ के समान है।
यिद लाभ क दर घना मक है तो पूँजी सं चय होगा जो वा तिवकता म लाभ मजदुरी पर िनभर करता
है मजदुरी अनाज क क मत पर, अनाज क क मत भूिम उ पादकता पर िनभर करती है। इसिलए
लाभ और मजदुरी म ऋणा मक स ब ध है। जब कृ िष उ पादकता म सुधार होने अनाज क क मत म
कमी होगी िजससे जीवन िनवाह मजदुरी म कमी होगा और उससे लाभ बढ़े़गा जो पूँजी सं चय का
कारण है यह म क माँग म वृ ी करती है। िजससे मजदूरी बढ़ेगी और लाभ म कमी होगी।
4. मजदू री म वृ ि (Increasing the Wage) - रकाड के अनुसार िमक और पूँजी
मजदुरी िनधा रत करने म मह वपूण भूिमका िनभाते है। मजदुरी क दर िमक क सं या और
मजदुरी फं ड पर िनभर करती है। मजदुरी दर म कमी होगी जब िमक क सं या म वृि होगी
इसका उ टा भी सही है। मजदुरी क दर म कमी होती तब जनसं या म कमी होने लगाित है इसिलए
मजदुरी क दर और जनसं या म धना मक स ब ध होगा।
मजदुरी म वृि होने के साथ ही जनसं या म वृि होगी जो अनाज क क मत म वृि कर
देगा। इसिलए मजदुरी वृि से लाभ कमी होगी। यह वृि अपने आप पूँजी सं चय म कमी लाता है।
24
5. दु सरे उ ोग के लाभ म कमी- अथ यव था म कृ िष के लाभ क दर उ ोग के लाभ क
दर को िनधा रत करता है उ ोग िमक क मजदुरी बढा देते है जब अनाज क क मत म वृि
होती जो क उ ोग के लाभ को घटाती है जब कृ िष े म लाभ म कमी आती है तो सभी यापार
घट जाते ह।
पू ँजी सं चय अ य ोत- रकाड के अनुसार िवकास उ पादन और उपभोग के अ तर पर िनभर
करता है। पूँजी म वृि होगी जब उ पादन म वृि होती है ओर उपभोग म वृि होने से लाभ म कमी
होगी। म क उ पादकता को तकनीिक प रवतन और अ छे सं गठन ारा बढ़ायी जा सकती है इस
तरीके से पूँजी सं चय म वृि क जा सकती है पर तु मिशन के उपयोग से िमक क सं या म कमी
होगी िजससे बेरोजगारी बढ़ती है और मजदुरी म कमी से िमक क आिथक ि थती म कमी आती
है। रकाड के अनुसार तकनीिक थित दी हइ है।
(a) कर (Tax) - कर सरकार के पास पूँजी सं चय का साधन होता है। रकाड के अनुसार कर
उपभोग म कमी करने िलए लगाया जाता है। कर पूँजीपित, भूिम मािलक और िमक पर लगा कर
साधन को सरकार तरफ थाना तरण िकया जाता है। जो िनवेश को भािवत करता है इसिलए
रकाड कर लगाने प नह है।
(b) मु त यापार (Free Trade) - रकाड मु त यापार के प धर थे। अनाज के आयात
म कमी करके लाभ को बचा िलया जाता है। िजससे पूँजी सं चय म लगातार वृि होती है।
6. ि थर अव था (Stationary State)- रकाड के अनुसार यह वभािवक वृित है क
लाभ क दर िगरने से अथ यव था अपने-आप ि थर अव था म पहँच जाती है। पूँजीवादी
अथ यव था गितहीन अव था म वेश करती है जब कृ िष म घटते ितफल के कारण वृि नह
होती है। ि मथ क भांित रकाड ने वीकार िकया िक िवकास पूं जी सं चय पर आि त है और पूँजी
सं चय लाभ के पुनः िनवेश पर आधा रत है लाभ तब बढ़ते है जब खा पदाथ क क मते बढ़ती
है तो घटते ितफल के कारण भूिम क उपज घटती है और सीमा त लागते बढ़ती है।
इस ि या को रेखािच ारा य िकया जा सकता है।
रेखािच 3.1

रेखािच म अ - x पर म और y- अ पर उ पाद, क मत और मजदुरी को िदखाया गया


है। OL िमको को रोजगार पर लगाया गया है और कु ल उ पादन ORZL के बराबर है OL
िमको को औसत उ पादन और सीमा त उ पादन के अ तर को िकराया (Rent) कहते ह।

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ORZL - OPYL = PRZY के बराबर, कु ल मजदुरी OWXL के बराबर है। कु ल
उ पादन म से िकराया और मजदुरी घटा दी जाये तो लाभ ा िकया जा सकता है।
ORZY - (PRZY + OWXL) = WPYX , जैसे उ पादन बढ़ता है तो म क सीमा त
उ पादकता घट कर िनवाह मजदुरी L1 के बराबर हो जाती है और लाभ समा हो जाता है स तुलन
अव था (L1) म कृ िष के लाभ समा हो जाने के कारण पूँजी उ ोगो क ओर थाना त रत हो
जायेगी और उ ोग म ितयोिगता के कारण लाभ का तर घट जायेगा। रकाड के अनुसार मजदुरी
अथ यव था म अस तुलन पैदा करती है अथात् मजुदी बढ़ती है तो लाभ शु य हो जाता है और
पुँजी सं चय क जाता है िजससे गितहीन अव था पैदान होती है।
आलोचना मक मू यां कन
रकाड आधुिनक अथशाि य का पूवज था उसके आिथक िवकास से स बि धत िवचार
को उ ह ने अपनाया। रकाड ने अपने िस ा त म पूँजी सं चय, लाभ दर, बचत क वृि के मह व
पर काश डाला। इस त य से कोई इ कार नह करता है। इन सब अ छी बात के बावजुद रकाड
के िस ा त म कु छ किमयाँ पाई गई।
1. तकनीिक के भाव को नजरअं दाज िकया- रकाड ने अपने िस ा त म िचि हत िकया
िक औ ोिगक े म तकनीिक सुधार से िमक बैरोजगार हो जाते ह और भी बुरे भाव पड़ते ह
पर तु इ ह ने इस बात पर जोर नह िदया क तकनीिक सुधार से नये िवकिसत देश उ पादन पर या
भाव पड़ा।
2. ि थर अव था क गलत धारणा- रकाड के िस ा त के अनुसर अथ यव था अपने
आप ि थर अव था म पहँच जाती है जो क आधारहीन है।
3. ासमान सीमा त उपयोिगता िनयम को अनाव यक मह व िदया गया- य िक
िवकसीत देश म कृ िष े क उ पादकता म तेजी से वृि हई है। रकाड तकनीिक सुधार को कम
आंका था।
4. रकोड का िस ा त िवकास िस ा त क बजाय िवतरणा मक-िस ा त है जो िमक,
भूिम मािलक और पूं जीपित के िह से का िनधारण करता है।
3.4 जे.एस.िमल का आिथक िवकास िस ा त (J.S. Mill Theory of
Economic Development)
जे.एस.िमल ने आिथक िवकास के िस ा त म बहमू य योगदान िदया । उनके थ-
(Principal of Political Economy with some of their application to social
philosophy) म एडम ि मथ और रकाड का भाव प प से देखने को िमलता है।
उ ह ने आिथक िवकास के िविभ न साधन का िव ेषण िकया उनका मानना था िक
आिथक िवकास भूिम, पूँजी और िमक का फलन है। जबिक भूिम और िमक आिथक िवकास

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के दो मूल साधन है पूँजी जो क पूव के िमक के उ पादन के सं चय का टॉक है। िमल के अनुसार
िकसी देश क स पि म वृि होती है यिद उनके उ पादन का बढ़ाने भूिम और पूँजी, िमक क
बजाय यादा सहायता करे। स पित उन व तुओ ं को कहा जाता है िजसे योग म लाने से पहले पास
रखा जा सकता है। इससे हम उपकरण, मशीन, म शि के कौशल को शािमल करते ह। िमल
उ पादिकय उपभोग और अनुपादिकय उपभोग म भेद करते ह। उ पादिकय उपभोग उसे कहते ह जो
समाज म उ पादन शि को बढ़़ाता है के वल उ पािदत उपभो ा ही उ पादन शि को बढ़ाता है।
उ पािदत उपभो ा ही उ पािदत िमक है पर तु सार उपभोग उ पािदत नह है।
1. जनसं या वृ ि पर िनयं णः- िमल, मा थस के जनसं या िस ा त म िव ास करते ह।
जनसं या वृि का िस ा त काश डालता है िक िजने के साधन क तुलना म जनसं या तेजी से
बढ़ रही है। प रणाम यह हआ क जनसं या वृि पर रोक वलाकल क गई और उ ह ने अित र
जनसं या क सम या का वास ही भावी सामाधान बताया है।
2. मजदु री िनधी (Wage Fund)- मजदुरी क वृि क तुलना म म क पूित क लोच
बहत उ च है मजदुरी साधारणतया िनवाह तर से उ च होती है और माँग और पूित ारा िनधा रत
होती है। मजदुरी क दर से कोई बदलाव पूँजी और जनसं या म बदलाव ारा िनधा रत होता है।
पूँजी म वृि जनसं या से अिधक और जनसं या म वृि पूँजी से अिधक है। यह मजदुरी कमी और
वृि ारा िनधा रत होता है। िमल के अनुसार ‘‘व तुओ ं के िलए माँग है म के िलए माँग नह है’
इसका मतलब यह है िक आय पहले म क मजदुरी पर िनवेश क जाये तो वह रोजगार पैदा करती
है और आय उपभो व तु पर खच नह क जाये। उपयोग म वृि से िनवेश म कमी होगी इसका
उ टा भी सही है।
3. पू ँजी सं चय- पूँजी को पूव िमक के उ पाद के सं चय के टॉक के प म प रभािषत क
जा सकता है। अिधक पूँजी का मतलब मजदुरी फं ड का बढ़ जाना और उ पािदत िमक क माँग
अिधक होना। पूँजी बचत का प रणाम है और बचत का मतलब है िक भिव य क व तुओ ं के
उपभोग के िलए वतमान उपभोग से परहेज करना है।
िमल के अनु सार पू ँजी सं चय िनभर करता है जो िन न है
1. फं ड क मा ा िजससे बचत क जा सकती है।
2. बचत क वृि क शि जो क ितफल क दर और लाभ क दर और लाभी क दी गई
दर पर बचत करने क इ छा पर िनभर करती है।
लाभ िमक क लागत पर िनभर करता है। इसिलए लाभ क दर, लाभ और मजदुरी का
अनुपात है। जब लाभ क दर म वृि और मजदुरी म कमी िजसका मतलब लाभ क दर म वृि
होती है जो पूँजी संचय क दर को बढ़ाती है।
4. लाभ क दर- िमल के अनुसार ‘अथ यव था म यह वृित पाई जाती है िक जब कृ िष े
म ासमान ितफल और जनसं या क दर म वृि के कारण लाभ क दर म िगरावट होगी। कृ िष
े म तकनीिक सुधार म कमी और जनसं या क दर उ च हो तब पूँजी सं चय म कमी होगी
और अथ यव था ि थर अव था म पहँच जायेगी।
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5. रा य क भू िमका- रकाड और ि मथ क तरह िमल भी अह त ेप क नीित के समथक
थे। िमल आिथक मामल म रा य क भूिमका के कम से कम समथक थे िमल ने अह त ेप
नीित म कु छ अपवाद क पहचान क और उ ह न सरकारी ह त ेप क आव यकता महसुस क
जैसे िश़ ा सुिवधा आदी। िमल ने मु यापार का समथन िकया और उ ह ने िशशु ोग के
बचाव और सुर ा के िलए जो कर लागु िकया जाता है उसका िवरोध िकया।
आलोचना मक मू यां कन- िमल ने उन सभी साधन क चचा क जो वतमान समय म आिथक
िवकास के िलए आव यक है उ ह ने कु छ साधन क आव यकता पर जोर िदया जैसे बचत, लाभ,
पूँजी सं चय, तकनीिक सुधार, मु यापार, बाजार का िव तार, समान िवतरण और सं थागत
बदलाव आिद।
किमयाँ
1. मा थस का जनसं या िस ा त गलत- मा थस क जनं स या वृि का िस ां त िवकिसत
देश पर लागु नह होता है।
2. अह त ेप नीित यवहा रकता म लागु नह होती है- य िक ऐसी कोई अथ यव था नह है
जहाँ पूण ितयोिगता हो और जो रा य के ह त ेप िबना चल रही हो।
3. ासमान पैमाने का िनयम काय नह करता है- अपने िस ा त म िमल सीिमत साधन क
चचा करता है और साथ ही भूिम क सीिमत पुित को दिशत करता है। िजससे सीिमत
उ पादन पैदा होता है जो सीिमत पूँजी सं जय और जनसं या वृि म बदल जाता है।
3.5 सारां श
सं ेप म, िति त अथशा ी भौितक व तुओ ं के उ पादन म वृि को िवकास का सूचक
मानते थे, जब उ पादन बढ़ता है तो रा ीय आय बढ़ती है । वे सं गठनकता व साहसी मे भेद नह
करते । पूं जी को भी िवकास का मु य साधन माना ह । अिधक पूं जीिनमाण िवकास म अिभवृि
करता है तथा पूं जी िनमाण का ोत लाभ है । अिधक लाभ ाि के िलये आव यक है िक मजदूरी
कम दान क जावे या मजदूर क जनसं या मे वृि भी कम होनी चािहये । अथ यव था म पूण
ितयोिगता; विहत, व िनबाधावादी नीित आिथक िवकास क गित को ती तर करती है । इसके
अित र अथ यव था म पूण रोजगार िमलता है तथा मां ग व पूित म सामंज य भी ।
इसम कोई सं दहे नह िक िति त अथशाि य के िवकास संबं धी िवचार अ यं त मह वपूण
थे । उ ह ने प िकया िक पूं जी िवकास के िलए आव यक है िजसे बढ़ाने का पूण यास िकया
जाना चािहए । अथ यव था म उ पादन ि या म उ नत तकनीक का योग िविनयोग क मा ा पर
अवलं िबत है और अिधक िविनयोग लाभ क मा ा से भािवत होते है, अ तु पूं जी िनमाण पर
काफ जोर िदया ।
िति त अथशाि य के आिथक िवकास मॉडलो म कई किमयां खटकती है - जनसं या
वृि से वे आतं िकत थे, व तुत : मानवीय सं साधन उ पादन का मह वपूण साधन है व उसक येक
वृि देश के िलये हािन द न हो, यह आव यक नह । िजन देश म कम जनसं या है वहां जनसं या
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क वृि एक ओर उ पादन बढ़ाती है व दूसरी ओर िवकास म उ रो र वृि करती है ।
अ यावहा रक म यताओं जैसे िनबाधवादी नीित, पुण ितयािगता पर उ होने जोर िदया । बेरोजगारी
व यापार च का उिचत समाधान करने म िति त अथशा ी । असमथ पाये गये । कम मजदूरी से
लाभ अिधक उ प न होते है । िजससे िक पूं जी िनमाण म वृि होती है, ऐसा िवचार तकपूण व
यावहा रक नह जान पड़ता बि क इससे मज़दूर क काय-कु शलता पर कु भाव पड़ता है ।
अनेक किमय के होते हए भी िति त अथशाि य ने िववाद के सं बं ध म बुिनयादी त य
को बताया । जो िन य ही उनका अमू य योगदान कहा जावेगा ।
3.6 बोध
(1) ''अपने रा क संपित'' नामक थ ने एडम ि मथ ने म िवभाजन व पूजा संचय घटक
को देश क सं प नता के िलये मह वपूण मानते है ।'' कथन क िववेचना क िजये।
(2) एडम ि मथ के आिथक िवकास मॉडल को प कर ।
(3) “ रकाड आिथक िवकास व का उिचत मॉडल तुत करने ये असमथ रहे है ।'' कथन का
परी ण क िजये ।
(4) िति त आिथक िवकास िस ां त का सं ि यौरा तुत क िजये ।
3.7 कु छ उपयोगी पु तक
 J.A. Schumpeter – History of Economic Analysis, Part II, Chapter 2.
 J.M Letiche – Theories of Economic Growth (Ed), B.F. Hoseltz.
 Piero Sraffa (Ed) The works and correspondence of David Ricardo Vol.
I (Cambridge University Press, 1975)
 The Indian Economic Journal ‘The Relevance of Ricardian Economics,
July-September 1977, No. 1, Vol. 25.
 The Indian Economic Journal: Adam Smith in Retrospect, conference
Number 1976, No. 5, Part I, Volume 24.

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इकाई – 4
काल मा स का आिथक िवकास मॉडल
Karl Marx's Economic Development Model
इकाई क परेखा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 इितहास क भौितकवादी या या
4.3 ा मक भौितकवाद
4.4 वग सं घष
4.5 अितरेक मू य का िस ा त
4.6 पूं जी संचय
4.7 पूं जीवादी संकट
4.8 मा स के पूं जीवादी आिथक िवकास के मॉडल का आलोचना मक परी ण
4.9 िवकासशील देश म मा स मॉडल क उपादेयता
4.10 श दावली
4.11 बोध
4.12 कु छ उपयोगी पु तक
4.0 उ े य
इस इकाई का उ े य काल मा स के सै ाि तक िवचार से आपका प रचय कराना है ।
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप :
 जान सकगे िक काल मा स के पूं जीवादी आिथक िवकास के सं बं ध म या िवचार है; एवं
 आज िवकासशील देश के संदभ म ये िवचार िकतने ासं िगक है
4.1 तावना
काल मा स एक ऐसा अथशा ी थे िजसने अपनी िवचारधारा से करोड़ लोग को
भािवत िकया है । मा सवाद ने एक धम का प ले िलया गया है । स, चीन, यूबा जैसे देश म
मा सवादी ां ितयाँ के तथा इन देश के अित र और भी कई देश क नीितय के िनमाण म इसका
गं भीर भाव देखा जा सकता है । मा सवाद आज भी एक लोकि य िवचारधारा है । यह बात अलग
है िक स के साथ ही कई समाजवादी देश म आज सुधारवाद क धारा बह रही है , लेिकन िफर भी

30
मा स के िवचार क पकड़ ढीली नह पड़ी है चीन इसका माण है । इसका मुख कारण यह है िक
मा स ारा िकया गया पूंजीवादी आिथक िवकास का िव ेषण वै ािनक और तकसं गत रहा है ।
काल मा स का ज म सर 1818 ई० म जमनी म हआ था जहां उ ह ने बोन और बिलन
िव िव ालय म दशन शा का अ ययन िकया था । उसके समय के िस दाशिनक हीगल के
‘ ं ा मक िस ा त' से मा स बहत भािवत थे और आगे चलकर इस िस ा त को ' ा मक
भौितकवाद' का एक नया प देकर उ ह ने इसे अपने आिथक िवकास के मॉडल का आधार बनाया
। डा टरेट तक क िश ा हण करने के बाद उ ह ने प का रता का काय ार भ िकया िक तु अपने
ां ितकारी िवचार के कारण मा स को जमनी छोड़कर पे रस जाना पड़ा । वे ा स गये जहां से
उ ह ने पुन : एक पि का का संपादन िकया । इमम कािशत ‘वग-सं घष के इितहास के िस ा त' म
विणत उनके ांितकारी िवचार के िलए मा स को पे रस से भी िनकाल िदया गया । तब वह सू े स
चले गये । इसी बीच मा स क अथशा के अ ययन म िच उ प न हई तथा सन् 1844 ई० म
उनक भट े ि क एि जल से हई, िज ह ने पर परावादी अथशा का गहन अ ययन िकया था । इन
दोन क िम ता जीवन-पय त रही तथा मा स क रचनाओं म एं िज स का बराबरी का सहयोग रहा
। सन् 1848 म मा स लं दन पहंच गये और वहां ि िटश यूिजयम लाइ ेरी म अनवरत् अ ययन
करते हए उ ह ने अपनी उस िस कृ ित का िनमाण िकया जो ‘पूं जी’ (Das Kapital) के शीषक से
चार ख ड म कािशत हई । इस पु तक का के वल थम ख ड मा स के जीवन काल म 1867 म
कािशत हआ था जबिक दूसरा ख ड उनक मृ यु के बाद एि ज स ारा 1885 म कािशत िकया
गया । बाद के दोन ख ड एि ज स ारा सं पािदत िकये गये थे जो मश: 1894 तथा 1910 म
कािशत हए । इसी 2500 पृ के वृहद थ म मा स ने अपने आिथक िवकास मॉडल या
ितपादन िकया है ।
यहां हम मा स के यापक िच तन का अ ययन न करके के वल उनके आिथक िवकास
मॉडल पर ही अपना यान कि त करगे । सव थम हम मा स के आिथक िवकास मॉडल के आधार
को समझगे ।
4.2 इितहास क भौितकवादी या या: -
मानव समाज के सामािजक िवकास के इितहास का िव ेषण करने हेतु मा स ने
भौितकवादी वै ािनक ि कोण तुत िकया है । उसने सामािजक िवकास क आ याि मक
या या और मनोवै ािनक (अथवा चेतनागत्) या या का ितर कार िकया है । मा स ने सामािजक
िवकास क आ याि मक या या का ितर कार इस आधार पर िकया िक वह रह यमय या या है,
िजसका अि त व वै ािनक ि कोण से िस नह हो पाता । मनौवै ािनक अथात् चेतनागत्
या या का बिह कार इसिलये िकया है य िक मा स के मतानुसार मानव क चेतना उसके
अि त व को िनधा रत नह करती, वरन उसका सामािजक अि त व ही उसक चेतना को िनधा रत
करता है । मा स इितहास को राजा - महाराजाओं क ताजपोशी या यु और संिधय क घटनाओं
का संकलन मा नह मानता । उसके मत म इितहास, सामािजक यव था और सामािजक िनयम के
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उन प रवतन का वृ ा त है जो िनरं तर होने वाले भौितक प रवतन के कारण होते रहते है । दूसरे
श द म, भौितक प रवतन, िजनका ता पय उ पादन क णाली म होने वाले प रवतन से है, उसके
कारण ही सामािजक िनयम म प रवतन अव यं भावी प म होते है । मा स के सहयोगी े ड रक
एि ज स ने बाद म इसे और भी प करते हए िलखा है िक इितहास क भौितकवादी धारणा इस
िस ा त से आर भ होती है िक उ पादन, और उ पािदत व तुओ ं के िविनमय पर ही येक
सामािजक यव था आधा रत है । अथात् उ पािदत व तुओ ं का समाज म िवतरण तथा उसके साथ
ही समाज का िविभ न वग म िवभाजन इस बात से िनधा रत होता है िक या- या उ पािदत िदया
जा रहा है और कै से उ पािदत िकया जा रहा है । इस धारणा के अनुसार िकसी भी सामािजक
प रवतन तथा राजनैितक ांित का कारण मनु य के मि त क म उठने वाले िवचार म अथवा ' याय
और स य क अ त ि म नह खोजा जा सकता, वरन सभी सामािजक प रवतन और राजनैितक
ां ितय का कारण उ पादन तथा िवतरण क णाली म होने वाले प रवतन मे ही खोजा जा सकता
है । सामािजक प रवतन का कारण ''िचं तन'' म नह , बि क ''अथशा '' मे खोजा जा सकता है ।
मा स का कहना है िक येक समाज का िनमाण आिथक आधार पर होता है । समाज
िकसी भी कार क अव था म यो न ह - चाहे िशकार अव था म हो, कृ िष अव था हो, अथवा
आधुिनक जिटल औ ोिगक अव था हो, समाज अपनी अधारभूत आिथक सम याओं के ब ध के
िलये एक गैर-आिथक सं रचना, का िनमाण करता है, िजसम कानून का िनमाण, शासन-तं का
गठन, तथा िच तन कं िलये धम और दशन आिद का समावेश होता है । िक तु इस गैर-आिथक
सं रचना का मूल आधार 'आिथक' ही होता ह । िशकार-अव था वाले समाज म वैसी कानूनी ि या
काय नह कर सकती जो औ ोिगक अव था के िलए बनती है । ठीक इसी कार आधुिनक
औ ोिगक अव था के िलए िशकार-अव था क कानूनी ि या िनरथक हो जाती है ।
इस कार, आिथक उ पादन क णाली ही समाज को अ य सं थाओं ( याय यव था,
शासन- णाली, रीित- रवाज) को िनधा रत करती है । यही करण है िक जब ामीण कु टीर उ ोग
का जमाना था तब साम तवादी समाज रचना थी और िफर जब भाप और िव तु से कारखाने चलने
लगे तब पूं जीवादी समाज का उदय हआ ।
इसी आधार पर मा स ने उ पादन क णाली म प रवतन के कारण होने वाले आिथक
िवकास के अनु प जो सामािजक –अव थाएं उ प न होती गई उनक प रक पना क है, जो सं पे
म इस कार है -
थम अव था ारि भक अथवा आिदम सा यवाद
ि तीय अव था दास समाज
तीसरी अव था साम तवादी समाज
चौथी अव था पूं जीवादी व सा ा यवाद
पांचवी अव था समाजवाद व सा यवाद

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4.3 ा मक भौितकवाद:
जैसा िक हम ार भ म कह चुके है िक मा स अपने समय के िस दाशिनक हीगल के
‘ ा मक िस ा त’ से भािवत थे । हीगल का िवचार था िक समाज असं गितय से गित करता
जाता है । येक िवचार, एक ित िवचार को ज म देना है तथा दोन म संघष होने के फल व प
एक समि वत िवचार उ प न होता है । यह म चलता रहता है और समाज गित करता जाता है ।
मा स न 'हीगलवाद' के ा मक व प को तो वीकार िकया िक तु उ होन 'िवचार का संघष'
वीकार नह िकया । मा स के अनुसार िवचार का संघष नह होता बि क सं घष 'भौितकवादी'
होता है । आिथक प रवतन जो भौितकवादी होते है उनके कारण संघष होता है । जब 'उ पादन क
णाली' म प रवतन होता है तब 'उ पादन के सं बं ध' म भी प रवतन अव य भावी है । उ पादन के
सं बं ध से ता पय उ पादन म लगे हए समाज के िविभ न वग के सं बं ध से है ।
जब बाजार का िव तार और कारखान म व तुओ ं का उ पादन ार भ हआ तो यह
उ पादन क एक नयी णाली थी, जो साम तवादी जीवन शैली से मेल नह खाती थी, अथात्
असं गत थी । इस कार क नवीन उ पादन णाली एक नये सां कृ ितक और सामािजक ढाँचे क
मां ग करती थी और उसने समाज म नये वग को उ प न िकया । बाजार के िव तार ने यावसाियक
वग को ज म िदया और कारखान ने पूं जीपितय तथा 'सवहारा' वग को ज म िदया।
' ा मक' ‘भौितकवाद' का ता पय है िक आिथक णाली क असं गितय के कारण ही
समाज गित करता है । उदाहरण के िलये भू- वािम व क साम तवादी णाली ार भ म
गितशील िस हई िजससे आिथक िवकास हआ । िक तु बाद म साम तवादी समाज क सीिमत
रेणा के आधार पर संचय जारी न रह सका । उ पादन क शि य तथा सामािजक सं बधं ो क इस
असं गित ने पूं जीवादी णाली को ज म िदया। पूं जीवादी णाली ारा आिथक िवकास म अपनी
मह वपूण भूिमका िनभाने के साथ ही उसमे भी असं गितयां उ प न हो चुक ह । अतएव पूं जीवादी
णाली का भी अ त होगा और एक नयी णाली 'समाजवाद' का उदय होगा ।
4.4 वग सं घष:
ा मक भौितकवाद समाज म वग-सं घष को ज म देता है । मा स का यह कथन है िक
येक समाज क एक वग सं रचना होती है । उ पादन क णाली म प रवतन होने पर समाज के
िवकास म एक ऐसी अव था आती है जब उ पादन क शि य का समाज क वग-सं रचना से सं घष
होने लगता है । उनके वतमान सं घष उ पादन क शि य के िलए जं जीर बन जाते है और उन जं जीर
को तोड़ने के िलए छटपटाहट ार भ हो जाती है जो सामािजक ांित को ज म देती है । यही
वग-सं घष अ ततोग वा स पूण समाज यव था के बदल डालता है और एक नई समाज यव था
थािपत हो जाती है ।
मा स ने यूरोप क त कालीन समाज क अव था - 'पूं जीवादी अथ यव था' का सू म
िव ेषण िकया है । अपने िस थ 'पूं जी' (Das Kapital) म उसने पूं जीवादी अथ यव था म
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अितरेक का ादुभाव तथा उससे उपजा शोषण, पूं जी का सं चय, स पूण समाज का दो वग म
िवभािजत हो जाना, इ ही दो वग के बीच वग सं घष, उ पादन म उ चावचन तथा अ त म पूजं ीवादी
अथ यव था का पतन और नयी अव था समाजवाद - के उदय का वै ािनक सू म िववेचन िकया है
। मा स क यह ढ़ मा यता रही है िक पूं जीवादी अथ यव था का पतन अव यभावी है, इसे रोका
नह जा सकता । यह िकसी क इ छा पर िनभर नह है बि क एक वै ािनक ि या का अि तम
प रणाम है । उसका यह कहना था िक पूं जीवादी अथ यव था के िवनाश के बीज उसम ही िनिहत
होते है ।
पूं जीवाद क अव था मे आिथक िवकास क ि या िकस कार ‘पूं जीवाद’ का ही
िवनाश करते हए नयी आिथक- सामािजक यव था को ज म देती है इसे मा स के आिथक-िवकास
के मॉडल से समझा जा सकता है । हम इन मॉडल के तीन मूल आधार - यथा इितहास क
भौितकवादी या या एवं ा मक भौितकवाद एवं वग संघष का वणन पहले ही कर चुके है । अब
हम इ ही आधार पर पूं जीवाद क अव था म िवकास का ि या का वणन करगे।
4.5 अितरेक मू य का िस ा त -
अितरेक मू य के िस ा त पर ही मा स का पूं जीवादी 'वग-सं घष' का िस ा त और इसी
अितरेक मू य के िस ा त पर मा स ने आिथक िवकास क सं रचना तुत क है । पूं जीवादी
अथ यव था म थोड़े से लोग के हाथ म ‘अितरेक-मू य' का संचय पूं जी के प म होता जाता है ।
मा स कं मतानुसार, पूं जीवादी अथ यव था म समाज दो वग ने बं टता चला जाता है । एक वग
मजदूर का बन जाता ह, जो अपना म 'जीवन िनवाह' के िलए यूनतम मजदूरी पर बेचता है । इस
वग को मा स ' ोिलते रयत' (सवहारा) कहता है । दूसरा वग पूँजीपितय का बन जाता है , िजसके
हाथ म उ पादन के साधन (मशीन, कारखाने आिद) होते है । इसे मा स ‘बुजआ' वग कहते है ।
मजदूर वग अपने म को जीवन-िनवाह तो लायक िन नतम मजदूरी पर य बेचता है ? इसे
प करने के िलये मा स ने मजदूरी के म - िस ां त' का सहारा िलया है । इस िस ा त के अनुसार
िकसी भी व तु का 'मू य' उस व तु के उ पादन म लगाये गये कु ल म के बराबर होता है । मजदूर
क म-शि भी एक व तु जैसी ही है, अतएव मजदूर अपनी ' म- शि ' को भी उसी मू य पर
बेचता है िजतना मू य उसे अपनी म शि को उ पािदत करने म लगता है । अथात् मजदूर को
' म-शि ' का मू य उतना ही होगा िजतना मजदूर को वयं को काम करने लायक जीिवतरखने म
लगता है । दूसरे श द म, मजदूर को जीवन-िनवाह के बराबर ही मजदूरी ा हो सकती है ।
मा स के अनुसार िमक को जीवन-िनवाह के बराबर मू य उ प न करने के िलये हो
सकता है के वल छ : घं टे म क आव यकता हो, िक तु उसे कारखाने म आठ या दस घं टे तक म
करना पड़ता है । इस कार हम कह सकते है िक मजदूर यिद 10 घंटे का म करता है तो उसम से 6
घं टे के म म वह अपनी मजदूरी के बराबर के मू य क व तुएँ उ पादन कर लेता है और शेष 4 घंट
के म ारा िजतने मू य क व तुएं उ पािदत करता है, वे ‘अितरेक' होती है, जो कारखाने के

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मािलक का लाभ बन जाती है । िमक ारा कु ल उ पािदत 'मू य' म िमक को िमलने वाली
मजदूरी के 'मू य' को घटा देने पर जो अ तराल बचता है उसे ही 'अितरेक मू य' कहा जाता है ।
4.6 पूं जी सं चय:
मा स का कथन है िक इसी 'अितरेक मू य' ारा पूं जी संचय होता है । म के ारा उ प न
‘अितरेक मू य' ही पूं जीपित का लाभ है । इसी कारण पूं जीपित का उ े य इस 'अितरेक मू य' म
वृि करने का रहता है तािक उसका लाभ बढ़ता जाये । पूं जीपित अपने इस लाभ को तीन तरीक से
बढ़ा सकता है -
(1) िमक के काय-घं ट म वृि करके तािक उसके 'अितरेक म' के मू य म वृि हो।
(2) िमक के जीवन के िलये आव यक काय-घ टे कम करके । उदाहरणाथ, यिद िमक 10 घंटे
काम करता है, िजसम से 6 घं टे के काम ारा वह अपने जीवन िनवाह के िलए आव यक मू य
उ पािदत करता है, जो पूं जीपित का लाभ बन जाता है । यिद 5 घं ट काम करने से जीवन िनवाह
के िलये आव यक मू य उ पािदत होने लगे तो 'अितरेक म' 5 घं टे हो जायेगा िजससे
अितरेक मू य बढ़ जायेगा ।
(3) िमक क उ पादकता म वृि करके । यह 'तकनीक प रवतन से िकया जाता है’, अथात् नयी
तकनीक को अपना कर ित िमक उ पादकता बढ़ाई जाती है । ऐसा नयी कार क मशीन
का उपयोग करके िकया जाता है ।
मा स के मतानुसार पूं जीपित अिधकतर तीसरे तरीके को अपनाता है, य िक थम और
ि तीय तरीके क सीमा होती है । िमक के काय-घं टे 10 से 12 अथवा 14 तक बढ़ाये जा सकते है
इससे अिधक सं भव ही नह होगा । इसी कारण पूं जीपित तीसरे तरीके का सहारा लेता है । वह
'अितरेक-मू य' जो उसे लाभ के प म ा होता है, उसे पूं जी म िविनयोग करता है । अथात् मशीन
का योग बढ़ाता जाता है । मशीन के ारा उ पादन करने से िमक क उ पादकता बढ़ती जाती है ।
इस कारण पूं जी ही पूं जीपित के िलये 'खुदा' या 'ई र' बन जाती है । वह पूं जी का
अिधकािधक योग करता जाता है और मशीनीकरण के ारा कम से कम िमक लगाकर अिधक
से अिधक मू य उ पािदत करता जाता है!
मा स कहना है िक पूं जी मृत म है जो िपशाच बनकर जीिवत म का खून चूसती जाती है
और िजतना अिधक खून चूसती है उतना ही अिधक जीिवत रह सकती है । पूं जी को 'मृत म'
इसिलये कहा है य िक पूं जी का संचय िमक ारा पहले उ पािदत िकये गये 'अितरेक म' का
सं चय ही है । पूं जीपित क मशीन कभी न कभी िमक ारा ही बनायी गई है िजनम उन िमक का
म सं िचत हो गया है ।
पूं जी संचय क कृ ित का िव ेषण करने के िलये मा स ने पूजं ी को दो भाग म बांटा है ।
(1) ि थर पूं जी (C)
(2) प रवतन पूं जी (V)

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ि थर पूं जी (C) से ता पय मशीन , कारखान तथा क चा माल म िकया गया िविनयोग है ।
प रतनशील पूं जी (V) म-शि को काम पर लगाने के िलये िकया गया िविनयोग है, अथात् कु ल
मजदूरी। ‘अितरेक मू य’ को यिद S कहा जाये तो िन निलिखत समीकरण बनता है –
W = C+V+S
उ पाद का कु ल मू य यिद W है तो वह ि थर पूं जी, प रवतनशील पूं जी तथा अितरेक म
मू य के योग के बराबर होता है ।
मा स ने C,V, तथा S के बीच सं बं धो िव ेषण िकया है । वह ि थर पूं जी को
प रवतनशील पूं जी का अवयवी सं य ग (Organic Composition of Capital) कहता है ।
जैस-े जैसे तकनीक गित होती जाती है नयी कार क मशीने काम म लायी जाती है । अथात्
उ पादन के िलये ि थर पूं जी C म वृि , प रवतनशील पूं जी V क तुलना म बढ़ती जाती है । पूं जी म
मशीन का अंश िमक क तुलना म बढ़ता जाता है ।
मा स के अितरेक मू य क दर को S/V से दशाया है । इसका अथ है अितरेक मू य का
प रवतनशील पूं जी से अनुपात। दूसरे श द म लाभ का मजदूरी से अनुपात इस मा स ‘शोषण क
दर’ भी कहता है ।
मा स अपने िव ेषण से इस िन कष पर पहंचता है िक ‘शोषण क दर’ S/V म कोई कमी
न होने पर भी लाभ क दर िगरने लगती है, य िक C/V म तकनीक गित के कारण वृि होती
जाती है । िजसम प रवतनशील पूं जी, ि थर क तुलना म धीरे -धीरे कम होती जाती है । इस कार,
पूं जीवादी के अंतगत औ ोिगक गित के साथ-साथ पूं जीपित को ा लाभ क दर िगरती जाती है ।
मा स ने पूं जीवादी क इस वृि को और अिधक प िकया है ।
पूं जी संचय के कारण बड़े उ ोग म पूं जी का के ीयकरण होने लगता है । पूं जीपितय के
बीच उ पादन म ितयोिगता होने लगती है अथात् उ ह अपनी उ पािदत व तु को कम से कम
िमक लगाकर मशीनीकण को बढ़ाया जाए। दूसरे श द म, मशीन का ित थापन िकया जाता है ।
जो उ ोगपित ऐसा नह कर पाते, अथात् छोटे उ ोगपित, इस ितयोिगता म िटक नह पाते । इस
कार पहले कु टीर उ ोग, िफर छोटे उ ोग और िफर मँझले उ ोग धीरे-धीरे न हो जाते है और बड़े
पैमाने के उ ोग पनपने लगते ह। बड़ी मछली छोटी म ली को िनगल जाती है । समाज दो वग म
िवभािजत हो जाता है । एक ओर बड़े पूं जीपित जो बड़े पैमाने के उ ोग कारखाने के मािलक होती
है, और दूसरी ओर गरीब मजदूर वग। तेजी से बढ़ते हए बड़े उ ोग के कारण ‘ि थर पूं जी’ (C) का
अनुपात बढ़ता जाता है ओर प रवतनशील पूं जी (V) का घटता जाता जैस-े जैसे िमक के बदले
मशीन का ित थापन होता जाता है, वैस-े वैसे बेरोजगार मजदूर का वग बढ़ता जाता है । पूं जीवादी
म आिथक िवकास के साथ बढ़ते हए बेरोजगार मजदूर के इस वग को मा स औ ोिगक सुरि त
फौज' कहता है । यह फौज िकतनी बड़ी होगी रोजगार म लगे हए मजदूर क दशा उतनी ही खराब
होती जायेगी, य िक थोड़ी सी भी आवाज उठाने पर काम पर लगे मजदूर को हटाकर बेरोजगार क
फौज मे से मजदूर ा कर िलया जा सके गा । इतना ही नह बेरोजगार क फौज मे से कम से कम

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मजदूरी पर लोग को काम पर लगाया जा सके । इसे मा स पूं जीवाद म 'सवहारा' वग का 'बढ़ते हए
दुख का िस ा त' कहता है ।
मा स के मतानुसार जब पूं जीपित मजदूर का ित थापन मशीन लगाकर करता है तब वह
सोने का अंडा देने वाली मुग को ही मार डालता है । मा स क यह धारणा है िक तकनीक गित से
ि थर पूं जी का प रवतनशील पूं जी से (C/V) अनुपात बढ़ता जाता है, िजससे लाभ का दर घटने
लगती है, य िक लाभ क दर का इस अनुपात से िवपरीत सं बं ध होता है । यह िन निलिखत
समीकरण से प िकया गया है –

r=
इसका अथ यह है िक लाभ क दर (r) अितरेक मू य क दर (S/V) के बढ़ने पर बढ़ती
जाती है, जबिक ि थर पूं जी के प रवतनशील पूं जी के अनुपात (C/V) म वृि होने पर घटती जाती
है ।
4.7 पूं जीवादी सं कट
िगरती हई लाभ दर हो बढाने के िलये पूं जीपित मजदूरी क दर कम करने, काम के घंटे
बढ़ाने और मजदूर क सं या कम करने के िलये और भी अिधक मशीनीकरण करता है । इसका
प रणाम यह होता है िक मशीन क सहायता से कु ल उ पादन तो बढ़ता है िक तु बड़ी सं या म
बेरोजगार होने वाले मजदूर, तथा अ यं त कम वेतन पाने वाले काम पर लगे मजूदर दोन ही बाजार म
आने वाली उन उ पािदत व तुओ ं को खरीदने म असमथ हो जाते है । बाजार म मंदी आ जाती है ।
सभी पूं जीपित अपनी उ पािदत व तुओ ं को बाजार म बेचने के िलये ितयोिगता करते है । क मत
िगरने लगती है, िफर बेरोजगार और गरीब मजदूर उ हे खरीद नह सकते । पूं जीवादी संकट ार भ हो
जाता है । मा स का कहना ह िक इस आिथक संकट का एक ही कारण है - गरीबी, अथात् उ पािदत
व तुओ ं को खरीदने के िलये लोग के पास य-शि का न होता । इस आिथक संकट मे कारखान
का उ पादन कम कर देना पड़ता है । िजससे और भी अिधक बेरोजगारी बढ़ती है । छोटे कारखाने
ितयोिगता म िटक नह पाते और पूरी तरह समा हो जाते है ।
यह मंदी का दौर पुन : तेजी के दौर म बदलने लगता है य िक कई पूं जीपित उ पादक न हो
जाने से ितयोिगता से अलग हो जाते है । बचे हए पूं जीपित पुन: लाभ कमाने लगते है । िक तु यह
ि थित िफर से और भी बड़ी मंदी म बदल जाती है । इस कार से मंदी और तेजी के दौर पूं जीवादी
आिथक िवकास मे एक के बाद एक आते जाते है । और अ ततोग वा पूं जावादी अथ यव था का
िवनाश कर देते है । एक ओर पूं जीवादी एकािधकार बढ़ता जाता है तो दूसरी ओर 'सवहारा' मजदूर
वग लाख क सं या म एकि त होकर ांित का सू पात करता है । पूं जीवादी एकािधकार उ पादन
क णाली के िलए हथकड़ी बन जाता है । पूं जीवाद आिथक िवकास वयं ही 'सवहारा' वग क
ां ित को िनमं ण दे देता है । सवहारा वग ांित उ पादन के साधन का समाजीकरण कर देती है
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और 'पूं जीवादी' अथ यव था समाजवादी अथ यव था मे प रवितत हो जाती है । यह प रवतन
अव यं भावी है । इसे रोका नह जा सकता ।
4.8 मा स के पूं जीवादी आिथक िवकास के मॉडल का
आलोचना मक परी ण:
िविभ न अथशा ी मा स क वै ािनक सू म या या से भािवत होते हए भी मा स के
आिथक िवकास िस ा त के कटु आलोचक है ।
हम मा स के िवकास-मॉडल का आलोचना मक परी ण करते समय यह पाते ह िक मा स
क समाजवादी अथ यव था का उदय स, पोले ड, चेको लोवािकया जैसे योरोप के अपे ाकृ त
कम िवकिसत देश म पहले हो गया, लेिकन ि टेन, ां स, जमनी, जापान तथा अमे रका, के नेडा,
वीडन जैसे पूं जीवाद म अ यिधक िवकिसत, देशो मे नह हो पाया । मा स का वै ािनक िस ा त
तो यह कहता है िक पूं जीवाद जैस-े जैसे िवकिसत होता जायेगा वैस-े वैसे वह अपने िवनाश क ओर
बढ़ता जायेगा । लेिकन इन िवकिसत देश म इसके ठीक िवपरीत हआ । इन देश मे पूं जीवादी
अथ यव था क जड़े मजबूत हयी और न वग-सं घष हआ और न मा स के समाजवाद का उदय
हआ । दूसरी ओर चीन जैसे अ िवकिसत देश म मा सवादी ां ित हो गयी और समाजवादी
यव था ित थािपत हो गयी, जहां पूं जीवाद ठीक से ार भ भी नह हआ था ।
इतना ही नह , स और योरोप के अिधकतर समाजवादी देश ने 'खुलापन' और 'आिथक
सुधार' (गोवाचोव के लासनो त और पेरे ोइका के िसं ांत) के िस ा त सुधारवाद के अ तगत
लागू करके पुन : पूं जीवादी वतं बाजार क अव था क ओर लौट चुके है ।
मा स ने अपने वै ािनक िव ेषण के आधार पर जो भिव यवािणयां क थी वे स य िस
नह हो पायी है । मा स क यह धारणा ह िक पूं जीवाद म आिथक िवकास के साथ-साथ म यमवग
समा हो जायेगा और समाज दो वग मे पूं जीपित तथा 'सवहारा' म िवभािजत हो जायगा तथा इन दो
वग के बीच वग-सं घष होगा, पूरी तरह िस नह हो सका । पूं जीवादी अथ यव था पि मी देश म
और भी अिधक िवकास कर चुक है, लेिकन वहां म यम वग और भी बढ़ गया है । पूं जीवादी
िवकास के अ तगत िमक क दशा िगरने के थान पर सुधरती गयी है । िवकिसत देश मे मजदूर
क वा तिवक आय बढ़ी है तथा उनके रहन-सहन के तर म भी वृि हयी है ।
मा स क यह धारणा भी स य िस नह हयी िक पूं जीवाद गे बड़े उ ोग क उ पादन
णाली म यम और छोटे उ ोग का िवनाश कर देगी । आज सभी पूं जीवादी देश म छोटे और
म यम उ ोग बड़े उ ोग के पूरक उ ोग बन गये है ।
मा स क 'इितहास क भौितकवादी या या' भी एकां गी और अपया िस हयी । यह
िस हो चुका िक समाज के िवकास पर आ याि मक, राजनैितक, सामािजक तथा नैितक
आदशवादी शि य का भी गहरा भाव पड़ता है, के वल आिथक भौितक प रवतन का हक नह ।
मा स क यह धारणा भी िक पूं जीवादी िवकास म लाभ क दर िगरती जाती िु टपूण है । अथशा ी

38
ीमती जोन रोिब सन यह कहती है िक ‘लाभ क दर िगरने क मा स क धारणा कु छ भी प नह
करती । वा तव म मा स यह अनुमान नह लगा सका िक तकनीक गित के कारण पूँजी-बचत
तकनीक ारा पूं जी-उ पाद अनुपात को कम करके लाभ क दर बढ़ा ली जाये गी । वा तिवक ि थित
यह हयी है िक ऐसी तकनीक योग म लायी जाती है िजनसे म और पूं जी दोन क उ पादकता म
वृि होती है, कु ल उ पादन बढता है तथा िमक क मजदूरी और उ मी का लाभ, दोन ही
साथ-साथ बढ़ते है ।
मा स का पूं जीवादी सं कट का िस ा त भी यावहा रक धरातल पर िटक नह सका ।
पूं जीवादी अथ यव था मे पूं जी का के ीयकरण होने से रा क आय कु छ हाथ म कि त हो जाती
है और समाज का बड़ा भाग गरीब बन जाता है । इससे मांग म कमी हो जाती है और बाजार म
व तुएं िबक नह पाती । प रमाण व प मंदी आ जाती है और लाभ कम हो जाते है । मा स क यह
धारणा गलत सािबत हई । वा तव म पूं जीवादी आिथक िवकास के साथ कु ल रा ीय आय म
मजदूरी का अंश भी बढ़ गया िजससे व तुओ ं क मां ग बढ़ती गयी ।
िस अथशा ी शु पीटर ने मा स के िचं तन और वै ािनक िव ेषण क सराहना करते
हए भी मा स से अपनी असहमित य क है । शु पीटर का कहना है िक मा स ने अपने िस ा त
को ायोिगक िस ा त के प म प करने का य न िकया िक तु उ ह ने मू य के म िस ा त
तथा मजदूरी के जीवन-िनवाह िस ा त का सहारा िलया था । ये दोन िस ा त ायोिगक िव ेषण
के िलए उपयु नह है । िवकास के साथ सामािजक-आिथक ि थितयां बदलती गयी और मजदूरी
का िनधारण जीवन-िनवाह िस ा त तक सीिमत नह रहा ।
शु पीटर इस बात से सहमत थे िक पूं जीवाद का िवनाश अव य भावी है, लेिकन उन
कारण से नह िजनका मा स ने ितपादन िकया । शु पीटर यह भी कहते है िक पूं जीवादी
अथ यव था एक नयी समाजवादी अथ यव था म प रवितत हो जाती है, िक तु यह समाजवाद
मा स ारा अनुमािनत वै ािनक समाजवाद से िब कु ल िभ न होता है । पूं जीवाद एक ऐसे
समाजवाद म प रिणत हो जाता है िजसम थोड़े से पूं जीपित पूजं ी के वामी नह रहते बि क हजार
लाख आम आदमी पूं जी के अंशधारी (शेयर हो डर) बनते जाते है । िक तु पूं जी के अंशधा रय का
उ ोग पर और िमक पर कोई िनयं ण नह रहता, वरन सारा बं ध मैनेजर तथा तकनीक
िवशेष के हाथ म चला जाता है जो वयं वेतनभोगी कमचारी होते है ।
मा स ने रा य क भूिमका म होने वाले प रवतन क भी पूवक पना नह क थी । अब
सं सार के ाय: सभी देश म क याणकारी रा य क थापना हयी है, अथात् संपणू समाज का
क याण हो रा य शासन का मुख पोिषत ल य है । अतएव रा य पूं जीवादी अथ यव था मे पनपने
वाली बुराइय पर सतत् अंकुश लगाने का काय भी करता है ।
मा स मॉडल के इस आलोचना मक परी ण का यह िन कष नह िनकाला जा सकता िक
उनका मॉडल अ यावहा रक अथवा पूणतया अस य है । वा तव मे मा स ने पूं जीवादी आिथक
िवकास क उन कमजो रय को उ ािटत िकया है जो समाज म अशां ित फै लाकर ां ित क वाला
भड़काती है । मा स के आिथक िवकास मॉडल का ही यह प रणाम था िक सभी समाज ने तथा
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िविभ न रा ने क याणकारी रा य क थापना क ओर यान िदया तथा िनरं तर इस यास म लगे
रहे िक पूं जीवादी आिथक िवकास क बाधाएं दूर होती रह । इतना ही नह ाय: सभी देश म िकसी
न िकसी प म आिथक िनयोजन क परं परा कायम क गयी है, तािक अथ यव था क िवसं गितय
को दूर िकया जा सके ।
4.9 िवकासशील देश म मा स मॉडल क उपादेयता:
मा स का आिथक िवकास का िस ा त मूल प म पा ा य देश के पूं जीवादी िवकास क
सम याओं पर कि त रहा है । मा स ने भारत तथा अ य िवकासशील देश क सम याओं से
सं बं िधत न तो कोई िव ेषण िकया है और न उनक या या क है । मा स क यह धारणा अव य
रही है िक एिशया और अ का के िपछड़े और गरीब देश क सम याओं क जड़ म
'पूं जीवादी-सा ा यवाद' है । अतएव उनका यह मत था िक इन देश को सबसे पहले अपने आपको
िवदेशी दासता से मुि का उपाय करना चािहये । लेिनन ने मा स क इसी धारणा को आधार
बनाकर पूं जीवादी सा ा यवाद िक िव तृत या या क ।
दूसरी ओर िवकासशील देश म ती गित से बढ़ती जनसं या के कारण इन देश के िलये
मा स िक पूं जीवादी िवकास क या या अनुपयु हो जाती है । िफर भी यह एक िवल ण सं योग है
िक मा स क या या के मुख घटक आजादी ा हो जाने के बाद भी इन िवकासशील देश को
अथ यव था म तरह िव मान है । उदाहरणाथ, िमक क मजदूरी िक दर जीवन-िनवाह के तर पर
है, बेरोजगार क 'सुरि त फौज ' बढ़ती जा रही है, समाज पूं जीपितय तथा 'सवहारा' वग म
िवभािजत है आिद । लेिकन इन सम याओं के कारण िक या या वह नह है िजसे मा स ने अपने
पूं जीवादी िवकास िस ा त मे दशाया है ।
िफर भी, मा स क समाजवादी आिथक िनयोजन िक अवधारणा िनि त प से
िवकासशील देश के शी आिथक िवकास के िलये उपयु रही है । यही कारण है िक भारत जैसे
िवकासशील देश म समाजवादी आिथक िनयोजन को ाथिमकता से अपनाया गया है । ये िस ा त
समय के कसौटी पर कहां तक खरे उतरगे इसक भिव यवाणी आज करना अस भव है ।
4.10 श दावली:
मा स के आिथक - िवकास के मॉडल म हमे िन निलिखत धारणाओं से प रिचत होना
चािहये ।
(1) इितहास क भौितकवादी या या : प रवतन, अथात् उ पादन िक णाली म प रवतन
के कारण ही मानव-समाज म सामािजक - राजनैितक प रवतन होते है ।
(2) ा मक भौितकवाद : िकसी भी सामािजक अव था म भौितकवादी प रवतन के
कारण द अथात् सं घष ार भ हो जाता है । जब ''उ पादन क णाली'' मे प रवतन होता
है तब उ पादन के सं बं ध’' म भी प रवतन अव य भावी है । उ पादन के सं बधं ो म प रवतन
के िलये द ारं भ होता है ।
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(3) वग-सं घष : ा मक भौितकवाद समाज म वग संघष को ज म देता है । येक
सामािजक अव था क अपनी वग-सं रचना होती है । उ पादन को णाली मे प रवतन से
उ पादन क शि य का समाज क थािपत वग-सरं चना से सं घष होने लगता है ।
(4) उ पादन क णाली : मानव समाज अपने िवकास मे िविभ न अव थाओं से गुजरता है ।
येक अव था क अपनी िविश ‘उ पादन णाली’ होती है ।
(5) उ पादन के संबं ध : उ पादन क णाली के अनुसार ही समाज वग म िवभािजत हो जाता
है । 'उ पादन के सं बं ध' का ता पय, उ पादन काय म लगे समाज के िविभ न वग के
आपसी सं बं ध से है ।
(6) अितरेक मू य : िमक अपने म से िजतना 'मू य' उ पािदत करता है, उसम से एक अंश
उसे मजदूरी के प म ा होता है । शेष 'मू य' ही अितरेक मू य है जो मािलक को लाभ
के प म ा हो जाता है ।
(7) 'मू य का म - िस ा त' : मा स ने परं परावादी अथशाि य के 'मू य के म िस ा त'
का ही अनुसरण िकया है । इस िस ा त के अनुसार उ पािदत व तु का मू य उस व तु को
उ पािदत करने म लगे म मू य के बराबर होता है ।
(8) पूं जी सं चय : म का अितरेक मू य ही एकि त होने से पूं जीसंचय होता है । यह पूं जी
मशीन कारखान और उ पादन के िलए क चे माल के थान म काम म आती है । इस
कार सम त पूं जी मा स के अनुसार, सं िचत म अथवा एकि त मृत- म ही है ।
(9) बु जआ वग और सवहारा वग : पूं जीवादी अव था म समाज दो वग मे िवभािजत हो
जाता है । ‘बुजआ वग िजसके पास उ पादन के पूं जीगत साधन होते है । यह अिभजात वग
बन जाता ह । दूसरा, सवहारा वग िजनके पास बचने के िलये के वल अपना शारी रक म
ही होगा है ।
(10) ि थर पूं जी (C) : कारखान , मशीन , क चा माल आिद का मू य ।
(11) प रवतनशील पूं जी (V) : िमक को ा कु ल मजदूरी का मू य ।
(12) पूं जी का अवयवी संयोग (C / V) : दोन ही कार क पूजं ी िमलाकर उ पादन िकया
जाता है । ि थर पूं जी के प रवतनशील पूं जी के अनुपात को पूजं ी का अवयवी सं योग कहा
गया है ।
(13) शोषण क दर (S / V) : अितरेक मू य का मजदूरी मू य से अनुपात शोषण क दर
बताता है ।
(14) औ ोिगक रि त फौज : पूं जीवाद म आिथक िवकास के साथ मशीनीकरण के कारण
बढ़ते हए बेरोजगार मजदूर के वग को 'औ ोिगक रि त फौज' कहा गया
4.11 बोध :
1. मा स के आिथक िवकास मॉडल के मुख आधार या है?
2. मा स क ‘अितरेक मू य' क अवधारणा प क िजये ।
41
3. मा स के अनुसार पूं जीवाद का िवनाश अव य भावी य है?
4. मा स के आिथक िवकास मॉडल क िववेचना क िजये ।
5. मा स के आंिशक िवकास मॉडल क आलोचना िकन आधार पर क गई है?
6. मा स का आिथक िवकास मॉडल िवकासशील म कहां तक यावहा रक है?
4.12 कु छ उपयोगी पु तक
1. डा० टी० आर० शमा एवं डा० जे० सी० वा णय - िवकास का अथशा एवं
िनयोजन, सािह य भवन, आगरा (अ याय-13)
2. एम०एल० िझं गन, िवकास का अथशा एवं िनयोजन िवकास काशन नई िद ली
(अ याय-10)
3. काल मा स, 'पूं जी', पीपु स पि लिशं ग हाऊस, िद ली।
4. Higgins B., Economic Development Norton, New York, 1959
5. Kindleberger. C.P. Economic Development, McGraw-Hill, New
York, 1977.
6. Meir G.M. and R.E. Baldwin, Economic Development, Asian
Publishers, Delhi – 1964.

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इकाई 5
आिथक िवकास का महालनोिबस मॉडल
Mahalanobis Model of Economic Growth
इकाई क परेखा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 महालनोिबस मॉडल
5.3 ि े ीय मॉडल
5.4 चार े ीय मॉडल
5.5 महालनोिबस मॉडल क मा यताय
5.6 महालनोिबस मॉडल का मू यांकन
5.7 सारां श
5.8 कु छ उपयोगी पु तक
5.9 श दावली
5.0 उ े य
आिथक िवकास को स पूण िदशा देने के िलये मॉडल िनमाण एक आव यक ि या है ।
ो० महालनोिबस ारा िवकिसत मॉडल हमारी पंचवष य योजनाओं का आधार रहा है । इस इकाई
को पढ़ने के प ात आप िन निलिखत जानकारी ा कर सकगे ।
 महालनोिबस मॉडल क भूिमका या है? तथा यह िकस कार हेरोड डॉमर िवकास
मॉडल का सं शोिधत व प है ।
 महालनोिबस के ि े ीय व चार े ीय मॉडल क संरचना जानगे
 महालनोिबस मॉडल क मा यताय जान सकगे तथा उसका मू यां कन करगे ।
5.1 तावना
हेराड-डॉमर मॉडल आिथक िवकास क या या िविनयोग तथा उ पादन के प म करता
है । िक तु इस मॉडल म वा तिवक िविनयोग ि या तथा े वार िवतरण नह बतलाया गया है ।
इस कमी को ो० महालनोिबस ने पूरा िकया । उ ह ने े वार िविनयोग िव ेषण िकया । इस
मॉडल क एक अ य िवशेषता यह थी िक यह भारी उ ोग से ा उ पादन का पुनिविनयोग करने
क योजना बनाता है । इस कार दीघकाल म बचत आय अनुपात बढ़े गा तथा िवकास क वृि दर
अिधक होगी । अत: इस मॉडल को गहन बचत या गहन पूजं ी अनुपात मॉडल भी कहा जाता है ।
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महालनोिबस मॉडल का भारत के संदभ मे िवशेष मह व ह य िक यह भारतीय योजना म वा तव म
यु िकया गया है ।
5.2 महालनोिबस मॉडल
हेरोड-डॉमर मॉडल िविनयोग, आय तथा उपभोग क उन दर पर बल देता है जो सतत वृि
दर से स बि धत ह । इन मॉडल म मुख त य का उ लेख तो है पर िव तार यु काय म का
अभाव है । ो० महालनोिबस ने 1952-55 म िवकिसत अपने इस मॉडल म े ीय िव ेषण
(Sector Analysis) तुत कर एक कदम आगे बढ़ाया है । इससे हेरोड डॉमर मॉडल को अिधक
स पूण प दान िकया गया है । महालनोिबस मॉडल म िविनयोग वृि क दर का स ब ध बचत
क दर से न होकर पूं जीगत व तुओ ं के उ पादन क वृि दर से है । पूं जीगत े क व तुओ ं क
वृि पर पूं जीगत े म िकये गये कु ल िविनयोग के अंश तथा पूं जी उ पादन अनुपात पर िनभर
करता है ।
माना क पूं जीगत व तुओ ं का पूजी-अनुपात (Capital output ratio) यिद िदया गया है
तो िविनयोग का अिधक अंश अिधक पूं जीगत व तुओ ं का उ पादन करेगा। इस कार अथ यव था
म अिधक अ पकालीन व दीघकालीन वृि दर होगी। अत: अथ यव था म पूं जीगत े म िकया
गया कु ल िविनयोग का अंश सबसे मह वपूण िनधारक त व है । महालनोिबस ने 1952 म एक े ,
1953 म दो े तथा 1955 म चार े मॉडल बनाया।
ो० महालनोिबस का िव ास था िक भारत ने थम पं चवष य योजना क उपलि धय के
कारण कृ िष म आ मिनभरता ा कर ली है । अत: अब ि तीय व तृतीय पंचवष य योजनाओं म
गैर-कृ िष े का िवकास करना चािहये। अत: ो० महालनोिबस ने भारत म व रत आिथक
िवकास के िलये पूं जीगत े म वृि के ारा तेजी से औ ोिगक िवकास क अनुशसं ा क । पर
इसके िलये ाकृ ितक संसाधन क आव यकता थी। य िक भारत म कोयले व लोह अय क के
पया भं डार उपल ध थे, अत: सव थम लोह व इ पात उ ोग के िवकास क योजना बनाई गयी।
यह अ य िवकिसत रा के अनुभव से उिचत था। भारी उ ोग को िवकास का आधार बनाकर
भिव य म रा ीय आय क वृि क सं क पना क गई। ि तीय पंचवष य योजना के सै ाि तक
आधार के प म चार े मॉडल का िनमाण िकया गया। इससे दो ल य के ा होने क सं भावना
थी।
(i) रा ीय आय म औसतन 5 ितशत ितवष क वृि
(ii) ि तीय पंचवष य योजना म 11 िमिलयन अित र रोजगार सृजन।
इस कार महालनोिबस मॉडल भारी उ ोग के मा यम से देश के भावी िवकास क
आधारिशला रखना चाहता था।

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5.3 ि े ीय मॉडल (Two sector model)
इस मॉडल म महालनोिबस ने स पूण अथ यव था को दो भाग पूं जीगत े व उपभोग
े म बां टा है । कु ल िविनयोग को भी पूं जीगत े (K) एवं उपभोग े (C) म बां टा गया है ।
कु ल िविनयोग का वह े जो पूं जीगत े म यु िकया जाता है  K (ले बडां K) तथा उपभोग
े म यु िविनयोग  C ारा दिशत िकये जाते ह।
 K  C  1 ..... (1)
यिद K का मू य िनि त कर िदया जाय तो  C का मू य (I -  K ) हो जाता है ।  K
का मू य योजनािवद के चयन पर िनभर करता है । ो० महालनोिबस ने  K का मान 0.33
ित थािपत िकया।
यिद उ पाद-पूं जी अनुपात (आउटपुट-capital ratio) माना िक  (बीटा) ह तो
K  K  C C   ........(2)
अथात् पूं जीगत े म िविनयोग के अंश  K को उ पाद-पूं जी अनुपात  K से गुणा
िकया जाय तो पूं जीगत े म कु ल वृि का अंश ा होता है । इसी तरह C C से उपभोग े
म कु ल वृि का अंश ा होता है । इन दोन का योग  है जो कु ल उ पाद पूं जी अनुपात को
बतलाता है । उदाहरण के िलये िन निलिखत मू य िदये गये ह।
K = 0.33 p C = 0.67  = 0.25
समीकरण (2) म ित थािपत करने पर
(0.33) (0.25) + (0.67) (0.25) = 0.25
िकसी समय t पर कु ल िविनयोग It है तथा िकसी भिव य के समय t + 1 पर यह It + 1
होगा ।
It+1 – It = K  K It ... (3)
इसी कार यिद िकसी समय t म उपभोग Ct तथा भिव य म Ct + 1 है तो
Ct+1 – Ct =  C  C I t .......... (4)
उपरो चार समीकरण के आधार पर महालनोिबस ने िन निलिखत आय सृजन सू
तुत िकया ।
5.4 चार े ीय मॉडल
चार े ीय मॉडल म ो० महालनोिबस ने उपभोग े को कारखाना उपभोग े (C1),
लघु व कु टीर उ ोग (C2) तथा सेवा े (C3) म िवभािजत िकया । चौथा े िविनयोग (K) था ।
इन चार े म पूं जी-उ पादन अनुपात  K , 1 , 2 तथा 3 माना गया जो मश:
िविनयोग े , कारखाना उपभोग े , लघु उ ोग उपभोग व तु े व सेवा े के िलये था । इन
े म पूं जी- म अनुपात मश:  K , 1 ,  2 व  3 था । ये आठ अनुपात (पूँजी उ पादन अनुपात
45
तथा पूं जी- म अनुपात ाचल (Parameters) ह िजनका मू य योजना अविध के दौरान ि थर माना
गया है ।
इन चार े म K, C1, C2 व C3 म आय सृजन मश: YK, Y1, Y2 व Y3 माना गया
है तथा े ानुसार रोजगार सृजन NK, N1, N2, व N3 माना गया ।' े ानुसार िविनयोग आवं टन
अनुपात मश:  K , 1 , 2 व 3 था । इन अ ात मू य को समीकरण ारा ात करना था । इस
म िन निलिखत समीकरण थे ।
Y  Yk  Y1Y2 ...... (1)
N  Nk  N1 N 2 N 3 ...... (2)
Yk  Y1  Y2  1 ....... (3)
Yk  IYk  k ....... (4)
Y1  IY1 1 ...... (5)
Y2  IY2 2 ...... (6)
Y3  IY3  3 ...... (7)
YK
NK  I    ....... (8)
K
Y1
N1  I   ...... (9)
1
Y
N2  I  2  ....... (10)
2
Y
N3  I  3  ...... (11)
3
यहाँ Y का अथ कु ल आय सृजन, N कु ल रोजगार सृजन तथा I कु ल िविनयोग है ।
उपरो समीकरण यव था मे 11 समीकरण है । पर 12 अ ान मू य है । अतः अ ात
मू य के 12 िविभ न म ात होगे। इनसे मू य िनधारण किठन हो जायेगा। अतः: बारहवां
समीकरण आव यक होगा। ो० महालनोिबस ने इस सम या का हल YK को 0.33 मू य देकर
िकया है ।
उपरो समीकरण यव था म बारहवां समीकरण िन निलिखत है ।
YK = 0.33 ... (12)
भारतीय सं दभ म यह िदया गया मान वा तिवक आकड़ के िनकट तथा मह वपूण है ।
बोध 1
1. ो० महालनोिबस के चार े ीय आयोजना मॉडल क या या क िजये। 500 (श द)
5.5 महालनोिबस मॉडल क मा यताय
(i) भारत जैसे िवकासशील देश म यापा रक उ चावचन का भाव गौण है ।
46
(ii) इन देश म जे.बी.से. (J. B. Say) का बाजार का िनयम लागू होता है अथात् पूित वयं ही
मां ग का सृजन करती है ।
(iii) के ीय योजना के अ तगत आिथक िवकास होता है ।
(iv)मू य प रवतन या मु ा फ ित के भाव पर यान नह िदया गया है ।
(v) यह एक बं द अथ यव था का मॉडल है य िक इस क मा यता है िक िविनयोग व तुओ ं
क घरेलू पूित इतनी हो जायगी िक पूं जीगत व तुओ ं के शु आयात को आव यकता नह
हो।
आय सृ जन क आव यक दशाएँ
(अ) कु टीर व लघु उ ोग म उपभो ा व तुओ ं का पया उ पादन होना चािहये। इससे भारी
उ ोग म हए िविनयोग के कारण बढ़ी हई उपभो ा मां ग पूरी हो सके गी।
(ब) मूलभूत उ ोग क वृि दर पया हो िजसके िक िविनयोग व तुओ ं क देश म पूित हो
सके ।
(स) तकनीक ि कोण से कु शल यि उपल ध हो।
(द) िव ीय व मौि क नीितय क सफलता के िलये पया िव ीय साधन ह ।
(ई) देश म पया व कु शल शासन तं कायरत हो।
5.6 महलनोिबस मॉडल का मू यां कन
महलनोिबस वे िविनयोग का अंश 0.33 रखा है िजसके पीछे कोई तािकक आधार नह है ।
यह कारण अव य िदया गया है िक इससे अिधक मू य वतमान प रि थितय म सं भव नह है । पर
इस कार K का मू य िनधारण करने पर साधन के अनुकूलतम सं योग पर पहंचना सं भव नह है ।
ो० के ० एन० राज के अनुसार इस मॉडल क एक कमजोरी यह है िक िविनयोग िनणय व
बचत दर मे सं बधं थािपत नह िकया गया है । अिधक पूजं ी िविनयोग एवं भारी उ ोग धान
तकनीक के िलये अिधक बचत दर होना आव यक है । ए. के . सेन, गोतम माथुर आिद अथशाि य
ने भी भरी उ ोग से उ प न व तुओ ं के पूनिवयोग पर कर िदया हो उनके अनुसार इस कार का
औ ोिगक ितमान वयं ही बचत-आय अनुपात बढ़ायेगा ।
5.7 सारां श
महलनोिबस मॉडल सु िस हेरोड डॉमर मॉडल म सुधार है य िक इसम े ीय िव ेषण
िकया गया है । इस मॉडल म भारी उ ोग पर अिधक बल िदया गया है तथा यह अपे ा क गयी िक
इन भरी उ ोग से उ प न अित र उ पाद को पुन : भारी उ ोग के िवकास म खपा िदया जायेगा ।
इससे दीघकाल म ऊं ची बचत दर एवं अिधक िवकास दर ा होगी । अत: इसे पूं जी गहन एवं बचत
ती ता मॉडल कहा जाता है ।

47
महलनोिबस ने 1953 म ि े ीय मॉडल तथा 1955 म चार े ीय मॉडल का िवकास
िकया । उसने चार े ीय मॉडल 11 समीकरण व 12 अ ात मू य क सहायता से िकया । इसम
बारहवां समीकरण YK = ०.33 माना गया । यह मू य वछं द (Arbitrary) प से िलया गया है ।
महलनोिबस ने िविनयोग िनणय, एवं उनके अनुसार आव यक बचत चर म सं बधं थािपत
नह िकया । पर अ य े क तुलना म भारी िविनयोग पर अिधक बल िदया । इस कार का
िविनयोग ितमान दीघकाल म बचत आय अनुपात को बढ़ाता है तथा आिथक िवकास क वृि
दर भी ऊँची रखता है ।
5.8 कु छ उपयोगी पु तक
1. Ghosh, ‘Planning, Programming’ and Input-Output Models: Selected
Papers on Indian Planning, Cambridge University Press.
2. P.C. Mahalnobis, Approach of Operational Research to Planning in
India Sankhya Vol. 16, Dec. 1955.
3. Leela Rangaswamy and N. Somasekhara, Mahalnobis Model of
Planning, Allied Publishers, 1974.
5.9 श दावली
पूं जी (Capital) उ पादन का वह साधन जो भूतकाल म िकये गये म का प रणाम है ।
पूं जी-उ पाद अनु पात Capital output Ratio उ पादन क मा ा म एक पया वृि
करने के िलये आव यक पूं जी क मा ा ।
पुनिविनयोग (Reinvestment)
ाचल (Parameters)
िविनयोग आवं टन (Investment Allocation) कु ल िविनयोग को अलग-अलग े
जैसे कृ िष, यातायात, उ ोग आिद म बांटना।
रोजगार सृजन (Employment generation)

48
इकाई 6
आथर लु इस: म क असीिमत पू ित से आिथक
िवकास का मॉडल
Arthur Lewis: An Economic Development
Model of the Unlimited Supply of Labour
इकाई क परेखा
6.1 उेय
6.2 तावना
6.3 मा यताएँ
6.4 समी ा मक मू यां कन
6.5 सारां श
6.6 सं दभ ं थ
6.7 िन ब धा मक
6.1 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप जान सकगे िक —
 आथर लुइस: म क असीिमत पूित से आिथक िवकास का मॉडल
 मा यताएँ
 समी ा मक मू यां कन
6.2 तावना
सन् 1954 मे कािशत अपने लेख “Economic Development with Unlimited
of Supply of Labour” म क असीिमत पूित से आिथक िवकास का मॉडल तुत िकया। ो.
लुइस ने िति त आिथक िवकास के मॉडल को अ पिवकिसत देश जैसे म क अिधकता वाले
देश क िवकास ि या पर लागु िकया और रकाड के दो ेि य िवकास मॉडल को वतमान
िवकासशील देश क ि थित म साथक बताया है ।
49
लुइस मॉडल को दो ेि य या तै अथ यव था मॉडल भी कहा जाता है ।
(i) जीवन िनवाह े कृ िष
(ii) पूँजीवादी े उ ोग पर आधा रत है ।
ो. लुइस अपने मॉडल क शु वात इस कथन के साथ करता है िनवाह-मजदूरी पर म
क पूण लोचदार पूित का िति त मॉडल अ पिवकिसत देशो मे यवहाय है । इस कार क
अथ यव था पूँजी तथा ाकृ ितक साधन क तुलना अित जनसं या वाली होती है । प रणाम व प
म क सीमा त उ पादकता नग य या शू य और कभी-कभी ऋणा मक भी होती है । य िक म
क पूित असीिमत होती है । इसिलए चालू मजदूरी पर िबना िकसी के , िनवाह े से िमको को
िनकालकर तथा पूँजीवादी े मे लगाकर नए उ ोग थािपत िकए जा सकते है या वतमान उ ोग
का िव तार हो सकता है । चालु मजदूरी वह है जो िमक िनवाह े मे कमाते है । लेिकन ोत से
िनवाह मजदूरी पर िमक आयेगे वे है कृ षक, आकाि मक िमक, छोटे-मोटे यापारी नोकर चाकर
घरेलु काम-काज करने वाले औरत आिद। पर तु पूँजीवादी े मे कु शल िमक चािहए। लुइस तक
देता है कु शल िमक ‘‘आंिशक साधन है जो अकु शल िमक को िश ण दान करके दूर क जा
सकती है ।
मा यताएँ
ो. लुइस का मॉडल िन न मा यताओं पर आधा रत है ।
1. अथ यव था मे म क असीिमत पूित है ।
2. अथ यव था दोहरी कृ ित क है ।
3. अकु शल िमको को िश ण और कु शलता दान करने क लागत को ि थर माना गया
है ।
4. िव तृत पूँजीवादी े मे उ पादन लाभ अिधकतमकरण के िस ा त के आधार पर थान
लेता है ।
5. ित यि उ पादन पूँजीवादी े मे िनवाह े क बजाय अिधक होगा।
6. अथ यव था मे पूँजी और ाकृ ितक सं शोधन जनसं या के स ब ध मे दुलभ है ।
लु इस के दो ेि य म क असीिमत पू ित िस ा त का रेखािच ारा िन पण:-
दायी िदशा मे कृ िष े से स बि ध िच बनाये गये है । ऊपर को रेखाि बतलाता है िक कै से
िमको क ि से िनवाह भोजन उ पादन मे प रवतन यह कृ िष उ पादन फलन है जहाँ कु ल उ पादन
(TPA) का िनधारण प रवितत आगम क मा ा म (LA), दी हइ पूँजी (LA) क मा ा तथा
अप रवितत पुरानी तकनीिक ारा होता है दां ये तरफ नीचे का रेखािच िजसमे औसत और सीमा त
मव
50
रेखािच 6.1 लु इस के दो ेि य म क असीिमत पू ित िस ा त

Quantity of Labour Thousand म क मा ा (हजार )


(a) आधुिनक/पूं जीवादी े (b) ारि भक े

दां यी िदशा मे कृ िष े से स बि ध रेखािच बनाये गये है ऊपर का रेखािच बतलाता है िक कै से


िमको क ि से िनवाह भेजन उ पादन मे प रवतन यह कृ िष उ पादन फलन है जहाँ कु ल उ पादन
(TPA) का िनधारण प रवितत आगम क मा ा म (LA), दी हइ पूँजी (KM) क मा ा तथा
अप रवितत पुरानी तकनीिक ारा होता है । दां ये तरफ नीचे का रेखािच िजसमे औसत और
सीमा त म व APL और MPL है जो कु ल उ पादन व से िखचे गये है । ैितज अ पर दोनो
रेखािच मे कृ िष िमको क मा ा (LA) को दशाया गया है । जो लाखो क सं या मे है । ो.
लुइस ने अ पिवकिसत अथ यव था का वणन िकया है बहत यादा सं या मे लोग रहते और
ामीण े मे काम करते है ।
ो. लुइस ने ारि भक े के िलए दो मा यताये ली है ।
51
(i) ारि भक े मे आिध य म है उनक सीमा त उ पादकता शू य है ।
(ii) सारे ामीण िमक का उ पादन मे समान अंश है िक उनक वा तिवक औसत
उ पादकता ारा िनधा रत होती है न क म क सीमा त उ पादकता ारा।
माना LA के बराबर कृ िष िमक है िज होने TPA भोजन उ पादन कर रहे। जो येक WA के
बराबर अंश है (जो औसत उ पादन है जो TPA/LA के बराबर है ।) सीमा त उ पादकता LA
िमक शू य है जो नीचे के रेखािच (b) मे िदखाया गया है इसिलए आिध य िमक क मा यता
लागू होती है जो LA िमक के अित र है । बां यी तरफ का रेखािच (a) कु ल उ पादन (उ पादन
फलन) व जो ओ ोिगक े के िलए बनाया गया है । एक दुबारा मै यूफै चर व तु का उ पादन
(TPM ) जो क प रवितत म आगम LM, िदया हआ पूँजी टॉक, तकनीिक tM का फलन है ।
ैितज अ पर, म क मा ा जो रोजगार मे है एवं उ पादन करती TPMसाथ मे पूँजी
टॉक K1 जो हजार क सं या ामीण िमक L1 है । लुइस के मॉडल आधुिनक े पूँजी टॉक मे
वृि को वीकृ त करता है जो KM1, KM2 तथा KM3 है जो औ ोिगक पूँजीपित ारा लाभ
कमाने के िलए पुन : िनवेिशत क जाती है । िजसके कारण रेखािच (a) मे कु ल उ पादन व ऊपर
तरफ िखसक जाता है TPM (KM1) से TPM (KM2) तथा TPM (KM3) तक। यह ि या
पूँजीपित लाभ को पुन : िनवेश और वृि के िलए े रत करेगी। जो बां यी तरफ के नीचे के रेखािच
मे दशायी गयी है नीचे रेखािच मे आधुिनक सीमा त म व है जो TPM व से ा िकया है
आधुिनक े के पूव ितयोगी म उ पाद व वा तव मे िमको के िलए मां ग व है । नीचे के
दोनो रेखािच मे ामीण WA े मे ि वन िनवाह मजदूरी को दिशत करती है WM रेखािच
(a) मे आधुिनक पूँजीगत े मे वा तिवक मजदूरी को िदखती है इस मजदूरी दर पर िमको क
पूित असीिमत व पूणतया लोचदार मानी गयी है । जो क ेितज के सामा तर रेखािच WMSL ारा
दिशत िकया गया है । रेखािच (a) मे म क इकाइ(हजार ) मे दिशत है, आधुिनक े वृि के
ारि भक टेज मे पूँजी क पूित KM दी गइ है । म का मां ग व जो घटती सीमा त उ पाद ारा
य िकया गया है ऋणा मक ढाल का है D1(KM2) नीचे के बां यी तरफ के रेखािच मे। य क
उ मी का लाभ अिधकतम होगा उस िब दू पर उनका सीमा त भौितक उ पाद, वा तिवक मजदूरी के
बराबर है । (िब दू F पर मां ग और पूित एक दूसरे को काटते है) कु ल आधुिनक े का रोजगार L1
के बराबर है । कु ल आधुिनक े उ पादन TPM जो OD1FL1 के बराबर है । कु ल उ पादन के
अंश के बराबर िमको को मजदुरी दी जायेगी इसिलए OWMFL1 आयताकार े के बराबर
होगी। उ पादन का स तुलन जो WMD1F े ारा दशाया है जो क पूँजीपित के लाभ मे वृि
होगा। लुइस मानता हे क जो यह लाभ है यह पुन : िनवेिशत है और कु ल पूं जी टॉक आधुिनक े
मे KM1 ; KM2 के बराबर बढ़ेगा। यादा पूँजी े जो आधुिनक े के कु ल उ पादन व के
TPM(KM2) के िश ट होने का कारण है, जो म के मां ग व के सीमा त उ पादन मे वृि को
े रत करता है । मां ग म व D2(KM2) बाहर क तरफ िखसक जाता है ।

52
आधुिनक े रोजगार तर का एक नया सा य िब दू G पर थािपत होगा। जहाँ L के बराबर िमक
काम पर लगे है । कु ल उ पादन म वृि TPM 2 और OD2GL2 के बराबर जबिक कु ल मजदूरी लाभ
म OWMGL2 और WMD2G के बराबर सापे वृि होगी। एक बार दूसरा यह ि या शु होगी
और L3 आधुिनक म रोजगार तक चलेगी। आधुिनक े वृि और रोजगार क ि या जब तक
जारी रहेगी क सारा ामीण म औ ोिगक े ारा खपा नह िलया जाता है । त प ात् उ च
बाय हए उ पादन लागत पर अित र िमको कृ िष े से बाहर कर िदये जा सकते है योक
म-भूिम अनुपात मे कमी का अथ है ामीण े के िमको क सीमा त उ पादकता व यादा
समय शू य नह होगी। इस कार आधुिनक े मे म को पूित व धना मक ढाल का होगा और
रोजगार मे लगातार वृि होगी स तुिलत आिथक वृि के साथ अथ यव था ारि भक ामीण
कृ िष े से आधुिनक औ ोिगक े मे बदल जायेगी।
6.4 समी ा मक मू यां कन
लुइस का िस ा त कु छ िनि त ि थितय के अ तगत अित जनसं या वाले अ पिवकिसत देशो म
लागू होता है । इसिलए इसक कु छ मा यताए, इसक यवहायता को सीमाबं ध करती है ।
1- मजदू री िस ा त पू ँजीवादी े मे मे ि थर नह :- यह िस ा त पूँजीवादी े मे
उतने देर तक मजदूरी को ि थर मानता है जब तक िनवाह े से म क सम त पूित ख म
नह होती है । पर तु यह अवा तिवक है योक अ पिवकिसत देशो मे औ ोिगक े मे
मजदूरी बदलती रहती है । यिद पूँजी सं चय म बचतकारी तो यह मॉडल लागू नह होगा:-
लुइस यह मानता था िक पूँजीवादी अितरेक उ पादक य पूँजी मे पुन : िनवेश कर िदया जाता
है । पर तु रेन डस के अनुसार यिद उ पादक य पूँजी म बचतकारी होती है तो यह म को
खपा नह सके गी तथा िस ा त लागू नह होगा।
2- हर अ पिवकिसत देश मे म क असीिमत पू ित नह होती :- लुइस मान लेता है िक
म क असीिमत पूित है िव म कइ अ पिवकिसत देश क आबादी कम है ।
3- उ म तथा उप म क कमी:- लुइस का मॉडल इस धारणा पर आधा रत है िक
अ पिवकिसत देश म पूँजीपित वग मौजूद रहता है वृि क सम त ि या इन लोगो के
हाथ मे रहती है िजसमे पूँजी सं चय क आव यक कु शलता हो। व तुत : अधकां श
अ पिवकिसत देश म ऐसे उ म तथा उप म क बहत कमी पाइ जाती ह
4- कु ल मां ग क उपे ा:- लुइस ने अपने े ीय आिथक मॉडल मे कु ल मां ग क सम या
का अ ययन नह िकया। वह यह मान लेता है िक पूँजी े मे जो कु छ भी उ पादन होता है,
वह या तो उस े ारा वयं उपभोग कर िलया है या िनयात कर िदया जाता है । वह इस
स भावना का वणन नह करता क पूँजीवादी े अपनी व तुओ ं को िनवाह े मे बेच दे।
53
यिद ऐसा होता तो पूँजी े मे क चे माल क बढ़ती मां ग को पूरा करने के िलए िनवाह
े ारा अपनाइ गइ नइ तकनीक के मा यम से वृि ि या बहत पहले क जाएगी।
5- म क गितशलता आसान नह :- उ ची मजदूरी होने से ही अितरेक म िनवाह े से
पूँजीवादी े म नह जाएगा। लोगो को अपनी भूिम और प रवार से इतना लगाव होता है
िक वह अपने र तेदार और घर छोड़ना पस द नह करते है ।
6- म क सीमा त उ पादकता शू य नह होती:- ो. शु ज इस बात से सहमत नह है िक
अिधक जनसं या वाले अ पिवकिसत देश मे म क सीमा त उ पादकता शू य होती है ।
ऐसा होता तो िनवाह मजदूरी भी शू य होती। वा तिवकता तो यह है िक हर िमक िनवाह
आव यक मजदूरी अव य ा करता है ।
7- िवषमताओ को बढ़ाया:- ो. कु जनेट्स का िवचार है िक लुइस का मॉडल वीकार करने
पर अ िवकिसत देश मे और िवषमता बढेगी।
6.5 सारां श
इन सीमाओं के बावजुद लुइस के मॉडल का मु य गुण यह है िक यह बहत प ढं ग से िवकास
ि या क या या करता है । इस ि - े मॉडल का िव ेषणा मक मू य बहत है यह प करता
है िक अ पिवकिसत देश मे पूँजी संचय िकस कार होता है जहाँ म क अिधकता और पूँजी क
दूलभता हो। साख फ ित जनसं या वृि , ोिगक गित तथा अ तरा ीय यापार क सामा य
का अ ययन मॉडल म यथातवादीता का समावेश करता है ।

6.6 सं दभ ं थ
(i) डॉ. मृगेश पा डे- आिथक वृि एवं िवकास िस ा त नीित एवं सम याएं
(ii) M.L. िझगन- िवकास का अथशा एवं आयोजन
(iii) Dr. V.C. िस हा- आिथक सं विृ और िवकास
(iv) Todaro-Smith- Economic development
(v) R.K. Lekhi- The Economics f development and Planning
6.7 िन ब धा मक -
1. आथर लुइस के असीिमत पूित के साथ आिथक िवकास के िस ा त क आलोचना मक
िववेचना क रए ।
2. लुइस के म के असीिमत पूित िस ा त क आलोचना मक या या क िजए ।
54
इकाई – 7
फाइ-रेिनस का दोहरी अथ यव था का िस ा त
The Fie-Ranis theory of Dual Economy
इकाई क परेखा
7.1 उेय
7.2 तावना
7.3 मा यताएँ
7.4 दोहरी अथ यव था का िस ा त
7.5 दो े के बीच सं योजकता
7.5.1 कृ िष े
7.5.2 औ ोिगक े
7.6 कृ िष अितरेक
7.7 सं तिु लत वृि
7.8 आलोचना मक मू यां कन
7.9 सारां श
7.10 सं दभ ं थ
7.11 िनब धा मक
7.1 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप जान सकगे िक —
 दोहरी अथ यव था का िस ा त
 दो े के बीच सं योजकता
 कृ िष अितरेक (Agriculture Surplus)
 सं तिु लत वृि (Balanced growth)

55
7.2 तावना
ो. लुइस के म क असीिमत पूित के िस ा त के फे ल हो जाने पर फाइ और रेिनस आगे
आये और लुइस के िस ा त मे सुधार क कोिशक क और अपने िस लेख ‘A Theory of
Economic development’ मे एक अ िवकिसत अथ यव था क सं मण का िव ेषण िकया
है िक िकस कार अ िवकिसत देश गितहीनता क ि थित से आ मजनक िवकास क ओर जाने
क कोिशश करते है । उ होने ो. लुइस ारा तुत असीिमत म हए अित र म वाली
अथ यव था के िवकास के दो े -मॉडल से अपना िव ेषण ार भ िकया।
इस िस ा त का स ब ध अ पिवकिसत म-अितरेक तथा सं साधनह न अथ यव था से है िजसम
अिधकतर जनसं या बेरोजगारी और जनसं या क ऊची वृि दर के बीच मे कायरत है । यह
अथ यव था िपछड़ी और गितहीन है । लोग पार प रक कृ िष यवसाय से जुडे़ है । अथ यव था
कृ िष रिहत यवसाय पाए जाते है । िक तु उनम पूँजी का कम उपयोग होता है, िवकास से अिभ ाय
कृ िष अितरेक िमको का औ ोिगक े को पुन : आवं टन करना है िजनका कृ िष उ पादन मे
योगदान शू य है । जहाँ वे कृ िष मे सं थािनक मजदूरी के बराबर मजदूरी पर उ पादक बन जाते है ।
7.3 मा यताएँ
फाइ और रेिनस मॉडल क भी कु छ िनि त मा यताएँ जो िन न कार है ।
(1) यह एक दोहरी अथ यव था है, िजनमे थम पर परागत एवं गितहीन कृ िष े है और ि तीय
एक सि य औ ोिगक े है ।
(2) दोनो े मे िमक के वल कृ िष व तुओ ं का उपभोग करता है ।
(3) कृ िष े का उ पादन के वल भूिम तथा म का फलन है ।
(4) भूिम मे सुधार के अित र कृ िष म पूँजी का सं चय नह होता है ।
(5) भूिम क पूित ि थर है ।
(6) कृ िष काय मे पैमाने के ि थर ितफल पाये जाते है ।
(7) यिद जनसं या उस मा ा से अिधक है तो जहाँ म क सीमा त उ पादकता शू य बन जाती है
म को कृ िष े से िबना हािन के औ ोिगक म मे थाना त रत िकया जा सकता है ।
(8) जनसं या मे वृि को एक बा घटक के प मे माना जाता है ।
(9) औ ोिगक े को के वल पूँजी तथा म का फलन है । भूिम का उ पादन के साधन के प मे
कोइ भूिमका नह है ।
(10) औ ोिगक े म वा तिवक मजदूरी ि थर रहती है यह कृ िष े क ारि भक वा तिवक
आय बराबर होती है । वे इसे सं थािनक मजदूरी कहते है ।
56
फाइ और रेिनस के मतानुसार िवकास से अिभ ाय कृ िष अितरेक िमक िजनक कृ िष
उ पादकता म योगदान शू य अथवा नग य है उनको औ ोिगक े म थानां त रत करना है । जहाँ
वे कृ िष मे थािनक मजदूरी के बराबर मजदूरी पर उ पादक बन जाते है । इस कार फाइ - रेिनस ने
िवकास मे तीन बाते सि मिलत क है ।
1. अ य बेरोजगार िमक अथात् कृ िष े मे िमक क अिधकता रहती है अत: कृ िष
उ पादन मे उनका योगदान शू य अथवा नग य रहता है ।
2. अथ यव था म एक सि य औ ोिगक े है िजसमे अितरेक िमक को कृ िष े से
औ ोिगक े क और थाननां त रत िकया जाता है ।
3. अितरेक िमको का कृ िष े म उ पादन मे योगदान शू य या नग य होता है । पर तु
औ ोिगक े म इ हे सं थािनक मजदूरी ा होती है, फलत: ये उ पादक बन जाते है ।
7.4 दोहरी अथ यव था का िस ा त
िवकास क अव थाएँ Phase of Growth
ऊपर दी गइ मा यताओं के आधार फाइ और रेिनस ने म अितरेक अथ यव था के
िवकास क िन निलिखत तीन अव थाएँ तुत क ।
1. थम अव था:- इस अव था मे अ य बेरोजगारी, िमक जो कृ िष उ पादन मे कोइ
योगदान नह दे रहे, उनको ि थर सं थािनक मजदूरी क दर पर, औ ोिगक े म
थानां त रत कर िदया जाता है ।
2. ि तीय अव था:-इस अव था मे वे कृ िष िमक जो कृ िष े के उ पादन मे वृि करते
है लेिकन उनक उपज का मू य सं थािनक मजदूरी से कम होता है तो ऐसे िमको को
औ ोिगक े म भेज िदया जाता है यह ि थित चलती रही तो अंतत: ऐसी ि थित
उ प न हो जाती है जबिक कृ िष िमको के उ पादन का मू य सं थािनक मजदूरी के
बराबर हो जाता है ।
3. तृ तीय अव था:- ि तीय अव था से तृतीय अव था का शुभारं भ होता है । अथात् ि तीय
अव था आ म फू ित क अि तम ि थित होती है और यही से आ मपोिषत िवकास शु
होता है । जबिक खेितहर मजदूर सं थािनक मजदूरी से अिधक उ पादन करने लगते है ।
इस अव था म अितरेक समा हो जाता है, और कृ िष का यवसायीकरण हो जाता है ।

57
रेखािच 7.1 फाइ और रेिनस मॉडल

रेखािच रेखािच 7.1 म (A) म कृ िष ि या को तुत िकया गया िक जहाँ समा भूिम (Z) ारा
व तुओ ं का उ पादन िकया जाता है म को ेितज अ और भूिम को अनुल ब अ पर दशाया
गया है । रेखा OR उ पादन क अव था को दशाता है व ABC कृ िष व तुओ ं क उ पादन प रिध
रेखा है । भूिम को तक ि थर मानकर, म अिधकतम उ पादन करता है । रेखािच
मे ेिमज अ पर म और ल बवत अ पर कु ल उ पादन हो दशाया गया है । व
म क कु ल उ पादकता को तुत करता है । यिद भूिम के साथ के बाद अिधक म
लगाया जाता है तो उ पादकता मे कोइ वृि नह होगी योक व के िब दू के बाद
म क कु ल उ पादकता ि थर हो जाती है । यिद मान ले कृ िष मे लगी कु ल म शि है
और कायरत िमक है तथा अित र िमक कृ िष उ पादकता मे कोइ भाव
नह डालते हे उनका सीमा त भौितक उ पादकता व िब दू के आगे शू य क ओर
चला जाता है इस कार के िमक अ य बेरोजगार है ।

58
7.5 दो े के बीच सं योजकता
फाइ-रेिनस ने अपने मॉडल मे कृ िष और अंतिनिभता पर जोर िदया है और उ होने बताया क दोनो
े क मजबूत सं योजकता उनमे ो साहन और गित दान करेगा। यिद खेितहर मजदूर औ ोिगक
े को ओर जाने लगे और उ मी औ ोिगक े म यादा पूँजी टोक और म गहन तकनीक का
योग कर यादा िमको को रोजगार दान कर सकते है । यह सं योजकता कृ िष और उ ोगो के
बीच काम कर सकती है ।
7.5.1 कृ िष े
इसे िन न रेखािच ारा समझा जा सकता है ।
रेखािच 7.2 कृ िष े

रेखािच (A) मे − अ पर भूिम और − अ पर म को दशाया गया है ।


और दो रज रेखा है और रेखािच मे और उ पादन Contour रेखा को
दिशत करता है । जो े रज रेखा ारा सं ल न वह े साधन ित थापन े है जहाँ साधनो को
आसानी से ित थािपत िकये जा सकते है । आगे हम इसके प रणाम देखते है ।

59
रेखािच मे के बराबर म सं या है कु ल म कृ िष े मे। रज रेखा उ पादन व
को िब दू पर काटती है उसके बाद का भाग के नीचे पूणतया ेितज है ।
उ पादन व का ेितज भाग यह य करता है साधन ित थापन के बाहर े जहाँ उ पादन ब द
है और िमक बैकार हो जाते है य िक िमको मे वृि हो रही और भूिम क सीिमत मा ा है ।
यिद के बराबर कु ल भूिम है के बराबर िमको को रोजगार िदया जा सकता है
कृ िष े मे अनाव यक िमक य करती है फाइ-रेिनस ने इसे लेकर म उपयोग अनुपात क
अवधारणा को िवकिसत िकया है । उ होने म इकाइय को य िकया जो वे भूिम िक ित इकाइ
उ पादकता को य करता है अत: म उ पादकता अनुपात को िन न कार य िकया जा
सकता है
=
जो क रज रेखा के उ टे ढाल के बराबर है ।
फाइ और रेिनस ने स प नता अनुपात (Endowment radio) को िवकिसत िकया जो दो साधन
क सापे उपल ध को मापता है । इसे कार कृ िष भूिम को य करता है एवं E कृ िष
िमको को तब स प नतानुपात िदया हआ है
=
जो क रेखा के उ टे ढाल के बराबर है वा तिवक िब दू स प नता का िदया गया है ।
अ तत: फाइ रेिनस ने गर अनाव यक गुणां क िवकिसत िकया जो है ।

ये तीन अवधारणा सहायक है , और के बीच स ब ध थािपत करने मे

= = =

यह गिणतीय स ब ध िस करता है गैर अनाव यक गुणां क का म उ पादकता के साथ


सीधा और स प नता अनुपात के साथ ऋणा मक स ब ध है । रेखािच B मे TPPL म क कु ल
भौितक उ पादन को य करता है जो घटित हइ दर से बढ़ रहा है िजसका अथ है, भूिम के एक
िनि त भाग म क अिधक इकाइयां जोड़ी जा रही है । िब दू N पर व का आकार ेितज हो

60
जाता है यह िब दू N जो रेखािच (C) मे G िब दू के साथ जड़ा है (सीमा त भौितक उ पादकता
TPPL को य करता है) और रेखािच A मे रज रेखा OV के िब दू S से जुड़ा है ।
7.5.2 औ ोिगक े
कृ िष े के समान, फाइ-रेिनस ने औ ोिगक े मे पैमाने के ि थर ितफल माना है । इस
कार उ पादन के मु य साधन म और पूँजी है िजसे रेखािच ारा प िव तार पथ िकया जा
सकता है ।
रेखािच 7.3 औ ोिगक े

रेखािच म िे तज अ पर म और ल बवत अ पर पूं जी को दशाया गया है । औ ोिगक े


का िव तार पथ , , , रेखा ारा िदया गया है । जैसे पूँजी मे , और वृि होती
और म मे वृि , और होती है औ ोिगक उ पादन मे वृि जो उ पादन समो च
रेखा , , , के अनुसार होती है ।
मॉडल के अनुसार, औ ोिगक े मे म पूित का मु य े कृ िष े है य िक कृ िष े मे म
अितरेक है ।
रेखािच (B) मे म का पूित व दशाया गया है 0, 1, 2 भाग एक ेितज के समान सीधी
रेखा है और कृ िष े के अनाव यक म को औ ोिगक े के म एवं अनाव यक म के साथ
ेितज अ पर मापा गया है और वा तिवक मजदूरी को ल बवत अ पर। कृ िष े मे म
अितरेक िक वजह से वा तिवक मजदूरी ि थर रहती है पर तु म का पूित व िब दू के बाद
ऊपर क और ढाल का हो जाता है । ऊपर क ओर का भाग यह इंिगत करता है िक अित र म
क पूित क जायेगी के वल साथ मे उनके अनु प वा तिवक मजदूरी मे वृि है ।

61
म का सीमा त उ पादकता व पूँजी म के तर के अनु प , , और
िखचा गया है । जब पूँजी टॉक से K तक वृि होती तो म क सीमा त उ पादकता मे भी
M0 से M1 तक वृि होती है । जब पूँजी टॉक K0 है तो MPPL व म के पूित व को P0 सा य
िब दू पर काटता है । इस िब दू पर कु ल वा तिवक आय W0 है जो छां याकृ त े O का
ितिनिध व करता है । लाभ सा य जो े ारा दशाया गया है ।
अत: िमक के पास बहत कम आय है वे मुि कल से बचत कर पाते है अत: औ ोिगक े का
लाभ औ ोिगक े मे िनवेश का भाग बनता है ।
= + +
= नया पूं जी टॉक
= ामीण े क बचत , + = आ ौिगक े का कु ल िनवेश फं ड
7.6 कृ िष अितरेक (Agriculture Surplus)
कृ िष अितरेक को हम सामा यत: समझ सकते है िक अित र उ पादकता जो समाज क आव यक
पूित के बाद शेष रह जाता है िजसे या तो िनयात कर िदया जाता या भिव य के िलए सुरि त रख
िलया जाता है । कृ िष बचत को िन न रेखािच क सहायता समझ सकते है ।
रेखािच 7.4 कृ िष अितरेक

रेखािच 7.4 मे OX अ पर म और OY अ पर भूिम को दशाया गया है । रेखािच मे कु ल


कृ िष िमको औसत भौितक उ पादकता ( ) को दशाया गया है उ होने प रकि पत िकया
िक यह वा तिवक मजदूरी के बराबर होगा। यह कृ िष े िक कु ल जनसं या के कु ल उ पादकता के
मू य के बराबर है । जो हम ा करते = जो रेखािच मे रेखा के ढाल के
बराबर है । अब हम रेखािच के िब दू का िनर ण करते है जो िब दू के बां ये ि थत है । कु ल

62
कृ िष िमक ( ) मे से अनाव यक कृ िष िमको को हटाया गया इ हे औ ोिगक े मे
लगा िदया है । बाद म शि कृ िष े मे रह गयी िजसे Y िब दू ारा दशाया गया है । अब जो
उ पादन कृ िष िमको ारा उ पािदत िकया गया है जो YZ के बराबर है । और वा तिवक मजदूरी
जो म शि को दी गयी है XY जो अ तर है − = यह कृ िष े अितरेक
अथ यव था है । औ ोिगक े को िवकिसत करने के िलए यह ामीण े क िछपी हइ बचत है

7.7 सं तु िलत वृ ि (Balanced growth)
फाइ और रेिनस ने बताया है िक उनका मॉडल उ कष ि या के दौरान क े को पुरा
करता है स तुिलत वृि के िलए कृ िष और औ ोिगक दोनो े मे िनवेश क आव यकता है िजसे
िन न रेखािच क सहायता से प िकया जाता सकता है ।.
रेखािच 7.5

रेखािच 7.5 मे म का PP ारि भक मां ग व तथा SS म का ारि भक पूित व है ये दोनो वे


िब दू पर काटते है जहाँ OM म शि औ ोिगक े मे लगी रोजगार के इस तर पर औ ोिगक
े S1ap के बराबर लाभ होता है । यह लाभ उ कृ ि या के दौरान अथ यव था का उपल ध
कु ल िनवेश कोष है । इस कोष का एक भाग कृ िष े मे आंविटत िकया जाता है । िजससे कृ िष क
उ पादकता म वृि होती है । म का पूित व औ ोिगक े मे दां ये और से तक
थाना त रत होता है िनवेश का शेष बचा हआ भाग औ ोिगक े को आंविटत िकया जाता है
िजससे औ ोिगक े का मां ग व दां यी और से तक थाना त रत करता है ।
स तुिलत वृि पथ a पर ि थत िब दू पर तथा काटते है । कृ िष े को
िनवेश कोष के आंवटन के कारण कृ िष उ पादकता मे वृि होने से जो कृ िष ारा म शि
63
छोड़ी गयी वह पर औ ोिगक े ारा काम मे लगाइ जाती है । रेखािच मे िदखाइ गइ
औ ोिगक े मे लगाइ गइ म शि जो कृ िष े मे छोड़ी गइ म शि के बराबर
िदखाइ गइ है । इस कार समय पय त िनवेश कोष दोनो े को लगातार आंविटत िकये जाते है तो
अथ यव था सं तिु लत वृि पथ पर चलेगी िक तु ाय यह स भावना रहती है िक समय-समय पर
वा तिवक वृि पथ सं तिु लत पथ पर िवचिलत हो जाता है । िफर भी इस कार का िवचलन बराबर
करने वाली सं तिु लत शि यां लाएगा जो इसे सं तिु लत वृि पथ पर लाने क वृित रखती है ।
7.8 आलोचना मक मू यां कन
फाइ और रेिनस का मॉडल लुइस के मॉडल पर एक सुधरा हआ प है । लुइस का मॉडल
के वल औ ोिगक े पर के ि त था कृ िष े क उपे ा करता था लेिकन फाइ-रेिनस का मॉडल
दोनो े के पर पर भाव को दशाता है । इस िस ा त क मु य े ता यह है िक यह
अ पिवकिसत देशो मे पूँजी सं चय के िलए कृ िष व तुओ ं के मह व को कट करता है ।
इन े ताओं के बावजू द यह मॉडल भी आलोचनाओं से अछु ता नह है जो िन न है-
(1) भूिम क पूित का ि थर न होना:- फाइ रेिनस अपने मॉडल मे यह धारणा लेकर चलते है िक
िवकास ि या के दौरान भूिम क पूित ि थर होती है । लेिकन िदघकाल मे भूिम क पूित ि थर
नह रहती है ।
(2) सं थािनक मजदू री का MPP से अिधक न होना:- यह मॉडल यह मानकर चलता है िक
िवकास ि या क अव था I तथा II के दौरान सं थािनक मजदूरी ि थर होती है तथा MPP
से ऊँची होती है । लेिकन वा तव म म अितरेक अ पिवकिसत देश मे कृ िष िमक को दी
जाने वाली मजदूरी MPP से काफ होती है ।
(3) कृ िष का यापा रकरण फ ित उ प न करता है:- इस िस ा त के अनुसार जब कृ िष तृतीय
अव था मे वेश करता है तो यापा रकरण हो जाता ह। िक तु अथ यव था क सरल
आ मजिनक वृि क ओर जाने क स भावना नह रहती य िक फ ितकारी दबाव ार भ हो
जाते है । जब अनेक िमक औ ोिगक े म थाना त रत हो जाते है । इस दौरान सं थािनक
मजदूरी िमको क MPP के बराबर होती है । और इस कार कृ िष उ पाद क कमी हो जाती
है । ये सभी त य अथ यव था म फ ितकारी दबाव पैदा करते है ।
(4) िमको क सीमा त भौितक उ पादकता शू य नह :- फाइ और रेिनस मानते है िक भूिम
क ि थर मा ा के साथ जनसं या का एक बहत बड़ा आकार होगा जो िक MPP को शू य
बनाएगा। शु ज इस बात से सहमत नह है िक म अितरेक अथ यव था मे MPP शू य है ।
उनके अनुसार ऐसा होता तो थािनक मजदूरी शू य होती है ।
(5) बं द अथ यव था:- फाइ-रेिनस का मॉडल बं द अथ यव था क धारणा पर आधा रत है जहाँ
िवदेशी यापार नह होता है । यह मा यता इस कारण से अवा तिवक है य िक अ पिवकिसत
64
देश बं द अथ यव था न होकर खुली अथ यव थाएँ है जहाँ कृ िष व तुओ ं क कमी होने पर
आयात क जाित है ।
7.9 सारां श
फाइ-रेिनस के म अितरेक मॉडल क किमय के बावजुद भी इसका मह व कम नह हआ। अिपतु
यह िस ा त अ पिवकिसत देश कृ िष तथा औ ोिगक े मे पर पर भाव क िवकास ि या
का उ कृ ढं ग से िव ेषण िकया है ।
7.10 सं दभ ं थ
 एम.एल. िझगन- िवकास का अथ यव था एवं आयोजन
 डॉ. मृगेश पा डे- आिथ वृि एवं िवकास िस ा त नीित एवं सम या
 डॉ. V.C. िस हा- आिथक सं विृ और िवकास
 R.K. Lekhi- The Economic development and planning
7.11 िनब धा मक
1 आथर लुइस के असीिमत पूित के साथ आिथक िवकास मॉडल का परी ण क िजए
तथा इस सं दभ म रेिनस और फाइ के योगदान का मू यां कन क िजए।
2 फाइ तथा रेिनस िस ा त क सं पे मे या या क िजए? यह लुइस के असीिमत पूित
िस ा त के िकस कार े है ।

65
इकाई - 8
जॉन रािब सन का पू ँजी संचय िस ा त
John Robinson theory of Capital
Accumulation
इकाई क परेखा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 िस ां त क मा यताएं
8.3 मॉडल का िव ेषण
8.4 वण युग का िवचार
8.5 वणयुग से िवचलन
8.6 वण युग क िविभ न िक मे
8.7 सं चय क इि छत दर
8.8 मॉडल क किमयाँ
8.9 मॉडल क अ पिवकिसत देशो यवहायता
8.10 सं दभ ं थ
8.11 कु छ िनब धा मक
8.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप िन न िब दुओं को समझ सकग -
मॉडल का िव े षण
 वण युग का िवचार The concept of Golden Age
 वणयुग से िवचलन Divergence from Golden Age
 वण युग क िविभ न िक मे
 सं यच क इि छत दर
 मॉडल क किमयाँ
 मॉडल क अ पिवकिसत देशो यवहायता
66
8.1 तावना
ीमती जॉन रािव सन जो िक मूल िति त अथशा ी है उ होने हेरोड-डोमर तथा क स क
श दाविलय का योग करके िति त अथशा िवकास िस ा त तुत िकया जो उनक पु तक
The Accumulation of Capital (1956) तथा “Asses in the theory of economic
growth” मे िव तृत प् से विणत ह ीमती रािब सन ने अपने िस ा त का िनमाण पूं जीवादी खेल
के िनयम के आधार पर ही िकया है ।
रािब सन ने िति त मू य व िवतरण िस ा त को क स के बचत-िविनयोग िस ा त के
साथ स बि धत करते हए आिथक वृि का िव ेषण िकया। िति त अथशाि य काल मा स,
शु पीटर, हैरोड तथा डोमर इ यािद ारा तुत िकये गये िवकास मॉडल िवकिसत अथ यव था के
स दभ मे लागु होते है । अ िवकिसत देशो के स दभ मे इस कार के िवकास मॉडल क
आव यकता हे िजसम जनसं या वृि का िवकास पर भाव और जनसं या वृि का आय, आय
िवतरण, बचतो, पूं जी िनमाण आिद पर पड़ने वाले भाव का भी िव ेषण तुत िकया गया है ।
रािब सन का मॉडल आिथक िवकास के जनसं या वृि के घटक को वीकार करते हए, पूं जी
सं चय क दर और उ पादनप वृि पर जनसं या के भाव का िव ेषण करता ह िवकास क और
अ सर अथ य था म जनसं या वृि क सम या तथा इसके पूँजी िनमाण और उ पादन पर पड़ने
वाले भाव का ीमती रािब सन ने अपने मॉडल मे िववरण तुत िकया है । उ होने अपने मॉडल
का िवकास िवशेष प से दो मौिलक त व पर आधा रत िकया है ।
(अ) पूं जी िनमाण आय के िवतरण के तरीके पर िनभर करता है ।
(ब) म के योग क दर पूं जी और म के योग पर िनभर करती है ।
8.2 िस ां त क मा यताएं
1. एक ब द अथ यव था
2. िदये हए उ पाद का उ पादन करने के िलए पूं जी तथा म ि थर अनुपात मे लगाये जाते है ।
3. म और पूं जी दो उ पादन के साधन है यह य करता है राि य उ पाद इन दोनो के
सं यु यास फल है ।
4. कु ल वा तिवक आय का िवतरण िमक एवं उ िमय के दो वग मे होता ह।
5. कु ल आय पूं जी और म के बीच बांटी जाती है य िक ये दोनो उ पादन के साधन है ।
6. उ पादन तकनीक गित से भािवतनह होता है ।
7. क मत तर को ि थर माना है ।
8. िमक कु छ बचत नह करते और अपनी-अपनी मजदूरी आय को उपभोग पर यय करते है

9. रा ीय आय मजदूरी और लाभ का जोड़ है ।

67
10. म क कोई दुलभता नह है उ मी चाहे िजतना म उपयोग म ले सकता ह।
11. उ मी अपभोग कु छ नह करता पर तु पूं जी िनमाण के िलए अपनी स पूण आय को बचत
और िनवेश करता है ।
8.3 मॉडल का िव े षण
इस मॉडल मे उ पादन के दो ही साधन है पूं जी एवं म अतः राि य आय मजदूरी और लाभ का
योग है । कु ल मजदूरी वा तिवक मजदूरी है जो रोजगार मे लगे िमक का गुणफल है । दूसरी ओर
कु ल लाभ, लाभ का दर एवं पूं जी क रािश के गुणाफल के बराबर होता है ।
Y=WN+PK
Y= शु राि य आय
W= वा तिवक मजदूरी दर, N= रोजगार मे लगे िमक
P= लाभ क दर, K= पूँजी क मा ा
लाभ क दर जो पूँजी का आधार है का मान िन न सू ारा ा िकया जा सकता है ।
राि य आय कु ल मजदूरी िबल
P= =
पूँजी क मा ा
इसी कार मजदूरी क दर
W=
इस कार लाभ क दर मजदूरी घटाने बाद कु ल आय और पूजं ी क मा ा का अनुपात है । लाभ क
दर के समीकरण से प होता है ।
(अ) यिद मजदूरी क दर यथावत् रहे , पर तु आय िकसी कारण से , जैसे िमको क उ पादकता से
बढ़ जाये।
(ब) आय पूववत् रहे मजदूरी घट आये।
(स) पूँजी म अनुपात म कमी आ जाये।
म क मां ग देश मे उपल ध पूं जी क मा ा पर िनभर करती है । पूं जी से वृि लाभ क दर पर िनभर
करती है लाभ क दर म क उ पादकता और मजदूरी क दर पर िनभर करती है । ीमती रािब सन
का यह मॉडल यय प क ि से क स क धारणा को लेकर आगे बढ़ता है ।
Y=C+I
रािब सन ने यूमने क धारणा के अनुसार मजदूरी म से बचत को शू य माना है ( य िक मजदूर
उपभोग के िसवा बचाने का काम नह करते है) और बचत उ िमय ारा क जाती है ( य िक वे
लाभ का यय न करके िनवेश करते ह।)

68
इसिलए
S=I
इस बचत-िनवेश स ब ध के समीकरण को इस कार य िकया जा सकता है ।
S=I तथा I=∆K

I=∆K या P= (∆K= वा तिवक पूं जी मे वृि )
चूँिक S=I

उपयु समीकरण इस बात से प करता है िक पूँजी संचय क दर आिथक िवकास का मुख
ोतक है । चूं िक पूं जी क वृि क दर लाभ क दर (P) के बराबर होती है यह उ ही घटक पर
िनभर करती है जो लाभ क दर को भािवतकरते है ।
उपयु िववेचन से प है ।
1. कु ल बचते (S) कु ल िनवेश (I) के बराबर होती है ।
2. बचत लाभ क दर के बराबर होती है ।
3. िविनयोग पूं जी वृि के बराबर होती है ।
4. पूं जी वृि दर, लाभ दर के बराबर होती है ।
8.4 वण यु ग का िवचार (The concept of Golden Age)
ीमती रािब सन ने आिथक वृि पर जनसं या के भाव क या या क । उ होने प
िकया िक पूँजी क वृि दर (∆K/K) के अित र अथ य था क िवकास दर जनसं या वृि दर
∆N/N ारा िनधा रत होती है ।
जनसं या म वृि होने के कारण म शि मे वृि होती है और यिद पूं जी मे त ु प वृि
नह होती है तो म क उ पादकता कम हो जाती है य िक ित िमक पूं जीगत साधन कम
उपल ध हाते है । इस प रि थित मे यिद वा तिवक मजदूरी क दर ि थर रहे तो लाभ मे कमी आयेगी
िजसके प रणाम व प पूं जी क पूित एवं म क पूित मे अ तर बढ़ जायेगा िजससे बेरोजगारी मे
अ तर आयेगा।
अतः अथ यव था म पूण रोजगार क ि थित उस समय स भव है जब िजस दर से जनसं या मे वृि
हाती है उसी के समान पूं जी क वृि दर भी हो
∆ ∆
=
∆N = जनसं या क वृि दर

69
∆K = पूं जी क वृि दर
इस अव था रािब सन ने वण युग क सं ा दी। वण युग का अि त व पूण रोजगार का संकेत है ।
वण युग क अवधारणा य करती है वहाँ वा तिवक, अिभ और ाकृ ितक वृि बराबर होनी
चािहए। इसे रेखािच 8.1 ारा य िकया जाता है ।
रेखािच 8.1

रेखािच 8.1 म आधार रेखा x पर पूजा- म अनुपात (K/N) अथात्  माप है, तथा ल ब रेखा y
पर ित- यि उ पाद क माप है! म-शि (जो जनसं या-वृि पर िनभर है) क वृि -दर आधार
रेखा पर O क बां यी ओर मापी गयी है । व OP उ पादन फलन दशाता है । इस OP व पर
येक िब दु पूं जी का म से अनुपात दशाता है ।
पूं जी- म अनुपात तथा मजदूरी और लाभ का सबं ध ात करने के िलये हम NT ि या
खीचते है, जो OP व को G िब दु पर छू ती है तथा ल ब रेखा OY को w पर काटती है । रेखािच
म िब दु G उस पूं जी- म अनुपात को बताता है जो वणाव था क ि थित म होगा िजसक माप
OK है । इस ि थित म ित यि उ पाद OA है । इस ित यि उ पाद OA मे से OW मजदूरी
दी गयी है तथा शेष wA (अथवा EG) आिध य है जो पूं जी क लाभ-दर है ।
रेखा िच यह भी िस करता है िक  K / K   N / N है । अथात् पूं जी क वृि दर  K / K
बराबर है म (जनसं या) क वृि दर  N / N के । यहां EG / EW दशाता है  K / K तथा
OW / ON दशाता है  N / N को ।
tan   tan 
अतएव, EG/EW = OW/ON
70
अतएव, K / K  N / N

समान म क वृि दर , पूं जी क वृि दर


8.5 वणयु ग से िवचलन (Divergence from Golden Age)
यिद अथ यव था म वणयुग मे कभी कभी स तुलन िबगड़ जाता है इसके दो कारण है ।
(i) > (ii) <

1. यिद जनसं या वृ ि दर पूं जी सं चय से अिधक हो > :-


इस कार क ि थित अ प िवकिसत देशो मे उ प न होती है । असा य क ि थित के उ प न
होने पर यिद देश मे म क अिधकता है तो शी ही मौि क मजदूरी को कम कर कदेगी →
िजसके फल व प वा तिवक मजदूरी कम हो जायेगी → वा तिवक मजदूरी कम होने पर लाभ
क दर बढे़गी → जो पूँजी संचय क दा को बढ़ाकर जनसं या तर पर ले जायेगी । मु ा मजदूरी
क ढ़ता के कारण अथवा इस कारण क मत तर उसी अनुपात मे िगरता है िजतनी के मु ा
मजदूरी, यिद वा तिवक मजदूरी कम नह होती है, तो स तुलनकारी कम नह करेगा। वण युग
स तुलन पुनः थािपत नह हो सके गा और अ प रोजगार कायम रहेगा।

2. यिद पू ँजी संचय क दर जनसँ या क वृ ि दर से अिधक है > :-


इस कार क सम या िवकिसत देशो मे उ प न होती ह तो अस तुलन क इस ि थित को
तकनीक प रवतनो, जैस-े पूँजी म अनुपात या उ पादकता मे वृि करके अथवा सम त
उ पादन फलन को बदल कर पुनः स तुलन मे लाया जा सकता है । इसका कारण, जैस-े जैसे पूजँ ी
सं चय बढ़ता है वैस-े वैसे म क मां ग बढ़ती है । रािब सन के अनुसार वण युग पाच सा य पर
वापस आने क स भावना िवकिसत देशो मे अ पिवकिसत देशो के बजाय अिधक है ।
8.6 वण यु ग क िविभ न िक मे
ीमती रािब सन ने ‘Essay in the theory of Economic Growth’ िभ न वण युग एवं
लेिटनम युगो का वणन िकया।
(1) लगड़ा वण युग (Limping Golden Age)
लगड़ा वण युग क अव था म पूं जी सं चय क सतत् दर पूण रोजगार से तर से िन न होती
है । पूं जी टॉक क वृि दर म शि क वृि दर से नीचे है । लगड़ेपन क गहनता िविभ न अंगो
म स भव है जो रोजगार बनाम म शि म होने वाली वृि या कमी पर िनभर करती है । यिद
रोजगार का तर म शि के आकार क तुलना मे कम वृि हो तब बेरोजगारी म वृि क दशा

71
उ प न हो जाएगी। दूसरी तरफ रोजगार का तर म शि के आकार से अिधक है तो रोजगार क
अिधक स भावना होगी।
(2) लीडन वण यु ग (Leaden Golden Age)
ऐसी अव था है िजसमे बेराजगारी का अनुपात पूं जी संचय क कमी के कारण बढ़ता है ।
िजसके प रणाम व प िमक के जीवन तर म िगरावट उ प न होती है जब तक रोजगार ा
िमक क वा तिवक मजदूरी मे वृि नह होती जीवन- तर म िगरावट जारी रहेगी। पूँजी सं चय िक
िन न दर के कारण जीवन- तर मे िगरावट आना वृि के माग मे अवरोध उ प न करता है ।
(3) ितबं िधत वण यु गः-
यह पूण रोजगार अव था है लेिकन इसम संचय क वांिछत दर संचय क स भा िव दर से
अिधक होने क वृित रखती है । लेिकन सं चय क वां िछत दर को ा िकया जाना स भव नह है ।
य िक ित उ पादन क वृि दर इतनी या नह होती यह अव था ा हो सके । अतः सं चय क
दर को रोकना आव यक हो जाता है । यिद इसे िव ीय िनय ण के ारा सुधारा जाए तब भी
अ प-कालीन थािय व ा करना स भव नह होता है ।
(4) सरपट दौड़ता लेिटनम यु गः-
यह अथ यव था क एक ऐसी दशा है जब लाभ क दर बढ़ रही है उ पादन क पूं जी
गहनता म वृि हो रही है लेिकन बेरोजगारी िव मान हो। लेिकन पूं जी संचय क दर िन न से उ च
तर क और वृि हो रही ह। तो लाभ क दर म वृि साथ ही वा तिवक मजदूरी दर कम हो जाती
है । इसका प रणाम रोजगार क रदरन मे वृि करने के िलए िनवेश करने के िलए उ पादन क िन न
तकनीक का चुनाव करते है ।
(5) रगता हआ लेिटनम यु गः-
रगता हआ लेिटनम युग एक ऐसी दशा को य करता है जो पूण रोजगार से स बि धत है ,
जहाँ क गहनता लगातार बढ़ती चली जाती है इस दशा मे बढ़ते हए रोजगार अवसर क पूित हेतु
म शि पया वृि नह होती है ।
8.7 सं चय क इि छत दर
रािब सन ने संचय क इि छत और संचय क स भव दर के बीच स ब ध थािपत िकया है
इि छत वृि दर सं चय क दर है जो िन न ि थित मे कम अपने आपको पाती है उसी मे सं तु बनाए
रखती है ।
इसके बीच स ब ध बनना ज री है िक ‘‘ इि छत वृि दर सं चय क दर के कारण जो
लाभ क दर होती और उस ारा िनधा रत होती है तथा संचय क दर लाभ क दर ारा े रत होती
है । इसे िन न रेखािच ारा प िकया जा सकता है ।

72
I
Y I A
D

Rate of Profit

S
O X
Rate of Accumulation
रेखािच मे व A लाभ क स भािव दर को य करता है जो संचय क दर का फलन ह
व I संचय क दर को य करता है जो लाभ का फलन है । जो लाभ का फलन है । िब दु D के
दाई और लाभ क सं भािवतदर सं चय क दर से कम होती है और िनवेश करना लाभदायक नह
होगा तथा संचय क दर िगरेगी। S और D के बीच, सं चय क दर लाभ क स भािव दर से कम
होती है । इसिलए िनवेश बढ़ाने क वृित होगी और संचय क दर बढ़ कर िब दु क् तक पहँच
जायेगी। इस कार िब दु S इि छत वृि को य करता है ।
आलोचना मक मू यांकन
ीमती जॉन रािब सन का िवकास मॉडल हैरोड-डोमर से काफ िमलता-जुलता है । रािब सन का
सं चय िस ा त काफ अ छा है । इससे स ब ध मे ो. कु रहारा ने िलखा है िक क स के बाद
रािब सन का मॉडल िवकास के िस ा त के े मे मूलभूत योगदान यह है िक उ होने िति त मू य
तथा िवतरण िस ा त और आधुिनक क जीयन बचत िनवेश िस ा तो को एक कृ त करके एक
स ब ध प म तुत िकया।
8.8 मॉडल क किमयाँ
1. ब द अथ यव था:- जोन रािब सन का मॉडल ब द अथ यव था क मा यता पर
आधा रत है लेिकन िवकिसत अथ यव था खुली होती है ।
2. वण यु ग का का पिनक होनाः- वण युग एक का पिनक िवचार है य िक पूण
रोजगार मे लगे गरीब लोगो क िनधन अथ यव था भी वण युग कहलायेगी यह तो
हा य द बात ही कही जायेगी।
3. सं थािनक साधन क उपे ा:- यह मॉडल सं थािनक साधन को िदया हआ है मानकर
चलता है पर तु िकसी भी मॉडल म आिथक वृि के एक िनधारक प म सं थािनक
साधन के काय क उपे ा नह क जा सकती। अथ यव था का िवकास काफ हद तक
सामािजक, सां कृ ितक और सं थािनक प रवतन पर िनभर करता है ।
4. ि थर क मत तर:- यह मॉडल क मत तर को ि थर मानता है पर तु यह मा यता
अवा तिवक है । लेिकन अथ यव था मे यवहा रकता म क मत तर घटता-बढ़ता रहता है

73
5. उ पादन के ि थर गु णांक नह होते है:- रािब सन यह मानती है िक उ पादन क एक दी
हई मा ा उ पािदत करने के िलए पूं जी और म के साधन को ि थर अनुपात मे लगाए जाते
है । वाि वकता म उ पादन के ि थर गुणां क नह होते है । बि क समय के साथ पूं जी और
म मे थाप न होता रहता है ।
8.9 मॉडल क अ पिवकिसत देशो यवहायता (It’s Applicability to
underDeveloped Countries)
जॉन रािब सन का यह मॉडल िवकासशील देशो म जनसं या क सम या और इसका पूं जी
सं चय क दर पर भाव से स बि धत है । एक वण युग होता है िजसे कोई भी देश योजनाब
आिथक िवकास से ा कर सकता है । अ पिवकिसत देशो क मु या सम या है िक पूं जी सं चय
क वृि दर क अप ा जनसं या वृि दर अिधक है > जैसा क रािब सन ने तुत
िकया है िक इसके प रणाम अथ यव था मे अ प-रोजगार क ि थित पैदा करता है रािब सन के
आिथक वृि के िस ा त के िलए ‘‘ स भा य वृि अनुपात’’ बहत मह वपूण है । यह वण युग
वृि अनुपात पर िनभर करता है । यिद योजना अविध के िलए म-शि क वृि दर तथा ित
यि उ पादन के आधार पर वृि अनुपात का िहसाब लगाया जाए, तो योजना आसान हो जाती है
। अ पिवकिसत देशो मे हमेशा पूं जी संचय क दर हमेशा स भा य वृि अनुपात से कम होती है ।
इसिलए िपछड़ी हई होती है और म शि का आिध य होता है । अतः अथ यव था के िलए पूँजी
सं चय क दर को वृि अनुपात के तर तक बढ़ाना योजना ािधकरण के हाथ मे होता है । इसके
िवपरीत ऐसी अथ यव था मे िनजी ही नह बि क सावजिनक िनवेश के भी िनयं ण तथा िनयमन
का काय करना योजना ािधकारण के हाथ मे होता है ।
8.10 सं दभ ं थ
1. R.K. Lekhi – The Economic of Development and Planning
2. V.B. Singh – Theories of Economic Development 1971
3. अम य सेन - ोथ इकोनॉिम स
4. एम एल िझं गन - िवकास का अथशा एवं िनयोजन
5. एम.एल. िझगन- िवकास का अथ यव था एवं आयोजन
6. के नेथ के कु रहारा - द के ि सयन योरी आफ इकोनोिमक डेवलपमे ट।
7. जोन रोिब सन - द ए युमुलेशन आफ के िपटल
8. डा. टी आर शमा एवं डा० जे सी वा णय - िवकास का अथशा एवं िनयोजन
9. डा० सुरेश च शमा एवं र तोगी - आिथक िवकास के िस ा त एवं िनयोजन
10. डॉ. मृगेय पा डे- आिथक वृि एवं िवकास िस ा त नीित एवं सम याएँ
11. डॉ.वी.सी. िस हा- आिथक संविृ एवं िवकास
74
8.11 कु छ िनब धा मक
1. ीमती रािब सन के आिथक वृि के िस ा त क आलोचना मक या या क िजए। यह
कहां तक अ िवकिसत देशो मे लागु होता है ?
8.12 श दावली
1. पूं जी-सं चय - उ पादन म पूं जी मह वपूण कारक है । पूं जी से ता पय उन व तुओ ं से होता है
जो उपभोग न करते हए और अिधक उ पादन के िलये यु क जाती है, जैसे मशीन,
औजार, उपकरण, कारखान के भवन आिद । इनके टॉक म वृि ही पूं जी-सं चय है ।
2. वतं अथ यव था - ऐसी अथ यव था िजसम आिथक िनणय लेने क यि गत
वतं ता होती है, उस पर शासक य ितबं ध नह होते । ऐसी अथ यव था बाजार-तं पर
चलती है ।
3. ब द अथ यव था - िजसम िवदेशी यापार अथात् आयात िनयात नह होता तथा िवदेशी
सहायता अथवा िवदेशी पूं जी नह आती ।
4. म-उ पादकता - ित िमक उ पादन क मा ा ।
5. मौि क मजदू री - जो िमक को मु ा के प म ा होती है ।
6. वा तिवक मजदू री - जो िमक को अपनी मौि क मजदूरी को यय करने पर लाभ और
सेवाओं के प म ा होती है । अतएव यह मू य- तर पर िनभर करती है ।
7. पूं जी- म अनु पात - ित इकाई पूं जी रोजगार म लगे िमक क सं या ।
8. म-शि - रोजगार यो य यि य क सं या । जो जनसं या पर िनभर करती है ।
9. तट थ तकनीक गित - जब ित इकाई िमक अथवा ित इकाई पूं जी क उ पादकता
म वृि होती है तब उसे तकनीक गित माना जाता है । तकनीक गित ऐसी भी ही
सकती है उ पादकता म वृि होते हए भी पूं जी और िमक का आपसी अनुपात ि थर बना
रहे, तब वह तट थ तकनीक गित कही जाती है ।

75
इकाइ -9
अ तजात संवृ ि िस ा त
(Endogenous Growth Theories)
इकाई क परेखा
9.0 उेय
9.1 तावना
9.2 A.K. मॉडल
9.3 AK मॉडल के िन कष
9.4 मु य िवशेषताएं -
9.5 वृि का मु य साधन -
9.6 रोमन अ तजात वृि मॉडल (Romer Endogenous growth Model)
9.7 सारां श
9.8 स दभ ग थ
9.9
9.0 उ े य
इस इकाई के प ात आप िन न जन सके गे –
 A.K. मॉडल
 AK मॉडल के िन कष
 A.K. मॉडल क मु य िवशेषताएं
 वृि का मु य साधन
 रोमन अ तजात वृि मॉडल
9.1 तावना
अ तजात सं विृ मॉडल यह दशाते है िक आिथक सं विृ अ तजात चर के कारण होती है,
न िक बिहजात चर के कारण। इन मॉडल म यह माना गया है िक मानवीय पूं जी नवाचार तथा ान म
76
िनवेश, आिथक सं विृ म साथक योगदान देता है । इन मॉडल म इस बात पर भी यान िदया जाता
है िक ान क धना मक ब ता होती है तथा उसका छलकाव भाव, आिथक सं विृ को बढ़ावा
देता है । इन मॉडल म माना गया है िक दीघकाल म सं विृ क दर, उन सरकारी नीितय पर िनभर
करती है िजनम अनुसं धान व शोध तथा िश ा पर अनुदान िदया जाता है । अ तजात सं विृ मॉडल
सव थम योगदान कै नेन ऐरो (1962) तथा हीरोफू मी उजावा (1965) लुकास (1980) ने तकनीक
िवकास क अपे ा मानवीय पूं जी पर िनवेश का ओर यान आकिषत िकया िजसम पैमाने के
समान ितफल कट नह होते है ।
9.2 A.K. मॉडल
A.K. मॉडल अ तजात सं विृ का सरलतम मॉडल है । इस मॉडल म माना गया है िक बचत क दर
ि थर है तथा बिहजात चर के प म दी हइ है । इस मॉडल म यु उ पादन पैमाने के ासमान
ितकू ल न लागू होने के अनेक कारण िदये जाते है ।
िजनम मुख है -
1- छलकाव भाव
2- तकनीक िवकास से ओर भी तकनीक िवकास होता है तथा कु शलता म ओर वृि होती
है । जैसे काम करते करते सीखना।
इस मॉडल मे यह माना जाता है िक पूं जी का ितफल ासमान न होकर उ पादन फलन म पूं जी
ि थर है । कइ अथशा ी तो यह मानते है िक ान तथा वै ािनक शोध व नवाचार पैमाने के व मान
ितफल को दशाते है -
Y = AK ----------------- (1)
K = पूं जी टॉक
A = ित इकाइ पूं जी का उ पादन म योगदान जो बिहजात ि थरां क है ।
समीकरण (1) म िदया गया िक उ पादन फलन पैमाने के ि थर ितफल और पूं जी पर ि थर
ितफल दोन को दशाता है । याद होगा िक सोल ने अपने मॉडल म पूं जी पर ासमान ितफल क
क पना करता था। पूं जी पर ासमान ितफल न होना ही A.K. मॉडल और साल मॉडल के म य
मुख अ तर है । माना बचत क ि थर दर  है जो बिहजात चर के प म दी गइ है अत: पूं जी
सं चय का समीकरण इस कार होगा
 K  Y  K
यहां K पूं जी म प रवतन है िजसका मान िनवेश Y तथा िघसावट K के अ तर के अ तर के
बराबर है । बचत  Y है अत: िविनयोग भी  Y होगा
K = िघसावट Depreciation के िलए ि थर भाग ( ) िघसावट पूं जी (K) के प म होती है ।

77
अत:
 K  Y  K
समी के दोन तरफ K से िवभ करने पर
OK Y K
  [ Y  AK ]
K K K
K AY
 
K K
K
 A  
K
इसी कार
Y  AK
Y  A K

समी. के दोन तरफ Y से िवभ करने पर


OY AOK

Y Y
K AOK

Y AK
Y OK
          eq ( 4)
Y AK
K
[  A   ]  in eq  eq(4) (iii ) we put
Y
Y K
अत:   A  
Y K
यह समीकरण दशाता है िक आय म वृि क दर धना मक होगी यिद A  है, चाहे बिहजात
तकनीक म वृि न हो। अत: उ पादन फलन म थोड़ा सा प रवतन करने पर आिथक सं विृ क
भिव यववाणी म बहत प रवतन आ जाता है । जहां पर परागत मॉडल म वृि होने से थोड़े से समय
के िलए िवकास क दर बढ़ती है तथा कु छ समय प ात अथ यव था सुदीघ सं विृ क दर पर लौट
आती है । वह अ तजात सं विृ मॉडल म बचत तथा िविनयोग सतत् वृि को सुिनि त कर सकते
है ।
AK मॉडल के मु य प रणाम को सार प म इस कार बताया जा सकता है -
1- यह मॉडल( A  ) ारा िनधा रत एक दर पर उ पादन म वृि को वीकार करता है ।
2- उ पादन क वृि पर उ च बचत,  ; तक पूं जी A के उ च तर पर उ पादन क वृि पर
सकारा मक भाव पड़ता है ।
78
9.3 AK मॉडल के िन कष
AK मॉडल को एक पूण मॉडल नह मान सकते है । य िक सारे प रणाम पूं जी ि थर
ितफल क मा यता पर आधा रत है । यह इसे भी प िकए िबना छोड़ देता है िक यहां पूं जी पर
ासमान ितफल य नह ा होते है । यह बताने म असफल रहा था।
पर तु हम यह वीकार करना चािहए िक AK मॉडल अ तजात सं वि के िकसी भी मॉडल
के वां छनीय मह वपूण अंग को दशाता है अथात् कारक िजनका सं चयन िकया जा सके , िक ि थर
पैमाने के ितफल होने चािहए।
Selected Books
Tritwal, A.P. “Economics of development
Todaro, Michall and Stephen Smith ‘Economic development 10th edition
The Lucas Model: A Human Capital Approach
बोधग य
1. AK मॉडल क या या क िजए।
लु कास माँडल
ो. उजावा ारा िवकिसत अ तजात वृि मॉडल जो िक मानव पूं जी म िनवेश पर
आधा रत है िजसको आधार बनाते हए लुकास ने अ तजात वृि का मॉडल िवकिसत िकया था।
लुकास का मानना था िक िश ा म िनवेश करने से मानव पूजं ी वृि म सहायक होगा जो िक वृि
ि या का मह वपूण कारक है ।
लुकास आ त रक भाव और बा तम भाव म अ तर करता है ।
 आ त रक भाव - अथ है िक यि गत शािमक िश ण ा करता है और अिधक
उ पादककारी बनता है ।
 बा भाव - जो िक छलकाव है िजससे अथ यव था म पूजं ी और अ य िमक क
उ पादकता म वृि होती है ।
लुकास भौितक पूं जी क बजाय मानव पूं जी म िनवेश पर जोर देते है िजससे तकनीक तर म वृि
लाता है छलकाव भाव कहलाता है ।

79
9.4 मु य िवशेषताएं -
 लुकास के अनुसार यि अपने समय को दो भाग म िवभ करता है 1 काय, 2 िश ण
िजनके सं बं धहोगा। जब यि िश ण ले रहा होगा तब वह काय का याग करेगा ।
िजससे भिव य म उसक काय मता बढ़ेगी और साथ ही का मजदूरी भी बढ़ेगी।
 लुकास मानव पूं जी को प रभािषत करते है मानव पूं जी जो िक कु शलता है जो िमक म
सि निहत है ।
 सभी के पास मानव पूं जी मता का h थर है ।
 अथ यव था म िमक क सं या N जो िक ि थर है ।
 मानव पूं जी को उ पादन क उ पादकता म योग कर सकते है ।
 नयी पूं जी का सं चयन ( )

 मानव पूं जी ि थर से वृि करती है (1 )


dh / dt  h(1   )
उ पादन फलन िदया हआ है

y  AK  ( hN )1 ha r
जहां O    1 और   0
लुकास के अनुसार तकनीक A ि थर है ।
औसत मानव पूं जी तर
मानव पूं जी का औसत तर का बा तम भाव जो दूसरी फम का भािवतकर सकता है ।
उदाहरण - उ च मानव पूं जी तर िमक को अ छी वातालाप को बढ़ाता है ।
9.5 वृ ि का मु य साधन -
जैसे h म वृि होगी पर िजसका भाव िमक IV के आगत के तर पर होगा िजससे
उ पादन (y) म वृि होगी और साथ ही पूं जी क सीमा त उ पादकता (K) म वृि होगी। लुकास के
मॉडल म येक फम पैमाने के ि थर ितफल और स पूण अथ यव था पैमाने वृि ितफल का
सामाना होता है । जो िक करके िसखना Learning by doing िश ण और छलकाव भाव के
कारण मानव पूं जी आिद के सि मिलत के कारण होता है । येक फम अथ यव था म मानव पूं जी
के औसत तर के कारण लाभदायक है बजाय स पूण तर के । यह दूसरी फम का सं चय ान और

80
अनुभव नह जबिक यह औसत कौशल और ान है । लुकास के मॉडल म तकनीक अ तजात चर
है । जोिक फम के िनवेश को भािवतकरती है ।
प रणाम व प फम क मत लेने (Price taker) वाले क तरह काय करती है और फम का
सा य तर पूण ितयोिगता के अ तगत ा होता है ।
9.6 रोमर अ तजात वृ ि मॉडल (Romer Endogenous growth
Model)
अ तजात वृि मॉडल तथा यू - लासीकल िस ा त म आधारभूत समानता होते हए भी इनक
मा यताओं और िन कष के आधार पर िभ ता पाइ जाती है । यू- लासीकल मॉडल पूं जी के घटते
ितफल क मा यताओं पर आधा रत है िजसे अ तजात वृि मॉडल िकनारा करता है । अ तजात
वृि मॉडल उ पादन के बढ़ते ितफल क या या करता है और देश म दीघकालीन िभ न
प ितय म चचा करता है । हम यहां अ तजात वृि िस ा त म रोमर के अ तजात वृि िस ा त
क चचा करेगे। यह मॉडल तकनीक सम या पर जोर देता है । जो औ ोिगक करण के िलए
उपयोगी है जो िवकासशील देश के िलए िवशेष मह व रखता है । रोमर का मॉडल बचत िनधा रत
और साधारण सं तलु न क या या नह करता है । वृि ि या फम या उ ोग से होती है । रोमर
मॉडल इस मा यता से आरं भ होती है । येक उ ोग यि गत इकाइ के प से ि थर ितफल के
आधार पर उ पादन करते है । रोमर मॉडल सोलो मॉडल से इस मा यता से अलग होता है िक
अथ यव था म िवशाल पूं जी भ डार (K), उ ोग तर पर उ पादन को सकारा मक प से भािवत
करता है ।
िजससे अथ यव था म पैमाने के बढ़ते ितफल (increasing return scale) लागू होता है ।
कु ल उ पादन फलन
y  A.K    L1
y = कु ल उ पादन, K = पूं जी, L = म
αतथा β मश: म और पूं जी क उ पादकता क सं भावना को दशाते है । A क ि थर माना
गया है । अथ यव था मे ित यि आय वृि दर िन न कार ा होगी
g = उ पादन मे वृि दर
n = जनसं या म वृि दर को दश ते है ।
रोमर मॉडल बढ़ते ितफल के पैमाने क मा यता पर आधा रत है । इसिलए   0 जो पैमाने के
बढ़ते ितफल को दशाता है ।
(g-n) > 0 ित यि आय क सकारा मकता को दशाता है ।

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y/L उ पादन - म अनुपात लगातार बढ़ता रहता है ।
रोमर सोलो के मॉडल से ली गइ मा यता जो पैमाने के ि थर ितफल पर आधा रत है । िजससे
िबलकु ल सहमत नह है जो (  0) है । रोमर का मॉडल बचत तथा िनवेश तर पर िनभर
करता है, बाहरी त व पर नह । इस मॉडल का रोचक िन कष यह है िक िनवेश पर िनभर करते हए
भी यह मॉडल पूं जी के घटते ितफल से दूर है ।
9.7 सारां श
रोमर मॉडल िवकासशील देश को यह िश ा देता है िक वे भौितक पूं जी क तुलना म
मानवीय पूं जी पर अिधक ाथिमकता द। ये िवकासशील देश िवचार के आदान- दान से लाभ उठा
सकते है । िजससे अपना िवकास कर सके जब उनक अथ यव था वैि क अथ यव था का अंग
बन जाती है ।
9.8 स दभ ग थ
 Romer P.M. “Increasing return and long run growth’’ Journal of
Political economy, oct 1986
 Thirlwall, A.P. Economics of development
 Todaro, Michall and Stephen smith ‘Economic development’ 10th
edition 2009
9.9 बोध
1. रोमर के अ तजात मॉडल क या या क िजए।
2. लुकास के मानव पूं जी ि कोण के अ तजात मॉडल क या या क िजए।

82
इकाई - 10
हैरड- डोमर के मॉडल
Harrod Domar model
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 हैरोड-डोमर मॉडल क मा यताएं
10.3 हैरोड का मॉडल
10.4 डोमर मॉडल
10.5 हैरोड-डोमर मॉडल म असमानताएँ
10.6 हैराड-डोमर मॉडल क सीमाएँ
10.7 सारां श
10.8 सं दभ ं थ
10.9 िनबं धा मक
10.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप िन न िब दुओं के बारे म जान सकगे
 हैरोड-डोमर मॉडल क मा यताएं के बारे म जान सकगे
 हैरोड का मॉडल के बारे म जान सकगे
 डोमर मॉडल के बारे म जान सकगे
 हैरोड-डोमर मॉडल म असमानताएँ व हैराड-डोमर मॉडल क सीमाएँ
10.1 तावना (Introduction)
िति त िव ेषण इस सं क पना पर आधा रत था िक आिथक णाली पूण रोजगार पर सं तलु न ा
करती है । जे ने यह प िकया िक पूण रोजगार सं चािलत प से ा नह िकया जा सकता है ।
जे का िव ेषण मु यत: अ पकािलक िवश्◌ेलषण था। जेोपरा त अथशाि य ने सतत्
िवकास िक दशाओं का अ ययन िकया और क स के िवचार को ावेिगक व प दान िकया।

83
उ ह ने यह भी प िकया िक ऐसी दशाएं कौनसी होगी िजसम सतत् वृि क ि थितयॉ मु ा
सा रक अथवा मु ा िव फोिटक दशाओं से मािणत हए िबना ा क जा सकती है ।
जोपरा त िव ेषण आय वृि क स भावनाओं का अ ययन एक ऐसी दर पर करने का भाव
था िजससे जड़ता या दीघकालीन मु ा कर सार को रोका जाना सं भव बने।क स के उ पादन
रोजगार िस ां त को दीघकालीन व प दान करने का िजन अथशाि य ने यास िकया उनम ो.
आर. एफ. हैरोड और ो. इ.डी. डोमर का योगदान सबसे अिधक और मह वपूण है ।
हेरोड-डोमर : सतत् या अिवरत वृ ि (Harrod –Domar Model Steady Growth)
ो. हैरोड-डोमर ने आिथक िवकास का मॉडल िवकिसत देश के िलए तुत िकये ह। उ ह ने कहा
ि थर िवकास क या आव यकता है? इस कार दोन िवकास मॉडल म समानता है । हैरोड -डोमर
ने यह भी प िकया क अथ यव था म िक र ा बने रहने के िलए िकस दर से िवकास हो और
िवकास क दर कै से बढ़ायी जाये? हैरोड-डोमर िव ेषण जो सतत् वृि के अनुर ण को आधारभूत
मानता था। हैरोड-डोमर ने ऐसी दर को िनधा रत करने का यास िकया है िजससे रा ीय उ पादन म
सतत् व बाधा रिहत वृि क दशाएं उ प न हो सके । साथ ही दीघकाल तक पूण रोजगार तर को
बनाए रखा जाना स भव हो सके अथात् स तुिलत वृि ा हो सके । सतत् वृि क धारणा को
मानकर हैरोड-डोमर ने वृि का िस ा त तुत िकया। आिथक वृि क सम या का िव ेषण
करते हए हैरोड-डोमर ने अपने मॉडल से पूँजी सं चय से मह वूपण थान िदया है । िति त
अथशाि य ने पूँजी सं चय के ित प पर यान के ि त िकया था माँग प क सम या को
अनिभ रखा गया था। पर तु क स ने 1930 क महामंदी क िवकराल सम या को दूर करने के
िलए माँग प को अपनी या या का आधार बनाया तथा पूित सम या पर िवचार नह िकया।
हैरोड-डोमर ने अपने मॉडल म माँग एवं पूित दोन प को यान म रखा। उ ह ने पूँजी सं चय के
दोहरे भाव क मह ा को रेखां िकत िकया।
हैरोड-डोमर ने अपने मॉडल म िविनयोग को मह वपूण भूिमका माना है । एक ओर
िविनयोग से आय का सृजन होता है िजसे िविनयोग का माँग भाव कहा जाता है । दूसरी ओर
िविनयोग अथ यव था म उ पादन मता को बढ़ाता है िजसे िविनयोग का पूित प कहा जाता है ।
जब तक शु िविनयोग िकया जाता रहेगा वा तिवक आय एवं उ पादन म वृि होती रहेगी।
अथ यव था म पूण रोजगार सं तलु न तर को बनाए रखने के िलए शु आय एवं उ पादन एक
समान दर पर बढ़ते ह िजसके प रणाम व प पूँजी टॉक क उ पादन म िव तार होता है । यिद माँग
और पूित म कोइ अस तुलन होता है तो इससे, अित र मता (Excess Capacity) उ प न होती
है तथा उ मी अपने िविनयोग यय को सीिमत करने के िलए बा य होता है । अत: आने वाले समय
म अथ यव था म आय रोजगार तर म कमी आती है तथा अथ यव था सतत् वृि के पथ से हटने
लगती है । अत: अथ यव था यिद दीघकाल म पूण रोजगार क दशा को बनाये रखना है तब शु
िविनयोग को िनयिमत प बढ़ाना आव यक है ।

84
हैरोड-डोमर ने आय वृि क इस आव यक दर को पूण मता दर (Full Capacity Growth
Rate) अथवा अिभ वृि दर (Warranted Capacity Growth Rate) कह कर सं बोधन िकया
है ।
10.2 हैरोड-डोमर मॉडल क मा यताएं (Assumptions of Harrod
–Domar Model) -
1- अथ यव था आय के पूण रोजगार क अव था म है ।
2- सरकारी ह त ेप का अभाव होता है ।
3- बं द अथ यव था म काय करता है िजससे िवदेशी यापार नह होता है ।
4- िनवेश तथा उ पादन मता िनमाण के बीच समायोजन होने म देर नह लगती।
5- औसत बचत वृित, सीमा त बचत वृित के बराबर होती है ASP=MPS
6- सीमा त बचत वृित ि थर रहती है ।
7- सामा य क मत तर ि थर रहता है अथात् मौि क तथा वा तिवक आय समान रहती है ।
8- अथ यव था म उ पादन ि या म पूँजी तथा म का अनुपात ि थर रहता है ।
9- पूँजी गुणां क अथात् पूँजी टॉक का आय से अनुपात ि थर मान िलया जाता है ।
10- याज क दर म प रवतन नह होता है ।
11- पूँजी व तुओ ं का मू य ास नह होता है य िक उ ह अ त:जीवी मान िलया जाता है ।
12- बचत तथा िनवेश उसी वष क आय से सं बं धरखते ह।
13- पूँजी म ि थर तथा चल दोन कार क पूँजी सि मिलत है ।
10.3 हैरोड का मॉडल (The Harrod Model)
हैरोड ने अपने िवकास मॉडल का तुितकरण अपने शोध लेख ‘An Essay in
Dynamic Theory’ के मा यम से िकया िजसको 1939 म अपनी पु तक Toward Dynamic
Economics’ म सि मिलत कर िलया था। अथ यव था क सतत् वृि से सं बं िधत ावैिगक
िव ेषण तुत िकया। हैरोड का मॉडल सं विृ का मॉडल माना जाता है िवकास का नह । हैरोड
हम बताता है िक पूण रोजगार क ि थित को बनाये रखने के िलए िकस दर से िवकास िकया जाये।
हैरोड ने अपने मॉडल म यह िदखाने का य त िकया िक िकस कार अथ यव था म सतत् वृि
पाइ जा सकती है । जब एक बार सतत् वृि दर म बाधा पड़ जाती है और अथ यव था अस तुलन
म हो जाती है । यह सं चयी ि या इस िवचलन को बनाये रखने म लगी रहती है िजससे दीघकाल म
अ फ ित या फ ित क ि थित उ प न हो सकती है ।
हैरोड ने आिथक सं विृ क तीन िभ न िभ न दर का योग िकया है -
1. अिभ वृि दर (warranted rate of growth )
2. वा तिवक वृि दर (Actual growth rate)
85
3. ाकृ ितक वृि दर (Natural growth rate)
इन तीन दर म स ब ध के आधार पर यह िनधा रत करना स भव है िक अथ यव था सतत्
वृि क अव था कै से ा कर सकती है ।
1. अिभ वृ ि दर (Warranted Rate of Growth) -
हैरोड ने वृि क आव यक/अिभ दर को Gw ारा य िकया है । यह अथ यव था के माप क
पूण मता वृि दर है । य िक यह पूँजी के बढ़ते टॉक का उपयोग करती है । हैरोड के अनुसार
अिभ िवकास क अिभ दर Gwवह वृि दर है िजसे ा कर िलया जाये तो यवसायी ऐसी
मानिसक अव था म आ जाते ह िक वह उसी कार क गित को बढ़ाने के िलए त पर रहते ह।
इसका अिभ ाय है िक अगर उ पादन मता का पूरा पूरा उपयोग करना हो तो आय S/Cr क
वािषक दर से बढ़नी चािहए अथात् आय सीमा त
बचत वृि
वृि क दर =
पूं जी उ पादन अनुपात
के बराबर होनी चािहए। सतत् गित के िलए सं तलु न क ि थित म आय वृि िवकास वां छनीय दर
के अनुसार होती है । अथ यव था के पूं जी टाक का पूण शोषण िकया जाएगा और अथ यव था
सतत् गित के माग पर होगी। उ मी इतना िविनयोग करने के इ छु क ह गे िजतना िक कु ल स भावी
आय म से बचाया जाता है । यह िवकास क दर िनर तर बनी रहेगी।
हेरोड िवकास पथ िच म िदखाया गया है ।
रेखािच 10.1

अथ यव था का िवकास पथ
िच 10.1 म X अ पर आय तथा Y अ पर बचत एवं िनवेश से िदखाया गया है । इस िच म
एक दूसरे समया ततल के बीच हई उ पादन वृि को Y1,Y2,Y3 आिद के ारा य िकया गया है ।
इस उ पादन वृि से दूसरी अविध म े रत िनवेश को J1 ारा दिशत िकया गया है । इसका ढाल
86
वरक के मू य पर िनभर करेगा । इस कार उ पादन Y1 से बढ़कर Y2, होने पर दूसरी अविध म I2
Y2 के बराबर िनवेश े रत होग । यह अविध 2 म उपल ध बचत S1Y1 के बराबर है । यह िनवेश
आय को अगली अविध म आगे बैठा देता है । इससे अगली अविध म और अिधक िविनयोग होते
है, और आय वृि क दर लगातार येक अगली अविध म बनी रहती है । इस कार अथ यव था
सं तलु न पथ पर लगातार आगे बढ़ती जाती है । हेरोड आय वृि क इस दर को िवकास क
वां छनीय दर के नाम से पुकारता है ।
रोजगार सं तलु न वृि के िलए वा तिवक िवकास दर G और िवकास क वां छनीय दर Gw
अव य बराबर होनी चािहए। इसी कार वा तिवक पूं जीगत पदाथ C इि छत पूं जी पदाथ G के
बराबर अव य होने चािहए तभी सतत् वृि संभव है । यिद G एवं Gw बराबर नह है तो
अथ यव था असं तलु न म रहेगी ।
2. वा तिवक वृ ि दर (Actual Growth Rate)-
हैरोड ने G ारा य िकया है िक वा तिवक वृि दर G बचत क दर एवं पूँजी उ पादन दर ारा
िनधा रत होती है । यह दर अ पकालीन च य प रवतन को य करती है ।
3. ाकृ ितक वृ ि दर (Natural Growth Rate)-
हैरोड ने वृि क ाकृ ितक दर को Gn ारा य िकया है । यह उ पादन क ऐसी वृित को
बतलाती है िजसम पूण रोजगार िव मान होता है तथा मु ा सार नह होता है । यह वृि क वह दर
है जो जनसं या वृि व तकनीक सुधार से ा क जाती है । इस वृि क स भा य दर भी कहते
ह। िजसे हैरोड ने अपने शोध लेख Second Essay in Dynamic Economics (June 1960) म
अनुकूलतम क याण क सं ा दी।
हैरोड क िवकास दर -
हैरोड ने अपने मॉडल म तीन िवकास दर के िवचार को िवकिसत िकया है और इनक सहायता से
वह यह बताते है िक कोइ अथ यव था -
1 वा तिवक वृ ि दर - यह वृि क वह दर है िजस पर देश िवकास कर रहा है इसको हैरोड ने
िन न समीकरण ारा य िकया है
Gc =s समय दी हइ अविध म उ पाद G क वृि दर है । इसे िनि त समय के अ तगत कु ल आय
क बढ़ी हइ आय के अनुपात के प म प रभािषत िकया जाता है
∆ आय म वृि
G= =
आय
C = पूँजी म शु वृि । इसे िविनयोग I से आय म होने वाली वृि oy के अनुपात ारा दिशत
िकया गया है ।
िविनयोग
C= =
∆ आय म वृि
87
s= बचत क औसत वृित जहां बचत को आय के अनुपात S/Y म िन िपत िकया गया है ।
बचत
s= =
आय
समीकरण 1 म G,C,S का मान ित थािपत करने पर

= =

= या I = S िलख सकते ह।
वा तिवक बचत = वा तिवक िनवेश
यह प करता है िक वा तिवक बचते वा तिवक िविनयोग के बराबर होती है । हैरोड के अनुसार
बचत आय के तर पर िनभर करती है तथा िविनयोग आय के वृि क दर पर िनभर करता है । प
है िक हैरोड वरण िस ा त का िववेचन करते ह िजसके अनुसार उ पादन म होने वाली वृि पूँजी
टॉक म वृि लाती है । िजसके ारा व तुओ ं का उ पादन िकया जाता है । इससे अिभ ाय है िक
उ मी जो अपनी आय का एक अंश का िविनयोग कर रहे ह इस बात से भािवत होते ह िक पूव
अविध म उ पादन वृि क दर या रही है । उ मी स भव तब स तु होगा जब बढ़ते हए िविनयोग
से मश: उसक आय म वृि होती रहे। वा तिवक दर यह बतलाती है िक एक दी हइ अविध म
या हआ है । यह इस सं बं ध म कु छ नह प करती िक इसके ारा िवकास क वह दर जो वा तव
म ा क जा चुक अथ यव था के सतत् िवकास का आधार तुत करने क ि से सं तोषजनक
है अथवा नह ।
अिभ वृ ि दर - अिभ वृि दर िनर तर िवकास को उ प न करने वाली है । यह वृि दर िवकास
क आव यकताओं पर यान देती है । उ मकता को सं तु करती है । यिद यह दर िकसी
अथ यव था क आय क पूण मता वृि होती है पर तु इस वृि दर के ा होने पर भी समाज म
थोड़ी बहत अनैि छक बेरोजगारी बनी रहती है । क ि जयन िव ेषण म आय व रोजगार को तब
स तुलन म कहा जाता है िनयोिजत बचत, िनयोिजत िविनमाण का प ले लेती है । हैरोड के
अनुसार इस कार का िविनयोग ाकृ ितक प से स भव नह होता है िविनयोग को े रत करने के
िलए आव यक है िक आय म वृि हो। इसे य करने के िलए हैरोड ने सतत् वृि क स तुलन
दशा को िन न कार य िकया है । अिभ वृि दर दो साधन पूँजी उ पादन और आय बचत
अनुपात के प म य क जा सकती है जो िन न है -
GwCr=s
Gw = अिभ वृि दर। इसे वृि क पूण मता दर कहा गया है ।
Cr= पूँजी जो अिभ वृि दर को बनाये रखने के िलए आव यक है यह I/∆Y का मू य है
s=बचत आय अनुपात

88
अथ यव था म ि थर वृि दर ा करने के िलए आव यक है जो G = Gw and C = Cr को
य करता है ।
वा तिवक वृि दर अिभ वृि दर के बराबर होनी चािहए। जब बचत गुणां क S िदया हआ हो तब
पूँजी उ पादन अनुपात G को ा करने के िलए आव यक रखने के िलए आव यक पूं जी उ पादन
अनुपात। यह य करता है वा तिवक िविनयोग बराबर होना चािहए। अपेि त िविनयोग के यिद
अथ यव था ि थर वृि दर ा कर रही है ।
Since GwCr =s
Gw = s/cr
सीमां त बचत वृित
Gw =
पू ँजीउ पाद अनु पात
अिभ वृि दर पूँजी उ पादान अनुपात (Cr)और बचत के भागफलन के बराबर होती है ।
ो. हैरोड के िन कष
1. पूण रोजगार स तुिलत िवकास के िलए िवकास वा तिवक वृि दर G एवं अिभ वृि दर
Gw के बराबर होना चािहए।
2. इसी कार पूँजी क वृि दर (C) एवं पूँजी क आव यक वृि या पूँजी उ पादन अनुपात
(Cr) भी बराबर होना चािहए।
G = Gw
C = Cr
हैरोड िवकास माग - हैरोड के िवकास माग को िन न रेखािच ारा य िकया जा सकता है -
1- ox अ पर आय तथा oy अ पर बचत एवं िविनयोग को दशाया गया है ।
2- िकतना िविनयोग िकया गया है, यह वरण के मू य पर िनभर करता है इसे रेखािच म Cr
रेखा ारा य िकया गया है ।
3- समां तर रेखाएं Y1,Cr1,Y2,Cr2 व Y3Cr3 ि थर पूँजी उ पादन अनुपात को बता रही है ।
आय y1 से y2 प रवतन होने से पेर् रत िविनयोग I2Y2 जो िक S1Y1 बचत के समान है ।
4- इस तर पर उ पादन म वृि दर Y2-Y1/Y1के समान है । िफर िविनयोग आय को बढ़ाकर
Y3 पर ले जाता है, और उ पादन म वृि दर Y3-Y2/Y2 के समान है ।
इसी कार I3िविनयोग क दर आय को बढ़ाकर Y4 के तर पर लाती है । इस कार
अथ यव था एक समान वृि दर से बढ़ती है ।
Y −Y Y −Y Y −Y
= =
Y Y Y

89
दीघकालीन असं तु लन का मू ल प
पूण रोजगार सं तलु न के िलए वा तिवक वृि दर (G) और अिभ वृि दर (Gw) अव य बराबर
होना चािहए। और वा तिवक पूँजी (C) इि छत पूँजी (Cr) के बराबर अव य होना चािहए। तभी
सतत् वृि स भव है पर तु यह उठता है या यह सा य एक ि थर सा य होगा।
यिद G तथा Gw पर पर बराबर नह है तो अथ यव था म दीघकालीन असं तलु न के िन निलिखत
दो प देखे जा सकते ह।
1- जब G>GW तब C<CR
यिद वा तिवक वृि दर (G) अिभ वृि दर (GW) से अिधक है अथात् आय
क वृि दर उ पादन क वृि दर से अिधक होगी। उ पादन क मां ग, पूित से अिधक होगी
िजससे अथ यव था म मु ा फ ित क थित है ।अत: पूँजीगत व तुओ ं क कमी बढ़ती
तथा पूँजीगत क वा तितक मा ाएँ चाही जाने वाली पूँजीगत व तुओ ं क अ प होगी
(C<CR)।िजससे व तुओ ं के उ पादन पर िवपरीत भाव पड़ेगा |
रेखािच 10.2

Time
रेखांिच 10.2 म आय क वृि दर Y- अ तथा समय को X- अ म िदखाया गया है ।
ारि भक आय के पूण रोजगार तर Y0पर वा तिवक वृि दर व अिभ वृि दर िब दू E
तक साथ-साथ। यहाँ समय t3है समय t3के प ात G,GW से अिधक होती जाती है
2- G<GW तब C>CR
इस कार यिद वृि क वा तिवक दर, वृि क अिभ दर (GW) से कम हो
अथात् G<GW तब C का मू य CR से अिधक होगा अथात् C>CR । यह दशा पूँजीगत
व तुओ ं क अिधकता को दिशत करती है । फलत: अनुमािपत िविनयोग वा तिवक
िविनयोग से कम होगा अथात् कु ल मां ग कल पूित से कम होगी। इसके फल व प् उ पादन
रोजगार तथा आय म कमी आयेगी और अथ यव था िदघकालीन मंदी उ प न हो जायेगी।
90
रेखािच 10.3

रेखािच 10.3 म समय t3पर िब दू E के उपरा त GW क तुलना से G कम है । हैरोड का


मत है िक अथ यव था यिद एक बार स तुलन पथ पर (G=GW) है से िवचिलत होती है
तो पुन : स तुलन दर पर नह आ पायेगी बि क सं चयी प से दूर ही हटती जायेगी। इस
कार क सा य क ि थित अ य त ही सीिमत दशा म ही रहेगी। हैरोड का कहना है िक यह
ि थित एक चाकु धार स तुलन क ि थित है िजसका अथ है िक हैरोड मॉडल म स तुलन
क ि थित चाकु क धार पर ही होगी थोड़ा सा िवचलन उसे सं तलु न क ि थित से दूर ले
जायेगी और पुन : ा नह होगी
रेखािच 10.4

रेखािच 10.4 मे Y0E1स तुलन पथ दिशत करता है जबिक G=GW पर तु Y0E1पर


चाकु धार क तरह स तुलन होगा।
3- ाकृ ितक वृ ि दर (Natural Growth Rate):- वृि क
ाकृ ितक दर चर पर िनभर करती है जैसा िक जनसं या, ौ ोिगक , ाकृ ितक साधन
तथा पूं जी उपकरण। इसे वृि पूण रोजगार दर अथवा वृि क सामा य दर कहा जा सकता
है । व तुत : GN उ चतम ा वृि दर है जो अथ यव था म िव मान सं साधन के पूणत:
रोजगार क दशा को य करता है । ाकृ ितक वृि दर को प करते हए हैरोड िलखते है
िक ‘‘िवकास क ाकृ ितक दर उ पादन क वह कृ ित दिशत करती है िजस पर िबना
91
फ ित के पूण रोजगार है । िवकास क यह वह दर है िजसे जनसं या क वृि तथा
तकनीिक सुधार अनुमित देती है ।’’उपरो िववेचन म प है िक, पूँजी तथा मशि
दोन के ही पूण मता तक योग के िलये या पूण रोजगार के िलए आव यक है
G= GW= GN छू री-धार स तुलन
पर तु यिद वृि क ाकृ ितक, वा तिवक तथा अिभ दर म कोइ िवचलन होगा तो
अथ यव था मे दीघकािलन अि थरता अथवा ि फित क प रि थितयॉ उ प न हो जायेगी।
यिद G>GW िनवेश बचत क अपे ा ती ता से बढे़गा और आय म GW क अपे ा
ती ता से वृि होती है ।
और G<GWबचत िनवेश क अपे ा ती ता से बढ़ती है और आय म वृि GW क
अपे ा कम होती है इस कार यिद GW>GN हो तो दीघकालीन िन ियता पैदा हो
जायेगी ऐसी ि थित G से GW अिधक होगा य िक वा तिवक दर G पर उ च सीमा
ाकृ ितक दर (GN) ारा लगाइ जायेगी। िजसे रेखािच ारा प िकया जा सकता है ।
रेखािच 10.5

रेखािच 10.5 से प है िक जब GN से GW अिधक होती है तो C>CR और म


क कमी के कारण पूँजी पदाथ क अिधकता होती है म क कमी उ पादन म वृि क
दर को GW के तर से नीचे रखती है मशीने बैकार हो जाती है अित र मता पाइ जाती
है । इससे िनवेश, उ पादन रोजगार एवं आय और कम हो जाते है इस कार अथ यव था
दीघकालीन मंदी के जाल मे फस जाती है । ऐसे हालात मे बचत अिभशाप है ।
यिद GW<GNहो तो G>GW ऐसी ि थित म दीघकािलन ि थित क ि थित उ प न हो
जाती है जब GN से GW कम हो तो C<CR म क अिधकता और पूँजी पदाथ क
कमी पाइ जाती है लाभ अिधक होते है वा तिवक िनवेश अनुमािनत िनवेश अिधक होता
है । और यापारी वग मे अपने पूँजी भ डार को बढ़ाने क वृित पाइ जाती है । इससे
दीघकािलन ि थित ि फित उ प न हो जायेगी। ऐसी ि थित म बचत एक गुण होता है

92
रेखािच 10.6

हैरोड के वृि मॉडल के नीित सं केत है िक बचत फ ित अ तराल अथ यव था म गुण है और


अव फ ित अ तराल म दोष है इस कार उ नत अथ यव था मे ि थित क मां ग के अनुसार
बचत को घटाया या बढ़ाना पड़ता है ।
10.4 डोमर मॉडल The Domar Model
E.D. डोमर ने Essay in the theory of Economic Growth (1957) म आिथक वृि का
िव ेषण तुत िकया। डोमर का मॉडल का िनमाण मु य औ ोिगक अथ यव था क सम या
और अनुभव पर िकया गया। उ होने अपने मॉडल ने इस बात पर बल िदया क शु िनवेश िनमाण
मता को भािवत करता है । उ होने बलपूवक कहा क िनवेश एक और आय बढ़ता है और दूसरी
और उ पादन मता को। पहले को हम मां ग भाव और दूसरे को पूित भाव है ।
डोमर ने इस को लेकर मॉडल का िनमाण िकया िक उ पादन मता म वृि को
आय म वृि क बराबर करने के िलए िविनयोग िकस दर से बढे़ तािक पूण रोजगार बना रहे। वह
िविनयोग के मा यम से कु ल मां ग और कु ल पूित के बीच स ब ध थािपत करके इस का उ र
देते है ।
Explanation of Domar’s Model
पू ित प :-िविनयोग का उ पादन मता भाव
डोमर पूित प इस कार प िकया मान लीिजए िविनयोग क वािषक दर I नयी पूँजी क वािषक
उ पादन मता औसत प से s है । अत: I डॉलर का िविनयोग िकए जाने पर उ पादन मता मे
वृि Is के बराबर होगी व तुत : कु ल मता वष म मु ा क IS इकाइय के बराबर नह बढ़ती
बि क इससे कम होती है कारण यह है िक उ ोग मे या एक ही उ ोग क िविभ न फम मे उ पादन
मता एक जैसी नह होती है स भव है िक नयी पूँजी का उपभोग पुरानी मशीनो के थान पर िकया
93
जाये। ऐसी ि थित म वािषक मता Is से कम होती है । डॉमर के अनुसार यह वािषक उ पादन
मता वृि I के अनुसार होगी। इसे िस मा भाव भी कहते है । इस कार वािषक मता Is से
बढ़कर I के बराबर ही बढ़ जाती है अथात् Is>I जहाँ  िविनयोग क औसत उ पादकता
∆Y/I को दिशत करता है ।
इस कार डोमर के अनुसार िविनयोग के फल व प उ पादन मता मे वृि को िन न कार िलखा
जा सकता है ।
∆Y=I 1

माँग प :-िविनयोग का आय भाव


मां ग प के अ तगत डोमर ने क स के गुणक िस ा त का योग िकया। यिद िविनयोग म होने
वाली वृि क दर ∆I तथा α बचत क सीमा त वि है । तब आय म होने वाली वृि ∆Y को
ात िकया जा सकता है, वह िनवेश म वृि ∆I क I/ α गुणा होगी |
∆Y=∆I . 2

जहाँ गुणक है ।

स तु लन-Equilibrium:-
यिद अथ यव था पूण रोजगार क ि थित म है तो रा ीय आय उ पादन मता के बराबर होगा। इस
ि थित को बनाये रखने के िलए तथा उ पादन मता दोन को समान गित से बढ़ाना चािहए।
अ य श दो म आय का पूण रोजगार स तुलन बनाये रखने के िलए कु ल मां ग और कु ल पूित को
एक-दूसरे के बराबर होना चािहए।
∆I . = I

I = उ पादन मता म वृि (पूित प )
∆I. =आय म वृि (मां ग प )

समीकरण के दोन प को  से गुणा करने एवं I से भाग देने पर

=  3


= िविनयोग म िनरपे वृि
 = बचत क इ छा अथवा बचत का आय से अनुपात  पूँजी उ पादन अनुपात
94
समीकरण 3 से यह िस होता है िक यिद हम पूँजी रोजगार को बनाये रखना चाहते है तो िविनयोग

के िवकास िनरपे पर बचत क वृित के अनुपात  एवं िविनयोिजत क औसत उ पादकता
या पूँजी उ पादन () के गुणाफल () के बराबर होनी चािहए।
इस कार समीकरण ∆ =∝ पूण रोजगार को बाय क आव यक शत का प उ लेख करता
है इस ‘सुनहरे माग’ से िवचिलत होने पर च य उ चाचय उ प न होगे।
∆ ∆
When >  तो अथ यव था मे तेजी आयेगी, <  तो अथ यव था मे मंदी
का सामना करना पड़ेगा।
मॉडल का रेखािच ारा िन पण
डोमर के मॉडल का रेखािच ारा पि करण
रेखािच 10.7

आय का तर
रेखािच 10.7 मे 0X- अ पर आय का तर और 0Y - अ पर बचत व िविनयोग का दशाया
गया है
(i) रा ीय आय का िनधारण कु ल मां ग और कु ल पूित रेखाओं ारा दशाया गया है ।
(ii) शु म अथ यव था का स तुलन िब दु S1 है जहाँ बचत और िविनयोग दोनो तर बराबर है
और आय का y1 है । अथात् अथ यव था पूण मता से काय कर रही है ।
(iii) जब वािषक िविनयोग क दर I1है जबिक नयी पूँजी का उपयोग पुरानी मशीन के थान पर
िकया जाता है और गुणक भाव के कारण आय का तर बढ़करS1A (= y1y2) हो जाता है
लेिकन वािषक उ पादन मता I से कम रहती है रेखािच से प है 0y2 >0y1यिद
िविनयोग क मा ा को बढ़ाकर I2 कर िदया जाये और आय म वृि S2B (= y2y3) होगी
95
यह ि या िविनयोग गुणक के अनुसार चलती रहेगी जब तक आय म वृि िविनयोग म क
गयी वृि िक गुणक वृि के बराबर नह हो जाती।
हैरोड-डोमर का तु लना मक अ ययन
Comparative study of Harrod Domar Model):-
1- समान मा यताएँ:-हैराड-डोमर के िवकास मॉडल क कु छ मा यताएँ समान है ।
(i) ब द अथ यव था क क पना
(ii) पूण रोजगार क ि थित को अ पकाल मे ही ा िकया जा सकता है ।
(iii) MPS=APS
(iv) सरकारी ह त ेप का आभाव
(v) पूँजी सं चय से देश क उ पादन मता मे वृि होती है ।
2- हैरोड-डोमर के समीकरण के समान िन कष:-
डोमर मॉडल हैरोड मॉडल
∆I GC = s
= ασ
I G=

,C= ,s=
∆ ∆ ∆
जबिक α = ,σ =
∆ ∆Y I S
∆S ∆Y ∵ × =
∵ × Y ∆Y Y
∆Y I I S
∆I ∆S =
= Y Y
I I ∴I=S
∴ ∆I = ∆S
3- हैरोड-डोमर के अ य सामा य िन कष:-
दोन मॉडल म अनेक ऐसी बात समान प म पायी जाती है
(i) हैरोड-डोमर दोन ने आिथक िवकास म पूँजी सं चयन के मह व को वीकार िकया है ।
पूँजी सं चयन के बढ़ने से िविनयोग बढ़ता है । िविनयोग का काय दोहरा होता है ।
िविनयोग एक आय म वृि करता है और दूसरी उ पादन मता को बढ़ाता है
(ii) मू य तर म वृि :- हैरोड-डोमर दोन ने यह बताया िक मू य तर के बढ़ने क ि थित मे
भी उ पादन, उ पादन मता व आय के म य स तुलन आव यक है ।
96
(iii) पूण रोजगार स तुलन:- दोन मॉडल िवकिसत रा के सं दभ मे ितपािदत िकये गये है
यह मॉडल यह बताने क कौिशश करते है िक पूण रोजगार क अव था को ा करके
उसे िकस कार बनाये रखा जाये।
10.5 हैरोड-डोमर मॉडल म असमानताएँ
हैरोड मॉडल
(i) हैरोड सीमां त पूँजी उ पादन तथा वरन का योग करता है । हैरोड यह मानकर चलता है
िक बचत कु ल आय का ि थर अंश मा है
S=sY (0<<1)
(ii) हैरोड ने आय को िवकास ि या म सवािधक मह व िदया है ।
(iii) हैरोड ने तीन िभ न-िभ न वृि दर G, GW एवं GN का योग िकया है
(iv) हैरोड का िवकास मॉडल असं तिु लत तकनीक से सं तिु लत तकनीक क और अ सर होता
है
(v) हैरोड समीकरण मे िविनयोग वृि क आंत रक व बा या या नह क ।
(vi) हैरोड अथ यव था के िवकास म मे यापार च को अिनवाय मानते है ।
डोमर मॉडल
(i) डोमर सीमां त पूं जी-उ पादन तथा गुणक के यु म ∆Yd=∆I का योग करता है

(ii) डोमर ने िविनयोग को िवकास माडल मे मह वपूण थान देकर दोहरी भूिमका बतलायी है
(iii) डोमर ने एक वृि दर का योग िकया। =∝
(iv) डोमर का िवकास मॉडल वृि क सं तिु लत तकनीक पर आधा रत है ।
(v) डोमर ने िविनयोग वृि व आय वृि = को मा यता दी।
(vi) डोमर अथ यव था म यापार च को नह वीकारते है । के वल िविनयोग क औसत
उ पादकता तक उ चावचन सीिमत है ।

97
10.6 हैराड-डोमर मॉडल क सीमाएँ:- Limitation of Harred-Domer
Models
(i) हैरोड-डोमर मॉडल अवा तिवक मा यताओं पर आधा रत है जैसे बचत वृित और
पूँजी उ पादन अनुपात को ि थर मान लेना सही नह है । डोमर ने वयं इस मा यता को
अनाव यक बताया है ।
(ii) या S तथा ि थर नह होतेः − मॉडल मे ∝ या S तथा को ि थर माना
गया है । लेिकन वा तिवकता यह िक ये िदघकाल म प रवितत हो जायेगे और सतत् वृि
क आव यकता को बदल देगे।
(iii) क मत ि थरता:- य दोन मॉडल सामा य क मत तर को ि थर मानते है जबिक
यवहार म क मत समय के साथ बदलती रहती है और िवकास ि या पर मह वपूण
भाव डालती है ।
(iv) याज-दर प रवितत होती है:- दोन मॉडल यह मा यता ली क याज क दर
अप रवितत होती है । लेिकन याज क दर बदलती रहती है िजससे िनवेश िनि त प से
भािवत होते है ।
(v) सरकारी भू िमका क उपे ा:- लेिकन वतमान मे सरकार क भूिमका िदन -िदन बढ़ती
जा रही है ।
(vi) म-पू ँजी का ि थर अनु पात सही नह :- दोन मॉडल मे म एवं पूँजी का ि थर
अनुपात माना है जो िु टपूण है येक े एवं समय म म पूँजी अनुपात बदलता रहता
है ।
10.7 सारां श
ो. कु रहारा िलखते है िक ‘‘इन सीमाओं के बावजुद हैरोड-डोमर मॉडल पूण प से वतं है जो
राजकोषीय तट थता पर आधा रत है और उ नत अथ यव था आरोही-सं तलु न (Progressive
Equilibrium) क ि थितय को कट करने के िलए िनिमत हआ है’’ इनका मह व इस मे िनिहत
है िक ये क स के थैितक अ पकािलन बचत िविनयोग िस ा त को ग या मक और दीघकालीन
बनाने के िलए ेरणदायी यास कट है ।

98
अ िवकिसत देश म हैरोड-डोमर का उपयोग (Application of
Harrod-Domar Model for under developed countries)
व तुत : हैरोड-डोमर मॉडल उ नत अथ यव था क सम याओं से स बि धत रहा व अ िवकिसत
देश के सं दभ म इनक सीिमत उपयोिगता रही है इसका मु य कारण हैरोड-डोमर क वह मा यताएँ
है जा यवहा रक ि से अपया व असं गत बनी।
(i) िभ न प रि थितयां:- अ िवकिसत देश क प रि थितयां िवकिसत देश क तुलना
मे िभ न होती है जैसे जनसं या आकार व वृि औ ोिगक वातावरण पूँजी एवं मु ा
बाजार तथा तकनीक तर आिद।
(ii) सरकार क भू िमका:- अ िवकिसत देश म सरकार क भूिमका को अिनवाय माना
जाता है जबिक यह मॉडल सरकार क भूिमका अनाव यक मानता है ।
(iii) पू ण रोजगार क अनु पि थित:- मॉडल क यह मा यता अ िवकिसत देश मे न तो
पूण रोजगार क ि थित पायी जाती और न अनैि छक बेरोजगारी क सम या है ।
(iv) पू ँजी उ पादन अनु पात क ि थरता:- अ िवकिसत देश म पूँजी-उ पादन अनुपात
का सही अनुमान लगाना स भव नह है । िवकिसत देश के सं दभ म पूँजी उ पादन
अनुपात क ि थरता क सं क पना सांिगक हो सकती है ।
सं थागत प रवतन:- इन मॉडलो म सं थागत घटक को ि थर जान िलया गया है जबिक
अ पिवकिसत देश मे सं थागत प रवतन के िबना आिथक िवकास स भव नह है ।
10.8 श दावली
थैिगक मॉडल - िजसम प रवतनशील घटक के सा य का अ ययन िकया जाता है । ावेिगक
मॉडल - िजसम प रवतनशील घटक के प रवतन पथ का अ ययन िकया जाता है ।
औसत बचत वृि (Average Propensity to save)
सीमा त बचत वृि (Marginal Propensity to save)
पूं जी गुणां क (Capital Coefficient)
यु म (Reciprocal)
वरक (Accelerator)
गुणक (Multiplier)

10.9 सं दभ ं थ
 डॉ. मृगेश पा डे- आिथक वृि एवं िवकास

99
 M.L. िझगल-िवकास का अथ यव था एवं आयोजन
 V.C. िस हा-आिथक से वृि और िवकास
 R.K. Lekhi- The Economics of Development and Planning
 Todaro-smith- Economic Development
 J.K. Mehta-Economic Development: Principle and Problem
 E.Shapiro-e Macro Economics Analysis
िनबं धा मक
1. हैरोड-डोमर क या या एवं मू यां कन िवकासशील अथ यव था के स दभ मे िकिजए ?
2. आय के सतत् िवकास से आपका या अिभ ाय है?
3. हेरोड-डोमर 'मॉडल म ली गई कु छ मुख मा यताएं कौन-कौन सी है?
4. छु रीधार सं तलु न से आपका अिभ ाय है?
5. हैरोड-डोमर िवकास मॉडल क आलोचना मक या या क िजए। भारत जैसे देश को
िवकासशील देश म इसे िकस सीमा तक ि याि वत िकया जा सकता है ।

100
इकाई 11
सोलो मॉडल
The Solow Model
इकाई क परेखा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.3 वृि का स भव व प
11.4 आधारभूत समीकरण का रेखािच ारा िव ेषण
11.5 ि थरता क ि थित
11.6 िन कष
11.7 सोलो मॉडल क हैरोड-डोमर मॉडल से तुलना
11.8 सोलो मॉडल क आलोचनाएँ
11.9 सोलो मॉडल और िवकासशील देश
11.10 सं दभ ं थ
11.11 कु छ िनबं धा मक
11.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप िन न िब दुओं के बारे म जानकारी हािसल कर सकगे
 वृि का स भव व प (Possible Growth pattern)
 आधारभूत समीकरण का रेखािच ारा िव ेषण Graphic Analysis of Basic
Equation
 ि थरता क ि थित (Stable Sustention)

101
 सोलो मॉडल क हैरोड-डोमर मॉडल से तुलना
 सोलो मॉडल क आलोचनाएँ
 सोलो मॉडल और िवकासशील देश
11.1 तावना
डॉ. सोल के वृि मॉडल का मु य ल य उ नत देशो म सतत् आिथक िवकास हेतु
हैरोड—डोमर ारा तुत िव ेषण आर.एम. सोलो ने अपने शोध लेख Contribution to the
theory of Economics Growth .म ि थर पूं जी म अनुपात क मा यताओं को वीकार नह
िकया है । सोलो के अनुसार हैरोड-डोमर मॉडल म िजन चाकु धार वाले सं तलु न क बात कही गयी
वह इस मा यता पर आधा रत है िक उ पादन ि थर अनुपात क दशा म होता है तथा उ पादन म
म तथा पूं जी को ित थािपत करने क कोई समभावना नह होती है । इस कारण हैरोड का मॉडल
सा य क छु रीधार कहा जाता है । उपरो मा यता अवाि तिवकता के दोष से यु है य िक
वा तिवक ि थितय म साधन का ित थापन सं भव है । ो. सोलो का यह मत है िक पूं जी म
अनुपात म प रवतन करने से आिथक िवकास ि या म लोचनाशीलता बढ़ जाती है । अथात्
सं साधन क वतमान ि थित के अनु प उ पादन कम या अिधक पूं जी म अनुपात वाली तकनीक
को अपनाना सं भव हो जाता है । सोलो का मानना है िक ि थर अनुपात वाली मा यता के हटाने से
हेरोड के सतत् िवकास के माग का अ तिनिहत अि थरता को दूर करने के साथ साथ सं तिु लत को
कायम रखा जा सकता है । ो. सोलो के अनुसार Gw और Gn के बीच जो नाजुक सं तलु न है
उ पादन म ि थर अनुपात क मह वपूण मा यता पर िनभर करता है । यिद इस मा यता को हटा िदया
जाये तो Gw और Gn के बीच छु री धार सं तलु न गायब हो जायेगा। ो. सोलो ने Gw और Gn के
बीच असं तलु न का हल उपल ध करवा चुका है ।
सोलो मॉडल क मा यता
1. पैमाने के ि थर ितफल होते है अ य श द म उ पादन फलन थम िड ी का सम प होते
है ।
Y= F (K, L)
Y= output
K = Capital stock
L= Supply of Labour Force
उ पादन फलन नव िति त कृ ित का है । पैमाने के ि थर ितफल पूं जी म के
ित थापन और घटती सीमा त उ पादकता पर िनभर करती है । पैमाने के ि थर ितफल का अथ है

102
िजस अनुपात म आगत म प रवतन उसी अनुपात म उ पादन म प रवतन होगा । अत: हम उ पादन
फलन िन न कार िलख सकते ह ।
2. एक सं िम व तु का उ पादन होता है ।
3. अथ यव था म पूण रोजगार क ि थित है ।
ay= f( , ) एवं a>1
4. पूं जी का मू य हास नह होता िजनके फल व प िनवेश, बचते, और यह पूं जी कोष म होने
वाले प रवतन (K) के बराबर होती है
I= ∆ =
5. उ पादन के दो साधन - म और पूं जी के ारा उ पािदत िकया िज ह उनक सीमां त भौितक
उ पादकता के अनुसार भुगतान िकया जाता है ।
6. पूं जी व म को एक दूसरे से ित थािपत िकया जाता है ।
7. मजदूरी एवं क मते लाचशील मानी जाती है ।
8. तकनीक गित तट थ है ।
9. म शि क वृि दर बिहजात चर ारा िनधारत होती है ।
nt
L = Loe
L= कु ल उपल ध म क पूित
n=ि थर सापे दर िजस पर म बढ़ता है ।
10. पूं जी का उपल ध टॉक पूण उपयोग हो रहा है ।
11.2 सोलो मॉडल
सोलो स पूण अथ यव था म के वल एक संिम व तु का उ पादन मानकर चलते है । सोलो
यह मानकर चलता है िक उ पादन क दर Y ही अथ यव था क वा तिवक आय है । आय का कु छ
मां ग उपभोग कर िलया जाता है और शेष भाग को बचाकर िनवेश कर िदया जाता है । उ पादन का
वह भाग िजसे बचा िलया जाता है उसे s ारा अंिकत िकया जाता है इसिलए sY(t) बचत क दर
होगी। पूं जी टॉक को K(t) ारा दशाया गया। पूं जी टॉक को बढ़ाने क दर पर मूल िनवेश dk/dt
से िदखाया गया है । िनवेश-बचत समीकरण यह है I=S
K = sY ...1
उ पादन के साधन पूँजी (K)व म L को उ पादन फलन म िदखाने से
= (K, L) ...2

103
समीकरण ② को समीकरण ① मे रखने पर हमे ा
= (K1L) ...3
L = कु ल रोजगार तर
समीकरण ③ तकनीक स भावनाओं को य करता है । और पूित प को य कर रही है अभी
हम मां ग प को शािमल नह कर रहे है । L कु ल रोजगार के तर को य िक बिहजिनत प से
जनसं या म वृि होती रहती है अतः म शि एक ि थर सापे दर से बढ़ती जाती है
( ) = Loe ...4
L = उपल ध म क पूित को य कर रहा है
तकनीक उ नित के अभाव म n हैरोड क ाकृ ितक दर होगी। समय (t) म L म क
मा ाओं को रोजगार मे लगाया जायेगा। जबिक समय O से t तक म शि घां तिकय प से बढ़ती
हई पूणतः म क बेलोचदार मां ग है अथात् म-पूित व Y अ के समाना तर होगा। पैमाने के
ि थर ितफल के िदये होने पर यिद पूं जी और म पूित ती ता से बढ़ते है, तब उ पादन और बचत
भी उसी अनुपात है । ऐसी ि थित म सं तिु लत िवकास स भव है ।
= (K,Loe ) ...5
11.3 वृ ि का स भव व प Possible Growth Pattern
यह मालूम करने के िलए िक या सदैव कोई पूं जी सं चय पथ होता है तथा नह तो जो सतत्
अव था क ओर म शि के अनु प हो। इस हेतु ो. सोलो ने एक नयी दर को म पूं जी अनुपात
के प मे िलया है और समय के साथ मे आनुपाितक प रवतन को िन न कार िन िपत
िकया है
= − ....6
समय के साथ r म प रवतन = पूं जी टॉक मे प रवतन - समय के साथ म शि मे आनुपाितक
प रवतन
समीकरण ⑥ से = (L, K) एवं = को समीकरण ⑥ मे ित थािपत करने
( , )
= −
(K, )
अथवा = − .....7
पैमाने का ि थर ितफल है िजसका अथ है यह है िक उ पादन फलन थम िड ी के सम प है
इसिलए एक बार L से गुणा एवं L से िवभािजत करने से समीकरण ⑦का व प बदलने से

