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गन

ु ाह का देवता
धमवीर भारती

धमवीर भारती के इस उप यास का काशन और इसके ित पाठक का अटूट स मोहन िह दी


सािह य-जगत् क एक बड़ी उपलि ध बन गये ह दरअसल, यह उप यास हमारे समय म
भारतीय भाषाओं क सबसे अिधक िबकने वाली लोकि य सािहि यक पु तक म पहली पंि म
है लाख -लाख पाठक के िलए ि य इस अनठ ू े उप यास क माँग आज भी वैसी ही बनी हई है
जैसी िक उसके काशन के ारि भक वष म थी –और इस सबका बड़ा कारण शायद एक
समथ रचनाकार क कोई अ य पीड़ा और एका त आ था है, िजसने इस उप यास को एक
अि तीय कृित बना िदया है
थम ख ड
1
अगर पुराने जमाने क नगर-देवता क और ाम-देवता क क पनाएँ आज भी मा य होत तो म
कहता िक इलाहाबाद का नगर-देवता ज र कोई रोमैि टक कलाकार है ऐसा लगता है िक इस
शहर क बनावट, गठन, िजंदगी और रहन-सहन म कोई बँधे-बँधाये िनयम नह , कह कोई
कसाव नह , हर जगह एक व छ द खुलाव, एक िबखरी हई-सी अिनयिमतता बनारस क
गिलय से भी पतली गिलयाँ और लखनऊ क सडक़ से चौड़ी सडक़ याकशायर और ाइटन
के उपनगर का मक ु ाबला करने वाले िसिवल लाइ स और दलदल क ग दगी को मात करने
वाले महु ले मौसम म भी कह कोई सम नह , कोई स तल ु न नह सुबह मलयजी, दोपहर
अंगारी, तो शाम रे शमी! धरती ऐसी िक सहारा के रे िग तान क तरह बालू भी िमले, मालवा क
तरह हरे -भरे खे त भी िमल और ऊसर और परती क भी कमी नह सचमच ु लगता है िक याग
का नगर-देवता वग-कंु ज से िनवािसत कोई मनमौजी कलाकार है िजसके सज ृ न म हर रं ग के
डोरे ह
और चाहे जो हो, मगर इधर वार, काितक तथा उधर वस त के बाद और होली के बीच के मौसम
से इलाहाबाद का वातावरण नै टिशयम और पजी के फूल से भी यादा खबू सरू त और आम के
बौर क खुशबू से भी यादा महकदार होता है िसिवल लाइ स हो या अ े ड पाक, गंगातट
हो या खुस बाग, लगता है िक हवा एक नटखट दोशीजा क तरह किलय के आँचल और लहर
के िमजाज से छे डख़ानी करती चलती है और अगर आप सद से बहत नह डरते तो आप जरा
एक ओवरकोट डालकर सुबह-सुबह घम ू ने िनकल जाएँ तो इन खुली हई जगह क िफजाँ
इठलाकर आपको अपने जादू म बाँध लेगी खासतौर से पौ फटने के पहले तो आपको एक
िब कुल नयी अनुभिू त होगी वस त के नये-नये मौसमी फूल के रं ग से मक ु ाबला करने वाली
ह क सुनहली, बाल-सय ू क अँगिु लयाँ सुबह क राजकुमारी के गल ु ाबी व पर िबखरे हए
भ राले गेसुओ ं को धीरे -धीरे हटाती जाती ह और ि ितज पर सुनहली त णाई िबखर पड़ती है
एक ऐसी ही खुशनुमा सुबह थी, और िजसक कहानी म कहने जा रहा हँ , वह सुबह से भी यादा
मासम ू युवक, भाती गाकर फूल को जगाने वाले देवदत ू क तरह अ े ड पाक के लॉन पर
फूल क सरजम के िकनारे -िकनारे घम ू रहा था क थई वीटपी के रं ग का प मीने का ल बा
कोट, िजसका एक कालर उठा हआ था और दस ू रे कालर म सरो क एक प ी बटन होल म लगी
हई थी, सफेद म खन जीन क पतली पट और पैर म सफेद जरी क पे शावरी सैि डल, भरा हआ
गोरा चे हरा और ऊँचे चमकते हए माथे पर झल ू ती हई एक खी भरू ी लट चलते-चलते उसने
एक रं ग-िबरं गा गु छा इक ा कर िलया था और रह-रह कर वह उसे सँघ ू लेता था
परू ब के आसमान क गल ु ाबी पाँखु रयाँ िबखरने लगी थ और सुनहले पराग क एक बौछार
सुबह के ताजे फूल पर िबछ रही थी “अरे सुबह हो गयी?” उसने च ककर कहा और पास क
एक बच पर बैठ गया सामने से एक माली आ रहा था “ य जी, लाइ रे ी खुल गयी?” “अभी
नह बाबज ू ी!” उसने जवाब िदया वह िफर स तोष से बैठ गया और फूल क पाँखु रयाँ
नोचकर नीचे फकने लगा जमीन पर िबछाने वाली सोने क चादर परत पर परत िबछाती जा
रही थी और पे ड़ क छायाओं का रं ग गहराने लगा था उसक बच के नीचे फूल क चुनी हई
पि याँ िबखरी थ और अब उसके पास िसफ एक फूल बाक रह गया था हलके फालसई रं ग के
उस फूल पर गहरे बजनी डोरे थे
“हलो कपरू !” सहसा िकसी ने पीछे से क धे पर हाथ रखकर कहा, “यहाँ या झक मार रहे हो
सुबह-सुबह?”
उसने मड ु क़र पीछे देखा, “आओ, ठाकुर साहब! आओ बैठो यार, लाइ रे ी खुलने का इ तजार कर
रहा हँ ”
“ य , यिू नविसटी लाइ रे ी चाट डाली, अब इसे तो शरीफ लोग के िलए छोड़ दो!”
“हाँ, हाँ, शरीफ लोग ही के िलए छोड़ रहा हँ ; डॉ टर शु ला क लड़क है न, वह इसक मे बर
बनना चाहती थी तो मझ ु े आना पड़ा, उसी का इ तजार भी कर रहा हँ ”
“डॉ टर शु ला तो पॉिलिट स िडपाटमट म ह?”
“नह , गवनमट साइकोलॉिजकल यरू ो म ”
“और तम ु पॉिलिट स म रसच कर रहे हो?”
“नह , इकनॉिम स म!”
“बहत अ छे ! तो उनक लड़क को सद य बनवाने आये हो?” कुछ अजब वर म ठाकुर ने
कहा
“िछः!” कपरू ने हँ सते हए, कुछ अपने को बचाते हए कहा, “यार, तम ु जानते हो िक मेरा उनसे
िकतना घरे लू स ब ध है जब से म याग म हँ , उ ह के सहारे हँ और आजकल तो उ ह के
यहाँ पढ़ता-िलखता भी हँ ... ”
ठाकुर साहब हँ स पड़े , “अरे भाई, म डॉ टर शु ला को जानता नह या? उनका-सा भला
आदमी िमलना मिु कल है तम ु सफाई यथ म दे रहे हो ”
ठाकुर साहब यिू नविसटी के उन िव ािथय म से थे जो बरायनाम िव ाथ होते ह और कब तक वे
यिू नविसटी को सुशोिभत करते रहगे, इसका कोई िन य नह एक अ छे -खासे पये वाले
यि थे और घर के ता लुकेदार हँ समख ु , फि तयाँ कसने म मजा लेने वाले, मगर िदल के
साफ, िनगाह के स चे बोले-
“एक बात तो म वीकार करता हँ िक तु हारी पढ़ाई का सारा य े डॉ. शु ला को है! तु हारे घर
वाले तो कुछ खचा भे जते नह ?”
“नह , उनसे अलग ही होकर आया था समझ लो िक इ ह ने िकसी-न-िकसी बहाने मदद क
है ”
“अ छा, आओ, तब तक लोटस-प ड (कमल-सरोवर) तक ही घम ू ल िफर लाइ रे ी भी खुल
जाएगी!”
दोन उठकर एक कृि म कमल-सरोवर क ओर चल िदये जो पास ही म बना हआ था सीिढय़ाँ
चढक़र ही उ ह ने देखा िक एक स जन िकनारे बैठे कमल क ओर एकटक देखते हए यान म
त लीन ह िछपकली से दुबले-पतले, बाल क एक लट माथे पर झम ू ती हई-
“कोई ेमी ह, या कोई िफलासफर ह, देखा ठाकुर?”
“नह यार, दोन से िनकृ कोिट के जीव ह-ये किव ह म इ ह जानता हँ ये रवी
िबस रया ह एम. ए. म पढ़ता है आओ, िमलाएँ तु ह!”
ठाकुर साहब ने एक बड़ा-सा घास का ितनका तोडक़र पीछे से चुपके-से जाकर उसक गरदन
गदु गदु ायी िबस रया च क उठा-पीछे मड ु क़र देखा और िबगड़ गया-”यह या बदतमीजी है,
ठाकुर साहब! म िकतने ग भीर िवचार म डूबा था ” और सहसा बड़े िविच वर म आँख ब द
कर िबस रया बोला, “आह! कैसा मनोरम भात है! मेरी आ मा म घोर अनुभिू त हो रही थी... ”
कपरू िबस रया क मु ा पर ठाकुर साहब क ओर देखकर मस ु कराया और इशारे म बोला, “है
यार शगल क चीज छे ड़ो जरा!”
ठाकुर साहब ने ितनका फक िदया और बोले, “माफ करना, भाई िबस रया! बात यह है िक हम
लोग किव तो ह नह , इसिलए समझ नह पाते या सोच रहे थे तम
ु ?”
िबस रया ने आँख खोल और एक गहरी साँस लेकर बोला, “म सोच रहा था िक आिखर ेम या
होता है, य होता है? किवता य िलखी जाती है? िफर किवता के सं ह उतने य नह
िबकते िजतने उप यास या कहानी-सं ह?”
“बात तो ग भीर है ” कपरू बोला, “जहाँ तक मने समझा और पढ़ा है- ेम एक तरह क बीमारी
होती है, मानिसक बीमारी, जो मौसम बदलने के िदन म होती है, मसलन वार-काितक या
फागन ु -चैत उसका स ब ध रीढ़ क हड्डी से होता है और किवता एक तरह का सि नपात
होता है मेरा मतलब आप समझ रहे ह, िम. िसब रया?”
“िसब रया नह , िबस रया?” ठाकुर साहब ने टोका
िबस रया ने कुछ उजलत, कुछ परे शानी और कुछ गु से से उनक ओर देखा और बोला, “ मा
क िजएगा, आप या तो ायडवादी ह या गितवादी और आपके िवचार सवदा िवदेशी ह म इस
तरह के िवचार से घण ृ ा करता हँ ... ”
कपरू कुछ जवाब देने ही वाला था िक ठाकुर साहब बोले, “अरे भाई, बेकार उलझ गये तम ु लोग,
पहले प रचय तो कर लो आपस म ये ह ी च कुमार कपरू , िव िव ालय म रसच कर रहे ह
और आप ह ी रवी िबस रया, इस वष एम. ए. म बैठ रहे ह बहत अ छे किव ह ”
कपरू ने हाथ िमलाया और िफर ग भीरता से बोला, “ य साहब, आपको दुिनया म और कोई
काम नह रहा जो आप किवता करते ह?”
िबस रया ने ठाकुर साहब क ओर देखा और बोला, “ठाकुर साहब, यह मेरा अपमान है, म इस
तरह के सवाल का आदी नह हँ ” और उठ खड़ा हआ
“अरे बैठो-बैठो!” ठाकुर साहब ने हाथ ख चकर िबठा िलया, “देखो, कपरू का मतलब तम ु समझे
नह उसका कहना यह है िक तम ु म इतनी ितभा है िक लोग तु हारी ितभा का आदर करना
नह जानते इसिलए उ ह ने सहानुभिू त म तम ु से कहा िक तम ु और कोई काम य नह
करते वरना कपरू साहब तु हारी किवता के बहत शौक न ह मझ ु से बराबर तारीफ करते
ह ”
िबस रया िपघल गया और बोला, “ मा क िजएगा मने गलत समझा, अब मेरा किवता-सं ह
छप रहा है, म आपको अव य भट क ँ गा ” और िफर िबस रया ठाकुर साहब क ओर मड ु क़र
बोला, “अब लोग मेरी किवताओं क इतनी माँग करते ह िक म परे शान हो गया हँ अभी कल
'ि वेणी' के स पादक िमले कहने लगे अपना िच दे दो मने कहा िक कोई िच नह है तो
पीछे पड़ गये आिखरकार मने आइडे ि टटी काड उठाकर दे िदया!”
“वाह!” कपरू बोला, “मान गये आपको हम! तो आप रा ीय किवताएँ िलखते ह या ेम क ?”
“जब जैसा अवसर हो!” ठाकुर साहब ने जड़ िदया, “वैसे तो यह वार ट का किव-स मेलन,
शराबब दी कॉ े स का किव-स मेलन, शादी- याह का किव-स मेलन, सािह य-स मेलन
का किव-स मेलन सभी जगह बुलाये जाते ह बड़ा यश है इनका!”
िबस रया ने शंसा से मु ध होकर देखा, मगर िफर एक गव का भाव महँु पर लाकर ग भीर हो
गया
कपरू थोड़ी देर चुप रहा, िफर बोला, “तो कुछ हम लोग को भी सुनाइए न!”
“अभी तो मड ू नह है ” िबस रया बोला
ठाकुर साहब िबस रया को िपछले पाँच साल से जानते थे, वे अ छी तरह जानते थे िक िबस रया
िकस समय और कैसे किवता सुनाता है अत: बोले, “ऐसे नह कपरू , आज शाम को आओ
ज़रा गंगाजी चल, कुछ बोिटंग रहे , कुछ खाना-पीना रहे तब किवता भी सुनना!”
कपरू को बोिटंग का बेहद शौक था फौरन राजी हो गया और शाम का िव ततृ काय म बन
गया
इतने म एक कार उधर से लाइ रे ी क ओर गज ु री कपरू ने देखा और बोला, “अ छा, ठाकुर
साहब, मझ ु े तो इजाजत दीिजए अब चलँ ू लाइ रे ी म वो लोग आ गये आप कहाँ चल रहे
ह?”
“म ज़रा िजमखाने क ओर जा रहा हँ अ छा भाई, तो शाम को प क रही ”
“िब कुल प क !” कपरू बोला और चल िदया
लाइ रे ी के पोिटको म कार क थी और उसके अ दर ही डॉ टर साहब क लड़क बैठी थी
“ य सुधा, अ दर य बैठी हो?”
“तु ह ही देख रही थी, च दर ” और वह उतर आयी दुबली-पतली, नाटी-सी, साधारण-सी
लड़क , बहत सु दर नह , केवल सु दर, लेिकन बातचीत म बहत दुलारी
“चलो, अ दर चलो ” च दर ने कहा
वह आगे बढ़ी, िफर िठठक गयी और बोली, “च दर, एक आदमी को चार िकताब िमलती ह?”
“हाँ! य ?”
“तो...तो...” उसने बड़े भोलेपन से मसु कराते हए कहा, “तो तम
ु अपने नाम से मे बर बन जाओ
और दो िकताब हम दे िदया करना बस, यादा का हम या करगे?”
“नह !” च दर हँ सा, “तु हारा तो िदमाग खराब है खुद य नह बनत मे बर?”
“नह , हम शरम लगती है, तम ु बन जाओ मे बर हमारी जगह पर ”
“पगली कह क !” च दर ने उसका क धा पकडक़र आगे ले चलते हए कहा, “वाह रे शरम!
अभी कल याह होगा तो कहना, हमारी जगह तम ु बैठ जाओ च दर! कॉलेज म पहँ च गयी
लड़क ; अभी शरम नह छूटी इसक ! चल अ दर!”
और वह िहचकती, िठठकती, झपती और मड़ ु -मडु क़र च दर क ओर ठी हई िनगाह से देखती
हई अ दर चली गयी
थोड़ी देर बाद सुधा चार िकताब लादे हए िनकली कपरू ने कहा, “लाओ, म ले लँ!ू ” तो बाँस
क पतली टहनी क तरह लहराकर बोली, “सद य म हँ तु ह य दँू िकताब?” और जाकर
कार के अ दर िकताब पटक द िफर बोली, “आओ, बैठो, च दर!”
“म अब घर जाऊँगा ”
“ऊँहँ , यह देखो!” और उसने भीतर से कागज का एक बंडल िनकाला और बोली, “देखो, यह
पापा ने तु हारे िलए िदया है लखनऊ म कॉ े स है न वह पढऩे के िलए यह िनब ध
िलखा है उ ह ने शाम तक यह टाइप हो जाना चािहए जहाँ सं याएँ ह वहाँ खुद आपको
बैठकर बोलना होगा और पापा सुबह से ही कह गये ह समझे जनाब!” उसने िब कुल
अ हड़ ब च क तरह गरदन िहलाकर शोख वर म कहा
कपरू ने बंडल ले िलया और कुछ सोचता हआ बोला, “लेिकन डॉ टर साहब का ह तलेख, इतने
प ृ , शाम तक कौन टाइप कर देगा?”
“इसका भी इ तजाम है,” और अपने लाउज म से एक प िनकालकर च दर के हाथ म देती हई
बोली, “यह कोई पापा क पुरानी ईसाई छा ा है टाइिप ट इसके घर म तु ह पहँ चाये देती
हँ मक ु ज रोड पर रहती है यह उसी के यहाँ टाइप करवा लेना और यह खत उसे दे देना ”
“लेिकन अभी मने चाय नह पी ”
“समझ गये, अब तम ु सोच रहे होगे िक इसी बहाने सुधा तु ह चाय भी िपला देगी सो मेरा काम
नह है जो म चाय िपलाऊँ? पापा का काम है यह! चलो, आओ!”
च दर जाकर भीतर बैठ गया और िकताब उठाकर देखने लगा, “अरे , चार किवता क िकताब
उठा लायी-समझ म आएँ गी तु हारे ? य , सुधा?”
“नह !” िचढ़ाते हए सुधा बोली, “तम ु कहो, तु ह समझा द इकनॉिम स पढऩे वाले या जान
सािह य?”
“अरे , मक ु ज रोड पर ले चलो, ाइवर!” च दर बोला, “इधर कहाँ चल रहे हो?”
“नह , पहले घर चलो!” सुधा बोली, “चाय पी लो, तब जाना!”
“नह , म चाय नह िपऊँगा ” च दर बोला
“चाय नह िपऊँगा, वाह! वाह!” सुधा क हँ सी म दिू धया बचपन छलक उठा-”महँु तो सख ू कर
गोभी हो रहा है, चाय नह िपएँ गे ”
बँगला आया तो सुधा ने महरािजन से चाय बनाने के िलए कहा और च दर को टडी म म
िबठाकर याले िनकालने के िलए चल दी
2

वैसे तो यह घर, यह प रवार च कपरू का अपना हो चुका था; जब से वह अपनी माँ से झगडक़र
याग भाग आया था पढऩे के िलए, यहाँ आकर बी. ए. म भरती हआ था और कम खच के
खयाल से चौक म एक कमरा लेकर रहता था, तभी डॉ टर शु ला उसके सीिनयर टीचर थे और
उसक प रि थितय से अवगत थे च दर क अँ ेजी बहत ही अ छी थी और डॉ. शु ला उससे
अ सर छोटे -छोटे लेख िलखवाकर पि काओं म िभजवाते थे उ ह ने कई प के आिथक
त भ का काम च दर को िदलवा िदया था और उसके बाद च दर के िलए डॉ. शु ला का थान
अपने संर क और िपता से भी यादा हो गया था च दर शरमीला लड़का था, बेहद शरमीला,
कभी उसने यिू नविसटी के वजीफे के िलए भी कोिशश न क थी, लेिकन जब बी. ए. म वह सारी
यिू नविसटी म सव थम आया तब वयं इकनॉिम स िवभाग ने उसे यिू नविसटी के आिथक
काशन का वैतिनक स पादक बना िदया था एम. ए. म भी वह सव थम आया और उसके
बाद उसने रसच ले ली उसके बाद डॉ. शु ला यिू नविसटी से हटकर यरू ो म चले गये थे
अगर सच पछ ू ा जाय तो उसके सारे कै रयर का ये डॉ. शु ला को था िज ह ने हमेशा उसक
िह मत बढ़ायी और उसको अपने लड़के से बढक़र माना अपनी सारी मदद के बावजदू डॉ.
शु ला ने उससे इतना अपनापन बनाये रखा िक कैसे धीरे -धीरे च दर सारी गै रयत खो बैठा;
यह उसे खुद नह मालम ू यह बँगला, इसके कमरे , इसके लॉन, इसक िकताब, इसके िनवासी,
सभी कुछ जैसे उसके अपने थे और सभी का उससे जाने िकतने ज म का स ब ध था
और यह न ही दुबली-पतली रं गीन च िकरन-सी सुधा जब आज से वष पहले यह सातव
पास करके अपनी बुआ के पास से यहाँ आयी थी तब से लेकर आज तक कैसे वह भी च दर क
अपनी होती गयी थी, इसे च दर खुद नह जानता था जब वह आयी थी तब वह बहत शरमीली
थी, बहत भोली थी, आठव म पढऩे के बावजदू वह खाना खाते व रोती थी, मचलती थी तो
अपनी कॉपी फाड़ डालती थी और जब तक डॉ टर साहब उसे गोदी म िबठाकर नह मनाते थे,
वह कूल नह जाती थी तीन बरस क अव था म ही उसक माँ चल बसी थी और दस साल
तक वह अपनी बुआ के पास एक गाँव म रही थी अब तेरह वष क होने पर गाँव वाल ने
उसक शादी पर जोर देना और शादी न होने पर गाँव क औरत ने हाथ नचाना और महँु
मटकाना शु िकया तो डॉ टर साहब ने उसे इलाहाबाद बुलाकर आठव म भत करा िदया
जब वह आयी थी तो आधी जंगली थी, तरकारी म घी कम होने पर वह महरािजन का चौका जठ ू ा
कर देती थी और रात म फूल तोडक़र न लाने पर अकसर उसने माली को दाँत भी काट खाया
था च दर से ज र वह बेहद डरती थी, पर न जाने य च दर भी उससे नह बोलता था
लेिकन जब दो साल तक उसके ये उप व जारी रहे और अ सर डॉ टर साहब गु से के मारे उसे
न साथ िखलाते थे और न उससे बोलते थे, तो वह रो-रोकर और िसर पटक-पटककर अपनी
जान आधी कर देती थी तब अ सर च दर ने िपता और पु ी का समझौता कराया था, अ सर
सुधा को डाँटा था, समझाया था, और सुधा, घर-भर से अ हड़ पुरवाई और िव ोही झ के क तरह
तोड़-फोड़ मचाती रहने वाली सुधा, च दर क आँख के इशारे पर सुबह क नसीम क तरह
शा त हो जाती थी कब और य उसने च दर के इशार का यह मौन अनुशासन वीकार कर
िलया था, यह उसे खुद नह मालम ू था, और यह सभी कुछ इतने वाभािवक ढंग से, इतना
अपने -आप होता गया िक दोन म से कोई भी इस ि या से वािकफ नह था, कोई भी इसके
ित जाग क न था, दोन का एक-दस ू रे के ित अिधकार और आकषण इतना वाभािवक था
जैसे शरद क पिव ता या सुबह क रोशनी
और मजा तो यह था िक च दर क श ल देखकर िछप जाने वाली सुधा इतनी ढीठ हो गयी थी
िक उसका सारा िव ोह, सारी झझ ँु लाहट, िमजाज क सारी तेजी, सारा तीखापन और सारा
लड़ाई-झगड़ा, सभी क तरफ से हटकर च दर क ओर केि त हो गया था वह िव ोिहनी अब
शा त हो गयी थी इतनी शा त, इतनी सुशील, इतनी िवन , इतनी िम भािषणी िक सभी को
देखकर ता जुब होता था, लेिकन च दर को देखकर जैसे उसका बचपन िफर लौट आता था और
जब तक वह च दर को िखझाकर, छे डक़र लड़ नह लेती थी उसे चैन नह पड़ता था अ सर
दोन म अनबोला रहता था, लेिकन जब दो िदन तक दोन महँु फुलाये रहते थे और डॉ टर
साहब के लौटने पर सुधा उ साह से उनके यरू ो का हाल नह पछ ू ती थी और खाते व दुलार
नह िदखाती थी तो डॉ टर साहब फौरन पछ ू ते थे, “ या... च दर से लड़ाई हो गयी या?” िफर
वह महँु फुलाकर िशकायत करती थी और िशकायत भी या- या होती थ , च दर ने उसक हे ड
िम े स का नाम एलीफटा ( ीमती हिथनी) रखा था, या च दर ने उसको िडबेट के भाषण के
वाइंट नह बताये, या च दर कहता है िक सुधा क सिखयाँ कोयला बेचती ह, और जब डॉ टर
साहब कहते ह िक वह च दर को डाँट दगे तो वह खुशी से फूल उठती और च दर के आने पर
आँख नचाती हई िचढ़ाती थी, “कहो, कैसी डाँट पड़ी?”
वैसे सुधा अपने घर क पुरिखन थी िकस मौसम म कौन-सी तरकारी पापा को मािफक पड़ती
है, बाजार म चीज का या भाव है, नौकर चोरी तो नह करता, पापा िकतने सोसायिटय के
मे बर ह, च दर के इ नॉिम स के कोस म या है, यह सभी उसे मालम ू था मोटर या िबजली
िबगड़ जाने पर वह थोड़ी-बहत इंजीिनय रं ग भी कर लेती थी और मात ृ व का अंश तो उसम
इतना था िक हर नौकर और नौकरानी उससे अपना सुख-दु:ख कह देते थे पढ़ाई के साथ-
साथ घर का सारा काम-काज करते हए उसका वा य भी कुछ िबगड़ गया था और अपनी उ
के िहसाब से कुछ अिधक शा त, संयम, ग भीर और बुजुग थी, मगर अपने पापा और च दर, इन
दोन के सामने हमेशा उसका बचपन इठलाने लगता था दोन के सामने उसका दय उ मु
था और ने ह बाधाहीन
लेिकन हाँ, एक बात थी उसे िजतना ने ह और ने ह-भरी फटकार और वा य के ित
िच ता अपने पापा से िमलती थी, वह सब बड़े िन: वाथ भाव से वह च दर को दे डालती थी
खाने -पीने क िजतनी परवाह उसके पापा उसक रखते थे, न खाने पर या कम खाने पर उसे
िजतने दुलार से फटकारते थे, उतना ही याल वह च दर का रखती थी और वा य के िलए
जो उपदेश उसे पापा से िमलते थे, उसे और भी ने ह म पागकर वह च दर को दे डालती थी
च दर कै बजे खाना खाता है, यहाँ से जाकर घर पर िकतनी देर पढ़ता है, रात को सोते व दध ू
पीता है या नह , इन सबका लेखा-जोखा उसे सुधा को देना पड़ता, और जब कभी उसके खाने -
पीने म कोई कमी रह जाती तो उसे सुधा क डाँट खानी ही पड़ती थी पापा के िलए सुधा अभी
ब ची थी; और वा य के मामले म सुधा के िलए च दर अभी ब चा था और कभी-कभी तो
सुधा क वा य-िच ता इतनी यादा हो जाती थी िक च दर बेचारा जो खुद त दु त था,
घबरा उठता था एक बार सुधा ने कमाल कर िदया उसक तबीयत खराब हई और डॉ टर ने
उसे लड़िकय का एक टॉिनक पीने के िलए बताया इ तहान म जब च दर कुछ दुबला-सा हो
गया तो सुधा अपनी बची हई दवा ले आयी और लगी च दर से िजद करने िक “िपयो इसे!”
जब च दर ने िकसी अखबार म उसका िव ापन िदखाकर बताया िक लड़िकय के िलए है, तब
कह जाकर उसक जान बची
इसीिलए जब आज सुधा ने चाय के िलए कहा तो उसक ह काँप गयी य िक जब कभी सुधा
चाय बनाती थी तो याले के महँु तक दध ू भरकर उसम दो-तीन च मच चाय का पानी डाल देती
थी और अगर उसने यादा ांग चाय क माँग क तो उसे खािलस दध ू पीना पड़ता था और
चाय के साथ फल और मेवा और खुदा जाने या- या, और उसके बाद सुधा का इसरार, न खाने
पर सुधा का गु सा और उसके बाद क ल बी-चौड़ी मनुहार; इस सबसे च दर बहत घबराता
था लेिकन जब सुधा उसे टडी म म िबठाकर ज दी से चाय बना लायी तो उसे मजबरू होना
पड़ा, और बैठे-बैठे िनहायत बेबसी से उसने देखा िक सुधा ने याले म दधू डाला और उसके बाद
थोड़ी-सी चाय डाल दी उसके बाद अपने याले म चाय डालकर और दो च मच दध ू डालकर
आप ठाठ से पीने लगे, और बेतक लुफ से दिू धया चाय का याला च दर के सामने िखसकाकर
बोली, “पीिजए, ना ता आ रहा है ”
च दर ने याले को अपने सामने रखा और उसे चार तरफ घुमाकर देखता रहा िक िकस तरफ से
उसे चाय का अंश िमल सकता है जब सभी ओर से याले म ीरसागर नजर आया तो उसने
हारकर याला रख िदया
“ य , पीते य नह ?” सुधा ने अपना याला रख िदया
“पीएँ या? कह चाय भी हो?”
“तो और या खािलस चाय पीिजएगा? िदमागी काम करने वाल को ऐसी ही चाय पीनी
चािहए ”
“तो अब मझ ु े सोचना पड़े गा िक म चाय छोड़ँ या रसच न ऐसी चाय मझ ु े पस द, न ऐसा
िदमागी काम!”
“लो, आपको िव ास नह होता मेरी लासफेलो है गेसू काजमी; सबसे तेज लड़क है, उसक
अ मी उसे दधू म चाय उबालकर देती है ”
“ या नाम है तु हारी सखी का?”
“गेस!ू ”
“बड़ा अ छा नाम है!”
“और या! मेरी सबसे घिन िम है और उतनी ही अ छी है िजतना अ छा नाम!”
“ज र-ज र,” महँु िबचकाते हए च दर ने कहा, “और उतनी ही काली होगी, िजतने काले
गेसू ”
“धत,् शरम नह आती िकसी लड़क के िलए ऐसा कहते हए!”
“और हमारे दो त क बुराई करती हो तब?”
“तब या! वे तो सब ह ही बुरे! अ छा तो ना ता, पहले फल खाओ,” और वह लेट म छील-
छीलकर स तरा रखने लगी इतने म य ही वह झक ु कर एक िगरे हए स तरे को नीचे से
उठाने लगी िक च दर ने झट से उसका याला अपने सामने रख िलया और अपना याला उधर
रख िदया और शा त िच से पीने लगा स तरे क फाँक उसक ओर बढ़ाते हए य ही उसने
एक घँटू चाय ली तो वह च ककर बोली, “अरे , यह या हआ?”
“कुछ नह , हमने उसम दध ू डाल िदया तु ह िदमागी काम बहत रहता है!” च दर ने ठाठ से
चाय घँटू ते हए कहा सुधा कुढ़ गयी कुछ बोली नह चाय ख म करके च दर ने घड़ी
देखी
“अ छा लाओ, या टाइप कराना है? अब बहत देर हो रही है ”
“बस यहाँ तो एक िमनट बैठना बुरा लगता है आपको! हम कहते ह िक ना ते और खाने के व
आदमी को ज दी नह करनी चािहए बैिठए न!”
“अरे , तो तु ह कॉलेज क तैयारी नह करनी है?”
“करनी य नह है आज तो गेसू को मोटर पर लेते हए तब जाना है!”
“तु हारी गेसू और कभी मोटर पर चढ़ी है?”
“जी, वह सािबर हसैन काजमी क लड़क है, उसके यहाँ दो मोटर ह और रोज तो उसके यहाँ
दावत होती रहती ह ”
“अ छा, हमारी तो दावत कभी नह क ?”
“अहा हा, गेसू के यहाँ दावत खाएँ गे! इसी महँु से! जनाब उसक शादी भी तय हो गयी है, अगले
जाड़ तक शायद हो भी जाय ”
“िछः, बड़ी खराब लड़क हो! कहाँ रहता है यान तु हारा?”
सुधा ने मजाक म परािजत कर बहत िवजय-भरी मस ु कान से उसक ओर देखा च दर ने
झपकर िनगाह नीची कर ली तो सुधा पास आकर च दर का क धा पकडक़र बोली-”अरे उदास
हो गये, नह भइया, तु हारा भी याह तय कराएँ गे, घबराते य हो!” और एक मोटी-सी
इकनॉिम स क िकताब उठाकर बोली, “लो, इस मटु क से याह करोगे! लो बातचीत कर लो,
तब तक म वह िनब ध ले आऊँ, टाइप कराने वाला ”
च दर ने िखिसयाकर बड़ी जोर से सुधा का हाथ दबा िदया “हाय रे !” सुधा ने हाथ छुड़ाकर
महँु बनाते हए कहा, “लो बाबा, हम जा रहे ह, काहे िबगड़ रहे ह आप?” और वह चली गयी!
डॉ टर साहब का िलखा हआ िनब ध उठा लायी और बोली, “लो, यह िनब ध क पा डुिलिप
है ” उसके बाद च दर क ओर बड़े दुलार से देखती हई बोली, “शाम को आओगे?”
“न!”
“अ छा, हम परे शान नह करगे तम ु चुपचाप पढऩा जब रात को पापा आ जाएँ तो उ ह
िनब ध क ितिलिप देकर चले जाना!”
“नह , आज शाम को मेरी दावत है ठाकुर साहब के यहाँ ”
“तो उसके बाद आ जाना और देखो, अब फरवरी आ गयी है, मा टर ढूँढ़ दो हम ”
“नह , ये सब झठ ू ी बात है हम कल सुबह आएँ गे ”
“अ छा, तो सुबह ज दी आना और देखो, मा टर लाना मत भल ू ना ाइवर तु ह मक
ु ज रोड
पहँ चा देगा ”
वह कार म बैठ गया और कार टाट हो गयी िक िफर सुधा ने पुकारा वह िफर उतरा सुधा
बोली, “लो, यह िलफाफा तो भलू ही गये थे पापा ने िलख िदया है उसे दे देना ”
“अ छा ” कहकर िफर च दर चला िक िफर सुधा ने पुकारा, “सुनो!”
“एक बार म य नह कह देती सब!” च दर ने झ लाकर कहा
“अरे बड़ी ग भीर बात है देखो, वहाँ कुछ ऐसी-वैसी बात मत कहना लड़क से, वरना उसके
यहाँ दो बड़े -बड़े बुलडॉग ह ” कहकर उसने गाल फुलाकर, आँख फै लाकर ऐसी बुलडॉग क
भंिगमा बनायी िक च दर हँ स पड़ा सुधा भी हँ स पड़ी
ऐसी थी सुधा, और ऐसा था च दर
3

िसिवल लाइ स के एक उजाड़ िह से म एक पुराने -से बँगले के सामने आकर मोटर क


बँगले का नाम था 'रोजलान' लेिकन सामने के क पाउं ड म जंगली घास उग रही थी और गल ु ाब
के फूल के बजाय अहाते म मरु गी के पंख िबखरे पड़े थे रा ते पर भी घास उग आयी थी और
और फाटक पर, िजसके एक ख भे क कॉिनस टूट चुक थी, बजाय लोहे के दरवाजे के दो आड़े
बाँस लगे हए थे फाटक के एक ओर एक छोटा-सा लकड़ी का नामपटल लगा था, जो कभी
काला रहा होगा, लेिकन िजसे धल ू , बरसात और हवा ने िचतकबरा बना िदया था च दर मोटर
से उतरकर उस बोड पर िलखे हए अधिमटे सफेद अ र को पढऩे क कोिशश करने लगा, और
जाने िकसका महँु देखकर सुबह उठा था िक उसे सफलता भी िमल गयी उस पर िलखा था, 'ए.
एफ. िड ू ज' उसने जेब से िलफाफा िनकाला और पता िमलाया िलफाफे पर िलखा था, 'िमस
पी. िड ू ज' यही बँगला है, उसे स तोष हआ
“हॉन दो!” उसने ाइवर से कहा ाइवर ने हॉन िदया लेिकन िकसी का बाहर आना तो दरू ,
एक मरु गा, जो अहाते म कुडक़ुड़ा रहा था, उसने मड ु क़र बड़े स देह और ास से च दर क ओर
देखा और उसके बाद पंख फडफ़ड़ाते हए, चीखते हए जान छोडक़र भागा “बड़ा मनहस बँगला
है, यहाँ आदमी रहते ह या ेत?” कपरू ने ऊबकर कहा और ाइवर से बोला, “जाओ तम ु , हम
अ दर जाकर देखते ह!”
“अ छा हजरू , सुधा बीबी से या कह दगे?”
“कह देना, पहँ चा िदया ”
कार मड़ु ी और कपरू बाँस फाँदकर अ दर घुसा आगे का पोिटको खाली पड़ा था और नीचे क
जमीन ऐसी थी जैसे कई साल से उस बँगले म कोई सवारी गाड़ी न आयी हो वह बरामदे म
गया दरवाजे ब द थे और उन पर धल ू जमी थी एक जगह चौखट और दरवाजे के बीच म
मकड़ी ने जाला बुन रखा था 'यह बँगला खाली है या?' कपरू ने सोचा सुबह साढ़े आठ
बजे ही वहाँ ऐसा स नाटा छाया था िक िदल घबरा जाय आस-पास चार ओर आधी फलाग
तक कोई बँगला नह था उसने सोचा बँगले के पीछे क ओर शायद नौकर क झ पिडय़ाँ ह
वह दाय बाजू से मड़ु ा और खुशबू का एक तेज झ का उसे चम ू ता हआ िनकल गया 'ता जुब है,
यह स नाटा, यह मनहसी और इतनी खुशब!ू ' कपरू ने कहा और आगे बढ़ा तो देखा िक बँगले
के िपछवाड़े गलु ाब का एक बहत खबू सरू त बाग है क ची रिवश और बड़े -बड़े गल ु ाब, हर रं ग
के वह सचमच ु 'रोजलान' था
वह बाग म पहँ चा उधर से भी बँगले के दरवाजे ब द थे उसने खटखटाया लेिकन कोई जवाब
नह िमला वह बाग म घुसा िक शायद कोई माली काम कर रहा हो बीच-बीच म ऊँचे -ऊँचे
जंगली चमेली के झाड़ थे और कह -कह लोहे क छड़ के कटघरे बेगमबेिलया भी फूल रही थी
लेिकन चार ओर एक अजब-सा स नाटा था और हर फूल पर िकसी खामोशी के फ र ते क
छाँह थी फूल म रं ग था, हवा म ताजगी थी, पे ड़ म ह रयाली थी, झ क म खुशबू थी, लेिकन
िफर भी सारा बाग एक ऐसे िसतार का गल ु द ता लग रहा था िजनक चमक, िजनक रोशनी
और िजनक ऊँचाई लुट चुक हो लगता था जैसे बाग का मािलक मौसमी रं गीनी भल ू चुका
हो, य िक नै टिशयम या वीटपी या ला स, कोई भी मौसमी फूल न था, िसफ गल ु ाब थे और
जंगली चमेली थी और बेगमबेिलया थी जो साल पहले बोये गये थे उसके बाद उ ह क काट-
छाँट पर बाग चल रहा था बागबानी म कोई नवीनता और मौसम का उ लास न था
च दर फूल का बेहद शौक न था सुबह घम ू ने के िलए उसने द रया िकनारे के बजाय अ े ड
पाक चुना था य िक पानी क लहर के बजाय उसे फूल के बाग के रं ग और सौरभ क लहर से
बेहद यार था और उसे दस ू रा शौक था िक फूल के पौध के पास से गज ु रते हए हर फूल को
समझने क कोिशश करना अपनी नाजुक टहिनय पर हँ सते-मस ु कराते हए ये फूल जैसे अपने
रं ग क बोली म आदमी से िजंदगी का जाने कौन-सा राज कहना चाहते ह और ऐसा लगता है
िक जैसे हर फूल के पास अपना यि गत स देश है िजसे वह अपने िदल क पाँखु रय म
आिह ते से सहे ज कर रखे हए ह िक कोई सुनने वाला िमले और वह अपनी दा ताँ कह जाए
पौधे क ऊपरी फुनगी पर मस ु कराता हआ आसमान क तरफ महँु िकये हए यह गल ु ाब जो रात-
भर िसतार क मस ु कराहट चुपचाप पीता रहा है, यह अपने मोितय -पाँखु रय के होठ से जाने
य िखलिखलाता ही जा रहा है जाने इसे कौन-सा रह य िमल गया है और वह एक नीचे
वाली टहनी म आधा झक ु ा हआ गल ु ाब, झक
ु हई पलक -सी पाँखु रयाँ और दोहरे मखमली तार-
सी उसक डंडी, यह गल ु ाब जाने य उदास है? और यह दुबली-पतली ल बी-सी नाजुक कली
जो बहत सावधानी से हरा आँचल लपे टे है और थम ात-यौवना क तरह लाज म जो िसमटी तो
िसमटी ही चली जा रही है, लेिकन िजसके यौवन क गल ु ाबी लपट सात हरे परद म से झलक
ही पड़ती ह, झलक ही पड़ती ह और फारस के शाहजादे जैसा शान से िखला हआ पीला
गल ु ाब! उस पीले गल ु ाब के पास आकर च दर क गया और झक ु कर देखने लगा काितक
पन ू ो के चाँद से झरने वाले अमतृ को पीने के िलए याकुल िकसी सुकुमार, भावुक परी क फै ली
हई अंजिल के बराबर बड़ा-सा वह फूल जैसे रोशनी िबखे र रहा था बेगमबेिलया के कुंज से
छनकर आने वाली तोतापंखी धपू ने जैसे उस पर धान-पान क तरह खुशनुमा ह रयाली िबखे र
दी थी च दर ने सोचा, उसे तोड़ ल लेिकन िह मत न पड़ी वह झक ु ा िक उसे सँघ ू ही ल
सँघ ू ने के इरादे से उसने हाथ बढ़ाया ही था िक िकसी ने पीछे से गरजकर कहा, “हीयर यू आर,
आई हैव काट रे ड-है डे ड टुडे !” (यह तम ु हो; आज तु ह मौके पर पकड़ पाया हँ )
और उसके बाद िकसी ने अपने दोन हाथ म जकड़ िलया और उसक गरदन पर सवार हो
गया वह उछल पड़ा और अपने को छुड़ाने क कोिशश करने लगा पहले तो वह कुछ समझ
नह पाया अजब रह यमय है यह बँगला एक अ य भय और एक िसहरन म उसके हाथ-
पाँव ढीले हो गये लेिकन उसने िह मत करके अपना एक हाथ छुड़ा िलया और मड ु क़र देखा तो
एक बहत कमजोर, बीमार-सा, पीली आँख वाला गोरा उसे पकड़े हए था च दर के दस ू रे हाथ
को िफर पकडऩे क कोिशश करता हआ वह हाँफता हआ बोला (अँ ेजी म), “रोज-रोज यहाँ से
फूल गायब होते थे म कहता था, कहता था, कौन ले जाता है हो...हो...,” वह हाँफता जा
रहा था, “आज मने पकड़ा तु ह रोज चुपके से चले जाते थे...” वह च दर को कसकर पकड़े
था लेिकन उस बीमार गोरे क साँस जैसे छूटी जा रही थी च दर ने उसे झटका देकर धकेल
िदया और डाँटकर बोला, “ या मतलब है तु हारा! पागल है या! खबरदार जो हाथ बढ़ाया, अभी
ढे र कर दँग
ू ा तझ ु े! गोरा सुअर!” और उसने अपनी आ तीन चढ़ाय
वह ध के से िगर गया था, धल ू झाड़ते उठ बैठा और बड़ी ही रोनी आवाज म बोला, “िकतना
जु म है, िकतना जु म है! मेरे फूल भी तम ु चुरा ले गये और मझ ु े इतना हक भी नह िक तु ह
धमकाऊँ! अब तम ु मझ ु से लड़ोगे! तम ु जवान हो, म बढ़ ू ा हँ हाय रे म!” और सचमच ु वह जैसे
रोने लगा हो
च दर ने उसका रोना देखा और उसका सारा गु सा हवा हो गया और हँ सी रोककर बोला,
“गलतफहमी है, जनाब! म बहत दरू रहता हँ म िच ी लेकर िमस िड ू ज से िमलने आया
था ”
उसका रोना नह का, “तम ु बहाना बनाते हो, बहाना बनाते हो और अगर म िव ास नह
करता तो तम ु मारने क धमक देते हो? अगर म कमजोर न होता...तो तु ह पीसकर खा जाता
और तु हारी खोपड़ी कुचलकर फक देता जैसे तम ु ने मेरे फूल फके ह गे?”
“िफर तम ु ने गाली दी! म उठाकर तु ह अभी नाले म फक दँग ू ा!”
“अरे बाप रे ! दौड़ो, दौड़ो, मझ ु े मार डाला...पॉपी...टॉमी...अरे दोन कु े मर गये... ” उसने डर
के मारे चीखना शु िकया
“ या है, बट ? य िच ला रहे हो?” बाथ म के अ दर से िकसी ने िच लाकर कहा
“अरे मार डाला इसने ...दौड़ो-दौड़ो!”
झटके से बाथ म का दरवाजा खुला बेिदङ्-गाउन पहने हए एक लड़क दौड़ती हई आयी और
च दर को देखकर क गयी
“ या है?” उसने डाँटकर पछ ू ा
“कुछ नह , शायद पागल मालम ू देता है!”
“जबान सँभालकर बोलो, वह मेरा भाई है!”
“ओह! कोई भी हो म िमस िड ू ज से िमलने आया था मने आवाज दी तो कोई नह बोला
म बाग म घम ू ने लगा इतने म इसने मेरी गरदन पकड़ ली यह बीमार और कमजोर है वरना
अभी गरदन दबा देता ”
गोरा उस लड़क के आते ही िफर तनकर खड़ा हो गया और दाँत पीसकर बोला, “अरे म तु हारे
दाँत तोड़ दँगू ा बदमाश कह का, चुपके-चुपके आया और गल ु ाब तोडऩे लगा म चमेली के
झाड़ के पीछे िछपा देख रहा था ”
“अभी म पुिलस बुलाती हँ , तम ु देखते रहो बट इसे म फोन करती हँ ”
लड़क ने डाँटते हए कहा
“अरे भाई, म िमस िड ू ज से िमलने आया हँ ”
“म तु ह नह जानती, झठ ू ा कह का म िमस िड ू ज हँ ”
“देिखए तो यह खत!”
लड़क ने खत खोला और पढ़ा और एकदम उसने आवाज बदल दी
“िछः बट , तम ु िकसी िदन पागलखाने जाओगे आपको डॉ. शु ला ने भे जा है तम ु े
ु तो मझ
बदनाम करा डालोगे!”
उसक श ल और भी रोनी हो गयी , “म नह जानता था, म जानता नह था ” उसने और भी
घबराकर कहा
“माफ क िजएगा!” लड़क ने बड़े मीठे वर म साफ िह दु तानी म कहा, “मेरे भाई का िदमाग
ज़रा ठीक नह रहता, जब से इनक प नी क मौत हो गयी ”
“इसका मतलब ये नह िक ये िकसी भले आदमी क इ जत उतार ल ” च दर ने िबगडक़र
कहा
“देिखए, बुरा मत मािनए म इनक ओर से माफ माँगती हँ आइए, अ दर चिलए ” उसने
च दर का हाथ पकड़ िलया उसका हाथ बेहद ठ डा था वह नहाकर आ रही थी उसके
हाथ के उस तष ु ार पश से च दर िसहर उठा और उसने हाथ झटककर कहा, “अफसोस, आपका
हाथ तो बफ है?”
लड़क च क गयी वह स : नाता सहसा सचे त हो गयी और बोली, “अरे शैतान तु ह ले जाए,
बट ! तु हारे पीछे म बेिदङ् गाउन म भाग आयी ” और बेिदङ् गाउन के दोन कालर पकडक़र
उसने अपनी खुली गरदन ढँकने का यास िकया और िफर अपनी पोशाक पर लि जत होकर
भागी
अभी तक गु से के मारे च दर ने उस पर यान ही नह िदया था लेिकन उसने देखा िक वह
तेईस बरस क दुबली-पतली त णी है लहराता हआ बदन, गले तक कटे हए बाल एं लो-
इंिडयन होने के बावजदू गोरी नह है चाय क तरह वह ह क , पतली, भरू ी और तश ु थी
भागते व ऐसी लग रही थी जैसे छलकती हई चाय
इतने म वह गोरा उठा और च दर का क धा छूकर बोला, “माफ करना, भाई! उससे मेरी
िशकायत मत करना असल म ये गल ु ाब मेरी मतृ प नी क यादगार ह जब इनका पहला पे ड़
आया था तब म इतना ही जवान था िजतने तम ु , और मेरी प नी उतनी ही अ छी थी िजतनी
प मी ”
“कौन प मी?”
“यह मेरी बहन िमला िड ू ज!”
“ओह! कब मरी आपक प नी?ï माफ क िजएगा मझ ु े भी मालम
ू नह था!”
“हाँ, म बड़ा अभागा हँ मेरा िदमाग कुछ खराब है; देिखए!” कहकर उसने झक ु कर अपनी
खोपड़ी च दर के सामने कर दी और बहत िगड़िगड़ाकर बोला, “पता नह कौन मेरे फूल चुरा ले
जाता है! अपनी प नी क म ृ यु के बाद पाँच साल से म इन फूल को सँभाल रहा हँ हाय रे म!
जाइए, प मी बुला रही है ”
िपछवाड़े के सहन का बीच का दरवाजा खुल गया था और प मी कपड़े पहनकर बाहर झाँक रही
थी च दर आगे बढ़ा और गोरा मड ु क़र अपने गल ु ाब और चमेली क झाड़ी म खो गया च दर
गया और कमरे म पड़े हए एक सोफा पर बैठ गया प मी ट्वायलेट कर चुक थी और एक
ह क ा सीसी खुशबू से महक रही थी शै पू से धुले हए खे बाल जो मचले पड़ रहे थे,
खुशनुमा आसमानी रं ग का एक पतला िचपका हआ झीना लाउज और लाउज पर एक लैनेल
का फुलपट िजसके दो गेिलस कमर, छाती और क धे पर िचपके हए थे होठ पर एक ह क
िलपि टक क झलक मा थी, और गले तक बहत ह का पाउडर, जो बहत नजदीक से ही मालम ू
होता था ल बे नाखन ू पर ह क गल ु ाबी पट वह आयी, िन संकोच भाव से उसी सोफे पर
कपरू के बगल म बैठ गयी और बड़ी मल ु ायम आवाज म बोली, “मझ ु े बड़ा दु:ख है, िम टर कपरू !
आपको बहत तवालत उठानी पड़ी चोट तो नह आयी?”
“नह , नह , कोई बात नह !” कपरू का सारा गु सा हवा हो गया कोई भी लड़क िन:संकोच
भाव से, इतनी अपनायत से सहानुभिू त िदखाये और माफ माँगे, तो उसके सामने कौन पानी-
पानी नह हो जाएगा, और िफर वह भी तब जबिक उसके होठ पर न केवल बोली अ छी लगती
हो, वरन िलपि टक भी इतनी यारी हो लेिकन च दर क एक आदत थी और चाहे कुछ न
हो, कम-से-कम वह यह अ छी तरह जानता था िक नारी जाित से यवहार करते समय कहाँ पर
िकतनी ढील देनी चािहए, िकतना कसना चािहए, कब सहानुभिू त से उ ह झक ु ाया जा सकता
है, कब अकड़कर इस व जानता था िक इस लड़क से वह िजतनी सहानुभिू त चाहे , ले
सकता है, अपने अपमान के हजाने के तौर पर इसिलए कपरू साहब बोले, “लेिकन िमस
िड ू ज, आपके भाई बीमार होने के बावजदू बहत मजबत ू ह उफ! गरदन पर जैसे अभी तक
जलन हो रही है ”
“ओहो! सचमच ु म बहत शिम दा हँ देखँ!ू ” और कालर हटाकर उसने गरदन पर अपनी बफ ली
अँगिु लयाँ रख द , “लाइए, लोशन मल दँू म!”
“ध यवाद, ध यवाद, इतना क न क िजए आपक अँगिु लयाँ ग दी हो जाएँ गी!” कपरू ने
बड़ी शालीनता से कहा
प मी के होठ पर एक ह क -सी मु कराहट, आँख म ह क -सी लाज और व म एक ह का-
सा क पन दौड़ गया यह वा य कपरू ने चाहे शरारत म ही कहा हो, लेिकन कहा इतने शा त
और संयत वर म िक प मी कुछ ितवाद भी न कर सक और िफर छह बरस से साठ बरस तक
क कौन ऐसी ी है जो अपने प क शंसा पर बेहोश न हो जाए
“अ छा लाइए, वह पीच कहाँ है जो मझु े टाइप करनी है ” उसने िवषय बदलते हए कहा
“यह लीिजए ” कपरू ने दे दी
“यह तो मिु कल से तीन-चार घ टे का काम है?” और प मी पीच को उलट-पुलटकर देखने
लगी
“माफ क िजएगा, अगर म कुछ यि गत सवाल पछ ू ू ँ ; या आप टाइिप ट ह?” कपरू ने बहत
िश ता से पछ ू ा
“जी नह !” प मी ने उ ह कागज पर नजर गड़ाते हए कहा, “मने कभी टाइिपंग और शाटहड
सीखी थी, और तब म सीिनयर केि ज पास करके यिू नविसटी गयी थी यिू नविसटी मझ ु े
छोडऩी पड़ी य िक मने अपनी शादी कर ली ”
“अ छा, आपके पित कहाँ ह?”
“रावलिपंडी म, आम म ”
“लेिकन िफर आप िड ू ज य िलखती ह, और िफर िमस?”
“ य िक हमलोग अलग हो गये ह ” और पीच के कागज को िफर तह करती हई बोली-
“िम टर कपरू , आप अिववािहत ह?”
“जी हाँ?”
“और िववाह करने का इरादा तो नह रखते?”
“नह ”
“बहत अ छे तब तो हम लोग म िनभ जाएगी म शादी से बहत नफरत करती हँ शादी
अपने को िदया जाने वाला सबसे बड़ा धोखा है देिखए, ये मेरे भाई ह न, कैसे पीले और बीमार-
से ह ये पहले बड़े त दु त और टे िनस म ा त के अ छे िखलािडय़ म से थे एक िबशप क
दुबली-पतली भावुक लड़क से इ ह ने शादी कर ली, और उसे बेहद यार करते थे सुबह-शाम,
दोपहर, रात कभी उसे अलग नह होने देते थे हनीमन ू के िलए उसे लेकर सीलोन गये थे
वह लड़क बहत कलाि य थी बहत अ छा नाचती थी, बहत अ छा गाती थी और खुद गीत
िलखती थी यह गल ु ाब का बाग उसी ने बनवाया था और इ ह के बीच म दोन बैठकर घंट
गजु ार देते थे
“कुछ िदन बाद दोन म झगड़ा हआ लब म बॉल डा स था और उस िदन वह लड़क बहत
अ छी लग रही थी बहत अ छी डा स के व इनका यान डा स क तरफ कम था, अपनी
प नी क तरफ यादा इ ह ने आवेश म उसक अँगिु लयाँ जोर से दबा द वह चीख पड़ी और
सभी इन लोग क ओर देखकर हँ स पड़े
“वह घर आयी और बहत िबगड़ी, बोली, 'आप नाच रहे थे या टे िनस का मैच खे ल रहे थे, मेरा
हाथ था या टे िनस का रै कट?' इस बात पर बट भी िबगड़ गया, और उस िदन से जो इन लोग म
खटक तो िफर कभी न बनी धीरे -धीरे वह लड़क एक साजट को यार करने लगी बट को
इतना सदमा हआ िक वह बीमार पड़ गया लेिकन बट ने तलाक नह िदया, उस लड़क से
कुछ कहा भी नह , और उस लड़क ने साजट से यार जारी रखा लेिकन बीमारी म बट क बहत
सेवा क बट अ छा हो गया उसके बाद उसको एक ब ची हई और उसी म वह मर गयी
हालाँिक हम लोग सब जानते ह िक वह ब ची उस साजट क थी लेिकन बट को यक न नह
होता िक वह साजट को यार करती थी वह कहता है, 'यह दस ू रे को यार करती होती तो मेरी
इतनी सेवा कैसे कर सकती थी भला!' उस ब ची का नाम बट ने रोज रखा और उसे लेकर
िदनभर उ ह गल ु ाब के पे ड़ के बीच म बैठा करता था जैसे अपनी प नी को लेकर बैठता था
दो साल बाद ब ची को साँप ने काट िलया, वह मर गयी और तब से बट का िदमाग ठीक नह
रहता खैर, जाने दीिजए आइए, अपना काम शु कर चिलए, अ दर के टडी- म म
चल!”
“चिलए!” च दर बोला और प मी के पीछे -पीछे चल िदया मकान बहत बड़ा था और पुराने
अँ ेज के ढंग पर सजा हआ था बाहर से िजतना पुराना और ग दा नजर आता था, अ दर से
उतना ही आलीशान और सुथरा ई ट इंिडया क पनी के जमाने क छाप थी अ दर यहाँ तक
िक िबजली लगने के बावजदू अ दर पुराने बड़े -बड़े हाथ से ख चे जाने वाले पंखे लगे थे दो
कमर को पार कर वे लोग टडी- म म पहँ चे बड़ा-सा कमरा िजसम चार तरफ आलमा रय
म िकताब सजी हई थ चार कोने म चार मेज लगी हई थ िजनम कुछ ब ट और कुछ त वीर
टड के सहारे रखी हई थ एक आलमारी म नीचे खाने म टाइपराइटर रखा था प मी ने
िबजली जला दी और टाइपराइटर खोलकर साफ करने लगी च दर घम ू कर िकताब देखने
लगा एक कोने म कुछ मराठी क िकताब रखी थ उसे बड़ा ता जुब हआ-”अ छा प मी,
ओह, माफ क िजएगा, िमस िड ू ज...”
“नह , आप मझ ु े प मी पुकार सकते ह मझ ु े यही नाम अ छा लगता है-हाँ, या पछ ू रहे थे
आप?”
“ या आप मराठी भी जानती ह?”
“नह , म तो नह , मेरी नानीजी जानती थ या आपको डॉ टर शु ला ने हमलोग के बारे म
कुछ नह बताया?”
“नह !” कपरू ने कहा
“अ छा! ता जुब है!” प मी बोली, “आपने े नाली िड ू ज का नाम सुना है न?”
“हाँ हाँ, िड ू ज िज ह ने कौशा बी क खुदाई करवायी थी वह तो बहत बड़े पुरात ववे ा थे?”
कपरू ने कहा
“हाँ, वही वह मेरे सगे नाना थे और वह अँ ेज नह थे, मराठा थे और उ ह ने मेरी नानी से
शादी क थी जो एक क मीरी ईसाई मिहला थ उनके कारण भारत म उ ह ईसाइयत अपनानी
पड़ी यह मेरे नाना का ही मकान है और अब हम लोग को िमल गया है डॉ. शु ला के दो त
िम टर ीवा तव बै र टर ह न, वे हमारे खानदान के ऐटन थे उ ह ने और डॉ. शु ला ने ही
यह जायदाद हम िदलवायी लीिजए, मशीन तो ठीक हो गयी ” उसने टाइपराइटर म काबन
और कागज लगाकर कहा, “लाइए िनब ध!”
इसके बाद घंटे-भर तक टाइपराइटर का नह कपरू ने देखा िक यह लड़क जो यवहार म
इतनी सरल और प है, फै शन म इतनी नाजुक और शौक न है, काम करने म उतनी ही
मेहनती और तेज भी है उसक अँगिु लयाँ मशीन क तरह चल रही थ और तेज इतनी िक
एक घंटे म उसने लगभग आधी पांडुिलिप टाइप कर डाली थी ठीक एक घ टे के बाद उसने
टाइपराइटर ब द कर िदया, बगल म बैठे हए कपरू क ओर झक ु कर कहा, “अब थोड़ी देर
आराम ” और अपनी अँगिु लयाँ चटखाने के बाद वह कुरसी िखसकाकर उठी और एक भरपरू
अँगड़ाई ली उसका अंग-अंग धनुष क तरह झक ु गया उसके बाद कपरू के क धे पर
बेतक लुफ से हाथ रखकर बोली, “ य , एक याला चाय मँगवायी जाय?”
“म तो पी चुका हँ ”
“लेिकन मझ ु से तो काम होने से रहा अब िबना चाय के ” प मी एक अ हड़ ब ची क तरह
बोली, और अ दर चली गयी कपरू ने टाइप िकये हए कागज उठाये और कलम िनकालकर
उनक गलितयाँ सुधारने लगा चाय पीकर थोड़ी देर म प मी वापस आयी और बैठ गयी
उसने एक िसगरे ट केस कपरू के सामने िकया
“ध यवाद, म िसगरे ट नह पीता ”
“अ छा, ता जुब है, आपक इजाजत हो तो म िसगरे ट पी लँ!ू ”
“ या आप िसगरे ट पीती ह? िछः, पता नह य औरत का िसगरे ट पीना मझ ु े बहत ही नासप द
है ”
“मेरी तो मजबरू ी है िम टर कपरू , म यहाँ के समाज म िमलती-जुलती नह , अपने िववाह और
अपने तलाक के बाद मझ ु े ऐं लो-इंिडयन समाज से नफरत हो गयी है म अपने िदल से
िह दु तानी हँ लेिकन िह दु तािनय से घुलना-िमलना हमारे िलए स भव नह घर म
अकेले रहती हँ िसगरे ट और चाय से तबीयत बदल जाती है िकताब का मझ ु े शौक नह ”
“तलाक के बाद आपने पढ़ाई जारी य नह रखी?” कपरू ने पछ ू ा
“मने कहा न, िक िकताब का मझ ु े शौक नह िब कुल!” प मी बोली “और म अपने को
आदिमय म घुलने -िमलने के लायक नह पाती तलाक के बाद साल-भर तक म अपने घर म
ब द रही म और बट िसफ बट से बात करने का मौका िमला बट मेरा भाई, वह भी
बीमार और बढ़ ू ा कह कोई तक लुफ क गज ुं ाइश नह अब म हरे क से बेतक लुफ से बात
करती हँ तो कुछ लोग मझ ु पर हँ सते ह, कुछ लोग मझ ु े स य समाज के लायक नह समझते,
कुछ लोग उसका गलत मतलब िनकालते ह इसिलए मने अपने को अपने बँगले म ही कैद कर
िलया है अब आप ही ह, आज पहली बार मने देखा आपको म समझी ही नह िक आपसे
िकतना दुराव रखना चािहए अगर आप भलेमानस न ह तो आप इसका गलत मतलब िनकाल
सकते ह ”
“अगर यही बात हो तो...” कपरू हँ सकर बोला, “स भव है िक म भलेमानस बनने के बजाय
गलत मतलब िनकालना यादा पस द क ँ ”
“तो स भव है म मजबरू होकर आपसे भी न िमलँ!ू ” प मी ग भीरता से बोली
“नह , िमस िड ू ज...”
“नह , आप प मी किहए, िड ू ज नह !”
“प मी सही, आप गलत न समझ, म मजाक कर रहा था ” कपरू बोला उसने इतनी देर म
समझ िलया था िक यह साधारण ईसाई छोकरी नह है
इतने म बट लडख़ड़ाता हआ, हाथ म धल ू सना खुरपा िलये आया और चुपचाप खड़ा हो गया
और अपनी धँुधली पीली आँख से एकटक कपरू को देखने लगा कपरू ने एक कुरसी िखसका
दी और कहा, “आइए!” प मी उठी और बट के क धे पर एक हाथ रखकर उसे सहारा देकर
कुरसी पर िबठा िदया बट बैठ गया और आँख ब द कर ल उसका बीमार कमजोर यि व
जाने कैसा लगता था िक प मी और कपरू दोन चुप हो गये थोड़ी देर बाद बट ने आँख खोल
और बहत क ण वर म बोला, “प मी, तम ु नाराज हो, मने जान-बझ ू कर तु हारे िम का
अपमान नह िकया था?”
“अरे नह !” प मी ने उठकर बट का माथा सहलाते हए कहा, “म तो भल ू गयी और कपरू भी
भलू गये?”
“अ छा, ध यवाद! प मी, अपना हाथ इधर लाओ!” और वह प मी के हाथ पर िसर रखकर पड़
रहा और बोला, “म िकतना अभागा हँ ! िकतना अभागा! अ छा प मी, कल रात को तम ु ने सुना
था, वह आयी थी और पछ ू रही थी, बट तु हारी तबीयत अब ठीक है, मने झट अपनी आँख ढँक
ल िक कह आँख का पीलापन देख न ले मने कहा, तबीयत अब ठीक है, म अ छा हँ तो उठी
और जाने लगी मने पछ ू ा, कहाँ चली, तो बोली साजट के साथ ज़रा लब जा रही हँ तम ु ने
सुना था प मी?”
कपरू त ध-सा उन दोन क ओर देख रहा था प मी ने कपरू को आँख का इशारा करते हए
कहा, “हाँ, हमसे िमली थी वह, लेिकन बट , वह साजट के साथ नह गयी थी!”
“हाँ, तब?” बट क आँख चमक उठ और उसने उ लास-भरे वर म पछ ू ा
“वह बोली, बट के ये गल ु ाब साजट से यादा यारे ह ” प मी बोली
“अ छा!” मस ु कराहट से बट का चे हरा िखल उठा, उसक पीली-पीली आँख और धँस गय और
दाँत बाहर झलकने लगे, “हँ ! या कहा उसने , िफर तो कहो!”
उसने कहा, “ये गल ु ाब साजट से यादा यारे ह, िफर इ ह गल ु ाब पर नाचती रही और सुबह
होते ही इ ह फूल म िछप गयी! तु ह सुबह िकसी फूल म तो नह िमली?”
“उहँ , तु ह तो िकसी फूल म नह िमली?” बट ने ब च के-से भोले िव ास के वर म कपरू से
पछ
ू ा
च दर च क उठा प मी और बट क इन बात पर उसका मन बेहद भर आया था बट क
मसु कराहट पर उसक नस थरथरा उठी थ
“नह ; मने तो नह देखा था ” च दर ने कहा
बट ने िफर मायस ू ी से िसर झक ु ा िलया और आँख ब द कर ल और कराहती हई आवाज म
बोला, “िजस फूल म वह िछप गयी थी, उसी को िकसी ने चुरा िलया होगा!” िफर सहसा वह
तनकर खड़ा हो गया और पुचकारते हए बोला, “जाने कौन ये फूल चुराता है! अगर मझ ु े एक बार
िमल जाए तो म उसका खन ू ऐसे पी लँ!ू ” उसने हाथ क अँगल ु ी काटते हए कहा और उठकर
लडख़ड़ाता हआ चला गया
वातावरण इतना भारी हो गया था िक िफर प मी और कपरू ने कोई बात नह क प मी ने
चुपचाप टाइप करना शु िकया और कपरू चुपचाप बट क बात सोचता रहा घंटा-भर बाद
टाइपराइटर खामोश हआ तो कपरू ने कहा-
“प मी, मने िजतने लोग देखे ह उनम शायद बट सबसे िविच है और शायद सबसे दयनीय!”
प मी खामोश रही िफर उसी लापरवाही से अँगड़ाई लेते हए बोली, “मझ ु े बट क बात पर ज़रा
भी दया नह आती म उसको िदलासा देती हँ य िक वह मेरा भाई है और ब चे क तरह
नासमझ और लाचार है ”
कपरू च क गया वह प मी क ओर आ य से चुपचाप देखता रहा; कुछ बोला नह
“ य , तु ह ता जुब य होता है?” प मी ने कुछ मस ु कराकर कहा, “लेिकन म सच कहती हँ ”-
वह बहत ग भीर हो गयी, “मझ ु े जरा तरस नह आता इस पागलपन पर ” ण-भर चुप रही,
िफर जैसे बहत ही तेजी से बोली, “तम ु जानते हो उसके फूल कौन चुराता है? म, म उसके फूल
तोडक़र फक देती हँ मझ ु े शादी से नफरत है, शादी के बाद होने वाली आपसी धोखे बाजी से
नफरत है, और उस धोखे बाजी के बाद इस झठ ू क यादगार और बेईमानी के पागलपन से
ू मठ
नफरत है और ये गल ु ाब के फूल, ये य मू यवान ह, इसिलए न िक इसके साथ बट क
िजंदगी क इतनी बड़ी े जेडी गथ ँु ी हई है अगर एक फूल के खबू सरू त होने के िलए आदमी क
िजंदगी म इतनी बड़ी े जेडी आना ज री है तो लानत है उस फूल क खबू सरू ती पर! म उससे
नफरत करती हँ इसीिलए म िकताब से नफरत करती हँ एक कहानी िलखने के िलए
िकतनी कहािनय क े जेडी बदा त करनी होती है ”
प मी चुप हो गयी उसका चे हरा सुख हो गया था थोड़ी देर बाद उसका तैश उतर गया और
वह अपने आवेश पर खुद शरमा गयी उठकर वह कपरू के पास गयी और उसके क ध पर हाथ
रखकर बोली, “बट से मत कहना, अ छा?”
कपरू ने िसर िहलाकर वीकृित दी और कागज समेटकर खड़ा हआ प मी ने उसके क ध पर
हाथ रखकर उसे अपनी ओर घुमाकर कहा, “देखो, िपछले चार साल से म अकेली थी, और िकसी
दो त का इ तजार कर रही थी, तम ु आये और दो त बन गये तो अब अ सर आना, ऐं?”
“अ छा!” कपरू ने ग भीरता से कहा
“डॉ. शु ला से मेरा अिभवादन कहना, कभी यहाँ ज र आएँ ”
“आप कभी चिलए, वहाँ उनक लड़क है आप उससे िमलकर खुश ह गी ”
प मी उसके साथ फाटक तक पहँ चाने चली तो देखा बट एक चमेली के झाड़ म टहिनयाँ हटा-
ू ा उसने -”तु ह याद है; वह चमेली के झाड़ म तो
हटाकर कुछ ढूँढ़ रहा था प मी को देखकर पछ
नह िछपी थी?” कपरू ने पता नह य ज दी प मी को अिभवादन िकया और चल िदया उसे
बट को देखकर डर लगता था
4

सुधा का कॉलेज बड़ा एका त और खबू सरू त जगह बना हआ था दोन ओर ऊँची-सी मेड़ और
बीच म से कंकड़ क एक खबू सरू त घुमावदार सड़क दाय ओर चने और गेहँ के खे त, बेर और
शहतत ू के झाड़ और बाय ओर ऊँचे -ऊँचे टीले और ताड़ के ल बे-ल बे पे ड़ शहर से काफ
बाहर देहात का-सा नजारा और इतना शा त वातावरण लगता था िक यहाँ कोई उथल-पुथल,
कोई शोरगल ु है ही नह जगह इतनी हरी-भरी िक दज के कमर के पीछे ही महआ चत ू ा था
और ल बी-ल बी घास क दुपह रया के नीले फूल क जंगली लतर उलझी रहती थ
और इस वातावरण ने अगर िकसी पर सबसे यादा भाव डाला था तो वह थी गेसू उसे अ छी
तरह मालम ू था िक बाँस के झाड़ के पीछे िकस चीज के फूल ह पुराने पीपल पर िगलोय क
लतर चढ़ी है और कर दे के झाड़ के पीछे एक साही क माँद है नागफनी क झाड़ी के पास
एक बार उसने एक लोमड़ी भी देखी थी शहर के एक मशहर रईस सािबर हसैन काजमी क
वह सबसे बड़ी लड़क थी उसक माँ, िज ह उसके िपता अदन से याह कर लाये थे, शहर क
मशहर शायरा थ हालाँिक उनका दीवान छपकर मशहर हो चुका था, मगर वह िकसी भी
बाहरी आदमी से कभी नह िमलती-जुलती थ , उनक सारी दुिनया अपने पित और अपने ब च
तक सीिमत थी उ ह शायराना नाम रखने का बहत शौक था अपनी दोन लड़िकय का
नाम उ ह ने गेसू और फूल रखा था और अपने छोटे ब चे का नाम हसरत हाँ, अपने पितदेव
सािबर साहब के ह के से बेहद िचढ़ती थ और उनका नाम उ ह ने रखा था, 'आितश-िफजाँ '
घास, फूल, लतर और शायरी का शौक गेसू ने अपनी माँ से िवरासत म पाया था िक मत से
उसका कॉलेज भी ऐसा िमला िजसम दज क िखड़िकय से आम क शाख झाँका करती थ
इसिलए हमेशा जब कभी मौका िमलता था, लास से भाग कर गेसू घास पर लेटकर सपने
देखने क आदी हो गयी थी लास के इस महािभिन मण और उसके बाद लतर क छाँह म
जाकर यान-योग क साधना म उसक एकमा सािथन थी सुधा आम क घनी छाँह म हरी-
हरी दबू म दोन िसर के नीचे हाथ रखकर लेट रहत और दुिनया-भर क बात करत बात म
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी िकस तरह क बात करती थ , यह वही समझ सकता है िजसने
कभी दो अिभ न सहे िलय क एका त वाता सुनी हो गािलब क शायरी से लेकर, उनके छोटे
भाई हसरत ने एक कु े का िप ला पाला है, यह गेसू सुनाया करती थी और शरत के उप यास
से लेकर यह िक उसक मािलन ने िगलट का कड़ा बनवाया है, यह सुधा बताया करती थी
दोन अपने -अपने मन क बात एक-दस ू रे को बता डालती थ और िजतना भावुक, यारा,
अनजान और सुकुमार दोन का मन था, उतनी ही भावुक और सुकुमार दोन क बात हाँ
भावुक, सुकुमार दोन ही थ , लेिकन दोन म एक अ तर था गेसू शायर होते हए भी इस
दुिनया क थी और सुधा शायर न होते हए भी क पनालोक क थी गेसू अगर झािड़य म से
कुछ फूल चुनती तो उ ह सँघ ू ती, उ ह अपनी चोटी म सजाती और उन पर च द शे'र कहने के
बाद भी उ ह माला म िपरोकर अपनी कलाई म लपे ट लेती सुधा लतर के बीच म िसर रखकर
लेट जाती और िनिनमेष पलक से फूल को देखती रहती और आँख से न जाने या पीकर उ ह
उ ह क डाल पर फूलता हआ छोड़ देती गेसू हर चीज का उिचत इ तेमाल जानती थी, िकसी
भी चीज को पस द करने या यार करने के बाद अब उसका या उपयोग है, ि या मक यथाथ
जीवन म उसका या थान है, यह गेसू खबू समझती थी लेिकन सुधा िकसी भी फूल के जादू
म बँध जाना चाहती थी, उसी क क पना म डूब जाना जानती थी, लेिकन उसके बाद सुधा को
कुछ नह मालम ू था गेसू क क पना और भावुक सू मता शायरी म य हो जाती थी, अत:
उसक िजंदगी म काफ यावहा रकता और यथाथ था, लेिकन सुधा, जो शायरी िलख नह
सकती थी, अपने वभाव और गठन म खुद ही एक मासम ू शायरी बन गयी थी वह भी िपछले
दो साल म तो सचमच ु ही इतनी ग भीर, सुकुमार और भावनामयी बन गयी थी िक लगता था
िक सरू के गीत से उसके यि व के रे शे बुन गये ह
लड़िकयाँ, गेसू और सुधा के इस वभाव और उनक अिभ नता से वािकफ थ और इसिलए
जब आज सुधा क मोटर आकर सायबान म क और उसम से सुधा और गेसू हाथ म फाइल िलये
उतर तो कािमनी ने हँ सकर भा से कहा, “लो, च दा-सरू ज क जोड़ी आ गयी!” सुधा ने सुन
िलया मस ु कराकर गेसू क ओर िफर कािमनी और भा क ओर देखकर हँ स दी सुधा बहत
कम बोलती थी, लेिकन उसक हँ सी ने उसे खुशिमजाज सािबत कर रखा था और वह सभी क
यारी थी भा ने आकर सुधा के गले म बाँह डालकर कहा, “गेसू बानो, थोड़ी देर के िलए
सुधारानी को हम दे दो जरा कल के नोट्स उतारने ह इनसे पछ ू कर ”
गेसू हँ सकर बोली, “उसके पापा से तय कर ले, िफर तू िजंदगी भर सुधा को पाल-पोस, मझ ु े या
करना है ”
जब सुधा भा के साथ चली गयी तो गेसू ने कािमनी के क धे पर हाथ रखा और कहा, “क मो
रानी, अब तो तु ह हमारे िह से म पड़ी, आओ चलो, देख लतर म कु द ह?”
“कु द तो नह , अब चने का खे त ह रया आया है ” क मो बोली
गहृ -िव ान का पी रयड था और िमस उमालकर पढ़ा रही थ बीच क कतार क एक बच पर
कािमनी, भा, गेसू और सुधा बैठी थ िह सा बाँट अभी तक कायम था, अत: कािमनी के
बगल म गेस,ू गेसू के बगल म भा और भा के बाद बच के कोने पर सुधा बैठी थी िमस
उमालकर रोिगय के खान-पान के बारे म समझा रही थ मेज के बगल म खड़ी हई, हाथ म
एक िकताब िलये हए, उसी पर िनगाह लगाये वह बोलती जा रही थ शायद अँगरे जी क
िकताब म जो कुछ िलखा हआ था, उसी का िह दी म उ था करते हए बोलती जा रही थ , “आलू
एक नुकसानदेह तरकारी है, रोग क हालत म वह खु क होता है, गरम होता है और हजम
मिु कल से होता है... ”
सहसा गेसू ने एकदम बीच से पछ ू ा, “गु जी, गाँधी जी आलू खाते ह या नह ?” सभी हँ स पड़े
िमस उमालकर ने बहत गु से से गेसू क ओर देखा और डाँटकर कहा, “ हाइ टॉक ऑव गाँधी?
आई वा ट नो पोिलिटकल िड शन इन लास (गाँधी से या मतलब? म दज म राजनीितक
बहस नह चाहती )” इस पर तो सभी लड़िकय क दबी हई हँ सी फूट पड़ी िमस उमालकर
झ ला गय और मेज पर िकताब पटकते हए बोल , “साइले स (खामोश)!” सभी चुप हो गये
उ ह ने िफर पढ़ाना शु िकया
“िजगर के रोिगय के िलए हरी तरका रयाँ बहत फायदेम द होती ह लौक , पालक और हर
िक म के हरे साग त दु ती के िलए बहत फायदेम द होते ह ”
सहसा भा ने कुहनी मारकर गेसू से कहा, “ले, िफर या है, िनकाल चने का हरा साग, खा-
खाकर मोटे ह िमस उमालकर के घंटे म!”
गेसू ने अपने कुरते क जेब से बहत-सा साग िनकालकर कािमनी और भा को िदया
िमस उमालकर अब श कर के हािन-लाभ बता रही थ , “ल बे रोग के बाद रोगी को श कर कम
देनी चािहए दध ू या साबदू ाने म ताड़ क िम ी िमला सकते ह दध
ू तो लक ू ोज के साथ बहत
वािद लगता है ”
इतने म जब तक सुधा के पास साग पहँ चा िक फौरन िमस उमालकर ने देख िलया वह समझ
गय , यह शरारत गेसू क होगी, “िमस गेस,ू बीमारी क हालत म दध ू काहे के साथ वािद
लगता है?”
इतने म सुधा के महँु से िनकला, “साग काहे के साथ खाएँ ?” और गेसू ने कहा, “नमक के
साथ!”
“हँ ? नमक के साथ?” िमस उमालकर ने कहा, “बीमारी म दध ू नमक के साथ अ छा लगता है
खड़ी हो! कहाँ था यान तु हारा?”
गेसू स न िमस उमालकर का चे हरा मारे गु से के लाल हो रहा था
“ या बात कर रही थ तम ु और सुधा?”
गेसू स न!
“अ छा, तम ु लोग लास के बाहर जाओ, और आज हम तु हारे गािजयन को खत भे जगे चलो,
जाओ बाहर ”
सुधा ने कुछ मस ु कराते हए भा क ओर देखा और भा हँ स दी गेसू ने देखा िक िमस
उमालकर का पारा और भी चढऩे वाला है तो वह चुपचाप िकताब उठाकर चल दी सुधा भी
पीछे -पीछे चल दी कािमनी ने कहा, “खत-वत भे जती रहना, सुधा!” और लास ठठाकर हँ स
पड़ी िमस उमालकर गु से से नीली पड़ गय , “ लास अब ख म होगी ” और रिज टर
उठाकर चल द गेसू अभी अ दर ही थी िक वह बाहर चली गय और उनके जरा दरू पहँ चते ही
गेसू ने बड़ी अदा से कहा, “बड़े बेआब होकर तेरे कूचे से हम िनकले!” और सारी लास िफर
हँ सी से गजँ ू उठी लड़िकयाँ िचिड़य क तरह फुर हो गय और थोड़ी ही देर म सुधा और गेसू
बैडिमंटन फ ड के पास वाले छतनार पाकड़ के नीचे लेटी हई थ
बड़ी खुशनुमा दोपहरी थी खुशबू से लदे ह के-ह के झ के गेसू क ओढ़नी और गरारे क
िसलवट से आँखिमचौली खे ल रहे थे आसमान म कुछ ह के पहले बादल उड़ रहे थे और
जमीन पर बादल क साँवली छायाएँ दौड़ रही थ घास के ल बे-चौड़े मैदान पर बादल क
छायाओं का खे ल बड़ा मासम ू लग रहा था िजतनी दरू तक छाँह रहती थी, उतनी दरू तक घास
का रं ग गहरा काही हो जाता था, और जहाँ-जहाँ बादल से छनकर धपू बरसने लगती थी वहाँ-
वहाँ घास सुनहरे धानी रं ग क हो जाती थी दरू कह पर पानी बरसा था और बादल ह के
होकर खरगोश के मासम ू व छ द ब च क तरह दौड़ रहे थे सुधा आँख पर फाइल क छाँह
िकये हए बादल क ओर एकटक देख रही थी गेसू ने उसक ओर करवट बदली और उसक
वेणी म लगे हए रे शमी फ ते को उँ गली म उमेठते हए एक ल बी-सी साँस भरकर कहा-
बादशाह क मअ ु र वाबगाह म कहाँ
वह मजा जो भीगी-भीगी घास पर सोने म है,
मतु मइन बेिफ लोग क हँ सी म भी कहाँ
लु फ जो एक-दस ू रे को देखकर रोने म है
सुधा ने बादल से अपनी िनगाह नह हटायी, बस एक क ण सपनीली मस ु कराहट िबखे रकर
रह गयी
या देख रही है, सुधा?” गेसू ने पछ
ू ा
“बादल को देख रही हँ ” सुधा ने बेहोश आवाज म जवाब िदया गेसू उठी और सुधा क छाती
पर िसर रखकर बोली-
कैफ बरदोश, बादल को न देख,
बेखबर, तू न कुचल जाय कह !
और सुधा के गाल म जोर क चुटक काट ली “हाय रे !” सुधा ने चीखकर कहा और उठ बैठी,
“वाह वाह! िकतना अ छा शेर है! िकसका है?”
“पता नह िकसका है ” गेसू बोली, “लेिकन बहत सच है सुधी, आ माँ के बादल के दामन म
अपने वाब टाँक लेना और उनके सहारे िजंदगी बसर करने का खयाल है तो बड़ा नाजुक,
मगर रानी बड़ा खतरनाक भी है आदमी बड़ी ठोकर खाता है इससे तो अ छा है िक आदमी
को नाजुकखयाली से सािबका ही न पड़े खाते-पीते, हँ सते-बोलते आदमी क िजंदगी कट
जाए ”
सुधा ने अपना आँचल ठीक िकया, और लट म से घास के ितनके िनकालते हए कहा, “गेस,ू
अगर हम लोग को भी शादी- याह के झंझट म न फँसना पड़े और इसी तरह िदन कटते जाएँ तो
िकतना मजा आए हँ सते-बोलते, पढ़ते-िलखते, घास म लेटकर बादल से यार करते हए
िकतना अ छा लगता है, लेिकन हम लड़िकय क िजंदगी भी या! म तो सोचती हँ गेस;ू कभी
याह ही न क ँ हमारे पापा का यान कौन रखे गा?”
गेसू थोड़ी देर तक सुधा क आँख म आँख डालकर शरारत-भरी िनगाह से देखती रही और
मस ु कराकर बोली, “अरे , अब ऐसी भोली नह हो रानी तम ु ! ये शबाब, ये उठान और याह नह
करगी, जोगन बनगी ”
“अ छा, चल हट बेशरम कह क , खुद याह करने क ठान चुक है तो दुिनया-भर को य
तोहमत लगाती है!”
“म तो ठान ही चुक हँ , मेरा या! ि क तो तम ु लोग क है िक याह नह होता तो लेटकर
बादल देखती ह ” गेसू ने मचलते हए कहा
“अ छा अ छा,” गेसू क ओढ़नी ख चकर िसर के नीचे रखकर सुधा ने कहा, “ या हाल है तेरे
अ तर िमयाँ का? मँगनी कब होगी तेरी?”
“मँगनी या, िकसी भी िदन हो जाय, बस फूफ जान के यहाँ आने -भर क कसर है वैसे अ मी
तो फूल क बात उनसे चला रही थ , पर उ ह ने मेरे िलए इरादा जािहर िकया बड़े अ छे ह, आते
ह तो घर-भर म रोशनी छा जाती है ” गेसू ने बहत भोलेपन से गोद म सुधा का हाथ रखकर
उसक उँ गिलयाँ िचटकाते हए कहा
“वे तो तेरे चचाजाद भाई ह न? तझ ु से तो पहले उनसे बोल-चाल रही होगी ” सुधा ने पछ ू ा
“हाँ-हाँ, खबू अ छी तरह से मौलवी साहब हम लोग को साथ-साथ पढ़ाते थे और जब हम
दोन सबक भल ू जाते थे तो एक-दसू रे का कान पकडक़र साथ-साथ उठते-बैठते थे ” गेसू कुछ
झपते हए बोली
सुधा हँ स पड़ी, “वाह रे ! ेम क इतनी िविच शु आत मने कह नह सुनी थी तब तो तम ु
लोग एक-दस ू रे का कान पकडऩे के िलए अपने -आप सबक भल ू जाते ह गे?”
“नह जी, एक बार िफर पढक़र कौन सबक भल ू ता है और एक बार सबक याद होने के बाद
जानती हो इ क म या होता है-
मकतबे इ क म इक ढंग िनराला देखा,
उसको छु ी न िमली िजसको सबक याद हआ"
“खैर, यह सब बात जाने दे सुधा, अब तू कब याह करे गी?”
“ज दी ही क ँ गी ” सुधा बोली
“िकससे?”
“तझु से ” और दोन िखलिखलाकर हँ स पड़
बादल हट गये थे और पाकड़ क छाँह को चीरते हए एक सुनहली रोशनी का तार िझलिमला
उठा हँ सते व गेसू के कान के टॉप चमक उठे और सुधा का यान उधर िखंच गया “ये कब
बनवाया तन ू े ?”
“बनवाया नह ”
“तो उ ह ने िदये ह गे, य ?”
गेसू ने शरमाकर िसर िहला िदया
सुधा ने उठकर हाथ से छूते हए कहा, “िकतने सु दर कमल ह! वाह! य , गेस!ू तन ू े सचमच ु के
कमल देखे ह?”
“न ”
“मने देखे ह ”
“कहाँ?”
“असल म पाँच-छह साल पहले तक तो म गाँव म रहती थी न! ऊँचाहार के पास एक गाँव म मेरी
बुआ रहती ह न, बचपन से म उ ह के पास रहती थी पढ़ाई क शु आत मने वह क और
सातव तक वह पढ़ी तो वहाँ मेरे कूल के पीछे के पोखरे म बहत-से कमल थे रोज शाम
को म भाग जाती थी और तालाब म घुसकर कमल तोड़ती और घर से बुआ एक ल बा-सा स टा
लेकर गािलयाँ देती हई आती थ मझ ु े पकड़ने के िलए जहाँ वह िकनारे पर पहँ चत तो म
कहती, अभी डूब जाएँ गे बुआ, अभी डूबे, तो बहत रबड़ी-मलाई क लालच देकर वह िम नत
करत -िनकल आओ, तो म िनकलती थी तम ु ने तो कभी देखा नह होगा हमारी बुआ को?”
“न, तन ू े कभी िदखाया ही नह ”
“इधर बहत िदन से आय ही नह वे आएँ गी तो िदखाऊँगी तझ ु े और उनक एक लड़क
है बड़ी यारी, बहत मजे क है उसे देखकर तो तम ु उसे बहत यार करोगी वो तो अब यह
आने वाली है अब यह पढ़े गी ”
“िकस दज म पढ़ती है?”
“ ाइवेट िवदुषी म बैठेगी इस साल खबू गोल-मटोल और हँ समख ु है ” सुधा बोली
इतने म घंटा बोला और गेसू ने सुधा के पैर के नीचे दबी हई अपनी ओढ़नी ख ची
“अरे , अब आिखरी घंटे म जाकर या पढ़ोगी! हािजरी कट ही गयी अब बैठो यह बातचीत कर,
आराम कर ” सुधा ने अलसाये वर म कहा और खड़ी होकर एक मदमाती हई अँगड़ाई ली-गेसू
ने हाथ पकडक़र उसे िबठा िलया और बड़ी ग भीरता से कहा, “देखो, ऐसी अरसौह अँगड़ाई न
िलया करो, इससे लोग समझ जाते ह िक अब बचपन करवट बदल रहा है ”
“धत!् ” बेहद झपकर और फाइल म महँु िछपाकर सुधा बोली
“लो, तम ु मजाक समझती हो, एक शायर ने तु हारी अँगड़ाई के िलए कहा है-
कौन ये ले रहा है अँगड़ाई
आसमान को न द आती है”
“वाह!” सुधा बोली, “अ छा गेस,ू आज बहत-से शेर सुनाओ ”
“सुनो-
इक रदायेतीरगी है और खाबेकायनात
डूबते जाते ह तारे , भीगती जाती है रात!”
“पहली लाइन के या मतलब ह?” सुधा ने पछ ू ा
“ रदायेतीरगी के माने ह अँधेरे क चादर और खाबेकायनात के माने ह िजंदगी का सपना-अब
िफर सुनो शेर-
इक रदायेतीरगी है और खाबेकायनात
डूबते जाते ह तारे , भीगती जाती है रात!”
“वाह! िकतना अ छा है-अ धकार क चादर है, जीवन का व न है, तारे डूबते जाते ह, रात
भीगती जाती है...गेस,ू उदू क शायरी बहत अ छी है ”
“तो तू खुद उदू य नह पढ़ लेती?” गेसू ने कहा
“चाहती तो बहत हँ , पर िनभ नह पाता!”
“िकसी िदन शाम को आओ सुधा तो अ मीजान से तझ ु े शेर सुनवाएँ यह ले तेरी मोटर तो आ
गयी ”
सुधा उठी, अपनी फाइल उठायी गेसू ने अपनी ओढऩी झाड़ी और आगे चली पास आकर
उचककर उसने ि ंिसपल का म देखा वह खाली था उसने दाई को खबर दी और मोटर पर
बैठ गयी
गेसू बाहर खड़ी थी “चल तू भी न!”
“नह , म गाड़ी पर चली जाऊँगी ”
“अरे चलो, गाड़ी साढ़े चार बजे जाएगी अभी घंटा-भर है घर पर चाय िपएँ गे, िफर मोटर
पहँ चा देगी जब तक पापा नह ह, तब तक िजतना चाहो कार िघसो!”
गेसू भी आ बैठी और कार चल दी
5

