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माइड

मैनेजमट
आन दमूित गु माँ
मन कहाँ ह?
ज ब आपका मन िव ाम म होता ह, जब आपका मन चैन म होता ह, तब न कवल आप आंत रक सुख और आनंद
का अनुभव करते ह, ब क आपक शरीर को भी िव ाम िमलता ह। जब शरीर िव ाम म रहता ह तो शरीर व थ रहता
ह। और जब शरीर व थ रह, मन िव ाम म रह तो जीवन जीने का आनंद होता ह।
जीवन क क मती पल को हम या तो िफ म, िचंता म बरबाद कर सकते ह या इस कार से जी सकते ह िक
हम अंतर म बेिफ ह और जीवन म जो भी प र थितयाँ हमार सामने आती ह, उन प र थितय से िनपटते ह, उन
प र थितय का सामना करते ह। लेिकन जब आप प र थित का सामना न करक ि़सफ प र थित क बार म सोचते
रहते ह, तो इस यथ क सोच म आपक ऊजा न होती ह। आपका सुख-चैन तो जाता ही ह, पर सबसे बड़ा नु़कसान
होता ह आपक वा य का। काश! आप समझ पाते िक आपका वा य आपक हाथ म ह।
म जानती िक आजकल िचिक सा िव ान आनुवंिशक (genetic) बीमा रयाँ, जो तु ह अपने पूवज या माता-िपता से
िमली ह, उसक बार म बात कर रहा ह, लेिकन मेरा यह मानना ह िक मन से शरीर आ ह। आपक शरीर क उ पि
और आपक शरीर का आकार एवं प आपक मन क वजह से बना ह। ऐसा नह ह िक शरीर पहले बना और िफर मन
उसम आया। जैसे, पहले िम ी का एक बरतन बनाया, िफर उसम हमने पानी भर िदया, ऐसा नह ह। तो कई बार ब त
लोग ऐसा सोचते ह, समझते ह िक शरीर को ई र ने, कित ने बनाया, िफर उसम मन आया। नह , ऐसा नह ह। कई
लोग का ऐसा मानना ह िक शरीर म से मन िनकला ह, पर ऐसा संभव नह ।
बात थोड़ी सी ट कल हो रही ह, पर कोई बात नह ; य िक आपको इसे भी समझना चािहए िक आपका शरीर या
ह? आपका मन या ह?
आप कार खरीदने जाते ह तो दस शो- म म जाते ह, इटरनेट पर सिफग करते ह, दस लोग से राय लेते ह िक कौन
सी गाड़ी अ छी ह? िकस का इजन अ छा ह? िकसक एयरकिडशिनंग अ छी ह? अगर आप युवा ह तो आपको सबसे
यादा इस बात क िफ होगी िक गाड़ी िदखने म कसी ह और अगर आप थोड़ा पौ ष िदखाना चाहते ह तो िफर
आपका दूसरा सवाल होगा िक इजन का पावर िकतना ह? आप कहगे िक गाड़ी क आकार को मारो गोली, इजन का
पावर बताइए िक हाई-वे पर यह िकतना तेज़ दौड़गी?
देिखए, यह भी उ का तकाज़ा होता ह और आपक िच बदलती रहती ह। जवानी म पूछता रहता ह िक ‘इजन क
पीड िकतनी ह?’ और यही जब बूढ़ा हो जाएगा तब पूछगा, ‘सीट-बे ट ठीक से बंद होती ह न? कह ज़ोर से ेक
लगे और म िगर न जाऊ!’ शरीर क िचंता हो जाती ह। बूढ़ी ह याँ ह, टटनेवाले जोड़ हो जाते ह और अब उसक
िफ तेज़ दौड़नेवाली गाड़ी क नह होती। अब उसक फ ि◌ होती ह िक स ती और मज़बूत गाड़ी होनी चािहए। खुदा
न खा ता, अगर कोई दुघटना हो तो म अंदर बैठा सलामत र । आप कार खरीदते ह तो इतना सोचते ह।
मुझे आप लोग को शॉिपंग करते ए देखने म बड़ा मज़ा आता ह, खासकर जब आप कपड़ क खरीददारी करते ह।
घंट तक लगे रहते ह। आप घर म भी इसी चीज़ पर कई घंट लगाकर आए होते ह, फशन संबंिधत पि काएँ और सब
तरह क अ य मा यम से आप जानकारी लेत े ह। यह अ छा ह, यह कट अ छा ह, यह टाइल अ छा ह। अभी या
फशन चल रहा ह? कौन सा रग अ छा ह? ये सब चीज़ आपको पता होती ह। िफर भी जब खरीदने जाते ह, तब भी
वहाँ से एक स पहनकर देखते ह। दूसरी उठाते ह, िफर पहनकर देखते ह, िफर तीसरी उठाते ह। एक स, िजसक
उ कछ साल होगी; कछ साल तो मने यादा कह िदया, य िक आपक िलए तो हर मौसम म एक नया फशन आता ह
और आप उसक अनुसार नए कपड़ खरीदते ह। िफर भी छः महीने से लेकर छः साल तक या िकसी-िकसी क िलए
शायद बीस साल तक उसक एक स चलने वाली ह, उसे खरीदने म इतना िदमाग लगाते ह। पर िजस शरीर को आपने
वह स पहनाई ह, उस शरीर क बार म आपक जानकारी िकतनी ह?
आप अपने शरीर क बार म, उसक काय णाली क बार म, सृजन क ि या क बार म, शरीर म काम कर रही
सारी कायिविधय क बार म िकतना जानते ह? लोग कहते ह िक इतनी िफ करने क या ज़ रत ह? अभी सबकछ
ठीक चल रहा ह, ब त बि़ढया चल रहा ह। खराब होगा तो डॉ टर क पास चले जाएँगे; पर मेर भाई! ब त महगी ह
आजकल िचिक सा।
आपको अपने इस शरीर पी वाहन, इस शरीर पी कार क बार म ान होना चािहए। िजसक ज़ रए आप चल रह
ह और जीवन क डगर पर अपनी इस गाड़ी को दौड़ा रह ह, इस गाड़ी क बार म तो ान होना चािहए।
इस शरीर क अंदर जो इजन ह, उसे म मन कहती । कोई कार अपने इजन क ब़गैर नह चल सकती। आज हमने
एक न उठाया ह िक शरीर पहले बना, िफर उसम से मन बना या मन पहले था और िफर शरीर बना? आप सोच,
िवचार कर। आपको या लगता ह, शरीर म से मन िनकला ह िक मन म से शरीर िनकला?
इसका उ र ह िक मन म से शरीर आ ह, शरीर म से मन नह आ ह। अ छा, अब यह मन शरीर क अंदर ह या
शरीर क बाहर ह? मन उगली म ह या खोपड़ी म ह? मन पाँव म ह या घुटने म? इसे कहाँ पर ढढ?
एक मिहला एक संत क पास गई। उनसे कहती ह, ‘‘महाराज! मेरा मन टट गया।’’ महाराज कहते ह, ‘‘ला, मेर पास
एक यूब ह, म टटी चीज़ को उससे जोड़ देता । अपना मन दे, म उसे भी जोड़ देता ।’’
दूसरी एक मिहला ने कहा, ‘‘आज मेरा मन ब त ख ा हो गया ह।’’
संत ने उसे एक टॉफ दी और कहा, ‘‘खाओ, यह चॉकलेट टॉफ खाओ, तु हारा मन अभी मीठा हो जाएगा।’’
मिहला बोली, ‘‘म चॉकलेट खाऊगी तो मुँह मीठा होगा, उससे मेरा मन मीठा नह होगा।’’
संत ने कहा, ‘‘िजस तरीक से मन ख ा आ, उसी तरीक से अब मीठा भी कर ले। िकसी ने कछ बुरी बात बोली
तो उसे सुनकर तेरा मन ख ा आ। अब म तुझ े अ छी बात सुना रहा , इस अ छी बात को सुनकर मन को मीठा
कर ले।’’
मिहला बोली, ‘‘ऐसे थोड़ ही होता ह!’’
अभी देखो, अ छी चीज़ सीखने म आप न करते ह िक ‘ऐसे थोड़ ही होता ह,’ पर मन को खराब करने म तो ज़रा
भी देर नह लगती।
मन कहाँ ह, इस देह म ह या बाहर ह? अगर आपका उ र ह िक अंदर ह, तो म यह पूछना चाहती िक अंदर कहाँ
ह? और अगर बाहर ह तो कहाँ ह? भाई! िकसी मॉल या बड़ पािकग थान पर आप कार पाक करते ह तो देखते ह िक
एफ-26 म पाक क ह। आप उसे याद रख लेत े ह, नह तो कहाँ भटकते िफरगे! जब वापस लौटोगे तो िफर ढढने म
आसानी होती ह। या आपको पता ह िक आपने अपने मन को कहाँ पाक िकया आ ह?
अगर मन शरीर म ह तो िकस भाग म ह? इसका थान कहाँ ह? यह कहाँ से काम कर रहा ह? यह देखते ह।
िकसी ने जवाब िदया िक मन शरीर म ह। िकसी और ने कहा िक मन घूमता रहता ह। आप ही मुझ े बताइए िक अभी
आपका मन कहाँ घूमने गया ह? या आपने जेब-खच क िलए उसे पैसे भी िदए ह?
मज़ाक क बात पर करक अगर गंभीरता से कह, तो मन शरीर क अंदर ह या बाहर, यह बाद म ढढगे, पर पहले यह
समझाती िक मन ह या? पहले पता तो चले िक वह ह या, तब ही उसे ढढ पाएँग।े
मन ह, िवचार का समूह। अब िवचार का कोई शरीर नह होता। जैसे, फल म खुशबू ह। फल का शरीर ह, पर
खुशबू का कोई शरीर नह ह। हम ऐसा कह सकते ह िक फल क खुशबू फल क शरीर म ह, िफर भी फल और खुशबू
दोन अलग-अलग चीज़ ह। अगर हम एक गहरी साँस भर और फल क खुशबू ल, तब भी बाक क खुशबू फल म ही
रहती ह। उस फल को 20 लोग भी सूँघ ल तो भी फल क खुशबू ख म नह होती। एक फल क अंदर िकतनी खुशबू
ह, उसे कसे नापगे? िकस तरह तोलगे या वज़न करगे िक िकतने माइ ो ाम खुशबू ह?
चंपा का एक फल या रजनीगंधा का एक फल कमर म रख देने से पूरा कमरा खुशबू से भर जाता ह। अब उस कमर
म पचास लोग आ जाएँ, तब भी हम यह नह कहना पड़गा िक य िक पचास लोग ने खुशबू ली, इसिलए खुशबू ख म
हो गई। खुशबू अभी भी वह पर ह और पाँच सौ लोग भी आकर चले जाएँ, तब भी वह अपनी जगह पर बनी रहगी।
इस खुशबू का जो ोत ह, वह यह छोटा सा फल ह।
अब इसको यू ँ समझ, आपका मन खुशबू भी ह और फल भी ह। मन अ य ह, यानी आप सुगंध को अपनी आँख
से देख नह सकते, हाथ से छ नह सकते, ि़सफ सूँघ सकते ह, लेिकन फल आँख से िदखता ह। हम यू ँ कह सकते ह
िक आपका शरीर तो िदखता ह, पर इस शरीर म मौजूद मन िदखता नह ह। जैसे, खुशबू ब त बड़ िव तार को घेर
सकती ह, ब त लंबे िव तार तक फल जाती ह, इसी कार आपका मन भी फला आ ह। इसी फले ए मन म यह
तु हारा तन भी उगा आ ह। मन तन म भी ह और मन तन क बाहर भी ह। मन एक िवचार भी ह, लेिकन मन ि़सफ
िवचार नह ह। मन िवचार क अलावा भी ह। मन आपक भावनाएँ, आपका एहसास, आपक इ छा भी ह।
अ छा! अगर म आपसे पूछ िक ‘आपक मन म जो इ छा जगी, उसका वज़न िकतना ह या उस इ छा ने आपक मन
म िकतनी जगह ली?’ भ लोग ऐसा भजन गाते ह िक मेर मन क एक कोने म भगवान तु हारी मूरत ह और आप वहाँ
बैठ रहते हो। जब म ऐसा भजन सुनती तो म कहती िक ‘कोने म य िबठाया ह? बाक सारी दुिनया को तो इतनी
सारी जगह दी और भगवान को कोने म िबठा रखा ह!’
मन भावना भी ह, इ छा भी ह, मन एहसास भी ह, सं कार भी ह। सं कार यानी आपक िदमाग म इि य क अनुभव
से ा अंिकत ई छाप।
मनु य का म त क अपने आप म एक जिटल रचना ह। आपक िदमाग क एक कोष म, एक यूरॉन म इतनी सूचनाएँ
ह िक एक पूरा पु तकालय आपक एक यूरॉन म मौजूद ह। हम चाह तो दुिनया क तमाम जानकारी अपने म त क म
रख सकते ह! कसे रख सकते ह? कहाँ रख सकते ह? इसका उ र ह िक ये सारी सूचनाएँ एक यूरॉन म समा सकती
ह। करोड़ िक म क सूचनाएँ आपक िदमाग म यूरॉन म ह और ऐसे करोड़ यूरॉन आपक िदमाग म ह। मतलब हम
यह कह सकते ह िक पूरा ांड आपक िदमाग म ह। और यह ब त िविश संसार ह, जो आपक िदमाग म ह।
जैसे, म आपसे पूछ िक ‘आपका नाम या ह?’ मान ल, आपने कहा िक ‘कमलेश’। कमलेश कहाँ पैदा आ,
कमलेश का घर, कमलेश क माता-िपता, दादा-दादी, चाचा, ताऊ, पड़ोसी, िजस कल म कमलेश ने पढ़ाई क , िजनक
साथ खेला, िजनक साथ शरारत क , बड़ होकर ल़फगािगरी क और िकन शरी़फ क घर म गया, िकतनी बार िपताजी
से मार पड़ी या नह पड़ी। ऐसी अनिगनत सूचनाएँ आपक उस एक यूरॉन म सं हीत ई ह। आपक अपनी एक दुिनया
आपक िदमाग म ह। िदमाग या ह? आपक चेतना का आसन। आपक चेतना, आपक मन और आपक म त क क
साथ िमलकर काम कर रही ह।
मन या ह? मन ब त कछ ह। हमने कमलेश का उदाहरण िलया था। कमलेश क मन म िजतनी याद ह, िजतनी बात
ह, िजतने दुःख-सुख क अनुभव, िजतने अ छ-बुर खयाल ह, वे कमलेश क मन क िकसी एक िह से म ह। इस धरती
पर अमे रका, ाजील इ यािद िकतने देश ह, इस धरती पर िकतने न , ह, िकस-िकस देश क कौन-कौन से
धानमं ी, रा पित ह, कल से लेकर कॉलेज तक, कॉलेज से लेकर शादी तक और भारत-पाक यु , भारत-चीन
यु , िव यु , ये सब सूचनाएँ आपक मन म मौजूद ह। ये सूचनाएँ िवशेष प से आपक ह, य िक आपक
भावना क छाप उसम आ जाती ह।
जैसे, इस व़ इस हॉल म िजतने लोग बैठ ह या इस िकताब को पढ़ रह ह, या उन सबको एक जैसा अनुभव हो
रहा होगा? या सब एक ही तरीक से मुझे देख रह ह गे? या सब एक ही तरीक से मुझे याद करगे? नह , सबका
अनुभव अलग-अलग होगा।
मुझ े याद ह, एक बार स संग क एक बैठक क बाद म बाहर िनकली तो एक मिहला पीछ से ब त ज़ोर से आवाज़
दे रही थी, ‘‘गु माँ! गु माँ! मुझ े आपसे बात करनी ह।’’
मने कहा, ‘‘अ छा, आ जाएँ। कहो, या बात करनी ह?’’
उसने कहा, ‘‘मुझ े यह पूछना ह िक आपक गले म जो यह ा क माला ह, वह आपने कहाँ से खरीदी थी? मुझे
ब त अ छी लगी।’’
अब आप देिखए, पूर स संग म उसक नज़र, उसका यान िविश प से कहाँ अटका था? उस माला पर िटका
था। उसे लगा होगा िक यह माला म खरीद लूँगी। यह िकतने क होगी? िकस साड़ी क साथ पहनूँगी? इसे म िकस-िकस
को िदखाऊगी? यह सब सोच उसक िदमाग म चल रही होगी। लेिकन दुिनया क ि से और म खुद भी उसे सामने
बैठकर सुनते ए देख रही थी, पर सुनते ए भी या वह सुन रही थी?
एक बार एक स न मुझसे कहने लगे, ‘‘आपने जो समझाया, वह मुझ े ठीक से समझ म नह आया। या आप
दुबारा समझाएँगी?’’
मने कहा, ‘‘आप तो ठीक मेर सामने बैठ थे, िफर भी आपक समझ म य नह आया? या ि़द कत ई?’’
उ ह ने कहा, ‘‘दरअसल आ यह िक स संग म आने से पहले मने ब त सारा पानी पी िलया था और मुझ े बाथ म
जाना था। पर म सबसे आगे बैठा था, तो बीच म उठकर नह जा सकता था, इसिलए बैठा रहा। पर उस वजह से
समझना थोड़ा मु कल हो गया। आप एक बार मुझ े िफर से समझा दीिजए।’’
शरीर म जो संवेदनाएँ, इ छाएँ, उ ेजनाएँ या दबाव आते ह, हमारा मन उसे महसूस करता ह। हमारी ानि य ारा
जो संदेश प चते ह, उ ह मन समझता ह। आपक जीवन म आपको िजतने भी अनुभव हो चु़क ह, उनका मैमरी काड भी
आपका मन ही ह। भिव य म आप जो कछ करना चाहते ह, वे आपक सार सपने भी आपका मन ही ह। सपने, िवचार,
एहसास, सं कार, अपे ाएँ, इ छाएँ—ये सब मन ह।
आप जो कछ सोच रह ह, आपका मन इतना ही नह ह। मन का एक िह सा ह, िजसे आप थोड़ा-ब त समझते ह,
पर मन का एक ब त बड़ा िह सा वह ह, िजसक बार म आप कछ भी नह समझते ह। अभी आपको लग रहा ह िक
आपका मन अलग ह और दूसर का मन अलग ह। अगर यहाँ दो सौ लोग बैठ ह तो आप कह सकते ह िक दो सौ मन
बैठ ए ह, लेिकन मन दौ सौ नह ह, मन वा तव म एक ही ह।
देिखए, म आपको इस तरह समझाती । आप एक जंगल देखते हो तो जंगल या ह? जंगल एक ऐसी जगह ह, जहाँ
ब त सार पेड़ ह या पेड़ क एक बड़ समूह को जंगल कहते ह। अब उसम से म एक पेड़ को िनकाल दू,ँ तो भी जंगल
तो वही रहगा। अब म एक और पेड़ िनकाल दूँ, तो भी जंगल वही ह। पर मान ल िक दस हज़ार लोग आएँ और कह
िक ‘हम एक-एक पेड़ ले लेत े ह,’ और धीर-धीर सार पेड़ काट िदए जाएँ। जब एक भी पेड़ बाक न बचे, तो या
जंगल रहगा? जंगल यानी पेड़ का समूह और एक-एक पेड़ जंगल क य व म, आकार म कछ जोड़ देता ह। िफर
भी जंगल क एक कोने म आग लग जाए तो जंगल क सार पेड़ जलकर खाक हो जाते ह।
हम कह सकते ह िक एक मन, एक पेड़ जैसा होता ह और ब त सार मन, यानी मन का एक समूह। इस हॉल क
बाहर िकतने मन ह? इस पृ वी पर िकतने मन जी रह ह? और इन सभी मन को अगर हम जोड़ते ह तो जो बनता ह,
उसे संसार कहते ह। संसार यानी पूरा िव । िव पंचत व अ न, पृ वी, जल, आकाश, वायु का नह बना। ह़क ़कत
म िव मन से बना ह। जब हम सम मन कहते ह, तब हम अलग-अलग मन कह रह होते ह; पर ह़क ़कत म मन
अलग-अलग नह ह, एक वै क मन ही ह। इस वै क मन को सं कत म ‘माया’ कहते ह।
माया िकसे कहते ह? यह भी एक यापक मन ह। इसी को हम ‘माया’ बोलते ह। जैसे, एक-एक पेड़ क जुड़ने से
जंगल बन गया, वैसे ही एक-एक मन क जुड़ने से यह संसार हो गया। हम यह भी कह सकते ह िक मन ह संसार।
आप बाहर जो संसार देख रह ह, वह िकतना बड़ा ह? ब त बड़ा ह। यहाँ धरती से सूय िकतनी दूर होगा, यहाँ से
चं मा िकतनी दूर ह, यहाँ से शिन, गु , शु , ये सार ह, जो भी आकाशगंगा म ह, ये सब आपक मन यानी यापक
मन म मौजूद ह। पर आपको इस वै क मन क बार म पता नह ह। आपको मन क एक इकाई क बार म पता ह,
िजसे आप कमलेश का मन कहते ह। लेिकन मन ि़सफ उतना ही नह ह, िजतना आप इसे समझते ह। मन पूर संसार को
पैदा करनेवाला मूल कारण ह। मन से संसार आ ह। मन से ि़सफ शरीर ही नह , मन से संसार भी आ ह।
अब मज़ेदार बात! िजस मन ने इस संसार को बनाया ह, यह खुद उसी संसार म फस जाता ह। चलो, म आपको
आसान श द म, य गत तर पर समझाती । आपने अपनी मरज़ी से शादी क , खुशी-खुशी शादी क , ढोल-नगाड़
क साथ क , घोड़ी पर चढ़कर, दू हा राजा बनकर, सज-धजकर क । अगर कोई औरत ह तो सुंदर दुलहन बनकर,
ंगार करक, जो वर पसंद आया था या जो माँ-बाप ने पसंद िकया था, उसक साथ सात फर िलये और सात ज म का
संक प िलया िक सात ज म तक साथ रहगे। िहदू शादी ब त लंबी दूरी तक चलती ह, मेर भाई! लेिकन बाद म पित का
वभाव पसंद नह आ रहा ह, य िक थोड़ा अ खड़ ह, ब त ज़ोर से बोलता ह। खाते समय पर नाक म उगली डाल
देता ह, दूसर क काम म द़खल देता ह। ब त िचढ़ आती ह, पर चुना ह, इसिलए उसक साथ रह रह ह।
चुना िकसने था? तुमने, तु हार मन ने। अब उससे जो सुख होगा, वह भी तु ह भोगोगे और उससे जो दुःख होगा,
या वह कोई दूसरा भोगेगा? वह भी तु ह भोगोगे। िफर आप पित-प नी से ब े पैदा ए। शादी पैकज ह। इस पैकज म
जब आपको सुख िमलता ह तो दुःख भी िन त ही िमलेगा। आप कह िक मुझे दुःख नह चािहए, पर वह तो सौदे का
एक िह सा था। अब आप उस िह से से इनकार नह कर सकते।
एक पित-प नी क शादी क पचासव सालिगरह थी। उ ह ने एक पाट का आयोजन िकया था। पाट म सबकछ
गो डन था, य िक पचासव सालिगरह थी, इसिलए प नी ने गो डन साड़ी, पित क िलए गो डन अचकन, गो डन जूते
खरीदे थे और सब को गो डन िनमं ण-प भेज े थे।
िकसी ने पूछा, ‘‘आपक इस लंबे दांप य जीवन क सफलता का राज या ह?’’
पित ने जवाब िदया, ‘‘ य िक आज पचास साल हो गए ह, इसिलए आज म आपको इस खुशी क मौक पर अपना
रह य बताता । हमने शादी क रात ही तय कर िलया था िक हम आपस म लड़गे नह । पर अगर कोई लड़ाई क
नौबत आ गई और तु ह कह मुझ पर गु सा चढ़ जाए और मुझ े िदख गया िक तु ह मुझ पर गु सा आया ह, तो म घर
क बाहर चला जाऊगा। इधर-उधर घूमूँगा तो दो-चार घंट म वह भी ठीक हो जाती ह और म भी ठीक हो जाता ।
िपछले पचास साल से जब-जब मेरी प नी को गु सा आता ह, तो म बाहर चला जाता और कभी-कभी मुझ े गु सा
आता ह, तब भी म ही घर से बाहर चला जाता । तो इस तरह आज पचास साल से हम कभी लड़ ही नह ह। हमारा
आपस म समझौता ह िक खाना म पकाता , वह खाती ह। ब े उसने पैदा िकए ह, सँभालता म । म कमाता , वह
खच करती ह। हमारी शादी को पचास साल हो गए ह, हमारी खुशी का दारोमदार इसी बात पर ह िक म हमेशा शांत
रहता । अगर वह गु सा हो गई या म गरम हो जाऊ तो ठड पानी से नहाकर अपने आपको िफर से ठडा कर लेता
।’’
‘योगवािस ’ म ीराम विस जी से कहते ह, ‘‘ह गु देव! हर मनु य अपने दुःख का सामान खुद लाकर अपने पास
रखता ह। दुःख कोई िकसी को देता नह , दुःख कह से आता नह । मनु य वयं अपने दुःख क कारण को खड़ा करता
ह और िफर उन कारण म फसकर दुःखी होता रहता ह।’’
आप यान से देख लीिजए, आपको िजस चीज़ से भी परशानी ह, वह चीज़ आपक चुनाव क कारण आपक पास ह।
उसे आपने चुना था, इसिलए वह आपक पास ह। हालाँिक आपने यह सोचकर चुना था िक सुख होगा, मज़ा आएगा,
पर वह रह य बाद म खुला िक मजे क सपने टटने म देर न लगी।
मु ा नस ीन क शादी ई। वह अपनी बीवी गुलजान को पहली रात बड़ी खवािहश और जुनून क साथ देखने
गया; य िक वह पहली बार अपनी दुलहन को बेपरदा देखनेवाला था। इतनी देर से वह घूँघट म थी। पहले वह बुरक म
थी तो उसे पता ही नह था िक वह कसी ह। अब जाकर कह हाथ म मौका आया। वह गुलाब क फल िलये, इ
लगाकर, रशमी माल बाँध े ए प चा और अपनी प नी क करीब जाकर बैठा। उसने फल पेश िकए और कहा, ‘‘ या
म तु हारा चेहरा देख सकता ?’’ तो वह शरमाई। मु ा ने िफर से पूछा, तो प नी ने ‘हाँ’ क । उसने धड़कते ए िदल
से, काँपते ए हाथ से, जब घूँघट उठाया तो चेचक से भरा आ चेहरा देखा। एक आँख छोटी और दूसरी आँख बड़ी,
नाक भी पकौड़ जैसी, ह ठ भी मोट से थे। मु ा का िदल धक से रह गया।
प नी मन-ही-मन सोचती ह िक मेरी खूबसूरती को देखकर खो गया ह। वह दबी-सी आवाज़ म पूछती ह, ‘‘िमयाँ, म
तु हार घर म िकस-िकस क सामने बेपरदा हो सकती ?’’
मु ा ने जवाब िदया, ‘‘मेर अलावा तू सबक सामने बेपरदा हो जाना। जो देखा, खूब देखा! अब िज़ंदगीभर इसी याद
क साथ जी लूँगा। मेर अलावा बस सबक सामने बेपरदा रिहयो।’’
आपने चुना ह, आपने पसंद िकया ह तो आपको उसक साथ जीना पड़ता ह। आपक मन क िवचार, आपक मन क
जाल बुनते ह और िफर उसी जाल म फसकर आपक बु पीड़ा महसूस करती ह। आपक आस-पास जो ह, वह
आपका बनाया आ ह। अ छा कहो, बुरा कहो, सुखद कहो, दुःखद कहो, इनका िम ण कहो, लेिकन जो आपने चुना,
वही आपक पास ह। आपने जो माँगा, वही आपक पास ह। अब यह बात अलग ह िक आप एक समय क बाद अपने
ही चुनाव पर संशय होने लगता ह। तब आदमी कहता ह िक ‘नह , यह बदलना चािहए, ऐसा नह होना चािहए; यह
बदलना चािहए। ऐसा होना चािहए, जो मेर अनुकल हो, सुखकर हो। यह मेर िलए त़कली़फदायक ह, ऐसा तो मने नह
सोचा था।’
एक बात तय ह िक मन उतना ही नह ह, िजतना आप सोचते ह। मन ब त बड़ा ह। इस मन को समझना हर
आ या मक य क िलए ज़ री बात होती ह। आप मन क खेल को देिखए! कसा माया-जाल रचता ह और िफर
उस माया-जाल म फसकर खुद ही दुःख पाता ह। अगर इस मन क सोच को, मन क कारोबार को आप ठीक से
समझने लग जाएँग े तो िफर मन या ह? िवचार ही तो ह—अशरीरी। एक बार यह समझने लग जाएँग े तो मन का जो
दबाव आप पर ह, वह दूर हो जाता ह। जब तक आप मन को समझते नह ह, तब तक यह मन ब त शैतान ह। देिखए,
आपको कसी िचंता म डालता ह!
एक आदमी एक छोटी सी नौकरी क िलए आवेदन देता ह, पर वह देत े समय भी उसका मन कसा िचंता से भर जाता
ह। िकतने लोग ने आवेदन िदया होगा, समय ब त खराब चल रहा ह, पता नह नौकरी िमलेगी या नह िमलेगी? नह
िमलेगी तो म या क गा? जाने िकतनी बुरी-से-बुरी थितय क बार म मन िवचार खड़ कर लेता ह। यह हो जाएगा,
वह हो जाएगा। अब अगर आशावादी मन होगा, िवधायक सोचने वाला मन होगा तो िफर ऐसी सपन क उड़ान भरगा
और अ छा-अ छा सोचने लगेगा िक ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा। जैसे, गु बारा उड़ जाता ह और हाथ म ही नह
आता, ऐसा ह, िफर तो गया आपका मन। हाथ म ही नह आता।
99.99 ितशत आप वा तिवकता म जीते ही नह ह; वाब क दुिनया रचते ह। आपक िवचार क , आपक
आकां ा क , आपक सपन क दुिनया, आपक ेष और पूव ह क दुिनया ह यह आपका मन।
आप रात को टशन से घर आने क िलए पैदल जा रह थे। चलते-चलते सामने से एक आदमी आता देखा। चौड़ा,
तगड़ा ह और कपड़ थोड़ गंद े से ह। श़ थोड़ी अजीब-सी ह, तो आपक मन ने अलाम बजा िदया िक यह ठग होगा!
इसक पास ज़ र कोई हिथयार होगा, यह काला ह। मारगा भी, लूट भी लेगा, मेरा धन छीन लेगा। कह जान से तो नह
मार देगा! म या क ? आप अगल-बगल देखने लग गए। कोई और आदमी भी नह िदख रहा तो िदल क धड़कन
और तेज़ हो गई, पसीने छट गए, पाँव से चलना मु कल हो गया। इतने म देखा िक वह आदमी तेज़ी से भागते ए
आप ही क ओर आ रहा ह। अब तो हालत िब कल ख ता हो गई िक ‘बस, अब तो गए!’ वह आदमी एकदम सामने
खड़ा आ तो आपने डर से आँख बंद कर ल िक यह तो मारगा। और वह आदमी बोला, ‘ ीमान, आपक कछ कागज
पीछ िगर गए ह।’ वह आपक िगर ए सामान क बार म बताने क िलए भागा आ आया ह, लेिकन आपक मन ने इसे
चोर बना िदया, ठग बना िदया, लुटरा बना िदया!
आपक मन को यह भय िकसने िदया? उस आदमी ने नह , आपक अपने मन ने आपको यह भय िदया ह।
एक पंजाबी गीत ह, िजसम एक िभखारी क बात आती ह। िभखारी भीख माँगते ए एक सा कार क दरवाज़े तक
गया और उसने भीख माँगनी शु क । गीत ब त लंबा-चौड़ा ह, पर उसका सार ह िक भस, गाय रखनेवाले मेरी पुकार
सुन और मुझे एक पैसा दे। अगर एक पैसा नह देगा तो म तुझ े ाप दूँगा। मेरा ाप तुझ े लगेगा तो तेरी भस मर जाएगी।
तेरी भस मर जाएगी तो भूत बनकर आएगी। भूत बनकर आएगी तो तुझ े डराएगी। इससे अ छा ह िक तू मुझ े एक पैसा दे
दे। तू एक पैसा नह देगा तो ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा।
बात तो मज़ाक क ह, पर ज़रा यान से अपने मन को आप देखगे तो आपका मन यही कर रहा होता ह। स संग म
पित-प नी, माँ-बाप और ब े अगर साथ म आते ह, तो ब त अ छी बात ह, लेिकन पित या प नी या िफर माँ-बाप
और ब म से अगर कोई एक आता ह तो न आनेवाले य , जो घर पर बैठ ह, सोचते ह िक यह कह भ न बन
जाए, कह सबकछ दान न कर दे। िब कल बेवक़फ ह। आजकल गु कसे ठग होते ह! देखा नह , टी.वी. म या- या
आया था!
अब यह डर िकसने पैदा िकया? उसक मन ने। मान लो िक प रवार क िजस सद य ने मना िकया और कहा िक
‘ य गया था?’ स संग म जानेवाले य का मन या कहगा? वह कहगा िक ‘तू तो बेवक़फ ह, अ ानी ह, तू तो
अंधा ह; तुझे तो कछ समझ आता नह । हम तो िकतनी अ छी जगह पर गए थे। वहाँ ान क बात होती ह।’ इस तरह
दो मन क आपस म लड़ाई होती रहती ह।
अब इस मन म एक त व ह, िजसे हम कहते ह अहकार। इसी अहकार क कारण य सोचता ह िक ‘जो म कह
रहा , वह स य, जो म कह रहा , वह ठीक और जो आप कह रह हो, वह गलत, अयो य।’ िफर मन क अहकार का
आपस म महाभारत शु हो जाता ह, यह सािबत करने क िलए िक ‘म सही और तू गलत।’ िजस िदन सामनेवाले को
गलत सािबत कर देते ह, कसी सुख क न द आती ह उस िदन! मने तो पहले ही कहा था। ‘मुझ े पता था, तु ह पता नह
था। मेरी बात तुमने सुनी नह । अब पता चला! अब आगे से यान रखना।’ ये मन क खेल ह।
इस मन क दुिनया म फसा आ जीव संसार म दुःख पाता ह। और हम योगी िकसे कहते ह? जो अपने मन को
समझ लेता ह। याद रह, मन ही संसार ह। िजसने मन को समझ िलया, उसने सार संसार को समझ िलया। िजसने मन
का पार पा िलया, उसने सार संसार का पार पा िलया।
इसिलए गु नानकदेव कहते ह, ‘मन जीते जग जीते।’ अगर तुमने अपने मन को जीत िलया, तो तुमने सार संसार पर
िवजय ा कर ली और अगर आप अपने ही मन से हार गए, तो मान ल िक आप पूरी दुिनया से हार गए।
याद रह, दुिनया को जीतना ब त मु कल ह। दुिनया को कोई नह जीत सका। बड़-बड़ िसकदर ने सोचा, िहटलर
जैस ने सोचा, ब त से आप जैस ने सोचा िक वे संसार को जीत लगे। साम, दाम, दंड, भेद से जीत लगे। अपने परचम
फला दगे, लेिकन वे सब हार।
बु , गु नानक, कबीर, रदास, दादू दयाल, इन लोग ने संसार को जीतने क िफ नह क । इन लोग ने अपने
मन को जीत िलया। महावीर, जो जैिनय क िआ़खरी तीथकर ए, उ ह ने वीरता क , कौन से तीर-तलवार चलाए थे,
कौन सी गदा चलाई थी, कौन से दंगल िकए थे, कौन से यु जीते थे? उ ह ने िकसी और से यु नह िकया, उ ह ने
िकसी और को नह हराया। उ ह ने ि़सफ अपने मन को जीत िलया। उ ह ने ि़सफ अपने मन को समझ िलया, उ ह ने
ि़सफ अपने मन क सं कार, इ छा, अपे ा का जाल तोड़ िदया और उससे बाहर आ गए। इसिलए हम उ ह ‘महावीर’
कहते ह। जो तीर-तलवारबाज़ी से दूसर पर िवजय ा कर, वह वीर हो सकता ह, पर जो अपने ही मन को जीत लेता
ह, वही ‘महावीर’ होता ह। इसिलए हम उ ह पूजते ह, हम उनका आदर भी करते ह, उनक ित ा भी रखते ह। पर
या आपक ा ि़सफ इतनी ही होनी चािहए िक उनक तसवीर क आगे आप णाम कर ल, ‘नमो अ रहताय’ बस
उतना पाठ कर ल या िफर उनक तरह अपने मन को जीतने का, अपने मन को समझने का यास कर?
हम इन य य का आदर करते ह, स मान करते ह, उन संत-महा मा क ित ा रखते ह। जब भी हमारा
भारत म या िवदेश म कह जाना होता ह, तब एयरपोट पर कोई िमलने आया हो या लेन े आया हो, तो वे िब कल ज़मीन
पर िसर रखकर णाम कर रह होते ह। अमे रका म िवदेशी लोग जब यह देखते ह तो उनको ब त खराब लगता ह।
उनक श़ से पता चल जाता ह और उ ह खराब लगते देखकर मुझे खराब लगता ह। उ ह कौन समझाए? य िक
उनक िश ण, उनक सं कार म ये सब चीज़ नह आई ह। ह ो, हाय, बाय करनेवाले लोग को कसे समझ हो
सकती ह? उ ह तो लग रहा होगा िक यह कसा अ याचार हो रहा ह? या मानिसक गुलाम बनाया ह? उ ह लगता होगा
िक स मोिहत करक रखा ह िक आते ही िसर ज़मीन पर रखकर झुकने लग जाते ह और कोई-कोई तो रोने लग जाते ह।
यह देखकर उ ह लगता होगा िक िकतना दुःख देते ह गे िक देखते ही रोना आ गया ह, और िफर हाथ जोड़कर खड़ ह!
उ ह लगता होगा िक िकसी बात क िलए मा़फ माँग रह ह गे। उन अमे रकावाल क चेहर पर ऐसे भाव होते ह, जैसे
कह रह ह िक आप इ ह हटर से मारना मत। अर भाई! मेर पास कोई हटर नह ह। पर िज ह पता नह , वे अगर इन सब
चीज़ को देखगे तो मेर बार म या सोचगे?
अब उनक मन ने मेरा या जो मेरा वागत करने आए ह, उन लोग का जो िच बनाया, या वह स य ह? जो इनसान
समझता ह, जानता ह िक रोना ि़सफ दुःख म ही नह आता, खुशी म भी रोना आता ह, उसे यह अजीब नह लगेगा। वे
इतने खुश ह िक मुझ े देखकर खुशी क मार उनक आँख म आँसू आ गए। िजस इनसान को इस भावना का पता ह और
वह देख े िक अपने गु को देखकर इन लोग क अंदर िकतने सुंदर भाव जग रह ह, तो शायद उसका मन भी आनंद से
भर जाएगा।
स य का यथाथ बोध तो िकसी-िकसी को ह। अपने-अपने मन क बनाई ई दुिनया म अपने-अपने मन क सं कार
क जाल म फसा आ मनु य, अिधतकतर जीवन को बस इसी म ख म कर देता ह और अपने ही मन से जो अनिभ
ह, अनजान ह, जो अपने मन क बार म जानता नह , वह सचमुच पीड़ा भोगता ह। सफलता क , मन क शांित पाने क
चाबी यह ह िक ‘आपका मन कसे काम करता ह,’ उसे जान। िफर आपका मन कभी भटकगा नह और जो भी िवचार
आपक मन म आएगा, वह आपक काबू म रहगा।
अभी आपक िवचार बेकाबू ह। अचानक कोई भी िवचार आ जाता ह। वह बुरा भी हो सकता ह, अ छा भी हो सकता
ह, खुशी का भी हो सकता ह, गम का भी हो सकता ह, आनंददायी भी हो सकता ह और उदास करनेवाला भी हो
सकता ह। आप अपने मन को देिखए, तब आपको पता चलेगा िक मन आपक काबू म नह ह।
सच तो यह ह िक आपका मन दूसर क काबू म ह। इसको थोड़ा यान से समझना िक आपका मन दूसर क काबू
म कसे ह? अमे रका म िकसी भी से समैन को इसक बार म मालूम ह। म छोटी-छोटी दुकान क बात नह कर रही ,
म उन महगी दुकान क बार म कह रही , जहाँ अगर आप कछ खरीदने जाएँ तो से सपरसन ऐसे आपसे िमलते ह,
जैसे आप उसक िबछड़ी ई चाची हो। ऐसी चमकती ई मुसकान देते ह, जैसे बस तु हार ब़गैर उ ह न द नह आ रही
थी। मान लीिजए, आप कोई स चुनते ह तो आपक तारीफ म ऐसे पुल बाँध देते ह िक पूछो मत। कहगे, ‘‘ या पसंद
ह आपक !’’
म एक ऐसे ही से समैन को देख रही थी और ज़ री नह िक वह कोई चीज़ ही बेच रहा हो, कभी-कभी आदमी
र ते भी बेचता ह और कभी-कभी इनसान मौका भी खरीद रहा होता ह।
वह से समेन उस मिहला ाहक से कह रहा था, ‘‘मने आपक जैसी मिहला आज तक नह देखी। इतनी सुंदर!
सचमुच म आपका शंसक हो गया । िकतनी सुंदर ह आप! वाह, या बात ह!’’
आप सोिचए िक यह बात िजसे सुनाई जा रही ह, उसका पित उसको कहता ह, ‘‘बेवक़फ, तुझ े अ़ नह ह।’’
ब े कहते ह, ‘‘मॉम, तु ह कछ पता नह िक दुिनया म या चल रहा ह, तो आप चुप ही रहना। आप कछ मत कहो।’’
अब इस औरत को यह अनजान आदमी या कह रहा ह िक आप िकतनी सुंदर औरत ह! आप सोच सकते ह िक
उसक अंदर या चल रहा होगा! उसे ज़ रत नह होगी, तब भी वह कार खरीद लेगी। उसे नह भी चािहए, तब भी वह
उस सामान को खरीद लेगी। य ? उसक उस कमज़ोर रग को उस से समैन ने छड़ िदया।
आपक मन का िनयं ण अिधकतर दूसर क हाथ म होता ह। एक ीमानजी ऑिफस से घर आते ह तो या देखते ह
िक फल सजे ए ह, खाने क मेज़ पर मोमबि याँ ह और ब त अ छी लेट भी लगी ई ह और अ छी खुशबू भी आ
रही ह। घर आते ही, जब उसने यह सब माजरा देखा तो उसका िदल बैठ गया। य ? कहता ह िक ‘आ गया खचा।’
उसे मालूम ह िक ऐसी आवभगत तब होती ह, जब ीमतीजी को कछ चािहए होता ह। वरना तो कहती ह िक ि ज म
खाना पड़ा ह, गरम करक खा लेना। म थक गई और सोने जा रही । और अजब बात यह ह िक आपको या लगता
ह िक िजसको ीमतीजी क इस इरादे क समझ लग गई ह, या वह इससे बच जाएगा? बच िफर भी नह सकता,
य िक इस सुंदर से जाल म वह समझते ए भी फस जाएगा, वह अपने आपको रोक नह पाएगा।
आपक मन का िनयं ण दूसर क हाथ म ह। आपका दुःख-सुख भी दूसर क हाथ म ह। अगर आपक मन का रमोट
क ोल दूसर क हाथ म ह, वे जानते ह िक कौन सा बटन कब दबाना ह। जब आपक मन का रमोट क ोल दूसर क
हाथ म ह और उनक ारा िनयंि त होता ह तो आप एक आम आदमी या औरत हो। पर जब आपक मन का िनयं ण
आपक अपने हाथ म ह, तब आप योगी कहलाते ह। इसिलए मेरा कहना ह िक योगी बन, रोबोट नह । रोबोट एक ऐसा
िखलौना होता ह, जो अ य िकसी य क ारा िनयंि त होता ह। आप पु ष या ी बन और अपने मन पर िनयं ण
पाएँ। यह सबसे बड़ी स ा ह। अगर वह आपक पास ह तो आप महावीर ह। िफर आप एक मामूली इनसान नह रह
जाते, एक िद य पु ष या ी बन जाते ह।
म हमेशा कहती िक अगर आपको हवाई ज़हाज म िबजनेस ास म स़फर करने का मौका िमले तो या आप
इकॉनॉमी ास म जाएँग?े अगर आपको कोई इकॉनॉमी से िबजनेस म मु़ त म अप ेड कर तो या आप इनकार
करगे? नह , िब कल नह । तो िफर जो ताव म आपको दे रही , उसे आप य मना कर रह ह?
अपने मन को िनयंि त करना सीख, य िक आपका मन ही संसार ह, यह मन ही दुिनया ह और अगर आपको अपने
माइड को मैनेज करना आ गया तो आप िजस िव म बस रह ह, उसे मैनेज करना भी आ जाएगा। यह सबसे बड़ी
वतं ता ह और म यही िसखाती । जब स ाट क तरह जी पाने क संभावना ह, तो गुलाम क तरह य जीना?
कबीर साहब का सुंदर दोहा ह। कबीरजी कहते ह—
‘डर-डर मरते जो जाने दूर।
डर चुका देिखया भरपूर॥’
जब तक म परमा मा को अपने आपसे दूर समझता था, म जीवन को डर-डर कर जी रहा था और िजस िदन से मुझे
परमा मा क समझ आई ह िक वह तो मेर भीतर ही ह, हािज़र-नािज़र ही ह, उस िदन से सब डर दूर हो चु़क ह। ‘डर-
डर मरते’ यानी म डर से मरता था। अब जब डर दूर हो गया और देखा िक सब ओर वही ह, मेर भीतर-बाहर वही ह,
तो मेर सब डर दूर चले गए। म हलका होकर आनंद से जीवन जी रहा ।
डर क सब कारण, डर क सब जड़ आपक मन म ह और अगर आप अपने मन क बार म समझ नह रखते ह तो ये
डर भूत बनकर आपको सताते ह। मालूम ह कसे? ऐसे-ऐसे डर ह िक आप उनक ओर देखना भी नह चाहगे। इतना
उस डर से भी डर ह। और ऐसे डर-डर चूह क तरह जीवन जीना, यह कोई अ छी बात नह ह। म त होकर िजएँ,
बेपरवाह होकर िजएँ। पर यह तब तक नह हो सकता, जब तक आपक मन क चाबी आपक पास नह आ जाती।
अब हम यह चचा करगे िक इस मन क चाबी हमार हाथ म कसे आ जाए? या ह वह तरीका, िजसक ारा
भयमु होकर, हम आनंद से जी सक। वह या तरीका ह, िजससे हम हमार मन का रमोट क ोल दूसर क हाथ से
वापस लेकर अपने ही पास रख।
आपको गु सा िदलाना एक िमनट का भी काम नह ह और आपको खुश करना आधे िमनट का काम ह। या
आपको मालूम ह िक आपक दो त कौन होते ह? वे िज ह आपक अ छ वाले बटन का पता ह; और आपक दु मन
कौन ह? िज ह आपक कमज़ो रय वाले बटन का पता ह। दो ती-दु मनी या होती ह? जो एक-दूसर क कमज़ो रय
को ढकता रह, वह हो गया दो त और जो आपक कमज़ो रय का फायदा उठाना चाह, वही दु मन आ। जो आपक
कमज़ो रय को सबक सामने ज़ािहर कर दे, वह आपका दु मन और जो आपक कमज़ो रय पर परदा डाल दे, वह
आपका दो त होता ह। अ छा, हम आपक कमज़ो रय पर से परदे उठाते ह, िफर हम तो दु मन ए। ह न अजीब
बात!
‘रहरास साहब’ (गु ंथ साहब का एक िह सा) म एक सुंदर पं आती ह—
‘कािम करोिध नगर ब भ रआ िमिल साधु खंडल खंडा ह॥
पूरिब िलखत िलखे गु पाइआ मिन ह र िलव मंडल मंडा ह॥’
इसका मतलब ह िक जब म साधु क पास गया तो मेर मन म जो काम, ोध क काँट चुभ रह थे, उन सबको उसने
िनकाल िदया। मन पी नगर काम से भरा पड़ा ह। काम यानी कामनाएँ, इ छाएँ। मन ोध से भरा आ ह। इतने काँट
िजस क िदल म गड़ ह , वह सुख क न द कसे सोएगा? मेर संत पी वै ने मेर सब काँट िनकाल िदए और मेर मन
क िलव को ह र क मंडल क साथ जोड़ िदया; उसने मेर मन को परम चेतना क साथ जोड़ िदया।
अ छा, यह कसे आ? कहते ह िक ज़ र कछ पूव का कम होगा। ‘पूरब िलिखत िलखे गु पाया’ ज़ र कछ पूव
क कम ह गे, िजनक कारण स संग िमला। अ यथा भटकते रहते और कभी अपने मन क पीड़ा से मु न हो पाते।
अब मन जुड़ गया ह, तो अब शांत , सुखी और आनंिदत ।
आनेवाले करण म इसी आनंद क िदशा म कदम बढ़ाएँगे। यह अवसर िमला, इसक िलए भु का ध यवाद, उस
परमे र का बारबार ध यवाद।

या आप अपने मन क आयु जानते ह?
‘साँस साँस िसमरो गोिवंद
मन अंतर क उतर िचंद।’