104
( , 1)
= −

अथवा = , −

जैसा क ऊपर बताया गया है िक सोलो = मानता है, इसी कार = होगा।
1
= ( , 1) −
= ( , 1) − ...8
समीकरण ⑧ मे = पूं जी म अनुपात क प रवतन दर है ( , 1) = ित िमक पूं जी फलन
के प म ित यि उ पादन तथा उ पादकता को बताता है । = पूं जी म अनुपात के िकसी
भी मू य पर ित िमक िकतना िविनयोग िकया जाये िजससे पूं जी म अनुपात म प रवतन को
ि थर बनाया रखा जा सके ।
11.4 आधारभू त समीकरण का रेखािच ारा िव े षण
यिद समीकरण ⑧ मे = 0 रखने पर ( , ) = होग, तब पूं जी म अनुपात ि थरांक
अथात् पूँजी टॉक मे वृि आव यक प से उसी दर से होगी िजस दर से म शि बढ़ेगी या म
शि का ित िमक उ पादन ि थर रहेगा। यह ि थित स तुिलत िवकास को य करती है । इसका
रेखािच ारा प िकया जा सकता है
रेखािच 11.1

एक रेखा nr जो मूल िब दू से गुजरने वाली। कु ल उ पादकता व जो फलन है ( , 1) तथा


ऊपर क तरफ उ नतोदर है । जो पूं जी क सीमा त उ पादकता को य करता है । और कटाव िब दू
पर e’ पर = ( , 1) है ।
B. अि थरता क ि थितयां-
105
यिद ( , 1) > तो ऐसी ि थित मे पूं जी एवं उ पादन म वृि म शि क अपे ा अिधक
होगी जब तक क पूं जी का ारि भक टॉक r के बराबर नह आ जाता। यिद r1> r* और बचत
क पूित gr1> hr1िनवेश क मां ग से। िब दू g से िब दू e तक पूं जी मे तेजी से वृि होगी।
यिद nr > sf(r1 1) ऐसी ि थित मे िनवेश क मा ा Jr2 > Kr2 बचत क पूित से अिधक य िक r2
> r1 से सं तिु लत िवकास के िलए पूं जी म अनुपात (r2) के मू य को कम करके r1के बराबर रखना
होगा। ि थरता क ि थित (Stable Situation)
ि थरता क ि थित उ पादकता व sf(r,1) क ढाल पर िनभर करती है । जैसा क रेखािच ारा
प है ।
रेखािच 11.2

उ पादकता व sf(r,1) मूल िब दू से िखची गयी रेखा nr को तीन िब दूओं E1, E2, E3पर करता है
। िब दू 0 से E1 तक उ पादकता व क ढाल बता रही है िक पूं जी ने वृि धीमी है िब दू E2 से E3
तक पूं जी मे तेजी से वृि हो रही है । अतः पूं जी म अनुपात r1 या r3 पर सं तिु लत वृि होगी तो
वा तव मे दोन म से िकसी भी ि थित मे म क पूित व पूजं ी टॉक एवं वा तिवक उ पादन क
ाकृ ितक वृि दर (n) पर िव तार करेगी। सोलो मे इसे ऊपर के रेखािच ारा प िकया है म
िवकास क सभी स भावनो को समा नह कर देता। वे दो अ य स भावनाओं पर काश डालते है
िज हे िन न रेखािच ारा प िकया जा सकता है ।
रेखािच 11.3

106
रेखािच मे nr िकरण सं तिु लत िवकास पथ पर दशाता है । जहां अिभ और ाकृ ितक
िवकास दर बराबर है ।
1. थम स भावना- उ पादक य यव थाः- sf(r,1) व जो nr से ऊपर है ।
एक बहत उ पादक य यव था को य करता है । िजसम पूं जी आय म म पूित अपे ा
अिधक शी ता से वृि होती है । इस यव था म जो िनर तर पूण रोजगार है आय और
बचत इतनी बढ़ती है िक पूं जी म अनुपात सीमा रिहत बढ़ती है ।
2. ि तीय स भावना - अनु पादक य यव थाः- व एक अनुपादक य ि थित को
दिशत करता है िजसके अ तगत पूण रोजगार पथ सदैव कम हो रही ित यि आय
क ओर ले जाता है य िक यह नीचे है िफर भी इस यव था म कु ल आय बढ़ती है
य िक शु िविनयोग सदैव धना मक होता है तथा म पूित बढ़ रही है । यह
उ लेखनीय है िक दोन यव थाओं मे िनर तर घटती सीमा त उ पादकता पायी जाती
है ।
11.6 िन कष
ो. सोलो ने अपने मॉडल का िन कष तुत िकया । सोलो मॉडल हैरोड-डोमर का वैकि पक
ा प् है िजसमे नव िति त उ पादन फलन का योग िकया गया है । सोलो के अनुसार ‘‘ जब
परवत समानुपात तथा पैमाने के ि थर ितफल क सामा य नव लािसक प रि थितय के
अ तगत उ पादन होता है तो वृि क ाकृ ितक तथा अिभ दर म कोई साधारण िवरोध स भव
नह है । कोई छु री धार सं तलु न नह भी हो सकता। यव था म शि क वृि क िकसी भी दी हई
दर मे समायोजन कर सकती है और अ ततः ि थर समानुपाितक िव तार क अव था तक पहच
सकती है’’ अथात्
Δ Δ Δ
= =
K L Y
11.7 सोलो मॉडल क हैरोड-डोमर मॉडल से तु लना
1. सोलो मॉडल हैरोड-डोमर मॉडल क एक वैकि पक ा प है िजसमे नव िति त उ पादन
फलन का योग िकया गया है ।
2. सोलो मॉडल म हैरोड-डोमर मॉडल क ि थर अनुपात वाली मा यताओं को छोड़कर शेष
सभी मा यताओं को वीकार िकया है ।
3. हैरोड-डोमर मॉडल दीघकालीन आिथक यव था मे अिधक से अिधक छु री धार सं तलु न
कहा जा सकता है यिद इस स तुलन मे जरा सा भी िवचलन दीघकालीन ि थित और
अवि थित ला देता है । सोलो ने इसके िवपरीत उ पादन मे ि थर अनुपात वाली

107
मा यताओं का प र याग िकया सतत् िवकास का थायी एवं मजबुत पथ खोजने का यास
िकया।
4. सोलो मॉडल म, सं तिु लत िवकास हैरोड मॉडल के अनुसार Gw म पूं जी अनुपात म
आव यक प रवतन क सहायता से म शि क वृि दर Gn के अनु प सदैव
समायोजन कर लेती है जबिक हैरोड-मॉडल म ऐसा स भव नह है ।
5. हैरोड के िवपरीत सोलो क मानना है िक पूं जी एवं म के बीच ित थापन क स भावना
के कारण िवकास ि या म समायोजन शीलता बढ़ जाती है ।
6. िवकास क दीघकालीन दर को िव तारशील म-शि तथा तकनीक गित िनधा रत
करते है पर तु हैराड-डोमर ने म-शि और तकनीक गित को ि थर मान िलया है ।
जबिक हैरोड मॉडल म इन ाचल को ि थर मानता है । पर तु सोलो मॉडल मे इनको ि थर
नह माना गया है ।
11.8 सोलो मॉडल क आलोचनाएँ Criticism of Solow Model
ो. सेन ने ल य िकया क उनका मॉडल कई ि यो से कमजोर है ।
1. िवकास दर के बीच स तु लन क सम या अ ययन नहीः- सोलो ने अपने मॉडल मे
Gw और Gn म स तुलन क सम या भर को ही लेता है और Ga और Gw मे स तुलन
सम या को छोड़ देता है ।
2. िनवेश फलन अनु पि थत हैः- सोलो के मॉडल मे िनवेश फलन नह है और यिद इसे
एक बार सि मिलत कर िलया जाए तो सोलो के मॉडल मे भी अि थरता क हैरडीय
सम या उ प न हो जायेगी।
3. साधन क क मत मे लोचशीलता सम या ला सकतीः- सोलो साधन क क मतो
को लोचशीलता मानता है जो सतत् वृि के माग मे किठनाइयाँ ला सकती है ।
4. अवाि तिवक मा यताओं पर आधा रतः- सोलो का मॉडल अवा तिवक मा यताओं
आधा रत है िक पूं जी सम प और लोचशील है वा तव मे पूं जी पदाथ म िभ नता पाई
जात है । और सामूहीकरण क सम या उ प न करते है ।
5. तकनीक गित का अ ययन नह :-सोलो तकनीक गित का उ पादक त व छोड़ देता
है और इसे िवकास ि या का बा कारक मानता है । वह इसम िनवेश क ि या ारा
तकनीक गित के ो साहन क सम या को अनिभ करता है ।
11.9 सोलो मॉडल और िवकासशील देश (Solow’s Model and
Developing Countries)
सोलो मॉडल सीधे तोर पर िवकासशील देश म लागू नह होता है यह मॉडल मु यतः
िवकिसत देशो क आ मिनभर अथ यव था क ि थर िवशेषताओं का वणन करता है । जबिक

108
िवकासशील अथ यव था पूव फू त क अव था म है । इस कार सोलो मॉडल इन देशो मे नीित
िनमाण के िलए योग मे नह िलया जा सकता ह।
िफर भी सोलो मॉडल मे कु छ अंश है जहाँ इस मॉडल म ासंिगता का अनुभव होता है ।
1. तकनीक ेतवादः- सोलो मॉडल अ पिवकिसत देशो मे तकनीक ते वाद के त व क
या या करने सहायक होता है अथ यव था के दोन े म उ पादन के तकनीक गुणांको
को प रवतनशील मानकर भी यह मॉडल तकनीक ते वाद का वणन करने म सफल होता
है ।
2. अ य बेरोजगारीः- सोलो का मॉडल मे जब तक आय धना मक रहती, बचत और पूं जी
टॉक बढ़ता है । पर तु सोलो मॉडल यह बताना है िक अथ यव था मे यह भी स भावना
पायी जाती है जबिक आय धना मक होने पर भी बचत शू य हो जाती है । ऐसी ि थित मे
और िविनयोग नह होगा तथा पूं जी िक टॉक ि थर रहेगा- पर तु म शि बढ़ती रहेगी-
म क सामा त उ पादकता कम हो जायेगी-िजससे उ पादकता यूनतम वा तिवक मजदूरी
दर से नीच आ जायेगी। ऐसी ि थित मे अ य बेरोजगारी कट हो जायेगी। यह स पूण
कहानी िवकासशील देय से स बि धत है उ ही मे लागू होती है ।
3. सोलो के अनुसार यिद वा तिवक मजदूरी दर िकसी िनि त तर पर ि थर रखी जाती है तो
रोजगार का तर ऐसा होना चािहए क म क सामा त उ पादकता कायम रहे। यिद मजदूरी
क दर म-पूं जी अनुपात क कमी के साथ स बि धत होती है तो बेराजगारी उ प न होती
है । ऐसा अ पिवकिसत अथ यव था के कृ िष े म अ सर होता है ।
11.10 सं दभ ं थ
A.K. Sen – Growth Eonomics
R.K. Lekhi – The Economics of Development and planning
एम. एल. िझं गन - िवकास का अथशा और आयोजन
डॉ. वी. सी. िस हा - आिथक सं विृ और िवकास
रामा वमा – समि आिथक िव ेषण
Solow, R.M.: ‘Contribution to the theory of Economic Growth’
11.11 कु छ िनबं धा मक
1. सोलो के दीघकालीन वृि मॉडल क आलोचना मक या या क िजए । यह हैरोड-डोमर
पर कै से सुधार है ।
2. सोलो के दीघकालीन वृि मॉडल क या या क िजये। यह अ पिवकिसत देशो म कहाँ
तक लागू होता है ।

109
इकाई - 12
भारतीय अथ यव था म वृि क वृि यां
इकाई क परेखा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 वतं ता ाि के समय भारतीय अथ यव था
12.3 1951 के बाद का आिथक िनयोजन तथा आिथक वृि
1991 के आिथक सुधार के बाद आिथक वृि
12.4 िनयोजन अविध के दौरान वृि दर
12.4.1 िनयोजन का थम दशक (1951-61)
12.4.2 िनयोजन का दूसरा दशक (1961-71)
12.4.3 िनयोजन का तीसरा दशक (1971-81)
12.4.4 िनयोजन का चौथे दशक के दौरान वृि दर (1981-91)
12.4.5 िनयोजन का पाँचवे दशक के दौरान वृि दर (1981-91)
12.4.6 िनयोजन का छठे दशक के दौरान वृि दर (1991-2001)
12.4.7 िनयोजन का छठे दशक के दौरान वृि दर (2001-2011)
` 12.4.8 बारहव योजना का उ े य (2012-17)
12.5 ित यि आय म वृि क दर
12.6 1951 के बाद से भारतीय अथ यव था म े वार वृि
12.6.1 1950-51 बाद से कृ िष क वृि दर
12.6.2 औ ोिगक े म वािषक वृि दर
12.7 आधारभूत सं रचना मक सुिवधाओं म वृि दर
12.7.1 ऊजा एवं शि
12.7.2 प रवहन व संचार
12.7.3 बिकं ग एवं िव
12.8 सारां श
12.9 कु छ उपयोगी पु तक
12.10 िनब धा मक

110
12.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप जान सकगे िक भारतीय अथ यव था िकस कार
धीरे-धीरे वृि क ओर उ मुख हई।
12.1 तावना
भारत, िजसे िव के सबसे बड़े व सवािधक ि थर लोकतं के प म जाना जाता है ,
िमि त अथ यव था का एक सु दर उदाहरण तुत करता है । िपछले चालीस वष से अिधक समय
से भारत म अथ यव था के सावजिनक एवं िनजी े कं धे से कं धा िमलाते हए एकसाथ ि याशील
ह। इस सहयोगपरक ि याशीलता का उ े य है भारत क जड़ व िनभर अथ यव था को आधुिनक
बनाते हए उसे आ म-िनभर, गितशील व िवकास उ मुखी अथ यव था म पां त रत करना।
भारत क जीव-रासायिनक ौ ोिगक ने न के वल देश को अपनी सतत बढ़ती जनसं या
को दो व क रोटी देने म सहायता पहंचाई है बि क उसने पया मा ा म ऐसे क चे सं साधन भी
सुलभ कराए ह जो भारत के अनेक पार प रक उ ोग को कु शल सं चािलत करते आए ह। उ ोग के
े म भारत िव के 10 सवािधक औ ोगीकृ त देश म से एक है । भारत आज ायः सम त
उपभो ा साम ी म आ म-िनभर है जबिक इ पात, सीमे ट, रासायिनक खाद, भारी मशीनरी व
कलपुज आिद के े म वह तेजी से अपनी िनधा रत मता का उ पादन कर रहा है । देश म पूं जी
पदाथ के उ पादन म अ य त भावशाली वृि हई है । अब भारत इस ि थित म है िक वह यूनतम
तर पर पूं जी पदाथ आयाितत करते हए अपने अिधकतम उ ोग को थािपत व अनुरि त कर
सकता है । भारत ने तेजी से बढ़ते अपने ाथिमक व मा यिमक े को सुचा आधार देने के िलए
काफ िवशाल आधारभूत-सं रचना का िनमाण कर िलया है । उदाहरण के िलए आज भारत म
िसंचाई प रयोजनाओं व नहर तथा जल व तापीय आधार पर उ पािदत िबजली व उसके िवतरण का
भाव जाल िबछा हआ है । आज भारतीय रेल यव था काफ हद तक िबजली व डीजल से
सं चािलत है और वह एिशया क सबसे बड़ी रेल यव था है । दुिनया म भारतीय रेलवे का तीसरा
थान है । इसके साथ ही भारतीय बिकं ग व िव ीय णाली सतत बढ़ते हए रा यापी हो चली है ।
आज वह ऐसी ि थित म है िक वह देश के दूर दराज तक से आिथक िवकास के िलए सामुदाियक
बचत को ो सािहत व सं वि त कर सकती है ।
भारतीय अथ यव था सुधार के बाद से और भी अिधक भावशाली उपलि धयां अिजत
कर सकती थी बशत सरकार वो गलितयां नह करती जो उसने वा तव म क । 1991 के बाद से
भारतीय अथ यव था के िवकास पर यान देने के िलए यह आव यक है िक संसाधन के यायपूण
िवतरण क और भी यान हम वतं ता ाि के समय भारतीय अथ यव था क स ची त वीर पर
अपना यान के ि त कर।

111
12.2 वतं ता ाि के समय भारतीय अथ यव था
भारत को सदैव सं साधन के संदभ म एक ऐसे अमीर देश के प म जाना जाता रहा है जहां
गरीब बसते ह। वतं ता ाि के समय भारतीय अथ यव था क मुख िवशेषताएं िन निलिखत थी
(अ). 1951 म भारत क जनसं या 351 िमिलयन थी। यह जनसं या न के वल काफ िवशाल
थी बि क काफ तेज दर से बढ़ भी रही थी।
(आ). कृ िष लोग का मुख यवसाय था जो कायशील जनसं या के 70% वग को रोजगार
सुलभ कराता था। सकल रा ीय उ पाद (जी.एन.पी) को उसका योगदान 56% से भी
अिधक था।
(इ). देश म उपभो ा माल के कु छ ही उ ोग थािपत थे जैसे सूती व पटसन कपड़ा उ ोग,
चीनी उ ोग तथा िदया-सलाई उ ोग। कई औ ोिगक इकाईयां िवदेशी वािम व अथवा
ब धन क प रचायक थी।
(ई). आधारभूत-सं रचना मक सुिवधाएं बाबा आदम के जमाने क थी। देश के कई भाग म
प रवहन क समुिचत यव था का अभाव था और न ही बिकं ग सुिवधाएं ही सुलभ थी।
देश मे बचत और िनवेश को बढ़ाव देने वाली सं थाएं या तो िव मान ही नह थी और यिद
वे थी भी तो पूणतः िवकिसत नह थी।
(उ). अथ यव था के सभी े म माल और सेवाओं म यु तकनीक भी काफ पुरानी थ ।
देश म घोर बेरोजगार या अ प-रोजगार या था। देश के यापक ाकृ ितक व मानवीय
सं साधन घोर उपे ा के िशकार थे और उनका समुिचत उपयोग ायः अनुपि थत था। लोग
क ित यि आय समूची दुिनया के संदभ म ायः नग य थी ।
(ऊ). जहां एक ओर लोग का एक छोटा समूह सवस प न था (जैसे ामीण े म यापारी,
िबचौिलये व उ ोगपित) और उनका जीवन तर काफ समु नत, वह दूसरी और जनता
का अिधकां श भाग घोर अभाव त था, उनका कोई िविश जीवन तर ही नह था। कु ल
जनसं या का 50%, और कु छ रा य म तो उसका 60% तक काफ गरीब था। उनका
रोटी, कपड़ा और मकान का उपभोग तर काफ िगरा हआ था।
12.3 1951 के बाद का आिथक िनयोजन तथा आिथक वृ ि
भारत के थम धानमं ी तथा भारत म आिथक िनयोजन के सू धार जवाहर लाल नेह
क यह धारणा थी िक :
(i). लाभ के संवेग पर आधा रत भारतीय अथ यव था का िनजी े मूल एवं आधारभूत उ ग के
िवकास क उपे ा करेगा। इसके अित र , िनजी े िव ीय व बंधन क ि से दुबल है
और इसिलए वह अपने बूते देश के ती िवकास म सवथा असमथ िस होगा।
(ii). इ पात, प रवहन, बिकं ग, बीमा जैसे े म सरकार को अपना उ च िनयं ण थािपत
करना चािहए।
112
(iii). िमि त अथ यव था क णाली भारत के िलए एक आदश णाली िस होगी य िक इसम :-
 िनजी े व बाजार यव थाएं उनके अपने िनिद िविध, दर व कालाविध के अनु प
आिथक वृि संसािधत कर सकगे ; तथा
 सावजिनक े (इस अथ यव था के अंतगत) मूल व आधारभूत उ ोग संचािलत करते
हए आधारभूत-सं रचना मक सुिवधाएं भी जुटा सके गा।
भारत म िनयोजन के सामािजक-आिथक उ े य का मंत य उ पादन व रोज़गार,
आधुिनक करण व आ म-िनभरता लोग के बीच आय व स पि के पुनिवतरण तथा शोषण के
अभाव व समानता के आधार पर समतावादी समाज क रचना ारा रा ीय व ित यि आमदनी
म ती वृि संसािधत करना है । इस ि से भारत म भारी उ ोग के ज़ रए ती औ ोिगक करण
के सी मॉडेल को अपनाने का उप म िकया गया।
योजना आयोग ने पहले भारी उ ोग और सदैव उसके साथ-साथ आधारभूत संरचना के
िवकास क ाथिमकताओं को सुिनि त िकया। भारत क येक पंचवष य योजना म उससे
सं बं िधत काल-अविध के भीतर प िवकास-ल य िनधा रत िकए गए। योजना अविध के दौरान
और उसके अंत म गलितय को सुधारने , आव यक सं शोधन तथा समायोजना को काय प देने
और ि या वयन क सफलता व असफलता के आकलन सं बधं ी उप म लगातार िकए जाते रहे।
आिथक सु धार के बाद का आिथक िनयोजन तथा आिथक वृ ि

आिथक सु धारो का मू यांकन

जुलाई 1991 से सरकार ने आिथक सुधार काय म के तहत समि ि थरीकरण और ढां चागत
सुधार क दशा म काय िकया है । जहां तक समि आिथक ि थरीकरण का है, इन सुधार का
िमला-जुला भाव रहा है । उदाहरण के िलए, मई 2002 के अ त तक मु ा फ ित क दर 2 ितशत
वािषक से कम थी पर तु बाद म इसम वृि हई और 9 अग त 2008 को यह 12.6 ितशत हो गई।
बाद म इसम िगरावट आई और 4 अ ैल 2009 से मु ा फ ित क दर मा 0.18 ितशत थी। वष
2010-11 के दौरान मु ा फ ित क दर 9.6 ितशत के तर को छू गई जो िपछले दस वष म
सवािधक थी। 2011-12 म मु ा फ ित क दर 8.9 ितशत तथा 2013-14 म 6.0 ितशत थी।
जहां तक राजकोषीय असं तलु न का है, के सरकार का राजकोषीय घाटा जो 1991-92 म
सकल घरेलू उ पाद का 5.6 ितशत था, 2007-08 म सकल घरेलू उ पाद का 2.5 ितशत रह
गया। पर तु 2008-09 म बढ़कर यह सकल घरेलू उ पाद का 6.0 ितशत तथा 2009-10 म 6.5
ितशत हो गया। 2012-13 म राजकोषीय घाटा सकल घरेलू सकल उ पाद का 4.9 ितशत तथा
2013-14 म 4.4 ितशत था ।सबसे अिधक सफलता िवदेशी मु ा भं डार 1990-91 म के वल 2.5
महीने के आयात के िलए काफ थे वहां 2007-08 म थे ये 14.4 महीने के आयात के िलए,
2010-11 म 9.6 महीन के िलए तथा 2013-14 म 7.8 महीन के िलए काफ थे।

113
वा तिवक े म भी ढांचागत सुधारो से िमले जुले प रणाम सामने आए ह लेिकन 1991-92 तक
22 वष क अविध म रा ीय आय म वृि क दर 6.3 ितशत वािषक रही। ढांचागत सुधार के
पहले दो वष म औ ोिगक े म उ पादन म मंदी का दौर रहा । 1993-94 से इस े म िफर से
उ पादन बढ़ने लगा। पूरी आठव पं चवष य योजना के दौरान औ ोिगक उ पादन म वृि क औसत
दर 7.4 ितशत वािषक रही के वल 5.0 ितशत ित वष क दर पर ही बढ़ पाया जबिक ल य 8.2
ितशत ित वष था। दसव योजना म औ ोिगक उ पादन मे तेजी से आई और उ पादन क संविृ
15.5 ितशत तक पहंच गई पर तु अगले ही वष 2008-09 म वैि क मंदी के प रणाम व प, मा
2.5 ितशत रह गई। वष 2009-10 म औ ोिगक सं विृ क दर 5.3 ितशत थी जो 2010-11 म
बढ़कर 8.2 ितशत हो गई। पर तु याहरव योजना के अंितम वष 2011-12 म औ ोिगक उ पादन
म मा 2.9 ितशत वृि हो पाई । इस कार यारहव योजना म औ ोिगक उ पादन म औसतन
6.9 ितशत ित वष क वृि हई। बाहरव योजना के थम वष 2012-13 म औ ोिगक संविृ
दर मा 1.0 ितशत थी जो 2013-14 म मा 0.4 ितशत रह गई। पर तु यहां इस बात पर यान
देना ज री है िक के ीय सां ि यक य सं गठन ने जनवरी 2015 म रा ीय आय क जो नई ं खला
जारी क है । (िजसम आधार वष 2011-12 िलया गया है ।) उसके अनुसार 2012-13 औ ोिगक
उ पादन क सं विृ दर 2.4 ितशत तथा 2013-14 म 4.5 ितशत थी।

1990-91 से तीन वष और िनवेश दर म कमी आई। पर तु 1994-95 म इन दोन दर म वृि हई।


1995-96 म 2001-02 के बीच बचत दर औसतन 24.0 ितशत तथा िनवेश दर 24.9 ितशत
थी। इस कार दोन दर अपे ाकृ त कम तर पर थी। पर तु 2003-04 के बाद से इन दर म तेज
वृि हई। वष 2007-08 म बचत दर सकल घरेलू उ पाद का 36.8 ितशत तथा िनवेश दर 38.8
ितशत तथा िनवेश दर 38.1 ितशत के तर को छू गई। 2013-14 म बचत दर सकल घरेलू
उ पाद का 30.6 ितशत तथा िनवेश दर 32.3 ितशत थी। (2013-14 के िलए अनुमान नई
ं ृखला पर आधा रत है िजसका आधार वष 2011-12 है । कु छ अथशाि य का मानना है िक
बचत और िनवेश दर म यह वृि िव सनीय आंकड़ पर आधा रत नह है । और भूलचूक कु द हद
तक इस वृि के िलए िज मेवार ह। इसके अलावा, जैसा िक नागराज ने कहा है, हाल के वष म
बचत और िनवेश दर म वृि का एक मु य कारण िनजी े म बचत व िनवेश दर को तेज वृि है
। पर तु इस े म अनुमान लगाने क िविधयां दोषपूण है । राजकु मार ारा िकए गए एक अ ययन
के अनुसार िनजी िनगम े म वा तिवक सकल ि थर पूं जी िनमाण, सरकारी अनुमान का लगभग
आधा है ।

114
12.4 िनयोजन अविध के दौरान वृ ि दर
भारतीय अथ यव था क वृि दर के समाकलन क ि से हम ि थर मू य के आधार
पर रा ीय आय म वृि पर िवचार करते ह न िक वतमान भावी मू य के आधार पर। उदाहरण के
िलए, वतमान दर पर रा ीय आय म वृि दो घटक के समि वत भाव क ोतक होती है:
(अ) वा तिवक व तुओ ं व सेवाओं के उ पादन/सृजन म वृि ; तथा
(ब) मू य तर म वृि ।
यिद रा ीय आय म पहले घटक के कारण वृि हो तो वह अथ यव था म वा तिवक वृि
क प रचायक होती है य िक उसके यह िनिहताथ होता है िक लोग अिधक माल व सेवाएं हण
कर रहे ह। यिद िकसी समय दूसरे घटक के आधार पर रा ीय आय बढ़े, जैसे मू य तर म वृि , तो
ऐसी वृि के वल मु ा के संदभ म हो आसमान वृि क प रचायक होती है । प रणामत: मु ा के
सं दभ म रा ीय आय को ि थर मू य के आधार पर अप फ त (िडफे लट) िकया जाता है तािक उस
अविध म दज मू य तर म वृि के िकसी भी भाव को दूर िकया जा सक।
ि थर मू य पर कु ल रा ीय उ पाद म वृि समुदाय के सकल उ पादनकारी यास का
सूचकांक होता है । उससे देश के संदभ म माल व सेवाओं म अिभवृि का बोध होता है । रा ीय
आय व ित यि आय दर म वािषक वृि दर को िनधा रत िकया गया है
तािलका 12.1: 1950-51 के बाद म वािषक वृ ि दर
जना कु ल रा ीय उ पाद
थम योजना(1951-56) 3.6
ि तीय योजना(1956-61) 4.1
तृतीय योजना(1961-66) 2.5
चौथी योजना(1969-74) 3.3
पांचवी योजना(1974-79) 5.0
छठी योजना(1980-85) 5.4
सातव योजना(1985-90) 5.8
आठव योजना(1992-97) 6.7
नवी योजना (1997-2002) 5.5
दसवी योजना(2002-07) 7.6
यारव योजना(2007-2012) 8.0
( ोत: भारत सरकार, िविभ आिथक सव ण, ितवेदन
तािलका 12.1 से यह ात होता है िक (अ) रा ीय आय िवषयक सम त पंचवष य योजना क
वृि सं बधं ी वृि यां थम पंचवष य योजना से शु ह ई

115
12.4.1 िनयोजन का थम दशक (1951-61)
इस दशक के दौरान पहली पं चवष य योजना काल म भारतीय अथ यव था म 3.6% क
दर से वृि हई। इस योजना को भारी सफलता का ेय िदया गया य िक इसके अंतगत उ पादन
ल य, िवशेषतः कृ िष के े म, आशातीत अिजत िकए जा सके । हालांिक पहली योजना क
सफलता काफ अंश म उस काल क अनुकूल जलवायु पर िनभर थी , सरकार ने कई योजना-ल य
क उपलि ध का सेहरा अपने िसर पर बां ध िलया।
दूसरी पंचवष य योजना पहली क अपे ा अिधक मह वाकां ी थी पर तु उसका पूणतः
ि या वयन नह हो सका। इसके िलए घोर िव ीय सीमाएं उ रदायी थी। िवशेषतः िवदेशी िविनयम
सं साधन का काफ अभाव या था। इस योजना के म य काल म ही योजना आयोग को िववशतः
कई िवकास काय म एवं ल य म काट-छां ट को अंजाम देना पड़ा। इसके अित र , इस अविध म
सामा य मू य तर खतरनाक तरीके से बढ़ने लगा। इन सम याओं के बावजूद , अथ यव था क
वािषक वृि दर योजना काल म भावशाली प से ऊं ची उठ कर 4% दज हई। इस कार,
िनयोजन के थम दशक के दौरान सकल रा ीय उ पाद 3.8% क वािषक दर से बढ़ा।
12.4.2 िनयोजन का दू सरा दशक (1961-71)
दूसरी पंचवष य योजना के अंत तक भारतीय िनयोजक तथा भारत सरकार इस नतीजे तक
पहंच गई िक अब भारतीय अथ यव था ‘टेक-ऑफ’ (उडान के िलए ऊपर उठने) क अव था पर
आ गई है । अतएवं, उ ह ने यह सुझाव िदया िक तीसरी योजना को आ म िनभरता व अथ यव था
के आ म-िवकास के ल य को वीकार करना चािहए। योजना आयोग का यह भी तक था िक
पहली दो योजनाओं ने ती आिथक िवकास के िलए आव यक सं था मक सं रचना िनिमत कर दी
है । इसके साथ ही योजना आयोग को यह पीड़ाजनक अनुभिू त भी थी िक कृ िष उ पादन के े म
कट धीमी वृि दर भारत के ती आिथक िवकास क िदशा म एक अवरोधक कारक है । भारतीय
अथ यव था के तेजी से िवकास के िलए आव यक मूल व आधारभूत उ ोग के िवकास पर बल
देते हए तीसरी पंचवष य योजना ने कृ िष को सव च ाथिमकता दान क । यह योजना एक भारी
दुघटना िस हई य िक इस योजना काल म यापक अकाल पड़ा और कृ िष उ पादन म भारी
िगरावट तुत हई। 15 वष म पहली बार देश ने वृि क नकारा मक वािषक दर ा क । िफर भी,
तीसरे योजना काल म अथ यव था क वािषक वृि क औसत दर 2.2% अंिकत थी।
तीसरे योजना काल के अंितम वष के दौरान कट असफलता ने भारत सरकार को आिथक
िनयोजन रोकने और ‘योजना अवकाश ‘ लेने पर िववश िकया। 1966-69 के टौरान वािषक
योजनाएं तथा चौथी योजना के थम दो वष अकाल व यापार मंदी से उबरने के वष िस हए।
उ ह ने काफ अंश म तीसरे योजना काल क समाि के दौरान कट असफलता से मुि पाने के
यास का प रचय िदया। दूसरे िनयोजन दशक (1961-71) के दौरान भारतीय अथ यव था ने
3.5% वािषक वृि दर दज कराने म सफलता अिजत क ।

116
12.4.3 िनयोजन का तीसरा दशक (1971-81)
िनयोजन का तीसरा दशक िन निलिखत से अिभिनिमत था
(अ) चौथे योजना काल के अं ितम तीन वष: िपछली योजना के दौरान अिजत 3.5%
वािषक वृि दर के अनुपात मे चौथी योजना ने 5.5% क मह वाकां ी वृि का ल य लेकर चलते
हए ार भ म भारी स भावनाओं का प रचय िदया। ार भ म खा ा न का रकॉड उ पादन हआ
और उसी अनुपात म औ ोिगक उ पादन भी बढ़ा इसके बावजूद मानसून क बार बार कट
िवफलता के कारण चौथी योजना के अंितम तीन वष भारी िनराशाजनक िस हए। खा ान के
उ पादन म िगरावट औ ोिगक मोच पर िव तु आपूित क घोर अिनयिमतता से कट िवफलता,
प रवहन क अ त य ताओं, औ ोिगक असं तोष तथा तेजी से चढ़ते मु ा फ ित के दबाव आिद
के कारण यह योजना काल अ य त िनराशा का युग िस हआ। सामा यतः यह माना जाने लगा िक
म याविध के उपरा त चौथी योजना िनणायक प से लड़खड़ा गई। वािषक वृि क दर इस दौरान
मा 3.1% ही दज हो सक जबिक योजना आयोग ने 5.5% क मौिलक वृि दर संकि पत क
थी।
(ब) पां चवी पंचवष य योजना (1974-79): जब पांचवी योजना को औपचा रक प से
तुत िकया गया उस समय (अ ैल 1974 म) भारत ग भीर मु ा फ ित व आिथक संकट के दोर से
गुजर रहा था। इसके बाद देश म आपातकाल क घोषणा हो गई िजसके दौरान सरकार तथाकिथत
बीस-सू ीय काय म के ि या वयन म सि य हो गई। पां चवी योजना लगभग भुला दी गई और उसे
सरकारी तौर पर चौथे साल ही ब द कर िदया गया। इन सारी सम याओं के बावजूद पां चवी
योजना-काल म वृि क 4% वािषक दर दज क गई।
(स) अं ितम तीन वष: भारतीय अथ यव था ने दो वष से अिधक समय तक जनता छठी
योजना के अंतगत िनयोजन हण िकया िजस दौरान अथ यव था ने ठोस गित उपल ध क ।
कां ेस शासन के दौरान पहले योजना वष म अथ यव था को किठन कृ िष व औ ोिगक ि थितय
का सामना करना पड़ा।
इस कार िनयोजन के तीसरे दशक के दौरान भारत को कु छ वष के दौरान अ य त दुबल
व ीण आिथक ि याशीलता का सामना करना पड़ा (जैसे 1971-73 व 1980-81)। इस दौरान
कु छ वष उ कृ आिथक गित से स प न थे। कु ल िमलाकर भारतीय अथ यव था क औसत
वािषक वृि दर के वल 3.2% ही थी। अतएवं, इस दशक के दौरान हम अथ यव था के े म
वािषक वृि दर क िदशा म सतत िगरावट का अनुभव करते ह:
12.4.4 िनयोजन के चौथे दशक (1981-91)
छठी पंचवष य योजना ने 5.2% क वृि दर का ल य वीकार िकया जो िक िपछली दो
योजनाओं के वीकृ त वृि दर ल य से कु छ कम था। छठी योजना के दौरान भारतीय अथ यव था
ने चौतरफा गित अिजत क । योजना आयोग ारा िनधा रत अिधकां श ल य इस दौरान सं शोिधत
िकए गए। उदाहरण के िलए, कृ िष े ने काफ अ छी उपलि धयां ा क और िनयोजन ि या
117
के दौरान पहली बार कु छ ल य िनधा रत तर से भी काफ अिधक ऊं चे अिजत िकये जा सके ।
अंितम वष म य िप अकाल क ि थितय के कारण कृ िष उ पादन के े म देश के कु छ भाग म
अिजत िकए जा सके । अंितम वष म य िप अकाल क ि थितय के कारण/ज र कु छ िगरावट आई
लेिकन उ ोग के े म इस योजना काल क उपलि धयां काफ कमजोर िस हई। कु ल िमला कर
छठी योजना क अविघ पया प से सफलता क ोतक थी। योजना आयोग ारा उ च दर
उपल ध क जा सक है । बाद म, सरकार ने छठी योजना काल क अिजत वािषक वृि दर म कु छ
सं शोधन कर के 3 से 4.7% ठहराया। सरकार के आलोचक इस घटी वृि दर (4.7%) को भी
ामािणक मानने क तैयार नह है । उनके अनुसार योजना आयोग ने अगले पांच वष के िलए
अथ यव था क वृि दर के आकलन क ि से 1974-80 को आधार वष माना था जो िक
असामा य प से खराब वष था। यह वह वष था जब अथ यव था ने पहली बार वृि क
नकारा मक दर पाई थी। इस आधार पर आलोचक क यह राय थी िक छठी योजना के दौरान
योजना आयोग ारा 4.7% क िजस घटी हई वािषक वृि दर का दावा िकया गया था, वह भी
अितशयोि पूण था और वृि क वा तिवक वृि के वल 3.5 के आस-पास ही थी। इसी दर का
अब “आिथक वृि क िह दू दर” के नाम से जाना जाता है । व तुतः वृि दर 5.3% थी जो
अनुकूल ि थितय के कारण काफ उ च थी।
भारत सरकार के आिथक सव ण ने त काल भावी व ि थर दोन मू य- कार के आधार
पर कु ल तथा िनि त ( ौस व नेट) रा ीय उ पाद क वृि दर से सं बं िधत ारि भक आंकड़े तुत
िकए थे। 1980-81 के ि थर मू य पर िनि त रा ीय उ पाद सातव योजना के ारि भक तीन वष
के दौरान मशः 5.0, 3.6 तथा 3.4% था। वृि क यह दर देश के अिधकांश भाग म या
ग भीर अकाल ि थितय के सं दभ म देखी जानी चािहए।
12.4.5 िनयोजन के पं चावा दशक (1991-2001)
1980 के म य के बाद से भारत धीरे-धीरे आिथक उदारीकरण के मा यम से अपने बाजार खोल
िदया है । अिधक मौिलक 1991 के बाद सुधार और 2000 के दशक म अपने नवीकरण के बाद
भारत एक मु बाजार अथ यव था क िदशा म गित क है
ित यि आय 3.5 औसत वृि हई है, जबिक 1980 तक 1950 के दशक से लगभग 1.3 %
पर ठहर गयी थी लाइसस के वल चार या पाँच इ पात , िबजली और संचार के िलए िदया जाने का
ावधान िकया गया ।
12.4.6 िनयोजन के छठा दशक (2001-2011)
1991 म आरं भ क गई उदारीकरण ि याओं के अनु प तथा आठव योजना मे ◌ंिवकास युि
के िनजी े क ओर झुकाव के अनु प , नौव योजना म कहा गया िक ‘‘हमारी िवकास क युि
इस कार क होनी चािहए जो हमारे यापक और फै ले हए नीिज े को इतना स म बना सके क
वह उ पादन मे वृि , रोजगार - अवसर के सृजन तथा समाज के आय तर म वृि कर पाने क
118
अपनी पूरी सं भावनाओं को ा कर सके । आिथक ित पधा और मु बाजार के अनुशासन म
कायरत शि शाली िनजी े दुलभ सं साधन के कु शल योग को ो सािहत करेगा िजससे
यूनतम लगात पर तेज आिथक िवकास हो सके गा। इसिलए हमारी नीितय से ऐसा माहौल बनना
चािहए िजससे यह प रणाम पा सके ने म सहायता िमले। इस बदलते हए प र े य म नौव योजना म
रा य क भूिमका म इस कार प रवतन करने क िसफा रश क गई थी िजससे वह िनजी े के
िनयं ण व िनयमन से यान हटाकर सामािजक िवकास म खासतौर पर ामीण े मे सामािजक
िवकास म अिधक सि य भूिमका िनभा सके । इस कार, नौवी योजना से सरकार क िवकास क
युि का उ े य ऐसी आिथक सामािजक आधा रत सं रचना का िनमाण करना था िजसम िनजी े
िबना िकसी किठनाई व कावट के अपने काय कलाप को कर सके । अथात् सरकार को िबजली व
ऊजा क उिचत यव था व सार करने तथा सड़क , बं दरगाह , रेलवे, सं चार यव था,
यूिनिसिपल सेवाओं इ यािद के िवकास व िव तार पर िविश यान देना था। ामीण े म
आिथक आधा रत सं रचना के अंतगत िसं चाई सेवाओं इ यािद के िवकास व िव तार पर िविश
यान देना था। ामीण े म आिथक आधा रत सं रचना के अंतगत िसं चाई सड़क सं गिठत ामीण
बाजार इ यािद आएं गे। आधा रत सं रचना के िवकास व िनमाण के अित र , सरकार को मूलभूत
सेवाओं (जैसे वा य सेवाओं, तथा पीने क सुिवधा इ यािद। ) को भी आम जनता को (िवशेषतौर
पर ामीण े म) उपल ध कराने पर िवशेष यान देना था। औ ोिगक े म िवकास युि का
यह यास था िक िनजी े पर लगे ितबं ध को कम से कम िकया जए तथा िनजी े क
उ पादन गितिविधय म नौकरशाही तं व सरकारी ह त े यूनतम हो। जहां तक सावजिनक े
म उ म का सं बं ध है, अ ततः उनके िनजीकरण के उ े य से िविनवेश क नीित जारी रखी गई और
िविनवेश से जो सं साधन ा होने थे उनक सामािजक े (िवशेष तौर पर वा य और िश ा )
क योजनाओं पर खच करने का वादा िकया गया। जहां तक िवदेशी े का सं बं ध है, इसम युि
इस कार क रही िक आयात शु क दर को कम िकया गया एवं मा ा मकब ितबं ध को समा
िकया गया, िनयात के सार म आने वाली बाधाओं को दूर करने के िलए उिचत कदम उठाएं गए
तथा िनयात ो साहन म सहायता देने के िलए िवदेशी िविनयम दर नीित का योग िकया गया, और
िवदेशी िनवेश को ो सािहत करने के िलए उिचत कदम उठाए गए।
िवि य े म, नौव पं चवष य योजना का जोर िव ीय सुधार पर, खास तौर पर बिकं ग े म
सुधारो पर तथा पूं जी बाजार म सुधार पर रहा। योजना म बीमा और पशन फं ड से सं बिं धत सुधार
पर भी जोर िदया गया। योजना आयोग का िवचार है िक ये दीघकालीन पूं जी के वाभािवक ोत है
और इसिलए इनका योग आधा रत सं रचना के िव ीयन के िलए िकया जा सकता है । योजना म
साल दर साल भारी राजकोषीय घाट पर िनभर रहने के खतर क ओर भी यान आकिषत िकया
गया। इस सं दभ म योजना म एक ऐसी दीघकालीन राजकोषीय नीित अपनाएं जाने क बात क गई
िजसका उ े य एक िनि त समयाविध म राजकोषीय घाटे क एक सहनीय तर पर लाने क
यव था हो। िवशेष प से राज व घाटे को कम करने पर जोर िदया गया।

119
दसव पं चवष य योजना (2002-2007)
दसव पं चवष य योजना का कायकाल 2002 से 2007 तक रहा।दसव पंचवष य योजना म पहली
बार रा य के साथ िवचार- िवमश कर रा यवार िवकास दर िनधा रत क गयी। इसके साथ ही
पहली बार आिथक ल य के साथ- साथ सामािजक ल य पर भी िनगरानी क यव था क गयी।
दसव योजना के ल य:
1. योजना काल के दौरान जी. डी. पी. म वृि दर 8 ितशत पहँचाना।
2. िनधनता अनुपात को वष 2007 तक कम करके 20 ितशत और वष 2012 तक कम
करके 10 ितशत तक लाना।
3. वष 2007 तक ाथिमक िश ा क पहँच को सव यापी बनाना।
4. वष 2001 और 2011 के बीच जनसं या क दसवष य वृि दर को 16.2 ितशत तक
कम करना।
5. सा रता म वृि कर इसे वष 2007 तक 72 ितशत और वष 2012 तक 80 ितशत
करना।
6. वष 2007 तक वन से िघरे े को 25 ितशत और वष 2012 तक 33 ितशत बढ़ाना।
7. वष 2012 तक पीने यो य पानी क पहँच सभी ाम म क़ायम करना।
8. सभी मु य निदय को वष 2007 तक और अ य अनुसिु चत जल े को वष 2012 तक
साफ़ करना।
12.4.8 यारहवी पं चवष य योजना (2012-17) का ि प
यारहव पं चवष य योजना (2007 - 2012)
यारहव पंचवष य योजना का कायकाल 2007 से 2012 तक िनधा रत है ।
यारहव पं चवष य योजना के ल य
1. ती और समावेशी िवकास । ( गरीबी क कमी)
2. सामािजक े और उसम सेवा के िवतरण पर जोर िदया।
3. िश ा और कौशल िवकास के मा यम से सशि करण।
4. िलं ग असमानता क कमी।
5. पयावरणीय ि थरता ।
6. मशः 4 %, 10% और 9% के िलए कृ िष, उ ोग और सेवा े म िवकास दर को
बढ़ाने के िलए
7. कु ल जनन दर 2.1 करने के िलए कम
8. 2009 तक सभी के िलए व छ पेयजल उपल ध कराने ।
12.5 ित यि आय म वृ ि क दर
अब तक हमने 1950-51 स लेकर आज तक भारतीय अथ- यव था क वृि दर को
ि थर मू य िवषयक रा ीय आय आंकड़ के सं दभ म तुत िकया है । लेिकन ि थर मू य पर
120
रा ीय आय आंकड़े तुलनीय होते हए भी जनसं या भाव को छु पाते ह। जनसं या वृि के भाव
को दूर करने के िलए हम ित यि रा ीय उ पाद अथवा ित यि आय का योग करना होगा।
ि थर मू य पर िनि त रा ीय उ पाद जहां समुदाय के तर पर च रताथ कु ल उ पादनकारी यास
का सूचक है और उससे देश म िव मान माल व सेवाओं म वृि का बोध होता है, वही ि थर मू य
के आधार पर ित यि आय जनता के जीवन- तर म आए प रवतन क प रचायक है । िनयोजन
के पहले दस वष के दौरान ित यि िनि त रा ीय उ पाद 1.8% क वािषक वृि दर से बढ़ा
जबिक िनि त रा ीय उ पाद क वािषक वृि दर 3.8% थी। िनि त रा ीय उ पाद तथा ित
यि आय म कट इस अ तर को इस दशक के दौरान अिजत जनसं या वृि के सं दभ म भली
भां ित समझा जा सकता है । यह मरणीय है िक भारत म जनसं या 1957 म 361 िमिलयन थी जो
1961 म बढ़ कर 439 िमिलयन हो गई। यह वृि पूरे दशक के दौरान 78 िमिलयन अिधक थी
अथवा ित वष उसक वृि 2.1% थी।
िनयोजन के दूसरे दशक (1961-71) के दौरान ित यि आय ित वष के वल 1.2%
वृि क दर से ही बढ़ सक जबिक िनि त रा ीय उ पाद म इस दौरान ित वष 3.5% वृि दज
हई। जैसा िक हम पहले ही प कर चुके ह, तीसरी योजना घोर असफलताजनक थी और उसके
प रणाम व प िनि त रा ीय उ पाद म वािषक वृि दर के वल 2.7% थी जबिक ित यि आय
इस दौरान शू य थी। दूसरे श द म, तीसरी योजना काल म जनसं या वृि ने रा ीय आय म वृि
को पूण तः िनि य कर िदया। चौथी योजना अविध के दौरान पहली दो वािषक योजनाओं तथा
योजना के ारि भक दो वष के ेय द आिथक काय-स पादन ने अपनी बदोलत भारतीय
अथ यव था को िनि त रा ीय उ पाद के े म 3.5% तथा ित यि आय म 1.2% वृि का
अवसर दान िकया। िनयोजन के तीसरे दशक (1971-81) के दौरान ित यि आय म वािषक
वृि क दर 1% से कु छ अिधक दज हई जो इस सामा य त य क प सूचक है िक देश म
जनसं या वृि ायः रा ीय आय म वृि -लाभ को िनि य बना देती है । इस कार, आिथक
िनयोजन के थम 30 वष (1951-1981) के दौरान ित यि आय म वािषक वृि के वल 1.4%
रही जो िक काफ कम है । ित यि आय म इतनी कम वृि ‘गरीबी हटाने’ क सम त चचाओं
को ायः िनरथक सा बना देती है । जनसं या वृि रोकने के िलए कारगर कदम न उठा सकने क
ि थित म भारत म ित यि आय दर म वृि कर पाने क कोई वा तिवक स भावना नह िदखाई
देती।

1990-91 म रा ीय आय म 4.9 ितशत वृि हई । 1991-92 म के वल 0.8 ितशत


वृि हई। आठव पंचवष य योजना क अविध म रा ीय आय म 6.5 ितशत वािषक वृि हई
जबिक ल य 5.6 ितशत वािषक म के वल 0.8 ितशत था। आठवी पं चवष य योजना के दौरान
रा ीय आय म के वल 0.8 ितशत था। नव पं चवष य योजना के दौरान रा ीय आय 5.4 ितशत
वािषक दर से बढ़ी थी लेिकन दसव पंचवष य योजना का िन पादन उ साहव क रहा और इस
योजना म रा ीय आय म 7.6 ितशत वािषक तथा ित यि आय म 5.9 ितशत ित वष वृि
121
हई। यारहव योजना (2007-12) म रा ीय आय म औसतन 7.5 ितशत ित वष क वृि हई
जबिक ल य 9.0 ितशत ित वष वृि का था। के ीय सांि यक य सं गठन ने 30 जनवरी 2015
को रा ीय आय सं बधं ी नई ं ृखला जारी क िजसका आधार वष 2011-12 है । इस नई ं ृखला के
अनुसार 2012-13 म सकल घरेलू उ पाद म 5.1 ितशत तथा 2013-14 म 6.9 ितशत क वृि
हई। (जबिक 2004-05 को आधार वष मान कर तैयार क गई पहली ं ृखला के अनुसार 2012-13
म सं विृ दर 4.7 ितशत तथा 2013-14 म 5 ितशत थी।)

12.6 1951 क◌े बाद से भारतीय अथ यव था म े वार वृ ि


अब तक इस पाठ म हम लोग सम प से भारतीय अथ यव था म वृि पर चचा करते
आए ह। अब हम े वार वृि दर पर चचा करनी चािहए िजसके अ तगत हम सबसे पहले कृ िष पर
यान दगे।
12.6.1 1950-51 के बाद से कृ िष क वृि दर
योजना आयोग ने कृ िष े म िवकास के िलए िनयोजन सं बधं ी चार मुख उ े य वीकार
िकए:
(अ) कृ िष उ पादन म वृि ;
(ब) कृ िष े म अित र रोजगार के अवसर जुटाने का ावधान;
(स) भूिम पर जनमं या के दबाव को कम करने के िलए अित र कृ िष जनसं या को
ि तीयक तथा कृ िष सहयोगी े म थाना त रत करने का बं ध; तथा
(द) भू-जोत पर अंकुश तथा अ य भूिम सुधार सं बधं ी उपाय ारा कम से कम कु छ अंश
म ामीण े म समानता व याय के सार का संक प।
हालांिक पंचवष य योजनाएं इन सभी उ े य के िलए काय म योजनाएं वितत करने को
कृ त सं क प थी पर तु यवहार म िनयोजक ने के वल पहले उ े य पर ही पया यान िदया यािन
इन योजनाओं म कृ िष उ पादन म वृि पर ही बल िदया गया। कृ िष उ पादन म वृि लाने के िलए
एकािधक म म इन रणनीितय को सं बोिधत/प रचािलत िकया गया: नई कृ िष सं बधं ी रणनीित,
आधुिनक कृ िष ौ ोिगक , जीव-रासायिनक ौ ोिगक , ह रत ां ित और न जाने या- या। इस
रणनीित मे समािहत रहे ह: समूचे देश म सामुदाियक िवकास व कृ िष िव तार सेवाओं क थापना,
िसंचाई सुिवधाओं, रासायिनक खाद, क टनाशक दवाओं, कृ िष यं , बीज क उ नत िक म ,
प रवहन सुिवधाओं, िव तु आपूित, िवपणन तथा सं थाज य ऋण सुिवधाओं आिद का पया
सृजन एवं िव तार। 1950 के दौरान कृ िष े म हई वािषक वृि दर का िववरण तािलका-1.2 म
विणत है । सुिवधा क ि से हमने 1950-51 से ार भ िनयोजन अविध को दो काल-ख ड म
वग कृ त िकया है पूव -ह रत ाि त अविध(1951-65) तथा उ र-ह रत ां ित अविध
(1965-86)*
तािलका - 1.2
122
1. 50-51 के बाद से कृ िष े म अिजत वािषक वृ ि दर
कु छ फसल क उ पादन व उ पादकता सं विृ दर, 1949-50 से 2013-14 ( ितशत म)
फसल ह रत ां ित से 1967-68 1980-81 से 1990-91 से 2000-01 से
पू व क अविध से 1989-90 1999-2000 2013-14
1949-50 से 1980-81
1964-65

उ पादन उ पादन उ पादन उ पादन उ पादन


चावल 3.5 2.2 3.6 2.0 1.6
गेह ं 4.0 5.7 3.6 3.6 2.3
वार 2.5 2.0 0.3 -3.1 -2.3
बाजरा 2.3 -0.4 0.0 10 2.2
म का 3.9 0.0 1.9 3.3 5.2
दाल 1.4 -0.4 1.5 0.6 4.1
सब खा ान 2.8 2.2 2.9 2.0 2.1
ग ना 4.3 2.6 27 2.7 1.2
ितलहन 3.2 1.6 5.2 1.6 4.1
अखा ान 3.7 2.3 3.8 2.7 3.8*
सब फसल 3.2 2.2 3.2 2.3 2.8*
यहाँ अविध 2000-01 से 2011-12 है
ोत – Government of India, Ministry of agriculture, Agricultural statistics and at a Glance,
1997 (New Deli, 1997), Table 15.2, Table 15.2 (b) and economic survey 2014-15 (Delhi
2015) Volume II, Statistical Appendix, Table 1.12 p. A24 तथा Table 1.14 P.A. 26 से
आकिलत

जैसा िक सारणी से प है गेह ं के उ पादन क वृि दर जो ह रत ांित से पूव क अविध


1949-50 से 1964-65 म 4.0 ितशत ित वष थी वह ह रत ां ित के पहले चरण 1967-68 से
1980-81 म बढ़कर 5.7 ितशत ित वष हो गई। इस अविध म गेह ं उ पादकता क सं विृ दर
दुगनी हो गई। 1.3 ितशत ित वष से बढ़क 2.6 ितशत ित वष । इस चरण म, गेह ं उ पादन व
उ पादकता म तेज वृि का कारण देश के गेह ं उ पादन करने वाले अ छे िसं चाई यु दे श
पं जाब, ह रयाणा व पि मी उ र देश म उ नत िक म के बीज को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता
था। ह रत ां ित के इस थम चरण म गेह ं उ पादन व उ पादकता म तेज वृि होने के कारण, तथा
अ य फसल म िपछड़ापन बने रहने के कारण, इस चरण म ह रत ां ित को अ सर गेह ं ांित क
123
सं ा दी जाती है । पर तु 1980 के दशक म अ य फसल का िन पादन पहले समय क तुलना म
बहत बेहतर रहा। जैसा िक सारणी से प है, चावल उ पादन क संविृ दर जो 1967-68 से
1980-81 के बीच 2.2 ितशत ित वष थी, 1980-81 म 1989-90 के बीच बढ़कर 3.6 ितशत
ित वष हो गई। इसी दौरान चावल का उ पादकता क संविृ दी भी 1.5 ितशत ित वष से
बढ़कर 3.2 ितशत ित वष हो गई। 1980 के दशक म सबसे अ छा िन पादन ितलहन का रहा
िजनक उ पादन सं विृ दर 1967-68 से 1980-81 के बीच 1.6 ितशत ित वष से बढ़कर
1980-81 से 1989-90 के बीच 5.2 ितशत ित वष के तर को छू गई। इसी दौरान ितलहन
उ पादकता क सं विृ दर भी 0.7 ितशत ित वष से बढ़क 2.4 ितशत ित वष हो गई। जहां
दाल क उ पादन तथा उ पादकता सं विृ दर दोन ही 1967-68 से 1980-81 के बीच ऋणा मक
थ वहां 1980 के दशक म यह धना मक हो गई। इन सब त य को यान म रखते हए सी.एच.
हनुम त राव ने 1992 म कािशत अपने एक लेख म दावा िकया िक ह रत ांित के आरं िभक वष
म िविभनन फसल क सं विृ म जो असं तलु न पैदा हो गया था, वह िपछले कु छ समय से कम हआ
है ।
यह मरण रखना मह वपूण है िक खा ान व गैर खा ान के कु ल उ पादन म अिजत यह
वृि कृ िष यो य बनाए गए अित र कृ िष- े तथा ित हे टेयर अिजत आधेक उपज का
सि मिलत ितफल है ।
जोत के िलए अिधक जमीन को उपयोगी बनाने क ि से िवशेषतः पूव-ह रत ां ित
अविध म िवशेष उपलि ध अिजत क गई। इस दौरान नई जोत यो य जमीन को खेती के िलए तैयार
िकया गया तथा बं जर जमीन को कृ िष यो य बनाने के िलए िसंचाई सुिवधाओं को उन े तक
पहंचाया गया। 1964-65 के बाद जोत के सार क स भावनाओं म धीरे -धीरे िगरावट आने लगी।
भारत म ित हे टेयर उपज म भी बल वृि अंिकत हई। यह वृि अनेक कारक से
प रचािलत हई, जैसे िसं चाई सुिवधा का िव तार जोत के िलए सघन प ितय का योग, आिद।
आधुिनक कृ िष यवहार के वतन ने जैसे (वणसंकर बीज के योग) सभी फसल के संदभ म ित
हे टेयर उपज सतत बढ़ाने क िदशा म िनणायक योगदान िदया। 1962 के बाद सरकार ने
जीव-रायासिनक ौ ौिगक का शुभार भ िकया तािक कृ िष उ पादकता तथा कृ िष उ पादन, दोन
को अिभवृ िकया जा सके ।
पूव ह रत ाि त अव था िवषयक पहली अविध म खा ान का उ पादन भावशाली प
से 4.1% क वािषक वृि दर से बढ़ा। मुख खा ान (चावल व गेह)ं ने खड़े अनाज व दाल क
अपे ा कह अिधक ऊँची वृि दर अिजत क । इस दौरान गैर-खा ा न क वािषक वृि दर भी
भावशाली प से बड़ी।
दूसरी उ र-ह रत ाि त अविध के दौरान वािषक वृि दर काफ कम अंिकत क जा
सक । आधुिनक जीव-रासायिनक ौ ोिगक के योग ारा खा ा न म के वल गेह ं के उ पादन क
वृि दर को ही कायम रखा जा सका जो िक इस दौरान 6.3% ित वष िव मान रही। अ छी वषा
अथवा अ छी िसंचाई सुिवधाओं से स प न े तक आधुिनक कृ िष ौ ोिगक क पहंच ने खड़े
124
अनाज , ितलहन और दाल को अपे ाकृ त घिटया जमीन पर ढके ल िदया। इसके कारण इन फसल
ने न तो उ पादकता और न ही कु ल उ पादन के सं दभ म कोई मह वपूण वृि अिजत क ।
जीव-रासायिनक ौ ोिगक का चलन मुख खा ान के उ पादन के संदभ म रा य के
िह स म मह वपूण प रवतन के िलए उ रदायी रहा। उदाहरण के िलए, पं जाब, ह रयाणा व उ र
देश से िमल कर बने उ री े का िह सा चावल के कु ल उ पादन क ि से बढ़कर 10.4% से
22.5% पहंच गया जबिक चावल उ पादन मे उ र-पूव रा य (पि म बं गाल, उड़ीसा, िबहार,
असम व अ य उ र पूव रा य) का िह सा 38% से िगर कर के वल 28% ही रह सका। गेह ं के
मामले मे पि मी े से हट कर उ री े मुख प रवितत कृ िष-पैदावार का े बन कर उपि थत
हआ।
आधुिनक कृ िष ौ ोिगक तथा कृ िष उ पादन म आई मह वपूण वृि के बावजूद भारतीय
कृ िष अभी भी “मानसून के जुए ” क ि थित म या है । देश म आज तक बहत अिधक फसल
िवफलताएं तथा उ पादन के उलट-फे र च रताथ होते आए ह।
12.6.2 औ ोिगक े म वािषक वृ ि दर
िपछले लगभग चार दशक के दौरान औ ोिगक करण म अिजत ती वृि भारतीय
आिथक िवकास का एक िवल ण अनुभव है । सरकार ने 1948 तथा 1956 के औ ोिगक नीित
ताव के अंतगत सचेतन व संकि पत औ ोिगक करण ि या को वितत िकया। पं चवष य
योजनाओं ने उसे उ साहपूवक ि याि वत भी िकया। इस ि से सावजिनक व िनजी े म भारी
िनवेश िकया गया। सावजिनक े का िनवेश ायः कु ल यय के 23 से 24% के बीच िव मान
रहा। के वल थम योजना इस िनवेश कार का अपवाद था जब औ ोिगक िनवेश अनुपात के वल
6% था। अिधकां श िनवेश बड़े उ ोग पर िकया गया था।
योजना आयोग ने जो िवकास रणनीित अपनाई वह सी मॉडल पर आधा रत थी। इसम
भारी उ ोग के बल पर ती औ ोिगक करण क सं क पना क गई थी। इस औ ोिगक रणनीित के
िलए उ च ौ ोिगक मता के िवकास क महती आव यकता थी िजसने अपने म म बल,
ि याशील व वृि -उ मुखी अिभयां ि क े के िवकास पर बल िदया िजसम यं -िनमाण सं बधं ी
उ ोग क थापना सि मिलत थी।
औ ोिगक वृि क वािषक दर सभी पंचवष य योजनाओं म एक समान नह रही है ।
व तुतः वह घटावकारी ही रही है । थम योजना (1951-56) के दौरान सरकार ने औ ोिगक मोच
पर कोई बड़ा अिभयान नह लागू िकया। उसके अंतगत उ ोग का आवं टन कु ल यय का मा 6%
ही था। िफर भी, सरकार ने कु ल बड़ी औ ोिगक इकाईय क थापना अव य क जैसे िचतरं जन
लोकोमोिट स, इंिडयन टेिलफोन इंड ीज, इ यािद। लेिकन इससे अिधक मह वपूण त य था मुख
आधारभूत-सं रचना मक इनपुट्स के िलए िनयोजन। इसके तहत अनेक मूल उ ोग क थापना क
गई जैसे इ पात, रासायिनक खाद, मशीन के कलपुज, औषिध व दवाईय के कारखाने, इ यािद।
दूसरी योजना (1965-61) के अंतगत सावजिनक े के तीन इ पात सं यं थािपत हए। साथ ही,
125
रसायन कपड़ा उ ोग, सीमर, चाय, चीनी, कागज, आटा व तेल िमल , खदान आिद के िलए
मशीनी कलपुज बनाने के कारखाने भी थािपत िकए गए। य िप दूसरी योजना म अिधकां श
सावजिनक िनवेश भारी व मूल उ ोग के े मे िकया गया, िफर भी पटसन व सूती कपड़ा उ ोग,
चीनी इ यािद उपभो ा व तु उ ोग के आधुिनक करण व अ तन क िदशा म इस दौरान अ छी
गित उपल ध क जा सक । ऐसे सम त औ ोिगक करण के फल व प, िनयोजन के थम दशक
म उ ोग के े म 7.5% क वािषक वृि दर का अनुमान िकया गया। यह कृ िष े या समूची
अथ यव था ारा अिजत वािषक वृि दर से कह अिधक ऊं ची वृि दर थी।
दू सरे दशक के दौरान उ ोग क वृि दर
तीसरी योजना (1961-65) ने उ ोग, ऊजा व प रवहन को स म बनाने के िलए
अिधकािधक िनवेश का आ ह िकया तािक औ ोिगक व ौ ोिगक स ब धी प रवतन क
ि या तेज क जा सके । तीसरी योजना ने उ ोग के े म 14% क वािषक वृि दर क
सं क पना क । हालांिक तीसरी योजना अविध के थम चार वष के दौरान औ ोिगक उ पादन
7.6% क वािषक वृि दर से ही बढ़ सका। जबिक उ पादक व मूल उ ोग म वृि अ छी थी,
मुख उपभो ा साम ी (जैसे सूती कपड़ा व चीनी) के संदभ म वृि क यह दर के वल 1.3% से
2% के बीच ही रह पाई ।
1960 के दशक के उ रा म देश को ग भीर अकाल व यापक यापार मंिदय के दोर से
गुजरना पड़ा। ऐसी ि थित म 1966-67 के दौरान औ ोिगक उ पादन क वृि दर के वल 0.2% ही
दज हई जबिक 1967-68 के दौरान वह 0.5% अंिकत हई। चौथी योजना के थम दो वष म कृ िष
उ पादन म सुधार के फल व प औ ोिगक िनवेश तथा उ पादन कु छ अव य स भला। इन सभी
सम याओं के रहते िनयोजन क दूसरी अव था के दौरान औ ोिगक वृि क दर 5.5% ही रह
सक ।
िनयोजन के तीसरे दशक (1971-81) म औ ोिगक उ पादन क वृ ि दर
िनयोजन का तीसरा दशक औ ोिगक उ पादन के े म और अिधक िगरावट का काल
िस हआ। चौथी योजना ने 8% वािषक वृि का साधारण ल य वीकार िकया था। वा तिवक
वृि दर इस योजना अविध म के वल 5% ही उपल ध हो सक । ऐसा इस कारण हआ य िक
इ पात व रासायिनक खाद जैसे मूल उ ोग क काय- मता म िगरावट आई, पूं जीगत व तुओ ं से
सं बं िधत उ ोग म अपया िनवेश व त प रणामी कम उ पादन हआ तथा हड़ताल व असं तोष द
औ ोिगक सं बं ध के फल व प यापक उ पादन अवरोध उपि थत हआ। पां चवी योजना म
सरकार ने देश म आपातकाल लागू कर िदया तथा हड़ताल व तालाबंिदय पर ितबंध लगा िदया।
लाईसस हटाने क ि या का शुभार भ करते हए सरकार ने िनजी े एकािधकारी ित ान व
भारत म िनवेश क इ छु क िवदेशी कं पिनय िविनयोग ितबं ध दूर करने का उप म िकया। इन
सम त ो साहन के बावजूद पांचवी योजना के ारं िभक चार वष के दौरान औ ोिगक वृि क
औसत वािषक दर लि त 8.1% क तुलना म 5.3% ही दज हो सक । पांचवी योजना अविध म
औ ोिगक उ पादन म िशिथल वृि के िलए जो मुख उ रदायी कारक थे, उनम अनेक उ ोग म
126
िनधा रत मता का अभाव, ऊजा व प रवहन क कमी तथा यवधान त औ ौिगक सं बधं िवशेष
उ लेखनीय ह।
िनयोजन के तीसरे दशक म अंितम तीन वष के दौरान औ ोिगक े क काय णाली म
कोई उ लेखनीय सुधार नह हो सका। औसतन वािषक वृि दर इस दौरान के वल 4% ही रह पाई।
1980 के दशक म औ ोिगक वृ ि क दर
छठी योजना (1980-85) के दौरान औ ोिगक उ पादन म 7% वृि के ल य क तुलना म
उपल ध वा तिवक वृि क दर के वल 5.0% ही थी। इ पात, सीमे ट, अलौह धातु, रासायिनक
खाद, कपड़ा, चीनी, दवा व औषध-िनमाण, वािणि यक वाहन आिद के े म उ पादन म कमी
ि गोचर हई। मूल व भारी उ ोग क तुलना म अिभजन उपभो ा साम ी सं बधं ी उ ोग ने काफ
ऊं ची वृि दर अिजत क । िव तु व ऊजा म कटौती, आव यक क चे माल म भारी कमी, कई
सावजिनक े क इकाईय म घोर अ मता तथा खराब ौ ोिगक अ तनीकरण — ये सम त
कारण छठी योजना के दौरान औ ोिगक उ पादन ल य म िगरावट के िलए उ रदायी ह।
सातव योजना के िविनमाण े के िलए 8% क वािषक वृि दर का ल य िनधा रत
िकया था। वतमान सं केत थम दो वष के आधार पर इस वृि दर क पुि करते तीत होते है ।
उदाहरण के िलए, औ ोिगक उ पादन सूचकां क के अनुसार 1985-86 तथा 1986-87 के संदभ म
िविनमाण उ पादन मशः 9.7% व 9.0% बढ़ा। हालां िक 1987-89 के दौरान यह वृि घट कर
7.5% के प म उ लेखनीय सुधार तुत हआ। रजव बक ऑफ इंिडया के एक आकलन के
अनुसार 1989-90 के दौरान उ ोग जगत क 8 से 9% क वृि दर अिजत करने क बल
स भावना थी। उ िववरण से यह प है िक 1960 व 1970 के दशक के दौरान औ ोिगक
उ पादन म घटी वृि दर के 1980 के दशक म स भलने क पया स भावनाएं ह।
1991 के बाद म औ ोिगक वृ ि क दर

1990-91 म रा ीय आय म 4.9 ितशत वृि हई । 1991-92 म के वल 0.8 ितशत वृि हई।


आठव पंचवष य योजना क अविध म रा ीय आय म 6.5 ितशत वािषक वृि हई जबिक ल य
5.6 ितशत वािषक म के वल 0.8 ितशत था। आठवी पंचवष य योजना के दौरान रा ीय आय म
के वल 0.8 ितशत था। नव पंचवष य योजना के दौरान रा ीय आय 5.4 ितशत वािषक दर से
बढ़ी थी लेिकन दसव पंचवष य योजना का िन पादन उ साहव क रहा और इस योजना म रा ीय
आय म 7.6 ितशत वािषक तथा ित यि आय म 5.9 ितशत ित वष वृि हई। यारहव
योजना (2007-12) म रा ीय आय म औसतन 7.5 ितशत ित वष क वृि हई जबिक ल य
9.0 ितशत ित वष वृि का था। के ीय सां ि यक य संगठन ने 30 जनवरी 2015 को रा ीय
आय सं बं धी नई ं ृखला जारी क िजसका आधार वष 2011-12 है । इस नई ं ृखला के अनुसार
2012-13 म सकल घरेलू उ पाद म 5.1 ितशत तथा 2013-14 म 6.9 ितशत क वृि हई।
(जबिक 2004-05 को आधार वष मान कर तैयार क गई पहली ं ृखला के अनुसार 2012-13 म
सं विृ दर 4.7 ितशत तथा 2013-14 म 5 ितशत थी।)
127
12.7 आधारभू त सं रचना मक-सु िवधाओं ◌ं मवृ ि क दर
कृ िष सं बधं ी तथा औ ोिगक उ पादन ऊजा प रवहन स ेषण व संचार, बिकं ग व िव ,
िवपणन, इ यािद पर िनभर करता है । ये सम त सुिवधाएं व सेवाएं अपने सम प म भारतीय
अथ यव था क आधारभूत सं रचना कहलाती है । इ ह कु छ लोग ‘आिथक लागत ’ (इकानािमक
ओवरहेड्स) क भी सं ा देते ह। ती कृ िष व औ ोिगक वृि के िलए ये सम त सुिवधाएं अिनवाय
पूव-शत ह।
भारतीय िनयोजक ने पहली योजना से ही आधारभूत सं चरना मक सुिवधाओं के िव तार
को उ च ाथिमकता दान क । कु ल योजना मद का 40 से 45% भाग आधारभूत सं रचना मक
सुिवधाओं के िवकास के िलए सुरि त रखा गया । इस भारी िनवेश के फल व प 1950-51 से
लेकर अब तक आधारभूत सं रचना वृि के सं बधं म यहां संि उ लेख िकया जा रहा है ।
12.7.1 ऊजा एवं शि
िव तु शि आिथक िवकास का एक अिनवाय सं घटक है । घरेलू तथा वािणि यक
उपयोग सं बं धी िव तु आपूित क मां ग आज कई गुना बढ़ गई है । यह वृि जनसं या व आिथक
िवकास के सतत ऊं चे तर के कारण िवशेषतः कट हो रही है । इसका एक अिमट ल ण कृ िष म
िव तु शि का बढ़ता उपयोग है । इसके िलए ामीण िव तु ीकरण, उ थापक िसंचाई (िल ट
इ रगेशन) तथा प प सेट के ऊजा मक योग िवषयक अनेक काय म हाल के वष म
अिधकािधक वितत िकए गए ह। इनके प रणाम व प, िव तु शि के कु ल उपयोगीकरण म कृ िष
के भाग म नाटक य वृि तुत हई है । 1960-61 म यह भाग 6% था जो 1985-86 के दौरान बढ़
कर 19% हो गया। यह उ लेखनीय है िक इसी अविध म उ ोग का िह सा 69% से िगर कर 54%
ही रह सका। इसका यह अथ कदािप नह है िक औ ोिगक करण अब सु त हो चला है । इसका यह
भी अथ नह है िक उ ोग शि के अ य ोत क ओर याण कर रहे ह। यह अव य सच है िक
बड़ी औ ोिगक इकाईय ने अब अपनी वयं क शि संसाधन णाली इजाद कर ली है । वे अपने
उ पादन के िलए अब अपया व अिव सनीय सावजिनक सुिवधाओं पर ही आि त नह ह।
शि के उ पादन व िवतरण के िवषय म दो त य को समझना और उन पर पया यान
देना आव यक है । थम, िव तु उ पादन 1950-51 म 5 िबिलयन िकलोवॉट था जो बढ़ कर छठी
योजना के अंत तक 16 िबिलयन िकलो वॉट तथा 1987-88 म 20 िबिलयन िकलो वॉट हो गया
ि तीय, िकसी भी पंचवष य योजना ारा अपने काय-काल म अित र शि -उ पादन के ल य को
नह पाया जा सका। उपलि ध म यह कमी 16% से लेकर 40% (चौथी योजना) तक रही है ।
िनयोजन क इस मूल े िवषयक िशिथलता का यह सि मिलत भाव हआ है िक शि व ऊजा
के संकट ने अथ यव था क वृि - ि या का गला घ टने तक क नौबत ला दी। आज िबजली क
कमी और उसक िनयिमत अिनवाय कटौती ने ायः सभी रा य को त कर रखा है इस ि से
128
सवािधक दु भावी रा य पि म बं गाल है िजसक राजनीितक कारण से के सतत उपे ा कर रहा
है ।
शि के अभाव क यह सम या छठी योजना के बाद से शि के े म कट हई नई
गितशीलता के कारण अब कु छ स भलती/सुधरती जा रही है । तापीय िव तु शि म सतत सुधार
व िव मान मता के भावी उपयोगीकरण ने इस गितशीलता को तुत िकया है । एक आकलन
के अनुसार वयं छठी योजना क अविध म ही िव तु अभाव 16% से घट कर 6% रह गया था।
योजना आयोग के एक ताज़े अनुमान के अनुसार सातव योजना काल म अित र मता बढ़ाने
सं बं धी काय म ारा शि िवषयक सम त मांग सातव योजना क समाि तक संसािधत क जा
सकगी।
ऊजा के घरेलू उ पादन म काफ वृि होने क उ मीद है तथािप आयात पर भारी िनभरता
बनी रहेगी। सबसे अिधक आयात िनभरता तेल के े म है तथा यह िनभरता और बढ़ने क
सं भावना है (2011-12 म तेल आयात पर िनभरता 76.8 ितशत थी जो बारहव योजना के अंितम
वष 2016-17 म बढ़कर 78.1 ितशत तथा तेरहव योजना के अंितम वष 2021-22 म 82
ितशत तक पहंच जाने क सं भावना है । कोयले के आयात पर िनभरता 2011-12 म 18.8
ितशत से बढ़कर 2016-17 तक 21.7 ितशत तथा 2021-22 तक 25.9 ितशत रहेगी (अथात्
कु ल का एक चैथाई हो जाने क उ मीद है । ऐसा अनुमान है िक ऊजा के िलए कु ल आयात िनभरता
बारहव योजना के अ त म उतनी ही रहेगी 36 ितशत जो यारहव योजना के अ त म थी। पर तु
यह अनुमान इस मा यता पर आधा रत है िक हम कोयले, पे ोिलयम तथा ाकृ ितक गैस के िे षत
घरेलू उ पादन ल य को ा कर सकगे। यिद हम ऐसा कर पाने म सफल नह होते तो आयात
िनभरता और बढ़ जाएगी।
न वी पंचवष य योजना म िबजली क थािपत मता म 40,245 एमड यू वृि करने का
ावधान था। पर तु वा तिवक उपलि ध मा 19,015 MW रही हो जो ल य के आधे से भी कम
थी। लगभग इसी कार क ि थित दसव योजना म भी रही । इस योजना म िबजली क थािपत
चमता म 41,110 MW वृि के ल य के िवपरीत, वा तिवक उपलि ध मा 21,080 MW थी।
न वी तथा दसव योजनाओं म ल य को ा करने क असफलता से आ य नह होना चािहए।
िपछले वष म िव तु शि के िवकास क िज मेदारी अिधकतर रा य सरकार ने उठाई है । अब
कई रा य महसूस करने लगे ह िक बहत बडी पूं जी धान प रयोजनाओं को शु करना उनके बस
क बात नह है । 2012 तक अनुमािनत मां ग को पूरा करने के िलए यारहव पं चवष य योजना म
िबजली थािपत मता म 78,700 MW वृि करने का ल य रखा गया िजसम जल िव तु शि
का िह सा 19.9 ितशत , थमल िव तु शि का िह सा 75.8 ितशत तथा परमाणु ऊजा का
िह सा 4.3 ितशत था। बाद म इस ल य को संशोिधत िकया गया।
12.7.2 प रवहन और संचार
टेलीफोन ाहक क सं या 2003 म 7.65 करोड़ से बढ़कर माच 2014 के अ त म 93.3
करोड़ हो गई। इसका एकमा कारण बेतार कने शन मोबाइल कले शन म तेज वृि है । माच
129
2004 से मोबाइल कने शन क सं या 3.56 करोड़ थी जो माच 2014 के अ त तक बढ़कर 90
करोड़ 45 लाख हो गई। दूरसं चार घन व जो दूरसंचार पहंच का एक मह वपूण सूचक है , माच 2004
म 7.04 ितशत से बढ़कर नव बर 2014 म 77.12 ितशत हो गया।
भारतीय िनयोजक ने प रवहन व सं चार के िवकास को भी उ च ाथिमकता दी। पहली दो
योजनाओं के दौरान प रवहन व सं चार पर कु ल यय का 27 से 28% भाग सुरि त रखा गया। बाद
म यह आवं टन घटा िदया गया। इस आवं टन का अिधकांश रेलवे के िवकास क ओर मोड़ िदया
गया।
आिथक िनयोजन के ार भ से ही प रवहन े ने मह वपूण वृि अंिकत क है । भारतीय
रेलवे ने टन भार के आधार पर लगाए गए माल भाड़े म ित वष औसतन 3.1% क वृि अंिकत
क है । हालांिक दूरी व ल बाई के संदभ म यह वृि घटी िस हई जो िक व तुतः 0.4% ित वष
थी। सड़क माग य नेटवक 4.5 क वािषक दर से बढ़ा है जबिक सड़क प रवहन साधन म 6.8%
क वृि हई है । जहाजरानी लदान (टन के अिधभार म) भावशाली प से 11% बढ़ा है जबिक
मुख बं दरगाह पर आवागमन 1951 के 19 िमिलयन टन से बढ़ कर 1985 म 107 िमिलयन टन
हो गया। यह वृि 5% क भावकारी वािषक वृि क ोतक आधुिनक संचार णािलयां -डाक व
तार सेवाएं, दूरसं चार णाली रेिडयो सारण, टेिलिवजन व सूचना सेवाएं-िवकास ि या का एक
अिभ न अंग बन गई है । 1950-51 के बाद से समूचे देश म डाक सेवाओं का नेटवक लगातार
बढ़ता जा रहा है । वह अब ामीण, पहाड़ी तथा जनजातीय े तक अपनी पहंच बनाता जा रहा है
। दूरसं चार े नई तकनीक का अिधकािधक समावेश कर रहा है िजनम इले ोिन स, उप ह
सं चार व िविवध सारण नेटवक िवशेष उ लेखनीय ह। 1950-51 से 2013-14 क अविध के
दौरान जहां माग िकलोमीटर म वृि के वल 23 ितशत हई है वहां माल और या ी यातायात म
मशः 14 व 17 गुणा से भी अिधक वृि हई है ।
12.7.3 बिकं ग एवं िव
जब से देश म आिथक िनयोजन वीकार िकया गया है, बिकं ग यव था पया प से
लगातार बढ़ती जा रही है । इस वृि का कु छ आभास अनुसिू चत वािणि यक बक क
ि याशीलता से हो सकता है िजसे तािलका 1.3 दिशत कर रही है:
तािलका-1.3 : अनु सू िचत वािणि यक बक क वृि एवं ि याशीलता
वष बक क बक म जमा रािश (करोड़ . म) बक ऋण (करोड़ . म)
सं या
1950-51 430 82 580
1970-71 73 5,910 4,690
1988-89 275 140,000 81,000
2013-14 77,05,560 59,94,100
[ ोत : रज़व बक ऑफ इंिडया, रपोट ऑन करे सी ए ड फाइने स (िविवध अंक )]
130
1950-51 के बाद से बक क सं या म रजव बक क छोटे बक के िवलय एवं
समायोजन नीित के कारण कमी आई। इसका मंत य भारत म बिकं ग यव था को सु ढ़ करना है ।
1969 म बक के रा ीयकरण के उपरां त भारत म बिकं ग यवसाय म अ यिधक िव तार हआ है ।
1951 से 1971 क बीस वष क अविध म बक म जमा रािश 7 गुना अिधक बढ़ी। 1971 से
1989 के अगले 18 वष क अविध म तो यह वृि लगभग 30 गुना अिधक है । िपछले कु छ वष
के दौरान जमा रािशय तथा ऋण म यापक सार हआ है । बक वा तव म िवकास-उ मुखी हो चले
ह। बिकं ग अब बड़ी इकाईय के बजाय छोटी इकाईय पर अिभके ि त होती जा रही ह। अनेक नए
योग जैसे लीड बक योजना, े ीय ामीण बक, आिद बिकं ग णाली को अिधकािधक च रताथ
कर रहे ह। आिथक िवकास के साथ-साथ उसे कायकारण व प म बिकं ग यव था सतत िवकिसत
हो रही है ।
1951 के बाद से योजना आयोग ने अ य िव ीय सं थाओं म शानदार वृि होते देखी है ।
इनम टॉक ए सचज, छोटे िनवेशक के िनवेश को बढ़ाने वाला यूिनट ट ऑफ इंिडया, जीवन
बीमा िनगम, आई.एफ.सी.आई., आई.डी.बी.आई. तथा आई.सी.आई.सी.आई. िवशेष उ लेखनीय
है ।
1991 म बिकग यव था बहत कमजोर थी। बक के पास ऐसे बहत ऋण जमा हो गए थे
िजन पर उ ह याज क ाि नह होती थी। उधार क ये रािशयां सावजिनक बक के कु ल ऋण क
औसतन लगभग 25 ितशत थी, लेिकन सभी बक क ि थित कए जैसी खराब नह थी। सश
बक के पास याज न अिजत कर पाने वाले ऋण कु ल ऋण के 8-10 ितशत तक ही थे । पर तु
अनेक सावजिनक े के बक ने भारी हािनयां उठाई। लेिकन बाद के वष म ि थित म सुधार हआ
है और सावजिनक े के बक के याज न पाने वाले ऋण िज ह ना◌ॅन परफािमग प रसंपि यां
कहा जाता है । जो माच अ त 2004 म 7.4 ितशत थे, माच 2011 के अ त म 2.5 ितशत रह
गए। पर तु ि थित िबगड़ी तथा सकल ऋण के ितशत के प म सकल एनपीए बढ़कर माच 2012
के अ त म 3.1 ितशत था माच 2014 के अ त म 4.1 ितशत हो गए ।
12.8 सारां श
इस इकाई म आपके अ ययन को सुिवधाजनक बनाने के िलए आज़ादी के बाद से
अथ यव था क सम वृि दर तथा उसके िविवध े क े वार वृि दर का िवतरण तुत
िकया गया है । 1960 के दशक म महसूस िकए जाने वाली वृि म मंदी व िशिथलता क ि या पर
छठी योजना व उसके बाद कु छ भावी अंकुश अव य लगा है । इससे भारतीय अथ यव था क
उ रजीिवता प रपु होती है ।
12.9 कु छ उपयोगी पु तक
1. द एवं के .पी.एम.  इंिडयन इकॉनोमी
सु दरम
131
2. भारत सरकार, योजना  छठी व सातव एवं आठव पं चवष य योजनाओं
आयोग सं बं धी द तावेज
3. रज़व बक ऑफ इंिडया  रपोट ऑन करे सी ए ड फाईने स
4 िम एवं पूरी  भारतीय अथ यव था
12.10 िनब धा मक
1. भारतीय अथ यव था िनयोजन के थम दशक म अिजत वृि दर के व प पर अपने
िवचार य कर।
2. या आप मानते ह िक ि तीय योजना म औ ोिगक े म मह वपूण उपलि ध
अिजत क थी? स कारण उ र द।

132
इकाई – 13
भारतीय अथ यव था म संरचना मक प रवतन
इकाई क परेखा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 िविभ न कार के सं रचना मक प रवतन तथा भारतीय अथ यव था उ पादन क रचना म
प रवतन –
13.2.1 कृ िष े
13.2.2 औ ोिगक े
13.2.3 सेवा े
13.3 भारत म सेवा िनदिशत सं विृ
13.4 उपभोग क सं रचना प रवतन
13.5 जनसं या क यावसाियक सं रचना म प रवतन
13.5.1 रोजगार/ यावसाियक सं रचना म प रवतन
13.6 िनवेश क सं रचना –
13.7 िवदेशी यापार क सं रचना मे प रवतन
13.8 मू यां कन
13.9 कु छ उपयोगी पु तक
13.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
 समझ सकगे िक सं रचना मक प रवतन िकसे कहते है?
 जान पाएं ग िक िवकास के साथ - साथ प रवतन होते है?
 समझ पाएं ग िक वतं ता के 70 वष के उपरा त भारतीय अथ यव था मे इन सं रचना मक
प रवतन क या ि थित रह है ।
13.1 तावना
िवकास के पथ पर िनरं तर अ सर िकसी अथ यव था ारा जैसे - जैसे आगे बढ़ा जाता है
वैसे - वैसे अथ यव था के िविभ न े म कई आमूलचूल प रवतन िदखाई पड़ते है । यह प रवतन
अथ यव था के िविभ न े म पर परागत से आधुिनक म प रवितत होते हए कट होते है ।
अिधकतर अ पिवकिसत और खासकर िवकासशील अथ यव थाओं म यह प रवतन वृ द तर पर
133
िविभ न े म प झलकता है । इस कार के प रवतन अलग-अलग अथ यव था पर अलग
अलग रहा है । पर तु वृि एक समान िदखाई पड़ती है । इस कार िवकास के दौरान इन प रवतन
का भाव भारतीय अथ यव था पर भी पड़ा िजसका िववरण इस अ याय म तुत है ।
अथ - सं रचना मक प रवतन का अथ िकसी पर परागत समाज का आधुिनक औ ोिगक
अथ यव था म बदल जाना िजसम सामािजक तथा आिथक सं थाओं अथवा थाओं म प रवतन
शािमल होते ह।
प रभाषा - कु जनेट्स के अनुसार, आधुिनक आिथक वृि म ये सं रचना मक प रवतन सि मिलत
रहते ह - कृ िष से हटकर कृ िष िभ न ि याओं म सं ल न होना अथात् औ ोिगक क ि या, गांव
तथा नगर म जनसं या का िववरण, अथात् नगरीकरण क ि या, रोजगार तर, िविवध उ ोग के
साथ लगाव, ित यि आय के तर आिद के आधार पर रा के भीतर िविश वग क सापे
आिथक ि थित म प रवतन घरेलू उपभोग, पूं जी-िनमाण तथा सरकारी उपभोग म योग के आधार
पर उ पादन का िववरण, उ पादन का उसके मूल म रा क सीमाओं के भीतर तथा बाहर बंटवारे म
प रवतन।
इस कार तुत अ याय म हम पहले सं रचना मक प रवतन का िविभ न आिथक ि याओं पर
भाव तथा उसके उपरा त इन प रवतन का भारतीय अथ यव था के संदभ अ ययन करगे।
13.2 िविभ न कार के सं रचना मक प रवतन तथा भारतीय अथ यव था
उ पादन क रचना म प रवतन –
कु जनेट्स के अनुमान से पता चलता है िक िविभ न े के रा ीय आय म उनके भाग मे
प रवतन हए है । आधुिनक आिथक वृि के साथ उ पादन क रचना म ये प रवतन हए: कृ िष तथा
कृ िष से स ब उ ोग के भाग म कमी हई िनमाण तथा सावजिनक उपयोिगताओं का भाग बढ़ा
िविनमाण म भी कम िटकाऊ व तुओ ं का उ पादन होने क बजाय उ पादक व तुओ ं के िविनमाण
क ओर झुकाव बढ़ा, कु छ सेवा वग जैसे यि गत, यावसाियक अथवा सरकारी सेवाओं के भाग
म वृि हई और अ य वग के जैसे िक घरेलू नौकर के भाग कम हो गए ।
13.2.1 कृ िष े –
कु जनेट्स के अनुमान से पता चलता है िक 13 देश म से 12 िवकिसत देश म कु ल उ पादन म
कृ िष े का भाग पहले से कम हआ। के वल आ ेिलया ही एक ऐसा देश या िजसम कृ िष का
भाग ि थर रहा है 23 ितशत या अ य देश म तीसरे दशक क ारं िभक अविध म रा ीय उ पाद म
कृ िष का भाग 20 से 30 ितशत कम हआ।
यह यह बात भारतीय आंकड़ से भी प होती है । 1950-51 म साधन लागत पर सकल
घरेलू उ पाद म कृ िष का िह सा 53.1 ितशत या जो कम होते होते 2013-14 म 13.9 ितशत रह
गया। (2004-05 क क मत पर) 2011-12 को आधार वष मानकर तैयार क गई नई ं ृखला के

134
अनुसार मूल क मत पर सकल विधत मू य म कृ िष व सहायक गितिविधय का िह सा 2013-14
म 17.2 ितशत, 2014-15 म 16.1 ितशत तथा 2015-16 म रहा।
सारणी 13.1
े /उ ोग सकल घरेलू उ पाद (GDP) म िह सा (2004-05) क सकल विधत मू य (GDP) म
क मत पर) िह सा (2011-12) क क मत पर)
1950-51 2000-01 2012-13 to 2013-14 2013-14 2014-15
कृ िष 42.8 18.8 11.8 - -
सं बं धगितिविधयां 10.3 3.5 2.1 - -
ाथिमक े 53.1 22.3 13.9 17.2 16.1
कारण - कृ िष े के भाग मे कमी आने का कारण यह त य माना जाता है िक अ य े म यु
उ पादक साधन क अपे ा कृ िष े म म-पूित और पूं जी क मा ा बहत कम थी। एक अ य
कारण यह भी है िक य - य , अथ यव थाएं पहले से अिधक समृ हई, य य उनक ित
यि आय भी बढ़ती गई। प रणाम व प, कृ िष उ पादन के िलए ित यि मां ग उतनी तेजी से
नह बढ़ी और इस कार रा ीय उ पाद म कृ िष का भाग कम हआ। इस वृि का सै ाि तक एवं
तीसरा कारण - एं जल का प रवार िनयम है िजसके अनुसार य य प रवार क आय बढ़ती जाती है
य य प रवार के बजट म भोजन पर होने वाले यय का ितशत भी घटता जाता है ।
प रणाम व प भोजन का उपभोग घटजा जाता है जबिक व आवास अथवा िटकाऊ व तुओ ं का
उपभोग बढ़ जाता है ।
उपरो तीन कारण क चचा अब हम भारतीय अथ यव था तथा कृ िष े म
सं रचना मक प रवतन के संदभ म करते है तो पहला कारण भारत पर थोड़ा कम सही तीत होता है ।
सै ाि तक प म अ य दो े म वृि के प रणाम व प कृ िष े के िलए शेष बची म शि
क मा ा कम होती है । य िक जहां 1951 म कु ल म शि का 72.1 ितशत भाग कृ िष स ब
यवसाय म लगा हआ था वह अब भी 2011-12 म 48.9 ितशत कृ िष तथा सं ब यवसाय म
कायरत है । इस कार यह कारण भारतीय अथ यव था पर अपे ाकृ त कम लागू होता है । िजससे
एक भीषण सम या उ प न हई है और वह आय के िवतरण क सम या।
13.2.2 औ ोिगक े –
कु जनेट्स के अ ययन म 12 देश म रा ीय उ पाद म औ ोिगक े का भाग बढ़ा है ।
ारं िभक अविधय म औ ोिगक े का भाग कु ल उ पाद का 20 से 30 ितशत के बीच रहा
लेिकन बाद क अविध म यह बढ़कर 40 से 50 ितशत या अिधक हो गया। के वल आ ेिलया म
रा ीय उ पाद मे यह भाग 30 ितशत के लगभग ि थर रहा है ।
वही भारत म उ ोग (या ि तीयक े ) म खनन एवं उ खनन, िविनमाण, िनमाण, िव तु ,
गैस एवं जल आपूित को शािमल िकया जाता है । इस े का 2004-2005 क क मत पर )
1950-51 म सकल घरेलू उ पाद का िह सा 16.6 ितशत या और इससे लगभग सतत् प म वृि
हई है । 1990-91 म सकल घरेलू उ पाद म उ ोग का िह सा 27.7 ितशत था। 2012-13 म यह
135
िह सा 27.3 ितशत रह गया। (2004-05 क ं ृखला के अनुसार।) 2011-12 को आधार वष मान
कर तैयार क गई ं ृखला के अनुसार उ ोग का सकल विधत मू य म िह सा 2013-14 म 31.7
ितशत तथा 2014-15 म 31.4 ितशत था।
भारतीय अथ यव था म औ ोिगक े क सं रचना क िविभ न वृि य से पता चलता है िक
कृ िष से स ब उ ोग के भाग म कमी हई (सारणी 13.1 से) िविनमाण तथा सावजिनक
उपयोिगताओं का भाग बढ़ा (सारणी 02 के अनुसार। कु छ सीिमत मा ा म उपभो ा व तुओ ं क
बजाय उ पादक व तुओ ं के िविनमाण क ओर झुकाव बढ़ा। जहां तक िविनमाण े का सं बधं है ,
िवकासशील अथ यव था म इसका तेज िवकास होता है यही कारण है िक इस े के कु ल आकार
म सव प र काफ वृि हई है ।
जहां भारत म यह 1950-51 म सकल घरेलू उ पाद का 9.2 ितशत (2004-05 क
क मत के आधार पर) था वह 2011-12 को आधार वष मानकर तैयार क गई नई ं ृखला के
अनुसार 2013-14 तथा 2014-15 म सथला विधत मू य म िविनमाण का िह सा 18.2 ितशत
रहा है । सकल घरेलू उ पाद म िविनमाण े के िह से म वृि उपे ाकृ त कम रही है । जो गं भीर
िचं ता का िवषय ह य िक भावी आिथक िवकास क ि से तथा रोजगार के अवसर म िव तार
क ि से , इस े क भूिमका मह वपूण है ।
कारण –
िवकास के साथ साथ औ ोिगक करण को बढ़ावा िमलने के पीछे मुख कारण है -
तकनीक गित तथा शहरी े म , भोजन तथा आवस क मां ग को पूरा करने के िलए उ ोग
तथा सेवा े क आव यकता महसूस हई िजससे औ ोिगक करण को बढ़ावा िदया। शहरी े
म ओ ोिगक करण के प रणाम व प इन े क िवशेष आव यकताओं के िनयमन तथा शासन
के िलए सरकारी सेवाओं क भी मां ग बढ़ी।
13.2.3 सेवा े - कु छ सेवा वग के जैसे िक यि गत, यावसाियक अथवा सरकारी सेवाओं के
भाग म वृि हई और अ य वग के जैसे िक घरेलू नौकर के भाग कम हो गए। जहां तक 1954-56
क अविध के िलए सेवा े क सं रचना का सं बं ध है िजसके आंकड़े अब उपल ध है, 09
िवकिसत देश (इं लै ड, ां स, बेि जयम, पि मी जमनी, नीदरलै ड, उनमाक, नाव, कनाडा तथा
सं यु रा य अमे रका) के औसत भाग से पता चलता है िक वािण य ( यापार एवं िव ) रा ीय
उ पाद के 14-15 ितशत के िलए उ रदायी था आवास के वािम व का भाग 04 ितशत म कम
था, और सरकार एवं र ा का भाग रा ीय उ पाद के 07 ितशत से अिधक या अ य सभी िनजी
सेवाएं यावसाियक िनजी एवं यापार रा ीय उ पाद के लगभग 10 ितशत के िलए उतरदायी रह ।
भारत म योजना अविध के दौरान सेवा े का तेजी से िवकास हआ। 1950-51 म सकल घरेलू
उ पाद म सेवाओंका िह सा 30.3 ितशत था और यह 2013-14 म लगभग 60 ितशत तक जा
पहंचा। (2004-05 क क मत पर) 2011-12 को आधार वष मानकर तैयार क गई नई ं ृखला के
अनुसार, सकल विधत तम य म सेवाओं का िह सा 2013-14 म 51 ितशत तथा 2014-15 म
52.5 ितशत था।
136
सारणी 13.2
.सं. े /उ ोग सकल घरेलू उ पाद (GDP) म िह सा सकल विधत मू य (GDP) म
(2004-05) क क मत पर) िह सा (2011-12) क क मत
पर)
01 यापार, होटल, 11.3 21.6 26.4 18.8 19.4
प रवहन एवं सं चार
02 िव यव था, बता 8.5 14.1 20.6 19.7 20.5
थावर स पदा एवं
यावसाियक सेवाएं
03 सामु दाियक, सामािजक 10.4 14.7 12.9 12.6 12.6
र वे , वैयि क सेवाएं
सेवा े (1+2+3) 30.3 50.4 59.9 51.1 52.5

ोत 1 रजव बक ऑफ इि डया है ड बुक ऑफ टेिट स आन इि डयन इकोनोमी 2011-12 (मु बइ 2012) े वार GDP/GAD
म िह सा ( ितशत म)
ोत - रजव बक ऑफ इंिडया, है डबुक ऑफ टेिट स ऑन इंिडयन इकोनोमी, 2011-12 (मु बई 2013)
2 रजव बक ऑफ इि डया, है डबुक ऑफ टेिट स ऑन इि डन इकोनोमी 2014-15 (मु बई 2015 सारणी 02 पृ.सं. 8-10)

13.3 भारत म सेवा िनदिशत सं वृ ि


अ) सकल घरेलू उ पाद म सेवा े के िह से म िनरं तर वृि
1950-51 म कृ िष सं ब गितिविधय का े सबसे मह वपूण े था और इसका सकल
घरेलू उ पाद म िह सा 53.1 ितशत था। उ ोग का िह सा मा 16.6 ितशत था और सेवा े
का िह सा लगभग 30 ितशत था। आयोजन क ि या शु होने पर, उ ोग व सेवाओं के िह से
म वृि हई और कृ िष के िह से म िगरावट। 1980-81 तक आते आते सकल घरेलू उ पाद म सेवा
े का िह सा 38.0 ितशत तक पहंच गया जो कृ िष े के िह से से अिधक था। (इस वष कृ िष
े का िह सा 36.1 ितशत था)। 1980-81 मे उ ोग का सकल घरेलू उ पाद म िह सा 25.9
ितशत था। इसके बाद के वष म सेवा े के प म यापक सं रचना मक प रवतन हए ह।
2013-14 म सकल घरेलू उ पाद म सेवा े का िह सा बढ़ कर 59.9 ितशत तक पहंच चुका
था जबिक कृ िष व स ब गितिविधय का िह सा मा 13.9 ितशत था। (इस वष उ ोग का
िह सा 26.2 ितशत था)। 2011-12 को आधार वष मानकर तैयार क गई नई ं खला के अनुसार
सकल विधत मू य म सेवाओं का िह सा 2013-14 म 51 तशत तथा 2014-15 म 52.5
ितशत था। व तुतः िपछले कु छ वष से भारत म आिथक से वृि सेवा े ारा िनदिशत रही है ।
न वी योजना के दौरान भी जब संपणू आिथक सं विृ भी गित अपे ाकृ त कम रही, पर तु सेवाओं
का तेजी से िवकास जारी रहा। इसके अलावा 2002-03 के बाद से सेवा े म गित और तेजी से
हई िजसका मु य कारण सं चार सेवाओं (िवशेषतौर पर टेिलकॉम) यावसाियक सेवाओं (िवशेषतौर
पर सूचना ौ ोिगक ) तथा िव का तेजी से िवकास था।

137
सकल घरेलू उ पाद क संवृ ि दर म, सेवा े का िनरंतर बढ़ता हआ योगदान -
यही नह भारत क सकल सं विृ म भी सेवा े का िह सा िपछले दो दशक से 50 से
70 तशत के आसपास रहा है । वष 1991-92 से 1996-97 के म य पां च वष म सेवा े का
सकल घरेलू उ पाद म होने वाली संविृ मे लगभग आधा योगदान (49.8 ितशत ) था। जो वष
2011-12 को आधार वष मानकर तैयार क गई ं ृखला के अनुसार 2011-12 से 2014-15 के
बीच सकल विधत मू य म होने वाली वृि सेवा े का योगदान 72.6 ितशत था। शं कर आचाय
के अनुसार ‘‘यिद िनमाण क सेवा े म शािमल िकया जाए तो यह वृि और भी अिधक होगी।)
सारणी 13.3 े वार GDP/GAD म िह सा ( ितशत म)
े /उ ोग (GDP) म िह सा (%) आधार (GDP) म िह सा (%) आधार
वष (2004-05) वष (2011-12)
1950-51 2013-14 2013-14 2014-15
कृ िष 53.3 13.9 17.2 16.1
उ ोग 16.6 26.2 31.7 31.4
सेवाएं 30.3 59.9 51.1 52.2
साधन लागत पर 10.00 10.00 10.00 100.00
सकल घरेलू उ पाद
िट पिणयां - GDP = सकल घरेलू उ पाद, GAD = सकल घरेलू विधत मू य
ोत 1 रजव बक ऑफ इि डया है ड बुक ऑफ टेिट स आन इि डयन इकोनोमी 2014-15
(मु बइ 2015) सारणी पृ. सं. 11-13
तािलका 13.4 े वार GDP/GAD म िह सा ( ितशत म)
े /उ ोग (GDP) म िह सा (%) आधार (GDP) म िह सा (%)
वष (2004-05) आधार वष (2011-12)
1991-97 2008-14 2011-12 से 2014-15
कृ िष 21.1 9.1 4.7
उ ोग 29.0 21.1 22.7
सेवाएं 49.8 69.8 72.6
साधन लागत पर GDP 100.00 100.00 100.00
िट पिणयां - GDP = सकल घरे लू उ पाद GAD = सकल घरे लू विधत मू य
ोत 1 शं कर आचाय, समि अथशा दशन तथा नीितयां 2000-08, राके श एवं मोहन(ed.)
1 भारतीय अथ यव था: दशन और चु नौितयां (नई िद ली, सारणी 4.2 पृ.सं. 120
2 इकोनोिमक ए ड पािलटीकल िवकली, फरवरी 22, 2014 पृ सं. 87
उपरो दी गई सारणी 13.3 एवं13.4 िववरण से प होता है िक भारत म सं विृ , सेवा
े ारा िनदिशत रही है । कु छ िवकास अथशाि य ने तक िदया है िक हाल के वष म सेवा े
का बढ़ता हआ िह सा अथ यव था म हो रहे । सं रचना मक प रवतन तीक है । पर तु इस संदभ म
138
यह उठता है िक या यह िवकास का प वहनीय या धारणीय है अथात् या आिथक सं विृ
गित को बनाए रखने के िलए सेवा े पर िनभरता बनाई रखी जा सकती है । कु छ अथशाि य का
तक है िक सेवा े के वल अपने बूते पर िवकास क मौजूदा ि या व ढाँचे को ल बे समय तक
बनाए नह रख सकता ।
भारतीय अथ यव था के संदभ म यह उ लेखनीय है िक जीएडी म जहां कृ िष का अंश
2014-15 म 13.9 ितशत हो वह दूसरी और कु ल म शि का 48.9 ितशत िह सा अभी भी
कृ िष एवं स ब कायकलाप म कायरत है जो आय के िवतरण म भारी असमनता का कट करता
है जो भिव य क और संकेत करता है ।
कारण - सेवा े मे इस कार क वृि खासतौर पर भारतीय अथ यव था के संदभ के पीछे
अनेक कारण मौजूद है । िवकास के साथ-साथ ित यि उपभो ा आय म वृि ने सेवाओं क
िवशेष प से परचून यापार म मां ग बढ़ा दी। व तु उ पादन क बदलती सं रचना के साथ, िव ापन,
िव ीय तथा िमलती जुलती सेवाओं क मां ग भी बढ़ी। बढ़ते नगरीकरण से, पुिलस सफाई
जन वा य िश ा आिद म शहर म सरकारी नौक रय क मां ग बढ़ी। ित यि उपभो ा आय म
वृि ने भी मनोरं जन, वा य, िश ा तथा अ य यावसाियक सेवाओं क मां ग बढ़ा दी। उपभो ा
िटकाऊ व तुओ ं के अिधक योग म मर मत सं बं धी सेवाओं क मां ग म बहत अिधक वृि हई कु ल
िमलाकर सेवा े क इस बढ़ी हई मां ग से कु ल रा ीय उ पाद का भाग लगभग ि थर हो गया है ।
13.4 उपभोग क सं रचना प रवतन
ोफे सर कु जनेट्स ने मु य प से पांच मद के अ तगत उपभो ा य शि क सं रचना म प रवतन
ल य िकए ह। अनुमान म (1) भोजन (2) म व त बाकू (3) व तु (4) आवास तथा (5) अ य
सि मिलत है । ‘अ य’ के अ तगत घर का फन चर ओरसामान कार, िचिक सा, मनोरं जन इ यािद
मद रखी गई ह। सरकार आवास , िश ा, वा य और अ य सेवाएं छोड दी गई है य िक इ ह
घरेलू उपभोग म सि मिलत िकया गया है । भारत के सं दभ, नई आिथक नीित के उपरा त
अथ यव था क ती सं विृ दर ने भारत म ित यि यय ती गित से बढ़ाया है िजससे सुधार
पूव के उपभोग ित प तथा सुधार उपरा त उपभोग ित प क सं रचना म काफ अ तर आया है ।
जहां 1970 से 1990 क अविध म खा पदाथ पर यि गत अंितम उपभोग यय 51.7 ितशत
से घटकर 48.4 ितशत के तर पर आ गया और गैर खा पदाथ पर यय 48.3 ितशत से
बढ़कर 51.6 ितशत हो गया था। 1990 - 91 वह सुधार के प ात यह खा पदाथ पर और
घटकर 49.9 ितशत से 35.4 ितशत रह गया था। (1990 से 2004 -05 क अविध के िलए)
जबिक गैर खा पदाथ पर यह यय 50.1 ितशत से बढ़कर 64.6 ितशत हो गया। इस कार
उपभोग ित प म भी प रवतन सं रचना मक प रवतन क और सं केत करता है ।

139
उपभोग ित प
तािलका 13.5 यि गत अं ितम उपभोग यय (आधार वष 1999-2000)
मद सु धार पू व अविध सु धार उपरा त अविध
1987-88 1990-91 1991-92 2004-05
रािश ितशत रािश ितशत रािश ितशत रािश (Rs.) ितशत
(Rs.) (Rs.) (Rs.)
खा पदाथ 213613 51.7 147305 48.4 17567 49.9 611949 35.4

गैर खा 199344 48.3 156878 51.6 17727 50.1 1118367 64.6


पदाथ
कु ल िनजी 412957 100 304183 100 35494 100 1730316 100
यि गत
/अं ितम यय
ोत - सवनीत िसंहा, इि डयास, चनिचं ग, कस पसन, पैट , ानपथाएकमेन, जनरल मैनजमै ट, 40.5 Issue
सारणी 2
कारण - उपभोग ित प म यह प रवतन य हआ इसका अ ययन करने पर यह ात होता है िक
मोटे प से इसके पीछे िज मेदार कारण को तीन भाग म िवभ कर सकते है ।
1. जीवन यापन क प रि थितय म प रवतन –
उ पादन के सं रचना मक प रवतन के प रणा व प जीवनयापन क ि थितय म भी प रवतन
आया िजससे उपभोग के ित प म प रवतन आना वाभािवक है । नगरीकरण क ि या म
प रवार अथवा गां व तक सीिमत गैर-बाजार ि याओं से हटकर यापार फम क िवशेषीकृ त
बाजार ि याओं म लगना ारं भ कर िदया। एक समय था जब पर परागत प से खा सं र ण
कपड़े िसलाई, भवन िनमाण और मकान क मर मत का काम बहत कु छ घर म ही या िफर
सामुदाियक य न से गां व म ही कर िलया जाता था। आज आधुिनककृ त नगरीय समाज म इनमे
से अिधकतर काय समाज म यापार फम करती है । शहरी जीवन उपभोग तर को बदला है
य िक उसम दशन भाव का ो साहन िमलता है । य िक उसम दशन भाव को ो साहन
िमलता है और नई उपभो ा व तुओ ं क सं वेदनशीलता बढ़ती है ।
2. ौ ोिगक प रवतन –
ऐसे प रवतन उपभो ा व तुओ ं को भािवतकरते ह य िक वे नए कार क व तुएं अि त व म
लाते है । ओर पुरानी व तुओ ं म मुख प रवतन ला देते है । भोजन तक के सं बं ध म आधुिनक
िड बाबं दी तथा िहमीकरण आिद ऐसी नई ि याएं है जो आहार के िलए कु ल मां ग म परतवन
ला देती है । इस तरह के ौ ोिगक य प रतवन उस समय और भी अिधक यान आकिषत करते
है जब वे िनां त नई उपभो ा व तुएं अि त व मे लाते है जैसे िकम मानव - िनिमत व , िबजली
के घरेलू यं , रेिडयो, टेिलिवजन सेट, एल.ई.डी टाटा काई, कार, वायुयान, प रवहन दूर व
सं चार के उपकरण जैसे मोबाईल फोन माट फोन आिद। िजनसे उपभोग के ित प म प रवतन
आने क अपार सं भावना िव मान रहती है ।
140
13.5 जनसं या क यावसाियक सं रचना म प रवतन
रोजगार तर, तथा यावसाियक प रवतन और इनमे स ब आय िवतरण म प रवतन भी
उपभोग यय को भािवतकरते है । जब म शि के भीतर ही ऐसे प रवतन होते है जैसे -
कु शलता, िश ण एवं िश ा के नीचे तर से बाबूिगरी क और अ सर होना, तो इनम भीह
उपभो ा यय बढ़ता है । बं धक य एवं यावसाियक िमक क बढ़ती सं या जीवनयापन के एक
यूनतम तर तथा मब उपभो ा य क मां ग करते है जो िक इतनी ही आय वाले यि एवं
यापा रय क मां ग से कह अिधक होती है, और उससे उपभो ा य के तर तथा सं रचनाओं म
मह वपूण वृि हई है जैसे जैसे िवकास बढ़ता है म शि कृ िष तथा स ब ि याओं से
था नात रत होने से वे उ ोग तथा सेवा े म आधुिनक जीवन शैली म काय करती है और शहरी
वातावरण म रहती है िजससे उनका पर परागत उपभोग ित प भी प रवितत होता है ।
13.5.1 रोजगार/ यावसाियक सं रचना म प रवतन
आधुिनक आिथक वृि क ि या म, रोजगार क िदशा, तर तथा सं रचना म मह वपूण
प रवतन हए है । य य िवकास म गित हई, य य कु ल जनसं या म मशि का अनुपात
बढ़ता गया। इन रा के आिथक िवकास क ारं िभक अव थाओं म उनक जनसं या का 30
ितशत मशि के अ तगत था अिधक हाल के वष म उनक जनसं या का 40 ितशत से
अिधक भाग म शि मे रहा है । यह वृि इसिलए हई य िक जनसं या क आयु सं रचना म
प रवतन हआ, जनसं या क आयु सं रचना म प रवतन हआ, जनसं या के यावसाियक िवतरण म
प रवतन हए, लाभ द यावसाय म भाग लेने वाली ि य क सं या बढ़ती गई, म शि म वेश
क आयु सीमा घटी और सेवािनवृि क आयु सीमा घट गई।
1. कु ल मशि का कृ िष म भाग
भारत समेत येक देश म कृ िष म सं ल न कु ल म शि का भाग घटा है । पूव आधुिनक
अव था म कृ िष म म शि का भाग सं यु रा य अमे रका, जापान तथा स म 65 ितशत से
अिधक था और सामा यतः यह भाग 50 ितशत से कम नह था। िफर यह आधुिनक करण तथा
िवकास के साथ-साथ यह अिधकां श देश म के वल स और जापान को छोड़कर घटकर 20
ितशत से कम हो गया है । कृ िष े म रोजगार पर लगी म शि के भाग म होने वाली ये किमयां
उतनी ही बढ़ी थी िजतनी िक कु ल उ पाद म कृ िष के भाग म हई किमयां थी य िक कु ल म शि
म कृ िष े का भाग िगरा, इसिलए भारी सं या म लोग शहरी े म गए।
पर तु भारत इस सं दभ मे अपवाद रहा जहां सकल घरेलू उ पादन म कृ िष का भाग 1951 म
53.1 ितशत था जो घटकर 2014-15 म 16.2 ितशत पर आ गया पर तु कृ िष े म जहां कु ल
म शि का 72.1 ितशत िह सा कृ िष तथा स ब ि या-कलाप म कायरत् था वह। 2011-12
म थोड़ा सा घटकर अभी भी कु ल म शि का 48.9 ितशत िह सा है । सरकारी नीितयां कृ िष
े से बाहर रोजगार के अवसर बढ़ाने मे असफल रही है िजसके प रणाम व प कृ िष भूिम पर
जनसं या का दबाव बढ़ता गया है और यापक तर पर छ न बेरोजगारी क ि थित पैदा हो गई है ।
141
योजना आयोग को अपने द तावेज “Approach to the Fifth Plan” म यह वीकार करना पड़ा
था िक औ ोिगक करण क त कालीन दर पर कृ िष से गैर कृ िष े म म शि के यापक
थाना तरण का ही नह उठता। इसिलए कृ िष े म बढ़ रही म शि को कृ िष े म रोजगार
उपल ध करना होगा। 35 वष पव कह गई यह बात आज भी उतनी ही सही है िजतनी तब थी।
2. कु ल म शि का उ ोग े म भाग - िवकासशील देश क अपे ा येक िवकिसत देश म
उ ोग े म काम करने वाली कु ल म शि का भाग बढ़ा है, पर तु अनेक देश म यह वृि
िनरपे तया और सापे तया थोड़ी रही है । कई देश म यह वृि इकाई अंक म हई है । जैसे ां स,
इ लै ड, नीदरलै ड, इटली और आ ेिलया मे यह 1 से 5 ितशत अंक तक रही है । पर तु
डेनमाक, वीडन, कनाड़ा और स म यह वृि 10 से 20 ितशत रही है ।
भारत के सं दभ म देखा जाए तो स पूण औ ोिगक े पर नजर डालने से ऐसा लगता है
िक इस े म रोजगार के अवसर म वृि के ि कोण से योजनाओं के थम चार दशक म कु ल
उ लेखनीय नह हआ। 1991 म इस े म कायकारी जनसं या का 12.7 ितशत भाग लगा हआ
था जबिक 1951 म यह ितशत सं या 10.7 थी। पर तु 2001 तक पहंचते पहंचते प प रवतन
देता है । इस वष औ ोिगक े मे कायकारी जनसं या का 18.2 ितशत लगा हआ था। 2011 म
यह बढ़कर 24.4 ितशत तक पहंच गया।
सारणी 13.6: भारत म जनसं या का यावसाियक िववतरण
सारणी 13.6 भारत म जनसं या का यावसाियक िवतरण (1951 से 2011-12)
यवसाय 1951 1991 2011-12
कृ िष एवं सं बं ध यवसाय 72.1 68.8 48.9
उ ोग (1+2+3) 10.7 12.7 24.4
1- खनन एवं उ खनन 0.6 0.6 0.5
2- िविनिनमाण 9.0 10.2 13.2
(िबजली, गैस एवं जलापूित सिहत)
3- िविनमाण 1.1 1.9 10.6
सेवाए (4+5+6) 17.2 20.5 26.7
4- यापार एवं वािण य 5.2 7.5 11.4
5- प रवहन, भं डारण, एवं सं चार 1.5 2.8 4.4
6- अ य सेवाएं 10.5 10.2 10.9
कु ल 100 100 100
ोत- DCSO- Statistical Pocket Book 1991 (Delhi, 1991) Table 1.4 P.5
2 Tata Services Ltd. Statistical outline of India2009-10 (Mumbai 2010) Table 31 p 36
3 Institute of Human Development, India, London and Employment Report 2014 (New Delhi 2014) Table

जहां तक ओ ोिगक े के उप े के दशन क बात है

142
खनन एवं उ खनन का िह सा 1950-51 से 2011-12 तक लगभग कु ल म शि के 0.5 से
0.6 ितशत तक ि थर है । सवािधक िह सा िबजली, गैस तथ जला आपू ित सिहता िविनमिण े का
रहा है । सुधार अविध (1991 से वतमान तक) म यापक पैमाने पर िकए गए िनमाण काय के
प रणाम व प, इस े म कायरत म शि म तेज वृि हई है । जहां 1991 म कायरत शि का
के वल 1.9 ितशत इस े म कायरत था, वहां 2001 म 3.7 ितशत और 2011 म 10.6 ितशत
िनमाण े म लगा हआ था। इस कार म शि का दसवां िह सा अब िनमाण े म कायरत है ।
3. कु ल म शि का सेवा े म भाग -
िवकिसत देश क अपे ा येक िवकासशील देश म सेवा े मे काम करने वाली कु ल
म शि का भाग म बड़ी मा ा म िनरपे एवं सापे वृि हई है । पर तु कई िवकिसत देश जैसे
इ लै ड, बेि जयम, नीदरलै ड, वीडन तथा आ ेिलया म, सेवा े म सं ल न कु ल म शि का
भाग या तो ि थर रहा या िफर अपे ाकृ त कम बढ़ा कु छ अ य िवकिसत देश िवशेष प से
डेनमाक, नाव, इटली, सं यु रा य अमे रका, कनाड़ा जापान तथा स म, इस े म िनरपे तथा
सापे वृि 10 से 16 ितशत के म य दो अंक म वष क गई।
सारणी 13.6 को देखने से यह प होता है िक 1951 से 2011 के छः दशक म भारत म सेवा े
म कायकारी जनसं या का अनुपात बढ़ा है । यह नह , इस े के तीन उप े ( यापार व
वािण य, प रवहन, सं चार भ डारण इ यािद तथा अ य सेवाओं) के सापेि क मह व है । प रवतन
होते रहे है । आयोजन के थम चार दशक म (अथात् सुधार पूव अविध म ) यावसाियक सं रचना
लगभग अप रवितत रही । जैसा िक सारणी म प है, 1951 म कृ िष व स ब यवसाय म 72.1
ितशत तथा 1991 म 68.13 ितशत लोग कायरत थे। इसी कार का थािय व उ ोग तथा सेवा
े म भी िदखाई देता है । (जो 1951 म जीएडी के िह से के प म 30. ितशत से बढ़कर
2014-15 सकल विधत मू य का 52.3 ितशत हो गया। पर कु ल उ पाद म सेवा े के भाग म
होने वाली वृि क अपे ा कु ल म शि म सेवा े के भाग म हई सापे वृि (जो 1951 मे
सेवा े म कायरत म शि का अनुपात 17.2 ित ात से बढ़कर 26.7 ितशत हो गया। बहत
कम रह है िजसने आय के िवतरण क िवषमता को बढ़ाने का काय िकया है । इसके िवपरीत
िवकिसत देश म कु ल उ पाद म सेवा े के भाग म होने वाली वृि क तुलना म कु ल म शि
म सेवा े के भाग म वृि हई सापे वृि बहत अिधक रही है । सुधार प ात् क अविध के
दौरान भारतीय अथ यव था तथा ि तीय िव यु के उपरा त िविभ न देश के आिथक इितहास पर
ि पात कर तो यह प हो जाता है िक उनम यावसाियक सं रचना म जो आमूल प रवतन हए है
उनके मु य कारण िन न िलिखत है
1. जनसं या वृि क दर म तेज कमी।
2. कृ िष म म उ पादकता म तेज वृि
3. उ ोग का तेजी के साथ िवकास
4. सेवा े म नवाचार तथा रा ीय उ पाद म िनरं तर बढ़ता हआ अंश आिद।
143
5. बढ़ता हआ नगरीकरण ित प।
6. उपभोग, सं रचना म प रवतन
7. ित यि आय म वृि आिद।
13.6 िनवेश क सं रचना -
ोफे सर कु जनेट्स ‘पूं जी िनवेश’ क बजाय पूजी िनमाण श द के येाग क अिधमान देता है
य िक कभी कभी िनवेश श द का योग पूं जी व तुओ ं के य के िलए मु ा पूं जी खच करने क
ि या बताने या अिधक यापक अथ म, ितभूितय एवं अ य िव ीय दाव को ा करने के िलए
िकया जाता है । इसम य पर अथवा दाव क ाि पर नह बि क वा तिवक पूं जही म होने वाली
बढ़ोतरी पर बल है । इस कार कु जनेट्स िनवेश के थान पर सकलपूं जी िनमाण श द का योग
करता है । 1956-60 के दौरान, सभी िवकािसत देश म सकल रा ीय बचत सकल घरेलू पूं जी
िनमाण के लगभग बराबर थी। सकल रा ीय बचतो के लगभग 20 ितशत के िलए सावजिनक े
उ रदायी रहा िजसम सावजिनक िनगम भी सि मिलत थे। शेष के िलए िनजी िनगम एवं प रवार
उ रदायी रहे। भारत के संदभ म सकल घरेलू पूं जी िनमाण का अ ययन करने से यह बात प होती
है िक आयोजन क िकया शु होने से अब तक घरेलू पूं जी िनमाण िनवेश मे काफ वृि हई है ।
पर तु यह वृि बहत िनयिमत नह है िफर भी इस देश म पूं जी िनमाण के बारे म यह मह वपूण बात
है िक आज पहली पंचवष य योजना क तुला म िनवेश क दर काफ अिधक है ।
सारणी 13.7 सकल घरेलू पूं जी िनमाण
वष सावजिनक िनजी क मती कु ल सं भािवत ु िट समायोिजत
े े व तु ए ं दर
आधार वष 2004-05
1950-51 2.8 8.1 - 10.9 -1.6 9.3
1960-61 7.1 7.5 - 14.6 -0.3 14.3
1973-74 7.6 9.0 - 16.5 +0.8 17.3
1978-79 9.4 10.6 - 20.0 +1.1 21.1
1990-91 10.6 14.3 - 24.9 +1.1 26.0
2000-01 7.1 16.3 0.7 24.1 +0.9 24.3
2011-12 7.1 25.9 2.7 36.4 -0.9 35.5
आधार वष 2011-12
2011-12 7.5 29.1 2.9 39.6 -0.6 39.0
2014-15 7.4 25.2 1.5 34.1 0.1 34.2
ोत - भारत सरकार, आिथक समी ा 2015-16 (िद ली 2016) ख ड 2, सां ि यक य प रिश , सारणी 1.5 पृ.सं. A-18 से
A20

144
mijksDr सारणी 13.7 esa सकल घरेलू पूं जी िनमाण के समक देखने से यह प होता है िक भारत
म पूं जी िनमाण (िनवेश) क प रवतन क दर अलग अलग है । सकल अविधय मे अलग-अलग
रही है । इस स पूण अविध को हम दो भाग म िवभ कर सकते है
1. सु धारो से पू व क अविध -सु धार से पू व क अविध म 1951 से 1991 तक चार
दशक म सकल घरेलू पूं जी का िनमाण क दर अपे ाकृ त धीमी गित से बढ़ी है इसम
तीसरी पंचवष य योजना क अविध मे कमी भी देखी गई है य िक भारत चीन,
भारत-पाक के शु से पूं जी िनमाण क ि या को आघात पहचा इसके उपरा त
1963-64 एवं 1964-65 के अकाल व सू खे से ने भी इस पर ऋणा मक भाव डाला।
कु ल िमलाकर इस स पू ण अविध म पूं जी िनमाण क दर 9.3 से बढ़कर 26.0 ितशत
के तर पर आ गई पर तु इस स पू ण अिवध मे पूं जी िनमाण क दर गितहीन ही रही है

2. सु धार के प ात क अविध - ारं भ म जुलाई 1991 म नई आिथक नीित के घोषणा के
बाद सकल घरेलू बचत म भारी िगरावट देखी गई । 1991 म जहां तक 26.0 ितशत थी वह घटकर
1991-92 म 21.8 ितशत रह गई। अगले पूरे दशक म यह 1991 के तर से कम रही ।
1999-2000 म जाकर यह पुनः 266 ितशत के तर पर आई 11व पं चवषीय योजना क उ च
िवकास दर तथा 12 व पंचवष य योजना के थम तीन वष के बेहतर दशन से िनवेश क दर ने
ती वृि दर ा क जो 1999-2000 के 26.6 ितशत तर से बढ़कर 2011-12, 2012-13,
2013-14 और 2014-15 म मशः 39.0, 38.6, 34.7 तथा 34.2 ितशत के तर पर जा पहंची।
13.7 िवदेशी यापार क सं रचना मे प रवतन –
कु नजेट्स िवदेशी यापार का रा ीय उ पाद के साथ अनुपात को िकसी भी देश क दूसरे
देश पर व तुओ ं के िलए िनभ ता का मापद ड मानता है । आधुिनक आिथक वृि म 15 बडे
िवकिसत देश का िवदेशी यापार अनुपात उनका सकल रा ीय उ पाद बढ़ने के साथ साथ कम
होता गया। दूसरी और, िजन देश का सकल रा ीय उ पाद कम था उनके िवदेशी अनुपात बढ़े।
इसिलए आिथक वृि के सामा य िव ेषण से यह प होता है िक छोटे िवकिसत रा जैसे -
डेनमाक, सूडान आिद बड़े िवकिसत रा ो पर िनभर रहे है िजनके साथ वे यापार करते है । दूसरी
और यिद बात क जाए अ पिवकिसत तथा िवकासशील देश क जो काफ साल तक
औपिनवेिशक शोषण का िशकार रहे ह। यह शोषण इन पर शासन करने वाले िवकिसत औ ोिगक
देश ने िकया। िजसम शोषण का मु य मा यम ही िवदेशी यापार रहा था। यही कारण था जब भारत
सिहत अनेक अ पिवकिसत तथा िवकासशील रा वतं हए तो वे िवदेशी यापार व िवदेशी
िनवेश को सं दहे क नजर से देखने लगे। इसिलए उ ह ने िवदेशी पर यादा यान न देकर, घरेलू
बाजार क ओर अिधक यान िदया। इस कार इन देश ने अ मुखी नीितय को ाथिमकता दी।
145
इस कार क नीितय को आयात ित थापन नीित क सं ा दी जा सकती है । य िक इसके तहत्
घरेलू उ ोग को यापक सं र ण िदया गया, आयात व िवदेशी िनवेश पर य िनयं ण लगाए
गए तथा िविनमय दर को अवा तिवक तर तक ऊं चा रखा गया जो आवेरवै यूड इ सचज रेट
कहलाती है । जहां तक िनयात े का सं बं ध है उसम िनराशावादी ि कोण रहा।
पर तु 1960 के दशक के उपरा त बहत से देश से आयात उदारीकरण क नीित को खुले प से
अपनाया और काफ सफलता ा क ।इन देश क सफलता से े रत होकर बहत से अथशाि यो
तथा अ तरा ीय सं थाओं IMF तथा िव बक ने आयात उदारीकरण एवं िनयात ो साहन
नीितय को भारत जैसी अथ यव थाओं क सम याओं के िनदान के िलए अ य त आव यक
बताया। इन सुझाव को मानते हए भारत सरकार ने 1985 म यापार उदारीकरण क नीित को
अपनाने का यास िकया और 1991 म सरकार उदारीकरण क यापक नीित घोिषत क । 1991 के
प ात भारतीय अथ यव था को खोलने के कई यास िकए। िजससे िक 1995 म थािपत िव
यापार सं गठन WHO के तहत् उभर रही नई अ तरा ीय आिथक यव था के साथ भारतीय
अथ यव थ को जोड़ने (integration) म कोई सम या न आए। 1950-51 से लेकर वतमान तक
भारत के िवदेशी यापार क सं रचना मे कई प रवतन हए है िज ह हम िन निलिखत उपशीषक म
समझा सकते है -
1. औ ोिगक करण म ती गित के प रणाम व प पूं जी गित के प रणाम व प पूं जी
व तुओ ं और क चे माल के आयाम म वृि हई।
2. िनयां त ो साहन के िलए आयात के उदारीकरण के आधार पर क चे माल के आयात म
वृि हई है ।
3. देश के खा ा न एवं अ य उपभो ा व तुओ ं म कृ िष तथा औ ोिगक िवकास के
प रणाम व प आ मिनभर हो जाने के कारण खा ा न एवं उपभो ा व तुओ ं के आयात
म िगरावट आयी है ।
4. प ोिलयम, तेल और नेहको (Petroleum, Oil and Lubricant – POL) म
अ तरा ीय क मत म ती वृि और देशीय मां ग म तेजी से वृि होने के कारण भारी
वृि ।
5. हाल के वष म इले ोिनक व तुओ ं के आयात म तेज वृि हई है । 2014-15 म
इले ािनक व तुओ ं के आयात पर यय 36.872 िमिलयन डालर था जो इस वष के कु ल
आयात यय का 8.2 ितशत िह सा सूचना ौ ोिगक एवं मोबाइल ाि त के चलते
ऐसा हआ है ।
6. गैर िव तु ीय मशीनरी व उपकरण (Non-electrical) Machinery, apparatus and
appliances पर आयात यय म तेज वृि हई। इस मद पर यय 426 िमिलयन डालर था
जो 2014-15 मे बढकर 18106 िमिलयन डॉलर हो गया।

146
7. ह रत ांित के कारण उवरक पर आयात यय म काफ वृि हई है । 1960-61 मे यह 27
िमिलयन डालर था जो

सारणी 13.8 भारत के आयात व िनयात क सं रचना (आकार/मू य)


व तु ए ं आयात(Import)
1990-61 1990-91 2014-15
आकार िह सा कु ल आकार िह सा आकार िह सा
(िमिलयन का (%) (िमिलयन कु ल का (िमिलयन कु ल का
डालर) डालर) (%) डालर) (%)
1.खा उपभोग व तुएं 449 19.1 - - - -
i. अनाज और अनाज 380 16.1 102 0.4 117 0.0
उ पाद
2. क चे पदाथ और म यवत 1105 74.0 - - - -
व तुएं 10621 2.4
I. खा तेल 08 0.4 182 0.8
II. पे ोिलयम और लु ि कट 145 6.1 6028 25.0 138326 30.9
III. उवरक और उवरक साम ी 27 1.1 984 4.1 7399 1.7
IV. लोहा व इ पात 258 11.0 1178 4.9 16301 3.6
V. रासायिनक त व और योिगक 182 3.5 1276 5.3 23899 5.3
VI. मोित और बहमूय र न 02 0.1 2083 8.7 22598 5.0
VII. 7. अलौह धातुएं 99 4.2 614 2.5 49676 11.1
3. पूं जीगत व तुएं 747 31.7 6495 24.2 90170 20.1
I. गैर - िव तु ीय मशीनरी 426 18.1 2363 9.8 18106 4.0
II. िव तु ीय मशीनरी 120 5.1 949 3.9 12330 2.7
III. इले ािनक मशीनरी - - - - 36872 8.2
IV. 4. प रवहन सं बं धी 151 6.4 931 3.9 18345 4.1
उपकरण
4. अ य (अवग कृ त) 52 2.2 - - - -
कु ल (1+2+3+4) 2353 100 24075 100.00 448053 100.00
सारणी 13.8 म वष 2014-15 म बढकर 7399 िमिलयन डॉलर के पास पहंच गया है ।
िनयात म सं रचना मक प रवतन - सारणी 13.8 को देखने से एक बात प होती है वह यह है िक
समय के साथ साथ िनयात म कृ िष व उससे स ब व तुओ ं का मह व घटाता गया है तथा
िविनिमत व तुओ ं का मह व बढ़ता गया है । उदाहरण के िलए कु ल िनयात म कृ िष व उससे स ब
व तुओ ं का िह सा 1960-61 म 44.2 ितशत से कम 2014-15 म मा 12.7 ितशत रह गया है
। इसके िवपरीत इसी समान अविध म, िविनिमत व तुओ ं का िह सा 45.3 ितशत से बढ़कर 66.8
147
ितशत हो गया । यह बात अथ यव था क बदलती हई संरचना को दशाती है । एक िपछली हई
ाथिमक व तुओ ं पर आधा रत अथ यव था के थान पर अब भारत म एक गितशील औ ोिगक
े िवकिसत हो रहा है । के वल एक ही िविनिमत पर तु ऐसी है िजसके िनयात बढ़ नह पाए है और
वह व तु है जूट। अ य सं रचना मक प रवतन िन निलिखत है –
सारणी 13.9 भारत के आयात व िनयात क सं रचना (आकार/मू य)
व तु ए ं आयात
1960-61 1990-91 2014-15
आकार कु ल म आकार कु ल म आकार कु ल म
(िमिलयन िह सा (िमिलयन िह सा (िमिलयन िह सा
डाली) ( ितशत डाली) ( ितशत डाली) ( ितशत म)
म) म)
a. कृ िष व स ब 596 44.2 3521 19.4 39357 12.7
उ पादन 260 19.3 596 3.4 682 0.2
I. चाय 40 3.0 249 1.4 919 0.3
II. काजू िगरी - - 257 1.4 7855 2.5
III. चावल 10 0.8 535 2.9 5510 1.8
IV. मछली व मछली
उ पादन
b. अय क और खिनज 109 8.1 834 4.6 4680 1.5
(कोयले के अलावा)
I. क चा लोहा 36 2.6 585 3.2 525 0.2
3. िविनिमत व तुएं 610 45.3 13229 72.9 207087 66.8
I. सूती धागे , रे शा व उससे 136 10.1 1170 6.4 9458 3.0
िनिमत कपड़ा इ यािद
II. िसले िसलाए कपड़े 02 0.1 2236 12.8 16836 5.4
III. जूट उ पाद 283 4.0 166 0.9 367 0.1
IV. चमड़ा व उससे िनिमत 59 4.4 1449 8.0 6191 2.0
सामान
V. र न और आभूषण 02 0.1 2924 16.1 41248 13.3
VI. रसायन और स ब 15 1.1 1176 6.5 37335 12.0
उ पाद
VII. इंजीिनय रं ग व तुएं 46 3.4 2158 11.9 70959 22.9
IV. पे ोिलयम उ पाद 15 1.1 538 2.9 57405 18.5
(कोयले सिहत)
V. अ य 16 1.3 36 0.2 57405 18.5
कु ल 1346 100.0 18143 100.0 310147 100

148
आयात िनयात क वि यां
1. भारतीय अथ यव था का िविवधीकरण हो रहा है और गैर-पार प रक िनयात बढ़ रहा है जैसे
कृ िष व स ब व तुओ ं का िह सा िनरं तर घट रहा है जबिक िविनिमत व तुओ ं के िनयात म
िनरं तर वृि हो रही है ।
2. इजीिनय रं ग व तुओ ं के िनयात के िव तार का कारण औ ोिगक देश और म यपूव के देश म
भी इनक बढ़ती हई मां ग है । इन देश म आधार सं रचना ोजे ट जैसे सड़क, ब दरगाह , रेल -
िनमाण, टेली सं चार और नाग रक िनमाण - चालू िकए गए है । ख ड 2014-15 म इंजीिनय रं ग
व तुओ ं के िनमाता आय म थम थान है ।
3. भारत अ तरा ीय बाजार म मां ग क अनुकूल ि थित और आकषक क मत ि थित का लाभ
उठाने
4. जबिक कु छ व तुओ ं म िनयात अमता बहत ही अिधक है । जैसे ह तिश प, इंजीिनय रं ग व तुएं
और िसले एवं िनिमत व तुओ ं, लौहा एवं इ पात म भारी उतार चढ़ाव य हए है ।
5. नयी कृ िष नीित क घोषणा के प ात कृ िष व तुओ ं के िनयात पर बल िदया जा रहा है । चावल
का िनयात मह वपूण बनता जा रहा है । इसके अित र फल एवं सि जय और सािधत खा
पदाथ भी हमारे िनयात म मह वपूण बन गए है ।
6. हाल के वष म पे ोिलयम उ पाद के िनयातो म तेज वृि हई है । 2007-08 मे पे ोिलयम
उ पाद के िनयात 29030 िमिलयन डॉलर थे जो कु ल िनयात आय का 17.8 ितशत था वह
2014-15 म बढ़कर मू य 57405 िमिलयन डालर हो गया है । जो कु ल िनयात आय का
18.5 ितशत रहा है । इस वष भारत का कु ल िनयात आय मे इंिजिनय रं ग व तुओ ं के बाद,
पे ोिलयम उ पाद का दूसरा थान है ।
7. जवाहरात व आभूषण के िनयात म उ साह जनक वृि हई है । जहां 1960-61 म इनके िनयात
से के वल 02 िमिलयन डालर आय (जो कु ल िमयात आय का 0.1 ितशत थी) ा हई थ
वह 2014-15 म बढ़कर 37335 (कु ल िनयात आय का 13.3 ितशत) िमिलयन डालर क
आय हई। इस वष इंजीिनय रं ग व तुओ ं तथा पे ोिलयम उ पाद के बाद, जवाहरात व आभूषण
का िनयात आय म तीसरा थान रहा।
8. औ ोिगक करण के प रणा व प रसायन व स ब उ पाद के िनयात म वृि के प म भी
ितलि त होते है । 1960-61 म 15 िमिलयन डालर मू य के साथ कु ल िनयात आय म
िह सा 1.1 ितशत या जो 2014-15 म बढ़कर 37335 िमिलयन डालर (िनयात आय का
12.9) के तर पर पहंच गया। इस कार 2014-15 म रसायन व स ब उ पाद का िनयात
आय म चैथा थान रहा।

149
1991 के बाद भारत के िवदेशी यापार क सं वृ ि एवं सं रचना
1991 म भारत सरकार ने िवदेशी यापार े म ‘खुले धन’ क नीित अपनाई है । और
यापाक यापक उदारीकरण कदम उठाए है । मह वपूण उदारीकरण कदम उठाए है । मह वपूण
उदारीकरण कदम है - जुलाई 119 म पए का अवमू यन और बाद म मु य िवकिसत देशो क
मु ाओं क तुलना म मू य ास ), पए क पहले यापार पर त प ात सं पणू चालू खाते पर
प रवतनीयता, आयात शत का उदारीकरण - सीमा शु क दर म भारी कटौती , कई व तुओ ं को
खुले आयात करने क अनुमित, यािद। व तुतः 1991 म शु िकए गए िवदेशी यापार सुधार व
उदारीकरण के कारण यापार े म यापक प रवतन हए है और इनके प रणाम व प अ तमुखी
नीित (Inward Oriented Policy) के थान पर बा उ मुख नीित (Outward oriented
policy) को अपनाया जा रहा है । इन नीितय का िवदेशी यापार क सं रचना म प रवतन िन न है -
िवदेशी यापार का सार -
उदारीकरण के बाद से भारतीय यापार म तेज वृि हई है । 1990-91 म कु ल यापार क मा ा
42.2 िबिलयन डालर थी। (18.1 िबलयन डॉलर के िनयात और 24.1 िबिलयन डालर के आयात
) जो 2014-15 म बदलकर 7518.08 के िनयात और 448.03 िविलयम डालर के आयात )
यापार े म यापक उदारीकरण तथा खुलेपन क नीित के कारण 1991 के बाद क सुधार अविध
म भारत के यापार तथा सकल घरेलू उ पाद के अनुपात म सुधार आया है ।
मू यां कन
वतं ता ाि क पूव सं या पर जहां भारतीय अथ यव था एक औपनेिवशक तथ
पर परागत िपछड़ी अथ यव था के प म थी आजादी के बाद आयोजन क रणनीित के माग को
अपानते हए नीित िनमाताओं ने अथ यव था के आगे के माग को श त करने का िनणय िलया
और िवकास के ल य िनधा रत िकए समय के साथ साथ भारतीय अथ यव था ने इन ल य म से
कु छ को ा करने म समथ रटी और कु छ म असकल भी रही पर तु 70 साल के इितहास पर गौर
से ि पात करने पर यह प होता है िक िवकास के साथ-साथ भारतीय अथ यव था के िविभ न
े म कई कार के सं रचना मक प रवतन देखने को िमलते है । कई े ने अपने दशन को
बेहतर से बेहतर िकया और कई े अपने उ चतम से िन न क और आए। कु जनेट्स क िवकास
के अ तगत सं रचना मक प रवतन के िस ा त क अिधकतम बात स य सािबत होती तीत हई है ।
िवकास के साथ साथ अथ यव था के उ पादन, उपभोग िवतरण, िनवेश तथा यापार क संरचना म
कई आमूल प रवतन भरतीय अथ यव था के सं बं ध म देखने को ा हए।
13.8 मू यां कन
1. भारत म सेवा िनदिशत सं विृ से आप या समझते है?
2. िट पणी िलखो
150
1. भारत म सेवा िनदिशत सं विृ
2. उपभोग क सं रचना प रवतन
3. कु ल म शि का सेवा े म भाग
3 1991 के बाद भारत के िवदेशी यापार क सं विृ एवं सं रचना क या या क िजये ।
13.9 कु छ उपयोगी पु तक
1. द एवं के .पी.एम. सु दरम  इंिडयन इकॉनोमी
2. भारत सरकार, योजना आयोग  छठी व सातव एवं आठव पंचवष य योजनाओं
सं बं धी द तावेज
3. रज़व बक ऑफ इंिडया  रपोट ऑन करे सी ए ड फाईने स
4. िम एवं पूरी  भारतीय अथ यव था

151
इकाई -14
भारत म आधारभूत संरचना का िवकास
इकाई क परेखा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 ऊजा
14.2.1 ऊजा के ोत
14.2.1.1 पर परागत ोत
14.2.1.2 गैर- पर परागत ोत
14.3 भारत म प रवहन यव था
14.4 भारत म संचार णाली
14.5 डाक सेवाएँ
14.6 दूरसंचार
14.7 मू यां कन
14.8 कु छ उपयोगी पु तक
14.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप जान सकगे िक भारतीय अथ यव था म िकस कार
आधारभूत सं रचना का िवकास िवगत दशक म स प न हआ है ।
14.1 तावना
आधारभूत सं रचना का िवकास ,आिथक िवकास क मूल शत है । िकसी भी रा का
आिथक िवकास य ता कृ िष, उ ोग तथा सेवा े के िवकास पर िनभर करता है । वह दूसरी
ओर कृ िष –उ पादन के िलए िसंचाई ,ऊजा तथा प रवहन एवं संचार साधन जैसी आधारभूत
सुिवधाओं क आव यकता होती ह । औ ोिगक िवकास क िलए के वल मशीनरी ,सयं एवं
कु शल तकनीक ही नह चािहए बि क ऊजा ,बिकं ग, बीमा िवपणन सुिवधा, संचार एवं प रवहन
आिद सुिवधाओं तथा सेवाओं क आव यकता पड़ती ह । इन सभी सुिवधाओं एवं सेवाओं को
सामूिहक प से आधारभूत सं रचना अथवा आधार सं रचना (Infra Structure) क सं ा दी जाती
है और िकसी रा म कृ िष तथा औ ोिगक उ पादन को बढ़ाने के िलए इनका िव तार अिनवाय शत
है । िपछले 200 वष के दौरान इं लड, जापान एवं अ य देश म औ ोिगक एवं कृ िष ांितय के
साथ-साथ ऊजा, संचार व प रवहन िजसमे रेलवे , सड़के , जहाजरानी, इंटरनेट , टेलीफोन व मोबाईल
152
आिद तथा बिकं ग व बीमा जैसे िव ीय सं थाओंक सं या म भी भारी िवकास तथा बढो री हई है
। इनके िव तार तथा िवकास को ही आधारभूत सं रचना का िवकास कहा जाता है । आधारभूत
सं रचना को ाय: ‘आिथक एवं सामािजक उप र यय’(Economic and Social Overhead) भी
कहते है इसके अ तगत हम िन निलिखत सं घटक तथा सेवाओं क शािमल करते ह:-

वतं ता के प ात अवसं रचना का िवकास


भारतीय नीित-िनमाता , आधारभूत सं रचना और आिथक िवकास के म य स ब ध के ित
पूरी तरह जाग क थे इसी कारण िविभ न पं चवष य योजनाओं म इनके िवकास पर बल िदया गया ।
सामा यता योजनाओं म 50 ितशत से भी कु छ अिधक आधारभूत सं रचना के िवकास पर खच
िकया गया ।
िविभ न पं चवष य योजनाओं तथा तीन एक - वष य योजनाओं म आधारभूत सं रचना के
िव तार का यास िकया गया । थम पंचवष य योजना िजसका शुभारं भ सन् 1951 म हआ से
लेकर अब तक 12 पंचवष य योजनाएँ पूण होने को ह इसके अित र सन् 1966 से 1969 के म य
तीन वष के िलये एक-एक वष क तीन योजनाएँ भी रही है । भारत म येक पंचवष य योजना म
अलग–अलग े के आधारभूत उ ोग के िवकास क मह व दान िकया गया । पहली योजना
का उ े य मु य प से दूसरे िव यु के कारण अ त - य त अथ यव था क भावी िवकास के
िलए मजबूत आधार दान करना था । इस ि से उसम कृ िष उ पादन क बढ़ाने और आधारभूत
ढ़ाचे के िवकास पर जोर िदया गया था । दूसरी पंचवष य योजना म आधारभूत या बुिनयादी ढाँचे के
िवकास को के िब दु म रखकर िवकास काय को स प न करना था । दूसरी पंचवष य योजना
ोफ़े सर पी.सी.महलानोिबस ारा ितपािदत िवकास युि पर आधा रत थी , इसिलए इस योजना म
िवकास के िलए भारी उ ोग क थापना ज री समझी गई । वा तव म आधारभूत ढाँचे के िवकास
क न व भारत म ि तीय पंचवष य योजना म रखी गई । भारत म वतं ता क ाि के प ात से ही
153
भारी उ ोग और प रवहन एवं ऊजा के िवकास के बीच संतलु न रखना आव यक समझा गया ।
तीसरी पं चवष य योजना म कृ िष और औ ोिगक िवकास के बीच सं तलु न पर अिधक बल िदया
गया । ती जनसं या वृि दर एवं 1965 के भारत- पाक यु तथा भारत-चीन यु के चलते तीसरी
पं चवष य योजना सवृि क ि से पूरी तरह असफल रही और प रणाम यह हआ िक अथ यव था
ग भीर सं कट म फँ स गई । ि थित यही नह क बि क चौथी पंचवष य योजना को अगले तीन
साल तक थिगत करना पड़ा । इस तरह चौथी पंचवष य योजना 1966 के बजाय 1969 म शु हई।
इस कार 1966 म 1969 के म य तीन एक वष य योजनाओं का िनमाण हआ िज ह भारतीय
योजना काल म थम अवकाश के नाम से भी जाना जाता है िजसमे आधारभूत सं रचना के िवकास
म कोई मजबूत पहल नह क जा सक ।
चौथी पंचवष य योजना म सं विृ क गित को तेज करने के इरादे से ‘ि थरता’
(Stability) पर जोर िदया गया । इस योजनाकाल म िबजली और प रवहन जैसी आधारभूत
सं रचना के िवकास म किठनाइयाँ बढ़ गई । नतीजा यह हआ िक अि थरता के का िबना कोई
उिचत समाधान के कृ िष और आधारभूत उ ोग दोन ही े म िवकास काय धीमा पड़ गया ।
आधारभूत सं रचना के िवकास क ि से पांचवी पं चवष य योजना भी कोई अिधक सं तोषजनक
नह रही । छठ पंचवष य योजना म अथ यव था के कु छ खास पहलूओ ं पर िवशेष जोर िदया गया
जैसे :-(1) पूं जी टॉक के इ तेमाल म कु शलता के तर को सुधारना ; (2) िनवेश दर को ऊँचा
करना ; (3) िनवेश को सही े म करना ; (4) भुगतान संतलु न म बढ़ते हए घाटे को िनयं ण म
रखना इ यादी । इस योजना क अविध म कृ िष े म सं तोषजनक उ पादन वृि और सेवा े म
ती िवकास देखने को िमला जबिक दूसरी ओर औ ोिगक ,खिनज एवं आधारभूत सं रचना के
िवकास के मामले म वृि सं तोषजनक नह रही यही इस योजना का सबसे कमजोर प रहा ।
सातव , आठव तथा नव पंचवष य योजना म लगातार तीन योजनाओं म ऊजा े के िलए सबसे
अिधक सं साधन रखे गए । इसका कारण यह है िक आिथक व सामािजक िवकास क ि याओं को
बनाए रखने के िलए ऊजा का िवशेष मह व है । व तुतः ऊजा े का अपया िवकास देश के
औ ोिगक िवकास म एक बहत बड़ी बाधा बन सकता है । देश के आिथक व औ ोिगक िवकास म
प रवहन व संचार दूसरा ऐसा े है जो आधारभूत सं रचना के िनमाण म मह वपूण भूिमका रखता
है । इस कारण इसके िलए भी सावजिनक यय का लगभग एक चौथाई भाग आवं िटत िकया गया
था । पहली आठ योजनाओं म (पहली योजना को छोड़कर) आधारभूत सं रचना (ऊजा तथा
प रवहन व संचार ) तथा उ ोग व खनन को सावजिनक े क योजनाओं म लगभग साठ ितशत
सं साधन ा हए । यह िह सा नव पंचवष य योजना म 48% रह गया । िविभ न योजनाओं म
िसंचाई का कु ल यय म िह सा 6.5 ितशत से 10.0 ितशत के म य रहा है । दसव तथा यारव
पं चवष य योजना म सामािजक सेवाओं पर यय म बहत वृि हई । बारहव पंचवष य योजना ऊजा
सिहत आधारभूत सं रचना के े के िवकास पर िवशेष बल देती है य िक गुणव ापूण आधारभूत
सं रचना क उपल धता उ च वृि बनाए रखने के िलए ही नह वरन् इस समृि को समावेशी
बनाना सुिनि त करने हेतु भी है । बारहव पंचवष य योजना के दौरान आधारभूत सं रचना े म
154
कु ल िनवेश 56.3 लाख करोड़ पये (लगभग 1 िमिलयन अमे रक डालर) है जो यारहव
पं चवष य योजना म िकए गए िनवेश से लगभग दो गुना है । यह वृि त िनवेश मु यतया िनजी े
क बढ़ी हई भागेदारी के कारण यवहाय होगा जो प रकि पत है । अवसं रचना प रयोजन को
खोलने से सरकारी िनजी भागीदारी (पी.पी.पी.) और अिधक पारदश िविनयामक तं ने
अवसं रचना े म आपने उ ासन तर को बढान के िलए िनजी िनवेशको को े रत िकया है ।
अवसं रचना िनवेश म उनका िह सा दसव पंचवष य म 22 ितशत से बढकर 11 व पंचवष य
योजना म 38 ितशत हो गया और 12 व पंचवष य योजना म इसके बढकर 48 ितशत हो जाने
क सं भावना है । िफर भी अवसं रचना के िलए अपेि त आधे से अिधक सं साधन सरकारी े ,
सरकार और अध-सरकारी सं थाओं से आने क आव यकता होगी । इससे िव ीय गुं जाईश का
सृजन ही नह होगा अिपतु युि यु मू य िनधारण नीित के योग क ज रत भी होगी ।
14.2 ऊजा (ENERGY)
िकसी भी रा के आिथक िवकास का आधार ऊजा क उपल धता है भारत एक बड़ा
ऊजा-उ पादक और उपभो ा भी है । देश के आिथक िवकास के साथ – साथ ऊजा क खपत म
भी वृि होती है । वतमान म भारत िव का सातवां सबसे बड़ा ऊजा –उ पादक और पाचवां सबसे
बड़ा उपभो ा है ।
तािलका म िदए गए आंकडो से साफ संकेत ा होता है िक आिथक िवकास क
अिधक मा ा, देश क ित यि आय और ऊजा के उपभोग म प स ब ध है । भारत जनसं या
क ि से दुिनया का दूसरा सबसे बड़ा देश है ,पर तु इसक ित यि आय िन न है और इसम
ित यि ऊजा उपभोग भी बहत िन न है ।
तािलका 14.1 चु ने हए देश म 2008 म ित यि आय और ित यि ऊजा उपभोग
देश ित यि आय * (यू.एस. डालर ) ित यि ऊजा उपभोग
(तेल तु य िकलो ाम )
भारत 2930 529
चीन 6010 1484
इं लड 36,240 3464
जापान 35,190 4019
अमे रका 46,790 7766

* य शि समता के आधार पर
* िव बक, िव िवकास सूचक (2010)

155
14.2.1 ऊजा के ोत
भारत म ऊजा के मु य ोत मोटे तौर पर दो कार के है :-
(A) पर परागत ोत तथा
(B) गैर- पर परागत ोत
14.2.1.1 पर परागत ोत
ऊजा के पर परागत ोत के अंतगत उन ोत को शािमल िकया जाता है जो सामा यतया
यशील (Exhaustible) अथवा समा होने यो य है । इनमे जल –िव तु शि एक अपवाद है ।
पर परागत ऊजा ोत को वािणि यक ऊजा ोत के नाम से जाना जाता है य िक ये ऊजा
यापा रक ोत है अथात् इन ोत के िलए यो ाओ को इनके िलए क मत अदा करनी पड़ती है
: (i) कोयला (ii) तेल एवं गैस तथा (iii) िबजली या िव तु । जहाँ तक िबजली का स ब ध है,
इसम जल िव तु , तापीय िव तु (तेल एवं गैस से ा क जाती है) तथा परमाणु ऊजा को
सि मिलत िकया जाता है ।
कोयला
भारतीय भू-वै ािनक सव ण ारा भारत म कोयले का भं डार 01 अ ैल, 2014 को
301.56 िबिलयन टन होने का अनुमान लगाया गया है । कोयला भं डार मु यत: झारख ड ,उडीसा
,छ ीसगढ़ , पि म बं गाल , म य देश ,तेलगांना और महारा म पाए गए है । 2014-15 के दौरान
भारत म कोयले का सम उ पादन 630.25 िमिलयन टन अनुमािनत है । 2013-14 क तद पी
अविध के 3961.06 िमिलयन टन क तुलना म अ ैल –िदस बर ,2014 क अविध म वा तिवक
उ पादन 426.7 िमिलयन टन हआ था जो 9.1% क वृि को दशाता है । वतमान ेपण के
आधार पर भावी मां ग को ि म रखकर यह अनुमान लगाया गया है ये भं डार लगभग 130 वष के
िलए काफ़ है । कोयले को भारत म ऊजा का एक मु य साधन माना गया है । कु ल तापीय िव तु
के उ पादन म 80 ितशत भाग कोयले पर आधा रत िव तु उ पादन का है । िव तु या िबजली के
कु ल उ पादन म कोयले पर आधा रत िबजली उ पादन का िह सा लगभग 66 ितशत है ( अथात्
िबजली उ पादन का लगभग दो ितहाई कोयले ारा ा होती है) । अ य इंधन क तुलना म
कोयले क ि थित िभ न है य िक इसे अ य ऊजा ोत जैसे िबजली तथा गैस म आसानी से
प रवितत िकया जा सकता है । कोयले के मह व व देश म इसके भं डार को देखते हए योजना काल
के ार भ से ही कोयला उ ोग के वै ािनक आधार पर िवकास के यास िकये गये है ।
तेल और गैस ( Oil and Gas)
हालाँिक भारत म पे ोिलयम के भं डार सीिमत है , िफर भी ऊजा के इस ोत पर हमारी
िनभरता औ ोिगक तथा प रवहन िवकास के साथ – साथ िनरं तर बढती जा रही है साथ ही साथ
हमारे िलए यह भी अिनवाय हो गया है िक सरकार पे ोिलयम के घरेलू भ डार का पता लगाने के
िलए यास करे । इस काम को कम करने के उ े य से 1955 म तेल व ाकृ ितक गैस काप रेशन
(Oil and Natural Gas Corporation - ONGC) तथा 1959 म आयल इि डया िलिमटेड
156
(Oil India Limited-OIL) क थापना क गई । इनके यास के उ साहवधक प रणाम ा
हए । तीसरी पंचवष य योजना के अंत तक देश म ा य तेल का भ डार 17.2 करोड़ टन था । चौथी
योजना म तेल व ाकृ ितक गैस कॉरपोरशन ने सामुि क े म सव ण काय ार भ िकया जो िक
तेल के खोज के इितहास मे एक मह वपूण घटना थी । 1977 के अंत तक ा य भ डार 45.2
करोड़ टन तक पहँच चुके थे । वतमान म भारत के पास ा य तेल भ डार 77 करोड़ 50 लाख तन
है जो िव के के वल 0.42 ितशत तेल के भ डार है जो बहत कम है । उ पादन क वतमान दर को
देखते हए , भारत के िव मान भ डार 25-26 वष तक ही रहगे । सन् 1950-51 म भारत म तेल का
उ पादन मा 2.5 लाख टन था । जो िपछले चार वष (2011-12 से 2014-15) 380 लाख टन के
तर ि थर बना हआ है । अभी भी घरेलु उ पादन म वृि के बावजूद आयत पर अ यािधक
िनभरता बनी हई है । तेल आयत पर 2013-14 म िनभरता 83.4 ितशत थी । तेल आयात पर इस
भारी िनभरता से भुगतान शेष (BoP) दबाव क ि थित बन गई है । इसके अित र , भारतीय
अथ यव था क अ तरा ीय तेल क मत के ित ‘सवेदनशीलता ’ बढ़ गई है ।
पे ोिलयम का क चा तेल िजस प म पृ वी से िनकाला जाता है इसके उपयोग से पूव इसे
प रशोधन ारा साफ़ िकया जाता है । अतएव देश म खिनज तेल शोधन के िलए पया मता का
होना अ यं त आव यक है । सन् 1950-1951 म भारत म तेल शोधन मता के वल 2.5 लाख टन
ित वष थी । जैसे – जैसे तेल का घरेलू उ पादन और आयात बढ़ा, शोधन मता का िव तार िकया
गया । भारत वतमान म वैि क प रशोधन े म एक मुख भागीदार है 1 अ ैल, 2014 क ि थित
के अनुसार इसक प रशोधन मता 21.51 करोड़ टन तक पहँच गई है ।
भारत म गैस के शु ा य भ डार 1,119.55 अरब घन मीटर है । यह िव के गैस
–भं डार का के वल 0.7 ितशत है । अ ैल –िदस बर 2014-15 के दौरान गैस उ पादन 2013-14
क तदनु प अविध के दौरान 26.698 बी.सी.एम. क तुलना म 25.320 बी.सी.एम. था िजसमे
5.1 ितशत क कमी देखी गई । ाकृ ितक गैस के उ पादन म आई िगरावट का कारण बसेन तथा
सेटेलाइट फ ड म हआ कम उ पादन, एम एं ड एस ता ी म छह नए ि ल िकए कु ओं का कम
उ पादन ,के जी डी -6 म एक कु आ बं द ह ने तथा गेल पाइपलाइन दुघटना के कारण असं ब गैस के
कु एँ का बं द होना है । \उपरो िववरण से प त: यह झलकता है िक भारत अपनी आव यकताओं
क पूित के िलए ाकृ ितक गैस आयात पर काफ़ िनभर है 2011-12 म यह आयात िनभरता 22.7
ितशत थी और 2016-17 तक यह िनभरता बढकर 24.6 ितशत तक पहँच जाने का अनुमान है ।
देश म ऊजा िक बढती आव यकता को यान म रखते हए भारत सरकार ने क चे तेल
तथा गैस के उ पादन म वृि के उ े य से देश म अ वेषण और उ पादन के काय म ती ता लाने के
िलए बहआयामी कायनीित को अपनाया है िजसके अंतगत िन न यास िकए गए है :-
(i) नई अ वेषण लाइसिसं ग नीित (एनईएलपी) के मा यम से भारतीय तलछट बेिसन म
अ वेषण लाक दान कराना ।

157
(ii) हाइ ोकाबन के वैकि पक ोत का िवकास जैस-े कोल बेड मीथेन (सी .बी.एम.) तथा
शैल गैस
(iii) नए ोत जैसे गैस हाइ ेट्स के िलए अनुसं धान और िवकास
(iv) सुरि त तथा पयावरण प से अनुकूल प से ई ए ड पी ाचलन का करना ।
सरकार ारा उठाए जाने के िलए िन निलिखत नए नीितगत यास क पहचान क गई है तािक देश
म घरेलू क चे तेल और ाकृ ितक गैस के उ पादन को बढाया जा सके :-
एक सामान लाइसस नीित (यू एल पी)
ओपन एक रज लाइसस नीित
सावजिनक िव पोषण से भारतीय तलछट बेिसन का आकलन
गैर िवशेष बह- लाइंट मॉडल के मा यम से डेटा अिध हण
सीमा त े का िवकास
भारतीय तलछट बेिसन म हाइ ोकाबन संसाधन का पुन : आकलन ।
परमाणु ऊजा (ATOMIC ENERGY)
परमाणु ऊजा का िवकास हाल के वष म हआ है और यह कु ल िबजली क थािपत मता
का के वल 04 ितशत जुटाता है । भारत िव म उन चुिन दा देश म से है िज ह ने परमाणु ऊजा के
े म काफ़ गित क है । देश इस ौ ोिगक म आ मिनभर है तथा परमाणु ईधन ं च से
स बं िधत तमाम काय स प न करने क मता रखता है । भारत म परमाणु ऊजा क सहायता से
थािपत िबजली उ पादन मता 4560 िमिलयन वाट है । इस े म 2013-14 के दौरान िबजली
का उ पादन 34.27 िबिलयन िकलोवाट घंटा (Kilowatt hour) था । परमाणु ऊजा का उ पादन
यूरेिनयम तथा थो रयम क सहायता से िकया जाता है । भारत म यूरेिनयम के भ डार मा 34,300
टन है इसका िवतरण देश के भीतर आ देश, िबहार तथा राज थान म है । भारत म थो रयम के
भ डार 3,36,000 टन है ।थो रयम का ोत मोनाजाईट (Monazite) है । यह भारत म के रल,
कनाटक तथा िबहार म पाया जाता है ।
भारत म परमाणु ऊजा का िवकास काय म का उ े य आ मिनभरता ा करना है । पर तु
िफ़लहाल इस यापक काय म को कायाि वत करने के िलए यू लर पावर काप रेशन (Nuclear
Power Corporation) के पास उपयु मा ा म िव ीय संसाधन उपल ध नह है ।
िव ु त –शि या िबजली Power or Electricity
िव तु शि जो क ऊजा का एक प है, आिथक िवकास का एक अिनवाय अंग है इसक
आव यकता वािणि यक एवं गैर- वािणि यक उ े य के िलए पड़ती है ।पावर के वािणि यक
158
योग के िलए इसक आव यकता उ ोग ,कृ िष एवं, प रवहन आिद म होती है । गैर – वािणि यक
(Non-commercial uses) योग के िलए इसक आव यकता पा रवा रक रोशनी, खाना पकाने
,घरेलू उपकरण जैसे ि ज ,टेलीिवजन,कू लर आिद के िलए होती है । भारत म ती औ ोिगकरण,
कृ िष िवकास एवं सबसे मुख जनसं या क वृि के चलते िबजली के उपयोग म बहत अिधक
वृि हई है । ऐसा कोई भी े नह है जो िबजली क कमी से भािवतनह है । सावजिनक े क
िव तु शि इकाइय ारा उ प न पावर के उपभोग का ढांचा तािलका म िदया गया है ।
तािलका 14.2 : िबजली का उपभोग ढांचा (िवतरण ितशत म )
े 1950-51 1970-71 2008-09
उ ोग 63 68 37.1
कृ िष 04 10 20.4
रेलवे उ कषण 07 03 2.2
सावजिनक रोशनी 13 10 15.6
पा रवा रक उपभोग 13 09 24.7
योग 100 100 100
ोत: भारत सरकार ; आिथक समी ा (2010-11)
िबजली के योग क मुख िवशेषता यह है िक कृ िष म इसका िह सा 1951 से िनरं तर बढता जा
रहा है । भारत िनमाण एवं ाम िव तु ीकरण ो ाम के कारण पावर क मां ग िसं चाई और प पसेट
को शि दान करने के िलए ितिदन बढती जा रही है । यही कारण है िक कृ िष म िव तु उपभोग
का िह सा 4 ितशत से बढकर 20.4 ितशत हो गया है । भारत म योजना काल के दौरान िबजली
उ पादन मता म िवकास काफ़ हआ है । जहाँ सन् 1951 म देश म िबजली उ पादन मता के वल
2,300 िबिलयन वाट (MW) थी जो नव बर 2014 के अंत तक 793.93 िबिलयन यूिनट रही ।
िबजली का वा तिवक उ पादन जो 1970-71 म 55.8 िबिलयन KWH था ; 1990-91 बढकर
264.3 िबिलयन KWH तथा 2013-14 म 1014.8 िबिलयन KWH हो गया । 1990-91 से
2013-14 िक अविध म उ पािदत िबजली म 5.8 ितशत क ित वष वृि दज क गई ।
ल य एवं उपलि धयाँ :-
पावर जनन /उ पादन के ल य िकसी भी योजना म अभी पूरे नह िकए गए । येक योजना
म ल य नीचे रहे –पहली योजना म यह कमी 15 ितशत थी ,पर तु चौथी योजना म यह 50
ितशत के उ च तर पर पहच गई । इस ढील का संचयी भाव यह हआ िक ऊजा संकट ने
159
भारतीय अथ यव था क िवकास ि या के िलए खतरा पैदा कर िदया । इस बात को देखते हए
योजनाओं म िव तु उ पादन पर अिधकतम बल िदया गया लेिकन िफर भी हम ल य ाि से पीछे
रहे । याहरव योजना म ल य ाि 30 ितशत से भी कम रही है । योजनावार िव तु उ पादन के
ल य तथा योजना के उ पािदत वा तिवक िव तु के समंको तािलका म तुत है :-
तािलका 14.3 िव तु उ पादन ल य एवं उपलि धयाँ (मेगावाट म )
योजना थािपत मता म वृ ि
लय ाि ितशत कमी
पहली 1300 1100 15
दूसरी. 3500 2300 36
तीसरी 7,000 4,500 36
चौथी 9,300 4,600 50
छठी. 19,670 14,230 28
सातवी 22,250 21,500 4
आठव 30,540 16,420 46
नव 40,250 19,015 53
दसव 41,110 34,020 17
गयारहव 78,700 54,964 30
बारहव 88537 50,058 -
ोत: के ीय िव तु ािधकरण,भारत सरकार, (31-12-2014 तक क ि थित के
अनुसार बारहव योजना के 88 ,537 mw के ल य के िवपरीत 50, 058 mw िव तु उ पादन कर
िलया गया है जो ल य का 56.5 ितशत िह सा है )
भारत सरकार उपरो तािलका 14.3 से प होता है िक िव तु उ पादन के ल य तथा
उपलि धय के म य भारी ऋणा मक असमानता या है िजससे भारत म उजा –सं कट क ि थित
उ प न हो चुक है । बाहरव योजना म 88,537 मेगावाट अित र मता थािपत करने का ल य
रखा गया ह ।

160
तािलका 14.4 12 व पं चवष य योजना के दौरान देश म िव ु त उ पादन म काय म ,
वा तिवक उपलि ध तथा िवकास :-
वष ल य (िबिलयन यू िनट उपलि ध (िविलयन ल य का िवकास का
म) यू िनट ) ितशत ितशत
2012-13 930.00 912.056 98.07 4.01
2013-14 975.00 967.15 99.19 6.04
2014-15 1023.00 1048.673 102.51 8.43
2015-16 328.048 365.003 96.65 2.54
(जुलाई201
5तक )
ोत : वािषक रपोट, के ीय िव तु ािधकरण, भारत सरकार (2016)
िबजली के ोत (Sources of Electricity)
िबजली या िव तु – शि के पांच मु य ोत है :- जल, कोयला, तेल, गैस तथा रेिडयोधम त व
जैसे :- यूरेिनयम, थो रयम तथा लूटोिनयम ।
जल िव ु त (HYDRO-POWER)
एक नवीकरणीय ाकृ ितक ोत है सन् 1950-51 म इसक थािपत मता 560 मेगावाट
थी जो िक वतमान म के ीय िव तु ािधकरण ारा िकए गए अ ययन के पुनमु याकन के अनुसार
देश क अिभ ात पन िबजली क मता (25 मेगावाट से अिधक िक थािपत मता ) 1,45,320
मेगावाट है । भारत म जल िव तु का िव तु उ पादन म िह सा िनरंतर घटता जा रहा है जहाँ
1980-81 म कु ल उ पािदत िव तु म पन-िबजली का िह सा 46.8 ितशत था जो कम होते होते
2013-14 म 13.9 ितशत रह गया है । भारत म जल –िव तु ोत का असमान िवतरण है ।
पं जाब ,िहमांचल देश ,ज मू व क मीर ,के रल ,कनाटक तथा उ री –पूव रा य म जल –िव तु के
काफ़ सं भा य ोत है । इसके िवपरीत िबहार, राज थान, म य देश, उ र- देश, असम, महारा
तथा तिमलानाडु म यादा जल-िव तु ोत तो नह है पर तु यिद उपल ध ोत का सही इ तेमाल
िकया जाये तो ये रा य आपनी िबजली क मां ग का काफ िह सा पूरा कर सकगे । जल िव तु के
कई लाभ है :
 यह ऊजा का सबसे स ता ोत है ।
 जल –िव तु के जनन उ पादन म पयावरण के दुषण या यथ पदाथ के िनपटारे क कोई

161
सम या नह होती है ; तथा
 तापीय ऊजा तथा परमाणु ऊजा के िविभ न ोत क पूित सीिमत मा ा म है इस कारण
इनक लागत अपे ाकृ त अिधक होने क स भावना िव मान रहती है इसके साथ-साथ इनके ोत
के आयात करने पर भारी मा ा म िवदेशी मु ा का याग करना पडता है । िपछले तीन दशक से
भारत म िव तु उ पादन म जल िव तु का अंश िनरं तर घट रहा है जो क िचं ता का िवषय है ।
तािलका 14.5 िव ु त े का एक प र य अिखल भारतीय
ई ंधन मेगावाट ितशत
(i) कोयला 1,67,708 60.8
(ii) गैस 22,962 8.4
(iii) तेल 994 0.4
(iv) कु ल थमल (i+ii+ii) 1,91,664 69.6
(v) हाइ ो (नवीनीकरण) 41,997 15.2
(vi) परमाणु 5,780 2.1
(vii) आर.ई.एस.* 35,471 13.2
(एम एन आर ई )
योग 2,75,912 100
ोत: 24-08-2015 तक,ओ.एम अनुमान
*नवीनीकरण ऊजा ोत (आर ई एस) म एस एच पी, बी जी ,यू व आई पवन ऊजा है । एस एच पी
: लघु जल प रयोजना ,बी.जी :- बायोमास गैसीफायर ,बी.पी. :- बायोमास पावर ,यू व आई : शहरी
और औ ोिगक िव तु ,आरईएस =नवीकरण ऊजा ोत
तािलका से प होता है िक 2015 क कु ल सं थािपत मता (31-07-2015 तक) का
के वल 15.2 ितशत िह सा ही हाय ो पावर (जल िव तु ) से ा हो रहा है । ऐसा इसिलए है
य िक जल िव तु के उ पादन के िलए बांध तथा िबजली घर के िनमाण पर तथा उनके रख रखाव
पर भारी मा ा म िनवेश करना पडता है इसिलए इन पर िबजली घर क थापना सावजिनक े म
क गई है ।
तापीय ऊजा : Thermal Power
तापीय ऊजा का उ पादन कोयले ,तेल और गैस से होता है ,तापीय ऊजा भारत म िव तु का मुख
ोत है वतमान (31-07-2015 तक) म कु ल सं थािपत मता 2,75,912 मेगावाट िव तु का
लगभग 69.6 ितशत भाग अथात् 1,91,664 मेगावाट अंश तापीय ऊजा ारा पूरा होता है ।
भारत म तापीय ऊजा क कु ल थािपत मता 1950-51 म 1,150 मेगावाट थी जो बढकर
24-08-2015 को 1,91,664 मेगावाट हो गई है ।तापीय ऊजा का लगभग 60.8 ितशत भाग तो
कोयले से ा िकया जा रहा है शेष भाग गैस तथा तेल से मश: 8.4 तथा 0.4 ितशत उ प न

162
होता है । कोयला, तेल एवं गैस तीन गैर – नवीनीकरणीय और यशील सं साधन है । तेल क
2007-2014 तक के म य अ तरा ीय क मत म भारी उछाल ने तेल से उ प न तापीय ऊजा क
लागत म भारी वृि को बढाया । िजसके चलते ईधन ं नीित सिमित ने तेल क अपे ा कोयला
आधा रत टे नोलॉजी के ित थापन क िसफा रश क । भारत म िव के कु ल कोयला सं साधन म
िह सा 5.7 ितशत है । ये कोयला सं साधन अनवीकरणीय (non-renewable) तथा सीिमत है ।
इसिलए भिव य म िबजली उ पादन म कोयले पर िनभरता को कम करना ज री है ।
परमाणु िबजली (Nuclear Power)
परमाणु ऊजा का िवकास वतं ता ाि के कु छ वष के उपरां त ही हआ है और
24.08.2015 तक क कु ल सं थािपत मता 2,75,912 मेगावाट का 2.1 ितशत भाग लगभग
5,780 मेगावाट िह सा ही परमाणु ऊजा ारा उ प न िकया जाता है । स और अ य देश म
परमाणु ऊजा क िवफलता को यान म रखते हए यह कहा जा सकता है िक परमाणु ऊजा ारा देश
के िव तु उ पादन म मह वपूण योगदान क कोई स भावना है ।
14.2.1.2 ऊजा के गैर पर परागत सं साधन (Non-Conventional Energy
Sources)
पर परागत ऊजा ोत के साथ-साथ सरकार ने अ य ऊजा सं साधन के िवकास को भी
उ च ाथिमकता दी है ।आधुिनक ऊजा तक पहँच एक मुख िचं ता का िवषय है । भारत क
2011 क जनगणना के आंकडे संकेत देते है िक के वल 55 ितशत ामीण प रवार को ही िबजली
क सुिवधा ा है (167.8 िमिलयन ामीण प रवार म से 92.8 िमिलयन प रवार ) कु छ रा य म
ामीण प रवार िव तु ीकरण का तर बेहद नीचा है ।
जो िक सारणी से प हो रहा है
तािलका 14.6
रा य ामीण प रवार िव तु ीकरण ( ितशत म )
िबहार 10.4
असम 28.4
उ र देश 23.8
उडीसा 35.6
झारखंड 32.3
पि म बं गाल 40.3
स पूण भारत 55
ोत :- अ य ऊजा मं ालय ,वािषक रपोट 2013-14, भारत सरकार
भारत म जलावन लकड़ी ,फसल अविश और गोबर के उपले आज भी ऊजा के मह वपूण ोत
बने हए है । लगभग 86 ितशत ामीण प रवार इस पर आि त है । भारत का स पोषणीय ऊजा िक
163
िदशा म काय अब तक रा ीय ाथिमकताओं से े रत रहा है । ऊजा अिभगम काय म म लगभग
स पूण यय रा ीय सं साधन से िकया गया है । एक मु य िमशन के प म रा ीय सौर िमशन के
साथ नवीकरणीय ऊजा का भारतीय रा ीय जलवायु प रवतन काय योजना म के ीय थान है ।
भारत को व छ िवकास तं (सी . डी .एम.) प रयोजनाओं के िवकास हेतु एक उ कृ देश समझा
जाता है वतमान म 938 प रयोजनाओं म से 789 प रयोजनाएं नवीकरणीय ऊजा प रयोजनाएं है जो
पं जीकृ त सीडीएम प रयोजनाओं का बड़ा िह सा है । भारत म गैर पर परागत ऊजा ोत का
अनुमािनत सं भा य 1,83,000 िमिलयन वाट (mw) है । 31 जुलाई 2015 तक िव तु क कु ल
सं थािपत समता 2,75,912 मेगावाट म गैर पर परागत ऊजा ोत का िह सा 13.2 ितशत के
साथ 35,471 मेगावाट रहा है । उपरो िववरण से प होता है िक भारत म अभी तक सं भा य क
तुलना म गैर पर परागत सं साधनो से िबजली का वा तिवक उ पादन बहत कम है । गैर –पर परागत
सं साधन से िबजली उ पादन म वृ ी करके देश क ऊजा सम या के समाधान म काफ सहायता
िमल सकती है ।
भारत म नवीन और अ य ऊजा के िवकास और थापना के िलए मु य उ ेरक
िन निलिखत है :-
(i) ऊजा सु र ा :- वतमान म भारत क लगभग 60 ितशत िव तु उ पादन मता कोयले
पर आधा रत है । िनवल कोयला आयात िनभरता क ितशतता वष 1990 म नग य थी जो वष
2014 म बढकर लगभग 23 ितशत हो गई । आयाितत तेल पर भारत क बढती िनभरता के
अित र इसके कारण भारत क कु ल ऊजा आव कताओं का लगभग 28 ितशत आयात िकया
जा रहा है ।
(ii) िव तु का अभाव :- 62 वष से सं थािपत मता म 110 गुना से अिधक वृि के
बावजूद , भारत अभी भी अपनी चरम िव तु मां ग तथा ऊजा आव यकता को पूरा करने क ि थित
म नह है । िव ीय वष 2001-02 के दौरान चरम िव तु अभाव 12.2 ितशत अथात् लगभग
9252 मेगावाट थी िक तु िव ीय वष 2013-14 के अंत म ,चरम िव तु अभाव घटकर 4.5
ितशत हो गया और सम प से चरम अभाव 6103 मेगावाट था ।इसी कार ऊजा उपल धता
क ि से अभाव िव ीय वष 2001-02 के अंत म लगभग 7.5 ितशत (39,187 िमिलयन
यूिनट) था जबिक िव ीय वष 2011-12 के अंत म यह घटकर 4.2 ितशत हो गया । िक तु सम
प से यह कमी बढकर 42,428 िमिलयन यूिनट हो गई । इस ि थित के प रणाम व प , इस मांग
आपूित अंतर को पाटने के िलए अिधकतर युिटिलटीज ारा योजना और गैर – योजनाब लोड
शेिडं ग उपाय का िकए जाने क आव यकता है ।
(iii) ऊजा उपल धता :- भारत के सामने अपने सभी नाग रको के िलए ऊजा क िव सनीय
और आधुिनक णािलय क उपल धता सुिनि त करना एक चुनौती है । लगभग 85 ितशत
ामीण प रवार अपनी खाना पकाने क आव यकताओं के िलए ठोस ईधन ं पर िनभर करते है ।
ामीण काश यव था क कमी के कारण िम ी के तेल का बड़े पैमाने पर उपयोग िकया जा रहा है

164
। इस उपयोग को कम करने क ज रत है य िक इसके कारण बढ़ी हई सि सडी देनी पड़ती है और
आयात पर िनभरता बढती है िजससे िवदेशी मु ा भ डार पर दबाव पडता है ।
(iv) जलवायु प रवतन :- भारत म 2020 तक 2005 के तर से 20-25 ितशत तक अपने
सकल-घरेलू उ पाद (GDP) के उ सजन घन व को कम करने क वे छा से ितब ता क है ।
हाल ही म समा हए लीमा ,पे म आयोिजत िकए गए यूनाइटेड नेश स े मवक क वशन ऑन
लाईमट चज (यू एन एफ सी सी सी ) के प कारो के 20 व स मलेन म सभी प कारो को जलवायु
प रवतन शमन क िदशा म अिभ ेत रा ीय िनधा रत योगदान (आई-एन डी सी ) को सं सिू चत
करने के िलए क वशन म आमंि त िकया गया था । आगामी वष म अ य ऊजा क बढ़ी हई
िह सेदारी से इस ल य को ा करने म सहायता िमलेगी ।
अ य िव तु क सं थािपत मता :-
तािलका 14.7 देश म िविभ न नवीकरणीय ऊजा णािलय /यु ि य क कु ल सं थािपत
मता [31.12.2014 क ि थित ]
े कु ल सं थािपत मता वष 2014-15 के
(िदस बर 2014 तक ) दौरान उपलि धयाँ
(िदस बर 2014 तक )
1. पवन िव तु 22465.03 (66.48%) 1333.20
2. लघुपन िबजली 3990.90 (11.81%) 187.22
3. बायोमास िव तु एवं गैसीिफके शन 1365.200 (4.04%) 0.00
4. खोई –सह उ पादन 2800.35 (8.29%) 152.00
5. अपिश से िव तु 107.58 (0.31%) 01.00
6. सौर िव तु 3062.68 (9.06%) 480.67
कु ल अ य ऊजा 33,781.74 (100%) 2104.09
[ ोत:-भारत सरकार, अ य ऊजा मं ालय, वािषक रपोट पेज नं. 5 सारणी 1.2]
अ य ऊजा म िपछले पाँच वष म 150 ितशत वृि देखी गई है । वष 2009 के आर भ
म 14,400 मेगावाट कु ल मता से बढकर 31 जुलाई 2015 तक 35,471 मेगावाट क मता पर
पहँच गई है । पवन ऊजा का भारत के अ य ऊजा म मु य थान बना हआ है जो क थािपत
मता के 66.48 ितशत (लगभग अ य ऊजा क थािपत मता का दो ितहाई िह सा ) है ।
सौर ऊजा (Solar Energy):-
भारत जैसे उ णकिटबंधीय देश म सौर ऊजा ोत का िवशेष मह व है । पर तु सौर ऊजा
को ा करने म सबसे किठन सम या यह है िक यह सकि त Concentred) प म उपल ध नह
है । इसके अलावा इसम यापक प रवतन होते रहते है । इसिलए सौर ऊजा उन कम तापीय उपयोग
म ही भावी प से इ तेमाल क जा सकती है िजनमे ऊजा उ पादन म यापक अंतरो का कोई
दु भाव न हो । उ च तापीय उपयोग म सतत दर पर सौर ऊजा का उ पादन एक महँगा िवक प है
165
भारत म सौर ऊजा अनुसं धान काय म के अधीन िविभ न उपयोग के िलए सं ाहक
(Collectors) के उ पादन म वृि तथा उनक कु शलता म सुधार के िलए उपाय िकए जा रहे है
।भारत म िपछले कु छ वष के दौरान सौर ऊजा के योगदान को बढ़ाने के िलए व रत और
मह वाकां ी योजनाओं के साथ नीितगत ढाँचे म अ यािधक प रवतन देखने को िमला है । इसी के
चलते जवाहरलाल नेह रा ीय सौर िमशन को ार भ कर , उ रोतर इसके दायरे म िव तार िकया
जा रहा है । जो दशाता है िक वा तव म सौर ऊजा के े म भिव य क ि और मह वकां ा को
थान िदया गया है ।
पवन ऊजा (Wind Power)
भारत म पवन-ऊजा एक सवािधक सफल अ य ऊजा िवक प के प म उभरी है और ि ड से जुडी
िबजली उ पादन के िलए यह िविभ न अ य ऊजा ोत म सबसे तेजी से बढ़ने वाली अ य ऊजा
ौिगक है । देश म िदस बर 2014 तक 22465.03 मेगावाट क कु ल मता थािपत हो चुक है
। भारत अब चीन, अमे रका, जमनी और पेन के बाद दुिनया का पां चवा सबसे बड़ा पवन िव तु
उ पादक देश है ।31 िदस बर 2014 तक पवन शि ारा जिनत िबजली 22,465.03 मेगावाट थी।
जबिक भारतीय पवन एटलस के अनुसार अभीतट पवन िव तु सं भ यता का आकलन 50 मीटर
ऊं चाई पर 49,130 मेगावाट और 80 मीटर ऊं चाई पर 1,02,000 मेगावाट िकया गया है ।
ऊजा सं कट के चलते पवन शि क ओर सरकार एवं िनजी कं पिनय का यान आकिषत हआ
है । 225 KW से 2.50 MW के म य आकार के पवण िव तु जेनरे टरो को देशभर म थािपत
िकया गया है । िजसम मु य प से तिमलनाडु , गुजरात, महारा , म य देश, आं देश ,कनाटक
और राज थान म ि थत है ।
तािलका 14.8 रा यवार पवन ऊजा थािपत मता (मेगावाट म)(31.03.2014)
रा य थािपत मता
आं देश 746
गुजरात 3454
कनाटक 2318
के रल 35
म य देश 424
महारा 4096
राज थान 2785
तिमलनाडु 7270
अय 04
कु ल 21,132
( ोत : भारत सरकार, नवीन एवं नवीकरणीय ऊजा मं ालय क वािषक रपोट -2014-15,अ याय -3 पेज नं.26)

166
बायोमास िव तु और खोई -सह उ पादन :-
पशुओ के अपिश (Waste) को बायो गैस म प रवितत करने क ौ ोिगक काफ़
िवकिसत है तथा लगभग 40 लाख बायो गैस लांट कायरत है । इस े म मु य भूिमका खादी व
ामीण उ ोग कमीशन क रही है । बायो गैस के अंतगत सरकं डो, तन और भूसे के प कृ िष
अवशेष एवं समिपत ऊजा पौधारोपण से िछलके , भूसी, तेल रिहत खली और लकड़ी जैसे कृ िष
औ ोिगक अवशेष से िव तु उ पादन क संभा यता का आकलन लगभग 17000 मेगावाट पर
िकया गया है ।
चीनी िमल के अवशेष खोई सह उ पादन के मा यम से िव तु उ पादन का आकलन
5000 मेगावाट पर िकया गया है खोई-सहउ पादन क सं भा यता मु य प से 09 चीनी उ पादक
रा य म िनिहत है, िजसमे महारा और उ र देश रा य म से येक म लगभग 1250 MW क
अिधकतम सं भा यता है इस कार कु ल अनुमािनत बायोमास िव तु सं भा यता लगभग 22000
MW है । इसके िवपरीत 31 िदस बर 2014 तक बायोमास िव तु और खोई सहउ पादन 4165.55
MW रहा है । बायोमास के काय म के मा यम से ामीण प रवार क ऊजा आव यकताओं क
आपूित के ईधनं पर िनभरता को कम िकया जा सकता है । इसने ामीण े के पयावरण म भी
सुधार िकया जा सकता है तथा जैव –खाद ा क जा सकती है ।
ऊजा का सं कट [Energy crisis]
आज से लगभग चार दशक पूव देश म एक भयानक ऊजा संकट पैदा हआ था । स र और
अ सी के दशक म उ प न ऊजा संकट मूलतः तेल सं कट था । यह के वल रा ीय मु ा ही नह था
बि क वैि क सम या थी । भारत के स दभ म ऊजा संकट के कु छ िवशेष ल ण है :-
(1) भारत क ऊजा सम या के वल तेल क मां ग और पूित क सम या नह है । वा तव म
येक वािणि यक ईधन ं म मां ग एवं पूित म असं तलु न बढ़ता जा रहा है । इसका मु य कारण यह है
िक आिथक िवकास िक गित के बढ़ने से वािणि यक ऊजा क मां ग लगातार बढती जा रही है ।
इसके िव ,सभी वािणि यक ईधनो ं क पूित म भी वृि हो रही है पर तु यह पया नह है । िजसके
प रणाम व प आयात पर भारी िनभरता है । ऊजा आव यकताओं क पूित के िलए आयात पर
इतनी भारी िनभरता िच ता का िवषय है ।