ू रे िदन जब च दर डॉ. शु ला के यहाँ िनब ध क ितिलिप लेकर पहँ चा तो आठ बज चुके


दस
थे सात बजे तो च दर क न द ही खुली थी और ज दी से वह नहा-धोकर साइिकल दौड़ाता
हआ भागा था िक कह भाषण क ितिलिप पहँ चने म देर न हो जाए
जब वह बँगले पर पहँ चा तो धपू फै ल चुक थी अब धपू भली नह मालम ू देती थी, धपू क तेजी
बदा त के बाहर होने लगी थी, लेिकन सुधा नीलकाँटे के ऊँचे -ऊँचे झाड़ क छाँह म एक छोटी-
सी कुरसी डाले बैठी थी बगल म एक छोटी-सी मेज थी िजस पर कोई िकताब खुली हई रखी
थी, हाथ म ोिशया थी और उँ गिलयाँ एक नाजुक तेजी से डोरे से उलझ-सुलझ रही थ ह के
बादामी रं ग क इकलाई क लहराती हई धोती, नारं गी और काली ितरछी धा रय का कलफ
िकया चु त लाउज और एक क धे पर उभरा एक उसका पफ ऐसा लग रहा था जैसे िक बाँह पर
कोई रं गीन िततली आकर बैठी हई हो और उसका िसफ एक पंख उठा हो! अभी-अभी शायद
नहाकर उठी थी य िक शरद क खुशनुमा धपू क तरह हलके सुनहले बाल पीठ पर लहरा रहे
थे नीलकाँटे क टहिनयाँ उनको सुनहली लहर समझकर अठखे िलयाँ कर रही थ
च दर क साइिकल जब अ दर िदख पड़ी तो सुधा ने उधर देखा लेिकन कुछ भी न कहकर िफर
अपनी ोिशया बुनने म लग गयी च दर सीधा पोिटको म गया और अपनी साइिकल रखकर
भीतर चला गया डॉ. शु ला के पास टडी- म म, बैठक म, सोने के कमरे म कह भी डॉ.
शु ला नजर नह आये हारकर वह बाहर आया तो देखा मोटर अभी गैरज म है तो वे जा
कहाँ सकते? और सुधा को तो देिखए! या अकड़ी हई है आज, जैसे च दर को जानती ही
नह च दर सुधा के पास गया सुधा का महँु और भी लटक गया
“डॉ टर साहब कहाँ ह?” च दर ने पछ ू ा
“हम या मालम ू ?” सुधा ने ोिशया पर से िबना िनगाह उठाये जवाब िदया
“तो िकसे मालम ू होगा?” च दर ने डाँटते हए कहा, “हर व का मजाक हम अ छा नह
लगता काम क बात का उसी तरह जवाब देना चािहए उनके िनब ध क िलिप देनी है या
नह !”
“हाँ-हाँ, देनी है तो म या क ँ ? नहा रहे ह गे अभी कोई ये तो है नह िक तम ु िनब ध क
िलिप लाये हो तो कोई नहाये-धोये न, बस सुबह से बैठा रहे िक अब िनब ध आ रहा है, अब आ
रहा है!” सुधा ने महँु बनाकर आँख नचाते हए कहा
“तो सीधे य नह कहती िक नहा रहे ह ” च दर ने सुधा के गु से पर हँ सकर कहा च दर
क हँ सी पर तो सुधा का िमजाज और भी िबगड़ गया और अपनी ोिशया उठाकर और िकताब
बगल म दबाकर, वह उठकर अ दर चल दी उसके उठते ही च दर आराम से उस कुरसी पर बैठ
गया और मेज पर टाँग फै लाकर बोला-”आज मझ ु े बहत गु सा चढ़ा है, खबरदार कोई बोलना
मत!”
सुधा जाते-जाते मड ु क़र खड़ी हो गयी
“हमने कह िदया च दर एक बार िक हम ये सब बात अ छी नह लगत जब देखो तम ु िचढ़ाते
रहते हो!” सुधा ने गु से से कहा
“नह ! िचढ़ाएँ गे नह तो पज ु अपने मौके पर छोड़ देती हो!” च दर ने उसी
ू ा करगे! तम
लापरवाही से कहा
सुधा गयी नह वह घास पर बैठ गयी और िकताब खोलकर पढऩे लगी जब पाँच िमनट
तक वह कुछ नह बोली तो च दर ने सोचा आज बात कुछ ग भीर है
“सुधा!” उसने बड़े दुलार से पुकारा “सुधा!”
सुधा ने कुछ नह कहा मगर दो बड़े -बड़े आँसू टप से नीचे िकताब पर िगर गये
“अरे या बात है सुधा, नह बताओगी?”
“कुछ नह ”
“बता दो, तु ह हमारी कसम है ”
“कल शाम को तम ु आये नह ...” सुधा रोनी आवाज म बोली
“बस इस बात पर इतनी नाराज हो, पागल!”
“हाँ, इस बात पर इतनी नाराज हँ ! तम ु आओ चाहे हजार बार न आओ; इस पर हम य नाराज
ह गे! बड़े कह के आये, नह आएँ गे तो जैसे हमारा घर-बार नह है अपने को जाने या समझ
िलया है!” सुधा ने िचढक़र जवाब िदया
“अरे तो तु ह तो कह रही थी, भाई ” च दर ने हँ सकर कहा
“तो बात परू ी भी सुनो शाम को गेसू का नौकर आया था उसके छोटे भाई हसरत क
सालिगरह थी सुबह 'कुरानखानी' होने वाली थी और उसक माँ ने बुलाया था ”
“तो गयी य नह ?”
“गयी य नह ! िकससे पछ ू कर जाती? आप तो इस व आ रहे ह जब सब ख म हो गया!”
सुधा बोली
“तो पापा से पछ ू के चली जाती!” च दर ने समझाकर कहा, “और िफर गेसू के यहाँ तो य
अकसर जाती हो तम ु !”
“तो? आज तो डा स भी करने के िलए कहा था उसने िफर बाद म तम ु कहते, 'सुधा, तु ह ये
नह करना चािहए, वो नह करना चािहए लड़िकय को ऐसे रहना चािहए, वैसे रहना
चािहए ' और बैठ के उपदेश िपलाते और नाराज होते िबना तम ू े हम कह िसने मा,
ु से पछ
िपकिनक, जलस म गये ह कभी?” और िफर आँसू टपक पड़े
“पगली कह क ! इतनी-सी बात पर रोना या? िकसी के हाथ कुछ उपहार भे ज दो और िफर
िकसी मौके पर चली जाना ”
“हाँ, चली जाना! तु ह कहते या लगता है! गेसू ने िकतना बुरा माना होगा!” सुधा ने िबगड़ते
हए ही कहा “इ तहान आ रहा है, िफर कब जाएँ गे?”
“कब है इ तहान तु हारा?”
“चाहे जब हो! मझ ु े पढ़ाने के िलए कहा िकसी से?”
“अरे भलू गये! अ छा, आज देखो कहगे!”
“कहगे-कहगे नह , आज दोपहर को आप बुला लाइए, वरना हम सब िकताब म लगाये देते ह
आग समझे िक नह !”
“अ छा-अ छा, आज दोपहर को बुला लाएँ गे ठीक, अ छा याद आया िबस रया से कहँ गा तु ह
पढ़ाने के िलए उसे पये क ज रत भी है ” च दर ने छुटकारे का कोई रा ता न पाकर
कहा
“आज दोपहर को ज र से ” सुधा ने िफर आँख नचाकर कहा “लो, पापा आ गये नहाकर,
जाओ!”
च दर उठा और चल िदया सुधा उठी और अ दर चली गयी
डॉ. शु ला ह के-साँवले रं ग के जरा थल ू काय-से थे बहत ग भीर अ ययन और अ यापन और
उ के साथ-साथ ही उनक न ता और भी बढ़ती जा रही थी
लेिकन वे लोग से िमलते-जुलते कम थे यि गत दो ती उनक िकसी से नह थी लेिकन
उ र भारत के मख ु िव ान् होने के नाते का े स म, मौिखक परी ाओं म, सरकारी
कमेिटय म वे बराबर बुलाये जाते थे और इसम मख ु िदलच पी से िह सा लेते थे ऐसी जगह
म च दर अ सर उनका मख ु सहायक रहता था और इसी नाते च दर भी ा त के बड़े -बड़े
लोग से प रिचत हो गया था जब वह एम. ए. पास हआ था तब से फाइने स िवभाग म उसे कई
बार ऊँचे -ऊँचे पद का 'ऑफर' आ चुका था लेिकन डॉ. शु ला इसके िखलाफ थे वे चाहते थे
िक पहले वह रसच परू ी कर ले स भव हो तो िवदेश हो आये, तब चाहे कुछ काम करे अपने
यि गत जीवन म डॉ. शु ला अ तिवरोध के यि थे पािटय म मस ु लमान और ईसाइय
के साथ खाने म उ ह कोई एतराज नह था लेिकन क चा खाना वे चौके म आसन पर बैठकर,
रे शमी धोती पहनकर खाते थे सरकार को उ ह ने सलाह दी िक साधुओ ं और सं यािसय को
जबरद ती काम म लगाया जाए और मि दर क जायदाद ज त कर ली जाएँ , लेिकन सुबह घंटे-
भर तक पज ू ा ज र करते थे पज ू ा-पाठ, खान-पान, जात-पाँत के प के हामी, लेिकन
यि गत जीवन म कभी यह नह जाना िक उनका कौन िश य ा ण है, कौन बिनया, कौन
ख ी, कौन काय थ!
नहाकर वे आ रहे थे और दुगास शती का कोई ोक गन ु गन
ु ा रहे थे कपरू को देखा तो क
गये और बोले, “हैलो, हो गया वह टाइप!”
“जी हाँ ”
“कहाँ कराया टाइप?”
“िमस िड ू ज के यहाँ ”
“अ छा! वह लड़क अ छी है अब तो बहत बड़ी हई होगी? अभी शादी नह हई? मने तो सोचा
वह िमले या न िमले!”
“नह , वह यह है शादी हई िफर तलाक हो गया ”
“अरे ! तो अकेले रहती है?”
“नह , अपने भाई के साथ है, बट के साथ!”
“अ छा! और बट क प नी अ छी तरह है?”
“वह मर गयी ”
“राम-राम, तब तो घर ही बदल गया होगा ”
“पापा, पजू ा के िलए सब िबछा िदया है ” सहसा सुधा बोली
“अ छा बेटी, अ छा च दर, म पज ू ा कर आऊँ ज दी से तम ु चाय पी चुके?”
“जी हाँ ”
“अ छा तो मेरी मेज पर एक चाट है, जरा इसको ठीक तो कर दो तब तक म अभी आया ”
च दर टडी- म म गया और मेज पर बैठ गया कोट उतारकर उसने खँटू ी पर टाँग िदया और
न शा देखने लगा पास म एक छोटी-सी चीनी क याली म चाइना इंक रखी थी और मेज पर
पानी उसने दो बँदू पानी डालकर चाइना इंक िघसनी शु क , इतने म सुधा कमरे म दािखल,
“ऐ सुनो!” उसने चार ओर देखकर बड़े सशंिकत वर म कहा और िफर झक ु कर च दर के
कान के पास महँु लगाकर कहा, “चावल क नानखटाई खाओगे?”
“ये या बला है?” च दर ने इंक िघसते-िघसते पछ ू ा
“बड़ी अ छी चीज होती है; पापा को बहत अ छी लगती है आज हमने सुबह अपने हाथ से
बनायी थी ऐं, खाओगे?” सुधा ने बड़े दुलार से पछ ू ा
“ले आओ ” च दर ने कहा
“ले आये हम, लो!” और सुधा ने अपने आँचल म िलपटी हई दो नानखटाई िनकालकर मेज पर
रख दी
“अरे त तरी म य नह लायी? सब धोती म घी लग गया इतनी बड़ी हो गयी, शऊर नह
जरा-सा ” च दर ने िबगडक़र कहा
“िछपा करके लाये ह, िफर ये सकरी होती ह िक नह ? चौके के बाहर कैसे लाते! तु हारे िलये तो
लाये ह और तु ह िबगड़ रहे हो अ धे को नोन दो, अ धा कहे मेरी आँख फोड़ ” सुधा ने महँु
बनाकर कहा, “खाना है िक नह ?”
“हाथ म तो हमारे याही लगी है ” च दर बोला
“हम अपने हाथ से नह िखलाएँ गे, हमारा हाथ जठ ू ा हो जाएगा और राम राम! पता नह तम ु
ु लमान के हाथ का खाते होगे थ-ू थ!ू ”
रे तराँ म मस
च दर हँ स पड़ा सुधा क इस बात पर और उसने पानी म हाथ डुबोकर िबना पछ ू े सुधा के आँचल
म हाथ प छ िदये याही के और बेतक लुफ से नानखटाई उठाकर खाने लगा
“बस, अब धोती का िकनारा रं ग िदया और यही पहनना है हम िदनभर ” सुधा ने िबगडक़र
कहा
“खुद नानखटाई िछपाकर लायी और घी लग गया तो कुछ नह और हमने याही प छ दी तो महँु
िबगड़ गया ” च दर ने मैिपंग पे न म इंक लगाते हए कहा
“हाँ, अभी पापा देख तो और िबगड़ िक धोती म घी, याही सब लगाये रहती है तु ह या?”
और उसने याही लगा हआ छोर कसकर कमर म ख स िलया
“िछः, वही घी म तर छोर कमर म ख स िलया ग दी कह क !” च दर ने चाट क लाइन ठीक
करते हए कहा
“ग दी ह तो, तम ु से मतलब!” और महँु िचढ़ाते हए सुधा कमरे से बाहर चली गयी
च दर चुपचाप बैठा चाट दु त करता रहा उ र देश के पवू िजला-बिलया, आजमगढ़,
ब ती, बनारस आिद म ब च क म ृ यु-सं या का ाफ बनाना था और एक ओर उनके न शे
पर िब दुओ ं क एक सघनता से म ृ यु-सं या का िनदश करना था च दर क एक आदत थी
वह काम म लगता था तो भत ू क तरह लगता था िफर उसे दीन-दुिनया, िकसी क खबर नह
रहती थी खाना-पीना, तन-बदन, िकसी का होश नह रहता था इसका एक कारण था
च दर उन लड़क म से था िजनक िजंदगी बाहर से बहत ह क -फु क होते हए भी अ दर से
बहत ग भीर और अथमयी होती है, िजनके सामने एक प उ े य, एक ल य होता है बाहर
से चाहे जैसे होने पर भी अपने आ त रक स य के ित घोर ईमानदारी यह इन लोग क
िवशेषता होती है और सारी दुिनया के ित अग भीर और उ छृंखल होने पर भी जो चीज इनक
ल यप रिध म आ जाती ह, उनके ित उनक ग भीरता, साधना और पज ू ा बन जाती है
इसिलए बाहर से इतना यि वादी और सारी दुिनया के ित िनरपे और लापरवाह िदख पडऩे
पर भी वह अ तरतम से समाज और युग और अपने आसपास के जीवन और यि य के ित
अपने को बेहद उ रदायी अनुभव करता था वह देशभ भी था और शायद समाजवादी भी, पर
अपने तरीके से वह ख र नह पहनता था, कां ेस का सद य नह था, जेल नह गया था,
िफर भी वह अपने देश को यार करता था बेहद यार उसक देशभि , उसका समाजवाद,
सभी उसके अ ययन और खोज म समा गया था वह यह जानता था िक समाज के सभी त भ
का थान अपना अलग होता है अगर सभी मि दर के कंगरू े का फूल बनने क कोिशश करने
लग तो न व क ई ंट और सीढ़ी का प थर कौन बने गा? और वह जानता था िक अथशा वह
प थर है िजस पर समाज के सारे भवन का बोझ है और उसने िन य िकया था िक अपने देश,
अपने युग के आिथक पहलू को वह खबू अ छी तरह से अपने ढंग से िव े षण करके देखेगा और
उसे आशा थी िक वह एक िदन ऐसा समाधान खोज िनकालेगा िक मानव क बहत-सी
सम याएँ हल हो जाएँ गी और आिथक और राजनीितक े म अगर आदमी खँख ू ार जानवर बन
गया है तो एक िदन दुिनया उसक एक आवाज पर देवता बन सकेगी इसिलए जब वह बैठकर
कानपुर क िमल के मजदरू के वेतन का चाट बनाता था, या उपयु साधन के अभाव म मर
जाने वाली गरीब औरत और ब च का लेखा-जोखा करता था तो उसके सामने अपना कै रयर,
अपनी ित ा, अपनी िड ी का सपना नह होता था उसके मन म उस व वैसा स तोष
होता था जो िकसी पुजारी के मन म होता है, जब वह अपने देवता क अचना के िलए धपू , दीप,
नैवे सजाता है बि क च दर थोड़ा भावुक था, एक बार तो जब च दर ने अपने रसच के
िसलिसले म यह पढ़ा िक अँगरे ज ने अपनी पँज ू ी लगाने और अपना यापार फै लाने के िलए
िकस तरह मिु शदाबाद से लेकर रोहतक तक िह दु तान के गरीब से गरीब और अमीर से अमीर
बािश दे को अमानुिषकता से लटू ा, तब वह फूट-फूटकर रो पड़ा था लेिकन इसके बावजदू उसने
राजनीित म कभी डूबकर िह सा नह िलया य िक उसने देखा िक उसके जो भी िम राजनीित
म गये, वे थोड़े िदन बाद बहत िसि और ित ा पा गये मगर आदमीयत खो बैठे
अपने अथशा के बावजदू वह यह समझता था िक आदमी क िजंदगी िसफ आिथक पहलू तक
सीिमत नह और वह यह भी समझता था िक जीवन को सुधारने के िलए िसफ आिथक ढाँचा
बदल देने-भर क ज रत नह है उसके िलए आदमी का सुधार करना होगा, यि का सुधार
करना होगा वरना एक भरे -परू े और वैभवशाली समाज म भी आज के-से अ व थ और
पाशिवक विृ य वाले यि रहगे तो दुिनया ऐसी ही लगेगी जैसे एक खबू सरू त सजा-सजाया
महल िजसम क ड़े और रा स रहते ह
वह यह भी समझता था िक वह िजस तरह क दुिनया का सपना देखता, वह दुिनया आज िकसी
भी एक राजनीितक ाि त या िकसी भी िवशेष पाट क सहायता मा से नह बन सकती है
उसके िलए आदमी को अपने को बदलना होगा, िकसी समाज को बदलने से काम नह चलेगा
इसिलए वह अपने यि के संसार म िनर तर लगा रहता था और समाज के आिथक पहलू को
समझने क कोिशश करता रहता था यही कारण है िक अपने जीवन म आने वाले यि य के
ित वह बेहद ईमानदार रहता था और अपने अ ययन और काम के ित वह सचे त और जाग क
रहता था और वह अ छी तरह समझता था िक इस तरह वह दुिनया को उस ओर बढ़ाने म थोड़ी-
सी मदद कर रहा है चँिू क अपने म भी वह स य क वही िचनगारी पाता था इसिलए किव या
दाशिनक न होते हए भी वह इतना भावुक, इतना ढ़-च र , इतना सश और इतना ग भीर
था और काम तो अपना वह इस तरह करता था जैसे वह िकसी क एका उपासना कर रहा हो
इसिलए जब वह चाट के न शे पर कलम चला रहा था तो उसे मालम ू नह हआ िक िकतनी देर
से डॉ. शु ला आकर उसके पीछे खड़े हो गये
“वाह, न शे पर तो तु हारा हाथ बहत अ छा चलता है बहत अ छा! अब उसे रहने दो लाओ,
देख, तु हारा काम कैसा चल रहा है आज तो इतवार है न?”
डॉ. शु ला पास क कुरसी पर बैठकर बोले, “च दर! आजकल म एक िकताब िलखने क सोच
रहा हँ मने सोचा िक भारतवष क जाित- यव था का नये वै ािनक ढंग से अ ययन और
िव े षण िकया जाए तम ु इसके बारे म या सोचते हो?”
“ यथ है! जो यव था आज नह तो कल चरू -चरू होने जा रही है, उसके बारे म तम ू ार बाँधना
और समय बरबाद करना बेकार है ” च दर ने बहत आ मिव ास से कहा
“यही तो तम ु लोग म खराबी है कुछ थोड़ी-सी खरािबयाँ जाित- यव था क देख ल और
उसके िखलाफ हो गये एक रसच कॉलर का ि कोण ही दस ू रा होना चािहए िफर हमारे
भारत क ाचीन सां कृितक पर पराओं को तो बहत ही सावधानी से समझने क आव यकता
है यह समझ लो िक मानव जाित दुबल नह है अपने िवकास- म म वह उ ह सं थाओं,
रीित- रवाज और पर पराओं को रहने देती है जो उसके अि त व के िलए बहत आव यक होती
है अगर वे आव यक न हई ं तो मानव उससे छुटकारा माँग लेता है यह जाित- यव था जाने
िकतने साल से िह दु तान म कायम है, या यही इस बात का माण नह िक यह बहत सश
है, अपने म बहत ज री है?”
“अरे िह दु तान क भली चलायी ” च दर बोला, “िह दु तान म तो गल ु ामी िकतने िदन से
कायम है तो या वह भी ज री है ”
“िब कुल ज री है ” डॉ. शु ला बोले, “मझ ु े भी िह दु तान पर गव है मने कभी कां ेस का
काम िकया, लेिकन म इसे नतीजे पर पहँ चा हँ िक जरा-सी आजादी अगर िमलती है
िह दु तािनय को, तो वे उसका भरपरू दु पयोग करने से बाज नह आते और कभी भी ये लोग
अ छे शासक नह िनकलगे ”
“अरे नह ! ऐसी बात नह िह दु तािनय को ऐसा बना िदया है अँगरे ज ने वरना
िह दु तान ने ही तो च गु और अशोक पैदा िकये थे और रही जाित- यव था क बात तो मझ ु े
तो प िदख रहा है िक जाित- यव था टूट रही है ” कपरू बोला, “रोटी-बेटी क कैद थी
रोटी क कैद तो करीब-करीब टूट गयी, अब बेटी क कैद भी... याह-शािदयाँ भी दो-एक पीढ़ी
के बाद व छ दता से होने लगगी ”
“अगर ऐसा होगा तो बहत गलत होगा इससे जाितगत पतन होता है याह-शादी को कम-
से-कम म भावना क ि से नह देखता यह एक सामािजक त य है और उसी ि कोण से
हम देखना चािहए शादी म सबसे बड़ी बात होती है सां कृितक समानता और जब अलग-
अलग जाित म अलग-अलग रीित- रवाज ह तो एक जाित क लड़क दस ू री जाित म जाकर कभी
भी अपने को ठीक से स तिु लत नह कर सकती और िफर एक बिनया क यापा रक विृ य
क लड़क और एक ा ïण का अ ययन विृ का लड़का, इनक स तान न इधर िवकास कर
सकती है न उधर यह तो सामािजक यव था को यथ के िलए अस तिु लत करना हआ ”
“हाँ, लेिकन िववाह को आप केवल समाज के ि कोण से य देखते ह? यि के ि कोण
से भी देिखए अगर दो िविभ न जाित के लड़के-लड़क अपना मानिसक स तल ु न यादा
अ छा कर सकते ह तो य न िववाह क इजाजत दी जाए!”
“ओह, एक यि के सुझाव के िलए हम समाज को य नुकसान पहँ चाएँ ! और इसका या
िन य िक िववाह के समय यिद दोन म मानिसक स तल ु न है तो िववाह के बाद भी रहे गा ही
मानिसक स तल ु न और ेम िजतना अपने मन पर आधा रत होता है उतना ही बाहरी
प रि थितय पर या जाने याह के व क प रि थित का दोन के मन पर िकतना भाव है
और उसके बाद स तल ु न रह पाता है या नह ? और मने तो लव-मै रजेज ( ेम-िववाह) को
असफल ही होते देखा है बोलो है या नह ?” डॉ. शु ला ने कहा
“हाँ, ेम-िववाह अकसर असफल होते ह, लेिकन स भव है वह ेम न होता हो जहाँ स चा ेम
होगा वहाँ कभी असफल िववाह नह ह गे ” च दर ने बहत साहस करके कहा
“ओह! ये सब सािह य क बात ह समाजशा क ि से या वै ािनक ि से देखो! अ छा
खैर, अभी मने उसक प-रे खा बनायी है िलखँग ू ा तो तम
ु सुनते चलना लाओ, वह िनब ध
कहाँ है!” डॉ. शु ला बोले
च दर ने उ ह टाइप क हई ितिलिप दे दी उलट-पुलटकर डॉ. शु ला ने देखा और कहा,
“ठीक है अ छा च दर, अपना काम इधर ठीक-ठीक कर लो, अगले इतवार को लखनऊ
कॉ े स म चलना है ”
“अ छा! कार पर चलगे या े न से?”
“ े न से अ छा ” घड़ी देखते हए उ ह ने कहा, “अब जरा म काम से चल रहा हँ तम ु यह
चाट बना डालो और एक िनब ध िलख डालना - 'पवू िजल म िशशु म ृ यु ' ा त के वा य
िवभाग ने एक पुर कार घोिषत िकया है ”
डॉ. शु ला चले गये च दर ने िफर चाट म हाथ लगाया
6

च दर के जाने के जरा ही देर बाद पापा आये और खाने बैठे सुधा ने रसोई क रे शमी धोती
पहनी और पापा को पंखा झलने बैठ गयी सुधा अपने पापा क िसरचढ़ी दुलारी बेिटय म से
थी और इतनी बड़ी हो जाने पर भी वह दुलार िदखाने से बाज नह आती थी िफर आज तो
उसने पापा क ि य नानखटाई अपने हाथ से बनायी थी आज तो दुलार िदखाने का उसका
हक था और भली-बुरी हर तरह क िजद को मान लेना करना, यह पापा क मजबरू ी थी
मिु कल से डॉ. साहब ने अभी दो कौर खाये ह गे िक सुधा ने कहा, “नानखटाई खाओ, पापा!”
डॉ. शु ला ने एक नानखटाई तोडक़र खाते हए कहा, “बहत अ छी है!” खाते-खाते उ ह ने
पछ
ू ा, “सोमवार को कौन िदन है, सुधा!”
“सोमवार को कौन िदन है? सोमवार को 'म डे ' है ” सुधा ने हँ सकर कहा डॉ. शु ला भी
अपनी भल ू पर हँ स पड़े “अरे देख तो म िकतना भुल कड़ हो गया हँ मेरा मतलब था िक
सोमवार को कौन तारीख है?”
“11 तारीख ” सुधा बोली, “ य ?”
“कुछ नह , 10 को कॉ े स है और 14 को तु हारी बुआ आ रही ह ”
“बुआ आ रही ह, और िबनती भी आएगी?”
“हाँ, उसी को तो पहँ चाने आ रही ह िवदुषी का के यह तो है ”
“आहा! अब तो िबनती तीन महीने यह रहे गी, पापा अब िबनती को यह बुला लो म बहत
अकेली रहती हँ ”
“हाँ, अब तो जनू तक यह रहे गी िफर जुलाई म उसक शादी होगी ” डॉ. शु ला ने कहा
“अरे , अभी से? अभी उसक उ ही या है!” सुधा बोली
“ य , तेरे बराबर है अब तेरे िलए भी तेरी बुआ ने िलखा है ”
“नह पापा, हम याह नह करगे ” सुधा ने मचलकर कहा
“तब?”
“बस हम पढ़गे एफ.ए. कर लगे, िफर बी.ए., िफर एम.ए., िफर रसच, िफर बराबर पढ़ते जाएँ गे,
िफर एक िदन हम भी तु हारे बराबर हो जाएँ गे य , पापा?”
“पागल नह तो, बात तो सुनो इसक ! ला, दो नानखटाई और दे ” शु ला हँ सकर बोले
“नह , पहले तो कबल ू दो तब हम नानखटाई दगे बताओ याह तो नह करोगे ” सुधा ने दो
नानखटाइयाँ हाथ म उठाकर कहा
“ला, रख ”
“नह , पहले बता दो ”
“अ छा-अ छा, नह करगे ”
सुधा ने दोन नानखटाइयाँ रखकर पंखा झलना शु िकया इतने म िफर नानखटाइयाँ खाते
हए डॉ. शु ला बोले, “तेरी सास तझ ु े देखने आएगी तो यही नानखटाइयाँ तम ु से बनवा कर
िखलाएँ गे ”
“िफर वही बात!” सुधा ने पंखा पटककर कहा, “अभी तम ु वादा कर चुके हो िक याह नह
करगे ”
“हाँ-हाँ, याह नह क ँ गा, यह तो कह िदया मने लेिकन तेरा याह नह क ँ गा, यह मने
कब कहा?”
“हाँ आँ, ये तो िफर झठ
ू बोल गये तम
ु ...” सुधा बोली
“अ छा, ए! चलो ओहर ” महरािजन ने डाँटकर कहा, “ए ी बड़ी िबिटया हो गयी, मारे दुलारे
के बररानी जात है ” महरािजन पुरानी थी और सुधा को डाँटने का परू ा हक था उसे, और सुधा
भी उसका बहत िलहाज करती थी वह उठी और चुपचाप जाकर अपने कमरे म लेट गयी
बारह बज रहे थे
वह लेटी-लेटी कल रात क बात सोचने लगी लास म या मजा आया था कल; गेसू िकतनी
अ छी लड़क है! इस व गेसू के यहाँ खाना-पीना हो रहा होगा और िफर सब लोग िमलकर
गाएँ गे कौन जाने शायद दोपहर को क वाली भी हो इन लोग के यहाँ क वाली इतनी
अ छी होती है सुधा सुन नह पाएगी और गेसू ने भी िकतना बुरा माना होगा और यह सब
च दर क वजह से च दर हमेशा उसके आने -जाने , उठने -बैठने म कतर- य त करता रहता
है एक बार वह अपने मन से लड़िकय के साथ िपकिनक म चली गयी वह च दर के बहत-
से दो त भी थे एक दो त ने जाकर च दर से जाने या कह िदया िक च दर उस पर बहत
िबगड़ा और सुधा िकतनी रोयी थी उस िदन यह च दर बहत खराब है सच पछ ू ो तो अगर
कभी-कभी वह सुधा का कहना मान लेता है तो उससे दुगन ु ा सुधा पर रोब जमाता है और सुधा
को ला- लाकर मार डालता है और खुद अपने -आप दुिनयाभर म घम ू गे अपना काम होगा
तो 'चलो सुधा, अभी करो, फौरन ' और सुधा का काम होगा तो-'अरे भाई, या कर, भल ू गये '
अब आज ही देखो, सुबह आठ बजे आये और अब देखो दो बजे भी जनाब आते ह या नह ? और
कह गये ह दो बजे तक के िलए तो दो बजे तक सुधा को चैन नह पड़े गी न न द आएगी, न
िकसी काम म तबीयत लगेगी लेिकन अब ऐसे काम कैसे चलेगा इ तहान को िकतने थोड़े
िदन रह गये ह और सुधा क तबीयत िसवा पोय ी (किवता) के और कुछ पढऩे म लगती ही
नह कब से वह च दर से कह रही है थोड़ा-सा इकनािम स पढ़ा दो, लेिकन ऐसा वाथ है
िक बस चाय पी ली, नानखटाई खा ली, ला िलया और िफर अपने म त साइिकल पर घम ू रहे

यही सब सोचते-सोचते सुधा को न द आ गयी
और तीन बजे जब गेसू आयी तो भी सुधा सो रही थी पलंग के नीचे डी.एम.सी. का गोला खुला
हआ था और तिकये के पास ोिशया पड़ी थी सुधा थी बड़ी यारी बड़ी खबू सरू त और
खासतौर से उसक पलक तो अपरािजता के फूल को मात करती थ और थी इतनी गोरी
गद ु कारी िक कह पर दबा दो तो फूल िखल जाए मिँ ू गया ह ठ पर जाने कैसा अछूता गल ु ाब
मसु कराता था और बाँह तो जैसे बेले क पाँखु रय क बनी ह गेसू आयी उसके हाथ म
िमठाई थी जो उसक माँ ने सुधा के िलए भे जी थी वह पल-भर खड़ी रही और िफर उसने मेज
पर िमठाई रख दी और ोिशया से सुधा क गदन गद ु गदु ाने लगी सुधा ने करवट बदल ली
गेसू ने नीचे पड़ा हआ डोरा उठाया और आिह ते से उसका चुटीला डोरे के एक छोर से बाँधकर
दसू रा छोर मेज के पाये से बाँध िदया और उसके बाद बोली, “सुधा, सुधा उठो ”
सुधा च ककर उठ गयी और आँख मलते-मलते बोली, “अब दो बजे ह? लाये उ ह या नह ?”
“ओहो! उ ह लाये या नह िकसे बुलाया था रानी, दो बजे; जरा हम भी तो मालम ू हो?” गेसू ने
बाँह म चुटक काटते हए पछ ू ा
“उ फोह!” सुधा बाँह झटककर बोली, “मार डाला! बेदद कह क ! ये सब अपने उ ह अ तर
िमयाँ को िदखाया कर!” और य ही सुधा ने िसर ढँकने के िलए प ला उठाया तो देखा िक
चोटी डोर म बँधी हई है इसके पहले िक सुधा कुछ कहे , गेसू बोली, “या सनम! जरा पढ़ाई तो
देखो, मने तो सुना था िक न द न आये इसिलए लड़के अपनी चोटी खँटू ी म बाँध लेते ह पर यह
नह मालम ू था िक लड़िकयाँ भी अब वही करने लगी ह ”
सुधा ने चोटी से डोर खोलते हए कहा, “म ही सताने को रह गयी हँ अ तर िमयाँ क चोटी
बाँधकर नचाना उ ह अभी से बेताब य हई जाती है?”
“अरे रानी, उनके चोटी कहाँ? िमयाँ ह िमयाँ?”
“चोटी न सही, दाढ़ी सही ”
“दाढ़ी, खुदा खैर करे , मगर वो दाढ़ी रख ल तो म उनसे मोह बत तोड़ लँ ू ”
सुधा हँ सने लगी
“ले, अ मी ने तेरे िलए िमठाई भे जी है तू आयी य नह ?”
“ या बताऊँ?”
“बताऊँ-वताऊँ कुछ नह अब कब आएगी त?ू ”
“गेस,ू सुनो, इसी मंगल, नह -नह बहृ पित को बुआ आ रही ह वो चली जाएँ गी तब आऊँगी
म ”
“अ छा, अब म चलँ ू अभी कािमनी और भा के यहाँ िमठाई पहँ चानी है ”
गेसू मड़ ु ते हए बोली
“अरे बैठो भी ” सुधा ने गेसू क ओढऩी पकडक़र उसे ख चकर िबठलाते हए कहा, “अभी आये
हो, बैठे हो, दामन सँभाला है ”
“आहा अब तो तू भी उदू शायरी कहने लगी ” गेसू ने बैठते हए कहा
“तेरा ही मज लग गया ” सुधा ने हँ सकर कहा
“देख कह और भी मज न लग जाए, वरना िफर तेरे िलए भी इ तजाम करना होगा!” गेसू ने
पलंग पर लेटते हए कहा
“अरे ये वो गड़ ु नह िक च टे खाएँ ”
“देखँग ू ी, और देखँगू ी या, देख रही हँ इधर िपछले दो साल से िकतनी बदल गयी है तू
पहले िकतना हँ सती-बोलती थी, िकतनी लड़ती-झगड़ती थी और अब िकतना हँ सने -बोलने पर
भी गम ु सुम हो गयी है तू और वैसे हमेशा हँ सती रहे चाहे लेिकन जाने िकस खयाल म डूबी
रहती है हमेशा ” गेसू ने सुधा क ओर देखते हए कहा
“धत् पगली कह क ” सुधा ने गेसू के एक ह क -सी चपत मारकर कहा, “यह सब तेरे अपने
खयाली-पुलाव ह म िकसी के यान म डूबँग ू ी, ये हमारे गु ने नह िसखाया ”
“गु तो िकसी के नह िसखाते सुधा रानी, िब कुल सच-सच, या कभी तु हारे मन म िकसी
के िलए मोह बत नह जागी?” गेसू ने बहत ग भीरता से पछ ू ा
“देख गेस,ू तझ ु से मने आज तक तो कभी कुछ नह िछपाया, न शायद कभी िछपाऊँगी अगर
कभी कोई बात होती तो तझ ु से िछपी न रहती और रहा महु बत का, तो सच पछ ू तो मने जो कुछ
कहािनय म पढ़ा है िक िकसी को देखकर म रोने लग,ँ ू गाने लग,ँ ू पागल हो जाऊँ यह सब कभी
मझु े नह हआ और रह किवताएँ तो उनम क बात मझ ु े बहत अ छी लगती ह क ट्स क
किवताएँ पढक़र ऐसा लगा है अ सर िक मेरी नस का कतरा-कतरा आँसू बनकर छलकने वाला
है लेिकन वह महज किवता का असर होता है ”
“महज किवता का असर,” गेसू ने पछ ू ा, “कभी िकसी खास आदमी के िलए तेरे मन म हँ सी या
आँसू नह उमड़ते! कभी अपने मन को जाँचकर तो देख, कह तेरी नाजुक-खयाली के परदे म
िकसी एक क सरू त तो नह िछपी है ”
“नह गेसू बानो, नह , इसम मन को जाँचने क या बात है ऐसी बात होती और मन िकसी
के िलए झक ु ता तो या खुद मझ ु े नह मालम ू होता?” सुधा बोली, “लेिकन तम ु ऐसा य सोचती
हो?”
“बात यह है, सुधी!” गेसू ने सुधा को अपनी गोद म ख चते हए कहा, “देखो, तम ु मझ
ु से इ म म
ऊँची हो, तम ु ने अँ ेजी शायरी छान डाली है लेिकन िजंदगी से िजतना मझ ु े सािबका पड़ चुका है,
अभी तु ह नह पड़ा अ सर कब, कहाँ और कैसे मन अपने को हार बैठता है, यह खुद हम पता
नह लगता मालम ू तब होता है जब िजसके कदम पर हमने िसर रखा है, वह झटके से अपने
कदम घसीट ले उस व हमारी न द टूट जाती है और तब हम जाकर देखते ह िक अरे हमारा
िसर तो िकसी के कदम पर रखा हआ था और उनके सहारे आराम से सोते हए हम सपना देख
रहे थे िक हमारा िसर कह झक ु ा ही नह और मझ ु े जाने तेरी आँख म इधर या दीख रहा है
िक म बेचन ै हो उठी हँ तन ू े कभी कुछ नह कहा, लेिकन मने देखा िक नाजुक अशआर तेरे
िदल को उस जगह छू लेते ह िजस जगह उसी को छू सकते ह जो अपना िदल िकसी के कदम पर
चढ़ा चुका हो और म यह नह कहती िक तन ू े मझ
ु से िछपाया है कौन जानता है तेरे िदल ने
खुद तझ ु से यह राज िछपा रखा हो ” और सुधा के गाल थपथपाते हए गेसू बोली, “लेिकन मेरी
एक बात माने गी त?ू तू कभी इस दद को मोल न लेना, बहत तकलीफ होती है ”
सुधा हँ सने लगी, “तकलीफ क या बात? तू तो है ही तझ ु से पछ
ू लँग
ू ी उसका इलाज ”
“मझ ु से पछ
ू कर या कर लेगी-
दद िदल या बाँटने क चीज है?
बाँट ल अपने पराये दद िदल?
नह , तू बड़ी सुकुवाँर है तू इन तकलीफ के िलए बनी नह मेरी च पा!” और गेसू ने उसका
िसर अपनी छाती म िछपा िलया
टन से घड़ी ने साढ़े तीन बजाये
सुधा ने अपना िसर उठाया और घड़ी क ओर देखकर कहा-
“ओ फोह, साढ़े तीन बजे गये और अभी तक गायब!”
“िकसके इ तजार म बेताब है त?ू ” गेसू ने उठकर पछ ू ा
“बस दद िदल, महु बत, इ तजार, बेताबी, तेरे िदमाग म तो यही सब भरा रहता है आज कल,
वही तू सबको समझती है इ तजार-िव तजार नह , च दर अभी मा टर लेकर आएँ गे अब
इ तहान िकतना नजदीक है ”
“हाँ, ये तो सच है और अभी तक मझ ु से पछ
ू , या पढ़ाई हई है असल बात तो यह है िक कॉलेज
म पढ़ाई हो तो घर म पढऩे म मन लगे और राजा कॉलेज म पढ़ाई नह होती इससे अ छा सीधे
यिू नविसटी म बी.ए. करते तो अ छा था मेरी तो अ मी ने कहा िक वहाँ लड़के पढ़ते ह, वहाँ
नह भे जँग ू ी, लेिकन तू य नह गयी, सुधा?”
“मझ ु े भी च दर ने मना कर िदया था ” सुधा बोली
सहसा गेसू ने एक ण को सुधा क ओर देखा और कहा, “सुधी, तझ ु से एक बात पछ
ू ू ँ !”
“हाँ!”
“अ छा जाने दे!”
“पछ ू ो न!”
“नह , पछ ू ना या, खुद जािहर है ”
“ या?”
“कुछ नह ”
“पछ ू ो न!”
“अ छा, िफर कभी पछ ू लगे! अब देर हो रही है आधा घंटा हो गया कोचवान बाहर खड़ा
है ”
सुधा गेसू को पहँ चाने बाहर तक आयी
“कभी हसरत को लेकर आओ ” सुधा बोली
“अब पहले तम ु आओ ” गेसू ने चलते-चलते कहा
“हाँ, हम तो िबनती को लेकर आएँ गे और हसरत से कह देना तभी उसके िलए तोहफा
लाएँ गे!”
“अ छा, सलाम...”
और गेसू क गाड़ी मिु कल से फाटक के बाहर गयी होगी िक साइिकल पर च दर आते हए दीख
पड़ा सुधा ने बहत गौर से देखा िक उसके साथ कौन है, मगर वह अकेला था
सुधा सचमच ु झ ला गयी आिखर लापरवाही क हद होती है च दर को दुिनया भर के काम
याद रहते ह, एक सुधा से जाने या खार खाये बैठा है िक सुधा का काम कभी नह करे गा
इस बात पर सुधा कभी-कभी दु:खी हो जाती है और घर म िकससे वह कहे काम के िलए खुद
कभी बाजार नह जाती नतीजा यह होता है िक वह छोटी-से-छोटी चीज के िलए मोहताज
होकर बैठ जाती है और काम नौकर से करवा भी ले, पर अब मा टर तो नौकर से नह
ढुँढ़वाया जा सकता? ऊन तो नौकर नह पस द कर सकता? िकताब तो नौकर नह ला
सकता? और च दर का यह हाल है इसी बात पर कभी-कभी उसे लाई आ जाती है
च दर ने आकर बरामदे म साइिकल रखी और सुधा का चे हरा देखते ही वह समझ गया “काहे
महँु बना रखा है, पाँच बजे मा टर साहब आएँ गे तु हारे अभी उ ह के यहाँ से आ रहे ह
िबस रया को जानती हो, वही आएँ गे ” और उसके बाद च दर सीधा टडी- म म पहँ च गया
वहाँ जाकर देखा तो आराम-कुस पर बैठे-ही-बैठे डॉ. शु ला सो रहे ह, अत: उसने अपना चाट
और पे न उठाया और ाइंग म म आकर चुपचाप काम करने लगा
बड़ा ग भीर था वह जब इंक घोलने के िलए उसने सुधा से पानी नह माँगा और खुद िगलास
लाकर आँगन म पानी लेने लगा, तब सुधा समझ गयी िक आज िदमाग कुछ िबगड़ा है वह
एकदम तड़प उठी या करे वह! वैसे चाहे वह च दर से िकतना ही ढीठ य न हो पर च दर
गु सा रहता था तब सुधा क ह काँप उठती थी उसक िह मत नह पड़ती थी िक वह कुछ
भी कहे लेिकन अ दर-ही-अ दर वह इतनी परे शान हो उठती थी िक बस
कई बार वह िकसी-न-िकसी बहाने से ाइंग म म आयी, कभी गल ु द ता बदलने , कभी मेजपोश
बदलने , कभी आलमारी म कुछ रखने , कभी आलमारी म से कुछ िनकालने , लेिकन च दर अपने
चाट म िनगाह गड़ाये रहा उसने सुधा क ओर देखा तक नह सुधा क आँख म आँसू छलक
आये और वह चुपचाप अपने कमरे म चली गयी और लेट गयी थोड़ी देर वह पड़ी रही, पता नह
य वह फूट-फूटकर रो पड़ी खबू रोयी, खबू रोयी और िफर महँु धोकर आकर पढऩे क
कोिशश करने लगी जब हर अ र म उसे च दर का उदास चे हरा नजर आने लगा तो उसने
िकताब ब द करके रख दी और ाइंग म म गयी च दर ने चाट बनाना भी ब द कर िदया था
और कुरसी पर िसर टे के छत क ओर देखता हआ जाने या सोच रहा था
वह जाकर सामने बैठ गयी तो च दर ने च ककर िसर उठाया और िफर चाट को सामने िखसका
िलया सुधा ने बड़ी िह मत करके कहा-
“च दर!”
“ या!” बड़े भराये गले से च दर बोला
“इधर देखो!” सुधा ने बहत दुलार से कहा
“ या है!” च दर ने उधर देखते हए कहा, “अरे सुधा! तम ु रो य रही हो?”
“हमारी बात पर नाराज हो गये तम ु हम या कर, हमारा वभाव ही ऐसा हो गया पता नह
य तम ु पर इतना गु सा आ जाता है ” सुधा के गाल पर दो बड़े -बड़े मोती ढलक आये
“अरे पगली! मालम ू होता है तु हारा तो िदमाग बहत ज दी खराब हो जाएगा, हमने तम ु से कुछ
कहा है?”
“कह लेते तो हम स तोष हो जाता हमने कभी कहा तम ु से िक तम ु कहा मत करो गु सा मत
हआ करो मगर तम ु तो िफर गु सा मन-ही-मन म िछपाने लगते हो इसी पर हम लाई आ
जाती है ”
“नह सुधी, तु हारी बात नह थी और हम गु सा भी नह थे पता नह य मन बड़ा भारी-सा
था ”
“ या बात है, अगर बता सको तो बताओ, वरना हम कौन ह तम ु से पछ
ू ने वाले ” सुधा ने बड़े
क ण वर म कहा
“तो तु हारा िदमाग खराब हआ हमने कभी तम ु से कोई बात िछपायी? जाओ, अ छी लड़क क
तरह महँु धो आओ ”
सुधा उठी और महँु धोकर आकर बैठ गयी
“अब बताओ, या बात थी?”
“कोई एक बात हो तो बताएँ पता नह तु हारे घर से गये तो एक-न-एक ऐसी बात होती गयी
िक मन बड़ा उदास हो गया ”
“आिखर िफर भी कोई बात तो हई ही होगी!”
“बात यह हई िक तु हारे यहाँ से म घर गया खाना खाने वहाँ देखा चाचाजी आये हए ह, उनके
साथ एक कोई साहब और ह खैर बड़ी खुशी हई खाना-वाना खाकर जब बैठे तब मालम ू
हआ िक चाचाजी मेरा याह तय करने के िलए आये ह और साथ वाले साहब मेरे होने वाले ससुर
ह जब मने इनकार कर िदया तो बहत िबगडक़र चले गये और बोले हम आज से तु हारे िलए
मर गये और तम ु हमारे िलए मर गये ”
“तु हारी माताजी कहाँ ह?”
“ तापगढ़ म, लेिकन वो तो सौतेली ह और वे तो चाहती ही नह िक म घर लौटूँ, लेिकन
चाचाजी ज र आज तक मझ ु से कुछ महु बत करते थे आज वह भी नाराज होकर चले गये ”
सुधा कुछ देर तक सोचती रही, िफर बोली, “तो च दर, तम ु शादी कर य नह लेते?”
“नह सुधा, शादी नह करनी है मझ ु े मने देखा िक िजसक शादी हई, कोई भी सुखी नह
हआ सभी का भिव य िबगड़ गया और य एक तवालत पाली जाए? जाने कैसी लड़क हो,
या हो?”
“तो उसम या? पापा से कहो उस लड़क को जाकर देख ल हम भी पापा के साथ चले
जाएँ गे अ छी हो तो कर लो न, च दर िफर यह रहना हम अकेला भी नह लगेगा
य ?”
“नह जी, तम ु तो समझती नह हो िजंदगी िनभानी है िक कोई गाय-भस खरीदना है!” च दर
ने हँ सकर कहा, “आदमी एक-दस ू रे को समझे, बझ ू े, यार करे , तब याह के भी कोई माने ह ”
“तो उसी से कर लो िजससे यार करते हो!”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया
“बोलो! चुप य हो गये! अ छा, तम ु ने िकसी को यार िकया, च दर!”
“ य ?”
“बताओ न!”
“शायद नह !”
“िब कुल ठीक, हम भी यही सोच रहे थे अभी ” सुधा बोली
“ य , ये य सोच रही थी?”
“इसिलए िक तम ु ने िकया होता तो तम ु हमसे थोड़़े ही िछपाते, हम ज र बताते, और नह बताया
तो हम समझ गये िक अभी तम ु ने िकसी से यार नह िकया ”
“लेिकन तम ु ने यह पछ ू ा य , सुधा! यह बात तु हारे मन म उठी कैसे?”
“कुछ नह , अभी गेसू आयी थी वह बोली-सुधा, तम ु ने िकसी से कभी यार िकया है, असल म
वह अ तर को यार करती है उससे उसका िववाह होने वाला है हाँ, तो उसने पछ ू ा िक तनू े
िकसी से यार िकया है, हमने कहा, नह बोली, तू अपने से िछपाती है तो हम मन-ही-मन
म सोचते रहे िक तम ु आओगे तो तम ु से पछ
ू गे िक हमने कभी यार तो नह िकया है य िक
तु ह एक हो िजससे हमारा मन कभी कोई बात नह िछपाता, अगर कोई बात िछपाई भी होती
हमने , तो तु ह ज र बता देती िफर हमने सोचा, शायद कभी हमने यार िकया हो और तु ह
बताया हो, िफर हम भल ू गये ह अभी उसी िदन देखो, हम पापा क दवाई का नाम भल ू गये
और तु ह याद रहा शायद हम भल ू गये ह और तु ह मालम ू हो कभी हमने यार तो नह
िकया न?”
“नह , हम तो कभी नह बताया ” च दर बोला
“तब तो हमने यार-वार नह िकया गेसू यँ ू ही ग प उड़ा रही थी ” सुधा ने स तोष क साँस
लेकर कहा, “लेिकन बस! चाचाजी के नाराज होने पर तम ु इतने दु:खी हो गये हो! हो जाने दो
नाराज पापा तो ह अभी, या पापा महु बत नह करते तम ु से?”
“सो य नह करते, तम ु से यादा मझु से करते ह लेिकन उनक बात से मन तो भारी हो ही
गया उसके बाद गये िबस रया के यहाँ िबस रया ने कुछ बड़ी अ छी किवताएँ सुनाय और
भी मन भारी हो गया ” च दर ने कहा
“लो, तब तो च दर, तम ु यार करते होगे! ज र से?” सुधा ने हाथ पटककर कहा
“ य ?”
“गेसू कह रही थी-शायरी पर जो उदास हो जाता है वह ज र महु बत-वुह बत करता है ” सुधा
ने कहा, “अरे यह पोिटको म कौन है?”
च दर ने देखा, “लो िबस रया आ गया!”
च दर उसे बुलाने उठा तो सुधा ने कहा, “अभी बाहर िबठलाना उ ह, म तब तक कमरा ठीक कर
लँ ू ”
िबस रया को बाहर िबठाकर च दर भीतर आया, अपना चाट वगैरह समेटने के िलए, तो सुधा ने
कहा, “सुनो!”
च दर क गया
सुधा ने पास आकर कहा, “तो अब तो उदास नह हो तम ु नह चाहते मत करो शादी, इसम
उदास या होना और किवता-विवता पर महँु बनाकर बैठे तो अ छी बात नह होगी ”
“अ छा!” च दर ने कहा
“अ छा-व छा नह , बताओ, तु ह मेरी कसम है, उदास मत हआ करो िफर हमसे कोई काम नह
होता ”
“अ छा, उदास नह ह गे, पगली!” च दर ने ह क -सी चपत मारकर कहा और बरबस उसके महँु
से एक ठ डी साँस िनकली उसने चाट उठाकर टडी म म रखा देखा डॉ टर साहब अभी
सो ही रहे ह सुधा कमरा ठीक कर रही थी वह आकर िबस रया के पास बैठ गया
थोड़ी देर म कमरा ठीक करके सुधा आकर कमरे के दरवाजे पर खड़ी हो गयी च दर ने
पछू ा-” य , सब ठीक है?”
उसने िसर िहला िदया, कुछ बोली नह
“यही ह आपक िश या सु ी सुधा शु ला इस साल बी.ए. फाइनल का इ तहान दगी ”
िबस रया ने िबना आँख उठाये ही हाथ जोड़ िलये सुधा ने हाथ जोड़े िफर बहत सकुचा-सी
गयी च दर उठा और िबस रया को लाकर उसने अ दर िबठा िदया िबस रया के सामने सुधा
और उसक बगल म च दर
चुप सभी चुप
अ त म च दर बोला-”लो, तु हारे मा टर साहब आ गये अब बताओ न, तु ह या- या पढऩा
है?”
सुधा चुप िबस रया कभी यह पु तक उलटता, कभी वह थोड़ी देर बाद वह बोला-”आपके
या िवषय ह?”
“जी!” बड़ी कोिशश से बोलते हए सुधा ने कहा-”िह दी, इकनॉिम स और गहृ -िव ान ” और
उसके माथे पर पसीना झलक आया
“आपको िह दी कौन पढ़ाता है?” िबस रया ने िकताब म ही िनगाह गड़ाये हए कहा
सुधा ने च दर क ओर देखा और मु कराकर िफर महँु झक ु ा िलया
“बोलो न तम ु खुद, ये राजा ग स कॉलेज म ह शायद िमस पवार िह दी पढ़ाती ह ” च दर ने
कहा-”अ छा, अब आप पढ़ाइए, म अपना काम क ँ ” च दर उठकर चल िदया टडी म म
मिु कल से च दर दरवाजे तक पहँ चा होगा िक सुधा ने िबस रया से कहा-
“जी, म पे न ले आऊँ!” और लपकती हई च दर के पास पहँ ची
“ए सुनो, च दर!” च दर क गया और उसका कुरता पकडक़र छोटे ब च क तरह मचलते हए
सुधा बोली-”तम ु चलकर बैठो तो हम पढ़गे ऐसे शरम लगती है ”
“जाओ, चलो! हर व वही बचपना!” च दर ने डाँटकर कहा-”चलो, पढ़ो सीधे से इतनी बड़ी
हो गयी, अभी तक वही आदत!”
सुधा चुपचाप महँु लटकाकर खड़ी हो गयी और िफर धीरे -धीरे पढ़ने लग गयी च दर डटी म
म जाकर चाट बनाने लगा डॉ टर साहब अभी तक सो रहे थे एक म खी उडक़र उनके गले
पर बैठ गयी और उ ह ने बाय हाथ से म खी मारते हए न द म कहा-”म इस मामले म सरकार
क नीित का िवरोध करता हँ ”
च दर ने च ककर पीछे देखा डॉ टर साहब जग गये थे और जमहु ाई ले रहे थे
“जी, आपने मझ ु से कुछ कहा?” च दर ने पछ
ू ा
“नह , या मने कुछ कहा था? ओह! म सपना देख रहा था कै बज गये?”
“साढ़े पाँच ”
“अरे िब कुल शाम हो गयी!” डॉ टर साहब ने बाहर देखकर कहा-”अब रहने दो कपरू , आज
काफ काम िकया है तम ु ने चाय मँगवाओ सुधा कहाँ है?”
“पढ़ रही है आज से उसके मा टर साहब आने लगे ह ”
“अ छा-अ छा, जाओ उ ह भी बुला लाओ, और चाय भी मँगवा लो उसे भी बुला लो-सुधा
को ”
च दर जब ाइंग म म पहँ चा तो देखा सुधा िकताब समेट रही है और िबस रया जा चुका है
उसने सुधा से कहना चाहा लेिकन सुधा का महँु देखते ही उसने अनुमान िकया िक सुधा लड़ने
के मडू म है, अत: वह वयं ही जाकर महरािजन से कह आया िक तीन याला चाय पढ़ने के
कमरे म भे ज दो जब वह लौटने लगा तो खुद सुधा ही उसके रा ते म खड़ी हो गयी और धमक
के वर म बोली-”अगर कल से साथ नह बैठोगे तम ु , तो हम नह पढ़गे ”
“हम साथ नह बैठ सकते, चाहे तम ु पढ़ो या न पढ़ो ” च दर ने ठं डे वर म कहा और आगे
बढ़ा
“तो िफर हम नह पढ़गे ” सुधा ने जोर से कहा
“ या बात है? य लड़ रहे हो तम ु लोग?” डॉ. शु ला अपने कमरे से बोले च दर कमरे म
जाकर बोला, “कुछ नह , ये कह रही ह िक...”
“पहले हम कहगे,” बात काटकर सुधा बोली-”पापा, हमने इनसे कहा िक तम ु पढ़ाते व बैठा
करो, हम बहत शरम लगती है, ये कहते ह पढ़ो चाहे न पढ़ो, हम नह बैठगे ”
“अ छा-अ छा, जाओ चाय लाओ ”
जब सुधा चाय लाने गयी तो डॉ टर साहब बोले-”कोई िव ासपा लड़का है? अपने घर क
लड़क समझकर सुधा को स पना पढ़ने के िलए सुधा अब ब ची नह है ”
“हाँ-हाँ, अरे यह भी कोई कहने क बात है!”
“हाँ, वैसे अभी तक सुधा तु हारी ही िनगहबानी म रही है तम
ु खुद ही अपनी िज मेवारी
समझते हो लड़का िह दी म एम.ए. है?”
“हाँ, एम.ए. कर रहा है ”
“अ छा है, तब तो िबनती आ रही है, उसे भी पढ़ा देगा ”
सुधा चाय लेकर आ गयी थी
“पापा, तम ु लखनऊ कब जाओगे?”
“शु वार को, य ?”
“और ये भी जाएँ गे?”
“हाँ ”
“और हम अकेले रहगे?”
“ य , महरािजन यह सोएगी और अगले सोमवार को हम लौट आएँ गे ”
डॉ. शु ला ने चाय का याला महँु से लगाते हए कहा
7

एक गमकदे क शाम, मन उदास, तबीयत उचटी-सी, िसतार क रोशनी फ क लग रही थी


माच क शु आत थी और िफर भी जाने शाम इतनी गरम थी, या सुधा को ही इतनी बेचन ै ी लग
रही थी पहले वह जाकर सामने के लॉन म बैठी लेिकन सामने के मौलिसरी के पे ड़ म छोटी-
छोटी गौरै य ने िमलकर इतनी जोर से चहचहाना शु िकया िक उसक तबीयत घबरा उठी वह
इस व एका त चाहती थी और सबसे बढ़कर स नाटा चाहती थी जहाँ कोई न बोले, कोई बात
न करे , सभी खामोशी म डूबे हए ह
वह उठकर टहलने लगी और जब लगा िक पैर म ताकत ही नह रही तो िफर लेट गयी, हरी-हरी
घास पर मंगलवार क शाम थी और अभी तक पापा नह आये थे आना तो दरू , पापा या
च दर के हाथ के एक पुरजे के िलए तरस गयी थी िकसी ने यह भी नह िलखा िक वे लोग
कहाँ रह गये ह, या कब तक आएँ गे िकसी को भी सुधा का खयाल नह शिनवार या इतवार
को तो वह हर रोज खाना खाते व रोयी, चाय पीना तो उसने उसी िदन से छोड़ िदया था और
सोमवार को सुबह पापा नह आये तो वह इतना फूट-फूटकर रोयी िक महरािजन को िसंकती हई
रोटी छोड़कर चू हे क आँच िनकालकर सुधा को समझाने आना पड़ा और सुधा क लाई
देखकर तो महरािजन के हाथ-पाँव ढीले हो गये थे उसक सारी डाँट हवा हो गयी थी और वह
सुधा का महँु -ही-महँु देखती थी कल से कॉलेज भी नह गयी थी और दोन िदन इ तजार
करती रही िक कह दोपहर को पापा न आ जाएँ गेसू से भी दो िदन से मल ु ाकात नह हई थी
लेिकन मंगल को दोपहर तक जब कोई खबर न आयी तो उसक घबराहट बेकाबू हो गयी इस
व उसने िबस रया से कोई भी बात नह क आधा घंटा पढऩे के बाद उसने कहा िक उसके
िसर म दद हो रहा है और उसके बाद खबू रोयी, खबू रोयी उसके बाद उठी, चाय पी, महँु -हाथ
धोया और सामने के लॉन म टहलने लगी और िफर लेट गयी हरी-हरी घास पर
बड़ी ही उदास शाम थी और ि ितज क लाली के होठ भी याह पड़ गये थे बादल साँस रोके
पड़े थे और खामोश िसतारे िटमिटमा रहे थे बगल ु क धँुधली-धँुधली कतार पर मारती हई गज ु र
रही थ सुधा ने एक ल बी साँस लेकर सोचा िक अगर वह िचिडय़ा होती तो एक ण म
उडक़र जहाँ चाहती वहाँ क खबर ले आती पापा इस व घम ू ने गये ह गे च दर अपने
दो त क टोली म बैठा रँ गरे िलयाँ कर रहा होगा वहाँ भी दो त बना ही िलये ह गे उसने बड़ा
बातनू ी है च दर और बड़ा मीठे वभाव का आज तक िकसी से सुधा ने उसक बुराई नह
सुनी सभी उसको यार करते थे यहाँ तक िक महरािजन, जो सुधा को हमेशा डाँटती रहती
थी, च दर का हमेशा प लेती थी और सुधा हरे क से पछ ू लेती थी िक च दर के बारे म उसक
या राय है? लेिकन सब लोग िजतनी च दर क तारीफ करते वह उतना अ छा उसे नह
समझती थी आदमी क परख तब होती है जब िदन-रात बरते च दर उसका ऊन कभी नह
लाकर देता था, बादामी रं ग का रे शम मँगाओ तो केस रया रं ग का ला देता था इतने न शे
बनाता रहता था, और सुधा ने हमेशा उससे कहा िक मेजपोश क कोई िडजाइन बना दो तो
उसने कभी नह बनायी एक बार सुधा ने बहत अ छी वायल कानपुर से मँगवायी और च दर
ने कहा, “लाओ, यह बहत अ छी है, इस पर हम िकनारे क िडजाइन बना दगे ” और उसके
बाद उसने उसम तमाम पान-जैसा जाने या बना िदया और जब सुधा ने पछ ू ा, “यह या है?” तो
बोला, “लंका का न शा है ” जब सुधा िबगड़ी तो बोला, “लड़़िकय के दय म रावण से
मेघनाद तक करोड़ रा स का वास होता है, इसिलए उनक पोशाक म लंका का न शा यादा
सुशोिभत होता है ” मारे गु से के सुधा ने वह धोती अपनी मािलन को दे डाली थी यह सब
बात तो िकसी को मालम ू नह उनके सामने तो जरा-सा कपरू साहब हँ स िदये, चार मजाक क
बात कर द , छोटे -मोटे उनके काम कर िदये, मीठी बात कर ल और सब समझे कपरू साहब तो
िब कुल गल ु ाब के फूल ह लेिकन कपरू साहब एक तीखे काँटे ह जो िदन-रात सुधा के मन म
चुभते रहते ह, यह तो दुिनया को नह मालम ू दुिनया या जाने िक सुधा िकतनी परे शानी
रहती है च दर क आदत से! अगर दुिनया को मालम ू हो जाए तो कोई च दर क जरा भी तारीफ
न करे , सब सुधा को ही यादा अ छा कह, लेिकन सुधा कभी िकसी से कुछ नह कहती, मगर
आज उसका मन हो रहा था िक िकसी से च दर क जी भरकर बुराई कर ले तो उसका मन बहत
ह का हो जाए
“चलो िबिटया रानी, तई खाय लेव, िफर भीतर लेटो अबिहन लेटे का बखत नह आवा!”
सहसा महरािजन ने आकर सुधा क व न-शंख ृ ला तोड़ते हए कहा
“अब हम नह खाएँ गे, भख ू नह ” सुधा ने अपने सुनहले सपन म ही डूबी हई बेहोश आवाज
म जवाब िदया
“खाय लेव िबिटया, खाय-िपयै छोड़ै से कसस काम चली, आव उठौ!” महरािजन ने बड़े दुलार से
कहा सुधा पीछा छूटने क कोई आशा न देखकर उठ गयी और चल दी खाने कौर उठाते ही
उसक आँख म आँसू छलक आये, लेिकन अपने को रोक िलया उसने दस ू र के सामने अपने
को बहत शा त रखना आता था उसे दो कौर खाने के बाद वह महरािजन से बोली, “आज
कोई िच ी तो नह आयी?”
“नह िबिटया, आज तो िदन भर घरै म र ो!” महरािजन ने पराठे उलटते हए जवाब िदया-”काहे
िबिटया, बाबजू ी कुछौ नाही िलिखन तो छोटे बाबू तो िलख देते ”
“अरे महरािजन, यही तो हमारी जान का रोना है हम चाहे रो-रोकर मर जाएँ मगर न पापा को
खयाल, न पापा के िश य को और च दर तो ऐसे खराब ह िक हम या कर ऐसे वाथ ह,
अपने मतलब के िक बस! सुबह-शाम आएँ और हम या पापा न िमल तो आफत ढा दगे-बहत
घमू ने लगी हो तमु , बहत बाहर कदम िनकल गया है तु हारा-और सच पछ ू ो तो च दर क वजह
से हमने सब जगह आना-जाना ब द कर िदया और खुद ह िक आज लखनऊ, कल कलक ा
और एक िच ी भे जने तक का व नह िमलता! अभी हम ऐसा करते तो हमारी जान नोच खाते!
और पापा को देखो, उनके दुलारे उनके साथ ह तो बस और िकसी क िफ ही नह अब तम ु
महरािजन, च दर को तो कभी कुछ चाय-वाय बना के मत देना ”
“काहे िबिटया, काहे कोसत हो कैसा चाँद-से तो ह छोटे बाब,ू और कैसा हँ स के बात करत
ह माई का जाने कैसे िहयाव पड़ा िक उ ह अलग कै िदिहस बेचारा होटल म जाने कैसे रोटी
खात होई उ ह िहं यई बुलाय लेव तो अपने हाथ क िखलाय के दुई महीना माँ मोटा कै देई ं
हम तोसे यादा उसक ममता लगत है ”
“बीबीजी, बाहर एक मेम पछ ू त ह-िहं या कोनो डाकदर रहत ह? हम कहा, नाह , िहं या तो बाबज
ू ी
रहत ह तो कहत ह, नह यही मकान आय ” मािलन ने सहसा आकर बहत वतं वर म
कहा
“बैठाओ उ ह, हम आते ह ” सुधा ने कहा और ज दी-ज दी खाना शु िकया और ज दी-
ज दी ख म कर िदया
बाहर जाकर उसने देखा तो नीलकाँटे के झाड़ से िटक हई एक बाइिसिकल रखी थी और एक
ईसाई लड़क लॉन पर टहल रही है होगी करीब चौबीस-प चीस बरस क , लेिकन बहत अ छी
लग रही थी
“किहए, आप िकसे पछ ू रही ह?” सुधा ने अँ ेजी म पछू ा
“म डॉ टर शु ला से िमलने आयी हँ ” उसने शु िह दु तानी म कहा
“वे तो बाहर गये ह और कब आएँ गे, कुछ पता नह कोई खास काम है आपको?” सुधा ने
पछू ा
“नह , यँ ू ही िमलने आ गयी आप उनक लड़क ह?” उसने साइिकल उठाते हए कहा
“जी हाँ, लेिकन अपना नाम तो बताती जाइए ”
“मेरा नाम कोई मह वपण ू नह म उनसे िमल लँग ू ी और हाँ, आप उसे जानती ह, िम टर
कपरू को?”
“आहा! आप प मी ह, िमस िड ू ज!” सुधा को एकदम खयाल आ गया-”आइए, आइए; हम
आपको ऐसे नह जाने दगे चिलए, बैिठए ” सुधा ने बड़ी बेतक लुफ से उसक साइिकल
पकड़ ली
“अ छा-अ छा, चलो!” कहकर प मी जाकर ाइंग म म बैठ गयी
“िम टर कपरू रहते कहाँ ह?” प मी ने बैठने से पहले पछ ू ा
“रहते तो वे चौक म ह, लेिकन आजकल तो वे भी पापा के साथ बाहर गये ह वे तो आपक एक
िदन बहत तारीफ कर रहे थे, बहत तारीफ इतनी तारीफ िकसी लड़क क करते तो हमने सुना
नह ”
“सचमच ु !” प मी का चे हरा लाल हो गया “वह बहत अ छे ह, बहत अ छे ह!”
थोड़ी देर प मी चुप रही, िफर बोली-” या बताया था उ ह ने हमारे बारे म?”
“ओह तमाम! एक िदन शाम को तो हम लोग आप ही के बारे म बात करते रहे आपके भाई के
बारे म बताते रहे िफर आपके काम के बारे म बताया िक आप िकतना तेज टाइप करती ह, िफर
आपक िचय के बारे म बताया िक आपको सािह य से बहत शौक नह है और आप शादी से
बेहद नफरत करती ह और आप यादा िमलती-जुलती नह , बाहर आती-जाती नह और िमस
िड ू ज...”
“न, आप प मी किहए मझ ु े? ”
“हाँ, तो िमस प मी, शायद इसीिलए आप उसे इतनी अ छी लग िक आप कह आती-जाती नह ,
वह लड़िकय का आना-जाना और आजादी बहत नापस द करता है ” सुधा बोली
“नह , वह ठीक सोचता है ” प मी बोली-”म शादी और तलाक के बाद इसी नतीजे पर पहँ ची हँ
िक चौदह बरस से च तीस बरस तक लड़िकय को बहत शासन म रखना चािहए ” प मी ने
ग भीरता से कहा
एक ईसाई मेम के महँु से यह बात सुनकर सुधा दंग रह गयी
“ य ?” उसने पछ ू ा
“इसिलए िक इस उ म लड़िकयाँ बहत नादान होती ह और जो कोई भी चार मीठी बात करता है,
तो लड़िकयाँ समझती ह िक इससे यादा यार उ ह कोई नह करता और इस उ म जो कोई
भी ऐरा-गैरा उनके संसग म आ जाता है, उसे वे यार का देवता समझने लगती ह और नतीजा
यह होता है िक वे ऐसे जाल म फँस जाती ह िक िजंदगी भर उससे छुटकारा नह िमलता मेरा
तो यह िवचार है िक या तो लड़िकयाँ च तीस बरस के बाद शािदयाँ कर जब वे अ छा-बुरा समझने
के लायक हो जाएँ , नह तो मझ ु े तो िह दुओ ं का कायदा सबसे यादा पस द आता है िक चौदह
वष के पहले ही लड़क क शादी कर दी जाए और उसके बाद उसका संसग उसी आदमी से रहे
िजससे उसे िजंदगी भर िनबाह करना है और अपने िवकास- म से दोन ही एक-दस ू रे को
समझते चल लेिकन यह तो सबसे भ ा तरीका है िक चौदह और च तीस बरस के बीच म
लड़क क शादी हो, या उसे आजादी दी जाए मने तो वयं अपने ऊपर ब धन बाँध िलये
थे ....तु हारी तो शादी अभी नह हई?”
“नह ”
“बहत ठीक, तम ु च तीस बरस के पहले शादी मत करना, अ छा हाँ, और या बताया च दर ने
मेरे बारे म?”
“और तो कुछ खास नह ; हाँ, यह कह रहा था, आपको चाय और िसगरे ट बहत अ छी लगती है
ओहो, देिखए म भल ू ही गयी, लीिजए िसगरे ट मँगवाती हँ ” और सुधा ने घंटी बजायी
“रहने दीिजए, म िसगरे ट छोड़ रही हँ ”
“ य ?”
“इसिलए िक कपरू को अ छा नह लगता और अब वह मेरा दो त बन गया है, और दो ती म
एक-दस ू रे से िनबाह ही करना पड़ता है उसने आपसे यह नह बताया िक मने उसे दो त मान
िलया है?” प मी ने पछ ू ा
“जी हाँ, बताया था, अ छा तो चाय लीिजए!”
“हाँ-हाँ, चाय मँगवा लीिजए आपका कपरू से या स ब ध है?” प मी ने पछ ू ा
“कुछ नह मझ ु से भला या स ब ध होगा उनका, जब देिखए तब िबगड़ते रहते ह मझ ु पर;
और बाहर गये ह और आज तक कोई खत नह भे जा ये कह स ब ध ह?”
“नह , मेरा मतलब आप उनसे घिन ह!”
“हाँ, कभी वह िछपाते तो नह मझ ु से कुछ! य ?”
“तब तो ठीक है, स चे िदल के आदमी मालम ू पड़ते ह आप तो यह बता सकती ह िक उ ह
या- या चीज पस द ह?”
“हाँ...उ ह किवता पस द है बस किवता के बारे म बात न क िजए, किवता सुना दीिजए उ ह
या किवता क िकताब दे दीिजए उ ह और उनको सुबह घम ू ना पस द है रात को गंगाजी क
सैर करना पस द है िसने मा तो बेहद पस द है और, और या, चाय क प ी का हलुआ
पस द है ”
“यह या होता है?”
“मेरा मतलब िबना दध ू क चाय उ ह पस द है ”
“अ छा, अ छा देिखए आप सोचगी िक म इस तरह से िम. कपरू के बारे म पछ ू रही हँ जैसे म
कोई जासस ू होऊँ, लेिकन असल बात म आपको बता दँू म िपछले दो-तीन साल से अकेली
रहती रही िकसी से भी नह िमलती-जुलती थी उस िदन िम टर कपरू गये तो पता नह य
मझु पर भाव पड़ा उनको देखकर ऐसा लगा िक यह आदमी है िजसम िदल क स चाई है, जो
आदिमय म िब कुल नह होती तभी मने सोचा, इनसे दो ती कर लँ ू लेिकन चँिू क एक बार
दो ती करके िववाह, और िववाह के बाद अलगाव, म भोग चुक हँ इसिलए इनके बारे म परू ी
जाँच-पड़ताल कर लेना चाहती हँ लेिकन दो त तो अब बना ही चुक हँ ” चाय आ गयी थी
और प मी ने सुधा के याले म चाय ढाली
“न, म तो अभी खाना खा चुक हँ ” सुधा बोली
“प मी ने दो-तीन चुि कय के बाद कहा-”आपके बारे म च दर ने मझ ु से कहा था ”
“कहा होगा!” सुधा महँु िबगाडक़र बोली-”मेरी बुराई कर रहे ह गे और या?”
प मी चाय के याले से उठते हए धुएँ को देखती हई अपने ही खयाल म डूबी थी थोड़ी देर बाद
बोली, “मेरा अनुमान गलत नह होता मने कपरू को देखते ही समझ िलया था िक यही मेरे
िलए उपयु िम ह मने किवता पढऩी बहत िदन से छोड़ दी लेिकन िकसी कविय ी ने ,
शायद िमसेज ाउिनं ग ने कह िलखा था, िक वह मेरी िजंदगी म रोशनी बनकर आया, उसे
देखते ही म समझ गयी िक यह वह आदमी है िजसके हाथ म मेरे िदल के सभी राज सुरि त
रहगे वह खे ल नह करे गा, और यार भी नह करे गा िजंदगी म आकर भी िजंदगी से दरू और
सपन म बँधकर भी सपन से अलग...यह बात कपरू पर बहत लागू होती है माफ करना िमस
सुधा, म आपसे इसिलए कह रही हँ िक आप इनक घिन ह और आप उ ह बतला दगी िक मेरा
या खयाल है उनके बारे म अ छा, अब म चलँग ू ी ”
“बैिठए न!” सुधा बोली
“नह , मेरा भाई अकेला खाने के िलए इ तजार कर रहा होगा ” उठते हए प मी ने कहा
“आप बहत अ छी ह इस व आप आय तो म थोड़ी-सी िच ता भल ू गयी वरना म तीन िदन
से उदास थी बैिठए, कुछ और च दर के बारे म बताइए न!”
“अब नह वह अपने ढंग का अकेला आदमी है, यह म कह सकती हँ ...ओह तु हारी आँख बड़ी
सु दर ह देखँ ू ” और छोटे ब चे क तरह उसके महँु को हथेिलय से ऊपर उठाकर प मी ने
कहा, “बहत सु दर आँख ह माफ करना, म कपरू से भी इतनी ही बेतक लुफ हँ !”
सुधा झप गयी उसने आँख नीची कर ल
प मी ने अपनी साइिकल उठाते हए कहा-”कपरू के साथ आप आइएगा और आपने कहा था
कपरू को किवता पस द है ”
“जी हाँ, गडु नाइट ”
जब प मी बँगले पर पहँ ची तो उसक साइिकल के कै रयर म अँगरे जी किवता के पाँच-छह थ
बँधे थे
आठ बज चुके थे सुधा जाकर अपने िब तरे पर लेटकर पढऩे लगी अँगरे जी किवता पढ़ रही
थी अँगरे जी लड़िकयाँ िकतनी आजाद और व छ द होती ह गी! जब प मी, जो ईसाई है,
इतनी आजाद है, उसने सोचा और प मी िकतनी अ छी है उसक बेतक लुफ म भोलापन तो
नह है, पर सरलता बेहद है बड़ा साफ िदल है, कुछ िछपाना नह जानती और सुधा से िसफ
पाँच-छह साल बड़ी है, लेिकन सुधा उसके सामने ब ची लगती है िकतना जानती है प मी और
िकतनी अ छी समझ है उसक और च दर क तारीफ करते नह थकती च दर के िलए
उसने िसगरे ट छोड़ दी च दर उसका दो त है, इतनी पढ़ी-िलखी लड़क के िलए रोशनी का
देवदत ू है सचमच ु च दर पर सुधा को गव है और उसी च दर से वह लड़-झगड़ लेती है,
इतनी मान-मनुहार कर लेती है और च दर सब बदा त कर लेता है वरना च दर के इतने बड़े -
बड़े दो त ह और च दर क इतनी इ जत है अगर च दर चाहे तो सुधा क र ी भर परवाह न
करे लेिकन च दर सुधा क भली-बुरी बात बदा त कर लेता है और वह िकतना परे शान करती
रहती है च दर को
कभी अगर सचमच ु च दर बहत नाराज हो गया और सचमच ु हमेशा के िलए बोलना छोड़ दे तब
या होगा? या च दर यहाँ से कह चला जाए तब या होगा? खैर, च दर जाएगा तो नह
इलाहाबाद छोडक़र, लेिकन अगर वह खुद कह चली गयी तब या होगा? वह कहाँ जाएगी! अरे
पापा को मनाना तो बाय हाथ का खे ल है, और ऐसा यार वह करे गी नह िक शादी करनी पड़े
लेिकन यह सब तो ठीक है पर च दर ने िच ी य नह भे जी? या नाराज होकर गया है?
जाते व सुधा ने परे शान तो बहत िकया था होलडॉल क पे टी का ब सुआ खोल िदया था
और उठाते ही च दर के हाथ से सब कपड़े िबखर गये च दर कुछ बोला नह लेिकन जाते
समय उसने सुधा को डाँटा भी नह और न यही समझाया िक घर का खयाल रखना, अकेले
घमू ना मत, महरािजन से लड़ना मत, पढ़ती रहना इससे सुधा समझ तो गयी थी िक वह
नाराज है, लेिकन कुछ कहा नह
लेिकन च दर को खत तो भे जना चािहए था चाहे गु से का ही खत य न होता? िबना खत
के मन उसका िकतना घबरा रहा है और या च दर को मालम ू नह होगा यह कैसे हो
सकता है? जब इतनी दरू बैठे हए सुधा को मालम ू हो गया िक च दर नाखुश है तो या च दर
को नह मालम ू होगा िक सुधा का मन उदास हो गया है ज र मालम ू होगा सोचते-सोचते
उसे जाने कब न द आ गयी और न द म उसे पापा या च दर क िच ी िमली या नह , यह तो नह
मालम ू , लेिकन इतना ज र है िक जैसे यह सारी सिृ एक िब दु से बनी और एक िब दु म समा
गयी, उसी तरह सुधा क यह भाद क घटाओं जैसी फै ली हई बेचन ै ी और गीली उदासी एक
च दर के यान से उठी और उसी म समा गयी
8

दसू रे िदन सुबह सुधा आँगन म बैठी हई आलू छील रही थी और च दर का इ तजार कर रही
थी उसी िदन रात को पापा आ गये थे और दस ू रे िदन सुबह बुआजी और िबनती
“सुधी!” िकसी ने इतने यार से पुकारा िक हवाओं म रस भर गया
“अ छा! आ गये च दर!” सुधा आलू छोडक़र उठ बैठी, “ या लाये हमारे िलए लखनऊ से?”
“बहत कुछ, सुधा!”
“के है सुधा!” सहसा कमरे म से कोई बोला
“च दर ह ” सुधा ने कहा, “च दर, बुआ आ गय ” और कमरे से बुआजी बाहर आय
“ णाम, बुआजी!” च दर बोला और पैर छूने के िलए झक ु ा
“हाँ, हाँ, हाँ!” बुआजी तीन कदम पीछे हट गय “देख य न हम पज ू ा क धोती पहने ह ई
के है, सुधा!”
सुधा ने बुआ क बात का कुछ जवाब नह िदया-”च दर, चलो अपने कमरे म; यहाँ बुआ पज ू ा
करगी ”
च दर अलग हटा बुआ ने हाथ के पंचपा से वहाँ पानी िछडक़ा और जमीन फँ ू कने लग
“सुधा, िबनती को भे ज देव ” बुआजी ने धपू दानी म महरािजन से कोयला लेते हए कहा
सुधा अपने कमरे म पहँ चकर च दर को खाट पर िबठाकर नीचे बैठ गयी
“अरे , ऊपर बैठो ”
“नह , हम यह ठीक ह ” कहकर वह बैठ गयी और च दर क पट पर पे ि सल से लक र
ख चने लग
“अरे यह या कर रही हो?” च दर ने पैर उठाते हए कहा
“तो तम ु ने इतने िदन य लगाये?” सुधा ने दस
ू रे पाँयचे पर पे ि सल लगाते हए कहा
“अरे , बड़ी आफत म फँस गये थे, सुधा लखनऊ से हम लोग गये बरे ली वहाँ एक उ सव म
हम लोग भी गये और एक िमिन टर भी पहँ चे कुछ सोशिल ट, क युिन ट, और मजदरू ने
िवरोध दशन िकया िफर तो पुिलसवाल और मजदरू म जमकर लड़ाई हई वह तो कहो एक
बेचारा सोशिल ट लड़का था कैलाश िम ा, उसने हम लोग क जान बचायी, वरना पापा और
हम, दोन ही अ पताल म होते...”
“अ छा! पापा ने हम कुछ बताया नह !” सुधा घबराकर बोली और बड़ी देर तक बरे ली, उप व
और कैलाश िम ा क बात करती रही
“अरे ये बाहर गा कौन रहा है?” च दर ने सहसा पछ ू ा
बाहर कोई गाता हआ आ रहा था, “आँचल म य बाँध िलया मझ ु परदेशी का यार....आँचल म
य ...” और च दर को देखते ही उस लड़क ने च ककर कहा, “अरे ?” ण-भर त ध, और
िफर शरम से लाल होकर भागी बाहर
“अरे , भागती य है? यही तो ह च दर ” सुधा ने कहा
लड़क बाहर क गयी और गरदन िहलाकर इशारे से कहा, “म नह आऊँगी मझ ु े शरम लगती
है ”
“अरे चली आ, देखो हम अभी पकड़ लाते ह, बड़ी झ क है यह ” कहकर सुधा उठी, वह िफर
भागी सुधा पीछे -पीछे भागी थोड़ी देर बाद सुधा अ दर आयी तो सुधा के हाथ म उस लड़क
क चोटी और वह बेचारी बुरी तरह अ त- य त थी दाँत से अपने आँचल का छोर दबाये हए थी
बाल क तीन-चार लट महँु पर झक ु रही थ और लाज के मारे िसमटी जा रही थी और आँख थ
िक मु काये या रोये, यह तय ही नह कर पायी थ
“देखो...च दर...देखो ” सुधा हाँफ रही थी-”यही है िबनती मोटक कह क , इतनी मोटी है िक
दम िनकल गया हमारा ” सुधा बुरी तरह हाँफ रही थी
च दर ने देखा-बेचारी क बुरी हालत थी मोटी तो बहत नह थी पर हाँ, गाँव क त दु ती
थी, लाल चे हरा, िजसे शरम ने तो दन ू ा बना िदया था एक हाथ से अपनी चोटी पकड़े थी, दसू रे
से अपने कपड़े ठीक कर रही थी और दाँत से आँचल पकड़े
“छोड़ दो उसे, यह या है सुधा! बड़ी जंगली हो तम ु ” च दर ने डाँटकर कहा
“जंगली म हँ या यह?” चोटी छोड़कर सुधा बोली-”यह देखो, दाँत काट िलया है इसने ”
सचमच ु सुधा के क धे पर दाँत के िनशान बने हए थे
च दर इस स भावना पर बेतहाशा हँ सने लगा िक इतनी बड़ी लड़क दाँत काट सकती है-” य
जी, इतनी बड़ी हो गयी और दाँत काटती हो?” उसक हँ सी क नह रही थी “सचमच ु यह तो
बड़े मजे क लड़क है िबनती है इसका नाम? य रे , महआ बीनती थी या वहाँ, जो बुआजी
ने िबनती नाम रखा है?”
वह प ला ठीक से ओढ़ चुक थी बोली, “नम ते ”
च दर और सुधा दोन हँ स पड़े “अब इतनी देर बाद याद आयी ” च दर और भी हँ सने लगा
“िबनती! ए िबनती!” बुआ क आवाज आयी िबनती ने सुधा क ओर देखा और चली गयी
“और कहो सुधी,” च दर बोला-” या हाल-चाल रहा यहाँ?”
“िफर भी एक िच ी भी तो नह िलखी तम ु ने ” सुधा बड़ी िशकायत के वर म बोली, “हम रोज
लाई आती थी और तु हारी वो आयी थी ”
“हमारी वो?” च दर ने च ककर पछ ू ा
“अरे हाँ, तु हारी प मी रानी ”
“अ छा वो आयी थ या बात हई?”
“कुछ नह ; तु हारी तसवीर देख-देखकर रो रही थ ” सुधा ने उँ गिलयाँ नचाते हए कहा
“मेरी तसवीर देखकर! अ छा, और थी कहाँ मेरी तसवीर?”
“अब तम ु तो बहस करने लगे, हम कोई वक ल ह! तम ु कोई नयी बात बताओ ” सुधा बोली
“हम तो तु ह बहत-बहत बात बताएँ गे परू ी कहानी है ”
इतने म िबनती आयी उसके हाथ म एक त तरी थी और एक िगलास त तरी म कुछ िमठाई
थी, और िगलास म शरबत उसने लाकर त तरी च दर के सामने रख दी
“ना भई, हम नह खाएँ गे ” च दर ने इनकार िकया
िबनती ने सुधा क ओर देखा
“खा लो लगे नखरा करने लखनऊ से आ रहे ह न, तक लुफ न कर तो मालम ू कैसे हो?”
सुधा ने महँु िचढ़ाते हए कहा च दर मस ु कराकर खाने लगा
“दीदी के कहने पर खाने लगे आप!” िबनती ने अपने हाथ क अँगठ ू ी क ओर देखते हए
कहा
च दर हँ स िदया, कुछ बोला नह िबनती चली गयी
“बड़ी अ छी लड़क मालम ू पड़ती है यह ” च दर बोला
“बहत यारी है और पढऩे म हमारी तरह नह है, बहत तेज है ”
“अ छा! तु हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?”
“मा टर साहब बहत अ छा पढ़ाते ह और च दर, अब हम खबू बात करते ह उनसे दुिनया-भर
क और वे बस हमेशा िसर नीचे िकये रहते ह एक िदन पढ़ते व हम गरी पास म रखकर
खाते गये, उ ह मालम ू ही नह हआ उनसे एक िदन किवता सुनवा दो ” सुधा बोली
च दर ने कुछ जवाब नह िदया और डॉ. साहब के कमरे म जाकर िकताब उलटने लगा
इतने म बुआजी का तेज वर आया-”हम मालम ू होता िक ई महँु -झ सी हमके ऐसी नाच नचइहै
तौ हम पैदा होतै गला घ ट देइत हरे राम! अ काश िसर पर उठाये है कै घंटे से न रयात-
न रयात गटई फट गयी ई बोलतै नाह जैसे साँप सँघ ू गवा होय ”
ोफेसर शु ला के घर म वह नया सां कृितक त व था िकतनी शालीनता और िश ता से वह
रहते थे कभी इस तरह क भाषा भी उनके घर म सुनने को िमलेगी, इसक च दर को जरा भी
उ मीद न थी च दर च ककर उधर देखने लगा डॉ. शु ला समझ गये कुछ लि जत-से
और मस ु कराकर लािन िछपाते हए-से बोले, “मेरी िवधवा बहन है, कल गाँव से आयी है लड़क
को पहँ चाने ”
उसके बाद कुछ पटकने का वर आया, शायद िकसी बरतन के इतने म सुधा आयी, गु से से
लाल-”सुना पापा तम ु ने , बुआ िबनती को मार डालगी ”
“ या हआ आिखर?” डॉ. शु ला ने पछ ू ा
“कुछ नह , िबनती ने पज ू ा का पंचपा उठाकर ठाकुरजी के िसंहासन के पीछे रख िदया था
उ ह िदखाई नह पड़ा, तो गु सा िबनती पर उतार रही ह ”
इतने म िफर उनक आवाज आयी-”पैदा करते बखत बहत अ छा लाग रहा, पालत बखत ट बोल
गये मर गये र ो तो आपन स तानौ अपने साथ लै जा यौ हमारे मड़ ू पर ई ह या काहे डाल
गयौ ऐसी कुल छनी है िक पैदा होतेिहन बाप को खाय गयी ”
“सुना पापा तम ु ने ?”
“चलो हम चलते ह ” डॉ. शु ला ने कहा सुधा वह रह गयी च दर से बोली, “ऐसा बुरा
वभाव है बुआ का िक बस िबनती ऐसी है िक इतना बदा त कर लेती है ”
बुआ ने ठाकुरजी का िसंहासन साफ करते हए कहा, “रोवत काहे हो, कौन तु हारे माई-बाप को
ग रयावा है िक ई अँसुआ ढरकाय रही हो ई सब चोचला अपने ओ को िदखाओ जायके दुई
महीना और ह-अबिहन से उिधयानी न जाओ ”
अब अभ ता सीमा पार कर चुक थी
“िबनती, चलो कमरे के अ दर, हटो सामने से ” डॉ. शु ला ने डाँटकर कहा, “अब ये चरखा
ब द होगा या नह कुछ शरम-हया है या नह तम ु म?”
िबनती िससकते हए अ दर गयी टडी म म देखा िक च दर है तो उलटे पाँव लौट आयी सुधा
के कमरे म और फूट-फूटकर रोने लगी
डॉ. शु ला लौट आये-”अब हम ये सब कर िक अपना काम कर! अ छा कल से घर म महाभारत
मचा रखा है कब जाएँ गी ये, सुधा?”
“कल जाएँ गी पापा अब िबनती को कभी मत भे जना इनके पास ” सुधा ने गु सा-भरे वर म
कहा
“अ छा-जाओ, हमारा खाना परसो च दर, तम ु अपना काम यहाँ करो यहाँ शोर यादा हो तो
तमु लाइ रे ी म चले जाना आज भर क तकलीफ है ”
च दर ने अपनी कुछ िकताब उठाय और उसने चला जाना ही ठीक समझा सुधा खाना
परोसने चली गयी िबनती रो-रोकर और तिकये पर िसर पटककर अपनी कुंठा और दु:ख उतार
रही थी बुआ घंटी बजा रही थ , दबी जबान जाने या बकती जा रही थ , यह घंटी के भि -
भावना-भरे मधुर वर म सुनायी नह देता था
9