ह र साँस-साँस म गोिवंद का मरण कर। आपक मन क सारी िचंताएँ दूर हो जाएँगी। मन क िचंता से मु पाने
का उपाय ह—‘साँस साँस िसमरो गोिवंद।’
हर साँस, जो भीतर जा रही ह, वह जीवन दे रही ह और हर साँस, जो बाहर जा रही ह, मृ यु क सूचक ह। इसिलए
समझदार इनसान को इस बात को जान लेना चािहए िक मृ यु िकसी एक घड़ी म नह होती ह, पर मृ यु उस हर बाहर
जाती ई साँस म हो रही ह; य िक एक बार बाहर गई ई साँस वापस अंदर जाएगी या नह जाएगी, इसक कोई गारटी
नह ह।
इस अ पकाल म, छोट से जीवन क अविध म हमने अगर इस बात को नह समझा, अगर इस बात को नह जाना
िक म कौन ? कहाँ से आया ? मन या ह? मन कहाँ से आता ह? कसे काय करता ह? तो एक बात तो तय ह िक
िजस बेहोशी क साथ आप जी रह ह, एक िदन इस बेहोशी म ही आप मर जाएँगे और िफर एक गहर अंधकार म तु हारी
चेतना खो जाएगी और उसक बाद आपका ज म कहाँ होगा, कसा होगा, इस िवषय म कछ कहा नह जा सकता। यह
आव यक नह ह, जो इस बार मनु य आ ह, वह िफर से मनु य ही हो। इसक भी गारटी नह ह िक एक बार शरीर
छट जाए तो आपको दूसरा ज म भी ज दी िमल जाए। जैसे कई योगी, िज ह अपने अंतरमन का ब त गहर से पता लग
गया था, िज ह ने अ ान क परदे को उठाकर अपने पूवज म को भी जाना और समझा था, उ ह ने अपने जीवन क
िवषय म यह बात बताई ह िक एक ज म क बाद दूसर ज म म कभी-कभी तीन सौ वष भी ए, कभी-कभी छः सौ वष
भी ए और कभी-कभी एक-एक युग बीत जाता ह और ज म नह होता।
शा म यह बात आई ह िक मानव ज म ब त क मती ह, तो यह कोई हवा म उड़ाई ई ग प नह ह। इसे इस तरह
समिझए िक एक म छर का जीवन दो िदन से यादा नह होता और कछ एक म छर का जीवनकाल तो कछ घंट का
ही होता ह। इतने समय म वे पैदा भी हो जाते ह, बड़ होकर आपको डक भी मार जाते ह, खून भी चूस जाते ह और
एक थ पड़ पड़ा और म छर मर भी गया। अब इस म छर का जीवनकाल िकतना छोटा! वैसे ही क का जीवन िकतने
साल का ह? पं ह, सोलह या अठारह साल का। कई लोग कहते ह िक हमार पास वह क ा था, वह मर गया, िफर
हमने दूसरा िलया, िफर तीसरा, अब चौथा क ा ह। तो इस मनु य ने पसठ-स र साल क आयु म िकतने क े उसने
पाले और िकतने उसक सामने मर गए!
मेर प रचय म एक योगी महा मा ह, िजनक उ लगभग एक सौ आठ साल से भी यादा ह और जब वे बात करते
ह िक 1870 म यह आ था और वे ऐसे बात करते ह, जैसे वह कल क बात हो। उनक या ा त एकदम तेज़ और
उनका वा य एकदम उ म ह। जब वे बात करते ह 1910 क , तब लगता ह जैसे कल क ही बात बता रह ह। ऐसे
ब त सार योगी ए, जो 500 साल तक िजए। सबसे नवीन उदाहरण वामी माधवानंद सर वती का ह। वह ‘तोतापुरीजी
महाराज’ क नाम से िस ए। वह वही संत ह, िज ह ने रामक ण परमहस को वेदांत ान करवाया था। तोतापुरीजी
महाराज 425 साल िजए। आप सोचकर देिखए, जब वे अपने सामने जमाने को देखते ह और लोग को जवान और बूढ़ा
होते ए देखते ह, तो वे यह बात भी देखते ह िक जो मरा, वह गया कहाँ?
यह मानव क मन क मूढ़ता ह, जो यह वीकार करने से मना करता ह और इसे ग पबाजी समझता ह। लेिकन ऐसे
तरीक और प ितयाँ ह, िजनक ारा आप िन त ही अपने पूवज म को देख सकते ह। हालाँिक अमे रका म और
अ य देश म भी पूवज म से संबंिधत पा ट लाइफ र ेशन थेरपी ह, पर उसक बार म मुझे संदेह ह और मुझ े आशंका ह
िक या सचमुच वह आपको अपने पूवज म तक ले जाते ह, या िफर वह िदवा व न क का पिनक ंखला ही होती
ह!
मूलतः एक बात जो आपको समझनी ह िक यह शरीर ब त छोट काल क िलए िमला ह। शा ानुसार बात कर तो
योितषशा और पाराशर होराशा और अ य अनेक योितष ंथ क अनुसार, कलयुग यानी िक यह युग, िजसम हम
जी रह ह, एक सवसामा य मनु य क आयु 120 साल कही गई ह। लेिकन 120, 115 या 108 साल का य ढढना
मु कल हो जाएगा। अगर आप ढढगे तो आस-पास कह 90-95 साल का कोई य िमल जाएगा, पर यादातर वह
इनसान मौत क इतज़ार म िनराशाजनक िज़ंदगी जी रहा नज़र आता ह, य िक उसक इि याँ काम नह करती ह गी,
उसक शरीर क अंग चल नह रह ह गे, िदमाग काम नह कर रहा होगा और उसका घूमना-िफरना भी मु कल हो गया
होगा। हालाँिक शा कहते ह िक कलयुग म सबक आयु 120 साल होनी चािहए। अगर आप कछ िनयमानुसार जीवन
को िजएँ तो यह संभव ह। मुझे यह कहते ए क हो रहा ह, पर यही सच ह िक इस तरह का जीवन आप लोग
िब कल नह जी रह ह।
अनजाने म आप लोग अपने जीवन म इतनी गलितयाँ और भूल करते ह और मुझे समझ म नह आता िक आप यह
प रवतन य नह लाते? मुझे लगता ह िक आप अपने अ ान, अपनी पीड़ा और मनः ताप क ेम म ह। यही ही वजह
ह िक आपक जीवन क क दायक थित म से बाहर आने क िलए कछ ठोस करने म आपको िच नह ह। होता ह,
यह भी होता ह िक अपने दुःख से भी मोह बत हो जाती ह, िब कल हो जाती ह।
मने सुना ह िक ांस म जब ांित ई थी, तब ांितका रय ने पचास, साठ, स र साल से जेल म बंद पुराने किदय
को उनक कोठ रय म से बाहर िनकाला। उन किदय क पाँव म बेि़डयाँ ह, हथकड़ी लगी ई ह और उनको घसीटकर
बाहर िनकाला गया, पर वे बाहर आने को ही तैयार नह , य िक िपछले चालीस-पचास साल से िजस कोठरी म वह रह
रहा ह, जहाँ धूप नह आती, साल से वह नहाया नह ह, क े क तरह िजसक आगे रोटी फक दी जाती थी, जानवर
को जैसे पानी पीने को िदया जाता ह, वैसे ही नाली बनाकर रखी थी, जहाँ से वे पानी पीते थे और वह पर शौच, पेशाब
होता रहा। साल उस कोठरी म िबताए और जब उनक आज़ादी का िदन ांितका रय ने लाकर िदया तो वे हरान हो
गए, य िक ांितकारी उ ह बाहर लाते थे और वे वापस उ ह कोठ रय म जाकर बैठ जाते थे। वे गाली देते थे िक
हमसे रोशनी बरदा त नह होती, हम बाहर नह आना। हमारी यही दुिनया ह, आप हम बाहर य िनकालना चाहते ह?
ांितका रय को ज़बरद ती घसीट-घसीटकर उन किदय को बाहर ख च-ख चकर लाना पड़ा। बारह सौ से यादा कदी
थे। वे सार राजनैितक कदी थे। स ाधीश को िजन पर गु सा था, उन सबको पकड़कर जेल म डाल देते थे।
इन किदय को जब ांितका रय ने बाहर िनकाला तो वे हरान रह गए। जब उ ह ने पाया िक सुबह िजन किदय को
उ ह ने खुले मैदान म बैठा िदया था, आज़ाद कर िदया था, वे सुबह अपनी कोठ रय म वापस उ ह हथकि़डय को
पहने ए पाए गए। उनसे जब ांितका रय ने पूछा िक ये तुमने य िकया? तब किदय ने कहा िक इतने वज़न क साथ
इतने साल रह ह, अब इसक ब़गैर न द नह आती तो वे हथकि़डय को िफर से अपने हाथ म डालकर और जंजीर को
पैर म बाँधकर िफर से उ ह कोठ रय म जाकर बैठ गए। पर ांितकारी भी ढीठ होते ह। वे तो ांित लेकर आएँगे, भले
आप लाना चाह या न चाह, वे तु ह मु कराकर रहगे।
कभी-कभी आप लोग को देखकर ऐसा ही लगता ह िक इसी दुःख और िवषाद भर जीवन को जीने म तु ह बड़ा
सुख िमलता ह। इसिलए सुनकर भी आप वह प रवतन जीवन म नह ला पाते, िजस प रवतन को म आपक अंदर आता
आ देखना चाहती ।
इस मन ने लंबे समय तक ऐंि क भोग को भोगा ह और उसी म सुख पाया ह। कभी आपने देखा िचि़डया को?
िदनभर या करती ह? दाने ढढती रहती ह, खाती रहती ह। क ड़-मकोड़ ढढती रहती ह, खाती रहती ह। आप खयाल
क रए मानव-शरीर म आपको ब त से िचि़डया-िचि़डए िमल जाएँग े आपको। खाते रहते ह िदनभर थोड़ा, थोड़ा, थोड़ा।
आपने देखा, कई बार बेवजह क ा भ कता रहता ह। इनसान म वे ही आपको िमल जाते ह। बेवजह बोलते रहते ह।
आप अपने िपछले ज म क ल ण साथ म लेकर आते ह। जो सबसे हालवाला (recent) होता ह, वह आपक साथ आता
ह। ऐसी भी प ितयाँ ह, िजनक गूढ़ रीत और िगनती पर से कहा जा सकता ह िक इससे पहले क ज म म आप कौन
सी योिन म थे—पशु, प ी, मानव, देवता, िपतृ या दोन , कौन थे आप, यह जाना जा सकता ह।
हम शरीर क साथ तो ब त कम समय िबताते ह, शरीर तो ब त ज दी चला जाता ह, पर इस शरीर क अंदर जो मन
ह, वह वही रहता ह। आपक शरीर क उ 30, 50, 60 कछ भी हो सकती ह। जब से पैदा ए, तब से िगनती शु हो
गई, लेिकन म आपसे पूछती िक आपक मन क उ या ह?
बचपन म जब आप उस छोट से एक फ ट या डढ़ फ ट क शरीर म थे और उ क िलहाज़ से क तो पाँच-छः या
आठ साल क थे और नाक प छनी भी नह आती थी, लेिकन शरीर क अंदर खुशी या गम क जो भावना होती थी, वह
आज भी वैसी ही होती ह। फ़क ि़सफ इतना ह िक पहले एक गुि़डया, पतंग, कचे खेलकर खुश हो जाते थे, पर अब
बी.एम.ड यू. देखकर खुश होते ह, हीर, सोना देखकर खुश होते ह। मतलब िजन चीज़ से मज़ा आता था, वे बदल
गई ह, पर भावना तो वही ह। बचपन म जो टॉफ खाई थी और उसका जो वाद आया था, वह वाद आज टॉफ क
पूरी दुकान खरीदने क मता होने क बावजूद नह आता। वह टॉफ या उस गुड़ या पूरनपोली खाने म जो मज़ा आता
था, उन सारी चीज़ को िजतनी चािहए, उतनी खरीदकर खा सकते ह, पर वह मज़ा नह आता। चीज़ तो खरीद लेत े ह,
पर वह वाद आज नह आता, य िक िफर याद आ जाता ह िक पेट दुःखेगा, पेट सा़फ नह होगा, वह िफ आ जाती
ह साथ म।
शरीर मन का यं ह। शरीर क आयु ह, पर मन क कोई आयु नह । अगर म पूछ िक आपका मन िकतना पुराना ह,
तो आप िहसाब नह लगा सकगे, धारणा नह कर सकगे।
म िस ाथ गौतम बु का उदाहरण देती । बु ने बताया ह िक उ ह ने अपने पूव क दस हज़ार ज म को देखा
ह और उन ज म का िव तृत िववरण िदया ह। यह पूरा िववरण ‘जातक कथा’ नाम क ंथ म उपल ध ह। उसम बु
ने बताया ह िक वह कब कबूतर, हाथी, िहरन, ा ण, शेर क शरीर म थे। उन सब का िववरण उसम िदया ह। खुद
बु ने अपने पूवज म क बार म जो बताया, उसे िलखा गया ह। तो बु क िलए हम कह सकते ह िक उनक मन क
आयु दस हज़ार साल थी। िजस िदन उ ह ने यह िववरण देना शु िकया िक सबसे पहले ज म म वे कौन थे, तो मन तो
उसक पहले भी था।
यह बात समझाने क िलए अब म आपको दूसरा उदाहरण देती । भारतीय धम म और खासकर िहदू धम म अनेक
देवी-देवता, अवतार ह। िकतने ही पुराण, ंथ, सं दाय, माग ह, पर आपका झुकाव िकसी एक देवता, िकसी एक
पुराण, उपिनष या िकसी एक भगवान क नाम क ित ह। आप भले सबका आदर कर, णाम कर पर िकसी एक क
ित आपका आकषण होता ह। जैसे िकसी क िलए ीराम, तो िकसी क िलए ीक ण या िफर िशव, तो िकसी क िलए
िनगुण, िनराकार परमा मा। आपने कभी सोचा ह िक ऐसा य ? म आपको बताती । संभव ह िक आप उस समय वहाँ
मौजूद थे शायद और िकसी आकार या शरीर म। हो सकता ह िक आपको सीधा अनुभव ब त करीब से या िफर दूर से
आ हो। अगर आप उस व़ उसम सहभागी ए हो तो उस समय क छाप आपक मन पर ब त गहर अंिकत हो गई
होगी।
मान लो, आपक 100 ज म हो चु़क ह, तो यह ज़ री नह िक हर बार आप िहदु तान म ही ज मे हो। आप िकसी
और देश म, सं कित म, े म, कह भी ज मे हो सकते हो। यह पृ वी ब त िवशाल ह, पर आपका मन उन सब याद
को सं ह करक रखता ह। मन एक ऐसी हाड िड क ह, जो कभी न नह होती, वह कभी खराब नह होती, कोई
वायरस उसका नाश नह कर सकता, सारी सूचना सुरि त रहती ह।
मेर पास एक न आया ह िक मन, बु और अहकार का आपस म या संबंध ह? अब तक हमने बात क िक
मन या ह? मन ह िवचार। अब म यहाँ पर आपका सि य सहकार चा गी।
मेर हाथ म यह या ह? (हाथ म रखी ई चीज़ िदखाकर पूछते ए) कछ लोग ने कहा, ‘फल, प ी ह।’ कछ ने
कहा, ‘कागज का टकड़ा।’ यह कागज का टकड़ा ह, यह आ िवचार। इस िवचार पर जब आपने मंथन िकया िक यह
सच म कागज ह या फल क प ी, तो यह िन य करनेवाली ह आपक बु । यह फल क प ी ह, यह िवचार कहाँ
से आया? आपक िच से। िच माने टोरक पर, जहाँ सब मृितयाँ ह। आपने कभी फल को हाथ म पकड़ा ह, िकसी
फल क दुकान से खरीदा ह, कभी मंिदर म चढ़ाया ह, हाथ से पश भी िकया ह। तो जब आपने फल को देखा था,
छआ था, तो वह मृित आपक िच म संगृहीत हो गई और अब जब िफर से मेर हाथ म ये फल क पि याँ आपक
आँख ने दुबारा देख , तो देखते ही मन म िवचार आया िक यह तो फल क प ी ह। अगर आपने जीवन म कभी प ी
देखी न होती तो आप पहचान नह पाते िक मेर हाथ म या ह। आपने कभी फल देखा ह, गुलाबी रग का कागज देखा
ह। यह फल क प ी ह या कागज ह, यह कहाँ से आया? िच म से। िच माने टोरक पर। तो हम कह सकते ह िक
सारी मृित का वहाँ सं ह आ ह और जब उसक ज़ रत होती ह, तो वह मन क सतह पर आती ह। बात थोड़ी
ट कल हो रही ह, पर इसे ठीक से समझ लेना।
म आपको एक बात सुनाती । म पहली बार जब ऋिषकश गई, तब मेरी उ 18 साल क होगी। उस समय मेर
साथ एक मिहला थी, उ ह लेकर म पहली बार ह र ार, ऋिषकश गंगाजी का दशन करने क िलए, तीथ करने क िलए
गई थी। घर से आज़ाद, य िक घर का कोई सद य माँ, बाप, भाई, बहन कोई मेर साथ नह था। घर क लोग क
आ ा लेकर िनकली थी, य िक घर म रहती थी, तो आ ा भी लेनी पड़गी। अकले तो नह भेजते, तो जब मने कहा िक
‘यह मिहला मेर साथ ह’, तो उनक उ देखकर प रवारवाल ने कहा िक ‘ठीक ह, चले जाएँ।’
वहाँ हर क पौड़ी क पास एक रहड़ी म मने नारगी रग का चमकदार एक फल देखा। मुझ े ब त आकषक लगा। मने
पूछा, िक ‘‘ये या ह?’’ दुकानदार ने कहा, ‘‘इसका नाम खटलपटल ह।’’ उसने तुरत छोटा सा टकड़ा मुझ े िदया और
कहा, ‘‘आप इसे चिखए।’’ मने जब खाया तो ख ा था। थोड़ा सा वाद लगा तो मने कहा, ‘‘ठीक ह, दे दो।’’ शायद
आधा िकलो िजतना िलया। सोचा िक हम दोन खाएँग।े उसे लेकर गंगाजी क िकनार बैठ गए। गंगाजी क पानी से ही
धोया और उसे खाने लगे। ख ा भी था, पर वाद भी लगा तो खाते गए। िफर िजस धमशाला म क थे, वहाँ गए। राि
का भोजन िलया और सो गए।
सुबह उठी तो गला ब त दद कर रहा था। इतना िक बोला भी न जाए। लगा िक यह या हो गया अचानक! डॉ टर
क पास जाना पड़ा, य िक आवाज़ भी बंद हो गई थी। गले से आवाज़ ही नह िनकल रही थी। डॉ टर को जैसे-तैसे
समझाया िक रात को सो गई थी, पर सुबह जब उठी तो अचानक से ऐसा हो गया। डॉ टर ने गला चेक िकया और
पूछा, ‘‘अ छा, कल रात या खाया था? यह ज़रा बताइए।’’ आयुवदाचाय सबसे पहले पूछते ह िक या खाया था? तो
मने कहा, ‘‘खटलपटल।’’ तो वह ज़ोर से हस पड़। उ ह ने कहा, ‘‘इस फल को एक या दो से यादा नह खाना
चािहए।’’ मने कहा, ‘‘हम लगता ह िक हम तो 300-400 ाम खा गए ह गे।’’ डॉ टर ने कहा, ‘‘जी, अब तो भुगतना
पड़गा।’’ उ ह ने दवाई दी और कहा, ‘‘इसे ठीक होने म चार-पाँच िदन तो आराम से लग जाएँग।े ’’
थोड़ समय पहले जब हम ह र ार गए ए थे तो मुझे रहड़ी पर पक ए वे फल िदखाई िदए और उ ह देखते ही
पुरानी घटना याद आ गई। और देखो उसे आज भी हम आपको सुना रह ह। वह घटना जब ई थी, तब मेर शरीर क
आयु अठारह साल क थी। यह पुरानी मृित कहाँ से िनकली? िच से। कभी-कभी हम अपने तीन वष क आयु म जो
कछ घटनाएँ ई थ , उसका भी अ छ तरीक से वणन कर पाते ह। यह य पर िनभर करता ह िक वह िकस उ तक
क मृित को याद कर पाता ह। कई लोग को तो दो घंट पहले या बात ई थी, वह भी याद नह रहती।
हम चाय म चीनी डालते ह, पर िफर याद नह आता िक िकतनी चीनी डाली थी। दो च मच या तीन, यह पता नह
रहता। अर, अभी तो अपने हाथ से डाली और आपको ही पता नह ? य िक मन इतना िवचिलत ह, मन इतना यादा
िवचार क वाह म खोया आ ह िक खुद आपने अपने हाथ से या िकया, वह आपको याद नह रहता।
मन ह, िवचार और िच ह, िवचार का टोरक पर। बु या ह? जो चीज़ आप देखते ह, उसक बार म पुनः-पुनः
िवचार करक, जब िन य हो जाता ह तो यह िन य आपक बु से आता ह। आपक बु से पुि हो जाती ह।
अहकार या ह? जब आपने कहा िक आपक हाथ म जो ह, वह फल क प ी ह, आपका यह िन यपूवक कहना
अहकार ह।
यह वह अहकार नह , िजसे अं ेजी म ‘इगो’ कहते ह। यहाँ अहकार का मतलब ह—‘मुझ े पता ह’।
अ छा, इस संदभ म एक अभी थोड़ समय पहले घटी ई मज़ेदार घटना सुनाती । अभी थोड़ समय पहले जब म
अमे रका गई थी तो मेर साथ जो थे, वे मेरा सामान ले रह थे तो म उनका इतजार कर रही थी। तब एक मिहला, जो
अपने सामान का इतज़ार कर रही थी, वह मुझ े देख रही थी। अचानक उसने मुझसे पूछा, ‘‘गाना गाते हो?’’
अब इस तरह से कभी िकसी ने मुझ े पूछा नह था। म गाती , पर गाियका नह , तो मेरी समझ म नह आया िक
या जवाब दू,ँ इसिलए म ि़सफ मुसकराई।
पर वह बार-बार पूछती रही, ‘‘टी.वी. म आते हो न? गाते हो न?’’
िफर पूछा, ‘आपका नाम या ह?’
वह मुझसे थोड़ा दूर खड़ी थी और वह से िच ाकर पूछ रही थी, ‘नाम या ह?’
म थोड़ा संकोच अनुभव कर रही थी, . य िक यूँ भी मुझे अपना नाम कहते थोड़ा संकोच ही होता ह। मने जवाब नह
िदया तो उसने िफर से मेरा नाम पूछा और मेरी तऱफ िचढ़कर देखने लगी। िफर से बोली, ‘‘आपका नाम या ह? म
थोड़ा भूल गई!’’
मने कहा, ‘‘अ छा ही ह न, अगर भूल गई तो! अब उस बात को जाने दे।’’
िफर भी वह पूछती रही, ‘‘मुझे याद नह आ रहा, ज़रा बताइए, आपका नाम या ह?’’
मने कहा, ‘‘जाने दो। भूल गई हो, वह ही अ छा ह।’’
पर उसने कहा, ‘‘नह , मुझे जानना ह िक आपका नाम या ह?’’
तो मने धीमी आवाज़ म कहा, ‘‘गु माँ।’’ मुझे अपने आप क िलए ऐसा संबोधन करने म अजीब लग रहा था। मुझे
पता था िक म ब त धीमी आवाज़ म बोली थी, इसिलए उसे नह सुनाई िदया होगा।
उसने ज़ोर से पूछा, ‘‘ या? या कहा आपने?’’
मने कहा, ‘‘ लीज़, ज़रा आप करीब आइए, िफर म आपको बताती ।’’
अब उसने कहा, ‘‘जाने दो।’’
यह सबसे मज़ेदार बात थी िक अब वह कह रही थी िक ‘जाने दो।’
एयरपोट पर फोटो िनकालने क अनुमित नह होती ह, वरना मने उसक फोटो ज़ र िनकाल ली होती, य िक िकसी
ने भी कभी मेर साथ इस तरह से बात नह क ह। म तो वहाँ बैठकर हस रही थी। वह अपना सूटकस लेकर चली गई।
वह एक अजीब अनुभव था। वह मुझ े देख रही थी, उसने मुझे पहचान भी िलया था, पर िफर भी उसे प ा नह हो
रहा था िक म कौन ; य िक उस मिहला क बु यह मािणत नह कर रही थी, इसिलए वह मुझ े पूछ रही थी और
ऊपर से म उसे पुि नह दे रही थी िक म वही , जो वह समझ रही ह। मतलब उसका िच दुिवधा म था िक िजसे
वह देख रही थी, वह कौन ह?
मन, बु , िच अथवा अचेतन मन और अहकार ऐसे चार ह; पर ह़क ़कत म वे चार अलग-अलग नह ह। वे चार
अलग-अलग काम कर रह ह, इसिलए चार िविभ नाम ह। हम उसे एक नाम से भी बुला सकते ह। जैसे, तु हारा
चेतन मन, अवचेतन मन क सहायता क ब़गैर काम नह कर सकता। जब आप ाइिवंग करते ह, तब ऐसा कह सकते
ह िक आपका चेतन मन तो दस ितशत ही काम करता ह, जबिक न बे ितशत काम तो आपका अवचेतन मन ही
ाइिवंग कर रहा होता ह। याद कर, जब आप पहली बार ाइिवंग करना सीख रह थे, तब आप टय रग हील को
िकस तरह ज़ोर से पकड़कर बैठ थे, जैसे वह कह भाग जानेवाला हो! जब िसखानेवाला कहता था िक िगयर बदलो,
च दबाओ तो आप गड़बड़ा जाते थे िक च कहाँ ह? आपको प ा पता नह चलता था िक च कहाँ ह! वह
आपको च दबाने को कह रहा हो और आप पैर ए सेलरटर पर दबा रह होते ह। या िफर वह आपको ेक दबाने को
कह रहा हो और आप ए सेलरटर दबा द। सबकछ गड़बड़ होता था। िवदेश म अलग बात ह िक ाइिवंग सीखने क
िलए अलग े होता ह, जहाँ ाइिवंग िसखाई जाती ह, पर भारत म तो कह भी सीखने क आज़ादी ह! हाइवे पर अगर
कोई कार चलाना सीख रहा हो तो उसका चेहरा देखकर आप कह सकते ह िक वह गाड़ी चलाना सीख रहा ह, य िक
उसक आँख ऐसे होती ह जैसे बाहर िनकल आई ह । और लगता ह िक उसक हाथ टय रग हील क साथ िचपक गए
ह , ऐसे ज़ोर से पकड़ा आ होता ह। वह आस-पास देखने क िलए तैयार नह होता ह। अगर आप उससे बात करने क
कोिशश कर तो वह गु से म िच ाएगा िक ‘चुप करो! िदखता नह िक म ाइिवंग कर रहा ।’ लेिकन एक बार चेतन
मन ारा वह सीख िलया गया और सारी जानकारी अवचेतन मन तक प च गई, तो अब आप खाते-खाते या बात करते
या िफर गीत गुनगुनाते ए भी ाइिवंग कर सकते ह। आपको सोचना नह पड़ता िक अब पहले िगयर म से कार दूसर
िगयर म या िफर तीसर िगयर म डालनी ह या ेक क िलए कौन सा पैडल ह और च क िलए कौन सा ह।
जो सूचना आपक अवचेतन मन म चली जाती ह, उसक बार म आपको यादा सोचने क ज़ रत नह रहती। छोट
ब को जब आप िसखाते ह तो बार-बार दोहराना पड़ता ह—आँख, नाक, कान और िफर इस तरह दोहराते ए सूचना
उसक िच म प च जाती ह। तब िफर उसको दुबारा दोहराने क ज़ रत नह रहती ह।
िच या ह—हमारी मृितय का टोरक पर। जहाँ सि य सोच चलती ह, वह ह मन। जहाँ िवचार का वाह चलता
ह, उसे कहते ह मन। जहाँ िवचार का िन य हो जाता ह, उसे हम कहते ह अहकार। तो मन, बु , िच , अहकार
आपस म एक-दूसर से जुड़ ए ह। हम यह भी कह सकते ह िक उनक काय क िभ ता क वजह से हम कहते ह िक
वे चार ह, पर असल म वह एक ही ह। उसे आप चाह मन कह या बु या िफर अहकार कह, लेिकन अगर हम
उनक काय णाली को देख तो जो िवचार आते ह, वह मन, जहाँ से िवचार आता ह वह िच , िजसने उसक पुि क ,
वह अहकार और िजसने इस िवचार को मािणत करने क ि या क , वह ह—बु ।
आपका चेतन मन, िजसे हम ि़सफ मन कहते ह, उसम ब त से िवचार चलते रहते ह। िकतने िवचार चलते ह?
अनेक िवचार चलते ह। गुरबानी म सुंदर पं आती ह—
‘कब मनवा उब चढ़त ह
कब जाए पाली
लोभी मनवा िथर ना रहत ह
चार कटा पाली’
इसका अथ ह िक आपका मन हमेशा कछ न कछ सोचता रहता ह। अभी वहाँ क सोच, अभी इस देश क सोच,
कभी परदेस क सोच, कभी िबजनेस क , कभी शॉिपंग क , कभी कोई पैदा हो गया, उसक , तो कभी कोई मर गया
उसक । सोच पर कभी कोई ेक लगती ही नह । पता नह इस मन म कौन सा तेल पड़ा ह िक ख म ही नह होता! मन
क ऊपर कोई लगाम ही नह ह।
आप शरीर से जहाँ होते ह, वहाँ आप मन से कभी पूर हािज़र नह होते। जब आप यहाँ बैठ ह तो खयाल वहाँ का
और जब आप वहाँ ह तो खयाल यहाँ का ह। जब आप घर म होते ह तो खयाल मंिदर का आता ह िक मंिदर जाना ह,
वहाँ स संग ह। जब आप मंिदर प चते ह तो खयाल घर का आता ह िक घर अकला छोड़ा ह, पीछ से चाबी नह िमली
होगी, खाना नह बना होगा, तो या होगा? आप ब े क पास बैठ ह तो खयाल आपको आपक पितदेव का आ रहा ह।
आप पितदेव क पास बैठ ह तो ब े क बात करते ह िक पता नह कल से आया या नह । पता नह कहाँ चला गया,
िफ म देखने चला गया या िफर कह और चला गया। आप घर म बैठ ह तो याद आ रही ह िक शॉिपंग करनी ह, घर
का सामान लाना ह, स ज़ी खरीदनी ह। जब बाज़ार प चते ह तो खयाल आता ह िक मेर उस र तेदार ने िमलने आना
था, कह पीछ से वह ही न आ जाए।
अब एक बात देिखए िक जब आपक अंदर िवचार क इतनी भीड़ लगती ह, तो आँख क सामने या हो रहा ह, वह
आप हमेशा चूक जाते ह। जैसे, मान लीिजए, आपक और हमार चेहर क बीच म कपड़ा आ जाए तो आप िकसको
देखगे? कपड़ को ही देखगे! हम तभी देख पाएँगे, जब बीच म कोई परदा न हो! इसी तरह आँख और मन उसक बीच
म ह—बु । जैसे, मान ल िक उस समय आप आँख से सफद गुलाब को देख रह ह, पर इसक पहले ही मन दौड़कर
बीच म आ जाता ह। जैसे, यह फल पता नह कौन लाया होगा? इस फल क िक मत िकतनी अ छी ह या िफर इनक
हाथ म जो फल ह, वह मुझ े िमल जाए या इस रग क साड़ी मेर पास नह ह, यह हरा रग अ छा ह, हरा रग अगली बार
पाट म पहनूँगी तो अ छा रहगा।
अब आपक नज़र म एक फल आया, अब उसक पहले िक जो बात म इस फल क संदभ म कह रही , उसे
समझने क बदले आपका मन दौड़कर बीच म आ जाता ह। अब जब आपका मन बीच म आ जाएगा तो उस फल क ,
जो बारीक ह, उसे आप चूक जाएँग।े
आपने अपने हाथ से गैस पर चाय का पानी चढ़ाया था, अपने हाथ से च मच से उसम चीनी डाली, पर जब हाथ
चीनी डाल रह थे तब आपक िच से िवचार क बौछार हो रही थी। सुबह म िकसी ने कछ कह िदया हो या िफर ब े
ने कोई बदतमीज़ी कर दी हो, कोई िबल भरना बाक हो या कोई बीमार हो गया हो और उसे देखने जाना हो या आपक
बॉस से या ऑिफस क सहयोगी से संबिधत कोई बात हो और इन खयाल म उलझे ए आपने चाय म िकतने च मच
चीनी डाली, वह आपक बु िगन नह पाई; य िक आपक बु िवचार म य त हो गई थी।
म आपको एक योग देना चाहती । आप सेकड क सुईवाली घड़ी अपने सामने रख और एक िमनट तक आपक
मन म िकतने िवचार आते ह, उसे नोट कर। यह योग आप कह भी या कभी भी करक देखना। घर म, बगीचे म,
ऑिफस म कह पर भी बैठ ए कर सकते ह। घड़ी को सामने रखकर देख िक एक िमनट म मन म िकतने िवचार दौड़
जाते ह। धीर-धीर आपको लगेगा िक िवचार क सं या बढ़ने लग गई ह। पर इसका कारण यह नह ह िक आपका मन
यादा सोचने लगा ह, पर य िक ब क आपक अपने मन को देखने क मता बढ़ने लगी ह।
यहाँ बैठ ए एक स न ने कहा िक एक िमनट म आठ िवचार आए तो दूसर ने कहा िक अ ाईस िवचार आए।
िकसी ने कहा िक एक भी िवचार नह आया। अब सोच िक औसतन पं ह िवचार भी आए, ऐसा मानकर चल तो हर
िवचार ने आपक पाँच सेकड िलये, तो उतने समय क िलए आप वतमान ण और वतमान वा तिवकता से कट गए।
इतने सेकड हो गए, यह भी एक िवचार ह और एक िमनट पूरा होनेवाला ह, यह भी एक िवचार ह। यह इ ह ने या
करने को कह िदया, यह भी एक िवचार ह। मुझ े िवचार नह आ रह, यह भी एक िवचार ह। मुझ े कोई िवचार नह आ
रहा, यह भी एक िवचार ह।
एक िमनट म िकतने िवचार चल रह ह? एक िमनट म औसत पं ह मान तो िहसाब लगाकर देख िक साठ िमनट म
िकतने और चौबीस घंट म, तीस िदन और 365 िदन म िकतने िवचार आएँग?े अब अगर म आपसे यह क िक मन क
अंदर यह जो िवचार चल रह ह, ये य चल रह ह? अब थोड़ा इस पर भी िवचार करते ह। आप सोचगे िक अब इसक
या ज़ रत ह; पर इसक ब त ज़ रत ह। मान ल िक आप कछ िलख रह ह और आपक मन म िवचार चल रह ह तो
या होगा? आपक बु बार-बार उन िवचार पर ठहर जाएगी और आपने हाथ से या िलख िदया, इसका आपक
बु को कछ ान नह होगा; य िक बु और हाथ क बीच म मन और मन क िवचार आ गए। अगर मन म यह
िवचार का वाह चलता रह तो आप छोटा सा काम भी सही नह कर सकते ह।
एक पित-प नी डॉ टर क पास जाने क िलए घर से िनकले। पित को दि ण क तऱफ जाना चािहए था, पर उसने
गाड़ी उ र क तऱफ मोड़ ली। कछ बीस िमनट चलने क बाद वह प नी से कहता ह, ‘डॉ टर का घर दूर हो गया ह,
ऐसा नह लगता?’
प नी ने कहा, ‘‘आपको पता भी ह िक आप जा कहाँ रह ह? आप उलटी िदशा म चले गए ह।’’
पित ने कहा, ‘‘पहले य नह बोली?’’
प नी कहती ह, ‘‘म य क ? गाड़ी आप चला रह ह, गाड़ी आपक ह और डॉ टर भी आपका ह।’’
वह मज़ा ले रही ह। िकतनी मज़ा ले रही ह िक इस बेवक़फ को देखो! दूसर को नीचा िदखाकर, दूसर क गलती
देखकर आपका अहकार सौ पाउड मोटा हो जाता ह। पित ने गाड़ी सही िदशा म घुमा ली, अब पूर रा ते म िचक-िचक
करते रह। तून े ऐसा य कहा और वैसा य कहा? इस तरह लड़ाई चलती रही, पर जैसे ही डॉ टर क पास प चे तो
पित-प नी कार से उतर। डॉ टर बाहर ही िमल गया तो दोन मुसकराने लगे, ‘ह ो, हाउ आर यू। वेरी फाइन।’
या झूठ बोलते हो! झूठ का कोई अंत ही नह । आप कहते ह ‘बि़ढया ।’ काश! ऐसा कोई थमामीटर होता, िजससे
आपक िवचार को िगना जा सकता और आपक भावना मक थित का िव ेषण िकया जा सकता, तो आप कभी भी
यह कह नह सकते िक ‘आई एम फाइन।’ अगर ऐसा संभव होता तो हम आपको ऐसी गोली िखला द, िजसे खाते ही
आपक मन म जो कछ हो, आप बोलने लग जाएँ। सोचकर देखो तु हार सार र ते एक ही िदन म टट जाएँग।े ि़सफ एक
ही िदन म।
जहाँ तक मुझ े याद ह, हॉलीवुड क एक िफ म आई थी—‘लायर लायर’। िजसम एक आदमी ब त झूठ बोलता ह।
इतने झूठ बोलता ह िक एक िदन उसका ब ा बाप क इस झूठ से परशान हो करक ाथना करता ह िक ‘ भु, मेर बाप
क झूठ बोलने क इस आदत को ख म कर दो।’ अचानक िबजली कड़कड़ाती ह और भगवान क श काम कर
जाती ह। अब वह झूठ बोलना भी चाहता ह, पर उसक ह ठ नह िहलते, उसक ज़बान नह चलती ह और उसक मुँह से
सच िनकल जाता ह। उसका सच सुनकर सामनेवाला कोई उसको पीटता ह, कोई उसको मारता ह, कोई उसे घर से
बाहर िनकाल देता ह। उसक बीवी क बार म उसक जो असली खयाल ह, वह उसक मुँह से िनकल जाते ह, तो बीवी
भी उसे छोड़कर चली जाती ह और ब ा भी उसे छोड़कर चला जाता ह, पर वह अपनी ज़बान से झूठ नह बोल पाता।
आपक मन म जो चलता रहता ह, उसको आप दूसर से तो छपाते ही ह, पर धीर-धीर यह हो गया ह िक अब आप
अपने आपसे भी उसको छपाते ह। इसीिलए िकसी को भी अकला बैठना अ छा नह लगता ह, य िक अकले बैठते ही
मन क िवचार का सामना करना पड़ता ह और अपने मन म जो गंदगी ह, दुःख ह, पीड़ा ह, जो धोखे खाए ह, जो क
सह ह, वे इतने यादा ह िक बरदा त नह होता। इसिलए कभी भी कह अकला बैठना पड़ जाए, अकले घर म रहना
पड़ जाए तो आदमी को बड़ी त़कली़फ होती ह। ऐसे म वह ब त ऊची आवाज़ म टी.वी. चला लेगा, नह तो गाना
सुनेगा या भजन लगा लेगा या िफर पड़ोस म चला जाएगा, नह तो पास क िकसी माकट म चला जाएगा, लेिकन
अकला नह बैठगा। य िक अकले बैठने का मतलब अपने मन का सामना करना, अकले बैठने का मतलब अपने मन
क ज़हर को पीना, अकले बैठने का मतलब मन क अंदर जो दुःख ह, उनको सहना। यह बात बड़ी मु कल लगती ह।
एक संत म और एक आम आदमी म या फ़क ह? म यह एक फ़क कहना चा गी िक एक आम आदमी खुद अपने
ही मन क साथ जी नह सकता ह, और संत वह ह जो अपने मन क साथ ब त आनंद से जी लेता ह। संत क पास वह
िव ा ह, वह ान ह, िजससे वह अपने मन क िवचार क वाह को रोक लेता ह, अपने मन का सा ी हो पाता ह।
इसिलए उसक मन से उसको कोई परशानी नह होती ह। एक आदमी, िजसको उसका ान नह ह, वह अपने मन से
इतना दुःखी हो जाता ह िक एक घड़ी क िलए भी अकले रहना पसंद नह करता।
म आपसे एक बात पूछती , या कभी आपक जीवन म ऐसा समय आया ह िक आप कमर म सोने क िलए गए
और आपक पितदेव या आपक प नी सो गई हो और आपको न द नह आ रही हो? कभी तो आ होगा ऐसा! अब न द
नह आ रही हो तो उसम कछ परशानी नह होनी चािहए, पर जब न द न आ रही हो तो आदमी को सबसे यादा
परशानी होती ह, इसिलए नह िक न द य नह आ रही, इसिलए भी नह िक बाक लोग सो रह ह, खराट मार रह ह।
उसे जलन भी नह होती ह, लेिकन त़कली़फ यह होती ह िक अँधेरा ह, सब लोग लाइट बंद करक सो रह ह और आप
जाग रह ह। मतलब आपका मन जगा आ ह तो मन म िवचार चल रह ह। तो मन म चल रह िवचार का सामना उस
अँधेर कमर म जब करना पड़ता ह तो उसक वजह से ब त त़कली़फ होती ह। न द या ह? मन क बेहोशी। न द माने
मन चुप हो गया, मन खो गया, कोई िवचार नह आ रहा, कछ िदख भी नह रहा। लेिकन आप जाएँ और सोने पर न द
नह आए, तब बड़ी मु कल होती ह, परशानी होती ह। आदमी लपककर न द क गोली खा लेता ह या सोचता ह िक म
थोड़ा टहल लूँ या थोड़ा सा गरम दूध पी लू,ँ पर कछ तो क । करवट लेता ह और कभी-कभी सोने क िजतनी यादा
कोिशश करता ह, उतनी ही न द और दूर भाग जाती ह।
अ छा, आप मेर एक न का उ र दीिजए िक न द आती ह या आप लाते ह? आप कहते ह, आती ह। कहाँ से
आती ह और िफर कहाँ जाती ह? जब आप बोलते ह िक न द खुल गई तो खुलकर िफर कहाँ गई? न द कहाँ से आती
ह, न यह पता ह, न ही कहाँ जाती ह यह पता ह। तो पता या ह? िवचार करने क बात यह ह िक न द आती ह और
जब तक आए तो आए और न आए तो आप उलट-सीधे हो जाइए, तो भी नह आती।
कछ िदन पहले एक मिहला ने मुझसे पूछा िक उसक न द कम हो गई ह, अब यादा न द नह आती। ब त वह इस
बात को लेकर परशान थी। मने उससे एक योग करने को कहा िक आप इसे करक देखो। जब न द न आए, परशान
मत हो। एकदम से बाहर आ जाओ और कोई िकताब पढ़ो। सोने म समय ही तो बरबाद होता ह। यह सबसे अनु पादक
समय होता ह, जब आप कछ नह कर रह होते ह। आप कछ नह कर रह होते ह, आप कछ कर भी नह सकते ह। ये
सबसे िनरथक समय होता ह। आप ि़सफ िब तर पर लेट होते ह, खराट भरते ह, झपिकयाँ लेते ह और तो कछ करते
नह ह। जीवन छोटा ह और अगर आप सो सकते ह तो आपक िलए अ छा ह, पर अगर नह सो पाते ह तो िकताब
पढ़। इन ण का आनंद ल। आप खुशनसीब ह िक आज आप सो नह पा रह ह। उस समय पर आप अपना मं जप
कर सकते ह, कोई धारणा कर सकते ह, ाटक कर सकते ह, स संग सुन सकते ह, कछ अ छा संगीत सुन सकते ह।
करने को िकतना कछ ह! ब त कछ लाभदायक और सृजना मक काय कर सकते ह। न द नह आ रही, उस बात क
िचंता य करनी?
लेिकन आपका मन एक अलाम बजा देता ह िक सोएगा नह तो तबीयत खराब हो जाएगी। अब आपको यादा
परशानी इस िवचार से होती ह। परशानी इसिलए नह ह िक न द नह आ रही, पर यादा परशान इस वजह से हो रह ह
िक परशानी लानेवाला िवचार आपका ही मन उठा रहा ह और आप उसको चुप नह कर पा रह। उलटा मन िजतना
बोलता ह िक तू बीमार हो जाएगा, उतनी घबराहट यादा होने लगती ह। लगता ह, म बीमार हो जाऊगा, इसिलए आप
और ज़ोर से कोिशश करते ह िक न द आ जाए। अब न द अगर नह आती ह तो बस, नह आती ह। न द तो महारानी
ह। नखर ह उसक। आए तो आए, न आना ह तो न आए!
एक ब त शु िहदी बोलनेवाले स न िकसी क घर म मेहमान ए। रात का समय आ तो अपने मेजबान से कहने
लगे, ‘अ छा, अब म िन ादेवी क गोद म जा रहा ।’ ये िजनक घर म मेहमान थे, उस दो त क ीमतीजी बोली,
‘अ छा, आपक प नी भी साथ म आई ह? हम तो पता नह था िक आपक प नी भी साथ म आई ह। वह कब आई?’
मेहमान ने कहा, ‘नह , मेरी प नी का नाम िन ादेवी नह ह, म तो न द क बात कर रहा था।’
िन ादेवी कब पधारती ह और कब चली जाती ह, कछ नह पता। पर न द म भी आपका मन पूरी तरह चुप कहाँ होता
ह। इसिलए तो सपने आते ह। आपका मन जा अव था म जो सोचता रहता ह, यही मन आपका न द म भी चलता
रहता ह। अब य िक न द म भी चलता ह, इसीिलए तो आँख क पुतली िहलती रहती ह (रिपड आई मूवमट होती ह।)
आँख क पुतली चलती ह और इसका मतलब ह िक आदमी कछ सपने देख रहा ह। कछ देर आँख क पुतली चले तो
माने सपना चल रहा ह और िफर आँख क पुतली ठहरी तो उतनी देर क िलए गहरी न द हो रही होती ह। गहरी न द,
िफर सपना, वापस गहरी न द, िफर सपना इस तरह चलता रहता ह। अगर सपना देखते म न द खुल जाए या कोई तु ह
जगा दे, यह आपक शरीर क िलए सबसे यादा त़कली़फ क बात होती ह, य िक जो म चल रहा था, वह पूरा होने
से पहले टट जाए तो आपक शरीर क पूरी काय णाली पर उसका असर आता ह। जब आप गहरी न द से जागते ह तो
ब त फित और ताज़गी का एहसास होता ह। या आपका इसक ऊपर कोई िनयं ण ह िक कब जागगे? मतलब
िजतनी गहरी न द लेनी हो, या उतनी ले पाते ह?
भगवान को जानने क बात एक तऱफ रख, पहले अपने मन को जान। आपका शु व प या ह? उस बात को
िकनार कर, पहले तो यह जानने क आव यकता ह िक आपका मन या ह? अगर आप अपने मन को शांत करना
चाहते ह तो उसक िलए या िविधयाँ ह?
अभी आपका मन मु ा नस ीन क बेट जैसा ह। मु ा नस ीन का बेटा चीखे, िच ाए, शोर कर, चीज़ तोड़
दे, कभी मु ा क िसर पर थ पड़ मार दे, कभी आए ए मेहमान क दाढ़ी ख चे, कभी मूँछ न चे, कभी इसको टाँग
मार, कभी उसको थ पड़ मार। इतनी हालत खराब कर देता िक मु ा बेचारा परशान हो जाता। कर तो या कर?
अपनी ही औलाद ह तो बाहर फक भी नह जा सकती। ज म िदया ह तो पालना भी पड़गा।
मने सुना, एक िदन मु ा क दो त ने कहा, ‘आज तो हम तेर घर रोटी खाने आते ह।’ मु ा ने कहा, ‘हाँ, हाँ
ज़ र आओ।’ पर मन-ही-मन म डर रहा था िक मेरा शैतान लड़का पता नह िकस-िकस क दाढ़ी न च लेगा, िकसक
आँख म उगली मार देगा, या कर देगा! अगर म उसको बोलूँ भी िक तू शोर मत करना, चुप करक बैठना तो नह
बैठगा। मु ा सोच रहा था िक अब या क ? मु ा सोचते-सोचते घर प चा तो उसको एक खयाल आया। उसने
अपने बेट को बुलाया और कहा, ‘रमज़ान, तू आज मेरा एक काम करगा? म तेरा अ बा तो मेरा एक काम कर दे।’
बेट ने कहा, ‘तू भी या याद करगा अ बा! चल, बोल या काम ह?’
मु ा ने कहा, ‘जो म क , वह तू कभी मत करना। म तुझ े जो करने को बोलू,ँ वह तू िब कल मत करना।’
रमज़ान ने हसकर कहा, ‘अ बा, पहले म कौन सा तेरी बात मानता , जो आज मानूँगा!’
मु ा ने कहा, ‘आज मेरी शत बस यही ह। आज म जो बोलू,ँ वह तू नह करना, ठीक ह? तू अगर मेरा इतना काम
करगा तो 100 डॉलर दूँगा।’
बेट ने कहा, ‘ठीक ह। सौदा तय हो गया।’
मु ा ने कहा, ‘देख, आज मेर दो त आ रह ह, मने उनको बताया ह िक तु हारी आवाज़ या ब त ऊची ह तो
ज़ोर-ज़ोर से गाना।’
बेट ने कहा, ‘नह गाऊगा।’
मु ा ने कहा, ‘मने उनको बताया ह िक आप अपने ही घर क ाइग म म इतना ज़ोर से फटबॉल खेल लेत े हो
िक तु हार जैसा कोई खेल नह सकता।’
मु ा का बेटा मन म या सोच रहा ह, नह खेलूँगा।
कभी आप अपने मन क साथ ऐसा उलटा खेल करक देखना। अभी आप अपने मन को रोकने क कोिशश करते ह।
आप कहते ह, मन! क जा, मन क जा और मन होता ह ढीठ, िज़ ी। रमज़ान क तरह बोलता ह, ‘नह कता।’
थोड़ा उलटा करक देख। मन को कह, ‘सोच, िचंता कर। आज तुझे ि◌फ करनी ह। ऐ मेर मन! तुझे िचंता करनी ह
और म बैठ रहा , अगले 20 िमनट हम िमलकर िचंता करगे। इसे हम बोलते ह— रवस इजीिनय रग (Reverse
Engineering) ।
अपने मन को वह करने को कह, जो वह नह करना चाहता। आज एक योग करक देखते ह। योग यह ह िक
अगले दस िमनट तक गहरी साँस लेनी ह और छोड़नी ह। उसक बाद ‘ओ३ ’ का उ ारण कर। िफर अपने मन को
आदेश द िक ब त सार िवचार कर, खूब िवचार कर। आपको आपक मन म ब त सार िवचार लाने ह। आज का
आपका काम यही ह। आज आपको अपने मन से यह नह कहना ह िक चुप हो जा। आज आपको अपने मन को कहना
ह िक सोच। यह योग करक देख।
सुखासन म बैठ और अगर संभव हो तो अध प ासन म बैठ। रीढ़ क ह ी सीधी रख। आँख बंद कर। हाथ घुटने
पर रिखए और हथेली ऊपर क तऱफ रिखए। पहली उगली और अँगूठ को जोड़ ल और बाक क तीन उगिलयाँ सीधी
रख। अब गहरा ास भर और गहरा लंबा ास बाहर िनकाल। सहज और िकसी भी तरह का झटका िदए ब़गैर, लंबे
गहर ास ल और बाहर िनकाल। गहरा ास लेत े व़ आपक छाती और पेट थोड़ा फलगे और जब ास बाहर
िनकालगे, तब पेट अंदर जाएगा और छाती अपनी सामा य थित म आएगी। शरीर म ये जो प रवतन हो रह ह, उसे भी
आप देख। िकसी भी तरह का झटका िदए ब़गैर गहरा ास ल और गहरा ास छोड़। इस ण म ही रह। आँख बंद
रख और यान शरीर पर और ास पर एक साथ रह। अब ‘ओ३ ’ का उ ारण कर।
ास भर, और छोड़ते ए ‘ओ३ ’ का उ ारण कर। इस तरह दस िमनट तक ‘ओ३ ’ का उ ारण करने क बाद
िब कल मौन हो जाएँ और ‘ओ३ ’ को भीतर उतरने द। एक बात याद रखना, ास गहर लेत े रहना। जब आप ास
ल, तब ऐसे लेना, जैसे वह आपका िआ़खरी ास हो, यानी िक आपका पूरा यान ास पर हो। जब ास अंदर
जाए, तब ास को देख, ास बाहर जा रहा हो, तब ास को देख। गहरा ास ल और ास पूरा बाहर फक।
अपने मन को कह िक िवचार कर। मन िवचार कर तो ठीक। न कर तो भी ठीक, पर आप सजग और जाग क रहकर
ास को देखते रह। उसक बाद िजस तरह वाणी से ‘ओ३ ’ का उ ारण िकया था, उसी तरह मन म ‘ओ३ ’ का
उ ारण कर। ास लेते और छोड़ते व़ मन म ही ‘ओ३ ’ कह। वाणी से मौन रह, पर मन म ओ३ का जाप
चलता रह। अब अपने मन को कह िक कर िचंता, कर िवचार। लेिकन एक बात याद रखना िक ास गहरा लेत े रहना
ह। ास इस तरह ल िक यह आपक िज़ंदगी का आ िखरी ास हो। आपका पूरा यान ास पर रह। ास आ रहा
ह, उसे देख और ास बाहर जा रहा ह, उसे भी देख। मन को िवचार करने को कह। अगर मन िवचार कर तो करने द
और न कर तो भी कोई िद कत नह । आप अपने ास क ित सचेत और सजग रह। थोड़ समय बाद ओ३ का तीन
बार उ ारण करक आपक हथेिलयाँ आँख पर रख और धीर से आँख को खोल द।
इस तरह क योग म अगर इस तरह पं ह िमनट ास को देखते रहगे तो आपक शरीर, मन और ास क बीच म
एक सामंज य आएगा। धीर-धीर आप भीतर उतर पाएँगे। इस तरह अगर आप रोज़ पं ह िमनट करगे तो आप देखगे िक
आपक मन म सुंदर प रवतन आने लगा ह। ि़सफ सुनकर या पढ़कर जीवन म बदलाव नह आता। आप जो कछ सुनते
या पढ़ते ह, उसका अ यास करने से ही प रवतन आते ह।
जो आपको म इस समय पर कह रही , जो बता रही , ये सबसे सरल ढग ह। इससे सरल और या हो सकता ह?
आपको म शीषासन करने को नह कह रही । ऐसा करने को क गी तो आप सब भाग जाएँग।े आपको म ऐसी कोई
मु कल चीज़ करने को नह कह रही , जो आप नह कर सकते। हम आपसे वह करा रह ह, जो आप आसानी से कर
सकते ह।
यहाँ हमने थोड़ी बात मन क बार म कही। हमने आपका प रचय धीर-धीर आपक मन क साथ करवा रह ह। एक
बात याद रखना िक मन जो अभी आपका सबसे बड़ा दु मन ह, वह सबसे अ छा दो त बन जाएगा। अभी तो दु मन
ह। आप िचंता करना नह चाहते, पर िफर भी िचंता करता ह। आप दुःखी होना नह चाहते, पर मन दुःखी होता ह। आप
घबराना नह चाहते, िफर भी घबराहट होती ह। लेिकन एक िदन आएगा िक जब आप अपने मन से कहोगे िक मन
िवचार कर और मन कहगा िक या सोचूँ! आप कहगे िक मन! जा भाग, भाग, भाग दुिनया म और मन कहगा िक अब
कह नह जाना।
बचपन म एक मिहला संत, िज ह हम ‘माताजी’ कहते थे, वह गाया करती थ । वैसे तो वह वामी रामतीथ क रचना
ह, पर वह मिहला संत उसे ब त अ छी तरह गाया करती थ । उस पं य क साथ बात पूरी करते ह—
‘ढढ िज ह था पा ही िलया ह,
अब मुझको कोई परवाह नह ह
अब आप हो मेर और, म तु हारा
अब मुझको कोई परवाह नह ह।
अब सुख हो सो तेर और दुःख भी तु हारा
अब मुझको कोई परवाह नह ह।’

