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ऋषि, मुनि, सन्त तथा भक्त में अन्तर
ऋषि, मुनि, सन्त तथा भक्त में अन्तर
1. ऋषि
ऋषि:तु मन्त्र द्रष्टारः न तु कर्तारः।
(नीतिशतकम् (५३/२२१)
मन, वाणी और शरीर में सकर्मरूपी अमृत से परिपूर्ण , तीनों लोकों का अनेक प्रकार के उपकारों से कल्याण करने वाले और दूसरों के थोडे
से भी गुणों को सर्वदा बहाड की तरह (बहुत बडा) मानकर अपने हृदय में प्रसन्न होने वाले सत्पुरुष (संसार में) कितने हैं, अर्थात् ऐसे सज्जन
बहुत कम है, दुर्लभ हैं ।
4. भक्त