लेिकन बुआजी दस ू रे िदन गय नह जब तीन-चार िदन बाद च दर गया तो देखा बाहर के


सेहन म डॉ. शु ला बैठे हए ह और दरवाजा पकडक़र बुआजी खड़ी बात कर रही ह लेिकन इस
व बुआजी काफ ग भीर थ और िकसी िवषय पर म णा कर रही थ च दर के पास पहँ चने
पर फौरन वे चुप हो गय और च दर क ओर सशंिकत ने से देखने लग डॉ. शु ला बोले,
“आओ च दर, बैठो ” च दर बगल क कुस ख चकर बैठ गया तो डॉ. साहब बुआजी से बोले,
“हाँ, हाँ, बात करो, अरे ये तो घर के आदमी ह इनके बारे म सुधा ने नह बताया तु ह? ये
च दर ह हमारे िश य, बहत अ छा लड़का है ”
“अ छा, अ छा, भइया बइठो, तू तो एक िदन अउर आये र ो, बी. ए. म पढ़त हौ सुधा के संगे ”
“नह बुआजी, म रसच कर रहा हँ ”
“वाह, बहत खुशी भई तोको देख के-हाँ तो सुकुल!” वे अपने भाई से बोल , “िफर यही ठीक
होई िबनती का िबयाह टाल देव और अगर ई लड़का ठीक हई जाय तो सुधा का िबयाह अषाढ़-
भर म िनपटाय देव अब अ छा नाह लागत ठूँठ ऐसी िबिटया, सन ू ी माँग िलये छररावा करत
है एहर-ओहर!” बुआ बोल
“हाँ, ये तो ठीक है ” डॉ. शु ला बोले, “म खुद सुधा का याह अब टालना नह चाहता बी.ए.
तक क िश ा काफ है वरना िफर हमारी जाित म तो लड़के नह िमलते लेिकन ये जो
लड़कातम ु बता रही हो तो घर वाले कुछ एतराज तो नह करगे! और िफर, लड़का तो हम अ छा
लगा लेिकन घरवाले पता नह कैसे ह ?”
“अरे तो घरवालन से का करै का है तोको लड़कातो अलग है, अपने -आप पढ़ रहा है और
लड़क अलग रिहए, न सास का डर, न ननद क ध स हम प ी मँगवाये देइत ही, िमलवाय
लेव ”
डॉ. शु ला ने वीकृित म िसर िहला िदया
“तो िफर िबनती के बारे म का कहत हौ? अगहन तक टाल िदया जाय न?” बुआजी ने पछ ू ा
“हाँ हाँ,” डॉ. शु ला ने िवचार म डूबे हए कहा
“तो िफर तम ु ही इन जत ू ािपटऊ, बड़न कू से कह िदयौ; आय के कल से हमरी छाती पर मग ँू
दलत ह ” बुआजी ने च दर क ओर िकसी को िनदिशत करते हए कहा और चली गय
च दर चुपचाप बैठा था जाने या सोच रहा था शायद कुछ भी नह सोच रहा था! मगर िफर
भी अपनी िवचार-शू यता म ही खोया हआ-सा था जब डॉ. शु ला उसक ओर मड़ ु े और कहा,
“च दर!” तो वह एकदम से च क गया और जाने िकस दुिनया से लौट आया डॉ. साहब ने
कहा, “अरे ! तु हारी तबीयत खराब है या?”
“नह तो ” एक फ क हँ सी हँ सकर च दर ने कहा
“तो मेहनत बहत कर रहे होगे िकतने अ याय िलखे अपनी थीिसस के? अब माच ख म हो
ै तु ह थीिसस टाइप कराने म लगेगा और मई म हर हालत म जमा हो जानी
रहा है और परू ा अ ल
चािहए ”
“जी, हाँ ” बड़े थके वर म च दर ने कहा, “दस अ याय हो ही गये ह तीन अ याय और होने
ह और अनु मिणका बनानी है अ ल ै के पहले स ाह तक ख म हो ही जायेगा अब िसवा
थीिसस के और करना ही या है?” एक बहत गहरी साँस लेते हए च दर ने कहा और माथा
थामकर बैठ गया
“कुछ तबीयत ठीक नह है तु हारी चाय बनवा लो! लेिकन सुधा तो है नह , न महरािजन
है ” डॉ टर साहब बोले
अरे सुधा, सुधा के नाम पर च दर च क गया हाँ, अभी वह सुधा के ही बारे म सोच रहा था, जब
बुआजी बात कर रही थ या सोच रहा था देखो...उसने याद करने क कोिशश क पर कुछ
याद ही नह आ रहा था, पता नह या सोच रहा था पता नह था...कुछ सुधा के याह क
बात हो रही थी शायद या बात हो रही थी...?
“कहाँ गयी है सुधा?” च दर ने पछ ू ा
“आज शायद सािबर साहब के यहाँ गयी है उनक लड़क उनके साथ पढ़ती है न, वह गयी है
िबनती के साथ ”
“अब इ तहान को िकतने िदन रह गये ह, अभी घम ू ना ब द नह हआ उनका?”
“नह , िदन-भर पढ़ने के बाद उठी थी, उसके भी िसर म दद था, चली गयी घम ू -िफर लेने दो
बेचारी को, अब तो जा ही रही है ” डॉ. शु ला बोले, एक हँ सी के साथ िजसम आँसू छलके पड़ते
थे
“कहाँ तय हो रही है सुधा क शादी?”
“बरे ली म अब उसक बुआ ने बताया है ज मप ी दी है िमलवा लो, िफर तम ु जरा सब बात
देख लेना तम ु तो थीिसस म य त रहोगे; म जाकर लड़का देख आऊँगा िफर मई के बाद
जुलाई तक सुधा का याह कर दगे तु ह डॉ टरे ट िमल जाए और यिू नविसटी म जगह िमल
जाए बस हम तो लड़का-लड़क दोन से फा रग ” डॉ. शु ला बहत अजब-से वर म बोले
च दर चुप रहा
“िबनती को देखा तम ु ने ?” थोड़ी देर बाद डॉ टर ने पछू ा
“हाँ, वही न िजनको डाँट रही थ ये उस िदन?”
“हाँ, वही उसके ससुर आये हए ह; उनसे कहना है िक अब शादी अगहन-पस ू के िलए टाल
द पहले सुधा क हो जाए, वह बड़ी है और हम चाहते ह िक िबनती को तब तक िवदुषी का
दसू रा खंड भी िदला द आओ, उनसे बात कर ल अभी ” डॉ. शु ला उठे च दर भी उठा
और उसने अ दर जाकर िबनती के ससुर के िद य दशन ा िकये वे एक पलँग पर बैठे थे,
लेिकन वह अभागा पलँग उनके उदर के ही िलए नाकाफ था वे िचत पड़े थे और साँस लेते थे
तो पुराण क उस कथा का दशन हो जाता था िक धीरे -धीरे प ृ वी का गोला वाराह के महँु पर
कैसे ऊपर उठा होगा िसर पर छोटे -छोटे बाल और कमर म एक अँगोछे के अलावा सारा शरीर
िदग बर सुबह शायद गंगा नहाकर आये थे य िक पे ट तक म च दन, रोली लगी हई थी
डॉ. शु ला जाकर बगल म कुस पर बैठ गये; “किहए दुबेजी, कुछ जलपान िकया आपने ?”
पलँग चरमराया उस िवशाल मांस-िपंड म एक भड ू ोल आया और दुबेजी जलपान क याद करके
ग द होकर हँ सने लगे एक थलथलाहट हई और कमरे क दीवार िगरते-िगरते बच दुबेजी
ने उठकर बैठने क कोिशश क लेिकन असफल होकर लेटे-ही-लेटे कहा, “हो-हो! सब आपक
कृपा है खबू छकके िम ा न पाया अब जरा सरबत-उरबत कुछ िमलै तो जो कुछ पे ट म
जलन है, सो शा त होय!” उ ह ने पे ट पर अपना हाथ फेरते हए कहा
“अ छा, अरे भाई जरा शरबत बना देना ” डॉ. शु ला ने दरवाजे क ओट म खड़ी हई बुआजी से
कहा बुआजी क आवाज सुनाई पड़ी, “बाप रे ! ई ढाई मन क लहास कम-से-कम मसक-भर
के शरबत तो उलीचै लैई ंह ” च दर को हँ सी आ गयी, डॉ. शु ला मस ु कराने लगे लेिकन दुबेजी
के िद य मख ु मंडल पर कह ोभ या उ लास क रे खा तक न आयी च दर मन-ही-मन
सोचने लगा, ाचीन काल के ान द िस महा मा ऐसे ही होते ह गे
बुआ एक िगलास म शरबत ले आय दुबेजी काँख-काँखकर उठे और एक साँस म शरबत गले
से नीचे उतारकर, िगलास नीचे रख िदया
“दुबेजी, एक ाथना है आपसे!” डॉ. शु ला ने हाथ जोडक़र बड़े िवनीत वर म कहा
“नह ! नह !” बात काटकर दुबेजी बोले, “बस अब हम कुछ न खाव आप बहत स कार
िकये हम एही से छक गये आपको देखके तो हम बड़ी स नता भई आप सचमच ु िद य
पु ष हौ! और िफर आप तो लड़क के मामा हो, और िबयाह-शादी म जो है सो मामा का प
देखा जाता है ई तो भगवान् ऐसा जोड़ िमलाइन ह िक वरप अउर क याप दुइन के मामा
बड़े ानी ह आप ह तौन कािलज म पुरफेसर और ओहर हमार सार-लड़काकेर मामा जौन ह
तौन डाकघर म मश ुं ी ह, आपक िकरपा से ” दुबेजी ने गव से कहा च दर मस ु कराने लगा
“अरे सो तो आपक न ता है लेिकन म सोच रहा हँ िक गरिमय म अगर याह न रखकर जाड़े
म रखा जाए तो यादा अ छा होगा तब तक आपके स कार क हम कुछ तैयारी भी कर
लगे ” डॉ. शु ला बोले
दुबेजी इसके िलए तैयार नह थे वे बड़े अचरज म भरकर उनक ओर देखने लगे लेिकन
बहत कहने -सुनने के बाद अ त म वे इस शत पर राजी हए िक अगहन तक हर तीज- यौहार पर
लड़के के िलए कुरता-धोती का कपड़ा और यारह-बारह पये नजराना जाएगा और अगहन म
अगर याह हो रहा है तो सास-ननद और िजठानी के िलए गरम साड़ी जाएगी और जब-जब
दुबेजी गंगा नहाने यागराज आएँ गे तो उनका रोचना एक थाल, कपड़े और एक वणमि डत जौ
से होगा जब डॉ. शु ला ने यह वीकार कर िलया तो दुबेजी ने उठकर अपना झालम-झोला
कुरता गले म अटकाया और अपनी गठरी हाथ म उठाकर बोले-
“अ छा तो अब आ ा देव, हम चली अब, और ई िपया लड़क को दै िदयो, अब बात प क है ”
और अपनी टट से उ ह ने एक मड़ ु ा-मड़
ु ाया तेल लगा हआ पाँच पये का नोट िनकाला और डॉ.
साहब को दे िदया
“च दर एक ताँगा कर दो, दुबेजी को अ छा, आओ हम भी चल ”
जब ये लोग लौटे तो बुआजी एक थैली से कुछ धर-िनकाल रही थ डॉ. शु ला ने नोट बुआजी
को देते हए कहा, “लो, ये दे गये तु हारे समधी जी, लड़क को ”
पाँच का नोट देखा तो बुआजी सुलग उठ -”न गहना न गु रया, िबयाह प का कर गये ई कागज
के टुकड़े से अपना-आप तो सोना और िपया और कपड़ा सब लीलै को तैयार और देत के दाँई
पे ट िपराता है जत
ू ा-िपटऊ का अरे राम चाही तो जमदत ू ई लहास क बोटी-बोटी करके रामजी
के कु न को िखलइह ”
च दर हँ सी के मारे पागल हो गया
बुआजी ने थैली का महँु बाँधा और बोल , “अबिहन तक िबनती का पता नै, और ऊ तरु कन-
मले छन के िहयाँ कुछ खा-पी िलिहस तो िफर हमरे िहयाँ गज ु ारा नािह ना ओका बड़ी आजाद
हई गयी है सुधा क सह पाय के आवै देव, आज हम भ ा उता रत ही ”
डॉ. शु ला अपने कमरे म चले गये च दर को यास लगी थी उसने बुआजी से एक िगलास
पानी माँगा बुआ ने एक िगलास म पानी िदया और बोल , “बैठ के िपयो बेटा; बैठ के कुछ
खाय का देई?”
“नह , बुआजी!” बुआ बैठकर हँ िसया से कटहल छीलने लग और च दर पानी पीता हआ सोचने
लगा, बुआजी सभी से इतनी मीठी बात करती ह तो आिखर िबनती से ही इतनी कटु य ह?
इतने म अ दर च पल क आहट सुनाई पड़ी च दर ने देखा, सुधा और िबनती आ गयी थ
सुधा अपनी च पल उतारकर अपने कमरे म चली गयी और िबनती आँगन म आयी बुआजी के
पास आकर बोली, “लाओ, हम तरकारी काट द ”
“चल हट ओहर पिहले नहाव जाय के कुछ खाय तो नै रहयो ए ी देर कहाँ घम ू ित रहयो ?
हम खबू अ छी तरह जािनत ही तँ ू हमार नाक कटाइन के रहबो पतु रयन के ढँग सीखे ह!”
िबनती चुप एक तीखी वेदना का भाव उसके महँु पर आया उसने आँख झक ु ा ल रोयी
नह और चुपचाप िसर झक ु ाये हए सुधा के कमरे म चली गयी
च दर ण-भर खड़ा रहा िफर सुधा के पास गया सुधा के कमरे म अकेले िबनती खाट पर
पड़ी थी-औंधे महँु , तिकया म महँु िछपाये च दर को जाने कैसा लगा उसके मन म बेहद
तरस आ रहा था इस बेचारी लड़क के िलए, िजसके िपता ह ही नह और िजसे ताडऩा के िसवा
कुछ नह िमला च दर को बहत ही ममता लग रही थी इस अभािगनी के िलए वह सोचने
लगा, िकतना अ तर है दोन बहन म एक बचपन से ही िकतने असीम दुलार, वैभव और
ने ह म पली है और दस ू री ताड़ना और िकतने अपमान म पली और वह भी अपनी ही सगी माँ
से जो दुिनया भर के ित ने हमयी है, अपनी लड़क को छोडक़र
वह कुस पर बैठकर चुपचाप यही सोचने लगा-अब आगे भी इस बेचारी को या सुख िमलेगा
ससुराल कैसी है, यह तो ससुर को देखकर ही मालम ू देता है
इतने म सुधा कपड़े बदलकर हाथ म िकताब िलये, उसे पढ़ती हई, उसी म डूबी हई आयी और
खाट पर बैठ गयी “अरे ! िबनती! कैसे पड़ी हो? अ छा तम ु हो च दर! िबनती! उठो!” उसने
िबनती क पीठ पर हाथ रखकर कहा
िबनती, जो अभी तक िनचे पड़ी थी, सुधा के ममता-भरे पश पर फूट-फूटकर रो पड़ी तो
सुधा ने च दर से कहा, “ या हआ िबनती रानी को ” और िबनती भी जोर से िससिकयाँ भरने
लगी तो सुधा ने च दर से कहा, “कुछ तम ु ने कहा होगा चौदह िदन बाद आये और आते ही
लगे लाने उसे कुछ कहा होगा तम ु ने ! समझ गये घम ू ने के िलए उसे भी डाँटा होगा हम
साफ-साफ बताये देते ह च दर, हम तु हारी डाँट सह लेते ह इसके ये मतलब नह िक अब तम ु
इस बेचारी पर भी रोब झाडऩे लगो इससे कभी कुछ कहा तो अ छी बात नह होगी!”
“तु हारे िदमाग का कोई पुरजा ढीला हो गया है या? म य कहँ गा िबनती को कुछ!”
“बस िफर यही बात तु हारी बुरी लगती है ” सुधा िबगड़कर बोली, “ य नह कहोगे िबनती
को कुछ? जब हम कहते हो तो उसे य नह कहोगे? हम तु हारे अपने ह तो या वो तु हारी
अपनी नह है?”
च दर हँ स पड़ा-”सो य नह है, लेिकन तु हारे साथ न ऐसे िनबाह, न वैसे िनबाह ”
“ये सब कुछ हम नह जानते! य रो रही है यह?” सुधा बोली धमक के वर म
“बुआजी ने कुछ कहा था ” च दर बोला
“अरे तो उसके िलए या रोना! इतना समझाया तझ ु े िक उनक तो आदत है हँ सकर टाल िदया
कर चल उठ! हँ सती है िक गद ु गदु ाऊँ ” सुधा ने गद ु गद ु ाते हए कहा िबनती ने उसका हाथ
पकडक़र झटक िदया और िफर िससिकयाँ भरने लगी
“नह माने गी त?ू ” सुधा बोली, “अभी ठीक करती हँ तझ ु े म च दर, पकड़ो तो इसका हाथ ”
च दर चुप रहा
“नह उठे उठो, तम ु इसका हाथ पकड़ लो तो हम अभी इसे हँ साते ह ” सुधा ने च दर का
हाथ पकडक़र िबनती क ओर बढ़ते हए कहा च दर ने अपना हाथ ख च िलया और बोला,
“वह तो रो रही है और तम ु बजाय समझाने के उसे परे शान कर रही हो ”
“अरे जानते हो, य रो रही है? अभी इसके ससुर आये थे, वो बहत मोटे थे तो ये सोच रही है
कह 'वो' भी मोटे ह !” सुधा ने िफर उसक गरदन गद ु गद ु ाकर कहा
िबनती हँ स पड़ी सुधा उछल पड़ी-”लो, ये तो हँ स पड़ी, अब रोओगी?” अब िफर सुधा ने
गदु गदु ाना शु िकया िबनती पहले तो हँ सी से लोट गयी िफर प ला सँभालते हए बोली, “िछः,
दीदी! वो बैठे ह िक नह !” और उठकर बाहर जाने लगी
“कहाँ चली?” सुधा ने पछ ू ा
“जा रही हँ नहाने ” िबनती प लू से िसर ढँकते हए चल दी
“ य , मने तेरा बदन छू िदया इसिलए?” सुधा हँ सकर बोली, “ऐ च दर, वो गेसू का छोटा भाई है
न-हसरत, मने उसे छू िलया तो फौरन उसने जाकर अपना महँु साबुन से धोया और अ मीजान से
बोला, “मेरा महँु जठू ा हो गया ” और आज हमने गेसू के अ तर िमयाँ को देखा बड़े मजे के
ह म तो गेसू से बात करती रही लेिकन िबनती और फूल ने बहत छे ड़ा उ ह बेचारे घबरा
गये फूल बहत चुलबुली है और बड़ी नाजुक है बड़ी बोलने वाली है और िबनती और फूल का
खबू जोड़ िमला दोन खबू गाती ह ”
“िबनती गाती भी है?” च दर ने पछ ू ा, “हमने तो रोते ही देखा ”
“अरे बहत अ छा गाती है इसने एक गाँव का गाना बहत अ छा गाया था ...अरे देखो वह सब
बताने म हम तम ु पर गु सा होना तो भल ू ही गये कहाँ रहे चार रोज? बोलो, बताओ ज दी
से ”
“ य त थे सुधा, अब थीिसस तीन िह सा िलख गयी इधर हम लगातार पाँच घंटे से बैठकर
िलखते थे!” च दर बोला
“पाँच घंटे!” सुधा बोली, “दध ू आजकल पीते हो िक नह ?”
“हाँ-हाँ, तीन गाय खरीद ली ह... ” च दर बोला
“नह , मजाक नह , कुछ खाते-पीते रहना, कह तबीयत खराब हई तो अब हमारा इ तहान है,
पड़े -पड़े म खी मारोगे और अब हम देखने भी नह आ सकगे ”
“अब िकतना कोस बाक है तु हारा?”
“कोस तो ख म था हमारा कुछ किठनाइयाँ थ सो िपछले दो-तीन ह ते म मा टर साहब ने
बता दी थ अब दोहराना है लेिकन िबनती का इ तहान मई म है, उसे भी तो पढ़ाना है ”
“अ छा, अब चल हम ”
“अरे बैठो! िफर जाने कै िदन बाद आओगे आज बुआ तो चली जाएँ गी िफर कल से यह पढ़ो
न तम ु ने िबनती के ससुर को देखा था?”
“हाँ, देखा था!” च दर उनक परे खा याद करके हँ स पड़ा-”बाप रे ! परू े टक थे वे तो ”
“िबनती क ननद से तु हारा याह करवा द करोगे?” सुधा बोली, “लड़क इतनी ही मोटी
है उसे कभी डाँट लेना तो देखगे तु हारी िह मत ”
याह! एकदम से च दर को याद आ गया अभी बुआ ने बात क थी सुधा के याह क तब
उसे कैसा लगा था? कैसा लगा था? उसका िदमाग घम ू गया था लगा जैसे एक असहनीय दद
था या या था-जो उसक नस-नस को तोड़ गया एकदम...
“ या हआ, च दर? अरे चुप य हो गये? डर गये मोटी लड़क के नाम से?” सुधा ने च दर का
क धा पकड़कर झकझोरते हए कहा
च दर एक फ क हँ सी हँ सकर रह गया और चुपचाप सुधा क ओर देखने लगा सुधा च दर क
िनगाह से सहम गयी च दर क िनगाह म जाने या था, एक अजब-सा पथराया सन ू ापन,
एक जाने िकस दद क अमंगल छाया, एक जाने िकस पीड़ा क मक ू आवाज, एक जाने कैसी
िपघलती हई-सी उदासी और वह भी गहरी, जाने िकतनी गहरी...और च दर था िक एकटक
देखता जा रहा था, एकटक अपलक...
सुधा को जाने कैसा लगा ये अपना च दर तो नह , ये अपने च दर क िनगाह तो नह है
च दर तो ऐसी िनगाह से, इस तरह अपलक तो सुधा को कभी नह देखता था नह , यह
च दर क िनगाह तो नह इस िनगाह म न शरारत है, न डाँट न दुलार और न क णा इसम
कुछ ऐसा है िजससे सुधा िब कुल प रिचत नह , जो आज च दर म पहली बार िदखाई पड़ रहा
है सुधा को जैसा डर लगने लगा, जैसे वह काँप उठी नह , यह कोई दस ू रा च दर है जो उसे
इस तरह देख रहा है यह कोई अप रिचत है, कोई अजनबी, िकसी दस ू रे देश का कोई यि जो
सुधा को...
“च दर, च दर! तु ह या हो गया!” सुधा क आवाज मारे डर के काँप रही थी, उसका महँु पीला
पड़ गया, उसक साँस बैठने लगी थी-”च दर...” और जब उसका कुछ बस न चला तो उसक
आँख म आँसू छलक आये
हाथ पर एक गरम-गरम बँदू आकर पड़ते ही च दर च क गया “अरे सुधी! रोओ मत नह
पगली हमारी तबीयत कुछ ठीक नह है, एक िगलास पानी तो ले आओ ”
सुधा अब भी काँप रही थी च दर क आवाज म अभी भी वह मल ु ायिमयत नह आ पायी थी
वह पानी लाने के िलए उठी
“नह , तम ु कह जाओ मत, तम ु बैठो यह ” उसने उसक हथेली अपने माथे पर रखकर जोर से
अपने हाथ म दबा ली और कहा, “सुधा!...”
“ य , च दर!”
“कुछ नह !” च दर ने आवाज दी लेिकन लगता था वह आवाज च दर क नह थी न जाने
कहाँ से आ रही थी...
“ या िसर म दद है? िबनती, एक िगलास पानी लाओ ज दी से ”
सुधा ने आवाज दी च दर जैसे पहले-सा हो गया-”अरे ! अभी मझ ु े या हो गया था? तम ु या
बात कर रही थ सुधा?”
“पता नह तु ह अभी या हो गया था?” सुधा ने घबरायी हई गौरे या क तरह सहमकर कहा
च दर व थ हो गया-”कुछ नह सुधा! म ठीक हँ म तो यँ ू ही तु ह परे शान करने के िलए चुप
था ” उसने हँ सकर कहा
“हाँ, चलो रहने दो तु हारे िसर म दद है ज र से ” सुधा बोली िबनती पानी लेकर आ गयी
थी
“लो, पानी िपयो!”
“नह , हम कुछ नह चािहए ” च दर बोला
“िबनती, जरा पे नबाम ले जाओ ” सुधा ने िगलास जबद ती उसके महँु से लगाते हए कहा
िबनती पे नबाम ले आयी थी-”िबनती, तू जरा लगा दे इनके अरे खड़ी य है? कुस के पीछे
खड़ी होकर माथे पर जरा ह क उँ गली से लगा दे ”
िबनती आ ाकारी लड़क क तरह आगे बढ़ी, लेिकन िफर िहचक गयी िकसी अजनबी लड़के
के माथे पर कैसे पे नबाम लगा दे “चलती है या अभी काट के गाड़ दगे यह मोटक कह
क ! खा-खाकर मटु ानी है जरा-सा काम नह होता ”
िबनती ने हारकर पे नबाम लगाया च दर ने उसका हाथ हटा िदया तो सुधा ने िबनती के हाथ
से पे नबाम लेकर कहा, “आओ, हम लगा द ” िबनती पे नबाम देकर चली गयी तो च दर बोला,
“अब बताओ, या बात कर रही थ ? हाँ, िबनती के याह क ये उनके ससुर तो बहत ही भ े
मालम ू पड़ रहे थे या देखकर याह कर रही हो तमु लोग?”
“पता नह या देखकर याह कर रही ह बुआ असल म बुआ पता नह य िबनती से इतनी
िचढ़ती ह, वह तो चाहती ह िकसी तरह से बोझ टले िसर से लेिकन च दर, यह िबनती बड़ी
खुश है यह तो चाहती है िकसी तरह ज दी से याह हो!” सुधा मस ु कराती हई बोली
“अ छा, यह खुद याह करना चाहती है!” च दर ने ता जुब से पछ ू ा
“और या? अपने ससुर क खबू सेवा कर रही थी सुबह बि क पापा तो कह रहे थे िक अभी
यह बी.ए. कर ले तब याह करो हमसे पापा ने कहा इससे पछ ू ने को हमने पछ ू ा तो कहने
लगी बी.ए. करके भी वही करना होगा तो बेकार टालने से या फायदा िफर पापा हमसे बोले
िक कुछ वजह से अगहन म याह होगा, तो बड़े ता जुब से बोली, “अगहन म?”
“सुधी, तम ु जानती हो अगहन म उसका याह य टल रहा है? पहले तु हारा याह होगा ”
च दर हँ सकर बोला वह पण ू तया शा त था और उसके वर म कम-से-कम बाहर िसवा चुहल
के और कुछ भी न था
“मेरा याह, मेरा याह!” आँख फाडक़र, महँु फै लाकर, हाथ नचाकर, कुतहू ल-भरे आ य से
सुधा ने कहा और िफर हँ स पड़ी, खबू हँ सी-”कौन करे गा मेरा याह? बुआ? पापा करने ही नह
दगे हमारे िबना पापा का काम ही नह चलेगा और बाबस ू ाहब, तम ु िकस पर आकर रं ग
जमाओगे? याह मेरा हँ !” सुधा ने महँु िबचकाकर उपे ा से कहा
“नह सुधा, म ग भीरता से कह रहा हँ तीन-चार महीने के अ दर तु हारा याह हो
जाएगा ” च दर उसे िव ास िदलाते हए बोला
“अरे जाओ!” सुधा ने हँ सते हए कहा, “ऐसे हम तु हारे बनाने म आ जाएँ तो हो चुका ”
“अ छा जाने दो तु हारे पास कोई पो टकाड है? लाओ जरा इस कॉमरे ड को एक िच ी तो
िलख द ” च दर बात बदलकर बोला पता नह य इस िवषय क बात के चलने म उसे
कैसा लगता था
“कौन कामरे ड?” सुधा ने पछ ू ा, “तम
ु भी क युिन ट हो गये या?”
“नह , जी, वो बरे ली का सोशिल ट लड़का कैलाश िजसने झगड़े म हम लोग क जान बचायी
थी हमने तु ह बताया नह था सब िक सा उस झगड़े का, जब हम और पापा बाहर गये थे!”
“हाँ-हाँ, बताया था उसे ज र खत िलख दो!” सुधा ने पो टकाड देते हए कहा, “तु ह पता
मालम ू है?”
च दर जब पो टकाड िलख रहा था तो सुधा ने कहा, “सुनो, उसे िलख देना िक पापा क सुधा,
पापा क जान बचाने के एवज म आपक बहत कृत है और कभी अगर हो सके तो आप
इलाहाबाद ज र आएँ !...िलख िदया?”
“हाँ!” च दर ने पो टकाड जेब म रखते हए कहा
“च दर, हम भी सोशिल ट पाट के मे बर ह गे!” सुधा ने मचलते हए कहा
“चलो, अब तु ह नयी सनक सवार हई तम ु या समझ रही हो सोशिल ट पाट को
राजनीितक पाट है वह यह मत करना िक सोशिल ट पाट म जाओ और लौटकर आओ तो
पापा से कहो-अरे हम तो समझे पाट है, वहाँ चाय-पानी िमलेगा वहाँ तो सब लोग ले चर देते
ह ”
“धत,् हम कोई बेवकूफ ह या?” सुधा ने िबगडक़र कहा
“नह , सो तो तम ु बुि सागर हो, लेिकन लड़िकय क राजनीितक बुि कुछ ऐसी ही होती है!”
च दर बोला
“अ छा रहने दो लड़िकयाँ न ह तो काम ही न चले ” सुधा ने कहा
“अ छा, सुधा! आज कुछ पये दोगी हमारे पास पैसे खतम ह और िसने मा देखना है
जरा ” च दर ने बहत दुलार से कहा
“हाँ-हाँ, ज र दगे तु ह मतलबी कह के!” सुधा बोली, “अभी-अभी तम ु लड़िकय क बुराई
कर रहे थे न?”
“तो तम ु और लड़िकय म से थोड़े ही हो तम ु तो हमारी सुधा हो सुधा महान ”
सुधा िपघल गयी-”अ छा, िकतना लोगे?” अपनी पॉकेट म से पाँच पये का नोट िनकालकर
बोली, “इससे काम चल जाएगा?”
“हाँ-हाँ, आज जरा सोच रहे ह प मी के यहाँ जाएँ , तब सेकड शो जाएँ ”
“प मी रानी के यहाँ जाओगे समझ गये, तभी तम ु ने चाचाजी से याह करने से इनकार कर
िदया लेिकन प मी तम ु से तीन साल बड़ी है लोग या कहगे?” सुधा ने छे ड़ा
“ऊँह, तो या हआ जी! सब य ही चलता है!” च दर हँ सकर टाल गया
“तो िफर खाना यह खाये जाओ और कार लेते जाओ ” सुधा ने कहा
“मँगाओ!” च दर ने पलँग पर पैर फै लाते हए कहा खाना आ गया और जब तक च दर
खाता रहा, सुधा सामने बैठी रही और िबनती दौड़-दौडक़र पड़ ू ी लाती रही
10

जब च दर प मी के बँगले पर पहँ चा तो शाम होने म देर नह थी लेिकन अभी फ ट शो शु


होने म देरी थी प मी गल ु ाब के बीच म टहल रही थी और बट एक अ छा-सा सटू पहने लॉन
पर बैठा था और घुटन पर ठुड्डी रखे कुछ सोच-िवचार म पड़ा था बट के चे हरे पर का
पीलापन भी कुछ कम था वह देखने से इतना भयंकर नह मालम ू पड़ता था लेिकन उसक
आँख का पागलपन अभी वैसा ही था और खबू सरू त सटू पहनने पर भी उसका हाल यह था िक
एक कालर अ दर था और एक बाहर
प मी ने च दर को आते देखा तो िखल गयी “ह लो, कपरू ! या हाल है पता नह य
आज सुबह से मेरा मन कह रहा था िक आज मेरे िम ज र आएँ गे और शाम के व तम ु तो
इतने अ छे लगते हो जैसे वह जगमग िसतारा िजसे देखकर क ट्स ने अपनी आिखरी साने ट
िलखी थी ” प मी ने एक गल ु ाब तोड़ा और च दर के कोट के बटन होल म लगा िदया च दर
ने बड़े भय से बट क ओर देखा िक कह गल ु ाब को तोड़े जाने पर वह िफर च दर क गरदन पर
सवार न हो जाए लेिकन बट कुछ बोला नह बट ने िसफ हाथ उठाकर अिभवादन िकया
और िफर बैठकर सोचने लगा
प मी ने कहा, “आओ, अ दर चल ” और च दर और प मी दोन ाइंग म म बैठ गये
च दर ने कहा, “म तो डर रहा था िक तम ु ने गलु ाब तोडक़र मझ ु े िदया तो कह बट नाराज न हो
जाए, लेिकन वह कुछ बोला नह ”
प मी मस ु करायी, “हाँ, अब वह कुछ कहता नह और पता नह य गल ु ाब से उसक तबीयत
भी इधर हट गयी अब वह उतनी परवाह भी नह करता ”
“ य ?” च दर ने ता जुब से पछ ू ा
“पता नह य मेरी तो समझ म यह आता है िक उसका िजतना िव ास अपनी प नी पर था
वह इधर धीरे -धीरे हट गया और इधर वह यह िव ास करने लगा है िक सचमच ु वह साजट को
यार करती थी इसिलए उसने फूल को यार करना छोड़ िदया ”
“अ छा! लेिकन यह हआ कैसे? उसने तो अपने मन म इतना गहरा िव ास जमा रखा था िक म
समझता था िक मरते दम तक उसका पागलपन न छूटे गा ” च दर ने कहा
“नह , बात यह हई िक तु हारे जाने के दो-तीन िदन बाद मने एक िदन सोचा िक मान िलया
जाए अगर मेरे और बट के िवचार म मतभे द है तो इसका मतलब यह नह िक म उसके गल ु ाब
चुराकर उसे मानिसक पीड़ा पहँ चाऊँ और उसका पागलपन और बढ़ाऊँ बुि और तक के
अलावा भावना और सहानुभिू त का भी एक मह व मझ ु े लगा और मने फूल चुराना छोड़ िदया
दो-तीन िदन वह बेहद खुश रहा, बेहद खुश और मझ ु े भी बड़ा स तोष हआ िक लो अब बट
शायद ठीक हो जाए लेिकन तीसरे िदन सहसा उसने अपना खुरपा फक िदया, कई गल ु ाब के
पौधे उखाड़कर फक िदये और मझ ु से बोला, “अब तो कोई फूल भी नह चुराता, अब भी वह इन
फूल म नह िमलती वह ज र साजट के साथ जाती है वह मझ ु े यार नह करती, हरिगज
नह करती, और वह रोने लगा ” बस उसी िदन से वह गल ु ाब के पास नह जाता और
आजकल बहत अ छे -अ छे सटू पहनकर घम ू ता है और कहता है- या म साजट से कम सु दर हँ !
और इधर वह िब कुल पागल हो गया है पता नह िकससे अपने -आप लड़ता रहता है ”
च दर ने ता जुब से िसर िहलाया
“हाँ, मझु े बड़ा दु:ख हआ!” प मी बोली, “मने तो, हमदद क िक फूल चुराने ब द कर िदये और
उसका नतीजा यह हआ पता नह य कपरू , मझ ु े लगता है िक हमदद करना इस दुिनया म
सबसे बड़ा पाप है आदमी से हमदद कभी नह करनी चािहए ”
च दर ने सहसा अपनी घड़ी देखी
“ य , अभी तम ु नह जा सकते बैठो और बात सुनो, इसिलए मने तु ह दो त बनाया है आज
दो-तीन साल हो गये, मने िकसी से बात ही नह क ह और तम ु से इसिलए मैने िम ता क है िक
बात क ँ गी ”
च दर हँ सा, “आपने मेरा अ छा उपयोग ढूँढ़ िनकाला ”
“नह , उपयोग नह , कपरू ! तम ु मझु े गलत न समझना िजंदगी ने मझ ु े इतनी बात बतायी ह
और यह िकताब जो म इधर पढ़ने लगी हँ , इ ह ने मझ ु े इतनी बात बतायी ह िक म चाहती हँ िक
उन पर बातचीत करके अपने मन का बोझ ह का कर लँ ू और तु ह बैठकर सुननी ह गी सभी
बात!”
“हाँ, म तैयार हँ लेिकन िकताब पढ़नी कब से शु कर द तम ु ने ?” च दर ने ता जुब से पछ
ू ा
“अभी उस िदन म डॉ. शु ला के यहाँ गयी उनक लड़क से मालम ू हआ िक तु ह किवता
पस द है मने सोचा, उसी पर बात क ँ और मने किवताएँ पढ़नी शु कर द ”
“अ छा, तो देखता हँ िक दो-तीन ह ते म भाई और बहन दोन म कुछ प रवतन आ गये ”
प मी कुछ बोली नह , हँ स दी
“म सोचता हँ प मी िक आज िसने मा देखने जाऊँ कार है साथ म, अभी प ह िमनट बाक
है चाहो तो चलो ”
“िसने मा! आज चार साल से म कह नह गयी हँ िसने मा, हौजी, बाल डांस-सभी जगह जाना
ब द कर िदया है मने मेरा दम घुटेगा हॉल के अ दर लेिकन चलो देख, अभी भी िकतने ही
लोग वैसे ही खुशी से िसने मा देखते ह गे ” एक गहरी साँस लेकर प मी बोली, “बट को ले
चलोगे?”
“हाँ, हाँ! तो चलो उठो, िफर देर हो जाएगी!” च दर ने घड़ी देखते हए कहा
प मी फौरन अ दर के कमरे म गयी और एक जाजट का ह का भरू ा गाउन पहनकर आयी इस
रं ग से वह जैसे िनखर आयी च दर ने उसक ओर देखा, तो वह लजा गयी और बोली, “इस
तरह से मत देखो म जानती हँ यह मेरा सबसे अ छा गाउन है इसम कुछ अ छी लगती
होऊँगी चलो!” और आकर उसने बेतक लुफ से उसके क धे पर हाथ रख िदया
दोन बाहर आये तो बट लॉन पर घम ू रहा था उसके पैर लडख़ड़ा रहे थे लेिकन वह बड़ी
शान से सीना ताने था “बट , आज िम टर कपरू मझ ु े िसने मा िदखलाने जा रहे ह तम ु भी
चलोगे?”
“हँ !” बट ने िसर िहलाकर जोर से कहा, “िसने मा जाऊँगा? कभी नह भल ू कर भी नह
तमु ने मझ ु े या समझा है? म िसने मा जाऊँगा?” धीरे -धीरे उसका वर म द पड़ गया...”अगर
िसने मा म वह साजट के साथ िमल गयी तो! तो म उसका गला घ ट दँग ू ा ” अपने गले को
दबाते हए बट बोला और इतनी जोर से दबा िदया अपना गला िक आँख लाल हो गय और
खाँसने लगा खाँसी ब द हई तो बोला, “वह मझ ु े यार नह करती वह साजट को यार
करती है वह उसी के साथ घम ू ती है अगर वह िमल जाएगी िसने मा म तो उसक ह या कर
डालँग ू ा, तो पुिलस आएगी और खे ल ख म हो जाएगा तम ु जानते हो िम. कपरू , म उससे
िकतना नफरत करता हँ ...और...और लेिकन नह , कौन जानता है म नफरत करता होऊँ और
वह मझ ु े...कुछ समझ म नह आता, म पागल हँ , ओफ ” और वह िसर थामकर बैठ गया
प मी ने च दर का हाथ पकडक़र कहा, “चलो, यहाँ रहने से उसका िदमाग और खराब होगा
आओ!”
दोन जाकर कार म बैठे च दर खुद ही ाइव कर रहा था प मी बोली, “बहत िदन से मने
कार नह ाइव क है लाओ, आज ाइव क ँ ”
प मी ने टीय रं ग अपने हाथ म ले ली च दर इधर बैठ गया
थोड़ी देर म कार रीजट के सामने जा पहँ ची िच था-'सेलामी, े यर शी डां ड' ('सेलामी, जहाँ
वह नाची थी') च दर ने िटकट िलया और दोन ऊपर बैठ गये अभी यज ू रील चल रही
थी सहसा प मी ने कहा, “कपरू , सेलामी क कहानी मालम ू है?”
“न! या यह कोई उप यास है!” च दर ने पछ ू ा
“नह , यह बाइिबल क एक कहानी है असल म एक राजा था हैराद उसने अपने भाई को
मारकर उसक प नी से अपनी शादी कर ली उसक भतीजी थी सेलामी, जो बहत सु दर थी
और बहत अ छा नाचती थी हैराद उस पर मु ध हो गया लेिकन सेलामी एक पैग बर पर
मु ध थी पैग बर ने सेलामी के णय को ठुकरा िदया एक बार हैराद ने सेलामी से कहा िक
यिद तम ु नाचो तो म तु ह कुछ दे सकता हँ सेलामी नाची और पुर कार म उसने अपना
अपमान करने वाले पैग बर का िसर माँगा! हैराद वचनब था उसने पैग बर का िसर तो दे
िदया लेिकन बाद म इस भय से िक कह रा य पर कोई आपि न आये, उसने सेलामी को भी
मरवा डाला ”
च दर को यह कहानी बहत अ छी लगी तब तो िच बहत ही अ छा होगा, उसने सोचा सुधा
क परी ा है वरना सुधा को भी िदखला देता लेिकन या नैितकता है इन पा ा य देश क
िक अपनी भतीजी पर ही हैराद मु ध हो गया उसने कहा प मी से-
“लेिकन हैराद अपनी भतीजी पर ही मु ध हो गया?”
“तो या हआ! यह तो से स है िम. कपरू से स िकतनी भयंकर शि शाली भावना है, यह भी
शायद तम ु नह समझते अभी तु हारी आँख म बड़ा भोलापन है तम ु प क आग के संसार
से दरू मालम ू पड़ते हो, लेिकन शायद दो-एक साल बाद तम ु भी जानोगे िक यह िकतनी भयंकर
चीज है आदमी के सामने व -बेव , नाता- र ता, मयादा-अमयादा कुछ भी नह रह जाता
वह अपनी भतीजी पर मोिहत हआ तो या? मने तो तु हारे यहाँ एक पौरािणक कहानी पढ़ी थी
िक महादेव अपनी लड़क सर वती पर मु ध हो गये ”
“महादेव नह , ा ” च दर बोला
“हाँ, हाँ, ाï म भल ू गयी थी तो यह तो से स है आदमी को कहाँ ले जाता है, यह
अ दाज भी नह िकया जा सकता तम ु तो अभी ब च क तरह भोले हो और ई र न करे तम ु
कभी इस याले का शरबत चखो म भी तो तु हारी इसी पिव ता को यार करती हँ ” प मी
ने च दर क ओर देखकर कहा, “तम ु जानते हो, मने तलाक य िदया? मेरा पित मझ ु े बहत
चाहता था लेिकन म िववािहत जीवन के वासना मक पहलू से घबरा उठी! मझ ु े लगने लगा, म
आदमी नह हँ बस मांस का लोथड़ा हँ िजसे मेरा पित जब चाहे मसल दे, जब चाहे ...ऊब गयी थी!
एक गहरी नफरत थी मेरे मन म तम ु आये तो तमु बड़े पिव लगे तम ु ने आते ही णय-
याचना नह क तु हारी आँख म भख ू नह थी हमदद थी, ने ह था, कोमलता थी,
िन छलता थी मझ ु े तम
ु काफ अ छे लगे तम ु ने मझु े अपनी पिव ता देकर िजला िदया... ”
च दर को एक अजब-सा गौरव अनुभव हआ और प मी के ित एक बहत ऊँची आदर-भावना
उसने पिव ता देकर िजला िदया सहसा च दर के मन म आया-लेिकन यह उसके यि व
क पिव ता िकसक दी हई है सुधा क ही न! उसी ने तो उसे िसखाया है िक पु ष और नारी
म िकतने ऊँचे स ब ध रह सकते ह
“ या सोच रहे हो?” प मी ने अपना हाथ कपरू क गोद म रख िदया
कपरू िसहर गया लेिकन िश ाचारवश उसने अपना हाथ प मी के क धे पर रख िदया प मी
ने दो ण के बाद अपना हाथ हटा िलया और बोली, “कपरू , म सोच रही हँ अगर यह िववाह
सं था हट जाए तो िकतना अ छा हो पु ष और नारी म िम ता हो बौि क िम ता और िदल
क हमदद यह नह िक आदमी औरत को वासना क यास बुझाने का याला समझे और
औरत आदमी को अपना मािलक असल म बँधने के बाद ही, पता नह य स ब ध म िवकृित
आ जाती है म तो देखती हँ िक णय िववाह भी होते ह तो वह असफल हो जाते ह य िक
िववाह के पहले आदमी औरत को ऊँची िनगाह से देखता है, हमदद और यार क चीज समझता
है और िववाह के बाद िसफ वासना क म तो ेम म भी िववाह-प म नह हँ और ेम म भी
वासना का िवरोध करती हँ ”
“लेिकन हर लड़क ऐसी थोड़े ही होती है!” च दर बोला, “तु ह वासना से नफरत हो लेिकन हर
एक को तो नह ”
“हर एक को होती है लड़िकयाँ बस वासना क झलक, एक ह क िसहरन, एक गद ु गद
ु ी
पस द करती ह बस, उसी के पीछे उन पर चाहे जो दोष लगाया जाय लेिकन अिधकतर
लड़िकयाँ कम वासनाि य होती ह, लड़के यादा ”
िच शु हो गया वह चुप हो गयी लेिकन थोड़ी ही देर म मालम ू हआ िक िच मा मक
था वह बाइिबल क सेलामी क कहानी नह थी वह एक अमे रकन नतक और कुछ
डाकुओं क कहानी थी प मी ऊब गयी अब जब डाकू पकडक़र सेलामी को एक जंगल म ले
गये तो इंटरवल हो गया और प मी ने कहा, “अब चलो, आधे ही िच से तबीयत ऊब गयी ”
दोन उठ खड़े हए और नीचे आये
“कपरू , अबक बार तम ु ाइव करो!” प मी बोली
“नह , तु ह ाइव करो” कपरू बोला
“कहाँ चल,” प मी ने टाट करते हए कहा
“जहाँ चाहो ” कपरू ने िवचार म डूबे हए कहा
प मी ने गाड़ी खबू तेज चला दी सड़क साफ थ प मी का कालर फहराने लगा और उड़कर
च दर के गाल पर थपिकयाँ लगाने लगा च दर दरू िखसक गया प मी ने च दर क ओर
देखा और बजाय कालर ठीक करने के, गले का एक बटन और खोल िदया और च दर को पास
ख च िलया च दर चुपचाप बैठ गया प मी ने एक हाथ टीय रं ग पर रखा और एक हाथ से
च दर का हाथ पकड़े रही जैसे वह च दर को दरू नह जाने देगी च दर के बदन म एक ह क
िसहरन नाच रही थी य ? शायद इसिलए िक हवा ठं डी थी या शायद इसिलए िक...उसने
प मी का हाथ अपने हाथ से हटाने क कोिशश क प मी ने हाथ ख च िलया और कार के
अ दर क िबजली जला दी
कपरू चुपचाप ठाकुर साहब के बारे म सोचता रहा कार चलती रही जब च दर का यान टूटा
तो उसने देखा कार मैकफसन लेक के पास क है
दोन उतरे बीच म सड़क थी, इधर नीचे उतरकर झील और उधर गंगा बह रही थी आठ बजा
होगा रात हो गयी थी, चार तरफ स नाटा था बस िसतार क ह क रोशनी थी
मैकफसन झील काफ सख ू गयी थी िकनारे -िकनारे मछली मारने के मचान बने थे
“इधर आओ!” प मी बोली और दोन नीचे उतरकर मचान पर जा बैठे पानी का धरातल
शा त था िसफ कह -कह मछिलय के उछलने या साँस लेने से पानी िहल जाता था पास
ही के नीवाँ गाँव म िकसी के यहाँ शायद शादी थी जो शहनाई का ह का वर हवाओं क तरं ग
पर िहलता-डुलता हआ आ रहा था दोन चुपचाप थे थोड़ी देर बाद प मी ने कहा, “कपरू ,
चुपचाप रहो, कुछ बात मत करना उधर देखो पानी म िसतार का ितिब ब देख रहे हो
चु पे से सुनो, ये िसतारे या बात कर रहे ह ”
प मी िसतार क ओर देखने लगी कपरू चुपचाप प मी क ओर देखता रहा थोड़ी देर बाद
सहसा प मी एक बाँस से िटककर बैठ गयी उसके गले के दो बटन खुले हए थे और उसम से
प क चाँदनी फटी पड़ती थी प मी आँख ब द िकये बैठी थी च दर ने उसक ओर देखा
और िफर जाने य उससे देखा नह गया वह िसतार क ओर देखने लगा प मी के कालर
के बीच से िसतारे टूट-टूटकर बरस रहे थे
सहसा प मी ने आँख खोल द और च दर का क धा पकडक़र बोली, “िकतना अ छा हो अगर
आदमी हमेशा स ब ध म एक दरू ी रखे से स न आने दे ये िसतारे ह, देखो िकतने नजदीक
ह करोड़ बरस से साथ ह, लेिकन कभी भी एक दस ू रे को छूते तक नह , तभी तो संग िनभ
जाता है ” सहसा उसक आवाज म जाने या छलक आया िक च दर जैसे मदहोश हो गया-
बोली वह-”बस ऐसा हो िक आदमी अपने ेमा पद को िनकटतम लाकर छोड़ दे, उसको बाँधे
न कुछ ऐसा हो िक होठ के पास ख चकर छोड़ दे ” और प मी ने च दर का माथा होठ तक
लाकर छोड़ िदया उसक गरम-गरम साँस च दर क पलक पर बरस गय ...”कुछ ऐसा हो िक
आदमी उसे अपने दय तक ख चकर िफर हटा दे ” और च दर को प मी ने अपनी बाँह म
घे रकर अपने व तक ख चकर छोड़ िदया व क गरमाई च दर के रोम-रोम म सुलग उठी,
वह बेचन ै हो उठा उसके मन म आया िक वह अभी यहाँ से चला जाए जाने कैसा लग रहा था
उसे सहसा प मी बोली, “लेिकन नह , हम लोग िम ह और कपरू , तम ु बहत पिव हो,
िन कलंक हो और तम ु पिव रहोगे म िजतनी दरू ी, िजतना अ तर, िजतनी पिव ता पस द
करती हँ , वह तम ु म है और हम लोग म हमेशा िनभे गी जैसे इन िसतार म हमेशा िनभती आयी
है ”
च दर चुपचाप सोचने लगा, “वह पिव है एकाएक उसका मन जैसे ऊबने लगा जैसे एक
िवहग िशशु घबराकर अपने नीड़ के िलए तड़प उठता है, वैसे ही वह इस व तड़प उठा सुधा के
पास जाने के िलए- य ? पता नह य ? यहाँ कुछ है जो उसे जकड़ लेना चाहता है वह या
करे ?
प मी उठी, वह भी उठा बाँस का मचान िहला लहर म हरकत हई करोड़ साल से अलग
और पिव िसतारे िहले, आपसे म टकराये और चरू -चरू होकर िबखर गये
11

रात-भर च दर को ठीक से न द नह आयी अब गरमी काफ पड़ने लगी थी एक सत ू ी चादर


से यादा नह ओढ़ा जाता था और च दर ने वह भी ओढ़ना छोड़ िदया था, लेिकन उस िदन रात
को अ सर एक अजब-सी कँपकँपी उसे झकझोर जाती थी और वह कसकर चादर लपे ट लेता था,
िफर जब उसक तबीयत घुटने लगती तो वह उठ बैठता था उसे रात-भर न द नह आयी; बार-
बार झपक आयी और लगा िक िखड़क के बाहर सुनसान अँधेरे म से अजब-सी आवाज आती ह
और नािगन बनकर उसक साँस म िलपट जाती ह वह परे शान हो उठता है, इतने म िफर
कह से कोई मीठी सतरं गी संगीत क लहर आती है और उसे सचे त और सजग कर जाती है
एक बार उसने देखा िक सुधा और गेसू कह चली जा रही ह उसने गेसू को कभी नह देखा
था लेिकन उसने सपने म गेसू को पहचान िलया लेिकन गेसू तो प मी क तरह गाउन पहने
हए थी! िफर देखा िबनती रो रही है और इतना िबलख-िबलखकर रो रही है िक तबीयत घबरा
जाए घर म कोई नह है च दर समझ नह पाता िक वह या करे ! अकेले घर म एक
अप रिचत लड़क से बोलने का साहस भी नह होता उसका िकसी तरह िह मत करके वह
समीप पहँ चा तो देखा अरे , यह तो सुधा है सुधा लुटी हई-सी मालम ू पड़ती है वह बहत
िह मत करके सुधा के पास बैठ गया उसने सोचा, सुधा को आ ासन दे लेिकन उसके हाथ
पर जाने कैसे सुकुमार जंजीर कसी हई ह उसके महँु पर िकसी क साँस का भार है वह
िन े है उसका मन अकुला उठा वह च ककर जाग गया तो देखा वह पसीने से तर है
वह उठकर टहलने लगा वह जाग गया था लेिकन िफर भी उसका मन व थ नह था कमरे
म ही टहलते-टहलते वह िफर लेट गया लगा जैसे सामने क खुली िखडक़ से सैकड़ तारे
टूट-टूटकर भयानक तेजी से आ रहे ह और उसके माथे से टकरा-टकराकर चरू -चरू हो जाते ह
एक ममा तक पीड़ा उसक नस म खौल उठी और लगा जैसे उसके अंग-अंग म िचताएँ धधक
रही ह
जैसे-तैसे रात कटी और सुबह उठते ही वह यिू नविसटी जाने से पहले सुधा के यहाँ गया सुधा
लेटी हई पढ़ रही थी डॉ. शु ला पज ू ा कर रहे थे बुआजी शायद रात को चली गयी थ
य िक िबनती बैठी तरकारी काट रही थी और खुश नजर आ रही थी च दर सुधा के कमरे म
गया देखते ही सुधा मस ु करा पड़ी बोली कुछ नह लेिकन आते ही उसने च दर के अंग-अंग
को अपनी िनगाह के वागत म समेट िलया च दर सुधा के पैर के पास बैठ गया
“कल रात को तम ु कार लेकर वापस आये तो चु पे से चले गये!” सुधा बोली, “कहो, कल कौन-
सा खे ल देखा?”
“कल बहत बड़ा खे ल देखा; बहत बड़ा खे ल, सुधी!” च दर याकुलता से बोला, “अरे जाने कैसा
मन हो गया िक रात-भर न द ही नह आयी ” और उसके बाद च दर सब बता गया कैसे वह
िसने मा गया उसने प मी से या बात क उसके बाद कैसे कार पर उसने च दर को पास
ख च िलया कैसे वे लोग मैकफसन झील गये और वहाँ प मी पागल हो गयी िफर कैसे
च दर को एकदम सुधा क याद आने लगी और िफर रात-भर च दर को कैसे-कैसे सपने आये
सुधा बहत ग भीर होकर महँु म पे ि सल दबाये कुहनी टे के बस चुपचाप सुनती रही और अ त म
बोली, “तो तम ु इतने परे शान य हो गये, च दर! उसने तो अ छी ही बात कही थी यह तो
अ छा ही है िक ये सब िजसे तम ु से स कहते हो, यह स ब ध म न आए उसम या बुराई है?
या तम
ु चाहते हो िक से स आए?”
“कभी नह , तम ु मझु े अभी तक नह समझ पाय ”
“तो ठीक है, तम ु भी नह चाहते िक से स आए और वह भी नह चाहती िक से स आए तो
झगड़ा या है? य , तम ु उदास य हो इतने ?” सुधा बोली बड़े अचरज से
“लेिकन उसका यवहार कैसा है?” च दर ने सुधा से कहा
“ठीक तो है उसने बता िदया तु ह िक इतना अ तर होना चािहए समझ गये तम ु लालची
आदमी, चाहते होगे यह भी अ तर न रहे ! इसीिलए तम ु उदास हो गये, िछः!” ह ठ म मसु कराहट
और आँख म शरारत क झलक िछपाते हए सुधा बोली
“तम ु तो मजाक करने लग ” च दर बोला
सुधा िसफ च दर क ओर देखकर मस ु कराती रही च दर सामने लगी हई तसवीर क ओर
देखता रहा िफर उसने सुधा के कबत ू र -जैसे उजले मासम
ू न हे पैर अपने हाथ म ले िलये और
भरायी हई आवाज म बोला, “सुधा, तम ु कभी हम पर िव ास न हार बैठना ”
सुधा ने िकताब ब द करके रख दी और उठकर बैठ गयी उसने च दर के दोन हाथ अपने
हाथ म लेकर कहा, “पागल कह के! हम कहते हो, अभी सुधा म बचपन है और तम ु म या है!
वाह रे छुईमईु के फूल! िकसी ने हाथ पकड़ िलया, िकसी ने बदन छू िलया तो घबरा गये! तम ु से
अ छी लड़िकयाँ होती ह ” सुधा ने उसके दोन हाथ झकझोरते हए कहा
“नह सुधी, तम ु नह समझत मेरी िजंदगी म एक ही िव ास क च ान है वह हो तम ु म
जानता हँ िक िकतने ही जल- लय ह लेिकन तु हारे सहारे म हमेशा ऊपर रहँ गा तम ु मझु े
डूबने नह दोगी तु हारे ही सहारे म लहर से खे ल भी सकता हँ लेिकन तु हारा िव ास
अगर कभी िहला तो म िकन अँधेरी गहराइय म डूब जाऊँगा, यह कभी म सोच नह पाता ”
च दर ने बड़े कातर वर म कहा
सुधा बहत ग भीर हो गयी ण-भर वह च दर के चे हरे क ओर देखती रही, िफर च दर के
माथे पर झल ू ती हई एक लट को ठीक करती हई बोली, “च दर, और म िकसके िव ास पर चल
रही हँ , बोलो! लेिकन मने तो कभी नह कहा िक च दर अपना िव ास मत हारना! और या
कहँ मझ ु े अपने च दर पर परू ा िव ास है मरते दम तक िव ास रहे गा िफर तु हारा मन
इतना डगमगा य गया? बुरी बात है न?”
च दर ने सुधा के क धे पर अपना िसर रख िदया सुधा ने उसका हाथ लेकर कहा, “लाओ,
यहाँ छुआ था प मी ने तु ह!” और उसका हाथ होठ तक ले गयी च दर काँप गया, आज सुधा
को यह या हो गया है लेिकन ह ठ तक हाथ ले जाकर झाड़ने -फँ ू कने वाल क तरह सुधा ने
फँ ू ककर कहा, “जाओ, तु हारे हाथ से प मी के पश का जहर उतर गया अब तो ठीक हो गये!
पिव हो गये! छू-म तर!”
च दर हँ स पड़ा उसका मन शा त हो गया सुधा म जादू था सचमच ु जादू था िबनती
चाय ले आयी दो याले सुधा बोली, “अपने िलए भी लाओ ” िबनती ने िसर िहलाया
सुधा ने च दर क ओर देखकर कहा, “ये पगली जाने य तम ु से झपती है?”
“झपती कहाँ हँ ?” िबनती ने ितवाद िकया और याला भी ले आयी और जमीन पर बैठ गयी
सुधा ने याला महँु से लगाया और बोली, “च दर, तम ु ने प मी को गलत समझा है प मी बहत
अ छी लड़क है तम ु से बड़ी भी है और तमु से यादा समझदार, और उसी तरह यवहार भी
करती है तम ु अगर कुछ सोचते हो तो गलत सोचते हो मेरा मतलब समझ गये न ”
“जी हाँ, गु आनीजी, अ छी तरह से!” च दर ने हाथ जोडक़र िवन ता से कहा िबनती हँ स
पड़ी और उसक चाय छलक गयी नीचे रखी हई च दर क जरीदार पे शावरी सिडल भीग
गयी िबनती ने झक ु कर एक अँगोछे से उसे प छना चाहा तो सुधा िच ला उठी-”हाँ-हाँ, छुओ
मत कह इनक सिडल भी बाद म आके न रोने लगे सुन िबनती, एक लड़क ने कल इ ह
छू िलया तो आप आज उदास थे अभी तम ु सिडल छुओ तो कह जाके कोतावली म रपट न कर
द ”
च दर हँ स पड़ा और उसका मन धुलकर ऐसे िनखर गया जैसे शरद का नीलाभ आकाश
“अब प मी के यहाँ कब जाओगे?” सुधा ने शरारत-भरी मस ु कराहट से पछ
ू ा
“कल जाऊँगा! ठाकुर साहब प मी के हाथ अपनी कार बेच रहे ह तो कागज पर द तखत करना
है ” च दर ने कहा, “अब म िनडर हँ कहो िबनती, तु हारे ससुर का या कोई खत नह
आया ”
िबनती झप गयी च दर चल िदया
थोड़ी दरू जाकर िफर मड़ ु ा और बोला, “अ छा सुधा, आज तक जो काम हो बता दो िफर एक
महीने तक मझ ु से कोई मतलब नह हम थीिसस परू ी करगे समझ ?”
“समझे!” हाथ पटककर सुधा बोली
12

सचमच ु डे ढ़ महीने तक च दर को होश नह रहा िक कहाँ या हो रहा है िबस रया रोज सुधा
और िबनती को पढ़ाने आता रहा, सुधा और िबनती दोन ही का इ तहान ख म हो गया प मी
दो बार सुधा और च दर से िमलने आयी लेिकन च दर एक बार भी उसके यहाँ नह गया िम ा
का एक खत बरे ली से आया लेिकन च दर ने उसका भी जवाब नह िदया डॉ टर साहब ने
अपनी पु तक के दो अ याय िलख डाले लेिकन उसने एक िदन भी बहस नह क िबनती उसे
बराबर चाय, दध ू , ना ता, शरबत और खरबज ू ा देती रही लेिकन च दर ने एक बार भी उसके
ससुर का नाम लेकर नह िचढ़ाया सुधा या करती है, कहाँ जाती है, च दर से या कहती है,
च दर को कोई होश नह , बस उसका पे न, उसके कागज, टडी म क मेज और च दर है िक
आिखर थीिसस परू ी करके ही माना
7 मई को जब उसने थीिसस का आिखरी प ना िलखकर परू ा िकया और स तोष क साँस ली तो
देखा िक शाम के पाँच बजे ह, सायबान म अभी परदा पड़ा है लेिकन धपू उतार पर है और लू ब द
हो गयी है उसक कुस के पीछे एक चटाई िबछाये हए सुधा बैठी है ग
ू ो का अधपढ़ा हआ
उप यास बगल म खुला हआ औंधा पड़ा है और आप च दर क एक मोटी-सी इकनॉिम स क
िकताब खोले उस पर कलम से कुछ गोदा-गोदी कर रही है
“सुधा!” एक गहरी साँस लेकर अँगड़ाई लेते हए च दर ने कहा, “लो, आज आिखरकार जान
छूटी बस, अब दो-तीन महीने म माबदौलत डॉ टर बन जाएँ गे!”
सुधा अपने काय म य त च दर ने या कहा, यह सुनकर भी गम ु च दर ने हाथ बढ़ाकर
चोटी झटक दी “हाय रे ! हम नह अ छा लगता, च दर!” सुधा िबगडक़र बोली, “तु हारे काम
के बीच म कोई बोलता है तो िबगड़ जाते हो और हमारा काम थोड़े ही मह वपण ू है!” कहकर
सुधा िफर पे न लेकर गोदने लगी
“आिखर कौन-सा उपिनषद िलख रही ह आप? जरा देख तो!” च दर ने िकताब ख च ली
टािजग क इकनॉिम स क िकताब म एक परू े प ने पर सुधा ने एक िब ली बनायी थी और
अगर िनगाह जरा चक ू जाए तो आप कह नह सकते थे यह चौरासी लाख योिनय म से िकस
योिन का जीव है, लेिकन चँिू क सुधा कह रही है िक यह िब ली है, इसिलए मानना होगा िक यह
िब ली ही है
च दर ने सुधा क बाँह पकडक़र कहा, “उठ! आलसी कह क , चल उठा ये पोथा! चलके पापा
के पैर छू आएँ ?”
सुधा चुपचाप उठी और आ ाकारी लड़क क तरह मोटी फाइल उठा ली दरवाजे तक पहँ चकर
क गयी और च दर के क धे पर फाइल िटकाकर बोली, “ऐ च दर, तो स ची अब तम ु डॉ टर
हो जाओगे?”
“और या?”
“आहा!” कहकर जो सुधा उछली तो फाइल हाथ से िखसक और सभी प ने जमीन पर
च दर झ ला गया उसने गु से से लाल होकर एक घँस ू ा सुधा को मार िदया “अरे राम रे !”
सुधा ने पीठ सीधी करते हए कहा, “बड़े परोपकारी हो डॉ टर च दर कपरू ! हम िबना थीिसस
िलखे िड ी दे दी! लेिकन बहत जोर क थी!”
च दर हँ स पड़ा
खैर दोन पापा के पास गये वे भी िलखकर ही उठे थे और शरबत पी रहे थे च दर ने जाकर
कहा, “परू ी हो गयी ” और झक ु कर पैर छू िलये उ ह ने च दर को सीने से लगाकर कहा,
“बस बेटा, अब तु हारी तप या परू ी हो गयी अब जुलाई से यिू नविसटी म ज र आ जाओगे
तम ु !”
सुधा ने पोथा कोच पर रख िदया और अपने पैर बढ़ाकर खड़ी हो गयी “ये या?” पापा ने
पछू ा
“हमारे पैर नह छुएँ गे या?” सुधा ने ग भीरता से कहा
“चल पगली! बहत बदतमीज होती जा रही है!” पापा ने कृि म गु से से कहा, “च दर! बहत
िसर चढ़ी हो गयी है जरा दबाकर रखा करो तम ु से छोटी है िक नह ?”
“अ छा पापा, अब आज िमठाई िमलनी चािहए ” सुधा बोली, “च दर ने थीिसस ख म क है?”
“ज र, ज र बेटी!” डॉ टर शु ला ने जेब से दस का नोट िनकालकर दे िदया, “जाओ, िमठाई
मँगवाकर खाओ तम ु लोग ”
सुधा हाथ म नोट िलये उछलते हए टडी म म आयी, पीछे -पीछे च दर सुधा क गयी और
अपने मन म िहसाब लगाते हए बोली, “दस पये प ड ऊन एक प ड म आठ ल छी छह
ल छी म एक शाल बाक बची दो ल छी दो ल छी म एक वेटर बस एक िबनती का
वेटर, एक हमारा शाल ”
च दर का माथा ठनका अब िमठाई क उ मीद नह िफर भी कोिशश करनी चािहए
“सुधा, अभी से शाल का या करोगी? अभी तो बहत गरमी है!” च दर बोला
“अबक जाड़े म तु हारा याह होगा तो आिखर हम लोग नयी-नयी चीज का इ तजाम कर न
अब डॉ टर हए, अब डॉ टरनी आएँ गी!” सुधा बोली
खैर, बहत मनाने -बहलाने -फुसलाने पर सुधा िमठाई मँगवाने को राजी हई जब नौकर िमठाई
लेने चला गया तो च दर ने चार ओर देखकर पछ ू ा, “कहाँ गयी िबनती? उसे भी बुलाओ िक
अकेले-अकेले खा लोगी!”
“वह पढ़ रही है मा टर साहब से!”
“ य ? इ तहान तो ख म हो गया, अब या पढ़ रही है?” च दर ने पछ ू ा
“िवदुषी का दसू रा ख ड तो दे रही है न िसत बर म!” सुधा बोली
“अ छा, बुलाओ िबस रया को भी!” च दर बोला
“अ छा, िमठाई आने दो ” सुधा ने कहा और फाइल क ओर देखकर कहा, “मझ ु े इस क ब त
पर बहत गु सा आ रहा है ”
“ य ?”
“इसक वजह से तम ु डे ढ़ महीने सीधे से बोले तक नह इ तहान वाले िदन सुबह-सुबह तु ह
हाथ जोडऩे आयी तो तम ु ने िसर पर हाथ भी नह रखा!” सुधा ने िशकायत के वर म कहा
“तो अब आशीवाद दे द अब तो ख म हई थीिसस अब िजतना चाहो बात कर लो थीिसस
न िलखते तो िफर तु हारे च दर को उपािध कहाँ से िमलती?” च दर ने दुलार से कहा
“तो िफर क वोकेशन पर तु हारी गाउन हम पहनकर फोटो िखंचाएँ गे!” सुधा मचलकर बोली
इतने म नौकर िमठाई ले आया “जाओ, िबनतीजी को बुला लाओ ” च दर ने कहा
िबनती आयी
“तमु पढ़ चुक !” च दर ने पछ ू ा
“अभी नह ” िबनती बोली
“अ छा, अब आज पढ़ाई ब द करो, उ ह भी बुला लाओ िमठाई खाई जाए ” च दर ने कहा
“अ छा!” कहकर िबनती जो मड़ ु ी तो सुधा बोली, “अरे लालिचन! ये तो पछू ले िक िमठाई काहे
क है?”
“मझ ु े मालम
ू है!” िबनती मस ु कराती हई बोली, “उनके यहाँ आज गये ह गे, प मी के यहाँ िफर
आज कुछ उस िदन जैसी बात हई होगी ”
सुधा हँ स पड़ी च दर झप गया िबनती चली गयी िबस रया को बुलाने
“अब तो ये तम ु से बोलने लगी!” सुधा ने कहा
“हाँ, यह है बड़ी सुशील लड़क और बहत शा त हम बहत अ छी लगती है बोलना तो जैसे
आता ही नह इसे ”
“हाँ, लेिकन अब खबू सीख रही है इसक गु िमली है गेसू हमसे भी यादा गेसू से पटने
लगी है इसक दोन याह करने जा रही ह और दोन उसी क बात करती ह जब िमलती ह
तब ” सुधा बोली
“और किवता भी करती है यह, तम ु एक बार कह रही थ ?” च दर ने पछ ू ा
“नह जी, असल म एक बड़ी सु दर-सी नोट-बुक थी, उसम यह जाने या िलखती थी? हम
नह िदखाती थी बाद म हमने देखा िक एक डायरी है उसम धोबी का िहसाब िलखती
थी ”
“तो किवता नह िलखत ! ता जुब है, वरना सोलह बरस के बाद ेम करके किवता करना तो
लड़िकय का फै शन हो गया है, उतना ही यापक िजतना उलटा प ला ओढ़ना ” च दर
बोला
“चला तु हारा नारी-पुराण!” सुधा िबगड़ी
िमठाई खाने वाले आये आगे-आगे िबनती, पीछे -पीछे िबस रया अिभवादन के बाद िबस रया
बैठ गया “कहो िबस रया, तु हारी िश या कैसी है?”
“बस अि तीय ” किव िबस रया ने िसर िहलाकर कहा सुधा मस ु करा दी, च दर क ओर
देखकर
“और ये सुधा कैसी थी?”
“बस अि तीय ” िबस रया ने उसी तरह कहा
“दोन अि तीय ह? साथ ही!” च दर ने पछ ू ा
सुधा और िबनती दोन हँ स द िबस रया नह समझ पाया िक उसने कौन-सी हँ सने क बात
क थी और जब नह समझ पाया तो पहले िसर खुजलाने लगा िफर खुद भी हँ स पड़ा उसक
हँ सी पर तीन और हँ स पड़े
“च दर, मा टर साहब भी खबू ह एक िदन िबनती को महादेवी क वह किवता पढ़ा रहे थे,
'िवरह का जलजात जीवन,' तो पढ़ते-पढ़ते बड़ी गहरी साँस भरने लगे ”
च दर और िबनती दोन हँ स पड़े िबस रया पहले तो खुद हँ सा िफर बोला, “हाँ भाई, या कर,
कपरू ! तम ु तो जानते ही हो, म बहत भावुक हँ मझ ु से बदा त नह होता एक बार तो ऐसा
हआ िक पच म एक क ण रस का गीत आ गया अथ िलखने को म उसे पढ़ते ही इतना
यिथत हो गया िक उठकर टहलने लगा ोफेसर समझे म दस ू रे लड़के क कॉपी देखने उठा
हँ , तो उ ह ने िनकाल िदया मझ ु े िनकाले जाने का अफसोस नह हआ लेिकन किवता पढक़र
मझ ु े बहत लाई आयी ”
सुधा हँ सी तो च दर ने आँख के इशारे से मना िकया और ग भीरता से बोला, “हाँ भाई िबस रया,
सो तो सही है ही तम ु इतने भावुक न हो तो इतना अ छा कैसे िलख सकते हो? तो तम ु ने पचा
छोड़ िदया?”
“हाँ, म पच वगैरह क या परवाह करता हँ ? मेरे िलए इन सभी व तओ ु ं का कुछ भी अथ नह
म भावना क उपासना करता हँ उस समय परी ा देने क भावना से यादा सबल उस किवता
क क ण भावना थी और इस तरह म िकतनी बार फेल हो चुका हँ मेरे साथ वह पढ़ता था
न ह रहर टंडन, वह अब ब ती कॉलेज का ि ि सपल है एक मेरा सहपाठी था, वह रे िडयो का
ो ाम ए जी यिू टव है...”
“और एक तु हारा सहपाठी तो हमने सुना िक असे बली का पीकर भी है!” च दर बात काटकर
बोला सुधा िफर हँ स पड़ी िबनती भी हँ स पड़ी
खैर िमठाई का भोग ार भ हआ िबस रया कुछ तक लुफ कर रहा था तो िबनती बोली,
“खाइए, िमठाई तो िवरह-रोग और भावुकता म बहत वा य द होती है!”
“अ छा, अब तो िबनती का कंठ फूट िनकला! अपने गु जी को बना रही है ” च दर बोला
िबस रया थोड़ी देर बाद चला गया “अब मझ ु े एक पाट म जाना है ” उसने कहा जब
आिखर म एक रसगु ला बच रहा तो िबनती हाथ म लेकर बोली, “कौन लेगा?” आज पता नह
य िबनती बहत खुश थी और बहत बोल रही थी
च दर बोला, “हम दो!”
सुधा बोली, “हम!”
िबनती ने एक बार च दर क ओर देखा, एक बार सुधा क ओर च दर बोला, “देख िबनती
हमारी है या सुधा क है ”
िबनती ने झट रसगु ला सुधा के मख ु म रख िदया और सुधा के िसर पर िसर रखकर बोली-
“हम अपनी दीदी के ह!” सुधा ने आधा रसगु ला िबनती को दे िदया तो िबनती च दर को
िदखलाकर खाते हए सुधा से बोली, “दीदी, ये हम बहत बनाते ह, अब हम भी तु हारी तरह
बोलगे तो इनका िदमाग ठीक हो जाएगा ”
“हम-तम ु दोन िमलके इनका िदमाग ठीक करगे?” सुधा ने यार से िबनती को थपथपाते हए
कहा, “अब हम त त रयाँ धोकर रख द ” और त त रयाँ उठाकर चल दी
“पानी नह दोगी?” च दर बोला
िबनती पानी ले आयी और बोली, “हम तो आपका इतना काम करते ह और आप जब देखो तब
हम बनाते रहते ह आपको या आन द आता है हम बनाने म?”
च दर ने पल-भर िबनती क ओर देखा और बोला, “असल म बनने के बाद जब तम ु झप जाती
हो तो...हाँ ऐसे ही ”
िबनती ने िफर झपकर महँु िछपा िलया और लाज से सकुचाकर इ वधू बन गयी िबनती
देखने -सुनने म बड़ी अ छी थी उसक गठन तो सुधा क तरह नह थी लेिकन उसके चे हरे पर
एक िफरोजी आभा थी िजसम गल ु ाल के डोरे थे आँख उसक बड़ी-बड़ी और पलक म इस तरह
डोलती थ जैसे िकसी सुकुमार सीपी म कोई बहत बड़ा मोती डोले झपती थी तो महँु पर साँझ
मसु करा उठती थी और गाल म फूल के कटोर जैसे दो छोटे -छोटे गड्ढो और िबनती के अंग-
अंग म एक प क लहर थी जो नािगन क तरह लहराती थी और उसक आदत थी िक बात
करते समय अपनी गरदन जरा टे ढ़ी कर लेती थी और अँगिु लय से अपने आँचल का छोर उमेठने
लगती थी
इस व च दर क बात पर झप गयी और उसी तरह आँचल के छोर को उमेठती हई, मस ु कान
िछपाकर उसने ऐसी िनगाह से च दर क ओर देखा िजसम थोड़ी लाज, थोड़ा गु सा, थोड़ी
स नता और थोड़ी शरारत थी
च दर एकदम बोला उठा, “अरे सुधा, सुधा, जरा िबनती क आँख देखो इस व !”
“आयी अभी ” बगल के कमरे म त तरी रखते हए सुधा बोली
“बड़े खराब ह आप?” िबनती बोली
“हाँ, बनाओगी न आज से हम? हमारा िदमाग ठीक करोगी न? बहत बोल रही थी, अब बताओ!”
“बताएँ या? अभी तक हम बोलते नह थे तभी न?”
“अब अपनी ससुराल म बोलना टुइयाँ ऐसी! वह तु हारे बोल पर रीझगे लोग ” च दर ने िफर
छे ड़ा
“िछः, राम-राम! ये सब मजाक हमसे मत िकया क िजए दीदी से य नह कहते िजनक अभी
शादी होने जा रही है ”
“अभी उनक कहाँ, अभी तो तय भी नह हई ”
“तय ही समिझए, फोटो इनक उन लोग ने पस द कर ली अ छा एक बात कह, मािनएगा!”
िबनती बड़े आ ह और दीनता के वर म बोली
“ या?” च दर ने आ य से पछ ू ा िबनती आज सहसा िकतना बोलने लगी है िबनती बोली,
नीचे जमीन क ओर देखती हई-”आप हमसे याह के बारे म मजाक न िकया क िजए, हम अ छा
नह लगता ”
“ओहो, याह अ छा लगता है लेिकन उसके बारे म मजाक नह गड़
ु खाया गलु गलु े से
परहे ज!”
“हाँ, यही तो बात है ” िबनती सहसा ग भीर हो गयी-”आप समझते ह गे िक म याह के िलए
उ सुक हँ , दीदी भी समझती ह; लेिकन मेरा ही िदल जानता है िक याह क बात सुनकर मझ ु े
कैसा लगने लगता है लेिकन िफर भी मने याह करने से इनकार नह िकया खुद दौड़-
दौडक़र उस िदन दुबेजी क सेवा म लगी रही, इसिलए िक आप देख चुके ह िक माँ का यवहार
मझ ु से कैसा है? आप यहाँ इस प रवार को देखकर समझ नह सकते िक म वहाँ कैसे रहती हँ ,
कैसे माँजी क बात बदा त करती हँ , वह नरक है मेरे िलए, माँ क गोद नरक है और म िकसी
तरह िनकल भागना चाहती हँ कुछ चैन तो िमलेगा!” िबनती क आँख म आँसू आ गये और
िससकती हई बोली, “लेिकन आप या दीदी जब यह कहते ह, तो मझ ु े लगता है िक म िकतनी
नीच हँ , िकतनी पितत हँ िक खुद अपने याह के िलए याकुल हँ , लेिकन आप न कहा कर तो
अ छा है!” िबनती को आँसुओ ं का तार बँध गया था
सुधा बगल के कमरे से सब कुछ सुन रही थी आयी और च दर से बोली, “बहत बुरी बात है,
च दर! िबनती, य रो रही हो, रानी? बुआ का वभाव ही ऐसा है, उससे हमेशा अपना िदल
दुखाने से या लाभ?” और पास जाकर उसको छाती से लगाकर सुधा बोली, “मेरी राजदुलारी!
अब रोना मत, ऐं! अ छा, हम लोग कभी मजाक नह करगे! बस अब चुप हो जाओ, रानी िबिटया
क तरह जाओ महँु धो आओ ”
िबनती चली गयी च दर लि जत-सा बैठा था
“लो, अब तु ह भी लाई आ रही है या?” सुधा ने बहत दुलार से कहा, “तम ु उससे ससुराल का
मजाक मत िकया करो वह बहत दु:खी है और बहत कदर करती है तु हारी और िकसी क
मजाक क बात और है हम या तम ु कहते ह तो उसे लग जाता है ”
“अ छा, वो कह रही थी, तु हारी फोटो उन लोग ने पस द कर ली है”-च दर ने बात बदलने के
खयाल से कहा
“और या, कोई हमारी श ल तु हारी तरह है िक लोग नापस द कर द ” सुधा अकड़कर
बोली
“नह , सच-सच बताओ?” च दर ने पछ ू ा
“अरे जी,” लापरवाही से महँु िबचकाकर सुधा बोली, “उनके पस द करने से या होता है? म
याह-उआह नह क ँ गी तम ु इस फेर म न रहना िक हम िनकाल दोगे यहाँ से ”
इतने म िबनती आ गयी वह भी उदास थी सुधा उठी और िबनती को पकड़ लायी और
ढकेलकर च दर के बगल म िबठा िदया
“लो, च दर! अब इसे दुलार कर लो तो अभी गरु गरु ाने लगे िब ली कह क !” सुधा ने उसे
ह क -सी चपत मारकर कहा िबनती का महँु अपनी हथेिलय म लेकर अपने महँु के पास
लाकर आँख म आँख डालकर कहा, “पगली कह क , आँसू का खजाना लुटाती िफरती है ”
“च दर!” डॉ. शु ला ने पुकारा और च दर उठकर चला गया
13

सुधा पर इन िदन घम ू ना सवार था सुबह हई िक च पल पहनी और गायब गेस,ू कािमनी,


भा, लीला शायद ही कोई लड़क बची होगी िजसके यहाँ जाकर सुधा ऊधम न मचा आती हो,
और चार सुख-दु:ख क बात न कर आती हो िबनती को घम ू ना कम पस द था, हाँ जब कभी
सुधा गेसू के यहाँ जाती थी तो िबनती ज र जाती थी, उसे सुधा क सभी िम म गेसू सबसे
यादा पस द थी डॉ टर शु ला के यरू ो म छु ी हो चुक थी पर वे सुधा का याह तय करने
क कोिशश कर रहे थे इसिलए वह बाहर भी नह गये थे च दर डे ढ़ महीने तक लगातार
मेहनत करने के बाद पढ़ाई-िलखाई क ओर से आराम कर रहा था और उसने िनि त कर िलया
था िक अब बरसात के पहले वह िकताब छुएगा नह बड़े आराम के िदन कटते थे उसके
सुबह उठकर साइिकल पर गंगा नहाने जाता था और वहाँ अ सर ठाकुर साहब से भी मल ु ाकात
हो जाती थी डॉ टर शु ला ने भी कई दफे इरादा िकया िक वे गंगाजी चला कर लेिकन एक तो
उनसे िदन म काम नह होता था, शाम को वे घमू ते और सुबह उठकर िकताब िलखते थे
एक िदन सुबह िलख रहे थे िक च दर आया और उनके पैर छूकर बोला, “ ा तीय सरकार का
वह पुर कार कल शाम को आ गया!”
“कौन-सा?”
“वह जो उ र ा त म माता और िशशुओ ं क म ृ यु-सं या पर मने िनब ध िलखा था, उसी
पर ”
“तो या पदक आ गया?” डॉ टर शु ला ने कहा
“जी,” अपनी जेब म से एक मखमली िड बा िनकालकर च दर ने िदया पदक बहत सु दर
था जगमगाता हआ वणपदक िजसम ा तीय राजमु ा अंिकत थी
“ई र तु ह बहत यश वी करे जीवन म ” डॉ टर शु ला ने पदक उसक कमीज म अपने हाथ
से लगा िदया, “जाओ, अ दर सुधा को िदखा आओ ”
च दर जाने लगा तो डॉ टर साहब ने बुलाया, “अ छा, अब सुधा क शादी का इ तजाम करना
है हमसे तो कुछ होने से रहा, तु ह को सब करना होगा और सुनो, जेठ दशहरा को लड़के
का भाई और माँ देखने आ रही ह और बहन भी आएँ गी गाँव से ”
“अ छा?” च दर बैठ गया कुस पर और बोला, “कहाँ है लड़का? या करता है?”
“लड़का शाहजहाँपुर म है घर के जम दार ह ये लोग लड़का एम. ए. है और अ छे िवचार
का है उसने िलखा है िक िसफ दस आदमी बारात म आएँ गे, एक िदन कगे सं कार के
बाद चले जाएँ गे िसवा लड़क के गहने -कपड़े और लड़के के गहने -कपड़ के और कुछ भी
नह वीकार करगे ”
“अ छा, ा ण म तो ऐसा कुल नह िमलेगा ”
“तभी तो! सुधा क िक मत है, वरना तम ु िबनती के ससुर को तो देख ही चुके हो अ छा
जाओ, सुधा से िमल आओ ”
वह सुधा के कमरे म आ गया सुधा थी ही नह वह आँगन म आया देखा महरािजन खाना
बना रही है और िबनती बरामदे म बुरादे क अँगीठी पर पकोिड़याँ बना रही है
“आइए,” िबनती बोली, “दीदी तो गयी ह गेसू को बुलाने आज गेसू क दावत है ...पीढ़े पर
बैिठएगा, लीिजए ” एक पीढ़ा च दर क ओर िबनती ने िखसका िदया च दर बैठ गया
िबनती ने उसके हाथ म मखमली िड बा देखा तो पछ ू ा, “यह या लाये? कुछ दीदी के िलए है
या? यह तो अँगठू ी मालमू पड़ती है ”
“अँगठ ू ी, वह या दाल म िमला के खाएगी! जंगली कह क ! उसे या तमीज है अँगठ ू ी पहनने
क !”
“हमारी दीदी के िलए ऐसी बात क तो अ छा नह होगा, हाँ!” उसे िबनती ने उसी तरह गरदन
टे ढ़ी कर आँख डुलाते हए धमकाया-”उ ह नह अँगठ ू ी पहननी आएगी तो या आपको आएगी?
अब याह म सोलह िसंगार करगी! अ छा, दीदी कैसी लगगी घँघ ू ट काढ़ के? अभी तक तो िसर
खोले चकई क तरह घम ू ती-िफरती ह ”
“तम ु ने तो डाल ली आदत, ससुराल म रहने क !” च दर ने िबनती से कहा
“अरे हमारा या!” एक गहरी साँस लेते हए िबनती ने कहा, “हम तो उसी के िलए बने थे
लेिकन सुधा दीदी को याह-शादी म न फँसना पड़ता तो अ छा था दीदी इन सबके िलए नह
बनी थ आप मामाजी से कहते य नह ?”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया चुपचाप बैठा हआ सोचता रहा िबनती भी कड़ाही म से
पकौिड़याँ िनकाल-िनकालकर थाली म रखने लगी थोड़ी देर बाद जब वह घी म पकौिड़याँ
डाल चुक तब भी वह वैसे ही गम ु सुम बैठा सोच रहा था
“ या सोच रहे ह आप? नह बताइएगा िफर अभी हम दीदी से कह दगे िक बैठ-बैठे सोच रहे
थे ” िबनती बोली
“ या तु हारी दीदी का डर पड़ा है?” च दर ने कहा
“अपने िदल से पिू छए हमसे नह बन सकते आप!” िबनती ने मस ु कराकर कहा और उसके
गाल म फूल के कटोरे िखल गये-”अ छा, इस िड बे म या है, कुछ ाइवेट!”
“नह जी, ाइवेट या होगा, और वह भी तम ु से? सोने का मेडल है िमला है मझ ु े एक लेख
पर ” और च दर ने िड बा खोलकर िदखला िदया
“आहा! ये तो बहत अ छा है हम दे दीिजए ” िबनती बोली
“ या करे गी त?ू ” च दर ने हँ सकर पछ ू ा
“अपने आने वाले जीजाजी के िलए कान के बु दे बनवा लगे ” िबनती बोली, “अरे हाँ, आपको
एक चीज िदखाएँ गे ”
“ या?”
“यह नह बताते देिखएगा तो उछल पिड़एगा ”
“तो िदखाओ न!”
“अभी तो दीदी आ रही ह गी दीदी के सामने नह िदखाएँ गे ”
“सुधा से िछपाकर हम कुछ नह कर सकते, यह तम ु जानती हो ” च दर बोला
“िछपाने क बात थोड़े ही है देखकर तब उ ह बता दीिजएगा वैसे वह खुद ही सुधा दीदी से
या िछपाते ह? लो, सुधा दीदी तो आ गय ...”
च दर ने पीछे मड ु क़र देखा सुधा के हाथ म एक ल बा-सा सरकंडा था और उसे झंडे क तरह
फहराती हई चली आ रही थी च दर हँ स पड़ा
“िखल गये दीदी को देखते ही!” िबनती बोली और एक गरम पकौड़ी च दर के ऊपर फक दी
“अरे , बड़ी शैतान हो गयी हो तमु इधर! पाजी कह क !” च दर बोला
सुधा च पल उतारकर अ दर आयी झम ू ती-इठलाती हई चली आ रही थी
“कहो, सेठ वाथ मल!” उसने च दर को देखते ही कहा, “सुबह हई और पकौड़ी क महक लग
गयी तु ह!” पीढ़ा ख चकर उसके बगल म बैठ गयी और सरकंडा च दर के हाथ पर रखते हए
बोली, “लो, यह ग ना घर म बो देना और गँडेरी खाना! अ छा!” और हाथ बढ़ाकर वह
िडिबया उठा ली और बोली, “इसम या है? खोल या न खोल?”
“अ छा, खत तक तो हमारे िबना पछ ू े खोल लेती हो इसे पछ ू के खोलोगी!”
“अरे हमने सोचा शायद इस िडिबया म प मी का िदल ब द हो तु हारी िम है, शायद मिृ त-
िच ï म वही दे िदया हो ” और सुधा ने िडिबया खोली तो उछल पड़ी, “यह तो उसी िनब ध पर
िमला है िजसका चाट तम ु बनाये थे!”
“हाँ!”
“तब तो ये हमारा है ” िडिबया अपने व म िछपाकर सुधा बोली
“तु हारा तो है ही म अपना कब कहता हँ ?” च दर ने कहा
“लगाकर देख!” और उठकर सुधा चल दी
“िबनती, दो पकौड़ी तो दो ” और दो पकौिड़याँ लेकर खाते हए च दर सुधा के कमरे म गया
देखा, सुधा शीशे के सामने खड़ी है और मेडल अपनी साड़ी म लगा रही है वह चुपचाप खड़ा
होकर देखने लगा सुधा ने मेडल लगाया और ण-भर तनकर देखती रही िफर उसे एक हाथ
से व पर िचपका िलया और महँु झक ु ाकर उसे चम ू िलया
“बस, कर िदया न ग दा उसे!” च दर मौका नह चक ू ा
और सुधा तो जैसे पानी-पानी गाल से लाज क रतनारी लपट फूट और एड़ी तक धधक
उठ फौरन शीशे के पास से हट गयी और िबगड़कर बोली, “चोर कह के! या देख रहे थे?”
िबनती इतने म त तरी म पकौड़ी रखकर ले आयी सुधा ने झट से मेडल उतार िदया और बोली,
“लो, रखो सहे जकर ”
“ य , पहने रहो न!”
“ना बाबा, परायी चीज, अभी खो जाये तो डाँड़ भरना पड़े ” और मेडल च दर क गोद म रख
िदया
िबनती ने धीमे से कहा, “या मरु ली मरु लीधर क अधरा न धरी अधरा न धर गी ”
च दर और सुधा दोन झप गये “लो, गेसू आ गयी ”
सुधा क जान म जान आ गयी च दर ने िबनती का कान पकडक़र कहा, “बहत उलटा-सीधा
बोलने लगी है!”
िबनती ने कान छुड़ाते हए कहा, “कोई झठ ू थोड़े ही कहती हँ !”
च दर चुपचाप सुधा के कमरे म पकौिडय़ाँ खाता रहा बगल के कमरे म सुधा, गेस,ू फूल और
हसरत बैठे बात करते रहे िबनती उन लोग को ना ता देती रही उस कमरे म ना ता
पहँ चाकर िबनती एक िगलास म पानी लेकर च दर के पास आयी और पानी रखकर बोली,
“अभी हलुआ ला रही हँ , जाना मत!” और पल-भर म त तरी म हलुआ रखकर ले आयी
“अब म चल रहा हँ !” च दर ने कहा
“बैठो, अभी हम एक चीज िदखाएँ गे जरा गेसू से बात कर आएँ ” िबनती बड़े भोले वर म
बोली, “आइए, हसरत िमयाँ ” और पल-भर म न ह-मु ने -से छह वष के हसरत िमयाँ तनजेब
का कुरता और चड़ ू ीदार पायजामे पर पीले रे शम क जाकेट पहने कमरे म खरगोश क तरह
उछल आये
“आदाबज ” बड़े तमीज से उ ह ने च दर को सलाम िकया
च दर ने उसे गोद म उठाकर पास िबठा िदया “लो, हलुआ खाओ, हसरत!”
हसरत ने िसर िहला िदया और बोला, “गेसू ने कहा था, जाकर च दर भाई से हमारा आदाब
कहना और कुछ खाना मत! हम खाएँ गे नह ”
च दर बोला, “हमारा भी नम ते कह दो उनसे जाकर ”
हसरत उठ खड़ा हआ-”हम कह आएँ ” िफर मड ु क़र बोला, “आप तब तक हलुआ ख म कर
दगे?”
च दर हँ स पड़ा, “नह , हम तु हारा इ तजार करगे, जाओ ”
हसरत िसर िहलाता हआ चला गया
इतने म सुधा आयी और बोली, “गेसू क गजल सुनो यहाँ बैठकर आवाज आ रही है न! फूल भी
आयी है इसिलए गेसू तु हारे सामने नह आएगी वरना फूल अ मीजान से िशकायत कर देगी
लेिकन वह तम ु से िमलने को बहत इ छुक है, अ छा यह से सुनना बैठे-बैठे...”
सुधा चली गयी गेसू ने गाना शु िकया बहत महीन, पतली लेिकन बेहद मीठी आवाज म
िजसम कसक और नशा दोन घुले-िमले थे च दर एक तिकया टे ककर बैठ गया और उन दा-
सा सुनने लगा गजल ख म होते ही सुधा भागकर आयी-”कहो, सुन िलया न!” और उसके
पीछे -पीछे आया हसरत और सुधा के पैर म िलपटकर बोला, “सुधा, हम हलुआ नह खाएँ गे!”
सुधा हँ स पड़ी, “पागल कह का ले खा ” और उसके महँु म हलुआ ठूँस िदया हसरत को
गोद म लेकर वह च दर के पास बैठ गयी और गेसू के बारे म बताने लगी, “गेसू गिमयाँ िबताने
नैनीताल जा रही है वह अ तर क अ मी भी आएँ गी और मँगनी क र म वह परू ी करगी
अब वह पढ़े गी नह जुलाई तक उसका िनकाह हो जाएगा कल रात क गाड़ी से जा रहे ह ये
लोग वगैरह-वगैरह ”
िबनती बैठी-बैठी गेसू और फूल से बात करती रही थोड़ी देर बाद सुधा उठकर चली गयी तम ु
जाना मत, आज खाना यह खाना, म िबनती को तु हारे पास भे ज रही हँ , उससे बात करते
रहना ”
थोड़ी देर बाद िबनती आयी उसके हाथ म कुछ था िजसे वह अपने आँचल से िछपाये हई थी
आयी और बोली, “अब दीदी नह ह, ज दी से देख लीिजए ”
“ या है?” च दर ने ता जुब से पछू ा
“जीजाजी क फोटो ” िबनती ने मस ु कराकर कहा और एक छोटी-सी बहत कला मक फोटो
च दर के हाथ म रख दी
“अरे यह तो िम है कॉमरे ड कैलाश िम ” और च दर के िदमाग म बरे ली क बात, लाठी
चाज...सभी कुछ घम ू गया च दर के मन म इस व जाने कैसा-सा लग रहा था कभी बड़ा
अचरज होता, कभी एक स तोष होता िक चलो सुधा के भा य क रे खा उसे अ छी जगह ले गयी,
िफर कभी सोचता िक िम इतना िविच वभाव का है, सुधा क उससे िनभे गी या नह ? िफर
सोचता, नह सुधा भा यवान है इतना अ छा लड़का िमलना मिु कल था
“आप इ ह जानते ह?” िबनती ने पछ ू ा
“हाँ, सुधा भी उ ह नाम से जानती है श ल से नह लेिकन अ छा लड़का है, बहत अ छा
लड़का ” च दर ने एक गहरी साँस लेकर कहा और िफर चुप हो गया िबनती बोली, “ या
सोच रहे ह आप?”
“कुछ नह ” पलक म आये हए आँसू रोककर और होठ पर मस ु कान लाने क कोिशश करते
हए बोला, “म सोच रहा हँ , आज िकतना स तोष है मझ ु े, िकतनी खुशी है मझ
ु े, िक सुधा एक ऐसे
घर जा रही है जो इतना अ छा है, ऐसे लड़के के साथ जा रही है जो इतना ऊँचा”...कहते-कहते
च दर क आँख भर आय
िबनती च दर के पास खड़ी होकर बोली, “िछः, च दर बाब!ू आपक आँख म आँस!ू यह तो
अ छा नह लगता िजतनी पिव ता और ऊँचाई से आपने सुधा के साथ िनबाह िकया है, यह तो
शायद देवता भी नह कर पाते और दीदी ने आपको जैसा िन छल यार िदया है उसको पाकर तो
आदमी वग से भी ऊँचा उठ जाता है, फौलाद से भी यादा ताकतवर हो जाता है, िफर आज इतने
शुभ अवसर पर आप म कमजोरी कहाँ से? हम तो बड़ी शरम लग रही है आज तक दीदी तो दरू ,
हम तक को आप पर गव था अ छा, म फोटो रख तो आऊँ वरना दीदी आ जाएँ गी!” िबनती ने
फोटो ली और चली गयी
िबनती जब लौटी तो च दर व थ था िबनती क ओर ण भर च दर ने देखा और कहा, “म
इसिलए नह रोया था िबनती, मझ ु े यह लगा िक यहाँ कैसा लगेगा खैर जाने दो ”
“एक िदन तो ऐसा होता ही है न, सहना पड़े गा!” िबनती बोली
“हाँ, सो तो है; अ छा िबनती, सुधा ने यह फोटो देखी है?” च दर ने पछ
ू ा
“अभी नह , असल म मामाजी ने मझ ु से कहा था िक यह फोटो िदखा दे सुधा को; लेिकन मेरी
िह मत नह पड़ी मने उनसे कह िदया िक च दर आएँ गे तो िदखा दगे आप जब ठीक समझ
तो िदखा द जेठ दशहरा अगले ही मंगल को है ” िबनती ने कहा
“अ छा ” एक गहरी साँस लेकर च दर बोला
िबनती थोड़ी देर तक च दर क ओर एकटक देखती रही च दर ने उसक िनगाह चुरा ली और
बोला, “ या देख रही हो, िबनती?”
“देख रही हँ िक आपक पलक झपकती ह या नह ?” िबनती बहत ग भीरता से बोली
“ य ?”
“इसिलए िक मने सुना था, देवताओं क पलक कभी नह िगरत ”
च दर एक फ क हँ सी हँ सकर रह गया
“नह , आप मजाक न समझ मने अपनी िजंदगी म िजतने लोग देखे, उनम आप-जैसा कोई भी
नह िमला िकतने ऊँचे ह आप, िकतना िवशाल दय है आपका! दीदी िकतनी भा यशाली
ह ”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया “जाओ, फोटो ले आओ ” उसने कहा, “आज ही िदखा दँू
जाओ, खाना भी ले आओ अब घर जाकर या करना है ”
पापा को खाना िखलाने के बाद च दर और सुधा खाने बैठे महरािजन चली गयी थी
इसिलए िबनती सक-सककर रोटी दे रही थी सुधा एक रे शमी सिनया पहने चौके के अ दर
खा रही थी और च दर चौके के बाहर सुबह के क चे खाने म डॉ टर शु ला बहत छूत-छात
का िवचार रखते थे
“देखो, आज िबनती ने रोटी बनायी है तो िकतनी मीठी लग रही है, एक तम ु बनाती हो िक
मालम ू ही नह पड़ता रोटी है िक सो ता!” च दर ने सुधा को िचढ़ाते हए कहा
सुधा ने हँ सकर कहा, “हम िबनती से लड़ाने क कोिशश कर रहे हो! िबनती क हमसे िजंदगी-
भर लड़ाई नह हो सकती!”
“अरे हम सब समझते ह इनक बात!” िबनती ने रोटी पटकते हए कहा और जब सुधा िसर
झकु ाकर खाने लगी तो िबनती ने आँख के इशारे से पछ ू ा, “कब िदखाओगे?”
च दर ने िसर िहलाया और िफर सुधा से बोला, “तम ु उ ह िच ी िलखोगी?”
“िक ह?”
“कैलाश िम ा को, वही बरे ली वाले? उ ह ने हम खत िलखा था उसम तु ह णाम िलखा था ”
च दर बोला
“नह , खत-वत नह िलखते उ ह एक दफे बुलाओ तो यहाँ ”
“हाँ, बुलाएँ गे अब महीने -दो महीने बाद, तब तमु से खबू प रचय करा दगे और तु ह उसक पाट
म भी भरती करा दगे ” च दर ने कहा
“ या? हम मजाक नह करते? हम सचमच ु समाजवादी दल म शािमल ह गे ” सुधा बोली, “अब
हम सोचते ह कुछ काम करना चािहए, बहत खे ल-कूद िलये, बचपन िनभा िलया ”
“उ ह ने अपना िच भे जा है देखोगी?” च दर ने जेब म हाथ डालते हए पछ ू ा
“कहाँ?” सुधा ने बहत उ सुकता से पछ ू ा, “िनकालो देख ”
“पहले बताओ, हम या इनाम दोगी? बहत मिु कल से भे जा उ ह ने िच !” च दर ने कहा
“इनाम दगे इ ह!” सुधा बोली और झट से झपटकर िच छीन िलया
“अरे , छू िलया चौके म से?” िबनती ने दबी जबान से कहा
सुधा ने थाली छोड़ दी अब छू गयी थी वह; अब खा नह सकती थी
“अ छी फोटो देखी दीदी सामने क थाली छूट गयी!” िबनती ने कहा
14

