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International Journal of Advanced Educational Research

International Journal of Advanced Educational Research


ISSN: 2455-6157; Impact Factor: RJIF 5.12
www.educationjournal.org
Volume 2; Issue 4; July 2017; Page No. 181-183

“अंधायुग” – कल आज और कल
डॉ0 नीना शर्ाा
आचार्ाा, हिन्दी हिभाग, आणंद आर्टास कोलेज, आणंद, गजु रात

çLrkouk सिा िोगी उनकी


भारत में पुराकथाओ ं को लेकर हिन्दी साहित्र् में कई रचनाएँ िुई िै | इन हजनकी पँजू ी िोगी |
सबके हपछे साहित्र्कार का मख्ु र् उद्देश्र् अपने आधहु नक सदं भो को धारदार हजनके नकली चेिरे िोंगे
बना कर प्रस्ततु करना िै | हिन्दी में नार्टर् साहित्र् में हमथक, परु ाण कथाओ के िल उन्िें मित्ि हमलेगा |
का बिुत प्रर्ोग िुआ िै और र्ि नार्क सफल भी रिे िै | “इस हमथकीर् राजशहिर्ाँ लोलपु िोंगी
प्रर्ोग पद्धहत द्वारा कलात्मक मल्ू र् और संप्रेषागीर्ता में काफी िृहद्ध भी िुई िै जनता उनसे पीहड़त िोकर
| पौराहणक कथा को आधहु नक सदं भा के अनक ु ू ल हनरुहपत करने की इस गिन गफु ाओ ं में हछप हछप कर हदन कार्ेगी |
प्रिृहि के फल स्िरूप समर् सत्र् की अहभव्र्हि में जो शहि हमली िै िि (गिन गफ़ ु ाएँ ! िे सचमचु की र्ा अपने कंु हठत अंतर की )
अत्र्ंत उल्लेखनीर् उपलहधध िै |”१
हिन्दी में इस प्रकार के प्रर्ोगों का उद्देश्र् धाहमाक भािना का प्रेषण करना िी अधं ार्गु हकसी काल हिशेष की कथा निीं िै िि मानि जाहत की कथा िै
निीं रिा िै | इसका प्रमख ु कारण अपने अहतत के सदं भो को ितामान से जब तक र्ि जाहत रिेगी र्ि हिषाद मल्ु र्ांधता बबारता दासता सभी कुछ
जोड़कर उन्िें हिश्ले हषत करता िै | हिन्दी में ऐसे कई मित्िपणू ा नार्क िै, िैसी िी रिेगी | अंधार्गु मात्र र्द्ध
ु के बाद की पररहस्थहतर्ाँ िी निीं िै | िि
हजन्िोंने सफलता प्राप्त की िै | इसी परंपरा में धमािीर भारती का काव्र् नार्क मनष्ट्ु र् मन की िो सच्चाईर्ाँ िै हजसे िम सभ्र्ता का नकाब ओड़ कर िमेशा
“अंधार्गु ” को हलर्ा जा सकता िै | भारतीजी का र्ि बिुचहचात नार्क हछपाते रिे लेहकन “पशु का उदर्” िोता िी िै और र्ि र्ूर्े पहिर्े सी मर्ाादा
मिाभारत की कथा पर आधाररत िै हजसमे मिाभारत र्द्ध ु के अठारििे हदन एक हबखरे िुए पंगु समाज का सिी दशान िमारे समक्ष रखती िै | और िैसे भी
की संध्र्ा से प्रारंभ िोता िै | र्ि नार्क िंदना से प्रारंभ िोता िै | पिले अंक में “तनेजा अंधार्गु हकसी हिहशष्ट हस्थहत अथिा र्गु हिशेष का द्योतक न िोकर
कौरि नगरी के अमर्ााहदत आचरण के साथ दासिृहि के जीिन का हचत्रण अहतत ितामान और भहिष्ट्र् को एक साथ अपने में समाए िुए िै | अतः कुण्ठा
हकर्ा िै | दसू रा अंक “पशु का उदर्” में अश्वत्थामा में जागी पाशहिकता का िताशा, रिपात, घृणा, प्रहतशोध, हिकृ हत, संत्रास, भर् मल्ू र्िीनता, कुरूपता
तथा अमानहिर्ता का िणान िै | अतं राल अक ं “पख ं चाहिर्े और पहिर्ाँ” में और हिध्िंस के सिाग्रासी सहू च भेदर् अंधकार का संगत और साथाक हबम्ब
लेखक की मौहलकता देखने को हमलती िै | इसमें मिाभारत काल की और प्रहतक िै अंधार्गु |”४ इन्िी साथाक हबम्बों को साथाकता के साथ प्रस्ततु
हिकृ हतर्ाँ एिं र्द्ध ु की हिसंगहतर्ा िै | तीसरे अंक में “अश्वत्थामा का हकर्ा गर्ा िै | भारती जी ने मिाभारत की इस कथा में किी भी जान बझु कर
अद्धासत्र्” हजसमे कोख नगरी की ददु ाशा का िणान िै | आधहु नक प्रसंग निीं डाले िै | उन्िोंने उसकी कथा को न िी तोडा मरोड़ा िै |
इसी अंक में र्र्ु त्ु सु की आत्मग्लाहन के साथ दर्ु ोधन की पराजर् एिं उसकी र्ि आज की िी कथा िै | जो र्ूर् चक ु ी िै |
हबररिता के साथ अश्वत्थामा को सेनापहत पद ग्रिण करना आहद का उल्लेख
िै | पांचिे अंक “हिजर् एक कृ हमक आत्मित्र्ा” हजसमे र्द्ध ु ों परांत पाण्डि र्ुकड़े र्ुकड़े िो हबखर चक ु ी मर्ाादा
के राज्र् की स्थापना का उल्लेख के साथ र्हु धहिर के ह्रदर् पररितान का उनको दोनों िी पक्षों ने तोडा िै |
आभास िोता िै | र्र्ु त्ु सु की आत्मित्र्ा कुन्ती गान्धारी धृतराष्ट्र की िन की
अहग्न में मृत्र्ु | नार्क का अंत “प्रभु की मृत्र्”ु के प्रसंग से िोता िै | र्े र्ूर्ी हबखरी मर्ाादाए और इसमें जीने में हििश आम आदमी िै और इस
अंधार्गु मात्र अपने र्गु की पररहस्थहतर्ाँ निीं िै | इसके द्वारा आधहु नक र्गु र्द्ध
ु की संस्कृ हत ने सभी को पशु बनने पर हििश हकर्ा िै | और अश्वत्थामा
की हस्थहतर्ों का िणान िुआ िै | “जो हकसी भी देशकाल में हस्थहतर्ों को इसी र्द्ध ु संस्कृ हत ने पशु बना हदर्ा िै | सरु े श गौतम “अंधार्ुग” के
मनोिृहिर्ों और आत्माओ ं की हिकृ हत तथा हदग्रममदान्धता एिं हिनाश िो अश्वत्थामा के अन्दर की कुरूपता आधहु नक मनुष्ट्र् की कुरूपता िै, उसके
अंधार्गु के जंक बनते िै |”२ र्े सारी पररहस्थहतर्ाँ आज भी िै | और र्िी अन्दर की पाशहिकता आधहु नक मानि की पाशहिकता िै उस आधहु नकता
कारण िै हक भारती जी ने अपने नार्क के प्रारंभ में िी इसके जलते भहिष्ट्र् मानि की हजसके अन्दर हनरंतर एक र्द्ध ु -िृहि हिद्यमान रिती िै | इस तरि
की ओर संकेत हकर्ा िै | अश्वत्थामा के िल पौराहणक पात्र निीं, आधहु नक मानि का प्रहतहनहध अथिा
प्रहतक बन जाता िै | आजीिन गहलत कुण्ठा की दारुण र्ातना फे लने के हलए
उस भहिष्ट्र् में अहभशप्त अश्वत्थामा मर निीं सकता क्र्ोंहक उसे आजीिन पीड़ा पानी िै |
धमा अथा िसोन्मख ु िोंगे “हनरंतर पीड़ा उसकी हनर्हत िै ?......... अश्वत्थामा की भाती िि भी न तो
क्षर् िोगा धीरे -धीरे सारी धरती का | ठीक से जी सकता िै और न मर िी पाता िै |”६ इसी र्गु की जानबझु कर