आपक पास एक नह , ब त सार मन ह
‘मन र तू कर ले साहब स ीत।
सरन आए सो सबिह उबार, ऐसी उनक रीत।
सुंदर देह देख मत भूलो, जैसे तृण पर सीत।
काची देह िआ़खर िगर प र ह, य बा क भीत।
ऐसो ज म ब र नह पैहौ, जात उम र सब बीत।
कबीरा चढ़ गढ़ ऊपर, िदए नगारा जीत।’
क बीरजी अपने इस भजन म ब त सुंदर और प प से कछ कह रह ह। पर तु िकससे कह रह ह? कबीर मन से
कह रह ह। वह िकसक मन से कह रह ह? िफलहाल इस गीत म कबीर अपने ही मन से कह रह ह। कबीर क इस
कहने को आप अपने िलए अपना ल और कबीर जो अपने मन को कह रह ह, सो आप अपने मन को कह। सो आप
अपने मन को समझाएँ। यह पूरा गीत कबीर का न होकर, आपका हो जाए। अभी तो यह कबीर का ह। यह भजन कबीर
क मनोअव था का वणन ह। वे या सोचते ह, या महसूस करते ह, उसक बार म कह रह ह। लेिकन अगर आपने
कबीर का गीत सुना और उसम न जुड़, तो वह गीत आपका नह होता ह।
दूसर क ेम कहानी देखकर या आपको मज़ा आ सकता ह? आपको मज़ा तब आता ह, जब आप ेम म पड़ते
ह। पराई शादी म अ दु ा दीवाना! दूसर क शादी म नाचते-िफरो तो उससे आप िववािहत नह हो गए। आप िववािहत
तब होते ह, जब आप दू हा या दु हन बनते ह। तो अभी इस कबीर क गीत म अगर आपको अ छा लगता ह तो यह
बात तो कबीर क ह। माने शादी कबीर क हो और आप खाम़ वाह अ दु ा बन गए। कबीर जो बात कह रह ह,
उसको आप इस तरह से अपने ऊपर लागू कर और यह संदेश आप अपने मन को द। आप अपने आप से कह। जो भी
आपका नाम हो आप अपने आपको कह िक ये बात मेर िलए ह और म अपने मन को ये बात क और समझाऊ िक र
मन! साहब क साथ ीत कर; परमा मा क साथ ेम कर और िकसी क साथ मत कर।
हालाँिक आप कह सकते ह िक िजसको हम कभी िमले नह , जानते नह , उससे ेम कसे कर? कम-से-कम िमलना
तो पड़गा न! अगर िमलगे तो ीत करगे, लेिकन िमले ही नह ह तो ीत कसे करगे?
वेदांती बोलते ह िक आ मा का यान करो। तो सब लोग आँख बंद करक बैठते ह। वे या कर रह ह? आ मा का
यान कर रह ह। आ मा का पता ह नह , िफर यान िकसका कर रह ह? कोई आँख बंद करक बैठता ह और पूछो िक
या कर रह हो? तो कहता ह म परमा मा का यान कर रहा । अ छा, या परमा मा को जानते हो? नह , जानता तो
नह । तो यान िकसका कर रह हो?
एक हॉल म ब त सार लोग बैठ ह और कोई आपसे कह िक ीकांत को बुला दो। तो आप कहगे िक म पहचानता
नह िक ीकांत कौन ह? ीकांत कौन ह, कसे पहचानू?ँ और अगर वह य कह िक म कछ नह जानता, आप
ीकांत को बुला द। आप या करगे? आप अंदर आएँग े और ज़ोर से आवाज़ लगाएँग,े या यहाँ कोई ीकांत ह?
अगर वहाँ ीकांत होगा और वह सुन लेगा तो आपक पास आकर कहगा, ‘जी, म ही ीकांत ।’ आप िफर ीकांत
को संदेश दे सकगे िक आपको कोई बाहर बुला रहा ह। िजसे आप पहचानते नह ह, उसको आप कछ कह भी तो नह
सकगे।
परमा मा का यान तब तक हो नह सकता, जब तक परमा मा का ान नह ह और परमा मा का ान िकए ब़गैर
िजतने लोग कहते ह िक ‘म भगवान म मन लगा रहा ’, सब ग प मार रह ह। िदन दहाड़ झूठ बोल रह ह। भगवान का
नाम लेकर झूठ बोल रह ह। तुलसीदास कहते ह—
‘जाने िबन होए नह तीित
तीित िबन होय नह ीित
ीित िबन नह भ ढ आई’
िजसे म जानता नह , मुझे िजसक होने का पता नह ह, म उसे यार कसे कर सकता ? िजसे म यार ही नह
करता , म उसक भ कसे कर सकता ? बात ब त तकयु ह।
अपने मन को तो आप जानते ही ह। जानते हो या नह जानते? अभी आ मा, परमा मा भूल जाएँ। जो सबसे नज़दीक
ह, हम उसी क बात करगे। या आप अपने मन को जानते ह या नह जानते ह? थोड़ा इसको जानते ह, समझने का
यास करते ह।
अ छा, एक बात तो तय ह िक आपक पास मन ह। इसम कोई संशय नह ह। मन या ह, इस िवषय म हमने िपछले
करण म बात क थी। मन ह िवचार। मन ह संक प। मन ह उस संक प का िवरोधी, िजसे हम कहगे िवक प। िवचार
और ित-िवचार यानी मन। िच ह इन िवचार का टोरक पर। बु ह, जो सोच-िवचार करती ह, िनणय करती ह
और अहकार यह तय कर देता ह िक यह सही ह। अब ये जो मंजूरी क मोहर ह वह बु लगाती ह। मन, बु ,
िच , अहकार, इनको अलग-अलग काय क वजह से हम चार नाम देते ह, अ यथा ह तो एक ही चीज़, ये चार नह
ह। अब अपने मन को समझने क िदशा म थोड़ा और आगे बढ़ते ह।
आपने रात म सोचा िक गु माँ ने कहा था सुबह उठना चािहए, अ यास चािहए। आपने सोचा िक हम कल सुबह का
अलाम लगाते ह और सुबह ज दी उठगे। आपक मन ने सोचा, बु ने प ा कर िदया और अलाम लगा िदया। आप
सो गए और सुबह ठीक समय पर अलाम को बजना ह, अलाम बजा। िफर एक और मन अंदर से जागा, उसने कहा,
आज तो म ब त थका और अगर एक बार उठ गया तो िफर वापस सो नह पाऊगा। बेहतर ह िक अभी थोड़ा सो ही
लेता । आपने अलाम बंद िकया, करवट ली और सो गए। तो इसको अब हम या कह? हम ये भी कह सकते ह िक
एक ही मन म अलग-अलग िवचार उठ। एक मन म िवचार आया िक सुबह उठ और उठने क समय पर दूसरा िवचार
आया िक न उठ।
कछ िव ान ने यहाँ तक कहा िक हमार पास एक मन नह ह। हमार पास ब त से मन ह। महावीर ने यही बात
कही—‘ब िच ान।’ हमार ब त िच होते ह। हमारा एक िच नह ह। हमारा एक ही मन नह ह।
अब आप कहगे िक एक ही मन नह संभलता और आप कह रह ह िक ब त से मन ह, तो यह तो ब त मु कल हो
जाएगा। यह बाद म तय करगे िक बात मु कल हो जाएगी या आसान हो जाएगी, पर पहले समझना तो पड़गा िक इस
मन क वा तिवकता या ह?
देखो, आपक मन ने िवचार िकया िक वज़न थोड़ा बढ़ गया ह, थोड़ा कम करना चािहए। आपने डाइिटग शु कर
दी। आप बाहर िनकले और रा ते म ब ने कहा िक कछ खाना ह। आप र तराँ म गए। जब उनक िलए खाना ऑडर
िकया तो देखकर अ छा लगा, यहाँ तो यह चीज़ ब त अ छी िमलती ह। अब आपक अंदर एक दूसरा मन जगा, जो
कहता ह िक कल से डाइिटग कर लगे, आज तो खा लेते ह। इतने िदन तो हो गए ह, अब एक िदन म या फ़क पड़ता
ह! मतलब आपक अंदर जो नया िवचार जागा ह, इस िवचार को पकड़ा और आपने कहा, ‘एक वेज बगर मेर िलए भी
लाओ।’ सुबह तय िकया था िक आज से नह खाएँगे, लेिकन दोपहर होते-होते तो मन पलटी मार गया और िफर खा
िलया। अब इसको तकसंगत सािबत करने क िलए कहते ह िक सुबह सैर यादा कर लूँगा। ज दी उठकर आधा घंटा
यादा सैर क गा। एक घंट क सैर होगी तो बगर हज़म हो जाएगा। िजस मन ने ये सोचा ह, सुबह जब आप उठगे तो
दूसरा ही मन जाग जाएगा, वह कहगा, िक ‘लो सारी दुिनया खाती ह। सब मोट हो रह ह; म अकला ही थोड़ा मोटा हो
रहा ? मने इतना-सा तो खाया ह।’ ऐसे पर पर िवरोधी िवचार आपक मन म जागते ह।
आप िकसी से भी िमलते ह जैसे, आपका िश क, डॉ टर, दो त, पड़ोसी, िबजनेसमैन, आपका एक मन कहता ह
िक ये ब त अ छा ह। उसी क साथ दूसरा मन कहता ह, कहाँ अ छा ह? देखो तो, या- या करता ह, हऱकत देखी ह
उसक ? एक क बाद एक िवचार फटते रहते ह। अगर आपने कभी घर म गैस पर खुल े बरतन म पॉपकान बनाया हो तो
कसे तेज़ी से प , प , प आवाज़ होती ह। आप िगनती नह कर पाएँगे िक अभी एक आ, दो, तीन, चार, य िक
चार बोलते तक चार और हो जाएँग।े पॉपकान इतनी तेज़ी से बन रह ह, इससे लाख गुना यादा तेज़ी से आपक मन म
िवचार फटते रहते ह। रोशनी से भी अिधक गित से आपका मन िवचार कर लेता ह और हद क बात तो यह ह िक हर
िवचार दूसर िवचार से उलटा होता ह।
जैसे, आपक जीवन म कछ अ छा हो गया तो आपका मन कहता ह िक देखो, भगवान क िकतनी कपा ह! िफर
अगले िदन कछ बुरा हो जाए, कछ दुःखी करनेवाली बात हो जाए, कछ नु़कसान हो जाए तो आपका मन कहता ह,
भगवान होता तो या ऐसा होता? कोई भगवान नह ह। एक ण म आप ना तक हो जाते ह।
अ छा, म तो ये तमाशा रोज़ देखती । िपछले प ीस-तीस साल से म लोग से िमलती-जुलती । हज़ार लोग से
िमली । उनका यवहार, स कार, उनका स मान, िनंदा, ोध सबकछ देखा ह। आज जो आदमी हाथ जोड़कर खड़ा
ह, कल वह ही आदमी खड़ा होकर गाली देता ह। िफर वापस वह आपका भ हो जाता ह और आपक बड़ी शंसा
करता ह। हम ये रोज़ देखते ह।
मुझ े याद ह, एक बार जालंधर शहर क स संग म एक समय तय िकया गया था, तािक कोई िमलना चाहता हो,
आकर िमल सक। उस िदन िमलनेवाले भी दो सौ-तीन सौ लोग थे। आयोजक ने कहा िक लाइन बना लो। आगे चलते
जाएँ और िमलते जाएँ। खड़ नह रहना ह, आगे बढ़ते जाएँ। एक सरदारजी आए और वह खड़ रह गए। वह रोने लग
गए और बार-बार बोल रह थे, ‘‘मुझ े मा़फ कर दीिजए, मुझ े मा़फ कर दीिजए।’’ मने उनसे पूछा, पूछना ही पड़गा,
य िक आदमी कभी-कभी रोता ह। औरत रोए तो आप कह सकते ह िक कोई नह , रोज़ रोती ह। आदमी रोए तो पूछना
पड़ता ह। अगर नह पूछगे तो ब त अनुिचत बात हो जाएगी। बेचारा रो रहा था तो मने पूछा, ‘‘ या बात ह, आप य
मा़फ माँग रह ह?’’
वह कहने लगे, ‘‘मने कभी स संग सुना नह था। मेरी प नी यहाँ आने लग गई तो म ब त गाली देता था। आपक
ब त बुराई करता था और िफर एक िदन यूँ आ िक म इसको छोड़ने आया था और आपक आवाज़ आ रही थी। आप
कछ श द गा रह थे। मने ऐसा मीठा श द कभी नह सुना और म वह क गया। िफर मने बाहर पािकग म खड़-खड़
पूरा स संग सुना तो आप इतनी अ छी लग । आप तो देवी ह और म आपको गाली देता रहा। उसी क िलए मा माँगता
।’’
मने कहा, ‘‘देिखए, महानुभाव, म कसे य़क न क िक आप गाली देते थे, य िक म इस समय िजस श़ स को
अपने सामने खड़ा देख रही , वह ेम म, न ता म रो भी रहा ह। इतने मीठ वचन बोल रहा ह, इतने यार से बोल रहा
ह,। म नह मानती िक आपने कभी भी मेरी बुराई क ह। बाक अगर आपने कभी क भी ह तो मुझे पता नह और
मुझ े उससे या फ़क पड़ता ह? मुझे तो मतलब ह इस व़ मेर सामने खड़ इस श़ स से, जो मुझसे बात कर रहा ह,
िजसे म इस घड़ी म िमल रही । म उसे िकस बात क िलए मा क ? मुझ े नह लगता ह िक आपने कछ ऐसी गलती
क ह, िजसक िलए आप मा़फ माँगो और िजसक िलए म आपको मा़फ दूँ। जो आ उसे भूल जाएँ। बीत गया सो बीत
गया।’’
लंबे समय तक यह स न स संग म आते रह और िफर मन अंधकारनुमा हो गया। अगर जड़ म अँधेरा ह तो ये
अँधेरा िफर से कभी-न-कभी छा जाता ह। कछ वष वह आते रह, िफर उनका आना बंद हो गया। ऐसे ही सहज म मने
पूछा िक भई! या आ वह स न य िदखते नह ? िकसी ने मुझ े कहा िक आजकल वह आते नह ह। यान म भी
नह आते ह, स संग म भी नह आते ह और जब हमने उनको बताया िक आप चार साल बाद िफर से जालंधर म आ
रही ह तो कहते ह, ‘बड़ देख े ऐसे संत! आते-जाते रहते ह। मेर पास ब त काम ह।’
िजनसे मने उनक बार म पूछा था, वे कहने लगे, ‘‘उस बंदे का अजीब िदमाग खराब हो गया ह।’’
मने कहा, ‘‘कोई बात नह । ठीक ह। वह िफर से अपनी औकात म आ गया।’’
मन क औकात या ह? अिभमान। आपका मन अपने से यादा िकसी को बड़ा ानी, यानी, तप वी वीकार ही
नह कर सकता ह। इसीिलए जो लोग हाथ जोड़ते भी ह, उनका एक मन हमेशा ढढ रहा होता ह िक इनम कोई कमी
िदख जाए। िजस िदन उनको कमी िदख गई, उस िदन वे श ुता पर उतर आएँगे।
आपने देखा और महसूस िकया होगा िक आपक संबंध म, र तेदार म आज जो आपक तारीफ कर रह ह, वे कल
आपको गाली दे रह होते ह। वही आदमी, वही र तेदार। र तेदार क िलए मने एक श द बनाया ह—र सेदार। पेन म
एक खेल चलता ह, जहाँ खेलनेवाले क हाथ म र सी होती ह, िजसे वह घुमाता ह। उसने उस र सी को भसे क गले म
डालना होता ह। वह र सी को घुमाता ह और भसे क पीछ घूमता ह। कभी वह भसे क ऊपर चढ़ जाता ह और भसा
टाँग मार रहा ह, कभी नीचे िगरा देता ह। िजतना यादा समय वह भसे क ऊपर िटक जाए, उस पर पूरा खेल चल रहा
होता ह।
मुझ े यह लगता ह िक अपने जीवन म आप वह भसे हो और आपक र तेदार वह र सेदार, जो र सयाँ घुमा रहा ह
िक कब आपक गले म डाले। तो कोई-न-कोई बात कोई-न-कोई चीज़, कोई-न-कोई हऱकत उसे िमल जाएगी, जो
आपको सताने क िलए का़फ होगी।
जैसे, एक स न बता रह थे िक हमार घर म एक छोटा सा समारोह था। ब त लोग आए ए थे और हमने सब क
िलए भोजन बनाया आ था। लोग आ रह थे और म उनका वागत कर रहा था। आ ऐसा िक एक मौसाजी आए थे,
वह पता नह य नाराज़ हो गए। बाद म पता चला िक उनका कहना था िक मेर सामने उसने अपने चाचा को तो इतनी
ज़ोर से नम ते बोला, पर मेर िलए उसक मुँह से फट से भी नम ते नह िनकला। अब आ यूँ होगा िक उ ह ने दोन को
साथ म, यानी एक ही नम ते बोल िदया होगा और वे देख रह ह गे चाचाजी क ओर तो मौसाजी को लगा होगा िक मुझे
नम ते नह बोला। इतनी भर बात से वे नाराज़ हो गए और िबना कछ खाए-पीए, बुराई करक वहाँ से चले गए। ये
स न कह रह थे िक या कर? आप कछ नह कर सकते।
जैसे आपका मन आपक काबू म नह ह, ऐसे ही दूसर का मन उनक काबू म नह ह। जैसे आपका मन िजसको
आज अ छा कह रहा ह, कल उसी को बुरा कहता ह, ऐसे ही दूसर का मन ह, जो आज आपको अ छा कहगा और
कल आपको बुरा कहगा। आपको हरत नह होनी चािहए। इसे ब त सामा य और सहज बात समझना चािहए।
अगर आप िकसी को िम मानते हो तो उस मै ी क भावना म भी अपे ा क एक सूची होती ह िक ये मेर िलए
इन-इन बात को कर और अगर नह करगा तो म उससे गु सा हो जाऊगा। इसी तरह दूसर क मन म भी एक सूची होती
ह िक ये मेर िलए ये-ये सब कर, अगर वह सारी चीज़ करता ह तो म खुश, और अगर नह करता ह तो म नाराज़ हो
जाऊगा।
मु कल यह ह िक आपने दूसर क बार म जो सूची बनाई ह, उसक बार म दूसर को कछ नह पता ह और दूसर क
मन म आपक बार म अपे ा क या सूची ह, उसक बार म आपको कछ पता नह । आज म आपको एक ब त
क मती सुझाव देती । पित-प नी आमने-सामने बैठ जाना और एक-दूसर से कहना िक या तो शा दक प से बताओ,
नह तो आराम से कागज-पेन लेकर िलख दो। पित अपनी प नी को और प नी अपने पित को बता द, बाप, बेट को
और बेटा बाप को और माँ, बेटी को, बेटी माँ को एक सूची बनाकर दे द िक मेरी आपसे ये आशाएँ ह। अगर आप
हमारी इन आशा को पूरी नह करगे तो हम गु सा हो जाएँग।े
देिखए, िफक लाइट म िकतने िस नल होते ह? लाल माने को, हरा माने चलो और पीला माने चलने क िलए
तैयार। तो इसी तरह अगर हम संबंध म भी ऐसे िस नल बना ल तो दुघटनाएँ नह ह गी।
जैसे, शीला का ज मिदन था। औरत क पास ब त यारी क पनाश होती ह। कहते ह िक ब त रोमांिटक िफ म
देखती रहती ह। घर पर रहकर या करगी, िफ म देखगी। हॉलीवुड और बालीवुड क िफ म देखगी। अ़ सर यादातर
याँ िजसम ामा या रोमांस हो, ऐसी िफ म देखगी। िदन म एकाध िफ म देख ली होगी, िजसम हीरो ने हीरोइन क
िलए हिलकॉ टर से गुलाब क फल क बरसात क थी तो अब वह सोच रही ह िक अगले महीने मेरा भी ज मिदन आ
रहा ह। मेरा पित मेर िलए भी सर ाइज लान करगा।
पु ष ब त दूर का नह सोचते। उनक सामने जो मुसीबत उस व़ होती ह, उसी म उलझे रहते ह। उसे याद भी नह
िक दो िदन बाद िकसका ज मिदन ह और िकसका मरण िदन ह। उनको कछ पता नह ह। वह प नी का ज मिदन भूल
गया ह, पर शीला रात से सोच रही ह िक सुबह जब म उठगी, तब मेर िसरहाने गुलाब का फल होगा। जब उठी तो
गुलाब का कोई फल नह , उसे गु सा आ गया। िफर सोचती ह िक हो सकता ह िक मेर िलए बाथ म म कछ रखा हो
शायद ैलरी का बॉ स पड़ा होगा। म जाऊगी, अलमारी खोलूँगी तो सामने पड़ा होगा और उस पर िलखा होगा—ह पी
बथ ड। लेिकन वहाँ ऐसा कछ नह था। अब उसको गु सा आ गया। िफर सोचा ना ते क व़ टबल पर कछ देगा, पर
वहाँ भी कछ नह । तो उसका गु सा बढ़ने लगा। पित ऑिफस चला भी गया, उसे कछ पता नह और यहाँ पर यह िचढ़
रही ह।
िफर वह सोचती ह, शायद शाम को कछ होगा। वह अपना नया स पहनकर तैयार होकर बैठी ह। वह स जो उसने
पहले से खरीदकर रखी ह। प नी ब त माट होती ह, ि़सफ पित पर िनभर नह रहती। उसने पहले से इतज़ाम और
योजना बनाकर रखी होती ह। तो वह स तैयार करक बैठी थी िक पित आएगा और कहगा ‘चल, तुझे िडनर पर ले
जाता ,’ तो िफर तुरत तैयार हो जाऊगी। उसने घर म भी सब योजना बनाकर रखी होती ह। ब क िलए भी इतज़ाम
िकया ह। घर क बाक लोग क िलए भी खाना तैयार रखा ह, य िक वह सोच रही ह िक उसका पित उसे आज िडनर
पर बाहर ले जाएगा।
पित शाम को थका-हारा घर आया और उसने तो आकर अटची रखी, कपड़ बदले और पायजामा पहनकर बैठ गया।
उसने कहा, ‘खाना लाओ।’ अब तो उस मिहला का पारा चढ़ गया। रसोई म बरतन टट रह ह, फट रह ह और सास भी
गु सा हो रही ह िक इतना शोर य हो रहा ह? ब े कहते ह िक हम सोने य नह िदया जा रहा ह? पर िकसी को पता
नह िक ये ीमतीजी क मन म कौन सा ालामुखी फट रहा ह।
जब पित खाने बैठा तो उसने खाने क साथ गािलयाँ भी द िक तु ह मेरी कदर नह । म मर जाऊगी तब मुझे याद
करना। तु ह तो मेरा कछ यान ही नह । पित सोचता ह, इसे या आ? सुबह तो ठीक-ठाक छोड़कर गया था, या
आ इसको? प नी क मन म इ छा का, अपे ा का जो जाल था, उससे वह बे़खबर था। जब पता चला, तब तक
का़फ देर हो चुक थी। वह कहता िक ‘चल, अभी तुझ े ले जाता ’ पर वह कहती ह िक अब तु हारी बथ ड पाट को
आग लगे। म नह जाती। अब बात ख म हो गई।
अब आप सोचकर देख िक प नी ने ये जो सपने बुन े थे, वह तीस िदन पहले या दो िदन पहले अपने पितदेव को बता
देती और ऐसी उ मीद करती िक मेर िलए ये-ये करना तो वह यादा उिचत खेल होता। लोग ब त अनुिचत और अजब
खेल खेलते ह। माने पित अंतयामी ह या? वह या ऋिष-मुिन ह, िजसे तु हार मन क सब बात पता चल जाएगी िक
आप या सोचते हो और ज मिदन पर या करना चाहते हो या तु हार या सपने ह? कम-से-कम उस गधे को बताओ
तो सही!
पित यह अपे ा रखता ह िक प नी मेर िलए ये सब कर और मान ल वह सब वह नह करती ह तो उससे नाराज़ होता
ह। हमार संबंध म यह जो खटास ह, जो त़कली़फ ह, जो झगड़ ह, उसका सबसे बड़ा कारण यह ह िक आपका मन
सोचता ब त यादा ह, ब त उ मीद बना लेता ह, ब त सी इ छाएँ, अपे ाएँ खड़ी कर लेता ह और जब वे पूरी नह
होती ह तो दुःखी होता ह।
अब मन आपका ह तो आप इतने ईमानदार हो जाएँ िक अपने संबंध म एक-दूसर को प कह सक। मुझे कभी-
कभी बड़ी हरत होती ह िक ये आपक िकस तरह क संबंध होते ह, िजसम आप िकसी से अगर दुःखी होते ह तो उसक
साथ बैठकर बात नह कर सकते, य िक वह सुननेवाला नह ह। आगबबूला होगा और आपको डर ह िक कह वह
मुझसे र ता तोड़ न द।
जो आपक गले म र सयाँ डालकर ख चते ह, आप उनसे अपने र त को तोड़ना भी नह चाहते। यह भी अजब
खेल ह। िजनसे दुःखी हो, उनसे कभी सुख हो सकता ह, उस उ मीद म आप उनक िदए ए दुःख को झेलते रहते ह
और यह सोचते ह िक कभी तो ठीक हो ही जाएगा। इस कभी का इतज़ार करते ए िज़ंदगी ख म हो जाती ह। मन का
वभाव बदलना ब त मु कल ह, य िक अभी आपका मन िवचार करता ह िक दान दूँ और यही मन थोड़ी देर म
सोचता ह िक दान या दूँ? ये मंिदर तो बड़ा मालदार ह, यह से कछ ले जाता । िक ह मंिदर म जो भगवान क
मूितय पर ंगार िकया जाता ह, वह इतना महगा और बेशक मती ह, जो लोग ने अपनी भावना से िकया होता ह, तो
देखनेवाले सोचते ह िक ये तो ब त अमीर भगवान ह। िफर कभी-कभी वहाँ पर चोरी भी हो जाती ह।
जैसे एक ब त िति त मंिदर म सेवारत जो ा ण था, उसने वहाँ क कछ ज़ेवरात िकसी क पास रखकर कज़
िलया था। उसने वह ज़ेवरात गारटी क तौर पर रखे थे। उस ा ण को ब त कम तऩ वाह िमलती थी। उसने अपनी
बेटी क शादी करनी थी। उसे लगा िक कसे क ? उसक िदमाग ने जुगत लगाई िक इतने सार ज़ेवर पड़ ह तो उसने
कछ ज़ेवर अपने साथ ले िलये। आप कह सकते ह िक उसने चोरी कर ली, पर उसने यह सोचकर िक कछ समय बाद
पैसा लौटा दूँगा और ज़ेवर वापस मंिदर म रख दूँगा यह ज़ेवर सा कार को देकर कजा िलया। उसे लगा िक भगवान तो
अपने ही ह। या हो गया भाई! अपने मामा, चाचा, ताया से आप कज़ नह लेत े ह या? कौन सी ि़द कत ह उसे लेने
म? आप माँगते ह, वे दे देत े ह। बक भी लोन देता ह तो उसने ित पित मंिदर को बक समझा, मामा, चाचा, ताया समझा
और वहाँ से ज़ेवर ले िलये। पर वह पकड़ा गया, य िक वह पैसा अदा नह कर पाया। कहानी खुल गई और उसको
िगऱ तार कर िलया गया। उस पर आरोप था िक तुमने मंिदर म चोरी क ह।
पर जब मने यह खबर पढ़ी तो मने कहा िक म नह मानती िक यह चोरी ह, य िक अगर चोरी करता तो वह उस
बात को छपाकर रखता। पर उसने यह बात सा कार को भी बताई िक म मंिदर से लाया और मंिदर का ह तो वापस
मंिदर म रखूँगा। मुझ े ि़सफ अभी क िलए ज़ रत ह, इसिलए इस तरह का काम िकया। हो सकता ह िक आप कह िक
यह गलत ह, अनैितक ह, आप कह सकते ह िक मंिदर का जेवर ऐसे नह लेना चािहए था। लेिकन म कहती िक
मंिदर क संचालक को अपने ा ण को उतना कम पगार भी नह देना चािहए िक वह अपना गुज़र-बसर करने म ही
मु कल महसूस कर। कहाँ तो आप भगवान क शादी का उ सव मनाते िफरते ह और यहाँ पर एक गरीब बाप अपनी
बेटी का िववाह नह कर पा रहा ह, य िक उसक पास धन नह ह। अजब कहानी चलती ह।
िपछले िदन पुरी म कछ काय म था। म जग ाथपुरी गई थी। मेर साथ कछ लोग थे, जो पहली बार पुरी आए थे।
उ ह ने कहा िक ‘‘चलो, मंिदर चलते ह।’’ मने कहा, ‘‘चलो, चलते ह।’’ जब वहाँ गए तो वहाँ क ा ण साथ म हो
िलये और वे वहाँ का इितहास बताने लगे। वे शु वह से ए िक यहाँ का भगवान, खाता भगवान ह, खाता रहता ह।
इसिलए अब यहाँ 100 ंटल चावल पकता ह और चढ़ता ह और िफर वह साद शायद यहाँ बेचा जाता ह। मुझे पूरी
कहानी नह मालूम। वे बोले, यहाँ भगवान खाता ह, इस मंिदर म भगवान खा रहा ह और ओिडसा म खासकर पुरी े
म इतनी गरीबी ह िक लोग क पसिलयाँ िदखती ह, पेट िपचक ए िदखते ह। गरीबी और भुखमरी क कारण इसी
ओिडसा क कालाहांडी म बाप ने अपने चार-पाँच साल क ब े को दस हज़ार पए म बेच िदया था। या कर?
भूखमरी ह और छोट ब े थे तो उनक िलए अपने बड़ ब े को बेच िदया। िजस रा य म इतनी भुखमरी ह, िजस रा य
म इतने गरीब ह, वहाँ इस मंिदर म वही लोग जाने कसे पैसे इक करक भगवान क िलए, जो मूित ह अंदर, उसक
िलए ये भट चढ़ाते ह, पूजा करवा रह ह और गरीब लोग अपना पेट काटकर दान म दे रह ह। वे इस उ मीद से िक यहाँ
हम जो दगे तो वह कई सौ गुना यादा होकर शायद धन िमल जाएगा, हम अ िमल जाएगा। या अजीब कच ह!
फटी धोती, फट कपड़, भुखमरी से िपचक पेटवाले लोग वहाँ जाकर ा ण को दान दे रह ह। ये मोट-मुट ,े िजनक
त द िनकली ई ह, ऐसे ा ण उनसे ऐसे छीन रह ह, जैसे कोई जािलम आदमी छीन रहा हो। अजब खेल चलता ह
यह भाई! सोचने क बात यह ह िक हम लोग अजब माया क च म पड़ ह। हम परमा मा को अपने से अलग िकसी
मंिदर म कद देखते ह और उस मूरत क सामने खड़ ए िज़ंदा इनसान पर अ याय करते ह।
अ छा, यह एक मंिदर ह, जहाँ एक पंडा होता ह, वह हाथ म एक डडा लेकर खड़ा होता ह और भीड़ को आगे
बढ़ाने क िलए वह डडा मारता रहता ह। हम वहाँ गए तो मने अपना कोई प रचय नह िदया था। म नह चाहती थी िक
हमार िलए कोई खास यव था हो। मने दूर से देखा िक भीड़ ह और भीड़ को इस तरह से डडा मार-मारकर आगे
चलाते ह। मने कहा िक मुझ े आगे नह जाना ह। मेर साथ जो लोग थे, उनसे कहा िक आपको जाना ह तो जाइए। हम
जो तमाशा देखना था, सो देख िलया। हम वह से वापस लौट आए। मेर साथ जो लोग थे, वे कहने लगे िक आप जब
वापस जा रह ह तो हम य जाएँ? वे भी वापस मेर साथ लौट गए।
अब िजसक मन म आ था ह, वह वहाँ मार भी खा रहा ह, मजबूरी म दान भी दे रहा ह। इस उ मीद से िक भगवान
उसको कई सौ गुना अिधक देगा। वह नह जानता ह िक ई र कौन ह? परमा मा कौन ह? पंड , पुरोिहत क बनाए ए
रीित- रवाज़ को, धम-कम को अंध क तरह मान रहा ह। िबना जाने-समझे, िबना खोजे। खूब तमाशा चलता ह। मेरा
यह मानना ह िक परमा मा क नाम पर चलती इन दुकानदा रय पर सुलझे ए समझदार लोग को थोड़ा सोचना चािहए
और मेरी समझ तो यह कहती ह िक हर मूरत िकसी मूितकार ने बनाई ह। हर मूरत प थर थी, िफर उस प थर को एक
कलाकार ने श़ दे दी—राम, हनुमान, महावीर, बु का एक आकार दे िदया और िफर आप उसको लाए और
आपने उसको मंिदर म बैठाया। कहा, अब ये भगवान ह और अब उससे डरते ह, उसको पूजते ह। यह भी अ छा
धािमक खेल ह। खेल ह यह और इसका यथाथ से, इसका स य से कोई लेना-देना नह ह।
म नामदेवजी क िवषय म एक बात कहना चाहती । नामदेव िव णु क भ थे, िव ल क उपासक थे। एक बार
उ ह ने चार धाम क या ा क । उ ह ने बदरी-कदार धाम क दशन क बाद कदारनाथ से उ ह ने जल भरा, य िक ऐसा
िनयम ह िक कदारनाथ से भर ए जल का अिभषेक रामे र म िशविपंडी पर िकया जाता ह। अब सोचकर देिखए,
उस समय म न क, न घोड़ा, न गाड़ी थी तो पैदल चलकर ही जाते थे। कहाँ महारा म पंढरपुर और कहाँ गंगो री!
ऐसी या ा करने म साल लग जाते थे। नामदेवजी ऐसी ही पैदल या ा करक रामे र जा रह थे। जब रामे र से
कछ 100 िकलोमीटर क दूरी पर थे, तब देखते ह िक रा ते म एक गधा तड़प रहा था। सब लोग उसक सामने से
िनकलते जा रह थे। नामदेवजी ने जब यह य देखा तो क गए। उस समय उस पूर े म सूखा पड़ा था और पानी
नह था। नामदेवजी ने जब यान से देखा िक वह गधा पानी क ब़गैर तड़प रहा ह तो उ ह ने अपनी गंगाजली का मुँह
खोला और गधे क मुँह म पानी डाल िदया। गंगाजी का सारा जल उस गधे को िपला िदया और गधा भी फटाफट पी
गया और थोड़ी ही देर म चलकर िनकल गया। सब लोग ने यह देखा तो कहा, ‘‘अर! नामदेव! या तेरा िदमाग खराब
ह? इतनी लंबी किठन या ा करक, गंगो री क जल को रामे र तक ले आया और अब जब रामे र 100
िकलोमीटर क दूरी पर ह, तब तुमने सारा जल इस गधे को िपला िदया? ये तुमने या िकया?’’
नामदेव कहते, ‘‘तु हार िलए वह गधा होगा, मेर िलए तो वे सा ा िशव थे।’’
नामदेवजी िजस समय उसको जल िपला रह थे तो गधा समझकर नह िपला रह थे! उनक िलए तो हर िदशा म
परमा मा ही ह और परमा मा क इस मूरत को यास लगी ह तो जल यहाँ िपलाना अ छा या उस प थर क मूरत पर,
िशविपंडी पर जल चढ़ाना यादा अ छा था?
िफर कह दू ँ िक नामदेव िनगुणी संत नह थे, वेदांती नह थे, ानी नह थे। भ थे, िव णु क उपासक थे; लेिकन
िफर भी उनक भीतर इतनी क णा ह, इतना ेम ह, इतनी समझ ह िक उ ह ने अंधे रीित- रवाज़ का पालन न करक उस
िनयम को तोड़ िदया और किठन साधना से लाए ए उस गंगाजल को एक गधे क ऊपर योछावर कर िदया।
इसे म कहती —वा तिवक धािमकता। अगर यह तु हार अंदर नह ह, यानी मूलभूत ल ण नह ह, क णा, दया,
मे अगर ये सब तु हार अंदर नह ह, तो आप या सोचते ह िक आपको कोई यान, ान, योग क िस हो जाएगी?
अगर आपक भीतर अिहसा नह ह तो तु ह या लगता ह, तु ह समािध हो जाएगी? और िजतना मरज़ी करते रहो साधना,
पढ़ते रहो ंथ और भले िकतनी भी संत-सेवा करते रहो; पर अगर आपका दय क णाहीन ह, तु हार म सौहाद, मै ी
नह ह तो आप साधक कहलवाने क यो य नह ह, आप ई र ेमी नह ह और आपको भ तो कदािप नह कहा जा
सकता।
कबीर कहते ह, ‘मन र, तू कर ले साहब स ीत।’ कबीरजी अपने मन को समझा रह ह और अब आप अपने मन
को समझाएँ िक अगर आप दूसर से ेम करते ह और दूसर को आपसे लगाव ह तो बदले म या िमलेगा? उनक
बदलते ए मन का दंड भुगतना पड़गा। आज वे यार करगे, आज वे तु ह एकदम ऊची पदवी पर बैठा दगे, कहगे िक
तुमसे अ छा और कोई नह , पर एक गलती हो गई, कोई छोटी सी भी गड़बड़ हो गई तो सब लोग िमलकर आपको
इतने जूत े मारगे, व तुतः जूत े न भी मार चाह बान से ही मार। जूत े भी चमड़ क और बान भी तो चमड़ क ही ह!
इस चमड़ क जीभ से इतने जूत े मारगे िक आपको अपनी नानी याद आ जाएगी और हो सकता ह िक आपक गलती
शायद कछ भी न हो।
संसार क तमाम संबंध म ये बड़ा खतरा हमेशा रहगा। इस बात को आप अ छ से समझ ल। जो आज आपको यार
कर रहा ह, ज़ री नह िक कल भी कर और जो आज आपको गाली दे रह ह, ज़ री नह वह कल भी गाली दे।
सबकछ बदलेगा। इसिलए िववेक बन और प रवतन को वीकार कर। ईमानदारी से अपने मन को देख। एक िमनट म
एक आदमी आपको अ छा लगता ह और थोड़ समय बाद वही आदमी आपको बुरा लगने लगता ह। कभी-कभी तो इस
बदलते ए मन क रग क कारण आप खुद ही पीि़डत होते ह। आप अपने ही मन को समझ नह पाते ह। यह जान िक
जैसे आप अ ानी ह और मन को नह समझते ह, ऐसे ही सामनेवाला य भी अपने मन को नह समझता ह और वह
भी अपने मन का गुलाम ह। वह बेचारा खुद बड़ा दुःखी ह तो उसे और य सताना? उसे जाने दो, उसक ित अनुकपा
रखो। दूसर क ित इतना भी कठोर नह होना चािहए।
मान ल आपक घर म िकसी को ब त ज़ोर से गु सा आया और वह गाली दे। वह आपको अपश द बोले, आपक
िलए बुरी-बुरी बात कह। थोड़ा सा धीरज धरकर, थोड़ा सा अपने मन पर ि रखते ए उसक बात को सुन और
अपने आपको उसक जगह म देख। जो पीड़ा वह महसूस कर रहा ह और उसी वजह से वह िच ा रहा ह। उसका
कारण गलत ह या सही, उस पर हम चचा नह कर रह ह, पर वह पीि़डत ह, इसिलए िच ा रहा ह। वह जो पहले से
ही दुःखी हो रहा ह, अब उससे और ऩफरत या करनी?
एक बात जान िक अगर हम अपने मन को जान ल तो िफर हमार िलए संसार म जीना ब त सहज हो जाएगा।
आपको कभी कोई दूसरा दुःखी नह करता ह, आप हमेशा अपने ही मन से दुःखी होते ह। आप कहते ह मुझसे कोई
ऊची आवाज़ म बोल नह सकता तो तूने कसे बोला? कभी-कभी र तेदार म आप ये कह भी नह पाते ह िक ‘तुमम
इतनी रत?’ यह बात मन-ही-मन म बोलते रहते ह िक तुमम इतनी रत? उस य को कछ पता नह िक आप या
सोच रह ह। आप जो बोलना चाहते ह और वा तव म जो बोलते ह, उसम बड़ा अंतर होता ह। पर अगर आप सबकछ
सच-सच बोलने लग भी जाएँ तो भी बड़ी त़कली़फ हो जाएगी। बोलते हो तो त़कली़फ नह बोलते हो तो त़कली़फ तो
हल या?
पंजाबी म एक कहावत ह—दार वट, जमाना कट। अपने मन पर काबू रख और जो आए, उसको देख! जो थितयाँ
सामने आएँ, उन थितय को झेल। देख, पर िवचिलत न हो। िति या न कर, ितभाव द, सामनेवाले ने तलवार
िनकाली ह, आप तो न िनकाल। थोड़ा धीरज धर। आप देखगे िक गु से का उ़फान आया ह, एक लहर उठी ह। थोड़ी
देर ऊची उठगी, िफर नीचे ही तो िगरगी। लहर कब तक ऊपर रहगी, लहर को नीचे आना ही पड़गा। रात हमेशा नह
रहती ह, िदन आता ही ह। सं या अगर ई ह तो सूय उदय तो होगा ही। रात हमेशा थोड़ ही बनी रहगी। तो सामनेवाला
जब गु सा िदखा रहा हो तो उस समय पर आपक िलए यान (मेिडटशन) करने का वह े समय होता ह। जब
सामनेवाला लाल-पीला हो रहा हो और गु सा िनकाल रहा ह, वही समय ह गहरा ास भर, गहरा ास छोड़।
इसको िकसी िदन करक देखना। आपका कोई र तेदार आपसे नाराज़ ह, गु सा ह और वह बोल रहा ह तो आप
अपनी ि िकसी एक जगह पर िटका द, खुली आँख से ाटक करना। वह तो ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा होगा तो एक
काम और भी कर सकते ह और वह ये िक ‘ओ३ , ओ३ ’ का गुंजन करना। वह आदमी उतना िच ा रहा होगा िक
उसको तो सुनाई ही नह देना ह।
प नय क िशकायत होती ह िक पित उनक बात नह सुनते। िजस िदन पितदेव चालू हो जाए तो समझना िक घंटी
बज गई ह और यान करने का समय शु हो गया ह। अब वह चालू हो जाए तो आप अपनी ि िटका ल। चाह
उसक चेहर पर ही िटका ल। आप अपने ‘ओ३ ’ क गुंजन का मज़ा ल और उस आदमी को ोध क अगन म जलने
द। होगा यह िक जब उसक भड़ास िनकल जाएगी तो वह भी हलका हो जाएगा और आप तो गुंजन कर रह थे तो आप
तो म त हो ही जाएँगे।
यह बड़ी कमाल क चीज़ ह। गुंजन का एक तरीका वह ह, जो हम परपरागत प से करते ह, िजसम आप कान को
अँगूठ से बंद करते ह। म अपरपरागत य तो, म आपको अपरपरागत रा ते ही बताऊगी। म तु ह गुंजन यान का
उपयोग ठीक उसी व़ करना िसखा रही , िजस व़ आपक घर म लड़ाई हो रही हो। लोग लड़ रह ह, शोर हो रहा
ह, गाली-गलौच हो रही ह और आप इसे सफलतापूवक कर सक, पर ऐसा आप तभी कर सकगे, जब आप रोज़ थोड़ा
समय गुंजन करते ह। आग लगे तब कआँ नह खोदा जाता, कआँ पहले से खोदकर रखना पड़ता ह।
चलो आपका सब का कआँ अभी का अभी खुदवाते ह, य िक मुझे आप पर कोई भरोसा नह िक आप बाद म कछ
करगे। इसिलए जो करना ह, अभी कर। गुंजन करने क िलए रीढ़ क ह ी सीधी करक बैठ जाएँ। आँख बंद कर और
शरीर को थर कर। अब ‘ओ३ ’ का गुंजन कर। अपने जबड़ को ढीला रख। पूरा यान चहर पर रख। आँख बंद ही
रह। ास पहले गहरा भर ल और उसक बाद गुंजन कर। आपका यान चेहरा, गाल, ठोड़ी, दाँत, जीभ, माथा, िसर पर
रह। गहरा ास भरकर ास छोड़ते ए ‘ओ३ ’ का उ ारण कर।
थोड़ समय तक इस तरह उ ारण करने क बाद दोन हाथ क अँगूठ से अपने कान बंद करक गुंजन को चालू रहने
द। इससे गुंजन और घना हो जाएगा। थोड़ समय इस तरह करते रह। अँगूठ से कान को बंद करने क वजह से अगर
हाथ थक जाए तो उसे थोड़ी देर क िलए नीचे कर ल। पर यही ि या करते रह। गुंजन करते ए आपक माथे और
आँख क पास, कान क पास या अनुभव होता ह, कसे पंदन हो रह ह, उस पर यान द। िजतने समय गुंजन करने
बैठ, इस बात का खयाल रह िक रीढ़ क ह ी सीधी हो, आँख बंद और यान चेहर पर। गुंजन करने क बाद धीर-धीर
आँख खोल और खुली आँख से अपने मन क अंदर झाँक। आप खुद ही देख िक आप या महसूस कर रह ह!
आपक िवचार क गित कम होती ह, मन ठहरता ह। जब िवचार कम होते ह तो िवचार क साथ मन म जो िव ेप,
िनराशा, बेचैनी थी, वह कम हो जाती ह। शारी रक तर पर ‘ओ३ ’ क गुंजन से जो विन तरग का सृजन होता ह,
उसका सीधा सकारा मक असर आपक थाइराइड ंिथ, पेरा थाइराइड ंिथ, पीिनयल ंिथ पर होता ह। जब आप थर
बैठकर गुंजन करते ह, तब आपक शरीर क अंदर क पूरी रासायिनक ि या बदलनी शु हो जाती ह। सेराटोिनन और
मेलाटोिनन हाम स का ाव होने लग जाता ह, जो वैसे तो गहरी न द म होता ह। इन दोन रसायन को हम गुड हाम स
कहते ह। ये हम अ छा महसूस कराते ह।
एक आदमी, जब शराब पीता ह तो वह ऐसे रसायन शरीर म लेकर जा रहा ह, िजससे उसे अ छा लगता ह और म
कह रही िक अगर आप ाणायाम, यान, धारणा करते ह तो आप खुद शरीर क रसायन से अपनी मरज़ी अनुसार
काम ले सकते ह। आप अपने शरीर म ऐसे रासायिनक बदलाव ला सकते ह, िजससे आपको ऐसा नशा और म ती
आती ह, जो शराब क नशे से कई गुना यादा होती ह।
िजन लोग को भूलने क बीमारी होती ह, उसे आप लोग मानते ह िक उ बढ़ने क वजह से हो रही ह। पर ह़क ़कत
म आपक याददा त कमज़ोर इसिलए हो रही ह िक आपने अपने शरीर का दु पयोग िकया ह। आपने अपने मन का
दु पयोग सोचने म िकया ह। िजस मन को आप सोचने म लगाकर रखते ह, उस मन को िव ाम तो िमलता ही नह ।
िदन से लेकर रात तक मन सोचता ही रहता ह तो मन को िव ाम कब िमला? जब मन को िव ाम नह होगा तो िफर
वह इसी तरह यवहार करगा। िचढ़िचढ़ा हो जाएगा। जैसे, छोट ब े को न द आई हो और आप उसे सुलाएँ नह तो हम
कहते ह िक ब ा िचढ़िचढ़ा हो गया ह। जैसे, ब े को न द क ज़ रत होती ह, उसी कार मन पी आपक ब े को
कभी-कभी सोने िदया कर। कभी-कभी तो उसे भी िव ाम करने का अवसर िमलना चािहए। आपको ऑिफस से
शिनवार-रिववार छ ी होती ह, पर बताएँ आपक मन को कब छ ी िमलती ह?
आपक मन को कभी छ ी नह िमलती। जब लोग छ य पर जाते ह, तभी तो मन यादा सोचता ह िक अब या
कर, िजसम मज़ा आए। इतना सारा समय ह तो या कर। समय िबताने क िलए या कर? समय िबताना नह ह, ण
को जीना ह।
कोई भी य जब छ य क िलए जाता ह तो पहले जाकर अपनी होटल क ड क पर पूछता ह िक यहाँ देखने
लायक या- या ह? करने क िलए या- या ह? भाई, तू सब काम-धंधे से छ ी लेकर िव ाम करने क िलए आया ह
और यहाँ आकर नया काम य करना चाह रहा ह? हाँ, शारी रक यायाम नह कर पाए थे तो थोड़ा घूमगे, भागगे,
दौड़गे, कोई खेल खेलते ह तो उससे शरीर को ब त अ छा रहता ह। लेिकन आप अगर आराम करने क िलए गए ह तो
आराम कर, पर िव ाम क नाम पर आप िफर से वृि करते ह।
एक स न बता रह थे िक हम छ ी मनाने क िलए लॉस वेगास गए थे। बोलो, लॉस वेगास छ ी मनाने क जगह
ह? लॉस वेगास को ‘पाप क नगरी’ (Sin city) कहते ह। ‘पाप नगरी’ म आप िव ाम करने जाते ह? मुझे तो समझ नह
लगती। यह तो ऐसे हो गया िक कोई कह िक म नरक म घूमने जा रहा । वहाँ जाकर बड़ा मज़ा आता ह। तो वह
स न कह रह थे िक मेर दो त म कछ लोग ह, िज ह जुआ खेलने का बड़ा शौ़क था। वे प च गए सब मशीन पर
और आ यह िक शाम तक आते-आते, िजसने ब त यादा जीत िलया था, वह इतनी यादा शराब पी गया िक उसक
वजह से उसक तबीयत खराब हो गई। वह कह रह थे हमार ुप से कछ लोग इतना हार गए िक उ ह बाद म याद आया
िक उ ह ब त सार िबल भरने बाक ह और उ ह ने जोश म आकर ब त सारा पैसा जुए म लगा िदया था। वे तनावयु
होकर घर वापस आए। मूखता क कोई सीमा होती ह!
म देखती िक लोग घूमने क जगह पर जाते ह, तो आजकल सब क पास िडिजटल कमरा, मोबाइल फोन म भी
कमरा होते ह तो सब लोग फोटो िनकालने म य त होते ह। वे पोज देने म और फोटो िनकालने म इतने लगे रहते ह िक
उस जगह का आनंद लेना भूल जाते ह।
इस तरह बैठकर आप अपने आपको एक मौका देते ह, जब आप कछ नह कर रह ह। जब तक आप िज़ंदा हो, तब
तक ास चलता ही रहगा, पर आप ि़सफ इतना कर रह ह िक ास िजस तरह से लेना चािहए, वैसे ले रह ह। आप
इस तरह बैठकर जैसे गहर ास लेत े ह, वा तिवकता म आपका सामा य ास ऐसे ही होना चािहए।
एक बार घड़ी को सामने रखकर िगन िक आप िकतने ास ले रह ह। िकसी क िगनती 18, िकसी क 20, 22 या
25 होगी। एक बात याद रखना हमार पास जीने क िलए उ नह ह, हमार पास ास ह। ये ास क पूँजी ह। अब
हम िकतने ास एक िमनट म खच करते ह, उतनी ज दी हम अपनी आयु ख म कर रह ह। आप सबक पास िहसाब ह
िक बक म िकतने पैसे ह, ॉपट म, इ टी म, शेयर म िकतने ह, िकतने उधार िदए ह, पर कभी ास का िहसाब भी
करक रख िक कहाँ-कहाँ खच कर रह ह।
‘ ास िगन-िगन क तुझको िमला ह,
ये लुटाने क कािबल नह ह।
बड़ी मु कल से नर तन िमला ह,
ये गँवाने क कािबल नह ह।
चोला अनमोल तेरा िसला ह,
िजसम जीवन का फल िखला ह।
नाम ह र का दय से न भूलो,
ये भुलाने क कािबल नह ह।
इस नर तन को पाक क क ता
जो पढ़ी न सुनी भगव ीता।
साधु सं यासी बन मन नह जीता,
संत कहाने क कािबल नह ह।
बड़ी मु कल से नर तन िमला ह,
ये गँवाने क कािबल नह ह।’
अपने ास का थोड़ा िहसाब रखा कर। म आपको िलिखत गारटी दे सकती िक अगर आप तीन महीने तक
चौबीस घंट ास को देखते रह तो तीन महीने म बु हो जाएँगे। य िक िजतना आप ास को देखते जाएँग,े उतना-
उतना ास गहरा होता जाएगा और िजतना आपका ास गहरा होगा, आपका मन शांत होता जाएगा। अंदर इतना रस
बनने लग जाएगा िक बाहर यह देखो, वह देखो, यह करो, वह करो ऐसी िच नह रह जाएगी। वैरा य अपने आप आ
जाएगा।
अभी आपक भीतर इतने दुःख ह, इसिलए आप अंदर जाना ही नह चाहते। जब आपक भीतर सुख होगा, आनंद होगा
तो िफर बात उलटी हो जाएगी। िफर बाहर जाने को जी नह करगा। िजसक घर म अ छा खाना बनता हो, वह बाहर
खाना खाने य जाएगा? जब घर म अ छा खाना नह बनता, तब बाहर जाना पड़ता ह। घर म अगर सुकन हो तो िफर
आदमी सुकन ढढने बाहर नह जाता। जब अपने मन म सुख का समु अपार लहराता ह तो आदमी िफर सुख क भीख
माँगने क िलए दुिनया म नह जाता ह।
देखो, ये चीज़ जो हम कह रह ह, वे ि़सफ सुनने क नह ह, करने क ह। इसे रोज़ कर। इसे करने से जो िववेक
और ान भीतर आता ह, उसका लाभ ल। ान बाहर से नह आता ह; ान तो भीतर से आता ह, पर जब मन िबखरा
आ हो, मन बेचैन हो, मन भागता रहता हो तो िसवाय दुःख क आपक प े कछ नह आता।
यही वजह ह िक म ि़सफ सुनने पर ज़ोर नह देती, य िक म जो क गी वह तो आपको आधे घंट म भूल जाएगा।
सुना और पढ़ा आ याद नह रहता, पर जो िविध म आपको करना िसखाती , उसे अगर आप रोज़ बैठकर करगे और
करते-करते अगर भीतर अ छी अनुभूित हो गई तो आपको खुद को ये बात समझ म आ जाएँगी। उसक बाद आपक
समझ भी गहन हो जाएगी।
हम जीवन को मजे से जीना िसखाते ह। म इस िज़ंदगी क भरपूर ेम म और आपको भी अपनी िज़ंदगी से यार
करना िसखाती । देखो, कल िमलाकर आपक पास एक ही मन ह। ब े आपक पास दो-तीन हो सकते ह, पर मन
एक ही ह। इस मन पी ब े का ब त खयाल रखना चािहए, उसे लाड़ करने चािहए। अभी जो आप कर रह ह वह
लाड़ नह ह, वह तो मन को िबगाड़ रह ह। यह िजसे आप मन का मज़ा कहते ह न, वह मज़ा नह सज़ा ह। िजसे आप
सज़ा समझते ह न, वह ह़क ़कत म सज़ा नह मज़ा ह। आप िजसे सज़ा समझते ह, उसे हम मज़ा सािबत कर दगे।

