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स्नातक ह द

िं ी- द्वितीय खिंड- तत
ृ ीय पत्र- आधुननक ह द
िं ी काव्य
अिंधा युग- कवि धर्मिीर भारती

‘’युद्ध की त्रासद विभीविका और ‘अंधा युग'”

धर्मिीर भारती का क्लासिक गीनत-काव्य अिंधा युग ह द


िं ी िाह त्य के ििामधधक िफलतर् कृनतयों र्ें िे
एक ै। इि कृनत र्ें नाटक के तत्ि भी विद्यर्ान ैं. इिर्ें र् ाभारत युद्ध के अट्ठार िें हदन की
ििंध्या िे लेकर प्रभाि-तीर्म र्ें कृष्ण के दे ाििान के क्षणों तक की कर्ा क ी गयी ै । स्िाधीन भारत र्ें
जिि िर्य आशािाद अपने चरर् पर र्ा, तब 1955 र्ें प्रकासशत य गीनतकाव्य अििादपूणम त्रािद
जस्र्नतयों को कथ्य बनाने के कारण अपनी िर्कालीन अन्य कृनतयों िे विसशष्ट पररलक्षक्षत ोता ै।

िब-िब युद्ध ोता ै, तब-तब र्ानिता त्रािद पररजस्र्नतयों िे िाक्षात्कार करता ै । प्रत्येक युद्धोपरािंत
र्नुष्य पुनविमचार करने के सलए प्रेररत ोता ै कक क्या िे र्ानिीय िीिन-र्ूल्य युद्ध की अिाधारण
पररजस्र्नतयों र्ें बचे र पाए, जिनकी रक्षा के सलए उिे युद्ध र्ें प्रित्त
ृ ोना पडा। द्वितीय विश्ि युद्ध
र्ानि-इनत ाि की इि िार्ान्य प्रिवृ त्त को दो राते ु ए भी व्यापक िन-विनाश एििं उििे प्रभावित लोगों
र्ें िीिन-र्ूल्यों के प्रनत उपिी अनास्र्ा के कारण अन्य युद्धों िे ग न प्रभाि डालता ै । द्वितीय विश्ि
युद्ध की इिी पष्ृ ठभूसर् र्ें अिंधा युग की रचना ु ई।

द्वितीय विश्ि युद्ध के अिंनतर् चरण र्ें िापान के दो श रों ह रोसशर्ा और नागािाकी पर परर्ाणु बर्-
विस्फोट के रूप र्ें िो अकल्पनीय र्ानि-त्रािदी घहटत ु ई, उिकी छाप अिंधा यग
ु र्ें हदखाई दे ती ै, िब
व्याि अश्ित्र्ार्ा को ब्रम् ास्त्र के प्रयोग के दष्ु पररणार्ों के प्रनत चेतािनी दे ते ैं-

ज्ञात क्या तम्


ु ें पररणार् इि ब्रर्ास्त्र का?

यहद य लक्ष्य-सिद्ध ु आ ओ नर पश!ु

िाह र ै कक इििे िहदयों तक पथ्


ृ िी पर रिर्य िनस्पनत न ीिं ोगी, सशशु ोंगे पैदा विकलािंग और
कुष्ठग्रस्त.. गे ूिं की बालों र्ें िपम फिंफकारें गे नहदयों र्ें ब -ब कर आएगी वपघली आग। चा े फािीिादी-
नािीिादी राष्र ों या सर्त्र राष्र, दोनों ी पक्षों की िाम्राज्य-सलप्िा इि यद्
ु ध र्ें उभर कर िार्ने आ
गई। कुछ रािनेताओिं की र् त्िाकािंक्षाओिं का र्ल्
ू य परू ी र्ानि पीढी को चुकाना पडा। अिंधा यग
ु के कथ्य
र्ें भी कौरिों एििं पािंडिों, दोनों के द्िारा यद्
ु ध की र्यामदा का तोडना रे खािंककत ककया गया ै-

ै अिब युद्ध य ,
न ीिं ककिी की भी िय दोनों पक्षों को खोना ी खोना ै

अिंधों िे शोसभत र्ा युग का सििं ािन दोनों ी पक्षों र्ें वििेक ी ारा दोनों ी पक्षों र्ें िीता अिंधापन
भय का अिंधापन, र्र्ता का अिंधापन,

अधधकारों का अिंधापन िीत गया िो कुछ िुन्दर र्ा,

शुभ र्ा, कोर्लतर् र्ा ि ार गया.

