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भारती), Dharamvir Bharati (धर्मवीर - गुनाहों का देवता - Gunahon Ka Devta
भारती), Dharamvir Bharati (धर्मवीर - गुनाहों का देवता - Gunahon Ka Devta
ु ाह का देवता
धमवीर भारती
वैसे तो यह घर, यह प रवार च कपरू का अपना हो चुका था; जब से वह अपनी माँ से झगडक़र
याग भाग आया था पढऩे के िलए, यहाँ आकर बी. ए. म भरती हआ था और कम खच के
खयाल से चौक म एक कमरा लेकर रहता था, तभी डॉ टर शु ला उसके सीिनयर टीचर थे और
उसक प रि थितय से अवगत थे च दर क अँ ेजी बहत ही अ छी थी और डॉ. शु ला उससे
अ सर छोटे -छोटे लेख िलखवाकर पि काओं म िभजवाते थे उ ह ने कई प के आिथक
त भ का काम च दर को िदलवा िदया था और उसके बाद च दर के िलए डॉ. शु ला का थान
अपने संर क और िपता से भी यादा हो गया था च दर शरमीला लड़का था, बेहद शरमीला,
कभी उसने यिू नविसटी के वजीफे के िलए भी कोिशश न क थी, लेिकन जब बी. ए. म वह सारी
यिू नविसटी म सव थम आया तब वयं इकनॉिम स िवभाग ने उसे यिू नविसटी के आिथक
काशन का वैतिनक स पादक बना िदया था एम. ए. म भी वह सव थम आया और उसके
बाद उसने रसच ले ली उसके बाद डॉ. शु ला यिू नविसटी से हटकर यरू ो म चले गये थे
अगर सच पछ ू ा जाय तो उसके सारे कै रयर का ये डॉ. शु ला को था िज ह ने हमेशा उसक
िह मत बढ़ायी और उसको अपने लड़के से बढक़र माना अपनी सारी मदद के बावजदू डॉ.
शु ला ने उससे इतना अपनापन बनाये रखा िक कैसे धीरे -धीरे च दर सारी गै रयत खो बैठा;
यह उसे खुद नह मालम ू यह बँगला, इसके कमरे , इसके लॉन, इसक िकताब, इसके िनवासी,
सभी कुछ जैसे उसके अपने थे और सभी का उससे जाने िकतने ज म का स ब ध था
और यह न ही दुबली-पतली रं गीन च िकरन-सी सुधा जब आज से वष पहले यह सातव
पास करके अपनी बुआ के पास से यहाँ आयी थी तब से लेकर आज तक कैसे वह भी च दर क
अपनी होती गयी थी, इसे च दर खुद नह जानता था जब वह आयी थी तब वह बहत शरमीली
थी, बहत भोली थी, आठव म पढऩे के बावजदू वह खाना खाते व रोती थी, मचलती थी तो
अपनी कॉपी फाड़ डालती थी और जब तक डॉ टर साहब उसे गोदी म िबठाकर नह मनाते थे,
वह कूल नह जाती थी तीन बरस क अव था म ही उसक माँ चल बसी थी और दस साल
तक वह अपनी बुआ के पास एक गाँव म रही थी अब तेरह वष क होने पर गाँव वाल ने
उसक शादी पर जोर देना और शादी न होने पर गाँव क औरत ने हाथ नचाना और महँु
मटकाना शु िकया तो डॉ टर साहब ने उसे इलाहाबाद बुलाकर आठव म भत करा िदया
जब वह आयी थी तो आधी जंगली थी, तरकारी म घी कम होने पर वह महरािजन का चौका जठ ू ा
कर देती थी और रात म फूल तोडक़र न लाने पर अकसर उसने माली को दाँत भी काट खाया
था च दर से ज र वह बेहद डरती थी, पर न जाने य च दर भी उससे नह बोलता था
लेिकन जब दो साल तक उसके ये उप व जारी रहे और अ सर डॉ टर साहब गु से के मारे उसे
न साथ िखलाते थे और न उससे बोलते थे, तो वह रो-रोकर और िसर पटक-पटककर अपनी
जान आधी कर देती थी तब अ सर च दर ने िपता और पु ी का समझौता कराया था, अ सर
सुधा को डाँटा था, समझाया था, और सुधा, घर-भर से अ हड़ पुरवाई और िव ोही झ के क तरह
तोड़-फोड़ मचाती रहने वाली सुधा, च दर क आँख के इशारे पर सुबह क नसीम क तरह
शा त हो जाती थी कब और य उसने च दर के इशार का यह मौन अनुशासन वीकार कर
िलया था, यह उसे खुद नह मालम ू था, और यह सभी कुछ इतने वाभािवक ढंग से, इतना
अपने -आप होता गया िक दोन म से कोई भी इस ि या से वािकफ नह था, कोई भी इसके
ित जाग क न था, दोन का एक-दस ू रे के ित अिधकार और आकषण इतना वाभािवक था
जैसे शरद क पिव ता या सुबह क रोशनी
और मजा तो यह था िक च दर क श ल देखकर िछप जाने वाली सुधा इतनी ढीठ हो गयी थी
िक उसका सारा िव ोह, सारी झझ ँु लाहट, िमजाज क सारी तेजी, सारा तीखापन और सारा
लड़ाई-झगड़ा, सभी क तरफ से हटकर च दर क ओर केि त हो गया था वह िव ोिहनी अब
शा त हो गयी थी इतनी शा त, इतनी सुशील, इतनी िवन , इतनी िम भािषणी िक सभी को
देखकर ता जुब होता था, लेिकन च दर को देखकर जैसे उसका बचपन िफर लौट आता था और
जब तक वह च दर को िखझाकर, छे डक़र लड़ नह लेती थी उसे चैन नह पड़ता था अ सर
दोन म अनबोला रहता था, लेिकन जब दो िदन तक दोन महँु फुलाये रहते थे और डॉ टर
साहब के लौटने पर सुधा उ साह से उनके यरू ो का हाल नह पछ ू ती थी और खाते व दुलार
नह िदखाती थी तो डॉ टर साहब फौरन पछ ू ते थे, “ या... च दर से लड़ाई हो गयी या?” िफर
वह महँु फुलाकर िशकायत करती थी और िशकायत भी या- या होती थ , च दर ने उसक हे ड
िम े स का नाम एलीफटा ( ीमती हिथनी) रखा था, या च दर ने उसको िडबेट के भाषण के
वाइंट नह बताये, या च दर कहता है िक सुधा क सिखयाँ कोयला बेचती ह, और जब डॉ टर
साहब कहते ह िक वह च दर को डाँट दगे तो वह खुशी से फूल उठती और च दर के आने पर
आँख नचाती हई िचढ़ाती थी, “कहो, कैसी डाँट पड़ी?”
वैसे सुधा अपने घर क पुरिखन थी िकस मौसम म कौन-सी तरकारी पापा को मािफक पड़ती
है, बाजार म चीज का या भाव है, नौकर चोरी तो नह करता, पापा िकतने सोसायिटय के
मे बर ह, च दर के इ नॉिम स के कोस म या है, यह सभी उसे मालम ू था मोटर या िबजली
िबगड़ जाने पर वह थोड़ी-बहत इंजीिनय रं ग भी कर लेती थी और मात ृ व का अंश तो उसम
इतना था िक हर नौकर और नौकरानी उससे अपना सुख-दु:ख कह देते थे पढ़ाई के साथ-
साथ घर का सारा काम-काज करते हए उसका वा य भी कुछ िबगड़ गया था और अपनी उ
के िहसाब से कुछ अिधक शा त, संयम, ग भीर और बुजुग थी, मगर अपने पापा और च दर, इन
दोन के सामने हमेशा उसका बचपन इठलाने लगता था दोन के सामने उसका दय उ मु
था और ने ह बाधाहीन
लेिकन हाँ, एक बात थी उसे िजतना ने ह और ने ह-भरी फटकार और वा य के ित
िच ता अपने पापा से िमलती थी, वह सब बड़े िन: वाथ भाव से वह च दर को दे डालती थी
खाने -पीने क िजतनी परवाह उसके पापा उसक रखते थे, न खाने पर या कम खाने पर उसे
िजतने दुलार से फटकारते थे, उतना ही याल वह च दर का रखती थी और वा य के िलए
जो उपदेश उसे पापा से िमलते थे, उसे और भी ने ह म पागकर वह च दर को दे डालती थी
च दर कै बजे खाना खाता है, यहाँ से जाकर घर पर िकतनी देर पढ़ता है, रात को सोते व दध ू
पीता है या नह , इन सबका लेखा-जोखा उसे सुधा को देना पड़ता, और जब कभी उसके खाने -
पीने म कोई कमी रह जाती तो उसे सुधा क डाँट खानी ही पड़ती थी पापा के िलए सुधा अभी
ब ची थी; और वा य के मामले म सुधा के िलए च दर अभी ब चा था और कभी-कभी तो
सुधा क वा य-िच ता इतनी यादा हो जाती थी िक च दर बेचारा जो खुद त दु त था,
घबरा उठता था एक बार सुधा ने कमाल कर िदया उसक तबीयत खराब हई और डॉ टर ने
उसे लड़िकय का एक टॉिनक पीने के िलए बताया इ तहान म जब च दर कुछ दुबला-सा हो
गया तो सुधा अपनी बची हई दवा ले आयी और लगी च दर से िजद करने िक “िपयो इसे!”
जब च दर ने िकसी अखबार म उसका िव ापन िदखाकर बताया िक लड़िकय के िलए है, तब
कह जाकर उसक जान बची
इसीिलए जब आज सुधा ने चाय के िलए कहा तो उसक ह काँप गयी य िक जब कभी सुधा
चाय बनाती थी तो याले के महँु तक दध ू भरकर उसम दो-तीन च मच चाय का पानी डाल देती
थी और अगर उसने यादा ांग चाय क माँग क तो उसे खािलस दध ू पीना पड़ता था और
चाय के साथ फल और मेवा और खुदा जाने या- या, और उसके बाद सुधा का इसरार, न खाने
पर सुधा का गु सा और उसके बाद क ल बी-चौड़ी मनुहार; इस सबसे च दर बहत घबराता
था लेिकन जब सुधा उसे टडी म म िबठाकर ज दी से चाय बना लायी तो उसे मजबरू होना
पड़ा, और बैठे-बैठे िनहायत बेबसी से उसने देखा िक सुधा ने याले म दधू डाला और उसके बाद
थोड़ी-सी चाय डाल दी उसके बाद अपने याले म चाय डालकर और दो च मच दध ू डालकर
आप ठाठ से पीने लगे, और बेतक लुफ से दिू धया चाय का याला च दर के सामने िखसकाकर
बोली, “पीिजए, ना ता आ रहा है ”
च दर ने याले को अपने सामने रखा और उसे चार तरफ घुमाकर देखता रहा िक िकस तरफ से
उसे चाय का अंश िमल सकता है जब सभी ओर से याले म ीरसागर नजर आया तो उसने
हारकर याला रख िदया
“ य , पीते य नह ?” सुधा ने अपना याला रख िदया
“पीएँ या? कह चाय भी हो?”
“तो और या खािलस चाय पीिजएगा? िदमागी काम करने वाल को ऐसी ही चाय पीनी
चािहए ”
“तो अब मझ ु े सोचना पड़े गा िक म चाय छोड़ँ या रसच न ऐसी चाय मझ ु े पस द, न ऐसा
िदमागी काम!”
“लो, आपको िव ास नह होता मेरी लासफेलो है गेसू काजमी; सबसे तेज लड़क है, उसक
अ मी उसे दधू म चाय उबालकर देती है ”
“ या नाम है तु हारी सखी का?”
“गेस!ू ”
“बड़ा अ छा नाम है!”
“और या! मेरी सबसे घिन िम है और उतनी ही अ छी है िजतना अ छा नाम!”
“ज र-ज र,” महँु िबचकाते हए च दर ने कहा, “और उतनी ही काली होगी, िजतने काले
गेसू ”
“धत,् शरम नह आती िकसी लड़क के िलए ऐसा कहते हए!”
“और हमारे दो त क बुराई करती हो तब?”
“तब या! वे तो सब ह ही बुरे! अ छा तो ना ता, पहले फल खाओ,” और वह लेट म छील-
छीलकर स तरा रखने लगी इतने म य ही वह झक ु कर एक िगरे हए स तरे को नीचे से
उठाने लगी िक च दर ने झट से उसका याला अपने सामने रख िलया और अपना याला उधर
रख िदया और शा त िच से पीने लगा स तरे क फाँक उसक ओर बढ़ाते हए य ही उसने
एक घँटू चाय ली तो वह च ककर बोली, “अरे , यह या हआ?”
“कुछ नह , हमने उसम दध ू डाल िदया तु ह िदमागी काम बहत रहता है!” च दर ने ठाठ से
चाय घँटू ते हए कहा सुधा कुढ़ गयी कुछ बोली नह चाय ख म करके च दर ने घड़ी
देखी
“अ छा लाओ, या टाइप कराना है? अब बहत देर हो रही है ”
“बस यहाँ तो एक िमनट बैठना बुरा लगता है आपको! हम कहते ह िक ना ते और खाने के व
आदमी को ज दी नह करनी चािहए बैिठए न!”
“अरे , तो तु ह कॉलेज क तैयारी नह करनी है?”
“करनी य नह है आज तो गेसू को मोटर पर लेते हए तब जाना है!”
“तु हारी गेसू और कभी मोटर पर चढ़ी है?”
“जी, वह सािबर हसैन काजमी क लड़क है, उसके यहाँ दो मोटर ह और रोज तो उसके यहाँ
दावत होती रहती ह ”
“अ छा, हमारी तो दावत कभी नह क ?”
“अहा हा, गेसू के यहाँ दावत खाएँ गे! इसी महँु से! जनाब उसक शादी भी तय हो गयी है, अगले
जाड़ तक शायद हो भी जाय ”
“िछः, बड़ी खराब लड़क हो! कहाँ रहता है यान तु हारा?”
सुधा ने मजाक म परािजत कर बहत िवजय-भरी मस ु कान से उसक ओर देखा च दर ने
झपकर िनगाह नीची कर ली तो सुधा पास आकर च दर का क धा पकडक़र बोली-”अरे उदास
हो गये, नह भइया, तु हारा भी याह तय कराएँ गे, घबराते य हो!” और एक मोटी-सी
इकनॉिम स क िकताब उठाकर बोली, “लो, इस मटु क से याह करोगे! लो बातचीत कर लो,
तब तक म वह िनब ध ले आऊँ, टाइप कराने वाला ”
च दर ने िखिसयाकर बड़ी जोर से सुधा का हाथ दबा िदया “हाय रे !” सुधा ने हाथ छुड़ाकर
महँु बनाते हए कहा, “लो बाबा, हम जा रहे ह, काहे िबगड़ रहे ह आप?” और वह चली गयी!
डॉ टर साहब का िलखा हआ िनब ध उठा लायी और बोली, “लो, यह िनब ध क पा डुिलिप
है ” उसके बाद च दर क ओर बड़े दुलार से देखती हई बोली, “शाम को आओगे?”
“न!”
“अ छा, हम परे शान नह करगे तम ु चुपचाप पढऩा जब रात को पापा आ जाएँ तो उ ह
िनब ध क ितिलिप देकर चले जाना!”
“नह , आज शाम को मेरी दावत है ठाकुर साहब के यहाँ ”
“तो उसके बाद आ जाना और देखो, अब फरवरी आ गयी है, मा टर ढूँढ़ दो हम ”
“नह , ये सब झठ ू ी बात है हम कल सुबह आएँ गे ”
“अ छा, तो सुबह ज दी आना और देखो, मा टर लाना मत भल ू ना ाइवर तु ह मक
ु ज रोड
पहँ चा देगा ”
वह कार म बैठ गया और कार टाट हो गयी िक िफर सुधा ने पुकारा वह िफर उतरा सुधा
बोली, “लो, यह िलफाफा तो भलू ही गये थे पापा ने िलख िदया है उसे दे देना ”
“अ छा ” कहकर िफर च दर चला िक िफर सुधा ने पुकारा, “सुनो!”
“एक बार म य नह कह देती सब!” च दर ने झ लाकर कहा
“अरे बड़ी ग भीर बात है देखो, वहाँ कुछ ऐसी-वैसी बात मत कहना लड़क से, वरना उसके
यहाँ दो बड़े -बड़े बुलडॉग ह ” कहकर उसने गाल फुलाकर, आँख फै लाकर ऐसी बुलडॉग क
भंिगमा बनायी िक च दर हँ स पड़ा सुधा भी हँ स पड़ी
ऐसी थी सुधा, और ऐसा था च दर
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सुधा का कॉलेज बड़ा एका त और खबू सरू त जगह बना हआ था दोन ओर ऊँची-सी मेड़ और
बीच म से कंकड़ क एक खबू सरू त घुमावदार सड़क दाय ओर चने और गेहँ के खे त, बेर और
शहतत ू के झाड़ और बाय ओर ऊँचे -ऊँचे टीले और ताड़ के ल बे-ल बे पे ड़ शहर से काफ
बाहर देहात का-सा नजारा और इतना शा त वातावरण लगता था िक यहाँ कोई उथल-पुथल,
कोई शोरगल ु है ही नह जगह इतनी हरी-भरी िक दज के कमर के पीछे ही महआ चत ू ा था
और ल बी-ल बी घास क दुपह रया के नीले फूल क जंगली लतर उलझी रहती थ
और इस वातावरण ने अगर िकसी पर सबसे यादा भाव डाला था तो वह थी गेसू उसे अ छी
तरह मालम ू था िक बाँस के झाड़ के पीछे िकस चीज के फूल ह पुराने पीपल पर िगलोय क
लतर चढ़ी है और कर दे के झाड़ के पीछे एक साही क माँद है नागफनी क झाड़ी के पास
एक बार उसने एक लोमड़ी भी देखी थी शहर के एक मशहर रईस सािबर हसैन काजमी क
वह सबसे बड़ी लड़क थी उसक माँ, िज ह उसके िपता अदन से याह कर लाये थे, शहर क
मशहर शायरा थ हालाँिक उनका दीवान छपकर मशहर हो चुका था, मगर वह िकसी भी
बाहरी आदमी से कभी नह िमलती-जुलती थ , उनक सारी दुिनया अपने पित और अपने ब च
तक सीिमत थी उ ह शायराना नाम रखने का बहत शौक था अपनी दोन लड़िकय का
नाम उ ह ने गेसू और फूल रखा था और अपने छोटे ब चे का नाम हसरत हाँ, अपने पितदेव
सािबर साहब के ह के से बेहद िचढ़ती थ और उनका नाम उ ह ने रखा था, 'आितश-िफजाँ '
घास, फूल, लतर और शायरी का शौक गेसू ने अपनी माँ से िवरासत म पाया था िक मत से
उसका कॉलेज भी ऐसा िमला िजसम दज क िखड़िकय से आम क शाख झाँका करती थ
इसिलए हमेशा जब कभी मौका िमलता था, लास से भाग कर गेसू घास पर लेटकर सपने
देखने क आदी हो गयी थी लास के इस महािभिन मण और उसके बाद लतर क छाँह म
जाकर यान-योग क साधना म उसक एकमा सािथन थी सुधा आम क घनी छाँह म हरी-
हरी दबू म दोन िसर के नीचे हाथ रखकर लेट रहत और दुिनया-भर क बात करत बात म
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी िकस तरह क बात करती थ , यह वही समझ सकता है िजसने
कभी दो अिभ न सहे िलय क एका त वाता सुनी हो गािलब क शायरी से लेकर, उनके छोटे
भाई हसरत ने एक कु े का िप ला पाला है, यह गेसू सुनाया करती थी और शरत के उप यास
से लेकर यह िक उसक मािलन ने िगलट का कड़ा बनवाया है, यह सुधा बताया करती थी
दोन अपने -अपने मन क बात एक-दस ू रे को बता डालती थ और िजतना भावुक, यारा,
अनजान और सुकुमार दोन का मन था, उतनी ही भावुक और सुकुमार दोन क बात हाँ
भावुक, सुकुमार दोन ही थ , लेिकन दोन म एक अ तर था गेसू शायर होते हए भी इस
दुिनया क थी और सुधा शायर न होते हए भी क पनालोक क थी गेसू अगर झािड़य म से
कुछ फूल चुनती तो उ ह सँघ ू ती, उ ह अपनी चोटी म सजाती और उन पर च द शे'र कहने के
बाद भी उ ह माला म िपरोकर अपनी कलाई म लपे ट लेती सुधा लतर के बीच म िसर रखकर
लेट जाती और िनिनमेष पलक से फूल को देखती रहती और आँख से न जाने या पीकर उ ह
उ ह क डाल पर फूलता हआ छोड़ देती गेसू हर चीज का उिचत इ तेमाल जानती थी, िकसी
भी चीज को पस द करने या यार करने के बाद अब उसका या उपयोग है, ि या मक यथाथ
जीवन म उसका या थान है, यह गेसू खबू समझती थी लेिकन सुधा िकसी भी फूल के जादू
म बँध जाना चाहती थी, उसी क क पना म डूब जाना जानती थी, लेिकन उसके बाद सुधा को
कुछ नह मालम ू था गेसू क क पना और भावुक सू मता शायरी म य हो जाती थी, अत:
उसक िजंदगी म काफ यावहा रकता और यथाथ था, लेिकन सुधा, जो शायरी िलख नह
सकती थी, अपने वभाव और गठन म खुद ही एक मासम ू शायरी बन गयी थी वह भी िपछले
दो साल म तो सचमच ु ही इतनी ग भीर, सुकुमार और भावनामयी बन गयी थी िक लगता था
िक सरू के गीत से उसके यि व के रे शे बुन गये ह
लड़िकयाँ, गेसू और सुधा के इस वभाव और उनक अिभ नता से वािकफ थ और इसिलए
जब आज सुधा क मोटर आकर सायबान म क और उसम से सुधा और गेसू हाथ म फाइल िलये
उतर तो कािमनी ने हँ सकर भा से कहा, “लो, च दा-सरू ज क जोड़ी आ गयी!” सुधा ने सुन
िलया मस ु कराकर गेसू क ओर िफर कािमनी और भा क ओर देखकर हँ स दी सुधा बहत
कम बोलती थी, लेिकन उसक हँ सी ने उसे खुशिमजाज सािबत कर रखा था और वह सभी क
यारी थी भा ने आकर सुधा के गले म बाँह डालकर कहा, “गेसू बानो, थोड़ी देर के िलए
सुधारानी को हम दे दो जरा कल के नोट्स उतारने ह इनसे पछ ू कर ”
गेसू हँ सकर बोली, “उसके पापा से तय कर ले, िफर तू िजंदगी भर सुधा को पाल-पोस, मझ ु े या
करना है ”
जब सुधा भा के साथ चली गयी तो गेसू ने कािमनी के क धे पर हाथ रखा और कहा, “क मो
रानी, अब तो तु ह हमारे िह से म पड़ी, आओ चलो, देख लतर म कु द ह?”
“कु द तो नह , अब चने का खे त ह रया आया है ” क मो बोली
गहृ -िव ान का पी रयड था और िमस उमालकर पढ़ा रही थ बीच क कतार क एक बच पर
कािमनी, भा, गेसू और सुधा बैठी थ िह सा बाँट अभी तक कायम था, अत: कािमनी के
बगल म गेस,ू गेसू के बगल म भा और भा के बाद बच के कोने पर सुधा बैठी थी िमस
उमालकर रोिगय के खान-पान के बारे म समझा रही थ मेज के बगल म खड़ी हई, हाथ म
एक िकताब िलये हए, उसी पर िनगाह लगाये वह बोलती जा रही थ शायद अँगरे जी क
िकताब म जो कुछ िलखा हआ था, उसी का िह दी म उ था करते हए बोलती जा रही थ , “आलू
एक नुकसानदेह तरकारी है, रोग क हालत म वह खु क होता है, गरम होता है और हजम
मिु कल से होता है... ”
सहसा गेसू ने एकदम बीच से पछ ू ा, “गु जी, गाँधी जी आलू खाते ह या नह ?” सभी हँ स पड़े
िमस उमालकर ने बहत गु से से गेसू क ओर देखा और डाँटकर कहा, “ हाइ टॉक ऑव गाँधी?
आई वा ट नो पोिलिटकल िड शन इन लास (गाँधी से या मतलब? म दज म राजनीितक
बहस नह चाहती )” इस पर तो सभी लड़िकय क दबी हई हँ सी फूट पड़ी िमस उमालकर
झ ला गय और मेज पर िकताब पटकते हए बोल , “साइले स (खामोश)!” सभी चुप हो गये
उ ह ने िफर पढ़ाना शु िकया
“िजगर के रोिगय के िलए हरी तरका रयाँ बहत फायदेम द होती ह लौक , पालक और हर
िक म के हरे साग त दु ती के िलए बहत फायदेम द होते ह ”
सहसा भा ने कुहनी मारकर गेसू से कहा, “ले, िफर या है, िनकाल चने का हरा साग, खा-
खाकर मोटे ह िमस उमालकर के घंटे म!”
गेसू ने अपने कुरते क जेब से बहत-सा साग िनकालकर कािमनी और भा को िदया
िमस उमालकर अब श कर के हािन-लाभ बता रही थ , “ल बे रोग के बाद रोगी को श कर कम
देनी चािहए दध ू या साबदू ाने म ताड़ क िम ी िमला सकते ह दध
ू तो लक ू ोज के साथ बहत
वािद लगता है ”
इतने म जब तक सुधा के पास साग पहँ चा िक फौरन िमस उमालकर ने देख िलया वह समझ
गय , यह शरारत गेसू क होगी, “िमस गेस,ू बीमारी क हालत म दध ू काहे के साथ वािद
लगता है?”
इतने म सुधा के महँु से िनकला, “साग काहे के साथ खाएँ ?” और गेसू ने कहा, “नमक के
साथ!”
“हँ ? नमक के साथ?” िमस उमालकर ने कहा, “बीमारी म दध ू नमक के साथ अ छा लगता है
खड़ी हो! कहाँ था यान तु हारा?”
गेसू स न िमस उमालकर का चे हरा मारे गु से के लाल हो रहा था
“ या बात कर रही थ तम ु और सुधा?”
गेसू स न!
“अ छा, तम ु लोग लास के बाहर जाओ, और आज हम तु हारे गािजयन को खत भे जगे चलो,
जाओ बाहर ”
सुधा ने कुछ मस ु कराते हए भा क ओर देखा और भा हँ स दी गेसू ने देखा िक िमस
उमालकर का पारा और भी चढऩे वाला है तो वह चुपचाप िकताब उठाकर चल दी सुधा भी
पीछे -पीछे चल दी कािमनी ने कहा, “खत-वत भे जती रहना, सुधा!” और लास ठठाकर हँ स
पड़ी िमस उमालकर गु से से नीली पड़ गय , “ लास अब ख म होगी ” और रिज टर
उठाकर चल द गेसू अभी अ दर ही थी िक वह बाहर चली गय और उनके जरा दरू पहँ चते ही
गेसू ने बड़ी अदा से कहा, “बड़े बेआब होकर तेरे कूचे से हम िनकले!” और सारी लास िफर
हँ सी से गजँ ू उठी लड़िकयाँ िचिड़य क तरह फुर हो गय और थोड़ी ही देर म सुधा और गेसू
बैडिमंटन फ ड के पास वाले छतनार पाकड़ के नीचे लेटी हई थ
बड़ी खुशनुमा दोपहरी थी खुशबू से लदे ह के-ह के झ के गेसू क ओढ़नी और गरारे क
िसलवट से आँखिमचौली खे ल रहे थे आसमान म कुछ ह के पहले बादल उड़ रहे थे और
जमीन पर बादल क साँवली छायाएँ दौड़ रही थ घास के ल बे-चौड़े मैदान पर बादल क
छायाओं का खे ल बड़ा मासम ू लग रहा था िजतनी दरू तक छाँह रहती थी, उतनी दरू तक घास
का रं ग गहरा काही हो जाता था, और जहाँ-जहाँ बादल से छनकर धपू बरसने लगती थी वहाँ-
वहाँ घास सुनहरे धानी रं ग क हो जाती थी दरू कह पर पानी बरसा था और बादल ह के
होकर खरगोश के मासम ू व छ द ब च क तरह दौड़ रहे थे सुधा आँख पर फाइल क छाँह
िकये हए बादल क ओर एकटक देख रही थी गेसू ने उसक ओर करवट बदली और उसक
वेणी म लगे हए रे शमी फ ते को उँ गली म उमेठते हए एक ल बी-सी साँस भरकर कहा-
बादशाह क मअ ु र वाबगाह म कहाँ
वह मजा जो भीगी-भीगी घास पर सोने म है,
मतु मइन बेिफ लोग क हँ सी म भी कहाँ
लु फ जो एक-दस ू रे को देखकर रोने म है
सुधा ने बादल से अपनी िनगाह नह हटायी, बस एक क ण सपनीली मस ु कराहट िबखे रकर
रह गयी
या देख रही है, सुधा?” गेसू ने पछ
ू ा
“बादल को देख रही हँ ” सुधा ने बेहोश आवाज म जवाब िदया गेसू उठी और सुधा क छाती
पर िसर रखकर बोली-
कैफ बरदोश, बादल को न देख,
बेखबर, तू न कुचल जाय कह !
और सुधा के गाल म जोर क चुटक काट ली “हाय रे !” सुधा ने चीखकर कहा और उठ बैठी,
“वाह वाह! िकतना अ छा शेर है! िकसका है?”
“पता नह िकसका है ” गेसू बोली, “लेिकन बहत सच है सुधी, आ माँ के बादल के दामन म
अपने वाब टाँक लेना और उनके सहारे िजंदगी बसर करने का खयाल है तो बड़ा नाजुक,
मगर रानी बड़ा खतरनाक भी है आदमी बड़ी ठोकर खाता है इससे तो अ छा है िक आदमी
को नाजुकखयाली से सािबका ही न पड़े खाते-पीते, हँ सते-बोलते आदमी क िजंदगी कट
जाए ”
सुधा ने अपना आँचल ठीक िकया, और लट म से घास के ितनके िनकालते हए कहा, “गेस,ू
अगर हम लोग को भी शादी- याह के झंझट म न फँसना पड़े और इसी तरह िदन कटते जाएँ तो
िकतना मजा आए हँ सते-बोलते, पढ़ते-िलखते, घास म लेटकर बादल से यार करते हए
िकतना अ छा लगता है, लेिकन हम लड़िकय क िजंदगी भी या! म तो सोचती हँ गेस;ू कभी
याह ही न क ँ हमारे पापा का यान कौन रखे गा?”
गेसू थोड़ी देर तक सुधा क आँख म आँख डालकर शरारत-भरी िनगाह से देखती रही और
मस ु कराकर बोली, “अरे , अब ऐसी भोली नह हो रानी तम ु ! ये शबाब, ये उठान और याह नह
करगी, जोगन बनगी ”
“अ छा, चल हट बेशरम कह क , खुद याह करने क ठान चुक है तो दुिनया-भर को य
तोहमत लगाती है!”
“म तो ठान ही चुक हँ , मेरा या! ि क तो तम ु लोग क है िक याह नह होता तो लेटकर
बादल देखती ह ” गेसू ने मचलते हए कहा
“अ छा अ छा,” गेसू क ओढ़नी ख चकर िसर के नीचे रखकर सुधा ने कहा, “ या हाल है तेरे
अ तर िमयाँ का? मँगनी कब होगी तेरी?”
“मँगनी या, िकसी भी िदन हो जाय, बस फूफ जान के यहाँ आने -भर क कसर है वैसे अ मी
तो फूल क बात उनसे चला रही थ , पर उ ह ने मेरे िलए इरादा जािहर िकया बड़े अ छे ह, आते
ह तो घर-भर म रोशनी छा जाती है ” गेसू ने बहत भोलेपन से गोद म सुधा का हाथ रखकर
उसक उँ गिलयाँ िचटकाते हए कहा
“वे तो तेरे चचाजाद भाई ह न? तझ ु से तो पहले उनसे बोल-चाल रही होगी ” सुधा ने पछ ू ा
“हाँ-हाँ, खबू अ छी तरह से मौलवी साहब हम लोग को साथ-साथ पढ़ाते थे और जब हम
दोन सबक भल ू जाते थे तो एक-दसू रे का कान पकडक़र साथ-साथ उठते-बैठते थे ” गेसू कुछ
झपते हए बोली
सुधा हँ स पड़ी, “वाह रे ! ेम क इतनी िविच शु आत मने कह नह सुनी थी तब तो तम ु
लोग एक-दस ू रे का कान पकडऩे के िलए अपने -आप सबक भल ू जाते ह गे?”
“नह जी, एक बार िफर पढक़र कौन सबक भल ू ता है और एक बार सबक याद होने के बाद
जानती हो इ क म या होता है-
मकतबे इ क म इक ढंग िनराला देखा,
उसको छु ी न िमली िजसको सबक याद हआ"
“खैर, यह सब बात जाने दे सुधा, अब तू कब याह करे गी?”
“ज दी ही क ँ गी ” सुधा बोली
“िकससे?”
“तझु से ” और दोन िखलिखलाकर हँ स पड़
बादल हट गये थे और पाकड़ क छाँह को चीरते हए एक सुनहली रोशनी का तार िझलिमला
उठा हँ सते व गेसू के कान के टॉप चमक उठे और सुधा का यान उधर िखंच गया “ये कब
बनवाया तन ू े ?”
“बनवाया नह ”
“तो उ ह ने िदये ह गे, य ?”
गेसू ने शरमाकर िसर िहला िदया
सुधा ने उठकर हाथ से छूते हए कहा, “िकतने सु दर कमल ह! वाह! य , गेस!ू तन ू े सचमच ु के
कमल देखे ह?”
“न ”
“मने देखे ह ”
“कहाँ?”
“असल म पाँच-छह साल पहले तक तो म गाँव म रहती थी न! ऊँचाहार के पास एक गाँव म मेरी
बुआ रहती ह न, बचपन से म उ ह के पास रहती थी पढ़ाई क शु आत मने वह क और
सातव तक वह पढ़ी तो वहाँ मेरे कूल के पीछे के पोखरे म बहत-से कमल थे रोज शाम
को म भाग जाती थी और तालाब म घुसकर कमल तोड़ती और घर से बुआ एक ल बा-सा स टा
लेकर गािलयाँ देती हई आती थ मझ ु े पकड़ने के िलए जहाँ वह िकनारे पर पहँ चत तो म
कहती, अभी डूब जाएँ गे बुआ, अभी डूबे, तो बहत रबड़ी-मलाई क लालच देकर वह िम नत
करत -िनकल आओ, तो म िनकलती थी तम ु ने तो कभी देखा नह होगा हमारी बुआ को?”
“न, तन ू े कभी िदखाया ही नह ”
“इधर बहत िदन से आय ही नह वे आएँ गी तो िदखाऊँगी तझ ु े और उनक एक लड़क
है बड़ी यारी, बहत मजे क है उसे देखकर तो तम ु उसे बहत यार करोगी वो तो अब यह
आने वाली है अब यह पढ़े गी ”
“िकस दज म पढ़ती है?”
“ ाइवेट िवदुषी म बैठेगी इस साल खबू गोल-मटोल और हँ समख ु है ” सुधा बोली
इतने म घंटा बोला और गेसू ने सुधा के पैर के नीचे दबी हई अपनी ओढ़नी ख ची
“अरे , अब आिखरी घंटे म जाकर या पढ़ोगी! हािजरी कट ही गयी अब बैठो यह बातचीत कर,
आराम कर ” सुधा ने अलसाये वर म कहा और खड़ी होकर एक मदमाती हई अँगड़ाई ली-गेसू
ने हाथ पकडक़र उसे िबठा िलया और बड़ी ग भीरता से कहा, “देखो, ऐसी अरसौह अँगड़ाई न
िलया करो, इससे लोग समझ जाते ह िक अब बचपन करवट बदल रहा है ”
“धत!् ” बेहद झपकर और फाइल म महँु िछपाकर सुधा बोली
“लो, तम ु मजाक समझती हो, एक शायर ने तु हारी अँगड़ाई के िलए कहा है-
कौन ये ले रहा है अँगड़ाई
आसमान को न द आती है”
“वाह!” सुधा बोली, “अ छा गेस,ू आज बहत-से शेर सुनाओ ”
“सुनो-
इक रदायेतीरगी है और खाबेकायनात
डूबते जाते ह तारे , भीगती जाती है रात!”
“पहली लाइन के या मतलब ह?” सुधा ने पछ ू ा
“ रदायेतीरगी के माने ह अँधेरे क चादर और खाबेकायनात के माने ह िजंदगी का सपना-अब
िफर सुनो शेर-
इक रदायेतीरगी है और खाबेकायनात
डूबते जाते ह तारे , भीगती जाती है रात!”
“वाह! िकतना अ छा है-अ धकार क चादर है, जीवन का व न है, तारे डूबते जाते ह, रात
भीगती जाती है...गेस,ू उदू क शायरी बहत अ छी है ”
“तो तू खुद उदू य नह पढ़ लेती?” गेसू ने कहा
“चाहती तो बहत हँ , पर िनभ नह पाता!”
“िकसी िदन शाम को आओ सुधा तो अ मीजान से तझ ु े शेर सुनवाएँ यह ले तेरी मोटर तो आ
गयी ”
सुधा उठी, अपनी फाइल उठायी गेसू ने अपनी ओढऩी झाड़ी और आगे चली पास आकर
उचककर उसने ि ंिसपल का म देखा वह खाली था उसने दाई को खबर दी और मोटर पर
बैठ गयी
गेसू बाहर खड़ी थी “चल तू भी न!”
“नह , म गाड़ी पर चली जाऊँगी ”
“अरे चलो, गाड़ी साढ़े चार बजे जाएगी अभी घंटा-भर है घर पर चाय िपएँ गे, िफर मोटर
पहँ चा देगी जब तक पापा नह ह, तब तक िजतना चाहो कार िघसो!”
गेसू भी आ बैठी और कार चल दी
5
च दर के जाने के जरा ही देर बाद पापा आये और खाने बैठे सुधा ने रसोई क रे शमी धोती
पहनी और पापा को पंखा झलने बैठ गयी सुधा अपने पापा क िसरचढ़ी दुलारी बेिटय म से
थी और इतनी बड़ी हो जाने पर भी वह दुलार िदखाने से बाज नह आती थी िफर आज तो
उसने पापा क ि य नानखटाई अपने हाथ से बनायी थी आज तो दुलार िदखाने का उसका
हक था और भली-बुरी हर तरह क िजद को मान लेना करना, यह पापा क मजबरू ी थी
मिु कल से डॉ. साहब ने अभी दो कौर खाये ह गे िक सुधा ने कहा, “नानखटाई खाओ, पापा!”
डॉ. शु ला ने एक नानखटाई तोडक़र खाते हए कहा, “बहत अ छी है!” खाते-खाते उ ह ने
पछ
ू ा, “सोमवार को कौन िदन है, सुधा!”
“सोमवार को कौन िदन है? सोमवार को 'म डे ' है ” सुधा ने हँ सकर कहा डॉ. शु ला भी
अपनी भल ू पर हँ स पड़े “अरे देख तो म िकतना भुल कड़ हो गया हँ मेरा मतलब था िक
सोमवार को कौन तारीख है?”
“11 तारीख ” सुधा बोली, “ य ?”
“कुछ नह , 10 को कॉ े स है और 14 को तु हारी बुआ आ रही ह ”
“बुआ आ रही ह, और िबनती भी आएगी?”