सुधा ने हाथ धोकर आँचल के छोर से पकडक़र फोटो देखी और बोली, “च दर, सचमच ु देखो!
िकतने अ छे लग रहे ह िकतना तेज है चे हरे पर, और माथा देखो िकतना ऊँचा है ” सुधा
फोटो देखती हई बोली
“अ छी लगी फोटो? पस द है?” च दर ने बहत ग भीरता से पछ ू ा
“हाँ, हाँ, और समाजवािदय क तरह नह लगते ये ” सुधा बोली
“अ छा सुधा, यहाँ आओ ” और च दर के साथ सुधा अपने कमरे म जाकर पलँग पर बैठ गयी
च दर उसके पास बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ म लेकर उसक अँगठ ू ी घुमाते हए बोला,
“सुधा, एक बात कह, मानोगी?”
“ या?” सुधा ने बहत दुलार और भोलेपन से पछ ू ा
“पहले बता दो िक मानोगी?” च दर ने उसक अँगठ ू ी क ओर एकटक देखते हए कहा
“िफर, हमने कभी कोई बात तु हारी टाली है! या बात है?”
“तमु मानोगी चाहे कुछ भी हो?” च दर ने पछ ू ा
“हाँ-हाँ, कह तो िदया अब कौन-सी तु हारी ऐसी बात है जो तु हारी सुधा नह मान सकती!”
आँख म, वाणी म, अंग-अंग से सुधा के आ मसमपण छलक रहा था
“िफर अपनी बात पर कायम रहना, सुधा! देखो!” उसने सुधा क उँ गिलयाँ अपनी पलक से
लगाते हए कहा, “सुधी मेरी! तम ु उस लड़के से याह कर लो!”
“ या?” सुधा चोट खायी नािगन क तरह तड़प उठी-”इस लड़के से? यही शकल है इसक
हमसे याह करने क ! च दर, हम ऐसा मजाक नापस द करते ह, समझे िक नह ! इसिलए बड़े
यार से बुला लाये, बड़ा दुलार कर रहे थे!”
“तम ु अभी वायदा कर चुक हो!” च दर ने बहत आिजजी से कहा
“वायदा कैसा? तम ु कब अपने वायदे िनभाते हो? और िफर यह धोखा देकर वायदा कराना या?
िह मत थी तो साफ-साफ कहते हमसे! हमारे मन म आता सो कहते हम इस तरह से बाँध कर
य बिलदान चढ़ा रहे हो!” और सुधा मारे गु से के रोने लगी
च दर त ध उसने इस य क क पना ही नह क थी वह ण भर खड़ा रहा वह या
कहे सुधा से, कुछ समझ ही म नह आता था वह गया और रोती हई सुधा के कंधे पर हाथ रख
िदया “हटो उधर!” सुधा ने बहत खाई से हाथ हटा िदया और आँचल से िसर ढकती हई
बोली, “म याह नह क ँ गी, कभी नह क ँ गी िकसी से नह क ँ गी तम ु सभी लोग ने
िमलकर मझ ु े मार डालने क ठानी है तो म अभी िसर पटककर मर जाऊँगी ” और मारे तैश
के सचमच ु सुधा ने अपना िसर दीवार पर पटक िदया “अरे !” दौडक़र च दर, ने सुधा को पकड़
िलया मगर सुधा ने गरजकर कहा, “दरू हटो च दर, छूना मत मझ ु े ” और जैसे उसम जाने
कहाँ क ताकत आ गयी है, उसने अपने को छुड़ा िलया
च दर ने दबी जबान से कहा, “िछः सुधा! यह तम ु से उ मीद नह थी मझ ु े यह भावुकता तु ह
शोभा नह देती बात कैसी कर रही हो तम ु ! हम वही च दर ह न!”
“हाँ, वही च दर हो! और तभी तो! इस सारी दुिनया म तु ह एक रह गये हो मझ ु े फोटो िदखाकर
पस द कराने को ” सुधा िससक-िससककर रोने लगी-”पापा ने भी धोखा दे िदया हम पापा
से यह उ मीद नह थी ”
“पगली! कौन अपनी लड़क को हमेशा अपने पास रख पाया है!” च दर बोला
“तम ु चुप रहो, च दर हम तु हारी बोली जहर लगती है 'सुधा, यह फोटो तु ह पस द है?'
तु हारी जबान िहली कैसे? शरम नह आयी तु ह हम िकतना मानते थे पापा को, िकतना
मानते थे तु ह? हम यह नह मालम ू था िक तम ु लोग ऐसा करोगे ” थोड़ी देर चुपचाप िससकती
रही सुधा और िफर धधककर उठी-”कहाँ है वह फोटो? लाओ, अभी म जाऊँगी पापा के पास! म
कहँ गी उनसे हाँ, म इस लड़के को पस द करती हँ वह बहत अ छा है, बहत सु दर है
लेिकन म उससे शादी नह क ँ गी, म िकसी से शादी नह क ँ गी! झठ ू ी बात है...” और उठकर
पापा के कमरे क ओर जाने लगी
“खबरदार, जो कदम बढ़ाया!” च दर ने डाँटकर कहा, “बैठो इधर ”
“म नह कँ ू गी!” सुधा ने अकडक़र कहा
“नह कोगी?”
“नह कँ ू गी ”
और च दर का हाथ तैश म उठा और एक भरपरू तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा सुधा के गाल पर
नीली उँ गिलयाँ उपट आय वह त ध! जैसे प थर बन गयी हो आँख म आँसू जम गये
पलक म िनगाह जम गय होठ म आवाज जम गय और सीने म िससिकयाँ जम गय
च दर ने एक बार सुधा क ओर देखा और कुस पर जैसे िगर पड़ा और िसर पटककर बैठ गया
सुधा कुस के पास जमीन पर बैठ गयी च दर के घुटन पर िसर रख िदया बड़ी भारी
आवाज म बोली, “च दर, देख तु हारे हाथ म चोट तो नह आयी ”
च दर ने सुधा क ओर देखा, एक ऐसी िनगाह से िजसम क महँु फाड़कर जमहु ाई ले रही थी
सुधा एकाएक िफर िससक पड़ी और च दर के पैर पर िसर रखकर बोली, “च दर, सचमच ु मझु े
अपने आ य से िनकालकर ही मानोगे! च दर, मजाक क बात दस ू री है, िजंदगी म तो दु मनी
मत िनकाला करो ”
च दर एक गहरी साँस लेकर चुप हो गया और िसर थामकर बैठ गया पाँच िमनट बीत
गये कमरे म स नाटा, गहन खामोशी सुधा च दर के पाँव को छाती से िचपकाये सन ू ी-
सनू ी िनगाह से जाने कुछ देख रही थी दीवार के पार, िदशाओं के पार, ि ितज से परे ...दीवार
पर घड़ी चल रही थी िटक...िटक...
च दर ने िसर उठाया और कहा, “सुधा, हमारी तरफ देखो-” सुधा ने िसर ऊपर उठाया च दर
बोला, “सुधा, तम ु हम जाने या समझ रही होगी, लेिकन अगर तम ु समझ पाती िक म या
सोचता हँ ! या समझता हँ ” सुधा कुछ नह बोली, च दर कहता गया, “म तु हारे मन को
समझता हँ , सुधा! तु हारे मन ने जो तम
ु से नह कहा, वह मझ ु से कह िदया था-लेिकन सुधा, हम
दोन एक-दस ू रे क िजंदगी म या इसीिलए आये िक एक-दस ू रे को कमजोर बना द या हम
लोग ने वग क ऊँचाइय पर साथ बैठकर आ मा का संगीत सुना िसफ इसीिलए िक उसे अपने
याह क शहनाई म बदल द?”
“गलत मत समझो च दर, म गेसू नह िक अ तर से याह के सपने देखँ ू और न तु ह अ तर
हो, च दर! म जानती हँ िक म तु हारे िलए राखी के सत ू से भी यादा पिव रही हँ लेिकन म
जैसी हँ , मझ ु े वैसी ही य नह रहने देते! म िकसी से शादी नह क ँ गी म पापा के पास
रहँ गी शादी को मेरा मन नह कहता, म य क ँ ? तम ु गु सा मत हो, दुखी मत हो, तम ु
आ ा दोगे तो म कुछ भी कर सकती हँ , लेिकन ह या करने से पहले यह तो देख लो िक मेरे
दय म या है?” सुधा ने च दर के पाँव को अपने दय से और भी दबाकर कहा
“सुधा, तम ु एक बात सोचो अगर तम ु सबका यार बटोरती चलती हो तो कुछ तु हारी
िज मेदारी है या नह ? पापा ने आज तक तु ह िकस तरह पाला अब या तु हारा यह फज है
िक तम ु उनक बात को ठुकराओ? और एक बात और सोचो-हम पर कुछ िव ास करके ही
उ ह ने कहा है िक म तम ु से फोटो पस द कराऊँ? अगर अब तम ु इनकार कर देती हो तो एक
तरफ पापा को तम ु से ध का पहँ चेगा, दस ू री ओर मेरे ित उनके िव ास को िकतनी चोट
लगेगी हम उ ह या महँु िदखाने लायक रहगे भला! तो तम ु या चाहती हो? महज अपनी
थोड़ी-सी भावुकता के पीछे तम ु सभी क िजंदगी चौपट करने के िलए तैयार हो? यह तु ह शोभा
नह देता है या कहगे पापा, िक च दर ने अभी तक तु ह यही िसखाया था? हम लोग या
कहगे? बताओ आज तम ु शादी न करो उसके बाद पापा हमेशा के िलए दु:खी रहा कर और
दुिनया हम कहा करे , तब तु ह अ छा लगेगा?”
“नह ” सुधा ने भराये हए गले से कहा
“तब, और िफर एक बात और है न सुधी! सोने क पहचान आग म होती है न! लपट म अगर
उसम और िनखार आये तभी वह स चा सोना है सचमच ु मने तु हारे यि व को बनाया है
या तम ु ने मेरे यि व को बनाया है, यह तो तभी मालम ू होगा जबिक हम लोग किठनाइय से,
वेदनाओं से, संघष से खे ल और बाद म िवजयी ह और तभी मालम ू होगा िक सचमचु मने तु हारे
जीवन म काश और बल िदया था अगर सदा तम ु मेरी बाँह क सीमा म रह और म तु हारी
पलक क छाँव म रहा और बाहर के संघष से हम लोग डरते रहे तो कायरता है और मझ ु े
अ छा लगेगा िक दुिनया कहे िक मेरी सुधा, िजस पर मझ ु े नाज था, वह कायर है? बोलो तम ु
कायर कहलाना पस द करोगी?”
“हाँ!” सुधा ने िफर च दर के घुटन म महँु िछपा िलया
“ या? यह म सुधा के महँु से सुन रहा हँ ! िछः पगली! अभी तक तेरी िनगाह ने मेरे ाण म
अमतृ भरा है और मेरी साँस ने तेरे पंख म तफ ू ान क तेजी और हम-तु ह तो आज खुश होना
चािहए िक अब सामने जो रा ता है उसम हम लोग को यह िस करने का अवसर िमलेगा िक
सचमच ु हम लोग ने एक-दस ू रे को ऊँचाई और पिव ता दी है मने आज तक तु हारी सहायता
पर िव ास िकया था आज या तम ु मेरा िव ास तोड़ दोगी? सुधा, इतनी ू र य हो रही हो
आज तम ु ? तमु साधारण लड़क नह हो तम ु ुवतारा से यादा काशमान हो तम ु यह य
चाहती हो िक दुिनया कहे , सुधा भी एक साधारण-सी भावुक लड़क थी और आज म अपने कान
से सुनँ !ू बोलो सुधी?” च दर ने सुधा के िसर पर हाथ रखकर कहा
सुधा ने आँख उठाय , बड़ी कातर िनगाह से च दर क ओर देखा और िसर झक ु ा िलया सुधा
के िसर पर हाथ फेरते हए च दर बोला-
“सुधा, म जानता हँ म तम ु पर शायद बहत स ती कर रहा हँ , लेिकन तु हारे िसवा और कौन है
मेरा? बताओ तु ह पर अपना अिधकार भी आजमा सकता हँ िव ास करो मझ ु पर सुधा,
जीवन म अलगाव, दरू ी, दुख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है भावुकता और सुख
हम ऊँचे नह उठाते बताओ सुधा, तु ह या पस द है? म ऊँचा उठूँ तु हारे िव ास के सहारे ,
तमु ऊँची उठो मेरे िव ास के सहारे , इससे अ छा और या है सुधा! चाहो तो मेरे जीवन को एक
पिव साधन बना दो, चाहो तो एक िछछली अनुभिू त ”
सुधा ने एक गहरी साँस ली, ण-भर घड़ी क ओर देखा और बोली, “इतनी ज दी या है अभी,
च दर? तम ु जो कहोगे म कर लँग ू ी!” और िफर वह िससकने लगी-”लेिकन इतनी ज दी या
हैï? अभी मझु े पढ़ लेने दो!”
“नह , इतना अ छा लड़का िफर िमलेगा नह और इस लड़के के साथ तम ु वहाँ पढ़ भी सकती
हो म जानता हँ उसे वह देवताओं-सा िन छल है बोलो, म पापा से कह दँू िक तु ह पस द
है?”
सुधा कुछ नह बोली
“मौन का मतलब हाँ है न?” च दर ने पछ ू ा
सुधा ने कुछ नह कहा झक ु कर च दर के पैर को अपने होठ से छू िलया और पलक से दो
आँसू चू पड़े च दर ने सुधा को उठा िलया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, “ई र
तु हारी आ मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!” उसने एक गहरी साँस लेकर कहा, “मझ ु े तम
ु पर
गव है,” और फोटो उठाकर बाहर चलने लगा
“कहाँ जा रहे हो! जाओ मत!” सुधा ने उसका कुरता पकडक़र बड़ी आिजजी से कहा, “मेरे पास
रहो, तबीयत घबराती है?”
च दर पलँग पर बैठ गया सुधा तिकये पर िसर रखकर लेट गयी और फटी-फटी पथराई आँख
से जाने या देखने लगी च दर भी चुप था, िब कुल खामोश कमरे म िसफ घड़ी चल रही
थी, िटक...िटक...
थोड़ी देर बाद सुधा ने च दर के पैर को अपने तिकये के पास ख च िलया और उसके तलव पर
होठ रखकर उसम महँु िछपाकर चुपचाप लेटी रही िबनती आयी सुधा िहली भी नह ! च दर
ने देखा वह सो गयी थी िबनती ने फोटो उठाकर इशारे से पछ ू ा, “मंजरू ?” “हाँ ” िबनती ने
बजाय खुश होने के च दर क ओर देखकर िसर झक ु ा िलया और चली गयी
सुधा सो रही थी और च दर के तलव म उसक नरम वाँरी साँस गज ँ ू रही थ च दर बैठा रहा
चुपचाप उसक िह मत न पड़ी िक वह िहले और सुधा क न द तोड़ दे थोड़ी देर बाद सुधा ने
करवट बदली तो वह उठकर आँगन के सोफे पर जाकर लेट रहा और जाने या सोचता रहा
जब उठा तो देखा धपू ढल गयी है और सुधा उसके िसरहाने बैठी उसे पंखा झल रही है उसने
सुधा क ओर एक अपराधी जैसी कातर िनगाह से देखा और सुधा ने बहत दद से आँख फेर ल
और ऊँचाइय पर आिखरी साँस लेती हई मरणास न धपू क ओर देखने लगी
च दर उठा और सोचने लगा तो सुधा बोली, “कल आओगे िक नह ?”
“ य नह आऊँगा?” च दर बोला
“मने सोचा शायद अभी से दरू होना चाहते हो ” एक गहरी साँस लेकर सुधा बोली और पंखे क
ओट म आँसू प छ िलये
15

च दर दस ू रे िदन सुबह नह गया उसक थीिसस का बहत-सा भाग टाइप होकर आ गया था
और उसे बैठा वह सुधार रहा था लेिकन साथ ही पता नह य उसका साहस नह हो रहा था
वहाँ जाने का लेिकन मन म एक िच ता थी सुधा क वह कल से िब कुल मरु झा गयी थी
च दर को अपने ऊपर कभी-कभी ोध आता था लेिकन वह जानता था िक यह तकलीफ का
ही रा ता ठीक रा ता है वह अपनी िजंदगी म स तेपन के िखलाफ था लेिकन उसके िलए
सुधा क पलक का एक आँसू भी देवता क तरह था और सुधा के फूल -जैसे चे हरे पर उदासी क
एक रे खा भी उसे पागल बना देती थी सुबह पहले तो वह नह गया, बाद म वयं उसे पछतावा
होने लगा और वह अधीरता से पाँच बजने का इ तजार करने लगा
पाँच बजे, और वह साइिकल लेकर पहँ चा देखा, सुधा और िबनती दोन नह ह अकेले
डॉ टर शु ला अपने कमरे म बैठे ह च दर गया “आओ, सुधा ने तम ु से कह िदया, उसे
पस द है?” डॉ टर शु ला ने पछ ू ा
“हाँ, उसे कोई एतराज नह ” च दर ने कहा
“म पहले से जानता था सुधा मेरी इतनी अ छी है, इतनी सुशील है िक वह मेरी इ छा का
उ लंघन तो कर ही नह सकती लेिकन च दर, कल से उसने खाना-पीना छोड़ िदया है
बताओ, इससे या फायदा? मेरे बस म या है? म उसे हमेशा तो रख नह सकता लेिकन,
लेिकन आज सुबह खाते व वह बैठी भी नह मेरे पास बताओ...” उनका गला भर
आया-”बताओ, मेरा या कसरू है?”
च दर चुप था
“कहाँ है सुधा?” च दर ने पछ
ू ा
“गैरेज म मोटर ठीक कर रही है म इतना मना िकया िक धपू म तप जाओगी, लू लग जाएगी-
लेिकन मानी ही नह ! बताओ, इस झ लाहट से मझ ु े कैसा लगता है?” व ृ िपता के कातर वर
म डॉ टर ने कहा, “जाओ च दर, तु ह समझाओ! म या कहँ ?”
च दर उठकर गया मोटर गैरेज म काफ गरमी थी, लेिकन िबनती वह एक चटाई िबछाये पड़ी
सो रही थी और सुधा इंजन का कवर उठाये मोटर साफ करने म लगी हई थी िबनती बेहोश सो
रही थी तिकया चटाई से हटकर जमीन पर चला गया था और चोटी फश पर सोयी हई नािगन
क तरह पड़ी थी िबनती का एक हाथ छाती पर था और एक हाथ जमीन पर आँचल, आँचल
न रहकर चादर बन गया था च दर के जाते ही सुधा ने महँु फेरकर देखा-”च दर, आओ ”
ीण मसु कराहट उसके होठ पर दौड़ गयी लेिकन इस मस ु कराहट म उ लास लुट चुका था,
रे खाएँ बाक थ सहसा उसने मड ु क़र देखा-”िबनती! अरे , कैसे घोड़ा बेचकर सो रही है! उठ!
च दर आये ह!” िबनती ने आँख खोल , च दर क ओर देखा, लेटे-ही-लेटे नम ते िकया और
आँचल सँभालकर िफर करवट बदलकर सो गयी
“बहत सोती है क ब त!” सुधा बोली, “इतना कहा इससे कमरे म जाकर पंखे म सो! लेिकन
नह , जहाँ दीदी रहे गी, वह यह भी रहे गी म गैरेज म हँ तो यह कैसे कमरे म रहे वह मरे गी
जहाँ म म ँ गी ”
“तो तु ह य गैरेज म थ ! ऐसी या ज रत थी अभी ठीक करने क !” च दर ने कहा, लेिकन
कोिशश करने पर भी सुधा को आज डाँट नह पा रहा था पता नह कहाँ पर या टूट गया
था
“नह च दर, तबीयत ही नह लग रही थी या करती! ोिसया उठायी, वह भी रख िदया
किवता उठायी, वह भी रख दी किवता वगैरह म तबीयत नह लगी मन म आया, कोई कठोर
काम हो, कोई नीरस काम हो लोहे -ल कड़, पीतल-फौलाद का, तो मन लग जाए तो चली
आयी मोटर ठीक करने ”
“ य , किवता म भी तबीयत नह लगी? ता जुब है, गेसू के साथ बैठकर तम ु तो किवता म घंट
गजु ार देती थ !” च दर बोला
“उन िदन शायद िकसी को यार करती रही होऊँ तभी किवता म मन लगता था!” सुधा उस
िदन क पुरानी बात याद करके बहत उदास हँ सी हँ सी-”अब यार नह करती होऊँगी, अब
तबीयत नह लगती बड़ी फ क , बड़ी बेजार, बड़ी बनावटी लगती ह ये किवताएँ , मन के दद
के आगे सभी फ क ह ” और िफर वह उ ह पुरज म डूब गयी च दर भी चुपचाप मोटर क
िखडक़ से िटककर खड़ा हो गया और चुपचाप कुछ सोचने लगा
सुधा ने िबना िसर उठाये, झकु े -ही-झक
ु े , एक हाथ से एक तार लपे टते हए कहा-
“च दर, तु हारे िम का प रवार आ रहा है, इसी मंगल को तैयारी करो ज दी ”
“कौन प रवार, सुधा?”
“हमारे जेठ और सास आ रही ह, इसी बैसाखी को हम देखने उ ह ने ितिथ बदल दी है तो
अब छह ही िदन रह गये ह ”
च दर कुछ नह बोला थोड़ी देर बाद सुधा िफर बोली-
“अगर उिचत समझो तो कुछ पाउडर- म ले आना, लगाकर जरा गोरे हो जाएँ तो शायद पस द
आ जाएँ ! य , ठीक है न!” सुधा ने बड़ी िविच -सी हँ सी हँ स दी और िसर उठाकर च दर क
ओर देखा च दर चुप था लेिकन उसक आँख म अजीब-सी पीड़ा थी और उसके माथे पर बहत
ही क ण छाँह
सुधा ने कवर िगरा िदया और च दर के पास जाकर बोली, “ य च दर, बुरा मान गये हमारी
बात का? या कर च दर, कल से हम मजाक करना भी भल ू गये मजाक करते ह तो यं य
बन जाता है लेिकन हम तम ु को कुछ कह नह रहे थे, च दर उदास न होओ ” बड़े ही
दुलार से सुधा बोली, “अ छा, हम कुछ नह कहगे ” और उसने अपना आँचल सँभालने के िलए
हाथ उठाया हाथ म काल च लग गयी थी च दर समझा मेरे क धे पर हाथ रख रही है
सुधा वह अलग हटा तो सुधा अपने हाथ देखकर बोली, “घबराओ न देवता, तु हारी उ वल
साधना म कािलख नह लगाऊँगी अपने आँचल म प छ लँग ू ी ” और सचमच ु आँचल म हाथ
प छकर बोली, “चलो, अ दर चल, उठ िबनती! िबलैया कह क !”
च दर को सोफे पर िबठाकर उसी क बगल म सुधा बैठ गयी और अँगिु लयाँ तोड़ते हए कहा,
“च दर, िसर म बहत दद हो रहा है मेरे ”
“िसर म दद नह होगा तो या? इतनी तिपश म मोटर बना रही थ ! पापा िकतने दुखी हो रहे थे
आज? तु ह इस तरह करना चािहए? िफर फायदा या हआ? न ऐसे दु:खी िकया, वैसे दु:खी कर
िलया बात तो वही रही न? तारीफ तो तब थी िक तम ु अपनी दुिनया म अपने हाथ से आग लगा
देती और चे हरे पर िशकन न आती अभी तक दुिनया क सभी ऊँचाई समेटकर भी बाहर से
वही बचपन कायम रखा था तम ु ने , अब दुिनया का सारा सुख अपने हाथ से लुटाने पर भी वही
बचपन, वही उ लास य नह कायम रखती!”
“बचपन!” सुधा हँ सी-”बचपन अब ख म हो गया, च दर! अब म बड़ी हो गयी ”
“बड़ी हो गयी! कब से?”
“कल दोपहर से, च दर!”
च दर चुप थोड़ी देर बाद िफर वयं सुधा ही बोली, “नह च दर, दो-तीन िदन म ठीक हो
जाऊँगी! तम ु घबराओ मत म म ृ यु-शै या पर भी होऊँगी तो तु हारे आदेश पर हँ स सकती हँ ”
और िफर सुधा गम ु सुम बैठ गयी च दर चुपचाप सोचता रहा और बोला, “सुधी! मेरा तु ह कुछ
भी यान नह है?”
“और िकसका है, च दर! तु हारा यान न होता तो देखती मझ ु े कौन झक
ु ा सकता था आज से
साल पहले जब म पापा के पास आयी थी तो मने कभी न सोचा था िक कोई भी होगा िजसके
सामने म इतना झक ु जाऊँगी ...अ छा च दर, मन बहत उचट रहा है! चलो, कह घम ू आएँ !
चलोगे?”
“चलो!” च दर ने कहा
“जाएँ िबनती को जगा लाएँ वह कमब त अभी पड़ी सो रही है ” सुधा उठकर चली गयी
थोड़ी देर म िबनती आँख मलते बगल म चटाई दाबे आयी और िफर बरामदे म बैठकर ऊँघने
लगी पीछे -पीछे सुधा आयी और चोटी ख चकर बोली, “चल तैयार हो! चलगे घम ू ने ”
थोड़ी देर म तैयार हो गये सुधा ने जाकर मोटर िनकाली और बोली च दर से-”तम ु चलाओगे
या हम? आज हम चलाएँ चलो, िकसी पे ड़ से लड़ा द मोटर आज!”
“अरे बाप रे ” पीछे िबनती िच लायी, “तब हम नह जाएँ गे ”
सुधा और च दर दोन ने मड ु क़र उसे देखा और उसक घबराहट देखकर दंग रह गये
“नह मरे गी नह त!ू ” सुधा ने कहा और आगे बैठ गयी
“िबनती, तू पीछे बैठेगी?” सुधा ने पछ ू ा
“न भइया, मोटर चलेगी तो म िगर जाऊँगी ”
“अरे कोई मोटर के पीछे बैठने के िलए थोड़ी कह रही हँ पीछे क सीट पर बैठेगी?” सुधा ने
पछू ा
“ओ! म समझी तम ु कह रही हो पीछे बैठने के िलए जैसी ब घी म साईस बैठते ह! हम तु हारे पास
बैठगे ” िबनती ने मचलकर कहा
“अब तेरा बचपन इठला रहा है, िब ली कह क , चल आ मेरे पास!” िबनती मस ु कराती हई
जाकर सुधा के बगल म बैठ गयी सुधा ने उसे दुलार से पास ख च िलया च दर पीछे बैठा तो
सुधा बोली, “अगर कुछ हज न समझो तो तम ु भी आगे आ जाओ या दरू ी रखनी हो तो पीछे ही
बैठो ”
च दर आगे बैठ गया बीच म िबनती, इधर च दर उधर सुधा
मोटर चली तो िबनती चीखी, “अरे मेरे मा टर साहब!”
च दर ने देखा, िबस रया चला जा रहा था, “आज नह पढ़गे...” च दर ने िच लाकर कहा
सुधा ने मोटर रोक नह
च दर को बेहद अचरज हआ जब उसने देखा िक मोटर प मी के बँगले पर क “अरे यहाँ
य ?” च दर ने पछ ू ा
“य ही ” सुधा ने कहा “आज मन हआ िक िमस प मी से अँगरे जी किवता सुन ”
“ य , अभी तो तम ु कह रही थ िक किवता पढऩे म आज तु हारा मन ही नह लग रहा है!”
“कुछ कहो मत च दर, आज मझ ु े जो मन म आये, कर लेने दो मेरा िसर बेहद दद कर रहा है
और म कुछ समझ नह पाती या क ँ च दर तम ु ने अ छा नह िकया?”
च दर कुछ नह बोला चुपचाप आगे चल िदया सुधा के पीछे -पीछे कुछ संकोच करती हई-सी
िबनती आ रही थी
प मी बैठी कुछ िलख रही थी उसने उठकर सब का वागत िकया वह कोच पर बैठ गयी
दसू री पर सुधा, च दर और िबनती सुधा ने िबनती का प रचय प मी से कराया और प मी ने
िबनती से हाथ िमलाया तो िबनती जाने य च दर क ओर देखकर हँ स पड़ी शायद उस िदन
क घटना क याद म
सहसा सुधा को जाने या खयाल आ गया, िबनती क शरारत-भरी हँ सी देखकर िक उसने
फौरन कहा च दर से-”च दर, तम ु प मी के पास बैठो, दो िम को साथ बैठना चािहए ”
“हाँ, और खास तौर से जब वह कभी-कभी िमलते ह ”-िबनती ने मस ु कराते हए जोड़ िदया
प मी ने मजाक समझ िलया और िबना शरमाये बोली-
“हम लोग को म य थ क ज रत नह , ध यवाद! आओ च दर, यहाँ आओ ” प मी ने च दर
को बुलाया च दर उठकर प मी के पास बैठ गया थोड़ी देर तक बात होती रह मालम ू
हआ, बट अपने एक दो त के साथ तराई के पास िशकार खे लने गया है आजकल वह िदल
क श ल का एक पाननुमा द ती का टुकड़ा काटकर उसम गोली मारा करता है और जब िकसी
िचिड़या वगैरह को मारता है तो िशकार को उठाकर देखता है िक गोली दय म लगी है या
नह वा य उसका सुधर रहा है सुधा कोच पर िसर टे के उदास बैठी थी सहसा प मी ने
िबनती से कहा, “आपको पहली दफे देखा मने आप बात य नह करत ?”
िबनती ने झपकर महँु झक ु ा िलया बड़ी िविच लड़क थी हमेशा चुप रहती थी और कभी-
कभी बोलने क लहर आती तो गटु रगँ ू करके घर गज ँु ा देती थी और िजन िदन चुप रहती थी उन
िदन यादातर आँख क िनगाह, कपोल क आशनाई या अधर क मस ु कान के ारा बात
करती थी प मी बोली, “आपको फूल से शौक है?”
“हाँ, हाँ” िबनती िसर िहलाकर बोली
“च दर, इ ह जाकर गल ु ाब िदखा लाओ इधर िफर खबू िखले ह!”
िबनती ने सुधा से कहा, “चलो दीदी ” और च दर के साथ बढ़ गयी
फूल के बीच म पहँ चकर, िबनती ने च दर से कहा, “सुिनए, दीदी को तो जाने या होता जा
रहा है बताइए, ऐसे या होगा?”
“म खुद परे शान हँ , िबनती! लेिकन पता नह कहाँ मन म कौन-सा िव ास है जो कहता है िक
नह , सुधा अपने को सँभालना जानती है, अपने मन को स तिु लत करना जानती है और सुधा
सचमच ु ही याग म यादा गौरवमयी हो सकती है ” इसके बाद च दर ने बात टाल दी वह
िबनती से यादा बात करना नह चाहता था, सुधा के बारे म
िबनती ने च दर को मौन देखा तो बोली, “एक बात कह आपसे? मािनएगा!”
“ या?”
“अगर हमसे कभी कोई अनिधकार चे ा हो जाए तो मा कर दीिजएगा, लेिकन आप और दीदी
दोन मझ ु े इतना चाहते ह िक हम समझ नह पाते िक यवहार को कहाँ सीिमत रखँ!ू ” िबनती
ने िसर झक ु ाये एक फूल को नोचते हए कहा
च दर ने उसक ओर देखा, ण-भर चुप रहा, िफर बोला, “नह िबनती, जब सुधा तु ह इतना
चाहती है तो तम ु हमेशा मझ
ु पर उतना ही अिधकार समझना िजतना सुधा पर ”
उधर प मी ने च दर के जाते ही सुधा से कहा, “ या आपक तबीयत खराब है?”
“नह तो ”
“आज आप बहत पीली नजर आती ह!” प मी ने पछ ू ा
“हाँ, कुछ मन नह लग रहा था तो म आपके पास चली आयी िक आपसे कुछ किवताएँ सुनँ ,ू
अँगरे जी क दोपहर को मने किवता पढऩे क कोिशश क तो तबीयत नह लगी और शाम को
लगा िक अगर किवता नह सुनँ ग ू ी तो िसर फट जाएगा ” सुधा बोली
“आपके मन म कुछ संघष मालम ू पड़ता है, या शायद...एक बात पछू ू ँ आपसे?”
“ या, पिू छए?”
“आप बुरा तो नह मानगी?”
“नह , बुरा य मानँ ग ू ी?”
“आप कपरू को यार तो नह करत ? उससे िववाह तो नह करना चाहत ?”
“िछः, िमस प मी, आप कैसी बात कर रही ह उसका मेरे जीवन म कोई ऐसा थान नह
िछः, आपक बात सुनकर शरीर म काँटे उठ आते ह म और च दर से िववाह क ँ गी! इतनी
िघनौनी बात तो मने कभी नह सुनी!”
“माफ क िजएगा, मने य ही पछ ू ा था या च दर िकसी को यार करता है?”
“नह , िब कुल नह !” सुधा ने उतने ही िव ास से कहा िजतने िव ास से उसने अपने बारे म
कहा था
इतने म च दर और िबनती आ गये सुधा बोली अधीरता से, “मेरा एक-एक ण कटना
मिु कल हो रहा है, आप शु क िजए कुछ गाना!”
“कपरू , या सुनोगे?” प मी ने कहा
“अपने मन से सुनाओ! चलो, सुधा ने कहा तो किवता सुनने को िमली!”
प मी ने आलमारी से एक िकताब उठायी और एक किवता गाना शु क -अपनी हे यर िपन
िनकालकर मेज पर रख दी और उसके बाल मचलने लगे च दर के क धे से वह िटककर बैठ
गयी और िकताब च दर क गोद म रख दी िबनती मस ु करायी तो सुधा ने आँख के इशारे से
मना कर िदया प मी ने गाना शु िकया, लेडी नाटन का एक गीत-
म तु ह यार नह करती हँ न! म तु ह यार नह करती हँ
िफर भी म उदास रहती हँ जब तम ु पास नह होते हो!
और म उस चमकदार नीले आकाश से भी ई या करती हँ
िजसके नीचे तम ु खड़े होगे और िजसके िसतारे तु ह देख सकते ह...”
च दर ने प मी क ओर देखा सुधा ने अपने ही व म अपना िसर छुपा िलया प मी ने एक
पद समा कर एक गहरी साँस ली और िफर शु िकया-
“म तु ह यार नह करती हँ -िफर भी तु हारी बोलती हई आँख;
िजनक नीिलमा म गहराई, चमक और अिभ यि है-
मेरी िनिनमेष पलक और जागते अधराि के आकाश म नाच जाती ह!
और िकसी क आँख के बारे म ऐसा नह होता...”
सुधा ने िबनती को अपने पास ख च िलया और उसके क धे पर िसर टे ककर बैठ गयी प मी
गाती गयी-
“न मझ ु े मालम
ू है िक म तु ह यार नह करती हँ , लेिकन िफर भी,
कोई शायद मेरे साफ िदल पर िव ास नह करे गा
और अकसर मने देखा है, िक लोग मझ ु े देखकर मसु करा देते ह
य िक म उधर एकटक देखती हँ , िजधर से तम ु आया करते हो!”
गीत का वर बड़े वाभािवक ढंग से उठा, लहराने लगा, काँप उठा और िफर धीरे -धीरे एक क ण
िससकती हई लय म डूब गया गीत ख म हआ तो सुधा का िसर िबनती के कंधे पर था और
च दर का हाथ प मी के क धे पर च दर थोड़ी देर सुधा क ओर देखता रहा िफर प मी क
एक ह क सुनहरी लट से खे लते हए बोला, “प मी, तम ु बहत अ छा गाती हो!”
“अ छा? आ यजनक! कहो च दर, प मी इतनी अ छी है यह तम ु ने कभी नह बताया था, हम
िफर कभी सुनाइएगा?”
“हाँ, हाँ िमस शु ला! काश िक बजाय लेडी नाटन के यह गीत आपने िलखा होता!”
सुधा घबरा गयी, “चलो च दर, चल अब! चलो ” उसने च दर का हाथ पकडक़र ख च
िलया-”िमस प मी, अब िफर कभी आएँ गे आज मेरा मन ठीक नह है ”
16

च दर ाइव करने लगा िबनती बोली, “हम आगे हवा लगती है, हम पीछे बैठगे ”
कार चली तो सुधा बोली, “अब मन कुछ शा त है, च दर इसके पहले तो मन म कैसे तफ ू ान
आपस म लड़ रहे थे, कुछ समझ म नह आता अब तफ ू ान बीत गये तफ ू ान के बाद क
खामोश उदासी है ” सुधा ने गहरी साँस ली, “आज जाने य बदन टूट रहा है ” बैठे ही बैठे
बदन उमेठते हए कहा
दस ू रे िदन च दर गया तो सुधा को बुखार आ गया था अंग-अंग जैसे टूट रहा हो और आँख म
ऐसी तीखी जलन िक मानो िकसी ने अंगारे भर िदये ह रात-भर वह बेचन ै रही, आधी पागल-
सी रही उसने तिकया, चादर, पानी का िगलास सभी उठाकर फक िदया, िबनती को कभी
बुलाकर पास िबठा लेती, कभी उसे दरू ढकेल देती डॉ टर साहब परे शान, रात-भर सुधा के
पास बैठे, कभी उसका माथा, कभी उसके तलव म बफ मलते रहे डॉ टर घोष ने बताया यह
कल क गरमी का असर है िबनती ने एक बार पछ ू ा, “च दर को बुलवा द?” तो सुधा ने कहा,
“नह , म मर जाऊँ तो! मेरे जीते जी नह !” िबनती ने ाइवर से कहा, “च दर को बुला लाओ ”
तो सुधा ने िबगडक़र कहा, “ य तम ु सब लोग मेरी जान लेने पर तलु े हो?” और उसके बाद
कमजोरी से हाँफने लगी ाइवर च दर को बुलाने नह गया
जब च दर पहँ चा तो डॉ टर साहब रात-भर के जागरण के बाद उठकर नहाने -धोने जा रहे थे
“पता नह सुधा को या हो गया कल से! इस व तो कुछ शा त है पर रात-भर बुखार और
बेहद बेचन ै ी रही है और एक ही िदन म इतनी िचड़िचड़ी हो गयी है िक बस...” डॉ टर साहब
ने च दर को देखते ही कहा
च दर जब कमरे म पहँ चा तो देखा िक सुधा आँख ब द िकये हए लेटी है और िबनती उसके िसर
पर आइस-बैग रखे हए है सुधा का चे हरा पीला पड़ गया है और महँु पर जाने िकतनी ही
रे खाओं क उलझन है, आँख ब द ह और पलक के नीचे से अँगार क आँच छनकर आ रही है
च दर क आहट पाते ही सुधा ने आँख खोल अजब-सी आ ने य िनगाह से च दर क ओर
देखा और िबनती से बोली, “िबनती, इनसे कह दो जाएँ यहाँ से ”
िबनती त ध, च दर नह समझा, पास आकर बैठ गया, बोला, “सुधा, य , पड़ गयी न, मने
कहा था िक गैरेज म मोटर साफ मत करो परस इतना रोयी, िसर पटका, कल धपू खायी
आज पड़ रही! कैसी तबीयत है?”
सुधा उधर िखसक गयी और अपने कपड़े समेट िलये, जैसे च दर क छाँह से भी बचना चाहती है
और तेज, कड़वी और हाँफती हई आवाज म बोली, “िबनती, इनसे कह दो जाएँ यहाँ से ”
च दर चुप हो गया और एकटक सुधा क ओर देखने लगा और सुधा क बात ने जैसे च दर का
मन मरोड़ िदया िकतनी गै रयत से बात कर रही है सुधा! सुधा, जो उसके अपने यि व से
यादा अपनी थी, आज िकस वर म बोल रही है! “सुधी, या हआ तु ह?” च दर ने बहत आहत
हो बहत दुलार-भरी आवाज म पछ ू ा
“म कहती हँ जाओगे नह तम ु ?” फुफकारकर सुधा बोली, “कौन हो तम ु मेरी बीमारी पर
सहानुभिू त कट करने वाले? मेरी कुशल पछ ू ने वाले? म बीमार हँ , म मर रही हँ , तम ु से मतलब?
तमु कौन हो? मेरे भाई हो? मेरे िपता हो? कल अपने िम के यहाँ मेरा अपमान कराने ले गये
थे!” सुधा हाँफने लगी
“अपमान! िकसने तु हारा अपमान िकया, सुधा? प मी ने तो कुछ भी नह कहा? तम ु पागल तो
नह हो गय ?” च दर ने सुधा के पैर पर हाथ रखते हए कहा
“पागल हो नह गयी तो हो जाऊँगी!” उसने पैर हटा िलये, “तम ु , प मी, गेस,ू पापा डॉ टर सब
लोग िमलकर मझ ु े पागल कर दोगे पापा कहते है याह करो, प मी कहती है मत करो, गेसू
कहती है तम ु यार करती हो और तम ु ...तम
ु कुछ भी नह कहते तम ु मझ ु े इस नरक म बरस से
सुलगते देख रहे हो और बजाय इसके िक तम ु कुछ कहो, तम ु ने मझ ु े खुद इस भ ी म ढकेल
िदया!...च दर, म पागल हँ , म या क ँ ?” सुधा बड़े कातर वर म बोली च दर चुप था
िसफ िसर झक ु ाये, हाथ पर माथा रखे बैठा था सुधा थोड़ी देर हाँफती रही िफर बोली-
“तु ह या हक था कल प मी के यहाँ ले जाने का? उसने य कल गीत म कहा िक म तु ह
यार करती हँ ?” सुधा बोली च दर ने िबनती क ओर देखा-” य िबनती? िबनती से म कुछ
नह िछपाता!” “ य प मी ने कल कहा, म तु ह यार नह करती! मेरा मन मझ ु े धोखा नह दे
सकता म तम ु से िसफ जाने या करती हँ ...िफर प मी ने कल ऐसी बात य कही? मेरे रोम-
रोम म जाने कौन-सा वालामख ु ी धधक उठता है ऐसी बात सुनकर? तम ु य प मी के यहाँ ले
गये?”
“तम ु खुद गयी थ , सुधा!” च दर बोला
“तो तमु रोक नह सकते थे! तम ु कह देते मत जाओ तो म कभी जा सकती थी? तम ु ने य नह
रोका? तम ु हाथ पकड़ लेते तम ु डाँट देते तम ु ने य नह डाँटा? एक ही िदन म म तु हारी
गैर हो गयी? गैर हँ तो िफर य आये हो? जाओ यहाँ से म कहती हँ ; जाओ यहाँ से?” दाँत
पीसकर सुधा बोली
“सुधा...”
“म तु हारी बोली नह सुनना चाहती जाते हो िक नह ...” और सुधा ने अपने माथे पर से
उठाकर आइस-बैग फक िदया िबनती च क उठी च दर च क उठा उसने मड ु क़र सुधा क
ओर देखा सुधा का चे हरा डरावना लग रहा था उसका मन रो आया वह उठा, ण-भर
सुधा क ओर देखता रहा और धीरे -धीरे कमरे से बाहर चला गया
बरामदे के सोफे पर आकर िसर झक ु ाकर बैठ गया और सोचने लगा, यह सुधा को या हो गया?
परस शाम को वह इसी सोफे पर सोया था, सुधा बैठी पंखा झल रही थी कल शाम को वह हँ स
रही थी, लगता था तफ ू ान शा त हो गया पर यह या? अ त ने यह प कैसे ले िलया?
और य ले िलया? जब वह अपने मन को शा त रख सकता है, जब वह सभी कुछ हँ सते-हँ सते
बरदा त कर सकता है तो सुधा य नह कर सकती? उसने आज तक अपनी साँस से सुधा का
िनमाण िकया है सुधा को ितल-ितल बनाया, सजाया, सँवारा है िफर सुधा म यह कमजोरी
य?
या उसने यह रा ता अि तयार करके भल ू क ? या सुधा भी एक साधारण-सी लड़क है
िजसके ेम और घण ृ ा का तर उतना ही साधारण है? माना उसने अपने दोन के िलए एक ऐसा
रा ता अपनाया है जो िवल ण है लेिकन इससे या! सुधा और वह दोन ही या िवल ण नह
ह? िफर सुधा य िबखर रही है? लड़िकयाँ भावना क ही बनी होती ह? साधना उ ह आती ही
नह या? उसने सुधा का गलत मू यांकन िकया था? या सुधा इस 'तलवार क धार' पर चलने
म असमथ सािबत होगी? यह तो च दर क हार थी
और िफर सुधा ऐसी ही रही तो च दर? सुधा च दर क आ मा है; इसे अब च दर खबू अ छी तरह
पहचान गया तो या अपनी ही आ मा को घ ट डालने क ह या का पाप च दर के िसर पर
है?
तो या याग मा नाम ही है? या पु ष और नारी के स ब ध का एक ही रा ता है- णय,
िववाह और तिृ ! पिव ता, याग और दरू ी या स ब ध को, िव ास को िज दा नह रहने दे
सकते? तो िफर सुधा और प मी म या अ तर है? या सुधा के दय के इतने समीप रहकर,
सुधा के यि व म घुल-िमलकर और आज सुधा को इतने अ तर पर डालकर च दर पाप कर
रहा है? तो या फूल को तोड़कर अपने ही बटन होल म लगा लेना ही पु य है और दस ू रा रा ता
गिहत है? िवनाशकारी है? य उसने सुधा का यि व तोड़ िदया है?
िकसी ने उसके क धे पर हाथ रखा िवचार-शंख ृ ला टूट गयी...िबनती थी “ या सोच रहे ह
आप?” िबनती ने पछ ू ा, बहत ने ह से
“कुछ नह !”
“नह बताइएगा? हम नह जान सकते?” िबनती के वर म ऐसा आ ह, ऐसा अपनापन, ऐसी
िन छलता रहती थी िक च दर अपने को कभी नह रोक पाता था िछपा नह पाता था
“कुछ नह िबनती! तम ु कहती हो, सुधा को इतने अ तर पर मने रखा तो म देवता हँ ! सुधा
कहती है, मने अ तर पर रखा, मने पाप िकया! जाने या िकया है मने ? या मझ ु े कम तकलीफ
है? मेरा जीवन आजकल िकस तरह घायल हो गया है, म जानता हँ एक पल मझ ु े आराम नह
िमलता या उतनी सजा काफ नह थी जो सुधा को भी िक मत यह द ड दे रही है? मझ ु ी को
सभी बचैनी और दु:ख िमल जाता सुधा को मेरे पाप का द ड य िमल रहा है? िबनती, तम ु से
अब कुछ नह िछपा िजसको म अपनी साँस म दुबकाकर इ धनुष के लोक तक ले गया,
आज हवा के झ के उसे बादल क ऊँचाई से य ढकेल देना चाहते ह? और म कुछ भी नह कर
सकता?” इतनी देर बाद िबनती के ममता-भरे पश म च दर क आँख छलछला आय
“िछः, आप समझदार ह! दीदी ठीक हो जाएँ गी! घबराने से काम नह चलेगा न! आपको हमारी
कसम है उदास मत होइए कुछ सोिचए मत दीदी बीमार ह, आप इस तरह से करगे तो कैसे
काम चलेगा! उिठए, दीदी बुला रही ह ”
च दर गया सुधा ने इशारे से पास बुलाकर िबठा िलया “च दर, हमारा िदमाग ठीक नह
है बैठ जाओ लेिकन कुछ बोलना मत, बैठे रहो ”
उसके बाद िदन भर अजब-सा गज ु रा जब-जब च दर ने उठने क कोिशश क , सुधा ने उसे
ख चकर िबठा िलया घर तो उसे जाने ही नह िदया िबनती वह खाना ले आयी सुधा
कभी च दर क ओर देख लेती िफर तिकये म महँु गड़ा लेती बोली एक श द भी नह ,
लेिकन उसक आँख म अजब-सी कातरता थी पापा आये, घंट बैठे रहे ; पापा चले गये तो
उसने च दर का हाथ अपने हाथ म ले िलया, करवट बदली और तिकये पर अपने कपोल से
च दर क हथेली दबाकर लेटी रही पलक से िकतने ही गरम-गरम आँसू छलककर गाल पर
िफसलकर च दर क हथेली िभगोते रहे
च दर चुप रहा लेिकन सुधा के आँसू जैसे नस के सहारे उसके दय म उतर गये और जब
दय डूबने लगा तो उसक पलक पर उतर आये सुधा ने देखा लेिकन कुछ भी नह बोली
घंटा-भर बहत गहरी साँस ली; बेहद उदासी से मस ु कराकर कहा, “हम दोन पागल हो गये ह,
य च दर? अ छा, अब शाम हो गयी जरा लॉन पर चल ”
सुधा च दर के क धे पर हाथ रखकर खड़ी हो गयी िबनती ने दवा दी, थमामीटर से बुखार
देखा बुखार नह था च दर ने सुधा के िलए कुरसी उठायी सुधा ने हँ सकर कहा, “च दर,
आज बीमार हँ तो कुरसी उठा रहे हो, मर जाऊँगी तो अरथी उठाने भी आना, वरना नरक िमलेगा!
समझे न!”
“िछः, ऐसा कुबोल न बोला करो, दीदी?”
सुधा लॉन म कुरसी पर बैठ गयी बगल म नीचे च दर बैठ गया सुधा ने च दर का िसर
अपनी कुरसी म िटका िलया और अपनी उँ गिलय से च दर के सख ू े होठ को छूते हए कहा,
“च दर, आज मने तु ह बहत दु:खी िकया, य ? लेिकन जाने य , दु:खी न करती तो आज
मझु े वह ताकत न िमलती जो िमल गयी ” और सहसा च दर के िसर को अपनी गोद म ख चती
हई-सी सुधा ने कहा, “आरा य मेरे! आज तु ह बहत-सी बात बताऊँगी बहत-सी ”
िबनती उठकर जाने लगी तो सुधा ने कहा, “कहाँ चली? बैठ तू यहाँ तू गवाह रहे गी तािक बाद
म च दर यह न कहे िक सुधा कमजोर िनकल गयी ” िबनती बैठ गयी सुधा ने ण-भर
आँख ब द कर ल और अपनी वेणी पीठ पर से ख चकर गोद म ढाल ली और बोली, “च दर,
आज िकतने ही साल हए, जबसे मने तु ह जाना है, तब से अ छे -बुरे सभी काम का फै सला
तु ही करते रहे हो आज भी तु ह बताओ च दर िक अगर म अपने को बहत सँभालने क
कोिशश करती हँ और नह सँभाल पाती हँ , तो यह कोई पाप तो नह ? तम ु जानते हो च दर, तम ु
िजतने मजबत ू हो उस पर मझ ु े घमंड है िक तम ु िकतनी ऊँचाई पर हो, म भी उतना ही मजबत ू
बनने क कोिशश करती हँ , उतने ही ऊँचे उठने क कोिशश करती हँ , अगर कभी-कभी िफसल
जाती हँ तो यह अपराध तो नह ?”
“नह ” च दर बोला
“और अगर अपने उस अ त के ण म तम ु पर कठोर हो जाती हँ , तो तम ु सह लेते हो म
जानती हँ , तम ु मझु े िजतना ने ह करते हो, उसम मेरी सभी दुबलताएँ धुल जाती ह लेिकन
आज म तु ह िव ास िदलाती हँ च दर िक मझ ु े खुद अपनी दुबलताओं पर शरम आती है और
आगे से म वैसी ही बनँ ग ू ी जैसा तम ु ने सोचा है, च दर ”
च दर कुछ नह बोला िसफ घास पर रखे हए सुधा के पाँव पर अपनी काँपती उँ गिलयाँ रख द
सुधा कहती गयी, “च दर, आज से कुछ ही महीने पहले जब गेसू ने मझ ु से पछ
ू ा था िक तु हारा
िदल कह झक ु ा था तो मने इनकार कर िदया था, कल प मी ने पछ ू ा, तम ु च दर को यार करती
हो तो मने इनकार कर िदया था, म आज भी इनकार करती हँ िक मने तु ह यार िकया है, या
तम ु े यार िकया है म भी समझती हँ और तम
ु ने मझ ु भी समझते हो लेिकन यह न तम ु से िछपा है
न मझ ु से िक तम ु ने जो कुछ िदया है वह यार से कह यादा ऊँचा और यार से कह यादा
महान है ...म याह नह करना चाहती थी, मने परस इनकार कर िदया था, इतनी रोयी थी,
खीझी थी, बाद म मने सोचा िक यह गलत है, यह वाथ है जब पापा मझ ु े इतना यार करते ह
तो मझ ु े उनका िदल नह दुखाना चािहए पर मन के अ दर क जो खीझ थी, जो कुढऩ थी,
वह कह तो उतरती ही वह म अपने पर उतार देना चाहती थी, मन म आता था अपने को
िकतना क दे डालँ ू इसीिलए अपने गैरेज म जाकर मोटर सँभाल रही थी, लेिकन वहाँ भी
असफल रही और अ त म वह खीझ अपने मन पर भी न उतारकर उस पर उतारी िजसको मने
अपने से भी बढ़कर माना है वह खीझ उतरी तम ु पर!”
च दर ने सुधा क ओर देखा सुधा मस ु कराकर बोली, “न, ऐसे मत देखो यह मत समझो िक
अपने आज के यवहार के िलए म तम ु से मा मागग ँ ू ी म जानती हँ , माँगने से तम ु दु:खी भी
होगे और डाँटने भी लगोगे खैर, आज से म अपना रा ता पहचान गयी हँ म जानती हँ िक
मझु े िकतना सँभलकर चलना है तु हारे सपने को परू ा करने के िलए मझ ु े अपने को या
बनाना होगा, यह भी म समझ गयी हँ म खुश रहँ गी, सबल रहँ गी और सश रहँ गी और जो
रा ता तम ु िदखलाओगे उधर ही चलँग ू ी लेिकन एक बात बताओ च दर, मने याह कर िलया
और वहाँ सुखी न रह पायी, िफर और उ ह वह भावना, उपासना न दे पायी और िफर तु ह दु:ख
हआ, तब?”
च दर ने घास का एक ितनका तोडक़र कहा, “देखो सुधा, एक बात बताओ अगर म तु ह कुछ
कह देता हँ और उसे तम ु मझु ी को वापस दे देती हो तो कोई बहत ऊँची बात नह हई अगर मने
तु ह सचमच ु ही ने ह या पिव ता जो कुछ भी िदया है, उसे तम ु उन सभी के जीवन म ही य
नह ितफिलत कर सकती जो तु हारे जीवन म आते ह, चाहे वह पित ही य न ह तु हारे
मन के अ य ने ह-भंडार के उपयोग म इतनी कृपणता य ? मेरा सपना कुछ और ही है, सुधा
आज तक तु हारी साँस के अमतृ ने ही मझ ु े यह साम ी दी िक म अपने जीवन म कुछ कर सकँ ू
और म भी यही चाहता हँ िक म तु ह वह ने ह दँू जो कभी घटे ही न िजतना बाँटो उतना बढ़े
और इतना मझ ु े िव ास है िक तम ु यिद ने ह क एक बँदू दो तो मनु य या से या हो सकता
है अगर वही ने ह रहे गा तो तु हारे पित को कभी कोई अस तोष या हो सकता है और िफर
कैलाश तो इतना अ छा लड़का है, और उसका जीवन इतना ऊँचा िक तम ु उसक िजंदगी म ऐसी
लगोगी, जैसे अँगठ ू ी म हीरा और जहाँ तक तु हारा अपना सवाल है, म तम ु से भीख माँगता हँ
िक अपना सब कुछ खोकर भी अगर मझ ु े कोई स तोष रहे गा तो यह देखकर िक मेरी सुधा अपने
जीवन म िकतनी ऊँची है म तम ु से इस िव ास क भीख माँगता हँ ”
“िछः, मझ ु से बड़े हो, च दर! ऐसी बात नह कहते! लेिकन एक बात है म जानती हँ िक म
च मा हँ , सय ू क िकरण से ही िजसम चमक आती है तम ु ने जैसे आज तक मझ ु े सँवारा है,
आगे भी तम ु अपनी रोशनी अगर मेरी आ मा म भरते गये तो म अपना भिव य भी नह पहचान
सकँ ू गी समझे!”
“समझा, पगली कह क !” थोड़ी देर च दर चुप बैठा रहा िफर सुधा के पाँव से िसर िटकाकर
बोला-”परे शान कर डाला, तीन रोज से सरू त तो देखो कैसी िनकल आयी है और बैसाखी को
कुल चार रोज रह गये अब मत िदमाग िबगाड़ना! वे लोग आते ही ह गे!”
“िबनती! दवा ले आ...” िबनती उठकर गयी तो सुधा बोली, “हटो, अब हम घास पर बैठगे!” और
घास पर बैठकर वह बोली, “लेिकन एक बात है, आज से लेकर याह तक तम ु हर अवसर पर
हमारे सामने रहना, जो कहोगे वह हम करते जाएँ गे ”
“हाँ, यह हम जानते ह ” च दर ने कहा और कुछ दरू हटकर घास पर लेट गया और आकाश
क ओर देखने लगा शाम हो गयी थी और िदन-भर क उड़ी हई धल ू अब बहत कुछ बैठ गयी
थी आकाश के बादल ठहरे हए थे और उन पर अ णाई झलक रही थी एक दुरंगी पतंग बहत
ऊँचे पर उड़ रही थी च दर का मन भारी था हालाँिक जो तफ ू ान परस उठा था वह ख म हो
गया था, लेिकन च दर का मन अभी मरा-मरा हआ-सा था वह चुपचाप लेटा रहा िबनती
दवा और पानी ले आयी दवा पीकर सुधा बोली, “ य , चुप य हो, च दर?”
“कोई बात नह ”
“िफर बोलते य नह , देखा िबनती, अभी-अभी या कह रहे थे और अब देखो इ ह ” सुधा
बोली
“हम अभी बताते ह इ ह!” िबनती बोली और िगलास म थोड़ा-सा पानी लेकर च दर के ऊपर
फक िदया च दर च ककर उठ बैठा और िबगड़क़र बोला, “यह या बदतमीजी है? अपनी दीदी
को यह सब दुलार िदखाया करो ”
“तो य पड़े थे ऐसे? बात करगे ऋिष-मिु नय जैसे और उदास रहगे ब च क तरह! वाह रे च दर
बाब!ू ” िबनती ने हँ सकर कहा, “दीदी, ठीक िकया न मने ?”
“िब कुल ठीक, ऐसे ही इनका िदमाग ठीक होगा ”
“इतने म डॉ टर शु ला आये और कुरसी पर बैठ गये सुधा के माथे पर हाथ रखकर देखा,
“अब तो तू ठीक है?”
“हाँ, पापा!”
“िबनती, कल तु हारी माताजी आ रही ह अब बैसाखी क तैयारी करनी है सुधा के जेठ आ
रहे ह और सास ”
सुधा चुपचाप उठकर चली गयी च दर, िबनती और डॉ टर साहब बैठे उस िदन का बहत-सा
काय म बनाते रहे
17

च दर को सबसे बड़ा स तोष था िक सुधा ठीक हो गयी थी बैसाख पन ू ो के एक िदन पहले ही


से िबनती ने घर को इतना साफ कर डाला था िक घर चमक उठा था यह बात तो दस ू री है िक
टडी- म क सफाई म िबनती ने च दर के बहत-से कागज बुहारकर फक िदये थे और आँगन
धोते व उसने च दर के कपड़ को छीट से तर कर िदया था उसके बदले म च दर ने िबनती
को डाँटा था और सुधा देख-देखकर हँ स रही थी और कह रही थी, “तम ु य िचढ़ रहे हो? तु ह
देखने थोड़े ही आ रही ह हमारी सास ”
बैशाखी पन ू ो क सुबह डॉ टर साहब और बुआजी गाड़ी लेकर उनको िलवा लाने गये थे च दर
बाहर बरामदे म बैठा अखबार पढ़ रहा था और सुधा अ दर कमरे म बैठी थी अब दो िदन उसे
बहत दब-ढँककर रहना होगा वह बाहर नह घम ू सकती थी; य िक जाने कैसे और कब
उसक सास आ जाएँ और देख ल बुआ उसे समझा गयी थ और उसने एक ग भीर आ ाकारी
लड़क क तरह मान िलया था और अपने कमरे म चुपचाप बैठी थी िबनती कढ़ी के िलए
बेसन फट रही थी और महरािजन ने रसोई म दध ू चढ़ा रखा था
सुधा चुपके से आयी, िकवाड़ क आड़ से देखा िक पापा और बुआ क मोटर आ तो नह रही है!
जब देखा िक कोई नह है तो आकर चु पे से खड़ी हो गयी और पीछे से च दर के हाथ से
अखबार ले िलया च दर ने पीछे देखा तो सुधा एक ब चे क तरह मस ु करा दी और बोली,
“ य च दर, हम ठीक ह न? ऐसे ही रह न? देखा तु हारा कहना मानते ह न हम?”
“हाँ सुधी, तभी तो हम तम ु को इतना दुलार करते ह!”
“लेिकन च दर, एक बार आज रो लेने दो िफर उनके सामने नह रो सकगे ” और सुधा का
गला ँ ध गया और आँख छलछला आयी
“िछः, सुधा...” च दर ने कहा
“अ छा, नह -नह ...” और झटके से सुधा ने आँसू प छ िलये इतने म गेट पर िकसी कार का
भ पू सुनाई पड़ा और सुधा भागी
“अरे , यह तो प मी क कार है ” च दर बोला सुधा क गयी प मी ने पोिटको म आकर
कार रोक
“हैलो, मेरे जुड़वा िम , या हाल है तम ु लोग का?” और हाथ िमलाकर बेतक लुफ से कुस
ख चकर बैठ गयी
“इ ह अ दर ले चलो, च दर! वरना अभी वे लोग आते ह गे!” सुधा बोली
“नह , मझ ु े बहत ज दी है आज शाम को बाहर जा रही हँ बट अब मसरू ी चला गया है, वहाँ
से उसने मझ ु े भी बुलाया है उसके हाथ म कह िशकार म चोट लग गयी है म तो आज जा
रही हँ ”
सुधा बोली, “हम ले चिलएगा?”
“चिलए कपरू , तम ु भी चलो, जुलाई म लौट आना!” प मी ने कहा
“जब अगले साल हम लोग क िम ता क वषगाँठ होगी तो म चलँग ू ा ” च दर ने कहा
“अ छा, िवदा!” प मी बोली च दर और सुधा ने हाथ जोड़े तो प मी ने आगे बढक़र सुधा का
महँु हथेिलय म उठाकर उसक पलक चम ू ल और बोली, “मझ ु े तु हारी पलक बहत अ छी लगती
ह अरे ! इनम आँसुओ ं का वाद है, अभी रोयी थ या?” सुधा झप गयी
च दर के क धे पर हाथ रखकर प मी ने कहा, “कपरू , तम ु खत ज र िलखते रहना चलते
तो बड़ा अ छा रहता अ छा, आप दोन िम का समय अ छी तरह बीते ” और प मी चल
दी
थोड़ी देर म डॉ टर साहब क कार आयी सुधा ने अपने कमरे के दरवाजे ब द कर िलये,
िबनती ने िसर पर प ला ढक िलया और च दर दौड़कर बाहर गया डॉ टर साहब के साथ जो
स जन उतरे वे िठगने -से, गोरे -से, गोल चे हरे के कुलीन स जन थे और ख र का कुरता और
धोती पहने हए थे हाथ म एक छोटा-सा सफरी बैग था च दर ने लेने को हाथ बढ़ाया तो
हँ सकर बोले, “नह जी, या इतना-सा बैग ले चलने म मेरा हाथ थक जाएगा आप लोग तो
खाितर करके मझ ु े मह वपण ू बना दगे!”
सब लोग टडी म म गये वह डॉ टर शु ला ने प रचय कराया-”यह हमारे िश य और
लड़के, ा त के होनहार अथशा ी च कुमार कपरू और आप शाहजहाँपुर के िस काँ ेसी
कायकता और युिनिसपल किम र ी शंकरलाल िम ”
“अब तू नहाय लेव संकरी, िफर चाय ठं डाय जइहै ” बुआजी ने आकर कहा आज बुआजी ने
बहत िदन पहले क बटू ीदार साड़ी पहन रखी थी और शायद वह खुश थ य िक िबनती को
डाँट नह रही थ
“नह , म तो वेिटंग- म म नहा चुका चाय म पीता नह खाना ही तैयार कराइए ” और
घड़ी देखकर शंकर बाबू बोले, “मझ ु े जरा वरा य-भवन जाना है और दो बजे क गाड़ी से वापस
चले जाना है और शायद उधर से ही चला जाऊँगा ” उ ह ने बहत मीठे वर से मस ु कराते हए
कहा
“यह तो अ छा नह लगता िक आप आये भी और कुछ के नह ” डॉ टर शु ला बोले
“हाँ, म खुद कना चाहता था लेिकन माँजी क तबीयत ठीक नह है कैलाश भी कानपुर
गया हआ है मझ ु े ज दी जाना चािहए ”
िबनती ने लाकर थाली रखी च दर ने आ य से डॉ टर साहब क ओर देखा वे हँ सकर
बोले, “भाई, यह लोग हमारी तरह छूत-पाक नह मानते शंकर तु हारे स दाय के ह, यह
क चा खाना खा लगे ”
“इ ह ा ïण कहत के है, ई तो िक र तान है, हमरो धरम िबगािडऩ िहं याँ आय कै!” बुआजी
बोल बुआजी ने ही यह शादी तय करायी थी, लड़काबताया था और दरू के र ते से वे कैलाश
और शंकर क भाभी लगती थ
शंकर बाबू ने हाथ धोये और कुस ख चकर बैठ गये च दर, क ओर देखकर बोले, “आइए,
होनहार डॉ टर साहब, आप तो मेरे साथ खा सकते ह?”
“नह , आप खाइए ” च दर ने तक लुफ करते हए कहा
“अजी वाह! म ा ïण हँ , शु ; मेरे साथ खाकर आपको ज दी मो िमल जाएगा कह हाथ म
तरकारी लगी रह गयी तो आपके िलए वग का फाटक फौरन खुल जाएगा! खाओ ”
दो कौर खाने के बाद शंकर बाबू ने बुआजी से कहा, “यही बह है, जो लड़क थाली रख गयी
थी?”
“अरे राम कहौ, ऊ तो हमार छोरी है िबनती! पहचन यौ नै िपछले साल तो मु ने के िववाह म
देखे होबो!” बुआजी बोल
शंकर बाबू कैलाश से काफ बड़े थे लेिकन देखने म बहत बड़े नह लगते थे खाते-पीते बोले,
“डॉ टर साहब! लड़क से किहए, रोटी दे जाये म इसी तरह देख लँग ू ा, और यादा तडक़-
भड़क क कोई ज रत नह !”
डॉ टर साहब ने बुआजी को इशारा िकया और वे उठकर चली गय थोड़ी देर म सुधा आयी
सादी सफेद धोती पहने , हाथ म रोटी िलये दरवाजे पर आकर िहचक , िफर आकर च दर से
बोली, “रोटी लोगे!” और िबना च दर क आवाज सुने रोटी च दर के आगे रखकर बोली, “और
या चािहए?”
“मझु े कढ़ी चािहए!” शंकर बाबू ने कहा सुधा गयी और कढ़ी ले आयी शंकर बाबू के सामने
रख दी शंकर बाबू ने आँख उठाकर सुधा क ओर देखा, सुधा ने िनगाह नीची कर ल और
चली गयी
“बहत अ छी है लड़क !” शंकर बाबू ने कहा “इतनी पढ़ी-िलखी लड़क म इतनी शम-िलहाज
नह िमलती सचमच ु जैसे आपक एक ही लड़क थी, आपने उसे खबू बनाया है कैलाश के
िब कुल यो य लड़क है यह तो किहए डॉ टर साहब िक िश ा बल होती है वरना हमारा
कहाँ सौभा य था! जब से मेरी प नी मरी तभी से माताजी कैलाश के िववाह क िजद कर रही
ह कैलाश अ तजातीय िववाह करना चाहता था, लेिकन हम तो अपनी जाित म ही इतना
अ छा स ब ध िमल गया ”
“तो तोहरे अबिहन कौन बैस ा गयी तहु ौ काहे नाही बह रया लै अउ यौ सुधी के अकेल मन
न लगी!” बुआजी बोल
शंकर बाबू कुछ नह बोले खाना खाकर उ ह ने हाथ धोये और घड़ी देखी
“अब थोड़ा सो लँ,ू या जाने दीिजए आइए, बात कर हम और आप,” उ ह ने च दर से कहा
एक बजे तक च दर शंकर बाबू से बात करता रहा और डॉ टर साहब और सुधा वगैरह खाना
खाते रहे शंकर बाबू बहत हँ समख ु थे और बहत बातन ू ी भी च दर को तो कैलाश से भी
यादा शंकर बाबू पस द आये बात करने से मालम ू हआ िक शंकर बाबू क आयु अभी तीस वष
से अिधक क नह है एक पाँच वष का ब चा है और उसी के होने म उनक प नी मर गयी
अब वे िववाह नह करगे, वे गाँधीवादी ह, काँ ेस के मख ु थानीय कायकता ह और
युिनिसपल किम र ह घर के जम दार ह कैलाश बरे ली म पढ़ता था अब भी कैलाश का
कोई इरादा िकसी कार क नौकरी या यापार करने का नह है, वह मजदरू के िलए सा ािहक
प िनकालने का इरादा कर रहा है वह सुधा को बजाय घर पर रखने के अपने साथ रखे गा
य िक वह सुधा को आगे पढ़ाना चाहता है, सुधा को राजनीित े म ले जाना चाहता है
बीच म एक बार िबनती आयी और उसने च दर को बुलाया च दर बाहर गया तो िबनती ने
कहा, “दीदी पछ ू रही ह, ये िकतनी देर म जाएँ गे?”
“ य ?”
“कह रही ह अब च दर को याद थोड़े ही है िक सुधा भी इसी घर म है उ ह से बात कर रहे
ह ”
च दर हँ स िदया और कुछ नह कहा िबनती बोली, “ये लोग तो बहत अ छे ह म तो कहँ गी
सुधा दीदी को इससे अ छा प रवार िमलना मिु कल है हमारे ससुर क तरह नह ह ये लोग ”
“हाँ, िफर भी सुधा इतनी सेवा नह कर रही है इनक िबनती, तम ु सुधा को कुछ िश ा दे दो
इस मामले म ”
“हाँ-हाँ, हम सेवा करने क िश ा दे दगे और याह करने के बाद क िश ा अपनी प मी से
िदलवा देना खुद तो उनसे ले ही चुके ह गे आप!”
च दर झप गया “पाजी कह क , बहत बेशरम हो गयी है पहले महँु से बोल नह िनकलता
था!”
“तमु ने और दीदी ने ही तो िकया बेशरम! हम या कर? पहले हम िकतना डरते थे!” िबनती ने
उसी तरह गदन टे ढ़ी करके कहा और मस ु कराकर भाग गयी
जब डॉ टर साहब आये तो शंकर बाबू ने कहा, “अब तो म जा रहा हँ , यह माला मेरी ओर से बह
को दे दीिजए ” और उ ह ने बड़ी सु दर मोितय क माला बैग से िनकाली और बुआजी के हाथ
म दे दी
“हाँ, एक बात है!” शंकर बाबू बोले, “ याह हम लोग महीने भर के अ दर ही करगे आपक
सब बात हमने मानी, यह बात आपको हमारी माननी होगी ”
“इतनी ज दी!” डॉ टर शु ला च क उठे , “यह अस भव है, शंकर बाबू ! म अकेला हँ , आप
जानते ह ”
“नह , आपको कोई क न होगा ” शंकर बाबू बहत मीठे वर म बोले, “हम लोग रीित-रसम
के तो कायल ह नह आप िजतना चाहे रीित-रसम अपने मन से कर ल हम लोग तो िसफ
छह-सात आदिमय के साथ आएँ गे सुबह आएँ गे, अपने बँगले म एक कमरा खाली करा
दीिजएगा शाम को अगवानी और िववाह कर द दस ू रे िदन दस बजे हम लोग चले जाएँ गे ”
“यह नह होगा ” डॉ टर साहब बोले, “हमारी तो अकेली लड़क है और हमारे भी तो कुछ
हौसले ह और िफर लड़क क बुआ तो यह कभी भी नह वीकार करगी ”
“देिखए, म आपको समझा दँ,ू कैलाश शािदय म तड़क-भड़क के स त िखलाफ है पहले तो
वह इसिलए जाित म िववाह नह करना चाहता था, लेिकन जब मने उसे भरोसा िदलाया िक
बहत सादा िववाह होगा तभी वह राजी हआ इसीिलए इसे आप मान ही ल िफर िववाह के बाद
तो िजंदगी पड़ी है आपक अकेली लड़क है िजतना चािहए, क रए रहा कम समय का तो
शुभ य शी म!् िफर आपको कुछ खास इ तजाम भी नह करना, अगर कुछ हो तो किहए म यह
रह जाऊँ, आपका काम कर दँ!ू ” शंकर बाबू हँ सकर बोले
कुछ देर तक बात होती रह , अ त म शंकर बाबू ने अपने सौज य और मीठे वभाव से सभी को
राजी कर ही िलया उसके बाद उ ह ने सबसे िवदा माँगी, चलते व बुआजी और डॉ टर साहब
के पैर छुए, च दर से हाथ िमलाया और शंकर बाबू सबका मन जीतकर चले गये
बुआजी ने माला हाथ म ली, उसे उलट-पलटकर देखा और बोल , “एक ऊ आये रहे जत ू ाखोर!
एक ठो कागज थमाय के चले गये!” और एक गहरी साँस लेके चली गय
डॉ. साहब ने सुधा को बुलाया उसके हाथ म वह माला रखकर उसे िचपटा िलया सुधा पापा
क गोद म महँु िछपाकर रो पड़ी
उसके बाद सुधा चली गयी और च दर, डॉ टर साहब और बुआजी बैठे शादी के इ तजाम क बात
करते रहे यह तय हआ िक अभी तो इ ह क इ छानुसार िववाह कर िदया जाए िफर
यिू नविसटी खुलने पर सभी को बुलाकर अ छी दावत वगैरह दे दी जाए यह भी तय हआ िक
बुआजी गाँव जाकर अनाज, घी, बिडय़ाँ और नौकर वगैरह का इ तजाम कर लाएँ और प ह
िदन के अ दर लौट आएँ अगवानी ठीक छह बजे शाम को हो जाए और सुबह के ना ते म या
िदया जाए, यह सभी डॉ टर साहब ने तय कर डाला लेिकन िन य यह िकया गया िक चँिू क
आदमी बहत कम आ रहे ह, अत: सुबह-शाम के ना ते का काम यिू नविसटी के िकसी रे तराँ को
दे िदया जाए
इसी बीच म िबनती खरबज ू ा और शरबत लाकर रख गयी और च दर ने बहत आराम से शरबत
पीते हए पछ ू ा, “िकसने बनाया है?”
“सुधा दीदी ने ”
“आज बड़ी खुश मालम ू पड़ती है, चीनी बहत कम छोड़ी है!” च दर बोला बुआ और िबनती
दोन हँ स पड़
थोड़ी देर बाद च दर उठकर भीतर गया तो देखा िक सुधा अपने पलँग पर बैठी सामने एक
िकताब रखे जाने या देख रही है और सामने वह माला पड़ी है च दर गया और बोला, “सुधा!
आज म बहत खुश हँ ”
सुधा ने आँख उठाय और च दर क ओर देखकर मस ु कराने क कोिशश क और बोली, “म भी
बहत खुश हँ ”
“ य , तय हो गया इसिलए?” िबनती ने पछ ू ा
“नह , च दर बहत खुश ह इसिलए!” और एक गहरी साँस लेकर िकताब ब द कर दी
“कौन-सी िकताब है, सुधा?” च दर ने पछ ू ा
“कुछ नह , इस पर उदू के कुछ अशआर िलखे ह जो गेसू ने सुनाये थे ” सुधा बोली
च दर ने िबनती क ओर देखा और कहा, “िबनती, कैलाश तो जैसा है वैसा ही है, लेिकन
शंकरबाबू क तारीफ म कर नह सकता या राय है तु हारी?”
“हाँ, है तो सही; दीदी इतनी सुखी रहगी िक बस! दीदी, हम भल ू मत जाना, समझ !” िबनती
बोली
“और हम भी मत भल ू ना सुधा!” च दर ने सुधा क उदासी दरू करने के िलए छे ड़ते हए कहा
“हाँ, तु ह भल ू े िबना कैसे काम चलेगा ” सुधा ने और भी गहरी साँस लेते हए कहा और एक
आँसू गाल पर िफसल ही आया
“अरे पगली, तम ु सब कुछ अपने च दर के िलए कर रही हो, उसक आ ा मानकर कर रही हो
िफर यह आँसू कैसे? िछः! और यह माला सामने रखे या कर रही हो?” च दर ने बहलाया
“माला तो दीदी इसिलए सामने रखे थ िक बतलाऊँ...बतलाऊँ!” िबनती बोली, “असल म
रामायण क कहानी तो सुनी है च दर, तम ु ने ? रामच ने अपने एक भ को मोती क माला
दी तो वह उसे दाँत से तोडक़र देख रहा था िक उसके अ दर रामनाम है या नह सो यह माला
सामने रखकर देख रही थ , इसम कह च दर क झलक है या नह ?”
“चुप िगलहरी कह क ?” सुधा हँ स पड़ी, “बहत बोलना आ गया है!” सुधा ने हँ सते हए बनावटी
गु से से कहा िफर सुधा तिकये से िटककर बैठ गयी-”आज गेसू नह है मझ ु े गेसू क बहत
याद आ रही है ”
“ य ?”
“इसिलए िक आज उसके कई शेर याद आ रहे ह एक दफे उसने सुनाया था-
ये आज िफजा खामोश है य , हर जर को आिखर होश है य ?
या तम ु ही िकसी के हो न सके, या कोई तु हारा हो न सका '
इसी क अि तम पंि है-
मौज भी हमारी हो न सक , तफ ू ाँ भी हमारा हो न सका'!”
“वाह! यह पंि बहत अ छी है,” च दर ने कहा
“आज गेसू होती तो बहत-सी बात करते!” सुधा बोली, “देखो च दर, िजंदगी भी या होती है!
आदमी या सोचता है और या हो जाता है आज से तीन-चार महीने पहले मने या सोचा था!
लास- म से भागकर हम लोग पे ड़ के नीचे लेटकर बात करते थे, तो म हमेशा कहती थी-म
शादी नह क ँ गी पापा को समझा लँग ू ी उस िदन या मालम ू था िक इतनी ज दी जुए के
नीचे गरदन डाल देनी होगी और पापा को भी जीतकर िकसी दस ू रे से हार जाना होगा अभी
उसक तय भी नह हई और महीने -भर बाद मेरी...” सुधा थोड़ी देर चुप रही और िफर-”और दस ू री
बात उसक , जो मने तु ह बतायी थी उसने कहा था जब िकसी के कदम हट जाते ह िसर के
नीचे से, तब मालम ू होता है िक हम िकसका सपना देख रहे थे पहले हम भी नह मालम ू होता
था िक हमारे िसर िकसके कदम पर झक ु चुके ह याद है? मने तु ह बताया था, तम ु ने पछू ा
था!”
“याद है ” च दर ने कहा िबनती उठकर चली गयी लेिकन सुधा या च दर िकसी ने यान
भी नह िदया च दर बोला, “लेिकन सुधा, इन सब बात को सोचने से या फायदा, आगे का
रा ता सामने है, बढ़ो ”
“हाँ, सो तो है ही देवता मेरे! कभी-कभी जाने िकतनी पुरानी बात मन म आ ही जाती ह और मन
करता है िक म सोचती ही जाऊँ जाने य मन को बड़ा स तोष िमलता है और च दर, जब
ु से दरू , तो इ ह मिृ तय के अलावा और या शेष रहे गा...तु ह वह िदन याद है
म वहाँ रहँ गी, तम
जब म गेसू के यहाँ नह जा पायी थी और उस थान पर हम लोग म झगड़ा हो गया था...च दर,
वहाँ सब कुछ है लेिकन म लड़ँ गी-झगड़ँ गी िकससे वहाँ?”
च दर एक फ क -सी हँ सी हँ सकर बोला, “अब या ज म-भर ब ची ही बनी रहोगी!”
“हाँ च दर, चाहती तो यही थी लेिकन िजंदगी तो जबरद ती सब सुख छीन लेती है और बदले म
कुछ भी नह देती आओ, चलो लॉन पर चल शाम को तम ु से बात ही करगे!”
उसके बाद सुधा रात को आठ बजे उठी, जब बुआ तैयार होकर टे शन जा रही थ और ाइवर
मोटर िनकाल रहा था और उदास िटमिटमाते हए िसतार ने देखा िक च दर और सुधा दोन
क आँख म आँसुओ ं क अवशेष नमी िझलिमला रही थी उठते हए सुधा ने ण-भर च दर क
ओर देखा, च दर ने िसर झक ु ा िलया और बहत उदास आवाज म कहा, “चलो सुधा, बहत देर कर
दी हम लोग ने ”
18

प ह िदन बाद बुआ आय तो उ ह ने घर क श ल ही बदल दी दरवाजे पर और बरसाती म


ह दी के हाथ क छाप लग गयी, कमर का सभी सामान हटाकर द रयाँ िबछा दी गय और
सबसे अ दर वाले कमरे म सुधा का सब सामान रख िदया गया टडी- म क सभी िकताब
समेट दी गय और वहाँ एक बड़ी-सी मशीन लाकर रख दी गयी िजस पर बैठकर िबनती िसलाई
करती थी उसी को कपड़े और गहन का भंडार-घर बनाया गया और उसक चाबी िबनती या
बुआ के पास रहती थी गाँव से एक महरािजन, एक कहा रन और दो मजदरू आये थे, वे सभी
गैरेज म सोते थे और िदन-भर काम करते थे और 'पानी पीने ' को माँगते रहते थे सभी कुिसयाँ
और सोफासेट िनकलवाकर सायबान म लगवा िदये गये थे रसोई के पार वाली कोठरी म
कु हड़, प ल, याले वगैरह रखे थे और पज ू ा वाले कमरे म श कर, घी, तरकारी और अनाज
था िमठाई कहाँ रखी जाएगी, इस पर बुआजी, महरािजन और िबनती म घंटे-भर तक बहस हई
लेिकन जब बुआजी ने िबनती से कहा, “आपन लड़के-ब चे का िबयाह िकयो तो कतरनी अस
जबान चलाय िल ो, अबिहन हर काम म काहे टाँग अड़ावा करत हौ!” तो िबनती चुप हो गयी
और अ त म बुआजी क राय सव प र मानी गयी बुआजी क जबान िजतनी तेज थी, हाथ भी
उतने ही तेज चार बोरा गेहँ उ ह ने साफ करके कोठ रय म भरवा िदये कम-से-कम पाँच
तरह क दाल लायी थ बेसन िपसवाया, दाल दरवायी, पापड़ बनवाये, मैदा छनवाया, सज ू ी
दरवायी, बरी-मग ँु ौरी डलवाय , चावल क कचौ रयाँ बनवाय और सबको अलग-अलग गठरी म
बाँधकर रख िदया रात को अकसर बुआजी, महरािजन तथा गाँव क मह रन ढोलक लेकर बैठ
जात और गीत गात िबनती उनम भी शािमल रहती
सच पछ ू ो तो सुधा के याह का िजतना उछाह बुआ को नह था, उतना िबनती को था वह सुबह
से उठकर झाड़ लेकर सारा घर बुहार डालती थी, इसके बाद नहाकर तरकारी काटती, उसके बाद
िफर चाय चढ़ाती डॉ टर साहब, च दर, सुधा सभी को चाय देती, बैठकर च दर अगर कुछ
िहसाब िलखाता तो िहसाब िलखती, िफर अपनी मशीन पर बैठ जाती और बारह-एक बजे तक
िसलाई करती रहती, िफर दोपहर को चावल और दाल बीनती, शाम को खरबज ू े काटती, शरबत
बनाती और रात-भर जाग-जागकर गाती या दीदी को हँ साने क कोिशश करती एक िदन
सुधा ने कहा, “मेरे याह म तो इतनी खुश है, अपने याह म या करे गी?” तो िबनती ने जवाब
िदया, “अपने याह म तो म खुद बड बजाऊँगी, वद पहनकर!”
घर चमक उठा था जैसे रे शम! लेिकन रे शम के चमकदार, रं गीन उ लास भरे गोले के अ दर भी
एक ाणी होता है, उदास त ध अपनी साँस रोककर अपनी मौत क ण- ण ती ा करने
वाला रे शम का क ड़ा घर के इस सारे उ लास और चहल-पहल से िघरा हआ िसफ एक ाणी
था िजसक साँस धीरे -धीरे डूब रही थी, िजसक आँख क चमक धीरे -धीरे कु हला रही थी,
िजसक चंचलता ने उसक नजर से िवदा माँग ली थी, वह थी-सुधा सुधा बदल गयी थी
गोरा च पई चे हरा पीला पड़ गया था, और लगता था जैसे वह बीमार हो खाना उसे जहर लगने
लगा था, अपने कमरे को छोड़कर कह जाती न थी एक शीतलपाटी िबछाये उसी पर िदन-रात
पड़ी रहती थी िबनती जब हँ सती हई खाना लाती और सुधा के इनकार पर िबनती के आँसू
छलछला आते तब सुधा पानी के घँटू के सहारे कुछ खा लेती और उदास, िफर अपनी शीतलपाटी
पर लेट जाती वग को कोई इ धनुष से भर दे और शची को जहर िपला दे, कुछ ऐसा ही लग
रहा था वह घर
डॉ टर शु ला का साहस न होता था सुधा से बोलने का वह रोज िबनती से पछ ू लेते-”सुधा
खाना खाती है या नह ?” िबनती कहती, “हाँ ” तो एक गहरी साँस लेकर अपने कमरे म चले
जाते
च दर परे शान था उसने इतना काम शायद कभी भी न िकया हो अपनी िजंदगी म सुनार के
यहाँ, कपड़े वाले के यहाँ, िफर राशिनं ग अफसर के यहाँ, पुिलस बड ठीक कराने पुिलस लाइंस,
अज देने मैिज े ट के यहाँ, पया िनकालने बक, शािमयाने का इ तजाम, पलँग, कुस वगैरह
का इ तजाम, खाने -परोसने के बरतन के इ तजाम और जाने या- या...और जब बुरी तरह
थककर आता, जेठ क तपती हई दोपहरी म, तब िबनती आकर बताती-सुधा ने आज िफर कुछ
नह खाया तो उसका मन होता था वह िसर पटक-पटक दे वह सुधा के पास जाता, सुधा आँसू
प छकर बैठती, एक टूटी-फूटी मस ु कान से च दर का वागत करती च दर उससे पछ ू ता,
“खाती य नह ?”
“खाती तो हँ च दर, इससे यादा गरिमय म म कभी नह खाती थी ” सुधा कहती और इतने
ढ़ वर से िक च दर से कुछ ितवाद नह करते बनता
अब बाहरी काम लगभग समा हो गये थे वैसे तो सभी जगह ह दी िछडक़कर प रवाना िकये
जा चुके थे लेिकन िनमं ण-प भी बहत सु दर छपकर आये थे, हालाँिक कुछ देर हो गयी थी
याह को अब कुल सात िदन बचे थे च दर सुबह दस बजे एक िड बे म िनमं ण-प और
िलफाफा-भरे हए आया और टडी- म म बैठ गया िबनती बैठी हई कुछ िसल रही थी
“सुधा कहाँ है? उसे बुला लाओ ”
सुधा आयी, सज ू ी आँख, सख ू े होठ, खे बाल, मैली धोती, िन ाण चे हरा और बीमार चाल
हाथ म पंखा िलये थी आयी और च दर के पास बैठ गयी-”कहो, या कर आये, च दर! अब
िकतना इ तजाम बाक है?”
“अब सब हो गया, सुधा रानी! आज तो पैर जवाब दे रहे ह साइिकल चलाते-चलाते पैर म जैसे
गाँठ पड़ गयी ह ” च दर ने काड फै लाते हए कहा, “शादी तु हारी होगी और जान मेरी
िनकली जा रही है मेहनत से ”
“हाँ च दर, इतना उ साह तो और िकसी को नह है मेरी शादी का!” सुधा ने कहा और बहत
दुलार से बोली, “लाओ, पैर दबा दँू तु हारे ?”
“अरे पागल हो गयी?” च दर ने अपने पैर उठाकर ऊपर रख िलये
“हाँ, च दर!” गहरी साँस लेते हए सुधा बोली, “अब मेरा अिधकार भी या है तु हारे पैर छूने
का मा करना, म भल ू गयी थी िक म पुरानी सुधा नह हँ ” और टप से दो आँसू िगर पड़े
सुधा ने पंखे क ओट कर आँख प छ ल
“तम ु तो बुरा मान गय , सुधा!” च दर ने पैर नीचे रखते हए कहा
“नह च दर, अब बुरा-भला मानने के िदन बीत गये अब गैर क बात का भी बुरा-भला नह
मान पाऊँगी, िफर घर के लोग क बात का बुरा-भला या...छोड़ो ये सब बात ये या
िनमं ण-प छपा है, देख!”
च दर ने एक िनमं ण-प उठाया, उसे िलफाफे म भरकर उस पर सुधा का नाम िलखकर कहा,
“लो, हमारी सुधा का याह है, आइएगा ज र!”
सुधा ने िनमं ण प ले िलया-”अ छा!” एक फ क हँ सी हँ सकर बोली, “अ छा, अगर हमारे
पितदेव ने आ ा दे दी तो आऊँगी आपके यहाँ उनका भी नाम िलख दीिजए वरना बुरा न मान
जाएँ ” और सुधा उठ खड़ी हई
“कहाँ चली?” च दर ने पछ ू ा
“यहाँ बहत रोशनी है! मझ ु े अपना अँधेरा कमरा ही अ छा लगता है ” सुधा बोली
“चलो िबनती, वह काड ले चलो!” च दर ने कहा, “आओ सुधा, आज काड िलखते जाएँ गे,
तमु से बात करते जाएँ गे िजंदगी देखो, सुधी! आज प ह िदन से तम ु से दो िमनट बैठकर बात
भी न कर सके ”
“अब या करना है, च दर! जैसा कह रहे हो वैसा कर तो रही हँ अभी कुछ और बाक है या?
बता दो वह भी कर डालँ ू अब तो रो-पीटकर ऊँचा बनना ही है ”
िबनती ने काड समेटे तो सुधा डाँटकर बोली-”रख इसे यह ; चली उठा के! बड़ी च दर क
आ ाकारी बनी है ये भी हमारी जान क गाहक हो गयी अब! हमारे कमरे म लायी ये सब, तो
टाँग तोड़ दँगू ी! पाजी कह क !”
िबनती ने काड धर िदये नौकर ने आकर कहा, “बाबज ू ी, कु हार अपना िहसाब माँगता है!”
“अ छा, अभी आया, सुधा!” और च दर चला गया
19