द्िापर युग बीत गया।

अश्ित्र्ार्ा की पशुित ननिी प्रनतह ि


िं ा रचनाकार को जितना उद्िेसलत करती ै, उतना ी ित्यिादी
युधधजष्ठर का य अधमित्य कक अश्ित्र्ार्ा तो नरो िा किंु िरो िा। इिी कारण डॉ. भारती काव्य-ििंकेतों
र्ें िंि और बाि की बिाय कौए और उल्लू की लडाई धचत्रत्रत करते ैं, जिनकी ह ि
िं कता र्ें र्ात्र
र्ात्रात्र्क फकम ै, गुणात्र्क न ीिं। युद्ध के बाद पराजित िनता की ननराशा, पीडा, अििाद, किंु ठा तो
स्िाभाविक र्े ी, ककिं तु द्वितीय विश्ि युद्ध के बाद विियी राष्रों की िनता ने भी य ी िब र् िूि
ककया; विशेषकर युद्धरत िैननकों ने। अिंधा युग र्ें भी विियी पािंडि सशविर की य ी जस्र्नत ै –

'िब विियी र्े लेककन िब र्े विश्िाि-ध्िस्त'

इिका कारण य र्ा कक द्वितीय विश्ि युद्ध र्ें व्यापक िन- ानन तो ु ई ी, इिने व्यजक्त के विश्िाि,
आस्र्ा और र्ूल्यों को झकझोर कर रख हदया। युद्धरत िैननकों और िनता ने अनुभि ककया कक
राष्रीयता, लोकतिंत्र, स्ितिंत्रता, िर्ानता, जिनके नार् पर य युद्ध लडा गया, िे आदशम खोखले ैं। ित्ता
द्िारा िाम्राज्यिादी उद्दे श्यों को नछपाने का र्ुखौटा भर ैं। अिंधा युग का आरिं भ भी इिी विडिंबना के
िार् ोता ै-

ित्ता ोगी उनकी/

जिनकी पूिंिी ोगी जिनके नकली चे रे ोंगे

केिल उनको र् त्ि सर्लेगा रािशजक्तयािं लोलुप ोंगी/

िनता उनिे पीडडत ोकर ग न गुफाओिं र्ें नछप-नछप कर हदन काटे गी

(ग न गुफाएिं! िे िचर्ुच की या अपने किंु हठत अिंतर की?)

इि प्रकार युद्ध के उपरािंत अिंधा युग अितररत ु आ, जििर्ें जस्र्नतयािं, र्नोिवृ त्तयािं, आत्र्ाएिं िभी विकृत
ैं। अश्ित्र्ार्ा, िो इि गीनतकाव्य का िबिे र् त्िपूणम पात्र ै, इिी जस्र्नत िे उपिा प्रतीक-पात्र ै,
जििका क ना ै
िध र्ेरे सलए न ीिं र ी नीनत

ि ै अब र्ेरे सलए र्नोग्रिंधर्

ििंिय, जििके पाि हदव्य दृजष्ट ै, ि आधुननक लेखक, पत्रकार या बुद्धधिीिी का प्रतीक ै। धृतराष्र
ित्ता का प्रतीक ैं। उनका अिंधापन, पुत्रर्ो और ित्ता लोलुपता प्रतीक को और अर्मिान बनाते ैं। गािंधारी
ित्ता की ननकटस्र् ि पात्र ै, जििके पाि वििेक रूपी आिंखें तो ैं, ककिं तु उन पर िान-बूझ कर पट्टी
बािंध रखी ै। विदरु उि चुके ु ए और अप्राििंधगक रािनेता के प्रतीक ैं, िो नीनतज्ञ तो ैं, ककिं तु उनकी
नीनत िाधारण स्तर की ै और युग की िारी जस्र्नतयािं अिाधारण ैं। कृष्ण, प्रत्येक र्नुष्य के भीतर
जस्र्त शुभत्ि का प्रतीक ैं। इिी कारण लेखक कृष्ण के र्ुख िे क लिाते ैं-