“हाँ, उसी को तो पहँ चाने आ रही ह िवदुषी का के यह तो है ”
“आहा! अब तो िबनती तीन महीने यह रहे गी, पापा अब िबनती को यह बुला लो म बहत
अकेली रहती हँ ”
“हाँ, अब तो जनू तक यह रहे गी िफर जुलाई म उसक शादी होगी ” डॉ. शु ला ने कहा
“अरे , अभी से? अभी उसक उ ही या है!” सुधा बोली
“ य , तेरे बराबर है अब तेरे िलए भी तेरी बुआ ने िलखा है ”
“नह पापा, हम याह नह करगे ” सुधा ने मचलकर कहा
“तब?”
“बस हम पढ़गे एफ.ए. कर लगे, िफर बी.ए., िफर एम.ए., िफर रसच, िफर बराबर पढ़ते जाएँ गे,
िफर एक िदन हम भी तु हारे बराबर हो जाएँ गे य , पापा?”
“पागल नह तो, बात तो सुनो इसक ! ला, दो नानखटाई और दे ” शु ला हँ सकर बोले
“नह , पहले तो कबल ू दो तब हम नानखटाई दगे बताओ याह तो नह करोगे ” सुधा ने दो
नानखटाइयाँ हाथ म उठाकर कहा
“ला, रख ”
“नह , पहले बता दो ”
“अ छा-अ छा, नह करगे ”
सुधा ने दोन नानखटाइयाँ रखकर पंखा झलना शु िकया इतने म िफर नानखटाइयाँ खाते
हए डॉ. शु ला बोले, “तेरी सास तझ ु े देखने आएगी तो यही नानखटाइयाँ तम ु से बनवा कर
िखलाएँ गे ”
“िफर वही बात!” सुधा ने पंखा पटककर कहा, “अभी तम ु वादा कर चुके हो िक याह नह
करगे ”
“हाँ-हाँ, याह नह क ँ गा, यह तो कह िदया मने लेिकन तेरा याह नह क ँ गा, यह मने
कब कहा?”
“हाँ आँ, ये तो िफर झठ
ू बोल गये तम
ु ...” सुधा बोली
“अ छा, ए! चलो ओहर ” महरािजन ने डाँटकर कहा, “ए ी बड़ी िबिटया हो गयी, मारे दुलारे
के बररानी जात है ” महरािजन पुरानी थी और सुधा को डाँटने का परू ा हक था उसे, और सुधा
भी उसका बहत िलहाज करती थी वह उठी और चुपचाप जाकर अपने कमरे म लेट गयी
बारह बज रहे थे
वह लेटी-लेटी कल रात क बात सोचने लगी लास म या मजा आया था कल; गेसू िकतनी
अ छी लड़क है! इस व गेसू के यहाँ खाना-पीना हो रहा होगा और िफर सब लोग िमलकर
गाएँ गे कौन जाने शायद दोपहर को क वाली भी हो इन लोग के यहाँ क वाली इतनी
अ छी होती है सुधा सुन नह पाएगी और गेसू ने भी िकतना बुरा माना होगा और यह सब
च दर क वजह से च दर हमेशा उसके आने -जाने , उठने -बैठने म कतर- य त करता रहता
है एक बार वह अपने मन से लड़िकय के साथ िपकिनक म चली गयी वह च दर के बहत-
से दो त भी थे एक दो त ने जाकर च दर से जाने या कह िदया िक च दर उस पर बहत
िबगड़ा और सुधा िकतनी रोयी थी उस िदन यह च दर बहत खराब है सच पछ ू ो तो अगर
कभी-कभी वह सुधा का कहना मान लेता है तो उससे दुगन ु ा सुधा पर रोब जमाता है और सुधा
को ला- लाकर मार डालता है और खुद अपने -आप दुिनयाभर म घम ू गे अपना काम होगा
तो 'चलो सुधा, अभी करो, फौरन ' और सुधा का काम होगा तो-'अरे भाई, या कर, भल ू गये '
अब आज ही देखो, सुबह आठ बजे आये और अब देखो दो बजे भी जनाब आते ह या नह ? और
कह गये ह दो बजे तक के िलए तो दो बजे तक सुधा को चैन नह पड़े गी न न द आएगी, न
िकसी काम म तबीयत लगेगी लेिकन अब ऐसे काम कैसे चलेगा इ तहान को िकतने थोड़े
िदन रह गये ह और सुधा क तबीयत िसवा पोय ी (किवता) के और कुछ पढऩे म लगती ही
नह कब से वह च दर से कह रही है थोड़ा-सा इकनािम स पढ़ा दो, लेिकन ऐसा वाथ है
िक बस चाय पी ली, नानखटाई खा ली, ला िलया और िफर अपने म त साइिकल पर घम ू रहे
ह
यही सब सोचते-सोचते सुधा को न द आ गयी
और तीन बजे जब गेसू आयी तो भी सुधा सो रही थी पलंग के नीचे डी.एम.सी. का गोला खुला
हआ था और तिकये के पास ोिशया पड़ी थी सुधा थी बड़ी यारी बड़ी खबू सरू त और
खासतौर से उसक पलक तो अपरािजता के फूल को मात करती थ और थी इतनी गोरी
गद ु कारी िक कह पर दबा दो तो फूल िखल जाए मिँ ू गया ह ठ पर जाने कैसा अछूता गल ु ाब
मसु कराता था और बाँह तो जैसे बेले क पाँखु रय क बनी ह गेसू आयी उसके हाथ म
िमठाई थी जो उसक माँ ने सुधा के िलए भे जी थी वह पल-भर खड़ी रही और िफर उसने मेज
पर िमठाई रख दी और ोिशया से सुधा क गदन गद ु गदु ाने लगी सुधा ने करवट बदल ली
गेसू ने नीचे पड़ा हआ डोरा उठाया और आिह ते से उसका चुटीला डोरे के एक छोर से बाँधकर
दसू रा छोर मेज के पाये से बाँध िदया और उसके बाद बोली, “सुधा, सुधा उठो ”
सुधा च ककर उठ गयी और आँख मलते-मलते बोली, “अब दो बजे ह? लाये उ ह या नह ?”
“ओहो! उ ह लाये या नह िकसे बुलाया था रानी, दो बजे; जरा हम भी तो मालम ू हो?” गेसू ने
बाँह म चुटक काटते हए पछ ू ा
“उ फोह!” सुधा बाँह झटककर बोली, “मार डाला! बेदद कह क ! ये सब अपने उ ह अ तर
िमयाँ को िदखाया कर!” और य ही सुधा ने िसर ढँकने के िलए प ला उठाया तो देखा िक
चोटी डोर म बँधी हई है इसके पहले िक सुधा कुछ कहे , गेसू बोली, “या सनम! जरा पढ़ाई तो
देखो, मने तो सुना था िक न द न आये इसिलए लड़के अपनी चोटी खँटू ी म बाँध लेते ह पर यह
नह मालम ू था िक लड़िकयाँ भी अब वही करने लगी ह ”
सुधा ने चोटी से डोर खोलते हए कहा, “म ही सताने को रह गयी हँ अ तर िमयाँ क चोटी
बाँधकर नचाना उ ह अभी से बेताब य हई जाती है?”
“अरे रानी, उनके चोटी कहाँ? िमयाँ ह िमयाँ?”
“चोटी न सही, दाढ़ी सही ”
“दाढ़ी, खुदा खैर करे , मगर वो दाढ़ी रख ल तो म उनसे मोह बत तोड़ लँ ू ”
सुधा हँ सने लगी
“ले, अ मी ने तेरे िलए िमठाई भे जी है तू आयी य नह ?”
“ या बताऊँ?”
“बताऊँ-वताऊँ कुछ नह अब कब आएगी त?ू ”
“गेस,ू सुनो, इसी मंगल, नह -नह बहृ पित को बुआ आ रही ह वो चली जाएँ गी तब आऊँगी
म ”
“अ छा, अब म चलँ ू अभी कािमनी और भा के यहाँ िमठाई पहँ चानी है ”
गेसू मड़ ु ते हए बोली
“अरे बैठो भी ” सुधा ने गेसू क ओढऩी पकडक़र उसे ख चकर िबठलाते हए कहा, “अभी आये
हो, बैठे हो, दामन सँभाला है ”
“आहा अब तो तू भी उदू शायरी कहने लगी ” गेसू ने बैठते हए कहा
“तेरा ही मज लग गया ” सुधा ने हँ सकर कहा
“देख कह और भी मज न लग जाए, वरना िफर तेरे िलए भी इ तजाम करना होगा!” गेसू ने
पलंग पर लेटते हए कहा
“अरे ये वो गड़ ु नह िक च टे खाएँ ”
“देखँग ू ी, और देखँगू ी या, देख रही हँ इधर िपछले दो साल से िकतनी बदल गयी है तू
पहले िकतना हँ सती-बोलती थी, िकतनी लड़ती-झगड़ती थी और अब िकतना हँ सने -बोलने पर
भी गम ु सुम हो गयी है तू और वैसे हमेशा हँ सती रहे चाहे लेिकन जाने िकस खयाल म डूबी
रहती है हमेशा ” गेसू ने सुधा क ओर देखते हए कहा
“धत् पगली कह क ” सुधा ने गेसू के एक ह क -सी चपत मारकर कहा, “यह सब तेरे अपने
खयाली-पुलाव ह म िकसी के यान म डूबँग ू ी, ये हमारे गु ने नह िसखाया ”
“गु तो िकसी के नह िसखाते सुधा रानी, िब कुल सच-सच, या कभी तु हारे मन म िकसी
के िलए मोह बत नह जागी?” गेसू ने बहत ग भीरता से पछ ू ा
“देख गेस,ू तझ ु से मने आज तक तो कभी कुछ नह िछपाया, न शायद कभी िछपाऊँगी अगर
कभी कोई बात होती तो तझ ु से िछपी न रहती और रहा महु बत का, तो सच पछ ू तो मने जो कुछ
कहािनय म पढ़ा है िक िकसी को देखकर म रोने लग,ँ ू गाने लग,ँ ू पागल हो जाऊँ यह सब कभी
मझु े नह हआ और रह किवताएँ तो उनम क बात मझ ु े बहत अ छी लगती ह क ट्स क
किवताएँ पढक़र ऐसा लगा है अ सर िक मेरी नस का कतरा-कतरा आँसू बनकर छलकने वाला
है लेिकन वह महज किवता का असर होता है ”
“महज किवता का असर,” गेसू ने पछ ू ा, “कभी िकसी खास आदमी के िलए तेरे मन म हँ सी या
आँसू नह उमड़ते! कभी अपने मन को जाँचकर तो देख, कह तेरी नाजुक-खयाली के परदे म
िकसी एक क सरू त तो नह िछपी है ”
“नह गेसू बानो, नह , इसम मन को जाँचने क या बात है ऐसी बात होती और मन िकसी
के िलए झक ु ता तो या खुद मझ ु े नह मालम ू होता?” सुधा बोली, “लेिकन तम ु ऐसा य सोचती
हो?”
“बात यह है, सुधी!” गेसू ने सुधा को अपनी गोद म ख चते हए कहा, “देखो, तम ु मझ
ु से इ म म
ऊँची हो, तम ु ने अँ ेजी शायरी छान डाली है लेिकन िजंदगी से िजतना मझ ु े सािबका पड़ चुका है,
अभी तु ह नह पड़ा अ सर कब, कहाँ और कैसे मन अपने को हार बैठता है, यह खुद हम पता
नह लगता मालम ू तब होता है जब िजसके कदम पर हमने िसर रखा है, वह झटके से अपने
कदम घसीट ले उस व हमारी न द टूट जाती है और तब हम जाकर देखते ह िक अरे हमारा
िसर तो िकसी के कदम पर रखा हआ था और उनके सहारे आराम से सोते हए हम सपना देख
रहे थे िक हमारा िसर कह झक ु ा ही नह और मझ ु े जाने तेरी आँख म इधर या दीख रहा है
िक म बेचन ै हो उठी हँ तन ू े कभी कुछ नह कहा, लेिकन मने देखा िक नाजुक अशआर तेरे
िदल को उस जगह छू लेते ह िजस जगह उसी को छू सकते ह जो अपना िदल िकसी के कदम पर
चढ़ा चुका हो और म यह नह कहती िक तन ू े मझ
ु से िछपाया है कौन जानता है तेरे िदल ने
खुद तझ ु से यह राज िछपा रखा हो ” और सुधा के गाल थपथपाते हए गेसू बोली, “लेिकन मेरी
एक बात माने गी त?ू तू कभी इस दद को मोल न लेना, बहत तकलीफ होती है ”
सुधा हँ सने लगी, “तकलीफ क या बात? तू तो है ही तझ ु से पछ
ू लँग
ू ी उसका इलाज ”
“मझ ु से पछ
ू कर या कर लेगी-
दद िदल या बाँटने क चीज है?
बाँट ल अपने पराये दद िदल?
नह , तू बड़ी सुकुवाँर है तू इन तकलीफ के िलए बनी नह मेरी च पा!” और गेसू ने उसका
िसर अपनी छाती म िछपा िलया
टन से घड़ी ने साढ़े तीन बजाये
सुधा ने अपना िसर उठाया और घड़ी क ओर देखकर कहा-
“ओ फोह, साढ़े तीन बजे गये और अभी तक गायब!”
“िकसके इ तजार म बेताब है त?ू ” गेसू ने उठकर पछ ू ा
“बस दद िदल, महु बत, इ तजार, बेताबी, तेरे िदमाग म तो यही सब भरा रहता है आज कल,
वही तू सबको समझती है इ तजार-िव तजार नह , च दर अभी मा टर लेकर आएँ गे अब
इ तहान िकतना नजदीक है ”
“हाँ, ये तो सच है और अभी तक मझ ु से पछ
ू , या पढ़ाई हई है असल बात तो यह है िक कॉलेज
म पढ़ाई हो तो घर म पढऩे म मन लगे और राजा कॉलेज म पढ़ाई नह होती इससे अ छा सीधे
यिू नविसटी म बी.ए. करते तो अ छा था मेरी तो अ मी ने कहा िक वहाँ लड़के पढ़ते ह, वहाँ
नह भे जँग ू ी, लेिकन तू य नह गयी, सुधा?”
“मझ ु े भी च दर ने मना कर िदया था ” सुधा बोली
सहसा गेसू ने एक ण को सुधा क ओर देखा और कहा, “सुधी, तझ ु से एक बात पछ
ू ू ँ !”
“हाँ!”
“अ छा जाने दे!”
“पछ ू ो न!”
“नह , पछ ू ना या, खुद जािहर है ”
“ या?”
“कुछ नह ”
“पछ ू ो न!”
“अ छा, िफर कभी पछ ू लगे! अब देर हो रही है आधा घंटा हो गया कोचवान बाहर खड़ा
है ”
सुधा गेसू को पहँ चाने बाहर तक आयी
“कभी हसरत को लेकर आओ ” सुधा बोली
“अब पहले तम ु आओ ” गेसू ने चलते-चलते कहा
“हाँ, हम तो िबनती को लेकर आएँ गे और हसरत से कह देना तभी उसके िलए तोहफा
लाएँ गे!”
“अ छा, सलाम...”
और गेसू क गाड़ी मिु कल से फाटक के बाहर गयी होगी िक साइिकल पर च दर आते हए दीख
पड़ा सुधा ने बहत गौर से देखा िक उसके साथ कौन है, मगर वह अकेला था
सुधा सचमच ु झ ला गयी आिखर लापरवाही क हद होती है च दर को दुिनया भर के काम
याद रहते ह, एक सुधा से जाने या खार खाये बैठा है िक सुधा का काम कभी नह करे गा
इस बात पर सुधा कभी-कभी दु:खी हो जाती है और घर म िकससे वह कहे काम के िलए खुद
कभी बाजार नह जाती नतीजा यह होता है िक वह छोटी-से-छोटी चीज के िलए मोहताज
होकर बैठ जाती है और काम नौकर से करवा भी ले, पर अब मा टर तो नौकर से नह
ढुँढ़वाया जा सकता? ऊन तो नौकर नह पस द कर सकता? िकताब तो नौकर नह ला
सकता? और च दर का यह हाल है इसी बात पर कभी-कभी उसे लाई आ जाती है
च दर ने आकर बरामदे म साइिकल रखी और सुधा का चे हरा देखते ही वह समझ गया “काहे
महँु बना रखा है, पाँच बजे मा टर साहब आएँ गे तु हारे अभी उ ह के यहाँ से आ रहे ह
िबस रया को जानती हो, वही आएँ गे ” और उसके बाद च दर सीधा टडी- म म पहँ च गया
वहाँ जाकर देखा तो आराम-कुस पर बैठे-ही-बैठे डॉ. शु ला सो रहे ह, अत: उसने अपना चाट
और पे न उठाया और ाइंग म म आकर चुपचाप काम करने लगा
बड़ा ग भीर था वह जब इंक घोलने के िलए उसने सुधा से पानी नह माँगा और खुद िगलास
लाकर आँगन म पानी लेने लगा, तब सुधा समझ गयी िक आज िदमाग कुछ िबगड़ा है वह
एकदम तड़प उठी या करे वह! वैसे चाहे वह च दर से िकतना ही ढीठ य न हो पर च दर
गु सा रहता था तब सुधा क ह काँप उठती थी उसक िह मत नह पड़ती थी िक वह कुछ
भी कहे लेिकन अ दर-ही-अ दर वह इतनी परे शान हो उठती थी िक बस
कई बार वह िकसी-न-िकसी बहाने से ाइंग म म आयी, कभी गल ु द ता बदलने , कभी मेजपोश
बदलने , कभी आलमारी म कुछ रखने , कभी आलमारी म से कुछ िनकालने , लेिकन च दर अपने
चाट म िनगाह गड़ाये रहा उसने सुधा क ओर देखा तक नह सुधा क आँख म आँसू छलक
आये और वह चुपचाप अपने कमरे म चली गयी और लेट गयी थोड़ी देर वह पड़ी रही, पता नह
य वह फूट-फूटकर रो पड़ी खबू रोयी, खबू रोयी और िफर महँु धोकर आकर पढऩे क
कोिशश करने लगी जब हर अ र म उसे च दर का उदास चे हरा नजर आने लगा तो उसने
िकताब ब द करके रख दी और ाइंग म म गयी च दर ने चाट बनाना भी ब द कर िदया था
और कुरसी पर िसर टे के छत क ओर देखता हआ जाने या सोच रहा था
वह जाकर सामने बैठ गयी तो च दर ने च ककर िसर उठाया और िफर चाट को सामने िखसका
िलया सुधा ने बड़ी िह मत करके कहा-
“च दर!”
“ या!” बड़े भराये गले से च दर बोला
“इधर देखो!” सुधा ने बहत दुलार से कहा
“ या है!” च दर ने उधर देखते हए कहा, “अरे सुधा! तम ु रो य रही हो?”
“हमारी बात पर नाराज हो गये तम ु हम या कर, हमारा वभाव ही ऐसा हो गया पता नह
य तम ु पर इतना गु सा आ जाता है ” सुधा के गाल पर दो बड़े -बड़े मोती ढलक आये
“अरे पगली! मालम ू होता है तु हारा तो िदमाग बहत ज दी खराब हो जाएगा, हमने तम ु से कुछ
कहा है?”
“कह लेते तो हम स तोष हो जाता हमने कभी कहा तम ु से िक तम ु कहा मत करो गु सा मत
हआ करो मगर तम ु तो िफर गु सा मन-ही-मन म िछपाने लगते हो इसी पर हम लाई आ
जाती है ”
“नह सुधी, तु हारी बात नह थी और हम गु सा भी नह थे पता नह य मन बड़ा भारी-सा
था ”
“ या बात है, अगर बता सको तो बताओ, वरना हम कौन ह तम ु से पछ
ू ने वाले ” सुधा ने बड़े
क ण वर म कहा
“तो तु हारा िदमाग खराब हआ हमने कभी तम ु से कोई बात िछपायी? जाओ, अ छी लड़क क
तरह महँु धो आओ ”
सुधा उठी और महँु धोकर आकर बैठ गयी
“अब बताओ, या बात थी?”
“कोई एक बात हो तो बताएँ पता नह तु हारे घर से गये तो एक-न-एक ऐसी बात होती गयी
िक मन बड़ा उदास हो गया ”
“आिखर िफर भी कोई बात तो हई ही होगी!”
“बात यह हई िक तु हारे यहाँ से म घर गया खाना खाने वहाँ देखा चाचाजी आये हए ह, उनके
साथ एक कोई साहब और ह खैर बड़ी खुशी हई खाना-वाना खाकर जब बैठे तब मालम ू
हआ िक चाचाजी मेरा याह तय करने के िलए आये ह और साथ वाले साहब मेरे होने वाले ससुर
ह जब मने इनकार कर िदया तो बहत िबगडक़र चले गये और बोले हम आज से तु हारे िलए
मर गये और तम ु हमारे िलए मर गये ”
“तु हारी माताजी कहाँ ह?”
“ तापगढ़ म, लेिकन वो तो सौतेली ह और वे तो चाहती ही नह िक म घर लौटूँ, लेिकन
चाचाजी ज र आज तक मझ ु से कुछ महु बत करते थे आज वह भी नाराज होकर चले गये ”
सुधा कुछ देर तक सोचती रही, िफर बोली, “तो च दर, तम ु शादी कर य नह लेते?”
“नह सुधा, शादी नह करनी है मझ ु े मने देखा िक िजसक शादी हई, कोई भी सुखी नह
हआ सभी का भिव य िबगड़ गया और य एक तवालत पाली जाए? जाने कैसी लड़क हो,
या हो?”
“तो उसम या? पापा से कहो उस लड़क को जाकर देख ल हम भी पापा के साथ चले
जाएँ गे अ छी हो तो कर लो न, च दर िफर यह रहना हम अकेला भी नह लगेगा
य ?”
“नह जी, तम ु तो समझती नह हो िजंदगी िनभानी है िक कोई गाय-भस खरीदना है!” च दर
ने हँ सकर कहा, “आदमी एक-दस ू रे को समझे, बझ ू े, यार करे , तब याह के भी कोई माने ह ”
“तो उसी से कर लो िजससे यार करते हो!”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया
“बोलो! चुप य हो गये! अ छा, तम ु ने िकसी को यार िकया, च दर!”
“ य ?”
“बताओ न!”
“शायद नह !”
“िब कुल ठीक, हम भी यही सोच रहे थे अभी ” सुधा बोली
“ य , ये य सोच रही थी?”
“इसिलए िक तम ु ने िकया होता तो तम ु हमसे थोड़़े ही िछपाते, हम ज र बताते, और नह बताया
तो हम समझ गये िक अभी तम ु ने िकसी से यार नह िकया ”
“लेिकन तम ु ने यह पछ ू ा य , सुधा! यह बात तु हारे मन म उठी कैसे?”
“कुछ नह , अभी गेसू आयी थी वह बोली-सुधा, तम ु ने िकसी से कभी यार िकया है, असल म
वह अ तर को यार करती है उससे उसका िववाह होने वाला है हाँ, तो उसने पछ ू ा िक तनू े
िकसी से यार िकया है, हमने कहा, नह बोली, तू अपने से िछपाती है तो हम मन-ही-मन
म सोचते रहे िक तम ु आओगे तो तम ु से पछ
ू गे िक हमने कभी यार तो नह िकया है य िक
तु ह एक हो िजससे हमारा मन कभी कोई बात नह िछपाता, अगर कोई बात िछपाई भी होती
हमने , तो तु ह ज र बता देती िफर हमने सोचा, शायद कभी हमने यार िकया हो और तु ह
बताया हो, िफर हम भल ू गये ह अभी उसी िदन देखो, हम पापा क दवाई का नाम भल ू गये
और तु ह याद रहा शायद हम भल ू गये ह और तु ह मालम ू हो कभी हमने यार तो नह
िकया न?”
“नह , हम तो कभी नह बताया ” च दर बोला
“तब तो हमने यार-वार नह िकया गेसू यँ ू ही ग प उड़ा रही थी ” सुधा ने स तोष क साँस
लेकर कहा, “लेिकन बस! चाचाजी के नाराज होने पर तम ु इतने दु:खी हो गये हो! हो जाने दो
नाराज पापा तो ह अभी, या पापा महु बत नह करते तम ु से?”
“सो य नह करते, तम ु से यादा मझु से करते ह लेिकन उनक बात से मन तो भारी हो ही
गया उसके बाद गये िबस रया के यहाँ िबस रया ने कुछ बड़ी अ छी किवताएँ सुनाय और
भी मन भारी हो गया ” च दर ने कहा
“लो, तब तो च दर, तम ु यार करते होगे! ज र से?” सुधा ने हाथ पटककर कहा
“ य ?”
“गेसू कह रही थी-शायरी पर जो उदास हो जाता है वह ज र महु बत-वुह बत करता है ” सुधा
ने कहा, “अरे यह पोिटको म कौन है?”
च दर ने देखा, “लो िबस रया आ गया!”
च दर उसे बुलाने उठा तो सुधा ने कहा, “अभी बाहर िबठलाना उ ह, म तब तक कमरा ठीक कर
लँ ू ”
िबस रया को बाहर िबठाकर च दर भीतर आया, अपना चाट वगैरह समेटने के िलए, तो सुधा ने
कहा, “सुनो!”
च दर क गया
सुधा ने पास आकर कहा, “तो अब तो उदास नह हो तम ु नह चाहते मत करो शादी, इसम
उदास या होना और किवता-विवता पर महँु बनाकर बैठे तो अ छी बात नह होगी ”
“अ छा!” च दर ने कहा
“अ छा-व छा नह , बताओ, तु ह मेरी कसम है, उदास मत हआ करो िफर हमसे कोई काम नह
होता ”
“अ छा, उदास नह ह गे, पगली!” च दर ने ह क -सी चपत मारकर कहा और बरबस उसके महँु
से एक ठ डी साँस िनकली उसने चाट उठाकर टडी म म रखा देखा डॉ टर साहब अभी
सो ही रहे ह सुधा कमरा ठीक कर रही थी वह आकर िबस रया के पास बैठ गया
थोड़ी देर म कमरा ठीक करके सुधा आकर कमरे के दरवाजे पर खड़ी हो गयी च दर ने
पछू ा-” य , सब ठीक है?”
उसने िसर िहला िदया, कुछ बोली नह
“यही ह आपक िश या सु ी सुधा शु ला इस साल बी.ए. फाइनल का इ तहान दगी ”
िबस रया ने िबना आँख उठाये ही हाथ जोड़ िलये सुधा ने हाथ जोड़े िफर बहत सकुचा-सी
गयी च दर उठा और िबस रया को लाकर उसने अ दर िबठा िदया िबस रया के सामने सुधा
और उसक बगल म च दर
चुप सभी चुप
अ त म च दर बोला-”लो, तु हारे मा टर साहब आ गये अब बताओ न, तु ह या- या पढऩा
है?”
सुधा चुप िबस रया कभी यह पु तक उलटता, कभी वह थोड़ी देर बाद वह बोला-”आपके
या िवषय ह?”
“जी!” बड़ी कोिशश से बोलते हए सुधा ने कहा-”िह दी, इकनॉिम स और गहृ -िव ान ” और
उसके माथे पर पसीना झलक आया
“आपको िह दी कौन पढ़ाता है?” िबस रया ने िकताब म ही िनगाह गड़ाये हए कहा
सुधा ने च दर क ओर देखा और मु कराकर िफर महँु झक ु ा िलया
“बोलो न तम ु खुद, ये राजा ग स कॉलेज म ह शायद िमस पवार िह दी पढ़ाती ह ” च दर ने
कहा-”अ छा, अब आप पढ़ाइए, म अपना काम क ँ ” च दर उठकर चल िदया टडी म म
मिु कल से च दर दरवाजे तक पहँ चा होगा िक सुधा ने िबस रया से कहा-
“जी, म पे न ले आऊँ!” और लपकती हई च दर के पास पहँ ची
“ए सुनो, च दर!” च दर क गया और उसका कुरता पकडक़र छोटे ब च क तरह मचलते हए
सुधा बोली-”तम ु चलकर बैठो तो हम पढ़गे ऐसे शरम लगती है ”
“जाओ, चलो! हर व वही बचपना!” च दर ने डाँटकर कहा-”चलो, पढ़ो सीधे से इतनी बड़ी
हो गयी, अभी तक वही आदत!”
सुधा चुपचाप महँु लटकाकर खड़ी हो गयी और िफर धीरे -धीरे पढ़ने लग गयी च दर डटी म
म जाकर चाट बनाने लगा डॉ टर साहब अभी तक सो रहे थे एक म खी उडक़र उनके गले
पर बैठ गयी और उ ह ने बाय हाथ से म खी मारते हए न द म कहा-”म इस मामले म सरकार
क नीित का िवरोध करता हँ ”
च दर ने च ककर पीछे देखा डॉ टर साहब जग गये थे और जमहु ाई ले रहे थे
“जी, आपने मझ ु से कुछ कहा?” च दर ने पछ
ू ा
“नह , या मने कुछ कहा था? ओह! म सपना देख रहा था कै बज गये?”
“साढ़े पाँच ”
“अरे िब कुल शाम हो गयी!” डॉ टर साहब ने बाहर देखकर कहा-”अब रहने दो कपरू , आज
काफ काम िकया है तम ु ने चाय मँगवाओ सुधा कहाँ है?”
“पढ़ रही है आज से उसके मा टर साहब आने लगे ह ”
“अ छा-अ छा, जाओ उ ह भी बुला लाओ, और चाय भी मँगवा लो उसे भी बुला लो-सुधा
को ”
च दर जब ाइंग म म पहँ चा तो देखा सुधा िकताब समेट रही है और िबस रया जा चुका है
उसने सुधा से कहना चाहा लेिकन सुधा का महँु देखते ही उसने अनुमान िकया िक सुधा लड़ने
के मडू म है, अत: वह वयं ही जाकर महरािजन से कह आया िक तीन याला चाय पढ़ने के
कमरे म भे ज दो जब वह लौटने लगा तो खुद सुधा ही उसके रा ते म खड़ी हो गयी और धमक
के वर म बोली-”अगर कल से साथ नह बैठोगे तम ु , तो हम नह पढ़गे ”
“हम साथ नह बैठ सकते, चाहे तम ु पढ़ो या न पढ़ो ” च दर ने ठं डे वर म कहा और आगे
बढ़ा
“तो िफर हम नह पढ़गे ” सुधा ने जोर से कहा
“ या बात है? य लड़ रहे हो तम ु लोग?” डॉ. शु ला अपने कमरे से बोले च दर कमरे म
जाकर बोला, “कुछ नह , ये कह रही ह िक...”
“पहले हम कहगे,” बात काटकर सुधा बोली-”पापा, हमने इनसे कहा िक तम ु पढ़ाते व बैठा
करो, हम बहत शरम लगती है, ये कहते ह पढ़ो चाहे न पढ़ो, हम नह बैठगे ”
“अ छा-अ छा, जाओ चाय लाओ ”
जब सुधा चाय लाने गयी तो डॉ टर साहब बोले-”कोई िव ासपा लड़का है? अपने घर क
लड़क समझकर सुधा को स पना पढ़ने के िलए सुधा अब ब ची नह है ”
“हाँ-हाँ, अरे यह भी कोई कहने क बात है!”
“हाँ, वैसे अभी तक सुधा तु हारी ही िनगहबानी म रही है तम
ु खुद ही अपनी िज मेवारी
समझते हो लड़का िह दी म एम.ए. है?”
“हाँ, एम.ए. कर रहा है ”
“अ छा है, तब तो िबनती आ रही है, उसे भी पढ़ा देगा ”
सुधा चाय लेकर आ गयी थी
“पापा, तम ु लखनऊ कब जाओगे?”
“शु वार को, य ?”
“और ये भी जाएँ गे?”
“हाँ ”
“और हम अकेले रहगे?”
“ य , महरािजन यह सोएगी और अगले सोमवार को हम लौट आएँ गे ”
डॉ. शु ला ने चाय का याला महँु से लगाते हए कहा
7
दसू रे िदन सुबह सुधा आँगन म बैठी हई आलू छील रही थी और च दर का इ तजार कर रही
थी उसी िदन रात को पापा आ गये थे और दस ू रे िदन सुबह बुआजी और िबनती
“सुधी!” िकसी ने इतने यार से पुकारा िक हवाओं म रस भर गया
“अ छा! आ गये च दर!” सुधा आलू छोडक़र उठ बैठी, “ या लाये हमारे िलए लखनऊ से?”
“बहत कुछ, सुधा!”
“के है सुधा!” सहसा कमरे म से कोई बोला
“च दर ह ” सुधा ने कहा, “च दर, बुआ आ गय ” और कमरे से बुआजी बाहर आय
“ णाम, बुआजी!” च दर बोला और पैर छूने के िलए झक ु ा
“हाँ, हाँ, हाँ!” बुआजी तीन कदम पीछे हट गय “देख य न हम पज ू ा क धोती पहने ह ई
के है, सुधा!”
सुधा ने बुआ क बात का कुछ जवाब नह िदया-”च दर, चलो अपने कमरे म; यहाँ बुआ पज ू ा
करगी ”
च दर अलग हटा बुआ ने हाथ के पंचपा से वहाँ पानी िछडक़ा और जमीन फँ ू कने लग
“सुधा, िबनती को भे ज देव ” बुआजी ने धपू दानी म महरािजन से कोयला लेते हए कहा
सुधा अपने कमरे म पहँ चकर च दर को खाट पर िबठाकर नीचे बैठ गयी
“अरे , ऊपर बैठो ”
“नह , हम यह ठीक ह ” कहकर वह बैठ गयी और च दर क पट पर पे ि सल से लक र
ख चने लग
“अरे यह या कर रही हो?” च दर ने पैर उठाते हए कहा
“तो तम ु ने इतने िदन य लगाये?” सुधा ने दस
ू रे पाँयचे पर पे ि सल लगाते हए कहा
“अरे , बड़ी आफत म फँस गये थे, सुधा लखनऊ से हम लोग गये बरे ली वहाँ एक उ सव म
हम लोग भी गये और एक िमिन टर भी पहँ चे कुछ सोशिल ट, क युिन ट, और मजदरू ने
िवरोध दशन िकया िफर तो पुिलसवाल और मजदरू म जमकर लड़ाई हई वह तो कहो एक
बेचारा सोशिल ट लड़का था कैलाश िम ा, उसने हम लोग क जान बचायी, वरना पापा और
हम, दोन ही अ पताल म होते...”
“अ छा! पापा ने हम कुछ बताया नह !” सुधा घबराकर बोली और बड़ी देर तक बरे ली, उप व
और कैलाश िम ा क बात करती रही
“अरे ये बाहर गा कौन रहा है?” च दर ने सहसा पछ ू ा
बाहर कोई गाता हआ आ रहा था, “आँचल म य बाँध िलया मझ ु परदेशी का यार....आँचल म
य ...” और च दर को देखते ही उस लड़क ने च ककर कहा, “अरे ?” ण-भर त ध, और
िफर शरम से लाल होकर भागी बाहर
“अरे , भागती य है? यही तो ह च दर ” सुधा ने कहा
लड़क बाहर क गयी और गरदन िहलाकर इशारे से कहा, “म नह आऊँगी मझ ु े शरम लगती
है ”
“अरे चली आ, देखो हम अभी पकड़ लाते ह, बड़ी झ क है यह ” कहकर सुधा उठी, वह िफर
भागी सुधा पीछे -पीछे भागी थोड़ी देर बाद सुधा अ दर आयी तो सुधा के हाथ म उस लड़क
क चोटी और वह बेचारी बुरी तरह अ त- य त थी दाँत से अपने आँचल का छोर दबाये हए थी
बाल क तीन-चार लट महँु पर झक ु रही थ और लाज के मारे िसमटी जा रही थी और आँख थ
िक मु काये या रोये, यह तय ही नह कर पायी थ
“देखो...च दर...देखो ” सुधा हाँफ रही थी-”यही है िबनती मोटक कह क , इतनी मोटी है िक
दम िनकल गया हमारा ” सुधा बुरी तरह हाँफ रही थी
च दर ने देखा-बेचारी क बुरी हालत थी मोटी तो बहत नह थी पर हाँ, गाँव क त दु ती
थी, लाल चे हरा, िजसे शरम ने तो दन ू ा बना िदया था एक हाथ से अपनी चोटी पकड़े थी, दसू रे
से अपने कपड़े ठीक कर रही थी और दाँत से आँचल पकड़े
“छोड़ दो उसे, यह या है सुधा! बड़ी जंगली हो तम ु ” च दर ने डाँटकर कहा
“जंगली म हँ या यह?” चोटी छोड़कर सुधा बोली-”यह देखो, दाँत काट िलया है इसने ”
सचमच ु सुधा के क धे पर दाँत के िनशान बने हए थे
च दर इस स भावना पर बेतहाशा हँ सने लगा िक इतनी बड़ी लड़क दाँत काट सकती है-” य
जी, इतनी बड़ी हो गयी और दाँत काटती हो?” उसक हँ सी क नह रही थी “सचमच ु यह तो
बड़े मजे क लड़क है िबनती है इसका नाम? य रे , महआ बीनती थी या वहाँ, जो बुआजी
ने िबनती नाम रखा है?”
वह प ला ठीक से ओढ़ चुक थी बोली, “नम ते ”
च दर और सुधा दोन हँ स पड़े “अब इतनी देर बाद याद आयी ” च दर और भी हँ सने लगा
“िबनती! ए िबनती!” बुआ क आवाज आयी िबनती ने सुधा क ओर देखा और चली गयी
“और कहो सुधी,” च दर बोला-” या हाल-चाल रहा यहाँ?”
“िफर भी एक िच ी भी तो नह िलखी तम ु ने ” सुधा बड़ी िशकायत के वर म बोली, “हम रोज
लाई आती थी और तु हारी वो आयी थी ”
“हमारी वो?” च दर ने च ककर पछ ू ा
“अरे हाँ, तु हारी प मी रानी ”
“अ छा वो आयी थ या बात हई?”
“कुछ नह ; तु हारी तसवीर देख-देखकर रो रही थ ” सुधा ने उँ गिलयाँ नचाते हए कहा
“मेरी तसवीर देखकर! अ छा, और थी कहाँ मेरी तसवीर?”
“अब तम ु तो बहस करने लगे, हम कोई वक ल ह! तम ु कोई नयी बात बताओ ” सुधा बोली
“हम तो तु ह बहत-बहत बात बताएँ गे परू ी कहानी है ”
इतने म िबनती आयी उसके हाथ म एक त तरी थी और एक िगलास त तरी म कुछ िमठाई
थी, और िगलास म शरबत उसने लाकर त तरी च दर के सामने रख दी
“ना भई, हम नह खाएँ गे ” च दर ने इनकार िकया
िबनती ने सुधा क ओर देखा
“खा लो लगे नखरा करने लखनऊ से आ रहे ह न, तक लुफ न कर तो मालम ू कैसे हो?”
सुधा ने महँु िचढ़ाते हए कहा च दर मस ु कराकर खाने लगा
“दीदी के कहने पर खाने लगे आप!” िबनती ने अपने हाथ क अँगठ ू ी क ओर देखते हए
कहा
च दर हँ स िदया, कुछ बोला नह िबनती चली गयी
“बड़ी अ छी लड़क मालम ू पड़ती है यह ” च दर बोला
“बहत यारी है और पढऩे म हमारी तरह नह है, बहत तेज है ”
“अ छा! तु हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?”
