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International Journal of Advanced Educational Research ISSN: 2455-6157 Impact Factor: 5.12 Volume 2 Issue 4 July 2017 Page No. 181-183
International Journal of Advanced Educational Research ISSN: 2455-6157 Impact Factor: 5.12 Volume 2 Issue 4 July 2017 Page No. 181-183
“अंधायुग” – कल आज और कल
डॉ0 नीना शर्ाा
आचार्ाा, हिन्दी हिभाग, आणंद आर्टास कोलेज, आणंद, गजु रात
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International Journal of Advanced Educational Research
अपनाई गई अन्धता का प्रहतक गांधारी िै जो सत्र् को देखना निीं चािती गेिू की बालो में सपा फुक करें गे
क्र्ोंहक िि सत्र् उसकी इच्छाओ की पहू ता न कर सका | र्र्ु त्ु सु का पात्र िि नहदर्ों में बि बि कर आएगी हपघली आग
िै जो र्द्ध
ु की र्ंत्रणा के िल बाह्य स्तर पर निीं िि आतंररक स्तर पर भी सरू ज बझु जार्ेगा
भोगता िै | िि दोिरे स्तर पर जीता िै | धमा के हलए िि पाण्डटिो की ओर से धरा बजं र िो जाएगी |”१०
लड़ते िुए अपने मनष्ट्ु र् िोने के धमा को हनभाता िै तो बाद में अपने माता हपता
के पास लौर्ता िै तो िि अपने व्र्हि िोने का धमा भी हनभाता िै लेहकन उसे इस नार्क का एक और मित्िपणू ा पात्र िै जो परु े नार्क में किी रंगमंच पर
उपेक्षा िी हमलती िै अपनी माँ से लेकर एक साधारण सैहनक तक उससे घृणा निीं िै लेहकन हफर भी परू ी कथा का प्रमख ु पात्र िै िि कृ ष्ट्ण इस पात्र को
करते िै | गाधं ारी किती िै | लेकर मर्ाादा और मर्ाादा हिनता की हकतनी िी पररभाषा दी गई िै | लेहकन
भारती जी ने इन्िें किी अलौहकक शहि का स्िामी निीं बतार्ा िै लेहकन िि
बेर्ा िर बार गांधारी, र्र्ु त्ु सु, हिदरु , अश्वत्थामा की दृष्टी में अलग अलग रूप में
भजु ाएँ र्े तम्ु िारी पररभाहषत िुए िै | तमु ने हकर्ा िै प्रभतु ा का दरु पर्ोग” से कृ ष्ट्ण के सारे दैिीर्
पराक्रम भरी आिरण कर् कर हगर जाते िै | तनेजा जी ने किा िै “आरंभ और अतं को र्हद
थकी तो निीं छोड़ दे तो मल ू नार्क में कृ ष्ट्ण की भहू मका बिुत कुछ नार्क का मख ु ौर्ा
अपने बन्धजु नो का ओढे एक खलनार्क जैसी िी िै | अन्धार्गु के कृ ष्ट्ण न तो भहिष्ट्र् के रक्षक
िध करते करते ? िै और निीं अनासि |....
