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Chapter-6: तीन वर्ग

तीन वर्ग :-

यूरोप में फ्रांसििी िमरज मुख्यत : तीन वर्गों में ववभरजजत थर जो ननम्नसिखित है

1. परदरी वर्गग - इि वर्गग में चचग के पोप आदद िजम्मसित थे।


2. असभजरत वर्गग - इि वर्गग में िरमांत , जमीांदरर , और धनी व्यरपररी वर्गग

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शरसमि थे।

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3. कृषक वर्गग - इि वर्गग में ककिरन और मजदरु आदद शरसमि थे।

यरू ोपीय इततहास की जानकारी के स्त्रोत :-

भू - स्वरसमयों के वववरण, मल्


ू यों और ववधध के मक
ु दमों के दस्तरवेज जैिे कक चचग
में समिने वरिे जन्म, मत्ृ यु और वववरह के आिेि। चचग िे प्ररप्त असभिेिों ने
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व्यरपरररक िांस्थरओां और र्गीत व कहरननयों द्वररर त्योहररों व िरमुदरनयक
र्गनतववधधयों कर बोध कररयर।

सामंतवाद :-

 िरमन्तवरद शब्द जमगन शब्द फ्यूड िे बनर है । फ्यूड कर अथग है - भूसम कर


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टुकडर।
 िरमन्तवरद एक तरह के कृवष उत्परदन को दशरगतर है जो िरमांतों और कृषकों
के िांबध
ां ों पर आधरररत है । कृषक िरडग को श्रम िेवर प्रदरन करते थे और
बदिे में वे उन्हें िैननक िरु क्षर दे ते थे।
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 िरमन्तवरद पर िवगप्रथम करम करने वरिे फ्रांिीिी ववद्वरन मरकग ब्िॉक के


द्वररर भर्ग
ू ोि के महत्व पर आधरररत मरनव इनतहरि को र्गढ़ने पर जोर,
जजििे कक िोर्गों के व्यवहरर और रुि को िमझर जर िके।

( i ) पादरी वर्ग

पादररयों व बिशपों द्वारा ईसाई समाज का मार्गदशगन :-


ये प्रथम वर्गग के िदस्य थे जो चचग में धमोपदे श , अत्यधधक धरसमगक व्यजतत जो
चचग के बरहर धरसमगक िमुदरयों में रहते थे सभक्षु कहिरते थे | ये सभक्षु मठों पर
रहते थे और ननजचचत ननयमों कर परिन करते थे | इनके परि ररजर द्वररर दी र्गई
भसू मयराँ थी , जजनिे वे कर उर्गरह िकते थे । अधधकतर र्गराँव में उनके अपने चचग
होते थे जहराँ वे प्रत्येक रवववरर को िोर्ग परदरी के धमोपदे श िन
ु ने तथर िरमूदहक
प्ररथगनर करने के सिए इतकठर होते थे ।

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पादररयों और बिशपों की ववशेषताएँ :-

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1. इनके परि ररजर द्वररर दी र्गई भूसमयराँ थी , जजनिे वे कर उर्गरह िकते थे ।
2. रवववरर के ददन ये िोर्ग र्गराँव में धमोपदे श दे ते थे और िरमूदहक प्ररथगनर
करते थे ।
3. ये फ़्रांसििी िमरज के प्रथम वर्गग में शरसमि थे इन्हें ववशेषरधधकरर प्ररप्त थर

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4. टरईथ नमक धरसमगक कर भी विूिते थे ।
5. जो पुरुष परदरी बनते थे वे शरदी नहीां कर िकते थे |
6. धमग के क्षेत्र में ववशप असभजरत मरने जरते थे और इनके परि भी िरडग क
तरह ववस्तत
ृ जरर्गीरें थी ।

भिक्षु और मठ :-
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चचग के आिरवर कुछ ववशेष श्रद्धरिु ईिरइयों क एक दि
ू री तरह क िांस्थर थी ।
जो मठों पर रहते थे और एकरांत जीवन व्यतीत करते थे । ये मठ मनुष्य क आम
आबरदी िे बहुत दरू हुआ करती थी ।
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दो सिसे अधिक प्रभसद्ि मठों के नाम :-