और इस तरह िदन बीत रहे थे शादी नजदीक आती जा रही थी और सभी का सहारा एक-दस ू रे
से छूटता जा रहा था सुधा के मन पर जो कुछ भी धीरे -धीरे मरघट क उदासी क तरह बैठता
जा रहा था और च दर अपने यार से, अपनी मस ु कान से, अपने आँसुओ ं से धो देने के िलए
याकुल हो उठा था, लेिकन यह िजंदगी थी जहाँ यार हार जाता है, मस ु कान हार जाती ह, आँसू
हार जाते ह-त तरी, याले, कु हड़, प ल, कालीन, द रयाँ और बाजे जीत जाते ह जहाँ अपनी
िजंदगी क ेरणा-मिू त के आँसू िगनने के बजाय कु हड़ और याले िगनवाकर रखने पड़ते ह
और जहाँ िकसी आ मा क उदासी को अपने आँसुओ ं से धोने के बजाय प ल धुलवाना यादा
मह वपण ू होता है, जहाँ भावना और अ त के सारे तफ ू ान सुनार और िबजलीवाल क बात म
डूब जाते ह, और जहाँ दो आँसुओ ं म डूबते हए यि य क पुकार शहनाइय क आवाज म डूब
जाती है और िजस व िक आदमी के दय का कण-कण तिव त हो जाता है, िजस व
उसक नस म िसतारे टूटते ह, िजस व उसके माथे पर आग धधकती है, िजस व उसके िसर
पर से आसमान और पाँव तले से धरती हट जाती है, उस समय उसे शादी क सािड़य का मोल-
तोल करना पड़ता है और बाजे वाले को एडवा स पया देना पड़ता है
ऐसी थी उस व च दर क िजंदगी और उस िजंदगी ने अपना च परू ी तरह चला िदया था
करोड़ तफ ू ान घुमड़ाते हए उसे नचा रहे थे वह एक ण भी कह नह िटक पाता था एक
पल भी उसे चैन नह था, एक पल भी वह यह नह सोच पाता था िक उसके चार ओर या हो
रहा है? वह बेहोशी म, मछ ू ा म मशीन क तरह काम कर रहा था आवाज थ िक उसके कान
से टकराकर चली जाती थ , आँसू थे िक दय को छू नह पाते थे, च उसे फँसाकर ख चे िलये
जा रहा था िबजली से भी यादा तेज, लय से भी यादा सश वह िखंचा जा रहा था िसफ
एक ओर शादी का िदन सुधा ने नथुनी पहनी, उसे नह मालम ू सुधा ने कोरे कपड़े पहने ,
उसे नह मालम ू सुधा ने चड़ू े पहने , उसे नह मालमू घर म गीत हए, उसे नह मालम ू सुधा
ने चू हा पजू ते व अपना िसर पटक िदया, उसे नह मालम ू ...वह यि नह था, तफ ू ान म
उड़ता हआ एक पीला प ा था जो वा याच म उलझ गया था और झ के उसे नचाये जा रहे थे...
और उसे होश आया तब, जब िबनती जबरद ती उसका हाथ पकडक़र ख च ले गयी बारात आने
के एक िदन पहले उस छत पर, जहाँ सुधा पड़ी रो रही थी, च दर को ढकेलकर चली आयी
च दर के सामने सुधा थी सुधा, िजससे वह पता नह य बचना चाहता था अपनी आ मा
के संघष से, अपने अ त:करण के घाव क कसक से घबराकर जैसे कोई आदमी एका त कमरे
से भागकर भीड़ म िमल जाता है, भीड़ के िनरथक शोर म अपने को खो देना चाहता है, बाहर के
शोर म अ दर का तफ ू ान भुला देना चाहता है; उसी तरह च दर िपछले ह ते से सब कुछ भल ू
गया; उसे िसफ एक चीज याद रहती थी-शादी का ब ध सुबह से लेकर सोने के व तक वह
इतना काम कर डालना चाहता था िक उसे एक ण भी बैठने का मौका न िमले, और सोने से
पहले वह इतना थक जाये, इतना चरू -चरू हो जाये िक लेटते ही न द उसे जकड़ ले और उसे
बेहोश कर दे लेिकन उस व िबनती उसे उसके िव मरण- थल से ख चकर एका त म ले
आयी है जहाँ उसक ताकत और उसक कमजोरी, उसक पिव ता और उसका पाप, उसक
मसु कान और उसके आँस,ू उसक ितभा और उसक िव मिृ त; उसक सुधा अपनी िजंदगी के
िचर तन मोड़ पर खड़ी अपना सब कुछ लुटा रही थी च दर को लगा जैसे उसको अभी च कर
आ जाएगा वह अकुलाकर खाट पर बैठ गया
शाम थी, सरू ज डूब रहा था और िदन-भर क तपी हई छत पर जलती हई बरसाती के नीचे एक
खरहरी खाट पर सुधा लेटी थी एक महीन पीली धोती पहने , कोरी मारक न क कुत , पहने ,
खे िचकटे हए बाल और नाक म बहत बड़ी-सी नथ प ह िदन के आँसुओ ं ने चे हरे को जाने
कैसा बना िदया न चे हरे पर सुकुमारता थी, न कठोरता न प था, न ताजगी िसफ ऐसा
लगता था िक जैसा सुधा का सब कुछ लुट चुका है न केवल यार और िजंदगी लुटी है, वरन
आवाज भी लुट गयी है और नीरवता भी वैभव भी लुट गया और याचना भी
सुधा ने अपने पीले प ले से आँसू प छे और उठकर बैठ गयी दोन चुप पहले कौन बोले!
िबनती आयी, च दर और सुधा का खाना रखकर चली गयी “खाना खाओगी, सुधा?” च दर
ने पछू ा सुधा कुछ बोली नह िसफ िसर िहला िदया और डूबते हए सरू ज और उड़ते हए
बादल क ओर देखकर जाने या सोचने लगी च दर ने थाली िखसका दी और सुधा को
अपनी ओर ख चकर बोला, “सुधा, इस तरह कैसे काम चलेगा तु ह को देखकर तो म अपना
धीरज सँभालँग ू ा, बताओ और तु ह यह कर रही हो!” सुधा च दर के पास िखसक आयी और दो
िमनट तक चुपचाप च दर क ओर फटी हई पथरायी आँख से देखती रही और एकदम दय को
फाड़ देने वाली आवाज म चीखकर रो उठी-”च दर, अब या होगा!”
च दर क समझ म नह आया, वह या करे ! आँसू उसके सख ू चुके थे वह रो नह सकता
था उसके मन पर कह कोई प थर रखा था जो आँसुओ ं क बँदू को बनने के साथ ही सोख
लेता था लेिकन वह तड़प उठा, “सुधा!” वह घबराकर बोला, “सुधा, तु ह हमारी कसम है-चुप हो
जाओ! चुप...िब कुल चुप...हाँ...ऐसे ही!” सुधा च दर के पाँव म महँु िछपाये थी-”उठकर बैठो
ठीक से सुधा...इतना समझ-बझ ू कर यह सब करती हो, िछः! तु ह अपना िदल मजबत ू करना
चािहए वरना पापा को िकतना दुख होगा ”
“पापा ने तो मझ ु से बोलना भी छोड़ िदया है, च दर! पापा से कह दो आज तो बोल ल, कल से हम
उ ह परे शान करने नह आएँ गे, कभी नह आएँ गे अब उनक सुधा को सब ले जा रहे ह, जाने
कहाँ ले जा रहे ह!” और िफर वह फफक-फफककर रो पड़ी
च दर ने िबनती से पापा को बुलवाया सुधा को रोते हए देखकर िबनती खड़ी हो गयी, “दीदी,
रोओ मत दीदी, िफर हम िकसके भरोसे रहगे यहाँ?” और सुधा को चुप कराते-कराते िबनती भी
रोने लगी और आँसू प छते हए चली गयी
पापा आये सुधा चुप हो गयी और कुछ कहा नह , िफर रोने लगी डॉ टर शु ला भराये गले
ु े यह रोआई अ छी नह लगती यह भावुकता य ? तम
से बोले, “मझ ु पढ़ी-िलखी लड़क हो
इसी िदन के िलए तु ह पढ़ाया-िलखाया गया था! भावुकता से या फायदा?” कहते-कहते
डॉ टर शु ला खुद रोने लगे “चलो च दर यहाँ से! अभी जनवासा ठीक करवाना है ” च दर
और डॉ टर शु ला दोन उठकर चले गये
अपनी शादी के पहले, हमेशा के िलए अलग होने से पहले सुधा को इतना ही मौका िमला...उसके
बाद...
सुबह छह बजे गाड़ी आती थी, लेिकन खुशिक मती से गाड़ी लेट थी; डॉ टर शु ला तथा अ य
लोग बारात का वागत करने टे शन पर जा रहे थे और च दर घर पर ही रह गया था जनवासे
का इ तजाम करने जनवासा बगल म था माथुर साहब के बँगले के दोन हॉल और कमरा
खाली करवा िलये गये थे च दर सुबह छह ही बजे आ गया था और जनवासे म सब सामान
लगवा िदया था नहाने का पानी और बाक इ तजाम कर वह घर आया जलपान का
इ तजाम तो केदार के हाथ म था लेिकन कुछ तौिलये िभजवाने थे
“िबनती, कुछ तौिलये िनकाल दो ” च दर ने िबनती से कहा
िबनती उद क दाल धो रही थी उसने फौरन उठकर हाथ धोये और कमरे क ओर चली गयी
“ऐ िबनती...” बुआजी ने भंडारे के अ दर से आवाज लगायी-”जाने कहाँ मर गयी महँु झ सी! अरे
िसंगार-पटार बाद म कर िलयो, काम म तिनक दीदा नै लगते बेसन का कन टर कहाँ रखा
है?”
“अभी आये!” िबनती ने च दर से कहा और अपनी माँ के पास दौड़ी, प ह िमनट हो गये
लेिकन िबनती लौटी ही नह याह का घर! हर तरफ से िबनती क पुकार मचती और िबनती
पंख लगाये उड़ रही थी जब िबनती नह लौटी तो च दर ने सुधा को ढुँढक़र कहा, “सुधी, एक
बहत बड़ा-सा तौिलया िनकाल दो ”
सुधा चुपचाप उठी और टडी- म म चली गयी च दर भी पीछे -पीछे गया
“बैठो, अभी िनकालकर लाते ह!” सुधा ने भरी हई आवाज म कहा और बगल के कमरे म चली
गयी वहाँ से लौटी तो उसके हाथ म मीठे क त तरी थी
“अरे खाने का व नह है, सुधा! आठ बजे लोग आ जाएँ गे ”
“अभी दो घंटे ह, खा लो च दर! अब कभी तु हारे काम म हरजा करके खाने को नह कहँ गी!”
सुधा बोली च दर चुप
“याद है, च दर! इसी जगह आँचल म िछपाकर नानखटाई लायी थी आओ, आज अपने हाथ से
िखला दँू कल ये हाथ पराये हो जाएँ गे और सुधा ने एक इमरती तोडक़र च दर के महँु म दे
दी च दर क आँख म दो आँसू छलक आये-सुधा ने अपने हाथ से आँसू प छ िदये और बोली,
“च दर, घर म कोई खाने का खयाल करने वाला नह है खाते-पीते जाना, तु ह हमारी कसम
है म शाहजहाँपुर से लौटकर आऊँगी तो दुबले मत िमलना ” च दर कुछ बोला नह आँसू
बहते गये, सुधा िखलाती गयी, वह खाता गया सुधा ने िगलास म पानी िदया, उसने हाथ धोया
और जेब से माल िनकाला
“ य , आज आँचल म हाथ नह प छोगे?” सुधा बोली च दर ने आँचल हाथ म ले िलया और
पलक पर आँचल दबाकर फूट-फूटकर रो पड़ा
“िछः, च दर! आज तो हम सँभल गये ह, हमने सब वीकार कर िलया चुपचाप अब तम ु
कमजोर मत बनो, तम ु ने कहा था, म शा त रहँ तो शा त हो गयी अब य मझ ु े भी लाओगे!
उठो ” च दर उठ खड़ा हआ
सुधा ने एक पान च दर के महँु म देकर क था उसक कमीज से लगा िदया च दर कुछ नह
बोला
“अरे , आज तो लड़ लो, च दर! आज से ख म कर देना ”
इतने म िबनती तौिलया ले आयी “दीदी, इ ह कुछ िखला दो ये खा नह रहे ह ” िबनती ने
कहा
“िखला िदया ” सुधा बोली, “देखो च दर, आज म नह रोऊँगी लेिकन एक शत पर तम ु
बराबर मेरे सामने रहना मंडप म रहोगे न?”
“हाँ, रहँ गा ” च दर ने आँसू पीते हए कहा
“कह चले मत जाना! मेरी आिखरी िबनती है ” सुधा बोली च दर तौिलया लेकर चला
आया
चँिू क बारात म कुल आठ ही लोग थे अत: घर क और माथुर साहब क दो ही कार से काम चल
गया जब ये लोग आये तो ना ते का सामान तैयार था और च दर चुपचाप बैठा था उसने
फौरन सबका सामान लगवाया और सामान रखवाकर वह जा ही रहा था िक कैलाश ने पीछे से
क धे पर हाथ रखकर उसे पीछे घुमा िलया और गले से लगकर बोला, “कहाँ चले कपरू साहब,
नम ते! चलो, पहले ना ता करो ” और ख चकर वह च दर को ले गया अपने बगल क मेज
पर िबठाकर, उसक चाय अपने हाथ से बनायी और बोला, “कुछ नाराज थे या, कपरू ? खत का
जवाब य नह देते थे?”
“हम तो बराबर खत का जवाब देते रहे , यार!” कपरू चाय पीते हए बोला
“अ छा तो हम घम ू ते रहे इधर-उधर, खत गड़बड़ हो गये ह गे ...लो, समोसा खाओ!” कैलाश ने
कहा च दर ने िसर िहलाया तो बोला, 'अरे , वाह याँ? शादी तु हारी नह हो रही है, हमारी हो
रही है, समझे? तम ु य तक लुफ कर रहे हो अ छा कपरू ...काम तो तु ह पर होगा सब!”
“हाँ!” कपरू बोला
“बड़ा अफसोस है, यार!” जब हम लोग पहली दफा िमले थे तो यह नह मालम ू था िक तम ु और
डॉ टर साहब इतना अ छा इनाम दोगे, अपने को बचाने का हमारे लायक कोई काम हो तो
बताओ!”
“आपक दुआ है!” च दर ने िसर झक ु ाकर कहा, और सभी हँ स पड़े इतने म शंकर बाबू डॉ टर
साहब के साथ आये और सब लोग चुप हो गये
20

िदन भर के यवहार से च दर ने देखा िक कैलाश भी उतना ही अ छा हँ समख ु और शालीन है


िजतने शंकर बाबू थे वह उसे राजनीितक े म िजतना फौलादी लगा था, घरे लू िजंदगी म
उतना ही अ छा लगा च दर का मन खुशी से नाच उठा सुधा क ओर से वह थोड़ा िनि त
हो गया अब सुधा िनभा ले जाएगी वह मौका िनकालकर घर म गया देखा, सुधा को
औरत घे रे हए बैठी ह और महावर लगा रही ह िबनती कन तर म से घी िनकाल रही थी
च दर गया और िबनती क चोटी घसीटकर बोला, “ओ िगलहरी, घी पी रही है या?”
िबनती ने दंग होकर च दर क ओर देखा आज तक कभी अ छे -भले म तो च दर ने उसे नह
िचढ़ाया था आज या हो गया? आज जबिक िपछले प ह रोज से च दर के होठ मस ु कराना
भल ू गये ह
“आँख फाड़कर या देख रही है? कैलाश बहत अ छा लड़का है, बहत अ छा अब सुधा बहत
सुखी रहे गी िकतना अ छा होगा, िबनती! हँ सती य नह िगलहरी!” और च दर ने िबनती
क बाँह म चुटक काट ली
“अ छा! हम दीदी समझा है या? अभी बताती हँ ” और घी भरे हाथ से च दर क बाँह
पकड़कर िबनती ने जोर से घुमा दी च दर ने अपने को छुड़ाया और िबनती को चपत मारकर
गन ु गन
ु ाता हआ चला गया
िबनती ने कन तर के महँु पर लगा घी प छा और मन म बोली, 'देवता और िकसे कहते ह?'
शाम को बारात चढ़ी सादी-सी बारात िसफ एक बड था कैलाश ने शेरवानी और पायजामा
पहना था, और टोपी िसफ एक माला गले म पड़ी थी और हाथ म कंगन बँधा था मौर पीछे
िकसी आदमी के हाथ म था जयमाला क र म होने वाली थी लेिकन बुआजी ने प कर
िदया िक हमारी लड़क कोई ऐसी-वैसी नह िक याह के पहले भरी बारात म महँु खोलकर माला
पहनाये लेिकन घँघ ू ट के मामले पर सुधा ने ढ़ता से मना िकया था, वह घँघू ट िब कुल नह
करे गी
अ त म पापा उसे लेकर मंडप म आये घर का काम-काज िनबट गया था सभी लोग आँगन
म बैठे थे कािमनी, भा, लीला सभी थ , एक ओर बाराती बैठे थे सुधा शा त थी लेिकन
उसका महँु हण के च मा क तरह िन तेज था मंडप का एक ब ब खराब हो गया था और
च दर सामने खड़ा उसे बदल रहा था सुधा ने जाते-जाते च दर को देखा और आँसू प छकर
मसु कराने लगी और मस ु कराकर िफर आँसू प छने लग कािमनी, भा, लीला तमाम लड़िकयाँ
कैलाश पर फि तयाँ कस रही थ सुधा िसर झक ु ाये बैठी थी पापा से उसने कहा, “िबनती
को हमारे पास भे ज दो ” िबनती आकर सुधा के पीछे बैठ गयी कैलाश ने आँख के इशारे से
च दर को बुलाया च दर जाकर पीछे बैठा तो कैलाश ने कहा, “यार, यहाँ जो लोग खड़े ह
इनका प रचय तो बता दो चुपके से!” च दर ने सभी का प रचय बताया कािमनी, भा, लीला
सभी के बारे म जब च दर बता रहा था तो िबनती बोली, “बड़े लालची मालम ू देते ह आप? एक से
स तोष नह है या? वाह रे जीजाजी!” कैलाश ने मस ु कराकर च दर से पछ
ू ा, “इसका याह तय
हआ िक नह ?”
“हो गया ” च दर ने कहा
“तभी बोलने का अ यास कर रही ह; मंडप म भी इसीिलए बैठी ह या?” कैलाश ने कहा
िबनती झप गयी और उठकर चली गयी
सं कार शु हआ कैलाश के हाथ म ना रयल और उसक मु ी पर सुधा के दोन हाथ सुधा
अब चुप थी इतनी चुप...इतनी चुप िक लगता था उसके होठ ने कभी बोलना जाना ही नह
सं कार के दौरान ही पार प रक वचन का समय आया कैलाश ने सभी ित ाएँ वयं कह
शंकरबाबू ने कहा, लड़क भी िशि त है और उसे भी वयं वचन करने ह गे सुधा ने िसर िहला
िदया एक अस तोष क लहर-सी बाराितय म फै ल गयी च दर ने िबनती को बुलाया
उसके कान म कहा, “जाकर सुधा से कह दो िक पागलपन नह करते इससे या फायदा?”
िबनती ने जाकर बहत धीरे से सुधा के कान म कहा सुधा ने िसर उठाकर देखा सामने
बरामदे क सीिढय़ पर च दर बैठा हआ बड़ा िचि तत-सा कभी शंकरबाबू क ओर देखता और
कभी सुधा क ओर सुधा से उसक िनगाह िमली और वह िसहर-सा उठा, सुधा ण-भर उसक
ओर देखती रही च दर ने जाने या कहा और सुधा ने आँख -ही-आँख म उसे या जवाब दे
िदया उसके बाद सुधा नीचे रखे हए पज ू ा के ना रयल पर लगे हए िस दरू को देखती रही िफर
एक बार च दर क ओर देखा िविच -सी थी वह िनगाह, िजसम कातरता नह थी, क णा
नह थी, आँसू नह थे, कमजोरी नह थी, था एक ग भीरतम िव ास, एक उपमाहीन ने ह, एक
स पण ू तम समपण लगा, जैसे वह कह रही हो-सचमच ु तमु कह रहे हो, िफर सोच लो
च दर...इतने ढ़ हो...इतने कठोर हो...मझ ु से महँु से य कहलवाना चाहते हो... या सारा सुख
लटू कर थोड़ी-सी आ मवंचना भी मेरे पास नह छोड़ोगे?...अ छा लो, मेरे देवता! और उसने
हारकर िससिकय से सने वर म अपने को कैलाश को समिपत कर िदया ित ाएँ दोहरा द
और उसके बाद साड़ी का एक छोर ख चकर, नथ क डोरी ठीक करने के बहाने उसने आँसू प छ
िलये
च दर ने एक गहरी साँस ली और बगल म बैठी हई बुआजी से कहा, “बुआजी, अब तो बैठा नह
जाता आँख म जैसे िकसी ने िमच भर दी हो ”
“जाओ...जाओ, सोय रहो ऊपर, खाट िबछी है कल सुबह दस बजे िवदा करे को है कुछ
खायो िपयो नै, तो पड़े रहबो!” बुआ ने बड़े ने ह से कहा
च दर ऊपर गया तो देखा एक खाट पर िबनती औंधी पड़ी िससक रही है “िबनती! िबनती!”
उसने िबनती को पकडक़र िहलाया िबनती फूट-फूटकर रो पड़ी
“उठ पगली, हम तो समझाती है, खुद अपने -आप पागलपन कर रही है ” च दर ने ँ धे गले से
कहा
िबनती उठकर एकदम च दर क गोद म समा गयी और ददनाक वर म बोली, “हाय
च दर...अब... या...होगा?”
च दर क आँख म आँसू आ गये, वह फूट पड़ा और िबनती को एक डूबते हए सहारे क तरह
पकडक़र उसक माँग पर महँु रखकर फूट-फूटकर रो पड़ा लेिकन िफर भी सँभल गया और
िबनती का माथा सहलाते हए और अपनी िससिकय को रोकते हए कहा, “रो मत पगली!”
धीरे -धीरे िबनती चुप हई और खाट के पास नीचे छत पर बैठ गयी और च दर के घुटन पर
हाथ रखकर बोली, “च दर, तम ु आना मत छोड़ना तम ु इसी तरह आते रहना! जब तक दीदी
ससुराल से लौट न आएँ ”
“अ छा!” च दर ने िबनती क पीठ पर हाथ रखकर कहा, “घबराते नह तम ु तो बहादुर
लड़क हो न! सब चीज बहादुरी से सहना चािहए कैसी दीदी क बहन हो? य ?”
िबनती उठकर नीचे चली गयी
च दर लेट रहा उसक पोर-पोर म दद हो रहा था नस-नस को जैसे कोई तोड़ रहा हो, ख च
रहा हो हड्िडय के रे शे-रे शे म थकान िमल गयी थी लेिकन उसे न द नही आयी आँगन म
पुरोिहतजी के मं -पाठ का वर और बीच-बीच म आने वाले िकसी बाराती या औरत क आवाज
उसके मन को अ त- य त कर देती थ उसक थकान और उसक अशाि त ही उसको बार-
बार झटके से जगा देती थी वह करवट बदलता, कभी ऊपर देखता, कभी आँख ब द कर लेता
िक शायद न द आ जाए लेिकन न द नह ही आयी धीरे -धीरे नीचे का रव भी शा त हो गया
सं कार भी समा हआ बाराती उठकर चलने लगे और वह आवाज से यह पहचानने क
कोिशश करने लगा िक अब कौन या कर रहा है धीरे -धीरे सब शोर शा त हो गया
च दर ने िफर करवट बदली और आँख ब द कर ली धीरे -धीरे एक कोहरा उसके मन पर छा
गया वह इतना जागा िक अब अगर वह आँख भी ब द करता तो जब पलक पुतिलय से छा
जात तो एक बहत कड़आ दद होने लगा था जैसे-तैसे उसक थोड़ी-सी आँख लगी...
िकसी ने सहसा जगा िदया पलक ब द करने म िजतना दद हआ था उतना ही पलक खोलने
म उसने पलक खोल -देखा सामने सुधा खड़ी थी...
माँग और माथे म िस दरू , कलाई म कंगन, हाथ म अँगिू ठयाँ, कड़े , चड़ू े , गले म गहने , बड़ी-सी
नथुनी डोरे के सहारे कान म बँधी हई, आँख-िजनम भाद क घटाओं क गरज खामोश हो रही
बरसात-सी हो गयी थी
वह ण-भर पैताने खड़ी रही च दर उठकर बैठ गया! उसका िदल इस तरह धडक़ रहा था
जैसे िकसी के सामने भा य का ठा हआ देवता खड़ा हो सुधा कुछ बोली नह उसने दोन
हाथ जोड़े और झक ु कर च दर के पैर पर माथा टे क िदया च दर ने उसके िसर पर हाथ
रखकर कहा, “ई र तु हारा सुहाग अटल करे ! तम ु बहत महान हो मझ ु े तम
ु पर आज से गव
है आज तक तम ु जो कुछ थी उससे कह यादा हो मेरे िलए, सुधा!”
सुधा कुछ बोली नह आँचल से आँसू प छती हई पायताने जमीन पर बैठ गयी और अपने गले
से एक बेले का हार उतारा उसे तोड़ डाला और च दर के पाँव ख चकर खाट के नीचे जमीन
पर रख िलये
“अरे यह या कर रही हो, सुधा ” च दर ने कहा
“जो मेरे मन म आएगा!” बहत मिु कल से ँ धे गले से सुधा बोली, “मझ ु े िकसी का डर नह , तम ु
जो कुछ दंड दे चुके हो, उससे बड़ा दंड तो अब भगवान भी नह दे सकगे?” सुधा ने च दर के
पाँव पर फूल रखकर उ ह चम ू िलया और अपनी कलाई म बँधी हई एक पुिड़या खोलकर उसम से
थोड़ा-सा िस दरू उन फूल पर िछडक़कर, च दर के पाँव पर िसर रखकर चुपचाप रोती रही
थोड़ी देर बाद उठी और उन फूल को समेटा अपने आँचल के छोर म उ ह बाँध िलया और
उठकर चली...धीमे-धीमे िन:श द...
“कहाँ चली, सुधा?” च दर ने सुधा का हाथ पकड़ िलया
“कह नह !” अपना हाथ छुड़ाते हए सुधा ने कहा
“नह -नह , सुधा, लाओ ये हम रखगे!” च दर ने सुधा को रोकते हए कहा
“बेकार है, च दर! कल तक, परस तक ये जठ ू े हो जाएँ गे, देवता मेरे!” और सुधा िससकते हए
चली गयी
एक चमकदार िसतारा टूटा और परू े आकाश पर िफसलते हए जाने िकस ि ितज म खो गया
21

दसू रे िदन आठ बजे तक सारा सामान टे शन पहँ च गया था शंकर बाबू और डॉ टर साहब
पहले ही टे शन पहँ च गये थे बाराती भी सब वह चले गये थे कैलाश और सुधा को टे शन
तक लाने का िज मा च दर पर था बहत ज दी करते-कराते भी सवा नौ बजे गये थे उसने
िफर जाकर कहा कैलाश और सुधा खड़े हए थे पीछे से नाइन सुधा के िसर पर पंखा रखी
थी और बुआजी रोचना कर रही थ च दर के ज दी मचाने पर अ त म उ ह फुरसत िमली और
वह आगे बढ़े मोटर पर सुधा ने य ही पाँव रखा िक िबनती पाँव से िलपट गयी और रोने
लगी सुधा जोर से िबलख-िबलखकर रो पड़ी च दर ने िबनती को छुड़ाया सुधा पीछे
बैठकर िखड़क पर महँु रखकर िससकती रही मोटर चल दी सुधा मड ु क़र अपने घर क ओर
देख रही थी िबनती ने हाथ जोड़े तो सुधा चीखकर रो पड़ी िफर चुप हो गयी
टे शन पर भी सुधा िब कुल शा त रही सुधा और कैलाश के िलए सेकड लास म एक बथ
सुरि त थी बाक लोग ड्योढ़े म थे शंकर बाबू ने दोन को उस िड बे म पहँ चाया और बोले,
“कैलाश, तम ु जरा हमारे साथ आओ िम टर कपरू , जरा बह के पास आप रिहए म डॉ टर
साहब को यहाँ भे ज रहा हँ ”
च दर िखडक़ के पास खड़ा हो गया शंकर बाबू का छोटा ब चा आकर अपनी नयी चाची के
पास बैठ गया और उनक रे शमी चादर से खे लने लगा च दर चुपचाप खड़ा था
सहसा सुधा ने उसके हाथ पर अपना मेहँदी लगा हाथ रख िदया और धीमे से कहा, “च दर!”
च दर ने मड ु क़र देखा तो बोली, “अब कुछ सोचो मत इधर देखो!” और सुधा ने जाने िकतने
दुलार से च दर से कहा, “देखो, िबनती का यान रखना उसे तु हारे ही भरोसे छोड़ रही हँ
और सुनो, पापा को रात को सोते व दध ू म ओव टीन ज र दे देना खाने -पीने म गड़बड़ी
मत करना, यह मत समझना िक सुधा मर गयी तो िफर िबना दध ू क चाय पीने लगो हम
ज दी से आ जाएँ गे प मी का कोई खत आये तो हम िलखना ”
इतने म डॉ टर साहब और कैलाश आ गये कैलाश क पाटमट के बाथ म म चला गया
डॉ टर साहब आये और सुधा के िसर पर हाथ रखकर बोले, “बेटा! आज तेरी माँ होती तो िकतना
अ छा होता और देख, महीने -भर म बुला लगे तझ ु े! वहाँ घबराना मत ”
गाड़ी ने सीटी दी
पापा ने कहा, “बेटा, अब ठीक से रहना और भावुकता या बचपना मत करना समझी!” पापा
ने आँख से माल लगा िलया-”िववाह बहत बड़ा उ रदािय व है अब तु हारी नयी िजंदगी है
अब तक बेटी थी, अब बह हो... ”
सुधा बोली, “पापा, तु हारा ओव टीन का िड बा शीशे वाली मेज पर है उसे पी िलया करना
और पापा, िबनती को गाँव मत भे जना च दर को अब घर पर ही बुला लो तम ु अकेले पड़
गये! और हम ज दी बुला लेना...”
गाड ने सीटी दी कैलाश ने ज दी से डॉ टर साहब के पैर छुए च दर से हाथ िमला िलया
सुधा बोली, “च दर, ये पुजा िबनती को देना और देखो मेरा नतीजा िनकले तो तार देना ”
गाड़ी चल पड़ी “अ छा पापा, अ छा च दर...” सुधा ने हाथ जोड़े और िखडक़ पर िटककर
रोने लगी और बार-बार आँसू प छ-प छकर देखने लगी ...
गाड़ी लेटफाम के बाहर चली गयी तब च दर मड़ ु ा उसके बदन म पोर-पोर म दद हो रहा था
वह कैसे घर पर पहँ चा उसे मालम
ू नह
ि तीय ख ड

22

च दर को ह ते-भर तक होश नह रहा शादी के िदन म उसे एक नशा था िजसके बल पर वह


मशीन क तरह काम करता गया शादी के बाद इतनी भयंकर थकावट उसक नस म कसक
उठी िक उसका चलना-िफरना मिु कल हो गया था वह अपने घर से होटल तक खाना खाने
नह जा पाता था बस पड़ा-पड़ा सोता रहता सुबह नौ बजे सोता; पाँच बजे उठता; थोड़ी देर
होटल म बैठकर िफर वापस आ जाता चुपचाप छत पर लेटा रहता और िफर सो जाता उसका
मन एक उजड़े हए नीड़ क तरह था िजसम से िवचार, अनुभिू त, प दन और रस के िवहं गम
कह दरू उड़ गये थे लगता था, जैसे वह सब कुछ भल ू गया है सुधा, िबनती, प मी, डॉ टर
साहब, रसच, थीिसस, सभी कुछ! ये सब चीज कभी-कभी उसके मन म नाच जात लेिकन
च दर को ऐसा लगता िक ये िकसी ऐसी दुिनया क चीज ह िजसको वह भल ू गया है, जो उसके
मिृ त-पटल से िमट चुक है, कोई ऐसी दुिनया जो कभी थी, कह थी, लेिकन िकसी भयंकर
जल लय ने िजसका कण-कण व त कर िदया था उसक दुिनया अपनी छत तक सीिमत थी,
छत के चार ओर क ऊँची दीवार और उन चारदीवार से बँधे हए आकाश के चौकोर टुकड़े तक
ही उसके मन क उड़ान बँध गयी थी उजाला पाख था पहले वह लु धक तारे क रोशनी
देखता िफर धीरे -धीरे चाँद क दिू धया रोशनी सफेद कफन क तरह छा जाती और वह मन म
थके हए वर जैसे चाँदनी को ओढ़ता हआ-सा कहता, “सो जा मरु दे...सो जा ”
छठे िदन उसका मन कुछ ठीक हआ थकावट, जो एक कचुल क तरह उस पर छायी हई थी,
धीरे -धीरे उतर गयी और उसे लगा जैसे मन म कुछ टूटा हआ-सा दद कसक रहा है यह दद य
है, कैसा है, यह उसके कुछ समझ म नह आता था पाँच बजे थे लेिकन धपू िब कुल नह थी
पीले उदास बादल क एक झीनी तह ने ढलते हए आषाढ़ के सरू ज को ढँक िलया था हवा म
एक ठं डक आ गयी थी; लगता था िक झ के िकसी वषा के देश से आ रहे ह वह उठा, नहाया
और िबनती के घर चल पड़ा
डॉ टर शु ला लॉन पर हाथ म िकताब िलये टहल रहे थे पाँच िदन म जैसे वह बहत बढ़ ू े हो
गये थे बहत झक ु े हए-से िन तेज चे हरा, डबडबायी आँख और चाल म जैसे उ थक गयी हो
उ ह ने च दर का वागत भी उस तरह नह िकया जैसे पहले करते थे िसफ इतना बोले,
“च दर, दो दफे ाइवर को भे जकर बुलाया तो मालम ू हआ तमु सो रहे हो अब अपना सामान
यह ले आओ ” और वे बैठकर िकताब उलट-पलट कर देखने लगे अभी तक वे बढ़ ू े थे, उनका
यि व त ण था आज लगता था जैसे उनके यि व पर झु रयाँ पडऩे लगी ह, उनके
यि व क कमर भी झक ु गयी है च दर कुछ नह बोला चुपचाप खड़ा रहा सामने
आकाश पर एक अजब-सी जद छा रही थी डॉ टर साहब ने िकताब ब द क और बोले, “सुना
है...कॉलेज के ि ि सपल आ गये ह जाऊँ जरा उनसे तु हारे बारे म बात कर आऊँ तम ु जाओ,
सुधा का खत आया है िबनती के पास ”
“बुआजी ह?” च दर ने पछ ू ा
“नह , आज ही सुबह तो गय हम लोग िकतना रोकते रहे लेिकन उ ह कह और चैन ही नह
पड़ता िबनती को बड़ी मिु कल से रोका मने ” और डॉ टर साहब गैरेज क ओर चल पड़े
च दर भीतर गया सारा घर इतना सुनसान था, इतना भयंकर स नाटा िक च दर के रोएँ -रोएँ
खड़े हो गये शायद मौत के बाद का घर भी इतना नीरव और इतना भयानक न लगता होगा
िजतना यह शादी के बाद का घर िसफ रसोई से कुछ खटपट क आवाज आ रही थी
“िबनती!” च दर ने पुकारा िबनती चौके म थी वह िनकल आयी िबनती को देखते ही
च दर दंग हो गया वह लड़क इतनी दुबली हो गयी थी िक जैसे बीमार हो रो-रोकर उसक
आँख सज ू गयी थ और होठ मोटे पड़ गये थे च दर को देखते ही उसने कड़ाही उतारकर नीचे
रख दी और िबखरी हई लट सुधारकर, आँचल ठीक कर बाहर िनकल आयी कमरे से ख चकर
एक चौक आँगन म डालकर च दर से बहत उदास वर म बोली, “बैिठए!”
“घर िकतना सन ू ा लग रहा है िबनती, तम ु अकेले कैसे रहती होगी?” च दर ने कहा िबनती
क आँख म आँसू छलछला आये
“िबनती, रोती य हो? िछः! मझ ु े देखो म कैसे प थर बन गया हँ य ? तमु तो इतनी
अ छी लड़क हो ” च दर ने िबनती के क धे पर हाथ रखकर कहा
िबनती ने आँसू भरी पलक च दर क ओर उठाय और बड़े ही कातर वर म कहा, “आप देवता
हो सकते ह, लेिकन हरे क तो देवता नह है िफर आपने कहा था आप आएँ गे बराबर िपछले
ह ते से आये भी नह यह भी नह सोचा िक हमारा या हाल होगा! रोज सुबह-शाम कोई भी
आता तो हम दौडक़र देखते िक आप आये ह या नह दीदी आपक थ ! बस उन तक आपका
र ता था हम तो आपके कोई नह ह ”
“नह िबनती! इतने थक गये थे िक हम कह आने -जाने क िह मत ही नह पड़ती थी बुआजी
को जाने य िदया तम ु ने ? उ ह रोक लेती!” च दर ने कहा
“अरे , वह थ तो रोने भी नह देती थ म दो-तीन िदन तक रोयी तो मझ ु पर बहत िबगड़ और
महरािजन से बोल , “हमने तो ऐसी लड़क ही नह देखी बड़ी बहन का याह हो गया तो मारे
जलन के िदन-रात आँसू बहा-बहाकर अमंगल बनाती है जब बखत आएगा तभी शादी करगे
िक अभी ही िकसी के साथ िनकाल दँू ” िबनती ने एक गहरी साँस लेकर कहा, “आप समझ
नह सकते िक िजंदगी िकतनी खराब है अब तो हमारी तबीयत होती है िक मर जाएँ अभी
तक दीदी थ , सहारा िदये रहती थ िह मत बँधाये रहती थ , अब तो कोई नह हमारा ”
“िछः, ऐसी बात नह करते, िबनती! महीने -भर म सुधा आ जाएगी और माँ क बात का या
बुरा मानना?”
“आप लड़क होते तो समझते, च दर बाब!ू ” िबनती बोली और जाकर एक त तरी म ना ता ले
आयी, “लो, दीदी कह गयी थ िक च दर के खाने -पीने का खयाल रखना लेिकन यह िकसको
मालम ू था िक दीदी के जाते ही च दर गैर हो जाएँ गे ”
“नह िबनती, तम ु गलत समझ रही हो जाने य एक अजीब-सी िख नता मन म आ गयी
थी कुछ करने क तबीयत ही नह होती थी आज कुछ तबीयत ठीक हई तो सबसे पहले
तु हारे ही पास आया िबनती! अब सुधा के बाद मेरा है ही कौन, िसवा तु हारे ?” च दर ने बहत
उदास वर म कहा
“तभी न! उस िदन म बुलाती रह गयी और आप यह गये, वह गये और आँख से ओझल! मने तो
उसी िदन समझ िलया था िक अब पुराने च दर बाबू बदल गये ” िबनती ने रोते हए कहा
च दर का मन भर आया था, गले म आँसू अटक रहे थे लेिकन आदमी क िजंदगी भी कैसी अजब
होती है वह रो भी नह सकता था, माथे पर दुख क रे खा भी झलकने नह दे सकता था,
इसिलए िक सामने कोई ऐसा था, जो खुद दुखी था और सुधा क थाती होने के नाते िबनती को
समझाना उसका पहला कत य था िबनती के आँसू रोकने के िलए वह खुद अपने आँसू पी
गया और िबनती से बोला, “लो, कुछ तम ु भी खाओ ” िबनती ने मना िकया तो उसने अपने
हाथ से िबनती को िखला िदया िबनती चुपचाप खाती रही और रह-रहकर आँसू प छती रही
इतने म महरािजन आयी िबनती ने चौके के काम समझा िदये और च दर से बोली, “चिलए,
ऊपर चल ” च दर ने चार ओर देखा घर का स नाटा वैसा ही था सहसा उसके मन म
एक अजीब-सी बात आयी सुधा के साथ कभी भी कह भी वह जा सकता था, लेिकन िबनती
के साथ छत पर अकेले जाने म य उसके अ त:करण ने गवाही नह दी वह चुपचाप बैठा
रहा िबनती कुछ भी हो, िकतनी ही समीप य न हो, िबनती सुधा नह थी, सुधा नह हो
सकती थी “नह , यह ठीक है ” च दर बोला
िबनती गयी सुधा का प ले आयी च दर का मन जाने कैसा होने लगा लगता था जैसे
अब आँसू नह कगे उसके मन म िसफ इतना आया िक अभी बह र घंटे पहले सुधा यह थी,
इस घर क ाण थी; आज लगता है जैसे इस घर म सुधा थी ही नह ...
आँगन म अँधेरा होने लगा था वह उठकर सुधा के कमरे के सामने पड़ी हई कोच पर बैठ गया
और िबनती ने ब ी जला दी खत छोटा-सा था-
“डॉ टर च दर बाब,ू
या तमु कभी सोचते थे िक तम ु इतनी दरू होगे और म तु ह खत िलखँग ू ी लेिकन खैर!
अब तो घर म चैन क बंसी बजाते ह गे एक अकेले म ही काँटे-जैसी खटक रही थी, उसे भी
तमु ने िनकाल फका अब तु ह न कोई परे शान करता होगा, न तु हारे पढ़ने -िलखने म बाधा
पहँ चती होगी अब तो तम ु एक महीने म दस-बारह थीिसस िलख डालोगे
जहाँ िदन म चौबीस घंटे तम ु आँख के सामने रहते थे, वहाँ अब तु हारे बारे म एक श द सुनने के
िलए तड़प उठती हँ कई दफे तबीयत आती है िक जैसे िबनती से तु हारे बारे म बात करती थी
वैसे ही इनसे (तु हारे िम से) तु हारे बारे म बात क ँ लेिकन ये तो जाने कैसी-कैसी बात करते

और सब ठीक है यहाँ बहत आजादी है मझ ु े माँजी भी बहत अ छी ह परदा िब कुल नह
करत अपने पज ू ा के सारे बरतन पहले ही िदन हमसे मँजवाये
देखो, पापा का यान रखना और िबनती को जैसे म छोड़ आयी हँ उतनी ही मोटी रहे म
महीने -भर बाद आकर तु ह से िबनती को वापस लँग ू ी, समझे? यह न करना िक म न रहँ तो मेरे
बजाय िबनती को ला- लाकर, कुढ़ा-कुढ़ाकर मार डालो, जैसी तु हारी आदत है
चाय यादा मत पीना-खत का जवाब फौरन!
तु हारी-सुधा ”
च दर ने िच ी एक बार िफर पढ़ी, दो बार पढ़ी, और बार-बार पढ़ता गया हलके हरे कागज पर
छोटे -छोटे काले अ र जाने कैसे लग रहे थे जाने या कह रहे थे, छोटे -छोटे अथात कुछ उनम
अथ था जो श द से भी यादा ग भीर था युग पहले वैयाकरण ने उन श द के जो अथ
िनि त िकये थे, सुधा क कलम से जैसे उन श द को एक नया अथ िमल गया था च दर
बेसुध-सा त मय होकर उस खत को बार-बार पढ़ता गया और िकस समय वे छोटे -छोटे नादान
अ र उसके दय के चार ओर कवच-जैसे बौि कता और स तल ु न के लौह प को चीरकर
अ दर िबंध गये और दय क धड़कन को मरोडऩा शु कर िदया, यह च दर को खुद नह
मालम ू हआ जब तक िक उसक पलक से एक गरम आँसू खत पर नह टपक पड़ा लेिकन
उसने िबनती से वह आँसू िछपा िलया और खत मोड़क़र िबनती को दे िदया िबनती ने खत
लेकर रख िलया और बोली, “अब चिलए खाना खा लीिजए!” च दर इनकार नह कर सका
महरािजन ने थाली लगायी और बोली, “भइया, नीचे अबिहन आँगन धोवा जाई, आप जाय के
ऊपर खाय लेव ”
च दर को मजबरू न ऊपर जाना पड़ा िबनती ने खाट िबछा दी एक टूल डाल िदया पानी
रख िदया और नीचे थाली लाने चली गयी च दर का मन भारी हो गया था यह वही जगह
है, वही खाट है िजस पर शादी क रात वह सोया था इसी के पैताने सुधा आकर बैठी थी अपने
नये सुहाग म िलपटी हई-सी यही पर सुधा के आँसू िगरे थे...
िबनती थाली लेकर आयी और नीचे बैठकर पंखा करने लगी
“हमारी तबीयत तो है ही नह खाने क , िबनती!” च दर ने भराये हए वर म कहा
“अरे , िबना खाये-पीये कैसे काम चलेगा? और िफर आप ऐसा करगे तो हमारी या हालत होगी?
दीदी के बाद और कौन सहारा है! खाइए!” और िबनती ने अपने हाथ से एक कौर बनाकर
च दर को िखला िदया! च दर खाने लगा च दर चुप था, वह जाने या सोच रहा था
िबनती चुपचाप बैठी पंखा झल रही थी
“ या सोच रहे ह आप?” िबनती ने पछ ू ा
“कुछ नह !” च दर ने उतनी ही उदासी से कहा
“नह बताइएगा?” िबनती ने बड़े कातर वर से कहा
च दर एक फ क मस ु कान के साथ बोला, “िबनती! अब तम ु इतना यान न रखा करो! तम ु
समझती नह , बाद म िकतनी तकलीफ होती है सुधा ने या कर िदया है यह वह खुद नह
समझती!”
“कौन नह समझता!” िबनती एक गहरी साँस लेकर बोली, “दीदी नह समझती या हम नह
समझते! सब समझते ह लेिकन जाने मन कैसा पागल है िक सब कुछ समझकर धोखा खाता
है अरे दही तो आपने खाया ही नह ” वह पड़ ू ी लाने चली गयी
23

और इस तरह िदन कटने लगे जब आदमी अपने हाथ से आँसू मोल लेता है, अपने -आप दद का
सौदा करता है, तब दद और आँसू तकलीफ-देह नह लगते और जब कोई ऐसा हो जो आपके
दद के आधार पर आपको देवता बनाने के िलए तैयार हो और आपके एक-एक आँसू पर अपने
सौ-सौ आँसू िबखे र दे, तब तो कभी-कभी तकलीफ भी भली मालम ू देने लगती है लेिकन िफर
भी च दर के िदन कैसे कट रहे थे यह वही जानता था लेिकन अकबर के महल म जलते हए
दीपक को देखकर अगर िकसी ने जाड़े क रात जमन ु ा के घुटन -घुटन पानी म खड़े होकर
काट दी, तो च दर अगर सुधा के यारे - यारे खत के सहारे समय काट रहा था तो कोई ता जुब
नह अपने अ ययन म ौढ़, अपने िवचार म उदार होने के बावजदू च दर अपने वभाव म
ब चा था, िजससे िजंदगी कुछ भी करवा सकती थी बशत िजंदगी को यह आता हो िक इस भोले-
भाले ब चे को कैसे बहलावा िदया जाये
बहलावे के िलए मस ु कान ही ज री नह होती ह, शायद आँसुओ ं से मन ज दी बहल जाता है
िबनती के आँसुओ ं म च दर सुधा क तसवीर देखता था और बहल जाता था वह रोज शाम को
आता और िबनती से सुधा क बात करता, जाने िकतनी बात, जाने कैसी बात और िबनती के
मा यम से सुधा म डूबकर चला आता था चँिू क सुधा के िबना उसका िदन कटना मिु कल था,
एक ण कटना मिु कल था इसिलए िबनती उसक एक ज रत बन गयी थी वह जब तक
िबनती से सुधा क बात नह कर लेता था, तब तक जैसे वह बेचन ै रहता था, तब तक उसक
िकसी काम म तबीयत नह लगती थी
जब तक सुधा सामने रही, कभी भी उसे यह नह मालम ू हआ िक सुधा का या मह व है उसक
िजंदगी म आज जब सुधा दरू थी तो उसने देखा िक सुधा उसक साँस से भी यादा आव यक
थी उसक िजंदगी के िलए लगता था वह एक ण सुधा के िबना िज दा नह रह सकता
सुधा के अभाव म िबनती के मा यम से वह सुधा को ढूँढ़ता था और जैसे सरू ज के डूब जाने पर
चाँद सरू ज क रोशनी उधार लेकर रात को उिजयारा कर देता है उसी तरह िबनती सुधा क याद
से च दर के ाण पर उिजयारी िबखे रती रही च दर िबनती को इस तरह अपनी साँस क
छाँह म दुबकाये रहा जैसे िबनती सुधा का पश हो, सुधा का यार हो
िबनती भी च दर के माथे पर उदासी के बादल देखते ही तड़प उठती थी लेिकन िफर भी
िबनती च दर को हँ सा नह पायी च दर का पुराना उ लास लौटा नह साँप का काटा हआ
जैसे लहर लेता है वैसे ही च दर क नस म फै ला हआ उदासी का जहर रह-रहकर च दर को
झकझोर देता था उन िदन दो-दो तीन-तीन िदन तक च दर कुछ नह करता था, िबनती के
पास भी नह जाता था, िबनती के आँसुओ ं क भी परवाह नह करता था खाना नह खाता
था, और अपने को िजतनी तकलीफ हो सकती थी, देता था िफर य ही सुधा का कोई खत
आता था, वह उसे चम ू लेता और िफर व थ हो जाता था िबनती चाहे िजतना करे लेिकन
च दर क इन भयंकर उदासी क लहर को च दर से छीन नह पायी थी चाँद िकतनी
कोिशश य न करे , वह रात को िदन नह बना सकता
लेिकन आदमी हँ सता है, दुख-दद सभी म आदमी हँ सता है जैसे हँ सते-हँ सते आदमी क
स नता थक जाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदमी क उदासी थक जाती है और आदमी
करवट बदलता है तािक हँ सी क छाँह म कुछ िव ाम कर िफर वह आँसुओ ं क कड़ी धपू म चल
सके
ऐसी ही एक सुबह थी जबिक च दर के उदास मन म आ रहा था िक वह थोड़ी देर हँ स भी ले
बात य हई थी िक उसे शेली क एक किवता बहत पस द आयी थी िजसम शैली ने भारतीय
मलयज को स बोिधत िकया है उसने अपना शेली-क ट्स का थ उठाया और उसे खोला तो
वही आम के अचार के दाग सामने पड़ गये जो सुधा ने शरारतन डाल िदये थे बस वह शेली क
किवता तो भल ू गया और उसे याद आ गयी आम क फाँक और सुधा क शरारत से भरी शोख
आँख िफर तो एक के बाद दस ू री शरारत ाण म उठ-उठकर च दर क नस को गद ु गद
ु ाने
लगी और च दर उस िदन जाने य हँ सने के िलए याकुल हो उठा उसे ऐसा लगा जैसे सुधा
क यह दरू ी, यह अलगाव सभी कुछ झठ ू है सच तो वे सुनहले िदन थे जो सुधा क शरारत से
मसु कराते थे, सुधा के दुलार म जगमगाते थे और कुछ भी हो जाये, सुधा उसके जीवन का एक
ऐसा अमर स य है जो कभी भी डगमगा नह सकता अगर वह उदास होता है, दु:खी होता है
तो वह गलत है वह अपने ही आदश को झठ ू ा बना रहा है, अपने ही सपने का अपमान कर रहा
है और उसी िदन सुधा का खत भी आया िजसम सुधा ने साफ-साफ तो नह पर इशारे से
िलखा था िक वह च दर के भरोसे ही िकसी तरह िदन काट रही थी उसने सुधा को एक प
िलखा, िजसम वही शरारत, वही िखझाने क बात थ जो वह हमेशा सुधा से करता था लेिकन
िजसे वह िपछले तीन महीने म भल ू गया था
उसके बाद वह िबनती के यहाँ गया
िबनती अपनी धोती म ोिशया क बेल टाँक रही थी “ले िगलहरी, तेरी दीदी का खत! लाओ,
िमठाई िखलाओ ”
“हम काहे को िखलाएँ ! आप िखलाइए जो िखले पड़े ह आज!” िबनती बोली
“हम! हम य िखलाएँ गे! यहाँ तो सुधा का नाम सुनते ही तबीयत कुढ़ जाती है!”
“अरे चिलए, आपका घर मेरा देखा है मझ ु से नह बन सकते आप!” िबनती ने महँु िचढ़ाकर
कहा, “आज बड़े खुश ह!”
“हाँ, िबनती...” एक गहरी साँस लेकर च दर चुप हो गया, “कभी-कभी उदासी भी थक जाती
है!” और महँु झकु ाकर बैठ गया
“ य , या हआ?” िबनती ने च दर क बाँह म सुई चुभो दी-च दर च क उठा “हमारी श ल
देखते ही आपके चे हरे पर महु रम छा जाता है!”
“अजी नह , आपका मख ु -मंडल देखकर तो आकाश म च मा भी लि जत हो जाता होगा,
ीमती िबनती िवदुषी!” च दर ने हँ सकर कहा आज च दर बहत खुश था
िबनती लजा गयी और िफर उसके गाल म फूल के कटोरे िखल गये और उसने च दर के क धे
से िफर सईू चुभोकर कहा, “आपको एक बड़े मजे क बात बतानी है आज!”
“ या?”
“िफर हँ िसएगा मत! और िचढ़ाइएगा नह !” िबनती बोली
“कुछ तेरे याह क बात होगी!” च दर ने कहा
“नह , याह क नह , ेम क !” िबनती ने हँ सकर कहा और झप गयी
“अ छा, िगलहरी को यह रोग कब सेï?” च दर ने हँ सकर पछ ू ा, “अपनी माँजी क शकल देखी
है न, काटकर कुएँ म फक दगी तझ ु े!”
“अब या कर, कोई िसर पर ेम मढ़ ही दे तो!” िबनती ने बड़े आ मिव ास से कहा थी बड़ी
खुले वभाव क लड़क
“आिखर कौन अभागा है वह! जरा नाम तो सुन ” च दर बोला
“हमारे महाकिव मा टर साहब ” िबनती ने हँ सकर कहा
“अ छा, यह कब से! तन ू े पहले तो कभी बताया नह ”
“अब तो जाकर हम मालम ू हआ पहले सोचा दीदी को िलख द िफर कहा वहाँ जाने िकसके
हाथ म िच ी पड़े तो सोचा तु ह बता द!”
“हआ या आिखर?” च दर ने पछ ू ा
“बात यह हई िक पहले तो हम दीदी के साथ पढ़ते थे तब तो मा टर साहब कुछ नह बोलते थे,
इधर जबसे हम अकेले पढऩे लगे तब से किवताएँ समझाने के बहाने दुिनया-भर क बात करते
रहे एक बार क दगु पढ़ाते-पढ़ाते बड़ी ठं डी साँस लेकर बोले, काश िक आप भी देवसेना
बन सकत बड़ा गु सा आया मझ ु े मन म आया कह दँू िक म तो देवसेना बन जाती लेिकन
आप अपना किव स मेलन का पे शा छोड़कर क दगु कैसे बन पाएँ गे लेिकन िफर मने कुछ
कहा नह दीदी से सब बात कह दी दीदी तो ह ही लापरवाह कुछ कहा ही नह उ ह ने
और मा टर साहब वैसे अ छे ह, पढ़ाते भी अ छा ह, लेिकन यह िफतरू जाने कैसे उनके िदमाग म
चढ़ गया ” िबनती बड़े सहज वभाव से बोली
“लेिकन इधर या हआ?” च दर ने पछ ू ा
“अभी कल आये, एक हाथ म उनके एक मोटी-सी कॉपी थी दे गये तो देखा वह उनक
किवताओं का सं ह है और उसका नाम उ ह ने रखा है 'िबनती' अभी आते ह गे या कर
कुछ समझ म नह आता अभी तक दीदी के भरोसे हमने सब छोड़ िदया था वह पता नह
कब आएँ गी ”
“अ छा लाओ, वह सं ह हम दे दो ” च दर ने कहा, “और िबस रया से कह देना वह च दर के
हाथ पड़ गया िफर कल सुबह तु ह मजा िदखलाएँ गे लेिकन हाँ, यह पहले बता दो िक
तु हारा तो कुछ झक
ु ाव नह है उधर, वरना बाद म हम कोसो?” च दर ने छे ड़ते हए कहा
ु लमान भी हो तो बेहना के संग! किवय से यार लगाकर कौन बवालत पाले!”
“अरे हाँ, मस
िबनती ने झपते हए कहा
24

दसू रे िदन सुबह पहँ चा तो िबस रया साहब पढ़ा रहे थे िबस रया क श ल पर कुछ मायस ू ी,
कुछ परे शानी, कुछ िच ता थी उसको िबनती ने बता िदया िक सं ह च दर के पास पहँ च गया
है च दर को देखते ही वह बोला, “अरे कपरू , या हाल है?” और उसके बाद अपने को िनद ष
बताने के िलए फौरन बोला, “कहो, हमारा सं ह देखा है?”
“हाँ देखा है, जरा आप इ ह पढ़ा लीिजए आपसे कुछ ज री बात करनी ह ” च दर ने इतने
कठोर वर म कहा िक िबस रया के िदल क धडक़न डूबने -सी लग वह काँपती हई आवाज म
बहत मिु कल से अपने को स हालते हए बोला, “कैसी बात? कपरू , तम ु कुछ गलत समझ रहे
हो ”
कपरू एक उपे ा क हँ सी हँ सा और चला गया डॉ टर साहब पज ू ा करके उठे थे दोन म बात
होती रह उनसे मालम ू हआ िक अगले महीने म स भवत: च दर क िनयुि हो जाएगी और
तीन िदन बाद डॉ टर साहब खुद सुधा को लाने के िलए शाहजहाँपुर जाएँ गे उ ह ने बुआजी
को प िलखा है िक यिद वह आ जाएँ तो अ छा है, वरना च दर को दो-तीन िदन बाद यह
रहना पड़े गा य िक िबनती अकेली है च दर क बात दस ू री है लेिकन और लोग के भरोसे
डॉ टर साहब िबनती को अकेले नह छोड़ सकते
अिव ास आदमी क विृ य को िजतना िबगाड़ता है, िव ास आदमी को उतना ही बनाता है
डॉ टर साहब च दर पर िजतना िव ास करते थे, सुधा च दर पर िजतना िव ास करती थी
और इधर िबनती उस पर िजतना िव ास करने लगी थी उसके कारण च दर के च र म इतनी
ढ़ता आ गयी थी िक वह फौलाद बन गया था ऐसे अवसर पर जब मनु य को ग भीरतम
उ रदािय व स पा जाता है तब वभावत: आदमी के च र म एक िविच -सा िनखार आ जाता
है यह िनखार च दर के च र म बहत उभरकर आया था और यहाँ तक िक बुआजी अपनी
लड़क पर अिव ास कर सकती थ , वह भी च दर को देवता ही मानती थ , िबनती पर और
चाहे जो ब धन हो लेिकन च दर के हाथ म िबनती को छोड़कर वे िनि त थ
डॉ टर साहब और च दर बैठे बात कर ही रहे थे िक िबनती ने आकर कहा, “चिलए, मा टर
साहब आपका इ तजार कर रहे ह!” च दर उठ खड़ा हआ रा ते म िबनती बोली, “हमसे बहत
नाराज ह कहते ह तु ह हम ऐसा नह समझते थे!” च दर कुछ नह बोला जाकर िबस रया
के सामने कुस पर बैठ गया “तम ु जाओ, िबनती!” िबनती चली गयी तो च दर ने कहा, बहत
ग भीर वर म, “िबस रया साहब, आपका सं ह देखकर बहत खुशी हई लेिकन मेरे मन म िसफ
एक शंका है यह 'िबनती' नाम के या माने ह?”
िबस रया ने अपने गले क टाई ठीक क , वह गरमी म भी टाई लगाता था, और िदन म नाइट कैप
पहनता था टाई ठीक कर, खँखारकर बोला, “म भी यही समझता था िक आपको यह गलत-
फहमी होगी लेिकन वा तिवक बात यह है िक मझ ु े म यकाल क किवता बहत पस द है,
खासतौर म उसम िबनती ( ाथना) श द बड़ा मधुर है मने यह सं ह तो बहत पहले तैयार
िकया था मझ ु े बड़ा ता जुब हआ जब म िबनती से िमला मने उनसे कहा िक यह सं ह भी
िबनती नाम का है िफर मने उ ह लाकर िदखला िदया ”
च दर मस ु कराया और मन-ही-मन कहा, 'है िबस रया बहत चालाक लेिकन खैर म हार नह
मान सकता ' और बहत ग भीर होकर बैठ गया
“तो यह सं ह इस लड़क के नाम पर नह है?”
“िब कुल नह ”
“और िबनती के िलए आपके मन म कह कोई आकषण नह ?”
“िब कुल नह िछः, आप मझ ु े या समझते ह ” िबस रया बोला
“िछः, म भी कैसा आदमी हँ , माफ करना िबस रया! मने यथ म शक िकया ”
िबस रया यह नह जानता था िक यह दाँव इतना सफल होगा वह खुशी से फूल उठा सहसा
च दर ने एक गहरी साँस ली
“ या बात है च दर बाब?ू ” िबस रया ने पछ ू ा
“कुछ नह िबस रया, आज तक मझ ु े तु हारी ितभा, तु हारी भावना, तु हारी कला पर िव ास
था, आज से उठ गया ”
“ य ?”
“ य या? अगर िबनती-जैसी लड़क के साथ रहकर भी तम ु उसके आ त रक सौ दय से
अपनी कला को अिभिसंिचत न कर सके तो तु हारे मन म कला मकता है; यह म िव ास नह
कर पाता तम ु जानते हो, म पुराने िवचार का संक ण, बड़ा बुजुग तो हँ नह , म भी भावनाओं
को समझता हँ म सौ दय-पज ू ा या यार को पाप नह समझता और मझ ु े तो बहत खुशी होती
यह जानकर िक तम ु ने ये किवताएँ िबनती पर िलखी ह, उसक ेरणा से िलखी ह यह मत
समझना िक मझ ु े इससे जरा भी बुरा लगता यह तो कला का स य है पा ा य देश म तो
लोग हर किव को ेरणा देने वाली लड़िकय क खोज म वष िबता देते ह, उसक किवता से
यादा मह व उसक किवता के पीछे रहने वाले यि व को देते ह िह दो तान म पता नह
य हम नारी को इतना मह वहीन समझते ह, या डरते ह, या हमम इतना नैितक साहस नह
है तु हारा वभाव, तु हारी ितभा िकसी हालत म मझ ु े िवदेश के िकसी किव से कम नह
लगती मने सोचा था, जब तम ु अपनी किवताओं के ेरणा मक यि व का नाम घोिषत
करोगे तो सारी दुिनया िबनती को और हमारे प रवार को जान जाएगी लेिकन खैर, मने गलत
समझा था िक िबनती तु हारी ेरणा-िब दु थी ” और च दर चुपचाप ग भीरता से िबस रया के
सं ह के प ृ उलटने लगा
िबस रया के मन म िकतनी उथल-पुथल मची हई थी च दर का मन इतना िवशाल है, यह उसे
कभी नह मालम ू था यहाँ तो कुछ िछपाने क ज रत ही नह और जब च दर इतनी प
बात कर रहा है तो िबस रया य िछपाये
“कपरू , म तमु से कुछ नह िछपाऊँगा म कह नह सकता िक िबनती जी मेरे िलए या ह
शे सिपयर क िमरा डा, साद क देवसेना, दाँते क बीएि स, क ट्स क फै नी और सरू क
राधा से बढ़कर माधुय अगर मझ ु े कह िमला है तो िबनती म इतना, इतना डूब गया म िबनती
म िक एक किवता भी नह िलख पाया मेरा सं ह छपने जा रहा था तो मने सोचा िक इसका
नाम ही य न 'िबनती' रखँ ू ”
च दर ने बड़ी मिु कल से अपनी हँ सी रोक दरवाजे के पास िछपी खड़ी हई िबनती
िखलिखलाकर हँ स पड़ी च दर बोला, “नाम तो 'िबनती' बहत अ छा सोचा तम ु ने , लेिकन
िसफ एक बात है मेरे जैसे िवचार के लोग सभी नह होते अगर घर के और लोग को यह
मालम ू हो गया, मसलन डॉ टर साहब को, तो वह न जाने या कर डालगे इन लोग को
किवता और उसक ेरणा का मह व ही नह मालम ू उस हालत म अगर तु हारी बहत बेइ जती
हई तो न हम कुछ बोल पाएँ गे न िबनती डॉ टर साहब पुिलस को स प द, यह अ छा नह
लगता वैसे मेरी राय है िक तम ु िबनती ही नाम रखो; बड़ा नया नाम है; लेिकन यह समझ लो
िक डॉ टर साहब बहत स त ह इस मामले म ”
िबस रया क समझ म नह आता था िक वह या करे थोड़ी देर तक िसर खुजलाता रहा, िफर
बोला, “ या राय है कपरू , तु हारी? अगर म कोई दस ू रा नाम रख दँू तो कैसा रहे गा?”
“बहत अ छा रहे गा और सुरि त रहे गा अभी अगर तम ु बदनाम हो गये तो आगे तु हारी उ नित
के सभी माग ब द हो जाएँ गे आदमी ेम करे मगर जरा सोच-समझकर; म तो इस प म हँ ”
“भावना को कोई नह समझता इस दुिनया म कोई नह समझता, हम कलाकार क िकतनी
मसु ीबत है ” एक गहरी साँस लेकर िबस रया बोला, “लेिकन खैर! अ छा तो कपरू , या राय है
तु हारी? म या नाम रखँ ू इसका?”
च दर ग भीरता से िसर झक ु ाये थोड़ी देर तक सोचता रहा िफर बोला, “तु हारी किवताओं म
बहत रस है कैसा रहे अगर तम ु इसका नाम 'गड़े रयाँ' रखो!”
“ या?” िबस रया ता जुब से बोला
“हाँ-हाँ गड़े रयाँ, मेरा मतलब है ग ने क गड़े रयाँ!” दरवाजे के पीछे िबनती से न रहा गया और
िखलिखलाकर हँ स पड़ी और सामने आ गयी च दर भी अ ïहास कर पड़ा
िबस रया ण-भर आँख फाड़े दोन क ओर देखता रहा उसके बाद वह य ही मजाक समझा,
उसका चे हरा लाल हो गया हैट उठाकर बोला, “अ छा, आप लोग मजाक बना रहे थे मेरा
कोई बात नह , म देखँग ू ा िम टर कपरू , आप अपने को या समझते ह?” वह चल िदया
“अरे , सुनो िबस रया!” च दर ने पुकारा, वह हँ सी नह रोक पा रहा था िबस रया मड़ ु ा
मड़ ु कर बोला, “कल से म पढ़ाने नह आ सकता म आपक शकल भी नह देखना चाहता ”
उसने िबनती से कहा
“तो महँु फेरकर पढ़ा दीिजएगा ” च दर बोला िबनती िफर हँ स पड़ी िबस रया ने मड ु क़र
बड़े गु से से देखा और पैर पटकते हए चला गया
“बेचारे किव, कलाकार आज क दुिनया म यार भी नह कर पाते ” च दर ने कहा और दोन
क हँ सी बहत देर तक गज ँ ू ती रही
25

अग त क उदास शाम थी, पानी रमिझमा रहा था और डॉ टर शु ला के सन ू े बँगले म बरामदे म


कुस डाले, लॉन पर छोटे -छोटे गड्ढ म पंख धोती और कुलेल करती हई गौरै य क तरफ
अपलक देखता हआ च दर जाने िकन खयाल म डूबा हआ था डॉ टर साहब सुधा को िलवाने
के िलए शाहजहाँपुर गये थे िबनती भी िजद करके उनके साथ गयी थी वहाँ से ये लोग
िद ली घमू ने के िलए चले गये थे लेिकन आज प ह रोज हो गये उन लोग का कोई भी खत
नह आया था डॉ टर साहब ने यरू ो को महज एक अज भे ज दी थी च दर को डॉ टर
साहब के जाने के पहले ही कॉलेज म जगह िमल गयी थी और उसने लास लेने शु कर िदये
थे वह अब इसी बँगले म आ गया था सुबह तो लास के पाठ क तैयारी करने और नोट्स
बनाने म कट जाती थी, दोपहर कॉलेज म कट जाती थी लेिकन शाम बड़ी उदास गज ु रती थ और
िफर प ह िदन से सुधा का कोई भी खत नह आया वह उदास बैठा सोच रहा था
लेिकन यह उदासी थी, दुख नह था और वह भी उदासी, एक देवता क उदासी जो दुख भरी न
होकर सु दर और सुकुमार अिधक होती है एक बात ज र थी जब कभी वह उदास होता था
तो जाने य वह यह हमेशा सोचने लगता था िक उसके जीवन म जो कुछ हो गया है उस पर उसे
गव करना चािहए जैसे वह अपनी उदासी को अपने गव से िमटाने का यास करता था लेिकन
इस व एक बात रह-रहकर उभर आती थी उसके मन म, 'सुधा ने खत य नह िलखा?'
पानी िब कुल ब द हो गया था पि म के दो-एक बादल खुल गये थे और पके जामन ु के रं ग
के एक बहत बड़े बादल के पीछे से डूबते सरू ज क उदास िकरण झाँक रही थ इधर क ओर
एक इ धनुष िखल गया था जो मोटर गैरेज क छत से उठकर दरू पर युि ल टस क ल बी
शाख म उलझ गया था
इतने म छाता लगाये पो टमैन आया, उसने पोिटको म अपने जत ू म लगी क चड़ झाड़ी, पैर
पटके और िकरिमच के झोले से खत िनकाले और सीढ़ी पर फै ला िदये उनम से ढूँढ़कर तीन
िलफाफे िनकाले और च दर को दे िदये च दर ने लपककर िलफाफे ले िलये पहला िलफाफा
बुआ का था िबनती के नाम, दसू रा था ओ रयंटल इ योरे स का िलफाफा डॉ टर साहब के नाम
और तीसरा एक सु दर-सा नीला िलफाफा यह सुधा का होगा पो टमैन जा चुका था
उसने इतने यार से िलफाफे को चम ू ा िजतने यार से डूबता हआ सरू ज नीली घटाओं को चम ू रहा
था “पगली कह क ! परे शान कर डालती है यहाँ थी तो वही आदत, वहाँ है तो वही आदत
!” च दर ने मन म कहा और िलफाफा खोल डाला
िलफाफा प मी का था, मसरू ी से आया उसने झ लाकर िलफाफा फक िदया सुधा िकतनी
लापरवाह है वह जानती है िक च दर को यहाँ कैसा लग रहा होगा िबनती ने बता िदया
होगा िफर भी वही लापरवाही! मारे गु से के...
थोड़ी देर बाद उसने प मी का खत पढ़ा छोटा-सा खत था प मी अभी मसरू ी म ही है,
अ टूबर तक आएगी लगभग सभी या ी जा चुके ह लेिकन उसे पहाड़ क बरसात बहत अ छी
लग रही है बट इलाहाबाद चला गया है उसके साथ वहाँ से एक पहाड़ी ईसाई लड़क भी
गयी है बट कहता है िक वह उसके साथ शादी करे गा बट अब बहत व थ है च दर चाहे
तो जाकर बट से िमल ले
सुधा के खत के न आने से च दर के मन म बहत बेचन ै ी थी उसे ठीक से मालमू भी नह हो पा
रहा था िक ये लोग ह कहाँ? बट के आने क खबर िमलने पर उसे स तोष हआ, चलो एक िदन
बट से ही िमल आएँ गे, अब देख कैसे ह वह?
तीसरे या चौथे िदन जब अक मात पानी ब द था तो वह कार लेकर बट के यहाँ गया बरसात
म इलाहाबाद क िसिवल लाइ स का सौ दय और भी िनखर आता है ू े फुटपाथ और
खे -सख
मैदान पर घास जम जाती है; बँगले क उजाड़ चहारदीवा रय तक हरी-भरी हो जाती ह ल बे
और घने पे ड़ और झािडय़ाँ िनखरकर, धुलकर हरे मखमली रं ग क हो जाती ह और कोलतार क
सडक़ पर थोड़ी-थोड़ी पानी क चादर-सी लहरा उठती है िजसम पे ड़ क हरी छायाएँ िबछ जाती
ह बँगले म पली हई ब ख के दल सड़क पर चलती हई मोटर को रोक लेते ह और हर बँगले
म से रे िडयो या ामोफोन के संगीत क लहर मचलती हई वातावरण पर छा जाती ह
कॉलेज से लौटकर, एक याला चाय पीकर, कार लेकर च दर बट के यहाँ चल िदया वह बहत
िदन बाद बट को देखने जा रहा है िजन यि य को उसने अपने जीवन म देखा था, बट
शायद उन सभी से िनराला था, अ ुत था लेिकन िकतना अभागा था नह , अभागा नह
कमजोर था बट और वही या कमजोर था यह सारी दुिनया िकतनी कमजोर है
बट का बँगला आ गया था वह उतरकर अ दर गया बाहर कोई नह था बरामदे म एक
िपंजरा टँगा हआ था िजसम एक बहत छोटा तोते का ब चा टँगा था च दर भीतर जाने म
िहचक रहा था य िक एक तो प मी नह थी और दस ू रे कोई और लड़क भी बट के साथ आयी
थी, बट क भावी प नी च दर ने आवाज दी अ दर कोई बहत भारी पु ष- वर म एक
साधारण गीत गा रहा था च दर ने िफर आवाज दी बट बाहर आया च दर उसे देखकर
दंग रह गया, बट का चे हरा भर गया था, जवानी लौट आयी थी, पीलेपन क बजाय चे हरे पर
खन ू दौड़ गया था, सीना उभर आया था बट खाक रं ग का कोट, बहत मोटा खाक हैट,
खाक ि चे ज, िशकारी बटू पहने हए था और क धे पर ब दक ू लटक रही थी वह आया
ाइंग म के दरवाजे पर पीठ झक ु ाकर एक हाथ से ब दक ू पकडक़र और एक हाथ आँख के
आगे रखकर उसने इस तरह देखा जैसे वह िशकार ढूँढ़ रहा हो च दर के ाण सख ू गये
उसने मन-ही-मन सोचा, पहली बार तो वह कु ती म बट से जीत गया था, लेिकन अबक बार
जीतना मिु कल है कहाँ बेकार फँसा आकर उसने घबरायी हई आवाज म कहा-
“यह म हँ िम टर बट , च दर कपरू , प मी का िम !”
“हाँ-हाँ, म जानता हँ ” बट तनकर खड़ा हो गया और हँ सकर बोला, “म आपको भल ू ा नह ; म
तो आपको यह िदखला रहा था िक म पागल नह हँ , िशकारी हो गया हँ ” और उसने च दर के
क धे पकड़कर इतना जोर से झकझोर िदया िक च दर क पसिलयाँ चरमरा उठ “आओ!”
उसने च दर के क धे दबाकर बरामदे क ही कोच पर िबठा िदया और सामने कुस पर बैठता
हआ बोला, “म तु ह अ दर ले चलता, लेिकन अ दर जेनी है और एक मेरा िम दोन बात कर
रहे ह आज जेनी क सालिगरह है तम ु जेनी को जानते हो न? वह तराई के क बे म रहती
थी मझ ु े िमल गयी बहत खराब औरत है! म त दु त हो गया हँ न!”
“बहत, मझ ु े ता जुब है िक त दु ती के िलए तम ु ने या िकया तीन महीने तक!”
“नफरत, िम टर कपरू ! औरत से नफरत उससे यादा अ छा टॉिनक त दु ती के िलए कोई
नह है ”
“लेिकन तम ु तो शादी करने जा रहे हो, लड़क ले आये हो वहाँ से ”
“अकेली लड़क नह , िम टर! म वहाँ से दो चीज लाया हँ एक तो यह तोते का ब चा और एक
जेनी, वही लड़क तोते को म बहत यार करता हँ , यह बड़ा हो जाएगा, बोलने लगेगा तो इसे
गोली मार दँग ू ा और लड़क से म बहत नफरत करता हँ , इससे शादी कर लँग ू ा! य , है न ठीक?
इसको िशकार का चाव कहते ह और अब म िशकारी हँ न!”
च दर हाँ कहे या न कहे अभी बट का िदमाग िब कुल वैसा ही है, इसम कोई शक नह वह
या बात करे ? अ त म बोला-
“यह ब दक ू तो उतारकर रिखए हमेशा बाँधे रहते ह!”
“हाँ, और या? िशकार का पहला िस ा त है िक जहाँ खतरा हो, जंगली जानवर ह वहाँ कभी
िबना ब दक ू के नह जाना चािहए?” और बहत धीमे से च दर के कान म बट बोला, “तम ु
जानते हो च दर, एक औरत है जो चौबीस घंटे घर म रहती है म तो एक ण को ब दक ू अलग
नह रखता ”
सहसा अ दर से कुछ िगरने क आवाज आयी, कोई चीखा और लगा जैसे कोई चीज िपयानो पर
िगरी और परद को तोड़ती हई नीचे आ गयी िफर कुछ झगड़ क आवाज आयी
च दर च क उठा, “ या बात है बट , देखो तो!”
बट ने हाथ पकडक़र च दर को ख च िलया-”बैठो, बैठो! अ दर मेरे िम और जेनी सालिगरह
मना रहे ह, अ दर मत जाना!”
“लेिकन यह आवाज कैसी ह?” च दर ने िच ता से पछ ू ा
“शायद वे लोग ेम कर रहे ह गे!” बट बोला और िनि तता से बैठ गया
और ण-भर बाद उसने अजब-सा य देखा एक बट का ही हमउ आदमी हाथ से माथे का
खन ू प छता हआ आया वह नशे म चरू था और बहत भ ी गािलयाँ देता हआ चला जा रहा
था वह िगरता-पड़ता आया और उसने बट को देखते ही घँस ू ा ताना-”तम ु े धोखा िदया
ु ने मझ
मझु से पचास पये उपहार ले िलया...म अभी तु ह बताता हँ ” च दर त ध था या करे या
न करे ? इतने म अ दर से जेनी िनकली ल बी-तगड़ी, कम-से-कम तीस वष क औरत
उसने आते ही पीछे से उस आदमी क कमीज पकड़ी और उसे सीढ़ी से नीचे क चड़ म ढकेल
िदया और सैकड़ गाली देते हए बोली, “जा सीधे, वरना हड्डी नह बचे गी यहाँ ” वह िफर उठा
तो खुद भी नीचे कूद पड़ी और घसीटती हई दरवाजे के बाहर ढकेल आयी
बट साँस रोके अपराधी-सा खड़ा था वह लौटी और बट का कालर पकड़ िलया-”म िनद ष हँ !
म कुछ नह जानता!” सहसा जेनी ने च दर क ओर देखा-”हँ , यह भी तु हारा दो त है अभी
बताती हँ !” और जो वह च दर क ओर बढ़ी तो च दर ने मन-ही-मन प मी का मरण िकया
कहाँ फँसाया उस क ब त ने खत िलखकर य ही जेनी ने च दर का कालर पकड़ा िक बट
बड़े कातर वर म बोला, “उसे छोड़ दो! वह मेरा नह प मी का िम है!” जेनी क गयी “तम ु
प मी के िम हो? अ छा बैठ जाओ, बैठ जाओ, तम ु शरीफ आदमी मालम ू पड़ते हो मगर आगे से
तु हारा कोई िम आया तो म उसक ह या कर डालँग ू ी समझे िक नह , बट ?”
बट ने िसर िहलाया, “हाँ, समझ गये!” जेनी अ दर चल दी, िफर सहसा बाहर आयी और बट
को पकडक़र घसीटती हई बोली, “पानी बरस रहा है, इतनी सद बढ़ रही है और तम ु ने वेटर
नह पहना, चलो पहनो, मरने क ठानी है म साफ बताये देती हँ चाहे दुिनया इधर क उधर हो
जाये, म िबना शादी िकये मरने नह दँग ू ी तु ह ” और वह बकरे क तरह बट का कान
पकडक़र अ दर घसीट ले गयी
च दर ने मन म कहा, यह कुछ इस रह यमय बँगले का असर है िक हरे क का िदमाग खराब ही
मालम ू देता है दो िमनट बाद जब बट लौटा तो उसके गले म गल ु ब द, ऊनी वेटर, ऊनी मोजे
थे वह हाँफता हआ आकर बैठ गया
“िम टर कपरू ! तु ह मानना होगा िक यह लड़क , यह डाइन जेनी बहत ू र है ”
“मानता हँ , बट ! सोलह आने मानता हँ ” च दर ने मस ु कराहट रोककर कहा, “लेिकन यह
झगड़ा या है?”
“झगड़ा या होता है? औरत को समझना बहत मिु कल है ”
“इस औरत के फ दे म फँसे कैसे तम ु ?” च दर ने पछ ू ा
“शी! शी!” होठ पर हाथ रखकर धीरे बोलने का इशारा करते हए बट ने कहा, “धीरे बोलो
बात ऐसी हई िक जब म तराई म िशकार खे ल रहा था तो एक बार अकेले छूट गया! यह एक
पशनर फॉरे ट गाड क अन याही लड़क थी िशकार म बहत होिशयार म भटकते हए
पहँ चा तो इसका बाप बीमार था म क गया तीसरे िदन वह मर गया उसे जाने कौन-सा
रोग था िक उसका चे हरा बहत डरावना हो गया था और पे ट फूल गया था रात को इसे बहत डर
लगा तो यह मेरे पास आकर लेट गयी बीच म ब दक ू रखकर हम लोग सो गये रात को
इसने बीच से ब दक ू हटा दी और अब वह कहती है िक मझ ु से याह करे गी और नह क ँ गा तो
मार डालेगी प मी भी मझ ु से बोली-तु ह अब याह करना ही होगा अब मजबरू ी है, िम टर
कपरू !”
च दर चुप बैठा सोच रहा था, कैसी िविच िजंदगी है इस अभागे क ! मानो कृित ने सारे आ य
इसी क िक मत के िलए छोड़ रखे थे िफर बोला-
“यह आज या झगड़ा था?”
“कुछ नह आज इसक सालिगरह थी यह बोली, “मझ ु े कुछ उपहार दो " म बहत देर तक
सोचता रहा या दँू इसे? कुछ समझ ही म नह आया बहत देर सोचने के बाद मने सोचा-म
तो इसका पित होने जा रहा हँ इसे एक ेमी उपहार म दे दँू मने एक िम से कहा िक तम ु
मेरी भावी प नी से आज शाम को ेम कर सकते हो? वह राजी हो गया, म ले आया ”
च दर जोर से हँ स पड़ा
“हँ सो मत, हँ सो मत, िम टर कपरू !” बट बहत ग भीर बनकर बोला, “इसका मतलब यह है िक
तमु औरत को समझते नह देखो, एक औरत उसी चीज को यादा पस द करती है, उसी के
ित समपण करती है जो उसक िजंदगी म नह होता मसलन एक औरत है िजसका याह हो
गया है, या होने वाला है, उसे यिद एक नया ेमी िमल जाये तो उसक स नता का िठकाना
नह रहता वह अपने पित क बहत कम परवा करे गी अपने ेमी के सामने और अगर वाँरी
लड़क है तो वह अपने ेमी क भावनाओं क परू ी तौर से ह या कर सकती है यिद उसे एक पित
िमल जाये तो! म तो समझता हँ िक कोई भी पित अपनी प नी को यिद कोई अ छा उपहार दे
सकता है तो वह है एक नया ेमी और कोई भी ेमी अपनी रानी को यिद कोई अ छा उपहार दे
सकता है तो वह यह िक उसे एक पित दान कर दे तु हारी अभी शादी तो नह हई?”
“न!”
“तो तमु ेम तो ज र करते ह गे...न, िसर मत िहलाओ...म यक न नह कर सकता... म
इतनी सलाह तु ह दे रहा हँ , िक अगर तम ु िकसी लड़क से यार करते हो तो ई र के वा ते
उससे शादी मत करना-तम ु मेरा िक सा सुन चुके हो अगर िदल से यार करना चाहते हो और
चाहते हो िक वह लड़क जीवन-भर तु हारी कृत रहे तो तम ु उसक शादी करा देना...यह
लड़िकय के से स जीवन का अि तम स य है...! हा! हा! हा!” बट हँ स पड़ा
च दर को लगा जैसे आग क लपट उसे तपा रही है उसने भी तो यही िकया है सुधा के साथ
िजसे बट िकतने िविच वर म कह रहा है उसे लगा जैसे इस ेत-लोक म सारा जीवन
िवकृत िदखाई देता है वहाँ साधना क पिव ता भी क चड़ और पागलपन म उलझकर गंदी हो
जाती है िछः, कहाँ बट क बात और कहाँ उसक सुधा...
वह उठ खड़ा हआ ज दी से िवदा माँगकर इस तरह भागा जैसे उसके पैर के नीचे अंगारे िछपे

िफर उसे न द नह आयी चैन नह आया रात को सोया तो वह बार-बार च क-सा उठा
उसने सपना देखा, एक बहत ब ा कपरू का पहाड़ है बहत बड़ा मल ु ायम कपरू क बड़ी-बड़ी
च ान और इतनी पिव खुशबू िक आदमी क आ मा बेले का फूल बन जाये वह और सुधा उन
सौरभ क च ान के बीच चढ़ रहे ह केवल वह है और सुधा...सुधा सफेद बादल क साड़ी
पहने है और च दर िकरन क चादर लपे टे है जहाँ-जहाँ च दर जाता है, कपरू क च ान पर
इ धनुष िखल जाते ह और सुधा अपने बादल के आँचल म इ धनुष के फूल बटोरती चलती
है
सहसा एक च ान िहली और उसम से एक भयंकर ेत िनकाला एक सफेद कंकाल-िजसके
हाथ म अपनी खोपड़ी और एक हाथ म जलती मशाल और उस मड ुं हीन कंकाल ने खोपड़ी हाथ
म लेकर च दर को िदखायी खोपड़ी हँ सी और बोली, “देखो, िजंदगी का अि तम स य यह
है यह!” और उसने अपने हाथ क मशाल ऊँची कर दी “यह कपरू का पहाड़, यह बादल क
साड़ी, यह िकरन का प रधान, यह इ धनुष के फूल, यह सब झठ ू े ह और यह मशाल, जो
अपने एक पश म इस सबको िपघला देगी ”
और उसने अपनी मशाल एक ऊँचे िशखर से छुआ दी वह िशखर धधक उठा िपघलती हई
आग क एक धार बरसाती नदी क तरह उमडक़र बहने लगी
“भागो, सुधा!” च दर ने चीखकर कहा, “भागो!”
सुधा भागी, च दर भागा और वह िपघली हई आग क महानदी लहराते हए अजगर क तरह उ ह
अपनी गज ुं िलका म लपे टने के िलए चल पड़ी शैतान हँ स पड़ा, “हा! हा! हा!” च दर ने देखा,
सुधा शैतान क गोद म थी
च दर च ककर जाग गया पानी बंद था लेिकन घनघोर अँधेरा था और िपशाचनी क तरह
पागल हवा पे ड़ को झकझोर रही थी जैसे युग के जमे हए िव ास को उखाड़ फकना चाहती
हो च दर काँप रहा था, उसका माथा पसीने से तर था
वह उठकर नीचे आया उसके कदम ठीक नह पड़ रहे थे बरामदे क ब ी जलायी
महरािजन उठी-”का है भइया!” उसने पछ ू ा
“कुछ नह , अ दर सोऊँगा ” च दर ने कहा और सुधा के कमरे म जाकर ब ी जलायी सुधा
क चारपाई पर लेट गया िफर उठा, चार ओर के दरवाजे ब द कर िदये िक कह कोई िफर
ऐसा सपना बाहर के भयंकर अँधेरे म से न चला आये
26

लेिकन बट क बात से अ दर-ही-अ दर उसके मन म जाने कहाँ या टूट गया जो िफर बन


नह पाया अभी तक उसे अपने पर गव था, िव ास था, अब कभी-कभी वह अपने यि व
का िव े षण करने लगा था अब वह कभी-कभी अपने िव ास पर िसर ऊँचा करने के बजाय
उ ह सामने फक देता और एक िनरपे वै ािनक क तरह उनक चीर-फाड़ करता, उनक शव-
परी ा िकया करता अभी तक उसके िव ास का स बल था, अब िकसी ने उसे तक का अ -
श दे िदया था जाने िकस रा सी ेरणा से उसने अपनी आ मा को चीरना शु िकया
और इस तक-िवतक और अिव ास के भयंकर जल- लय क एक लहर ने उसे एक िदन नरक
के िकनारे ले जा पटका
सुधा का खत आया था िद ली म पापा अपने कुछ काम से के थे और सुधा क तबीयत खराब
हो गयी थी अब वह दो-तीन रोज म आ जाएगी
लेिकन च दर के मन पर एक अजब-सा असर हआ था इस खत का सुधा का प नह आया
था, सुधा दरू थी तब वह खुश था, वह उ लिसत था सुधा का प आते ही सहसा वह उदास हो
गया उदास तो या उसे उबकाई-सी आने लगी उसे यह सब सहसा, पता नह एक नाटक-
सा लगने लगा था, एक बहत स ता, नीचे तर का नाटक उसे लगता था-ये सब चार ओर
का याग, साधन, सौ दय, यह सब झठ ू है सुधा भी अ ततोग वा वही साधारण लड़क है जो
वाँरे जीवन म पित और िववािहत जीवन म ेमी क भख ू ी होती है
वह भी शैतान से पण ू तया हारा नह था वह लड़ने क कोिशश करता था लेिकन वह हार
रहा था, यह भी उसे मालम ू था और च दर के िजस गव ने उसक जीत म साथ िदया था, वही
गव उसक हार म साथ दे रहा था उसने मन म सोच िलया िक वह सुधा से, सभी लड़िकय से,
इस सारे नाटक से नफरत करता है सुधा का िववाह होना ही था, सुधा को िववाह करना था,
सुधा के आँसू झठू े थे, अगर च दर सुधा को न भी समझाता तो घम ू -िफर सुधा िववाह करती ही
तब िफर िव ास काहे का? याग काहे का?
िव ास टूट चुका था, गव िजंदा था, गव घमंड म बदल गया था, घमंड नफरत म, और नफरत
नस को चरू -चरू कर देने वाली उदासी म
सुधा जब आयी तो उसने च दर को िब कुल बदला हआ पाया एक बात और हई िजसने और भी
आग सुलगा दी यह लोग दोपहर को एक बजे के लगभग आये जबिक च दर कॉलेज गया
था पापा तो आते ही नहा-धोकर सोने चले गये सुधा और िबनती ने आते ही अपने कमरे क
सफाई शु क ; कमरे क सारी िकताब झाड़ , कपड़े ठीक िकये, मेज साफ क और उसके बाद
कमरा धोने म लग गय िबनती बा टी म पानी भर-भर लाने लगी और सुधा झाड़ से फश धोने
लगी हाथ म चड़ ू े अब भी थे, पाँव म िबिछया और माँग म िस दरू -चे हरा बहत पीला पड़ गया था
सुधा का; चे हरे क हड्िडïयाँ िनकल आयी थ और आँख क रोशनी भी मैली पड़ गयी थी वह
जाने य कमजोर भी हो गयी थी
झाड़ लगाते-लगाते सुधा िबनती से बोली, “आज मालम ू पड़ता है िक म आदमी हँ ! कल तक तो
हैवान थी पापा को भी जाने या सझ ू ा िक इ ह भी साथ िद ली ले गये म तो शरम से मरी
जाती थी ”
थोड़ी देर बाद च दर आया बाहर ही उसे मालम ू हो गया था िक सब लोग आ गये ह उसे जाने
य ऐसा लग रहा था िक वह उलटे लौट जाये, वह अगर इस घर म गया तो जाने उससे या
अनथ हो जाएगा, लेिकन वह बढ़ता ही गया टडी- म म डॉ टर साहब सो रहे थे वह लौटा
और अपने कपड़े उतारने के िलए ाइंग- म क ओर चला सुधा ने य ही आहट पायी, वह
फौरन झाड़ फककर भागी, िसर खुला, धोती कमर म खँुसी हई, हाथ ग दे, बाल िबखरे और
बेतहाशा दौड़कर च दर से िलपट गयी और ब च क भोली हँ सी हँ सकर बोली, “च दर, च दर!
हम आ गये, अब बताओ!” और च दर को इस तरह कस िलया िक अब कभी छोड़े गी नह
“िछः, दरू हटो, सुधा! यह या नाटक करती हो! आज तम ु ब ची नह हो!” और सुधा को बड़ी
खाई से परे हटाकर अपने कोट पर से सुधा के हाथ से लगी हई िम ी झाड़ते हए च दर चुपचाप
अपने कमरे म चला गया
सुधा पर जैसे िबजली िगर पड़ी हो वह प थर क तरह खड़ी रही िफर जैसे लडख़ड़ाती हई
अपने कमरे म गयी और चारपाई पर लेटकर फूट-फूटकर रोने लगी च दर सुधा से नह ही
बोला डॉ टर साहब के जगते ही उनसे बात करने लगा, शाम को वह साइिकल लेकर घम ू ने
िनकल गया लौटकर ऊपर छत पर चला गया और िबनती को पुकारकर कहा, “अगर
तकलीफ न हो तो जरा ऊपर खाना दे जाओ ” िबनती ने थाली लगायी और सुधा से कहा, “लो
दीदी! दे आओ!” सुधा ने िसर िहलाकर कहा, “तू ही दे आ! म अब कौन रह गयी उनक ”
िबनती के बहत समझाने पर सुधा ऊपर खाना ले गयी च दर लेटा था गम ु सुम सुधा ने टूल
ख चकर खाना रखा च दर कुछ नह बोला उसने पानी रखा च दर कुछ नह बोला
“खाओ न!” सुधा ने कहा और एक कौर बनाकर च दर को देने लगी
“तमु जाओ!” च दर ने बड़े खे वर म कहा, “म खा लँग ू ा!”
सुधा ने कौर थाली म रख िदया और च दर के पायताने बैठकर बोली, “च दर, तम ु य नाराज
हो, बताओ हमसे या पाप हो गया है? िपछले डे ढ़ महीने हमने एक-एक ण िगन-िगनकर
काटे ह िक कब तु हारे पास आएँ हम या मालम ू था िक तमु ऐसे हो गये हो मझु े जो चाहे
सजा दे लो लेिकन ऐसा न करो तम ु तो कुछ भी नह समझते ” और सुधा ने च दर के पैर
पर िसर रख िदया च दर ने पैर झटक िदये, “सुधा, इन सब बात से फायदा नह है अब इस
तरह क बात करना और सुनना म भल ू गया हँ कभी इस तरह क बात करते अ छा लगता
था अब तो िकसी सोहािगन के महँु से यह शोभा नह देता!”
सुधा ितलिमला उठी, “तो यह बात है तु हारे मन म! म पहले से समझती थी लेिकन तु ह ने
तो कहा था, च दर! अब तु ह ऐसे कह रहे हो? शरम नह आती तु ह ” और सुधा ने हाथ से
याह वाले चड़ ू े उतारकर छत पर फक िदये, िबिछया उतारने लगी-और पागल क तरह फटी
आवाज म बोली, “जो तम ु ने कहा, मने िकया, अब जो कहोगे वह क ँ गी यही चाहते हो न!”
और अ त म उसने अपनी िबिछया उतारकर छत पर फक दी
च दर काँप गया उसने इस य क क पना भी नह क थी “िबनती! िबनती!” उसने
घबराकर पुकारा और सुधा से बोला, “अरे , यह या कर रही हो! कोई देखेगा तो या सोचे गा!
पहनो ज दी से ”
“मझु े िकसी क परवा नह तु हारा तो जी ठं डा पड़ जाएगा!”
च दर उठा उसने जबरद ती सुधा के हाथ पकड़ िलये िबनती आ गयी थी
“लो, इ ह चड़ ू े तो पहना दो!” िबनती ने चुपचाप चड़ ू े और िबिछया पहना दी सुधा चुपचाप उठी
और नीचे चली गयी
च दर अपनी खाट पर िसर झक ु ाये लि जत-सा बैठा था
“लीिजए, खाना खा लीिजए ” िबनती बोली
“म नह खाऊँगा ” च दर ने ँ धे गले से कहा
“खाइए, वरना अ छी बात नह होगी आप दोन िमलकर मझ ु े मार डािलए बस िक सा ख म
हो जाए न आप सीधे महँु से बोलते ह, न दीदी पता नह आप लोग को या हो गया है?”
च दर कुछ नह बोला
“खाइए, आपको हमारी कसम है वरना दीदी खाना नह खाएँ गी! आपको मालम ू नह , दीदी
क तबीयत इधर बहत खराब है उ ह सुबह-शाम बुखार रहता है िद ली म तबीयत बहत
खराब हो गयी थी आप ऐसे कर रहे ह बताइए, उनका या हाल होगा आप समझते ह गे
यह बहत सुखी ह गी लेिकन आपको या मालम ू !...पहले आप दीदी के एक आँसू पर पागल हो
उठते थे, अब आपको या हो गया है?”
च दर ने िसर उठाया-और गहरी साँस लेकर बोला, “जाने या हो गया है, िबनती! म कभी नह
सोचता था िक सुधा को म इतना दु:ख दे सकँ ू गा इतना अभागा हँ िक म खुद भी इधर घुलता
रहा और सुधा को भी इतना दुखी कर िदया और सचमच ु च दर क आँख म आँसू भर आये
िबनती च दर के पीछे खड़ी थी च दर का िसर अपनी छाती म लगाकर आँसू प छती हई बोली,
“िछः, अब और दु:खी होइएगा तो दीदी और भी रोएँ गी लीिजए, खाइए!”
“जाओ, दीदी को बुला लो और उ ह भी िखला दो!” च दर ने कहा िबनती गयी िफर
लौटकर बोली, “बहत रो रही ह अब आज उनका नशा उतर जाने दीिजए, तब कल बात
क िजएगा ”
“िफर सुधा ने न खाया तो?”
“नह , आप खा लीिजएगा तो वे खा लगी उनको िखलाए िबना म नह खाऊँगी ” िबनती
बोली और अपने हाथ से कौर बनाकर च दर को देने लगी च दर ने खाना शु िकया और
धीरे -से गहरी साँस-लेकर बोला, “िबनती! तम ु हमारी और सुधा क उस जनम क कौन हो?”
सुबह के व च दर जब ना ता करने बैठा तो डॉ टर साहब के साथ ही बैठा सुधा आयी और
याला रखकर चली गयी वह बहत उदास थी च दर का मन भर आया सुधा क उदासी
उसे िकतना लि जत कर रही थी, िकतना दुखी कर रही थी िदन-भर िकसी काम म उसक
तबीयत नह लगी उसने लास छोड़ िदये लाइ रे ी म भी जाकर िकताब उलट-पलटकर चला
आया उसके बाद ेस गया जहाँ उसे अपनी थीिसस छपने को देनी थी, उसके बाद ठाकुर साहब
के यहाँ गया लेिकन कह भी वह िटक नह पाया जब तक वह सुधा को हँ सा न ले, सुधा के
आँसू सुखा न दे; उसे चैन नह िमलेगा
शाम को वह लौटा तो खाना तैयार था िबनती से उसने पछ ू ा, “कहाँ है सुधा?” “अपनी छत
पर ” िबनती ने कहा च दर ऊपर गया पानी परस से बंद था और बादल भी खुले हए थे
लेिकन तेज पुरवैया चल रही थी तीज का चाँद शरमीली दु हन-सा बादल म महँु िछपा रहा
था हवा के तेज झकोर पर बादल उड़ रहे थे और कचनार बादल म तीज का धनुषाकार चाँद
आँखिमचौली खे ल रहा था सुधा ने अपनी खाट बरसाती के बाहर ख च ली थी छत पर
धँुधला अँधेरा था और रह-रहकर सुधा पर चाँदनी के फूल बरस जाते थे सुधा चुपचाप लेटी हई
बादल को देखती हई जाने या सोच रही थी
च दर गया च दर को देखते ही सुधा उठ खड़ी हई और उसने िबजली जला दी और चुपचाप
बैठ गयी च दर बैठ गया वह कुछ भी नह बोली बगल म िबछी हई िबनती क खाट पर
सुधा बैठ गयी
च दर को समझ नह आता था िक वह या कहे सुधा को इतना दु:ख िदया उसने सुधा
उससे कल शाम से बोली तक नह
“सुधा, तम ु नाराज हो गयी! मझ ु े जाने या हो गया था लेिकन माफ नह करोगी?” च दर ने
बहत काँपती हई आवाज म कहा सुधा कुछ नह बोली-चुपचाप बादल क ओर देखती रही
“सुधा?” च दर ने सुधा के दो कबत ू र जैसे उजले मासम ू पैर को लेकर अपनी गोद म रख िलया
और भरे हए गले से बोला, “सुधा, मझ ु े जाने या हो जाता है कभी-कभी! लगता है वह पहले
वाली ताकत टूट गयी म िबखर रहा हँ तम ु आयी और तु हारे सामने मन का जाने कौन-सा
तफ ू ान फूट पड़ा! तमु ने उसका इतना बुरा मान िलया बताओ, अगर तम ु ही ऐसा करोगी तो मझ ु े
सँभालने वाला िफर कौन है, सुधा?” और च दर क आँख से एक बँदू आँसू सुधा के पाँव पर चू
पड़ा सुधा ने च ककर अपने पाँव ख च िलये और उठकर च दर क खाट पर बैठ गयी और
च दर के क धे पर िसर रखकर फूट-फूटकर रो पड़ी बहत रोयी...बहत रोयी उसके बाद उठी
और सामने बैठ गयी
“च दर! तम ु ने गलत नह िकया म सचमच ु िकतनी अपरािधन हँ मने तु हारी िजंदगी चौपट
कर दी है लेिकन म या क ँ ? िकसी ने तो मझ ु े कोई रा ता नह बताया था अब हो ही या
सकता है, च दर! तम ु भी बदा त करो और हम भी कर ” च दर नह बोला उसने सुधा के
हाथ अपने होठ से लगा िलये “लेिकन म तु ह इस तरह िबखरने नह दँग ू ी! तमु ने अब अगर
इस तरह िकया तो अ छी बात नह होगी िफर हम तो बराबर हर पल तु हारे ही बारे म सोचते
रहे और तु हारी ही बात सोच-सोचकर अपने को धीरज देते रहे और तम ु इस तरह करोगे तो...”
“नह सुधा, म अपने को टूटने नह दँग ू ा तु हारा यार मेरे साथ है लेिकन इधर मझ ु े जाने
या हो गया था!”
“हाँ, समझ लो, च दर! तु ह हमारे सुहाग क लाज है, हम िकतने दुखी ह, तम ु समझ नह
सकते एक तु ह को देखकर हम थोड़ा-सा दुख-दद भल ू जाते ह, सो तम ु भी इस तरह करने
लगे! हम लोग िकतने अभागे ह!” और वह िफर चुपचाप लेटकर ऊपर देखती हई जाने या
सोचने लगी च दर ने एक बार धँुधली रे शमी चाँदनी म मरु झाये हए सोनजुही के फूल-जैसे महँु
क ओर देखा और सुधा के नरम गल ु ाबी होठ पर ऊँगिलयाँ रख द थोड़ी देर वह आँसू म भीगे
हए गल ु ाब क दुख-भरी पंख रय से उँ गिलयाँ उलझाये रहा और िफर बोला-
“ या सोच रही थ ?” च दर ने बहत दुलार से सुधा के माथे पर हाथ फेरकर कहा सुधा एक
फ क हँ सी हँ सकर बोली-
“जैसे आज लेटी हई बादल को देख रही हँ और पास तम ु बैठे हो, उसी तरह एक िदन कॉलेज म
दोपहर को म और गेसू लेटे हए बादल को देख रहे थे उस िदन उसने एक शेर सुनाया था
'कैफ बरदोश बादल को न देख, बेखबर तू कुचल न जाए कह ' उसका कहना िकतना सच
िनकला! भा य ने कहाँ ले जा पटका मझ ु े!”
“ य , वहाँ तु ह कोई तकलीफ तो नह ?” च दर ने पछ ू ा
“हाँ, समझते तो सब यही ह, लेिकन जो तकलीफ है वह म जानती हँ या िबनती जानती है ”
सुधा ने गहरी साँस लेकर कहा, “वहाँ आदमी भी बने रहने का अिधकार नह ”
“ य ?” च दर ने पछ ू ा
“ या बताएँ तु ह च दर! कभी-कभी मन म आता है िक डूब म ँ ऐसा भी जीवन होगा मेरा,
यह कभी म नह सोचती थी ” सुधा ने कहा
“ या बात है? बताओ न!” च दर ने पछ ू ा
“बता दँगू ी, देवता! तमु से भला या िछपाऊँगी लेिकन आज नह , िफर कभी!”
सुधा ने कहा, “तम ु परे शान मत हो कहाँ तम ु , कहाँ दुिनया! काश िक कभी तु हारी गोद से
अलग न होती म!” और सुधा ने अपना महँु च दर क गोद म िछपा िलया चाँदनी क पंख रयाँ
बरस पड़
27