'अट्ठार हदनों के इि भीषण ििंग्रार् र्ें

कोइ न ीिं, केिल र्ैं ी र्रा ूिं, करोडों बार'

रचनाकार र्ानते ैं कक एकर्ात्र उन् ीिं र्ें ि शजक्त ै, िो इि अिंधे युग िे र्ानि िानत को बा र
ननकाल िके। अिंधा युग की त्रािदी य ै कक अश्ित्र्ार्ा, िो िबिे िकिय और गनतशील पात्र ै, ि
बबमर पशु ै, शब्दों का सशल्पी ििंिय हदव्य दृजष्ट ोते ु ए भी ननजष्िय, तटस्र् और कर्मलोक िे बह ष्कृत
ै।

ित्तािीन धत
ृ राष्र और गािंधारी अिंधे ैं या उन् ोंने अपनी आिंखों पर पट्टी बािंध रखी ै, दोनों प्र री,
दाििवृ त्त िे चासलत उि िार्ान्य िन के प्रतीक ैं, ककिी भी ित्ता-पररितमन िे जिनकी जस्र्नत र्ें कोई
िुधार न ीिं ोता।िे जस्र्नतयों के दशमक र्ात्र ैं। इि अिंधेरे र्ें कृष्ण ी िबकी एकर्ात्र उम्र्ीद ैं, ककिं तु िे
स्ियिं शापग्रस्त ैं। उनका यदि
ु िंश आपि र्ें लड सभड कर र्र र ा ै और िे उि धुरी की तर एकाकी
बच गए ैं, जििके िारे पह ए नीचे उतर चुके ैं। विडिंबना तब और ग री ो िाती ै, िब नरपशु
अश्ित्र्ार्ा बूढे भविष्य की त्या कर दे ता ै और ित्य का पक्ष लेने का िा ि करने िाला युयुत्यु अपनों
की घण
ृ ा िे आत्र् ीनता का सशकार ोकर आत्र् त्या कर लेता ै। कृपाचायम के र्ुख िे लेखक ने इि
त्रािदी के प्रनत चेतािनी दी ै-

रक्त ने युयुत्िु के/

सलख िो हदया, इन र्लों की भूसर् पर

िर्झ न ीिं र े ैं, उिे ये आि

य आत्र् त्या ोगी प्रनतध्िननत

इि पूरी ििंस्कृनत र्ें


दशमन र्ें, धर्म र्ें, कलाओिं र्ें, शािन- व्यिस्र्ा र्ें

आत्र्घात ोगा बि अिंनतर् लक्ष्य र्ानि का

विश्ियुद्धों के बाद की ठीक य ी जस्र्नत र्ी, िब अजस्तत्ििाद िैिे दशमन का प्रिार ु आ। कविता का
अिंत, िाह त्य का अिंत, इनत ाि का अिंत िैिी उत्तर-आधुननक भविष्यिाणणयािं की गईं।अिंधा युग द्वितीय
विश्ि युद्ध की पष्ृ ठभूसर् पर सलखा गया काव्य ै, लेककन इि पर लगभग उिी िर्य ु ए त्रािद भारत-
विभािन और भयिंकर िािंप्रदानयक दिं गों की भी छाया ै। गािंधारी के शाप के कारण यदि
ु िंसशयों का
र्हदरापान कर आपि र्ें लड-सभड कर विनष्ट ोना इन दिं गों को ध्िननत करता ै। इि अर्ानिीय
विभीवषका िे व्यजक्तगत प्रनतशोधकार्ी अश्ित्र्ार्ा िैिे न िाने ककतने नरपशु पैदा ो गए और ित्य का
पक्ष लेने िाले युयुत्िु अलग-र्लग पडकर आत्र् ीनता का सशकार ो गए।