अपने मन क दुदशा क िलए आप खुद िज मेदार ह
आ ज क इस मानव जीवन म इतना तनाव ह, िसर पर इतना बोझ ह िक व थ जीना भी मु कल होता जा रहा ह।
िचिक सा िव ान ने भी बार-बार इस बात को वीकार िकया ह िक मानव शरीर म रोग मन से आते ह। मतलब हम
अपने शरीर को रोगी कर सकते ह और ऐसी श हमार मन म ह। यह बात शायद च का देने वाली लगे, पर यह
कड़वा सच ह िक हमार रोग हमार मन से आते ह। एक डॉ टर हमार शरीर म रोग क ल ण को देखकर हम कछ
दवाइयाँ दे सकता ह, पर उसक पास इतनी मता या िनपुणता नह होती िक वह उस रोग क मूल कारण को जड़ से
िमटा सक। इसक वजह यह ह िक डॉ टर को ऐसी तालीम ही नह िमलती, िजनसे वे मन का इलाज कर सक।
जब मन क इलाज क बात आती ह तो ि़सफ मानिसक रोगी ही मनोिचिक सक क पास जाते ह। सामा य आदमी तो
मनोिचिक सक क पास जाने क नाम से ही भड़क जाता ह। कसी अजीब बात ह न िक जो डॉ टर आपक शरीर क रोग
का इलाज करनेवाला ह, वह मन को समझता ही नह । जो मन को समझता ह, िजसक पास उस शा क जानकारी ह,
उस शा म जो अनुसंधान ए ह, वे तो उस डॉ टर क सािथय ारा पागलखाने म रहनेवाले मरीज़ पर िकए ए
अ यास पर आधा रत ह। उनक अनुसंधान असामा य मानिसक ण पर आधा रत ह। आप असामा य या मानिसक रोगी
नह ह, पर वे आपका इलाज वैसे ही लोग पर क गई खोज क आधार पर करते ह। ये ब त अजब थित ह!
प म म िजतने भी मनोवै ािनक ए ह, उ ह ने कभी िकसी जा य को देखा ही नह ह। वे बु को िमले
नह , महावीर क बार म उनको कछ पता नह ह, कबीर, रदास, गु नानक क िवषय म उ ह कछ ान नह था। ायड
और पावलोव जैसे मनोवै ािनक क सारी खोज उन मनोरोिगय पर थी, जो अ पताल म बंद ह और उनपर क गई
खोज क नतीजे आप जैसे य पर लागू िकए जा रह ह। अब उसम िकतना स य होगा?
आज आप यह बात ब त यान से समझ ल िक जब आप िफ करते ह तो वह ि़सफ िफ ही नह हो रही ह,
ब क आपक शरीर म रोग को उ प करने क ि या चल रही ह। जब आप ोध करते ह, चाह िकसी बात पर
कर, चाह िकतनी ही बड़ी बात य न हो जाए, पर ोध म आप अपनी ए ीनल ंिथ को काम करने पर मजबूर कर
रह ह। और वह आपक शरीर म ऐसे रसायन का ाव करगी, जो आपक शरीर क िलए ब त नु़कसानदायक ह गे। अगर
िचंता क कारण या िनराशा, दुःख, पीड़ा क वजह से आपको गहरी न द नह आ रही और आप एक रात क िलए भी
ठीक से सो नह पाए तो यह बात ब त प ढग से समझ लेना िक एक रात क अिन ा क कारण ए नु़कसान क
भरपाई करने क िलए आपक शरीर को अगले छः िदन लगने वाले ह। एक रात क अिन ा से शरीर को जो ध ा लगा
ह, वह आपक शरीर क पूर तं को उलट-पुलट कर देगा। उसे ठीक करने म आनेवाले सात या दस िदन तक आपक
शरीर को अिधक काम करना पड़गा।
आपक ब े कई बार िफ म देखने क िलए देर रात तक जागते ह। िफ म से मेरा कोई िवरोध नह ह। मुझे भी
िफ म देखने ले जाएँ तो म भी आपक साथ िसनेमा हॉल म बैठकर िफ म देखूँगी। पर आपक ब े या आप खुद िफ म
देखने क िलए रात क न द गँवाते ह तो आपको उसक बार म सोचना चािहए। िसनेमा हॉल से घर वापस लौटने का
आधा घंटा या िफर एक-दो घंट का समय भी लग सकता ह, य िक आपक घर से िसनेमा हॉल िकतनी दूरी पर ह, उस
पर ये समय िनभर करता ह। िफर घर आकर आप कपड़ बदलकर, श करक िब तर पर लेटते ह। हो सकता ह िक
आप िफ म क वजह से ब त उ ेिजत ह और उस िफ म पर आधे घंट तक और चचा करते रह। मतलब आप देर
तक जागते रहते ह।
अगर आप ऑिफस क िकसी काम क वजह से, अपने ब े या पित-प नी, र तेदार या िकसी भी कारण से परशान
ह और आपको ठीक से न द नह आ रही ह तो आप मानते ह िक न द न आना मामूली बात ह। पर आज म आपसे
प प से कहना चाहती िक वह छोटी बात नह ह। आप देर तक जागते ह, इसक वजह से हायपोथेलमस क
मदद से िपिनयल लड और िप यूटरी लड से जो ाव होना चािहए, वह होता नह । इन रसायन और हाम स क ाव
तभी होते ह, जब आप िव ाम कर रह होते ह। अगर आप िव ाम नह करते ह तो आपका पूरा तं गड़बड़ हो जाता ह
और खतर म आ जाता ह। अब इसक क मत कौन भरगा? आपक वा य को यह क मत चुकानी पड़गी। कपया, यह
बात समझ ल िक वा य मु़ त क भट नह ह। यह हमेशा नह रहगा! आपको उसक िलए ब त कछ करना पड़गा।
अगर वह आप नह करगे तो ब त ज दी बूढ़ हो जाएँगे और ज दी मर जाएँग।े
म आपसे सवाल पूछना चाहती िक या आप अपनी िज़ंदगी से इतने त हो गए ह, ऊब गए ह िक अपने आपको
ऐसी थित म लेकर जा रह ह, जहाँ आप रोज़ मृ यु क तऱफ खुद को धकलते जाएँ। आप खुद से इतनी ऩफरत य
करते ह? िन त ही आपको अपने आप से वैर ह या िफर आपक आस-पास जो ह, उनसे या िकसी प र थित से
िजसक वजह से आप खुद को ख म कर देना चाहते ह। हालाँिक आप हिथयार से या और िकसी साधन से ह या नह
कर रह ह, पर आप तनाव त ह और तनाव शरीर क िलए ज़हर ह। िचंता ज़हर ह।
म यह ब त नरम श द म कह रही , पर हमार संत ने तो कहा, ‘‘िचंता िचता ह।’’ वे ऐसा नह बोले िक िचंता
ज़हर ह, पर उ ह ने कहा िक िचंता िचता ह। िचंता करते ह तो खुद को जीते-जी सीधा िचता पर डाल रह ह या हम यह
भी कह सकते ह िक िचता पर ज दी प चने क तैयारी कर रह ह। मेरा न यह ह िक ऐसी या त़कली़फ हो गई ह
िक िचता पर भागकर जाने क कोिशश म लगे ह?
आप कहते ह बस थोड़ी सी िफ ह। तो म कहती िक कोई भी िफ थोड़ी नह होती। ज़हर ि़सफ ज़हर होता ह,
थोड़ा सा या यादा नह होता ह। िचंता ज़हर ह। िचंता िचता ह। आप अपने मन म टटोलकर देख ल, अपने आपको
देख ल िक आप िकतनी िफ करते रहते ह। ये िफ आपको कोई और नह दे रहा, आप खुद ही करते रहते ह। कभी
यवसाय क बार म, कभी नौकरी, कभी र त क बार म, और तो और दूसर ने तु हार साथ कसा यवहार िकया,
उसक भी आप िफ करते ह। आप एक िमनट क िलए भी यह समझने क िलए तैयार नह ह िक अगर सामनेवाला
कछ बेवक़फ कर रहा ह तो उसक बेवक़फ वह भुगते, आप उसक बेवक़फ क बार म सोचकर अपना क मती समय
य खराब कर रह ह?
िकसी ने गलती क , िकसी ने गाली दी तो उसने अपने मन को िशकार बनाया। उसक िलए अपनी शांित गँवाकर
उसक बेवक़फ क िलए आप य िफ करते ह? आप देख िक आप िकस तरह से जीवन जी रह ह। इसिलए म
कहती िक आप अपने आप से ेम नह करते। या आप जानते ह िक अगर आप खुद को ेम नह करते तो कोई
आपसे ेम नह करगा। अगर आप खुद को ेम करने क कािबल और स म नह समझते ह, तो इसका मतलब यह ह
िक आप जानते ह िक आप िकतने सड़ ए ह। इसिलए अगर सब लोग आपसे दूर भाग रह ह तो वे लोग आपक साथ
बराबर याय कर रह ह। अगर आप ऐसी दीन थित म ह तो आपको इस थित म िकसी और ने नह , खुद आपने ही
डाला ह। आपक मन क अगर दुदशा ई ह तो उसक िलए आप खुद ही िज़ मेदार ह।
िकसी भी र ते को इतनी अहिमयत नह देनी चािहए िक वह आपको िवचिलत कर सक। मेरी राय म िकसी भी र ते
को इतना बड़ा थान नह देना चािहए, िजसक वजह से आप अपने मन क शांित को गँवा द। पर या ह न िक आप
ऐसे ही पा रवा रक वातावरण म पले ह, जहाँ हर कोई हर एक क िलए और हर चीज़ क िलए िचंता करता रहता ह।
म आपक सामने एक का पिनक य रखती । मान ल िक घर म दूध ख म हो गया ह। माँ कहती ह, ‘‘घर म दूध
ख म हो गया ह और िकसी को उसक िफ ही नह ह। सारी िज़ मेदारी मेरी अकली क ही ह? आप कछ नह कर
सकते?’’ अब यहाँ ‘तुम’ माने उस मिहला का पित भी हो सकता ह, संतान भी हो सकती ह या प रवार का कोई भी
सद य हो सकता ह।
अब दूसरा य देखो। एक आदश य। घर म दूध ख म हो गया ह। उस व़ आप या करगे? आप कह सकते
ह, ‘‘देखो, आज हम लोग दूध क ब़गैर काम चला ल? एक काम करते ह, आज अदरक और दालचीनी क चाय पी
लेत े ह। वह हमार वा य क िलए ब त अ छी होती ह, य िक दालचीनी क चाय पाचनतं क िलए लाभ द ह।
उसक वजह से पेट म वायु नह होती और कह पर भी शमनाक थित का सामना नह करना पड़गा। एक िदन क िलए
दूध न पीना वा य क िलए अ छा ह।’’ घर म दूध न हो तो इतना शोर य मचाते ह? यह तो मने एक थित का
उदाहरण िदया ह।
म अपनी ही एक बात करती । म एक बैग म अपनी तीन डायरी रखती । इन डाय रय म गु बानी क शबद, मेर
भजन व़गैरह िलखे ए ह। अमे रका म मेरा स संग था। उस व़ स संग क थान पर जाने से पहले डायरी लेने गई तो
वह िदखाई नह दी। थोड़ा ढढा, पर कह िमली नह । मेर साथ जो गए थे, उनसे पूछा तो उ ह भी डायरी क बार म कछ
पता नह था। स संग क हॉल पर प ची तो वहाँ पर आयोजक म भी सब लोग परशान थे िक ‘डायरी कहाँ गई? डायरी
कहाँ गई?’
मने कहा, ‘इतना परशान होने लायक कछ नह आ ह। िलखा तो मने ही था न!’ वैसे भी, डायरी सामने रखने क
थोड़ी बुरी आदत डाल ली ह, य िक कभी-कभी ऐसा हो जाता ह िक गाते-गाते म ती म िकसी एक पं म डब गए,
तो उसक बाद क पं यान म आ जाए, इसक िलए डायरी सामने रखती । पर डायरी गुम हो गई तो या हो गया?
नह ह तो न सही। वे सार भजन हमार अंदर से ही तो आए थे! िकताब गुम हो गई पर शायर तो अभी भी यह ह! मने
कहा, ‘िफ न करो, छोड़ दो, डायरी गई तो गई। िमलनी होगी तो िमल जाएगी। उसम िचंता करने क कोई ज़ रत
नह ।’
अब आप सोचकर देख, आपक कोई चीज़ गुम हो जाए तो आप या करते ह? अगर कह औरत का गहना या पु ष
का कोई ब काड गुम हो तो पूर घर पर आ़फत आ जाती ह। वे कहगे िक ‘ या इस घर म भूत बसते ह? सामान
कहाँ गया?’ उस समय पर िफर या- या वचन िनकलते ह। खुद त़कली़फ म ह, खुद भी जल रह ह और बोल-
बोलकर दूसर को भी त़कली़फ दगे। आप परशान ि़सफ एक काड क िलए नह हो रह ह, पर असल म आपको यह
मालूम भी नह ह िक अनजाने म उस काड क बहाने आपक अंदर, जो इतनी परशािनयाँ भरी ह न, वे बाहर िनकल आई
ह।
जीवन म रोज़ एक नई प र थित आपक सामने आएगी, जहाँ कछ गुम हो जाएगा, कोई चीज़ खो जाएगी, कोई
नु़कसान हो जाएगा, कोई मर जाएगा, कह िकसी क साथ दुघटना हो जाएगी, कोई बुरी खबर सुनने को िमल जाएगी।
कोई गारटी नह िक आपक जीवन म ऐसी खबर न आए। आ सकती ह, संभावना ह। हमारी िज़ंदगी आ य से भरी ई
ह और िज़ंदगी हम च का देती ह। हम उसे अ छी या बुरी खबर कहते ह। खबर ि़सफ खबर होती ह। अचानक जो भी
होता ह, वह खबर ह। दूसरी बात, वही खबर एक य क िलए खुश़खबरी होती ह, वह दूसर क िलए अशुभ समाचार
हो सकती ह। अ छा या बुरा कछ नह होता, पर उस घटना को आप कसे देखते ह, उस पर वह िनभर होता ह। िकसी
खबर क साथ अगर आपका वाथ जुड़ा आ ह तो हो सकता ह िक उस घटना से आप ब त दुःखी हो जाएँ या ब त
खुश हो जाएँ।
अभी (स 2010 म) आइसलड म ालामुखी फटा। उसक वजह से सभी हवाई कपिनय को कल िमलाकर 20
िमिलयन डॉलर का नु़कसान आ ह, ऐसा अंदाज़ ह। इस घटना क वजह से हज़ार लोग एयरपोट पर फस गए थे। या
आप इस खबर क वजह से उस रात सो नह पाए? आपने ठीक से खाना भी खाया, सोए भी। कल शिनवार क रात थी,
तो लोग ने पाट क , दो त से िमले। आपने खबर सुनी, टलीिवज़न बंद िकया, उस खबर क बार म थोड़ी बातचीत क
और सो गए। लेिकन मान ल िक आपको फोन आया होता िक आपक माँ, चाची, मामी या दूर का कोई भाई, बहन,
दो त या आपका बॉस एयरपोट पर फस गए ह। अब या आप इतने शांत रह सकगे? अब या ये खबर आपक िलए
ि़सफ एक खबर बनकर रहगी? िब कल नह । अब आप भी इससे िचंितत हो जाएँगे। पूरी दुिनया मर जाए तो आपको
ज़रा-सा भी फ़क नह पड़ता, पर आपक प रिचत को रसोई म स ज़ी काटनेवाला चाक लग जाए, तो भी आप याकल
हो जाते ह।
या अजीब खेल ह आपक मन का! चीन क भूचाल म हज़ार से यादा लोग मर गए, पर आपको कोई परवाह नह ।
कसे बेदद लोग ह आप, िकतने प थर िदल! आइसलड म इस ालामुखी क फटने क बाद कह रह ह िक यह संभावना
ह िक अगर िकसी लेिशयर क नीचे िव फोट हो गया तो बाढ़ आ सकती ह। अगर बाढ़ आ गई तो और भी खतरनाक
थित हो सकती ह। लेिकन आपको इससे या फ़क पड़ता ह! सारी दुिनया डब मर, आपको या? कहाँ तो आपका
मन इतना िवशाल ह और कहाँ आपका मन इतना छोटा िक एक छोटी सी बात क िलए परशान होता रहता ह, रोता रहता
ह।
म एक और उदाहरण देती । एक वृ मिहला, जो साठ साल क करीब ह गी, अपने पोते-पोती क साथ मुझे
आ म म िमलने आई। मेर पास आकर ब त रो रही थ । जब मने उनसे पूछा तो उ ह ने बताया िक उनका एक ही बेटा
था। पहले उस वृ मिहला क ब क मृ यु ई और िफर कछ ही समय म बेटा भी मर गया। उसक बेट क दो ब े
थे। वह मिहला रो रही थ , ‘‘मेरा जवान बेटा मर गया, ब मर गई और उनक दो छोट-छोट ब े ह। अब म कसे
िजऊ?’’ ब त देर तक रोती रह । िफर मने उनसे बात क , उ ह समझाया और पूछा, ‘‘आपको िकस बात क परशानी
यादा ह?’’ उ ह ने कहा, ‘‘इन ब को पढ़ाऊगी कसे? मेर पास कमाई का कोई साधन नह ह। मेरा एक पोता और
एक पोती ह।’’ मने कहा, ‘‘ब को तो हम ‘श ’ (आनंदमूित गु माँ ारा लड़िकय क िश ा क िलए चलाया जा
रहा एक काय म) क अंतगत ले लगे।’’ उ ह ने कहा, ‘‘ब क पढ़ाई क िलए तो आ म से िपछले साल से पैसे आ
ही रह ह।’’ मने कहा, ‘‘चलो, आपक ये ि़द कत तो पहले ही ख म हो गई। अब अपने मन को आप ठीक कसे कर,
उस बात को समझ।’’ उ ह बात समझाई और उनको समझ भी आ गई। वे खुश होकर घर चली गई।
अभी कछ समय पहले आ म म काय म था तो उसम वे ब क साथ आई थ । ब त खुश थ और भीड़ चीरकर
आगे आई और कहने लग , ‘‘म, जब भी आऊ तो बस, आप मुझे डाँट िदया कर। आपने जो उस िदन मुझे डाँट लगाई
थी न, उसक बाद मेरा िदमाग ब त सही चल रहा ह।’’ जब वह पहली बार आई थ , उस व़ डाँट िदया था; य िक
वे रोती ही जा रही थ और बात ही नह सुन रही थ । थोड़ा डाँटा भी था और समझाया भी था। उ ह समझाया था,
‘‘ज म और मरण पर िकसका अिधकार ह? िकसी का भी नह । अगर ब -बेटा मर गए ह तो आप या कर सकती ह?
उनको याद कर-करक आप बीमार हो जाएँगी तो इन ब को कौन देखेगा? इन ब क खाितर अपने आपको ठीक
रख। अब एक भी आँसू न बहने द। अगर आप रोती रह तो आपका र चाप बढ़ जाएगा, नह तो कम हो जाएगा।’’
आप िजतनी अिधक िचंता करते ह, आपका िदल बेचारा आपक िचंता म आपका साथ नह दे सकता। इसिलए
िदल क रोग होते ह। उस मिहला क थित अब भी वह ही ह। वह जवान नह हो गई। उसक बेटा-ब वापस िज़ंदा
नह हो गए। अभी भी उस बूढ़ी दादी को अपने पोते-पोती का खयाल रखना पड़गा। खाना, कपड़ सबकछ देखना
पड़गा। हम तो ि़सफ फ स दे रह ह। बाक सबकछ तो उसको ही देखना पड़ रहा ह। थित आज भी वही ह, लेिकन
मने उ ह कहा िक आप मज़बूत रह। आप मज़बूत नह रहगी तो ब े या सीखगे और ये ब े कसे िजएँग?े उनक
खाितर उनक सामने एक भी आँसू मत बहाएँ। और वह जो कछ बोल रही थ िक मेरी बुरी िक मत थी िक मेरा बेटा
चला गया, ऐसा कभी मत बोलना।’’ ऐसा सब बोलते ए उ ह पता भी नह था िक वह ब को दोष दे रही थ , ‘‘इन
ब क ही कम बुर ह गे िक इनक माँ-बाप मर गए।’’ इनसान ह न, बेवक़फ कर जाता ह। उसका पोता बारह-तेरह
साल का और पोती दस साल क होगी और उनक सामने वह मिहला ऐसा सब बोले जा रही थी। मने कहा, ‘इन िनद ष
ब क सामने ऐसा मत बोल। उनक मन पर या बीतेगी।’
हम लोग ब त अजीब थित म जी रह ह, जहाँ हम अपने शारी रक वा य क बार म तो ब त सजग रहते ह। हम
अ छा भोजन करते ह, दूध पीते ह, सलाद, ोटीन, काब हाइ स लेते ह। शारी रक वा य क तो ब त िचंता करते
ह, पर अपने मन क वा य क पूरी तरह से उपे ा करते ह। जब भी मन क कोई सम या हो तो आप उसका सामना
नह करते ह, उसका हल ढढने का यास नह करते ह, पर उसे अनदेखा कर देते ह या िफर मन क यान को कह
और ले जाने क कोिशश करते ए आप उस सम या से दूर भागने का यास करते ह। यह कोई सम या का हल नह
ह।
आपको एक बात वीकार करनी ही होगी िक िज़ंदगी एक संपूण पैकज ह, जहाँ हसी और आँस ू दोन ही ह गे। जब
आप ब त हसते ह तो आपक आँख म आँसू आ जाते ह। कभी आपने देखा िक कभी कोई इतना हसता ह िक अगर
उस कमर म कोई बाहर से आए तो उसक िलए समझना मु कल हो जाता ह िक वह इनसान हस रहा ह या रो रहा ह?
आपने शायद कभी अनुभव नह िकया होगा, पर यान क कई ऐसी िविधयाँ ह िजनम आप खुद को रोने देत े ह और
मने देखा ह िक रोते-रोते एक समय ऐसा आ जाता ह, जब दन हा य म बदल जाता ह। हसते-हसते रोना आ जाए,
ऐसी थित का शायद आप लोग म से कभी िकसी ने अनुभव िकया होगा, पर दन हा य म बदल जाए, ऐसा आपने
अनुभव नह िकया होगा। लेिकन ऐसा हो सकता ह और उस रोने म आपक मन क परत खुलती जाती ह। एक बार
शु ीकरण क ि या पूरी हो जाए तो िफर हा य िनकलता ह।
अभी कछ समय पहले एक मिहला ने यान क बैठक क बाद मुझे कहा, ‘मुझे एक अजीब अनुभव आ।’ उसने
कहा, ‘योगिन ा क िआ़खर क िह से म मुझ े लग रहा था िक कोई मुझ े अंदर से गु ुदी कर रहा हो और म हसी रोक
नह पा रही थी। मुझ े ये सब अजीब लग रहा था, य िक योगिन ा करने क बाद मुझे शांत, संतुिलत और थर होना
चािहए था। लेिकन उसक बदले म अपनी हसी पर काबू नह रख पा रही थी और मुझे ब त शिमदगी हो रही थी। यह
या हो रहा था, वह मेरी कछ समझ म नह आ रहा था। कपया आप मेरा मागदशन कर।’
ऐसा होना संभव ह। सुख और दुःख एक-दूसर क साथ जुड़ ए ह। जब भी कोई पीड़ा आए तो याद रखना स ता
िन त पीछ आती ही होगी। जब आपक जीवन म सुख आए तो उसक पीछ दुःख आता ही होगा, यह िन त जानना।
सम या यह ह िक आप िज़ंदगी को उसक संपूणता म देखने क िलए तैयार नह ह। आप चुनाव करते ह िक मुझ े यह
चािहए पर वह नह चािहए, लेिकन ऐसा नह होता, यह आपको वीकार करना ही पड़गा। प र थितयाँ आपको इस
मोड़ पर ले आती ह िक आपको सबकछ वीकार करना ही पड़ता ह। आप, म और हम सब ऐसी िज़ंदगी जी रह ह,
जहाँ सबकछ उलट-पुलटा हो जाता ह, अलग-अलग िक म क मोड़ आते ह।
हर एक पु ष और औरत क िज़ंदगी पर एक-एक िफ म बन सकती ह। म जब कछ एक िज़ंदिगय क कहानी
सुनती , तब कहती , ‘वाह! या िज़ंदगी ह!’ पर जो य वह िज़ंदगी जी रहा होता ह, वह नह कहता िक ‘वाह!
या िज़ंदगी ह!’ वह तो रो रहा होता ह।
एक बार ऐसा आ िक मेर प रचय म ऐसा द पित आया, िजसम पित ब त कठोर था और उसक वाणी भी अ यंत
कड़वी थी। वह कई बार प नी को ब त गाली भी देता था। हालाँिक मेर सामने तो सब अ छ-अ छ ही होते ह। एक
िदन मुझ े खबर िमली िक वह आदमी मर गया। उसक ाकितक मृ यु ही ई थी। जब मुझे खबर िमली तो मने कहा,
‘चलो, उस मिहला का छटकारा आ।’ मने जब यह कहा, तब मुझे पता नह था िक वह मिहला वहाँ बैठी ई ह,
य िक जो य मुझे यह संदेश दे रहा था, उसक पीछ ही वह मिहला बैठी ई थी। जैसे ही वह संदेश देनेवाला य
मेर सामने से हटा, मने देखा िक वह मिहला वह पर बैठी ई ह। एक पल क िलए म चुप हो गई। या क ?
प व ा ! लेिकन मने जो कहा था, वह स य था। वह ी मेर नज़दीक आई, मुझ े फल का गुलद ता िदया और
धीमी आवाज़ म कहा, ‘गु माँ, सचमुच आपने सही कहा। लेिकन पूरा समाज ऐसी अपे ा कर रहा ह िक मेर पित क
मृ यु ई ह तो मुझ े रोना चािहए, शोक करना चािहए। सच क , तो मुझ े भी लगता ह िक म छट गई, पर म ऐसा बोलने
क िह मत नह कर सकती।’
मने कहा, ‘चलो, मुझ े एक अ छा चेला िमल गया। म जो कछ कह रही , वह तू समझ पाई ह। और अ छी बात तो
यह ह िक जो म िसखा रही , उस पर अमल भी कर रही ह।’
म िसखाती िक संबंध म बँध मत जाओ। पित अ छा हो या बुरा, प नी अ छी हो या बुरी, पित-प नी म से एक तो
पहले मरगा ही। अपने संबंध म हम अलिवदा कहने क िलए तैयार ही रहना चािहए। हम उस बात का झटका नह
लगना चािहए या पित या प नी क मृ यु से हम िबखर नह जाना चािहए िक ‘अर, यह कसे मर गया!’
मुझ े याद ह िक मने देखा था िक एक गाँव म एक आदमी मर गया। उसक प नी िवलाप कर रही थी। ब त ज़ोर-
ज़ोर से रो रही थी और रोते-रोते कह रही थी, ‘मने तो हर साल इसक िलए करवाचौथ का त रखा था, िफर भी मुवा
मर गया। मने ईमानदारी से त रखा था, िफर भी यह मर गया। ये सब झूठ ह। पंिडत लोग सब झूठ बोलते ह िक त
रखने से पित क उ लंबी होती ह। देखो, मेरा घरवाला तो मर गया।’
ऐसा मानते ह िक िववािहत ी करवाचौथ का त कर, यानी िक पूरा िदन कछ खाए-पीए नह और रात को जब
चं मा िदखे, तब पूजा िविध करने क बाद भोजन कर तो दंतकथा कहती ह िक इस तरह त करनेवाली मिहला क पित
क आयु बढ़ती ह। इसक पीछ कौन सा तक ह िक प नी क न खाने-पीने से पित क आयु बढ़ जाए? म हमेशा कहती
और इस बार म मेरा ब त ढ मत ह िक ि़सफ भारतीय मिहला ही य ऐसा त रखती ह? पित ऐसे त य नह
रखते? या पित ऐसा कहना चाहता ह िक कोई बात नह , अगर तू मर गई तो म दूसरी ले आऊगा? मने अभी तक ऐसा
कोई पु ष नह देखा, जो अपनी प नी क िलए त-उपवास रखता हो! अगर यह ेम क अिभ य क प म ह तो
दोन प ारा होना चािहए! लेिकन पु ष धान समाज म मिहलाएँ ऐसी माँग कर नह सकत । सार र म- रवाज़ ि़सफ
औरत क िलए ही होते ह।
वटसािव ी का त भी ऐसा ही एक त ह, िजसम प नी वटवृ क पूजा करती ह। वटवृ क चार ओर धागा
बाँधती ह और सात च र लगाती ह, ऐसी आशा क साथ िक िजस तरह से सािव ी अपने पित क मृत शरीर म ाण
वापस लाई थी, उसी तरह अगर मेर पित क मृ यु होती ह तो म उसे पुनज िवत क गी। अगर एक उपवास करने से
िकसी क मृ यु टाली जा सकती ह तो म क गी िक यह ब त स ता सौदा ह। अगर इस तरह से आयु य बढ़ सकता ह
तो िफर साल म एक बार ही य , हर महीने एक उपवास रखो!
मन मृ यु को वीकार करने को तैयार नह ह। मन कहता ह, मरने क बात न करो। जीवन क बार म बात करो।
सोचकर देखो िक कछ लोग बैठ ह और शाम का समय हो, बाहर िबजली कड़कड़ा रही हो, बा रश हो रही हो, ऐसे म
कोई शु हो जाए िक ‘वह आदमी मर गया था न तो मशान म...’ तो दूसर लोग कहगे, ‘अर, या पागल हो गए हो?
यह कोई समय ह ऐसी बात करने का? ऐसी बात मत करो।’
आप अपने मृ यु से, अपने ि यजन क मृ यु से डरते ह। ब त से लोग कहते ह िक म खुद क मृ यु से नह डरता,
पर मुझ े अपने ि यजन क मृ यु का ब त डर लगता ह। मेरा पित नह मरना चािहए, मेरा ब ा नह मरना चािहए, मेरी
प नी, मेर माँ-बाप नह मरने चािहए। अगर मेर ि यजन क मौत होती ह तो वह मेर िलए असहनीय हो जाएगा। म उनक
ब़गैर नह जी पाऊगा। मुझ े खुद क नह , उनक मृ यु का डर ह। यह बात सबसे बड़ा और सफद झूठ ह। आप उनक
िलए नह , अपने आप क िलए डर ए ह और इसिलए उनक मृ यु से डरते ह। आपका वह डर खुद क िलए ह, उनक
िलए नह । आप जब कहते ह िक आपको आपक ि यजन क ब त िफ ह और इसिलए आप उनक मृ यु से डर रह
ह, पर ऐसा कहकर आप ये दिशत कर रह ह िक आप िकतना असुरि त महसूस कर रह ह और आपक मन म िकतना
अ ान ह! वरना उसम डरने जैसा या ह?
ज म और मृ यु, एक-दूसर क साथ जुड़ ए ह। िजस िदन आपका ज म आ, उसी पल से मृ यु आपक साथ ह।
िजस िदन आपक इस शरीर का ज म आ, उसी घड़ी से मृ यु आपक साथ ही ह। एक िदन ऐसा आएगा, जब आपका
शरीर चला जाएगा। आपका मन यह ह़क ़कत वीकार करने को तैयार नह ह िक जीवन और मृ यु एक ही िस क दो
पहलू ह। जो ज मा ह, सो मरगा, जो मरा ह, सो ज मेगा।
ये जो बात म कह रही , वह अगर आपक समझ म आ गई तो आपका मन बे़िफ होकर जी पाएगा। जब आपका
मन बे़िफ रहगा तो आपका शरीर भी व थ रहगा। जब मन बे़िफ होगा तो आपका मन साधना म भी लगेगा।
साधना करने क िलए मन हर कार क बंधन से मु होना चािहए। िचंता एक बंधन ह, कामनाएँ बंधन ह। अगर
आपक मन म ब त सारी कामनाएँ ह, आपने अगर अपने मन को ब त सार लोग क साथ बाँधा ह, य , चीज़ क
साथ आपक आस ह तो आप यान नह कर पाएँगे। आपक मन को शांित नह िमलेगी, य िक जब सभी आपको
अलग-अलग िदशा से ख चे जा रह ह, तब आप थर कसे बैठ पाएँगे? अभी आप थर बैठ ह, पर मान ल िक
ब त सार लोग आ जाएँ और कोई आपको िखसकने क िलए कह, कोई आपक एकदम करीब आकर बैठ जाए, कोई
आपसे कह िक बाएँ सरको, कोई कह दाएँ सरको, कोई कछ कह नह और सीधा ध ा मार, िजससे वह खुद क िलए
जगह बना सक, तो या आप थर रह पाएँगे?
मन म बेल़गाम िवचार चलते रहते ह और उस वजह से आप संताप म रहते ह। मन एक बार सोचना शु कर देता ह
और नकारा मक सोचने लगता ह, िफर वह खुद ही एक गित पकड़ लेता ह, िजसम आप िखंचते चले जाते ह और आप
फसते जाते ह। अगर आप अपने मन को मैनेज करना नह जानते ह इसिलए यह मन आपको बीमार करने म और मौत
क करीब ले जाने म स म ह।
हमार ऋिष-मुिन सुबह मु त म, जब सूय उदय भी नह आ ह, उस व़ ान करक प ासन लगाकर पूव या
उ र िदशा क ओर मुँह करक बैठकर, हाथ जोड़कर ाथना करते थे। उन ाथना म सुंदर ोक ह, िजसम वे कहते
थे िक ‘मेर चरण म िव णु का वास ह, मेर हाथ म इ , मेर पेट म वयं अ न देवता, मेर दय म , म त क पर
िशव, मेरी िशखा म वयं वामदेव बैठ ह।’ इसे यास कहते ह। इन सब देवता म इ , वायु और अ न पाचनतं क
देवता ह।
जब हम भगवा कहते ह तो वह य का नाम नह । वैिदक शा म ई र श द क अथ ह—एनज , श । जो
श ि◌ मेर पेट म काम कर रही ह, वह अ न, हदय म कायरत ह, वह , मेर म त क म जो श ि◌ बैठी ह, वह ह
िशव। मेर िसर पर शंकर, िशखा म वामदेव, मेर कान म र म, मेरी आँख म सूय और चं का वास ह।
अब आप कहगे—सूय और चं कसे? अर! यह सांकितक भाषा ह। उसक पीछ गहर अथ ह। काश क ब़गैर हमारी
आँख देख नह सकत । आँख क रोशनी को ‘ने योित’ भी कहते ह। ये काश िकसका ह? सूय का ही तो ह। ऋिष
कहते ह िक सूय का तेज़ मेरी आँख म ह। सुनने क श क देवी का नाम ह र म। मेर कान म र म देवी का वास
हो। हमार शरीर म पाँच ाण कायरत ह और उसक िलए एक श द ह, वायु। ऋिष कह रह ह वायु देवता का मेर शरीर
म वास हो।
यह यास गु कल म िसखाया जाता था। गु अपने िश य को िसखाते थे। सब िव ाथ अपने िदन क शु आत या
खूबसूरत अंदाज़ म करते थे! सुबह ान करने क बाद सबसे पहले प ासन म बैठकर यास करते थे—मेर पैर म
िव णु, बाँह म इ , पेट म अ न देवता, दय म िशव, िशखा म वामदेव बैठ ह, ऐसी भावना से कोई इनसान जब िदन
क शु आत करगा तो बताएँ, कौन सी कमज़ोरी अब उसे पकड़ सकती ह? आप लोग यह सब भूल चु़क ह। आप
लोग को इसक बार म मालूम भी नह और जो म कह रही , इस बात को आप अपने जीवन म शायद पहली बार सुन
रह ह। आपक छोट से मन ने ई र को भी एक छोट से मंिदर, गु ारा, िकसी धम थान म कद समझ रखा ह।
लेिकन, ऋिषय ने िसखाया ह िक यह श याँ तेर ही शरीर म वास करती ह, और तू खुद िशव व प ह। सार देवी-
देवता, सब श याँ तेर ही देह म वास करती ह, िफर कोई कमज़ोरी, िचंता, िफ कहाँ से आ सकती ह?
मानव देह उस अनंत परमा मा का िच प ह। ‘जो ांड सोई िपंड, जो खोजे सो पावे।’ जो श याँ इस पूर
ांड म काय कर रही ह, वे सभी श याँ तु हार देह म भी काय कर रही ह। पर अ़फसोस! तु ह अपनी इन श य
का कोई ान नह ह, कोई बोध नह ह।
वह ई र जो आपसे अलग ह, आपसे दूर ह, जो आपका िनणायक ह, जो आपको दंड देता ह या पुर कत करता ह,
उस ई र को म नह मानती। ई र कोई इनसान नह ह िक छोट मन या िदमाग से काम कर। अगर मुझ े पसंद करना
हो तो म उस परम स ा क िलए ‘ई रीय चेतना’ श द को चुनूँगी। जो सव यापक ह, जो आप म, फल म, आकाश
म, धरती पर, जल और अ न म सब जगह ह।
समु क सतह पर करोड़ लहर ह और हर एक लहर समु का िह सा ह। इसी तरह सतह पर करोड़ -करोड़ शरीर
ह, मन ह और िफर भी यह चेतना एक ही ह। वही चेतना हमार मूल ोत म ह, हम सब म ह। जैसे, सागर क हर लहर
सागर ही ह, वैस े ही हर एक जीव ई र ह। लेिकन आप सब भूल चु़क ह और अपनी ही कद म बंदी हो गए ह।
आप अपने आपको एक छोट से शरीर म फसा आ देखते ह। आप छोटा सा शरीर नह ह, आप एक बेचारा, लाचार
जीव नह ह।
यान, योग, ाणायाम क माग पर चल। सुिमरन, जप कर और अपना िवकास कर, िज़ंदगी को स ता से िजएँ।
इस िद यता म थत हो जाएँ, उसक बाद आप मामूली नह ह, आप एक देह नह ह। आप उससे प रिचत नह ह आप
इसे जानते नह ह, इसिलए जीवन म दुःख ह।
जब आप अपने आपको सीिमत देखते ह तो दुःख होता ह। जैसे ही आप अपने को इस मन से अलग करक समझने
लग जाएँगे, तब मन क सब दुिवधा, बाधा, सीमा ब त दूर छट जाएगी।
अगर अपने व प और अपने अ त व क इस िवशालता को हज़म करना आपक िलए मु कल हो रहा ह तो म
िफर आपक िलए दूसर कार से बात करती । जैसे, माँ अपने गोदवाले ब े को हमेशा अपने साथ रखती ह, छोड़ती
नह ह, ऐसे ही परमा मा ने आपको, अपने ब े को हमेशा अपने साथ रखा आ ह।
आपने देखा होगा िक एक बैग जैसा होता ह, िजसम आजकल माताएँ अपने ब े को रखती ह और िफर उस बैग को
अपनी छाती से िचपकाकर रखती ह। वह बैग उसक शरीर क साथ लगा रहता ह और उसे काम करना ह, दौड़ना ह,
भागना ह या न पकड़नी ह तो इसम आसानी होती ह। वरना मु कल होती ह, य िक वह अपना पस पकड़ िक ब े
को पकड़। इसिलए िकसी समझदार ने ये तरीका ढढ िनकाला। िहदु तान म और दूसर गरीब मु क म माँएँ ब े को
चादर से पीठ म बाँध लेती थ , पर अब पीठ क बदले सामने बैग म रख लेती ह। यह यादा अ छा ह, य िक ब ा माँ
क धड़कन सुन सकता ह और उस वजह से अपने आपको यादा सुरि त महसूस करगा। माँ सब काम कर रही ह
और ब ा हमेशा साथ रहता ह, हो सकता ह कछ समय बाद ये दुिनयावी माँ उस ब े को बैग से िनकालकर, अपने से
अलग करक पलंग पर िलटा दे या झूले म िलटा दे और खुद यहाँ-वहाँ कछ काम करने चली जाए। लेिकन परमा मा
ऐसी माँ ह, जो एक पल क िलए आपको अलग नह करती ह, तो िफर आप अकले, कमज़ोर या श हीन कसे हो
सकते ह?
सै ांितक प से यह समझ पाना और उसे हज़म कर पाना मु कल लगता ह िक म ‘वही’ —म सावभौिमक
सव यापक चेतना । कोई बात नह , पर पूव का ान और भ माग यह कहता ह िक आप ई र क संतान ह। आप
सागर क लहर ह और वह लहर सागर म ह। इस लहर को सागर ही सँभाल रहा ह और उसका होना सागर क वजह से
ही ह। मतलब आप एक लहर ह। भले छोटी ही सही, पर सागर क सतह पर ह और यह लहर सागर से अलग नह ह।
सू़फ कहते ह िक ई र मेरा यार ह, मेरा दो त ह। गु नानक से लेकर रदास साहब, कबीर सभी आ या मक गु
ने बार-बार कहा िक ‘ई र मेरा यार ह’। वह ऐसा दो त ह, जो कभी मुझे छोड़कर नह जाता, मेर अंदर ही बसता ह
और मुझ े कभी भी अकला नह छोड़ता। िफर म तनाव म कसे रह सकता ? म तनाव म रह नह सकता, मुझे तनाव म
नह रहना चािहए। अगर आपने इस एक बात को समझ िलया तो आप तनावमु हो जाएँग,े आपक िकसी भी बात क
िचंता नह रह जाएगी।
आप जब वास करते ह, तब ब त सार मुसा िफर से िमलते ह। आप न क एक ही िड बे म, एक ही सीट पर होते
ह, साथ म समय िबताते ह। बाद म जब िजनका टशन आता ह, वह उतर जाता ह। पित-प नी, ब े सब सह- वासी
हो। एक समय तक सब साथ रहते हो और िजस-िजस का टशन आएगा, वह चला जाएगा। उन सबको आपको कहना
पड़गा ‘ओ.क. गुडबाय। अलिवदा।’ यही बात ह।
सू़फ हमेशा कहते रह ह, बार-बार कहते रह ह िक भु मेर से दूर नह । अ ाह मेरा दो त ह। वह मुझम ही रहता ह,
मेर साथ ही रहता ह। पंजाबी म एक श द ह—‘बेली’ िजसका मतलब ह दो त, िम । लेिकन मेरी इस किवता म म
उसक साथ और यादा अनौपचा रक । म उसे कहती ‘बेलूआ’
अ ाह बेलूआ हो, बेलूआ हो
बेलूआ, बेलूआ, बेलूआ हो
अ ाह िमयाँ िदन-राती याद कराँ तैनुं याद कराँ, तैनुं याद कराँ
फ रयाद सुने म क बात कहवाँ
अ ाह बेलूआ हो
हर घड़ी, हर पल नाल रवे, मेर नाल रवे
िदलाँ दी जाने शाला अरज़ सुने
सइयो नी सोहणा हर जाँ वसदा, लू ँ लूँ रसदा
क आख सुनावाँ म क प उसदा
हौले-हौले सुन कोई बंसरी बजे
मीठी-मीठी पूर दी हवा चले
आपको अपने मन म ऐसे िवचार डालने ह गे, ऐसी भावनाएँ जगानी ह गी। इस तरह आप असलामती, कमज़ोरी और
एक-दूसर पर िनभर होने क भावना को अपने मन से िनकाल पाएँगे। उसक बाद कोई कारण नह िक आप दुःखी,
उदास और परशान होकर िजएँ। जब आपको ये एहसास हो िक आपका परमे र आपसे दूर नह , आपक ही साथ ह,
आप म ही ह, उठते-बैठते, खाते-पीते वह कभी दूर गया ही नह । उस परमे र क हम ब े ह। अगर वह साथ ह तो
कछ बुरा हो ही नह सकता। पर आपका यह पागल, बेवक़फ मन ह जो बात को जानता ह, न इस बात को समझता ह,
इसिलए िफ करता ह। नह तो िफ करने का कोई कारण नह बनता।
मने एक कहानी सुनी थी। एक राजा अपने रथ म एक रा ते से गुज़र रहा था। उसक नज़र एक वृ मिहला पर
पड़ी, जो अपने िसर पर बड़ी गठरी उठाकर जा रही थी। वह बेचारी मु कल से चल पा रही थी। राजा ने जब यह देखा
तो उसक िदल म दया आ गई। उसने वृ मिहला से कहा, ‘‘माताजी, आप मेर रथ म बैठ जाइए। आपको जहाँ जाना
हो, म आपको छोड़ दूँगा।’’
वृ ा बोली, ‘‘नह , नह आप िचंता मत क िजए म िकसी तरह चली जाऊगी। आपने मुझ े पूछा, यही मेर िलए ब त
ह। म अगर आपक रथ म बैठगी तो आपका रथ खराब हो जाएगा, य िक मेर पाँव गंद े ह, िम ी से भर ह।’’
राजा ने कहा, ‘‘कोई बात नह माताजी, आप बैठ जाइए।’’ राजा ने उसे रथ म िबठा िदया।
रथ आगे चलने लगा तो राजा ने पीछ मुड़कर देखा िक वह वृ मिहला ठीक से बैठी तो ह न! राजा ने देखा तो वह
मिहला अभी भी उस भारी गठरी को अपने िसर पर उठाए बैठी थी।
राजा बोला, ‘‘अर माताजी! आप उस गठरी को नीचे य नह रख देत ?’’
वृ ा बोली, ‘‘भला म ऐसा कसे कर सकती ?म इतनी कत न कसे हो सकती ? आपने मुझे रथ म बैठाया, या
यह कम ह और उस पर म अपनी गठरी का बोझ भी आपक रथ पर डालू!ँ नह , उसे तो म अपने िसर पर ही रखूँगी।’’
अब यह मिहला खाम़ वाह अपनी गदन तुड़वा रही ह। वह चाह, या न चाह रथ पर तो बोझ आ ही रहा ह। ऊपर से
वह बेवक़फ अपनी गदन पर भी बोझ डाल रही ह। इस बात को याद रखना िक परमा मा ने भी उसक रथ म आपको
िबठाया ह, लेिकन िचंता करक आप खाम़ वाह अपनी गदन तोड़ रह ह। िफ करने क कोई वजह ही नह ह। इसिलए
मेहरबानी करक अपने मन पर क बोझ, तनाव को फक द। िचंता मत कर। जीवन अिन त ह और जीवन अिन तता
लाने वाला ह। जब आप िज़ंदगी को उसक सम ता म वीकार करते ह तो मौत को वीकार भी करना ही होगा, य िक
वह भी उसका एक िह सा ही ह। िज़ंदगी को सम ता से वीकार करना मतलब उसम आँसू और हसी दोन आनेवाले ह
तो िफर आँसु से डरना या और खुशी क पीछ दौड़ना य ? आँसू भी ज़ री ह। वह आपक आँख को सा़फ करता
ह। वृ ाव था म आँख इतनी सूखी हो जाती ह िक आपक डॉ टर को ऐसी दवाई देनी पड़ती ह, िजससे आपक आँख
गीली रह।
कभी-कभी आँसू आएँ तो कपया रो िलया कर। रोना भी अ छा होता ह, पर िनराशा म मत रोना। ब े क तरह रोएँ।
आपने जो आयोजन िकया था, उसक मुतािबक नह आ, इसिलए आँसू मत बहाना। सबसे अ छी सोच यह ह िक कोई
सोच ही न हो। वही े सोच ह।
िज़ंदगी आपक सामने जो पेश कर, उसे वीकार कर, िफर चाह वह कछ भी हो। आपक साथ जो कछ भी हो, उससे
य डरना? य िक आपक मािलक का तो कछ ह ही नह । यह शरीर भी कहाँ आपका ह? अगर आप उसको बना
सकते तो आपने उसे सबसे सुंदर बनाया होता। अगर आपक पास चुनाव का िवक प होता तो आपने े पु ष या
े मिहला का शरीर ही ऑडर िकया होता। लेिकन यह शरीर आपका नह ह, न ही आपने इसे ऑडर िकया ह, न ही
िकसी ने आपसे आपक पसंद या ह, यह पूछा था। आपको िकसी ने नह पूछा था िक आपक आँख िकतनी बड़ी
चािहए और उसका रग आसमानी चािहए या बादामी? िकसी ने आपसे नह पूछा था िक आपको कद िकतना चािहए?
चार फ ट या छः फ ट। जो िमला ह, वही वीकार करना पड़ा।
मु ा नस ीन ने एक िदन अपनी माँ से ब त लड़ाई क । वह अपनी माँ से इसिलए लड़ रहा था िक ‘अ मी, तूने
ये कसा अ बा पसंद िकया?तुझ े कोई ढग का बंदा नह िमला? वह खुद साढ़ चार फ ट का ह तो म भी साढ़ चार फ ट
का ही आ।’ मु ा ने अपनी माँ से कहा िक अगर तूने छः फ ट क मद क साथ शादी क होती तो म भी लंबा होता।
हालाँिक कभी-कभी ऐसा भी होता ह िक माँ-िपता पाँच या साढ़ पाँच फ ट क होते ह, पर बेटा साढ़ छः फ ट का होता
ह।
आपको एक शरीर िदया गया ह और िकसी ने आपसे पूछा नह ह िक आपको कसा शरीर चािहए या िफर आपको
िकतने साल जीना ह? यह शरीर कित क मल़क यत ह, आप उसक चोर या लुटर मत बन। यह शरीर आपको भाड़ पर
िमला ह और वह कभी भी वापस ले िलया जाएगा। यह करार कभी भी र कर िदया जाएगा। अगर आप ठीक से
उसक देखभाल नह करते तो यह शरीर गया समझ।
अगर आप सुबह ज दी नह उठते, योग- ाणायाम नह करते तो आप करार तोड़ रह ह और एक िदन आप पकड़
जाएँग।े यह शरीर आपसे ले िलया जाएगा। कोई रोग या अकाल मृ यु आ जाएगी। यह शरीर हम थोड़ समय क िलए
इ तेमाल करने को िमला ह। उसका आदर कर। न तो आप उसक मािलक ह, न यह आपक मल़क यत ह। अ छा,
या आपको ऐसा लग रहा ह िक आप इस शरीर क मािलक ह? तो ये जो फालतू का 30 िकलो वज़न लेकर जी रह ह,
उसे दूर कर द। अगर आप मािलक ह शरीर क तो आँख क रोशनी, जो कम हो रही ह, उसे बढ़ा ल।
जब यह शरीर आपका नह ह तो या आपक र तेदार क शरीर उनक अपने ह? या िफर या उनक शरीर पर
आपक मल़क यत ह?िकसी का भी नह । हर एक य अपनी-अपनी िज़ंदगी क या ा कर रहा ह। जब तक या ा
चल रही ह, मज़े से िजएँ। िचंता िकस बात क ? िफ िकस बात क , जब मरना िन त ही ह?
आपने ज़बरद ती र ते बना िलये ह। र ते कहाँ क? र ते कसे? कोई र ता स ा नह ह। कहाँ ह आपक माता-
िपता?मर गए। अगर आपक माता-िपता जीिवत ह तो कहाँ गए उनक माँ-िपता? वे नह रह तो या आप रहगे?िफ
िकस बात क ? यह मेरी माँ ह, यह मेरा बाप ह, ये मेर ब े ह, मेरा घर ह, ऐसा िजतना मरज़ी हो बोलते रह, िजतना
मरज़ी हो यह राग अलापते रह; स य तो यह ह िक न कोई आपका ह, न आप िकसी क ह। यही स य ह और िजस
परमे र को आपने अपने से दूर समझा ह, वही ि़सफ आपका अपना ह और तो कोई आपका ह ही नह । लेिकन आपने
िब कल उलटा काम िकया ह। परमा मा को छोड़कर बाक सब को आप अपना समझते ह, इसिलए तो आपक पास
बाक चीज़ क िलए समय ह, पर अगर समय नह ह तो खुद आपका ही अंदर बैठ ए, उस यार क िलए समय नह
ह।
लोग मुझसे पूछते ह िक या कर हम सुबह उठते ह, काम करते ह, यह करते ह, वह करते ह, घर का काम होता ह
तो इतना थक जाते ह िक भजन तो होता ही नह । आप हमारी मदद कर। खाक मदद क आपक ? पाँव म क हाड़ी
आप मार रह ह और मुझे कह रह हो िक बचाओ! म कसे बचाऊ? अगर म आपसे आपक क हाड़ा छीनना भी चा
तो वह आप मुझ े छीनने भी नह दगे।
अमे रका म रहती एक मिहला ने कहा िक सबका खयाल रखना पड़ता ह। ब का, घरवाले का। मने कहा, घरवाले
को बोल िक तू ब को मायक से नह लाई थी, उसने भी पैदा िकए ह, तो वह भी पाले। िजतनी तू उसक माँ ह, उतना
वह भी तो ब का बाप ह, तो वह िज़ मेदारी य नह िनभा सकता? वह य ब को तैयार नह कर सकता? वह
य खाना नह बना सकता, घर क स़फाई नह कर सकता, य नह बरतन माँज सकता ह?आधा काम तू कर, आधा
काम वह कर, बात ख म। माँ-बाप बनते समय तो आप दोन क आधी-आधी िज़ मेदारी थी, तो यह िज़ मेदारी भी दोन
िमलकर िनभा ल, उसम या िद कत ह?
उस मिहला ने कहा, ‘‘वे नाराज़ हो जाएँग।े ’’
मने कहा, ‘‘होने दो।’’
‘‘तो िफर लड़गे।’’
मने कहा, ‘‘लड़ने दो।’’
‘‘िफर मारगे।’’
मने कहा, ‘‘बेलन चला क, कपड़ धो-धोकर तेरी बाँह म ताकत आ गई होनी चािहए?हाथ लगाने क रत कसे कर
सकता ह? उसक बाँह तोड़ देना।’’
वह कहती, ‘‘वह तो छः फ ट का ह और म पाँच फ ट क । वह तो एक सौ दस पाउड का ह और म तो ि़सफ साठ
पाउड क । मेरा और उनका या मुकाबला?’’
मने कहा, ‘‘कोई बात नह । 911 नंबर िमलाना तो आता ह न? एक उगली चलेगी बस। उस नंबर को पीड डायल
म डाल देना तो तीन नंबर भी नह दबाने पड़गे। एक ही चलाइयो बस!’’
वह कहती, ‘‘ऐसे तो र ता टट जाएगा।’’
मने कहा, ‘‘ र ता ह कहाँ? या यह र ता होता ह?’’
र त क नाम पर र त क लाश को ढोते िफरते हो और िफर पूछते हो िक हम सुखी कसे ह ? मेरी यह बात
सुनकर कइय को बड़ा क होता ह। कहते ह, ‘‘लो जी, खुद तो िववाह िकया नह , न ब े पैदा िकए, हमको ऐसी
सलाह देत े ह। यह तो हमारा घर उजाड़गे।’’
हम तो ब त सा़फ बोलते ह, ‘हम तो डबे ह सनम, आप को भी ले डबगे।’ हमने अपने मन से संसार क सब लाग-
लपेट को, म-मेरी को काटकर फका ह। वही तुमको िसखा सकती । और आप यही तो सीखने आए हो। म तु ह ये तो
नह िसखा सकती न िक ब े तु ह दुःख देत े रह तब भी उनक मोह म पड़ रहना। म या तु ह ये िसखाऊगी?
कहते ह िक क ण क सोलह हज़ार एक सौ आठ प नयाँ थ । ये सब अपनी मरज़ी से उनक पास आई थ , य िक
उन य क प रवार उनको रखने क िलए तैयार नह थे। एक राजा ने उन य का अपहरण िकया था और वह राजा
उ ह रखैल बनाकर रखना चाहता था। ीक ण ने उ ह उस राजा क िशकजे से छड़ाया। इन य ने क ण से कहा िक
अब हमार पास जाने क कोई जगह नह , इसिलए आपको हम वीकार करना पड़गा; य िक हमारा प रवार हम रखेगा
नह । हमार पास दो ही िवक प ह—या तो हम आ मह या कर ल या िफर आपक साथ रह। क ण ने कहा िक कोई बात
नह , म आप सबको वीकार करता ।
एक युवा मुझ े कह रहा था, ‘‘ह भगवान 16108! हम तो दो प नयाँ रखने क भी अनुमित नह । कसा घोर अ याय!’’
मने कहा, ‘‘भाई, तु हार िलए तो एक प नी भी तु ह भारी पड़ रही ह और क ण क िलए तो 16108 भी छोटी सं या
थी! उ ह पता था िक एक मीठी नज़र से कसे ी का िदल जीत िलया जाता ह! उनका क र मा, उनका प इतना सुंदर
था! वे एक महा योगी थे, िज ह ने अपने शरीर और मन पर भु व पाया था। अपनी यौिगक श से वे 16108 शरीर
रच सकते थे, जो िब कल उनक शरीर जैसे ही होते थे। कोई उनक साथ तुलना नह कर सकता।’’
अभी कछ साल पहले ही परमहस योगानंद ने उनक ब त यात ई पु तक ‘योगी कथामृत’ म बनारस क एक
योगी का िज़ िकया ह, िजनक दो शरीर थे; एक शरीर परमहस योगानंद क सामने बैठा था और दूसरा शरीर उसी
समय पर उनक िम को बुलाने गया था िक मुकद घोष आपको िमलने आए ह। ये कोई ब त असामा य बात नह ह।
ीक ण का प रवार इतना बड़ा था िक उनको हर एक प नी से अनेक संतान थ । या आप जानते ह िक उनम से
एक भी ीक ण क संतान कहलाने क लायक नह थी। वे सब िबगड़ी ई औलाद थ ।
अगर भगवान क ण को अपने ब से ेह न िमला और उनक संतान महा नह िनकल तो आप कौन होते ह?
अगर आपका ब ा नालायक िनकले तो दुःखी मत होना, क ण क ब े भी नालायक ही थे। आपस म लड़-लड़कर
एक-दूसर को मार िदया था और इस तरह पूरी कहानी का अंत आ था।
एक बार दुवासा ऋिष ने ीक ण से पूछा था िक आपक ब े आपस म लड़ते ह तो आप कछ करते य नह ?
ीक ण ने मधुर मुसकान क साथ दुवासा को जवाब िदया था, ‘‘ऋिष दुवासा!हर एक कथा जो शु होती ह, उसका
अंत होता ही ह और इस कथा का भी अंत आ रहा ह।’’
ीक ण ने कहा था, ‘‘म भी सा ी क तरह मेरी नज़र क सामने हो रह, इस तमाशे को देख रहा । मेरी भूिमका
उसम द़खल देने क या उनको एक-दूसर को मारने से रोकने क नह ह। जो जैसे हो रहा ह, उसे होने दो।’’
दुवासा ने कहा, ‘‘लेिकन वे आपक संतान ह।’’
क ण ने मुसकराते ए कहा, ‘‘ या आप भूल गए ह िक आप िकससे बात कर रह ह? वे मेरी संतान नह ह। हाँ,
उनका ज म मेर ारा आ ह, पर वे मेर नह ह। मेरा मन उनक साथ आस नह ह।’’
इसिलए म कहती िक अगर आप सचमुच क ण से ेम करते ह तो उनसे ये पाठ सीख और अपने संतान क ित
आस मत रख। उ ह उनका जीवन जीने द। वे थोड़ी गलितयाँ करगे तो या आ?उसम ऐसा होगा िक या तो वे उन
गलितय म से सीखगे या नह सीखगे। पूरा समय मालिकन क तरह उनक पीछ छड़ी लेकर मत घूम। आपको या
लगता ह, वे आपक बात सुनगे? या वे आपक बात सुनते ह?
मु ा नस ीन ने अपने जवान बेट को बुलाया और कहा, ‘‘बेटा, अब समय आ गया ह िक म तु हार साथ एक
वय क क तरह बात क ।’’
बेट ने कहा, ‘‘बोलो अ बा, या कहते हो?’’
मु ा ने कहा, ‘‘देख बेटा, एक समय म दो लड़िकय क साथ आि़शक मत करना।’’
मु ा क बीवी गुलजान ने कहा, ‘‘अपने लड़क को ये कसी राय दे रह हो?’’
मु ा बोले, ‘‘िब कल सही राय दे रहा , य िक एक से तो ये इ क करने ही वाला ह। दो लड़िकय से आि़शक
करने क जो गलती मने क थी, वह यह न कर। य िक दो म बड़ी परशानी हो जाती ह। एक को ही सँभालना मु कल
ह! बाप होने क नाते मेरा फज़ बनता ह िक म उसे समझाऊ।’’
एक बाप अपने बेट से कहता ह, ‘‘बेटा, िसगरट पीना लेिकन िदन म दो से यादा मत पीना। एक पैकट िपयोगे तो
टी.बी. हो जाएगी।’’ बाप ऐसी राय दे रहा ह! वह ऐसा नह कहता िक म भी नह पीऊगा और आप भी मत पीना।
आप ि़सफ खुद का माइड मैनेज कर सकते ह और यह का़फ ह। दूसर क िज़ंदगी मैनेज करने का यास मत कर,
य िक वह आप नह कर सकगे। इसका कारण यह ह िक हर एक मन को अपना अहकार ह और उनका अहकार उ ह
दूसर क सलाह मानने क अनुमित नह देता। उ ह बुरा लग जाता ह। उ ह अपमािनत होने का एहसास होता ह। िकसी
का अपमान मत कर और खुद अपना भी आदर कर।
तनाव से भरी इस िज़ंदगी को अ छी तरह से जीने क िलए आपको अपने जीवन म अनुशासन लाना होगा। जीवन म
इतनी सारी परशािनयाँ, चुनौितयाँ ह, उनम व थ रहने क िलए कछ अ छी चीज़, िविधय को शािमल करना होगा। इनम
से एक ह मं -जप। मं -जप कर। मने िविवध मं िदए ह। म ऐसा नह कह रही िक कोई एक मं ही कर। हर एक मं
का अपना रग, सुंदरता ह और आप िजतने चाह, उतने मं का मज़ा ले सकते ह; पर म मानती िक अगर आप हर
रोज़ ‘महामृ युजय मं ’ का जाप करते ह तो वह आपक िलए ब त फायदेमंद होगा। इस मं को कसे करना ह, वह मने
अपनी सी.डी. म कहा ह। उस सी.डी. का नाम ह—‘महामृ युजय मं ।’
‘महामृ युजय मं ’ ि़सफ िशवजी का मं नह ह। ‘िशव’ श द का अथ ि़सफ यह नह िक वह भगवान िजनक जटाएँ
ह और कठ म सप ह। ‘िशव’ श द का अथ ह—िद य चेतना। अगर आपक ा आपको ऐसा कहती ह िक ‘वाहगु
मं ’ ही करना ह या आपक मन का भाव इस तरह का ह िक आपको वाहगु मं करने म ही आनंद आता ह तो उस
मं को अलग-अलग तीन तरीक से करने क प ितयाँ मने दी ह।
म आपको कोई सलाह नह दे रही, पर ि़सफ सुझाव दे रही िक िदन क शु आत िकसी मं से कर। एक मं क
साथ बैठ और मं जप कर। शरीर को व थ रखने क िलए, जीवन को सुखद बनाने क िलए योगासन का अ यास
परम आव यक ह। ाणायाम मन का िन ह करता ह, मन को ढ करता ह, एका ता देता ह, श देता ह। इसिलए
ाणायाम क िव ा को भी आपको सीखना चािहए।
अगर आप ये सब सीखगे और दैनंिदन जीवन म शािमल करगे तो उसक सुंदर लाभ आप अपने जीवन म देख पाएँगे।
अपने िदन का आरभ योगासन क साथ, ाथना क साथ कर। िवशेषतः मने िजसक बात कही थी ‘ यास’—िजसम
शरीर क अलग-अलग अंग म िद य चेतना का संचार कर और सुंदर ाथना क साथ उसे जोड़ द। यान कर और रोज़
योगिन ा कर। अगर आप यह सब करगे तो आप लंबा, व थ और शांितपूण जीवन जी पाएँग।े आपक जीवन म जो
चुनौितयाँ आएँगी, उसका मुकाबला कर पाएँगे। इस पूरी ंखला का हतु यह ही ह िक वह आपको आपक िज़ंदगी
आनंदपूवक जीने म मदद कर सक।
जीवन एक उ सव ह; बोझ नह । िज़ंदगी हसने क िलए, िततिलय क साथ, बादल क साथ, फल क साथ खेलने क
िलए, मुसकराते रहने क िलए ह। िज़ंदगी उदास होने क िलए या दुःखी होने क िलए नह ह। आज ऐसी थित हो गई ह
िक आप लोग हसने क िलए टलीिवज़न पर ला टर शो देखते ह। उसक ब़गैर आप हस नह सकते और रोना हो, तो भी
टलीिवज़न काय म देखते ह। अगर आपक घर म से टी.वी. हटा िलया जाए तो न तो आप रोएँग,े न आप हसगे।
िब कल भाविवहीन चलती-िफरती लाश क तरह घूमगे।
आप िजतना-िजतना योगासन, यान, ाणायाम करते जाएँगे, आप देख पाएँगे िक जीवन म सुंदर प रवतन आने लगा
ह। आप बे़िफ होने लग जाएँग,े गहरी न द आने लग जाएगी। छोटी-छोटी बात पर आप यिथत नह ह गे। बात-बात
पर िचढ़गे नह , घबराएँगे नह , परशान नह ह गे। िकतनी भी बुरी खबर य न आ जाए, आप िवचिलत नह ह गे।
एक फ़क र क पास एक आदमी रोते ए आया और बोला, ‘‘साईजी, मेर िपताजी गुज़र गए।’’
साई बोले, ‘‘तो या?’’
उस आदमी को ब त गु सा आया िक मेरा बाप मर गया तो अ़फसोस जताने क बदले पूछ रह ह िक तो या?उस
आदमी ने उस फ़क र क पास जाना छोड़ िदया। वैस े भी वह और या कर सकता था? उसने कहा िक अब हम उस
फ़क र क पास नह जाएँग।े अगर वह न गया तो या फ़क र उदास हो जाएगा! संत तो म त होते ह। आना ह तो आओ,
नह आना तो तु हारी मरज़ी। अ ाह-अ ाह खैर स ा। या फ़क पड़ता ह।
िफर उस आदमी क जीवन म एक ऐसा मोड़ आया तो लोग ने उसे समझाया, तब उसने वापस उस फ़क र क पास
जाने का सोचा। कछ महीन बाद जब वह गया और जाकर फ़क र क पास बैठा ही था िक एक औरत भागकर आई
और बोली, ‘‘साईजी, आपक अ माँ ने ाण छोड़ िदए।’’
फ़क र बोले, ‘‘तो या? चलो, क़फन-द़फन का इतज़ाम करते ह।’’
जब उस आदमी ने यह देखा तो उसे समझ आई िक ि़सफ मेर बाप क मरने क बार म ही फ़क र ने ऐसी बात नह
कही थी, पर उनका अपना भी कोई मरता ह तब भी उनका यही जवाब होता ह, ‘तो या?’
म यह नह कह रही िक आप असंवेदनशील हो जाएँ। म ऐसा नह िसखाती, उलटा यान करने से आप सबसे यादा
संवेदनशील हो जाते ह। कला और स दय क ेमी हो जाते ह। कोई भी बात आपक िदल को ज दी से छ जाती, लेिकन
वह नकारा मक प र े य म नह होती।
इस कला को सीख और िजस तरह से जीवन जीना चािहए, ऐसे िजएँ। अभी तो आप िजस तरह से जी रह ह, लगता
ह िक ई र ने, कित ने आपको जो अवसर िदया ह, उसे आप खराब कर रह ह। जीवन तो ऐसा होना चािहए, जहाँ
पैर म एक म ती हो, आप अगर चल रह ह तो लगना चािहए जैसे आनंद म नृ य कर रह ह। नाच, गाएँ, म त रह, शांत
रह। मन को आस रिहत रख।