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अपनाई गई अन्धता का प्रहतक गांधारी िै जो सत्र् को देखना निीं चािती गेिू की बालो में सपा फुक करें गे
क्र्ोंहक िि सत्र् उसकी इच्छाओ की पहू ता न कर सका | र्र्ु त्ु सु का पात्र िि नहदर्ों में बि बि कर आएगी हपघली आग
िै जो र्द्ध
ु की र्ंत्रणा के िल बाह्य स्तर पर निीं िि आतंररक स्तर पर भी सरू ज बझु जार्ेगा
भोगता िै | िि दोिरे स्तर पर जीता िै | धमा के हलए िि पाण्डटिो की ओर से धरा बजं र िो जाएगी |”१०
लड़ते िुए अपने मनष्ट्ु र् िोने के धमा को हनभाता िै तो बाद में अपने माता हपता
के पास लौर्ता िै तो िि अपने व्र्हि िोने का धमा भी हनभाता िै लेहकन उसे इस नार्क का एक और मित्िपणू ा पात्र िै जो परु े नार्क में किी रंगमंच पर
उपेक्षा िी हमलती िै अपनी माँ से लेकर एक साधारण सैहनक तक उससे घृणा निीं िै लेहकन हफर भी परू ी कथा का प्रमख ु पात्र िै िि कृ ष्ट्ण इस पात्र को
करते िै | गाधं ारी किती िै | लेकर मर्ाादा और मर्ाादा हिनता की हकतनी िी पररभाषा दी गई िै | लेहकन
भारती जी ने इन्िें किी अलौहकक शहि का स्िामी निीं बतार्ा िै लेहकन िि
बेर्ा िर बार गांधारी, र्र्ु त्ु सु, हिदरु , अश्वत्थामा की दृष्टी में अलग अलग रूप में
भजु ाएँ र्े तम्ु िारी पररभाहषत िुए िै | तमु ने हकर्ा िै प्रभतु ा का दरु पर्ोग” से कृ ष्ट्ण के सारे दैिीर्
पराक्रम भरी आिरण कर् कर हगर जाते िै | तनेजा जी ने किा िै “आरंभ और अतं को र्हद
थकी तो निीं छोड़ दे तो मल ू नार्क में कृ ष्ट्ण की भहू मका बिुत कुछ नार्क का मख ु ौर्ा
अपने बन्धजु नो का ओढे एक खलनार्क जैसी िी िै | अन्धार्गु के कृ ष्ट्ण न तो भहिष्ट्र् के रक्षक
िध करते करते ? िै और निीं अनासि |....
.............. उनकी दृष्टी परू ी तरि साधन की बजार् साध्र् पर हर्की िै और उसके हलए िि
थका िुआ िोगा र्ि कोई भी चाल र्ा िथकंडा इस्तेमाल करने से हिचहकचाते निीं िै | लेहकन
हिदरु इसे फूलो की शय्र्ा दो आश्चर्ा िोता िै र्ि देखकर हक सभी पात्रो की असंगहत का हिश्ले षण
कोई पराहजत दर्ु ोधन निीं िै र्ि करनेिाला नार्ककार कृ ष्ट्ण की असंगहत पर ऊँगली रखने में क्र्ों डर जाता िै
सोर्े जो जाकर |”११ लेहकन गाधं ारी ने ऊँगली उठाकर किा था हक तमु र्हद चािते तो रुक
सरोिर की सकता था र्द्ध ु |” जब अश्वत्थामा की शाहपत हकर्ा तो भीम को क्र्ों निीं िि
कीचड़ में” ७ भी तम्ु िारे ईशारे पर िुआ था |