1. 529 में इटिी में स्थरवपत िेंट बेनेडडतट मठ ।


2. 910 में बरर्गांडी में स्थरवपत तिूनी मठ ।

भिक्षुओं की ववशेषताएँ :-

1. ये मठों में रहते थे ।


2. इन्हें ननजचचत और ववशेष ननयमों कर परिन करनर होतर थर ।
3. ये आम आबरदी िे बहुत दरू रहते थे ।
4. सभक्षु अपनर िररर जीवन ऑबे में रहने और िमय प्ररथगनर करने , अध्ययन
और कृवष जैिे शररीररक श्रम में िर्गरने कर व्रत िेतर थर ।
5. परदरी - करयग के ववपरीत सभक्षु क जजांदर्गी परु
ु ष और जस्त्ररयराँ दोनों ही
अपनर िकते थे - ऐिे परु
ु षों को मोंक ( Monk ) तथर जस्त्रयराँ नन ( Nun )
कहिरती थी ।

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6. पुरुषों और मदहिरओां के सिए अिर्ग - अिर्ग ऑबे थे । परदररयों क तरह ,

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सभक्षु और सभक्षुखणयराँ भी वववरह नहीां कर िकती थे ।
7. वे एक स्थरन िे दि
ू रे स्थरन पर घम
ू - घूम कर िोर्गों को उपदे श दे ते और
दरन िे अपनी जीववकर चिरते थे ।

फ्ांभससी समाज में मठों का योर्दान :-


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1. मठों कक िांख्यर िैकडों में बढ़ने िे ये एक िमुदरय बन र्गए जजिमें बडी
इमररतें और भू - जरर्गीरों के िरथ - िरथ स्कूि यर कॉिेज और अस्पतरि
बनरए र्गए ।
2. इन िमद
ु रयों ने किर के ववकरि में योर्गदरन ददयर |
3. आबेि दहल्डेर्गरडग एक प्रनतभरशरिी िांर्गीतज्ञ थर जजिने चचग क प्ररथगनरओां में
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िरमद
ु रनयक र्गरयन क प्रथर के ववकरि में महत्वपूणग योर्गदरन ददयर ।
4. तेरहवीां िदी िे सभक्षुओां के कुछ िमूह जजन्हें फ्रयर ( frlars ) कहते थे
उन्होंने मठों में न रहने कर ननणगय सियर ।
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दस
ू रा वर्ग - अभिजात वर्ग

यूरोप के िरमरजजक प्रकियर में असभजरत वर्गग क महत्वपूणग भूसमकर थी | ऐिे


महत्वपूणग िांिरधन भूसम पर उनके ननयांत्रण के कररण थर | यह वैििेज (
Vassalage ) नरमक एक प्रथर के ववकरि के कररण हुआ थर | बडे भू स्वरमी और
असभजरत वर्गग ररजर के आधीन होते थे जबकक कृषक भू - स्वरसमयों के अधीन होते
थे । असभजरत वर्गग ररजर को अपनर स्वरमी मरन िेतर थर और वे आपि में
वचनबद्ध होते थे - िेन्योर / िॉडग ( िॉडग एक ऐिे शब्द िे ननकिर जजिकर अथग
थर रोटी दे ने वरिर ) दरि ( Vassal ) क रक्षर करतर थर और बदिे में वह उिके
प्रनत ननष्ठरवरन रहतर थर । इन िांबध
ां ों में व्यरपक रीनत ररवरजों और शपथ िेकर
क जरती थी |

अभिजात वर्ग की ववशेषताएँ :-

1. असभजरत वर्गग क एक ववशेष है सियत थी । उनकर अपनी िांपदर पर स्थरयी


तौर पर पूणग ननयांत्ररण थर ।
2. वह अपनी िैन्य क्षमतर बढ़र िकते थे उनके परि अपनी िरमांती िेनर थी ।

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3. वे अपनर स्वयां कर न्यरयरिय िर्गर िकते थे ।

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4. यहराँ तक कक अपनी मद्र
ु र भी प्रचसित कर िकते थे ।
5. वे अपनी भूसम पर बिे िभी व्यजततयों के मरसिक थे ।

तीसरा वर्ग - यह वर्ग ककसान

स्वतांत्र और बांधकों ( दरिों ) कर वर्गग थर । यह वर्गग एक ववशरि िमूह थर जो


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पहिे दो वर्गों परदरी और असभजरत वर्गग कर भरण पोषण करतर थर ।

काश्तकार दो प्रकार के होते थे :-

1. स्वतांत्र ककिरन
2. िर्फग ( कृवष दरि )
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स्त्वतंर कृषकों की िूभमका :-

1. स्वतांत्र कृषक अपनी भूसम को िॉडग के करचतकरर के रुप में दे िते थे ।


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2. पुरुषों कर िैननक िेवर में योर्गदरन आवचयक होतर थर ( वषग में कम िे कम