आप कौन ह?
‘सुन मन मेर साँझ-सवेर,
अलख जगाते जाना,
ह र लगन लगाते जाना।
बालपना सब खेल गँवाया,
आई जवानी जी मचलाया,
बीत जाएगी यह िज़ंदगानी,
कछ तो भजन कर जाना।
देख बुढ़ापा सोचे अब तू,
िकया न काम करना था जो,
याद न आई राम दुहाई,
या यू ँ पछताते जाना।
मुझ े यहाँ पर एक दोहा याद आ रहा ह।
जाग ले र मन जाग
कहाँ गािफल सोया
जो तन उपिजया संग ही
सो भी संग न होय
जाग ले र मन जाग।’
सं त-महा मा , ऋिषय , फ़क र ने बार-बार, जागने पर ज़ोर िदया ह। अब न यह उठता ह िक या हम सो रह ह
िक वे हमको जागने को कह रह ह? या उनक नज़र म दोष था िक हम उ ह सोए ए िदख रह थे? हम जाग रह ह
और िफर भी वे कह रह ह िक जागो! लेिकन एक बात तो माननी पड़गी िक वे कबीर साहब, रदासजी, गु नानकदेव
महाराज, ीक ण भगवान, ीराम या िशव ह , सब यही एक बात बार-बार कह रह ह। सूिफय म िजतने फ़क र ए, वे
भी यही बात बोलते ह। बु ने ‘ध म-सू ’ म, महावीर ने ‘िजन-सू ’ म भी यही बात कही िक जागो! अलग-अलग
भाषा म, शैली म—िकसी ने ोत, िकसी ने ोक, िकसी ने पं क प म इसे कहा। लेिकन सब ने अलग-अलग
तरीक से बात एक ही कही। या उ ह पता नह था िक वे या बोल रह ह? उ ह िब कल पता था िक वे या बोल रह
ह।
मने िजन पं य से शु आत क ह—‘जाग ले र मन जाग, कहाँ िगा़फल सोया’—इस पं का मतलब ह िक ऐ
बेहोश इनसान, तू सो य रहा ह? जाग। ये पं याँ सू़फ संत बाबा शे़ख फरीद क ह। फरीदजी कह रह ह, जाग।
बेहोश न रह। जाग, य िक िजस शरीर क साथ तू ज मा ह और िजसे तू अपनी पहचान मान रहा ह, वह शरीर भी एक
िदन तुझे छोड़कर चला जाएगा।
अगर एक हॉल म कछ लोग बैठ ह और म पूछ िक यहाँ पर महश कौन ह? महश अपना हाथ खड़ा कर तो हो
सकता ह िक अगर वहाँ पर तीन-चार महश ह तो तीन-चार हाथ ऊपर ह गे। तो िफर मुझे पूछना पड़गा िक महश
िसधवानी या महश आडवाणी या महश अरोड़ा या महश िसंह कौन ह? ऐसे म मुझे और प ता करनी पड़गी। कहने
का मतलब यह ह िक हमारा शरीर क साथ ही तादा य ह। शरीर को ही हम ‘म’ मानकर बैठ गए ह।
शीशे म जब अपना चेहरा देखते ह तो कहते ह िक यह ‘म’ । प रवार क ए बम म अपने चेहर पर उगली रखकर
कहते ह, यह ‘म’ । कभी-कभी बचपन क ुप फोटो म, िजसम ास क सभी ब े और अ यापक भी ह , तो न
करते ह िक ढढ करक बताओ िक इसम ‘म’ कहाँ ? यह न जो पूछ रहा होता ह, वह शायद इस व़ 50-55 का
हो और फोटो म जो ब े बैठ ह, वे आठ साल क ह। ऐसे म देखनेवाला कोिशश करता ह िक इस व़ नाक कसी ह?
पकोड़ जैसी ह या तीखी नाक ह? अगर अभी पकोड़ जैसी ह तो तब भी ऐसी ही होगी। आँख को देखता ह, य िक
आँख बदल नह जाती ह? इस तरह पहचानने क कोिशश होती ह। अगर देखनेवाला सही अनुमान कर ले तो आप पूछते
ह िक कसे पहचान िलया? शायद वह कहगा िक नाक से; य िक नाक अभी भी पोपट जैसी ह और तब भी ऐसी ही
लगती थी!
हम अपने आपको एक शरीर जानते ह। हम अपने आपको एक ी या पु ष, लड़क या लड़का मानते ह। लेिकन
िजसे आप ‘म’ मानते ह, वह शरीर भी आपका नह ह। मृ यु क समय यह शरीर भी वापस ले िलया जाता ह। या तो
उसका दाह-सं कार िकया जाता ह और अगर ईसाई, मुसिलम या य दी हो तो उसे द़फना िदया जाता ह। यह शरीर
हमारा नह ह। हम इस शरीर को ‘म’ मानते ह, यह बुिनयादी गलती ह।
म जानती िक यह ऐसी बात ह, जो आपको चकरा देती ह, य िक म आपसे आपक पहचान छीन लू ँ तो आप
दयनीय थित म आ जाते ह। इसक वजह यह ह िक आप जानते नह ह िक आप सचमुच कौन ह? आप तो ि़सफ इस
शरीर क िवषय म जानते ह िक आप फलाँ-फलाँ िदन, फलाँ महीने म और फलाँ साल म ज मे ह। आपका ज म िकस
प रवार म आ। आपक माँ-बाप का नाम यह ह, भाई-बहन का नाम यह ह, आप इतना पढ़ ह। आप जानते ह िक
आपका सोशल िस यो रटी नंबर, बक अकाउट नंबर, घर का नंबर फलाँ-फलाँ ह।
हम शरीर से शु होते ह और यह सब जानकारी शरीर से संबंिधत ह। अब आपको यह बात समझाई जा रही ह िक
यह आप शरीर नह ह। अब आप रवस इजीिनय रग शु करते ह। अगर यह शरीर आप नह ह तो यह माता-िपता
आपक माता-िपता नह ह। ये भाई-बहन आपक भाई-बहन नह ह। िजस घर म आप रहते ह, वह आपका नह ह। िफर
तो इस शरीर से संबंिधत िजतने भी र तेदार ह, वे आपक र तेदार नह ह, तो आप कौन ह? आपको इसका पता नह
ह।
जब हम यह सुनते ह िक हम कौन ह, इसका ही हम पता नह तो यह बात ब त क देती ह। यह हमारा िदमाग
ब त चालाक चीज़ ह। मनु य क शरीर म यह सबसे यादा पेचीदा और जिटल संरचना ह। यह इतना चालबाज़ ह िक
जैसे ही हम कहते ह िक हम शरीर नह ह तो आपक पास बना बनाया जवाब होता ह िक हम तो आ मा ह। हम तो
ई र क संतान ह। िफर पूछना पड़ता ह िक अ छी आ मा या बुरी आ मा?
सबक पास रट ए जवाब ह िक हम परमा मा क अंश ह। कोई कहगा, हम जीवा मा ह। िकतने सार जवाब ह
आपक पास! पर म क गी, ये सब अनुमान ह। आपक पास ‘आप कौन ह?’, उसक और भी कई जवाब ह। उदाहरण
क तौर पर, म देवता या देवी या िफर जैसे सेनेटोलॉजी चच कहता ह िक हम लोग िकसी एक ह से कछ पाठ
सीखने क िलए यहाँ आए ह और उस स े घर क साथ हमारा संपक होना ज़ री ह। हमारा सही घर पृ वी पर नह ,
ब क कह और ह।
यह एक अ छी कहानी ह। लेिकन स य यह ह िक शरीर म नह , यह बात आपक िलए एक िस ांत ह। कछ लोग
कहते ह िक महा मा लोग ऐसा कहते ह तो वह सच ही होगा न! वे झूठ थोड़ ही बोलगे। अब हम आपक सच पर
य़क न ह। अब सब इसे पोपट क तरह रटगे। िफर जब ऐसी नौबत आए, जैसे िक कोई मर जाए और सब लोग अगर
रो रह ह तो आप तुरत खड़ होकर वचन कर सकते ह िक य रो रह ह? आ मा थोड़ ही कह गई ह? वह तो यह ह।
मने सुना, िगरधारीलाल नाम का एक य मर गया। सबको ही मरना ह, वे भी मर गए। जब वे मर तो उनक बीवी
रो रही थी। बड़ ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। िगरधारीलाल क दो त यामलालजी आए और कहते ह, ‘‘देखो, रोओ मत।
तु ह पता नह ह, लेिकन म तु ह एक बात समझाता , िगरधारीलाल यह ह।’’
िगरधारीलाल क प नी च क गई और बोली, ‘‘कहाँ ह?’’
यामलालजी ने कहा, ‘‘हाँ, िब कल यह ह।’’
उसने कहा, ‘‘ या तु ह िदख रहा ह?’’
यामलालजी बोले, ‘‘मेरी बात का य़क न करो, वह यह ह।’’
िगरधारीलालजी क प नी यहाँ-वहाँ देखने लगी और पूछा, ‘‘कहाँ ह? मुझे तो िदख नह रहा, तु ह िदख रहा ह?
सच-सच बताओ। और अगर तु ह िदख रहा ह तो मुझे िदखाओ।’’
यामलालजी ने कहा, ‘‘म िदखा नह सकता। आप समझ नह रही हो।’’
अब समझने क थित म तो वह थी नह , इसिलए चीख मारती ई घर क बाहर भागी और बोली, ‘‘वह मुआ मरने
क बाद भी मुझे छोड़नेवाला नह ह। कोई पंिडत को बुलाओ। जीते जी तो उसने मेरा जीना हराम िकया था। मर गया तो
भी यह पर ह। उसका दो त यामलाल ब त भ -व करता ह तो उसे शायद िदख रहा ह। वह कह रहा ह िक
िगरधारी यह ह। कोई कछ तो उपाय कराओ।’’
अगर म कह रही िक हम देह नह ह तो ब त भरोसा मत कर ल। अ छा, अगर म क िक इस व़ यहाँ पर एक
हाथी खड़ा ह तो या आप मेरी बात मान लगे? िफर म क िक टज पर मेरी बाई ओर हाथी और दाई ओर ऊट खड़ा
ह और सामने दो मोर ह। या आपको वे िदख रह ह? या आप मेरी बात मान लगे? अब अगर म क िक मेरी बात
पर ा रखते ह तो मान ल िक म सच कह रही । लेिकन यह ह़क ़कत नह ह। यहाँ हाथी, ऊट, मोर नह ह और
आपको िदख भी नह रह ह। (हाथ म िड बी, िकताब उठाकर और टज पर क फल क ओर िनदश करते ए) लेिकन
आपको यह िड बी, िकताब, मंच पर लगे ए फल िदख रह ह। आप सब ोतागण ‘हाँ’ कह रह ह, कोई भी ‘न’ नह
कह रहा। मुझे िकसी को कहना नह पड़ रहा िक मेरी बात पर भरोसा कर िक यह िड बी ह, िकताब ह, फल ह। आप
ये सब मेर हाथ म देख सकते ह।
उसी तरह से हम यह कहने क ज़ रत नह होनी चािहए िक ऐसी भावना कर िक आप आ मा ह; शरीर नह । हम
यह कहने क ज़ रत नह होनी चािहए िक आप रोज़ यान कर और कह िक म आ मा , म शरीर नह । लेिकन
आपको स संग म, कथा म यही कहा जाता ह िक याद रख िक आप आ मा ह। और आप बोलते भी ह िक हाँ-हाँ
महाराज! हम आ मा ह, हम देह नह ह। म देह नह म आ मा , ऐसा जब आप रटते ह और म आपको ऐसा कहते ए
सुनती ।
थोड़ िदन पहले यूजस म एक स न िमले। उ ह ने कहा, ‘‘हम आ मा ह, लेिकन जब मौत आती ह तो उसक बाद
आ मा कहाँ चली जाती ह?’’
मने कहा, ‘‘वह तो आपको पता होना चािहए िक कहाँ जाते ह?’’
उ ह ने कहा, ‘‘नह , आप ही बताएँ िक शरीर क अंदर जो आ मा ह, वह इनसान क मर जाने क बाद कहाँ जाती
ह?’’
ये सार अनुमान ह। धम क नाम पर यादातर लोग अनुमान ही करते ह। आज म थोड़ी स य हक ़कत कहने जा रही
तो आप बुरा मत मानना। भगवान ह, यह भी तु हारा अनुमान ही ह। आ मा ह, यह भी तु हारा अनुमान ह।
आपक िलए स ाई या ह? आपक स ाई आपका शरीर ह, आपका घर ह, आपक नौकरी, आपक बीमा रयाँ ह।
आपक स ाई आपक बढ़ी ई शुगर ह, आपका र चाप, हाट-अटक, क ज, िसरदद, माइ ेन—ये सब आपक
वा तिवक अनुभव ह। इन सबक बार म आप कोई अनुमान नह करते।
जो बात म कह रही , उसे समझदारी से, िदमाग पर थोड़ा ज़ोर डालकर समझनी होगी। आप ऐसा मत सोचने लग
िक गु माँ सा यवादी हो गई ह और यह सािबत करने जा रही ह िक भगवान नह ह। म यह कहना चाह रही िक
भगवान ह या नह , उसक बार म आपका खुद का अनुभव या ह? जो आपका अनुभव ह, वह ही आपका स य ह।
देिखए, वेदांत कहता ह िक परमा मा ह। पतंजिल और अ य योिगय , ऋिष ने कहा िक ई र भी ह और कित भी
ह। महावीर कहते ह िक ई र नह , िसफ आ मा ह। बु कहते ह िक न आ मा ह, न परमा मा ह। इसम कौन सच
और कौन झूठ, यह िनणय कसे हो?
आप कहाँ िनणय लेत े ह! आपक िलए तो जब आपका ज म आ, तभी िनणय हो गया। मतलब िक आप जैन घर म
पैदा हो गए तो बचपन से ही आपक तालीम हो जाती ह और आप ‘नमो अ रहताणं’ बोलना सीख जाते ह। िहदू घर म
पैदा हो गए जहाँ क ण भ चलती ह तो ‘ओ३ ीक णाय नमः’ यही सुनते ह। क ण क तसवीर देखते ह, क ण क
मंिदर म जाते ह। छोट ब े का मन तो जो देखता ह, उसे ही मानता ह। माँ-िपता, दादा-दादी, चाचा-चाची सब ‘जय
ीक ण-जय ीक ण’ बोलते ह तो ब ा भी सीख जाता ह और अपनी तोतली बान म ‘जय ीक ण’ बोलने लगता
ह। यह आपने चुना नह ह। आपको बना बनाया िमल गया ह। अगर आप िकसी िसख घर म पैदा हो गए और सुबह-
शाम, उठते-बैठते ‘वाहगु -वाहगु ’ सुन रह ह तो वही सं कार आपम आ जाएँग।े अगर पैदा हो गए िकसी मुसिलम घर
म तो मसिजद, नमाज़, रोज़ा, म ा, हज यह सब तालीम हो जाएगी।
अ छा, म आपसे एक बात पूछती िक या आपने चुना था िक म एक िहदू घर म पैदा होऊगा? आज म आपसे
ब त सार न पूछगी। म चाहती िक िजन न क सूची दे रही , उस पर आप सोच। हालाँिक म इन न क
जवाब दूँगी, लेिकन म आपको रडीमेड जवाब दू,ँ इससे पहले म चाहती िक आप खुद उस पर िवचार कर। कभी-
कभी सोचना भी चािहए!
आपने शादी क थी, तब िकतना सोच-समझकर पसंद िकया था?िकतनी सारी लड़िकयाँ देखी थ ? िकतने र ते आए
थे और िकतने नामंजूर िकए थे? इसक नाक ठीक नह , उसका चेहरा बराबर नह , वह बोल कसे रही थी, उसक
आवाज़ कौए जैसी थी, इसक आवाज़ अ छी थी, पर अ़ धेले क नह । कभी लड़क देखने कहाँ-कहाँ गए थे?
िआ़खर म माँ-बाप ने कह िदया िक बस, यही सब से ठीक ह, अब इसी से शादी करनी पड़गी।
लड़का देखना था तो िकतने लड़क देख?े कभी पंिडतजी, तो कभी र तेदार र ता लाते ह, शादी क र त क िलए
मेि मोिनयल वेबसाइ स होती ह। मेि मोनी ट मेटरिनटी हॉ पटल, हर चीज़ म चुनने क िलए िव ापन और एजिसयाँ ह
और ब त सार िवक प ह। आपने शादी ऐसे ही नह कर ली थी। अ छा, इतनी खोजबीन करने क बाद शादी करते ह,
िफर भी हर एक शादीशुदा पित-प नी क जीवन म कम-से-कम दस मौक ऐसे आते ह, जब वे माथा पीटकर कहते ह
िक िकससे शादी हो गई? कछ लोग इस बात को बोल देते ह तो कछ लोग मन क बात मन म ही रखते ह, य िक
डरते ह िक काम यादा खराब हो जाएगा और खाना-पीना बंद हो जाएगा। खैर, आपने सोच-समझकर िववाह िकया
था। अ छी बात ह। शादी सोच-समझकर ही करनी चािहए।
समान सं कार, िवचार और िचयाँ हो और िफर शादी हो तो या बि़ढया बात ह। नह तो ऐसा होता ह िक लड़क
को घूमना पसंद हो और वह सोचती ह िक यहाँ जाएँ, वहाँ जाएँ और लड़का अंतमुखी तो बड़ी मु कल हो जाएगी।
हालाँिक सच क तो आप लोग आचरण, िचयाँ िमलाते ही नह । यादा-से- यादा यह देखते ह िक लड़क क लंबाई
पाँच फ ट सात इच ह तो लड़क पाँच फ ट क होनी चािहए। हमार पास चार कमर का लैट ह तो लड़क क बाप क
पास भी उतना ही बड़ा लैट होना चािहए। आप लोग क मापदंड ह आिथक थित। लड़का या लड़क िदखने म कसे
ह, िश ा और चौथा मापदंड होता ह, जाित। कछ लोग इसक बार म ब त िज़ ी होते ह िक वे अपनी ही जाित क
लड़क या लड़क से शादी करगे। इन चार मापदंड को िमला करक शादी हो जाती ह और बुजुग लोग कहते ह िक
बाक वे आपस म समझ लगे। लड़क क या लड़क क या- या गंदी आदत ह, यह बाद म पता चलता ह।
मेरा एक सुझाव ह िक िमलना तो िवचार का होना चािहए। मेर पास कई बार मिहला क और पु ष क प आते
ह और वे िलखते ह, ‘‘मेरी प नी क स संग म कोई िच नह ह। अगर म स संग का नाम भी लूँ तो कहती ह िक
तु हारा िदमाग खराब हो गया ह? साधु बनना चाहते हो? तु ह या दुःख ह िक आप स संग म जाना चाहते हो?’’ ऐसे
ही कई याँ िलखती ह, ‘‘पित मानता नह और आने नह देता। म तो आने क िलए ब त तड़प रही ।’’ जब ऐसा
सुनती तो उनक थित देखकर ब त बुरा लगता ह। िफर लगता ह िक जब शादी क थी, तब एक-दूसर से नह पूछा
था िक स संग म िच ह िक नह ?
अ छा, मान ल िक लड़क-लड़क को प रवार ने िमलवाया और लड़का अगर कह िक हम तो गु जी क सेवा म
रहते ह। गु जी रात को बारह बजे भी बुलाएँ तो चले जाते ह। अब अगर लड़क क स संग म िच न भी हो तो आप तो
ईमानदारी से बता देते ह, िफर उसे या करना ह, वह तय कर सकती ह। शादी हो जाने क बाद एक-दूसर को गािलयाँ
द या एक-दूसर क साथ चैन से रह न सक, यह तो अ छी बात नह ह। लेिकन मने देखा ह िक यादातर लोग इन सारी
पसंद का िमलान नह करते।
जब आप िववाह करते ह तो सोच-िवचार करते ह तो आप जीवन को िजस धम या आ था क साथ जी रह ह, उसक
िवषय म आपने खोज क ह? वयं कछ अनुभव िलये ह?
यहाँ म इन मु पर इसिलए बात करना चाहती िक धम लोग क िलए अनौपचा रक (casual) बात ह। जैसे, मंिदर
गए तो गए, नह गए तो नह गए। सुबह उठकर मं -जप िकया तो िकया, नह िकया तो नह िकया। आप लोग क
जीवन का ढाँचा इतना खराब बन गया ह और यादातर आपको तालीम भी ऐसी ही िमली ह, ऐसे आदश िमले ह िक
पूछ ही मत। हमने जो भजन गाया था (सुन मन मेर साँझ-सवेर) उसम थोड़ी बात कही ह। ‘बालपना सब खेल गँवाया’,
बचपन म बु नह होती, अ़ नह होती तो खेल म खुश, खाने म खुश।
अभी थोड़ िदन पहले क ही बात ह। म एक पाक म गई थी। पाक क गेट पर ब क कतार थी। सब ब को
लाइन म खड़ा िकया था। वे ब े इतज़ार कर रह थे िक उनक टीचर इजाजत द तो वे पाक म जाएँ। म भी वह थी तो
देख रही थी िक ब े वहाँ खड़-खड़ तड़प रह थे िक कब अंदर जाएँ! जैसे ही अ यापक ने इज़ाज़त दी तो ब े इतनी
तेज़ी से भागे िक मुझे लगा िक अंदर ऐसा या होगा िक वे अंदर जाने क िलए इतना तड़प रह ह? मने अंदर जाकर देखा
तो वहाँ पर कोई ऐसी िवशेष बात नह थी। दो-तीन झूले थे, लाइ स थ । यानी िक ऐसी कोई राइ स भी नह थी, पर
िफर भी ब े िच ाते-दौड़ते ए गए। अर भाई! अगर आपको कोई अभी कह दे िक आपको िमिलयन डॉलर क
लॉटरी लग गई ह तो आप लोग भी िच ा उठगे या नह ! ब क िलए पाक म खेलना िमिलयन डॉलर क लॉटरी
लगने क बराबर ह। वे उसम खुश हो रह ह।
बचपन म बु नह होती। छोटा ब ा िगर जाए और उसे चोट लग जाए तो वह रोता ह। तब माँ आकर कहती ह,
इस मेज़ ने तुझ े मारा? म अभी उसे थ पड़ लगाती । म इस मेज़ को सज़ा दूँगी। ब ा सरलता से यह बात मान लेता
ह, लेिकन यह बात तािकक तो नह ह। अगर आप चलते-चलते िगर जाएँ और आपक माँ, प नी या और कोई आकर
कह िक म इस ज़मीन को मारती , य िक उसक वजह से आप िगर गए और आपको चोट लगी तो आप उस य
से कहगे िक या तु हारा िदमाग खराब हो गया ह? लेिकन ब े क िलए तो माँ मेज़ को मारती ह, यह ब त
आनंददायक होता ह। वह हस पड़गा। ब ा अभी हस लेगा, अभी रो लेगा। िखलौना िमल जाए तो खुश, खाना न िमले
तो िच ा-िच ाकर रोएगा। बचपन म अ़ नह होती।
इस बालपन म कोई सोचे िक ये यान, धम जैसे गंभीर िवषय पर ब ा सोचे, समझे तो यह संभव नह । कदरती म
म बालपन क बाद आती ह िकशोराव था और उसक बाद युवा अव था। जवानी आते ही शरीर म हॉम स सि य होने
लगते ह और इस वजह से शरीर म रासायिनक बदलाव आने लगते ह। लड़क ह तो सजना-सँवरना अ छा लगता ह,
लड़क अ छ लगते ह और अगर लड़का ह तो लड़िकयाँ अ छी लगने लगती ह। डिटग शु हो जाती ह। ऐसा मत सोच
िक यह डिटग व़गैरह ि़सफ अमे रका म ही हो रहा ह, यहाँ भारत म भी हो रहा ह।
मेर पास एक आठव क ा म पढ़ रहा लड़का आया था। उसका पूरा प रवार स संग म, सेवा म आता रहता ह। म
ऐसे ही उसक साथ बात कर रही थी।
मने उस लड़क से पूछा, ‘‘कौन सी क ा म पढ़ते हो?’’
उसने कहा, ‘‘आठव म।’’
मने कहा, ‘‘अब तो तुझे लड़िकयाँ अ छी लगती ह गी।’’
उसने कहा, ‘‘लड़िकयाँ ब त बुरी होती ह।’’
मने पूछा, ‘‘ऐसा य कह रह हो?’’
उस लड़क ने कहा, ‘‘थोड़ िदन िकसी लड़क से बात कर ल तो हम किम ट क पास भेजती ह और ‘आई-िपल’
लाने को कहती ह।’’
‘आई-िपल’ माने गभिनरोधक गोली। इस कार क गोिलय क ब त सार िव ापन आजकल टलीिवज़न पर आते
रहते ह। यह लड़का िद ी क कल म आठव क ा म पढ़ रहा ह। उसक यह बात सुनकर म च क गई। आठव
क ा म पढ़ते इस लड़क क दो ती यादा-से- यादा नौव क ा म पढ़ती ई लड़क क साथ हो सकती ह।
खैर, म जो बात कहना चाह रही , वह यह ह िक िकशोर अव था और युवा अव था आते ही शरीर क अंदर और
मन म प रवतन आते ह। कोई िकसी को िसखाता नह ह, लेिकन एक उ होने क बाद िवजातीय य क ित
आकषण होता ह। इस उ तक प चने क साथ ही लड़िकयाँ यादा साज- ंगार करने लगती ह। लड़क यायाम करने
लगते ह, अ छ कपड़ पहनने लगते ह, मैिचंग करने लग जाते ह, नखर करने लग जाते ह तो लोग कहने लग जाते ह िक
लड़का जवान हो गया। अब थोड़ िदन म इसक शादी करनी पड़गी।
कछ समय पहले यूजस म एक लड़क क साथ ऐसे ही सहज बात हो रही थी। मने उससे पूछा, ‘‘तु हारी िज़ंदगी
का ल य या ह?’’
अब अगर हम ब त ज़ोर से गु पना िदखाएँ तो वे अपने मन क बात नह करगे। इसिलए म इस तरह से बात करती
िक जान सक िक उसक मन म या चल रहा ह। जब हम संकोच और ोभ का अनुभव करने लगते ह, तब हम बात
को छपाने क कोिशश करते ह। तो हमने ऐसे ही बात -बात म पूछा, ‘‘तु हार जीवन का ल य या ह?’’
उसने कहा, ‘‘अभी तो म अपनी शादी क बार म सोच रहा , इसिलए पैसा कमाकर उसम से बचत करता । अगर
शादी क गा तो मेरा खचा बढ़गा। म अ छी नौकरी िमल सक, उसका यास कर रहा । शादी होगी तो कछ समय म
ब े भी ह गे तो मुझ े बड़ा घर लेना होगा।’’ आनेवाले बीस साल क पूरी योजना उसने मुझे सुना दी।
मने कहा, ‘‘वाह-भई-वाह! म तेरी उ क थी तो मेर िदमाग म दूर-दूर तक कोई ऐसी बात नह आ रही थी।’’ और
यह िकतना प ह िक आज से बीस साल क बाद क बात भी इसने सोच क रखी ह! उसक ब े कौन से कल म
पढ़गे, यह भी उसने तय करक रखा ह। उस लड़क ने मैनेजमट क पढ़ाई क ह तो उसने पूरी िज़ंदगी क लािनंग करक
रखी ह। अ छी बात ह।
युवा अव था म सब ऐसे ही चलता ह। आप नह सोचगे तो आपक माँ-बाप आपको सोचने पर मजबूर करगे िक
भाई! सोच अपने जीवन क बार म; सेटल होना ह, शादी िकसक साथ करनी ह, यह सोच। अब िसलिसला शु हो
जाता ह। नौकरी िमल गई, शादी हो गई, सबकछ हो गया तो कहगे अब रटायरमट क बार म सोचो। बुढ़ापे क बार म
सोचो और बचत करो। ये सार ल य पूर करने क िलए आप काम करते रहते ह, करते रहते ह और अपने शरीर क
ठीक से देखभाल नह करते ह। उ बढ़ जाती ह और शरीर म ब त सार रोग आ जाते ह, िफर समझ म नह आता िक
उ ह मैनेज कसे कर?
मुझ े एक बात याद आ रही ह िक तीन बुजुग पाक म सैर कर रह थे। एक क उ 75 क , दूसर क 65 और तीसरा
50 का था। तीन क दो ती थी। तीन पाक म सैर करने आया करते थे और एक चौथा आदमी, जो जवान था, िजसक
नई-नई शादी ई थी और अभी 27-28 साल का था, उसक भी इनक साथ दो ती हो गई थी। ये सब बातचीत कर रह
थे। 75 साल क बूढ़ ने कहा, ‘‘आज सुबह उठा और डायबीटीज चेक िकया तो एकदम नॉमल था। म ब त खुश ।’’
इसे सुनकर उस जवान आदमी ने कहा, ‘‘इसे खुशी थोड़ ही कहते ह? खुश तो म , य िक आप सब को तो पता ही
ह िक अभी कछ िदन पहले ही मेरी शादी ई ह और हम अभी-अभी हनीमून से लौट ह, पर हमारा हनीमून तो अभी
चालू ही ह। इसे कहते ह खुशी!’’ 50 साल क आदमी ने कहा, ‘‘अर, खुशी तो मुझ े हो रही ह। मने कल एक िमिलयन
डॉलर से भी यादा क कमाई क और मेर शेयर क भाव भी बढ़ रह ह।’’ तीसरा, जो 65 साल का था, उसने कहा,
‘‘तु हारी खुशी क बात छोड़ो। मुझ े जो खुशी ई ह, वह तो अलग ही ह। चार िदन बाद पेट सा़फ आ ह और मुझ े जो
चैन िमला ह, जो आनंद आज मुझ े आ ह, उसे आप या जानो!’’
बूढ़ा हो जाएगा तो दवाइय क बार म बात करगा, शरीर म श कम हो गई ह, उसे कसे बढ़ाना ह, उसक बात
करगा। जो बीमा रयाँ हो चुक ह, उ ह दूर कसे करना ह, उसक बात करगा, या खाना चािहए, या नह खाना चािहए,
उसक बात करगा और एक िदन िक सा ख म। आपक ब े कहगे, िपताजी सो रह थे और न द म ही मर गए या िफर
िपताजी गुसल़खाने म गए थे, वहाँ िगर गए या कस पर बैठ थे और बैठ-बैठ ही चल बसे। ऐसी कहािनयाँ सुनने को
िमलती ह।
बचपन से लेकर िज़ंदगी क िआ़खरी िदन तक आप हर चीज़ को ब त गंभीरता से सोचते ह, िवचार करते ह, लेिकन
एक े , जो छट जाता ह, वह यह िक ‘आप कौन ह और ई र क साथ आपका संबंध या ह?’
अगर ई र ह, तो या म जानता िक ई र कौन ह? लेिकन जैसे ही ई र क बात आती ह, आप अनुमान करने
लग जाते ह। िज़ंदगी अनुमान क आधार पर नह चलती ह। िज़ंदगी ठोस अनुभव माँगती ह और जो वा तिवक अनुभव
होते ह, वे ही आपको संतोष और तृ क अनुभूित देते ह। आपको अगर यास लगी हो तो असली पानी चािहए। पानी
क िव ापन म दी गई तसवीर से काम नह चलेगा! अगर आपको कोई एलज ई हो, छ क आ रही हो, आँख म से
पानी िनकल रहा हो और उस व़ आपको कोई दवाई क फोटो या दवाई का खाली िड बा दे तो उससे तो एलज
ठीक नह हो जाएगी। आपक भोजन म िमच आ जाए और जीभ जल रही हो तो उस व़ आप िकसी से कहगे िक
ज दी से कछ मीठा दे दो। ऐसे समय पर वह य आपको िमठाई क फोटो दे तो इतने से तो आपक मुँह क जलन
ठीक नह हो जाएगी!
जब शरीर पर कछ क आता ह, कोई त़कली़फ आती ह तो उस समय हम अनुमान नह लगा रह होते ह। उस समय
तसवीर क साथ गुज़ारा नह कर रह होते ह, तब हम उस असल चीज़ को कसे ा करना ह, उस िवषय म सोचते ह।
ि़सफ सोचते ही नह , कर लेत े ह। लेिकन धम क बात म अनुमान, आ मा क बार म अनुमान, परमा मा क बात आते
ही अनुमान करते ह।
ज़रा सोच, आज आप िहदू प रवार म ज मे ह तो आपको िहदू सं कार िमले ह, लेिकन अगर आप एक ईसाई प रवार
म पैदा ए होते तो या आपको िहदू सं कार िमल जाते? या यह चुनाव आपका था?बाक सब चुनाव आप करते ह,
लेिकन यह चुनाव आपने नह िकया। मेरी यह बात यान से समिझएगा। म कहना चाहती िक दुिनया म 300 से भी
यादा धम चल रह ह। कभी आस-पास भी नज़र डाल लेनी चािहए िक बाक धम या ह? वे लोग या सोचते ह?
उनका या मानना ह? उनक साधना िकस कार क ह?लेिकन इतना व़ िकसक पास ह?ये सब बात तो यथ लगती
ह। लगता ह िक िकसी को भी मान ल, या फ़क पड़ता ह? कछ लोग ने तो इससे भी आसान रा ता ढढ िलया ह। वे
कहते ह बस, नैितक मू य पर आधा रत जीवन िजयो। जीवन म अ छ मू य रखो। भगवान ह या नह , म आ मा या
नह , ऐसे अजीब न क उ र कौन ढढता बैठ! वे कहते ह िक हम हमार मू य क आधार पर जीवन को जीते ह।
अ छ बनो और अ छ कम करो, यही उनक जीवन का मं ह।
ब त लोग इस कार अपने जीवन को जीते ह। म यह समझती िक हर आदमी को वह जैसे जीवन को जीना
चाहता ह, वैसे जीने का अिधकार ह। िजस तरह सोचना चाहता ह, वैसी सोच क साथ जीवन को िजए; लेिकन आप
अपनी सोच को इतना सीिमत तो मत क िजए िक और कछ समझने क िलए भी तैयार न हो। अजब बात तो यह ह िक
िजस चीज़ क साथ आपक जीवन का उ ार हो सकता ह, आप उ ह चीज़ क बार म कछ नह सोचते।
‘म देह ’ ऐसा आप मान चु़क ह। यही अ ान, म और अिव ा का परदा पड़ा ह। म देह , ऐसा मानकर आप
देह क साथ जी रह ह और यह शरीर क जो ज़ रत ह, उसे पूरा करने म िदन-रात, रात-िदन खपते रहते ह। मने यह
बात पहले भी ब त बार कही ह और इसे िफर से कहने क िलए कोई मुझे दंड नह देने वाला, सो म िफर से कह रही
। आप जब सुबह का ना ता खा रह होते ह तो दोपहर को या खाएँग,े उसका िवचार तभी से शु कर देते ह। शाम
को या खाना ह, उसक बार म भी सोचने लगते ह। रात का भोजन करते-करते अगले िदन या खाएँगे और कहाँ
जाएँग,े उसक िवषय म आपक सोच चलती रहती ह।
आपने कभी िगनती क ह िक आपक जीवन क िकतने घंट इस बात का आयोजन करने म चले जाते ह िक आप या
खाएँग े और िफर उस खाने को बनाने म या िफर उसे बाहर से ऑडर करने म और उसका इतज़ार करने म िफर उसे
खाने म िकतना समय जाता ह? या कभी आपने इसका िहसाब लगाया ह? आपका यादातर समय इसी म जाता ह।
बाक का समय कमाने म जाता ह। सात या आठ घंट क नौकरी होती ह, यानी नौकरी-धंधा या यवसाय म आपक
चौबीस घंट म से एक बड़ा िह सा उसी म जाता ह। लगभग चार घंट का समय ऑिफस या दुकान तक आने-जाने म
लग जाता ह। यह सब आप इसिलए करते ह, य िक आप पैसे कमा सक, िजससे आप भोजन का बंध कर सक।
सोचो िक िकतना समय जा रहा ह? और िफर सात-आठ घंट सोने म जाते ह।
हम एक िहसाब लगाते ह। औसत सात से आठ घंट सोने म जाते ह। इस सात घंट को 365 से गुना करगे तो होगा
2555। अगर आपक उ 50 साल ह तो इस सं या को 50 से गुना कर। यह जो आँकड़ा आपक सामने आएगा उससे
आपको समझ म आएगा िक जीवन का एक चतुथाश िह सा तो सोने म ही िनकल जाता ह। उसम भी शु म, यानी िक
3-4 साल क आयु तक तो ब ा 18 से 20 घंट सोता ह। जैसे बड़ा होता जाता ह तो न द कम होती जाती ह। बुढ़ापे म
यादा न द क ज़ रत नह रहती और यादा न द आती भी नह ह। िफर भी औसतन देख तो जीवन का लगभग 35
ितशत िह सा हम सोने म िनकाल देते ह। एक चतुथाश िह सा खाने-पीने, नहाने व़गैरह म चला जाता ह।
देिखए, मंिदर तो आप कभी-कभी जाते ह। शिनवार-रिववार या िफर िकसी योहार पर, कछ लोग ज मिदन पर ज़ र
जाते ह, कोई शादी क वषगाँठ पर भी जाता ह। आपक जो भी कोई भगवान ह, उनक साथ आपक मुलाकात ब त कम
होती ह।
भगवान को भूल जाएँ और वे जहाँ ह, उ ह शांित से रहने दो। अभी हम उस वाहन क बार म बात करते ह, िजसक
ारा आप जीवन को जी रह ह और जब तक िज़ंदा रहगे, वह आपक साथ रहनेवाला ह। चलो, िजस शरीर क साथ
आप जी रह ह, उस शरीर क बात करते ह। इस मानव शरीर ारा आपको जो एक मौका िमला ह, उस शरीर क आप
िकतनी देखभाल करते ह?
मेरा पहला न ह िक या आप सूय दय क पूव उठ जाते ह? अगर यहाँ सूय उदय हो रहा हो और वहाँ आप जग
रह ह तो आप खुद को दस म से दस अंक दे द। जो ज दी नह जागते, उनसे म कहना चाहती िक आपको सचमुच
इस िवषय म सोचना चािहए, य िक अगर आप सूय दय क साथ नह जागते ह तो आपक शरीर क पूरी णाली खतर
म आ सकती ह। आपक शरीर को कित ने इस तरह िडज़ाइन िकया ह िक जब कित म ऊजा का उदय हो रहा हो,
उस समय अगर आप जागते ह तो आपक शरीर म ठीक ऐसी ही ि या होती ह और आपको ऊजा क एक अित र
खुराक ा होती ह। ऋिषय ने कहा ह िक सुबह सूय दय होने क आधे घंट पूव जागकर देखो। जो लोग ऐसा नह
करते, वे इसको यान से पढ़। यह बात आप भी जान ल, समझ ल और अपने ब को भी समझाएँ।
जब आप सूय दय क पहले जाग जाते ह और ान करने क बाद उ र या पूव क तऱफ मुख रखकर बैठते ह या
खड़ होकर गाय ी मं का जप करते ह तो आपक रोग ितकारक श बढ़ती ह। आपको शायद लगता होगा िक जब
हम गाय ी मं जप करते ह तो गाय ी देवी आकर हमार शरीर म कछ चम कार करती ह गी, िजसक वजह से हमारी
रोग ितकारक श बढ़ जाती होगी। नह भाई नह , मं करने से कोई देवी न तो दशन देनेवाली ह, न ही आकर
आपक रोग ितकारक श बढ़ा देने वाली ह। गाय ी मं मतलब कछ िवशेष श द का समूह। जब आप इसका सही
ढग से उ ारण करते ह तो आप ऐसी विनतरग का सृजन करते ह, िजनका असर सीधे आपक म त क क
काय णाली पर होता ह।
श द या ह? विन या ह? एक तरग ह। हमारा म त क, जो हमार शरीर का क यूटर ह, जहाँ से पूर शरीर का
संचालन होता ह, उस पर मं का सीधा भाव आता ह। हालाँिक कछ लोग का मानना ह िक जब कोई इ का मं
जप करते ह तो वह हम पर खुश होते ह और हम आशीवाद देते ह। ब को िसखाने क िलए यह बात ठीक ह, पर
आप छोट ब े नह ह! ऐसी का पिनक बात पर भरोसा करगे तो ब त गड़बड़ हो जाएगी। आप जब मं जप करते ह
तो आप ऐसी विन-तरग का सृजन करते ह, िजनसे आपका म त क और अंत ावीय ंिथय पर सकारा मक असर
आता ह। िजसक वजह से आपका शरीर सुचा प से चलता ह।
म इसम एक उदाहरण देना चाहती । अगर िकसी को पथरी हो जाए तो आजकल लेज़र क ारा सजरी होती ह।
डॉ टर पथरी िनकालने क िलए पेट क चीर-फाड़ नह करते। वे लेज़र का उपयोग करते ह। लेज़र म प थर को चूर-चूर
करने क श ह। यह लेज़र या ह? काश क तरग। उनक श से पथरी दूर क जा सकती ह। आजकल
िचिक सा े म विन, काश, इ ा लाइ स इ यािद का उपयोग हो रहा ह, िजसक वजह से लोग क रोगमु हो
रही ह, उ ह वा य िमल रहा ह। कछ ऐसा ही काम मं क तरग भी करती ह।
उदाहरण क तौर पर ‘ णव’ या ‘ओ३ ’। यह एक ऐसा श द ह िजसका िहदू से कोई लेना-देना नह ह। इस पर
ि़सफ अकले िहदु का ही अिधकार नह ह। ‘ओ३ ’ तो एक अ ुत भावशाली विन-तरग ह, िजसक उ ारण से
सीधे आप अपनी पीयूष ंिथ भािवत करते ह। ‘ओ३ ’ का उ ारण करने का जो ढग ह, उसक चचा मने पहले भी
क ह। वैस े ‘ओ३ ’ श द आपने जीवन म ब त बार बोला होगा। आप सब धािमक वृि क अ छ लोग ह और ऐसा
नह ह िक इस श द को आप जीवन म पहली बार सुन रह ह, लेिकन िजस ि या से इसे करना चािहए, अगर उसे उस
तरीक से नह करते ह तो आपको उसका पूरा लाभ नह िमलता।
सबसे पहली बात िक आप रीढ़ क ह ी सीधी करक बैिठए। आपका शरीर सही आसन म होना चािहए और ास
गहरी होनी चािहए। कस पर नह , पर जब आप ज़मीन पर बैठते ह, तब आपका शरीर एक िपरािमड आकार म होता ह।
शरीर आसन म यानी िक अध प ासन, प ासन या िस ासन म होना चािहए। जो योग क जानकार ह, िज ह ने
अपना शरीर लचीला रखा ह और िज ह इसक समझ ह, उनक िलए तो यह ब त आसान ह, लेिकन िज ह इसक समझ
नह , वे सुखासन लगाकर बैठ सकते ह। हालाँिक आप लोग म से कछ लोग क अंग तो इतने कड़ (stiff) हो गए ह
िक पाँच िमनट भी नीचे ज़मीन पर नह बैठ पाते ह। अब यह एक सम या ह। अगर ऐसा ह तो मेरा सुझाव ह िक
आपको अपने शरीर पर काम करना चािहए। हमारा शरीर रोज़ दस मील चलने क िलए बना ह। आप िकतने मील चलते
ह? कमर से बाहर िनकले और चलकर कार तक गए, कार से िल ट, िल ट से कस और घर वापस आए तो कार से
उतरकर घर क सोफ तक। अगर आप रोज़ दस मील नह चलते तो शरीर िन य ही बीमार होगा। अगर हम इसका
ठीक तरह से यान रखते ह, तभी उसक मता, उपयोिगता का लाभ ले पाएँगे। उसक िलए आहार भी ठीक हो,
यायाम, सैर करना और योगासन सबकछ साथ-साथ चलना चािहए। अगर आप योगासन नह कर रह ह तो आपको
माण-प िमलना चािहए िक आप अपने शरीर को या बि़ढया तरीक से िबगाड़ रह ह!
अर भाई! डॉ टर और महगी दवाइय क ब़गैर जीना सीख। म आपको यह िसखा सकती , लेिकन बाद म आपको
इसे करना होगा और आप दवाइय क िबना जी सकगे। लोग कहते ह िक नशीली दवाइयाँ खराब होती ह। या कोई ग
अ छी भी होती ह? कोकन खराब ह तो या एलज क िलए जो गोली लेते ह, वह अ छी होती ह? यह सच ह िक
हशीश खराब होती ह, पर माइ ेन क िलए आप जो ग लेत े ह, वह अ छी होती ह? ग-तो- ग होती ह। ज़हर म
अ छा ज़हर और बुरा ज़हर, ऐसा नह होता ह, ज़हर-तो-ज़हर होता ह। इसीिलए तो दवाइय पर चेतावनी िलखी होती ह
िक डॉ टर क सलाह क ब़गैर मत ल।
कछ समय पहले अमे रका म म टलीिवज़न पर समाचार देख रही थी, उस व़ एक वक ल का िव ापन बार-बार
आ रहा था, िजसम एक दवाई का नाम आ रहा था और कहा जा रहा था िक इस दवाई को अगर आपने कभी खाया
होगा तो हो सकता ह, आपको मधुमेह क बीमारी ई होगी। आपने यह दवाई खाई हो और अगर आपको मधुमेह क
बीमारी न भी ई हो, िफर भी आप मुझ े यानी िक उस वक ल को फोन कर, य िक हम यह दवाई बनानेवाली कपनी पर
मुक ा करनेवाले ह। िजस कपनी पर कस िकया जानेवाला था, वह अगर हार जाती ह तो उसे मुआवज़ा देना पड़गा
और आपको भी इसम से िह सा िमलेगा, ऐसा वह िव ापन बता रहा था। या मज़ेदार बात ह! शरीर से भी यादा
आपक िलए पैसा मह व रखता ह।
सुबह ज दी उठकर ‘ओ३ ’ का उ ारण क िजए। रीढ़ क ह ी सीधी करक आसन म बैिठए। ास गहरा भरकर
‘ओ३ ’ का उ ारण कर। आप खुद इसका योग करक देिखए। आपक समझ म आ जाएगा िक यह िकतना
लाभदायक ह और मं क श या ह। आपक खुद क समझ म आएगा िक यह उ ारण आपको िकतना मज़बूत
बनाता ह। आपक शारी रक और मानिसक वा य म सुधार होता ह। इसका और गहन भाव महसूस करना हो तो
उसक िलए अपने हाथ क अँगूठ से अपने कान बंद कर और ‘ओ३ ’ का उ ारण कर। अँगूठ को इतने ज़ोर से भी
कान म मत दबाएँ िक खून िनकल आए। कोमलता से, सहजता से अँगूठ से कान बंद कर, िजससे बाहर क आवाज़
कान म वेश न कर सक। इस तरह कान बंद करने क बाद हाथ क पहली और दूसरी उगली आँख पर धीर से रख।
यहाँ पर भी यादा दबाव मत द। तीसरी और चौथी उगली गाल पर रहगी। अब गहरी ास भर और ‘ओ३ ’ का गुंजन
कर। ‘ओ३ ’ बोलना नह ह, भँवरा िजस तरह से गुंजन करता ह, उस तरह गुंजन करना ह। थोड़ी देर म अगर हाथ
दुःखने लग जाए तो हाथ को हटाकर घुटने पर रख, लेिकन याद रह िक गुंजन करते रह।
इस तरह हर रोज़ ि़सफ 15 िमनट ‘ओ३ ’ का गुंजन कर। कछ लोग को 15 िमनट भी यादा लगते ह। हमार ऋिष-
मुिनय ने तो कहा िक आपक समय का दसवाँ िह सा, यानी िक 24 घंट म से 2 घंट 40 िमनट इन ि या को करने
क िलए देने चािहए। म ब त उदार हो रही और इसे करने का ढग िसखा रही ।
इसम दो-तीन बात खयाल म रखनी ह, िजससे आपका ‘ओ३ ’ का गुंजन यादा गहन होता। यह करते समय दाँत
को भ चना नह ह। जबड़ा बंद रिखए, पर ढीला रिखए। जब आप इस तरीक से ‘ओ३ ’ का गुंजन करगे तो इससे जो
कपन पैदा होगा, वह आपक जबड़ तक फलेगा। आपक मुँह म जबड़ का जो िह सा ह, वहाँ पर नस ह, जहाँ से हमारी
सुनने क , सूँघने क और चखने क श आती ह। इस िह से म महीन नस का एक जाल ह, जो पीछ रीढ़ से जुड़ा
आ ह। जब आप ‘ओ३ ’ का गुंजन करते ह, तब एक तरह से आप इस पूर भाग को ऊजावान करते ह। इस तरह से
आप जब गुंजन करते ह तो आपका यान िवशेष प से माथे पर, आँख, गाल, कान, िसर पर रह। माथे पर इस तरह
यान द जैसे, एक अँधेर कमर म टाच जला करक घर क एक िह से म ही यादा रोशनी होती ह, उसी तरह अपनी
चेतना पर यान माथे पर, तालू पर, म त क, आँख, कान, गाल, मतलब चेहर क पूर भाग पर और सबसे यादा यान
तालू पर िटकाकर रख। इस तरह ‘ओ३ ’ का गुंजन करगे तो आपको इतना चम का रक अनुभव होगा िक 15 िमनट
कहाँ चले गए, उसका पता ही नह लगेगा।
सबसे शुभ समाचार यह ह िक अगर आप रोज़ ातःकाल म इस तरह गुंजन करगे तो उसका गहन भाव आपक
तंि का तं ( यूरोलोिजकल िस टम) पर आता ह और इससे आपका र चाप सामा य हो जाता ह। अब इसे म
अित र लाभ कहती । जैसे, खाने क साथ सलाद जैसे कछ अितर यंजन भी िदए जाते ह, पर आप खाना
अित र यंजन क िलए नह खाते ह।
‘ णव’ का उ ारण अगर आपक ब े करने लग जाएँ, तो उनका मन थर होगा, उनक एका ता का तर बढ़गा।
िज ह रात न द ज दी नह आती, कछ लोग को परशानी होती ह, य िक मन म ब त सार िवचार चलते रहते ह और
िजस समय चुपचाप लेटकर आराम करना होता ह, तब उनका िदमाग आयोजन करता रहता ह या िफर िदन म िकसने
या िकया और या कहा, उन बात क मृित चलती रहती ह। जब आप सोने जाएँ, तब ब ी बंद करक अपने िब तर
पर बैठकर ‘ओ३ ’ का गुंजन कर तो ब त गहरी, मीठी न द आएगी। िकसी भी कार क दवाई क ज़ रत नह रहगी।
अगर हम मेिडटशन आता हो तो हम मेिडकशन क ज़ रत य होगी? म आपको िबना मेिडकशन क, यानी िक दवाई
क ब़गैर मेिडटशन मतलब यान क साथ जीना िसखाती ।
आपका मन िजतना शांत होगा, उतना आपका शरीर अ छी तरह से काय करगा और आप अपनी िज़ंदगी का मज़ा
उठा पाएँगे। यह जीवन ब त क मती ह तो हम उसका सदुपयोग करना चािहए। इस ान क साथ आपक जीवन म
आनंद क िकरण बरसने वाली ह, उ ह देख-देखकर म खुश हो रही । म मानती िक भु क देन ह िक हम यह
जीवन िमला ह और इसे हम आनंदपूवक िबताएँ। इस जीवन को िचंता, रोग, दुःख म य िबताना? आप अपने दस
काम छोड़कर इसे सुन या पढ़ रह ह तो म मानती िक आप पर ई र क ब त कपा बरस रही ह। इसिलए म आप
सबक िलए ाथना करती िक आपने जो श द सुन े या पढ़ उनका आपक मन पर, चेतना पर भाव हो और आपक
जीवन म एक शुभ और मंगलमयी शु आत हो। सबक मन को िव ाम ा हो, यही ाथना ह।