167
तािलका 14.9 ाथिमक वािणि यक ऊजा क मां ग व उसका ेपण (िमिलयन टन , ते ल तु य )
2011-12* 2016-17 2021-22
1. पे ोिलयम तेल िजसमे आयात का 169.09 195.19 239
िह सा 129.86(76.8%) 152.44(78.1%) 194(81.7%)
2. ाकृ ितक गैस तथा खाद िजसमे आयात का 55.35 100.93 134
िह सा 12.56(22.7%) 24.8(24.6%) 31(22.1%)
3. कोयला एवं िल नाईट िजसमे आयात का 286.8 415.35 579
िह सा 54 (18.8%) 90(21.7%) 150(25.9%)
4. पनिबजली िजसमे आयात का िह सा 11.67 13.42 17.6
0.45(3.9%) 0.52(3.9%) 0.6(3.4%)
5. परमाणु ऊजा 8.43 16.97 30
6. नवीकरणीय ऊजा ोत 5.25 10.74 20
कु ल ऊजा 536.59 752.60 1017.6
कु ल आयात 196.87 267.76 375.60
कु ल ऊजा म आयात का िह सा 36.69% 35.58% 36.91%
*अं ितम ोत :- भारत सरकार ,योजना आयोग बारहव पं चवष य योजना (नई िद ली 2012) ि तीय खं ड – सारणी 14.4 पेज सं या 1333
उपरो सारणी से पे ोिलयम तेल ,कोयला व िल नाइट, गैस तथा पन-िबजली आिद के
े म वष 2011-12, 2016-17 तथा 2021-22 के िलए मां ग तथा आयात पर िनभरता कट हो
रही है साथ ही कु ल उ पादन म आयात पर िनभरता भी प होती है । जो िक ऊजा संकट क ओर
इशारा प करता है ।
(2) इसके अित र कोयला उ ोग िजससे यह आशा िक जाती थी िक वह भारत म ऊजा के
बढ़ते हए सं कट का सामना करने के िलए कोयले के उ पादन म मह वपूण वृि करेगी ,िपछले कु छ
वष से बहत बुरी अव था म है । इसके अित र , कोयले के भ डार गुणव ा और मा ा क ि से
भी अपया है ।
(3) िबजली क मां ग एवं पूित म अंतर कम होने क अपे ा बढ़ रहा है । औ ोिगक और कृ िष
िवकास के स दभ म पावर क मां ग तेजी से बढ़ रही है । पर तु पूित क ि से इस पर बहत सारी
अडचने उ प न हो गई है । भारत म ऊजा संकट का एक और पहलु यह है िक पावर क पूित
अिनयिमत एवं अपया है । 12 व पंचवष य योजना के वष म िव तु आपूित एवं मां ग क ि थित
सारणी म दशाई गई है :-
तािलका 14.10
Energy (ऊजा )(िमिलयन यूिनट म ) चरम (िव तु ) (मेगावाट म)
वष आव यकता उपल धता अिध य/कमी मां ग आपूित अिध य/कमी
2012-13 9,95,557 9,08,652 -86,905 -8.7 1,35,453 1,23,294 -12,159 -9.0
2013-14 10,02,257 9,59,829 -42,428 -4.2 1,35,918 1,29,815 -6,103 -4.5
2014-15 10,68,943 10,30,785 -38,138 -3.6 1,48,166 1,41,160 -7,006 -4.7
2015-16 2,73,643 2,67,670 -5,973 -2.2 1,45,279 1,40,441 -4,838 -3.3
ोत : िव तु े का एक प र य अिखल भारतीय, भारत सरकार ,िव तु मं ालय, नीितय एवं काशन उपयु
सारणी से प

168
(4) भारत म ऊजा संकट क शु आत 1973 म हई जब तेल िनयातक देश के सं गठन
(OPEC) ने तेल क क मत म अक मात चार गुणा से अिधक वृि कर दी । तब से तेल क
क मत म कई गुणा वृि क जा चुक है । िजसके प रणाम व प िव यापी फ ितकारी वृि य
को बल िमला है । य िक आज के िव म खिनज तेल,कृ िष, उ ोग,प रवहन और सामा य आिथक
िवकास ि याओं म ऊजा का मुख ोत है । इसिलए तेल िनयातक देश क नीितय ने तेल
आयात करने वाले देश के िलए लागत ज य फ ित क वृि य को बढ़ाने म भूिमका अदा क
िजससे ऊजा सं कट के ल ण प त: िदखाई पड़ने लगे।
(5) OPEC ारा खिनज तेल क क मत म तेज वृि करने से भारत का तेल पर आयात यय
बहत बढ़ गया जहाँ 1972-73 म भारत पे ोिलयम व पे ोिलयम उ पाद के आयात पर 1100
करोड़ पये खच िकए थे वे 1980-81 म 5264 करोड़ तथा 2013-14 म बढकर 9,97,885 करोड़
पये हो गए । िजससे भारत के भुगतान सं तलु न पर ग भीर भाव पड़े । इस ग भीर संकट का
अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है िक जहाँ 1970-71 म तेल के आयात पर कु ल िनयात
–आय का 8.9 ितशत खच हआ था , वहाँ 1980-81 म यह खच बढकर 78.5 ितशत हो गया
लगभग 9 गुणा आयात यय म वृि भुगतान सं तलु न पर संकट क ि थित को दशाता है वतमान म
आधी से अिधक िनयात आय का खच के वल पे ोिलयम क आयात आव यकताओं को पूरा करने
म हो जाता है ।
भारत म ऊजा सं कट के समाधान के उपाय
(i) तेल के उ पादन को बढ़ावा देना :-
जब 1973 म OPEC देश ारा क चे तेल क क मत को 2.1 डॉलर ित बैरल से
बड़ाकर 1980 म 27.30 डॉलर ित बैरल क गयी, तब यह त काल आव यकता थी िक तेल के
उपभोग म वृि पर रोक लगाई ं जाए िजससे िक पे ोिलयम तथा इसके उ पादो के आयात को
उिचत सीमाओं के बीच रखा जा सके तथा देश के भीतर तेल के उ पादन और शोधन मता को
बढ़ाया जाए । ओ.एन.जी.सी. और ओ.आई.एल ारा देश म इसक खोज के यास को व रत
िकया गया तेल का उ पादन जहाँ 1973-74 म 70 लाख टन था जो बढकर 2014-15 म लगभग
380 लाख टन के तर पर पहंच गया है ।
(ii) पे ोिलयम एवं नेहको के उपभोग पर िनयं ण :-
सरकार ारा पे ोिलयम एवं नेहको के उपभोग को िनयं ि त करने के उपाय पूरी तरह सफल
नह हए । 1973 म पे ोिलयम उ पाद का उपभोग लगभग 240 लाख टन था और यह कु छ समय
तक पे ोिलयम क क मत म ती वृि और सरकार ारा लगाए गए ितबंधो के प रणाम व प
इसी तर पर ि थर रहा पर तु बाद म पे ोिलयम के उपभोग म वृि हई और यह 2009-10 म
बढकर 1382 लाख टन हो गया जबिक भारत म क चे तेल का उ पादन मा 335 लाख टन ही
रहा ।हमारी शोधन मता के अिधक होने के कारण हम अपनी आव यकताओं से अिधक शोधन
करते हए पे ोिलयम (शु ) का िवदेशो को िनयात भी करते है । अत: उपभोग तथा शोधन काय के
169
िलए हम क चे तेल के आयात पर अ यािधक िनभर रहना पड़ा है वष 2008-09 म 1328 लाख
टन क चे तेल क क मत 100 डॉलर ित बैरल से भी अिधक तर पर बनी हई थी । वतमान म
2014-15 म त अंतररा ीय तर पर क चे तेल के दाम म भारी कमी आई है िसत बर 2015 म
यह 41 डॉलर ित बैरल के तर पर है ।
(iii) तेल का कोयले से ित थापन
ईधनं नीित सिमित (Fuel Policy Committee) म कई उ ोग म पे ोिलयम तेल का
कोयले से ित थािपत करने का सुझाव िदया है य िक भारत म कोयले का भं डार तेल के अपे ा म
अिधक है िजसके िलए हमे िवदेशो से अिधक आयात पर िनभर नह रहना पड़ेगा । जबिक दूसरी
और यिद कोयले क मां ग म वृि होती है त भारत म कु ल सं िचत भ डार बहत ज दी ख म हो
जाएग ।
(iv) ऊजा का बचाव या सं र ण
िपछले कई वष से ऊजा क कमी औ ोिगक िवकास से मह वपूण बाधा िस हई है इसके
आलावा ,तेजी के साथ बढती हई खिनज तेल क क मत म भुगतान शेष का सं कट पैदा कर िदया है
। भारत म वािणि यक ऊजा (Commercial Energy) अथात् कोयला ,पे ोिलयम एवं िबजली
क मां ग गैर वािणि यक ऊजा क तुलना म अिधक तेजी से बढ़ रही है । आज प र थित यह है िक
कोयले क मां ग ितवष लगभग 4 से 5 ितशत बढ़ रही है , पे ोिलयम उ पाद क 06 ितशत
ितवष और िबजली क माँग 9 से 10 ितशत क दर से बढ़ रही है इसको देखते हए भारत सरकार
ने ऊजा युि /रणनीित के ज रए पे ोिलयम उ पाद के संर ण के िलए कई तरीके अपनाए है जो िक
िन निलिखत है :-
 ऐसे उपय का योग करना िजनमे ईधन-कु ं शलता (Fuel-efficiency) बढ़े और इसके
िलए प रवहन े म अनेक िश ण काय म चलाए है ।
 पुरातन तथा अकु शल मशीनरी के थान नयी एवं ईधन ं कु शल मशीनरी का औ ोिगक व
कृ िष े ित थापन करना ।
 घरेलू े म के रोिसन तथा एल.पी.जी. टोव को अिधक ईधन ं कु शल बनाना ।
(v) नवीकरणीय ऊजा ोत को बढ़ावा देना :- ऊजा के पर परागत ऊजा ोत ारा जिनत
1970-73 म जिनत ऊजा संकट का उिचत समाधान इनके ारा ही स भव नह है बि क
इसके समाधान के िलए हम ऊजा के गैर पर परागत तथा नवीकरणीय ोत को बढ़ावा देना
होगा । भारत म ऊजा वािनक बायो-गैस , जल-िव तु ,सौर-िव तु तथा पवन ऊजा आिद म
भारी मता िव मान है िजसके उ पादन एवं िवकास के िलए भारत सरकार को िविभ न
कार के यास तथा ो साहन काय म आयोिजत करने चािहए ।
(vi) अनु सं धान एवं िवकास काय म क गित ती करना :- नवीन िवकिसत हो रही ऊजा
तकनीक तथा ईधन ं कु शल मशीनरी ,िजसका योग येक े म ईधन ं क बचत को बढ़ाने

170
म सहायक हो के स दभ म भारत सरकार को उिचत अनुसधं ान एवं िवकास काय म के
यास भी वृहद तर करने चािहए ।
4.3 भारत म प रवहन यव था
िकसी भी रा म, ऊजा के साथ-साथ प रवहन यव था के औ ोिगक िवकास क मूलभूत
अिनवायता है ।यही कारण है िक िवकासशील देश म प रवहन यव था का िवकास को
आिथक िवकास के काय म म अ यिधक मह व िदया गया है । प रवहन यव था उ पादन
के , िवतरण े तथा अंितम उपभो ाओ के म य मूल कड़ी का काम करती है यह
अथ यव था के एक करण एवं सम वय म मह वपूण भूिमका अदा करती है । भारतीय
अथशा ी ी अि नी महाजन एवं गौरव द ने ठीक कहा है “यिद कृ िष और उ ोग को
अथ यव था क काया समझा जाता है त प रवहन और संचार उसक नस है । प रवहन के
मु य साधन है ” रेल प रवहन, सड़क प रवहन ,जल प रवहन (आंत रक एवं सामुि क जल
–प रवहन ) तथा वायु प रवहन । भारतीय अथ यव था म आिथक सं विृ 08 ितशत ित
वष क गित से होने पर प रवहन यव था म 10 ितशत ित वष क वृि संभािवत है ।
प रवहन यव था म वृि
अथात्, प रवहन क आय लोच (Ti) =
आिथक सं विृ म वृि
= 10/8
Ti = 1.25
प रवहन और पं चवष य योजनाए :
भारतीय आयोजको ने प रवहन के िवकास को उ च ाथिमकता दी य िक उनके
िवचार म “ एक कु शल और सुिवकिसत प रवहन एवं संचार णाली ऐसे आिथक िवकास क
कामयाबी के िलए अिनवाय है जो ती ओ ोिगकरण पर बल देता है । ” इसी कारण पहली तीन
पं चवष य योजनाओं म प रवहन के िवकास के िलए 25 से 28 ितशत रािश आवं िटत क गई जो
बाद म उ रोतर कम होती गई । यारहव योजना म उदाहरणाथ ,यह कु ल प र यय का के वल 12.84
ितशत था । जबिक बारहव पंचवष य योजना म इस मद म और कटौती करते हए इसे 12.57
ितशत तक रखा है उ रोतर कम आवंटन का यह अिभ ाय नह है िक प रवहन े का पूण
िवकास हो चुका है । भारत म प रवहन िवकास क अनेक सम या है जो िक िन निलिखत है :-
(i) सम प रवहन णाली क मता िजसमे सड़क एवं रेलवे प रवहन भी शािमल है, प रवहन
क मां ग क तुलना म कम है । खासतौर पर ामीण इलाको म त हालत और भी अिधक
िवकृ त बनी हई है देश के गॉव क सड़क म जुड़े हए नह है ।सड़क प रवहन णाली पर भारी
दबाव है और इसके साथ मता क अपया ता और ाथिमक आधार सं रचना
(Sub-standard Infrastructure) जुड़े हए है । इसके प रणाम व प माल क ढु लाई म

171
अ यिधक िवल ब, ईधन ं का यथ यय और संकाय –लागत (operational cost) बढ़
जाती है । ऐसी ही सम या जहाजरानी म भी िव मान है ।
(ii) प रवहन णाली का घिटया आयोजन सबसे मुख बाधा के प म उभरकर सामने आया है ।
प रवहन योजनाएँ तैयार करते समय भौगोिलक,आिथक जनांिकक य तथा िवके ीकरण के
त व क और िवशेष यान नह िदया गया है ,जो िक देश म प रवहन क मां ग को भािवत
करते है । इसिलए आगामी वष म प रवहन यव था के समुिचत आयोजन म उ ोग का
अिधक फै लाव, सं तिु लत े ीय िवकास, तापीय पावर जनन, ऊजा के अ य नवीकरणीय
ोत का िवकास आिद शािमल होना चािहए ।
(iii) रेल प रवहन तथा सड़क प रवहन के म य सवारी तथा माल-ढु लाई अनुपात िनरं तर िबगड़ता
चला जा रहा है 1951 से रेलवे का भाग लगातार कम होता जा रहा है जो िक रेल-सड़क के
म य सम वय क कमी का घोतक है , जहाँ वष 1951 म सड़क ारा कु ल माल यातायात का
11 ितशत तथा सवारी यातायात का 26 ितशत उपल ध कराया गया ,पर तु अब वतमान
म इनका भाग मश: 60 से अिधक ितशत तथा 80 ितशत हो गया है । सड़क प रवहन
के प म यह झुकाव पयावरण एवं आिथक ि से सही नह है य िक तेल के आयात से
भुगतान शेष पर तथा इसके दोहन से पयावरण पर िवपरीत भाव पड़े है जो देश के िहत म
नह है ।
(iv) भारत क प रवहन णाली का एक और दोष जीण एवं पुरानी संपि का योग है । यह
प रवहन के सभी ढं गो के िलए स य है । देश म संचािलत रेलवे , सड़क, जहाजरानी तथा वायु
प रवहन क अिधकतर मशीनरी पुरानी तथा अ यािधक ईधन ं उपयोगी है । िजनके
ित थापन क सम या ने अब भयं कर प धारण कर िलया है ।
(v) प रवहन णाली के आधुिनक करण तथा तकनीक उ नयन को थािपत करने के साथ–साथ
थानीय आव यकताओं को भी यान रखना मुख सम या है । प रवहन े के तकनीक
उ नयन का उसक उ पादकता (Productivity) और सुर ा (Safety) पर बहत भाव
पड़ता है । जब तक इस िदशा म सुधर नह िकया जाता, तब तक प रवहन णाली क न ही
त उ पादकता बढ़ सके गी और न ही यह अिधक सुरि त एवं िव सनीय बन पाएगी ।
1951 के प ात प रवहन णाली का िवकास
भारत म रेल और सड़क प रवहन का भु व ि िटश से ही रहा है पर तु अ य कार के
प रवहन भी देश के आकार और भौगोिलक ल ण को ि म रखते हए अिधक मह व रखते है
रेल प रवहन (Railways) :-
िव भर म रेलवे िवकास तथा िव तार ने प रवहन णाली म ाि तकारी प रवतन कर िदए है ।
भारतीय रेल अपने 162 वष से अिधक के इितहास सिहत रेल मं ालय के अधीन भारत सरकार के
जनउपयोगी वािम व वाला उप म है । इसका िवशाल नेटवक एक रा ीय सावजिनक प रवहन के
प म या ी तथा माल को ढोता है । भारतीय रेलवे क हमेशा भारत के सामािजक तथा आिथक
172
िवकास म मु य भूिमका रही है बि क रा ीय एक करण क भी मह वपूण भूिमका रही है । यह
ितिदन लाखो याि य के िलए स ता एवं सुलभ यातायात का साधन होने के साथ –साथ भारी
माल यातायात जैसे अय क एवं खिनज, लोह एवं इ पात, सीमट, खिनज तेल, खा ा न एवं
उवरक,क टेनराइजड काग आिद को ढोने का काय िनबाध गित से करता है । कृ िष, उ ोग, तथा
जन- साधरण को जोड़ने का काय भारतीय रेल करती है । वष 2013-14 म रेलवे ने 8397 िमिलयन
याि यो को अपने गं त य थान तक पहंचया तथा िपछले वष (2012-13) क तुलना म 4.32
ितशत क वृि के साथ 1051.64 मिमिलयन टन आय अजक माल क ढु लाई क । भारतीय
रेलवे 64,600 माग िकलोमीटर क ल बाई के साथ अमे रका , स तथा चीन के बाद िव का
चौथा सबसे बड़ा नेटवक है । जहाँ तक माल यातायात का स ब ध है यह पुन : चौथे थान पर है ।
या ी यातायात के मामले य िप जापान इससे अिधक या ी ितवष ढोता है पर तु या ी िकलोमीटर
क ि से भारतीय रेलवे सबसे आगे है । भारतीय रेलवे तीन लाइन पर सेवाए उपल ध करवाती
है 31 माच 2012 को नेटवक का आकार आमान –वार इस कार है :-
तािलका 14.11
आमान माग KM चालू रेल पथ KM कु ल रेल पथ KM
बड़ी लाईन 1676 िम. मी. 55,256 80,779 1,04,693
मीटर लाईन (1000 िम. मी.) 6,347 6,725 7,802
छोटी लाईन (0.762 मीटर तथा 2,297 2,297 2,568
0.610 मीटर )
कु ल 64,600 89,801 1,15,062
[ ोत: भारतीय रेल बजट रपोट, 2014-15 पृ सं या:-15]
भारतीय रेलवे को शासिनक िनयं ण के िलए 17 जोन म बां टा गया है येक जोन का मुिखया
महा बं धक होता है । आगे े ीय रेल को छोटी प रचालन इकाई म बां टा गया है, िज ह म डल
कहा जाता है वतमान म 68 म डल है, येक म डल ,म डल रेल बं धक के अधीन होता है ।
भारतीय रेल, रेल मं ालय के अधीन काय करती है । शीष तर पर बं धन ‘रेलवे बोड’, के अ य
ारा िकया जाता है ।
पं चवष य योजनो म प र यय तथा रेल का िवकास :-
आयोजन काल म रेल के िवकास को लगभग येक पं चवष य योजनाओं के ाथिमकता
म म काफ़ ऊँचा थान दान िकया गया है । 1930 से लगभग 20 वष तक रेल पर भारी दबाव
रहा और उनमे समुिचत िनवेश नह हआ । इसके प ात चूिँ क रा ने पंचवष य योजनाओं ारा
आपने भावी िवकास क रणनीित अपनाई, िजसके चलते भारतीय रेल ने आपनी िवकास योजनाएँ,
रा ीय पंचवष य योजना के ढाँचे के भीतर तैयार करती रही । भारतीय रेल तथा प रवहन े के
िलए सम प से योजनावार प र यय िन निलिखत है:- ( करोड़ म )

173
तािलका 14.12
िविभ न पं चवष य योजयाएं तथा यय
े / इकाईयां 07 व तक 08 व तक 09 व तक 10 व तक 11 व तक 12 व तक
1985-90 1992-97 1997-02 2002-07 2007-12 2012-17
1. रे लव 16,549 33,306 45,725 84,003 1,90,841 5,19,221
2.प रवहन े 29,548 65,173 1,17,563 2,59,777 6,13,185 12,04,172
3.कु ल प रवहन प र यय 2,18,729 4,85,457 8,13,998 15,25,639 36,76,936 80,50,123
4.कु ल योजना प र यय के % के 13.5 13.4 14.4 17.0 16.7 14.96
प म प रवहन यय
5.कु ल योजना प र यय के % के 7.6 6.7 5.6 5.5 5.2 6.45
प म रे लव यय
** 12 व . पं चवष य योजना के सं मक 12 व पं चवष य योजना 2012-17 Table 15.3, P.200
तथा P.213 से िलया है
ोत: रेलवे बजट 2014-15 क रपोट पृ सं या :-17 रेल मं ालय, भारत सरकार )
इस कार सारणी से प होता है िक लगभग सभी पंचवष य योजनाओं पर रेलवे प रवहन पर 5%
से 8% तक कु ल योजना का यय िकया गया है । अ य प रवहन साधन जो लगभग अपना
यवसाय खो चुके है उ ह कु छ हद म वािपस कर सक इस उ े य से वतमान के सरकार रेलवे के
आधुिनक करण पर जोर दे रही है तािक उसक िव सनीयता को बढ़ाया जा सके तथा प रचालन
लागत को कम िकया जा सके । रेलवे ईजन , रेलवे िड ब , रेलवे लाइन इ यादी म ौिगक सुधार
करने क बात भी क गई । इसके अित र रेल-सेवाओं म सुधार पर जोर िदया गया है जैसे ल बी
दूरी क रेल म साफ-सफाई ,तथा शु पानी व भोजन क यव था करवाना इ यादी । रेलवे क
िविभ न गितिविधय म सूचना ौिगक के योग को ो सािहत के रेलवे बुिकं ग तथा िविभ न रेल
क ताजा ि थित को आमजन के पहँच तक बना िदया है िजसको IRCTC तथा Live Train
Status जैसी वेबसाइट के योग ारा सुलभ करवाया गया है । इतना कु छ होने के बाद भी भारतीय
रेलवे के िवकास म कई सम याएँ तथा चुनोितयां है िजनका िनवारण करना अित आव यक है ।
रेलवे िवकास के मु े व सम याएँ : -
1. अपया नेटवक तथा आधा रत सरं चना :-
भारत म रेलवे माग पर अ यिधक भार, या ी सुिवधाओं के अभाव तथा माल ढु लाई क
धीमी गित के प म कई अ य आधा रत कमजो रयाँ साफ-साफ प होती है । इसके अित र
अिधकतर रेलवे माग के दोहरीकरण तथा िव तु ीकरण के अभाव के चलते नेटवक स ब धी
कई सम याएँ िव मान है । भारत म प रवहन आउटपुट क तुलना म आधा रत सं रचना का
िवकास बहत ही कम गित से हो पाया है ।
2. ित-आिथक सहायता क िनरं तर सम या का बना रहना :-
भारतीय रेलवे को जो कु ल यातायात आय अिजत होती है उसमे मालभाड़े से आय का
िह सा 67% (अथात् 2/3) से भी अिधक है । भारत म मालभाड़ा दर िव म सवािधक है ।
174
इसके िवपरीत भारत म या ी िकराया िवदेशी रेलवे के या ी िकराए क तुलना म अ यािधक
नीचा है िजससे या ी यातायात म भारी हािन उठानी पड़ती है इस कार उ च मालभाड़ा दर से
कम या ी दर क भरपाई करने, को ित आिथक सहायता कहा जा सकता है । भारतीय रेलवे
म इसक सम या िव मान है जो िच ता का िवषय है ।
3. रेलवे पेटन का िवकृ त होना :-
भारत म िनिमत अिधकतर रे लवे पैटन का प िवकृ त है य िक देश के कु छ माग जो
मह वपू ण शहरो तथा बंदरगाह से जुड़े है उन पर या ी तथा मालभाड़े का भार अपे ाकृ त अिधक
है । िजनके कारण इन माग पर माल ढु लाई क गित पर अ यंत ितकू ल भाव पड़ा है ।
4. साँझे गिलयारे (common corridor) :-
भारतीय रेलवे म माल और या ी यातायात दोन के एक ही गिलयारा (common
corridor) है । माल गािडय के एक ही गिलयारे म होने से, ती या ी सेवाएँ चलाना
अ यिधक किठन है । या ी सेवाओं को माल गािडय क अपे ा अिधक यान देने के कारण
भारत म माल गािडय क औसत गित 2008-09 म मा 25.7 िकलोमीटर ित घंटा थी जो
िक अ यं त कम है ।
5. िव ीय साधन का अभाव :-
बहत-सी रेल प रयोजनाएँ अधूरी पड़ी है । उपयु िव ीय साधन के अभाव म ये
प रयोजनाएँ वष से लटक रही है । इसके अित र दोहरीकरण तथा िव तु ीकरण के िनधा रत
ल य क अपे ा उनक ाि अ यं त कम है । इसके िवपरीत ती जनसं या वृि और
िवकास के चलते अिधकतर नवीन शहरो के िवकिसत होने से नवीन रेलवे माग के िनमाण क
कई योजनाओं को िव ीय साधन के अभाव म ार भ नह िकया जा सका है ।इसके अित र
िजन प रयोजनाओं को यिद थोडा बहत ार भ िकया गया है त भी उ ह पूरा करने के िलए
पया साधन के न होने से उनक लागतो म भी भारी वृि हो जाती है ।
6. कम िनवेश क सम याएं :-
भारतीय रेलवे म अ यं त कम िनवेश िकया गया है िजसके प रणाम व प यह अ यािधक
िपछड़ी हई अव था म ही िजसके चलते आधुिनक करण उपयु गित से नह हो पाया है ।कम
िनवेश के कारण ौ ोिगक का आधुिनक करण रेल पथ का िव तु ीकरण नह हो पा रहा है ।
7. घाटे के बजट क सम या :-
िपछले दशक के अिधकतर वष और िवशेषकर रा ीय जनतां ि क गठबंधन के
1999-2004 के काल के दौरान रेल का िन पादन असं तोषजनक था वे भारत सरकार के
सामा य राज व म लाभां श क पूित भी नह कर पायी और वे न ही समय पर अपनी पुरानी
प रस पितय का िव थापन कर सक । इस कार िपछले दशक के रेलवे िवकास म बाधा
उ प न क है ।
8. अ य प रवहन के साधन से ित पधा :-

175
समय के साथ –साथ रेल प रवहन के बाजार म िह सा तेजी से िगरा है िजसका अिधकतर
लाभ सड़क प रवहन को हआ है । रेलवे के बाज़ार म िह से म वृि करने के िलए ऐसी रणनीित
बनाने क आव यकता है िजसके तहत बेहतर सुिवधाएँ दान क जा सके तथा मालभाड़ा
तुलना मक प से ित पधा मक हो । जहाँ तक या ी प था का है, उसमे रेलवे को
बेहतर सड़क यातायात तथा कम लागत पर उपल ध नई यातायात सुिवधाओं से ित पधा
करनी पड़ रही है । इस कारण याि य को पुन : आकिषत करने के िलए यह आव यक हो गया है
िक रेलवे आधुिनक करण तथा ौ ोिगक करण को अपनाए तथा ती गित क सेवाएँ आर भ
कर ।
सड़क प रवहन (Road Transport)
देश के आिथक िवकास के िलए सडक प रवहन एक जिटल अवसं रचना है । यह िवकास
क गित ,सं रचना और प ित को भािवत करता है । भारत म सड़क अवसं रचना का इ तेमाल कु ल
61% माल और कु ल 85% या ी –यातायात प रवहन म होता है । भारत का सड़क नेटवक वष
2014-15 तक 46.99 लाख िक.मी. है जो िवशालतम सड़क नेटवक म से एक है । देश के सड़क
के जाल (नेटवक) को पांच वग म िवभािजत िकया जा सकता है : रा ीय राजमाग,ए स ेस माग,
रा यीय राजमाग, मुख िजला सड़क और ामीण सड़के शािमल है िजनक ल बाई िन नवत है :-
तािलका 14.13
.सं. कार ल बाई (िक.मी. म)
01 रा ीय राजमाग/ ए स ेस माग 96,214
02 रा यीय राजमाग 1,47,800
03 अ य सड़के 44,55,000
04 कु ल 46,99,014
ोत:- वािषक रपोट 2014-15 सड़क प रवहन और राजमाग मं ालय,भारत सरकार पृ सं या -09
14.15 भारत म सड़क प रवहन का मह व:-
भारत म रेलवे क तुलना म सड़क प रवहन े प रवहन का साधन माना जाता है इसके
िन निलिखत कारण है :-
1. दु गम थान तक पहँच :- देश के कई थान िजसमे दूर-दराज के गां व ,देश के भीतरी
थान तथा पहाड़ी े जो रेलवे से जुड़े नह है ऐसे े म सड़क प रवहन एकमा साधन
है ।
2. रेलवे के पू रक क भू िमका :- सड़क प रवहन यव था रेलवे क पूरक है । वह रेलवे
टेशन से माल गं त य थान तक पहँचाने तथा रेलवे टेशन से माल गं त य थान तक
पहँचाने म सहायता करती है ।

176
3. अिधक लोचशील यव था :-सड़क प रवहन ,अ य प रवहन सेवाओं क तुलना म
अपे ाकृ त अिधक लोचशील है य िक वह उपयोगकताओं क आवशयकता व सुिवधा
के अनुसार माग बदल सकती है ।
4. न शील व ह क व तु ओ ं के प रवहन के िलए उपयोगी :- सड़क प रवहन ,अ य
प रवहन मा यमो क अपे ा न शील व ह क व तुओ ं के प रवहन के िलए अिधक
उपयोगी : जैसे उदाहरण के िलए को ारा फलो, सि जय तथा दूध को ज द से
उपभो ाओं तक पहँचाया जा सकता ह ।
5. अिधक सुिवधाजनक यव था :- रेलवे क तुलना म सड़क प रवहन अिधक बेहतर है
य िक इसम अपे ाकृ त देरी, ित या नुकसान क स भावना कम होती है य िक इस
णाली म माल को बार-बार उतरने तथा लादने क आव यकता नह होती है िजससे इसम
म क लागत भी अपे ाकृ त कम होती है । इस णाली म एक ही वाहन उ पादन थान से
माल को उठाकर थोक िव े ता के गोदाम तक पहंचा देता है ।
6. कम पू जँ ी क आव यकता :- सड़क प रवहन ,रेलवे तथा वायु प रवहन यव था क
तुलना म कम िनवेश से ार भ िकया जा सकता है इसम भारी िनवेश क आव यकता नह
होती है ।
7. सु र ा क ि से भी उपयोगी :- चूिँ क रेलवे का िव तार देश के भीतरी भाग तथा
सभी कोन तक नह है । इस कारण सेनाओं तथा सै य साम ी को इन थान तक पहँचाने
क िज मेदारी सड़क को उठानी पड़ती ह ।
भारत म सड़क का िवकास :-
सड़क प रवहन और राजमाग मं ालय को रा ीय राजमाग के िनमाण और अनुर ण क
िज मेदारी सौप गई है ।रा य म रा ीय राजमाग से िभ न अ य सभी सड़के स बं िधत रा य
सरकार के काय े म आती है । हाल के वष म सड़क प रवहन के े म तीन मह वपूण यास
िकए गए है :रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना (National Highways Development
Project, NHDP), धानमं ी भारत जोड़ो प रयोजना (Pradhan Mantri Bharat Joda
Pariyojana,PMBJP) तथा धानमं ी ाम सड़क योजना (Pradhan Mantri Gram Sadak
Yojana,PMGSY)
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना (NHDP) :-
NHDP का उ े य अ छी गुणव ा के राजमाग का िवकास करना ह । देश म सड़क के िनमाण के
िलए तथा राजमाग के िव तार क यह सबसे बड़ी प रयोजना है । इस प रयोजना को भारतीय
रा ीय राजमाग ािधकरण (Nation Highway Authority of India) ारा संचािलत िकया जा
रहा है । इस प रयोजना को पूण करने के िलए भारत सरकार ारा ािधकरण को 6,00,000 करोड़
. क रािश आवं िटत क है । िजसे 07 अलग-अलग चरण म कायाि वत िकया जाना है । इन सात
चरण के अंतगत िकए जाने वाले काय िन निलिखत है ।
177
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना चरण –I और II :-
NHDP चरण-I और II म िन निलिखत माग का 4/6 लेन के मानको के अनु प रा ीय
राजमाग के प म िवकास करना शािमल है :-
(i) विणम चतु भज ु :-देश के चार मुख महानगर अथात् िद ली-मुबं ई-चे नई –कोलक ा को
आपस जोड़ने वाले राजमाग का िवकास करना ।
(ii) उ र-दि ण तथा पूव -पि म गिलयारे का िवकास करना :- ीनगर से क याकु मारी
तक के उ र-दि ण गिलयारे का तथा िसलचर से पोरबं दर तक पूव से पि म गिलयारे का
िवकास करना ।
(iii) देश के महाप न को रा ीय राजमाग तक सड़क संपक दान करना तथा
(iv) अ य रा ीय राजमाग के िविभ न खंडो का सुधार करना ।
उपरो दोन चरण म लगभग 14,000 िकलोमीटर क 4/6 लन क सड़क के िनमाण का ल य
रखा गया ।
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना चरण-III :-
NHDP चरण-III के अंतगत भारत सरकार ने पहले 2005 म, िनमाण, चालन और
ह तां तरण (बी.ओ.टी.) के आधार पर 4000 िकलोमीटर क सड़क के िनमाण का ल य िनधा रत
िकया था । पर तु काला तर ने सरकार ने उ नयन के िलए काया वयन हेतु 17.10.2006 और
12.04.2007 को 12,109 िकलोमीटर ल बाई के अित र खंड को अनुमोिदत िकया िजसके
िलए सरकार ने 80,626 करोड़ पये आवंिटत िकए । इस चरण म िविभ न खंडो का अिभिनधारण
िन निलिखत मानद ड के अनुसार िकया गया है:-
चरण –I और चरण-II म शािमल न िकए गए उ च घन व वाले यातायात को रडोर ।
रा य राजधािनय को संपक सड़क उपल ध करना ।
पयटन के और आिथक मह व के थान को सड़क सं पक उपल ध करना ।
िदस बर 2014 तक 12,109 िक.मी. के ल य के िव कु ल 6352 िक.मी. ल बाई म 4 लेन
बनाने का काय पूरा कर िलया गया और 4414 िक.मी. क ल बाई म काय चल रहा है ।
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना चरण –IV :-
NHDP के चरण –IV म सावजिनक –िनजी भागीदारी (पी.पी.पी.) आधार पर लगभग
20,000 िकलोमीटर ल बे रा ीय राजमाग को पे ड शो डर सिहत 02 लेन म उ नयन क
प रक पना क गई है । इस चरण का अनुमोदन सरकार ारा वष 2008 म भारतीय रा ीय राजमाग
ािधकरण (14,799 िक.मी.) तथा लोक िनमाण िवभाग, सावजिनक –सड़क और प रवहन िवभाग
भारत सरकार [शेष भाग क ल बाई] के सं यु त वाधान म िकया गया तथा 6928 िक.मी. दूरी का
काय काया वयनाधीन है ।
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना चरण –V :-
NHDP के चरण –V म िडजाइन, िनमाण, िव और चालन (DDFO) के आधार पर
अ टू बर 2006 म 6,500 िक.मी. चार - पथीय राजमाग को (िजसमे 5,700 िक.मी. विणम
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चतुभजु भी शािमल है ।) मौजूदा 4 लेन से 6 लेन बनाने क योजना को अनुमोिदत िकया गया ।
िदस बर 2014 तक 2127 िक.मी. ल बाई के राजमाग को 06 लेन म बनाने का ल य ा कर
िलया है और 2108 िक.मी. पर काय चल रहा है ।
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना चरण –VI :-
NHDP के चरण –VI क अनुशसं ा म सरकार ारा नव बर 2006 म िडजाइन िनमाण
िव ाचालन (DDFO) प ित का अनुसरण करते हए सावजिनक-िनजी भागीदारी मॉडल के
अंतगत 16,680 करोड़ क लागत वाले 1000 िक.मी. पूणत: पहँच िनयं ि त ए स ेस माग क
प रक पना क गई । इस स पूण प रयोजना को िदस बर 2015 तक पूरा करने का ल य रखा गया
है।
रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना चरण –VII :-
सरकार ने NHDP चरण –VII के अंतगत बी.ओ.टी. (पथकर) नीित से 16,680 करोड़
पये क अनुमािनत लागत िदस बर, 2007 म वतं रं ग रोड ,बाईपास , ेड सेपरेटरो, लाई
ओवर ,उ थािपत सड़क , सुरं ग , सड़क उप र-पुल अंडरपास , सिवस रोड आिद के िनमाण को
अनुमोिदत िकया गया है ।
िदस बर 2014 तक रा ीय राजमाग िवकास प रयोजना के अधीन 22,609 िक.मी. सड़क
का िनमाण पूरा िकया जा चुका था । NHDP के काया वयन म कई किठनाइय का सामना करना
पड़ा है जैसे –भूिम अिध हण म देरी ,इमारत को हटाने म िवल ब ,िनकाय को थाना त रत करने
म िवल ब, कु छ रा य म कानून व यव था क सम याएँ तथा कु छ ठे केदार का खराब िन पादन
इ यािद ।
रेल सड़क सम वय (Rail-Road Co-ordination) :-
देश के िवकास के िलए सड़क तथा रेल प रवहन एक –दूसरे के पूरक है न क ितयोगी ।
ल बी या ा और कम मू य वाले भारी पदाथ क ढु लाई के िलए रेले अिधक उपयु है । सड़क
प रवहन छोटी या ाओं और ह के माल ढु लाई के िलए अिधक उपयु है । इस ि से रा ीय
साधन का अनुकूलतम उपयोग उसी समय सं भव होगा जब इन दोन म ितयोिगता के थान पर
सम वय थािपत होगा ।
मोटर –प रवहन कई ऐसी सुिवधाएँ उपल ध करा सकता है जो रेलवे प रवहन के िलए
सं भव नह है । इसके साथ ही समय सारणी म अिधक लोच, तेज प रवहन आिद इन सब लाभ ने
इसे यापारी वग के िलए बड़ा लोकि य बना िदया है । सड़क प रवहन के लाभ पर बल देते हए
मसानी सिमित ने िलखा –“सड़क प रवहन ,रेल प रवहन से लगभग तीन गुना तेज है और भूतकाल
क तुलना म इसे भिव य म बड़े पैमाने पर िवकिसत करना पड़ेगा ।” सड़क प रवहन क े ता का
एक और कारण यह भी है िक रेल प रवहन को कु छ मूल अलाभो के अधीन काय करना पड़ता है
िजनमे :- कमचा रय के िनि त काय घ टे ,या ी िकराये म रयायत , अिनवाय व तुओ ं के
भाड़े म रयायत , यु व सुर ा क ि से प रचालन के अलाभ तथा ाकृ ितक आपदो के समय

179
इनका मु त प रचालन आिद । अत: इन सब से प होता क रेलवे अपने सामािजक दािय व के
चलते सड़क प रवहन क तुलना म उतने लाभ के आधार पर काय नह कर सकती है ।
रेलवे को सड़क प रवहन क ितयोिगता से बचाने के प म तक :-
इससे प होता है िकइन दोन म वतं प रयोिगता होने से नुकसान रेलवे को हआ है
और होगा य िक पहले प िकया जा चुका है सड़क प रवहन कई कार से रेलवे प रवहन से े
है ,सड़क प रवहन यव था से ितयोिगता कर पाने म असमथ रही है । 1930 से िनरं तर रेलवे को
उिचत सं र ण दान करने के उपाय सरकार करती रही है । मोटर-प रवहन के िव कई अिधिनयम
समय-समय पर बनाये गए तािक िनयं ण म रखा जा सके और रेल प रवहन को बढ़ावा िमल सके ।
रेलवे प रवहन को सं र ण देने के प म िन न तक िदये जाते है :-
1. रेलवे भू-प रवहन क धान णाली है और वह के ीय िव का मह वपूण साधन है ।
2. रेल के वािम व, ब ध एवं िनयं ण राजक य े के अधीन है जबिक सड़क प रवहन
नह है ।
3. रेल पर दो ऐसे दािय व है जो सड़क प रवहन पर नह है :- अथात् (क) जो कु छ भी माल
िमले ,उसे ढोना पड़ता है और (ब)िकसी िवशेष कार के माल को अनुिचत धानता नह
दी जाती है ।
4. रेल क दरे िनधा रत करते समय लाभ अिधकतम करने के िस ां त का पालन नह िकया
जाता बि क यह यान रखा जाता है िकयातायात या सहन कर सकता है ?
5. औ ोिगक तथा कृ िषगत िवकास के उ े य से रेल ऐसे माल क भी ढु लाई करती है जो
अपे ाकृ त कम लागत वाले तथा भारी होते है िजससे उनका भाडा इतना कम होता है िक
इससे रेलवे के प रचालन क लागत भी नह िनकलती है उसे हािन भी उठानी पड़ती है ।
6. रेल को रा ीय आव यकता तथा सुर ा के िलए हािन सहन करनी पड़ती है । ऐसा उस
ि थित म होता है जब रेलवे या ी भाड़े म रयायत दान करती है । सुर ा तथा ाकृ ितक
आपदाओं से िनपटने के िलए रेल-माग बनाती है ।
7. रेल णाली म पे ोिलयम उ पाद का यून उपभोग िकया जाता है िजससे काबन उ सजन
को कम िकया जा सकता है ।
उपरो िववरण से प होता है िकदोन ही णािलय के अपने-अपने लाभ तथा नुकसान है
िन कष के प म यह कहा जा सकता है िकअथ यव था के िवकास के िलए रेलवे प रवहन और
सड़क प रवहन दोन का अपना-अपना मह व है । वा तव म देश क स पूण प रवहन णाली को
इस कार िवकिसत िकया जाना चािहए क प रवहन स ब धी आव यकताओं को यूनतम लागत
पर उपल ध करा सकना सं भव हो ।
14.16 जल प रवहन (WATER TRANSPORT)
भारत म जल प रवहन दो कार का है :- अ तदशीय जल प रवहन और समु तटीय जल
प रवहन ।
180
अ तदशीय जल प रवहन(Inland Water Transport) :- देश क प रवहन यव था म नदी
या नहर के प रवहन ने काफ़ योगदान िकया है पर तु िपछली शता दी के म य के प ात, रेल
–प रवहन पर अिधक बल देने और निदय के जल का योग िसंचाई के िलए करने के
प रणाम व प जल-प रवहन क ित हई है । इस समय भारत म आंत रक जल माग क कु ल
ल बाई 14,544 िकलोमीटर है िजसम से मु य निदय के के वल 5,200 िकलोमीटर तथा नहर के
के वल 485 िकलोमीटर जल माग का योग यं ीकृ त जलयान (Mechanised Crafts) के िलए
िकया जा सकता है । देश म आंत रक जल प रवहन के िवकास को ो सािहत करने के िलए रा ीय
जलमाग (National Waterways) क सं क पना 1982 म दी गई । वतमान म देश म पां च
जलमाग है िज ह रा ीय जलमाग घोिषत िकया गया है । ये है :-
(i) गं गा-हि दया से इलाहबाद (1620 िक.मी.)
(ii) पु -ढबरी से सािडया (891 िक.मी.)
(iii) पि म तट नहर –कोटापुरम से कोलम िजसमे चं पकारा एवं उ ोगम डल नहरे भी शािमल है
।(205 िक.मी.)
(iv) गोदावरी नदी व कृ णा नदी का िह सा (1995 िक.मी.)
(v) ा णी नदी ,पूव तट नहर , मटाई नदी एवं महानदी 623 िक.मी. िह सा ।
उपरो पाँचो माग के िवकास क िज मेदारी भारतीय आंत रक जलमाग ािधकरण (IWAI) पर है
। भारत सरकार म आंत रक जल प रवहन को ो सािहत करने के िलए 2001 म आंत रक जल
प रवहन नीित क घोषणा क थी । कम गहरे , व चौड़ाई वाले जल माग पर खुशक मौसम, और
िकनार के टू ट –फु ट जाने से आंत रक नौका प रवहन पर अिधक यान कि त नह िकया गया और
इसके आधुिनक करण के भी कोई यास नह िकए गए । भारत म पहली बार आंत रक जल
प रवहन के िवकास को छठ पंचवष य योजना म वीकार िकया गया ।
तटीय और सामुि क जल प रवहन (Coastal and Overseas Transport):-
औपिनवेिशक शासनकाल म सामुि क और तटीय प रवहन भारतीय कं पिनय के हाथ म
नह के बराबर था । 1951 म भारतीय जहाज क मता के वल 3.9 लाख टन ( Gross Tonnage
or G.T) थी । 30 जून 2012 तक भारतीय जहाज क मता अनुसार उसका िव म सोलह थान
था। 12 व पंचवष य योजना म भारतीय जहाज क मता 110 लाख टन पहँच चुक थी और
मता को बढाकर 124 लाख टन तक पहँचाने का ल य है । बाहरव योजना म जहाजरानी े के
िलए प र यय 28,950 करोड़ पये रखा गया है । वतमान म भारत म िवदेशी यापार का मा ा
अनुसार 90% और मू यानुसार 70% समु माग के मा यम से होता है । तटीय और सामुि क
प रवहन क ि से बं दरगाह का िवशेष मह व होता है । इस समय देश म 13 बड़े और लगभग
200 छोटे बंदरगाह है । 1950 म के ीय और रा य सरकारे को बं दरगाह के िवकास के बारे म
सलाह देने के िलए रा ीय बंदरगाह बोड क थापना क गई थी ।
देश म बड़े बं दरगाहो के ब ध और िवकास का उतरदािय व रा य सरकार पर है । भारत
के मु य बं दरगाह क मता माच 2011 को 67.01 करोड़ टन माल चढ़ाने उतारने क थी । हाल
181
के वष म नई आिथक नीित के अपनाने तथा ती आिथक िवकास के चलते वष 2002-03 से
बं दरगाहो से माल क आवाजाही म 11% क गित से ित वष वृि हो रही है ।
जहाजरानी के िवकास म सरकारी सहयोग :-
भारत सरकार ने जहाजरानी के िव तार को उ च ाथिमकता दी य िक इससे िवदेशी मु ा
क बचत होती है सरकार ने ार भ म दो जहाजरानी क पिनयाँ थािपत क – पूव जहाजरानी
िनगम (Eastern Shipping corporation ) जो आ ेिलया और सदूर –पूव म काय ,करती थी
और दूसरी पि मी जहाजरानी िनगम (Western Shipping corporation) जो इंडो-पिशयन ग फ
,इंिडयन रे डसी और भारत –पोले ड के माग पर काय करती थी । 1961 म इन दोन का िवलयन
िकया गया और भारतीय जहाजरानी िनगम क थापना क जो वतमान म अब िव के सभी
मह वपूण समु ी माग पर काय करता है । भारत के पास चार मुख जहाज-िनमाण थल है :-वे
िवशाखाप नम ,कोलक ा, मुबं ई तथा कोची म ि थत है ।
14.17 वायु प रवहन (AIR TRANSPORT)
वायु प रवहन ,अ य िकसी भी प रवहन यव था क अपे ा अिधक ती तथा महँगा साधन
है । अपे ाकृ ता ऊँची लागत के चलते यह प रवहन साधन माल ढु लाई म नग य योगदान देता है
जबिक या ी यातायात म भी अिधक योगदान नह है । बहत अिधक मू यवान और ह क व तुओ ं
तथा डाक के यातायात के िलए वायु प रवहन का योग िकया जाता है इसके अित र उ च वग
,राजनीित य डॉ टर ,इंजीिनयर , बड़ी औ ोिगक कं पिनय के ितिनिधय तथा यापा रय ारा
या ी –सेवाओं के िलए इसका उपयोग िकया जाता है ।
भारत म नाग रक िवमान प रवहन क वा तिवक गित 1920 चालू हई जब सरकार म कु छ
हवाई अड् डे बनाए । नाग रक िवमानन –प रवहन िवभाग 1927 म थािपत िकया गया । ि तीय
िव यु के दौरान तथा इसके प ात के काल म िवमान प रवहन म काफ़ गित हई । 1948 म
सरकार ने अपनी िवमान प रवहन नीित थािपत क तथा घोषणा क िजसके अनुसार आंत रक तथा
बाहरी सेवाओं को कु छ िनजी वािणि यक क पिनय क सहायता देने का िव ास िदलाना था
काला तर म इन क पिनय को भारी नुकसान हआ िजसके चलते 1953 म सरकार ने वायु-प रवहन
िनगम अिधिनयम (Air Transport Corporation Act.) पास िकया तथा नाग रक िवमान
प रवहन का रा ीयकरण कर िदया । िजसके अंतगत :- आंत रक वायु सेवा के िलए इि डयन
एयरलाइ स कारप रेशन (IAC) तथा िवदेशी वायु सेवा के िलए एयर इि डया इंटरनेशनल थािपत
क गई। रा ीयकरण के प ात सभी िदशाओं म गित हई तथा नए हवाईअड् डे बनाए गए । चौथी
पं चवष य योजना के दौरान मुबं ई ,कोलक ा , चे नई और िद ली म अंतरा ीय हवाईअड् डो के
िवकास के िलए फरवरी 1972 म इंटरनेशनल एयर पोट् स आथौ रटी ऑफ इि डया (IAAAI) क
थापना क गई । सातव पंचवष य योजना के दौरान 1986 म घरेलू उड़ान के िलए इ तेमाल होने
वाले हवाईअड् डो के ब ध के िलए नेशनल एयरपोट् आथौ रटी क थापना क गई । 1985 म
पवन हंस िल. नाम से हैलीको टर सेवा शु क गई (िजसका नाम पवन हंस िलिमटेड है )। आठव
182
पं चवष य योजना के दौरान माच 1985 म इंटरनेशनल एयर पोट् स आथौ रटी तथा नेशनल एयरपोट्
आथौ रटी को िमलाकर एक ही एयरपोट् आथौ रटी ऑफ इि डया (AAI) का गठन िकया गया ।
वायु –प रवहन के े म कई प रवतन दसव पंचवष य योजना म देखने को िमले िजनमे से एक था
:- आंत रक वायु प रवहन सेवाओं को िनजी े के िलए खोला गया िजससे वायु प रवहन क
सुिवधाओं का ती िवकास हआ । वायु सेवाओं क बढ़ती मां ग को यान म रखते हए बारहव
योजना म 67,500 करोड़ पये के िनवेश का ल य रखा गया है िजनमे िनजी े का अनुमािनत
िह सा 50,000 करोड़ पये है । 27 अग त 2007 को , 1953 के भारत सरकार के वायु
–प रवहन िनगम अिधिनयम को िनर त करने के उपरां त िनजी े ने भी वायु प रवहन के े म
कदम रखा । और इसी िदन एयर इि डया तथा इि डयन एयरलाइ स का िवलय करके नेशनल
एिवएशन क पनी ऑफ इि डया िलिमटेड (NACIL) का गठन िकया गया । वतमान म देश म
सावजिनक े म तीन क पिनयां कायरत है –NACIL, एयर इि डया चाट् स िलिमटेड तथ
अलायं स एयर । इसके अित र ,िनजी े म 06 अनुसिू चत कं पिनयां कायरत है । छोटे शहर और
एक ही े के िविभ न इलाको को आपस म जोड़ने के उ े य से अनुसिू चत एयरलाइ स का एक
नया वग “शड् यू ड एयर ांसपोट (रीिजनल)” के नाम से शु िकया गया है ।
भारत म सं चार णाली (Communication System in India):-
सं चार णाली म डाक एवं तार टेली-सं चार यव था ,दूरवी ण और सू चना सेवाएँ शािमल
है । बाजार के बारे म आव यक सूचना उपल ध कराकर और आव यक ेरणा देकर भी, सं चार
णाली े ताओ एवं िव े ताओं को भावी प से जोड़ती है और इस कार अथ यव था को
व रत करती है । यह सूचनाओं को एक से दूसरे थान तक भेजने का काय क रता है । आिथक
िवकास के िलए अ छी सूचना णाली का िवकास अ यं त ही आव यक है । संचार के मु य साधन
है :- डाक सेवाएँ, टेलीफोन सेवाएँ , टेलीि टं र , रेिडयो व टेलीिवजन इंटरनेट इ यािद ।
14.5 डाक सेवाएँ (Postal Services) :-
भारत म आधुिनक डाक यव था क थापना 1837 म हई जब जन साधारण के िलए डाक
सेवाओं को आर भ िकया गया । वतं ता ाि के प ात ही वा तव मे इस सेवा का वृहद तर पर
िवकास सं भव हो सका तथा इसे आधा रत सं रचना के एक मह वपूण अंग के प म वीकार िकया
गया । जहाँ 1951 म डाक घर क सं या 23,344 थी अब बढकर 1,54,856 हो गई है तथा अब
औसतन 7,815 लोग तथा 21.25 वग िक.मी. े फल को एक डाकघर आपनी सेवाएँ दान
करता है । इसी कार भारत क डाक यव था िव म सबसे बड़ी डाक यव था है । भारत सरकार
के डाक सेवा िवभाग का दीघकालीन ल य येक गाँव से 03 िक.मी. के अंदर एक डाकघर
उपल ध कराना है । भारत सरकार के डाक िवभाग ारा प के सुचा प से देश के िविभ न थान
पर आदान – दान हेतु 1972 म वै ािनक प से िवकिसत 06 अंको वाले पो टल िपन कोड
(PIN) णाली को लागू िकया गया । ज द डाक सेवा (Quick Mail Services) को 1975 म
183
ार भ िकया गया । प तथा मह वपूण सूचनाओं के ती तथा व रत आदान- दान हेतु 1 अग त
1986 से पीड पो ट सिवस को ार भ िकया । िजसके अधीन डाक को एक िनि त समयाविध म
पहँचाने क यव था है सिवस म कोई कमी होने पर पैसे वािपस लौटाने का ावधान ह । डाक घर
अ तदशीय डाक सं चार सेवाओं के अित र कई कार के बचत खात को भी संचािलत करत है ।
बिकं ग े म इस िवभाग ने कदम रखते हए अपने ATM मशीने लगवानी ार भ कर दी है ।
अ य सेवाएँ
भारतीय तार िवभाग िव क सबसे पुरानी सावजिनक उपयोिगता (Public Utility) है ।
भारत म तार घर क सं या जो 1951 म 8,200 थी बढकर अब 30,000 के करीब हो गई है ।
फोनो ाम सेवा (Phonogram Service) िजसके ारा टेलीफोन से तार भेजे और ा िकए जा
सकते है , टेले स सेवा (Telex Service) िजससे छपे हए स देश भेजे या ा िकया जा सकते है,
टेलीफोन सेवा के भारी िव तार और य ं क डायिलं ग (Direct Trunk Dialling) ये सब
सुिवधाएँ अब सामा य जनता को उपल ध है ।
14.6 दू रसं चार (Telecommunication) :-
एक उ रोतर ान सघन होते हए िव म सामािजक आिथक िवकास के िलए संचार एक
आव यक बुिनयादी सुिवधा के प म िवकिसत हआ है । देश के सभी भाग म दूरसंचार सेवाओं
क पहँच एक अिभनव और तकनीक प से सं चािलत समाज के िवकास का अिभ न अंग है ।
अ ययन म यह दशाया गया है िक एक देश के सकल घरेलू उ पाद क िवकास दर का इ टरनेट तथा
मोबाईल सेवाओं के साथ एक सकारा मक/ य स ब ध है । िपछले कु छ वष म सरकार ारा
िकए गए ठोस उपाय के प रणाम के प म, भारतीय दूरसंचार े म तेजी से वृि हई है तथा चीन
के बाद यह दुिनया का दूसरा सबसे बड़ा नेटवक बन गया है । िदस बर 2014 तक भारत म 944.01
िमिलयन वायरलेस टेलीफोन कने शन समेत 971.01 िमिलयन टेलीफोन कने शन है । देश म
शहरी तथा ामीण टेलीघन व मश: 147.75% तथा 46.14% है जबिक सम भारत म यह
77.59 ितशत है । देश म उपल ध टेलीफोन म वायरलैस टेलीफोन का िह सा िदस बर 2014
तक 97.22 ितशत के आस-पास है । दूरसं चार सेवा दान करने वाली िविभ न सावजिनक व
िनजी कं पिनय क िह सेदारी मश: 10.85% तथा 89.15% है । दूरसंचार का िव तृत िववरण हम
िन निलिखत िबंद ुओं ारा भी समझ सकते है :-
तािलका 14.14
.सं. मद माच के अं त तक
माच 2012 माच 2013 माच 2014 िदस बर 2014
01. टेलीफोन क वायरलाईन 32.17 30.12 28.50 27.00
02. क सं या वायरलैस 919.17 867.81 904.52 944.01
03. (िमिलयन म ) ामीण 330.83 349.21 377.78 398.73
04. शहरी 620.52 548.80 555.23 572.28

184
05. सम 951.35 898.02 933.02 971.01
(1+2/3+4)
06. टेलीघन व ामीण 39.26 41.05 44.01 46.14
07. (टेलीफोन ित शहरी 169.17 146.64 145.46 147.75
08. 100 यि य पर) सम 78.66 73.32 75.23 77.59
09. िह सेदारी वायरलैस 96.62 96.64 96.95 97.22
10. ( ितशत म ) सावजिनक 13.69 14.49 12.87 10.85
11. िनजी 86.31 85.51 87.13 89.15
12. िपछले वष क तुलना म कु ल 12.41 -5.61 3.90 4.07*
टेलीफोन क वृि ( ितशत म )
* कु ल टेलीफोन म वृि का ितशत वष 2014 के 09 महीन को दिशत करता है,
ोत:- वािषक रपोट 2014-15, दूरसं चार िवभाग सं चार एवं सूचना ो ौिगक मं ालय,भारत सरकार, पृ सं या -03]
टेिलकॉम रे यु लेटरी अथो रटी ऑफ इि डया (TRAI) या ाई :-
भारतीय दूरसंचार िविनयामक ािधकरण ( ाई) क थापना ाई अिधिनयम, 1997 के
तहत 20 फरवरी 1997 को क गई । तदुपरां त सारण और के बल सेवाओं को भी “दूरसंचार सेवा ”
क प रभाषा के दायरे म लाया गया था । भारतीय दूरसं चार िविनयामक का ल य यह सुिनि त
करना है िक उपभो ाओं के िहत का सं र ण और के बल सेवाओं क िवकास स ब धी ि थितय
को ऐसे तरीके और गित से िवकिसत िकया जाए िजससे भारत उभरते हए वैि क सूचना समाज म
अ णी भूिमका अदा कर सके ।
नई दू र सं चार नीित1999 :-
सरकार ने 1999 म नई दूरसं चार नीित क घोषणा क । इस नीित के अंतगत सरकार ने
रा ीय ल बी दूर सेवा (National Long Distance Service) को िनजी े के िलए खोल िदया
। 13 अग त 2000 से इन सेवा दायको क सं या पर कोई पाब दी नह है । इस नई दूरसंचार नीित
के चलते दूरसंचार के े म िनजीकरण क ि या अ यािधक ती हई तथा इसके प रणाम व प
िदस बर 2014 म कु ल टेलीफोन म िनजी े का िह सा 89.1 ितशत हो गया जबिक 2004 म
यह िह सा 39.2 ितशत था ।
रा ीय दू रसं चार नीित(2012) :-
भारत सरकार ारा वष 2012 म दूरसंचार के े म एक नवीन नीित जारी क गई िजसे
“रा ीय दूरसंचार नीित 2012” का नाम िदया गया िजसके मुख ल य िन न है :-
(i) NTP-2012 का ल य भारतीय दूरसं चार यव था क ित पधा मक शि म वृि करना ।
(ii) भारतीय दूरसंचार यव था को िव म उ च थान पर थािपत करने के यास करना ।
(iii) दूरसंचार के े म नवीनतम ो ौिगक के िवकास को आधार बनाकर एक साँझे लेटफाम पर
बहत-सी िविभ न सेवाएँ दान करना है ।
12 व पं चवष य योजना तथा दू रसं चार िवकास:
बाहरव पंचवष य योजना म दूरसंचार े के िलए िन निलिखत उ े य रखे गए है :-
185
(i) 2017 तक 120 करोड़ मोबाईल कने शन दान करना ।
(ii) सभी ामीण े म मोबाईल सेवाओं का िव तार करते हए दूरसंचार घन व को 2017 तक
70 ितशत तक पहँचाना तथा
(iii) 2017 तक 17.50 करोड़ ोड् बड कने शन उपल ध कराना ।
य िवदेशी िनवेश नीित (एफ डी आई ) :-
एफ डी आई वाह को आकिषत करने तथा दूरसंचार े को और अिधक आकषक तथा
िनवेशक अनुकूल बनाने हेतु सरकार ने इस े म य िवदेशी िनवेश क सीमा को 74 ितशत
से बढाकर 100 ितशत कर िदया है इस उपाय से दूरसंचार लाइसस धा रय को इि वटी मजबूत
बनाने तथा बाज़ार से घरेलु और साथ ही िवदेशी कज जुटाने के िलए सुिवधा होगी ।
रा ीय ऑि टकल फाइबर नेटवक (एन.ओ.एफ.एन.)
ऑि टकल फाइबर नेटवक मुख प से रा य क राजधािनय , िजलो तथा इलाको तक
पहँच गया है । देश के सभी 2.5 लाख ाम पं चायतो को जोड़ने के उ े य से सरकार ारा “ रा ीय
ऑि टकल फाइबर नेटवक” प रयोजना को मंजरू ी दी गई । ामीण े म दूरसंचार सेवा दाताओं
को मोबाईल, इ टरनेट तथा के बल टी.वी. जैसी भेदभाव रिहत नेटवक पहँच उपल ध कराई जायेगी ।
इस प रयोजना को भारत ाडबड नेटवक िलिमटेड (बी.बी.एन.एल.) के ारा चलाया जा रहा है ।
अजमेर (राज थान ) के अ रयन, उ री ि पुरा के पिनसागर लाक तथा िवशाखाप नम
(आ देश) के परावदा लाक क सभी 59 ाम पं चायत को कने ट िकया जा चुका है िदस बर
2014 के अंत तक प रयोजना के तहत िवत रत रािश 2010.00 करोड़ पये है । िदस बर 2016
तक एन ओ एफ एन प रयोजना को पूरा िकए जाने का ल य है ।
आलोचना मक मू यां कन :-
2007-08 म एक कृ त पहँच सेवाओं (Unified Access Services या UAS) लाइसस
तथा 2G पे म (2G Spectrum) लाइसस के आवं टन को लेकर टेिलकॉम नीित क काफ़
आलोचना हई है । महालेखा िनरी क ने अनुमान लगाया है िक आवं टन म क गई यापक गडबड़ी
के कारण सरकार को 67,634 करोड़ पये से 1,76,645 करोड़ के बीच हािन उठानी पड़ी है ।
CAG के अनुसार, इस भारी हािन के िन निलिखत कारण थे:-
(i) UAS लाइसस क िब 2008 क बाज़ार क मत के आधार न करके 2001 क क मत पर
क गई । जबिक सात वष क अविध म क मत म कई गुणा वृि हई थी िजससे सरकार को
भारी हािन का सामना करना पड़ा ।
(ii) 122 नए आवं िटत लाइसस म से 70 लाइसस उन क पिनय को िदये गए जो टेलीकाम िवभाग
(DOT) ारा िनधा रत यो यता शत को भी पूरा नह करती थी । इनके आवेदन प क ठीक
कार जाँच पड़ताल नह क जा सक तथा इसके साथ न ही कोई प तथा पारदश िविध को
अपनाया गया ।
(iii) टेिलकॉम िवभाग के मंि मंडल ारा अनुमोिदत लाइसिसं ग नीित के के वल थम चरण के
आधार पर UAS लाइसस को आवं िटत कर िदया जबिक लाइसेिसं ग नीित के ि तीय चरण म
186
पे म क क मत के उिचत िनधारण के प ात ही लाइसस को आवं िटत िकया जाना चािहए
था ।
(iv) UAS लाइसस ऐसी क पिनय को आवं िटत िकए गए जो पहले से ही काम कर रही थी और
अपने कोटे से अिधक लाइसस भी पुन : ा करने म वे सफल रही जो क दोषपूण आवं टन को
दशाती है ।
इन बात से िस होता है िक UAS लाइसस को जारी करने और 2G पे म के आवंटन
म पारदिशता िब कु ल नह थी । इसिलए एक जनिहत यािचका पर िनणय देते हए , 02 फरवरी
2012 को उ च यायालय ने त कालीन संचार मं ी ए . राजा ारा ‘ पहले आओ ,पहले
पाओ’ क नीित पर आवं िटत सभी 122 लाइसस को र कर िदया ये नौ क पिनय को
आवं िटत िकए गए थे, िजनमे भारतीय कं पिनय तथा िवदेशी क पिनय क कु छ सं यु
कं पिनयाँ भी थी । इन िनर त 2G पे म क नीलामी क ि या पुन : 04 माच 2015 से
ार भ िकया जाना िनधा रत है ।
14.20 मू यां कन
1 भारत म प रवहन यव था क या या क िजये।
2 1951 के प ात प रवहन णाली का िवकास या या क िजये।
3 िन न पर िट पणी िलिखये _-
I. जल प रवहन (WATER TRANSPORT)
II. वायु प रवहन (AIR TRANSPORT)
III. दूरसंचार (Telecommunication)
IV. 12व पंचवष य योजना तथा दूरसंचार िवकास
4. आधा रक सरं चना से आप या समझते है ? भारत म इसके िवकास का आलोचना मक
मू याकं न िकिजए ।
5. ऊजा सं कट से आप या समझते है ? इसके कारण क या या करते हए इसके समाधान के
उपाय सुझाइए ।
6. भारत म प रवहन यव था के िवकास एवं िवतरण को समझाए ।
7. सड़क प रवहन या है ? इसके लाभ का वणन िकिजए ।
8. रेल प रवहन या है ? इसके िवकास एवं इसके सम मौजूद चुनौितय का िव तार से वणन
क िजए ।
9. “ सड़क तथा रेल प रवहन एक दूसरे के पूरक है न िक ितयोगी ” समझाइए ।
10. गैर पर परागत ऊजा ोत क भारत म उपल धता तथा िवतरण को समझाइए ।
14.21 कु छ उपयोगी पु तक
1. द एवं के .पी.एम.  इंिडयन इकॉनोमी
187
सु दरम
2. भारत सरकार, योजना  छठी व सातव एवं आठव पं चवष य योजनाओं सं बं धी
आयोग द तावेज
3. रज़व बक ऑफ इंिडया  रपोट ऑन करे सी ए ड फाईने स

188
इकाई 15
भारत म िनयोजन एवं िवकास ि या-िनयोिजत
िवकास क समी ा
इकाई क परेखा
15.0 उेय
15.1 तावना
15.2 पं चवष य योजनाओं के उददे य
15.3 िनयोिजत आिथक िवकास क िवशेषताएँ
15.4 िनयोजन क मुख उपलि धयां
15.5 िनयोजन के कु छ मह वपूण सबक
15.6 िनयोिजत िवकास के अ ा उ े य
15.7 िनयोिजत िवकास क िवफलताएँ
15.8 सारां श
15.9 कु छ उपयोगी पु तक
15.10 िनब धा मक
15.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप :
 जान सकगे िक भारत म िनयोजन के या ल य रहे ह?
 समझ सकगे िक इस काल म हमारी उपलि धय म या किमयां रह ।
15.1 तावना
इस इकाई म यह जानने का यास करगे िक भारत म वतं ता के बाद पं चवष य योजनाओं
के मा यम से अथ यव था के िविभ न े म आिथक िवकास क उपलि धयां या व िकतनी
रह ? िविभ न पंचवष य योजनाओं के मुख उ े य या रहे ह एवं िकस सीमा तक उ ह ा िकया
गया है? इसी के साथ िनयोजन क किमय एवं िवफलताओंपर भी आपका यान आकृ करगे।
वतं ता से पहले देश क आिथक सम याओं के िनवारण एवं आिथक िवकास के िलए
कु छ योजनाओं का िनमाण एवं काशन िकया गया था। इन योजनाओं म देश के आठ मुख
उ ोगपितय ारा कािशत ‘ब बई योजना’, भारतीय म-सं घ ारा िनिमत एवं कािशत ‘जन
योजना’ अिखल भारतीय िविनमाणक सं गठन ारा कािशत ‘िव े रैया-योजना’ तथा गां धीजी ने
189
आिथक िवचार पर आधा रत ीम नारायण ारा िनिमत ‘गां धीवादी योजना’ मुख है लेिकन इन
सभी योजनाओं का के वल से ां ितक मह व ही है य िक इनम से िकसी भी योजना का ि या वयन
नह हो सका।
अग त 1947 म भारत के वतं होने पर सव थम औ ोिगक े म आमूल-चूल
प रवतन का म ारं भ हआ। देश क थम औ ोिगक नीित क घोषणा सरकार ारा अ ैल,
1948 म क िजसने िमि त अथ यव था को अपनाते हए आिथक िवकास के ढाँचे क भावी
परेखा तुत क गई। 26 जनवरी 1950 से वतं भारत का सं िवधान लागू हआ िजससे
देशवािसय को मौिलक अिधकार क ाि एवं रा य को नीित िनदशक त व के अनु प देश का
भावी िवकास करने का पथ श त िकया गया। माच 1950 म सरकार ने योजनाओं के िनमाण एवं
सीिमत साधन के कु शलतम उपयोग के िलए पं जवाहर लाल नेह क अ य ता मे ँ ‘योजना
आयोग’ क थापना क । तभी से योजना आयोग ारा देश के आिथक िवकास एवं
आिथक-सामािजक शोषण से मुि के िलए पंचवष य योजनाओं का िनमाण िकया जा रहा है ।
हमारे देश म 1 अ ैल 1951 से थम पंचवष य योजना क शु आत हई। 31 माच 1990 को
सातव पं चवष य योजना समा हई है एवं आठव पंचवष य योजना 1 अ ैल 1992 से 1997 तक
पूरी हई। वतमान मे नौव पंचवष य योजना चल रही है । यह अविध योजनाओं के िवकास के लाभ
का मू यांकन करने के िलए पया है । इस अविध के दौरान योजना ि या को कु छ सं कट का
सामना भी करना पड़ा िफर भी योजना आयोग ारा योजनाओं के िनमाण एवं ि या वयन का म
आज तक अनवरत जारी है जो तािलका – 15.1 से प है ।
तािलका 15.1 भारत क योजनाएँ
योजना अविध सावजिनक े का योजना
प र यय (करोड़ पये)
पहली पं चवष य योजना 1अ ैल 51 से 31 माच 56 1960
दूसरी पं चवष य योजना 1अ ैल 56 से 31 माच 61 4600
तीसरी पं चवष य योजना 1अ ैल 61 से 31 माच 66 8577
तीन वािषक योजनाएँ 1अ ैल 66 से 31 माच 69 6626
चौथी पं चवष य योजना 1अ ैल 69 से 31 माच 74 15,779
पां चवी पं चवष य योजना 1अ ैल 74 से 31 माच 79 39,426
वािषक योजना 1अ ैल 79 से 31 माच 80 12,177
छठी पं चवष य योजना 1अ ैल 8० से 31 माच 85 1,10,467
सातव पं चवष य योजना 1अ ैल 85 से 31 माच 90 1,78,570
आठव पं चवष य योजना 1अ ैल 92 से 31 माच 97 4,34,100
नौव पं चवष य योजना 1अ ैल 97 से 31 माच 2002 8,59,200
दसवी पं चवष य योजना 1अ ैल 2002 से 31 माच 2007 15,25,639
यारवी पं चवष य योजना 1अ ैल 2007 से 31 माच 2012 36,46,718

190
इस कार तीसरी पंचवष य योजना के तुरं त बाद चौथी पं चवष य योजना ारं भ नह हो
सक एवं तीन वष के िलए (1966-69) वािषक योजनाएँ बनाई गई। इस अविध को ‘योजना से
छु ी’ के नाम से भी जाना जाता है । तीसरी योजना क अविध म 1962 म चीन का आ मण हआ,
1965 म पािक तान से यु हआ एवं 1965-66 म भयं कर सूखा पड़ा। इनसे भारतीय अथ यव था
पर भारी दबाव पड़ा एवं चौथी योजना को िनधा रत समय पर शु नह िकया जा सका। इसी कार
पांचवी योजना के दौरान के म जनता सरकार के आने से पांचवी योजना को एक वष पूव माच
1978 म ही समा कर िदया गया एवं 1978-83 क अविध के िलए छठी योजना बनाई गई। लेिकन
जनता सरकार के पतन के बाद पुनः 1980-85 क अविध के िलए नई छठी योजना बनाई गई। अतः
1978-79 के योजना-प र यय को पांचवी योजना म सि मिलत िकया जाता है एवं 1979-80 के
प र यय को अलग से वािषक योजना के प म दशाया जाता है ।
15.2 पं चवष य योजनाओं के उ े य
इकाई के इस भाग म हम िविभ न पंचवष य योजनाओं के मुख उ े य का वणन करगे।
थम योजना के मु य उ े य िन निलिखत थे :—
1. देश के िवभाजन से भािवतअथ यव था का पुन थान करना
2. खा ा न संकट को दूर करना एवं क चे माल क ि थित को सुधारना।
3. मु ा फ ित रोक लगाना।
4. आिथक पूं जी के िनमाण के िलए सड़क का िनमाण नहर , तथा जलिव तु एवं िसंचाई
योजनाओं का िनमाण करना तािक भिव य म भारी िवकास योजनाएं बनाई जा सक।
5. िवकास काय म के कु शलतम ि या वयन के िलए उपयु शासिनक तं क
थापना करना।
ि तीय योजना के मु ख उ े य
पं नेह के समाजवादी ढंग के समाज क थापना के व न को साकार करने के िलए
1956 म नई औ ोिगक नीित क घोषणा के साथ ि तीय योजना के िन निलिखत उ े य िनधा रत
िकए गए :—
1. लोग का जीवन तर सुधारने के िलए रा ीय आय म तेजी से वृि करना,
2. बुिनयादी एवं भारी उ ोग क थापना करते हए देश का तेजी से औ ोिगक करण
करना,
3. रोजगार के अवसर का तेजी से िव तार करना तथा,
4. आय तथा धन क असमानताओं म कमी करना।
तृ तीय योजना के मु ख उ े य
इस योजना के िनमाण के समय यह वीकार िकया िकया गया िक कृ िष एवं ामीण
अथ यव था के िवकास को ाथिमकता िदए बगैर देश का आिथक िवकास सं भव नह है । इसिलए

191
तृतीय योजना का ल य आ म िनभर एवं वयं- फू त अथ यव था रखा गया। इसके साथ
िन निलिखत उ े य भी रखे गए:
1. रा ीय आय म पांच ितशत वािषक वृि दर ा करना,
2. खा ान म आ मिनभरता ा करना,
3. आधारभूत उ ोग , जैसे इ पात, रसायन, ईधन ं तथा ऊजा का िवकास व िव तार
करना,
4. मानवीय साधन का अिधकतम उपयोग करने के िलए रोजगार के अवसर म पया
िव तार करना,
5. लोग को अिधक समान अवसर दान करना एवं आय तथा धन क असमानताओं म
कमी करना।
चौथी योजना के उ े य
इस योजना म ‘ि थरता के साथ िवकास’ एवं आ मिनभरता क ाि क बात मुखता से
कही गई। इसके िलए िन निलिखत उ े य रखे गए—
1. रा ीय आय म 5.5 ितशत आिथक वृि दर ा करना,
2. मु ा- फ ित पर िनयं ण के िलए घाटे क िव - यव था पर अंकुश लगाना,
3. आ मिनभरता ा करने, िनयात बढ़ाना एवं िवदेशी सहायता को कम करना
4. सामािजक याय और आिथक समानता ा करने के िलए आिथक स ा के
के ीकरण को कम करना,
5. रोजगार के पया अवसर उपल ध कराना।
पां चव योजना के मु ख उ े य
इस योजना म ‘गरीबी उ मूलन’ एवं ‘आ म-िनभरता क ाि ’ क बात जोर देकर कही
गई, िजनके िलए िन निलिखत उददे य रखे गए—
1. सकल रा ीय उ पादन म 5.5 ितशत क वािषक वृि दर ा करना,
2. उ पादक रोजगार के अवसर म वृि करना,
3. यूनतम आव यकताओं क पूित हेतु एक रा ीय काय म क शु आत करना ,
4. सामािजक क याण का िव तृत काय म शु करना,
5. आव यक उपभो ा व तुओ ं का सरकारी सं हण एवं सावजिनक िवतरण णाली का
िव तार करना तािक िनधन वग को ये व तुएं उिचत मू य पर उपल ध हो सक,
6. िनयात सं व न एवं आयात ित थापन पर जोर देना,
7. सामािजक, आिथक और े ीय असमानताओं को कम करने के िलए सं थागत,
राजकोषीय एवं अ य आव यक उपाय अपनाना,
8. गरीबी उ मूलन क िवकास िविध के प म घरेलू उ पादन क दर को बढ़ाना एवं
जनसं या क वृि दर को घटाना।
छठी योजना के मु ख उ े य
192
1977 म के म जनता सरकार के आने से पां चव योजना को िनधा रत समय से एक वष
पूव ही समा घोिषत कर िदया गया एवं 1978-83 क अविध के िलए, जनता सरकार ारा छठी
योजना ारं भ क गई। परं तु जनता सरकार के पतन के बाद कां ेस सरकार ने भी जनता सरकार क
छठी योजना को समा कर िदया और 1980-85 क अविध के िलए नई छठी योजना लागू क ,
िजसके िन निलिखत उददे य िनधा रत िकए गए:-
1. उ पादकता म वृि के साथ अथ यव था क िवकास दर म पया वृि करना,
2. आिथक एवं ािविधक आ मिनभरता ा करने के िलए आधुिनक करण क वृि य
को सु ढ़ बनाना,
3. ऊजा के सं र ण एवं कु शल उपयोग के साथ ऊजा के घरेलू साधन का तेजी से
िवकास करना,
4. यूनतम आव यकता काय म ारा िपछड़े कमजोर एवं सामा य जनता के जीवन तर
म िनधा रत अविध म रा ीय ि से वीकृ त तर ा करना,
5. गरीबी एवं बेरोजगारी म उ रो र कमी लाना,
6. आय एवं धन क असमानता म कमी करने के िलए सावजिनक नीितय एवं सेवाओं के
पुनिवतरण के आधार को देश क िनधन जनसं या के प म सु ढ़ करना,
7. े ीय असमानताओं म उ रो र कमी करना,
8. जनसं या वृि को िनयं ि त करने के िलए वैि छक वीकृ ित के आधार पर यास
करना,
9. प रि थितक य एवं पयावरणीय प रसंपितय का सं र ण एवं सुधार करना,
10. उपयु िश ा एवं सं चार आिद के ारा िवकास क ि या म जनता के सभी वग क
सहभािगता को बढ़ावा देना।
सातव योजना के मु ख उ े य
इस योजना म खा ा , रोजगार एवं उ पादकता पर िवशेष जोर िदया गया है । इन उ े य
क ाि के िलए योजना म िन निलिखत काय-नीितय का उ लेख िकया गया है ।
1. अथ यव था के येक े म उ पादकता म वृि के साथ, िव मान उ पादन मता
का गहन उपयोग करना,
2. अधसं रचना सं बधं ी सुिवधाओं क कमी को दूर करना,
3. िविनयोजन ि या को ो सािहत करना,
4. शासिनक कायकु शलता को बढ़ाना,
5. आधुिनक तकनीक एवं िव ान का समुिचत सम वय करते हए िवकास करना,
6. िनधन जनसं या, िपछड़े े एवं रा य क उ पादकता एवं आय म वृि के िवशेष
यास करना एवं गरीबी उ मूलन काय म को जारी रखना,
7. वा य एवं िश ा सिहत आधारभूत सुिवधाओं का गुणा मक सुधार करते हए
िव तार करना,
193
8. जनसं या वृि क दर को तेजी से कम करना,
इस कार हमारे देश क पंचवष य योजनाओं म िवकास एवं रा ीय आय म वृि के
साथ-साथ आिथक साधन के गरीब के प म पुनिवतरण पर भी जोर िदया गया है । इसके िलए
गरीबी उ मूलन, बेकारी िनवारण एवं क मत- थािय व क बात कही जाती रही है तथा
आ मिनभरता एवं आधुिनक करण पर िवशेष यान िदया गया है ।
आठव पं चवष य योजना के मु ख उ े य (1992-97)
आठव योजना के मुख उ े य िन मिलिखत ह।
1. अथ यव था का तेजी से बहमुखी िवकास
2. रा ीय आय म वृि
3. गरीबी दूर करना,
4. बेरोजगार को ऊं चे आय तर पर उ पादक रोजगार उपल ध कराना,
5. िविभ न े एवं वग के बीच िवषमताओं म कमी लाना
6. जन साधारण क ज रत को पूरा करना एवं उनक जीवनकोिट म सुधार लाना,
7. िवके ि त अथ यव था के िलए यास करना।
नौव पं चवष य योजना के उ े य (1997-2002)
न वी पं चवष य योजना के िन निलिखत मु य उ े य ह-
1. गरीबी िनवारण एवं पया उ पादक रोजगार के िनमाण हेतु कृ िष एवं ामीण िवकास
को ाथिमकता,
2. थाई मू य के साथ-साथ अथ यव था क वृि दर म तेजी लाना,
3. सभी के िलए खा एवं पोषाहार सुर ा,
4. सुरि त पेयजल, ाथिमक वा य सेवा, ाथिमक िश ा और आवास आिद मूलभूत
सुिवधाएं एक िनि त समयाविध म सबके िलए उपल ध कराना।
5. जनसं या िनयं ण,
6. जन भागीदारी ारा िवकास ि या म पयावरणीय सुर ा सुिनि त करना,
7. मिहलाओं एवं कमजोर वग का सामािजक उ थान,
8. पं चायती राज सं थाओं, सहका रताओं, वंयसेवी सं थाओं को ो साहन,
9. वाय ता िनमाण पर बल देना,
दसव पं चवष य योजना के उ े य (2002-2007)
1. योजना काल के दौरान जी. डी. पी. म वृि दर 8 ितशत पहँचाना।
2. िनधनता अनुपात को वष 2007 तक कम करके 20 ितशत और वष 2012 तक कम
करके 10 ितशत तक लाना।
3. वष 2007 तक ाथिमक िश ा क पहँच को सव यापी बनाना।
4. वष 2001 और 2011 के बीच जनसं या क दसवष य वृि दर को 16.2 ितशत
तक कम करना।
194
5. सा रता म वृि कर इसे वष 2007 तक 72 ितशत और वष 2012 तक 80 ितशत
करना।
6. वष 2007 तक वन से िघरे े को 25 ितशत और वष 2012 तक 33 ितशत
बढ़ाना।
7. वष 2012 तक पीने यो य पानी क पहँच सभी ाम म क़ायम करना।
8. सभी मु य निदय को वष 2007 तक और अ य अनुसिु चत जल े को वष 2012
तक साफ़ करना।
यारहव पं चवष य योजना के उ े य (2007-2012)
1. जीडीपी वृि दर को 8% से बढ़ाकर 10% करना और इसे 12व योजना के दौरान
10% पर बरकार रखना तािक 2016- 17 तक ित यि आय को दोगुना िकया जा
सके ।
2. कृ िष आधा रत वृि दर को 4% ितवष तक बढ़ाना।
3. रोज़गार को 700 लाख नए अवसर पैदा करना। सा र बेरोज़गारी क दर को 5% से
नीचे लाना।
4. 2011 से 2012 तक ाथिमक कू ल छोड़ने वाले ब च क दर म 2003-04 के
52.2% के मुकाबले 20% क कमी करना।
5. 7 वष य या अिधक के ब च व यि य क सा रता दर को 85% तक बढ़ाना।
6. जनन दर को घटाकर 2.1 के तर पर लाना।
7. बाल मृ यु दर को घटाकर 28 ित 1000 व मातृ मृ यु दर को '1 ित 1000' करना।
8. 2009 तक सभी के िलए पीने का व छ पानी उपल ध कराना।
9. 0-3 वष क आयु म ब च के बीच कु पोषण के तर म वतमान के मुकाबले 50%
तक क कमी लाना।
10. िलं ग अनुपात को बढ़ाकर 2011-12 तक 935 व 2016-17 तक 950 करना
11. सभी गाँव तक िबजली पहँचाना।
12. नवं बर 2007 तक येक गाँव म टेलीफोन सुिवधा मुहयै ा कराना।
13. देश के वन े म 5% क वृि कराना।
14. देश के मुख शहर म 2011-12 तक 'िव वा य सं गठन' के मानको के अनु प
वायु शु ता का तर ा करना।
15. 2016-17 तक ऊजा मता म 20% क वृि करना।
बारहव पं चवष य योजना (2012-2017)
1. योजना आयोग ने वष 2012 से 2017 तक चलने वाली 12व पंचवष य योजना म
सालाना 10 फ सदी क आिथक िवकास दर हािसल करने का ल य िनधा रत िकया है ।

195
2. वैि क आिथक संकट का असर भारतीय अथ यव था पर भी पड़ा है । इसी के चलते 11
पं चवष य योजना म आिथक िवकास दर क र तार को 9 ितशत से घटाकर 8.1 ितशत
करने का ल य रखा गया है ।
3. िसतं बर, 2008 म शु हए आिथक संकट का असर इस िव वष म बड़े पैमाने पर देखा
गया है । यही वजह थी िक इस दौरान आिथक िवकास दर घटकर 6.7 ितशत हो गई थी।
जबिक इससे पहले के तीन िव वष म अथ यव था म नौ फ सदी से यादा क दर से
आिथक िवकास हआ था।
4. िव वष 2009-10 म अथ यव था म हए सुधार से आिथक िवकास दर को थोड़ा बल
िमला और यह 7.4 फ सदी तक पहंच गई।
5. भारत सरकार ने चालू िव वष म इसके बढ़कर 8.5 ितशत तक होने का अनुमान
लगाया।
15.3 िनयोिजत आिथक िवकास क मु ख िवशेषताएँ
भारत म िपछले सात दशक म िविभ न पं चवष य योजनाओं के मा यम से जो आिथक
िवकास हआ, इस सं बधं म दो मुख िवचारधारा ह। पहली िवचार धारा के अनुसार देश ने पया
आिथक िवकास िकया है एवं भारत ‘िवकासशील देश म सबसे अिधक िवकिसत देश क ेणी
मे’ आ गया है । दूसरी िवचारधारा के अनुसार देश क अिधकां श जनसं या को िवकास के लाभ क
ाि नह हई है । इस कार पहली िवचारधारा उ पादन के भौितक पहलू से सं बिं धत है जबिक
दूसरी िवचारधारा उ पाद के िवतरण पहलू से भािवतहै । देश क योजनाओं का उददे य न के वल
‘रा ीय-रोटी’ के आकार को बढ़ाना है अिपतु इस ‘रोटी’ म सभी वग को समुिचत िह सा दान
करना भी है तािक सामािजक याय क ाि के साथ आिथक असमानताओं म कमी हो सके ।
भारतीय िनयोजनकताओं के िवकास के िन मिलिखत तीन पथ म अंितम पथ-भारी उ ोग
के िवकास से औ ोिगक करण के पथ का चुनाव िकया है ।
1. वचािलत वतं ता बाजार का पथ
2. मजदूरी व तुओ ं क मुखता सिहत कृ िष एवं ामीण िवकास का पथ, और
3. भारी उ ोग क थापना से औ ोिगक करण का पथ।
डॉ. ानंद एवं डॉ. पंचमुखी ने वतं ता के बाद भारतीय अथ यव था क िवकास
ि या के सं बधं म िन निलिखत त य क ओर यान आकृ िकया है:
1. वा तिवक रा ीय आय म वृि क वािषक दर जो स र के म य तक 3.5 ितशत थी। बाद
म 4.5 ितशत से भी कु छ अिधक हो गई। िवकास दर म अि थरता का मुख कारण कृ िष
े के उतार-चढ़ाव रहे ह। सकल घरेलू उ पादन एवं सरकारी यय का अनुपात जो पचास
के ारं िभक वष म 8 से 10 ितशत के बीच था, अ सी के म य तक 32-33 ितशत तक
पहंच गया है । इसी कार सकल घरेलू उ पादन एवं कर-राज व का अनुपात इसी अविध म

196
9-10 ितशत से बढ़कर 16 से 18 ितशत तक हो गया है । इसी अविध म आय अनुपात
क शु बचत का ितशत 7-8 से बढ़कर 16-17 ितशत हो गया है ।
2. वृि शील पूं जी उ पादन अनुपात जो पचास के ारं िभक वष म 2:1 था, बढ़कर अ सी के
म य तक 5:1 हो गया है ।
3. मजदूरी-व तुओ ं क कु ल पूित क वािषक दर 3 एवं 3.5 ितशत रही है तथा ित यि
खा ा एवं खा व तुओ ं का उपयोग बढ़ रहा है ।
4. उपभो ा व तुओ ं क तुलना म िविनयोग व तुओ ं क पूित म िव तार क दर दुगुनी है ।
5. सावजिनक े क ि याओं का तेजी से िव तार हआ है तथा वतमान म कु ल पूं जी भं डार
का लगभग आधा सावजिनक े के वािम व म है । लेिकन अिधकां श सावजिनक े के
ित ान तीन ितशत क औसत शु दर से ितफल देने म भी स म नह ह।
6. बजट घाटे म तीव वृि हई है य िक आिथक सहायता का भार बढ़ा है एवं सरकारी बचत
अपया है ।
7. देश म काले धन क समाना तर अथ यव था मौजूद है ।
8. िव -िनयात म भारत का िह सा िगर रहा है तथा मता से अिधक आयात िकया जा रहा है

9. िवकिसत देश क मु ा के संदभ म पये क िविनमय दर लगातार िगर रही है , लेिकन इससे
िनयात के िवकास म मदद नह िमली है ।
10. उ चतम एवं िन नतम वग के वेतन अनुपात म वृि होने से िवषमता बढ़ी है । गरीबी रेखा के
नीचे जीवन यापन करने वाल का ितशत कम हआ है ।
11. प रवार िनयोजन काय म पूणतः सफल नह रहा है । मृ यु दर तेजी से घटी है, औसत उ
बढ़ी है लेिकन जनसं या वृि दर आज भी दो ितशत से अिधक है ।
12. सफल घरेलू उ पादन म कृ िष े का िह सा जो पचास के ारं िभक वष म 50 से 55
ितशत तक था, 2016 म घटकर लगभग 15 ितशत ही रह गया है । जबिक कृ िष े पर
िनभर जनसं या का ितशत अभी भी लगभग 56 बना हआ है । सकल घरेलू उ पादन म
उ ोग एवं सेवा े दोन का िह सा बढ़ा है ।
13. सं गिठत े म रोजगार म वृि क दर शहरीकरण म वृि क दर से कम रही है । िछपी हई
बेराजगारी बढ़ रही है । ामीण एवं गैर -पं जीकृ त िनमाण े म वा तिवक मजदूरी दर म
वृि सं गिठत े क तुलना म कम रही है ।
14. ित इकाई वा तिवक रा ीय उ पादन म वृि के िलए इनपुट (िव तु , कोयला, तेल,
प रवहन आिद) क आव यकता पहले से अिधक मा ा म होती है ।
15. खिनज एवं धातुओ ं के भं डार म वृि क जानकारी बहत कम हई है लेिकन इनका खनन
एवं शोषण तेजी से बढ़ा है । इसी कार िसंचाई मता के पूरे उपयोग के नजदीक तेजी से
बढ़ रहे ह।

197
16. वतमान दर के पूवानुमान बताते ह िक अथ यव था को शी ही पानी, खा तेल, दाल,
पे ोिलयम उ पाद एवं उ च कोिट के कोयले क भयंकर कमी का सामना करना होगा।
उपयु त य के अित र यह जानकारी भी ज री है िक िनयोजन काल के वष म,
अथ यव था के िविभ न े म भारत क गित या व िकतनी रही है । इसके िलए हम कु छ चुने
हए वष , जैसे 1950-51, 1960-61, 1970-71, 1980-81 एवं 1990-91, 2000-2001,
2010-11 के आंकड़ का उपयोग करगे।
आगे तािलका - 15.2 म भारतीय अथ यव था के कु छ चुने हए आिथक सं केतको को
दशाया गया है । इनसे पता चलता है िक वतं ता के बाद देश ने िकस िदशा म िकतनी गित क है।
तािलका 15.2
भारतीय अथ यव था के मु ख सं केतक
. सं केतक 1950-5 1960- 1970- 1980-81 1990-91 2010-11
स. 1 61 71
1. साधन लागत पर सकल 17,536 25,53 36,73 1,22,427* 475604* 4507637(2004-
घरे लू उ पादन 1970-71 4 6 (980-81 05 क क मत पर)
क क मत पर (करोड़ .) क क मत
पर)
2. ित यि शु रा ीय 466 559 633 1630 4964* 33843(2004-05
उ पादन 1970-71 क क क मत पर)
क मत पर ( .)
3. औ ोिगक उ पादन 18.3 36.2 65.3 100 212.6 165.5(आधार
सूचकां क (आधार 2004-05)
1980-81)
4. कृ िष उ पादन सूचकां क 58.5 86.7 111.5 135.3 192.2 215.3(आधार
(आधार 1969-80 को 1980-81)
समा होने वाले तीन वष)
5. सकल घरे लू बचत (सकल 10.2 13.7 16.8 21.2 23.9 30.1
उ पादन के % के प मे)
6. खा ान उ पादन 50.8 82 108.4 126.6 176.3 244.78
(िमिलयन टन)
7. तैयार टील (िमिल. टन) 1.04 2.39 4.64 6.82 10.65 66.01
8. सीमे ट (िमिलयन टन) 2.7 8 14.3 18.6 52.0 209.7
9. कोयला (िमिल. टन) 32.8 55 76.3 119 232.6 570.8
10. ू ड तेल (िमिलयन टन) .26 .45 6.8 10.5 30.4 37.7
11. थोक मू य सूचकां क 47.5 55.1 100 256.2 182.00
(आधार 1970-71) at
1980-81
Prices
12. क का बजट घाटा -33 -117 285 2576 6080 373591
(करोड़ .)
13. िनयात (करोड़ .) 601 660 1535 6711 15,741 251.136 billion
14. आयात (करोड़ .) 650 1140 1634 12,549 22,399 369.769 billion

198
15. िवदेशी मु ा भं डार 911 186 438 4,822 7,287 262.933 billion
(करोड़ .) dollar
16. जनसं या (करोड़) 36.12 44.24 55.13 68.8 83.5 121.02 (Census
2011)
17. ज म दर ( ित हजार) 39.9 41.7 36.9 33.9 29.0 22.1
18. मृ यु दर ( ित हजार) 27.4 22.8 14.9 12.5 10.0 7.2
19. जीवन याशा पु ष (वष) 32.45 41.89 46.4 54.1 - 62.6
20. जीवन याशा (मिहला 31.66 40.55 54.7 54.7 - 64.2
वष)
21. सा रता दर का ितशत 16.7 24 29.5 36.2 - 74.4
22. ित यि ित िदन शु
उपलि ध ( ाम म)

(i) अनाज 334.2 399.7 417.6 416.2 408.2


(ii) दाल 60.7 69 51.2 37.5 33.2
23. ित यि उपलि ध
(िक. ा.)
(i) खा तेल - 3.2 3.5 3.8 5.9
(ii) वन पित - 0.8 1.0 1.2 1.3
(iii) श कर - 4.7 7.3 7.2 11.7
24. के सरकार के उ म
(i) इकाइयां 5 48 87 163 221 248
(ii) कु ल पं जी िविनयोग 29 953 3,606 18,207 58125 666848
(करोड़ .)

15.4 िनयोजन क मु ख उपलि धयां


वतं ता के बाद देश के ती आिथक िवकास के िलए योजनाओं के माग को अपनाने से
अथ यव था के कु छ े म उ लेखनीय उपलि धयां ा हई ह जहां वतं ता के पूव के पचास
वष म वा तिवक रा ीय आय म वािषक वृि क दर मुि कल से दो ितशत रही, वहां वतं ता के
बाद के चालीस वष म यह लगभग 3.6 ितशत रही। योजना काल के ारं िभक 35 वष म
वा तिवक ित यि आय क वािषक वृि दर 1.4 ितशत एवं वा तिवक िनजी उपभोग क
वृि दर 1.3 ितशत रही। इसी कार कृ िष उ पादन 2.7 ितशत, कृ िष े 1.0 ितशत तथा
कृ िष-उ पादकता लगभग सात गुना एवं खा ान का उ पादन लगभग तीन गुना बढ़ गया।
औ ौिगक उ पादन का सूचकां क 5.8 ितशत वािषक क दर से बढ़ा। िनयात म वृि दर 8.7
ितशत वािषक रही एवं एक भारतीय क औसत उ बढ़कर लगभग 53 वष हो गई। इस अविध म
देश क जनसं या के लगभग दुगुनी हो जाने एवं 1987 म शता दी के भयं कर सूखे के उपरां त भी
भारतीय अथ यव था िवकास के पथ पर अ सर है । िनयोजन क कु छ मुख उपलि धय का
उ लेख आगे िकया जा रहा है ।
199
1. खा ा न मे आ मिनभरता : वतं ता के समय देश म खा ा न-उ पादन एवं
खा ा न-आव यकता म बहत अंतर था। भारतीय कृ िष को मानसून का जुआ कहा जाता था
एवं खा ा न के आयात पर अथ यव था िनभर रहती थी। दूसरी एवं तीसरी योजना अविध म
पी.एल. 480 के अधीन खा ा न का आयात िकया जाता था। देश म आई ह रत ां ित के
कारण, कु छ खा ान का उ पादन तेजी से बढ़ा। कु ल िमलाकर अब भारत खा ा न के मामले
म लगभग आ मिनभर हो गया है, एवं िपछले कु छ वष म तो खा ा न का थोड़ा बहत िनयात
भी िकया है ।
2. सावजिनक े का िव तार : समाजवादी ढं ग के समाज क थापना करने के िलए वतं ता
के बाद सावजिनक े का तेजी से िव तार िकया गया। इससे अथ यव था क औ ोिगक
मता का िविवधकरण भी हआ। शु म सावजिनक े अलाभदायकता के कारण आलोचना
के पा बने, लेिकन धीरे-धीरे ि थित म सुधार हआ है, एवं ये थोड़ा बहत लाभ भी देने लगे ह।
3. अद:सं रचना का िवकास : िकसी अथ यव था का िवकास उसक आिथक अध:सं रचना पर
िनभर करता है । वतं ता के बाद देश म ऊजा, िसंचाई, प रवहन एवं दूर -सं चार क सुिवधाओं
के यापक िवकास से कृ िष, उ ोग एवं यापार—सभी को पया मदद िमली है । इ पात तथा
सीमट जैसी आधारभूत व तुओ ं के उ पादन म देश आ मिनभर है ।
4. तकनीक िवकास एवं आधु िनक करण : िपछले कु छ वष से तकनीक िवकास एवं
आधुिनक करण पर जोर देने से कु छ सुखद प रणाम सामने आए ह। इससे देश का औ ोिगक
ढां चा मजबूत हआ है एवं िवदेशी िवशेष पर िनभरता म काफ कमी आई है । भारतीय
तकनीक िवशेष क मां ग िवदेश म भी होने लगी है ।
5. आयात ित थापन एवं िनयात संव न : पहले भारत कु छ परं परागत व तुओ ं का ही िनयात
करता था लेिकन अब िनयात का पया िविविधकरण हआ है एवं गैर-परं परागत व तुओ ं,
पूं जीगत व तुओ ,ं इंजीिनयरी सामान आिद का िनयात तेजी से बढ़ा है । इसी कार खा ान,
खाद, खिनज तेल, उपभो ा एवं पूं जीगत व तुओ ं का देश म ही उ पादन होने से आयात का
ित थापन हआ है ।
6. गरीबी उ मू लन काय म : पां चवी योजना म बेरोजगारी एवं िनधनता पर य हार करने
क वात कही गई। इसके िलए रा ीय ामीण रोजगार काय म, समि वत ामीण िवकास
काय म, ामीण भूिमहीन रोजगार गारं टी काय म आिद अनेक काय म लागू िकए गए,
िजनका गरीबी एवं बेरोजगारी के उ मूलन पर य भाव पड़ा। सन् 1989-90 के बजट म
‘नेह रोजगार योजना’ लागू क गई है, िजसम येक गरीब प रवार के एक सद य को रोजगार
देने क बात कही गई है ।
7. वा य सेवाओं का िव तार : योजना काल म मृ यु-दर म उ लेखनीय िगरावट हई है ।
भारतीय क औसत उ बढी है एवं सामा य यि को कु शल वा य सेवाएं उपल ध हो रही
ह।

200
8. िश ा म मा ा मक एवं गु णा मक प रवतन : िश ा णाली के िवकास से न के वल
सा रता दर बढी है, अिपतु ाकृ ितक एवं सामािजक िव ान के िवशेष क सं या भी बढी है,
िजसका उपयोग देश के चहमुखी िवकास के िलए हो रहा है ।
9. सावजिनक िवतरण णाली का िवकास : िनयोजन काल क एक मुख उपलि ध,
सावजिनक िवतरण णाली का सफलतापूवक काम करना भी है । आव यक व तुओ ं का
िवतरण इस णाली के मा यम से उिचत क मत पर होता है । उिचत मू य क दुकान गां व एवं
शहर सभी जगह लोकि य ह। इनसे उपभो ाओं को मु ा फ ित के दु भावो से पया मा ा
म बचाया जाता है । व तुओ ं क बाजार म कृ ि म कमी होने पर एवं ारितक िवपदा एवं सूखे के
समय, यह णाली िपछले वष मे भावी रही है ।
10. बिकं ग णाली का िव तार : बक के रा ीकरण एवं ामीण बैको क थापना के बाद देश
म बक शाखाओं का ती िवकास हआ है । 30 जून 1969 को देश म, यापा रक बैको क
कु ल शाखाएं के वल 8262 थ , जो जून 1988 म बढ़कर 55,410 हो गई। इनके फै लाव से
ामीण अथ यव था का िवकास हआ एवं औ ोिगक करण म पया मदद िमली।
11. घरेलू उ पादन म सं रचना मक प रवतन : शु घरेलू उ पादन को तीन े म बांटने क
परं परा रही है—(i) ाथिमक े —िजसम कृ िष एवं वन, म य आिद सं बं िधत े सि मिलत
िकए जाते ह, (ii) ि तीयक े —िजसम िविनमाण उ ोग एवं िनमाण आिद े सि मिलत
िकए जाते ह, और (iii) तृतीयक े —िजसम यापार, प रवहन संचार, बिकं ग, बीमा एवं
िविभ न सेवाओं आिद को सि मिलत िकया जाता है । भारतीय अथ यव था कृ िष अथ यव था
से, औ ोिगक अथ यव था धीमी गित से वेश कर रही है । आगे तािलका म ि थर क मत पर
(आधार 1970-71) शु घरेलू उ पादन म वृि क च वृि दर दशाई गई ह। इससे ात होता
है िक यह वृि क दर ाथिमक े म, अ य दोन े क तुलना म आधी से कम रही। वृि
क दर म यह अंतर आिथक िवकास चई एक सामा य िवशेषता है ।
तािलका 15.3 वृ ि क च वृ ि दर
े 1950-51 1960-61 से 1970-71 से 1950-51 से 1950-51 से
से 1970-71 1983-84 1983-84 2001-02
1960-61 तक तक तक तक
तक
ाथिमक 2.93 2.26 1.98 2.35 2.06
ि तीयक 5.36 5.02 4.16 4.78 4.51
तृतीयक 4.69 4.96 5.68 5.16 7.78
शु घरेलू 3.79 3.55 3.70 3.68 4.13
उ पादन

201
शु घरेलू उ पादन म वृि पहले दशक क तुलना म दूसरे दशक म कम हई , तीसरे दशक
म यह कु छ बढ़ी लेिकन पहले दशक क तुलना म यह कम ही थी। े ानुसार िवकास क एक मुख
िवशेषता यह रही िक ि तीयक े क वृि दर उ रो र तीन दशक म कम होती जा रही है । इस
कार औ ोिगक करण क नीित पूणतः सफल नह रही है । ाथिमक े क वृि दर म भी
उ रो र कमी हई है, िजससे ात होता है िक कृ िष यो य भूिम के े म वृि नह होने के कारण
ह रत ां ित के लाभ पूण प से नह िमल पाए ह। तृतीय े के योगदान म उ रो र वृि पुनः
आिथक िवकास क ि या के शु आत को पु करती है ।
12. जनसं या के यावसाियक िवतरण म अनु कूल प रवतन : 1951 से 1971 के आंकड़े
बताते ह िक शु घरेलू उ पादन म कृ िष े का िह सा उ रो र घटा लेिकन कृ िष े पर
िनभर जनसं या मे कमी नह आई। लेिकन 1971-81 के दौरान इस वृि म प रवतन हआ,
जो अथ यव था के िवकास क ि से एक अनुकूल िवशेषता मानी जा सकती है । आगे
तािलका म हम अथ यव था को के वल दो े म बां ट रहे ह—कृ िष एवं गैर कृ िष े ।
तािलका से ात होता है िक शु घरेलू उ पादन म कृ िष का िह सा 1981 म घटकर 35.52
ितशत हो गया, इसके साथ कु ल म शि म, कृ िष े म लगे िमको का िह सा भी पहली
बार घटकर 66.69 ितशत हो गया। यह ि थित अथ यव था के सं रचना मक प रवतन म
आिथक िवकास क सूचक है । यह बात अलग है िक इस प रवतन क शु आत होने म भारत
को तीस वष लगे।
तािलका 15.4 शु घरेलू उ पादन एवं म शि म कृ िष एवं गै-रकृ िष े का योगदान
जनगणना वष कृ िष े का िह सा ( ितशत) गैर कृ िष े का िह सा ( ितशत)
शु घरेलू उ पादन म शि शु घरेलू उ पादन म शि
1961 49.3 69.5 50.7 30.5
1971 42.8 69.8 57.2 30.2
1981 35.5 66.7 64.5 33.3
2011 14.5 58.2 85.5 41.8
उपयु िववरण से प है िक वतं ता के बाद देश ने अथ यव था के सभी े म तेजी
से िवकास िकया है, िजसके कारण देशवािसय क आिथक ि थित म पूवापे ा उ लेखनीय सुधार
हआ है । योजनाओं ने देश का चहंमखु ी िवकास करने म पया सहयोग दान िकया है ।
15.5 िनयोजन के कु छ मह वपू ण सबक
ो. डी. टी. लाकड़वाला ने िनयोजन के अनुभव का िव ेषण करते हए योजना अविध के
दौरान सीखे गए कु छ मह वपूण सबक िगनाए ह:

202
1. सं थागत प रवतन, जो थम ि म आकषक तीत हए थे, उ ह लागू करने के पूव पया
िवचार करना चािहए। खा ान संकट के समय खा ा न के थोक यापार का रा ीयकरण
िकया गया, लेिकन सभी यास के बावजूद यह कदम असफल रहा। सरकारी एजिसय के
िलए यह सरल नह था िक सम त बाजार यो य अिधशेष को खरीद सके एवं पूरे देश मे
इसका समुिचत िवतरण कर सके । इसिलए इससे नरम कदम अिधक सफल रहा, िजसम
उिचत क मत एवं िवतरण णाली अपनाई गई। अतः आव यकता इस बात क है िक
क मत एवं िवतरण णाली क समय-समय पर समी ा क जाए, ज रत के अनुसार इसम
सुधार िकया जाए और जब इससे िकसी उ े य क ाि नह हो तो इसे छोड़ िदया जाए।
2. रा य को इ ह उ म को चलाना चािहए िजनम कायकु शलता के मानदं ड के साथ इस बात
का भी यान रखा जाना चािहए िक भिव य म इसम सुधार क और सं भावना है या नह ।
यह धारणा िक रा य बीमार इकाइय का अिध हण करके उ ह सफलता पूवक चला
सकता है, सामा यतया गलत सािबत हई है । कभी-कभी ित प ा मक िनजी े ,
सावजिनक े क काय णाली म आशानुकूल सुधार ला सकता है । उदाहरण के िलए
अित र टाफ क सम या से िनपटना सावजिनक े के िलए मुि कल है ।
3. आय एवं धन क असमानताओं को कम करने म अपनाए गए राजकोषीय उपाय भावी
नह रहे ह तथा समुिचत सं थागत प रवतन होने म समय लगेगा। वतमान ऊँची दर पर यिद
स प न वग क आय को बढ़ने िदया गया एवं इस वग ारा यिद िवलािसता-उपभोग पर
िनयं ण नह िकया गया तो भिव य म सामािजक असं तोष एवं सं घष से इ कारनह िकया
जा सकता, य िक स प न वग के सं गठन अपने िहत क र ा हेतु बन रहे ह, िजससे अ य
वग के िहत क अनदेखी होती है ।
4. भारत जैसे गरीब देश म, सीिमत साधन पर दबाव बहत अिधक है । अतः साधन के
उपयोग के िलए ाथिमकताओं के िनधारण म पया जां च पड़ताल ज री है । गरीबतम वग
के िहत पर सव थम यान िदया जाए एवं दूसरे वग क मां ग पर िनयं ण रखा जाय।
5. गरीब-वग के िहत को सव च ाथिमकता इस तरीके से दी जानी चािहए िक वे शी ही
रा क मु यधारा म सि मिलत हो जाएं, न िक वे हमेशा के िलए अपनी अलग पहचान
बनाए रख एवं िवशेष अिधकार के िलए दबाव बनाए रख।
6. िपछले कु छ वष से अथ यव था का बचत अनुपात ि थर हो गया है । बचत बढ़ने के िलए
बचत क सीमा त वृि को बढ़ना चािहए। ऐसा तभी संभव है , जब उपभो ा-सं कृ ित को
िनयं ि त िकया जाए। ऐसा नह हो सके गा, यिद िवलािसता क उपभो ा व तुओ ं का
उ पादन तेजी से बढ़ता रहेगा, य िक इसका म य आय वग पर मनोवै ािनक दु भाव
प तया तीत होने लगा है ।
इस कार ो. लाकड़ावाला ारा रेखां िकत िकए गए उपयु त य अ य त मह वपूण ह एवं
इ ह भावी योजनाओं का िनमाण करते समय यान म रखा जाना चािहए। योजनाओं से सं बिं धत
िनणय शु आिथक ि कोण से िलए जाने चािहए न िक राजनैितक ि कोण से। इस ि कोण के
203
िवकिसत होने पर अथ यव था के िवकास म पया मदद िमलेगी। िवकास का पथ सदैव सीधा एवं
सुगम नह होता, इसिलए आिथक नीितय के िनमाण एवं ि या वयन म सतकता ज री है ।
योजनाओं के अनुभव से िश ा लेते हए गित का पथ श त िकया जाना चािहए। भारत जैसे
िवकासशील देश के िलए तो यह अिधक ज री है ।
15.6 िनयोिजत िवकास के अ ा उ े य
योजना-काल म िनधा रत उ े य म से कु छ उ े य क ाि पूण तः नह हो पाई है ।
िन निलिखत उ े य को िनधा रत वीकृ त मा ा म ा नह िकया जा सका है ।
1. व रत िवकास : य िप िपछले लगभग चालीस वष म उ लेखनीय िवकास हआ है, िफर
भी िनयोजन-काल के उ रो र येक दशक म वा तिवक कु ल आय क वृि दर एवं
ित यि वा तिवक आय क वृि दर घटी है । ारं िभक तीन दशक के येक दशक म
वा तिवक कु ल आय क वृि दर मशः 3.8, 3.5 एवं 3.4 ितशत एवं वा तिवक
ित यि आय क वृि दर येक दशक म मशः 1.8, 1.2 एवं 1.0 ितशत ही रही है

2. बेरोजगारी एवं अ परोजगार म कमी : म बाजार म नये िमको के वेश क तुलना म
रोजगार के नये अवसर का सृजन कह कम हो रहा है । ितवष लगभग 56 लाख िमक,
म बाजार म वेश करते ह। छठी योजना के ारं भ म 120.2 लाख यि अविश
बेरोजगार थे। योजना अविध म रोजगार म 4.17 ितशत ितवष क वृि अनुमािनत क
गई लेिकन म-शि म लगभग इतने ही नव- वेशको के कारण योजना के अंत म 119.8
लाख यि य के पुनः अविश बेराजगार के प म शेष रहने का अनुमान लगाया गया।
इसी कार सातव योजना अविध 404 लाख यि य को रोजगार देने क बात कही गई है
। इसके उपरा त भी सातव योजना के अंत तक 72 लाख यि अविश बेरोजगार बने
रहगे। इसी कार सातव योजना के दौरान 94 लाख िशि त यि य को नौकरी देने क
आव यकता बताई गई है, लेिकन िशि त बेरोजगारी क सम या को सुलझाने के िलए
योजना म कोई िविश नीित नह बनाई गई है । इस कार अथ यव था म बेरोजगारी क
यापक सम या बनी हई है । वष 2014 म भारत म बेरोजगारी क 3.8 % वािषक रही ।
रोजगार क ि थित
31 माच को रोजगार क ि थित (लाख म )
2009 2010 2011
सावजिनक 177.95 178.62 175.48
िनजी 103.77 108.46 114.52
कु ल 281.72 287.08 289.99
मिहला 55.80 58.59 59.54

204
3. सामािजक याय : सभी योजनाओं से आिथक असमानता एवं आिथक स ा के
के ीकरण को कम करने क अपे ा क गई है । लेिकन सामािजक याय क ाि अभी
तक देशवािसय को अपेि त मा ा म नह हो पाई है ।
(i). असमानता मे कमी : एक अनुमान के अनुसार, उ चतम दस ितशत जनसं या को इस
अविध म बढ़ी हई कु ल यि गत आय का दो ितहाई िह सा िमल गया है, जबिक शेष 90
ितशत जनसं या को एक ितहाई िह से पर ही सं तोष करना पड़ा है । इस कार यह
उ े य ा नह िकया जा सका है ।
(ii). धन एवं आिथक स ा का के ीकरण : रजव बक ऑफ इि डया के एक सव ण के
अनुसार (1971-72), 70 ितशत ामीण प रवार के पास 1,000 . से भी कम क
प रसं पितयां थी जो कु छ ामीण प रसं पितय का के वल एक ितशत थी, जबिक दूसरी
तरफ के वल चार ितशत ामीण-प रवार के पास 50,000 . या अिधक क
प रसं पितयाँ थ , जो कु ल का तीस ितशत से भी अिधक था। इसी कार उ च बीस
औ ोिगक घरान क प रस पितयाँ इन वष म न के वल बढ़ी ह, अिपतु इनक
अथ यव था पर पकड़ भी पहले से मजबूत हई है ।
4. गरीबी उ मू लन : सातव योजना का कहना है िक िवकास ि या एवं गरीबी उ मूलन
काय म के कारण गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाल का ितशत, जो
1984-85 म 36.9 था, 1989-90 तक घटकर 25.8 रह जाएगा। इस कार िनधन क
सं या सातव योजना के अंत तक 21.1 करोड़ रह जाएगी। 2009 म िनयु तदुलकर
कमेटी ने NSSO के 61वे च 2004-05 के मू य पर कु ल 37.2 % गरीबी बताई ।
सरकार के अनुमान को वीकार भी कर िलया जाय तो भी िनधन क सं या काफ
अिधक है एवं गरीबी रेखा क अवधारणा को अब बदलने क ज रत है य िक यह
अवधारणा बदली हई िवकास प रि थितय म काफ सँकुिचत है, जो के वल उपभोग यय
एवं कै लोरी उपयोग से सं बं िधतहै ।
5. क मत थािय व : यह नाम िलया गया है िक िवकासशील देश म मु ा फ ित
आव यं भावी है । योजनाओं म ि थरता के साथ िवकास क बात कही तो जाती है, परं तु
इसका ि या वयन नह हो पाया है । क मत तर म वृि का सवािधक दु भाव असं गिठत
े के िमक , बेरोजगारी, गरीब एवं िनि त आय-वग के लोग पर पड़ा है । इससे गरीबी
रेखा से ठीक ऊपर गुजर-बसर करने वाले एकाएक गरीबी रेखा के नीचे ढके ले जाते ह
य िक उनक य शि क मत वृि के साथ-साथ घटती जाती है ।
6. े ीय सं तु लन : भारत जैसे बड़े देश म ादेिशक असमानताएं योजनाओं के मा यम से ही
कम क जा सकती ह, लेिकन यवहार म ऐसा नह हो पाया है । कु छ रा य अ यिधक
उ नत हए ह एवं कु छ िपछड़े हए ही ह।

205
15.7 िनयोिजत िवकास क िवफलताएँ
भारत के िनयोिजत आिथक िवकास के दौरान कु छ किमय एवं िवफलताओं को और देखा
जा सकता है, यथा
1. चालीस वष के यास के प ात भी भू-सुधार लागू नह िकये जा सके ह। अिधकतम जोत
कानून के अंतगत िजस जमीन का क जा िलया जा चुका है , उसे मुकदमेबाजी के कारण
पूरी मा ा म िवत रत नह िकया जा सका है । सातव योजना म भी चकबं दी, का तकारी
िनयमन एवं भूिम-अिभलेख को अ तन बनाने क बात कही गई है लेिकन राजनीितक
मनोबल के अभाव, नौकरशाही क उदासीन वृि , गरीब िकसान एवं कृ िष मजदूर क
िनि यता एवं असं गठन एवं भू-सुधार के ि या वयन म कानू नी बाधाओं के कारण
भू-सुधार म गित असं तोषजनक रही है ।
2. अथ यव था म काले धन क मौजू दगी के कारण सामािजक याय क ाि म सरकारी
नीितयां असफल रही ह। द नेशनल इं टीट् यटू ऑफ पि लक फाइनस एं ड पोिलसी के
अनुमान के अनुसार सकल घरेलू उ पादन म काली आय का अनुपात 18 से 21 ितशत
के बीच रहा है । 1983-84 म इस सं थान ने 36786 करोड़ . क काली आय क उ पि
का अनुमान लगाया है । तर क , कालाबाजारी एवं लाइसिसं ग णाली के कारण यह
सम या बनी हई है एवं इससे िनपटने के कारगर उपाय नह अपनाए जा सके ह।
3. िनयोजन काल म यापार असं तु लन एवं भु गतान असंतु लन—दोन क सम या िवषम
हई है । सन् 2010-11 के कु ल आयात 369.769 िबिलयन डालर एवं कु ल िनयात
251.136 िबिलयन डालर के ही अनुमािनत िकए गए है, इस कार िवदेशी यापार घाटा
118.633 िबिलयन डालर का है । िपछले कु छ वष म शु िवदेशी सहायता क रािश,
ऋण सेवा- भार क तुलना म कम हो रही है । कु ल िवदेशी सहायता आधे से अिधक,
याज तथा ऋण क िक त के भुगतान के प म चला जाता है । ऋण-जाल म फं सने के
शु आती संकेत ह। सन् 2011 म 326.6 डालर का िवदेशी ऋण था।
4. भारतीय पये क य शि वष- ितवष कम होती जा रही है । अथ यव था म या
मु ा- फ ित एवं सरकार ारा अपनाई गई यापक घाटे क िव यव था के कारण पये
का मू य तेजी से घटा है । अ य देश क मु ाओं के मुकाबले भी पया कमजोर हआ है ।
वष 1980-81 म अमरीक डॉलर एवं ि िटश पाउं ड के िलए मशः 7.9 . एवं 18.5 .
ही देने पड़ते थे, जबिक माच 2017 म एक डॉलर के िलए 65.42 . एवं एक प ड के िलए
80.87 . िदए गए।
5. िपछले वष मे सरकारी- यय तेजी से बढ़ा है । के सरकार का कु ल यय जो
1980-81 म के वल 22,495 करोड़ . था, बढ़कर 2010-11 (बजट) म 1197328 करोड़
. हो गया। वष 1950-51 म यह यय के वल 504 करोड़ . ही था। के सरकार का र ा
यय एवं याज के भुगतान पर यय 1980-81 म मशः 3,571 एवं 2,253 करोड़ . था,
206
जो 2010-11 (बजट) म मशः 154117 एवं 351145 करोड़ . होने का अनुमान है ।
इस कार र ा यय से भी याज भुगतान का यय बढ़ रहा है , जो िचं ताजनक है । उपयु
िववरण से प है िक योजनाओं से अपेि त लाभ ा नह हो सके ह। शासिनक
ाचार के कारण योजनाओं का समुिचत ि या वयन नह हआ है ।
15.8 सारां श
उपयु िववरण से प है िक भारतीय िवकास योजनाओं को पूण सफलता नह िमली है ।
खा ा न म हम न के वल आ म-िनभर हो गए ह अिपतु यदा-कदा अनाज का थोड़ा बहत िनयात भी
करने लगे ह। शता दी के भयं कर सूखे का िपछले िदन भारत ने सफलतापूवक सामना िकया है ।
िफर भी कृ िष िवकास क दर सं तोषजनक नह रही है । दाल एवं ितलहन के मामले म हमारी गित
िनराशाजनक रही है । औ ोिगक िवकास अपे ाकृ त अिधक तेजी से हआ है । उपभो ा व तुओ ं से
बाजार भर गया है एवं इन व तुओ ं क मां ग को पूरा करने के िलए उ ोग म अवां छनीय ितयोिगता
भी हो रही है िजससे सीिमत सं साधन का दु पयोग हआ है । िबजली, कोयला, पे ोिलयम पदाथ,
सीमट, इ पात आिद व तुओ ं एवं प रवहन तथा संचार यव था पर भारी दबाव बना हआ है ।
िवदेशी यापार म आशातीत वृि होने के उपरा त भी िव यापार म भारत का िह सा कम हआ है,
जो इस बात का सूचक है िक अ य देश के मुकाबले हमारी गित धीमी रही है । अथ यव था पर
आंत रक एवं बा ऋण का भार ज रत से यादा है, िजसके वािषक याज के आंकड़े ही च काने
वाले ह। जनसं या वृि एवं मू य वृि के कारण िवकास के लाभ सामा य नाग रक को नह िमल
पाए ह। कानून एवं यव था क शोचनीय ि थित एवं शासन म या ाचार का दु भाव
िवकास योजनाओं के ि या वयन पर पड़ा है । गरीबी एवं बेकारी क सम या आज भी बनी हई है
जो योजनाओं के िलए असली चुनौती है । आव यकता इस बात क है िक योजनाओं को ईमानदारी
से ि याि वत िकया जाए तािक िवकास क गित भी बढ़े एवं मौजूदा िवतरण णाली के िवकास के
लाभ आम जनता को ा हो सके । इसके अभाव म आय एवं धन क िवषमताएं और बढ़गी। सं पे
म भारतीय अथ यव था क सम या योजनाओं के िनमाण क न होकर योजनाओं के समुिचत
ि या वयन क है ।
15 कु छ उपयोगी पु तक
अ वाल ए. एन.  भारतीय अथ यव था, िवकास
द , सुं दरम  भारतीय अथ यव था, एस. चांद एं ड कं .
एम. एल. िझं गन  िवकास का अथ यव था एवं आयोजन, कोणाक
पि लशस
ी कृ ण माहे री  भारत म आयोजन तथा आिथक िवकास, िह दी मा यम
काया वयन िनदेशालय, िद ली िव िव ालय
207
P.R. Brahamanand and  The Development Process of the Indian
V.R. Panchamukhi Economy, Himalaya Publishing House,
Bombay
G. O. I  Economic Survey.
15.10 िनब धा मक
1. “भारत ने पंचवष य योजनाओं के ारा पया आिथक िवकास िकया है ।” इस कथन क
स माण पुि क िजए।
2. भारतीय िनयोजन के मुख उ े य का वणन करते हए बताइए िक इ ह िकस सीमा तक
ा िकया जा सका है?
3. भारतीय िनयोजन क िवशेषताओं पर काश डालते हए िनयोजन क उपलि धय एवं
िवफलताओं का वणन क िजए।
4. वतं ता के बाद’ भारत क िवकास ि या को समझाते हए, भावी योजनाओं के िलए
अपने सुझाव दीिजए।

208
इकाई 16
िवके ि त िनयोजन-प ित
इकाई क परेखा
16.0 उ े य
16.1 तावना
16.2 के ि त व िवके ि त िनयोजन म मु य अंतर
16.3 िवके ि एत िनयोजन क काय-प ित (Methodology) पंचायती राज सं थाओं से सं बधं
(अ) योजना कै से बनायी जाती है?
(ब) योजना क मशीनरी कै सी होती है?
16.4 िवके ि त िनयोजन क िदशा म गित व अनुभव-कनाटक, पि मी बं गाल व गुजरात म
िवके ि त िनयोजन
16.5 िवके ि त िनयोजन के माग म बाधाएं व सम याए
16.6 िवके ि त िनयोजन क सफलता क आव यक शत
16.7 भारत म िवके ि त िनयोजन का भिव य व सुझाव
16.8 कु छ उपयोगी पु तक
16.9 बौध के उ र
16.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन का उ े य िवके ि त िनयोजन प ित के अथ एवं उ े य से आपका
प रचय कराना है ।
16.1 तावना
एक देश के आिथक साधनो का िनधा रत सामािजक-आिथक उ े य क पूित के िलए
उपयोग करने क िविध को िनयोजन क प ित कहते है । इसके कई प है । इनम से के ि त व
िवके ि त िनयोजन के प म िवशेष चचा के िवषय रहे है । के ि त िनयोजन को 'ऊपर से िनयोजन'
(Planning from above) भी कहते है । भारतम योजना-आयोग ारा अब तक जो पंचवष य
योजनाएं बनायी गयी है वे इसी ेणी मे आती है । इसम के ीय व रा यीय तर पर योजनाओं का
िनमाण होता है । योजना-आयोग िविभ न रा य सरकार से िवचार-िवमश करके उनक योजनाओं
के िलए सावजिनक यय क रािश वीकृ त करता है । इस कार के व रा य के बीच आव यक
सलाह से योजना बनायी जाती है । लेिकन इस प ित म रा य- तर से, नीचे योजना क ि या पर
यान नह िदया जाता। इसके िवपरीत िवके ि त िनयोजन को'नीचे से िनयोजन' (planning for

209
bottom) अथवा ' ास ट लािनं ग' (grassroots planning) भी कहते है, िजसम योजनाका
िनमाण व तुत : ाम- तर से ऊपर ख ड या तालुका- तर, िफर िजला- तर से ऊपर तथा आगे
रा य- तर के के - तर क तरफ िकया जाता है ।''
इस कार िवके ि त िनयोजन म योजना का िनमाण व ि या वयन ि से सबसे छोटी
इकाई, अथात् गां व, से आरं भ होता है, हालांिक यवहार िनयोजन क इकाई 'िजला' या 'ख ड' रखी
जाती है, तािक िनयोजन क कायकु शलता बनी रही। मरण रहे िक िवके ि त िनयोजन व पंचायत
राज सं थाओं का पर पर गहरा सं बधं होता है, य िक इस प ित म आिथक िवके ीकरण के
साथ-साथ राजनीितक िवके ीयकरण भी आव यक माना गया है ।
भारत जैसे िवशाल देश के िलए िवके ि त िनयोजन िन न कारण से, िवशेष प से,
आव यक माना गया है ।
(i). भारत के कु छ िजल क जनसं या का अिधक होना :-
भारत म िवके ि त िनयोजन के प म थम कारण यह िदया जाता है िक िनयोजन
अ याव यक हो जाता है । हमारे देश म कई रा य क जनसं या व े फल ां स व जमनी
से अिधक है । ऐसे देश म िनयोजन क ि या को रा य- तर पर रोक देने से आिथक
िवकास म बाधा पड़ सकती है, य िक इससे राजनीितक व आिथक शि के के ीयकरण
क सम या उ प न हो जाती है ।
(ii). सभी लोग को िवकास क धारा म शािमल करने के िलए :-
अब तक के िनयोजन का अनुभव रहा है िक कु छ लोग आिथक ि या व आिथक िवकास
क मु य धारा से बाहर रह गये थे। उ ह िवकास-काय म से या तो कोई लाभ नह िमला,
अथवा अपया लाभ िमला, िजससे िवकास क ि से अ त ीय व अंतवग य
असमानताएं बढ़ी। भावी िनयोजन म इस कमी को दूर करने के िलए िजला व ख ड िनयोजन
क तरफ बढ़ना आव यक माना गया है । ऐसा करके अब तक िवकास के लाभ से वंिचत
लोग को भी िवकास क मु य धारा से जोड़ा जा सकता है ।
(iii). िवके ि त िनयोजन के मा यम से ही थानीय साधन व थानीय आव यकताओं म
आव यक ताल-मेल बैठाया जा सकता है ।
िविभ न े के आिथक साधन व उनक आव यकताएं िभ न-िभ न होती है । उनके
िवकास के तर म भी काफ अंतर पाये जाते है । िकसी ख ड तालुका म ट् यबू -वेल क
ज रत होती है, तो िकसी म जल-िवकास क , िकसी म पशु-िचिक सा क तो िकसी म
सं चार क , आिद। इसिलए थानीय आव यकताओं क पूित के िलए थानीय िनयोजन ही
अिधक उपयु होता है । रा यापी या रा य यापी िनयोजन म मश: देश व रा य क
आव यकताओं का तो यान रखा जा सकता है, लेिकन इससे नीचे के तर क
अलग-अलग कार क ज रत पर यान दे पाना दु कर होता है ।

210
(iv). िनयोजन क ि या म आम आदमी क भागीदारी को ो साहन देने के िलए :-
िवके ि त िनयोजन के प म एक बल तक यह है िक इसी के मा यम से आम लोग को
िनयोजन क ि या म शािमल िकया जा सकता है । जब ाम- तर पर िनयोजन िकया
जाता है तो लोग को योजना के िनमाण के समय अपनी बात कहने का अवसन िमलता है,
और बाद म इसके ि या वयन म भाग लेने का अवसर िमलता है, जो अ यथा स भव नह
था। इससे िनयोजन अिधक यावहा रक, लचीला व प रणामोमुख बनाया जा सकता है ।
(v). िवके ि त िनयोजन के अनु कूलतम प रणाम : -
वतमान समय म रा य सरकार के िविभ न िवभाग िजला- तर पर अपने-अपने काम देखते
है, जैसे कोई िसंचाई का, कोई पशु-पालन का, कोई भू-सं र ण का, आिद। इनम ाय: पर पर
ताल-मेल का अभाव रहता है । दूसरी तरफ सरकारी िवभाग व पं चायती राज सं थाओं म
भी ताल-मेल क कमी रहती है । इस प रि थित म सरकारी यय का पूरा लाभ नह िमल
पाता और काफ यय के िनरथक चले जाने क अिधक स भावना रहती है । िवके ि त
िनयोजन क ि या म सरकारी एजिसय व जन ितिनिध-एजिसय म अिधक ताल-मेल व
सम वय होने से यय से अनुकूलतम प रणाम िनकल सकते है ।
(vi). ऊजा-िनयोजन क ि से िवके ीकरण लाभदायक :-
अ टू बर 1983 म आिथक सलाहकार प रषद् ने िवकास-िनयोजन व ि या वयन के
िवके ीकरण पर धानमं ी को जो रपोट दी थी, उसम इस बात पर जोर िदया गया था िक
भारतीय गां व म ऊजा का भावपूण िनयोजन िवके ि त िनयोजन के मा यम से ही सफल
बनाया जा सकता है । ऊजा के पर परागत साधन (कोयला, जल-िव तु , तेल) तथा गैर
पर परागत साधन (वायु, लकड़ी, सौर-ऊजा, आिद) का सव म उपयोग ामीण िनयोजन
के मा यम से ही संभव है । गांव क ऊजा-सम या का हल भी इसी िविध से िनकाला जा
सकता है । गां व म गोबर-गैस के चू ह का फै लाव इस िदशा म गित का सूचक है ।
(vii). गां व को पर पर जोड़ना तथा गांव व छोटे क ब को पर पर जोडना संभव :-
भारत के अिधकांश गांव म जनसं या बहत थोड़ी पायी जाती है और वे एक दूसरे से काफ
दूर-दूर बसे होते है । उनम पर पर कड़ी थािपत करने तथा उनको पास के छोटे शहर स
जोड़ने के िलए इ ा चर के िवकास क आव यकता होती है जैस,े सड़क, गोदाम, व
प रवहन क सुिवधाएं आिद। ये काम िवके ि त िनयोजन से ही सं भव हो सकते है जहाँ
येक े अपनी आव यकताएं.ठीक से पहचान पाता है और उनको पूरा करने म थानीय
साधन का भी योगदान दे सकता है ।
(viii). िम ी, धरातल व जलवायु क िविभ नताओंके कारण थानीय िनयोजन ज री
ाय: एक रा य के िविभ न भाग म जलवायु, वष , िम ी आिद के अंतर पाये जाते है िजससे
उनक िनयोजन म अंतर करना आव यक हो जाता है । भू- वािम व, भूजोत के अपख डन
व िवतरण, आिद के बड़े जिटल होते है । अतः िवके ि त िनयोजन के मा यम से ही इन

211
िविभ न कार क दशाओं म अिधकतम आिथक िवकास के ल य को ा िकया जा
सकता है ।
इस कार हमने देखा िक िवके ि त िनयोजन के मा यम से ही; हम आिथक िवकास क दर
को ऊँचा कर सकते है, रोजगार-सं वधन व िनधनता-िनवारण के काय म अिधक भावपूण
ढं ग से लागू कर सकते है, ऊजा व इ ा चर के िनयोजन को अिधक सफल बना सकते
है, तथा लोग क आव यकताओं के मुतािवक िनयोजन को अपनाकर उसम उनक
भागीदारी को भी बढ़ा सकते है । कहने का आशय यह है िक भारत जैसे िवशाल देश म, जो
लोकतांि क मू य को िवशेष आदर देता है , िवके ि त िनयोजन व पंचायती राज सं थाओं
के िवकास से ही देशवािसय का जीवन- तर बेहतर बनाया जा सकता है । ामवािसय ,
वनवािसय , िगरीवािसय अनुसिू चत जाितय व अनुसिू चत जनजाितय , खेितहर मजदूरी,
ह रजन व अ य िपछड़ी जाितय के आिथक क याण के िलए सरकार को आगामी कई वष
तक िवके ि त िनयोजन क ि या व प ित के मा यम से सं घषरत रहना होगा, तभी
वां िछत सफलता िमल सके गी।
16.2 के ि त व िवके ि त िनयोजन म मु य अं तर
उपयु िववेचन से प होता है िक भारत िवके ि त िनयोजन क प ित को अपना कर
अिधक लाभ उठा सकता है । योजना-आयोग के वतमान उपा य ी रामकृ ण हेगड़े ने आठव
पं चवष य योजना (1992-97) म िवके ि त िनयोजन- णाली को अपनाने पर बल िदया है । जैसा
िक कहा जा चुका है भारत अब तक मूलत के ि त िनयोजन के माग पर ही चलता रहा है । येक
पं चवष य योजना योजना-आयोग ारा एक िवशेष मॉडल के आधार पर के ीय तर पर तैयार क
गई है ।
के ि य िनयोजन क प ित का यापक प से योग सोिवयत सं घ म िकया गया है । भारत
ने भी ि तीय पं चवष य योजना के आरं भ से नेह -महलानोिबस िवकास-नीित के तहत सावजिनक
े म भारी उ ोग पर आधा रत औ ोिगक करण का माग हण िकया था। तब से सातव
पं चवष य योजना के अंितम वष 1989-90 तक देश के ि त िनयोजन क प ित पर ही चलता रहा
है, ह लां िक सातव योजना (1985 -90) म कु छ रा य , जैसे कनाटक, पि म बं गाल, गुजरात
आिद के िवके ि त िनयोजन क िदशा म कु छ कदम उठाये है । नीचे के ि त व िवके ि त िनयोजन
म मु य अंतर बतलाये गये है –

212
के ि त िनयोजन िवके ि त िनयोजन
(i). इसका िनमाण सीधे रा ीय तर पर (i). इसका िनमाण व तुतः ाम- तर से आर भ
योजनािधकारीकरतेहै । िफरिनचले तर होता है, िफर ख ड या तालुका- तर व
जैस.े रा यीय तर, िजला- तर आिद पर िजला तर पर योजनाएं -बनायी जाती है ।
िवकास-काय िकये जाते है । त प ात् रा यीय योजनाए बनती है और
अंत म रा ीय योजना बनती है । अतः
इसक िनमाण ि या के ि त िनयोजन से
िवपरीत होती है ।
(ii). इसम िनयोिजत िवकास क वािषक दर (ii). इसम यि - ि कोण से ार भ िकया
का िनधारण िविनयोग क रािश व जाता है य िक गां व क योजना काय म व
पूँजी-उपि अनुपात (Capital-out-put ोजे ट से चालू करके ख ड तर पर, िफर
ratio) तथा जनसं या क वृि , आिद के िजला- तर पर, और अंत म रा ीय तर पर
आधार पर िनकाला जाता है । इसम सम पहंचते है । अतः इसम िवकास क दर का
ि कोण अपनाया जाता है । अनुमान बाद म लगाया जाता है ।
(iii). इसम राजनीितक के ीकरण हो जाता (iii). इसम राजनीितक िवके ीयकरण हो
है । के के हाथ म आिथक स ा िसमट जाता है, अथात् पं चायती राज सं थाओं,
जाती है । जैसे िजला प रषद , पं चायत-सिमितय व
ाम-पं चायत क भूिमका मह वपूण हो
जाती है ।
(iv). यह यादातर अिधनायक तं म सफल (iv). यह यादातर लोकतं म जनसहयोग के
हो पाती है जैसे स क सा यवादी आधार पर संचािलत होने पर अ छे
अथ यव था प रणाम देती है ।
(v). इसका िनमाण अपे ाकृ त सरल व (v). इसका िनमाण जिटल होता है तथा उसम
शी गामी होता है । सम भी अिधक लगता है ।
(vi). यह बहधा आम जनता क आकां ाओं (vi). यह सवसाधारण क आव यकताओं पर
व अिभलाषाओं का पया यान नह रख अिधक यान दे पाती है ।
पाती।
इस कार के ि त व िवके ि त दोन कार क योजनाओं के अपने-अपने ल ण होते है ।
येक देश को अपनी राजनीितक यव था, आकार, िवकास क अव था व आव यकताओं के
अनु प िनयोजन क प ित का चुनाव करना चािहए। मरण रहे िक के ि त व िवके ि त दोन
कार क योजना-प ितय म रा ीय तर पर योजना होती है, लेिकन उसके बनने क ि या म

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अंतर होने के कारण उसम गुणा मक भेद पाया जाता है जो काफ मह वपूण होता है , िवके ि त
योजना के ि त योजना का सहायक व पूरक होती है ।
16.3 िवके ि त िनयोजन क काय प ित-तथा पंचायती राज सं थाओं
से सं बधं :
(अ) योजना कै से बनायी जाती है?
जैसा िक पहले कहा जा चुका है िवके ि त िनयोजन म योजना का िनमाण नीचे से ऊपर क
और चलता है । इसम हम ाम- तर से ार भ कर सकते है । अतः इसम सव थम गाँव के िलए
योजनाएं बनायी जाती है । इन ा य योजनाओं म ख ड या तालुका- तर पर आव यक संशोधन
करके ख ड-योजनाएं (block plans) बनायी जाती है । आगे चलकर ख ड-योजनाओं को इक ा
करके िजलेवार योजनाएं बनती ह। यही कम आगे रा य व के - तर पर जारी रख कर रा ीय
योजना का िनमाण होता है ।
(i). ख ड तर िनयोजन (Block- level planning) :-
यिद गांव के िलए पृथक योजनाएं न बनाकर सीधे ख ड- तर पर ही योजना बनायी हो तो
थोड़ा िभ न तरीके से चलना होगा। पूव जनता शासनकाल म छठी पं चवष य योजना के सं शोिधत
ा प (1978 -8 3) (उस समय योजना आयोग के उपा य डा.डी.टी.लकड़ावाला थे) म
ख ड तरीय योजना के िनमाण के िलए यह आव यक माना गया था सव थम उस ख ड के भौितक
व आिथक साधन , मानवीय साधन , आधार ढां च (इ ा चर) क सुिवधाओँ तथा सं थागत
यव थाओं का सव ण कराया जाय। ख ड- तर क योजना का िव ीय आकार िनधा रत करने के
िलए िन न बात पर यान िदया जाय-(1) रा य-योजना का कोई िनि त ितशत, जैसे 10%
ख ड-योजना के िलए िनयत िकया जाय, (ii) समि वत ामीण िवकास के िलए वीकृ त के ीय
अनुदान, (iii) रा य ारा सं चािलत ख ड तरीय क म के िलए धन क यव था, (iv) थानीय
िव ीय साधन, (v) सं थागत कज (बक आिद से)
ख ड- तर क योजना म िन न काय म शािमल िकये जा सकते है :- (i) उ पादन के काय म,
जनशि -िनयोजन व द ता-िवकास, आधारभूत यूनतम आव यकताएं व सं थागत-सहयता, (ii)
िविभ न इ ा चर-िविनयोग काय म के थान-चयन के िलए े ीय िनयोजन, (iii) मुख
ोजे ट व उनके सहायक ोजे ट के िलए थान-चयन, (iv) आधारभूत इ ा चर क यव था
तथा (v) सं गठन क थापना। ख ड तरीय िनयोजन म अद िमको को रोजगार दान करने के
िलए सावजिनक िनमाण काय क यव था क जानी चािहए।
(ii). िजला-िनयोजन के िनमाण क ि या :-
िजला-िनयोजन क ि या या तो ख ड-योजनाओं को एकल करने व उनक छानबीन व
सं शोधन के मा यम से हो सकती है, अथवा, सीधे िजला- तर पर ही योजना बनायी जा सकती है ।
यह प रि थितय के अनुसार तय िकया जा सकता है । चूँिक हमारे देश म िजला-िनयोजन,
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ख ड-िनयोजन तथा ाम-िनयोजन के िलए कोई िनधा रत व सुिनि त व प प नह हो पाया ह,
इसिलए रा य- तर से नीचे योजना के िवके ीकरण के कई व प सुझाए जा सकते है । यिद िजले
को िनयोजन क इकाई माना जाता है तो सीधे िजला-योजना बनाने के िलए िन न पहलुओ ं पर यान
देना होगा-
(अ) थानीय साधन-उनका वतमान उपयोग व िवकास क स भावनाएं,
(आ) थानीय लोग क आव यकताएं
(इ) उस िजले म िविभ न ख ड के िवकास म असमानताएँ तथा उनको िनयोजन क ि या के ारा
कम करने के उपाय
(ई) मानवीय साधन का िवकास तथा बेरोजगार व अ परोजगार को कम करने के उपाय
(उ) िनधनता कम करने के उपाय
(ऊ) योजना के िनमाण व ि या वयन म लोग क भागीदारी के सुिनि त करने के उपाय।
इस कार िजले क योजना को ठोस, िविश , यावहा रक व लचीला प िदया जाना
चािहए। योजना के ल य को ा करने के िलए उिचत मा ा म िव ीय साधन को जुटाने तथा
सं थागत व तकनीक प रवतन के िलए तैयारी क जानी चािहए।
इस कार योजना चाहे िकसी भी तर पर बनायी जाय, उसक मूलभूत ि या म नौितक व
आिथक साधन का सव ण, थानीय लोग क आव यकताओं का अनुमान, मानवीय साधन का
उपयोग, बरोजगारी व िनधनता दूर करने के िलए ठोस काय म, सं थागत व तकनीक प रवतन,
योजना के िलए आव यक मा ा म िव का बं ध, आिद शािमल होते ह। यह तो िवके ि त िनयोजन
क चुनी गई ि या पर िनभर करेगा िक उसे गां व से ारं भ करके ऊपर ख ड व िजले क ओर लाया
जाय, अथवा ख ड- तर से ार भ करके िजले क और लाया जाय, अथवा ार भ ही िजला- तर
से िकया जाय। िवके ि त िनयोजन के यापक प म इसे ाम- तर से ार भ करके ख ड- तर,
रा य- तर व रा - तर क तरफ लाते है ।
(ब) योजना क मशीनरी कै सी होती है?
िवके ि त िनयोजन क मशीनरी का भी कोई एक िनि त व अंितम व प नह होता। यह
पं चायती राज सं थाओं क थापना पर भी िनभर करता है । हम जानते है िक गाँव म ाम-सभा व
ाम-पं चायत होती है । ाम-पंचायत म सरपं च सद य का सीधा चुनाव हो सकता है, अथवा
के वल सद य का य चुनाव तथा सरपंच का प य चुनाव ( वयं चुने हए सद य ारा) हो
सकता है । ख ड या पं चायत-सिमित के अ य सद य का भी य चुनाव हो सकता है, अथवा
के वल सद यो का य चुनाव हो सकता हो सकता है । िजला-प रषद् के िलए के वल सद य का
य चुनाव हो सकता है, अथवा अ य का य चुनाव कराया जा सकता है ।
ाम-पं चायत , पं चायत सिमितय व िजला-प रषद क िनयोिजत िवकास म मह वपूण
भूिमका होती है ।
िजला-प रषद म पािलयामे ट के सद य, एम एल.ए गण िजला प रषद् के अ य , आिद
भी होते है । मरण रहे िक िजला-प रषद ामीण े के िलए योजनाएं बनाती है । लेिकन स पूण
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िजले क योजना का काम िजला-िनयोजन-बोड (District Planning Board) को करना होता है ।
इसिलए िजला-िनयोजन-बोड को िजला-प रषद् क योजनाओं क समी ा करनी होती है तथा
उनको िजले क तथा रा य क योजना से समि वत करनी होती है तथा उनको िजले क तथा रा य
क योजना से समि वत व समायोिजत करना होता है । इनको िजले के नगरीय े क योजनाओं से
भी सम वय थािपत करना होता है । िजला-िनयोजन-बोड के सद य म िन न शािमल होते है-एक
रा य का मं ी (अ य ), एम पी, एम एल ए गण, िजला प रषद के कु छ सद य, आिद। िजलाधीश
इसका सद य-सिचव होता है । इस कार िनयोजन क मशीनरी म िजला-प रषद् व
िजला-िनयोजन-बोड के पर पर सं बधं पर यान िदया जाना चािहए। (''पं चायती राज व
िजला-िनयोजन'' पर िजला मिज ेट / िजलाधीश क वक शॉप क रपोट, जुलाई, 1988 म
तािवत) इसे िच वत् प म आगे दशाया गया है ।

उपयु िच से प होता है िक िजला- तर पर िजला-िनयोजन-बोड के गठन से एक तरफ


िजला-प रषद ारा ामीण े के िलए िनिमत योजनाओं का रा यीय योजनाओं से सम वय
बैठाना तथा दूसरी तरफ नगरीय योजनाओं के साथ भी सम यय बैठाना स भव होगा। अतः
तकनीक ि से िशि त सद य के प म इनको पूरा सहयेग िमलना चािहए। ामीण े के
िलए योजना बनाने म िजला- ामीण-िवकास-एजिसय (DRDAs) का यगेदान भी िमलता है, जो
ऊपर िजला-प रषद् के साथ छोटे गोले म दशाया गया है ।
बोध - 1
1. िवके ि त िनयोजन का अथ िलिखए।
2. िवके ि त िनयोजन के तीन मुख उ े य या लाभ िलिखए।
3. .के ि त व िवके ि त िनयोजन म तीन आधारभूत अंतर क रए।
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4. िजले क योजना बनाने म िकन बात का यान रखना चािहए,?
5. िजला िनयोजन बोड के गठन व काय का प रचय दीिजए।
16.4 िवके ि त िनयोजन क िदशा म गित व अनु भव
भारत म िवके ि त िनयोजन पर िजतनी चचा हई है उसके मुतािबक यवहार म काम नह
हो पाया है । इसम थानीय सं थाओं का चुनाव के आधार पर िनमाण िकया जाता है, उनको
अिधकार व िव ीय साधन ह ता त रत िकये जाते है, और सरकारी अिधकारी तथा जन- ितिनिध
पर पर सहयोग करके िवकास-काय स प न करते है । यह ि या ऊपर से तो सुगम लगती है लेिकन
यवहार म इसका ि या वयन काफ जिटल होता है । हमारे देश म सभी रा य म िवके ि त
िनयोजन व पयाचती राज सं थाओं का िवकास एक सा नह हो पाया है । इस िदशा म कनाटक,
पि म बं गाल, गुजरात, महारा , आध देश आिद म िवशेष गित हई है । इनके अनुभव का लाभ
उठाकर भिव य म अना रा य भी िवके ि त िनयोजन क प ित को अपना सकते है । नीचे कनाटक,
पि म बं गाल व गुजरात व िवके ि त िनयोजन क गित का उ लेख िकया जाता है ।
(i). कनाटक मे िवके ि त िनयोजन :- कनाटक म िवके ि त िनयोजन का योग 1987-88 से
िकया गया था। वहां मंडल-पंचायत व िजला-प रषद के य चुनाव होते है । ामसभा म
गां व के 18 वष से ऊपर के सभी यि एक होकर समय-समय पर िवकास क सम याओं
पर िवचार-िवमश करते है । एक म डल म कई गां व होते है िजनक कु ल जनसं या8 हजार से
12 हजार के बीच होती है । इनके धान व उप- धान चुने हए सद य ारा चुने जा ते है । इनम
ीय क सद यता का अंश 25 %, तथा अनुसिू चत जाित व अनुसिू चत जनजाित के सद य
य अंश 18 % रखा गया है । िजला-प रषद को िजल के िवकास व क याण- शासन म
सव च थान िदया गया है । इनके चुने हए सद य ही अ य व उपा य का चुनाव करते है
। मरण रहे िक कनाटकमॉडल म ाम-पंचायत के गठन का ावधान नह रखा गया है । जहां
तक तालुक पं चायत सिमित का है वह नामजद सद य क सं या होती है िजसम मंडल
के सभी धान, एम एल ए गण वगैर होते है । यह सिमित िविभ न मंडल म सम वय थािपत
करती है ।
कनाटक म िजला-प रषद से ऊपर िजला-िनयोजन-बोड जैसी कोई शीष सं था नह
रखी गयी है, जैसा िक पहले तािवतकाय म सुझाया गया था। िजला-प रषद् का अ य
इसका कायकारी अ य , व िजला-िवकास-काय म-सिमित का चेयरमैन होता है । यह
योजना के सभी े म िवकास क समी ा करती है । कनाटक म 1988 -8 9 म िजला व
मंडल तर पर योजनाएं बनायी गयी थी। रा य क योजना के यय का िजलेवार-िववरण
जनसं या (50%), िविभ न आिथक ि याओं के िपछड़ेपन, कमजोर वग क सम याओं तथा
िविश े ीय सम याओं के आधार पर िकया गया है । इसी कार िजल से मंडल क ओर
िव ीय साधन का आबं टन जनसं या (50%) े फल (15 %), सूखा े , खेितहर मजदूर
क सं या (10%) तथा ित यि सृिजत साधन (10%) के आधार पर िकया गया है । इस
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कार कनाटक म िजला-प रषद् िजला- तर पर िनयोजन का िनमाण व ि या वयन करने वाली
अि तमन मुख स था मानी जाती है । कनाटक म राजक य िव आयोग क थापना काफ
ावधान है । यह रा ीय िव आयोग के नमूने पर थािपत िकया जाता है और यह रा य
सरकार क ओर से िजल को िव ीय साधन के ह तां तरण के बारे म सलाह देता है । कनाटक
म िजला- ामीण-िवकास सिमितय को (DRDAs) को समा कर िदया गया है ।
कनाटक मॉडल क एक िवशेषता यह है िक इसम िजलाधीश के अिधकार- े म
के वल कानून व यव था ही रखे गये है, तथा िवकास-काय िजला-मु य-सिचव को स पा गया
है । कनाटक म िवके ि त िनयोजन क िदशा म ठोस गित हई है और इससे ामीण िवकास म
मदद िमली है । इस मॉडल को अ य रा य म भी अपनाने क आव यकता है । योजना
आयोग के पूव उपा य ी रामकृ ण हेगड़े ने कनाटक म िवके ि त िनयोजन क आधारशीला
रखने म भूतकाल म काफ योगदान िदया है ।
(ii). पि म बं गाल म िवके ि त िनयोजन-वैसे सा यवाद म 'के ीयता' पर िवशेष बल िदया
जाता है, लेिकन पि म बं गाल म 1978 म पं चायती यव था म ीगणेश कर िदया गया था।
वहां पं चायत के चुनाव दलगत आधार पर 1978, 1983 व 1988 म िकये जा चुके है । वहां
भूिम सुधार के अंतगत बटाईदार को भूिम व साख दान क गई है तथा सीिलं ग से ऊपर क
भूिम का भूिमहीन िमको म बंटवारा िकया गया है ।
पि म बं गाल म िवके ि त िनयोजन क वा तिवक शु आत 1985-86 से हई जो
सातव पं चवष य योजना का थम वष था। इस कार वहां सातव योजना के दौरान िवके ि त
िनयोजन के अनुभव ा हए है । वैसे 1978 के पंचायती चुनाव के बाद ामीण िनमाण काय
का िनयोजन तथा ामीण िमको को जुटाने के काम पंचायत के सुपदु कर िदये गये थे बाद म
रा ीय ामीण रोजगार काय म, ामीण भूिमहीन रोजगार गारं टी-काय म, सूखा-राहत
काय म आिद भी पं चायत को स पे गये। वहां िजला व ख ड- तर पर िनयोजन-मशीनरी
काम कर रही है । वहां िजले क योजनाओं के मा यम से ामीण व शहरी जनता को समि वत
िवकास करने का यास िकया गया है । पयावरण- दूषण क सम या यह भी यान िदया गया
है । वहां साख-योजना बनाने पर िवशेष यान िदया गया है । कु ल िमलाकर पि म बं गाल म
े ीय िनयोजन (Area Planning) क ओर िनयोजन को मोड़ा गया है । 1985-86 क
िजला-योजनाएं काफ कु शलता से तैयार क गई थी। लेिकन िव ीय साधन के अभाव तथा
राजनीितक इ छाशि क कमी के कारण वांिछत सफलता नह िमल पायी है । वहां
िजला- तर पर िजला-िनयोजन व सम वय सिमित (DPCC) तथा िजला-िनयोजन-सिमित
(DPC) होती है । DPCC म के िबनेट मं ी अ य होता है तथा एम पी व एम एल ए इसके
सद य आिद होते है । DPCC के होने से नौकरशाही का भाव बूढा'है और पंचायती राज
सं थाओं का कम हआ है । अत: पि म बं गाल को कनाटक के अनुभव से लाभ उठाना
चािहए जहां िजला-िनयोजन-बोड क सव प र होता है ।

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(iii). गु जरात म िवके ि त िनयोजन :- हाल म भारत सरकार ारा गुजरात के िजला-िनयोजन क
काफ सराहना हई है । वहां िवके ि त िनयोजन का योग 1980- 81 से आर भ हो गया था।
1980-81 से 1988 -89 तक क अविध म वहाँ िजला-िनयोजन-बोड को लगभग 288
करोड़ पये आवंिटत िकए गये िजनका उपयोग करके वहाँ लास- प, जल-पूित काय म,
िलं क-सड़क, िव तु ीकरण, आिदकाय स प निकये गये है । वहाँ रा य- तर के िजला- तर तथा
िजला- तर से तालुका- तर क ओर कोष का आवंटन िनि त सू के आधार पर िकया जाता
है । वहाँ िपछड़े तालुको के िवकास पर िवशेष यान िदया गया है । वहाँ रा य क योजना का
लगभग 173 यय िजला- तर क क म के िलए िनधा रत िकया जाता है । इस एक-ितहाई
का 2 0% िजला-िनयोजन बोड ारा चलायी जाने वाली व कायाि वत क जाने वाली
योजनाओं के िलए िनयत होता है तथा शेष 80% सामा य िजला- तर क क म के िलए
होता है । ज 20% रािश िजला-िनयोजन-बोड के पूण-अिधकार े म होती है उसम से
15% िववेकाधीन यय-रािश (discretionary outlay) होती है तथा 5% ेरणा- यय-रािश
(incentive outlay) होती है । ेरणा-रािश के िलए यह शत होती है िक उसम आम-जनता
का भी योगदान होगा जो तालुका के िपछड़ेपन के अनुपात म होगा। जैसे सबसे यादा िपछड़े
तालुका के िलए आम जनता को योगदान 1 0% तथा सरकार का 90% उससे कम िपछड़े ै
के िलए जनता का 25% तथा सरकार का 75%, तथा सबसे कम िपछड़े े के िलए जनता
का योगदान 50%, तथा सरकार का भी 5%। इस कार रे णा- यय-रािश क यव था से
थानीय योगदान का अवसर भी उ प न हो जाता है । इससे थानीय तर पर जनता क सीधी
भागीदारी होने से उसक िच िवकास-काय म म काफ बढ़ जाती है । गुजरात के िवके ि त
िनयोजन म िजला- तर पर राजक य योजना का 1/3 अश आवं िटत िकया जाना एक अ यं त
मह वपूण बात है । इससे िस होता है िक वहाँ शासिनक स ा, अिधकार, कोष आिद के
ह ता तरण क िदशा म ठोस कदम उठाये गये है । ेरणा- यय-रािश क यव था से लोग क
थानीय िनयोजन न य भागीदारी हो गई है । आशा है, आठव पंचवष य योजना क
अविध म अ य रा य भी कनाटक, पि म बं गाल व गुजरात आिद के िजला-िनयोजन व
पंचायती राज सं थाओं के अनुभव से लाभ उठाकर इस िदशा म अ सर ह गे।
16.5 िवके ि त िनयोजन के माग मे बाधाएं व सम याएं
भारत म िवके ि त िनयोजन के बड़े गुणगान हए है, लेिकन वा तिवक जगत म इसक
गित बहत-कु छ नग य ही रही है । हम उन कारण क जानकारी करनी चािहए िज ह ने इसके माग
म बाधाएं पहंचायी है तािक भिव य म उनको दूर करके िवके ि त िनयोजन को अिधक साकार प
िदया जा सके तथा सफल बनाया जा सके । भारत म िवके ि त िनयोजन के माग म िन न कार क
बाधाएं आयी है
(i). रा य तर से नीचे क इकाइय को संवेधािनक इकाई न मानकर मा शासिक
इकाई ही माना गया :- ोफे सर सी टी.कु रयन का मत है िक भारत म दो- तर वाले
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सं घवाद म रा य को तो के से जोड़ िदया गया, लेिकन रा य- तर से नीचे क इकाइय
को के वल शासिनक इकाइयां ही माना गया। उनको सं िवधान क ि से कोई ' टेटस' नह
िमली, िजससे देश म िवके ि त िनयोजन क स भावनाएं सदैव सीिमत ही बनी रही। यिद
िजला, तालुका, आिद नीचे के तर क इकाइय को 'सं वेधािनक टेटस ' िमलती तो इन
तर पर िनयोजन को भी िन सं दहे बल िमलता।
(ii). पं चायती चु नाव का राजनीितकरण :- भारत म पंचायती राज-सं थाओं जैसे
िजला-प रषद ,पं चायत-सिमितय तथा ाम-पं चायत के चुनाव दलगत राजनीित के
आधार पर कराये गये िजससे उनम जनता के स चे ितिनिध न पहंच कर पािटय के
नुमाइंदे ही पहंच पाये , प रणाम व प इनको पया बल नह िमल पाया। यिद इनके चुनाव
दलिवहीन प ित पर कराये जाते तो स भवत अिधक यो य व ईमानदार यि पहंच पाते
और इनके िवकास म मदद िमलती। पंचायती राज सं थाओं के चुने हए सद य ने पुराने
शि -सं तलु न व आिथक अंतर को बनाये रखा िजससे इनके िवकास का माग श त न हो
सका। इमम थािपत व िनिहत वाथ वाले वग का भु व बना रहा जो िवकास म बाधक
था। कई बार रा य सरकार ने इनके चुनाव समय पर नह कराये और उनको बार-बार टालने
से ये िनि य व िन ाण होती गयी।
(iii). रा य- तर पर िवभागीय शासन अपना वच व छोड़ने को त पर नह -िवके ि त
िनयोजन के माग म एक बाधा यह भी रही िक रा य- तर पर नौकरशाही व अफसरशाही
(bureaucracy) अपने अिधकार व स ा नीचे के तर पर जन- ितिनधय को साँपने से
सदैव कतराती रही है । अतः स ा का नीचे क ओर ह ता तरण (devolution of
Power) नह हो पाया। कनाटक म इस िदशा म गित हई, िजससे पंचायती राज
सं थाओं के ाण का संचार हआ। लेिकन देश के सभी लोग म ऐसा नह हो पाया।
वा तव मे सरकारी तं व जनतं के पर पर सहयोग व तालमेल म कई बाधाएं रही है ।
(iv). पं चायती राज सं थाओं के पास पया कोष का अभाव :- िजस कार रा य के
पर आि त रहते, उसी कार पंचायती राज सं थाएं धन व िव ीय साधन के िलए
रा य-सरकार के मुहं क ओर देखती रहती है । उनके पास कोष का अभाव पाया जाता
है तथा उनके पास काम क िज मेदा रयां अिधक होती है । उनके वयं के साधन भी
सीिमत होते है । वे उ पादक प रस पि य का िनमाण करके अपनी आमदनी नह बढ़ा
पाती है । िपछड़े े का िवकास-काय काफ जिटल होता है । वहाँ इ ा चर का
अभाव पाया जाता है । िपछड़े े के लोग कम आय के कारण अपना िव ीय सहयोग
भी नह दे पाते। इस कार पया कोष के अभाव म इनक गित क जाती है ।
(v). सं थागत व सामािजक प रवतन का अभाव-जब तक गां व म भूिम-सुधार ठीक से
लागू नह होत तब तक वहां भूिम का आवं टन असमान बना रहता है । गां व क आिथक
यव था म साम ती त व का बोलबाला होता है । महाजन, यापारी व शासन ामीण
जनता के आिथक िहत क अनदेखी करते रहते है । गां व म बरोजगारी, अ परोजगार,
220
िनधनता व असमानता वहां क अथ यव था के अटू ट अंग बन चुके है । अतः सं थागत व
सामािजक प रवतन क लहर के िबना पंचायती राज सं थाएं भी वाथ व िस ा तहीन
लोग के भाव े म जकड़ी रहती है और अपने मूल उ े य से भटक जाती है ।
इस कार िवके ि त िनयोजन के माग म कई कार क बाधाएं व किठनाइयां रही
है और इनम से आज भी कु छ कायम है अत: सामािजक - आिथक तथा सं वधे ािनक व
शासिनक ढांच म आधारभूत प रवतन करके ही उनके िवकास का माग खोला जा सकता
है ।
बोध -2
1. कनाटक म िवके ि त िनयोजन क मुख बात िलिखए।
2. िवके ि त िनयोजन के माग म तीन मु य बाधाएं या रही है?
3. गुजरात म िवके ि त िनयोजन क गित ने भारत सरकार को सबसे यादा य भािवत
िकया?
16.6 िवके ि त िनयोजन क सफलता क आव यक शत
हमने अब तक के िववेचन म देखा िक िवके ि त िनयोजन के ित देश म एक कार का
भावना मक लगाव है । गां धीजी के ' ाम- वराज ' क अवधारणा म भी राजनीितक व आिथक
िवके ीकरण क मा यताएं िव मान है । भारत म ाचीन काल म पंचायत- णाली स म व कु शल
ढं ग से काम करती थी। वतं ता ाि के प ात् लोकतांि क िवके ीकरण क आव यकता पर बल
िदया गया है । अतः उठता है िक िनयोजन के चार दशक बाद तक भी देश िवके ि त िनयोजन
क िदया म सराहनीय गित य नह कर सका और इसक सफलता क आव यक शत या है?
हम ऊपर इसके माग म आने वाली बाधाओं का उ लेख कर चुके है । यहाँ इसक सफलता के िलए
आव यक आधार का िववेचन िकया जायेगा।
(i). सव थम के से रा य क तरफ स ा, अिधकार , िनणय क ि या व कोष का
पया व संतोषजनक ह ता तरण िकया जाय :- रा य से िजल व इनके नीच के तर पर
राजनीितक व आिथक स ा व साधन का ह ता तरण करने से पूव यह आव यक है िक पहले
के से रा य क तरफ इस कार के ह ता तरण पूरे िकये जाएं । िव ान का मत है िक आज
भी रा य के ऊपर दािय व से यादा ह, लेिकन उनको िनभाने के िलए उनके पास पया कोष
नह है, और वे के पर बहत यादा आि त है । इसिलए क -रा य स ब ध को अिधक
यवि थत करने क आव यकता है ।
(ii). योजना आयोग व योजना-तं का पु नगठन :- योजना आयोग को वाय सं था बनाना
चािहए तािक इसके काय म सरकारी ह त ेप न हो। साथ म रा य- तर, िजला- तर व इसके
नीचे के तर पर भी योजना क इकाइयाँ थािपत क जानी चािहए। अभी तक सभी रा य व
सं घीय देशो म योजना-बोड काम नह कर रहे है । दीघकालीन िनयोजन पर तो काम के वल
महारा , तिमलनाडु ,, ज मू व क मीर, कनाटक व आ देश म ही कु छ सीमा तक हो पाया
221
है । अतः पहले सभी रा य के तर पर िनयोजन-तं को थािपत िकया जाना चािहए तािक
उनके आिथक साधन का सव ण करके उनके उिचत संर ण, िवदोहन व उपयोग क बात
सोची जा सके ।
(iii). थानीय सं थाओं-िजला-प रषद , पं चायत सिमितय व ाम-पं चायत का गठन िकया जाय
तथा उनके चुनाव िनि त अविध म करवाए जाएँ तािक वे सि य बनी रह। इसम ढील न दी
जाय, अ यथा इनके ित कोई ग भीरता नह रह जायगी। इसको शासिनक अिधकार व
िव ीय अिधकार सौपे जाएँ तथा लोग का भिव य वयं उनके हाथ म दे िदया जाय तािक वे
अपने भा य का िनणय वयं कर सक। सरकारी शासन व थानीय िनकाय के काय म पूरा
ताल-मेल बैठाया जाय। सरकार के शासिनक िवभाग म रा य- तर व िजला- तर के बीच
सम वय थािपत िकया जाय; तथा िजला- तर पर कायरत िविभ न िवभाग म पर पर सम वय
थािपत िकया जाय। इन ि याओं को मश : ल बवत् एक करण (Vertical
integration) व ैि त एक करण (Horizontal integration) कहा जाता है ।
(iv). िवके ि त िनयोजन क सफलता तभी सं भव हो सकती है जब गाँव म भू िम-सु धार
काय म पू णतया लागू हो :- कु छ लोग का िवचार है िक जब तक भूिम-सुधार लागू नह
िकये जाते तब तक गाँव म साम ती वातावरण बना रहेगा और भूिम के िवतरण क असमानता
बनी रहने से स पनं भू वामी, जम दार महाजन, साहकार व यापार िकसान का शोषण करते
रहगे, और थानीय सं थाओं म इ ह का भाव व भु व बना रहेगा। ये िवकास के लाभ
हडपते जायगे िजससे गाँव के िनधन लोग इनसे वं िचत रह जायगे। इसिलए गाँव के गरीब का
राजनीितक सं गठन होना चािहए जो उनको उिचत लाभ िदला सक। सहकारी सुयु खेती,
चकबंदी व का तकारी सुधार पर उिचत यान िदया जाना चािहए। भूिम -सुधार जैसे सं थागत
सुधार क आव यकता इतनी अिधक है िक कु छ िवचारक यह भी मानते है िक इनके होने पर
राजक य तर तक ही िनयोजन काफ रहेगा और अ य नीचे के तर पर िनयोजन को ले जाने
क आव यकता नह रहेगी।
(v). जनता क भागीदारी, थानीय िव ीय साधन का उपयोग व थानीय आव यकताओं म
कड़ी थापना क जानी चािहए। इससे लोग क िवकास-काय म िच बढ़ेगी और वे
पदािधका रय के काय पर कड़ी िनगरानी रख सकगे।
(vi). िनयोजन क इकाई सु िनि त क जानी चािहए :- वैसे िवके ि त िनयोजन क अि तम व
आधारभूत इकाई गाँव होती है, लेिकन प रि थितय व साधन को यान म रख कर िजला व
ख ड पंचायत या 'गाँव के एक समूह (cluster of villages) को िनयोजन क इकाई के िलए
चुना जा सकता है । लेिकन जो भी इकाई चुनी जाय उसके आिथक साधन का समुिचत
सव ण आव यक होता है तािक उिचत िवकास-काय म िनधा रत िकये जा सके ।
(vii). इसम कोई दो मत नह िक िवके ि त िनयोजन क भावी सफलता के िलए यह
आव यक है िक इसम भाग लेने वाले सभी यि -सरकारी अिधकारी व
जन- ितिनिध-अपने सीिमत वाथ से ऊपर उठकर लोकक याण क भावना से ओत- ोत ह ।
222
अ यथा चार के या रहने से इसक ि या िन ाण व िनज व बनी रहेगी। अतः
राजनीितक दल , ऐि छक सं गठन व थानीय नेताओं तथा नाग रको को रा ीय िहत को
सव प र मान कर कायरत रहना पड़ेगा।
(viii). थानीय आिथक साधन जैसे उपजाऊ भू िम, जल- ोत, बन-स पदा व
खिनज-स पदा का सावजिनक उपयोग सु िनिचत िकया जाय:-
डा.वी.एम.राव का मत है िक यिद गाँव के आिथक साधन जैसे भूिम जल, वन,
खिनज-पदाथ आिद थानीय या बाहरी यि य के अिधकार म चले जाते है तो िवके ि त िनयोजन
के िलं ए िवकास (growth) के े म बहत कम काम रह जायगा। इसिलए गाँव के अ यु उ पादन
साधन पर सावजिनक वािम व रहने से थानीय िनयोजन का मह व बढ़ जाता है । लेिकन िनजी
वािम व क दशा म भी थानीय िनयोजन साधन के उपयोग को िनयिमत व िनयि त अव यक
कर सकता है ।
उपयु िववेचन से प होता है िक िवके ि त िनयोजन क़ सफलता के िलए कई कार
क शत का पूरा होना आव यक है । सच पूछा.जाय तो इसम 'स पूण ाि त ' (Total
revolution) क भावना िनिहत है इसके दायरे म राजनीितक, आिथक, सामािजक व शासिनक
तथा नैितक सभी, के े आ जाते है । िकसी भी िब दु पर कमी रह जाने से उसक सफलता स देह
के घेरे म आ जाती है ।
16.7 भारत मे िवके ि त िनयोजन का भिव य व सु झाव
हमारे देश म 1989 म आम चुनाव से पूव कां ेस (आई) सरकार ने सं िवधान म सं शोधन
करके पंचायती राज सं थाओं को सुदढ करने का काय म अपनाया था। इसके अंतगत पं चायत के
िनधा रत अविध म चुनाव कराने, तथा इनम ि य , अनुसिू चत जाितय व अनुसिू चत जनजाितय
को उिचत ितिनिध व देने पर जोर िदया गया था। यह संशोधन अब पा रत हो चुका है । पं चायती
राज व िवके ि त िनयोजन के मूलभूत मु े अभी िव मान है और इस िदशा म कदम उठाये जाने का
इ तजार है ।
भारतीय लोकतं को सफल बनाने के िलए यहाँ िवके ि त िनयोजन को सफल बनाना
होना। इसका कोई िवक प नह तीत होता। लेिकन इसके िलए भारी. यास भी आव यक होगी।
सच पूछा जाय तो यह काम ऊपर से काफ सरल व सुगम लगता है , य िक इसम व तुतः एक ही
बात िनिहत है िक थानीय सं थाओं को स ा, शि , िनणय का अिधकार व कोष का स चे अथ
म ह ता तरण िकया जाय। अतः के - तर क ओर, तथा रा य- तर से िजला- तर व अ य नीचे के
तर क ओर ये ह ता तरण शी व पूण प म स प न िकये जाएं ।
मरण रहे िक िवके ि त िनयोजन को एक समुिचत दायरे म नह देखना है; जैसे ामीण
िवकास के िविभ न काय मो समि वत ामीण िवकास काय म, रा ीय िवकास रोजगार काय म,
सूखा स भिव े काय म, यूनतम आव यकता काय म, आिद-को स प न करने-: िलए ही
इसका उपयोग नह करना है, बि क इसे एक यापक व गहन काय म व ि या के प म लेना है
223
िजससे रा का स पूण राजनीितक व आिथक कायकलाप बदला जा सकै , और लोग का
जीवन- तर ऊचा िकया जा सके । अत: इसे के वल ामीण े म राहत-काय म को चलाने व
जनता क भागीदारी को बढ़ाने का मामूली साधन न मानकर स पूण सामािजक प रवतन ' का
सू धार मानना चािहए।
भारत म िवके ि त िनयोजन का भिव य उ जवल बनाया जा सकता है । वतमान सरकार ने
आठव योजना म िवके ि त िनयोजन का ि कोण अपनाया गया है ।
सु झाव :- योजना-आयोग के पूव सद य डा.सी.एच.हनुम ध राव ने अपने एक लेख म
िवके ि त िनयोजन के िलए िन न पाँच काय े (areas of action) पर बल िदया है, तािक इसक
सफलता सुिनि त क जा सके । ये काय े इस कार है :
(i). के चािलत योजनाओं म उिचत सं शोधन-योजनाकाल म के चािलत योजनाओं क
सं या बढ़ने से रा य क वाय ता पर िवपरीत भाव पड़ा है । इनका स ब ध कृ िष,
ामीण िवकास, वा य, िश ा व िनधनता-िनवारण से होता है । इसिलए भिव य म इन
पर पुनिवचार िकया जाना चािहए, तथा इनक सं या यथास भव कम क जानी चािहए।
इससे थानीय िनयोजन का मह व बढ़ जायगा। िनयोजन म के का वच व भी कम हो
जायगा।
(ii). ादेिशक तर पर िनयोजन के उपाय :- ादेिशक असमानताएं कम करने के िलए,
ादेिशक तर पर िनयोजन अिधक भावपूण होता है । बड़े रा य के िपछड़े े के िवकास
म िजला व ख ड-िनयोजन से काफ लाभ िमल सकता है तथा उनक थानीय सम याएं हल
क जा सकती है । िनधनता-िनवारण काय म को लागू करने म थानीय िनयोजन से मदद
िमलती है ।
(iii). चु नावी तर होने चािहएं तािक िनधन को ितिनिध व िमल सके :- ाय: थानीय
सं थाओं म लघु व सीमा त कृ षक , खैितहार िमक , ामीण कारीगर ,आिद के ितिनिध
पया मा ा म नह पहंच पाते िजससे इनके िहत क र ा नह हो पाती। ि य , अनुसिू चत
जाितय व अनुसिू चत जनजाितय को उिचत आर ण देकर इनके िहत पर यान देना
स भव हो सकता है ।
(iv). ामीण िनथन क शोषण से मु ि होनी चािहए :- देहात म आज भी भू वामी,
साहकार व ठे केदार गरीब लोग का शोषण करते। अभी तक वहाँ सं रचना मक प रवतन नह
हो पाये है । इसिलए भूिम-सुधार, यूनतम मजदूरी कानून व सं थागत साख क यव था
करके इनको शोषण से मु करना चािहए। एक शोषणिवहीन समाज क रचना ही िवके ि त
िनयोजन क सफलता का आधार तुत कर सकती है ।
(v). जनता क भागीदारी :- िनधन का सं गिठत करके उनके िहत क र ा क जा सकती है ।
िनिहत वाथ वग से उनको संघष के िलए तैयार िकया जा सकता है । िवके ि त िनयोजन के
िलए जनता क भागीदारी का िवकास करना बहत ज री है । लोग योजना के िनमाण व

224
ि या वयन म भाग लेते है और कई िब दुओं पर िवकास -काय के स ब ध म अपनी राय
कट करते है । इससे उनम आ म-िव ास व सामािजक चेतना उ प न होती है ।
आशा है वतमान सरकार िवके ि त िनयोजन क िदशा म ठोस कदम उठायेगी
और उसको आव यक वैधािनक आधार दे पायेगी। भारत का आिथक भिव य लोकतं ,
सहका रता, िवके ीकरण वं सं थागत तथा तकनीक प रवतन क सफलता पर िनभर
करता है । ामीण िवकास म िजला-िनयोजन क अहम भूिमका हो सकती है और होनी
चािहए।
बोध - 3
1. िवके ि त िनयोजन को सफल बनाने के िलए तीन उपाय बताइए।
2. सं थागत सुधार के अभाव म िवके ि त िनयोजन के माग म िकस ' कार बाधा उपि थत
होती है?
3. या भारत म िवके ि त िनयोजन का भिव य उ जवल.है?
16.8 कु छ उपयोगी पु तक
[1] Amitava Mukherjee, Denaturalised Planning, I &II, A rejoined, in the
Economic Times of Dec.12 &14, 1989.
[2] Arun Ghose, Decentralised Planning: West Bengal Experience EPW,
March 26, 1988.
[3] C.H. Hanumantha Rao, Decentralised Planning : An overview of
Experience and Prospects ,EPW, February 25,1989
[4] L.C. Jain, Central Planning and Karnataka’s Decentralised Planning, II
Mainstream, May 2, 1987, pp.16-17.
[5] Report of Workshop of District Magistrates/collectors on Responsive
Administration, Panchayati Raj and District Planning, July
1988.(mimeographed)
[6] V.M.Rao Decentralised Planning: Priority Economic Issues EPW, July
24, 1989.
16.9 बोध के उ र
बोध -1
[1] िवके ि त िनयोजन म 'नीचे से ऊपर क ओर:' होता है; जैसे ाम-योजना, ख ड-योजना,
िजला-योजना, रा य-योजना तथा अ त म रा ीय योजना। इसे ‘ ास ट लािनंग' भी कहते है

[2] (i) कु छ िजल क जनसं या व े से अिधक होने से इनका पृथक िनयोजन आव यक,
225
(ii). सभी लोग को िवकास क मु य धारा म लाना स भव,
(iii). थानीय आव यकताओं के अनु प िनयोजन।
[3] (i) के ि त िनयोजन ऊपर से नीचे तथा िवके ि त िनयोजन 'नीचे से ऊपर क ओर'
(ii). के ि त िनयोजन म 'समि ि कोण' तथा िवके ि त मे यि - कोण
(iii). थम क सफलता के िलए अिधनायकतं तथा ि तीय के िलए लोकतांि क प ित
व सहका रता तथा सि य जन सहयोग आव यक।
[4] िजले के भौितक व आिथक साधन का सव ण व अ ययन, लोग का आधारभूत
आव यकताएं, बेरोजगारी, िनधनता व ख डवार असमानताएं कम करने के काय म ''पर
जोर इ ा चर का िवकास सं थागत व तकनीक परिवतन,िव यव था आिद।
िजला-िनयोजन बौड व िजला-प रषद का सफल संचालन व पर पर सहयोग आव यक
[5] िजला-िनयोजन-बोड का गठन :-- इसका अ य रा य का.मं ी िजलाधीश-
सद य-सिचव; एम.पी.एम.एल.ए. गण िजला-प रषद के चुने हए सद य (रोदेशन से),
पं चायत-समीितय के अ य (रोदेशन स), िजला-प रषद् का अ य , नगरीय ािधकरण के
अ य , आिद।
िजला िनयोजन बोड िजला-प रषद् ारा तैयार ामीण योजना क समी ा करेगा
तथा उसका सम वय राजक य योजना से थािपत करेगा। इसी कार वह नगरीय योजनाओं
क भी समी ा करेगा और उनका भी राजक य योजना से उिचत सम वय थािपत करेगा।
बोध -2
[1] (i) वहाँ मंडल पं चायत व िजला-प रषदो के ही चुनाव होते है । ाम--पं चायत का गठन
नह िकया जाता, (ii) वहाँ िजला-िनयोजन-बोड सव प र होते है (iii) वहाँ िजलाधीश
कानून व यव था स हालते है तथा िजला-मु य-सिचव (District chief secretary)
िवकास व िनयोजन का काम देखते है ।
[2] (i) रा य- तर से नीचे क इकाइय को सदैव मा शासिनक इकाई माना गया, उ ह
सं वैधािनक टेट्स नह िमली।
(ii). राजक य नौकरशाही उनको शासिनक स ा व अिधकार सौपने से कतराती रही,
(iii). इनके पास कोष का अभाव बना रहा।
[3] गुजरात म 1980-81 से अब तक िजला-िनयोजन-बोड को काफ धनरािश दी गई है । यह
रा य तर पर तािवतयोजना- यय का 1/3 होती है । इसका 20% िजला-िनयोजन-बोड
अपने िनणयानुसार यय कर सकते है । िजसका 5 %अंश ेरणा- यय माना जाता है
िजसके साथ जनता का योगदान भी शािमल िकया जाता है । िजला-िनयोजन-बोड ारा
यय िकये जाने से ामीण सडक , कू ल , पेयजल आिद क सुिवधा बढ़ाने म गित हयी
है ।

226
बोध - 3
[1] (i) के से रा य क ओर स ा, अिधकार, िनणय क ि या व कोष का पया व
सं तोषजनक ह ता तरण िकया जाय,
(ii). योजना-त का पुनगठन,
(iii). थानीय सं थाओं का गठन व िनि त अविध के बाद अिनवाय चुनाव।
[2] सं थागत सुधार के अभाव म भूिम-सुधार नह होने से भूिम के िवतरण म असमानता बनी
रहती है । गाँव म साधन स प न व साधनह न दो वग बन जात है । थानीय सं थाओं म
स प न वग का वच व हो जाता है, िजससे वे गरीब के िहत क उपे ा करते है और
के वल अपने िहत का पोषण करते रहते है । इससे िवके ि त िनयोजन कामयाब नह हो
पाता।
[3] भारत म िवके ि त िनयोजन का भिव य उ जवल बनाया जा सकता है । इसके िलए
राजनीितक व शासिनक स ा, अिधकार िनणय, क ि या व कोष का ह ता तरण सही
प म िजला व इससे नीचे के तर पर करना होगा। िनधन को शोषण से मु करना होगा,
उनका राजनीितक सं गठन भी करना होगा और थलीय िवकास-काय म जनता क
िवकिसत करनी होगी, तािक ामीण िनमाण के कायं स प न िकये जा सक एवं कृ िष , कु टीर
उ ोग, सड़क, िश ा, िचिक सा, पेयजल, आवास, आिद क सुिवधाएं बढ़ सक।

227
इकाई 17
भारत म िश ा का िवकास
इकाई क परेखा
17.0 उेय
17.1 तावना
17.2 सं रचना क िवशेषताय
17.3 सं रचना का िवकास व िश ा
17.4 कृ िष सं रचना पर िश ा का भाव
17.5 औ ोिगक सं रचना एवं िश ा
17.6 सारां श
17.7 श दावली
17.8 कु छ मह वपूण पु तक
17.9 िनब धा मक
17.0 उ े य
इस इकाई का उ े य कृ िष व औ ोिगक संरचना के िवकास म िश ा के योगदान के मह व
को बताना है । इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप इन का उ र देने म समथ हो
जाएं ग:े
 कृ िष एवं औ ोिगक सं रचना के िवकास म िश ा कै से एक मह वपूण योगदान करती है ?
 सरकार ारा अथ यव था म सं रचना सेवाओं को दान करने क िविभ न िविधयाँ।
17.1 तावना
इस इकाई म हम सव थम यह देखगे िक सं रचना से ता पय या है, सं रचना क िवशेषताय
या है? तथा िश ा सं रचना उ ोग के िवकास म कै से योगदान कर सकती है । इसके उपरा त हम
कृ िष व औ ोिगक सं रचना पर िश ा के भाव का अलग-अलग अ ययन करगे।
17.2 सं रचना क िवशेषताय
सं रचना िकसी देश क पूं जी स पि का एक िह सा होती है । इसको सामािजक ऊपरी पूं जी
के नाम से जाना जाता है जो य उ पादक पूं जी से अलग होता है । सं रचना से हमारा ता पय उन
उ पादको को िमलने वाली सेवाओं से होता है जोिक वा तिवक जीवन म यातायात, संचार, उजा,
जल आपूित, िसं चाई तथा िवकास यव था से तथा सं रचना उ ोग जैस-े कोयला, रसायिनक खाद,
228
सीमे ट तथा लोहा आिद से होता है । पर तु जैसे िक योग योन का यन है िक सीधा िन कष यह है
िक सामािजक ऊपरी पूं जी व तुओ ं का एक सेट नह अिपतु स पि य का एक सेट है । ''सं रचना क
सबसे मह वपूण िवशेषता यह है िक यह बा ' बचत का ोत है । इसी कारण एडम् ि मथ ने
सं रचना के ावधान को सरकार के ारा िकए जाने वाले काय म रखा है । एडम ि मथ का कहना था
िक उनके अित र सरकार अ य उ पादकता करने म कम स म है । अतः उसको िनजी े के
िलये छोड़ा जाना चािहये अथात् उसको अ य हाथ के िलये छोड़ िदया जाना चािहये। जब एक
सड़क का िनमाण होता है तो इसका लाभ उन सम त देश वािसय को होना है जो उस सड़क माग
पर रहते है । जब एक ऊजा संचार का सृजन िकया जाता है तो उससे उन सम त लोग को लाभ
पहंचता है जो उससे लाभ ा कर सकते है । सावजिनक यय के िस ा त ने व तुओ ं का िवभाजन
िनजी व तु तथा सावजिनक व तु म िकया गया है । िनजी व तुय वे व तुय होती है िजनका योग
कु छ िवशेष यि य तक ही सीिमत होता है या जो आम जनता को य प से उपल ध नह हो
पाती। जबिक सावजिनक व तुओ ं का योग साधारण जन मानस को ा होता ह और इस कार
इसका लाभ देश म अिधकतम देशवािसय को होता है । सं रचना के िलये दान क गयी सेवाय इस
कार क सावजिनक व तुओ ं म आती है । ो. रैगनर नकसे ने इस कार क पूं जी क एक और
िवशेषता यह बतायी है िक इसके अंतगत बड़े तर पर मू यवान सं रचनाओं का ज म होता है । इस
कार इन मू यवान सेवाओं को दान करने म सरकार का मह व अ यिधक है । िवकासशील देश
म जहां आमतौर पर पूं जी क कमी है और देश के ती िवकास के िलये आधुिनक तकनीक क
आव यकता पड़ती है, सरकार पर इन सेवाओं को दान करने का दािय व अिधक आ जाता है ।
इसक तुलना म िवकिसत रा म ि थित ऐसी नह है ।
17.3 सं रचना का िवकास व िश ा
अब हम यह देखगे िक िश ा का सार सं रचना के िवकास को िकस कार भािवत करता
है । िकसी समाज म ान का भ डार उसके िनवािसय म िनिहत होता है तथा एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी को ा होता जाता है । इस ि या म ान के भ डार म वृि तथा उसक िक म म सुधार भी
होना चािहये तािक मनु य म, सं सार म होने वाली बात को समझने क शि अिधक हो सके और
इस कार मनु य ाकृ ितक शि य को और अिधक िनयं ि त करने के यो य बन सक तािक संसार
क ती गित से बढ़ती हयी आव यकताओं क पूित क जा सके । िश ा को इसी कार क भूिमका
िनभानी है । अतः इसके अंतगत अिधकािधक नवयुव को के िलए पढ़ाई िलखाई का ावधान होना
चािहये तथा सेवारत लोग के िलये ऐसा िश ण िदया जाये िक वे उ पादन िविध को भली भाँित
समझ सक। जब संसार के िवकिसत देश म आिथक िवकास क लहर आई तो इन देश म उ पादन
के े म िविभ न कार के नव िनमाण देखने म आये िजं नका आधार वै ािनक आिव कार था।
धीरे-धीरे यह नव आिव कार वै ािनक जीवन के अिभ न अंग बन गये और इनको सुचा प से
लागू िकया जाने लगा। इन तमाम उपलि धय के िलये एक उ चतम िश ा णाली का होना
आव यक था िजसके अंतगत गिणत इ यािद के साथ--साथ ाकृ ितक व सामािजक शि य को
229
वै ािनक ि कोण से समझने क मता होनी चािहये। इस कार क िश ा णाली का िवकास
िवकिसत रा म ारि भक अव था म धीमा था। पर तु बाद म इसम तेजी आयी और अ त म इन
देश म िश ा यापक प से फै ल गयी तथा िव यापी ारि भक िश ा थािपत हो गयी।
िवकासशील रा म, जो पा ा य शि य क गुलामी म थे , िश ा वा सार एक छोटे से
े तक ही सीिमत रहा िजसका मु य उ े य अं ेजी सरकार ' शासन चलाने के िलये अिधकारी
तथा लक बनाना था। साथ ही साथ इसके ारा लाभ े को पहंचा जो आधुिनक उ ोग म थे
तथा िवदेशी यापार म लगे थे।
ि तीय िव यु के बाद इन रा म अपनी सरकार आयी तो िश ा के िवकास पर यान
िदये जाने क बात क जाने लगी तािक देश का आिथक िवकास स भव हो सके । दुभा यवश िश ा
का िवकास उस गित से न हो पाया जैसा िक होना चािहये था य िक सरकार ने इसको य प से
अपने हाथ म न रखकर इसम िवकास तथा वृि क िज मेदारी िनजी े पर डाल दी। अपने िनिहत
वाथ के कारण िनजी सं थाओं तथा यि य ने िश ा के सार व उसक िवभाग को आम जनता
तक पहंचाने म सफल न हो सके ) िश ा मु य प से उ च िश ा के वल कु छ ही लोग तक सीिमत
होकर रह गयो और यही कारण है िक आज देश के सामने बड़ी सम या िश ा के सार क है ।
इसक कमी के कारण आम जनता म वै ािनक ि कोण का उ माद है जो हमारी सम त आिथक
तथा सामािजक सम याओं का मूल कारण है ।
वतं ता ाि के समय िश ा क ि थित को देखने के प ात् अब हम यह अ ययन करगे
िक िश ा के सार का भाव कृ िष तथा औ ोिगक िवकास क सं रचना पर कै से पड़ता है । भारत
वष म िश ा क दर 1981 क जनगणना के अनुसार 36.12% जो 2011 क जनगणना के अनुसार
लगभग 74.4% हो गयी है ।
यिद हम यह कर िक िश ा से या लाभ होता है तो हम िन निलिखत दो बात पर
यान देना होगा।
(1) िश ा यि िवशेष क कायशि म वृि करती है ।
(2) यह सरं चना क मां ग को बढ़ाती है जैसे ऊजा तथा िसं चाई क खपत रासायिनक खाद तथा
जल आपूित इ यािद। इसी कार िश ा के सार का भाव यातायात, संचार सड़क
यातायात के साधन का योग िबजली के सामान का योग, लोहे क व तुओ ं का योग,
घर बनाने के िलये सीमे ट आिद का इ तेमाल करना पड़ता है ।
17.4 कृ िष सं रचना पर िश ा का भाव
कृ षको के जीवन- तर म सुधार लाने म िश ा का उतना ही मह व है, िजतना िक आिथक
िवकास का। आिथक िवकास का भाव यह होता है िक कृ षक अपने ब च को िश ा के िलये
कू ल भेजते है तथा उ ह उ च िश ा भी दान कराने क चे ा करते है, िजससे उनक काय मता
म वृि होती है तथा उनक यो यता म सुधार होता हो इसका भाव यह होता है िक िकसान नये -नये
तरीको को अपनाता है और कृ िष म उ पादकता को बढ़ाता है । वा तव म िश ा तथा तकनीक का
230
िवकास ही कृ िष े म सुधार का एकमा साधन है । इसीिलये ये कहा जाता है िक आिथक िवकास
एक जिटल गितशील ि या है, िजसम अ य बात के साथ-साथ िश ा जैसे कारक का भी
अिधक मह व है । इस कार के कृ षक न के वल कृ िष म सुधार म सफल होता है । यहाँ पर यह बात
समझने के यो य है िक िश ा से होने वाले लाभ को आसानी से तथा सही तरीके से मापा नह जा
सकता। िश ा पर यय एक िविनयोग के प म है िजसका लाभ दीघकाल म होता है, अथात् उसको
हम मानवीय पूँजी म िविनयोग कह सकते है । ब च म माता-िपता अपनी वतमान आव यकताओं
क कटौती करके जो िश ा पर यय करते है उसका लाभ दीघकाल म ा होता है य िक िश ा
मनु य को न के वल अिधक उ पादक बना देती है, वरन् उसे पा रवा रक े म ऐसे मू य दान
करती है िजससे वो अिधक सुखी तथा स प न जीवन यतीत कर सकता है । यह है वतमान याग
का भिव य म लाभ।
अब ये उठता है िक कृ िष के आधुिनक करण म िशि त कृ षको का या योगदान है?
िशि त यु वक िन निलिखत लाभ ा कर सकता है :-
(i). िश ा से उसे कृ िष के बारे म सही समुिचत सुचनाय ा होती है । वह यह जान लेता है िक
सुिवधाय कह , कब और कै से ा हो सकती है?
(ii). िशि त कृ षक लागत तथा मू य-िव ेषण करके यह जान सकता है िक उसके िलए कौन सी
सूचना अिधक लाभदायक हो सकती है?
(iii). िशि त कृ षक इन सूचनाओं को शी ता से ा कर सकता है तथा उसका योग कृ िष म
लाभदायक प से कर सकता है ।
(iv). िशि त कृ षक बोयी जाने वाली फसल का अनुकूलतम सम वय ा कर सकता है, तथा
िकस कार क आधुिनक कृ िष िविध अथवा तकनीक को कम से कम लागत पर लागू कर
सकता है ।
(v). यिद िकसी कृ िष यं के आयात का मामला हो तो इसके बारे म भी यह िनणय ले सकता है
और कृ िष म महान नव- वतन ला सकता है ।
(vi). कृ िष िविधय को कम से कम लागत लागू करके अिधकतम उ पादन िकया जा सकता है ।
इस कार िश ा से कई मह वपू ण बात िनकलती है, जैसे :-
(अ) नव वतन भाव, िजनक चचा ऊपर क जा चुक है ।
(ब) साधन का सही प से आवं टन और िजसका लाभ व के वल अिधक उ पादन म िमलता है,
बि क फसल को अ छे से अ छे दाम पर बेचने म सहायता िमल सकती है ।
(स) इसका भाव कृ षको क तथा खेत म काम करने वाले िशि त मजदूर के जीवन- तर म सुधार
के प म भी होता है जैस-े अ छा वा य, िनयं ि त प रवार, उ च तथा वै ािनक िवचार
आिद।
(द) इन िशि त कृ षको के स पक म जो आस-पास के दूसरे कृ षक अथवा रहने वाले आते है वे नयी
प ितय तथा जीवन-िनवाह के नये तरीक का अनुसरण कर सकते है और वे भी िकसी हद तक
लाभ उठा सकते है । िन निलिखत चाट म िश ा के भाव को िव तार से दशाया गया है ।
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232
इसके िवपरीत पारं प रक कृ िष म जहां कृ िष तकनीक म नयी िविधयां नये िवचार को नह
लागू िकया जाता और न वहां के कृ षको े िश ा, आधुिनक काण तथा नयी-नयी खोज तथा
सूचनाओं का लाभ ा नह होना, उसक दशा अब भी िपछडे हये सा य-ि थित म है । मु य प
से दो कारक मह वपूण है, (अ) ाकृ ितक कारक अथवा ाकृ ितक, िजनके कारण कृ िष को हािन
पहँचती है, और कृ षक अपने को असहाय पाता है । (ब) दूसरे , बाजार म मां ग-पूित शि य का
फायदा उठाने म छोटे तथा सीमा त कृ षक असमथ रहते है । वह अपनी प रि थितय के अनुसार
अपने उ पादन का उिचत मू य नह पाते। छोटे तथा सीमा त कृ षक अपनी कृ िष म िकसी कार का
जोिखम नह उठाना चाहते और वे उ ह प ितय तथा फसल को छां टते है िजनसे उसको िनि त
आय ा हो सके । य िक उनको बाजार के बारे म सही सूचना भी नह ा हो पाती अतः वे
आधुिनक चीज को इ तेमाल नह करते है ओर लक र के फक र बने रहते है । आज भी उसके
उ पादन का मु य येय उपभोग है अथात् वष भर के िलये अपने तथा अपने प रवार के िलये
खान-पान जुटाना तथा अगली फसल के िलये बीज का ावधान करना। इसके िवपरीत बड़े िकसान
कृ िष म आधुिनक करण का पूण लाभ उठाते है समय स तथा सही सूचना ा करते है । िसंचाई,
नये-नये बीज तथा अ य आधुिनक िविधय का योग करके न के वल अिधक उ पादन करता है ,
वरन् उसको बाजार म चिलत मू य अनुसार बेचकर अ छे दाम ा करता है । सरकार के ारा
चलाई गई योजनाओं तथा सुिवधाओं का लाभ वा तव म यही ा करता है तथा छोटे तथा
सीमा त कृ षक िजनको यह लाभ िमलना चािहये अथवा िजनके िलये यह योजनाय बनाई गई है वे
उनस वंिचत रह जाते है , यह हमारा दुभा य है , और इस पर िनयोजको को यान देना चािहये या इस
िवड बना का मु य कारण छोटे तथा सीमा त कृ षको म िश ा का अभाव है । के वल िश ा का
सार व आधुिनक करण से ही इनक दयनीय दशा म सुधार लाकर आिथक दोहरेपन को दूर िकया
जा सकता है ।
(अ) आिथक सं रचना,
(ब) िनयं ि त बाजारी प ितयां,
(स) कृ िष े म सहका रता को ो साहन देना, तथा सहकारी साख सिमितय तथा यापा रक तथा
अ य बैको ारा कृ षको को साख दान करवाना तािक वे साहकार तथा महाजन के चं गलु से
छू ट सके ।
(द) कृ िष सं बिं धत लाभकारी सूचनाय, दूरदशन, रेिडयो आिद से कृ षको तक पहंचाना। कृ िष मेले का
आयोजन करना इ यािद।
इस कार क सूचनाय िविभ न कृ षक समूह के िलये िभ न-िभ न करनी पड़ेगी। अथात्
छोटे तथा सीमा त कृ षको के िलये इसका आयोजन अलग तरीके से करना होगा। उनको नयी प ित
को अपनाने के िलये दूसरे तरीके से ो सािहत करना होगा, जबिक बड़े तथा िवकिसत कृ षको के
िलए यह आयोजन दूसरे ढं ग का होगा। और इसका उ े य भी िभ न होगा।
गाँव म ेरको को भेजना अिधक लाभदायक होगा, छोटे तथा सीमा त िकसान के िलये
जबिक दूसरे वग के कृ षको के िलये हड िबल तथा अ य छपी हई साम ी के ारा पहंचाया जा
233
सकता है । यिद सरकार इन िब दुओं पर यान दे तो िश ा तथा नये सं चार-मा यम से सभी कार
के कृ षको को लाभ हो सकता है ।
अ त म िन कष यही िनकलता है िक सही प से िश ा का सार तथा संचार साधन का
उिचत योग हमारी कृ िष क सम याओं का एकमा समाधान हो सकता है । यिद कु छ कृ षक नयी
प ित अथवा नये तरीके अपनाते है तो उसका भाव अ य कृ षको पर अव य पड़ेगा और इसको
हम दशन- भाव कह सकते है । इस भाव से वशीभूत होकर छोटा िकसान भी पूं जी बाजार का
लाभ उठा सकता है । तथा नयी-नयी आिथक सं रचनाओं से लाभ ा कर सकता है ।
इस कार जो कृ षक खेत म काम करते है वे कृ िष शोध म भी महान योगदान दे सकते है ।
वे नयी प ितय के भाव का अ ययन करके उनसे उ प न प रणामो को अथवा उनसे उ प न
किठनाइय को िश ा-सं थाओं म ले जाकर कृ िष-शोध म योगदान दे सकते है । इस कार कृ िष म
नये-अ वेषण को लागू करना एक ऐसी ि या है िजससे न के वल कृ िष लाभ उठाती है बि क कृ िष
शोध क िदशा मे भी प रवतन ला सकती है । िश को तथा शोधकताओं को यह समझना चािहये
िक हम िकसान से भी बहत कु छ सीख सकते है ।
आधुिनक कृ िष िविनयोग के चयन तथा िश ा के सं बधं का िन न कार िदखाया जा
सकता है ।
आधु िनक िविनयोग = f(िश ा)
यह देखा गया है िक अिधक िशि त रसायिनक खाद तथा अिधक उवरक बीज तथा
िसंचाई का अ छा इ तेमाल कर सकता है । इस कार हम इस िन कष पर आते है िक िश ा का
मह व कृ िष म अ यिधक है । यह त य एक गितशील कृ िष म और अिधक लागू होता है । इस कार
हम यह कह सकते है िक िश ा तथा आधुिनक करण के ारा ही कृ िष का सही ढं ग से िवकास हो
सकता है । अिधक िश ा का भाव यह होगा िक कृ षक अिधक आधुिनक बात क मां ग करगे,
अिधक ऊजा का योग करगे तथा कृ िष सं वार एवं सूचना का योग सही ढं ग से करके कृ िष
उ पादन बढ़ाकर भारतीय अथ यव था को सही मायन म िवकास क ओर अ सर करगे।
17.5 औ ोिगक सं रचना एवं िश ा
ऊपर के भाग म हम यह देख चुके है िक िश ा िकस कार के कृ िष म े म उ नित का
मा यम बन सकती है तथा संचार यव था का समुिचत उपयोग कर सकती है । इसी कार
औ ौिगक सं रचना के िलये भी िश ा का मह व है । िश ा के औ ोिगक िमको को नई तकनीक
ान होता है । उसम सोचने क मता बढ़ती है तथा एक िशि त नये अ वेषण के ित अिधक
जाग क होता है ।
हमे िविदत है िक िश ा के कारण नई-नई औ ोिगक सं रचनाओं क मां ग बढ़ती है । इस
सं बं ध म हम यह कह सकते है िक इस कार क संचरना उन े म होती है वहां इसक मां ग िविदत
है अथात् जहां पर औ ोिगक िवकास क प रि थितयां उ प न है । यहां पर इन सुिवधाओं को दान
करने से हमारा औ ोिगक ढांचा अिधक सं तिु लत हो पाता है । इस कार का औ ोिगक िवकास
234
हमारे देश के िलये अिधक उ म नह माना गया है । हमारे िनयोजनको ने देश म स तुिलत िवकास
करने क नीित अपनायी है । िजसके अंतगत हम उ ोग को उन थान पर ले जाना चाहते है जहां
उनका अभाव है । यह तब ही संभव हो सकता है जब हम इन थान पर औ ोिगक सं रचना दान
कर तथा अ य सुिवधाओं को कम दर पर द।
िवकिसत रा म थम कार का औ ोिगक िवकास मु य प से देखने म आता है । इन
देश के औ ोिगक सं रचना के साथ-साथ िश ा के 'औ ोिगक करण म अिधक योगदान िदया है ।
सरकार का काम मां ग के अनुसार के वल औ ोिगक सं रचना को दान कना था। शेष औ ोिगक
िवकास वयं होता रहा।
थम महायु के प ात् िवकासशील रा म भी इसी कार क प ित को अपनाया गया
तथा औ ोिगक करण के िलये चिलत मां ग अनुसार संरचना का िवकास िकया जैसे ऊजा क पूित,
यातायात के साधन आिद। वा तव म इसके प रणाम व प शहरी े म अथवा बड़े-बड़े उ ोग
को आस पास िवकास क गित बढ़ी। वहां पर अ यिधक जनसं या का दबाव पड़ा और इन रा म
भी अस तुिलत औ ोिगक ि कास ने ढ़ता ा क । दूसरी ओर जब इन देश ने अिधक उवरक
िक म के बीज के इ तेमाल के कारण कृ िष े म िव तु तथा ऊजा शि क अिधक मां ग बढ़ी तो
ऊजा के उ पादन म िवकास हआ। पर तु िव ुत अथवा ऊजा का उ पादन उस अनुपात म न हो सका
िजसम अनुपात म देश म इसक मां ग बढ़ी। प रणाम व प ऊजा क कमी के कारण प प सेट म
चलने म बाधा आयी। जल कू प का पूण प से इ तेमाल न हो सका िजससे न के वल कृ िष उ पादन
वरन् औ ोिगक उ पादन म भी कमी आयी।
इसके िवपरीत पार प रक कृ िष म जहां पुरानी प ित का योग जारी था तथा कृ षको क
िश ा का भी अभाव था वहां औ ोिगक सं रचना क भाग कमजोर थी और इस े म इसका
कु भाव यह हआ िक उ पादन म वृि इतनी नह हयी िजतनी िक होनी चािहये थी। स य तो यह है
िक जब रा ीय िव ीय सं थान तथा िव बैक जैसी अंतरा ीय सं थाय ऋण देने क योजनाओं पर
िवचार करते है तो इसम मु य प से यह देखा जाता है िक इस योजना म उ पादन बढ़ाने क भिव य
म सं भावनाय कै सी है । यिद इनम िश ा तथा आधुिनक करण का समावेश है तो योजना के वीकार
करने क संभावनाय अिधक हो जाती है य ऋण देने वाली सं था तभी समय अपना पैसा जोिखम
म डालेगी जब उसे सं तिु हो जायेगी िक यह योजना पया प से उ पादक है । दूसरे श द म ये
सं थाय इस बात का अ ययन करती है िक योजना म िविनयोग पर वापसी क दर िकतनी है । ऐसा
इसिलये है िक यह सं थाय योजना क अवसर लागत पर यान देती है और ऋण उसी योजना पर
देती है जहां वापसी क दर अिधक हो। िजस योजना के िवषय म यह देखा जाता है िक वहां सं रचना
अथवा ऊपर पूं जी क मां ग कम होती है । अथवा अथ यह िनकलता है िक यहं िवकास क दर तथा
िविनयोग पर वापसी दर कम हो और ऐसी योजनाओं क वीकृ ित क संभावनाय कम हो जाती है ।
परं तु योजना के वीकार करने क उपयु िविध बहत अिधक उिचत नह है । ाय: ऐसा
देखा जाता है िक िजन े म सं रचना क मां ग कम है अथवा िविनयोग क वापसी दर कम है, वहां
पर िवकास क आव यकता अिधक होती है । यिद इन े म अथवा इन योजनाओं पर िविनयोग न
235
िकया गया तो यह सदा के िलये अिवकिसत तथा िपछड़ा रहेगा िजसका भाव स पूण िवकास पर
अ छा नह पड़ता। इसीिलये िवकासशील देश म आधुिनक सरकार ऐसे े म अिधक िवकास क
सं रचना दान कर रही है और यही अथ सं तिु लत िवकास नीित का। दूसरे श द म उ ोग को इन
अिवकिसत े म लाने का यास िकया जाता है । यही बात अंतरा ीय ऋण के िवषय म भी कही
जा सकती है जहां सरकार को अपने ि कोण को अिधक भावशाली प से बताना पड़ता है ।
कभी-कभी ऐसा देखा गया है यिद सं रचना के िवकास म ह त ेप न िकया जाये तो िकसी े म
असं तिु लत िवकास हो जाता है । उदाहरण के िलये यातायात म यिद हम िकसी कार के एक
यातायात का अिधक िवकास कर देते है तथा दूसरे कार के यातायात के साधन म ऐसा िवकास
नह होता है तो यातायात के साधन के सम वय क सम या उ प न हो जाती है । िजसम प रणाम
अ छे नह होते। ो.आर.नकसे ने इसी कारण इस बात पर अिधक जोर िदया है िक देश के सं तिु लत
िवकास के िलये औ ोिगक सं रचना क मां ग का सृजन करना चािहये। ो.नकसे सं तिु लत िवकास
िस ां त के िलये अ य त िस अथशा ी है । इस कार क प ित म िकसी अथ यव था का
समुिचत िवकास होता है तथा नयी तकनीक तथा थानीय साधन का समुिचत योग सं भव हो
जाता है । के वल सं रचना के दान करने से आिथक िवकास नह होता। वा तव म यह सं रचना
िविभ न कार के उ पादन म सहयोग करके देश के उ पादन तथा उ पि म वृि सं भव करती है ।
िजसका भाव यह होता है िक नई-नई व तुओ ं तथा िविधय क मां ग उ रो र बढ़ती जाती है । इसी
को वरक भाव कहा जा सकता है । कु छ अथशा ी जैसे हषमैन ने इस िस ा त का िवरोध िकया
है । उनके अनुसार इस कार के दुलभ साधन का उिचत योग नह होता है । औ ोिगक सं रचना
को बनाने म इस कार िवकासशील रा म जो साधन लगाये जाते ह वे मां ग क अपे ा अिधक
होते ह। इनके भाव से उ पादन उिचत गित से नह बढ़ता है । अतः इस कार के अथशा ी
सं तिु लत िवकास नीित म सं शोधन के प म है ।
दुसरी ओर ो.नकसे का कथन है िक यिद हम कम िवकिसत े म सं रचना नह देते है तो,
इससे उ पादन म कमी आती है । और देश को हािन हो सकती है । यहां पर हम यह भी समझना
चािहये िक असं तिु लत िवकास नीित से अमीर और अिधक अमीर तथा गरीब और अिधक गरीब हो
जाता है । अथवा िवकिसत े और अिधक िवकिसत हो जाता है तथा अवकिसत े और
अिधक िपछड़ जाता है । दूसरी ओर सं तिु लत िवकास नीित से कम िवकिसत े अिधक िवकास
करते है और वहां के गरीब िनवासी के जीवन तर म सुधार आता ह। दुभा यवश हमारे देश म
िवकास के उ े य के िवपरीत असं तलु न िव मान है और यही कारण है िक देश म कम िवकिसत
े है और वहां के िनवासी आिथक किठनाई को सहन कर रहे है । यिद हमारे िनयोजक इस िबंद ु पर
अिधक यान दे तो अथ यव था का िवकास अिधक सं तिु लत प से िकया जा सकता है और
सामािजक याय के उ े य क पूित क जा सकती है । इस कार इस नीित के अनुसार देश के
िविभ न े म सं भािवतिवकास सं भव हो सके गा और देश के दुलभ साधन का अनुकुलतम योग
भी सं भव हो जायेगा। उदाहरण के िलये यिद हम ऊजा के े को देखे तो इसके अंतगत हम ऊजा के
िविभ न ोत को एक साथ लेकर चलना पडेगा। तभी हम इस ग भीर सम या का समाधान कर
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सकगे। ऊजा के िविभ न ोत िबजली, कोयला, हवा, आणिवक, बायोगैस तथा सौर ऊजा आिद
का समि वत िवकास करना होगा। यही बात अ य े म भी लागू होती है । इस बात पर यान देना
आव यक है िक जैस-े जैसे सं रचना क मां ग बड़े उसक पूित को सभी अनुपात म बढ़ाया जाये। और
इस कार यहां पर िश ा का मह व अ यिधक हो जाता है अथात् सं रचना के िवकास के िलये
िविभ न कार के तकनीक म िनपुण लोग क आव यकता होगी जो न के वल सं रचना के उ पादन
म मदद द अिपतु उस बनाय रखने म भी सहायक ह । इनके , अभाव म सं रचना का ढां चा तो खड़ा है
ही जायेगा वरन् साधारण कमी के कारण वह ठ प हो जायेगा तथा उस पर िविनयोिजत क गयी
करोड़ क पूं जी एक कार से यथ हो जायेगी।
17.6 सारां श
उपयु िववेचन से यह ात होता है िक कृ िष तथा औ ोिगक सं रचना के सृजन तथा उसके
बनाय रखन म िश ा का अ यिधक मह व है । यह बात िवकासशील रा के िलये अिधक लागू
होती है वहां नविशि त तकनीक हाथ तथा िवशेष नयी-नयी उ पादन प ितय को अपनाते है ।
कहने का अथ यह है िक िशि त वग इनका समुिचत तथा वै ािनक योग करता है जबिक िश ा के
अभाव मे इसी स भावनाय कम हो जाती है । यिद हम िश ा क लागत तथा लाभ का िव ेषण कर
तो यह बात और अिधक प हो जाती है िक िजन अथ यव थाओं अथवा े म िश ा पर
अिधक यय हआ है वहां पर इसका लाभ कई गुना अिधक देखने म आयगे। िश ा के कारण मां ग
बढ़ती है और िवकास भी बढ़ता है । िश ा के लाभ को ा करने म िवकास के तर का भी मह व
है ।
17.7 श दावली
1. सावजिनक व तु :- सावजिनक व तुये होती है जो सरकार ारा उ प न क जाती है तथा
िजसम यि गत उपयोग स दूसर क उस व तु क ाि म कोई उ र नह पड़ता।
2. नव िनमाण :- नविनमाण का अथ है नये-नये आिव कार को योग म लाकर उ पादन
वृि करना।
3. सं तु िलत िवकास िस ा त :- इस िस ा त का अथ है िक उ पादन म वृि सम त
उ ोग तथा सम त े म समान प से क जानी चािहये। िकसी े अथवा उ ोग को
पीछे नह छोड़ना चािहये।
4. असं तु िलत िवकास िस ा त :- इसका अथ यह है िक िकसी एक े या उ ोग म
ारं िभक अव था म अ यिधक िविनयोग िकया जाता है और इसके भाव से अ य े के
िवकास क गित तय होती है ।

237
17.8 कु छ मह वपू ण पु तक
1. फो टर शैफ ड (ऐड़ीड) ऐजुकेशन इन सरल डवलौ मै ट.व ड इयर बुक आफ
एजुकेशन-1974 टी.ड यू शु जू तथा डी .पी.चौधरी लेख
2. योगसन : आिथक िवकास तथा सं रचना ( लसगो ेस 1967)
3. ए एस : भ ला (ई डी) तकनीक का चयन आई.एल.ओ.1985
4. आिथक सव ण-1989
5. आर. एम. सु दरम् : आिथक नीित एवं िवकास, सागे काशन-1989
17.9 िनब धा मक
1:- सं रचना क मु य िवशेषनाय या होती है? उनका उ लेख क िजए।
2:- िश ा के सार का औ ोिगक तथा कृ िष सं रचना के िवकास पर या भाव पड़ता है?