“मा टर साहब बहत अ छा पढ़ाते ह और च दर, अब हम खबू बात करते ह उनसे दुिनया-भर
क और वे बस हमेशा िसर नीचे िकये रहते ह एक िदन पढ़ते व हम गरी पास म रखकर
खाते गये, उ ह मालम ू ही नह हआ उनसे एक िदन किवता सुनवा दो ” सुधा बोली
च दर ने कुछ जवाब नह िदया और डॉ. साहब के कमरे म जाकर िकताब उलटने लगा
इतने म बुआजी का तेज वर आया-”हम मालम ू होता िक ई महँु -झ सी हमके ऐसी नाच नचइहै
तौ हम पैदा होतै गला घ ट देइत हरे राम! अ काश िसर पर उठाये है कै घंटे से न रयात-
न रयात गटई फट गयी ई बोलतै नाह जैसे साँप सँघ ू गवा होय ”
ोफेसर शु ला के घर म वह नया सां कृितक त व था िकतनी शालीनता और िश ता से वह
रहते थे कभी इस तरह क भाषा भी उनके घर म सुनने को िमलेगी, इसक च दर को जरा भी
उ मीद न थी च दर च ककर उधर देखने लगा डॉ. शु ला समझ गये कुछ लि जत-से
और मस ु कराकर लािन िछपाते हए-से बोले, “मेरी िवधवा बहन है, कल गाँव से आयी है लड़क
को पहँ चाने ”
उसके बाद कुछ पटकने का वर आया, शायद िकसी बरतन के इतने म सुधा आयी, गु से से
लाल-”सुना पापा तम ु ने , बुआ िबनती को मार डालगी ”
“ या हआ आिखर?” डॉ. शु ला ने पछ ू ा
“कुछ नह , िबनती ने पज ू ा का पंचपा उठाकर ठाकुरजी के िसंहासन के पीछे रख िदया था
उ ह िदखाई नह पड़ा, तो गु सा िबनती पर उतार रही ह ”
इतने म िफर उनक आवाज आयी-”पैदा करते बखत बहत अ छा लाग रहा, पालत बखत ट बोल
गये मर गये र ो तो आपन स तानौ अपने साथ लै जा यौ हमारे मड़ ू पर ई ह या काहे डाल
गयौ ऐसी कुल छनी है िक पैदा होतेिहन बाप को खाय गयी ”
“सुना पापा तम ु ने ?”
“चलो हम चलते ह ” डॉ. शु ला ने कहा सुधा वह रह गयी च दर से बोली, “ऐसा बुरा
वभाव है बुआ का िक बस िबनती ऐसी है िक इतना बदा त कर लेती है ”
बुआ ने ठाकुरजी का िसंहासन साफ करते हए कहा, “रोवत काहे हो, कौन तु हारे माई-बाप को
ग रयावा है िक ई अँसुआ ढरकाय रही हो ई सब चोचला अपने ओ को िदखाओ जायके दुई
महीना और ह-अबिहन से उिधयानी न जाओ ”
अब अभ ता सीमा पार कर चुक थी
“िबनती, चलो कमरे के अ दर, हटो सामने से ” डॉ. शु ला ने डाँटकर कहा, “अब ये चरखा
ब द होगा या नह कुछ शरम-हया है या नह तम ु म?”
िबनती िससकते हए अ दर गयी टडी म म देखा िक च दर है तो उलटे पाँव लौट आयी सुधा
के कमरे म और फूट-फूटकर रोने लगी
डॉ. शु ला लौट आये-”अब हम ये सब कर िक अपना काम कर! अ छा कल से घर म महाभारत
मचा रखा है कब जाएँ गी ये, सुधा?”
“कल जाएँ गी पापा अब िबनती को कभी मत भे जना इनके पास ” सुधा ने गु सा-भरे वर म
कहा
“अ छा-जाओ, हमारा खाना परसो च दर, तम ु अपना काम यहाँ करो यहाँ शोर यादा हो तो
तमु लाइ रे ी म चले जाना आज भर क तकलीफ है ”
च दर ने अपनी कुछ िकताब उठाय और उसने चला जाना ही ठीक समझा सुधा खाना
परोसने चली गयी िबनती रो-रोकर और तिकये पर िसर पटककर अपनी कुंठा और दु:ख उतार
रही थी बुआ घंटी बजा रही थ , दबी जबान जाने या बकती जा रही थ , यह घंटी के भि -
भावना-भरे मधुर वर म सुनायी नह देता था
9
सचमच ु डे ढ़ महीने तक च दर को होश नह रहा िक कहाँ या हो रहा है िबस रया रोज सुधा
और िबनती को पढ़ाने आता रहा, सुधा और िबनती दोन ही का इ तहान ख म हो गया प मी
दो बार सुधा और च दर से िमलने आयी लेिकन च दर एक बार भी उसके यहाँ नह गया िम ा
का एक खत बरे ली से आया लेिकन च दर ने उसका भी जवाब नह िदया डॉ टर साहब ने
अपनी पु तक के दो अ याय िलख डाले लेिकन उसने एक िदन भी बहस नह क िबनती उसे
बराबर चाय, दध ू , ना ता, शरबत और खरबज ू ा देती रही लेिकन च दर ने एक बार भी उसके
ससुर का नाम लेकर नह िचढ़ाया सुधा या करती है, कहाँ जाती है, च दर से या कहती है,
च दर को कोई होश नह , बस उसका पे न, उसके कागज, टडी म क मेज और च दर है िक
आिखर थीिसस परू ी करके ही माना
7 मई को जब उसने थीिसस का आिखरी प ना िलखकर परू ा िकया और स तोष क साँस ली तो
देखा िक शाम के पाँच बजे ह, सायबान म अभी परदा पड़ा है लेिकन धपू उतार पर है और लू ब द
हो गयी है उसक कुस के पीछे एक चटाई िबछाये हए सुधा बैठी है ग
ू ो का अधपढ़ा हआ
उप यास बगल म खुला हआ औंधा पड़ा है और आप च दर क एक मोटी-सी इकनॉिम स क
िकताब खोले उस पर कलम से कुछ गोदा-गोदी कर रही है
“सुधा!” एक गहरी साँस लेकर अँगड़ाई लेते हए च दर ने कहा, “लो, आज आिखरकार जान
छूटी बस, अब दो-तीन महीने म माबदौलत डॉ टर बन जाएँ गे!”
सुधा अपने काय म य त च दर ने या कहा, यह सुनकर भी गम ु च दर ने हाथ बढ़ाकर
चोटी झटक दी “हाय रे ! हम नह अ छा लगता, च दर!” सुधा िबगडक़र बोली, “तु हारे काम
के बीच म कोई बोलता है तो िबगड़ जाते हो और हमारा काम थोड़े ही मह वपण ू है!” कहकर
सुधा िफर पे न लेकर गोदने लगी
“आिखर कौन-सा उपिनषद िलख रही ह आप? जरा देख तो!” च दर ने िकताब ख च ली
टािजग क इकनॉिम स क िकताब म एक परू े प ने पर सुधा ने एक िब ली बनायी थी और
अगर िनगाह जरा चक ू जाए तो आप कह नह सकते थे यह चौरासी लाख योिनय म से िकस
योिन का जीव है, लेिकन चँिू क सुधा कह रही है िक यह िब ली है, इसिलए मानना होगा िक यह
िब ली ही है
च दर ने सुधा क बाँह पकडक़र कहा, “उठ! आलसी कह क , चल उठा ये पोथा! चलके पापा
के पैर छू आएँ ?”
सुधा चुपचाप उठी और आ ाकारी लड़क क तरह मोटी फाइल उठा ली दरवाजे तक पहँ चकर
क गयी और च दर के क धे पर फाइल िटकाकर बोली, “ऐ च दर, तो स ची अब तम ु डॉ टर
हो जाओगे?”
“और या?”
“आहा!” कहकर जो सुधा उछली तो फाइल हाथ से िखसक और सभी प ने जमीन पर
च दर झ ला गया उसने गु से से लाल होकर एक घँस ू ा सुधा को मार िदया “अरे राम रे !”
सुधा ने पीठ सीधी करते हए कहा, “बड़े परोपकारी हो डॉ टर च दर कपरू ! हम िबना थीिसस
िलखे िड ी दे दी! लेिकन बहत जोर क थी!”
च दर हँ स पड़ा
खैर दोन पापा के पास गये वे भी िलखकर ही उठे थे और शरबत पी रहे थे च दर ने जाकर
कहा, “परू ी हो गयी ” और झक ु कर पैर छू िलये उ ह ने च दर को सीने से लगाकर कहा,
“बस बेटा, अब तु हारी तप या परू ी हो गयी अब जुलाई से यिू नविसटी म ज र आ जाओगे
तम ु !”
सुधा ने पोथा कोच पर रख िदया और अपने पैर बढ़ाकर खड़ी हो गयी “ये या?” पापा ने
पछू ा
“हमारे पैर नह छुएँ गे या?” सुधा ने ग भीरता से कहा
“चल पगली! बहत बदतमीज होती जा रही है!” पापा ने कृि म गु से से कहा, “च दर! बहत
िसर चढ़ी हो गयी है जरा दबाकर रखा करो तम ु से छोटी है िक नह ?”
“अ छा पापा, अब आज िमठाई िमलनी चािहए ” सुधा बोली, “च दर ने थीिसस ख म क है?”
“ज र, ज र बेटी!” डॉ टर शु ला ने जेब से दस का नोट िनकालकर दे िदया, “जाओ, िमठाई
मँगवाकर खाओ तम ु लोग ”
सुधा हाथ म नोट िलये उछलते हए टडी म म आयी, पीछे -पीछे च दर सुधा क गयी और
अपने मन म िहसाब लगाते हए बोली, “दस पये प ड ऊन एक प ड म आठ ल छी छह
ल छी म एक शाल बाक बची दो ल छी दो ल छी म एक वेटर बस एक िबनती का
वेटर, एक हमारा शाल ”
च दर का माथा ठनका अब िमठाई क उ मीद नह िफर भी कोिशश करनी चािहए
“सुधा, अभी से शाल का या करोगी? अभी तो बहत गरमी है!” च दर बोला
“अबक जाड़े म तु हारा याह होगा तो आिखर हम लोग नयी-नयी चीज का इ तजाम कर न
अब डॉ टर हए, अब डॉ टरनी आएँ गी!” सुधा बोली
खैर, बहत मनाने -बहलाने -फुसलाने पर सुधा िमठाई मँगवाने को राजी हई जब नौकर िमठाई
लेने चला गया तो च दर ने चार ओर देखकर पछ ू ा, “कहाँ गयी िबनती? उसे भी बुलाओ िक
अकेले-अकेले खा लोगी!”
“वह पढ़ रही है मा टर साहब से!”
“ य ? इ तहान तो ख म हो गया, अब या पढ़ रही है?” च दर ने पछ ू ा
“िवदुषी का दसू रा ख ड तो दे रही है न िसत बर म!” सुधा बोली
“अ छा, बुलाओ िबस रया को भी!” च दर बोला
“अ छा, िमठाई आने दो ” सुधा ने कहा और फाइल क ओर देखकर कहा, “मझ ु े इस क ब त
पर बहत गु सा आ रहा है ”
“ य ?”
“इसक वजह से तम ु डे ढ़ महीने सीधे से बोले तक नह इ तहान वाले िदन सुबह-सुबह तु ह
हाथ जोडऩे आयी तो तम ु ने िसर पर हाथ भी नह रखा!” सुधा ने िशकायत के वर म कहा
“तो अब आशीवाद दे द अब तो ख म हई थीिसस अब िजतना चाहो बात कर लो थीिसस
न िलखते तो िफर तु हारे च दर को उपािध कहाँ से िमलती?” च दर ने दुलार से कहा
“तो िफर क वोकेशन पर तु हारी गाउन हम पहनकर फोटो िखंचाएँ गे!” सुधा मचलकर बोली
इतने म नौकर िमठाई ले आया “जाओ, िबनतीजी को बुला लाओ ” च दर ने कहा
िबनती आयी
“तमु पढ़ चुक !” च दर ने पछ ू ा
“अभी नह ” िबनती बोली
“अ छा, अब आज पढ़ाई ब द करो, उ ह भी बुला लाओ िमठाई खाई जाए ” च दर ने कहा
“अ छा!” कहकर िबनती जो मड़ ु ी तो सुधा बोली, “अरे लालिचन! ये तो पछू ले िक िमठाई काहे
क है?”
“मझ ु े मालम
ू है!” िबनती मस ु कराती हई बोली, “उनके यहाँ आज गये ह गे, प मी के यहाँ िफर
आज कुछ उस िदन जैसी बात हई होगी ”
सुधा हँ स पड़ी च दर झप गया िबनती चली गयी िबस रया को बुलाने
“अब तो ये तम ु से बोलने लगी!” सुधा ने कहा
“हाँ, यह है बड़ी सुशील लड़क और बहत शा त हम बहत अ छी लगती है बोलना तो जैसे
आता ही नह इसे ”
“हाँ, लेिकन अब खबू सीख रही है इसक गु िमली है गेसू हमसे भी यादा गेसू से पटने
लगी है इसक दोन याह करने जा रही ह और दोन उसी क बात करती ह जब िमलती ह
तब ” सुधा बोली
“और किवता भी करती है यह, तम ु एक बार कह रही थ ?” च दर ने पछ ू ा
“नह जी, असल म एक बड़ी सु दर-सी नोट-बुक थी, उसम यह जाने या िलखती थी? हम
नह िदखाती थी बाद म हमने देखा िक एक डायरी है उसम धोबी का िहसाब िलखती
थी ”
“तो किवता नह िलखत ! ता जुब है, वरना सोलह बरस के बाद ेम करके किवता करना तो
लड़िकय का फै शन हो गया है, उतना ही यापक िजतना उलटा प ला ओढ़ना ” च दर
बोला
“चला तु हारा नारी-पुराण!” सुधा िबगड़ी
िमठाई खाने वाले आये आगे-आगे िबनती, पीछे -पीछे िबस रया अिभवादन के बाद िबस रया
बैठ गया “कहो िबस रया, तु हारी िश या कैसी है?”
“बस अि तीय ” किव िबस रया ने िसर िहलाकर कहा सुधा मस ु करा दी, च दर क ओर
देखकर
“और ये सुधा कैसी थी?”
“बस अि तीय ” िबस रया ने उसी तरह कहा
“दोन अि तीय ह? साथ ही!” च दर ने पछ ू ा
सुधा और िबनती दोन हँ स द िबस रया नह समझ पाया िक उसने कौन-सी हँ सने क बात
क थी और जब नह समझ पाया तो पहले िसर खुजलाने लगा िफर खुद भी हँ स पड़ा उसक
हँ सी पर तीन और हँ स पड़े
“च दर, मा टर साहब भी खबू ह एक िदन िबनती को महादेवी क वह किवता पढ़ा रहे थे,
'िवरह का जलजात जीवन,' तो पढ़ते-पढ़ते बड़ी गहरी साँस भरने लगे ”
च दर और िबनती दोन हँ स पड़े िबस रया पहले तो खुद हँ सा िफर बोला, “हाँ भाई, या कर,
कपरू ! तम ु तो जानते ही हो, म बहत भावुक हँ मझ ु से बदा त नह होता एक बार तो ऐसा
हआ िक पच म एक क ण रस का गीत आ गया अथ िलखने को म उसे पढ़ते ही इतना
यिथत हो गया िक उठकर टहलने लगा ोफेसर समझे म दस ू रे लड़के क कॉपी देखने उठा
हँ , तो उ ह ने िनकाल िदया मझ ु े िनकाले जाने का अफसोस नह हआ लेिकन किवता पढक़र
मझ ु े बहत लाई आयी ”
सुधा हँ सी तो च दर ने आँख के इशारे से मना िकया और ग भीरता से बोला, “हाँ भाई िबस रया,
सो तो सही है ही तम ु इतने भावुक न हो तो इतना अ छा कैसे िलख सकते हो? तो तम ु ने पचा
छोड़ िदया?”
“हाँ, म पच वगैरह क या परवाह करता हँ ? मेरे िलए इन सभी व तओ ु ं का कुछ भी अथ नह
म भावना क उपासना करता हँ उस समय परी ा देने क भावना से यादा सबल उस किवता
क क ण भावना थी और इस तरह म िकतनी बार फेल हो चुका हँ मेरे साथ वह पढ़ता था
न ह रहर टंडन, वह अब ब ती कॉलेज का ि ि सपल है एक मेरा सहपाठी था, वह रे िडयो का
ो ाम ए जी यिू टव है...”
“और एक तु हारा सहपाठी तो हमने सुना िक असे बली का पीकर भी है!” च दर बात काटकर
बोला सुधा िफर हँ स पड़ी िबनती भी हँ स पड़ी
खैर िमठाई का भोग ार भ हआ िबस रया कुछ तक लुफ कर रहा था तो िबनती बोली,
“खाइए, िमठाई तो िवरह-रोग और भावुकता म बहत वा य द होती है!”
“अ छा, अब तो िबनती का कंठ फूट िनकला! अपने गु जी को बना रही है ” च दर बोला
िबस रया थोड़ी देर बाद चला गया “अब मझ ु े एक पाट म जाना है ” उसने कहा जब
आिखर म एक रसगु ला बच रहा तो िबनती हाथ म लेकर बोली, “कौन लेगा?” आज पता नह
य िबनती बहत खुश थी और बहत बोल रही थी
च दर बोला, “हम दो!”
सुधा बोली, “हम!”
िबनती ने एक बार च दर क ओर देखा, एक बार सुधा क ओर च दर बोला, “देख िबनती
हमारी है या सुधा क है ”
िबनती ने झट रसगु ला सुधा के मख ु म रख िदया और सुधा के िसर पर िसर रखकर बोली-
“हम अपनी दीदी के ह!” सुधा ने आधा रसगु ला िबनती को दे िदया तो िबनती च दर को
िदखलाकर खाते हए सुधा से बोली, “दीदी, ये हम बहत बनाते ह, अब हम भी तु हारी तरह
बोलगे तो इनका िदमाग ठीक हो जाएगा ”
“हम-तम ु दोन िमलके इनका िदमाग ठीक करगे?” सुधा ने यार से िबनती को थपथपाते हए
कहा, “अब हम त त रयाँ धोकर रख द ” और त त रयाँ उठाकर चल दी
“पानी नह दोगी?” च दर बोला
िबनती पानी ले आयी और बोली, “हम तो आपका इतना काम करते ह और आप जब देखो तब
हम बनाते रहते ह आपको या आन द आता है हम बनाने म?”
च दर ने पल-भर िबनती क ओर देखा और बोला, “असल म बनने के बाद जब तम ु झप जाती
हो तो...हाँ ऐसे ही ”
िबनती ने िफर झपकर महँु िछपा िलया और लाज से सकुचाकर इ वधू बन गयी िबनती
देखने -सुनने म बड़ी अ छी थी उसक गठन तो सुधा क तरह नह थी लेिकन उसके चे हरे पर
एक िफरोजी आभा थी िजसम गल ु ाल के डोरे थे आँख उसक बड़ी-बड़ी और पलक म इस तरह
डोलती थ जैसे िकसी सुकुमार सीपी म कोई बहत बड़ा मोती डोले झपती थी तो महँु पर साँझ
मसु करा उठती थी और गाल म फूल के कटोर जैसे दो छोटे -छोटे गड्ढो और िबनती के अंग-
अंग म एक प क लहर थी जो नािगन क तरह लहराती थी और उसक आदत थी िक बात
करते समय अपनी गरदन जरा टे ढ़ी कर लेती थी और अँगिु लय से अपने आँचल का छोर उमेठने
लगती थी
इस व च दर क बात पर झप गयी और उसी तरह आँचल के छोर को उमेठती हई, मस ु कान
िछपाकर उसने ऐसी िनगाह से च दर क ओर देखा िजसम थोड़ी लाज, थोड़ा गु सा, थोड़ी
स नता और थोड़ी शरारत थी
च दर एकदम बोला उठा, “अरे सुधा, सुधा, जरा िबनती क आँख देखो इस व !”
“आयी अभी ” बगल के कमरे म त तरी रखते हए सुधा बोली
“बड़े खराब ह आप?” िबनती बोली
“हाँ, बनाओगी न आज से हम? हमारा िदमाग ठीक करोगी न? बहत बोल रही थी, अब बताओ!”
“बताएँ या? अभी तक हम बोलते नह थे तभी न?”
“अब अपनी ससुराल म बोलना टुइयाँ ऐसी! वह तु हारे बोल पर रीझगे लोग ” च दर ने िफर
छे ड़ा
“िछः, राम-राम! ये सब मजाक हमसे मत िकया क िजए दीदी से य नह कहते िजनक अभी
शादी होने जा रही है ”
“अभी उनक कहाँ, अभी तो तय भी नह हई ”
“तय ही समिझए, फोटो इनक उन लोग ने पस द कर ली अ छा एक बात कह, मािनएगा!”
िबनती बड़े आ ह और दीनता के वर म बोली
“ या?” च दर ने आ य से पछ ू ा िबनती आज सहसा िकतना बोलने लगी है िबनती बोली,
नीचे जमीन क ओर देखती हई-”आप हमसे याह के बारे म मजाक न िकया क िजए, हम अ छा
नह लगता ”
“ओहो, याह अ छा लगता है लेिकन उसके बारे म मजाक नह गड़
ु खाया गलु गलु े से
परहे ज!”
“हाँ, यही तो बात है ” िबनती सहसा ग भीर हो गयी-”आप समझते ह गे िक म याह के िलए
उ सुक हँ , दीदी भी समझती ह; लेिकन मेरा ही िदल जानता है िक याह क बात सुनकर मझ ु े
कैसा लगने लगता है लेिकन िफर भी मने याह करने से इनकार नह िकया खुद दौड़-
दौडक़र उस िदन दुबेजी क सेवा म लगी रही, इसिलए िक आप देख चुके ह िक माँ का यवहार
मझ ु से कैसा है? आप यहाँ इस प रवार को देखकर समझ नह सकते िक म वहाँ कैसे रहती हँ ,
कैसे माँजी क बात बदा त करती हँ , वह नरक है मेरे िलए, माँ क गोद नरक है और म िकसी
तरह िनकल भागना चाहती हँ कुछ चैन तो िमलेगा!” िबनती क आँख म आँसू आ गये और
िससकती हई बोली, “लेिकन आप या दीदी जब यह कहते ह, तो मझ ु े लगता है िक म िकतनी
नीच हँ , िकतनी पितत हँ िक खुद अपने याह के िलए याकुल हँ , लेिकन आप न कहा कर तो
अ छा है!” िबनती को आँसुओ ं का तार बँध गया था
सुधा बगल के कमरे से सब कुछ सुन रही थी आयी और च दर से बोली, “बहत बुरी बात है,
च दर! िबनती, य रो रही हो, रानी? बुआ का वभाव ही ऐसा है, उससे हमेशा अपना िदल
दुखाने से या लाभ?” और पास जाकर उसको छाती से लगाकर सुधा बोली, “मेरी राजदुलारी!
अब रोना मत, ऐं! अ छा, हम लोग कभी मजाक नह करगे! बस अब चुप हो जाओ, रानी िबिटया
क तरह जाओ महँु धो आओ ”
िबनती चली गयी च दर लि जत-सा बैठा था
“लो, अब तु ह भी लाई आ रही है या?” सुधा ने बहत दुलार से कहा, “तम ु उससे ससुराल का
मजाक मत िकया करो वह बहत दु:खी है और बहत कदर करती है तु हारी और िकसी क
मजाक क बात और है हम या तम ु कहते ह तो उसे लग जाता है ”
“अ छा, वो कह रही थी, तु हारी फोटो उन लोग ने पस द कर ली है”-च दर ने बात बदलने के
खयाल से कहा
“और या, कोई हमारी श ल तु हारी तरह है िक लोग नापस द कर द ” सुधा अकड़कर
बोली
“नह , सच-सच बताओ?” च दर ने पछ ू ा
“अरे जी,” लापरवाही से महँु िबचकाकर सुधा बोली, “उनके पस द करने से या होता है? म
याह-उआह नह क ँ गी तम ु इस फेर म न रहना िक हम िनकाल दोगे यहाँ से ”
इतने म िबनती आ गयी वह भी उदास थी सुधा उठी और िबनती को पकड़ लायी और
ढकेलकर च दर के बगल म िबठा िदया
“लो, च दर! अब इसे दुलार कर लो तो अभी गरु गरु ाने लगे िब ली कह क !” सुधा ने उसे
ह क -सी चपत मारकर कहा िबनती का महँु अपनी हथेिलय म लेकर अपने महँु के पास
लाकर आँख म आँख डालकर कहा, “पगली कह क , आँसू का खजाना लुटाती िफरती है ”
“च दर!” डॉ. शु ला ने पुकारा और च दर उठकर चला गया
13
सुधा ने हाथ धोकर आँचल के छोर से पकडक़र फोटो देखी और बोली, “च दर, सचमच ु देखो!
िकतने अ छे लग रहे ह िकतना तेज है चे हरे पर, और माथा देखो िकतना ऊँचा है ” सुधा
फोटो देखती हई बोली
“अ छी लगी फोटो? पस द है?” च दर ने बहत ग भीरता से पछ ू ा
“हाँ, हाँ, और समाजवािदय क तरह नह लगते ये ” सुधा बोली
“अ छा सुधा, यहाँ आओ ” और च दर के साथ सुधा अपने कमरे म जाकर पलँग पर बैठ गयी
च दर उसके पास बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ म लेकर उसक अँगठ ू ी घुमाते हए बोला,
“सुधा, एक बात कह, मानोगी?”
“ या?” सुधा ने बहत दुलार और भोलेपन से पछ ू ा
“पहले बता दो िक मानोगी?” च दर ने उसक अँगठ ू ी क ओर एकटक देखते हए कहा
“िफर, हमने कभी कोई बात तु हारी टाली है! या बात है?”
“तमु मानोगी चाहे कुछ भी हो?” च दर ने पछ ू ा
“हाँ-हाँ, कह तो िदया अब कौन-सी तु हारी ऐसी बात है जो तु हारी सुधा नह मान सकती!”
आँख म, वाणी म, अंग-अंग से सुधा के आ मसमपण छलक रहा था
“िफर अपनी बात पर कायम रहना, सुधा! देखो!” उसने सुधा क उँ गिलयाँ अपनी पलक से
लगाते हए कहा, “सुधी मेरी! तम ु उस लड़के से याह कर लो!”
“ या?” सुधा चोट खायी नािगन क तरह तड़प उठी-”इस लड़के से? यही शकल है इसक
हमसे याह करने क ! च दर, हम ऐसा मजाक नापस द करते ह, समझे िक नह ! इसिलए बड़े
यार से बुला लाये, बड़ा दुलार कर रहे थे!”
“तम ु अभी वायदा कर चुक हो!” च दर ने बहत आिजजी से कहा
“वायदा कैसा? तम ु कब अपने वायदे िनभाते हो? और िफर यह धोखा देकर वायदा कराना या?
िह मत थी तो साफ-साफ कहते हमसे! हमारे मन म आता सो कहते हम इस तरह से बाँध कर
य बिलदान चढ़ा रहे हो!” और सुधा मारे गु से के रोने लगी
च दर त ध उसने इस य क क पना ही नह क थी वह ण भर खड़ा रहा वह या
कहे सुधा से, कुछ समझ ही म नह आता था वह गया और रोती हई सुधा के कंधे पर हाथ रख
िदया “हटो उधर!” सुधा ने बहत खाई से हाथ हटा िदया और आँचल से िसर ढकती हई
बोली, “म याह नह क ँ गी, कभी नह क ँ गी िकसी से नह क ँ गी तम ु सभी लोग ने
िमलकर मझ ु े मार डालने क ठानी है तो म अभी िसर पटककर मर जाऊँगी ” और मारे तैश
के सचमच ु सुधा ने अपना िसर दीवार पर पटक िदया “अरे !” दौडक़र च दर, ने सुधा को पकड़
िलया मगर सुधा ने गरजकर कहा, “दरू हटो च दर, छूना मत मझ ु े ” और जैसे उसम जाने
कहाँ क ताकत आ गयी है, उसने अपने को छुड़ा िलया
च दर ने दबी जबान से कहा, “िछः सुधा! यह तम ु से उ मीद नह थी मझ ु े यह भावुकता तु ह
शोभा नह देती बात कैसी कर रही हो तम ु ! हम वही च दर ह न!”
“हाँ, वही च दर हो! और तभी तो! इस सारी दुिनया म तु ह एक रह गये हो मझ ु े फोटो िदखाकर
पस द कराने को ” सुधा िससक-िससककर रोने लगी-”पापा ने भी धोखा दे िदया हम पापा
से यह उ मीद नह थी ”
“पगली! कौन अपनी लड़क को हमेशा अपने पास रख पाया है!” च दर बोला
“तम ु चुप रहो, च दर हम तु हारी बोली जहर लगती है 'सुधा, यह फोटो तु ह पस द है?'
तु हारी जबान िहली कैसे? शरम नह आयी तु ह हम िकतना मानते थे पापा को, िकतना
मानते थे तु ह? हम यह नह मालम ू था िक तम ु लोग ऐसा करोगे ” थोड़ी देर चुपचाप िससकती
रही सुधा और िफर धधककर उठी-”कहाँ है वह फोटो? लाओ, अभी म जाऊँगी पापा के पास! म
कहँ गी उनसे हाँ, म इस लड़के को पस द करती हँ वह बहत अ छा है, बहत सु दर है
लेिकन म उससे शादी नह क ँ गी, म िकसी से शादी नह क ँ गी! झठ ू ी बात है...” और उठकर
पापा के कमरे क ओर जाने लगी
“खबरदार, जो कदम बढ़ाया!” च दर ने डाँटकर कहा, “बैठो इधर ”
“म नह कँ ू गी!” सुधा ने अकडक़र कहा
“नह कोगी?”
“नह कँ ू गी ”
और च दर का हाथ तैश म उठा और एक भरपरू तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा सुधा के गाल पर
नीली उँ गिलयाँ उपट आय वह त ध! जैसे प थर बन गयी हो आँख म आँसू जम गये
पलक म िनगाह जम गय होठ म आवाज जम गय और सीने म िससिकयाँ जम गय
च दर ने एक बार सुधा क ओर देखा और कुस पर जैसे िगर पड़ा और िसर पटककर बैठ गया
सुधा कुस के पास जमीन पर बैठ गयी च दर के घुटन पर िसर रख िदया बड़ी भारी
आवाज म बोली, “च दर, देख तु हारे हाथ म चोट तो नह आयी ”
च दर ने सुधा क ओर देखा, एक ऐसी िनगाह से िजसम क महँु फाड़कर जमहु ाई ले रही थी
सुधा एकाएक िफर िससक पड़ी और च दर के पैर पर िसर रखकर बोली, “च दर, सचमच ु मझु े
अपने आ य से िनकालकर ही मानोगे! च दर, मजाक क बात दस ू री है, िजंदगी म तो दु मनी
मत िनकाला करो ”
च दर एक गहरी साँस लेकर चुप हो गया और िसर थामकर बैठ गया पाँच िमनट बीत
गये कमरे म स नाटा, गहन खामोशी सुधा च दर के पाँव को छाती से िचपकाये सन ू ी-
सनू ी िनगाह से जाने कुछ देख रही थी दीवार के पार, िदशाओं के पार, ि ितज से परे ...दीवार
पर घड़ी चल रही थी िटक...िटक...
च दर ने िसर उठाया और कहा, “सुधा, हमारी तरफ देखो-” सुधा ने िसर ऊपर उठाया च दर
बोला, “सुधा, तम ु हम जाने या समझ रही होगी, लेिकन अगर तम ु समझ पाती िक म या
सोचता हँ ! या समझता हँ ” सुधा कुछ नह बोली, च दर कहता गया, “म तु हारे मन को
समझता हँ , सुधा! तु हारे मन ने जो तम
ु से नह कहा, वह मझ ु से कह िदया था-लेिकन सुधा, हम
दोन एक-दस ू रे क िजंदगी म या इसीिलए आये िक एक-दस ू रे को कमजोर बना द या हम
लोग ने वग क ऊँचाइय पर साथ बैठकर आ मा का संगीत सुना िसफ इसीिलए िक उसे अपने
याह क शहनाई म बदल द?”
“गलत मत समझो च दर, म गेसू नह िक अ तर से याह के सपने देखँ ू और न तु ह अ तर
हो, च दर! म जानती हँ िक म तु हारे िलए राखी के सत ू से भी यादा पिव रही हँ लेिकन म
जैसी हँ , मझ ु े वैसी ही य नह रहने देते! म िकसी से शादी नह क ँ गी म पापा के पास
रहँ गी शादी को मेरा मन नह कहता, म य क ँ ? तम ु गु सा मत हो, दुखी मत हो, तम ु
आ ा दोगे तो म कुछ भी कर सकती हँ , लेिकन ह या करने से पहले यह तो देख लो िक मेरे
दय म या है?” सुधा ने च दर के पाँव को अपने दय से और भी दबाकर कहा
“सुधा, तम ु एक बात सोचो अगर तम ु सबका यार बटोरती चलती हो तो कुछ तु हारी
िज मेदारी है या नह ? पापा ने आज तक तु ह िकस तरह पाला अब या तु हारा यह फज है
िक तम ु उनक बात को ठुकराओ? और एक बात और सोचो-हम पर कुछ िव ास करके ही
उ ह ने कहा है िक म तम ु से फोटो पस द कराऊँ? अगर अब तम ु इनकार कर देती हो तो एक
तरफ पापा को तम ु से ध का पहँ चेगा, दस ू री ओर मेरे ित उनके िव ास को िकतनी चोट
लगेगी हम उ ह या महँु िदखाने लायक रहगे भला! तो तम ु या चाहती हो? महज अपनी
थोड़ी-सी भावुकता के पीछे तम ु सभी क िजंदगी चौपट करने के िलए तैयार हो? यह तु ह शोभा
नह देता है या कहगे पापा, िक च दर ने अभी तक तु ह यही िसखाया था? हम लोग या
कहगे? बताओ आज तम ु शादी न करो उसके बाद पापा हमेशा के िलए दु:खी रहा कर और
दुिनया हम कहा करे , तब तु ह अ छा लगेगा?”
“नह ” सुधा ने भराये हए गले से कहा
“तब, और िफर एक बात और है न सुधी! सोने क पहचान आग म होती है न! लपट म अगर
उसम और िनखार आये तभी वह स चा सोना है सचमच ु मने तु हारे यि व को बनाया है
या तम ु ने मेरे यि व को बनाया है, यह तो तभी मालम ू होगा जबिक हम लोग किठनाइय से,
वेदनाओं से, संघष से खे ल और बाद म िवजयी ह और तभी मालम ू होगा िक सचमचु मने तु हारे
जीवन म काश और बल िदया था अगर सदा तम ु मेरी बाँह क सीमा म रह और म तु हारी
पलक क छाँव म रहा और बाहर के संघष से हम लोग डरते रहे तो कायरता है और मझ ु े
अ छा लगेगा िक दुिनया कहे िक मेरी सुधा, िजस पर मझ ु े नाज था, वह कायर है? बोलो तम ु
कायर कहलाना पस द करोगी?”
“हाँ!” सुधा ने िफर च दर के घुटन म महँु िछपा िलया
“ या? यह म सुधा के महँु से सुन रहा हँ ! िछः पगली! अभी तक तेरी िनगाह ने मेरे ाण म
अमतृ भरा है और मेरी साँस ने तेरे पंख म तफ ू ान क तेजी और हम-तु ह तो आज खुश होना
चािहए िक अब सामने जो रा ता है उसम हम लोग को यह िस करने का अवसर िमलेगा िक
सचमच ु हम लोग ने एक-दस ू रे को ऊँचाई और पिव ता दी है मने आज तक तु हारी सहायता
पर िव ास िकया था आज या तम ु मेरा िव ास तोड़ दोगी? सुधा, इतनी ू र य हो रही हो
आज तम ु ? तमु साधारण लड़क नह हो तम ु ुवतारा से यादा काशमान हो तम ु यह य
चाहती हो िक दुिनया कहे , सुधा भी एक साधारण-सी भावुक लड़क थी और आज म अपने कान
से सुनँ !ू बोलो सुधी?” च दर ने सुधा के िसर पर हाथ रखकर कहा
सुधा ने आँख उठाय , बड़ी कातर िनगाह से च दर क ओर देखा और िसर झक ु ा िलया सुधा
के िसर पर हाथ फेरते हए च दर बोला-
“सुधा, म जानता हँ म तम ु पर शायद बहत स ती कर रहा हँ , लेिकन तु हारे िसवा और कौन है
मेरा? बताओ तु ह पर अपना अिधकार भी आजमा सकता हँ िव ास करो मझ ु पर सुधा,
जीवन म अलगाव, दरू ी, दुख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है भावुकता और सुख
हम ऊँचे नह उठाते बताओ सुधा, तु ह या पस द है? म ऊँचा उठूँ तु हारे िव ास के सहारे ,
तमु ऊँची उठो मेरे िव ास के सहारे , इससे अ छा और या है सुधा! चाहो तो मेरे जीवन को एक
पिव साधन बना दो, चाहो तो एक िछछली अनुभिू त ”
सुधा ने एक गहरी साँस ली, ण-भर घड़ी क ओर देखा और बोली, “इतनी ज दी या है अभी,
च दर? तम ु जो कहोगे म कर लँग ू ी!” और िफर वह िससकने लगी-”लेिकन इतनी ज दी या
हैï? अभी मझु े पढ़ लेने दो!”
“नह , इतना अ छा लड़का िफर िमलेगा नह और इस लड़के के साथ तम ु वहाँ पढ़ भी सकती
हो म जानता हँ उसे वह देवताओं-सा िन छल है बोलो, म पापा से कह दँू िक तु ह पस द
है?”
सुधा कुछ नह बोली
“मौन का मतलब हाँ है न?” च दर ने पछ ू ा
सुधा ने कुछ नह कहा झक ु कर च दर के पैर को अपने होठ से छू िलया और पलक से दो
आँसू चू पड़े च दर ने सुधा को उठा िलया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, “ई र
तु हारी आ मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!” उसने एक गहरी साँस लेकर कहा, “मझ ु े तम
ु पर
गव है,” और फोटो उठाकर बाहर चलने लगा
“कहाँ जा रहे हो! जाओ मत!” सुधा ने उसका कुरता पकडक़र बड़ी आिजजी से कहा, “मेरे पास
रहो, तबीयत घबराती है?”
च दर पलँग पर बैठ गया सुधा तिकये पर िसर रखकर लेट गयी और फटी-फटी पथराई आँख
से जाने या देखने लगी च दर भी चुप था, िब कुल खामोश कमरे म िसफ घड़ी चल रही
थी, िटक...िटक...
थोड़ी देर बाद सुधा ने च दर के पैर को अपने तिकये के पास ख च िलया और उसके तलव पर
होठ रखकर उसम महँु िछपाकर चुपचाप लेटी रही िबनती आयी सुधा िहली भी नह ! च दर
ने देखा वह सो गयी थी िबनती ने फोटो उठाकर इशारे से पछ ू ा, “मंजरू ?” “हाँ ” िबनती ने
बजाय खुश होने के च दर क ओर देखकर िसर झक ु ा िलया और चली गयी
सुधा सो रही थी और च दर के तलव म उसक नरम वाँरी साँस गज ँ ू रही थ च दर बैठा रहा
चुपचाप उसक िह मत न पड़ी िक वह िहले और सुधा क न द तोड़ दे थोड़ी देर बाद सुधा ने
करवट बदली तो वह उठकर आँगन के सोफे पर जाकर लेट रहा और जाने या सोचता रहा
जब उठा तो देखा धपू ढल गयी है और सुधा उसके िसरहाने बैठी उसे पंखा झल रही है उसने
सुधा क ओर एक अपराधी जैसी कातर िनगाह से देखा और सुधा ने बहत दद से आँख फेर ल
और ऊँचाइय पर आिखरी साँस लेती हई मरणास न धपू क ओर देखने लगी
च दर उठा और सोचने लगा तो सुधा बोली, “कल आओगे िक नह ?”