रम त इित रामः
‘रिखए लाज हमारी।
तेर पथ का म बन गया राही,
लेकर आस तु हारी।

तेरी कपा से सब दुःख नासे,


आए िव न जो भारी,
िनज जन क तू शरण भरोसा,
मात-िपता िहतकारी।

दासन क भु िबनती यही ह,


दीजो न नाथ िबसारी,
सकल साधन ह तोह िमलन को,
होये सब मंगलकारी।

मन म ह राम-राम,
तन म ह राम-राम,
रोम-रोम म राम ही राम,
जय जय राम-राम।’

म नु य क मन का मूल परमा मा ह। अब अगर आपक धािमक िश ा म परमा मा श द न आया हो तो संभव ह िक


आपको इस कथन क गहराई का एहसास नह होगा, लेिकन स य यही ह। राम का एक अथ तो वह ह, जो आप जानते
ह िक ीराम जो दशरथ क पु , सीता क पित, ल मण क भाई, लव-कश क िपता, गु विस िजनक गु थे, आिद।
यह सूची लंबी ह और आप यह सब जानते ह। इसक बार म आपने पढ़ा-सुना ह और टलीिवज़न धारावािहक म देखा भी
ह। लेिकन यह राम का सही व प नह ह। राम कौन ह?
सं कत ोक कहता ह—रम त इित रामः। जो सब म रमण कर रहा ह, वही राम ह। जो सब म मौजूद ह, वही राम
ह। ये राम, दशरथ क पु से पहले भी थे और उनक चले जाने क बाद भी ह। दशरथ क पु राम एक ब त अ ुत
य व, अित सुंदर, अित बु मान, िववेकशील पूण पु ष थे। आप शायद नह जानते ह गे, लेिकन ीराम क च र
क जो गाथा तुलसीदास ने िलखी, वह यादा नह , अभी चार सौ साल पुरानी बात ह। जो मूल रामायण ह, वह ऋिष
वा मक जी क िलखी ई ह और ऐसा माना जाता ह िक वह कम-से-कम पं ह हज़ार वष पूव िलखी गई ह। राम का
ज मकाल आठ हज़ार साल पहले का माना गया ह, लेिकन राम क जो कथा ह, उसे िलखनेवाले ऋिष तो राम क ज म
क पूव ए, उतना ही नह जब रामजी इस लीला को िजए तो उस व़ भी वे ऋिष वहाँ मौजूद थे।
इसम हरानी क कोई बात नह , य िक िजसने योगिव ा को समझा ह, उनक िलए मृ यु कछ नह होती। जैसे, आप
अपने कागज, ला टक क बोतल को दुबारा उपयोग करते ह, वे उसी कार अपना शरीर रसाइकल कर लेत े ह।
आप शायद इस बात को न मान, लेिकन यह स य ह। जब तक राइट दस ने हवाई ज़हाज उड़ाया नह था, कोई मानने
को तैयार नह था िक मनु य भी प ी क तरह आकाश म उड़ सकता ह, लेिकन उ ह ने यास िकया। हालाँिक राइट
दस क पहले भी ीक, इथोिपया, रोम म कई लोग ने ऐसे योग िकए थे। मोम क पंख बनाकर लगाते थे और पहाड़
से कद जाते थे। ‘हम भी उड़गे’ क च र म कई लोग मर भी गए। लेिकन दो भाइय ारा िकया गया यह योग
सफल हो गया और आज देिखए हम सब आसानी से हवाई ज़हाज म स़फर करते ह। रचड ांडस ने तो ऐसी लाइट
शु क ह, जो आपको सीधे अंत र म ले जाती ह और आप चं को ब त करीब से देख पाते ह। उसक िटकट ह
ि़सफ एक सौ हज़ार डॉलर! अगर कोई मुझे इसक िटकट देता ह तो म ज़ र जाऊगी।
कौन मानने क िलए तैयार आ होगा िक मनु य भी प ी क तरह उड़ सकता ह! इस बात को कौन मानता था िक
मनु य चाँद और मंगल तक प चेगा, शु को समझ लेगा! इस समय पर ब त ज़बरद त, श शाली टली कॉप,
सैटलाइट क ारा सूय क रोज़-रोज़ फोटो िलये जा रह ह। सूय क सतह पर या हो रहा ह, उसे समझने क कोिशश
हो रही ह। सौ साल पहले या कोई जानता था या िकसी ने ऐसा अनुमान िकया होगा िक ऐसा सब भी संभव होगा?
लेिकन यह सब हो रहा ह। इसिलए ऐसा न कह िक जो चीज़ आपक देखने म नह आ रही या समझ म नह आ रही,
वह होती नह ह।
मने कल भी यं य िकया था िक आप सब लोग झूठ म खुद को िहदू बोलते ह, ग प मारते ह िक जैन , ग प मारते
ह जब कहते ह म िसख ; य िक आपको आपक धम ंथ का कछ पता नह । म अमुक धम का , यह ि़सफ
राजक य-सामािजक िवधान ह। आपको आपक धम क बार म एक चीज़ भी पता नह , पर आप अपने धम क बार म
बड़ी-बड़ी बात करते ह। लोग धम क नाम पर लड़ाइयाँ करते ह, ह या करते ह, यह जाने ब़गैर िक धम या ह?
म अपनी बात पर वापस आती । ऋिष वा मीिकजी का जीवनकाल ब त लंबा चला। वा मीिकजी ने राम क च र
क िवषय म िलखा ह और िफर जब राम का ज म आ तो राम क जीवन को भी उ ह ने िलखा ह। राम क जीवनकाल
क बार म िजस ंथ म हम राम क मन, वभाव, बु और च र क बार म ान होता ह। उस ंथ को ‘योग वािस ’
या ‘महारामायण’ भी कहते ह।
‘योग वािस ’ म ीराम एक साधारण मनु य क तरह एक राजा क बेट ह। वे वास करते ह, पढ़ते ह और गु कल
से वापस आने क बाद अपने भाइय क साथ खेलते ह, खाते ह, घूमते ह और नृ य करते ह, संगीत सीखते ह। एक िदन
वे अपने िपता दशरथ से कहते ह िक हम थोड़ िदन तीथ या ा करना चाहते ह तो आप हम अनुमित दीिजए। राम सुंदर
थे, युवा थे और सबसे यादा व पवान पु ष थे। कहते ह िक जब वे िव ािम जी क साथ जनकपुर गए थे और वहाँ
पता चला िक सीता का वयंवर ह तो िव ािम जी ने कहा िक ‘चलो, हम भी चलगे। राजा ने हम भी आमंि त िकया ह
तो हम भी चलगे।’ कहते ह िक राम जब ऋिष क साथ चलते-चलते राजमहल क ओर गए तो रा ते म िजन क या
ने, लड़िकय ने उ ह देखा, वे उनक दीवानी हो गई। वे उतने सुंदर थे!
कोई सुंदर हो, युवा हो तो मन म िकतनी तम ाएँ होती ह। िकतनी सारी इ छाएँ होती ह। लगता ह यह देख लूँ, वह
खा लू।ँ अपने शरीर से बड़ा यार होता ह। शरीर को चु त रखने क िलए िदन म अगर दो बार दौड़ने जाना पड़, तो भी
चले जाएँ। एरोिब स, क िपंग, बॉ संग इ यािद करते रहते ह। चब यु भोजन नह करगे, मीठा नह खाएँग,े य िक
शरीर को चु त रखना ह।
एक लड़क से मने पूछा िक पहले ही इतनी पतली हो तो िफर इतनी मेहनत य करती हो? उसने जवाब िदया िक
अगर मोटी रही तो पाट म जाऊगी, तब बैकलेस चोली कसे पहन पाऊगी? मुझ े अपने शरीर का दशन करना ह,
इसिलए पतले रहने क िलए इतनी कोिशश करती , मेर पेट पर टायर जैसी चब हो तो उससे तो बेहतर ह िक म मर ही
जाऊ। पतले रहने क िलए लोग गोिलयाँ लेत े ह, जो खतरनाक होती ह। एक जमाने म अमे रका क खा एवं औषिध
शासन िवभाग ने इन दवाइय को मा यता दी थी, पर अब वही शासन िवभाग कह रहा ह िक ये दवाइयाँ सेहत क
िलए अ छी नह ह। मेहरबानी करक ऐसी गोिलयाँ मत खाना, य िक उसक दु भाव ब त भयानक ह। इन दवाइय क
बाज़ार म आने क चार-पाँच साल क बाद ऐसा पता चला िक इनम किफन क मा ा ब त यादा ह। इतनी सारी मा ा
म किफन शरीर म जाने क वजह से शरीर क सारी णाली खराब हो जाती ह।
आप अपनी जवानी क िदन याद कर। जवान लड़क को अ छ कपड़ िसलवाना, दंड बैठक करना, ायसे स-
बायसे स बनाना अ छा लगता ह। दाढ़ी भी होनी चािहए, गाल एकदम िचकना, चेहरा जैसे हाथ लगाओ तो हाथ िफसल
जाए, उतना मुलायम और गोरा होना चािहए। उसे लगता ह म -पु र , मेर शरीर क ायु एकदम चु त ह ।
इसिलए वह बादाम खाता ह, दूध पीता ह, दंड पेलता ह। रोज़ अपनी छाती नापता ह िक िकतनी चौड़ी ई और अपने
बायसे स नापता ह िक िकतने बड़ ए! जवानी म ऐसे शौ़क होते ह, लेिकन राम को देखो! जवान ह, सुंदर ह, राजकमार
ह; लेिकन उ ह या शौ़क हो रहा ह? तीथ या ा करने का।
म ब त सार बुजुग को जानती , जो अब तक तीथ या ा पर नह गए। कइय को म कहती िक भारत म िशिवर
म आएँ पर वे कहते ह िक उनक पास समय नह ह। उ ह घर म पोते-पोती को देखना होता ह। मने कहा, ‘‘मतलब
बुढ़ा होकर तू आया बन गया? िकतने पैसे बचाने ह? िकतने पैस े जोड़ने ह? पहले अपने ब को पाला, अब अपने
पोते-पोितय क आया बनकर उनक आगे-पीछ घूमता ह।’’ उनक पास समय नह ह। अ छी बात ह। आपका जीवन ह,
जो मरज़ी कर। मेरा या जाता ह?
खैर, युवा अव था म कौन तीथ या ा करने जाना चाहता ह? लेिकन राम कहते ह, म जाऊगा। उनक तीन भाइय ने
कहा िक हम भी आपक साथ चलगे। दशरथ ने अनुमित दे दी। िपता क आ ा लेकर चार भाई थोड़ा धन और सामान
लेकर िनकले। कहते ह िक पहले उ ह ने उ र क तऱफ या ा क , उसक बाद दि ण, िफर पूव और बाद म प म म
गए। यह िजस समय क बात ह, उस समय पर धरती इतने सार िह स म बँटी ई नह थी। सबकछ एक-दूसर क साथ
जुड़ा आ था। एक समय पर इडोनेिशया और भारत क बीच म समु नह था। समय क साथ पृ वी पर प रवतन हो रह
ह। आज लोबल वॉिमग क वजह से लेिशयर िपघल रह ह, समु का तल ऊचा होता जा रहा ह। वै ािनक का तो
यहाँ तक कहना ह िक अगर हम कछ नह करते ह तो िजतने शहर समु क िकनार पर बसे ह, िफर वह चाह यूयॉक
हो या मुंबई, सब समु म डब जाएगा। अगर हम पृ वी क , पयावरण क र ा नह करते ह और उसक दु पयोग को
रोकते नह ह तो कित हम ब त भारी दंड देगी।
रामजी ने सब या ा क और या ा करते-करते अलग-अलग जगह पर दान देते, जप करते, तीथ म ान करते। ये
सारी चीज़ अब भूल चुक ह। आपक शायद सुनने म भी नह आई ह गी।
मं क िवषय म मने पहले बात क थी िक जब आप ‘ओ३ नमः िशवाय’ का जप करते ह, तब आप िशवजी को
स नह कर रह ह, िशवजी को म खन नह लगा रह ह। इससे िशवजी खुश नह हो जाएँग।े वे ऐसा नह कहगे िक
अ छा, यह ‘ओ३ नमः िशवाय’ का जाप कर रहा ह तो म इसको वरदान दूँगा और जो नह कर रहा ह, उसक घर म
भूत भेजूँगा। ऐसा नह ह। जब आप मं -जाप करते ह तो इस पंचा री मं से, इस ‘ओ३ नमः िशवाय’ क विन से
जो तरग उ प होती ह, उन तरग से आपक म त क क ंिथयाँ, अंत ावी णाली, तंि का तं ठीक होता ह और
उसक अंदर एक ऐसी िद य ऊजा जा होती ह, िजससे आपका शरीर भी अ छा होता ह।
सबसे ज़ री बात ह िक आपका मन। देिखए, आपको आपक घरवाल ने अ छा िखलाया, िपलाया, पोषण का ब त
यान रखा, समय पर दूध, पालक और सारी स ज़याँ, फल और जो लोग मांसाहार करते ह, उ ह ने अपने ब को
ब त सारा मांस भी िखलाया; य िक उ ह लगता ह िक उससे ताकत आती ह। वैस,े हाथी ि़सफ घास खाता ह और
उससे बड़ा ताकतवर जानवर और कोई नह ह। लेिकन लोग को ऐसी तालीम, ऐसी समझ नह हो तो उ ह वही ठीक
लगता ह। िजसको जो ठीक लगे उससे हम कोई आपि नह ह। आपने अपने ब क शरीर को पु रखने क िलए तो
ब त मेहनत क , पर मेरा आपसे न ह िक आपने अपने ब क मन को पु रखने क िलए, व थ रखने क िलए
या िकया? आप कहगे कल-कॉलेज भेजा, पर कल-कॉलेज जाने से, िश ा लेन े से उनक पास ऐसे साधन आ जाते
ह, िजनसे वे कल नौकरी कर सकगे, पैसा कमा सकगे, पर इससे मन क पुि तो नह ई। पैसा कमाकर भी तो वे
खाना-पीना, अ छा घर, कपड़ यह सब शरीर को ही दे रह ह! उनको पालने म आपने ऐसी कौन सी तालीम दी िक
िजसक वजह से उनका मन मज़बूत बने, श शाली बने और वे कसी भी मु कल या दुभा यपूण प र थित का वे
शांितपूवक सामना कर॒सक?
आप शायद जानते नह , लेिकन यह बचपन से ही शु हो जाता ह। िपता िदनभर काम करता ह और पैसे कमाकर
लाता ह। ब ा माँ को देखता ह िक वह िदनभर काम करती ह, खाना-पीना चलता ह, अ छ कपड़ पहनते ह, कभी
घूमने जाते ह, कभी िकसी पाट म, कभी छ य म घूमने तो कभी शािपंग क िलए जाते ह। ज मिदन या वषगाँठ पर
क मती भट दे दी जाती ह। बस, बात ख म। मन क कोई तालीम ही नह होती। यह बात जान ल िक हम ि़सफ शरीर से
नह जीते ह और अगर आपका मन कमज़ोर ह तो आप जीवन म परािजत ह गे। म जानती िक हारना िकसी को अ छा
नह लगता, पर िजस तरह से आप जी रह ह और अपने ब को तालीम दे रह ह, जीवन म वे पराजय का सामना
करगे। जानते हो य ? म आपको बताती ।
म ब त सार लोग से िमलती । म ऐसे सैकड़ लोग से िमली , जो एक समय पर ब त खुश थे। ब त सुखी थे।
बड़ा घर, अ छा कारोबार, अ छ ब े और अमे रकन टाइल से रहते थे। जहाँ िहदी बोलने म शम आती थी, पंजाबी,
िसंधी या गुज़राती बोलने म शम आती थी। मतलब अं ेज़ भी या अं ेज़ी बोलेगा, उससे भी बि़ढया अं ेज़ी बोलते थे।
सबकछ ब त अ छा चल रहा था। ब े कल म पढ़ रह थे, िफर वे कॉलेज म चले गए। ब े घर से बाहर रहने लगे।
पहले पढ़ाई क िलए और िफर नौकरी क िलए।
ऐसे ही एक प रवार को म जानती । थोड़ साल बाद म उस मिहला से िफर से िमली। ऐसे ब त से कस ह। उस
मिहला क बात पर वापस आऊ तो वह ब त दुःखी ह। मने उससे पूछा िक या आ? वह कहती ह िक बेटा नशीली
दवाइयाँ ले रहा ह। बेटी का पहले एक ेमी था, िफर दूसरा, उसक बाद तीसरा आया और वह भी चला गया। अब
चौथा आया ह। वह लड़क ब त परशान ह, िड ेशन म ह, मन असंतुिलत ह। वह कहती ह िक मुझे कोई ेम नह
करता, हर कोई मुझे इ तेमाल करता ह। वह 12 साल क थी, तब से उसक शारी रक संबंध शु हो गए थे। अभी वह
24 साल क ह। उसे शादी नह करनी, य िक उसे कोई अ छा र ता नह िमल रहा। उसक अपे ा िजसम पूरी हो,
ऐसा लड़का नह िमल रहा। वह लड़क पूरा िदन अपने कमर म पड़ी रहती ह। िसगरट पीती रहती ह, न द क गोिलयाँ
खाती ह, काम नह करती, नौकरी करने नह जाती। उस लड़क क माँ मेर पास रो रही थी िक म या क ? म िदन-
रात ई र से ाथना करती । या ई र एक माँ क ाथना सुनेगा?
यह िकतनी हा या पद बात ह! जब वे अपनी और अपनी बेटी क िज़ंदगी बरबाद कर रह थे, तब उ ह ज़रा भी
खयाल नह आया िक वे या कर रह ह। अब रोते ह, फ रयाद करते ह िक भगवान मेरी बात सुनता नह । भगवान या
कर? भगवान ने आपको िदमाग िदया था, पर आपने कभी इ तेमाल ही नह िकया। ई र ने आपको समझदारी दी, पर
आपने कभी उसका उपयोग नह िकया। भगवान ने इस पृ वी पर ऐसे य य का सृजन िकया, जो आपक मन को
तालीम देकर श शाली बनाने क िलए तैयार ह, लेिकन आप कभी उनक पास गए ही नह ।
कछ लोग तो ऐसे होते ह, िज ह संत श द सुनते ही जैसे िबजली का झटका लगता ह। कोई मुझे कह रहा था िक
उ ह ने अपने दो त से कहा िक गु माँ आई ह और उनका स संग ह तो आप आ रह हो न? उनक दो त ने कहा, ‘‘तेरा
िदमाग खराब हो गया ह, मेरा नह । म ठीक ।’’ दूसर एक स न क र तेदार को पता चला िक ये स संग म जा रह ह
तो सबसे पहला सवाल उ ह ने पूछा, ‘वे गणेश मंिदर म स संग कर रह ह तो या वे िहदू ह? दि ण भारत क िहदू ह या
उ र भारत क?क णभ ह, रामभ ह, िशवभ ह या देवीभ ?कौन ह वे?सगुण भ ह िक िनगुण, वेदांती ह िक
योगी, कौन ह? यह पहले बताओ।’ उस स न ने कहा िक मेर उस र तेदार ने मुझसे इतने सवाल-जवाब और इतनी
पूछताछ क और मुझ े उनक सार सवाल क उ र पता नह थे। मने उनको आपक वेबसाइट खोल कर दी, ऐसा
सोचकर िक उसे देखकर वे भािवत हो जाएँग।े लेिकन उस िदन वेबसाइट म मेरी जो तसवीर थी, उसम म काले रग क
कपड़ म थी तो उस य ने तसवीर देखकर कहा िक ‘अर, यह तो मुसलमान लगती ह। आप या इनक पास
जाएँग?े तु हारा िदमाग खराब हो गया ह या? तु हारा धम नह हो जाएगा?’
एक िसख स न कह रह थे िक मने अपने एक दो त को आपक गुरबानी क सी.डी.‘नानक आया’ सुनवाई तो उसे
सुनकर वह खुश हो गया और उसने सी.डी. का कवर देखने क िलए माँगा। उस कवर पर मेरा जो फोटो था, उसम मने
ितलक िकया था तो उसे देखकर वह कहने लगा, ‘‘यह तो िहदू लगती ह, यह िसख नह ह। म इ ह सुनने नह
आऊगा।’’
अजब बात ह यह भी! जब आप बीमार हो जाएँ और कोई आपसे कह िक अमुक य सबसे अ छा
कािडयोलोिज ट ह तो आप कभी नह पूछते िक वह कौन से धम का पालन करता ह? या कभी ऐसा पूछते ह?ऐसा पूछ
तो न कसा बेवक़फ भरा लगेगा?आप कभी नह पूछते ह िक वह िकस जाित का ह? अगर आप ऐसा पूछगे तो
आपक ऊपर मुकदमा हो सकता ह। जब आप िकसी क साथ िबजनेस करते ह, िकसी को सामान बेचते ह, आपक जो
ाहक ह, उनसे आप कभी नह पूछते िक म जैन , या आप भी जैन ह? तब तो आप ऐसा नह कहते िक हम ि़सफ
जैन धम क लोग को ही सामान बेचते ह और िकसी को भी नह । जब िबजनेस करना होता ह तो सब शम-संकोच एक
तरफ कर देते ह। कोई डॉ टर, वक ल या अकाउटट क पास जाते ह, तब तो आप उनसे उनका धम नह पूछते तो िफर
मुझसे मेरा धम कौन सा ह, ऐसा य पूछते ह?
मुझ े लगता ह िक यह सबसे बड़ी बेवक़फ और यह अतािकक सवाल ह। आपको या और कसे फ़क पड़ता ह िक
मेरा धम कौन सा ह? एक तरह से देखो तो मेरा म टीिडपाटमटल टोर ह—सू़फ , िहदू, जैन, बौ , िसख और
क युिन ट भी!
आपको यह जानकर आ य होगा िक एक सा यवादी नेता ने उ र देश क सारगपुर म मेरा स संग रखा था। इसक
वजह यह थी िक उन िदन म म कमयोग पर ब त ज़ोर दे रही थी और उसक बार म बात कर रही थी। म िन काम कम
क बात कर रही थी और उ ह वह बात ब त पसंद आई। मुझे पता नह उसक प ने इस बात को िकस तरह से िलया,
लेिकन उसने स संग का आयोजन िकया था। उस व़ यह बात ब त चचा म रही िक म उनक घर म कसे रह सकती
!
स य हमेशा स य ही रहता ह और स संग आपको साधन, माग, प ित और िववेकपूण जीवन जीने क श देता ह,
िजससे आप सजगता से और जाग क होकर िज़ंदगी जी सकते ह। इसम धम क बात बीच म कहाँ से आ गई? आनी
तो नह चािहए, पर कोई बात नह । म कहती िक आप िहदू ह तो चलो, कोई िहदू संत क पास जाना था। मने पहले ही
ब त िव तारपूवक समझाया ह िक संत श द का अथ या होता ह! संत माने वह य , िजसने स य का सा ा कार
िकया ह। जो िकसी जमाने म आपक िजतना ही मूख और अ ानी था, लेिकन बाद म उसने अपने ऊपर काम िकया और
गु क कपा और उनक मागदशन म वह य धीर-धीर उ त होता गया और एक ऐसी ऊचाई पर प च गया िक
वयं िद यता उनक ारा अिभ य ई।
धम का उससे कोई संबंध नह ह। आप िकसी भी धम क ह, आप काले ह या गोर ह, अगर आप एम.बी.बी.एस.
कर ल तो आपको पता ह िक शरीर का इलाज कसे करना ह। इसी तरह आपका संपक, सा य, संगत िकसी संत क
साथ होने लगे तो संत आपक मन को मज़बूत करने क सार रा ते िसखा देता ह।
मने िजस मिहला क बात क थी, िजसक बेटी पेरानोइड ह, मानिसक रोगी ह, उसक दशा पर मुझ े ि़सफ दया आती
ह और म कछ नह कर सकती। उस मिहला ने मुझ े कहा, ‘‘मने अपनी बेटी से कहा िक चल, म तुझे गु माँ क पास ले
जाती , लेिकन मेरी बेटी आने को राज़ी नह ह। अब आप ही कछ क िजए।’’
मने कहा, ‘‘नह भाई, हम कछ नह कर सकते। म अपने आपको उसक ऊपर थोप नह सकती। म ऐसा नह कर
सकती।’’
कोई य मेरी पूजा कर, ऐसी मेरी कोई अपे ा नह ह। ऐसी बेवक़फ कोई कर, ऐसा म नह चाहती, लेिकन हाँ,
मेरी अपे ा ि़सफ इतनी ह िक उस य को कछ जानने क िज ासा होनी चािहए। म ऐसा भी नह कहती िक कोई मेरा
आदर कर। म आपसे स मान भी नह चाहती। मेरी आपसे ऐसी अपे ा भी नह िक आप मुझे अपने े या महा िगन,
लेिकन हम इतना तो ज़ र चाहते ह िक आपक अंदर जानने क इ छा हो।
आपक अंदर जानने क , सुनने क इ छा ई, इसिलए तो आप यहाँ आए ह। मुझ े इस बात का आनंद ह िक आप इसे
पढ़ रह ह। मुझे ब त स ता ह िक म आपक साथ बात कर रही , लेिकन िज ह इ छा नह , उ ह आप मुझे ान देने
क िलए कह, यह तो अ छी बात नह ह। म ऐसे ब को, ऐसे लोग को देखती िक खाने को ब त ह, पैसा भी ह,
घर, मकान, कार सबकछ ह; लेिकन िफर भी एक चीज़ गायब हो चुक ह और वह ह मन का िव ाम। उनक पास मन
क शांित नह ह। अजब बात यह ह िक जब िकसी य क ऐसी दुदशा हो जाती ह तो या उसका प रवार उसक
मदद कर पाएगा? हालत यादा खराब हो गई तो िकसी सं था या पागलखाने म भरती कर देगा। वे भी या कर सकते
ह? रोते भी ह और अ पताल म भेजते भी ह। अगर आपका मन श शाली नह ह, अगर आपका मन जाग क नह ह
तो आपक जीवन म ई छोटी-से-छोटी दुघटना या दुःख आपको इतना भारी पड़ सकता ह िक आप अपना मानिसक
संतुलन गँवा दगे।
म एक यूरोलोिज ट डॉ.डिनयल क िकताब पढ़ रही थी। उसम डॉ. डिनयल ने कहा ह िक म अभी तक िकसी
सामा य इनसान से िमला नह , य िक िज ह म सामा य समझता था, उनक िदमाग को मने कन िकया तो मुझ े पता
चला िक िकसी का शंख पािल (temporal lobe) , िकसी का उपव कटीय तं (limbic system) बराबर काम नह कर रही
थी। देखो, िजनका मूड बार-बार बदलता रहता ह, माने अभी गु सा, अभी शांत, अभी ब त बोल रहा था, अभी िब कल
चुप। िजनका मूड इस तरह बदलता रहता ह तो मतलब उनक उपव कटीय तं (limbic system) म ि़द कत ह। कोई
इनसान अगर ब त यादा गु सा करता हो या ब त गािलयाँ बोलता हो तो समिझए िक उसका बायाँ शंख पािल
(temporal lobe) ठीक से काम नह कर रहा ह। कोई इनसान अगर एक ही गलती बार-बार दोहराने क बाद भी नह
सीखता तो इसका मतलब उसक िदमाग का आगे का िह सा (frontal lobe) ठीक से काम नह कर रहा।
डॉ. डिनयल क पं ह सौ प े क पु तक म उ ह ने अलग-अलग िवकितयाँ और बीमा रयाँ ठीक करने क उपाय
बताए ह। उसम कछ रोगी और कछ दवाइय क बात क ह। हालाँिक डॉ. डिनयल यादा दवाइयाँ देने क प म नह
ह और कहते ह िक अगर दवाई देनी ही पड़ तो भी ब त कम मा ा म देनी चािहए। आपको आ य होगा, पर वे सबसे
यादा अगर िकसी बात का सुझाव देते ह तो वह ह योग!
यह गोर रग का आदमी कहता ह तो आप उसे यान से सुनते ह। हज़ार डॉलर क फ स देकर उससे िचिक सा लेने
जाते ह। यहाँ म वह ही बात मु़ त म दे रही । वे आपको या सुझाव देते ह िक योग कर, एरोिब स कर, बाग म एक
घंटा सैर कर। ये यूरोलोिज ट बार-बार इस बात पर ज़ोर देते ह िक िकसी भी िक म का यान कर। झेन या तायची या
िफर योग, कोई नृ य सीखो, संगीत सुन। वह इस तरह अपने पास आनेवाले मरीज़ का इलाज करता ह। इस डॉ टर का
कहना ह िक उसने 30,000 अमे रकन क िदमाग क जाँच क ह, उसम से कम-से-कम 10,000 लोग ऐसे थे, जो
सामा य िदख रह थे, लेिकन जब जाँच क तो पता चला िक उनका िदमाग ठीक से नह काम करता था। जब िदमाग ही
बराबर काम न कर रहा हो तो मन कसे ठीक से चलेगा? जब मन सही नह चलेगा तो यवहार म सम या होगी।
अब म आपसे एक न पूछती िक जब आप दुःखी होते ह या िकसी बात पर िकसी से झगड़ा हो गया तो सीधे
मॉल प च जाते ह या गहन क दुकान पर और कछ खरीददारी करक, पैसा खच करक ब त अ छा लगता ह? लगता
ह अब ठीक ह, अब घर जाते ह। स संग म पित-प नी साथ बैठ ह तो मेर ऐसे कहने से एक-दूसर क सामने देखते ह
और पित इशार से कहता ह, देख, तेरी ही बात कर रही ह! एक बार एक स संग म मेरी ऐसी ही कोई बात पर पित ने
प नी क तऱफ देखकर इशारा िकया तो प नी ने ज़ोर से चुटक काटी िक चुप करक बैठ!
मने देखा ह िक िजस िदन पितय क बार म कछ कड़ी बात बोलती तो मिहलाएँ ब त खुश हो जाती ह और िजस
िदन औरत क बार म ऐसा कहती तो सार पित ब त खुश हो जाते ह, य िक उ ह लगता ह िक गु माँ क अलावा
कोई इन प नय को कछ कह नह सकता।
एक बार ऋिषकश क मेर िशिवर म गु दासपुर से एक पित-प नी आए थे। मने मौन रहने क बात क थी। उस शाम
को हम सब बैठ ए थे तो उस स न ने मुझसे कहा, ‘‘गु माँ, म तो हरान !’’
मने पूछा, ‘‘ य , या आ?’’
वह कहता, ‘‘मेरी जनानी आज मौन रही। वरना वह तो इतना बोलती ह, इतना बोलती ह िक कोई उसे चुप नह करा
सकता; लेिकन आज आपने उसक मुँह पर ताला लगा िदया।’’
मने कहा, ‘‘यह तो अ छी बात ह न!’’
वह कहता, ‘‘नह जी, मुझ े िफ इस बात क हो रही ह िक जब घर वापस जाएँग े तो चालू हो जाएगी, इसिलए थोड़
िदन अपने पास ही रख ल।’’
मने कहा, ‘‘मुझे तो कछ िदन उसे अपने पास रख लेन े म कोई एतराज़ नह , लेिकन िफर उसने अगर घर वापस आने
से इनकार कर िदया तो तू या करगा?’’
यह सुनकर और एक स न बोल पड़, ‘‘वह तो खुश हो जाएगा।’’ लगता था िक वह भी दुःखी था अपनी प नी से
और शायद ऐसी उ मीद क साथ सोच रहा था िक खराब प नी चली जाएगी तो कोई नई ले आएँगे। लेिकन आपको नह
पता िक लेबल अलग होते ह, बाक सबकछ एक सा ही िमलेगा। तो इस धोखे म मत रह।
आपक मन क अगर तालीम नह ई ह तो ऐसा ही होगा। सौ बार दुःख सह कर भी संसार क सुख क इ छा तो वैसे
क वैसी ही रहगी। अपनी आँख क सामने लोग का िदवाला िनकलते देखने क बाद भी खुद क कारोबार और भिव य
क बार म आयोजन क भ य और सुनहर सपने चलते ही रहते ह।
जीवन म हमेशा सुख नह रहगा, जीवन म हमेशा दुःख भी नह रहगा। हर िदन क अंत म रात ह, हर रात क अंत म
िदन ह। इन बात को आप मुझसे सुन रह ह और म उ मीद करती िक समझ भी रह ह। सोचो, अगर यही बात
आपको अपनी बा याव था या युवाव था म िकसी ने िसखा दी होती िक जो कछ देख रह ह और जो कछ िदख रहा ह,
वह स य नह ह, खेल ह, माया ह, म ह। यह भी अजब बात ह िक ांित हमेशा ह़क ़कत लगती ह, इसीिलए हम उसे
ांित कहते ह। ांित का अथ ही यह ह िक जो स य जैसा लगता ह, पर स य नह ह। होता ह अस य, पर लगता ह
स य जैसा, उसे सं कत म ‘माया’ कहते ह। सोचकर देखो िक आज इस उ म आप यह सब सुन रह ह, सीख रह ह
सुिमरन करना, योग, यान करना। अगर यह सब बचपन म शु हो जाता, तो आपक िलए िकतना बेहतर होता!
आ म म युवा िशिवर म मेर पास छोट-छोट ब े आते ह। वैस े युवा िशिवर म आयु सीमा 12 साल क ह, लेिकन जो
प रवार मेर साथ जुड़ ए ह, वे िवनती करते ह िक कपा करक हमार छः साल क ब े को भी शािमल कर ल। आपको
सुनकर आ य होगा िक छः साल क लड़क युवा िशिवर म आई थी और उसने कहा िक म अपने बड़ भाई और बड़ी
बहन क साथ आ म म र गी। उसने माँ से कहा िक आप घर जाएँ, म यहाँ भाई-बहन क साथ र गी। वह छः साल क
लड़क युवा िशिवर म शािमल ई और आप मानगे नह , लेिकन वह लड़क थर और शांत होकर बैठती थी। अगर
आप मेरी वेबसाइट पर जाएँग े तो वह वीिडयो देख पाएँगे, जहाँ वह छः साल क लड़क युवा िशिवर म िह सा लेन े क
अपने अनुभव का बयान कर रही ह। जो वह कह रही ह, वह इतना स तापूण ह, य िक इतनी छोटी ब ी क मुँह से
ऐसी बड़ी-बड़ी बात सुनकर हसी भी आती ह और ता ुब भी होता ह। उसने वीिडयो म कहा ह िक आई लव डइग
योगा, आई लव डइग मेिडटशन(मुझे योग करना अ छा लगता ह, मुझ े यान करना अ छा लगता ह।) और वह बोलती
ही जाती ह, बोलती ही जाती ह। वह अपना आनंद अिभ य कर रही ह। जब म इन ब को ये सुंदर बात सीखते
देखती , तब मुझ े य़क न होता ह िक ये ब े बड़ होकर प रपूण य बनगे।
ये ब े सुबह ज दी उठना सीख रह ह, शांत बैठना सीख रह ह, जप कसे करना ह, यान क ारिभक तैयारी जैसे
िक ाटक कसे करना ह, योगासन कसे करना ह, और िवशेषतः मानव जीवन हम य िमला ह, ये बात समझ रह ह।
हम अपने अ ान को दूर करक अपने मूल व प को जान सक और वा तव म हम कौन ह, यह सब समझ रह ह।
आठ साल क एक ब ी ने मुझसे एक सवाल िकया था। उसक प रवार क लोग उसे लेकर आए थे। प रवार क
लोग ने कहा िक यह लड़क कहती ह िक मुझ े गु माँ से एक सवाल पूछना ह। यह सवाल उसने अपने घर क लोग से
बार-बार पूछा था, लेिकन वे उस सवाल का जवाब नह दे पाए, इसिलए मेर पास आए थे।
मने कहा, ‘‘पूछ बेटा, या पूछना ह?’’
उसने पूछा, ‘‘जब कोई मर जाता ह तो वह कहाँ जाता ह और जब कोई ब ा पैदा होता ह तो वह कहाँ से आता ह?
हम सब कहाँ से आए ह और मरने क बाद कहाँ जाएँग?े ’’
आठ साल क लड़क ने यह सवाल पूछा था। अब आ ऐसा िक उसक घर म उसक दादी क मौत ई थी। उसने
दादी क लाश देखी। जो दादी बोलती थी, हसती थी, उसक पीछ भागती थी, िखलाती थी, लाड़ करती थी, वे ज़मीन पर
पड़ी थ । उनक ऊपर सफद चादर डाली ई थी और सब लोग रो रह थे। उस छोटी सी ब ी क समझ म नह आ रहा
था िक आ या ह? थोड़ िदन तो सब लोग उसे कहते रह िक दादी गु माँ क पास गई ह, लेिकन वह कहने लगी िक वे
गु माँ क पास गई ह तो मुझे भी वहाँ ले चलो। म दादी से िमलूँगी। मुझ े दादी क ब़गैर अ छा नह लग रहा।
मुझ े जब इस बात का पता चला तो मने कहा िक आपको ऐसा नह करना चािहए। आप उस ब ी से झूठ य बोल
रह ह? आप उस ब ी को उ मीद दे रह ह िक उसक दादी शरीर से जीिवत ह और वे उससे िमल पाएँगी। जब उसक
घर क लोग ने उससे कहा िक दादी मर गई ह तो उस लड़क ने पूछना शु कर िदया िक दादी मरकर कहाँ गई और
मुझ े बताओ िक म कहाँ से आई और म कब म गी? य िक दादी कब मर , पता नह चला। रात सोई और सुबह
पता चला िक िब तर म ही मर गई।
उस ब ी को कछ समझ म नह आ रहा था, इसिलए उसे मेर पास लेकर आए। मने उसक साथ बात क । जब वह
मुझ े िमलने आई, तब संयोगवश वह अपने हाथ म एक गुि़डया लाई थी। मने कहा, ‘‘ला, ज़रा तेरी गुि़डया तो देख!ूँ यह
ब त सुंदर ह। अ छा, अब बता िक तू इसे कहाँ से खरीदकर लाई?’’
उसने कहा, ‘‘दुकान से।’’
मने कहा, ‘‘अब यह बता िक तेरी गुि़डया बात य नह करती?’’
उसने कहा, ‘‘यह तो अंदर से खाली ह। उसक अंदर कछ ह ही नह तो बोलेगी कसे?’’
मने कहा, ‘‘यह िकससे बनी ह?’’
उसने कहा, ‘‘ ला टक और रबड़ से।’’
मने कहा, ‘‘जैसे यह गुि़डया ला टक और रबड़ से बनी ह, उसी तरह तू भी एक गुि़डया ह, लेिकन तू पंचत व से
बनी ह—पृ वी, जल, अ न, वायु और आकाश। इन पाँच त व से तेरा शरीर बना ह। यह गुि़डया का शरीर तो एकदम
खाली ह, लेिकन तु हार शरीर म ब त सार अंग ह, नस-नाड़ी ह और ये सार अंग कायरत ह।’’
आठ साल क यह लड़क बात समझ रही थी। िफर मने उसे पूछा, ‘‘कार कसे चलती ह?’’
उसने कहा, ‘‘उसम पे ोल होता ह और जब हम उस म चाबी लगाते ह तो वह चलती ह।’’
मने कहा, ‘‘पे ोल नह होगा तो नह चलेगी न? बस, उसी तरह से हमार शरीर म भी ाण पी पे ोल ह, िजससे
हमारा शरीर चलता ह। िजस िदन ाण ख म हो जाते ह, उस िदन शरीर चलना बंद हो जाता ह। तो तु हारी दादी क शरीर
म जो ाण थे, वे ख म हो गए।’’
उसने मुझे कहा, ‘‘गाड़ी म पे ोल डालते ह तो गाड़ी चलती ह तो या आप मेरी दादी क शरीर म ाण नह डाल
सकते?’’
मने कहा, ‘‘नह , ाण का कोई पे ोल-पंप नह होता। हमार शरीर म जो ाण ह, वह उतने समय तक रहगा, जब
तक कम का दबाव उसे ध ा मारता रहगा।’’
आठ साल क लड़क को मेरी बात समझ म आ रही थी। तब से वह मेर पास आती रहती ह, मुझ े सुनती ह और
समझकर हण करती रहती ह। आपको शायद पता नह िक आप कहाँ से आए ह, पर वह आठ साल क लड़क
जानती ह िक वह कहाँ से आई ह! ये सारी बात जानने क िलए आप िकतना यास करते ह? आपने अपना जो घर
बनाया ह, उसे बनाने क िलए आपने िदन म दस-बारह घंट कमरतोड़ काम िकया ह। अ़ लगाई, योजना बनाई। एक
नौकरी क बाद दूसरी नौकरी। एक कारोबार क बाद दूसरा कारोबार। िफजूल खच नह िकए, पैसे बचाए और अपने
िलए धीर-धीर मकान बनाया, बक म पूँजी जमा क । खुद क िलए और ब क िलए आयोजन िकया। यह इतना करने
क िलए आपने िदन क िकतने घंट और िकतने साल तक काम िकया? लेिकन मुझे यह बताएँ िक अपने मन को मज़बूत
करने क िलए, मन क अ ान को दूर करने क िलए आपने या िकया? कछ भी नह ।
हम इतने समय बाद यहाँ अमे रका आए ह और िफर चले जाएँग।े आप मज़े से अपनी िज़ंदगी जीते रहगे, िबना िकसी
अ़फसोस क, िबना िकसी दुःख क, लेिकन यह जो आपका सुकन ह, वह िन य नह ह, य िक एक झटका दुःख का
आएगा तो आपका सुकन, चैन सब उड़ जाएगा। शरीर कमज़ोर हो, पर मन मज़बूत हो तो चलेगा; लेिकन मन कमज़ोर
हो और शरीर मज़बूत हो तो नह चलेगा।
सुख कौन महसूस करता ह?आपका मन। दुःख कौन महसूस करता ह?आपका मन। खुशी कौन महसूस करता ह?
आपका मन। उदास कौन होता ह?आपका मन। डर कौन महसूस करता ह?आपका मन। आपने कभी अपने मन म
कसे-कसे और िकतने डर ह, या उसक ऊपर नज़र डाली ह? नह डाली। आपको आपक शरीर क ब त िफ ह, पर
वह ि़सफ खाने-पीने तक ही सीिमत ह, इससे यादा नह ह। आपक शरीर म दो इि याँ सबसे यादा सि य ह। बाक
क इि याँ काम करती ह, पर इन दो इि य क सुख क िलए आप ब त कायरत रहते ह। आप पैस े इसिलए कमाते ह
िक इन इि य क भोग को भोग सक। इन दो म से एक इि य ह जीभ। बोलते ब त ह, खाते ब त ह और खाने क बार
म ब त यादा सोचते ह। अब खाना ह तो खाने क िलए कमाने क बार म सोचना पड़गा। जीभ का काम या ह?
बोलना और वाद लेना।
दूसरी एक इि य, जो सबसे यादा कायरत ह, वह ह आपक लिगकता (sexuality) । से स क भूख सबसे यादा
और सबसे यादा भोग। से स क सपने देखते रहते ह। वह आपक सारी ऊजा छीन लेती ह। 80 साल क आदमी ने
मुझसे एक न पूछा था। उसने पूछा था िक अब म बूढ़ा हो गया तो मुझ े प रप होना चािहए और उसी तरह से
यवहार करना चािहए, लेिकन आज भी म िकसी ी को देख ूँ तो मेरी नज़र उसक तन देश से हटती नह ह। म वहाँ
देखता रहता और म शिमदगी महसूस करता , लेिकन अपने आपको रोक नह पाता। म िकसी मिहला को देखता
तो मुझम कामुकता जागती ह। यह आदमी ब त ईमानदार था और उसने इस बात को वीकार िकया। वह मुझसे पूछ
रहा था िक म इससे मु कसे होऊ?
मने आपसे कहा था िक म गु नह , म िचिक सक । आप मेर साथ अपने िकसी भी रोग या बीमारी क बार म
बात कर सकते ह। अपनी िकसी भी कमी क बार म बात कर सकते ह। म आप पर आपक डॉ टर, मानसिचिक सक
या मनोवै ािनक से बेहतर काम कर सकती ।
वह बूढ़ा आदमी मुझसे कह रहा था िक इस उ म मुझे यान करना चािहए, ई र का िचंतन करना चािहए; लेिकन
मेरा मन ी म अटका रहता ह। म से स क बार म ही सोचता रहता । मुझे उसी क सपने आते ह। यह सब आपको
बताने म म शिमदगी महसूस करता , य िक शरीर 80 साल का हो गया ह। म रीढ़ क ह ी सीधी करक थर बैठ
नह पाता , छड़ी क ब़गैर चल नह पाता और िफर भी मेरा मन मुझे उसी िदशा म धकलता ह। मुझे इस थित से
बाहर आने क िलए या करना चािहए?
आपक ये दो इि याँ सबसे यादा वृ ह। बाक सब ि़सफ इन दो इि य को सहकार देती ह। जो कछ खाना ह,
उसे देखगे, तभी तो खाएँग े न! देखगे तो खाने क इ छा होगी। िकसी को देखगे तो उससे बात करने क इ छा होगी।
इसी तरह िकसी को देखगे तो उसक ित आपको आकषण होगा। यानी आँख तो आपक जननि य और जीभ क ि़सफ
मदद करती ह। इसी तरह आपक नाक आपक आँख क मदद करती ह, आपक जीभ क मदद करती ह। आप रसभर
फल देखते ह, उसक खुशबू लेते ह या आइस म देखते ह तो आपको खाने क इ छा जागती ह। उसे खरीदकर आप
खाते ह। उन चीज़ का वाद लेकर िफर आप अपने दो त को बताते ह िक वाह, उस जगह या बि़ढया खाना िमलता
ह। िफर वे कहते ह िक हम भी अगली बार वहाँ खाने जाएँग।े ये दो इि याँ आपक सार पैसे, श और सोच पर क ज़ा
जमा लेती ह। देिखए, हर चीज़ अपने समय, जगह और ज़ रत क मुतािबक हो तो अ छी ही ह।
अब म िजस िवषय पर बात करने जा रही , उसे सुनकर मेहरबानी करक च क मत जाइए। यह सबसे आव यक
और मह वपूण िवषय ह। खाना बुरा नह ह, लेिकन आपको पता होना चािहए िक कब खाना और िकतना खाना चािहए।
खाना पाप नह ह। मनु य ह, शरीर ह, पेट ह, ाण ह तो भूख तो लगेगी। खाना खाएँ, लेिकन खाने क बार म सोचते ही
रहते ह, यहाँ गड़बड़ ह। इसी तरह से स बुरा नह ह, लेिकन से स क बार म सोचते ही रह तो गड़बड़ ह।
पूरी दुिनया म भारत इकलौता ऐसा देश ह, जहाँ संबु , बु , जाग क िव ा ऋिषय ने, आम आदमी ने नह ,
ऋिषय ने ऐसे मंिदर का सृजन िकया, िजन मंिदर म ी-पु ष क अंतरग संबंध को िदखाया गया ह। िफर वह खजुराहो
हो या सूय मंिदर या िफर महारा क अजंता-एलोरा क गुफाएँ ह । इन मंिदर म आप िजतनी भी मूितयाँ देखते ह, ये
बनानेवाले संत थे, ऋिष थे, साधक थे। खजुराहो क मंिदर क अंदर िशविलंग ह, िशवालय ह; लेिकन मंिदर क बाहर
क दीवार पर ी और पु ष अपनी मै ी और अंतरग संबंध म रत ए िदखाई देत े ह। ह न यह अजब बात! दुिनया क
िकसी धम, िकसी देश, िकसी सं कित म आपको यह चीज़ देखने को नह िमलेगी। हमार भारत क मनु य ने कहा िक
मानव जीवन चार उ े य क ा क िलए ह—धम, अथ, काम और मो । सभी मनु य को इन चार चीज़ क ा
क िलए यास करना चािहए।
सबसे पहला ह—धम। अब देख ल आप लोग ने धम को बूढ़ क साथ जोड़ िदया ह। या िफर दुःखी हो जाएँ तो धम
क बार म सोच। जवान ह, ब े ह तो पढ़-िलख, पैसे कमाएँ, ऐश-ए याशी कर। धम या होता ह? अपने स संग म म
देखती िक यादातर मेर सामने जो लोग बैठ होते ह, उनम म उनक ब को नह देखती। यह अजब बात ह। इन
ब को तालीम िमलनी चािहए, लेिकन वे वहाँ होते नह ह। पूरी िज़ंदगी उलट-सीधे तरीक क साथ जीने क बाद जब
40-45 क होते ह, तब धम-स संग क ओर यान जाता ह, लेिकन तब तक मन म इतना कचरा भर चुका होता ह िक
उस कचर को िनकालने म ब त मेहनत लग जाती ह।
ऋिषय ने कहा िक मानव जीवन क चार ल य ह। सबसे पहला—धम। धम मायने िहदू, जैन, ईसाई या इसलाम नह ;
इनसान का कितद वभाव, मूलभूत वभाव। हर एक य को अपने धम, यानी वभाव को जानना चािहए। धम
का अथ ह कित क काय णाली को समझना। हमार आस-पास क कित, हमारा अपना शरीर, मन, म त क िकस
तरह से काम करता ह, उसक समझ होनी चािहए।
दूसरा ह—अथ, यानी पैसा और उसका शा , िजसे हम अथशा कहते ह। आप यापारी ह या नौकरी करते ह, इस
बात क िलए कभी शम या संकोच का अनुभव मत कर। वह ि़सफ आपका काम नह ह, अिपतु आप अपने जीवन क
एक ल य को पूरा कर रह ह। धन आपको व तु को खरीदने का और उसका उपभोग करने क साम य और मता
देता ह। ये सार भोग भोगने क बाद ही आपम िववेकपूण समझ आने क संभावना रहती ह िक ये सारी भौितक व तुएँ
णभंगुर ह, नाशवान ह, अिन य ह, प रवतनशील ह।
मानव-जीवन का तीसरा ल य ह—काम। काम मतलब कामनाएँ, इ छाएँ। से स क इ छा, पैसा, ित ा, क ित
व़गैरह क कामनाएँ। देख, हमार ऋिषय क समझ िकतनी गहन ह! वे कह रह ह िक मानव-जीवन इन सारी इ छा
क पूित क िलए भी ह, और िआ़खरी ल य ह मो । मो अथा मु , परम गित।
अब आप खुद को देख िक आप कसे जी रह ह? अभी आप ि़सफ अथ और काम क िलए ही जी रह ह। धम तो
िदखावे क िलए रह गया ह। एक जमाने म हम मज़ाक करते थे िक ईसाइय को गॉड ि़सफ रिववार को ही याद आते ह।
अब यही बात िहदू, िसख, बौ सब क िलए लागू होने लगी ह। जब उनक पास करने को कछ नह होता, तब वे
धम थान पर जाते ह। धम थान पर यादातर समय मेला ही लगा रहता ह। थोड़ समय क िलए मं ो ार या पुराण या
कथा पढ़ना-सुनना होता ह, उसक बाद खाना-पीना, बात करना, लड़ाई, ब क िलए वर या क या ढढना चलता रहता
ह। दूसर श द म कह तो धम थान एक तरह से सोशल ब हो जाते ह। ऐसी सभा म धम नह होता। जीवन का
आधार तो धम होना चािहए।
यह शरीर, िजसक साथ आपको आपका जीवन जीना ह, उसक ित आपक कोई िज़ मेदारी नह ह? इस शरीर को
व थ रखने क तीन विणम िनयम आपको देती । अगर आप इसे अपने जीवन म लाएँगे तो म दावे क साथ कहती
िक आप लंबा और व थ जीवन पाएँगे।
सबसे पहला िनयम, सूय दय क पूव जाग और योगासन कर। सूय नम कार, प मो ासन, जानुशीषासन,
अधम ये ासन, सवागासन, भुजंगासन, मंडकासन बस इतना ही कर। यादा नह । इसे करने म लगभग 45 िमनट
लगगे। अगर आप इतने आसन करते ह तो आपको कभी कध म दद, कमर या पीठ का दद, पाचन णाली म ि़द कत,
िसरदद नह होगा। इतना करगे तो र चाप क बीमारी नह होगी। इन आसन क अ यास से इन बीमा रय से आपका
र ण होगा।
दूसरा विणम िनयम ह—रीढ़ क ह ी सीधी करक बैठ और ाणायाम कर। ाणायाम क साथ मं -जप कर।
आपने िकसी गु से मं नह िलया ह? कोई ि़द कत नह ह। ‘ओ३ ’ वै क मं ह और उसका जप कोई भी और
कभी भी कर सकता ह। मं क साथ जो ाणायाम िकया जाता ह, उसे ‘सगभ ाणायाम’ कहते ह। मने पहले भी कहा ह
िक मं िकसी अ य देवी-देवता को स करने क िलए नह करना ह। मं -जप का अथ ह िक आप ऐसी विन तरग
को उ प करते ह, जो आपको श , वा य, जीवन जीने क ऊजा दान करती ह। मं क इस विन-तरग क
वजह से आपक हॉम नल णाली संतुिलत रहती ह। या आपको यह सब नह चािहए? या आप खुद क ही दु मन ह?
अगर ऐसा नह ह तो यह सब आप य नह सीखते?
एक ने कहा िक हम तो पचास साल क आयु पार कर चु़क ह। अ छा, अगर आप पचास पार कर चु़क ह और
आपको यह ान हो गया ह तो कम-से-कम दुिनया क दौड़ बंद कर द। लेिकन वह आपसे नह होता। अभी तो पैसे
कमाने क , माल बनाने क दौड़ म ज़ोर से लगे ए ह। लेिकन योगासन सीखने क बात आती ह तो कहते ह िक अब
योगासन सीखकर या होगा? हम तो पचास क हो गए ह, मृ यु क करीब प च गए ह! अगर आपको लग रहा ह िक
आप जीवन क अंत तक प च गए ह तो भीतर से वैरा य उ प होना चािहए। वैरा य साधना का आधार ह। अगर
आपको ऐसा लगने लगा ह िक अब जीवन और िकतने िदन, तो यह तो ब त अ छी बात ह।
ाणायाम का मतलब या ह? ाण मायने वह श , िजससे आपका शरीर काय कर रहा ह, वह श , िजससे
आपका मन और शरीर एक-दूसर क साथ जुड़ ए ह। ाण वह श ह, िजसने मन और शरीर को एक पुल क तरह
जोड़कर रखा ह। एक तऱफ शरीर ह, दूसरी तऱफ मन ह और म य म ह— ाण। िजस िदन मन और शरीर क बीच से
ाण िनकल जाएगा, शरीर िगर जाएगा। िम ी हो जाएगा। िजसे हम मृ यु कहते ह, वह मृ यु या ह? शरीर का
ाणरिहत हो जाना। अब िजस ाण क कारण आपका शरीर चल रहा ह, काय कर रहा ह, या आपको उस ाण को
समझना नह चािहए? सोचो, अगर आपको आपक ाण क समझ आ जाए और वह उसे िकस तरह से चलाता ह, उस
काय-प ित का ान हो जाए तो आप अपने शरीर क िनयं क हो जाएँग।े
मुझ े एक डॉ टर िमले थे। उ ह ने कहा िक िपछले साल मुझ े हाट अटक आ गया। मने कहा, ‘‘लो, कर लो बात!’’
पंजाबी म कहते ह िक या छोले िखलाकर पास हो गया था? मतलब र त देकर पास आ था?
इस डॉ टर ने कहा, ‘‘ओपन हाट सजरी करवानी पड़ी, तब जाकर मेरी जान बची। 100 ितशत अवरोध था।’’
मने कहा, ‘‘तू िकतना बेवक़फ ह! आप दूसर का इलाज करते हो, लेिकन खुद ही बीमार हो और तु ह उस बात का
पता भी नह था! अपने खुद क शरीर का ही आप िकतना अनादर करते हो!’’ कोई आपको थ पड़ मार या उ ू कह तो
बुरा लगता ह। उ ू श द पर से याद आया िक मु ा नस ीन अपने बेट को डाँट रहा था, ज़ोर-ज़ोर से गाली दे रहा
था। उसक गािलय क आवाज़ सुनकर उसक पड़ोसी शमाजी यह देखने मु ा क घर गए िक या हो रहा ह? मु ा
य इतनी गािलयाँ दे रहा ह? उ ह लगा िक म जाकर मु ा को समझाऊ। शमाजी वहाँ प चे तो उ ह पता चला िक
मु ा का बेटा दसव जमात म तीसरी बार फल हो गया था। मु ा ब त गु से म था और बेट से कह रहा था, ‘‘उ ू
क प !’’
शमाजी ने कहा, ‘‘मु ा, तुझ े अ़ भी ह, तुझे समझ म आ रहा ह िक तुमने अपने बेट को या बोला?’’
मु ा गु से म था, ‘‘िजसे समझ म आ रहा हो, उसी को यह गाली लगे। म तो गु से म और अपनी भड़ास
िनकाल रहा । समझने का मने ठका नह िलया ह।’’
आप अपनी गाड़ी समयानुसार मर मत करवाते ह, अपने वॉटर िफ टर क , एयरकिडशनर क मर मत अथवा स़फाई
िनयिमत प से करवाते ह तो आपक शरीर क सिविसंग भी करवानी चािहए! 35 वष म यादा ही कह रही ,
आजकल तो 32 साल क उ म भी हाट-अटक आते ह। वा तव म 25 साल क बाद हर साल शरीर क जाँच करवानी
चािहए। कॉले ोल, शुगर, इ यूिलन क तर क जाँच करवानी चािहए। जब आप अपने ये सारी रपोट देखगे, तब
आपक आँख खुलगी और आप अपने शरीर क देखभाल करने लग जाएँग।े अभी तो आप िबना सोचे-समझे गोिलयाँ
लेत े रहते ह। िसर दद हो रहा ह तो गोली खाते ह, कमर, पेट दुःखता ह तो गोली खाते ह। कछ नह दुःखता, इसिलए
गोली खाते ह, य िक गोली खाने क आदत हो गई ह। दवाइय क सहार शरीर को चला रह ह तो वह अ छी बात नह ।
मने दो िनयम कह और इन दो िनयम का आप पालन करने लग गए तो आपका शरीर रोगी हो ही नह सकता। जो
लोग योगासन करते ह, ाणायाम और मं -जप करते ह उनका शरीर हमेशा अ छा चलता ह, उ म रहता ह।
तीसरा विणम िनयम ह— ेम कर। म कामुक ेम क बात नह कर रही। हालाँिक आपका िदमाग वह जाता ह। मने
कहा था न िक आपक वह एक इि य ब त सि य ह। ेम कर और ेम को उसक पिव ता क साथ, पूरी स ाई और
पारदिशता क साथ आप ि़सफ अपने गु क साथ अनुभव कर सकते ह। ऐसे गु क साथ, िजसका आप म कोई वाथ
नह ह।
देखो, पित-प नी म या होता ह िक अगर पित अपनी प नी को ेम कर तो वह खुश होती ह और प नी ेम कर तो
पित खुश होता ह। पित ब त मेहनत करक, पैसा कमाकर महगे ज़ेवरात लाए, तब प नी ब त खुश होती ह। पर पर
लेना-देना हो रहा ह, िकसी को कछ िमल रहा ह और िकसी का कछ जा रहा ह।
सुरश एक िदन शाम को घर लौटा तो उसने देखा िक घर म ब त अ छी सज़ावट क ह, फल सज़ाए ह, मोमब ी
जलाई ह, काँच क बि़ढया बरतन, बोन चायना क लेट लगी ह। खाने क बि़ढया खुशबू आ रही ह और खुशबू से ही
उसक समझ म आ गया िक उसक मनपसंद स ज़ी पनीर पसंदा बनी ह। वह वह क गया। इसक िदमाग म खतर क
घंटी बजने लगी। उतने म प नी बाहर आई। प नी ने सुंदर कपड़ पहने थे और सजी ई थी। सुरश डर गया। उसक मन
म िवचार आया ‘दुगना खतरा!’
प नी ने कहा, ‘‘बाहर य खड़ हो?’’
सुरश बोला, ‘‘पहले बता िक तेरी या फरमाइश ह? उसक बाद ही म अंदर आऊगा, य िक तूने यह जो जाल
िबछाई ह, उस जाल म अब मछली फसनेवाली नह ह। पहले ब त बार फस चुका । पहले बता दे तेरी फरमाइश या
ह? यह जानने क बाद ही अंदर आऊगा और नह तो यह से भाग जाऊगा।’’
भाई-भाई क संबंध म, ेमी- ेिमका क संबंध म आपस म लेन-देन होता ह। ऐसे संबंध होते ह िक आप मेरी पीठ
खुजाएँ और म तु हारी पीठ खुजाऊ और अगर तुम मेरी शंसा नह करते, म तु हारी खुशामद नह करता। ि़सफ शािगद
और मुशद, यानी िक गु और िश य क बीच पर पर लेन-देन नह होता। वहाँ तो गु ि़सफ देता ह और िश य ि़सफ ले
रहा ह। लेन े क बाद िश य अगर गु को गािलयाँ दे, िफर भी गु तो आनंद म ही रहता ह। गु को तो गाली भी मं र
ह।
आप शायद नह जानते, लेिकन कछ गु ने जान-बूझकर ऐसी थित िनमाण क , िजससे िश य गािलयाँ देकर
जाए।
जापान म एक बौ आ म म एक गु अपने िश य क साथ रहते थे। उन सब िश य म एक िश य ब त बु मान
और उ त साधक था। गु ने एक बार सबक सामने उसे ब त गािलयाँ द , ब त िनंदा क । इतनी िनंदा क िक वह
िश य बेचारा रो-रोकर परशान हो गया। उसे पता ही नह चला िक उससे ऐसी या गलती हो गई िक गु जी इतने नाराज़
हो गए! उस िदन से गु ने उस िश य का बिह कार िकया और धीर-धीर सार िश य उसे िचढ़ाने लगे। िकसी को िगरते
ए देखकर सबको मज़ा आता ह। गु ने एक बार गािलयाँ द , लेिकन बाक क िश य तो हज़ार बार गािलयाँ देने लगे।
उसक बाद गु ने उसे कहा िक ‘तू यहाँ से चला जा।’ वह गु क घर क ार क बाहर बैठा रोता रहा। रात को जब
सब अपने-अपने कमर म चले गए तब थोड़ी देर बाद गु ने चुपक से दरवाज़ा खोला और हाथ पकड़कर उसे अपने
कमर म ले गए। गु ने उस िश य से कहा, ‘देख, तू मेरा सबसे ि य िश य ह और मुझ े यह भी मालूम ह िक तुझे स य
का बोध हो गया ह। मेरी तुझसे ब त उ मीद ह, लेिकन अगर तू थोड़ िदन और यहाँ रह गया तो बािकय को भी पता
चल जाएगा िक तुझे आ म ान हो गया ह और उ ह नह आ। ऐसे म वे कह तुझे मार ही न डाल, इसिलए तू अभी
यहाँ से चला जा। हमार बीच यह जो बात ई ह, उसक बार म कभी िकसी से कछ मत कहना। यहाँ िजतने लोग ह, वे
सब तुझ े ब त गािलयाँ दगे और म भी तु ह ब त गािलयाँ देता र गा, लेिकन तुम जानते हो और म जानता िक स य
या ह! अब तू चला जा।’ गु ने रात क अँधेर म उस िश य को भेज िदया।
साल बीत गए और गु मृ युशैया पर थे, तब उनसे पूछा गया िक आपका उ रािधकारी कौन होगा?गु ने उ र िदया
िक मुझे कहने क ज़ रत नह ह, य िक जो उ रािधकारी ह, वह खुद इस बात को जानता ह। सब चेले पूछते रह िक
हम म से उ रािधकारी कौन ह? लेिकन गु ने जवाब नह िदया। उसी मौन म गु का शरीर चला गया। गु क मरने
क खबर जब फल गई तो वह िश य, िजसे गु ने िनकाल िदया था, वह भागकर आया और ब त रोया। उसको िनकाल
िदया था, उस घटना और गु क मृ यु क बीच 20-25 साल बीत चु़क थे, इसिलए वह िकसी को याद भी नह था।
लोग भूल ही गए थे िक वह कभी इनक साथ रहा था। सब लोग परशान थे और उससे पूछ रह थे िक तू इनक िलए य
रो रहा ह? य िक अब तो वह खुद भी ब त िस हो चुका था।
उसने जवाब िदया, ‘‘यह मेर गु ह।’’ उ ह ने पूछा, ‘‘हम तो याद नह िक तू कभी यहाँ आया हो और गु ने तु ह
कछ िसखाया हो। जहाँ तक हम जानते ह, हमार गु भी तु ह नह जानते ह गे।’’
वह िश य और ज़ोर से चीखकर रोया। उसने कहा, ‘‘इसी बात का तो रोना ह िक उ ह ने ही सबकछ िदया, लेिकन
ध यवाद कहने का मौका भी नह िदया। म उनका ध यवाद करता, उसक पहले ही उ ह ने मुझे यहाँ से भेॼिदया।’’
उसे रोते ए देखकर सब लोग उसे समझाने लगे िक तू तो ानी ह। तू तो जानता ह िक शरीर मरता ह, लेिकन आ मा
नह मरती तो िफर तू य रो रहा ह?
उसने कहा, ‘‘म जानता िक आ मा मरती नह , देह मरती ह, लेिकन ऐसी यारी देह िफर या कभी देखने को
िमलेगी? यह वह देह ह, िजससे परम ान िमला ह। इस शरीर का िआ़खरी बार दशन कर रहा । उसक बाद देह राख
हो जाएगी, िम ी हो जाएगी। इसक बाद िफर न कभी उनक आवाज़ सुन पाऊगा, न चेहरा देख पाऊगा। आज भले
आप मुझ े अ ानी सािबत कर ल, भले मुझसे गु होने क पदवी छीन ल, लेिकन आज तो मुझे अपने गु देव क मृतदेह
पर रोना ह, य िक मुझ े रोना आ रहा ह। इतना यार, इतनी मोह बत दुिनया म कोई िकसी को दे नह सकता ह, जो मेर
गु ने दी ह।’’
अपने जीवन को े बनाने क िलए तीसरा विणम िनयम ह— ेम। शु ेम का अनुभव होना चािहए। ऐसे ेम क
सागर म जब गोता लगेगा तो आपक भीतर एक ऐसी म ती, ऐसी बेपरवाही, ऐसा सुकन, चैन, एक ऐसा शरारा उठ
जाता ह, एक ऐसा शोला आपक अंदर भड़कता ह िक िफर आपक पाँव म हमेशा एक नृ य रहता ह। िफर आपक
आँख म हमेशा इ धनुषी रग और बु म ान क म ती रहती ह।
तीन िनयम कह—सूय दय से पहले जागना और योगासन करना। दूसरा ाणायाम करते ए मं -जप और तीसरा ेम
म रहना, ेम प हो जाना।
‘ ेम क मार ऐसे तीर
क िहरदा चीर गए।
ओ री, सखी म ई दीवानी
ेम रग म ई म तानी
समझे न कोई मेरी पीर
क िहरदा चीर गए।
छप-छपकर म दशन करती
दूर ही दूर से मन म भरती
बरबस आ गए सामने
ओ िहरदा चीर गए।
मेर िपया बसे दय क अंदर
िकए नैना बंद, हो गए दशन
ेम न माने जग क रीत
क िहरदा चीर गए।’
इन तीन विणम सू क साथ जब आप िजएँग,े िफर देख िक िज़ंदगी जीने का या मज़ा ह! सवाल इसका नह ह
िक आपक बक खाते म िकतने करोड़ डॉलर ह? मने ब त करोड़पितय को रोते देखा ह। सवाल यह नह ह िक आपक
पास ऐशो-आराम क िकतनी व तुएँ ह?सवाल यह ह िक आपक पास िकतना ान ह? ान से म ती आती ह और कह
से नह आती। िजनक पास ान नह ह, वह गरीब ह, तो भी रोएगा, अमीर ह, तो भी रोएगा, कवारा ह, तो भी रोएगा,
शादीशुदा ह, तो भी रोएगा, ब े ह गे तो भी रोएगा और नह ह तो भी रोएगा।
िआ़खर म आप सब क िलए म मंगलकामना करती और ई र से ाथना करती —
‘ओ३ सव भव तु सुिखनः
सव स तु िनरामयाः।
सव भ ािण प य तु
मा क ददुःखभा भवेत॥’
( यूयॉक, 23 अ ैल, 2010)

