जब भी सनान करँगा, आपका गीत गुनगुनाऊँगा जब भी बोलूँगा, सवमान मे रह कर बोलूँगा जब भी पानी िपऊँगा, रहानी वाइबेशन देकर िपऊँगा िजससे भी कुछ सुनूंगा, वयथर गहण नहीं करँगा जब भी कुछ खाऊँगा, आपको भोग लगाकर खाऊँगा जब भी कुछ गाऊँगा, तेरी मिहमा के गीत सुनाऊँगा जब भी घर से िनकलूंगा, आप से छुटी लेकर िनकलुँगा जब भी कलम चलाऊँगा, आपका दीदार करँगा जब भी सैर करँगा, आपको दोसत बनाकर बाते करँगा िजतने भी कदम चलुगा, याद से पदमो की कमाई जमा करँगा जब भी देखूंगा, भकुटी के बीच चमकता िसतारा देखूंगा जब भी गाड़ी चलाऊँगा, आपको आगे िबठाकर चलाऊँगा जो भी आपने खजाने िदये हे, उनको खूब बाटकर बढाऊँगा जब िजतना भी धन बचेगा, ईशवरीय सेवा मे सफल करँगा जब भी कुछ मुिशकल आएगी, पहले आपसे हल लूँगा जब भी कुछ िलखूंगा, आपके जान रतनो का वणरन करँगा जब भी फी बेठुंगा, पकृित को पावन बनाने की सेवा करँगा जब भी िकससे िमलूँगा, उनको शुभ भावना की िगफट जरर दंूगा जब भी मोबाईल से बात करँगा, पहले ओम शाित जरर करँगा जब भी सोऊँगा, आपको चाटर दे शुिकया कर सोऊँगा
The Happiness Project: Or, Why I Spent a Year Trying to Sing in the Morning, Clean My Closets, Fight Right, Read Aristotle, and Generally Have More Fun