उ लास और रोशनी का मलय पवन िफर लौट आया था, िफर एक बार च दर, सुधा और िबनती
के ाण को िवभोर कर गया था िक सुधा को महीने -भर बाद ही जाना है और सुधा भल ू गयी थी
िक शाहजहाँपुर से भी उसका कोई नाता है िबनती का इ तहान हो गया था और अकसर
च दर और सुधा िबनती के याह के िलए गहने और कपड़े खरीदने जाते िजंदगी िफर खुशी के
िह कोर पर झल ू ने लगी थी िबनती का याह उतरते अगहन म होने वाला था अब दो-ढाई
महीने रह गये थे सुधा और च दर जाकर कपड़े खरीदते और लौटकर िबनती को जबरद ती
पहनाते और गिु डय़ा क तरह उसे सजाकर खबू हँ सते दोन के बड़े -बड़े हौसले थे िबनती के
िलए सुधा िबनती को सलवार और चु नी का एक सेट और गरारा और कुरते का एक सेट देना
चाहती थी च दर िबनती को एक हीरे क अँगठ ू ी देना चाहता था च दर िबनती को बहत
ने ह करने लगा था वह िबनती के याह म भी जाना चाहता था लेिकन गाँव का मामला,
का यकु ज क बारात शहर म सुधा, िबनती और च दर को िजतनी आजादी थी उतनी वहाँ
भला य कर हो सकती थी! िफर कहने वाल क जबान, कोई या कह बैठे! यही सब सोचकर
सुधा ने च दर को मना कर िदया था इसीिलए च दर यह िबनती को िजतने उपहार और
आशीवाद देना चाहता था, दे रहा था सुधा का बचपन लौट आया था और िदन-भर उसक
शरारत और िकलका रय से घर िहलता था सुधा ने च दर को इतनी ममता म डुबो िलया था
िक एक ण वह च दर को अपने से अलग नह रहने देती थी िजतनी देर च दर घर म रहता,
सुधा उसे अपने दुलार म, अपनी साँस क गरमाई म समेटे रहती थी, च दर के माथे पर हर ण
वह जाने िकतना ने ह िबखे रती रहती थी!
एक िदन च दर आया तो देखा िक िबनती कह गयी है और सुधा चुपचाप बैठी हई बहत-से पुराने
खत को सँभाल रही है एक ग भीर उदासी का बादल घर म छाया हआ है च दर आया
देखा, सुधा आँख म आँसू भरे बैठी है
“ या बात है, सुधा?”
“ खसती क िच ी आ गयी च दर, परस शंकर बाबू आ रहे ह ”
च दर के दय क धडक़न पर जैसे िकसी ने हथौड़ा मार िदया वह चुपचाप बैठ गया “अब
सब ख म हआ, च दर!” सुधा ने बड़ी ही क ण मु कान से कहा, “अब साल-भर के िलए िवदा
और उसके बाद जाने या होगा?”
च दर कुछ नह बोला वह लेट गया और बोला, “सुधा, दु:खी मत हो आिखर कैलाश इतना
अ छा है, शंकर बाबू इतने अ छे ह दुख िकस बात का? रहा म तो अब म सश रहँ गा तम ु
मेरे िलए मत घबराओ!”
सुधा एकटक च दर क ओर देखती रही िफर बोली, “च दर! तु हारे जैसे सब य नह होते?
तमु सचमच ु इस दुिनया के यो य नह हो! ऐसे ही बने रहना, च दर मेरे! तु हारी पिव ता ही मझ
ु े
िज दा रख सकेगी वना म तो िजस नरक म जा रही हँ ...”
“तम ु उसे नरक य कहती हो! मेरी समझ म नह आता!”
“तम ु नह समझ सकते तम ु अभी बहत दरू हो इन सब बात से, लेिकन...” सुधा बड़ी देर तक
चुप रही िफर खत सब एक ओर िखसका िदये और बोली, “च दर, उनम सबकुछ है वे बहत
अ छे ह, बहत खुले िवचार के ह, मझ ु े बहत चाहते ह, मझ
ु पर कह से कोई ब धन नह , लेिकन
इस सारे वग का मोल जो देकर चुकाना पड़ता है उससे मेरी आ मा का कण-कण िव ोह कर
उठता है ” और सहसा घुटन म महँु िछपाकर रो पड़ी
च दर उठा और सुधा के माथे पर हाथ रखकर बोला, “िछः, रोओ मत सुधा! अब तो जैसा है, जो
कुछ भी है, बदा त करना पड़े गा ”
“कैसे क ँ , च दर! वह इतने अ छे ह और इसके अलावा इतना अ छा यवहार करते ह िक म
उनसे या कहँ ? कैसे कहँ ?” सुधा बोली
“जाने दो सुधी, जैसी िजंदगी हो वैसा िनबाह करना चािहए, इसी म सु दरता है और जहाँ तक
मेरा खयाल है वैवािहक जीवन के थम चरण म ही यह नशा रहता है, िफर िकसको यह सझ ू ता
है आओ, चलो चाय पीएँ ! उठो, पागलपन नह करते परस चली जाओगी, लाकर नह
जाना होता उठो!” च दर ने अपने मन क जुगु सा पीकर ऊपर से बहत ने ह से कहा
सुधा उठी और चाय ले आयी च दर ने अपने हाथ से एक कप म चाय बनायी और सुधा को
िपलाकर उसी म पीने लगा चाय पीते-पीते सुधा बोली-
“च दर, तम ु याह मत करना! तम ु इसके िलए नह बने हो ”
च दर सुधा को हँ साना चाहता था-”चल वाथ कह क ! य न क ँ याह? ज र क ँ गा!
और जनाब, दो-दो क ँ गा! अपने आप तो कर िलया और मझ ु े उपदेश दे रही ह!”
सुधा हँ स पड़ी च दर ने कहा-
“बस ऐसे ही हँ सती रहना हमेशा, हमारी याद करके और अगर रोयी तो समझ लो हम उसी तरह
िफर अशा त हो उठगे जैसे अभी तक थे!...” िफर याला सुधा के होठ से लगाकर बोला, “अ छा
सुधी, कभी तम ु सुनो िक म उतना पिव नह रहा िजतना िक हँ तो तम ु या करोगी? कभी मेरा
यि व अगर िबगड़ गया, तब या होगा?”
“होगा या? म रोकने वाली कौन होती हँ ! म खुद ही या रोक पायी अपने को! लेिकन च दर,
तम ु ऐसे ही रहना तु ह मेरे ाण क सौग ध है, तम ु अपने को िबगाडऩा मत ”
च दर हँ सा, “नह सुधा, तु हारा यार मेरी ताकत है म कभी िगर नह सकता जब तक तम ु
मेरी आ मा म गथ ँु ी हई हो ”
तीसरे िदन शंकर बाबू आये और सुधा च दर के पैर क धल ू माथे पर लगाकर चली गयी...इस
बार वह रोयी नह , शा त थी जैसे वध थल पर जाता हआ बेबस अपराधी
28

जब तक आसमान म बादल रहते ह तब तक झील म बादल क छाँह रहती है बादल के खुल


जाने के बाद कोई भी झील उनक छाँह को सुरि त नह रख पाती जब तक सुधा थी, च दर
क िजंदगी का िफर एक बार उ लास और उसक ताकत लौट आयी थी, सुधा के जाते ही वह िफर
सबकुछ खो बैठा उसके मन म कोई थािय व नह रहा लगता था जैसे वह एक जलागार है
जो बहत गहरा है, लेिकन िजसम हर चाँद, सरू ज, िसतारे और बादल क छाँह पड़ती है और उनके
चले जाने के बाद िफर वह उनका ितिब ब धो डालता है और बदलकर िफर वैसा ही हो जाता
है कोई भी चीज पानी को रँ ग नह पाती, उसे छू नह पाती, हाँ, लहर म उनक छाया का प
िवकृत हो जाता है
च दर को चार ओर क दुिनया सहज गज ु रते हए बादल का िन सार तमाशा-सी लग रही थी
कॉलेज क चहल-पहल, ढलती हई बरसात का पानी, थीिसस और िड ी, बट का पागलपन और
प मी के खत-ये सभी उसके सामने आते और सपन क तरह गज ु र जाते कोई चीज उसके
दय को छू न पाती ऐसा लगता था िक च दर एक खोखला यि है िजसम िसफ एक
सापे अ त:करण मा है, कोई िनरपे आ मा नह और दय भी जैसे समा हो गया था एक
जलहीन ह के बादल क तरह वह हवा के हर झ के पर तैर रहा था लेिकन िटकता कभी भी
नह था उसक भावनाएँ , उसका मन, उसक आ मा, उसके ाण, उसका सबकुछ सो गया था
और वह जैसे न द म चल-िफर रहा था, न द म सबकुछ कर रहा था जाने के आठ-नौ रोज बाद
सुधा का खत आया-
“मेरे भा य!
म इस बार तु ह िजस तरह छोड़ आयी हँ उससे मझ ु े पल-भर को चैन नह िमलता अपने को तो
बेच चुक , अपने मन के मोती को क चड़ म फक चुक , तु हारी रोशनी को ही देखकर कुछ
स तोष है मेरे दीपक, तम ु बुझना मत तु ह मेरे ने ह क लाज है
मेरी िजंदगी का नरक िफर मेरे अंग म िभदना शु हो गया है तम ु कहते हो िक जैसे हो िनबाह
करना चािहए तम ु कहते हो िक अगर मने उनसे िनबाह नह िकया तो यह तु हारे यार का
अपमान होगा ठीक है, म अपने िलए नह , तु हारे िलए िनबाह क ँ गी, लेिकन म कैसे सँभालँ ू
अपने को? िदल और िदमाग बेबस हो रहे ह, नफरत से मेरा खन ू उबला जा रहा है कभी-कभी
जब तु हारी सरू त सामने होती है तो जैसे अपना सुख-दुख भल ू जाती हँ , लेिकन अब तो िजंदगी
का तफ ू ान जाने िकतना तेज होता जा रहा है िक लगता है तु ह भी मझ ु से ख चकर अलग कर
देगा
लेिकन तु ह अपने देव व क कसम है, तम ु मझु े अब अपने दय से दरू न करना तम ु नह
जानते िक तु हारी याद के ही सहारे म यह नरक झेलने म समथ हँ तम ु मझु े कह िछपा लो-म
या क ँ , मेरा अंग-अंग मझ ु पर यं य कर रहा है, आँख क न द ख म है पाँव म इतना
तीखा दद है िक कुछ कह नह सकती उठते-बैठते च कर आने लगा है कभी-कभी बदन
काँपने लगता है आज वह बरे ली गये ह तो लगता है म आदमी हँ तभी तु ह िलख भी रही
हँ तम ु दुखी मत होना चाहती थी िक तु ह न िलखँ ू लेिकन िबना िलखे मन नह मानता
मेरे अपने ! तम
ु ने तो यही सोचकर यहाँ भे जा था िक इससे अ छा लड़का नह िमलेगा लेिकन
कौन जानता था िक फूल म क ड़े भी ह गे
अ छा, अब माँजी नीचे बुला रही ह...चलती हँ ...देखो अपने िकसी खत म इन सब बात का िज
मत करना! और इसे फाड़कर फक देना
तु हारी अभािगन-सुधी ”
च दर को खत िमला तो एक बार जैसे उसक मू छा टूट गयी उसने खत िलया और िबनती को
बुलाया िबनती हाथ म साग और डिलया िलये आयी और पास बैठ गयी च दर ने वह खत
िबनती को दे िदया िबनती ने पढ़ा और च दर को वापस दे िदया और चुपचाप तरकारी काटने
लगी
वह उठा और चुपचाप अपने कमरे म चला गया थोड़ी देर बाद िबनती चाय लेकर आयी और
चाय रखकर बोली, “आप दीदी को कब खत िलख रहे ह?”
“म नह िलखँग ू ा!” च दर बोला
“ य ?”
“ या िलखँ ू िबनती, कुछ समझ म नह आता!” कुछ झ लाकर च दर ने कहा िबनती चुपचाप
बैठ गयी थोड़ी देर बाद च दर बड़े मल ु ायम वर म बोला, “िबनती, एक िदन तम ु ने कहा था
िक म देवता हँ , तु ह मझ ु पर गव है आज भी तु ह मझ ु पर गव है?”
“पहले से यादा!” िबनती बोली
“अ छा, ता जुब है!” च दर बोला, “अगर तम ु जानती िक आजकल कभी-कभी म या सोचता हँ
तो तु ह ता जुब होता! तम ु जानती तो, सुधा के इस खत से मझु े जरा-सा भी दुख नह हआ,
िसफ झ लाहट ही हई है म सोच रहा था िक य सुधा इतना वाँग भरती है दुख और अंत
का! िकस लड़क को यह सब पस द नह ? िकस लड़क के यार म शरीर का अंश नह होता?
लाख ितभाशािलनी लड़िकयाँ ह लेिकन अगर वे िकसी को यार करगी तो उसे अपनी ितभा
नह दगी, अपना शरीर ही दगी और यिद वह अ वीकार कर िलया जाय तो शायद ितिहं सा से
तड़प भी उठगी अब तो मझ ु े ऐसा लगने लगा िक से स ही यार है, यार का मु य अंश है,
बाक सभी कुछ उसक तैयारी है, उसके िलए एक समिु चत वातावरण और िव ास का िनमाण
करना है...जाने य मझ ु े इस सबसे बहत नफरत होती जाती है अभी तक म से स और यार
को दो चीज समझता था, यार पर िव ास करता था, से स से नफरत, अब मझ ु े दोन ही एक
चीज लगती ह और जाने कैसे अ िच-सी हो गयी है इस िजंदगी से तु हारी या राय है,
िबनती?”
“मेरी? अरे , हम बे-पढ़े -िलखे आदमी, हम या आपसे बात करगे! लेिकन एक बात है यादा
पढऩा-िलखना अ छा नह होता ”
“ य ?” च दर ने पछ ू ा
“पढ़ने -िलखने से ही आप और दीदी जाने या- या सोचते ह! हमने देहात म देखा है िक वहाँ
लड़िकयाँ समझती ह िक उ ह या करना है इसिलए कभी इन सब बात पर अपना मन नह
िबगाड़त बि क मने तो देखा है सभी शादी के बाद मोटी होकर आती ह और दीदी अब
छोटी-सी नह िक ऐसी उनक तबीयत खराब हो जाय यह सब मन म घुटने का नतीजा है
जब यह होना ही है तो य दीदी दु:खी होती ह? उ ह तो और मोटी होना चािहए ” िबनती
बोली
इस सम या का इतना सरल समाधान सुनकर च दर को हँ सी आ गयी
“अब तमु ससुराल जा रही हो मोटी होकर आना!”
“धत,् आप तो मजाक करने लगे!”
“लेिकन िबनती, तम ु इस मामले म बड़ी िव ान मालम ू देती हो अभी तक यह िव ा कहाँ
िछपा रखी थी?”
“नह , आप मजाक न बनाइए तो म सच बताऊँ िक देहाती लड़िकयाँ शहर क लड़िकय से
यादा होिशयार होती ह इन सब मामल म ”
“सच?” च दर ने पछ ू ा वह गाँव क िजंदगी को बेहद िनरीह समझता था
“हाँ और या? वहाँ इतना दुराव, इतना गोपन नह है सभी कुछ उनके जीवन का उ मु है
और याह के पहले ही वहाँ लड़िकयाँ सबकुछ...”
“अरे नह !” च दर ने बेहद ता जुब से कहा
“लो यक न नह होता आपको? मझ ु े कैसे मालम ू हआ इतना म आपसे कुछ नह िछपाती, वहाँ
तो सब लोग इसे इतना वाभािवक समझते ह िजतना खाना-पीना, हँ सना-बोलना बस
लड़िकयाँ इस बात म सचे त रहती ह िक िकसी मस ु ीबत म न फँस!”
च दर चुपचाप बैठ चाय पीता रहा आज तक वह िजंदगी को िकतना पिव मानता रहा था
लेिकन िजंदगी कुछ और ही है िजंदगी अब भी वह है जो सिृ के आर भ म थी...और दुिनया
िकतनी चालाक है! िकतनी भुलावा देती है! अ दर से मन म जहर िछपाकर भी होठ पर कैसी
अमतृ मयी मस ु कान झलकाती रहती है! यह िबनती जो इतनी शा त, संयत और भोली लगती थी,
इसम भी सभी गन ु भरे ह इस दुिनया म? च दर ने िजंदगी को परखने म िकतना बड़ा धोखा
खाया है ...िजंदगी यह है-मांसलता और यास और उसके साथ-साथ अपने को िछपाने क
कला
वह बैठा-बैठा सोचता रहा सहसा उसने पछ ू ा-
“िबनती, तम ु भी देहात म रही हो और सुधा भी तम ु लोग क िजंदगी म वह सब कभी आया?”
िबनती ण-भर चुप रही, िफर बोली, “ य , या नफरत करोगे सुनकर!”
“नह िबनती, िजतनी नफरत और अ िच िदल म आ गयी है उससे यादा आ सकती है भला!
बताना चाहो तो बता दो अब म िजंदगी को समझना चाहता हँ , वा तिवकता के तर पर!”
च दर ने ग भीरता से पछ ू ा
“मने आपसे कुछ नह िछपाया, न अब िछपाऊँगी पता नह य दीदी से भी यादा आप पर
िव ास जमता जा रहा है सुधा दीदी क िजंदगी म तो यह सब नह आ पाया वे बड़ी िविच -
सी थ सबसे अलग रहती थ और पढ़त और कमल के पोखरे म फूल तोड़ती थ , बस! मेरी
िजंदगी म...”
च दर ने चाय का याला िखसका िदया जाने िकस भाव से उसने िबनती के चे हरे क ओर
देखा वह शा त थी, िनिवकार थी और िबना िकसी िहचक के कहती जा रही थी
च दर चुप था िबनती ने अपने पाँव से च दर के पाँव क उँ गिलयाँ दबाते हए पछ ू ा, “ या
सोच रहे ह आप? सुन रहे ह आप?”
“जाने दो, म नह सुनँ ग ू ा लेिकन तम ु मझु पर इतना िव ास य करती हो?” च दर ने
पछ ू ा
“जाने य ? यहाँ आकर मने दीदी के साथ आपका यवहार देखा िफर प मी वाली घटना
हई मेरे तन-मन म एक िविच -सी ा आपके िलए छा गयी जाने कैसी अ िच मेरे मन म
दुिनया के िलए थी, आपको देखकर म िफर व थ हो गयी ”
“ता जुब है! तु हारे मन क अ िच दरू हो गयी दुिनया के ित और मेरे मन क अ िच बढ़
गयी कैसे अ तिवरोध होते ह मन क िति याओं म! एक बात पछ ू ू ँ , िबनती! तमु मेरे इतने
समीप रही हो सैकड़ बार ऐसा हआ होगा जो मेरे िवषय म तु हारे मन म शंका पैदा कर देता,
तम ु सैकड़ बार मेरे िसर को अपने व पर रखकर मझ ु े सा वना दे चुक हो तम ु मझ ु े बहत
यारी हो, लेिकन तम ु जानती हो म तु ह यार नह करता हँ , िफर यह सब या है, य है?”
िबनती चुप रही-”पता नह य है? मझ ु े इसम कभी कोई पाप नह िदखा और कभी िदखा भी तो
मन ने कहा िक आप इतने पिव ह, आपका च र इतना ऊँचा है िक मेरा पाप भी आपको छूकर
पिव हो जाएगा ”
“लेिकन िबनती...”
“बस?” िबनती ने च दर को टोककर कहा, “इससे अिधक आप कुछ मत पिू छए, म हाथ जोड़ती
हँ !”
च दर चुप हो गया
29

च दर िजतना सुलझाने का यास कर रहा था, चीज उतनी ही उलझती जा रही थ सुधा ने
िजंदगी का एक प च दर के सामने रखा था िबनती उसे दस ू री दुिनया म ख च लायी
कौन सच है, कौन झठ ू ? वह िकसका ितर कार करे , िकसको वीकार करे अगर सुधा गलती
पर है तो च दर का िज मा है, च दर ने सुधा क ह या क है...लेिकन िकतनी िभ न ह दोन
बहन! िबनती िकतनी यावहा रक, िकतनी यथाथ, संयत और सुधा िकतनी आदश, िकतनी
क पनामयी, िकतनी सू म, िकतनी ऊँची, िकतनी सुकुमार और पिव
जीवन क सम याओं के अ तिवरोध म जब आदमी दोन प को समझ लेता है तब उसके मन
म एक ठहराव आ जाता है वह भावना से ऊपर उठकर व छ बौि क धरातल पर िजंदगी को
समझने क कोिशश करने लगता है च दर अब भावना से हटकर िजंदगी को समझने क
कोिशश करने लगा था वह अब भावना से डरता था भावना के तफ ू ान म इतनी ठोकर
खाकर अब उसने बुि क शरण ली थी और एक पलायनवादी क तरह भावना से भाग कर बुि
क एकांिगता म िछप गया था कभी भावुकता से नफरत करता था, अब वह भावना से ही
नफरत करने लगा था इस नफरत का भोग सुधा और िबनती दोन को ही भुगतना पड़ा
सुधा को उसने एक भी खत नह िलखा और िबनती से एक िदन भी ठीक से बात नह क
जब भावना और सौ दय के उपासक को बुि और वा तिवकता क ठे स लगती है तब वह सहसा
कटुता और यं य से उबल उठता है इस व च दर का मन भी कुछ ऐसा ही हो गया था
जाने िकतने जहरीले काँटे उसक वाणी म उग आये थे, िज ह वह कभी भी िकसी को चुभाने से
बाज नह आता था एक िनमम िनरपे ता से वह अपने जीवन क सीमा म आने वाले हर
यि को कटुता के जहर से अिभिष करता चलता था सुधा को वह कुछ िलख नह सकता
था प मी यहाँ थी नह , ले-देकर बची अकेली िबनती िजसे इन जहरीले वाण का िशकार होना
पड़ रहा था िसत बर बीत रहा था और अब वह गाँव जाने क तैयारी कर रही थी डॉ टर
साहब ने िदस बर तक क छु ी ली थी और वे भी गाँव जाने वाले थे शादी के महीने -भर पहले
से उनका जाना ज री था
च दर खुश नह था, नाराज नह था एक वग देवदत
ू िजसे िपशाच ने खरीद िलया हो,
उ ह क तरह वह िजंदगी के सुख-दु:ख को ठोकर मारता हआ िकनारे खड़ा सभी पर हँ स रहा
था खास तौर से नारी पर उसके मन का सारा जहर िबखरने लगा था और उसम उसे यह भी
अकसर यान नह रहता था िक वह िकससे या बात कर रहा है िबनती सबकुछ चुपचाप
सहती जा रही थी, िबनती को सुधा क तरह रोना नह आता था; न उसक च दर इतनी परवा
ही करता था िजतनी सुधा क दोन म बात भी बहत कम होती थ , लेिकन िबनती मन-ही-
मन दु:खी थी वह या करे ! एक िदन उसने च दर के पैर पकड़कर बहत अनुनय से
कहा-”आपको यह या होता जा रहा है? अगर आप ऐसे ही करगे तो हम दीदी को िलख दगे!”
च दर बड़ी भयावनी हँ सी हँ सा-”दीदी को या िलखोगी? मझ ु े अब उसक परवा नह वह िदन
गये, िबनती! बहत बन िलये हम ”
“हाँ, च दर बाब,ू आप लड़क होते तो समझते!”
“सब समझता हँ म, कैसा दोहरा नाटक खे लती ह लड़िकयाँ! इधर अपराध करना, उधर मख ु िबरी
करना ”
िबनती चुप हो गयी एक िदन जब च दर कॉलेज से आया तो उसके िसर म दद हो रहा था
वह आकर चुपचाप लेट गया िबनती ने आकर पछ ू ा तो बोला, “ य , य म बतलाऊँ िक या
है, तमु िमटा दोगी?”
िबनती ने च दर के िसर पर हाथ रखकर कहा, “च दर, तु ह या होता जा रहा है? देखो कैसी
हड्िडयाँ िनकल आयी ह इधर इस तरह अपने को िमटाने से या फायदा?”
“िमटाने से?” च दर उठकर बैठ गया-”म िमटाऊँगा अपने को लड़िकय के िलए? िछः, तम ु लोग
अपने को या समझती हो? या है तम ु लोग म िसवा एक नशीली मांसलता के? इसके िलए म
अपने को िमटाऊँगा?”
िबनती ने च दर को िफर िलटा िदया
“इस तरह अपने को धोखा देने से या फायदा, च दर बाब?ू म जानती हँ दीदी के न होने से
आपक िजंदगी म िकतना बड़ा अभाव है लेिकन...”
“दीदी के न होने पर? या मतलब है तु हारा?”
“मेरा मतलब आप खबू समझते ह म जानती हँ , दीदी होत तो आप इस तरह न िमटाते अपने
को म जानती हँ दीदी के िलए आपके मन म या था?” िबनती ने िसर म तेल डालते हए
कहा
“दीदी के िलए या था?” च दर हँ सा, बड़ी िविच हँ सी-”दीदी के िलए मेरे मन म एक
आदशवादी भावुकता थी जो अधकचरे मन क उपज थी, एक ऐसी भावना थी िजसके औिच य
पर ही मझ ु े िव ास नह , वह एक सनक थी ”
“सनक!” िबनती थोड़ी देर तक चुपचाप िसर म तेल ठ कती रही िफर बोली, “अपनी साँस से
बनायी देवमिू त पर इस तरह लात तो न मा रए आपको शोभा नह देता!” िबनती क आँख म
आँसू आ गये, “िकतनी अभागी ह दीदी!”
च दर एकटक िबनती क ओर देखता रहा और िफर बोला, “म अब पागल हो जाऊँगा, िबनती!”
“म आपको पागल नह होने दँग ू ी म आपको छोडक़र नह जाऊँगी ”
“मझ ु े छोडक़र नह जाओगी!” च दर िफर हँ सा-”जाइए आप! अब आप ीमती िबनती होने वाली
ह आपका याह होगा म पागल हो रहा हँ , इससे या हआ? इन सब बात से दुिनया नह
कती, शहनाइयाँ नह बंद होत , ब दनवार नह तोड़े जाते!”
“म नह जाऊँगी च दर अभी, तम ु े नह जानते तु हारी इतनी ताड़ना और यं य सहकर
ु मझ
भी तु हारे पास रही, अब दुिनया-भर क लांछना और यं य सहकर तु हारे पास रह सकती
हँ ” िबनती ने तीखे वर म कहा
“ य ? तु हारे रहने से या होगा? तम ु सुधा नह हो तम ु सुधा नह हो सकती! जो सुधा है मेरी
िजंदगी म, वह कोई नह हो सकता समझ ? और मझ ु पर एहसान मत जताओ! म मर जाऊँ, म
पागल हो जाऊँ, िकसी का साझा! य तम ु मझ ु पर इतना अिधकार समझने लग -अपनी सेवा के
बल पर? म इसक र ी-भर परवा नह करता जाओ, यहाँ से!” और उसने िबनती को धकेल
िदया, तेल क शीशी उठाकर बाहर फक दी
िबनती रोती हई चली गयी च दर उठा और कपड़े पहनकर बाहर चल िदया, “हँ , ये लड़िकयाँ
समझती ह अहसान कर रही ह मझ ु पर!”
िबनती के जाने क तैयारी हो गयी थी और िलया-िदया जाने वाला सारा सामान पैक हो रहा
था डॉ टर साहब भी महीने -भर क छु लेकर साथ जा रहे थे उस िदन क घटना के बाद
िफर िबनती च दर से िब कुल ही नह बोली थी च दर भी कभी नह बोला
ये लोग कार पर जाने वाले थे सारा सामान पीछे -आगे लादा जाने वाला था डॉ टर साहब
कार लेकर बाजार गये थे च दर उनका हो डॉल सँभाल रहा था िबनती आयी और बोली, “म
आपसे बात कर सकती हँ ?”
“हाँ, हाँ! तमु उस िदन क बात का बुरा मान गय ! अमम ू न लड़िकयाँ स ची बात का बुरा मान
जाती ह! बोलो, या बात है?” च दर ने इस तरह कहा जैसे कुछ हआ ही न हो
िबनती क आँख म आँसू थे, “च दर, आज म जा रही हँ !”
“हाँ, यह तो मालम ू है, उसी का इ तजाम कर रहा हँ !”
“पता नह मने या अपराध िकया च दर िक तु हारा ने ह खो बैठी ऐसा ही था च दर तो
आते ही आते इतना ने ह तम ु ने िदया ही य था?...म तम ु से कभी भी दीदी का थान नह माँग
रही थी...तम ु ने मझ ु े गलत य समझा?”
“नह , िबनती! म अब ने ह इ यािद पस द नह करता हँ पण ू प रप व मनु य हँ और ये सब
भावनाएँ अब अ छी नह लगत मझ ु े ने ह वगैरह क दुिनया अब मझ ु े बड़ी उथली लगती है!”
“तभी च दर! इतने िदन मने रोते-रोते िबताये तम ु ने एक बार पछ ू ा भी नह िजंदगी म िसवा
दीदी और तु हारे , कौन था? तम ु ने मेरे आँसुओ ं क परवा नह क तु ह कसरू नह देती; कसरू
मेरा ही होगा, च दर!”
“नह , कसरू क बात नह िबनती! औरत के रोने क कहाँ तक परवा क जाए, वे कु े, िब ली
तक के िलए उतने ही दु:ख से रोती ह ”
“खैर, च दर! ई र करे तम ु जीवन-भर इतने मजबत ू रहो मने अगर कभी तु हारे िलए कुछ
िकया, वैसे िकया भी या, लेिकन अगर कुछ भी िकया तो िसफ इसिलए िक मेरे मन क जाने
िकतनी ममता तम ु ने जीत ली, या म हमेशा इस बात के िलए पागल रहती थी िक तु ह जरा-सी
भी ठे स न पहँ चे, म या कर डालँ ू तु हारे िलए तम ु ने , तु हारे यि व ने मझ ु े जादू म बाँध
िलया था तम ु मझ ु से कुछ भी करने के िलए कहते तो म िहचक नह सकती थी-लेिकन खैर,
तु ह मेरी ज रत नह थी तम ु पर भार हो उठती थी म मने अपने को ख च िलया, अब कभी
तु हारे जीवन म आने का साहस नह क ँ गी यह भी कैसे कहँ िक कभी तु ह मेरी ज रत
पड़े गी म जानती हँ िक तु हारे तफ ू ानी यि व के सामने म बहत तु छ हँ , ितनके से भी
तु छ लेिकन आज जा रही हँ , अब कभी यहाँ आने का साहस न क ँ गी लेिकन या चलते
व आशीवाद भी न दोगे? कुछ आगे का रा ता न बताओगे?”
िबनती ने झक ु कर च दर के पैर पकड़ िलये और िससक-िससककर रोने लगी च दर ने
िबनती को उठाया और पास क कुस पर िबठा िदया और िसर पर हाथ रखकर बोला, “आशीवाद
देवताओं से माँगा जाता है म अब ेत हो चुका हँ , िबनती!”
30

च दर अब एका त चाहता था और वह च दर को िमल गया था परू ा घर खाली, एक


महरािजन, माली और नौकर और सारे घर म िसफ स नाटा और उस स नाटे का ेत च दर
च दर चाहे िजतना टूट जाये, चाहे िजतना िबखर जाये, लेिकन च दर हारने वाला नह था
वह हार भी जाये लेिकन हार वीकार करना उसे नह आता था उसके मन म अब स नाटा था,
अपने मन के पज ू ागहृ म थािपत सुधा क पावन, ांजल देवमिू त को उसने कठोरता से उठाकर
बाहर फक िदया था मि दर क मिू तमयी पिव ता, िबनती को अपमािनत कर िदया था और
मि दर के पज ू ा-उपकरण को, अपने जीवन के आदश और मानदंड को उसने चरू -चरू कर डाला
था, और बुतिशकन िवजेता क तरह ू रता से हँ सते हए मि दर के भ नावशेष पर कदम
रखकर चल रहा था उसका मन टूटा हआ खँडहर था िजसके उजाड़, बेछत कमर म चमगादड़
बसेरा करते ह और िजसके वंसावशेष पर िगरिगट पहरा देते ह काश िक कोई उन खँडहर
क ई ंट उलटकर देखता तो हर प थर के नीचे पज ू ा-म िससकते हए िमलते, हर धल ू क पत म
घंिटय क बेहोश विनयाँ िमलत , हर कदम पर मरु झाये हए पज ू ा के फूल िमलते और हर शाम-
सवेरे भ न देवमिू त का क ण दन दीवार पर िसर पटकता हआ िमलता...लेिकन च दर ऐसा-
वैसा दु मन नह था उसने मि दर को चरू -चरू कर उस पर अपने गव का पहरा लगा िदया था
िक कभी भी कोई उस पर खँडहर के अवशेष कुरे दकर पुराने िव ास, पुरानी अनुभिू तयाँ, पुरानी
पजू ाएँ िफर से न जगा दे बुतिशकन तो मि दर तोडऩे के बाद सारा शहर जला देता है, तािक
शहर वाले िफर उस मि दर को न बना पाएँ -ऐसा था च दर अपने मन को सुनसान कर लेने
के बाद उसने अपनी िजंदगी, अपना रहन-सहन, अपना मकान और अपना वातावरण भी
सुनसान कर िलया था अगहन आ गया था, लेिकन उसके चार ओर जेठ क दुपहरी से भी
भयानक स नाटा था
िबनती जब से गयी उसने कोई खत नह भे जा था सुधा के भी प ब द हो चुके थे प मी के
दो खत आये प मी आजकल िद ली घम ू रही थी, लेिकन च दर ने प मी को कोई जवाब नह
िदया अकेला...अकेला...िब कुल अकेला...सहारा म थल क नीरस भयावनी शाि त और
वह भी जब तक िक काँपता हआ लाल सरू ज बालू के ि ितज पर अपनी आिखरी साँस तोड़ रहा
हो और बालू के टील क अधमरी छायाएँ लहरदार बालू पर धीरे -धीरे रग रही ह
िबनती के याह को प ह िदन रह गये थे िक सुधा का एक प आया...
“मेरे देवता, मेरे नयन, मेरे पंथ, मेरे काश!
आज िकतने िदन बाद तु ह खत िलखने का मौका िमल रहा है सोचा था, िबनती के याह के
महीने -भर पहले गाँव आ जाऊँगी तो एक िदन के िलए तु ह आकर देख जाऊँगी लेिकन इरादे
इरादे ह और िजंदगी िजंदगी अब सुधा अपने जेठ और सास के लड़के क गल ु ाम है याह के
दस
ू रे िदन ही चला जाना होगा तु ह यहाँ बुला लेती, लेिकन यहाँ ब धन और परदा तो
ससुराल से भी बदतर है
मने िबनती से तु हारे बारे म बहत पछ ू ा वह कुछ नह बतायी पापा से इतना मालम ू हआ िक
तु हारी थीिसस छपने गयी है क वोकेशन नजदीक है तु ह याद है, वायदा था िक तु हारा
गाउन पहनकर म फोटो िखंचवाऊँगी वह िदन याद करती हँ तो जाने कैसा होने लगता है!
एक क वोकेशन क फोटो िखंचवाकर ज र भे जना
या तम ु ने िबनती को कोई दु:ख िदया था? िबनती हरदम तु हारी बात पर आँसू भर लाती है
मने तु हारे भरोसे िबनती को वहाँ छोड़ा था म उससे दरू , माँ का सुख उसे िमला नह , िपता मर
गये या तम ु उसे इतना भी यार नह दे सकते? मने तु ह बार-बार सहे ज िदया था मेरी
त दु ती अब कुछ-कुछ ठीक है, लेिकन जाने कैसी है कभी-कभी िसर म दद होने लगता
है जी िमचलाने लगता है आजकल वह बहत यान रखते ह लेिकन वे मझ ु को समझ नह
पाये सारे सुख और आजादी के बीच म िकतनी अस तु हँ म िकतनी परे शान हँ लगता
है हजार तफ ू ान हमेशा नस म घहराया करते ह
च दर, एक बात कहँ अगर बुरा न मानो तो आज शादी के छह महीने बाद भी म यही कहँ गी
च दर िक तम ु ने अ छा नह िकया मेरी आ मा िसफ तु हारे िलए बनी थी, उसके रे शे म वे त व
ह जो तु हारी ही पज ू ा के िलए थे तम ु ने मझ ु े दरू फक िदया, लेिकन इस दरू ी के अँधेरे म भी
ज म-ज मा तर तक भटकती हई िसफ तु ह को ढूँढूँगी, इतना याद रखना और इस बार अगर
तमु िमल गये तो िजंदगी क कोई ताकत, कोई आदश, कोई िस ा त, कोई वंचना मझ ु े तम
ु से
अलग नह कर सकेगी लेिकन मालम ू नह पुनज म सच है या झठ ू ! अगर झठ ू है तो सोचो
च दर िक इस अनािदकाल के वाह म िसफ एक बार...िसफ एक बार मने अपनी आ मा का
स य ढूँढ़ पाया था और अब अन तकाल के िलए उसे खो िदया अगर पुनज म नह है तो
बताओ मेरे देवता, या होगा? करोड़ सिृ याँ ह गी, लय ह गे और म अत ृ िचनगारी क तरह
असीम आकाश म तड़पती हई अँधेरे क हर परत से टकराती रहँ गी, न जाने कब तक के िलए
य - य दरू ी बढ़ती जा रही है, य - य पज ू ा क यास बढ़ती जा रही है! काश म िसतार के
फूल और सरू ज क आरती से तु हारी पज ू ा कर पाती! लेिकन जानते हो, मझ ु े या करना पड़ रहा
है? मेरे छोटे भतीजे नीलू ने पहाड़ी चहू े पाले ह उनके िपंजड़े के अ दर एक पिहया लगा है और
ऊपर घंिटयाँ लगी ह अगर कोई अभागा चहू ा उस च म उलझ जाता है तो य - य छूटने के
िलए वह पैर चलाता है य - य च घम ू ने लगता है; घंिटयाँ बजने लगती ह नीलू बहत खुश
होता है लेिकन चहू ा थककर बेदम होकर नीचे िगर पड़ता है कुछ ऐसे ही च म फँस गयी हँ ,
च दर! स तोष िसफ इतना है िक घंिटयाँ बजती ह तो शायद तम ु उ ह पजू ा के मि दर क घंिटयाँ
समझते होगे लेिकन खैर! िसफ इतनी ाथना है च दर! िक अब थककर ज दी ही िगर जाऊँ!
मेरे भा य! खत का जवाब ज दी ही देना प मी अभी आयी या नह ?
तु हारी, ज म-ज म क यासी-सुधा ”
च दर ने खत पढ़ा और फौरन िलखा-
“ि य सुधा,
तु हारी प बहत िदन के बाद िमला तु हारी भाषा वहाँ जाकर बहत िनखर गयी है म तो
समझता हँ िक अगर खत कह छुपा िदया जाये तो लोग इसे िकसी रोमांिटक उप यास का अंश
समझ, य िक उप यास के ही पा ऐसे खत िलखते ह, वा तिवक जीवन के नह
खैर, म अ छा हँ हरे क आदमी िजंदगी से समझौता कर लेता है िक तु मने िजंदगी से समपण
कराकर उसके हिथयार रख िलये ह अब िकले के बाहर से आने वाली आवाज अ छी नह
लगत , न खत के पाने क उ सुकता, न जवाब िलखने का आ ह अगर मझ ु े अकेला छोड़ दो
तो बहत अ छा होगा म िवनती करता हँ , मझु े खत मत िलखना-आज िवनती करता हँ य िक
आ ा देने का अब साहस भी नह , अिधकार भी नह , यि व भी नह खत तु हारा तु ह
भे ज रहा हँ
कभी िजंदगी म कोई ज रत आ पड़े तो ज र याद करना-बस, इसके अलावा कुछ नह
अपने म स तु -च कुमार कपरू ”
उसके बाद िफर वही सुनसान िजंदगी का ढरा खँडहर के स नाटे म भल ू कर आयी हई बाँसुरी
क आवाज क तरह सुधा का प , सुधा का यान आया और चला गया खँडहर का स नाटा,
स नाटे के उ ल,ू िगरिगट और प थर काँपे और िफर मु तैदी से अपनी जगह पर जम गये और
उसके बाद िफर वही उदास स नाटा, टूटता हआ-सा अकेलापन और मिू छत दोपहरी के फूल-सा
च दर...
31

नव बर का एक खुशनुमा िवहान; सोने के काँपते तारे सुबह क ठ डी हवाओं म उलझे हए थे


आकाश एक छोटे ब चे के नीलम नयन क तरह भोला और व छ लग रहा था या रयाँ
शरद के फूल से भर गयी थ और एक नयी ताजगी मौसम और मन म पुलक उठी थी च दर
अपना पुराना क थई वेटर और पीले रं ग के प मीने का ल बा कोट पहने लॉन पर टहल रहा
था छोटे -छोटे िप ले दबू पर िकलोल कर रहे थे सहसा एक कार आकर क और प मी
उसम से कूद पड़ी और वाँरी िहरणी क तरह दौडक़र च दर के पास पहँ च गयी-”हलो माई
वॉय, म आ गयी!”
च दर कुछ नह बोला, “आओ, ाइंग म म बैठो!” उसने उसी मद ु ा-सी आवाज म कहा उसे
प मी के आने क कोई स नता नह थी प मी उसके उदास चे हरे को देखती रही, िफर उसके
क धे पर हाथ रखकर बोली, “ य कपरू , कुछ बीमार हो या?”
“नह तो, आजकल मझ ु े िमलना-जुलना अ छा नह लगता अकेला घर भी है!” उसने उसी
फ क आवाज म कहा
“ य , िमस सुधा कहाँ है? और डॉ टर शु ला!”
“वे लोग िमस िबनती क शादी म गये ह ”
“अ छा, उसक शादी भी हो गयी, डैम इट जैसे ये लोग पागल हो गये ह, बट , सुधा,
िबनती!... य , िमलते-जुलते य नह तम ु ?”
“य ही, मन नह होता ”
“समझ गयी, जो मझ ु े तीन-चार साल पहले हआ था, कुछ िनराशा हई है तु ह!” प मी बोली
“नह , ऐसी तो कोई बात नह ”
“कहना मत अपनी जबान से, वीकार कर लेने से पु ष का गव टूट जाता है ...यही तो तु हारे
च र म मझ ु े यारा लगता है खैर, यह ठीक हो जाएगा...! म तु ह ऐसे नह रहने दँगू ी ”
“मसरू ी म इतने िदन या करती रह ?” च दर ने पछ ू ा
“योग-साधन!” प मी ने हँ सकर कहा, “जानते हो, आजकल मसरू ी म बफ पड़ रही है मने
कभी बफ के पहाड़ नह देखे थे अँगरे जी उप यास म बफ पड़ने का िज सुना बहत था
सोचा, देखती आऊँ या कपरू ! तम
ु खत य नह िलखते थे?”
“मन नह होता था अ छा बट क शादी कब होगी?” च दर ने बात टालने के िलए कहा
“हो भी गयी म आ भी नह पायी िक सुनते ह जेनी एक िदन बट को पकड़क़र ख च ले गयी
और पादरी से बोली, 'अभी शादी करा दो ' उसने शादी करा दी लौटकर जेनी ने बट का
िशकारी सटू फाड़ डाला और अ छा-सा सटू पहना िदया बड़े िविच ह दोन एक िदन सद
के व बट वेटर उतारकर जेनी के कमरे म गया तो मारे गु से के जेनी ने िसवा पतलन ू के
सारे कपड़े उतारकर बट को कमरे से बाहर िनकाल िदया म तो जब से आयी हँ , रोज नाटक
देखती हँ हाँ, देखो यह तो म भल ू ही गयी थी...” और उसने अपनी जेब से पीतल क एक
छोटी-सी मिू त िनकालकर मेज पर रखी-”एक भोिटया औरत इसे बेच रही थी मने इसे माँगा तो
वह बोली-यह िसफ मद के िलए है ' मने पछ ू ा, ' य ?' तो बोली-'इसे अगर मद पहन ले तो उस
पर िकसी औरत का जादू नह चलता वह औरत या तो मर जाती है या भाग जाती है या उसका
याह िकसी दस ू रे से हो जाता है ' तो मने सोचा, तु हारे िलए लेती चलँ ू ”
च दर ने देखा वह अवलोिकते र क महायानी मिू त थी उसने हँ सकर उसे ले िलया िफर
बोला, “और या लायी अपने िलए?”
“अपने िलए एक नया रह य लायी हँ ”
“ या?”
“इधर देखो, मेरी ओर, म सु दर लगती हँ ?”
च दर ने देखा प मी अठारह साल क लड़क -सी लगने लगी है चे हरे के कोने भी जैसे
गोल हो गये थे और महँु पर बहत ही भोलापन आ गया था, आँख म वाँरापन आ गया था, चे हरे
पर सोना और केसर, च पा, हरिसंगार घुल-िमल गये थे
“सचमच ु प मी, लगता है जैसे कौमाय लौट आया है तम ु पर तो! प रय के कुंज से अपना बचपन
िफर चुरा लायी या?”
“नह कपरू , यही तो रह य लायी हँ , हमेशा सु दर बने रहने का और प रय के कुंज से नह ,
गन ु ाह के कुंज से मने िहमालय क छाँह म एक नया संगीत सुना कपरू , मांसलता का
संगीत मसरू ी के समाज म घुल-िमल गयी और मादक अनुभिू तयाँ बटोरती रही-िबना िकसी
प ा ाप के और मने देखा िक िदन -िदन िनखरती जा रही हँ कपरू , से स इतना बुरा नह
िजतना म समझती थी तु हारी या राय है?”
“हाँ, म देख रहा हँ , से स लोग को उतना बुरा नह लगता, िजतना म समझता था ”
“नह च दर, िसफ इतना ही नह , अ छा मान लो जैसे तम ु आजकल उदास हो और तु हारा िसर
इस तरह अपनी गोद म रख लँ ू तो कुछ स तोष नह होगा तु ह?” और प मी ने च दर का िसर
सचमच ु अपने ासा दोिलत व से िचपका िलया च दर झ लाकर अलग हट गया कैसी
अजब लड़क है! थोड़ी देर चुप बैठा रहा, िफर बोला-
“ य प मी, तम ु एक लड़क हो, म तु ह से पछ ू ता हँ - या लड़िकय के ेम म से स अिनवाय
है?”
“हाँ ” प मी ने प वर म जोर देकर कहा
“लेिकन प मी, म तम ु से नाम तो नह बताऊँगा लेिकन एक लड़क है िजसको मने यार िकया
है लेिकन शायद वह मझ ु से शादी नह कर पाएगी मेरे उसके कोई शारी रक स ब ध भी नह
ह या तमु इसे यार नह कहोगी?”
“कुछ िदन बाद जब उसक शादी हो जाये तब पछ ू ना, तु हारा सारा ेम मर जाएगा पहले म भी
तमु से कहती थी-पु ष और नारी के स ब ध म एक अ तर ज री है अब लगता है यह सब
एक भुलावा है ” अपने से प मी ने कहा
“लेिकन दस ू री बात तो सुनो, उसी क एक सखी है वह जानती है िक म उसक सखी को
यार करता हँ , उसे नह कर सकता कह से स क तिृ का सवाल नह िफर भी वह मझ ु े
यार करती है इसे तम ु या कहोगी?” च दर ने पछ ू ा
“यह और दस ू रे ढंग क प रि थित है देखो कपरू , तम ु ने िह नोिट म के बारे म नह पढ़ा
ऐसा होता है िक अगर कोई िह नोिट ट एक लड़क को िह नोटाइज कर रहा है और बगल म एक
दसू री लड़क बैठी है जो चुपचाप यह देख रही है तो वातावरण के भाव से अकसर ऐसा देखा
जाता है िक वह भी िह नोटाइज हो जाती है, लेिकन वह एक िणक मानिसक मू छा होती है जो
टूट जाती है ” प मी ने कहा
च दर को लगा जैसे बहत कुछ सुलझ गया एक ण म उसके मन का बहत-सा भार उतर
गया
“प मी, मझ ु े तु ह एक लड़क िमली जो साफ बात करती हो और एक शु तक और बुि के
धरातल से बस, म आजकल बुि का उपासक हँ , भगवान से िचढ़ है ”
“बुि और शरीर बस यही दो आदमी के मल ू त वह दय तो दोन के अ त:संघष क उलझन
का नाम है ” प मी ने कहा और सहसा घड़ी देखते हए बोली, “नौ बज रहे ह, चलो साढ़े नौ से
मैिटनी है आओ, देख आएँ !”
“मझ ु े कॉलेज जाना है, म जाऊँगा नह कह !”
“आज इतवार है, ोफेसर कपरू ?” प मी च दर को उठाकर बोली, “म तु ह उदास नह होने दँग ू ी,
मेरे मीठे सपने ! तम ु ने भी मझु े इस उदासी के इ जाल से छुड़ाया था, याद है न?” और च दर के
माथे पर अपने गरम मल ु ायम होठ रख िदये
माथे पर प मी के होठ क गल ु ाबी आग च दर क नस को गद ु ा गयी वह ण-भर के
ु गद
िलए अपने को भल ू गया...प मी के रे शमी ॉक के गद ु गद ु ाते हए पश, उसके व क अल य
गरमाई और उसके पश के जादू म खो गया उसके अंग-अंग म सुबह क शबनम ढलकने
लगी प मी उसके बाल को अँगिु लय से सुलझाती रही िफर कपरू के गाल थपथपाकर बोली,
“चलो!” कपरू जाकर बैठ गया “तम ु ाइव करो ” प मी बोली च दर ाइव करने लगा
और प मी कभी उसके कॉलर, कभी उसके बाल, कभी उसके होठ से खे लती रही
सात चाँद क रानी ने आिखर अपनी िनगाह के जादू से स नाटे के ेत को जीत िलया पश
के सुकुमार रे शमी तार ने नगर क आग को शबनम से स च िदया ऊबड़-खाबड़ खंडहर को
अंग के गल ु ाब क पाँखु रय से ढँक िदया और पीड़ा के अँिधयारे को सीिपया पलक से झरने
वाली दिू धया चाँदनी से धो िदया एक संगीत क लय थी िजसम वग देवता खो गया,
संगीत क लय थी या उ ाम यौवन का भरा हआ वार था जो च दर को एक मासम ू फूल क
तरह बहा ले गया...जहाँ पज ू ा-दीप बुझ गया था, वहाँ त णाई क साँस क इ धनुषी समाँ
िझलिमला उठी थी, जहाँ फूल मरु झाकर धल ू म िमल गये थे वहाँ पुखराजी पश के सुकुमार
हरिसंगार झर पड़े ....आकाश के चाँद के िलए िजंदगी के आँगन म मचलता हआ क हैया, थाली
के ितिब ब म ही भल ू गया...
च दर क शाम प मी के अद य प क छाँह म मु करा उठ ठीक चार बजे प मी आती, कार
पर च दर को ले जाती और च दर आठ बजे लौटता यार के िबना िकतने महीने कट गये,
प मी के िबना एक शाम नह बीत पाती, लेिकन अब भी च दर ने अपने को इतना दरू रखा था
िक कभी प मी के होठ के गल ु ाब ने च दर के होठ के मग ँ ू े से बात भी नह क थ
32

एक िदन रात को जब वह लौटा तो देखा िक अपनी कार आ गयी है उसका मन फूल उठा
जैसे कोई अनाथ भटका हआ ब चा अपने संर क क गोद के िलए तड़प उठता है, वैसे ही वह
िपछले डे ढ़ महीने से डॉ टर साहब के िलए तरस गया था जहाँ इस व उसके जीवन म िसफ
नशा और नीरसता थी, वह दय के एक कोने म िसफ एक सुकुमार भावना शेष रह गयी थी,
वह थी डॉ टर शु ला के ित वह भावना कृत ता क भावना नह थी, डॉ टर शु ला इतने
दरू नह थे िक अब वह उनके ित कृत हो, इतने बड़े हो जाने पर भी वह जब कभी डॉ टर को
देखता था तो लगता था जैसे कोई न हा ब चा अपने अिभभावक क गोद म आकर िनि त हो
जाता हो
उसने पास आकर देखा, डॉ टर साहब बरामदे म टहल रहे थे च दर दौडक़र उनके पाँव पर
िगर पड़ा डॉ टर साहब ने उसे उठाकर गले से लगा िलया और बड़े यार से उसक पीठ पर
हाथ फेरते हए बोले-”क वोकेशन हो गया? िड ी जीत लाये?”
“जी हाँ!” बड़ी िवन ता से च दर ने कहा
“बहत ठीक, अब डी. िलट्. क तैयारी करो तु ह ज दी ही स ल गवनमट म जाना है ”
डॉ टर साहब बोले, “म तो पं ह जनवरी को िद ली जा रहा हँ कम-से-कम साल भर के
िलए?”
“इतनी ज दी; ऑफर कब आया?” च दर ने अचरज से पछ ू ा
“म उन िदन िद ली गया था न, तभी एजुकेशन िमिन टर से बात हई थी!” डॉ टर साहब ने
च दर को देखते हए कहा, “अरे , तमु कुछ दुबले हो रहे हो! य महरािजन ने ठीक से काम नह
िकया?”
“नह !” च दर हँ सकर बोला, “िबनती क शादी ठीक-ठाक हो गयी?”
“िबनती क शादी!” डॉ टर साहब ने िसर झक ु ाये हए, टहलते हए एक बड़ी फ क हँ सी हँ सकर
कहा, “िबनती और तु हारी बुआजी दोन अ दर ह ”
“अ दर ह!” च दर को यह रह य कुछ समझ म ही नह आता था “इतनी ज दी िबनती लौट
आयी?”
“िबनती गयी ही कहाँ?” डॉ टर साहब ने बहत चुपचाप िसर झक ु ा कर कहा और बहत क ण
उदासी उनके महँु पर छा गयी वह बेचन ै ी से बरामदे म टहलने लगे च दर का साहस नह
हआ कुछ पछ ू ने का कुछ अमंगल अव य हआ है
वह अ दर गया बुआजी अपनी कोठरी म सामान रख रही थ और िबनती बैठी िसल पर उरद
क भीगी दाल पीस रही थी! िबनती ने च दर को देखा, दाल म सने हए हाथ जोड़कर णाम
िकया, िसर को आँचल से ढँककर चुपचाप दाल पीसने लगी, कुछ बोली नह च दर ने णाम
िकया और जाकर बुआ के पैर छू िलये
“अरे च दर है, आओ बेटवा, हम तो लुट गये!” और बुआ वह देहरी पर िसर थामकर बैठ गय
“ या हआ, बुआजी?”
“होता का भइया! जौन बदा रहा भाग म ओ ही भवा ” और बुआ अपनी धोती से आँसू प छकर
बोल , “ई ं हमरी छाती पर मगँ ू दरै के िलए बदी रही तौन जमी है भगवान कौन को ऐसी
कलंिकनी िबिटया न दे तीन भाँवरी के बाद बारात उठ गयी, भइया! हमारा तो कुल डूब
गया ” और बुआजी ने उ च वर म दन शु िकया िबनती ने चुपचाप हाथ धोये और
उठकर छत पर चली गयी
“चुप रहो हो अब रोय-रोय के काहे िजउ ह कान करत हउ गन ु व ती िबिटया बाय, ह जारन
आय के िबिटया के िलए गोड़े िग रह अपना एका त होई के बैठो!” महरािजन ने पड़ ू ी उतारते
हए कहा
“आिखर बात या हई, महरािजन?” च दर ने पछ ू ा
महरािजन ने जो बताया उससे पता लगा िक लड़के वाले बहत ही संक णमना और वाथ थे
पहले मालम ू हआ िक लड़काउ ह ने ेजुएट बताया था वह था इंटर फेल िफर दरवाजे पर
झगड़ा िकया उ ह ने डॉ टर साहब बहत िबगड़ गये, अ त म मड़वे म लोग ने देखा िक लड़के
के बाय हाथ क अँगिु लयाँ गायब ह डॉ टर साहब इस बात पर िबगड़े और उ ह ने मड़वे से
िबनती को उठवा िदया िफर बहत लड़ाई हई लाठी तक चलने क नौबत आ गयी जैसे-तैसे
झगड़ा िनपटा तीन भाँवर के बाद याह टूट गया
“अब बताओ, भइया!” सहसा बुआ आँसू प छकर गरज उठ -”ई इ ह का हइ गवा रहा, इनक मित
मारी गयी गु से म आय के िबनती को उठवाय िलिहन अब हम ए ी बड़ी िबिटया लै के कहाँ
जाई ं? अब हमरी िबरादरी म कौन पछ ू ी एका? ए ा पढ़-िलख के इ ह का सझ ू ा? अरे लड़क वाले
हमेशा दब के चलै चाह ”
“अरे तो या आँख ब द कर लेते? लँगड़े -लल ू े लड़के से कैसे याह कर देते, बुआ! तमु भी गजब
करती हो!” च दर बोला
“भइया, जेके भाग म लँगड़ा-लल ू ा बदा होई ओका ओही िमली लड़िकयन को िनबाह करै चाही
िक सकल देख ै चाही अबिहन याह के बाद कौन के हाथ-गोड़ टूट जाये तो औरत अपने
आदमी को छोड़ के गली-गली क हाँड़ी चाटै? हम रहे तो जब िबनती तीन बरस क हई गयी, तब
उनक सकल उजेले म देखा रहा जैसा भाग म रहा तैसा होता!”
च दर ने िविच दय-हीन तक को सुना और आ य से बुआ क ओर देखने लगा ....बुआजी
बकती जा रही थ -
“अब कहते ह िक िबनती को पढ़उबै! याह न करबै! रही-सही इ जत भी बेच रहे ह हमार तो
िक मत फूट गयी...” और वे िफर रोने लग , “पैदा होते काहे नह मर गयी
कुलबोरनी...कुल छनी...अभािगन!”
सहसा िबनती छत से उतरी और आँगन म आकर खड़ी हो गयी, उसक आँख म आग भरी
थी-”बस करो, माँजी!” वह चीखकर बोली, “बहत सुन िलया मने अब और बदा त नह
होता तु हारे कोसने से अब तक नह मरी, न म ँ गी अब म सुनँ ग ू ी नह , म साफ कह देती
हँ तु ह मेरी श ल अ छी नह लगती तो जाओ तीरथ-या ा म अपना परलोक सुधारो! भगवान
का भजन करो समझी िक नह !”
च दर ने ता जुब से िबनती क ओर देखा वह वही िबनती है जो माँजी क जरा-जरा-सी बात
से िलपटकर रोया करती थी िबनती का चे हरा तमतमाया हआ था और गु से से बदन काँप रहा
था बुआ उछलकर खड़ी हो गय और दुगन ु ी चीखकर बोल , “अब बहत जबान चलै लगी है
कौन है तोर जे के बल पर ई चमक िदखावत है? हम काट के धर देब,ै तोके बताय देइत हई
महँु झ सी! ऐसी न होती तो काहे ई िदन देख ै पड़त उ ह तो खाय गयी, हमहँ का खाय लेव!”
अपना महँु पीटकर बुआ बोल
“तम ु इतनी मीठी नह हो माँजी िक तु ह खा लँ!ू ” िबनती ने और तड़पकर जवाब िदया
च दर त ध हो गया यह िबनती पागल हो गयी है अपनी माँ को या कह रही है!
“िछः, िबनती! पागल हो गयी हो या? चलो उधर!” च दर ने डाँटकर कहा
“चुप रहो, च दर! हम भी आदमी ह, हमने िजतना बदा त िकया है, हम जानते ह हम य
बदा त कर! और तम ु से या मतलब? तमु कौन होते हो हमारे बीच म बोलने वाले?”
“ या है यह सब? तम ु लोग सब पागल हो गये हो या? िबनती, यह या हो रहा है?” सहसा
डॉ टर साहब ने आकर कहा
िबनती दौडक़र डॉ टर साहब से िलपट गयी और रोकर बोली, “मामाजी, मझ ु े दीदी के पास भे ज
दीिजए! म यहाँ नह रहँ गी ”
“अ छा बेटी! अ छा! जाओ च दर!” डॉ टर साहब ने कहा िबनती चली गयी तो बुआ जी से
बोले, “तु हारा िदमाग खराब हो गया है उस पर गु सा उतारने से या फायदा? हमारे सामने
ये सब बात करोगी तो ठीक नह होगा ”
“अरे हम काहे बोलबै! हम तो मर जाई ं तो अ छा है...” बुआजी पर जैसे देवी माँ आ गयी ह इस
तरह से झम ू कर रो रही थ ...”हम तो व ृ दावन जाय के डूब मर ! अब हम तम
ू -झम ु लोगन क
सकल न देखबै हम मर जाई ं तो चाहे िबनती को पढ़ायो चाहे नचायो-गवायो हम अपनी
आँख से न देखबै ”
उस रात को िकसी ने खाना नह खाया एक िविच -सा िवषाद सारे घर पर छाया हआ था
जाड़े क रात का गहन अँधेरा खामोश छाया हआ था, महज एक अमंगल छाया क तरह कभी-
कभी बुआजी का दन अँधेरे को झकझोर जाता था
सभी चुपचाप भख ू े सो गये...
33

दसू रे िदन िबनती उठी और महरािजन के आने के पहले ही उसने चू हा जलाकर चाय चढ़ा दी
थोड़ी देर म चाय बनाकर और टो ट भन ू कर वह डॉ टर साहब के सामने रख आयी डॉ टर
साहब कल क बात से बहत ही यिथत थे रात को भी उ ह ने खाना नह खाया था, इस व
भी उ ह ने मना कर िदया िबनती च दर के कमरे म गयी, “च दर, मामाजी ने कल रात को
भी कुछ नह खाया, तम ु ने भी नह खाया, चलो चाय पी लो!”
च दर ने भी मना िकया तो िबनती बोली, “तम ु पी लोगे तो मामाजी भी शायद पी ल ” च दर
चुपचाप गया िबनती थोड़ी देर म गयी तो देखा दोन चाय पी रहे ह वह आकर मेवा
िनकालने लगी
चाय पीते-पीते डॉ टर साहब ने कहा, “च दर, यह पास-बुक लो पाँच सौ िनकाल लो और दो
हजार का िहसाब अलग करवा दो ...अ छा देखो, म तो चला जाऊँगा िद ली, िबनती को
शाहजहाँपुर भे जना ठीक नह है वहाँ चार र तेदार ह, बीस तरह क बात ह गी लेिकन म
चाहता हँ अब आगे जब तक यह चाहे , पढ़े ! अगर कहो तो यहाँ छोड़ जाऊँ, तमु पढ़ाते रहना!”
िबनती आ गयी और त तरी म भुना मेवा रखकर उसम नमक िमला रही थी च दर ने एक
लाइस उठायी और उस पर नमक लगाते हए बोला, “वैसे आप यहाँ छोड़ जाएँ तो कोई बात नह
है, लेिकन अकेले घर म अ छा नह लगता दो-एक रोज क बात दस ू री होती है एकदम से
साल-भर के िलए...आप समझ ल ”
“हाँ बेटा, कहते तो तमु ठीक हो! अ छा, कॉलेज के हो टल म अगर रख िदया जाए!” डॉ टर
साहब ने पछ ू ा
“म लड़िकय को हो टल म रखना ठीक नह समझता हँ ” च दर बोला, “घर के वातावरण
और वहाँ के वातावरण म बहत अ तर होता है ”
“हाँ, यह भी ठीक है अ छा तो इस साल म इसे िद ली िलये जा रहा हॅ ँ अगले साल देखा
जाएगा...च दर, इस महीने -भर म मेरा सारा िव ास िहल गया सुधा का िववाह िकतनी अ छी
जगह िकया गया, मगर सुधा पीली पड़ गयी है िकतना दु:ख हआ देखकर! और िबनती के
साथ यह हआ! सचमच ु यह जाित, िववाह सभी पर पराएँ बहत ही बुरी ह बुरी तरह सड़ गयी
ह उ ह तो काट फकना चािहए मेरा तो वैसे इस अनुभव के बाद सारा आदश ही बदल
गया ”
च दर बहत अचरज से डॉ टर साहब क ओर देखने लगा यही जगह थी, इसी तरह बैठकर
डॉ टर साहब ने जाित-िबरादरी, िववाह आिद सामािजक पर पराओं क िकतनी शंसा क थी!
िजंदगी क लहर ने हर एक को दस महीने म कहाँ से कहाँ लाकर पटक िदया है डॉ टर
साहब कहते गये...”हम लोग िजंदगी से दरू रहकर सोचते ह िक हमारी सामािजक सं थाएँ वग
ह, यह तो जब उनम धँसो तब उनक गंदगी मालम ू होती है च दर, तम ु कोई गैर जात का
अ छा-सा लड़काढूँढ़ो म िबनती क शादी दस ू री िबरादरी म कर दँगू ा ”
िबनती, जो और चाय ला रही थी, फौरन बड़े ढ़ वर म बोली, “मामाजी, आप जहर दे दीिजए
लेिकन म शादी नह क ँ गी या आपको मेरी ढ़ता पर िव ास नह ?”
“ य नह , बेटी! अ छा, जब तक तेरी इ छा हो, पढ़!”
दसू रे िदन डॉ टर साहब ने बुआजी को बुलाया और पये दे िदये
“लो, यह पाँच सौ पहले खच के ह और दो हजार म से तु ह धीरे -धीरे िमलता रहे गा ”
दो-तीन िदन के अ दर बुआ ने जाने क सारी तैयारी कर ली, लेिकन तीन िदन तक बराबर
रोती रह उनके आँसू थमे नह िबनती चुप थी वह भी कुछ नह बोली, चौथे िदन जब वह
सामान मोटर पर रखवा चुक तो उ ह ने च दर से िबनती को बुलवाया िबनती आयी तो
उ ह ने उसे गले से लगा िलया-और बेहद रोय लेिकन डॉ टर साहब को देखते ही िफर बोल
उठ -”हमरी लड़क का िदमाग तम ु ही िबगाड़े हो दुिनया म भाइयौ अपना नै होत अपनी
लड़क को िबया िदयौ! हमरी लड़क ...” िफर िबनती को िचपटाकर रोने लग
च दर चुपचाप खड़ा सोच रहा था, अभी तक िबनती खराब थी अब डॉ टर साहब खराब हो
गये बुआ ने पये सँभालकर रख िलये और मोटर पर बैठ गय सम त लांछन के बावजदू
डॉ टर साहब उ ह पहँ चाने टे शन तक गये
िबनती बहत ही चुप-सी हो गयी थी वह िकसी से कुछ नह बोलती और चुपचाप काम िकया
करती थी जब काम से फुरसत पा लेती तो सुधा के कमरे म जाकर लेट जाती और जाने या
सोचा करती च दर को बड़ा ता जुब होता था िबनती को देखकर जब िबनती खुश थी,
बोलती-चालती थी तो च दर िबनती से िचढ़ गया था, लेिकन िबनती के जीवन का यह नया प
देखकर पहले क सभी बात भल ू गया और उससे िफर बात करने क कोिशश करने लगा
लेिकन िबनती यादा बोलती ही नह
एक िदन दोपहर को च दर यिू नविसटी से लौटकर आया और उसने रे िडयो खोल िदया िबनती
एक त तरी म अम द काटकर ले आयी और रखकर जाने लगी “सुनो िबनती, या तम ु ने
मझ ु े माफ नह िकया? म िकतना यिथत हँ , िबनती! अगर तम ु को भल ू से कुछ कह िदया तो तमु
उसका इतना बुरा मान गय िक दो-तीन महीने बाद भी नह भल ू !”
“नह , बुरा मानने क या बात है, च दर!” िबनती एक फ क हँ सी-हँ सकर बोली, “आिखर
नारी का भी एक वािभमान है, मझ ु े माँ बचपन से कुचलती रही, मने तु ह दीदी से बढक़र
माना तम ु भी ठोकर लगाने से बाज नह आये, िफर भी म सब सहती गयी उस िदन जब
मंडप के नीचे मामाजी ने जबरद ती हाथ पकड़कर खड़ा कर िदया तो मझ ु े उसी ण लगा िक
मझ ु म भी कुछ स व है, म इसीिलए नह बनी हँ िक दुिनया मझ ु े कुचलती ही रहे अब म िवरोध
करना, िव ोह करना भी सीख गयी हँ िजंदगी म ने ह क जगह है, लेिकन वािभमान भी
कोई चीज है और तु ह अपनी िजंदगी म िकसी क ज रत भी तो नह है!” कहकर िबनती
धीरे -धीरे चली गयी
अपमान से च दर का चे हरा काला पड़ गया उसने रे िडयो ब द कर िदया और त तरी उठाकर
नीचे रख दी और िबना कपड़े बदले प मी के यहाँ चल िदया
मनु य का एक वभाव होता है जब वह दस ू रे पर दया करता है तो वह चाहता है िक याचक
परू ी तरह िवन होकर उसे वीकार करे अगर याचक दान लेने म कह भी वािभमान
िदखलाता है तो आदमी अपनी दानविृ और दयाभाव भल ृ ंसता से उसके वािभमान को
ू कर नश
कुचलने म य त हो जाता है आज ह त के बाद च दर के मन म िबनती के िलए कुछ ने ह,
कुछ दया जागी थी, िबनती को उदास मौन देखकर; लेिकन िबनती के इस वािभमान-भरे उ र
ने िफर उसके मन का सोया हआ साँप जगा िदया था वह इस वािभमान को तोड़कर रहे गा,
उसने सोचा
34

प मी के यहाँ पहँ चा तो अभी धपू थी जेनी कह गयी थी, बट अपने तोते को कुछ िखला रहा
था कपरू को देखते ही हँ सकर अिभवादन िकया और बोला, “प मी अ दर है!” वह सीधा
अ दर चला गया प मी अपने शयन-क म बैठी हई थी कमरे म ल बी-ल बी िखड़िकयाँ थ
िजनम लकड़ी के चौखट म रं ग-िबरं गे शीशे लगे हए थे िखड़िकयाँ ब द थ और सरू ज क
िकरण इन शीश पर पड़ रही थ और प मी पर सात रं ग क छायाएँ खे ल रही थ वह झक ु हई
सोफे पर अधलेटी कोई िकताब पढ़ रही थी च दर ने पीछे से जाकर उसक आँख ब द कर ल
और बगल म बैठ गया
“कपरू !” अपनी सुकुमार अँगिु लय से च दर के हाथ को आँख पर से हटाते हए प मी बोली और
पलक म बेहद नशा भरकर सोनजुही क मु कान िबखे रकर च दर को देखने लगी च दर ने
देखा, वह ाउिनं ग क किवता पढ़ रही थी वह पास बैठ गया
प मी ने उसे अपने व पर ख च िलया और उसके बाल से खे लने लगी च दर थोड़ी देर चुप
लेटा रहा, िफर प मी के गल ु ाबी होठ पर अँगिु लयाँ रखकर बोला, “प मी, तु हारे व पर िसर
रखकर म जाने य सबकुछ भल ू जाता हँ ? प मी, दुिनया वासना से इतना घबराती य है? म
ईमानदारी से कहता हँ िक अगर िकसी को वासनाहीन यार करके, िकसी के िलए याग करके
मझु े िजतनी शाि त िमलती है, पता नह य मांसलता म भी उतनी ही शाि त िमलती है ऐसा
लगता है िक शरीर के िवकार अगर आ याि मक ेम म जाकर शा त हो जाते ह तो लगता है
आ याि मक ेम म यासे रह जाने वाले अभाव िफर िकसी के मांसल-ब धन म ही आकर बुझ
पाते ह िकतना सुख है तु हारी ममता म!”
“शी!” च दर के होठ को अपनी अँगिु लय से दबाती हई प मी बोली, “चरम शाि त के ण को
अनुभव िकया करो बोलते य हो?”
च दर चुप हो गया चुपचाप लेट रहा
प मी क केसर ास उसके माथे को रह-रहकर चम ू रही थ और च दर के गाल को प मी के
व म धड़कता हआ संगीत गद ु ा रहा था च दर का एक हाथ प मी के गले म पड़ी
ु गद
इमीटे शन हीरे क माला से खे लने लगा सारस के पंख से भी यादा मल ु ायम सुकुमार गरदन
से छूटने पर अँगिु लयाँ लाजव ती क पि य क तरह सकुचा जाती थ माला खोल ली और
उसे उतारकर अपने हाथ म ले िलया प मी ने माला लेने के िलए हाथ बढ़ाया ही था िक गले के
बटन टच-से टूट गये...बफानी चाँदनी उफनकर छलक पड़ी च दर को लगा उसके गाल के
नीचे िबजिलय के फूल िसहर उठे ह और एक मदमाता नशा टूटते हए िसतार क तरह उसके
शरीर को चीरता हआ िनकल गया वह काँप उठा, सचमच ु काँप उठा नशे म चरू वह उठकर
बैठ गया और उसने प मी को अपनी गोद म डाल िलया प मी अनं ग के धनुष क यंचा क
तरह दोहरी होकर उसक गोद म पड़ रही त णाई का चाँद टूटकर दो टुकड़े हो गया था और
वासना के तफ ू ान ने झीने बादल भी हटा िदये थे जहरीली चाँदनी ने नािगन बनकर च दर
को लपे ट िलया च दर ने पागल होकर प मी को अपनी बाँह म कस िलया, इतनी यास से
लगा िक प मी का दीपिशखा-सा तन च दर के तन म समा जाएगा प मी िन े आँख ब द
िकये थी लेिकन उसके गाल पर जाने या िखल उठा था! च दर के गले म उसने मण ृ ाल-सी
बाँह डाल दी थ च दर ने प मी के होठ को जैसे अपने ह ठ म समेट लेना चाहा...इतनी
आग...इतनी आग...नशा...
“ठाँय!” सहसा बाहर ब दक ू क आवाज हई च दर च क उठा उसने अपने बाहपाश ढीले
कर िदये लेिकन प मी उसके गले म बाँह डाले बेहोश पड़ी थी च दर ने ण-भर प मी के
भरपरू प यौवन को आँख से पी लेना चाहा प मी ने अपनी बाँह हटा ल और नशे म
मखमरू -सी च दर क गोद से एक ओर लुढ़क गयी उसे अपने तन-बदन का होश नह था
च दर ने उसके व ठीक िकये और िफर झक ु कर उसक नशे म चरू पलक चम ू ल
“ठाँय!” ब दक ू क दस ू री आवाज हई च दर घबराकर उठा
“यह या है, प मी?”
“होगा कुछ, जाओ मत ” अलसायी हई नशीली आवाज म प मी ने कहा और उसे िफर ख चकर
िबठा िलया और िफर बाँह म उसे समेटकर उसका माथा चम ू िलया
“ठाँय!” िफर तीसरी आवाज हई
च दर उठ खड़ा हआ और ज दी से बाहर दौड़ गया देखा बट क ब दक ू बरामदे म पड़ी है,
और वह िपंजड़े के पास मरे हए तोते का पंख पकडक़र उठाये हए है उसके घाव से बट के
पतलन ू पर खन ू चू रहा था च दर को देखते ही बट हँ स पड़ा, “देखा! तीन गोली म इसे
िब कुल मार डाला, वह तो कहो िसफ एक ही लगी वरना...” और पंख पकड़कर तोते क लाश
को झल ु ाने लगा
“िछः! फको उसे; ह यारे कह के! मार य डाला उसे?” च दर ने कहा
“तम ु से मतलब! तम ु कौन होते हो पछ ू ने वाले? म यार करता था उसे, मने मार डाला!” बट
बोला और आिह ते से उसे एक प थर पर रख िदया माल िनकालकर फाड़ डाला आधा
माल उसके नीचे िबछा िदया और आधे से उसका खन ू प छने लगा िफर च दर के पास
आया च दर के क धे पर हाथ रखकर बोला, “कपरू ! तम ु मेरे दो त हो न! जरा माल दे
दो ” और च दर का माल लेकर तोते के पास खड़ा हो गया बड़ी हसरत से उसक ओर
देखता रहा िफर झक ु कर उसे चम ू िलया और उस पर माल ओढ़ा िदया और बड़े मातम क
मु ा म उसी के पास िसर झक ु ाकर बैठ गया
“बट , बट , पागल हो गये या?” च दर ने उसका क धा पकड़ाकर िहलाते हए कहा, “यह या
नाटक हो रहा है?”
बट ने आँख खोल और च दर को भी हाथ पकडक़र वह िबठा िलया और बोला, “देखो कपरू ,
एक िदन तम ु आये थे तो मने तोता और जेनी दोन को िदखाकर कहा था िक जेनी से म नफरत
करता हँ , उससे शादी कर लँग ू ा और तोते से म यार करता हँ , इसे मार डालँगू ा कहा था िक
नह ? कहो हाँ ”
“हाँ, कहा था ” च दर बोला, “लेिकन य कहा था?”
“हाँ, अब पछू ा तमु ने ! तम
ु पछू ोगे 'मने य मार डाला' तो म कहँ गा िक इसे अब मर जाना चािहए
था, इसिलए इसे मार डाला तम ु पछ
ू ोगे, 'इसे य मर जाना चािहए?' तो म कहँ गा, 'जब कोई
जीवन क पण ू ता पर पहँ चा जाता है तो उसे मर जाना चािहए अगर वह अपनी िजंदगी का
ल य परू ा कर चुका है और नह मरता तो यह उसका अ याय है वह अपनी िजंदगी का ल य
परू ा कर चुका था, िफर भी नह मरता था म इसे यार करता था लेिकन यह अ याय नह सह
सकता था, अत: मने इसे मार डाला!”
“अ छा, तो तु हारे तोते क भी िजंदगी का कोई ल य था?”
“हरे क क िजदगी का ल य होता है और वह ल य होता है स य को, चरम स य को जान
जाना वह स य जान लेने के बाद आदमी अगर िज दा रहता है, तो उसक यह असीम बेहयाई
है मने इसे वह स य िसखा िदया िफर भी यह नह मरा तो मने मार डाला िफर तम ु पछ
ू ोगे
िक वह चरम स य या है? वह स य है िक मौत आदमी के शरीर क ह या करती है और
आदमी क ह या गला घ ट देती है मसलन तम ु अगर िकसी औरत के पास जा रहे हो या िकसी
औरत के पास से आ रहे हो और स भव है उसने तु हारी आ मा क ह या कर डाली हो...”
“ऊँह! अब तम ु ज दी ही परू े पागल हो जाओगे?” च दर ने कहा और िफर वह प मी के पास लौट
गया प मी उसी तरह मदहोश लेटी थी उसने जाते ही िफर बाँह फै लाकर च दर को समेट
िलया और च दर उसके व क रे शमी गरमाई म डूब गया
जब वह लौटा तो बट हाथ म खुरपा िलये एक गड्ढï ब द कर रहा था “सुनो, कपरू ! यहाँ मैने
उसे गाड़ िदया यह उसक समािध है और देखो, आते-आते यहाँ िसर झक ु ा देना वह बेचारा
जीवन का स य जान चुका है समझ लो वह सट पैरट (स त शुकदेव) हो गया है!”
“अ छा, अ छा!” च दर िसर झक ु ाकर हँ सते हए आगे बढ़ा
“सुनो, को कपरू !” िफर बट ने पुकारा और पास आकर च दर के क धे पर हाथ रखकर
बोला, “कपरू , तम ु मानते हो िक नह िक पहले म एक असाधारण आदमी था ”
“अब भी हो ” च दर हँ सते हए बोला
“नह , अब म असाधारण नह हँ , कपरू ! देखो, तु ह आज रह य बताऊँ वही आदमी असाधारण
होता है जो िकसी प रि थित म िकसी भी त य को वीकार नह करता, उनका िनषेध करता
चलता है जब वह िकसी को भी वीकार कर लेता है, तब वह परािजत हो जाता है म तो
कहँ गा असाधारण आदमी बनने के िलए स य को भी वीकार नह करना चािहए ”
“ या मतलब, बट ! तम ु तो दशन क भाषा म बोल रहे हो म अथशा का िव ाथ हँ , भाई!”
च दर ने कौतहू ल से कहा
“देखो, अब मने िववाह वीकार कर िलया जेनी को वीकार कर िलया चाहे यह जीवन का
स य ही य न हो पर मह ा तो िनषेध म होती है सबसे बड़ा आदमी वह होता है जो अपना
िनषेध कर दे...लेिकन म अब साधारण आदमी हँ स ती िक म का अदना यि मझु े
िकतना दुख है आज मेरा तोता भी मर गया और मेरी असाधारणता भी ” और बट िफर तोते
क क के पास िसर झक ु ाकर बैठ गया
35

वह घर पहँ चा तो उसके पाँव जमीन पर नह पड़ रहे थे उसने उफनी हई चाँदनी चम ू ी थी, उसने
त णाई के चाँद को पश से िसहरा िदया था, उसने नीली िबजिलयाँ चम ू ी थ ाण क
िसहरन और गद ु ी से खे लकर वह आ रहा था, वह प मी के होठ के गल
ु गद ु ाब को चम ू -चम
ू कर
गल ु ाब के देश म पहँ च गया था और उसक नस म बहते हए रस म गल ु ाब झम ू उठे थे वह िसर
से पैर तक एक मदहोश यास बना हआ था घर पहँ चा तो जैसा उ लास से उसका अंग-अंग
नाच रहा हो िबनती के ित दोपहर को जो आ ोश उसके मन म उभर आया था, वह भी शा त
हो गया था
िबनती ने आकर खाना रखा च दर ने बहत हँ सते हए, बड़े मीठे वर म कहा, “िबनती, आज
तमु भी खाओ ”
“नह , म नीचे खाऊँगी ”
“अरे चल बैठ, िगलहरी!” च दर ने बहत िदन पहले के ने ह के वर म कहा और िबनती के पीठ
म एक घँस ू ा मारकर उसे पास िबठा िलया-”आज तु ह नाराज नह रहने दगे ले खा, पगली!”
नफरत से नफरत बढ़ती है, यार से यार जागता है िबनती के मन का सारा ने ह सख ू -सा
गया था वह िचड़िचड़ी, वािभमानी, ग भीर और खी हो गयी थी लेिकन औरत बहत
कमजोर होती है ई र न करे , कोई उसके दय क ममता को छू ले वह सबकुछ बदा त कर
लेती है लेिकन अगर कोई िकसी तरह उसके मन के रस को जगा दे, तो वह िफर अपना सब
अिभमान भल ू जाती है च दर ने , जब वह यहाँ आयी थी, तभी से उसके दय क ममता जीत
ली थी इसिलए च दर के सामने सदा झक ु ती आयी लेिकन िपछली बार से च दर ने ठोकर
मारकर सारा ने ह िबखे र िदया था उसके बाद उसके यि व का रस सख ू ता ही गया
ोध जैसे उसक भ ह पर रखा रहता था
आज च दर ने उसको इतने दुलार से बुलाया तो लगा वह जाने िकतने िदन का भल ू ा वर सुन
रही है चाहे च दर के ित उसके मन म कुछ भी आ ोश य न हो, लेिकन वह इस वर का
आ ह नह टाल सकती, यह वह भली कार जानती थी वह बैठ गयी च दर ने एक कौर
बनाकर िबनती के महँु म दे िदया िबनती ने खा िलया च दर ने िबनती क बाँह म चुटक
काट कर कहा-”अब िदमाग ठीक हो गया पगली का! इतने िदन से अकड़ी िफरती थी!”
“हँ !” िबनती ने बहत िदन के भल ू े हए ने ह के वर म कहा, “खुद ही तो अपना िदमाग िबगाड़े
रहते ह और हम इ जाम लगाते ह तरकारी ठ डी तो नह है?”
दोन म सुलह हो गयी...जाड़ा अब काफ बढ़ गया था खाना खा चुकने के बाद िबनती शाल
ओढ़े च दर के पास आयी और बोली, “लो, इलायची खाओगे?” च दर ने ले ली छीलकर आधे
दाने खुद खा िलये, आधे िबनती के महँु म दे िदये िबनती ने धीरे से च दर क अँगल ु ी दाँत से
दबा दी च दर ने हाथ ख च िलया िबनती उसी के पलँग पर पास ही बैठ गयी और बोली,
“याद है तु ह? इसी पलँग पर तु हारा िसर दबा रही थी तो तम ु ने शीशी फक दी थी ”
“हाँ, याद है! अब कहो तु ह उठाकर फक दँू ” च दर आज बहत खुश था
“मझु े या फकोगे!” िबनती ने शरारत से महँु बनाकर कहा, “म तम ु से उठूँगी ही नह !”
जब अंग का तफ ू ान एक बार उठना सीख लेता है तो दस ू री बार उठते हए उसे देर नह लगती
अभी वह अपने तफ ू ान म प मी को पीसकर आया था िसरहाने बैठी हई िबनती, ह का बादामी
शाल ओढ़े , रह-रहकर मु कराती और गाल पर फूल के कटोरे िखल जाते, आँख म एक नयी
चमक च दर थोड़ी देर देखता रहा, उसके बाद उसने िबनती को ख चकर कुछ िहचकते हए
िबनती के माथे पर अपने होठ रख िदये िबनती कुछ नह बोली चुपचाप अपने को छुड़ाकर
िसर झक ु ाये बैठी रही और च दर के हाथ को अपने हाथ म लेकर उसक अँगिु लयाँ िचटकाती
रही सहसा बोली, “अरे , तु हारे कफ का बटन टूट गया है, लाओ िसल दँू ”
च दर को पहले कुछ आ य हआ, िफर कुछ लािन िबनती िकतना समपण करती है, उसके
सामने वह...लेिकन उसने अ छा नह िकया प मी क बात दस ू री है, िबनती क बात दस ू री
िबनती के साथ एक पिव अ तर ही ठीक रहता-
िबनती आयी और उसके कफ म बटन सीने लगी...सीते-सीते बचे हए डोरे को दाँत से तोड़ती हई
बोली, “च दर, एक बात कह मानोगे?”
“ या?”
“प मी के यहाँ मत जाया करो ”
“ य ?”
“प मी अ छी औरत नह है वह तु ह यार नह करती, तु ह िबगाड़ती है ”
“यह बात गलत है, िबनती! तम ु इसीिलए कह रही हो न िक उसम वासना बहत तीखी है!”
“नह , यह नह उसने तु हारी िजंदगी म िसफ एक नशा, एक वासना दी, कोई ऊँचाई, कोई
पिव ता नह कहाँ दीदी, कहाँ प मी? िकस वग से उतरकर तम ु िकस नरक म फँस गये!”
“पहले म भी यही सोचता था िबनती, लेिकन बाद म मने सोचा िक माना िकसी लड़क के
जीवन म वासना ही तीखी है, तो या इसी से वह िन दनीय है? या वासना वत: म िन दनीय
है? गलत! यह तो वभाव और यि व का अ तर है, िबनती! हरे क से हम क पना नह माँग
सकते, हरे क से वासना नह पा सकते बादल है, उस पर िकरण पड़े गी, इ धनुष ही िखलेगा,
फूल है, उस पर िकरण पड़े गी, तब सुम ही आएगा बादल से हम माँगने लग तब सुम और फूल
से माँगने लग इ धनुष, तो यह तो हमारी एक किव वमयी भल ू होगी माना एक लड़क के
जीवन म यार आया, उसने अपने देवता के चरण पर अपनी क पना चढ़ा दी दस ू री के जीवन
म यार आया, उसने चु बन, आिलंगन और गद ु ी क िबजिलयाँ द एक बोली, 'देवता मेरे!
ु गद
मेरा शरीर चाहे िजसका हो, मेरी पज ू ा-भावना, मेरी आ मा तु हारी है और वह ज म-ज मा तर
तक तु हारी रहे गी...' और दस ू री दीपिशखा-सी लहराकर बोली, 'दुिनया कुछ कहे अब तो मेरा
तन-मन तु हारा है म तो बेकाबू हँ ! म क ँ या? मेरे तो अंग-अंग जैसे अलसा कर चरू हो गये
है तु हारी गोद म िगर पडऩे के िलए, मेरी त णाई पुलक उठी है तु हारे आिलंगन म िपस जाने
के िलए मेरे लाज के ब धन जैसे िशिथल हए जाते ह? म क ँ तो या क ँ ? कैसा नशा िपला
िदया है तमु ने , म सब कुछ भल ू गयी हँ तम ु चाहे िजसे अपनी क पना दो, अपनी आ मा दो,
लेिकन एक बार अपने जलते हए होठ म मेरे नरम गल ु ाबी होठ समेट लो न!' बताओ िबनती,
य पहली क भावना ठीक है और दस ू री क यास गलत?”
िबनती कुछ देर तक चुप रही, िफर बोली, “च दर, तम ु बहत गहराई से सोचते हो लेिकन म तो
एक मोटी-सी बात जानती हँ िक िजसके जीवन म वह यास जग जाती है वह िफर िकसी भी
सीमा तक िगर सकता है लेिकन िजसने याग िकया, िजसक क पना जागी, वह िकसी भी
सीमा तक उठ सकता है मने तो तु ह उठते हए देखा है ”
“गलत है, िबनती! तम ु ने िगरते हए देखा है मझ ु े! तमु मानोगी िक सुधा से मझ ु े क पना ही िमली
थी, याग ही िमला था, पिव ता ही िमली थी पर वह िकतनी िदन िटक ! और तम ु यह कैसे
कह सकती हो िक वासना आदमी को नीचे ही िगराती है तम ु आज ही क घटना लो तम ु यह
तो मानोगी िक अभी तक मने तु ह अपमान और ितर कार ही िदया था ”
“खैर, उसक बात जाने दो!” िबनती बोली
“नह , बात आ गयी तो म साफ कहता हँ िक आज मने तु हारा ितदान देने क सोची, आज
तु हारे िलए मन म बड़ा ने ह उमड़ आया य ? जानती हो? प मी ने आज अपने बाहपाश म
कसकर जैसे मेरे मन क सारी कटुता, सारा िवष ख च िलया मझ ु े लगा बहत िदन बाद म िफर
िपशाच नह , आदमी हँ यह वासना का ही दान है तम ु कैसे कहोगी िक वासना आदमी को
नीचे ही ले जाती है!”
िबनती कुछ नह बोली, च दर भी थोड़ी देर चुप रहा िफर बोला, “लेिकन एक बात पछ ू ू ँ,
िबनती?”
“ या?”
“बहत अजब-सी बात है सोच रहा हँ पछ ू ू ँ या न पछ ू ू ँ !”
“पछू ो न!”
“अभी मने तु हारे माथे पर होठ रख िदये, तम ु कुछ भी नह बोल , और म जानता हँ यह कुछ
अनुिचत-सा था तम ु प मी नह हो! िफर भी तम ु ने कुछ भी िवरोध नह िकया...?”
िबनती थोड़ी देर तक चुपचाप अपने पाँव क ओर देखती रही िफर शाल के छोर से एक डोरा
ख चते हए बोली, “च दर, म अपने को कुछ समझ नह पाती िसफ इतना जानती हँ िक मेरे
मन म तम ु जाने या हो; इतने महान हो, इतने महान हो िक म तु ह यार नह कर पाती,
लेिकन तु हारे िलए कुछ भी करने से अपने को रोक नह सकती लगता है तु हारा यि व,
उसक शि और उसक दुबलताएँ , उसक यास और उसका स तोष, इतना महान है, इतना
गहरा है िक उसके सामने मेरा यि व कुछ भी नह है मेरी पिव ता, मेरी अपिव ता, इन
सबसे यादा महान तु हारी यास है ...लेिकन अगर तु हारे मन म मेरे िलए जरा भी ने ह है तो
तमु प मी से स ब ध तोड़ लो दीदी से अगर म बताऊँगी तो जाने या हो जाएगा! और तम ु
जानते नह , दीदी अब कैसी हो गयी ह? तम ु देखो तो आँस.ू ..”
“बस! बस!” च दर ने अपने हाथ से िबनती का महँु ब द करते हए कहा, “सुधा क बात मत
करो, तु ह कसम है िजंदगी के िजस पहलू को हम भल ू चुके ह, उसे कुरे दने से या फायदा?”
“अ छा, अ छा!” च दर का हाथ हटाकर िबनती बोली, “लेिकन प मी को अपनी िजंदगी से हटा
दो ”
“यह नह हो सकता, िबनती?” च दर बोला, “और जो कहो, वह म कर दँग ू ा हाँ, तु हारे ित
आज तक जो दु यवहार हआ है, उसके िलए म तम ु से मा माँगता हँ ”
“िछः, च दर! मझु े शिम दा मत करो ” काफ रात हो गयी थी च दर लेट गया िबनती ने
उसे रजाई उढ़ा दी और टे बल पर िबजली का टड रखकर बोली, “अब चुपचाप सो जाओ ”
िबनती चली गयी च दर पड़ा-पड़ा सोचने लगा, दुिनया गलत कहती है िक वासना पाप है
वासना से भी पिव ता और माशीलता आती है प मी से उसे जो कुछ िमला, वह अगर पाप है
तो आज च दर ने जो िबनती को िदया, उसम इतनी मा, इतनी उदारता और इतनी शाि त य
थी?
उसके बाद िबनती को वह बहत दुलार और पिव ता से रखने लगा कभी-कभी जब वह घम ू ने
जाता तो िबनती को भी ले जाता था यू ईयस डे के िदन प मी ने दोन क दावत क
िबनती प मी के पीछे चाहे च दर से प मी का िवरोध कर ले पर प मी के सामने बहत िश ता
और ने ह का बरताव करती थी
डॉ टर साहब क िद ली जाने क तैयारी हो गयी िबनती ने काय म म कुछ प रवतन करा
िलया था अब वह पहले डॉ टर साहब के साथ शाहजहाँपुर जाएगी और तब िद ली
िन य करते-करते अ त म पहली फरवरी को वे लोग गये टे शन पर बहत-से िव ाथ और
डॉ टर साहब के िम उ ह िवदा देने के िलए आये थे िबनती िव ािथय क भीड़ से घबराकर
इधर चली आयी और च दर को बुलाकर कहने लगी-”च दर! दीदी के िलए एक खत तो दे दो!”
“नह ” च दर ने बहत खे और ढ़ वर म कहा
िबनती कुछ ण तक एकटक च दर क ओर देखती रही; िफर बोली, “च दर, मन क ा
चाहे अब भी वैसी हो, लेिकन तम
ु पर अब िव ास नह रहा ”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया, िसफ हँ स पड़ा िफर बोली, “च दर, अगर कभी कोई ज रत
हो तो ज र िलखना, म चली आऊँगी, समझे?” और िफर चुपचाप जाकर बैठ गयी
जब च दर लौटा तो उसके साथ कई साथी ोफेसर थे घर पहँ चकर वह कार लेकर प मी के
यहाँ चल िदया पता नह य िबनती के जाने का च दर को कुछ थोड़ा-सा दु:ख था
36