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इकाई 18
जनसां ि यक य आयाम एवं आिथक िवकास
इकाई क परेखा
18.0 उ े य
18.1 तावना
18.2 जनसं या वृि का आिथक िवकास पर भाव
18.3 जनसं या एवं पूँजी िनमाण
18.3.1 ित यि आय पर जनसं या आकार का भाव
18.3.2 ित यि आय पर जनसं या वृि दर का भाव
18.3.3 ित यि आय पर जनसं या क आयु सं रचना का भाव
18.4 जनसं या वृि का अ य आिथक चर पर भाव
18.4.1 जनसं या वृि एवं खा पूित
18.5 जनसं या वृि एवं उ पादन
18.6 जनसं या वृि एवं बेरोजगारी
18.7 मानवीय साधन तथा आिथक िवकास
18.8 वासन का आिथक िवकास पर भाव
18.8.1 आ त रक वासन का भाव
18.8.2 अ वासन (Immigration)
18.8.3 उ वासन (Emigration)
18.9 सारां श
18.10 िनब धा मक
18.11 कु छ उपयोगी पु तक
18.0 उ े य
मानव क िज ासा अपने तथा अपने प रवेश के बारे म जानने क उसके उ पि काल से
रही है । वह इसके सं बं ध म िविभ न उ य को यानगत रखकर िकसी न िकसी प म जानकारी
एकि त करता रहा है । ये उ े य कई कार के हो सकते है जो समय, थान, उ े य के अनुसार
बदलते रहे है । मानवीय इितहास म ऐसे अनेक सा य आज भी उपि थत है जो इस बात को प
करते है िक रा य क िच जनसं या के िविभ न आयाम -ज म, मृ यु आ वास तथा उ वास आिद
म सव थम रा य क सुर ा तथा कर के मा यम के राज व एकि त करने म रही है । िजसके कारण
जनसं या का लेखा रखना आव यक हो गया होगा। इन दोन ही उ े य ने जनसं या के गुणा मक
239
(Qualitative) तथा प रमाणा मक (Quantitative) पहलुओ ं का अ ययन करने को बा य िकया
होगा। और इस कार अ ययन के िलए पं जीकृ त जीवन समंको (Vital statistics) क
आव यकता पड़ी होगी, िजसका सव थम उ लेख1 ईसा से 1250 वष ई.पू. िम के नरेश रोमेश
ि तीय के काल म िमलता है । इसके अलावा बेवालोिनया, चीन तथा िह द स यताओं म भी इसका
भरपूर उ लेख िमलता है ।2 और आज िव के लगभग सभी देश म जनगणना का काय िकया जा
रहा है, जो इसक उपादेयता को वत: िस करता है ।
जनसं या तथा आिथक िवकास म अ य याि त सं बधं है । दोन ही एक दूसरे के िलए
कारण- भाव सं बं ध थािपत करते है । इस इकाई म हमारा जनसं या के अनेक आयाम-ज म, मृ यु,
आ वास तथा उ वास (Birth, Death, immigration & Emigration) िकस कार िकसी
देश के आिथक िवकास को भािवतकरते है - का अ ययन करने का मुख उ े य है ।
18.1 तावना
िकसी रा म रा ीय आय, मजदूरी, लगान, रोजगार आिद आिथक िवकास सूचकांको
तथा जनसं या क प रमाणा मक तथा गुणा मक सं रचना, मृ यु-दर, ज म-दर, घन व आिद
जनां िकक य िवकास सूचकांको म बड़ा ही घिन सं बधं है । इस सं बधं को ो० रचाड िगल ने इन
श द म बड़े ही सु दर ढं ग से य िकया है-आिथक िवकास एवं पं जीकृ त ि या (Mechanical
Process) के साथ-साथ मानवीय उप म (Human Enterprises) भी है । इसका ितफल
अ ततः इसे ि याि वत करने वाले मनु य क कु शलता, गुण एवं वृि य पर िनभर करता है । इस
कार हम देखते है िक वा तव म मनु य उ पादन का साधन है जो अपनी शारी रक, मानिसक आिद
कार क यो यताओं एवं मताओं को िन य ित योग म लाकर संसार के जीवन तर को ऊचाँ
उठाने के िलए य नशील रहता है । मा स तो इस सं बं ध म यहां तक कहता है िक मनु य ही सम त
उ पादन का कारण है । वह ही के वल उ पादक साधन है । िक तु दूसरे ही ण यह भी बात उतनी ही
मह वपूण है िक मानव-साधन म या गुण है तथा उनका योग िकस कार से िकया जा रहा है ,
अथात् िमक कु शल है या अकु शल। ो० काबर के िवचार से यह और भी पाट हो जाता है ''धनी
वातावरण के बीच भी समुदाय एवं रा -िनधन रहे है अथवा िम ी क उवरता तथा चुर ाकृ ितक
साधन के होते हए भी पतन क ओर अथवा गरीबी क ओर चले गये है के वल इसिलये क यहां
मानवीय त व िन न कोिट का रहा है, अथवा उसको िबगड़ जाने के िलए छोड़ िदया गया है ।'' इसी
कार का मन ो० ए. मुखज का भी है-''िकसी भी रा क उ नित मानवीय सं साधन सं गिठत करने
क मता पर िनभर करती है । िन:संदेह कसी भी देश म जन-शि साधन रा क भारी पूं जी मानी
जाती है । लेिकन इन साधन का यिद समुिचत उपयोग न हो और नये रोजगार के अवसर न उपल ध
िकये जाय तो साधन रा के िलए भार व प बन जाते ह। उपयु िववेच न से प हो जाता है िक
रा के िवकास के िलए अपनाई गई नीित म जन-शि मनु य वयं साधन तथा सा य दोन ही है ।
जो िक आिथक िवकास के चर के साथ-साथ प रवितत होता रहता है ।

240
पेपिलिसस, िपयस तथा एडलेयन के श द म, ''साधन के प म मनु य उ पादन ि याओं
म अ य साधन के साथ सं यु होने के िलए उ पादन के प मे उपल ध होता है । उपभो ाओं के
प म आिथक िवकास का उ े य उनक आकां ाओं और अिभलाषाओं को अिधकतम ाि है ।
अतः िकसी भी िव ेषण म मानवीय त व पर इसके उ पादन और उपभो ा दोन प म िवचार
िकया जाना चािहए।'' अतः यह आव यक हो जाता है िक हम आिथक िवकास तथा जनसं या
िवकास के आपसी सं बं ध एवं भाव का िव तार से अ ययन कर।
18.2 जनसं या वृ ि का आिथक िवकास पर भाव
िकसी भी अथ यव था म िवकास क गित ाय: जनां िकक य चर (1) जनसं या का
आकार, (2) जनसं या वृि दर तथा (3) आयु सं रचना-से बहत हद तक भािवतहोता है । ये घटक
उ पादन उपभोग, शु िविनयोग आिद को य तथा परो प से भािवतकरते रहते है, िजससे
िक िवकास क गित पर िनय ण-सा लगता रहता है । वा तिवक िविनयोग क मा ा िकसी
अथ यव था के आधुिनक करण ि या को ती तर गितं उसी अव था म दान कर सकते है
जबिक जनसं या क िवकास-दर तथा उसके गुणा मक एवं प रमाणा मक दोन ही पहलू इसके
अनु प ह । दूसरे श द म , ित यि रा ीय आय, िजले आिथक िवकास का सूचकां क माना
जाता है, म वृि एक तो वा व म रा ीय आय क वृि हो सकती है । दूसरे , यिद िवकास यथावत्
रहे और जनसं या वास िवदेश को अिधक हो जाय, या िफर अिधक मृ यु हो जाये , तो भी यह
( ित यि रा ीय आय) अिधक होगा। इस कार हम देखते है िक ये जनां िकक य चर भी
अथवयव था के िवकास को िविभ न िदशाओं भािवतकरते रहते है । इसिलये इनका िव ेषण
करना आव यक सा तीत होता है । अतः जनसं या के ित यि यि आय पर पड़ने वाले
भाव के अ ययन के ारा हम यह जान सकते है िक जनगणना आिथक िवकास को िकस कार
भािवतकरती है । इसे हम अ ांिकत तीन शीषको म अलग-अलग अथ- यव थाओं के िलए
िव ेिषत कर सकते है ।
18.3 जनसं या एवं पू जी िनमाण(Population & Capital
Formation)
िकसी भी अथ यव था म हई पूं जी-िनमाण को रा ीय आय के ितशत के प म य
िकया जाता है । अिवकिसत देश म (िवकासशील देश म) पूजं ीगत साधन के अभाव के साथ-साथ
कु शल एवं तकनीक िवशष का भी अभाव देखा जाता है । ाकृ ितक साधन को भी शोिषत नह
िकया गया होता है । अतः इन अथ यव थाओं म पूं जी-िनमाण पर जनसं या वृि का ितकू ल
नह , तो अ छा भाव भी नह पड़ता है । इन अथ यव थाओं म उ च जनन-दर, उ च मृ यु-दर,
अिधक जनसं या वत: ही सम या होती है जो िक पूंजी-िनमाण म बाधक होती है ।
___________________________________________________________

241
1 Census Of India, 1961, Vol. XV (UP), Part i-B, P.P. Bhatnagar
2 (i) कोिट य का अथशा , (ii) आइने अकबरी
18.3.1 ित यि आय पर जनसं या आकार का भाव (Effect of Population Size
on Per capita Income)
जनसं या आकार तथा ित यि रा ीय आय म य सं बध है । जनसं या वृि के
साथ-साथ ित यि आय म कमी, ि थरता तथा वृि देखी जा सकती है । यिद जनसं या ि थर है
और कु ल रा ीय आय बढ़ रही है तो ित यि आय बढ़ेगी। इसके िवपरीत, रा ीय आय क
वृि से जनसं या आकार वृि क गित अिधक होने पर ित यि रा ीय आय कम होगी। इस
कार, यिद दोन ही समान गित से बढ़े तो ित यि आय भी यथावत् रहेगी। इस त य को हम एक
उदाहरण से प कर सकते है ।
तािलका 18.1
सन् 1971 सन् 1991
देश जनसं या कु ल वा तिवक आय ित यि जनसं या कु ल वा तिवक ित यि
(करोड़ म) (करोड़ . म) आय ( . म) (करोड़ म) आय (करोड़ म) आय ( . म)
क 10 50 5 15 90 6
ख 12 84 7 18 126 7
ग 20 180 9 30 240 8
उपयु तीन ही अथ यव थाओं म सन् 1991 क कु ल रा ीय आय 1971 क अपे ा
अिधक है, िक तु जनसं या म वृि हो जाने के फल व प ''क”, “ख'' और ''ग'' अथ यव थाओं
क ित यि रा ीय आय बढ़ी है, ि थर रही है ओर कम हई है । इससे प प रलि त हो रहा है
िक अथ यव था “ग'' म अवनित हो रही है । अतः अथ यव थाओं म जनसं या के आधार का ित
यि आय पर य भाव पड़ता है । िक तु िवकिसत देश क अपे ा िवकासशील देश म यह
भाव अिधक गहन प से प रलि त होता है ।
इस स दभ म कारसेडस के ारा ितपािदत सव म जनसं या िस ा त क चचा अ य त
उपयु होती है । यह िस ा त उस धारणा को प करता है िजस पर िकसी अथ यव था म
ाकृ ितक साधन , तकनीक आिद के योग का पूण शोषण हो सके िजस पर िक ित यि आय
अिधकतम होती है । अतः सव म जनसं या वह जनसं या है िजस पर िक िकसी भी देश क ित
यि आय सवािधक हो।
िक तु जैसा िक हम देख चुके है , यह धारणा तुलना मक थैितक (Comparative
Static) दशा क ोतक है, जो िक यावहा रक नह है । यवहा रक जगत तो प रवतनीय है । दूसरे ,
इस िस ा त क मा यता ही है िक ित यि आय का उ पादन जनसं या के आकार पर िनभर
रहती है, जनसं या के कार (Quality) पर नह , जो िक उिचत नह है, य िक िकसी भी देश का
कु ल उ पादन (रा ीय आय) वहां क कायकारी-जनसं या क कृ ित, काय मता, आयु-सं रचना,
तकनीक कु शलता आिद पर िनभर करता है ।
242
18.3.2 ित यि आय पर जनसं या वृ ि -दर का भाव
(Effect of Population Growth rate on Per Capita Income)
जनसं या वृि िकसी भी अथ यव था के रहने वाल के जीवन तर को कई िदशाओं से
भािवतकरती है । यिद यह दर अिधक है और िविनयोग क मा ा (दर) इससे कम है तो वहां के
लोग का जीवन तर ित यि रा ीय आय के कम होने के कारण िगरेगा।
अतः हम जनसं या िविनयोग क आव यकता पड़ेगी। जनसं या िविनयोग (Human
Investment) से ता पय उस िविनयोग से है िजसक आव यकता जनसं या म वृि होने के
साथ-साथ एक थायी जीवन तर बनाये रखने के िलए पड़ती है । जबिक आिथक िविनयोग
(Economic Investment) वह िविनयोग है जो जनसं या वृि दर से अिधक रा ीय आय वृि
दर बनाये रखने के िलए आव यक है, तािक ित यि आय बढ़े और उ चतर जीवन को ा
िकया जा सके । इस कर हम देखते है िक जनस या िविनयोग का सं बं ध जनसं या वृि के अलावा
ित यि वांिछत दर से होता है ।
जनस या म वृि का ित यि आय पर पड़ने वाले भाव को ो० न स ने इस कार
य िकया है- ''यिद िकसी अथ यव था म जनसं या म वृि नह होती तो वह अपनी अित र
पूं जी (पूं जी िनमाण) को िव मान िमको को अ छे उपकरण, मशीन, िश ा तथा िश ण देने म
यु करगे। इसे गहन-िविनयोग के हते है । इससे कु ल रा ीय आय के अलावा ित यि आय म
भी वृि होती है । पर तु यिद जनसं या बढ़ती जित है तो स पूण अित र पूं जी अथवा इसका कु छ
अंश अित र िमको (जो जनसं या म वृि के कारण फिलत ह गे) को वतमान उपकरणो को
उपल ध कराने म लगाना पड़ेगा। अिधक िमको को चालू कार के उपकरण उपल ध कराना
िव तीण िविनयोग कहलाता है । अतः यिदं जनसं या म वृि इतनी तेज देर िक सम त अित र
पूं जी अित र िमको को वतमान उपकरण को उपल ध कराने म ही लग जाती है तो रा ीय आय
बढ़ेगी, पर तु ित यि आय नह बढ़ेगी।''
अतः जनसं या वृि का ित यि आय पर दो कार से ितकू ल भाव पड़ेगा-एक तो
यह अित र पूं जी का वह भाग समा कर देती है िजसे िव मान जनसं या क स जा सुधारने
(अथात् उ ह अ छे उपकरण, मशीन, िश ा आिद उपल ध कराना) म योग म लाया जाता है, और
दूसरी ओर शेष पूं जी को अिधक िमको को उपकरण उपल ध कराने म लगाना पड़ता है । इस
कार जनसं या क येक वृि ित यि आय म वृि क दर को कम करती है ।
सं यु रा सं घ का अनुमान है िक िकसी देश म जनसं या क वािषक वृि दर 90% होने
पर वहां वतमान ित यि आय बनाये रखने के िलए उस देश क 2% से 5% बचत आव यक है
। िवकासशील देश म जनसं या वृि दर 25% वािषक है, इसिलए वतमान आिथक तर को बनाये
रखने के िलए उस देश क जनसं या िविनयोग के िलए 5% से 12.5% बचत क आव यकता
होती है । पे गलर का मत है िक िकसी भी अ प िवकिसत देश को 25 वष म िवकिसत बनाने के

243
िलए ित यि आय म 3.2% वािषक वृि या 100 डालर से 220 डालर तक क वृि के िलए
रा ीय आय क 13.8% पूं जी क आव यकता होती है ।
इसी कार का एक अनुमान नीचे िदया जा रहा है िजसम िविभ न देश को अपने रा ीय
उ पाद का िन न ितशत अपनी वतमान आय बनाये रखने के िलए िविनयोिजत करना पड़ता है ।
तािलका 18.2
रा ीय आय का तर बनाए रखने के िलए आव यक िनवेश
कु ल रा ीय उ पादन का भाग देश
5% से कम अमे रका, नाव, ां स, वीडन, डेनमाक, प० जमनी, ि टेन,
बेि जयम, ीस, पूतगाल।
5-7.5% इथोिपया, सूडान, पािक तान, नाइजी रया, इंडोनेिशया िचली।
7.5-10% पे , मलेिशया, यू० ए० आर०, थाईलड, मैि सको, टक ।
10% से अिधक कोलि बया, भारत, ाजील, थाना, ट् यनू ीिशया
उपयु िववेचन से प है िक िवकासशील देश म जो िक ाय: कृ िष धान है (या रहते
है), म िविनयोग के अिधक होने के बावजूद भी उ पादन म उ पि हास िनयम लागू होने लगता है
िजसके कारण जनसं या वृि के साथ यि आय िगरती ही जायेगी।
इस संदभ म हाव िलिब टीन 1 (Harvey Leibenstein) का िवचार ह िक आिथक
िवकास के िलए िकसी भी जनसं या वृि दर के सं दभ म, येक देश को (िवकासशील, िवशेषतया
ामीण े ) कु छ यूनतम यास (Minimum Effort) करना पड़ता है । '' यूनतम यास” से
अिभ ाय उस िविनयोग से है जो कम से कम जनसं या वृि क दर के सं दभ म इतना अव य होना
चािहए तािक आिथक िवकास के रा त म जनसं या सं बं धी बाधाओं को हटाया जा सके । िक तु
िलिब टीन के िवचार को िवकाशील देश म यवहार म लाना किठन सा तीत होता है । इसका
कारण है िक इन देश म यूनतम तर के य न के िलए िवदेशी सहायता, कु शल म एवं ावैिधक
का अभाव होता है । इन देश म पूं जी उपयोग म कमी लाकर एकि त क जा सकती है ।
रचाड ने सन (Richard Nelson) ने भी िलिब टीन से ही िमलता-जुलता िवचार य
िकया है । '' यूनतम यास'' क ही भां ित इ ह ने अपना ''िन न तरीय स तुलन-अवरोध2 (Low
Level Equilibrium Trap) िस ा त ितपािदत िकया है जो िक मु यत: तीन समीकरण पर
आधा रत है । इसके अनुसार, (1) उ पादन फलन (Production Function) क भां ित आय
िनधारण समीकरण (Income Department Equation) म आय, पूं जी क मा ा, जनसं या के
आकार तथा ावेिधक तर पर िनभर करता है । (2) शु िविनयोग, बचत से िनिमत पूं जी तथा कृ िष
के साथ नई जमीन कृ िष यो य बनाई जाती रही है । िफर भी अ छी भूिम क कमी पाई जाती है ।
अत: येक अथ यव था म एक ऐसी अव था आती है जबिक िविनयोग ब द हो जाता है । उ ह
के श द म, िविनयोग न करने क एक िन नतम सीमा होती है । कोई भी यि चाहे िकतना भी
भूखा य न हो रेल क टू टी पट रयां नह खा सकता है । (3) इसी कार इ ह ने एक जनसं या वृि

244
समीकरण3 (Population Growth Equation) ितपािदत िकया है । िजसम िन न तरीय ित
यि आय वाले े मे अ पकालीन प रवतन या वृि , मृ यु-दर के कारण उ प न होता है, जो
िक ित यि आय पर िनभर करता है । उ च तरीय जीवन म मृ यु दर भावहीन सा रहता है ।
ने सन का मत है िक यह अवरोध क यव था िन न ि थित म स भव हो पाती है-(1) ित
यि आय के तर तथा जनसं या वृि दर म गहरा सह-सं बं ध है । (2) ित यि आय क
मता ित यि िविनयोग म वृि लाने के िलए कम होती है, (3) िबना जुती हई भूिम क दुलभता
है, तथा (4) उ पादन िविधयां क अकु शलता। िकसी भी अिवकिसत देश म इनको पाया-जा सकता
है ।

1. Leibenstein, Economic Backward and Economic Growth, New York,


1979.
2. R.R. Nelson, A theory of Low-Equilibrium Trap, A.E.R, Dec. 1956,
894-908.
3. “In areas…. The Y/P axis” – B. Higgins-Eco. Dev, pp. 395-397.
उपयु िच म (dp/p), (dy/y) तथा (y/p) मश: जनसं या वृि दर आयु वृि दर
तथा ात यि आय को दशाते है । िकसी भी जीवन िनवाह तर पर वहां िक (dp/p) तथा (dy/y)
व एक दूसरे को काटते ह, ि थर सं तलु न ा होगा, इस समय ित यि आय (y/p) होगा। आय
मे वृि के िकसी भी कार के य न के फल व प जनसं या म तेज वृि होगा िजससे िक
अथ यव था पुन : िनचले िब दु s पर सं तलु न म आ जाएगा। इस कार इस अवरोध (trap) से राहत
पाने के िलए िलिब टीन क ही भां ित जनसं या वृि दर से आय वृि दर ती होनी चािहए। यिद
इस कार क वृि से (य/p)x ित यि आय क यव था तक आसानी से पहंचा जा सके तो
िबना िकसी सरकारी य न के ि थर सा य िब दु (y/p)xx तक उ सानी से पहंचा जा सकता है ।
अत: बढ़ती हई जनसं या के कारण अथ यव था म उ पादन ास िनयम लागू होने लगता
है और ित यि आय घटने लगती है, जो िक आगे के िच 18.1.c से प है ।

245
(1) जनसं या वृि के साथ-साथ यिद ािविधक उ नित (Technological
Advancement) होती रहे, जो जनसं या वृि के साथ-साथ ित यि आय म भी वृि होगी
और ित यि आय ML व के पथ पर चलेगा तथा अथ यव था म िकसी कार क िविश
ि थित उ प न न होगी।
(2) िक तु िकसी भी कार क ािविधक उनित क अनुपि थित म यह पथ MR होगा, जो िक
मश: समान वृि का ोतक है ।
(3) इसी कार PP1 जनसं या वृि क अव था म ािविधक उ नित के साथ ित यि
आय म वृि K2 K2 के बराबर होगी अथात् PM से बढ़कर P1K2 के बराबर होगी अथात् PM से
बढ़कर P1K2 हो जाएगी। िक तु यिद िकसी भी कार क ािविधक उ नित नह हो रही है तो ित
यि आय PM से घटकर P1K1 रह जायेगी अथात् इसम कमी K1 K3 के बराबर होगी।

िच 18.1 C
ो० बो द ने अपनी पु तक (The Economics ऑफ Industrialization के पृ 56)
म िलखा है िक-''पूं जी संचय तथा ािविध के एक ऊँचे और बढ़ते हए तर पर, बढ़ती हई जनसं या
वा तिवक उ पादन का इसके स भािव तर पर

246
िच 18.2
अथवा उसके आसपास बनाये रखने म सहायता कर सकती है, और घटती हई उन दोन के
म य अ तर को बढ़ा सकती है । िक तु दूसरी ओर बढ़ती हई जनसं या क दशा म ािविधक
उपलि धय का बढ़ता हआ तर और पूं जी संचय म ती होना आव यक है । यिद इन दोन म वृि
नह हई तो ती गित से बढ़ती हई जनसं या एक खतरा है और तब िकसी भी आिथक नीित को
जनसं या िनय ण नीित से सं यु करना आव यक हो जायेगा।''
ो० कोल एवं हवर ने भी िकसी िनि त ित यि आय को बनाये रखने के िलए बढ़ती
हई जनसं या वृि क दशा म अिधक िविनयोग दर क आव यकता को अनुमोिदत िकया है ।
अिवकिसत अथ यव थाओं क ि थित म िविनयोग के तर को चुर मा ा म नह बढ़ाया जा
सकता है ।
य िक इन देश म कोई भी तरीका िविनयोग का प नह होता है । ती जनसं या
वृि -दर के फल व प, जबिक पूं जी क पूित बेलोचदार है, अिधक िविनयोग आव यक हो जाता
है, जो िक िमको को ा सुिवधाओं को दुगुना क रके िकया जा सकता है ।
इनका मत है िक 1930 म या आिथक ि थरता (Economic Stagnation) का भी
कारण चुर मा ा म िविनयोग क कमी ह, जो िक कभी-कभी जनसं या म वृि -दर क कमी का
प रमाण है । िक तु यह तक के वल िविनयोग वृि क कमी क दशा म ही लागू होता है । अथात्
क स क श दावली म जब पूं जी क सीमा त मता (Marginal Efficiency of Capital) नीचा
हो। पूण पेण औ ोगीकृ त रा म मंदी क दशा म भी जनसं या वृि उ च िविनयोग के िलए
उ ेरक का काय करती है । जनसं या वृि -दर के ित यि उ पादन के भाव को दो मुख
दशाओं म िव ेिषत िकया जा सकता है । थम क स का मत था िक उस अथ यव था म जहां
अपे ाकृ त आय अिधक है तथा िजसम पूं जीगत व तुओ ं तथा िमको क पूण रोजगार क सम या
सतत् बनी रहती है, पूं जी क सीमा त उ पादकता म वृि स पूण अथ यव था के िलए (पूं जीगत
247
व तुओ ं क मां ग म वृि के मा यम से) उ ेरक का काय करेगी िजसका प रणाम देश म आय म
वृि होगी। इस कार अथ यव था म पूं जीगत व तुओ ं क मां ग म वृि जनसं या म ती गित से
वृि के ारा क जा सकती है । दूसरी कार क अथ यव था िजसम पूं जी क पूित क कमी है तो
भी भावपूण मां ग क कमी नह ह। उपभोग क अपे ा बचत िविनयोग के मा यम से आय वृि म
अिधक सहायक होगा।
दूसरे अथ यव था म, जहां भावपूण मां ग क सम या नह है । (अथात् या तो है ही नह
या सरकारी य न के ारा सुलझाया जा चुका है ) जनसं या म तीव वृि के कारण ित िमक
उ पादन बढ़ाने के िलए पूं जी क मा ा म कमी आ जायेगी तथा ित यि आय िगरेगी।
इस कार उपयु िववेचन से यह िन कष िनकलता है िक क स का मत था िक
दीघकालीन थैय (Secular Stagnation) से बचने के िलए जनसं या क ती िवकास दर
लाभकारी है जो िक नीचे िदए च से प होती है –

ो० है डरसन के अनुसार ''घटती हई जनसं या िवकिसत देश के िवकास को रोक सक है ।'' इसी
कार के िवचार ो० िमडल, ए० के भी ह- ''िवकासो मुख-पूं जीवादी णाली म बढ़ती जनसं या
िवकास क थम अिनवायता है, घटती हई जनसं या से िविनयोजन का जोिखम बढ़ जाता है ।''
िक तु ये सभी तक िवकिसत अथ यव था म ही स भव है । अिवकिसत देश के स दभ म वह
तकसं गत नह है ।
18.3.3 ित यि आय पर जनसं या क आयु सं रचना का भाव(Effect of Age
Structure of Population on Per Capita Income)
येक देश क कायशील जनसं या (Working Population) क मा ा, जो िक ाय:
15 से 64 वष तक के आयु वाले लोग के ारा िनिमत होती है, वहां क रा ीय आय का िनधारक
त व माना जाता है । देश क आिथक गित कायशील जनसं या के ऊपर िनभर कहती है । िकसी
भी देश क कायशील जनसं या उस देश क मृ यु-दर, ज म दर आिद पर िनभर करती है । मृ यु-दर
से भाव को के वल उसी समय (कायशील जनसं या पर) देखा जा सकता है जबिक जनसं या म
देश से बाहर सा य है । ज म-दर के भाव को ो० ए सले जे० कोल2 के मतानुसार तीन शीषको -
(1) आि त का भार (Burden of Dependency) (2) मशि म वृि -दर (Growth Rate
of Labour Force) (3) जनसं या का घन व (Density ऑफ Population) म अ ययन िकया

248
जा सकता है । इन तीन ही त य के ारा ित यि आय पर पड़ने वाले भाव का अ ययन हम
अगले ख ड म करगे। इन तीन ही शीषको के भाव को जनसं या के िवतरण-खंड के अ तगत
िकया जा रहा है ।
(अ) मृ यु-दर का भाव-मृ यु-दर िकसी भी देश क कायशील जनसं या हो सामािजक
एवं आिथक दोन ही ि कोण से भािवतकरती है ।
सामािजक ि कोण से यिद देखा जाये तो भी कम मृ यु दर के फल व प मृ यु से उ प न
दु:ख , यातनाओं आिद म कमी आती है, लोग के कायकाल म वृि होती है । यादा मृ युओ ं के
कारण यादा लोग सं कार म करीब-करीब तेरह िदन का कायकाल अनु पादक काय म करने म
यतीत करते है, िजससे भी रा ीय उ पादन म कमी होती है चाहे यह कमी िकतनी ही कम य न हो
पर इस कार से भी म कु छ िदन तक बेकार रहता है । दूसरे , इन सं कार म यिद देखा जाए तो
बेकार म शोक त प रवार को कु छ धन यय करना पड़ता है जो पुन : उ पादक नह कहा जा सकता
है । इस कार से नीची मृ युदर से समय, धन, म आिद सभी चीज क बचत होती है ।
मृ यु-दर के आिथक भाव के प ीकरण के िलए हम उस देश क िविश मृ युदर के बारे
म ान होना आव यक है । यिद देश म िशशु-मृ यु दर कम है , तो आने वाले 20 वष म कायशील
जनसं या म वृि एक िनि त अनुपात म होगी। य िप इससे ित यि रा ीय आय म पहले तो
कमी होगी, िफर वृि होगी। इसी कार जन- वा य, आि त के बढ़ते भार से िगरेगा। दूसरी तरफ
यिद वृि तथा अवकाश ा लोग क मृ यु अिधक हो रही है तो देश म आिथक समृि बढ़ेगी।
इसके कारण आि त का भार ित प रवार घटेगा। जबिक आय ि थर रहेगी, तो ित यि आय
बढ़ेगी। इसी कार यिद देश म मृतको क सं या, िजनक आयु (15-64) वष के बीच है, अिधक है,
अथात् कायशील जनसं या मृ युदर अिधक है तो रा ीय उ पादन के िगरने से ित यि आय
घटेगी, पर इसम घटी ती न होगी, य िक आय के साथ-साथ जनसं या भी घटती है । जननता
(Child Bearing Age 15-49) वष क आयु क ि य क मृ यु अिधक होने से जनसं या वृि
दर म कमी आयेगी तथा यह कमी करीब-करीब 15 से 25 वष मे भािवतकरेगी। ी मृ यु-दर का
भाव िकसी देश म देर से पाया जाता है । अतः आिथक ि से सावजिनक वा य सुधार के
उपाय जो िक मृ यु-दर म कमी लाने के िलए िकये जाते है, वे कायशील जनसं या के वा य म भी
सुधार करते है, िजससे उनक अनुपि थित, कमजोरी, थकावट आिद म कमी आती है । तथा ित
यि उ पादन व आय म वृि होती है ।
इतना ही नह मृ यु-दर म कमी से कायशील जनसं या के अनुपात म वृि होती है । तथा
ब च क सं या (या आि त क सं या म) कमी आती है । इसी कार िववािहत पु ष क
मृ यु-दर अिधक होने से िवधवाओं क सं या म वृि होती है । िजसके भरण-पोषण का भार प रवार
पर पड़ता है । यहां पर यह कहना उिचत ही होगा िक कायशील जनसं या क वृि (मृ यु दर से
कमी के कारण) से िववाह दर म वृि के फल व प ज म-दर (अथात् आि त क सं या) बढ़ेगी।
जो िक एक-दूसरे को समायोिजत कर देगा और रा ीय आय के बढ़ने पर भी ित यि आय म
वृि नह होगी।
249
(ब) ज म-दर का भाव-उ च जनन िकसी रा क अथ यव था के िवकास म कई
कार के अवरोध उ प न करता है । इससे देश क जनसं या म कायकारी जनसं या का अनुपात,
आि त के अनुपात से कम होता है । इससे िविनयोग क मा ा कम होगी। यिद दो देश, िजनक
आय तथा कायकारी जनसं या समान है , क तुलना कर तो हम िमलेगा िक कम जनन-दर वाले
देश म आि त को सं या कम होने के कारण बचत- मता (Saving Capacity) अिधक है । यही
बचत िविनयोग के प म लगकर अगले वष का रा ीय आय म वृि करती है, िजससे ित यि ;
आय म वृि होती है । इसी बढ़ी हई आय से पुन: बचत क मा ा बढ़ती है । इस कार िविनयोग
आय-वृि क यह च बराबर चलता रहता ह।
ो० ए सले, जे० कोल तथा ई० हवर ने भारत क कायशील जनसं या पर ज म-दर के
पड़ने वाल भाव को इस कार: अनुमािनत िकया है । इनका मत है िक यिद भारत क ज म-दर म
1957 तथा 1986 के बीच 50% क कमी हो जाये तो (15-64) वष क आयु-वग क जनसं या म
के वल 8% क कमी उस दशा क तुलना म होगी जबिक जनन-दर तीस ठष तक ि थर रहने, पर
होती। इसका अपना मत है िक ज म-दर म क मा ा तथा जनसं या म आयु िवतरण को भािवत
करता है । िवकासशील देश म जनन-दर म कमी का भाव म क मा ा पर लगभग 25 वष तक
नह के बराबर होता है । जनन-दर क कमी के कारण आि त ब च क सं या कम होती है,
िजससे ित यि आय म वृि होती है । िक तु इस कार अ छे उपयोग का भाव म तथा म
क काय-कु शलता म वृि करेगा।
कोल तथा हवर क भांित डा० जाज सी० जैदान (Dr. G.C. Jaidann) ने भी यह माना है
िक यिद अिवकिसत देश म 25 वष म ज म-दर 50% कम हो जाये और उसके बाद ज म-दर को
ि थर रखा जाये तो इस अथ यव था म िनवािसय के रहन-सहन पर भाव पड़ेगा।
अब हम उपयु मा यताओं के आधार पर ि टन िव िव ालय म ि थर जनसं या
कायालय के अ ययन को देखगे। इसम जनसं या क बनावट तथा आिथक िवकास पर जननता
ास के भाव को दशाया गया है । अब मान लीिजए िक िकसी िवकिसत देश क जनसं या 1000
है । तथा ेपण (अ) म जनन-दर यथा ि थर है, जबिक पे ण (ब) म लगभग 25 वष म जनन
दर 50% कम हो जाती है । और उसके बाद यथाि थर हो जाती है । ारि भक जनसं या एक
िमिलयन है । इस जनसं या क ारि भक ज म-दर 44 तथा मृ यु दर 14 ित हजार है । िजसके
फल व प जनसं या ितवष 3 ितशत क दर से बढ़ रही है । तथा औसत जीवन यासा 53 वष
तथा स पूण मातृ व काल म एक ी को 6 ब चे पैदा होते है । और इस कार क आशा क जाती
है िक आने वाले 30 वष म औसत आयु 70 वष के करीब हो जायेगी, िजससे िक मृ यु-दर म
जन- वा य सेवाओं क वृि एवं सुधार के कारण कमी होती जा रही है । यह सभी मा यताएं दोन
ही पे ण के िलए लागू होती है ।

250
तािलका 18.3
एक अ -िवकिसत देश का जनसं या- ेपण
(Projection of Population of an Underdeveloped Area)
आयु-वग /वष 0 10 20 30 40 50 60 150
0-1 454 616 870 1261 1840 2655 3848 110,700
(अ) 14-64 535 718 996 1406 2003 2901 4204 120,800
65 32 43 65 90 132 180 245 14,000
योग 1000 2377 1931 2767 3975 5736 8297 246,500
0-1 4.34 567 677 676 683 901 994 3014
(ब) 14-64 534 718 985 1287 1573 1860 2181 6613
65 32 43 65 90 132 188 245 850
(बी) योग 1000 1328 1687 2053 2488 2950 3420 10477
ोत- एस. सी. ीवा तव जनां िकक के ा प, p.624
उपयु दोन ही ेपण म अ पकाल तथा दीघकाल दोन ही दशाओं म जनसं या के
गुणा मक पहलू का अ ययन िकया जायेगा। थम 25 से 30 वष म आि त के भार म दोन ही
प ेपण म पया िभ नता देखी जा सकती है । दोन म ही यह अ तर सार-पूण है इस अ तर के
फल व प कायशील जनसं या म (जनसं या के कारण) पया अ तर आने लगता है और यह
अ तर उस समय बढ़ ही जाता है जब तक िक इनम थैय न आ जाये। इस कार अ पकाल व
दीघकाल दोन ही दशाओं म जनसं या के आयुिवतरण म पया िभ नता देखी जा सकती है ।
म यकालीन ि थित म म क सं या पर भू पया भाव पड़ता है । िक तु दीघकाल म म-घन व
म पया अ तर आ जाता है ।
िन कष प म यह कहा जा सकता है िक अ पकाल म उ च जननता वाली जनसं या
क अपे ा िन न जननता वाली जनसं या म आि त के भार म कमी आती है । यह लगभग 30
वष क अव था तक अिधकतम पर ि थर हो जाता है । इसके फल व प म यकाल म दोन क
मशि म अ तर आने लगता है जो िक लगभग 70 वष म ि थर हो जाता ह। इस कार म शि
के अ तर के फल व प दोन ही देश क आिथक ि थित म अ तर आने लगता है । अत: अिधक
जननता वाली जनसं या म ित यि आय म कमी आने लगती है ।
जननता दर के इस कमी के कारण धीरे-धीरे लाभ होने लगता है । ार भ म यह लाभ नाम
मा क है, पर तु 30 वष के प ात यह 40% हो जाता है । 60 वष के प ात तो यह लाभ 100%
से भी अिधक हो जाता है पर तु 150 वष बाद तो इस घटी जननता विला जनसं या क आय म
समान गित से चलती रहने वाली जनन शि क जनसं या से 6 गुनी वृि हो जायेगी।
िक तु कु छ िव ान के अनुसार जननता म कमी रा के औ ोिगक करण के साथ-साथ
वत: आने लगती है । के वल रा को शी ाितशी औ ोिगक बनाने क आव यकता है । िक तु

251
िच 18.4 ोत-एस.सी ीवा तव, जनां िकक p.625
िवकासशील रा म जननता को समान तर पर रख कर भारी िविनयोग स भव नह है िजससे
ित यि आय म वृि नह हो सकती है ।
18.4 जनसं या वृ ि का अ य आिथक चर पर भाव
18.4.1 जनसं या वृ ि एवं खा पू ित (Population Growth and Food Supply)
जनसं या वृि तथा खा पूित के सं बधं म मा थस के मत को आप देख चुके है । साथ ही
साथ आपने यह भी देख िलया है िक 25 वष के अ तराल पर सीिमत भूिम पर बढ़ते हए जनसं या
भार के फल व प ित यि खा साम ी म िकस कार कमी आती जाती है । इसी सं दभ म
आज भी यह देखा जाए तो प है िक खा एवं जनसं या वृि क दर म िकसी कार क समता
नह ह और यही असमानता स पूण िव को भूख क वाला म जलाती जा रही है । ो० ानच द
के अ ययन के अनुसार 1900 ई० से 1934 ई० के बीच जहां भारत क जनसं या म 21% से वृि
हई वही कृ िष यो य भूिम के े म 11% क वृि हई। इसी कार एक अ य िव ान ी पी. के .
वादल के अनुसार 1913-14 से 1934-35 के बीच जनसं या म ाय: ितवष औसत प से 1%
क वृि हई िक तु खा ान के उ पादन म के वल 0.65% क वृि हई। इसी कार सं यु रा सं घ
के अनुमान के अनुसार वतमान जनन दर तथा 9% क वािषक आय क वृि के कारण 1980
तक इन िवकासशील देश क जनसं या म 78% वृि होगी एवं खा ा न क मां ग म 118% क
वृि होगी। यिद आय म 3% वृि मानी जाये जो खा ा न क मां ग म 238% वृि होगी। भारतीय
योजना आयोग के श द म ''हमरी खा सम या का मुख कारण खा ा न क मां ग तथा पूित का
त कालीन अस तुलन नह वरन् देश म खा ा न क तुलना म जनसं या म िनर तर अ यिधक वृि
252
है ।'' िव खा सं था के महािनदेशक ी ए. एच. बोरमा के श द म - ''अगर आबादी क बाढ़ को
िनयि त न िकया गया तो पया भोजन मुहयै ा करने क सभी आशाएं धूल म िमल जायेग ।'' इसी
कार िव खा सम या के बारे म तथाकिथत िवशेष का िवचार िकसी को भी आ यचिकत
करने के िलए पया होगा - ''काला तर म मनु य को सभी जीवकोषीय पदाथ क बड़ी कु शलता से
उ पादन करने के िलए जल और थल के सभी ोत एवं साधन को सं गिठत करना होगा य िक
यही एकमा उपाय है िजससे वह खा क पूित म िनर तर वृि क उ मीद कर सकता है ।''
जनसं या का सबसे मुख भाव अस तुिलत भोजन क सम या है । खा सम या पूण
अभाव क है । लेिकन असमान िवतरण के कारण यह और उ हो गई है । दुिनया म िजतना खा
उपल ध है, आज यिद उसे बराबर-बराबर बां ट िदया जाये तो सभी लोग पोषक त व के अभाव से
पीिड़त नजर आएं गे। जोफ टा सबरो के अनुसार इस समय दुिनया म 14 वष से कम आयु वाले
ब च क सं या एक अरब है । इनम से 60 करोड़ तो कभी भी वय क नह हो सकगे। वे िविभ न
कार से काल कविलत ह गे, लेिकन उनक मृ यु का मु य कारण होगा िक उ ह पया मा ा म
पौि क भोजन नह िमला। उनक िज दगी क लौ जब तक िटमिटमाती है तब तक वे भूखे सोते ,
भूखे जागते तथा तमाम िदन भूख से सं घष करते रहते है । जैसा िक खा वे ािनक जाज ए०
बोग ाम ने कहा है- ''यह इ सान क सबसे भयं कर िवपि है िक अिधकां श ब च क िज दगी मौत
का भयंकर इ तजार करने के अलावा और कु छ नह ।
इसी कार सं यु रा सं घ क खा एवं कृ िष सं गठन (FAO) का मत है िक कु पोषण का
भाव 5 वष क आयु तक बुरी तरह भािवत करता है । इनका अनुमान है िक िवकासशील देश म
आज 5 वष से कम उ के 10 िमिलयन ब चे ती ण कु पोषण 60 िमिलयन सामा य कु पोषण तथा
120 िमिलयन गु एवं सामा य कु पोषण से भािवतहै । इस कार लगभग सम त िशशुओ ं का
50% िकसी न िकसी कार के कु पोषण से भािवतहै जो िनि त प से इनक अकाल मृ यु का
कारण बनेगा। इसी कार तृतीय िव खा सव ण का मत है िक लगभग 20% लोग को पया
मा ा म भोजन नह िमलता तथा 60% लोग को सही कार का भोजन नह िमलता। िव बैक के
अ य राबट मैकनमारा का मत है िक िव म 100 िमिलयन गरीब लोग है जो िकसी न िकसी
कार क कु पोषणता से भािवतहै तथा जो न आिथक िवकास म सहायक होते है ओर न ही इसके
लाभ म बराबर का िह सा बँटाते है तथा जो अिश ा, कु पोषण रोग, ऊँची िशशु मृ यु दर तथा नीची
जीवन आकां ा से यु है । कु पोषण से आज िव क 1.2 िमिलयन जनसं या जो 15 वष से कम
उ क ह, पीिड़त है ।
इसके अित र ो० सुखा मे ने अ पिवकिसत एवं िवकिसत देश म ितिदन ा कै लोरी
तथा आव यक कै लोरी का उ लेख िकया है िजसके अनुसार अ पिवकिसत देश म 17% तथा
िवकिसत देश म 120% कै लोरी शि ा है । ोटीन आपूित का ितशत ितिदन ित यि
193 तथा 303 है । ऐिशया तथा सुद ूरपूव देश म यह ितशत मश : 94 तथा 185 है जो िवकिसत
देश क तुलना म बहत कम इसी कार भारत म िबहार तथा म ास म हए गृह सव ण म यह बात
सामने आती है िक 17 तथा 49% घर म पया कै लोरी का अभाव है । ोटीन क मा ा इन रा य
253
म 5 तथा 34% है । इसके अलावा बहत से ऐसे घर है िजनम ोटीन तथा कै लोरी दोन का ही सवथा
अभाव है ।
आज जनसं या का भाव अपया एवं अस तुिलत भोजन के प म िवकासशील देश म
या है । भरपेट भोजन यिद िमल भी जाये तो मनु य के िन नतम पौि क त व को पूरा नह कर
पाता। आज ोटीन, िवटािमन आिद पोषक त व के अभाव म तरह-तरह के रोग बचपन म ही हो
जाते है िजसके कारण िकसी भी देश म-शि म िनरं तर ास होता है । पोषक आहार क कमी के
अ य भी कई बड़े कारण प देखे जाते है जो िक िकसी भी देश के आथक तर पर य एवं
परो प से अपना भाव डालते रहते है इसके अभाव म शारी रक उ पादकता तथा रोग-िनरोध क
मता घटती जाती है िजससे अनुपि थित बढ़ जाती है । इसक कमी से शरीर का िवकास थायी
प से क जाता है । कई िवकासशील देश म बारह साल क उ वाले ब च का औसत कद
यूरोप के आठ साल के ब च के औसत कद के बराबर होता है । पोषक आहार के भारतीय िवशेष
डा0 सी0 गोपालन के अनुसार इस देश के देहाती इलाको के रहने वाले 80 ितशत ब चे पौि क
आहार क कमी के कारण बौनेपन के िशकार है । इसी कार अमे रक िवशेष डा0 नेिवन एस0
ि कमशा का मत है िक जीवन के पहले ण म इसक कमी से जीवन का िवकास क जाता है तथा
कभी-कभी तो ब चा बदश ल हो जाता है । इसी कार पौि क आहार न िमलने से होने वाली
बीमा रय के इलाज पर होने वाले खच के मुकाबले शु म ही आव यक पौषक त व क यव था
करना स ता होता है । बग ने एक अनुमान का उ लेख िकया है : ''गवाटेमाला म पौि क आहार न
िमलने के कारण होने वाले रोग से पीिड़त हर रोगी को 90 िदन तक अ पताल म रखने पर कु ल
800 डालर तक खच बैठता है जबिक आहार म पौि कता के अभाव को दूर करने पर साल भर का
खच 7 से 10 डालर से अिधक नह होता है ।'' इसी कार कु छ साल पूव िफलीपीन सरकार ने
उ पादन क हािन, म-शि क हािन और िचिक सा तथा अं येि पर होने वाले खच के आधार
पर कु ल हािन का जोड़ लगाने क कोिशश क थी। उसने िहसाब लगाया िक अके ले बेरी-बेरी से
ितवष एक करोड़ दस लाख डालर को हािन होती है - यह िहसाब िसफ बेरी-बेरी के उन रोिगय के
आधार पर लगाया गया िजनक सरकार को जानकारी िमली।
अपौि क आहार से न के वल शारी रक िवकास म कमी आती है बि क इससे मि त क के
िवकास म भी अवरोध उ प न हो जाता है । कु छ मामल म तो िफर उसे िकसी तरह िवकिसत करना
सं भव नह होता। मानव पर आने वाली जो मुसीबत उ पादकता म िगरावट के िज मेदार ह, उनम से
शायद यह सबसे िवशाल, सबसे अिधक भयंकर और ऐसी है जो अ य आपदाओं के मुकाबले
सबसे अिधक थाई ह। मि त क को थाई ित पहंचने के भाव य िप अब तक योगशालाओं म
पशुओ ं पर िकए गए परी ण तक सीिमत है तथािप वै ािनक इससे मानव मि त क पर पड़ने वाले
दु भाव का िनणायक प से पता लगा सकने म सफल हो गए है । इस े के िवशेष म डा0
नेिवल एस0 ि कमाशा-अ य , पोषक त व एवं खा िवभाग, मेसाचेसेट्स टे नोलाजी इं टीट् यटू ,
डा. एच. एफ. इके वा ड तथा डा. पी. सी. ाई िवशेष प से उ लेखनीय ह। इनका मत है िक
इसक कमी (पोषकता क कमी) से िदमाग के थाई प से अिवकिसत रह जाने का खतरा है ।
254
इससे ''िवभाग के िवकास को आघात पहंचने के साथ-साथ कद का बढना भी िजस तरह क जाता
है, उसके कारण आज 25 करोड़ से भी अिधक ब चे खतरे म है ।''
िवकासशील दशा म गभवती एवं दूध िपलाने वाली माताओं म कु पोषक त व क कमी के
दोहरे दु प रणाम देखने को िमलते है । एक तो माता का वा य िदन- ितिदन िगरता जाता है और
दूसरे ब चे का मानिसक िवकास क जाता है और यह कमी जीवन भर िकसी कार के भोजन से
पूरी नह क जा सकती ह। मैनचे टर िव िव ालय के जॉन डिवं ग तथा जीन से डस के 150 ब च
के 7.2 वष आयु तक के परी ण ने यह बात प कर दी है िक ब चे के मि त क का िवकास गम
ि थित के 10 स ाह से ज म के दो वष (From 10 Weeks Gestation to 2 Yrs. Age) तक
क आयु म होता है । इस समय िकसी भी कार के पोषक त व कमी का तुर त एवं दीघकालीन
भाव ब च के मानिसक िवकास पर पड़ता है । यही वह समय है जबिक मि त क बड़ा ही
सू म ाही होता है तथा िकसी कार क कमी आसानी से िदखाई पड़ जाती है । डॉ. रोजर लेिवन ने
ि िटश मैगजीन यू साइि ट ट म अपने लैब ''गरीबी के दोहरे मानिसक दु प रणाम'' (poverty’s
Double Trap for the Brain) म िलखा है िक खा एवं प र े ीय उ ेरण का अभाव (Food
Deficiency and Lack of environmental stimulation) मि त क के िवकास को बहत
अंश तक भािवतकरते है । इनका मत है िक मि त क का िवकास दो अव थाओं म होता है - एक
10 से 18 स ाह गम ि थित म (10 to 18 Weeks of Gestation) िजसम कोष (Cell) िवकिसत
होता है । दूसरे 20 स ाह से ज म के दो वष तक (20 Weeks of Gestation to two years
after birth) िजसम कोष तथा नायु त तुओ ं का आपस म सं गठन होता है । इस कार मि त क
का िवकास काल 10 स ाह से 2 वष तक क आयु का है िजसम ब चा माँ पर भोजन के िलए
पूण पेण आि त रहता है । इस अविध म माता का िकसी कार कु पोषण ब चे के मानिसक
िवकास को जीवन भर के िलए भािवत करता है । डािवग ने इस अविध म कु पोषण के ारा मानव
मि त क के आकार तथा वजन म 25% क कमी पाई है । डॉ. ेग को भी इसी कार के कार के
प रणाम िमले है । डॉ. एडो फ सेवेज के मेि सको तथा िलिनयरडो िसिन टेरा के कोलि बया के
गाँव म िकए गए ब च के प र म तथा पोषक त व क कमी के प रणाम से इनक सीखने क
मता, मरण शि तथा अनुकरण करने क आदत पर पड़ता है । इन त य क मािणकता
जैि वन े िवयटो, रचडसन आिद के प रणाम से िस हो जाती।
अतः इन वे ािनक एवं सामािजक अनुसधं ान से यह बात िस हो जाती है िक जहां एक
ओर तमाम शारी रक रोग पाए जाते है, वह दूसरी ओर इसका अ प आयु म मि त क पर पड़ने
वाला भयंकर भाव भी कम नह है । अतः पोि क त व तथा पया भोजन के अभाव से िकसी भी
देश के िवकास म बाधा उ प न हो जाती है । इससे म-शि म कमी, शारी रक उ पादकता म कमी,
रोग-िनरोधक मता म कमी के कारण वा य सेवाओं पर अिधक यय एवं अनुपि थित म वृि
होती है जो गित के िलए बाधक है । यही नह कु पोषण का दीघकालीन भाव बढ़ते हए
पा रवा रक भार, िगरती हई खा , व गृह उपल धता के प म िकसी देश के पूं जी िनमाण म एक

255
िनरं तर छीज का ोत होता है, देश का िवकास अधोगित क और उमुख होता है तथा सारे सरकारी
य न ुधा क वाला म भ म हो जाते है ।
इस कार उपयु िव ेषण से हम इस िन कष पर पहंचते है िक यिद इस कार मानवीय
ित को न रोका गया तो िकसी भी िवकासशील देश म िवकास के सारे य न असफल होते रहगे।
इसिलए हर िवकासशील देश को कम-से-कम खा ा न के उ पादन म शी ही आ म-िनभरता ा
कर लेनी चािहए। िक तु इन सारे य न के फल व प भी खा ा न उ पादन िविनयोग के अनुपात म
कम ही रहा है । सं यु रा सं घ के अनुमान के अनुसार वतमान जनन दर और 9% क वािषक
आय वृि के कारण 1980 तक इन देश क जनसं या म 78% तथा खा ा न क मां ग म 118%
क वृि होगी। यिद आयु म वृि के वल 3% मानी जाए तो खा ा न क मां ग म 238% से वृि
हो जाएगी। ऐसा हर िवकासशील देश म उसक कृ िष पर िनभरता तथा नीची उ पादकता के कारण
पाया जाता है ।
इन प रि थितय म जनसं या क वृि के साथ सामािजक मद , जैसे आवास का िनमाण,
सावजिनक वा य, िश ा आिद पर, िविनयोग बढ़ता है िजनसे िक रा क भौितक स पदा म
वृि नह होती है । य िप वा य एवं िश ा पर िविनयोग के फल व प अथ यव था क
उ पादकता म वृि होती है, िक तु इससे रा के पूं जी िनमाण पर कोई य भाव नह पड़ता है ।
िवकिसत रा म इस कार क मद पर िविनयोग से रा ीय पूं जी का िनमाण होता है, जबिक
िवकासशील देश म इस कार का िविनयोग अनु पादक काय पर ही होता है ।
िवकासशील देश म िवकिसत देश क अपे ा अनु पादक जनसं या (15 वष से कम
तथा 60 वष से अिधक) होने से ित प रवार का आि तता-भार अिधक हआ करता है । हापिक स
के अनुसार टे ि टेन म जहां 1952 म उ पादकता तथा अवकाश- ा जनसं या (15 से 60 वष
तथा 60 वष के ऊपर) का अनुपात 6:1 का या वह यह 1982 म िगरकर 4:1 के होने क सं भावना
है िजसके फल व प उपभो ाओं क सं या क अपे ा उ पादको क सं या म 2.9 ितशत क
कमी होगी िजससे जीवन तर के 3% से 4% िगरने क संभावना है । यही नह , यिद जनसं या-भार
क गणना जनसं या के उ पादन के योगदान के संदभ म करे तो िकसी भी िवकासशील देश म
उ पादन-आयु के िकसी भी एक वय क क उपभोग क आव यकता। इकाई होगी, जबिक एक
ब चे क 1/3 इकाई तथा एक तूढ़े क 1/2 इकाई होगी। इस कार इन िवकासशील देश क
जनसं या म ब च , वय क तथा बूढ़ का ितशत मश: 42, 55 तथा 3 होगा। इससे यह िन कष
िनकलता है िक इन देश म उ पादक-उपभो ा अनुपात 100:128 है, जबिक यह अनुपात िवकिसत
देश से 119 उतपादको को 100 उपभा ोओं का भार वहन करना पड़ता है । इन देश म ब च ,
वय क तथा बूढ़ का ितशत मश: 23 : 67:10 है । इसी कार पि मी यूरोप के औ ेिगकृ त
देश क अपे ा ऐिशया के अिधकांश देश म कायशील तथा आि त का अनुपात अिधक (3 :4)
है । इस तरह ऊँची आय वाले देश (यू0 एस0 ए0) क अपे ा िवकासशील देश क ि थित भी कम
सं तोषजनक नह है । इसी कार एक अनुमान के अनुसार िवकिसत देश म िवकासशील देश क

256
अपे ा रा ीय आय का कम भाग (िवकासशील म 3% तथा िवकिसत म 01%) 15 वष क आयु
तक के ब च को मरने से बचाने के िलए िकया जाता है ।
18.5 जनसं या वृ ि एवं उ पादन
Population Growth and Production
अिवकिसत देश म जनसं या वृि , िपछड़ी तकनीक आिद के कारण उ पादन ती गित
से नह होता। यही नह इसके फल व प सं साधन का पूण पेण िवदोहन नह हो पाता, िजसके
कारण उ पादन कम होता है िजसका प रणाम है कम ित यि आय, कम ित यि वा य
सुिवधा, अ व थ वातावरण, अकु शल िमक, िश ा का अभाव, जो पुन : इन अथ यव थाओं को
िन न तरीय आय-जाल म फं सा देता है िजससे िक इनका पुन: िनकलना तभी सं भव हो पाता है
जबिक ये देश (िलिब टीन के यूनतम यास क भां ित) जनसं या वृि से अिधक िविनयोग कर जो
िक ये अपने उपभोग को काटने पर ही कर सकते है । इन अ पिवकिसत देश म साधन क
व पता के कारण आव यक पूं जी व ािविध क कमी के कारण जनसं खा के अनु प उ पादन नह
होता, इन देश म जनसं या का उ पादन म योगदान दो मु य बात -(1) ित िमक पूं जीगत
उपकरण क ाि एवं ािविधक तर तथा (2) जनसं या के गुणा मक प या जनसं या क
आयु-बनावट (िजसका उ लेख पहले िकया जा चुका है ) पर िनभर करता है । िक तु ाय: िव ान
का मत है िक अ प-िवकिसत देश म छा म अनुशासनह नता, आय और स पि के िवतरण क
िवषमता, राजनैितक अि थरता आिद आिथक िवकास के ितरोध का मूल कारण जनसं या म
वृि ही है ।
तािलका 18.4
जनसं या एवं उ पादन वृ ि क वािषक ितशत दर(1954-59)
जनसं या वृि कु ल उ पादन म वृि जनसं या
1% से 1% से 3% 3% से 6% तक 6% से ऊपर
कम तक
0.5% से कम - इं लै ड - -
0.5% से 1.5% तक डेनमाक बमा, वीडन, डटली यूगो लािवया, जापान
1.5% से - अज टाइना, यू० एस० ए० भारत
2.5% तक पािक तान कालि बया, थाईलै ड कां गो
इंडोनेिशया, दि णी
को रया
2.5% से ऊपर - - इ वेडोर, पे वाटेमाला, चीन (ताईवान) वीन
ीलं का (मु य भूिम),
रोडेिशयम,
257
टक , ाजील
पर तु कु . आर. जेड हसेन का मत है िक जनसं या या इसक वृि म कह भी ित यि
आय को ि थर रखकर आिथक िवकास म पूण प म बाधक नह रही है । उ ह ने अपने इस मत क
पुि के िलए िन म आँकड़े तुत िकए है -
उपयु तािलका के अंको के अ ययन से प है िक लगभग सभी अ -िवकिसत देश म
जनसं या क अपे ा रा ीय उ पादन (आय) म अिधक वृि हई है । प रणामत: अिधकां श
िवकासशील देश म ित यि आय म 2% क वृि हई है और चीन व ाजील आिद देश म तो
ित यि आय म, वृि क दर 6% से भी अिधक हई है िक तु इन सबका अथ यह नह है िक
जनसं या म वृि िवकासो मुख देश के िवकास म कोई किठनाई उपि थत नह करती। वयं कु .
हसेन ने ही िलखा है ''जनसं या म वृि अ -िवकिसत देश मे जहां अ य सहयोगी कारक , िवशेष
प से पूं जी का अभाव होता है, िवकास म दबाव उ प न कर देता है ।''
18.6 जनसं या वृ ि एवं बेरोजगारी(Population Growth and
Unemployment)
िवकासशील तथा िवकिसत देश म बेरोजगारी म एक िवशेष कार क िभ नता पाई जाती
है । िवकासशील देश म खुली बेरोजगारी, दुर जगारी, सुसु बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी आिद
साधन क यूनता तथा कृ िष धानता के कारण पाई जाती है । जबिक िवकिसत देश म बेरोजगारी
भावपूण मां ग क कमी के कारण उ प न होती ह। िवकासशील देश म अ य उ पि के साधन के
अभाव म अित र म को नह खपाया जा सकता है । वा तव म इन देश म बेरोजगारी का कारण
बढ़ती हई जनसं या है । इन देश म ित यि आय के साथ-साथ ित यि उ पि के साधन
क उपल धता कम होती है । यहां पर अथ यव था म िमको क उ पादकता भी कम होती है
िजसके कारण भी बेरोजगारी क सम या उ प न होने लगती है । इन देश क जनसं या म प रवतन
के अथ यव था पर दो भाव पड़ते है : थम - रा ीय व ित यि आय ाय : भािवतहोती है
िजसे आय भाव (Aggregate mode of Income Effect) कहते है, दूसरे - पूं जी- म अनुपात
म प रवतन आता है िजसे ित थापन भाव (Real Mode or Substitution Effect) कहते है ।
इसम भारी कमी आने लगती है िजसके फल व प भी बेरोजगारी म वृि होने लगती है । ''इन देश
म मा स- कार क एवं अ -बेकारी एवं िछपी बेकारी का पाया जाना पूं जी और आय क
अपया ता के संदभ म प क जा सकती है ।” भारतवष म ितवष 3.3 िमिलयन बेरोजगार और
कु ल म शि म जुड़ते जाते है । ऐसा अनुमान है िक भारत म 1951-81 के बीच नये बेरोजगार क
सं या ेट ि टेन क आबादी क दुगुनी या सं यु रा य अमे रका क वतमान जनसं या क डेढ़
गुनी होगी। इस काल म भारत को 107 िम0 लोग क रोजगार देने क यव था करनी पड़ेगी। डा0
वी0 के 0 आर0 वी0 राव के अनुसार ''इस 107 िम0 म से 67 िम0 को उ ोग म और 40 िम0 को

258
कृ िष म रोजगार देने क य व था करनी होगी।''2 ो. न स का मत है िक इन अिवकिसत देश म
लगभग 25 ितशत जनसं या िछपी बेरोजगारी से िसत है ।
18.7 मानवीय साधन तथा आिथक िवकास )Human resources and
Economic Growth)
मानवीय साधन का आिथक िवकास म कै से उपयोग िकया जाए, इस संदभ म आपने हाव
िलिब सटीन (H. Leibenstein) रचाड नै सन (R. Nelson) कोल ए ड हवर (Coale &
Hoover) के मत का अ ययन िकया। यहां हम कु छ अ य भारतीय एवं िवदेशी िव ान के मत
सं पे म यि कर रहे है -
(a) ो. शा त च महालानोबीस इस मत के है िक िवकासशील देश म पूं जी क अपे ा म
साधन क चुरता रहती है । इन देश म ऐसे उ ोग म िविनयोग िकया जाना चािहए िजसम कम
पूं जी तथा अिधक म लगे। इस कार इन देश म अिधक िमको को रोजगार िमल सके गा। उसके
अित र इ ह ने पूं जीगत व तुओ ं को उ प न करने पर जोर िदया। जैसा िक ऊपर के पैरा ाफ म हम
देश चुके है िक ो. न स इन िवकासशील देश म िछपी हई बेरोजगारी के समथक है िजसक म
शि क उ पादकता नह के बराबर है । यिद इसका योग अ य घरेलू काय म कर िलया जाए तो
15 से 30 ितशत म-शि को बढ़ाया जा सकता है ।
अ त म, मानवाय साधनो मे िविनयोग से ता पय िश ा, िश ण, वा य, अ छा भोजन,
आिद से है िजसम लोग का जीवन- तर सुधरे तथा उ पादकता म वृि आए। ो. टी0 ड यू0
शु ज ने उ पादकता बढ़ाने के सं बं ध म ठीक ही कहा है, ''हमारी आिथक णाली का सबसे बड़ा
ल ण मानवीय पूं जी का िवकास है ।''
डा. वी. के . आर. वी. राव का भी प कथन है िक मानव क कु शलता एवं द ता ही
आिथक िवकास का ढाँचा खड़ा िकया जा सकता 'है । ो. गैल ेथ ने िश ा पर िविनयोग को सबसे
अ छा िविनयोग बताया है य िक यह उपभेग एवं िविनयोजन दान ही है । ो. माशल का भी इसी
कार का मत है, “सबसे अिधक बहमू य पूं जी वह है जो मनु य म िविनयोिजत क जाती है ।'' दूसरे
श द म, पूं जी म सव म पूं जी मानव पूं जीहै ।
18.8 वासन का आिथक िवकास पर भाव (Effect of Migration
on Economic Development)
िकसी देश क आिथक िवकास को उस देश का आ त रक तथा बिह वास (Internal &
International Migration) काफ सीमा तक भािवतकरती है । िकस कार के लोग, िकतनी
मा ा म देश के ामीण अंचल से शहर क ओर वािसत होकर जहां शहरी सं तलु न को
भािवतकहते है, वह देश से बाहर जाने वाल तथा देश म आने वाल क सं या रा ीय िवकास

259
सूचकांको को अनेक कार से भािवत करता है । भारत म ेन- ेन क म या, शरणािथय क
सं या इसका वल त उदाहरण है ।
18.8.1 आ त रक वासन का भाव (Impact of Internal Migration)
जहां तक आ त रक वासन का है यह य िप सम रा ीय िवकास पर बहत कम
भाव डालता है । पर तु यह देश के शहर एवं ामीण अंचल पर अनेक कार के मह वपूण भाव
डालता है ।
ामीण अंचल से शहर को वािसत होने वाली जनसं या क मा ा, गुणा मकता तथा
कृ ित जहां एक ओर उस शहर पर अित र भार बनता है वही उन गां व पर कृ िष पर िनभरता कम
करता है । यही नह मानवीय पूं जी का भिव य भी गितशील होता है । और ो. लेिवस क दोहरी
अथ यव था के िवकासो मुख बनाता है ।
18.8.2 अ वासन (Immigration)
अ वासन क मा ा तथा गुणा मक देश के आिथक संसाधन पर अित र भार होता है
और कभी-कभी तो े िवशेष का सं तलु न भी िबगड़ने क ि थित म आ जाता है भारत म बं गला
देश से आये शरणािथय के िलए जहां एक ओर इनके भोजन, व , आवास आिद क यव था
करनी पड़ी और पड़ रही है, जो िक देश म लाख वय क के रोजगार के अवसर पर कु ठाराघात है ।
हां, ऐसा अ वासन जो िक कु शल हो और ौ ोिगक के िनमाण तथा िवकास म सहायक हो,
हमेशा वागत है । भारत म िभलाई, राउरके ला, बोकारो आिद लोह सं यं म बाहर से आये
इ जीिनयस तकनीिशयन आिद क सहायता से हम इन कारखान क थापना आिद म सहायता
िमली।
18.8.3 उ वासन (Emigration)
इसी कार देश से बाहर जाने वाल क सं या, गुणा मकता आिद का भी देश क
अथ यव था पर अिधक भाव पड़ता है । जहां इनसे िवदेशी पूं जी देश म आती रहती है, वही इनके
ऊपर (इनको कु शल उ पादक बनाने क आयु तक) िकये गये रा ीय यय का लाभ देश को न
िमलकर िवदेश को िमलता है । भारत के डा टर, इ जीिनयस, तकनीिशयन आिद, अमे रका,
कनाडा, ां स आिद देश क गित म मह वपूण भूिमका िनभा रहे है । इस कार बेन ने क सम या
देश क गित म बाधक होती है । य िक इससे मानवीय पूं जी का अभाव होता है ।
18.9 सारां श (Summary)
उपयु िव ेषण से यह प है िक जनसं या एवं आिथक िवकास म गहन सं बधं है । दोन
ही एक दूसरे के सा य, काय एवं कारण तथा पयाय कहे जा सकते है । दोन ही को एक दूसरे से
अलग नह िकया जा सकता। िक तु यह बात अथ यव थाओं पर करती है िक वे िकस सा य एवं
िकस साधन के प म लेते है । िक तु इतना स य है िक मानवीय साधन का मह व अथ यव थाओं
260
के िलए सव प र है । यह के वल इतना उ पादन का िनणायक (Determinant) ही न रह कर उ पादन
का उ े य (Object) भी है । मानवीय िवकास के िलए ही सारे काय िकये जाते है तो उसे उनके
अनु प भी रहना चािहए। इसके मह व को ी बेरा एन टेथ का श द बहत ही सुदं र श द म य
िकया है । आिथक िवकास के िलए भौितक अथवा ाकृ ितक साधन ही पया नह है, बि क
मानवीय साधन का उपयु िवकास भी आव यक है । इस शत को पूरा करने म जनसं या पर
िनय ण भी आव यक है ।
18.10 िनब धा मक
.1 िकसी भी देश के आिथक िवकास को जनसं या का िवकास पर िकस कार भािवत करता
है । िववेचना क िजये।
(सं केत-हाव िलिव टीन तथा रचड ने सन के िवचार को सिच या या द)
. 2 जनसं या के आकार तथा आयु सं रचना का िकसी देश के िवकास पर पड़ने वाले भाव का
उ लेख कर।
(सं केत- ित यि आय भोजन व रोजगार आिद क ि थित का िववेचना करके नेलसन
तथा िलिव टीन का उदाहरण द)
. 3 जनसं या वासन िकस कार देश क मानवीय पूं जी म ास / वृि करता है िववेचना कर।
(सं केत- वासन का भाव िव तार से विणत कर)
. 4 रचड ने सन के िन न तरीय सं तलु न अवरोध का सकच वणन कर।
. 5 अधोिलिखत म से िक ह दो पर िटपणी िलख :-
(अ) िलिव टीन का यूनतम यास
(ब) आय िनधारण समीकरण तथा जनसं या वृि समीकरण
(स) जनसं या क आयु सं रचना का आथक िवकास पर भाव
(द) जनसं या आकार का ितए यि आय/रोजगार/भोजन/उ पादक पर भाव
. 6 जनसं या िवकास दर का देश क मानवीय पूजं ी िनमाण पर पड़ने वाले भाव का िव तार से
वणन कर।
सं केत-जनसं या िवकास पर तथा आयु सं रचना का देश म जनसं या सं रचना का वणन कर)
18.11 कु छ उपयोगी पु तक
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263
इकाई-10
प रिश
तािलका 5.1
सामा य िश ा क गित 1985-90
म िवतरण 1984- 85 1989-90 2013-14
सं.
सं थाएं िव ािथय सं थाएं िव ािथय सं थाएं िव ािथय
(सं या) क सं या (सं या) क सं या (सं या) क सं या
(हजार (हजार (हजार
म) म) म)
1. ाथिमक िश ा 519701 83933 550700 97318 847118 130648
(क ा I-V)
(उ 6-10)
2. मा यिमक 129789 26153 143747 32188 425094 74413
िश ा(क ा
V-VIII)
(उ 11-14)
3. ाथिमक 649580 110086 694447 129506 205061
िश ा(क ा
I-VIII)
(उ 6-14)
4. अनोपचा रक 27087 6400
िश ा(क ा
I-VIII)
(उ 6-14)
5. कु ल 1 to 4 मद 649580 110086 721534 135906
3 एवं4
6. उ च / उ च र 58834 13828 76119 19970 135335 44734
मा यिमक कू ल
क ा IX-XII
7. कालेज िश ा 4005 2577 4755 3814 38498 141046

264
(कला िव ान
वािण य)
8. िव िव ालय 135 347 174 388 760
(Deemed
University
(सिहत)
9. अिभयाि क 198 145 278 733
महािव ालय
10 पोलीटेि नक 389 148 840 284
ोत:- आठव पंचवष य योजना 1992-97 भारत सरकार, योजना आयोग, नई िद ली

265
इकाई 19
भारत म िनधनता व असमानता आकार, कृ ित,
कारण तथा इनको कम करने के उपाय
इकाई क परेखा
19.0 उ े य
19.1 तावना
19.2 िनधनता का अथ, आकार व कृ ित
19.2.1 िनधनता-रेखा िकसे कहते है?
19.2.2 िनधनता का आकार अथवा िनधनता एवं वृि यां (Trends)
19.2.3 िनधनता क कृ ित
19.3 िनधनता के कारण
19.3.1 ामीण िनधनता के काररण
19.3.2 शहरी िनधनता के कारण
19.4 िनधनता कम करने के सरकारी उपाय
19.4.1 िविभ न िनधनता-उ मूलन-काय म का सं ि प रचय व गित
19.4.2 काय म का मू यांकन व किमयाँ
19.5 िनधनता-उ मूलन के िलए सुझाव
19.6 असमानता का अथ, आकार व कृ ित
19.6.1 असमानता का अथ-आय के िवतरण क असमानता
19.6.2 आय क आसमानता का आकार व माप
19.6.3 असमानता क कृ ित
19.7 आय क असमानता के कारण
19.8 आय क असामानता को कम करने के सं बं ध म सरकारी उपाय
19.9 आय क असामानताओं को कम करने के िलए सुझाव
19.10 सारां श
19.11 श दावली
19.12 कु छ उपयोगी पु तक
19.13 अ यास के उ र

266
19.0 उ े य
इस इकाई म िनधनता व असमानता से सं बिं धत िविभ न पहलुओ ं पर काश डाला जाएगा।
िनयोिजत िवकास के कई उ े य होते है, जैसे िवकास क दर से ऊँचा करना, आ म-िनभर िवकास
क ओर अ सर होना,िनधनता का उ मूलन करना, धन व आय क असमानताओं को कम करना,
अथ यव था का आधुिनक करण करना, िवकास म े ीय या ादेिशक असं तलु न कम करना,
आिद। इन उ े य म िनधनता- उ मूलन व आय क असमानताओं को कम करने पर सामािजक
कारण से अिधक बल िदया जाता है । इन सम याओं को हल करने के िलए यह जानना बहत
आव यक है िक िनधनता को कै से प रभािषत िकया जाता है, िनधनता क रेखा कै से जानी जाती है,
देश म कौन लोग अिधक िनधन है, िनधनता के कारण या है और इसको दूर करने के िलए सरकार
ने योजनाओं म या उपाय िकये है तथा इस िदशा म या उपलि धयां रही है ? आजकल सामािजक
याय के साथ िवकास ' पर जोर िदया जाता है तािक िवकास के लाभ सवसाधारण तक पहंच सक ।
इसके िलए आिथक असमानता व िवशेषकर आय क असमानताओं को कम करने के उपाय भी
अपनाये जाते है । इसिलए आय क असमानता के माप क आव यकता होती है । साथ म
असमानता के कारण का अ ययन िकया जाता है तथा इसको कम करने के सरकारी उपाय क
समी ा क जाती है तािक भिव य म असमानताओ को कम करने क िदशा म तेज गित से गित
क जा सके ।
इस इकाई के अ ययन से िनधनता व असमानता के िविभ न पहलुओ ं का ान ा होगा
जो िनयोजन क सफलता का आंकलन करने के िलए बहत आव यक माना जाता है ।
19.1 तावना
भारत म 'िमि त अथ यव था' के दायरे म आिथक िवकास का माग अपनाया गया है ।
इसम सावजिनक े व िनजी े दोन का िवकास का समुिचत अवसर िदया गया है । इस कार
हमारे देश म दी हई सामािजक, आिथक राजनीितक प रि थितय के अंतगत बेरोजगारी, गरीबी व
असमानता क सम याओं को हल करने का यास िकया जा रहा है । बेरोजगार लोग को काम
देकर तथा िनधन लोग क आमदनी बढ़ा कर उनका जीवन- तर ऊँचा करने के यास िकये जा रहे
है । िनधन यि य को प रस पि यां (assets) देने के काय म भी लागू िकये गये है तािक उनके
िलए वरोजगार के अवसर उ प न हो सके । उनके िलए मजदूरी पर रोजगार देने के काय म भी
लागू िकये गये है । सरकार ने गरीब के क याण के िलए िश ा, िचिक सा व पोषण के काय म भी
अपनाये है । इस कार आिथक ढाँचे म ाि तकारी प रवतन िकये िबना िनधन क दशा सुधारने
क कोिशश क जा रही है । साथ म आय क असमानता को कम करने के भी कई उपाय िकये गये है
तािक आगे चल कर समतावादी व यायपूण समाज क थापना हो सके ।
िनधनता व असमानता समाज के िलए अिभशाप है, और सरकार का यह दािय व है िक
वह उनको दूर करने का भरसक यास कर, तभी िवकास के लाभ समाज के सभी वग को समान
267
प से ा हो सकते है । िनधनता-उ मूलन व असमानता कम करने से ही सामािजक तनाव कम हो
सकते है, म क कायकु शलता म वृि होती है, जीवन- तर ऊँचा होता है, और देश उ रो र
िनयोिजत िवकास के पथ पर तेजी से अ सर होता जाता है । इससे लोकतं क जड़ भी मजबूत
होती है । इन सम याओं का थायी समाधान िनकालने के िलए इनक कृ ित व कारण पर नीचे
िव तृत प से काश डाला गया है ।
19.2 िनधनता का अथ, आकार व कृ ित
19.2.1 िनधनता-रेखा िकसे कहते है?
पाँचव पंचवष य योजना म िनधनता-उ मूलन' योजना के एक उ े य के प म वीकार
िकया गया था। िविभ न अथशाि य जैसे ोफसेर वी.एम.दां डेकर, नीलकं ठ रथ, ए.के . सेन,
बी.एस.िम हास, णव बधन, मो टेक अहलूवािलया, आिद के भारत म िनधनता क वृि य पर
अपने-अपने िवचार तुत िकये है । आजकल योजना आयोग क गरीबी क रेखा, गरीबी का
अनुपात, आिद पर आव यक आकड़े पेश करता रहता है ।
भारत म िनधनता का िवचार िनरपे (absolute) प म िलया गया है । इसे के लोस क
मा ा' से जोड़ा गया है । ामीण े म ित यि ित िदन 2400 कै लोरी तथा शहरी े म
2100 कै लोरी से कम उपभोग करने वाले यि िनधन माने जाते है । पोषण-िवशेष िविभ न खा
पदाथ के उपभोग क कै लोरी क मा ा ात कर लेते है । योजना आयोग ारा गिठत ' यूनतम
आव यकता व भावपूण उपभो ा मां ग पर कायकारी दल' (1979) ने उपभोग के इन यूनतम तर
के िलए ामीण े 'के िलए ित यि ित माह यय क रािश (1973-74के मू य पर) लगभग
49 पये तथा शहरी े के िलए 56.6 पये आंक थी। इ ह िनधनता क रेखाएं माना गया था।
आगे के वष म क मत के प रवतन के आधार पर ये सीमाएं बढ़ायी गयी है; जैसे 1983-84 के
मू य पर ये इस कार आँक गयी है:
गरीबी क रेखा (1983-84 के मू य पर) ामीण े के िलए 101 .80 पये का लगभग
102 पये शहरी े के िलए 117.50 पये का लगभग 118 पये नीचे यय करने वाले यि
िनधन क ेणी म रखे गये। मरण रहे िक उपयु यय क रािशयां खा -पदाथ तथा कु छ सीमा
तक गैर-खा पदाथ पर यय से सं बधं रखती है, लेिकन ये यूनतम कै लोरी क मा ा के उपभोग क
गारं टी अव य देती है । सरल प म इसका अथ इस कार लगाया जायगा िक 1983-84 म ामीण
े म ित यि ित माह लगभग 102 पये यय करने वाले यि को 2400 कै लोरी ित िदन
उपभोग का तर िमल रहा था, तथा शहरी े म 117.50 पये यय करने वाले यि को 2100
कै लोरी ित िदन उपभोग का तर िमल रहा था। इससे नीचे यय करो वाले यि गरीब माने गये।
हम पुन : यह यान रखना होगा िक भारत म िनधनता का िवचार एक सापे (relative)
िवचार नह है । सापे िवचार के अंतगत चोटी के 10% या 5% यि य के औसत यय क
तुलना िन नतम तर के 10% या 5% यि य के औसत यय से क जाती है । इससे उनके बीच

268
असमानता का अनुमान तो लग जाता है, लेिकन िनधनता का िवचार, कै लोरी क मा ा' से जोड़े
जाने के कारण यह एक िनरपे िवचार ही माना गया है ।
भारत म िनधन यि य क िगनती उपयु यूनतम ित यि ित माह यय के आधार
पर कर ली जाती है और उसका कु ल जनसं या से अनुपात िनधनता-अपुपात (Poverty-ratio)
कहलाता है ।
आजकल भारत म ित पांच वष म रा ीय से पल सव ण सं गठन ारा सं किलत,
उपभोग- यय के आकड़ के आधार पर िनधन क सं या ात क जाती है ।
यहां पर यह बतलाना भी आव यक है िक छठी पं चवष य योजना के िलए ित प रवार
वािषक यय क यूनतम रािश 3,500 पया आंक गयी थी, िजससे नीचे यय करने वाले प रवार
िनधन माने गये थे। सातव पंचवष य योजना (1985-90) म इसे बढ़ाकर 6,400 पया कर िदया
गया; लेिकन िविभ न आय-सीमाओं के अनुसार गरीब को चार िे णय म िवभाग िकया गया जो
इस कार है.
तािलका 19.1 गरीब क ेिणयां एवं आय सीमा
ित प रवार वािषक(आय-सीमाएं पय म) िनधन क ेणी
(1) 0-2265 अित द र (destitute)
(2) 2266-3500 बहत बहत गरीब (very very poor)
(3) 3501-5000 बहत गरीब (very poor)
(4) 5001-6400 गरीब (poor)
इस वग करण का योजन यह है िक साधन के अभाव म थम व ि तीय ेणी के िनधन
को लाभ पहंचाने पर अिधक यान िदया जाना चािहए, अथात् िनधन म भी अिधक िनधन यि य
के क याण क बात पहले सोची जानी चािहए।
िव बैक ने भी अ यिधक िनधन (Ulter-Poor) का अनुमान तुत िकया है िजसम
सामा य िनधनता-रेखा के यय के 75% को इनके िलए यूनतम यय का आधार माना गया है ।
उदाहरण के िलए, िव बैक ने 1988 के िलए भारत म 39.6% लोग , को िनधनता रेखा से नीचे
माना है; जबिक 'अ यिधक िनधन ' का अनुपात 19.2% ही आंका गया है । वाभािवक है िक
अ यिधक िनधन का अनुपात सामा य िनधन के अनुपात से नीचा रहेगा।
19.2.2 िनधनता का आकार अथवा िनधनता-अनु पात एवं वृ ि यां(Trends)
िविभ न अथशाि य ने िविभ न अविधय के िलए िनधनता-अनुपात िनकालकर िनधनता
क वृि य का अ ययन िकया है । उनक िविधय म अंतर होने से उनके प रणाम म भी अंतर
पाया गया है । यहां हम योजना आयोग ारा सातव पंचवष य योजना के ख ड 1 म तुत िनधनता
के माप िन न तािलका म दशाते ह :—

269
तािलका 19.2 भारत म िनधनता का आकार
वष िनधनता-अनु पात िनधन क सं या
( ितशत म) (िमिलयन म)
ामीण शहरी कु ल ामीण शहरी कु ल
2004-05 41.8 25.7 34.4 326.3 80.8 407.1
2011-12 25.7 13.7 21.9 216.5 52.8 269.3
तािलका से िन न बात प होती है
(1) ामीण े म िनधनता क सम या शहरी े क तुलना म बहत यादा ग भीर व
पेचीदी है ।
(2) 1977-78 म देश म 48% लोग िनधन थे जो 2011-12 म घट कर 21.9% रह गए ।
(3) यिद िनधनता-उ मूलन काय म ल य के अनु प सफलता ा कर ल तो भी 1989-90
के अंत म भारत म 21 करोड़ यि िनधन आंके गये है । इससे सम या ग भीरता का
अनुमान लगाया जा सकता है ।
भारत म िनधनता क ि थित म रा यवार काफ अंतर पाये जाते है । अनुमान है िक िन न
आठ रा य म देश के 50% िनधन यि पाये जाते है : आं देश , िबहार, म य देश, महारा ,
उड़ीसा, तिमलनाडु, उ र देश तथा पि म बं गाल। इ ह म देश के 50% बेरोजगार यि भी
के ि त है ।
2011-12म जहां सम त भारत के िलए िनधनता का अनुपात 21.9% था, वह पर ामीण
े म िबहार म यह 34.05%, म य देश म 35.7% व उ र देश म 30.4% था । लेिकन
ह रयाणा म यह 11.6% तथा िहमाचल देश म 8.5% पाया गया ।
डा.मो टेक अहलूवािलया ने ामीण-िनधनता का अनुपात 1956-57 से 1977-78 तक के
सभी वष के िलए पूरे िसरीज के प म िदया है, लेिकन उसम उतार-चढ़ाव होने से कोई िनि त
वृि उभर कर सामने नह आयी है । जैसे 1956-57 म 44.5%, 19970-71 म 47.5 % तथा
1977-78 म 39.1% रहा। इस कार िविभ न वष म िनधनता-अनुपात म उतार-चढ़ाव आने मे
कोई दीघकालीन वृि गट नह हई। ोफे सर वी.एम.दांडेकर के अनुसार ामीण िनधनता का
अनुपात 1971 -7 2 म 46% से घटकर 1983 म 44.4%' पर ही आ पाया था । यह सरकारी
अनुमान से ऊँचा पाया गया है ।
9.2.3 िनधनता क कित (Nature of Poverty)
(1) मु खतया ामीण-जैसा िक उपयु िववेचन से प होता है भारत म िनधनता का कोप
ामीण े म यापक प से पाया जाता है । ामीण े म िनधनता खेितहर भूिमहीन
मजदूर , लघु व सीमा त कृ षक , ामीण कारीगर , अनुसिू चत जाित, अनुसिू चत जनजाित,
अ य िपछड़ी जाित के लोग , बं धआु मजदूर , आिद म काफ जिटल प म फै ली हई है ।
शहरी िनधनता पर ामीण के पलायन का भाव पड़ता है ।
270
(2) दीघकालीन व प :-यह एक अ पकालीन सम या न होकर दीघकालीन व गहन
सम या है । पीिढ़य से लोग भौगोिलक, सामािजक, आिथक, सां कृ ितक, ऐितहािसक,
राजनीितक, शासिनक आिद कारण से गरीबी के नागपाश म बं धे चले आ रहे है, िजनसे
मुि पाना कोई सहज काय नह है । यह के वल आिथक सम या नह है । इसका सं बधं
सामािजक िपछड़ेपन व साम ती पर पराओं से भी है । अतः सम या के थायी हल के िलए
सभी प पर एक साथ हार करके आमूल -चूल प रवतन लाना होगा।
(3) कृ िषगत उ पादन के उतार-चढ़ाव से जु ड़ी ामीण िनधनता :- भारत म ाय : यह
देखा गया है िक ामीण िनधनता का सीधा सं बधं कृ िषगत उ पादन से पाया जाता है ।
कृ िषगत उ पादन क ि से अनुकूल वष म ामीण िनधनता घट जाती है । तथा ितकू ल
वष म यह बढ़ जाती है ।
(4) यह मू लत: देश के अ पिवकास (Under development) क प रचायक है
:-भारत म म-शि क मां ग व पूित म भारी असं तलु न है । देश म आिथक िवकास क
गित धीमी है िजससे यह असं तलु न िनरं तर बना रहता है, और फल व प िनधनता ने काफ
भयावह प धारण कर िलया है ।
अतः भारत म िनधनता क सम या दीघकालीन व अ यिधक पेचीदा सम या है ।
इसका िवकास क सामािजक ि या, आिथक ि या व राजनीितक ि या से गहरा
सं बं ध है । िजनको समझे िबना व बदले िबना इस सम या का थायी समाधान िनकाल
पाना अ यं त दु कर है ।
बोध -1
(1) भारत म 'गरीबी क रेखा ' के सं बधं म कौन-सा कथन सही है?
(अ) यह ित यि ित माह यूनतम वय क वह मा ा है जो लोग क मूलभूत
आव यकताओं क पूित को सं भव बनाती है ।
(ब) यह ामीण े म ित यि ित िदन यूनतम 2400 कै लोरी तथा शहरी े म 2100
कै लोरी दान करने वाले खा -पदाथ क लागत होती है ।
(स) यह ित यि ित माह वह यूनतम यय क रािश होती है जो यूनतम कै लोरी का
उपभोग सं भव बनाती है, और िजससे नीचे यय करने वाले लोग िनधन माने जाते है । ()
(2) सातव पंचवष य योजना के ितवेदन के अनुसार 1977-78, 1984-85 व 1989-90 के िलए
ामीण े के िलए िनधनता-अनुपात व िनधन क सं या िलिखए।
(3) डा.मो टेक अहलूवािलया तथा योजना आयोग के अनुसार भारत म िनधनता क वृि या
बतलाइए।
(4) भारत म िनधनता क कृ ित या है?

271
19.3 िनधनता के कारण
19.3.1 ामीण िनधनता के कारण
जैसा िक पहले कहा जा चुका है भारत म अिधकांश िनधनता गां व म देखने को िमलती है ।
इसिलए सव थम ामीण िनधनना के कारण पर काश डाला गया है:
(1) ामीण जनसं या म ती गित से वृ ि : जनसं या म िनरं तर वृि व तेज गित से वृि
गरीबी क सम या का मु य कारण माना गया है । भारत म मीण जनसं या 1951 म
36.1 करोड़ थी जो बढ कर 1981 म 68.4 करोड़ हो गई। 1971-81 क अविध म यह 9
करोड़ बढ़ी। यिद 1991 के िलए ामीण जनसं या का अनुपात 85 करोड़ माना जाय तो
2011 के अ त तक यह102.34 करोड़ से अिधक होने का अनुमान है । जनसं या क इस
कार क वृि से म-शि भी बढ़ती है िजसका पया काम न िमल पाने से गरीबी का
बढ़ना वाभािवक है ।
(2) कायशील भू जोत का असमान िवतरण व भू िम-सु धार के ि या वयन मे कमी:-
भारत म भूिम-सुधार ने कायशील जोत के िवतरण क असमानता को नह िमटाया।
प रणाम व प 1985-8 6 म भी सीमा त जोते (1 है टेयर से कम) लगभग 58% थी
िजनम कु ल कृ िषत भूिम का 13% समाया हआ था, जबिक बड़ी जोत (10 है टेयर व
अिधक आकार क ) 2% थी। हर बार भू जोत क सं गणना म सीमा त जोत क सं या
बढ़ जाती है । देश म भूिमहीन क सं या भी बढ़ रही है िजसे सवहाराकरण' क ि या
कह सकते है । अतः भूजोत का 'सीमा तकरण', भूिमहीन का 'सवहाराकरण' व
'िनधनीकरण ' परसर जुड़े हए है । इ ह एक-दूसरे से पृथक नह िकया जा सकता।
देश म भूिम पूणतया लागू न ह ने से बटाईदारी था (share cropping),
उप-का तकारी, आिद िव मान है । सीिलं ग से अित र भूिम का िवतरण भूिमहीन म नह
हो पाया है । अतः भूिम-सुधार गरीबी करने क िदशा म योगदान नह कर पाये है ।
(3) किषगत उ पादन मे धीमी व अिनयिमत वृ ि :- योजनाकाल मे कृ िषगत िवकास क
दीघकालीन दर लगभग 2.7% वािषक रही ह जो जनसं या क 2% वृि -दर से थोड़ी
अिधक है । कू िषगत उ पादन क धीमी वृि गरीबी को कम करने क ि से अपया रही
है । साथ म इसम वािषक उतार-चढ़ाव भी आते रहते है । भारत म कृ िषगत उ पादन के तेज
गित से बढ़ने पर िनधनता म कमी आती है, तथा इसम भारी िगरावट आने से िनधनता म
वृि होती ह। अभी तक वषा पर आि त े म सूखी खेती क िविध िव तृत प से नह
अपनायी गयी है िजससे उसका भाव गरीबी दूर करने क ि से गट नह हआ है ।
(4) ह रत ाि त का भाव-ह रत ाि त के फल व प िविभ न कृ िषत े व िविभ न
कृ षक-वग के बीच असमानता बढ़ी है । यं ीकरण ने कु छ े म बेरोजगारी म वृि क है
। अतः ह रत ाि त गरीबी कम करने क िदशा म मह वपूण व प योगदान नह कर पायी
है ।
272
(5) गाँव मे िनधन-वग ारा खरीदे जाने वाले खा -पदाथ क क मत म वृि - व:
धमनारायन ने गां वो म गरीब ारा खरीदे जाने वाले खा पदाथ को क मत म वृि का
दु भाव गरीबी पर आंका है । भूिमहीन िमको पर इसका सीधा भाव आता है, और
सीमा त व लघु कृ षक भी इससे भािवतहए िबना नह रहते।
(6) गरीब के िलए गां व मे काँमन- ोपट साधन से िमलने वाले लाभ म भारी
िगरावट :- ी एन.एस.जोधा व अ य िव ान के अ ययन से पता चला है िक पहले
ामवािसय को चराई क काँमन भूिम, यथ भूिम, वन, जूल -साधन , आिद के उपयोग से
ज लाभ िमल जाते थे, वे अब इनके िनजीकरण व यवसायीकरण से ठे केदार आिद के
हाथो म चले जाने से काफ िसमट गये व सं कुिचत हो गये है िजससे गरीबी बढ़ी है ।
(7) गाँव म जाितवाद, िपछड़ेपन व पर परागत समाज को बोलबाला :- गां व आज भी
सामािजक भेदभाव, ऊँच-नीच स दायवाद, िपछड़ेपन व साम ती वातावरण से त है ।
कह भी समता क हवा नजर नह आती। समाज का उ च वग गरीब के िलए िनधा रत
काय म के लाभ उन तक नह पहंचने देता। गरीब म राजनीितक सं गठन का शि का
अभाव रहता है ।
इस कार िविभ न सामािजक, आिथक व राजनीितक कारण ने ामीण िनधनता
को कायम रखा है । म - शि क कृ िषपर आि तता बनी हई है । ामीण
औ ोिगक करण का अभाव है । गॉवो म क याणकारी सेवाओं - िश ा, िचिक सा, व
पोषण का अभाव है । गाँव का ु तगित से चहंमखु ी िवकास ही इसका सही समाधान ह।
19.3.2 शहरी िनधनता के कारण
शहर मे भ , िवशेषतया महानगर म गं दी बि तय म िनधन क भरमार पायी जाती है ।
कफ सं या म िभखारी व अ य लोग फु टपाथ पर जीवन यतीत करते है ।
वैसे शहरी िनधनता भी सामा य िनधनता के कारण से भािवतहोती है, लेिकन इसके
िवशेष कारण िनमािकत है :-
(1) गाँव से शहर क ओर जनसं या का पलायन- ामीण े म रोजगार न िमल पाने के
कारण लोग शहर क ओर थान करते है िजससे वहां भीड़भाड़ बढ़ती है, तथा आवास,
िश ा, िचिक सा, पेयजल, आिद पर दबाव बढ़ते है औंर िनधनता बढ़ती है ।
(2) शहर मे भी पर परागत घरेलू उ ोग का पतन गरीबी को बढ़ाता है । वरोजगार म
गे कारीगर मशीन-िनिमत व तुओ ं क ित पधा 'मे अपने पर परागत रोजगार से हाथ धो
बैठते है । लघु व बड़ी औ ोिगक इकाइय के ण हो जाने व उनके बंद हो जाने से िम को
म बेकारी फै लने से भी शहरी िनधनता बढ़ती है ।
(3) शहर म म-शि क मांग उसक पू ित म कम होने से बरोजगारी पायी जाती है ।
इससे िनधनता बढ़ती है जो द , अ -द वे पु ष व मिहला-अद िमको म पायी जा
सकती है । लेिकन िजन शहरी यि य के पास िश ा, प रस पि , द ता व अ य साधन
273
का अभाव होता है वे तो िनरं तर िपसते जाते है, और महंगाई, सामािजक, थाओं व
अभाव के िशकार होते जाते है । इससे उनका जीवन- तर घटता जाता है और वे गरीब क
ेणी म वेश करते जाते है ।
इस कार अनेक कारण ने िमलकर भारत म िनधनता को बनाये रखा है । िव ान
का यह मत सही है िक यिद िनधनता का िवचार के वल 'कै लोरी क मा ा ' से न जोड़ कर
लोग क 'सभी यूनतम मूलभूत आव यकताओं', जैसे यूनतम भोजन, व , आवास,
दवा, िश ा, मनोरं जन, आिद से जोड़ा जाय तो गरीबी क रेखा से नीचे अपने वाले का
ितशत व कु ल सं या आज भी अपे ा ऊँची जायेगी । यही कारण है िक िव बैक ने
अपनी 1990 क िवकास- रपोट म िनधनता के िवचार को ' यूनतम आव यकताओं ' से
जोड़ा है, न िक कै लोरी के उपयोग क यूनतम मा ा से।
भारत गरीबी के सं बं ध 61 व एन.एस.एस. अनु मान
भारत म संपणू तर पर गरीबी के सं बधं म कु छ त य तथा अनुमान - 61 व एन.एस.एस.
च पर आधा रत - योजना आयोग येक पांच वष म एनएसएस ारा िकये गये गृह थ उपभो ा
यय के सं बं ध म बड़े यादश (सै पल) सव ा से ा आंकड़ का योग करके गरीबी का अनुमान
लगाता है । यह गरीबी रेखा को मािसक ित यि उपभोग यय के आधार पर प रभािषत करता है
योजना आयोन ने एनएसएस के 61 व च ारा संकिलत उचबम आंकड़ के आधार पर 2004-05
मू य पर ामीण े के िलए 356 पया तथा शहरी े के िलए 539 यय के आधार पर 2005
पर अनुमान लगाया –
गरीबी ( ितशत)
ामीण 28.3
शहरी े 25.7
अिखल भारतीय तर 27.5
अजुन सेन गु ा 2004 - 05 मू य पर - 77 ितशत ( ितिदन 20 पया) एवं एन.पी. स सेना
कमेटी (2009)
ते दु लकर सु रेश डी2009 - 61 व च पर आधा रत
2009 म िनयु ते दुलकर कमेटी ने गरीबी क माप के िलए बहआयामी ि कोण
अपनाया तथा एन.एस.एस.ओ. के 61 व च म आंकड़ को आधार मानते हए िजसके अनुसार
2004-05 मू य पर ामीण उपभोग यय पया 446.8 लगभग 447 पया तथा शहरी े के
िलए जो 578.80 पया लगभग 579 मािसक आता है, यह अनुमान लगाया िक स पूण गरीबी
37.2 ितशत त र ामीण े के िलए 41.8 ितशत तथा शहरी े के िलए 25.7 ितशत रही,
2004-05 मू य पर ते दुलकर कमेटी तथा लकड़ावाला कमेटी का गरीबी सं बधं ी तुलना मक
अनुमान इस कार है -

274
लकडवाला सू 2004-05 ते दु लकर सू 2004-05
मू य पर मू य पर
ामीण 28.3 41.8
शहरी 25.7 25.7
अिखल भारतीय तर 27.5 37.2
उपयु दी गयी तुलना मक ि थित से यह प है िक सम तर पर ते दुलकर कमेटी का
अनुमान 32.7 ितशत रहा, जबिक लकड़ावाला सू पर यह के वल 27.5 ितशत रहता। ऐसा
मानते ह िक ते दुलकर का उपभोग यय सं बधं ी अनुमान लकड़ावाला अनुमान से अिधक है पर
सेनगु ा के अनुमान से कम है । 66 व च पर आधा रत 2011-12 के िलये योजना आयोग का
अनुमान (ते दुलकर कमेटी सू पर आधा रत ) ते दुलकर सू पर आधा रत एनएसएसओ के 66 वे
च से ा उपभोग यय के सं दभ म 2011-12 के िलए योजना आयोग ने जो शु म कमेटी ने
नयी मेथडालजी के अ तगत, तुलना मक ि थित क ि से िपछले वष के िलए गरीबी के अनुमान
िदए । कमेटी के अनुसार 1993-94 म गरीबी रेखा से नीचे गरीब क सं या ामीण े म 50.1
ितशत शहरी े म 31.8 तथा पूरे देश के िलए 45.3 ितशत रही।
19.4 िनधनता कम करने के सरकारी उपाय
19.4.1 िविभ न िनधनता-उ मू लन-काय म का सं ि प रचय व गित
योजनाकाल के ारि भक वष म यह समझा गया था िक आिथक िवकास का भाव
िनधनता-उ मूलन के प म कट होगा । इसे 'टपकने वाला भाव ' (trickle-down effect) माना
गया था। लेिकन जब यह भाव गट नह हआ तो िनधनता पर हार करने के िलए िविश
काय म अपनाये गये। िवकास का भाव िनधनता-उ मूलन के प म इसिलए गट नह हआ िक
सव थम िवकास क वािषक दर के वल 3.5% रही, जो अपया थी, और ि तीय िवकास के लाभ
का िवतरण समान प से नह हो पाया य िक समाज म सम पता नह थी। साधन-स प न लोग ने
िवकास के लाभ हािथया िलए, और साधनह न लोग इनसे वंिचत रह गये। इस कमी को दूर करने के
िलए पाचवी पंचवष य योजना व बाद मे गरीबी व बेरोजगारी दूर करने के िलए िविभ न कार के
काय म चलाये गये। इनम िनधनता-उ मूलन क ि से एक कृ त ामीण िवकास काय म
(IRDP) का सवािधक मह व माना गया है । कु छ सीमा तक ाइसम के अंतगत िश ण से भी
लाभ पहंचा है । लेिकन मजदूरी पर रोजगार देने क ि से रा ी य ामीण रोजगार काय म
(NREP) व ामीण भूिमहीन रोजगार गारं टी काय म (RLEGP) काफ मह व ह िज ह परसर
िमलाकर 1989-90 म जवाहर रोजगार योजना (JRY) के प म अिधक यापक प से ार भ
िकया गया। इन काय म के अलावा ' िविभ न े ीय काय म , जैसे सूखा स भा य े काय म,
म िवकास काय म, जनजाित े िवकास काय म, यू नतम आव यकता काय म, कमा ड
े िवकास काय म, पहाड़ी े िवकास काय म आिद का भी िनधनता-उ मूलन क ि से
275
रोजगार बढ़ाने क ि से मह व रहा है । नीचे िनधनता-उ मूलन क ि से IRDP,NREP व
RLEGP का सं ि प रचय िदया गया है तथा इनक उपलि धयो व गित का उ लेख िकया गया
है ।
(1) एक कृ त (समाि वत) ामीण िवकास काय म (IRDP):- यह -उ मूलन का मुख
काय म है । इसका ार भ 1976-77 म हआ था। 1978 -7 9 म यह 2300 िवकास-ख ड म
लागू िकया गया और 2 अ टू बर 1980, से देश के सम त 5011 ख ड - म फै ला िदया गया ।
इसके अंतगत चुने हँए िनधन प रवार को आय-सृजन करने वाली प रस पि याँ उपल ध क
जाती है । इसके िलए सि सडी व कज क यव था क जाती है । इससे वरोजगार के अवसर
उ प न होते है । छठी पंचवष य योजना म 1500 करोड़ क सि सडी देने का िव ीय ावधान
िकया गया था िजसम के व रा य का िह सा आधा-आधा रखा गया था। साथ म 3 000
करोड़ तक के कज सहकारी व यापा रक बैको से िदलाने का ल य रखा गया था और कु ल 1
1/2
करोड़ प रवार को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने का ल य रखा गया था । इनम कम से कम
30% अनुसिू चत जाित व अनुसिू चत जनजाित के शािमल िकए जाने थे। िनधन को कृ िष व
सहायक ि याओं, ामीण व कु टीर उ ोग व सेवा- े क ि याओं के मा यम से लाभाि वत
िकया जाना था।
छठी योजना म.कु ल िविनयोग 4763 करोड़ .का हआ जो 4500 करोड़ के ल य
से अिधक रहा । कु ल लाभाि वत प रवार 1.66 करोड़; रहे जो 1.5 करोड़ के ल य से अिधक
थे । ित प रवार िविनयोग क रािश 2876 पये रही िजसम सि सडी क मा ा 1003 पये व
कज क मा ा 1873 पये रही । इस कार 'सि सडी-कज का अनुपात 1:1 .8 7 रहा।1
सातवी योजना म सि सडी क कु ल रािश 3316 करोड़ पये थी जो ल य से अिधक
थी तथा कु ल अविध-कज क मा ा 8688 करोड़ पये रही िजससे 1.6 करोड़ प रवार
लाभाि वत हए। योजना के थम चार वष म लगभग 1.4 8 'करोड़ प रवार को लाभाि वत
िकया जा चुका था। वष 1988-89 म ित प रवार िविनयोग क रािश 4348 पये (पुरान के
िलए) तथा 5069 पये (नय के िलए) हो गई थी।2 इस कार 'ए ािवका' से कु छ सीमा तक
िनधन वग को लाभ पहचा है । इस काय म के अंतगत िनधन को दुधा पशु , िसलाई क
मशीन, ऊँट गािडगां, खुदरा-दुकान, हथकरघा कु टी यवसाय व अ य कार क प रस पि देने
का यास िकया गया है तािक वे अपनी आमदनी बढ़ाकर गरीबी क रेखा से ऊपर आ सक।
(2) रा ीय ामीण रोजगार काय म (NREP)-यह काय म अ टू बर 1980 से ार भ िकया
गया तथा अ ैल 1981 से िनयिमत योजना का अंग बन गया'। इसका उ े य ित वष 30 से 40
करोड़ मानव-िदवस काम का सृजन करना, िटकाऊ सामुदाियक प रस पि य का िनमाण करना

1
A Review of the Agricultural credit System in India, RBI, 1989, p.746.

276
तथा िनधन के पोषण- तर व जीवन- तर म सुधार करना था । छठी योजना म इस काय म के
िलए 1873 करोड़ .क धनरािश उपल ध क गई । (रा य का अंश 794 करोड़ .) तथा
वा तिवक उपयोग 1843 करोड़ क रािश का ही हो पाया । 1980-85 क अविध म कु ल
177.5 करोड़ मानव-िदवस के रोजगार का सृजन ि या गया। सातव योजना म 'के ने इस
काय म के िलए लगभग 3092 करोड़ पए यय िकए गए और कु ल 145 करोड़ मानव-िदवस
का रोजगार-सृजन िकया गया था ।
ामीण भू िमहीन रोजगार गारं टी काय म (RLEGP)2 :- यह काय म अग त 1983 म शु
िकया गया। इसका मुख उ े य येक ामीण भूिमहीन प रवार म कम से कम एक सद य को वष
म 100 िदन तक का रोजगार उपल ध कराना था। छठी योजना म के ारा इस काय म पर यय
हेतु 500 करोड़ िनधा रत िकये गये।1983 -84 व 1984-85 म कु ल 26.3 करोड़ मानव िदवस
का काम िदया गया जो ल य से कम था। सातव योजना म के ारा इस काय म पर यय हेतु
2412 करोड़ पए यय िकए गए और कु ल 115 करोड़ मानव-िदवस का रोजगार सृजन करने का
ल य रखा गया।
NREP व RLEPG के मा यम से सामािजक वािनक , वृ ारोपाण, कू ल भवन के
िनमाण, लघु िसंचाई, आवास आिद पर बल िदया गया है । 1989-90 म इनका िवलयन जवाहर
रोजगार योजना म कर िदया गया । इसी वष के िलं ए इस योजना पर 2625 करोड़ आवं िटत िकये
गये िजसम के का अंश 80% तथा रा य का 20% रखा गया । JRY के मा यम से ामीण िनधन
प रवार म से येक प रवार म से कम से कम एक यि के िलए 100 िदन तक का कम उपल ध
कराने का ल य रखा गया। इसम 30% ' आर ण ामीण मिहलाओं के िलए िकया गया।
आठव पंचवष य योजना के ा प म जवाहर रोजगार योजना का अंितम व प प हो
गया है ।
19.4.2 काय म का मू यां कन व किमयाँ
हम ऊपर बतला चुके है िक िनधनता-उ मूलन क ि से एक कृ त ामीण िवकास
काय म का थान सव प र माना गया है । लेिकन मजदूरी पर रोजगार उपल ध करके िनधनता कम
करने क ि से अ य काय म , िवशेषतया NREP व RLEGP, का भी मह व वीकार िकया
गया है । इन काय म से लोग लाभाि वत हए है, लेिकन कु छ किमयां भी सामने आयी है िज ह दूर
करके उनक उपयोिगता म वृि क जानी चािहए । हम नीचे िवशेषतया IRDP क किमय पर
यान आकिषत करगे िजसका िनधनता-उ मूलन से सीधा सं बधं है ।

2
वही, पृ.749, आगे NREP व RLEGP क गित के आकड़े भी इसी ोत पर आधा रत है ।

277
(1) एक कृ त ामीण िवकास काय म के ि या वयन म कई कार क किमयाँ व अकु शलताएं
बतलायी गयी है जैसे कु छ गैर-िनधन प रवार का चयन, दी जाने वाली प रस पि य का
थानीय िनधन प रवार क आव यकताओं व द ताओं से ताल-मेल न होना, प रस पि
का रख-रखाव न कर पाना िजससे उनके न होने का भय बना रहना, आगे-पीछे क
किड़य का अभाव (जैसे दुधा पशुओ ं के िलए चारे व पशु -आहार का अभाव तथा दूध
क िब के िलए िवपणन का अभाव आिद), सि सडी के सं बं ध म ाचार व दु पयोग
क िशकायत, कज क वसूली म किठनाइयाँ , आिद, आिद।
(2) एक कृ त, ामीण िवकास काय म के मा यम से दी जाने वाली सहायता व कज क रािश
गरीबी क रेखा से ऊपर ले जाने क ि से अपया मानी गयी है िजससे दूसरी बार पुन :
िव ीय सहायता क मां ग क गयी है ।
(3) कु छ अथशाि य का मत है िक बहत िनधन - यि य को वरोजगार म न लगाकर
मजदूरी पर रोजगार म लगाया जाय तो यादा लाभकारी होगा, य िक वे प रस पि य को
काम म लेने को मता नह रखते । ोफे सर नीलकं ठ रथ IRDP के मा यम से
िनधनता-उ मूलन को सं भव नह मानते। इसम सि सडी का मह व रहने से सदैव उसके
दु पयोग क स भावना बनी रहती है । अतः पहले िवकास क ि या म टपकने का भाव
' (trickle-down effect) उ प न न होने से िनधनता उ मूलन म बाधा पड़ी, लेिकन
िविश काय म के रसाव- भाव (leakage effect) क वजह से काफ धनरािश गरीब
तक नह पहंच पाती और िबचौिलय म न हो जाती है । इससे िव ीय साधन का
सदुपयोग नह हो पाता है ।
(4) NREP व RLEGP के मा यम से अ पकािलक रोजगार ही िमल पाया है । अतः इ ह ने
राहत-सहायता के प म काय िकया है ।
(5) िविभ न काय म के अंतगत सु ढ़ व उ पादक प रयोजनाओं का अभाव रहने से उनसे
दीघकालीन िवकास क ि या को बल नह िमल पाता। उनका िवके ि त िनयोजन से
ताल-मेल नह बैठाया गया है िजसके अभाव म उनके दूरगामी भाव कमजोर रह- गये है ।
19.5 िनधनताउ मू लन के िलए सु झाव-
िनधनता-उ मूलन क सम या अ यं त जिटल व पेचीदा मानी गयी है । इसका कोई सुगम
हल नह है । भारत म एक कृ त ामीण िवकास काय म सबसे बड़ा िनधनता-उ मूलन ाय म है
िजसके ि या वयन का मू यां कन िविभ न सिमितय , कायकारी दल , सं थाओं व
अनुसं धानकताओं ने िकया है । इसम इस काय म को नई िदशा देने के कई सुझाव िदये गये है ।
सावजिनक लेखा-सिमित (1986-87) ने लोक सभा सिचवालय क इ कानव : (91) रपोट
(1987), िजलो-िनयोजन पर कायकारी दल क रपोट (1984), ामीण िवकास के शासिनक
ब ध क समी ा के िलए िनयु डा.जी.वी.के .राव सिमित क रपोट (1985) तथा भारत म
कृ िषगत साख- णाली क समी ा पर खुसरो रपोट (1989) आिद म एक कृ त ामीण िवकास
278
काय म क यापक प से समी ा क गई है और इसे अिधक सफल बनाने के िलए अनेक सुझाव
िदये गये है ।
चूिक िनधनता क सम या काफ गहन व बहआयामी है, इसिलए इसको हल करन के िलए
सामािजक, आिथक व राजनीितक सभी े म भारी प रवतन करने ह गे, तभी इस िदशा म
सफलता सुिनि त क जा सके गी ।
कु छ मह वपूण सुझाव इस कार है :-
(1) एक कृ त ामीण िवकास काय म को नई िदशा दान करने के िलए िन न प रवतन
िकये जाने आव यक है:-
(i). यह काय म इस समय िबखरे हए प रवार-आधार (family-basis) पर चलाया जा रहा है
। इसके थान पर इसे एक सुिनयोिजत संसाधन-आधा रत े ीय िवकास काय म के
अंतगत चलाया जाना चािहए। इसके िलए िजला, ख ड व ाम तर पर योजनाएं बनानी
ह गी। इन योजनाओं म उन े के आिथक िवकास क स भावनाओं का पता लगाना
होगा । इसके िलए ोजे ट- ि कोण अपनाना होगा।जैसे यिद कह पोशाक बनाने, जेम
पािलश व कटाई, गलीचा बुनाई, आिद का काम हो सकता है तो इनके िवकास पर यान
के ि त करना होगा । सभी ख ड के िलए एक-सी योजनाएं बनाना व लागू करना िनता त
गलत व अ यावहा रक होगा।
(ii). िनधन के चुनाव व उनके िलए आिथक ि याओं के चुनाव म बै को क भागीदारी बढ़ानी
होगी। इसके िलए यह बेहतर होगा िक उनको गरीब क एक 'मा टर िल ट ' पाँच वष के
िलए दे दी जाय और वे वयं यह तय कर िक िकन गरीब को िकन काम के िलए कज
िदया जाए तािक वे गरीबी क रेखा से ऊपर आ सक।
(iii). 'आधारभूत सुिवधाओं के िवकास (सड़क, जल-पूित, िव तु , आिद) पर अिधक बल
िदया जाय, और काय म के िलए आगे-पीछे क किड़याँ सुिनि त क जाएं और उनको
िवकिसत िकया जाय जैसे दुधा पशुओ ं के िलए चारा तथा आहार व दू ध क िब क
उिचत यव था, आिद।
(iv). सि सडी का दु पयोग रोकने के िलए यह कज के अंितम भुगतान के साथ समायोिजत
(adjust) क जाय तो उ म होगा । इससे कज व प रस पि पर िनगाह भी बढ़ जायगी
और उनक ित के गी।
(2) जनसं या को िनयं ि त करने के िलए ''एक प रवार एक ब चा'' को लागू करने के िलए
अिभयान तेज िकया जाय । इसके िलए मिहला व बाल-क याण पर अिधक यान िदया जाय
तथा ि य के िलए िश ा, िचिक सा वं रोजगार उपल ध कराने पर बल िदया जाय ।
(3) 'बहत बहत गरीब ' व 'अ यिधक द र ' वग के लोग के िलए, जो प रस पि का बंध करने म
समथ न ह , उनको ‘मजदूरी पर रोजगार' िदया जाय। अपािहज, बूढ़े व कमजोर लोग के िलए
‘सामािजक सुर ा' के माफत िन:शु क सुिवधाएं उपल ध करने पर जोर िदया जाय।

279
(4) यूनतम मजदूरी कानून , 1948 व बं धआ
ु म- यव था (समाि ) कानून, 1976 कड़ाई से लागू
िकया जाय।
(5) भूिम-सुधार कानून को भावकारी ढं ग से लागू िकया जाय। इससे कृ िषगत उ पादन बढ़ेगा तथा
भूिम के पुनिवतरण से समतावादी समाज- यव था क िदशा म गित होगी ।
(6) िवके ि त िनयोजन का पंचायती राज सं थाओं से ताल-मेल बैठाया जाय तािक योजनाओं के
ि या वयन म सवसाधारण क भागीदारी हो सके । इसके िलए 'राजनीितक इ छा-शि ' को
िवकिसत िकया जाना चािहए।
(7) ामीण िवकास के िविभ न काय म के पर पर सम वय बैठाया जाना चािहए । वतमान म एक
प रवार कई काय म के दायरे म आता है और एक े म कई काय म एक-साथ सं चािलत
हो रहे है िजससे काफ म व अिनि तता क दशाएं उ प न हो गई है । अतः िवके ि त
िनयोजन को अिधक कारगर बना कर धीरे-धीरे िविश काय म क सं या कम करते जाना
चािहए। एक िविश रा ीय रोजगार गारं टी काय म को चलाने पर अिधक बल िदया जाना
चािहए जो 'सुर ा-जाल ' (safety-net) का काम करेगा और बेकार लोग को रोजगार क
गारं टी अव य दान करेगा ।
(8) ामीण िनधन का राजनीितक सं गठन बनाया जाना चाहीए जो उनके िलए िनधा रत साधन उन
तक पहंचाने म मदद देगा। वह उनके िलए सतत संघषरत भी रहेगा ।
आशा है, िदये हए आिथक, सामािजक व राजनीितक ढाँचे के अंतगत
िनधनता-उ मूलन के िलए उपयु िदशाओं म यास करने इस िदशा म अिधक सफलता िमल
पायेगी।
बोध -2
(1) ामीण िनधनता के चार मुख कारण बताइए ।
(2) या आप इस मत से सहमत है िक 'शहरी िनधनता ' ामीण िनधनता का िव तार मा है?
(3) िवकास का 'टपकने वाला भाव ' (trickle-down effect) प क िजए ।
(4) िनधनता-उ मूलन क ि से एक कृ त ामीण काय म क मुख िवशेषताएं बतलाए।
(5) िनधनता-उ मूलन काय म म मु य किमयाँ या रही ह?
(6) भारत म िनधनता-उ मूलन क िदशा म ठोस गित के िलए पांच सुझाव दीिजए। '
19.6 समानता का अथ, आकार व कृ ित
19.6.1 असमानता का अथ-आय के िवतरण क असमानता
एक देश म कई कार क आिथक असमानताएं पायी जा सकती है जैसे धन के िवतरण म
असमानता, आय क असमानता, उपभोग यय म असमानता आिद । सामािजक असमानताओं म
अवसर क असमानताओं का भी उ लेख िकया जाता है और सामािजक ऊँच-नीच का िववेचन

280
िकया जाता है । ामीण े म मु य स पि भूिम मानी जाती है और थािय व के अनुसार एवं
कायशील भूजोत के अनुसार िवतरण क असमानता का वणन िकया जा सकता है ।
ाय: असमानता के अंतगत हम आय के िवतरण क असमानता का िववेचन करते है
िजसम िविभ न समूह के अनुसार पा रवा रक आय का िवतरण दशाया जाता है । िविभ न अविधय
के िलए एक देश म पा रवा रक आय के िवतरण का अ ययन करके यह पता लगाया जा सकता है
िक आय के िवतरण िकस िदशा म हो रहा है । इसी कार एक अविध के िलए िविभ न देश म आय
के िवतरण क तुलना क जा सकती है । अतः आजकल आिथक िवकास के अ ययन म आय के
िवतरण के अ ययन का मह व बढ़ गया है ।
19.6.2 आय क असमानता का आकार व माप
भारत म रा ीय आय के िवतरण के आकड़े ल बी अविध के िलए नह िमलते। हम रा ीय
से पल सव ण सं गठन (NSSO) के ारा एक उपभो ा के यय के आंकड़ो का उपयोग करने से
देश म उपभोग क असमानता क जानकारी होती है । भारत म यावहा रक आिथक अनुसं धान क
रा ीय प रषद् (NCAER) नई िद ली ने भी आय, बचत व उपभोग- यय के अिखल भारतीय
पा रवा रक सव ण (1972) के ारा 1967-68 क अविध के िलए शहरी व ामीण े के िलए
खच के यो य आय के िवतरण के आंकड़े कािशत िकये है । िजनसे आय के िवतरण क असमानता
का अनुमान लगाया जा सकता है ।
िव िवकास रपोट, 1990, 2012 मे वष 1983 व 2010 के िलए भारत के िलए आय क
असमानता क िन न सारणी दी गई है:
तािलका 19.3 आय क असमानता
प रवार का ितशत समूह पा रवा रक आय म ितशत अंश
1983 2010
0-20 8.1 9
20-40 12.3 12
40-60 16.3 16
60-80 22.0 21
80-100 41.4 43
90-100 26.7 29

1983 म चोटी के 10% के पास आय का अंश 26.7% रहा।


उपयु तािलका से 1983 व 2010 के िलए भारत म आय के िवतरण क असमानता
अनुमान लगाया जा सकता है । िन नतम 20% प रवार के पास कु ल पा रवा रक आय का 8%
अंश पाया गया, जबिक चोटी के 20% प रवार के पास यह अंश लगभग 41% या 2/4 पाया गया।
अलग से यह सूचना भी दी गई है िक चोटी के 10% प रवार के पास पा रवा रक आय का 26.7%
281
(अगभाग 1/4 अंश ) था। इस कार िनमतम 20% प रवार व उ चतम 20% प रवार के बीच
आय के ितशत क असमानता का अनुपात 1:5 पाया गया।
िगनी-अनु पात (Gini ratio):- आय के िवतरण क आसमानता जानने के िलए
िगनी-अनुपात ात िकया जाता है । 1975-76 के िलए भारत के िलए यह 0.3844 रहा था, जो घट
कर 1983 म 0.3044 पर आ गया। इसका अथ यह हआ िक 1975-83 क अविध म आय के
िवतरण क असमानता म कु छ कमी आयी है ामीण े के िलए िगनी गुणां क जो 2004-05 म
िगनी-अनुपात के बढ़ने से (इसक अिधकतम रािश 1 होती है) आय क असमानता बढ़ती है और
इसके घटने से (इसक यूनतम रािश शू य होती है ) आय क असमानता कम होती है ।
भारत मे उपभोग- यय क असमानता-एस.पी.गु ा व के .एल.द ा के अनुसार
1977-78, 1983 व 2009-10 के िलए उपभोग- यय के िलए िगनी-अनुपात इस कार रहे :-
तािलका 19.4 ामीण व शहरी े के िलए िगनी-अनु पात
वष ामीण े शहरी े
1977-78 0.337 0.353
1983 0.297 0.332
2009-10 0.28 0.39
इस कार 1977-78, 1983 व 2009-10 क अविध म उपभोग- यय म िगनी-अनुपात
शहरी व ामीण दोन े म कु छ कम हआ है । लेिकन यह ामीण े क तुलना म शहरी े
म अिधक रहा है ।
19.6.3 असमानता क कृ ित
(1) िवकास के ार म मे असमानता :- आिथक िवकास क ारि भक अव था म िवकास
के साथ-साथ आय व उपभोग क असमानता म वृि क वृि पायी जाती है य िक समाज म
िविभ न वग िवकास के समान प से लाभाि वत नह होते। साधन-स प न वग अपनी ि थित और
मजबूत कर लेता है और' साधनह न वग िवकास के लाभ कम मा ा म ा कर पाता है । अतः
िवकास के साथ-साथ असमानता म वृि हो सकती है, िजसे कम करने के िलए िविभ न कार के
उपाय करने आव यक हो जाते है ।
(2) स पि के िवतरण क असमानता आय के िवतरण क असमानता से अिधक :-
हम यह भी मरण रखना होगा िक धन व स पि के िवतरण क असमानता का िगनी-अनुपात आय
का उपभोग के िवतरण क असमानता के िगनी-अनुपात से ऊँचा पाया जाता है । उदाहरण के िलए,
भारत म कायशील जोत के िवतरण का िगनी-अनुपात 1985-86 म 0.5974 पाया गया जबिक
1983 म आय के िवतरण का िगनी-अनुपात के वल 0.3044 ही था। अतः धन क असमानताएं
आय अथवा उपभोग क असमानताओं से ऊँची पायी जाती है । इन दोन म पर पर सं बधं होता है,
लेिकन असमानता का अंश िभ न-िभ न पाया जाता ह।

282
(3) असमानता म िनरं तरता क वृ ि :- आिथक े म िकसी भी कार क असमानता म
बने रहने क वृि पायी जाती है । यिद िकसी आधार-वष म धन क ' प रस पि क असमानता
को न बदला जाय तो काला तर म भी वह जारी रहती है, अथवा बढ़ भी सकती है । अतः
असमानता को कम करने के िलए कठोर कदम उठाने पड़ते है, अ यथा यह बराबर बनी रहती है ।
पूँजीवादी अथ यव था म उ रािधकार या िवरासत क था के कारण धन का ह ता तरण
पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता रहता है िजससे असमानताएं जारी रहती है ।
बोध -3
(1) असमानताएं िकतनी कार क होती है
(2) भारत म आय क असमानता का िगनी-अनुपात िलिखए।
(3) 1983 म भारत के आय के िवतरण का उ लेख क िजए।
(4) असमानता क कृ ि (nature) के बारे म तीन बात िलिखए।
19.7 आय क असमानता के कारण
भारत म िनयोिजत िमि त अथ यव था के ढाँचे म आिथक िवकास िकया जा रहा है । यहां
कृ िष, लघु उ ोग, खनन, यापार व प रवहन म िनजी े का मह वपूण थान है । अथ यव था
पूँजीवादी बाजार- णाली के िनयम से काफ सीमा तक भािवतहोती है । अतः देश म धन, आय,
उपभोग, आिद क असमानताओं का पाया जाना वाभािवक है ।
भारत म उपभोग व आय क असमानता के िलए िन न कारण उ रदायी माने जा सकते है:-
(1) ामीण े म भू िम व पू ँजीगत साधन का असमान िवतरण:- ामीण े म भूिम
प रस पि का मु य प होती है । योजनाकाल म कायशील जोत के िवतरण म िवशेष
प रवतन नह हआ है । 1960-61 म 1 है टेयर तक क सीमा त जोत 41% थी और उनम कु ल
कृ िषत भूिम का 7% अंश था। 1985-86 म सीमा त जोत का अंश 58% हो गया और इनम
कृ िषत भूिम का 13% अंश पाया गया। इसके िवपरीत 10 है टेयर व अिधक आकार क बड़ी
जोते 1960-61 म 5% थी तथा उनम कृ िषत भूिम का 31% अंश था। 1985-86 म इनका अंश
2% हो गया तथा इनम कृ िष 'भूिम का 20.5% अंश पाया गया । इस कार योजनाकाल के 25
वष के बाद 'भी भूिम का िवतरण काफ असमान बना हआ है । बड़े भू वामी िसंचाई, बीच,
उवरक, साख, आिद क सुिवधाओं का लाभ लघु व सीमा त कृ षको क तुलना म यादा मा ा
म.उठाते है । ह रत ाि त ने भी 1966 के बाद अंत ादेिशक व अंतवग य असमानताएं बढ़ायी
है । भारत म कायशील भूजोत के िवतरण का िगनी-अनुपात 1970-71 म 0.6207 था जो
1985-86 म 0.5974 हो गया। इसम कु छ कमी होने पर भी यह आज भी काफ ऊँचा बना
हआ है ।
भारत म भूिमसुधार का ठीक से ि या वयन नह होने से मौिखक का तकारी (oral
tenancy) ,फसल-बटाई, था, बं धआ ु मजदूरी क था, आिद िव मान है । देहात म ै टर,
बैल, दुधा 'पशु, औजार आिद के िवतरण म भी काफ असमानता पायी जाती है । कृ िष आय
283
के आय-कर-मु होने से भी असमानता कायम रही है । बड़े िकसान अपनी सु ढ़ राजनीितक
ि थित के कारण ऊँचे वसूली मू य, उवरक-सि सडी, आिद का लाभ उठा कर अपनी आय
ऊँची रखने म समथ हो जाते है, जबिक भूिमहीन िमको क ि थित बदतर होती जाती है ।
(2) औ ोिगक जगत मे बड़े यावसाियक घरान का प रस पि य पर अिधकार:- भारत म
िनजी े म आिथक स ा का के ीयकरण पाया जाता है और वह योजनाकाल म बढ़ा है ।
1986-87 म 10 चोटी के औ ोिगक घरान क प रस पि का मू य 18638 करोड़ .था
िजसम टाटा-िबड़ला घरान का अंश लगभग आधा था। बड़ी क पिनय (भारतीय व िवदेशी
दोन ) के बंध को के वेतन, भ े व अ य देय रािशयाँ बहत ऊं ची होती है । ये देश क ित
यि रा ीय आय क तुलना म बहत अिधक होती है । ये देश क ित यि रा ीय आय
क तुलना म बहत अिधक होती है । इससे आय क असमानताएं ऊँची बनी रहती है ।
(3) काली मु ा का सार :- भारत म कर क चोरी, ाचार व अ य कारण से काली मु ा का
सार बढ़ा है । सु िस अथशा ी सर मा कम- आिदशेशैया के अनुसार 1984-85 म यह 80
हजार करोड़ .हो गयी थी, जो रा ीय आय का 40% थी।
देश म एक समाना तर अथ यव था चल रही है जो मु ा फ ित, असमानता व िनधनता
को बढ़ाती है ।
(4) िश ा के अवसर म असमानता होने से आय क असमानता बनी रहती है । आज भी उ च
िश ा व उ च नौक रय के अवसर कु लीन व स ा त प रवार को अिधक सुलभ है, और
िपछड़ी जाितय के िलए अपे ाकृ त सीिमत है ।
(5) बेरोजगारी, अ परोजगार व िनधनता क सम याओं के बने, रहने से भी असमानता बनी रहती है

(6) देश म कोई अ प-नीित नह है । अतः उसके अभाव म आय क असमानता बनी रहती है ।
मजदूरी, याज, मुनाफा व िकराये म आमदनी का कोई िनयमन नह है ।
(7) मु ा फ ित के कारण भी आय क असमानता बढ़ती है । योजनाकाल म आम उपभोग क
व तुओ ं के भाव बढने से लोग क वा तिवक आमदनी बहत घट गई है । 1990 म पये क
यशि 1960 'क तुलना म लगभग 1/10 रह गयी है ।
देश म बड़े यवसायी व उ ोगपित, राजनीितक नेता, सरकारी अफसर, ठे केदार व बड़े
िकसान अपने िहत को आगे बढ़ाने म समथ व स म है, जबिक खेितहर मजदूर घरेलू उ ोग म
सं ल न कारीगर, िपछड़ी जाित के लोग, आिद िवकास क दोड़ म िपछड़ गये है । ऐसी ि थित म
आिथक असमानताओं का बढ़ना व जारी रहना वाभािवक है । देश म 'गरीबी क रेखा' क तो
बात क जाती है, लेिकन स प नता क रेखा' (line of affluence) क कोई बात नह करता
अभी तक समानता क िदशा म ठोस व कड़े कदम नह उठाये गये है ।

284
19.8 आय क असमानता को कम करने के सं बं ध म सरकारी उपाय
भारत म योजनाकाल म 'समता व याय के साथ िवकास' (growth with equity) क
चचा क जाती है । इस सं बं ध म कु छ यास भी िकये गये है लेिकन अभी तक इस िदशा म अपया
सफलता ही िमल पायी है । आय क असमानता को कम करने के िलए िविभ न सरकारी उपाय इस
कार िकये गये है:-
(1) गितशील य कर, िवशेषतया वैयि क आयकर:-भारत म समानता क तरफ अ सर
होने के िलए धन-कर (wealth tax), आयकर, उपहार-कर, आिद का उपयोग िकया गया है ।
2015-16 के के ीय बजट, के अनुसार 2.5 लाख पये से अिधक क आय पर, 10% कर
रािश पर सरचाज के अलावा आयकर क अिधकतम सीमा त दर 30% है । देश म आयकर को
कानूनी तौर पर बचा लेने व आय को छु पा कर कर क चोरी के यास िकये जाने से आयकर
आय क असमानता को कम करने म िवफल रहा है ।
(2) सरकार ने यावसाियक व यापा रक ित ान पर छापे, तलािशयाँ, जि तय , चालान व
कानूनी कायवाही करके काला धन व काली मु ा को बाहर िनकालने के यास िकये है और ये
िनरं तर जारी है । लेिकन इनम ि या बड़ी जिटल व ल बी चलती है और सम या का कोई
थायी समाधान नह िनकल पाता।
(3) सरकार ने भूिम का िवतरण अिधक समान -बनाने के िलए भूिम सीमा (Ceiling) कानून बनाये
है, लेिकन उनका ि या वयन ठीक से नह हो पाया है ।
(4) सरकार ने एक कृ त ामीण िवकास काय म (IRDP) व ामीण युव को को िश ण देने
( ाइसम) के मा यम से गरीब के िलए वरोजगार के अवसर उ प न करने का यास िकया है
तथा रा ीय ामीण रोजगार काय म व ामीण भूिमहीन रोजगार गारं टी काय म (बाद म
जवाहर रोजगार काय म) के मा यम से मजदूरी पर रोजगार बढ़ाया गया है । इससे रोजगार व
गरीब लोग क कु छ सीमा तक आमदनी बढ़ी है ।
(5) सामािजक सुर ा- काय म जैसे पशन, ोिवडे ट- कोष, सूित-सहायता, तथा
क याण-काय म जैसे िश ा, िचिक सा व पोषण- काय म चला कर लोग को लाभ पहंचाने
के यास िकये गये है ।
(6) क मत-िनयं ण व रा यापी सावजिनक िवतरण. णली को अपनाकर अलग, चीनी,
खा -तेल, आिद क स लाई िनधा रत भाव पर बढ़ा कर लोग को कु छ सीमा तक मु ा फ ित
क चपेट एसे बचाने का यास िकया गया है लेिकन इसका भाव शहरी े तक िवशेष प
से सीिमत रहा है ।
(7) िनजी े के एकािधकारी वृि य को कम करने के िलए न MRTP अिधिनयम 1969 लागू
िकया गया। सावजिनक े , सहकारी े व लघु े का िवकास िकया गया। पर तु अब
उदारीकरण क ि या ये यास िशिथल हो गए है ।

285
इस कार आय क असमानताओं को कम करने के िलए योजनाकाल म िविभ न
कार के यास िकये गये है, लेिकन िदये हए आिथक, सामािजक व राजनीितक ढाँचे म
असमानताओं को कम करने क अपनी सीमाएं व किठनाइयां होने से अपया सफलता ' नह
िमल पायी है । अतः भिव य म िन न िदशाओं म यास करने क आव यकता है ।
19.9 आय क असमानताओं को कम करने के िलए सु झाव
बेरोजगारी, िनधनता व असमानता के 'बहत जिटल व पेचीदे माने गये है । भारत जैसे
जनािध य वाले िवकासशील देश म इनका समुिचत व सं तोषजनक हल िनकाल पाना लोकतांि क
यव था म िवशेष प से किठन है । िफर भी आय क असमानताओं को कम करने के िलए िन न
उपयोगी सुझाव पर यान िदया जाना चािहए।
(1) िनयोजन व िवकास क यूहरचना म आमूल-चूल प रवतन-िवकास क यूहरचना म रोजगार
पर बल िदया जाना चािहए । साधन-आधा रत े ीय िनयोजन, िवके ि त िनयोजन, उ पादक
ोजे ट का चुनाव व समुदाियक प रस पितय का िनमाण आिद एक ही ल य क ओर ले
जाते है इन सभी म थानीय साधन का उपयोग थानीय आव यकताओं क पूित के िलए
िकया जाता है । इस ि या म असमानता कम करने के बीच िव मान रहते है । के ि य
िनयोजन म नौकरशाही के िनणय का बोलबाला होने से िवशेष लाभ नह िमल पाते। योजना के
िनमाण, ि या वयन आिद म सवसाधारण क भागीदारी से सामािजक प रवतन व पूण
कायापलट क दशाएं उ प न होती है ।
(2) सावजिनक उप म व िनजी उप म म बं ध, पूँजी व लाभ सभी म धीरे -धीरे म क साझेदारी
बढ़ायी जानी चािहए जैसा िक कु छ यूरोपीय देश जैसे ांस , इटली, आिद म िकया गया है ।
इससे औ ोिगक शि बढ़ेगी और आय क समानता क िदशा म ठोस गित हो'पायेगी।
(3) आधुिनक टे नोलोजी, आ त रक व िवदेशी ित पधा, पैमाने क िकफायत ा करके
अथ यव था को अिधक कायकु शल, अिधक उ पादक िवकासो मुख व लाभकारी बनाया
जाना चािहए। इससे लागत कम ह गी व क मत भी िनयिमत ह गी।
(4) ाम व शहर क खाई कम करने के िलए ाम का सवािधक िवकास िकया जाना चािहए। इससे
ामीण जनता का शहर क तरफ पलायन के गा। छोटे नगर व क ब के िवकास पर िवशेष
यान िदया जाना चािहए।
आशा है िक इ कसव शता दी म भारतीय िनयोजन नई िदशाओं म अ सर होकर
गरीबी व असमानता जैसी जिटल सम याओं का समाधान िनकालने म अिधक सफलता ा
कर पायेगा।
बोध -4
(1) भारत म आय क असमानता के चार मुख कारण िलिखए,
(2) मु ा फ ित आय क असमानता को बढ़ाती है, प क िजए।
(3) सरकार ारा आय क असमानता को कम करने के िलए कौन-चार उपाय िकये गये है?
286
(4) आय क असमानताओं को कम करने के िलए आप या सुझाव देना चाहगे?
(5) ऐसे काय म बताइए िजनसे िनधनता क असमानता दोन पर कडा हार स भव हो सकता है ।
19.10 सारां श
भारत म िनधनता व असमानता क सम याएं बहत जिटल व दीघकालीन प धारण कये
हए है । िनधनता क धारणा िनरपे है, और इसका सं बधं कै लोरी क मा ा' से िकया गया है ।
वतमान समय म योजना आयोग के अनुसार लगभग 30% जनता गरीबी,क़ रेखा से नीचे
जीवन-यापन कर रही है । ामीण े म सीमा त व लघु कृ षक, भूिमहीन िमक, ामीण कारीगर,
अनुसिू चत जाित व अनुसिू चत जनजाित व अ य िपछड़ी जाित के अिधकां श लोग, आिद 'गरीबी के
िशकार है ।
िनधनता क सम या सामािजक, आिथक व राजनीितक दशाओँ क देन है । सरकारी ने
इसके समाधान के िलए योजनाओं म िवकास-काय म तथा िविश काय म'अपनाये है । इनसे
कु छ लाभ िमले है, लेिकन भिव य म इनक किमय को दूर करके तथा िवके ि त िनयोजन प ित
को अपना कर िनधनता दूर करने का यास जारी रखना होगा।'
असमानता धन क , आय क व यय आिद क हो सकती है । भारत म आय क
असमानता का िगनी-अनुपात 1983 के िलए 0.3044 एवं 2009 म 0.339 रहा था। आज भी
असमानता का अनुपात काफ ऊँचा है । गांव म भू-जोत का वािम व काफ असमान है । इनके
सं बं ध म कायशील जोत म असमानता का िगनी-अनुपात 1985-86 म 0.5974 पाया गया जो
काफ ऊँचा था। सरकार ने असमानता कम करने के िलए य कर का उपयोग िकया है, लेिकन
उनम काफ मा ा म कर-वं चन होने से असमानता कम करने म किठनाई रही है । भिव य म स पूण
िनयोजन-त को ामो मुख व रोजगारो मुख बना कर इन सम याओ पर कड़ा हार करने से ही
िवशेष सफलता क आशा क जा सकती है ।
19.11 श दावली
(1) िनधनता क रेखा (Poverty line):- गाँव म ित यि ितिदन 2400 कै लोरी तथा शहर
म 2100 कै लोरी से कम उपभोग करने वाले यि िनधन माने जाते है । यय क ि से
1983-84 के भाव पर गांव म ित यि ित माह 101 .80 पये तथा शहर म 117.50
पये से कम यय करने वाले यि िनधन माने गये है ।
(2) िनधनता-अनु पात (Poverty ratio):- कु ल िनधन यि य क़ा कु ल जनसं या से अनुपात
िनधनता-अनुपात कहलाता है । यह ामणी े सम त े के अनुसार अथवा रा यवार व
िविभ न समुदाय (अनुसिू चत जाित, आिद) के अनुसार ात िकया जा सकता है ।
(3) असमानता का िगनी-अनु पातः-यह असमानता को ात करने के िलए कम म िलया जाता है
। इसके िलए आय क पूण समानता क रेखा व लॉरे ज व के बीच क दूरी का े फल आय

287
क पूण समानता व आय क पूण असमानता के बीच क दूरी या े फल का भाग िदया जाता
है ।
(4) य कर:- ये वे कर होते है िजनका भार करदाताओं को ही वहन करना होता है जैसे
यि गत आयकर, क पनी लाभ कर, धन-कर, उपहार-कर आिद । ये आय क असमानता को
कम करने के िलए काम म िलये जाते है तथा सरकारी राज व बढ़ाने म भी सहायक होते है ।
(5) िवके ि त िनयोजन:-इसे ‘नीचे के िनयोजन' (planning from below) भी कहते है । इसम
िजला, ख ड व ाम तर पर योजनाएं बनायी जाती है । इससे बेरोजगारी, िनधनता व
असमानता दूर करने म िवशेष मदद िमलती है ।
19.12 कु छ उपयोगी पु तक
(1) Mishra & Puri, Indian Economy, latest Ed.
(2) L.N. Nathuramka, भारतीय उलशा सम याएं, नवीनतम सं करण
(3) D. Bandyopdhyay, Direct Intervention Programmes for Poverty
Alleviation-An Appraisal, an article in EPW, June 25,1988, pp. A-77 to
1-88.
(4) A review of the Agricultural Credit System in India, Report, (RBI,
Bombay), 1989, ch. 21 (IRDP), Pay VIII, pp. 741-782.
19.13 अ यास के उ र
बोध -1
(1) (स)
(2) ामीण-िनधनता के अनुपात ामीण िनधन क सं या
ितशत म (%) (करोड़ म)
1977-78 51.2 25.3
1984-85 39.9 22.2
1989-90 28.2 16.9
(2) डा.मो टेक अहलूवािलया के अनुसार 1956-57 से 1977-78 के बीच ामीण िनधनता म कोई
िनि त वृि नह । योजना-आयोग के अनुसार 1977-7 8 से 1989-90 के बीच
िनधनता-अनुपात म कमी।
(3) (अ) मूलतः ामीण
(ब) दीघकालीन
(स) कृ िषगत उ पादन के उतार-चढ़ाव से जुड़ी
(द) मूलतः अ पिवकास क प रचायक।
288
बोध -2
(1) (1) ामीण जनसं या म ती गित से वृि
(2) कायशील भू-जोत का असमान, िवतरण व भूिम-सुधार के ि या वयन म कमी
(3) गां व म िनधन-वग ारा खरीदे जाने वाली खा -पदाथ क क मत म वृि
(4) कृ िषगत उ पादन म धीमी व अिनयिमत वृि ।
(2) हां, कु छ सीमा तक यह सही है िक य िक ामीण जनता के शहर क ओर िनरं तर पलायन से
शहरी िनधनता का दबाव बढ़ता है । लेिकन अ य कारण ने भी शहरी िनधनता को बढ़ाया है ।
इस सं बधं म शहर म घरेलू उ ोग का पतन व म क पूित क मां ग से अिधक होना जैसे
कारण िगनाये जा सकते है ।
(3) िवकास के टपकने वाले भाव' का अथ है वयं िवकास क ि या से िनधनता का कम होना,
बेरोजगारी कम होना। भारत म यह भाव कमजोर रहा य िक गां व म िविभ न जन-समूह
एक-से नह है, और िवकास के अिधक लाभ स प न वग ने हिथया िलए। इसिलए
िनधनता-उ मूलन के िलए िविश काय म अपनाने पड़े।
(4) (i) इससे वरोजगार के अवसर उ प न िकये जाते है और गरीब को कोई-न-कोई प रस पि
(asset) दी जती है; जैसे दुधा पशु , हथकरघा, िसलाई क मशीन आिद।
इसम सि सडी व कज क यव था क जाती है । िजनका अनुपात ाय: 1:2 पाया जाता है

(ii). आमदनी बढ़ने से लोग गरीबी क रेखा से ऊपर आ सकते है ।
(iii). इसम के व रा य का अंश सि सडी या िव ीय साधन म आधा-आधा होता है ।
(5) (i) ये प रवार-आधा रत होने से संकुिचत रहे है । इ ह सं साधन-आधा रत े ीय िनयोजन का
अंग बनाया जाना चािहए था।
(ii). इनम शासिनक ि से कई कार क किमयां व दोष रहे है जैसे गलत प रवार का चयन,
सभी ख ड म एक से काय म अपनाना थानीय साधन व थानीय आव यकताओं का
यान न रखना, सि सडी का दु पयोग आिद।
(iii). अवा तिवक ल य िनधा रत करना।
(iv). काय म के आगे-पीछे क किड़य (linkages) पर समुिचत यान नह िदया गया।
(6) (i) िजला, ख ड व ाम तर पर ोजे ट-आधा रत िनयोजन तथा आिथक िवकास,
(ii). भूिम-सुधार का भावपूण ि या वयन
(iii). सामािजक क याण सं बधं ी काय म का िव तार- िश ा,िचिक सा, पोषण आिद
(iv). िनधन का राजनीितक सं गठन
बोध -3
(1) (i) धन क असमानता
(ii). आय क असमानता
(iii). उपयोग- यय क असमानता
289
(iv). अवसर क असमानता
(2) 1983 के िलए आय के िवतरण का िगनी-अनुपात 0.3044 रहा था।
(3) िन नतम 20% प रवार के पास आय का 8% या 1/12 अंश
उ चतम 20% प रवार के पास आय का 41% या 2/5 अंश
उ चतम 10% प रवार के पास आय का 27% या 1/4 अंश।
(4) (i) िवकास के ार भ म इसम बढ़ क वृि
(ii). स पि के िवतरण क असमानता आय के िवतरण क असमानता से अिधक
(iii). असमानता म जारी रहने या िनरं तरता क वृि
बोध - 4
(1) (i) ामीण े म भूिम व पूँजीगत साधन का असमान िवतरण
(ii). औ ोिगक जगत म बड़े यावसाियक घरान का प रस पि य पर अिधकार
(iii). कालीमु ा का सार
(iv). देश म या बेरोजगारी, अ परोजगार व िनधनता
(2) मु ा फ ित से धनी अिधक धनी हो जाते है और गरीब अिधक गरीब हो जाते है । धनी लोग
मुनाफे , याज, आिद के प म अिधक आय जुटा लेते है जबिक गरीब लोग क य शि
काफ घट जाती है । इससे आय क असमानता घटती है । भारत म 1990 म 1960 क तुलना
म पये का मू य 10 पैसे रह गया है ।
(3) (i) गितशील य कर, िवशेषतया वैयि क आय कर का उपयोग
(ii). काली मु ा को बाहर िनकालने के िलए छापे , तलािशयां, वगैरह;
(iii). वरोजगार व मजदूरी पर रोजगार देने के काय म का लागू िकया जाना
(iv). सामािजक सुर ा व सामािजक क याण के काय म लागू करना
(4) (i) िवकास क यूहरचना म आमूल -चूल प रवतन- थानीय साधन व थानीय
आव यकताओं से ताल-मेल बैठाते हए थानीय /िवके ि त िनयोजन प ित अपनाना व उसे
रोजगारो मुख बनाना'
(ii). िमको को ब ध, पूँजी व लाभ सभी म भागीदारी दे ना
(iii). अथ यव था आधुिनक करण न लागत-कु शलता बढ़ाना
(iv). ाम व शहर क खाई पाटना, छोटे शहरो व क ब का औ ोिगक करण करना।
(5) (i) िनयोजन का के ाम,ख ड,िजला हो, तथा िवकास का आधार रोजगार बनाया जाय
(ii). आम उपभोग क व तुओ ं का उ पादन बढ़ाया जाय तथा मु ा फ ित क वािषक दर 5% से
नीची रखी जाय।
(iii). सामािजक क याण – िश ा, िचिक सा व पोषण पर सावजिनक यय म वृि करके आम
आदमी को िवशेष लाभ पहंचाया जाय ।

290
इकाई 20
बेरोजगारी व प तथा आकार-उ ोगीकरण तथा
रोजगार एवं रोजगार नीित
इकाई क परेखा
20.0 उ े य
20.1 तावना
20.2 बेरोजगारी का व प
20.2.1 बेरोजगारी के कार
20.2.2 िवकिसत तथा अिवकिसत देश म बेरोजगारी का व प
20.3 बेरोजगारी के कारण
20.4 भारत म बेरोजगारी के अनुमान
20.5 भारत सरकार क रोजगार स ब धी नीित
20.6 भारत म िशि त वग म बेरोजगारी
20.7 भारत म उ ोगीकरण तथा रोजगार
20.8 सारां श
20.9 कु छ उपयोगी पु तक
20.10 िनब धा मक
20.0 उ े य
भारत म येक वष रोजगार चाहने वाल क सं या क तुलना म रोजगार के अवसर बहत
कम बढ़े है । भारत क जनसं या वृि क दर िपछले कई दशक से 2 ितशत वािषक से अिधक
रही जबिक रोजगार के अवसर धीमी गित से बढ़े यही कारण है रोजगार कायालय म पं जीकृ त
आवेदको क सं या म िव फोटक वृि हई है । यह भी सविविदत ही है िक के वल शहरी एवं
िशि त युवा ही अपना पं जीकरण करवाते है । एक अनुमान के अनुसार नौव योजना अविध
(1997-2002) म जनसं या 94.98 करोड़ से बढ़कर 102 करोड़ हो जाएगी । रोजगार इसी अविध
म 39.72 करोड़ से बढ़कर 45.2 करोड़ ह गे। जबिक बेरोजगार क सं या इस अविध म 5.9 करोड़
तक बढ़ने का अनुमान है । अथात् बेरोजगार म 1.18 करोड़ क वृि ितवष होगी। नौव योजना म
कु ल बेरोजगार 10.6 करोड़ होने का अनुमान है ।
भारत म रोजगार क औसत वािषक वृि दर (सं गिठत एवं असं गिठत).दोनो े म
1972- 78 क अविध म 2.75% वािषक थी जो घटकर 1977-83 क अविध म 1.77% रह गई।
रोजगार वृि क दर 1987-94 क अविध म यह पुन : बढ़कर 2.37% वािषक हो गई । पर तु
291
सं गिठत े म रोजगार वृि क दर घटी यह िगरावट सावजिनक े म अिधक रही। अब यह
नकारा मक हो गई है । िनजी े म रोजगार के अवसर बढ़े है । 1996 म इसम 5.62% क वृि हई
यह आिथक उदारीकरण का प रणाम है । पर तु िनजी े क ित प ा मक शि िवदेशी
बहरा ीय क पिनय क तुलना म काफ कम ह । इस कारण स भव ह िनजी े भिव य म इस
वृि दर को कायम न रख सक। उदारीकरण के पाँच वष म (1991-95) सं गिठत े म रोजगार
वृि दर िनर तर घटी है । अतः इस इकाई का उ े य आपको:
 बेरोजगारी के व प तथा आकार के बारे म िव तृत जानकारी देना है
 इस इकाई के अ ययन के बाद आप बेरोजगारी के िविभ न कार एवं इसके कारण से
प रिचत हो सके गे।
20.1 तावना
भारत एक अ पिवकिसत िक तु िवकासशील देश है । हमारे देश म सारी िमक स या
रोजगार म िनयोिजत नह है । इसका एक बड़ा भाग बेरोजगारी क ि थित म है । बेराजगारी भारत को
मूलभूत एवं अ य त ग भीर सम या है । यह स पूण देश म बहत यापक प म फै ली हई है और
ितवष इसम िनर तर वृि हो रही है ।
हमारे देश मे बेरोजगारी का व प औ ोिगक ि से उ नत देश क अपे ा िभ न है ।
लाड के स के िव ेषण के अनुसार िवकिसत देश म बेरोजगारी का मूल कारण समथ मां ग का
अभाव (Lack of effective Demand) है । इसका अथ यह है िक िवकिसत अथ यव थाओं म
मशीने बेकार हो जाती है और म क मां ग उ ोग के उ पादन क मां ग से कम हो जाने के कारण
िगर जाती है । इस कारण के स ने बेरोजगारी को दूर करने के उपचार म इस बात पर बल िदया िक
देश म म दी को रोकने के िलए समथ मां ग को पया तर पर ऊँचा रखना होगा।
भारत म बेरोजगारी गांव तथा शहर म यापक प म फै ली हई है । वह सम या िशि त
वग के बीच भी िव मान है और अिशि त वग म भी यापक प म फै ली हई है । देश म काफ
बड़ी सं या म िमक बेरोजगार है या अ प-रोजगार क ि थित म है । हमारे देश म ऐसे िमक भी है
जो वष के कु छ महीन म तो रोजगार म रहते है और शेष महीन म बेरोजगारी का जीवन िबताते है ।
बेरोजगारी के अनेक आिथक एवं सामािजक टु प रणाम होते है । आिशक मा ा म
बेरोजगारी क ि थित म रा ीय उ पादन क मा ा कम हो जाती है िजसका पूं जी िनमाण,
यापार- यवसाय और देश क आिथक गित पर ितकू ल भाव पड़ता है । सामािजक सुर ा के
अभाव म बेरोजगार यि ाय: अनक बुराईय -जैसे चोरी, डकै ती बेईमानी शराबखोरी आिद के
िशकार हो जाते है ।

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20.2 बेरोजगारी का व प
भारतीय अथ यव था म म क अिधकता है और भूिम पूं जी, उ म आिद का अभाव है ।
देश क अिधकां श जनसं या कृ िष पर िनभर है, भूिम पर जनभार अिधक है । और जनसं या क
वािषक वृि क दर भी ऊँची है । जनसं या म िनर तर वृि होने के कारण म-शि म भी
अितती गित स िनर तर वृि हो रही ह।
भारत म बेरोजगारी के व प क जानकारी के आधार पर हो हम इसके िलए उपयु नीित
व उपाय के बार म नीित िनधारण कर सकते है ।
हमारे देश म औ ौिगक े अपे ाकृ त छोटा है िजसम सीिमत मा ा म ही िमको को
रोजगार िमल सकता है । पर परागत कु टीर एवं लघु उ ोग म रोजगार देने क मा ा तो अिधक होता
है लेिकन इनके िवकास म बाधाये अिधक होने के कारण इनका िवकास धीमी गित से ही हो पा रहा
है । भारत म ितवष मशि म वृि हो रही है परं तु म बाजार म वेश करने वाले सभी नये
िमको को रोजगार नह िमल पा रहा है । इस कारण देश म बेरोजगारी क ि थित ग भीर एवं जिटल
होती जा रही है ।
20.2.1 सं रचना मक बेरोजगारी (Structural Unemployment)
भारत क बेरोजगारी देश के िपछले आिथक ढाँचे के साथ सं बं िधत है । हमारे देश म
बेरोजगारी दीघकािलक है य िक यह देश के अ पिवकिसत अथ यव था के साथ गहरे तौर पर
सं बं िधत है । देश म बचत क दर तथा पूं जी िनमाण क मा ा िवकिसत देश क तुलना म नीची है
इसिलये रोजगार क मा ा भी अ प ही है । देश म नये काम-ध धे एवं रोजगार क मा ा इतनी कम है
िक ितवष रोजगार क मा ा म नाममा क वृि होती है । इस कारण रोजगार क मा ा लगभग
ि थर रहती है । िनर तर बढ़ती हई जनसं या एवं उपल ध रोजगार के अवसर म भारी अ तर होने के
कारण बेरोजगारी थायी या दीघकािलक हो गई है देश म बेरोजगारी क सम या का समाधान ती
आिथक िवकास ारा ही सं भव है ।
बेरोजगारी के कार (Types Of unemployment)
भारत म बेरोजगारी के िन न कार है एवं प है ।
(i). छ न बेरोजगारी (Disguised unemployment)
छ न बेरोजगारी ाय : ामीण े म पाई जाती है । इस कार क बेरोजगारी म ऊपरी
तौर पर तो िमक काम म लगे िदखाई देते है पर तु वा तव म वे बेरोजगार होते है । इनक यह
बेरोजगारी िछपी होती है । य िक इन िमको का काम म लगे होने क उपरा त भी उ पादन म कोई
योगदान नह होता है । अथात् इन िमको का सीमा त उ पादन शू य होता है । ा० नकसे के
अनुसार अ प िवकिसत देश म कृ िष े म काफ सं या म ऐसे िमक लगे होते है िज ह कृ िष से
हटा िलया जावे तो भी उ पादन म िकसी कार क कमी नह होगी । इस कार के िमक आिथक

293
ि से बेरोजगार क ेणी म आवगे जबिक देखने म ये काम पर लगे हए िदखाई देते है प तः इन
िमको क बेराजगारी िछपी हई या छ न बेरोजगारी होती है ।
(ii). खु ली बेरोजगारी
इस ेणी म िमको का वह वग आता है िज ह िकसी कार का काम उपल ध नह है ।
काम न िमलने से यह वग पूरी तरह से बेरोजगार है । इस कार क बेरोजगारी ामीण तथा शहरी
दोन े म पाई जाती है । ामीण े के बेरोजगार यि काम क तलाश म शहरी े म आते
रहते है । शहर म काम उपल ध होने के कारण वे वहां बेरोजगारी क ेणी म पड़े रहते है । ऐसे
िमको को जब तक रोजगार नह िमलता है इ ह खुली बेरोजगारी को णे ी म माना जाता है । इस
ेणी म अिधकतर साधारण कोिट के िमक होते है जो उ ोग एवं कारखान म रोजगार ा करना
चाहते है । इस ेणी म िशि त बेरोजगार वग के िमक भी स मिलत होते है ।
(iii). िशि त बेरोजगारी
िशि त बेरोजगारी क ि थित भी देश म अ य त जिटल होती जा रही है । इस णी म वे
िमक आते है िजनको िशि त करने के िलए देश म आिथक संसाधन का उपयोग िकया गया है
ओर िवशेष ान िश ा एवं द ता के कारण इस कार के िमको को काम करने क मता अ य
साधारण िमको क अपे ा अिधक होती है । यह िमक िवशेष कार के काय करने के यो य होते
है इसिलए काम के ित इनक याशाये भी िभ न कार क होती है ।
इस ेणी म ऐसे यि भी होते है िज ह अपनी िश ा के अनु प काम नह िमला होता है
या उपल ध काय उनक मता से कम होता है । इस ि थित म यह िमक अ प रोजगार क ि थित
म होते ह देश म बड़ी सं या म ऐसे यि है िज हे िकसी कार का काम उपल ध नह ह । इस
कार के िशि त यि खुली बेरोजगारी क ेणी म आते है ।
देश म िश ा के कार होने से शहरी े म िशि त बेरोजगार क सं या म तेजी से वृि
हो रही है । इस सम या के समाधान के िलए िवशेष यास अपेि त है ।
(iv). ामीण े मे बेरोजगारी
भारत म अिधकां श बेरोजगारी ामीण े म पाई जाती है । हमारे देश म कृ िष का
यवसाय देश वािसय का मुख तथा धान यवसाय है पर तु यह मौसमी यवसाय होता है । देश
के िविभ न रा य म मौसमी बेरोजगारी क ि थित िभ न-िभ न होती है । एक अनुमान के अनुसार
लगभग पांच से सात माह तक ामीण मशि का बड़ा भाग बेरोजगार रहता है । देश म कु टीर
उ ोग के पराभव के कारण कृ िष े के िमको को अपना फालतू समय कु टीर उ ोग म लगाने
का अवसर भी समा हो गया है ।
हमारे देश म कृ िष े म िनर तर अ प रोजगार तथा अ य बेरोजगारी क िवकट एवं
ग भीर सम या है । देश म भूिम पर िनभर कायशील जनसं या म तो िनर तर वृि हो रही है पर तु
कृ िष यो य े म उस प रमाण म वृि नह हो पाई है । इसिलये कृ िष म जनािध य क ि थित पैदा
हो गई है । हमारे यहां कृ िष म आव यकता से अिधक यि लगे हए है । इसिलए कृ िष म ित यि
औसत उ पादकता बहत ही कम है ।
294
20.2.2 िवकिसत तथा अिवकिसत देश मे बेरोजगारी का व प
िवकिसत देश म बेरोजगारी क सम या मूलतः यापार च से सं बिं धत रहती है । इन देश
म यापार च म म दी क ि थित उ प न होने पर बहत से िमक एक साथ बेकार हो जाते है ।
पूं जीवादी देश म यापार च के कारण बेकारी क ि थित उ प न होती रहती है । इस कार क
बेरोजगारी अ पकालीन होती है । आिथक ि याओं म वृि होने पर बेरोजगारी क ि थित भी
समा हो जाती है । आिथक म दी क ि थित म भावपूण मां ग कम हो जाती है । मां ग कम होने से
उ पादन कम कर िदया जाता है । अनेक कारखाने ब द हो जाते है या उ पादन क मा ा कम कर दी
जाती है । इसके प रणाम व प बड़ी सं या म िमक बेरोजगारी हो जाते है ।
अ पिवकिसत देश म बेरोजगारी का कारण आिथक म दी या भावपूण मां ग का अभाव
नह है । इन देश म बेरोजगारी मूल प से जनशि के पूित प से जुड़ी हई है । अ पिवकिसत
देश म उ पादन मता तथा िवकास का तर नीचा होता है । इस कारण यहां रोजगार के अवसर
सीिमत रहते है और अिधसं या िमक बेरोजगार रहते है । इस कार क बेकारी को दूर करने के
िलए उ पादन मता म ती गित से वृि करनी आव यक है । यह तभी सं भव है जब इन देश म
पूजी िनमाण म भी तेजी से वृि क जाय जबिक िवकिसत देश म बेरोजगारी का व प चि य
बेरोजगारी होती है जो मां ग म कमी आने के कारण पैदा होता है । उनका िनराकरण भावपूण मां ग म
वृि करके िकया जा सकता है ।
भारत म बेरोजगारी का फै लाव बहत अिधक है । यह दीघकािलक व प क सम या है ।
हमारे देश म बेरोजगारी जन-शि के पूित प से सं बं िधत है । देश म पूं जी िनमाण क दर बहत नीची
है और उ पादन मता भी काफ कम है । हमारे देश म बहत बड़ी मा ा म छ न बेरोजगारी
िव मान है । कृ िष अथ यव था होने के कारण यहां अ प रोजगार तथा मौसमी बेरोगारी क ि थित
पाई जाती है ।
हमारे देश म खुली बेरोजगारी ाय: शहरी देश म पाई जाती है । ाम म ऐसे लोग क
सं या अिधक है जो सारे साल म काफ समय बेरोजगार रहते है । ामीण े म अिधकाश
जनसं या कृ िष काय से जुड़ी रहती है िजसे मौसमी आधार पर समय-समय पर थोड़ा बहत रोजगार
िमलता रहता है । हमारे यहां बेरोजगारी क सम या मुख प से ामीण बेरोजगारी क सम या है ।
ामीण े म बेरोजगार यि काम क तलाश म शहर म आते रहते है िजससे शहरी े म
अकु शल तथा अिशि त यि य क बेरोजगारी क ि थित उ प न होती है ।
20.3 बेरोजगारी के कारण
भारत म िपछले 50 वष म िनयोिजत आिथक िवकास के बावजूद बेरोजगारी क सम या
अिधक जिटल हई है । इस दौरान जनसं या म तेजी से वृि हई है िजससे बहत अिधक सं या म
नये लोग म-बाजार म स मिलत हो रहे है । योजना काल म ामीण उ ोगीकरण म िवशेष गित
नह हई है । कृ िष के े म भी नवीन िविधय का योग िपछले 35 वष से ही स भव हआ है । देश