“ य नह आऊँगा?” च दर बोला
“मने सोचा शायद अभी से दरू होना चाहते हो ” एक गहरी साँस लेकर सुधा बोली और पंखे क
ओट म आँसू प छ िलये
15
च दर दस ू रे िदन सुबह नह गया उसक थीिसस का बहत-सा भाग टाइप होकर आ गया था
और उसे बैठा वह सुधार रहा था लेिकन साथ ही पता नह य उसका साहस नह हो रहा था
वहाँ जाने का लेिकन मन म एक िच ता थी सुधा क वह कल से िब कुल मरु झा गयी थी
च दर को अपने ऊपर कभी-कभी ोध आता था लेिकन वह जानता था िक यह तकलीफ का
ही रा ता ठीक रा ता है वह अपनी िजंदगी म स तेपन के िखलाफ था लेिकन उसके िलए
सुधा क पलक का एक आँसू भी देवता क तरह था और सुधा के फूल -जैसे चे हरे पर उदासी क
एक रे खा भी उसे पागल बना देती थी सुबह पहले तो वह नह गया, बाद म वयं उसे पछतावा
होने लगा और वह अधीरता से पाँच बजने का इ तजार करने लगा
पाँच बजे, और वह साइिकल लेकर पहँ चा देखा, सुधा और िबनती दोन नह ह अकेले
डॉ टर शु ला अपने कमरे म बैठे ह च दर गया “आओ, सुधा ने तम ु से कह िदया, उसे
पस द है?” डॉ टर शु ला ने पछ ू ा
“हाँ, उसे कोई एतराज नह ” च दर ने कहा
“म पहले से जानता था सुधा मेरी इतनी अ छी है, इतनी सुशील है िक वह मेरी इ छा का
उ लंघन तो कर ही नह सकती लेिकन च दर, कल से उसने खाना-पीना छोड़ िदया है
बताओ, इससे या फायदा? मेरे बस म या है? म उसे हमेशा तो रख नह सकता लेिकन,
लेिकन आज सुबह खाते व वह बैठी भी नह मेरे पास बताओ...” उनका गला भर
आया-”बताओ, मेरा या कसरू है?”
च दर चुप था
“कहाँ है सुधा?” च दर ने पछ
ू ा
“गैरेज म मोटर ठीक कर रही है म इतना मना िकया िक धपू म तप जाओगी, लू लग जाएगी-
लेिकन मानी ही नह ! बताओ, इस झ लाहट से मझ ु े कैसा लगता है?” व ृ िपता के कातर वर
म डॉ टर ने कहा, “जाओ च दर, तु ह समझाओ! म या कहँ ?”
च दर उठकर गया मोटर गैरेज म काफ गरमी थी, लेिकन िबनती वह एक चटाई िबछाये पड़ी
सो रही थी और सुधा इंजन का कवर उठाये मोटर साफ करने म लगी हई थी िबनती बेहोश सो
रही थी तिकया चटाई से हटकर जमीन पर चला गया था और चोटी फश पर सोयी हई नािगन
क तरह पड़ी थी िबनती का एक हाथ छाती पर था और एक हाथ जमीन पर आँचल, आँचल
न रहकर चादर बन गया था च दर के जाते ही सुधा ने महँु फेरकर देखा-”च दर, आओ ”
ीण मसु कराहट उसके होठ पर दौड़ गयी लेिकन इस मस ु कराहट म उ लास लुट चुका था,
रे खाएँ बाक थ सहसा उसने मड ु क़र देखा-”िबनती! अरे , कैसे घोड़ा बेचकर सो रही है! उठ!
च दर आये ह!” िबनती ने आँख खोल , च दर क ओर देखा, लेटे-ही-लेटे नम ते िकया और
आँचल सँभालकर िफर करवट बदलकर सो गयी
“बहत सोती है क ब त!” सुधा बोली, “इतना कहा इससे कमरे म जाकर पंखे म सो! लेिकन
नह , जहाँ दीदी रहे गी, वह यह भी रहे गी म गैरेज म हँ तो यह कैसे कमरे म रहे वह मरे गी
जहाँ म म ँ गी ”
“तो तु ह य गैरेज म थ ! ऐसी या ज रत थी अभी ठीक करने क !” च दर ने कहा, लेिकन
कोिशश करने पर भी सुधा को आज डाँट नह पा रहा था पता नह कहाँ पर या टूट गया
था
“नह च दर, तबीयत ही नह लग रही थी या करती! ोिसया उठायी, वह भी रख िदया
किवता उठायी, वह भी रख दी किवता वगैरह म तबीयत नह लगी मन म आया, कोई कठोर
काम हो, कोई नीरस काम हो लोहे -ल कड़, पीतल-फौलाद का, तो मन लग जाए तो चली
आयी मोटर ठीक करने ”
“ य , किवता म भी तबीयत नह लगी? ता जुब है, गेसू के साथ बैठकर तम ु तो किवता म घंट
गजु ार देती थ !” च दर बोला
“उन िदन शायद िकसी को यार करती रही होऊँ तभी किवता म मन लगता था!” सुधा उस
िदन क पुरानी बात याद करके बहत उदास हँ सी हँ सी-”अब यार नह करती होऊँगी, अब
तबीयत नह लगती बड़ी फ क , बड़ी बेजार, बड़ी बनावटी लगती ह ये किवताएँ , मन के दद
के आगे सभी फ क ह ” और िफर वह उ ह पुरज म डूब गयी च दर भी चुपचाप मोटर क
िखडक़ से िटककर खड़ा हो गया और चुपचाप कुछ सोचने लगा
सुधा ने िबना िसर उठाये, झकु े -ही-झक
ु े , एक हाथ से एक तार लपे टते हए कहा-
“च दर, तु हारे िम का प रवार आ रहा है, इसी मंगल को तैयारी करो ज दी ”
“कौन प रवार, सुधा?”
“हमारे जेठ और सास आ रही ह, इसी बैसाखी को हम देखने उ ह ने ितिथ बदल दी है तो
अब छह ही िदन रह गये ह ”
च दर कुछ नह बोला थोड़ी देर बाद सुधा िफर बोली-
“अगर उिचत समझो तो कुछ पाउडर- म ले आना, लगाकर जरा गोरे हो जाएँ तो शायद पस द
आ जाएँ ! य , ठीक है न!” सुधा ने बड़ी िविच -सी हँ सी हँ स दी और िसर उठाकर च दर क
ओर देखा च दर चुप था लेिकन उसक आँख म अजीब-सी पीड़ा थी और उसके माथे पर बहत
ही क ण छाँह
सुधा ने कवर िगरा िदया और च दर के पास जाकर बोली, “ य च दर, बुरा मान गये हमारी
बात का? या कर च दर, कल से हम मजाक करना भी भल ू गये मजाक करते ह तो यं य
बन जाता है लेिकन हम तम ु को कुछ कह नह रहे थे, च दर उदास न होओ ” बड़े ही
दुलार से सुधा बोली, “अ छा, हम कुछ नह कहगे ” और उसने अपना आँचल सँभालने के िलए
हाथ उठाया हाथ म काल च लग गयी थी च दर समझा मेरे क धे पर हाथ रख रही है
सुधा वह अलग हटा तो सुधा अपने हाथ देखकर बोली, “घबराओ न देवता, तु हारी उ वल
साधना म कािलख नह लगाऊँगी अपने आँचल म प छ लँग ू ी ” और सचमच ु आँचल म हाथ
प छकर बोली, “चलो, अ दर चल, उठ िबनती! िबलैया कह क !”
च दर को सोफे पर िबठाकर उसी क बगल म सुधा बैठ गयी और अँगिु लयाँ तोड़ते हए कहा,
“च दर, िसर म बहत दद हो रहा है मेरे ”
“िसर म दद नह होगा तो या? इतनी तिपश म मोटर बना रही थ ! पापा िकतने दुखी हो रहे थे
आज? तु ह इस तरह करना चािहए? िफर फायदा या हआ? न ऐसे दु:खी िकया, वैसे दु:खी कर
िलया बात तो वही रही न? तारीफ तो तब थी िक तम ु अपनी दुिनया म अपने हाथ से आग लगा
देती और चे हरे पर िशकन न आती अभी तक दुिनया क सभी ऊँचाई समेटकर भी बाहर से
वही बचपन कायम रखा था तम ु ने , अब दुिनया का सारा सुख अपने हाथ से लुटाने पर भी वही
बचपन, वही उ लास य नह कायम रखती!”
“बचपन!” सुधा हँ सी-”बचपन अब ख म हो गया, च दर! अब म बड़ी हो गयी ”
“बड़ी हो गयी! कब से?”
“कल दोपहर से, च दर!”
च दर चुप थोड़ी देर बाद िफर वयं सुधा ही बोली, “नह च दर, दो-तीन िदन म ठीक हो
जाऊँगी! तम ु घबराओ मत म म ृ यु-शै या पर भी होऊँगी तो तु हारे आदेश पर हँ स सकती हँ ”
और िफर सुधा गम ु सुम बैठ गयी च दर चुपचाप सोचता रहा और बोला, “सुधी! मेरा तु ह कुछ
भी यान नह है?”
“और िकसका है, च दर! तु हारा यान न होता तो देखती मझ ु े कौन झक
ु ा सकता था आज से
साल पहले जब म पापा के पास आयी थी तो मने कभी न सोचा था िक कोई भी होगा िजसके
सामने म इतना झक ु जाऊँगी ...अ छा च दर, मन बहत उचट रहा है! चलो, कह घम ू आएँ !
चलोगे?”
“चलो!” च दर ने कहा
“जाएँ िबनती को जगा लाएँ वह कमब त अभी पड़ी सो रही है ” सुधा उठकर चली गयी
थोड़ी देर म िबनती आँख मलते बगल म चटाई दाबे आयी और िफर बरामदे म बैठकर ऊँघने
लगी पीछे -पीछे सुधा आयी और चोटी ख चकर बोली, “चल तैयार हो! चलगे घम ू ने ”
थोड़ी देर म तैयार हो गये सुधा ने जाकर मोटर िनकाली और बोली च दर से-”तम ु चलाओगे
या हम? आज हम चलाएँ चलो, िकसी पे ड़ से लड़ा द मोटर आज!”
“अरे बाप रे ” पीछे िबनती िच लायी, “तब हम नह जाएँ गे ”
सुधा और च दर दोन ने मड ु क़र उसे देखा और उसक घबराहट देखकर दंग रह गये
“नह मरे गी नह त!ू ” सुधा ने कहा और आगे बैठ गयी
“िबनती, तू पीछे बैठेगी?” सुधा ने पछ ू ा
“न भइया, मोटर चलेगी तो म िगर जाऊँगी ”
“अरे कोई मोटर के पीछे बैठने के िलए थोड़ी कह रही हँ पीछे क सीट पर बैठेगी?” सुधा ने
पछू ा
“ओ! म समझी तम ु कह रही हो पीछे बैठने के िलए जैसी ब घी म साईस बैठते ह! हम तु हारे पास
बैठगे ” िबनती ने मचलकर कहा
“अब तेरा बचपन इठला रहा है, िब ली कह क , चल आ मेरे पास!” िबनती मस ु कराती हई
जाकर सुधा के बगल म बैठ गयी सुधा ने उसे दुलार से पास ख च िलया च दर पीछे बैठा तो
सुधा बोली, “अगर कुछ हज न समझो तो तम ु भी आगे आ जाओ या दरू ी रखनी हो तो पीछे ही
बैठो ”
च दर आगे बैठ गया बीच म िबनती, इधर च दर उधर सुधा
मोटर चली तो िबनती चीखी, “अरे मेरे मा टर साहब!”
च दर ने देखा, िबस रया चला जा रहा था, “आज नह पढ़गे...” च दर ने िच लाकर कहा
सुधा ने मोटर रोक नह
च दर को बेहद अचरज हआ जब उसने देखा िक मोटर प मी के बँगले पर क “अरे यहाँ
य ?” च दर ने पछ ू ा
“य ही ” सुधा ने कहा “आज मन हआ िक िमस प मी से अँगरे जी किवता सुन ”
“ य , अभी तो तम ु कह रही थ िक किवता पढऩे म आज तु हारा मन ही नह लग रहा है!”
“कुछ कहो मत च दर, आज मझ ु े जो मन म आये, कर लेने दो मेरा िसर बेहद दद कर रहा है
और म कुछ समझ नह पाती या क ँ च दर तम ु ने अ छा नह िकया?”
च दर कुछ नह बोला चुपचाप आगे चल िदया सुधा के पीछे -पीछे कुछ संकोच करती हई-सी
िबनती आ रही थी
प मी बैठी कुछ िलख रही थी उसने उठकर सब का वागत िकया वह कोच पर बैठ गयी
दसू री पर सुधा, च दर और िबनती सुधा ने िबनती का प रचय प मी से कराया और प मी ने
िबनती से हाथ िमलाया तो िबनती जाने य च दर क ओर देखकर हँ स पड़ी शायद उस िदन
क घटना क याद म
सहसा सुधा को जाने या खयाल आ गया, िबनती क शरारत-भरी हँ सी देखकर िक उसने
फौरन कहा च दर से-”च दर, तम ु प मी के पास बैठो, दो िम को साथ बैठना चािहए ”
“हाँ, और खास तौर से जब वह कभी-कभी िमलते ह ”-िबनती ने मस ु कराते हए जोड़ िदया
प मी ने मजाक समझ िलया और िबना शरमाये बोली-
“हम लोग को म य थ क ज रत नह , ध यवाद! आओ च दर, यहाँ आओ ” प मी ने च दर
को बुलाया च दर उठकर प मी के पास बैठ गया थोड़ी देर तक बात होती रह मालम ू
हआ, बट अपने एक दो त के साथ तराई के पास िशकार खे लने गया है आजकल वह िदल
क श ल का एक पाननुमा द ती का टुकड़ा काटकर उसम गोली मारा करता है और जब िकसी
िचिड़या वगैरह को मारता है तो िशकार को उठाकर देखता है िक गोली दय म लगी है या
नह वा य उसका सुधर रहा है सुधा कोच पर िसर टे के उदास बैठी थी सहसा प मी ने
िबनती से कहा, “आपको पहली दफे देखा मने आप बात य नह करत ?”
िबनती ने झपकर महँु झक ु ा िलया बड़ी िविच लड़क थी हमेशा चुप रहती थी और कभी-
कभी बोलने क लहर आती तो गटु रगँ ू करके घर गज ँु ा देती थी और िजन िदन चुप रहती थी उन
िदन यादातर आँख क िनगाह, कपोल क आशनाई या अधर क मस ु कान के ारा बात
करती थी प मी बोली, “आपको फूल से शौक है?”
“हाँ, हाँ” िबनती िसर िहलाकर बोली
“च दर, इ ह जाकर गल ु ाब िदखा लाओ इधर िफर खबू िखले ह!”
िबनती ने सुधा से कहा, “चलो दीदी ” और च दर के साथ बढ़ गयी
फूल के बीच म पहँ चकर, िबनती ने च दर से कहा, “सुिनए, दीदी को तो जाने या होता जा
रहा है बताइए, ऐसे या होगा?”
“म खुद परे शान हँ , िबनती! लेिकन पता नह कहाँ मन म कौन-सा िव ास है जो कहता है िक
नह , सुधा अपने को सँभालना जानती है, अपने मन को स तिु लत करना जानती है और सुधा
सचमच ु ही याग म यादा गौरवमयी हो सकती है ” इसके बाद च दर ने बात टाल दी वह
िबनती से यादा बात करना नह चाहता था, सुधा के बारे म
िबनती ने च दर को मौन देखा तो बोली, “एक बात कह आपसे? मािनएगा!”
“ या?”
“अगर हमसे कभी कोई अनिधकार चे ा हो जाए तो मा कर दीिजएगा, लेिकन आप और दीदी
दोन मझ ु े इतना चाहते ह िक हम समझ नह पाते िक यवहार को कहाँ सीिमत रखँ!ू ” िबनती
ने िसर झक ु ाये एक फूल को नोचते हए कहा
च दर ने उसक ओर देखा, ण-भर चुप रहा, िफर बोला, “नह िबनती, जब सुधा तु ह इतना
चाहती है तो तम ु हमेशा मझ
ु पर उतना ही अिधकार समझना िजतना सुधा पर ”
उधर प मी ने च दर के जाते ही सुधा से कहा, “ या आपक तबीयत खराब है?”
“नह तो ”
“आज आप बहत पीली नजर आती ह!” प मी ने पछ ू ा
“हाँ, कुछ मन नह लग रहा था तो म आपके पास चली आयी िक आपसे कुछ किवताएँ सुनँ ,ू
अँगरे जी क दोपहर को मने किवता पढऩे क कोिशश क तो तबीयत नह लगी और शाम को
लगा िक अगर किवता नह सुनँ ग ू ी तो िसर फट जाएगा ” सुधा बोली
“आपके मन म कुछ संघष मालम ू पड़ता है, या शायद...एक बात पछू ू ँ आपसे?”
“ या, पिू छए?”
“आप बुरा तो नह मानगी?”
“नह , बुरा य मानँ ग ू ी?”
“आप कपरू को यार तो नह करत ? उससे िववाह तो नह करना चाहत ?”
“िछः, िमस प मी, आप कैसी बात कर रही ह उसका मेरे जीवन म कोई ऐसा थान नह
िछः, आपक बात सुनकर शरीर म काँटे उठ आते ह म और च दर से िववाह क ँ गी! इतनी
िघनौनी बात तो मने कभी नह सुनी!”
“माफ क िजएगा, मने य ही पछ ू ा था या च दर िकसी को यार करता है?”
“नह , िब कुल नह !” सुधा ने उतने ही िव ास से कहा िजतने िव ास से उसने अपने बारे म
कहा था
इतने म च दर और िबनती आ गये सुधा बोली अधीरता से, “मेरा एक-एक ण कटना
मिु कल हो रहा है, आप शु क िजए कुछ गाना!”
“कपरू , या सुनोगे?” प मी ने कहा
“अपने मन से सुनाओ! चलो, सुधा ने कहा तो किवता सुनने को िमली!”
प मी ने आलमारी से एक िकताब उठायी और एक किवता गाना शु क -अपनी हे यर िपन
िनकालकर मेज पर रख दी और उसके बाल मचलने लगे च दर के क धे से वह िटककर बैठ
गयी और िकताब च दर क गोद म रख दी िबनती मस ु करायी तो सुधा ने आँख के इशारे से
मना कर िदया प मी ने गाना शु िकया, लेडी नाटन का एक गीत-
म तु ह यार नह करती हँ न! म तु ह यार नह करती हँ
िफर भी म उदास रहती हँ जब तम ु पास नह होते हो!
और म उस चमकदार नीले आकाश से भी ई या करती हँ
िजसके नीचे तम ु खड़े होगे और िजसके िसतारे तु ह देख सकते ह...”
च दर ने प मी क ओर देखा सुधा ने अपने ही व म अपना िसर छुपा िलया प मी ने एक
पद समा कर एक गहरी साँस ली और िफर शु िकया-
“म तु ह यार नह करती हँ -िफर भी तु हारी बोलती हई आँख;
िजनक नीिलमा म गहराई, चमक और अिभ यि है-
मेरी िनिनमेष पलक और जागते अधराि के आकाश म नाच जाती ह!
और िकसी क आँख के बारे म ऐसा नह होता...”
सुधा ने िबनती को अपने पास ख च िलया और उसके क धे पर िसर टे ककर बैठ गयी प मी
गाती गयी-
“न मझ ु े मालम
ू है िक म तु ह यार नह करती हँ , लेिकन िफर भी,
कोई शायद मेरे साफ िदल पर िव ास नह करे गा
और अकसर मने देखा है, िक लोग मझ ु े देखकर मसु करा देते ह
य िक म उधर एकटक देखती हँ , िजधर से तम ु आया करते हो!”
गीत का वर बड़े वाभािवक ढंग से उठा, लहराने लगा, काँप उठा और िफर धीरे -धीरे एक क ण
िससकती हई लय म डूब गया गीत ख म हआ तो सुधा का िसर िबनती के कंधे पर था और
च दर का हाथ प मी के क धे पर च दर थोड़ी देर सुधा क ओर देखता रहा िफर प मी क
एक ह क सुनहरी लट से खे लते हए बोला, “प मी, तम ु बहत अ छा गाती हो!”
“अ छा? आ यजनक! कहो च दर, प मी इतनी अ छी है यह तम ु ने कभी नह बताया था, हम
िफर कभी सुनाइएगा?”
“हाँ, हाँ िमस शु ला! काश िक बजाय लेडी नाटन के यह गीत आपने िलखा होता!”
सुधा घबरा गयी, “चलो च दर, चल अब! चलो ” उसने च दर का हाथ पकडक़र ख च
िलया-”िमस प मी, अब िफर कभी आएँ गे आज मेरा मन ठीक नह है ”
16
च दर ाइव करने लगा िबनती बोली, “हम आगे हवा लगती है, हम पीछे बैठगे ”
कार चली तो सुधा बोली, “अब मन कुछ शा त है, च दर इसके पहले तो मन म कैसे तफ ू ान
आपस म लड़ रहे थे, कुछ समझ म नह आता अब तफ ू ान बीत गये तफ ू ान के बाद क
खामोश उदासी है ” सुधा ने गहरी साँस ली, “आज जाने य बदन टूट रहा है ” बैठे ही बैठे
बदन उमेठते हए कहा
दस ू रे िदन च दर गया तो सुधा को बुखार आ गया था अंग-अंग जैसे टूट रहा हो और आँख म
ऐसी तीखी जलन िक मानो िकसी ने अंगारे भर िदये ह रात-भर वह बेचन ै रही, आधी पागल-
सी रही उसने तिकया, चादर, पानी का िगलास सभी उठाकर फक िदया, िबनती को कभी
बुलाकर पास िबठा लेती, कभी उसे दरू ढकेल देती डॉ टर साहब परे शान, रात-भर सुधा के
पास बैठे, कभी उसका माथा, कभी उसके तलव म बफ मलते रहे डॉ टर घोष ने बताया यह
कल क गरमी का असर है िबनती ने एक बार पछ ू ा, “च दर को बुलवा द?” तो सुधा ने कहा,
“नह , म मर जाऊँ तो! मेरे जीते जी नह !” िबनती ने ाइवर से कहा, “च दर को बुला लाओ ”
तो सुधा ने िबगडक़र कहा, “ य तम ु सब लोग मेरी जान लेने पर तलु े हो?” और उसके बाद
कमजोरी से हाँफने लगी ाइवर च दर को बुलाने नह गया
जब च दर पहँ चा तो डॉ टर साहब रात-भर के जागरण के बाद उठकर नहाने -धोने जा रहे थे
“पता नह सुधा को या हो गया कल से! इस व तो कुछ शा त है पर रात-भर बुखार और
बेहद बेचन ै ी रही है और एक ही िदन म इतनी िचड़िचड़ी हो गयी है िक बस...” डॉ टर साहब
ने च दर को देखते ही कहा
च दर जब कमरे म पहँ चा तो देखा िक सुधा आँख ब द िकये हए लेटी है और िबनती उसके िसर
पर आइस-बैग रखे हए है सुधा का चे हरा पीला पड़ गया है और महँु पर जाने िकतनी ही
रे खाओं क उलझन है, आँख ब द ह और पलक के नीचे से अँगार क आँच छनकर आ रही है
च दर क आहट पाते ही सुधा ने आँख खोल अजब-सी आ ने य िनगाह से च दर क ओर
देखा और िबनती से बोली, “िबनती, इनसे कह दो जाएँ यहाँ से ”
िबनती त ध, च दर नह समझा, पास आकर बैठ गया, बोला, “सुधा, य , पड़ गयी न, मने
कहा था िक गैरेज म मोटर साफ मत करो परस इतना रोयी, िसर पटका, कल धपू खायी
आज पड़ रही! कैसी तबीयत है?”
सुधा उधर िखसक गयी और अपने कपड़े समेट िलये, जैसे च दर क छाँह से भी बचना चाहती है
और तेज, कड़वी और हाँफती हई आवाज म बोली, “िबनती, इनसे कह दो जाएँ यहाँ से ”
च दर चुप हो गया और एकटक सुधा क ओर देखने लगा और सुधा क बात ने जैसे च दर का
मन मरोड़ िदया िकतनी गै रयत से बात कर रही है सुधा! सुधा, जो उसके अपने यि व से
यादा अपनी थी, आज िकस वर म बोल रही है! “सुधी, या हआ तु ह?” च दर ने बहत आहत
हो बहत दुलार-भरी आवाज म पछ ू ा
“म कहती हँ जाओगे नह तम ु ?” फुफकारकर सुधा बोली, “कौन हो तम ु मेरी बीमारी पर
सहानुभिू त कट करने वाले? मेरी कुशल पछ ू ने वाले? म बीमार हँ , म मर रही हँ , तम ु से मतलब?
तमु कौन हो? मेरे भाई हो? मेरे िपता हो? कल अपने िम के यहाँ मेरा अपमान कराने ले गये
थे!” सुधा हाँफने लगी
“अपमान! िकसने तु हारा अपमान िकया, सुधा? प मी ने तो कुछ भी नह कहा? तम ु पागल तो
नह हो गय ?” च दर ने सुधा के पैर पर हाथ रखते हए कहा
“पागल हो नह गयी तो हो जाऊँगी!” उसने पैर हटा िलये, “तम ु , प मी, गेस,ू पापा डॉ टर सब
लोग िमलकर मझ ु े पागल कर दोगे पापा कहते है याह करो, प मी कहती है मत करो, गेसू
कहती है तम ु यार करती हो और तम ु ...तम
ु कुछ भी नह कहते तम ु मझ ु े इस नरक म बरस से
सुलगते देख रहे हो और बजाय इसके िक तम ु कुछ कहो, तम ु ने मझ ु े खुद इस भ ी म ढकेल
िदया!...च दर, म पागल हँ , म या क ँ ?” सुधा बड़े कातर वर म बोली च दर चुप था
िसफ िसर झक ु ाये, हाथ पर माथा रखे बैठा था सुधा थोड़ी देर हाँफती रही िफर बोली-
“तु ह या हक था कल प मी के यहाँ ले जाने का? उसने य कल गीत म कहा िक म तु ह
यार करती हँ ?” सुधा बोली च दर ने िबनती क ओर देखा-” य िबनती? िबनती से म कुछ
नह िछपाता!” “ य प मी ने कल कहा, म तु ह यार नह करती! मेरा मन मझ ु े धोखा नह दे
सकता म तम ु से िसफ जाने या करती हँ ...िफर प मी ने कल ऐसी बात य कही? मेरे रोम-
रोम म जाने कौन-सा वालामख ु ी धधक उठता है ऐसी बात सुनकर? तम ु य प मी के यहाँ ले
गये?”
“तम ु खुद गयी थ , सुधा!” च दर बोला
“तो तमु रोक नह सकते थे! तम ु कह देते मत जाओ तो म कभी जा सकती थी? तम ु ने य नह
रोका? तम ु हाथ पकड़ लेते तम ु डाँट देते तम ु ने य नह डाँटा? एक ही िदन म म तु हारी
गैर हो गयी? गैर हँ तो िफर य आये हो? जाओ यहाँ से म कहती हँ ; जाओ यहाँ से?” दाँत
पीसकर सुधा बोली
“सुधा...”
“म तु हारी बोली नह सुनना चाहती जाते हो िक नह ...” और सुधा ने अपने माथे पर से
उठाकर आइस-बैग फक िदया िबनती च क उठी च दर च क उठा उसने मड ु क़र सुधा क
ओर देखा सुधा का चे हरा डरावना लग रहा था उसका मन रो आया वह उठा, ण-भर
सुधा क ओर देखता रहा और धीरे -धीरे कमरे से बाहर चला गया
बरामदे के सोफे पर आकर िसर झक ु ाकर बैठ गया और सोचने लगा, यह सुधा को या हो गया?
परस शाम को वह इसी सोफे पर सोया था, सुधा बैठी पंखा झल रही थी कल शाम को वह हँ स
रही थी, लगता था तफ ू ान शा त हो गया पर यह या? अ त ने यह प कैसे ले िलया?
और य ले िलया? जब वह अपने मन को शा त रख सकता है, जब वह सभी कुछ हँ सते-हँ सते
बरदा त कर सकता है तो सुधा य नह कर सकती? उसने आज तक अपनी साँस से सुधा का
िनमाण िकया है सुधा को ितल-ितल बनाया, सजाया, सँवारा है िफर सुधा म यह कमजोरी
य?
या उसने यह रा ता अि तयार करके भल ू क ? या सुधा भी एक साधारण-सी लड़क है
िजसके ेम और घण ृ ा का तर उतना ही साधारण है? माना उसने अपने दोन के िलए एक ऐसा
रा ता अपनाया है जो िवल ण है लेिकन इससे या! सुधा और वह दोन ही या िवल ण नह
ह? िफर सुधा य िबखर रही है? लड़िकयाँ भावना क ही बनी होती ह? साधना उ ह आती ही
नह या? उसने सुधा का गलत मू यांकन िकया था? या सुधा इस 'तलवार क धार' पर चलने
म असमथ सािबत होगी? यह तो च दर क हार थी
और िफर सुधा ऐसी ही रही तो च दर? सुधा च दर क आ मा है; इसे अब च दर खबू अ छी तरह
पहचान गया तो या अपनी ही आ मा को घ ट डालने क ह या का पाप च दर के िसर पर
है?
तो या याग मा नाम ही है? या पु ष और नारी के स ब ध का एक ही रा ता है- णय,
िववाह और तिृ ! पिव ता, याग और दरू ी या स ब ध को, िव ास को िज दा नह रहने दे
सकते? तो िफर सुधा और प मी म या अ तर है? या सुधा के दय के इतने समीप रहकर,
सुधा के यि व म घुल-िमलकर और आज सुधा को इतने अ तर पर डालकर च दर पाप कर
रहा है? तो या फूल को तोड़कर अपने ही बटन होल म लगा लेना ही पु य है और दस ू रा रा ता
गिहत है? िवनाशकारी है? य उसने सुधा का यि व तोड़ िदया है?
िकसी ने उसके क धे पर हाथ रखा िवचार-शंख ृ ला टूट गयी...िबनती थी “ या सोच रहे ह
आप?” िबनती ने पछ ू ा, बहत ने ह से
“कुछ नह !”
“नह बताइएगा? हम नह जान सकते?” िबनती के वर म ऐसा आ ह, ऐसा अपनापन, ऐसी
िन छलता रहती थी िक च दर अपने को कभी नह रोक पाता था िछपा नह पाता था
“कुछ नह िबनती! तम ु कहती हो, सुधा को इतने अ तर पर मने रखा तो म देवता हँ ! सुधा
कहती है, मने अ तर पर रखा, मने पाप िकया! जाने या िकया है मने ? या मझ ु े कम तकलीफ
है? मेरा जीवन आजकल िकस तरह घायल हो गया है, म जानता हँ एक पल मझ ु े आराम नह
िमलता या उतनी सजा काफ नह थी जो सुधा को भी िक मत यह द ड दे रही है? मझ ु ी को
सभी बचैनी और दु:ख िमल जाता सुधा को मेरे पाप का द ड य िमल रहा है? िबनती, तम ु से
अब कुछ नह िछपा िजसको म अपनी साँस म दुबकाकर इ धनुष के लोक तक ले गया,
आज हवा के झ के उसे बादल क ऊँचाई से य ढकेल देना चाहते ह? और म कुछ भी नह कर
सकता?” इतनी देर बाद िबनती के ममता-भरे पश म च दर क आँख छलछला आय
“िछः, आप समझदार ह! दीदी ठीक हो जाएँ गी! घबराने से काम नह चलेगा न! आपको हमारी
कसम है उदास मत होइए कुछ सोिचए मत दीदी बीमार ह, आप इस तरह से करगे तो कैसे
काम चलेगा! उिठए, दीदी बुला रही ह ”
च दर गया सुधा ने इशारे से पास बुलाकर िबठा िलया “च दर, हमारा िदमाग ठीक नह
है बैठ जाओ लेिकन कुछ बोलना मत, बैठे रहो ”
उसके बाद िदन भर अजब-सा गज ु रा जब-जब च दर ने उठने क कोिशश क , सुधा ने उसे
ख चकर िबठा िलया घर तो उसे जाने ही नह िदया िबनती वह खाना ले आयी सुधा
कभी च दर क ओर देख लेती िफर तिकये म महँु गड़ा लेती बोली एक श द भी नह ,
लेिकन उसक आँख म अजब-सी कातरता थी पापा आये, घंट बैठे रहे ; पापा चले गये तो
उसने च दर का हाथ अपने हाथ म ले िलया, करवट बदली और तिकये पर अपने कपोल से
च दर क हथेली दबाकर लेटी रही पलक से िकतने ही गरम-गरम आँसू छलककर गाल पर
िफसलकर च दर क हथेली िभगोते रहे
च दर चुप रहा लेिकन सुधा के आँसू जैसे नस के सहारे उसके दय म उतर गये और जब
दय डूबने लगा तो उसक पलक पर उतर आये सुधा ने देखा लेिकन कुछ भी नह बोली
घंटा-भर बहत गहरी साँस ली; बेहद उदासी से मस ु कराकर कहा, “हम दोन पागल हो गये ह,
य च दर? अ छा, अब शाम हो गयी जरा लॉन पर चल ”
सुधा च दर के क धे पर हाथ रखकर खड़ी हो गयी िबनती ने दवा दी, थमामीटर से बुखार
देखा बुखार नह था च दर ने सुधा के िलए कुरसी उठायी सुधा ने हँ सकर कहा, “च दर,
आज बीमार हँ तो कुरसी उठा रहे हो, मर जाऊँगी तो अरथी उठाने भी आना, वरना नरक िमलेगा!
समझे न!”
“िछः, ऐसा कुबोल न बोला करो, दीदी?”
सुधा लॉन म कुरसी पर बैठ गयी बगल म नीचे च दर बैठ गया सुधा ने च दर का िसर
अपनी कुरसी म िटका िलया और अपनी उँ गिलय से च दर के सख ू े होठ को छूते हए कहा,
“च दर, आज मने तु ह बहत दु:खी िकया, य ? लेिकन जाने य , दु:खी न करती तो आज
मझु े वह ताकत न िमलती जो िमल गयी ” और सहसा च दर के िसर को अपनी गोद म ख चती
हई-सी सुधा ने कहा, “आरा य मेरे! आज तु ह बहत-सी बात बताऊँगी बहत-सी ”
िबनती उठकर जाने लगी तो सुधा ने कहा, “कहाँ चली? बैठ तू यहाँ तू गवाह रहे गी तािक बाद
म च दर यह न कहे िक सुधा कमजोर िनकल गयी ” िबनती बैठ गयी सुधा ने ण-भर
आँख ब द कर ल और अपनी वेणी पीठ पर से ख चकर गोद म ढाल ली और बोली, “च दर,
आज िकतने ही साल हए, जबसे मने तु ह जाना है, तब से अ छे -बुरे सभी काम का फै सला
तु ही करते रहे हो आज भी तु ह बताओ च दर िक अगर म अपने को बहत सँभालने क
कोिशश करती हँ और नह सँभाल पाती हँ , तो यह कोई पाप तो नह ? तम ु जानते हो च दर, तम ु
िजतने मजबत ू हो उस पर मझ ु े घमंड है िक तम ु िकतनी ऊँचाई पर हो, म भी उतना ही मजबत ू
बनने क कोिशश करती हँ , उतने ही ऊँचे उठने क कोिशश करती हँ , अगर कभी-कभी िफसल
जाती हँ तो यह अपराध तो नह ?”
“नह ” च दर बोला
“और अगर अपने उस अ त के ण म तम ु पर कठोर हो जाती हँ , तो तम ु सह लेते हो म
जानती हँ , तम ु मझु े िजतना ने ह करते हो, उसम मेरी सभी दुबलताएँ धुल जाती ह लेिकन
आज म तु ह िव ास िदलाती हँ च दर िक मझ ु े खुद अपनी दुबलताओं पर शरम आती है और
आगे से म वैसी ही बनँ ग ू ी जैसा तम ु ने सोचा है, च दर ”
च दर कुछ नह बोला िसफ घास पर रखे हए सुधा के पाँव पर अपनी काँपती उँ गिलयाँ रख द
सुधा कहती गयी, “च दर, आज से कुछ ही महीने पहले जब गेसू ने मझ ु से पछ
ू ा था िक तु हारा
िदल कह झक ु ा था तो मने इनकार कर िदया था, कल प मी ने पछ ू ा, तम ु च दर को यार करती
हो तो मने इनकार कर िदया था, म आज भी इनकार करती हँ िक मने तु ह यार िकया है, या
तम ु े यार िकया है म भी समझती हँ और तम
ु ने मझ ु भी समझते हो लेिकन यह न तम ु से िछपा है
न मझ ु से िक तम ु ने जो कुछ िदया है वह यार से कह यादा ऊँचा और यार से कह यादा
महान है ...म याह नह करना चाहती थी, मने परस इनकार कर िदया था, इतनी रोयी थी,
खीझी थी, बाद म मने सोचा िक यह गलत है, यह वाथ है जब पापा मझ ु े इतना यार करते ह
तो मझ ु े उनका िदल नह दुखाना चािहए पर मन के अ दर क जो खीझ थी, जो कुढऩ थी,
वह कह तो उतरती ही वह म अपने पर उतार देना चाहती थी, मन म आता था अपने को
िकतना क दे डालँ ू इसीिलए अपने गैरेज म जाकर मोटर सँभाल रही थी, लेिकन वहाँ भी
असफल रही और अ त म वह खीझ अपने मन पर भी न उतारकर उस पर उतारी िजसको मने
अपने से भी बढ़कर माना है वह खीझ उतरी तम ु पर!”
च दर ने सुधा क ओर देखा सुधा मस ु कराकर बोली, “न, ऐसे मत देखो यह मत समझो िक
अपने आज के यवहार के िलए म तम ु से मा मागग ँ ू ी म जानती हँ , माँगने से तम ु दु:खी भी
होगे और डाँटने भी लगोगे खैर, आज से म अपना रा ता पहचान गयी हँ म जानती हँ िक
मझु े िकतना सँभलकर चलना है तु हारे सपने को परू ा करने के िलए मझ ु े अपने को या
बनाना होगा, यह भी म समझ गयी हँ म खुश रहँ गी, सबल रहँ गी और सश रहँ गी और जो
रा ता तम ु िदखलाओगे उधर ही चलँग ू ी लेिकन एक बात बताओ च दर, मने याह कर िलया
और वहाँ सुखी न रह पायी, िफर और उ ह वह भावना, उपासना न दे पायी और िफर तु ह दु:ख
हआ, तब?”