गरमी का मौसम आ गया था च दर सुबह कॉलेज जाता, दोपहर को सोता और शाम को वह


िनयिमत प से प मी को लेकर घम ू ने जाता डॉ टर साहब कार छोड़ गये थे कार प मी और
च दर को लेकर दरू -दरू का च कर लगाया करती थी इस बार उसने अपनी छु याँ िद ली म
ही िबताने क सोची थ प मी ने भी तय िकया था िक मसरू ी से लौटते समय जुलाई म वह एक
ह ते आकर डॉ टर शु ला क मेहमानी करे गी और िद ली के पवू प रिचत से भी िमल लेगी
यह नह कहा जा सकता िक च दर के िदन अ छी तरह नह बीत रहे थे उसने अपना अतीत
भुला िदया था और वतमान को वह प मी क नशीली िनगाह म डुबो चुका था भिव य क उसे
कोई खास िच ता नह थी उसे लगता था िक यह प मी क िनगाह के बादल और पश के
फूल क जादू भरी दुिनया अमर है, शा त है इस जादू ने हमेशा के िलए उसक आ मा को
अिभभत ू कर िलया है, ये होठ कभी अलग न ह गे, यह बाहपाश इसी तरह उसे घे रे रहे गा और
प मी क गरम त ण साँस सदा इसी कार उसके कपोल को िसहराती रहगी आदमी का
िव ास हमेशा सीमाएँ और अ त भल ू जाने का आदी होता है च दर भी सबकुछ भल ू चुका
था
अ ल ै क एक शाम िदन-भर लू चलकर अब थक गयी थी लेिकन िदन-भर क लू क वजह
से आसमान म इतनी धल ू भर गयी थी िक धपू भी ह क पड़ गयी थी माली बाहर िछड़काव
कर रहा था च दर सोकर उठा था और सु ती िमटा रहा था थोड़ी देर बाद वह उठा, िदशाओं
क ओर िन े य देखने लगा बड़ी उदास-सी शाम थी सड़क भी िब कुल सन ू ी थी, िसफ
दो-एक साइिकल-सवार लू से बचने के िलए कान पर तौिलया लपे टे हए चले जा रहे थे एक
बफ का ठे ला भी चला जा रहा था “जाओ, बफ ले आओ?” च दर ने माली को पैसे देते हए
कहा माली ने ठे लावाले को बुलाया ठे लावाला आकर फाटक पर क गया माली बफ
तड़ु वा ही रहा था िक एक र शा, िजस पर परदा बँधा था, वह भी फाटक के पास मड़ ु ा और ठे ले
के पास आकर क गया ठे लावाले ने ठे ला पीछे िकया र शा अ दर आया र शा म कोई
परदानशीन औरत बैठी थी, लेिकन र शा के साथ कोई नह था, च दर को ता जुब हआ, कौन
परदानशीन यहाँ आ सकती है! र शा से एक लड़क उतरी िजसे च दर नह जानता था,
लेिकन बाहर का परदा िजतना ग दा और पुराना था, लड़क क पोशाक उतनी ही साफ और
चु त वह सफेद रे शम क सलवार, सफेद रे शम का चु त कुरता और उस पर बहत ह के
शरबती फालसई रं ग क चु नी ओढ़े हई थी वह उतरी और र शावाले से बोली, “अब घंटे भर म
आकर मझ ु े ले जाना ” र शावाला िसर िहलाकर चल िदया और वह सीधे अ दर चल दी
च दर को बड़ा अचरज हआ यह कौन हो सकती है जो इतनी बेतक लुफ से अ दर चल दी
उसने सोचा, शायद शरणािथय के िलए च दा माँगने वाली कोई लड़क हो मगर अ दर तो
कोई है ही नह ! उसने चाहा िक रोक दे िफर उसने नह रोका सोचा, खुद ही अ दर खाली
देखकर लौट आएगी
माली बफ लेकर आया और अ दर चला गया वह लड़क लौटी उसके चे हरे पर कुछ आ य
और कुछ िच ता क रे खाएँ थ अब च दर ने उसे देखा एक साँवली लड़क थी, कुछ उदास,
कुछ बीमार-सी लगती थी आँख बड़ी-बड़ी लगती थ जो रोना भल ू चुक ह और हँ सने म भी
अश ह चे हरे पर एक पीली छाँह थी ऐसा लगता था, देखने ही से िक लड़क़ दु:खी है पर
अपने को सँभालना जानती है
वह आयी और बड़ी फ क मु कान के साथ, बड़ी िश ता के वर म बोली, “च दर भाई, सलाम!
सुधा या ससुराल म है?”
च दर का आ य और भी बढ़ गया यह तो च दर को जानती भी है!
“जी हाँ, वह ससुराल म है आप...”
“और िबनती कहाँ है?” लड़क ने बात काटकर पछ ू ा
“िबनती िद ली म है ”
“ या उसक भी शादी हो गयी?”
“जी नह , डॉ टर साहब आजकल िद ली म ह वह उ ह के पास पढ़ रही है बैठ तो जाइए!”
च दर ने कुस िखसकाकर कहा
“अ छा, तो आप यह रहते ह अब? नौकर हो गये ह गे?”
“जी हाँ!” च दर ने अचरज म डूबकर कहा, “लेिकन आप इतनी जानकारी और प रचय क बात
कर रही ह, मने आपको पहचाना नह , मा क िजएगा...”
वह लड़क हँ सी, जैसे अपनी िक मत, िजंदगी, अपने इितहास पर हँ स रही हो
“आप मझ ु को कैसे पहचान सकते ह? म ज र आपको देख चुक थी मेरे-आपके बीच म
दरअसल एक रोशनदान था, मेरा मतलब सुधा से है!”
“ओह! म समझा, आप गेसू ह!”
“जी हाँ!” और गेसू ने बहत तमीज से अपनी चु नी ओढ़ ली
“आप तो शादी के बाद जैसे िब कुल खो ही गय अपनी सहे ली को भी एक खत नह िलखा
अ तर िमयाँ मजे म ह?”
“आपको यह सब कैसे मालम ू ?” बहत आकुल होकर गेसू बोली और उसक पीली आँख म और
भी मैलापन आ गया
“मझ ु े सुधा से मालमू हआ था म तो उ मीद कर रहा था िक आप हम लोग को एक दावत ज र
दगी लेिकन कुछ मालम ू ही नह हआ एक बार सुधाजी ने मझ ु े आपके यहाँ भे जा तो मालम

हआ िक आप लोग ने मकान ही छोड़ िदया है ”
“जी हाँ, म देहरादन ू म थी अ मीजान वगैरह सभी वह थ अभी हाल म वहाँ कुछ पनाहगीर
पहँ चे...”
“पनाहगीर?”
“जी, पंजाब के िसख वगैरह कुछ झगड़ा हो गया तो हम लोग चले आये अब हम लोग यह
ह ”
“अ तर िमयाँ कहाँ ह?”
“िमरजापुर म पीतल का रोजगार कर रहे ह!”
“और उनक बीवी देहरादन ू म थी यह सजा य दी आपने उ ह?”
“सजा क कोई बात नह ” गेसू का वर घुटता हआ-सा मालम ू दे रहा था “उनक बीवी
उनके साथ है ”
“ या मतलब? आप तो अजब-सी बात कर रही ह अगर म भल ू नह करता तो आपक
शादी...”
“जी हाँ!” बड़ी ही उदास हँ सी हँ सकर गेसू बोली, “आपसे च दर भाई, म या िछपाऊँगी, जैसे
सुधा वैसे आप! मेरी शादी उनसे नह हई!”
“अरे ! गु ताखी माफ क िजएगा, सुधा तो मझु से कह रही थी िक अ तर...”
“मझु से महु बत करते ह!” गेसू बात काटकर बोली और बड़ी ग भीर हो गयी और अपनी चु नी
के छोर म टँके हए िसतारे को तोड़ती हई बोली, “म सचमच ु नह समझ पायी िक उनके मन म
या था उनके घरवाल ने मेरे बजाय फूल को यादा पस द िकया उ ह ने फूल से ही शादी
कर ली अब अ छी तरह िनभ रही है दोन क फूल तो इतने अरसे म एक बार भी हम लोग
से िमलने नह आयी!”
“अ छा...” च दर चुप होकर सोचने लगा िकतनी बड़ी वंचना हई इस लड़क क िजंदगी म!
और िकतने दबे श द म यह कहकर चुप हो गयी! एक भी आँसू नह , एक भी िससक नह
संयत वर और फ क मु कान, बस च दर चुपचाप उठकर अ दर गया महरािजन आ गयी
थी कुछ ना ता और शरबत भे जने के िलए कहकर च दर बाहर आया गेसू चुपचाप लॉन क
ओर देख रही थी, शू य िनगाह से च दर आकर बैठ गया और बोला-”बहत धोखा िदया
आपको!”
“िछः! ऐसी बात नह कहते, च दर भाई! कौन जानता है िक यह अ तर क मजबरू ी रही हो!
िजसको मने अपना सरताज माना उसके िलए ऐसा खयाल भी िदल म लाना गन ु ाह है म इतनी
िगरी हई नह िक यह सोचँ ू िक उ ह ने धोखा िदया!” गेसू दाँत तले जबान दबाकर बोली
च दर दंग रह गया या गेसू अपने िदल से कह रही है? इतना अखंड िव ास है गेसू को
अ तर पर! शरबत आ गया था गेसू ने तक लुफ नह िकया लेिकन बोली, “आप बड़े भाई
ह पहले आप शु क िजए ”
“आपक िफर कभी अ तर से मल ु ाकात नह हई?” च दर ने एक घँटू पीकर कहा
“हई य नह ? कई बार वह अ मीजान के पास आये ”
“आपने कुछ नह कहा?”
“कहती या? यह सब बात कहने -सुनने क होती ह! और िफर फूल वहाँ आराम से है, अ तर
भी फूल को जान से यादा यार से रखते ह, यही मेरे िलए बहत है और अब कहकर या
क ँ गी! जब फूल से शादी तय हई और वे राजी हो गये तभी मने कुछ नह कहा, अब तो फूल क
माँग, फूल का सुहाग मेरे िलए सुबह क अजान से यादा पाक है ” गेसू ने शरबत म िनगाह
डुबाये हए कहा च दर ण-भर चुप रहा िफर बोला-
“अब आपक शादी अ मीजान कब कर रही ह?”
“कभी नह ! मने क द कर िलया है िक म शादी ताउ नह क ँ गी देहरादन ू के मैटिनटी
सटर म काम सीख रही थी कोस परू ा हो गया अब िकसी अ पताल म काम क ँ गी ”
“आप...!”
“ य , आपको ता जुब य हआ? मने अ मीजान को इस बात के िलए राजी कर िलया है म
अपने पैर पर खड़ी होना चाहती हँ ”
च दर ने शरबत से बफ िनकालकर फकते हए कहा-
“म आपक जगह होता तो दस ू री शादी करता और अ तर से भरसक बदला लेता!”
“बदला!” गेसू मु कराकर बोली, “िछः, च दर भाई! बदला, गरु े ज, नफरत इससे आदमी न कभी
सुधरा है न सुधरे गा बदला और नफरत तो अपने मन क कमजोरी को जािहर करते ह और
िफर बदला म लँ ू िकससे? उससे, िदल क तनहाइय म म िजसके सजदे पड़ती हँ यह कैसे हो
सकता है?”
गेसू के माथे पर िव ास का तेज दमक उठा, उसक बीमार आँख म धपू लहलहा उठी और
उसका कंचनलता-सा तन जगमगाने लगा कुछ ऐसी ढ़ता थी उसक आवाज म, ऐसी गहराई
थी उसक विन म िक च दर देखता ही रह गया वह जानता था िक गेसू के िदल म अ तर के
िलए िकतना ेम था, वह यह भी जानता था िक गेसू अ तर क शादी के िलए िकस तरह पागल
थी वह सारा सपना ताश के महल क तरह िगर गया और प रि थितय ने नह , खुद
अ तर ने धोखा िदया, लेिकन गेसू है िक माथे पर िशकन नह , भ ह म बल नह , होठ पर
िशकायत नह नारी के जीवन का यह कैसा अिमट िव ास था! यानी िजसे गेसू ने अपने ेम
का वणमि दर समझा था, वह वालामख ु ी बनकर फूट गया और उसने दद क िपघली आग क
धारा म गेसू को डुबो देने क कोिशश क लेिकन गेसू है िक अटल च ान क तरह खड़ी है
च दर के मन म कह कोई टीस उठी उसके िदल क धडक़न ने कह पर उससे पछ ू ा '...और
च दर, तम ु ने या िकया? तम ु पु ष थे तु हारे सबल कंधे िकसी के यार का बोझ य नह
ढो पाये, च दर?' लेिकन च दर ने अपनी अ त:करण क आवाज को अनसुनी करते हए पछ ू ा-
“तो आपके मन म जरा भी दद नह अ तर को न पाने का?”
“दद?” गेसू क आवाज डूबने लगी, िनगाह क जद पाँखु रय पर ह क पानी क लहर दौड़
गयी-”दद, यह तो िसफ सुधा समझ सकती है, च दर भाई! बचपन से वह मेरे िलए या थे, यह
वही जानती है म तो उनका सपना देखते-देखते उनका सपना ही बन गयी थी, लेिकन खैर
दद इंसान के यक दे को और मजबत ू न कर दे, आदमी के कदम को और ताकत न दे, आदमी के
िदल को ऊँचाई न दे तो इंसान या? दद का हाल पछ ू ते ह आप! कयामत के रोज तक मेरी म यत
उ ह का आसरा देखेगी, च दर भाई! लेिकन इसके िलए िजंदगी म तो खामोश ही रहना होगा
बंद घर म जलते हए िचराग क तरह घुलना होगा और अगर मने उनको अपना माना है तो वह
िमलकर ही रहगे आज न सही कयामत के बाद सही महु बत क दुिनया म जैसे एक िदन
उनके िबना कट जाता है वैसे एक िजंदगी उनके िबना कट जाएगी...लेिकन उसके बाद वे मेरे
होकर रहगे ”
च दर का िदल काँप उठा गेसू क आवाज म तारे बरस रहे थे...
“और आपसे या कहँ , च दर भाई! या आपक बात मझ ु से िछपी है? म जानती हँ सबकुछ
जानती हँ सच पिू छए तो जब मने देखा िक आप िकतनी खामोशी से अपनी दुिनया म आग
लगते देख रहे ह, और िफर भी हँ स रहे ह, तो मने आपसे सबक िलया हम नह मालम ू था िक
हम और आप, दोन भाई-बहन क िक मत एक-सी है ”
च दर के मन म जाने िकतने घाव कसक उठे उसके मन म जाने िकतना दद उमड़ने -सा
लगा गेसू उसे या समझ रही है मन म और वह कहाँ पहँ च चुका है! िजसने च दर क िजंदगी
से अपने मन का दीप जलाया, वह आज देवता के चरण तक पहँ च गया, लेिकन च दर के मन
क दीपिशखा? उसने अपने यार क िचता जला डाली च दर के महँु पर लािन क कािलमा
छा गयी गेसू चुपचाप बैठी थी सहसा बोली, “च दर भाई, आपको याद है, िपछले साल इ ह
िदन म सुधा से िमलने आयी थी और हसरत आपको मेरा सलाम कहने गया था?”
“याद हैï!” च दर ने बहत भारी वर म कहा
“इस एक साल म दुिनया िकतनी बदल गयी!” गेसू ने एक गहरी साँस लेकर कहा, “एक बार ये
िदन चले जाते ह, िफर बेदद कभी नह लौटते! कभी-कभी सोचती हँ िक सुधा होती तो िफर
कॉलेज जाते, लास म शोर मचाते, भागकर घास म लेटते, बादल को देखते, शेर कहते और वह
च दर क और हम अ तर क बात करते...” गेसू का गला भर आया और एक आँसू चू पड़ा...
“सुधा और सुधा क याह-शादी का हाल बताइए कैसे ह उनके शौहर?”
च दर के मन म आया िक वह कह दे, गेस,ू य लि जत करती हो! म वह च दर नह हँ मने
अपने िव ास का मि दर कर िदया...म ेत हँ ...मने सुधा के यार का गला घ ट िदया
है...लेिकन पु ष का गव! पु ष का छल! उसे यह भी नह मालम ू होने िदया िक उसका िव ास
चरू -चरू हो चुका है और िपछले िकतने ही महीन से उसने सुधा को खत िलखना भी ब द कर
िदया है और यह भी नह मालम ू करने का यास िकया िक सुधा मरती है या जीती!
घंटा-भर तक दोन सुधा के बारे म बात करते रहे इतने म र शावाला लौट आया गेसू ने उसे
ठहरने का इशारा िकया और बोली, “अ छा, जरा सुधा का पता िलख दीिजए ” च दर ने एक
कागज पर पता िलख िदया गेसू ने उठने का उप म िकया तो च दर बोला, “बैिठए अभी,
आपसे बात करके आज जाने िकतने िदन क बात याद आ रही ह!”
गेसू हँ सी और बैठ गयी च दर बोला, “आप अभी तक किवताएँ िलखती ह?”
“किवताएँ ...” गेसू िफर हँ सी और बोली, “िजंदगी िकतनी हमगीर है, िकतनी पुरशोर, और इस
शोर म नगम क हक कत िकतनी! अब हड्िडयाँ, नस, ेशर- वाइंट, प याँ और मरहम म िदन
बीत जाता है अ छा च दर भाई, सुधा अभी उतनी ही शोख है? उतनी ही शरारती है!”
“नह ” च दर ने बहत उदास वर म कहा, “जाओ, कभी देख आओ न!”
“नह , जब तक कह जगह नह िमल जाती, तब तक तो इतनी आजादी नह िमलेगी अभी
यह हँ उसी को बुलवाऊँगी और उसके पित देवता को िलखँग ू ी िकतना सन ू ा लग रहा है घर
जैसे भत ू का बसेरा हो जैसे परे त रहते ह !”
“ य 'परे त' बना रही ह आप? म रहता हँ इसी घर म ” च दर बोला
“अरे , मेरा मतलब यह नह था!” गेसू हँ सते हए बोली, “अ छा, अब मझ ु े तो अ मीजान नह
भे जगी, आज जाने कैसे अकेले आने क इजाजत दे दी आपको िकसी िदन बुलवाऊँ तो
आइएगा ज र!”
“हाँ, आऊँगा गेस,ू ज र आऊँगा!” च दर ने बहत ने ह से कहा
“अ छा भाईजान, सलाम!”
“नम ते!”
गेसू जाकर र शा पर बैठ गयी और परदा तन गया र शा चल िदया च दर एक अजीब-सी
िनगाह से देखता रहा जैसे अपने अतीत क कोई खोयी हई चीज ढूँढ़ रहा हो, िफर धीरे -धीरे लौट
आया सरू ज डूब गया था वह गस ु लखाना ब द कर नहाने बैठ गया जाने कहाँ-कहाँ मन
भटक रहा था उसका च दर मन का अि थर था, मन का बुरा नह था गेसू ने आज उसके
सामने अचानक वह त वीर रख दी थी िजसम वह वग क ऊँचाइय पर मँडराया करता था
और जाने कैसा दद-सा उसके मन म उठ गया था, गेसू ने अपने अजाने म ही च दर के
अिव ास, च दर क ितिहं सा को बहत बड़ी हार दी थी उसने िसर पर पानी डाला तो उसे
लगा यह पानी नह है िजंदगी क धारा है, िपघले हए अंगार क धारा िजसम पडक़र केवल वही
िज दा बच पाया है, िजसके अंग म यार का अमतृ है और च दर के मन म या है? महज
वासना का िवष...वह सड़ा हआ, गला हआ शरीर मा जो केवल सि नपात के जोर से चल रहा
है उसने अपने मन के अमतृ को गली म फक िदया है...उसने या िकया है?
वह नहाकर आया और शीशे के सामने खड़ा होकर बाल काढऩे लगा-िफर शीशे क ओर एकटक
देखकर बोला, “मझ ु े या देख रहे हो, च दर बाब!ू मझु े तो तम
ु ने बबाद कर डाला आज कई
महीने हो गये और तम ु ने एक िच ी तक नह िलखी, िछः!” और उसने शीशा उलटकर रख
िदया
महरािजन खाना ले आयी उसने खाना खाया और सु त-सा पड़ रहा “भइया, आज घम ू ैन
जाबो?”
“नह !” च दर ने कहा और पड़ा-पड़ा सोचने लगा प मी के यहाँ नह गया
यह गेसू दस ू रे कमरे म बैठी थी इस कमरे म िबनती उसे कैलाश का िच िदखा रही
थी ...िच उसके मन म घम ू ने लगे...च दर, या इस दुिनया म तु ह रह गये थे फोटो
िदखाकर पस द कराने के िलए...च दर का हाथ उठा तड़ से एक तमाचा...च दर, चोट तो
नह आयी...मान िलया िक मेरे मन ने मझ ु से न कहा हो, तम ु से तो मेरा मन कोई बात नह
िछपाता...तो च दर, तम ु शादी कर य नह लेते? पापा लड़क देख आएँ गे...हम भी देख
लगे...तो िफर तम ु बैठो तो हम पढ़गे, वरना हम शरम लगती है...च दर, तम ु शादी मत करना,
तमु इस सबके िलए नह बने हो...नह सुधा, तु हारे व पर िसर रखकर िकतना स तोष
िमलता है...
आसमान म एक-एक करके तारे टूटते जा रहे थे
37

वह प मी के यहाँ नह गया एक िदन...दो िदन...तीन िदन...अ त म चौथे िदन शाम को प मी


खुद आयी च दर खाना खा चुका था और लॉन पर टहल रहा था प मी आयी उसने
वागत िकया लेिकन उसक मु कराहट म उ लास नह था
“कहो कपरू , आये य नह ? म समझी, तम ु बीमार हो गये!” प मी ने लॉन पर पड़ी एक कुस
पर बैठते हए कहा, “आओ, बैठो न!” उसने च दर क ओर कुस िखसकायी
“नह , तम ु बैठो, म टहलता रहँ गा!” च दर बोला और कहने लगा, “पता नह य प मी, दो-
तीन िदन से तबीयत बहत उदास-सी है तु हारे यहाँ आने को तबीयत नह हई!”
“ य , या हआ?” प मी ने पछ ू ा और च दर का हाथ पकड़ िलया च दर प मी क कुस के
पीछे खड़ा हो गया प मी ने च दर के दोन हाथ पकडक़र अपने गले म डाल िलये और अपना
िसर च दर से िटकाकर उसक ओर देखने लगी च दर चुप था न उसने प मी के गाल
थपथपाये, न हाथ दबाया, न अलक िबखे र और न िनगाह म नशा ही िबखे रा
औरत अपने ित आने वाले यार और आकषण को समझने म चाहे एक बार भल ू कर जाये,
लेिकन वह अपने ित आने वाली उदासी और उपे ा को पहचानने म कभी भल ू नह करती
वह होठ पर होठ के पश के गढ़ ू तम अथ समझ सकती है, वह आपके पश म आपक नस से
चलती हई भावना पहचान सकती है, वह आपके व से िसर िटकाकर आपके िदल क धड़कन
क भाषा समझ सकती है, यिद उसे थोड़ा-सा भी अनुभव है और आप उसके हाथ पर हाथ रखते
ह तो पश क अनुभिू त से ही जान जाएगी िक आप उससे कोई कर रहे ह, कोई याचना कर
रहे ह, सा वना दे रहे ह या सा वना माँग रहे ह मा माँग रहे ह या मा दे रहे ह, यार का
ार भ कर रहे ह या समा कर रहे ह वागत कर रहे ह या िवदा दे रहे ह यह पुलक का
पश है या उदासी का चाव और नशे का पश है या िख नता और बेमनी का
प मी च दर के हाथ को छूते ही जान गयी िक हाथ चाहे गरम ह , लेिकन पश बड़ा शीतल है,
बड़ा नीरस उसम वह िपघली हई आग क शराब नह है जो अभी तक च दर के होठ पर
धधकती थी, च दर के पश म िबखरती थी
“कुछ तबीयत खराब है कपरू , बैठ जाओ!” प मी ने उठकर च दर को जबरद ती िबठाल िदया,
“आजकल बहत मेहनत पड़ती है, य ? चलो, तम ु हमारे यहाँ रहो!”
प मी म केवल शरीर क यास थी, यह कहना प मी के ित अ याय होगा प मी म एक बहत
गहरी हमदद थी च दर के िलए च दर अगर शरीर क यास को जीत भी लेता तो उसक
हमदद को वह नह ठुकरा पाता था उस हमदद का ितर कार होने से प मी दु:खी होती थी
और उसे वह तभी वीकृत समझती थी जब च दर उसके प के आकषण म डूबा रहे अगर
पु ष के होठ म तीखी यास न हो, बाहपाश म जहर न हो तो वासना क इस िशिथलता से
नारी फौरन समझ जाती है िक स ब ध म दरू ी आती जा रही है स ब ध क घिन ता को
नापने का नारी के पास एक ही मापदंड है, चु बन का तीखापन!
च दर के मन म ही नह वरन पश म भी इतनी िबखरती हई उदासी थी, इतनी उपे ा थी िक
प मी ममाहत हो गयी उसके िलए यह पहली पराजय थी! आजकल प मी जान जाती थी िक
च दर का रोम-रोम इस व प मी क साँस म डूबा हआ है
लेिकन प मी ने देखा िक च दर उसक बाँह म होते हए भी दरू , बहत दरू न जाने िकन िवचार
म उलझा हआ है वह उससे दरू चला जा रहा है, बहत दरू प मी क धड़कन अ त- य त हो
गय उसक समझ म नह , आया वह या करे ! च दर को या हो गया? या प मी का जादू
टूट रहा है? प मी ने अपनी पराजय से कुंिठत होकर अपना हाथ हटा िलया और चुपचाप महँु
फेरकर उधर देखने लगी च दर चाहे िजतना उदास हो लेिकन प मी क उदासी वह नह सह
सकता था बुरी या भली, प मी इस व उसक सन ू ी िजंदगी का अकेला सहारा थी और प मी
क हमदद का वह बहत कृत था वह समझ गया, प मी य उदास है! उसने प मी का हाथ
ख च िलया और अपने होठ उसक हथेिलय पर रख िदये और ख चकर प मी का िसर अपने कंधे
पर रख िलया...
पु ष के जीवन म एक ण आता है जब वासना उसक कमजोरी, उसक यास, उसका नशा,
उसका आवेश नह रह जाती जब वासना उसक हमदद का, उसक सा वना का साधन बन
जाती है जब वह नारी को इसिलए बाँह म नह समेटता िक उसक बाँह यासी ह, वह इसिलए
उसे बाँह म समेट लेता है िक नारी अपना दुख भल ू जाए िजस व वह नारी क सीिपया
पलक के नशे म नह वरन उसक आँख के आँसू सुखाने के िलए उसक पलक पर होठ रख
देता है, जीवन के उस ण म पु ष िजस नारी से सहानुभिू त रखता है, उसके मन क पराजय
को भुलाने के िलए वह नारी को बाहपाश के नशे म बहला देना चाहता है! लेिकन इन बाहपाश
म यास जरा भी नह होती, आग जरा भी नह होती, िसफ नारी को बहलावा देने का यास मा
होता है
इसम कोई स देह नह िक च दर के मन पर छाया हआ प मी के प का गल ु ाबी बादल उचटता
जा रहा था, नशा उखड़ा-सा रहा था लेिकन च दर प मी को दु:खी नह करना चाहता था,
वह भरसक प मी को बहलाये रखता था...लेिकन उसके मन म कह -न-कह िफर अंत का
एक तफ ू ान चलने लगा था...
गेसू ने उसके सामने उसक साल-भर पहले क िजंदगी का वह िच रख िदया था, िजसक एक
झलक उस अभागे को पागल कर देने के िलए काफ थी च दर जैसे-तैसे मन को प थर
बनाकर, अपनी आ मा को प क शराब म डुबोकर, अपने िव ास म छलकर उसको भुला
पाया था उसे जीता पाया था लेिकन गेसू ने और गेसू क बात ने जैसे उसके मन म मिू छत
पड़ी अिभशाप क छाया म िफर ाण- ित ा कर दी थी और आधी रात के स नाटे म िफर च दर
को सुनाई देता था िक उसके मन म कोई काली छाया बार-बार िससकने लगती है और च दर के
दय से टकराकर वह दन बार-बार कहता था, “देवता! तम ु ने मेरी ह या कर डाली! मेरी ह या,
िजसे तम ु ने वग और ई र से बढ़कर माना था...” और च दर इन आवाज से घबरा उठता था
िव मरण क एक तरं ग जहाँ च दर को प मी के पास ख च लायी थी, वहाँ अतीत के मरण क
दसू री तरं ग उसे वेग म उलझाकर जैसे िफर उसे दरू ख च ले जाने के िलए याकुल हो उठी
उसको लगा िक प मी के िलए उसके मन म जो मादक नशा था, उस पर लािन का कोहरा छाता
जा रहा है और अभी तक उसने जो कुछ िकया था, उसके िलए उसी के मन म कह -न-कह पर
ह क -सी अ िच झलकने लगी थी िफर भी प मी का जादू बद तरू कायम था वह प मी के
ित कृत था और वह प मी को कह , िकसी भी हालत म दुखी नह करना चाहता था भले
वह गन ु ाह करके अपनी कृत ता जािहर य न कर पाये, लेिकन जैसे िबनती के मन म च दर
के ित जो ा थी, वह नैितकता-अनैितकता के ब धन से ऊपर उठकर थी, वैसे ही च दर के
मन म प मी के ित कृत ता पु य और पाप के ब धन से ऊपर उठकर थी िबनती ने एक िदन
च दर से कहा था िक यिद वह च दर को अस तु करती है, तो वह उसे इतना बड़ा गन ु ाह
लगता है िक उसके सामने उसे िकसी भी पाप-पु य क परवा नह है उसी तरह च दर सोचता
था िक स भव है िक उसका और प मी का यह स ब ध पापमय हो, लेिकन इस स ब ध को
तोड़कर प मी को अस तु और दु:खी करना इतना बड़ा पाप होगा जो अ य है
लेिकन वह नशा टूट चुका था, वह साँस धीमी पड़ गयी थी...अपनी हर कोिशश के बावजदू वह
प मी को उदास होने से बचा न पाता था
एक िदन सुबह जब वह कॉलेज जा रहा था िक प मी क कार आयी प मी बहत ही उदास थी
च दर ने आते ही उसका वागत िकया उसके कान म एक नीले प थर का बु दा था, िजसक
ह क छाँह गाल पर पड़ रही थी च दर ने झक ु कर वह नीली छाँह चम ू ली
प मी कुछ नह बोली वह बैठ गयी और िफर च दर से बोली, “म लखनऊ जा रही हँ , कपरू !”
“कब? आजï?”
“हाँ, अभी कार से ”
“ य ?”
“य ही, मन ऊब गया! पता नह , कौन-सी छाँह मझ ु पर छा गयी है म शायद लखनऊ से
मसरू ी चली जाऊँ ”
“म तु ह जाने नह दँग ू ा, पहले तो तमु ने बताया नह !”
“तु ह ने कहाँ पहले बताया था!”
“ या?”
“कुछ भी नह ! अ छा, चल रही हँ ”
“सुनो तो!”
“नह , अब रोक नह सकते तम ु ...बहत दरू जाना है च दर...” वह चल दी िफर वह लौटी और
जैसे युग -युग क यास बुझा रही हो, च दर के गले म झल ू गयी और कस िलया च दर
को...पाँच िमनट बाद सहसा वह अलग हो गयी और िफर िबना कुछ बोले अपनी कार म बैठ
गयी “प मी...तु ह हआ या यह?”
“कुछ नह , कपरू ” प मी कार टाट करते हए बोली, “म तम ु से िजतनी ही दरू रहँ उतना ही
अ छा है, मेरे िलए भी, तु हारे िलए भी! तु हारे इन िदन के यवहार ने मझ ु े बहत कुछ िसखा
िदया है?”
38

च दर िसर से पैर तक लािन से कुंिठत हो उठा सचमच ु वह िकतना अभागा है! वह िकसी को
भी स तु नह रख पाया उसके जीवन म सुधा भी आयी और प मी भी, एक को उसके पु य
ने उससे छीन िलया, दस ू री को उसका गन ु ाह उससे छीने िलये जा रहा है जाने उसके ह का
मािलक िकतना ू र िखलाड़ी है िक हर कदम पर उसक राह उलट देता है नह , वह प मी को
नह खो सकता-उसने प मी का कॉलर पकड़ िलया, “प मी, तु ह हमारी कसम है-बुरा मत
मानो! म तु ह जाने नह दँग ू ा ”
प मी हँ सी-बड़ी ही क ण लेिकन सश हँ सी अपने कॉलर को धीमे-से छुड़ाकर च दर क
अँगिु लय को कपोल से दबा िदया और िफर व के पास से एक िलफाफा िनकालकर च दर के
हाथ म दे िदया और कार टाट कर दी...पीछे मड ु क़र नह देखा...नह देखा
कार कड़वे धुएँ का बादल च दर क ओर उड़ाकर आगे चल दी
जब कार ओझल हो गयी, तब च दर को होश आया िक उसके हाथ म एक िलफाफा भी है
उसने सोचा, फौरन कार लेकर जाये और प मी को रोक ले िफर सोचा, पहले पढ़ तो ले, यह है
या चीज? उसने िलफाफा खोला और पढऩे लगा-
“कपरू , एक िदन तु हारी आवाज और बट क चीख सुनकर अपण ू वेश म ही अपने शंगृ ार-गहृ से
भाग आयी थी और तु ह फूल के बीच म पाया था, आज तु हारी आवाज मेरे िलए मक ू हो गयी है
और अस तोष और उदासी के काँट के बीच म तु ह छोडक़र जा रही हँ
जा रही हँ इसिलए िक अब तु ह मेरी ज रत नह रही झठ ू य बोलँ,ू अब या, कभी भी तु ह
मेरी ज रत नह रही थी, लेिकन मने हमेशा तु हारा दु पयोग िकया झठ ू य बोल, तम ु मेरे
पित से भी अिधक समीप रहे हो तम ु से कुछ िछपाऊँगी नह म तम ु से िमली थी, जब म
एकाक थी, उदास थी, लगता था िक उस समय तम ु मेरी सुनसान दुिनया म रोशनी के देवदत ू
क तरह आये थे तम ु उस समय बहत भोले, बहत सुकुमार, बहत ही पिव थे मेरे मन म उस
िदन तु हारे िलए जाने िकतना यार उमड़ आया! म पागल हो उठी मने तु ह उस िदन सेलामी
क कहानी सुनायी थी, िसने मा घर म, उसी अभािगन सेलामी क तरह म भी पैग बर को चम ू ने
के िलए याकुल हो उठी
देखा, तमु पिव ता को यार करते हो सोचा, यिद तम ु से यार ही जीतना है, तो तमु से पिव ता
क ही बात क ँ म जानती थी िक से स यार का आव यक अंग है लेिकन मन म तीखी
यास लेकर भी मने तम ु से से स-िवरोधी बात करनी शु क महँु पर पिव ता और अ दर म
भोग का िस ा त रखते हए भी मेरा अंग-अंग यासा हो उठा था...तु ह होठ तक ख च लायी
थी, लेिकन िफर साहस नह हआ
िफर मने उस छोकरी को देखा, उस िनता त ितभाहीन दुबलमना छोकरी िमस सुधा को वह
कुछ भी नह थी, लेिकन म देखते ही जान गयी थी िक तु हारे भा य का न है, जाने य
उसे देखते ही म अपना आ मिव ास खो-सा बैठी उसके यि व म कुछ न होते हए भी कम-
से-कम अजब-सा जादू था, यह म भी वीकार करती हँ , लेिकन थी वह छोकरी ही!
तु ह न पाने क िनराशा और तु ह न पाने क असीम यास, दोन के पीस डालने वाले संघष से
भागकर, म िहमालय म चली आयी िजतना तीखा आकषण होता है कपरू कभी-कभी नारी
उतनी ही दरू भागती है अगर कोई याला महँु से न लगाकर दरू फक दे, तो समझ लो िक वह
बेहद यासा है, इतना यासा िक तिृ क क पना से भी घबराता है िदन-रात उस पहाड़ी क
धवल चोिटय म तु हारी िनगाह मु कराती थ , पर म लौटने का साहस न कर पाती थी
लौटी तो देखा िक तम ु अकेले हो, िनराश हो और थोड़ा-थोड़ा उलझे हए भी हो पहले मने तम ु
पर पिव ता क आड़ म िवजय पानी चाही थी, अब तम ु पर वासना का सहारा लेकर छा गयी
तमु मझ ु े बुरा समझ सकते हो, लेिकन काश िक तम ु मेरी यास को समझ पाते, कपरू ! तम ु े
ु ने मझ
वीकार िकया वैसे नह जैसे कोई फूल शबनम को वीकार करे तम ु े उस तरह
ु ने मझ
वीकार िकया जैसे कोई बीमार आदमी मािफया (अफ म) के इ जे शन को वीकार करे
तु हारी यासी और बीमार विृ याँ बदली नह , िसफ बेहोश होकर सो गय
लेिकन कपरू , पता नह िकसके पश से वे एकाएक िबखर गय म जानती हँ , इधर तम ु म या
प रवतन आ गया है म तु ह उसके िलए अपराधी नह ठहराती, कपरू ! म जानती हँ तम ु मेरे
ित अब भी िकतने कृत हो, िकतने ने हशील हो लेिकन अब तम ु म वह यास नह , वह नशा
नह तु हारे मन क वासना अब मेरे िलए एक तरस म बदलती जा रही है
मझ ु े वह िदन याद है, अ छी तरह याद है च दर, जब तु हारे जलते हए होठ ने इतनी गहरी
वासना से मेरे होठ को समेट िलया था िक मेरे िलए अपना यि व ही एक सपना बन गया
था लगता था, सभी िसतार का तेज भी इसक एक िचनगारी के सामने फ का है लेिकन
आज होठ होठ ह, आग के फूल नह रहे -पहले मेरी एक झलक से तु हारे रोम-रोम म सैकड़
इ छाओं क आँिधयाँ गरज उठती थ ...आज तु हारी नस का खन ू ठं डा है तु हारी िनगाह
पथरायी हई ह और तम ु इस तरह वासना मेरी ओर फक देते हो, जैसे तम ु िकसी पालतू िब ली को
पावरोटी का टुकड़ा दे रहे हो
म जानती हँ िक हम दोन के स ब ध क उ णता ख म हो गयी है अब तु हारे मन म महज
एक तरस है, एक कृत ता है, और कपरू , वह म वीकार नह कर सकँ ू गी मा करना, मेरा
भी वािभमान है
लेिकन मने कह िदया िक म तम ु से िछपाऊँगी नह ! तमु इस म म कभी मत रहना िक मने तु ह
यार िकया था पहले म भी यही सोचती थी कल मझ ु े लगा िक मने अपने को आज तक
धोखा िदया था मने इधर तु हारी िख नता के बाद अपने जीवन पर बहत सोचा, तो मझ ु े लगा
िक यार जैसी थायी और गहरी भावना शायद मेरे जैसे रं गीन बिहमख ु वभावशाली के िलए है
ही नह यार जैसी ग भीर और खतरनाक तफ ू ानी भावना को अपने क ध पर ढोने का
खतरा देवता या बुि हीन ही उठा सकते ह-तम ु उसे वहन कर सकते हो (कर रहे हो यार क
िति या भी यार क ही प रचायक है कपरू ), मेरे िलए आँसुओ ं क लहर म डूब जाना स भव
नह या तो यार आदमी को बादल क ऊँचाई तक उठा ले जाता है, या वग से पाताल म फक
देता है लेिकन कुछ ाणी ह, जो न वग के ह न नरक के, वे दोन लोक के बीच म अ धकार
क परत म भटकते रहते ह वे िकसी को यार नह करते, छायाओं को पकड़ने का यास
करते ह, या शायद यार करते ह या िनर तर नयी अनुभिू तय के पीछे दीवाने रहते ह और यार
िब कुल करते ही नह उनको न दु:ख होता है न सुख, उनक दुिनया म केवल संशय,
अि थरता और यास होती है...कपरू , म उसी अभागे लोक क एक यासी आ मा थी अपने
एका त से घबराकर तु ह अपने बाहपाश म बाँधकर तु हारे िव ास को वग से ख च लायी
थी तम ु वग- देवता, भलू कर मेरे अिभश लोक म आ गये थे
आज मालम ू होता है िक िफर तु हारे िव ास ने तु ह पुकारा है म अपनी यास म खुद धधक
उठूँ, लेिकन तु ह मने अपना िम माना था तम ु पर म आँच नह आने देना चाहती तम ु मेरे
यो य नह , तम ु अपने िव ास के लोक म लौट जाओ
म जानती हँ तम ु मेरे िलए िचि तत हो लेिकन मने अपना रा ता िनि त कर िलया है ी
िबना पु ष के आ य के नह रह सकती उस अभागी को जैसे कृित ने कोई अिभशाप दे िदया
है ...म थक गयी हँ इस ेमलोक क भटकन से ...म अपने पित के पास जा रही हँ वे मा
कर दगे, मझ ु े िव ास है
उ ह के पास य जा रही हँ ? इसिलए मेरे िम , िक म अब सोच रही हँ िक ी वाधीन नह रह
सकती उसके पास प नी व के िसवा कोई चारा नह जहाँ जरा वाधीन हई िक बस उसी
अ धकूप म जा पड़ती है जहाँ म थी वह अपना शरीर भी खोकर तिृ नह पाती िफर यार से
तो मेरा िव ास जैसे उठा जा रहा है, यार थायी नह होता म ईसाई हँ , पर सभी अनुभव के
बाद मझ ु े पता लगता है िक िह दुओ ं के यहाँ ेम नह वरन धम और सामािजक प रि थितय के
आधार पर िववाह क रीित बहत वै ािनक और नारी के िलए सबसे यादा लाभदायक है उसम
नारी को थोड़ा ब धन चाहे य न हो लेिकन दािय व रहता है, स तोष रहता है, वह अपने घर
क रानी रहती है काश िक तम ु समझ पाते िक खुले आकाश म इधर-उधर भटकने के बाद,
तफ ू ान से लड़ने के बाद म िकतनी आतरु हो उठी हँ ब धन के िलए, और िकसी सश डाल पर
बने हए सुखद, सुकोमल नीड़ म बसेरा लेने के िलए िजस नीड़ को म इतने िदन पहले उजाड़
चुक थी, आज वह िफर मझ ु े पुकार रहा है हर नारी के जीवन म यह ण आता है और शायद
इसीिलए िह दू ेम के बजाय िववाह को अिधक मह व देते ह
म तु हारे पास नह क म जानती थी िक हम दोन के स ब ध म ार भ से इतनी
िविच ताएँ थ िक हम दोन का स ब ध थायी नह रह सकता था, िफर भी िजन ण म हम
दोन एक ही तफ ू ान म फँस गये थे, वे ण मेरे िलए अमू य िनिध रहगे तम ु बुरा न मानना
म तम ु से जरा भी नाराज नह हँ म न अपने को गन ु हगार मानती हँ , न तु ह, िफर भी अगर
तमु मेरी सलाह मान सको तो मान लेना िकसी अ छी-सी सीधी-सादी िह दू लड़क से अपना
िववाह कर लेना िकसी बहत बौि क लड़क , जो तु ह यार करने का दम भरती हो, उसके
फ दे म न फँसना कपरू , म उ और अनुभव दोन म तम ु से बड़ी हँ िववाह म भावना या
आकषण अकसर जहर िबखे र देता है याह करने के बाद एक-आध महीने के िलए अपनी
प नी सिहत मेरे पास ज र आना, कपरू म उसे देखकर वह स तोष पा लँग ू ी, जो हमारी
स यता ने हम अभाग से छीन िलया है
अभी म साल भर तक तम ु से नह िमलँग ू ी मझ ु े तम
ु से अब भी डर लगता है लेिकन इस बीच म
तम ु बट का खयाल रखना कभी-कभी उसे देख लेना पये क कमी तो उसे न होगी
बीवी भी उसे ऐसी िमल गयी है, िजसने उसे ठीक कर िदया है...उस अभागे भाई से अलग होते हए
ु े कैसा लग रहा है, यह तम
मझ ु जानते, अगर तम ु बहन होते
अगला प तु ह तभी िलखँग ू ी जब मेरे पित से मेरा समझौता हो जाएगा...नाराज तो नह हो?
- िमला िड ू ज ”
च दर प मी को लौटाने नह गया कॉलेज भी नह गया एक ल बा-सा खत िबनती को
िलखता रहा और इसक ितिलिप कर दोन न थी कर भे ज िदये और उसके बाद थककर सो
गया...िबना खाना खाये!
तत
ृ ीय ख ड

39

गिमय क छु याँ हो गयी थ और च दर छु याँ िबताने िद ली गया था सुधा भी आयी हई


थी लेिकन च दर और सुधा म बोलचाल नह थी एक िदन शाम के व डॉ टर साहब ने
च दर से कहा, “च दर, सुधा इधर बहत अनमनी रहती है, जाओ इसे कह घुमा लाओ ” च दर
बड़ी मिु कल से राजी हआ दोन पहले कनॉट लेस पहँ चे सुधा ने बहत फ क और टूटती
हई आवाज म कहा, “यहाँ बहत भीड़ है, मेरी तबीयत घबराती है ” च दर ने कार घुमा दी शहर
से बाहर रोहतक क सड़क पर, िद ली से प ह मील दरू च दर ने एक बहत हरी-भरी जगह
म कार रोक दी िकसी बहत पुराने पीर का टूटा-फूटा मजार था और क के चबत ू रे को फोडक़र
एक नीम का पे ड़ उग आया था चबत ू रे के दो-तीन प थर िगर गये थे चार-पाँच नीम के पे ड़
लगे थे और क के प थर के पास एक िचराग बुझा हआ पड़ा था और कई एक सख ू ी हई फूल-
मालाएँ हवा से उड़कर नीचे िगर गयी थ क के आस-पास ढे र नीम के ितनके और सख ू े हए
नीम के फूल जमा थे
सुधा जाकर चबत ू रे पर बैठ गयी दरू -दरू तक स नाटा था न आदमी न आदमजाद िसफ
गोधिू ल के अलसाते हए झ क म नीम चरमरा उठते थे च दर आकर सुधा क दस ू री ओर बैठ
गया चबत ू रे पर इस ओर सुधा और उस ओर च दर, बीच म िचर-नीरव क ...
सुधा थोड़ी देर बाद मड़ ु ी और च दर क ओर देखा च दर एकटक क क ओर देख रहा था
सुधा ने एक सख ू ा हार उठाया और च दर पर फककर कहा, “च दर, या हमेशा मझ ु े इसी
भयानक नरक म रखोगे? या सचमच ु हमेशा के िलए तु हारा यार खो िदया है मने ?”
“मेरा यार?” च दर हँ सा, उसक हँ सी उस स नाटे से भी यादा भयंकर थी...”मेरा यार! अ छी
याद िदलायी तम ु ने ! म आज यार म िव ास नह करता या यह कहँ िक यार के उस प म
िव ास नह करता!”
“िफर?”
“िफर या, उस समय मेरे मन म यार का मतलब था याग, क पना, आदश आज म समझ
चुका हँ िक यह सब झठ ू ी बात ह, खोखले सपने ह!”
“तब?”
“तब! आज म िव ास करता हँ िक यार के माने िसफ एक है; शरीर का स ब ध! कम-से-कम
औरत के िलए औरत बड़ी बात करे गी, आ मा, पुनज म, परलोक का िमलन, लेिकन उसक
िसि िसफ शरीर म है और वह अपने यार क मंिजल पार कर पु ष को अ त म एक ही चीज
देती है-अपना शरीर म तो अब यह िव ास करता हँ सुधा िक वही औरत मझ ु े यार करती है जो
मझु े शरीर दे सकती है बस, इसके अलावा यार का कोई प अब मेरे भा य म नह ” च दर
क आँख म कुछ धधक रहा था...सुधा उठी, और च दर के पास खड़ी हो गयी-”च दर, तम ु भी
एक िदन ऐसे हो जाओगे, इसक मझ ु े कभी उ मीद नह थी काश िक तम ु समझ पाते िक...”
सुधा ने बहत दद भरे वर म कहा
“ ने ह है!” च दर ठठाकर हँ स पड़ा-और उसने सुधा क ओर मड ु क़र कहा, “और अगर म उस
ने ह का माण माँगँ ू तो? सुधा!” दाँत पीसकर च दर बोला, “अगर तम ु से तु हारा शरीर माँगँ ू
तो?”
“च दर!” सुधा चीखकर पीछे हट गयी च दर उठा और पागल क तरह उसने सुधा को पकड़
िलया, “यहाँ कोई नह है-िसवा इस क के तम ु या कर सकती हो? बहत िदन से मन म एक
आग सुलग रही है आज तु ह बबाद कर दँू तो मन क नारक य वेदना बुझ जाए....बोलो!”
उसने अपनी आँख क िपघली हई आग सुधा क आँख म भरकर कहा
सुधा ण-भर सहमी-पथरायी ि से च दर क ओर देखती रही िफर सहसा िशिथल पड़ गयी
और बोली, “च दर, म िकसी क प नी हँ यह ज म उनका है यह माँग का िस दरू उनका
है इस शरीर का शंग ृ ार उनका है मझ ु गला घ टकर मार डालो मने तु ह बहत तकलीफ दी
है लेिकन...”
“लेिकन...” च दर हँ सा और सुधा को छोड़ िदया, “म तु ह ने ह करती हँ , लेिकन यह ज म
उनका है यह शरीर उनका है-ह:! ह:! या अ दाज ह वंचना के जाओ सुधा...म तम ु से
मजाक कर रहा था तु हारे इस जठ ू े तन म रखा या है?”
सुधा अलग हटकर खड़ी हो गयी उसक आँख से िचनगा रयाँ झरने लग , “च दर, तम ु
जानवर हो गये; म आज िकतनी शिम दा हँ इसम मेरा कसरू है, च दर! म अपने को दंड दँग ू ी,
च दर! म मर जाऊँगी! लेिकन तु ह इंसान बनना पड़े गा, च दर!” और सुधा ने अपना िसर एक
टूटे हए ख भे पर पटक िदया
च दर क आँख खुल गयी, वह थोड़ी देर तक सपने पर सोचता रहा िफर उठा बहत अजब-
सा मन था उसका बहत परािजत, बहत खोया हआ-सा, बेहद िखिसयाहट से भरा हआ था
उसके मन म एकाएक खयाल आया िक वह िकसी मनोरं जन म जाकर अपने को डुबो दे-बहत
िदन से उसने िसने मा नह देखा था उन िदन बनाड शॉ का 'सीजर ऐंड ि लयोपे ा' लगा
हआ था, उसने सोचा िक प मी क िम ता का प रपाक िसने मा म हआ था, उसका अ त भी वह
िसने मा देखकर मनाएगा उसने कपड़े पहने , चार बजे से मैिटनी थी, और व हो रहा था
कपड़े पहनकर वह शीशे के सामने आकर बाल सँवारने लगा उसे लगा, शीशे म पड़ती हई
उसक छाया उससे कुछ िभ न है, उसने और गौर से देखा-छाया रह यमय ढंग से मु करा रही
थी; वह सहसा बोली-
“ या देख रहा है?” 'मख ु ड़ा या देखे दरपन म ' एक लड़क से परािजत और दस ू री से सपने
म ितिहं सा लेने का कलंक नह िदख पड़ता तझ ु े? अपनी छिव िनरख रहा है? पापी! पितत!”
कमरे क दीवार ने दोहराया-”पापी! पितत!”
च दर तड़प उठा, पागल-सा हो उठा कंघा फककर बोला, “कौन है पापी? म हँ पापी? म हँ
पितत? मझ ु े तम
ु नह समझते म िचर-पिव हँ मझ ु े कोई नह जानता ”
“कोई नह जानता! हा, हा!” ितिब ब हँ सा, “म तु हारी नस-नस जानता हँ तम ु वही हो न
िजसने आज से डे ढ़ साल पहले सपना देखा सुधा के हाथ से लेकर अमतृ बाँटने का, दुिनया को
नया स देश देकर पैग बर बनने का नया स देश! खबू नया स देश िदया मसीहा!
प मी...िबनती...सुधा...कुछ और छोक रयाँ बटोर ले च र हीन!”
“मने िकसी को नह बटोरा! जो मेरी िजंदगी म आया, अपने -आप आया, जो चला गया, उसे मने
रोका नह मेरे मन म कह भी अहम क यास नह थी, कभी भी वाथ नह था या म
चाहता तो सुधा को अपने एक इशारे से अपनी बाँह म नह बाँध सकता था!”
“शाबाश! और नह बाँध पाये तो सुधा से भी जी भरकर बदला िनकाल रहा है वह मर रही है
और तू उस पर नमक िछड़कने से बाज नह आया और आज तो उसे एका त म करने का
सपना देख अपनी पलक को देवमि दर क तरह पिव बना िलया तन ू े ! िकतनी उ नित क है
तेरी आ मा ने ! इधर आ, तेरा हाथ चम ू लँ ू ”
“चुप रहो! पराजय क इस वेला म कोई भी यं य करने से बाज नह आता म पागल हो
जाऊँगा ”
“और अभी या पागल से कम है त?ू अहं कारी पशु! तू बट से भी गया-गज ु रा है बट पागल
था, लेिकन पागल कु क तरह काटना नह जानता था तू काटना भी जानता है और अपने
भयानक पागलपन को साधना और याग भी सािबत करता रहता है द भी!”
“बस करो, अब तम ु सीमा लाँघ रहे हो ” च दर ने मिु याँ कसकर जवाब िदया
“ य , गु सा हो गये, मेरे दो त! अहं वादी इतने बड़े हो और अपनी त वीर देखकर नाराज होते
हो! आओ, तु ह आिह ते से समझाऊँ, अभागे! तू कहता है तन ू े वाथ नह िकया िवकलांग
देवता! वही वाथ है जो अपने से ऊपर नह उठ पाता! तेरे िलए अपनी एक साँस भी दस ू रे के
मन के तफ ू ान से भी यादा मह वपण ू रही है तनू े अपने मन क उपे ा के पीछे सुधा को भ ी
म झ क िदया प मी के अ व थ मन को पहचानकर भी उसके प का उपभोग करने म नह
िहचका, िबनती को यार न करते हए भी िबनती को तन ू े वीकार िकया, िफर सब का
ितर कार करता गया...और कहता है तू वाथ नह बट पागल हो लेिकन वाथ नह है ”
“ठहरो, गािलयाँ मत दो, मझ ु े समझाओ न िक मेरे जीवन-दशन म कहाँ पर गलती रही है!
गािलय से मेरा कोई समझौता नह ”
“अ छा, समझो! देखो, म यह नह कहता िक तम ु ईमानदार नह हो, तम ु शि शाली नह हो,
लेिकन तम ु अ तमखीु रहे , घोर यि वादी रहे , अहं कार त रहे अपने मन क िवकृितय को
भी तमु ने अपनी ताकत समझने क कोिशश क कोई भी जीवन-दशन सफल नह होता अगर
उसम बा यथाथ और यापक स य धपू -छाँह क तरह न िमला हो म मानता हँ िक तन ू े सुधा
के साथ ऊँचाई िनभायी, लेिकन अगर तेरे यि व को, तेरे मन को, जरा-सी ठे स पहँ चती तो तू
गमु राह हो गया होता तन ू े सुधा के ने ह का िनषेध कर िदया तन ू े िबनती क ा का
ितर कार िकया तन ू े प मी क पिव ता क ...और इसे अपनी साधना समझता है? तू याद
कर; कहाँ था तू एक वष पहले और अब कहाँ है?”
च दर ने बड़ी कातरता से ितिब ब क ओर देखा और बोला, “म जानता हँ , म गम ु राह हँ
लेिकन बेईमान नह ! तम ु मझु े य िध कार रहे हो! तम ु कोई रा ता बता दो न! एक बार उसे भी
आजमा लँ ू ”
“रा ता बताऊँ! जो रा ता तम ु ने एक बार बनाया था, उसी पर तम ु मजबत ू रह पाये? िफर या
एक के बाद दस ू रे रा ते पर चहलदमी करना चाहते हो? देखो कपरू , यान से सुनो तम ु से
शायद िकसी ने कभी कहा था, शायद बट ने कहा था िक आदमी तभी तक बड़ा रहता है जब
तक वह िनषेध करता चलता है पता नह िकस मानिसक आवेश म एक के बाद दस ू रे त व का
िव वंस और िवनाश करता चलता है हर च ान को उखाड़क फकता रहता है और तम ु ने यही
जीवन-दशन अपना िलया था, भल ू से या अपने अनजाने म ही तु हारी आ मा म एक शि
थी, एक तफ ू ान था लेिकन यह ल य था तु हारी िजंदगी म लहर उठने लग लेिकन
गहराई नह और याद रखो च दर, स य उसे िमलता है िजसक आ मा शा त और गहरी होती
है समु क गहराई क तरह समु क ऊपरी सतह क तरह जो िव ु ध और तफ ू ानी होता है,
उसके अंत म चाहे िकतनी गरज हो लेिकन स य क शा त अमतृ मयी आवाज नह होती ”
“लेिकन वह गहराई मझ ु े िमली नह ?”
“बताता हँ -घबराते य हो! देखो, तम ु म बहत बड़ा अधैय रहा है शि रही, पर धैय और ढ़ता
िब कुल नह तम ु ग भीर समु तल न बनकर एक सश लेिकन अशा त लहर बन गये जो
हर िकनारे से टकराकर उसे तोड़ने के िलए य हो उठी तम ु म ठहराव नह था साधना नह
थी! जानते हो य ? तु ह जहाँ से जरा भी तकलीफ िमली, अवरोध िमला वह से तम ु ने अपना
हाथ ख च िलया! वह तम ु भाग खड़े हए तम ु ने हमेशा उसका िनषेध िकया-पहले तम ु ने समाज
का िनषेध िकया, यि को साधना का के बनाया; िफर यि का भी िनषेध िकया अपने
िवचार म, अ तमखी ु भावनाओं म डूब गये, कम का िनषेध िकया िफर तो कम म ऐसी
भागदौड़, ऐसी िवमख ु ता शु हई िक बस! न मानवता का यार जीवन म ितफिलत कर सका,
न सुधा का प मी हो या िबनती, हरे क से तू िनि य िखलौने क तरह खे लता गया काश
िक तन ू े समाज के िलए कुछ िकया होता! सुधा के िलए कुछ िकया होता लेिकन तू कुछ न कर
पाया िजसने तझ ु े िजधर चाहा उधर उ े रत कर िदया और तू अंधे और इ छािवहीन परतं
अंधड़ क तरह उधर ही ह-ह करता हआ दौड़ गया माना मने िक समाज के आधार पर बने
जीवन-दशन म कुछ किमयाँ ह: लेिकन अंशत: ही उसे वीकार कर कुछ काम करता, माना िक
सुधा के यार से तझ ु े तकलीफ हई पर उसक मह ा के ही आधार पर तू कुछ िनमाण कर ले
जाता लेिकन तू तो जरा-से अवरोध के बहाने स पण ू का िनषेध करता गया तेरा जीवन
िनषेध क िनि यता क मानिसक िति याओं क शंख ृ ला रहा है अभागे, तन ू े हमेशा
िजंदगी का िनषेध िकया है दुिनया को वीकार करता, यथाथ को वीकार करता, िजंदगी को
वीकार करता और उसके आधार पर अपने मन को, अपने मन के यार को, अपने जीवन को
स तिु लत करता, आगे बढ़ता लेिकन तन ू े अपनी मन क गंगा को यि क छोटी-सी सीमा म
बाँध िलया, उसे एक पोखरा बना िदया, पानी सड़ गया, उसम गंध आने लगी, सुधा के यार क
सीपी िजसम स य और सफलता का मोती बन सकता था, वह मर गयी और के हए पानी म
िवकृित और वासना के क ड़े कुलबुलाने लगे शाबाश! या अमतृ पाया है तन ू े ! ध य है, अमतृ -
पु !”
“बस करो! यह यं य म नह सह सकता! म या करता!”
“कैसी लाचारी का वर है! िछः, असफल पैग बर! साधना यथाथ को वीकार करके चलती है,
उसका िनषेध करके नह हमारे यहाँ ई र को कहा गया है ने ित ने ित, इसका मतलब यह नह
िक ई र परम िनषेध व प है गलत, ने ित म 'न' तो केवल एक वण है 'इित' दो वण ह
एक िनषेध तो कम-से-कम दो वीकृितयाँ इसी अनुपात म क पना और यथाथ का सम वय
य नह िकया तन ू े ?”
“म नह समझ पाता-यह दशन मेरी समझ म नह आता!”
“देखो, इसको ऐसे समझो घबराओ मत! कैलाश ने अगर नारी के यि व को नह समझा,
सुधा क पिव ता को ितर कृत िकया, लेिकन उसने समाज के िलए कुछ तो िकया गेसू ने
अपने िववाह का िनषेध िकया, लेिकन अ तर के ित अपने यार का िनषेध तो नह िकया
अपने यि व का िनमाण िकया अपने च र का िनमाण िकया यानी गेस,ू एक लड़क से
तम
ु हार गये, िछः!”
“लेिकन म िकतना थक गया था, यह तो सोचो मन को िकतनी ऊँची-नीची घािटय से, मौत
से भी भयानक रा त से गज ु रने म और कोई होता तो मर गया होगा म िजंदा तो हँ !”
“वाह, या िजंदगी है!”
“तो या क ँ , यह रा ता छोड़ दँ?ू यह यि व तोड़ डालँ?ू ”
“िफर वही िनषेध और िव वंस क बात िछः देखो, चलने को तो गाड़ी का बैल भी रा ते पर
चलता है! लेिकन सैकड़ मील चलने के बाद भी वह गाड़ी का बैल ही बना रहता है या तम

गाड़ी के बैल बनना चाहते हो? नह कपरू ! आदमी िजंदगी का सफर तय करता है राह क
ठोकर और मस ु ीबत उसके यि व को पु ता बनाती चलती ह, उसक आ मा को प रप व
बनाती चलती ह या तमु म प रप वता आयी? नह म जानता हँ , तम ु अब मेरा भी िनषेध
करना चाहते हो तम ु मेरी आवाज को भी चुप करना चाहते हो आ म- वंचना तो तेरा पे शा
हो गया है िकतना खतरनाक है तू अब...तू मेरा भी...ितर कार...करना...चाहता...है ” और
छाया, धीरे -धीरे एक वह िब दु बनकर अ य हो गयी
च दर चुपचाप शीशे के सामने खड़ा रहा
िफर वह िसने मा नह गया
40

च दर सहसा बहत शा त हो गया एक ऐसे भोले ब चे क तरह िजसने अपराध कम िकया,


िजससे नुकसान यादा हो गया था, और िजस पर डाँट बहत पड़ी थी अपने अपराध क चे तना
से वह बोल भी नह पाता था अपना सारा दुख अपने ऊपर उतार लेना चाहता था वहाँ एक
ऐसा स नाटा था जो न िकसी को आने के िलए आमि त कर सकता था, न िकसी को जाने से
रोक सकता था वह एक ऐसा मैदान था िजस पर क सारी पगडंिडयाँ तक िमट गयी ह ; एक
ऐसी डाल थी िजस पर के सारे फूल झर गये ह , सारे घ सले उजड़ गये ह मन म उसके असीम
कंु ठा और वेदना थी, ऐसा था िक कोई उसके घाव छू ले तो वह आँसुओ ं म िबखर पड़े वह
चाहता था, वह सबसे मा माँग ले, िबनती से, प मी से, सुधा से और िफर हमेशा के िलए उनक
दुिनया से चला जाए िकतना दुख िदया था उसने सबको!
इसी मन:ि थित म एक िदन गेसू ने उसे बुलाया वह गया गेसू क अ मीजान तो सामने
आय पर गेसू ने परदे म से ही बात क गेसू ने बताया िक सुधा का खत आया है िक वह ज दी
ही आएगी, गेसू से िमलने गेसू को बहत ता जुब हआ िक च दर के पास कोई खबर य नह
आयी!
च दर जब घर पहँ चा तो कैलाश का एक खत िमला-
“ि य च दर,
बहत िदन से तु हारा कोई खत नह आया, न मेरे पास न इनके पास या नाराज हो हम दोन
से? अ छा तो लो, तु ह एक खुशखबरी सुना दँू म सां कृितक िमशन म शायद ऑ े िलया
जाऊँ डॉ टर साहब ने कोिशश कर दी है आधा पया मेरा, आधा सरकार का
तु ह भला या फुरसत िमलेगी यहाँ आने क ! म ही इ ह लेकर दो रोज के िलए आऊँगा इनक
कोई मस ु लमान सखी है वहाँ, उससे ये भी िमलना चाहती ह हमारी खाितर का इ तजाम
रखना-म 11 मई को सुबह क गाड़ी से पहँ चँग ू ा
तु हारा-कैलाश ”
सुधा के आने के पहले च दर ने घर क ओर नजर दौड़ायी िसवा ाइंग म और लॉन के
सचमच ु बाक घर इतना ग दा पड़ा था िक गेसू सच ही कह रही थी िक जैसे घर म ेत रहते
ह आदमी चाहे िजतना सफाई-पस द और सु िचपण ू य न हो, लेिकन औरत के हाथ म
जाने या जादू है िक वह घर को छूकर ही चमका देती है औरत के िबना घर क यव था
सँभल ही नह सकती सुधा और िबनती कोई भी नह थी और तीन ही महीने म बँगले का प
िबगड़ गया था
उसने सारा बँगला साफ कराया हालाँिक दो ही िदन के िलए सुधा और कैलाश आ रहे थे,
लेिकन उसने इस तरह बँगले क सफाई करायी जैसे कोई नया समारोह हो सुधा का कमरा
बहत सजा िदया था और सुधा क छत पर दो पलँग डलवा िदये थे लेिकन इन सब इंतजाम के
पीछे उतनी ही िनि य भावहीनता थी जैसे िक वह एक होटल का मैनेजर हो और दो आग तक ु
का इ तजाम कर रहा हो बस
मानसन ू के िदन म अगर कभी िकसी ने गौर िकया हो तो बा रश होने के पहले ही हवा म एक
नमी, पि य पर एक ह रयाली और मन म एक उमंग-सी छा जाती है आसमान का रं ग बतला
देता है िक बादल छाने वाले ह, बँदू रमिझमाने वाली ह जब बादल बहत नजदीक आ जाते ह,
बँदू पड़ने के पहले ही दरू पर िगरती हई बँदू क आवाज वातावरण पर छा जाती है, िजसे धुरवा
कहते ह
य - य सुधा के आने का िदन नजदीक आ रहा था, च दर के मन म हवाएँ करवट बदलने लग
गयी थ मन म उदास सुनसान म धुरवा उमड़ने -घुमड़ने लगा था मन उदास सुनसान
आकुल ती ा म बेचन ै हो उठा था च दर अपने को समझ नह पा रहा था नस म एक
अजीब-सी घबराहट मचलने लगी थी, िजसका वह िव े षण नह करना चाहता था उसका
यि व अब पता नह य कुछ भयभीत-सा था
इ तहान ख म हो रहे थे, और जब मन क बेचन ै ी बहत बढ़ जाती थी तो परी क क आदत के
मत ु ािबक वह कािपयाँ जाँचने बैठ जाता था िजस समय परी क के घर म पा रवा रक कलह
हो, मन म अंत हो या िदमाग म िफतरू हो, उस समय उ ह कॉिपयाँ जाँचने से अ छा
शरण थल नह िमलता अपने जीवन क परी ा म फेल हो जाने क खीझ उतारने के िलए
लडक़ को फेल करने के अलावा कोई अ छा रा ता ही नह है च दर जब बेहद दु:खी होता तो
वह कॉिपयाँ जाँचता
िजस िदन सुबह सुधा आ रही थी, उस रात को तो च दर का मन िब कुल बेकाब-ू सा हो गया
लगता था जैसे उसने सोचने -िवचाने से ही इनकार कर िदया हो उस िदन च दर एक ण को
भी अकेला न रहकर भीड़-भाड़ म खो जाना चाहता था सुबह वह गंगा नहाने गया, कार
लेकर कॉलेज से लौटकर दोपहर को अपने एक िम के यहाँ चला गया लौटकर आया तो
नहाकर एक िकताब क दुकान पर चला गया और शाम होने तक वह खड़ा-खड़ा िकताब
उलटता और खरीदता रहा वहाँ उसने िबस रया का गीत-सं ह देखा जो 'िबनती' नाम बदल
उसने 'िव लव' नाम से छपवा िलया था और मख ु गितशील किव बन गया था उसने वह
सं ह भी खरीद िलया
अब सुधा के आने म मिु कल से बारह घंटे क देर थी उसक तबीयत बहत घबराने लगी थी
और वह िबस रया के का य-सं ह म डूब गया उन सड़े हए गीत म ही अपने को भुलाने क
कोिशश करने लगा और अ त म उसने अपने को इतना थका डाला िक तीन बजे का अलाम
लगाकर वह सो गया सुधा क गाड़ी साढ़े चार बजे आती थी
जब वह जागा तो रात अपने मखमली पंख पसारे न द म डूबी हई दुिनया पर शाि त का
आशीवाद िबखे र रही थी ठं डे झ के लहरा रहे थे और उन झ क पर पिव ता छायी हई थी यह
पछुआ के झ के थे ा महु त म ाचीन आय ने जो रह य पाया था, वह धीरे -धीरे च दर क
आँख के सामने खुलने -सा लगा उसे लगा जैसे यह उसके यि व क नयी सुबह है एक
बड़ा शा त संगीत उसक पलक पर ओस क तरह िथरकने लगा
ि ितज के पास एक बड़ा-सा िसतारा जगमगा रहा था! च दर को लगा जैसे यह उसके यार का
िसतारा है जो जाने िकस अ ात पाताल म डूब गया था और आज से वह िफर उग गया है उसने
एक अ धिव ासी भोले ब चे क तरह उस िसतारे को हाथ जोडक़र कहा, “मेरी कंचन जैसी
सुधा रानी के यार, तम ु कहाँ खो गये थे? तम ु मेरे सामने नह रहे , म जाने िकन तफ ू ान म
उलझ गया था मेरी आ मा म सारी गु ता सुधा के यार क थी उसे मने खो िदया उसके
बाद मेरी आ मा पीले प े क तरह तफ ू ान म उड़कर जाने िकस क चड़ म फँस गयी थी तम ु
मेरी सुधा के यार हो न! मने तु ह सुधा क भोली आँख म जगमगाते हए देखा था वेदमं -
जैसे इस पिव सुबह म आज िफर मेरे पाप म िल तन को अमतृ से धोने आये हो म िव ास
िदलाता हँ िक आज सुधा के चरण पर अपने जीवन के सारे गन ु ाह को चढ़ाकर हमेशा के िलए
मा माँग लँगू ा लेिकन मेरी साँस क साँस सुधा! मझ ु े मा कर दोगी न?” और िविच -से
भावावेश और पुलक से उसक आँख म आँसू आ गये उसे याद आया िक एक िदन सुधा ने
उसक हथेिलय को होठ से लगाकर कहा था-जाओ, आज तम ु सुधा के पश से पिव हो...काश
िक आज भी सुधा अपने िमसरी-जैसे होठ से च दर क आ मा को चम ू कर कहे -जाओ च दर,
अभी तक िजंदगी के तफ ू ान ने तु हारी आ मा को बीमार, अपिव कर िदया था...आज से तम ु
वही च दर हो अपनी सुधा के च दर ह रणी-जैसी भोली-भाली सुधा के महान पिव
च दर...
41

तैयार होकर च दर जब टे शन पहँ चा तो वह जैसे मोहािव -सा था जैसे वह िकसी जादू या


टोना पढ़ा-हआ-सा घम ू रहा था और वह जादू था सुधा के यार का पुनरावतन
गाड़ी घंटा-भर लेट थी च दर को एक पल काटना मिु कल हो रहा था अ त म िसगनल
डाउन हआ कुिलय म हलचल मची और च दर पटरी पर झक ु कर देखने लगा सुबह हो गयी
थी और इंजन दरू पर एक काले दाग-सा िदखाई पड़ रहा था, धीरे -धीरे वह दाग बड़ा होने लगा
और ल बी-सी हरी पँछ ू क तरह लहराती हई े न आती िदखाई पड़ी च दर के मन म आया,
वह पागल क तरह दौड़कर वहाँ पहँ च जाए िजस िदन एक घोर अिव ासी म िव ास जाग
जाता है, उस िदन वह पागल-सा हो उठता है उसे लग रहा था जैसे इस गाड़ी म सभी िड बे
खाली ह िसफ एक िड बे म अकेली सुधा होगी जो आते ही च दर को अपनी यार-भरी
िनगाह म समेट लेगी
गाड़ी के लेटफाम पर आते ही हलचल बढ़ गयी कुिलय क दौड़धपू , मस ु ािफर क हड़बड़ी,
सामान क उठा-धरी से लेटफॉम भर गया च दर पागल -सा इस सब भीड़ को चीरकर िड बे
देखने लगा एक दफे परू ी गाड़ी का च कर लगा गया कह भी सुधा नह िदखाई दी जैसे
आँसू से उसका गला ँ धने लगा या आये नह ये लोग! िक मत िकतना यं य करती है
उससे! आज जब वह िकसी के चरण पर अपनी आ मा उ सग कर िफर पिव होना चाहता था
तो सुधा ही नह आयी उसने एक च कर और लगाया और िनराश होकर लौट पड़ा सहसा
सेकड लास के एक छोटे -से िड बे म से कैलाश ने झाँककर कहा, “कपरू !”
च दर मड़ ु ा, देखा िक कैलाश झाँक रहा है एक कुली सामान उतारकर खड़ा है सुधा नह
है
जैसे िकसी ने झ के से उसके मन का दीप बुझा िदया सामान बहत थोड़ा-सा था वह िड बे म
चढक़र बोला, “सुधा नह आयी?”
“आयी ह, देखो न! कुछ तबीयत खराब हो गयी है जी िमतला रहा है ” और उसने बाथ म
क ओर इशारा कर िदया सुधा बाथ म म बगल म लोटा रखे िसर झक ु ाये बैठी थी-”देखो!
देखती हो?” कैलाश बोला, “देखो, कपरू आ गया ” सुधा ने देखा और मिु कल से हाथ जोड़
पायी होगी िक उसे िमतली आ गयी...कैलाश दौड़ा और उसक पीठ पर हाथ फेरने लगा और
च दर से बोला-”पंखा लाओ!” च दर हत भ था उसके मन ने सपना देखा था...सुधा िसतार
क तरह जगमगा रही होगी और अपनी रोशनी क बाँह म च दर के ाण को सुला देगी
जादगू रनी क तरह अपने यार के पंख से च दर क आ मा के दाग प छ देगी लेिकन यथाथ
कुछ और था सुधा जादग ू रनी, आ मा क रानी, पिव ता क सा ा ी सुधा, बाथ म म बैठी है
और उसका पित उसे सा वना दे रहा था
“ या कर रहे हो, च दर!...पंखा उठाओ ज दी से ” कैलाश ने य ता से कहा च दर च क
उठा और जाकर पंखा झलने लगा थोड़ी देर बाद महँु धोकर सुधा उठी और कराहती हई-सी
जाकर सीट पर बैठ गयी कैलाश ने एक तिकया पीछे लगा िदया और वह आँख ब द करके
लेट गयी
च दर ने अब सुधा को देखा सुधा उजड़ चुक थी उसका रस मर चुका था वह अपने यौवन
और प, चंचलता और िमठास क एक जद छाया मा रह गयी थी चे हरा दुबला पड़ गया था
और हड्िडयाँ िनकल आयी थ चे हरा दुबला होने से लगता था आँख फटी पड़ती ह वह
चुपचाप आँख ब द िकये पड़ी थी च दर पंखा हाँक रहा था, कैलाश एक सटू केस खोलकर
दवा िनकाल रहा था गाड़ी यह आकर क जाती है, इसिलए कोई ज दी नह थी कैलाश ने
दवा दी सुधा ने दवा पी और िफर उदास, बहत बारीक, बहत बीमार वर म बोली, “च दर,
अ छे तो हो! इतने दुबले कैसे लगते हो? अब कौन तु हारे खाने -पीने क परवा करता होगा!”
सुधा ने एक गहरी साँस ली कैलाश िब तर लपे ट रहा था
“तु ह या हो गया है, सुधा?”
“मझु े सुख-रोग हो गया है!” सुधा बहत ीण हँ सी हँ सकर बोली, “बहत सुख म रहने से ऐसा ही
हो जाता है ”
च दर चुप हो गया कैलाश ने िब तर कुली को देते हए कहा, “इ ह ने तो बीमारी के मारे हम
लोग को परे शान कर रखा है जाने बीमा रय को या महु बत है इनसे! चलो उठो ” सुधा
उठी
कार पर सुधा के साथ पीछे सामान रख िदया गया और आगे कैलाश और च दर बैठे कैलाश
बोला, “च दर, तम ु बहत धीमे ाइव करना वरना इ ह च कर आने लगेगा...” कार चल दी
च दर कैलाश क िवदेश-या ा और कैलाश च दर के कॉलेज के बारे म बात करते रहे मिु कल
से घर तक कार पहँ ची होगी िक कैलाश बोला, “यार च दर, तु ह तकलीफ तो होगी लेिकन एक
िदन के िलए कार तम ु मझु े दे सकते हो?”
“ य ?”
“मझ ु े जरा रीवाँ तक बहत ज री काम से जाना है, वहाँ कुछ लोग से िमलना है, कल दोपहर
तक म चला आऊँगा ”
“इसके मतलब मेरे पास नह रहोगे एक िदन भी?”
“नह , इ ह छोड़ जाऊँगा लौटकर िदन-भर रहँ गा ”
“इ ह छोड़ जाओगे? नह भाई, तम ु जानते हो िक आजकल घर म कोई नह है ” च दर ने कुछ
घबराकर कहा
“तो या हआ, तम ु तो हो!” कैलाश बोला और च दर के चे हरे क घबराहट देखकर हँ सकर
बोला, “अरे यार, अब तम ु पर इतना अिव ास नह है अिव ास करना होता तो याह के पहले
ही कर लेते ”
च दर मु करा उठा, कैलाश ने च दर के क धे पर हाथ रखकर धीमे से कहा तािक सुधा न सुन
पाये-”वैसे चाहे मझ ु े कुछ भी अस तोष य न हो, लेिकन इनका च र तो सोने का है, यह म
खबू परख चुका हँ इनका ऐसा च र बनाने के िलए तो म तु ह बधाई दँग ू ा, च दर! और िफर
आज के युग म!”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया
कार पोिटको म लगी सुधा, कैलाश, च दर उतरे माली और नौकर दौड़ आये, सुधा ने उन
सबसे उनका हाल पछ ू ा अ दर जाते ही महरािजन दौडक़र सुधा से िलपट गयी सुधा को
बहत दुलार िकया
कैलाश महँु -हाथ धो चुका था, नहाने चला गया महरािजन चाय बनाने लगी सुधा भी महँु -
हाथ धोने और नहाने चली गयी कैलाश तौिलया लपे टे नहाकर आया और बैठ गया बोला,
“आज और कल क छु ी ले लो, च दर! इनक तबीयत ठीक नह है और मझ ु े जाना ज री है!”
“अ छा, लेिकन आज तो जाकर हािजरी देना ज री होगा िफर लौट आऊँगा!” महरािजन चाय
और ना ता ले आयी कैलाश ने ना ता लौटा िदया तो महरािजन बोली, “वाह, दामाद हइके
अकेली चाय पीबो भइया, अबिहन डॉ टर साहब सुिनह तो का किहह ”
“नह माँजी, मेरा पे ट ठीक नह है दो िदन के जागरण से आ रहा हँ िफर लौटकर खाऊँगा
लो च दर, चाय िपयो ”
“सुधा को आने दो!” च दर बोला
“वह पज ू ा-पाठ करके खाती ह ”
“पज ू ा-पाठ!” च दर दंग रह गया, “सुधा पज ू ा-पाठ करने लगी?”
“हाँ भाई, तभी तो हमारी माताजी अपनी बह पर मरती ह असल म वह पज ू ा-पाठ करती थ
शु आत क इ ह ने पज ू ा के बरतन धोने से और अब तो उनसे भी यादा प क पुजा रन बन
गयी ह ” कैलाश ने इधर-उधर देखा और बोला, “यार, यह मत समझना म सुधा क िशकायत
कर रहा हँ , लेिकन तम ु लोग ने मझ ु े ठीक नह चुना!”
“ य ?” च दर कैलाश के यवहार पर मु ध था
“इन जैसी लड़िकय के िलए तम ु कोई किव या कलाकार या भावुक लड़काढूँढ़ते तो ठीक था
मेरे जैसा यावहा रक और नीरस राजनीितक इनके उपयु नह है घर भर इनसे बेहद खुश
है जब से ये गयी ह, माँ और शंकर भइया दोन ने मझ ु े नालायक करार दे िदया है इ ह से
पछू कर सब करते ह, लेिकन मने जो सोच रखा था, वह मझ ु े नह िमल पाया!”
“ य , या बात है?” च दर ने पछ ू ा, “गलती बताओ तो हम इ ह समझाएँ ”
“नह , देखो गलत मत समझो म यह नह कहता िक इनक गलती है यह तो गलत चुनाव
क बात है ” कैलाश बोला, “न इसम मेरा कसरू , न इनका! म चाहता था कोई लड़क जो मेरे
साथ राजनीित का काम करती, मेरी सबलता और दुबलता दोन क संिगनी होती इसीिलए
इतनी पढ़ी-िलखी लड़क से शादी क लेिकन इ ह धम और सािह य म िजतनी िच है, उतनी
राजनीित से नह इसिलए मेरे यि व को हण भी नह कर पाय वैसे मेरी शारी रक
यास को इ ह ने चाहे समपण िकया, वह भी एक बेमनी से, उससे तन क यास भले ही बुझ
जाती हो कपरू , लेिकन मन तो यासा ही रहता है...बुरा न मानना म बहत प बात करता
हँ तम ु से िछपाना या?...और वा य के मामले म ये इतनी लापरवाह ह िक म बहत दु:खी
रहता हँ ” इतने म सुधा नहाकर आती हई िदख पड़ी कैलाश चुप हो गया सुधा क ओर
देखकर बोला, “मेरी अटैची भी ठीक कर दो म अभी चला जाऊँ वरना दोपहर म तपना
होगा ” सुधा चली गयी सुधा के जाते ही कैलाश बोला, “भरसक म इ ह दु:खी नह होने
देता, हाँ, अकसर ये दुखी हो जाती ह; लेिकन म या क ँ , यह मेरी मजबरू ी है, वैसे म इ ह
भरसक सुखी रखने का यास करता हँ ...और ये भी जायज-नाजायज हर इ छा के सामने झक ु
जाती ह, लेिकन इनके िदल म मेरे िलए कोई जगह नह है, वह जो एक प नी के मन म होती
है लेिकन खैर, िजंदगी चलती जा रही है अब तो जैसे हो िनभाना ही है!”
इतने म सुधा आयी और बोली, “देिखए, अटैची सँवार दी है, आप भी देख लीिजए...” कैलाश
उठकर चला गया च दर बैठा-बैठा सोचने लगा-कैलाश िकतना अ छा है, िकतना साफ और
व छ िदल का है! लेिकन सुधा ने अपने को िकस तरह िमटा डाला...
इतने म सुधा आयी और च दर से बोली, “च दर! चलो, वो बुला रहे ह!”
च दर चुपचाप उठा और अ दर गया कैलाश ने तब तक या ा के कपड़े पहन िलये थे देखते
ही बोला, “अ छा च दर, म चलता हँ कल शाम तक आ जाने क कोिशश क ँ गा हाँ देखो,
यादा घुमाना मत इनक सखी को यहाँ बुलवा लो तो अ छा ” िफर बाहर िनकलता हआ
बोला, “इनक िजद थी आने क , वरना इनक हालत आने लायक नह थी माताजी से म कह
आया हँ िक लखनऊ मेिडकल कॉलेज ले जा रहा हँ ”
कैलाश कार पर बैठ गया िफर बोला, “देखो च दर, दवा इ ह दे देना याद से, वह रखी है ”
कार टाट हो गयी
च दर लौटा बरामदे म सुधा खड़ी थी चुपचाप बुझी हई-सी च दर ने उसक ओर देखा,
उसने च दर क ओर देखा, िफर दोन ने िनगाह झक ु ा ल सुधा वह खड़ी रही च दर
ाइंग- म म जाकर िकताब वगैरह उठा लाया और कॉलेज जाने के िलए िनकला सुधा अब भी
बरामदे म खड़ी थी गम ु सुम...च दर कुछ कहना चाहता था...लेिकन या? कुछ था, जो न
जाने कब से संिचत होता आ रहा था, जो वह य करना चाहता था, लेिकन सुधा कैसी हो गयी
है! यह वह सुधा तो नह िजसके सामने वह अपने को सदा य कर देता था कभी संकोच
नह करता था, लेिकन यह सुधा कैसी है अपने म िसमटी-सकुची, अपने म बँधी-बँधायी, अपने म
इतनी िछपी हई िक लगता था दुिनया के ित इसम कह कोई खुलाव ही नह च दर के मन म
जाने िकतनी आवाज तड़प उठ लेिकन...कुछ नह बोल पाया वह बरामदे म िठठक गया,
िन े य वहाँ अपनी िकताब खोलकर देखने लगा, जैसे वह याद करना चाहता था िक कह
भलू तो नह आया है कुछ लेिकन उसके अ तमन म केवल एक ही बात थी सुधा कुछ तो
बोले यह इतना गहरा, इतनी घुटनवाला मौन, यह तो जैसे च दर के ाण पर घुटन क तरह
बैठता जा रहा था सुधा...िनवात िनवास म दीपिशखा-सी अचल, िन प द, थमे हए तफ ू ान क
तरह मौन च दर ने अ त म नोट्स िलए, घड़ी देखी और चल िदया जब वह सीढ़ी तक पहँ चा
तो सहसा सुधा क छायामिू त म हरकत हई सुधा ने पाँव के अँगठ ू े से फश पर एक लक र
ख चते हए नीचे िनगाह झक ु ाये हए कहा, “िकतनी देर म आओगे?” च दर क गया जैसे
च दर को िसतार का राज िमल गया हो सुधा भला बोली तो! लेिकन, िफर भी अपने मन का
उ लास उसने जािहर नह होने िदया, बोला, “कम-से-कम दो घंटे तो लगगे ही ”
सुधा कुछ नह बोली, चुपचाप रह गयी च दर ने दो ण ती ा क िक सुधा अब कुछ बोले
लेिकन सुधा िफर भी चुप च दर िफर मड़ ु ा ण-भर बाद सुधा ने पछ ू ा, “च दर, और ज दी
नह लौट सकते?”
ज दी! सुधा अगर कहे तो च दर जाये भी न, चाहे उसे इ तीफा देना पड़े या सुधा भलू गयी
िक च दर के यि व पर अगर िकसी का शासन है तो सुधा का! वह जो अपनी िजद से,
उछलकर, लडक़र, ठकर च दर से हमेशा मनचाहा काम करवाती रही है...आज वह इतनी
दीनता से, इतनी िवनय से, इतने अ तर और इतनी दरू ी से य कह रही है िक ज दी नह लौट
सकते? य नह वह पहले क तरह दौडक़र च दर का कॉलर पकड़ लेती और मचलकर कहती,
'ए, अगर ज दी नह लौटे तो...' लेिकन अब तो सुधा बरामदे म खड़ी होकर ग भीर-सी, डूबती
हई-सी आवाज म पछ ू रही है-ज दी नह लौट सकते! च दर का मन टूट गया च दर क उमंग
च ान से टकराकर िबखर गयी...उसने बहत भारी-सी आवाज म पछ ू ा, “ य ?”
“ज दी लौट आते तो पज ू ा करके तु हारे साथ ना ता कर लेते! लेिकन अगर यादा काम हो तो
रहने दो, मेरी वजह से हरज मत करना!” उसने उसे ठ डे , िश और भावहीन वर म कहा
हाय सुधा! अगर तम ु जानती होती िक महीन उद् ा त च दर का टूटा और यासा मन तम ु से
पुराने ने ह क एक बँदू के िलए तरस उठा है तो भी या तम ु इसी दरू ी से बात करती! काश, िक
तमु समझ पाती िक च दर ने अगर तम ु से कुछ दरू ी भी िनभायी है तो उससे खुद च दर िकतना
िबखर गया है च दर ने अपना देव व खो िदया है, अपना सुख खो िदया है, अपने को बबाद
कर िदया है और िफर भी च दर के बाहर से शा त और सुगिठत िदखने वाले दय के अ दर
तु हारे यार क िकतनी गहरी यास धधक रही है, उसके रोम-रोम म िकतनी जहरीली त ृ णा क
िबजिलयाँ क ध रही ह, तम ु से अलग होने के बाद अतिृ का िकतना बड़ा रा ता उसने आग क
लपट म झल ु सते हए िबताया है अगर तम ु इसे समझ लेती तो तम ु च दर को एक बार दुलारकर
उसके जलते हए ाण पर अमतृ क चाँदनी िबखे रने के िलए य हो उठती; लेिकन सुधा, तम ु ने
अपने बा िव ोह को ही समझा, तम ु ने उस ग भीर यार को समझा ही नह जो इस बाहरी
िव ोह, इस बाहरी िव वंस के मल ू म पयि वनी क पावन धारा क तरह बहता जा रहा है सुधा,
अगर तम ु एक ण के िलए इसे समझ लो...एक ण-भर के िलए च दर को पहले क तरह दुलार
लो, बहला लो, ठ लो, मना लो तो सुधा च दर क जलती हई आ मा, नरक िचताओं म िफर से
अपना गौरव पा ले, िफर से अपनी खोयी हई पिव ता जीत ले, िफर से अपना िव मतृ देव व लौटा
ले...लेिकन सुधा, तम ु बरामदे म चुपचाप खड़ी इस तरह क बात कर रही हो जैसे च दर कोई
अप रिचत हो सुधा, यह या हो गया है तु ह? च दर, िबनती, प मी सभी क िजंदगी म जो
भयंकर तफ ू ान आ गया है, िजसने सभी को झकझोर कर थका डाला है, इसका समाधान िसफ
तु हारे यार म था, िसफ तु हारी आ मा म था, लेिकन अगर तम ु ने इनके च र का अ तिनिहत
स य न देखकर बाहरी िव वंस से ही अपना आगे का यवहार िनि त कर िलया तो कौन इ ह
इस च वात से ख च िनकालेगा! या ये अभागे इसी च वात म फँसकर चरू हो जाएँ गे...सुधा...
लेिकन सुधा और कुछ नह बोली च दर चल िदया जाकर लगा जैसे कॉलेज के परी ा
भवन म जाना भी भारी मालम ू दे रहा था वह ज दी ही भाग आया
हालाँिक सुधा के यवहार ने उसका मन जैसे तोड़-सा िदया था, िफर भी जाने य वह अब आज
सुधा को एक काशव ृ बनकर लपे ट लेना चाहता था
42