स्िाधीन दे श के प्रधानर्िंत्री युधधजष्ठर की तर ककिं कतमव्यविर्ूढ ो गए और र् ात्र्ा गािंधी शापग्रस्त कृष्ण


की तर अपने ी लोगों को लीलने िाले िािंप्रदानयक ह ि
िं ा और घण
ृ ा के इि ज्िार को रोकने र्ें स्ियिं को
अिर्र्म पाने लगे। धर्मिीर भारती अिंधा युग र्ें िद्
ृ ध भविष्यिक्ता याचक िे क लिाते ैं –

ााँ, य दि
ू रा रर्/

जििकी गनत को र्ैं तो क्या कृष्ण भी न ीिं रोक पायेंगे/

य रर् ै, र्ेरे िधधक अश्ित्र्ार्ा का/

कौए के कटे पिंख िी काली/

रक्तरिं गी घण
ृ ा ै भयानक उिकी/ अदम्य/

र्ोरपिंख उििे ारे गा या िीतेगा? घण


ृ ा के उि नए कासलया नाग का दर्न/ अब क्या कृष्ण कर
पायेंगे?अिंतत: गािंधी की त्या की तर ी अिंधा युग र्ें भी व्याध के ार्ों कृष्ण को लगे घाि के ब ते
खून ने अश्ित्र्ार्ा की घण
ृ ा का शर्न कर उिर्ें पुन: आस्र्ा िगाई। अनास्र्ा िे आस्र्ा की ओर य
यात्रा अिंधायुग की र् त्त्िपूणम विशेषता ै । भारती स्ियिं क ते ैं – य कर्ा ज्योनत की ै अिंधों के र्ाध्यर्
िे।आस्र्ा, विश्िािों के ध्ििंि और उििे उपिी तर्ार् किंु ठा, ननराशा के बाििूद भारती र्नुष्य के भविष्य
के प्रनत आशािादी ैं-

अिंधा ििंशय ै,

लज्िािनक परािय ै पर एक तत्ि ै,

बीिरूप जस्र्त र्न र्ें िा ि र्ें,


स्ितिंत्रता र्ें, नूतन ििमन र्ें ि ै ननरपेक्ष, उतरता ै पर िीिन र्ें दानयत्ियुक्त,

र्यामहदत र्ुक्त आचरण र्ें उतना िो अिंश र्ारे र्न का ै ि अधमित्य िे,

ब्रर्ास्त्रों के भय िे र्ानि भविष्य को रदर् र े बचाता अिंधे ििंशय,

दािता, परािय िे।

आस्र्ा का य ी स्िर अिंधा युग को एक िार्मक और अर्र कृनत बनाता ै।

धर्मिीर भारती (1926-1997) का अिंधा युग न केिल ऐिा गीनत-काव्य-नाट्य ै, िो र् ाभारत िैिी
ऐनत ासिक घटना और द्वित्तीय विश्ियुद्ध के िर्य की पररजस्र्नतयों का तकमिम्र्त वििेचन करता ै,
बजल्क र्ारे र्ौिूदा िर्य की परतें भी खोलता ै। युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद की अकल्पनीय
त्रािदी के िररए नीनत और र्ानिीय गलनतयों की गूिंि इिर्ें पुरिोर ढिं ग िे िुनाई दे ती ै। अिंधा युग र्ें
धर्मिीर भारती ने विश्िाि और आस्र्ा के स्िरों के बीच विश्िािघात ि अनास्र्ा की पररजस्र्नतयों को
दशामया ै।

प्रेषक- डॉ. अिधेश झा - ि ायक प्राचायम (ह द


िं ी) रार्कृष्ण र् ाविद्यालय, र्धुबनी

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