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को िश ा नीित भी दोषपूण रही है तथा सरकार के पास आिथक साधन का अभाव बना रहा है ।
सामािजक िपछड़ेपन के कारण िमक गितशीलता म कावट बनी रही है । समय-समय पर
ाकृ ितक कोप के कारण भी बेरोजगारी क ि थित म वृि हई है । भारत म बेरोजगारी के मुख
कारण िन न कार है
(1) जनसं या क ती वृि
(2) कृ िषगत िवकास का अभाव
(3) सावजिनक े म िविनयोग का अभाव
(4) पूं जी गहन योजनाओं पर अिधक जोर
(5) िश ा णाली के दोष
(6) िनजी े म अिनि तता क ि थित तथा सरकारी िनयं ण
(7) रोजगार नीित व जनशि िनयोजन
(1) जनसं या क ती वृि
भारत म बेरोजगारी म ती गित से वृि का मु य एवं मह वपूण कारण िनर तर बढ़ती हई
जनसं या है । देश म जनसं या 2.2 ितशत ितवष क दर से बढ़ रही है जबिक रोजगार क
सुिवधाएं उस दर से नह बढ़ रही है । अब देश म आिथक िवकास क दर जनसं या क वृि दर क
तुलना म कम होती है तो बेरोजगारी क सम या पैदा होती है । वतं ता ाि के पहले देश म कु टीर
उ ोग के पतन के कारण रोजगार के अवसर समा होते गये। अं ेजो के शासनकाल म देश क
अथ यव था गितहीन बनी रही । उस काल म आधुिनक ढं ग के बड़े पैमाने के उ ोग क थापना
नह क गई इस कारण देश म रोजगार के नये अवसर बहत सीिमत मा ा म सृिजत हए।
ो० सुदं रम के अनुमान के अनुसार 1981 -9 1 के दशक म म-शि म 8 करोड़ लोग
क वृि हई है । उनके अनुमान के अनुसार 1991.2001 के दस वष म जनसं या म अिधक ती
वृि होने के कारण मशि म लगभग 10 करोड़ लोग क वृि हो जावेगी। अथात् एक करोड़
यि ितवष देश क मशि म जुड़ते रहगे। यह एक िव फोटक ि थित होगी।
(2) कृ िषगत िवकास का अभाव
देश म 1951 म िनयोजन का काय चल रहा है । पर तु यह िनयोजन िु टपूण रहा है । भारत
म कृ िषगत िवकास क दर बहत धीमी रही ह। हमारे देश म कृ िष िवकास क दर 2% से कम हो रही
है । जब तक खा फसल क पैदावार म तेजी से वृि नह होगी तब तक कृ िष एवं गैर कृ िष े म
रोजगार के अवसर सृिजत नह ह गे। देश म कृ िषगत िवकास क धीमी गित ने बेरोजगारी क सम या
को अिधक जिटल बना िदया है ।
(3) सावजिनक े म िविनयोग का अभाव
देश म नये-नये कारखाने खुलने से रोजगार क ि थित म सुधार होता है । सावजिनक े म
पूँजी िनवेश करने से बड़े पैमाने पर नये रोजगार के अवसर सृिजत होते है । हमारे देश म 1965 के
प ात सावजिनक िविनयोग क वािषक वृि क दर पहले क तुलना म कम रही है । िवदेशी
सहायता क अिनि तता क ि थित, मुदा फ ित तथा 1965 व 1971 के यु के कारण देश म
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पूं जी िनवेश म धीमी गित से वृि हई है । सावजिनक िविनयोग के कम होने के कारण रोजगार के
अवसर भी पया मा ा म नह बढ़े है । सावजिनक िविनयोग क धीमी वृि दर के कारण देश म
आधार ढाँचे का भी पया िवकास नह हआ है । िजनका िनजी े क िविनयोग पर भी भाव पड़ा
है । सावजिनक तथा िनजी िविनयन क वृि दर धीमी रहने के कारण रोजगार के अवसर पया मा ा
म नह बढ़ सके है ।
(4) पूज ं ीगहन योजनाओं पर अिधक जोर
हमने ि तीय पंचवष य योजना से पूं जी गहन तथा आधारभूत उ ोग के िवकास पर अिधक
चल िदया है । इसके अ तगत भारी इ जीिनयरी भारी रसायन आिद उ ोग से अिधक पूं जी िनवेश
िकया गया िक तु इन उ ोग क थापना से रोजगार के अवसर म अिधक वृि नह हई। इस कार
के उ ोग क थापना से अ पकाल म रोजगार के अवसर बहत कम सृिजत होते है । इस दौरान
कु टीर लघु, एवं ामीण उ ोग को ो सािहत करने का संक प तो दोहराया गया पर तु उस िदशा म
सफल यास नह िकये गये। इससे बेरोजगारी क मा ा म िनरं तर वृि होती रही ह।
(5) िश ा णाली के दोष
हमारे देश म िश ा णाली दोषपूण रही है । अभी तक िश ा णाली को आिथक िवकास
क आव यकताओं के अनु प नह बनाया जा सका है । ार भ से ही िश ा णाली म नौकरी
तलाश करने वाले लोग के वग को ज म िदया है । इससे वरोजगार को कभी बढ़ावा नह िदया गया
है । इसी कारण िशि त बेरोजगारी क मा ा म िनर तर वृि हो रही है । 1990 के ार भ म
हाई कू ल या इससे अिधक िश ा ाि िशि त बेरोजगार क सं या 195 लाख से अिधक आंक
गई है । इस ि थित को बदलने के िलए हम यवसाय धान िश ा णाली का अवल बन करना
होगा।
(6) िनजी े म अिनि तता क ि थित तथा सरकारी िनयं ण
सरकार ारा िनजी े पर आिथक िनयं ण क नीित अपनाये जाने के कारण िनजी े
हतो सािहत हआ है । इस कारण िनजी े म रोजगार के अवसर अपे ा के अनु प सृिजत नह हए
है । सरकार क राजकोषीय नीितयां िनजी िविनयोग को ो सािहत नह कर पाई है । सरकार ारा
अनेक कार के औ ोिगक िनय ण लगाये गये है िजससे उ ह अपने काय का िव तार करने म
किठनाईय का सामना करना पड़ रहा है । सरकारी िनयं ण म ढील देने क नीित अपनाने के प रणाम
व प उ ह अपने काय के िव तार का अवसर िमलेगा िजससे रोजगार के अिधक अवसर सृिजत
हो सकगे।
(7) रोजगार नीित व जन शि िनयोजन
हमने 1951 से देश म पं चवष य योजनाओं के ारा देश के आिथक िवकास का संक प
िलया पर तु इन योजनाओं म देश क अिधसं य जनसं या को रोजगार देने क कोई यापक तथा
गितशील नीित का िनधारण नह िकया गया। हमने जन-शि िनयोजन क िनर तर अपे ा क है ।
इसी कारण देश म रोजगार को मा ा बढ़ने के उपरा त भी बेरोजगारी क सम या िनर तर उ हो रही
है ।
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20.4 भारत म बेरोजगारी के अनु मान
भारत म बेरोजगारी क मा ा का अनुमान लगाना किठन काय है । आिथक िनयोजन के
बावजूद बेरोजगार यि य क सं या म ितवष वृि हो रही है । बेरोजगारी क ेणी म बालक,
युवा, ोढ, ी पु ष सभी समािव है जो शहरी तथा ामीण े म फै ले हए है । देश म ामीण
े म बेरोजगारी अिधक यापक है । शहर म कु शल, अकु शल, िशि त तथा अिशि त सभी
वग म बेरोजगारी क भयावह ि थित है । देश म खुली बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, अ प रोजगार
तथा छ न रोजगार सभी का अ तहीन िसलिसला चला जा रहा है । सन् 1985 म िविभ न आयु
वग म बेरोजगार क ि थित िन न कार थ :
आयु वग बेरोजगारी
1. बालक तथा वृ 90.20 लाख
2. 15 वष क आयु तक 80.37 लाख
3. 15-59 आयुवग 80.67 लाख
सातवी पं चवष य योजना के दौरान बेरोजगार क ि थित म िवशेष सुधार क आशाय नह
ह। सातव योजना के दौरान 20 िमिलयन अित र रोजगार के अवसर का सृजन करने का ावधान
था। उदारीकरण क ि या ार भ होने के बाद बेरोजगारी क सं या म और वि हई। इस शता दी
के अ त म भारत म कु ल 10 करोड़ स अिधक यि बेरोजगार ह गे। सन् 1984-85 और
1989-90 क बीच रोजगार क वृि क दर िविभ न े म िन न कार आंक गई है ।
तािलका 20.1: िविभ न े म रोजगार का अनु पात
.सं. े 1972-73 2004-05 2011-12
1. कृ िष 73.9 58.5 48.9
2. खनन तथा खिनज 0.4 0.6 0.5
3. िविनमाण उ ोग 8.9 11.7 12.8
4. िनमाण 1.8 5.6 10.6
5. िव तु 0.2 0.3 0.4
6. यापार, होटल व रे तरां 5.1 10.2 11.4
7. प रवहन, भं डारण एवं संचार 1.8 3.8 4.4
8. िव ीय, वा तिवक संपदा, 0.5 1.5 2.6
यावसाियक सेवाएँ
9. सामुदाियक, सामािजक एवं 7.4 7.7 8.2
वैयि क सेवाएँ
योग 100 100 100
Source: India labour and Employment Report 2014, IHD, Delhi.
298
उपयु तािलका से प है िक 1985-90 के दौरान 40.4 िमिलयन नये रोजगार के अवसर उपल ध
कराये जा सकगे। इस दौरान 36.3 िमिलयन नये लोग म बाजार म जुड़ जावगे। 1985 से पूव देश म
7.8 िमिलयन यि बेरोजगार थे। 1985-90 के दौरान 44 िमिलयन से अिधक यि बेरोजगार
ह गे जबिक 1985-90 के दौरान कु ल 40 िमिलयन नये रोजगार के अवसर सृिजत ह गे। इस कार
1990के 30 िमिलयन यि बेरोजगारी ि थित म रहगे।
इन आँकड़ के उपरा त भी देश म बेरोजगारी क सही ि थित आंकलन करना अ यिधक
किठन काय है सन् 1991 क जनगणना ने बेरोजगारी क ि थित का कु छ प आंकलन िकया है ।
20.5 भारत सरकार क रोजगार सं बं धी नीित
भारत सरकार ने बेरोजगारी के सं बं ध म 1970 म ''भगवती सिमित क थापना क थी। इस
सिमित ने 16 मई 1973 को अपनी अि तम रपोट तुत क । इसम बताया गया िक 1971 म 187
लाख यि बेरोजगार थ । इनम 90 लाख यि य के पास कोई रोजगार नह था। 97 लाख
यि य के पास स ाह म मा 14 घ टे का काम था अथात् यह भी बेरोजगार क ही ेणी म आते
थे। इस सिमित ने बेरोजगारी' को दूर करने के िन न'सुझाव िदये थे :
1. जनसं या क वृि को रोकने के िलए लड़को को यूनतम िववाह आयु 21 वष तथा लड़िकय
को िववाह आयु- 18 वष को जावे।
2. रोजगार तथा म शि िनयोजन पर एक रा ीय आयोग गिठत िकया जावे।
3. काम देने क मौिलक अिधकार क योजना स पूण देश पर लागू क जावे।
4. बेरोजगार यि य को काम क गारं टी देने के िलए एक देश यापी काय म लागू िकया
जाव।जो लोग रोजगार म लगे हए है उनके िलए रोजगार क हािन होने पर बीमा यव था लागू
क जावे।
5. ामीण े म िव तु ीकरण, सड़क िनमाण, लघु िसंचाई तथा ामीण भवन िनमाण क
योजनाओं को आगामी दो वष म तेजी से लागू िकया जावे। रोजगार काय मो को भावी ढं ग
से लागू करने के िलए आव यक सं साधन क यव था क जावे।
6. स ाह के काम के घ ट को 48 घ टे से घटाकर 42 घ टे िकया जावे कारखान म स ाह म
सात िदन पूरी मता से काम होना चािहए।
7. म धान उ ोग के िलए करो म छू ट और रयायत क यव था क जावे तथा बड़े-बड़े नगर
से उ ोग का िवके ीकरण िकया जावे।
8. कृ िष े म म बचाने वाली भारी मशीन के योग पर िनयं ण लगाया जावे।
9. िश ा तथा िश ण के े म वािषक दर से 5 लाख नौक रय के िलए ब ध िकया जावे।
10. रा य तर पर रोजगार तथा म शि िनयोजन यव था काय क देखभाल के िलए पृथक
िवभाग थािपत िकये जावे।
भारत म सन् 1951 के प ात् थम बार पांचवी पं चवष य योजना म बेरोजगारी दूर करने पर
िवशेष यान िदया गया। इस योजना म अिधक रोजगार उपल ध कराने को एक मुख उ े य माना
299
गया था। इस योजना म यह भी वीकारा गया िक बेकार म शि को समुिचत प म योग म लाने
पर िवकास े को पया मदद िमलेगी।
पांचवी पंचवष य योजना म रोजगार के अवसर बढ़ाने 'के िलए लघु िसचाई, पशुपालन,
दु ध यवसाय वन, भू-सर ण, े ीय िवकास, वेयर-हाउिसं ग, लघु उ ोग, लघु कृ षक िवकास,
सीमा त कृ षक व खेितहर मजदूर क िवकास एजे सी, सूखा त े का िवकास एवं सड़क
प रवहन के िवकास पर िवशेष बल देने का िन य िकया गया। इसके अलावा मजदूरी पर रोजगार
तथा वरोजगार को बढ़ावा देने के िलए ामीण जलापूित, ाथिमक िश ा, भूिमहीन के िलए
आवासीय सुिवधा, ामीण िव तु ीकरण एवं ामीण े म एवं शहर म भवन िनमाण को
ाथिमकता देने पर जोर िदया गया।
छठी पं चवष य योजना (1980-85)
छठी योजनाकाल म कु ल 3 करोड़ 40 लाख यि य को रोजगार देने का काय म िनि त
िकया गया। जबिक कु ल बेरोजगार क सं या 4 करोड़ 60 लाख आंक गयी इस योजनाकाल म
रोजगार म वािषक वृि क दर 4.2% िनधा रत क गई जबिक म शि म वािषक वृि दर 2.5%
अनुमािनत क गई।
छठी योजना म अित र रोजगार के अवसर सृिजत करने के िलए िन न ब ध िकये गये
(1) एक कृ त ामीण िवकास काय म
इस काय म के अ तगत देश के येक ख ड म 3000 िनधन प रवार को कृ िष तथा गैर
कृ िष ध ध म काम देने का ल य िनधा रत िकया गया। यह ामीण िनधनता को दूर करने का
काय म है । इसम येक ख ड म ितवष 600 प रवार को रोजगार उपल ध कराने क यवरथा
क गई िजससे पांच वष म 3000 िनधन प रवार को रोजगार के अवसर ा हो सकगे। इस
काय म म पां च वष क अविध म येक ख ड पर 35 लाख ० खच करने का ावधान िकया
गया। छठी योजना म इस काय म से 1.5 करोड़ प रवार को लाभ पहंचाने का ल य रखा गया। इस
काय म के िलए योजना म 1500 करोड़ 0 तथा बैको से 3000 करोड़ पये का ावधान िकया
गया।
(2) रा ीय ामीण रोजगार काय म
यह काय म ''काम के बदले अनाज'' काय म का सं शोिधत प है । इसके अ तगत सु त
मौसम म िमको को रोजगार दान करने क यव था क गई। इसके ारा वष म 30 से 40 करोड़
म-िदवस सृिजत होने क यव था क गई है ।
(3) ामीण यु वावग व-रोजगार िश ण योजना
इस योजना म ामीण े म ितवष 2 लाख युवा यि य को व-रोजगार का िश ण
देने का काय म िनधा रत िकया गया। इन यि य को िशि त करके व-रोजगार के िलए तैयार
िकया जावेगा िजससे वे वयं का काम-ध धा चालू कर सके । इन िशि त यि य को बै को से
कज िदलवाने क भी यव था क गई। छठी योजना म इस काय म ारा 9.4 लाख युवाओं को

300
िश ण िदया गया। इनम से 50 ितशत से अिधक व-रोजगार म लग गये है । इस काय म का
लाभ अनुसिू चत जाित तथा जनजाित के यि य को भी ा हआ है ।
(4) यू नतम आव यकता काय म
इस काय म के अ तगत ामीण े म ारि भक िश ा, खेतीहर मजदूर के िलए
आवासीय भूख ड, पेयजल अपूित, सड़क िनमाण एवं वा य सुधार आिद क यव था करके नये
नये रोजगार के अवसर सृिजत करने का ावधान िकया गया।
(5) आपरेशन लड- II काय म
इस काय म म एक लाख से अिधक जनसं या वाले नगर म दूध क पूित करने के िलए
िवशेष यास करने का िनणय िकया गया । इस कार क दु धिवकास प रयोजनाओं स दूध
यवसाय म कायरत लाख ामीण प रवार को य तथा परो रोजगार के अवसर ा ह गे तथा
उनक आिथक ि थित म सुधार होगा।
(6) ामीण लघु उ ोग िवकास काय म
इसके अ तगत ामीण े म लघु उ ोग का ती गित से िवकास करना तथा इस े म
90 लाख से अिधक बेरोजगार यि य को रोजगार के अवसर उपल ध कराने का ल य रखा गया।
(7) मछली पालन िवकास काय म
मछली पालन के िवकास को ो सािहत करने के िलए मछली कृ षक िवकास एजेि सय
ारा मछु आर के प रवार को लाभ पहंचाने का काय म िनधा रत िकया गया। यह एजेि सयां देश
के आ त रक तथा तटीय देश म मछली उ ोग को ो सािहत करने के काय करगी।
(8) अनु सू िचत जाित, जनजाित िवकास काय म
छठी योजनाकाल म ामीण े म अनुसिू चत जाित तथा अनुसिू चत जनजाित के
बेरोजगार यि य को रोजगार उपल ध कराने के िलए िवशेष अिभयान चलाने का काय म
िनधा रत िकया गया। िजससे इन जाितय के बेरोजगार िमको को व रत आधार पर रोजगार म
सहभागी बनाया जा सके ।
(9) ामीण भू िमहीन रोजगार गारं टी काय म
यह काय म स पूण देश म सन् 1983 मे लागू िकया गया। इस काय म के ारा ामीण
अथ यव था को सु ढ़ आधार पर िवकिसत करने के िलए िटकाऊ प रस पितय का िनमाण करने
पर जोर िदया गया। इस काय म म भूिमहीन प रवार के कम से कम एक यि को वष म 100 िदन
तक का काम िदलाने का ावधान िकया गया। इस काय म को लागू करने के िलए के सरकार
रा य सरकार एवं सं घीय देश को शत- ितशत अनुदान देती ह।
(10) िशि त बेरोजगार यि य के िलए व-रोजगार काय म
यह काय म 1983 म ार भ िकया गया। इसम शहरी इलाको म रहने वाले बेरोजगार
नवयुव को को व-रोजगार के िलए 25 हजार ० तक का कज देने क यव था है । यह काय म
10 लाख से कम जनसं या वाले शहरी े म लागू िकया गया है । यह काय म िजला उ ोग
के के ारा संचािलत होता है ।
301
(11) रा य सरकार ारा िवशेष रोजगार काय म
देश म म य देश, कनाटक, तिमलनाडु, तथा महारा सरकार ारा अपने रा य म िवशेष
रोजगार काय म लागू िकये गये ह। अनेक रा य ने िशि त बेरोजगारी के िलए िश ण यव था,
िव ीय सहायता तथा अ य सुिवधाय देने का ब ध िकया है । रा य के अकु शल िमको को
रोजगार देने के िलए िवशेष काय म अपनाये गये ह। महारा सरकार ने 1972 से रोजगर गारं टी
काय म लागू िकया है । इस काय म म अकु शल तथा शारी रक म करने वाले िमको को
रोजगार के ब ध िकये जाते ह। महारा सरकार ने 1977 म रोजगार गारं टी कानून भी बनाया है ।
इसी आधार पर अ य रा य सरकार ने भी बेरोजगार लोग को रोजगार देने के काय म बनाये ह।
सातवी पं चवष य योजना म रोजगार सं बं धी नीित
सातवी योजना के ार भ म 92 लाख यि बेरोजगार थे । 1985-90 के दौरान 3.9 करोड़
यि म-बाजार म जुड़ जावगे इस आधार पर कु ल 4.82 करोड़ यि य के िलए रोजगार के
ब ध करने अपेि त ह गे। योजना अविध म 4.04 करोड़ अित र रोजगार के अवसर उपल ध
ह गे। इस कार 82 लाख यि सातव योजना के अ त म बेरोजगार रहगे। इस योजना म रोजगार
को वािषक वृि दर 3.99% रहने का अनुमान है । योजना काल म कृ िष े म 1.8 करोड़
बेरोजगार तथा िविनमाण े म 67 लाख यि य को अित र रोजगार उपल ध होने का अनुमान
लगाया गया था ।
सातव योजना म अित र रोजगार का सृजन करने के िलए िन न काय म व नीितयां
अपनाई गई ह। इनके साथ ही छठी योजना म लागू िकये गये काय म सातव योजना म भी लागू
रहगे।
(1) कृ िष े म सु धार के काय म
कृ िष उ ोग म सुधार करने के िलए िसंचाई सुिवधाओं का पया िवकास एवं पूरा उपयोग
िकया गया है । सूखी खेती म नवीन तकनीक से उ पादन, मोटे अनाज, ितलहन, चावल दाल आिद
के उ पादन म वृि , भूिम सुधार के काय म, पशुपालन, मछली पालन व वृ ारोपण के काय म
व रत आधार पर लागू िकये गये ह।
(2) कृ िष काय के नवीन तकनीक
इनके अ तगत कृ िष का उ पादन बढ़ाने के िलए उवरक, क टनाशक दवाईया व कृ िष से
सं बं िधत मशीन के उपयोग को बढ़ावा िदया गया है ।
(3) लघु उ ोग का िव तार
सातव योजना म लघु उ ोग के िव तार पर िवशेष बल िदया गया िजससे ामीण तथा
शहरी े म अिधक रोजगार के अवसर सृिजत हए ह ।
(4) भवन िनमाण
भवन िनमाण के काय म ामीण तथा शहरी े म तेजी से लागू िकये गये । भवन िनमाण
एवं गहन रोजगार काय म ह िजससे काफ बड़ी मा ा म रोजगार सृिजत होते ह ।

302
(5) बाढ़-िनयं ण एवं िसंिचत े िवकास
देश म बाढ़-िनयं ण के काय म तथा िसंिचत े िवकास काय म के ारा रोजगार के
नये अवसर सृिजत िकये गये ह।
(6) प रवहन सुिवधाओं का िवकास
सातव योजना म ामीण तथा शहरी सड़क के िवकास पर िवशेष जोर िदया गया है ।
इसके साथ ही आ त रक जल-प रवहन, सड़क प रवहन, समु ी जहाज के िनमाण आिद ारा नये
रोजगार के अवसर उपल ध कराने क यव था क गई है ।
भारत म पं चवष य योजनाओं के अ तगत रोजगार उपल ध कराने के िवशेष काय म
अपनाये गये ह । देश म ामीण िनमाण काय म तथा ामीण रोजगार क शी प रणाम देने वाली
योजना- े श क म आिद पर भारी मा ा म िविनयोग िकया गया है । इनसे रोजगार के नये अवसर
का सृजन हआ है । सातव योजना म एक कृ त ामीण िवकास काय म, रा ीय ामीण रोजगार
काय म, ामीण युवाओं के िलए वरोजगार िश ण काय म, िशि त बेरोजगार के िलए
व-रोजगार काय म तथा ामीण भूिमहीन रोजगार गारं टी क म आिद के लागू होने से करोड़
बेरोजगार यि य को रोजगार तथा व-रोजगार के अवसर ा हए ह ।
रा ीय रोजगार सेवा
भारत म रा ीय रोजगार सेवा 1965 म ार भ क गई इसके अ तगत िशि त कमचा रय
ारा अनेक रोजगार काय म ार भ िकये गये । यह रोजगार कायालय काम क तलाश करने वाले
सभी कार के यि य को रोजगार उपल ध कराने म सहायता करता है । इन कायालय म भूतपूव
सेिनक, अनुसिू चत जाित एवं जनजाित , िव िव ालय के िव ाथ , शरी रक प से अपं ग यि
तथा यावसाियक और ब धक पद के उ मीदवार को रोजगार ा करने म सहायता एवं सहयोग
िदया जाता है । रोजगार कायालय कानून 1959 के अ तगत 25 या 25 से अिधक िमको को
रोजगार देने वाले मािलको को रोजगार कायालय म अपने यहां के र पद के बारे म सूचना देते
रहना अिनवाय है ।
देश के सम त रोजगार कायालय तथा सभी िव िव ालय के रोजगार सूचना तथा
मागदशन के ारा युवक-युवितय को काम ध धे से संबं िधत मागदशन और रोजगार सं बधं ी
परामश िदया जाता है ।
िशि त युवक-युवितय को लाभदायक रोजगार िदलाने क िदशा म वृत करने के िलए
रोजगार और िश ण महािनदेशालय के मागदशन और आजीिवका परामश काय म को िव तृत
और यवि थत िकया गया है । रोजगार सेवा अनुसं धान और िश ण के के ीय सं थान म रोजगार
सं बं धी मागदशन चाहने वाल को यवसाय सं बं धी सािह य भी उपल ध कराया जाता है ।
भारत म बेरोजगारी क सम या का समाधान करने के िलए िन न िबं द ुओं पर िवशेष यान
िदया जाना अपेि त है :
(1) योजनाओं म िविनयोग के व प म प रवतन िकया जावे।
(2) जनसं या क वृि दर को भावी प से िनयं ि त िकया जावे ।
303
(3) िविनयोग क दर म वि क जावे ।
(4) जनशि का भावी िनयोजन िकया जावे ।
(5) कृ िष े म सं थागत प रवतन िकये जावे ।
(6) कृ िष के िविभ न सहायक ध ध का िवकास िकया जावे ।
(7) ामीण े म रोजगारो मुख िनयोजन िकया जावे ।
(8) ामीण िनमाण काय म का िव तार िकया जावे ।
(9) िश ा णाली म प रवतन िकया जावे ।
(10) रोजगार दान करने वाले कायालय का ामीण े म िव तार िकया जावे ।
(11) महारा सरकार क रोजगार गारं टी योजना के आधार पर अ य रा य म काय म बनाये
जावे ।
(12) ामीण औ ौगीकरण को बढ़ावा िदया जावे ।
(13) मिहलाओं के िलए रोजगार के अवसर बढ़ाये जावे ।
(14) कृ िष े म वृि क जावे । लाख एकड़ बं जर तथा बेकार पड़ी जमीन को अ प यास
से कृ िष यो य बनाया जा सकता है । इससे ामीण े म रोजगार म वृि होगी ।
(15) मानवीय म पर अिधकािधक बल िदया जाना चािहए ।
(16) देश म सावजिनक सेवाओं, शासिनक सेवाओं तथा सामािजक सेवाओं का िव तार
करना चािहए इससे िशि त बेरोजगार को रोजगार ा होगा ।
दसवी पं चवष य योजना म रोजगार सं बं धी नीित
महानरेगा
रा ीय ामीण रोजगार अिधिनयम िकसी एक िवि य वष म येक ऐसे ामीण प रवार के
एक य क सद य को कम से कम 100 िदन रोजगार क गारं टी दान करता है जो अकु शल
शारी रक म के िलए तैयार है । इस कार MGRNREGS अ य मजदूरी रोजगार काय म से
इस अथ म िभ न िक है क वह ामीण जनता को संसद के एक अिधिनयम से मा यम से रोजगार
क कानूनी गारं टी दान करता है और मा अ य मजदूरी रोजगार काय म क तरह का ही एक
काय म नह है । अिधकार आधा रत ढाँचे के कारण तथा मां ग े रत ि कोण के कारण
MGRNREGS िपछड़े मजूदरी रोजगाकर काय म से िनता त िभ न है । मु य िवशेषताएं है -
समयब रोजगार गारं टी तथा 15 िदन म मजदूरी भुगतान , रा य सरकार को रोजगार दान करने के
िलए ो साहन (इस योजना म यह ावधान है िक रा य सरकार रोजगार दान करती है तो उसक
90 ितशत लागत के सरकार उठाएगी और यिद वह ऐसा नह करती तो पूरा बेरोजगारी भ ा उसे
वयं देना होगा ) तथा म धान काय म को लागु करना (िबना ठे केदार और िबना मशीनरी का
योग िकए।) लाभभोिगय म कम से कम 33 ितशत ि यां होनी चािहए।

304
यह अिधिनयम िवके ीकरण तथा नीचे तथा नीचे के तर तक जातांि क ढाँचे को मजबूत करने
का एक अनमोल अ भी है । महानरेगा के अ तगत मजदूरी दर 100 पये ित िदन रखी गई थी।
महानरेगा का काया वयन
महानरेगा िव भर म पहला अिधिनयम है जो इतने बड़े पैमाने पर मजदूरी रोजगार गार टी देता है ।
महानरेगा क मु य उपलि धयां िन निलिखत है ।
1. रोजगार अवसर क वृि
2. मजदूरी आय म वृि तथा यूनतम मजदूरी का भाव
3. मिहलाओं व िपछड़े वग को अिधक लाभ
4. िवि य अ वेशन या समावेशन
5. देश के ाकृ ितक सं साधन आधार को मजबूत बनाना
महानरेगा क आलोचनाएं
1. काया वयन म अनु साह - हाल क अिवध म महानरेगा को लागू करने म अनु साह
फै ल रहा है । रोजगार सृजन क गित हकम हो रही है ।
2. काया वयन म अिनयिमतताएं - महानरेगा के काया वयन म यापक अिनयिमताएं है
तथा घूसखोरी या है ।
3. नामावली म छे ड़छाड़ - नामावली म छोड़छाड व प रवतन करने के कई िक से सामने
आए है । उदाहरण के िलए अनुपि थित को उपि थिम म बदलने , काम के िदन म हेर फे र
जैसी गड़बिड़या क गई है ।
4. यापक ाचार - िविभ न शोधकताओं और सं गठन ारा देश के िविभ न भाग म
िकए गए सव ण म महानरेगा म यापक तर पर फै ले ाचार का पता लगा है ।
5. मजदू री के भु गतान म देरी - कई रा य से िशकायत आई ह िक मजदूरी का भुगतान 15
िदन क िनधा रत अविध मे नह िकया जाता है । जो लोग महानरेगा के काय म काम
करने आते है ।
6. मजदू री का िगरता िह सा - यह बात सामने आई है िक कई ाम पंचायत के भुगतान
क िह से म तेज िगरावट आई है ।
7. टाफ क कमी - महानरेगा के सफल काया वयन मे समिपत शासिनक व तकनीक
टाफ क कमी एक बहत बड़ी अड़चन रही है ।
8. बेरोजगारी भ े क अदायगी न होना - जैसा पहले कहा गया है, अिधिनयम क
धाराओं म यह यव था है िक बेरोगारी भ े का भुगतान रा य सरकार को करना पड़ेगा।
यह ावधान को इसिलए शािमल िकया गया तािक रा य सरकार रोजगार दान करने क
भरसक कोिशश कर य िक रोजगार दान करने क 90 ितशत लागत का भार के
सरकार उठाती है ।

305
20.6 भारत म िशि त वग म बेरोजगारी
हमारे देश म िशि त वग म बेरोजगारी क ग भीर सम या है । िशि त वग म बेरोजगारी का
एक कारण यह रहा है िक हमारे यहां िपछले वष म िजस प रमाण म िश ा का िव तार हआ है उस
तुलना म अथ यव था का िवकास नह हआ है । रोजगार सेवा कायालय म मैि क तथा उससे ऊपर
क यो यता वाले लाख बेरोजगार यि य के नाम ितवष पं जीकृ त होते रहते ह । देश के लाख
िशि त बेरोजगार ऐसे भी ह िज ह ने िक ह कारण से रोजगार कायालय म अपने नाम पं जीकृ त
नह कराये ह । इन सब का कु ल योग अ यािधक भयावह ि थित का िच ण तुत करता है । हमारे
देश म के रल, पि मी बं गाल, महारा और उ र देश म आधे से अिधक िशि त बेरोजगार िनवास
करते ह ।
1985 म िशि त बेरोजगारी क सं या 47 लाख आँक गई थी । इनम 32 लाख मैि क
तथा हायर सेके डरी पास बेकार यि थे तथा 12 लाख यि नातक तर तथा ािविधक
िड लोमा िड ी ा थे।
सातव योजना काल म िशि त बेरोजगारी क सं या म काफ वृि होने का अनुमान है ।
1985 म देश म िशि त िमको क सं या 3 करोड़ थी । 1990 तक यह बढ़कर 4.1 करोड़ हो गई
है । इस कार सातव योजना के दौरान 1.1 करोड़ नये िशि त यि जुड़ गये ह ।
हमारे देश म िशि त वग म बेरोजगारी का एक मुख कारण िश ा नीित तथा मानव शि
िनयोजन म सम वय का अभाव रहा है । देश म एक ओर ािविधक यो यता ा िशि त वग के
लोग बेरोजगार बने रहते ह जबिक आिथक िवकास के िलए आव यक यो यता एवं द ता वाले
लोग का अभाव रहता है । देश म क यूटर िशि त यि य , इलेि कल तथा मेकेिनकल
इ जीिनयर , डा टर, सजन, पेरा मेिडकल टाफ इलेि िशयन िव िव ालय के ा यापको तथा
उ चतम मा यिमक िव ालय म िव ान तथा गिणत के अ यापको क कमी रहती है । जबिक
नातक तथा नातको र िड ीधारी कला एवं वािण य िवषय के िशि त यि बेरोजगार का
अ प रोजगार क ि थित म अनेक वष तक भटकते रहते ह ।
इस ि थित को दूर करने के िलए मा यिमक िश ा के बाद िव िव ालय म जाने क वृि
को रोका जाना चािहए । दसव क ा के बाद छा को यावसाियक िश ा ा करने के िलए
ो सािहत करना चािहए । इसके िलए औ ोिगक िश ण सं थान, पोलीटेकिनक व कृ िष कू ल
आिद का िव तार करने क नीित होनी चािहए तकनीक िश ा ा यि य के िलए वरोजगार
काय म के अ तगत लघु उ ोग क थापना को ो सािहत करना चािहए । नौक रय म िड ी क
अिनवायता को समा करना चािहए ।
20.7 भारत मे उ ोगीकरण तथा रोजगार
वतं ता ाि के पूव हमारा देश औ ोिगक ि से काफ िपछड़ा हआ था । उस समय
कु ल िमको का 9.3 ितशत खनन तथा िविनमाण के काय म कायरत था । 1971 मे 9.8 ितशत
306
था तथा 1981 म यह ितशत बढ़कर 12.7 हो गया । 1951 से 1981 के दौरान 30 वष म इसम
मा 3 ितशत क वृि हई । भारत का 1951 के बाद औ ोिगक िवकास हआ है । औ ोिगक
उ पादन के आधार पर भारत का िव के मुख औ ोिगक देश म िविश थान हो गया है ।
वतं ता ाि के प ात् ारि भक वष म भारत मे उपभो ा-व तुओ ं के उ ोग क धानता थी ।
इ पात, सीमे ट, उवरक, भारी रसायन, भारी मशीनरी आिद उ ोग का अभाव था । अतः योजना के
ारि भक वष म देर का औ ोिगक ढांचा काफ िवकृ त तथा अस तुिलत था । देश म पूं जीगत
उ ोग का अभाव था । योजनाकाल म आधारभूत तथा भारी उ ोग को सावजिनक े म थािपत
करने के काय म िनधा रत िकये गये । 1980-81 म देश म 96,503 फै ि य म 77.20 लाख
यि रोजगार पर िनयोिजत थे ।
पं चवष य योजनाओं के दौरान औ ोिगक िनयोजन के अ तगत िन निलिखत उ े य पर
जोर िदया गया ।
(1) सावजिनक े का ती गित से िव तार करना िजससे यह औ ोिगक े म भु व
क ि थित ा कर सके ।
(2) भारी आधारभूत तथा पूं जीगत उ ोग के िवकास को ाथिमकता देना ।
(3) औ ोिगक िवकास ारा े ीय असमानताओं व अस तुलन को दूर करना ।
(4) औ ोिगक उ पादन मता म िव तार करना ।
(5) आिथक स ा के िनजी हाथ के के ीयकरण को कम करना तथा एकािधकार क
वृि पर अंकुश लगाना।
(6) अथ यव था म कु टीर तथा लघु उ ोग के िवकास पर िवशेष यान देना ।
िपछले 40 वष म देश म उपभो ा उ ोग के अ तगत चीनी, वन पित, सूती व ,
साईिकल आिद उ ोग का िवकास हआ है म यवत उ ोग म सूत , जूट का माल, मनु य िनिमत
रेशे, तथा पै ोिलयम पदाथ उ पादन करने वाले उ ोग का िवकास हआ है । आधारभूत उ ोग म
इ पात, सीमे ट, उवरक व िव तु आिद उ ोग का िवकास हआ है और पूं जीगत उ ोग के
अ तगत िविभ न कार के भारी मशीनरी तथा इ जीिनय रं ग उ ोग एवं प रवहन उपकरण के उ ोग
क थापना क गई है । इन सभी उ ोग क थापना से देश म रोजगार के अवसर म वृि हई है ।
देश म औ ोिगक करण क ि या का सू पात 1951 के बाद ार भ हआ । इस काय म
म सावजिनक तथा िनजी े म भारी मा ा म पूं जी िनवेश िकया गया है । देश म औ ोिगक आधार
का अनेक े म िव तार हआ है । आधार तथा पूं जीगत उ ोग म आ मिनभरता ा क है ।
औ ोिगक करण के कारण देश म ब धक य एवं साहस उठाने वाल के एक नये वग का ज म हआ
है।
भारत क रजव बक आफ इि डया ने भारतीय अथ यव था के सं गिठत े म रोजगार क
वृि का अ ययन िकया है । सं गिठत े म वे सभी ित ान सि मिलत होते ह िजनम सावजिनक
े या िनजी े के अधीन कृ िष से िभ न े म 10 या अिधक िमक काय करते ह ।

307
तृतीय पं चवष य योजनाकाल म रोजगार म औसत वािषक वृि दर 6.0 ितशत रही । यह
सावजिनक े म 5.9 ितशत और िनजी े म 6.2% थी । 1966-67 और 1967-68 के दो
वष म सूखे और औ ोिगक े के ितसार के कारण रोजगार क ि थित म िगरावट आ गई थी
इसके बाद क वािषक योजनाओं म रोजगार क च वृि क दर मा एक ितशत रही ।
सावजिनक े म बेरोजगार क वािषक वृि दर 2.6 ितशत आँक गई जबिक इसी दौरान िनजी
े म यह वृि दर नकारा मक होकर (-) 1.3 ितशत तक िगर गई । वािषक योजनाओं के दौरान
यापक तर पर िनजी े म िमको क छटनी के कारण रोजगार क वृि नकारा मक रही ।
चौथी पं चवष य योजना के दौरान रोजगार क ि थित म सुधार हआ और सं गिठत े म
औसत वािषक वृि क दर 3 ितशत हो गई ।
इस दौरान सावजिनक े म औसत वृि क दर 4.4 ितशत आँक गई जबिक िनजी
े म यह मा 0.8 ितशत थी । प है िक चौथी योजना काल म िनजी े म रोजगार के बहत
कम अवसर उपल ध हए । चौथी योजना के दौरान सरकार ने 14 बड़े यावसाियक बक का
रा ीयकरण िकया था इसके साथ ही कोिकं ग कोल माइ स का काम भी सरकारी े म ले िलया
गया था तथा अनेक बीमार सूती व क िमल को भी सरकार ने अपने वािम व म ले िलया था ।
िनजी े म सावजिनक े म इन सं थान के प रवतन के कारण िनजी े म रोजगार के अवसर
कम हो गये और सावजिनक े के रोजगार म वृि हई सावजिनक े म रोजगार म 3.3 ितशत
क ही वृि हो पाई । 1979-81 म सावजिनक तथा िनजी े म रोजगार म बहत ही धीमी गित से
वृि हई। यह वृि दर 1.5 ितशत हो रही जो कायकारी जनसं या क वृि दर से बहत कम थी ।
तािलका 20.2
भारत मे संगिठत े मे रोजगार क वृ ि
वष रोजगार ा िमको क सं0 (लाख म) ितशत भाग
सरकारी े िनजी े कु ल सरकारी े िनजी े
1961 70.50 50.40 120.90 58 42
1972 113.05 67.69 180.74 63 37
1980 150.78 72.37 223.15 68 32
1981 154.80 74.37 229.17 68 32
1991 190.6 76.8 267.4 71.20 28.8
2001 191.4 85.5 276.9 69.12 30.88
2011 175.5 114.2 289.7 60.58 39.42
ोत- रजव बक आफ इि डया बु लेिटन
उपयु तािलका से प है िक 1961-81 के बीच सावजिनक ै म िनर तर वृि होती
रही तथा कु ल रोजगार म सावजिनक े म रोजगार 58 ितशत से बढ़कर 68 ितशत हो गया ।
इसके िवपरीत िनजी े म रोजगार क मा ा 42 ितशत से पटकर मा 32 ितशत रह गई प है

308
िक सरकारी े के उ ोग सं गिठत े मे कु ल रोजगार के दो-ितहाई से अिधक रोजगार के अवसर
क यव था कर रहे थे । जबिक िनजी े म एक-ितहाई से कम रोजगार क अवसर उपल ध कराये
गये थे । उपयु तािलका के अनुसार 1961-81 के दौरान रोजगार क वािषक वृि क दर मे
िनर तर िगरावट आई है । सरकारी े म 1961-66 के बीच वािषक वृि दर 5.9 ितशत थी ।
1966- 69 म यह घट कर 2.6 ितशत हो गई । 1969- 74 म इसम सुधार हआ और यह बढ़कर
4.4 ितशत उिचत क गई । 1974-79 म उसम पुन : िगरावट आई और 3.8 ितशत रही । अगले
दो वषा म इसका औसत मा 1.5 ितशत ही रहा । इसी कार िनजी ै म रोजगार क वािषक
वृि दर 1961.66 म यहाँ 6.2% थी यह अगले तीन वष (1966-69) म नकारा मक होकर (-)
1.3 ितशत अंिकत क गई । 1969.74 म इसम सुधार हआ जब यह बढकर 3.0 ितशत हो गई ।
1974-79 म इसम पुन : िगरावट आई तथा यह 2.8 ितशत तक घट गई । अगले दो वष म इसम
काफ कमी रही और यह 1.5 ितशत पर बनी रही । सावजिनक तथा िनजी े दोन के कु ल योग
का िव ेषण करने पर ात होगा िक 1961-66 म कु छ रोजगार म 6.0 ितशत क वृि आँक गई
। 1966-69 म यह वृि मा 1.0 ितशत रही। 1969-74 म इसम सुधार हआ जब यह बढ़कर 3.0
ितशत हो गई । 1974-79 म यह वृि दर िगरकर 2.8 ितशत रही और अगले दो वष म
(1979.81) मे इसम पुन : िगरावट आई और यह 1.5 ितशत हो अंिकत क गई ।
िन न तािलका म सावजिनक े तथा िनजी े म े ानुसार रोजगार क वृि को
दशाया गया है ।
तािलका 20.3 भारत मे रोजगार क े ानुसार वृ ि (हजार म)
औ ोिगक वग करण सरकारी े िनजी े
रोजगार वािषक रोजगार वािषक
1961 1979 च वृि 1961 1979 च वृि
दर दर
1. बागान उ ोग एवं 180 777 8.5 670 841 1.2
बािनक
2. खनन एवं खदान 129 771 10.4 550 124 -7.8
3. िविनमाण 369 1416 7.8 3020 4433 2.1
4. िनमाण 603 1032 3.0 240 83 -5.6
5. िबजली गैस 224 634 5.9 40 34 -0.9
जलस भारण
6. यापार एवं वािण य 94 99 0.3 160 281 3.1
7. प रवहन एवं संचार 1724 2597 2.3 80 71 -0.6
8. सेवाये 3727 7718 4.1 280 1341 9.0
योग 7050 15045 4.3 5040 7232 2.0

309
उपयु तािलका 20.3 से प है िक 1961-79 के बीच सरकारी े म खनन एवं खदान
मे सबसे अिधक 10.4 ितशत क वृि दर ा हई। इसके बाद बागान एवं वािनक म 8.3% और
िनमाण उ ोग म 7.8% क वृि दर आँक गई। प रवहन एवं सं चार उ ोग म के वल 2.3% क
वृि दर रही। िनजी ै म सबसे अिधक वृि दर सेवाओं मे 9% रही िक तु खनन एवं खदान तथा
िविनमाण उ ोग म रोजगार क ि थित िनराशाजनक रही य िक इन उ ोग म रोजगार क वृि
नकारा मक आँक गई ।
1961-79 के दौरान सं गिठत े म रोजगार क वृि दर मा 3.45 ितशत आँक गई।
देश म पूण रोजगार क ि थित को ा करने के िलए यह वृि दर बहत ही िनराशजनक रह । अतः
यह आव यकता महसूस क गई िक हम हमारी रा ीय नीितय म इस कार प रवतन करना चािहए
िक िजससे उ पादन क अिधक वृि दर का रोजगार क अिधक वृि दर से सामज य थािपत
िकया जा सके । उ पादन क दर बढ़ाने के िलए िविनयोग दर म तेजी से वृि करने के ब ध िकये
जावे तथा रोजगार के अिधक अवसर उपल ध कराने के िलए अधुिनक करण के नाम पर म बचाव
मशीनरी के चलन क गित को धीमा िकया जाना चािहए ।
तािलका 20.4
भारत म 1971-1987 के बीच सावजिनक तथा िनजी े म रोजगार क ि थित
(हजार म)
उ ोग 1971 1976 1981 1985 1986 1987
सावजिनक े
1. कृ िष तथा सं बिधत उ ोग 281 350 463 498 526 557
2. खिनज नथा खनन 254 719 818 974 966 942
3. िविनमाण 862 1113 1502 1761 1815 1862
4. िनमाण उ ोग 595 992 1089 1146 1181 1184
5. िबजली गैस तथा 455 536 683 760 785 791
जलापूित
6. यापार एवं यवसाय 367 56 117 131 131 134
7. यातायात व संवाद वहन 2238 2418 2409 2894 2929 2972
8. सेवाये 5476 7129 8103 9106 9315 9587
योग 11,098 13,322 15,484 17,269 17,683 18,028
िनजी े
1. कृ िष तथा सं बिधत उ ोग 824 827 858 807 822 848
2. खिनज नथा खनन 340 132 130 113 111 91
3. िविनमाण 3940 4158 4545 4421 4421 4409
4. िनमाण उ ोग 163 94 72 70 70 58
310
5. िबजली गैस तथा 46 35 35 39 39 40
जलापूित
6. यापार एवं यवसाय 294 287 277 277 277 277
7. यातायात व संवाद वहन 94 74 60 54 54 52
8. सेवाये 1032 1238 1418 1528 1528 1588
योग 6734 6844 7395 7309 7309 7369
सावजिनक तथा िनजी े
योग 17,832 20,717 22,842 24,578 25,056 25,397
ोत- आिथक सव ण-1988-89 तथा अ य ोत
उपयु तािलका से प होता है िक िनजी े क तुलना म सावजिनक े म रोजगार के
अिधक अवसर उपल ध हए है । सावजिनक े म िविनमाण उ ोग म अ यिधक रोजगार के
अवसर सृिजत हए है । इसके बाद भवन िनमाण उ ोग म अिधक रोजगार सृिजत हआ है । सेवाओं
म भी नये-नये रोजगार के अवसर सृिजत होते रहते है ।
िनजी े म भी िविनमाण उ ोग म ही सवािधक रोजगार क यव था रही है । इसके बाद
सेवाओं म और कृ िष उ ोग म रोजगार के अिधक अवसर ा होते रहे है । सावजिनक े म सबसे
कम रोजगार के अवसर यापार तथा यवसाय म सृिजत हए जबिक िनजी े म यातायात तथा
सं वादवहन के े म रोजगार के अवसर कम सृिजत हए ।
तािलका 20.5
भारत म रोजगार के आकार के अनुसार फै ि य मे मुख ल ण
रोजगार का आकार फै ि य क सं या रोजगार (हजार म)
0-49 िमक 79,297 1,306
(78.5) (17.5)
50-99 िमक 10,959 707
(10.9) (10.7)
100-199 िमक 5,356 756
(5.3) (10.1)
200-499 िमक 3,286 1,339
(3.2) (18.0)
500-999 िमक 1,208 1,042
(1.2) (13.9)
1000-1999 िमक 550 911
(0.5) (12.2)
2000-4999 िमक 308 885
311
(0.3) (11.8)
5000 और अिधक िमक 52 43
(0.1) (5.8)
योग 1,01,016 7,472
(100.0) (100.0)
िपछले दशक म देश म रोजगार क ि थित म िवशेष सुधार नह हआ है । छठी पंचवष य
योजना के अ त म ल य से अिधक रोजगार के अवसर सृिजत हए है । सातवी योजना म भी 4 करोड़
से अिधक रोजगार के अवसर सृिजत होने का अनुमान लगाया गया है । पर तु िपछले वष क
बेरोजगार क सं या को नई म शि म जोड़ने पर सातवी योजना क समाि पर 82 लाख से
अिधक यि बेरोजगारी क ि थित म रहगे ।
रोजगार के बारे म वतमान ि थित
ी टी0 एस0 पपोला के अनुमान के अनुसार 1972-73 से कु ल रोजगार क िवकास दर म
िगरावट आ रही है । छठी तथा सातव योजना के दौरान सकल उ पादन म वृि होने के उपरा त भी
देश म रोजगार क वृि दर जनसं या क वृि दर से कम रही है । कृ िष े म रोजगार म िगरावट
आई है और ामीण े म ामीण यि य क अ य उ ोग यवसाय म काम न िमलने के कारण
बेरोजगारी तथा अ प रोजगार क मा ा म वृि हई है । इस ि थित म िमको को भवन िनमाण तथा
खनन उ ोग म रोजगार के अवसर बदलने से कु छ राहत िमली है । 1983 से 1987-88 के दौरान
देश म रोजगार म मा 1.55 ितशत ितवष क वृि हई है जबिक इस दौरान जनसं या 2.1
ितशत बढ़ा है और कायशील जनसं या म इससे भी अिधक वृि हई है भारत म 1972 से 1988
तक क अविध म रोजगार क वृि क दर िन न कार थी ।
तािलका 20.6
भारत मे मुख े म रोजगार वृ ि दर
े 1972 -73 से 1977-78 से 1983 से
1977-78 1983 1987-88
कृ िष 2.32 1.20 0.65
खिनज एवं खनन 4.68 5.58 6.16
िविनमाण 5.10 3.75 2.10
िबजली गैस तथा जलापूित 12.23 5.07 4.64
यातायात तथा संवाद वहन 4.85 6.35 2.67
अ य सेवाए 3.67 4.69 2.50
योग 2.82 2.22 1.55
ोत-इकोनोिमक ए ड पोिलिटकल वीकली-2 फरवरी 1991

312
80 के दशक मे रोजगार क ि थित म एक िवषय सम या यह उ प न हई िक सं गिठत
औ ोिगक े म रोजगार क वृि दर बहत ही कम रही है । इस दशक म िबजली गैस जलापूित
और अ य सेवाओं को छोड् कर सं गिठत े म रोजगार क वृि दर जनसं या क वृि दर से कम
रही है । इस दशक म भूिमहीन कृ षको क सं या म भी अपे ाकृ त वृि हई हए । इस कारण ामीण
े म खुली बेरोजगारी बढ़ी है । शहरी े म 1973 म खुली बेरोजगारी 2.77 ितशत थी ।
1987-88 म यह बढ़कर 3.77 ितशत हो गई ।
देश म 1990-95 के दौरान म 3 करोड़ 70 लाख नये यि य के म शि म जुड़ने का
अनुमान है । 1995-2000 के दौरान 4 करोड़ 10 लाख अित र यि म' शि म जुड़ जायगे।
यिद हम 1995 तक सभी रोजगार चाहने वाल को काम देने का ल य रखते है तो आठव योजना म
6 करोड़ 50 लाख नये रोजगार के अवसर सृिजत करने थे । सन् 2000 तक पूण रोजगार देने का
ल य िनि त होता है तो 10 करोड़ 60 लाख नये रोजगार के अवसर उ प न करने पड़गे ।
रोजगार के इन ल य को ा करने के िलए हम रोजगार क वािषक वृि दर को आठवी
योजना म 4.0 ितशत ितवष होनी चािहए थी । पर तु 1983- 1987 के बीच हमारे यहां रोजगार
क वािषक वृि दर मा 1.55 ितशत ही रही है । इसिलए हम 2000 तक पूण रोजगार का ल६य
िनधा रत करते हए 1990-2000 म रोजगार क वािषक वृि दर 3 ितशत ितवष से अिधक
िनि त करने के बावजूद बेरोजगारी क सम या समा नह होगी एवं भारतवष बेरोजगार क एक
बड़ी सेना के साथ -इ कसव शता दी म वेश करेगा ।
20.8 सारां श
बेरोजगारी का व प तथा आकार
1. बेरोजगारी का अथ-बेरोजगारी का व प संचालक बेरोजगारी -बेरोजगारी के कार – छ न
बेरोजगारी-खुली बेरोजगारी-िशि त बेरोजगारी- ामीण े म बेरोजगारी -िवकिसत तथा
अिवकिसत देश म बेरोजगारी का व प-बेरोजगारी के कारण-भारत म बेरोजगारी के अनुमान
2. भारत सरकार क रोजगार सं बं धी नीित-बेरोजगारी दूर करने के सुझाव -भारत म िशि त वग म
बेरोजगारी
3. भारत म औ ोिगक करण एवं रोजगार-भारत म सं गिठत े म रोजगार क वृि -भारत म
रोजगार क े ानुसार वृि -भारत म 1971 -87 के बीच सावजिनक तथा िनजी े म रोजगार
क ि थित-भारत म रोजगार के आकार के अनुसार फै ि य म मुख ल ण-रोजगार के बारे म
वतमान ि थित ।
20.9 कु छ उपयोगी पु तक
1. भारतीय अथ यव था  ए.एन.अ वाल
2. भारतीय अथशा  ल मी नारायण नाथूरामका

313
3. आिथक िवकास के िस ा त  ो. जी.एल.गु ा
एवं भारत म आिथक िनयोजन
4. भारतीय अथ यव था  द एवं सुदं रम्
5. भारतीय अथ यव था  डा0 मामो रया एवं जैन
6. Indian Economy  S.K. Ray
7. Indian Economy  A.N. Agarwal
Problems of Development
and Planning
8. India – Economic  A.N. Agarwal, H.O.Verma and R.C.
Information Year Book Gupta
1989-90

20.10 िनब धा मक
1. भारत म बेरोजगारी क सम या एवं समाधान पर एक िव ेषणा मक लेख िलिखये ।
सं केतः इसम बेरोजगारी क सम या तथा इसे दूर करने के उपाय का िव तार से वणन करना है ।
2. भारत म बेरोजगारी के कारण पर काश डािलये । देश म इस सम या के हल के िलए या
यास िकये जा रहे है? इसको दूर करने के िलए आप या उपाय बतायगे ?
सं केतः इसम बेरोजगारी के कारण िलखने है तथा इसे दूर करने के िलए पं चवष य योजनाओं म
तथा िवशेष प से 1970 के बाद के यास का उ लेख करना है ।
3. भारत म ामीण बेरोजगारी के व प पर काश डािलये । इस सम या के समाधान के िलए
आप या उपाय सुझायगे ?
सं केत.इसम ामीण बेरोजगारी के कारण तथा ामीण बेरोजगारी के सरकारी यास देने है ।
4. भारत म िशि त बेरोजगारी क वतमान ि थित का उ लेख क िजये । आयोजना काल म
बेरोजगारी बढने के कारण का िव ेषण क िजये ।
सं केतः इसम िशि त बेरोजगारी क ि थित के बारे म उ लेख करना है । योजनाकाल म िजन
कारण से बेरोजगारी बढ़ी है उन कारण का उ लेख करना है ।

314
इकाई 21
कृ िष भू िम स ब ध एवं भू िम सुधार
(Agrarian Relation and Land Reforms)
इकाई क परेखा
21.0 उ े य
21.1 तावना
21.2 कृ िष भूिम स ब ध
21.2.1 कृ िष भूिम स ब ध से ता पय
21.2.2 कृ िष भूिम स ब ध के कार
21.2.3 कृ िष भूिम स ब ध क समी ा के िलए िनयु कमचारी दल
21.2.4 कृ िष भूिम स ब ध म समय के साथ हए प रवतन
21.3 भारत म भूिम सुधार काय म
21.3.1 भूिम सुधार काय म से ता पय
21.3.2 भूिम सुधार काय म के उ े य
21.3.3 भूिम सुधार काय म
 म य थ क समाि
 भू-धारण प ित म सुधार
 जोत क उ चतम सीमा िनयत करना
 कृ िष भूिम का पुनगठन/जोत चकब दी करना
 सहकारी कृ िष का गठन
21.3.4 भूिम सुधार कानून के ि या वयन से ा लाभ
21.3.5 भूिम सुधार काय म क असं तोषजनक गित के कारण
21.4 सारां श
21.5 श दावली
21.6 कु छ उपयोगी पु तक एवं पाठ् य साम ी

315
21.0 उ े य
भारतीय अथ यव था का िवकास िवषय के इस तृतीय ख ड क तुत इकाई म कृ िष भूिम
स ब ध एवं भारत म हए भूिम सुधार काय म का िववेचन िकया जा रहा है । तुत अ ययन के
प ात् आप िन न ान ा कर सकगे :-
 कृ िष भूिम स ब ध को प रभािषत करते हए उ ह िविभ न ेिणय म वग कृ त कर सकगे।
 कृ िष भूिम स ब ध म हए प रवतन एवं उनसे कृ िष उ पादन पर होने वाले भाव का ान
ा कर सकगे ।
 भूिम सुधार काय म से ता पय एवं िविभ न भूिम सुधार काय म के कारण कृ षको को
ा लाभ का ान ा कर सकगे ।
 भूिम सुधार काय म को अपनाने म आने वाली किठनाईय का ान ा करके उनके
सुधार हेतु उपाय सुझा िव कर सकगे ।
21.1 तावना
पूव इकाइय म भारत म या गरीबी एवं आय असमानता तथा कृ िष िमको म या
बेरोजगारी सम या उसक वृि , बेरोजगारी का आकलन व इस सम या को हल करने के िलए
अपनाए गए उपाय का अ ययन आप कर चुके है । गरीबी एवं बेरोजगारी दोन ही देश क मुख
आिथक सम याएं है िजनके होने मे देश म िवकास क गित म ती ता नह आ पाई है । तुत इकाई
म कृ िष भूिम स ब ध एं व भूिम सुधार काय म का िववेचन िकया जा रहा है जो उपयु दोन ही
सम याओं को उ प न करने म सहायक रहे है ।
कृ िष भूिम स ब ध तथा भूिम सुधार काय म एवं कृ िष उ पादन म घिन स ब ध होता है ।
उिचत कृ िष भूिम स ब ध के होने तथा भूिम सुधार काय म अपनाने पर कृ िष उ पादन म वृि होती
है । कृ षको को भूिम पर थायी वािम व अिधकार ा होने, भूिम के लगान क उिचत रािश
िनधा रत करने तथा भूिम पर थायी सुधार करने के अिधकार ा होने पर उ ह उ पादन बढ़ाने क
ेरणा िमलती है । इसके िवपरीत इनके अभाव म कृ षको म उ पादन वृि क ेरणा का ास होता है
। तुत इकाई म उन सभी कृ िष भूिम सं बधं एवं भूिम सुधार के िलए सरकार ारा अपनाए गए
िविभ न काय म जैसे म य थ क समाि , भू-धारण प ित म सुधार, जोत क उ चतम सीमा
िनयत करना, जोत चकब दी आिद का अ ययन िकया जायेगा । िपछले दशक से इन े म िकए
गए यास के कारण उ पादन भूिम के आधारधा रक सं रचना म प रवतन आया है तथा कृ िष े म
उ पादन म वृि हई है । फल व प कृ षको को भूिम क ित इकाई े से लाभ क रािश भी
अिधक ा होने लग गई है ।

316
21.2 कृ िष स ब ध (Agrarian Relations)
कृ िष भूिम उ पादन का मुख साधन है । पूव काल से ही मनु य एवं भूिम म बल सं बं ध
िव मान है । मनु य भूिम से िविभ न कृ िष व तुओ ं का उ पादन करके अपनी आव यकताओं क
पूित करता आया है । भूिम क पूित देश म सीिमत होने के कारण ारं भ से ही इसके वािम व सं बधं ी
उठे है । भूिम पर वािम व होने से मनु य को अपनी खुशहाली एवं सुरि तता, सुिनि त एवं
अ तिन होना लगता है । भूिम पर वािम व होने वाले कृ षक, अपनी भूिम पर इ छानुसार उ पाद
का उ पादन करके आय एवं सं तोष ा करते है । ा आय से कृ षक अपना जीवन िनवाह उिचत
तर पर करते है । भारत जैसे कृ िष धान देश म कृ िष भूिम संबं ध क मह ा अिधक है, य िक कृ िष
े रा ीय आय का एक बहत बड़ा अंश दान करता है । वष 1950 म कृ िष े , रा ीय कु ल
आय का 59 ितशत अंश दान करना था, लेिकन अ य े मुखतया औ ोिगक े के
िवकास से कृ िष े का रा ीय आय म अंशदान कम होकर वतमान म भी 31 ितशत अंश दान
करता है ।
भार म कृ िष भूिम, कृ षक सं पि का एक मुख अवयव है । कृ षको के पास अ य स पि
का अभाव होता है । कृ िष भूिम कृ षको म असमान प से िवत रत है । कृ िष भूिम एक ओर ामीण
े म कृ षको का रोजगार उपलि ध एवं जीिवकोपाजन का मुख साधन है लेिकन दूसरी ओर
इसका असमान िवतरण ही देश के ामीण े म या गरीबी एवं आय असमानता का मुख
कारण भी ह । ामीण े म सामािजक वैमन यता म हई वृि का मुख कारण भी कृ िष भूिम
सं बं ध हीहै । अतः इस ख ड म कृ िष भूिम सं बधं का िव तार से िववेचन िकया गया है ।
21.2.1 कृ िष भू िम सं बं ध के ता पय
कृ िष भूिम सं बं ध उन मनु य म जो भूिम के वामी एवं भूिम पर काय करके भूिम से ा
उ पादन का आपस मे िविनमय करते है, उनके आपसी सं बधं के घोतक होते है । भूिम के वामी
कृ िष भूिम एवं कृ िष य के वामी होते है तथा दूसरी ओर अ य मनु य जो उस भूिम के वामी नह
होते है वे भू वािमय से ा भूिम पर कृ िष करके उ पािदत उ पादन क मा ा को आपस म
िविनमय करते है । िविनयम िविभ न कृ षको एवं भू- वािमय म िविभ न दर से होता है । इस कार
भू- वािमय एवं भूिम पर कृ िषत करने वाले दोन वग म या सं बधं को कृ िष भूिम सं बधं से
संबोिधत िकया जाता है ।'
भू- वािमय एवं कृ षको म पाये जाने वाले इन सं बधं म बहत िविभ नता पाई जाती है ।
साथ ही उनम पाये जाने वाले सं बधं म िनरं तर प रवतन हाते रहते है । यह परीवतन धीमी गित से
सू म तर पर होते है, िजसके कारण आए हए प रवतन पुरानी िविध म पूण प से सि मिलत या

317
सं ल न हो जाते है और उनका आभास साधारणतया नह होता है3 अतः कृ िष भूिम सं बं ध का
िव तृत अ ययन करना आव यक है ।
21.2.2 कृ िष भू िम स ब ध के कार
कृ िष भूिम सं बं ध मुखतया तीन कार के होते है : -
1. पू ण समा तवादी स ब ध (Pure Feudal Relations)
इस कार के सं बधं म भूिम पर वािम व पूणतया साम त का होता है । भूिम पर कृ िष
करने वाले कृ षक भू- वािमय अथात् साम त क इ छा पर पूणतया आि त होते है ।
पूण साम तवादी था को जागीरदारी था भी कहते है । इस था म गां व के यि साम त
से भूिम ा करके कृ िष करते थे और भूिम से ा उ पाद को आपस म समझौते के अनुसार
(Crop share basis) भू- वामी एवं कृ षक बांटते थे । भूिम पर कृ िष करने वाले कृ षको को
आसामी कृ षक (tenant farmer) कहते है । इन आसामी कृ षको को चरागाह भूिम के उपयोग के
िलए भी भू- वामी को नकद अथवा ा उ पाद के प म कर देना होता था । साथ ही आसामी
कृ षको को सामा त के यहां िववाह अथवा अ य समारोह पर भट या उपहार भी देनी होती थी ।
सामा त वग कृ षको से भूिम के उपयोग के उपल म उ पािदत फसल का 25 से 50 ितशत भाग
लगान के प म ले लेते थे और आसामी कृ षको के पास शेष बचत बहत कम होता थी । इस कार
साम तवादी था म कृ षको का शोषण होता था । इस कार के सं बं ध ही मनु य एवं भूिम म इस था
क मुख िवशेषता होती थी । कृ षको से ा उ पाद क मा ा को साम त िव य करते अपना
जीवन िनवाह करते थे । यही उ पाद बाजार म अिधशेष उ पादन के प म कहलाता है । पूण
सामा तवादी था म या उपरो दोष के कारण, यह सं बधं िनरं तर िव छेदन एवं िवघटन क ओर
अ सर हए और वतमान म पूण प से समा हो चुके है ।

3
Agrarian relations are the mutual relations among men as a class who
exchange their activities in the process of production and exchange . In the
sphere of production who owns land and agriculture implements and in the
sphere of distribution and exchange the objective of production , i.e.,production
for use value or for exchange value determine the type of agrarian relations.
However, it is very difficult to identify the pure nature of agrarian relations
because in this sphere relations of production change slowly almost
imperceptibly, coalescing and evermerging with old forms”.
Harihar Bhakta ; Agrarian Relations and Development (Regional Study of
North-West Bihar), Indian Journal of Agricultural Economics, Vol.XXXVI
(4) October-December 1981,p.166.
318
2. पू ण पू ँजीवादी स ब ध (Pure Capitalist Relation)
इस कार के सं बधं म भूिम पर वािम व पूँजीपितय अथात् उन यि य का होता है जो
वयं उ पादन म भागीदार नह होते है । भूिम से अिधक उ पादन ा करने के िलए उ पादन क
उ नत िविधय को अपनाया जाता है । पूँजीपित भूिम से अिधक उ पादन या आय ा के िलए उन
फसल का चुनाव करता ह िजनक बाजार म सवािधक मांग होती है तथा िजनके लेने से लाभ
अिधक ा होता है । का तकार भूिम पर कृ िष करने के िलए पूणतया बाजार क आव यकता वाले
उ पाद के उ पादन एवं उ नत कृ िष िविध के अपनाने के िलए भू- वामी क इ छा पर आि त होता
है ।
पूं जीवादी सं बधं म िन न गुण िव मान होते है :-
(अ) उ पादन का मुख साधन भूिम पर वािम व उन यि य का होता है जो उ पादन म
वयं भागीदार नह होते है ।
(ब) उ पादन का मुख उ े य लाभ ा करना होता है िजसके कारण भूिम पर उ पादन
करने के िलए फसल का चुनाव बाजार क मां ग के अनुसार िकया जाता है ।
(स) का तकार खेती क ि से पूँजीपित क इ छा पर िनभर रहता है तथा वयं िनणय
नह ले सकता है ।
(द) पूं जीपित भूिम से अिधक उ पादन ा करने के िलए नई तकनीक िविधय के अपनाने
के िलए िनरं तर यास करता है ।
पूण पूँजीवादी सं बधं िनरं तर अ सर हो रहे है । समाज के समृ यि अिधक क मत पर
भूिम य कर लेते है और उस पर कृ िष करवाने के िलए िमको क सहायता लेते है । कृ िष े म
कर के नह होने से भी पूँजीवादी िविध का सार हआ है । वतमान म देश के येक े म बड़े-बड़े
कृ िष फाम पूँजीपितय ने थािपत कर िलये है जहाँ वािणि यक फसल का बड़े पैमाने पर उ पादन
होता है ।
3. अ साम तवादी संबं ध (Semi-Feudal Relations)
इस कार के सं बधं म भूिम या तो का तकार के अिधकार म अथवा उनके सीधे वािम व
म होती है । उ पादक कृ षको को अपनी आव यकता के अनुसार िविभ न फसल का उ पादन करने
क पूण वतं ता होती है । यह सं बधं पूण साम तवादी था से िभ न है इसम कृ षक भू-ख ड का
कृ िष करने के ि कोण से वामी होता है ।
कृ िष भूिम सं बध के ऐितहािसक अ ययन से प है िक पूण सामा तवादी सं बं ध देश म
ाय िव छे िदत हो चुके है तथा पूण पूं जीवादी सं बधं िनरं तर अ सर हो रहे है । वतमान म भूिम सं बधं
इन दोन के िमि त प म िव मान है । वत ता के प ात साम तवादी था क समाि पर िवशेष
बल िदया गया था । इसका मुख कारण साम त ारा कृ षको का शोषण करना, बढ़ती हई
जनसं या के िलए भूिम क आव यकता एवं उस पर वािम व ा करने क ' इ छा का होना था ।
ऐसा महसूस िकया गया भूिम पर वािम व ा कृ षक भूिम से अिधक मा ा म फसल का उ पादन
कर सकते ह । सामािजक ि कोण से भी साम तवादी 'अ साम तवादी था क समाि अिनवाय
319
हो गई थी, य िक इसके होने से समाज मे या असमानता के कारण आपसी वैमन यता म वृि
हई है । एक तरफ तो समाज के कु छ ही यि य के पास भूिम का अिधकांश भाग के ि त था, जो
उ पादन वृि म िकसी भी कार य प म भूिमका नह िनभाते है बि क भूिम पर परा यी के
प म होते है । दूसरी तरफ समाज का एक बहत बड़ा भाग जो उ पादन वृि करने म य भूिमका
िनभाते है उ हे भूिम पर िकसी कार का वािम व ा नह होता है । इस कार इन दोनो वग म
बढ़ती हई सामािजक असमानता को समाि के िलए साम तवादी था का अ त होना आव यक हो
गया था ।
अ साम तवादी था के अंतगत कृ षको के भू िम से सं थागत स ब ध :
भूिम पर कृ िष करने वाले कृ षको के वािम व क ि से िन न तीन कार के सं थागत
सं बं ध पाये जाते है:
1. भू- वामी कृ षक (Owner Cultivator)
यह वे कृ षक होते है जो भूिम के वयं ही वामी होते है और वयं ही अपनी भूिम को
कृ िषत करते है । भू- वामी कृ िषत भूिम क उ पादकता म वृि करने के िलए भूिम पर िविभ न प
म जैसे कुं आ बनाने, भूिम को समतल करने , बाढ़ लगाने आिद काय पर पूँजी िनवेश करते है । इस
िविध म पूँजी के िनवेश करने से ा अित र उ पादन क मा ा अथव आय से भू- वामी कृ षको
को ही शत ितशत लाभ होता है ।
2. प े पर भू िम ा भू-धारक कृ षक (Lease Holder)
इस िविध म भू-धारक कृ षक भू- वािमय से एक िनि त समयाविध के िलए ा भूिम पर
कृ िष करते है । भू-धारक कृ षक कृ िष के भूिम के वामी नह होते है । भू-धारक भूिम का लगान
भू- वामी को उनके म य पूव म िनधा रत शत के अनुसार भुगतान करता है ।
भू- वामी, भू-धारक को भूिम एक िनि त समय जैसे एक वष या दो वष के िलए कृ िष करने
के िलए देता है और समय क समाि पर भू-धारक से भूिम वािपस लेकर दूसरे का तकार को कृ िष
करने के िलए देता है । अतः इस िविध म भू-धारक कृ षक ा भूिम पर थाई सुधार के काय करने
जैसे कु आं बनाना, भूिम को समतल करना, प का घोरा बनाना आिद पर पूँजी िनवेश नह करता है ।
ऐसी ि थित म भूिम का सुधार नह होता है और भूिम से आय क वृि नह हो पाती है । कृ िष करने
के िलए ा भूिम के समय अिनि तता क ि थित म भू-धारक कृ षक भूिम म गोबर क खाद भी
कम से कम योग करता है य िक भू- वामी ारा भू-धारक कृ षक को भूिम से पृथक िकये जाने क
ि थित म उसके ारा िकये गये पूँजी िनवेश का पूण लाभ उसे ा नह होता है ।
3. बटाई पर भू िम ा भू-धारक कृ षक (Share Cropper)
इस िविध म भी भू-धारक कृ षक भूिम का वामी नह होता है बि क भू- वामी से एक
िनि त समयाविध तक कृ िष करने के िलए भूिम ा करता है । इस िविध म भू-धारक कृ षक, भूिम
का लगान भू- वामी को िनि त रािश म नह देकर ा उ पादन क मा ा का एक भाग के प म
देता है । बटाई िविध म भू-धारक एवं भू- वामी पूव म हए समझौते के अनुसार उ पादन लागत क
रािश एवं भूिम से ा िविभ न उ पाद क उ पादन मा ा को आपस म िवभािजत करते है । अतः
320
उपरो दोन िविधय -प े पर ा भूिम एवं बटाई पर ा भूिम म लगान के भुगतान िविध म ही
अ तर होता है लेिकन अ य सभी बात म दोन िविधयाँ समान है । अतः कु छ िव ान ने कृ षको को
दो ही णे ी म िवभ िकया है:
1. भू- वामी कृ षक (Owner cultivators)
2. आसामी कृ षक (Tenant cultivators)
आसामी कृ षक क ेणी म प े पर भूिम ा करने वाले एवं बटाई पर भूिम ा करने वाले
दोन ही णे ी के कृ षक सि मिलत होते है । बटाई पर भूिम देकर क जाने वाली कृ िष म लगान
भुगतान क िन न दो िविधयाँ होती है ।
(अ) उ पाद क मा ा का 50: 50 के अनु पात म िवभाजन करना
इस िविध म मुख कृ िष िनिव -उ पादन बीज, उवरक, क टनाशक दवाईयां तथा िसं चाई
के िलए योिगत िबजली अथवा डीजल तेल के भुगतान क रािश का भू- वामी एवं आसामी कृ षक
के म य समान प से िवभाजन िकया जाता है तथा मानव व बैल म क लागत पूणतया आसामी
कृ षक को वहन करनी होती है । भूिम का राज व भू- वामी को वहन करना होता है । उपयोिगत
िनिव के कारण भूिम से ा सभी उ पाद एवं उनके उपो पाद क मा ा का 50-50 के अनुपात म
भू- वामी एवं आसामी कृ षक म िवभाजन कर िलया जाता है ।
(ब) ि थर मा ा म भू िम का लगान भु गतान करना
इस िविध म सभी कृ िष लागत (भू-राज व के अित र ) आसामी कृ षक को वहन करनी
होती है । भू-राज व रािश का भुगतान भू- वामी ारा सरकार को िकया जाता है । तथा भूिमका
लगान कृ षक एवं भू- वामी म आपसी समझौते के अनुसार एक िनि त रािश के प म अथवा
उ पािदत फसल के प म भू- वामी को देना होता है । लगान क रािश उ पादन क मा ा से
भािवतनह होती है अथात् उ पादन अिधक, कम एं व नह ा होने क सभी ि थितय म आसामी
कृ षको ारा समान मा ा म भू- वामी को देना होता है ।
उपयु दोन ही िविधय म भूिम भू - वामी ारा कृ षको को बटाई पर दी जाती है ।भूिम के
बटाई पर देने क यह था भूिम क उ पादकता म वृि , जनसं या म वृि एवं का तकारी कानून
क अड़चन के कारण धीरे-धीरे कम होती जा रही है । वतमान म भूिम को बटाई पर देने क यह
िविध अनेक थान पर जैसे अपािहज यि य के वािम व क भूिम, िवधवाओं क भूिम, सेना म
कायरत सेिनको के वािम व क भूिम म साधारणतया पाई जाती है । पया िसंचाई सुिवधा एवं
ै टर सुिवधा वाले दीघ जोत कृ षक भी लघु पड़ौसी कृ षको क भूिम को बटाई पर ले जाने म स म
होते ह । लघु कृ षक अपने पास उ पादन साधन क कमी के कारण अपनी भूिम को दीघ कृ षको को
देते है । इस कार इस िविध से दीघ एवं लघु जोत दोन ही कृ षको को लाभ ा होता है ।
इस कार क बटाई िविध के होने से देश म अनुपि थत भू - वािमय क वृि को बढ़ावा
िमलता है । ऐसा पाया गया है िक कृ िष िनिव एवं मानव म का उपयोग वयं के वािम व वाली
भूिम पर बटाई पर ली गई भूिम क अपे ा ित इकाई भूिम के े म अिधक होता है । िजससे
कृ षको को आय भी अिधक ा होती है और देश म खा ान का उ पादन भी अिधक होता है ।
321
21.2.3 कृ िष भू िम स ब ध क समी ा के िलए िनयु कायकारी दल, 1972 (Task
Force on Agrarian Relations)
भारत सरकार के योजना आयोग ने फरवरी 1972 म कृ िष भुिम सं बं ध क समी ा के िलए
एक कायकारी दल क िनयुि ी पी. एस. अ पू क अ य ता म क थी िजसका मु य उ े य भूिम
सुधार के अंतगत अपनाये गये उपायो का आलोचना मक समी ा करके वृता त तुत करना था ।
कायकारी दल ने महसूस िकया िक भू-धारण था म म य थ के उ मूलन सं बं धी पा रत कानून क
अनुपालना तो वृहत तर पर द ता से हई है । लेिकन भू-धारणा सुधार एवं जोत को उ चतम सीमा
कानून अपने िनधा रत नीित से बहत दूर ह ।कायकारी दल ने अपने वृता त म इसके िन न कारण िदये
है ।
1. पा रत कानून को लागू करने म राजनैितक इ छा का नह होना !
2. लाभाि वत होने वाले कृ षक वग ारा पा रत कानून क अनुपालना के िलए सरकार पर
आव यक दबाव नह डालना । सागािजक एवं आिथक असमथता के कारण अिधकां श
कृ षक ऐसा नह कर पाते ह ।
3. सरकारी अिधका रय ारा भूिम सुधार काय म के िविभ न पहलुओ ं क उपे ा करना
य िक उ ह लगान वसूली एत अ य काय भी ाथिमकता पर करने होने है ।
4. घोिषत नीित को कायाि वत करने म कानूनन अड़चन का होना एवं भािवतसमृ वग
ारा यायालय से इनके कायाि वत म देरी करने के िलए थगन आदेश ा कर लेना ।
5. सरकार ारा भूिम युधार काय म को ि या वयन करने के िलए आव यक िव ीय
सहायता दान नह करना ।
6. भूिम सं बं िधत अिभलेख सही एवं पूण उपल ध नह होना ।
7. के सरकार एवं रा य सरकार तथा िविभ न सरकार म भूिम काय म के काया वयन के
िलए सही तालमेल का नह होना, िजससे इनक गित िविभ न रा य म समान नह है ।
कायकारी दल ने अपने वृता त म उपरो किमय को दूर करने के िलए सुझाव िदए
(I). भूिम सुधार कानून म या किमय को दूर करना ।
(II). भू-सीमा के िनधारण क िलए नया कानून बनाना एवं उससे ा अिधशेष भूिम को
भूिमहीन िमको म िवत रत करना ।
(III). भूिम सुधार काय म के कायाि वत करने के िलए एक पृथक यव था थािपत
करना एवं उसे आव यक अिधकार कानूनन दान करना ।
(IV). भूिम सुधार को पूण प से कायाि वत करने एवं राजनैितक भाव को करने के
िलए कृ षको म आव यक चेतना जागृत करना ।

322
21.2.4 कृ िष भू िम स ब ध मे समय के साथ हए प रवतन
वतमान म िव मान कृ िष भूिम स ब ध क सं रचना म समय के साथ अनेक प रवतन हए है
। यह प रवतन भूिम सुधार काय म के अपनाने के फल व प आये है । कृ िष भूिम स ब ध म
समय के साथ हए मुख प रवतन िनमां िकत है.
1. लघु एवं सीमा त कृ षको क सं या एवं अनु पात म वृ ि (Increase in number
and proportion of small and marginal farmers)
भूिमसुधार काय म के लागू होने के फल व प देश म लघु कृ षको (एक से दो है टर भूिम
का े ) एवं सीमा त कृ षको (एक है टर से कम भूिम का े ) क सं या एवं उनके पास उपल ध
भूिम के े म िनर तर वृि हई है । दूसरी ओर दीघ जोत कृ ष को (10 है टर से अिधक भूिम का
े ) क ितशतता एवं उसके पास उपल ध भूिम के े फल म कमी हई है । तािलका 21.1 म
िपछली तीन कृ िष जनगणना के आंकड़े दिशत िकये गये है जो उपरो त य - क पुि करते है ।
तािलका 21.1 िविभ न जोत कृ षको क सं या एवं उनके पास उपल ध भूिम का े फल
कृ षक ेणी सं या (िमिलयन म) उपल ध जोत े फल
कृ षक ेणी सं या (िमिलयन मे) उपल ध जोत (िमिलयन है टेयर म)
1970- 1990-9 2010- 1970-71 1990-91 2010-1
71 1 11 1
सीमा त कृ षक 36(51 62(58 67.1 15(9%) 25(15%) 22.5%
(1 हे टर से कम) %) %) %
लघु कृ षक 24 34(33 27.9 49 (30%) 67(41%) 45.7
(1-4 हे टर) (34%) %)

म यम जोत 8 8(7%) 4.2 48 (30%) 45(27%) 21.2


कृ षक (11%)
(4-10 हे टर)
दीघ जोत कृ षक 11 2(1%) 0.7 50(31%) 29(27%) 10.6
(10 है टर व (4%)
ऊपर)
कु ल 71 106 100 162(100%) 166(100%) 100
(100 (100%
%) )
तािलका 21.1 से प है िक 1990-91 म लघु एवं सीमा त जोत कृ षक कु ल कृ षको क
सं या का 91 ितशत होते हए भी उनके पास कु ल जोत े फल का 56 ितशत े फल उपल ध
था । जबिक दीघजोत कृ षको क सं या मा 1 ितशत होने पर भी उनके पास कु ल जोत े फल
323
का 17 ितशत भाग है । अतः प है िक िविभ न कृ षक वग के पास भूिम का िवतरण समान मा ा
म ना होकर दीघ जोत कृ षको के पास अिधक है । उपरो काल म दीघ जोत कृ षको के पास
उपल ध े म कमी आई है लेिकन अभी भी भूिम का िवतरण बहत असमान है िजसम सुधार
लाना आव यक है ।
2. भू िमहीन प रवार क ितशतता म कमी (Decline in the proportion of landless
households)
भूिम सुधार काय म िवशेषकर जोत क उ चतम सीमा नीित क ि या वयन से देश म
भूिमहीन कृ षक प रवार क ितशतता म कमी आई है । देश म जोत क उ चतम सीमा कानून के
ि या वयन से ा अिधशेष भूिम को भूिमहीन प रवार म िवतरण करने से भूिमहीन कृ षक प रवार
क सं या म िनरं तर कमी आई है । देश म वष 1953 -5 4 म भूिमहीन कृ षक प रवार कु ल प रवारो
का 23.9 ितशत थे । यह ितशतता कम लेकर 1970-71 म 9.34 रह गई ।
3. जोत के औसत आकार मे कमी होना (Decrease in average size of holding)
देश म जनससं या क वृि सं यु प रवार था का िवघटन तथा भूिम क मां ग क
अिधकता के कारण जोत सं या म िनरं तर वृि हई है । वष 1970-71 क कृ िष जनगणना के
अनुसार देश म कु ल जोत 70.493 िमिलयन था,जो जोत अपख डन के कारण 1990-9 1 क कृ िष
जनगणना के अनुसार 106 िमिलयन हो गई । इसके कारण जोत का औसत े फल 1970-71 म
2.28 है टर से कम होकर 1976-77 म 2 .00 है टर एवं 1990-91 म मा 1.57 है टर ही रह गया

4. आसामी कृ षको एवं बटाई पर ा होने वाले भू िम के े मे कमी होना (Decline in
number of tenant farmers and leased in land area)
भूिम सुधार काय म के फल व प दूसर क भूिम को बटाई पर ा करके कृ िषत करने
वाले आसामी कृ षको (Tenant farmers) क सं या म िनर तर कमी आई है । म य थ क
समाि के िलए पा रत कानून के फल व प बटाई पर कृ िष करने वाले आसामी कृ षको को भूिम पर
वािम व अिधकार ा हो गये है और वे अब भू- वामी कृ षको क ेणी म आ गये है । साथ ही
बटाई पर दी जाने वाली भूिम के े म कमी आई है । पहले जो कृ षक भूिम क अिधकता के कारण
अिधशेष भूिम को दूसरे कृ षको को बटाई पर देते थे , वे अब जोत क उ चतम सीमा लागू होने से
अपने पास सीिमत े फल के कारण बटाई पर नह देते है । अतः बटाई पर दी जाने वाली भूिम के
े फल म भी कमी आई है ।
5. कृ िष िमको क सं या म वृ ि (Increase in number of Agricultural
Labourers)
भूिम सुधार काय म के अपनाने से देश म लघु एवं सीमा त कृ षको तथा कृ िष िमको क
सं या म िनर तर वृि हई है । लघु एवं सीमा त कृ षक अपनी जोत से पया काय के अभाव म बचे
हए समय म दूसर के फाम पर काय करते है और कृ िष िमको क णे ी म वग कृ त हो जाते है । पूव

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म जब जोत का आकार बड़ा होता तो था, कृ षको को अपनी ही फाम पर पया काय उपल ध हो
जाता था और उ हे दूसर के फाम पर मजदूरी करने के िलए नह जाना पड़ता था ।
देश म कृ िष िमको क सं या 1961 म 31.5 िमिलयन थी जो बढ़कर 1971 म 47.1
िमिलयन हो गई । कु ल मशि म कृ िष िमको का ितशत 1961 म 16.7 ितशत था जो बढ़कर
1971 मे 25.7 ितशत हो गया । इसके िवपरीत, उपरो काल म कृ षको क सं या 99 .6
िमिलयन से कम होकर 78 .6 िमिलयन ही रह गयी ।
6. म य थ क समाि (Abolition of intermediaries)
भूिम सुधार काय म के अपनाने से देश म सरकार एवं कृ षक के म य म िव मान म य थ
जैसे जम दार एवं जागीरदार समा हो गए है तथा का तकार सरकार के सीधे स पक मे आ गए है ।
कृ षको को भूिम पर वािम व अिधकार भी ा हो गये है । कृ षको अपने वािम व वाली भूिम पर
थायी सुधार करके अिधक उ पादन ा कर सकते है । म क का समाि के कारण देश के लाख
कृ षक सरकार के सीधे स पक म आ गए है ।
7. कृ िषत एवं वािम व जोत क ि थित मे प रवतन (Change in Operational and
Ownership Holdings)
भूिम पर जनसं या का बढ़ता हआ भार तथा भूिम क ाि क सामािजक इ छा क
बलता के कारण, देश क िविभ न रा य सरकार ने भूिम सुधार क िदशा म अनेक कानून पा रत
िकये है, िजनके कारण कृ िषत जोत एवं वािम व जोत क ि थित म प रवतन हए है । वािम व जोत
के े फल म वृि एवं कृ िषत जोत े म कमी आई है ।
21.3 भारत म भू िम सु धार काय म )Land Reforms in India)
कृ िष े म उ पादकता म वृि लाने वाले कारको को दो मु य समूह तकनीक एवं
सं थागत म िवभािजत िकया जाता है । तकनीक कारको म कृ िष िनिव का उिचत मा ा म उपयोग
करना सि मिलत है िजनके कारण उ पादकता म परो प से वृि होती है । दूसरे वग म उ पादन
वृि के वे कारण आते है िज ह सं थागत कहते है । इनम मुखतया भूिम सुधार काय म सि मिलत
होते है । उदाहरण के िलए भूिम पर कृ षको का थायी वािम व होने पर ही वे िसंचाई साधन का
िवकास कर सकते है, । िसं चाई साधन के िवकास होने पर फाम पर उ नत बीज एवं उवरक का
सं तिु लत मा ा म उपयोग कर पाना संभव है । अत तकनीक एवं सं थागत कारण कृ िष उ पादन म
वृि लाने के िलए एक दूसरे के समपूरक होते है ।
21.3.1 भू िम सु धार काय म से ता पय
भूिम सुधार से ता पय देश म भूिम यव था म उन प रवतन के करने से है िजनके ारा भूिम
यव था म सुधार करके कृ षको को भूिम क उ पादकता बढ़ाने एवं उ ह उिचत जीवन तर दान
करने का यास िकया जाता है । भूिम सुधार श द का अथ बड़ा िव तृत है , िजसके अंतगत न के वल
भूिम -अव था के सुधार ही सि मिलत है बि क भूिम सुधार काय म म भूिम का पुन िवतरण करके
325
भूिम का वािम व कृ षको को दान करना, जोत अपख डन को रोक कर जोत के आकार म वृि
करना, कृ षको क भूिम-धारण िविध म सुधार लाना, भूिम पर लगने वाले लगान क रािश म कमी
करना, सहकारी कृ िष एवं कृ िष का पुनगठन, आिद सि मिलत होते है । दूसरे श द म भूिम सुधार के
अंतगत भूिम पर साम तवादी था क समाि , आसामी कृ षको एवं भूिमहीन को भूिम पर वािम व
अिधकार दान करना, भूिम का लगान रािश का िनधारण करना मु यतया सि मिलत होता है ।
भूिम पर वािम व क सामाजवादी था, देश म लघु एवं सीमा त जोत के अिधक सं या
म होने भूिम का िवतरण समान नह होने, जोत उप िवभाजन एवं अपख डन, कृ षको से अिधक मा ा
म लगान लेन,े कृ षको को भूिम पर थाई अिधकार ा नह होने के कारण, कृ षको म उ पादन वृि
को रेणा ास होता है । फल व प कृ िष े म कम पूं जी का िनवेश एवं कृ षको को कृ िष े से
कम आय एवं कम बचत रािश ा होती है । कृ षको म गरीबी भी बढ़ती है ।
भूिम सुधार काय म नया नह है । वष 1946 म कां ेस के चुनाव घोषणा प म सुधार के
िलए िनणय िलया गया था िक कृ षक एवं सरकार के म य पाए जाने वाले म य थ को समा िकया
जाये और म य थ को भूिम के बदले ितपूित रािश का भुगतान िकया जावे । ा य सुधार सिमित ,
1948 ने भी सुझाव िदया था िक भूिम पर वािम व कृ षक का लेना चािहए । सं यु रा सं घ ने या
अपने वृता त म िलखा था िक भारत म भूिम स ब धी प ित उिचत नह होने से आिथक िवकास
नह हो रहा है ।
21.3.2 भू िम सु धार काय म के उ े य
भूिम सुधार काय म को गरीबी उ मूलन , कृ िष म आधुिनक करण तथा उ पादकता म
वृि के े म मुख त व माने जाते है । भूिम के पुन : िवतरण िविध ारा गरीब भूिमहीन को थायी
स पदा ा होती है िजससे वे भूिम आधा रत एवं अ य सहायक उ म अपना सकते है और आय म
वृि कर सकते है । इसी कार जोत चकब दी, भू-धारण म सुधार भूिम अिभलेख मे सही बनाकर
लघु एवं सीमा त कृ षक भी उ नत सुधार काय म अपनाकर अपने भूिम के े से कृ िष उ पादकता
एवं उ पादन क मा ा म वृि कर सकते है ।
आजादी के बाद भूिम सुधार को ामीण िवकास का मह वपूण अंग माना है । इ ह पुराने
सामंतवादी सामािजक आिथक ढाँचे को तोड़ने का मा यम समझा एवं यह भी अपे ा क गई िक
इनसे कृ िष उ पादकता बढ़ेगी । गरीब कृ षको एवं कृ िष मजदूर के िलए आिथक िवकास क मु य
धारा से जुड़ने का माग भी भूिम सुधार को समझा गया।
भू- वािम व चाहे िकतने ही छोटी जोत का य न हो, अपने साथ मनोवै ािनक और
सामािजक मू य िलए हए होता है । यह सामािजक मू य के वल गरीब वग का तर ही नह बढ़ाता
बि क सामािजक जीवन के अि त व का आभास भी कराता है । इसिलए भूिम सुधार काय म को
आिथक िवकास का मा यम और सामािजक उ थान का आधार भी माना गया है ।
भूिम सुधार काय म के मुख उ े य िन नांिकत है :
1. सीिमत भू िम उ पादन-साधन का अनु कूलतम उपयोग करना
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देश म भूिम सीिमत मा ा म है तथा सीिमत भूिम से अिधकतम मा ा म उ पादन ा करने
के िलए इस साधन का अनुकूलतम उपयोग करना आव यक है । अतः आव यक है िक जोत क
उ चतम सीमा का िनधारण होवे, जोत एक ख ड म हो अथवा जोत के िविभ न ख ड पास पास
होवे । ऐसा होने से कृ षक अपने पास उपल ध अ य सीिमत साधन जैसे म एवं पूँजी का पूण
उपयोग कर सकगे और येक उ पादन-साधन से उ पादन क अिधकतम सीमा त मा ा ा कर
सकगे । अतः कृ षको के पास उपल ध सीिमत साधन से अिधकतम मा ा म उ पादन ा करने के
िलए भूिम सुधार काय म को अपनाना आव यक है ।
2. सीिमत भू िम साधन से अिधकतम उ पादन ा करने के इ छु क होना
भूिम सुधार काय म का दूसरा मुख उ े य कृ ष को को भूिम से अिधक से अिधक
उ पादन ा करने के इ छु क होना है । यह तब ही सं भव है जब कृ षको को भूिम पर थायी
वािम व अिधकार ा होवे, भूिम का लगान अिधक रािश म नह होवे तथा प े पर ा भूिम क
शत कृ षको के िलए लाभकारी होवे। यह काय म कृ षको को भूिम के े पर थायी सुधार करने
क ेरणा दान करता है, िजससे कृ षक भूिम पर अिधक रािश म पूँजी िनवेश करते है ।
3. कृ िष म तकनीक ान ये िव तार एवं उ पादन वृ ि म आने वाली बाधाओं को दू र
करना
सं ि म भूिम सुधार कय म का मुख उ े य सरकार एवं कृ षको के म य म पाये जाने
वाले म य थ को समा करके उन कृ षको को झूम पर वा िम व दान करना है जो भूिम को वयं
कृ िषत करते है ।
21.3.3 भू िम सु धार काय म
मुख भूिम सुधार काय म को उनके उ े य के अनुसार िन न वग म िवभािजत िकया
जाता है ।
(1) म य थ क समाि (Abolition of Intermediaries)
भूिम सुधार के िलए िकए गये यास म थम काय म म य थ क समाि करने तथा
भूिम का वािम व जोतने वाले कृ षक को दान करने (Land to the tiller) का है । इसका मु य
उ े य सरकार एवं कृ षको के म य पाए जाने वाले म य थ को समा करके कृ षको को सरकार से
सीधे स पक म लाने से है ।
म य थ भूिम के सव च वामी (सरकार) एवं भूिम पर कृ िष करने वाले का तकार के
म य काय करने वाला वग होता है यह वग सरकार से िनयत शत पर भूिम ा करते है । कु छ
म य थ को उनके ारा सरकार को दान क गई सेवाओं के िलए भूिम ा होती है । म य थ भूिम
के अ थायी भू- वामी होते है । म य थ सरकार को राज व क िनयत रािश जमा कराते है और भूिम
को कृ षको को कृ िषत करने के िलए देकर उनसे लगान के प म काफ रािश ा करते है । ा
लाभ से आराम द एवं ऐश का जीवनयापन करते है । म य थ कृ षको से लगान क रािश के

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अित र अ य लागत भी वसूल करते है तथा उनसे बेगार भी लेते है । इस कार म य थ कृ षको
का शोषण करते है ।
भारत म भू धारण णाली :-सरकार तथा भू- वामी के आपसी स ब ध के आधार पर
भारत म भू-धारण णाली िन न तीन कार क थी -
(i). रैयतवारी - इसके अंतगत भूिम का सव च वािम व सरकार के हाथ म होता था , िकं तु
रैयत या भूिम के वामी का सरकार के साथ सीधा स ब ध होता था। िनयिमत प से भू-राज व जमा
करने पर भू- वामी को भूिम को कृ िषत करने , ह तां त रत करने, बेचने अथवा ब धक रखने का पूण
अिधकार ा था। भू- वामी कृ षको को भूिम जोतने के िलए दूसरे कृ ष को को लगान पर देने अथात्
उपपटेदारी (Sub leasing) पर देने क वतं ता होती है लेिकन उ ह भूिम के कानूनन थायी
अिधकार ा नह होते है । भू- वामी ारा भू-राज व सरकार को समय पर नह जमा कराने क
ि थित म सरकार उस भूिम से अ य कृ षक को उिचत अिधकार के साथ दे सकती थी । इस कार
इस िविध म कृ षको क भूिम पर मौ सी अिधकार (Occupancy rights) ही ा थे न िक भूिम के
थायी अिधकार ा थे ।
(ii). महलवारी - इस प ित म गांव क सम त भूिम पर गां व के िकसान का सं यु
अिधकार होता था, और सम त भूिम को एक इकाई मानकर लगान िनधा रत िकया जाता था।
येक इकाई को महाल कहते थे । भूिम का वािम व िकसी एक यि के पास न होकर पूरे ाम
समूह के पास होते थे । भूिम का राज व सरकार को जमा कराने को दािय व ाम के सभी कृ षको का
सामूिहक प से होता था। येक कृ षक भूिम पर िनजी प से खेती कर सकता था । साथ ही
कृ षको को भूिम पर पैतक ृ अिधकार ा थे । इस था म लगान क वसूली के िलए िभ न-िभ न
रा य म िभ न-िभ न िनयम चिलत थे।
(iii). जम दारी एवं जागीरदारी - इस प ित म भूिम का ब ध बड़े राजा-महाराजाओं
एवं अ य यि य ारा िकया जाता था । इ ह भूिम के बंध के अिधकार सरकारी सेवा के बदले
िदए जाते थे । ये जागीरदार भूिम के सव च वामी नह होते थे । बि क शासन का काय करते थे
एवं कृ षको से लगान वसूल करते थे । देश म जागीरदारी एवं जम दारी था का चलन ि िटश
सरकार के काल म हआ था । ि िटश सरकार ने देश म कृ षको क भू-राज व रािश के िनधा रत,
वसूली एवं इसके सं शोधन म होने वाली किठनाई से मुि पाने के िलए इस था को चुना था । कु छ
रा य म जागीरदारी एवं जम दारी था के अित र अ य कार क भू -धारण णािलयां भी
चिलत थी जैसे िब वेदारी था, मालगुजारी था, इनामदारी एवं माफ दारी था आिद ।
उपयु सभी कार क भू-प ितय म कृ षको से भू-राज व उपज के भाग के प म
अिधक मा ा म वसूल िकया जाता था, िजससे कृ षको के पास उपज क मा ा बहत कम रह जाती
थी । अतः वे कृ िष के िवकास के िलए अिधक पूँजी का कृ िष म िनवेश नह कर पाते थे । साथ ही
कृ षको को भूिम पर वािम व अिधकार ा नह होने के कारण तथा भूिम पर कृ िष करने के समय
क अिनि तता के कारण वे भूिम सुधार तथा कृ िष िवकास के िलए आव यक साधन जैसे कु ओं
का िनमाण, िसंचाई के िलए प क नािलयाँ बनाने , भूिम को समतल करने खाद डालने आिद काय
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पर पूँजी िनवेश नह करते थे य िक उ हे भूिम से बेदखल िकए जाने का भय बना रहता था । इन सब
कारण से कृ िष उ पादकता कम होती थी और कृ िष िवकास के नह होने से देश आिथक समृि के
े म अ सर नह हो पाता है । अतः वतं भारत म भू-घृित थाओं क समाि क आव यकता
तीत हई ।
म य थ क समाि के िलए समय-समय पर सरकार पर दबाव पड़ा, उसका मुख कारण
एक वग िवशेष के यि य के पास भूिम के वािम व का के ीकरण होने का िवरोध था । म य थ
वग उ पादन म वृि करने म िकसी कार क भूिमका नह अदा करते है बि क भूिम पर परा यी
होते है । इस था के कारण वा तव म भूिम को जोतने वाले कृ षक भूिम के वािम व अिधकार से
वं िचत होते है । अतः साम तवादी तथा अ साम तवादी था को समा करने क आव यकता
तीत हई । फल व प वतं ता के प ात् इन के उ मूलन के िलए िविभ न रा य सरकार ने कानून
पा रत िकए ।
म य थ क समाि के िलए िविभ न रा य म कानून 1950 से 1960 के दशक म पा रत
हए । म य थ क समाि के िलए सव थम यास उ र देश रा य म िकए गए नथा इसके बाद
अ य रा य म िकए गए चूिं क भूिम सुधार ि याि वत करने दािय व रा य सरकार पर ह, अतः
िविभ न रा य म पृथक कानून पा रत िकए गए । इन कानून के कारण ाय सभी रा य म म य थ
समा हो गए और देश के 20 िमिलयन से अिधक कृ षक अब सरकार के सीधे स पक म आ गए है
। तथा कृ षको को अनेक कार क सुिवधाए ा होने लग गयी है ।
(2) भू-धारण प ित म सु धार (Tenancy Reforms)
भूिम सुधार काय म म दूसरा मुख पहलू भू -धारण प ित म सुधार है । भू-धारण के
िविभ न पहलुओ ं जैसे लगान रािश का िनधारण, भूिम पर कृ िष करने क अविध क अिनि तता एवं
भूिम के ह ता तरण आिद के िलए भी कानून बनाने क आव यकता महसूस क गई । जम दार एवं
जागीरदार वग कृ षको से उ पािदत उपज क मा ा क एक चौथाई से अिधक भाग लगान के प म
वसूल करते थे, िजससे कृ षको के पास शेष रािश कृ िष यवसाय म िनवेश करने के िलए बहत कम
रहती थी । साथ ही जम दार कृ षको को इ छानुसार भूिम से बेदखल कर देते थे । िजससे कृ षको म
भूिम पर कृ िष करने के क अिनि तता बनी रहती थी । इस अिनि तता के वातावरण म कृ षक भूिम
पर थायी के उपाय के अपनाने म िच नह लेते थे । कृ षको ारा थायी सुधार काय म पूँजी
िनवेश क गई रािश का लाभ अनेक बार भूिम से बेदखल क अव था म कृ षको को ा नह होता
था । कृ षक धन एवं अ य कार क आव यकता होने पर अपनी भूिम को अ य यि य एवं
र तेदार को िव य अथवा भट व प नह दे सकते थे । इस कार उपरो िवषय पर भी भू-धारण
प ित म सुधार लाने क आव यकता वतं ता के उपरा त महसूस क गई । भू-धारण सुधार
काय म को मुखतया िन न तीन ेणी म वग कृ त िकया जाता है, िज ह भू-धारण के तीन ''एफ''
भी कहते है ।
1 भूिम का उिचत लगान िनधारण करना (Fixation of Fair Rent)

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2 भू-धारको के िलए म पर वािम व अिधकार िनयत करना (Fixity of Tenure for
Tenants)
3 भूिम पर ा वािम व अिधकार को थाना त रत करने का ावधान (Free
Transferability of Land Rights)
उपरो िवषय पर सुधार लाने हेतु िविभ न रा य म वष 1948 से 1955 क अविध म
कानून पा रत िकये गये । इनके फल व प सभी रा य मे भूिम के लगान क रािश भूिम क िक म के
अनुसार ित है टर भूिम पर िनयत क जा चुक है । कृ ष को को अब भूिम का लगान ा उ पादन
क मा ा के एक भाग के प म नह देना होता है बि क पूव िनधा रत एक िनयत रािश ही देनी होती
है । अिधक उ पादन होने पर उसका स पूण लाभ कृ षक को ही ा होता है । इसके साथ ही सभी
रा य के कृ षको को उनके ारा कृ िषत क जाने वाली भूिम पर थायी वािम व अिधकार ा हो
गये है । कृ षको को अपने वािम व क भूिम पर प ा एवं पास बुक ा हो गये है । साथ ही कृ षक
अब अपने वािम व क भूिम को दूसरे का तकार एवं यि य को िव य कर सकते है या उपहार
म दे सकते है । इस कार भू-धारण सुधार कानून से कृ षक वग को लाभ ा हआ है ।
उपरो कानून के बावजूद भी भू -धारण था म कु छ किमयाँ या है । उदाहरण के िलए
अनेक थान पर कृ षको को भूिम मौिखक भू-धारण प ित से उपल ध कराई जाती है । भू- वामी
कृ षको से लगान क अिधक रािश वसूल करते है । साथ ही िविभ न रा य म भी भूिम के िनधा रत
लगान क रािश म बहत असमानता या है ।
(3) जोत क उ चतम सीमा िनयम करना (Imposition of Ceiling on Land
Holdings)
देश म उपल ध भूिमका िविभ न कृ षको म िवतरण म बहत असमानता या है । वष
1990-91 क कृ िष जनगणना के अनुसार 58 ितशत सीमा त जोत कृ षको के पास कु ल कृ िषत
भूिम का मा 15 ितशत े ही है । दूसरी ओर 1 ितशत दीघ जोत कृ षको के पास 17 ितशत
भूिमका े है ।
तािलका-21.2 भारत मे िविभ न जोत ेणी के अं तगत े फल, 2010-11
जीत ेणी जोत सं या ( ितशत) भूिम का े ( ितशत)
1. सीमा त जोत (एक है टर से कम) 67.1 22.5
2. लघु जोत (एक से चार है टर) 27.9 45.7
3. म य जोत (चार से दस है टर) 4.2 21.2
4. दीघ जोत (दस है टर से अिधक) 0.7 10.6
कु ल 100 100
जीत का े फल कम एवं अिधक दोनो हो उ पादन क ि से अिहतकर होता है । जोत के
अंतगत अिधक े फल होने तथा उ पादन के अ य साधन आव यक मा ा म नह होने क अव था
मे कृ षको को भूिम का कु छ े फल अकृ िषत छोड़ना होता है, साथ ही े फल क अिधकता क

330
अव था म द ब ध के अभाव म भूिम के ित इकाई े फल से उ पादन कम ा होता है । जोत
के अंतगत े फल के कम होने पर िसंचाई के साधन एवं अ य थायी सुधार म पूं जी का िनवेश
करना लाभकर नह होता है । ऐसी ि थित म भी भूिम के ित इकाई े फल से उ पादन कम ा
होता है । अतः जोत क अनुकूलतम सीमा का िनधारण करना आव यक है । ।
जोत क उ चतम सीमा (भू-सीमा) से ता पय एक यि अथवा प रवार के िलए भूिम के
िनयत े के वामि व ा होने के उपरा त अिधक भूिम रखने पर कानून िनयं ण से है । भू-सीमा
एक कृ षक प रवार के िलए भूिम का अिधकतम े िनयत करती है । जोत क उ चतम सीमा
िनधा रत करने का उ े य अनुकूलतम जोत के े वाले फाम का िनमाण करना हे िजससे ित
इकाई भूिम के े से उ पादन अिधक ा होवे, उ पादन लागत कम आवे एवं शु लाभ क रािश
अिधक ा होवे।
भू-सीमा भूिम के पुन : िवतरण का एक तरीका है । एक कृ षक के पास िनधा रत सीमा से
अिधक भूिम का े होने पर, अित र भूिम उस कृ षक से लेकर लघु एवं सीमा त कृ षको तथा
कृ िष िमको म िनधा रत ाथिमकता के आधार पर िवत रत क जाती है, िजससे इस वग के कृ षको
क जोत को आिथक जोत बनाया जा सके तथा देश म भूिमहीन िमको क सं या म कमी हो सके ।
इस कार इस भूिम सुधार काय म ारा देश म कृ िष जोत के अंतग त या े फल असमानता को
कम करने का यास िकया जाता है ।

भू-सीमा िनधारण के लाभ


(1) भू-सीमा िनधारण से देश म िविभ न यि य के पास उपल ध भूिम के वािम व म या
समानता समा हो जाती है । एक क याणकारी रा य म यह सामािजक असमानता सवथा
अनुपयु है । इसके होने से रा समाजवादी ल य क ाि के उ े य के िलए अ सर होता है

(2) भू-सीमा के िनधारण से ा अित र भूिम के े फल को लघु एवं सीमा त जोत कृ षको म
िवत रत करके उनक जोत को आिथक बनाया जा सकता है । इसी कार अित र भूिमको
भूिमहीन िमको म िवत रत करके उनक सं या म कमी क जा सकती है । इससे इस वग के
कृ षको एवं कृ िष िमको म आ म िव ास बढ़ेगा एवं उनक समाज म ित ा म वृि होगी ।
(3) भू-सीमा के िनधारण से दीघ जोत कृ षक .के यहां साधारणतया उ पादन साधन के अभाव म
कु छ े फल अकृ िषत रह जाता था, वह अघन नह रह पाता है । इससे देश म कृ िषत े फल
एवं सघन कृ िष अपनाने से कृ िष उ पादन म वृि होती है ।
(4) भू-सीमा म िनधारण के बाद कृ षक अपनी सीिमत भूिम के े फल पर सघन कृ िष प ित
अपनाकर आिथक उ पादन एवं लाभ ा कर पाते है ।
(5) भू-सीमा म ि या वयन से समाज म दीघ जोन एवं लघु जोत कृ षको म या वैमन यता समा
हो जाती है ।

331
सीमा का िनधारण
भू-सीमा िनधारण का मु य आधार भूिम का वह े फल है िजससे ा आय से कू षक
प रवार उिचत जीवन तर एवं आव यक सुख-सुिवधा ा कर सके । अत: भू-सीमा िनधा रत का
तर एक समान नह होकर पृथक पृथक होता है । भूिम क िविभ न िक म के िलए जोत क
उ चतम सीमा इस कार िनधा रत क जाती है िक सभी कार क भूिम क उ चतम सीमा करने
े से कृ षको को लगभग समान आय ा हो सके । समान आय का यह उदे य िविभ न कार क
भूिम के िलए भू-सीमा के िलए भू-सीमा हेतु जोत का समतु य े ात करने के िलए यु िकया
जाता है । भू-सीमा के िलए े फल िनधा रत करते समय िन न कारको को ि गत रखा जाता है :
(I). भूिम क उवरा शि ।
(II). भूिम पर उपल ध िसं चाई सुिवधा।
(III). भूिमपर उ प न क जा सकने वाली फसल।
(IV). िविभ न फसल से ित है टर ा सं भािवतलाभ।
(V). े म मौसम क ितकू लता होने क सं भावना का ितफल।
(VI). े म जनसं या का घन व।
वष 1950 से 1960 के दशक म िविभ न रा य ने जोत क उ चतम' सीमा िनधारण
(Ceiling on land holdings) कानून पा रत िकये। इन पा रत कानून के ारा िविभ न कार क
भूिम पर जोत क उ चतम सीमा का े फल िनधा रत िकया गया। कानून के ि या वयन के
फल व प ा अिधशेष भूिम को लघु एवं सीमा त कृ षको म िवत रत क गई। इस कार इससे
लघु एवं सीमा त जोत के े फल म भी वृि हई। वष 1972 म रा ीय नीित के अनुसार सभी
रा य म जोत क उ चतम सीमा कानून म पुन : सं शोधन करके जोत क उ चतम सीमा पूव क
अपे ा कम क गई एवं अनेक कार क दी गई रयायत वािपस ले ली गई, िजससे िनधा रत भूिम
ाि का ल य ा हो सके ।
जोत क उ चतम सीमा कानून के ि या वयन से ा प रणाम के अवल कन से प है
िक इनक गित सं तोषजनक नह है । अनुमािनत े से बहत कम े फल भूिम का अिधशेष
घोिषत हो पाया और घोिषत-अिधशेष े फल का मा एक भाग ही लघु एवं सीमा त कृ षको म
िवतरण हेतु उपल ध हो पाया। अिधकां श भूिमका े फल कानून म किमय एवं कृ षको क चतुराई
से उ चतम सीमा े म नह आ पाया। घोिषत अिधशेष े फल भी यायालय से फै सला नह होने
से िवत
रत नह हो सका, जो सारणी 21.3 म प है ।

332
तािलका -21.3 जोत क उ चतम सीमा कानू न से ा अिधशेष भू िम का े
(िमिलयन है टर)
िववरण भू िम का े
रा ीय नमूना सव ण के 16व दौर (1960-61) के अनुसार अनुमािनत 8.87
अिधशेष भूिम
रा ीय नमूना सव ण के 26वे दौर (1971-72 के अनुसार अनुमािनत 4.80
अिधशेष भूिम
कृ िष जनगणना 1970-71 के अनुसार अनुमािनत अिधशेष 12.10
कृ िष जनगणना 1977 के अनुसार अनुमािनत अिधशेष भूिम 8.88
वष 1986 तक वा तिवक अिधघोिषत अिधशेष भूिम का े फल 2.94
ा अिधशेष भूिम म से वष 1986 तक िवत रत भूिम का े फल 1.82
इस कार देश म जोत क उ चतम सीमा कानून के होने के फल व प भी अब तक कु ल
कृ िषत भूिम का 2 ितशत से भी कम भूिम का े अिधशेष घोिषत हो पाया है । एक अिधकृ त
अनुमान के अनुसार लगभग 9 ितशत भूिम सीमा िनधारण के बाद भू-आिध य के प म उपल ध
होनी चािहए थी । अतः इस े म हई गित नग य है । जोत उ चतम सीमा क असं तोषजनक
गित के , मु य कारण कानून म उन धाराओं का होना है िजनका लाभ लेकर अिधकतम जोत सीमा
का उ लं घन हो रहा है, ये है
(I). प रवार म 5 सद य से अिधक होने पर सीमा से दुगुनी भूिम रखने का ावधान।
(II). येक बािलग पु के िलए अलग से सीमा िनधारण ।
(III). सं यु प रवार के येक शेयर हो डर को सीमा िनधारण के िलए अलग इकाई मानना।
(IV). बेनामी ह ता तरण
(V). चाय, काफ , कोको, रबर, इलायची के बागान को सीमा से छू ट ।
(VI). धािमक और धमाथ सं थाओं ारा सीमा से अिधक भूिम रखने क वीकृ ित तथा
(VII). सावजिनक िनवेश ारा नई िसंिचत भूिम पर सीमा छू ट का होना
इन ावधान के दु पयोग ने अिधकतम जोत सीमा िनधारण कानून के उ े य को िवफल
कर िदया है ।
(4) कृ िष भू िम का पु नगठन (Agrarian Reorganisation) एवं जोत चकबं दी
भूिम सुधार के इस काय म म जोत उपिवभाजन एवं 'अपख डन क रोकथाम करना तथा
जोत का चकबं दी करना सि मिलत होता है । देश म चिलत वं शागित कानून, लघु इकाई प रवार
क बढ़ती बल इ छा तथा ामीण े म रोजगार के कृ िष अित र अ य साधन उपल ध नह
होने के कारण कृ षको के पास उपल ध भूिम का िनर तर अपखडन होता जा रहा है । िजससे जोत
छोटी ही नह होती जा रही है बि क जोत के ख ड एक दूसरे से काफ दूर भी होते जाते है । इसके

333
कारण कृ षक अपने पास उपल ध उ पादन-साधन का पूण एवं द ता से उपयोग नह कर पाते है ।
उदाहरणतः उपल ध िसंचाई सुिवधा का एक ख ड पर पूण उपयोग नह हो पाता है जबिक दूसरे
ख ड पर िसंचाई साधन का पूण अभाव होता है । सभी जोत खंड पर पूण द ता से देखभाल करना
भी सं भव नह हो पाता है । िमक तथा बैल शि का भूिम के एक ख ड से दूसरे ख ड तक जाने मे
काफ समय का ास हो जाता है । इस कार ित इकाई भूिम े से उ पादन कम ा होता है ।
और ित इकाई भार पर उ पादन लागत अिधक जाती है । इस कार क : था क समाि के .िलए
भूिम सुधार काय म के अंतगत जोत चकबं दी था शु क गई ।
जोत चकबं दी के ता पय
िबखरे हए भू-ख ड को एक करना चकबंदी कहलाता है । जोत चकबं दी म कृ षको के खेत का
एक करण एवं पुन.िवभाजन करना होता है, िजससे जोत के ख ड क सं या कम हो जावे। जोत
चकबंदी म िविभ न कृ षको को उनके जोत के अनेक ख ड के थान पर समान मा ा मे कु ल भूिम
का े फल एक ही थान पर देने का यास िकया जाता है ।
जोत चकबंदी से िन न लाभ ा होते है
(I). जोत-चकबंदी, कृ षको क िसंचाई क सम या सुलझाने म सहायक होती है । चकबंदी
करने से कृ षक खेत पर कु आं बनाकर पूरे फाम पर िसंचाई क यव था कर सकते है ।
(II). जोत चकबंदी से जोत का एक थान पर े फल म वृि होवे तो उ नत कृ िष यं का
उपयोग सुगम एवं लाभकर होता है ।
(III). जोत चकबंदी करने से कृ षक फाम पर उ म फसल च अपना सकते है ।
(IV). जोत चकबं दी म छोटे छोटे ख ड क मेड को तोड़ने से फाम पर भूिम के े म
वृि होती है ।
(V). जोत चकबंदी करने से खेत पर चौक दारी करने म आसानी रहती है ।
(VI). जोत चकबंदी से िमको एवं बैल को एक थान से दूसरे थान पर ले जाने क
आव यकता नह होती है ।
(VII). जोत चकबंदी से काय पर यावहा रक द ता म वृि होती है ।
जोत चकबं दी के िलए सव थम यास वष 1905 म वे छा के आधार पर देश के
म यवत देश म शु हई। लेिकन जोत चकबंदी के े म उ लेखनीय गित नह हो सक ,
य िक इसका आधार वेि छक था। वतं ता के उपरा त देश म वे छा से चकबं दी के थान पर
अिनवाय चकबंदी प ित अपनाई गई। फल व प देश के सभी रा य (तिमलनाडु एवं के रल के
अित र ) म जोत चकबं दी के िलए 1947 से 1962 के काल म कानून पा रत िकए गए। इन कानून
के पा रत होने के प ात चकबं दी के े म कु छ गित हई।
जोत चकबंदी के े म हई अस तोषजनक गित के मुखकारण म िन न मुख है .
(I). कृ षको का पैतक ृ हम से लगाव होने से भूिम को दूसरे कृ ष को से िविनमय करने क
अिन छा होना।
(II). समान उवरता वाली भूिमका े फल उपल ध नह होना।,
334
(III). जोत चकबंदी के िलए िशि त कमचा रय का अभाव होना।
(IV). भूिम के वािम व के सभी अिभलेख उपल ध नह होना एवं
(V). जमीदार , कृ षको एवं अ य यि य ारा चकबं दी का िवरोध करना एवं उनके ारा
झूठे दावे तुत करके काय क गित म कावट दान करना।
चकबंदी क गित म िविभ न रा य म बहत असमानता है । पं जाब एवं ह रयाणा रा य म
चकबंदी का काय पूण हो चुका है , जबिक अनेक रा य म गित का तर बहच कम है । देश म
पाँचव पंचवष य योजना (1974-80) तक 44326 िमिलयन है टर े (कु ल भूिम का 25
ितशत) एवं छठी पंचवष य योजना (1980-85) के अंत तक 51.8 िमिलयन है टर भूिम क
चकबंदी क जा चुक है जो कु ल कृ िषत े फल का 33 ितशत है । सातव पंचवष य योजना म
अित र 25 ितशत भूिम के े पर चकबं टी करने का ल य रखा गया है । इन आंकड़ से प है
िक चकबं दी के े म हई गित आशानुकूल नह रही है । अनेक े म चकबंदी करने के प ात्
भूिमका पुन : अपख डन हो गया है । अत: चकबंदी करने के साथ-साथ भिव य म जोत के होने
वाले अपख ड को रोकना भी आव यक है ।
(5) सहकारी कृ िष का गठन (Organization of Cooperative Farming)
भूिम सुधार काय म के अंतगत सहकारी कृ िष का गठन भी मुख है । इसके अंतगत लघु
जोत कृ षक सहकारी सिमित बनाकर उपल ध उ पादन साधन को सि मिलत प म उपयोग करके
कृ िष करते है । इसके होने से ित इकाई उ पादन क मा ा पर उ पादन-लागत कम आती है । कृ षक
ै टर ारा भूिम क जुताई एवं िसंचाई के िलए सि मिलत प से कु आँ बनाकर तथा आव यक
मा ा म बीज एवं खाद सि मिलत प से य करके उ पादन लागत म कमी लाते ह।
21.3.4 भू िम सु धार कानू न के ि या वयन से ा लाभ
भूिम सुधार कानून के िविभ न पहलुओ ं के ि या वयन से कृ षक वग एवं देश के कृ िष
िवकास हेतु िन न लाभ ा हए है :-
(1) साम तवादी था क समाि से देश म भू-धारण क जो शोषणयु णाली िव मान थी, वह
समा हो गई है । कृ षको को भूिम पर थायी अिधकार ा हो गये है । भूिम के वािम व
अथवा कृ िष करने सं बधं ी या अिनि तता समा हो गई है । कृ षक भूिम पर थायी सुधार हेतु
पूँजी का िनवेश कर रहे है िजससे भूिम क उ पादकता म वृि हई है ।
(2) भूिम सुधार के प रणाम व प कृ िष उताद क उ पादन लागत म कमी हई है । ित इकाई े
से कृ षक को अब पहले क अपे ा अिधक उ पादन क मा ा ा होती है तथा ा अित र
उ पादन मा ा लगान के प म कृ षक ारा सरकार को नह देना होता है । अित र उ पादन
मा ा से कृ षक वयं ही लाभाि वत होता है ।
(3) भूिम सुधार के फल व प देश म कृ िषत े फल म वृि हई है । यह वृि चरागाह े म
कमी होने तथा परत भूिम एवं अकृ य भूिम के े म कमी होने से हई है । वष 1951 से 1961
के दशक म देश म परत भूिम के े म 8 ितशत तथा 1961 से 1971 के दशक म 23
335
ितशत कमी आई है । कृ षक अब उपल ध पूण े पर कृ िष करते है जबिक पूव म भूिम क
अिधकता के कारण वे काफ े परत रखते थे।
21.3.5 भू िम सु धार काय म क असंतोषजनक गित के कारण
भूिम सुधार काय म कृ षको के िलए लाभकर होते हए भी िविभ न े म इनक गित
सं तोषजनक नह है । ारं भ म भूिम सुधार काय म िवशेष जोश के साथ देश म शु िकये गये ,
लेिकन समय के साथ अनेक कारणवश इनके ि या वयन के जोश म िनर तर कमी होती गई ।
वतमान म भूिमसुधार काय म को मा औपचा रक के प म अनुपालना क जा रही है । इसके
मुख कारण िन नांिकत है :
(1) भूिम सुधार काय म के िविभ न पहलुओ ं के िलए पा रत कानून म अनेक किमय
(Loopholes) का होना, िजसके कारण भािवतजम दार, जागीरदार एवं दीघ जोत कृ षक
यायालय म जाकर उनके ि या वयन पर थगन आदेश ले आते है । इससे ि या वयन के े
म ि थरता आ जाती है और इसी अविध म वे अ य उपाय वे अपनाकर कानून के चं गलु से बच
िनकलते है ।
(2) भूिम सुधार काय म को लागू करने म सरकार क पूण प से राजनैितक अिन छा का होना ।
(3) कृ षक एवं कृ िष िमक वग का भूिम सुधार कानून के ित जाग क नह होना तथा इनके
ि या वयन के िलए सरकार पर दबाव नह डालना ।
(4) राजक य अिधका रय का भूिम सुधार काय म को ि या वयन करने के ित नरम ख
(Luck warm or apathetic attitude) का होना । अनेक अिधकारी साम त या बड़े जम दार
वग से होते है अतः इनके ि या वयन से वे वयं अथवा उनके र तेदार अथवा वग िवशेष के
भािवतहोने के भय से िदलच पी नह लेते है ।
(5) भूिम के अिधकार का सही अिभलेख उपल ध नह होना िजससे ि या वयन म परेशानी आना
। अनेक थान पर अिभलेख म भूिम एक यि के नाम होती है लेि ल वा तव म वह भूिम
उस यि के पास नह होकर दूसरे यि के पास होती है ।
(6) भूिम सुधार कानून के ि या वयन म कानूनन अड़चन का होना ।
(7) सरकार ारा भूिमसुधार काय म को ि या वयन म िवकास के अ य काय के समान
ाथिमकता नह देना । भूिम सुधार काय म को पृथक प से एकल काय म के प म लेना
भी इसके ि या वयन क गित को धीमी करते है ।
(8) िविभ न भूिम सुधार कानून को सरकार ारा अलग -अलग समय पर बनाने से उनम आपस म
साम ज य नह होना, कानून पा रत करने एवं ि या वयन म समया तर का होना, भूिमसुधार
कानून िविभ न रा य सरकार ारा एक पता म पा रत नह करना भी इनक गित म बाधक है

336
बोध
1. कृ िष भूिम स ब ध से या अिभ ाय है? िविभ न कार के कृ िष भूिमस ब ध क िववेचना
क िजए।
2. भूिमसुधार से या ता पय है । भूिमसुधार काय म के उ े य िलिखए।
3. भूिम सुधार के िविभ न काय म क िववेचना क िजए ।
4. भूिम सुधार काय म के ि या वयन से कृ िष भूिम स ब ध म हए प रवतन का उ लेख
क िजए।
21.4 सारां श
भूिम कृ िष उ पादन का मुख साधन है । मनु य एक् भूिम म बल स ब ध िव मान है ।
कृ िष भूिम स ब ध, भू- वामी एवं का तकार के आपसी स ब ध का तीक होते है ।
कृ िष भूिम स ब ध पूण साम तवादी, पूण पूँजीवादी अ साम तवादी होते है । भूिम पर
कृ िषत करने एवं वािम व अिधकार के अनुसार कृ षको को दो ेणी म िवभ िकया जाता है
भू- वामी कृ षक एवं आसामी कृ षक ।
कृ िष भूिम स ब ध म िनर तर प रवतन हए है िजसके कारण देश म लधु एवं सीमा त
कृ षको क सं या एवं उनके पास उपल ध भूिम के े म वृि , भूिमहीन प रवार क ितशतता म
कमी, जोत के औसत आंकार म कमी, उगसमी कृ षको क सं या एवं उनके ारा कृ िषत े म
कमी एवं म य थ क समाि मुख है ।
भूिम सुधार काय म के मुख अवयव म य थ क समाि , भू-धारण प ित म सुधार,
जोत क उ चतम सीमा िनयत करना, कृ िष भूिम का पुनगठन, एवं सहकारी कृ िष का अपनाना है ।
21.5 श दावली
का तकारी था-लगान पर भूिम लेने या देने क था को का तकारी था कहते है ।
कृ िष भू िम स ब ध सु धार (Agrarian Reforms)-कृ िष भूिम स ब ध सुधार म भूिम
सूधार, का तकारी सुधार, कृ षको को कृ िष िनिव एवं कृ िष ऋण क पूित करने, कृ िष के िलए
तकनीक सलाह दान करना एवं वह सभी बात सि मिलत होती है । िजसका कृ िष िवकास से सीधा
स ब ध होता है । अतः यह श द बहत ही िव तृत श द है ।
भू- भू िम (Land Tenure)-भू-घृित से ता पय भूिम को प े पर देने क शत एवं अ य
प रि थितय के ान से है । भू-घृितयो म कृ िष करने हेतु ली गई भूिम के अिधकार, वािम व,
राज व भुगतान आिद ान सि मिलत होता है ।
भू- धारक णाली (Tenancy System) भूिम का वािम व तथा भूिम के ित एवं
दािय व िनधा रत होते है । भू-धारण णाली से इस बात क जानकारी ा होती हं िक भूिमका
वामी कौन है और कृ षक का भू- वामी से या स ब ध होता है ।

337
जोत क उ चतम सीमा (Ceiling on holding)-जोत क उ चतम सीमा से ता पय
िकसी अिधिनयम ारा एक िनि त सीमा से अिधक भूिम के धारण अथवा वािम व पर रोक
लगाना है ।
जोत चकबंदी (Consolidation of holding)-भूिम िवखंडन क सम या जोत क चकबंदी से
हल क जा सकती है । इसके अ तगत िकसान क िबखरी हई जोत को एक थान या चक म इक ा
करने का बं ध िकया जाना है एवं िकसान को एक खान पर उनके िबखरे हए टु कड़ के कु ल मू य
के बराबर क इक ी भूिम दी जाती है ।
21.6 कु छ उपयोगी पु तक एवं पाठ् य साम ी
1. अ वाल, एन.एल., भारतीय कृ िष अथत , राज थान िह दी थ अकादमी, लाट नं.1,
2. Dantwala, M.L., Indian Agricultural Development Since Independence ,a
Collection of Essays, Oxford and IBH Publishing House, New Delhi,1985
pp.65-86.
3. Conference papers on change in Agrarian Structure and Agrarian Relations
in States of India Since Independence, Indian Journal of
AgriculturalEconomics,Vol.XXXVI,No.4,October-December
1981,pp.134-196.
4. Rapporteurs Report on Changes in Agrarian Structure and Agrarian
Relations in States of India Since independence; Indian Journal of
Agricultural Economics,Vol.XXXVII,No.1,January-March 1982,pp..29-33
5. Report No.15 of National Commission on Agriculture Ministry of
Agriculture, Government of India, New Delhi 1976.
6. YOJANA-Fortnightly magazine, Govt. of India, New Delhi.

338
प रिश
इकाई-21
कृ िष भू िम सं बं ध व भू िमसु धार
सातव पंचवष य योजना (1985-90) म भूिम सुधार काय म इस कार थे ।
1. िजन रा य ने का तकार के अिधकार क सुर ा व लगान िनयमन के कानून नह बनाए थे ,
उ ह सातव योजना म इन कानून को बनाने के िलए कहा गया । अनुसिू चत जाित व अनुसिू चत
जनजाित के भूिम अिधकार क र ा करने पर बल िदया गया तािक उनसे भूिम छीनी न जा सके

2. सीिलं ग म घोिषत भूिम व िवत रत भूिम का अ तर कम करने पर जोर िदया गया ।
3. सीिलं ग से ऊपर क अित र भूिम िजन लोग को िमली है, उ ह िव ीय सहायता देने पर जोर
िदया गया । उनके िलए एक कृ त ामीण िवकास काय म व अ य ामीण िवकास काय म
का भूिम सुधार से तालमेल िबठाया गया ।
4. देश के पूव भाग म चावल का उ पादन बढ़ाने के िलए चकबं दी का काम पूरा करने पर जोर
िदया गया।
5. सभी रा य म भूिम- रकाड को नवीनतम बनाने पर पूरा यान देने क आव यकता वीकार क
गई। िबना मापी गई भूिमका वै ािनक सव ण कराने तथा का तकार व बटाईदार के अिधकार
के रकाड बनाने पर यान आकिषत िकया गया। इस काय म रा य सरकार को मदद देने, रेवे यू
मशीनरी को सु ढ़ करने तथा कमा रय को िश ण देने और उनके ि कोण म प रवतन लाने
पर बल िदया गया।
6. सीिलं ग से ऊपर क भूिम ा करने वाले लोग को िव ीय सहायता देने पर जोर िदया गया
तािक वे उ पादन बढ़ाने म सफल हो सक ।
आठवी पं चवष य योजना (1992-97) म भू िम सु धार
आठव योजना म इस बात पर बल िदया गया िक वा तिवक कृ षक अपने अिधकारो के ित
जाग क ही और भूिमसुधार से आव यक लाभ ा कर सक । इस योजना म भूिम सुधार के िन न
उ े य रखे गये :
(I). ामीण स ब ध को पुनगिठत करके समताकारी समाज क रचना करना ।
(II). भूिमस ब ध म शोषण समा करना ।
(III). ''भूिम उसको जोतने वाले क '' का ल य ा करना ।
(IV). ामीण गरीब वग के भूिम आधार को यापक करके उसक आिथक सामािजक दशा को
सुधारना।
(V). कृ िषगत उ पादन व उ पादकता म वृि करना ।
(VI). थानीय सं थाओं म समानता का अिधक मा ा म समावेश करना ।
यह आशा क गई िक का तकार व बटाईदार के सं गठन से िछपी हई का तका रय को
पहचानने म मदद िमलेगी । सीिलं ग से ऊपर 'सर लस भूिम' का पता लगाया जाना चािहए ।
339
काँमन स पि के साधन पर पंचायत का अिधकार थािपत करने का यास करना होगा
तािक उन पर यि अपना अिधकार जमाने क कोिशश न करे । गरीब को उनसे अपनी आमदनी
बढ़ाने का अवसर िमलना चािहए ।
रा य को भूिम सुधार म ा सफलता के सूचकां क के आधार पर के ीय सहायता के
िवतरण करने पर जोर िदया गया ।
आशा को गई िक आठव योजना म व आगामी वष म का तकारी सुधार , सीिलं ग कानून को लागू
करने, चकब दी, भूिम रकाड ठीक करने व गाँव के गरीब के िलए कॉमन ोपट के लाभ सुरि त
करने पर जोर देने से भूिम सुधार काय म का मह व बढ़ेगा ।

340
इकाई 22
ह रत ाि त
(Green Revolution)
इकाई क परेखा
22.0 उ े य
22.1 तावना
22.2 ह रत ाि त
22.2.1 ह रत ाि त से ता पय
22.2.2 ह रत ाि त का ादुभाव
22.2.3 ह रत ाि त के अवयव
22.2.4 ह रत ाि त का कृ िष े पर आिथक भाव
22.2.5 ह रत ाि त का सामािजक भाव
22.2.6 ह रत ाि त का कृ िष म क आव यकता पर
22.3 सारांश
22.4 श दावली
22.5 कु छ उपयोगी पु तक एवं पाठ् य साम ी
22.0 उ े य
भारतीय अथ यव था का िवकास िवषय के इस तृतीय ख ड क तुत इकाई म कृ िष े
म आई ह रत ाि त से स बि धत ान का िववेचन िकया जा रहा है । इस इकाई के अ ययन के
प ात् आप िन न ान ा कर सकगे : -
 ह रत ाि त से या ता पय है? ह रत ाि त का देश म ादुभाद िकस कार एवं िकस समय
हआ?
 ह रत ाि त के मुख अवयव कौन-कौन से है? िविपन कृ िष िनवेश का ह रत ाि त लाने म
या योगदान है?
 ह रत ाि त के कारण कृ िष े म आए आिथक भाव जान सके ग ।
 ह रत ाि त के कारण कृ षको एवं िविभ न े के कृ िष े म ा आय पर भाव पड़ा है?
 ह रत ाि त के कारण कृ िष म क माँग एवं देश म रोजगार उपलि ध पर होने वाले भाव को
जान सके ग ।

341
22.1 तावना
वष 1965-66 व 1966-67 के सूखा ने देश म खा ान उपलि धय क सम या को िवषय
बना िदया और उ प न ि थित ने कृ िष वै ािनको के सम कृ िष उ पादन म वृि लाने के िलए
चुनौती क कृ िष वै ािनको ने अपने अथक अनुसधं ान प रणाम के फल व प उ मत िक म के
बीज, िविभ न उवरक, क टनाशी दवाईय एवं उ मत कृ िष य तथा कृ िष उ पादन क नई, िविध का
आिव कार िकया । दूसरी ओर सरकार ने भूिमसुधार एवं कृ िष े म आव यक आधार धा रक
सं रचनाओं म सुधार एवं िवकास भी िकया । अतः भूिम सुधार काय म एवं कृ िष िनिव एवं उिचत
कृ िष िविध के उपयोग तथा सार ान के फल व प देश म खा ान ( मुखतया गेह,ँ चावल एवं
मोटे अनाज) म ती दर से वृि हई । इस खा ान उ पादन म वृि क हई असाधारण दर को कृ िष
वै ािनको ने ह रत ाि त का नाम िदया । इसके कारण खा ान उ पादन कृ षको क आय एवं कृ िष
म क माँग म वृि हई । तुत इकाई म इन पहलुओ ं का िव तार : से वणन िकया गया है ।
22.2 ह रत ाि त )Green Revolution)
22.2.1 ह रत ाि त से ता पय.ह रत ाि त, ह रत एवं ाि त श द के िमलने से बना है
। ाि त से ना ा िकसी घटना म ु तगित से प रवतन होने तथा उन प रवतनो का भाव आने वाले
ल बे समय तक रहने से है । ह रत श द कृ िष फसल का सूचक है । अतः ह रत ां ित से ता पय
कृ िष उ पादन म अ पकाल म िवशेष गित से वृि का होना तथा उ पादन क यह वृि दर आने
वाले ल बे समय तक बनाये रखने से है । दूसरे श द म ह रत ाि त से उािभ ाय : देश के िसं िचत
एवं अिसं िचत कृ िष े म अिधक उपज देने वाले सं कर एवं बौनी िक म के बीज के उपयोग ारा
कृ िष उ पादन म ु तगित से वृि करना है । अिधक उ पादन देने वाली िक म के बीज ारा कृ िष
उ पादन म वृि करना, अथवा कृ िष िवकास क े म अपनाये जा रहे नये तकनीक ान को ही
''ह रत ाि त'' का नाम िदया गया है ।
22.2.2 ह रत ाि त का ां दु भाव: भारत म ह रत ाि त वष, 1966-67 के उपरा त
काल म आई है । यह ह रत ाि त, कृ िष े म नये तकनीक ान के आिव कार एवं सार का
प रणाम है । ह रत ाि त के ज मदाता का ेय नोबल पुर कार िवजेता ो. नोरमन बारलोग को
जाना है ।
देश म कृ िष े म तकनीक ान का आिव कार एवं उसका वृहत तर पर उपयोग उ मत
एवं अिधक उ पादन देने वाले सं कर एवं बोने िक म के बीज का आिव कार, िविभ न उवरको का
अिधक मा ा म उ पादन एवं सं तिु लत मा ा म उपयोग, िसचाई सुिवंधाओ का िवकास, क टनाशक
दवाईय का उपयोग, कृ िष े म उ नत औजार एवं मशीन का अिधकािधक उपयोग, कृ िष म
िव तु ीकरण, कृ िष े म ऋण का िव तार, आिद के सि मिलत यास के फल व प वष
1966-67 क उपरा त काल म उ पादन म.ती गित से वृि हई ह । उ पादन वृि क इस

342
असाधारण गितदर को देश के कृ िष वै ािनको ने ह रत ाि त का नाम िदया है । इस कार ह रत
ाि त का ादुभाव देश मे वप 1966-67 के उपरा त काल म हआ है ।
22.2.3 ह रत ाि त के अवयव: ह रत ाि त का मुख अवयव अिधक उ पादन देने
वाली बौनी एवं सं कर िक म के उ मत बीज का आिव कार है । इनके आिव कार एवं उपयोग से
भूिम क उ पादकता म वृि के साथ-साथ फाम पर फसल गहनता म भी वृि हई है । कम समय मे
पकने वाली िक म के आिव कार के कारण कृ षक अब वष म दो फसल के थान पर बान एवं बार
फसल या लन म स म हो गया है । इस कार ित इकाई भूिम के े से वष म कृ िष उ पादन क
ा उ पादन मा ा पहले क अपे ा कई गुना ा होने लग गई है । उ नत िक म के बीज म कृ िष
करने के िलए िसं चाई सुिवधाओं म वृि , उवरको क खपत क मा ा म वृि , फसल सर ण उपाय
अपनाने, कृ िष काय का समय एवं उिचत द ता से पूरा करने के िलए कृ िष राजा एवं मशीन का
उपयोग भी आव यक हो गया है । कृ िष उ पादन म वृि क यह असाधारण गित, इन सभी उपाय
के सि मिलत यास का ितफल है । दूसरे श द म इन उपाय के एक पैकेज के प म ही अपनाने
से कृ िष उ पादन म यह वृि दर ा हो पाई है । अत ह रत ाि त के मुख अवयव िन न है -
1. अिधक उपज देने वाले सं कर एवं बौनी िक म क उ मत बीज का उपयोग ।
2. बहफसलीय काय म का िव तार ।
3. उवरको का उिचत समय पर िसफा रश मा ा' म स तुिलत प मे , उपयोग ।
4. िसंचाई सुिवधाओं का िवकास ।
5. फसल सं र ण उपाय का अपनाना ।
6. कृ िष उ पादन म वृि के िलए आव यक आधारभूत सुिवधाओं जैसे कृ िष ऋण क
उपलि ध, कृ िष िवपणन के िलए प रवहन, सं हण एवं म डी सुिवधाओं का िवकास, आिद ।
7. कृ षको उ पाद क ेरणादायक क मत दान करना ।
8. कृ िष िश ा, िश ण एवं अनुसं धान सुिवधाओं का िवकास ।
9. कृ िष े म िव तू का सार।
ह रत ाि त के ादुभाव के पूव , कृ षक फाम पर उ पादन बढ़ाने के िलए पुरानी िविधय ,
फाम पर उ पािदत बीज एवं खाद तथा उ पादन वृि के अ य साधन का कम मा ा म उपयोग करते
थे; िजसके कारण उ ह भूिम के ित इकाई े से उ पादन क मा ा कम ा होती थी । ह रत
ाि त के कारण कृ षक िनि ता (Stagnation) क ि थित से बाहर जाकर गितशीलता के मा म
वेश कर गये है ।
22.2.4 ह रत ाि त का कृ िष े पर भाव : ह रत ाि त के फल व प देश के
सभी े के सभी जोत कृ षको को लाभ ा हआ है । यह लाभ उनको फाम पर ित इकाई भूिम
के े से उ पादकता एवं आय म वृि के कारण ा होता है । लेिकन यह लाभ िविभ न कृ षको
को उनके ारा ायोिगत ान के तर क िविभ नता के कारण समान मा ा म ा नह होकर,
अपनाये गये तकनीक ान तर क िविभ नता क कारण िविभ न मा ा म ा होता है । अिधक
लाभ ा होने वाले एवं कम लाभ ा होने वाले दोन ही कार के कृ षक ह रत ाि त के ित
343
जाग क है । आय क असमानता ने सामािजक िवषमताओं को भी ज म िदया है । अतः यहाँ पर
ह रत ाि त के उपरो दोन कार के भाव क िववेचना क जा रही है ।
ह रत ाि त का कृ िष े पर आने वाले भाव को िन न दो, ेिणय म िवभािजत करके
अ ययन िकया जा सकता है : -
1. आिथक भाव (Economic Impact)
अ. कृ िष उ पाद क उ पादकता म वृि ।
ब. ीर उ पादन म वृि
2. सामािजक भाव (Sociological Impact)
अ कृ षको क यि गत आय असमानता म वृि ।
ब. िविभ न े के कृ षको क आय असमानता म वृि ।
ह रत ाि त का आिथक भाव : ह रत ाि त के फल व प कृ िष उ पादको को ित
इकाई भूिम के े से ा उ पादकता एवं अ पकाल म पकने वाली िक म के आिव कार के
कारण फसल गहनता म वृि के कारण ित फाम ा उ पादन क मा ा म वृि हई है िजसके
फल व प कृ िष उ पाद क उ पादन लागत म कमी आई है तथा कृ षको को अपने फाम े से
अिधक शु लाभ क रािश ा होने लग-गई है । इस कार कृ षको के आिथक तर म सुधार हआ
है । इ ह कृ िष े म ह रत ाि त का आिथक भाव कहा गया है ।
(1) कृ िष उ पाद क उ पादकता म वृ ि
ह रत ाि त का थम आिथक भाव, कृ िष उ पाद क ित है टर भूिम के े से ा
उ पादकता तर म वृि होना है । िन न सारणी म भारत म िविभ न फसल क िविभ न काल म
भूिम के ित है टर े स ा उ पादकता दिशत का गई है ।
सारणी-22.1 भारत म िविभ न फसल क उ पादकता
(िकलो ाम ित है टर)
फसल वष
1950-51 1965-66 1969-70 1975-76 1980-81 1984-85 1985-86 1994-95
गेह 663 827 1209 1410 1630 1870 2046 2550
चावल 668 - 1073 1235 1336 1417 1368 1920
वार - 522 591 660 713 633 780
बाजरा - - 426 496 458 569 344
म का - - 968 1203 1139 146 1146 1490
अनाज - 865 1041 1142 1265 1323
दलहन - - 531 533 473 526 544 -
मूँगफली - 720 935 736 898 719 1040
कपास 88 122 138 132 196 197 246
Source: Indian Agriculture in Brief, Directorate of Economics and Statistics,
Ministry of Agriculture, Government of India, New Delhi – Various issues

344
सारणी से प है िक ह रत ाि त के बाद के वष म देश म िविभ न फसल क
उ पादकता के तर म िवशेष दर से वृि हई है । यह वृि दर खा ान म अ य फसल क अपे ा
अिधक हई ह। गैर खा ान वाली फसल क अपे ा उ पादकता म वि क दर कम है । खा ान म
गेह ँ एवं चावल क उ पादकता म वृि क गित अ य खा ा न जैसे जार, बाजरा, म का एवं जौ क
अपे ा अिधक है । इसी कारण अनेक वै ािनको ने इसे ह रत ाि त के थान पर गेह ँ ाि त से भी
स बोिधत िकया है ।
(2) कृ िष उ पादन मे, वृ ि
ह रत ाि त का दूसरा आिथक भाव े मे , कु ल उ पादन क मा ा म वृि होना है ।
ह रत ाि त के ादुभाव के उपरा त देश म कृ िष उ पादन क कु ल मा ा म तीव गित से वि है जो
सारणी 22.2 से प है -
सारणी-22.2 देश म खा ान का उ पादन
(िमिलयन टन)
वष कु ल खा ा न उ पादन चावल उ पादन गेह उ पादन
1950-51 5092 - 6.46
1960-61 82.02 - -
1965-66 72.347 - 10.39
1970-71 108.422 42.23 23.83
1975-76 121.030 48.74 28.85
1980-81 129.90 55.63 36.31
1982-83 129.520 47.12 42.79
1983-84 152.037 60.10 45.48
1985-86 150.440 63.82 47.05
1986-87 143.420 60.56 44.32
1987-88 138.410 56.43 45.10
1990-91 176.000 75.00 55.0
1996-97 191.000 81.00 65.0
1997-98 192.004 82.03 65.9
1998-99(Estimate) 195.002 82.02 69.1
वष 1965-66 के उपरा त कु ल खा ान के उ पादन म ती से वृि 'हई है, िजसका मुख ेय
ह रत ाि त को जाता है । खा ा न का उ पादन तर 1965-66 म 72.347 िमिलयन टन था जो
बढ़कर 1970-71 म 108.422 टन, 1975-76 म 121.03 िमिलयन टन, 1980-81 म 129-590
िमिलयन टन '' 1985-86 म 130-440 िमिलयन टन हो गया । 1996-97 म कु ल खा ा उ पादन
191 िमिलयन टन हो गया था जो 129 1998-99 म 195.2 िमिलयन टन हो जाने का है । देश म
345
सूखा के कारण वष 1986-87 एवं 1987-88 म खा ा न उ पादन म आई है । इस कार िपछले 20
वष म खा ान के उ पादन तर म 100 ितशत से वृि हई है । इस शता दी के अ त तक देश क
95 करोड़ जनसं या के िलए खा ा न आव यकत 200 िमिलयन टन होने का अनुमान है ज आशा
है िक ह रत ाि त के ा हो सके गी ।
खा ा न के अतगत सवांिधक उ पादन -वृि गह के उ पादन म हई है । गेह का उ पादन
वष 1965-66 म 10.39 िमिलयन टन था, वह बढकर 1996-97 म 65 िमिलयन टन पहँच गया
अथात् उ पादन म 6 गुना से अिधक वृि हई है वष 1998-99 म गहँ का उ पादन 69 िमिलयन टन
होने क सं भावना है । ऐसा सं सार के इितहास म अि तीय है । उपरो काल म धान (चावल) एवं
मोटे अनाज के उ पादन म भी िवशेष दर से वृि हई है । दलहन एवं ितलहन फसल के उ पादन म
िवशेष वृि नह हई है ।
22.2.5 ह रत ाि त का सामािजक भाव: ह रत ाि त के उपरो आिथक भाव
के फल व प सामािजक े म िन न सामािजक िवषमताएं भी उ प न हो गई है िजनके कारण
िविभ न जोन तर के कृ षको एवं िविभ न े के कृ षको म वैमन यता क भावना को बढ़ावा
िमलता है । ह रत ाि त के सामािजक े म आनेवाले कु भाव िन न दो ेणी म िवभ िकये गये
है:
(1) कृ षको क यि गत आय असमानता म वृ ि
ह रत ाि त के कारण वतमान म या दीघ एवं लघु जोत कृ षको अथवा धनी एवं िनधन
वग कृ षको के म य पाये जाने वाली आय असमानता म वृि हई है । ह रत ाि त के फल व प
धनी कृ षक अिधक धनी हो गये है और गरीब कृ षक उसी आय तर पर रह जाने से दोन वग के
कृ षको के म य पाई जाने वाली आय के अ तर म वृि हई है ।
वै ािनको का मानना है िक नया तकनीक ान तर अथवा ह रत ाि त उ पादन के पैमाने
के ित उदासीन (Neutral to Scale) होता है । अथात् सभी जोत तर के कृ षक तकनीक ान के
उपयोग से समान उ पादकता तर ा कर सकते है । तकनीक ि कोण से वै ािनको का यह
ि कोण सही है, लेिकन सं थागत कारण से बड़े कृ षक ह रत ाि त से वा तिवक प रि थित म
अिधक लाभ ा कर पाने म स म होते है । म यम एवं लघु जोत कृ षको को दीघ जीत कृ षको के
समान मा ा म लाभ ा नह होता है । इस कार के अ तर का मुख कारण नये तकनीक ान के
उपयोग म काफ मा ा म पूँजी का िनवेश होना है । नये तकनीक ान म उ मत बीज, आव यक
मा ा मे उवरक एवं किटनि दवाईयाँ, िसं चाई के िलए िव तु का उपयोग, उ मत कृ िष य क
आव यकता, आिद के फल व प फसल के कृ िषत करने पर ित है टर यय रािश अिधक आती
है । उ पादन के िविभ न िनिव सि मिलत प म (पैकेज) उपयोग करने से ही आव यक उ पादन
तर या आय ा कराने म सदनम होतै है । पूँजी का इतनी अिधक मा ा म िनवेश करना, लघु एवं
म यम जोत अथवा िनधन कृ षको के िलए सं भव नह होता है य िक उनके पास संचय क गई
धनरािश का अभाव होता है । साथ ही इन कृ षको को सं थागत साधन से ितभूत के अभाव म
आव यक रािश म उन सुिवधा भी उपल ध नई हो पाती है । अतः आव यक रािश म धन के अभाव
346
म ह रत ाि त का पूण लाभ सीमा त, लघु एवं म यम जोत कृ षको अथवा िनधन कृ षको को नह
िमल पाता है, जबिक दीघ जोत कृ षक या धनी कृ षक सं थागत - साधन से आव यक रािश म ऋण
ा करने म स म होते है और उनके पास पूव बचत क रािश भी होती है िज ह वे कृ िष म िनवेश
करके अिधक लाभ कमा पाते है । इस कार ह रत ाि त के कारण वा तिवक प रि थित म िविभ न
तर के कृ षको को ा होने वाले लाभ क कु ल रािश म अ तर होता है । िजसके कारण धनी कृ षक
क अपे ा अिधक धनी एवं िनधन कृ षक -पहले क अपे ा िनधन होने से, दोन तर के कृ षको के
म य पाये जाने वाली आय के अ तर म िनर तर वृि हई ह । कृ षक समाज धनी एवं िनधन वग म
िवभ होते जा रहा है । इस आय असमानता क बढ़ती हई खाई ने उनम आपस म वैमन यता क
भावना जागृत कर दी है ।
नये तकनीक ान तर के उपयोग म जोिखम क अिधकता के कारण, लघु एवं िनधन वग
के कृ षक जोिखम वहन अपना मता कम होने के कारण, इस न को ऐसे अपनाते है । जबिक दीघ
जोत कृ षक या धनी कृ षक कृ िष सार अिधकारीय से ा के आधार पर शी अपना पाने म स म
होते है । इस कार नये ान को सव थम अपनाने वाले कृ षक (Early adopters), देर से अपनाने
वाले (laggards) क अपे ा अिधक लाभ ा ही नह करते है, बि क लाभ क रािश भी बहत
पहले ा करते है । अ य कृ षक जब इस ान तर को अपना बनाते है तो ित बढ़ने के कारण ित
इकाई लाभ कम होता जाता है । अतः लघु एवं िनधन वग कृ षको को कम ा होने के साथ-साथ,
उ हे लाभ देर से भी ा होता है िजससे दोन वग के कृ षको ' कट क खाई अ यािधक िव तृत
होती जा रही ह ।
(2) िविभ न े के को क आय असमानता मे वृ ि (Regional Disparities of the
Farmers)
नये तकनीक ान अथात् ह रत ाि त का दूसरा सामािजक कु भाव देश के िविभ न
रा य के कृ षको अथवा एक ही रा य के िविभ न े के कृ षको क आय असमानता म वृि
करना है । ह रत ाि त का अपनाना उन ही े म सं भव हो सका है, जहाँ पर पया एवं समुिचत
िसंचाई सुिवधाय उपल ध है । पया िसंचाई सुिवधा नह होने वाले ' े अथात् सूखे े म उ मत
एवं सं कर बीज एवं उवरको का उपयोग सं भव नह होता है । िसंचाई क सुिवधा देश के सभी रा य
एवं रा य के िविभ न े म समान नह है । वतमान म देश के 30 ितशत े म ही िसंचाई क
पया सुिवधा उपल ध है एवं शेष 70 ितशत े कृ िष उ पादन के िलए वग पर ही िनभर है ।
उदाहरण के िलए पं जाब एवं ह रयाणा रा य म िसचाई क सुिवधा अ य रा य क अपे ा अिधक है
। इसी कार राज थान रा य के ीगंगानगर एवं कोटा िजल म िसं चाई क पया सुिवधा नहर के
िव तार के कारण िव मान है, जबिक पि मी राज थान के िजलो म िसंचाई सुिवधाओं का अभाव
है । इस कारण उन रा य एवं े के कृ षको को जहाँ पर पया िसंचाई सुिवधा िव मान है , आय
अिधक ा होती है । तथा सूखा त एवं कम िसंचाई वाले े म ह रत ाि त का भाव कम
अथवा नग य है । इस कर िविभ न े म उपल ध िसचाई सुिवधा के कारण ैि क आय
असमानता म भी वुि हई है । जो े ' पहले समृ शील, वे ह रत ाि त के ादुभाव के कारण
347
अिधक समृदश् ाही हो गये है और िपछड़े रा या े अिधक िपछड़ गये ह । इस कार ह रत ाि त
के आिथक भाव के साथ-साथ देश म सामािजक कु भाव भी आये है ।
देश म खा ान क कमी एवं बढ़ती हई जनसं या के िलए खा ान, क आपूित म वृि
करने के िलए ह रत ाि त का आना देश के िलए वरदान सािबत हआ है । इसी ह रत ाि त से हम
पूण आशाि वत है िक आने वाले समय म उ पादन म और अिधक वृि करके बढ़ती जनसं या क
खा ा न आव यकता क पूित करके देश खा ा न उ पादन म आ म-िनभर रह सके गा ।
22.2.6 ह रत ाि त का किव म पर भाव : भारतीय कृ िष म उ नत बीज, तकनीक
ान एवं यं ीकण का उपयोग िपछले दो दशक से िनर तर बढ़ता जा रहा है । प रणाम व प ित
इकाई भूिम के े क उ पादकता एवं आय म वृि हए है । लेिकन इन सबके उपयोग से कृ िष म
क माँग पर पड़ने वाले भाव के सं बं ध म अनेक ाि तयॉ या है । कु छ यि य का मत है िक
कृ िष म य ीकरण को अपनाने से िमको म बेरोजगारी बढ़ती है जो िक भारत जैसे अिधक
मशि वाले देश के िलए उिचत नह है । यि य का मत है िक कृ िष म य ीकरण के अपनाने स
भूिम क उ पादकता म वृि , है िजससे म क ब मां ग म वृि होती है एवं उपल ध रोजगार म वृि
होती है । कृ िष म मा य ीकरण अपनाने से उ पादन म वृि नह होती है बि क उ मत बीज,
उवरक, िसं चाई के जल, कृ िष म उ नत य एवं नए तकनीक ान के सि मिलत उपयोग से
उ पादन वृि होती है । अतः.इस भाग म ह रत ाि त के िभ न अवयव के सामािजक उपयोग के
कारण कृ िष म पर आने वाले भाव का वणन िकया गया है ।
ह रत ाि त का कृ िष म पर दो कार का भाव आता है -
(1) य भाव- उ मत बीज के उपयोग नए तकनीक ान तथा कृ िष म य ीकरण के
अपनाने का कृ िष म क आव यकता पर आने वाला भाव धना मक होता है, य िक कम अविध
म पकने वाली िक म को अपनाने से कृ षक भूिम के एक इकाई ' े से वष म 3 से 4 फसले
सुगमता से लेकर बहफसलीय काय म अपना पाते है । इसम फाम फसल गहनता (cropping
intensity') एवं कृ िष उ पादन म वृि होती है । अिधक उ पादन क मा ा क कटाई, गहाई, ढु लाई
के िलए अिधक म क आव यकता होती है । इस कार के आने वाले भाव को य भाव
क ेणी म वग कृ त िकया जाता है य िक इस कार के भाव को सुगमता से आकलन िकया जा
सकता है ।
रा ीय कृ िष आयोग के वृतां त से प है िक े म अिधक पैदावार देने वाले उ नत
िक म को लेने से देशी िक म क अपे ा 30 मानव िदवस ित एकड ित वष म क अिधक
आव यकता होती है । इसी कार बहफसलीय काय म के एक एकड़ भूिम े पर अपनाने से 26
मानव िदवस म क अिधक आव यकता होता है । िविभ न शोधकताओं ारा िकए गए अ ययन
से भी ऐसे माण ा हए है । म क आव यकता म सभी जोत कृ षको के यहां वृि होती है ।
(11) अ य भाव-उ नत बीज एवं कृ िष म य ीकरण के अपनाने से कृ िष म क
माँग पर आने वाले दूसरे कार के भाव को अ य णे ी के होते है । फाम पर उ मत बीज को
अिधक मा ा म उपयोग करने से िसंचाई, उवरक, क टनाशी दवाईय का अिधक मा ा म उपयोग
348
करना होता है । कृ िष म य ीकरण के अपनाने से कृ िष य के िनिमत करने, िव य करने एवं उ ह
कायगत रखने के िलए िमको क अिधक आव यकता होती है । अत: उ पादन साधन क बढ़ती
हई आव यकता क क पूित के िलए इनके उ पादन िवपणन आिद काय के िलए अिधक िमको
क आव यकता होती है िजससे म क कु ल आव यकता म वृि होती है । इस कार अित र
म क मा ा म जो वृि होती है वह अ य भाव क ेणी म आती है य िक इस कार के
भाव के आकलन का काय किठन होता है ।
अतः ह रत ाि त के फल व प कृ िष म क माँग म वृि होती है । मां ग म प रवतन के
साथ-साथ म क िविभ न समय म होने वाली माँग क मा ा म भी प रवतन होता है । म क कम
माँग वाले मौसम एवं अिधक मॉग वाले मौसम के प म भी प रवतन होता है तथा िविभ न महीन
म िमको क मां ग क असमानता भी कम हो जाती है ।
बोध
1. ह रत ाि त से या अिभ ाय है?
2. ह रत ाि त के मुख अवयव कौन-कौन से है?
3. ह रत ाि त को ''गेह-ँ ाि त'' के नाम से य स बोधन िकया जाता है?
4. ह रत ाि त के आिथक एवं सामािजक भाव क िववेचना क िजए ।
22.3 सारां श
ह रत ाि त से ता पय कृ िष उ पादन म अ पकाल म िवशेष गित से वृि का होना तथा
यह वृि : दर ल बे समय तक बने रखने से है । देश म ह रत ाि त का ादुभाव वष । 1966-67 के
उपरा त काल म हआ है और इसके ज मदाता का ेय ो.नारमन घोरलोग को है ।
ह रत ाि त के मुख अवयव-अिधक उपज देने वाले संकर एवं बौनी िकमी के उ मत
बीज, बहफसलीय काय म, उवरको का स तुिलत मा ा म उपयोग, िसंचाई सुिवधाओं का िवकास
फसल सं र ण उपाय का अपनाना, आधारभूत सुिवधाओं का िवकास, कृ षको को ेरणादायक
क मत दान करना, कृ िष िश ा, िश ण सुिवधा एवं अनुस धान का िवकास एवं कृ िष े म
िवलुत सार का होना है ।
ह रत ांित के कारण िन न दो कार के आिथक भाव कृ िष े म िव तु सार होना है :
(i). कृ िष उ पाद क उ पादकता म वृि होना।
(ii). कृ िष उ पादन क मा ा म वृि होना।
इन दोन ही भाव के कारण कृ षको क आय म वृि हई है । ह रत ां ित क कारण आए
सामािजक भाव भी िन न दो कार के होते है :
(i). कृ षको क यि गत आय असमानता म वृि होना।।
(ii). िविभ न े क कृ षको क आय असमानता म वृि होना।
ह रत ाि त के कारण कृ िष म क कु ल माँग म भी वृि हई है तथा कृ िष, म के माँग के
समय म भी प रवतन आया ह।
349
22.4 श दावली
Green Revolution – Can be defined as a change from traditional farming
to a production syndrome encompassing the use high yielding grain seed
genotype, chemical fertilizers, non traditional farm management techniques and
modern irrigation equipments and machinery
22.5 कु छ उपयोगी पु तक एवं पा य साम ी
(i). अ वाल, एन.एल., भारतीय कृ िष का अथतं , राज थान िह दी य अकादमी, लाट
नं.1, मालाना सं थािनक े जयपुर
(ii). Indian Journal of Agriculture Economics various issues

350
इकाई 23
भारतीय कृ िष िवकास क उपलि धयां तथा किमयाँ
(Major Achievements of Agricultural
Growth and the Deficiencies)
इकाई क परेखा
23.0 उ े य
23.1 िनयोजन और कृ िष िवकास
23.2 कृ िष िवकास क उपलि धयाँ
23.2.1 कृ िष उ पादन म वृि
23.2.2 कृ िष का आधुिनक करण
23.2.3 खा ा न आ मिनभरता
23.3 कृ िष े म अस तुलन व किमयाँ
23.3.1 कृ िष उ पादन क अि थरता
23.3.2 फसलवार अस तुलन
23.3.3 े ीय असं तलु न
23.3.4 कृ िष िवकास और सामािजक याय
23.4 सारां श
23.5 श दावली
23.6 कु छ उपयोगी पु तक
23.7 िनब धा मक
23.0 उ े य
कृ िष भारतीय अथ यव था का आधार है । कु ल िमक का लगभग दो—ितहाई भाग कृ िष
े से जीिवकोपाजन कर रहा है और रा ीय आय का लगभग एक—ितहाई भाग कृ िष े से ही
ा होता है । कृ िष े क उ नित पर देश के करोड़ लोग का आिथक भिव य िनभर करता है ।
देश के आिथक िवकास म भी कृ िष क एक मह वपूण भूिमका है । यह कहना अितिशयोि न होगी
क भारत वष के लोग क खुशहाली और भारतीय अथ यव था क गित भारतीय कृ िष के
िवकास के िबना स भव नह है ।
कृ िष के िवकास को भारतीय पंचवष य योजनाओं म एक के थ थान िदया गया है ।
योजना काल म कृ िष को एक गितशीलता ा हयी है और कृ िष े म मह वपूण प रवतन आये है
351
।कृ िष उ पादन तेजी के साथ बढ़ा है और कृ िष म आधुिनक तकनीक का काफ यापक प से
योग होने लगा ह । िफर भी कृ िष े म अस तुलन, असमानता और आसीरता क सम याय बनी
हयी है ।
इस इकाई म हम योजनो र काल म भारतीय कृ िष क उपलि धय और उसक किमय क
या या करगे । कृ िष िवकास को आंकने के कई आधार हो सकते है । कृ िष उ पदन म वृि क दर
एक ऐसा ही मुख आधार है । लेिकन कृ िष े क उपलि धय को आकने का सही और यापक
आधार यह होगा िक तुम यह देख िक कहाँ तक कृ िष े के िवकास ने हमारी पं चवष य योजनाओं
के मुख ल य जैसे तोव वृि दर, आ म िनभरता, अिधक रोजगार, े ीय व वग य असमानताओं
म कमी, आिद को ा करने म सहायत क है । हमारा यह अ ययन इसी कसौटी को यान म
रखकर िकया जायेगा।
इस इकाई म हम योजना काल म हये कृ िष े के िवकास पर एक िवहगम ि डालेगे और
उसक किमय क ओर सं केत करेगे । सबसे पहले हम योजनाओं म कृ िष िवकास क ाथिमकता
और नीित क चचा करेग । उसके बाद हम आपको कृ िष उ पादन क वृि दर तथा कृ िष े क
अ य उपलि धय के बारे म बतायेगे । इकाई के अि तम ख ड म कृ िष े के मह वपूण असं तलु न
क ओर यान आकिषत िकया जायेगा तथा कृ िष िवकास और सामािजक याय के स ब ध को
देखा जायेगा।
इस इकाई के अ ययन से आपको भारतीय कृ िष क मु य उपलि धया ान हो सके गा तथा
भावी कृ िष िवकास नीित के स ब ध के कु छ सोचने का मौका िमलेगा ।
23.1 िनयोजन और कृ िष िवकास
वत त ाि के समय भारतीय कृ िष एक िपछड़ी हयी व अवरोध क ि थित म थी । कृ िष
क पुरातन तकनीक सिदय से चली आ रही थी और औसत पैदावार बहत कम थी । करोड़ कृ षक
द र ता का जीवन यतीत कर रहे थे । पंचवष य योजनाओं म देश के आि क िवकास म कृ िष क
मुख भूिमका को वीकार िकया गया तथा कृ िष िवकास के यापक कदम उठाये गये । थम
पं चवष य योजना म कृ िष के पुनसगठन को पूरा मह व िदया गया तथा कु ल योजना प र यय का
लगभग 37 ितशत कृ िष व िसं चाई के िलये आबं िटत िकया गया । लेिकन यह आवटन दूसरी
पं चवष य योजना म के वल 21 ितशत रह गया, जब औ ोिगक िवकास को ाथिमकता दी गयी ।
इस दौरान भारत क आयितत खा ान पर िनभरता बढ़ती गयी और पुन : तीसरी योजना म कृ िष
और उ ोग के स तुिलत िवकास क बात क गयी । तब से कृ िष उ पादन का िवकास और ामीण
िनधनता का उ मूलन योजनाओं के मु य ल य म रहे है, य िप कृ िष े को उतने सं साधन ा
नह हो सके िजतना िक वां छनीय था ।
योजना काल के ार भ म कृ िष सुधार के िलये दो कार के काय म पर बल िदया गया ।
एक तो सं था मक ढाँचे म प रवतन िजसके अ तगत भूिम सुधार सहका रता और सामुदाियक

352
िवकास काय म अपनाये गये तथा दूसरा उ पादन वृि के काय म िजसम तकनीक सुधार
कृ िषगत े का िव तार और िसंचाई क योजनाओं पर बल िदया गया।
योजना काल के थम दशक म खा ान उ पादन म लगभग 60 ितशत बढ़ोतरी हयी,
िजसका मुख कारण कृ िष के े म वृि था । अतः यह अनुभव िकया गया िक कृ िष उ पादन
बढ़ाने के काय म पर अिधक जोर िदया जाय । अत: तीसरी पं चवष य योजन म चयिनत िजल म
सघन कृ िष िजला काय म (Integrated District Development Programme) ार भ िकया
गया । इस काय म के अ तगत चयिनत िजल म कृ िष िवकास के िलये आव यक सुिवधाओं को
एक साथ उपल ध कराने का य न िकया गया।
छठव दशक के ारि भक वष म खा ान उ पादन म कोई िवशेष वृि नह हयी ।
1965—66 के भयं कर दुिभ से ि थित और भी ग भीर हो गयी । अतः सरकार को 'कृ िष िवकास
क एक नवीन नीित सोचने के िलये बा य होना पड़ा। इस नीित के अ तगत िसंिचत े म
उ नतशील बीज तथा रसायिनक खा और अ य साधन उपल ध कराने पर बल िदया गया तथा
कृ षको को उनके उ पादन के िलये उिचत मू य िदलाने क नीित अपनायी गयी । यही नवीन कृ िष
िवकास नीित आगामी वष म भारतीय कृ िष के आधुिनक करण का आधार बनी । इस आधुिनक
तकनीक के अपनाने से जो कृ िष उ पादन म वृि हयी इसी को ह रत ां ित के नाम से जाना जाता है
िजसक सफलता के िलये भारत को िव भर म सराहा गया ।
23.2 कृ िष िवकास क उपलि धयाँ
23.2.1 कृ िष उ पादन म वृ ि : िनयोजन काल म कृ िष उ पादन म उ साहवधक वृि
हई है । कृ िष उ पादन का सूचनांक जो 1968—71 के औसत पर 100 था 1950 म 58.5 से बढ़कर
1988—86 म 158.4 हो गया। खा ा न उ पादन भी इस दौरान तीन गुने के लगभग बढ़ा ।
1988—89 म लगभग 18.5 करोड़ टन खा ान उ पादन क आशा है, जबिक 1950—51 म वह
के वल 5.08 करोड़ टन था । 1949—50 से 1985—86 म कृ िष उ पादन क वृि दर 2.64
ितशत ितवष रही है । खा ा न तथा गैर खा ा न फसल का उ पादन भी लगभग इसी दर से बढ़ा
है । य िप कृ िष उ पादन क वृि दर योजना के ल य क तुलना म कम रही है िफर भी अपने आय
म वह स तोषजनक है और जनसं या वृि दर से कु छ अिधक रही है । कृ िष िवकास क यह
मह वपूण उपलि ध और भी अिधक प तीत होती है जब हम यह देखते है िक ि िटश शासन के
दौरान (1891 से 1946 के बीच) कृ िष उ पादन क वृि दर के वल 0.4 ितशत ितवष थी,
खा ान उ पादन क 0.1 ितशत ितवष और गैर खा ा न फसल क 1.3 ितशत ितवष ।
अ य देश क तुलना म भी भारत म कृ िष िवकास क वृि दर कम नह पायी गयी है ।
कृ िष क वृि दर का अ ययन ाय : दो काल के आधार पर िकया जाता है ह रत ांित
के पूव का काल और ह रत ांित के बाद का काल । जैसा आप ऊपर देख चुके है ह रत ां ित का
ार भ छठे दशक के म य से हआ था । तािलका 23.1 म मुख फसल के े , उ पादन तथा
औसत पैदावार क वृि दर दीघ काल (1949—50 से 1983—84) तथा ह रत ांित के काल
353
(1967—68 से 1985—86) म दशायी गयी है । इस तािलका पर आपको गहन प से ि —पात
करना चािहये ।
इस तािलका से जो कु छ मुख िब दु उभरते है वह इस कार है । थम, ह रत ांित काल
म व उसके पूव के काल म कृ िष क उ पादन क वृि दर लगभग समान रही है । ि तीय, ह रत
ां ित के पूवकाल म उ पादन वृि म कृ िष े के बढ़ने का अिधक योगदान था, जो अब कम हो
गया ह । तृतीय, ह रत ांित काल म औसत पैदावार अिधक ती ता से बढ़ी है , जो कृ िष तकनीक के
प रवतन का ोतक है । चतुथ , िविभ न फसल क वृि दर म काफ अ तर रहे है ।
23.2.2 कृ िष का आधु िनक करण: िपछले दशक म कृ िष क तकनीक और ढाँचे म
मह वपूण प रवतन आये है । कृ िष े म आधुिनक करण (Modernization) और यापारी करण
(Commercialization) क वृि याँ तेज हयी है, िसंचाई क सेवाओं का काफ िव तार हआ है
और फसल गहनता (Cropping Intensity) बढ़ी है । जैसा िक तािलका 23.2 म दशाया गया है
कृ िष म आधुिनक साधन जैसे नये िक म के —
तािलका 23.1 All—India Compound Growth Rates of Area,
Production and Yield of Principal Crops –
(In per cent per annum)
Crop 1949-50 to 1985-86 1949-50 to 1964-65 1967-68 to 1985-86
Area Productio Yield Area Producti Yield Area Productio Yiel
n on n d
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
Rice 0.90 2.52 1.60 1.33 3.49 2.13 0.65 2.54 1.92
Wheat 2.73 6.00 3.18 2.68 3.99 1.27 2.41 5.64 3.15
Jowar -0.20 1.30 1.50 0.99 2.50 1.50 -0.69 1.65 2.36
Bajra 0.23 1.87 1.65 1.08 2.34 1.24 -0.85 0.19 0.85
Maize 1.72 2.57 0.84 2.66 3.87 1.18 -0.07 0.98 1.06
Ragi 0.19 1.73 1.54 0.84 3.08 2.22 0.26 2.14 1.90
Small -0.95 -1.09 -0.14 -0.3 -0.20 0.09 -2.18 -1.84 0.35
Millets 0
Barley -2.29 -0.96 1.36 -0.6 -0.28 0.36 -4.72 -3.03 1.75
4
Coarse -0.04 1.36 1.27 0.90 2.23 1.29 -0.94 0.66 1.55
Cercals
Total 0.79 2.98 1.85 1.30 3.24 1.68 0.31 2.97 2.21
Cercals
Gram -0.56 0.03 0.51 1.64 2.66 0.54 -0.38 -0.21 0.15
Tur (Atha) 0.70 0.51 -0.19 0.57 -1.34 -1.90 1.23 1.93 0.69
Other 0.77 0.54 -0.23 2.07 1.28 -0.77 0.76 0.96 0.20
Pulses
Total 0.32 0.32 0.17 1.90 1.39 -0.22 0.44 0.65 0.29
Pulses

354
Total 0.69 2.64 1.73 1.41 2.93 1.43 0.34 2.74 2.30
Foodgrains
Sugarcane 1.90 3.00 1.15 3.27 4.26 1.12 1.58 2.70 1.11
Groundnut 1.29 1.84 0.54 4.01 4.33 0.31 0.01 0.98 0.96
Sesamum Neg 0.45 0.51 0.14 -0.32 -0.36 -0.46 0.97 1.45
Rapeseed 1.72 3.27 1.53 2.97 3.36 0.37 1.25 3.17 1.89
& Mustard
Seven 1.04 2.05 0.81 2.64 3.24 0.13 0.30 1.74 1.43
Oilseeds
Coconut - - - - - - 0.90 0.53 -0.37
Total 0.96 2.00 0.71 2.69 3.11 0.20 0.23 1.65 1.28
Oilseeds
Cotton 0.42 2.43 2.01 2.47 4.56 2.04 0.02 2.35 2.34
(Lint)
Jute & 1.01 1.63 0.66 3.86 4.20 0.73 1.09 2.68 1.32
Mesta
Total 0.43 2.19 1.66 2.57 4.45 1.68 0.12 2.37 2.09
Fibres
Potato 3.95 5.98 1.94 4.37 4.27 -0.11 3.82 6.99 3.05
Tobacco 0.70 2.16 1.47 1.66 2.79 0.96 0.05 2.15 2.11
Total
Non-foodgr 1.12 2.62 1.11 2.52 3.54 0.93 0.62 2.55 1.48
ains
All Crops 0.78 2.64 1.54 1.61 3.13 1.30 0.41 2.68 2.03

Neg— Negligible.

Notes: 1. Seven Oilseeds include Groundnut, Sesamum. Rapeseed & Mustard,


Linseed, Castor seed. Nigerseed and Sunflower.
2. Total Oilseeds include Seven Oilseeds, Coconut & Cottonseed.
Source: Directorate of Economics and Statistics, Area and Production of
Principal Crops in India, 1985—86, Ministry of Agriculture, New
Delhi.

तािलका 23.2 कृ िष िवकास के कु छ चयिनत आंकड़े


355
वष ित है टर फसल शु िसं िचत रासायिनक उ नतशील
खा ान गहनता े फल खाद क बीज के
उ पादन (लाख है) खपत (लाख अ तगत
(िकलो ा0) टन) े फल
(लाख है0 म)
1950—51 522 111.0 208.5 0.7 —
1955—56 605 114.0 227.6 1.6 —
1960—61 710 114.7 246.6 5.6 —
1965—66 629 114.0 263.4 7.8 —
1970—71 872 117.7 311.0 21.6 152.8
1975—76 944 121.0 345.9 29.0 318.9
1980—81 1023 123.5 388.0 55.2 450.0
1985—86 1175 126.4* 419.6* 84.7 554.2
1996—97 191 — 800 70 750
1997—98 192.43 — — — —
1998—99 195.25 — — — —
ोत : (1) कृ िष म ालय, भारत
मे मु य फसल का े फल व उ पादन नई िद ली
(वािषक)
(2) िव म ालय आिथक सव ण, नई िद ली (वािषक)
बीज, रासायिनक खाद, क टनाशक दवाईय का योग बहत तेजी से चढ़ा है, िवशेषकर
ह रत ांित ार भ होने के प ात्। कृ िष े म मशीन और िबजली का योग भी काफ बढ़ा है ।
कृ िष के आधुिनक करण म सरकार ारा िकये गये िविभ न यास क एक मुख भूिमका रही है
िजनम िवशेष उ लेखनीय है िसंचाई सुिवधाओं का िवकास कृ िष अनुसं धान तथा िश ण
सुिवधाओं क यव था तथा ऋण व साधन मे िवतरण यव था का ब ध यहाँ पर यह बात भी
कह देना उिचत होगा िक कृ िष तकनीक का आधुिनक करण अभी कु छ ही े तक सीिमत रहा है ।
23.2.3 खा ा न आ मिनभरता : ह रत ां ित क सफलता ने भारतीय अथ यव था को
मजबूत बनाने म मह वपूण योगदान िदया है । उसक सबसे बड़ी उपलि ध है देश क खा ा न के
मामले म आ मिनभरता (Self Sufficiency in Food grains) । पांचवे व छठे दशक म हमको
बड़ी मा ा म खा ा न बाहर से मंगाना पड़ता था और उसके िलये िवदेश से आिथक सहायता भी
लेनी पड़ती थी । लेिकन िपछले दो दशक से हम न के वल खा ा न के मामले म आ मिनभर हो गये
ह वरन् हमारे पास खा ा न का काफ बड़ा सुरि त कोष भी है जो सावजिनक िवतरण णाली को
चलाने और मू य को ि थर रखने के काम आता है ।

356
23.3 कृ िष े के अस तु लन व किमयाँ
य िप भारतीय कृ िष क उपलि धयाँ मह वपूण रही है, िफर भी उसम काफ किमयाँ और
अस तुलन रहे ह, कृ िष के उ पादन म अि थरता रही है, औसत पैदावार भी अ तरा ीय तुलना म
अभी बहत कम है, कृ िष े म आय व साधन क असमानताय बनी हयी है तथा ामीण गरीबी
क सम या ग भीर बनी हयी है और रोजगार के अवसर म भी वृि कम हई है । इन किमय म से
कु छ मह वपूण बात क चचा हम कु छ िव तार से करगे ।
23.3.1 कृ िष उ पादन क अि थरता : कृ िष े क यह एक सम या रही है िक कृ िष
उ पादन म काफ अि थरता रही है । िकसी वष तो यह सम या काफ ग भीर हो गयी है ।
उदाहरणाथ 1965—66 म खा ान उ पादन 723 लाख टन रहा जो िपछले वष के 893 लाख टन
क तुलना म लगभग 20 ितशत कम था । इसी कार 1979—80 का खा ा न उ पादन िपछले
वष क तुलना म 17 ितशत कम था । 1986—87 तथा 1987—88 के वष भी कृ िष क ि से
खराब वष थे । कृ िष उ पादन के प रवतन मु यतः औसत पैदावार के प रवतन के कारण होते है ।
एक अ ययन के अनुसार 1971—86 के बीच खा ा न क औसत पैदावार म प रवतनशीलता का
गुणां क (Coefficient of Variation) 12.57 ितशत था । कृ िष उ पादन को अि थरता इस बात
का ोतक है िक अभी भी हमारी कृ िष मु यतः वषा पर आधा रत है । िसंचा ई सुिवधाओं के िव तार
के बावजूद अभी कृ िष े का कु ल 30 ितशत िसंिचत कृ िष पर आधा रत है । यह भी पाया गया है
िक ह रत ां ित के प ात के काल म कृ िष उ पादन क अि थरता बढ़ी है ।
23.3.2 फसलवार असंतु लन : जैसा िक आप तािलका 1 से देखगे िविभन फसल के
उ पादन क वृि दर म काफ असं तलु न रहे ह । सवािधक ती वृि गेह ँ के उ पादन म हई है,
लगभग 6.00 ितशत ितवष क दर से । चावल का उ पादन 2—52 ितशत ितवष क दर से
बढ़ा है । मोटे आनाज क वृि दर असं तोष जनक रही है और ह रत ां ित काल म उससे पूव के
काल क तुलना म घट गयी है । कृ िष िवकास म एक िवशेष असं तलु न िजस पर सबका यान गया है
वह है दलहन क पैदावार म अवरोध क ि थित, िजससे ित यि ोटीन उपलि ध काफ कम हो
गयी है । दाल का उ पादन िपछले लगभग 20 वष से 112 लाख टन के आसपास ही रहा है ।
यही प रि थित और गैर खा ा न फसल के सं दभ म भी देखने म आती है । सरस को
छोड़कर अ य ितलहन फसल के उ पादन क दर भी काफ कम रही है । फल व प हमे कई सौ
करोड़ पये के खा तेल का आयात करना पड़ रहा है । ग ने और आलू क फसल को छोड़कर
अ य और खा ा न फसल के उ पादन क वृि भी कु छ ऐसी रही है िजसको स तोष द नह कहा
जा सकता है ।
23.3.3 े ीय असंतु लन: कृ िष िवकास क एक सम या जो बहचिचत रही है वह है
े ीय असं तलु न क सम या । जैसा िक हम ऊपर भी कह चुके ह ह रत ां ित का भाव अभी कु छ
ही े तक सीिमत रहा है । तािलका 23.3 म कृ िष े के असं तलु न के कु छ आंकड़े िदये गये ह
जैसा िक आप देखगे देश के िविभ न े व रा य म कृ िष िवकास के तर म काफ असमानताय ह
357
जो ित है टेयर उ पादकता, रसायिनक खाद के योग तथा िसंचाई सुिवधाओं के अ तर से प
होती है ।
कृ िष उ पादन क वृि दर म हमको और भी अिधक अ तर िदखायी पड़ते ह । जैसा िक
आय तािलका 23.3 से वयं देखगे ह रत ां ित का भाव उ री भारत के कु छ ा त तक
(िवशेषकर पं जाब, ह रयाणा, और उ र देश) सीिमत रहा है । ये वे रा य है जहाँ िसंचाई क अिधक
सुिवधाय उपल ध ह और जहाँ गेह ँ क खेती अिधक होती है । 1960—63 और 1980—83 के
बीच हई कृ िष उ पादन क वृि का आधे से अिधक योगदान के वल इ ह तीन रा य के ारा िकया
गया है । आप यह भी देखगे
तािलका 23.3 कृ िष म े ीय अस तु लन के आं कड़े
रा य ित है टर 1960—63 1960—63 कु ल िसं िचत रासायिनक
उ पादन तथा तथा े फल(%) खाद ित
( ॰) 1980—83 1980—83 1980—83 है टर
1980—83 के बीच वृि के बीच (िकलो)
ि थर मू य दर (%) उ पादन वृि 1980—83
पर ितवष म योगदान
(%)
1. ह रयाणा 1355 4.88 7.61 64.2 54
2. िहमाचल देश — 2.23 0.53 — —
3. ज मू व क मीर 1345 4.58 1.30 40.8 27
4. पं जाब 2270 6.83 18.60 98.6 129
5. उ र देश 1215 3.51 25.00 45.1 52
उ री े 1395 4.42 53.10 56.1 64
6. असम 1714 2.27 2.17 17.0 4
7. िबहार 921 0.60 1.64 33.2 20
8. उड़ीसा 888 0.37 0.68 22.7 10
9. प0 बं गाल 1453 1.17 3.15 28.6 37
पूव े 1137 0.93 7.65 27.2 20
10. गुजरात 1033 2.73 6.76 27.1 42
11. म य देश 604 1.34 4.63 12.6 11
12. महारा 694 2.10 7.17 14.2 26
13. राज थान 445 3.14 5.76 25.2 9
के ीय े 651 2.17 24.30 18.3 19
14. आं देश 1266 2.33 9.20 37.1 54
358
15. कनाटक 926 1.71 3.71 17.2 37
16. के रल 2146 0.70 0.34 14.8 39
17. तिमलनाडू 1676 0.62 1.72 51.3 79
दि णी े 1308 1.59 15.00 31.6 52
भारतवष 1037 2.44 100.00 31.0 36
ोत : Patterns in Indian Agricultural Development G.S. Bhalla and D.S.
Tyagi (1989).
आप यह भी देखगे िक पूव और दि णी े के रा य म कृ िष क वृि दर बहत कम रही
है । गैर िसंिचत े के िलये हम अभी उस कार क तकनीक िवकिसत नह कर पाये ह जो िसं िचत
े के िलये उपल ध है । िसंचाई सुिवधाओं क उपलि ध के अित र इन े ीय असं तलु न के
अ य कारण भी ह, िजनम सं थागत (कृ िष म उ पादन के स ब ध), जनािकक (छोटे आकार के
खेत) व ाकृ ितक (वषा—बाढ़, सूखा) कारण िवशेष उ लेखनीय ह ।
यिद आप िजला तर पर देख तो आप कृ िष े म इसी कार के अस तुलन पायेग , जो न
के वल समूचे देश के तर पर ह, बि क येक रा य म भी देखने को िमलते ह, इस स ब ध म कु छ
मह वपूण आंकडे तािलका 23.4 म िदये गये ह । जैसा िक आप देखगे देश के 281 िजल , िजनका
डा० भ ला और डा० यागी ने अ ययन िकया था, म 89 िजल क उ पादकता का तर 1250
पये ित एकड़ से अिधक था। इन िजल का कु ल े फल म भाग के वल 27.3 ितशत था,
जबिक उ पादन म उनका भाग 45.5 ितशत था । इसके िवपरीत 84 िजल म उ पादकता का तर
750 ० ित है टेयर से कम था और इन िजल का उ पादन म ितशत भाग े फल म ितशत
भाग का लगभग आधा ही था । आप यह भी देखगे िक िजला तर पर उ पादकता के अ तर
आधुिनक साधन के योग (रसायिनक खाद, ै टर आिद) तथा िसं चाई क सुिवधाओं के साथ जुड़े
हये ह । अतः प है िक िजन े और रा य म िसंचाई क सुिवधाओं और कृ िष े के िवकास
म सरकारी और यि गत तर पर अिधक यय िकया गया है, ये कृ िष के े म अिधक
उ नितशील है ।
तािलका 23.4 िजला तर पर कृ िष े क िवषमताय 1980-83
उ पादकता कु ल े फल उ पादन म रसायिनक खाद े टर ( ित कु ल िसंिचत
०/हे० सं म ितशत (िकलो०/है०) हजार) े फल
या %/भाग भाग ( ितशत)
उ च 1250 89 27.3 45.5 90.7 4.3 66.2
तथा अिधक
म यम 750 से 108 40.6 37.9 35.0 1.4 37.8
1250
िन न 750 से 84 32.1 16.6 16.1 0.8 15.4
कम
सम त िजले 281 100 100.0 44.1 2.0 38.3
359
ोत : G.S. Bhalla and D.S. Tyagi (1989).
23.3.4 कृ िष िवकास और सामािजक याय : ह रत ां ित क सामािजक याय क
ि से कड़ी आलोचना उसके ारि भक वष से होती रही है । अनेक िव ान के िवचार म ह रत
ां ित का लाभ बडे़ और स प न िकसान को िमला है और उससे ामीण े म िविभ न वग म
असमानताय बढ़ी ह । पर यह एक िववाद का िवषय रहा है । यह सही है िक आधुिनक तकनीक को
अपनाने म अिधक साधन क आव यकता थी, अतः बड़े और साधन स प न कृ षक, िजनको ऋण
तथा अ य बात क भी अपे ाकृ त अिधक उपलि ध रही है, नयी तकनीक को अपनाने म अ य
कृ षक वग से आगे रहे । लेिकन अपने आप म नवीन तकनीक पैमाने के ितफल के ित तट थ है ।
िपछले दशक म छोटे िकसान ने भी यापक तर पर नवीन तकनीक को अपनाया है और वह भी
कृ िष के िवकास से लाभाि वत हये ह ।
कृ िष क नवीन तकनीक क यह भी आलोचना रही है िक इससे मशीनीकरण म वृि हई है
। और रोजगार के तर म अिधक वृि नह हई है । यह सही है िक कृ िष म उ पादन वृि क तुलना
म रोजगार क वृि सीिमत दर पर हयी है । िफर भी कु ल िमलाकर कृ िष म रोजगार का तर बढ़ा है
और वा तिवक मजदूरी भी बढ़ी है , िजससे कृ िष िमको क ि थित म सुधार हआ है ।
कृ िष उ पादन क मह वपूण उपलि धय के बावजूद भी हम यह कह सकते ह िक अभी भी
ामवािसय क औसत आिथक ि थित म बहत उ लेखनीय सुधार नह हआ है और अभी भी
गां व क लगभग 40 ितशत जनता (1983—84) गरीबी क रेखा के नीचे है । इसका एक कारण
तो यह है िक ित यि उ पादन म िवशेष उ लेखनीय वृि नह हई और दूसरे कृ िष ढांचा
(Agrarian Structure) मूल प से प रवितत नह हआ है । यह सविविदत ही है िक अिधकतम
जोत और भूम के पुनिवतरण के उपाय को कोई िवशेष सफलता नह िमली है । भूिम के िवतरण क
असमानताय लगभग यथावत रही है । बटाई (Sub-Letting) भी मौिखक प से यापक है । इसके
अित र लघु और सीमा त कृ षको और खेितहर मजदूर क सं या म बड़ी मा ा म वृि हई है ।
ामीण े म अ बेकारी और बेकारी (Under employment and unemployment) भी
बढ़ी है ।
अतः हम इस िन कष पर पहँचते है िक सामािजक याय क ि से कृ िष िवकास क
उपलि धयां काफ असं तोषजनक रही है ।
23.4 सारां श
इस इकाई के अ ययन से आपको यह ात हआ िक भारतीय कृ िष जो वतमान शता दी के
उ रा म एक अवरोध क ि थित म थी, योजना काल म ती ता से अ सर हई है । सरकार के ारा
कृ िष िवकास के जो काय म अपनाये गये और कृ िषको के म और लगन से कृ िष उ पादन ती ता
के साथ बढ़ा है और कृ िष का आधुिनक करण और यापारीकरण एक सीमा तक हआ है । कृ िष के
िवकास के फल व प हम खा ा न के े म आ मिनभर हो गये ह । इससे सावजिनक िवतरण
णाली को चलाने तथा मू य पर अंकुश रखने म भी सहायता िमली है ।
360
इन उपलि धय के बावजूद भी कृ िष े का िवकास पूणतया सं तोषजनक नह कहा जा
सकता। कृ िष के िवकास म अभी भी कई असं तलु न ह जो कृ िष के उ पादन क अि थरता, तथा
िविभ न फसल और े के बीच वृि दर के अ तर म प रलि त होते ह । सामािजक याय क
ि से भी कृ िष के िवकास म किमयाँ रही ह । कृ िष िवकास का लाभ समान प से सभी ामीण
वग को नह िमला है । ामीण े म गरीबी क सम या बनी हयी है हमारे कृ िष के ढाँचे म कोई
िवशेष प रवतन नह हआ है ।
आगामी पंचवष य योजनाओं म हम इन असं तलु न क ओर यान देना होगा। दलहन व
ितलहन क फसल के उ पादन को बढ़ाने के िवशेष य न करने ह गे । इसी कार िपछड़े े और
ा त , िवशेषकर, अिसं िचत कृ िष वाले े म कृ िष िवकास काय म पर अिधक बल देना होगा ।
साथ ही हम यह भी यान रखना होगा िक छोटे कृ षको और खेितहार मजदूर क आिथक ि थित म
कै से सुधार हो ।
23.5 श दावली
कृ िष का ढां चा (Agrarian Structure)
कृ िष े म उ पादन के साधन का िवतरण तथा उ पादन के स ब ध का व प।
नवीन कृ िष िवकास रणनीित (New Agricultural Strategy)
छठव दशक के म य म कृ िष उ पादन म वृि के िलये अपनायी गयी नीित िजसम कृ िष क
नवीन तकनीक—उ नतशील बीज, रसायिनक खाद, िसं चाई को बढ़ावा देने पर बल िदया गया।
ह रत ां ित (Green Revolution)
नये उ नतशील बीज और नवीन तकनीक के योग से कृ िष उ पादन व उ पादकता क
वृि ।
कृ िष का आधु िनक करण (Agricultural Modernization)
कृ िष के े म उ पादन के आधुिनक साधन और तकनीक का योग।
कृ िष का यापारीकरण (Commercialization of Agriculture)
कृ िष के े म साधन के य व उ पादन क िब बाजार के मा यम से होना।
खा ा न आ मिनभरता (Food Self Sufficiency)
खा ा न क मां ग को पूरा करने के िलए देश क अपनी मता।
े ीय असं तु लन (Regional imbalances)
िविभन रा य , े व िजल म कृ िष क पैदावार और वृि दर म पाये जाने वाले अ तर
सामािजक याय (Social Justice)
िपछड़े और कमजोर वग क िवकास के लाभ म समुिचत भागीदारी।

361
23.6 कु छ उपयोगी पु तक
ए0 एन0 अ वाल, भारतीय किव क सम याय।
द एवं सु दरम, भारतीय अथ यव था
G.S. Bhalla and D.S. Tyagi, Patterns in Indian Agricultural
Development – A District Level Study, Institute for Studies in Industrial
Development, New Delhi, 1989.
Sheila Bhalla, ‘Trends in Employment in Indian Agriculture, Land and
Asset Distribution’, Indian Journal of Agricultural Economics, Vol.42, No. 4,
October-December 1987.
B.M. Bhatia, Indian Agricultural: A Policy Perspective, Sage
Publications, New Delhi, 1988.
P.R. Brahmanand and V.R. Panchmukhi, The Development Process of
the Indian Economy, Himalaya Publishing House, Bombay, 1987.
Indian Council of Social Science Research, Alternatives in Agricultural
Development, Allied Publishers, New Delhi, 1980.
Indian Society of Agricultural Economics, Indian Agricultural
Development Since Independence, New Delhi, Oxford and I.B.H., 1986.
V.K.R.V. Rao, ‘Some Reflections on the Problems Facing Indian
Agriculture’, Indian Journal of Agricultural Economics, Vol. 44, No. 4,
October-December 1989.
23.7 िनब धा मक
(लगभग 200 श द म उ र द)
1. योजनाकाल म ार भ म भारतीय कृ िष क अव था पर काश डािलये।
2. कृ िष िवकास क नवीन रणनीित से आप या समझते ह?
3. ह रत ां ित का अथ और कारण बताइये।
4. योजनाकाल म कृ िष िवकास क या मह वपूण उपलि धयाँ रही ह? (500 श द)
5. कृ िष म मुख े ीय असं तलु न व उनके कारण पर काश डािलये।
6. या सामािजक याय क ि से भारतीय कृ िष क उपलि धयाँ सं तोषजनक रही ह?

