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अन्धविश्वास

चन्द्रगुप्त भारतीय

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अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः॥
(ईशावास्योपनिषद् 9)

(जो अविद्या का अनुसरण करते हैं वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। और जो के वल विद्या (दिखावटी विद्या अर्थात् मिथ्या ज्ञान) में ही रत रहते
हैं वे मानों उससे भी अधिक घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं।)

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अन्धविश्वास चन्द्रगुप्त भारतीय

अन्धविश्वास
अन्धविश्वास, वास्तव में कु छ भी नहीं होता है। एक मात्र एक कल्पना है, जो मिथ्या है तथा अज्ञान से उत्पन्न हो अज्ञान को
ही जन्म देता और इसी को आगे बढ़ाते हुए अन्धविश्वास की एक शृङ्खला को जन्म देता है। अन्धविश्वास एक मानसकि
व्याधि अर्थात् बिमारी या रोग है, जो धूर्तों का बनाया हुआ एक विचित्र सामाजिक षड्यन्त्र है, जिसमें भोले-भाले सीधे लोग
इस मानस कल्पना रूपी अन्धविश्वास के जाल में फँ सते चले जाते हैं, जिसका न तो कोई सिर होता है और न ही कोई पैर।
यह हवा में लटकता रहा है और हवा में ही बात करता है। यह अन्धविश्वास अज्ञों तथा अलपज्ञों की बुद्धि को ढ़ककर उसपर
अज्ञान का चादर चढ़ा कर उसके मन तथा बुद्धि पर हावी हो जाता है। यह डर की व्यापार करता है तथा डरा कर भोले -भाले
लोगों से अपना काम निकलवाता है। मन से कमज़ोर लोग ही इसके शिकार बनते हैं।

यह एक बिमारी है, जैसे कि बुखार आदि शारीरिक व्याधियाँ होती है इसी प्रकार मिथक भूत-प्रेतादि को देखना अथवा उस पर
विश्वास कर लेना एक मानसिक बिमारी है। जिसका उपचार मनोविज्ञान द्वारा सम्भव है। इसके लिए किसी भूत -प्रेत आदि की
कल्पना करना तथा भगत-ओझा आदि के पास जाकर इसका उपचार कराना उचित नहीं है। वस्तुतः इस मिथक विश्वास से
ही अन्धविश्वास का जन्म होता है। अन्धविश्वास एक ऐसा मानसिक रोग है, जहाँ पर एक अन्धा (मानसिक रोगी) दूसरे अन्धे
(भगत-ओझा आदि धूर्तों) से रास्ता पूछता है तथा दूसरा अन्धा पहले अन्धे को रास्ता भी बताता है। जबकि होना यह चाहिए
कि, यदि इस प्रकार की कोई मानसिक समस्या किसी व्यक्ति विशेष को होती है तो उसे किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक अथवा
मानसिक चिकित्सक से मिलना चाहिए तथा उससे अपनी रोगत्मक समस्या का उपचार करवाना चाहिए, न कि भगत-ओझा
के सम्पर्क में आकर अन्धविश्वास को और फै लाना चाहिए।

जब कभी व्यक्ति किसी भी प्रकार की कथा-कहानियों को गम्भीरता से ले लेता है तो, वह उसके मन में घर कर लेता है, और
मन के किसी एक भाग में वह छु प जाता है तथा उचित समय व परिस्थिति के आने पर वह अपने आप को प्रकट कर देता है।
उस मानसिक विकार का प्रकटिकरण ही सामान्य लोगों को विचित्र तथा अद्भुत लगता है, जिससे वे डर जाते हैं। यह सच है
कि, समाज का अपना एक नियम तथा व्यवहार होता है, जब कोई व्यक्ति उस नियम अथवा व्यवहार से अलग होकर कु छ
करता है तो समाज का एक वर्ग उसे विचित्र रूप से ही देखता है। यह विचित्रता ही अज्ञान के वश में वशीभूत होकर
अन्धविश्वास जैसी मानसकि कल्पना को जन्म देती है, जिससे किसी का कु छ भी भला या कोई भी लाभ नहीं होता है ,
अपितु हानि ही होता है, जो के वल और के वल अन्धविश्वास की एक शृङ्खला को ही जन्म देता है।

व्याधियाँ अर्थात् बिमारियाँ मात्र और मात्र दो प्रकार की ही होती है – एक शारीरिक और दूसरा मानसिक। तीसरी प्रकार की
किसी भी व्याधि अथवा बिमारी का इस भौतिक जगत् में कोई भी अस्तित्व ही नहीं है। यदि इन दोनों के अतिरिक्त भी कोई
बिमारी किसी व्यक्ति विशेष को ज्ञात होता है तो वह उसका मात्र एक भ्रम, अज्ञान अथवा मिथ्यानुभूति मात्र है, जिसे मानसकि
व्याधि के अन्तर्गत ही रखा जाएगा। इसके लिए किसी अन्य बिमारी का नाम देना सर्वथा अनुचित होगा।

मानसिक बिमारी कई तरह की होती है, उन्हीं में से एक है भूत-प्रेत आदि का मिथ्या भ्रम होना। यह मात्र मन का एक
काल्पनिक पात्र होता है, जिसे व्यक्ति अपने पूर्व अनुभव अथवा ज्ञान के आधार पर जन्म देता है, जो एक से अनेक में छू त
जैसे सङ्क्रमित रोग के समान फ़ै लता चला जाता है। फिर एक के द्वारा अनुभव की गई वस्तु कइयों के द्वारा अभूत हो जाती
है।

इसी मानस की अज्ञानावरित कल्पना से उत्पन्न अन्धविश्वास की समाज में अनेकों कथा-काहियाँ भरी हुई है, जिनको कु छ
लोग सत् मानते हैं तो कु छ लोग मिथ्या कल्पना मात्र , वहीं मनोविज्ञान इसे मानसिक व्याधि के रूप में देखता है। इन्हीं पर
आधारित कु छ कथाएँ निम्नवत् हैं –

3
अन्धविश्वास चन्द्रगुप्त भारतीय

4
कथा - 1 अन्धे का रही अन्धा चन्द्रगुप्त भारतीय

अन्धे का राही अन्धा

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