यह मृ यु-घंटा िकसक िलए बज रहा ह?
‘जोगीया लै चल वाही देस
िबना मोल तेर हाथ िबकानी,
क जो हो आदेस।
तन क डोरी हाथ तु हार,
मन म ह परवेश।
दुःख नह जहाँ ह सुख कोई
आनंद का कमलेश॥’
य हाँ ाथना ह, अज ह, अरदास ह िक िजस देश म तू रहता ह, िजस देश क तुझे खबर ह, उस देश तक मुझको भी ले
चलो। जब मन म स संग का रग जमने लगता ह तो वैरा य उ प होता ह। अगर स संग सुनकर भी अगर आपक अंदर
वैरा य नह आया तो समझ अभी आपने कछ सुना ही नह ह। ि़सफ िकसी एक अ छी जगह म जाकर एक अ छा
समय िबताया ह, लेिकन उस अ छी जगह का भाव आप तक नह आया। स संग मनोरजन नह ह, स संग अ छा
समय िबताने क िलए नह ह। स संग एक या ा ह, एक खोज ह। स संग एक ा भी ह, एक साधना भी ह और अगर
आपक जीवन म साधना शु नह ई, तो आप यह जािनए िक अभी स संग शु नह आ ह।
िकसी चीज़ क बार म सूचना ा कर लेन े से, उस व तु क बार म सुनकर या पढ़कर जानकारी लेने से वह चीज़
आपको नह िमल जाती। आपको वह व तु खरीदनी पड़ती ह, इ तेमाल करनी पड़ती ह, तभी आपको उस चीज़ का
सही लाभ िमलता ह। वह उ पादन कोई भी हो सकता ह—खाने का, स दय साधन का, घर कछ भी हो सकता ह।
चीज़ क बार म जानकारी देनेवाली पु तका पढ़कर आपको उस व तु का लाभ नह िमलता ह। उसी तरह जब आप
िकसी संत से िमलते ह, उ ह सुनते ह तो ि़सफ स संग क जगह पर जाकर बैठ जाने से आपको लाभ नह िमलता।
आपको सही लाभ तब िमलता ह, जब आप उन सुने ए वचन को आ मसा कर। आपने उन श द को अपने अंतर म
उतारा हो और आपक िदल म ऐसी िहलोर उठने लग, ऐसी भावना जागने लगे, ऐसे न उप थत होने लग िक म कौन
? कहाँ से आया ? मेरा ई र क साथ या संबंध ह? अगर ई र ह तो वह कसा ह और कहाँ ह? स संग का अथ
ह िक अब आप ि़सफ शरीर से नह जीते ह, शरीर क िलए नह जीते ह, ब क इस शरीर क अंदर जो मन ह, उस मन
पर भी आपक ि जाने लगी ह।
जब आप खाते-पीते, सोते, नहाते, कमाते या कह आते-जाते ह तो यह सब लेन-देन, सारा यवहार आपक शरीर क
वजह से ही होता ह और दूसर क शरीर क साथ होता ह। हालाँिक शरीर जब कछ भी करता ह तो उसक वजह से
होनेवाला सुख-दुःख आपका मन महसूस करता ह। जैसे, अगर आप िसनेमा देखने गए तो गया तो शरीर ही ह, देखा मन
ने; लेिकन मज़ा शरीर को नह आता। गीत सुना आपक कान ने, लेिकन कान को मज़ा नह आता ह? कान जड़ ह।
मज़ा िकसको आया? मन को। सुख िकसे आ? मन को।
जैसे आप कह बाहर खाने जाते ह, तब िकसी र तराँ म बैठकर मनपसंद यंजन ऑडर करते ह। आप खाते ह और
उसका वाद लेते हो। अब खाया िकसने? आपक मुँह ने। वाद कहाँ आया? आपक जीभ पर। जब आपने उस चीज़
को मुँह म रखा और उसे चबाया तो जीभ क वाद-किलकाएँ (taste buds) िदमाग को संदेशा देती ह। िदमाग िफर उनका
िव ेषण करता ह िक वह मीठा, कड़वा, ख ा, वािद , फ का, सरस या बकवास ह। खाने का मज़ा िकसको
आया? मन को। खाना रखा तो जीभ पर, लेिकन मज़ा मन को आया। मन क यह मजबूरी ह िक वह सीधे मज़ा नह ले
सकता। उसे कोई भी मज़ा लेना हो तो उसे पाँच ानि य क मदद लेनी पड़ती ह। इन ानि य ारा हम संसार क
संपक म रहते ह। पहली इि य और उसका अवयव ह आँख। आँख से ही आप सुंदर व तुएँ, जैसे—आकाश, सूय,
चं , तार, िततिलयाँ, ब ,े इन सबको देख पाते ह। आँख संसार क ओर जाने का ार ह।
जब िकसी को अपनी साधना क शु आत करनी होती ह तो सबसे पहली चीज़ यही कही जाती ह िक आँख बंद
करो। बाहर देखते ह तो संसार िदखता ह और अगर परमा मा क साथ जुड़ना ह तो आँख बंद कर।
अभी कछ िदन पूव म बता रही थी िक योिनमु ा कसे क जाती ह। उसम आप अपने हाथ का उपयोग करते ह। हाथ
क अँगूठ से कान बंद करक, तजनी कपाल पर, दूसरी उगली आँख क कोने पर, तीसरी उगली नाक क पास और चौथी
उगली ह ठ क पास—इस मु ा को ‘योिनमु ा’ कहते ह। अब अगर आँख खुली ह तो आप अपनी दूसरी उगली को
आँख क अंदर क कोन पर कसे रख सकते ह?
यान, सुिमरन, जप करने क िलए कहा जाता ह िक भाई, सबसे पहले आँख बंद करो। आँख बंद होते ही लगभग
स र ितशत बाहर क दुिनया से संबंध टट जाता ह। जब आप मुँह खोलगे और उसम कछ डालगे, तब वाद आएगा!
उसी तरह नाक क पास िकसी फल को या सुगंिधत व तु को लाएँगे, तब पता चलेगा िक अ छी ह या बुरी ह। नाक पूरी
समय वृत नह रहती। हमारी दूसरी एक इि य ह, जो हमेशा सि य रहती ह और वह ह कान। आँख बंद करक बैठ
जाएँ तो भी कान तो सुनते ही रहते ह। मान ल आप आँख बंद करक बैठ गए, लेिकन पड़ोसी क घर म तेज़ संगीत बज
रहा हो और आप ‘ओ३ नमः िशवाय’ का जप कर रह ह तो िफर ऐसी थित म इनसान मन-ही-मन गु सा होता ह िक
इस दुिनया म अ छ लोग ह ही नह । यहाँ म यान करना चाह रहा और ये लोग ज़ोर-ज़ोर से गाना बजाते ह तो
पड़ोसी को गािलयाँ देते ह। वैसे ही जप करने म यादा िदलच पी थी ही नह , तो िफर एक अ छा बहाना िमल जाता
ह। लगता ह िक जाने द, जब मंिदर जाएँग े तब कछ कर लगे, लेिकन मंिदर म लोग पूजा-िविध करने म य त होते ह।
मने मंिदर म लोग को जप करते नह देखा ह और कभी-कभी कोई मं कर भी रहा होता ह तो आँख फाड़-फाड़कर
इधर-उधर देख रहा होता ह। वह देख रहा होता ह िक कौन आया, कौन गया, उसने अ छ कपड़ नह पहने, वह आदमी
अ छा नह ह, ऐसा सब चलता रहता ह।
हमारी आँख जब भी कछ देखती ह तो मन उसक बार म िट पणी करना शु कर देता ह या तो उसक बार म कछ
अ छा कहगा या बुरा कहगा। ऐसा हो ही नह सकता िक आप कछ देख और मन म उसक बार म िवचार न चल।
िकतनी भी कोिशश कर ल िक म नह सोचूँगा और ि़सफ देखूँगा, लेिकन यह मु कल ह। दुिनया का सबसे मु कल
काम ह देखना, लेिकन उसक बार म न सोचना। आप देखते रह और एक भी िवचार न चले, आप सूँघ और एक भी
िवचार न चले। आपक मन म िवचार का इतना शोर चलता रहता ह िक सच बात तो यह ह िक आप ठीक से कछ
देखते भी नह ह और सुनते भी नह ह, य िक श द कान म आया था, य आपक आँख ने देखा था और आपक
मन ने उसक बार म िट पणी करना शु कर िदया था।
जैसे, मेर हाथ म एक िड बी ह, उसे देखकर आपक मन म या िवचार आता ह?िड बी अ छी ह। दूसरा िवचार
शायद ऐसा आया होगा िक इसम जो हीर ह, वे असली ह गे? िफर शायद ऐसा भी िवचार आया होगा िक हर बार गु माँ
िड बी ही य िदखाती ह? चौथा िवचार आया होगा िक इसक अंदर या ह? देखो, म आपक िवचार को श द दे रही
। इसक अलावा भी और िवचार आए हो सकते ह। िकसी भी व तु को देखकर आपक मन म काश से भी यादा
तेज़ गित से िवचार आ जाते ह। जैसे िक यह अ छा ह, अपने िलए भी लाऊगा। या िफर ऐसा िवचार िक गु माँ क िलए
यह कौन लाया होगा? इस िड बी क क मत या होगी? या िफर ऐसा िवचार भी आया होगा िक इस िड बी क अंदर
या होगा?
एक य ने मुझे इसक बार म न िकया था िक ‘गु माँ, आप ब त मीठा गाती ह तो इसका रह य या ह? मने
कहा िक इसका रह य इस िड बी म ह। इस िड बी म एक ऐसी चीज़ ह िक िजसे मुँह म डालते ही म मीठा-मीठा गाने
लगती । उ ह ने इस मज़ाक को सच समझ िलया और कहने लगे, ‘‘हम भी बता दीिजए न, य िक हम भी गाते ह।’’
उ ह ने अपना िविजिटग काड पकड़ा िदया िक कहा हम भी भजन गाते ह और काय म करते ह।
मन आपका हमेशा कछ-न-कछ सोचता रहता ह। ज़ री या िफर यथ क िवचार चलते रहते ह। कई बार तो जैसे
मकड़ी जाल बनाती ह, वैसे एक िवचार से दूसरा, िफर तीसरा, उसम से चौथा, पाँचवाँ। उदाहरण क तौर पर आपने इस
िड बी को देखा। उसक ऊपर क चमक को देखा तो याद आया िक जौहरी क पास जाना था। उसक पास सेट ब त
अ छा ह, पर या क पित पैसा देता ही नह । सार पैसे अपनी माँ को भेज देता ह। यह माँ, यानी िक सास होती ही
य ह? वह बुि़ढया मरती भी नह । दवाइयाँ खाती रहती ह, खाती रहती ह। मुझे मेरी दवाइयाँ लेन े दुकान म जाना था।
मेरी दवाइयाँ मँगवाई थ , वे आ गई ह गी। दवाइयाँ िकतनी महगी हो गई ह। आजकल अमे रका म िकतनी मंदी चल रही
ह। अमे रका तो अब जीने लायक रहा ही नह । इससे तो भारत म मेरा शहर अहमदाबाद ही अ छा ह। अहमदाबाद म
उस जगह पर पापड़ी-गािठया अ छा िमलता ह। लेिकन गािठया खाने से कोले ोल बढ़ जाता ह। मेर डॉ टर कह रह थे
िक खाने-पीने म यान रख।
आप समझ रह ह िक म या कहना चाह रही ? एक म से दूसरा, उसम से िफर तीसरा। पूरी दुिनया िबना िटकट
और वीज़ा क घूम लेती ह। भारत भी घूम आए, अपने गाँव भी जा आए और सब खबर भी ले आए और िफर अचानक
याद आया िक म स संग म बैठा था!
एक मिहला ने मुझसे पूछा िक आपने मुझे गु मं िदया था, लेिकन म भूल गई तो आप िफर से बताएँगी?
मने कहा, ‘‘जो चीज़ भूल गई, वह इतनी बेकार क होगी, इसीिलए तो भूल गई! और जो चीज़ इतनी बेकार क ह,
उसे िफर से सुनना य चाहती हो?’’
उसने कहा, ‘‘नह , नह ब त काम क चीज़ ह। आप िफर से बता द!’’
मने पूछा, ‘‘तेरा नाम या ह?’’
उसने कहा, ‘‘सुिम ा।’’
मने कहा, ‘‘वह कभी भूल जाती हो? अ छा तेर घरवाले का नाम या ह?’’
उसने कहा, ‘‘ यामलाल मखीजा।’’
‘‘ यामलाल मखीजा ही होता ह न, या िफर तू उसे यामलाल धमीजा कर डालती ह?तेरा घर कहाँ ह, यह कभी तु ह
भूल जाता ह?तु हार िकतने ब े ह, यह भूलता ह?िकतने पैसे ह, यह भूल जाता ह? मं भूल गया। ख म जाओ।
अब दूसरी बार मं नह देती।’’
उसको दुबारा मं नह िदया। अगर मं आपक िलए बेकार क चीज़ ह तो उसे कड़दान म डाल द। और गु ?और
गु का ान भी जाए ख म। उसे या करना ह?िजसक कदर नह , क मत नह आपको, तो िफर वापस य पूछते
ह? सोचने क बात यह ह िक उस मिहला ने जो न पूछा, उसक पीछ ब त सारी बात ह। उसका च र , उसका मन,
उसक िवचार, उसक बु —सबकछ गट हो रहा ह। पहली बात, उसका मन ब त िबखरा आ रहता ह। कहाँ तो
आप गु मं लेने क िलए घर से िनकले और गु क स मुख प चते ह, वह िदन आपक जीवन का सबसे क मती िदन
होता ह। कबीर साहब क एक बात कहती ।
कबीर अपने माँ-िपता नी और नीमा को तालाब क िकनार िमले थे। कबीरजी उस समय छोट से बालक थे और
उनक ज मदा ी माँ ने उ ह याग िदया था। उ ह उनक माँ ने य याग िदया था, उसक बार म ब त सारी कहािनयाँ
ह, पर इस व़ उसक बार म बात नह करगे। उस बालक को नी और नीमा ने रोते ए सुना। उस व़ वे नी क
मायक से वापस लौट रह थे और ब े क रोने क आवाज़ सुनी तो दोन क गए। देखा तो एक अबोध ब ा पड़ा था।
उ ह ने पूछा िक िकसका ब ा ह? िकसका ब ा ह? ब त ढढा पर कोई िदखाई नह िदया। नी को खुद को कोई
ब ा था नह तो उसने कहा िक खुदा ने मुझे यह ब ा िदया ह, यह मेर िलए ही ह। उस ब े को नी अपने साथ ले
आई और खुद का ब ा समझकर ही पाला।
कबीर जब दस साल क ए तो उ ह ने देखा िक उनक आस-पास मंिदर ह, मसिजद ह। कोई नमाज़ पढ़ रहा ह और
अपने आपको मुसिलम कह रहा ह। कोई राम-राम कहता ह। इस काशी शहर म िशवजी क भी ब त सार भ ह,
जंगम, जोगी, कनफट जोगी, साधु ह और सब अपने-अपने मत अनुसार कछ-न-कछ करते रहते ह। छोटा सा कबीर
अपनी माँ से पूछता ह, ‘‘हम कौन ह?’’
माँ ने कहा, ‘‘हम मुसिलम ह। बेटा तू अपने अ बा क साथ मसिजद जाना शु कर दे। नमाज़ पढ़ना सीख ले।’’
मसिजद जाते-जाते उनक नज़र मंिदर पर लगी रहती और मन म इ छा होती िक इसक अंदर या ह, वह देख,ूँ जानूँ
और समझू।ँ एक िदन मंिदर क सीि़ढयाँ चढ़ गए। उनक कपड़, िलबास और िसर पर टोपी देखकर सब समझ गए िक
यह तो मुसिलम ह, इसिलए वहाँ क लोग ने डाँट-डपटकर वहाँ से भगा िदया। वे तो एक छोट बालक ही थे, दुःखी हो
गए िक म अंदर य नह जा सकता? िहदु को ितलक लगाए ए देखते तो उनको भी ब त शौ़क होता िक वे भी
ितलक कर।
एक िदन कबीरजी ने देखा िक एक पीपल क पेड़ क नीचे िशविपंडी पर लोग पूजा करक गए थे और वहाँ चंदन पड़ा
था तो उ ह ने उससे अपने माथे पर ितलक कर िलया। माँ ने जब देखा तो थ पड़ मार िदया और कहा िक ितलक य
िकया, हम िहदू नह ह? ितलक तो िहदू लगाते ह। हम मुसलमान ह, हम ितलक नह लगाते। कबीर क समझ म नह
आ रहा था, य िक उ ह तो दोन पसंद आते थे—िहदू भी और मुसलमान भी। मसिजदवाले कहते थे िक मंिदर न जाएँ
और मंिदरवाले कहते थे िक मसिजद न जाओ।
कबीर ने माँ से पूछा, ‘‘मंिदर म कौन ह?’’
माँ ने कहा, ‘‘उनक भगवान।’’
‘‘मसिजद म कौन ह?’’
माँ ने कहा, ‘‘हमार अ ाह िमयाँ।’’
‘‘दोन भाई ह?दु मन ह, दो त ह? कौन ह?’’
इस बालक क इतने सार न क उ र माँ को आते नह थे, तो माँ ने कह िदया, ‘‘जा, बाहर जाकर खेल।’’
जहाँ ेम हो, लगन हो, वहाँ इनसान को रा ता िमल ही जाता ह। कबीर पूरा िदन यहाँ-वहाँ, साधु क डर म घूमते
रहते थे और एक बात उनक समझ म आ गई थी िक सभी लोग वामी रामानंद का ब त स मान करते ह। कहते थे िक
वे ब त िव ान, समझदार, ानी और शा क समझ रखते थे। सब बोलते थे िक उनको भगवान क दशन भी ए ह।
ऐसा सब सुनकर कबीरजी रामानंदजी क आ म क ओर गए, लेिकन वहाँ भी उ ह िकसी ने दरवाज़े क अंदर जाने नह
िदया, य िक रामानंदी सं दाय म रामभ ह और वे छत-अछत ब त मानते ह। मतलब िहदु म भी शू जाित क ह
तो उनको छते नह , ऐसी वह जगह थी।
कबीरजी तो बाहर खड़-खड़ देखते रहते। एक बार रामानंदजी िदख गए तो मन म ब त ेम आया, ब त आकषण
आ; लेिकन अंदर जा न सक। वह दरवाज़े पर बैठकर इतज़ार करते रहते ह िक कभी तो बाहर िनकलगे। िफर जब
रामानंदजी बाहर िनकले तो उनका चेहरा नज़दीक से देखा। जब वह चेहरा पहली बार देखा तो वह मूरत कबीरजी क
िदल म बस गई। िदन-रात वे रामानंदजी क आ म क आस-पास खेलते रहते और इतज़ार करते रहते िक कब बाहर
िनकल। लेिकन जब रामानंदजी बाहर आते तो उनक िश य, चेले सब साथ रहते। ऐसा अवसर न िमलता िक कबीर सीधे
उन तक प च सक। कबीरजी दूर-दूर से उनको देखते रहते और वे उनको ब त यार लगते, आकषक लगते थे। उनका
सुंदर य व, भगवे कपड़, माथे पर चंदन का ितलक, उनक मीठी भाषा कबीर सुनते तो उ ह लगता िक िकसी ने
कान म िमसरी घोल दी ह! रामानंदजी का यह व प कबीरजी क मन म बस गया, लेिकन कबीर साहब क मजबूरी
यह थी िक उनक मुसिलम वेशभूषा क वजह से कोई उ ह रामानंदजी क करीब आने नह देता था। कबीरजी उनको दूर
से देखते और मन-ही-मन म अपने यार, अपने स ु को िनहारते रहते, दशन करते रहते। ऐसा ही भाव इस भजन म
ह। कबीर कहते ह—
‘मेरा यारा सजन
मेरा भोला सजन
तू िकतना ह यारा- यारा
म तुझ पर जाऊ वारा-वारा
तेरी सुंदर छिव क सदक
तेरी मोहनी मूरत क सदक
लुट जाए जीवन सारा।
तेर चरण क धूल बनक
िलपटी र गोिवंद से
भूल े मुझे सब संसारा
तू िकतना ह यारा- यारा
म तुझ पे जाऊ वारा-वारा।
एक म और एक आप हो
तू जाँ कोई हम म हो
िमले ीत को तेरा सहारा
तू िकतना ह यारा- यारा
म तुझ पे जाऊ वारा-वारा
मेरा यारा सजन
मेरा भोला सजन।’
कबीर क िदन-रात क इस खोज ने एक बात समझा दी िक सुबह क समय पर मु त म वामी रामानंद ान
करने क िलए गंगा नदी जाते ह, उस व़ उनक साथ कोई नह होता, पर कबीर इतनी बार ठकराए गए थे िक उनक
िह मत ही नह पड़ी िक सामने जाएँ। जहाँ ेम होता ह, लगन होती ह, जहाँ तड़प होती ह, वहाँ आदमी को रा ता भी
सूझ जाता ह। कबीर ने रा ता खोजा िक िजन सीि़ढय से उतरकर वामी रामानंद घाट पर जाते ह, वे उ ह सीि़ढय पर
लेट गए। रातभर एक-एक ास, एक-एक ण कसे बीता होगा, वह तो वे ही जान। वामी रामानंद अभी आएँगे, अभी
आएँगे, ऐसे सोचते ए इतज़ार क घि़डयाँ िगन रह थे। मन म लग रहा था िक आज जब मुलाकात होगी तो म अपना
ेम, अपनी पुकार सामने धर दूँगा। आज हमार बीच बाधा बनने क िलए, मुझ े मारकर भगाने वाला कोई न होगा। आज
म उनसे पूछगा, ाथना क गा िक मुझ े गु मं द और िजस राम क साथ आप जुड़ ए ह, उस राम से मुझ े जोड़ द।
ऐसा भाव लेकर कबीरसाहब सीि़ढय पर लेट ए गु का इतज़ार करते ह।
एक ब त सुंदर श द आता ह ‘गुरबानी’ म, िजसम कहा ह िक उस रात का नज़ारा कसा होगा, जब रात जा रही ह
और िदन आ रहा ह। मतलब न अभी पूरी सुबह ई ह, न रात पूरी ख म ई ह। इस आ रही सुबह क व़ , मु त
क बेला म कौन जागता ह? जो राम का यारा ह, िजस पर ई र क दया ह, गु क कपा ह, वे लोग िन ा याग
करक जाग जाते ह। इ ह भाव को अिभ य करता ए एक श द ह—
‘िभ ी रनिडए चमकन तार
जागे संतजना, मेर यार।’
िभ ी मतलब मीठी खुशबूवाली सुबह ई ह और राम क यार सब जाग गए ह और अपने-अपने सुिमरन म बैठ गए
ह। इन तार क छयाँ म जागनेवाल को ही हम भ कहते ह, खोजी कहते ह।
ऐसी मीठी सुबह म कबीरसाहब इतज़ार कर रह ह और इतने म वामी रामानंद क पाँव म पड़ी ई खड़ाऊ क ख -
ख -ख आवाज़ आई तो जैसे कबीर का िदल धड़कना ही भूल गया। वामी रामानंद सीि़ढय से उतरते वहाँ तक आ
गए, जहाँ कबीर लेट थे। जैसे ही उ ह ने पाँव नीचे रखा तो पाँव कबीर पर पड़ा और उ ह ने पाँव पीछ ख चा और बोले,
‘कौन ह भाई? उठो। अर भाई, राम बोलो। उठो, राम बोलो।’
कबीर ज दी से उठ, चरण को छआ, णाम िकया। िसर ज़मीन पर टक िदया और धीर से पीछ िखसक गए। इसक
बाद उनक शरीर म तो कोई श ही न बची िक उठ सक, जा सक और कछ बोल सक, य िक ऐसा जादू छा गया।
कबीर तो इतने भाव-िवभोर हो गए िक न कछ बोल पाए, न कछ कह सक। उनक मुख से एक श द भी िनकल नह
रहा था और जो सुना था, वह ही कान म गूँज रहा था।
रामानंद तो अपने ान क िलए चले गए, लेिकन कबीर वह बैठ रह। साँस जैसे क गई, िदल जैसे ठहर गया। मन
भी ठहर गया और भीतर एक ही श द गूँज रहा ह—राम, राम, राम। कबीर का यह पहला समािध का बोध था। यह
उनक पहली समािध थी, जो भाव से शु ई और िनिवक पता तक प च गई। रामानंदजी कब ान करक वापस गए,
कबीर को पता नह । कब दोपहर चढ़ आई कबीर को पता नह , कब शाम ढल गई, उसका भी पता नह ।
कबीर क माँ पागल क तरह उसे ढढती ई वहाँ प ची तो देखा िक कबीर आँख बंद करक बैठ ह। माँ ने झट से
अपने सीने से लगाया और रोने लगी िक तुझ े तो हम कब से ढढ रह ह और तू यहाँ बैठा ह! तुझे कछ होश भी ह िक माँ
पर या बीती होगी, िजसका ब ा रात से गायब हो और दूसरी शाम तक वापस न लौटा हो! कबीर ने बामु कल आँख
खोली और माँ से कहते ह, ‘‘माँ, मुझे गु िमल गए!’’
कबीर का जीवन अब चकोर जैसा हो गया। जैसे चकोर चाँद को देखता रहता ह, वैसे उनका मन हमेशा अपने गु
क साथ जुड़ गया; य िक उस िनद ष अव था म कोई पाप-ताप, ई या, ेष, राग थे नह और ऊपर से इस िनद ष,
भोले मन म जो ेम क आग लगी, उस लगन क वजह से वे रामानंदजी तक प चे। उ ह रामानंदजी क चरण का पश
िमला। उ ह ने जब िसर ज़मीन पर रखा, रामानंदजी क चरण को छआ तो जैसे िबजली क ध गई। जो कडिलनी को
जगाने क िलए योग िकए जाते ह, जप िकए जाते ह और िफर भी कछ होता नह ; लेिकन कबीर क िलए वह परम
जागरण का ण हो गया।
थोड़ िदन वे अपनी म ती म रह और िफर खुशी क मार सबको कहते िफरते थे िक मुझे गु िमल गए, मुझ े गु िमल
गए। कोई पूछता िक कौन गु ? तो कहते, ‘ वामी रामानंद।’ बात वामी रामानंद तक प ची, लेिकन तब तक तो पूरा
ा ण समाज, रामानंदी समाज िवरोध म खड़ा हो गया। ऐसा कसे हो सकता ह िक एक मुसिलम और वह भी कपड़
बुननेवाली नीच जाित का बालक आपका िश य हो!
वामी रामानंद ने कहा, ‘‘िकसक बात कर रह हो? म तो उसे जानता तक नह ।’’ तब उनसे कहा गया िक वह पूर
शहर म कहता िफर रहा ह िक वामी रामानंद मेर गु ह।
कबीर क घर उनक माँ को संदेशा आया िक कबीर को लेकर तुरत प चो। संदेशा देनेवाले ने तो ब त गु से म कहा
िक तुरत प चो और कबीर को इतना ही सुनाई िदया िक गु जी ने बुलाया ह। बस, वह तो पागल क तरह दौड़कर जा
प चा उनक सामने। वहाँ तो पूरी पंचायत बैठी थी, साधु, ा ण सब बैठ थे और उन सब साधु म चं मा क भाँित
वामी रामानंद चमक रह थे। कबीर ने सा ांग णाम िकया और आँख झुकाए खड़ रह और बोले, ‘‘गु देव आ ा
क िजए।’’
वामी रामानंद तो इस बालक क यवहार को देखकर दंग रह गए। उनक िकतने चेले थे उनक, िकतने िव ाथ थे,
पर इतने भाव से कभी िकसी ने णाम नह िकया और न ही न ता से िसर झुकाया ह, आँख नीची क ई ह, छोट से
हाथ जोड़ ए मीठी-सी आवाज़ म पूछते ह, ‘‘किहए, गु देव मेर िलए या आ ा ह?’’ रामानंदजी तो इस बालक क
मे क ऊजा क भाव म आ गए िक या पूछना था, या डाँटना था, कछ याद नह रहा। उ ह ने कहा, ‘‘म तु ह पहले
कभी नह िमला और आप सबको ऐसा य कह रह हो िक हमने तु ह दी ा दी ह?’’ कबीर ने याद कराया िक कछ
िदन पहले गंगाघाट पर सीढ़ी उतरते ए, िजससे आप टकराए थे, वह म ही ।
रामानंदजी बोले, ‘‘हाँ वह तो याद ह। िब कल स य ह, पर तु ह दी ा कब दी?’’
कबीर ने कहा, ‘‘आप ही ने बोला था, उठ बेटा, राम बोल।’’
रामानंदजी हसे और बोले, ‘‘यह दी ा होती ह? इसको दी ा कहते ह?’’
कबीर ब त हरान होकर रामानंदजी क ओर देखकर कहते ह, ‘‘अ छा, गु देव! राम क अलावा कछ और भी देते ह
दी ा म?’’
रामानंदजी बोले, ‘‘नह । ‘राम बोल’ उतना श द सुनकर िजसको राम िमल जाए, ऐसा स -अिधकारी, ऐसा स -
िश य तो रामानंद को आज तक कभी न िमला था। ऐसा उ म कोिट का िज ासु, ऐसा उ म, शु अंतःकरण!’’
गु ने तो ऐसा ही बोला िक उठ बेटा, राम बोल और इतना श द सुनने मा से िजसको समािध का बोध हो जाता ह।
सारी पंचायत खड़ी होकर िवरोध करने लग गई िक यह झूठ बोल रहा ह, ऐसे दी ा नह होती ह। रामानंदजी खड़ ए,
कबीर का हाथ पकड़ा और कहते ह िक आपको जो समझना हो, वह समझ, जो कहना ह, सो कह; लेिकन म वामी
रामानंद घोषणा करता िक आज से यह कबीर मेरा िश य ह। यह मेरा सौभा य ह िक यह मेरा िश य ह।
वामी रामानंद एक उ कोिट क ेमी भ संत थे। उनको देर नह लगी कबीर क इस उ त खर बु को देखते
ए। कबीर क हाव-भाव म, श द म, उनक उप थित म, उनका शु अंतःकरण ऐसे झलक रहा था िक रामानंद ऐसे
र न को हाथ से जाने देने क िलए तैयार नह थे।
कबीर क जीवन क गाथा मने इसिलए कही िक आपको समझ आ सक िक दी ा का मतलब या ह?दी ा क ित
कसी भावना होनी चािहए?यहाँ तो लोग िमलते और कहते ह िक हम मं भूल गए। मं भूल गए?आप जीना य नह
भूल गए?आपक साँस य क नह गई? यह खेल नह ह। यह टाइमपास नह ह। यह बूढ़ और रटायड लोग का
टाइमपास नह ह। यह आपक जीवन क सबसे क मती, सबसे ज़ री, मह वपूण चीज़ ह। लेिकन सम या यह ह िक
आपक िलए सब मह व का ह—पैसा, प रवार, समाज, आपक नौकरी, आपका काम। भगवा ? कसा भगवा ?गु ?
वह या होता ह?
कछ लोग थोड़ा सुनते ह, कछ देर थर और शांत बैठने क कोिशश करते ह। यह अ छी बात ह, लेिकन जब ये
लोग यादा गहन बात जानने क िलए मुझसे न पूछते ह तो म उनसे कहती िक आप आ म आ जाएँ और थोड़
िदन हमार पास रह, तब हम आपको आपक न क उ र दगे। उस व़ वे एक लंबी सूची सुना देते ह। कहते ह,
‘मेरी नौकरी ह। मुझे छ याँ नह िमलत । यहाँ नौकरी ब त मु कल से िमलती ह। हमारी यह सम या ह, हमारी वह
ि़द कत ह।’ म उनसे कहती िक ठीक ह, तो मत आएँ। लेिकन िफर ऐसी इ छा भी मत रख िक धम क , यान क
ऊचाइयाँ ा हो जाएँ। िफर िजतना िमल रहा ह, उसी से राज़ी हो जाएँ। उन बड़ी बात क कामना भी छोड़ द, य िक
मू यवान व तु क िलए ऊचे दाम भी चुकाने पड़ते ह। आप एक पैसे म कोिहनूर खरीद नह सकते। आप मेर पास से
कोिहनूर चाहते ह, लेिकन एक पैसा तक चुकाने को तैयार नह ह।
आपक िलए आपका प रवार का मह व ह। अमे रका म रहते ह और भारत म कोई पैदा हो, िकसी क शादी हो, कोई
समारोह हो तो भारत जाते ह। अभी अगर खबर आ जाए िक कोई मर गया तो या नह जाएँग?े अभी अगर योता आ
जाए िक भतीजे या भानजे क शादी ह तो या नौकरी से छ ी लेकर नह जाएँग?े लेिकन खुद क उ ार क िलए,
अपनी मु क िलए अगर आपक पास समय नह ह तो ऐसे बेपरवाह लोग क िलए मेर पास भी कोई समय नह ह।
हमारा मन अ ान क लपेट म इतना आ गया ह िक जो करना चािहए, वह करता नह और जो नह करना चािहए,
वैस े सब काम आप लोग करते ह—
‘जो कर छड गँवावना ल गा मन माँह
िजथे जाए तुद बेसना ितसक िचंता नाए’
यह घर, िजसक साथ आपक इतनी आस जुड़ी ह, वह घर-प रवार एक ण भी इतज़ार नह करगा। यहाँ आपक
ास िनकले और तुरत ताबूत म डालकर सीधे अंितम सं कार क िलए ले जाएँग।े य िक मुद को घर म कसे रख
सकते ह? मुदा तो खराब होने लगता ह और इसक पहले िक दुगध आने लगे, क ड़ पड़ने लग और मुदा फट जाए,
फलने लग जाए, लोग कहते ह, ‘िनकालो, िनकालो।’ िजस तरह आज आप िनकालते ह न िकसी को घर से, उसी तरह
आपको भी िनकाला जाएगा।
आपको आपक िपताजी ब त यार ह, लेिकन िपता क ास िनकल जाए तो या आप घर म रखगे? नहलाएँग-े
धुलाएँग,े ताबूत म डालगे और इले क मशान म डाल दगे। बटन दबाया और बात ख म! िफर िपता को एक कलश
म लेकर आएँगे। थोड़ िदन रखगे घर म और जब कभी भारत जाएँग े तो उन अ थफल को गंगा म बहा दगे। कहानी
ख म!
िजस घर म, िजस मकान म रहते ह; उसे छोड़ देना ह, छट जाएगा। छोड़गे नह , लेिकन छट जाएगा। आपसे घर
छड़वा िदया जाएगा और उस व़ आपको कोई िवक प नह िदया जाएगा। जब मौत आएगी, तब आपसे पूछगी नह
िक आपने अपनी िज मेदा रयाँ पूरी क ह या नह ? आपने अपने मकान क ह ते पूर िकए ह या नह ? अपने ब का
घर बसाया ह या नह ? जब समय आता ह और मृ यु-घंटा बजता ह तो वह आपक िलए बजता ह।
ऐसा कहा जाता ह िक कछ जगह पर जब उस गाँव म िकसी क मृ यु होती ह तो वहाँ क चच म घंटा बजता ह। उस
घंट क बजाने से यह सूिचत िकया जाता ह िक िकसी क मौत ई ह और सब लोग उस य को िवदा करने क िलए
और उसक अंितम-या ा म शािमल होने क िलए एकि त होते ह। इस पर से अं ेज़ी म रह यमयी उ आई िक ‘यह