362
इकाई 24
खा सुर ा तथा सावजिनक िवतरण णाली
इकाई क परेखा
24.1 उ े य
24.2 तावना
24.3 खा सुर ा का ता पय
24.4 भारत म खा सुर ा क ि थित
24.5 खा ा न का उ पादन व उपल धता
24.6 सावजिनक िवतरण णाली
24.6.1 सावजिनक िवतरण णाली क काय णाली
24.6.2 खा ा न क अिध ाि , उठाव व भ डार
24.6.3 सावजिनक िवतरण णाली पर िनभरता
24.6.4 िवके ि त अिध ाि व खुले बाजार क िब
24.7 सावजिनक िवतरण णाली का मू यां कन
24.8 खा सुर ा के िलए क याणकारी योजनाएँ
24.9 बोध
24.10 सारां श
24.11 श दावली
24.12 कु छ उपयोगी पु तक
24.13 बोध के उ र
24.1 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप
 यह जान सके ग िक खा सुर ा का या ता पय है ?
 भारत म खा सुर ा क ि थित या है ?
 सावजिनक िवतरण णाली का कायकरण का अनुभव (भारत के स दभ म तथा खा
सुर ा) जान सकगे।

363
24.2 तावना
भोजन, व व आवास मूलभूत आव यकता है जो येक यि को उपल ध होनी चािहए।
पेयजल, बेहतर वा य तथा िश ा के िबना सामा य जीवन सं भव नह है । इनम भोजन ाथिमक
आव यकता है जैसे िक नारमन बारला◌ॅग कहते है भोजन ा करना उन सभी का नैितक अिधकार
है िज होन इस पृ वी पर ज म िलया है । भारत म गरीबी का मापद ड भी कै लोरी उपभोग से जुड़ा
हआ है ामीण े म 2400 कै लोरी ित यि ितिदन तथा शहरी े म 2100 कै लोरी
ित यि ितिदन ा नह होने वाले यि को गरीब माना गया है । यिद यि को पया भोजन
ा नह होता है तो यह सरकार क िज मेदारी है िक यि को पया खा ा न उपल ध करावे।
भारत खा ा न उ पादन म आ मिनभर है लेिकन आबादी का एक बड़ा भाग खा ा न क मूलभूत
आव यकता के पूण होने से वं िचत है । बड़ा भाग इस मूलभूत आव यकता क पूित से वं िचत है
जबिक खा ा न का पया उ पादन व भ डार है । इस प र े य म इस सम या का समुिचत ान
आव यक है । कम आय वग को खा ा न तथा आव यक व तुओ ं क आपूित के िलए भारत म
सावजिनक िवतरण णाली कायरत है । इसका देश म िव तृत नेटवक है िजसके ारा देश म 5.32
लाख से अिधक उिचत मू य क दुकान ारा 18.04 करोड़ से अिधक प रवारो को आव यक
व तुएँ एवं खा ा न क उपल धता कराई जा रही है । लेिकन अभी भी कम आयवग, मिहलाओं,
देश के ितकू ल प रि थित वाले थान , ब च को अभी भी पया मा ा म वष भर खा ा न के
अभाव का सामना करना पड़ता है ।
24.3 खा सु र ा का ता पय
खा सुर ा का ता पय है िक सभी लोग तक खा ा न क भौितक तथा आिथक पहँच। भौितक
पहँच का ता पय है खा ा न क पूित उनक आव यकता के अनु प हो। अथात् देश म खा ा न
क मा ा पया हो। खा ा न उ पादन इसका मह पवपूण घटक है । यिद देश म खा ा न का
उ पादन अपया हो तो आयात के मा यम से पूरा िकया जा सकता है । इसके अित र यिद देश म
वष ितवष खा ा न उ पादन म उतार चढ़ाव हो तो बैफर टाक का िनमाण िकया जा सकता है
िकसी वष िवशेष म खा ा न उ पादन कम हो तो पूित बफर टाक से क जा सकती है अथवा
आयात िकया जा सकता है । देश म खा ा न उ पादन पया होने पर भी आव यक नह िक सबको
खा न उपल ध हो य िक यिद खाधान क क मत ऊँची हो तो कम आय वग के पास इतनी य
शि नह होती है िक वह उनको य कर सके । इसिलए खा ा न क क मत इतनी हो िक सभी उसे
य कर सके । इसे आिथक पहँच कहते है । इसके अित र सभी तक खा ा न क पहँच सभी
समयो म होनी चािहए। देश के सम त भाग म रहने वाले लोगो के िलए व थ व सि य जीवन जीने
के िलए पया खा ा नो क उपल धता होनी चािहए। अथात् देश के सभी लोगो को (ब चे व
मिहलाओ सिहत) को सभी समय म व थ व सि य जीवन यतीत करने के िलए आव यक
खा ा नो क भौितक व आिथक पहँच को खा सुर ा कह सकते है । अथात् खा सुर ा के िन न
364
आयाम है (1) देश मे खा ा नो क पया आपूित हो इसम उ पादन, आयात व बफर टाक का
िनमाण मह वपूण है (2) देश के सभी लोग तक खा ा नो क पहँच हो अथात् खा ा नो क क मत
इतनी हो िक वे य कर सक। (3) खा ा न सि य व व थ जीवन जीने के िलए पया पौि कता से
यु होना चािहए। तथा (4) यह उपल धता सभी समय म होनी चािहए अथात् खा ा न उपल धता
म थािय व होना चािहए।
24.4 भारत म खा सु र ा क ि थित
वतमान मे भारत एक ती गित से बढ़ती अथ यव था के प म उभर रहा है । यह िव क दूसरी
सबसे बड़ी आबादी वाला देश है । देश के िनवािसय को खा सुर ा एक मह वपूण पहलू है तथा
आजादी के प ात से ही इस हेतु मह वपूण यास िकए गए है । खा सुर ा दान करने के िलए
भारत ने वतमान कृ िष प र य म गरीब वग को समय पर पया मा ा म तथा उिचत क मत पर
आपूित बढ़ाने पर बल िदया है । िपछले कु छ दशक म सकल घरेलू उ पाद म भावपूण वृि◌़ रही
है तथा कृ िष उ पादन भी बढ़ा है िफर भी जनसं या क गरीब वग म िचरकालीन भूख तथा भुखमरी
िव मान है । रा ीय से पल सव ण के 66 व दौर (2009-10) के अनुसार ामीण भारत म
ित यि ितिदन 2147 िकलो कै लोरी तथा शहरी े म 2123 िकलो कै लोरी भोजन ारा ा
क । इसी कार रा ीय से पल सव ण क 68 व दौर (2011-12) क पोषण ा ता रपोट के
अनुसार सबसे कम 5 ितशत मािसक ित यि यय वाले 57 ितशत ामीण प रवारो म रहने
वाले भागो का ित यि ितिदन 2160 िकलो कै लोरी उपभोग था। इस िन नतम 5 ितशत
मािसक ित यि उपभोग वग का ोटीन उपभोग मा 43 ाम था जबिक उ चतम 5 ितशत म
यह 91 ाम था। शहरी े म यूनतम 5 ितशत का औसत ोटीन उपभोग 440 ाम था जबिक
उ चतम 5 ितशत का 87 ाम।
भारत म दुिनयाँ के दूसरे सबसे अिधक 19.46 करोड़ लोग कु पोिषत थे (खा एवं कृ िष सं गठन,
रपोट 2015)। इसके अलावा देश क 27 ितशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है । यह िच ता का
िवषय है । खा एवं कृ िष आयोग के अनुसार भारत म कु पोषण क ि थित िन न कार है
तािलका 24.1 भारत म कम आहार क ि थित
वष कम आहार वाले यि य क सं या कु ल जनसं या म कम आहार
पाने वाल का ितशत
1990-92 210.1 23.7
2000-02 185.5 17.5
2005-07 233.8 20.5
2010-12 189.9 15.6
2014-16 194.6 15.2
ौत: खा एवं कृ िष सं गठन(एफ. ए. ओ.), 2015
365
वैि क भूखमरी सूचकां क (जी.एच.आई) 2015 के अनुसार िव के 120 देश म भारत का थान
55 वाँ था। भारत क 25 ितशत जनसं या भूखमरी का िशकार है । रा ीय प रवार वा य
सव ण (एन. एफ. एच. एस.) 2005-06 के अनुसार देश म 5 वष से कम आयु के ब च म 20
ितशत ीणकाय, 48 ितशत कम वृि वाले तथा 43 ितशत कम वजन वाले थे। 50 ितशत
ब चे तथा 80 ितशत तथा मिहलाये र अ पता से िसत था। ये समंक भारत म ब च व
मिहलाओं के खराब व य व पोषण को इंिगत करते है ।
24.5 खा ा न का उ पादन तथा उपल धता
वतं ता ाि के बाद भारत ने योजनागत िवकास का माग अपनाया। इन योजनाओं म
आ मिनभरता को मह वपूण ल य के प म समािहत िकया गया। थम पं चवष य योजना म कृ िष
िवकास को मुख थान िदया गया। 1960 के दशक के म य से भारत ने ह रत ाि त का माग
अपनाया। वतं ता के समय भारत म खा ा न का अभाव था व खा आपूित के िलए आयात पर
िनभरता थी। 1960 के दशक के ार भ म भारत ने खा सं कटो का सामना िकया लेिकन ह रत
ाि त अपनाने के प ात 1970 के दशक म भारत खा ान के े म आ मिनभरता ा कर चुका
था। 1980 से पूव तक कृ िष े म िव तार के कारण खा ा न उ पादन बढ़ा व उसके प ात
उ पादकता वृि के कारण खा ा न उ पादन म वृि हई लेिकन 1990 के दशक के प ात खा ा न
उ पादन म वृि दर म मह वपूण कमी देखी गई। 1991 के प ात खा ा न उ पादन क वृि दर
घटकर जनसं या वृि दर से भी कम हो गई। तो भी खा ा न उ पादन जो 1950-51 म 5.08 करोड़
टन था। 2014-15 बढ़कर 25 करोड़ टन हो गया।
खा ा न का उ पादन व उपल धता म अ तर होता है इसके तीन मह वपूण होते है । (1) आयात
(2) टाक म प रवतन व (3) अ य उपयोग। आयात ारा खा ा न उपल धता बढ़ती है तथा िनयात
ारा खा ा न उपल धता कम होती है । खा ा न का टाक खा सुर ा के िलए एक मह वपूण
घटक है । बेहतर उ पादन के वष म अित र खा ा न उ पादन का भ डार िकया जाता है । अ प
उ पादन के वष म इसका खा सुर ा के िलए उपयोग िकया जाता है । भारत म खा भ डारण का
काय सरकारी तर पर भारतीय खा िनगम करता है । िनजी तर पर कृ षको ारा भी खा भ डारण
िकया जाता है । तृतीय घटक अ य उपयोग है इसम खा ा न का एक भाग बीज के प म अथवा
पशुओ ं के िलए उपयोग के काय म यु होता है । यूनतम समथन क मत पर या वसूली क मतो पर
सरकार ारा बफर टाक िनमाण करने तथा देश के अिधक उ पादन से कम उ पादन वाले े म
खा ा न के प रहवन का काय सरकार ारा िकया जाता है । खा ा न उ पादन, आयात व भ डारण
खा आपूित के मह वपूण घटक है तािलका ारा देश म खा ा न उ पादन, आयात, उपल धता,
सरकारी खरीद तथा सावजिनक िवतरण क ि थित को दशाया गया है ।

366
तािलका 24.2 भारत म खा ा न क शु उपल धता, सरकारी खरीद तथा सावजिनक
िवतरण (दस लाख टन म)
सरकारी खरीद
आयात
शु शु शु सरकारी सावजिनक उ पादन के
वष उपल धता के
उ पादन आयात उपल धता खरीद िवतरण ितशत प म
ितशत
1961-61 72.0 3.5 75.7 0.5 4.0 4.6 0.7
1970-71 94.9 2.0 94.3 8.9 7.8 2.1 9.7
1980-81 113.4 0.7 114.3 13.0 13.0 0.6 11.4
1990-91 154.3 (-) 0.1 158.6 19.6 20.8 0.0 12.7
2000-01 182.8 (-) 1.4 167.5 35.5 12.8 (-) 0.8 19.7
2010-11 213.9 (-) 2.9 203.1 64.5 47.9 (-) 1.4 30.15
ौत: आिथक समी ा, 2015-16 िव मं ालय, भारत सरकार।
योजनागत िवकास के दौरान खा ा न उ पादन जो 1960-61 म 7.2 करोड़ टन था
2011-12 म 21.39 करोड़ टन हो गया। आयात क मा ा म कमी हई तथा शु उपल धता जो
1960-61 म 7.57 करोड़ टन थी। 2010-11 म 20.31 करोड़ टन हो गई। सरकारी खरीद म िनर तर
वृि देखी जा सकती है । सावजिनक िवतरण 2010-11 म 4.79 करोड़ टन हो गया। सरकारी खरीद
उ पादन क तुलना म तेजी से बढ़ी है ।
तािलका 24.4 अनाज व दालो क ित यि उपल धता
( ाम म)
वष अनाज दाले योग
1960-61 399.7 69.0 468.7
1970-71 417.6 51.2 468.8
1980-81 417.3 37.5 454.8
1990-91 468.5 41.6 510.1
2001-01 386.2 30.0 416.2
2010-11 410.6 43.0 453.6
2012-13 358.1 43.3 401.4
ौत: आिथक समी ा 2015-16, िव मं ालय, भारत सरकार
अनाज व दाल क ित यि ितिदन उपल धता म 2012-13 म 1960-61 क तुलना म कमी
आई है । 1960-61 म ित यि ितिदन अनाज उपल धता 399.7 ाम से घटकर 2012-13 म
358.1 ाम हो गई तथा दाल क उपल धता 69.0 ाम से 43.3 ाम हो गई। ित यि ितिदन
अनाज क उपल धता 1990-91 तक बढ़ी लेिकन उसके बाद कम हो गई लेिकन दालो क
उपल धता तो सतत प म कम हई है । 1991 के प ात अनाज उ पादन क वृि दर घट गई है । व
अनाज भ डारण क मा ा तेजी से बढ़ी है । ित यि ितिदन अनाज व दालो क उपल धता को
365 िदन मानकर कु ल उपल धता को जनसं या क मा ा से िवभािजत िकया जाता है । यह तक
367
िदया जाता है िक ित यि ितिदन अनाज का उपयोग घट रहा है । य िक खा म गैर खा ा न
उ पाद (फल, स जी, दूध, मां स, मछली, अ डा) का िह सा बढ़ रहा है । रा ीय से पल सव ण
सं गठन के अनुसार प रवार को उपयोग यय म खा ा न का अनुपात घट रहा है । दूसरा कारण यह
िक 1991 के बाद खा ा न उ पादन क वृि दर जनसं या वृि दर से कम हो गई है ।
जैसा िक खा सुर ा के ता पय के भाग म हम जान चुके है िक अनाज क ित यि
उपल धता के अलावा उपभो ा क अनाज को य कर सकने क मता भी खा सुर ा के िलए
मह वपूण है । खा ा न क आिथक पहँच के िलए आव यक है िक खा ा न क क मत इतनी हो
िक उपभो ा इसे य कर सके । इस त य के आलोक म देश म कृ िष उ पाद क क मतो पर
अ ययन आव यक है । कृ िष उ पाद क क मतो व िविनिमत उ पाद क क मतो के प रवतन को
आगे तािलका म दशाया गया है ।
तािलका 24.5 िविनिमत उ पाद क तु लना म कृ िष उ पाद क थोक क मत सूचकांक
(आधार वष 2004-05)
वष कृ िष उ पाद का िविनिमत उ पाद का िविनिमत उ पाद के
क मत सूचकां क क मत सूचकां क ितशत प म कृ िष
उ पाद का क मत
सूचकांक
2005-06 103.4 102.4 100.97
2006-07 112.5 108.2 103.97
2007-08 121.5 113.4 107.14
2010-11 176.6 130.1 135.74
2013-14 233.0 151.5 153.79
2014-15 243.9 155.1 157.72
ौत: आिथक समी ा, 2015-16, िव मं ालय, भारत सरकार
तािलका के अनुसार देश म सतत प से कृ िष उ पाद क क मतो म वृि िविनिमत व तुओ ं क
क मत क तुलना म अिधक हई है । खा सुर ा के िलए यह िच ता का िवषय है । एक ओर कृ षक
वग के िलए यह उिचत है िक कृ िष उ पाद क क मत तेजी से बढ़ रही है लेिकन यह देश क खा
सुर ा के िहत म नह है य िक िवकासशील देश म जनसं या का बड़ा भाग अपनी आय का बड़ा
अनुपात खा ा न पर खच करता है तथा इनक तेजी से क मत म वृि खा सुर ा के िलए चुनौित
उ प न करता है ।
24.6 सावजिनक िवतरण णाली
सावजिनक िवतरण णाली ारा कम आय वग को उपभोग क बुिनयादी व तुएँ कम
क मत पर उपल ध कराई जाती है तािक यूनतम आव यकताओं को पूरा िकया जा सक भारत म

368
इसके अधीन चावल, गेह,ँ चीनी व कै रोसीन जैसी व तुएँ उपल ध कराई जाती है । भारत म
सावजिनक िवतरण णाली इस कम आय वग को खा सुर ा दान करने का मह वपूण साधन है ।
आधुिनक सावजिनक िवतरण णाली क शु आत सम खा बं धन नीित के तहत 1965 म
आरं भ क गई। इसका उ६◌े य खा ा न क क मत म ि थरता, िकसान को उनके उ पादन के
िलए क मत समथन दान करना तथा देश के खा ा न अभाव े व कम आय वग के लोग को
कम क मत पर खा ा न उपल ध कराना है । इसके अ तगत यूनतम समथन क मत क घोषणा क
जाती है तािक कृ िष उ पाद क क मत अिधक उ पादन क दशा म नीचे नह जाव य िक इन
क मत पर सरकार ारा अनाज का य िकया जाता है । अनाज उ पादन के त काल प ात उनक
क मत कम होती है व िकसान को बा य होकर अनाज स ते म थानीय यापारी को बेचना पड़ता है
। यूनतम समथन क मत इस तरह िकसान को उनके उ पादन के िलए क मत समथन दान करता है
। इस वसूली क मत पर खा ा न के य को भ डार िकया जाता है जो बफर टाक बनाता है । कम
उ पादन के वष म इस बफर टाक का योग कर खा ा न के अभाव को दूर िकया जाता है तथा
अिधक उ पादन के वष म यह अनाज के भ डार म वृि करता है ।
देश के खा ा न अिधक उ पादन े से कम उ पादन े म प रवहन का काय भी इसी
णाली के तहत आता है । इन भ डार से खा ा न के ीय िनगमन क मत पर उिचत मू य क
दुकान ारा कम क मत पर िव य हेतु िवत रत िकया जाता है । तािक कम आय वग को उिचत
क मत पर खा ा न उपल ध कराया जा सके । सावजिनक िवतरण णाली म के ीय व रा य सरकार
दोनो क भूिमका होती है । यूनतम समथन क मत क घोषणा अनाज को प रवहन, भ डारण तथा
के ीय खा िनगम व रा य ऐजिसय के ारा अनाज क खरीद म के सरकार क भूिमका होती है
। अनाज को उिचत मू य क दुकान ारा िवतरण व लाभािथय का चयन रा य सरकार ारा िकया
जाता है । भारत क सावजिनक िवतरण णाली िव क एक बड़ी खा िवतरण णािलय म से
एक है । वतमान म इसके ारा 5.32 लाख उिचत मू य क दुकान ारा 18.04 करोड़ प रवार को
लाभाि वत िकया जा रहा है ।
24.6.1 सावजिनक िवतरण णाली काय णाली
के सरकार ारा खा ा न क यूनतम समथन क मत क घोषणा फसल क बुआई के
समय क जाती है । सरकार इन क मत क घोषणा कृ िष लागत व क मत आयोग क िसफा रश पर
करती है । भारतीय खा िनगम तथा रा य ऐजिसय के ारा के सरकार वसूली क मत पर अनाज
क खरीद करती है । अनाज क खरीद कर इसका भ डारण िकया जाता है । अनाज का यह भ डार
बफर टाक का काम करता है । खा ा न के अिधक उ पादन वाले े से कम उ पादन वाले े
म ह ता तरण का काय भी भारतीय खा िनगम ही करता है । के सरकार ारा घोिषत के ीय
िनगमन क मत पर उिचत मू य क दुकान के िलए खा ा न आवं िटत िकया जाता है । के ीय
िनगमन क मत खा ा न क आिथक लागत से कम होती है । आिथक लागत म य, भ डारण व
प रवहन क लागत सि मिलत होती है । इसके प ात उिचत मू य क दुकान ारा कम क मत पर
लाभािथय को खा ा न आवंटन कर खा सुर ा सुिनि त क जाती है ।
369
सावजिनक िवतरण णाली के ारं भ होने के प ात िनर तर इसका िव तार हआ है ।
वसूली क मत पर खा ा न के य, भ डारण व िवतरण म िनर तर वृि हई है । उ रो र
लाभािथय क सं या म वृि हई है । खा ा न सि सडी क रािश म भी िनर तर वृि हई है ।
सावजिनक िवतरण णाली का लाभ उन लोग को भी िमल रहा था जो वा तव म गरीब नह थे व
यह मुख प से शहरी े म िव तृत थी इस सम या के समाधान के िलए सरकार ने 1992 म
पुनगिठत सावजिनक िवतरण णाली लागू क गई। इसके अ तगत सावजिनक िवतरण णाली को
सरल, मजबूत व कारगर बनाने तथा इसे पहाड़ी, दूरवत तथा अग य े म जहाँ समाज का गरीब
वग िनवास करता है तक पहँचाने का काय िकया गया। इस काय म का िव तार 1775 लाक म
िकया गया। इसके तहत 20 िकलो ाम अनाज ित काड उपल ध कराया गया। इसके प ात जून
1997 म लि त सावजिनक िवतरण णाली लागू क गई। इसके तहत उपभो ाओं को दो वग म
बां टा गया गरीबी रेखा के नीचे तथा गरीबी रेखा के ऊपर । दोन के िलए खा ा न क क मत
अलग-अलग रखी गई। बी.पी.एल. को खा ा न आिथक लागत के 50 ितशत पर तथा ए.पी.एल.
को खा ा न आिथक लागत पर उपल ध कराया गया। इस णाली म खा ा न ित यि के थान
पर ित प रवार उपल ध कराने का ावधान रखा गया। इसके प ात रा ीय खा सुर ा कानून ( )
लागू िकया गया इसके तहत देश क दो-ितहाई आबादी को सि मिलत िकया गया। इसम लि त
सावजिनक िवतरण णाली के अ तगत 75 ितशत ामीण व 50 ितशत शहरी जनसं या को
ितमाह ित यि 5 िकलो ाम अनाज उपल ध कराने का ावधान िकया गया।
यूनतम समथन क मत
देश म खा सुर ा का मह वपूण पहलू यूनतम समथन क मत क घोषणा व वसूली
क मत पर सरकार ारा अनाज क खरीद है । इसके ारा उ पादको को क मत समथन िदया जाता है
तािक अनाज उ पादन के त काल प ात व अिधक उ पादन क दशा म कृ िष उ पाद क क मत
नह िगरे व कृ षक िहत क सुर ा क जा सक। यूनतम समथन क मत तािलका म दिशत है । इस
तािलका से प है िक यूनतम समथन क मत म िनर तर वृि हई है ।
तािलका 24.6 यूनतम समथन क मत गेह ँ व चावल पये/ ित ि वं टल
वष गेह ँ चावल
1999-2000 550 490
2004-05 630 560
2010-11 1100 1000
2014-15 1400 1350
ौत: खा एवं सावजिनक िवतरण मं ालय, भारत सरकार
1999-2000 म गहँ क यूनतम समथन क मत 550 से बढ़कर 2014-15 म 1400
ित ि वंटल हो गया। व चावल क यूनतम समथन क मत इसी अविध म 490 ित ि वं टल से
1350 ित ि वं टल हो गई। इन क मत म िनर तर वृि हई है लेिकन इन क मत का वा तिवक

370
लाभ उ ह िकसान को हआ है िजनके पास अितरेक उ पादन है तथा उ ह रा य म हआ है जहाँ से
सरकारी खरीद के अिधकतर भाग क ाि क जाती है । गेह ँ खरीद का अिधकतर भाग पं जाब,
ह रयाणा, म य देश, राज थान व उ र देश से होता है वह चावल क खरीद का अिधकतर भाग
पं जाब, आं देश , छ ीसगढ़, उ र देश, उड़ीसा, ह रयाणा व पि म बं गाल से होता है ।
24.6.2 खा ा न क आिध ाि , उठाव तथा भ डारण
खा सुर ा के िलए खा ा न क अिध ाि (सरकारी खरीद) क मा ा म िनर तर वृि
हई है । 1990-91 म गेह ँ व चावल क अिध ाि 23.74 िमिलयन टन थी जो 2012-13 म बढ़कर
72.19 िमिलयन टन हो गई जो तीन गुना है । अिध ाि क मा ा म वष ितवष उ चावच है लेिकन
समयोप र इसम वृि हई। सावजिनक िवतरण णाली म 1990-91 म खा ा न का उठाव 16.49
िमिलयन टन से बढ़कर 2012-13 म 62.78 िमिलयन टन हो गया। इसके अलावा खा ा न का
भ डार जो 1990-91 म 15.81 िमिलयन टन था 2012-13 म बढ़कर िमिलयन टन हो गया।
खा ा न का भ डार िजतना अिधक होता है सि सडी पर यय अिधक होता है ।
तािलका 24.7 खा ा न क अिध ाि (सरकारी खरीद), उठाव तथा भ डारण
(िमिलयन टन म)
वष अिध ाि उठाव भ डार
1990-91 23.74 16.49 15.81
2000-01 37.64 18.21 44.98
2004-05 41.47 41.47 17.97
2010-11 56.71 53.00 44.31
2012-13 72.19 62.78 59.76
ौत:- है ड बुक आफ इंिडयन इकोनामी, रजव बक ऑफ इंिडया।
यूनतम समथन क मत तेजी से बढ़ने से अनाज क अिध ाि अिधक होती है जो खुले
बाजार म अनाज क उपल धता को कम करती है तथा क मत बढ़ जाती है । अगले वष यूनतम
समथन क मत बाजार क मत से ऊँची रखी जाती है । खा ा न का उठाव अिध ाि क तुलना म
कम होने से भ डार क मा ा म वृि होती है । जो खा सि सडी को बढ़ाती है । खा ा न के
भ डार सरकार के तय मानको से बहत अिधक है । के सरकार ारा रा य सरकार को बी.पी.एल.
तथा ए.पी.एल प रवार के िलए खा ा न का आवंटन के ीय िनगमन क मत पर िकया जाता है ।
ये क मत यूनतम समथन क मत से कम होती है व इनके अ तर का भार सरकार ारा सि सडी के
प म वहन िकया जाता है । लि त सावजिनक िवतरण णाली लागू होने के बाद ए.पी.एल. व
बी.पी.एल. के िलए अलग-अलग िनगमन क मत होती है । 2000-01 म बी.पी.एल. के िलए
िनगमन क मत आिथक लागत का 50 ितशत तथा ए.पी.एल. के िलए आिथक लागत के समान
रखी गई है । वष 2000 से अ योदय अ न योजना के तहत अलग जारी क मत क घोषणा क
जाती है ।

371
तािलका 24.8 सावजिनक िवतरण णाली के िलए के ीय जारी क मत
पय/ ित ि वंटल
वष गेह ँ चावल
1990-91 234 289
2000-01
APL 830 1087
BPL 415 565
AAY 200 300
610 795
2002 ls vc rd 415 565
200 300
ौत: खा एवं सावजिनक िवतरण िवभाग, भारत सरकार
ए.पी.एल. के िलए खा ा न क जारी क मत बाजार क मत से अिधक होती है । भारतीय खाद
िनगम क आिथक लागत (खरीद प रवहन व भ डार लागत) इसक अकु शलता के कारण अिधक
है । इसके कारण ए.पी.एल. प रवार खा ा न आव यकता के िलए सावजिनक िवतरण णाली क
अपे ा बाजार पर आि त है ।
24.6.3 सावजिनक िवतरण णाली पर िनभरता
खा ा न के िलए सावजिनक िवतरण णाली पर िनभरता के सं बं ध म रा ीय से पल
सं गठन ारा (68व दौर के सव ण) अ ययन िकए गए। उनके अनुसार 2011-12 म ामीण े म
चावल के िलए उपभोग का 27.9 ितशत व गेह ँ के िलए 17.3 ितशत सावजिनक िवतरण णाली
पर िनभर थे जबिक चीनी व के रोसीन के िलए यह िनभरता 15.8 ितशत व 80.8 ितशत थी। इसी
कार शहरी े म चावल के 19.6 ितशत गेह ँ के िलए 10.1 ितशत व चीनी के िलए 10.3
ितशत उपभोग मा ा सावजिनक िवतरण णाली पर आि त थी।
इसी कार 2011-12 म िपछले 30 िदन क सं दभ अविध के दौरान सावजिनक िवतरण
णाली पर िनभर प रवार का ितशत ामीण े म गेह ँ के िलए 45.9 ितशत व चावल के िलए
33.9 ितशत था जबिक शहरी े म चावल के िलए 23.3 ितशत व गेह ँ के िलए 19.0 ितशत
था। अथात् रपोिटग प रवार म ामीण े म शहरी े क अपे ा सावजिनक िवतरण णाली पर
िनभरता अिधक िदखाई। व कु ल उपभोग म सावजिनक िवतरण णाली का भाग ामीण े म
शहरी े क अपे ा अिधक पाया गया।
रा ीय से पल सव ण सं गठन के आँकड़े दशाते है िक सावजिनक िवतरण णाली पर
खा सुर ा के िलए िनभरता े ीय िवषमता रखती है । चावल के िलए सावजिनक िवतरण णाली

372
पर िनभरता दि ण भारत के रा य म सवािधक थी व गेह ँ के िलए महारा के ामीण े म
अिधक थी। पंजाब, ह रयाणा, उ र देश व राज थान जैसे रा य म यह िनभरता कम थी।
सावजिनक िवतरण णाली के तहत खा सुर ा पर सि सडी का भार िनर तर बढ़ता जा
रहा है । वष 2005-06 म यह 23071 करोड़ तथा जो बढ़कर वष 2013-14 म 89470 करोड़
हो गया। सरकार ारा खा ा न के बफर टाक को बनाये रखने का कु ल यय इसके ारा कृ िष, ाम
िवकास, िसंचाई व बाढ़ िनयं ण पर कु ल यय से भी अिधक था। सि सडी बढ़ने का मुख कारण
भारतीय खा िनगम क आिथक लागत तथा िनगमन क मत म बढ़ता अ तर तथा खा ा न खरीद
मा ा म वृि है । बढ़ते रसाव, उ च शासिनक लागत, ाचार व कु बंधन के कारण सावजिनक
िवतरण णाली क लागत बढ़ गई है । यिद सि सडी क इस रािश का उपयोग कृ िष िनवेश म िकया
जावे तो उ पादकता म वृि होगी। उ च मा ा म सि सडी बाजार को िवकृ त करती है तथा सरकारी
बजट पर भार बढ़ाती है ।
24.6.4 िवके ि त अिध ाि योजना तथा खु ले बाजार म िब योजना
1997 म िवके ि त अिध ाि योजना आरं भ क गई व कई रा य ने इसे अपनाया। इसम
खा ा न क अिध ाि भ डार तथा सावजिनक िवतरण णाली व अ य खा योजनाओं को
िनगमन रा य सरकार ारा िकया जाता है । इस णाली म आिथक लागत तथा िनगमन क मत के
अ तर के बराबर सि सडी का भुगतान के सरकार ारा िकया जाता है । इसका उ६◌े य यह है िक
(1) अिधक िकसान को यूनतम समथन मू य के दायरे म लाया जा सके । (2) सावजिनक िवतरण
णाली क द ता म सुधार िकया जा सके (3) थानीय िच के अनुसार खा ा न िविवधता
उपल ध कराई जा सके तथा (4) प रवहन लागत को कम िकया जा सके । कई रा य सरकार ने
इसका िवरोध इस आधार पर िकया िक इसके िलए आव यक आधारभूत सं रचना तथा िव ीय
सं साधन रा य सरकार के पास नह है । िवके ि त अिध ाि से अिध ाि कम होगी व िकसान के
िहत म नह होती व के वल यापारी वग को इससे लाभ होता है ।
खा अथ यव था म फ ितकारी वृि य को रोकने के िलए 2008 म सरकार ने खुले
बाजार िब योजना (घरेल)ू के अ तगत खुले बाजार म गेह ँ िनगमन का िनणय िकया। इसे दो
तरीको से िकया जाना था। (1) खुदरा उपभो ाओं को िव य के िलए रा य सरकार को आवंटन
तथा (2) खुली िनिवदा णाली से भारतीय खाद िनगम ारा बड़े उपभो ाओं को िव य। इससे गेह ँ
क थोक क मत वृि दर िनयं ण लगेगा। 2014-15 म इस योजना के तहत 10 िमिलयन टन गेह ँ
का आवंटन िकया गया। वष 2014-15 से सरकार ने पुराने टाक म खा ा न को खुले बाजार म
िवभेिदत क मत पर िव य का िनणय िलया है ।
24.7 सावजिनक िवतरण णाली का मू यां कन
देश के खा सुर ा के िलए सावजिनक िवतरण णाली क भूिमका मह वपूण है ।
सावजिनक िवतरण णाली ारा अनाज क क मत म िवचरण कम हआ है । आबादी का एक
बड़ा भाग जो िनधन है को खाद सुर ा (कम क मत पर अनाज आवं टन) मुहयै ा कराई है तथा कृ षको
373
को उनक उपज का उिचत ेरणा मू य ( यूनतम समथन क मत ारा) दान िकया गया है लेिकन
इससे जुड़ी अनेक सम याएँ है ।
1. यूनतम समथन क मत क घोषणा रा ीय तर पर क जाती है । इसक ारा भावी क मत
समथन के वल गेह ँ व चावल तथा कु छे क रा य तक ही है । इसके ारा गेह ँ व चावल के
प म िवषम सं रचना बन गई है । जबिक देश दलहन व ितलहन के आयात पर िनभर है ।
इनक क मत अ सर यूनतम समथन क मत से नीचे चली जाती है अथात् इनके िलए
भावी क मत समथन नह है ।
2. 1 जनवरी 2015 को बफर टाक के मानक 21.41 िमिलयन टन क तुलना म वा तिवक
भ डार 61.6 िमिलयन टन था। इतने बड़े अनाज भ डार को रखने क लागत वसूली
क मत के 40 से 50 ितशत तक है । दूसरी ओर अनाज क मत मे वृि ऊँची बनी हई है
। यह खा नीित पर पैदा करती है ।
3. खा सुर ा िव ीय भार सि सडी के प म बहत अिधक हो गया है । 2013-14 म यह
89470 करोड़ तक पहँच गया। इस भार को सावजिनक िवतरण णाली को तक सं गत
करके कम िकया जाना चािहए। जुलाई 2002 से िनगमन क मत ि थर है व आिथक लागत
बढ़ती जा रही है । रा ीय खा सुर ा कानून लागू होने के प ात आिथक लागत व
िनगमन क मत का अ तर बढ़ रहा है । दूसरी ओर अिध ाि बढ़ रही है । इससे खा
सि सडी का भार असहनीय तर तक हो रहा है ।
4. सावजिनक िवतरण णाली म रसाव-रा य सरकार ारा सावजिनक िवतरण णाली के
तहत अनाज का उठाव तथा उपभोग म अ तर है । योजना आयोग िक रपोट (2005) के
अनुसार िबहार व पं जाब जैसे रा य म रसाव क मा ा 75 ितशत से अिधक है ।
ह रयाणा, म य देश व उ र देश म यह 50 से 75 ितशत तक है । इसी कार उिचत
मू य क दुकान के तर पर िबहार, ह रयाणा व पं जाब म रसाव 50 ितशत से अिधक
था। राज थान व उ र देश म यह 25 ितशत से 50 ितशत तक था। अतः णाली म
रसाव का तर ऊँचा है व इसे कम िकया जाना चािहए।
5. सावजिनक िवतरण णाली म सभी तर पर ाचार या है तथा पारदिशता क कमी है
। सूचना तकनीक व य लाभ ह ता तरण का योग कर इसे कम िकया जा सकता है ।
लाभािथय क सूचना को आनलाईन िकया जाना चािहए।
6. सावजिनक िवतरण णाली म खा ा न क गुणव ा कमजोर है । िविभ न रा य म, शहरी
व ामीण े म सावजिनक िवतरण णाली पर कम आय वग क िनभरता म अ तर है व
भारत म कु पोषण के तर िवशेषकर मिहलाओं व बालको म देखते हए सावजिनक िवतरण
णाली को मजबूत करने क आव यकता है ।

374
24.8 खाद सु र ा के िलए क याणकारी योजनाएँ
सावजिनक िवतरण णाली के अित र िनधन आय प रवार , िनराि त , बुजगु ,
मिहलाओं तथा ब च को खा सुर ा दान करने के िलए अ य योजनाएँ कायरत है । इनम
अ योदय अ न योजना, एक कृ त बाल िवकास सेवा, म यान भोजन योजना तथा रा ीय खा
सुर ा कानून मुख है ।
1. अ योदय अ न योजना - िदस बर 2000 म इस योजना को लागू िकया गया। यह के
ायोिजत योजना है । इसके तहत सबसे गरीब 1 करोड़ प रवार को 3 . िकलो चावल
तथा 2 िकलो गेह ँ ित प रवार ितमाह 35 िकलो अनाज उपल ध कराया जाता है । इस
योजना म भूिमहीन, सीमां त कृ षक, द तकार, आकि मक िमक, मिहला, बुजगु िनराि त
व अ म यि य को सि मिलत िकया गया है । इस योजना का े 1 करोड़ से बढ़ाया
जाना चािहए तथा अनाज क मा ा म भी वृि क जानी चािहए।
2. अ नपूण योजना - वष 2000-01 से ामीण िवकास मं ालय क इस योजना के अ तगत
65 वष आयु से अिधक के व र नाग रको िज ह वृ ाव था पशन का लाभ नह िमल रहा
है को ितमाह ित यि 10 िकलो अनाज िनशु क िदया जाता है ।
3. एक कृ त बाल िवकास सेवाय - यूिनसेफ क सहायता से 2 अ टू बर 1975 को इस
काय म को आरं भ िकया गया। िशशु मृ यु दर को कम करना, माताओं के वा य म
सुधार तथा गरीबी व भूखमरी म कमी इस काय म का मु ख उ६◌े य है । 2005 से यह
काय म स पूण देश म लागू िकया गया। यह काय म 13.40 लाख आंगनबाड़ी के के
मा यम से सं चािलत िकया जा रहा है । टीकाकरण, वा य जां च, गभवती व धा ी
मिहलाओं के िलए पूरक आहार तथा 3 से 6 वष क आयु के ब च के िलए िव ालय पूव
िश ा क यव था है । 12वी पंचवष य योजना म इसके िलए 1,23500 करोड़ पये का
ावधान िकया गया।
4. दोपहर भोजन योजना - 1995 म मानव सं साधन िवकास मं ालय ारा आरं भ क गई के
ायोिजत योजना है । इस योजना म राजक य िव ालय म ारि भक तर पर अ ययनरत
ब च को दोपहर का भोजन दान िकया जाता है तािक ब च के पोषण तर म सुधार हो,
अिधगम बेहतर ह , नामांकन व ठहराव बढ़े तथा िव ालय बीच म छोड़ने क दर कम हो।
इस काय म म भोजन िक िक म, गुणव ा व पयावरण के िव तृत मागदशन िनिदश जारी
िकए गए है । वतमान म 65 लाख िव ालय के मा यम से 12 करोड़ ब च को लाभाि वत
िकया जा रहा है । 2013-14 म इसके िलए 13200 करोड़ पये आवं िटत िकए गए।
5. रा ीय खा सुर ा कानून - िसत बर 2013 को लागू इस कानून का मु य उ ६◌े य देश
क दो ितहाई आबादी को सि सडीयु खा ा न उपल ध कराना है । यह लोगो को बेहतर
व स मानजनक जीवन के िलए पया मा ा म गुणव ा यु भोजन उपल ध कराता है ।
समि वत बाल िवकास योजना व सावजिनक िवतरण णाली को इसम सि मिलत िकया
375
गया है । यह 75 ितशत ामीण आबादी व 50 ितशत शहरी आबादी को खा ा न का
कानूनी अिधकार देता है । ित यि ितमाह 3 िकलो चावल 2 िकलो गेह ँ तथा 1
िकलो मोटा अनाज क दर से 5 िकलो अनाज उपल ध कराया जावेगा। िनधन क यो यता
का िनधारण रा य सरकार ारा िकया जावेगा। 18 वष से अिधक आयु क मिहला को
प रवार के मुिखया के प म राशन काड उपल ध कराया जावेगा। 6-14 वष के आयु के
ब च को पकाया हआ गम भोजन उपल ध कराया जायेगा। खा ा न सुर ा उपल ध न
कराने क ि थित मे रा य सरकार खा सुर ा भ ा देगी। िजला तर पर इसम सम या
िन तारण णाली का ावधान िकया गया है ।
24.9 बोध
1. खा सुर ा के ा प रभािषत क िजए।
2. भारत म खा सुर ा क ि थित क समी ा क िजए।
3. भारत म खा ा न के उ पादन व उपल धता क ि थित क समी ा क िजए।
4. भारत म सावजिनक िवतरण णाली क काय णाली िलिखए।
5. खा ा न क अिध ाि , उठाव, भ डारण क भारत म ि थित क समी ा क िजए।
6. खा सुर ा के िलए सावजिनक िवतरण णाली पर िनभरता क ि थित का उ लेख
क िजए।
7. खा ा न क िवके ि त अिध ाि तथा खुले बाजार म िबक का उ े य प क िजए।
8. भारत म सावजिनक िवतरण णाली का मू यांकन क िजए।
9. खा सुर ा के िलए भारत म क याणकारी योजनाओं को उ लेख क िजए।
24.10 सारां श
येक नाग रक के वा य व सि य जीवन यतीत करने के िलए खा सुर ा
एक बुिनयादी आव यकता है । यिद यि इस आव यकता को पूण करने म असफल रहता है तो
इसे पूरा करना सरकार क िज मेदारी है । िवकासशील देश म अभी भी बड़ी मा ा म िनधन आय
वग को पया व उिचत भोजन उपल ध नह है । भारत म कु पोषण अभी भी बड़ी सम या बनी हई है
। भारत खा ा न उ पादन म योजनागत िवकास का माग अपनाकर आ मिनभरता ा कर चुका है ।
सरकार ारा इस हेतु अनेक नीितगत उपाय िकए गए है िजससे िक नाग रको को खा सुर ा ा
हो। सावजिनक िवतरण णाली तथा रा ीय खा सुर ा कानून इस िदशा म मह वपूण पहल है ।
सावजिनक िवतरण णाली देश क कम आय वग को खा सुर ा उपल ध कराने क मह वपूण है
। इसके काय म म अद ता, ाचार व अकायकु शलता है िजसके चलते देश म पया अनाज
भ डार, खा न क ऊँची क मते तथा कु पोषण िव मान है । इसिलए देश म खा बंधन को
बेहतर करने, पारदश करे, ाचार मु करने तथा सूचना ा ोिगक के योग ारा कु शल करने
क आव यकता है ।
376
24.11 श दावली
 खा सुर ा: देश के सभी लोगो तक खा ा न क भौितक व आिथक पहँच।
भौितक पहँच का ता पय पया उ पादन मा ा से है तथा आिथक पहँच का
ता पय अ प आय वग ारा खा ा न य करने क उनक मता से है ।
 यूनतम समथन क मत: के सरकार ारा मुख फसल क बुआई के समय
के ीय लागत व क मत आयोग क अनुशं सा पर इनक घोषणा करती है । तथा
सावजिनक िवतरण णाली म आवंटन हेतु इन क मत पर खा ा न क खरीद
करती है ।
 िनगमन क मत: िजन क मत पर के सरकार रा य को सावजिनक िवतरण
णाली ारा खा ा न िवतरण के िलए सरकारो को आवंिटत करती है ।
 आिथक लागत: भारतीय खा िनगम ारा अनाज क वसूली क मत, भ डारण व
प रवहन का योग आिथक लागत कहलाता है ।
 उपभो ा सि सडी: आिथक लागत तथा िनगमन क मत का अ तर उपभो ा
सि सडी है ।
24.12 कु छ उपयोगी पु तक
1. भारत सरकार, आिथक समी ा।
2. रा ीय से पल सव ण रपोट।
3. रजव बक, है ड बुक आफ टेिट सिट स आन इंिडयन इकानामी।
24.13 बोध के उ र
1. ख ड 1.3 को देख
2. ख ड 1.4 को देख
3. ख ड 1.5 को देख
4. ख ड 1.6.1 को देख
5. ख ड 1.6.2 को देख
6. ख ड 1.6.3 को देख
7. ख ड 1.6.4 को देख
8. ख ड 1.7 को देख
9. ख ड 1.8 को देख
377
इकाई 25
िव यापार संगठन व भारतीय कृ िष
इकाई क परेखा
25.0 उ े य
25.1 तावना
25.2 कृ िष पर समझौता
25.2.1 घरेलू समथन
25.2.2 बाजार पहँच
25.2.3 िनयात सहायता को कम करना
25.2.4 बौि क स पदा अिधकार तथा व छता व पादप व छता के कानून
25.3 िव यापार सं गठन का कृ िष पर समझौता व भारतीय कृ िष
25.4 िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के प ात् का अनुभव
25.5 िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते पर िवकासशील देश के िलए आव यक सुझाव
25.6 बोध
25.7 सारां श
25.8 श दावली
25.9 कु छ उपयोगी पु तक
25.10 बोध ो के उ र
25.1 उ े य
इस इकाइ के अ ययन के बाद आप
 यह जान सकगे िक िव यापार सं गठन का कृ िष पर समझौता या है ?
 कृ िष के सं बं धम बौि क स पदा व व छता व पादप व छता या है ?
 इन समझौत का भारतीय कृ िष पर भाव व मू यां कन कर सकगे।
25.2 तावना
िव यापार क थापना 1 जनवरी 1995 को हइ। यापार व शु क पर सामा य
समझौता (गैट) के आठव दौर के प ात् इसक थापना हइ। यह अब तक का सबसे मह वकां ी
यापार समझौता है । यह बहप ीय वतं यापार, मजबूत िववाद िनपटान णाली , गैर िवभेदकारी
यापार को समिपत सं गठन है । इसका मुख काय इस बात को सुिनि त करना है िक सद य देश
यापार समझौते के अनु प काय कर। गैट क थापना के बाद उसका मुख काय गैर शु क

378
यापार बाधाओं को हटाना तथा शु क दर को यवि थत व कम करना। गैट के आठव दौर म
कु छ नये िवषय पर िव यापार के िनयम समािहत िकये गये। इनम व पर समझौता, सेवा यापार
पर समझौता, कृ िष पर समझौता तथा बौि क स पदा अिधकार पर समझौता मुख है । भारत जैसे
देश म कायबल के रोजगार, बड़ी आबादी क आजीिवका, खा सुर ा व िव यापार क ि से
कृ िष मह वपूण है । कृ िष के सं बं धम िव यापार सं गठन के िनयम का भारतीय कृ िष पर मह वपूण
भाव पड़ने वाला है । कृ िष के सं बं ध म िव यापार सं गठन म िव यापार सं गठन के मुख
ावधान का ान आव यक है तािक उनके भारतीय कृ िष व भारतीय अथ यव था पर पड़ने वाले
भाव को आंकलन िकया जा सके तथा िवकासशील देश के अनु प कृ िष िनयम को िव यापार
सं गठन के आगे आने वाले वाता के दौर म समािहत िकया जा सके ।
25.3 िव यापार सं गठन का कृ िष पर समझौता
िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते का मुख उˆ◌े य यापार बाधाओं को हटाना,
पारदश बाजार पहँच को बढ़ावा देना तथा वैि क बाजार का एक करण है । लेिकन समझौते के
ावधान जिटल तथा िववादा पद है । िवकिसत व िवकासशील देश म कृ िष णाली म अ तर है ।
िवकासशील देश के िलए कृ िष े आजीिवका व खाद सुर ा के िलए बेहद मह वपूण है जबिक
िवकिसत देश म यह पूजीगहन तथा वािणि यक व प क है । सं देह यह है िक यह समझौता कही
िवकिसत देश ारा कृ िष े के मा यम से िवकासशील देश के शोषण का उपकरण तो नह है ।
िव यापार सं गठन के कृ िष के समझौते के तीन मुख आधार है यथा घरेलू समथन, बाजार पहँच
तथा िनयित सि सडी।
25.3.1 घरेलू समथन
इसके अ तगत वह सि सडी आती है जो सुिनि त यूनतम क मत या आगत सि सडी के
प म य तथा उ पाद िविश को दी जाती है । इसके तीन बॉ स म िवभािजत िकया गया है (1)
ह रत बॉ स - इसम दी जाने वाली सि सडी यापार को िव िपत नह करने वाली या यूनतम
िव िपत करने वाली मानी गइ। पयावरण काय म, कृ िष अनुसं धान तथा िवकास सि सडी के तहत
िकया गया भुगतान इसके अ तगत आता है । यह इस तरह का भुगतान है जो उ पाद िविश नह है ।
इसके तहत दी जाने वाली सि सडी को कम करने क आव यकता नह है तथा सि सडी क कोइ
सीमा भी नह है । यह सि सडी उ पाद िविश के साथ जुड़ी हइ नह मानी गइ है तथा सभी िकसान
को समान प से िवत रत मानी गइ है । अमेरीका जैसे देश म कु ल सि सडी का 90 ितशत इस णे ी
म िदया जाता है । (2) नीला बॉ स - इसके अधीन वह सि सडी भुगतान आता है जो कृ िष का
उ पादन सीिमत रखने के िलए तथा ितपूित भुगतान के प म िदया जाता है । यूरोपीय देश म
उ पादन को सीिमत रखने के िलए कृ षको को इस तरह क सि सडी दी जाती है । ितपूित भुगतान
वह सि सडी भुगतान है जो समथन क मत व बाजार क मत म अ तर के कारण हािनपूित के िलए
कृ षको को िकया जाता है । कृ षको को समथन क मत तथा बाजार क मत के अ तर को उ पादन
मा ा से गुणा कर हािनपूित भुगतान िकया जाता है । इस तरह क सि सडी अमेरीका म दी जाती है ।
379
नीला बॉ स के अधीन आनेवाली सि सडी भुगतान को भी यापार को िव िपत करने वाला नह
माना गया है । इसिलए इसे भी कम करने क आव यकता नह है । िव यापार सं गठन के कृ िष
समझौते के अनुसार भारत इस तरह क सि सडी दे सकता है अथवा बढ़ा भी सकता है । (3) िविश
एवं िवभेदक बॉ स-इसके अधीन वह सहायता आती है जो िवकासशील देश म गरीब व कम आय
वाले िकसान को िनवेश सहायता तथा कृ िष आगत के प म दी जाती है । इसे भी यापार को
िव िपत नह करने वाली सि सडी माना गया है । (4) पीला या अ बर बॉ स-इसके अ तगत आने
वाली सहायता को कम न िनयिमत करने क आव यकता को समझौते म रखा गया है । इस सहायता
का आंकलन समथन के सम माप (AMS) ारा िकया जाना है व इसे सीिमत कर समा िकये
जाने का ावधान रखा गया है । इसके अ तगत वह भुगतान आता है जो ह रत बॉ स, नीला बॉ स
तथा िविश एवं िवभेदक बॉ स के अित र कृ िष उ पादन पर सरकार ारा यय िकया जाता है ।
इस तरह क सहायता के िलए सद य देश के िलए यह आव यक िकया गया है िक 1986-88 को
आधार मानकर यह बताय िक उनके यहाँ 1986-88 म िकतनी सहायता दी गइ व तय काय म के
अनुसार इसे सीिमत करने व कम करने का ल य रखा गया। िवकिसत देश के िलए यह ल य रखा
गया िक वे इस तरह क सहायता को वष 1995 से 2000 के म य 6 वष म 20 ितशत क कमी
कर तथा िवकासशील देश 1995 से 2004 तक (10 वष म ) 13 ितशत क कटौित कर। इसके
अधीन सि सडी को कम करने का आधार वष 1986-88 रखा गया है । 1986-88 म िवकिसत देश
म इस तरह क सि सडी का तर ऊँचा था तथा िवकासशील देश म बहत सीिमत थी। इसिलए कम
करने बावजूद िवकिसत देश म इस तरह क सि सडी का तर ऊँचा बना रहता है ।
पीला या अ बर बॉ स म समथन का ऑकलन समथन के सम माप ारा िकया जाना है ।
इसके दो भाग है (1) उ पाद िविश समथन उ पाद िविश समथन क गणना बा सं केत क मत
तथा घरेलू समथन क मत से अ तर को उ पाद िविश क मा ा से गुणा करके िकया जाना है । (2)
गैर उ पाद िविश सहायता-इसक क गणना कृ िष आगतो पर दी जान वाली सहायता से िकया
जाना है । सहायता को कम करने क बा यता उपयु दोनो को समािहत करके क जानी है । इसके
अित र िवकासशील देश को उ पादन के कु ल मू य के 5 ितशत से कम तथा िवकिसत देश को
उ पादन के कु ल मू य के 10 ितशत से कम सहायता को कम करने क बा यता से मु रखा गया
है । सहायता को कम करने क बा यता के वल यापार को िव िपत करने वाली सि सडी के िलए
रखा गया है । तथा यापार को िव िपत नह करने वाली सहायता को कम करने क बा यता से
मु रखा गया है ।
25.3.2 बाजार पहँच
बाजार पहँच ावधान के अधीन मुख त य यह है िक गैर शु क बाधाओं को देश के
बीच यापार म समा िकया जाव इ ह शु क से ित थािपत िकया जावे तथा इन शु क को
उ रो र कम करने क बा यता सद य देश पर रखी गइ है । गैर शु क बाधाओं म मा ा मक
ितबं ध एक है । िजसके तहत आयात क एक सुिनि त मा ा आयात करने के ितबं ध होते है ।

380
िव यापार सं गठन क एक मुख िवशेषता गैर शु क बाधाओं को समा करना व इ ह शु क
बाधाओं से ित थािपत करना तथा शु क के तर को नीचा करना रहा है । इससे अ तरा ीय
यापार म पारदिशता आती है तथा वतं यापार ो सािहत होता है । कृ िष समझौते म भी इसी के
अनु प गैर शु क बाधाओं को समा करना इ ह शु क से ित थापन करना तथा शु क को
सतत प म नीचे लाने का ावधान रखा गया है । कृ िष पर समझौते म यह कहा गया है िक िवकिसत
देश 1986-88 के आधार वष से 6 वष म (1995 से 2000 तक) 36 शु क कम करेग तथा
िवकासशील देश 1986-88 के आधार वष से 10 वष म (1995 से 2004 तक) 24 ितशत
शु क को कम करगे।
तािलका 25.1 कृ िष पर समझौते म िविभ न सं र ण मानको को कम करने क
बा यता
ं मानक िवकिसत देश िवकासशील देश
सं. 1995-2000 (6 वष म) 1995-2004 (10 वष
म)
1 घरेलू समथन (1986-88 के
तर) म सहायता का 20 13
सम माप
2 शु क (1986-88 के तर)
36 24
मे कृ िष व तुओ ं के िलए
3 िनयात सहायता (1986-88
36 24
के तर से)
4 सहायता ा िनयातो क
21 10
मा ा (1986-88 के तर से )
5 बजट म िनयात सहायता
36 24
(1986-88 के तर से)

25.3.3 िनयात सहायता को कम करना


यह कृ िष आगत पर सि सडी, िनयातो को स ता करने या िनयात के िलए अ य ेरणाय
जैसे आयात शु क कम करने के प मे हो सकती है । इनके कारण दूसरे देश के उ पाद बहत स ते
हो सकते है । िजनक कम क मत घरेलू कृ िष े को नुकसान पहँचा सकती है । कृ िष िनयात
सहायता के सं बं ध म ावधान िकया गया है िक िवकिसत देश सि सडी ा िनयातो क मा ा को 6
वष क अविध (1995 से 2000 तक) म 21 ितशत कम करेगे तथा िवकासशील देश सि सडी
ा िनयात मा ा को 1986-88 क तुलना म 10 वष क अविध (1995 से 2004 तक) म 10
ितशत तक क कमी करेगे। बजट म कृ िष के िलए िनयात सहायता को कम करने क वचनब ता

381
भी सद य देशो के िलए रखी गइ है । इस िनयात सहायता को भी 1986-88 को आधार मानकर कम
करने क बा यता रखी गइ है । समझौते म कहा गया है िक इस तरह क िनयात सहायता म िवकिसत
देश 6 वष क अविध म (1995 ये 2000 तक) 36 ितशत क कटौित करेग तथा िवकासशील
देश दस वष क अविध म (1995 से 2004 तक) 24 ितशत क कटौित करेगे। पुन : यह त य
यान यो य है िक 1986-88 िजसको आधार वष माना गया है वष म िवकिसत देश का कृ िष
िनयात सि सडी तर ऊँचा था तथा िवकासशील देश म यह नग य मा ा म थी अथात् िवकिसत
देश अगर िनयत अनुपात म कमी करते है तो भी उनके सि सडी का तर बहत ऊँचा बना रहता है ।
उ िनयात सहायता के ावधान के बावजूद अमे रका अपने िनयात साख
गार टी काय म ारा इन िनयम क उपे ा कर रहा है । इस साख गार टी काय म म अमे रका
उनके कृ िष उ पाद े ताओं को सि सडी यु साख देता है । जो दीघअविध म वापस चुकाया जाता
है । यह सामा यत खा सहायता काय म जैसे पी.एल.-’480 के ारा िकया जाता है इसके अधीन
अमे रका अ पिवकिसत देशो को अ यिधक खा सहायता दे रहा है । इसका प रणाम यह हआ है
िक इन देशो क इस पर िनभरता थाइ हो गइ है व उनका कृ िष िवकास हतो सािहत हआ है । यह
सि सडी भी यापार को िव िपत करने वाली है लेिकन यह िव यापार सं गठन के कृ िष पर
समझौते से बाहर है ।
25.3.1 बौि क स पदा अिधकार तथा व छता व पादप व छता के कानू न
िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के अलावा बौि क स पदा अिधकार पर
समझौता तथा व छता व पादप व छता पर बने िनयम का कृ िष पर भाव होगा। अत: इनका
अ ययन आव यक है । पेटट कानून म सद य देश से अपे ा क गइ है िक व पौध िक म क
सुर ा के िलए पेटट या सुइ जेने रस अथवा दोन को ही अपनाने के िलए कानून बनाये। तथा पौध
िक म क सुर ा के िलए पेटट या सुइ जेने रस के कानून क पालना सुिनि त कर। इस हेतु भारत
सरकार ने पेटट क अपे ा सुइ जेने रस प ित को अपनाने का िनणय िकया है ।
भौगोिलक सं केत बौि क स पदा अिधकार का एक अंग है । भौगोिलक सं केत से ता पय
व तु िवशेष क थानीय स ब ता से है । उसी थान क व तु को उस ेणी म शािमल िकया
जायेगा अ य थान क उ पािदत व तु को नह चाहे उनके गुण सम प हो। उदाहरण के िलए
‘शै पेन’ भौगोिलक सं केत है । ांस के िकसी िवशेष े म तैयार शराब को ‘शै पेन’ कहा जाता है
। अ य थान पर उ पािदत समान गुण व िवशेषता से यु उ पाद को यह नाम नह िदया जा सकता।
भौगोिलक सं केत व तु के उ म थान से स ब है । भारत म भी इस तरह के उ पाद है जैसे
दािजिलं ग चाय, को हापुरी च पल, अलफॉ सो आम थान िवशेष के उ म से स ब है । भारत म
कइ कृ िष उ पाद अि तीय िक म के है व इनक िविवधता म भारत समृ है । इस हेतु यास कर
‘भौगोिलक सं केत’ को बौि क स पदा अिधकार म समािहत िकया जा सकता है तािक कोइ दूसरा
देश इनका गलत फायदा न उठा सके ।
व छता व पादप व छता (सैनटे री ए ड फाइटोसैनेटरी) पर समझौते के अनुसार येक
सद य देश को व छता व पादप व छता के मानद ड का पालन करना चािहए। देश के
382
भौगोिलक व ाकृ ितक दशाय िभ न होने के कारण सद य देशो के व छता व पादप व छता पर
िनयम िभ न-िभ न हो सकते है लेिकन इन िनयम व मानको के पीछे वै ािनक अनुसं धान का आधार
होना चािहए। येक सद य देश वै ािनक अनुसधं ान के आधार पर बनाये व छता व पादप
व छता के मानद डो को अपने आयात पर लागू कर सकता है । ये मानद ड मानव, पशु तथा
पेड़-पौध के वा य क सुर ा के उपाय के प म है । कोइ देश मानव, पशु तथा पेड़-पौध के
वा य क सुर ा के नाम पर िबना वै ािनक अनुसं धान के आधार पर मनमाने ढ़ग से अपने
आयात पर व छता व पादप व छता के िनयम बनाकर लागू नह कर सकता। ‘ व छता व पादप
व छता’ के मानद ड अ छे उ े य यथा मानव पशु तथा पेड़-पौध क सुर ा के िलए बनाये गए है
लेिकन िव यापार म गैर शु क यापार बाधाओं के बढते योग के माहौल म इस बात से इनकार
नह िकया जा सकता िक िवकिसत देश िवकासशील देश के कृ िष आयात को रोकने के िलए
इनका गलत योग कर सकते है ।
इस तरह के व छता व पादप व छता पर मानद ड बनाना उ च तकनीक तथा उ च
लागत पर आधा रत है । इनका बनाना िवकासशील देशो के िलए किठन है । इसिलए इनके लागू
होने को टाला जाना चािहए।
हां ग-कां ग मं ी तरीय स मेलन म िव यापार सं गठन ने कृ िष के स दभ म मह पवपूण
वाता हइ। स मेलन म कृ िष के सं बं धम िन न ावधानो को समािहत िकया गया।
1- असामा य स ते आयात के वेश तथा आयात म असामा य वृि क ि थित म
िवकासशील देश को अित र अ थाइ सुर ा शु क लगाने क अनुमित दान क गइ।
इसे िवशेष सुर ा णाली नाम िदया गया।
2- खा सुर ा, आजीिवक सुर ा व ामीण िवकास के िलए िवकासशील देशो को िविश
उ पाद के िलए उपयु व लोचशील शु क दर के योग क अनुमित दी गइ।
3- वष 2013 तक िवकिसत देश कृ िष पर िनयात सि सडी को पूणतया समा कर देगे लेिकन
घरेलू समथन जारी रख सकगे।
4- िवकिसत देश कपास पर िनयात सहायता को 2006 म समा कर देगे।
25.4 िव यापार सं गठन का कृ िष पर समझौता व भारतीय कृ िष
कृ िष पर समझौते ारा सद य देश के म य कृ िष उ पाद क िनयात सहायता को कम करने,
घरेलू समथन को हटाने तथा बाजार पहँच बढाने के ावधान के स दभ म यह माना गया िक
कृ िष यापार बढ़ेगा तथा भारत को इससे लाभ होगा। िविभ न अ ययन म यह माना गया िक
यह समझौता भारत म कृ िष यापार के िहत म है हालांिक अनेक स देह य िकए गए।
ायोिगक आिथक अनुसधं ान के िलए रा ीय प रषद (नेशनल काउं िसल फार ए लाइड
इकनािमक रसच) ने 1994 म अपने अ ययन म पाया िक िव यापार सं गठन के कृ िष पर
समझौते के भारत पर िन न भाव होगे।

383
1- इससे भारतीय कृ िष उ पाद के िनयात म वृि होगी यह अनुमान लगाया गया िक के वल
गेह ँ व चावल का यापार 270 िबिलयन डॉलर हो जायेगा।
2- नये खुले बाजार म कृ िष िनयात के िलए िवकासशील देशो म ित पधा बढ़ जायेगी व देश
के कृ िष िनयात वृि इस हेतु देश क तैया रय पर िनभर करेगा।
3- यह स देह य िकया गया िक यिद कृ िष पर समझौते के अनु प तैयारी नह क गइ तो
देश कृ िष पदाथ का सबसे बड़ा आयातक हो जायेगा तथा यह भारतीय कृ िष सं रचना को
न कर देगा।
4- यिद िव यापार क िच ता भी न करे तो आगे आने वाले समय म देश क कृ िष उ पाद
आव यकता को पूरा करने के िलए भारत को अपने कृ िष े को उ नत बनाना होगा।
यह माना गया िक िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते से भारत को िकसी तरह क
सि सडी मे कमी नह करनी पडे़गी य िकं िवकासशील देश के िलए यह कृ िष तर के 5 से 6
ितशत तक है । अथात् सि सडी घटाने के थान पर बढ़ा सकते है । जबिक िवकिसत देशो को बड़ी
मा ा मे सि सडी कम करनी पड़ेगी इससे भारत के कृ िष उ पादो के िनयात स ते होगे तथा िवकिसत
देशो के कृ िष उ पादो क तुलना मे ित पधा म आयेगे। भारत को सावजिनक िवतरण णाली, कृ िष
उ पादो क सरकारी खरीद, े ीय िवकास के काय म, फसल बीमा, कृ िष अनुसधं ान व आधारभूत
िवकास पर यय म िकसी तरह क कमी नह करनी पड़ेगी।
उपयु लाभ क सं भावना के साथ कृ िष उ पादो के वैि क यापार म वृि के कु छ
अ तिनिहत खतर है । जो भारतीय कृ िष क चुनौितय के प मे य क जा सकती है ।
1- वैि क बाजार पर िनभरता म वृि देश क खा ा न आ मिनभरता को कमजोर करती
है । खा ा न म आ मिनभरता हमारे योजनागत िवकास माग का एक मुख यास
रहा है । बड़ी आबादी को खा सुर ा का अभाव तथा बड़ी सं या म छोटे व सीमा त
कृ षको क आजीिवका के कृ िष पर िनभरता का तं कमजोर हो सकता है ।
2- यूनतम समथन तथा अनाज क सरकारी खरीद कृ िष के फसल ा प के िलए
मह वपूण रही है । यिद कृ िष उ पादो का िव यापार बढ़ता है तो फसल ा प िवदेशी
यापार क शत के अनु प िनधा रत हो सकता है । जो देश क खा ा न आव यकता
के अनु प फसल ा प को प रवितत कर सकता है ।
3- अ ययन दशाते है िक देश म कृ िष उ पाद क क मतो क तुलना म कृ िष उ पाद क
अ तरा ीय क मतो म अिधक उतार चढ़ाव आते है । ये अ यिधक उतार चढ़ाव बड़ी
कृ षक आबादी क आजीिवका के िलए सं कट उ प न कर सकते है ।
4- देश म कृ िष क कायशील जोत का 80 ितशत 2 है टेयर से कम का है । िव यापार
सं गठन के कृ िष पर समझौते से कृ िष उ पादो के िवदेशी यापार म वृि होगी इससे
सीमा त व लघु कृ षक िवदेशी सं केतो के अनु प कृ िष म प रवतन म स म नह होगे।
के वल बड़े कृ षक इसके अनु प प रवतन म स म होगे अथात् िवदेशी यापार के िलए

384
कृ िष को खोलने से कृ िष के बड़ी सं या म लघु व सीमा त जोत वाले कृ षको को
नुकसान होगा।
25.5 िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के प ात के अनु भव
य िप भारत ने आिथक सुधार आरं भ कर िदए है तथा सतत प से शु क तथा गैर शु क
बाधाओं को हटाया है । कृ िष म समझौता के तहत बाजार पहँच क बाधाओं को हटाकर, घरेलू
समथन को कम करके तथा िनयात सहायता को कम करने के ावधान ारा कृ िष उ पाद यापार
उदारीकरण को तेजी दी है । लेिकन कृ िष पर समझौते के अनु प िवकिसत देश क ितब ताओं म
अनेक किमयाँ देखी गइ है ।
1- िवकिसत देशो ने कृ िष े को घरेलू समथन कम करने क वचनब ता का पालन
नह िकया। िवकिसत देशो म अभी भी बड़ी मा ा म कृ िष े को घरेलू समथन
िकया जाता है । अमे रका ने 2005 म कृ िष े को 42.7 अरब डालर क घरेलू
सहायता दी, जापान ने 2005 म 47.4 अरब डालर तथा यूरोपीयन यूिनयन ने 2005
म 133.8 िबिलयन क घरेलू सहायता कृ िष े को दी। अथात् िवकिसत देश घरेलू
समथन को कम नह कर रहे।
2- िवकिसत देश पीले या अ बर बॉ स क यापार को िव िपत करने वाली सि सडी
को ीन बॉ स जो यापार को िव िपत नह करती क ओर थाना त रत कर रहे है
तािक कृ िष पर समझौते से वं चना क जा सके ।
3- िवकिसत देशो ारा कृ िष े को कृ िष समझौते के अनु प समथन के सम माप को
कम करने के बावजूद इसका ऊँचा तर बना हआ है य िक समथन को कम करने
का आधार वष 1986-88 रखा गया। इस समय िवकिसत देशो म कृ िष को समथन
तर बहत ऊँचा था।
4- अमेरीका व यूरोपीय देशो म अभी भी कृ िष को िनयात सहायता बहत अिधक दी
जाती है य िक इन देशो क घरेलू क मते अ तरा ीय क मतो से काफ ऊँची है ।
िनयात सहायता ारा िनयात क क मतो को घटाकर िवकिसत देश यापार को
िव िपत कर रहे है ।
5- िवकासशील देशो के िनयात पर व छता व पादप व छता के कठोर मानद ड लगा
कर उनके िनयात से भेदभाव कर रहे है ।
6- िवकिसत देशो ारा अपने िकसानो को उ रोतर अिधक घरेलू समथन दान िकये
जाने के कारण कृ िष व तुओ ं क अ तरा ीय क मते िनर तर िगरती जा रही है ।
7- िवकिसत देश िवकासशील देश के कृ िष िनयातो को यू नतम बाजार पहँच भी
उपल ध नह करा रहे है ।
8- िवकिसत देश कृ िष पर समझौते क अपनी बा यताओं को पूरा नह कर रहे।

385
9- िवकिसत देश िवकासशील देशो के कृ िष िनयात पर अनेक शु क तथा गैर शु क
बाधाय खड़ी कर रहे है ।
25.6 िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते पर िवकासशील देशो के
िलए आव यक सु झाव
1- कृ िष सं विृ दर म िगरावट का मुख कारण कृ िष म सावजिनक िनवेश क िगरावट है
। इसिलए इस िगरावट को रोकने के िलए कृ िष म सावजिनक िनवेश बढ़ाया जाव।
अ ययन दशाते है िक कृ िष म सावजिनक िनवेश 15 ितशत ितवष क दर से बढ़े
तो कृ िष वृि दर 4 ितशत ितवष ा क जा सकती है ।
2- कृ िष म िनयात मता को बढ़ाने के िलए कृ िष े म सं रचना मक कमजो रयो को दूर
करने क आव यकता है । अथात् कृ िष म सावजिनक िनवेश बढ़े, अिधक
उ पादकता वाली नइ िक म का योग हो, उवरक का सं तिु लत उपभाग ह , पया
ो साहन यव था ह तथा फसल प ात् मू य वधन पया हो। इसके साथ ही
िव तु , सं चार, िवपणन, प रवहन तथा अ य आधारभूत सं रचना का तेजी के साथ
िवकास हो।
3- भारत िवकासशील देशो का िव यापार सं गठन वाता म वभािवक नेतृ वकता देश
है । सब िवकासशील देश अपने देश म कृ षको के िहत म िवकिसत देशो को कृ िष
समझौत क पालना के िलए दबाव डाल। िविभ न तरह क सि सडी व सहायता को
तेजी से कम करने के िलए िव यापार सं गठन क वाता म दबाव बनाये। िव
यापार सं गठन दुिनयाँ का सबसे बड़ा जातांि क सं गठन है । इसम न िकसी के पास
वीटो पावर है व न आइ.एम.एफ तथा िव बक क तरह सहायता आधा रत वोट
शि । इसिलए कृ िष समझौते को िवकासशील देश के िहत म बनाने के िलए
यासरत रहना चािहए।
4- खा ा न आ मिनभरता, खा सुर ा, आजीिवका सुर ा आिद िवषय कृ िष पर
समझौते म िवकासशील देशो के िलए मह वपूण है । िव यापार सं गठन क
वाताओं म इन िवषय को यान म रखते हए वाता म आगे बढ़े।
5- ‘ व छता व पादप व छता’ तथा समथन के सम माप जैसे िवषय क
जिटलताओं व दु पयोग को समा िकया जाना चािहए।
6- िवकिसत देशो के हरा बॉ स सि सडी क भाँित िवकासशील देशो को खा सुर ा
बॉ स व िवकास बॉ स क थापना क जावे तािक इसके तहत दी जाने वाली
सि सडी िवकिसत देशो ारा ीन बॉ स सि सडी क भाँित कम करने क
वचनब ता से मु हो।

386
25.7 बोध
1- िव यापार सं गठन गैट से िकस तरह िभ न है ?
2- िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते म घरेलू समथन म कमी के ावधान
िलिखए।
3- कृ िष पर िव यापार सं गठन के समझौते म बाजार पहँच को बढ़ाने वाले ावधान
िलिखए।
4- िनयात सहायता को कम करने के िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के
िवकासशील व िवकिसत देशो के ावधानो का वणन क िजए।
5- बौि क स पदा अिधकार तथा व छता व पादप व छता पर कृ िष समझौते के मुख
ावधान िलिखए।
6- हां गकां ग के मं ी तरीय स मेलन म कृ िष पर समझौते के मुख ावधान िजन पर
सहमित हइ या थे।
7- िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के भारतीय अथ यव था पर पड़ने वाले
अपेि त भाव का वणन क िजए।
8- िव यापार सं गठन क थापना के प ात भारतीय कृ िष पर मुख चुनौितयाँ या है ?
9- िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के प ात के अनुभव का परी ण क िजए।
10- िव यापार सं गठन के कृ िष पर समझौते के अनुभव के आलोक म िवकासशील देश
के प म करने हेतु आव यक सुझाव को रेखां िकत क िजए।
25.8 सारां श
जैसा िक िविदत है िव यापार के समझौतो क सद य देशो ारा अनुपालना क देखरेख
के िलए िव यापार सं गठन क थापना क गइ। यह बहप ीय यापार, मजबूत िववाद् िनपटान
णाली से यु गैर िवभेदकारी व वतं यापार को समिपत सं गठन है । उ वे दौर के समझौत म
एक मुख समझौता कृ िष पर समझौता था। कृ िष पदाथ के अ तरा ीय यापार को बढ़ाने के िलए
यह समझौता िकया गया। कृ िष पर समझौते म तीन मुख ावधान थे। कृ िष पदाथ क बाजार पहँच
को बढ़ावा, कृ िष उ पादन को घरेलू समथन जो यापार को िव िपत करते है को कम करना तथा
कृ िष उ पाद को द िनयात सहायता को घटाना। बौि क स पदा अिधकार तथा व छता व पादप
पर भी ावधान समझौते म िकए गए। गैर शु क बाधाओं को हटाना उ ह शु क बाधाओं से
ित थािपत करना तथा उ रोतर शु क के तर को नीचे लाने के ल य रखे गए।
िवकिसत व िवकासशील देश के िलए बाजार पहँच, घरेलू समथन तथा िनयात सहायता
को कम करने के ल य रखे गए। िवकिसत देशो के िलए कम समय अविध म अिधक शु क
कटौित तथा िवकासशील देशो के िलए अिधक समय अविध म कम शु क कटौित के ल य रखे
गए। कृ िष पर समझौते के समय यह अपे ा थी िक इस समझौते के लागू होने से भारत के कृ िष
387
िनयात म वृि होगी तथा यिद देश पया तैयारी के साथ यास कर तो देश क कृ िष व
अथ यव था के िहत म यह समझौता होगा। लेिकन िवकिसत देश ने ावधान का गं भीरता से
पालन नह िकया। िविभ न यास के ारा िवकिसत देश ने अपने घरेलू बाजार को िवदेशी कृ िष
उ पाद के आयात से सं रि त रखा। शु क व सहायता कटौित के बावजूद िवकिसत देशो क कृ िष
इतनी सं रि त थी िक िवकासशील देशो के िलए उनके बाजार नह खुले।
भारत जैसे देश के िलए कृ िष बड़ी आबादी क आजीिवका, खा सुर ा व खा ा न
आ मिनभरता के िलए मह वपूण है । खा ान म आ मिनभरता, कृ िष उ पाद क क मतो म
अ यिधक उतार चढ़ाव, लघु व सीमा त कृ षक के िहत को यान म रखते हए भारत को िव
यापार सं गठन के वाताओ के आने वाले दौरो म अपना प मजबूती से आगे बढ़ाना चािहए। इसके
अित र कृ िष े को ित पधरी, उ पादक व कम लागत वाला बनाने के िलए सावजिनक िनवेश
तथा आधारभूत सं रचना को बेहतर करने क आव यकता है ।
25.9 श दावली
1- गैट (GATT) जनरल ए ीमट ऑन ेड ए ड टे रफ : यापार व शु क पर समा य
समझौता 1947 म िव के देश ने इस समझौते को अपनाया इसका उˆ◌े य सद य
देशो के बीच गैर शु क यापार बाधाओं को हटाना तथा शु क दर को कम कर
वतं यापार को ो सािहत करना था।
2- िव यापार सं गठन : 1 जनवरी 1995 को गैट के उ वे दौर (1986-88) के
फल व प इस सं गठन क थापना हइ। यह सं गठन बहप ीय वतं यापार के िलए
कायरत है । सद य देश म समानता का यवहार (सवािधक अनुगहृ रा के
ावधान ारा) पर आधा रत है । यह सद य देश ारा िव यापार के समझौतो क
अनुपालना सुिनि त करता है ।
3- ीन बॉ स - पयावरण सं र ण, कृ िष अनुसधं ान व िवकास के िलए देशो ारा अपने
कृ िष े को दी जाने वाली सहायता है जो यापार को िव िपत नह करती।
4- नीला बॉ स: कृ िष उ पादन सीिमत रखने व कृ षको को हािनपूित के िलए िकया जाने
वाला भुगतान जो देश अपने कृ िष े को करता है । इस ेणी म आता है । यह भी
यापार को िव िपत न करने वाला सि सडी भुगतान माना गया है ।
5- पीला या अ बर बॉ स : ीन बॉ स व नीला बॉ स के अित र कृ िष को सि सडी
इस ेणी म आता है । इसे समथन के सम माप ारा मापा जाता है । तथा इसे
यापार को िव िपत करने वाला माना गया है ।
6- िविश एवं िवभेदक बॉ स : िवकासशील देशो म कम आय वाले िकसान को
िनवेश सहायता व कृ िष आगत के प म सहायता को इसम समािहत िकया गया है ।
इस ेणी क सहायता यापार को िव िपत नह करती।

388
7- बौि क स पदा अिधकार : अिव कारक या खोजकता को अपने अिव कार या
खोज का उिचत मू य िमले व इसक नकल करके दूसरे लोग इसका दु पयोग न करे
इस हेतु बौि क स पदा अिधकारो क अपे ा है । इसम सात तरह क बौि क
स पदा शािमल होती है इनम पेटट, कॉपीराइट, ेडमाक, औ ोिगक िडजाइन,
इंटी टे ेड सिकट के लेआउट िडजाइन, गु सूचना तथा भौगोिलक सं केत ह।
8- व छता व पादप व छता - मानव, पशु तथा पेड़-पौध के वा य क सुर ा के
िलए वै ािनक आधार पर बनाये गए मापद ड इसम समािहत होते है ।
25.10 कु छ उपयोगी पु तक
1- िव यापार सं गठन भारत के प र े य म, शैले कु मार, राजकमल काशन, नइ
िद ली।
2- भारतीय अथ यव था, िम तथा पुरी, िहमालय पि लिशं ग हाउस, नइ िद ली।
3- भारतीय अथ यव था, ल मीनारायण नाथूरामका, कालेज बु क हाउस, जयपुर।
25.11 बोध के उ र
1- िव यापार सं गठन क थापना गैट के उ वे दौर के प ात हइ। िव यापार सं गठन
थाइ है । यह बहप ीय यापार व वतं यापार को समिपत सं गठन है । देख भाग -
25.2
2- ीन बॉ स, नीला बॉ स तथा िविश व िवभेदक यवहार बॉ स के अधीन सि सडी
यापार िव िपत नह करती व इसे कम करने क आव यकता नह । पीला या अ बर
बॉ स के अधीन सहायता को िवकिसत देश 6 वष म 20 ितशत तथा िवकासशील
देश 10 वष म 13 ितशत कम करगे। देख भाग - 2.3.1
3- बाजार पहँच बढ़ाने के िलए गैर शु क बाधाओं को समा करना तथा शु क को
सीिमत कर उ रोतर नीचे लाना मुख है । िवकिसत देश 1986-88 के तर से 6 वष
36 ितशत तथा िवकासशील देश 10 वष म 24 ितशत शु क को कमी लाने
हेतु मानद ड तय िकए गए। देख भाग-2.3.2
4- देश के कृ िष उ पाद के िनयात को बढ़ाने के िलए दी जाने वाली सहायता इस ेणी म
आती है । देख भाग- 2.3.3
5- देशो से अपे ा थी िक पेटट या सुइ जेने रस अथवा दोनो के िलए कानून बनाये।
व छता व पादप व छता पर मानद ड वै ािनक आधार पर बनाये। बौि क स पदा
अिधकार तथा व छता व पादप व छता म िववरण। देख भाग- 2.3.4
6- खा सुर ा, आजीिवका सुर ा व ामीण िवकास के िलए, असामा य आयात वृि
क दशा म शु क लगाने, िवकिसत देश ारा िनयात सि सडी को पूणत: समा
करने के ावधान है । देख भाग - 2.3.4
389
7- भारत का कृ िष उ पाद का िनयात बढ़ेगा, कृ िष उ पाद क पधा मक मता म
िव तार होगा कृ िष समझौता व भारतीय कृ िष म वणन िकया गया है । देख भाग - 2.4
8- खा ा न आ मिनभरता, खा ा न क मत ि थरता, कम आय वाले िकसान क सुर ा
आिद है । देख भाग - 2.4
9- कृ िष उ पाद का यापार नह बढ़ा, शु क कम नह हए, िवकिसत देश अभी भी
सं र णा मक उपाय अपना रहे है । देख भाग - 2.5
10- कृ िष म सावजिनक िनवेश बढ़े, कृ िष म सं रचना मक कमजोरी दूर हो खा ा न
आ मिनभरता, खा सुर ा, आजीिवका सुर ा के िवषय मह वपूण है । देख भाग -
2.6

390
इकाई 26
भारत म औ ोगक िवकास क वृ ित एवं सम याएं
इकाई क परेखा
26.0 उ े य
26.1 तावना
26.2 वतं ता ाि से पूव औ ौिगक िवकास ऐितहािसक िसंहावलोकन
26.3 िनयोजन एवं औ ोिगक िवकास
26.3.1 थम गाजना (1951 –56)
26.3.2 ि तीय योजना (1956–61)
26.3.3 तृतीय योजना (1967 –66)
26.3.4 तीन वािषक योजनाएं (1966–69)
26.3.5 चतुथ योजना (1969–74)
26.3.6 पांचवी योजना (1974–79)
26.3.7 छठी योजना (1979–85)
26.3.8 सातव योजना (1985 –90)
26.3.9 आठवी योजना (1992–97)
26.3.10 नवी योजना (1997-2002)
26.3.11 दसव योजना (2002-2007)
26.3.12 यारवी योजना (2007-12)
26.4 िवकास के माग म बाधाएं
26.5 सारां श
26.6 श दावली
26.7 कु छ उपयोगी पु तक

391
26.0 उ े य
अथ यव था के िवकास म उ ोगो क अहम् भूिमक होती है । इसिलए इसके िवकास के
माग म आने वाली बाधाओं एवं िवकास क वृित का ान अथशा के येक िव ाथ के िलए
आव यक है । इस इकाई को पढने के बाद आप :
 जान सकगे िक उ ोग के स दभ म भारत क या ि थित थी?
 योजनाओं के ि या वयन के प रणाम व प.औ ोिगक िवकास क या ि थित रही?
 औ ोिगक िवकास के माग म आनेवाली बाधाओं से प रिचत हो जाएं गे।
26.1 तावना
िकसी भी देश के औ ोिगक िवकास का ान िवकास क भावी रणनीित बनाने वे िलए
अ य त आव यक है । इसके िलए योजनाब िवकास के ारा भारत म िकए गए यास क िदशा
एवं इसके माग म आ रही बाधाओं का ान ज री है । इस हेतु के ीय सां ि यक सं गठन ारा
उपल ध कराए गए आकड़ के साथ–साथ के ीय खान यूरो, रजव बक ऑफ इि डया बुलेिटन,
बजटपूव आिथक सव ण एवं योजनाओं का अ ययन िकया जाएगा। इस िव ेषण म आपको
औ ोिगक तेजी एवं म दी के कारण एवं िवकास के माग म आ रही बाधाओं क जानकारी दी
जाएगी।
26.2 वतं ता ाि से पू व औ ोिगक िवकास: एितहािसक
िसं हावलोकन
ाचीन भारत म बहत उ नत घरेलू – उ ोग थे। रायल कमीशन ने िलखा था िक,'
'आधुिनक औ ोिगक णाली के ज म थान पि मी यूरोप म जब अस य जनताितयां िनवास करती
थ , भारत उन िदन अपने शासको के धन वैभव एवं कारीगर क कलाकृ ितय के िलए जाना जाता
था। '' आप सभी प रिचत है िक भारत म िनिमत ढाका क मलमल िव िस थ । ो॰ वेबर ने
िलखा है, “In the Production of delicate woven fabrics, in the mixing of colours,
the working of metals and precious stones, the predation of essences an all
manner of technical arts has from early times enjoyed word wide celebrity.”
िह दू शासको के अि तम िदन म भारतीय उ ोग का पतन आर भ हआ एवं पठान शासको के
समय अ यिधक बढ़ गया वह कु छ सीमा तक मुगल शासनकाल म ि थर हआ। मुगल के शासन
काल म कई नगर एवं कसबे अपने घरेलू उ ोग के िलए िस हऐ जैसे ढाका क मलमल,
हाथीदां त के िलए मुिशदाबाद, जयपुर का सं गमरमर उ ोग, गाजीपुर का इ एवं लखनऊ क वेलवेट
इ यािद। भारत के बढ़ते वैभव ने िवदेशी यापा रय को अपनी ओर आकिषत िकया। सबसे पहले

392
पुतगाली आए िफर डच तथा अ त म अं ेज एवं च यापारी भारत आए। च एवं अं ेज क
दु मनी म अ तत : अं ेज यापारी िवजयी हवे। अं ेज ने भारतीय माल को यूरोपीय बाजार म बेचा
एवं मुनाफा कमाया।
इं लड म औ ौिगक ाि त के ार भ होने पर अं ेज यापा रय एवं ई ट इि डया कं पनी
के ि कोण म प रवतन आया। अब भारत उनके उ ोग के िलए क चामाल िनयात करन के िलए
एक मह वपूण थान बन गया। इसके साथ ही; यहां क िवशाल जनसं या उ ह अपने, उ ोग के
िलए भावी बाजार के प म नजर। आने लगी। बाद म वतं छोड़ा क नीित (Policy of Laissez
Faire) के फै ल हो जाने एवं बार–बार पड़ने वाले अकाल के प रणाम व प अकाल आयोग ारा
भारत के औ ोिगक करण पर बल िदया गया। इसके बाद राजनीितक पुनजागरण के युग म भी भारत
म वदेशी उ ोग क न व रखी। पर तु राजक य समथन व सहयोग न िमलने से यह अिधक आगे न
बढ़ सके । थम िव यु के समय (1914–18) भारत को अपने उ ोग के िवकास के िलए नए
अवसर िमले। 1916 म भारतीय उ ोग आयोग क थापना क गई िजसने भारत म
औ ोिगक करण क स पूण सं भावनाओं का अ ययन िकया। आयोग ने उ ोग को राजक य
ो साहन देने क वकालत क । जहाँ थम िव यु के समय भारत म उ ोग का िवकास हआ वही
म दी के समय यु उपरा त उ ह ध का लगा।
ि तीय िव यु के ार भ के साथ ही भारत म उ ोग को पुन : गित िमली पर तु अिधक
उ साह जनक प रणाम सामने नह – ' इस अविध म राजक य अथवा सरकारी िवभाग क मां ग
'बढ़ने एवं िनजी े क य मता म वृि होने से औ ोिगक उ पाद क मां ग बढी। उ ोग का
िवकास हआ पर तु िव के अ य देश म औ ौिगक गित के मुकाबले यह नग य था। भारत म
कु छ उ ोग जैसे सूती व टील, तेल, मशीन टू स, िव तु साम ी, औजार एवं पुज लुनी व ,
होजरी, जूते , चमड़े का सामान आिद म सं तोषजनक वृि हई। व तुत : वतं ाि के समय भारत
एक िपछड़ा हआ देश ही था।
26.3 िनयोजन एवं औ ोिगक िवकास
अब हम िविभ न योजनाओं म औ ोिगक गित क चचा करगे।
26.3.1 थम पं चवष य योजना (1951 –56)
थम योजना क अविध म औ ोिगक उ पादन ने गित पकड़ी। औ ोिगक उ पादन
सूचकांक (1951.100) थम योजना क समाि पर 121.9 था। इस कार योजना अविध म
उ पादन 2204 बढ़ा। यह उ ोग क तािवत मता का पूरा उपयोग करने एवं मता म िव तार
'करने से स भव हो सका। कई नए उ ोग क इस योजना अविध म ार भ िकए गए। इस योजना
अविध म सावजिनक े का िवकास करने के साथ साथ िनजी े को भी सहायता उपल ध कराई
कई। िव तु उ पादन मता जो 1 950– 51 म मा , 2.3 िमिलयनिकलोवाट थी योजना के अ त म

393
34 िमिलयन िकलोवाट हो गई। सूती व , रबड़, स फयू रक एिसउ, काि टकसोड़ा, अमोिनयम
स फे ट, सीमे ट, खा तेल, साईकल अिद का उ पादन बढ़ा।
26.3॰2 ि तीय पं चवष य योजना (1956–61)
थम योजना म ार भ औ ोिगक िवकास क दर ि तीय योजना म जारी रही। आपको
मरण होगा िक ि तीय योजना म भारी उ ोग को सव च ाथिमकता दी गई थी।। पर तु
औ ौिगक क चे माल क कमी के कारण उ ोग क िवकास दर म कु छ िगरावट आई। सूती व
उ ोग क सम याओं के िलए सरकार ने एक अलग सिमित गिठत क । 1951–55 क अविध म
जहां औ ोिगक िवकास क औसत दर 5.5%' थी वही 1956 म यह 8॰6%' 1957 म 3॰5% एवं
1958 म िगरकर 1.5% वािषक रह गई। 1959 म औ ोिगक उ पादन सूचकांक 151 हो गया। जो
िपछले वष के मुकाबले 8॰2% वृि का ोतक था। इस वृि का कारण आयात को उदार बनाकर
अिधक मा ा म क चे माल क पूित, आ त रक माँग म वृि , नई औ ोिगक वातावरण का उ नत
होना था। 1960 मे िपछले वष क तुलना म उ पादन 12.1% बढ़ा तथा सूचकां क 170.3 हो गया।
इस कार योजना अविध म 39.1% वृि दज क गई।
26.3.3 तृ तीय पं चवष य योजना (1961 –66)
तृतीय पं चवष य योजना के थम वष 1961 –62 म औ ोिगक वृि का ल य14 ितशत
रखा गया पर तु वा तिवक दर 4604 ही ा हो सक । औ ोिगक क चे माल क अनुपल धता के
कारण ल य को ा करने म किठनाई आयी। िवदेशी क चेमाल का उपयोग करने वाले उ ोग म
सम या रही य िक िवदेशी िविनमय क किठनाइय के कारण आयात पर ितब ध रहे। इसके
अित र उजा व यातायात े म धीमी गित का भाव भी देखने म आया। इन सभी बाधाओं के
बावजूद नए–नए े म उ ोग लगाए गए।
औ ोिगक उ पादन का, सूचकां क (1960=100) 1965 म 153॰7 हो गया। औ ोिगक
िवकास के मां ग म आने वाली बाधाओं जैसे यातायात, उजा, सीमे ट, कोयला टील आिद े का
तेजी से िवकास हआ। इन सभी त व के अित र सरकार ारा िविभ राजकोषीय रयायत व
सुिवधाएं भी औ ोिगक गित के िलए िज मेदार थी।
26.3.4 तीन वािषक योजनाएं (1966–69)
1966 म औसत औ ोिगक उ पादन सूचकां क 1965 के तर से कम हो गया एवं 1967 म
यह 151.4 रह गया। देश के स मुख ग भीर सूखे एवं िवदेशी िविनमय सं कट के चलते क चे माल
क उपल धता म कमी आई। कु छ उ ोग को उजा सं कट के कारण िबजली नह िमली। पर तु
1968 म इसम कु छ सुधार आया व सूचकांक 161.1 हो गया। सरकार क कड़ी लाइसेि सं ग नीित
भी उ ोग के माग का रोड़ा बन गई।

394
26.3.5 चतु थ पं चवष य योजना (1 969–74)
योजना म छू टी के बाद 1969 तथा 1970 के वष म औ ोिगक उ पादन ने िफर गित
पकड़ी। 1970 म औ ोिगक उ पादन (1960=100) सूचकांक 1807 हो गया। उ ोग को बढ़ावा
देने के िलए उदार आयात क नीित का अनुसरण िकया गया। क ोल क क मतो म कु छ छू ट से
वातावरण म सुधार आया। औ ोिगक लाइसिसं ग नीित के तहत उ ोग के िलए यापक नीित
िनमाण हआ' इनक सम याओं के िलए सरकार ारा िविभ अ ययन दल बनाए गए। चतुथ योजना
म औसत वृि दर 4.1% रही जो ल य से लगभग आधी थी। उ ोग क मता का पूरा उपयोग
वह हो पाया।
26.3.6 पॉचवी योजना (1974–79)
पाँचवी योजना म औ ोिगक िवकास क दर अिधक ऊँची तो नह रही िफर भी इसम गित
आई। 1974 म यह दर 4% रही। औ ोिगक उ पादन सूचकांक (1970=100)1974 म 114.3 तथा
1975 म 1197 हो गया। सरकार ारा िव तु , टील, कोयला आिद े के िवकास के िलए िकए
गए यास से औ ोिगक िवकास को बल िमला। औ ोिगक लाइसेि सं ग नीित म कु छ उदारीकरण
क नीित को अपनाया गया। उ ोग क थािपत मता का पूरा उपयोग करने पर बल िदया गया।
1977 म औ ोिगक उ पादन5.3% बढा' कु छ मह वपूण े पर िवशेष यान िदया गया। 1977 म
सूचकांक बढ़कर 140 हो गया। पर तु बाद म कु छ रा य म िव तु सं कट गहरा होने, कोयले क
आपूित म बाधा आने तथा यातायात स ब धी सम याओं एवं औ ोिगक अशाि त से औ ोिगक
िवकास क गित अव हो गई।
26.3.7 छठी योजना (1980–85)
औ ोिगक उ पादन के सामा य सूचकांक (आधार 1970–100) म छठी योजना अविध म
िनर तर वृि हई। आँकड़ो के आधार पर देखा जाय तो यह 1980 म 1507 से बढ़कर– 1981 म
1646, 1982 म 172, 1983 म 1797 तथा 1984 म 189.3 हो गया। इस वृि क मु य वजह
इसके तीन मुख घटको म लगातार वृि होना है । खान एवं खनन का सूचकां क 144.2 से बढ़कर
योजना अविध म 240 हो गया। िविनमाण एवं िव तु उ पादन के सूचकां को म भी उ लेखनीय वृि
हई। औ ोिगक े का काय िन पादन अ छा होने के पीछे आधारभूत सं रचना के े का े
काय िन पादन उ रदायी था। सीमे ट, िव तु प रवहन आिद े के साथ–साथ कृ िष े म े
दशन से औ ोिगक मां ग बढ़ी। औ ोिगक िमको क ि थित म से औ ोिगक शाि त बनी रही।
इ ह सभी कारण से औ ोिगक े का दशन अ छा रहा।
यह दशन और भी े रहता यिद कु छ बाधाएं उपि थत नह होती। उदाहरणाथ कु छ अित
मह वपूण आधारभूत उ ोग जैसे िबजली, कोयला टील म मां ग तथा पूित म भारी अ तराल बना
रहा। पं जाब म हालात िच ताजनक रहे। पि म बं गाल म जूट िमल क हड़ताल, ब दरगाह पर गोदी
कमचा रय क हड़ताल एवं आधुिनक करण क धीमी र तार इसके िलए उ रदायी थी। इसी अविध
395
म औ ोिगक उ पादन सूचकां क को अिधक िव तृत बनाया गया िजससे देश क औ ोिगक े क
सही त वीर सामने आ सके । 1980–81 के दशक म औ ोिगक गित 1970 के दशक क तुलना
म े रही।
26.3॰8 सातव योजना (1985–90)
सातव योजना म औ ोिगक उ पादन का सूचकां क (1980–81=100) के आधार पर
वृि दर 8.7% रही। यह सूचकांक 1984–85 म 1309 से बढ़कर1985–86 म 142,1986–87 म
155.1 1987–88 म 1664, 1988–89 म 181.1 तथा 1989–90 म 188.1 ले गया। िविभ
उ ोग म वृि दर को चार े म िवभािजत कर 1553 उ ोग क ि थित इस कार रही।
तािलका 26.1
चु ने हए े म वृ ि दर (सातव योजना)
उ ोग समूह भार िपछले वष िक तुलना म % वृि
1989–89 1989–90
1. आधारभूत उ ोग 36.36 10.8 4.7
2. उपभो ा िटकाऊ उ ोग 2.20 19.3 0.8
3. उपभो ा गैर िटकाऊ उ ोग 19.56 2.8 5.9
4. पूँजीगत सामान 11.32 9.0 9.1
5. म यवत व तुएं 16.10 13.2 2.2
6. सभी उ ोग 85.54 9.8 5.1
ोत: आिथक सव ण भारत सरकार वष 1989–90 पृ 53
सां तवी योजना म औ ोिगक उ पादन म िविनमाण े क औसत वृि दर (1980–
81=100)9.9% रही। इसम भी िव तु मशीन, रसायन एवं रसायन उ ोग क वृि दर मश:
25.8% व 11.7% रही। इन दोन उ ोग समूह ने औ ोिगक वृि म मह वपूण भूिमका िनभाई।
छठी योजना क तुलना म सातव योजना म औसत वािषक वृि ऊँची रही। औ ोिगक उ पादन क
वृि दर सं तोषजनक होने के पीछे िन निलिखत त व उ रदायी थे।
1. लाइसेि सं ग के िलए ज री े एवं ि याओं म प रवतन।
2. तकनीक का आयात।
3. पूँजीगत साज सामान का अिधक आयात
396
4. थािपत मता का बेहतर उपयोग।
5. कई उ ोग म उतारो का वृहत आधार।
6. उदारीकरण क नीित जैसे एम.आर॰टी.पी. आिधिनयम– के तहत् स पित सीमा म
वृि ,लाइसि सं ग से मुि क सीमा बढ़ाकर 50करोड़ पया िनधा रत करना, गैर एम. आर॰टी॰पी
एवं गैर फे रा क पिनय को िपछड़े े म उ ोग थािपत करने पर लाइसे स से मुि , इ यािद।
7. सावजिनक े का काय िनथादन – 31 माच 1991 को सावजिनक उप म कु ल सं या
246 थी। भारत सरकार के इन उप म म कु ल िविनयोग 11 3,234 करोड़ पए था। इनम से 236
कायरत थे िजनम 101,702 करोड़ . क पूँजी िविनयोिजत थी एवं 23 लाख कमचारी कायरत थे।
इनम से 131 उ ोग म 5731 करोड़ पए का शु लाभ अिजत िकया तथा 1०9 उ ोग को 3064
करोड़ पए का घाटा हआ।
8. रा य के तर पर लगभग 1100 राजक य उप म थे िजनम लगभग 50,000 करोड़ पए क पूँजी
लगी हई थी। इनम से अिधकां श क ि थित िच ताजनक थी। इस कार सातव योजना म
औ ोिगक िवकास सं तोषजनक रहा। इस योजना म उ ोग पर 19708 करोड़ पए के सरकार
एवं शेष रा य सरकार ारा यय िकया। जाना था। इ वा तिवक यय चालू क मतो पर 26295
करोड़ पए हआ।
26.3.9 आठव योजना 1992–97
1980 के दशक म ा उपलि धय को मजबूत करने के उ े य से आठव योजना म
आिथक सुधार ार भ करते हए सरकार ने िनजीकरण एवं उदारीकरण क ि या अपनाई। उ ोग
क सरकार पर िनभरता कम करने के कई यास िकए गए। इन सुधार का ल य भारतीय उ ोग को
िव ित पधा के िलए तैयार करना है ।
1991 म भारत सरकार ने नई औ ोिगक नीित क घोषणा क एवं सावजिनक े के िलए
रजव उ ोग क सं या 29 से घटाकर 17 कर दी। उ ोग को िव ित पधा के िलए तैयार करने
क ि से िनयं ण म छू ट दी गई। औ ोिगक ि याकलाप म िनजी े क मह वपूण भूिमका को
वीकार िकया गया एव यह प िकया गया िक सावजिनक े अब आधारभूत एवं मह वपूण
उ ोग तक ही सीिमत रहेगा। उ ोग को िव तार व आधुिनक करण के िलए छू ट दी जाएगी व
उनक बजट सहायता पर िनभरता कम क जाएगी। लौह धातु उ ोग. क भिव य म िवकास
स भावनाएं बल है इसी तरह पूँजीगत साज समान म िवदेशी सहयोग से तकनीक के
आधुिनक करण पर यान िदया जाएगा। इलै ोिनक उ ोग म भारत म अभी तक वां िछत गित
नह हई है । उदारीकरण क ि या से इसम गित आएगी। उवरक उ ोग म अभी तक सरकारी
िनयं ण एवं क मत िनधारण ितब ध के कारण वां िछत गित नह हो सक । श कर के े म
भारत अब आ मिनभर हो चुका है । इसके उ पादन बढ़ाने व िनयात पर बल िदया जाएगा। सूती व

397
के े म आधुिनक करण के साथ–साथ हथकरघा े म उ च मू य उ पाद को तैयार कर
िनयातो मुख बनाया जाएगा।
आठव योजना म वृि दर 5.6 ितशत रहने का ल य है । इसम िविनमाण े म वृि दर
7.3 एवं िनयातो म 13॰6 ितशत वृि का ल य है । लघु एवं कु टीर उ ोग के िलए वृि – दर का
ल य अिधक रखा गया है । लघु एवं कु टीर उ ोग म बढ़ती णता पर भी िच ता य क गई।
नौवी योजना म औ ौिगक उ पादन के सूचकांक एव िवकास ल य का अ ययन कर
िव ाथ अपने ान म नवीनतम जानकारी का समावेश करे।
26.3.10 नवी योजना (1997-2002)
26.3.11 दसव योजना (2002-2007)
26.3.12 यारवी योजना (2007-12)
26.4 िवकास के माग म बाधाएं
भारत म औ ोिगक िवकास का माग समतल नह है । िपछले वष म भारतीय उ ोग
पितय ने कई उतार–चढ़ाव देख है । मु य बाधाओं को इन शीषको म रखा जा सकता
(1) उजा क सम या – भारत उजा के े म ार भ से ही िपछड़ा रहा। औ ोिगक करण के
कारण तथा कृ िष म बढ़ते उजा उपयोग के कारण उजा क मांग तेजी से बड़ी पर तु इसक आपूित म
कु छ धीमी गित के कारण मां ग एवं पूित के बीच अ तराल लगातार बढ़ता रहा। सरकार के पास
सं साधन क कमी व उ पादन एवं िवतरण म भारी छीजत के कारण िव तु े सरकार के िलए घाटे
का सौदा रहा। हाल ही वष म भारत सरकार ने िव तु उ पादन एवं िवतरण के िलए िनयामक
आयोग गिठत करने का सुझाव िदया। राज थान सरकार ारा, अपने रा य म रा य िव तु िनयामक
आयोग का गठन कर िदया गया है । अब िव तु े म िनजी े क भागीदारी पर बल िदया जा
रहा है । भारत सरकार इसके िलए कई िवदेशी क पिनय से समझौता कर चुक है ।
(2) कु शल िमको क सम या – भारत म म शि अकु शल एवं अिधकां श िमक
अिशि त है । इसके कारण उ ोग के िवकास म बाधा आती है ।
(3) अ छी िक म क मशीनरी क उपल धता क सम या।
(4) क चे माल क कमी – कु छ उ ोग को छोडकर भारत म औ ोिगक क चेमाल क कमी
का सामना करना पड़ता है । इसके अित र उपल ध क चे माल क िक म भी घिटया है । इस
कमी को: पूरा करने के िलए उ ोग को आयाितत माल पर िनभर रहना पड़ता है ।
(5) िव क सम या – िव के अभाव म उ ोग क थापना व आधुिनक करण नह हो
सकता। भारत म उ ोग के आधुिनक करण के िलए भारी पूजँ ी िविनयोग क आव यकता है । यहाँ
का पूँजी बाजार अिवकिसत है । य िप उदारीकरण के इस दौर म भारतीय पूँजी बाजार ने अपने
आपको कु छ हद तक तैयार िकया है िफर भी छोटे िनवेशको का िव ास पूँजी बाजार म अभी नह
लौटा है । ऐसी ि थित म शेयर व ऋणप बेचने म किठनाई होती है एवं उ ोग क रा य पर िनभरता
अिधक है ।
398
(6) औ ोिगक िमको म अनुशासन क कमी के कारण भारतीय उ ोग को मािदवसो का
अ यिधक नुकसान उठाना पड़ता. है । इससे हम उ पादन ल य को ा नह कर सकते।
(7) ऊँची लागत – भारतीय िमको क अकु शलता पूँजी क ऊँची लागत, घिटया क चामाल
तथा उ पादन म होने वाली कावट से औ ोिगक माल क लागत अिधक आती है । इससे हमारे
उ ोगपित उ च वािलटी वाले माल का उ पादन नह कर पाते। वे अ तरा ीय ित पधा म नह
िटक पाते। प रणाम व प धीरे–धीरे वे ण हो जाते है एवं इसम िविनयोिजत पूँजी डू ब जाती है ।
26.5 सारां श
भारतीय उ ोग क िवकास या ा काफ सुखद नह रही है । िपछले पचास वष म
औ ोिगक उ पादन म वृि दर 5 ितशत से भी कम रही है । इस िलए कु छ अथशाि य ने इस
वृि दर पर िच ता य क है एवं वे रोजगार के घटते अवसर से भी िचि तत है । अब भिव य म
भारतीय उ ोग को िव ित पधा के िलए तैयार करना होगा। सरकार ने बीमा े म िवदेशी
क पिनय के वेश पर रोक समा करने का िवधेयक िदस बर1999 म पास कर िदया है । इस कार
अब भारत आिथक सुधार के ि तीय चरण म वेश कर गया है ।
26.6 श दावली
1. Basic Industries आधारभूत उ ोग।।
2. Consumer Durables उपभो ा िटकाऊ उ ोग।
3. Consumer Non durables उपभो ा गैर िटकाऊ उ ोग।
4. Capital goods industries पूँजीगत साज सामान।
5. Wage goods मजदूरी व तुएं ।
6. Intermediate goodsम यवत व तुएं
7. Index of Industrial Production औ ोिगक 'सूचकां क।
8. Manufacturing Industries िविनमाण उ ोग।
26.7 कु छ उपयोगी पु तक।
1. Govt. of India– Various five year Plans.
2. Govt. of India – Economic Survey (every year)
3. RBI. Report on currency & Finance

399
इकाइ 27
नइ औ ोिगक नीित
इकाइ परेखा
27.0 उ े य
27.1 तावना
27.2 औ ोिगक नीित का अथ एवं मह व
27.3 नवीन औ ोिगक नीित 1991
27.4 नवीन औ ोिगक नीित क मुख बात
27.5 नवीन औ ोिगक नीित का सकारा मक पहलू
27.6 नवीन औ ोिगक नीित का नकारा मक पहलू
27.7 सारांश
27.8 बोध
27.9 स दभ
27.1 उ े य
इस इकाइ के अ ययन का उ े य है िक हम इस इकाइ के प ात् हम
 औ ोिगक नीित का अथ व मह व जान सकगे।
 आिथक सुधार के बाद जारी पहली नीित के िविवध प क जानकारी ले सकगे।
 नवीन नीित क पूव नीितय से आसान तुलना।
 औ ोिगक नीित के सकारा मक व नकारा मक पहलूओ ं का ान।
 औ ोिगक नीित क ासं िगकता को जान पायगे।
27.2 तावना
-िकसी भी देश का िवकास माग औ ोिगक सं रचना के िवकास के िबना सं भव नह है ।
वतं ता ाि से पूव भारतीय औ ोिगक इकाइयाँ पूणत: ि िटश स ा क दया पर िनभर थी,
िजनका वा तिवक उ थान उन समय प रि थितय म इतना सहज व आसान नह था। भारतीय
आिथक त को सुचा िदशा देने के िलए िविवध रणनीितय का सहारा िलया गया यथा
पं चवष य योजनाएँ। आिथक वातावरण म सकारा मक दशा व िदशा का िनमाण करने हेतू अब
भारत वतं प से नीित-िनमाण व सं चालन हेतू आगे बढ़ाने लगा था।

400
औ ोिगक े को िवकास के माग पर श त करने के िलए वह आव य हो गया िक कु छ
िवशेष रणनीितय को अपनाया जाये। भारत म इस िदशा म पहला यास वष 1948 म िकया
गया िजसे अिधक िव तार दूसरी पंच वष य योजना के दौरान िमला िजसम भारी व आधारभूत
उ ोग क थापना को धान ल य के तौर पर अपनाया गया। औ ोिगक िवकास को ेरीत
करने के िलए समय-समय पर िविभ न सरकार ारा औ ोिगक नीितयाँ जानी जाती रही है ।
थम औ ोिगक नीित जो 1948 म पेश क गइ म िजसम उ ोग को चार ेणीय के िवभािजत
िकया गया। रा य एकािधकार, िमि त सरकारी िनय ण े एवं िनिज े । वष 1956 क
नीित ने सावजिनक े के िव तार पर अिधक जोर िदया।
वष 1977 म आइ पहली गैर-कां ेसी जनता सरकार ने कु छ मह वपूण सुधार िकये गये
जैस-े लघु उ ोग के िलए आरि त इकाइय म बढोतरी, िशशु उ ोग क शु आत िजला उ ोग
के ो क थापना आिद। यह औ ोिगक नीित िनि त तौर पर भारतीय आिथक णाली को
समाजवाद क ओर ले जाने का यास था। समाजवाद क नीित पर आधा रत इस नीित ने
अनेक कार के िनय ण और ितब ध का सृजन िकया जो अित िनय ण व अित ब धन म
बदल गये। िजसका सकारा मक प रणाम ना िमलकर अकु शलता व भ ाचार के प म
दु प रणाम नज़र आने लगया। देश क इन िवपरीत प रि थितय ने ही वष 1991 म आिथक
सुधार क अिनवायता तय कर दी थी और 1991 म इन सभी नीितय का प र याग कर हम
आिथक सुधार के वातावरण म एक सुधारवादी या य कह िक उदारवादी औ ोिगक नीित
अपनानी पड़ी।
27.3औ ोिगक नीित का अथ व मह व:-
औ ोिगक नीित से अथ उस सरकारी रणनीित या सोच से है जो औ ोिगक िवकास को मूत
प देने के िलए समयब िनयम व िस ा तो के िनमाण पर आधा रत है ।
दूसरे श द म औ ोिगक नीित का अथ सरकार क उस औपचा रक घोषणा से है, िजसम
औ ोिगक िवकास को समिपत नीितय का उ लेख िकया जाता है । इन नीितय म उन सभी
िस ा त , िनयम व रीितय का िववरण िदया होता है, जो उ ोग के िवकास व थापना हेतू
आव यक ह। इन नीितय के िनमाण के समय देश के आिथक, सामािजक े के साथ उल ध
सं साधन व तकनीक मता को आधार बनाया जाता है ।
जहाँ तक िकसी क देश म जारी क जाने वाली औ ोिगक नीित के मह व का है तो एक
देश के िलए औ ोिगक नीित उतनी ही मह वपूण है िजतनी क सं चालन के िलए राजनैितक
नीितयाँ ह। औ ोिगक नीित के मुख मह व िन न है :-
(अ) औ ोिगक नीित देश के औ ोिगक िवकास क एक सुिनयोिजत परेखा तुत करती है

(ब) इससे देश के उपल ध सं साधन व तकनीक का कु शलतम योग सं भव हो पाता है ।
401
(स) देश के औ ोिगक िवकास के िलए आव यक वातावरण का िनमाण सं भव होता है ।
(द) सरकार को एक समयब िज मेदारी का अहसास कराती है ।
(च) जनसाधारण को राजक य ल य को समझने व उनसे जुड़ने का अवसर दान करती ह।
1- नवीन औ ोिगक नीित 1991 :- भारत म औ ोिगक िवकास को बढ़ावा देने के िलए पहला
साथक यास वष 1948 म िकया गया, जब पहली औ ोिगक नीित जारी क गइ। वष 1956
म दूसरी नीित जारी क गइ, िजसम सावजिनक े का िव तार हआ और ितब ध म बढ़ो री
हइ। भारत म आगामी वष म जारी 1977,1980,1990 क नीितय म कु छ सुधारवादी कदम
अव य उठाये गये िक तु ये नाकाफ थे।
वष 1991 म देश को गं भीर आिथक सं कट से बाहर िनकालने के िलए सुधारवादी नवीन
आिथक नीितय को वीकार िकया गया। देश म मु ा का अवमूलन अपनाया गया। इसी िदशा
म आगे बढ़ते हए ी पी.वी. नरिस हाराव के नेतृ व वाली भारतीय सरकार के उ ोग रा यमं ी
पी.जे. कु रयन ने 24 जुलाइ 1991 म नवीन औ ोिगक एवं लाइसस नीित क घोषणा क जो
देश म या लाइसस ितब ध औ ोिगक िनय ण, नौकरशाही का ह त ेप के समापन और
औ ोिगक िवकास का उदारवादी माग श त करती है । 24 जुलाइ 1991 म जारी क गइ यह
नवीन औ ोिगक नीित िन: स देह भारतीय औ ोिगक िवकास रणनीित म एक मील का प थर
सािबत हइ है ।
27.4 नवीन औ ोिगक के मु ख उ े य:-
य िप प तौर पर औ ोिगक नीित म िकसी उ े य का जी नह िकया गया है, िक तु इस ताव
का अ ययन करने के प ात् कु छ सामा य बात िनकलकर बाहर आती है वे इसका अधार या
ल य तय करती है जैसे :-
(अ) भारतीय औ ोिगक े को िनयम से मु करना।
(ब) उ ोग को बाजार शि य के अधीन वतं छोड़ देना।
(स) उ पादन व उ पादकात म िनर तर वृि लाना।
(द) रोजगार के अवसर का िव तार करना।
(च) देश म उपल ध सं साधन का पूण व कु शलतम उपयोग।
(छ) औ ोिगक े म अ तरा ीय ित पधा मता को िवकिसत करना।
(ज) िव तर पर भारत क भागीदारी सुिनि त करना।
(झ) औ ोिगक िवकास के िलए नवीन वातावरण िनिमत करना।

402
24 जुलाइ 1991 म जारी क गइ इस नवीन औ ोिगक नीित म उदारीकरण क ओर अनेक
मह वपूण कदम उठाये गये, िजनका उ े य अथ यव था को बाजारो मुख बनाना व िवकास म िनिज
े क भागीदारी को बढ़ावा देना है । इस नवीन औ ोिगक नीित म िन न नीितगत उपाय िकये गये:
1- औ ोिगक लाइसे स नीित म उदारीकरण।
2- िवदेशी पूं जी िनवेश को ो साहन।
3- िवदेशी ौ ोिगक को ो साहन।
4- सावजिनक े के ित नीित।
5- एकािधरा मक एवं ितब धा मक यापार- यवहार अिधिनयम म (MRTP Act)
प रवतन।
6- अ य सुधार।
4-1 औ ोिगक लाइसस नीित म उदारीकरण :-
उ मकताओं को वतं वातावरण दान करने व िनवेश संबं धी िनणय लेने का अवसर दान
करने के उ े य से यह मह वपूण माना गया िक बदलती प रि थितय के अनुकूल यवसाियक
ि याओं म तेजी लाने के िलए तथा िनिज े को बढ़ावा देने के िलए अिनवाय औ ोिगक
लाइसे स यव था म िशिथलता बरती जायेगी। पूव म जहाँ 35 से यादा ेणीय म लाइसे स
क आव यकता होती थी उसे 1991 म घटाकर 18 कर िदया गया िजनम से 14 अ ैल 1993
म मोटरकार, चमड़ा, रे जरेटर, वािशं गमशीन व एयरक डीशनस पर से ितब ध हटाकर
सं या 15 कर दी गइ। वतमान म के वल 5 उ ोग ही ऐसे रह गये ह जहॉ लाइसे स क
अिनवायता बची हइ है ये िन न है :-
(अ) ए कोहल यु पेय िनमाण
(ब) त बाकू , िसगार, िसगरेट
(स) इले ोिन स, एयरो पेस तथा रखा उपकरण
(द) िडटोनेिटं ग यूज , से टी यूज , गन पाउडर, मािचस व औ ोिगक िव फोट
(च) खतरनाक रसायन
इनके अलावा सावजिनक े हेतु अब के वल तीन उ ोग ही आरि त रखे गये है । परमाणु
उजा, खिनज, रेल प रवहन।
4-2 िवदेशी पूं जी िनवेश को ो साहन :-
वष 1991 से पहले िवदेशी पूं जी भागीदारी 40 ितशत से अिधक नह हो सकती थी लेिकन
नइ नीित के अ तगत िवदेशी पूं जी के िनवेश क सीमा को बढ़ाकर 51 ितशत कर िदया गया।
बाद म कइ उ ोग म यह सीमा 51 ितशत से बढाकर 74 ितशत और वतमान म 100
ितश कर दी गइ है । नइ नीित म यह खुलापन भारतीय ितब ता व ढता का भी सूचक है ।
403
4.3 िवदेशी ौ ोिगक को ो साहन:-
इस नीित म उ च ाथिमकता ा 35 उ ोग के िलए िवदेशी तकनीक के समझौते के वत:
अनुमोदन का ावधान िकया गया। यह भी प िकया गया िक िवदेशी ौ ोिगक को रॉय टी
दी जायेगी।
ौ ोिगक समझौते के तहत घरेलू िब पर 5 ितशत रॉय टी तथा िनयात िब पर 8
ितशत रॉय टी तथा एकमु त 1 करोड़ तक का टै नोलॉजी भुगतान िकया जा सके गा लेिकन
कु ल भुगतान समझौते क तारीख से 10 वष क अविध म िब का 8 ितश से यादा नह
होना चािहए।
4.4 सावजिनक े के ित नीित:-
1991 से पहले 1956 म पेश क गइ औ ोिगक नीित म सावजिनक े का अिधक िव तार व
मह व िदया िजसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है िक 1991 से पूव 17 उ ोग
सावजिनक े के िलए आरि त िकये गये थे िजनक सं या 1991 म घटकर 8 कर दी गइ।
बाद म पॉच और उ ोग को इस ेणी से हटा िलया गया वतमान म के वल 3 उ ोग ही
सावजिनक े के िलए आरि त िकये गये ह।
इस नवीन नीित म सावजिनक े को िनिज े से ित पधा के जीिवतरखने लायक बनाने का
भी ल य िलया गया। ऐसी इकाइयॉ िजनका सं चलन महज बोझ बन चुका ह। उनके सरकारी
िह से का एक अंश यूचअल फ ड िवि य सं थाओं उ ोग व आम जनता म बेचा जायेगा
तािक सावजिनक े के सं थान के िलए साधन जुटाये जा सक। ग भीर प से ण इकाइय
के िलए औ ोिगक एवं िवि य पुनिनमाण बोड से सलाह लेना तथा ऐसी इकाइयॉ ं जो पुन :
व थ नह हो सकती उ ह ब द करने का िनणय िलया गया। इस कार इस नीित म यह प
िकया गया िक अब सावजिनक इकाइय के बोझ को और नह सहन िकया जायेगा।
4.5 MRTP Act म सं शोधन:-
इस अिधिनयम को वष 1970 म बनाया गया था। नइ नीित के तहत अब क पनीय क
प रस पि सीमा जो पहले 100 करोड़ पये थी को समा कर िदया गया है । अब नइ इकाइय
क थापना, िव तार िवलयन, समामेलन तथा अिध हण आिद के िलए तथा िनदेशको क
िनयुि के िलए के ीय सरकार से पूव अनुमित क आव यकता नह है । इस कानून ल य अब
उ ोग क इकाइय को िनयंि त करने के बजाय ितब धा मक नीितय को िन सािहत करना
है । इसका उ े य ये था िक िजतने भी भु व स प न औ ोिगक घराने एकािधकारी उ ोग है

404
उ ह िन सािहत िकया जाये और प िकया गया िक यिद उ ोग म सुधार अथवा िव तार
करना है तो इसके िलए सरकार क अनुमित लेनी होगी।

4.6 अ य सु धार:-
आयात शु को म कटौती, पूं जी लाभ पर रयायत, िव तु उ पादन करने के िलए पॉच वष तक
कर छू ट, 2 लाख पये तक क उधा रय के िलए यूनतम याज दर सीमा समा , ण
इकाइय के िलए 1985 के Sick Industrial Companies Act के सं शोधन आिद।
27.5. नवीन औ ोिगक नीित क मु ख बात:-
24 जुलाइ 1991 म जारी नवीन औ ोिगक नीित क मुख बात िन न रही:-
(1) प रयोजनाओं को लाइसे स से छू ट
(2) िवदेशी य िनवेश को 40 ितशत से बढाना
(3) सावजिनक उप म म सरकारी िह सेदारी कम करना
(4) ण इकाइय को औ ोिगक एवं पुनिनमाण िनगम को स पना
(5) MRTP Act क अिधकतम प रस प ी सीमा क समाि
(6) सावजिनक े के िलए आरि त उ ोग क सं या म किम
(7) अिनवाय लाइसे स का सं कुचन
(8) वतमान म जारी रिज ेशन योजना क समा
(9) िवि य सं थान ारा जारी ऋण को इि वटी म बदलने क छू ट
(10) िवदेशी तकनीक पर रॉय टी का ावधान
(11) िवदेशी मु ा िनय ण म प रवतन
(12) शत ितशत िनयात मुखी इकाइय को शु क िबना मशीनरी, क चा माल, पुज व
उपभोग साम ी ाि क छू ट।
(13) िनयात के FOB माल के 50 ितशत भाग क िब देश म क जा सकती है ।
27.6. नवीन औ ोिगक नीित के सकारा मक पहलू:-
24 जुलाइ 1991 म जारी उदारीकरण क इस नवीन औ ोिगक नीित का चतुिदक वागत हआ
है । िफ क , एसौचैम, चै बर ऑफ कॉमस ए.आइ.एम.ओ. सभी ने इसको सराहा है । नवीन
औ ोिगक नीित भावी औ ोिगक करण के िलए उपयु एवं साथक िस होगी। उ पादन को

405
बढ़ावा िमलेगा, िनवेश व ौ ोिगक िव ान सकारा मक पहलूओ ं को िन न कार बतलाया
जा सकता है :-
6.1 उदारीकरण को समिपत इस नीित म लाइसे स नीित MRTP Act व िवदेश नीित म हए
सं शोधन से समय क बचत होगी िजसे उ पादक य काय म लगाया जा सके गा।
6.2 सावजिनक े के िलए आरि त उ ोगो क सं या क सीिमतता िनिज े को पनपने का
उिचत अवसर देगा।
6.3 इससे सावजिनक े के उ ोग क कु शलता म अिभवृि होगी।
6.4 िवदेशी िनवेश व ौ ोिगक का ह ता तरण उ पादन एवं उ पादकता पर सकारा मक भाव
डालेगा।
6.5 MRTP Act म सं शोधन अनुिचत यापार िविधय को रोकने तथा ित पधा िनमाण म
सहायक होगा।
6.6 िवदेशी िनवेश व खुलेपन से उ ोग क थापना और उनका िव तार आसान होगा।
6.8 भारतीय अथ यव था का िव अथ यव था के साथ जुडाव सं भव होगा।
6.9 े ीय असमानता म किम आयेगी।
6.10 िवदेशी उप म क थापना का माग श त
27.7. नवीन औ ोिगक नीित का नकारा मक पहलू:-
नवीन औ ोिगक नीित के स दभ म कु छ िव ान िवरोधाभासी तक तुत करते ह जो िन न ह :-
(1) िवदेशी िनवेश को अिधक ो साहन देशी िनवेश के िलए चुनौती
(2) सावजिनक े के उप म के ो साहन के बजाय हतो साहन
(3) बहरा ी क पनीय का सकारा मक योगदान िवचारणीय?
(4) िवदेशी िविनमय का अिधक बिहगमन
(5) लघु व कु टीर उ ोग के अि त व पर सं कट
(6) बेरोजगारी व गरीबी क सम या को बढ़ोतरी
(7) यवसाियक उपिनवेशवाद क ओर बढ़ता भारत
27.8. सारांश:-
येक प रवतन अवसर व चुनौितय का िम ाण होता है । नइ औ ािगक नीित के ारि भक झटके
िनि त तौर पर बहत ग भीर और आ मघाती नज़र आये, लेिकन समय के साथ-साथ भारतीय
उ ोग जगत ने यह िस कर िदया क वह हर चुनौती को उपलि ध म बदलने का हनर रखता है ।

406
इस चुनौती को वीकार करने का ही प रणाम है िक भारत आज िव क सबसे तेज बढ़ती
अथ यव थाओं म शािमल है । कभी िवदेशी बहरा ीय िनगम के नाम से कांप जाने वाला
िह दु तान का उ ोग जगत एक िवशाल वट वृ का प ले चुका है, िजसक शाखाएं आज िव के
कोने-कोने म फै ली हइ है और अपने अि त व और मता का बोध कराती है ।

279. बोध :-
(1) नवीन औ ोिगक नीित के या उ े य ह?
(2) 24 जुलाइ 1991 को जारी औ ोिगक नीित क मुख बात या है?
(3) 1991 क नवीन नीित क रणनीित का िव तार से िव ेषण क िजए?
(4) नवीन औ ोिगक नीित के सकारा मक व नकारा मक पहलूओ ं का िव ेषण
क िजए ।
(5) औ ोिगक लाइसिसं ग नीित से आप या समझते ह? इस स दभ म MRTP Act का
िववेचन क िजए।
27.10. स दभ:-
1- भारतीय अथ यव था - िम एवं पुरी
2- भारतीय अथ यव था - द एवं सु दरम
3- भारतीय अथ यव था - बी.एल. ओझा
4- भारतीय अथ यव था िववेचन - रमेश िसं ह
5- भारतीय अथ यव था िववेचन - लाल एवं लाल
6- India un bound- Gurcharan Singh
7- India Economy- Uma Kapila
8- Hand book of Statistics on the Indian economy 2015-16

407
इकाइ 28
लघु एवं कु टीर उ ोग का मह व व सम याएँ
इकाइ परेखा
28.1 उेय
27.2 तावना
28.3 अथ एवं प रभाषा
28.4 लघु व कु टीर उ ोग म अ तर
28.5 लघु व कु टीर उ ोग का वग करण
28.6 भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग का मह व
28.7 लघु व कु टीर उ ोग क सम याएँ
28.8 सारां श
28.9 बोध
28.10 श दावली
28.11 स दभ
28.1उ े य:-
इस इकाइ के अ ययन का उ े य है िक हम इकाइ के अ ययन के प ात्
 लघु व कु टीर उ ोग का अथ व प रभाषा जान सक।
 लघु व कु टीर उ ोग का वग करण व उनम अ तर को जान सक।
 लघु व कु टीर उ ोग का अथ यव था म या मह व है ?
 वतमान प रि थितय म वयं को जीिवतरख पाने म इ ह िकन चुनौितय का
सामना करना पड़ रहा है ।
28.2 तावना:-
िकसी भी देश के वा तिवक िवकास के िलए यह आव यक है िक उसक आिथक णाली के
सम त आयाम का िवकास हो। िकसी भी देश के िवकास के इन िविभ न पायदान का मु य आधार
उस देश क औ ोिगक कु शलता या औ ोिगक िवकास है । औ ोिगक सं रचना का एकप ीय
िवचार िनि त ही प रणाम क शु ता को सुिनि त नह कर पाता है । अत: औ ोिगक सं रचना के
408
एक िव तृत (बडे) पहलू वृहद उ ोग अव य ह िक तु लघु व कु टीर उ ोग के मह व को कम करके
नह आंका जा सकता है िवशेष तौर पर ऐसे देश म जहाँ उ च तकनीक, पूं जी का अभाव व म क
असीिमत पूित िव मान है ।
पा ा य देश म छोटे पैमाने पर पाया जाने वाला उ पादन संगठन बड़े पैमाने के उ पादन सं गठन का
पूरक होता है यािन वह पूं जीवादी तौर पर सं गिठत होता है । भारत जैसे िवकासशील देश म लघु व
कु टीर उ ोग पूं जीवादी तौर पर इतने सश और सं गिठत नह होते ह। सामािजक आिथक
प रि थितयाँ िजनम म क असीिमता, िन न तकनीक, पूं जी का अभाव, कृ िष धनता आिद ने लघु
व कु टीर उ ोग को पनपने का एक उ म वातावरण िदया है । यही कारण रहा िक ारि भक
समयाविध म भारत म लघु व कु टीर उ ोग का िव तार बहत ती गित से हआ िक तु ि िटश काल
से इनका पतन होना ार भ हो गया जैसा ो. सी.आर. दास िलखते ह ‘‘अठारहव शता दी म भारत
एक बहत बड़ा खेितहर और औ ोिगक देश था िजसका अं ेजो क वाथपरायणता ने मिटयामेट
कर िदया।’’
वतं ता ाि के प ात् इस िदशा म पुन : यास शु िकये गये िक तु सं गठन क लचर ि थित व
वैि क ित प ा के दौर म लघु व कु टीर उ ोग वयं को जीिवतरख पाने म अ म नज़र आ रहे ह।
28.3 अथ एवं प रभाषा
कु टीर उ ोग का आशय उन उ ोग-ध ध से है जो एक ही प रवार के सद य क सहायता से एक
ही छत के नीचे पूणकािलक या अंशकािलक तौर पर सं चािलत िकये जाते ह, इनम पूं जी िनवेश नाम
मा का पाया जाता है तथा उ पादन भी ाय: हाथ से ही िकया जाता है ।
लघु व कु टीर उ ोग के स ब ध म िकसी िनि त व मािणक प रभाषा का िदया जाना सं भव नह है
य िक समय और प रि थितय के अनुसार इ ह प रभािषत करने के आधार म प रवतन आया है ।
राजकोषीय आयोग के अनुसार लघु उ ोग वह ह। िजसम मु यत: 10 से 15 लोग कायरत रहते ह।
इसम वे सब इकाइ व सं थान शािमल ह िजनम पांच लाख पए से कम पूं जी लगी हइ होती है ।
वतमान समय म लघु उ ोग को प रभािषत करने के िलए िमको क सं या के िवचार को यागकर
के वल िविनयोिजत पूं जी पर यान िदया जाने लगा है । वष 1980 म जहाँ िविनयोजन क सीमा
मश: 20 लाख व 25 लाख पए थी वष 1990 म 60 लाख पए व 75 लाख पए हो गइ।
वह अ य त लघु के समब ध म ये सीमाएँ 1980 म 1 लाख पए 1985 म 2 लाख पए थी जो
1990 म बढ़ाकर 5 लाख पए कर दी गइ।
1 माच 1991 को लघु उ ोग म पूँजी िनवेश सीमा 60 लाख पये व 75 लाख पए से बढ़ाकर 3
करोड़ पए तथा अ य त लघु इकाइय के स ब ध म 5 लाख पए से बढ़ाकर 25 लाख पए कर
दी गइ। के ीय मं ी म डल ने पुन : 17 फरवरी 1999 म संशोधन करते हए लॉ ट व मशीनरी म
िनवेश क सीमा को घटाकर मश: 3 करोड़ पए व 1 करोड़ पए कर िदया गया जबिक अित
लघु इकाइय क िनवेश सीमा पूववत 25 लाख पए ही रखी गइ।
409
28.4. लघु व कु टीर उ ोग म अ तर:
- सामा य तौर पर लघु व कु टीर उ ोग को एक ही मान िलया जाता है िक तु इनम पाये जाने वाले
अ तर को िन न आधार पर प िकया जा सकता है:-
4.1 सं चालन के आधार पर:-कु टीर उ ोग का सं चालन एक ही प रवार के सद य ारा अपने
घर म िकया जाता है जबिक उघु उ ोग का सं चालन वेतन भोगी िमको ारा िकया जाता
है ।
4.2 यां ि क योग: - कु टीर उ ोग म यं का योग यून व सीिमत होता है जबिक लघु
उ ोग म पूं जी व मशीनरी का योग अिधक होता है ।
4.3 पूं जी उपयोग:- कु टीर उ ोग म पूं जी व िविनयोजन नाममा का होता है जबिक लघु
उ ोग म अपे ाकृ त अिधक पूं जी लगाइ जाती हे।
4.4 उ पादन िविध:- कु टीर उ ोग म ाय: पर परागत िविधय ( म धान तकनीक) से
पर परागत व तुओ ं का उ पादन िकया जाता है जबिक लघु उ ोग म यां ि क तकनीक
(पूं जी धान तकनीक) यािन मशीनरी का योग िकया जाता है ।
4.5 बाजार के आधार पर: - कु टीर उ ोग का बाजार सीिमत होता है ये सामा यत: थानीय
बाजार क मां ग क पूित कर पाने म स म होते ह। जबिक लघु उ ोग अपे ाकृ त यापक
बाजार मां ग क पूित कर पाते ह।
5. लघु व कु टीर उ ोग का वग करण:- पर परागत तौर पर लघु व कु टीर उ ोग को दो वग म
िवभािजत िकया जाता है - (अ) ामीण कु टीर उ ोग (ब) शहरी कु टीर उ ोग
(अ) ामीण कु टीर उ ोग:- इनम सामा यत: पशुपालन, करघे का काम मधुमि ख पालन,
मछली पालन, टोकरी बनाना, चमड़ा बनाना, तेल घाणी, बतन बनाना आिद शािमल ह।
(ब) शहरी कु टीर उ ोग:- ये वे ह जो शहरी े म थािपत िकये गये ह जैस-े िखलौना बनाना,
कपड़ा बनाना, फन चर, साबुन बनाना, हथकरघा, रं गाइ छपाइ आिद।
छोटे लघु व म यम उ म िवकास अिधिनयम 2006 के अनुसार इन उ ोग को दो वग म िवभािजत
िकया गया है :-
(1) िविनमाण उ म (2) सेवा उ म
2006 का यह अिधिनयम इन दो मुख वग को सं यं व मशीनरी म िनवेश तथा उप कर के आधार
पर तीन उप वग -छोटे-लघु व म यम (मझले) म िवभािजत करता है ।
5.1 िविनमाण उ ोग:
अ. छोटे उ म - 25 लाख पए तक का िनवेश

410
ब. लघु उ म - 25 लाख पए से 5 करोड़ पए तक िनवेश
स. मझले उ म - 5 करोड़ से 10 करोड़ पए तक िनवेश
5.2 सेवा उ ोग:
अ. छोटे उ म - 10 लाख पए तक का िनवेश
ब. लघु उ म - 10 लाख पए से 2 करोड़ पए तक िनवेश
स. मझले उ म - 2 करोड़ से 5 करोड़ पए तक िनवेश
28.6. भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग का मह व
भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग का मह वपूण थान है । भारत जैसे िवकासशील देश
ने जहॉ पूं जी का अभाव गरीबी, बेरोजगारी, अ प तकनीक ान का यापक िव तार हो वहॉ लघु व
कु टीर उ ोग आिथक, सामािजक तथा राजनैितक सभी ि कोण से औ ोिगक िवकास भी
आधारिशला है । भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग के मह व व आव यकता का
अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है िक लघु उ ोग भारत क मताओं और िवकास क
नवीन ि थितय का माग श त करने का मा यम है िजसम लाख लोग क उ पादन मता का
योग िकया जा सकता है । भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग के मह व को मोरारजी
देसाइ के श द प करते ह। ‘‘ऐसे उ ोग से ामीण लोग को जो अिधकां श समय बेरोजगार रहते
ह पूण अथवा आंिशक रोजगार ा होता है ।’’
भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग के मह व को िव तार से िन न कार प िकया जा
सकता है :-

तािलका-I लघु उ ोग का िन पादन


वष इकाइयॉ (लाख म) उ पादन रोजगार िनयित
(करोड़ . म) (लाख म) (करोड़
.म)
पं जीकृ अपं जीकृ कु ल चलू 1993.94
त त क मत पर के मू य पर

1995-1996 11.57 71.27 82.84 147772 121175 197.93 36470


1999-2000 12.32 84.83 97.15 233760 170379 229.10 54200
2000-2001 13.10 88.00 101.10 161297 184401 239.09 69797

411
2001-2002 13.75 91.46 105.21 282270 195613 249.09 71244
2002-2003 14.68 95.42 109.49 314850 306771 260.21 86013
2003-2004 15.54 98.41 113.95 364547 336344 282.57 97644
2004-2005 16.57 102.02 118.59 429796 372938 299.35 124417
2005-2006 18.70 104.70 123.40 497842 418884 322.28 177600
2007-2008 - - 271.79 790750 532979 626.34 182536
2008-2009 - - 285.16 880305 - 659.35 202017
2009-2010 - - 298.08 982919 - 659.38 -

ोत : आिथक समी ा (2007-08), 2014-15, 2015-16


6.1 कम पूं जी व अिधक उ पादन :-भारतीय अथ यव था एक िवकासशील अथ यव था है
जहाँ पूं जी का िनता त अभाव है । देश क इन प रि थितय म लघु व कु टीर उ ोग म थोडी पूं जी
लगाकर ही आय, उ पादन व रोजगार म वृि सं भव है । वष 1995-96 म जहॉ 82.84 लाख
इकाइयॉ थी िजनका उ पादन 1,47,712 करोड़ पए था वष 2000-01 म बढ़कर मश : 101.10
लाख इकाइ उ पादन 161297 करोड़ पए हो गया। औ ोिगक उ पादन म लघु व कु टीर उ ोग
का िह सा वष 2009-10 म बढ़कर 982919 करोड़ पए व इकाइय क सं या बढ़कर 298.08
लाख हो गइ थी।
6.2 रोजगार अवसर का सृजन:- लघु व कु टीर उ ोग रोजगार के मुख ोत ह। िजनके
िवकास से अ बेरोजगारी व पूण बेरोजगारी का िनदान स भव है । वष 1951 म लघु व कु टीर
उ ोग म 61.4 लाख लोग को रोजगार ा था वह वष 1995-96 म बढ़कर 197.93 लाख व
2001 म 239.09 लाख हो गया। लघु व कु टीर उ ोग े म रोजगार पर सकारा मक भाव पड़ा
और वष 2009-10 म 695.38 लाख होग य व अ य तौर पर इन उ ोग म रोजगार ा
थे।
6.3 िनयात म योगदान:- वतं ता ाि के प ात् बड़े पैमाने पर लघु उ ोग क थापना के
कारण िनयात म इनका योगदान लगातार बढ़ता जा रहा है । लघु व कु टीर उ ोग का कु ल िनयात
वष 1995-96 म 36,470 करोड़ पए था जो 2000-01 म 69,979 करोड़ हो गया। वष
2008-09 म यह बढ़कर 202017 करोड़ पए हो गया है ।
6.4 िवदेशी मु ा का अजन:-लघु व कु टीर उ ोग म िनिमत उ पाद अब देश के थानीय
बाजार से वैि क े तक पहंचने लगे ह िजससे िवदेशी मु ा का अजन बढ़ा है और देश को िवदेशी

412
िविनमय सं कट से लड़ने म सहायता िमिल है । वतमान म भारत म कु ल िनयात म लघु व कु टीर
उ ोग का िह सा लगभग 35 ितशत है ।
6.5 रा ीय आय का बेहतर आवं टन (िवतरण) :- लघु व कु टीर उ ोग का आिथक णाली
म मह व इस प म बढ़ जाता है िक इनक सहायता से रा ीय आय का अिधक बेहतर व
यायोिचत िवतरण हो सकता है । लघु व कु टीर उ ोग ारा रा ीय आय का िववरण दो प म हो
सकता है-पहला लघु उ ोग का वािम व बड़े उ ोग क तुलना म अिधक यापक व िव तृत है
तथा दूसरा लघु व कु टीर उ ोग म रोजगार सृजन क मता भी वृहद उ ोग से अिधक होती है ।
इन उ ोग म िमक शोषण का ना पाया जाना रा ीय आय का अिधक समान िववरण आसान
बनाता है ।
6.6 उ ोग के िवके ीकरण म सहायक:- कु टीर व लघु उ ोग से देश म उ ोग के
िवके ीकरण म सहायता ा होती है । बड़े उ ोग क थानीय तर पर थापना इतना आसान नह
हेाता िक तु लघु व कु टीर उ ोग को गां व व क ब म आसानी से थािपत िकया जा सकता है ।
उ ोग के िवके ीकरण म दो मुख लाभ है-पहला थानीय ितभा व साधन का कु शलतम
उपयोग, दूसरा औ ोिगक देश क असमानता का समाधान’’
6.7 थानीय पूं जी व साधन का कु शलतम उपयोग:- िकसी भी देश म िविभ न सं साधन
ऐसे होते ह िजनक मां ग बड़े तर के उ ोग ारा लगभग शू य होती हे। िक तु लघु उ ोग का
कु शलतम योग िकया जाना सं भव हो पाता है ।
6.8 औ ोिगक िववाद से मु ि :- बड़े पैमाने के उ ोग म पूं जी व म साधन के सं घष के
कारण घेराव, तालाब दी, हड़ताल जैसी घटनाए आम होती जा रही है । लघु व कु टीर उ ोग म
िमको क सीिमत सं या व यि गत सं गठन तथा ब धन का पाया जाना पार प रक स ावना
का िनमाण करती है और औ ोिगक िववाद व म सं घष क सं भावना को कम करती है ।
6.9 पर परागत व कला मक उ ोग को सं र ण:- लघु व कु टीर उ ोग पर परागत एवं
कला मक व तुओ ं के उ पादन को सं र ण दान करते ह। इन उ ोग के ामीण व पर परागत े
को सं र ण के साथ-साथ िनयात के मा यम से िवदेशी मु ा का अजन भी सं भव हआ है ।
28.6.10 असामा य परि थितय म आिथक सु र ा:-
वै ीकरण के दौर म जहाँ बहरा ीय िनगम का जाल िबछा हआ है और हर देश दूसरे से गहरे तौर
पर जुड़ा हआ है । ऐसी प रि थितय म वैि क तर पर उ प न होने वाले आिथक उतार-चढाव का
भाव सभी देश पर पड़ता है । इन असामा य प रि थितय म देश क आिथक सु ढता को बनाये
रखने म लघु व कु टीर उ ोग अपना मह वपूण योगदान दान करते ह।
7- लघु व कु टीर उ ोग क सम याएँ :-भारतीय अथ यव था म लघु व कु टीर उ ोग का
अ यिधक मह व है । य िप लघु व कु टीर के िवकास के िलए सरकार ारा पं चवष य
योजनाओं के मा यम से अनेक कदम उठाये गये ह पर इन उ ोग को कइ ऐसी सम याओं का
413
सामना करना पड़ता है िजनके प रणाम व प या तो ये इकाइयॉ णता जैसी ि थित म पहच
जाती ह या िफर ब द हो जाती है । लघु इकाइय क णता का तर िकतना यापक है इस
बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है िक माच 2001 के अ त तक लगभग 2.5 लाख
इकाइयॉ ण ि थित म थी िजनम बक का 4506 करोड़ पये फं सा हआ था। लघु व कु टीर
उ ोग क इन िविभ न सम याए िन निलिखत है :-
7-1 िव व साख क सम या :- वतं ता ाि के प ात् य िप सरकारी यास से इन े
म िव क समुिचत यव था का यास िकया गया है िक तु आज भी पूं जी व साख का
अभाव लघु व कु टीर उ ोग क धान सम या बनी हइ है । लघु इकाइय का पूं जी आधार
कमजोर होने का कारण सं गठन व साझेदारी म एकाक वािम व का पाया जाना है जो
आसान ऋण उपल धता को सुिनि त नह कर पाते ह।
7-2 क चे माल क सम या :- लघु व कु टीर उ ोग के सम िव मान सबसे पहली सम या
क चे माल क उपल धता क है जो इ ह उिचत समय और उिचत मू य पर नह िमल
पाता है । साधन क सिमतता के कारण ये पया क चा माल य नह करपाते य िक
कम मा ा म य िकये जाने के कारण इ ह अिधक क मत चुकानी पड़ती है । बड़े उ ोग से
ित प ा होने के कारण उ ह उ नत िक म का क चा माल भी बाजार म नह िमल पाता है
। क चे माल क आपूित हेतू थानीय बाजार पर अ यिधक िनभरता पायी जाती है ।
7-3 तकनीक सम या :- अिधकां श लघु इकाइयॉ पुराने यं व तकनीक का इ तेमाल करती
है िजसम उनके उ पािदत माल क वािलटी भी घिटया होती है । तकनीिक सु ढ़ता के
अभाव म ये इकाइयॉ बाजार के बदलाव िच, फै शन इ यािद के साथ शी सामंज य नह
बैठा पाती ह। िश ा का अभाव िव क किठनाइ तथा सीिमत बाजार के कारण उ पादन
क पर परागत तकनीक पर िनभरता कनी हइ है ।
7-4 िवपणन क सम या :-लघु व कु टीर उ ोग क िवपणन क सम या अ य त मह वपूण
है । लघु उ ोग के पास िवपणन हेतु कोइ सं गठन नह पाया जाता है जो बाजार म िनिमत
उ पाद को बेचने म सहायता या मदद कर सके । लघु इकाइय ारा मानक व तुओ ं का भी
उ पादन नह िकया जाता है इसिलए उनका माल बड़ी इकाइय क तुलना म सहज ही नह
िबक पाता है । य िप सरकार ारा इ ह ित पधा के वातावरण मे सं रि त करने के िलए
अनेक व तुओ ं का उ पादन लघु े के िलए आरि त कर िदया गया है ।
7-5 अ व थता ( णता) क सम या :- लघु व कु टीर उ ोग क मुख सम या
अ व थता ( णता) क है । लघु इकाइय के स दभ म णता के दो प ह- (अ) ऐसी
इकाइयाँ िजनका पुन : सं चालन सं भव नह है । (ब) ऐसी इकाइयॉ िजनका पुन : सं चालन
सं भव है िक तु िवि य सं साधन क अपया ता मु य सम या है । देश म 31 माच 2003
तक, 1,67,980 गण इकाइयॉ थी िजनम बिकं ग े का 5706 करोड़ फं सा हआ था
िजनम से 1,62,791 इकाइय को पूनिजिव कर पाना सं भव नह है िजसम 4569 करोड़
पए फं सा हआ है ।
414
7-6 उ पादन का सीिमत े :-लघु उ ोग क िविवध सम याओं का कारण व इनके
उ पादन े का सीिमत पाया जाना है, जहॉ पहले कला मक व पर परागत उ पाद के
िलए उ च मू य आसानी म िमल जाता था अब वह उतना आसान नह रहा है ।
7-7 िमको क अकु शलता :- लघु व कु टीर उ ोग क एक बड़ी सम या कारीगर क
अिश ा व उनका तकनीक तर बहत नीचा पाया जाना है । नवीन उ पादन िविधय के
ित इनका रवैया उदासीनतापूण रहता है । यह तकनीक लोचहीनता इनके िपछडेपन का
मुख कारक है ।
7-8 मापीकरण का अभाव :-इन उ ोग ारा िनिमत माल िकसी िनि त माप(मानक)
िलए नह होती अत: ये ना तो बाजार म अपनी मां ग मजबूत कर पाते ह ओर ना ही इ ह
अपने उ पाद का उिचत मू य िमल पाता है ।
7-9 िव तु शि क कमी :- कु टीर व लघु उ ोग क एक मु य सम या शि साधन क
किम का पाया जाना है । इन उ ोग को उिचत मा ा म व स ती दर पर िव तु शि नह
िमल पाने के कारण म ठीक से उ पादन नह कर पाते ह।
7-10 बडे उ ोग से ित प ा :- बड़े उ ोग ारा िनिमत माल अपे ाकृ त स ता, अ छी
िक म का और आकषक होता है, बड़े पैमाने के उ ोग उ पादन क आधुिनक िविधय का
योग तो करते ही ह साथ ही वे िवपणन आिद म भी कु शल होते ह िजसके कारण लघु व
कु टीर उ ोग ितयोिगता म नह िटक पाते ह।
7-11 सू चनाओं का अभाव :- इन उ ोग का सं गठन इतना सश नह होता है यही कारण है
िक इ हे बाजार, उ पादन व िवपणन के स दभ म उिचत व मािणक सूचनाएँ नह िमल
पाती है ।
28.8. सारांश:-
लघु व कु टीर उ ोग के स ब ध म िविभ न प का प रचय ा कर लेने के बाद सारां श के तौर पर
हम यह कह सकते ह िक यह भारतीय अथ यव था का एक बड़ा िह सा िजसने देश को िवकास क
नइ िदशा दान क तथा एक ल बे समय तक वैि क तर पर भारत क पहचान को िनिमत करने म
अपना मह वपूण योगदान िदया। ारि भक उ थान के दौर के बाद गुलामी क जं जीर ने जकड़े
िह दु तान का सबसे सश पहलू लघु व कु टीर उ ोग लगातार िवरोधी नीितय के कारण व त
होता चला गया। वतं ता ाि के प ात् इसे पुन : जीिवतकरने का साथक यास िविभ न पं चवष य
योजनाओं के मा यय से िकया गया। िक तु िजस सहारे व सं र ण का यह े वा तव म हकदार था
इसे इतना नह िमल पाया और ल बे समय बाद भी वह सम याय जस क तस बनी हइ है ।

415
28.9. बोध :-
1- लघु व कु टीर उ ोग िकसे कहते ह ?
2- लघु व कु टीर उ ोग म अ तर को बतलाइए ?
3- लघु व कु टीर उ ोग का भारतीय अथ यव था म मह व को प क िजए?
4- लघु व कु टीर उ ोग को िकन मुख सम याओं का सामना करना पड़ता है िव तार से
समझाइए ?
28.10. श दावली:-
1- म धान तकनीक :- वह तकनीक िजसम म का अपे ाकृ त अिधक योग होता है ।
2- पूं जी धान तकनीक :- वह तकनीक िजम पूं जी का अपे ाकृ त अिधक योग होता है ।
3- मापीकरण : िकसी व तु या उ पाद क गुणव ा को दिशत करने का आधार।
4- िविनयोग : िकसी आिथक ि या म पूं जी या साधन के लगाकर नवीन ि या का सृजन
करना।
28.11. स दभ
1- आिथक समी ा 2015-16
2- Hand book of Statistics on the Indian economy 2015-16
3- भारतीय अथ यव था द त एवं सु दरम
4- भारतीय अथ यव था िम एवं पुरी
5- भारतीय अथ यव था िववेचन रमेश िसं ह
6- India un bound- Gurcharan Singh
7- Indian Economy – Uma Kapila

416
इकाई 29
नवीन आिथक नीित : एक िव े षण
इकाई क परेखा
29.0 उ े य
29.1 तावना
29.2 पृ भूिम
29.3 भारत म आिथक सुधार
29.3.1 थािय वकारी उपाय / समि आिथक ि थरीकरण
29.3.2 सं रचना मक /ढाँचागत सुधार
29.4 उदारीकरण
29.5 िनजीकरण
29.6 वै ीकरण
29.7 आिथक सुधार का मू यां कन
29.8 आिथक सुधार क सीमाएँ
29.9 ि तीय चरण के आिथक सुधार
29.10 आिथक सुधार क भावी िदशा
29.11 सारां श
29.0 उ े य
 इस इकाई के अ ययन के बाद आप समझ सकगे िक नवीन आिथक नीित या है ? और
इसे िकन प रि थितय म अपनाया गया ।
 भारत के िवकास म नवीन आिथक नीित कहाँ तक सफल रही है इसके बारे म जानकारी
ा कर सकगे ।
29.1 तावना
वतं ता के प ात भारत म िमि त अथ यव था के ढाँचे को अपनाना । इसम बाजार
अथ यव था क िवशेषताओं के साथ-साथ िनयोिजत अथ यव था क िवशेषताएं थी । कु छ
िव ान का मत है िक इस अविध म इतने अिधक िनयम कानून बनाये गए िक उनसे आिथक संविृ
और िवकास क समुिचत ि या ही अव हो गई । वष 1981 म भारत को िवदेशी ऋण के
मामले म भारी संकट का सामना करना पड़ा । सरकार अपने िवदेशी ऋण के भुगतान करने क
ि थित म नह थी । पे ोल एवं र ा उपकरण आिद आव यक व तुओ ं के आयात के िलए सामा य
प से रखा गया िवदेशी मु ा रजव मा प ह िदन के िलए आव यक आयात का भुगतान करने
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यो य भी नह बचा था । इस सं कट को आव यक व तुओ ं क क मत म वृि ने और भी गहन बना
िदया था । इन सभी कारण से सरकार ने कु छ नई नीितय को अपनाया और इसने हमारी िवकास
रणनीितयो क स पूण िदशा को ही बदल िदया । इस आिथक सं कट का समाधान करने के िलए
िजस िवकास युि को चुना गया उसे ही नवीन आिथक नीित कहा गया ।
29.2 पृ भू िम
उपरो उ लेिखत आिथक सं कट का वा तिवक उ म ोत 1980 के दशक म
अथ यव था म अकु शल बं धन के कारण था । सामा य शासन चलने और आपनी िविभ न
नीितय के ि यां वयन के िलए सरकार कर और सावजिनक उ म आिद मा यम से फं ड जुटाती है ।
जब यय आय से अिधक हो तो सरकार बक जनसामा य तथा अ तरा ीय िव ीय सं थान से
उधार लेने को बा य हो जाती है इस कार वह आपने घाटे का िव ीय बंध कर लेती है । क चे
तेल तथा र ा उपकरण आिद के आयात के िलए हम डॉलरो म भुगतान करना होता है और ये
डॉलर हम अपने उ पादन के िनयात तथा वासी भारतीय ारा अिजत िवदेशी मु ा से ा करते है ।
वतं ता से 1990 तक क अविध के म य िवशेष प से जनसं या िव फोट क अविध (1971 व
बाद म ) म सरकार क िवकास नीितय क आव यकता रही य िक राज व कम होने पर भी
बेरोजगारी, िनधनता और जनसँ या िव फोट के कारण सरकार को अपने राज व से अिधक खचा
करना पड़ा ।यही नह सरकार ारा चलाए जा रहे काय म पर होने वाले यय के कारण अित र
क ाि भी नह हई । जब सरकार को ितर ा और सामािजक े पर अपने सं साधन का एक
बड़ा अंश खच करना पड़ रहा था और यह प था िक इन े से िकसी भी ितफल क
स भावना नह थी । बढते हए खच क पूित के िलए कई बार तो अ तरा ीय सं थान तथा अ य
देश से उधार ली गई िवदेशी मु ा को उपभोग काय पर ही खच करने िदया गया । इस कार के
अनाव यक खच को िनयं ि त करने का न तो कोई यास िकया गया , न ही िनरं तर बढते आयात के
िलए ित थापन या िव जुटाने क यव था पर कोई यान िदया गया ।
1980 के दशक के अंत तक सरकार का यय, उसके राज व से इतना अिधक हो गया क
उसे धारण मता से अिधक माना जाने लगा । अनेक आव यक व तुओ ं क क मते तेजी से बढने
लगी । आयात क वृि इतनी ती रही िक िनयात क संविृ से कोई तालमेल नह हो पा रहा था ।
जैसा क पहले प िकया जा चुका है िक िवदेशी मु ा के सुरि त भ डार इतने ीण हो गए थे िक
दो स ाह क आयात आव यकताओं को भी पूरा नह कर पाते थे । अ तरा ीय ऋणदाताओं क
याज चुकाने के िलए भारत सरकार के पास पया िवदेशी मु ा नह बची थी ।
29.3 भारत म आिथक सु धार
आिथक सुधार क शु आत 1991 म धानमं ी पी.वी. नरिसं ह राव क अ य ता म बनी
सरकार के शासनकाल म हई जब त कालीन िव मं ी मनमोहन िसं ह ने अथ यव था के उदारीकरण
के िलए कई आिथक कदमो क घोषणा क जो िक अ तरा ीय मु ाकोष तथा िव बक ारा भारत
418
को 07 िबिलयन डॉलर के उधार देते समय िनधा रत िकये गए थे । आिथक संकटो से िनपटने के
िलए अ तरा ीय सं थान िव बक तथा आई.एम.एफ. ारा जारी 07 िबिलयन डॉलर क रािश के
बदले कु छ शत भारत पर इन सं थान ारा लगाई ं गई जो िक िन न थी :-
भारत सरकार उदारीकरण करेगी ।
सरकार िनजी े पर लगे ितबंध को हटाएगी तथा अनेक े म सरकारी ह त ेप को
कम करेगी ।
साथ ही िवदेशी यापार पर लगे अनेक ितबं ध को हटाएगी ।
इस कार भारत सरकार ारा जुलाई 1991 म िव बक और अ तरा ीय मु ा कोष
(आई.एम.एफ. ) क ये शत मान ली और नई आिथक नीित क घोषणा क । इसके तहत एल पी
जी ( उदारीकरण , िनजीकरण व वै ीकरण) से जुड़े िविभ न काय म अपनाये गए ।
हाल ही के कु छ अथशाि य ने तक िदया क आिथक सुधारो क शु आत 1980 के
दशक म हो गई थी ो . अरिव द पानागिढ़या के अनुसार भारत म आिथक सुधार क शु आत
1980 के दशक के उ रा म राजीव गाँधी के कायकाल म हो गई थी । इस तक के समथन म वे
के ि ज िव िव ालय म 1987 म आई. जे. पटेल के अिभभाषण का उ लेख करते है िजसमे पटेल
ने पहले डेढ़ वष म राजीव गाँधी ारा आरं भ िकये गए सुधार को नई आिथक नीित क सं ा दी थी ।
अपने वं य के अ ययन म ो. पानागिढ़या ने 1988 के बाद क अविध को सुधार अविध माना है ।
पर तु वे इस बात को भी वीकार करते है िक 1991-92 म उदारीकरण के िलए उठाए कदम िपछली
अविध म उठाए गए छु ट-पुट कदमो क तुलना म काफ यापक थे । यद् पी राजनैितक िवरोध के
डर से त कालीन िव मं ी मनमोहन िसंह ने सुधार को िपछली नीितय का ही जारी रहना व िव तार
बताया, पर तु वा तव म जो कदम उठाए गए वे पुराने नीितगत ढाँचे के पूण प र याग तथा
उदारीकरण का खुला समथन थे । यही कारण है िक भारतीय अथ यव था से स बंिधत अिधकतर
अ ययन म आिथक सुधार क शु आत 1991 से मानी जाती है । इन आिथक सुधार को ‘नई
आिथक नीित ’ तथा ‘नरिसं ह राव – मनमोहन िसंह िवकास युि ‘ के नाम से भी जाना जाता है ।
इस नवीन आिथक नीित या िवकास युि म यापक आिथक सुधार को सि मिलत िकया
गया । इन सम त नीितय का उ े य अथ यव था म अिधक पधापूण यावसाियक वातावरण क
रचना करना तथा फम के यापर म वेश करने और उनक सं विृ म आने वाली बाधाओं को दूर
करना था । इन नीितय को दो उपसमूह म िवभािजत िकया जा सकता है ।

419
29.3.1 थािय वकारी उपाय / समि आिथक ि थरीकरण
ये ऐसे उपाय है जो िक अ पकालीन कृ ित के होते है । िजनका स ब ध अथवयव था म मां ग
के बं धन से है । ये आिथक थािय व को कट करते है जो िक आिथक सं कट से मुि के िलए
आव यक होता है । काँ से सरकार ने , जो जून 1991 म पुन : स ा म आई , आिथक संकट पर
काबू करने के िलए थािय वकारी उपाय के ित िजनमे :- मु ा फ ित पर िनयं ण , राजकोषीय
समायोजन और भुगतान सं तलु न क ि थित म सुधार के िलए आव यक नीितय के िलए अपनी
ितब ता जताई और आव यक उपाय क घोषणा क ।
1. मु ा फ ित पर िनयं ण
1990-91 म मु ा फ ित क वािषक दर 10 ितशत के ऊपर थी । इसे एक ओर तो मौि क
और राजकोषीय अनुशासन के ारा और दूसरी ओर मां ग और पूित म उिचत सामंज य ारा सुधार
के नीचे ला पाना सं भव था पर तु सरकार दोन ही मोच पर असफल रही । ार भ म 1992-93 म
कृ िष और औ ोिगक े म सं तोषजनक उ पादन हआ । मांग प म भी सरकार ारा सावधानी से
काम िलये जाने के कारण तथा राजकोषीय घाटे को भी कम करके इसे G.D.P के 5.3 ितशत पर
लाया गया िजसके चलते मु ा फ ित पर इन उपाय का अ छा भाव पड़ा और 1993 के आरं भ म
मु ा फ ित क दर 7.0 ितशत वािषक हो गई । पर तु इसके बाद सरकार ारा मौि क तथा
राजकोषीय अनुशासन क ओर कोई िवशेष यान नह िदया गया िजसके चलते 1994-95 म
मु ा फ ित एक बार पुन : 10 ितशत से ऊपर 12.6 ितशत पहँच गई । 1995-96 म पुन : सरकार
ारा मु ा क पूित म वृि क दर को नीचे लाया गया िजसके चलते जनवरी 1996 म मु ा फ ित
क वािषक दर 5 ितशत पर आ गई । 1996-97 म मौि क िव तार म ढील के बावजूद मु ा फ ित
क वािषक दर 4.6 ितशत रही य िक राजनीितक कारण से ईधन ं क क मत म कोई वृि नह
क गई । 1997-98 म खा पदाथ क क मत म के वल 3.0 ितशत क वृि हई िजसके
प रणाम व प मु ा फ ित क दर 4.4 ितशत रही ।
2000-01 से 2013-14 क अविध म आठ वष ऐसे थे जब मु ा फ ित क औसत वािषक दर
5.5 ितशत से भी अिधक रही है । 2000-01, 2004-05, 2006-07, 2008-09, 2010-11
420
तथा 2012-13 तथा 2013-14 ये सभी वष ऐसे थे जब ईधन ं क क मते अ यिधक थी । 09
अग त 2008 के िदन मु ा फ ित क दर 12.8 ितशत के तर को छू गई । वही दूसरी ओर
2008-09 के उतरा म िव यापी मंदी के चलते अथ यव था म िशिथलता क ि थित रही ।
इसके प रणाम व प मु ा फ ित क दर म भी तेज िगरावट हई और 04 अ ैल 2009 के िदन यह
दर के वल 0.18 ितशत थी । अ ैल 2009 म मु ा फ ित क दर के वल 1.3 ितशत थी जो जून
2009 से अग त 2009 के म य ऋणा मक हो गई । पर तु 2009-10 क अंितम ि माही म उ च
मु ा फ ित का दौर शु हआ । यह दौर अगले दो वष भी जारी रहा और यापक व तु समूह म
फै ला । व तुत : थोक क मत सूचकांक के प म खा मु ा फ ित दर 2010-11 म 15.6 ितशत
के उ च तर पर थी। के ीय सां ि यक सं गठन के नए उपभो ा सूचकांक के अनुसार ( आधार
वष 2012 = 100) जनवरी 2015 ‘म उपभो ा क मत म वृि क दर 5.1 ितशत थी जो रजव
बक ारा जनवरी 2015 के िलए लि त 08 ितशत तथा जनवरी 2016 के िलए लि त 6
ितशत दर से भी कम रही । खा व तुओ ं क क मत म वृि के चलते अ टू बर 2015 म यह
4.41% के तर पर है ।
2. राजकोषीय समायोजन :-
आिथक संकट िजसका ज म 1980 के दशक म हआ का एक मु य कारण राजकोषीय
अनुशासन म गडबड़ी था जहाँ 1970 के दशक म शु आत म सरकार का राजकोषीय घाटा
जी.डी.पी. के 04 ितशत से कम तर पर था वह 1990 के दशक के ार भ म बढकर जी.डी.पी.
से 12.5% तक पहँच गया । भुगतान सं तलु न तथा मु ा फ ित क सम याओं के समाधान के िलए
राजकोषीय समायोजन अित आवशयक है । इस उ े य क ाि के िलए सरकार सावजिनक यय
को स ती से िनयं ि त करना चाहती थी और कर एवं कर िभ न राज व को बढाने का ल य
िनधा रत िकया गया । 1991 के बाद से यि गत आय पर लगाए गए कर क दर म िनरं तर कमी
क गई है इसके पीछे मु य धरणा यह थी क उ च कर दर के कारण से कर-वं चन होता है जबिक
इसके िवपरीत कम कर दर क ि थित म कर का दायरा बढाता है तथा बचत को बढावा िमलता है
और लोग वे छा से अपनी आय का िववरण देते है । िनगम कर क दर , जो पहले बहत अिधक थी
, धीरे –धीरे कम कर दी गई है । अ य कर म भी सुधार यास िकए जा रहे है जैसे , व तु तथा
सेवा कर (जी.एस.टी.) तािक सभी व तुओ ं एवं सेवाओं के िलए एक सां झे रा ीय तर के बाजार
क रचना क जा सके । इस े म सुधार का एक और घटक सरलीकरण भी है । करदाताओ के
ारा िनयम पालन को ो सािहत करने के िलए अनेक ि याओं को सरल बनाया गया है ।
के ारा रा य सरकार ारा राजकोषीय अनुशासन के ल य क ाि हेतु न के वल
राज व पर यान कि त िकया गया बि क सावजिनक यय को भी िनयंि त करने के यास नई
आिथक नीित म अपनाए गए । 1991-92 से सि सडी यय म कटौती ार भ क गयी तथा इस
ि या को आगे भी िनरं तर जारी रखने के यास िकए गए और िनरपे शासिनक क मत णाली
कायम करने का ल य सरकार ारा िनधा रत िकया गया ।

421
इसके अित र के सरकार रा य सरकार को अपने सावजिनक उ म ,िवशेषकर रा य
िबजली बोड एवं सड़क प रवहन िनगम क ि थित सुधारने के िलए ो साहन देगी । के ीय
सावजिनक उ म को िमलने बाले बजट समथन (Budgetary Support ) हटा िलए जाने का
िनणय िलया गया तथा उ ह अपनी कु शलता एवं लाभदायकता को उ नत करने के िलए मजबूत
बनाने का यास िकया जाना तािवतिकया गया । यहाँ यह बात उ लेखनीय है िक भारत म
राजकोषीय असं तलु न का धान कारण लोक यय म िववेकहीन वृि है । इसिलए राजकोषीय
असं तलु न को ठीक करना है तो लोक यय को जी.डी.पी. के 25 ितशत के तर पर लाना होगा ।
जबिक यह 2009-10 म 29.1 ितशत के तर पर था । अत: लोक यय पर िनयं ण लगाना बहत
आव यक है पर तु यह यान रखने क बात है िक आधा रक सं रचना और बुिनयादी सामािजक े
के िवकास पर पूँजी यय म कटौती न क जाए । अत: सरकार के उपयोग यय जैसे ितर ा और
शासन पर यय , याज के भुगतानो एवं आिथक सहायता (Subsidy) भुगतान म कमी करनी
होगी ।
के ीय सरकार ने राजकोषीय समायोजन के िलए जो काय म शु िकया उसके अंतगत
राजकोषीय घाटे को 1990-91 म जी.डी.पी.के 7.8 ितशत से घटकर 1991-92 म 5.6 ितशत
और 1992-93 म 5.3 ितशत पर लाया गया । सरकार ने यह भी घोषणा क िक वह 1990 के
दशक के म य तक राजकोषीय घाटे को जी.डी.पी. के 3.4 ितशत तक ले आएगी । वा तव म
1993-94 म राजकोषीय ि थित एक बार िफर िबगड़ी और के सरकार का राजकोषीय घाटा एक
बार िफर बढकर जी.डी.पी. का 07 ितशत हो गया । इसके बाद इसम िगरावट दज क गई । सरकार
ने वष 2004 म राजकोषीय उ रदािय व एवं बजट बंध (Fiscal Responsibility and Budget
Management FRBM) अिधिनयम को पा रत कर अपनाया । उ अिधिनयम के अपनाने से
अगले कु छ वष तक सरकार राजकोषीय घाटे को िनयंि त करने म आंिशक प से सफल हई ।
पर तु िव म अि थर आिथक हालात के चलते तथा वष 2008-09 क मंदी के दौर म पुन :
राजकोषीय घाटा बढकर 6.0 ितशत के तर तक जा पहँचा । वही वष 2010-11 म 4.9 ितशत
तथा 2011-12 म िफर बढकर 5.7% तक के तर तक जा पहँचा । पे ोल तथा डीजल के मू य को
बाजार णाली ारा िनधा रत करने के िलए खुला छोड़ने आिथक सहायता का कु छ बोझ कम हआ
िजससे 2012-13 और 2013-14 म लगातार दो वष म कम होते हए यह मश: 4.9 तथा 4.4
ितशत के तर पर आ पहँचा ।
सरकार ारा आिथक अनुदान पर यय, सावजिनक सेवाओं क आपूित हेतु छं दम अथ
सहायता रािश याज के भुगतान ,उपभोग यय तथा घरेलु लोक ऋण आिद के वतमान तर को
अभी भी काफ हद तक िनयं ण तथा िनयंि त िकया जाना अित आव यक है अब तक सरकार
वा तव म कठोर सुधारा मक उपाय अपनाने म असफल रही है । उसने इस कमी को कु छ अ य सरल
तथा अिववेक उपाय ारा पूरा करने क कोिशश क है । उसने िवकास काय तथा सामािजक
सेवाओं पर यय म कटौती क है । सरकार के िवकास काय पर पूँजी यय म कटौती से पूँजी िनमाण

422
क दर म कमी होती है । सामािजक सेवाओं पर यय म कटौती का बुरा भाव अ पकाल म पता
लगा पाना सं भव नह है पर तु दीघकाल म इसके प रणाम सामने आने वाभािवक है ।
3. भु गतान सं तु लन म समायोजन
िवदेशी े क म पहला सुधार िवदेशी िविनमय बाजार म िकया गया था । 1991म भुगतान
सं तलु न क सम या के त कालीन िनदान के िलए अ य देशो क मु ा क तुलना म पये का
अवमू यन िकया गया । इससे देश म िवदेशी िविनमय के आगमन म वृि हई । माच 1991 म भारत
के पास िवदेशी िविनमय कोष क रािश 2.2 अरब डॉलर थी जो िदस बर 2012 के अंत म बढकर
295.6 िबिलयन डॉलर हो गई । िवगत दो दशक म भुगतान सं तलु न सं बधं ी जो भी नीितयाँ अपनाई
गई है वे ि थरीकरण एवं ढां चागत सुधार से िनदिशत है । भारत म भुगतान सं तलु न क सम याएं
िवशेष प से इस कारण से उ प न हई है क ाय: िनयात से होने वाली आय, आयत पर होने वाले
यय क अपे ा कम पड़ जाती है । िजसके चलते िनयात आय और आयात यय के म य उ प न
यह अंतराल भुगतान सं तलु न क ि थित को िबगाड़ देता है। यह अंतराल िजतना अिधक होगा उतनी
ही भुगतान सं तलु न क ि थित नाजुक होगी । 1980 के दशक क शु आत म यापार सं तलु न घाटा
बहत यादा था । िनयात से आय, आयात यय के के वल 52.4 ितशत के बराबर थी । 1980 के
दशक के उ रा म थोडा सुधार हआ और 1990-91 म िनयात से कु ल आय, आयात पर कु ल
यय क 66.2 ितशत रही । यह ि थित 1991 म पये के अवमू यन करने से उ प न हई थी िजसे
लं बे समय बनाए रखना सं भव नह था । अत: िविनमय दर के े म िविभ न उपाय करना अित
आव यक हो गया था ।
जुलाई 1991 के समय जब पये का 18-19 ितशत अवमू यन िकया गया । साथ ही
िवदेशी िविनमय बाजार म पये के मू य के िनधारण को भी सरकारी िनयं ण से मु कराने क
पहल क गई । इसके बाद 1992-93 के बजट म उदारीकृ त िविनमय दर बं धन णाली
(Liberalized Exchange Rate Management System) अपनाई गई । इस णाली म दोहरी
िविनमय दर णाली अपनाई गई िजसके तहत 40 ितशत िवदेशी िविनमय को सरकारी क मत पर
देना अिनवाय थी तथा शेष 60 ितशत को बाजार दर पर प रवितत िकया जा सकता था 1993-94
म बजट म एक कृ त (United) िविनमय दर णाली अपनाई गई । यह बाजार ारा िनधा रत
िविनमय दर णाली है । इस कार अब भारत म पये क िविनमय दर का िनधारण बाजार क
शि य (मां ग व पूित ) के ारा होता है न क सरकारी नीितय ारा पर तु बाजार म अ यिधक उतार
– चढाव न हो पाए ,इसिलए भारतीय रजव बक बाजार म ह त ेप करता रहता है । इस कार
भारत म िविनमय दर णाली बं िधत ितरने क णाली (Managed Float Regime) है । रजव
बक ऑफ इंिडया के अनुसार ,यह िविनमय दर िनधारण णाली समय क कसौटी पर खरी उतरी है
य िक इसम लचीलेपन (Flexibility) तथा यावहा रकता (Pragmatism) का सही िम ण है ।
29.3.2 सं रचना मक /ढाँचागत सु धार:-

423
जैसे थािय वकारी उपाय अ पकालीन कृ ित के थे ,वही दूसरी ओर सं रचना मक सुधार
दीघकालीन उपाय है, िजनका उ े य अथवयव था क कु शलता को सुधारना तथा अथ यव था के
िविभ न े को क अन यताओं को दूर के भारत क अ तरा ीय पधा मता को सं विधत करना
है । सं ेप म जुलाई 1991 से अथ यव था के पूित प को ठीक करने के िलए जो सुधार िकये गए
उ ह सं रचा मक / ढांचागत सुधार कहा गया । इस ि से सरकार ने अनेक नीितयाँ ार भ क । मौटे
तौर पर इसके तीन उपवग है :-उदारीकरण िनजीकरण और वै ीकरण िज ह सं ेप म एल पी जी
सुधार के नाम से भी जाना जाता है । व तुत : पहली दो नीितगत रणनीितयाँ है । अंितम नीित को इन
दो रणनीितय का प रणाम कहा जा सकता है ।
29.4 उदारीकरण
वतं ता ाि के प ात भारत ने िमि त अथ यव था क रणनीित को अपनाकर पूं जीवाद
और समाजवाद दोन क िवशेषताओं को अपनाते हए पं चवष य योजनाओं क रणनीित को
अपनाया । आिथक गितिविधय के िनयमन के िलए सरकार ारा कई िनयम-कानून बनाए तथा
अपनाए गए िजससे क सावजिनक तथा िनजी े म उिचत सामंज य थािपत हो सके तथा
क याणकारी रा य क थापना हो सके ,पर तु काला तर म यही कानून तथा िनयम संविृ और
िवकास के माग क सबसे बड़ी बाधा बन गए । उदारीकरण इ ही ितबंधो को दूर कर अथ यव था
के िविभ न े को ‘मु ’ करने क नीित थी । जैसे िक हम पूव म चचा कर चुके है िक आिथक
सुधारो क सुगबुगाहट 1980 के दशक म ही ार भ हो चुक थी जैसे औ ोिगक लाइसस णाली
आयात-िनयात नीित ,तकनीक उ नयन, राजकोषीय और िवदेशी िनवेश नीितय म उदारीकरण
आिद । िक तु ,1991 म नीितयाँ कही अिधक यापक थी जैसे औ ोिगक िनयं ण को समा
करना, िव ीय े म सुधार, कर सुधार, यापार तथा पूं जी वाह आिद िजन पर 1991 के बाद से
िवशेष यान िदया गया ।
1. औ ोिगक िनयं ण को समा करना (Industrial Deregulation) :-
भारत म घरेलू आिथक ि याओ पर आयोजन काल के ारि भक चार दशक म अनेक
भौितक िनयं ण रहे है । िजनमे सबसे पहले (क) औ ोिगक लाइसे स क यव था थी, िजसमे
उ मी को एक फम थािपत करने ,बं द करने या उ पादन क मा ा का िनधारण करने के िलए िकसी
न िकसी सरकारी िवभाग या अिधकारी से अनुमित ा करनी होती थी । इस िनयं ण का उ े य था
नए उप म के वेश और पुराने उप म के िव तार पर िनयं ण रखना था । दूसरा (ख) अनेक
उ ोग म तो िनजी उ िमय का वेश ही िनिषद् था वो के वल सावजिनक तथा लघु े के िलए
आरि त थे । तीसरा (ग) िविभ न औ ोिगक उ पाद पर क मत एवं िवतरण स ब धी िनयं ण

424
इ यािद । जगदीश भगवती और पद् ा देसाई ं ने इस िनयं ण यव था क शु से ही काफ
आलोचना क है । 4
यह यापक तौर पर वीकार िकया जाता है िक औ ोिगक िनयमन क अनेक रीितयो के
प रणाम व प औ ोिगक े म कायकु शलता के तर पर ऋणा मक भाव पड़ा । अत: 1991 म
ढां चागत सुधार का यापक काय म आर भ होने से पहले ही 1980 के दशक म ही िविभ न
िनयं ण म ढील दी गई थी । पर तु जुलाई 1991 म घोिषत नई औ ोिगक नीित म औ ोिगक
अथ यव था पर िनयं ण मर भरी कमी कर अनेक उ ोग को िनजी े के िलए खोल िदया गया ।
अआब के वल 05 उ पाद वग को छोडकर अ य सभी व तुओ ं के उ पादन के िलए लाइसस क
आव यकता को समा कर िदया गया है ।
ये 5 उ पाद वग िन न है :-
(i) ए कोहल यु पेय पदाथ का आसवन एवं िनमाण
(ii) त बाकू के िसगार एवं िसगरेट तथा त बाकू से बनी अ य मादक व तुय
(iii) इले ािनक एयरो पेश तथा र ा साज सामान
(iv) औ ोिगक िव फोटक तथा
(v) जोिखम वाले रसायन ।
इसके अलावा सावजिनक े के िलए 1956 क औ ोिगक नीित म आरि त उ ोग क
सं या 17 से हटाकर 1991 क औ ोिगक नीित म 08 कर दी गई थी जो अब के वल 02 रह गई है
िजसमे थम उ ोग :- परमाणु ऊजा तथा दूसरा उ ोग है:- रेल प रवहन ।
उ लेखनीय है िक औ ोिगक लाइसस लेना िन नािकत अव थाओं म आव यक है:
(i) अिनवाय लाइसिसं ग के अंतगत आने वाले िकसी मद या व तु का िनमाण (उपरो 05
मद म से ) करना ।
(ii) यिद ोजे ट 10 लाख से अिधक जनसं या (1991 क जनगणना ) वाले शहर के पास
ितबं धा मक सीमा म आ रहा हो ।
(iii) जब कोई मद िजसका उ पादन या िविनमाण लघु े के िलए आरि त हो और उसका
िविनमाण लघु े ारा नह हो ।
इस कार उदारीकरण के इस दौर ने अब लाइसिसं ग नीित को लगभग समा कर िदया ।
अब उ ोग ारा उ पािदत अनेक व तुएं भी अब अनारि त ेणी म आ गई है । 30 जुलाई 2010
तक के वल 18 उ पाद ही इसके िलए आरि त रह गए । अनेक उ ोग को अब बाजार म क मत के
िनधारण क अनुमित िमल गई है ।

