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विष योग: जानें क्या है ये योग और कैसे करे गा आपको 2021 में प्रभावित?

आप पर इसका प्रभाव....
ल 2021 को लेकर कई तरह की चर्चाएं ज्योतिष में अब तक जारी हैं, इन्हीं में से एक है
विष योग की बात। जिसके संबध
ं में माना जा रहा है कि जैसे 2020 पर कालसर्प योग
का प्रभाव रहा था, उसी प्रकार परू े 2021 पर विष योग का प्रभाव रहेगा। ऐसे में हर कोई
विष योग को लेकर चिंता में है। आज हम आपको विष योग से जड़ु ी कुछ खास बातों के
बारें में बता रहे हैं।
दरअसल कं ु डली में बनने वाले कुछ ऐसे योग होते हैं जो जीवन को बदल देने का
सामर्थ्य रखते हैं। इनमें कुछ योग राजयोग कहलाते हैं जो जीवन में सफलता देते हैं, तो
कुछ योग जीवन में असफलता और समस्याओं को जन्म देते हैं। इन्हें दर्यो
ु ग या अशभ

योग अथवा दोष कहा जाता है। इन्ही में से एक है विष योग...
ज्योतिष के जानकारों के अनस
ु ार फलदीपिका’ ग्रथ
ं के अनस
ु ार ‘‘आयु, मत्ृ यु, भय, दख
ु ,
अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित कार्य, नीच लोगों से सहायता,
आलस, कर्ज, लोहा, कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह से होता है। ‘‘अपने
अशभ
ु कारकत्व के कारण शनि ग्रह को पापी तथा अशभ
ु ग्रह कहा जाता है। परंतु यह
पर्ण
ू तया सत्य नहीं है।

वष
ृ भ , तल
ु ा, मकर और कं ु भ लग्न वाले जातक के लिए शनि ऐश्वर्यप्रद, धनु व मीन
लग्न में शभ
ु कारी और अन्य लग्नों में वह मिश्रित या अशभ
ु फल देता है। शनि पर्व
ू जन्म
में किये गये कर्मों का फल इस जन्म में अपनी भाव स्थिति द्वारा देता है। वह 3, 6, 10
तथा 11 भाव में शभ
ु फल देता है।
1, 2, 5, 7 तथा 9 भाव में अशभ
ु फलदायक और 4, 8 तथा 12 भाव में अरिष्ट कारक
होता है। बलवान शनि शभ
ु फल तथा निर्बल शनि अशभ
ु फल देता है। यह 36वें वर्ष से
विशेष फलदाई होता है।
शनि की विंशोत्तरी दशा 19 वर्ष की होती है। अतः कं ु डली में शनि अशभ
ु स्थित होने पर
इसकी दशा में जातक को लंबे समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। शनि सब से धीमी
गति से गोचर करने वाला ग्रह है। वह एक राशि के गोचर में लगभग ढाई वर्ष का समय
लेता है।
चंद्रमा से द्वादश, चंद्रमा पर, और चंद्रमा से अगले भाव में शनि का गोचर साढ़े -साती
कहलाता है। वष
ृ भ, तल
ु ा, मकर और कं ु भ लग्न वालों के अतिरिक्त अन्य लग्नों में प्रायः
यह समय कष्टकारी होता है। शनि एक शक्तिशाली ग्रह होने से अपनी यति
ु अथवा दृष्टि
द्वारा दस
ू रे ग्रहों के फलादेश में न्यन
ू ता लाता है।
सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त उसकी तीसरे व दसवें भाव पर पर्ण
ू दृष्टि होती है। शनि के
विपरीत चंद्रमा एक शभ
ु परंतु निर्बल ग्रह है। चंद्रमा एक राशि का संक्रमण केवल 2( से
2) दिन में परू ा कर लेता है। चंद्रमा के कारकत्व में मन की स्थिति, माता का सख
ु ,
सम्मान, सख
ु -साधन, मीठे फल, सग
ु धि
ं त फूल, कृषि, यश, मोती, कांसा, चांदी, चीनी, दध
ू ,
कोमल वस्त्र, तरल पदार्थ, स्त्री का सख
ु , आदि आते हैं।
जन्म समय चंद्रमा बलवान, शभ
ु भावगत, शभ
ु राशिगत, ऐसी मान्यता है कि शनि और
चंद्रमा की यति
ु जातक द्वारा पिछले जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट को दर्शाती
है। वह जातक से बदला लेने के लिए इस जन्म में उसकी मां बनती है। माता का शभ
ु त्व
प्रबल होने पर वह पत्र
ु को दख
ु , दारिद्र्य तथा धन नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित
रहती है।
यदि पत्र
ु का शभ
ु त्व प्रबल हो तो जन्म के बाद माता की मत्ृ यु हो जाती है अथवा
नवजात की शीघ्र मत्ृ यु हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष तक रहती है। दर्शाती है ,
जिसका अशभ
ु प्रभाव मध्य अवस्था तक रहता है। शनि के चंद्रमा से अधिक अंश या
अगली राशि में होने पर जातक अपयश का भागी होता है। सभी ज्योतिष ग्रथ
ं ों में शनि-
चंद्र की यति
ु का फल अशभ
ु कहा है।
‘‘जातक भरणम’् ने इसका फल ‘‘परजात, निन्दित, दरु ाचारी, परू