मृ यु-घंटा िकसक िलए बजा?’ (For whom the bell tolls?)
कौन मरा?िकसक िलए घंटा बजा? इसक िफ छोड़ो। हर बार जो घंटा बजता ह तो वह कह रहा ह िक तेरी मौत
तेर सामने आकर खड़ी ह। हम िकन बात को ाधानता देनी चािहए? या हम उन बात को ाधानता देते ह?नह देते।
इसीिलए तो लोग पूछते ह िक जब भजन करने बैठते ह तो मन नह लगता। म उनसे पूछती िक जब िफ म देखने
बैठते ह तो मन िकतना लगता ह? िहदु तानी िफ म तो तीन घंट क होती ह। िसनेमा हॉल क असुिवधाजनक सीट पर
बैठकर भी आपक तीन घंट कहाँ बीत जाते ह, पता नह चलता। िकतना मन लगता ह, जब आप अपने पैस े िगनते ह िक
आपक पास िकतने पैसे हो गए ह! िकतना अ छा लगता ह, जब आप अपने िलए एक नया स खरीदते ह!
एक लड़क मुझे बता रही थी िक वह िसनेमा हॉल म जाती ह और नई रलीज़ ई िफ म देखते ए अपने मोबाइल
फोन से हीरोइन का जो स पसंद आ जाए, उसका फोटो िनकाल लेती ह। िफर इटरनेट पर उस स को ढढकर वह
फोटो अपने िडज़ाइनर को देती ह िक मुझे ऐसा ही स बना दो। अगर उसे िकसी पाट म जाना होता ह तो कौन सा स
पहनना ह, उसक तैयारी दो महीने पहले ही कर लेती ह। िकसी क शादी हो तो उसक तैयारी चार महीने पहले करती
ह। वह कहती ह िक मेरा स सबसे सुंदर होना चािहए। उसक साथ मेिचंग ेलरी होनी चािहए, िफर भले वे भाड़ पर
लाए ए गहने य न ह ! लोग भाड़ पर कपड़ लेते ह, कार भाड़ पर लेत े ह; तािक दूसर पर भाव डाल सक, िदखावा
कर सक। जब आप सब ऐसा करते ह तो आपको मज़ा नह आता? जब आप अपनी महगी कार, गहने, घड़ी यह सब
िदखाते ह या आपको मज़ा नह आता? आता ह, ज़ र आता ह।
लेिकन या आप सोचते ह िक अपनी आपक साधना को ाथिमकता देने क ज़ रत ह? अपने आपक साथ समय
िबताना चािहए, अपने मन पर काम करना चािहए, मन को समझना चािहए। अपने मन को समझना, मन म पड़ी ई
गाँठ को खोलना, मन जहाँ अटका ह, उन यसन से बाहर लाना आपको ज़ री नह लगता? आपक पास उसक िलए
समय नह ह। कोई बात नह । ज़ रत भी नह ह! आप ये सब य करगे? िजएँ, जब तक जीवन ह तब तक। या
ज़ रत ह िक आप इन न क उ र ढढते िफर! य िक आपको लगता ह िक इन सबक साथ आपका कोई संबंध नह
ह। आपको लगता ह यह सब दशनशा या त व ान क बात ह, उनसे या होता ह? हमारा शरीर हमारी स ाई ह,
हमारा घर ह और हमारा यान उन पर कि त ह। हम दूसरी िकसी चीज़ पर यान देने क या ज़ रत ह?
यह अजब माया का, अ ानता का परदा मन पर पड़ा ह। वह इतनी हद तक िक जब आप अपनी नज़र क सामने
िकसी को मरता देखते ह या िकसी क मरने क खबर सुनते ह या अ़खबार म पढ़ते ह िक चीन म भूकप आ, हज़ार
लोग मर गए। कह बाढ़ आई, ब त सार लोग मर गए, कह दंगा हो गया और कछ लोग मर गए, तो यह आपक िलए
ि़सफ एक खबर होती ह; य िक जो कछ आ, वह चीन म आ और चीन तु हार पड़ोस म नह ह, इसिलए आपको
फ़क नह पड़ता िक िकतने लोग मर गए; ब क मने तो कछ लोग को मज़ाक करते सुना ह िक अ छा आ ाकितक
आपदा क वजह से जनसं या कम हो रही ह। वह आदमी कह रहा था िक अ छा आ िक थोड़ लोग मर गए।
उसका कहना था िक और यादा लोग मरने चािहए थे। वैस े भी पृ वी पर मयािदत जगह ह, तो हम िजएँ और दूसर मर।
लेिकन मान ल यह भूचाल भारत म आता तो आपको फ़क पड़ता? और मान ल िक िजस रा य से आप ह, उस रा य म
आता तो आपको फ़क पड़ता? उस शहर म जहाँ आप रहते थे, उस शहर म आया होता तो आपको फ़क पड़ता?
आपक िकसी ि यजन क मृ यु उसम होती तो आपको फ़क पड़ता? आप अगर मानते ह िक म यहाँ अमे रका म रहता
और भारत म मेर र तेदार को या होता ह, उससे मुझ े या लेना-देना। ऐसे असंवेदनशील लोग क साथ बात करने
म मुझे कोई िदलच पी नह ह।
इस बात को समझ िक जीवन लंबा नह ह; ब त छोटा ह और इस छोट से जीवनकाल म मन क अ ानता पर इतने
परदे पड़ ह। हमार आस-पास का समाज, प रवार, दो त, यावसाियक सहयोगी आपको यह बात नह कहगे, जो म
आपको कह रही िक अपनी आगे क या ा क तैयारी करो।
मने एक कहानी पढ़ी थी। उस कहानी म एक ऐसे देश क बात थी, जहाँ राजा चुना जाता था। वहाँ क परपरा क
अनुसार वह एक साल राज करता था और िफर उसे एक ऐसे ीप पर भेज िदया जाता था, जहाँ कोई ब ती, कोई शहर
या गाँव न हो। वह एक साल क िलए राजा ह, पर एक साल क बाद खेल ख म हो जाता था और उसे उस ीप पर
भेज िदया जाता था। ऐसा हमेशा होता था िक जब िकसी को राजा चुना जाता तो वह ब त खुश होता, लेिकन जब जाने
का समय आता तो रोते ए जाता।
एक बार ऐसा आ िक एक नया राजा चुना गया और उसे राजग ी पर िबठाया गया, उसका राजितलक िकया गया।
एक साल क बाद जब उसे िनजन ीप पर भेजने का आदेश आ तो लोग हरान रह गए, य िक यह राजा पहले क
राजा क तरह रो नह रहा था, िच ा नह रहा था। लोग को लगा, यह राजा पागल हो गया ह। या उसे पता नह
िक उस ीप पर मौत उसका इतज़ार कर रही ह? य िक वहाँ पर जंगली जानवर बसते ह और उस ीप पर उसको
खाने और रहने क िलए कछ नह ह। वहाँ पर कोई िम - र तेदार नह ह, यह जानते ए भी यह इनसान खुशी से नह ,
ब क नाचते ए जा रहा ह।
पता ह, वह य नाच रहा था? य िक एक साल म उसने सार पैसे उस ीप पर भेज िदए थे। उसने वहाँ अपने
िलए एक महल बनवा िलया था। थोड़ी औरत, गुलाम, नौकर, िकसान, यापा रय को भेज िदया था और वहाँ पर उसने
एक अ याधुिनक कॉलोनी खड़ी कर दी थी। िजस रा य का वह एक साल क िलए राजा आ था, उससे भी अ छा
रा य उसने उस एक साल म उस ीप पर खड़ा कर िदया था। उस ीप पर राजा को छोड़कर जब मं ी वापस लौट
तो देखा िक रा य का खज़ाना खाली हो गया था। अ छ कलाकार, संगीतकार, नृ यांगनाएँ, यापारी, अ छ िकसान अब
यहाँ कोई नह था। उ ह ने पूछा िक यह सब कहाँ गए तो उनको बताया गया िक वे सब तो गए। जब तक वह राजा था,
उसका आदेश चलता था। राजा क आ ा का पालन सब को करना पड़ता था तो पूर साल म उसने उन लोग को और
सारा माल उस ीप पर भेज िदया। जब जाने का व़ आया तो पहले क राजा क तरह वह रोता-िच ाता नह ,
ब क हसते ए, म ती म गया। उतना ही नह , पीछवाले सब रो रह थे, य िक अब राजा बनने क िलए कोई तैयार नह
था। जहाँ कोई खज़ाना नह , धन नह , वहाँ कोई य राजा बनना चाहगा? राजकोष हो तो कोई राजा बने, कगाल
राजकोष का राजा कौन बनेगा?
अब आप अपने आपको देख। यह कहानी जो मने कही ह, वह आपक जीवन क ह। आप अपनी िज़ंदगी िकस तरह
जीते ह? एकदम खुश होकर। यहाँ खाने जाएँग,े वहाँ घूमने जाएँगे, यहाँ घर बनाएँगे, वहाँ नई दुकान खरीदगे। यह करगे,
वह करगे और िकतने खुश और य त, लेिकन आगे क कोई तैयारी नह । इसिलए जो भी कोई मरता ह, वह खुद भी रो
रहा होता ह और प रवार भी रो रहा होता ह िक यह मर रहा ह। संत लोग ब त समझदार होते ह। महा मा लोग इस बात
क परवाह नह करते िक यहाँ या हो रहा ह। उ ह िचंता होती ह उस व़ क जब समय उनक हाथ से सब छीन लेगा,
और इसिलए वे उस ण क तैयारी करते ह। वे अपनी अंितम-या ा क िलए तैयार होते ह।
यही वजह ह िक कबीरजी ने यह बात कही िक बाक सब लोग रोते ए जाते ह और हसते ए आते ह, लेिकन म
रोते ए आया था, और हसते-हसते जाऊगा। य ? य िक मने अपनी चादर रग ली ह। मने अपनी तैयारी पूरी कर ली
ह। मौत या होती ह और मौत का रह य या ह, उसे मने समझ िलया ह। अब मौत मेर िलए एक खेल ह। ि़सफ व
बदलने ह, बस।
आपको याद ह, मने एक छोटी सी लड़क क बात कही थी, जो बार-बार पूछ रही थी िक मेरी दादी कहाँ गई?म जब
उससे बात कर रही थी तो मने उससे कहा था िक देखो, अगर तु हारी कार पुरानी हो जाए तो या करोगी?उसने कहा
िक हम पुरानी कार बेचकर नई अ छी कार खरीदगे। मने कहा िक पुरानी कार बेचकर जब घर म नई कार आती ह तो
आप सब रोते ह या खुश होते ह? मने कहा, बस, इसी तरह तेरी दादी का शरीर कार क तरह पुराना हो गया था तो उसे
िनकाल िदया, अब नया शरीर िमल जाएगा। उस लड़क ने कहा िक यह तो खुशखबरी ह। िफर उसने मुझसे दूसरा न
पूछा िक मेरी दादी इस नई कार, यानी िक नए शरीर क साथ कहाँ ह गी? लेिकन इतनी बात उसक समझ म आ गई िक
पुरानी कार जब बेच देते ह तो हम ब त खुश होते ह। न िबक रही हो और िबक जाए, अ छ पैसे िमल तो उससे ब त
खुश होते ह, य िक उससे अब हम नई कार खरीद पाएँगे।
‘ ीम गव ीता’ म अजुन ने यह न िकया था िक ह क ण! िकसी क साधना पूरी न ई हो और उससे पहले
अगर वह मर जाए तो उसका या होगा? क ण ने कहा िक ऐसे य का ज म एक ीमान कल म होगा, एक अ छ
प रवार म होगा। जहाँ िपता भी भ ह, माता भी भ ह और उस घर म संत आते ह । ऐसे घर म वातावरण िमल
जाएगा, छोटी आयु म स संग िमल जाएगा और जब उसक बु प रप हो जाएगी, बु समझने क लायक हो
जाएगी, तब उसक साधना िफर से शु हो जाएगी। िपछले ज म म जहाँ से साधना छटी थी, वह से।
जैसे आप अगर डी.वी.डी. लेयर म डी.वी.डी.देख रह ह , िफ म देख रह ह और आपको कछ काम आ जाए तो
आप लेयर बंद करते ह। काम ख म हो गया और वापस आकर िफर से डी.वी.डी. लेयर म ले का बटन दबाया तो
िफ म कहाँ से शु होती ह?बराबर वह से शु होती ह, जहाँ आपने उसे रोका था। अगर आपका डी.वी.डी. लेयर
बनानेवाले इतने अ़ मंद ह तो कित या बेवक़फ ह? कित भी बेवक़फ नह ह, इसिलए आपक साधना एक ज म म
िजतनी होती ह, वह से अगले ज म म िफर शु आत होती ह। मौत या ह? टॉप बटन। िफ म जहाँ पर क थी, उसी
जगह से नए ज म म ले का बटन दबता ह और आगे क कहानी शु होती ह।
यह सबसे आशावादी िवचार ीक ण ने िदया ह। यह वचन उ ह ने तमाम भ और साधक को िदया ह िक कभी
भी िनराश न ह िक ‘मेरा या होगा?’ भरोसा रख, िव ास रख और इस बात क िलए प रह िक आपको मदद िमल
रही ह, आपको अपने जीवन का ल य पूरी करने क िलए सारी श और मता दी जा रही ह। कभी भी ऐसा मत सोच
िक आप अकले ह। जहाँ तक आपक अंदर िवशु भाव हो, िन ा, ईमानदारी हो, तब तक आपको अलग-अलग
य य से सहायता िमलती रहगी, िजनका खुद का िवकास हो चुका हो, जो जा हो चु़क ह ।
भारत म नवराि ब त ज़ोर-शोर से मनाई जाती ह। िपछले कछ साल से हम दुगा-अ मी पर छोटी-छोटी क या
को बुलाते ह। हमार आ म से नज़दीक एक अनाथा म ह, जहाँ पर ि़सफ लड़िकयाँ ह, उ ह भी हम बुलाते ह। इसक
अलावा जो ोता ह, ेमी ह, उनक घर म छोटी क याएँ ह, उ ह बुलाते ह। उन सब क या का पूजन होता ह, उनको
भट दी जाती ह और ब त आनंदपूवक यह उ सव मनाया जाता ह। दुगा-अ मी पर हम दुगा क मूित क पूजा नह
करते। हम ये जो सा ा देिवयाँ ह, उनक पूजा करते ह। इस दुगा अ मी पर हमने संक प िकया था िक कम-से-कम
108 क या ह और 108 क याएँ आ गई थ ।
इन बेिटय म एक ब ी आई थी, जो अभी अपनी माँ क गोद म थी। म उस ब ी को यादा जानती नह , पर
उसक बार म बात कर रही । वैस े तो उस िदन ब त सारी क याएँ थ और हमने कहा था िक सब क चरण धोएँग े तो
कोई उनक पाँव धो रहा था, कोई खाना िखला रहा था, कोई भट दे रहा था। मने कहा िक उन सबको ितलक म क गी
और इसिलए चंदन क कटोरी हाथ म िलये म सब लड़िकय को ितलक कर रही थी। वहाँ पर सब अलग-अलग उ
क लड़िकयाँ थ । दो या छः महीने से लेकर दस-बारह साल तक क क याएँ थ । उ ह म से एक ब ी को हमने
ितलक करने क िलए हाथ बढ़ाया तो आगे से उसने मेरी तऱफ गदन आगे कर दी। जैसे मने ितलक करने क िलए उसक
माथे पर उगली का पश िकया तो उसने तुरत आँख बंद कर ल । अर वाह! और जब मने ितलक िकया तो उसने मेरा
हाथ पकड़ िलया। हाथ पकड़कर मेरी ओर देखने लगी। इतनी छोटी थी िक अभी बोल नह सकती, पर इतने ज़ोर से
मेरा हाथ पकड़ िलया और मेरी ओर देखकर हसना शु कर िदया। उसका हसना ख म ही नह हो रहा था। बस हसती
ही चली जा रही थी। मुझे और क या को भी ितलक करना था तो मुझे उससे हाथ छड़ाना पड़ा। मने कहा, ‘‘म तेर
पास बाद म आ रही ।’’ म िजतनी देर दूसरी लड़िकय को ितलक करती रही, उतनी देर वह मेर सामने देखती रही
और म िजस िदशा म जाऊ, वहाँ मुड़-मुड़कर मुझ े देखती जा रही थी। जैसे, वह सिवलांस कमरा होता ह, उस तरह म
िजस िदशा म जाऊ, उसका िसर उसी िदशा म घूमता रहता था।
उस ब ी को मेर ित इतना लगाव य था? उसे तो ऐसी कोई तालीम नह िमली थी, य िक अभी तो ब त छोटी
ह। ऐसा या था, जो उसे मेर इतनी नज़दीक ला रहा था। अभी भी मुझे उस लड़क क याद आ रही ह और म उसक
बार म बात कर रही । इस बात का े उदाहरण ह िक वह िपछले ज म म साधक थी और अब उस य क यहाँ
जनमी ह, जो मेर करीब हो।
मने उसक माँ से बात क । उसक माँ ने कहा, ‘‘हमार घर म कोई स संग नह सुनता था। जब म गभवती ई, उन
िदन म मने यूँ ही टी.वी.चालू िकया और आपको टी.वी. पर देखा। आपको देखकर मुझे ब त अ छा लगा। उस िदन
मने आपको सुना, बाद म िनयिमत सुनना शु िकया। इस बार आ म से एस.एम.एस. आया िक दुगा-अ मी पर
क या को बुलाया ह तो म अपनी बेटी को लेकर आई और आपसे पहली बार िमल रही ।’’
अब देख िक एक साल पहले उसे स संग या धम म कोई िच नह थी और गभवती होने क बाद टी.वी. देखती ह।
इसे आप संयोग या आक मक घटना कह सकते ह या िफर कह सकते ह िक कित कसे रह यमय ढग से काम करती
ह! वह मिहला मुझ े देखती ह और उसे मुझे सुनना अ छा लगने लगता ह। उसक बाद वह अपने पित को भी देखने को
कहती ह और दोन मुझ े सुनने लगते ह। मने उनसे कहा, ‘आप यहाँ मेर पास नह आए ह, आपक बेटी आपको मुझ
तक लाई ह। यह िनणय आपने नह िकया था िक आप मुझे सुन, यह ब ी आपको ध ा दे रही थी और उसक वजह
से आपक िवचार और आपक पसंद बदली ह।’
यह मन क श ह। अगर हम अपने मन को तालीम देते ह तो िफर वह उसी तरह चलता ह। यह शरीर एक िदन
मर जाएगा। यह िम ी का बना ह और िम ी हो जाएगा, लेिकन मन िम ी का नह बना ह, मन पंचत व का नह ह।
मन यादा सू म ह, मन का तर उ ह, श प ह। इसिलए मन पर ब त अ छी तरह से ि होनी चािहए।
आपका मन या सोचता ह, आपको या चीज़ अ छी लगती ह और य अ छी लगती ह, उसका िवचार करना
चािहए। जो चीज़ करने से आप अ या म से दूर जाते ह, उस काम से आप खुद ही हट जाएँग,े िकसी को कहना नह
पड़गा। जब आप अपने मन पर ि डालने लग जाएँग े तो िकन चीज़ को करने से आपक अंदर स संग क और
साधना क भावना अिधक जगती ह, उस तऱफ आपक िच अपने आप होने लग जाएगी।
म भी कह रही और हमार शा , संत-महा मा भी कह गए ह िक िजन लोग ने ब त पु य-कम िकए ह , उ ह ही
स संग म जाने क , संत या महा मा से जुड़ने क इ छा जागती ह। िज ह ने पु य-कम नह िकए, उ ह ऐसी इ छा कभी
नह होगी। उ ह कभी ऐसा खयाल भी नह आएगा। उ ह अगर आप कह िक चल, स संग सुनने तो वे आपका मज़ाक
उड़ाएँग।े वे कहगे, ‘पागल हो गए हो या? आजकल ब त सार लोग गु बनकर घूम रह ह। यह सब नौटक ह, ये
सब नाटक करते ह, बेवक़फ बनाते ह, पैस े लूटने क िलए आते ह, आप यह कौन से च र म पड़ गए ह! ठीक ह,
कभी मंिदर हो आए, लेिकन ऐसे गु क पीछ-पीछ य घूमते ह?’ दो िदन कोई स संग सुनने लग जाए तो र तेदार
पूछने लगते ह, ‘ या साधु बनने लगे हो?’ अजब बात ह यह। या साधु बनना इतना आसान ह?
मने एक कहानी पढ़ी थी। नरक क बार म ऐसा कहा जाता ह िक वहाँ बड़ी-बड़ी कढ़ाइयाँ होती ह और लोग पकौड़
क तरह तले जाते ह। उन तेल क कढ़ाइय म िकतनी त़कली़फ होती होगी! ज़रा-सा तेल का छ टा या गरम तवे पर
हाथ लग जाए तो िकतनी त़कली़फ होती ह और वे लोग कहते ह िक गरम तेल से भरी ई कढ़ाई म लोग को तला
जाता ह। इस नरक म एक नए-नए नरकवासी का वेश आ तो उसे यह सब िदखाया जा रहा था। एक जगह पर कोड़
मार जा रह थे, कह आँख म क ल चुभोई जा रही थ । उसने देखा िक बाक सब जगह पर तो एक यमदूत मार रहा था
और दो यमदूत पहरा दे रह थे, य िक वह आदमी कह भाग न जाए। अगर भागे तो उसे पकड़कर वापस लाया जाता
था। हर जगह पर सज़ा देनेवाल क तीन-चार क टीम होती ह, लेिकन जहाँ तेल क कढ़ाइयाँ थ , वहाँ पर देख-रख
करनेवाला कोई नह था। यहाँ नए आए नरकवासी ने यमदूत से पूछा िक भैया, यह तो बताओ िक यहाँ देख-रख
रखनेवाला कोई य नह ह? यमदूत ने जवाब िदया, ‘‘िजसको हम इसम डाल देत े ह, उसको अंदर पहले से तले जा
रह जो लोग ह, वही ख च लेत े ह। अगर कोई कढ़ाई से िनकलना चाह तो दस लोग उसे ख चकर वापस ले आते ह िक
तू कहाँ चला?बचकर कसे जाएगा? हम मर रह ह तो तू भी मर।’’ यमदूत ने कहा िक इसिलए यहाँ पर हमने िकसी को
देख-रख क िलए नह रखा। ये पृ वीवासी एक-दूसर को ख च लेत े ह। एक िसंधी को डालो तो चार िसंधी अंदर ख च
लगे। एक गुज़राती को डालो तो दस गुज़राती, जो पहले से ही अंदर बैठ ह, वे ख च लगे। एक िसंधी, एक पटल, एक
खान, एक ऱफ क अंदर बैठा हो तो जो अंदर जाएगा, उसे घेर लगे। कोई भाग नह सकता, इसिलए यहाँ पर देख-रख
क ज़ रत नह ।
दुिनयादार भी यही तो काम कर रह ह। आप कह िक म स संग म जाता , तो वे सोचते ह—अर, स संग से ान
िमल जाएगा, मु हो जाएगा। हम यहाँ दुःख, रोग, शोक, मोह म तड़प रह ह और यह मु हो जाएगा? वे कहते ह
िक ‘चल बेटा, तू भी यह बैठ, कह जाना नह ह।’ अजब बात ह! कोई आदमी शराब पीने शराबखाने म जाए तो प नी
को क नह होता, लेिकन पित स संग म यादा जाने लग जाए तो शक करने लगती ह। य जा रह हो?घर म बैठकर
पाठ नह कर सकते हो? घर म बैठकर कर लो जो करना ह, बाहर कह नह जाना ह। यही संसार क रीत ह। इसिलए
भजन करने क बात आपको कौन िसखाएगा, कौन बताएगा, कौन समझाएगा? कोई भी नह । इसिलए संत क िलए एक
श द इ तेमाल होता ह िक संत हमारा िम होता ह। वह िम , जो हम दुःख, पीड़ा, शोक, रोग, अ ान से बचाता ह और
अपने अंदर िटकने का माग िसखाता ह। भीतर आनंद क ा क य न िसखाता ह, साधना िसखाता ह। संत से बड़ा
िम और कोई हो नह सकता।
मने पहले भी यह भजन गाया था—‘अ ाह बेलूआ’। अ ाह आपक भगवान का दूसरा नाम ह। भगवान क ब त
सार नाम ह, उसी म अ ाह भी उसका ही एक नाम ह। ‘बेलूआ’ श द आया ह बेली से। पंजाबी भाषा म यार को,
िम को ‘बेली’ कहते ह और डोगरी भाषा म ‘बेलूआ’ कहते ह। इस भजन म कहा ह िक परमा मा आपका िम ह,
अ य कोई आपका िम हो नह सकता, य िक बाक सब दो त बाहर ह। यह दो त भीतर ही रहता ह। बाक सब दूर ह
तो फोन करना पड़ता ह, एस.एम.एस. करना पड़ता ह। आप त़कली़फ म ह तो दो त को बुलाने क िलए मेहनत करनी
पड़ती ह और वह उपल ध न हो, ऐसा भी हो सकता ह। संभव ह िक नेटवक न हो या फोन म बै ी ख म हो गई हो।
ऐसी प र थित हो तो िफर अपने िम को कसे बुलाएँग?े इसिलए मने यह गीत िलखा। वैस े तो मुझ े ऐसा नह कहना
चािहए िक मने िलखा, ब क यह गीत मुझ म उतरा। यह गीत कहता ह िक मेरा दो त मुझम ही बसता ह और मुझ े उसे
एस.एम.एस. या फोन नह करना पड़ता िक मेर पास आ।
अपने इस परमिम क साथ आप मै ी िजतनी गहरी करते जाएँग,े उतना ही मन का जागरण और, और अिधक होता
जाएगा। िजतना-िजतना अंतर रस जगता चला जाएगा, उतनी-उतनी बाहर क दौड़ ख म होगी। भीतर िजतना िटक
जाएँग,े संसार क सब काय और यवहार आसान होते जाएँग।े िफर तो यह संसार खेल ही ह, तो खेल खेलने म आपको
या त़कली़फ ह? अभी आप इस खेल को सच समझ रह ह, इसिलए त़कली़फ ह। िजस िदन यह खेल आपको खेल
िदखने लग जाएगा, उस िदन हर मु कल, हर सम या, हर बीमारी को एक खेल समझने लग जाएँग।े
मेर प रचय म एक ी संत थ । उनका नाम वामी आ म योित था। हम यू ँ कह सकते ह िक जब ब त छोट ब े
थे, तब उनक गोद म ब त खेले ह। िफर जब वष बाद मेरी उनसे िफर मुला़कात ई तो वे ब त बूढ़ी हो गई थ और
बीमार भी थ । वे ब त समय से िब तर म ही थ और चल भी नह पा रही थ । वे ब त सरल थ और भ लोग ेम
क नाम पर इतना दुराचार कर डालते ह अपने गु और संत क साथ। वे चल नह पा रही थ , लेिकन उनक चेल ने
यादा यान उनक खाने-पीने म ही रखा था तो उनका शरीर थोड़ा थूल हो गया था। जब म उनसे िमलने गई तो वे
अ पताल म थ । उनक फफड़ म पानी भर गया था। मुझे देखते ही जैसे उनक आदत थी, कहने लग , ‘आओ
लालजी, आओ मेर गोपालजी, आओ मेर यामजी’ ऐसे जैसे कोई गीत गाते ह , वैसे वागत करती थ । ब त यार से
गले िमल और िफर मुझसे कहने लग , शरीर ब त क म ह। उ ह ने कहा िक िपछले छः महीने से िब तर पर ही ।
मल-मू भी यह पर होता ह। िब कल खड़ी नह हो सकती थी। इतनी त़कली़फ म थ , िफर भी हसती थ । हसते-हसते
मुझसे कहने लग , ‘हम तो िफर से बालक हो गए ह। देखो शौच भी िब तर म करते ह, खाना भी िब तर म करते ह’’
इस त़कली़फ को भी मज़ाक म ले रही थ । एक िदन म उ ह िकतने टीक लगाए जा रह थे, दवाइयाँ चल रही थ ,
लूकोज लगा था, लेिकन उनक चेहर पर ज़रा भी क , त़कली़फ का एक अंश भी मुझे नह िदखता था। िजतनी देर म
बैठी, उतनी देर हसते रह, मज़ाक करते रह। उ ह ने कहा, ‘अ छा, कछ गाकर सुना’ तो मने भजन सुनाया और उसे
सुनकर इतनी खुश हो रही थ ! िब तर पर बैठ-बैठ ही झूम रही थ । जब चल पाती थ , तब हमने देखा था िक खूब
नाचती थ । अब नाच नह सकत तो बैठ-बैठ झूम रही थ ।
थोड़ी देर बाद उ ह ने कहा िक ‘सब दवाइयाँ हटाओ और मुझे बैठाओ।’ पीछ िसरहाने लगाकर उनको िबठाया और
वे ब त देर तक मुझसे बात करती रह । उनका रग गोरा था और चेहरा लाल था। बीमारी म भी बीमार नह लग रही थ ।
शरीर भले उनका खराब और रोगी हो गया था, लेिकन मन श शाली था। उनका मन इतने आनंद म था िक हस रही
थ , मज़ाक कर रही थ । अपने चेल से कह रही थ िक यह मेरी गोद म खेली ह। इसे लोग ‘गु माँ’ कहकर बुलाते ह,
पर यह मेरी गोद म खेलती थी। इतना ेम बरसा रही थ िक लग रहा था िक सच म ऐसा हो सकता ह!
म असामा य और िविश रही । पता नह य , पर मुझ े इतना यार संत से िमला ह, िजतना र तेदार ने कभी नह
िदया। र तेदार तो आपक भी देख ल, वैसे ही ह। वैस े ही सड़ ए जैसे हमार ह। आपक कोई अलग थोड़ ही ह! सामने
तो मौसीजी-मौसीजी कहगे, पर पीछ से कहगे आ गई मरदूद! पता नह यह काली-कलूटी मेरी चीज़ को नज़र लगाएगी।
सामने तारीफ करते ह िक ‘आइए चाचीजी कसी ह?’ और िफर तुरत पूछगे, ‘वापसी कब ह?’ अभी तो आए ह, पर
तुरत पूछगे, िकतने िदन का काय म ह? र तेदार तो ऐसे ही होते ह, लेिकन िजतना िन छल ेम, सागर जैसा ेम,
िजतना हमने संत से ा िकया ह, उतना जीवन म कभी िकसी और से ा नह आ।
लोग क ेम म खोट ह, भावना म खोट ह, िदल म खोट ह। जो खुद खोट ह, वे यार भी खोटा ही करगे न! जो
खुद स े होते ह, उनका यार भी स ा होता ह। इस स े ेम क बरसात म हम भीगे तो साधना सीखनी नह पड़ी, यूँ
ही आ गई। कछ करना थोड़ ही पड़ा, सबकछ यू ँ ही हो गया।
जीवन क तीन विणम िनयम क बात मने पहले कही थी, उसम तीसरा िनयम ह, अपने गु क ेम म रह। अगर
आपक जीवन म ऐसा कोई रहबर ह तो उ ह ि़सफ सुन मत, अपना मन उनक साथ बाँध ल। दुिनया क साथ मन को
बाँधा तो मन और िगरता ह, लेिकन जब संत क साथ मन बँधता ह तो मन मु हो जाता ह। दोन बंधन ह, लेिकन एक
बंधन हम और नीचे िगराता ह, पर एक बंधन हम मो क माग पर ले जाता ह। इसिलए यह ब त ज़ री ह िक आप इन
तीन विणम िनयम का पालन कर, िजनक बात मने िव तारपूवक क ह। पहला िनयम, सूय दय क पूव जाग और
योगासन कर। दूसरा िनयम, मं क साथ ाणायाम कर और तीसरा िनयम, अपने गु क ेम म रह।
इस पूरी ंखला ारा आपक भीतर िद य ेम क ित आकषण और जगाने का मेरा यास था। अगर म यह करने
म सफल रही तो आप इस माग पर चल सक और भीतर या ा कर सक, इसिलए आपको सीखना होगा। उसक िलए
आपको साधना िशिवर म आना होगा। िशिवर म म जो िसखाऊगी, वह आसान नह होगा; लेिकन िजतना संभव होगा,
उतना आसान बनाने क मेरी कोिशश होगी। म आपको भरोसा िदलाती िक अगर छः साल का ब ा यान करना
सीख सकता ह तो आप तो िन त ही सीख पाएँगे। आप तो सब पढ़-िलखे, सुिशि त लोग ह तो आपक िलए तो वह
मु कल नह ही होगा।
ग ौर म मेर आ म म आप आ सकते ह, लेिकन िकसी कारणवश अगर वहाँ तक नह प च पाते ह तो कछ
रकाडड सी.डी.ह, िजनक साथ आप यान म बैठ सकते ह। जैसे— णव, ऊजा, िन य यान। सी.डी. क थम भाग
म समझाया जाता ह िक कसे बैठना ह, या करना ह और कसे करना ह! अपना मोबाइल फोन बंद कर, घर क दरवाज़े
क घंटी बंद कर और आसन लगाकर अपने एकांत क जंगल म बैठ जाएँ। सी.डी.शु कर और सूचना क अनुसार
करते जाएँ।
िजन लोग का मन ब त उदास रहता हो, ब त गु सा आता हो, मूड ज दी बदलते रहते ह , उ ह ‘ऊजा यान’ करना
चािहए। िज ह न द ठीक से न आती हो, ावीय असंतुलन हो, उ र चाप रहता हो, वे ‘िन य यान’ या
‘योगिन ा’ से शु कर तो बेहतर ह। जो िव ाथ ह, पढ़ रह ह, िज ह एका होने म मु कल हो रही ह, उनक िलए
‘ ाटक िविध’ ब त उपयोगी होगी। जो अभी मं क साथ काम करना चाहते ह, उनक िलए ‘राम मं ’, ‘क ण मं ’,
‘िशव मं ’, ‘वाहगु मं ’ ह। इनम से िकसी एक मं क साथ बैठ। िफर से कह दूँ, यह ब त आसान ह, य िक
सी.डी. म िकस तरह मं करना ह, उसक िविध दी गई ह।
स संग सुनते रहना भी उतना ही ज़ री ह। िजतना आप स संग सुनगे, उतनी आपक उ ित होगी। हमारी वेबसाइट
www.gurumaa.com पर ब त सार वीिडयो उपल ध ह। भगव ीता, गु गीता, शंकराचाय का आ मष क इ यािद
िविवध ंथ और शा पर हमने चचा क ह। िफर भी आपको कछ समझना हो, कोई न हो तो आप ई-मेल से पूछ
सकते ह। हमारी ओर से जो कछ हो सकता ह, हम कर रह ह, ज़ रत ह आपक ओर से हाथ बढ़ाने क । म आपको
सबसे क मती, अ ुत और िद य भट देने क िलए उ सुक , पर पता नह , आप उसे वीकार य नह करते?
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