4
Jagdish N. Bhagwati and Padma Desai, India: planning for Industrialisation (Landon 1970), P-499

425
2. िव ीयक े क सु धार (Financial Sector Reforms):-
िव के े क म यवसाियक और िनवेश बक, टॉक ए सचज तथा िवदेशी मु ा बाजार
जैसी िव ीय सं थाएं सि मिलत है । भारत म िव ीय े क का िनयं ण रजव बक का दािय व है ।
भारतीय रजव बक के िविभ न िनयम और कसौिटय के मा यम से ही बक तथा अ य िव ीय
सं थान के काय का िनयमन होता है । रजव बक ही तय करता है िक कोई बक अपने पास िकतनी
मु ा जमा रख सकता है । यही याज क दर को िनयत करता है । िविभ न े को को उधार देने क
कृ ित इ यािद को भी यही तय करता है । िव ीय े क सुधार नीितय का एक मुख उ े य यह भी
है िक रजव बक को इस े क के िनयं क क भूिमका से हटाकर इस े क के एक सहायक क
भूिमका तक उसे सीिमत कर िदया गया। िजसका अथ है िक िव ीय े क रजव बक से सलाह
िकए िबना ही कई मामल म अपने िनणय लेने म वत हो जाएगा।
िव ीय े क म सुधार को यान म रखते हए त कालीन के सरकार ने एम. नरिसंहम क
अ य़ ता म देश क िव ीय यव था पर िवचार करने हेतु एक सिमित का गठन िकया गया।
नरिसंहम सिमित ने अपनी रपोट को सं सद म िदस बर, 1991 म तुत िकया तथा सरकार ने इसक
अिधकतर िसफा रश को वीकार कर िलया गया और उ ह ही िव ीय े क के सुधार का आधार
माना गया है । लेिकन इसी दौरान घरेलू आिथक एवं सं थागत प र य म भारी प रवतन हो गए तथा
िव ीय सेवाओं के भूमडं लीय (Global) एक करण क िदशा म गित हई है । अतः बिकं ग णाली
को बदलते प र य म भावी ढं ग से ितयोगी होने के िलए स म होना आव यक हो गया। सरकार
ने इस बात को यान म रखते हए एम. नरिसं हम क अ य ता म बिकं ग े ीय सुधार के िवषय म
एक सिमित का गठन िकया िजसने अ ैल 1998 म अपनी रपोट तुत क । िजससे बिकं ग णाली
म सुधार हेतु वीकार का िलया गया। िव ीय े क म सुधार हेतु िन निलिखत काय िकए गए हैः-
1. वैधािनक तरलता अनुपात और नकद कोष अनुपात पर उिचत सामंज य थािपत करते हए
इ ह स तुिलत तर पर ि थर करने का यास िकया गया। 1980 के दशक म वैधािनक
तरलता अनुपात (SLR) तथा नकद कोष अनुपात (CRR) िनरं तर बढ़ते गए थे। रजव बक
ारा इ ह ऊपर उठाने का मु य उ े य बजटीय घाट से उ प न मु ा फ ितक दबाव पर
रोक लगाना था। लेिकन इससे बक क लाभ द ा पर बुरा भाव पड़ा। िव ीय े म
सुधार काय म के अंतगत िपछले कु छ वष म SLR और CRR को कई चरण म कम
िकया गया है । 25 अ टू बर, 1997 को भावी वैधािनक तरलता अनुपात (SLR) 25
ितशत कर िदया गया 08 नव बर 2008 को इसे घटाकर 24 ितशत कर िदया गया।
नव बर 2009 मे पुनः बढ़ाकर एक बार िफर 25 ितशत कर िदया गया, पर तु 18 िदस बर
2010 से एक बार िफर 24 ितशत कर िदया गया। वतमान म वैधािनक तरलता अनुपात
21.5 ितशत है । नकद कोष अनुपात (CRR) 14 जून 2003 को 4.5 ितशत कर िदया
गया। लेिकन अथ यव था म तरलता क मा ा को िनयंि त करने के उ े य से इसम
िनयिमत प से बढ़ाते हए 30 अग त 2008 म 09 ितशत के तर पर पहँचा िदया गया।
2008-09 के उ रा म िव - यापी आिथक मंदी के कारण देश म उ प न आिथक
426
िशिथिलता क ि थित से िनपटने के उ े य से इसे 17 जनवरी 2009 को इसे कम करके
5.0 ितशत के तर पर िनधा रत कर िदया। अब य ़ 4.0(31 March, 2017) ितशत
के तर पर है ।
2. रजव बक ने आय क पहचान (Income Recognition) प रस पि य के वग करण
अशो य ऋण (bad debits) के िलए ावधान और पूँजी पया ता के बारे म नए िववेकपूण
मानद ड िनधा रत िकए है । बेसल सिमित ारा िनधा रत मानद ड के अनु प यूनतम
पूं जी मानदं ड तय िकए गए है । इसके तहत बक को अपनी पूं जी और जोिखम भा रत
प रसं पि य के बीच अनुपात 08 पितशत रखना आव यक तय िकया गया िजसे बिकं ग
े ीय सुधार सिमित क िसफा रश पर बढाकर 09 ितशत कर िदया गया । माच 2014
के अंत म बक क पूं जी पया ता अनुपात 13.0 ितशत तक पहँच गया । अब सभी बक
क पूं जी पया ता अनुपात यूनतम वैधािनक आव यकता 09 पितशत से काफ अिधक है
3. जो बक अ ैल 1992 तक पूं जी पया ता मानदं डो और िववेकपूण लेखा मानको को ा
करने म सफल हो गए थे उ ह रजव बक क अनुमित के िबना ही नवीन शाखा खोलने का
अिधकार िदया गया । बक अब अपने शाखातं का िववेक करण कर सकते है । इस ि से
वे शाखाओ का िफर से थान िनधा रत कर सकते है, िविश सेवा दाता शाखा खोल
सकते है तथा िनयं ण कायालय क थापना कर सकते है, इ यािद ।
4. रजव बक ने िनजी तथा िवदेशी े म बक थािपत करने के िलए कु छ िनदेशक िस ा त
क घोषणा क है । ये बक िव ीय ि से स म होने चािहए और इ ह साख के
के ीयकरण और औ ोिगक गृह के साथ िव ीय मामलो म आपसी फं साव से बचना
चािहए । इसके अित र इन बक को ाथिमकता े के िलए िनधा रत साख के ल य
को अ य बक क तरह ही ा करना होगा ।
5. बक ऋण पर 1989-90 म लगभग 20 िविभ न याज दर होती थी िज ह 1994-95 के
िव ीय वष से घटाकर 02 कर िदया गया । याज दर ढाँचे को एक कृ त करने के इस यास
का उ े य बिकग णाली म अ यो य अथ – सहायता (Cross- Subsidy) के अंश को
कम करना है ।
6. रजव बक के उप- गवनर क अ य ता म िव ीय िनरी ण के िलए नए बोड का गठन से
रजव बक क िनरी ण यव था को यादा समथ बनाया गया है । इस बोड का यास
होगा िक साख बं ध, प रस पित वग करण, आय क पहचान (income recognition),
पूं जी पया ता पूव पाय और राजकोष चालन से सं बं िधत िनयम को िविधवत लागू िकया
जाए ।
7. बक के बं ध और उनक िन पित को सुधारने के उ े य से रजव बक और सावजिनक
बक के बीच म य समझौते िकए गए है । इस ि से बं ध सूचना णाली और आ त रक
लेखा- परी ण एवं िनयं ण तं का काफ मह व है।

427
8. बक तथा दूसरे िव ीय सं थान क बीते वष म ऋण- वसूली असं तोषजनक रही है । अतः
1993 म एक अिधिनयम बनाया गया है िजसके अंतगत ऋण को सहज बनाने के िलये
‘िवशेष वसूली अिधकरण’ (Special Recovery Tribunals) क थािपत िकए गए है ।
9. अिधकतम अनु ेय (Permissible) बक िव के िनधारण के िलए िनदिशत िस ां त को
अिधक लचीला बना िदया गया है । अब बक को ऋणीय क कायशील पूं जी स ब धी
और थानीय आव यकताओं के ित उिचत ढं ग से यवहार करने के िवषय म यादा
वतं ता होगी ।
10. बक म िवदेशी पूं जी क भागीदारी क सीमा 50 ितशत तक कर दी गई ।
11. िवदेशी िनवेश सं थाओं (एफ.आई.आई.) तथा यापारी बक , युचचु ल फं ड और पशन
कोष आिद को भी अब भारतीय िव ीय बाजार म िनवेश क अनुमित िमल गई है ।
3. कर सु धार (Taxation Reforms)
इन सुधार का स ब ध सरकार क कराधान और सावजिनक यय क नीितय से है , िज ह सामूिहक
प से राजकोषीय नीितयाँ भी कहा जाता है । भारत सरकार ने 29 अग त, 1991 को य व्
अ य कर क सं रचना का अ ययन करने के िलए राजा जे. चैलया क अ य ता म एक सिमित
का गठन िकया था । चैलया सिमित ने अपनी रपोट म कर णाली के सुधार के िलए यापक सुझाव
िदए है । य कर के े म आय- यय के स ब ध म सबसे मह वपूण सुझाव कर सीमा से छू ट
क रािश को बढ़ाना, कर दर म कमी करना तथा कई कर रयायतो को समा करना है । चैलया
सिमित क िसफा रश बुिनयादी दशन यही है िक आयोजन काल के शु चार दशक म सं क ण
उ े य को ा करने के िलए कर णाली म जो अ यव था उ प न हो गई थी उसे तोडना और कर
यव था को कायकु शल बनाकर सरकार के िलए पया मा ा म आय दान करने वाले तं के प
म तैयार करना । सरकार ने इस ि कोण को वीकार कर िलया, और उसने चैलया िसफा रश को
िविभ न चरण म लागू करने का िनणय कर िलया जो िक िन निलिखत है :-
(i) य कर (Direct Taxes) :-
आय कर के ढाँचे का पुनगठन िकया गया है । नई आय –कर यव था म कर क दरे नीची है , कर
िनधारण के िलए अब तीन लैब (Slabs) है , कर –मु आय क सीमा ऊँची है और बचतो से
जुडी हई कर से छू ट थोड़ी है । यावसियक फम क आय को कराधान के युि सं गत बनाया गया है
और इस ि से अब पं जीकृ त और गैर-पं जीकृ त फम म भेद नह िकया जाता । साझेदारी फम क
आय पर दर कर क दर घटाकर 30 ितशत कर दी गई है । िनगम कर क यव था म अभी िवशेष
सुधार नह िकए गए है लेिकन इस कर क दर को भी घटाकर 30 ितशत कर िदया गया है ।
पूं जी-लाभ कर क यव था म भी यादा सुधार नह िकए गए है । लेिकन इतना हआ है िक अब
के वल वा तिवक मू य वृि के कारण होने वाले पूं जी लाभ पर ही कराधान है । ता पय यह है िक
अब मु ा फ ित के कारण प रस पित क लागत म समायोजन करने के बाद ही पूं जी लाभ मालूम
िकया जाता है । दीघाविध पूं जी-लाभ पर अब समान-दर से ही कर लगाया जाता है । अब स पित

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कर म भी सुधार िकए गए है । अब स पित कर का आधार स पित न होकर अनु पादक प रस पित
है।
(ii) परो कर (Indirect taxes):- इस े म सुधार के िलए सीमा शु क को ार भ से ही
नाजुक े माना गया है । अतः इनम िपछले कु छ वष म भारी कमी क गई है । आयात शु क क
ऊँची दर को िनयं ि त करने के उ े य से 2007-08 के बजट म आयात शु क क सबसे ऊँची दर
10 ितशत कर दी गई है । सीमा शु क यव था और कराधान यव था को सरल बनाने के उ े य
से पृथक पूरक शु क (Auxiliary duty) को मु य सीमा शु क म ही िमला िदया गया है । उ पादन
शु क सुधार म िजन बात का यान रखा गया है उनम:- शु क दर को सरल बनाना, आम उपभोग
क व तुओ ं पर कर म रयायत देना, घरेलू पूँजी -पदाथ उ ोग क सहायता करना िजससे उनक
अ तरा ीय तर पर ितयोगी शि म सुधार हो, मां ग म मंदी से भािवतउ ोग क सहायता करना
और लघु उ ोग को राहत देना। 2000-01 म उ पादन शु क म िववेक करण करने क ि से एक
ही दर पर के ीय मु य सं वधन कर (CENVAT) लगाया गया।
1 अ ैल 2005 से सभी रा य / सं घ रा य े ने वैट लगाना शु कर िदया है । इस कर क मूलतः
दो दर हैः- 04 ितशत और 12.5 ितशत । इसके अलावा, एक छू ट ा ेणी है कु छ खास मद
के िलए 01 ितशत क िवशेष दर है । वैट लागू करने से रा य को जो हािन हई है, के सरकार ने
उसक भरपाई के िलए ितपूित पैकेज भी रा य को िवत रत िकए है ।
(iii) सेवा कर (Service Tax) :- सेवा कर पहली बार 1994-95 म शु िकया गया जब
तीन सेवाओं (टेलीफोन, साधारण बीमा और शेयर दलाली) पर इसे लगाया गया । समय के
साथ और सेवाओं को भी इस कर म शािमल िकया जाता रहा है । 2015-16 के बजट म
सेवाकर क दर 12 ितशत से बढ़ाकर 14 ितशत कर दी गई है । िदस बर 2015 म
इसे बढ़ाकर 14.5 ितशत कर िदया गया था। वष 2013-14 म के सरकार के कु ल कर
राज व म सेवा कर का िह सा 13.6 ितशत था जबिक इसी अविध म जी.डी.पी. सेवा
े का 59 ितशत िह सा था इसे देखते हए सेवा कर ओर अिधक िव तार िकया जाना
अपेि त है ।
(iv) के ीय िब कर सु धार (Central Sale Tax; Reforms) :- आमतौर पर यह माना
गया है िक य िक के ीय िब कर मूल-आधा रत (Origin –Based) छू ट न देने वाला
(non-rebate able) कर है इसिलए यह वैट क अवधारणा के साथ मेल नह खाता है
और इसे समा करने क आव यकता है । रा य क अिधकार ा सिमित म
िवचार-िवमश के बाद अब इसको एक चरणब तरीके से समा करने क काय-योजना
तैयार कर ली गई है । इसके अ तगत 01 अ ैल 2007 से के ीय िब क दर को 04
ितशत से ित वष घटाते हए चरणब तरीके से पूणतया समा करने का एक ावधान है
। के ीय िब कर को समा करने म एक मह वपूण मु ा ऐसी समाि के बाद रा य को
होने वाली राज व हािन क ितपूित से सं बं िधत है । इसके िलए के ीय सरकार ने एक
ितपूित योजना तैयार क है ।
429
(v) माल एवं सेवा कर शु करने क योजना (Plan to introduce Goods and
Service Tax):- के ीय िब कर (CST) के समा होने पर वैट क सं क पना के
आधार पर 01 अ ैल, 2011 से रा ीय तर पर सं यु माल एवं सेवा कर (G.S.T.)
आरं भ करने क योजना थी पर तु राजनीितक गितरोध के चलते जी.एस.टी. िबल अभी तक
सं सद म पास नह हो सकता है । इस कर के अ तगत िपछले लेन-देन के हर चरण पर अदा
िकए जा चुके कर पर आगत कर े िडट (input tax credit) मुहयै ा कराएगा। इसम
व तुओ ं एवं सेवाओं पर लगे अनेक रा य और के ीय तर के परो कर को शिमल
करके एक तकसं गत यव था बनाने का यास जाएगा। आशा करते है िक यह वष 2017
के अंत तक यह कर ज मु व क मीर को छोड़कर स पूण भारत म लागू िकया जा सके गा ।
4. यापार और पू ँजी वाह सु धार (Trade and Capital Flows Reforms)
जुलाई 1991 से सरकार ने यापार े म अनेक सुधार काय- म लागू िकए है िजनसे
भारतीय अथ यव था, िव अथ यव था के साथ यादा अ छी तरह से जुड़ सके गी। इन सुधार म
जुलाई 1991 म पये का अवमू यन और इसके उपरा त िव के िविभ न औ ोिगक ि से
िवकिसत देश क मु ाओं के साथ पये क िविनमय दर म िगरावट; पये क पहले यापार खाते
म और िफर भुगतान स तुलन के चालू खाते म पूण प रवतनीयता आयात का उदारीकरण, सीमा
शु क दर म कमी और िनयात को ो साहन देने के िलए िविभ न उपाय िवशेष प से उ लेखनीय
है ।
जुलाई 1991 से पूव अनेक व तुओ ं के आयात और िनयात सावजिनक े के सं गठन के
ारा ही होते है । लेिकन सुधार अविध म काफ व तुओ ं के आयात और िनयात पर से ये ितब ध
हटा िलए गए है । हाल के वष म अनेक व तुओ ं के आयात और िनयात पर सरकारी एजेि सय के
एकािधकार क समाि िवदेशी े म उदारीकरण क िदशा म एक मह वपूण कदम है । इसके
अलावा, िनयात ो साहन के िलए बहत से कदम उठाए गए है िजनम मुख कदम हैः कृ िष तथा
उससे स ब े से िनयात सं वधन के िलए िनयात उ मुख इकाइय क थापना, सेवा े के िलए
पूँजीगत माल िनयात सं वधन योजना को लागू करना, िनयात गृहो । यापार गृह को मा यता देने के
िलए सरल मानद ड िनधा रत करना, िनयात ोसैिसंग े के काय े को िव तृत करना, िविश
आिथक े क थापना करना, इ यािद। भारतीय िनयात क अ तरा ीय ित पधा को बढ़ाने के
िलए भी बहत से कदम उठाए गए है ।
सरकार ने िवदेशी े म सुधार के अ तगत िवदेशी य िनवेश के प म िवदेशी पूँजी
के अ तः वाह को बढ़ावा देते हए उदारीकरण को अपनाया है । इस स ब ध म िकए गए मह वपूण
उपाय हैः-
1. 51 ितशत तक िवदेशी ईि वटी भागीदारी और ऊँची ाथिमकता वाले उ ोग म िवदेशी
ौ ोिगक सहयोग का वतः अनुमोदन (automatic approval) होगा।
2. सेवा े म 51 ितशत तक ईि वटी भागीदारी क वीकृ ित दान करना।
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3. ौ ोिगक चयन म लोच पैदा करने क ि से ौ ोिगक अंतरण को ईि वटी िनवेश से
अलग करना।
4. उन सभी पूँजीगत व तुओ ं के आयात के िलए वतः अनुमोदन देना जब िवदेशी िविनमय का
वाह िवदेशी ईि वटी के प म हो ।
5. िवदेशी िविनमय िनयमन अिधिनयम (FERA) म सं शोधन ारा इस अिधिनयम के अ तगत
आने वाली क पिनय और दूसरी अ य भारतीय क पिनय को प रचालन ि से समान तर
पर ले आना। िवदेशी क पिनयाँ अब अपने ेड माक इ तेमाल कर सकती है और
जन-साधारण से रािश ा कर सकती है तथा मुनाफे को वदेश भेज सकती है । तकनीक
अथवा बं धक य सलाहकार के प म िनयुि वीकार कर सकती है ।
29.5 िनजीकरण (Privatisation)
इसका ता पय है, िकसी सावजिनक उप म के वािम व या बं धन का सरकार ारा याग।
सरकारी क पिनय को िनजी े क क क पिनय म दो कार से प रवितत िकया जा सकता हैः (क)
सरकार का सावजिनक क पनी के वािम व और बं धन से बाहर होना तथा (ख) सावजिनक े क
क क पिनय को सीधे बेच िदया जाना।
िकसी सावजिनक े क के उ म ारा जनसाधारण को इि वटी क िब के मा यम से
िनजीकरण को िविनवेश कहा जाता है । सरकार के अनुसार, इस कार क िब का मु य येय
िव ीय अनुशासन बढ़ाना और आधुिनक करण म सहायता देना था। साथ यह भी अपे ा क गई थी
िक िनजी पूँजी और बं धन मताओं का उपयोग इन सावजिनक उ म के िन पादन को सुधारने म
भावो पादक िस होग। सरकार को यह भी आशा थी िक िनजीकरण से य िवदेशी िनवेश के
अ तवाह को भी बढ़ावा िमलेगा। िनजीकरण क ि या को सावजिनक उप म म सुधार के प म
देखा जा सकता हैः
1. सावजिनक े म सु धार ( Public Sectors Reforms) :-
सावजिनक े के िवषय म यह सोचा गया था िक यह वपोिषत (Self-Sustained)
आिथक सं विृ के इंजन के प म काम करेगा। यह नह , वह औ ोिगक े म तकनीक िवकास
के िलए भी मह वपूण काय स प न करेगा। इन भूिमकाओं को पूरा करने के िलए यह आव यक था
िक सावजिनक े समुिचत मा ा म िनवेश के िलए पूँजी-साधन उ प न करे । इसम स देह नह है
िक औ ोिगक आधार के िव तार म सावजिनक े ने मह वपूण भूिमका अदा क है । औ ोिगक
ढ़ां चो मे िविवधता पैदा करने क ि से भी सावजिनक े का बहत योगदान है । तथािप और
अिधक िव तार के िलए सावजिनक े पया मा ा म आ त रक साधन जिनत करने म असमथ
रहा है िजसका प रणाम यह हआ है िक यह े आिथक सं विृ के िलए एक बड़ी बाधा बन गया है
। ढ़ां चागत सुधार के अ तगत सरकार ने सावजिनक उप म को यादा बं धक य वाय ता देने
का िनणय िलया है िजससे इनके िलए कु शलतापूवक काम कर पाना सं भव हो। सावजिनक उप म

431
क कायिविध म सुधार लाने के िलए उसके साथ िनजी े को ितयोिगता करने का अवसर िदया
जाएगा।
इसके अलावा कु छ चुने हए उ ोग म आंिशक प से ईि वटी िविनवेश का काय म
अपनाया गया है िजसके अ तगत सावजिनक उ म के शेयर िव ीय सं थाओं, िनजी े तथा
आम जनता को बेचे जा रहे है । इस नीित के अ तगत 1991-92 से 15 अ ैल 2015 तक
सावजिनक उ म के शेयर क िब से सरकार को कु ल 1,78,729 करोड़ पये क रािश ा हई
है । ार भ म सरकार का यह कहना था िक के वल उन सावजिनक े क इकाइय के शेयर बेचे
जाएं ग जो हािन उठा रही है तथा बेहतर िन पादन करने वाली इकाइय को और अिधक बं धक य
वाय ता देकर उ ह िवकास के अिधक अवसर दान िकए जां एग तािक वे िव तर पर ित पधा
कर सक। पर तु वा तव मे इस तरह के यास नह िकए गए। सरकार ारा सावजिनक उ म के शेयर
बेचने का एकमा उ े य इन शेयर क िब से ा रािश ारा बजट घाट का पूरा करना रहा है ।
29.6 वै ीकरण (Globalisation)
वै ीकरण, उदारीकरण और िनजीकरण क नीितय का प रणाम है । य िप वै ीकरण िकसी
अथ यव था का िव अथ यव था के साथ एक करण के प म जाना जाता है, जो एक जिटल
प रघटना है । सरल श द म, वै ीकरण से आशय है िक भारतीय अथ यव था को व तु, सेवा, पूँजी
और िनवेश के स दभ म शेष िव क अथ यव था के िलए खोलना, तािक वैि क अथ यव थाओं
के समेकन के ज रए एक भूम डलीकृ त अथ यव था आकार हण कर सक और भारत के आिथक
िहत को सुिनि त िकया जा सक। इसके तहत िविनमय-दर को चरणब तरीके से बाजार बनाने क
कोिशश क गई और चरणब तरीके से पये क प रवतनीयता क ओर कदम बढ़ाया गया। पूँजी
के अंत - वाह एवं बिह वाह के स दभ म धीरे-धीरे छू ट दान क गई। िवदेशी यापार पर आरोिपत
मा ा मक ितब ध को समा कर गुणा मक ितब ध म ढ़ील दी गई।िव तृत अथ म वै ीकरण के
अ तगत आिथक, सामािजक और भौगोिलक सीमाओं के अित मण क गितिविधय और नेटवक
का सृजन होता है । वै ीकरण ऐसे संपक सू क रचना का यास है , िजससे मीलो दूर हो रही
घटनाओं के भाव भारत के घटना म पर भी प िदखाई देने लगे । यह सम िव को एक बनाने
या सीमायु िव क रचना करने का यास है ।
29.7 आिथक सु धार का मू यां कन
(An Appraisal of Economic Reforms):-
भारत म आिथक सुधार जुलाई 1991 म कां ेस सरकार ारा िजसके धानमं ी ी
पी.वी.नरिस हा राव थे, लागू िकए गए । राजनैितक दल म आिथक सुधार के काया वयन के
स ब ध म लगभग एकमत थे । सुधार िकया ने 25 वष पूरे कर िलए है और यह समय अविध इतनी
छोटी नह िक सुधार ि या के भाव का मू यां कन न िकया जा सके । अतः सुधार ि या क
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उपलि धयां और खािमय का पुनिनरी ण करना चािहए तािक यह सोचा जा सके िक या देश सही
िदशा म चल रहा है । अ यथा, इस बात पर िवचार करना आव यक है िक 1990 के दशक म
चलायी गई सुधार- ि या म सुधार होना चािहए । समि आिथक ि थरीकरण तथा ढांचागत दोन
कार के सुधार के िमले-जुले भाव सामने आए है िज ह हम िन निलिखत िबं द ुओं के अंतगत
समझा सकते है :-
1. सकल देशीय उ पाद क वृ ि दर:- इसम सं दहे नह है िक आिथक सुधार के प रणाम
व प सकल घरेलु उ पाद (G.D.P.) क सापे तः उ च वृि ो नत हई । पहले दो वष
अथात् 1991-92 और 1992-93 क आरं भ किठनाइय के प ात 1993-94 से
1997-98 के दौरान वृि दर 7 ितशत थी । इसके बाद वष 2004-05 से 2009-10 क
अविध म 8.7 ितशत तक पहँच गई । 1991-1992 से 2013-2014 तक क 22 वष
क अविध म यह वृि दर 6.3 ितशत वािषक रही है जो अिभनंदनीय है ।
2. अ तरा ीय साख म वृ ि :- अ तरा ीय समुदाय का भारतीय अथ यव था म िव ास
बढ़ा है । इसी वजह से भी िवदेशी पूं जी का भारत म अंतगमन तेजी से बढ़ा है िजससे हमारे
िवदेशी िविनमय कोष 18 माच 2016 तक 355.95 अरब डालर हो गए है । पहले िवदेशी
िविनमय के अभाव क सम या थी बाद म इसके आिध य क सम या बन गयी थी ।
2001-02 से 2003-04 तक तीन वष म चालू खाते म आिध य क ि थित रही थी ,
लेिकन हाल म चालू खाते म घाटा रहने से आिथक सम या जिटल हो गई है , य िक
उसक िवतीय यव था िवदेशी पूं जी के आगमन से करनी होती है, िजसका वाह
आव यकता से कम हो रहा है ।
3. भारतीय अथ यव था के खु लेपन म वृ ि :- उदारीकरण तथा वै ीकरण के प म
ारं भ आिथक सुधार क अविध म भारतीय अथ यव था का िव अथ यव था से जुड़ाव
बढ़ा है । व तुओ ं व सेवाओं को िमलाने पर इनका अनुपात जी.डी .पी. म 2001-01 म
29.2 ितशत से बढ़कर 2006-07 म 48 ितशत हो गया था । इससे प होता है िक
भारतीय अथ यव था म काफ खुलापन आया है । हाल म पये क डॉलर म िविनमय दर
लगभग 45 पये ित डॉलर से 25 माच 2016 को 66 पये ित डॉलर के तर तक जा
पहंची है िजसके चलते एक और भारत के आयात महंगे हो गए है जबिक दूसरी और
वैि क बाजार म मंदी के कारण भारत के िनयात वधन के प म वांिछत लाभ नह िमल
पाया है । इस कार िविनमय दर के मू य ास से हमारी किठनाई बढ़ी है ।
4. अपे ाकृ त नीची मु ा फ ित क दर: - तािवत अविध म हेडलाईन मु ा फ ित क
दर (थोक मू य के सूचकां को के आधार पर) लगभग एक अंक म नीची रही थी, अथात् ये
इकाई म रही थी, जो 2008 के ारं भ म एक बार 04 ितशत के तर पर आ गई थी,
लेिकन 2008-09 म मु ा फ ित क दर 8.05 ितशत रही । 2009-10 म यह 3.8
ितशत आंक गई,लेिकन 2010-11( अ ैल –जनवरी क अविध म ) यह 9.55 ितशत
एवं 2011-12 (अ ैल-जनवरी क अविध म ) 9.11 ितशत आंक गई है , जो एक िचंता
433
का िवषय है आम जनता म एक भारी असं तोष का िवषय बन गया ह । सरकार इसको
िनयं ि त करने के िलए राजकोषीय, मौि क व पूित प के उपाय अपनाने का यास कर
रही ह । िन संदहे यह एक नई चुनौती ह । िव म खा , ईधन व धातु के मू य म वृि भी
हमारे देश म महंगाई को बढ़ाने म सहायक मानी जा सकती है । इसीिलए भारत म मु ा
फ ित को “आयाितत मु ा- फ ित” भी कहा जाने लगा ह । जुलाई-अग त 2012 क
ि थित के अनुसार अब मु ा फ ित िविनिमत-व तुओ ं के े म िव होने लगी ह।
5. बचत तथा िनवेश दर म वृ ि :-
भारत म हाल के वष म बचत तथा िनवेश क दर म अभूत पूव वृि हई ह ।
सकल घरेलू बचत क दर सकल घरेलू उ पाद के अनुपात म 2001-02 म 24.9 ितशत
से बढ़कर वष 2014-15 म 29.3 ितशत तथा िनवेश क दर इसी अविध म 24.3
ितशत से 34.8 ितशत हो गई है । 2003-04 से सावजिनक े क बचत का
ऋणा मक से धना मक होना एक बड़ा अनुकूल प रवतन ह । इनम 2007-08 म वृि जारी
रही और बचत क दर 36.8 ितशत तथा िनदेश क दर के 38.1 ितशत रहने का
अनुमान लगाया गया था । व मान पूं जी-उ पादन-अनुपात (ICOR) के लगभग 4.0 आंके
जाने पर अब भारत म 09 ितशत क िवकास दर पहँच से बाहर नह मानी जा सकती है ।
यह एक मह वपूण प रवतन है जो भारतीय अथ यव था के उ जवल भिव य क ओर
सं केत करता ह ।
6. राज व तथा राजकोषीय घाट को िनयं ि त करने म सफल :-
आिथक सुधार क अविध म के व रा य के राज व घाट व राजकोषीय घाट
म सकल घरेलू उ पाद के अनुपात म कमी आई ह । क का राज व घाटा 2001-02 म
जी.डी.पी. का 4.4 ितशत था जो 2015-16 के संशोिधत अनुमान म 2.5 ितशत तथा
राजकोषीय घाटा 6.2 ितशत से घटकर 3.9 ितशत आंका गया ह । आिथक सुधार ने
कर णाली को अिधक सरल तथा अिधक उदार बनाया गया ह । कहने का आशय यह है
िक आिथक सुधार क अविध म बजट के घाट को कम करने क िदशा म गित हई ह ।
कई रा य क िव ीय ि थित म भी सुधार हआ है, उनम भी FRBM act पा रत िकए गए
है, और कु छ रा य का राज व घाटा राज व आिध य म प रवितत हआ ह । लेिकन अभी
आगे भी गित जारी रखनी होगी ।
7. रोजगार के अवसर का सृजन:-
आिथक सुधार क अविध म देश म रा ीय से पल सव के 61व दौर से पता
चलता है िक 1999-2000 से 2004-05 क अविध म 4.7 करोड़ रोजगार के अवसर
सृिजत िकए गए थे । इस अविध म रोजगार म वृि दर 2.6 ितशत रही, लेिकन म शि
ित वष 2.8 ितशत िक दर से बढ़ी िजससे बेरोजगारी क दर 1999-2000 म 7.3
ितशत से बढ़कर 2004-05 म 8.3 ितशत पर पहँच गई थी । इस कार यह कहा जा
सकता है िक उपरो अविध म देश म रोजगार के अवसर तो बढ़े है लेिकन सभी काम
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चाहने वाल को पूरी तरह काम नह िमलने के साथ म बेरोजगारी भी बढ़ती गई ह । अत:
चालू दैिनक ि थित (सी.डी.एस.) ि कोण के आधार पर गणना िकए जाने पर 2004-05
म बेरोजगारी क दर म थोड़ी वृि आंक गई थी, हालाँिक सामा य मुख व सहायक
ि थित (यू.पी.एस.एस.) के आधार पर बेरोजगारी क दर 2004-05 म 2.5 ितशत ही
हां क गई थी ।
8. आिथक सु धार और गरीबी म कमी:-
रा ीय नमूना सव ण के 61 व दौर के आधार पर, योजना आयोग ने
समान- मरण-अविध (Uniform recall period) के आधार पर 1993-94 से 2004-05
के दौरान गरीबी अनुपात का अनुमान लगाया, िजसम सम गरीबी अनुपात जो 1993-94
म 36 ितशत था कम होकर 2004-05 म 27.5 ितशत हो गया 11 वष क अविध म
8.5 ितशत क कमी इसम देखी गई । इसके साथ ही इन 11 वष क अविध के दौरान
गरीबी म औसत वािषक कमी 0.74 ितशत क दर से हई ह । एक बात यहाँ आव यक
प से यान देने यो य है जहाँ 1993-94 म गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले यि य क
सं या 32 करोड़ आंक गई थी जबिक 2004-05 म यह 30 करोड़ थी । गरीब क कु ल
सं या म कमी सुधार उपरां त काल म बड़ी धीमी गित से हई ह ।
9. सावजिनक े के उ म का िन पादन:-
अ यं त िन दनीय के ीय सावजिनक े के उ म के बारे म उपल ध सुचना से
पता चलता है िक इनके िन पादन म लगातार सुधार हो रहा ह । 1993-94 और 2004-05
के दौरान इनका िन पादन बेहतर रहा और यु पूं जी (Capital employed) पर इन क
सकल याय-दर (Gross Rate of Return) जो 1993-94 म 11.6 ितशत थी,
बढ़कर 2004-05 म 21.5 ितशत हो गयी । यही परीि थित शु लाभ क वृित म
अनुभव क गयी जो 1993-94 म 2.84 ितशत से बढ़कर 2004-05 म 13.0 ितशत हो
गया । इस ि थित म सरकार के िलए आव यक हो गया है िक इनके िविनवेश िक नीित को
याग कर सावजिनक े के उ म के िन पादन को उ नत करने के उपाय िकए जाए ।
इनके िन पादन मू यांकन से यह प ा चलता है िक 102 म से 44 अित-उ म
(Excellent) आंके गए, 36 बहत अ छे और 14 अ छे । यिद 102 म 94 सावजिनक
े के उ म म सुधार के संकेत ा हए ह, तो इनके िन पादन को उ नत करने के उपाय
खोजने ह गे, इसक बजाय इ ह बुरा नाम देकर, इनको फां सी दे दी जाए ।
10. आधार सरं चना के िवकास िक वृ ित:-
िव य इ पात तथा सीमट उ ोग म सुधार अविध के दौरान वृि दर, सुधार-पूव
अविध क अपे ा अिधक रही है इ पात म, उ पादन के सूचकांक म 1993-94 से
2010-11 के दौरान 8.1 ितशत थी वृि हई जबिक सुधार-पूव अविध 1980-81 से
1990-91 म यह के वल 4.9 ितशत थी । इसी कार सुधार-उपरां त काल म सीमट के
उ पादन म 8.3 ितशत क औसत वािषक वृि हई जबिक यह सुधार-पूवकाल म के वल
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04 ितशत थी । िक तु अ य आधारभूत उ ोग -िबजली, कोयला, पे ोिलयम और
पे ोिलयम प र कृ त उ पाद ने सुधार उपरा त काल म अ छी गित नह िदखायी । िबजली
के जनन म जहाँ 1980 के दशक म वृि दर 9.1 ितशत थी, वहाँ 1990 के दशक म यह
के वल 5.5 ितशत थी । इसी कार कोयले के उ पादन म यह 6.4 ितशत से घटकर
के वल 4.0 ितशत रह गयी । पे ोिलयम प र कृ त उ पाद म ि थित और भी खराब थी ।
पे ोिलयम के उ पादन क वृि दर जो 1980 के दशक म 12.2 ितशत थी, 1993-94 से
2010-11 के दौरान एक दम िगर कर 1.5 ितशत हो गई । जबिक रा य ने आधार सरं चना
े म िनवेश करने म अपने हाथ पीछे िखंच िलए, िनजी े -भारतीय एवं िवदेशी इस
रि को भरने म िवफल रहा । अत : सुधार उपरा त काल म, िनजी े पर अ यिधक
िनभरता के प रणाम व प बहचिचत एवं इ छीत प रणाम ा न हो सक ।
11. िवदेशी िनवेश:-
सुधार अविध के थम 20 वष अथात् 1991-92 से 2010-11 के दौरान 352
अरब डॉलर का िवदेशी िनवेश भारत म िकया गया िजसम 210.3 अरब डॉलर (59.7
ितशत) य िवदेशी िनवेश के प म और 141.7 अरब डॉलर पोट फोिलय िनवेश के
प म िकया गया । जहाँ 1991-92 म 12.9 करोड़ डॉलर य िनवेश तथा 0.4 करोड़
डॉलर पोटफोिलयो िनवेश भारत म िकया गया था वह मश: 2010-11 म बढ़कर
2702.4 करोड़ डॉलर तथा 3147.1 करोड़ डॉलर पर जा पहंचा । यह इस बात का तीक
है िक सुधार अविध के दौरान भारत म िवदेशी िनवेश के वाह म आशातीत वृि हई ह ।
29.8 आिथक सु धार क सीमाएँ :- (Limitations of Economic Reforms):-
ढां चागत सुधार क इन िमली-जुली उपलि धय के बावजूद आिथक सुधार क काफ
आलोचनाएँ हई । इकोनौिमक ए ड पोिलिटकल वीकली रसच फाउ डेशन ने िलखा है, “नई
आिथक नीित अपनी सं क पना म ..... िवषय वा तु म, ि कोण एवं युि और कु छ अ य बात म
दोषपूण ह ।” इसक सीमाओं को िन नां िकत िबंद ुओं ारा प िकया जा सकता है :-
1. प िवकास युि का अभाव:-
आिथक सुधार क अविध म सारा यान उ ोग म ितयोगी वातारण, िजसम उघम
स बं धी स पूण िनणय न के वल बाजार-शि य पर आधा रत हो, तैयार करने पर रहा ह । सरकार
ारा औ ोिगक िवकास के िलए कोई प औ ोिगक नीित नह अपनाई गई । इसके िवपरीत
िपछले तीन दशक म दि ण-पूव एिशया के िजन देश म तेजी के साथ औ ोिगक िवकास हआ है,
उनके िलए िवकास क सुिनिशचत परेखाओं और बाजार के मह वपूण ह त ेप के आधार पर ही
ऐसा कर पाना संभव हआ ह । दि ण को रया म औ ोिगक करण इसका मुख उदाहरण है िजसमे
िव बक तथा अ तरा ीय मु ा कोष के कड़े िवरोध के बावजूद भारी और रासायिनक उ ोग के
िवकास क नीित का ढिन य के साथ पालन िकया । इस कार यह कहा जा सकता औ ोिगक
िवकास मु यता उपभो ा व तुओ ं पर आधा रत िवकास मु यता अपभो ा व तुओ ं पर आधा रत
रहा, जहाँ तक आधारभूत-सरं चना का है, तो इस े का भी अपेि त िवकास नह हो पाया ।
436
इसके अित र औ ोिगक सुधार म भी लघु उ ोग एवं कु टीर उ ोग से स बं िधत सुधार हािशए
पर बने रह । स प म इन आिथक सुधार ने असं तिु लत औ ोिगक िवकास को ज म िदया ।
2. सु धार का गलत म –
सुधार के गलत म क वजह से आिथक बं धन म अनेक िवकृ ितयाँ पैदा हो गई ह ।
सुधार के गलत म के तीन प उदाहरण ह । थम, राजकोषीय, राज व तथा बजटीय घाट म
भारी कमी के िलए पहले गैर िवकास यय म कटौती और कर आधार का िव तार करना ज री ह,
पर तु सरकार ने िव ीय सुधार काय म कर क दर म कमी करके और पूं जीगत यय म कटौती के
ारा ार भ िकया । ि तीय सुधार के दोषपूण म का और अिधक प उदाहरण यह है िक सरकार
ने िबना यह सुिनि त िकए ही, िक िनजी े और िवदेशी िनदेशक िनवेश क मा ा बढ़ाएं ग,े
सरकारी पूं जीगत यय म कटौती कर डाली । सुधार के िु टपूण म का तीसरा उदाहरण यह है िक
घरेलू पूं जीगत पदाथ े म ौिगक के िवकास क योजना तैयार िकए िबना ही पूं जी गत व तुओ ं
के आयात म उदारीकरण क नीित को कायाि वत कर िदया गया ।
3. सु धार लागु करने म अनाव यक ज दबाजी:-
सुधार को लागु करने म अनाव यक ज दबाजी का कारण भारतीय अथ यव था को िव
अथ यव था का शी ाितशी अंग बनाने का िववादा पद ल य था । इकनौिमक ए ड पोिलिटकल
वीकली रसच फाउ डेशन ने प िकया है िक औ ोिगक सं विृ म तेजी के साथ िगरावट, पूंजी
पदाथ उ ोग िक संविृ म कमी, िनयात म सापे प से िनिमत माल के मह व म कमी और
औ ोिगक रोजगार के िव तार म बाधा तेजी के साथ सुधार के कु छ प भाव ह । इन सुधार ने
भारतीय उ ोग को न तो सं भलने का अवसर िदया और न ही रोक और सं तलु न क उपयु
यव था क ।
4. कृ िष क उपे ा:-
आिथक सुधार का मूल दोष कृ िष क उपे ा ह । आंकड़ से ात होता है िक खा ा न
उ पादन जो 1980-81 म 1296 लाख टन था बढ़कर 1990-91 म 1764 लाख टन हो गया । इस
कार सुधार-पूव के दशक म खा ा न म 3.1 ितशत क वािषक वृि हई, पर तु आिथक सुधार
के दो दशक क अविध के दौरान खा ा न उ पादन जो 1990-91 म 1764 लाख टन था से बढ़कर
2008-09 म 2340 लाख टन हो गया अथात् इसम 1.6 ितशत क औसत वािषक वृि हई जो
िक जनसँ या क वृि दर से कम थी । इस कार कृ िष े क उपे ा का भीषण प रणाम आने
वाले दशक म देखने को िमल सकता ह । सुधार ि या ने िविनमाण और सेवा े के िवकास पर
ही बल िदया है और कृ िष क उपे ा क है सुधार अविध के 25 वष म हम अपने कृ िष े म
िवकास के लि त 4.0 ितशत वािषक वृि दर के उ े य को ा करने म असफल रह ह । इस
अविध के दौरान कृ िष े म िन न िनवेश का तर, िसंचाई य थाओं के िव तार म यून सुधार तथा
कमजोर ाम आधार सरं चना आिद कृ िष े के ित आिथक सुधार क उपे ा को दिशत करते
ह।
5. े ीय असमानताओं को बढ़ावा:-
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आिथक सुधार का मु य उ े य िवकास क गित को ती करना था ऐसा िवकास जो
े ीय असमानताओं को कम कर । इस उ े य हेतु सुधार पूव क अविध के दौरान राजक य नीितय
को िपछड़े े क सहायता करने के िलए ढाला गया । यह रािशय के ह तातं रण का भी एक
आधार था िक िपछड़े रा य को अिधक आवंटन (Allocation) िकए गए तािक े ीय िवषमताएँ
कु छ हद तक कम क जा सक ।
इसके िवपरीत आिथक-सुधार क अविध म बाजार-शि य के योग ारा वाभािवक
प से िनवेश को ऐसे े म बढ़ावा िदया गया जो आिथक तथा िव ीय दोन कार क आधार
सरं चना म अिधक िवकिसत रही ह । वे े ीय असं तलु न क ओर कोई यान नह देती ह ।
सुधार-उपरा त काल म िनवेश- ताव का दो-ितहाई से भी अिधक अ गामी रा य म सं केि त
रहा और यही ि थित अिखल भारतीय िव सं थान ारा िवत रत िव ीय सहायता क थी । इन
सं थान ारा कु ल िव ीय सहायता का 67.3 ितशत 31 माच 1997 तक अ गामी रा य को
उपल ध कराया गया । 09 अ गामी रा य म से चार रा य अथात् महारा , गुजरात, तिमलनाडु
तथा आं - देश कु ल सहायता का 51 ितशत भाग हिथयाने सफल हो गये । यह िव ेषण इस
बात को प करता है िक आिथक सुधार क अविध म िनवेश ताव क वीकृ ित एवं िव ीय
सहायता म अ गामी रा य के साथ प पात िकया गया िजससे देश के िविभ न रा य के म य
असमानताओं क खां ई बढ़ी ह ।
6. अिधकतर आधारभू त उ ोग के िवकास क अनदेखी:-
सुधार- ि या के दौरान के वल इ पात और सीमट जैसे आधार-भूत उ ोग को छोड़ द तो
यह प होता है िक अ य सभी उ ोग के िवकास म कोई उ साहजनक प रणाम िदखाई नह पड़ता
ह । इसके िवपरीत आिथक सुधार क अविध म िबजली, कोयला और पे ोिलयम प र कृ त उ पाद
क कोई अ छी गित नह िदखाई देती ह । इसके पीछे यह तक िदया जाता है िक सरकार ारा
आधार सं रचना े म िनवेश म अपने हाथ िखंच लेने और तथा िनजी े भारतीय एवं िवदेशी ारा
इस भारी िनवेश क आव यकता को पूरा करने क िवफलता के चलते ऐसा हआ ह । अत: आधार
सं रचना के िवकास के िलए िनजी े पर अ यािधक िनभरता के प रणाम व प बहचिचत एवं
इि छत प रणाम ा न हो सके ।
7. आिथक सु धार और म भाव:-
सुधार ि या ने म पर भी दु भाव ही डाला ह । इसका माण इस त य से िमलता है िक
सुधार-पूव काल म ताला-बि दय (Lockouts) के प रणाम व प मानव िदन क हािन 46.0
ितशत थी पर तु सुधार-उपरा त काल म यह एकदम छलांग लगाकर 60 ितशत हो गई । यह
प रि थित 2001-06 के दौरान और खराब हो गयी और मानव-िदन क हािन और बढ़कर लगभग
75 ितशत हो गई । इसके अित र कारखान को ब द (Closures) करने और जबरी घुटी (Lay
off) क ि या म भी वृि हई ह । इसके साथ-साथ आकि मक िमको (Casual Labourers)
का अनुपात जो 1988 म 31.2 ितशत था बढ़कर 1998 म 37 ितशत हो गया । सुधार क

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अविध के दौरान िमको को सं गिठत े से धके लकर असं गिठत े म भेज िदया है अथात्
सुरि त रोजगार से असुरि त रोजगार क और ।
िवदाई नीित (Exit policy) के तहत कई कार से िमको को िनजी तथा सावजिनक
दोन े म वैि छत सेवा-िनवृित योजना के तहत छटनी क जा रही ह ।
8. यु ि के अिभ न अं ग के प म मानव िवकास ल य का अभाव:-
भारत म अधूरे ढां चा ग प रवतन , यापक गरीबी, मानव िवकास के नीचे तर और िश ा
व वा य के े म सं प न वग के प म िवकृ त सरकारी यय क पृ -भूिम म ि थरीकरण एवं
ढां चागत सुधार का काय म लागू िकया गया । इन िनराशा जनक ि थितय और आिथक सं विृ
क नीची दर के होते हए ढांचागत सुधार को मानवीय चेहरे के साथ िकया जाना चािहए । अिभ ाय
यह है िक मानव िवकास के ल य ढांचागत समायोजन क युि के अिभ न अंग हो ने चािहए ।
लेिकन दुभा य क बात यह है िक भारत म ऐसा कु छ भी नह िकया गया ह ।
9. समावेशी िवकास क ाि से दू र:-
2008 म जारी यारहव पं चवष य योजना के द तावेज म भी इस बात को वीकार िकया
गया है िक सुधार-अविध म होने वाली सं विृ क ि या समावेशी (Inclusive) नह रही है जहाँ
एक ओर दसव पंच वष य योजना म 7.7 ितशत क वािषक वृि दर ा क गई, वही ँ दूसरी ओर
अभी भी बहत से लोग के पास अ छे जीवन यापन के िलए यूनतम आव यक पोषण साम ी,
यूनतम िश ा व मूल िचिक सा सुिवधाओं, जल आपूित व मल-िनयास जैसी लोक सेवाओं का
िनतां त अभाव ह । समाज कमजोर वग तथा अ प सं यको को िजतना लाभ िमलना चािहए था
उतना नह िमल पाया ह । िविभ न रा य के म य तथा एक ही रा य के िविभ न े के बीच
असमानताओं म वृि हई ह । अत: यह कहा जा सकता है िक सुधार- ि या के दौरान ा उ च
सं विृ क दर समावेशी कार क नह हो सक ह ।
10. बेरोजगारी एवं िनधनता म वृ ि :-
सुधार क अविध म रोजगार के अवसर म वृि तो हई है पर तु रोजगार सजृन क दर,
िमको म वृि दर क अपे ा कम रही है िजससे इस अविध के दौरान बेरोजगार क एक बड़ी
फौज तैयार हो गई है जो िक देश के िलए एक िवकट सम या है चूिँ क भारत जं नाक क य लाभां श क
ि थित वाला युवा देश है अत: इस ि थित म बेरोजगारी क सम या देश के समुख सबसे भीषण व
वंलत सम या ह ।
सुधार अविध के दौरान सापे गरीबी तो घटी है जहाँ 1993-94 म सम गरीबी अनुपात
36 ितशत था वह कम होकर 2004-05 म 27.5 ितशत तथा 2011-2012 म 26.1 ितशत हो
गया है पर तु िनरपे गरीबी 1993-94 म जहाँ 32 करोड़ थी वह 2011-2012 म भी 30 करोड़ के
आस-पास बनी हई है अत: िजसे कम करना एक चुनौती ह ।

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29.10 ि तीय चरण के आिथक सु धार
1991 म आिथक सुधार क िजस ि या का सू पात िकया गया है, उसे थम चरण के
आिथक सुधार क सं ा दी गई । इसक पहल के सरकार के ारा क गई और इ ह मु यत:
कायपािलका के आदेश के ारा ि याि वत िकया गया । जब ये आिथक सुधार अपेि त प रणाम
देने म िवफल रहे और धीमे-धीमे इनक सीमाएँ उभरने लगी तो ीतीय चरण के आिथक सुधार क
चचा शु हई । ऐसा माना गया िक ीतीय चरण के आिथक सुधार, सुधार के अपेि त प रणाम
तक ले जाने म सहायक सािबत ह गे ।
29.10.1. ि तीय चरण के आिथक सु धार से आशय:-
आिथक सुधार क ि या को आगे ले जाते हए िवकास के तमाम अवरोध को दूर करना
। ि तीय चरण के आिथक सुधार को प रभािषत करने के िलए अवसर अं ेजी के इस पदबं ध का
सहारा िलया जाता ह :- Widening and Deepening the Input of Liberalisation अथात्
उदारी करण के भाव को यापकता और गहराई दान करना । आशय यह है िक िजन े म
आिथक सुधार क ि या का सू पात पहले ही हो चुका है , उन े म और गहरे तर पर जाकर
सुधार को ि याि वत करना ह । साथ ही, उन े म भी आिथक सुधार क ि या का सू पात
करना, िजन े तक अब तक इसक पहँच सं भव नह हो पाई ह । ये सुधार थम चरण के आिथक
सुधार से इस मायने म अलग ह िक इन सुधार म रा य क मह वपूण भूिमका अपेि त ह । प है
िक ि तीय चरण के आिथक सुधार म क के साथ-साथ रा य क मह वपूण भूिमका ह । साथ ही,
इसके िलए िवधाियका से पहल अपेि त ह । ऐसा तक तक सं भव नह है, जब तक सुधार के
पर राजनीितक आम-सहमित कायम न ह । इसे िपछले एक दशक के दौरान सुधार हेतु
तािवतपहलुओ ं के प र े य म देखा जा सकता है, जहाँ राजनीितक मतभेद ने आिथक सुधार क
ि या को अव िकया ह ।
29.10.2 ि तीय-चरण के आिथक सु धार क शु आत:-
जहाँ तक थम ि तीय चरण क कालाविध का है, तो दोन के म य िवभाजक-रेखा
खीचना मुि कल काय ह । कारण यह है िक ि तीय चरण का आिथक सुधार, थम चरण के
आिथक सुधार का ही िव तार और िवकास ह । इसीिलए यह मानने का कोई अिभ ाय नह है िक
ि तीय चरण के आिथक सुधार क शु आत के साथ थम चरण के आिथक सुधार का अ त हो
गया ह । इसक शु आत 1998-99 से मानी जा सकती है और यह अब तक जारी ह । िवशेष प से
2004 से मानवीय चेहरे के साथ आिथक सुधार पर जोर ि तीय चरण के आिथक सुधार क ि या
म तेजी का सं केत देता ह ।
ि तीय चरण के आिथक सु धार

औ ोिगक नीित राजकोषीय नीित पूं जीगत बाजार यापार नीित क मत नीित अय
नीित े
440
1. औ ोिगक नीित:-
(i) लघु उ ोग से स बिधत सुधार को ाथिमकता
(ii) म सुधार
(iii) औ ोिगक िनकास नीित का िवकास और अ तर ीय मानद ड के अनु प िदवािलया
कानून का िनमाण
(iv) सावजिनक उप म के स दभ म िविनवेश और िनजी कारण क ि या को व रत करना,
िवशेष प से रा य-िनयंि त सावजिनक उप म म सुधार हेतु ।
(v) आिथक और सामािजक आधारभूत सं रचना के िवकास को ाथिमकता और इसके िलए
सावजिनक-िनजी भागीदारी को सुिनि त करना ।
(vi) िनवेश- ि या क जिटलता को दूर करते हए िनवेश हेतु अनुकूल माहौल तैयार करना और
इससे स बं िधत मामल का व रत िन पादन ।
2. राजकोषीय नीित:-
(i) राजकोषीय सुधार क ि या को आगे बढ़ाना िवशेष प से रा य के तर पर
रा यकोषीय सुधार क ि या का सू पात करते हए उसे ि याि वत िकया जाना ।
(ii) व तुओ ं और सेवाओं के िलए एक समान कर णाली का िवकास जी .एस.टी. ारा लागू
करना ।
(iii) जारी राजकोषीय रयायत और अ य अित र कर को चरणब तरीके से समा करना ।
(iv) यय बं धन को सव य ाथिमकता दान करना
(v) राजकोषीय लेखां कन ि या को पारदश बनाना तथा सभी कार के सरकारी लन-दन को
इसके अंतगत शािमल करना ।
(vi) करारोपण के ैितज िस ां त (सभी े पर कर का का समानुपाितक बोझ) के अनुपालन
को सुिनिशचत करते हए कर ढाँचे के सरलीकरण और िववेक करण क ि या को आगे
बढ़ाना ।
3. पूं जीगत बाजार नीित:-
(i) मौि क और पूं जी बाजार के स दभ म आिथक उदारीकरण क ि या को अिधक भावी
बनाना ।
(ii) बिकं ग सुधार को आगे बढ़ाते हए िवलय एवं अिध हण क अनुमित, तािक अ तरा ीय
ित पधा म सम िव ीय ढाँचे का िनमाण सं भव हो सके ।
(iv) बीमा-सुधार को आगे ले जाना ।
4. यापार नीित:-
(i) पूं जीगत खाते म पये क पूण प रवतनीयता ।
(ii) पये के िविनयम दर के स दभ म बाजार कारको को पूण वंत ता ।

441
(iii) सीमा-कर क दर को आिसयान देश के तर पर लाया जाना ।
5. क मत-नीित:-
(i) सि सडी िवशेष प से नान मे रट सि सडी को कम से कम िकया जाना ।
(ii) यूजर-चाजज क अवधारणा को अिधक से अिधक लागू िकया-जाना ।
6. अथ यव था के अ य े :-
कृ िष े म आिथक सुधार क ि या का भावी तरीके से ि या वयन तािक
उदारीकरण के लाभ को ामीण े और िकसान तक पहँचाया जा सके ।
29.10 आिथक सु धार क भावी िदशा
(i) अगले चरण म आिथक और सामािजक आधारभूत सरं चना के िवकास को ाथिमकता िदए
जाने क बात क गई है और इसके िलए सावजिनक-िनजी भागीदारी (Public Private
Partnership –PPP) का नारा िदया गया ।
(ii) औ ोिगक सुधार म लघु औ ोिगक सुधार को मह व िदया जाना है , तािक आिथक सं विृ
के अनु प रोजगार अवसर का सृजन हो सके तथा आिथक कु शलता और ित पधा मकता
म वृि के ज रये िनयात-सं भावना का िव तार हो सके ।
(iii) िवदेशी िनवेश के अंत वाह म तेजी लाने के िलए िनवेश - ि या क जिटलता को दूर करते
हए िनवेश हेतु अनुकूल माहौल का सृजन िकया जाना ह । इसके िलए म-सुधार पर जोर
रहेगा । साथ ही, औ ोिगक िनकास नीित और अ तरा ीय मानद डो के अनु प िदवािलया
कानून का िनमाण अपेि त ह ।
(iv) ि तीय चरण के आिथक सुधार के दौरान करारोपण णाली को औ ोिगक े के
साथ-साथ आिथक िवकास के अनुकूल बनाया जाना ह । इसके िलए अिधक से अिधक
सेवाओं को सेवा-कर के दायरे म लाते हए व तुओ ं और सेवाओं पर एक समान कर णाली
को अपनाया जाना आव यक ह । इस हेतु व तु एवं सेवा कर िबल िपछले 05 वष से
राजनीितक गितरोध के चलते संसद म िवचारधीन है िजससे शी ितशी पा रत िकया जाना
आव यक ह । इसके अित र कृ िष- े को भी आयकर के दायरे म लाये जाने क सं भावना
ह।
(v) जहाँ तक बिकग और िव ीय सुधार का ह, तो इसम भी तेजी आने क संभावना ह ।
बिकग ढाँचे म िनजी े के साथ-साथ िवदेशी बक क भूिमका म भी िव तार क सं भावना
ह । साथ ही बीमा े म सुधार के साथ-साथ पये क पूण प रवतनीयता क िदशा म कदम
अपेि त ह ।
(vi) अंत म मु य यान कृ िष े और सेवा े म सुधार पर रहने क सं भावना है य िक थम
चरण के आिथक सुधार के दौरान कृ िष े म पूं जी िनमाण क दर के साथ-साथ सावजिनक
िनवेश क दर म कमी आई, िजसके कारण कृ िष िवकास क दर घटकर आधी रह गई । जैसा
िक 12 व पंचवष य योजना के ि कोण प म कहा गया है िक िबना 4% के कृ िष िवकास
442
दर को पाये ि अंक य आिथक सं विृ दर को हािसल करना और उसे बनाए रखना मुि कल
होगा ।
(vii) आिथक सं विृ को मानव-िवकास म प रणत करना िनतां त आव यक ह । भारत वािसय के
बहत बड़े वग को पोषण, िश ा, िचिक सा तथा सफाई सुिवधाएँ लोक सेवाओं के मा यम से
यापक पैमाने पर उपल ध करना आव यक ह । तभी समावेशी िवकास का यह नारा “सबका
साथ सबका िवकास” सफल हो पाएगा ।
29.11सारां श
उदारीकरण और िनजीकरण क नीितय के मा यम से वै ीकरण के भारत सिहत अनेक
देश पर सकारा मक तथा नकारा मक भाव पड़े ह । कु छ िव ान का िवचार है िक वै ीकरण को
एक सुअवसर क भां ित देखा जाना चािहए य िक िव बाजार म बेहतर पहँच तथा तकनीक
उ नयन ारा िवकासशील देश के बड़े उ ोग को अ तरा ीय तर पर मह वपूण बनने का अवसर
ा हआ ह ।
दूसरी ओर आलोचको का मत है िक वै ीकरण के मा यम से िवकिसत देश िवकासशील
देश के घरेलू बाजार पर आिधप य थािपत करने म सफल हए ह । भारत के स दभ म
सुधार- ि या अपने िवकास-स बं धी ल य को पूणतया ा नह कर सक , य िक िनजी े का
सरोकार तो के वल लाभ- ेरणा से होता ह । जहाँ पर िक सुधार ि या ने सावजिनक े का
कायभार कम कर िदया है, वही ँ सावजिनक े के हट जाने से पैदा हए र थान को, िनजी े
ठीक से भर नह पाया ह । साथ ही सुधार ि या ने देश के आिथक िवकास के साथ-साथ े ीय
तथा सामािजक असमानताओं को बढ़ाया है िजससे िनपटना हमारे िलए एक बड़ी चुनौती ह इसी
चुनौती के स दभ म भारत के पूव धानमं ी ी मनमोहन िसंह ने अपना िवचार य िकया ह िक
“हम िवकास के अथशा को समता और समािजक याय (Equity and social Justice) के
अथशा से जोड़े । हमारे पास दो पैर पर चलने के िसवा कोई दूसरा िवक प नह ह ।”
बोधग य

1. नई आिथक नीित से आप या समझते है ? उन प रि थितय का वणन कर िजनके चलते इ ह अपनाया


गया ।
2. नरिसंह राव मनमोहन िसंह िवकास युि को समझाए ।
3. िविभ न कार के थािय वकारी उपाय का वणन क िजए ।
4. िविनवेश का या अथ है ? इसे य अपनाया गया ?
5. 1991 से भारत म िकये गये िविभ न ढां चागत सुधार को सं ेप म िलिखये ।
6. भारत म कर सुधार पर संि िट पणी क िजए ।
7. 1991 के बाद भारत म संप न िव ीय े सुधार को सं ेप म बताये ।
8. िन निलिखत पर िट पणी िलिखये
443
i. राजकोषीय समायोजन
ii. भुगतान संतलु न म समायोजन
iii. यापार एवं पूं जी वाह म सुधार
9. उदारीकरण से या अिभ ाय है? भारतीय अथ यव था पर इसके भाव का आलोचना मक मू यां कन
क िजए ।
10. िनजीकरण से आप या समझते हो ? इसके िविभ न माडलो को समझाइए ।
11. वै ीकरण का या अथ है ? भारतीय अथ यव था पर इसके भाव का आलोचना मक मू याकं न
क िजए ।
12. आिथक सुधार क उपलि धय और सीमाओँ का वणन क िजए ।
13. ि तीय चरण के आिथक सुधार का सं ेप म वणन क िजए ।

444
इकाई–30
भारतवष म बहरा ीय िनगम
इकाई क परेखा
30.0 उेय
30.1 तावना
30.2 बहरा ीय िनगम क िवशेषताय
30.3 बहरा ीय िनगम म वेश म बाधाय
30.4 यवसाय िविध तथा तकनीक
30.5 अमे रका क दशा िबगड़न
30.6 पूं जीगत तकनीक
30.7 कनाडा तथा भारत के अनुभव
30.8 सारां श
30.9 श दावली
30.10 कु छ उपयोगी पु तक
30.11 बोध के उ र
30.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप
 जान सकगे िक बहरा ीय िनगम िकसे कहते है?
 इनके वेश म या बाधाएं आती है?
 समझ सकगे िक इस स ब ध म भारत के अनुभव कै से है?

445
30.1 तावना
आज हम ऐसे युग म रह रहे है िजसम तकनीक के िवकास ने िविभ न रा के बीच क दूरी
को घटाकर अ यिधक कम कर िदया है तथा कोई भी रा पूण प से वावल बी होने क बात भी
नह सोच सकता। एक कार से एक रा क दूसरे पर िनभरता बढ़ गई है । आज क सरकार का
काय साधारण यि के क याण म वृि करना है । अत: िवकासशील रा क सरकार अपने
आिथक िवकास तथा देशवािसय क भलाई के िलये बहरा ीय िनगम से तालमेल बनाये हए है ।
बहरा ीय िनगम क प रभाषा इस कार क जा सकती है िक यह एक ऐसी सं था अथवा
िनगम है िजसम, एक या एक से अिधक देश का अिधप य होता है । पर तु इसका उ पादन अथवा
सेवाय. िविभ न रा को भेजी जाती है, जो मु य प से िवकासशील देश है । इसम लगी हई
स पि उ ह रा ारा लायी जाती है िजनका इन पर आिधप य है । इस िनगम म काय करने वाले
लोग का चयन पूण पेण यो यता पर आधा रत होता है । भले ही वे उस देश के न ह जहां पर ये
िनगम काय कर रहे ह । इस कार ये बहरा ीय िनगम रा ीय फम अथवा िनगम से िभ न होते है ।
30.2 बहरा ीय िनगम क िवशेषताय
बहरा ीय िनगम क कु छ मुख िवशेषताय है जो इ ह थानीय िनगम या रा ीय िनगम
से अलग करती है, वे इस कार से है :–
1. यह िनगम शोध नथा िव ापन पर अिधक यय करती है, उन क पिनय क तुलना म िजनका
काय े इतना यापक अथवा अ तरा ीय नह है । उदाहरण के िलये अमे रक बहरा ीय
िनगम को िलया जा सकता है ।
2. इसी कार यह िनगम िजनम मु य प से अमे रकन क पनी आती है, अिधक बड़े होते है तथा
उनक उ पादन प ित म िविभ नता अिधक होती है । इनका िवशेष जोर िनयात पर होता है तथा
यह अपने कायकताओं को अिधक मजदूरी देते है ।
3. यह िनगम मु य प से अपने ि कोण म अ तरा ीय होते है । हालांिक जापानी बहरा ीय
िनगम जो िक मु य प से तकनीक िव तार पर आधा रत है, अपने ि कोण म इतने यापक
नह है ।
4. यह िनगम सम त बाहर से आने वाली राय टी, फ स तथा लाभ के 90% भाग के उ रदायी है
5. इन िनगम के ारा जो य िविनयोग अ य रा म हो रहा है उसके कारण िविभ न रा म
एक कार क ित प ा आ गई है तथा िविभ न औ ोिगक रा म समानता क वृित भी
इसी कारण से आयी है । बहरा ीय िनगम वतमान औ ोिगक रा के िवकास का तीक है ।
वतमान समय म यह वाद–िववाद का िवषय बन गया है । थम, इनका आकार बहत बड़ा होता
है । ि तीय, यह िनगम िजन यापा रक गितिविधय म िनपुण होते है उ ह पर जोर देते है । भले

446
ही यह गितिविध रा ीय िहत से मेल न खाती हो। तृतीय, इनके िनय ण तथा ब ध क जो
िविध है वह अलग है ।
हालांिक यह नह समझना चािहये िक ये िनगम सदैव रा के िहत म काय नह करते।
इनसे िवकासशील रा को कई कार के लाभ भी ा हये है, मु य प से तकनीक के े
म।
30.3 बहरा ीय िनगम मे वेश म बाधाय
बहरा ीय िनगम को कई कार क बाधाओं का सामना करना पड़ता है । थमत : इन
िनगम का सं गठन अ यं त िवकिसत होना चािहये तािक यह आने वाली जिटल सम याओं को सही
कारसे सं भाल सके । मु य प से ये े है, िडजाईन, उ पादन स भव करना िजसके िलये उ पािदत
व तु का चयन अित आव यक है, और िफर उ पािदत व तु को बाजार म सफलता से बेचना। यहाँ
पर यह बात िविदत है िक कु छ–िवकासशील रा म इनका िवरोध होता रहा है । इसम स देह नह
िक अपने बड़े आकार के कारण इन िनगम को मेहमान देश म अपना समान बेचने म उस देश के
उ पादको क अपे ा कई कार के लाभ ा होते है । जैस,े तां बा, ऐ यूमीिनयम. तथा वाहन उ ोग
आिद म देखा गया है । इस कार रा ीय उ पादको के िहत म तथा 'बहरा ीय िनगम म िवरोध
होता रहता है । इसी कार से कु छ अ य बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है, जैसे लाइसे स
नीित तथा बाजार म पुराने चलने वाले पेटे ट या नाम।
बहरा ीय िनगम ाय : िविभ न कार के उ पादन म यवसाय करते है इससे उनक ब ध
स ब धी सम याय तो बं ट ही जाती है साथ ही यह बाजार म उनक ित पधा क शि को बढ़ाकर
ढ़ता भो दान करता है । िकसी व तु क मां ग क कमी या धीमेपन क दूसरी व तु क मां ग
बढ़ाकर पूरा िकया जा सकता है ।
इसके अित र वह े िजसम यह िनगम काय करती है तुलना मक प से बड़ा होता ह
िजससे भी इसे लाभ ा होता है । ार भ म यह िनगम अित सतकता से नई दशा के बाजार म वेश
करती है । पर तु जब एक बार इनके पैर इस े म जम जाते है तो यह बहत तेजी से बढ़ते है
30.4 यवसाय िविध तथा तकनीक
बहरा ीय िनगम का े जहां तक औ ोिगक िवकास का है, वाद–िववादा मक रहा
है । इन िनगम का मह व तकनीक उ थान तथा वै ािनक े म पया माना जाता ह, पर तु इस बारे
म कभी–कभी शं का भी य क गयी है । इसम स देह नह िक ये िनगम, नये–नये उ पादन बाजार
म रखने म सफल हये है । िजनम अिधक मा ा म धन क आव यकता होती है और उ पादन काल
भी अिधक होता है । बहरा ीय िनगम क सफलता के कारण कभी–कभी इन िनगम तथा थिनय
उ ग अथवा सरकार म ख चातानी होने लगती है । कभी–कभी ऐसा सोचा जाता है िक इन िनगम

447
के कारण देश के आिथक िवकास व तकनीक के सृजन म बाधा उ प न हो रही है और देश िवदेशी
तकनीक तथा पूं जी पर अनाव यक प से िनभर होता जा रहा है ।
बहरा ीय उ ोग को ाय : थानीयकरण स ब धी सम याओं का सामना करना पड़ता है
। ये सम याय तीन कार क हो सकती है । थम, कहां पर उ पादन बं िधत का काय िकया जाये,
ि तीय कहां पर व तु िनमाण िकया जाये, तथा तृतीय कहां उ पािदत व तु को बेचा जाये। बहरा ीय
िनगम के िलये नये उ पादन क िब म परी ण करना अपने ही देश म अिधक सरल व लाभकारी
है दूसरे देश क तुलना म। वा तव म शोधकाय 'से ऐसा पता चला है िक वे व तुएं अथवा उ पादन
िजनक थानीय खपत अथवा मां ग होती है उनके बारे म अ वेषणा मक सफलता अिधक सरल ह।
उदाहरणाथ तकनीक िस ा त अथवा वै ािनक िस ा त चाहे कह भी िवकिसत हआ हो, पर तु
जय उसको उ पादन म बदला जाना है तो थानीय वीकृ ित तथा पया मां ग आव यक हो जाती है ।
ये बात जापान के छोटे–छोटे टेिलिवजन व रेिडयो सेट के स ब ध म सही उतरती है । जो जापान के
सरल रहन–सहन के िहसाब से अिधक. उपयु थे।
िन निलिखत तािलका म िविभ न. देश म हए िविभ न कार क अ वेषणा मक सफलताय
िदखाई गयी है जो िविभ न कारको पर आधा रत है ।
तािलका 30.1
बहरा ीय िनगम ारा अपनाई गई प ित

अ वेषण के सं यु रा इं लै ड ीप यूरोप जापान


उेय अमे रका
तथा व प सं या % सं या % सं या % सं या %
I. अ वेषण क ि या
1. पदाथ अथवा
सामान क बचत 58 18.8 122 47.8 95 3.7 12 48.0
2. म क बचत 189 61.1 66 25.9 32 18.1 04 15.0
3. पूं जी क बचत 58 18.8 61 23.9 43 24.3 07 28.0
4. िविवध बचत 04 1.3 06 2.4 07 3.9 02 8.0
कु ल योग 309 100.0 255 100.0 177 100.0 25 100.0

448
II. उ पादन अ वेषण
1. पदाथ अथवा 117 22.6 127 40.3 100 50.3 20 29.0
सामान क बचत
2. म क बचत 142 27.5 13 4.1 09 4.5 20 2.9
3. नवीन फलन 106 20.5 50 15.9 33 6.6 12 17.4
4. अ य 152 29.4 125 39.7 57 28.6 35 50.7
कु ल योग 517 100.0 315 100.0 199 100.0 87 100.0
उपयु तािलका से प है िक अ वेषण थानीय मां ग से भािवतहोता है । उदाहरण के ,
िलये अमे रकन अ वेषण का आधार म क खपत को यय करना था, य िक – अमे रका म म
अभाव तथा अ य अिधक थी। इसके िवपरीत अ य े म अ वेषण का उ े य सामान क बचत है
इन कारको क सफलता म अ तत : मु य बात तकनीक . कु शलता न रहकर उ पादन
लगान तथा उस व तु क अमुक बाजार म िकतनी मां ग है ।. इस पर िनभर करती है । स यता यह है
िक िवकासशील रा म अिधकतर जनसं या क आय कम है और उनम आिथक तथा सामािजक
िपछड़ापन है िजसके कारण ाय:वे कम लागत का सामान मां गते है । बहरा ीय िनगम के मुख
रा को यह बात समझना चािहये िक सफलता के िलये उनके सहयोगी रा के आिथक
वातावरण क अ ययन अित आव यक है । सम त अ वेषण इ ह बातो को यान म रखकर िकये
जा रहे है । एक सफल उ पादन को बाजार म रखने के िलये कई कार के परी ण करने पड़ते है और
उनको 'कई अव थाओं से गुजरना पड़ता है । यिद दो ित पधा मक उ पादन के बीच म चयन
करना है तो इस स ब ध म िनणय बहत छानबीन से करना पड़ता है । और इस बात का अ ययन
करना पड़ता है िक उपभो ा इनम से िकसका चयन करगे तथा िकन कारण से वह अमुक उ पादन
को इ तेमाल करना चाहगे। इस कार बहरा ीय िनगम के उपभो ा क मां ग से स बि धत शोध
काय िनर तर करना पड़ता है । नयी उ पादन इकाई कहां पर रखी जायेगी। यह इस बात पर भी िनभर
करता है िक िजन देश म इनक खपत होगी वहां क यापार नीित तथा आयात कर सं रचना िकस
कार क है । हवाई जहाज के िनमाण तथा कपड़ा उ ोग म ऐसा पाया गया िक बदलती
आव यकताओं व मां ग के कारण अितशी उ पादन मां ग के बाहर हो गया है, इस कारण बहरा ीय
िनगम यह िवचार करने पर िववश हो गये िक यिद कोई नया उ पादन िवचार िकया जाये तो वह घरेलू
बाजार तथा प रि थितय से अलग नह होना चािहये।

449
30.5 अमे रका क दशा िबगड़न
उदाहरण व प ि तीय िव यु से सं यु रा , अमे रका का बाजार पर अिधप य बना
हआ है तथा शोध काय म भी अमे रका अ यिधक आगे है । इस बात का माण इससे भी िमलता है
िक नोबेल पुर कार िवजेता िव ान तथा तकनीक के े म अिधकतर, सं यु रा अमे रका के ही
है, ि तीय िव यु के बाद मुख प से 1970 के प ात सं यु रा अमे रका का उ पादन तथा
उसके िनयात जापान एवं अ य यूरोपीय देश क तुलना म घटे है । मु य प से यह कमी दूरदशन,
लाि टक सामान, दवाइयां, रेि िजरेशन स ब धी सामान तथा यां ि क उपकरण के े म आई है ।
मोटर गाड़ी के उ ोग के े म भी सं यु रा अपनी बढ़त को बनाये रखने म असफल रहा है ।
1970 के बाद एक समय ऐसा आया जबिक जापान तथा अ य यूरोपीय देश क स ती तथा अिधक
उपयोगी गािड़य ने अमे रका के कार उ ोग म मंदी क वृितयां उ प न कर दी। सं यु रा
अमे रका म इस समय कार बनाने के उ ोग म जो मंदी आई थी उसका मु य कारण अमरीकन
उ ोगपितय क उपभो ा क मां ग का सही िव ेषण नह करना था। वा तव म उपभो ा के
अिधमान म प रवतन होता रहता है और इसका अ ययन अित आव यक होता है! यिद कोई भी
उ ोग इसक अवहेलना करेगा तो उसे हािन उठानी पड़ेगी। इस सबके बावजूद कु छ अ य े म
अमे रकन उ ोग उ रो र वृि करता है । जैसे – लोहा इ पात, अ युमीिनयम, रसायिनक तथा
मु य प से औ ोिगक िव तु उपकरण तथा क पयूटर उ ोग। इन े के अलावा लेसर जैसे तथा
खान स ब धी उपकरण व अंत र उपकरण भी सि मिलत थे। सं यु रा अमे रका का इन े म
सफलता का कारण न के वल सं यु रा के बाजार का बड़ा आकार था वरन् मु य प से यह बात
भी थी िक सरकार ने वयं इस काय म को बड़े तर पर चलाया और सहायता दी। इस सहायता म
अनुदान भी सि मिलत था उसका लगभग 50% सरकारी धन था।
िवकिसत रा क इस गित क तुलना म जब हम गितशील रा थे देखते है तो हम ये
पाते है िक वहाँ तकनीक िवकास के बारे म इस कार क उ सुकता नह है कु छ गितशील रा तो
के वल पा ा य िवकिसत तकनीक को य क य अपनाना चाहते है तथा अपना रहे है । इनम
मु य प से कु छ रसायिनक मशीन उपकरण तथा िव तु मोटर सि मिलत है, जबिक कु छ िवकिसत
रा तकनीक क अपनी आव यकताओं तथा हालात के अनुसार बदलकर अपनाने क चे ा कर
रहे है । इस यास को बीच क तकनीक कहा जा सकता है जो न अ यिधक पूं जीगत है, न मगत।
इस स ब ध म हम ये पाते है िक कु छ तकनीक िवकास सबक मुख सामा य िवशेषताय इस कार
है : जैस,े अिधकतर इस कार क तकनीक खोज िवकिसत औ ोिगक रा म हई, पर तु इसको
लागू करते समय आव यकतानुसार प रवतन िकया जाना ही िवकासशील रा के िहत म है ।
मैि सको, ाजील तथा भारतवष म िविभ न े म जो यास हए है वे िवकासशील रा के िलये
अिधक उपयोगी है, जापान तथा यूरोपीय तकनीक क तुलना म।

450
िवकासशील रा म सम या न के वल कभी–कभी अनुपयु उ पादन क है वरन् वहां पर
एक महान सम या अ यिधक उ पादन क िक म क है । िजसके कारण उपभो ा को िनणय लेने
या चयन करने म किठनाई उ प न होती है । अभा यवश कई साधन व तुएँ , खाने क व तुएँ ,
िसगरेट आिद का उ पादन, छोटे–छोटे तर पर िविभ न कार क िक म म िकया जा रहा ह और
िव ापन ारा उनको िविभ न कार मे उपभो ाओं तक पहंचाने का य न िकया जा रहाहै । येक
व तु का िव ापन अपनी व तु को े या सव े बताता हे। िन य ही आम आदमा के िलये यह
जानना किठन हो जाता है िक कौन सी व तु अिधक उ म है ।
30.6 पूं जीगत तकनीक
बहरा ीय िनगम भी िकसी हद तक इस कार क ि थित के िलये िज मेदार है जो न के वल
नवीन उ पादन वरन् नवीन तकनीक को सामने लाती जा रही है ।
बहरा ीय िनगम का उतादन बड़े तर पर होता है िजसके कारण बड़े तर क िमत ययताऐं
ा होती है ।और उ पादन लागत घट जाती है । अत : इन क पिनय म म लागत उ रो र बढ़
रही है और एक कार से पूं जीगत लागत तुलना मक प से घट रही है । बहरा ीय उ ोग के
उ पादन पर यह रोक लगाई जाती है िक ये अ यिधक पूं जीगत है और वे उ ह उ ोग म के ि त है
जो पूं जी अिधक योग करते है जहाँ पर बहरा ीय िनगम के सहायक देश के उ ोग घरेलू उ ोग
के साथ काय करते है अथवा ित पधा करते है वहां पर ऐसा पाया गया है िक ये उ ोग बहत बड़े
आकार के होते है िजनके कारण उनक उ पादन मता भी अिधक होती है । घरेलू उ ोग को इनसे
ितयोिगता म किठनाई उ प न होती है । इसी कारण आम जनता ये समझती है िक सम त
बहरा ीय उ ोग अ यिधक पूं जीगत उ ोग होते है । इस स ब ध म कभी–कभी ऐसा भी देखा गया
है िक यिद इन उ ोग को घरेलू बड़े आकार के उ ोग से ित पधा करनी पड़ती है तो बहरा ीय
उ ोग ऐसी तकनीक का चयन करते है जो अिधक िवकिसत तथा अिधक पूं जीगत होती है ।
िवकासशील रा म बहरा ीय िनगम इन प रि थितय म अपनी उ पादन लागत का अनुमान
यानपूवक करते है तािक वे वहां पर ित पधा कर सक, पर तु जब वे इ ह रा म अपने उ पादन
को अ तरा ीय ां ड के अ तगत बेचते है तो लागत पर इतना यान नह देते य िक उस समय
उ पादक िवदेशी व तु के नाम या धोखे से खरीदता है ।
30.7 कनाडा तथा भारत के अनु भव
ये एक वा तिवकता है िक इस कार क बहत सी तकनीक तथा उतादन िवकिसत रा के
िलये उ प न क गई थी वे िवकासशील रा म भी बहत उपयोगी पाई गई। दूसरे वो तकनीक िजनम
म क बचत होती है, एक कार से पूं जी क भी बचत स भव कराती है । म– धान तकनीक म
जो पूं जी बचत उसे अ य लगाकर िवकास ि या को बढ़ाया जाता है, तथा अिधक रोजगार का
सृजन िकया जा सकता है । इसम कोई स देह नह िक यहां उ पादन लागत कु छ अिधक होती है ।

451
पर तु लागत ही िवचार म रखी जाये तो लागत तकनीक का चयन ही करना होगा। वतमान समय म
कभी–कभी ऐसा देखने म आया है िक भारत के वल बहरा ीय तकनीक को चुपचाप सहन कर रहा
है और के वल इसीिलये इसका िवरोध नह कर रहा है िक कह पा ा य देश नाराज न हो जाय।
यह देखना िचकर होगा िक इस स ब ध म भारत और कनाडा के अनुभव या– या है?
स चाई तो ये है िक दोन ही देश एक दूसरे से कु छ न कु छ सीख सकते है ।
कनाडा मु यापार नीित को अपनाये हऐ है और इस कारण कनाडा म िवदेशी तकनीक
तथा सामान, मु य प से अमे रका का, वतं प से आ रहा है । इससे कनाडा– क अथ यव था
का कई िदशा म िवकास हआ है, रा ीय उ पादन तथा ित यि आय बढ़ी है, रोजगार बढ़ा ने–
और साथ ही साथ िवदेशी ऋण से कनाडा बचा है तथा कनाडा को अपना भुगतान स तुलन ठीक
रखने के िलये बड़ी मा ा म सोना आिद बाहर नह देना पड़ा है, पर तु साथ ही साथ हम म भी देखते
है िक इस कार कनाडा िवदेशी तकनीक तथा यापार पर अ यिधक िनभर हो गया है और उसक
वयं क तकनीक का िवकास क गया है । इसके िवपरीत भारतवष म िवदेशी सामान तथा तकनीक
पर रोक लगाई िजसके कारण हम िवदेश से न के वल बड़ी मा ा म ऋण तथा तकनीक ऋण के प
म लेनी पड़ी िजससे देश को अ यिधक नुकसान पहंचा है ।
िन य ही बीच का रा ता दोन रा के िलये अिधक उ म होगा।
भारतवष म जो किठनाइय उ प न हई है वो इस कार से है –
1. देश िवदेशी ऋण जाल म फं सता जा रहा है ।
2. बाहर से ली हई तकनीक को आधुिनकतम बनाने के िलये िवदेिशय पर िनभरता और अिधक
ऋण।
3. हम िवदेशी तकनीक के धारको पर अिधक िनभर करना पड़ा है िज ह ने हम पया मा ा म
सहायता नह क ।
4. िवदेशी िव ीय सं साधन पर िनभरता िजनका िमलता हआ धन अनािथक सावजिनक उ ोग
पर खच िकया गया है । हालां िक इनसे कु छ सामािजक लाभ उ प न हए।
5. िवदेशी िविनयोग उन उ ोग म लगाया गया जहां पूं जी िनमाण कम हआ और देश के िवकास म
बाधा आई।
6. देश म वयं क तकनीक पर अपया िविनयोग, अत : इससे लाभ कम हआ।
7. आयात तथा आयात– ित थापन पर अिधक जोर िदया गया पर तु अपनी वयं क तकनीक के
िवकास पर उतना यान नह िदया गया।
बोध – 1
1. बहरा ीय िनगम िकसे कहते है? उदाहरण सिहत प क रये।
452
2. बहरा ीय िनगम क मुख िवशेषताओं का उ लेख क रये।
3. बहरा ीय उ ोग के मुख उ े य का उ लेख क रये।
4. या आप के िवचार म बहरा ीय िनगम से िवकासशील रा जैसे भारत देश को लाभ पहंचा
है? मुख लाभ को के वल िब दुओं म िलिखये।
5. बहरा ीय िनगम से िवकासशील देश को या– या हािन पहंची है,? के वल िब दुओं म उ र
िलिखये।
6. या आप के िवचार म बहरा ीय िनगम क कायिविध पर रोक लगाये जाने क आव यकता
है? सं ेप म िलिखये।
7. तकनीक –ह ता तरण तथा बहरा ीय िनगम पर एक िट पणी िलिखये।
30.8 सारां श
इस कार हम ये देखते है िक बहरा ीय िनगम अ तरा ीय तर के ऊपर एक ऐसा यास
है िजसके ारा िवकिसत रा तथा िवकासशील रा एक दूसरे से तालमेल करके उन क पिनय का
अथवा िनगम को अपने देश म काय करने क वीकृ ित देते है जो कई रा ारा िमला–जुला कर
बनाई जाती है । सामा यतया इनक तकनीक अिधक उ म होती है तथा इनके िव ीय ोत भी
अिधक होते है । इनक ब ध मता यापक तथा आधुिनक होती है और इनका े लगभग
अ तरा ीय होता है । इन िनगम के कारण कोई रा िबना य िवदेशी सहायता अथवा तकनीक
के बगैर िवकास कर सकता है । पूं जी िविनयोग जो मह वपूण सम या है उसका हल हो जाता है ।
िवदेशी नई तकनीक जो उसके पास नह है, वह ा हो जाती है, देश म रोजगार बढ़ता है । वा तव
म आज क अव था म तकनीक इतनी िवकिसत हो गई है और दूरसंचार इतना यापक तथा
मतापूण हो गया है िक सं सार क दूरी िसकु ड़कर बहत कम हो गई है । सम त सं सार ही एक कु टु ब
बन गया है । अब ये कहना िक बहरा ीय िनगम सदैव देश के िहत म नह होत है उपयु न होगा।
वा तव म यिद इनका भली कार से िनयं ि त िकया जाये और इनसे होने वाले लाभ तो अिधकतर
उ ह देश म पुन : लगाया जाये जहां ये उ प न हो रहे है तो इसम कोई सं देह नह िक रा ीय िनमाण
का यह सरल तरीका है । ाय : ऐसा देखा गया है िक इन िनगम के अभाव म िवकासशील देश को
बड़ी मा ा म िवदेशी ऋण तथा तकनीक लेनी पड़ी है िजससे नाना कार क किठनाइयां उ प न हई
है । इसम कोई स देह नह िक बहरा ीय िनगम क काय िविध म कई दोष भी है यह िनगम
अिधकतर लाभ देश से बाहर ले जाते है तथा देश के लोग के क याण का उतना यान नह देते,
िजतना िक देना चािहये। (जैसे भोपाल गैस ासदी) कभी–कभी ऐसा भी समझा जाता है िक ये
अपनी ितर कृ त तकनीक को अ य देश पर थोपते है । और इस कार यह तकनीक िजस देश म
लगाई जा रही है उसक प रि थितय के अनुकूल नह होती। िन य ही देश को लाभ के थान पर
हािन हो सकती है । ाय : ऐसा भी कहा जाता है िक िनगम के मा यम से पा ा य देश नये देश पर
अपना आिध य बनाये रखना चाहते है । इस कार दासता अथवा उपिनवेशवाद का यह एक नया
व प है ।
453
30.9 श दावली
1. म धान तकनीक : – यह तकनीक मु य प से िवकासशील रा म, योग क जाती है
इसम म का योग अिधक होता है, पर तु उ पादकता कम होती है । इसम रोजगार अिधक
होता है ।
2. पूं जी धान तकनीक :– यह पा ा य तकनीक है, इसम अिधक पूं जी लगाई जाती है । इसका
आधार आधुिनक मशीन तथा उपकरण होता है । उ पादकता अिधक होती है पर तु रोजगार घट
जाता है ।
3. उपयु तकनीक : – यह तकनीक ऊपर क दोन तकनीको के बीच का माग है, इसम
थानीय बातो को यान म रखा जाता है तथा प रि थितय के अनुसार इसे म– धान या
पूं जी– धान बनाया जाता है । जोर इस बात पर होता है िक पया रोजगार इससे उ प न हो तथा
उ पादन भी ठीक हो। इसी को रा ीय तकनीक अथवा देशी तकनीक भी कह सकता है ।
4. आिव कार – आिव कार का अथ सै ाि तक प से िकसी नयी चीज का ज म देना है िजसका
आधार िव ान तथा तकनीक होता है ।
5. अ वेषण : – इसका यह ता पय है िक अिव कार को उ पादन काय म यु करके यापा रक
योग िकया जाये।
6. अ तरा ीय मौि क सं थाय :– ये सं थाय मु य प से दो कार क है –
(अ) िव बक:– जो िवकास काय के िलये ऋण देता है ।
(ब) अ तरा ीय मु ा कोष – जो भुगतान स तुलन को सही रखने के िलये ऋण देता
7. यापार–स तु लन:– इसम के वल व तुओ ं के आयात–िनयात को ही रखा जाता है ।
8. भु गतान स तु लन :– इसम सम त य अ अ य चीज को सि मिलत? िकया जाता है
िजसम पूं जी आिद का ह ता तरण भी सि मिलत है ।
9. आयात– ित थापन:– इसके अ तगत आयात क जाने वाली व तु के देश के अ दर ही
उसका िवक प ढूं ढा जाता है िजससे िवदेशी मु ा क बचत हो।
10. लाभ को बाहर भेजना:– बहरा ीय िनगम होने वाले लाभ को अपने देश को भेजती है
िजनका अनुपात िभ न–िभ न होता है ।
11. मु यापार:– इसके अ तगत यापार पर िकसी कार क रोक–टोक नह होती।
30.10 कु छ उपयोगी पु तक
1. सं यु रा अमे रका क हे डबुक ऑफ एअरलाइ स टेिटि ट स, 1975
2. सां ि यक वािषक पु तक, 1972 – (पेि स–यूरे को 1973)
454
3. बुलेिटन ऑफ द सोसाइटी फॉर लेिटन अमे रका क ीज, नं० 26 माच 1976
4. आर० एफ० कु ेल: ए ीक चरल ै टर कै ि ज : 1973
5. नेशनल काउि सल फॉर एपलाइड इकोनोिमक रसच िवदेशी तकनीक तथा िविनयोग यू देहली.
1971
30.11 बोध के उ र
1. बहरा ीय िनगम ऐसे िनगम होते है जो कई रा िमलकर बनाते है पर इनका काय े
अ तरा ीय होता है । मु य प से ये िवकासशील रा म काय करते है । इनम मु य प से
अमे रका, कनाडा, ांस , जमनी के ारा बनाये गये िनगम होते है ।
2. ये िनगम अिधक पूं जीगत उ ोग म पैसा लगाते है तथा इनका अिधक जोर तकनीक के िवकास
और शोधकाय पर होता है । साथ ही साथ इनका आकार बहत बड़ा होता है । और उ पादन म
िविभ नता अिधक होती है । ये अिधक मजदूरी देते है । ब ध होता है, तथा िव ापन पर भी
जोर देते है ।
3. इनका मु य उ े य िवकिसत तकनीक को अ य देश तक पहंचाना है । साथ ही नये–नये
उ पादन को इन देश को देना होता है ।
4. यह िववादा मक है य िक एक कार से इन िनगम से भारतवष लाभ पहंचा है जैसा िक
उपसंहार म बताया गया है ।
5. बहरा ीय िनगम से िवकासशील रा को कई कार क किठनाइयां महसूस हई है । इनका भी
उ लेख उपसंहार म कर िदया गया है ।
6. वा तव म इन िनगम पर स पूण रोक लगाने क ज रत नह है । य िक देश म पूं जी क कमी है
और हमारी औ ोिगक नीित के अनुसार अिधकािधक िवदेशी पूं जी क ज रत है । पर तु इस
बारे म सतकता आव यक है । हम अपनी प रि थित अनुसार भी करना चािहये तािक वदेशी
तकनीक को बढ़ावा िमले।
7. जैसा उपसं हार म बताया जा चुका है । तकनीक ह ता तरण से नये देश को लाभ हआ है ।
पर तु इस बारे म हम यह देखना चािहये िक इस तकनीक से हमारी रा ीय तकनीक के िवकास
पर िकसी कार का बुरा असर नह पड़ता।
प रिश
जुलाई 1991 म नई औ ोिगक नीित क घोषणा के बाद भारत म बहरा ीय क पिनय के
ित उदारवादी नीित अपनाई गई। िजससे भारत म िवदेशी य िविनयोग म काफ वृि हई। िजसे
िन न तािलका म दशाया गया है ।

455
तािलका 30.2
य िविनयोग क रािश मे िपछले वष म हई वृ ि
(करोड़ डालर म)
वष 1990–91 1991–92 1992–93 1993–94 1994–95 1995–96
िवदेशी य 6.8 15.0 34.1 58.6 131.4 213.3
िविनयोग
(शु रािश)

456
इकाइ 31
िविश आिथक े : एक अवलोकन
इकाइ क परेखा
31.0 उ े य
31.1 तावना
31.2 भारत म सेज
31.3 िविश आिथक े के लाभ
31.4 सेज से जुड़े मु े व इनके ित आपि यां
31.5 िविश आिथक े अिधिनयम 2005
31.6 सेज - एक िवफल होता हआ योग
31.7 सेज के ित सही नीित या हो -
31.8 िन कष
31.9 सं दभ ं थ
31.0 उ े य
इस इकाइ के अ ययन के बाद आप -
 जान सकगे िक िविश आिथक े के या ल य रहे है?
 भारत म िविश आिथक े अपने ल य को ा करने म कहा तक सफल रहा है?
 िविश आिथक े का भारत म िवतरण िकस कार का है?
31.1 तावना
िविश आिथक े , िकसी देश के भीतर एक ऐसे भौगोिलक े को दिशत करता है
िज ह आयात, िनयात, उ पाद शु क आिद के सं बं ध म कु छ ऐसी सुिवधाय तथा रयायत ा है जो
गैर िविश आिथक े को नह अनुम य है । िविश आिथक े का अ जी पा तर Special
Economic Zone (SEZ)है अत: इस कारण लघुकृ नाम सेज भी है । जैसा िक ऊपर बताया गया
है िक सेज को अनेक अनुम य सुिवधाएं ा है इसी कारण इसे देश मे ि थत िवदेशी े कहा जाता
है । इनका मुख उ े य िनयात उ ेरण तथा सं वधन है ।
31.2 भारत म सेज
िव म िविश आिथक े क अवधारणा हमारे पड़ोसी देश चीन से उ तृ हइ है । जबिक
भारत म सबसे पहला का डला म 1965 म िनयात ो सािहत करने के िलए िनयात- सं करण े

457
(Export Processing Zone- EPZ) खोला पर EPZ मॉडल बहत अिधक भावी नह रहा,
इसिलए इसक किमय को यान म रखते हए इ ह दूर करने हेतु भारत सरकार के वािण य मं ालय
ने सन् 2000 म सेज मॉडल लागू िकया। यह मॉडल िनजी े क भागीदारी पर आधा रत है । इसे
उ च कोिट क अवसं रचना तथा के व रा य सरकार से राजक य ो साहन, यूनतम सरकारी
ह त ेप तथा िनयमन पर उपल ध है ।
इसके अित र पहले से थािपत िनयात सं करण े म (EPZs) को भी अब िवशेष आिथक
े म प रवितत िकया जा रहा है । इस कार कां डल एवं सूरत (गुजरात), सां ता ू ज एवं मु बइ
(महारा ), फा टा (प. बं गाल), चै नइ (तिमलनाडु) िवशाखापटनम (आं देश) और नोएड़ा
(उ र देश) म ि थत िनयात सं करण े (EPZs) को िविश आिथक े (SEZs) म
प रवितत कर िदया गया है ।
सेज क थापना के उ े य –
1. िवशेष आिथक े क थापना के िलए मु य तक कु छ चुने हए े म सं साधन के
सं के ण ारा िनयात को बढ़ावा देना है । यह नीित अ ैल 2000 म चालू क गयी तािक
िनयात के िलए अ तरा ीय ि से ित पध और असुिवधा मु वातावरण कायम िकया
जा सके ।
2. इन इकाइय क थापना िविनिमत व तुओ ं (Manufactured goods) या सेवाओं को
उपल ध कराने के िलए क जा सकती है ।
3. िवशेष आिथक े म थािपत इकाइ को शु िवदेशी मु ा अजक (Net Foreign
Exchange Earner) का काय करना है, पर तु इस पर ऐसी कोइ शत नह लगाई ं जाएगी
िक उसे अपने कु छ उ पादन का िविश अनुपात िनयात करना होगा।
4. भारत मं िविश आिथक े क थापना के पीछे मुख कारण िनयात के मा यम से
ती औ ोिगक करण को ो साहन देना है । इस कार सेज क णाली को भारत म
औ ोिगक करण क नइ नीित के प म वीकार िकया गया है ।
िविश आिथक े (सेज) को ा िवशेष अिधकार -
1. िविश आिथक े के िलए भूिम के बड़े भाग सरकार ारा अिध हण कर िनगम अथवा
िवकास कताओं (डेवलपस) को उपल ध कराए जाएं गे। एक मूल शत यह होगी िक िवशेष
आिथक े का 25 ितशत े िनयात से सं बं िधत ि याओं के िलए इ तेमाल िकया
जाएगा और शेष 75 ितशत े का योग आिथक एवं सामािजक सं रचना के िलए
इ तेमाल िकया जाए। िविश आिथक े (सेज) िलए उपल ध लाभ एवं रयायत क
उपलि ध सम े के िलए होगी।
2. सेज के अ तगत लगने वाली इकाइय /िनगम को कर म राहत दी जाती है, जैसे आयकर म
थम पां च वष के िलए 100 ितशत क छू ट, अगले पांच वष के िलए 50 ितशत क
छू ट और यिद आगे उ मकता अपने आधे मुनाफ को अपने उप म म ही लगाते ह तो
पुन : आयकर क 50 ितशत छू ट अगले तीन वष के िलए जारी रखी जा सकती है । इस
458
कार सेज क इकाइय को काफ मा ा म राजक य छू ट िमल जाती है । आयकर के
अलावा सेज म िवकासकताओं व उ पादक - इकाइय को अ य कार के कर म भी राहत
दी जाती है, जैसे सीमा-शु क, उ पाद-शु क, मू यविधत कर (वैट), डेवलपपस के िलए
यूनतम वैकि पक कर (मैट) व क पनी लाभांस िवतरण कर से छू ट दी गइ है । डेवलपस
को सीमे ट, इ पात, िव तु के साज-सामान आिद पर भी कर म रयायत दी जाती है, तािक
उनको िनमाण काय म सुिवधा रहे और कम लागत पर काम करवाया जा सके । उनको कर
क छू ट 10 वष तक क अविध के िलए दी जाती है ।
3. िविश आिथक े (सेज), सरकारी े , गैर-सरकारी े , या सयु े म या िकसी
रा य सरकार के साथ सहयोग से िनगम ारा कायम िकए जा सकते है ।
4. िविश आिथक े िवकास के शु क-मु ए वलेव ह िज ह यापार, शु क एवं शु क
के िलए िवदेशी े सम प जाता है । यह नीित इन े के िवकासको (Developers)
जो इन इलाको म अपनी इकाइयां थािपत करगे बहत से राजकोषीय एवं िविनयामक
ो साहन दान करती है ।
5. िवशेष आिथक े को म कानून के पालन से छू ट दी गयी है तािक वे औ ोिगक
इकाइयां थािपत करने के िलए उ मकताओं को आकिषत कर सक। म-आयु
(Labour commissioner) को िविश आिथक े (सेज) के िनरी ण का अिधकार
नह होगा, यह अिधकार बचाव और पयावरण के मानद ड को लागू करने के िलए
उपल ध नह होगा। िविश आिथक े (सेज) म सभी औ ोिगक इकाइय एवं ित ान
को सावजिनक उपयोिगता सेवा (Public utility services) घोिषत िकया जाएगा िजनम
हड़ताल गैर-कानूनी होगी। इसका अिभ ाय यह िक िविश आिथक े औ ोिगक
िववाद कानून (1947) के ावधान का पालन करने के िलए ितब नह होगा। उ ह
िकसी भी सीमा तक ठे का-मजदूर (Contact Labour) काम पर लगाने क वतं ता होगी।
ठे का मजदूर (िविनयमन एवं उ मूलन) कानून का भी कु छ बा ि याओं के िलए सं शोधन
िकया जाएगा।
6. े -िवशेष इकाइय के िलए अित र ि याओं क भी इजाजत होगी िजनम होटल,
कू ल, शै िणक एवं तकनीक सं थान शािमल है । बह-उ पाद े को ब दरगाह , हवाइ
अड् ड एवं गो फ कोिसस क भी इजाजत होगी।
7. िविश आिथक े (सेज) म 7500 मकान , 100 कमरे का होटल, 25 िब तर के
अ पताल, कू ल एवं शै िणक सं थान और 50000 वगमीटर के म टी लै स क भी
इजाजत होगी। एक अित उ पाद के िलए आवं िटत िविश आिथक े के िलए 25000
मकान 250 कमर का होटल, 100 िब तर का अ पताल और 200000 वगमीटर के
म टी लै स क इजाजत होगी।

िविश आिथक े संबं धी नीित- चीनी अनु भव से े रत


459
सेज क थापना के िलए ारं िभक ेरणा चीन म इनक गित व सफलता से िमली है । चीन ने
1980 म 14 समु ी-तटीय शहर म िविश आिथक े कायम िकए। वहां शे जेन व शं घाई
म सेज क वजह से ती आिथक उ थान देखने को िमला। चीन म सेज क थापना का मु य
उ े य इन े को दोहरा कायभार स पना था तािक वे िवदेश उ मुख अथ यव था के िलए
‘‘िखडक ’’ का काय कर सक िजसके प रणा व प वे िनयात को बढ़ावा देकर िवदेशी मु ा
जिनत कर सके और उ नत टे नोलॉजी का आयात कर। प रणामत: िविश आिथक े
(सेज) आिथक िवकास को व रत करने का मा यम बन सक। इन े म िवदेशी िनवेश को
आकिषत करने के िलए, सीमा शु क और आयकर समा कर िदए गए िजसके चलते चीन को
अपने समु तटीय े को उ नत करने और इन े के आिथक िवकास को व रत करने म
सहायता िमली। सेज नीित के मा यम से चीन िवदेशी - िव पोिषत उ म को आकिषत कर
30 अरब डॉलर िनवेश ा करने म सफल हआ। इसके अित र लगभग 5000 से अिधक
घरेलू क पिनय ारा 20 अरब चीनी युआन का िनवेश इन े को ा हआ। इसके
प रणाम व प चीन म छ: आधारभूत उ ाग का बड़े पैमाने पर िव तार तथा िवकास सं भव हो
सकता था जैसे - ओटोमोबाइल और उनके पाटस, माइ ो-इले ािन स और क यूटर, घरेलू
िव तु उपकरण, जैव दवाईय , ऑि टकल एवं िबजली के उ पाद।
इस कार चीन म सेज नीित के ारा जहां एक ओर समु तटीय े के औ ोिगक तथा
आिथक िवकास को बड़ी ती गित ा हइ, वह दूसरी ओर चीन के आ त रक े को इसका
लाभ ा न हो सका इस कार इस नीित ने िवकास के ि कोण से े ीय िवषमताओं क खाइ को
चौड़ा कर िदया। अत: सेज नीित तटीय े तथा चीन के आ त रक देश के भी एक िवभाजक के
प म बनकर उभरी। इसके साथ साथ चीनी सरकार ारा समु ी तटीय े तथा अ य आ त रक
े म उभरी इस असमानता क सम या सं बं धी गलती को वीकार कर 2006 म 11व पंच वष य
योजना म सेज नीित म कइ प रवतन िकए।
भारत म िविश आिथक े क वतमान ि थित -
सेज नीित को भारत म भावी बनाने के उ े य से सरकार ने िविश आिथक े
अिधिनयम 2005 पा रत िकया। यह अिधिनयम फरवरी 2006 को लागू हआ । लगभग दस वष म
07 िदस बर 2016 तक देश म 405 SEZs के िलए औपचा रक मंजरू ी दी जा चुक है । इसके
अित र 07 िदस बर 2016 तक देश म 33 SEZs को सै ाि तक मंजरू ी दी जा चुक है । जबिक
िनयातक SEZS (िजनम के ीय सरकार+रा य सरकार/िनजी सेज + अिधसूिचत सेज अिधिनयम
2005 के तहत) कु ल 20 है । देश म िविश आिथक े का रा यवार िवतरण िन न सारणी म
िदया ह –

.सं. रा य/सं.शा. देश औपचा रक सै ाि तक अिधसू िचत िनयातक


460
मं जू री मं जू री सेज
1 आं देश 29 04 24 19
2 च डीगढ़ 02 00 02 02
3 छ ीसगढ़ 02 01 01 01
4 िद ली 02 00 00 00
5 गोवा 07 00 03 00
6 गुजरात 28 04 24 18
7 ह रयाणा 23 03 20 07
8 झारखंड 01 00 01 0
9 कनाटक 02 00 41 25
10 के रल 29 00 25 16
11 म य देश 09 01 05 02
12 महारा 55 11 50 26
13 मिणपुर 01 00 01 00
14 नागालै ड 02 00 02 00
15 उड़ीसा 07 00 05 03
16 पुड्डुचेरी 01 01 00 00
17 पं जाब 05 00 03 02
18 राज थान 09 01 08 04
19 तिमलनाडु 48 04 46 36
20 तेलं गाना 52 00 46 27
21 उ र देश 24 01 19 11
22 पि म बं गाल 07 02 05 07
सकल योग 405 33 331 206
( ोत ‘ रपोट SEZs in India, उ ोग व वािण य मं ालय, भारत सरकार link, www.sezindia.gov.in)
इस कार पहला सेज जो गुजरात रा य के कां डला म ारं भ िकया गया था वह
औपचा रक प से वीकृ त सेज के मामले म थम व ि तीय थान मश: कनाटक तथा महारा
को ा है । वह दूसरी ओर अिधसूिचत सेज के मामले म थम थान पर महारा ि तीय थान पर
सं यु प से तिमलनाडु तथा तेलं गाना है ।
30 जून 2015 तक सेज म कु ल िनवेश 348983 करोड़ पये था जबिक 2014-15 म िनयात
463770 करोड़ पये के थे। सेज म कु ल 15.004 लाख लोग को रोजगार ा ह। इनम से 13.69
रोजगार अवसर 2006 म सेज िनयम को लागू करने के बाद उपल ध कराए गए है । देश म कु ल
206 सेज िनयात कर रहे है । िजसम सवािधक सूचना ौ ोिगक पर आधा रत है । सेज अिधिनयम
461
2005 के अ तगत सेज म वचािलत माग के मा यम से 100 ितशत िवदेशी य िनवेश क
अनुमित है ।
31.3 िविश आिथक े के लाभ
 सेज क थापना से आव यक यूनतम आधा रत सं रचना का िवकास बड़ी आसानी से
सं भव हो पाया है । अब उ ोग के िलए आव यक सभी आधा रत सं रचना को िवकिसत
करने म िकसी भी कार क किठनाइ नह है ।
 औ ोिगक िवकास के सं बं ध म सेज क भूिमका मह वपूण है िजसके चलते व रत
औ ोिगक िवकास सं भव हो पाया है ।
 सेज क थापना से रोजगार के नए अवसर सृिजत हए है जो भारत जैसे युवा तथा
जनािकं क य लाभ वाले देश के िलए िकसी औषिध से कम नह है ।
 इनक थापना से िनवेश के नए अवसर ा हए तथा सेज अिधिनयम 2005 के तहत
शत- ितशत य िवदेशी िनवेश को लागू करने से इस े म पया मा ा म पूं जी िनमाण
का काय हो पाया है ।
 सेज क थापना म देश के आिथक िवकास क गित म भी प रवतन आया है िपछले डेढ़
दशक म हमारे देश क आिथक सं विृ का तर अ य देशेां क अपे ा का उ च रहा है ।
 सेज क थापना तथा िनयात सेज के चलते भारत के िवदेशी यापार खासकर िनयात े
म उ साह व धक गित देखने को िमली है ।
31.4 सेज से जु ड़े मु े व इनके ित आपि यां
हाल ही के वष म सेज ारा ती आिथक िवकास के िव कइ कार के सवाल उठाए
गए ह तथा इनक तीखी आलोचना भी क गइ है िजनम से कु छ िन निलिखत है -
1. भू िम अिध हण
सेज क थापना के िलए बडी मा ा म भूिम क आव यता रहती है िजसके चलते भूिम
अिध हण िजसम कृ िषगत भूिम के अिध हण का मु ा सवािधक िववादा पद रहा है कइ देश म
तो इस मु े के चलते भारी राजनीितक सं घष भी देखने को िमल है । इस संदभ म मुख सवाल यह
उठते है िक भूिम अिध हण का काय कौन कर? सरकार कर या वयं िनजी िनगिमत े के ारा
सीधे कृ षको से क जाए। दोन ारा अिध हण करने से अपने अपने लाभ तथा दोष है । इसी सं दभ
म इस मह वपूण आता है िक मुआवजा कै से तय िकया जाए ? िजस से िक िकसान तथा
भू- वािमय के िहत क सं र ा के साथ साथ िनगम के िहत का भी यान रखा जा सक। तीसरा
आता है िक मुआवजा देने क यव था कै से क जाए? िजससे िक सही यि य के पास
मुआवजे क रािश पहंच सके । कई बार पूव के अनुभव जैसे िकसी े िवशेष म बां ध, सड़क
462
अथवा खान प रयोजनाओं के सं बं ध म सरकार ारा िकए मुआवजे के भुगतान वायद का समय पर
पूरा नह करने से िकसान म सरकार के ित अिव ास तथा म क ि थित उ प न हो जाती है ।
थानीय व रा य तरीय नेता, अनेक िबचौिलए व भूमािफया कइ बार ि थित को और अिधक
ामक तथा जिटल बना देते ह और भू वामी अथवा कृ षक कइ कार क अफवाह का िशकार हो
जाते ह। इसिलए सरकार मुआवजे क पारदश व प ि या अपनानी चािहए और भूिम हिथयाने
वाल के ित पूरी सावधानी बरतनी चािहए।
2. िव थािपत के पु न थापन क सम या
सेज के िलए आव यक भूिम का अिध हण िजन िकसान से िकया जाता है उनको मौि क
मुआवजा देना ही पया नह माना जाता है । मंजरू ी ा सेज क थापना के िलए लगभग 200000
हे टर से अिधक भूिम क आव यकता होगी। इसके कारण इतनी बड़ी मा ा म भूिम अिध हण करने
के िलए बहत से लोग को िव थािपत करना पड़ेगा। इतना ही नह उपजाऊ तथा िसंिचत भूिम के
अिध हण क ि थित म उन बं टाईदार तथा खेितहर मजदूर के िलए वैकि पक आय के साधन
उपल ध कराना आव यक है हाल ही म जो इन भूख ड पर कृ िषगत काय करके अपना जीवनयापन
का काय करते थे। यिद सेज के िलए बं जर भूिम या यथ भूिम का योग िकया जाता है तो यह
सम या उ प न नह होती है । पर तु खेती के िलए उपजाऊ तथा िसंिचत भूिम का अिध हण िकया
जाता है तो िकसान , बदाइदार तथा खेितहर मजदूर के सामने रोजी रोटी का जिटल खडा हो
जाता है, िजसका समाधान रोजगार के वैकि पक साधन को िवकिसत करने से ही सं भव है ।
िवकास प रयोजनाओं के कारण िव थािपत हए लोग के पुन : थािपत एवं पुनवास हेतु
यू.पी.ए. सरकार ने 11 अ टू बर 2007 म नइ पुनवास एवं पुन : थापन क नीित जारी क जो पूव क
2003 क नीित का ित थापन करेगी। इस नीित का उ े य ऐसा सं तलु न कायम करना है जो
िवकास ि याओं के िलए भूिम क आव यकता और भू- वािमय तथा अ य ऐसे यि य के िहत
क सुर ा करना है िजनक आजीिवका भािवत हइ है । नयी नीित के लाभ म शािमल है : -
भूिम के बदले भूिम येक प रवार के कम से कम एक यि के िलए रोजगार, भािवत
प रवार के सद य क िश ा के िलए छा वृि यां, भािवत यि य को ठे का या ोजे ट प रसर म
अवसर या इसके इद िगद सहकारी सिमितयां कायम करने म ाथिमकता, भािवत प रवार को
दुकान, विकग शैड़ प रवहन लागत, अ थायी रहने का मकान और इसके साथ यापक आधार
सं रचना सुिवधाओं को उपल ध कराने जैसी बात शािमल है । इन सभी लाभ को उपभो ा क मत
सूचकांक से जोड़ा गया है ।
3. खा ा न उ पादन पर नकारा मक भाव
एक सेज के िलए आव यक भूिम का अिध हण यिद उपजाऊ या िसं िचत भूिम से िकया
जाता है तो इससे कृ िष के उ पादन पर ितकू ल भाव पड़ता है और खा सुर ा के िलए गं भीर
सं कट उ प न हो जाता है जैसे - अलवर (राज थान) के नीमराना तथा नोएडा े म अिध हण क

463
गइ भूिम अ य त ही उपजाऊ तथा िसंिचत ेणी क होने से उन े म खा ा न के उ पादन पर
नकारा मक भाव पड़ा है ।
4. सेज बाजार मै ीपू ण नह है -
िस अथशा ी नीतीन देसाइ का मत है िक सेज बाजार मै ीपूण (माकट ै डली) नह है,
हालांिक ये यवसाय मै ीपूण (िबजनेस - ै डली ) अव य है । इसका अथ यह है िक सेज क
थापना से यवसाियय के िहत का यान रखा ह जो िक इनको ा होने वाली रयायत से प
झलकता है जैसे - कर सं बं धी रयायत, म-कानून म रयायत देना तथा अनुदान सं बं धी रयायत
आिद। पर तु ये आिथक सुधार व उदारीकरण क मूल भावना के अनुकूल नह है, िजसके तहत
ित पधा को बढ़ावा िदया जाता है और िकसी भी कार का भेदभाव नह िकया जाता है इसिलए
सेज से राजनीित , नौकरशाह व यवसाियय को अनुिचत लाभ उठाने का अवसर िमलता है ।
नीतीन देसाइ के अनसार सेज क यव था भेदभावपूण होने के कारण उतना लाभ नह पहंचा
पाएगी। िजतना लाभ इसने चीन म पहंचाया है ।
5. राज व घाटे म वृ ि -
सेज क थापना से सरकार क भारी मा ा म राज व घाटा उठाना पड़ा है । पूव िव मं ी
पी.िचद बरम ने अनुमान तुत िकया था िक सेज म लगभग 3.60 लाख करोड़ पये का कु ल
िनवेश होना, िजस पर कु ल राज व हािल लगभग 1.74 लाख करोड़ पये क होगी। सावजिनक
िव व नीित के रा ीय सं थान, नइ िद ली के फे लो आर. किवता ने भी अपने अनुमान म
बतलाया था िक से लाभ कम और हािन यादा होगी। उनके अनुमान के अनुसार य कर व
परो कर के प म कु ल ित का वतमान मू य सृिजत िकए गए आधार सं रचना के मू य से
ितगुना होगा। इस कार उनके अनुसार सेज क थापना से सम िनवेश म िवशेष वृि नह हो
पाएगी। नव बर 2014 म जारी, कै ग रपोट के अनुसार 2006-07 से 2012-13 के म य सेज क
83,104 करोड़ पये क कर रयायते दी गई है ( 55158 करोड़ पये य कर तथा 27,496
करोड़ पये अ य कर पर रयायत के प म) । इसके अलावा 1150 करोड़ पये क रयायत
अपा कं पिनय को दी गइ तथा य व अ य कर शासन म 27130 करोड़ पये क किमयां
पाइ गइ।
6. छोटे /सू म भू- वािमय को हािन
असमान आिथक शि के कारण सू म अथवा छोटे कृ षको क अपनी भूिम का सही मू य
नह िमल पाता हे, य िक उनक मोल भाव करने क मता अ य त यून या न के बराबर होती है ।
इसिलए सरकार को उनके िहत क र ा करनी चािहए और उ ह उिचत मुआवजा िदलाया जाना
चािहये।

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7. े ीय असमानताओं म वृ ि
सेज के सं बं ध म अभी तक कु ल िजतना िनवेश हआ है उसका 83 ितशत के वल पांच
रा य म के ि त है ऐसा अनुमान है िक अिधकतर िनवेश देश के मा 20 िजल तक के ि त है इस
कार इसक बहत सं भावना है िक सेज, उन रा य म थािपत िकए जाएं ग िजनम पहले से ही
िविनमाण तथा िनयात आधार अ य त मजबूत है और हआ भी यही िजसके चलते े ीय
असमानता और बढ़ गइ। यही नह बहत से े के वल सूचना ौ ोिगक एवं सूचना ौ ोिगक से
स ब सेवाओं के े म थािपत िकए जाने से भी असमानता उ प न हइ य िक िविनमाण म सेज
क सं या अ य त ही कम रही है ।
8. नवीन अथवा शु िनवेश पर िवपरीत भाव
सेज म कर क रयायत व अ य ेरणाएं दी गइ ह उनसे आकिषत होकर गैर सेज क
इकाइयां सेज म ह ता त रत हो गइ है या होने के िलए त पर है िजसके चलते नवीन अथवा शु
िनवेश म वृि क सं भावना अ य त यून हो गइ है । गैर सेज क इकाइय उन रयायत , सुिवधाओं,
व ो साहन को मां गने लगी है जो सेज क उ पादन इकाइय क ा ह। अत: सेज व गैर सेज क
इकाइय म राजकोषीय लाभ को लेकर भेदभाव करना किठन होता जा रहा है । के वल उ पादन
इकाई का थान मा बदलने से ही िनवेश म वृि नह हो जाती है ।
31.5 िविश आिथक े अिधिनयम 2005 -
सेज नीित को भावी बनाने के उ े य से सरकार ने िविश आिथक े अिधिनयम 2005
पा रत िकया। यह अिधिनयम 2005 म पा रत िकया तथा फरवरी 2006 म लागू हआ ।
सेज िनयम क मु य िवशेषताएं िन निलिखत है -
1. अिभशासन - इस अिधिनयम क खास बात यह है िक इसम सेज म शािमल सभी सहभािगय
क आव यकताओं को पूरा करने के िलए यापक सेज नीित ढां चा तैयार िकया गया है । इस
अिधिनयम क एक और खास बात यह है िक िनणय ज द िलए जा सके तथा िविभ न सरकारी
िवभाग से अनुमित लेने म अनाव यक देरी न हो, इसके िलए एक ही जगह से सभी अनुमित दान
क जाने क यव था क गइ है । इसे एकल िखड़क वीकृ ित के नाम से भी जाना जाता है । सेज
को ो साहन देने तथा उनका मब व सही िवकास सुिनि त करने के िलए के सरकार बोड
ऑफ अ वू ल का गठन करेगी।
2. ेरणाएं (Incentives) - इस अिधिनयम म आकषक राजकोषीय ेरणाएं दान क गइ है
जैसे
1. सेज का िवकास करने वाले तथा सेज म कायरत इकाइय को सीमा शु क , के ीय
उ पाद-शु क , सेवा कर, के ीय िब कर तथा ितभूित लेने देन कर से छू ट।
2. 15 वष तक कर से छू ट
 पहले 05 वष तक 100 ितशत छू ट
465
 अगले 05 वष तक 50 ितशत छू ट
 उससे अगले 05 वष म पुन : िनवेिशत िनयात लाभ के 50 ितशत के बराबर छू ट
सेज के िवकासकताओं को 15 वष म से 10 वष म आय कर से 100 ितशत छू ट।
3. आधारभू त सं रचना -
िव तरीय आधारभूत सं रचना के िनमाण को ो सािहत करने के िलए बहत से कदम
उठाए गए है िजससे भारत िव का मह वपूण यापा रक के बन सके । इस सं दभ म मु यापार व
भं डारण े तथा यापार सं बं िधत िव तरीय अधा रत सं रचना का िवकास को सवािधक मह व
िदया जा रहा है । सेज म अ तरा ीय िव ीय सेवा के व बक भी ह गे जो िव तरीय िव ीय
सेवाएं दान करेगी। आधारभूत सं रचना के िवकास के िलए सावजिनक े व िनजी े क
साझेदारी होगी। इसके अलावा के सरकार के येक सेज म सेज ािधकरण का गठन िकया
जाएगा जो नइ आधा रत सं रचना का िवकास करेगा तथा िव मान आधा रत सं रचना क मजबूत
बनाएगा।
10 िविश आिथक े पर सरकारी िनणय, अ ैल 2007 (GoM Decision on SEZs,
April 2007) पि मी बं गाल म न दी ाम और िसं गरू म सरकार और जनता के म य सं घष के
फल व प के सरकार से आ ह िकया गया िक वह नयी सेज नीित जारी कर। रा य ने िकसान
क भूिम का अिध हण करने जो यापक िवरोध िकया गया उसके प रणाम व प भारत सरकार ने
22 जनवरी 2007 के िविश आिथक े पर रोक लगा दी िजसे के ीय सरकार के मंि य के
समूह ने 05 अ ैल 2007 क बैठक म समा कर िकया। इस बैठक के िनणय िन निलिखत रहे -
1- 83 सेज क मंजरू ी दी गइ।
2- सरकार ने िकसी भी सेज ताव के िलए 5000 है टेयर क अिधकतम सीमा िनधा रत कर
दी रा य सरकार, चाहे, तो इससे भी कम अिधकतम सीमा िनधा रत कर सकती है ।
3- सं करण े के िलए कु ल े फल के कम से कम 50 ितशत था योग अिनवाय कर
िदया। जो आरं भ म 25 ितशत था िजसे बाद म बढ़ाकर 35 ितशत कर िदया गया था वह
अब 50 ितशत कर िदया गया।
4- भूिम अिध हण अिधिनयम के अधीन अब सरकार अिनवाय प से भूिम पर अिध हण
नह कर पाएं गी। के वल उन े को छोड़कर िजन पर सरकार वयं सेज थािपत करना
चाहती है िनजी िवकासकताओं को िविश आिथक े क थापना के िलए वयं अपने
अपने बूते पर िकसान तथा अ य लोग से जमीन खरीदनी पड़ेगी।

466
5- िजन लोग को सेज क थापना के कारण जमीन से िव थािपत िकया जाएगा उनके िलए
पुनवास क पूरी यव था क जाएगी। यह शत रखी जाएगी िक येक िव थािपत प रवार
के कम से कम एक यि को वह सेज म रोजगार क गार टी दी जाए।
31.6 सेज - एक िवफल होता हआ योग
चीन म 1980 म 14 समु ी - तटीय शहर म िवशेष आिथक े कायम िकए। िजनका
उ े य इन े को दोहरा कायभार स पना था तािक वे िवदेश उ मुख अथ यव था के िलए िखड़क
का काय कर सक िजसके प रणाम व प वे अपने िनयात को बढ़ाकर िवदेशी मु ा अिजत कर सके
और उ नत तकनीक का आयात कर। नतीजतन िवशेष आिथक े ने आिथक िवकास को व रत
करने का मा यम बनते हए स पूण िव का यान अपनी ओर आकिषत िकया। िजसके
प रणाम व प भारत सिहत कु छ देश ने अनुसरण करना ारं भ कर िदया। िजस कार चीन म िवशेष
आिथक े के िवकास ने 06 आधारभूत उ ोग तथा समु ी तटीय 14 शहर के िवकास के
मा यम से े ीय असमानता को बढ़ावा िदया उसी भांित भारत क सेज नीित के अधीन िविनमाण
समूह के थान पर वा तिवक प रस पि के िनमाणकताओं बोलबाला रहा है िज ह ने सेज
िवकासकताओं का मुखौटा पहन रखा है वा तव म 2005 के सेज अिधिनयम म यह ावधान रखा
गया िक अिधकृ त भूिम के के वल 25 ितशत, बाद म िजसे बढ़ाकर 35 ितशत िकया गया पर ही
उ पाद गितिविधय क अिनवायता होगी िजसे अ ैल 2007 म बढ़ाकर 50 ितशत कर िदया गया।
शेष भूिम का उपयोग घर , मकान , होटल , व यावसाियक कायालयो के िनमाण के िलए िकया जा
सकता है । इस ावधान के कारण सेज िवकासकताओं को भवन इ यािद के िनमाण म बड़े पैमाने
पर पैसा कमाने का अवसर िदखाइ िदया।
पर तु देश के भीतर अनेक रा य तथा थान पर िकसान ने सेज िवकासकताओं के इन
यास का भरसक िवरोध िकया। पि मी बं गाल म न दी ाम तथा िस गूर म िहंसा मक दशन, गोवा
म सेज के िखलाफ दशन तथा महारा म ‘‘महामु बइ-प रयोजना’’का िवरोध इस बात का प
माण है िक सेज सं बं धी नीित वीकाय नह है भूिम अिध हण क किठनाइय के चलते कइ
कं पिनय ने अपनी प रयोजनाओं के पुनगठन क या समय सीमा बढ़ाने क तथा कु छ क पिनय ने
अपनी प रयोजनाओं का पूणतया प र याग करके सेज थापना क अपनी िज मेदारी से मुि पाने
क चे ा क है ।
भूिम अिध हण क किठनाइय के अलावा सेज िवकास कताओं के उ साह को कम
करने वाले अ य कारण है - िव यापी मंदी िजससे िनयात पर बुरा असर पड़ने क सं भावना है,
य कर िनयमावली (Direct Tax code) के लागू होने का डर िजससे आय कर अिधिनयम म
इस कार के यापक प रवतन हो सकते है िजनसे छू ट व रयायत म कमी हो जाए,
लाल-फ ताशाही (Red tapism) इ यािद।

467
योजना को लागू करने म आने वाली किठनाइय का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता
है िक 436 अनुमोिदत सेज म से के वल 347 को अिधसूिचत िकया जा सकता है तथा के वल 199
चालू है । CAG क रपोट के अनुसार वष 2006 से 2013 के दौरान सेज के िलए 60375 हे टर
भूिम का अिध हण िकया गया था पर तु 31886 हे टर (अथात् 53 ितशत) भूिम का उपयोग नह
िकया जा सकता है । सरकार वयं इस बात को वीकार करती है िक िनयात ढां चा सही नह है,
िविनमाण गितिवधय का पया िवकास नह हो पाया है, े के फै लाव, असमतल है, अथात्
े ीय असमानताएं अ यािधक प से िव मान है । य िक यह इस बात से प होता है िक 83
ितशत सेज के वल 05 रा य म ि थत है यही नह कायरत सेज क सं या कम तथा सेज के
आसपास का े पहले क भांित अिवकिसत रह गया है तथा अनेक िवकास के िलए सेज ने कोइ
योगदान नह िदया है । व तुत : सच तो यह है िक वैि क आिथक मंदी तथा अि थर सरकारी नीितय
के प रणाम व प सेज का पूरा अि थर सरकारी नीितय के प रणाम व प सेज का पूरा योग से
अपने अ त के कगार पर पहंच रहा है । आज, िजस मं ालय ने सेज के िवचार को पेश िकया या तथा
सेज क थापना के िलए कदम उठाए थे, वही मं ालय अब पीछे हट रहा है तथा सेज के थान पर
‘रा ीय िनवेश तथा िविनमाण े (National Investment and Manufacturing Zones)
क थापना पर जोर दे रहा है, िजसक िसफा रश नव बर 2011 म घोिषत ‘रा ीय िविनमाण नीित
(National Manufacturing policy) म क गइ थी। िवशेष के अनुसार रा ीय िनवेश तथा
िविनमाण े के यास सेज क गितिविधय म आइ िशिथलता क ितपूित करने के िलए ह
हालांिक इस सं दभ म यह यान रखना आव यक है िक जहां सेज म के वल िनयात पर ही यान
के ि त िकया गया है वह NIMZs का उ े य घरेलू े म िविनमाण गितिविधय को ो सािहत
करना है ।
31.7 सेज के ित सही नीित या हो -
पि मी बं गाल म िसं गरू व नं दी ाम, महारा म ‘‘महा मु बइ प रयोजना का िवरोध तथा
गोवा म सेज के िखलाफ दशन क घटनाओं क देश म पुनरावृि नह होनी चािहए। इससे भारत
क साख को िवदेश म भी भारी ित पहंची है । इसम कोइ दो राय नह है िक सेज क थापना से
आधुिनक िक म के औ ोिगक करण को िनयात से जोड़ने म अ यिधक मदद िमलेगी। लेिकन अब
तक के देश िवदेश म सेज के अनुभव से हम िन न बात का यान रखना चािहए तािक हम इनक
थापना से सवािधक लाभ ा कर सक।
1 भू िम अिध हण सं बं धीसु झाव –
भूिम अिध हण क ि या को पारदश प व येक ि से सकारा मक बनाया जाना
चािहए। इस सं बं ध म भािवतकृ षक वग को पूण िव ास म िलया जाना चािहए, उ ह सरकारी
सहयोग से भूिम का उिचत मू य, ितपूित क रािश पुनवास क यव था व थािपत उप म म
उनक शेयर होि डं ग क यायोिचत यव था आिद का लाभ िदया जाना चािहए।
2 यावहा रक तथा यावसाियक ि कोण अपनाना –
468
सेज का आकार या है? इस सं बं ध म सरकार ारा यावहा रक तथा यावसाियक
ि कोण अपनाया जाना आव यक है जैसे - सेज का आकार म टी ोजे ट इकाइय के िलए
आव यकतानुसार 5000 है टेयर से अिधक रखा जाना चािहए। इसी कार सेज के िनयात
ो साहन के अित र िविनमाण तथा िवदेशी के े पर भी यान देकर इसे अपे ाकृ त अिधक
यावसाियक तथा यावहा रक बनाया जा सकता है ।
3 सेज क गु णवतता पर यान के ि त करना
भारत म सेज क इकाइय क सं या बढ़ाने क अपे ा चीन क भां ित उनक सं या को
सीिमत रखते हए उनक गुणव ा व काय कु शलता पर अिधक यान के ि त िकया जाना चािहए
िजससे िक इनसे अपेि त प रणाम िनयात िविनमाण तथा िनवेश के े म ा हो सके ।
4 स पू ण िवकास आधा रत होना चािहए –
सेज क इकाइय क सफलता के िलए डेवलपस व िनगम के िहत पर यान देने के साथ
साथ स पूण अथ यव था म ित पधा, अिभनव िविधय व अ तरा ीय आिथक सहयोग को
बढ़ाने पर भी बल िदया जाना चािहए तािक सेज बाजार - मै ीपूण, सुधार - मै ीपूण व सम िवकास
मै ीपूण बनकर उभर सके । के वल यावसाियक ेरणाएं देकर, कर म छू ट देकर म कानून को उदार
बनाकर सरकार को सं तोष नह करना चािहए। उ ह भेदभाव से दूर रख कर स पूण िवकास का बल
साधन बनाया जाना चािहए।
5 े ीय असमानत म कमी करना -
सेज का के ीकरण कु छ थान तक ही सीिमत रहा है । इसके अ तगत िकए गए िनवेश का
83 ितशत भाग के वल 05 रा य तक सीिमत रहा है और अिधकतर िनवेश देश के 20 िजल तक
ही सीिमत है िजससे े ीय असमानता क सम या उभरी है । सेज क थापना के सं बं ध म भावी
नीित इस कार क हो िजससे औ ोिगक प से अपे ाकृ त िपछड़े े म इनक थापना अिधक
से अिधक हो सके तथा सेज का िवके ीकरण सं भव हो सक। इतना ही नह सेज उ े य के वल
िनयात तक सीिमत न रहकर इसे ाथिमक े , िविनमाण तथा िनवेश े तक भी बढ़ाया जाना
आव यक है ।
31.8 िन कष
िवशेष आिथक े के ि कोण पर िजससे औ ोिगक करण और िनयात ो नित को बढ़ावा िदया
जा रहा है, पर पुनिवचार करने क आव यकता है । इन े तथा शेष देश के बीच िवभेदक
कराधान के कारण देश को 175000 करोड़ पये के कर राज व का नुकसान होने का सरकारी
अनुमान है । इसक तुलना म िपछड़े इलाको म नयी औ ोिगक इकाइय को थािपत करने क नीित
यायोिचत थी य िक इससे उनक अित र लागत क भरपाइ होती थी। पर तु िवशेष आिथक
े क इकाइयां तो महानगर के इद-िगद थािपत क जा रही है या क जा चुक है । इस कार
भारत के सुद ुर ि थत े या िपछड़े इलाको क हालत म कोइ सुधार इस नीित से नह झलकता ह।

469
इसके अित र , चीन के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है िक चीन के िपछड़े इलाके
बहत ही िपछड़ गए है अब इनक दूरी समु -तटीय शानदार े से ओर भी बढ़ गइ है ।
चाह 11व तथा 12व पंच वष य योजनाओं म, भारत म –“ती िवकास के साथ अिधक
समावेशी िवकास’’ ा करने का ल य तय िकया गया, वहां यवहार म िवशेष आिथक े क
नीित के प रणाम व प िवकास के ‘असमतापूण ए कलेव’’ कायम कर रहे ह िजनका प रणाम
समावेशी िवकास के िवपरीत अपवज िवकास के प म य हआ है ।
ी राहल बजाज, अ य , बजाज ऑटो िल. िवशेष आिथक े क नीित क आलोचना करते
हए उ लेख करते ह ‘‘मेरा िव ास है िक वतमान िनयम के आधार पर कु ल िमलाकर िवशेष
आिथक े के कानून के आधार पर देश को कोइ मह वपूण लाभ ा नह होगा। जैसे ये इस
समय ह, ये िवशेष आिथक े क इकाइय को रा को सं भािवतलाभ क तुलना म अनुपात से
अिधक ो साहन उपल ध करा रहे ह। (इ नोिम स टाइ स, अ टबर 04, 2006)
अ त म इस बात क ओर यान देना होगा, िक िनयात बढ़ाने के ल य क तरजीह देते हए
हम देश म खा वावलि बता (Food Self-sufficiency) को कमजोर न कर द। इस सं बं ध म ी
मंगल राय, कृ िष अनुसं धान क भारतीय प रषद के महािनदेशक ने उ लेख िकया है, चूं िक भू- े
सीिमत है और कृ िष भूिम सबसे अिधक मू यवान है, हम इस सं बं धम बहत सावधानी बरतनी होगी।
हम देश क खा सुर ा करना होगा। खा सुर ा रा ीय सुर ा का अिनवाय अंग है ।’’ इसके
साथ ही आशा है िक 13व स वष य या पं चवष य योजना (2017-2023, 2017-2022) म सेज
औ ोिगक करण के सबल व सहाय मा यम के प म उभर सकगे और चीन क भां ित भारत भी
औ ोिगक करण के माग पर तेज गित से आगे बढ़ सके गा।
रलाय स इ ड ीज, ओमे स व डी.एल. एफ. सेज के अ तगत बड़े ोजे ट लगाना चाहते
ह। इसके िलए वे सेज के िलए अिध हण क सीमा को 5000 हे टेयर से अिधक बढ़ाना चाहते है ।
चीन म बड़े आकार के सेज थािपत होने से उनक ित पधा मक शि अिधक हइ है । भारत म
छोटे आकार के सेज थािपत करने से अिधक सफलता नह िमल पा रही है । 2011-12 के बजट म
मैट (MAT) जो कु ल ोिफट पर लगाया जाता है, को सेज के डेवलपस व उनम थािपत इकाइय
पर भी लगा िदया गया था। जुलाइ 2017 म अपेि त व तु व सेवा कर (GST) तथा भिव य म
अपेि त य कर सिहंता (DTC) क नइ यव था लागू होनी है । िजसम यह देखना है िक उनम
सेज क इकाइय के सं बं ध म या िनणय िलये जाते ह। अब समय आ गया है जब सरकार लेने ह गे
तािक सेज व गैर - सेज क इकाइय के म य का भेदभाव कम िकया जा सक, ओर सेज क इकाइय
को अिधक ित पधा मक, स म व सबल बनाया जा सके तािक भारतीय अथ यव था म
वै ीकरण क ओर गित अिधक तेज गित से हो सके ।
31.11 सं दभ ं थ
1- वी.के . पुरी एवं एल.के . िम ा, भारतीय अथ यव था, 20th Revised edition, िहमालया
पि लिशं ग हाऊस, मु बइ
470
2- द एवं सु दरम, भारतीय अथ यव था, एस.च 2005 क पनी िल., नइ िद ली
3- ल मीनारायण नाथूरामका, भारतीय अथ यव था, कॉलेज बु क हाऊस, जयपुर
4- िव मं ालय, भारत सरकार आिथक समी ा 2012-13, 2013-14 एवं 2015-16, नइ िद ली
5- आिथक समी ा 2012-13, 2013-14 एवं 2015-16, नइ िद ली
6- भारत म सेज क रपोट, उ ोग एवं वािण य मं ालय, भारत सरकार।

471
इकाई 32
भारतवष क समाना तर अथ यव था
इकाई क परेखा
32.0 उ े य
32.1 तावना
32.2 कालेधन क प रभाषा, ोत तथा े
32.2.1 प रभाषा तथा धारणाय
32.2.2 काले धन क उ पित के ोत
32.3 काली आय के अनुमान
32.4 काले धन को रोकने के उपाय
32.5 काले धन म वृि के भाव
32.6 सारां श
32.7 श दावली
32.8 कु छ उपयोगी पु तक
32.9 बोध के उ र
32.0 उ े य
आपने देश के आिथक िवकास म बह रा ीय िनगम के थान का अ ययन िकया तथा
बा व आ त रक ऋण के अथ यव था पर होने वाले भाव का अ ययन िकया है ।
इस इकाई म हम भारत वष म चल रही समाना तर अथ यव था का अ ययन करगे। इसे
समझने के बाद आप िन न बातो को भली कार समझगे :
 समाना तर अथ यव था के अथ को समझना इसका कारण (काला धन) और िकन बातो
क वजह से यह उ प न होती है ।
 काले धन के सोतो तथा उसके मु य े जहां यह चिलत है को भली भां ित समझना
 देश म मौजूद काले धन क मा ा तथा आकार; तथा
 इसके िनवारण के िलए उठाये गये कदम क जानकारी।

472
इसके अ ययन ारा अिनयिमत बढ़ते हये काले धन क सम या को भली कार समझ
सकगे िक िकस कार यह भारतीय अथ यव था को भािवतकर रही है ।
32.1 तावना
आपने बहरा ीय िनगम का अ ययन 21 व इकाई म िकया और ये देखा िक इन िनगम
के े म आने से हमारी अथ यव था तथा आंत रक उ पादन पर कै सा भाव पड़ता है ।
वतमान इकाई म आप देश म बढ़ते काले धन क सम या तथा समाना तर अथ यव था के
बारे म अ ययन करगे। काले धन क सम या म सौद का आदान दान छु पकर िकया जाता है तािक
कानून के दायरे से ये सौदे बाहर रह और इनसे होने वाली आय से सरकार को जो अंश िमलना
चािहए उससे वं िचत हो जागी है, इसी को काले धन क सम या कहते है । इसके िवपरीत ेत धन वो
धन होता है िजसका लेन देन खुले प से होता है तािक कानूनी तौर पर जो अंश सरकार को ा
होना है वह वह उसको िमल जाये। काले धन क सम या के िलए कु छ बात िज मेदार है । काला धन
एक िनि त े म उ प न होता है और उसको चोरी िछपे ही खच िकया जाता है । काले धन के ''इस
े को समाना तर अथ यव था का नाम िदया जाता है, य िक यह ेत धन के साथ साथ चलती है
। इसका कु भाव भारतीय अथ यव था पर िकतना पड़ता है उसको उसी समय समझा जा सकता है
जब हम ये जान िक देश म काला धन िकतनी मा ा म है । जब काला धन ेत धन के साथ साथ
चलता है और इसक मा ा बढ़ती जाती है तो इससे देश को अ यिधक हािन होती है और इस कार
काले धन को रखने वाले सरकारी िनणय को भी भािवतकरने लगते है । अत : ऐसे कदम उठाये
जाने चािहये िक िजससे इस कार के भाव को जहां तक संभव हो समा िकया जा सके । हम सह
समझना चािहये िक इस सम या से देश म िव ीय सोतो क कमी आ जाती है और िवकास काय के
िलए धनाभाव हो जाता ह।
दूसरे इससे समाज के िविभ न वग म आय िवषमता बढने के कारण समाज के िविभ न
वग म सं घष क ि थित पैदा हो जाती है, िजसके कारण कु छ असामािजक त व देश के धन के एक
बड़े भाग को अनुिचत प से हिथया कर बैठ जाते है ।
32.2 काले धन क प रभाषा, ोत तथा े
32.2.1 प रभाषा तथा धारणाय: काला धन, काली आय अथवा िछपाई हई आय का योग उस
आय अथवा धन के िलए िकया जाता है िजसको कानून क नजर से बचाकर रखा जाता है । इसको
चुरा िछपा कर रखा जाता है तथा इस पर कर नह िदया जाता। अत: इसका िवकास तेजी से होता है ।
जैसा ऊपर बताया जा चुका है िक इस कार ेत अथ यव था के साथ–साथ समाना तर
अथ यव था उ प न हो जाती है ।
काले धन का उदय ि तीय यु काल म हआ जबिक बाजार म व तुओ ं क कमी हो गई थी
और यापा रय ने व तुओ ं को अिधक दाम पर बेचने के िलए उसका सं ह करना शु कर िदया।
473
इससे व तु आम आदमी को ा नह होती थी पर वही व तु अ यिधक दाम पर चारी िछपे धनी वग
को बेची जाती थी। इस कार से ा आय को यापा रय ने चोरी िछपे रखना शु कर िदया तािक
वे कानून क नजर से दूर रह और उस पर िकसी कार के कर के भुगतान से बचा जा सके ।
32.2.2 कालेधन क उ पि के ोत: काला धन तीन कार से उ प न होता है ।
1. कर वं चन
2. कर न देना
3. ेत धन का चोरी–िछपे इ तेमाल!
इन तीन ही से कर यो य आय को िछपाया जाता है और सरकार को कर से वं िचत रखा
जाता है । धन सरकार को न िमलकर गलत तरीके के यापा रय के हाथ म जाता है, जो उसका
अनुिचत योग करते है तथा सरकार पर गलत असर डाल सकते है । इस कार का लाभ
कभी–साथ बड़े–बड़े सरकारी अिधकारी भी ले भागते है । अथात् वे सरकारी सं गठन अथवा उ ोग
के धन को चुरा–िछपाकर अपने क जे म कर लेते है ।
1. कर वं चन : कर वं चन का अथ यह है िक इसके ारा कर देने वाला खातो म हेर–फे र करके
कर कम देता है या कर देने से बच जाता है । कर वं चन के अनेक तरीके हो सकते है, जैसे बही खाते
म हेर–फे र करना अथवा कई कार के बही खाते रखना अथवा कृ ि म नाम से खाते खोलना िजसे
बेनामी खाता कहते है । इसी कार ठे के अथवा यापार कृ ि म नाम से करना, यापा रक लेन–देन
को खाते म न िदखाना, स पि का कम मू य आंकना तथा िवदेशी िविनमय के साथ हेर–फे र करना।
इस कार यापारी तथा काले धन का धं धा करने वाले समाज तथा सरकार को धोखा देते है ।
कभी–साथ तो वे कई खाते िविभ न बैको म खोलते है तािक आयकर अिधकारी को उसक सही
आय का पता न लग सके । हमारी बिकग प ित कु छ इस कार है, िक हम खाता खोलने वाल के
बारे म पूरी जानकारी नह ा करते। िविभ न बैको म ित पधा के कारण भी ऐसा होता है िक
िकसी पाट के बारे म सं दहे होने पर भी बक चु पी साध लेते है अथवा पाट इतनी भाव शाली
होती है िक वह उसके बारे म कु छ पूछ ताछ या तो करता नह और यिद करता भी है तो उसे सही
बात का पता नह चलता। कभी–2 ठे के िविभ न नाम से लेकर ठे केदार आयकर बचा जाता है । इसी
कार स पि का मू य कम िदखाकर आयकर अिधका रय को धोखा िदया जाता है । कभी–साथ
जमीन तथा मकान क िब का एक ही भाग ेत धन के प म िदखाया जाता है और शेष चोरी
िछपे दे िदया जाता है । उपयु के वल कु छ उदाहरण ही कर वं चन के है ।
2. कर न देना: इसका अथ ये है िक यापारी तथा सरकारी कमचारी कानून के अ तगत
अपनी आय को इस कार िदखाता है िक उस पर या तो बहत थोड़ा कर पड़ता है अथवा कर से वो
पूरी तरह मु हो जाता है । यहां पर यापारी आयकर कानून क किमय से फायदा उठाता है अत.
उसे ाय: गैर कानूनी या अनैितक नह समझा जाता। इसके कु छ उदाहरण इस कार से है, जैसे
धािमक ट खोलना, पित–प नी क आय को एक साथ न िदखना। उपहार कर, मृ यु कर इ यािद से
474
बचना। वैसे तो समाज म गरीब के िलए, यतीम के िलए, असहाय औरतो तथा ब च के िलए या
धम कम के िलए धन यय करना, बहत अ छा माना गया है पर तु अभा यवश आजकल इस कार
क सं थाय चलाने के पीछे समाज सेवा का उ े य उतना नह है िजतना िक सरकर तथा समाज को
धोखा देना। समाज के ठे केदार तथा धमा मा इसका योग कर से बचने के िलए कर रहे ह
कभी–कभी कर से बचने के िलए िनजी क पिनयां बनाई जाती है िजससे बीबी–ब चे तथा दूसरे
प रवार के लोग सद य या अंश धारक बना िदये जाते है । इस कार के बहत से काय करके यि
कर से बच जाता है ।
3. ेत धन का चोरी िछपे योग : यहां पर हम ये देखगे िक िकस कार से जब बड़े–बड़े
ठे के िदये जाते है तो उसम अ यिधक ाचार िछपा रहता है जैसे ठे का सही दाम पर न देना,
अ यिधक कमीशन अथवा लेना। अत : ेत धन का योग सरकारी अिधका रय को देकर ठे केदार
ठे के अथवा खाते के मू य बढ़ा देता है इससे सरकार को नुकसान होता है और सरकारी अिधकारी
तथा ठे केदार को लाभ होता है । हम सब जानते है िक ये प ित अ यिधक चिलत है पर इसको
रोकने के िलए कोई िवशेष यास नह िकया जार रहा है । इसी म सामान क त करी तथा सामान
का सं ह व चोर बाजारी भी शािमल है । िन निलिखत कु छ ऐसे े है िजनके ारा काले धन का
ज म होता है ।
(i) मू यवान धातुओ ं तथा िवलािसता क व तुओ ं क त करी,
(ii) आम उपभोग क व तुओ ं का सं ह,
(iii) स ा मुनाफाखोरी तथा काला बाजार प ित,
(iv) र त तथा कमीशन के ारा
(v) शहरी े म चल तथा अचल स पि म िविनयोग
(vi) बेनामी खाते तथा बेनामी यापार
(vii) धािमक तथा सामािजक सेवा ट
(viii) धनी वग का िवलािसतापूण रहन सहन।
बोध – 1
(1) समाना तर अथ यव था का अथ बताय? भारत वष के आिथक िवकास के स ब ध म इसका
मह व य अ यिधक है?
(2) काले धन के मुख ोतो का उ लेख क िजये? उन े को भी बताइय जहां काला धन
चिलत है?

475
32.3 काले धन का अनु मान
भारत वष म िकतना काला धन है इसका के वल एक ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
य िक इसक सही मा ा को जानना सरल नह । काले धन का लेन–देन चोरी िछपे होता है अत: इसे
सही तरीके से आकड़ा सं भव नह । काले धन को सफे द म प रवितत िकया जाता है और सफे द को
िफर काले म प रवितत कर िलया जाता है । कभी–कभी तो के वल व तु िविनमय से ही लेन–देन हो
जाता है । ऐसा इसिलये स भव है िक अथ यव था म कु छ ऐसे े है िजनका पूरी तरह से
मौि करण नह है और न क चे माल के उ पादन से अि तम उ पादन तक क िविभ न अव थाओं
को समि वत नह िकया जा सकता। इस कार हम मु य प से ये समझना है िक काले धन का
भाव अथ यव था पर िकस कार से पड़ता है? भारत म जहां ाय : आव यक व तुओ ं का
अभाव हो जाता है वहां इसके मह व को आसानी से समझा जा सकता है ।
1. मैलकौम अिथिशसयया का अनु मान: इनके अनुसार कु ल रा ीय उ पादन वतमान मू य पर
यिद िलया जाये तो इसका लगभग 40% काले धन के प म है ।
2. अ तरा ीय मु ा कोष के एक सव ण के अनुसार काला धन वतमान मू य पर रा ीय उ पादन
का 50% है ।
िनमिलिखत तािलका म काले धन का अनुमान िदया गया है :
तािलका 32.1 : वष 1981– 82 से 1985– 86 के बीच
पाँच वष का काले धन का अनु मान
( करोड़ म)
वष कु ल रा ीय % वृि काला धन % वृि IMF % वृि
उ पादन िपछला आिशिस य िपछला वष अनुमान िपछला
वतमान मू य वष 40% 50% वष
साधन लगन (GNP) (GNP)
पर ( . करोड़
मे)
(1) (2) (3) (4) (5) (6) (7)
1981–82 103763 – 41505 – 51882 –
1982–83 145280 40 58112 40 72604 40
1983–84 171713 7 68685 18 85857 18
1984–85 189417 10 75767 10 51882 10
1985–86 213553 13 85421 13 72604 13
योग 823726 70 329491 81 85857 81
उपयु तािलका से िन निलिखत त य ा होते है :
476
1. 1981–82 के कई वष म कु ल रा ीय उ पादन क सकल वृि दर 70% है । पर तु
इसी काल म काले धन क सकल वृि दर दोन ही अनुमान म 81% है ।
2. इसका अथ ये ह िक काले धन क वृि क दर कु ल रा ीय आय क वृि से अिधक
है । िजसको रोकना आव यक है ।
काले धन के कु छ अ य अनु मान :– काले धन के मुख ोत कर वं चन है । अत: इसके
आकड़ से भी काले धन क मा ा का अनुमान लगाया जा सकता है । इसम सं देह नह िक इस
स बं ध म िविभ न अनुमान म पया अ तर है ।
को डर के अनुसार कर वं चन क मा ा 1956–57 म लगभग 200–300 करोड़ थी।
वांचू कमैटो के अनुसार (1971 रपोट) 1961–62 म इसक मा ा 700 करोड़ थी,
1965–66 म 1000 करोड़ तथा 1968–69 म 1400 करोड़ थी।
डॉ. रगनेकर के अनुसार, 1961–62 मे इसक मा ा 1150 करोड़, 1965–66 म 2350
करोड़, 1968–69 म 2833 करोड़ और 1969–70 म 3080 करोडू थी।
सूरज बी.गु ा के अनुमान के अनुसार वष 1987–88 म काली मु ा क मा ा 1 ,49,297
करोड़ पये थी जो GNP का 50.7 ितशत थी िव पर सं सदीय टेि डग कमेटी क रपोट के
अनुसार वष 1994–95 म चालू मू य पर काली मु ा क मा ा 11,00,000 करोड़ थी जबिक इस
वष GNP 843294 करोड़ थी। इस कार काली मु ा GNP का 130 ितशत थी अथात् GNP से
भी अिधक हमारे देश म काली मु ा चिलत थी। 2007 क एक रपोट के मुतािबक कालेधन क
अथ यव था 74600 अरब पये क थी । वयं ि वस बक ने 2008 के िलए जारी आकड म
अपनी जमा रािश 3.35 खरब डॉलर बतलाया ।इसम 1.92 खरब अमे रक डॉलर क रािश
िवदेिशय ारा जमा क गई । डॉ. सुरजीत एस. भ ला ने 2009 म देश क जीडीपी के 1.5%(एक
करोड़ लाख पये) कालेधन के सृजन का अनुमान लगाया। लेिकन लोबल फाईनिसयल इंिटि टी
के अनुमान के औसर या जीडीपी का 7.5%(5 करोड़ लाख पये) है ।2010-12 म सी.बी.आई.
मुख मुख ने 500 िबिलयन अमे रक डॉलर के कालेधन का अनुमान लगाया ।
उपयु अनुमान से यह िविदत है िक देश म काले धन क सम या अ यं त िवकराल है ।
32.4 काले धन को रोकने के उपाय
काले धन को रोकने क दो िविधयाँ है
(1) थम िविध अनुसार काले धन रखने वाले लोग को ो साहन देकर काले धन को
बाहर िनकालना। इसे नरम प ित भी कहा जा सकता है ।
(2) दूसरी प ित के अनुसार कानून के ारा स ती करके काले धन को बाहर िनकालना
इसे ढ़ प ित भी कहा जा सकता है ।

477
नरम प ित : इसके कु छ उदाहरण इस कार से है–
(i) वे छा से काले धन को बताने क योजना,
(ii) धारक बॉडस ारा काले धन को बाहर िनकालना,
(iii) काले धन को सही िदश म योग के िलये ो सािहत करना,
(iv)समझौते से काले धन को बाहर िनकालना।
वे छा से काले धन क मा ा को बताने क योजना काफ उ साहवधक िस हई है
य िक इसम यह नह पूछा जाता िक यि काला धन कहां से लाया है, अभा यवश इसम अ त म
अिधक सफलता ा नह हई। ऐसा ही धारक बॉड योजना म है । इसम भी कोई खास सफलता नह
िमली। इसके असफल होने के मु य कारण ये हो सकते है िक पहले तो इसम याज क दर बहत कम
है । दूसरे लोग को डर था िक इस कार उ ह अ तत : कर के जाल म फं सा िलया जायेगा। इसी
कार काले धन को अ य सामािजक प से लाभदायक ोत जैसे सड़क तथा पुल बनाना आिद क
योजना भी असफल हो गई य िक इसम लाभ कम और जोिखम अिधक था, समझौता योजना भी
सफल न हो सक य िक बड़े–बड़े कर दाता अ तत : कर के जाल म नह आना चाहते।
ढ़ उपाय : इस कार के उपाय मु य प से का डर ने सुझाये थे जैस,े एक यूनतम आय
के ऊपर वाले कर दाताओं के खातो क अिनवाय जां च करना।
येक कर दाता के िलए थायी खाता सं या देना, कर अिधका रय क शि को बढ़ाना
तथा बही खातो के िनरी ण म अथवा उनके ज त कर लेने म पूण छू ट देना तथा उन यि य पर जो
दोषी पाये जाय जुमाना लगाना और उनका आम जनता म चार करके अ य लोग को डराना
इ यािद।
इसी कार क िसफा रश बाबू कमैटी ने क थी। इन दीन के ही अनुसार एक िनि त आय
के ऊपर वाले करदाताओं के खातो का अिनवाय प से िनरी ण िकया जाना चािहये। अथवा ये
िनरी ण तथा आिडट चाटड एकाउ टे ट के ारा िकया जाना चािहये इस स बं ध म यूनतम आय
क सीमा एक लाख से पांच लाख तक सुझाई गई थी।
इस कार के यास िकये गये थे िक जो चाटड एकाउनटे ट इस काय म मदद करेग उन पर
बड़े–बड़े करदाताओं का भाव न पड़े और इसी िलये सरकार ने उनको िदये जाने वाले पा र िमक
का एक भाग वयं वहन करने क घोषणा क । का डार का ये िवचार था िक भारी जुमाने और जनता
म बदनामी का असर करदाताओं पर अ यिधक पड़ेगा। और कर क चोरी करने वाले कर देने को
तैयार हो जायगे। पर तु इसके िलए कर अिधका रय क पया सं या होनी चािहये। उनम कर क
चोरी करने वाल पर छापा मारने क मता तथा िह मत होनी चािहये। साथ ही साथ उनम एक सीमा
तक ईमानदारी भी होनी चािहये, इसम कोई सं दहे नह िक यिद इस काय को ईमानदारी से िकया जाये
तो पया काला धन बाहर लाया जा सकता है और सम या का समाधान िकया जा सकता है । पर तु

478
जैसा क हम जानते है िक वतमान प रि थितय म जहां कर अिधका रय क काय– मता तथा
ईमानदारी का तर नीचा है वहां पूण सफलता िमलने म किठनाई होती है । अभा यवश राजनीित
भी इसके भागी हो जाते है और इस कार वे भी इस योजना के असफल होने के िज मेदार है । शायद
लोक आयु क िनयुि से तथा हर सरकारी अिधकारी क आय व स पि का यौरा लेकर इस
े म कु छ िकया जा सकता है ।
मनी लाऊि गं ि वेशन ए ट , 2002
मनी लाऊि ं ग ि वेशन ए ट , 2002 एक जुलाई 2005 से लागु हआ । गैर कानूनी तरीके
से अिजत पैसे को देश म लाने क ि या को मनी लाऊि ं ग कहा जाता है इस अिधिनयम के
अंतगत सभी बक और िव ीय सं थाओ को 10 लाख से अिधक क नकदी के लेन देन क
जानकारी िवदेशी मु ा के स ब ध म वष भर के भीतर 10 लाख से अिधक लेन देन तथा शेयर के
स दभ म भी लेन देन एवं ह ता तरण क जानकारी देना अिनवाय कर िदया गया । इस अिधिनयम के
तहत मनी लाऊि ं ग म दोषी पाए जाने पर लोगो को 10 वष तक क सजा एवं 5 लाख पये तक
जुमाने का वधान िकया गया है ।
मनी लाऊि गं ितषेद (सं शोधन) िबल , 2011
मनी लाऊ ग
ं तषेद (संशोधन) बल , 2011लोकसभा म पेश कया गया । ता वत वधेयक
को संसद क व संबध
ं ी थाई स म त को सौपा गया िजसमे 18 अनुशंषाएं के साथ अपनी रपोट
सौपी। सरकार ने इन अनुशंषाओं को वीकार कर संशो धत ा प को दस बर 2012 म लोकसभा म
पुनः पेश कया ।

बोध –2
नोट : अपने उ र को इकाई के अ त म िदये गये उ र से िमलाय।
(1) काले धन के अनुमान िकन वृि य क ओर सं केत करते है?
(2) आपके िवचार म कर वं चन रोकने का कौन सा तरीका सव म है?
32.5 काले– धन क वृ ि के भाव
काले धन से होने वाले िव ीय : ये होते है िक िविभ न रा य या सरकार क आय घट
जाती है और इनके िवकास काय के िलए धनाभाव हो जाता है इसी कार सावजिनक े िजसका
मह व अ यिधक है उसके िलए भी धनाभाव हो जाता है । इस कार देश मह वपूण सेवा योजनाय
को पूरा नह कर पाना अथवा कु छ आव यक पूं जीगत व तुय ा नह करता। इसका कु भाव
आधुिनक तकनीक पर भी पड़ता है । एक कार से हम इसी कारण दूसरे देश अथवा अ तरा ीय
सं थाओं से ऋण लेने के िलए बा य हो जाते है तािक आव यक िविनयोग के िलए धन क कमी
को पूरा िकया जा सके । अभा यवाश हमारे िनयात इतने नह है िक हम िवदेशी कु ण के भार को

479
आसानी से वहन कर सक। अत : िवदेशी ऋण भार हमारी अथ यव था पर िदन– ितिदन बढ़ता जा
रहा है । और ऋण जाल क सम या उ प न हो गई है । इस कमी को पूरा करने के िलए आधुिनक
तकनीक के आयात के िलए छू ट देनी पड़ी। इसका भी भाव देश म बहत अ छा नह पड़ा। और इस
स बं ध म काफ वाद–िववाद उ प न हो गया िक बाहरी तकनीक को हम िकस हद तक बढ़ावा द।
एक और भाव इसका ये हआ िक हमारे सावजिनक उ ोग क लागत बढ़ गई है और हमारी
ित पधा मक शि घट गई है ।
कर चोरी के कारण सरकार को आंत रक शासन के िलए भी धनाभाव हो जाता है िजसके
कारण सरकार को आंत रक ऋण लेना पड़ता है । और इस कार इससे उ प न होने वाली कई कार
क बुराइय को झेलना पड़ता है जैसे जब इस धन का योग अनु पादक काय के िलए िकया जाता
है तो देश म मु ा फ ित क दर बढ़ने लगती है । यिद एक कार से देखा जाये तो मु ा फ ित का
एक मुख कारण काला धन है ।
िनयोजन क ाथिमकता पर भाव : हमारे िनयोजन का मुख उ े य आय िवषमता
को दूर करके गरीबी तथा बेकारी क सम या को सुलझाना है । इसके िलये सरकार को पया धन क
आव यकता होती है तािक आव यक व तुओ ं का उ पादन िकया जाये और नये– 2 रोजगार के
ोत खोले जाय। पर तु जब देश म धन का एक बड़ा भाग चोरी िछपे कु छ लोग के हाथ म है जो उसे
अपनी यि गत िवलािसता पर यय करते है तो िन य ही रा के पास अपनी उपयु योजनाओं
के िलए धनाभाव हो जाता है । काले धन से धनाभाव बढता है तथा मु ा फ ित भी। कु छ लोग
बड़े–2 बं गल म िवलािसता क िजं दगी गुजारते है जबिक करोड़ लोग आव यक आव यकताओं
को भी पूरा नह कर पाते।
राजनैितक ढाँचे म भ ाचार : काले धन के कारण देश के राजनैितक ढाँचे म भी ाचार
उ प न हो जाता है य िक ये बड़े– 2 धनवान राजनीितक को तो खरीद लेते है या उन पर अ यिधक
भाव बना लेते है । अभा यवश हमारे राजनीितक अपने ईमानदारी के तर को एक िनि त तर तक
बनाये रखने म असफल रहे है । यही नह ऐसा भी देखा गया है िक कभी–2 तो कानून के रखवाल
को भी इनके सामने झुकना पड़ता है । पैसे म बड़ी शि है और ये लोग इसे समझते है िक इससे
िकसी को भी अपने वश म िकया जा सकता है और इन म ये लोग िकसी हद तक सफल भी हये है ।
इस कार काले धन के भाव अ यं त िवनाशकारी है ।
बोध – 3
नोट : अपने उ र का िमलान येत म िदये गये उ रो से क रये–
1. काले धन का रा य के आिथक ोतो पर या भाव पड़ता है?।
2. योजना क ाथिमकताओं म काला धन िकस कार बाधक है?
3. काला धन देश म आय िवषमताओं को बढ़ाता है ऐसा कहा जाता है । काला धन इसे िकस
कार बढाता है?
480
32.6 सारां श
समाना तर अथ यव था उस े का नाम है । िजसम गैर कानूनी तरीके से कमाया हआ
काला धन आता है । इसका मु य ोत कर वं चन तथा कर देने को बचाना है । काले धन के कारण
सरकार के िनणय को भािवत िकया जा सकता है । काले धन का अनुमान सरल नह है पर तु
िविभ न अनुमान के अनुसार कु ल रा ीय आय का 40% से 50% है । काले धन से बचने के मु य
उपाय दो है– थम, कर क चोरी करने वाल को ो साहन देकर काले धन का बाहर लाना, ि तीय,
ऐसे यि य को कड़ी सजा देना और ढ़ तरीको से कर क रोकने के उपाय करना जैस,े खात क
अिनवाय जां च इ यािद। कर क चोरी से रा य के लाभ तथा आय कम हो जाती है और रा य ारा
िकये जाने वाले िविनयोग घट जाते है । इस कार रा य क कु छ मह वपूण आिथक योजनाय अधूरी
रह जाती है ।
32.7 श दावली
बह अथवा िविभ न खाते : िकसी िविनयोग पर अिजत क गई कु ल या वा तिवक आय को
िछपाने के िलए एक से यादा खाते रखना।
िवदेशी िविनमय : िवदेशी मु ा िजससे िवदेशी उतादको क व तुय खरीदी जा
सकती है । इसे िनयात ारा कमाया जाता है ।
आय को िमला देना : दो या दो से अिधक यि य क आय को िमलाना।
चोरी िछपे लेन–देन : गलत तरीको से लेन–देन करना।
सीधा सम वय : इसके अ तगत उ पि ि या म क चे माल लेकर उ पादन क
अंितम अव था तक हर कड़ी को एक साथ जोडकर अ ययन
िकया जाता है ।
सकल रा ीय उ पाद : कु ल उ पादन जो िबना िघसावट को िनकाले मु ा म िगना
जाताहै ।
समझौता काय णाली : एक ऐसी णाली िजसम कर दाता को यह अिधकार होता है िक
वे अपने कर से स बि धत झगड़े को िकस कार तय कर।
ाथिमक सूचना : िजनका आधार थम ा सूचना साम ी से होता है ।
बाजारी याज क दर : िकसी समय पर िदया गया याज जो फं ड क मां ग और पूित पर
िनभर होता है ।
अित र उ पादन शि : वह उ पादन शि जो उस उ पादन शि से यादा होती है जो
वा तव ने उ पादन म योग क जाती है ।
मु ा फ ित ि थित : ऐसा समय जब मू य बढ़ रहे होते है ।
योजना क थिमकताए : पं चवष य योजनाय जो काय को एक म म करने के िलये बनाई
जाती है । उदाहरण के िलये सातव पंचवष य योजना म काय,
481
भोजन और उ पादकता को ाथिमकता गई है ।
जन उपभोग क व तुय : वे उ पादन जो देश के सब भाग म उपभोग िकये जाते है ।
32.8 कु छ उपयोगी पु तक
1. के बरा, के . एन.  भारतीय काले धन क अथ यव था–सम याय नीितयां
2. मेहता, वी. एल.  बेरोजगारी, असमानताय, समाना तर– एक समाधान
3. कॉ डर, एन.  भारतीय कर यव था, आिथक मामल का िवभाग,
िव मं ालय, भारत सरकार (1956)
4. भारत सरकार िव मं ालय  य कर िनरी ण कमैटी क रपोट (1971)
5. द ा, एन. सु दरम  भारतीय अथ यव था, घाठ 52 एस० चांद एं ड क पनी
िद ली
32.9 बोध के उ र
बोध –1
1. सामाना तर अथ यव था सकल अथ यव था का वह भाग है जहां यापा रक काय िविध
कानून क िनगाह से बचकर चोरी िछपे क जाती है । वतमान समय म सह सम या अ यिधक
बढ़ गई है तथा इसका कु भाव सामा य अथ यव था पर पड़ा है और इसी कारण इसका मह व
बढ़ गया।
2. काले धन के तीन मुख ोत है । कर क चोरी, कर न देना अथवा बचाना तथा। सही अथवा
व छ मु ा का चोरी िछपे योग करना। काले धन के कु छ मह वपूण े इस कार है ।
त करी, मकान तथा भवन म पया लगाना, सामािजक तथा धािमक काय के िलए ट
बनाना।
बोध – 2
1. काला धन तेजी से बढ़ रहा है । यह भारत के सम त रा ीय उ पादन का 50% है । उपयु
वातावरण िमलने पर यह तेजी से बढ़ रहा है ।
2. कर क चोरी से बचने के दो तरीके हो सकते है – ढ़ तरीका तथा मुलायम तरीका, काले धन
को बाहर लाने क वेि छक योजना जो ो साहन आधा रत है िक साथ–साथ कर क चोरी
करने वाले के िव स त कदम उठाये जाने चािहय और इस स बं ध म हर महीने कायवाही
क जानी चािहए।
बोध – 3

482
1. कर क चोरी तथा कर से बचना का भाव रा य के आय को कम करता है । िजससे राज
िविनयोग के िलए धन क कमी हो जात है ।
2. देश क पं चवष य योजनाऐं कु छ सामािजक उ े य को यान म रख कर वनाई जाती है जैसे –
आिथक तथा सामािजक असमानता को कम करना, रोजगार देना। जब काला धन अिधक हो
जाता तो देश म इन मद पर खच करने के िलए धन क कमी हो जाती है ।
3. काला धन उन मद म लगाया जाता है जहां शी तथा अिधक लाभ कमाया जा सके । य िक
इस धन पर कर नह िदया जाता अत: इसके कारण देश म असमानता बढ़ जाती है ।

483
इकाई 33
भारत का भु गतान स तु लन
इकाई क परेखा
33.0 उ े य
33.1 तावना
33.2 भुगतान स तुलन का अथ
33.3 भुगतान स तुलन क मद
33.4 वतं ता के पूव भुगतान स तुलन
33.5 वतं ता के उपरा त भुगतान स तुलन
33.5.1 थम योजना
33.5.2 दूसरी योजना
33.5.3 तीसरी योजना
33.5.4 वािषक योजनाएं
33.5.5 चौथी योजना
33.5.6 पांचवी योजना
33.5.7 छठी योजना
33.5.8 सातव योजना
33.6 भुगतान स तुलन म घाटे के कारण
33.7 भारत सरकार ारा ितकू ल भुगतान स तुलन के समाधान हेतु उपाय
33.8 भुगतान स तुलन क ितकू लता को दूर करने के उपाय
33.9 सारां श
33.10 श दावली
33.11 कु छ उपयोगी पु तक
33.12 अ यास के उ र

484
33.0 उ े य
इस इकाई म आपको भारत क भुगतान स तुलन ि थित से अवगत कराया जायेगा। इस
इकाई का अ ययन करने के प ात् आप :
 भुगतान स तुलन का अथ प कर सकगे,
 भुगतान स तुलन क मद को बता सकगे,
 वतं ता के पूव भुगतान सं तलु न क ि थित बता सकगे,
 वतं ता ाि के प ात् िविभ न पंचवष य योजनाओं म भुगतान क ि थित क
या या कर सकगे,
 भुगतान स तुलन म घाटे के िविभ न कारण पर काश डाल सकगे,
 भुगतान स तुलन क ितकू लता को दूर करने के िलए सरकार ारा िकये गये
यास का वणन कर सकगे,
 भुगतान स तुलन क ितकू लता को दूर करने के सुझाव दे सकगे।
33.1 तावना
भुगतान स तुलन एक आिथक बेरोमीटर है । इससे िकसी भी देश क आिथक ि थित का
पता लगाया जा सकता है ।
आपको यह बताया जायेगा िक भुगतान स तुलन क ि थित का अथ या है और यापार
स तुलन से वह िभ न िकस कार है? आपको िफर भुगतान स तुलन म शािमल क जाने वाली मद
क जानकारी दी जायेगी। आपको यह प िकया जायेगा िक िविभ न पं चवष य योजनाओं म
भुगतान स तुलन क ि थित या रही है और य रही है? भारतीय सरकार ने भुगतान स तुलन क
ितकू लता को दूर करने के िलये जो भी उपाय िकये है, उनक चचा क जायेगी। अ त म आपको
भुगतान स तुलन क ितकू लता दूर करने के िलए सुझाव िदये जायगे।
33.2 भु गतान स तु लन का अथ
िकसी भी देश का भुगतान स तुलन एक िनि त काल म उस देश क अ य देश के साथ
कु ल लेनदारी और देनदारी का एक लेखा–जोखा होता है । इसम ाय : आयात और िनयात के मद
सबसे मह वपूण होते है । पर इन मद के अित र पूँजी, ऋण, याज और भुगतान से स बि धत
सभी मद को भी शािमल िकया जाता है ।

485
पी टी. ए सवथ ने कहा है िक “भुगतान स तुलन एक देश के िनवािसय और शेष िव के
बीच िकये गये सम त लेन–देन का िलिखत िववरण है । यह िकसी िदये हए समय साधारणत : एक
वष के िलये होता है ।’’
बेनहम ने भुगतान क प रभाषा करते हए कहा है िक ''स पूण और सही भुगतान स तुलन म
वे सभी भुगतान शािमल होते है, जो एक िनि त अविध म िवदेिशय ारा एक देश के िनवािसय को
और उस देश के िनवािसय ारा िवदेिशय को िकये जाते है । इनम थम भुगतान को जमा भुगतान
और दूसरे भुगतान को नाम भुगतान कहते है ।
इस कार हम कह सकते है िक एक िनि त अविध म एक देश को िवदेश से जो भुगतना
िमलता है और जो भुगतान करना होता है, उसके मब िववरण को भुगतान स तुलन कहते है ।
यापार स तुलन से िकसी देश क वा तिवक आिथक ि थित का पता नह लगता है,
य िक इसम के वल आयात और िनयात को सि मिलत िकया जाता है । भुगतान स तुलन म
आयात और िनयात के अित र पूं जीगत लेन–देन भी शािमल होते है । वा तिवकता तो यह है िक
यापार स तुलन भुगतान स तुलन का ही एक भाग है । यिद हम सू के प म य कर–
भुगतान स तुलन = यापार स तुलन + पूं जीगत लेन–देन
भुगतान स तुलन के दो भाग होते है –
(i) चालू खाते का भुगतान स तुलन
(ii) पूं जीगत खाते का भुगतान स तुलन।
इन दोन खात का स तुलन ही भुगतान स तुलन है । चालू खाते के भुगतान स तुलन म
व तुओ ं और सेवाओं का लेन–देन और एक प ीय ह ता तरण जैसे िक अनुदान, भट को शािमल
िकया जाता है । पूं जीगत खाते के भुगतान स तुलन म पूं जीगत मद जैसे िक िवदेश से ऋण लेना
और देना, िवदेश म ितभूितयाँ और प रस पि याँ खरीदना और बेचना आिद को शािमल िकया
जाता है ।
इस कार भुगतान स तुलन = चालू खाते का भुगतान स तुलन + पूं जी खाते का भुगतान
स तुलन।
एक देश म िवदेशी िविनमय कोष म होने वाले प रवतन को पूं जी खाते म शािमल िकया
जाता है । भुगतान खाते का, चालू खाता स तुलन क दशा मे नह होता है । यह अनुकूल (+)
अथवा ितकू ल (–) होता है । जब चालू खाते का स तुलन ितकू ल होता है तो उसे पूं जीगत खाते
के प रवतन से सा य म लाया जाता है । दूसरे श द म िवदेश से ऋण लेकर कु छ देनदा रय को
िनपटाया जाता है । इस तरह चालू खाते क ि थित ही भुगतान स तुलन क ि थित को बताती है ।
भारत के भुगतान स तुलन क ि थित देश के िवदेशी िविनमय कोष म हए प रवतन से ात क जा
सकती है ।
486
33.3 भु गतान स तु लन क मद
भारत के भुगतान स तुलन को जानने क िलए उससे स बि धत मद क जानकारी कर लेना
ठीक रहेगा। ितकू ल भुगतान स तुलन का अथ होता है िक चालू खाते और पूं जी खाते म भुगतान
क रािश ाि य से अिधक है । ितकू ल भुगतान स तुलन होने पर ऋण का िच ह लगाया जाता है ।
पर भुगतान स तुलन स तुिलत ही होना चािहये। अत : इसके ितकू ल होने पर उतनी ही रािश
िवदेशी सहायता, अनुदान या अ तरा ीय मु ा कोष से लेकर इसे स तुिलत िकया जाता है ।
िवकासशील देश का भुगतान सं तलु न अिधकतर ितकू ल रहता है । ये देश िवकास के
िलये पूं जीगत व तुओ ं और तकनीको का आयात करते है और कु छ वष म िवदेश से ा सभी
ऋण का भुगतान करने म समथ हो सकते है । इसिलए यिद कु छ वष तक ही भुगतान स तुलन
ितकू ल रहता है तो िच ता का कोई बड़ा कारण नह है । पर यिद भुगतान स तुलन ल बे समय के
िलए ितकू ल रहता है तो अव य ही िच ता का कारण है । भुगतान स तुलन क मद को तािलका से
इस कार िदखाया जा सकता है –
भु गतान स तु लन क मद
मद ाि यां (I) भु गतान (II)
1 – चालू खाता
(अ) य मद िनयात आयात
(ब) अ य मद
(I) पयटन िवदेशी पयटको का आना भारतीय पयटको का िवदेश जाना
(II) प रवहन जहाज–भाड़ा क ाि जहाज–भाड़ा क भुगतान
(III) बीमा बीमा ीिमयम क ाि यां बीमा ीिमयम का भुगतान
(IV) लाभांश ाि यां भुगतान
(V) अ य ाि यां भुगतान
चालू खाते का स तुलन I – II
2 - पूं जीगत खाता
(I) िनजीिनवेश िवदेशी पूं जी का भारत मे भारतीय पूं जी का िवदेश म िनवेश
िनवेश
(II) ऋण–िनजी े ाि यां ऋण का भुगतान
(III) ऋण–सावजिनक ाि यां ऋण का भुगतान
(IV) अ तरा ीय मु ा – भुगतान
कोष से पये क खरीद
(V) बिकग पूं जी ाि यां भुगतान
पूं जीगत खाते का स तुलन I –II
487
33.4 वतं ता के पू व भु गतान स तु लन
वतं ता के पूव भारत का भुगतान स तुलन अनुकूल था। अं ेज के आने तक यूरोप और
पि म एिशया के अनेक देश से यापार था। भारत िनिमत व तुओ ं का िनयात करता था। आयात
क तुलना म िनयात अिधक होते थे। भारत को इसिलए वण म भुगतान िमलता था।
अं ेज के पराधीन भारत का यापार स तुलन अनुकूल था। पर यह अनुकूलता अब िनिमत
व तुओ ं के िनयात के कारण नह थी बि क क चे माल के िनयात के कारण थी। िनिमत व तुओ ं का
अब िवशेषकर ि टेन से आयात होता था। िवदेशी िविनमय िनयात अिधक होने के कारण ा तो
अव य होता था पर यह िवदेशी िविनमय ि टेन को गृह प (Home Expenses) क पूित के िलए
देना पड़ता था और यह भी ि थित आती थी िक जब िवदेशी िविनमय क ाि यां गृह– यय को
चुकाने के िलये पया नह हआ करती थी तो िफर इन यय क पूित के िलए वण का िनयात करना
पड़ता था।
भारत क ि थित दूसरे महायु से प रवितत हई। ि टेन को अपनी यु स ब धी
आव यकताओं को पूरा करने के िलए भारत से बहत अिधक आयात करना पड़े िजससे िनयात म
बहत वृि हई और दूसरी तरफ माल क कमी और प रवहन स ब धी किठनाइय के कारण आयात
कम हो गये। इस सबका प रणाम यह हआ िक भारत का यापार सं तलु न प ड पावन (sterling
balance) के प म एकि त हो गया। अनुमान है िक पौड पावम के प म एकि त यह रािश
1,733 करोड़ पये थी। भारत ने इस रािश का उपयोग व ं ता के बाद यापार घाट को पूरा करने
के िलए िकया।
बोध 1
1. भुगतान स तुलन से आप या समझते है?।
2. भुगतान स तुलन और यापार स तुलन म या अ तर है?
3. भुगतान स तुलन म िकन मद को शािमल िकया जाता है?
33.5 वतं ता के उपरा त भु गतान स तु लन
1948 से 1951 तक भारत का भुगतान स तुलन िवप म था। भुगतान स तुलन म 260
करोड़ पये का घाटा था। इस घाटे के अनेक कारण थे जैसे िक िविभ न कार के िनय ण, देश का
िवभाजन, खा ान और क चे माल क कमी। 1949 म पये का अवमू यन िकया गया था। पर इस
अवमू यन से भुगतान स तुलन क ितकू लता को दूर करने म कोइ, िवशेष सहायता नह िमल सक
थी।

488
33.5.1 थम योजना (1951 – 56)
पहली योजना म भुगतान स तुलन के वल 42 करोड़ पये से ही ितकू ल था। भुगतान
स तुलन पर मुख प से तीन बातो का भाव पड़ा था –
(I) 1950 म को रया यु के कारण भारत के िनयात बढ़े,
(II) अमरीका म 1953 क म दी का भारत पर अनुकूल भाव रहा,
(III) देश म अनुकूल मानसून के कारण कृ िष उ पादन म वृि हई, आयात पर िनय ण
रखा गया।
थम योजना म भुगतान स तुलन क ि थित क एक तािलका से प िकया जा सकताहै –
तािलका 33.1
पहली योजना म भु गतान स तु लन
(करोड़ पय म)
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान स तुलन
1951–52 –232.8 +70.2 +462.6
1952–53 –31.1 +91.3 +60.2
1953–54 –52.1 +99.5 +47.2
1954–55 –93.1 +99.1 +6.0
1955–56 –132.8 +139.5 +6.7
कु ल –541.9 +499.6 –42.3
तािलका से पता लगता है िक योजना के थम वष को छोडकर अ य वष म भुगतान
स तुलन म आिध य क ि थित थी। येक वष यापार घाटा तो रहा पर शु अ य मद के
धना मक होने के कारण भुगतान सं तलु न क ितकू लता 42 करोड़ पये ही थी।
33.5.2 दू सरी योजना (1956 – 61)
इस योजना म भुगतान स तुलन म भारी घाटा था। इस घाटे के कारण िवदेशी िविनमय का
सं कट उतना हआ। जहां थम योजना म भुगतान स तुलन का घाटा मा 42 करोड़ पये था वह
दूसरा योजना म बढ़कर 1725 करोड़ पये हो गया। यह तािलका से इस कार िदखाया जा सकता
है–

489
तािलका 33.2
दू सरी योजना म भु गतान स तु लन
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान सं तलु न
1956–57 –467 +154 –313
1957–58 –639 +132 –507
1958–59 –453 +126 –327
1959–60 –305 +119 –186
1960–61 –475 +83 –392
कु ल –2339 +614 –1725
घाटे के मुख कारण थे–
िवकास काय के िलए आयात म तेजी से वृि हई थी। मेहलानोिबस के मॉडल का इस
योजना म योग िकया गया था। इस मॉडल म आधारभूत उ ोग को ाथिमकता दी गई थी। इन
उ ोग म बड़ी मा ा म पूं जीगत साज–सामान का आयात हआ था।
योजना अविध म िवशेषकर अंितम वष म खा ान उ पादन म कमी के कारण भारी मा ा म
खा ा न का आयात हआ था य िक कृ िष उ पादन म आव यक वृि नह हई थी।
िनयात म वृि नह हई थी बि क िनयात थम योजना काल से भी कम हए थे।
देश म मु ा सार जैसी प र थितय के कारण से भी िनयात म कमी और आयात म
अिधकता थी।
33.5.3 तीसरी योजना (1961 – 66)
इस योजना अविध म भुगतान शेष 1961 करोड़ पये से ितकू ल था। योजना क अपे ा
घाटा अिधक था।

490
तािलका 33.3
तीसरी योजना म भु गतान स तु लन
(करोड़ पये म)
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान शेष
61–62 –338 +31 –306
62–63 –416 +62 –354
63–64 –443 +64 –349
64–65 –620 –168 –452
65–66 –567 +77 –490
कु ल –567 +432 –1952
तािलका से प है िक तीसरी योजना म दूसरी क तुलना म अ य मद शु ाि म
काफ कमी आई थी िजसका मु य कारण याज भुगतान क बढ़ती हई रािश। जहाँ तक यापार
स तुलन का है खा ा न सम या और भारी तथा आधारभूत उ ोग क आव यकता पूित के
िलय आयात म लगातार वृि होती रही।
33.5.4 वािषक योजनाएं (1966–69)
तीन वािषक योजनाएं बनी थी, तीन म भुगतान स तुलन ितकू ल था। तीन योजनाओं म
यापार स तुलन का कु ल घाटा 2,067 करोड़ पये था। अ य मद से 51.7 करोड़ पये का लाभ
था। इस कार भुगतान सं तलु न का घाटा 2,067 – 58.0 = 2,015 करोड़ पये था।
तािलका 33.4
वािषक योजनाओं म भु गतान स तु लन
(करोड़ पये म)
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान शेष
1996–67 –905.8 +59.9 –845.9
1967–68 –782.2 –16.1 –804.3
1968–69 –373.1 +7.2 –365.2
कु ल –2061.1 +51.0 –2015.4

491
33.5.5 चौथी योजना (1969–74)
इस योजना म भुगतान स तुलन ितकू ल था। 1969–70 म कृ िष उ पादन म वृि से
खा ा न का आयात कम हआ था और िनयात म वृि हई थी, िजससे यापार स तुलन का घाटा
कम हआ था। यह घाटा 178 करोड़ पये का था।
तािलका 33.5
चौथी योजना म भु गतान स तु लन
(करोड़ पये म)
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान शेष
1969–70 –178 –39 –217
1970–71 –318 –14 –332
1971–72 –438 +37 –401
1972–73 251 –01 –252
1973–74 –379 –1680 +1301
कु ल –1564 +1663 +99
1971–72, 1972–73 म ि थित काफ िबगड़ गयी थी। इन वष म यापार स तुलन का
घाटा 438 करोड़ पये और 251 करोड़ पये रहा था। इन वष खा ा न आयात म वृि हई थी
और खिनज तेल क क मत बढ़ गई थी िजससे आयात भी काफ बढ़ गया था।
1973–74 म अ य मद क ाि के कारण भुगतान स तुलन1301करोड़ पये से
अनुकूल था। पर यह अनुकूलता असामा य थी य िक इस अनुकूलता का कारण अमरीक सरकार
के साथ पी.एल. 480 और दूसरी पया रािशय के भुगतान क छू ट का िनणय था। भारत को इस
छू ट के कारण 1,664 करोड़ पये अ य मद से ा हए थे।
33.5.6 पां चवी योजना (1974–79)
यह योजना 1979 म समा होने वाली थी, पर इसे एक वष पहले ही 1978 म समा कर
िदया गया।
इस योजना के थम दो वष , 1974–75 और 1975–76 म िनयात, तेजी से बड़े थे पर
िनयात कइा? वृि से अिधक आयात म वृि हई थी। प रणाम व प कापार घाटा 977 करोड़
पय और 566 करोड़ पये ही था। 1973–74 म जबिक यह आटा के वल 379 करोड़ ने ही था।
492
1976–77 म यापार सं तलु न 316 करोड़ पये से म था। योजना के अंितम वष म यापार घाटा
आयाितत पे ोिलयम पदाथ के मू य म नुिड़ के कारण बहत अिधक बढ़ गया था।
1975–76, 1976–77 और 1977–78 म अ य मद म भारी से चालू खाते म
भुगतान सं तलु न म अितरेक क ि थित आ गई थी। यह अितरेक +294 करोड़, +1,525 करोड़
और+1734 करोड़ पये था।
तािलका 33.6
पां चवी योजना म भु गतान शेष
(करोड़ पये म)
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान शेष
1974–75 –977 333 644
1975–76 –566 860 294
1976–77 +316 1209 1525
1977–78 –107 1842 1734
कु ल –1334 +4245 +2910
तािलका से प है िक यापार स तुलन म घाटा था पर अ य मद ाि बहत थी। अ य
मद क ाि म िनर तर वृि के कई कारण थे –
(i) िव क अिधकां श मु ाओं के मू य म काफ उतार–चढ़ाव हो रहे थे, पर भारतीय
पये के मू य म अपे ाकृ त ि थरता थी।
(ii) त करी और अवैधािनक भुगतान के िव कठोर कदम उठाये! गये थे।
(iii) िवदेश को रोजगार के िलए बड़ी सं या म भारतीय चले गये थे। इन वासी
भारतीय ने भारत को बड़ी मा ा म िवदेशी मु ा भेजी थी।
(iv)पयटन उ ोग को बढ़ावा िमला था िजसके कारण िवदेशी पयटको क सं या म वृि
हई थी।
पांचव और छठी योजना के बीच एक वष के अ तराल 1979–80 म यापार घाटा 3,374
करोड़ पये का था और अ य मद से 3,140 करोड़ पये क शु ाि हई थी िजससे पुरातन
स तुलन म 234 करोड़ पये का घाटा था।

493
33.5.7 छठी योजना (1980–85)
इस योजना के येक वष यापार स तुलन म भारी घाटा था िजसके कारण भुगतान
स तुलन म भी घाटा था।
तािलका 33.7
छठी योजना मे भु गतान स तु लन
(करोड़ पये म)
वष यापार स तुलन शु अ य मद भुगतान शेष
1980–81 –5,967 +4,310 –1,657
1981–82 –6,121 +3,804 –2,317
1982–83 –5,776 +3,480 –2,296
1983–84 –5,871 +3,809 2,262
1984–85 –6,781 +3,869 –2,852
तािलका से प है िक यापार स तुलन म भारी ितकू लता के कारण, अ य मद से
काफ ाि के होते हए भी, भुगतान स तुलन म घाटे क ग भीर ि थित बनी रही थी। इस ि थित का
सामना करने के िलए सरकार को अ तरा ीय मु ा कोष के िवशेष आहरण योजना के अ तगत रािश
िनकालनी पड़ी थी और अपने सं िचत िविनमय कोष का योग करना पड़ा था।
33.5.8 सातव योजना (1985–90)
इस योजना के थम वष 1985–86 म यापार स तुलन का घाटा 9,586 करोड़ पये था,
इतना घाटा कभी भी िकसी वष नह रहा था। अ य मद से ाि 3,630 करोड़ पये थी िजसके
कारण भुगतान स तुलन का घाटा 5,956 करोड़ पये था।
33.6 भु गतान स तु लन म घाटे के कारण
भारत के भुगतान स तुलन म हमेशा ही घाटा रहा है और यह घाटा बढ़ता ही रहा है ।
भुगतान स तुलन म घाटे के कारण िवदेशी िविनमय क सम या बनी रही है । भुगतान स तुलन म
घाटे के कारण है

494
(1) आयात म वृ ि – आयात म वृि के कई कारण रहे है –
(i) देश म कृ िष और उ ोग के िवकास के िलए यं और उपकरण का भारी आयात िकया
गया है । वतमान म भी यं और उपकरण भारत के आयात क मुख मद है ।
(ii) जनसं या म वृि के कारण खा ा न का भारी मा ा म आयात करना पड़ा है ।
(iii) आयात ित थापन योजनाओं को भी कोई िवशेष सफलता नह िमली है ।
(2) िनयात म आयात क अपे ा कम वृ ि –
िनयात म वृि आयात क तुलना म कम रही है । िनयात म अपेि त वृि न होने के कई
कारण रहे है –
(i) िनयात क माँग बेलोचदार है । िनयात का आधा भाग आज भी परमार है । पर परागत
व तुओ ं म चाय, काफ बूट क व तुएं , सूती व और कृ िषगत व तुएं आती है । इन
व तुओ ं क िवदेशी बाजार म किठन ित पधा करनी पड़ती है । इन व तुओ ं म िनयात
बढ़ाने म सफलता नह िमली है ।
(ii) िनयात सं वधन के िलए तीसरी योजना से ही यास िकये गये है पर कोई िवशेष सफलता
नह िमला है ।
(iii) घरेलू माँग म िनर तर वृि से िनयात के िलए उ पादन का कु छ ही अंश शेष रहता
है ।
(iv)मु ा फ ित का दबाव बने रहने से उ प लागत अिधक रहती है, िजससे िवदेशी बाजार म
भारतीय व तुएं महंगी पड़ती है ।
(v) िवदेशी सरकार के ितब ध के कारण भी िनयात बढ़ाने म किठनाई होती रही है ।
(3) िवदेशी ऋण – भारत ने िवकास काय के िलए भारी मा ा म ऋण िलए है । इन ऋण पर
याज और मूलधन लौटाने के िलए िवदेशी िविनमय यय िकया गया है ।
(4) पे ोिलयम के मू य मे वृ ि – तेल उ पादन देश पे ोिलयम पदाथ के मू य बढ़ाते रहे है
और इन पदाथ क खपत भी देश म बढ़ती रही है िजससे इनके आयात के िलए यय म भारी वृि
होती रही है ।
(5) अ य मद का भु गतान – –अ य मद के अ तगत भारत क देनदारी क अपे ा
लेनदारी काफ समय तक अिधक रही है, पर िफर भी अ य मद से ा शु आय बहत कम रही
है । इस कारण से भुगतान स तुलन के घाटे को सीिमत मा ा म ही कम िकया जा सका है । यही नह
िवदेशी ऋण क अदायगी याज भुगतान क बढ़ती मा ा के कारण अनेक वष अ य मद म भी
घाटा रहा है ।
(6) िवदेशी ऋण और यापार के म य स ब ध का अभाव – भारत को िवदेशी से जो
अिधकां श ऋण िमलते रहे है, उनका यापार से य स ब ध नह रहा है । ऐसी ि थित म उन ऋण
को लौआने से भुगतान सं तलु न पर ितकू ल भाव पड़ता रहा है । कु छ देश से जैसे िक स से जो
495
ऋण िमलते रहे है, उनका यापार से सीधा स ब ध रहा है । दूसरे श द म ये देश ऋण के बदले
भारत म िनिमत व तुएं वीकार करते है । इस कार के ऋण का भुगतान िनयातो से होता रहता है ।
(7) अ तरा ीय मु ा कोष से पये क खरीद – भारत ने बड़ी मा ा म िवदेशी मु ा ऋण के
प म ली है । ये ऋण' पये देकर िलए जाते है । इन ऋण के भुगतान के िलए िफर से िवदेशी मु ा
देकर पये वािपस य िकये जाते है । भारत को भारी मा ा म मु ा कोष से पये क खरीद करनी
पड़ती रहती है िजससे भुगतान स तुलन ितकू ल हो जाता रहा है ।.
(8) आय भाव और क मत भाव – आय भाव से अथ आय म वृि के कारण यापार
पर पड़ने वाले भाव से है । सरकार जब बड़ी मा ा म िविनयोग करती है तो जनता क आय म वृि
होती है िजसके कारण आयात क जाने वाली िवलािसता क व तुओ ं क माँग बढ़ जाती है और
साथ ही घरेलू व तुओ ं क माँग भी बढ़ जाती है, िजससे िनयात के ' िलए व तुओ ं क मा ा कम हो
जाती है । इस तरह आय भाव भुगतान स तुलन म ितकू लत उ प न करता है ।
भारी मा ा म िविनयोग के वल आय भाव ह नह उतन करते अप क मत भाव भी
उ प न करते है । अिधकतर िविनयोग दीघकाल के बाद ही फलदायक होते है । पर जनता क आय
म वृि िविनयोग के साथ ही हो जाती है । प रणाम व प मू य तर बढ़ जाता है । मू य तर म
वृि क जो यापार पर भाव पड़ता है उसे क मत भाव कहते है । मू य म वृि से आयात म
वृि होती है और िनयात कम हो जाते है ।
बोध 2

1 योजनाकाल म भारत क भुगतान स तुलन ि थित क सं ेप म बताइये?