जब च दर लौट आया तो उसने देखा-सुधा तो उसी के कमरे म है उसने उसके कमरे के एक


कोने म दरी हटा दी है, वहाँ पानी िछड़क िदया और एक कुश के आसन पर सामने चौक पर
कोई पोथी धरे बैठी है चौक पर एक े त व िबछाकर धपू दानी रख दी है िजसम धपू सुलग
रही है लॉन से शायद कूछ फूल तोड़ लायी थी जो धपू दानी के पास रखे हए थे बगल म एक
ा क माला रखी थी एक शु े त रे शम क धोती और केवल एक चोली पहने हए प ले
से बाँह तक ढँके हए वह एका मनोयोग से थ का पारायण कर रही थी धपू दानी से धू -
रे खाएँ मचलती हई ं, लहराती हई ं, उसके कपोल पर झल ू ती हई ं सख
ू ी- खी अलक से उलझ रही
थ उसने नहाकर केश बाँधे नह थे...च दर ने जत ू े बाहर ही उतार िदये और चुपचाप पलँग पर
बैठकर सुधा को देखने लगा सुधा ने िसफ एक बार बहत शा त, बहत गहरी आकाश-जैसी
व छ िनगाह से च दर को देखा और िफर पढऩे लगी सुधा के चार ओर एक िविच -सा
वातावरण था, एक अपािथव विगक योित के रे श से बुना हआ झीना काश उस पर छाया हआ
था गले म पड़ा हआ आँचल, पीठ पर िबखरे हए सुनहले बाल, अपना सबकुछ खोकर िवरि
म िख न सुहाग पर छाये हए वैध य क तरह सुधा लग रही थी माँग सन ू ी थी, माथे पर रोली
का एक बड़ा-सा टीका था और चे हरे पर वग के मरु झाये हए फूल क घुलती हई उदासी, जैसे
िकसी ने चाँदनी पर हरिसंगार के पीले फूल छ टे दे िदये ह
थोड़ी देर तक सुधा प वर म पढ़ती रही उसके बाद उसने पोथी ब द कर रख दी उसके
बाद आँख ब द कर जाने िकस अ ात देवता को हाथ जोडक़र नम कार िकया...िफर उठ खड़ी
हई और फश पर च दर के पास बैठ गयी आँचल कमर म ख स िलया और िबना िसर उठाये
बोली, “चलो, ना ता कर लो!”
“यह ले आओ!” च दर बोला सुधा उठी और ना ता ले आयी च दर ने उठाकर एक टुकड़ा
महँु म रख िलया लेिकन जब सुधा उसी तरह फश पर चुपचाप बैठी रही तो च दर ने कहा,
“तम ु भी खाओ!”
“म!” वह एक फ क हँ सी हँ सकर बोली, “म खा लँ ू तो अभी कै हो जाये म िसवा न बू के
शरबत और िखचड़ी के अब कुछ नह खाती और वह भी एक व !”
“ य ?”
“असल म पहले मने एक त िकया, प ह िदन तक केवल ात:काल खाने का, तब से कुछ
ऐसा हो गया िक शाम को खाते ही मन िबगड़ जाता है इधर और कई रोग हो गये ह ”
च दर का मन रो आया सुधा, तम ु चुपचाप इस तरह अपने को िमटाती रह ! मान िलया च दर
ने एक खत म तु ह िलख ही िदया था िक अब प - यवहार ब द कर दो! लेिकन या अगर तम ु
प भे जत तो च दर क िह मत थी िक वह उ र न देता! अगर तम ु समझ पात िक च दर के
मन म िकतना दुख है!
च दर चाहता था िक सुधा क गोद म अपने मन क सभी बात िबखे र दे...लेिकन सुधा कहे , कुछ
िशकायत करे तो च दर अपनी सफाई दे...लेिकन सुधा तो है िक िशकायत ही नह करती, सफाई
देने का मौका ही नह देती...यह देव व क मिू त-सी पथरीली सुधा! यह च दर क सुधा तो नह !
च दर का मन बहत भर आया उसके ँ धे गले से पछ ू ा, “सुधा, तम
ु बहत बदल गयी हो खैर
और तो जो कुछ है उसके िलए अब म या कहँ , लेिकन अपनी त दु ती िबगाड़कर य तम ु
मझु े दुख दे रही हो! अब य भी मेरी िजंदगी म या रहा है! लेिकन एक ही स तोष था िक तम ु
सुखी हो लेिकन तम ु ने मझु से वह सहारा छीन िलया...पज ू ा िकसक करती हो?”
“पज ू ा कहाँ, पाठ करती हँ , च दर! गीता का और भागवत का, कभी-कभी सरू सागर का! पज ू ा
अब भला िकसक क ँ गी? मझ ु जैसी अभािगनी क पज ू ा भला वीकार कौन करे गा?”
“तब यह एक व का भोजन य ?”
“यह तो ायि है, च दर!” सुधा ने एक गहरी साँस लेकर कहा
“ ायि त...?” च दर ने अचरज से कहा
“हाँ, ायि ...” सुधा ने अपने पाँव के िबिछय को धोती के छोर से रगड़ते हए कहा, “िह दू
गहृ तो एक ऐसा जेल होता है जहाँ कैदी को उपवास करके ाण छोड़ने क भी इजाजत नह
रहती, अगर धम का बहाना न हो! धम के बहाने उपवास करके कुछ सुख िमल जाता है ”
एक ण आता है िक आदमी यार से िव ोह कर चुका है, अपने जीवन क ेरणा-मिू त क गोद
से बहत िदन तक िनवािसत रह चुका है, उसका मन पागल हो उठता है िफर से यार करने को,
बेहद यार करने को, अपने मन का दुलार फूल क तरह िबखरा देने को आज िव ोह का
तफ ू ान उतर जाने के बाद अपनी उजड़ी हई िजंदगी म बीमार सुधा को पाकर च दर का मन तड़प
उठा सुधा क पीठ पर लहराती हई सख ू ी अलक हाथ म ले ल उ ह गथ ँ ू ने का असफल यास
करते हए बोला-
“सुधा, यह तो सच है िक मने तु हारे मन को बहत दुखाया है, लेिकन तम ु तो हमारी हर बात
को, हमारे हर ोध को मा करती रही हो, इस बात का तम ु इतना बुरा मान गयी?”
“िकस बात का, च दर!” सुधा ने च दर क ओर देखकर कहा, “म िकस बात का बुरा मान
गयी!”
“िकस बात का ायि कर रही हो तम ु , इस तरह अपने को िमटाकर!”
“ ायि तो म अपनी दुबलता का कर रही हँ , च दर!”
“दुबलता?” च दर ने सुधा क अलक को घटाओं क तरह िछटकाकर कहा
“दुबलता-च दर! तु ह यान होगा, एक िदन हम लोग ने िन य िकया था िक हमारे यार क
कसौटी यह रहे गी च दर, दरू रहकर भी हम लोग ऊँचे उठगे, पिव रहगे दरू हो जाने के बाद
च दर, तु हारा यार तो मझ ु म एक ढ़ आ मा और िव ास भरता रहा, उसी के सहारे म अपने
जीवन के तफ ू ान को पार कर ले गयी; लेिकन पता नह मेरे यार म कौन-सी दुबलता रही िक
तम ु उसे हण नह कर पाये...म तम ु से कुछ नह कहती मगर अपने मन म िकतनी कुंिठत हँ
िक कह नह सकती पता नह दस ू रा ज म होता है या नह ; लेिकन इस ज म म तु ह पाकर
तु हारे चरण पर अपने को न चढ़ा पायी तु ह अपने मन क पज ू ा म यक न न िदला पायी,
इससे बढ़कर और दुभा य या होगा? म अपने यि व को िकतना गिहत, िकतना िछछला
समझने लगी हँ , च दर!”
च दर ने ना ता िखसका िदया अपनी आँख म झलकते हए आँसू को िछपाते हए चुपचाप बैठ
गया
“ना ता कर लो, च दर! इस तरह तु ह अपने पास िबठाकर िखलाने का सुख अब कहाँ नसीब
होगा! लो ” और सुधा ने अपने हाथ से उसे एक नमक न सेव िखला िदया च दर के भरे
आँसू सुधा के हाथ पर चू पड़े
“िछः, यह या, च दर!”
“कुछ नह ...” च दर ने आँसू प छ डाले
इतने म महरािजन आयी और सुधा से बोली, “िबिटया रानी! लेव ई नानखटाई हम क है से
बनाय के रख िदया रहा िक तोके िखलाइबे!”
“अ छा! हम भी महरािजन, इतने िदन से तु हारे हाथ का खाने के िलए तरस गये, तम ु चलो
हमारे साथ!”
“िहयाँ च दर भइया के कौन देखी? अब िबिटया इनहँ के याह कर देव, तो हम चली तोहरे
साथ!”
सुधा हँ स पड़ी, च दर चुपचाप बैठा रहा महरािजन िखचड़ी डालने चली गयी सुधा ने
चुपचाप नानखटाई क त तरी उठाकर एक ओर रख दी-च दर चुप, अब या बात करे ! पहले
वह दोन घंट या बात करते थे! उसे बड़ा ता जुब हआ इस व कोई बात ही नह सझ ू ती
है पहले जाने िकतना व गज ु र जाता था, दोन क बात का खा मा ही नह होता था
सुधा भी चुप थी थोड़ी देर बाद च दर बोला, “सुधी, तम ु सचमच ु पजू ा-पाठ म िव ास रखती
हो...”
“ य , करती तो हँ , च दर! हाँ, मिू त ज र नह पज ू ती, पर कृ ण को ज र पज ू ती हँ अब सभी
सहारे टूट गये, तमु ने भी मझ ु े छोड़ िदया, तब मझ ु े गीता और रामायण म बहत स तोष िमला
पहले म खुद ता जुब करती थी िक औरत इतना पज ू ा-पाठ य करती ह, िफर मने सोचा-िह दू
नारी इतनी असहाय होती है, उसे पित से, पु से, सभी से इतना लांछन, अपमान और ितर कार
िमलता है िक पज ू ा-पाठ न हो तो पशु बन जाये पज ू ा-पाठ ही ने िह दू नारी का च र अभी
तक इतना ऊँचा रखा है ”
“म तो समझता हँ यह अपने को भुलावा देना है ”
“मानती हँ च दर, लेिकन अगर कोई िह दू धम क इन िकताब को यान से पढ़े तब वह जाने ,
या है इनम! जाने िकतनी ताकत देती ह ये! अभी तक िजंदगी म मने यह सोचा है िक पु ष हो
या नारी, सभी के जीवन का एकमा स बल िव ास है, और इन थ म सभी संशय को
िमटाकर िव ास का इतना गहन उपदेश है िक मन पुलक उठता है ...म तम ु से कुछ नह
िछपाती च दर, जब िबनती के याह म तम ु ने मेरा प लौटा िदया तो म तड़प उठी एक
अिव ास मेरी नस-नस म गथ ँु गया मने समझ िलया िक तु हारी सारी बात झठ ू ी थ एक
जाने कैसी आग मझ ु े हरदम झल ु साती रहती थी! मेरा वभाव बहत िबगड़ गया था मझ ु े हरे क से
नफरत हो गयी थी हरे क पर झ ला उठती थी...िकसी बात म मझ ु े चैन नह िमलता था धीरे -
धीरे मने इन िकताब को पढऩा शु िकया मझ ु े लगने लगा िक शाि त धीरे -धीरे मेरी आ मा
पर उतर रही है मझ ु े लगा िक यह सभी थ पुकार-पुकारकर कह रहे ह-'संशया मा
िवन यित!' धीरे -धीरे मने इन बात को अपने जीवन पर घटाना शु िकया, तो मने देखा िक
सारी भि क िकताब और उनका दशन बड़ा मनोहर पक है, च दर! कृ ण यार के देवता
ह वंशी क विन िव ास क पुकार है धीरे -धीरे तु हारे ित मेरे मन म जगा हआ अिव ास
िमट गया, मने कहा, तम ु मझु से अलग ही कहाँ हो, म तो तु हारी आ मा का एक टुकड़ा हँ जो
एक जनम के िलए अलग हो गयी लेिकन हमेशा तु हारे चार ओर च मा क तरह च कर
लगाती रहँ गी, िजस िदन मने पढ़ा-
सवधमान् प र य य मामेकं शरणं ज
अहं वां सवपापे यो मो िय यािम मा शुच:
तो मझ ु े लगा िक तु हारा खोया हआ यार मझ ु े पुकारकर कह रहा है-मेरी शरण म चले आओ,
और िसवा तु हारे यार के मेरा भगवान और है ही या...उसके बाद से च दर, मेरे मन म िव ास
और ेम झलक आया, अपने जीवन क प रिध म आने वाले हर यि के िलए सभी मझ ु े बहत
चाहने लगे...लेिकन च दर, जब िबनती यहाँ से िद ली जाते व मेरे साथ गयी और उसने सब
हाल बताया तो मझ ु े िकतना दु:ख हआ िकतनी लािन हई तु हारे ऊपर नह , अपने
ऊपर ”
बात भावना मक तर से उठकर बौि क तर पर आ चुक थ च दर फौरन बोला, “सुधा,
लािन क तो कोई बात नह , कम-से-कम मने जो कुछ िकया है उस पर मझ ु े जरा-सी भी शम
नह !” च दर के वर म िफर एक बार गव और कड़वाहट-सी आ गयी थी-”मने जो कुछ िकया है
उसे म पाप नह मानता तु हारे भगवान ने तु ह जो कुछ रा ता िदखलाया, वह तम ु ने िकया
मेरे भगवान ने जो रा ता मझ ु े िदखलाया, वह मने िकया तम ु जानती ही हो मेरी िजंदगी क
पिव ता तम ु थी, तु हारी भोली िन पाप साँस मेरे सभी गन ु ाह, मेरी सभी कमजो रयाँ सुलाती रही
ह िजस िदन तम ु मेरी िजंदगी से चली गय , कुछ िदन तक मने अपने को सँभाला इसके बाद
मेरी आ मा का कण-कण ोह कर उठा मने कहा, वग के मािलक साफ-साफ सुनो तम ु ने
मेरी िजंदगी क पिव ता को छीन िलया है, म तु हारे वग म वासना क आग धधकाकर उसे
नरक से बदतर बना दँग ू ा और मने होठ के िकनारे चु बन क लपट सुलगानी शु कर
द ...धीरे -धीरे महा मशान के स नाटे म करोड़ वासना क लपट जहरीले साँप क तरह
फँु फकारने लग मेरे मन को इसम बहत स तोष िमला, बहत शाि त िमली यहाँ तक िक
िबनती के िलए म अपने मन क सारी कटुता भल ू गया म कैसे कह दँू िक यह सब गन ु ाह था
सुधा, अगर ठीक से देखो, ग भीरता से समझो तो जो कुछ तु हारे िलए मेरे मन म था, उसी क
िति या वह है जो मेरे मन म प मी के िलए है तु हारा दुलार और प मी क वासना दोन एक
िस के के दो पहलू ह अपने पहलू को सही और दस ू रे पहलू को गलत य कहती हो? देवता
क आरती म जलता हआ दीपक पिव है और उससे िनकला हआ धुआँ अपिव ! दीप-िशखा
नैितक है और धम ू -रे खा अनैितक? लािन िकस बात क , सुधा?” च दर ने बहत आवेश म
कहा
“िछः, च दर! तम ु मझ ु े समझे नह ! म नैितक-अनैितक क बात ही नह करती मेरे भगवान ने ,
मेरे यार ने मझ ु े अब उस दुिनया म पहँ चा िदया है जो नैितक-अनैितक से उठकर है तम ु ने
अपने भगवान से िव ोह िकया, लेिकन उ ह ने तु हारी बात पर कोई फै सला भी तो िदया होता
वे इतने दयालु ह िक कभी मानव के काय पर फै सला ही नह देते दंड तो दरू क बात, वे तो
केवल आदमी को समझाकर, उसक कमजो रयाँ समझकर उसे मा करने और उसे यार करने
क बात कहते ह, च दर! वहाँ नैितकता-अनैितकता का ही नह ”
“तब? यह लािन िकस बात क तु ह!” च दर ने पछ ू ा
“ लािन तो मझ ु े अपने पर थी, च दर! रहा तु हारा प मी से स ब ध तो म िबनती क तरह नह
सोचती, इतना िव ास रखो मेरी पाप और पु य क तराजू ही दस ू री है िफर कम-से-कम अब
इतना देख-सुनकर म यह नह मानती िक शरीर क यास ही पाप है! नह च दर, शरीर क
यास भी उतनी ही पिव और वाभािवक है िजतनी आ मा क पज ू ा आ मा क पज ू ा और
शरीर क यास दोन अिभ न ह आ मा क अिभ यि शरीर से है, शरीर का सं कार, शरीर
का स तल ु न आ मा से है जो आ मा और शरीर को अलग कर देता है, वही मन के भयंकर
तफू ान म उलझकर चरू -चरू हो जाता है च दर, म तु हारी आ मा थी तम ु मेरे शरीर थे पता
नह कैसे हम लोग अलग हो गये! तु हारे िबना म केवल सू म आ मा रह गयी शरीर क
यास, शरीर क रं गीिनयाँ मेरे िलए अप रिचत हो गय पित को शरीर देकर भी म स तोष न दे
पायी...और मेरे िबना तम ु केवल शरीर रह गये शरीर म डूब गये...पाप का िजतना िह सा
तु हारा उतना ही मेरा...पाप क वैतरणी के इस िकनारे जब तक तम ु तड़पोगे, तभी तक म भी
तड़पँगू ी...दोन म से िकसी को भी चैन नह और कभी चैन नह िमलेगा...”
“लेिकन िफर...”
“हटाओ इन सब बात को, च दर! तम ु ने यथ यह बात उठायी म अब बात करना भल ू ती जा
रही हँ म तो आयी थी तु ह देखकर कुछ मन का ताप िमटाने उठो, खाना खाएँ !” सुधा
बोली
“नह , म चाहता हँ , बात सुलझ जाएँ , सुधा!” च दर ने सुधा के हाथ पर अपना िसर रखकर
कहा, “मेरी तकलीफ अब बेहद बढ़ती जा रही है म पागल न हो जाऊँ!”
“िछः, ऐसी बात नह सोचते उठो!” च दर को उठाकर सुधा बोली दोन ने खाना खाया
महरािजन बड़े दुलार से परसती रह और सुधा से बात करती रह खाना खाकर च दर लेट
गया और सोचने लगा, अब या सचमच ु उसके और सुधा के बीच म कोई इतना भयंकर अ तर
आ गया है िक दोन पहले जैसे नह हो सकते?
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लगभग चार बजे वह जागा तो उसने देखा िक उसके पाँव के पास िसर रखकर सुधा सो रही
है पंखे क हवा वहाँ तक नह पहँ चती वह पसीने से तर-बतर हो रही है च दर उठा, उसे
न द म ऐसा लगा िक जैसे इधर कुछ हआ ही नह है सुधा वही सुधा है, च दर वही च दर है
उसने सुधा के प ले से सुधा के माथे और गले का पसीना प छ िदया और हाथ बढ़ाकर पंखा
उसक ओर घुमा िदया सुधा ने आँख खोल , एक अजीब-सी िनगाह से च दर क ओर देखा
और च दर के पाँव को ख चकर व से लगा िफर आँख ब द करके लेट गयी च दर ने अपना
एक हाथ सुधा के माथे पर रख िलया और वह चुपचाप बैठा सोचने लगा, आज से लगभग साल-
भर पहले क बात, जब उसने पहले-पहल सुधा को कैलाश का िच िदखाया था, और सुधा रो-
धोकर उसके पाँव म इसी तरह महँु िछपाकर सो गयी थी...और आज...सुधा साल-भर म कहाँ से
कहाँ जा पहँ ची है! च दर कहाँ से कहाँ पहँ च गया है! काश िक कोई उनक िजंदगी क लेट से
इस वष-भर म ख ची हए मानिसक रे खाओं को िमटा सके तो िकतने सुखी हो जाएँ दोन ! च दर
ने सुधा को िहलाया और बोला-
“सुधा, सो रही हो?”
“नह ”
“उठो ”
“नह च दर, पड़ी रहने दो तु हारे चरण म सबकुछ भल ू कर एक ण के िलए भी सो सकँ ू गी,
मझु े इसका िव ास नह था सबकुछ छीन िलया है तम ु ने , एक ण क आ म- वंचना य
छीनते हो?” सुधा ने उसी तरह पड़े हए जवाब िदया
“अरी, उठ पगली!” च दर के मन म जाने कहाँ मरा पड़ा हआ उ लास िफर से िज दा हो उठा
था उसने सुधा क बाँह म जोर से चुटक काटते हए कहा, “उठती है या नह , आलसी कह
क !”
सुधा उठकर बैठ गयी ण-भर च दर क ओर पथरायी हई िनगाह से देखती रही और बोली,
“च दर, म जाग रही हँ तु ह ने उठाया है मझ ु े...च दर कह सपना तो नह है िक िफर टूट
जाए!” और सुधा िससक-िससक कर रो पड़ी च दर क आँख म आँसू आ गये थोड़ी देर
बाद वह बोला, “सुधा, कोई जादग ू र अगर हम लोग के मन से यह काँटा िनकाल देता तो म
िकतना सुखी होता! लेिकन सुधा, अब म तु ह दुखी नह क ँ गा ”
“यह तो तम ु ने पहले भी कहा था, च दर! लेिकन इधर जाने कैसे हो गये लगता है तु हारे
च र म कह थािय व नह ...इसी का तो मझ ु े दुख है, च दर!”
“अब रहे गा, सुधा! तु ह खोकर, तु हारे यार को खोकर म देख चुका हँ िक म आदमी नह रह
पाता, जानवर बन जाता हँ सुधा, अगर तम ु आज से महीन पहले िमल जात तो जो जहर मेरे
मन म घुट रहा है, वह तहु ारे सामने य करके म िब कुल िनि त हो जाता अ छा सुधा,
यहाँ आओ चुपचाप लेट जाओ, म तम ु से सबकुछ कह डालँ,ू िफर सब भल ू जाऊँ बोलो,
सुनोगी?”
सुधा चुपचाप लेट गयी और बोली, “च दर! या तो मत बताओ या िफर सभी प बता दो...”
“हाँ, िब कुल प सुधी; तम ु से कुछ िछपा सकता हँ भला!” च दर ने ह क -सी चपत मारकर
कहा, “आज मन जैसे पागल हो रहा है तु हारे चरण पर िबखर जाने के िलए...जादग ू रनी कह
क ! देखो सुधा-िपछली दफे तम ु े बहत कुछ बताया था, कैलाश के बारे म!”
ु ने मझ
“हाँ ”
“बस, उसके बाद से एक अजीब-सी अ िच मेरे मन म तु हारे िलए होने लगी थी; म तम ु से कुछ
िछपाऊँगा नह तु हारे जाने के बाद बट आया उसने मझ ु से कहा िक औरत केवल नयी
संवेदना, नया वाद चाहती है और कुछ नह , अिववािहत लड़िकयाँ िववाह, और िववािहत
लड़िकयाँ नये ेमी...बस यही उनका चरम ल य है लड़िकयाँ शरीर क यास के अलावा और
कुछ नह चाहत ...जैसे अराजकता के िदन म िकसी देश म कोई भी चालाक ने ता शि छीन
लेता है, वैसे ही मानिसक शू यता के ण म बट जैसे मेरा दाशिनक गु हो गया उसके बाद
आयी प मी उससे मने कहा िक या आव यक है िक पु ष और नारी के स ब ध म से स हो
ही? उसने कहा, 'हाँ, और यिद नह है तो लेटािनक (आदशवादी) यार क िति या से स क
ही यास म होती है ' अब म तु ह अपने मन का चोर बतला दँू मने सोचा िक तम ु भी अपने
वैवािहक जीवन म रम गयी हो शरीर क यास ने तु ह अपने म डुबा िदया है और जो अ िच
तमु मेरे सामने य करती हो वह केवल िदखावा है इसिलए मन-ही-मन मझ ु े तमु से िचढ़-सी
हो गयी पता नह य यह सं कार मझ ु म ढ़-सा हो गया और इसी के पीछे म तु ह को नह ,
प मी को छोड़कर सभी लड़िकय से नफरत-सी करने लगा िबनती को भी मने बहत दुख
िदया याह म जाने के पहले ही बहत दुखी होकर गयी रही प मी क बात तो म उस पर
इसिलए खुश था िक उसने बड़ी यथाथ-सी बात कही थी लेिकन उसने मझ ु से कहा िक
आदशवादी यार क िति या शारी रक यास म होती है तम ु को इसका अपराधी मानकर
तम ु से तो नाराज हो गया लेिकन अ दर-ही-अ दर वह सं कार मेरा यि व बदलने लगा
सुधा, पता नह , तु हारे जीवन म िति या के प म शारी रक यास जागी या नह पर मेरे मन
के गन ु ाह तो तफ
ू ान क तरह लहरा उठे लेिकन तम ु से एक बात नह िछपाऊँगा वह यह िक
ऐसे भी ण आये ह जब प मी के समपण ने मेरे मन क सारी कटुता धो दी है....बोलो, तम ु कुछ
तो बोलो, सुधा!”
“तम ु कहते चलो, च दर! म सुन रही हँ ”
“हाँ...लेिकन उस िदन गेसू आयी उसने मझ ु े िफर पुराने िदन क याद िदला दी और िफर जैसे
प मी के िलए आकषण उखड़-सा गया अ छा सुधा, एक बात बताओ तम ु यह मानती हो िक
कभी-कभी एक यि के मा यम से दस ू रे यि क भावनाओं क अनुभिू त होने लगती है?”
“ या मतलब?”
“मेरा मतलब जैसे मझ ु े गेसू क बात म उस िदन ऐसा लगा, जैसे तम ु बोल रही हो और दस ू री
बात तु ह बताऊँ तु हारे पीछे िबनती रही मेरे पास सारे अँधेरे म वही एक रोशनी थी, बड़ी
ीण, िटमिटमाती हई, सारहीन-सी बि क मझ ु े तो लगता था िक वह रोशन ही इसिलए थी िक
उसम रोशनी तु हारी थी मने कुछ िदन िबनती को बहत यार िकया मझ ु े ऐसा लगता था िक
अभी तक तम ु मेरे सामने थ , अब तमु उसके मा यम से आती हो लगता था जैसे वह एक
यि व नह है, तु हारे यि व का ही अंश है उस लड़क म िजस अंश तक तम ु थ वह अंश
बार-बार मेरे मन म रस उभार देता था य सुधा! मन क यह भी कैसी अजब-सी गित है!”
सुधा थोड़ी देर चुप रही, िफर बोली, “भागवत म एक जगह एक टीका म हमने पढ़ा था च दर िक
िजसको भगवान बहत यार करते ह, उसम उनक अंशािभ यि होती है बहत बड़ा वै ािनक
स य है यह! म िबनती को बहत यार करती हँ , च दर!”
“समझ गया म ” च दर बोला, “अब म समझा, मेरे मन म इतने गन ु ाह कहाँ से आये तम ु ने
ु े बहत यार िकया और वही तु हारे यि व के गन
मझ ु ाह मेरे यि व म उतर आये!”
सुधा िखलिखलाकर हँ स पड़ी च दर के क धे पर हाथ रखकर बोली, “इसी तरह हँ सते-बोलते
रहते तो य यह हाल होता? मनमौजी हो जब चाहो खुश हो गये, जब चाहो नाराज हो गये!”
उसके बाद वह उठी और बाहर से एक त तरी म कुछ फल काटकर लायी च दर ने देखा-
आम “अरे आम! अभी कहाँ से आम ले आयीï? कौन लाया?”
“लखनऊ उतरी थी? वहाँ से तु हारे िलए लेती आयी ”
च दर ने एक आम क फाँक उठाकर खायी और िकसी पुरानी घटना क याद िदलाने के िलए
आँचल से हाथ प छ िदये सुधा हँ स पड़ी और बड़ी दुलार-भरी ताडऩा के वर म बोली, “बोलो,
अब तो िदमाग नह िबगाड़ोगे अपना?”
“कभी नह सुधी, लेिकन प मी का या होगा? प मी से म स ब ध नह तोड़ सकता यवहार
चाहे िजतना सीिमत कर दँू ”
“म कब कहती हँ , म तु ह कह से कभी बाँधना ही नह चाहती जानती हँ िक अगर चाहँ भी
तो कभी अपने मन के बाहपाश ढीले कर तु ह िचरमिु तो म न दे पाऊँगी, तो भला ब धन ही
य बाँधँ!ू प मी शाम को आएगी?”
“शायद...”
दरवाजा खटका और गेसू ने वेश िकया आकर, दौडक़र सुधा से िलपट गयी च दर उठकर
चला आया “चले कहाँ भाईजान, बैिठए न ”
“नहा लँ,ू तब आता हँ ...” च दर चल िदया वह इतना खुश था, इतना खुश िक बाथ- म म
खबू गाता रहा और नहा चुकने के बाद उसे खयाल आया िक उसने बिनयाइन उतारी ही नह
थी नहाकर कपड़े बदलकर वह आया तब भी गन ु गनु ा रहा था कमरे म आया तब देखा गेसू
अकेली बैठी है
“सुधा कहाँ गयी?” च दर ने नाचते हए वर म कहा
“गयी है शरबत बनाने ” गेसू ने चु नी से िसर ढँकते हए और पाँव को सलवार से ढँकते हए
कहा च दर इधर-उधर ब स म माल ढूँढऩे लगा
“आज बड़े खुश ह, च दर भाई! कोई खायी हई चीज िमल गयी है या? अरे , म बहन हँ कुछ
इनाम ही दे दीिजए ” गेसू ने चुटक ली
“इनाम क बात या, कहो तो वह चीज ही तु ह दे दँ!ू ”
“हाँ, कैलाश बाबू के िदल से पिू छए ” गेसू बोली
“उनके िदल से तु ह बात कर सकती हो!”
गेसू ने झपकर महँु फेर िलया
सुधा हाथ म दो िगलास िलए आयी “लो गेस,ू िपयो ” एक िगलास गेसू को देकर बोली,
“च दर, लो ”
“तमु िपयो न!”
“नह , म नह िपऊँगी बफ मझ ु े नुकसान करे गी!” सुधा ने चुपचाप कहा च दर को याद आ
गया पहले सुधा िचढ़-िचढ़कर अपने आप चाय, शरबत पी जाती थी...और आज...
“ या ढूँढ़ रहे हो, च दर?” सुधा बोली
“ माल, कोई िमल ही नह रहा!”
“साल-भर म माल खो िदये ह गे! म तो तु हारी आदत जानती हँ आज कपड़ा ला दो, कल
सुबह माल सी दँू तु हारे िलए ” और उठकर उसने कैलाश के ब स से एक माल
िनकालकर दे िदया
44

उसके बाद च दर बाजार गया और कैलाश के िलए तथा सुधा के िलए कुछ कपड़े खरीद लाया
इसके साथ ही कुछ नमक न जो सुधा को पस द था, पे ठा, एक तरबज ू , एक बोतल गल ु ाब का
शरबत, एक सु दर-सा पे न और जाने या- या खरीद लाया सुधा ने देखकर कहा, “पापा
नह ह, िफर भी लगता है म मायके आयी हँ !” लेिकन वह कुछ खा-पी नह सक
च दर खाना खाकर लॉन म बैठ गया, वह उसने अपनी चारपाई डलवा ली सुधा के िब तर
छत पर लगे थे उसके पास महरािजन सोने वाली थ सुधा एक त तरी म तरबज ू काटकर ले
आयी और कुस डालकर च दर भी चारपाई के पास बैठ गया च दर तरबज ू खाता रहा...थोड़ी
देर बाद सुधा बोली-
“च दर, िबनती के बारे म तु हारी या राय है?”
“राय? राय या होती? बहत अ छी लड़क है! तम ु से तो अ छी ही है!” च दर ने छे ड़ा
“अरे , मझ
ु से अ छी तो दुिनया है, लेिकन एक बात पछ ू ? बहत ग भीर बात है!”
“ या?”
“तमु िबनती से याह कर लो ”
“िबनती से? कुछ िदमाग तो नह खराब हो गया है?”
“नह ! इस बारे म पहले-पहले 'ये' बोले िक च दर से िबनती का याह य नह करती, तो मने
चुपचाप पापा से पछ ू ा पापा िब कुल राजी ह, लेिकन बोले मझ ु से िक तु ह कहो च दर से
कर लो; च दर! बुआजी अब दखल नह दगी ”
च दर हँ स पड़ा, “अ छी खुराफात तु हारे िदमाग म उठती ह! याद है, एक बार और तम ु ने याह
करने के िलए कहा था?”
सुधा के महँु से एक ह का िन: ास िनकल पड़ा-”हाँ, याद है! खैर, तब क बात दस ू री थी, अब
तो तु ह कर लेना चािहए ”
“नह सुधा, शादी तो मझ ु े नह ही करनी है तम ु कह य रही हो? तम ु मेरे-िबनती के स ब ध
को कुछ गलत तो नह समझ रही हो?”
“नह जी, लेिकन यह जानती हँ िक िबनती तम ु पर अ ध ा रखती है उससे अ छी लड़क
तु ह िमलेगी नह कम-से-कम िजंदगी तु हारी यवि थत हो जाएगी ”
च दर हँ सा, “मेरी िजंदगी शादी से नह , यार से सुधरे गी, सुधा! कोई ऐसी लड़क ढूँढ़ दो जो
तु हारी जैसी हो और यार करे तो म समझँ ू भी िक तम ु ने कुछ िकया मेरे िलए शादी-वादी
बेकार है और कोई बात करनी है या नह ?”
“नह च दर, शादी तो तु ह करनी ही होगी अब म ऐसे तु ह नह रहने दँग ू ी िबनती से न
करो तो दस ू री लड़क ढूँढूँगी लेिकन शादी करनी होगी और मेरी पस द से करनी होगी ”
च दर एक उपे ा क हँ सी हँ सकर रह गया
सुधा उठ खड़ी हई
“ य , चल द ?”
“हाँ, अब न द आ रही होगी तु ह, सोओ ”
च दर ने रोका नह उसने सोचा था, सुधा बैठेगी जाने िकतनी बात करगे! वह सुधा से
उसका सब हाल पछ ू े गा, लेिकन सुधा तो जाने कैसी तट थ, िनरपे और अपने म सीिमत-सी हो
गयी है िक कुछ समझ म नह आता उसने च दर से सबकुछ जान िलया लेिकन च दर के
सामने उसने अपने मन को कह जािहर ही नह होने िदया, सुधा उसके पास होकर भी जाने
िकतनी दरू थी! सरोवर म डूबकर पंछी यासा था
करीब घंटा-भर बाद सुधा दध ू का िगलास लेकर आयी च दर को न द आ गयी थी वह च दर
के िसरहाने बैठ गयी-”च दर, सो गये या?”
“ य ?” च दर घबराकर उठ बैठा
“लो, दध ू पी लो ” सुधा बोली
“दधू हम नह िपएँ गे ”
“पी लो, देखो बफ और शरबत िमला िदया है, पीकर तो देखो!”
“नह , हम नह िपएँ गे अब जाओ, हम न द लग रही है ” च दर गु सा था
“पी लो मेरे राजदुलारे , चमक रहे ह चाँद-िसतारे ...” सुधा ने लोरी गाते हए च दर को अपनी गोद
म ख चकर ब च क तरह िगलास च दर के महँु से लगा िदया च दर ने चुपचाप दध ू पी
िलया सुधा ने िगलास नीचे रखकर कहा, “वाह, ऐसे तो म नीलू को दध ू िपलाती हँ ”
“नीलू कौन?”
“अरे मेरा भतीजा! शंकर बाबू का लड़का ”
“अ छा!”
“च दर, तम ु ने पंखा तो छत पर लगा िदया है तम ु कैसे सोओगे?”
“मझ ु े न द आ जाएगी ”
च दर िफर लेट गया सुधा उठी नह वह दस ू री पाटी से हाथ टे ककर च दर के व के आर-
पार फूल के धनुष-सी झक ु कर बैठ गयी एकादशी का ि न ध पिव च मा आसमान क
नीली लहर पर अधिखले बेल के फूल क तरह काँप रहा था दध ू म नहाये हए झ के चाँदनी से
आँख-िमचौली खे ल रहे थे च दर आँख ब द िकये पड़ा था और उसक पलक पर, उसके माथे
पर, उसके होठ पर चाँदी क पाँखु रयाँ बरस रही थ सुधा ने च दर का कॉलर ठीक िकया
और बड़े ही मधुर वर म पछ ू ा, “च दर, न द आ रही है?”
“नह , न द उचट गयी!” च दर ने आँख खोलकर देखा एकादशी का पिव च मा आकाश
म था और पज ू ा से अिभिष एकादशी क उदास चाँदनी उसके व पर झक ु बैठी थी उसे लगा
जैसे पिव ता और अमतृ का च पई बादल उसके ाण म िलपट गया है
उसने करवट बदलकर कहा, “सुधा, िजंदगी का एक पहलू ख म हआ दद क एक मंिजल
ख म हो गयी थकान भी दरू हो गयी, लेिकन अब आगे का रा ता समझ म नह आता या
क ँ ?”
“करना बहत है, च दर! अपने अ दर क बुराई से लड़ िलये, अब बाहर क बुराई से लड़ो मेरा
तो सपना था च दर िक तम ु बहत बड़े आदमी बनोगे अपने बारे म तो जो कुछ सोचा था वह
सब नसीब ने तोड़ िदया अब तु ह को देखकर कुछ स तोष िमलता है तम ु िजतने ऊँचे
बनोगे, उतना ही चैन िमलेगा वना म तो नरक म भुन रही हँ ”
“सुधा, तु हारी इसी बात से मेरी सारी िह मत, सारा बल टूट जाता है अगर तम ु अपने प रवार
म सुखी होती तो मेरा भी साहस बँधा रहता तु हारा यह हाल, तु हारा यह वा य, यह
असमय वैरा य और पज ू ा, यह घुटन देखकर लगता है या क ँ ? िकसके िलए क ँ ?”
“म भी या क ँ , च दर! म यह जानती हँ िक अब ये भी मेरा बहत खयाल रखते ह, लेिकन इस
बात पर मझ ु े और भी दुख होता है म इ ह स तिु लत नह कर पाती और उनक खुलकर उपे ा
भी नह कर पाती यह अजब-सा नरक है मेरा जीवन भी, लेिकन यह ज र है च दर िक तु ह
ऊँचा देखकर म यह नरक भी भोग ले जाऊँगी तम ु िदल मत छोटा करो एक ही िजंदगी क
तो बात है, उसके बाद...”
“लेिकन म तो पुनज म म िव ास ही नह करता ”
“तब तो और भी अ छा है, इसी ज म म जो सुख दे सकते हो, दे लो िजतना ऊँचे उठ सकते हो,
उठ लो ”
“तम ु जो रा ता बताओ वह म अपनाने के िलए तैयार हँ म सोचता हँ , अपने यि व से ऊपर
उठूँ...लेिकन मेरे साथ एक शत है तु हारा यार मेरे साथ रहे !”
“तो वह अलग कब रहा, च दर! तु ह ने जब चाहा महँु फेर िलया लेिकन अब नह काश िक
तमु एक ण का भी अनुभव कर पाते िक तम ु से दरू वहाँ, वासना के क चड़ म फँसी हई म
िकतनी याकुल, िकतनी यिथत हँ तो तम ु ऐसा कभी न करते! मेरे जीवन म जो कुछ अपण ू ता
रह गयी है च दर, उसक पण ू ता, उसक िसि तु ह हो तु ह मेरे ज म-ज मा तर क शाि त
क सौग ध है, तम ु अब इस तरह न करना! बस याह कर लो और ढ़ता से ऊँचाई क ओर
चलो ”
“ याह के अलावा तु हारी सब बात वीकार ह लेिकन िफर भी तम ु अपना यार वापस नह
लोगी कभी?”
“कभी नह ”
“और हम कभी नाराज भी हो जाएँ तो बुरा नह मानोगी?”
“नह !”
“और हम कभी िफसल तो तम ु तट थ होकर नह बैठोगी बि क िबना डरे हए मझु े ख च लाओगी
उस दलदल से?”
“यह किठन है च दर, आिखर मेरे भी ब धन ह लेिकन खैर...अ छा यह बताओ, तम ु िद ली
कब आओगे?”
“अब िद ली तो दशहरे म आऊँगा गिमय म यह रहँ गा ...लेिकन हो सका तो लौटने के बाद
शाहजहाँपुर आऊँगा ”
सुधा चुपचाप बैठी रही च दर भी चुपचाप लेटा रहा थोड़ी देर बाद च दर ने सुधा क हथेली
अपने हाथ पर रख ली और आँख ब द कर ल जब वह सो गया तो सुधा ने धीरे -से हाथ
उठाया, खड़ी हो गयी थोड़ी देर अपलक उसे देखती रही और धीरे -धीरे चली आयी
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दसू रे िदन सुबह सुधा ने आकर च दर को जगाया च दर उठ बैठा तो सुधा बोली-”ज दी से


नहा लो, आज तु हारे साथ पज ू ा करगे!”
च दर उठ बैठा नहा-धोकर आया तो सुधा ने चौक के सामने दो आसन िबछा रखे थे चौक
पर धपू सुलग रही थी और फूल गमक रहे थे ढे र-के-ढे र बेल और अग त के फूल च दर को
िबठाकर सुधा बैठी उसने िफर वही वेश धारण कर िलया था रे शम क धोती और रे शम का
एक अ तवासक, गीले बाल पीठ पर लहरा रहे थे
“लेिकन म बैठा-बैठा या क ँ गा?” उसने पछ ू ा
सुधा कुछ नह बोली चुपचाप अपना काम करती गयी थोड़ी देर बाद उसने भागवत खोली
और बड़े मधुर वर म गोिपका-गीत पढ़ती रही च दर सं कृत नह समझता था, पज ू ा म
िव ास नह करता था, लेिकन वह ण जाने कैसा लग रहा था! च दर क साँस म धपू क
पावन सौरभ के डोरे गथ ँु गये थे उसके घुटन पर रह-रहकर स : नाता सुधा के भीगे केश से
गीले मोती चू पड़ते थे कृशकाय, उदास और पिव सुधा के पज ू ा के साद जैसे मधुर वर म
ीम ागवत के ोक उसक आ मा को अमतृ से धो रहे थे लगता था, जैसे इस पज ू ाक
ाि वत बेला म उसके जीवन-भर क भल ू , कमजो रयाँ, गन
ु ाह सभी धुलता जा रहा था ...जब
सुधा ने भागवत ब द करके रख िदया तो पता नह य च दर ने णाम कर िलया-भागवत को
या भागवत क पुजा रन को, यह नह मालम ू
थोड़ी देर बाद सुधा ने पज ू ा क थाली उठायी और उसने च दर के माथे पर रोली लगा दी
“अरे म!”
“हाँ तम ु ! और कौन...मेरे तो दस ू रा न कोई!” सुधा बोली और ढे र-के-ढे र फूल च दर के चरण पर
चढ़ाकर, झक ु कर च दर के चरण को णाम कर िलया च दर ने घबराकर पाँव ख च िलए,
“म इस यो य नह हँ , सुधा! य लि जत कर रही हो?”
सुधा कुछ नह बोली...अपने आँचल से एक छलकता हआ आँसू प छकर ना ता लाने चली
गयी
जब वह यिू नविसटी से लौटा तो देखा, सुधा मशीन रखे कुछ िसल रही है च दर ने कपड़े
बदलकर पछ ू ा, “कहो, या िसल रही हो?”
“ माल और बिनयाइन! कैसे काम चलता था तु हारा? न स दक ू म एक भी माल है, न एक
भी बिनयाइन लापरवाही क भी हद है तभी कहती हँ याह कर लो!”
“हाँ, िकसी दज क लड़क से याह करवा दो!” च दर खाट पर बैठ गया और सुधा मशीन पर
बैठी-बैठी िसलती रही थोड़ी देर बाद सहसा उसने मशीन रोक दी और एकदम से घबरा कर
उठी
“ या हआ, सुधा...”
“बहत दद हो रहा है....” वह उठी और खाट पर बेहोश-सी पड़ रही च दर दौडक़र पंखा उठा
लाया और झलने लगा “डॉ टर बुला लाऊँ?”
“नह , अभी ठीक हो जाऊँगी उबकाई आ रही है!” सुधा उठी
“जाओ मत, म पीकदान उठा लाता हँ ” च दर ने पीकदान उठाकर रख िदया और सुधा क
पीठ सहलाने लगा िफर सुधा हाँफती-सी लेट गयी च दर दौड़कर इलायची और पानी ले
आया सुधा ने इलायची खायी और िफर पड़ रही उसके माथे पर पसीना झलक आया
“अब कैसी तबीयत है, सुधा?”
“बहत दद है अंग-अंग म...मशीन चलाना नुकसान कर गया ” सुधा ने बहत ीण वर म
कहा
“जाऊँ िकसी डॉ टर को बुला लाऊँ?”
“बेकार है, च दर! म तो लखनऊ म िदखा आयी इस रोग का या इलाज है यह तो िजंदगी-
भर का अिभशाप है!”
“ या बीमारी बतायी तु ह?”
“कुछ नह ”
“बताओ न?”
“ या बताऊँ, च दर!” सुधा ने बड़ी कातर िनगाह से च दर क ओर देखा और फूट-फूटकर रो
पड़ी बुरी तरह िससकने लगी सुधा चुपचाप पड़ी कराहती रही च दर ने अटैची म से दवा
िनकालकर दी कॉलेज नह गया दो घंटे बाद सुधा कुछ ठीक हई उसने एक गहरी साँस
ली और तिकये के सहारे उठकर बैठ गयी च दर ने और कई तिकये पीछे रख िदये दो ही घंटे
म सुधा का चहे रा पीला पड़ा गया च दर चुपचाप उदास बैठा रहा
उस िदन सुधा ने खाना नह खाया िसफ फल िलये दोपहर को दो बजे भयंकर लू म कैलाश
वापस आया और आते ही च दर से पछ ू ा, “सुधा क तबीयत तो ठीक रही?” यह जानकर िक
सुबह खराब हो गयी थी, वह कपड़े उतारने के पहले सुधा के कमरे म गया और अपने हाथ से
दवा देकर िफर कपड़े बदलकर सुधा के कमरे म जाकर सो गया बहत थका मालम ू पड़ता था
च दर आकर अपने कमरे म कॉिपयाँ जाँचता रहा शाम को कािमनी, भा तथा कई लड़िकयाँ,
िज ह गेसू ने खबर दे दी थी, आय और सुधा और कैलाश को घे रे रह च दर उनक खाितर-
तव जो म लगा रहा रात को कैलाश ने उसे अपनी छत पर बुला िलया और च दर के भिव य
के काय म के बारे म बात करता रहा जब कैलाश को न द आने लगी, तब वह उठकर लॉन
पर लौट आया और लेट गया
बहत देर तक उसे न द नह आयी वह सुधा क तकलीफ के बारे म सोचता रहा उधर सुधा
बहत देर तक करवट बदलती रही यह दो िदन सपन क तरह बीत गये और कल वह िफर
चली जाएगी च दर से दरू , न जाने कब तक के िलए!
सुबह से ही सुधा जैसे बुझ गयी थी कल तक जो उसम उ लास वापस आ गया था, वह जैसे
कैलाश क छाँह ने ही स िलया था च दर के कॉलेज का आिखरी िदन था च दर कैलाश
को ले गया और अपने िम से, ोफेसर से उसका प रचय करा लाया एक ोफेसर, िजनक
आदत थी िक वे कां ेस सरकार से स बि धत हर यि को दावत ज र देते थे, उ ह ने कैलाश
को भी दावत दी य िक वह सां कृितक िमशन म जा रहा था
वापस जाने के िलए रात क गाड़ी तय रही ह ते-भर बाद ही कैलाश को जाना था अत: वह
यादा नह क सकता था दोपहर का खाना दोन ने साथ खाया सुधा महरािजन का
िलहाज करती थी, अत: वह कैलाश के साथ खाने नह बैठी िन य हआ िक अभी से सामान
बाँध िलया जाए तािक पाट के बाद सीधे टे शन जा सक
जब सुधा ने च दर के लाये हए कपड़े कैलाश को िदखाये तो उसे बड़ा ता जुब हआ लेिकन
उसने कुछ नह कहा, कपड़े रख िलये और च दर से जाकर बोला, “अब जब तम ु ने लेने-देने का
यवहार ही िनभाया है तो यह बता दो, तम ु बड़े हो या छोटे ?”
“ य ?” च दर ने पछ ू ा
“इसिलए िक बड़े हो तो पैर छूकर जाऊँ, और छोटे हो तो पया देकर जाऊँ!” कैलाश बोला
च दर हँ स पड़ा
घर म दोपहर से ही उदासी छा गयी न च दर दोपहर को सोया, न कैलाश और न सुधा शाम
क पाट म सब लोग गये वहाँ से लौटकर आये तो सुधा को लगा िक उसका मन अभी डूब
जाएगा उसे शादी म भी जाना इतना नह अखरा था िजतना आज अखर रहा था मोटर पर
सामान रखा जा रहा था तो वह ख भे से िटककर खड़ी रो रही थी महरािजन एक टोकरी म
खाने का सामान बाँध रही थी
कैलाश ने देखा तो बोला, “रो य रही हो? छोड़ जाएँ तु ह यह ? च दर से सँभलेगा!” सुधा ने
आँसू प छकर आँख से डाँटा-”महरािजन सुन रही ह िक नह ” मोटर तक पहँ चते-पहँ चते सुधा
फूट-फूटकर रो पड़ी और महरािजन उसे गले से लगाकर आँसू प छने लग िफर बोल , “रोवौ न
िबिटया! अब छोटे बाबू का िबयाह कर देव तो दुई-तीन महीना आयके रह जाव तोहार सास
छोिडह़ िक न?”
सुधा ने कुछ जवाब नह िदया और पाँच पये का नोट महरािजन के हाथ म थमाकर आ बैठी
े न लेटफाम पर आ गयी थी सेकड लास म च दर ने इन लोग का िब तर लगवा िदया
सीट रजव करवा दी गाड़ी छूटने म अभी घंटा-भर देर थी सुधा क आँख म िविच -सा भाव
था कल तक क ढ़ता, तेज, उ लास बुझ गया था और अजब-सी कातरता आ गयी थी वह
चुप बैठी थी च दर से जब नह देखा गया तो वह उठकर लेटफाम पर टहलने लगा कैलाश
भी उतर गया दोन बात करने लगे सहसा कैलाश ने च दर के क धे पर हाथ रखकर कहा,
“हाँ यार, एक बात बहत ज री थी ”
“ या?”
“इ ह ने तम ु से िबनती के बारे म कुछ कहा?”
“कहा था!”
“तो या सोचा तम ु ने ?”
“म शादी-वादी नह क ँ गा ”
“यह सब आदशवाद मझ ु े अ छा नह लगा, और िफर उससे शादी करके सच पछ ू ो तो बहत बड़ी
बात करोगे तम ु ! उस घटना के बाद अब ा ïण म तो वर उसे िमलने से रहा और ये कह रही
थ िक वह तु ह मानती भी बहत है ”
“हाँ, लेिकन इसके मतलब यह नह िक म शादी कर लँ ू मझ ु े बहत कुछ करना है ”
“अरे जाओ यार, तम ु िसवा बात के कुछ नह कर सकते ”
“हो सकता है ” च दर ने बात टाल दी वह शादी तो नह ही करे गा
थोड़ी देर बाद च दर ने पछू ा, “इ ह िद ली कब भे जोगे?”
“अभी तो िजस िदन म जाऊँगा, उस िदन ये िद ली मेरे साथ जाएँ गी, लेिकन दस ू रे िदन
शाहजहाँपुर लौट जाएँ गी ”
“ य ?”
“अभी माँ बहत िबगड़ी हई ह वह इ ह आने थोड़े ही देती थ वह तो लखनऊ के बहाने म
इ ह ले आया तम ु शंकर भइया से कभी िज मत करना-अब िद ली तो इसिलए चली जाएँ िक
म दो-तीन महीने बाद लौटूँगा...िफर शायद िसत बर, अ टूबर म ये तीन-चार महीने के िलए
िद ली जाएँ गी यू नो शी इज कैरीइङ्!”
“हाँ, अ छा!”
“हाँ, यही तो बात है, पहला मौका है ”
दोन लौटकर क पाटमट म बैठ गये
सुधा बोली, “तो िसत बर म आओगे न, च दर?”
“हाँ-हाँ!”
“ज र से? िफर व कोई बहाना न बना देगा ”
“ज र आऊँगा!”
कैलाश उतरकर कुछ लेने गया तो सुधा ने अपनी आँख से आँसू प छकर झकु कर च दर के पाँव
छू िलये और रोकर बोली, “च दर, अब बहत टूट चुक हँ ...अब हाथ न ख च लेना...” उसका
गला ँ ध गया
च दर ने सुधा के हाथ को अपने हाथ म ले िलया और कुछ भी नह बोला सुधा थोड़ी देर चुप
रही, िफर बोली-
“च दर, चुप य हो? अब तो नफरत नह करोगे? म बहत अभागी हँ , देवता! तम ु ने या बनाया
था और अब या हो गयी!...देखो, अब िच ी िलखते रहना नह तो सहारा टूट जाता है...” और
िफर वह रो पड़ी
कैलाश कुछ िकताब और पि काएँ खरीदकर वापस आ गया दोन बैठकर बात करते रहे यह
िन य हआ िक जब कैलाश लौटे गा तो बजाय ब बई से सीधे िद ली जाने के, वह याग से होता
हआ जाएगा
गाड़ी चली तो च दर ने कैलाश को बहत यार से गले लगा िलया जब तक गाड़ी लेटफॉम के
अ दर रही, सुधा िसर िनकाले झाँकती रही लेटफाम के बाहर भी पीली चाँदनी म सुधा का
फहराता हआ आँचल िदखता रहा धीरे -धीरे वह एक सफेद िब दु बनकर अ य हो गया
गाड़ी एक िवशाल अजगर क तरह चाँदनी म रगती चली जा रही थी
46

जब मन म यार जाग जाता है तो यार क िकरन बादल म िछप जाती है अजब थी च दर क


िक मत! इस बार तो, सुधा गयी थी तो उसके तन-मन को एक गल ु ाबी नशे म सराबोर कर गयी
थी च दर उदास नह था वह बेहद खुश था खबू घम ू ता था और गरमी के बावजदू खबू
काम करता था अपने पुराने नोट्स िनकाल िलये थे और एक नयी िकताब क परे खा सोच
रहा था उसे लगता था िक उसका पौ ष, उसक शि , उसका ओज, उसक ढ़ता, सभी कुछ
लौट आया है उसे हरदम लगता िक गल ु ाबी पाँखु रय क एक छाया उसक आ मा को चम ू ती
रहती है वह जब कभी लेटता तो उसेलगता िक सुधा फूल के धनुष क तरह उसके पलँग के
आर-पार पाटी पर हाथ टे के बैठी है उसे लगता-कमरे म अब भी धपू क सौरभ लहरा रही है और
हवाओं म सुधा के मधुर कंठ के ोक गज ँ ू रहे ह
दो ही िदन म च दर को लग रहा था िक उसक िजंदगी म जहाँ जो कुछ टूट-फूट गया है, वह सब
सँभल रहा है वह सब अभाव धीरे -धीरे भर रहा है उसके मन का पज ू ा-गहृ खँडहर हो चुका
था, सहसा उस पर जैसे िकसी ने आँसू िछड़ककर जीवन के वरदान से अिभिष कर िदया था
प थर के बीच दबकर िपसे हए पज ू ा-गीत िफर से स वर हो उठे थे मरु झाये हए पज ू ा-फूल क
पाँखु रय म िफर रस छलक आया था और रं ग चमक उठे थे धीरे -धीरे मि दर का कँगरू ा िफर
िसतार से समझौता करने क तैयारी करने लगा था च दर क नस म वेद-म क पिव ता
और ज क वंशी क मधुराई पलक म पलक डालकर नाच उठी थी सारा काम जैसे वह िकसी
अ य आ मा क आ मा क आ ा से करता था वह आ मा िसवा सुधा के और भला िकसक
थी! वह सुधामय हो रहा था उसके कदम-कदम म, बात-बात म, साँस-साँस म सुधा का यार
िफर से लौट आया था
तीसरे िदन िबनती का एक प आया िबनती ने उसे िद ली बुलाया था और मामाजी (डॉ टर
शु ला) भी चाहते थे िक च दर कुछ िदन के िलए िद ली चला आये तो अ छा है च दर के िलए
कुछ कोिशश भी कर रहे थे उसने िलख िदया िक वह मई के अ त म या जन ू के ार भ म
आएगा और िबनती को बहत, बहत-सा ने ह उसने सुधा के आने क बात नह िलखी
य िक कैलाश ने मना कर िदया था
सुबह च दर गंगा नहाता, नयी पु तक पढ़ता, अपने नोट्स दोहराता दोपहर को सोता और
रे िडयो बजाता, शाम को घमू ता और िसने मा देखता, सोते व किवताएँ पढ़ता और सुधा के यार
के बादल म महँु िछपाकर सो जाता िजस िदन कैलाश जाने वाला था, उसी िदन उसका एक
प आया िक वह और सुधा िद ली आ गये ह शंकर भइया और नीलू उसे पहँ चाने ब बई
जाएँ गे च दर सुधा के इलाहाबाद जाने का िज िकसी को भी न िलखे यह उसके और
च दर के बीच क बात थी खत के नीचे सुधा क कुछ लाइन थ
“च दर,
राम-राम तम ु े जो साड़ी दी थी वह या अपनी भावी ीमती के नाप क थी? वह मेरे
ु ने मझ
घुटन तक आती है बढ़ ू ी होकर िघस जाऊँगी तो उसे पहना क ँ गी-अ छा ने ह और जो
तमु से कह आयी हँ उन बात का यान रहे गा न? मेरी त दु ती ठीक है इधर मने गाँधीजी
क आ मकथा पढ़नी शु क है
तु हारी-सुधा
“...और हाँ, लालाजी! िमठाई िखलाओ, िद ली म बहत खबर है िक शरणाथ िवभाग म याग के
एक ोफेसर आने वाले ह!”
कैलाश तो अब ब बई चल िदया होगा ब बई के पते से उसने बधाई का एक तार भे ज िदया और
सुधा को एयर मेल से उसने एक खत भे जा िजसम उसने बहत-सी िमठाइय का िच बना िदया
था
लेिकन वह पसोपे श म पड़ गया िद ली जाए या न जाए वह अपने अ तमन से सरकारी
नौकरी का िवरोधी था उसे त कालीन भारतीय सरकार और ि िटश सरकार म यादा अ तर
नह लगता था िफर हर ि कोण से वह समाजवािदय के अिधक समीप था और अब वह
सुधा से वायदा कर चुका था िक वह काम करे गा ऊँचा बने गा िस होगा, लेिकन पद
वीकार कर ऊँचा बनना उसके च र के िव था िक तु डॉ टर शु ला कोिशश कर कर
रहे थे च दर के ीय सरकार के िकसी ऊँचे पद पर आए, यह उनका सपना था च दर को
कॉलेज क व छ द और ढीली नौकरी पस द थी अ त म उसने यह सोचा िक पहले नौकरी
वीकार कर लेगा बाद म िफर कॉलेज चला आएगा-एक िदन रात को जब वह िबजली
बुझाकर, िकताब ब द कर सीने पर रखकर िसतार को देख रहा था और सोच रहा था िक अब
सुधा िद ली लौट गयी होगी, अगर िद ली रह गया तो बँगले म िकसे िटकाया जाएगा...इतने म
िकसी यि ने फाटक खोलकर बँगले म वेश िकया उसे ता जुब हआ िक इतनी रात को
कौन आ सकता है, और वह भी साइिकल लेकर! उसने िबजली जला दी तार वाला था
साइिकल खड़ी कर, तार वाला लॉन पर चला गया और तार दे िदया द तखत करके उसने
िलफाफा फाड़ा तार डॉ टर साहब का था िलखा था िक “अगली े न से फौरन चले आओ
टे शन पर सरकारी कार होगी सलेटी रं ग क ” उसके मन ने फौरन कहा, च दर, हो गये तम ु
के म!
उसक आँख से न द गायब हो गयी वह उठा, अगली े न सुबह तीन बजे जाती थी यारह
बजे थे अभी चार घंटे थे उसने एक अटैची म कुछ अ छे -से-अ छे सटू रखे , िकताब रख , और
माली को सहे जकर चल िदया मोटर को टे शन से वापस लाने क िद कत होती, ाइवर अब
था नह , अत: नौकर को अटैची देकर पैदल चल िदया राह म िसने मा से लौटता हआ र शा
िमल गया
च दर ने सेकड लास का िटकट िलया और ठाठ से चला कानपुर म उसने सादी चाय पी और
इटावा म रे तराँ-बार म जाकर खाना खाया उसके बगल म मारवाड़ी द पित बैठे थे जो सेकड
लास का िकराया खच करके ायि त व प एक आने क पकौड़ी और दो आने क दालमोठ
से उदर-पिू त कर रहे थे हाथरस टे शन पर एक मजेदार घटना घटी हाथरस म छोटी और
बड़ी लाइन ॉस करती ह छोटी लाइन ऊपर पुल पर खड़ी होती है टे शन के पास जब े न
धीमी हई तो सेठजी सो रहे थे सेठानी ने बाहर झाँककर देखा और िन संकोच उनके पथ ृ ुल
उदर पर कर- हार करके कहा, “हो! देखो रे लगाड़ी के िसर पर रे लगाड़ी!” सेठ एकदम च ककर
जागे और उछलकर बोले, “बाप रे बाप! उलट गयी रे लगाड़ी ज दी सामान उतार लुट गये
राम! ये तो जंगल है कहते थे जेवर न ले चल ”
च दर िखलिखलाकर हँ स पड़ा सेठजी ने प रि थित समझी और चुपचाप बैठ गये च दर
करवट बदलकर िफर पढ़ने लगा
इतने म ऊपर क गाड़ी से उतर कर कोई औरत हाथ म एक गठरी िलये आयी और अ दर य ही
घुसी िक मारवाड़ी बोला, “बुड्ढी, यह सेकड लास है ”
“होई! सेके ड-थड तो सब गोिव द क माया है, ब चा!”
च दर का महँु दस ू री ओर था, लेिकन उसने सोचा गोिव दजी क माया का वणन और िव े षण
करते हए रे ल के ड ब के वग करण को भी मायाजाल बताना शायद भागवतकार क िद य ि
से स भव होगा लेिकन यह भी मारवाड़ी कोई सुधा तो था नह िक वै णव सािह य और
गोिव दजी क माया का भ होता जब उसने कहा-गाड साहब को बुलाऊँ? तो बुिढ़या गरज
उठी-”बस-बस, चल हआँ से, गाड का तोर दमाद लगत है जौन बुलाइहै मोटका क !ू ”
च दर हँ स पड़ा, कम-से-कम गाली क नवीनता पर दस ू री बात; गाड़ी उस समय ज े म
थी, वहाँ यह अवधी का सफल व ा कौन है! उसने घम ू कर देखा एक बुिढ़या थी, िसर मड़
ु ाये
उसने कह देखा है इसे!
“कहाँ जाओगी, माई?”
“कानपुर जाबै ”
“लेिकन यह गाड़ी तो िद ली जाएगी?”
“तहु ँ बो यो टु प से! हम ऐसे धमकावे म नै आइत ई कानपुर जइहै!” उसने हाथ नचाकर
च दर से कहा और िफर जाने य क गयी और च दर क ओर देखने लगी िफर बोली,
“अरे च दर बेटवा, कहाँ से आवत हौ त!ू ”
“ओह! बुआजी ह िसर मड़ ु ा िलया तो पहचान म ही नह आत !” च दर ने फौरन उठकर पाँव
छुए बुआजी व ृ दावन से आ रही थ वह बैठ गय , बोल , “ऊ निटिनयाँ मर गयी िक अबिहन
है?”
“कौन?”
“ओही िबनती!”
“मरे गी य ?”
“भइया! सुकुल तो हमार कुल डुबोय िदिहन लेिकन जैसे ऊ हमरी िबिटया के मड़वा तरे से
उठाय िलिहन वैसे भगवान चाही तो उनह का लड़क से समझी!”
च दर कुछ नह बोला थोड़ी देर बाद खुद बड़बड़ाती हई बुआजी बोल , “अब हम का करै को
है हम सब मोह-माया याग िदया लेिकन हमरे याग म कु छौ समरथ है तो सुकुल को
बदला िमिलहै!”
कानपुर क गाड़ी आयी तो च दर खुद उ ह िबठाल आया िविच थ बुआजी, बेचारी कभी
समझ ही नह पाय िक िबनती को उठाकर डॉ टर साहब ने उपकार िकया या अपकार और मजा
तो यह है िक एक ही वा य के पवू ा म मायामोह से िवरि क घोषणा और उ रा म दुवासा
का शाप...िह दु तान के िसवा ऐसे नमन ू े कह भी िमलने मिु कल ह इतने म च दर क गाड़ी
ने सीटी दी वह भागा बुआजी ने च दर का खयाल छोड़कर अपने बगल के मस ु ािफर से
लड़ना शु कर िदया
वह िद ली पहँ चा दो-तीन साल पहले भी वह िद ली आया था लेिकन अब िद ली टे शन क
चहल-पहल ही दस ू री थी गाड़ी घंटा-भर लेट थी नौ बज चुके थे अगर मोटर न िमली तो
भी इतनी मशहर सड़क पर डॉ टर साहब का बँगला था िक च दर को िवशेष िद कत न होती
लेिकन य ही वह लेटफॉम से बाहर िनकला तो उसने देखा िक जहाँ मरकरी क बड़ी
सचलाइट लगी है, ठीक उसी के नीचे सलेटी रं ग क शानदार कार खड़ी थी िजसके आगे-पीछे
ाउन लगा था और सामने ितरं गा, आगे लाल वद पहने एक खानसामा बैठा है और पीछे एक
िसख ाइवर खड़ा है च दर का सटू चाहे िजतना अ छा हो लेिकन इस शान के लायक तो
नह ही था िफर भी वह बड़े रोब से गया और ाइवर से बोला, “यह िकसक मोटर है?”
“सकारी गड्डी है जी ” िसख ने अपनी ितभा का प रचय िदया
“ या यह डॉ टर शु ला ने भे जी है?”
“जी हाँ, हजरू !” एकदम उसका वर बदल गया-”आप ही उनके लड़के ह-च दर बहादुर साहब?”
उसने उतरकर सलाम िकया दरवाजा खोला, च दर बैठ गया कुली को एक अटैची के िलए
एक अठ नी दी मोटर उड़ चली
च दर बहत उदार िवचार का था लेिकन आज तक वह डॉ टर साहब क उ नीसव सदी वाली
पुरानी कार पर ही चढ़ा था इस राजमक ु ु ट और रा ीय वज से सुशोिभत मोटर पर खानसामे
के साथ चढऩे का उसका पहला ही मौका था उसे लगा जैसे इस समय ितरं गे का गौरव और
महान ि िटश सा ा य के इस ाउन का शासनद भ उसके मन को उड़ाये िलये जा रहा है
च दर तनकर बैठा लेिकन थोड़ी देर बाद वयं उसे अपने मन पर हँ सी आ गयी िफर वह
सोचने लगा िक िजन लोग के हाथ म आज शासन-स ा है; मोटर और खानसाम ने उनके
दय को इस तरह बदल िदया है वे भी तो बेचारे आदमी ह, इतने िदन से भुता के यासे
बेकार हम लोग उ ह गाली देते ह िफर च दर उन लोग का खयाल करके हँ स पड़ा
िद ली म इलाहाबाद क अपे ा कम गरमी थी कार एक बँगले के अ दर मड़ ु ी और पोिटको म
क गयी बँगला नये सादे अमे रकन ढंग का बना हआ था खानसामे ने उतरकर दरवाजा
खोला च दर उतर पड़ा ाइवर ने हॉन िदया दरवाजा खुला और िबनती िनकली उसका
महँु सखू ा हआ था, बाल अ त- य त थे और आँख जैसे रो-रोकर सज ू गयी थ च दर का िदल
धक्-से हो गया, राह-भर के सुनहरे सपने टूट गये
“ या बात है, िबनती? अ छी तो हो?” च दर ने पछ ू ा
“आओ, च दर?” िबनती ने कहा और अ दर जाते ही दरवाजा ब द कर िदया और च दर क बाँह
पकडक़र िससक-िससककर रो पड़ी च दर घबरा गया “ या बात है? बताओ न! डॉ टर
साहब कहाँ ह?”
“अ दर ह ”
“तब या हआ? तम ु इतनी दु:खी य हो?” च दर ने िबनती के िसर पर हाथ रखकर पछ ू ा...उसे
लगा जैसे इस सम त वातावरण पर िकसी बड़े भयानक म ृ यु-दत ू के पंख क काली छाया
है...” या बात है? बताती य नह ?”
िबनती बड़ी मिु कल से बोली, “दीदी...सुधा दीदी...”
च दर को लगा जैसे उस पर िबजली टूट पड़ी-” या हआ सुधा को?” िबनती कुछ नह बोली, उसे
ऊपर ले गयी और कमरे के पास जाकर बोली, “उसी म ह दीदी!”
47

कमरे के अ दर क रोशनी उदास, फ क और बीमार थी एक नस सफेद पोशाक पहने पलँग


के िसरहाने खड़ी थी, और कुस पर िसर झक ु ाये डॉ टर साहब बैठे थे पलँग पर चादर ओढ़े
सुधा पड़ी थी नस सामने थी, अत: सुधा का चे हरा नह िदखाई पड़ रहा था च दर के भीतर
पाँव रखते ही नस ने आँख के इशारे से कहा, “बाहर जाइए ” च दर िठठककर खड़ा हो गया,
डॉ टर साहब ने देखा और वे भी उठकर चले आये
“ या हआ सुधा को?” च दर ने बहत याकुल, बहत कातर वर म पछ ू ा डॉ टर साहब कुछ
नह बोले चुपचाप च दर के क धे पर हाथ रखे हए अपने कमरे म आये और बहत भारी वर म
बोले, “हमारी िबिटया गयी, च दर!” और आँसू छलक आये
“ या हआ उसे?” च दर ने िफर उतने ही दु:खी वर म पछ ू ा
डॉ टर साहब ण-भर पथराई आँख से च दर क ओर देखते रहे , िफर िसर झक ु ाकर बोले,
“एबॉशन!” थोड़ी देर बाद िसर उठाकर याकुल क तरह च दन का क धा पकडक़र बोले,
“च दर, िकसी तरह बचाओ सुधा को, या कर कुछ समझ म नह आता...अब बचे गी
नह ...परस से होश नह आया जाओ कपड़े बदलो, खाना खा लो, रात-भर जागरण होगा...”
लेिकन च दर उठा नह , कुस पर िसर झक ु ाये बैठा रहा
सहसा नस आकर बोली, “ लीिडंग िफर शु हो गयी और नाड़ी डूब रही है डॉ टर को
बुलाइए...फौरन!” और वह लौट गयी
डॉ टर साहब उठ खड़े हए उनक आँख म बड़ी िनराशा थी बड़ी उदासी से बोले, “जा रहा
हँ , च दर! अभी आता हँ !” च दर ने देखा, कार बड़ी तेजी से जा रही है िबनती आकर बोली,
“खाना खा लो, च दर!” च दर ने सुना ही नह
“यह या हआ, िबनती!” उसने घबराई आवाज म पछ ू ा
“कुछ समझ म नह आता, उस िदन सुबह जीजाजी गये दोपहर म पापा ऑिफस गये थे म सो
रही थी, सहसा जीजी चीखी म जागी तो देखा दीदी बेहोश पड़ी ह मने ज दी से फोन
िकया पापा आये, डॉ टर आये उसके बाद से पापा और नस के अलावा िकसी को नह जाने
देते दीदी के पास मझ ु े भी नह ”
और िबनती रो पड़ी च दर कुछ नह बोला चुपचाप प थर क मिू त-सा कुस पर बैठा रहा
िखडक़ से बाहर क ओर देख रहा था
थोड़ी देर म डॉ टर साहब वापस आये उनके साथ तीन डॉ टर थे और एक नस डॉ टर ने
करीब दस िमनट देखा, िफर अलग कमरे म जाकर सलाह करने लगे जब लौटे तो डॉ टर
साहब ने बहत िव ïल होकर कहा, “ या उ मीद है?”
“घबराइए मत, घबराइए मत-अब तो जब तक अ द नी सब साफ नह हो जाएगा तब तक खन ू
जाएगा न ज के िलए और होश के िलए एक इंजे शन देते ह-अभी ”
इंजे शन देने के बाद डॉ टर चले गये पापा वह जाकर बैठ गये िबनती और च दर चुपचाप
बैठे रहे करीब पाँच िमनट के बाद सुधा ने भयंकर वर म कराहना शु िकया उन कराह म
जैसे उनका कलेजा उलटा आता हो डॉ टर साहब उठकर यहाँ चले आये और च दर से बोले,
“वेहीमट लीिडंग...” और कुस पर िसर झक ु ाकर बैठ गये बगल के कमरे से सुधा क
ददनाक कराह उठती थ और स नाटे म छटपटाने लगती थ अगर आपने िकसी िज दा मग ु
के पंख और पँछू नोचे जाते हए देखा हो तभी आप उसका अनुमान कर सकते ह; उस भयानकता
का, जो उन कराह म थी थोड़ी देर बाद कराह ब द हो गय , िफर सहसा इस बुरी तरह से सुधा
चीखी जैसे गाय डकार रही हो पापा उठकर भागे-वह भयंकर चीख उठी और स नाटे म
मँडराने लगी-िबनती रो रही थी-च दर का चे हरा पीला पड़ गया था और पसीने से तर हो गया
था वह
पापा लौटकर आये, “हम लोग देख सकते ह?” च दर ने पछ ू ा
“अभी नह -अब लीिडंग ख म है ...नस अभी कपड़े बदल दे तो चलगे ”
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थोड़ी देर म तीन गये और जाकर खड़े हो गये अब च दर ने सुधा को देखा उसका चे हरा
सफेद पड़ गया था जैसे जाड़े के िदन म थोड़ी देर पानी म रहने के बाद उँ गिलय का रं ग
र हीन े त हो जाता है गाल क हड्िडïयाँ िनकल आयी थ और होठ काले पड़ गये थे
पलक के चार ओर कालापन गहरा गया था और आँख जैसे बाहर िनकली पड़ती थ खन ू
इतना अिधक गया था िक लगता था बदन पर चमड़े क एक ह क िझ ली मढ़ दी गयी हो
यहाँ तक िक भीतर क हड्डी के उतार-चढ़ाव तक प िदख रहे थे च दर ने डरते-डरते माथे
पर हाथ रखा सुधा के होठ म कुछ हरकत हई, उसने महँु खोल िदया और आँख ब द िकये हए
ही उसने करवट बदली, िफर कराही और िसर से पैर तक उसका बदन काँप उठा नस ने नाड़ी
देखी और कहा, अब ठीक है कमजोरी बहत है थोड़ी देर बाद पसीना िनकलना शु हआ
पसीना प छते-प छते एक बज गया िबनती बोली डॉ टर साहब से-”मामाजी, अब आप सो
जाइए च दर देख लगे आज नस है ही ”
डॉ टर साहब क आँख लाल हो रही थ सबके कहने पर वह अपनी सीट पर लेट रहे नस
बोली, “म बाहर आराम कुस पर थोड़ा बैठ लँ ू कोई ज रत हो तो बुला लेना ” च दर जाकर
सुधा के िसरहाने बैठ गया िबनती बोली, “तम ु थके हए आये हो चलो तमु भी सो रहो म
देख रही हँ !”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया चुपचाप बैठा रहा िबनती ने सभी िखड़िकयाँ खोल द और
च दर के पास ही बैठ गयी सुधा सो रही थी चुपचाप थोड़ी देर बाद िबनती उठी, घड़ी देखी,
महँु खोलकर दवा दी सहसा डॉ टर साहब घबराये हए-से आये-” या बात है, सुधा य
चीखी!”
“कुछ नह , सुधा तो सो रही है चुपचाप!” िबनती बोली
“अ छा, मझ ु े न द म लगा िक वह चीखी है ” िफर वह खड़े -खड़े सुधा का माथा सहलाते रहे
और िफर लौट गये नस अ दर थी िबनती च दर को बाहर ले आयी और बोली, “देखो, तम ु
कल जीजाजी को एक तार दे देना!”
“लेिकन अब वह ह गे कहाँ?”
“िवजगाप म या कोल बो म जहाजी क पनी के पते से िदलवा देना तार ”
दोन िफर जाकर सुधा के पास बैठ गये नस बाहर सो रही थी साढ़े तीन बज गये थे ठं डी
हवा चल रही थी िबनती च दर के क धे पर िसर रखकर सो गयी सहसा सुधा के होठ िहले
और उसने कुछ अ फुट वर म कहा च दर ने सुधा के माथे पर हाथ रखा माथा सहसा
जलने लगा था; च दर घबरा उठा उसने नस को जगाया नस ने बगल म थमामीटर
लगाया ताप म एक सौ पाँच था सारा बदन जल रहा था और रह-रहकर वह काँप उठती
थी च दर ने िफर घबराकर नस क ओर देखा “घबराइए मत! डॉ टर अभी आएगा ”
लेिकन थोड़ी देर म हालत और िबगड़ गयी और िफर उसी तरह ददनाक कराह सुबह क हवा
म िसर पटकने लग नस ने इन लोग को बाहर भे ज िदया और बदन अँगोछने लगी
थोड़ी देर म सुधा ने चीखकर पुकारा-”पापा...” इतनी भयानक आवाज थी िक जैसे सुधा को
नरक के दत ू पकड़े ले जा रहे ह पापा गये सुधा का चे हरा लाल था और वह हाथ पटक रही
थी ...पापा को देखते ही बोली, “पापा...च दर को इलाहाबाद से बुलवा दो ”
“च दर आ गया बेटा, अभी बुलाते ह ” य ही पापा ने माथे पर हाथ रखा िक सुधा चीख
उठी-”तम ु पापा नह हो...कौन हो तम ु ?...दरू हटो, छुओ मत...अरे िबनती...”
डॉ टर शु ला ने नस क ओर देखा नस बोली-
सुधा ने िफर करवट बदली और नस को देखकर बोली, “कौन गेस.ू ..आओ बैठो च दर नहा
रहा है अभी बुलाती हँ अरे च दर...” और िफर हाँफने लगी, आँख ब द कर ल और रोकर
बोली, “पापा, तमु कहाँ चले गये?”
नस ने च दर और िबनती को बुलाया िबनती पास जाकर खड़ी हो गयी-आँसू प छकर बोली,
“दीदी, हम आ गये ” और सुधा क बाँह पर हाथ रख िदया सुधा ने आँख नह खोल , िबनती
के हाथ पर हाथ रखकर बोली, “िबनती, पापा कहाँ गये ह?”
“खड़े तो ह मामाजी!”
“झठू मत बोल क ब त...अ छा ले, शरबत तैयार है, जा च दर टडी म म पढ़ रहा है बुला ला,
जा!”
िबनती फफककर रो पड़ी
“रोती य है?” सुधा ने कराहकर कहा, “म जाऊँगी तो च दर को तेरे पास छोड़ जाऊँगी जा
च दर को बुला ला, नह बफ घुल जाएगी-शरबत छान िलया है?”
च दर आगे आया ँ धे गले से आँसू पीते हए बोला, “सुधा, आँख खोलो हम आ गये, सुधी!”
डॉ टर साहब कुस पर पड़े िससक रहे थे...सुधा ने आँख खोल और च दर को देखते ही िफर
बहत जोर से चीखी...”तम ु ...तमु ऑ े िलया से लौट आये? झठ ू े ! तम
ु च दर हो? या म तु ह
पहचानती नह ? अब या चािहए? इतना कहा, तम ु से हाथ जोड़ा, मेरी या हालत है? लेिकन
तु ह या? जाओ यहाँ से वना म अभी िसर पटक दँग ू ी...” और सुधा ने िसर पटक िदया-”नह
गये?” नस ने इशारा िकया-च दर कमरे के बाहर आया और कुस पर िसर झक ु ाकर बैठ गया
सुधा ने आँख खोल और फटी-फटी आँख से चार ओर देखने लगी िफर नस से बोली-
“गेस,ू तमु बहत बहादुर हो! तम ु ने अपने को बेचा नह ; अपने पैर पर खड़ी हो िकसी के आ य
म नह हो कोई खाना-कपड़ा देकर तु ह खरीद नह सकता, गेसू िबनती कहाँ गयी...?”
“म खड़ी हँ , दीदी?”
“ह...अ छा, पापा कहाँ ह?” सुधा ने कराहकर पछ ू ा
डॉ टर साहब उठकर आ गये-”बेटा!” बड़े दुलार से सुधा के माथे पर हाथ रखकर बोले सुधा रो
पड़ी-”कहाँ थे पापा, अभी तक तम ु ? हमने इतना पुकारा, न तम ु बोले न च दर बोला...हम तो डर
लग रहा था, इतना सन ू ा था...जाओ महरािजन ने रोटी सक ली है-खा लो हाँ, ऐसे बैठ
जाओ लो पापा, हमने नानखटाई बनायी...”
डॉ टर शु ला रोते हए चले गये-िबनती ने च दर को बुलाया देखा च दर कुस पर हथेली म
महँु िछपाये बैठा था िबनती गयी और च दर के क धे पर हाथ रखा च दर ने देखा और िसर
झक ु ा िलया, “चलो च दर, दीदी िफर बेहोश हो गय ”
इतने म नस बोली “वह िफर होश म आयी ह; आप लोग वह चिलए ”
सुधा ने आँख खोल दी थ -च दर को देखते ही बोली, “च दर आओ, कोई मा टर ठीक िकया
तम ु ने ? जो कुछ पढ़ा था वह भल ू रही हँ अब इ तहान म पास नह होऊँगी ”
“डे ली रयम अब भी है ” नस बोली सहसा सुधा ने च दर का हाथ छोड़ िदया और झट से
हथेिलयाँ आँख पर रख ल और बोली, “ये कौन आ गया? यह च दर नह है च दर नह है
च दर होता तो मझ ु े डाँटता- य बीमार पड़ ? अब बताओ म च दर को या जवाब दँग ू ी...च दर
को बुला दो, गेस!ू िजंदगी म दु मनी िनभायी, अब मौत म तो न िनभाए ”
“उफ! मरीज के पास इतने आदमी? तभी डे ली रयम होता है ” सहसा डॉ टर ने वेश िकया
कोई दस ू रा डॉ टर था, अँ ेज था िबनती और च दर बाहर चले आये िबनती बोली, “ये
िसिवल सजन ह ” उसने खन ू मँगवाया, देखा, िफर डॉ टर शु ला को भी हटा िदया िसफ
नस रह गयी थोड़ी देर बाद वह िनकला तो उसका चे हरा याह था “ या यह ै ने सी
पहली मतबा थी?”
“जी हाँ?”
डॉ टर ने िसर िहलाया और कहा, “अब मामला हाथ से बाहर है इंजे शन लगगे अ पताल
ले चिलए ”
“डॉ टर शु ला, मवाद आ रहा है, कल तक सारे बदन म फै ल जाएगा, िकस बेवकूफ डॉ टर ने
देखा था...”
च दर ने फोन िकया ऐ बुले स कार आ गयी सुधा को उठाया गया...
िदन बड़ी ही िच ता म बीता तीन-तीन घंटे पर इंजे शन लग रहे थे दोपहर को दो बजे
इंजे शन ख म कर डॉ टर ने एक गहरी साँस ली और बोला, “कुछ उ मीद है-अगर बारह घंटे
तक हाट ठीक रहा तो म आपक लड़क आपको वापस दँग ू ा ”
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बड़ा भयानक िदन था बहत ऊँची छत का कमरा, दालान म टाट के परदे पड़े थे और बाहर
गम क भयानक लू ह-ह करती हई दानव क तरह महँु फाड़े दौड़ रही थी डॉ टर साहब
िसरहाने बैठे थे, पथरीली िनगाह से सुधा के पीले मतृ ाय चे हरे क ओर देखते हए...िबनती और
च दर िबना कुछ खाये-पीये चुपचाप बैठे थे-रह-रहकर िबनती िससक उठती थी, लेिकन च दर
ने मन पर प थर रख िलया था वह एकटक एक ओर देख रहा था...कमरे म वातावरण शा त
था-रह-रहकर िबनती क िससिकयाँ, पापा क िन: ास तथा घड़ी क िनर तर िटक-िटक
सुनाई पड़ रही थी
च दर का हाथ िबनती क गोद म था एक मक ू संवेदना ने िबनती को सँभाल रखा था
च दर कभी िबनती क ओर देखता, कभी घड़ी क ओर सुधा क ओर नह देख पाता था
दुख अपनी परू ी चोट करने के व अकसर आदमी क आ मा और मन को लोरोफाम सँुघा देता
है च दर कुछ भी सोच नह पा रहा था सं ा-हत, नीरव, िन े ...
घड़ी क सुई अिवराम गित से चल रही थी सजन कई दफे आये नस ने आकर टे परे चर
िलया रात को यारह बजे टे परे चर उतरने लगा डॉ टर शु ला क आँख चमक उठ ठीक
बाहर बजकर पाँच िमनट पर सुधा ने आँख खोल द च दर ने िबनती का हाथ मारे खुशी से
दबा िदया
“िबनती कहाँ है?” बड़े ीण वर म पछ ू ा
सुधा ने आँख घुमाकर देखा पापा को देखते ही मु करा पड़ी
िबनती और च दर उठकर आ गये
“आहा, च दर तम ु आ गये? हमारे िलए या लाये?”
“पगली कह क !” मारे खुशी के च दर का गला भर गया
“लेिकन तम ु इतनी देर म य आये, च दर!”
“कल रात को ही आ गये थे हम ”
“चलो-चलो, झठ ू बोलना तो तु हारा धम बन गया कल रात को आ गये होते तो अभी तक हम
अ छे भी हो गये होते ” और वह हाँफने लगी
सजन आया, “बात मत करो...” उसने कहा
उसने एक िम सचर िदया िफर आला लगाकर देखा, और डॉ टर शु ला को अलग ले जाकर
कहा, “अभी दो घंटे और खतरा है लेिकन परे शान मत होइए अब स र ितशत आशा है
मरीज जो कहे , उसम बाधा मत दीिजएगा उसे जरा भी परे शानी न हो ”
सुधा ने च दर को बुलाया, “च दर, पापा से मत कहना अब म बचँग ू ी नह अब कह मत
जाना, यह बैठो ”
“िछः पगली! डॉ टर कह रहा है अब खतरा नह है ” च दर ने बहत यार से कहा, “अभी तो
तमु हमारे िलए िज दा रहोगी न!”
“कोिशश तो कर रही हँ च दर, मौत से लड़ रही हँ ! च दर, उ ह तार दे दो! पता नह देख
पाऊँगी या नह ”
“दे िदया, सुधा!” च दर ने कहा और िसर झक ु ाकर सोचने लगा
“ या सोच रहे हो, च दर! उ ह इसीिलए देखना चाहती हँ िक मरने के पहले उ ह मा कर दँ,ू
उनसे मा माँग लँ!ू ...च दर, तम ु तकलीफ का अ दाजा नह कर सकते ”
डॉ टर शु ला आये सुधा ने कहा, “पापा, आज तु हारी गोद म लेट ल ” उ ह ने सुधा का
िसर गोद म रख िलया “पापा, च दर को समझा दो, ये अब अपना याह तो कर ले ...हाँ
पापा, हमारी भागवत मँगवा दो...”
“शाम को मँगवा दगे बेटी, अब एक बज रहा है...”
“देखा...” सुधा ने कहा, “िबनती, यहाँ आओ!”
िबनती आयी सुधा ने उसका माथा चम ू कर कहा, “रानी, जो कुछ तझ ु े आज तक समझाया वैसा
ही करना, अ छा! पापा तेरे िज मे ह ”
िबनती रोकर बोली, “दीदी, ऐसी बात य करती हो...”
सुधा कुछ न बोली, गोद से हटाकर िसर तिकये पर रख िलया
“जाओ पापा, अब सो रहो तम ु ”
“सो लँगू ा, बेटी...”
“जाओ नह िफर हम अ छे नह ह गे! जाओ...”
सजन का आदेश था िक मरीज के मन के िव कुछ नह होना चािहए-डॉ टर शु ला चुपचाप
उठे और बाहर िबछे पलँग पर लेट रहे
सुधा ने च दर को बुलाया, बोली, “म झक ु नह सकती-िबनती यहाँ आ-हाँ, च दर के पैर छू...अरे
अपने माथे म नह पगली मेरे माथे से लगा दे मझ ु से झक ु ा नह जाता ” िबनती ने रोते हए
सुधा के माथे म चरण-धल ू लगा दी, “रोती य है, पगली! म मर जाऊँ तो च दर तो है ही अब
च दर तझ ु े कभी नह लाएँ गे...चाहे पछू लो! इधर आओ, च दर! बैठ जाओ, अपना हाथ मेरे
होठ पर रख दो...ऐसे...अगर म मर जाऊँ तो रोना मत, च दर! तम ु ऊँचे बनोगे तो मझु े बहत चैन
िमलेगा म जो कुछ नह पा सक , वह शायद तु हारे ही मा यम से िमलेगा मझ ु े और देखो,
पापा को अकेले िद ली म न छोडऩा...लेिकन म म ँ गी नह , च दर...यह नरक भोगकर भी
तु ह यार क ँ गी...म मरना नह चाहती, जाने िफर कभी तम ु िमलो या न िमलो, च दर...उफ
िकतनी तकलीफ है, च दर! हम लोग ने कभी ऐसा नह सोचा था...अरे हटो-हटो...च दर!”
सहसा सुधा क आँख म िफर अँधेरा छा गया-”भागो, च दर! तु हारे पीछे कौन खड़ा है?” च दर
घबराकर उठ गया-पीछे कोई नह था... “अरे च दर, तु ह पकड़ रहा है च दर, तम ु मेरे पास
आओ ” सुधा ने च दर का हाथ पकड़ िलया-िबनती भागकर डॉ टर साहब को बुलाने गयी
नस भी भागकर आयी सुधा चीख रही थी-”तम ु हो कौन? च दर को नह ले जा सकते म
चल तो रही हँ च दर, म जाती हँ इसके साथ, घबराना मत म अभी आती हँ तम ु तब तक
चाय पी लो-नह , म तु ह उस नरक म नह जाने दँग ू ी, म जा तो रही हँ -िबनती, मेरी च पल ले
आ...अरे पापा कहाँ ह...पापा...”
और सुधा का िसर च दर क बाँह पर लुढ़क गया-िबनती को नस ने सँभाला और डॉ टर शु ला
पागल क तरह सजन के बँगले क ओर दौड़े ...घड़ी ने टन-टन दो बजाये...
जब ए बुले स कार पर सुधा का शव बँगले पहँ चा तो शंकर बाबू आ गये थे-बह को िवदा कराने ...
उपसंहार
50

िजंदगी का य णा-च एक व ृ परू ा कर चुका था िसतारे एक ि ितज से उठकर, आसमान


पार कर दस ू रे ि ितज तक पहँ च चुके थे साल-डे ढ़ साल पहले सहसा िजंदगी क लहर म
उथल-पुथल मच गयी थी और िव ु ध महासागर क तरह भख ू ी लहर क बाँह पसारकर वह
िकसी को दबोच लेने के िलए हं कार उठी थी अपनी भयानक लहर के िशकंजे म सभी को
झकझोरकर, सभी के िव ास और भावनाओं को चकनाचरू कर अ त म सबसे यारे , सबसे
मासम ू और सबसे सुकुमार यि व को िनगलकर अब धरातल शा त हो गया-तफ ू ान थम गया
था, बादल खुल गये थे और िसतारे िफर आसमान के घ सल से भयभीत िवहं ग-शावक क तरह
झाँक रहे थे
डॉ टर शु ला छु ी लेकर याग चले आये थे उ ह ने पज ू ा-पाठ छोड़ िदया था उ ह कभी
िकसी ने गाते हए नह सुना था अब वह सुबह उठकर लॉन पर टहलते और एक भजन गाते
थे िबनती, जो इतनी सु दर थी, अब केवल खामोश पीड़ा और अवशेष मिृ त क छाया मा
थी च दर शा त था, प थर हो गया था, लेिकन उसके माथे का तेज बुझ गया था और वह
बढ़ू ा-सा लगने लगा था और यह सब केवल प ह िदन म
जेठ दशहरे के िदन डॉ टर साहब बोले, “च दर, आज जाओ, उसके फूल छोड़ आओ, लेिकन
देखो, शाम को जाना जब वहाँ भीड़-भाड़ न हो, अ छा!” और चुपचाप टहलकर गन ु गन
ु ाने
लगे
शाम को च दर चला तो िबनती भी चुपचाप साथ हो ली; न िबनती ने आ ह िकया न च दर ने
वीकृित दी दोन खामोश चल िदये कार पर च दर ने िबनती क गोद म गठरी रख दी
ि वेणी पर कार क गयी ह क चाँदनी मैले कफन क तरह लहर क लाश पर पड़ी हई
थी िदन-भर कमाकर म लाह थककर सो रहे थे एक बढ़ ू ा बैठा िचलम पी रहा था चुपचाप
उसक नाव पर च दर बैठ गया िबनती उसक बगल म बैठ गयी दोन खामोश थे, िसफ
पतवार क छप-छप सुन पड़ती थी म लाह ने त त के पास नाव बाँध दी और बोला, “नहा ल
बाब!ू ” वह समझता था बाबू िसफ घम ू ने आये ह
“जाओ!”
वह दरू त त क कतार के उस छोर पर जाकर खो गया िफर दरू -दरू तक फै ला संगम...और
स नाटा...च दर िसर झक ु ाये बैठा रहा...िबनती िसर झक
ु ाये बैठी रही थोड़ी देर बाद िबनती
िससक पड़ी च दर ने िसर उठाया और फौलादी हाथ से िबनती का कंधा झकझोरकर बोला,
“िबनती, यिद रोयी तो यही फक दगे उठाकर क ब त, अभागी!”
िबनती चुप हो गयी
च दर चुपचाप बैठा त त के नीचे से गज ु रती हई लहर को देखता रहा थोड़ी देर बाद उसने
गठरी खोली...िफर क गया, शायद फकने का साहस नह हो रहा था...िबनती ने पीछे से
आकर एक मु ी राख उठा ली और अपने आँचल म बाँधने लगी च दर ने चुपचाप उसक ओर
देखा, िफर झपटकर उसने िबनती का आँचल पकडक़र राख छीन ली और गरु ाता हआ बोला,
“बदतमीज कह क !...राख ले जाएगी-अभागी!” और झट से कपड़े सिहत राख फक दी और
आ ने य ि से िबनती क ओर देखकर िफर िसर झक ु ा िलया लहर म राख एक जहरीले
पिनयाले साँप क तरह लहराती हई चली जा रही थी
िबनती चुपचाप िससक रही थी
“नह चुप होगी!” च दर ने पागल क तरह िबनती को ढकेल िदया, िबनती ने बाँस पकड़
िलया और चीख पड़ी
चीख से च दर जैसे होश म आ गया थोड़ी देर चुपचाप रहा िफर झक ु कर अंजिल म पानी लेकर
महँु धोया और िबनती के आँचल से प छकर बहत मधुर वर म बोला, “िबनती, रोओ मत! मेरी
समझ म नह आता कुछ भी! रोओ मत!” च दर का गला भर आया और आँख म आँसू छलक
आये-”चुप हो जाओ, रानी! म अब इस तरह कभी नह क ँ गा-उठो! अब हम दोन को िनभाना
है, िबनती!” च दर ने त त पर छीना-झपटी म िबखरी हई राख चुटक म उठायी और िबनती
क माँग म भरकर माँग चम ू ली उसके होठ राख म सन गये
िसतारे टूट चुके थे तफ
ू ान ख म हो चुका था
नाव िकनारे पर आकर लग गयी थी-म लाह को चुपचाप पये देकर िबनती का हाथ थामकर
च दर ठोस धरती पर उतर पड़ा...मदु ा चाँदनी म दोन छायाएँ िमलती-जुलती हई चल द
गंगा क लहर म बहता हआ राख का साँप टूट-फूटकर िबखर चुका था और नदी िफर उसी तरह
बहने लगी थी जैसे कभी कुछ हआ ही न हो

समा

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