चरिीि ददन ) ।
3. कृषकों के पररवररों को िॉडग क जरर्गीरों पर जरकर करम करने के सिए
िप्तरह के तीन यर उििे अधधक कुछ ददन ननजचचत करने पडते थे । इि
श्रम िे होने वरिर उत्परदन जजिे ' श्रम - अधधशेष ( Labour rent ) कहते थे ,
िीधे िरडग के परि जरतर थर।
4. इिके अनतररतत , उनिे अन्य श्रम करयग जैिे - र्गढ्ढे िोदनर , जिरने के
सिए िकडडयराँ इतकठी करनर , बरड बनरनर और िडकें व इमररतों क
मरम्मत करने क भी उम्मीद क जरती थी और इनके सिए उन्हें कोई
मज़दरू ी नहीां समिती थी।
5. िेतों में मदद करने के अनतररतत , जस्त्रयों व बच्चों को अन्य करयग भी करने
पडते थे । वे ित
ू करतते , कपडर बन
ु ते , मोमबत्ती बनरते और िॉडग के
उपयोर्ग हे तु अांर्गूरों िे रि ननकरि कर मददरर तैयरर करते थे ।

ग्यारहवीं शताब्दी तक यरू ोप में ववभिन्न प्रौद्योधर्की में िदलाव :-

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 िकडी के हि के स्थरन पर िोहे के भररी नोक वरिे हि और िराँचेदरर पटरे

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कर प्रयोर्ग ।
 पशओ
ु ां के र्गिे के स्थरन पर जआ
ु अब कांधे पर ।
 घोडे के िरु ों पर अब िोहे क नरि कर प्रयोर्ग ।
 कृवष के सिये वरयु और जिशजतत कर प्रयोर्ग ।
 िांपीडको व चजतकयों में भी वरयु तथर जिशजतत कर प्रयोर्ग ।
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 दो िेतों क व्यवस्थर के स्थरन पर तीन िेतों वरिी व्यवस्थर कर उपयोर्ग ।
कृवष उत्परदन में तेजी िे बढ़ोतरी ।
 भोजन क उपिब्धतर दर्ग
ु न ु ी ।
 कृषकों को बेहतर अविर ।
 जोतों कर आकरर छोटर ।
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 इििे अधधक कुशितर के िरथ कृवष करयग होनर व कम श्रम क आवचयकतर

 कृषकों को अन्य र्गनतववधधयों के सिए िमय ।
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चौदहवीं शताब्दी का संकट :-

चौदहवीां शतरब्दी के आरां भ में यूरोप को आधथगक ववस्तरर धीमर पडने के कररण

 तेरहवीां िदी के अांत तक उत्तरी यूरोप में तेज ग्रीष्म ऋतु कर स्थरन ठां डी
ग्रीष्म ऋतु ने िे सियर ।
 पैदरवरर के मौिम छोटे , तूफरनों व िरर्गरीय बरढ़ों िे फरमग प्रनतष्ठरन नष्ट ।
िरकरर को करों िे आमदनी में कमी ।
 पहिे क र्गहन जत
ु रई के तीन क्षेत्रीय फिि चि िे भसू म कमजोर ।
 चररर्गरहों क कमी िे पशओ
ु ां क िांख्यर में कमी ।
 जनिांख्यर वद्
ृ धध के कररण उपिब्ध िांिरधन कम पडनर ।
 1315 - 1317 में यरू ोप में भयांकर अकरि , 1320 ई . में अनेक पशओ
ु ां क
मौत । आजस्ियर व िर्बगयर क चराँदी क िरनों के उत्परदन में कमी ।
 धरतु - मद्र
ु र में कमी िे व्यरपरर प्रभरववत ।
 जि पोतों के िरथ चूहे आए जो ब्यब
ू ोननक प्िेर्ग जैिी महरमररी कर िांिमण
िरए । िरिों िोर्ग ग्रसित ।

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 ववनरशिीिर के िरथ आधथगक मांदी िे िरमरजजक ववस्थरपन हुआ । मजदरू ों

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क िांख्यर में कमी आई इििे मजदरू ी क दर में 250 प्रनतशत तक क
वद्
ृ धध ।

राजनीततक पररवतगन :-

नए शजततशरिी ररज्यों कर उदय - िांर्गदठत स्थरयी िेनर , एक स्थरयी नौकरशरही


ya
और ररष्िीय कर प्रणरिी स्थरवपत करने क प्रकियर आरां भ ।

नई शासन व्यवस्त्था परू ानी व्यवस्त्था से भिन्न : -

शरिक अब वपररसमड के सशिर पर नहीां थर जहराँ ररज भजतत ववचवरि और आपिी


ननभगरतर पर दटक थी । वह अब व्यरपक दरबररी िमरज और आश्रयदरतर -
id
अनुयरयी तांत्र कर केन्द्र र्बन्द ु थर ।
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