.............. उनकी दृष्टी परू ी तरि साधन की बजार् साध्र् पर हर्की िै और उसके हलए िि
थका िुआ िोगा र्ि कोई भी चाल र्ा िथकंडा इस्तेमाल करने से हिचहकचाते निीं िै | लेहकन
हिदरु इसे फूलो की शय्र्ा दो आश्चर्ा िोता िै र्ि देखकर हक सभी पात्रो की असंगहत का हिश्ले षण
कोई पराहजत दर्ु ोधन निीं िै र्ि करनेिाला नार्ककार कृ ष्ट्ण की असंगहत पर ऊँगली रखने में क्र्ों डर जाता िै
सोर्े जो जाकर |”११ लेहकन गाधं ारी ने ऊँगली उठाकर किा था हक तमु र्हद चािते तो रुक
सरोिर की सकता था र्द्ध ु |” जब अश्वत्थामा की शाहपत हकर्ा तो भीम को क्र्ों निीं िि
कीचड़ में” ७ भी तम्ु िारे ईशारे पर िुआ था |
िि अपनी आस्था तक को तोड़ देता िै और िि कृ ष्ट्ण तक के सामने निीं इस प्रकार परू ा नार्क कल, आज और आने िाले कल की कथा िै |
झक ु ता | “र्र्ु त्ु सु के जीिन की सबसे बड़ी हिडम्बना र्ि िै हक र्द्ध
ु में अपने मेरा दाहर्त्ि िि हस्थत रिेगा
िाथ पैर खोने की िजा िि अपनी आस्था और हिश्वास खो बैठता िै |”८ िर मानि – मन के उस िृि में
धृतराष्ट्र िि शासन व्र्िस्था िै जो अपनी स्िाथा हलप्तता में अंधी बन बैठी िै | हजसके सिारे िि
र्े प्रिरी आज की आम जनता िै हजसकी कोई साथाकता निीं रि गई िै िि सभी पररहस्थहतर्ों का अहतक्रमण करते
अहभशप्त िै भर्कने के हलए िािी संजर् का पात्र “जिाँ मिाभारत का नतू न हनमााण करे गा हपछले पर
ऐहतिाहसक पात्र िै िािी आधहु नक मानि का भी उस मानि का जो सचेत िै, मर्ाादा र्ि
ु आचरण में
हििेकशील तथा तर्स्थ | र्ि एक मात्र पात्र जो तर्स्थ सचेतन एिं हनत नतू न सृजन में
हििेकशील िै जो मर्ाादा, नैहतकता एिं सत्र् को खहण्डत िोते िुए देखता िै हनभार्ता के
जो तर्स्थ िोकर भी भर्क रिा िै |”९ भारती जी ने अपने सभी पात्रो को सािस के
आधहु नक संदभो में देखा िै | र्द्ध ु ों की भर्ानकता का संकेत उन्िोंने हदर्ा िै ममता के
उसने जलते िुए भहिष्ट्र् को हदखार्ा िै जो आज परमाणु बम के ढेर पर अपने रस के
खत्म िोने की राि देख रिा िै | अश्वत्थामा द्वारा छोड़ा गर्ा ब्रह्मास्त्र आज के क्षर् में
परमाणु बम का संकेत िै और हिरोहशमा और नागासाकी की भर्ानकता भोग जीहित और सहक्रर् िो ढूंढूंगा में बार बार
चक ु ा िै | र्े हिश्व | इसीहलए भारती जी किते िै |
लेहकन भहिष्ट्र् की र्े आस्थाए सब कुछ धल ु में हमल जाती िै क्र्ोंहक जो
र्हद र्ि लक्ष्र् हसद्ध िुआ तो नर पशु | बचा िै िि कोमल और सदंु र निीं िि हनहष्ट्क्रर् अपगं व्र्हित्ि, अमानहु षक
तो आगे आने िाली सहदर्ों तक और आत्मघाती अन्ध तो भहिष्ट्र् पर प्रश्न हचत्र लग जाता िै |
पृथ्िी पर रसमर् िनस्पहत निीं िोगी
हशशु िोंगे पैदा हिकलांग और कुण्ठाग्रस्त क्र्ा कोई सुनेगा
सारी मनष्ट्ु र् जाहत बौनी िो जाएगी जो अन्धा निीं िै और हिकृ त निीं िै और
जो कुछ ज्ञान संहचत हकर्ा िै मनष्ट्ु र्ने मानि भहिष्ट्र् को बचार्ेगा ?
सतर्गु में, त्रेता में, द्वापर में क्र्ा कोई सुनेगा ?
सदा सदा के हलए िोगा हिलीन िि | क्र्ा कोई सुनेगा ?......१२
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