2 भारत के भुगतान सं तलु न के ितकू ल होने के या कारण थे?
33.7 भारत सरकार ारा ितकू ल भु गतन सं तु लन अथवा िवदेशी
िविनमय सं कट दू र करने के उपाय
भारत सरकार के िलए ितकू ल भुगतान स तुलन हमेशा ही एक िच ता का िवषय रहा है ।
समय–समय पर सरकार ने इस सम या क सुलझाने के िलए कई उपाय िकये है । ये उपाय है ।
1. नोट िनमाण णाली म प रवतन – भारत सरकार ने 1956 म नोट िनगमन णाली प रवितत
कर दी। अनुपाितक कोष णाली (Proportional Reserve System) के थान पर यूनतम्
कोष णाली (Minimum Reserve System) अपना ली गई। इस णाली म 200 करोड़
पये का यूनतम कोष रखना ज री कर िदया गया। इस णाली म 115 करोड़ पये का वण
रखा जाता है जो पूव णाली के समान ही था, पर इसके साथ 85 करोड़ पये क िवदेशी
ितभूितया रखी जाती है, जबिक पूव णाली म 400 करोड़ पये क िवदेशी ितभूितया रखी

496
जाती थी। इसका उ े य यह था िक शेष िवदेशी िविनमय का योग िवकासा मक आयात के
िलए िकया जा सके ।
2. ितब धा मक आयात नीित – सरकार ने समय–समय पर आयात पर कड़े ितब ध लगाये
है िजससे िवदेशी मु ा का योग के वल आव यक व तुओ ं के आयात पर िकया जा सके ।
3. िनयात ो साहन – तीसरी योजना के आर भ से ही िनयात सं व न के िलए सरकार ने यास
िकये। इन यास को सफलता भी िमली पर सफलता िजतनी िमलना चािहये थी उतनी नह
िमली।
4. आयात ित थापन – सरकार ने आयात ित थापन क नीित अपनायी िजससे िक आयात
पर िनभरता कम हो सके । इस नीित के अ तगत उन व तुओ ं का उ पादन िकया गया िज ह
िवदेश से आयात िकया जाता था।
5. अिधक िवदेशी सहायता – सरकार ने समय–समय पर भुगतान स ब धी किठनाइय को हल
करने के िलए अ तरा ीय मु ा कोष और िवदेशी सरकार से िवदेश मु ा म ऋण िलए। इन
ऋण से अ पकालीन सम या ही हल हई पर यह सम या का कोई हल नह है । ऋण को
लौटाना और उन–पर याज तो देना ही पड़ता है । आज िवदेशी ऋण का अ यिधक भोर हमारी
अथ– यव था पर हो गया और इन ऋण पर याज देना ही एक बड़ी सम या बन गया है ।
6. िवदेशी िविनमय अिधिनयम – सरकार ने िवदेशी िविनमय ब ध अिधिनयम 1973 म पा रत
िकया। यह अिधिनयम 1974 म लागू िकया गया। इस िनयम के अ तगत िवदेश म रह. रहे
भारतीय ने रजव बैक के मा यम से धन भारत भेजा िजससे हमारे िवदेशी मु ा कोष म वृि
हई।
7. थिगत भु गतान प ित – िवदेशी िविनमय के अ पकालीन मा को। दूर करने के िलए
थिगत 'भुगतान प ित को लागू िकया गया। नई प रयोजनाओं के िलए आयात लाइसे स इस
शत पर िदए गए िक आयात का ब ध थिगत भुगतान के आधार पर िकया जाना सं भव होना
चािहये।
8. सरकार क वण नीित – सरकार ने वण आकिषत करने के िलए तथा िनजी योग म वण
के आकषण को समा करने के िलए वण नीित बनाई िजसक मु य बात इस कार है : –
(i) वण बां ड जारी िकये िजन पर 6 ितशत वािषक याज था और ये बां ड 15 वष य थे।
(ii) वण क स ेबाजी को रोकने के िलए वण के अि म यापार पर रोक लगा दी गई।
(iii) वण िनय ण कानून लागू िकया िजसके अ तगत के वल 14 कै रट क शु ता
वाले वण आभूषण ही बनाये जा सकते थे और वण िकसी अत प म नह रखा जा
सकता था।

497
(iv) वण आभूषण के िनयात को ो साहन िदया गया। वण नीित म समय–समय पर सुधार
करने पर भी सरकार को अपेि त सफलता नह िमल सक । वण क त करी बड़े पैमाने पर
होती रही और िवदेशी िविनमय का दु पयोग होता रहा।
33.8 भु गतान स तु लन क ितकू लता को दू र करने के सु झाव
(1) िनयात ो साहन – िवदेशी िविनमय सं कट को दूर करने के िलए आव यक है िक िनयातो को
बढ़ाने का हर सं भव यास िकया जाना चािहये। सरकार ने यास तो िकये है पर यास अब
और आ ामक ढं ग से िकये जाने चािहये।
(2) घरेलू मां ग क सीिमत करना – उ च आय वग ारा योग क जाने वाली अनाव यक और
दशन मा क उपभोग व तुओ ं क मां ग पर िनय ण लगाया जाना चािहये और िनयात
अितरेक (Export Surplus) का िनमाण िकया जाना चािहये िजससे िक िनयातो म वृि क
जा सके ।
(3) आयात म कमी – भारत को अपने आयात म कमी करनी चािहये इसके िलए (1) आयात
कर म वृि करना चािहये िजससे आयितत व तुएं महगी पडे और उनक मां ग कम हो तथा
(2) लाइसे स कोटा णाली का पूरा सहयोग लेना चािहये।
(4) आयात ित थापन – िजन व तुओ ं का आयात िकया जाता है उनके ित थापन क
यव था क जानी चािहये। इसके िलए घरेलू उ पादन बढ़ाना चोिहये तथा नये उ ोग थािपत
करना चािहये। इससे आयात कम ह गे और भुगतान सं तलु न पर दबाव कम होगा।
(5) मू य म ि थरता – िनयात बढाने के िलए मू य म ि थरता चािहये। यह आव यक है िक
िवदेशी बाजार म भारतीय व तुएं मंहगी न पड़े और ित पधा म िटक सक। दूसरे श द म मु ा
सार क वृिल को िनय ण म रखना चािहये।
(6) भारत मू ल के यि य को सु िवधा – िवदेश म रह रहे भारतीय को भारत धन भेजने के
िलए पया सुिवधा और लोभन देना चािहये िजससे िक वे अिधक से अिधक िवदेशी मु ा
भारत भेज।
(7) िवदेशी पयटको को ो साहन – देश म िवदेशी पयटको के िलए िवशेष सुिवधाओं क
यव था करना चािहये िजससे िक अिधक सं या म भारत मण के िलए आय और भारत को
िवदेशी मु ा ा हो सके ।
आिथक िनयोजन से भुगतान स तुलन म घाटा होता ही है । पर घाटा इतना अिधक नह
होना चािहये िजतना िक हआ है । घाटा एक सीमा तक ही उिचत ठहराया जा सकता है । िवदेश से
घाटे क पूित के िलए ऋण िलये जा सकते है पर ऋण लेकर घाटा पूरा करना सम या का कोई हल
नह है । घाटे क सम या का हल तो आयात ित थापन आव यक आयात और िनयात सं ब न से

498
ही हो सकता है । आज भूम डलीकरण के दौर म ये सुझाव मह वहीन हो गए है । अब हम िनयातो
क गुणव ा बढ़ाकर िवदेशी बाजार म ित प ा करनी है ।
बोध , 3
1 िवदेशी िविनमय सं कट दूं र करने के िलए सरकार ारा या यास िकये गये थे?
2 भुगतान स तुलन क किठनाई को दूर करने के िलए आपके या सुझाव है?
33.9 सारां श
भुगतान स तुलन से अथ एक देश के िनवािसय का अ य देश के िनवािसय से हए उस
मोि क लेन–देन है, जो एक िनि त अविध म हए ह ।
यापार स तुलन म के वल य मद को रखा जाता है जबिक भुगतान स तुलन म य व
अ य दोन को यापार स तुलन भुगतान स तुलन का ही भाग है । भुगतान स तुलन के दो भाग है :
– (1) चालू खाता (2) पूं जीगत सौदे।
योजनाकाल म भारत का भुगतान स तुलन हमेशा ही ितकू ल रहा है । भुगतान स तुलन का
घाटा येक योजना म बढ़ता गया है । दूसरी योजना से घाटे क वृि बढ़ने क रही है ।
भुगतान अस तुलन के अनेक कारण है – आयात म िनरं तर वृि , िनयातो म आयात क
तुलना म कम वृि , िवदेशी ऋण पर याज का भुगतान और ऋण का भुगतान, पे ोिलयम के मू य
और खपत म वृि , अ य मद म शु आय क कम ाि , िवदेशी ऋण से यापार के स ब ध का
न होना, अ तरा ीय मु ा कोष से पये क खरीद, बड़ी मा ा म िविनयोग के कारण पड़ने वाला
आय औंर क मत भाव।
भारत सरकार ने समय–समय पर ितकू लता को दूर करने के उपाय िकये है । ये इस कार है
– यूनतम नोट िनगमन णाली को अनुपाितक कोष णाली के थान पर अपनाना, आयात पर
ितबं ध लगाना, िनयातो को ो साहन करना, आयात ित थापन क नीित अपनाना, िवदेश से
अिधक सहायता ा करा, िवदेशी अिधिनयम 1973 पा रत करना, थिगत भुगतान के आधार पर
लाइसे स देना और वण नीित बनाना।
भुगतान स तुलन क ितकू लता को दूर करने के िलए सुझाव इस कार है :– िनयातो को
और अिधक ो साहन देना, घरेलू मां ग को कम करना, आयात ित थापन पर बल देना िजससे
आयात क आव यकता और कम हो सके , मू य तर म ि थरता लाना, वासी भारतीय को भारत
धन भेजने के िलए े रत करना और पयटन उ ोग को िवकिसत करना िजससे और अिधक पयटक
भारत आने के िलए उ त ह ।

499
33.10 श दावली
आयात ित थापन (Import Substitution) िवदेश, से आयाितत व तुओ ं का उतादन।
िनयात सं व न (Export Promotion) इसके अ तगत उ ोग को िनयात करने के िलए
अनेक उपाय ारा' ो सािहत िकया जाता है ।
अवमू यन (Devaluation) देश क मु ा के बा ा मू य को कम करना।
िवशेष आहरण अिधकार (Special भुगतान शेष के दाव का िनपटारा करने का
Drawing Rights) अदभुत साधन, इसके ारा वण का सहाय
िलये िबना, िवदेश पुगतान के िलए,
प रवतनशील मु ाएं ा क जानी है । यह
योजना 1970 से लागू हई थी।
िविनमय ितबं ध (Exchange Control) भुगतान शेष क किठनाइयो को हल करने के
िलए एक वैकि पक यव था िजसका अथ
सरकार ारा िवदेशी िविनमय बाजार क
वतं ता म ह त ेप करना है ।
मॉडल (Model) िकसी आिथक ो ािमंग के िव ेषण का एक
यवि थत म है ।
33.11 कु छ उपयोगी पु तक
ल मी नारायण नाथूरामका, भारतीय अथशा , ल मीनारायण अ वाल, आगरा
सी.एस. बरला और आर.सी. अ वाल, भारतीय अथशा . रतन काशन मंिदर, देहली
एल.एस. राय, भारतीय अथशा , नव िवकास काशन, पटना।
ह रशच शमा और आर.एन. िसंह , भारतीय अथशा , सािह य भवन, आगरा
डा. चतुभजु मामो रया और डा. एस.सी. जैन, भारत क आिथक सम याएं, सािह य भवन
आगरा।
ए.एन अ वाल, भारतीय अथ– यव था, िवकास पि लिशं ग हाऊस ा.िल, नई िद लो
A.N.Agarwal, Indian Economy, Wilsey Eastern ltd New Delhi
P.C.Dhimgra, Indian Economy, Sultan Chand & Sons New Delhi

500
Rudra Datt and K.P.M. Sundhram, Indian Economy, S. Chand & Co.
(Pvr.) Ltd. New Delhi.
S.K.Mishra and V.K. Puri Indian Economy, Himalava Publishing
House, Bombay.
33.12 अ यास के र
बोध 1
1. एक िनि त अविध म एक देश को िवदेश से जो भुगतान ा होता है और जो भुगतान करना
होता है उसके मब िववरण को भुगतान सं तलु न कहा जाता है । यिद ाि अिधक होती है
तो भुगतान स तुलन का आिध य और यिद भुगतान अिधक होता है तो भुगतान स तुलन का
घाटा कहा जाता है ।
2. यापार स तुलन म आयात िनयात का िववरण रहता है जबिक भुगतान स तुलन म आयात
िनयात के साथ–साथ सेवाओं, पूं जी, और वण आिद के आयात व िनयात को शािमल िकया
जाता है ।
3. भुगतान स तुलन के दो भाग है:
(1) चालू खाता – इसम यापार सतुलन, अ य मद, गैर मौि क वण क गितशीलता से
शािमल िकया जाता है ।
(2) पूं जीगत वादे – इसम िनजी ाि यां व िनजी भुगतान सरकारी ि यां और सरकारी भुगतान,
िवदेशी ऋण के याज व मूलधन का भुगतान, अ तत ीय मु ा कोष से पये क खरीद,
बैिकं ग पूं जी क शु रािशया शािमल है ।
बोध 2
1. योजनाकाल म भारत का भुगतान स तुलन सदैव ही ितकू ल रहा। पहली योजना म घाटा43
करोड़ पये था। इस योजना म को रया यु , अमरीका म मंदी, अनकू ल वषा का भुगतान
स तुलन पर अनुकूल भाव पड़ा। दूसरी योजना म घाटा बढ़कर 1725 करोड़ पये हो गया
य िक भारी मा ा म मशीनरी का आयात िकया गया था और िनयात बढ़ नह सके थे। तीसरी
योजना म घाटा दूसरी से भी अिधक 1951 करोड़ पये हआ य िक पूं जीगत म भुगतन
स तुलन 99 करोड़ पये से अनुकूल था यह अनुकूलता अमरीका से पया रािशय म छू ट के
कारण थी। पांचवी और छठी योजना भी भुगतान स तुलन ितकू ल रहा।
2. भारत के भुगतान स तुलन ितकू ल होने के कारण थे – आयात म वृि , िनयात म
अपेि तवृि नह , आय भाव और मू य भाव िवदेशी ऋण और यापार म स ब ध का
अभाव, िवदेशी ऋण पर याज और उनक अदायगी, पे ोिलयम मू य म वृि ।

501
बोध 3
1. िवदेशी िवनमय सं कट को दूर करने के िलए सरकार के यास इस कार है –
(i) मु ा णाली म प रवतन,
(ii) ितब धा मक आयात नीित,
(iii) िनयात् ो साहन,
(iv) अिधक िवदेशी सहायता,
(v) आयात ित थापन,
(vi) िवदेशी िविनमय अिधिनयम,
(vii) थिगत भुगतान प ित और
(viii) वण नीित का िनमाण।
2. भुगतान सं तलु न क किठनाई दूर करने के िलए सुझाव इस कार है–
(i) िनयात ो साहन,
(ii) घरेलू मां ग को कम करना,
(iii) आयात म कमी,
(iv) आयात ित थापन,
(v) मू य तर म ि थरता,
(vi) वासी भारतीय को धन भेजने के िलए आकषण,
(vii) पयटन उ ोग का िवकास।
प रिश – (इकाई 23)
िविभ न योजनाओं म भु गतान स तु लन क
सातव योजना मे भु गतान स तु लन
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान शेष
1985–86 –9586 +3630 –5956
1986–87 –9354 +3524 –5830
1987–88 –9296 +3003 –6293
1988–89 –13555 +1975 –11580
1989–90 –12413 +1025 –11388
कु ल –54204 +13157 –471047

502
वािषक योजनाओं 1990–91, 1991–92 म भु गतान स तु लन
वष यापार शेष शु अ य मद भुगतान शेष
1990–91* –16934 –435 –17369
1991–92* –6945 +4258 –2237
* तािवत
आठव योजना के थम दो वष 1992–93 व 1993–94 म यापार शेष मश:–14101
करोड़ पये व –7484 करोड़ . रहा। 1992–93 म शु अ य मद 1337 करोड़ . व 1993–94
म 3848 . रहा।
भुगतान शेष घाटा 1992–93 म –12764 . व 1993–94 म – 3636 करोड़ . रहा।

503
इकाई 34
िनयात स ब न और आयात ित थापन
इकाई क परेखा
34.0 उ े य
34.1 तावना
34.2 िनयात–स ब न का अथ
34.3 िनयात–स ब न क आव यकता
34.4 िनया स ब न के माग म बाधाएं
34.5 िनयात–स ब न के िलए सरकारी य न
34.6 िनयात–स ब न के िलए सुझाव
34.7 आयात– ित थापन का अथ
34.8 आयात– ित थापन म गित
34.9 आयात– ित थापन से लाभ
34.10 आयात– ित थापन से हािनयां
34.11 आयात– ित थापन के स ब ध म सुझाव
34.12 सारांश
34.13 श दावली
34.14 कु छ उपयोगी पु तक
34.15 अ यास के उ र
34.0 उ े य
आप िपछली इकाई म भुगतान स तुलन क ि थित का अ ययन कर चुके है । इस इकाई म आपको
िनयात–स ब न और आयात– ित थापन से प रिचत कराया जायेगा। इस इकाई के अ ययन के
प ात आप:
 िनयात–स ब न और आयात– ित थापन को प रभािषत कर सकगे
 िनयात–स ब न क आव यकता ितपािदत कर सकगे,

504
 िनयात–स ब न के माग म बाधाओं का वणन कर सकगे,
 िनयात–स ब न के स ब ध म सरकार ारा िकए गये य न पर काश डाल सकगे,
 िनयात–स ब न के िलए सुझाव दे सके गे,
 आयात– ित थापन का अथ समझा सके गे,
 आयात– ित थापन म गित का उ लेख कर सकगे,
 आयात– ित थापन से लाभ और हािनय क या या कर सकगे,
 आयात– ित थापन के स ब ध म सुझाव दे सकगे।
34.1 तावना
िपछली इकई म आपने भारत क भुगतान स तुलन ि थित के स ब ध म पढ़ा है । अब इस
इकाई म आप िनयात स ब न और आयात ित थापन के िवषय म पढ़गे। भारत जैसी िकसी भी
िवकासशील अथ– यव था के िलए िनयात स ब न और आयाम– ित थापन का िवशेष मह व है

यहां आपको बताया जायेगा िक िनयात–स ब न तथा आयात– ित थापन का अथ या
है? आपको यह प िकया जायेगा िक भारत के िलए िनयात स वधन क आव यकता य है?
आपको िनयात स व न के माग म आने वाली बाधाओं से अवगत कराया जायेगा और यह भी
बताया जायेगा िक िनयात स व न के िलए सरकार ने या यल िकये है? साथ ही िनयात ो साहन
के िलए सुझाव भी िदये जायगे। आयात– ित थापन भी देश क अथ– यव था के िवकास के िलए
अ यािधक मह वपूण है । इसक गित के बारे म आपको जानकरी दी जायेगी। आयात ित थापन
के लाभ और हािनय का िव ेषण भी िकया जायेगा। साथ ही आपको आयात ित थापन के िलए
सुझाव भी िदये जायगे।
34.2 िनयात स व न का अथ
िनयात स व न से ता पय िनयात ो साहन से है िजसम िनयात वृि के िलए िनयात
उ ोग को अिधक से अिधक िनयात बढ़ाने के िलए ो साहन िदया जाता है । इसके िलए नकद
सहायता (Cash Subsidy) दी जाती है, बैको से रयायती दर पर ऋण िदये जाते है िनयात के
आधार पर आयात क अनुमित दी जाती है, िनयात क व तु पर रेल–भाड़े और जहाज भाड़े म छू ट
दी जाती है और िनयात करने वाले फम को आयकर म छू ट दी जाती है ।

505
34.3 भारत के िलए िनयात स व न क आव यकता
भारत जैसे िवकासशील देश के िलए िनयात स व न क आव यकता कई कारण से है–
1. ितकू ल भुगतान स तुलन ठीक करने के िलए – वतं ता के बाद भारत का भुगतान स तुलन
ितकू ल रहा है िजससे िवदेशी िविनमय क सम या ही नह के वल बनी रही है बि क पं चवष य
योजनाओं को िजस ढं ग से बनाना चाहते थे बनाने म भी क इनाई हई है ।
2. िवदेशी ऋण–भार कम करने के िलए – भारत का िवदेशी यापार अस तुिलत रहा है । यापार
घाटा हमेशा ही बढ़ा है । आिथक योजनाओं के िलए धन क कमी बनी रही है । सरकार ने
भुगतान स तुलन के घाटे को पूरा करने के िलए और योजनाओं को चलाने के िलए भारी मा ा
म िवदेश से और अ तरा ीय मु ा कोष जैसी अ तरा ीय सं थाओं से ऋण िलए है । िव
बैक के अनुसार भारत पर िवदेशी ऋण का भार 1988 के अंत म 76,000 करोड़ पये होने का
अनुमान है । इन ऋण टे चुकाने और याज के भुगतान के िलए िनयात वृि क ज रत है ।
3. िवकास योजनाओं क सफलता के िलए – िवकास योजनाओं को सफलतापूवक चलाने के
िलए पूँजीगत व तुओ ं के आयात ज री है । इन आयात के िलए िनयात वृि आव यक है ।
4. अथ– यव था को आ म–िनभर बनाने के िलए – िवदेशी सहायता यर दीघ काल के िलए.
िनभर रहना देश के िलए घातक है इसके बहत से दु प रणाम है । इनसे देश को मु रखने के
िलए िनयात वृि ज री है ।
5. िव के कु ल िनयात यापार म भागीदारी बढ़ाने के िलए – िव के कु ल िनयात तेजी से बढ़े है
पर कु ल िनयात म भारत क भागीदारी कु छ कम हई है । जहां 1950 म िव के कु ल िनयात म
भारत का भाग 2.1 ितशत था वह घटकर 1974 म के वल 0.5 ितशत हो गया है । भारत क
िव के कु ल िनयात म भागीदारी बढ़ाने के िलए िनयात ो साहन ज री है ।
6. बढ़ती हई आयात आव यकताओं को पूरा करने के िलए – भारत क आयात आव यकताओं
म आगे चलकर वृि ही होना है । हाँ, यह वृि िवकास क ि या को मंद करके अव य ही
क सकती है । कई बार तेल क क मतो म वृि ने सम या को और भी उलझा िदया है । तेल
आिथक ि याओं के िलए एक आव यक उ ेरक (Catalyst) है । इसक खपत को एक सीमा
तक ही िनयं ि त िकया जा सकता है । भारत क तेल आव यकताओं म तो वृि ही होना है
िजसक पूित के िलए तेल को आयात िबल तो बढ़ना ही है । इसके अित र भारत म ही तेल
के उ पादन को बढ़ाने के िलए भी िवदेशी पूँजी क आव यकता पड़ेगी। इसका अथ यह हआ
िक तेल का आयात करने और तेल े का िवकास करने के िलए भारी मा ा म िवदेशी पूँजी
क आव यकता पड़ेगी इसिलए िनयात–स व न ज री है ।
7. ऋण पर याज भुगतान क सम या – ऋण पर याज भुगतान क सम या ने गं भीर मोड़ ले
िलया है और यह कहा जा रहा है िक याज भुगतान क सम या और गं भीर बन सकती है । यह
506
तो िकसी दशा म ठीक नह होगा िक ऋण पर याज चुकाने के िलए ऋण िलये जाय। अ छा
तो यही होगा िक िनयात–स व न ारा भुगतान क यव था क जाये।
8. उ पाद के िव य के िलए – अनेक े म उ पादन के िलए उ नत तकनीक का योग करना
पड़ता है िजसके कारण उ पादन का पैमाना बड़ा रहता है । बड़े पैमाने पर उ पादन होन से घरेलू
बाजार पया नह रहता है, इसिलए िवदेशी बाजार खोज लेने क आव यकता है ।
9. उपभो ा व तुओ ं के यापार के िलए – देश म उपभो ा व तुओ ं जैसे िक खा तेल, श कर,
खा ा न क कई बार कमी पड़ जाती है । इनक कमी से अथ– यव था म अि थरता उ प न हो
जाती है । भिव य म इन व तुओ ं क कमी पड़ सकती है । िनयात वृि से आय म वृि हो
सके गी और इन उपभो ा व तुओ ं का भी आयात िकया जा सके गा है ।
सं ेप म यह कहा जा सकता है िक देश क सुर ा के बाद िनयात का ही थान है
(Second only to defence) िनयात–स व न क अ यािधक आव यकता य होती है ।
34.4 िनयात–स व न के माग म बाधाएं
िनयात–स व न के िलए अनेक य न करने पर भी िजतनी सफलता िमलनी चािहए थी
नह िमली और यापार स तुलन हमेशा ही ितकू ल रहा है । िनयात वृि के माग म अनेक बाधाएं है

1. ऊँचे मू य – भारत क अिधकां श व तुओ ं के मू य अिधक होते है, िजस कारण िवदेशी बाजार
म इनक मां ग कम होती है । हम जूट क व तुओ ,ं सूती व चीनी इ यािद के स ब ध म िवदेशी
उ पादको के सामने नह िटक पाते है । कई व तुओ ं का िनयात करने पर उ पादका को हािन
होती है, िजसका पूित सरकार करती है । ऊँची क मत होने के तीन कारण है –
(i) मु ा सार के कारण भारत म किमतो का तर दूसरे देश क तुलना मे काफ ऊँचा है,
(ii) भारतीय उ ोग क कु शलता कम ह
(iii) भारतीय उ पादक लागत के ित सचेत नह है ।
2. िवदेशी ितयोिगता – िनयात क अनेक व तुएं िवदेशी ितयोिगता के कारण िबक नह पाती है
। सूती व म जापान और चीन, चाय म ीलं का और जूट क व तुओ ं म बां ला देश ने हमारे
िवदेशी बाजार को सीिमत कर िदया है ।
3. आयात पर सीमाएं और ऊँचे कर – हमारी अनेक िनयात व तुओ ं पर िवदेशी सरकार ने ऊँचे
आयात कर लगा रखे है और आयात सीमाएं िनि त कर रखी है िजससे कम मा ा म व तुओ ं
का िनयात हो पाता है । सूती व , त बाकू , चाय, जूट के सामान, चमड़े के सामान, साईिकल
आिद के िनयात म ऊँचेकर और मा ा क सीमाएं बाधक है ।

507
4. िन न तर क व तुएं – िनयात व तुओ ं का तर घिटया है, िजससे ित पधा म ये ठहर नह
पाती है । इसके दो मु य कारण है: आधुिनक करण और तकनीक ान क कमी।
5. भारतीय यापा रय क नीितयां – भारतीय यापा रय क नीितयां दोषपूण है । वे नमूने के
अनुसार व तुएं िनयात नह करते है । स को एक बार जूतो का िनयात िकया गया था, पर जूते
नमूने के अनुसार नह थे, इसिलए लौटा िदये गये। इसी तरह अमरीका को काली िमच का
िनयात िकया गया था। उसम िगलावट पाई गई, इसिलए अमरीका ने लौटा दी। यापा रय क
इन दोषपूण नीितय के कारण िवदेश म भारतीय व तुओ ं क साख कम हो गई है ।
6. सीिमत बाजार – भारतीय व तुओ ं का बाजार सं कुिचत है । यिद िवदेशी बाजार म मां ग कम हो
जाती है तो हमारे िनयात भी कम हो जाते है । यिद ि टेन म चाय क मां ग कम हो जाती है तो
चाय का िनयात भी मां ग के अनुसार कम हो जाता है ।,
भारत के िनयातो म पर परावादी व तुओ ं का मह वपूण थान है । चाय, जूट क व तुएं,
सूती व का कु ल िनयात म िह सा 50 ितशत है । यिद इन व तुओ ं क मां ग कम होती है तो
िनयात भी कम हो जाते है ।
7. थानाप न व तुओ ं का भाव – थानाप न व तुओ ं के कारण िनयात कम हो रहे है । जूट और
सूती व का थान थानाप न व तुओ ं ने ले िलया है िजससे इनक मां ग कम हई है ।
8. चार क कमी – भारतीय व तुओ ं का चार िवदेश म धन क कमी के कारण कम होता है,
िजससे िनयात वृि आशाजनक नह है ।
9. आयात– ित थापन उ मुख िविनयोग नीित – िनयात–स व न के माग म आयात ित थापन
उ मुख िविनयोग नीित बाधक है । इस नीित के कारण उ पादक को देश म ही, आयात पर
ितब ध के कारण, एक सं रि त बाजार िमल जाता है और उ ह आयात ित थापन व तुओ ं
के उ पादन से शी और लाभ िमल जाता है । ऐसे म ये उ पादक िमयात का जोिखम नह
उठाना चाहते है, य िक िवदेशी बाजार म इ ह किठन ित प ा का सामना करना पड़ता है ।
बोध 1
1. िनयात– ो साहन से आप या समझते है?
2. भारत म िनयात स व न क आव यकता िकन कारण से है?
3. िनयात स व न के माग म कौन–कौन सी बाधाएं है?
34.5 िनयात– ो साहन के िलए सरकारी यास
भारतीय सरकार िनयात वृि के िलए हमेशा ही य नशील रही है । सरकार के ारा अनेक
यास भी िकये गये ह, जो इस कार है –
1. सं थागत यव थाएं – िनयात स व न के िलए िविभ न सं गठन का िनमाण िकया गया है–
508
(i) यापार मंडल (Board of Trade) – इस बोड का लाभ यापार के सभी प पर िवचार करने
के बाद सरकार को सलाह देना है । यह बोड अ तरा ीय यापार म वृि िवशेषकर िनयात म
वृि के िलए य न करता है । इसने िनयात स ब धी अवसर से प रिचत कराया है । उ पादन
यय म कमी, साख क सुिवधा और जहाज–भाड़े क सम या पर सुझाव भी िदये है ।
(ii) िनयात स ब न िनदेशालय (Export Promotion Directorate) – इसका काम िनयातको
को आव यक सूचनाएं और सहायता देना है । यह यापार मंडल के िनदश और सुझाव को
लागू करता है । इसके चार े ीय कायालय िद ली, मु बई, कलक ा औंर चेनई म है ।
(iii) िनयात स व न सलाहकार प रषद (Export Promotion Advisory Council) यह
प रषट सरकार को आयात और िनयात नीित क समी ा करती है और सरकार को परामश देती
है ।
(iv) े ीय िनयात–स व न सलाहकार सिमितयां (Regional Export Promotion Advisory)
देश के िविभ न े म िनयात स मावनाओं और सम याओं पर ये सिमितयां िवचार करती है
और अपने अपने े क सम याओं क ओर सरकार का यान – आकिषत करती है ।
(v) िनयात स व न प रषद (Export Promotion Council) – इनम उ ोग, यापार और सरकार
तीन के ितिनिध होते है । ये िनयात वृि के िलए परामश देती है । आज इस तरह क अलग
अलग व तुओ ं जैसे काबू, सूती व , हाथ–करघा, जवाहरात, मसाले क अनेक प रषद है ।
(vi)व तु मंडल (Commodity Board) – ये मंडल अपने से स बि धत व तु के उ पादन, िवकास
और िनयात का काम करते है । कई व तुएं जैसे िक चाय, त बाकू , रबर, काफ , मसाले के
मंडल थािपत िकये गये है ।
(vii) िनयात साख और याभूित िनगम (Export Credit and Guarantee Corporation) –
यह िनगम िनयातको को उन अिनि ताओं के िलए बीमा सुिवधा देता है, जोिक सामा य
बीमा क पिनय ारा नह दी जाती है । इसके ारा जारी िनयित साख याभूित पािलसी
(Export Credit Guarantee Policies) आधार पर बैक िनयातको को ऋण देते है ।
(viii) राजक य यापार िनगम (Stare Trading Corporation) – तथा अ य िनगम – िनयातो क
वृि करना और आव यक आयात क यव था करना िनगम का मु य उ े य है ।
इस िनगम क सहायता के िलए कु छ और िनगम गिठत िकये गये है – प रयोजना और
उपकरण िनगम (Project and Equipments Corporation), खिनज और धातु यापार
िनगम (Minerals and Metals Trading Corporation) ह तिश प और हथकरघा
िनगम Handicrafts and handloom Export Corporation), भारतीय काजू िनगम
(Cashew Corporation of India), रसायन और मेषण िनगम (Chemistry &
Pharmaceuticals Corporation)

509
(ix)िनयात िनरी ण प रषद – (Export Inspection Council) – इसका काय िक म िनयं ण
और जहाज म मल लदान के पूव िनरी ण यव था ारा िनयात ो सािहत करना है ।
(x) भारतीय पैकेिजं ग सं थान (Indian Institute of Packaging) – इसका मु य उ े य िवदेशी
बाजार म भारतीय व तुओ ं क ितयोगी मता को बढ़ाने के िलए पैकेिजं ग म सुधार करना
और अनुपयु पैकेिजं ग के कारण होने वाली हािनय ले कम करना है । यह पैकेिवग तकनीक म
िश ण भी देता है और सलाहकार का काम भी करता है ।
(xi)भारतीय िवदेशी यापार सं थान (Indian Institute of Foreign Trade) – इसका काम
अ तरा ीय यापार मेल और िवदेश म भारतीय दशिनय का आयोजन करना है िजससे िक
भारतीय व तुओ ं का चार िकया जा सके ।
2. सं रचना मक सु िवधाय (Infra– structure Facilities):
(i) िनयात सदन (Export–House) – सरकार ने कु छ यवसाियक फम को िनयात सदन क
मा यता दी है । सरकार ने यह िनयात यापार म िविश ीकरण के िलए िकया है । इन सदन
को िनयात यापार के स ब ध म िवशेष सुिवधाएं दी जाती है ।
(ii) यापा रक सदन (Trading House) – फम जो िक िनयात यापार कु शलता से कर रही है
उ ह सरकार ने यापा रक सदन क मा यता दी है । इ ह िनयात सदन क तुलना म अिधक
सुिवधाएं दी जाती है ।
(iii) िनयात ि यन े (Export Processing Zone)– इलै ािनक उपकरण के
िनयात–स व न के िलए सा ता ु ज म यह े बनाया है । इस े म िनिमत व तुओ ं को
िनयात करना ज री है । इसी तरह के े चे नई, फा टा, कोचीन और नोएडा म भी
थािपतहै ।
(iv)का दला मु यापर े (Kandla Free Trade Zone) – इस े म िनयात धान
इकाइय को थािपत िकया है । इस े म थािपत इकाइय को िवशेष सुिवधाएं दी जाती
3. रजकोषीय सु िवधाएं (Fiscal Measures) –
(i) रोकड़ ितपूित सुिवधाएं (Cash Compensating Support) – कु छ व तुओ ं के िलए
रोकड़ ितपूित सहायता िवदेशी बाजार म उनक ित पधा शि बढ़ाने के िलए दी जाती
है ।
(ii) कर वापसी योजना (Drawback of Duties) – िनयात व तुओ ं के िलए उ पादन म
योग िकए गये क चे माल और उपकरण पर वसूला गया उ पाद और आयात शु क
वािपस िकया जाता है ।
(iii) िवपणन िवकास सहायता (Marketing Development Assistance) – इस योजना म
िनयातको को िवदेशी, बाजार का िवकास करने के िलए िव ीय सहायता दी जाती है ।

510
4. अ य सु िवधाएं –
(i) शत– ितशत िनयात उ मुख इकाइय को सुिवधा (Hundred Percent Export
Oriented Units) – शत ितशत उ पादन का िनयात करने वाली इकाइय को बढ़ावा
देने क यव था क गई है । सुन इकाइय को एक िब दु से ही औ ोिगक लाइसे स, िवदेशी
सहयोग, पूँजीगत और क चे माल के आयात क वीकृ ित दी जाती है ।
(ii) यापा रक ितिनिध (Trade Representative) – सरकार ने िवदेश म यापा रक
ितिनिध िनयु िकये है जो िनयात वृि क सं भावनाओं का अ ययन करते है और पता
लगाते है िक भारत से के न व तुओ ं का िनयात िकया जा सकता है ।
(iii) यापा रक समझौते (Trade Agreements) – सरकार ने ि प ीय और बहप ीय
यापा रक समझौते िनयात वृि के िलए िकए है । अनेक समझौते पया भुगतान पर
आधा रत है ।
(iv)िनयात आयात बक (EXIM Bank) – यह बक िवदेशी यापार क िव ीय यव था
करता है
34.6 िनयात–स व न के िलए सु झाव
सरकारी उपाय के कारण से िनयात यापार के े म अ छे प रणाम िनकले है । िनयात म
वृि हई है । यह वृि बहत बड़ी सीमा तक गैर–पर परावादी व तुओ –ं खिनज लोहा, लोहा और
इ पात, इ जीिनयरी का सामान, चमड़ा, चीनी, मोती, हीरा, जवाहरात कपड़े, रसायन इ यािद म हई
है । कु ल िनयात म गैर–पर परावादी व तुओ ं का अनुपात बढ़ गया है ।
य िप अभी तक के य न के प रणाम स तोषजनक है, पर पया नह है । योजनाओं के
िलए मु ा क मां ग तेजी से बढ़ रही है । इस दशा म िनयात वृि आव यक है । िनयात वृि के िलए
सुझाव इस कार है
1. उ पादन म वृि – यह ज री है िक उ पादन के ल य पूरे िकये जाय य िक ऐसा करके ही
िनयात के यो य बचत म वृि क जा सकती है ।
2. ित प ा शि म वृि – भारतीय व तुएं िव बाजार क ित प ा म िटक सकने यो य होनी
चािहये। इसके िलए कु छ कदम उठाना ज री है –
(i) िघसे–िपटे पुराने सं य हटाये जाना चािहए। नये आधुिनक सं यं लगाये जाना चािहएं।
(ii) वे व तुएं िजनके िनमाण मे म अिधक लगता है ऐसे देश को िनयात क जाना चािहए
जहां िक म मंहगा है ।
(iii) ऊपरी प र यय और लाभ क मािजन कम क जाना चािहए। मू य म ि थरता का
यास िकया जाना चािहये। जापान और पि मी जमनी ने मू य' ि थरता के ारा ही िनयात
े म अ दु ् सफलता ा क है ।
511
3. िवपणन अनुसं धान – यह हमेशा पता लगाते रहना चािहये िक िवदेश म िकन–िकन व तुओ ं क
मां ग है िजससे िक उसी तरह क व तुओ ं का उ पादन और िनयात िकया जा सके ।
4. अिधक चार – िवदेश म भारतीय व तुओ ं का िव ापन और चार करना चािहये िजससे िक
व तुओ ं क मां ग उ प न हो सके ।
5. िनयात के िलए उ पादन – कु छ इकाईय क थापना के वल िनयात के िलए ही क जानी
चािहये। ऐसी इकाइय को करो म छू ट और मशीने आयात करने क छू ट िमलनी चािहए। इ ह
पूँजी भी उपल ध कराई जानी चािहए और थानीय अिधका रय सहयोग भी भी िमलना
चािहए।
इन इकाइय म उ पादन के िलए कु छ ऐसी व तुओ ं का चुनाव कर लेना चािहए जो िक
तुलना मक लागत क ि से लाभ द है – यह चुनाव साधन क के आधार पर िकया जा
सकता है । िफ क (FICCI) ने कु छ इस तरह क व तुएं बताई है जैस िक है ड टू ल, िनिमत
खा ान मशीन टू स, यापा रक गािड़यां, चमड़े व तुएं तैयार कपड़े इ यािद।
6. सावजिनक े क भूिमका – सावजिनक े को भी िनयात यापार म मह वपूण भूिमका
िनभानी चािहए। यह े बड़े आकार क िवदेशी फम और समाजवादी देश से भावी ढं ग से
यापार कर सकता है ।
7. िनयात व तुओ ं म सुधार – िनयात व तुओ ं म गुणा मक सुधार करना। इससे व तुओ ं क
ित प ा करने क शि बढ़ेगी। कु छ समय पूव सरकार ने गुण िनयं ण (Quality Control)
और जहाज म लदान के पूव िनरी ण (Pre–shipment Inspection) जैसी यव थाएं क है
। पर अ छा तो यह होगा िक उ पादन क व तु क गुणव ा म वृि करते रह और घिटया कार
क व तुओ ं का िनयात करने का य न न कर।
8. यापा रक समझौते – िनयात वृि ि प ीय समझौते, जैसा िक अमरीका कर रहा है, तीसरी
दुिनया के देशो और समाजवादी देश के साथ करना चािहए। अफ का और एिशया के
िवकासशील देश के साथ यापार के अवसर अिधक है और इन देश के साथ यापार शत
अिधक अनुकूल भी रहती है ।
9. धना मक ेरणाएं – िवदेशी बाजार म ितयोिगता बहत है । ऐसी दशा म धना मक ेरणाएं
िवशेष मह व रखती है । िनयात से ा िवदेशी मु ा का एक िनि त अंश िनयातको को मु
प से यय करने क छू ट दी जानी चािहए। यह छू ट और अिधक िनयात करने के िलए
ो साहन दे सकती है ।
10. साख सुिवधाएं – िनयात व तुओ ं के िनयातको और उ पादको को साख क सुिवधाएं दी जानी
चािहये। साख स ती और यथा शी दी जानी चािहये। सरकार ने इस, िदशा म काफ कु छ िकया
भी है ।

512
बोध 2
1. भारत म िनयात को ो साहन करन के िलए कौन–कौन से उपाय िकये है?
2. भारत का िनयात यापार बढ़ाने के िलए आप या सुझाव दगे?
34.7 आयात– ित थापन का अथ
यापार स तुलन क ितकू लता को कम करने के िलए आयात म कमी करना आव यक है
। आयात म कमी करने के िलए आयात– ित थापन ज री है । आयात– ित थापन का अथ है िक
िजन व तुओ ं को हम िवदेश से आयात करते है उनका उ पादन देश म ही जहां स भव हो िकया
जाये िजससे उस व तु के आयात क ज रत ही न रह जाये या िफर बहत कम आयात से ही उसक
ज रत पूरी हो जाये। आयात– ित थापन नीित के दो मु य उ े य है । पहला तो यह है िक िवदेशी
मु ा को अिधक मह वपूण व तुओ ं के आयात पर खच िकया जाये और दूसरा यह है िक अिधक से
अिधक व तुओ ं के स ब ध म देश आ म–िनभर बन जाये।
िनयोजन के आर भ से ही यह नीित ार भ क गई थी और आज भी चल रही है । इस
नीित का प प रवितत होता रहता है । ारं भ से तो इसका अथ यही था िक िवदेशी उपभोग व तुओ ं
के थान पर वदेशी उपभोग व तुओ ं का योग िकया जाये। पर िफर इसका अथ बदला और यह
हआ िक पूँजीगत व तुओ ं क ित थापक व तुएं तैयार क जाय। आज इसका अथ यह है िक देशी
तकनीक का िवकास िकया जाये और िवदेशी तकनीको पर आ मिनभरता कम क जाये।
34.8 आयात– ित थापन म गित
आयात– ित थापन के कारण आयात का ढां चा बदल गया है । अनेक ऐसी व तुएं िजनका
िक पहले आयात होता था आज उनका आयात होता ही नह है । सरकार को आयात– ित थापन
नीित म पया सफलता िमली है । इस नीित के फल व प ही िनमाण उ ोग, इंजीिनय रग उ ोग,
रसायन उ ोग, इलै ािनक उ ोग िवकिसत हए हे। इन उ ोग ने करोड़ पये क िवदेशी मु ा क
बचत क है । आयात ित थापन क वृि को एक तािलका से िदखाया जा सकता है । यह तािलका
कु ल आि तरक पूित म आयात का अंश िदखाती है ।

तािलका 34.1
कु ल आपू ित म आयात का ितशत

513
वािषक योजना का अंत1968–69
तृतीय योजना का अंत 1965–66
ि तीय योजना का अंत 1960–60

चतुथ योजना का अंत 1973–74

पंचम योजना का अंत 1977–78


थम योजना का अंत 1955–56
थम योजना का ार भ
1950–51

1983–84
मांक
मद
1. खा ा न 5.9 1.7 4.7 9.5 56 4.3 0.2 4.0
2. लोहा और 25.5 39. 35.7 16.7 9.3 18.5 1.1 6.0
इ पात 9
3. मशीनरी 68.9 40.1 27.8 24.6 17.0 15.3 18.
4. पे ोिलयम 92.5 41. 94.6 76.6 66.2 70.8 63.1 0
5. न जन खाद 0 33.
72.5 80.3 58.3 60.9 38.3 27.5
93. 6
8 1.0
39.
8
इससे यह तो प है िक पं चवष य योजनाओं म आयात– ित थापन सफल रही है । पहली
योजना के ार भ म कु ल वदेशी पूित म आयात का योग खा ान के 59 ितशत, लोहा और
इ पात के िलए 25.2 ितशत, मशीनरी के िलए 68.9 ितशत, पे ोिलयम के िलए 92.5 और
न जन खाद के िलए 72.5 ितशत था। 1983–84 मे इन सभी व तुओ ं कु ल आपूित म इनके
आयात का अंश घटकर 4.0 ितशत ही रह गया। इस तरह पे ोिलयम को छोड् कर अ य व तुओ ं
के आयात– ित थापन म िवशेष सफलता िमली है । आव यकता इस बात क है िक पे ोिलयम के
उ पादन को देश म बढ़ाने के भरसक य न िकये जाय।
34.9 आयात– ित थापन से लाभ
आयात– ित थापन अ यिधक मह वपूण और लाभ द है; इसके लाभ इस कार है –
1. भारत क औ ोिगक सं रचना का िविवधीकरण हआ है । आज हमारे देश क सं रचना एक
िवकिसत देश के समान है ।

514
2. भरत जैसे िवशाल देश म मूलभूत और पूँजीगत उ ोग का होना है । ये उ ोग देश क सुर ा
क ि से भी आव यक है । आज भारतीय औ ोिगक ढ़ां चे म इन पूँजीगत उ ोग का िवशेष
थान है । जलील अहमद ने कहा है िक 1950–5 से 1965–66 के म य सम त औ ोिगक
उ पादन म वृि का लगभग एक–चौथाई पूँजीगत माल के उ पादन मे वृि का लगभग आधा
आयात– ित थापन का है ।
3. म य–व तुओ ं के उ ोगो का पया िवकास हआ है ।
4. वनं ता के पूव औ ोिगक उ पादन क दर 2 ितशत थी, आज यह दर बहत स तोषजनक
नह है पर िफर भी लगभग 6 ितशत है ।
5. आयात सं रचना आज बदल गई। िनिमत व तुओ ं के आयात का मह व कम हो गया है । हमारी
आयात सूची से अनेक िनिमत व तुएं गायब हो गई है । आज 75 ितशत आयात क ची
साम ी और म य व तुओ ं के होते है । पूँजीगत व तुओ ं के आयाम तो कम होकर कु ल आयात
का 16 ितशत ही रह गये है । यह िन न तािलका से प है –
तािलका 34.2
योग के अनु सार वग कृ त भारत के मु य आयात
( ितशत अंश )
योग के 1950–51 1955–56 1960–61 1965–66 1970–71 1975–76 1986–87
अनुसार
वग करण
उपभो ा 26.2 91.6 23.9 22.8 13.0 25.3 3.5
व तुएं
क चा माल 53.6 51.4 46.6 19.8 54.6 54.4 77.8
और म यं
व तुएं
पूँजीगत व तुएं 20.2 28.7 29.5 45.5 24.7 18.3 15.0
िनयात व तुओ ं म अब अनेक ऐसी व तुएं शािमल हो गई है िजनका पहले कभी िनयात होता
ही नह था। कु छ िनयात क व तुएं जैसे िक इ जीिनयरी का सामान और रसायन तो अित
आधुिनक व तुएं है ।
6. भारत के िवदेशी यापार म घाटे को कम करने म सहायता िमली है । आयात क मा ा और
मू य म कमी हई है ।

515
7. यापार सं तलु न के घाटे को कम करने के िलए यह उपाय िनयात ो साहन से अिधक सरल और
अ छा है । िनयात–स व न क सफलता तो िनयात व तुओ ं क िवदेशी बाजार मां ग और
ितयोिगता म ठहरने क मता पर िनभर करते है जबिक आयात ित थापन क सफलता
घरेलू मां ग और उ पादन के य न पर िनभर करती है ।
34.10 आयात– ित थापन से हािनयां
आयात ित थापन नीित क सफलताओं के साथ कु छ हािनयां भी है :–
1. आयात म ितबं ध के कारण जो मां ग उ प न हई थी लगता है िक अब समा हो गई है । पया
घरेलू मां ग न होने के कारण औ ोिगक िवकास गित मंद पड़ गई है । बीमार इकाईय क बढ़ती
हई सं या भी इस बात क सूचक है ।
2. अनेक उ ोग सं र ण के कारण अकु शल है । उनक अकु शलता ऊँची लागत, िन न
उ पादकता, औ ोिगक बीमारी और पुरानी तकनीक के सूच को से प हो जाती है । पूँजीगत
उ ोग भी समय के साथ उ पादन तकनीक म प रवतन नह कर पाये है । आयात से ितयोिगता
न होने कारण इन उ ोग ने अपनी कु शलता बढ़ाने का यास नह िकया है ।
3. उपभो ाओं का शोषण हआ है । उ ह ऊँचे मू य पर घिटया िक म क व तुएं खरीदनी पड़ी है
। िटकाऊ उपभो ा व तुओ ं के आयात पूणत : ब द रहने से इन व तुओ ं का बाजार िव े ता
बाजार म बदल गया है ।
4. आयात ित थापन के कारण कु छ लागत तो ऋणा मक ही है । दूसरे श द म इस नीित के कु छ
प रणाम अ छे नह है । ऋणा मक लागत इस कार है –
(i) सं र रण के कारण म धान और कु शल फम के थान पर पूँजी धान और अकु शल
फम क थापना होती है
(ii) सामा य मू य तर म वृि होती है िजसके कारण िनयातो म पया वृि नह हो पाती है,
(iii) िनयात उ ोग क अपे ा अिधक साधन, आकषक घरेलू बाजार के कारण,
आयात ित थापन व तुओ ं के िनमाण म लगा िदये जाते है, इससे िवदेशी मु ा क हािन
और साधन का अप यय होता है ।
5. आयात ित थापन और आयात िनयं ण से उ पादन यव था िवकृ त हई है । सं र ण क छाया
म नए उ ोग थािपत हए है, िजससे देश उ पादन साधन पुनआवं टन हआ है । यह पुन :
आवं टन ठीक से नह हआ है । भारत म आय के िवतरण म भारी असमानता आई है और स ा
पर स प न वग का िनयं ण है । िवलािसता व तुओ ं के आयात पर रोक लगते ही इन व तुओ ं
का उ पादन बहत बढ़ा है । अनाव यक दशन उपभोग और िवलािसता क व तुओ ं का
उ पादन करने वाले उ ोग का तेजी से िवकास हआ है । भारत जैसे देश के िलए ऐसे उ ोग
क थापना क अवसर लागत बहत ऊँची है ।
516
34.11 आयात ित थापन के स ब ध म सु झाव
आयात ित थापन को भावी बनानेकेिलए सुझाव इस कार है
(1) आयात ित थापन के स ब ध म िववेक से काम लेनाचािहये और अिववेकपूण दौड़ से बचना
चािहये। सं र ण सभी उ ोग को अंधा–धुं ध नह देना चािहये और िजन उ ोग को िदया जाये
वह उतने समय तक ही देना चािहए, जब तक िक आ यक है । सं र ण भी इस तरह का होना
चािहये िजससे ितयोिगता भी समा न हो और उ पादन लागते घटाने का यास िकया जाता
रहे। कृ िष और उ ोग दोन म ही कु छ व तुओ ं का आयात ित थापन सं भव है । खा तेल का
आयात उिचत िनयोजन के ारा 1200 करोड़ पये ित वष से कम िकया जा सकता है और
घरेलू खा ान तेल क मां ग को पाम क खेती से पूरा िकया जा सकता है ।
(2) िजन े म िवदेशी िविनमय क आव यकता नह है उन े म लाइसेि सग और िनयं ण को
हटा देना चािहये।
(3) उ ोगपितय और सरकार को आयात ित थापन से स बि धत अनुसं धान और िवकास पर
यान देना चािहये। इसके िलए यिद कर भी लगाना पड़े तो भी को सं कोच नह करना चािहये।
(4) आयात ित थापन क लागत पर यान देना चािहए।
(5) आयात ित थापन के स बन म जो भी यि आिव कार करते है,उ ह ो साहन देना चािहये।
(6) सं र ण के वल उ ह उ ोग को देना चािहये जो बाद म अपने पैर पर खड़े हो सकते है ।
(7) सं र ण देने के िलए तटकर या राजकोषीय नीित का उपयोग िकया जाना। आव यक होने पर ही
कोटा णाली के प म सं र ण देना चािहये।
(8) सं र ण एक सीिमत अविध के िलए ही िदया जाना चािहये और बहत होने पर ही बढ़ाया जाना
चािहये।
बोध 3
1. आयात ित थापन से या आशय है?
2. आयात– ित थापन म कहां तक वृि हई है?
3. आयात ित थापन के स ब ध म आपके या सुझाव है?
34.12 सारां श
भारत के आिथक िवकास को ो साहन देने के और यापार सं तलु न क ितकू लता को
सुधारने के िलए िनयात स व न और आयात ित थापन मह वपूण आव यकताएं है िनयात
स व न के अ तगत सरकार ारा िविभ न कार क व तुओ ं का िनयात बढ़ाने के िलए तरहतरह के
ो साहन िदये जाते है ।

517
ितकू ल यापार स तुलन के समाधान, नये उ पाद के िलए बाजार, िवकस योजनाओं क
सफलता और वावल बी अथ– यव था के िलए िनयात स व न क आवशयकता है ।
उ च मू य तर, िवदेशी ितयोिगता, आयात पर सीमाय और ऊँचे कर, िन न तर का
माल, यापारीय क दोषपूण नीित, सीिमत बाजार, थानाप न व तुएं चार और सार क कमी
आिद ऐसी बाधाये जो िनयात स व न पर िवपरीत भाव डालती है ।''
िनयात क मा ा म वृि के िलए सरकार ने अनेक यास िकये है । सरकार ने सं थागत कई
यव थाएं क है, सं रचना मक सुिवधाओं का िनमाण िकया है, राजकोषीय और अ य सुिवधाएं
दान क है ।
िनयात वृि के िलए लागतो म कमी, व तुओ ं क िक म म सुधार, यापा रक समझौते
िवपणन अनुसधं ान क ज रत है और साथ ही िनयातको को िनयात के िलए ेरणाएं तथा िव ीय
सुिवधाएं देने क भी आव यकता है ।
आयात ित थापन का ता पय िवदेश से मंगाई जाने वाली व तुओ ं के थान पर देशी
व तुओ ं का उ पादन करने और योग करने से होता है ।
आयात– ित थापन म पया गित हई है । अनेक व तुओ ं का आयात समा हो गया है
और अनेक का कम हो गया है । कई उ ोग का िवकास हआ है और आयात क सं रचना भी बदल
गई है ।
आयात ित थापन के फल व प औ ोिगक ढांचा िवकिसत देश के समान हो गया है
मूलभूत और पूँजीगत उ ोग का िवकास हआ है, औ ोिगक उ पादन क दर म वृि हई है िवदेशी
यापार के घाटे को कम करने म सहायता िमली है और आयात का व प बदल गया है ।
आयात– ित थापन के कु छ दु प रणाम भी सामने आये है । सं र ण और आयात पर
ितबं ध के कारण उ पादको ने लागत कम करने और व तुओ ं क िक म सुधारने का य न नह
िकया है । उनके ारा तकनीक िवकास पर यान नह िदया गया है और िवलािसता क व तुओ ं का
उ पादन बढ़ाया है । उपभो ाओं का शोषण िकया गया है । िवदेशी बाजार क ित पधा से बचने
के िलए उनके ारा साधन को िनयात व तुओ ं के उ पादन म नह लगाया है अिपतु
आयात– ित थापक व तुओ ं के उ पादन म लगाया है ।
आयात– ित थापन को भावी बनाने के िलए िववेक से काम लेना चािहये। सं र ण भी
सभी उ ोग को नह देना चािहय। सं र ण भी सीिमत समय के िलए ही देना चािहये और उन उ ोग
को देना चािहये जो अपने पैर पर खड़े हो सकते है ।
34.13 श दावली
सं र ण (protection) : सरकार क नीित िजसके अ तगत िवदेशी

518
ित पधा से गृह–उ ोग क र ा के िलए
आयात यापार पर ितबं ध लगाये जाते है ।
आिथक िवकास : ऐसी ि या िजसम दीघकाल म िकसी
(Economic Development) अथ– यव था क वा तिवक रा ीय आय म
वृि होती है ।
उप रप र यय (Overheads cost) : प रवहन, सं चार, शि बीमा बिकग आिद
पर यय।
म धान तकनीक : म क अिधक मा ा और पूँजी क कम मा ा
(Labour Intensive Technique) का योग होता है ।

पूँजी धान तकनीक : पूँजी का अिधक और म का कम उपयोग होता


(Capital Intensive Technique) है ।

वतं यापार (Free tread) : िविभ न देश के म य व तुओ ं और सेवाओं का


वतं आदान दान।
आयात कोटा (Import Quotas) : सरकार ारा िविभ न व तुओ ं के अिधकतम
कोटे िनि त करना और कोट से अिधक मा ा
म आयात न करने देना।
34.14 कु छ उपयोगी पु तक
ए.एन.अ वाल, भारतीय अथ यव था: कृ ित और सम याएं, वाइली ई टन िलिमटेड नई
िद ली।
द और सु दरम, भारतीय अथ यव था, एस. चं द, ए ड नई िद ली।
एल. एम. राय, भारतीय अथ यव था, नव– िवकास काशन,पटना।
ीधर पा डेय, भारतीय अथ यव था कृ ित और सम याएं, मोतीलाल बनारसीदास,
िद ली।
एल एम. राय, भारत का आिथक सम याएं, नव–िवकास काशन,पटना
कृ ण सहाय स सेना और के एल. गु ा, भारत का आिथक िवकास, सािह य सदन,
आगरा।
A.N. Agarwal, Indian Economy, Wiley Eastern Ltd. New Delhi
519
I.C. Dhingra, The Indian Economy, Sultan Chand & Sons, New Delhi.
S.K. Mishra and V.K. Puri, Indian Economy, Himalaya Publishing
House, Bombay.
Rudra Dutt and Sundhram, Indian Economy, S. Chand & Sons, New
Delhi.
24.15 अ यास के उ र
बोध 1
1. िनयात ो साहन के अ तगत सरकार ारा िविभ न कार क व तुओ ं के िनयात बढ़ानेके अनेक
कार के ो साहन िदये जाते है । जैस–े िनयात धान उ ोगो को िनयात कर से छू ट दी जाती है,
िनयात क व तुओ ं का उ पादन कर मु कर िदया जाना आिद।
2. िनयात स व न क आव यकता यापार स तुलन क ितकू लता थे कम करने, िवकास
योजनाओं क सफलता, नये उ पादको के िलए बाजार और अथ– यव था को वावल बी
बनाने के िलए है ।
3. िनयात स व न के माग मे भारतीय व तुओ ं क यादा क मत, उनका घिटया तर, िवदेशी
व तुओ ं से ितयोिगता, िनयातको को नमूने के अनुसार माल न भेजने क नीित और िवदेशी
सरकार ारा भारतीय व तुओ ं पर ऊँचे कर जैसी अनेक बाधाएं ह।
बोध 2
1. भारतीय सरकार ने समय–समय पर िनयात स व न के िलए अनेक यास िदये है जो िक
िव तृत प से चार भाग म िवभािजत िकये जा सकते है :–
(1) सं थागत (2) सं रचना मक (3) राजकोषीय (4) अ य।
2. भारतीय िनयात यापार को बढ़ाने के िलए सुझाव उ पादन लागत म कमी, िनयात व तुओ ं क
िक म म सुधार, िनयातको को रचना मक ेरणाएं, िव ीय सुिवधाय और िवपणन अनुसं धान।

बोध 3
1. आयात– ित थापन का अथ है' िक आयात क जाने वाली व तु का उ पादन देश म ही िकया
जाये िजससे िक उसका आयात न करना पड़े।
2. आयात ित थापन क गित स तोष जनक है । अनेक व तुओ ं का आयात भारत अब नह
करता है और अनेक का आयात कम कर िदया है ।

520
3. उ ोग को सं र ण सोच–समझकर देना चािहये, सं र ण क अविध सीिमत रखना चािहये,
उ ह उ ोग को सं र ण देना चािहये जो िक आगे चलकर अपने आप खड़े रह सकते है और
सं र ण के कारण ितयोिगता भावना समा नह होना चािहये।
प रिश 1 (इकाई 24)
जु लाई 1991 से िनयात बढ़ाने के िलए िकए गए उपाय
1. पए का अवमू यन – जुलाई 1991 म सरकार ने दो बार पए का लगभग 18%
अवमू यन िकया िजससे िनयात बढ़ाए जा सक।
2. एि जम ि प (EXIM Scrip) नीित का उपयोग – सरकार ने 1991 म िनयात व तुओ ं
पर 30% एि जम ि प नीित लागू करके िनयात बढ़ाने का यास िकया। इसके अनुसार िनयातक
अपनी कु ल िनयात आमदनी का 30% खुले बाजार म ीिमयम पर बेच सकते थे अथवा सीिमत
इजाजत क आयात सूची के अनुसार वं य आयात कर सकते थे।
3. पए क आिशक प रवतनीय – 1992–93 म पए को िनयात बढ़ाने के उ े य से आंिशक
प से प रवतनीय कर िदया। इसके अ तगत दोहरी िविनमय दर णाली को अपनाया गया।
इन उपाय के फल व प 1993–94 म िनयात म 20% क वृि हई (डालर
म)1994–95 म यह लगभग 18.4% रही।
नई िनयात नीित (1992–97)
31 माच, 1992 को आठव पं चवष य योजना के अनु प यह नीित घोिषत क गई। इसक
अविध पाँच वष रखी गई जबिक इससे पूव ि वष य आयात–िनयात नीित घोिषत क जाती थी। इस
नीित क मुख बात िन न है –
1. इस नीित म िवदेशी यापार को काफ मा ा म मु कर िदया गया है । लेिकन आयात व
िनयात के िलए एक नकारा मक सूची रखी गई।
2. आयात क नकारा मक सूची को दो भाग म बाँटा गया –
(i) िनषेधा मक मद: टाइलो, पशु रैिनट व अविनिमत, हाथी दां त इन तीन मद ' के आयात क
पूण मनाही थी।
(ii) ितबं धा मक मद: ये मद लाइसे स स ही आयात क जा सकती थी। इसम यारह उपभो ा
व तुए रखी गई। तथा 70 अ य कार क व तुएं रखी गई है ।
3. सावजिनक े के िलए सुरि त मद (Canalised list) क ेणी 8 मद रखी गई!
4. िनयात क नकारा मक सूची को भी दो भाग म बाँटा गया।
(i) िनषेधा मक सूची – इसम 7 मद है िजनके िनयात क स त मनाही।
(ii) (a) 51 मदे ऐसी थी िजनका िनयात लाइसे स से ही सं भव ह।
521
(iii) (b) 11 मद ऐसी थी िजनके िनयात पर मा ा मक सीमा लगा दी।
5. 10 मद जैसे अ क वे ट, याज, घी, खिनज अय क आिद का सावजिनक एजेि सय क
माफत िकया जाएगा।
6. 46 मद ऐसी थी िजनका िनयात कु छ शत पूरी करने के बाद िबना लाइसे स के ही िनयात
िकया जा सके गा।
7. अि म लाइसे स के अ तगत शु क मु आयात का े बढ़ा िदया।
8. िनयात घरान , ेिडं ग व टार घरान को अि म लाइसे स क म के तहत व सिटिफके शन
क इजाजत दी गई।
9. पूँजीगत व तुओ ं के आयात को उदार बनाया गया।
10. 100% िनयातो मुख इकाइय व मु यापार तथा ोसेिसं ग े म इकाइय को अिधक
सुिवधाएं दान क गई।
एक वष के अनुभव के प ात् 31 माच 1993 को इस (1992–97)आयात िनयात नीित म
यापक सं शोधन िकए गए। िजनका उ े य िवदेशी यापार नीित को उदार बनाना व िनयात म तेजी
से वृि करना था।
30 माच 1994 को वािण य मं ी ी. णव मुखज ने एि जम नीित म उदारीकरण क
घोषणा क ।
प रिश 2 (इकाई 24)
िनयात स व न और आयात ित थापन
नई िनयात–आयात नीित (1997–2002)
1997–2002 क अविध के िलए वािण य रा य मं ी ी बी. बी. रमैया ने 31 माच 1997
को नई आयात–िनयात नीित क घोषणा क । इसक अविध नवी पं चवष य योजना के अनु प रखी
गई है । इसके िन न उदे य है ।
1. देश क अथ यव था को िव ो मुख व गितमान बनाना।
2. िवकास क दर म ि थरता रखने के िलए क चे माल, म यवत व तुएं कल–पुज व पूं जीगत
मा उपल ध कराना तािक उ पादन वृि सुचा रहे।
3. भारतीय कृ िष, उ ोग तथा सेवा े क तकनीक मता को बढ़ाना।
4. उपभो ा वग को उिचत क मत पर उ म िक म क व तुएं सुलभ कराना।
इस नीित क मु य बात इस कार है –

522
1. मा ा आधा रत लाइसे स क म जारी रखी गई है । यह िनयातको को ो साहन देने के िलए
है । लेिकन मू य आधा रत अि म लाइसे स क म व पास बुक क म समा कर उसके थान पर
शु क अिधकार पास बुक क म लागू क गई है । इससे िनयातको को शु क मु इनपुट आयात
करने का अवसर िमलेगा।
2. िनयात ो साहन–पूँजीगत माल क म के अ तगत पूं जीगत मा ा के आयात पर शु क क
दर 15% से घटाकर 10% क गई। शू य शु क क म के अ तगत कृ िषगत व सहायक पदाथ के
िलए आयात रािश क सीमा 20 करोड़ पए से घटाकर 5 करोड़ . कर दी गई।
3. ितबि धत सूची म 542 मद को पेशल आयात लाइसे स (SIL) व खुले सामा य
लाइसे स (OGL) क सूची म ह ता त रत कर िदया।
4. कृ िषगत े को बढ़ावा देन के िलए िनयात घराने व यापार घराने क टेटस पाने के िलए
कृ िषगत िनयात के िलए दोहरे वजन (Double Weighting) क यव था क गई। कृ िषगत व
सहायक े अपने उ पादन का 50 ितशत मा ा घरेलू शु क े म बेच सकगे।
5. पावर े के अलावा तेल व गैस े को भी िनयात लाभ (Deemed export profit)
िदया जाएगा।
6. वण–आभूषण से िनयात को बढ़ावा देने के िलए MMTC, STC, SBI व HHEC
आिद एजेि सय के अित र अ य एजेि सय को भी इनका टॉक रखने क अनुमित दी जाएगी।
7. लघु पैमाने के उ ोग के माल के िनयात पर पेशल आयात लाइसे स क मा ा एक
ितशत से बढ़ाकर दो ितशत कर दी गई है ।
8. िजन िनयात का के पास ISO 9000 अथवा IS/ISO 9000 का सिटिफके ट होगा उनके
िलए पेशल आयात लाइसे स क सुिवधा 204 से बढ़ाकर 5% कर दी गई है । सॉ टवेयर
क पिनय को भी िनयात के िलए िवशेष सुिवधाएं दी जाएं गी।
9. िनयात घराने, यापा रक घराने, टार यापा रक घराने व सुपर टार यापा रक घराने क
ेणी ा करने के िलए िपछले तीन वष के औसत िनयात क रािश मश: 20 करोड़ 100 करोड़,
500 करोड़ तथा 1500 करोड़ पए क गई पर 1997 म इ ह घटाकर मश: 12.5 करोड़, 62.5
करोड़, 312.5 करोड़ व 937.5 करोड़ पए कर िदया गया।
10. रािशपतन (Dumping) के िखलाफ सं थागत यव था व सुर ा के उपाय सु ढ़ िकए गए
तािक देशके उ ोग को ित ना पहँचे।

523
इकाई -35
भारत म सावजिनक यय का उदभव, वृ ि ,
वृ ि याँ एवं मू यां कन
इकाई क परेखा
35.0 उेय
35.1 तावना
35.2 भारत म सावजिनक यय का उदभव
35.3 भारत म सावजिनक यय म वृि के कारण
35.4 भारत म सावजिनक यय क वृि याँ
35.5 मू यां कन
35.6 अ यास हेतु न
35.7 श दावली
35.8 कु छ उपयोगी पु तक
35.0 उ े य
सावजिनक िव म सावजिनक यय क अवधारणा एक मह वपूण भूिमका अदा करती है ।
िजस कार अथशा के अ ययन म उपयोग मह वपूण है ठीक उसी कार लोकिव के अ ययन म
सावजिनक यय ने मह वपूण थान ा कर िलया है इसिलए सावजिनक यय क अवधारणा क
जानकारी आव यक है । समाज क याण, आिथक गित तथा नाग रको क सामूिहक
आव यकताओं क स तुि के िलए के ीय, रा य एवं थानीय सरकार ारा िकये जाने वाले यय
को सावजिनक यय कहते है । भारत म सावजिनक यय का उदभव के अ ययन का उ े य उन
प रि थितय को य करता है िजनम भारत म सावजिनक यय म वृि को अ ययन का उ े य उन
कारण को य करना है िजनक वजह से भारत म सावजिनक यय िनर तर बढ़ा है । भारत म
सावजिनक यय क वृि य के अ ययन का उ े य यह बताना है िक िकन मद पर िकतना यय
िकया जाता है और िकन मद म अिधक और िकन मद पर कम सावजिनक यय करने क वृित
है ।

524
35.1 तावनाः-
वतमान क याणकारी रा य के िलए सावजिनक यय अिनवाय है । भारत क वतं ता
उपरा त सावजिनक यय ने अथ यव था को किठनाइय क ि थित से िनकालने के िलए मह वपूण
थान ा िकया है । सावजिनक यय आिथक गितिविधय को िनयिमत करता है तथा आिथक
िवकास के दीघकालीन एवं अ पकालीन ल य क ाि म सहायता करता है । यही कारण है िक
भारत सरकार क आय और यय म िनर तर वृि क वृि है । वा तव म सरकार सामािजक एवं
आिथक े म िजतनी ज दी स भव हो सके आिथक वृि के िलए अपनी गितिविधय का
िव तार करना चाहती है । अतः जमन अथशा ी वैगनर क बढ़ती हई गितिविधय क धारणा भारत
के सावजिनक यय क वृि म झलकती है ।
35.2 भारत म सावजिनक यय का उ वः-
भारत का आकार सघनाकार है तथा े फल क ि से यह एक बड़ा देश है जहाँ पर
ाकृ ितक साधन क चुरता पायी जाती है पर तु यहाँ पर कृ िष अपनी िपछड़ी अव था म है,
औ ोिगक ि से भारत का िवकास कम हआ है । ित यि आय कम है तथा जीवन तर भी
िगरा हआ है । वतं ता से पूव सरकार मु य उ े य देश म सुर ा एवं शाि त बनाये रखना था
इसिलए सावजिनक यय का अिधकां श भाग सुर ा पर ही यय कर िदया जाता था । यय का थोड़ा
सा भाग ही िवकास काय पर यय िकया जाता था । 1939-40 म सरकार का सुर ा काय पर यय
49.54 करोड़ . था जो बढ़कर 1944-45 म 458.22 करोड़ पये हो गया था । 1939-40 म
सामािजक सुर ा पर 18.5 करोड़ . व सावजिनक िनमाण काय पर 29.6 करोड़ . था । अतः
ाकृ ितक साधन के िवदोहन करने, कृ िष एवं उ ोग का िवकास करने, लोगो के जीवन तर को
ऊँचा उठाने, देश म आ त रक शाि त व बा य सुर ा क यव था करने तथा आिथक व
सामािजक े म उ नित हेतु देश म सावजिनक यय का उदभव हआ और उसम वृि हई ।
35.3 भारत म सावजिनक यय म वृ ि के कारणः-
वतं ता के बाद भारत के सावजिनक यय म अ यािशत वृि हई है िजसके िलए
आिथक, सामािजक व राजनैितक कारण उ रदायी है जैसेः
1. भारत म सावजिनक यय म वृ ि के आिथक कारणः-
1. योजना ब आिथक िवकास पर भारी ययः- वतं ता ाि के बाद देश के ती
आिथक िवकास के िलए योजनाब िवकास काय म पर सावजिनक े िकया गया ।
जहाँ पहली पं चवष य योजना म सावजिनक े म 1960 करोड़ पये का यय हआ वहाँ
1990-91 म 98272 करोड़ . यय हआ । 2010-11 म यह यय बढ़कर 11,08749
करोड़ . हो गया ।

525
2. सावजिनक ऋण पर बढ़ता याज भु गतानः- देश के िवकास काय के िलए सरकार ने
बड़े पैमाने पर आ त रक व बा य ऋण ा िकये िजन पर ितवष पया मा ा म याज क
रािश चुकानी पड़ती है । 1950-51 म सावजिनक ऋण पर के सरकार का याज भुगतान
37 करोड़ . था जो बढ़कर 1990-91 म 21498 करोड़ पये हो गया । वष 2009-10 म
इस मद पर 2,11,643 करोड़ पये िकये गये वष 2010-11 म यह यय 2,48,664 करोड़
पये तक बढ़ गया ।
3. आिथक सहायता म वृि ः- के सरकार तथा रा य सरकार ारा िविभ न े जैसे
उ ोग, यापार , कृ िष , प रवहन,सावजिनक िवतरण णाली, खा , ईधन, िश ा आिद के
िलए आिथक सहायता व अनुदान म भारी वृि हई है । के सरकार क कु ल आिथक
सहायता 1990-91 म 9581 करोड़ पये थी जो बढ़कर 2009-10 म 1,23,396 करोड़
पये हो गयी ।
4. मू य तर म वृ ि ः- क मत म वृि सावजिनक यय म वृि का कारण है । वतं ता के
बाद व तुओ ं क क मत म वृि हई है । क मत म वृि के कारण व तुओ ं क पूववत्
मा ा खरीदने के िलए सरकार को पहले से अिधक यय करना पड़ता है फल व प
सावजिनक यय म वृि हई है । क मतो म वृि के कारण उपभो ा मू य सूचकां क बढ़
जाता है िजसे फल व प के वेतन-भ म वृि करनी पड़ती ह िजसके फल व प
सावजिनक यय म और वृि हो जाती है ।
5. आिथक सेवाओं पर यय म िनर तर वृि ः- वतं ता के बाद भारत म आिथक
सेवाओं पर अ यिधक यय बढ़ा है । आिथक सेवाओं म कृ िष िवकास, उ ोग िवकास
यातायात, िसं चाई, िव तु , रसायन व उवरक आिद सि मिलत है । सन् 1986-87 म
आिथक सेवाओं क गितिविधय पर लगभग 104 करोड़ . यय हआ । सन् 1990-91
म यह यय 754 करोड़ . हआ । 2000-01 म यह 1941 करोड़ तथा 2010-11 म
आिथक सेवाओं पर सावजिनक यय 336107 करोड़ पये हो गया ।
6. रा ीय आय म वृ ि ः- देश क रा ीय आय म िपछले वष म िनर तर वृि हई है ।
रा ीय आय वृि के बदले म अपने यय को बढ़ाने के िलए सरकार स म है जो कर
राज व और अ य आय के मा यम से सरकार को आिथक राज व म हई है । उदाहरण के
िलए 1980-81 से 2007-08 के िलए ित यि आय म 5.7 क दर से वृि हई है ।
इसके प रणाम व प सावजिनक यय म वृि होती है ।
7. गरीबी उ मू लन काय मः- भारत म सरकार गरीबी उ मूलन और रोजगार सृजन
काय म पर धन क एक अ छी रकम खच कर रही है । इप काय म म मु य है- वण
जय ती ाम वरोजगार योजना, इि दरा आवास योजना आिद ।
8. सावजिनक उप म क थापना पर ययः- देश के ती आिथक िवकास के िलए
सु ढ़ आधारभूत सरं चना तैयार करने हेतु भारत सरकार तथा रा य सरकारो ने कई भारी
यय िकया है । जहाँ 1950-51 म के सरकार के उप म क सं या 5 थी व उन म पूं जी
526
िनवेश के वल 29 करोड़ पये था वह 9 व पं चवष य योजना (1997-2002) के दौरान
के सरकार के उप म क सं या 234 तक पहँच गयी और उनम पूं जी िनवेश 330649
करोड़ पये पर पहँच गया । रा य सरकार ने भी अपने सावजिनक उप म क थापना
और सं चालन म काफ यय बढ़ाया है ।
35.4सावजिनक यय म वृ ि के सामािजक कारणः-
1. समािजक सु र ा सेवाओं पर बढ़ता ययः- भारत म गरीबी बेकारी, भूखमरी आिद के
कारण सामािजक सुर ा सेवाओं जैसे वृ ाव था पशन, िनशु क िश ा, िचिक सा
सुिवधाएँ, लोक िनमाण काय, राहत काय म आिद क यव था पर एक क याणकारी
रा य के प म के और रा य सरकार को करनी पड़ती है फल व प भारत के
सावजिनक यय म िनर तर वृि हो रही है ।
2. जनसं या म िव फोटक वृ ि ः- भारत म वतं ता ाि के बाद जनसं या म िव फोटक
वृि हई है । जहाँ 1851 म भारत क जनसं या के वल 36.1 करोड़ पये थी वह 2001 म
102.9 करोड़ पये और 2011 म बढकर 121.02 करोड़ पये पर पहँच गयी । जहां एक
और जनसं या िनयं ण हेतु प रवार िनयोजन एवं प रवार क याण काय म पर भारी यय
करना पड़ता है वहाँ बढ़ती जनसं या के िलए िश ा, िचिक सा, बुिनयादी सुिवधाओं,
सि सड़ी, समाज क याण, सामािजक सुर ा आिद काय पर भारी यय करना पड़ता है ।
योजनाब िवकास के वष म प रवार िनयोजन पर अ यिधक यय िकया गया है ।
3. समाज क याण, िश ा व िचिक सा सु िवधाओं पर बढ़ता ययः- क याणकारी
रा य क थापना के उ े य से भारत सरकार ारा िश ा, िचिक सा, समाज क याण,
सफाई, जलपूित, शहरी िवकास आिद काय पर भारी यय करना पड़ता है प रणाम व प
सावजिनक यय म अ यािशत वृि हई है ।
35.5 सावजिनक यय म वृ ि के राजनैितक कारणः-
I. ितर ा पर बढ़ता ययः- के सरकार के ितर ा यय म वृि हई है । 1950-51 म
ितर ा पर कु ल यय 168 करोड़ पये था जो बढ़कर 1990-91 म 10,874 करोड़ .
2000-01 म 49622 करोड़ पये तथा 2009-10 म 90668 करोड़ पये हो गया । इसके
मुख कारण क मीर सम या, भारी थल सेना, उ च सैिनक िश ा के क थापना, यु
के सामान हेतु कारखान क थापना, आधुिनक अ -श से सेना को सुसि जत करना,
पािक तान, चीन व बं गला देश क श तु ापूण नीित है ।
II. जातां ि क शासन यव थाः- भारत म जातां ि क शासन यव था भी सावजिनक
यय म अ यािशत वृि का एक मुख कारण है । चुनाव, िवधानसभाओं, सं सद,
रा पित, भारी मं ीम डल आिद क यव था पर बहत यय होता है । सरकार को
527
कू टनीित स ब ध रखने पड़ते है । िविभ न सयुं रा सं घ (UNO) अ तरा ीय मु ा
कोष (IMF) , िव व बक आिद क सद यता वीकार करनी पड़ती है । यह सब खच ली
यव था है फल व प सावजिनक यय म वृि हई है ।
35.6 सावजिनक यय म वृ ि के अ य कारणः-
I. पु िलस एवं षासिनक यय म वृ ि - भारत म शाि त व आ त रक सुर ा के िलए
पुिलस व शासिनक शासन यव था को चलाने के िलए शासिनक यय म तेजी से वृि
हई है । कमचा रय एवं अिधका रय के बढ़ते वेतनमान एवं मंहगाई भ ा आिद ने भी
राजक य यय ये बढ़ाया है । सन् 1950-51 म शासन पर 21 करोड़ पये यय हआ था
जो सन् 1980-81 म 1603 करोड़ ., 1990-91 म 7040 करोड़ पये और 2008-09
म 97087 करोड़ पये हो गया । 1980-81 म पुिलस पर कु ल यय 1163 करोड़ पये
हआ वह 2000-01 म बढ़कर 23006 करोड़ पये हो गया ।
II. ाकृ ितक िवपदाओं म राहत पर बढ़ता ययः- देश म ाकृ ितक िवपदाओं जैसे
अकाल, बाढ़, भूक प, तूफान आिद से कई बार भारी जनधन क हािन होती है । तथा उनम
राहत पहँचाने के िलए भारत सरकार को भारी यय करना पड़ता है ।
III. कर सं हण यय म वृ ि ः- िकसी भी सरकार क आय म कर मह वपूण भूिमका िनभाते
है । जहाँ 1950-51 म कर सं हण यय नाममा था। 1980-81 म कर एकि त करने पर
504 करोड़ पये यय हआ । 1990-91 म 1973 करोड़ पये यय हआ जो 2000-01
म 6570 करोड़ पये हो गया । सन् 2010-11 म कर सं हण यय बढ़कर 19093 करोड़
पये हो गया ।
IV. आतं कवाद पर िनयं ण हेतु ययः- ज मू-क मीर म पािक तान े रत आतं कवाद,
आं देश म न सली हमल, नागालड, असम िमजोरम म बढ़ती आतं कवादी गितिविधय
पर िनयं ण हेतु भारी सावजिनक यय करना पड़ता है ।
V. िव थािपत के पु नवास पर बढ़ता ययः- भारत म शरणािथय क सम या िकसी न
िकसी प म सदा बनी रही है । इसके अलावा आतं कवाद से त िव थािपत के पुनवास
आिद पर सरकार को भारी यय करना पड़ता है ।
VI. शहरीकरणः-शहरीकरण ने नाग रक शासन पर यय म वृि करने के िलए े रत िकया है
। यायालय, पुिलस, प रवहन, रेलवे, कू ल व कालेजो, सावजिनक वा य उपाय , पानी
और िबजली क आपूित, सावजिनक पाक पर सरकारी यय आिद के कारण सावजिनक
यय म वृि हई है ।
35.7 भारत म सावजिनक यय क वृ ि याँ –
िवकासा मक तथा गैर िवकासा मक यय क वृि याँ अिधकतर आिथक िवकास क
ि थित, सरकार का ि कोण, सरकार क यो यता तथा देश म वतमान आिथक ि थितयो पर िनभर
528
करती है । सन् 1947 तक भारत ि िटश शासन के अधीन था तथा िवदेशी सरकार ने देश को
िनधनता एवं अिनयिमतताओं के कु च से िनकालने के िलए कोई यापक िवकासा मक काय म
नह बनाया । दूसरे िव वयु ने बढ़ती सीमा तक सावजिनक यय को भािवत िकया । िवभाजन म
भी इसी कार के भाव थे। देश के वतं ता ा कर लेने पर आिथक नीित म ती प रवतन आये ।
सरकार ने देश के आिथक एवं सामािजक प रवतन लाने के िलए साकारा मक कदम उठाये ।
योजनाकाल म िविभ न िवकासा मक योजनाओं पर के एवं रा य सरकार का यय बहत बढ़ गया
योजनाकाल म भारत म सावजिनक यय क वृि याँ िन निलिखत हैः-
1. सु र ा ययः-
यह भारत सरकार के यय क सबसे मह वपूण मद है । एडमि मथ के अनुसार, ‘‘ सुर ा धन
स पि से अिधक मह वपूण है । सुर ा, बाहरी आ मण तथा आ त रक अिनयिमतताओं के
िव , रा ीय सौभा य के िलए एक आव यक शत है । सुर ा यय िनर तर बढ़ रहा है । तथा
आधुिनक यु कला के उपकरण अिधक मंहग और प र कृ त हो गये है । य िप भारत का सुर ा यय
सन् 1921 म 8.2 करोड़ पये था सन् 1934- 35 म 45 करोड़. पय तक और सन् 1938-39 म
46.18 करोड़ पय तक बढ़ गया । सन् 1944-45 तक यह लगातार बढ़ता रहा और दूसरे िव व
यु के दौरान यह 395.49 करोड़ पये तक पहँच गया । अतः इस स ब ध म लेयटन सिमित क
रपोट का कहना है‘‘ भारत मे लोकिव का एक िविश ल ण है- सुर ा दर 62 ितशत का
उ चतम अनुपात है जो िक के ीय सरकार के कु ल यय का उ चतम अनुपात है तथा िव व के
सभी देश से अिधक है । सन् 1929 म ए.जे. टायनबी ने यह कहते हए अपने िवचार कट िकए िक
या रा क सूची म, भारत सुर ा पर 45.29 ितशत यय के साथ सव थम थान पर है ।
यू.एस.ए. और यू.के . म इसी वष म यह ितशतता मशः 16.09 और 19.05 ितशत थी। ‘‘इस
बड़े यय का मु य कारण यह था िक भारत ि टेन पर िनभर था भारत म आ त रक उप व तथा
रा ीयता क लहर को रोकने के िलए िवदेशी सरकार को भारत मे फौज क आव यकता थी िजसके
प रणाम व प ि िटश अिधका रय को बहत बड़े वेतन िदये जाते थे ।
यय को बढ़ाना आव यक हो गया । यह कारण इस कार है-
1. वतं ता के तुर त बाद, देश म िवघटनकारी शि याँ थी िज ह रोकने के िलए बहत
सावधानी पूण य न आव यकता थी ।
2. क मीर यु तथा हैदराबाद भी पुिलस कायवाही भी यय म वृि का कारण थी ।
3. मू य म सामा य वृि से भी सरकार को िनपटना व इस कार सुर ा िवभाग को हर
कार क आधुिनक व नवीनतम सुिवधाएँ उपल ध करवाकर ढ़ करने क आव यकता
थी ।
4. चीन के साथ लगातार तनाव के कारण भी सुर ा यय गुणा बढ़ गया िवशेषकर सन् 1962
के बाद चीन के आने के बाद, जब चीन ने भारत क उ रीय सीमा पर आ मण िकया ।

529
5. उ र और पि म क ओर से िनर तर खतरा बढ़ रहा। पािक तान ने सन् 1965 और सन्
1971 मे भाग पर आ मण िकया ।
6. सेना साम ी के े म भारतीय सेना को आ म बनाना - िजसके फल व प सेना के
साजो समान के िलए फै ि याँ थािपत क गई ।
7. वतं ता के प चात् देश क भूिम सीमाओं म वृि हई िजसक हर हालत म सुर ा करनी
थी ।
8. पया तथा उ च सेना िश ण उपल ध करवाने के कारण भी सुर ा यय म वृि हई ।
9. अनेक कार क सहायक सैिनक सेवाएँ जैसे नेशनल कै डेट कोर (NCC), टेरीटो रयल
आय के सं गठन पर भी सरकार को काफ यय करना पड़ा ।
वतमान ि थितः-
राज व खाते पर कु ल यय क ितशतता म सुर ा यय को अ तािलका ारा दशायी गयी
हैः-

राज व खाते पर कु ल राज व खाते पर सु र ा


वष ितशत
यय यय
1950-51 346 164 45
1960-61 926 248 26
1990-91 73516 10874 15
2000-01 277838 37238 14
2010-11 958724 8734 13
उपयु त तािलका दशाती है िक सन् 1950-51 से 1960-61 सुर ा यय 33 ितशत था
पर तु सन् 1980-81 के प ात् यय 15 से 18 ितशत के बीच रकाड िकया गया । सन् 1950-51
म राज व खाते पर सुर ा यय 164.13 करोड़ पये था जो सन् 1980-81 म बढ़कर 3540.38
करोड़ पये हो गया । सन् 2000-01 म 37278 करोड़ पये हआ और 2010-11 म सुर ा यय
87344 करोड़ पये हो गया ।
1. ितर ा यय म वृ ि के प रणामः-
सुर ा यय म अ यिधक वृि का देश के आिथक िवकास पर ितकू ल भाव पड़ता है
य िक ितर ा पर िकया गया यय गैर िवकास यय कहलाता है । यिद सुर ा पर अिधक यय

530
नह करना पड़ता तो अनेक िवकासो मुख योजनाओं को पूरा िकया जा सकता था । कृ िष एवं
औ ोिगक गित स भव होती तो इससे न के वल उ पादन का तर बढ़ता बि क देश आ मिनभरता
भी हो जाता और जो जनसं या गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है, उसे ऊँचा उठाया जा
सकता । इस कार सुर ा यय म अ यिधक वृि का सीधा अथ यही होता है िक िवकास काय पर
िकये जाने वाले यय म कटौती हो रही है अथात् िश ा, वा य, िसं चाई, िव तु , उ ोग, खिनज,
प रवहन के साधन आिद पर िकए जा सकते है ।
2. िवकासा मक एवं गैर-िवकासा मक यय म वृ ि याँ-
सन् 1980-81 म भारत मे िवकासा मक यय 24426 करोड़ पये था जबिक देश क
वतं ता के समय (1950-51) यह यय 208 करोड़ . था त प चात् सन् 1990-91 म इसक
रािश 105922 करोड़ पये थी । यह सन् 2000-01 म 317464 करोड़ पये हआ तथा सन्
2009-10 म बढ़कर 1183036 करोड़ पये हो गया िवकासा मक यय को िन नतािलका म
दशाया गया है-
िवकासा मक यय
वष िवकासा मक यय
1950-51 208
1980-81 24426
1990-91 105922
2000-01 317464
2009-10 1183036

गैर िवकासा मक यय 1950-51 म 320 करोड़ पये था जो बढ़कर 1990-91 म


70626 करोड़ पये तथा वष 2000-01 के दौरान यह 298194 करोड़ पये हो गया और
2009-10 म यह बढ़कर 883416 करोड़ पये हो गया िविभ न वष म देश के गैर िवकासा मक
यय को िन न तािलका म दशाया गया है-

531
(रािश करोड़ पये म)
वष गैर-िवकासा मक यय
1950-51 320
1980-81 12419
1990-91 70626
2000-01 298194
2009-10 883416
बढ़ती हई गितिविधय , आ त रक कानून यव था और चीन के आ मण के कारण सुर ा यय
आिद कारण से थी ।
3. ा तीय सरकार और के शािसत देश को ऋण तथा अनु दानः-
यह भारत क के ीय सरकार के सावजिनक यय का ( दोन राज व एवं पूँजी खात पर )
मह वपूण ल ण है । सरकार अनुदान और ऋण के प म ा त तथा के शािसत देश को
सहायता उपल ध करवाती है । ा त एवं के शािसत देश को िदए जाने वाली अि म रािश तथा
ऋण पूँजीगत खाते से िलए जाते है जबिक ा तोऔर के शािसत देश को िदए जाने वाले
सहायता अनुदान राज व खाते से ा होते है ।
वतं ता के प ात् काल से सहायक अनुदान एवं ऋण पर यय का िच ण िन न तािलका म िकया
गया है-
(रािश करोड़ पये म )
वष सहायक अनु दान एवं ऋण पर यय
1950-51 61
1980-81 1810
1990-91 7664
2000-01 42189
2009-10 106004

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तािलका म प है िक 1950-51 म इस मद पर 61 करोड़ . यय िकए गये । 1980-81
म यह रािश बढ़कर 1810 करोड़ पये, 1990-91 म 7664 करोड़ . , 2000-01 म 42189
करोड़ . हो गयी। सन् 2009-10 म इस मद पर यय 106004 करोड़ . हो गया । अतः के ीय
सरकार ारा ा त एवं के शािसत देश को दी जाने सहायता अनुदान तथा ऋण क रािश िनर तर
बढ़ी है ।
4. सामािजक एवं सामु दाियक सेवाएँ-
िश ा, गृह िनमाण, नाग रक पूितयाँ , पुनवास, म एवं रोजगार, सावजिनक वा य,
प रवार िनयोजन, कला एवं सं कृ ित को सामािजक एवं सामुदाियक सेवाएँ, िमको का कौशल और
मानवीय साधन क उ पादकता बढ़ाने म सहायक होता है । इन सेवाओं पर यय ती ता से बढ़ रहा
है य िक हमारी सरकार जातांि क है तथा क याणकारी रा य थािपत करने के िलए वचनब है
5. आिथक सेवाएँ-
आिथक सेवाओ पर यय म सि मिलत है- कृ िष एवं स बि धत सेवाएँ, उ ोग, खिनज,
जल, िव तु िवकास, िवदेशी सेवाएँ आिद जो धीरे-धीरे रा ीय आय को बढ़ाती है । आिथक
सेवाओं पर यय सन् 1980-81 म 406 करोड़ पये था, सन् 1990-91 म यह 754 करोड़ पये
हआ जो वष 2000-01 म 1941 करोड़ . तब बढ़ गया तथा 2008-09 म यह रािश बढ़कर
7829 करोड़ . व 2009-10 म 9041 करोड़ . हो गयी । आिथक सेवाओं के शीषक के अधीन
यय सन् 1971 से लगातार बढ़ रहा है ।
(रािश करोड़ पये म)
वष आिथक सेवाओं पर यय
1970-71 864
1980-81 406
1990-91 754
2000-01 1941
2008-09 7823
5. ऋण सेवा पर ययः-
भारत सरकार समय-समय पर देश म िवकासा मक प रयोजनाओं के िलए आ त रक
साधनो से बड़े तर पर ऋण लेती है िजसके प रणाम व प याज के प म एक बड़ी रािश देनी
पड़ती है । इसिलए इसम सि मिलत है- बकाया ऋण पर याज का भुगतान, तथा हर वष ऋण को

533
घटाने अथवा छु ड़ाने के िलए िविनयोजन । यह वष 1950-51 और 1980-81 म मशः 32.4
करोड़ पये और 2957 करोड़ पये था । सन् 1990-91 म यह यय 34371 करोड़ . हआ । सन्
1992-93 म ऋण साधन का यय पया मा ा मे कम होकर 18082 करोड़ . हो गया तथा सन्
1996-97 म घटकर 15124 करोड़ . रह गया लेिकन 2008-09 म ऋण सेवा पर यय बढ़कर
58103 करोड़ पये हो गया िजसका आने वाले वष म बढ़ने क स भावना है ।
6. शासिनक ययः-
सरकार को आ त रक सुर ा एवं कानून यव था बनाये रखने के िलए बहत बड़ी रािश
यय करनी पड़ती है । सं सदीय णाली का कामकाज, िवदेशी स ब ध तथा सामा य शासन आिद
पर बहत यय होता है । ि िटश शासनकाल म यह खचा सदा उ च रहा है । वतं ता के प ात्
सरकार ने कई क याण योजनाएँ आर भ क है िजससे शासिनक यव था पर बोझ पये हो गया ।
सन् 1990-91 म यह 7040 करोड़ पये तथा 2000-01 म 35809 करोड़ पये तक पहँच गया ।
वष 2008-09 म नगरीय शासन पर यय 97087 करोड़ पये हआ ।
वतं ता क बाद नगरीय शासन यय म वृि को िन न तािलका म दशाया गया है-
(रािश करोड़ पये म)
वष नगरीय शासन पर यय
1950-51 21
1980-81 1603
1990-91 7040
2000-01 35809
2008-09 97087

35.8 मू यां कन-


आधुिनक युग म सावजिनक यय का उपयोग बढ़ रहा है िजससे एक रा का आिथक
जीवन भािवतहोता है । भारत जैसे अ पिवकिसत देश म इसका अिधक मह व है । रै नर नकसे का
कहना है िक ‘‘ िवकासशील देश िनधनता के कु च क पकड़ म होते है’’ य िक वहाँ िवकास
सं वधन के िलए पया साधन का अभाव होता है । इन िवपरीत प रि थितय म सावजिनक यय
भावी ढ़ं ग से काय करता है तथा आिथक गितिविधय को िनयिमत करता है । अतः ऐसी
अथ यव थाओं म सावजिनक यय आव यक हो जाता है । सावजिनक यय काय म क योजना
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इस कार क जाये िजससे आिथक िवकास म दीघकालीन एवं लघुकालीन ल य क ाि म
सहायता िमल सक।
दीघकालीन ल य-
सावजिनक यय के दीघकालीन ल य का उ े य करना नह बि क दीघकाल म
उ पादन का अिधक ती दर ा करना है । इसिलए यह िन निलिखत को लि त करता है-
1. आधार-भू त एवं मु य व तु ओ ं के उ ोग- दीघकालीन अनु य के स दभ म यह
आधार-भूत तथा मु य पूँजीगत व तुओ ं के उ ोग थािपत करने क नीित का अनुसरण
करता है िजससे िवकास को ो साहन िमले तथा भिव य के िनवेश के िलए पया बचत हो

2. सामािजक ब धे खच - अ पिवकिसत देश म सावजिनक यय, रेलवे, सड़क बा ध, नौ
सेनाएँ, टैलीफोन, बक सुिवधाएँ , िश ा सं थाएँ तथा वा य सेवाओं आिद के िलए
सं रचना िनमाण के यास करता है । यह सामािजक ब धे खच आिथक िवकास क मौिलक
न व माने जाते है ।
3. वयं-चािलत वृ ि - अ पिवकिसत देश म सावजिनक यय क एक और सकारा मक
भूिमका है- आ म िनभर एवं वयं चिलत वृि उ प न करना । यह अथ यव था म
सं रचना मक प रवतन लाने से ही स भव है । सावजिनक यय, अथ यव था के ो साहन
का दािय व लेकर इसे वृि क वयं- उ पि क ि थित पर ले जाता है ।
सावजिनक यय के लघुकालीन ल य का उ े य देश क अथ यव था क तुर त
आव यकताओं क पूित करना। इसके िलए उपल ध साधन का उिचत िनधारण करना । इि छत
प रणाम क ाि के िलए सावजिनक यय के लघुकालीन उ े य को िन निलिखत क ओर
लि त करना
1. साधन का ठीक िनधारण ।
2. ाथिमकताएँ िनि त करना ।
3. आय व धन क असमानताओं को कम करना ।
4. स तुिलत े ीय िवकास ।
5. के ीयकरण एवं एकािधकार थाओं को रोकना ।
6. रोजगार क अवसर क उ पि ।

सरकार का यह दािय व बन जाता है िक वह िनधनता के कु च को तोड़ने के िलए कदम


उठाय तथा अथ यव था को वचािलत बनाने के िलए ो साहन उपल ध करवाये । इसिलए
सावजिनक यय िन संदेह अथ यव था को िपछड़ेपन और िनधनता क दलदल से ऊपर उठायेगा
तथा मौि क एवं राजकोषीय उपाय से वचािलत वृि क ि या को ती करेगा ।
535
35.9 अ यास हेतु न
1. सावजिनक यय या है । भारत क वतं ता के प ात् सावजिनक यय क वृि य का
वणन क िजए ।
2. भारत के सावजिनक यय के उदभव पर सं ि िट पणी िलिखए ।
3. भारत के सावजिनक यय म ती गित से वृि के कारण बताइये ।
4. भारत म ितर ा यय के आकार एवं वृि के कारण बताइये। ितर ा यय म वृि के
प रणाम बताइये ।
5. भारत जैसे अ पिवकिसत देश म सावजिनक यय क भूिमका का िव लेषण क िजए ।
6. िन निलिखत पर िट पिणयाँ िलिखएः-
a. िवकासा मक तथा गैर िवकासा मक यय ।
b. भारत म सुर ा यय ।
c. राज व खाता ।
d. पूँजीगत खाता ।

7. भारत म सावजिनक यय म ती गित से वृि के कारण तथा सावजिनक यय क मुख


वृि य बताइये ।
35.10 श दावली
1. सावजिनक िव
2. राज व खाता
3. सुर ा यय
4. सहायता अनुदान
5. आिथक सेवाएँ
6. पूँजी खाता
7. सामािजक सेवाएँ
8. िवकासा मक यय
9. गैर िवकासा मक यय
10. शासिनक यय
11. ऋण सेवा
12. दीघकालीन ल य
13. लघुकालीन ल य
14. सामािजक ब धे खच
15. वयं-चिलत वृि
536
16. िनधनता कु च
35.11 कु छ उपयोगी पु तक
1. Public Finance by H.L. Bhatia
2. Public Finance by R.K. Lekhi
3. The Theory and working of Union Finance in India by R.N. Bhargava.
4. States’ Finances in India. By K. Venkataraman.
5. राज व के िस ा त ितलक नारायण हजेला

537
इकाइ -36
नीित आयोग
इकाइ क परेखा
36.0 उेय
36.1 तावना
36.2 नीित आयोग
36.3 पृ भूिम
36.4 उेय
36.5 सं रचना
36.6 सद य
36.7 नीित आयोग एवं योजना आयोग
36.8 नीित आयोग क उपलि धयाँ
36.9 सारां श
36.10 श दावली
36.11 कु छ उपयोगी सं दभ
36.12 बोध एवं उनके उ र
36.0 उ े य
इस इकाइ के अ ययन के बाद आप यह जान सकगे िक
यह िकन-िकन उ े य को लेकर काय कर रहा है? तथा यह योजना आयोग से िकस कार िभ न है
एवं अब तक िक नीित आयोग क या गित रही है । इन सभी के हल आपको इस इकाइ म
पढ़ने को िमलेग।
36.1 तावना
महा मा गां धी ने कहा था ‘सतत िवकास जीवन का िनयम है और जो यि हमेशा हठधिमता को
बनाये रखने क कोिशश करता है, वयं को भटकाव क ओर ले जाता है । इस भावना को दिशत
करते हए और नये भारत के बदले माहौल म, शासन और नीित के सं थान को नइ चुनौितय को
अपनाने क ज रत है और यह अिनवाय प से भारतीय सं िवधान के मूलभूत िस ा त , हमारी
स यता के इितहास से ान के भ डार और वतमान सामािजक-सां कृ ितक प र े य पर आधा रत
होना चािहये। भारत के नाग रको को शासन और गितशील नीित बदलाव म सं थागत सुधार क
ज रत है, िजससे अभूतपूव बदलाव क परेखा तैयार हो सके और उसका पोषण हो सके । योजना
538
आयोग का गठन 15 माच 1950 को िकया गया था। लगभग 65 वष के बाद देश ने खुद म एक
अ िवकिसत अथ यव था से एक उभरते वैि क दुिनया क सबसे बड़ी अथ यव थाओं म से एक
के प म आमूल-चूल प रवतन िकया है । िपछले कु छ दशक के दौरान गरीबी म कमी लाने के
यास िकया गया तथा शासन म गित एवं बेहतरी लाने क काफ उ मीद बं धी है । भारत म
िविभ न भाषाओं, िव ास और सां कृ ितक णािलय वाला एक िविवधतापूण देश है । राजनीितक
प से भी, भारत ने बहवाद को यापक तरीके से अंगीकार िकया है । यहां के एवं रा य, के के
के वल अनुबं ध बनकर नह रहना चाहते। वे आिथक िवकास और गित के िश प के िनधारण म
अपना िनणायक अिधकार चाहते है । एक ही िस ा त वाले ि कोण जो के ीय योजना के
अ तिनिहत होता है, म गैर ज री तनाव पैदा करने और रा ीय यास क सं पणू ता को कम र बनाने
क मता होती है । डॉ. अ बेडकर ने दूरदिशता पूवक कहा था िक ‘वहां अिधकार को के ीयकृ त
एक पता प प से अिनवाय नह है या इसका उपयोग नह हो सकता है ।’ भारत म बदलाव क
गितशीलता के दय मे एक ौ ोिगक ां ित और सूचनाओं तक बेहतर पहंच और उ ह साझा
करने क भावना अ तिनिहत है । इस बदलाव क ि या म कु छ प रवतन का, जहां अनुमान
लगाया जाता है और योजना बनाइ जाती है । उन सं थाओं क भूिमका को पुनप रभािषत करने क
मह ी आव यकता है ।
36.2 नीित आयोग National Institution for Transforming India
रा ीय भारत म प रवतन सं थान, भारत सरकार ारा गिठत एक नया सं थान है िजसे योजना
आयोग का थान िलया है एक जनवरी 1915 को इस नये सं थान के सं बं ध म जानकारी देने वाला
मंि मंडल का ताव जारी िकया गया। यह सं थान सरकार के ‘िथं क टैक’ के प म गितशीलता
दान करेगा। नीित आयोग, के और रा य तर पर सरकार को नीित के मुख कारको के सं बध म
ासंिगक मह वपूण एवं तकनीक परामश उपल ध करायेगा। इसम आिथक मोच पर रा ीय और
अ तरा ीय आयात, देश के भीतर, साथ ही साथ अ य देश क बेहतरीन प ितय का सार करेगा
एवं नये नीितगत िवचार का समावेश और िविश िवषय पर आधा रत समथन से सं बं िधत मामले
पर सरकार को सलाह देगा। नीित आयोग ाम तर पर िव सनीय योजना तैयार करने के िलए तं
पर िव सनीय योजना तैयार करने के िलए तं िवकिसत करेगा और इसे उ रो र उ च तर तक
पहंचायेगा। आयोग रा ीय एवं अ तरा ीय िवशेष , तकनीक अनुभव वाले ेि टशनर तथा
अ य िहतकारको के सहयोगा मक समुदाय के ज रये ान, नवाचार, उ मशीलता सहायक णाली
बनायेगा। इसके अित र आयोग काय म और नीितय के ि या वयन के िलए ौ ोिगक
उ नयन और मता िनमाण पर जोर देगा। भारत म बदलाव लाने वाली ताकत म िन निलिखत
शािमल है तथा इ ह मु एवं प रि थितय को यान मे रखते हए नये सं थान का काय े काफ
िव तृत हो गया है ।

539
1- हमारे उ ोग एवं सेवा े का िवकास हआ है और अब उनका वैि क तर पर
सं चालन हो रहा है । इस न व पर िनमाण करने के िलए नये भारत को एक शासिनक
बदलाव क ज रत है, िजसम सरकार स मकारी हो न िक पहला और आिखरी
सहारा। औ ोिगक एवं सेवा े म एक क पनी के प म सरकार क भूिमका का
कम िकया जाना चािहये। इसक जगह सरकार को कानून बनाने, नीित िनमाण करने
तथा िविनयमय पर यान के ि त करना चािहए।
2- कृ िष म भारत क पारं प रक ताकत, ौ ोिगक ताकत एवं ौ ोिगक म बेह री क
बदौलत बढ़ी है । हम अपनी बेहतरी बनाए रखने क ज रत है और शु खा सुर ा
से आगे बढ़कर कृ िष उ पादन के िम ण तथा िकसान को उनक उपज से िमलने वाले
वा तिवक लाभ पर अपना यान के ि त करना चािहये।
3- हम एक वैि क गां व म रहते ह, जो आधुिनक आवागमन, सं चार ओर मीिडया तथा
अ तरा ीय बाजार और सं थान क आपसी, नेटविकग से जुड़ा है । जहां भारत
वैि क घटनाओं म योगदान देता है । इस पर हमारी सीमाओं से बहत दूर घटने वाली
घटनाओं का भी असर पड़ता है । वैि क अथ यव थाएं और भौगोिलक राजनीित
लगातार एक दूसरे से जुड़ रही है और िनजी े का इसके भीतर के एक घटक के प
म मह व बढ़ रहा है । भारत का समान िवचार वाले वैि क मह व बढ़ रहा है । भारत
को समान िवचार वाले वैि क मु , खासकर िजन े पर अपे ाकृ त कम यान
िदया गया है, पर बहस और िवचार-िवमश म सि य भूिमका अदा करनी चािहये।
4- भारतीय म यम वग अपने आकार एवं मशि दोन म ही अनूठा है । यह
शि शाली समूह लगातार बढ़ रहा है । यह िवकास का मह वपूण वाहक है । अपने
उ च शै िणक तर , गितशीलता और देश मे बदलाव लाने क इ छा क वजह से
इसम बेशमु ार सं भवनाएं है । यह सुिनि त करना हमारे िलए लगातार चुनौती बनी रहेगी
िक आिथक प म जीवं त इस म यवग क भागीदारी बनी रहे और इसक मताओं
का पूण दोहन िकया जा सके ।
5- उ मशीलता, वै ािनक और बौि क मानव पूं जी का भारत का भ डार शि का एक
ोत है । जो सफलता क असीम ऊँचाईय को ा करने म तथा भारतवष का िवकास
करने म काफ उ मु है । अत: इनका उपयु नीितगत फै सल के मा यम से लाभ
उठाये जाने क ज रत है ।
6- वासी भारतीय समुदाय जो 200 से अिधक देश म फै ला है जो भारत क आिथक
एवं राजनीितक ताकत है इनके िलए ऐसी नीित बनाइ जाए तािक उनक भागीदारी को
िव तृत बनाया जा सके ।
7- शहरीकरण एक अप रवतनीय झान है । इसे गलत मानने क बजाय इसे िवकास के
िलए हमारी नीित का अंतरं ग त व बनाना होगा। इससे ा आिथक लाभ का फायदा
उठाने के िलए आधुिनक ौ ोिगक का इ तेमाल िकया जाना चािहये।
540
8- पारदिशता अब ‘शासन के लाइसे स’ के िलए अप रहाय हो चुक है । हम ऐसे
िडिजटल युग म ह, जहां सोशल मीिडया जैसे संचार के उपकरण और तरीके सरकार के
िवचार और कदम क या या करने तथा साझा करने के ताकतवर मा यम है । यह
झान समय के साथ आगे ही बढ़ेगा। शासन म जिटलता और परेशािनय क
सं भावनाओंको कम करने के िलए ो ौिगक का योग करते हए सरकार और शासन
को उ च पारदिशता के वातावरण म चलाया जाना चािहये।
9- ौ ोिगक और सूचना क पहंच ने िविवधता म एकता पर जोर िदया है । भारत के
िविवध रं ग से उ प न होने वाली सृजना मक ऊजा का लाभ उठाने के िलए िवकास
मॉडल अिधक सहमित भरा और सहयोगी होना चािहये। इसम रा य , े और
थानीय लाग क िवशेष मां ग को समािव िकया जाना चािहये। रा ीय िवकास के
िह सेदारी वाले ि कोण को मानव ग रमा, रा ीय आ म स मान और समावेशी
िटकाऊ पथ पर आधा रत होना चािहये। हम अपनी जनसं या या िविभ न े के
वं िचत वग को नजर अंदाज नह कर सकते ।
10- अगले कु छ दशक के दौरान िवशाल आबादी का साथक प से लाभ उठाना होगा।
युवाओं, पु ष और मिहलाओं क मताओ को अनुभव, िश ा, कौशल िवकास,
िलं ग भेद समाि और रोजगार के मा यम से उ पादक अवसर उपल ध कराने के िलए
काय करना है ।
11- गरीबी उ मूलन सबसे मह वपूण मु ा बना हआ है । येक भारतीय को आ म स मान
से जीवन जीने का अवसर िदया जाना चािहये।
12- आिथक िवकास तब तक अधुरा है जब तक वह येक यि को िवकास के लाभ
का आन द उठाने के िलए अिधकार उपल ध नह कराता।
13- गां व हमारे लोकाचार, सं कृ ित और जीिवका के सु ढ़ आधार बने हए है । इ ह िवकास
ि या म पूण प से सं थागत बनाये जाने क ज रत है तािक हम उनके उ साह और
ऊजा का लाभ उठा सक।
14- भारत म 50 िमिलयन से अिधक छोटे यापारी है जो रोजगार जुटाने के मु य ोत है ।
यह यापार समाज के िपछड़े और वं िचत वग के िलए रोजगार के अवसर जुटाने के
िलए आव यक है । नीित िनधारक म कौशल, ान उ नयन और िवि य पूं जी और
सं बं िधत ौ ोिगक त व तक पहंच बनाने के प म इस े को आव यक सहायता
दान करने पर यान िदया जाना चािहये।
15- िवकास के अ छे वातावरण के िलए हमारा पयावरण ही उ रदायी होता है । हमारा
पयावरण एवं प रि थितक प रसंपि यां शा त है । इ ह संरि त और रि त िकया
जाना चािहये।

541
इस कार रा ीय उ े य को हािसल करने म सरकार क भूिमका समय के साथ बदल सकती है ।
लेिकन वह हमेशा मह वपूण रहेगी। सरकार ऐसी नीितयां बनाना जारी रखेगी जो देश क
आकां ाओं और ज रत को कट करती हो। सरकार इ ह इस ढं ग से लागू करे िक वह नाग रको
के िलए फायदेम द ह । दुिनया के साथ राजनैितक और आिथक प से तालमेल िबठाने के िलए
नीित बनाने के साथ सरकार के कामकाज को भी समािहत करना होगा।
36.3 पृ भू िम
भारत क वतं ता के 70 वष के प ात सरकार का सं थागत ढां चा िवकिसत और प रप व हआ
है । इससे काय े म िवशेष ता िवकिसत हइ है । िजससे सं थाओं को स पे गये काय क
िविश ता बढ़ाइ है । िनयोजन क ि या के सं दभ म शासन क ि या को शासन क कायनीित से
अलग करने के साथ-साथ उसे ऊजावान बनाने क ज रत है । शासन क सं रचना के सं बं ध म हमारे
देश क ज रत बदली है ऐसे मे, एक ऐसे सं थान क थापना क आव यकता है जो सरकार के
िदशा मक और नीित िनधारक िथं क टक के प म काय करे। नीित आयोग येक तर पर नीित
िनधारक के मुख त व के बारे म मह वपूण और तकनीक सलाह देगा।
इस सं थान के तहत के से रा य क तरफ चलने वाले एक प ीय नीितगत म को एक
मह वपूण िवकासवादी प रवतन के प म रा य क वा तिवक और सतत भागीदारी म बदल िदया
जाएगा। व रत गित से काय करने के िलए और सरकार को नीित ि कोण उपल ध कराने के साथ
साथ ासं िगक िवषय के सं दभ म सं थान के पास आव यक सं साधन, ान कौशल और मता
होगी।
सबसे मह वपूण यह है िक िव के सकारा मक भाव को अपनाते हए सं थान को इस नीित का
पालन करना होगा िक भारत के प र े य म एक ही मॉडल यारोिपत नह िकया जा सकता है ।
िवकास के िलए भारत क नीित वयं भारतीय का िनधा रत करनी होगी। देश म और देश के िलए
या िहतकारी है । सं थान को इस पर यान के ि त करना होगा जो िवकास के िलए भारतीय
ि कोण पर आधा रत होगा।
इन आशाओं को जीव त बनाने के िलए रा ीय भारत प रवतन सं थान (नीित आयोग) का ताव
रा य सरकार , सं सद सद य िवषय िवशेष और सं बं िधत सं थान सिहत सभी िहतधारको के
बीच गहन िवचार िवमश के बाद िकया गया।
36.4 उ े य
नीित आयोग िन निलिखत उ े य के िलए काय करेगा।
1- रा ीय उ े य को ि गत रखते हए रा य को सि य भागीदारी के साथ रा ीय िवकास
ाथिमकताओं े और रणनीितय का एक साझा ि कोण िवकिसत मु यमंि य को
रा ीय एजडा का ा प उपल ध कराना है ।
542
2- सश रा य ही सश रा का िनमाण कर सकता है इस त य क मह ा को वीकार
करते हए रा य के साथ सतत आधार पर सं रचना मक सहयोग क पहल और तं के
मा यम से सहयोगपूण सं घवाद को बढ़ावा देगा।
3- ाम तर पर िव सनीय योजना तैयार करने के तं िवकिसत करेगा और इसे उ रो र उ च
तर तक पहंचायेगा।
4- आयोग यह सुिनि त करेगा िक जो े िवशेष प से उसे स पे गए ह उनक आिथक
कायनीित और नीित म रा ीय सुर ा के िहत को शािमल िकया गया है ।
5- हमारे समाज के उन वग पर िवशेष प से यान देगा िजन पर आिथक गित से उिचत
कार से लाभाि वत ना हो पाने का जोिखम होगा।
6- रणनीितक और दीघाविध के िलए नीित तथा काय म का ढां चा तैयार करेगा और पहल
करेगा। साथ ही उनक गित और मता क िनगरानी करेगा। िनगरानी और िति या के
आधार पर म याविध सं शोधन सिहत नवीन सुधार िकये जाएंगे।
7- मह वपूण िहतधारको तथा समान िवचारधारा वाले रा ीय और अ तरा ीय िथंक टक
और साथ ही साथ शैि क और नीित अनुसं धान सं थान के बीच भागीदारी को परामश
और ो साहन देगा।
8- रा ीय और अ तरा ीय िवशेष , ेि टशनर तथा अ य िहतधारको के सहयोगा मक
समुदाय के ज रए ान, नवाचार, उ मशीलता सहायक णाली बनाएगा।
9- िवकास के एजे डे के काया वयन म तेजी लाने के म म अंतर े ीय और अ तर
िवभागीय मु के समाधान के िलए एक मंच दान करेगा।
10- आधुिनक कला सं साधन के बनाना जो सुशासन तथा सतत और यायसं गत िवकास क
सव े काय णाली पर अनुसं धान करने के साथ साथ िहतधारको तक जानकारी पहंचाने
म भी मदद करेगा।
11- आव यक सं साधन क पहचान करने सिहत काय म , और उपाय के काया वयन के
सि य मू यां कन और सि य िनगरानी क जाएगी। तािक सेवाय दान करने म सफलता
क सं भावनाओंको बल बनाया जा सक।
12- काय म और नीितय के ि या वयन के िलए ौ ोिगक उ नयन और मता िनमाण पर
जोर देना।
13- रा ीय िवकास के एजे डा और उपरो उ े य क पूित के िलए अ य आव यक
गितिविधयां समािहत करना।
वामी िववेकान द ने कहा है, ‘‘एक िवचार ले। उस िवचार को अपना जीवन बनाए - उसी के बारे म
सोच, उसका सपना देख ओर उस िवचार को िजय, मि त क, मां सपेशी, नायुतं , अपने शरीर के
येक भाग को उसी िवचार से ओत ोत कर द और दूसरे िवचार को अलग रख द। यही सफलता
क राह है ।’’

543
सहकारी सं घवाद के ित अपनी ितब ता, नाग रको क भागीदारी को बढ़ावा देन,े अवसर तक
समतावादी पहंच, ितभागी एवं अनुकूलनीय शासन और िवकिसत हो रही ौ ोिगक के बढ़ते
योग के ज रए नीित आयोग शासन ि या को मह वपूण िदशा िनदश और कायनीितक योगदान
देगा।
36.5 सं रचना
नीित आयोग का गठन इस कार होगा -
1- भारत के धानमं ी - अ य
2- गविनग काउं िसल म रा य के मु यमं ी और के शािसत देश के उपरा यपाल शािमल
ह गे।
3- िविश मु और ऐसे आकि मक मामले, िजनका सं बं ध एक से अिधक रा य या े से
हो, को देखने के िलए े ीय प रवद गिठत क जाएगी। ये प रषद िविश कायकाल के
िलए बनाइ जाएगी। भारत के धानमं ी के िनदश पर े ीय प रषद क बैठक होगी और
इनसे सं बं िधत े के रा य के मु यमं ी और के शािसत देश के उपरा यपाल
शािमल ह गे। इन प रषद क अ य ता नीित आयोग के उपा य करगे।
4- सं बिधत काय े क जानकारी रखने वाले िवशेष और कायरत लोग, िवशेष आमंि त के
प म धानमं ी ारा नािमत िकए जाएं गे।
5- पूणकािलक सं गठना मक ढाँचे म िन न ह गे
1- अ य - धानमं ी
2- उपा य - धानमं ी ारा िनयु
3- सद य - पूणकािलक
4- अंशकािलक सद य - अ णी िव िव ालय शोध सं थान और सं बं िधत सं थान से
अिधकतम दो पदेन, अंशकािलक सद य के आधार पर ह गे।
5- पदेन सद य - के ीय मंि प रषद से अिधकतम चार सद य धानमं ी ारा नािमत
हग
6- मु य कायकारी अिधकारी - भारत सरकार के सिचव तर के अिधकारी को िनि त
कायकाल के िलए धानमं ी ारा िनयु िकया जाएगा।
7- सिचवालय आव यकता के अनुसार ।
36.6 सद य
वतमान म नीित आयोग म िन नानुसार िनयुि यां पद थापन िकया जा चुका है ।
अ य - ी नर मोदी, माननीय धानमं ी
उपा य - ी अरिव द पं नगिढया
544
अं शकािलक सद य
1 ी िववेक देबरॉय
पू णकािलक सद य -
1. ी वी.के . सार वत
2. ी रमेश चं द
पदेन सद य
1- ी राजनाथ िसंह - गृहमं ी
2- ी अ ण जेटली - िव मं ी
3- ी सुरेश भु - रेल मं ी
4- ी राधामोहन िसं ह - कृ िष मं ी
िवशेष आमंि त सद य
1- ी नीितश गडकरी - सड़क प रवहन और राजमाग मं ी
2- ी थावर च गहलोत - सामािजक याय एवं अिधका रता मं ी
3- ी मती मृित जुिबन इरानी - कपड़ा मं ी
मु य कायकारी अिधकारी
ी अिमताभ का त
36.7 नीित आयोग एवं योजना आयोग म अ तर
नीित आयोग
1- इसक मु य भूिमका रा ीय और अ तरा ीय मह व के िविभ न नीितगत मु पर के
और रा य सरकार को ज री रणनीितक व तकनीक परामश देना।
2- इस आयोग के उ े य से यह प नह िक पं चवष य योजनाओं क मौजूदा यव था रहेगी
या नह ।
3- नीित आयोग के बाद रा ीय िवकास प रषद क भूिमका का प उ लेख नह है ।
4- नीित आयोग टीम इंिडया और सहकारी सं घवाद के िवचार का मूत प होगा।
5- नीित आयोग म देश भर के शोध सं थान और िव िव ालय से यापक तर पर परामश
िलए जायगे।
6- नीित आयोग म िव िव ालय और शोध सं थान के ितिनिध भी शािमल िकये जाएं गे।
7- सहकारी सं घवाद, अवसर के ित समतावदी एवं समावेशी पहंच, ौ ोिगक का समुिचत
उपयोग एवं सहभागी शासन पर आधा रत आिथक िवकास पर जोर देते हए नीित आयोग
मह वपूण िदशा िनदश एवं सरकार तथा शासन ि या को कायनीितक योगदान करेगा।
545
8- नीित आयोग के तहत के से रा य क तरफ चलने वाले एकप ीय नीितगत म को एक
मह वपूण िवकासवादी प रवतन के प म रा य क वा तिवक और सतत भागीदारी म
बदलने का यास िकया जाएगा।
योजना आयोग
1- नेह युगीन योजना आयोग क कृ ित के ीयकृ त थी। योजना आयोग देश के िवकास का
गठन 15 माच 1950 को हआ था।
2- योजना आयोग देश के िवकास से सं बं िधतयोजनाएं बनाने का काम करता था।
3- योजना आयोग ने 12 पं चवष य योजनाएं बनाइ।
4- योजना आयोग ने 2000 करोड़ पये से पहली पं चवष य योजना 1951 म शु क थी।
5- योजना आयोग के अ य भी धानमं ी ही होते थे। लेिकन कभी भी मु यमंि य क
सलाह नह ली जाती थी।
6- योजना आयोग के काल तक मु यमं ी अगर कोइ सुझाव देना चाहते थे तो वे िवकास
सिमित को देते थे। जो समी ा के बाद योजना आयोग क दी जाती थी।
7- िनजी े क भागीदारी योजना आयोग म कतइ नह थी।
8- योजना आयोग के िव आयोग के कोष आवं टन काय आयोग कोष आवं टन से सं बं िधत
कोइ काय नह करेगा।
9- योजना आयोग के सद य म सिचव तर के एवं सिचवालय के ही अिधकारी सि मिलत
होते थे। जबिक वतमान नीित आयोग म के िबनेट मं ी भी सद य के प म काय करेगे।
10- योजना आयोग 64 वष तक अि ततव म रहा त प ात नीित आयोग ने इसके थान पर
बदलती हइ प रि थितय म काय करना ारं भ िकया।
इससे पूव योजना को कइ नेताओं क आलोचनाओं का भी समाना करना पड़ा।
36.8 नीित आयोग क उपलि धयां
1 जनवरी 2015 को अि त व म आये रा ीय भारत प रवतन सं थान अथवा नीित आयोग को दो
वष पूण हो चुके है हालांिक योजना आयोग के 64 वष क तुलना म नीित आयोग के 2 वष काफ
सीिमत अविध है िफर भी इस अविध के दौरान नीित आयोग के ारा स पन िकये गये कु छ मुख
काय का उ लेख करना आव यक है ।
नीित आयोग ने सां गठिनक मोच पर ारं भ म ऐसे 1255 पद को बनाए रखा जो पूव म योजना
आयोग म थे। नये सं थान को स पेगे उ र दािय व के अनुसार इसम पद क सं या को कम करना
तथा कु छ नये लोग को शािमल करना जो िक नये उ े य क पूित के िलए अपे ाकृ त प से
यादा कु शल हो। इसके म ने जर नीित आयोग म से बड़ी सं या म कमचा रय को सरकार के दूसरे
िवभाग म थाना त रत िकया और वतमान म आयोग के किमय क सं या 500 रह गइ है । इस

546
ि या के तहत कु छ बाहर के कमचा रय को भी पद थािपत िकया गया और एक अथशा ी ने भी
कायभार हण कर िलया।
नीित आयोग के अिधदेश को बेहतर तरीके से पूित के िलए आयोग के व प को दो बड़े हब म
बाटा गया - एक को ान और नव वतन हब और दूसरे को टीम इंिडया का हब नाम िदया गया।
ान और नव वतन हब को ान के सृजन और नव वतन से जुड़े एक दजन तर पर िविभ न े
म िवशेष ता िवकिसत करने का काय स पा गया है जैसे यापार और वृहद वा य, कृ िष, ामीण
िवकास, िश ा तथा कौशल, िवकास टीम इंिडया हब का मु य काय रा य , के ि य मं ालय और
ान तथा नव वतन हब के बीच तालमेल कायम करना है ।
नीित आयोग धानमं ी क इ छा के अनु प ही सहका रतापूण ित पध सं घवाद क अगुवाइ
करने के िलए त पर है । इसके अ तगत थम शा ती प रषद् क बैठक म मुख के ीय पहलुओ ं का
खाका तैयार करके मु यमंि य का छोटा समूह बनाकर उनके सुझाव को वीकार िकया गया। इसी
म म नीित आयोग के तहत मु यमंि य के तीन समूह बनाने क घोषण क तािक ये समूह उ ह
के ायोिजत क म , कौशल िवकास तथा व छ भारत के बारे म सुझाव दे सक। इसके साथ ही
नीित आयोग को दो कायदल गठन करने क सलाह दी - एक गरीबी उपशमन हेतु और दूसरा कृ िष
िवकास हेत।ु ये दोन कायदल दन दोन िवषय पर येक रा य और सं घ रा य े म कायरत
कायबल के साथ साथ ही काम करगे।
नीित आयोग के उपा य अरिव द पनगिढया ने अपने एक प म बताया िक मु यमंि य के
उप-समूह ने कमठता से काय करते हए नीित आयोग सहयोग िकया तथा अनुवत चचाओं म रा य
के पदािधका रय से गहन िवचार िवमश हआ। इसके अ तगत रा य के मु यमंि य ने अपने अपने
रा य के सीिमत िहत के ऊपर उठकर रा ीय और रा य के सामुिहक िहत को तरजीह देते हए
तीन िवषय पर उ कृ रप ट तैयार क है और ये रपोट धानमं ी को स प दी गइ है । सीएसएस के
तहत के सरकार और रा य के बीच यय के िह सेदारी के पैटन और 0.5 ितशत व छ भारत
उपकर सं बं धीिसफा रश को ि याि वत िकया गया।
इसी कार कृ िष िवकास सं बं िध कायदल ने रा य के साथ परामश कर उ पादकता को बढ़ाने और
िकसान के िलए उनक उपज हेतु लाभ द क मते सुिनि त करने सं बं धीसुझाव पर काय िकया।
नीित आयोग से अटल नवो मेष िमशन (एआइएम) तथा वरोजगार और ितभा का उपयोग (सेत)ु
के त वाधान म नवो मेष और उ ािमता के े म भी मागदशन दान करने का आ ह िकया गया।
इन िवषय का आगे बढ़ाने के िलए हावड िव िव ालय के ोफे सर त ण ख ना क अ य ता मे
नवो मेष और उ िमता के सं बं ध म एक िवशेष सिमित गिठत क गइ। इस सिमित ने कइ बैठके
आयोिजत कर अ प समय म ही अपनी रपोट स प दी इस सिमित क िसफा रश के अनुसार िमशन
िनदेशालय और िमशन उ च तरीय सिमित का शी ही गठन िकया जाएगा।

547
इसी कार आयोग ने जलवायु प रवतन एवं यापार सं बं धी वाताओं के िलए ठोस आधार दान
िकया। बारहव पं चवष य योजना का म याविध मू यां कन पूण कर िलया । िथं क टक और उपयोग
िवशेष के साथ यापक िवचार िवमश करने के बाद रा ीय ऊजा नीित का ा प तैयार कर मेक
इन इंिडया इले ॉिनक उ पाद नीित का भी ा प तैयार करने वाले है । नीित आयोग ने कइ
आधारभूत सं रचना प रयोजनाओं के अवरोध को दूर करने का यास िकया। इसी कार आयोग ने
अहमदाबाद और मु बइ के बीच हाइ पीड रेल ारं भ करने का माग श त िकया आदश भूिम
प ाकरण अिधिनयम को अि तम प िदया जाना तथा िकसान के िलए लाभकारी क मत के े म
कमी सं बं धीभुगतान और ा सजैिनक बीज पर चचाएं आरं भ करना शािमल है ।
36.9 सारां श
मइ, 2014 के एन.डी.ए. सरकार के स ा सं भालने के बाद देश म प रवतन लाने के िलए कइ
काय म क शु आत क गइ इनम पूव योजना आयोग के साथ पर नीित आयोग क थापना
एक मह वपूण कदम माना जा रहा है । भारत म प रवतन के िलए रा ीय सं थान (The National
Institution for Transforming India) नीित आयोग क थापना 1 जनवरी 2015 को एक
सरकारी ताव के ारा क गइ थी इसक न व िन न बात पर आधा रत है - सहकारी सं घवाद के
आधार पर रा य रा ीय िवकास म समान प से भागीदारी होग यह एक िथं क टक के प म उ म
शासन का के होकर काम करेगा और गित क देखभाल करेगा, अभाव को दूर करेगा तथा के
व रा य के िविभ न मं ालय म सहयोग थािपत करेगा तािक िवकास के ल य ा िकये जा सक।
इसके उ े य म िन न मह वपूण बात शािमल क गइ है - यह रा य के साथ िमलकर रा ीय
िवकास क ाथिमकताएं व रणनीितयां िनधा रत करेगा, ाम तर पर िव सीय योजनाएं बनाकर
उ ह ऊं चे तर पर एक करेगा, िवकास क दीघकालीन नीित िनधा रत करेगा, अ य देश के िथं क
टक के साथ सहयोग करके साझेदारी िवकिसत करेगा, िविभ न े व िविभ न िवभाग म पर पर
सहयोग थािपत करेगा, उ म शासन के िलए अनुसं धान म सहयोग देगा, िकया वयन का मू यां कन
करेगा ौ ोिगक म उ नयन म मदद देगी और रा ीय िवकास को आगे बढ़ायेगा।
भारत म धानमं ी इसके अ य होग। डॉ. अरिव द पनगिढया को इसका उपा य बनाया गया
इसके गविनग काउिसंिलग म सभी रा य के मु यमं ी तथा सं घीय देश के ले टीनेट गवनर ह गे।
ादेिशक प रषद म देश क िवशेष सम याओं व िवषय पर िवचार िकया जाएगा।
नीित आयोग के पूणकािलक सद य म िववेक देवराय और वी.के . सार वत होग तथा तदथ सद य
म एवं िवशेष आमंि त सद य म चार के िबनेट मंि य को िलया गया।
नीित आयोग एवं पूववत योजना म मु य अ तर इस बात को लेकर है िक इसम के से रा य क
तरफ चलने वाले एकप ीय नीितगत म को एक मह वपूण िवकासवादी प रवतन के प म रा य
क वा तिवक और सतत भागीदारी म बदलना है ।

548
नीित आयोग ारा िकये गये मह वपूण काय का िववरण इस कार है -
8 फरवरी 2015 को गविनग प रषद क थम सथा म मु यमं ि य के तीन समूह बनाये गये - पहला
उपसमूह के चािलत क म म िववेक करण के िलए यथा सं भव उनम कमी करने के िलए दूसरा,
कौशल िवकास के िलए और तीसरा गरीब से सीधा जुड़ाव है । आधारभूत ोजे ट को शी ता से
पूरा करने के िलए रा य तर पर सं यं को सु ढ़ करने पर बल िदया गया। 14 अ ैल 2016 को नीित
आयोग को 15 साल का ि कोण प तैयार करने के िलए काय स पा गया और वह तीन साल का
िवकास एजे डा 2017-18 से 2019-20 तक के िलये भी तैयार करेगा िजसे 14व िव आयोग के 3
वष से जोड़कर तैयार िकया जायेगा। इन सभी काय के बावजूद कु छ अथशाि य का मत है िक
नीित आयोग अभी तक अपना योगदान प नह कर पाया है । ाय: यह पूछे जाते है िक भारत
म भावी िनयोजन का या प होगा या तेहरव पं चवष य योजना 2017-2022 बनाइ जाएगी,
रा य म िनयोजन का भावी प कै सा होगा? योजना का िवि य यव था के सी होगी। इन सब
का पूरा प ीकरण शी ही सामने आना चािहये। 12व योजना का कायकाल 31 माच 2017 को
समा हो जायेगा। इसिलए नीित आयोग के काय के बारे म पूरा प ीकरण करने का समय आ गया
है । कु छ लोग को िवचार है िक नीित आयोग को वतमान सरकार के नये काय म को मूत प देने
के िलए िवि य ावधान दशाने, सं गठन व बं ध के बारे म सुझाव देने और उनके सं भािवत भाव व
के हल म मदद देने का यास करना चािहये। तािक िनयोजन को नइ िदशा िमल सके ।
36.10 श दावली
 सी.एस.एस. - के समिथत/सं चािलत योजना
 नीित - रा ीय भारत प रवतन सं थान
 िथं क टक - तािकक बौि क तथा अनुभवी िवशेष का सलाहकार म डल
 ान एवं नव वतन हब - ान के सृजन एवं नव वतन से जुड़े िवशेष का दल
 टीम इंिडया - रा यस के ीय मं ालय एवं ान तथा नव वतन हब से सम वय थािपत
करने वाला दल
 गविनग काउिसं ल - इस कां उि सल से रा यस के मु यमं ी और के शािसत देश के
उपरा यपाल शािमल ह गे।
 े ीय प रषद - ऐसे मामले िजनका सं बं धएक से अिधक रा य या े से हो, को देखने के
िलए े ीय प रषद का गठन िकया गया।
 सहकारी सं घवाद - रा ीय िवकास म रा य सरकार एवं के सरकार के म य सम वय।

549
36.11 सं दभ ं थ
1- http: niti.gov.in/content/constitution
2- http://pib.nic.in/newsie/windirelease.aspx? Relid = 3296
3- http://hiti.gov.in/hi/content/niti-aayog-one-year
भारतीय अथ यव था - ल मीनारायण नाथरामका प रिश - 1
36.12 बोध
1- नीित आयोग या है ?
2- नीित आयोग के उपा य कौन है ?
3- नीित आयोग योजना आयोग से िभ न कै से है ?
4- नीित आयोग क थापना का मु य औिच य या है ?
5- नीित आयोग के उ े य प क िजए।
6- नीित आयोग के गठन का ा प समझाइये?
7- नीित आयोग क मु य उपलि धय पर काश डािलये।
8- नीित आयोग के पूण कािलक सद य के नाम बताइये।
9- वतमान म नीित आयोग के मु य कायकारी अिधकारी कौन है ?
10- भावी िनयोजन म नीित आयोग से या अपे ाए ह ?
बोध के उ र

1- भारत प रवतन के िलए रा ीय सं थान


(The National Institution for Transforming India
2- ी अरिव द पनगिढया
3- नीित आयोग रा ीय और अ तरा ीय मह व के िविभ न नीितगत मु पर के और रा य
सरकारेां को आव यक रणनीितक एवं तकनीक परामश देना है । इसको टीम इंिडया और
सहकारी सं घवाद जैसे मु को मूत प देना है इसम देशभर के िव िव ालय एवं शोध
सं थान के ितिनिध शािमल होग। इसके तहत के से रा य क तरफ चलने वाले
एकप ीय नीितगत कम को िवकासवादी प रवतन के प म रा य क वा तिवक एवं
सतत भागीदारी के प मबदलने का यास िकया जाएगा। जबिक पूववत योजना आयोग
का मु य काय कोष आवं टन करना था तथा िवकास के िलए योजनाएं बनाना पर तु रा य
के वल सलाह ही दे सकते थे उनक सि य िह सेदारी योजना िनमाण म सीिमत ही थी।

550
4- बदलती हइ प रि थितय म देश क आकां ाओं एवं अपे ाओं के अनु प िवकास क
िदशा तय करने एवं रा य क सि य भागीदारी के सुिनि त करने के उ े य के िलए नीित
आयोग क थापना क गइ।
5- इसके मु य उ े य इस कार है ।
1- रा य क सि य भागीदारी के साथ रा ीय िवकास क ाथिमकता तय करना।
2- ाम तर पर िव सनीय योजनाओं का तं िवकिसत करना।
3- िवकास क दीधकालीन नीित िनधारक करना।
4- िविभ न े एवं िवभाग म पर पर सम वय बनाना।
5- उ म शासन के िलए अनुसं धान ि या वयन एवं मू यां कन
6- ौ ोिगक के उ नयन के मदद एवं रा ीय िवकास के एजे डे को आगे बढ़ाना।
1. नीित आयोग म धानमं ी अ य होग तथा उपा य पूणकािलक अशकािलक सद य तथा
पदेन सद य क िनयु धानमं ी के ारा क जाएगी एवं इसके अित र एक मु य कायकारी
अिधकारी होगा।
2. उपलि धयां - ऊजावान एवं उ े यपूित के िलए उपयु अिधका रय का सं गठन तैयार करना,
ान एवं नव वतन तथा टीम इंिडया हब का िनमाण, िविभ न ेि य प रषद का िनमाण,
गरीबी उपशमन एवं कृ िष िवकास कायदल का गठन इ यािद मुख है ।

पू णकािलक सद य - 1 ी िववेक देबरॉय

(3) ी वी.के . सार वत


(4) ी रमेश चं द

9. ी अिमताभ का त

11- भारत के भावी योजना के िलए तेहरव पंच वष य योजना या इसक वैकि पक योजना
का ा प तैयार करना वतमान सरकार के नये काय म को मूत प देना उनका
मू यां कन एवं समी ा करना तथा िविभ न ेि य मु को सुलझाले म आगे आना
तथा िविभ न िवभाग के म य सम वय थािपत करना इ यािद शािमल है ।

551
इकाइ -37
चौदहव िव आयोग क िसफा रश
इकाइ क परेखा
37.0 उेय
37.1 तावना
37.2 िव आयोग का गठन
37.3 चौदहव िव आयोग का गठन
37.4 आयोग का ि कोण
37.5 आयाग क िसफा रश
37.6 तेहरव िव आयोग क िसफा रश से तुलना
37.7 चौदहव िव आयोग क िसफा रश क आलोचना
37.8 सारां श
37.9 श दावली
37.10 कु छ उपयोगी सं दभ
37.11 बोध के उ र
37.0 उ े य
इस इकाइ के अ ययन के बाद आप -
 जान सकग िक िव आयोग क या भूिमका है?
 चौदहव िव आयोग क मु य िसफा रश या ह?
 यह तेहरव िव आयोग क िसफा रश से िकस कार िभ न है?
 चौदहव िव आयोग क िसफा रश क मु य आलोचनाएं कौन-कौन सी है?
37.1 तावना
भारत जैसे िवकासशील रा के िलए जहाँ अभी भी िनवेश के िलए पूं जी क कमी का
सामना करना पड़ता है तो दूसरी लोकतांि क सरकार का दािय व अपने नाग रको के िलए आव यक
सुिवधाएं उपल ध कराना एवं उनका उिचत िव तार कर, जनता के िहतकारी कदम उठाना भी है ।
ऐसी ि थित म यह आव यक हो जाता है िक के सरकार कर से ा आय का के एवं रा य के
552
बीच म िकस कार बं टवारा कर तथा के एवं रा य क िवि य यव था को सुधारने के िलए
कौनसा ि कोण अपनाय तथा िकन सुझाव एवं िसफा रश को लागू कर तािक कार से ा आय
का यायसं गत िवतरण कर लोकतांि क सरकार अपने दािय व का उिचत एवं क याणकारी िनवहन
कर सक।
37.2 िव आयोग का गठन
सं िवधान के अनु छे द 280 म िनिद िव आयोग मु य अिधदेश ‘‘कर क कु ल ाि य का सं घ
और रा य के बीच िवतरण िज ह उनके बीच िवभािजत िकया जाना है, या िकया जा सकता है’’
िक तु िव आयोग क भूिमका सं िवधान के 73 व और 74 व सं शोधन के प ात बढ़ गइ है, िजनम
ामीण एवं शहरी िनकाय को सरकार का शासन क तीसरी यव था (िटयर) के प म मा यता दी
गइ है । अत: के ि य िव आयोग सं बं िधत रा य िव आयोग क िसफा रश के आधार पर
पं चायत और नगरपािलकाओं के साधन के प रपूरक हेतु िकसी रा य क समेिकत िनिध व वधन
करने के िलए उपाय क िसफा रश करने का अिधदेश देता है । इसका गठन येक पांच वष क
अविध के िलए रा पित ारा क जाती है िजसम एक अ य एवं चार सद य क िनयुि क
जाती है ।
37.3 चौदहव िव आयोग का गठन
रा पित ने 2015-2020 क अविध के िलए के -रा य के राजकोिषय सं बं ध के िविश पहलूओ ं
एवं िसफा रश करने के िलए 2 फरवरी, 2013 क चौहदव िव आयोग का गठन िकया िजसम डॉ.
वाइ.क . रेड्डी, भारतीय रजव बक के पूव गवनर, अ य के प म और िन न िलिखत चार सद य
सि मिलत िकये गये ।
1- ो. अिभिजत सेन - अशं कािलक सद य
2- सु ी सुषमानाथ - सद य
3- डॉ. एम. गोिव दाराव - सद य
4- डॉ. सुदी मु डले - सद य
इसके अलावा ी अजयनारयण झा को आयोग का सिचव बनाया गया। तथा इस आयोग को
िन निलिखत िवषय के बारे म िसफा रश करने के िलए कहा गया।
1- सं घ और रा य के बीच कर के शु आगम का िवतरण और रा य के बीच ऐसे
आगम (Income) के त सं बं धीभाग का आवं टन करना।
2- भारत क सिचव सिमित िनिध म से रा य के राज व म सहायता अनुदान को शािषत करने
वाले िस ा त और उन रा य को िज ह सं िवधान के अनु छे द 275 के अधीन उनके
राज व म सहायता अनुदान के प म उस अनु छे द के ख ड (1) के पर तुक म िविनिद

553
योजन से िभ न योजन के िलए सहायता क आव यकता है, सं दत क जाने वाली
धनरािशय
3- रा य के िव आयोग ारा क गइ िसफा रश के आधार पर रा य म पं चायत और
नगरपािलकाओं के सं शोधन क अनुपिू त के िलए िकसी रा य क सं िचत िनिध के सं वधन
के िलए आव यक उपाय सुझाना।
4- 1971 क जनसं या के आकड़ को आधार बनाने के साथ-साथ बाद के वष म
जनां िकक य प रवतन पर भी यान के ि त करना।
5- सावजिनक यय णािलय पर िवचार करके प र यय को ितफल से जोड़ने का यास
करना।
6- आपदा बं धन अिधिनयम 2005 के सं दभ म गिठत कोष के बारे म िवचार करके
िसफा रश करना।
7- आयोग क कोष के आवं टन का आधार प करना होगा और रा यवार ाि य व खच
के अनुमान भी उपल ध कराने ह गे।
37.4 आयोग का ि कोण
आयोग का ि कोण मूलभूत िस ा त पर आधा रत रहा है । इसम आयोग के िवचाराथ िवषय का
स ती से अनुपालना करना, सं घीय एवं राजकोषीय सं बं ध पर यापक, अवलोकन करना, सं घ,
रा य और थानीय िनकाय के िवचार एवं अपे ाओं को ाथिमकता देना, िपछले िव आयोग
क िसफा रश को यान म रखकर वतमान यव थाओं और वृि य क यथा सं भव समी ा करके
िसफा रश देना शािमल है ।
आयोग ने अपने काय म सामा य प म आिथक बं धन और िवशेष प से राजकोषीय
बं धन म सं घ और रा य क भूिमकाओं को पुन : सं तिु लत करने क आव यकता के िविभ न
मं ालय , ने अपने तुतीकरण म अपनी सं बं िधत बा यताओं को पूरा करे के िलए अिधक
सं साधन उपल ध कराने क बात रखी। आयोग को सं घ सरकार ारा बढ़ती अंतरा ीय बा यताओं
के बारे म भी बताया गया, िजनके िनवहन के िलए रा य का सहयोग ज री है और कु छ हद तक
के ीयकरण ज री है । थानीय सरकार के तुतीकरण म व तुत : अनाब अनुदान पर जोर था
उ ह ने न के वल सं साधन के अभाव बि क अपया शासिनक अवसं रचना तथा काय वािधनता
का अभाव से रा य के मूलभूत , सेवाय उपल ध कराने म भी बा यता महसूस क । सं ि म,
सावजिनक एवं िनजी े म सरकार और सावजिनक उ म , घरेलू एवं वैि क अथ यव था तथा
सरकार के राजकोषीय एवं गैर-राजकोषीय सं घटको के बीच सं तलु न म गत वष म काफ यादा
प रवतन हआ है, िजसम सं घ-रा य राजकोषीय सं बं ध पर बड़ा भाव होना ही है । इन मूलभूत मु
म से अनेक मु को आयोग के िवचाराथ िवषय (टी ओ आर) म सि मिलत िकया गया अत:

554
आयोग को वृहत आिथक बं धन क नइ वा तिवकताओं को यान म रखकर सं घ और रा य के
बीच सं बं ध को इस यापक ि कोण म रखना था।
37.5 चौदहव िव आयोग क िसफा रश
आयोग क िसफा रश को िन निलिखत भाग म िवभािजत िकया जाता है ।
37.5.1 सं घीय कर राज व क िह सेदारी
1- सभी कारको पर िवचार करते हए आयोगग का यह मत है िक िवभा य पूल म 42 ितशत
तक कर अ तरण क िह सेदारी म वृि करने से रा य को िबना शत ह ता तरण के वाह
को बढ़ाने और साथ ही रा य को िविश योजन वाला ह ता तरण करने के िलए सं घ के
पास पया राजकोषीय यव था रखने के दोन उ े य पूरे हो जाऐंगे।
2- आयोग ने यूनतम गार टी अ तरण पर रा य के िवचार पर सहमित नह दी है ।
3- य िप आयोग का यह िवचार है िक पुराने जनसं या आकड़ का उपयोग करना उिचत नह
है िफर भी आयोग ारा 1971 क जनसं या को 17.5 ितशत क भा रता आवं िटत क
गइ है तथा इसके बाद जनासां ि यक य बदलाव को वसन एवं आयु सं रचना दोन के
मामले म लेते हए 2011 क जनसं या आंकड़ को 10 ितशत क भा रता दी गइ।
4- े फल के िलए आयोग ने 12 व िव आयोग ारा अपनाइ गइ िविध का अनुपालन
िकया और छोटे रा य के िलए2 ितशत क सतही सीमा रखते हए े फल को 15
ितशत भा रता आवं िटत क ।
5- आयोग का यह मानना है िक यापक वन े से यापक प रि थितक य लाभ िमलते है
लेिकन साथ ही अ य आिथक गितिविधय के िलए उपल ध नह रहने वाले े फल के
सं बं ध म एक अवसर लगात भी होती है और यह राजकोषीय असमथता का एक मह वपूण
सके तन है । आयोग ारा वन े के िलए 7.5 ितशत क भा रता आवं िटत क गइ।
6- आयोग ने आय अंतर के सं बं ध म राजकोषीय मता को दशाने वाली 12व िव आयोग
आयोग ारा अपनाइ गइ िविध का पालन करते हए इसे 50 ितशत भा रता आवं िटत क
गइ।
37.5.2 थानीय सरकार
1- आयोग क यह िसफा रश है िक थानीय िनकाय को आयोग ारा िदये गये अनुदान
को के वल मूलभूत सेवाओं, जो िक उ ह सं बं िधत िविधय ारा स पी गयी ह , पर खच
करने के िलए िनिद िकया जाए।
2- थानीय िनकाय ारा तैयार क गइ लेखा पुि तकाओं म अपने कर और गैर कर ,
ह तां तरण तथा रा य से अनुदान, के ीय िव आयोग से अनुदान और सं घ एवं
रा य सरकार ारा आवं िटत िकसी अ य एजसी काय के िलए अनुदान से हािसल
आय को अलग-अलग िदखाया जाना चािहये।
555
3- रा य को 90 ितशत भा रता के साथ वष 2011 के जनसं या आंकड़ और 10
ितशत क भा रता के साथ े फल के आकड़ का उपयोग करते हए अनुदान का
िवतरण िकया जाए।
4- आयोग ने िविधवत गिठत ाम पं चायत और नगर पािलकाओं के िलए अनुदान को
दो िह स म दान िकया है - एक मूल अनुदान तथा दूसरा काय िन पादन अनुदान 1
ाम पं चायत , के अनुदान का बटवारा 90 : 10 होगा जबिक नगर पािलकाओं के
मामले म मूल एवं काय िन पादन अनुदान म बं टवारा 80 : 20 के अनुपात म होगा।
5- आयोग ारा िसफा रश िकए गए अनुदान के वल ाम पं चायत को िमलने चािहये जो
मूलभूत सुिवधाओं क आपूित के िलए सीधे तौर पर उ रदायी है और इसम िकसी
अ य तर के िलए भागीदारी नह है । ाम पं चायत के िलए िचि हत मूलभूत अनुदान
का िवतरण सं साधन के िवतरण हेतु सं बं िधत रा य िव आयोग ारा िनधा रत सू
का उपयोग कर िकया जाएगा।
6- आयोग ारा िसफा रश िकए गए शहरी िनकाय के िलए मूल अनुदान का बं टवारा
ि तरीय िह सेदारी म िकया जाएगा और उसका िवतरण सं बं िधत रा य िविध आयोग
ारा िनधा रत सू का उपयोग करते हए येक तर नामत: नगर िनगम, नगरपािलका
तथा नगर पं चायत के बीच िकया जाएगा।
7- आयोग ारा िन निलिखत मु के समाधान हेतु काय िन पादन अनुदान दान िकया
जा रहा है । 1. लेखा परीि त, लेखा के मा यम से थानीय िनकाय क ाि य एवं
यय पर िव सनीय आंकड उपल ध कराना। 2. अपने राज व म सुधार करना, इसके
अित र शहरी िनकाय ारा मूलभूत सेवाओं के िलए सेवा तरीय बचमाक का
िनधारण करना एवम् उनको कािशत करना।
8- काय िन पादन अनुदान क पा ता पाने हेतु ाम - पंचायत को लेखा परीि त वािषक
लेखा तुत करने पड़गे जो िक उस वष से दो वष पूव से अिधक समय से सं बं िधत
नह ह गे।
9- शहरी थानीय िनकाय को काय िन पादन अनुदान के सं िवतरण के िलए एक िव तृत
कायिविध का िडजाइन, सं बं िधत रा य सरकार ारा िनधा रत पा ता मानदं ड को पूरा
करते हए बनाया जाए। काय िन पादन अनुदान के िलए पा ता रखने हेतु शहरी
थानीय िनकाय चािहए जो िक वष म दो वष पूव से अिधक समय से सं बं िधत नह
होना चािहये। शहरी थानीय िनकाय ारा पूववत वष म अपने राज व म भी बढ़ोतरी
िदखाइ जानी चािहये जैसा िक लेखा परीि त लेखा म प रलि त िकया गया हो। इसके
अलावा िनधा रत अविध के िलए येक वष मूलभूत शहरी सेवाओं म सं बं िधत सेवा
तर के बचमाक का भी काशन िकया जाए और उसे सावजिनक कराया जाए।
10- ये ामीण एवं नगरीय काय िन पादन अनुदान के सं िवतरण सं बं धी िदशा-िनदश
आयोग क अवाड अविध के िलए लागू रहगे।
556
11- आयोग ारा इंिगत शत और िनदश के अलावा सं घ अथवा रा य सरकार ारा
िविधय के िनगमन हेतु कोइ अ य शत अथवा िदशा िनदश लागू नह िकया जाए।
12- आयोग ारा िसफा रश िकए गए अनुदान का िनगमन येक वष जून तथा अ टू बर म
दो िक ताम िकया जाए। मूल अनुदान का 50 ितशत रा य को पहली िक त तथा
शेष मूल अनुदान एवं काय िन पादन अनुदान को दूसरी िक त के प म जारी िकया
जाए।
13- यिद िविधय के अनु योग म िकसी कार क गड़बड़ी पाइ जाती है तब कड़ी
कायवाही सुिनि त क जानी चािहए।
14- रा य सरकार रा य िव आयोग म सु ढ़ बनाये। इसम रा य िव आयोग का उिचत
समय पर गठन, समुिचत शासिनक सहयोग और िनबाध ि या हेतु पया साधन
उपल ध करना तथा रा य िवधानम डल के सम रा य िव आयोग क रपोट तथा
उस पर कायवाही रपोट समय से तुत करना शािमल है ।
15- सं पित कर को लगाने सं बं धी ि या को सहज बनाने के िलए वतमान िनयम क
समी ा एवं सं शोधन िकया जाना चािहये तथा छू ट को यूनतम िकया जाना चािहए।
16- शहर क प रिध ि थत पंचायत ारा खाली भूिम पर कर लगो पर िवचार िकया जाना
चािहए। इसके अलावा, रा य सरकार ारा नगरपािलकाओं और पं चायत के साथ
भूिम प रवतन भार के एक भाग के िह सेदारी क जा सकती है ।
17- रा य को मनोरं जन कर क समी ा करनी चािहये और नए-नए मनोरं जन मा यम को
कवर करने के िलए मनोरं जन कर क प रिध को बढ़ाना चािहये।
18- आयोग यावसाियक कर क उ चतम सीमा को 2,500 पय से बढ़कार 12,000
पये ितवष करने क िसफा रश करता है ।
19- शहरी थानीय िनकाय को अपने सेवा भार म इस कार प रवधन करना चािहए िक
थानीय िनकाय लाभािथय से दान क गइ सेवाओं क कम से कम चलन एवं रख
रखाव क लागत वसूल कर सक।
20- आयोग का मत है िक खनन थानीय पयावरण और जनसं या पर बोझ डालना है और
इसिलए यह उपयु है िक रॉलि टय से ा कु छ आय म थानीय िनकाय िजसके
अिधकार े के अंदर खनन िकया जा रहा है, से िह सेदारी क जाए।
21- आयोग सं घ सरकार से सं िवधान के अनु छे द 275(1) के पर तुक के अधीन कवर
िकए गए े के शासन के अप ेडेशन तथा िवकास के िलए यापक, थायी और
भावकारी य म य थता करने पर िवचार करने का आ ह करता है तािक ऐसे
े को अ य े के बराबर लाया जा सके ।

557
37.5.3 आपदा बं धन
1- एनडीआरएफ को िवि य सहायता अभी तक अिधकाशत: चयिनत मद पर उपकर
लगाकर दी जाती है, लेिकन यिद भिव य म उप कर को हटा िदया जाता है अथवा उसे व तु
एवं सेवाकर के तहत सि मिलत कर िदया जाता है तब सं घीय सरकार ारा एन डी आर एफ
को िवि सहायता दान करने के िलए सुिनि त ोत पर िवचार िकया जाए।
2- एन डी आर एफ म िविनयोजन के िलए िपछले आउट ल क वृि को यान म रखते हए
सं घीय सरकार को रा य को िविधय क समय पर उपल धता और िनगमन सुिनि त कर।
3- एन डी आर एफ म िनजी योगदान के िलए कर म छू ट दान करने पर िनणय करने म तेजी
लाइ जाए तथा सं घीय सरकार ारा एन डी आर एफ को िवि य सहायता के िलए इस
कार के ावधान बनाए जाने म कं पनी िनयम, 2014 क अनुसचू ी 7 का उपयोग करने पर
िवचार कर।
4- र ाबल क चालन भावशीलता पर ितकू ल भाव पड़ने क सं भावना क ज रत पर
िवचार करते हए आपदा सहायता पर यय िकए गए खच क ितपूित हेतु वतमान बं ध
क समी ा क जाए।
5- सं घीय सरकार ारा रा य क आपदा सं वदे नशीलता जोिखम ोफाइल के िवकास एवं
वै ािनक माणन के काय म तेजी लाइ जाए।
6- एन डी आर एफ म सभी रा य का योगदान 10 ितशत िकया जाए जबिक शेष 90
ितशत िह सेदारी सं घीय सरकार ारा क जाए।
7- आयोग िव आयोग XIII के िवचार से सहमत है िक डीडीआरएफ क थापना का
िनणय रा य सरकार पर ही छोड़ना सव े होगा।
8- रा य िवशेष आपदाओं के सं बं ध म लचीलेपन क ज रत पर िवचार करते हए
एसडीआरएफ के तहत उपल ध 10 ितशत िकया जा सकता है िज ह रा य के थानीय
सं दभ म ‘‘आपदा’’ माना जाता है और िज ह गृह मं ालय ारा आपदा क अिध सूिचत
सूची म शािमल नह िकया गया है ।
9- उन आपदाओं के दौरान एनडीआरएफ से िनिध क आव यकताओं क सं गणना करते
समय सं घीय सरकार ारा एसडीआरएफ म िकए गए योगदान का समायोिजत करने क
वतमान ेि टस को जारी रखा जाना चािहये।
37.5.4 सहायता अनु दान
1- यारह रा य को िनधा रत अविध के दौरान कु ल 1,94,821 करोड़ पये के राज व घाटा
अनुदान क िसफा रश क गइ है ।
2- येक रा य म खच का वांिछत यूनतम तर सुिनि त करने के उ े य से बहत अिधक
ए सटरनेिलिट वाले िविश े से जुड़े रा य को, यय वृि हेतु सं घीय सरकार ारा

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अ तरण िकये जाने का मामला बनता है । अत: िजस िकसी े म ऐसे अ तरण आव यक
हो, उन े म ऐसे सभी अ तरण सं थागत यव था के मा यम से िकये जाने चािहये।
3- रा य म याियक णािलय को मजबूत बनाने के िलए कर अ तरण म उपल ध कराये गये
अित र राजकोषीय सं साधन का उपयोग कर।
4- रा य क यय सं बं धी आव यकताओं के िनधारण म सामा य शासन व पुिलस दोन के
यय के उ च आधार को यान म रखा गया है ।
5- वा य िश ा, पेयजल और सफाइ को रा ीय मह व क सावजिनक सेवाय है अत:
इनक िनगरानी के िलए तं थािपत िकये जाने चािहये।
37.5.5 सहयोगा मक सं घवाद क िदशा म
1- सं घ से रा य को राजकोषीय अंतरण क मौजुदा णाली म आव यक सं थागत बदलाव
लाने के उ े य से मौजूदा णाली क समी ा क जाए।
2- आयोग क िसफा रश से िकए जाने वाले अंतरण से िभ न अ य अंतरण क आव यकता
का सं बं ध है, आयोग का मानना है िक िववेकािधकार को यूनतम करने, अंतरण क
परेखा म सुधार करने, दोहराव से बचने और सहयोगपरक सं घीय यव था को बढ़ावा देने
के उ े य से सं घ और रा य के बीच अंतरण क मौजूदा यव था क समी ा िकए जाने
क ज रत है ।
3- आयोग क यह िसफा रश है िक सहयोगपरक सं घीय यव था को मजबूत बनाने के यापक
उ े य के अनु प एक नइ सं थागत यय तैयार करने पर िवचार िकया जाए जो िक
1- रा य के उन से टर क पहचान करे जो सं घ से रा य को अं तरण के िलए पा हो।
2- रा य के बीच िवतरण का मानद ड दशाये
3- ऐसी योजनाएं तैयार करने म मदद कर जो िक रा य क काया वयन म उपयु
लचीलापन दान कर।
4- े - िविश अनुदान का िनधारण और ावधान कर।
4. नइ सं थागत यव था म पूव र रा य म अंतररा यी अवसं रिचत योजनाओं के िलए
सं साधन के िनधारण और उनक िसफा रश से सं बं िधत मु े उठाने पर भी िवचार िकया
जाए।
5. नइ सं थागत यव था, िनणय, िनमाण ि या म आिथक और पयावरण सं बं धी सरोकार
के समेकन का यान रखा जाए।
6. अंतरा यीय प रषद क मौजूदा भूिमका का िव तार िकया जाए।
7. सं घीय सरकार उपल ध राजकोषीय गुं जाइश का उपयोग करेगी तािक वह रा य क
ज रत और अपे ाओं का पूरा कर सक।

559
37.5.6 व तु और सेवा कर
1- जीएसटी क अिभक पना तथा अंि म दर सं रचना के सं बं ध म प ता के अभाव म
आयोग राज व िनिहताथ का आकलन करने तथा जीएसटी क शु आत के कारण रा य
को हइ राज व हािन के मामले म ितपूित क रािश क मा ा मक प से पता लगाने म
अ म है ।
2- ारं भ म सं घ का जीएसटी ितपूित देने के कारण उ प न अित र राजकोषीय बोझ का
वहन करना होगा। इस राजकोषीय बोझ को िनवेश के तौर पर समझा जाना चािहये। िजससे
रा को िनि त प से म याविध एवं भारी लाभ ा होगा।
3- मू य विधत कर के मामले म तीन वष के िलए ितपूित का ावधान िकया गया जो िक
थम वष म 100 ितशत, ि तीय वष म 75 ितशत तथा तृतीय वष म 50 ितशत था।
आयोग के िवचार म सुधार के पैमाने तथा रा य ारा उठाये गये राज व अिनि तता
सं बं धी आशं काओं के म ने जर राज व ितपूित पांच वष के िलए दान क जानी चािहए।
आयोग का यह सुझाव है िक थम ि तीय और तृतीय वष म रा य को 100 ितशत
ितपूित तथा चौथे वष म 75 ितशत और पांचव एवं अंितम वष म 50 ितशत ितपूित
का भुगतान िकया जाए।
4- आयोग यह िसफा रश करता है िक अ थायी यव थाओं के मा यम से सहज प रवतन के
िलए आव यक ावधान करते हए म याविध से दीघाविध मे जीएसटी के सावभौिमक
अनु योग क िदशा म जीएसटी के सं वधै ािनक िवधायी एवं सं रचना मक पहलू प रवतन
करने म सहजता दान करते हो।
37.5.7 राजकोषीय प रवेश एवं राजाकोषीय समेकन रोडमैप
1- रा य क ऋण ि थित का िनधारण करते समय िवि य प से कमजोर सावजिनक
े उ म क गारं िटय , ऑफ-बजट और सं योिजत घाट से उ प न जोिखम क
मह ा को यान रखते हए आयोग ने सं घ तथा रा य सरकार के िलए अपने सं बं िधत
बजट म बजट द तावेज के सं परू क के प म कु ल िव ता रत सावजिनक ऋण के
सं कलन िव ेषण और वािषक रपोिटं ग के िलए एक ट लेट लागू करने क िसफा रश
क है ।
2- राजकोषीय समेकन के ित आयोग के ि कोण तथा सं घ और रा य सरकार के
सं बं ध म आयोग ारा िकए िनधारण के मा यम से िवकिसत राजकोषीय रौडमैप के
आधार पर आयोग सं घ एवं रा य के िलए िनयम क िसफा रश करता है ।
3- सं घ सरकार के िलए राजकोषीय घाटे पर उ चतम सीमा वष 2016-17 से आयोग क
अवाड अविध के अंत तक जीडीपी का 3 ितशत होगी।
4- सं घ और रा य सरकार के िलए सहायक राजकोषीय वातावरण को अनुकूल बनाने
हेतु अपनाइ जाने वाली साझी उ रदाियता क ि या के यापक सार के िलए सं घ
560
सरकार और आरबीआइ ारा िनयिमत प से तथा तुलना मक आधार पर सं घ और
रा य सरकार के सावजिनक ऋण पर एक ि वािषक रपोट कािशत क जाए और
उसे सावजिनक िकया जाए।
5- आयोग सं घ सरकार से अनु छे द , 293(3) के अधीन अपनी शि य का योग
भावी एवं पारदश तथा उिचत ि या के अनु प जारी रखने का आ ह करता है
तािक इस अवाड अविध के िलए सुझाये गये राजकोषीय समेकन रोडमेप के अनु प
राजकोषीय िनयम को लागू िकया जा सके ।
37.5.8 लोकोपयोगी सेवाओं का मू य िनधारण
1- आयोग यह िसफा रश करता है िक सभी िबजली उपभो ाओं के िलए समयब प से
100 ितशत मीट रं ग को पूरा िकया जाए जैसा सां िविधक प से पहले ही िविनधा रत कर
िदया गया है ।
2- वतमान म िव तु अिधिनयम 2003 म रा य सरकार ारा सि सिडय के भुगतान म
िवल ब के िलए शाि तय का कोइ ावधान नह है । आयोग इसिलए यह िसफा रश िकया
जाए तािक ऐसी शाि तय को लगाया जा सक।
3- आयोग रेल शु क ािधकरण क थापना करने सं बं धी पहल पर जोर देता है और रेल
अिधिनयम 1999 म आव यक सं शोधन के ज रए सलाहकारी िनकाय को सां िविधक
िनकाय से शी ित थािपत करने पर बल देता है ।
4- आयोग यह िसफा रश करता है िक एसआरटीयू म लेखां कन णािलयां सि सडी के सभी
कार को सु प वणन कर जो िक सि सिडय के सीमा-िनधारण के आधार है तथा साथ
ही रा य सरकार ारा ितपूित क सीमा का भी सु प वणन कर।
5- आयोग यह िसफा रश करता है िक सभी रा य चाहे वहां ड यूआरए ह या नह िसंचाइ
जल के योग के पूण आयातन माप पर िवचार करेग।
6- आयोग यह िसफा रश करता है िक रा य को घर , यवसाियक ित ान तथा सं थान म
वैयि क पेयजल कले शन क िदशा म गितशीलता से 100 ितशत कने शन क
मीट रं ग क ओर आगे बढ़ना चािहये।
37.5.9 सावजिनक े उ म
1- आयोग यह िसफा रश करता है िक पैरा 16.14 म सीमांिकत, नइ वा तिवकताओं को
राजकोषीय लागत और लाभ पर पया फो स के साथ एक सम सावजिनक े उ म
सं बं धीनीित को आकार देने और उनका िवकास करने हेतु वीकार िकया जाए।
2- आयोग यह िसफा रश करता है िक गैर वरीयता वाले सावजिनक े उ म के अिध याग
के िलए पारदश िनलामी ि या अपनाइ जाए।
3- आयोग यह िसफा रश करता है िक सावजिनक े म िकए जाने वाले िनवेश के नए े
से सं बं िधत एक नीित बनाए। जहां उ च वरीयता और वरीयता वाले सावजिनक े उ म
561
म मौजूदा पोटफोिलयो धा रता सरकार के वािम व के वांिछत तर से कम है । वहां
आयोग शेयर क खरीद क भी िसफा रश करता है ।
4- आयोग सभी िविनवेश ाि यां क पूं जीगत यय पर उपयोग हेतु समेिकत िनिध म रखे जाने
िक 13 व िव आयोग क िसफा रश पर बल देता है ।
5- आयोग के ीय सावजिनक े उ म को भावी और ित पध बनाने क मह ा को
वीकार करता है पर तु यह सुझाव देता है िक इन उ म क मॉनीट रं ग और उनके
मू यां कन म ऐसी सं थागत बा यताओं को यान म रखा जाना चािहये िजनके भीतर उनक
बं धन यव थाएं काय करती है ।
37.6 तेहरव िव आयोग क िसफा रश से तु लना
तेहरव िव आयोग क िसफा रश से तुलना (1) 13 व िव आयोग ने कर व अनुदान क
िमलीजुली रािश का अंश के क कर राज व ाि य म 39 ितशत (2010-15 क अविध म)
रखा था िजसे 14 व िव आयोग ने बढ़ाकर 47.7 ितशत िकया है, लेिकन रा य क तरफ के
क सकल राज व ाि य का ह ता तरण अगामी 5 वष म 49.4 ितशत तक ही सीिमत रहेगा,
जो वतमान मे है ।
(2) 13 व व 14 व िव आयोग ारा सु झाये गए ैितज ह ता तरण सु म िदए गए भार
13 वां 14 वां
1- जनसं या (1971) 25 17.5
2- जनसं या (2011) 0 10
3- राजकोषीय
47.5 50
मता/आय-पूरी
4- े फल 10 5
5- वन े 0 7.5
6- राजकोषीय अनुशासन 17.5 0
कु ल 100.0 100.0

3- 14व िव आयोग क िसफा रश के फल व प के ीय कर के ह ता तरण क रािश म


िनरपे प से कोइ भी रा य घाटे म नह रहा है, हालांिक 13व िव आयोग के ारा
ह ता त रत अंश क तुलना म 14 व िव आयोग के ारा तािवत अंश कु छ रा य के
बढ़े ह और कु छ के घट ह।

562
4- पूव बीमार, रा य जैस िबहार, म य देश, राज थान व उ र देश म ये अंश के वल
म य देश के िलए ही बढ़े है जबिक उ र देश, िबहार व राज थान के िलए घटे है । पर तु
वा तव म इन रा य को ह ता त रत क जाने वाली रािश घटी नह है ।
5- रा य क तरफ ह ता तरण क जाने वाली के क रािश के सू म वन े वाले रा य व
2011 म अिधक जनवृि वाले रा य के आिथक िहत पर भी यान के ि त िकया गया है

6- चौहदव िव आोग क िसफा रश के फल व प कर व शु क के अंश का अनुपात
अनुदान के अंश के अनुपात क तुलना म 50:50 से बढ़कर 62 : 38 होने का अनुमान है ।
37.7 चौहदव िव आयोग क िसफा रश क आलोचना
चौहदव िव आयोग क िसफा रश क आलोचना
1- इस िव आयोग से रा य का राजकोषीय े म उ रदािय व व बं धन का भार काफ
बढ़ जायेगा। उ ह यय का समुिचत बं धन करके चलना होगा। इसके िलए उन पर
राजकोषीय उ रदािय व व बजट ावधान अिधिनयम को कड़ाइ से लागू करने का भार आ
गया तािक राज व घाटा शु य पर आ सके और उसी तर पर जारी रह सके और
राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3 ितशत के तर पर लाया जा सके और उसी तर पर
आगे भी जारी रखा जा सके ।
2- 14 व िव आयोग के सद य अिभजीत सेन ने अपने िवमित प म कहा िक के क कु ल
कर ाि य म रा य का अंश 42 ितशत के बजाय 38 ितशत रखा जाना चािहये था।
आयोग को 11 रा य के िलए राज व घाटे क अनुदान रािशयो को 1.94 लाख करोड़ .
के बजाय 2-6 लाख करोड़ करना चािहये था।
3- रा य म राजकोषीय सुधार क एक म यकालीन योजना तैयार रखनी होगी और उ ह
आिथक िनयोजन क भी नइ प परेखा तैयार करनी होगी ।
4- िव आयोग क िसफा रश को लागू करने के िलए एक अ तर रा य प रषद के गठन क
आव यकता होगी, िजसम के व रा य के ितिनिध व िवषय िवशेष भाग ले सके ग।
5- 14व िव आयोग ने अपनी रपोट म सावजिनक उप म व सावजिनक उपयोिगताओं म
मू य िनधारण, इनम िविनवेश व नये िनवेश जैसे िवषय पर भी काश डाला है पर तु इनके
िलए कोइ िनयमावली या े मवक तैयार नह िकया।
37.8 सारां श
चहदव िव आयोग क िसफा रश का िव तृत अ ययन करने एवं तेहरव िव आयोग से तुलना
करने के प ात इसके मु य िसफा रश का सं ि अ ययन आव यक हो जाता है तािक 14व िव
आयोग िक िसफा रश का मूल भाव जाना जा सके ।

563
1- के क शु कर ाि य म रा य का अंश 32 ितशत से बढ़ाकर 42 ितशत कर िदया।
2- आयोग ने रा य को थानीय िनकाय के िलए अनुदान का आधार 2011 क जनगणना
को लेने क िसफा रश क है । रा य को ये अनुदान ामीण व शहरी जनसं या के आधार
पर िवत रत िकये जायगे। एक अनुदान ाम पंचायत क जनसं या के आधार पर और
दूसरा अनुदान नगरपािलकाओं क जनसं या के आधार पर ।
3- आयोग ने पां च वष (2015-2020 तक) के िलए कु ल अनुदान लगभग 2.87 लाख करोड़
पये वीकृ त िकये ह, िजनमसे 2 लाख करोड़ पये पं चायत के िलए है लगभग 87 हजार
करोड़ पये नगरपािलकाओं के िलए है ।
4- आपदा-राहत कर रािश 55,097 करोड़ पये िनधा रत क गइ है । िजसम से रा य का
ितशत अंश पहलू िजतना ही रहेगा। यह रािश व तु व सेवाकर के ि या वयन के बाद ही
लागू क जायेगी।
5- 8 के सं चािलत क म को के क सहायता से पृथक कर िदया गया है । कइ के
चािलत। समिथत क म के िवि य पोषण का भार रा य को वहन करना होगा। य िक
उनक िवि य यव था का भार रा य को वहन करना होगा य िक उनक िव ीय
यव था का ा प बदला गया है ।
6- चौहदव िव आयोग क िसफा रश के फल व प रा य को िकये जाने वाले ह ता तरण
म कर व शु क का अंश बढ़ेगा तथा अनुदान का अंश घटेगा अथात् ह ता तरण पर
रा य क कर एक ण मता एवं उ पादनशीलता का भी भाव पड़ेगा।
7- 14व िव आयोग ने सरकार के िववेकाधीन होने वाले अनुदान म कभी करने का माग
अपनाकर अनुदान क कु लरािश म कमी करने का भी योग िकया है ।
8- 14व िव आयोग ने सहकारी सं घवाद को मूत प देने का यास िकया है । इसक
िसफा रश से एक साथ दो ल य क पूित हो सके गी - एक रा य को के क ओर से
अिधक िवि य साधन ह ता त रत िकये जायेग, दूसरा रा य को अपनी ज रत के
मुतािबत खच करने क िवशेष छू ट व वतं ता होगी।
9- आयोग क िसफा रश के अनुसार ारं भ म सघ को जी एस टी ितपूित देनी होगी तथा
इसके कारण उ प न अित र राजकोषीय बोझ को िनवेश के तौर पर समझा जाना चािहये
य िक इसम रा को िनि त प से म याविध के दीघाविध लाभ ा होग।
10- सं घ व रा य सरकार के िलए सहायक राजकोषीय वातावरण को अनुकूल बनाने के िलए
आयोग ने सुझाव िदया िक सं घ सरकार एवं रजव बक ऑफ इंिडया ारा िनयिमत प से
तथा तुलना मक आधार पर सावजिनक ऋण क एक ि - वष य रपोट कािशत क जाए
और उसे सावजिनक भी िकया जाये।
11- लोकोपयोगी सेवाओं के मू य िनधारण के िलए आयोग िव तु अिधिनयम 2003 तथा रेल
अिधिनयम 1999 म भी आव यक सं शोधन के िलए सुझाव िदये।
12- सावजिनक े के उ म के िलए आयोग ने पारदश िनलामी ि या का सुझाव िदया।
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37.9 श दावली
1- शु कर ाि यां - सकल ाि य म से उपकर व सरचाज तथा कर वसूली यय को
घटाने से ा रािश शु कर ाि यां कहलाती है ।
2- काय िन पादन अनु दान - सं घ सरकार के ारा रा य को िदए जाने वाले अनुदान का एक
भाग िजसका िनधारण रा य सरकार के काय िन पादन मता ारा िकया जाता है ।
3- जीडीपी - सकल रा ीय उ पादन - एक वष क समयाविध म उ पािदत सम त व तुओ ं
एवं सेवाओं के बाजार मू य का योग सकल रा ीय उ पादन कहलाता है ।
4- राजकोषीय नीित - सं घ सरकार क नीित िजसके अ तगत िविभ न य एवं अ य
कर का िनधारण तथा सावजिनक यय के िविभ न ावधान िकये जाते ह।
5- सी एस एस - के सं चािलत / समिथत योजना
37.10 कु छ उपयोगी सं दभ
1- 14वां िव आयोग रपोट, भाग 1, अ याय - 18, िसफा रश का तर
2- 14वां िव आयोग रपोट भाग 1, अ याय 8, ैितज ह ता तरण का सू
3- आिथक सव - 2014-15
4- भारतीय अथ यव था, ल मीनारायण नाथुराम का
5- www.siumin.nic.in/14fincomm/14th finance commission.htm
6- 13 व िव आयोग क िसफा रश का सारां श
37.11 बोध के उ र
1- चौदहव िव आयोग के अ यय एवं सद य के नाम बताइये?
2- चौदहव िव आयोग के ि कोण पर िट पणी िलिखए।
3- चौदहव िव आयोग ने अपनी िसफा रश म िकस मूल िस ा त का पालन िकया?
4- 13व व 14व िव आयोग म मु य अ तर या है?
5- 14व िव आयोग के कारण कर एवं अनुदान के ह ता तरण ढांच म िकस कार के
प रवतन आये ह?
6- 14 व िव आयोग क िसफा रश के कारण िकस कार के राजकोषीय सुधार क
सं भावनाएं है? िकस कार के राजकोषीय सुधार क सं भावनाएं ह?
7- थानीय सरकार के अनुदान के सं बं धम 14व िव आयोग क मु य िसफा रश या है?
8- सहयोगा मक सं घवाद क िदशा म 14व िव आयोग क िसफा रश का उ लेख क िजए?
9- 14व िव आयोग क िसफा रश म िव तु , रेल एवं िसं चाइ जैसे लोकोपयोगी सेवाओं के
मू य िनधा रत हेतु या सुझाव िदये गये?
10- 14व िव आयोग क िसफा रश क मु य आलोचनाएं या- या है?
565
37.12 बोध के उ र
1- 1 अ य - डॉ. वाइ.वी. रैड्डी
2 अंशकािलक सद य - ो. अिभिज सेन
3 सद य - सु ी सुषमानाथ
4 सद य - डॉ. एम गोिव दाराव
5 सद य - डॉ. सुदी ो मु डले
2- आयोग के िवचाराथ िवषय पर स ती से अनुपालन करना, सं घीय एवं राजकोषीय सं बं धो
पर यापक अवलोकन करना तथा सं घ, रा य और थानीय िनकाय के िवचार एव
अपे ाओं को ाथिमकता देना।
3- 14व िव आयोग ने सहयोगा मक सं घवाद के मूल िस ा त का पालन िकया।
चलरािश 13 वां 14 वां
1- जनसं या (1971) 25 17.5
2- जनसं या (2011) 0 10
3- राजकोषीय
47.5 50
मता/आय-पूरी
4- े फल 10 5
5- वन े 0 7.5
6- राजकोषीय अनुशासन 17.5 0
कु ल 100.0 100.0

5. 14व िव आयोग के कारण व शु क का अंश 62 ितशत तथा अनुदान का अंश 38


ितशत रह गया है ।
6. 14 व िव आयोग क िसफा रश के अनुसार िवि य ह ता तरण से अपे ाकृ त कम िवकिसत
ह ता तरण से अपे ाकृ त कम िवकिसत रा य को अिधक रािश िमली है िजससे ित यि
कम आमदनी वाले रा य के िह से म अिधक धनरािश आयी है । इससे रा य के बीच आय व
राजकोषीय असमानताएं कम करने म मदद िमलेगी।
7- थानीय िनकाय को अनुदान के िलए िसफा रश दो भाग म क गइ है - एक का आधार
मूल और दूसरा काय िसि । काय िन पादन होगा और मूल व काय िन पादन अनुदान का
पर पर अनुपात पंचायत के िलए 90 : 10 होगा एवं नगर पािलकाओं के िलए 80 : 20
होगा।
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8- 14 व िव आयोग ने सहकारी सं घवाद को मूत प देने का यास िकया है । इसक
िसफा रश म से एक साथ दो ल य क पूित हो सके गी - एक तो रा य को के क तरफ
से अिधक िवि य साधन ह ता त रत िकये जाएं ग और दूसरी तरफ रा य को अपनी
ज रत के मुतािबत खच करने क िवशेष छू ट व वतं ता होगी। इस नीितगत प रवतन से
रा य को ऊँची आिथक वृि दर ा करने का अिधक अवसर िमलेगा और उनक
िवकास म भागीदारी बल हो सके गी।
9- िव तु अिधिनयम 2003 म रा य सरकार ारा सि सिडय के भुगतान मे िवल ब के िलए
शाि तय का ावधान िकया जाए। रेल अिधिनयम 1999 म आव यक सं शोधन के ज रए
सलाहकारी िनकाय को सांिविधक िनकाय से शी ित थािपत करने पर बल िदया तथा
िसंचाइ जल के योग के पूण आयातन माप पर बल िदया।
10- आलोचनाएं -
1- राजकोषीय उ रदािय व व बजट बं धन अिधिनयम को कड़ाइ से लागू करना।
2- राज व घाटे क पूित के अनुदान रािश क पया मा ा का ावधान नह करना।
3- अ तर रा यीय प रषद का गठन आव यक हो गया है ।
4- रा य को भी राजकोषीय सुधार के िलए म यकालीन योजना तैयार रखनी होगी।

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