ु षार्थहीन’’ कहा है।
‘बहृ द्जातक’ तथा ‘फलदीपिका’ ने इसका फल ‘‘परपरू
ु ष से उत्पन्न, आदि’’ बताया है।
अशभ
ु फलादेश के कारण इस यति
ु को ‘‘विष योग’’ की संज्ञा दी गई है। ‘विष योग’ का
अशभ
ु फल जातक को चंद्रमा और शनि की दशा में उनके बलानस
ु ार अधिक मिलता है।
कंटक शनि, अष्टम शनि तथा साढ़ेसाती कष्ट बढ़ाती है। ऐसी मान्यता है कि शनि और
चंद्रमा की यति
ु जातक द्वारा पिछले जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट को दर्शाती
है।
वह जातक से बदला लेने के लिए इस जन्म में उसकी मां बनती है। माता का शभ
ु त्व
प्रबल होने पर वह पत्र
ु को दख ु , दारिद्र्य तथा धन नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित
रहती है। यदि पत्र
ु का शभु त्व प्रबल हो तो जन्म के बाद माता की मत्ृ यु हो जाती है
अथवा नवजात की शीघ्र मत्ृ यु हो जाती है।
इसकी संभावना 14वें वर्ष तक रहती है। कं ु डली में जिस भाव में ‘विष योग’ स्थित होता
है उस भाव संबध
ं ी कष्ट मिलते हैं। नजदीकी परिवारजन स्वयं दख
ु ी रहकर विश्वासघात
करते हैं। जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं और वह आर्थिक तंगी के कारण कर्ज से
दबा रहता है। जीवन में सख
ु नहीं मिलता। जातक के मन में संसार से विरक्ति का भाव
जागत
ृ होता है और वह अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है।
विभिन्न भावों में ‘विष योग’ का फल प्रथम भाव (लग्न) इस योग के कारण माता के
बीमार रहने या उसकी मत्ृ यु से किसी अन्य स्त्री (बआ
ु अथवा मौसी) द्वारा उसका
बचपन में पालन-पोषण होता है। उसे सिर और स्नायु में दर्द रहता है। शरीर रोगी तथा
चेहरा निस्तेज रहता है। जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु प्रवत्ति
ृ का होता है। आर्थिक
संपन्नता नहीं होती। नौकरी में पदोन्नति देरी से होती है। विवाह देर से होता है। दांपत्य
जीवन सख
ु ी नहीं रहता। इस प्रकार जीवन में कठिनाइयां भरपरू होती हैं। द्वितीय भाव
घर के मखि
ु या की बीमारी या मत्ृ यु के कारण बचपन आर्थिक कठिनाई में व्यतीत होता
है। पैतक
ृ संपत्ति मिलने में बाधा आती है। जातक की वाणी में कटुता रहती है।
वह कंजस
ू होता है। धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है। जीवन के
उत्तरार्द्ध में आर्थिक स्थिति ठीक रहती है। दांत, गला एवं कान में बीमारी की संभावना
रहती है। तत
ृ ीय भाव जातक की शिक्षा अपर्ण
ू रहती है। वह नौकरी से धन कमाता है।
भाई-बहनों के साथ संबध
ं में कटुता आती है। नौकर विश्वासघात करते हैं। यात्रा में विघ्न
आते हैं। श्वांस के रोग होने की संभावना रहती है। चतर्थ
ु भाव माता के सख
ु में कमी,
अथवा माता से विवाद रहता है।
जन्म स्थान छोड़ना पड़ता है। मध्यम आयु में आय कुछ ठीक रहती है , परंतु अंतिम
समय में फिर से धन की कमी हो जाती है। स्वयं दख
ु ी दरिद्र होकर दीर्घ आयु पाता है।
उसके मत्ृ योपरांत ही उसकी संतान का भाग्योदय होता है। परू
ु षों को हृदय रोग तथा
महिलाओं को स्तन रोग की संभावना रहती है। पंचम भाव विष योग होने से शिक्षा
प्राप्ति में बाधा आती है। वैवाहिक सख
ु अल्प रहता है। संतान देरी से होती है , या संतान
मंदबद्धि
ु होती है। स्त्री राशि में कन्यायें अधिक होती हैं। संतान से कोई सख
ु नहीं मिलता।
षष्ठ भाव जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं। ननिहाल पक्ष से सहायता नहीं मिलती।
व्यवसाय में प्रतिद्धद
ं ी हानि करते हैं। घर में चोरी की संभावना रहती है। सप्तम भाव स्त्री
की कं ु डली में विष योग होने से पहला विवाह देर से होकर टूटता है , और वह दस
ू रा विवाह
करती है। परू
ु ष की कं ु डली में यह यति
ु विवाह में अधिक विलंब करती है।
पत्नी अधिक उम्र की या विधवा होती है। संतान प्राप्ति में बाधा आती है। दांपत्य जीवन
में कटुता और विवाद के कारण वैवाहिक सख
ु नहीं मिलता। साझेदारी के व्यवसाय में
घाटा होता है। ससरु ाल की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती। अष्टम भाव दीर्घकालीन