च दर ने घास का एक ितनका तोडक़र कहा, “देखो सुधा, एक बात बताओ अगर म तु ह कुछ
कह देता हँ और उसे तम ु मझु ी को वापस दे देती हो तो कोई बहत ऊँची बात नह हई अगर मने
तु ह सचमच ु ही ने ह या पिव ता जो कुछ भी िदया है, उसे तम ु उन सभी के जीवन म ही य
नह ितफिलत कर सकती जो तु हारे जीवन म आते ह, चाहे वह पित ही य न ह तु हारे
मन के अ य ने ह-भंडार के उपयोग म इतनी कृपणता य ? मेरा सपना कुछ और ही है, सुधा
आज तक तु हारी साँस के अमतृ ने ही मझ ु े यह साम ी दी िक म अपने जीवन म कुछ कर सकँ ू
और म भी यही चाहता हँ िक म तु ह वह ने ह दँू जो कभी घटे ही न िजतना बाँटो उतना बढ़े
और इतना मझ ु े िव ास है िक तम ु यिद ने ह क एक बँदू दो तो मनु य या से या हो सकता
है अगर वही ने ह रहे गा तो तु हारे पित को कभी कोई अस तोष या हो सकता है और िफर
कैलाश तो इतना अ छा लड़का है, और उसका जीवन इतना ऊँचा िक तम ु उसक िजंदगी म ऐसी
लगोगी, जैसे अँगठ ू ी म हीरा और जहाँ तक तु हारा अपना सवाल है, म तम ु से भीख माँगता हँ
िक अपना सब कुछ खोकर भी अगर मझ ु े कोई स तोष रहे गा तो यह देखकर िक मेरी सुधा अपने
जीवन म िकतनी ऊँची है म तम ु से इस िव ास क भीख माँगता हँ ”
“िछः, मझ ु से बड़े हो, च दर! ऐसी बात नह कहते! लेिकन एक बात है म जानती हँ िक म
च मा हँ , सय ू क िकरण से ही िजसम चमक आती है तम ु ने जैसे आज तक मझ ु े सँवारा है,
आगे भी तम ु अपनी रोशनी अगर मेरी आ मा म भरते गये तो म अपना भिव य भी नह पहचान
सकँ ू गी समझे!”
“समझा, पगली कह क !” थोड़ी देर च दर चुप बैठा रहा िफर सुधा के पाँव से िसर िटकाकर
बोला-”परे शान कर डाला, तीन रोज से सरू त तो देखो कैसी िनकल आयी है और बैसाखी को
कुल चार रोज रह गये अब मत िदमाग िबगाड़ना! वे लोग आते ही ह गे!”
“िबनती! दवा ले आ...” िबनती उठकर गयी तो सुधा बोली, “हटो, अब हम घास पर बैठगे!” और
घास पर बैठकर वह बोली, “लेिकन एक बात है, आज से लेकर याह तक तम ु हर अवसर पर
हमारे सामने रहना, जो कहोगे वह हम करते जाएँ गे ”
“हाँ, यह हम जानते ह ” च दर ने कहा और कुछ दरू हटकर घास पर लेट गया और आकाश
क ओर देखने लगा शाम हो गयी थी और िदन-भर क उड़ी हई धल ू अब बहत कुछ बैठ गयी
थी आकाश के बादल ठहरे हए थे और उन पर अ णाई झलक रही थी एक दुरंगी पतंग बहत
ऊँचे पर उड़ रही थी च दर का मन भारी था हालाँिक जो तफ ू ान परस उठा था वह ख म हो
गया था, लेिकन च दर का मन अभी मरा-मरा हआ-सा था वह चुपचाप लेटा रहा िबनती
दवा और पानी ले आयी दवा पीकर सुधा बोली, “ य , चुप य हो, च दर?”
“कोई बात नह ”
“िफर बोलते य नह , देखा िबनती, अभी-अभी या कह रहे थे और अब देखो इ ह ” सुधा
बोली
“हम अभी बताते ह इ ह!” िबनती बोली और िगलास म थोड़ा-सा पानी लेकर च दर के ऊपर
फक िदया च दर च ककर उठ बैठा और िबगड़क़र बोला, “यह या बदतमीजी है? अपनी दीदी
को यह सब दुलार िदखाया करो ”
“तो य पड़े थे ऐसे? बात करगे ऋिष-मिु नय जैसे और उदास रहगे ब च क तरह! वाह रे च दर
बाब!ू ” िबनती ने हँ सकर कहा, “दीदी, ठीक िकया न मने ?”
“िब कुल ठीक, ऐसे ही इनका िदमाग ठीक होगा ”
“इतने म डॉ टर शु ला आये और कुरसी पर बैठ गये सुधा के माथे पर हाथ रखकर देखा,
“अब तो तू ठीक है?”
“हाँ, पापा!”
“िबनती, कल तु हारी माताजी आ रही ह अब बैसाखी क तैयारी करनी है सुधा के जेठ आ
रहे ह और सास ”
सुधा चुपचाप उठकर चली गयी च दर, िबनती और डॉ टर साहब बैठे उस िदन का बहत-सा
काय म बनाते रहे
17
और इस तरह िदन बीत रहे थे शादी नजदीक आती जा रही थी और सभी का सहारा एक-दस ू रे
से छूटता जा रहा था सुधा के मन पर जो कुछ भी धीरे -धीरे मरघट क उदासी क तरह बैठता
जा रहा था और च दर अपने यार से, अपनी मस ु कान से, अपने आँसुओ ं से धो देने के िलए
याकुल हो उठा था, लेिकन यह िजंदगी थी जहाँ यार हार जाता है, मस ु कान हार जाती ह, आँसू
हार जाते ह-त तरी, याले, कु हड़, प ल, कालीन, द रयाँ और बाजे जीत जाते ह जहाँ अपनी
िजंदगी क ेरणा-मिू त के आँसू िगनने के बजाय कु हड़ और याले िगनवाकर रखने पड़ते ह
और जहाँ िकसी आ मा क उदासी को अपने आँसुओ ं से धोने के बजाय प ल धुलवाना यादा
मह वपण ू होता है, जहाँ भावना और अ त के सारे तफ ू ान सुनार और िबजलीवाल क बात म
डूब जाते ह, और जहाँ दो आँसुओ ं म डूबते हए यि य क पुकार शहनाइय क आवाज म डूब
जाती है और िजस व िक आदमी के दय का कण-कण तिव त हो जाता है, िजस व
उसक नस म िसतारे टूटते ह, िजस व उसके माथे पर आग धधकती है, िजस व उसके िसर
पर से आसमान और पाँव तले से धरती हट जाती है, उस समय उसे शादी क सािड़य का मोल-
तोल करना पड़ता है और बाजे वाले को एडवा स पया देना पड़ता है
ऐसी थी उस व च दर क िजंदगी और उस िजंदगी ने अपना च परू ी तरह चला िदया था
करोड़ तफ ू ान घुमड़ाते हए उसे नचा रहे थे वह एक ण भी कह नह िटक पाता था एक
पल भी उसे चैन नह था, एक पल भी वह यह नह सोच पाता था िक उसके चार ओर या हो
रहा है? वह बेहोशी म, मछ ू ा म मशीन क तरह काम कर रहा था आवाज थ िक उसके कान
से टकराकर चली जाती थ , आँसू थे िक दय को छू नह पाते थे, च उसे फँसाकर ख चे िलये
जा रहा था िबजली से भी यादा तेज, लय से भी यादा सश वह िखंचा जा रहा था िसफ
एक ओर शादी का िदन सुधा ने नथुनी पहनी, उसे नह मालम ू सुधा ने कोरे कपड़े पहने ,
उसे नह मालम ू सुधा ने चड़ू े पहने , उसे नह मालमू घर म गीत हए, उसे नह मालम ू सुधा
ने चू हा पजू ते व अपना िसर पटक िदया, उसे नह मालम ू ...वह यि नह था, तफ ू ान म
उड़ता हआ एक पीला प ा था जो वा याच म उलझ गया था और झ के उसे नचाये जा रहे थे...
और उसे होश आया तब, जब िबनती जबरद ती उसका हाथ पकडक़र ख च ले गयी बारात आने
के एक िदन पहले उस छत पर, जहाँ सुधा पड़ी रो रही थी, च दर को ढकेलकर चली आयी
च दर के सामने सुधा थी सुधा, िजससे वह पता नह य बचना चाहता था अपनी आ मा
के संघष से, अपने अ त:करण के घाव क कसक से घबराकर जैसे कोई आदमी एका त कमरे
से भागकर भीड़ म िमल जाता है, भीड़ के िनरथक शोर म अपने को खो देना चाहता है, बाहर के
शोर म अ दर का तफ ू ान भुला देना चाहता है; उसी तरह च दर िपछले ह ते से सब कुछ भल ू
गया; उसे िसफ एक चीज याद रहती थी-शादी का ब ध सुबह से लेकर सोने के व तक वह
इतना काम कर डालना चाहता था िक उसे एक ण भी बैठने का मौका न िमले, और सोने से
पहले वह इतना थक जाये, इतना चरू -चरू हो जाये िक लेटते ही न द उसे जकड़ ले और उसे
बेहोश कर दे लेिकन उस व िबनती उसे उसके िव मरण- थल से ख चकर एका त म ले
आयी है जहाँ उसक ताकत और उसक कमजोरी, उसक पिव ता और उसका पाप, उसक
मसु कान और उसके आँस,ू उसक ितभा और उसक िव मिृ त; उसक सुधा अपनी िजंदगी के
िचर तन मोड़ पर खड़ी अपना सब कुछ लुटा रही थी च दर को लगा जैसे उसको अभी च कर
आ जाएगा वह अकुलाकर खाट पर बैठ गया
शाम थी, सरू ज डूब रहा था और िदन-भर क तपी हई छत पर जलती हई बरसाती के नीचे एक
खरहरी खाट पर सुधा लेटी थी एक महीन पीली धोती पहने , कोरी मारक न क कुत , पहने ,
खे िचकटे हए बाल और नाक म बहत बड़ी-सी नथ प ह िदन के आँसुओ ं ने चे हरे को जाने
कैसा बना िदया न चे हरे पर सुकुमारता थी, न कठोरता न प था, न ताजगी िसफ ऐसा
लगता था िक जैसा सुधा का सब कुछ लुट चुका है न केवल यार और िजंदगी लुटी है, वरन
आवाज भी लुट गयी है और नीरवता भी वैभव भी लुट गया और याचना भी
सुधा ने अपने पीले प ले से आँसू प छे और उठकर बैठ गयी दोन चुप पहले कौन बोले!
िबनती आयी, च दर और सुधा का खाना रखकर चली गयी “खाना खाओगी, सुधा?” च दर
ने पछू ा सुधा कुछ बोली नह िसफ िसर िहला िदया और डूबते हए सरू ज और उड़ते हए
बादल क ओर देखकर जाने या सोचने लगी च दर ने थाली िखसका दी और सुधा को
अपनी ओर ख चकर बोला, “सुधा, इस तरह कैसे काम चलेगा तु ह को देखकर तो म अपना
धीरज सँभालँग ू ा, बताओ और तु ह यह कर रही हो!” सुधा च दर के पास िखसक आयी और दो
िमनट तक चुपचाप च दर क ओर फटी हई पथरायी आँख से देखती रही और एकदम दय को
फाड़ देने वाली आवाज म चीखकर रो उठी-”च दर, अब या होगा!”
च दर क समझ म नह आया, वह या करे ! आँसू उसके सख ू चुके थे वह रो नह सकता
था उसके मन पर कह कोई प थर रखा था जो आँसुओ ं क बँदू को बनने के साथ ही सोख
लेता था लेिकन वह तड़प उठा, “सुधा!” वह घबराकर बोला, “सुधा, तु ह हमारी कसम है-चुप हो
जाओ! चुप...िब कुल चुप...हाँ...ऐसे ही!” सुधा च दर के पाँव म महँु िछपाये थी-”उठकर बैठो
ठीक से सुधा...इतना समझ-बझ ू कर यह सब करती हो, िछः! तु ह अपना िदल मजबत ू करना
चािहए वरना पापा को िकतना दुख होगा ”
“पापा ने तो मझ ु से बोलना भी छोड़ िदया है, च दर! पापा से कह दो आज तो बोल ल, कल से हम
उ ह परे शान करने नह आएँ गे, कभी नह आएँ गे अब उनक सुधा को सब ले जा रहे ह, जाने
कहाँ ले जा रहे ह!” और िफर वह फफक-फफककर रो पड़ी
च दर ने िबनती से पापा को बुलवाया सुधा को रोते हए देखकर िबनती खड़ी हो गयी, “दीदी,
रोओ मत दीदी, िफर हम िकसके भरोसे रहगे यहाँ?” और सुधा को चुप कराते-कराते िबनती भी
रोने लगी और आँसू प छते हए चली गयी
पापा आये सुधा चुप हो गयी और कुछ कहा नह , िफर रोने लगी डॉ टर शु ला भराये गले
ु े यह रोआई अ छी नह लगती यह भावुकता य ? तम
से बोले, “मझ ु पढ़ी-िलखी लड़क हो
इसी िदन के िलए तु ह पढ़ाया-िलखाया गया था! भावुकता से या फायदा?” कहते-कहते
डॉ टर शु ला खुद रोने लगे “चलो च दर यहाँ से! अभी जनवासा ठीक करवाना है ” च दर
और डॉ टर शु ला दोन उठकर चले गये
अपनी शादी के पहले, हमेशा के िलए अलग होने से पहले सुधा को इतना ही मौका िमला...उसके
बाद...
सुबह छह बजे गाड़ी आती थी, लेिकन खुशिक मती से गाड़ी लेट थी; डॉ टर शु ला तथा अ य
लोग बारात का वागत करने टे शन पर जा रहे थे और च दर घर पर ही रह गया था जनवासे
का इ तजाम करने जनवासा बगल म था माथुर साहब के बँगले के दोन हॉल और कमरा
खाली करवा िलये गये थे च दर सुबह छह ही बजे आ गया था और जनवासे म सब सामान
लगवा िदया था नहाने का पानी और बाक इ तजाम कर वह घर आया जलपान का
इ तजाम तो केदार के हाथ म था लेिकन कुछ तौिलये िभजवाने थे
“िबनती, कुछ तौिलये िनकाल दो ” च दर ने िबनती से कहा
िबनती उद क दाल धो रही थी उसने फौरन उठकर हाथ धोये और कमरे क ओर चली गयी
“ऐ िबनती...” बुआजी ने भंडारे के अ दर से आवाज लगायी-”जाने कहाँ मर गयी महँु झ सी! अरे
िसंगार-पटार बाद म कर िलयो, काम म तिनक दीदा नै लगते बेसन का कन टर कहाँ रखा
है?”
“अभी आये!” िबनती ने च दर से कहा और अपनी माँ के पास दौड़ी, प ह िमनट हो गये
लेिकन िबनती लौटी ही नह याह का घर! हर तरफ से िबनती क पुकार मचती और िबनती
पंख लगाये उड़ रही थी जब िबनती नह लौटी तो च दर ने सुधा को ढुँढक़र कहा, “सुधी, एक
बहत बड़ा-सा तौिलया िनकाल दो ”
सुधा चुपचाप उठी और टडी- म म चली गयी च दर भी पीछे -पीछे गया
“बैठो, अभी िनकालकर लाते ह!” सुधा ने भरी हई आवाज म कहा और बगल के कमरे म चली
गयी वहाँ से लौटी तो उसके हाथ म मीठे क त तरी थी
“अरे खाने का व नह है, सुधा! आठ बजे लोग आ जाएँ गे ”
“अभी दो घंटे ह, खा लो च दर! अब कभी तु हारे काम म हरजा करके खाने को नह कहँ गी!”
सुधा बोली च दर चुप
“याद है, च दर! इसी जगह आँचल म िछपाकर नानखटाई लायी थी आओ, आज अपने हाथ से
िखला दँू कल ये हाथ पराये हो जाएँ गे और सुधा ने एक इमरती तोडक़र च दर के महँु म दे
दी च दर क आँख म दो आँसू छलक आये-सुधा ने अपने हाथ से आँसू प छ िदये और बोली,
“च दर, घर म कोई खाने का खयाल करने वाला नह है खाते-पीते जाना, तु ह हमारी कसम
है म शाहजहाँपुर से लौटकर आऊँगी तो दुबले मत िमलना ” च दर कुछ बोला नह आँसू
बहते गये, सुधा िखलाती गयी, वह खाता गया सुधा ने िगलास म पानी िदया, उसने हाथ धोया
और जेब से माल िनकाला
“ य , आज आँचल म हाथ नह प छोगे?” सुधा बोली च दर ने आँचल हाथ म ले िलया और
पलक पर आँचल दबाकर फूट-फूटकर रो पड़ा
“िछः, च दर! आज तो हम सँभल गये ह, हमने सब वीकार कर िलया चुपचाप अब तम ु
कमजोर मत बनो, तम ु ने कहा था, म शा त रहँ तो शा त हो गयी अब य मझ ु े भी लाओगे!
उठो ” च दर उठ खड़ा हआ
सुधा ने एक पान च दर के महँु म देकर क था उसक कमीज से लगा िदया च दर कुछ नह
बोला
“अरे , आज तो लड़ लो, च दर! आज से ख म कर देना ”
इतने म िबनती तौिलया ले आयी “दीदी, इ ह कुछ िखला दो ये खा नह रहे ह ” िबनती ने
कहा
“िखला िदया ” सुधा बोली, “देखो च दर, आज म नह रोऊँगी लेिकन एक शत पर तम ु
बराबर मेरे सामने रहना मंडप म रहोगे न?”
“हाँ, रहँ गा ” च दर ने आँसू पीते हए कहा
“कह चले मत जाना! मेरी आिखरी िबनती है ” सुधा बोली च दर तौिलया लेकर चला
आया
चँिू क बारात म कुल आठ ही लोग थे अत: घर क और माथुर साहब क दो ही कार से काम चल
गया जब ये लोग आये तो ना ते का सामान तैयार था और च दर चुपचाप बैठा था उसने
फौरन सबका सामान लगवाया और सामान रखवाकर वह जा ही रहा था िक कैलाश ने पीछे से
क धे पर हाथ रखकर उसे पीछे घुमा िलया और गले से लगकर बोला, “कहाँ चले कपरू साहब,
नम ते! चलो, पहले ना ता करो ” और ख चकर वह च दर को ले गया अपने बगल क मेज
पर िबठाकर, उसक चाय अपने हाथ से बनायी और बोला, “कुछ नाराज थे या, कपरू ? खत का
जवाब य नह देते थे?”
“हम तो बराबर खत का जवाब देते रहे , यार!” कपरू चाय पीते हए बोला
“अ छा तो हम घम ू ते रहे इधर-उधर, खत गड़बड़ हो गये ह गे ...लो, समोसा खाओ!” कैलाश ने
कहा च दर ने िसर िहलाया तो बोला, 'अरे , वाह याँ? शादी तु हारी नह हो रही है, हमारी हो
रही है, समझे? तम ु य तक लुफ कर रहे हो अ छा कपरू ...काम तो तु ह पर होगा सब!”
“हाँ!” कपरू बोला
“बड़ा अफसोस है, यार!” जब हम लोग पहली दफा िमले थे तो यह नह मालम ू था िक तम ु और
डॉ टर साहब इतना अ छा इनाम दोगे, अपने को बचाने का हमारे लायक कोई काम हो तो
बताओ!”
“आपक दुआ है!” च दर ने िसर झक ु ाकर कहा, और सभी हँ स पड़े इतने म शंकर बाबू डॉ टर
साहब के साथ आये और सब लोग चुप हो गये
20
दसू रे िदन आठ बजे तक सारा सामान टे शन पहँ च गया था शंकर बाबू और डॉ टर साहब
पहले ही टे शन पहँ च गये थे बाराती भी सब वह चले गये थे कैलाश और सुधा को टे शन
तक लाने का िज मा च दर पर था बहत ज दी करते-कराते भी सवा नौ बजे गये थे उसने
िफर जाकर कहा कैलाश और सुधा खड़े हए थे पीछे से नाइन सुधा के िसर पर पंखा रखी
थी और बुआजी रोचना कर रही थ च दर के ज दी मचाने पर अ त म उ ह फुरसत िमली और
वह आगे बढ़े मोटर पर सुधा ने य ही पाँव रखा िक िबनती पाँव से िलपट गयी और रोने
लगी सुधा जोर से िबलख-िबलखकर रो पड़ी च दर ने िबनती को छुड़ाया सुधा पीछे
बैठकर िखड़क पर महँु रखकर िससकती रही मोटर चल दी सुधा मड ु क़र अपने घर क ओर
देख रही थी िबनती ने हाथ जोड़े तो सुधा चीखकर रो पड़ी िफर चुप हो गयी
टे शन पर भी सुधा िब कुल शा त रही सुधा और कैलाश के िलए सेकड लास म एक बथ
सुरि त थी बाक लोग ड्योढ़े म थे शंकर बाबू ने दोन को उस िड बे म पहँ चाया और बोले,
“कैलाश, तम ु जरा हमारे साथ आओ िम टर कपरू , जरा बह के पास आप रिहए म डॉ टर
साहब को यहाँ भे ज रहा हँ ”
च दर िखडक़ के पास खड़ा हो गया शंकर बाबू का छोटा ब चा आकर अपनी नयी चाची के
पास बैठ गया और उनक रे शमी चादर से खे लने लगा च दर चुपचाप खड़ा था
सहसा सुधा ने उसके हाथ पर अपना मेहँदी लगा हाथ रख िदया और धीमे से कहा, “च दर!”
च दर ने मड ु क़र देखा तो बोली, “अब कुछ सोचो मत इधर देखो!” और सुधा ने जाने िकतने
दुलार से च दर से कहा, “देखो, िबनती का यान रखना उसे तु हारे ही भरोसे छोड़ रही हँ
और सुनो, पापा को रात को सोते व दध ू म ओव टीन ज र दे देना खाने -पीने म गड़बड़ी
मत करना, यह मत समझना िक सुधा मर गयी तो िफर िबना दध ू क चाय पीने लगो हम
ज दी से आ जाएँ गे प मी का कोई खत आये तो हम िलखना ”
इतने म डॉ टर साहब और कैलाश आ गये कैलाश क पाटमट के बाथ म म चला गया
डॉ टर साहब आये और सुधा के िसर पर हाथ रखकर बोले, “बेटा! आज तेरी माँ होती तो िकतना
अ छा होता और देख, महीने -भर म बुला लगे तझ ु े! वहाँ घबराना मत ”
गाड़ी ने सीटी दी
पापा ने कहा, “बेटा, अब ठीक से रहना और भावुकता या बचपना मत करना समझी!” पापा
ने आँख से माल लगा िलया-”िववाह बहत बड़ा उ रदािय व है अब तु हारी नयी िजंदगी है
अब तक बेटी थी, अब बह हो... ”
सुधा बोली, “पापा, तु हारा ओव टीन का िड बा शीशे वाली मेज पर है उसे पी िलया करना
और पापा, िबनती को गाँव मत भे जना च दर को अब घर पर ही बुला लो तम ु अकेले पड़
गये! और हम ज दी बुला लेना...”
गाड ने सीटी दी कैलाश ने ज दी से डॉ टर साहब के पैर छुए च दर से हाथ िमला िलया
सुधा बोली, “च दर, ये पुजा िबनती को देना और देखो मेरा नतीजा िनकले तो तार देना ”
गाड़ी चल पड़ी “अ छा पापा, अ छा च दर...” सुधा ने हाथ जोड़े और िखडक़ पर िटककर
रोने लगी और बार-बार आँसू प छ-प छकर देखने लगी ...
गाड़ी लेटफाम के बाहर चली गयी तब च दर मड़ ु ा उसके बदन म पोर-पोर म दद हो रहा था
वह कैसे घर पर पहँ चा उसे मालम
ू नह
ि तीय ख ड
22
और इस तरह िदन कटने लगे जब आदमी अपने हाथ से आँसू मोल लेता है, अपने -आप दद का
सौदा करता है, तब दद और आँसू तकलीफ-देह नह लगते और जब कोई ऐसा हो जो आपके
दद के आधार पर आपको देवता बनाने के िलए तैयार हो और आपके एक-एक आँसू पर अपने
सौ-सौ आँसू िबखे र दे, तब तो कभी-कभी तकलीफ भी भली मालम ू देने लगती है लेिकन िफर
भी च दर के िदन कैसे कट रहे थे यह वही जानता था लेिकन अकबर के महल म जलते हए
दीपक को देखकर अगर िकसी ने जाड़े क रात जमन ु ा के घुटन -घुटन पानी म खड़े होकर
काट दी, तो च दर अगर सुधा के यारे - यारे खत के सहारे समय काट रहा था तो कोई ता जुब
नह अपने अ ययन म ौढ़, अपने िवचार म उदार होने के बावजदू च दर अपने वभाव म
ब चा था, िजससे िजंदगी कुछ भी करवा सकती थी बशत िजंदगी को यह आता हो िक इस भोले-
भाले ब चे को कैसे बहलावा िदया जाये
बहलावे के िलए मस ु कान ही ज री नह होती ह, शायद आँसुओ ं से मन ज दी बहल जाता है
िबनती के आँसुओ ं म च दर सुधा क तसवीर देखता था और बहल जाता था वह रोज शाम को
आता और िबनती से सुधा क बात करता, जाने िकतनी बात, जाने कैसी बात और िबनती के
मा यम से सुधा म डूबकर चला आता था चँिू क सुधा के िबना उसका िदन कटना मिु कल था,
एक ण कटना मिु कल था इसिलए िबनती उसक एक ज रत बन गयी थी वह जब तक
िबनती से सुधा क बात नह कर लेता था, तब तक जैसे वह बेचन ै रहता था, तब तक उसक
िकसी काम म तबीयत नह लगती थी
जब तक सुधा सामने रही, कभी भी उसे यह नह मालम ू हआ िक सुधा का या मह व है उसक
िजंदगी म आज जब सुधा दरू थी तो उसने देखा िक सुधा उसक साँस से भी यादा आव यक
थी उसक िजंदगी के िलए लगता था वह एक ण सुधा के िबना िज दा नह रह सकता
सुधा के अभाव म िबनती के मा यम से वह सुधा को ढूँढ़ता था और जैसे सरू ज के डूब जाने पर
चाँद सरू ज क रोशनी उधार लेकर रात को उिजयारा कर देता है उसी तरह िबनती सुधा क याद
से च दर के ाण पर उिजयारी िबखे रती रही च दर िबनती को इस तरह अपनी साँस क
छाँह म दुबकाये रहा जैसे िबनती सुधा का पश हो, सुधा का यार हो
िबनती भी च दर के माथे पर उदासी के बादल देखते ही तड़प उठती थी लेिकन िफर भी
िबनती च दर को हँ सा नह पायी च दर का पुराना उ लास लौटा नह साँप का काटा हआ
जैसे लहर लेता है वैसे ही च दर क नस म फै ला हआ उदासी का जहर रह-रहकर च दर को
झकझोर देता था उन िदन दो-दो तीन-तीन िदन तक च दर कुछ नह करता था, िबनती के
पास भी नह जाता था, िबनती के आँसुओ ं क भी परवाह नह करता था खाना नह खाता
था, और अपने को िजतनी तकलीफ हो सकती थी, देता था िफर य ही सुधा का कोई खत
आता था, वह उसे चम ू लेता और िफर व थ हो जाता था िबनती चाहे िजतना करे लेिकन
च दर क इन भयंकर उदासी क लहर को च दर से छीन नह पायी थी चाँद िकतनी
कोिशश य न करे , वह रात को िदन नह बना सकता
लेिकन आदमी हँ सता है, दुख-दद सभी म आदमी हँ सता है जैसे हँ सते-हँ सते आदमी क
स नता थक जाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदमी क उदासी थक जाती है और आदमी
करवट बदलता है तािक हँ सी क छाँह म कुछ िव ाम कर िफर वह आँसुओ ं क कड़ी धपू म चल
सके
ऐसी ही एक सुबह थी जबिक च दर के उदास मन म आ रहा था िक वह थोड़ी देर हँ स भी ले
बात य हई थी िक उसे शेली क एक किवता बहत पस द आयी थी िजसम शैली ने भारतीय
मलयज को स बोिधत िकया है उसने अपना शेली-क ट्स का थ उठाया और उसे खोला तो
वही आम के अचार के दाग सामने पड़ गये जो सुधा ने शरारतन डाल िदये थे बस वह शेली क
किवता तो भल ू गया और उसे याद आ गयी आम क फाँक और सुधा क शरारत से भरी शोख
आँख िफर तो एक के बाद दस ू री शरारत ाण म उठ-उठकर च दर क नस को गद ु गद
ु ाने
लगी और च दर उस िदन जाने य हँ सने के िलए याकुल हो उठा उसे ऐसा लगा जैसे सुधा
क यह दरू ी, यह अलगाव सभी कुछ झठ ू है सच तो वे सुनहले िदन थे जो सुधा क शरारत से
मसु कराते थे, सुधा के दुलार म जगमगाते थे और कुछ भी हो जाये, सुधा उसके जीवन का एक
ऐसा अमर स य है जो कभी भी डगमगा नह सकता अगर वह उदास होता है, दु:खी होता है
तो वह गलत है वह अपने ही आदश को झठ ू ा बना रहा है, अपने ही सपने का अपमान कर रहा
है और उसी िदन सुधा का खत भी आया िजसम सुधा ने साफ-साफ तो नह पर इशारे से
िलखा था िक वह च दर के भरोसे ही िकसी तरह िदन काट रही थी उसने सुधा को एक प
िलखा, िजसम वही शरारत, वही िखझाने क बात थ जो वह हमेशा सुधा से करता था लेिकन
िजसे वह िपछले तीन महीने म भल ू गया था
उसके बाद वह िबनती के यहाँ गया
िबनती अपनी धोती म ोिशया क बेल टाँक रही थी “ले िगलहरी, तेरी दीदी का खत! लाओ,
िमठाई िखलाओ ”
“हम काहे को िखलाएँ ! आप िखलाइए जो िखले पड़े ह आज!” िबनती बोली
“हम! हम य िखलाएँ गे! यहाँ तो सुधा का नाम सुनते ही तबीयत कुढ़ जाती है!”
“अरे चिलए, आपका घर मेरा देखा है मझ ु से नह बन सकते आप!” िबनती ने महँु िचढ़ाकर
कहा, “आज बड़े खुश ह!”
“हाँ, िबनती...” एक गहरी साँस लेकर च दर चुप हो गया, “कभी-कभी उदासी भी थक जाती
है!” और महँु झकु ाकर बैठ गया
“ य , या हआ?” िबनती ने च दर क बाँह म सुई चुभो दी-च दर च क उठा “हमारी श ल
देखते ही आपके चे हरे पर महु रम छा जाता है!”
“अजी नह , आपका मख ु -मंडल देखकर तो आकाश म च मा भी लि जत हो जाता होगा,
ीमती िबनती िवदुषी!” च दर ने हँ सकर कहा आज च दर बहत खुश था
िबनती लजा गयी और िफर उसके गाल म फूल के कटोरे िखल गये और उसने च दर के क धे
से िफर सईू चुभोकर कहा, “आपको एक बड़े मजे क बात बतानी है आज!”
“ या?”
“िफर हँ िसएगा मत! और िचढ़ाइएगा नह !” िबनती बोली
“कुछ तेरे याह क बात होगी!” च दर ने कहा
“नह , याह क नह , ेम क !” िबनती ने हँ सकर कहा और झप गयी
“अ छा, िगलहरी को यह रोग कब सेï?” च दर ने हँ सकर पछ ू ा, “अपनी माँजी क शकल देखी
है न, काटकर कुएँ म फक दगी तझ ु े!”
“अब या कर, कोई िसर पर ेम मढ़ ही दे तो!” िबनती ने बड़े आ मिव ास से कहा थी बड़ी
खुले वभाव क लड़क
“आिखर कौन अभागा है वह! जरा नाम तो सुन ” च दर बोला
“हमारे महाकिव मा टर साहब ” िबनती ने हँ सकर कहा
“अ छा, यह कब से! तन ू े पहले तो कभी बताया नह ”
“अब तो जाकर हम मालम ू हआ पहले सोचा दीदी को िलख द िफर कहा वहाँ जाने िकसके
हाथ म िच ी पड़े तो सोचा तु ह बता द!”
“हआ या आिखर?” च दर ने पछ ू ा
“बात यह हई िक पहले तो हम दीदी के साथ पढ़ते थे तब तो मा टर साहब कुछ नह बोलते थे,
इधर जबसे हम अकेले पढऩे लगे तब से किवताएँ समझाने के बहाने दुिनया-भर क बात करते
रहे एक बार क दगु पढ़ाते-पढ़ाते बड़ी ठं डी साँस लेकर बोले, काश िक आप भी देवसेना
बन सकत बड़ा गु सा आया मझ ु े मन म आया कह दँू िक म तो देवसेना बन जाती लेिकन
आप अपना किव स मेलन का पे शा छोड़कर क दगु कैसे बन पाएँ गे लेिकन िफर मने कुछ
कहा नह दीदी से सब बात कह दी दीदी तो ह ही लापरवाह कुछ कहा ही नह उ ह ने
और मा टर साहब वैसे अ छे ह, पढ़ाते भी अ छा ह, लेिकन यह िफतरू जाने कैसे उनके िदमाग म
चढ़ गया ” िबनती बड़े सहज वभाव से बोली
“लेिकन इधर या हआ?” च दर ने पछ ू ा
“अभी कल आये, एक हाथ म उनके एक मोटी-सी कॉपी थी दे गये तो देखा वह उनक
किवताओं का सं ह है और उसका नाम उ ह ने रखा है 'िबनती' अभी आते ह गे या कर
कुछ समझ म नह आता अभी तक दीदी के भरोसे हमने सब छोड़ िदया था वह पता नह
कब आएँ गी ”
“अ छा लाओ, वह सं ह हम दे दो ” च दर ने कहा, “और िबस रया से कह देना वह च दर के
हाथ पड़ गया िफर कल सुबह तु ह मजा िदखलाएँ गे लेिकन हाँ, यह पहले बता दो िक
तु हारा तो कुछ झक
ु ाव नह है उधर, वरना बाद म हम कोसो?” च दर ने छे ड़ते हए कहा
ु लमान भी हो तो बेहना के संग! किवय से यार लगाकर कौन बवालत पाले!”
“अरे हाँ, मस
िबनती ने झपते हए कहा
24
दसू रे िदन सुबह पहँ चा तो िबस रया साहब पढ़ा रहे थे िबस रया क श ल पर कुछ मायस ू ी,
कुछ परे शानी, कुछ िच ता थी उसको िबनती ने बता िदया िक सं ह च दर के पास पहँ च गया
है च दर को देखते ही वह बोला, “अरे कपरू , या हाल है?” और उसके बाद अपने को िनद ष
बताने के िलए फौरन बोला, “कहो, हमारा सं ह देखा है?”
“हाँ देखा है, जरा आप इ ह पढ़ा लीिजए आपसे कुछ ज री बात करनी ह ” च दर ने इतने
कठोर वर म कहा िक िबस रया के िदल क धडक़न डूबने -सी लग वह काँपती हई आवाज म
बहत मिु कल से अपने को स हालते हए बोला, “कैसी बात? कपरू , तम ु कुछ गलत समझ रहे
हो ”
कपरू एक उपे ा क हँ सी हँ सा और चला गया डॉ टर साहब पज ू ा करके उठे थे दोन म बात
होती रह उनसे मालम ू हआ िक अगले महीने म स भवत: च दर क िनयुि हो जाएगी और
तीन िदन बाद डॉ टर साहब खुद सुधा को लाने के िलए शाहजहाँपुर जाएँ गे उ ह ने बुआजी
को प िलखा है िक यिद वह आ जाएँ तो अ छा है, वरना च दर को दो-तीन िदन बाद यह
रहना पड़े गा य िक िबनती अकेली है च दर क बात दस ू री है लेिकन और लोग के भरोसे
डॉ टर साहब िबनती को अकेले नह छोड़ सकते
अिव ास आदमी क विृ य को िजतना िबगाड़ता है, िव ास आदमी को उतना ही बनाता है
डॉ टर साहब च दर पर िजतना िव ास करते थे, सुधा च दर पर िजतना िव ास करती थी
और इधर िबनती उस पर िजतना िव ास करने लगी थी उसके कारण च दर के च र म इतनी
ढ़ता आ गयी थी िक वह फौलाद बन गया था ऐसे अवसर पर जब मनु य को ग भीरतम
उ रदािय व स पा जाता है तब वभावत: आदमी के च र म एक िविच -सा िनखार आ जाता
है यह िनखार च दर के च र म बहत उभरकर आया था और यहाँ तक िक बुआजी अपनी
लड़क पर अिव ास कर सकती थ , वह भी च दर को देवता ही मानती थ , िबनती पर और
चाहे जो ब धन हो लेिकन च दर के हाथ म िबनती को छोड़कर वे िनि त थ
डॉ टर साहब और च दर बैठे बात कर ही रहे थे िक िबनती ने आकर कहा, “चिलए, मा टर
साहब आपका इ तजार कर रहे ह!” च दर उठ खड़ा हआ रा ते म िबनती बोली, “हमसे बहत
नाराज ह कहते ह तु ह हम ऐसा नह समझते थे!” च दर कुछ नह बोला जाकर िबस रया
के सामने कुस पर बैठ गया “तम ु जाओ, िबनती!” िबनती चली गयी तो च दर ने कहा, बहत
ग भीर वर म, “िबस रया साहब, आपका सं ह देखकर बहत खुशी हई लेिकन मेरे मन म िसफ
एक शंका है यह 'िबनती' नाम के या माने ह?”
िबस रया ने अपने गले क टाई ठीक क , वह गरमी म भी टाई लगाता था, और िदन म नाइट कैप
पहनता था टाई ठीक कर, खँखारकर बोला, “म भी यही समझता था िक आपको यह गलत-
फहमी होगी लेिकन वा तिवक बात यह है िक मझ ु े म यकाल क किवता बहत पस द है,
खासतौर म उसम िबनती ( ाथना) श द बड़ा मधुर है मने यह सं ह तो बहत पहले तैयार
िकया था मझ ु े बड़ा ता जुब हआ जब म िबनती से िमला मने उनसे कहा िक यह सं ह भी
िबनती नाम का है िफर मने उ ह लाकर िदखला िदया ”
च दर मस ु कराया और मन-ही-मन कहा, 'है िबस रया बहत चालाक लेिकन खैर म हार नह
मान सकता ' और बहत ग भीर होकर बैठ गया
“तो यह सं ह इस लड़क के नाम पर नह है?”
“िब कुल नह ”
“और िबनती के िलए आपके मन म कह कोई आकषण नह ?”
“िब कुल नह िछः, आप मझ ु े या समझते ह ” िबस रया बोला
“िछः, म भी कैसा आदमी हँ , माफ करना िबस रया! मने यथ म शक िकया ”
िबस रया यह नह जानता था िक यह दाँव इतना सफल होगा वह खुशी से फूल उठा सहसा
च दर ने एक गहरी साँस ली
“ या बात है च दर बाब?ू ” िबस रया ने पछ ू ा
“कुछ नह िबस रया, आज तक मझ ु े तु हारी ितभा, तु हारी भावना, तु हारी कला पर िव ास
था, आज से उठ गया ”
“ य ?”