शारीरिक कष्ट और गप्ु त रोग होते हैं। टांग में चोट अथवा कष्ट होता है। जीवन में कोई
विशेष सफलता नहीं मिलती। उम्र लंबी रहती है। अंत समय कष्टकारी होता है। नवम
भाव भाग्योदय में रूकावट आती है। कार्यों में विलंब से सफलता मिलती है। यात्रा में हानि
होती है। ईश्वर में आस्था कम होती है। कमर व पैर में कष्ट रहता है। जीवन अस्थिर
रहता है। भाई-बहन से संबध
ं अच्छे नहीं रहते। दशम भाव पिता से संबध
ं अच्छे नहीं
रहते।
नौकरी में परेशानी तथा व्यवसाय में घाटा होता है। पैतक
ृ संपत्ति मिलने में कठिनाई
आती है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। वैवाहिक जीवन भी सख
ु ी नहीं रहता।
एकादश भाव बरु े दोस्तों का साथ रहता है। किसी भी कार्य में लाभ नहीं मिलता। 1
संतान से सख
ु नहीं मिलता। जातक का अंतिम समय बरु ा गज
ु रता है। बलवान शनि
सख
ु कारक होता है। द्वादश स्थान जातक निराश रहता है। उसकी बीमारियों के इलाज में
अधिक समय लगता है।
जातक व्यसनी बनकर धन का नाश करता है। अपने कष्टों के कारण वह कई बार
आत्महत्या तक करने की सोचता है। महर्षि पराशर ने दो ग्रहों की एक राशि में यति
ु को
सबसे कम बलवान माना है। सबसे बलवान योग ग्रहों के राशि परिवर्तन से बनता है तथा
दस
ू रे नंबर पर ग्रहों का दृष्टि योग होता है। अतः शनि-चंद्र की यति
ु से बना ‘विष योग’
सबसे कम बलवान होता है। इनके राशि परिवर्तन अथवा परस्पर दृष्टि संबध
ं होने पर
‘विष योग’ संबध
ं ी प्रबल प्रभाव जातक को प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त शनि की
तीसरी, सातवीं या दसवीं दृष्टि जिस स्थान पर हो और वहां जन्मकं ु डली में चंद्रमा स्थित
होने पर ‘विष योग’ के समान ही फल जातक को प्राप्त होते हैं।
उपाय शिवजी शनिदेव के गरु
ु हैं और चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करते हैं। अतः
‘विषयोग’ के दष्ु प्रभाव को कम करने के लिए देवों के देव महादेव शिव की आराधना व
उपासना करनी चाहिए। सब
ु ह स्नान करके प्रतिदिन थोड़ा सरसों का तेल व काले तिल के
कुछ दाने मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुये ‘ऊँ नमः शिवाय’ का उच्चारण
करना चाहिए।
उसके बाद कम से कम एक माला ‘महामत्ृ यज
ं ु य मंत्र’ का जप करना चाहिए। शनिवार को
शनि देव का संध्या समय तेलाभिषेक करने के बाद गरीब, अनाथ एवं वद्ध
ृ ों को उरद की
दाल और चावल से बनी खिचड़ी का दान करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को रात के समय
दध
ू व चावल का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे चंद्रमा और निर्बल हो जाता
है।
कब निर्मित होता है विष योग
किसी भी जातक की कं ु डली में विष योग तब निर्मित होता है जब कं ु डली में शनि और
चंद्रमा का दृश्य अथवा यति
ु संबध
ं बनता है , चंद्रमा को अमत
ृ समान माना जाता है
जबकि चंद्रमा पर शनि की दृष्टि से विष योग का निर्माण कर देती है।
विष योग के बारे में कहा गया है कि ऐसा जातक जीवन से निराश हो जाता है। निराशा
तब आती है जब मनोमस्तिष्क सही ढंग से साथ नहीं देता, ज्ञान बाधित हो जाता है।
तात्पर्य यह कि विष योग विचारशन्ू यता देता है। यह कं ु डली के जिस भाव में निर्मित होता
है उस भाव से संबधि
ं त फलों को छीन कर देता है और उससे संबधि
ं त रिश्तो में भी दरार
आ सकती है व्यक्ति स्वयं को अकेला महसस
ू करता है और इस वजह से मानसिक
तनाव और डिप्रश
े न में भी जा सकता है।
विष योग के उपाय
:- विष योग के उपाय के लिए चंद्रमा और शनि के जाप करने चाहिए।
:- भगवान शिव का रुद्राभिषेक समय-समय पर कराते रहना चाहिए और जातक के जन्म
दिवस के अवसर पर अवश्य कराना चाहिए।
:- जातक को रात्रि में दध
ू पीने से बचना चाहिए।
:- अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।
:- ध्यान एवं योग का सहारा लेना चाहिए जिससे मानसिक स्थिति मजबत
ू बन सके।
:- विकट स्थिति होने पर महामत्ृ यज
ं ु य मंत्र का जाप करना चाहिए।

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