“ य या? अगर िबनती-जैसी लड़क के साथ रहकर भी तम ु उसके आ त रक सौ दय से
अपनी कला को अिभिसंिचत न कर सके तो तु हारे मन म कला मकता है; यह म िव ास नह
कर पाता तम ु जानते हो, म पुराने िवचार का संक ण, बड़ा बुजुग तो हँ नह , म भी भावनाओं
को समझता हँ म सौ दय-पज ू ा या यार को पाप नह समझता और मझ ु े तो बहत खुशी होती
यह जानकर िक तम ु ने ये किवताएँ िबनती पर िलखी ह, उसक ेरणा से िलखी ह यह मत
समझना िक मझ ु े इससे जरा भी बुरा लगता यह तो कला का स य है पा ा य देश म तो
लोग हर किव को ेरणा देने वाली लड़िकय क खोज म वष िबता देते ह, उसक किवता से
यादा मह व उसक किवता के पीछे रहने वाले यि व को देते ह िह दो तान म पता नह
य हम नारी को इतना मह वहीन समझते ह, या डरते ह, या हमम इतना नैितक साहस नह
है तु हारा वभाव, तु हारी ितभा िकसी हालत म मझ ु े िवदेश के िकसी किव से कम नह
लगती मने सोचा था, जब तम ु अपनी किवताओं के ेरणा मक यि व का नाम घोिषत
करोगे तो सारी दुिनया िबनती को और हमारे प रवार को जान जाएगी लेिकन खैर, मने गलत
समझा था िक िबनती तु हारी ेरणा-िब दु थी ” और च दर चुपचाप ग भीरता से िबस रया के
सं ह के प ृ उलटने लगा
िबस रया के मन म िकतनी उथल-पुथल मची हई थी च दर का मन इतना िवशाल है, यह उसे
कभी नह मालम ू था यहाँ तो कुछ िछपाने क ज रत ही नह और जब च दर इतनी प
बात कर रहा है तो िबस रया य िछपाये
“कपरू , म तमु से कुछ नह िछपाऊँगा म कह नह सकता िक िबनती जी मेरे िलए या ह
शे सिपयर क िमरा डा, साद क देवसेना, दाँते क बीएि स, क ट्स क फै नी और सरू क
राधा से बढ़कर माधुय अगर मझ ु े कह िमला है तो िबनती म इतना, इतना डूब गया म िबनती
म िक एक किवता भी नह िलख पाया मेरा सं ह छपने जा रहा था तो मने सोचा िक इसका
नाम ही य न 'िबनती' रखँ ू ”
च दर ने बड़ी मिु कल से अपनी हँ सी रोक दरवाजे के पास िछपी खड़ी हई िबनती
िखलिखलाकर हँ स पड़ी च दर बोला, “नाम तो 'िबनती' बहत अ छा सोचा तम ु ने , लेिकन
िसफ एक बात है मेरे जैसे िवचार के लोग सभी नह होते अगर घर के और लोग को यह
मालम ू हो गया, मसलन डॉ टर साहब को, तो वह न जाने या कर डालगे इन लोग को
किवता और उसक ेरणा का मह व ही नह मालम ू उस हालत म अगर तु हारी बहत बेइ जती
हई तो न हम कुछ बोल पाएँ गे न िबनती डॉ टर साहब पुिलस को स प द, यह अ छा नह
लगता वैसे मेरी राय है िक तम ु िबनती ही नाम रखो; बड़ा नया नाम है; लेिकन यह समझ लो
िक डॉ टर साहब बहत स त ह इस मामले म ”
िबस रया क समझ म नह आता था िक वह या करे थोड़ी देर तक िसर खुजलाता रहा, िफर
बोला, “ या राय है कपरू , तु हारी? अगर म कोई दस ू रा नाम रख दँू तो कैसा रहे गा?”
“बहत अ छा रहे गा और सुरि त रहे गा अभी अगर तम ु बदनाम हो गये तो आगे तु हारी उ नित
के सभी माग ब द हो जाएँ गे आदमी ेम करे मगर जरा सोच-समझकर; म तो इस प म हँ ”
“भावना को कोई नह समझता इस दुिनया म कोई नह समझता, हम कलाकार क िकतनी
मसु ीबत है ” एक गहरी साँस लेकर िबस रया बोला, “लेिकन खैर! अ छा तो कपरू , या राय है
तु हारी? म या नाम रखँ ू इसका?”
च दर ग भीरता से िसर झक ु ाये थोड़ी देर तक सोचता रहा िफर बोला, “तु हारी किवताओं म
बहत रस है कैसा रहे अगर तम ु इसका नाम 'गड़े रयाँ' रखो!”
“ या?” िबस रया ता जुब से बोला
“हाँ-हाँ गड़े रयाँ, मेरा मतलब है ग ने क गड़े रयाँ!” दरवाजे के पीछे िबनती से न रहा गया और
िखलिखलाकर हँ स पड़ी और सामने आ गयी च दर भी अ ïहास कर पड़ा
िबस रया ण-भर आँख फाड़े दोन क ओर देखता रहा उसके बाद वह य ही मजाक समझा,
उसका चे हरा लाल हो गया हैट उठाकर बोला, “अ छा, आप लोग मजाक बना रहे थे मेरा
कोई बात नह , म देखँग ू ा िम टर कपरू , आप अपने को या समझते ह?” वह चल िदया
“अरे , सुनो िबस रया!” च दर ने पुकारा, वह हँ सी नह रोक पा रहा था िबस रया मड़ ु ा
मड़ ु कर बोला, “कल से म पढ़ाने नह आ सकता म आपक शकल भी नह देखना चाहता ”
उसने िबनती से कहा
“तो महँु फेरकर पढ़ा दीिजएगा ” च दर बोला िबनती िफर हँ स पड़ी िबस रया ने मड ु क़र
बड़े गु से से देखा और पैर पटकते हए चला गया
“बेचारे किव, कलाकार आज क दुिनया म यार भी नह कर पाते ” च दर ने कहा और दोन
क हँ सी बहत देर तक गज ँ ू ती रही
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उ लास और रोशनी का मलय पवन िफर लौट आया था, िफर एक बार च दर, सुधा और िबनती
के ाण को िवभोर कर गया था िक सुधा को महीने -भर बाद ही जाना है और सुधा भल ू गयी थी
िक शाहजहाँपुर से भी उसका कोई नाता है िबनती का इ तहान हो गया था और अकसर
च दर और सुधा िबनती के याह के िलए गहने और कपड़े खरीदने जाते िजंदगी िफर खुशी के
िह कोर पर झल ू ने लगी थी िबनती का याह उतरते अगहन म होने वाला था अब दो-ढाई
महीने रह गये थे सुधा और च दर जाकर कपड़े खरीदते और लौटकर िबनती को जबरद ती
पहनाते और गिु डय़ा क तरह उसे सजाकर खबू हँ सते दोन के बड़े -बड़े हौसले थे िबनती के
िलए सुधा िबनती को सलवार और चु नी का एक सेट और गरारा और कुरते का एक सेट देना
चाहती थी च दर िबनती को एक हीरे क अँगठ ू ी देना चाहता था च दर िबनती को बहत
ने ह करने लगा था वह िबनती के याह म भी जाना चाहता था लेिकन गाँव का मामला,
का यकु ज क बारात शहर म सुधा, िबनती और च दर को िजतनी आजादी थी उतनी वहाँ
भला य कर हो सकती थी! िफर कहने वाल क जबान, कोई या कह बैठे! यही सब सोचकर
सुधा ने च दर को मना कर िदया था इसीिलए च दर यह िबनती को िजतने उपहार और
आशीवाद देना चाहता था, दे रहा था सुधा का बचपन लौट आया था और िदन-भर उसक
शरारत और िकलका रय से घर िहलता था सुधा ने च दर को इतनी ममता म डुबो िलया था
िक एक ण वह च दर को अपने से अलग नह रहने देती थी िजतनी देर च दर घर म रहता,
सुधा उसे अपने दुलार म, अपनी साँस क गरमाई म समेटे रहती थी, च दर के माथे पर हर ण
वह जाने िकतना ने ह िबखे रती रहती थी!
एक िदन च दर आया तो देखा िक िबनती कह गयी है और सुधा चुपचाप बैठी हई बहत-से पुराने
खत को सँभाल रही है एक ग भीर उदासी का बादल घर म छाया हआ है च दर आया
देखा, सुधा आँख म आँसू भरे बैठी है
“ या बात है, सुधा?”
“ खसती क िच ी आ गयी च दर, परस शंकर बाबू आ रहे ह ”
च दर के दय क धडक़न पर जैसे िकसी ने हथौड़ा मार िदया वह चुपचाप बैठ गया “अब
सब ख म हआ, च दर!” सुधा ने बड़ी ही क ण मु कान से कहा, “अब साल-भर के िलए िवदा
और उसके बाद जाने या होगा?”
च दर कुछ नह बोला वह लेट गया और बोला, “सुधा, दु:खी मत हो आिखर कैलाश इतना
अ छा है, शंकर बाबू इतने अ छे ह दुख िकस बात का? रहा म तो अब म सश रहँ गा तम ु
मेरे िलए मत घबराओ!”
सुधा एकटक च दर क ओर देखती रही िफर बोली, “च दर! तु हारे जैसे सब य नह होते?
तमु सचमच ु इस दुिनया के यो य नह हो! ऐसे ही बने रहना, च दर मेरे! तु हारी पिव ता ही मझ
ु े
िज दा रख सकेगी वना म तो िजस नरक म जा रही हँ ...”
“तम ु उसे नरक य कहती हो! मेरी समझ म नह आता!”
“तम ु नह समझ सकते तम ु अभी बहत दरू हो इन सब बात से, लेिकन...” सुधा बड़ी देर तक
चुप रही िफर खत सब एक ओर िखसका िदये और बोली, “च दर, उनम सबकुछ है वे बहत
अ छे ह, बहत खुले िवचार के ह, मझ ु े बहत चाहते ह, मझ
ु पर कह से कोई ब धन नह , लेिकन
इस सारे वग का मोल जो देकर चुकाना पड़ता है उससे मेरी आ मा का कण-कण िव ोह कर
उठता है ” और सहसा घुटन म महँु िछपाकर रो पड़ी
च दर उठा और सुधा के माथे पर हाथ रखकर बोला, “िछः, रोओ मत सुधा! अब तो जैसा है, जो
कुछ भी है, बदा त करना पड़े गा ”
“कैसे क ँ , च दर! वह इतने अ छे ह और इसके अलावा इतना अ छा यवहार करते ह िक म
उनसे या कहँ ? कैसे कहँ ?” सुधा बोली
“जाने दो सुधी, जैसी िजंदगी हो वैसा िनबाह करना चािहए, इसी म सु दरता है और जहाँ तक
मेरा खयाल है वैवािहक जीवन के थम चरण म ही यह नशा रहता है, िफर िकसको यह सझ ू ता
है आओ, चलो चाय पीएँ ! उठो, पागलपन नह करते परस चली जाओगी, लाकर नह
जाना होता उठो!” च दर ने अपने मन क जुगु सा पीकर ऊपर से बहत ने ह से कहा
सुधा उठी और चाय ले आयी च दर ने अपने हाथ से एक कप म चाय बनायी और सुधा को
िपलाकर उसी म पीने लगा चाय पीते-पीते सुधा बोली-
“च दर, तम ु याह मत करना! तम ु इसके िलए नह बने हो ”
च दर सुधा को हँ साना चाहता था-”चल वाथ कह क ! य न क ँ याह? ज र क ँ गा!
और जनाब, दो-दो क ँ गा! अपने आप तो कर िलया और मझ ु े उपदेश दे रही ह!”
सुधा हँ स पड़ी च दर ने कहा-
“बस ऐसे ही हँ सती रहना हमेशा, हमारी याद करके और अगर रोयी तो समझ लो हम उसी तरह
िफर अशा त हो उठगे जैसे अभी तक थे!...” िफर याला सुधा के होठ से लगाकर बोला, “अ छा
सुधी, कभी तम ु सुनो िक म उतना पिव नह रहा िजतना िक हँ तो तम ु या करोगी? कभी मेरा
यि व अगर िबगड़ गया, तब या होगा?”
“होगा या? म रोकने वाली कौन होती हँ ! म खुद ही या रोक पायी अपने को! लेिकन च दर,
तम ु ऐसे ही रहना तु ह मेरे ाण क सौग ध है, तम ु अपने को िबगाडऩा मत ”
च दर हँ सा, “नह सुधा, तु हारा यार मेरी ताकत है म कभी िगर नह सकता जब तक तम ु
मेरी आ मा म गथ ँु ी हई हो ”
तीसरे िदन शंकर बाबू आये और सुधा च दर के पैर क धल ू माथे पर लगाकर चली गयी...इस
बार वह रोयी नह , शा त थी जैसे वध थल पर जाता हआ बेबस अपराधी
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च दर िजतना सुलझाने का यास कर रहा था, चीज उतनी ही उलझती जा रही थ सुधा ने
िजंदगी का एक प च दर के सामने रखा था िबनती उसे दस ू री दुिनया म ख च लायी
कौन सच है, कौन झठ ू ? वह िकसका ितर कार करे , िकसको वीकार करे अगर सुधा गलती
पर है तो च दर का िज मा है, च दर ने सुधा क ह या क है...लेिकन िकतनी िभ न ह दोन
बहन! िबनती िकतनी यावहा रक, िकतनी यथाथ, संयत और सुधा िकतनी आदश, िकतनी
क पनामयी, िकतनी सू म, िकतनी ऊँची, िकतनी सुकुमार और पिव
जीवन क सम याओं के अ तिवरोध म जब आदमी दोन प को समझ लेता है तब उसके मन
म एक ठहराव आ जाता है वह भावना से ऊपर उठकर व छ बौि क धरातल पर िजंदगी को
समझने क कोिशश करने लगता है च दर अब भावना से हटकर िजंदगी को समझने क
कोिशश करने लगा था वह अब भावना से डरता था भावना के तफ ू ान म इतनी ठोकर
खाकर अब उसने बुि क शरण ली थी और एक पलायनवादी क तरह भावना से भाग कर बुि
क एकांिगता म िछप गया था कभी भावुकता से नफरत करता था, अब वह भावना से ही
नफरत करने लगा था इस नफरत का भोग सुधा और िबनती दोन को ही भुगतना पड़ा
सुधा को उसने एक भी खत नह िलखा और िबनती से एक िदन भी ठीक से बात नह क
जब भावना और सौ दय के उपासक को बुि और वा तिवकता क ठे स लगती है तब वह सहसा
कटुता और यं य से उबल उठता है इस व च दर का मन भी कुछ ऐसा ही हो गया था
जाने िकतने जहरीले काँटे उसक वाणी म उग आये थे, िज ह वह कभी भी िकसी को चुभाने से
बाज नह आता था एक िनमम िनरपे ता से वह अपने जीवन क सीमा म आने वाले हर
यि को कटुता के जहर से अिभिष करता चलता था सुधा को वह कुछ िलख नह सकता
था प मी यहाँ थी नह , ले-देकर बची अकेली िबनती िजसे इन जहरीले वाण का िशकार होना
पड़ रहा था िसत बर बीत रहा था और अब वह गाँव जाने क तैयारी कर रही थी डॉ टर
साहब ने िदस बर तक क छु ी ली थी और वे भी गाँव जाने वाले थे शादी के महीने -भर पहले
से उनका जाना ज री था
च दर खुश नह था, नाराज नह था एक वग देवदत
ू िजसे िपशाच ने खरीद िलया हो,
उ ह क तरह वह िजंदगी के सुख-दु:ख को ठोकर मारता हआ िकनारे खड़ा सभी पर हँ स रहा
था खास तौर से नारी पर उसके मन का सारा जहर िबखरने लगा था और उसम उसे यह भी
अकसर यान नह रहता था िक वह िकससे या बात कर रहा है िबनती सबकुछ चुपचाप
सहती जा रही थी, िबनती को सुधा क तरह रोना नह आता था; न उसक च दर इतनी परवा
ही करता था िजतनी सुधा क दोन म बात भी बहत कम होती थ , लेिकन िबनती मन-ही-
मन दु:खी थी वह या करे ! एक िदन उसने च दर के पैर पकड़कर बहत अनुनय से
कहा-”आपको यह या होता जा रहा है? अगर आप ऐसे ही करगे तो हम दीदी को िलख दगे!”
च दर बड़ी भयावनी हँ सी हँ सा-”दीदी को या िलखोगी? मझ ु े अब उसक परवा नह वह िदन
गये, िबनती! बहत बन िलये हम ”
“हाँ, च दर बाब,ू आप लड़क होते तो समझते!”
“सब समझता हँ म, कैसा दोहरा नाटक खे लती ह लड़िकयाँ! इधर अपराध करना, उधर मख ु िबरी
करना ”
िबनती चुप हो गयी एक िदन जब च दर कॉलेज से आया तो उसके िसर म दद हो रहा था
वह आकर चुपचाप लेट गया िबनती ने आकर पछ ू ा तो बोला, “ य , य म बतलाऊँ िक या
है, तमु िमटा दोगी?”
िबनती ने च दर के िसर पर हाथ रखकर कहा, “च दर, तु ह या होता जा रहा है? देखो कैसी
हड्िडयाँ िनकल आयी ह इधर इस तरह अपने को िमटाने से या फायदा?”
“िमटाने से?” च दर उठकर बैठ गया-”म िमटाऊँगा अपने को लड़िकय के िलए? िछः, तम ु लोग
अपने को या समझती हो? या है तम ु लोग म िसवा एक नशीली मांसलता के? इसके िलए म
अपने को िमटाऊँगा?”
िबनती ने च दर को िफर िलटा िदया
“इस तरह अपने को धोखा देने से या फायदा, च दर बाब?ू म जानती हँ दीदी के न होने से
आपक िजंदगी म िकतना बड़ा अभाव है लेिकन...”
“दीदी के न होने पर? या मतलब है तु हारा?”
“मेरा मतलब आप खबू समझते ह म जानती हँ , दीदी होत तो आप इस तरह न िमटाते अपने
को म जानती हँ दीदी के िलए आपके मन म या था?” िबनती ने िसर म तेल डालते हए
कहा
“दीदी के िलए या था?” च दर हँ सा, बड़ी िविच हँ सी-”दीदी के िलए मेरे मन म एक
आदशवादी भावुकता थी जो अधकचरे मन क उपज थी, एक ऐसी भावना थी िजसके औिच य
पर ही मझ ु े िव ास नह , वह एक सनक थी ”
“सनक!” िबनती थोड़ी देर तक चुपचाप िसर म तेल ठ कती रही िफर बोली, “अपनी साँस से
बनायी देवमिू त पर इस तरह लात तो न मा रए आपको शोभा नह देता!” िबनती क आँख म
आँसू आ गये, “िकतनी अभागी ह दीदी!”
च दर एकटक िबनती क ओर देखता रहा और िफर बोला, “म अब पागल हो जाऊँगा, िबनती!”
“म आपको पागल नह होने दँग ू ी म आपको छोडक़र नह जाऊँगी ”
“मझ ु े छोडक़र नह जाओगी!” च दर िफर हँ सा-”जाइए आप! अब आप ीमती िबनती होने वाली
ह आपका याह होगा म पागल हो रहा हँ , इससे या हआ? इन सब बात से दुिनया नह
कती, शहनाइयाँ नह बंद होत , ब दनवार नह तोड़े जाते!”
“म नह जाऊँगी च दर अभी, तम ु े नह जानते तु हारी इतनी ताड़ना और यं य सहकर
ु मझ
भी तु हारे पास रही, अब दुिनया-भर क लांछना और यं य सहकर तु हारे पास रह सकती
हँ ” िबनती ने तीखे वर म कहा
“ य ? तु हारे रहने से या होगा? तम ु सुधा नह हो तम ु सुधा नह हो सकती! जो सुधा है मेरी
िजंदगी म, वह कोई नह हो सकता समझ ? और मझ ु पर एहसान मत जताओ! म मर जाऊँ, म
पागल हो जाऊँ, िकसी का साझा! य तम ु मझ ु पर इतना अिधकार समझने लग -अपनी सेवा के
बल पर? म इसक र ी-भर परवा नह करता जाओ, यहाँ से!” और उसने िबनती को धकेल
िदया, तेल क शीशी उठाकर बाहर फक दी
िबनती रोती हई चली गयी च दर उठा और कपड़े पहनकर बाहर चल िदया, “हँ , ये लड़िकयाँ
समझती ह अहसान कर रही ह मझ ु पर!”
िबनती के जाने क तैयारी हो गयी थी और िलया-िदया जाने वाला सारा सामान पैक हो रहा
था डॉ टर साहब भी महीने -भर क छु लेकर साथ जा रहे थे उस िदन क घटना के बाद
िफर िबनती च दर से िब कुल ही नह बोली थी च दर भी कभी नह बोला
ये लोग कार पर जाने वाले थे सारा सामान पीछे -आगे लादा जाने वाला था डॉ टर साहब
कार लेकर बाजार गये थे च दर उनका हो डॉल सँभाल रहा था िबनती आयी और बोली, “म
आपसे बात कर सकती हँ ?”
“हाँ, हाँ! तमु उस िदन क बात का बुरा मान गय ! अमम ू न लड़िकयाँ स ची बात का बुरा मान
जाती ह! बोलो, या बात है?” च दर ने इस तरह कहा जैसे कुछ हआ ही न हो
िबनती क आँख म आँसू थे, “च दर, आज म जा रही हँ !”
“हाँ, यह तो मालम ू है, उसी का इ तजाम कर रहा हँ !”
“पता नह मने या अपराध िकया च दर िक तु हारा ने ह खो बैठी ऐसा ही था च दर तो
आते ही आते इतना ने ह तम ु ने िदया ही य था?...म तम ु से कभी भी दीदी का थान नह माँग
रही थी...तम ु ने मझ ु े गलत य समझा?”
“नह , िबनती! म अब ने ह इ यािद पस द नह करता हँ पण ू प रप व मनु य हँ और ये सब
भावनाएँ अब अ छी नह लगत मझ ु े ने ह वगैरह क दुिनया अब मझ ु े बड़ी उथली लगती है!”
“तभी च दर! इतने िदन मने रोते-रोते िबताये तम ु ने एक बार पछ ू ा भी नह िजंदगी म िसवा
दीदी और तु हारे , कौन था? तम ु ने मेरे आँसुओ ं क परवा नह क तु ह कसरू नह देती; कसरू
मेरा ही होगा, च दर!”
“नह , कसरू क बात नह िबनती! औरत के रोने क कहाँ तक परवा क जाए, वे कु े, िब ली
तक के िलए उतने ही दु:ख से रोती ह ”
“खैर, च दर! ई र करे तम ु जीवन-भर इतने मजबत ू रहो मने अगर कभी तु हारे िलए कुछ
िकया, वैसे िकया भी या, लेिकन अगर कुछ भी िकया तो िसफ इसिलए िक मेरे मन क जाने
िकतनी ममता तम ु ने जीत ली, या म हमेशा इस बात के िलए पागल रहती थी िक तु ह जरा-सी
भी ठे स न पहँ चे, म या कर डालँ ू तु हारे िलए तम ु ने , तु हारे यि व ने मझ ु े जादू म बाँध
िलया था तम ु मझ ु से कुछ भी करने के िलए कहते तो म िहचक नह सकती थी-लेिकन खैर,
तु ह मेरी ज रत नह थी तम ु पर भार हो उठती थी म मने अपने को ख च िलया, अब कभी
तु हारे जीवन म आने का साहस नह क ँ गी यह भी कैसे कहँ िक कभी तु ह मेरी ज रत
पड़े गी म जानती हँ िक तु हारे तफ ू ानी यि व के सामने म बहत तु छ हँ , ितनके से भी
तु छ लेिकन आज जा रही हँ , अब कभी यहाँ आने का साहस न क ँ गी लेिकन या चलते
व आशीवाद भी न दोगे? कुछ आगे का रा ता न बताओगे?”
िबनती ने झक ु कर च दर के पैर पकड़ िलये और िससक-िससककर रोने लगी च दर ने
िबनती को उठाया और पास क कुस पर िबठा िदया और िसर पर हाथ रखकर बोला, “आशीवाद
देवताओं से माँगा जाता है म अब ेत हो चुका हँ , िबनती!”
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एक िदन रात को जब वह लौटा तो देखा िक अपनी कार आ गयी है उसका मन फूल उठा
जैसे कोई अनाथ भटका हआ ब चा अपने संर क क गोद के िलए तड़प उठता है, वैसे ही वह
िपछले डे ढ़ महीने से डॉ टर साहब के िलए तरस गया था जहाँ इस व उसके जीवन म िसफ
नशा और नीरसता थी, वह दय के एक कोने म िसफ एक सुकुमार भावना शेष रह गयी थी,
वह थी डॉ टर शु ला के ित वह भावना कृत ता क भावना नह थी, डॉ टर शु ला इतने
दरू नह थे िक अब वह उनके ित कृत हो, इतने बड़े हो जाने पर भी वह जब कभी डॉ टर को
देखता था तो लगता था जैसे कोई न हा ब चा अपने अिभभावक क गोद म आकर िनि त हो
जाता हो
उसने पास आकर देखा, डॉ टर साहब बरामदे म टहल रहे थे च दर दौडक़र उनके पाँव पर
िगर पड़ा डॉ टर साहब ने उसे उठाकर गले से लगा िलया और बड़े यार से उसक पीठ पर
हाथ फेरते हए बोले-”क वोकेशन हो गया? िड ी जीत लाये?”
“जी हाँ!” बड़ी िवन ता से च दर ने कहा
“बहत ठीक, अब डी. िलट्. क तैयारी करो तु ह ज दी ही स ल गवनमट म जाना है ”
डॉ टर साहब बोले, “म तो पं ह जनवरी को िद ली जा रहा हँ कम-से-कम साल भर के
िलए?”
“इतनी ज दी; ऑफर कब आया?” च दर ने अचरज से पछ ू ा
“म उन िदन िद ली गया था न, तभी एजुकेशन िमिन टर से बात हई थी!” डॉ टर साहब ने
च दर को देखते हए कहा, “अरे , तमु कुछ दुबले हो रहे हो! य महरािजन ने ठीक से काम नह
िकया?”
“नह !” च दर हँ सकर बोला, “िबनती क शादी ठीक-ठाक हो गयी?”
“िबनती क शादी!” डॉ टर साहब ने िसर झक ु ाये हए, टहलते हए एक बड़ी फ क हँ सी हँ सकर
कहा, “िबनती और तु हारी बुआजी दोन अ दर ह ”
“अ दर ह!” च दर को यह रह य कुछ समझ म ही नह आता था “इतनी ज दी िबनती लौट
आयी?”
“िबनती गयी ही कहाँ?” डॉ टर साहब ने बहत चुपचाप िसर झक ु ा कर कहा और बहत क ण
उदासी उनके महँु पर छा गयी वह बेचन ै ी से बरामदे म टहलने लगे च दर का साहस नह
हआ कुछ पछ ू ने का कुछ अमंगल अव य हआ है
वह अ दर गया बुआजी अपनी कोठरी म सामान रख रही थ और िबनती बैठी िसल पर उरद
क भीगी दाल पीस रही थी! िबनती ने च दर को देखा, दाल म सने हए हाथ जोड़कर णाम
िकया, िसर को आँचल से ढँककर चुपचाप दाल पीसने लगी, कुछ बोली नह च दर ने णाम
िकया और जाकर बुआ के पैर छू िलये
“अरे च दर है, आओ बेटवा, हम तो लुट गये!” और बुआ वह देहरी पर िसर थामकर बैठ गय
“ या हआ, बुआजी?”
“होता का भइया! जौन बदा रहा भाग म ओ ही भवा ” और बुआ अपनी धोती से आँसू प छकर
बोल , “ई ं हमरी छाती पर मगँ ू दरै के िलए बदी रही तौन जमी है भगवान कौन को ऐसी
कलंिकनी िबिटया न दे तीन भाँवरी के बाद बारात उठ गयी, भइया! हमारा तो कुल डूब
गया ” और बुआजी ने उ च वर म दन शु िकया िबनती ने चुपचाप हाथ धोये और
उठकर छत पर चली गयी
“चुप रहो हो अब रोय-रोय के काहे िजउ ह कान करत हउ गन ु व ती िबिटया बाय, ह जारन
आय के िबिटया के िलए गोड़े िग रह अपना एका त होई के बैठो!” महरािजन ने पड़ ू ी उतारते
हए कहा
“आिखर बात या हई, महरािजन?” च दर ने पछ ू ा
महरािजन ने जो बताया उससे पता लगा िक लड़के वाले बहत ही संक णमना और वाथ थे
पहले मालम ू हआ िक लड़काउ ह ने ेजुएट बताया था वह था इंटर फेल िफर दरवाजे पर
झगड़ा िकया उ ह ने डॉ टर साहब बहत िबगड़ गये, अ त म मड़वे म लोग ने देखा िक लड़के
के बाय हाथ क अँगिु लयाँ गायब ह डॉ टर साहब इस बात पर िबगड़े और उ ह ने मड़वे से
िबनती को उठवा िदया िफर बहत लड़ाई हई लाठी तक चलने क नौबत आ गयी जैसे-तैसे
झगड़ा िनपटा तीन भाँवर के बाद याह टूट गया
“अब बताओ, भइया!” सहसा बुआ आँसू प छकर गरज उठ -”ई इ ह का हइ गवा रहा, इनक मित
मारी गयी गु से म आय के िबनती को उठवाय िलिहन अब हम ए ी बड़ी िबिटया लै के कहाँ
जाई ं? अब हमरी िबरादरी म कौन पछ ू ी एका? ए ा पढ़-िलख के इ ह का सझ ू ा? अरे लड़क वाले
हमेशा दब के चलै चाह ”
“अरे तो या आँख ब द कर लेते? लँगड़े -लल ू े लड़के से कैसे याह कर देते, बुआ! तमु भी गजब
करती हो!” च दर बोला
“भइया, जेके भाग म लँगड़ा-लल ू ा बदा होई ओका ओही िमली लड़िकयन को िनबाह करै चाही
िक सकल देख ै चाही अबिहन याह के बाद कौन के हाथ-गोड़ टूट जाये तो औरत अपने
आदमी को छोड़ के गली-गली क हाँड़ी चाटै? हम रहे तो जब िबनती तीन बरस क हई गयी, तब
उनक सकल उजेले म देखा रहा जैसा भाग म रहा तैसा होता!”
च दर ने िविच दय-हीन तक को सुना और आ य से बुआ क ओर देखने लगा ....बुआजी
बकती जा रही थ -
“अब कहते ह िक िबनती को पढ़उबै! याह न करबै! रही-सही इ जत भी बेच रहे ह हमार तो
िक मत फूट गयी...” और वे िफर रोने लग , “पैदा होते काहे नह मर गयी
कुलबोरनी...कुल छनी...अभािगन!”
सहसा िबनती छत से उतरी और आँगन म आकर खड़ी हो गयी, उसक आँख म आग भरी
थी-”बस करो, माँजी!” वह चीखकर बोली, “बहत सुन िलया मने अब और बदा त नह
होता तु हारे कोसने से अब तक नह मरी, न म ँ गी अब म सुनँ ग ू ी नह , म साफ कह देती
हँ तु ह मेरी श ल अ छी नह लगती तो जाओ तीरथ-या ा म अपना परलोक सुधारो! भगवान
का भजन करो समझी िक नह !”
च दर ने ता जुब से िबनती क ओर देखा वह वही िबनती है जो माँजी क जरा-जरा-सी बात
से िलपटकर रोया करती थी िबनती का चे हरा तमतमाया हआ था और गु से से बदन काँप रहा
था बुआ उछलकर खड़ी हो गय और दुगन ु ी चीखकर बोल , “अब बहत जबान चलै लगी है
कौन है तोर जे के बल पर ई चमक िदखावत है? हम काट के धर देब,ै तोके बताय देइत हई
महँु झ सी! ऐसी न होती तो काहे ई िदन देख ै पड़त उ ह तो खाय गयी, हमहँ का खाय लेव!”
अपना महँु पीटकर बुआ बोल
“तम ु इतनी मीठी नह हो माँजी िक तु ह खा लँ!ू ” िबनती ने और तड़पकर जवाब िदया
च दर त ध हो गया यह िबनती पागल हो गयी है अपनी माँ को या कह रही है!
“िछः, िबनती! पागल हो गयी हो या? चलो उधर!” च दर ने डाँटकर कहा
“चुप रहो, च दर! हम भी आदमी ह, हमने िजतना बदा त िकया है, हम जानते ह हम य
बदा त कर! और तम ु से या मतलब? तमु कौन होते हो हमारे बीच म बोलने वाले?”
“ या है यह सब? तम ु लोग सब पागल हो गये हो या? िबनती, यह या हो रहा है?” सहसा
डॉ टर साहब ने आकर कहा
िबनती दौडक़र डॉ टर साहब से िलपट गयी और रोकर बोली, “मामाजी, मझ ु े दीदी के पास भे ज
दीिजए! म यहाँ नह रहँ गी ”
“अ छा बेटी! अ छा! जाओ च दर!” डॉ टर साहब ने कहा िबनती चली गयी तो बुआ जी से
बोले, “तु हारा िदमाग खराब हो गया है उस पर गु सा उतारने से या फायदा? हमारे सामने
ये सब बात करोगी तो ठीक नह होगा ”
“अरे हम काहे बोलबै! हम तो मर जाई ं तो अ छा है...” बुआजी पर जैसे देवी माँ आ गयी ह इस
तरह से झम ू कर रो रही थ ...”हम तो व ृ दावन जाय के डूब मर ! अब हम तम
ू -झम ु लोगन क
सकल न देखबै हम मर जाई ं तो चाहे िबनती को पढ़ायो चाहे नचायो-गवायो हम अपनी
आँख से न देखबै ”
उस रात को िकसी ने खाना नह खाया एक िविच -सा िवषाद सारे घर पर छाया हआ था
जाड़े क रात का गहन अँधेरा खामोश छाया हआ था, महज एक अमंगल छाया क तरह कभी-
कभी बुआजी का दन अँधेरे को झकझोर जाता था
सभी चुपचाप भख ू े सो गये...
33
दसू रे िदन िबनती उठी और महरािजन के आने के पहले ही उसने चू हा जलाकर चाय चढ़ा दी
थोड़ी देर म चाय बनाकर और टो ट भन ू कर वह डॉ टर साहब के सामने रख आयी डॉ टर
साहब कल क बात से बहत ही यिथत थे रात को भी उ ह ने खाना नह खाया था, इस व
भी उ ह ने मना कर िदया िबनती च दर के कमरे म गयी, “च दर, मामाजी ने कल रात को
भी कुछ नह खाया, तम ु ने भी नह खाया, चलो चाय पी लो!”
च दर ने भी मना िकया तो िबनती बोली, “तम ु पी लोगे तो मामाजी भी शायद पी ल ” च दर
चुपचाप गया िबनती थोड़ी देर म गयी तो देखा दोन चाय पी रहे ह वह आकर मेवा
िनकालने लगी
चाय पीते-पीते डॉ टर साहब ने कहा, “च दर, यह पास-बुक लो पाँच सौ िनकाल लो और दो
हजार का िहसाब अलग करवा दो ...अ छा देखो, म तो चला जाऊँगा िद ली, िबनती को
शाहजहाँपुर भे जना ठीक नह है वहाँ चार र तेदार ह, बीस तरह क बात ह गी लेिकन म
चाहता हँ अब आगे जब तक यह चाहे , पढ़े ! अगर कहो तो यहाँ छोड़ जाऊँ, तमु पढ़ाते रहना!”
िबनती आ गयी और त तरी म भुना मेवा रखकर उसम नमक िमला रही थी च दर ने एक
लाइस उठायी और उस पर नमक लगाते हए बोला, “वैसे आप यहाँ छोड़ जाएँ तो कोई बात नह
है, लेिकन अकेले घर म अ छा नह लगता दो-एक रोज क बात दस ू री होती है एकदम से
साल-भर के िलए...आप समझ ल ”
“हाँ बेटा, कहते तो तमु ठीक हो! अ छा, कॉलेज के हो टल म अगर रख िदया जाए!” डॉ टर
साहब ने पछ ू ा
“म लड़िकय को हो टल म रखना ठीक नह समझता हँ ” च दर बोला, “घर के वातावरण
और वहाँ के वातावरण म बहत अ तर होता है ”
“हाँ, यह भी ठीक है अ छा तो इस साल म इसे िद ली िलये जा रहा हॅ ँ अगले साल देखा
जाएगा...च दर, इस महीने -भर म मेरा सारा िव ास िहल गया सुधा का िववाह िकतनी अ छी
जगह िकया गया, मगर सुधा पीली पड़ गयी है िकतना दु:ख हआ देखकर! और िबनती के
साथ यह हआ! सचमच ु यह जाित, िववाह सभी पर पराएँ बहत ही बुरी ह बुरी तरह सड़ गयी
ह उ ह तो काट फकना चािहए मेरा तो वैसे इस अनुभव के बाद सारा आदश ही बदल
गया ”
च दर बहत अचरज से डॉ टर साहब क ओर देखने लगा यही जगह थी, इसी तरह बैठकर
डॉ टर साहब ने जाित-िबरादरी, िववाह आिद सामािजक पर पराओं क िकतनी शंसा क थी!
िजंदगी क लहर ने हर एक को दस महीने म कहाँ से कहाँ लाकर पटक िदया है डॉ टर
साहब कहते गये...”हम लोग िजंदगी से दरू रहकर सोचते ह िक हमारी सामािजक सं थाएँ वग
ह, यह तो जब उनम धँसो तब उनक गंदगी मालम ू होती है च दर, तम ु कोई गैर जात का
अ छा-सा लड़काढूँढ़ो म िबनती क शादी दस ू री िबरादरी म कर दँगू ा ”
िबनती, जो और चाय ला रही थी, फौरन बड़े ढ़ वर म बोली, “मामाजी, आप जहर दे दीिजए
लेिकन म शादी नह क ँ गी या आपको मेरी ढ़ता पर िव ास नह ?”
“ य नह , बेटी! अ छा, जब तक तेरी इ छा हो, पढ़!”
दसू रे िदन डॉ टर साहब ने बुआजी को बुलाया और पये दे िदये
“लो, यह पाँच सौ पहले खच के ह और दो हजार म से तु ह धीरे -धीरे िमलता रहे गा ”
दो-तीन िदन के अ दर बुआ ने जाने क सारी तैयारी कर ली, लेिकन तीन िदन तक बराबर
रोती रह उनके आँसू थमे नह िबनती चुप थी वह भी कुछ नह बोली, चौथे िदन जब वह
सामान मोटर पर रखवा चुक तो उ ह ने च दर से िबनती को बुलवाया िबनती आयी तो
उ ह ने उसे गले से लगा िलया-और बेहद रोय लेिकन डॉ टर साहब को देखते ही िफर बोल
उठ -”हमरी लड़क का िदमाग तम ु ही िबगाड़े हो दुिनया म भाइयौ अपना नै होत अपनी
लड़क को िबया िदयौ! हमरी लड़क ...” िफर िबनती को िचपटाकर रोने लग
च दर चुपचाप खड़ा सोच रहा था, अभी तक िबनती खराब थी अब डॉ टर साहब खराब हो
गये बुआ ने पये सँभालकर रख िलये और मोटर पर बैठ गय सम त लांछन के बावजदू
डॉ टर साहब उ ह पहँ चाने टे शन तक गये
िबनती बहत ही चुप-सी हो गयी थी वह िकसी से कुछ नह बोलती और चुपचाप काम िकया
करती थी जब काम से फुरसत पा लेती तो सुधा के कमरे म जाकर लेट जाती और जाने या
सोचा करती च दर को बड़ा ता जुब होता था िबनती को देखकर जब िबनती खुश थी,
बोलती-चालती थी तो च दर िबनती से िचढ़ गया था, लेिकन िबनती के जीवन का यह नया प
देखकर पहले क सभी बात भल ू गया और उससे िफर बात करने क कोिशश करने लगा
लेिकन िबनती यादा बोलती ही नह
एक िदन दोपहर को च दर यिू नविसटी से लौटकर आया और उसने रे िडयो खोल िदया िबनती
एक त तरी म अम द काटकर ले आयी और रखकर जाने लगी “सुनो िबनती, या तम ु ने
मझ ु े माफ नह िकया? म िकतना यिथत हँ , िबनती! अगर तम ु को भल ू से कुछ कह िदया तो तमु
उसका इतना बुरा मान गय िक दो-तीन महीने बाद भी नह भल ू !”
“नह , बुरा मानने क या बात है, च दर!” िबनती एक फ क हँ सी-हँ सकर बोली, “आिखर
नारी का भी एक वािभमान है, मझ ु े माँ बचपन से कुचलती रही, मने तु ह दीदी से बढक़र
माना तम ु भी ठोकर लगाने से बाज नह आये, िफर भी म सब सहती गयी उस िदन जब
मंडप के नीचे मामाजी ने जबरद ती हाथ पकड़कर खड़ा कर िदया तो मझ ु े उसी ण लगा िक
मझ ु म भी कुछ स व है, म इसीिलए नह बनी हँ िक दुिनया मझ ु े कुचलती ही रहे अब म िवरोध
करना, िव ोह करना भी सीख गयी हँ िजंदगी म ने ह क जगह है, लेिकन वािभमान भी
कोई चीज है और तु ह अपनी िजंदगी म िकसी क ज रत भी तो नह है!” कहकर िबनती
धीरे -धीरे चली गयी
अपमान से च दर का चे हरा काला पड़ गया उसने रे िडयो ब द कर िदया और त तरी उठाकर
नीचे रख दी और िबना कपड़े बदले प मी के यहाँ चल िदया
मनु य का एक वभाव होता है जब वह दस ू रे पर दया करता है तो वह चाहता है िक याचक
परू ी तरह िवन होकर उसे वीकार करे अगर याचक दान लेने म कह भी वािभमान
िदखलाता है तो आदमी अपनी दानविृ और दयाभाव भल ृ ंसता से उसके वािभमान को
ू कर नश
कुचलने म य त हो जाता है आज ह त के बाद च दर के मन म िबनती के िलए कुछ ने ह,
कुछ दया जागी थी, िबनती को उदास मौन देखकर; लेिकन िबनती के इस वािभमान-भरे उ र
ने िफर उसके मन का सोया हआ साँप जगा िदया था वह इस वािभमान को तोड़कर रहे गा,
उसने सोचा
34
प मी के यहाँ पहँ चा तो अभी धपू थी जेनी कह गयी थी, बट अपने तोते को कुछ िखला रहा
था कपरू को देखते ही हँ सकर अिभवादन िकया और बोला, “प मी अ दर है!” वह सीधा
अ दर चला गया प मी अपने शयन-क म बैठी हई थी कमरे म ल बी-ल बी िखड़िकयाँ थ
िजनम लकड़ी के चौखट म रं ग-िबरं गे शीशे लगे हए थे िखड़िकयाँ ब द थ और सरू ज क
िकरण इन शीश पर पड़ रही थ और प मी पर सात रं ग क छायाएँ खे ल रही थ वह झक ु हई
सोफे पर अधलेटी कोई िकताब पढ़ रही थी च दर ने पीछे से जाकर उसक आँख ब द कर ल
और बगल म बैठ गया
“कपरू !” अपनी सुकुमार अँगिु लय से च दर के हाथ को आँख पर से हटाते हए प मी बोली और
पलक म बेहद नशा भरकर सोनजुही क मु कान िबखे रकर च दर को देखने लगी च दर ने
देखा, वह ाउिनं ग क किवता पढ़ रही थी वह पास बैठ गया
प मी ने उसे अपने व पर ख च िलया और उसके बाल से खे लने लगी च दर थोड़ी देर चुप
लेटा रहा, िफर प मी के गल ु ाबी होठ पर अँगिु लयाँ रखकर बोला, “प मी, तु हारे व पर िसर
रखकर म जाने य सबकुछ भल ू जाता हँ ? प मी, दुिनया वासना से इतना घबराती य है? म
ईमानदारी से कहता हँ िक अगर िकसी को वासनाहीन यार करके, िकसी के िलए याग करके
मझु े िजतनी शाि त िमलती है, पता नह य मांसलता म भी उतनी ही शाि त िमलती है ऐसा
लगता है िक शरीर के िवकार अगर आ याि मक ेम म जाकर शा त हो जाते ह तो लगता है
आ याि मक ेम म यासे रह जाने वाले अभाव िफर िकसी के मांसल-ब धन म ही आकर बुझ
पाते ह िकतना सुख है तु हारी ममता म!”
“शी!” च दर के होठ को अपनी अँगिु लय से दबाती हई प मी बोली, “चरम शाि त के ण को
अनुभव िकया करो बोलते य हो?”
च दर चुप हो गया चुपचाप लेट रहा
प मी क केसर ास उसके माथे को रह-रहकर चम ू रही थ और च दर के गाल को प मी के
व म धड़कता हआ संगीत गद ु ा रहा था च दर का एक हाथ प मी के गले म पड़ी
ु गद
इमीटे शन हीरे क माला से खे लने लगा सारस के पंख से भी यादा मल ु ायम सुकुमार गरदन
से छूटने पर अँगिु लयाँ लाजव ती क पि य क तरह सकुचा जाती थ माला खोल ली और
उसे उतारकर अपने हाथ म ले िलया प मी ने माला लेने के िलए हाथ बढ़ाया ही था िक गले के
बटन टच-से टूट गये...बफानी चाँदनी उफनकर छलक पड़ी च दर को लगा उसके गाल के
नीचे िबजिलय के फूल िसहर उठे ह और एक मदमाता नशा टूटते हए िसतार क तरह उसके
शरीर को चीरता हआ िनकल गया वह काँप उठा, सचमच ु काँप उठा नशे म चरू वह उठकर
बैठ गया और उसने प मी को अपनी गोद म डाल िलया प मी अनं ग के धनुष क यंचा क
तरह दोहरी होकर उसक गोद म पड़ रही त णाई का चाँद टूटकर दो टुकड़े हो गया था और
वासना के तफ ू ान ने झीने बादल भी हटा िदये थे जहरीली चाँदनी ने नािगन बनकर च दर
को लपे ट िलया च दर ने पागल होकर प मी को अपनी बाँह म कस िलया, इतनी यास से
लगा िक प मी का दीपिशखा-सा तन च दर के तन म समा जाएगा प मी िन े आँख ब द
िकये थी लेिकन उसके गाल पर जाने या िखल उठा था! च दर के गले म उसने मण ृ ाल-सी
बाँह डाल दी थ च दर ने प मी के होठ को जैसे अपने ह ठ म समेट लेना चाहा...इतनी
आग...इतनी आग...नशा...
“ठाँय!” सहसा बाहर ब दक ू क आवाज हई च दर च क उठा उसने अपने बाहपाश ढीले
कर िदये लेिकन प मी उसके गले म बाँह डाले बेहोश पड़ी थी च दर ने ण-भर प मी के
भरपरू प यौवन को आँख से पी लेना चाहा प मी ने अपनी बाँह हटा ल और नशे म
मखमरू -सी च दर क गोद से एक ओर लुढ़क गयी उसे अपने तन-बदन का होश नह था
च दर ने उसके व ठीक िकये और िफर झक ु कर उसक नशे म चरू पलक चम ू ल
“ठाँय!” ब दक ू क दस ू री आवाज हई च दर घबराकर उठा
“यह या है, प मी?”
“होगा कुछ, जाओ मत ” अलसायी हई नशीली आवाज म प मी ने कहा और उसे िफर ख चकर
िबठा िलया और िफर बाँह म उसे समेटकर उसका माथा चम ू िलया
“ठाँय!” िफर तीसरी आवाज हई
च दर उठ खड़ा हआ और ज दी से बाहर दौड़ गया देखा बट क ब दक ू बरामदे म पड़ी है,
और वह िपंजड़े के पास मरे हए तोते का पंख पकडक़र उठाये हए है उसके घाव से बट के
पतलन ू पर खन ू चू रहा था च दर को देखते ही बट हँ स पड़ा, “देखा! तीन गोली म इसे
िब कुल मार डाला, वह तो कहो िसफ एक ही लगी वरना...” और पंख पकड़कर तोते क लाश
को झल ु ाने लगा
“िछः! फको उसे; ह यारे कह के! मार य डाला उसे?” च दर ने कहा
“तम ु से मतलब! तम ु कौन होते हो पछ ू ने वाले? म यार करता था उसे, मने मार डाला!” बट
बोला और आिह ते से उसे एक प थर पर रख िदया माल िनकालकर फाड़ डाला आधा
माल उसके नीचे िबछा िदया और आधे से उसका खन ू प छने लगा िफर च दर के पास
आया च दर के क धे पर हाथ रखकर बोला, “कपरू ! तम ु मेरे दो त हो न! जरा माल दे
दो ” और च दर का माल लेकर तोते के पास खड़ा हो गया बड़ी हसरत से उसक ओर
देखता रहा िफर झक ु कर उसे चम ू िलया और उस पर माल ओढ़ा िदया और बड़े मातम क
मु ा म उसी के पास िसर झक ु ाकर बैठ गया
“बट , बट , पागल हो गये या?” च दर ने उसका क धा पकड़ाकर िहलाते हए कहा, “यह या
नाटक हो रहा है?”
बट ने आँख खोल और च दर को भी हाथ पकडक़र वह िबठा िलया और बोला, “देखो कपरू ,
एक िदन तम ु आये थे तो मने तोता और जेनी दोन को िदखाकर कहा था िक जेनी से म नफरत
करता हँ , उससे शादी कर लँग ू ा और तोते से म यार करता हँ , इसे मार डालँगू ा कहा था िक
नह ? कहो हाँ ”
“हाँ, कहा था ” च दर बोला, “लेिकन य कहा था?”
“हाँ, अब पछू ा तमु ने ! तम
ु पछू ोगे 'मने य मार डाला' तो म कहँ गा िक इसे अब मर जाना चािहए
था, इसिलए इसे मार डाला तम ु पछ
ू ोगे, 'इसे य मर जाना चािहए?' तो म कहँ गा, 'जब कोई
जीवन क पण ू ता पर पहँ चा जाता है तो उसे मर जाना चािहए अगर वह अपनी िजंदगी का
ल य परू ा कर चुका है और नह मरता तो यह उसका अ याय है वह अपनी िजंदगी का ल य
परू ा कर चुका था, िफर भी नह मरता था म इसे यार करता था लेिकन यह अ याय नह सह
सकता था, अत: मने इसे मार डाला!”
“अ छा, तो तु हारे तोते क भी िजंदगी का कोई ल य था?”
“हरे क क िजदगी का ल य होता है और वह ल य होता है स य को, चरम स य को जान
जाना वह स य जान लेने के बाद आदमी अगर िज दा रहता है, तो उसक यह असीम बेहयाई
है मने इसे वह स य िसखा िदया िफर भी यह नह मरा तो मने मार डाला िफर तम ु पछ
ू ोगे
िक वह चरम स य या है? वह स य है िक मौत आदमी के शरीर क ह या करती है और
आदमी क ह या गला घ ट देती है मसलन तम ु अगर िकसी औरत के पास जा रहे हो या िकसी
औरत के पास से आ रहे हो और स भव है उसने तु हारी आ मा क ह या कर डाली हो...”
“ऊँह! अब तम ु ज दी ही परू े पागल हो जाओगे?” च दर ने कहा और िफर वह प मी के पास लौट
गया प मी उसी तरह मदहोश लेटी थी उसने जाते ही िफर बाँह फै लाकर च दर को समेट
िलया और च दर उसके व क रे शमी गरमाई म डूब गया
जब वह लौटा तो बट हाथ म खुरपा िलये एक गड्ढï ब द कर रहा था “सुनो, कपरू ! यहाँ मैने
उसे गाड़ िदया यह उसक समािध है और देखो, आते-आते यहाँ िसर झक ु ा देना वह बेचारा
जीवन का स य जान चुका है समझ लो वह सट पैरट (स त शुकदेव) हो गया है!”
“अ छा, अ छा!” च दर िसर झक ु ाकर हँ सते हए आगे बढ़ा
“सुनो, को कपरू !” िफर बट ने पुकारा और पास आकर च दर के क धे पर हाथ रखकर
बोला, “कपरू , तम ु मानते हो िक नह िक पहले म एक असाधारण आदमी था ”
“अब भी हो ” च दर हँ सते हए बोला
“नह , अब म असाधारण नह हँ , कपरू ! देखो, तु ह आज रह य बताऊँ वही आदमी असाधारण
होता है जो िकसी प रि थित म िकसी भी त य को वीकार नह करता, उनका िनषेध करता
चलता है जब वह िकसी को भी वीकार कर लेता है, तब वह परािजत हो जाता है म तो
कहँ गा असाधारण आदमी बनने के िलए स य को भी वीकार नह करना चािहए ”
“ या मतलब, बट ! तम ु तो दशन क भाषा म बोल रहे हो म अथशा का िव ाथ हँ , भाई!”
च दर ने कौतहू ल से कहा
“देखो, अब मने िववाह वीकार कर िलया जेनी को वीकार कर िलया चाहे यह जीवन का
स य ही य न हो पर मह ा तो िनषेध म होती है सबसे बड़ा आदमी वह होता है जो अपना
िनषेध कर दे...लेिकन म अब साधारण आदमी हँ स ती िक म का अदना यि मझु े
िकतना दुख है आज मेरा तोता भी मर गया और मेरी असाधारणता भी ” और बट िफर तोते
क क के पास िसर झक ु ाकर बैठ गया
35
वह घर पहँ चा तो उसके पाँव जमीन पर नह पड़ रहे थे उसने उफनी हई चाँदनी चम ू ी थी, उसने
त णाई के चाँद को पश से िसहरा िदया था, उसने नीली िबजिलयाँ चम ू ी थ ाण क
िसहरन और गद ु ी से खे लकर वह आ रहा था, वह प मी के होठ के गल
ु गद ु ाब को चम ू -चम
ू कर
गल ु ाब के देश म पहँ च गया था और उसक नस म बहते हए रस म गल ु ाब झम ू उठे थे वह िसर
से पैर तक एक मदहोश यास बना हआ था घर पहँ चा तो जैसा उ लास से उसका अंग-अंग
नाच रहा हो िबनती के ित दोपहर को जो आ ोश उसके मन म उभर आया था, वह भी शा त
हो गया था
िबनती ने आकर खाना रखा च दर ने बहत हँ सते हए, बड़े मीठे वर म कहा, “िबनती, आज
तमु भी खाओ ”
“नह , म नीचे खाऊँगी ”
“अरे चल बैठ, िगलहरी!” च दर ने बहत िदन पहले के ने ह के वर म कहा और िबनती के पीठ
म एक घँस ू ा मारकर उसे पास िबठा िलया-”आज तु ह नाराज नह रहने दगे ले खा, पगली!”
नफरत से नफरत बढ़ती है, यार से यार जागता है िबनती के मन का सारा ने ह सख ू -सा
गया था वह िचड़िचड़ी, वािभमानी, ग भीर और खी हो गयी थी लेिकन औरत बहत
कमजोर होती है ई र न करे , कोई उसके दय क ममता को छू ले वह सबकुछ बदा त कर
लेती है लेिकन अगर कोई िकसी तरह उसके मन के रस को जगा दे, तो वह िफर अपना सब
अिभमान भल ू जाती है च दर ने , जब वह यहाँ आयी थी, तभी से उसके दय क ममता जीत
ली थी इसिलए च दर के सामने सदा झक ु ती आयी लेिकन िपछली बार से च दर ने ठोकर
मारकर सारा ने ह िबखे र िदया था उसके बाद उसके यि व का रस सख ू ता ही गया
ोध जैसे उसक भ ह पर रखा रहता था
आज च दर ने उसको इतने दुलार से बुलाया तो लगा वह जाने िकतने िदन का भल ू ा वर सुन
रही है चाहे च दर के ित उसके मन म कुछ भी आ ोश य न हो, लेिकन वह इस वर का
आ ह नह टाल सकती, यह वह भली कार जानती थी वह बैठ गयी च दर ने एक कौर
बनाकर िबनती के महँु म दे िदया िबनती ने खा िलया च दर ने िबनती क बाँह म चुटक
काट कर कहा-”अब िदमाग ठीक हो गया पगली का! इतने िदन से अकड़ी िफरती थी!”
“हँ !” िबनती ने बहत िदन के भल ू े हए ने ह के वर म कहा, “खुद ही तो अपना िदमाग िबगाड़े
रहते ह और हम इ जाम लगाते ह तरकारी ठ डी तो नह है?”
दोन म सुलह हो गयी...जाड़ा अब काफ बढ़ गया था खाना खा चुकने के बाद िबनती शाल
ओढ़े च दर के पास आयी और बोली, “लो, इलायची खाओगे?” च दर ने ले ली छीलकर आधे
दाने खुद खा िलये, आधे िबनती के महँु म दे िदये िबनती ने धीरे से च दर क अँगल ु ी दाँत से
दबा दी च दर ने हाथ ख च िलया िबनती उसी के पलँग पर पास ही बैठ गयी और बोली,
“याद है तु ह? इसी पलँग पर तु हारा िसर दबा रही थी तो तम ु ने शीशी फक दी थी ”
“हाँ, याद है! अब कहो तु ह उठाकर फक दँू ” च दर आज बहत खुश था
“मझु े या फकोगे!” िबनती ने शरारत से महँु बनाकर कहा, “म तम ु से उठूँगी ही नह !”
जब अंग का तफ ू ान एक बार उठना सीख लेता है तो दस ू री बार उठते हए उसे देर नह लगती
अभी वह अपने तफ ू ान म प मी को पीसकर आया था िसरहाने बैठी हई िबनती, ह का बादामी
शाल ओढ़े , रह-रहकर मु कराती और गाल पर फूल के कटोरे िखल जाते, आँख म एक नयी
चमक च दर थोड़ी देर देखता रहा, उसके बाद उसने िबनती को ख चकर कुछ िहचकते हए
िबनती के माथे पर अपने होठ रख िदये िबनती कुछ नह बोली चुपचाप अपने को छुड़ाकर
िसर झक ु ाये बैठी रही और च दर के हाथ को अपने हाथ म लेकर उसक अँगिु लयाँ िचटकाती
रही सहसा बोली, “अरे , तु हारे कफ का बटन टूट गया है, लाओ िसल दँू ”
च दर को पहले कुछ आ य हआ, िफर कुछ लािन िबनती िकतना समपण करती है, उसके
सामने वह...लेिकन उसने अ छा नह िकया प मी क बात दस ू री है, िबनती क बात दस ू री
िबनती के साथ एक पिव अ तर ही ठीक रहता-
िबनती आयी और उसके कफ म बटन सीने लगी...सीते-सीते बचे हए डोरे को दाँत से तोड़ती हई
बोली, “च दर, एक बात कह मानोगे?”
“ या?”
“प मी के यहाँ मत जाया करो ”
“ य ?”
“प मी अ छी औरत नह है वह तु ह यार नह करती, तु ह िबगाड़ती है ”
“यह बात गलत है, िबनती! तम ु इसीिलए कह रही हो न िक उसम वासना बहत तीखी है!”
“नह , यह नह उसने तु हारी िजंदगी म िसफ एक नशा, एक वासना दी, कोई ऊँचाई, कोई
पिव ता नह कहाँ दीदी, कहाँ प मी? िकस वग से उतरकर तम ु िकस नरक म फँस गये!”
“पहले म भी यही सोचता था िबनती, लेिकन बाद म मने सोचा िक माना िकसी लड़क के
जीवन म वासना ही तीखी है, तो या इसी से वह िन दनीय है? या वासना वत: म िन दनीय
है? गलत! यह तो वभाव और यि व का अ तर है, िबनती! हरे क से हम क पना नह माँग
सकते, हरे क से वासना नह पा सकते बादल है, उस पर िकरण पड़े गी, इ धनुष ही िखलेगा,
फूल है, उस पर िकरण पड़े गी, तब सुम ही आएगा बादल से हम माँगने लग तब सुम और फूल
से माँगने लग इ धनुष, तो यह तो हमारी एक किव वमयी भल ू होगी माना एक लड़क के
जीवन म यार आया, उसने अपने देवता के चरण पर अपनी क पना चढ़ा दी दस ू री के जीवन
म यार आया, उसने चु बन, आिलंगन और गद ु ी क िबजिलयाँ द एक बोली, 'देवता मेरे!
ु गद
मेरा शरीर चाहे िजसका हो, मेरी पज ू ा-भावना, मेरी आ मा तु हारी है और वह ज म-ज मा तर
तक तु हारी रहे गी...' और दस ू री दीपिशखा-सी लहराकर बोली, 'दुिनया कुछ कहे अब तो मेरा
तन-मन तु हारा है म तो बेकाबू हँ ! म क ँ या? मेरे तो अंग-अंग जैसे अलसा कर चरू हो गये
है तु हारी गोद म िगर पडऩे के िलए, मेरी त णाई पुलक उठी है तु हारे आिलंगन म िपस जाने
के िलए मेरे लाज के ब धन जैसे िशिथल हए जाते ह? म क ँ तो या क ँ ? कैसा नशा िपला
िदया है तमु ने , म सब कुछ भल ू गयी हँ तम ु चाहे िजसे अपनी क पना दो, अपनी आ मा दो,
लेिकन एक बार अपने जलते हए होठ म मेरे नरम गल ु ाबी होठ समेट लो न!' बताओ िबनती,
य पहली क भावना ठीक है और दस ू री क यास गलत?”
िबनती कुछ देर तक चुप रही, िफर बोली, “च दर, तम ु बहत गहराई से सोचते हो लेिकन म तो
एक मोटी-सी बात जानती हँ िक िजसके जीवन म वह यास जग जाती है वह िफर िकसी भी
सीमा तक िगर सकता है लेिकन िजसने याग िकया, िजसक क पना जागी, वह िकसी भी
सीमा तक उठ सकता है मने तो तु ह उठते हए देखा है ”
“गलत है, िबनती! तम ु ने िगरते हए देखा है मझ ु े! तमु मानोगी िक सुधा से मझ ु े क पना ही िमली
थी, याग ही िमला था, पिव ता ही िमली थी पर वह िकतनी िदन िटक ! और तम ु यह कैसे
कह सकती हो िक वासना आदमी को नीचे ही िगराती है तम ु आज ही क घटना लो तम ु यह
तो मानोगी िक अभी तक मने तु ह अपमान और ितर कार ही िदया था ”
“खैर, उसक बात जाने दो!” िबनती बोली
“नह , बात आ गयी तो म साफ कहता हँ िक आज मने तु हारा ितदान देने क सोची, आज
तु हारे िलए मन म बड़ा ने ह उमड़ आया य ? जानती हो? प मी ने आज अपने बाहपाश म
कसकर जैसे मेरे मन क सारी कटुता, सारा िवष ख च िलया मझ ु े लगा बहत िदन बाद म िफर
िपशाच नह , आदमी हँ यह वासना का ही दान है तम ु कैसे कहोगी िक वासना आदमी को
नीचे ही ले जाती है!”
िबनती कुछ नह बोली, च दर भी थोड़ी देर चुप रहा िफर बोला, “लेिकन एक बात पछ ू ू ँ,
िबनती?”
“ या?”
“बहत अजब-सी बात है सोच रहा हँ पछ ू ू ँ या न पछ ू ू ँ !”
“पछू ो न!”
“अभी मने तु हारे माथे पर होठ रख िदये, तम ु कुछ भी नह बोल , और म जानता हँ यह कुछ
अनुिचत-सा था तम ु प मी नह हो! िफर भी तम ु ने कुछ भी िवरोध नह िकया...?”
िबनती थोड़ी देर तक चुपचाप अपने पाँव क ओर देखती रही िफर शाल के छोर से एक डोरा
ख चते हए बोली, “च दर, म अपने को कुछ समझ नह पाती िसफ इतना जानती हँ िक मेरे
मन म तम ु जाने या हो; इतने महान हो, इतने महान हो िक म तु ह यार नह कर पाती,
लेिकन तु हारे िलए कुछ भी करने से अपने को रोक नह सकती लगता है तु हारा यि व,
उसक शि और उसक दुबलताएँ , उसक यास और उसका स तोष, इतना महान है, इतना
गहरा है िक उसके सामने मेरा यि व कुछ भी नह है मेरी पिव ता, मेरी अपिव ता, इन
सबसे यादा महान तु हारी यास है ...लेिकन अगर तु हारे मन म मेरे िलए जरा भी ने ह है तो
तमु प मी से स ब ध तोड़ लो दीदी से अगर म बताऊँगी तो जाने या हो जाएगा! और तम ु
जानते नह , दीदी अब कैसी हो गयी ह? तम ु देखो तो आँस.ू ..”
“बस! बस!” च दर ने अपने हाथ से िबनती का महँु ब द करते हए कहा, “सुधा क बात मत
करो, तु ह कसम है िजंदगी के िजस पहलू को हम भल ू चुके ह, उसे कुरे दने से या फायदा?”
“अ छा, अ छा!” च दर का हाथ हटाकर िबनती बोली, “लेिकन प मी को अपनी िजंदगी से हटा
दो ”
“यह नह हो सकता, िबनती?” च दर बोला, “और जो कहो, वह म कर दँग ू ा हाँ, तु हारे ित
आज तक जो दु यवहार हआ है, उसके िलए म तम ु से मा माँगता हँ ”
“िछः, च दर! मझु े शिम दा मत करो ” काफ रात हो गयी थी च दर लेट गया िबनती ने
उसे रजाई उढ़ा दी और टे बल पर िबजली का टड रखकर बोली, “अब चुपचाप सो जाओ ”
िबनती चली गयी च दर पड़ा-पड़ा सोचने लगा, दुिनया गलत कहती है िक वासना पाप है
वासना से भी पिव ता और माशीलता आती है प मी से उसे जो कुछ िमला, वह अगर पाप है
तो आज च दर ने जो िबनती को िदया, उसम इतनी मा, इतनी उदारता और इतनी शाि त य
थी?
उसके बाद िबनती को वह बहत दुलार और पिव ता से रखने लगा कभी-कभी जब वह घम ू ने
जाता तो िबनती को भी ले जाता था यू ईयस डे के िदन प मी ने दोन क दावत क
िबनती प मी के पीछे चाहे च दर से प मी का िवरोध कर ले पर प मी के सामने बहत िश ता
और ने ह का बरताव करती थी
डॉ टर साहब क िद ली जाने क तैयारी हो गयी िबनती ने काय म म कुछ प रवतन करा
िलया था अब वह पहले डॉ टर साहब के साथ शाहजहाँपुर जाएगी और तब िद ली
िन य करते-करते अ त म पहली फरवरी को वे लोग गये टे शन पर बहत-से िव ाथ और
डॉ टर साहब के िम उ ह िवदा देने के िलए आये थे िबनती िव ािथय क भीड़ से घबराकर
इधर चली आयी और च दर को बुलाकर कहने लगी-”च दर! दीदी के िलए एक खत तो दे दो!”
“नह ” च दर ने बहत खे और ढ़ वर म कहा
िबनती कुछ ण तक एकटक च दर क ओर देखती रही; िफर बोली, “च दर, मन क ा
चाहे अब भी वैसी हो, लेिकन तम
ु पर अब िव ास नह रहा ”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया, िसफ हँ स पड़ा िफर बोली, “च दर, अगर कभी कोई ज रत
हो तो ज र िलखना, म चली आऊँगी, समझे?” और िफर चुपचाप जाकर बैठ गयी
जब च दर लौटा तो उसके साथ कई साथी ोफेसर थे घर पहँ चकर वह कार लेकर प मी के
यहाँ चल िदया पता नह य िबनती के जाने का च दर को कुछ थोड़ा-सा दु:ख था
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च दर िसर से पैर तक लािन से कुंिठत हो उठा सचमच ु वह िकतना अभागा है! वह िकसी को
भी स तु नह रख पाया उसके जीवन म सुधा भी आयी और प मी भी, एक को उसके पु य
ने उससे छीन िलया, दस ू री को उसका गन ु ाह उससे छीने िलये जा रहा है जाने उसके ह का
मािलक िकतना ू र िखलाड़ी है िक हर कदम पर उसक राह उलट देता है नह , वह प मी को
नह खो सकता-उसने प मी का कॉलर पकड़ िलया, “प मी, तु ह हमारी कसम है-बुरा मत
मानो! म तु ह जाने नह दँग ू ा ”
प मी हँ सी-बड़ी ही क ण लेिकन सश हँ सी अपने कॉलर को धीमे-से छुड़ाकर च दर क
अँगिु लय को कपोल से दबा िदया और िफर व के पास से एक िलफाफा िनकालकर च दर के
हाथ म दे िदया और कार टाट कर दी...पीछे मड ु क़र नह देखा...नह देखा
कार कड़वे धुएँ का बादल च दर क ओर उड़ाकर आगे चल दी
जब कार ओझल हो गयी, तब च दर को होश आया िक उसके हाथ म एक िलफाफा भी है
उसने सोचा, फौरन कार लेकर जाये और प मी को रोक ले िफर सोचा, पहले पढ़ तो ले, यह है
या चीज? उसने िलफाफा खोला और पढऩे लगा-
“कपरू , एक िदन तु हारी आवाज और बट क चीख सुनकर अपण ू वेश म ही अपने शंगृ ार-गहृ से
भाग आयी थी और तु ह फूल के बीच म पाया था, आज तु हारी आवाज मेरे िलए मक ू हो गयी है
और अस तोष और उदासी के काँट के बीच म तु ह छोडक़र जा रही हँ
जा रही हँ इसिलए िक अब तु ह मेरी ज रत नह रही झठ ू य बोलँ,ू अब या, कभी भी तु ह
मेरी ज रत नह रही थी, लेिकन मने हमेशा तु हारा दु पयोग िकया झठ ू य बोल, तम ु मेरे
पित से भी अिधक समीप रहे हो तम ु से कुछ िछपाऊँगी नह म तम ु से िमली थी, जब म
एकाक थी, उदास थी, लगता था िक उस समय तम ु मेरी सुनसान दुिनया म रोशनी के देवदत ू
क तरह आये थे तम ु उस समय बहत भोले, बहत सुकुमार, बहत ही पिव थे मेरे मन म उस
िदन तु हारे िलए जाने िकतना यार उमड़ आया! म पागल हो उठी मने तु ह उस िदन सेलामी
क कहानी सुनायी थी, िसने मा घर म, उसी अभािगन सेलामी क तरह म भी पैग बर को चम ू ने
के िलए याकुल हो उठी
देखा, तमु पिव ता को यार करते हो सोचा, यिद तम ु से यार ही जीतना है, तो तमु से पिव ता
क ही बात क ँ म जानती थी िक से स यार का आव यक अंग है लेिकन मन म तीखी
यास लेकर भी मने तम ु से से स-िवरोधी बात करनी शु क महँु पर पिव ता और अ दर म
भोग का िस ा त रखते हए भी मेरा अंग-अंग यासा हो उठा था...तु ह होठ तक ख च लायी
थी, लेिकन िफर साहस नह हआ
िफर मने उस छोकरी को देखा, उस िनता त ितभाहीन दुबलमना छोकरी िमस सुधा को वह
कुछ भी नह थी, लेिकन म देखते ही जान गयी थी िक तु हारे भा य का न है, जाने य
उसे देखते ही म अपना आ मिव ास खो-सा बैठी उसके यि व म कुछ न होते हए भी कम-
से-कम अजब-सा जादू था, यह म भी वीकार करती हँ , लेिकन थी वह छोकरी ही!
तु ह न पाने क िनराशा और तु ह न पाने क असीम यास, दोन के पीस डालने वाले संघष से
भागकर, म िहमालय म चली आयी िजतना तीखा आकषण होता है कपरू कभी-कभी नारी
उतनी ही दरू भागती है अगर कोई याला महँु से न लगाकर दरू फक दे, तो समझ लो िक वह
बेहद यासा है, इतना यासा िक तिृ क क पना से भी घबराता है िदन-रात उस पहाड़ी क
धवल चोिटय म तु हारी िनगाह मु कराती थ , पर म लौटने का साहस न कर पाती थी
लौटी तो देखा िक तम ु अकेले हो, िनराश हो और थोड़ा-थोड़ा उलझे हए भी हो पहले मने तम ु
पर पिव ता क आड़ म िवजय पानी चाही थी, अब तम ु पर वासना का सहारा लेकर छा गयी
तमु मझ ु े बुरा समझ सकते हो, लेिकन काश िक तम ु मेरी यास को समझ पाते, कपरू ! तम ु े
ु ने मझ
वीकार िकया वैसे नह जैसे कोई फूल शबनम को वीकार करे तम ु े उस तरह
ु ने मझ
वीकार िकया जैसे कोई बीमार आदमी मािफया (अफ म) के इ जे शन को वीकार करे
तु हारी यासी और बीमार विृ याँ बदली नह , िसफ बेहोश होकर सो गय
लेिकन कपरू , पता नह िकसके पश से वे एकाएक िबखर गय म जानती हँ , इधर तम ु म या
प रवतन आ गया है म तु ह उसके िलए अपराधी नह ठहराती, कपरू ! म जानती हँ तम ु मेरे
ित अब भी िकतने कृत हो, िकतने ने हशील हो लेिकन अब तम ु म वह यास नह , वह नशा
नह तु हारे मन क वासना अब मेरे िलए एक तरस म बदलती जा रही है
मझ ु े वह िदन याद है, अ छी तरह याद है च दर, जब तु हारे जलते हए होठ ने इतनी गहरी
वासना से मेरे होठ को समेट िलया था िक मेरे िलए अपना यि व ही एक सपना बन गया
था लगता था, सभी िसतार का तेज भी इसक एक िचनगारी के सामने फ का है लेिकन
आज होठ होठ ह, आग के फूल नह रहे -पहले मेरी एक झलक से तु हारे रोम-रोम म सैकड़
इ छाओं क आँिधयाँ गरज उठती थ ...आज तु हारी नस का खन ू ठं डा है तु हारी िनगाह
पथरायी हई ह और तम ु इस तरह वासना मेरी ओर फक देते हो, जैसे तम ु िकसी पालतू िब ली को
पावरोटी का टुकड़ा दे रहे हो
म जानती हँ िक हम दोन के स ब ध क उ णता ख म हो गयी है अब तु हारे मन म महज
एक तरस है, एक कृत ता है, और कपरू , वह म वीकार नह कर सकँ ू गी मा करना, मेरा
भी वािभमान है
लेिकन मने कह िदया िक म तम ु से िछपाऊँगी नह ! तमु इस म म कभी मत रहना िक मने तु ह
यार िकया था पहले म भी यही सोचती थी कल मझ ु े लगा िक मने अपने को आज तक
धोखा िदया था मने इधर तु हारी िख नता के बाद अपने जीवन पर बहत सोचा, तो मझ ु े लगा
िक यार जैसी थायी और गहरी भावना शायद मेरे जैसे रं गीन बिहमख ु वभावशाली के िलए है
ही नह यार जैसी ग भीर और खतरनाक तफ ू ानी भावना को अपने क ध पर ढोने का
खतरा देवता या बुि हीन ही उठा सकते ह-तम ु उसे वहन कर सकते हो (कर रहे हो यार क
िति या भी यार क ही प रचायक है कपरू ), मेरे िलए आँसुओ ं क लहर म डूब जाना स भव
नह या तो यार आदमी को बादल क ऊँचाई तक उठा ले जाता है, या वग से पाताल म फक
देता है लेिकन कुछ ाणी ह, जो न वग के ह न नरक के, वे दोन लोक के बीच म अ धकार
क परत म भटकते रहते ह वे िकसी को यार नह करते, छायाओं को पकड़ने का यास
करते ह, या शायद यार करते ह या िनर तर नयी अनुभिू तय के पीछे दीवाने रहते ह और यार
िब कुल करते ही नह उनको न दु:ख होता है न सुख, उनक दुिनया म केवल संशय,
अि थरता और यास होती है...कपरू , म उसी अभागे लोक क एक यासी आ मा थी अपने
एका त से घबराकर तु ह अपने बाहपाश म बाँधकर तु हारे िव ास को वग से ख च लायी
थी तम ु वग- देवता, भलू कर मेरे अिभश लोक म आ गये थे
आज मालम ू होता है िक िफर तु हारे िव ास ने तु ह पुकारा है म अपनी यास म खुद धधक
उठूँ, लेिकन तु ह मने अपना िम माना था तम ु पर म आँच नह आने देना चाहती तम ु मेरे
यो य नह , तम ु अपने िव ास के लोक म लौट जाओ
म जानती हँ तम ु मेरे िलए िचि तत हो लेिकन मने अपना रा ता िनि त कर िलया है ी
िबना पु ष के आ य के नह रह सकती उस अभागी को जैसे कृित ने कोई अिभशाप दे िदया
है ...म थक गयी हँ इस ेमलोक क भटकन से ...म अपने पित के पास जा रही हँ वे मा
कर दगे, मझ ु े िव ास है
उ ह के पास य जा रही हँ ? इसिलए मेरे िम , िक म अब सोच रही हँ िक ी वाधीन नह रह
सकती उसके पास प नी व के िसवा कोई चारा नह जहाँ जरा वाधीन हई िक बस उसी
अ धकूप म जा पड़ती है जहाँ म थी वह अपना शरीर भी खोकर तिृ नह पाती िफर यार से
तो मेरा िव ास जैसे उठा जा रहा है, यार थायी नह होता म ईसाई हँ , पर सभी अनुभव के
बाद मझ ु े पता लगता है िक िह दुओ ं के यहाँ ेम नह वरन धम और सामािजक प रि थितय के
आधार पर िववाह क रीित बहत वै ािनक और नारी के िलए सबसे यादा लाभदायक है उसम
नारी को थोड़ा ब धन चाहे य न हो लेिकन दािय व रहता है, स तोष रहता है, वह अपने घर
क रानी रहती है काश िक तम ु समझ पाते िक खुले आकाश म इधर-उधर भटकने के बाद,
तफ ू ान से लड़ने के बाद म िकतनी आतरु हो उठी हँ ब धन के िलए, और िकसी सश डाल पर
बने हए सुखद, सुकोमल नीड़ म बसेरा लेने के िलए िजस नीड़ को म इतने िदन पहले उजाड़
चुक थी, आज वह िफर मझ ु े पुकार रहा है हर नारी के जीवन म यह ण आता है और शायद
इसीिलए िह दू ेम के बजाय िववाह को अिधक मह व देते ह
म तु हारे पास नह क म जानती थी िक हम दोन के स ब ध म ार भ से इतनी
िविच ताएँ थ िक हम दोन का स ब ध थायी नह रह सकता था, िफर भी िजन ण म हम
दोन एक ही तफ ू ान म फँस गये थे, वे ण मेरे िलए अमू य िनिध रहगे तम ु बुरा न मानना
म तम ु से जरा भी नाराज नह हँ म न अपने को गन ु हगार मानती हँ , न तु ह, िफर भी अगर
तमु मेरी सलाह मान सको तो मान लेना िकसी अ छी-सी सीधी-सादी िह दू लड़क से अपना
िववाह कर लेना िकसी बहत बौि क लड़क , जो तु ह यार करने का दम भरती हो, उसके
फ दे म न फँसना कपरू , म उ और अनुभव दोन म तम ु से बड़ी हँ िववाह म भावना या
आकषण अकसर जहर िबखे र देता है याह करने के बाद एक-आध महीने के िलए अपनी
प नी सिहत मेरे पास ज र आना, कपरू म उसे देखकर वह स तोष पा लँग ू ी, जो हमारी
स यता ने हम अभाग से छीन िलया है
अभी म साल भर तक तम ु से नह िमलँग ू ी मझ ु े तम
ु से अब भी डर लगता है लेिकन इस बीच म
तम ु बट का खयाल रखना कभी-कभी उसे देख लेना पये क कमी तो उसे न होगी
बीवी भी उसे ऐसी िमल गयी है, िजसने उसे ठीक कर िदया है...उस अभागे भाई से अलग होते हए
ु े कैसा लग रहा है, यह तम
मझ ु जानते, अगर तम ु बहन होते
अगला प तु ह तभी िलखँग ू ी जब मेरे पित से मेरा समझौता हो जाएगा...नाराज तो नह हो?
- िमला िड ू ज ”
च दर प मी को लौटाने नह गया कॉलेज भी नह गया एक ल बा-सा खत िबनती को
िलखता रहा और इसक ितिलिप कर दोन न थी कर भे ज िदये और उसके बाद थककर सो
गया...िबना खाना खाये!
तत
ृ ीय ख ड
39
लगभग चार बजे वह जागा तो उसने देखा िक उसके पाँव के पास िसर रखकर सुधा सो रही
है पंखे क हवा वहाँ तक नह पहँ चती वह पसीने से तर-बतर हो रही है च दर उठा, उसे
न द म ऐसा लगा िक जैसे इधर कुछ हआ ही नह है सुधा वही सुधा है, च दर वही च दर है
उसने सुधा के प ले से सुधा के माथे और गले का पसीना प छ िदया और हाथ बढ़ाकर पंखा
उसक ओर घुमा िदया सुधा ने आँख खोल , एक अजीब-सी िनगाह से च दर क ओर देखा
और च दर के पाँव को ख चकर व से लगा िफर आँख ब द करके लेट गयी च दर ने अपना
एक हाथ सुधा के माथे पर रख िलया और वह चुपचाप बैठा सोचने लगा, आज से लगभग साल-
भर पहले क बात, जब उसने पहले-पहल सुधा को कैलाश का िच िदखाया था, और सुधा रो-
धोकर उसके पाँव म इसी तरह महँु िछपाकर सो गयी थी...और आज...सुधा साल-भर म कहाँ से
कहाँ जा पहँ ची है! च दर कहाँ से कहाँ पहँ च गया है! काश िक कोई उनक िजंदगी क लेट से
इस वष-भर म ख ची हए मानिसक रे खाओं को िमटा सके तो िकतने सुखी हो जाएँ दोन ! च दर
ने सुधा को िहलाया और बोला-
“सुधा, सो रही हो?”
“नह ”
“उठो ”
“नह च दर, पड़ी रहने दो तु हारे चरण म सबकुछ भल ू कर एक ण के िलए भी सो सकँ ू गी,
मझु े इसका िव ास नह था सबकुछ छीन िलया है तम ु ने , एक ण क आ म- वंचना य
छीनते हो?” सुधा ने उसी तरह पड़े हए जवाब िदया
“अरी, उठ पगली!” च दर के मन म जाने कहाँ मरा पड़ा हआ उ लास िफर से िज दा हो उठा
था उसने सुधा क बाँह म जोर से चुटक काटते हए कहा, “उठती है या नह , आलसी कह
क !”
सुधा उठकर बैठ गयी ण-भर च दर क ओर पथरायी हई िनगाह से देखती रही और बोली,
“च दर, म जाग रही हँ तु ह ने उठाया है मझ ु े...च दर कह सपना तो नह है िक िफर टूट
जाए!” और सुधा िससक-िससक कर रो पड़ी च दर क आँख म आँसू आ गये थोड़ी देर
बाद वह बोला, “सुधा, कोई जादग ू र अगर हम लोग के मन से यह काँटा िनकाल देता तो म
िकतना सुखी होता! लेिकन सुधा, अब म तु ह दुखी नह क ँ गा ”
“यह तो तम ु ने पहले भी कहा था, च दर! लेिकन इधर जाने कैसे हो गये लगता है तु हारे
च र म कह थािय व नह ...इसी का तो मझ ु े दुख है, च दर!”
“अब रहे गा, सुधा! तु ह खोकर, तु हारे यार को खोकर म देख चुका हँ िक म आदमी नह रह
पाता, जानवर बन जाता हँ सुधा, अगर तम ु आज से महीन पहले िमल जात तो जो जहर मेरे
मन म घुट रहा है, वह तहु ारे सामने य करके म िब कुल िनि त हो जाता अ छा सुधा,
यहाँ आओ चुपचाप लेट जाओ, म तम ु से सबकुछ कह डालँ,ू िफर सब भल ू जाऊँ बोलो,
सुनोगी?”
सुधा चुपचाप लेट गयी और बोली, “च दर! या तो मत बताओ या िफर सभी प बता दो...”
“हाँ, िब कुल प सुधी; तम ु से कुछ िछपा सकता हँ भला!” च दर ने ह क -सी चपत मारकर
कहा, “आज मन जैसे पागल हो रहा है तु हारे चरण पर िबखर जाने के िलए...जादग ू रनी कह
क ! देखो सुधा-िपछली दफे तम ु े बहत कुछ बताया था, कैलाश के बारे म!”
ु ने मझ
“हाँ ”
“बस, उसके बाद से एक अजीब-सी अ िच मेरे मन म तु हारे िलए होने लगी थी; म तम ु से कुछ
िछपाऊँगा नह तु हारे जाने के बाद बट आया उसने मझ ु से कहा िक औरत केवल नयी
संवेदना, नया वाद चाहती है और कुछ नह , अिववािहत लड़िकयाँ िववाह, और िववािहत
लड़िकयाँ नये ेमी...बस यही उनका चरम ल य है लड़िकयाँ शरीर क यास के अलावा और
कुछ नह चाहत ...जैसे अराजकता के िदन म िकसी देश म कोई भी चालाक ने ता शि छीन
लेता है, वैसे ही मानिसक शू यता के ण म बट जैसे मेरा दाशिनक गु हो गया उसके बाद
आयी प मी उससे मने कहा िक या आव यक है िक पु ष और नारी के स ब ध म से स हो
ही? उसने कहा, 'हाँ, और यिद नह है तो लेटािनक (आदशवादी) यार क िति या से स क
ही यास म होती है ' अब म तु ह अपने मन का चोर बतला दँू मने सोचा िक तम ु भी अपने
वैवािहक जीवन म रम गयी हो शरीर क यास ने तु ह अपने म डुबा िदया है और जो अ िच
तमु मेरे सामने य करती हो वह केवल िदखावा है इसिलए मन-ही-मन मझ ु े तमु से िचढ़-सी
हो गयी पता नह य यह सं कार मझ ु म ढ़-सा हो गया और इसी के पीछे म तु ह को नह ,
प मी को छोड़कर सभी लड़िकय से नफरत-सी करने लगा िबनती को भी मने बहत दुख
िदया याह म जाने के पहले ही बहत दुखी होकर गयी रही प मी क बात तो म उस पर
इसिलए खुश था िक उसने बड़ी यथाथ-सी बात कही थी लेिकन उसने मझ ु से कहा िक
आदशवादी यार क िति या शारी रक यास म होती है तम ु को इसका अपराधी मानकर
तम ु से तो नाराज हो गया लेिकन अ दर-ही-अ दर वह सं कार मेरा यि व बदलने लगा
सुधा, पता नह , तु हारे जीवन म िति या के प म शारी रक यास जागी या नह पर मेरे मन
के गन ु ाह तो तफ
ू ान क तरह लहरा उठे लेिकन तम ु से एक बात नह िछपाऊँगा वह यह िक
ऐसे भी ण आये ह जब प मी के समपण ने मेरे मन क सारी कटुता धो दी है....बोलो, तम ु कुछ
तो बोलो, सुधा!”
“तम ु कहते चलो, च दर! म सुन रही हँ ”
“हाँ...लेिकन उस िदन गेसू आयी उसने मझ ु े िफर पुराने िदन क याद िदला दी और िफर जैसे
प मी के िलए आकषण उखड़-सा गया अ छा सुधा, एक बात बताओ तम ु यह मानती हो िक
कभी-कभी एक यि के मा यम से दस ू रे यि क भावनाओं क अनुभिू त होने लगती है?”
“ या मतलब?”
“मेरा मतलब जैसे मझ ु े गेसू क बात म उस िदन ऐसा लगा, जैसे तम ु बोल रही हो और दस ू री
बात तु ह बताऊँ तु हारे पीछे िबनती रही मेरे पास सारे अँधेरे म वही एक रोशनी थी, बड़ी
ीण, िटमिटमाती हई, सारहीन-सी बि क मझ ु े तो लगता था िक वह रोशन ही इसिलए थी िक
उसम रोशनी तु हारी थी मने कुछ िदन िबनती को बहत यार िकया मझ ु े ऐसा लगता था िक
अभी तक तम ु मेरे सामने थ , अब तमु उसके मा यम से आती हो लगता था जैसे वह एक
यि व नह है, तु हारे यि व का ही अंश है उस लड़क म िजस अंश तक तम ु थ वह अंश
बार-बार मेरे मन म रस उभार देता था य सुधा! मन क यह भी कैसी अजब-सी गित है!”
सुधा थोड़ी देर चुप रही, िफर बोली, “भागवत म एक जगह एक टीका म हमने पढ़ा था च दर िक
िजसको भगवान बहत यार करते ह, उसम उनक अंशािभ यि होती है बहत बड़ा वै ािनक
स य है यह! म िबनती को बहत यार करती हँ , च दर!”
“समझ गया म ” च दर बोला, “अब म समझा, मेरे मन म इतने गन ु ाह कहाँ से आये तम ु ने
ु े बहत यार िकया और वही तु हारे यि व के गन
मझ ु ाह मेरे यि व म उतर आये!”
सुधा िखलिखलाकर हँ स पड़ी च दर के क धे पर हाथ रखकर बोली, “इसी तरह हँ सते-बोलते
रहते तो य यह हाल होता? मनमौजी हो जब चाहो खुश हो गये, जब चाहो नाराज हो गये!”
उसके बाद वह उठी और बाहर से एक त तरी म कुछ फल काटकर लायी च दर ने देखा-
आम “अरे आम! अभी कहाँ से आम ले आयीï? कौन लाया?”
“लखनऊ उतरी थी? वहाँ से तु हारे िलए लेती आयी ”
च दर ने एक आम क फाँक उठाकर खायी और िकसी पुरानी घटना क याद िदलाने के िलए
आँचल से हाथ प छ िदये सुधा हँ स पड़ी और बड़ी दुलार-भरी ताडऩा के वर म बोली, “बोलो,
अब तो िदमाग नह िबगाड़ोगे अपना?”
“कभी नह सुधी, लेिकन प मी का या होगा? प मी से म स ब ध नह तोड़ सकता यवहार
चाहे िजतना सीिमत कर दँू ”
“म कब कहती हँ , म तु ह कह से कभी बाँधना ही नह चाहती जानती हँ िक अगर चाहँ भी
तो कभी अपने मन के बाहपाश ढीले कर तु ह िचरमिु तो म न दे पाऊँगी, तो भला ब धन ही
य बाँधँ!ू प मी शाम को आएगी?”
“शायद...”
दरवाजा खटका और गेसू ने वेश िकया आकर, दौडक़र सुधा से िलपट गयी च दर उठकर
चला आया “चले कहाँ भाईजान, बैिठए न ”
“नहा लँ,ू तब आता हँ ...” च दर चल िदया वह इतना खुश था, इतना खुश िक बाथ- म म
खबू गाता रहा और नहा चुकने के बाद उसे खयाल आया िक उसने बिनयाइन उतारी ही नह
थी नहाकर कपड़े बदलकर वह आया तब भी गन ु गनु ा रहा था कमरे म आया तब देखा गेसू
अकेली बैठी है
“सुधा कहाँ गयी?” च दर ने नाचते हए वर म कहा
“गयी है शरबत बनाने ” गेसू ने चु नी से िसर ढँकते हए और पाँव को सलवार से ढँकते हए
कहा च दर इधर-उधर ब स म माल ढूँढऩे लगा
“आज बड़े खुश ह, च दर भाई! कोई खायी हई चीज िमल गयी है या? अरे , म बहन हँ कुछ
इनाम ही दे दीिजए ” गेसू ने चुटक ली
“इनाम क बात या, कहो तो वह चीज ही तु ह दे दँ!ू ”
“हाँ, कैलाश बाबू के िदल से पिू छए ” गेसू बोली
“उनके िदल से तु ह बात कर सकती हो!”
गेसू ने झपकर महँु फेर िलया
सुधा हाथ म दो िगलास िलए आयी “लो गेस,ू िपयो ” एक िगलास गेसू को देकर बोली,
“च दर, लो ”
“तमु िपयो न!”
“नह , म नह िपऊँगी बफ मझ ु े नुकसान करे गी!” सुधा ने चुपचाप कहा च दर को याद आ
गया पहले सुधा िचढ़-िचढ़कर अपने आप चाय, शरबत पी जाती थी...और आज...
“ या ढूँढ़ रहे हो, च दर?” सुधा बोली
“ माल, कोई िमल ही नह रहा!”
“साल-भर म माल खो िदये ह गे! म तो तु हारी आदत जानती हँ आज कपड़ा ला दो, कल
सुबह माल सी दँू तु हारे िलए ” और उठकर उसने कैलाश के ब स से एक माल
िनकालकर दे िदया
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उसके बाद च दर बाजार गया और कैलाश के िलए तथा सुधा के िलए कुछ कपड़े खरीद लाया
इसके साथ ही कुछ नमक न जो सुधा को पस द था, पे ठा, एक तरबज ू , एक बोतल गल ु ाब का
शरबत, एक सु दर-सा पे न और जाने या- या खरीद लाया सुधा ने देखकर कहा, “पापा
नह ह, िफर भी लगता है म मायके आयी हँ !” लेिकन वह कुछ खा-पी नह सक
च दर खाना खाकर लॉन म बैठ गया, वह उसने अपनी चारपाई डलवा ली सुधा के िब तर
छत पर लगे थे उसके पास महरािजन सोने वाली थ सुधा एक त तरी म तरबज ू काटकर ले
आयी और कुस डालकर च दर भी चारपाई के पास बैठ गया च दर तरबज ू खाता रहा...थोड़ी
देर बाद सुधा बोली-
“च दर, िबनती के बारे म तु हारी या राय है?”
“राय? राय या होती? बहत अ छी लड़क है! तम ु से तो अ छी ही है!” च दर ने छे ड़ा
“अरे , मझ
ु से अ छी तो दुिनया है, लेिकन एक बात पछ ू ? बहत ग भीर बात है!”
“ या?”
“तमु िबनती से याह कर लो ”
“िबनती से? कुछ िदमाग तो नह खराब हो गया है?”
“नह ! इस बारे म पहले-पहले 'ये' बोले िक च दर से िबनती का याह य नह करती, तो मने
चुपचाप पापा से पछ ू ा पापा िब कुल राजी ह, लेिकन बोले मझ ु से िक तु ह कहो च दर से
कर लो; च दर! बुआजी अब दखल नह दगी ”
च दर हँ स पड़ा, “अ छी खुराफात तु हारे िदमाग म उठती ह! याद है, एक बार और तम ु ने याह
करने के िलए कहा था?”
सुधा के महँु से एक ह का िन: ास िनकल पड़ा-”हाँ, याद है! खैर, तब क बात दस ू री थी, अब
तो तु ह कर लेना चािहए ”
“नह सुधा, शादी तो मझ ु े नह ही करनी है तम ु कह य रही हो? तम ु मेरे-िबनती के स ब ध
को कुछ गलत तो नह समझ रही हो?”
“नह जी, लेिकन यह जानती हँ िक िबनती तम ु पर अ ध ा रखती है उससे अ छी लड़क
तु ह िमलेगी नह कम-से-कम िजंदगी तु हारी यवि थत हो जाएगी ”
च दर हँ सा, “मेरी िजंदगी शादी से नह , यार से सुधरे गी, सुधा! कोई ऐसी लड़क ढूँढ़ दो जो
तु हारी जैसी हो और यार करे तो म समझँ ू भी िक तम ु ने कुछ िकया मेरे िलए शादी-वादी
बेकार है और कोई बात करनी है या नह ?”
“नह च दर, शादी तो तु ह करनी ही होगी अब म ऐसे तु ह नह रहने दँग ू ी िबनती से न
करो तो दस ू री लड़क ढूँढूँगी लेिकन शादी करनी होगी और मेरी पस द से करनी होगी ”
च दर एक उपे ा क हँ सी हँ सकर रह गया
सुधा उठ खड़ी हई
“ य , चल द ?”
“हाँ, अब न द आ रही होगी तु ह, सोओ ”
च दर ने रोका नह उसने सोचा था, सुधा बैठेगी जाने िकतनी बात करगे! वह सुधा से
उसका सब हाल पछ ू े गा, लेिकन सुधा तो जाने कैसी तट थ, िनरपे और अपने म सीिमत-सी हो
गयी है िक कुछ समझ म नह आता उसने च दर से सबकुछ जान िलया लेिकन च दर के
सामने उसने अपने मन को कह जािहर ही नह होने िदया, सुधा उसके पास होकर भी जाने
िकतनी दरू थी! सरोवर म डूबकर पंछी यासा था
करीब घंटा-भर बाद सुधा दध ू का िगलास लेकर आयी च दर को न द आ गयी थी वह च दर
के िसरहाने बैठ गयी-”च दर, सो गये या?”
“ य ?” च दर घबराकर उठ बैठा
“लो, दध ू पी लो ” सुधा बोली
“दधू हम नह िपएँ गे ”
“पी लो, देखो बफ और शरबत िमला िदया है, पीकर तो देखो!”
“नह , हम नह िपएँ गे अब जाओ, हम न द लग रही है ” च दर गु सा था
“पी लो मेरे राजदुलारे , चमक रहे ह चाँद-िसतारे ...” सुधा ने लोरी गाते हए च दर को अपनी गोद
म ख चकर ब च क तरह िगलास च दर के महँु से लगा िदया च दर ने चुपचाप दध ू पी
िलया सुधा ने िगलास नीचे रखकर कहा, “वाह, ऐसे तो म नीलू को दध ू िपलाती हँ ”
“नीलू कौन?”
“अरे मेरा भतीजा! शंकर बाबू का लड़का ”
“अ छा!”
“च दर, तम ु ने पंखा तो छत पर लगा िदया है तम ु कैसे सोओगे?”
“मझ ु े न द आ जाएगी ”
च दर िफर लेट गया सुधा उठी नह वह दस ू री पाटी से हाथ टे ककर च दर के व के आर-
पार फूल के धनुष-सी झक ु कर बैठ गयी एकादशी का ि न ध पिव च मा आसमान क
नीली लहर पर अधिखले बेल के फूल क तरह काँप रहा था दध ू म नहाये हए झ के चाँदनी से
आँख-िमचौली खे ल रहे थे च दर आँख ब द िकये पड़ा था और उसक पलक पर, उसके माथे
पर, उसके होठ पर चाँदी क पाँखु रयाँ बरस रही थ सुधा ने च दर का कॉलर ठीक िकया
और बड़े ही मधुर वर म पछ ू ा, “च दर, न द आ रही है?”
“नह , न द उचट गयी!” च दर ने आँख खोलकर देखा एकादशी का पिव च मा आकाश
म था और पज ू ा से अिभिष एकादशी क उदास चाँदनी उसके व पर झक ु बैठी थी उसे लगा
जैसे पिव ता और अमतृ का च पई बादल उसके ाण म िलपट गया है
उसने करवट बदलकर कहा, “सुधा, िजंदगी का एक पहलू ख म हआ दद क एक मंिजल
ख म हो गयी थकान भी दरू हो गयी, लेिकन अब आगे का रा ता समझ म नह आता या
क ँ ?”
“करना बहत है, च दर! अपने अ दर क बुराई से लड़ िलये, अब बाहर क बुराई से लड़ो मेरा
तो सपना था च दर िक तम ु बहत बड़े आदमी बनोगे अपने बारे म तो जो कुछ सोचा था वह
सब नसीब ने तोड़ िदया अब तु ह को देखकर कुछ स तोष िमलता है तम ु िजतने ऊँचे
बनोगे, उतना ही चैन िमलेगा वना म तो नरक म भुन रही हँ ”
“सुधा, तु हारी इसी बात से मेरी सारी िह मत, सारा बल टूट जाता है अगर तम ु अपने प रवार
म सुखी होती तो मेरा भी साहस बँधा रहता तु हारा यह हाल, तु हारा यह वा य, यह
असमय वैरा य और पज ू ा, यह घुटन देखकर लगता है या क ँ ? िकसके िलए क ँ ?”
“म भी या क ँ , च दर! म यह जानती हँ िक अब ये भी मेरा बहत खयाल रखते ह, लेिकन इस
बात पर मझ ु े और भी दुख होता है म इ ह स तिु लत नह कर पाती और उनक खुलकर उपे ा
भी नह कर पाती यह अजब-सा नरक है मेरा जीवन भी, लेिकन यह ज र है च दर िक तु ह
ऊँचा देखकर म यह नरक भी भोग ले जाऊँगी तम ु िदल मत छोटा करो एक ही िजंदगी क
तो बात है, उसके बाद...”
“लेिकन म तो पुनज म म िव ास ही नह करता ”
“तब तो और भी अ छा है, इसी ज म म जो सुख दे सकते हो, दे लो िजतना ऊँचे उठ सकते हो,
उठ लो ”
“तम ु जो रा ता बताओ वह म अपनाने के िलए तैयार हँ म सोचता हँ , अपने यि व से ऊपर
उठूँ...लेिकन मेरे साथ एक शत है तु हारा यार मेरे साथ रहे !”
“तो वह अलग कब रहा, च दर! तु ह ने जब चाहा महँु फेर िलया लेिकन अब नह काश िक
तमु एक ण का भी अनुभव कर पाते िक तम ु से दरू वहाँ, वासना के क चड़ म फँसी हई म
िकतनी याकुल, िकतनी यिथत हँ तो तम ु ऐसा कभी न करते! मेरे जीवन म जो कुछ अपण ू ता
रह गयी है च दर, उसक पण ू ता, उसक िसि तु ह हो तु ह मेरे ज म-ज मा तर क शाि त
क सौग ध है, तम ु अब इस तरह न करना! बस याह कर लो और ढ़ता से ऊँचाई क ओर
चलो ”
“ याह के अलावा तु हारी सब बात वीकार ह लेिकन िफर भी तम ु अपना यार वापस नह
लोगी कभी?”
“कभी नह ”
“और हम कभी नाराज भी हो जाएँ तो बुरा नह मानोगी?”
“नह !”
“और हम कभी िफसल तो तम ु तट थ होकर नह बैठोगी बि क िबना डरे हए मझु े ख च लाओगी
उस दलदल से?”
“यह किठन है च दर, आिखर मेरे भी ब धन ह लेिकन खैर...अ छा यह बताओ, तम ु िद ली
कब आओगे?”
“अब िद ली तो दशहरे म आऊँगा गिमय म यह रहँ गा ...लेिकन हो सका तो लौटने के बाद
शाहजहाँपुर आऊँगा ”
सुधा चुपचाप बैठी रही च दर भी चुपचाप लेटा रहा थोड़ी देर बाद च दर ने सुधा क हथेली
अपने हाथ पर रख ली और आँख ब द कर ल जब वह सो गया तो सुधा ने धीरे -से हाथ
उठाया, खड़ी हो गयी थोड़ी देर अपलक उसे देखती रही और धीरे -धीरे चली आयी
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थोड़ी देर म तीन गये और जाकर खड़े हो गये अब च दर ने सुधा को देखा उसका चे हरा
सफेद पड़ गया था जैसे जाड़े के िदन म थोड़ी देर पानी म रहने के बाद उँ गिलय का रं ग
र हीन े त हो जाता है गाल क हड्िडïयाँ िनकल आयी थ और होठ काले पड़ गये थे
पलक के चार ओर कालापन गहरा गया था और आँख जैसे बाहर िनकली पड़ती थ खन ू
इतना अिधक गया था िक लगता था बदन पर चमड़े क एक ह क िझ ली मढ़ दी गयी हो
यहाँ तक िक भीतर क हड्डी के उतार-चढ़ाव तक प िदख रहे थे च दर ने डरते-डरते माथे
पर हाथ रखा सुधा के होठ म कुछ हरकत हई, उसने महँु खोल िदया और आँख ब द िकये हए
ही उसने करवट बदली, िफर कराही और िसर से पैर तक उसका बदन काँप उठा नस ने नाड़ी
देखी और कहा, अब ठीक है कमजोरी बहत है थोड़ी देर बाद पसीना िनकलना शु हआ
पसीना प छते-प छते एक बज गया िबनती बोली डॉ टर साहब से-”मामाजी, अब आप सो
जाइए च दर देख लगे आज नस है ही ”
डॉ टर साहब क आँख लाल हो रही थ सबके कहने पर वह अपनी सीट पर लेट रहे नस
बोली, “म बाहर आराम कुस पर थोड़ा बैठ लँ ू कोई ज रत हो तो बुला लेना ” च दर जाकर
सुधा के िसरहाने बैठ गया िबनती बोली, “तम ु थके हए आये हो चलो तमु भी सो रहो म
देख रही हँ !”
च दर ने कुछ जवाब नह िदया चुपचाप बैठा रहा िबनती ने सभी िखड़िकयाँ खोल द और
च दर के पास ही बैठ गयी सुधा सो रही थी चुपचाप थोड़ी देर बाद िबनती उठी, घड़ी देखी,
महँु खोलकर दवा दी सहसा डॉ टर साहब घबराये हए-से आये-” या बात है, सुधा य
चीखी!”
“कुछ नह , सुधा तो सो रही है चुपचाप!” िबनती बोली
“अ छा, मझ ु े न द म लगा िक वह चीखी है ” िफर वह खड़े -खड़े सुधा का माथा सहलाते रहे
और िफर लौट गये नस अ दर थी िबनती च दर को बाहर ले आयी और बोली, “देखो, तम ु
कल जीजाजी को एक तार दे देना!”
“लेिकन अब वह ह गे कहाँ?”
“िवजगाप म या कोल बो म जहाजी क पनी के पते से िदलवा देना तार ”
दोन िफर जाकर सुधा के पास बैठ गये नस बाहर सो रही थी साढ़े तीन बज गये थे ठं डी
हवा चल रही थी िबनती च दर के क धे पर िसर रखकर सो गयी सहसा सुधा के होठ िहले
और उसने कुछ अ फुट वर म कहा च दर ने सुधा के माथे पर हाथ रखा माथा सहसा
जलने लगा था; च दर घबरा उठा उसने नस को जगाया नस ने बगल म थमामीटर
लगाया ताप म एक सौ पाँच था सारा बदन जल रहा था और रह-रहकर वह काँप उठती
थी च दर ने िफर घबराकर नस क ओर देखा “घबराइए मत! डॉ टर अभी आएगा ”
लेिकन थोड़ी देर म हालत और िबगड़ गयी और िफर उसी तरह ददनाक कराह सुबह क हवा
म िसर पटकने लग नस ने इन लोग को बाहर भे ज िदया और बदन अँगोछने लगी
थोड़ी देर म सुधा ने चीखकर पुकारा-”पापा...” इतनी भयानक आवाज थी िक जैसे सुधा को
नरक के दत ू पकड़े ले जा रहे ह पापा गये सुधा का चे हरा लाल था और वह हाथ पटक रही
थी ...पापा को देखते ही बोली, “पापा...च दर को इलाहाबाद से बुलवा दो ”
“च दर आ गया बेटा, अभी बुलाते ह ” य ही पापा ने माथे पर हाथ रखा िक सुधा चीख
उठी-”तम ु पापा नह हो...कौन हो तम ु ?...दरू हटो, छुओ मत...अरे िबनती...”
डॉ टर शु ला ने नस क ओर देखा नस बोली-
सुधा ने िफर करवट बदली और नस को देखकर बोली, “कौन गेस.ू ..आओ बैठो च दर नहा
रहा है अभी बुलाती हँ अरे च दर...” और िफर हाँफने लगी, आँख ब द कर ल और रोकर
बोली, “पापा, तमु कहाँ चले गये?”
नस ने च दर और िबनती को बुलाया िबनती पास जाकर खड़ी हो गयी-आँसू प छकर बोली,
“दीदी, हम आ गये ” और सुधा क बाँह पर हाथ रख िदया सुधा ने आँख नह खोल , िबनती
के हाथ पर हाथ रखकर बोली, “िबनती, पापा कहाँ गये ह?”
“खड़े तो ह मामाजी!”
“झठू मत बोल क ब त...अ छा ले, शरबत तैयार है, जा च दर टडी म म पढ़ रहा है बुला ला,
जा!”
िबनती फफककर रो पड़ी
“रोती य है?” सुधा ने कराहकर कहा, “म जाऊँगी तो च दर को तेरे पास छोड़ जाऊँगी जा
च दर को बुला ला, नह बफ घुल जाएगी-शरबत छान िलया है?”
च दर आगे आया ँ धे गले से आँसू पीते हए बोला, “सुधा, आँख खोलो हम आ गये, सुधी!”
डॉ टर साहब कुस पर पड़े िससक रहे थे...सुधा ने आँख खोल और च दर को देखते ही िफर
बहत जोर से चीखी...”तम ु ...तमु ऑ े िलया से लौट आये? झठ ू े ! तम
ु च दर हो? या म तु ह
पहचानती नह ? अब या चािहए? इतना कहा, तम ु से हाथ जोड़ा, मेरी या हालत है? लेिकन
तु ह या? जाओ यहाँ से वना म अभी िसर पटक दँग ू ी...” और सुधा ने िसर पटक िदया-”नह
गये?” नस ने इशारा िकया-च दर कमरे के बाहर आया और कुस पर िसर झक ु ाकर बैठ गया
सुधा ने आँख खोल और फटी-फटी आँख से चार ओर देखने लगी िफर नस से बोली-
“गेस,ू तमु बहत बहादुर हो! तम ु ने अपने को बेचा नह ; अपने पैर पर खड़ी हो िकसी के आ य
म नह हो कोई खाना-कपड़ा देकर तु ह खरीद नह सकता, गेसू िबनती कहाँ गयी...?”
“म खड़ी हँ , दीदी?”
“ह...अ छा, पापा कहाँ ह?” सुधा ने कराहकर पछ ू ा
डॉ टर साहब उठकर आ गये-”बेटा!” बड़े दुलार से सुधा के माथे पर हाथ रखकर बोले सुधा रो
पड़ी-”कहाँ थे पापा, अभी तक तम ु ? हमने इतना पुकारा, न तम ु बोले न च दर बोला...हम तो डर
लग रहा था, इतना सन ू ा था...जाओ महरािजन ने रोटी सक ली है-खा लो हाँ, ऐसे बैठ
जाओ लो पापा, हमने नानखटाई बनायी...”
डॉ टर शु ला रोते हए चले गये-िबनती ने च दर को बुलाया देखा च दर कुस पर हथेली म
महँु िछपाये बैठा था िबनती गयी और च दर के क धे पर हाथ रखा च दर ने देखा और िसर
झक ु ा िलया, “चलो च दर, दीदी िफर बेहोश हो गय ”
इतने म नस बोली “वह िफर होश म आयी ह; आप लोग वह चिलए ”
सुधा ने आँख खोल दी थ -च दर को देखते ही बोली, “च दर आओ, कोई मा टर ठीक िकया
तम ु ने ? जो कुछ पढ़ा था वह भल ू रही हँ अब इ तहान म पास नह होऊँगी ”
“डे ली रयम अब भी है ” नस बोली सहसा सुधा ने च दर का हाथ छोड़ िदया और झट से
हथेिलयाँ आँख पर रख ल और बोली, “ये कौन आ गया? यह च दर नह है च दर नह है
च दर होता तो मझ ु े डाँटता- य बीमार पड़ ? अब बताओ म च दर को या जवाब दँग ू ी...च दर
को बुला दो, गेस!ू िजंदगी म दु मनी िनभायी, अब मौत म तो न िनभाए ”
“उफ! मरीज के पास इतने आदमी? तभी डे ली रयम होता है ” सहसा डॉ टर ने वेश िकया
कोई दस ू रा डॉ टर था, अँ ेज था िबनती और च दर बाहर चले आये िबनती बोली, “ये
िसिवल सजन ह ” उसने खन ू मँगवाया, देखा, िफर डॉ टर शु ला को भी हटा िदया िसफ
नस रह गयी थोड़ी देर बाद वह िनकला तो उसका चे हरा याह था “ या यह ै ने सी
पहली मतबा थी?”
“जी हाँ?”
डॉ टर ने िसर िहलाया और कहा, “अब मामला हाथ से बाहर है इंजे शन लगगे अ पताल
ले चिलए ”
“डॉ टर शु ला, मवाद आ रहा है, कल तक सारे बदन म फै ल जाएगा, िकस बेवकूफ डॉ टर ने
देखा था...”
च दर ने फोन िकया ऐ बुले स कार आ गयी सुधा को उठाया गया...
िदन बड़ी ही िच ता म बीता तीन-तीन घंटे पर इंजे शन लग रहे थे दोपहर को दो बजे
इंजे शन ख म कर डॉ टर ने एक गहरी साँस ली और बोला, “कुछ उ मीद है-अगर बारह घंटे
तक हाट ठीक रहा तो म आपक लड़क आपको वापस दँग ू ा ”
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बड़ा भयानक िदन था बहत ऊँची छत का कमरा, दालान म टाट के परदे पड़े थे और बाहर
गम क भयानक लू ह-ह करती हई दानव क तरह महँु फाड़े दौड़ रही थी डॉ टर साहब
िसरहाने बैठे थे, पथरीली िनगाह से सुधा के पीले मतृ ाय चे हरे क ओर देखते हए...िबनती और
च दर िबना कुछ खाये-पीये चुपचाप बैठे थे-रह-रहकर िबनती िससक उठती थी, लेिकन च दर
ने मन पर प थर रख िलया था वह एकटक एक ओर देख रहा था...कमरे म वातावरण शा त
था-रह-रहकर िबनती क िससिकयाँ, पापा क िन: ास तथा घड़ी क िनर तर िटक-िटक
सुनाई पड़ रही थी
च दर का हाथ िबनती क गोद म था एक मक ू संवेदना ने िबनती को सँभाल रखा था
च दर कभी िबनती क ओर देखता, कभी घड़ी क ओर सुधा क ओर नह देख पाता था
दुख अपनी परू ी चोट करने के व अकसर आदमी क आ मा और मन को लोरोफाम सँुघा देता
है च दर कुछ भी सोच नह पा रहा था सं ा-हत, नीरव, िन े ...
घड़ी क सुई अिवराम गित से चल रही थी सजन कई दफे आये नस ने आकर टे परे चर
िलया रात को यारह बजे टे परे चर उतरने लगा डॉ टर शु ला क आँख चमक उठ ठीक
बाहर बजकर पाँच िमनट पर सुधा ने आँख खोल द च दर ने िबनती का हाथ मारे खुशी से
दबा िदया
“िबनती कहाँ है?” बड़े ीण वर म पछ ू ा
सुधा ने आँख घुमाकर देखा पापा को देखते ही मु करा पड़ी
िबनती और च दर उठकर आ गये
“आहा, च दर तम ु आ गये? हमारे िलए या लाये?”
“पगली कह क !” मारे खुशी के च दर का गला भर गया
“लेिकन तम ु इतनी देर म य आये, च दर!”
“कल रात को ही आ गये थे हम ”
“चलो-चलो, झठ ू बोलना तो तु हारा धम बन गया कल रात को आ गये होते तो अभी तक हम
अ छे भी हो गये होते ” और वह हाँफने लगी
सजन आया, “बात मत करो...” उसने कहा
उसने एक िम सचर िदया िफर आला लगाकर देखा, और डॉ टर शु ला को अलग ले जाकर
कहा, “अभी दो घंटे और खतरा है लेिकन परे शान मत होइए अब स र ितशत आशा है
मरीज जो कहे , उसम बाधा मत दीिजएगा उसे जरा भी परे शानी न हो ”
सुधा ने च दर को बुलाया, “च दर, पापा से मत कहना अब म बचँग ू ी नह अब कह मत
जाना, यह बैठो ”
“िछः पगली! डॉ टर कह रहा है अब खतरा नह है ” च दर ने बहत यार से कहा, “अभी तो
तमु हमारे िलए िज दा रहोगी न!”
“कोिशश तो कर रही हँ च दर, मौत से लड़ रही हँ ! च दर, उ ह तार दे दो! पता नह देख
पाऊँगी या नह ”
“दे िदया, सुधा!” च दर ने कहा और िसर झक ु ाकर सोचने लगा
“ या सोच रहे हो, च दर! उ ह इसीिलए देखना चाहती हँ िक मरने के पहले उ ह मा कर दँ,ू
उनसे मा माँग लँ!ू ...च दर, तम ु तकलीफ का अ दाजा नह कर सकते ”
डॉ टर शु ला आये सुधा ने कहा, “पापा, आज तु हारी गोद म लेट ल ” उ ह ने सुधा का
िसर गोद म रख िलया “पापा, च दर को समझा दो, ये अब अपना याह तो कर ले ...हाँ
पापा, हमारी भागवत मँगवा दो...”
“शाम को मँगवा दगे बेटी, अब एक बज रहा है...”
“देखा...” सुधा ने कहा, “िबनती, यहाँ आओ!”
िबनती आयी सुधा ने उसका माथा चम ू कर कहा, “रानी, जो कुछ तझ ु े आज तक समझाया वैसा
ही करना, अ छा! पापा तेरे िज मे ह ”
िबनती रोकर बोली, “दीदी, ऐसी बात य करती हो...”
सुधा कुछ न बोली, गोद से हटाकर िसर तिकये पर रख िलया
“जाओ पापा, अब सो रहो तम ु ”
“सो लँगू ा, बेटी...”
“जाओ नह िफर हम अ छे नह ह गे! जाओ...”
सजन का आदेश था िक मरीज के मन के िव कुछ नह होना चािहए-डॉ टर शु ला चुपचाप
उठे और बाहर िबछे पलँग पर लेट रहे
सुधा ने च दर को बुलाया, बोली, “म झक ु नह सकती-िबनती यहाँ आ-हाँ, च दर के पैर छू...अरे
अपने माथे म नह पगली मेरे माथे से लगा दे मझ ु से झक ु ा नह जाता ” िबनती ने रोते हए
सुधा के माथे म चरण-धल ू लगा दी, “रोती य है, पगली! म मर जाऊँ तो च दर तो है ही अब
च दर तझ ु े कभी नह लाएँ गे...चाहे पछू लो! इधर आओ, च दर! बैठ जाओ, अपना हाथ मेरे
होठ पर रख दो...ऐसे...अगर म मर जाऊँ तो रोना मत, च दर! तम ु ऊँचे बनोगे तो मझु े बहत चैन
िमलेगा म जो कुछ नह पा सक , वह शायद तु हारे ही मा यम से िमलेगा मझ ु े और देखो,
पापा को अकेले िद ली म न छोडऩा...लेिकन म म ँ गी नह , च दर...यह नरक भोगकर भी
तु ह यार क ँ गी...म मरना नह चाहती, जाने िफर कभी तम ु िमलो या न िमलो, च दर...उफ
िकतनी तकलीफ है, च दर! हम लोग ने कभी ऐसा नह सोचा था...अरे हटो-हटो...च दर!”
सहसा सुधा क आँख म िफर अँधेरा छा गया-”भागो, च दर! तु हारे पीछे कौन खड़ा है?” च दर
घबराकर उठ गया-पीछे कोई नह था... “अरे च दर, तु ह पकड़ रहा है च दर, तम ु मेरे पास
आओ ” सुधा ने च दर का हाथ पकड़ िलया-िबनती भागकर डॉ टर साहब को बुलाने गयी
नस भी भागकर आयी सुधा चीख रही थी-”तम ु हो कौन? च दर को नह ले जा सकते म
चल तो रही हँ च दर, म जाती हँ इसके साथ, घबराना मत म अभी आती हँ तम ु तब तक
चाय पी लो-नह , म तु ह उस नरक म नह जाने दँग ू ी, म जा तो रही हँ -िबनती, मेरी च पल ले
आ...अरे पापा कहाँ ह...पापा...”
और सुधा का िसर च दर क बाँह पर लुढ़क गया-िबनती को नस ने सँभाला और डॉ टर शु ला
पागल क तरह सजन के बँगले क ओर दौड़े ...घड़ी ने टन-टन दो बजाये...
जब ए बुले स कार पर सुधा का शव बँगले पहँ चा तो शंकर बाबू आ गये थे-बह को िवदा कराने ...
उपसंहार
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समा