िि अपनी आस्था तक को तोड़ देता िै और िि कृ ष्ट्ण तक के सामने निीं इस प्रकार परू ा नार्क कल, आज और आने िाले कल की कथा िै |
झक ु ता | “र्र्ु त्ु सु के जीिन की सबसे बड़ी हिडम्बना र्ि िै हक र्द्ध
ु में अपने मेरा दाहर्त्ि िि हस्थत रिेगा
िाथ पैर खोने की िजा िि अपनी आस्था और हिश्वास खो बैठता िै |”८ िर मानि – मन के उस िृि में
धृतराष्ट्र िि शासन व्र्िस्था िै जो अपनी स्िाथा हलप्तता में अंधी बन बैठी िै | हजसके सिारे िि
र्े प्रिरी आज की आम जनता िै हजसकी कोई साथाकता निीं रि गई िै िि सभी पररहस्थहतर्ों का अहतक्रमण करते
अहभशप्त िै भर्कने के हलए िािी संजर् का पात्र “जिाँ मिाभारत का नतू न हनमााण करे गा हपछले पर
ऐहतिाहसक पात्र िै िािी आधहु नक मानि का भी उस मानि का जो सचेत िै, मर्ाादा र्ि
ु आचरण में
हििेकशील तथा तर्स्थ | र्ि एक मात्र पात्र जो तर्स्थ सचेतन एिं हनत नतू न सृजन में
हििेकशील िै जो मर्ाादा, नैहतकता एिं सत्र् को खहण्डत िोते िुए देखता िै हनभार्ता के
जो तर्स्थ िोकर भी भर्क रिा िै |”९ भारती जी ने अपने सभी पात्रो को सािस के
आधहु नक संदभो में देखा िै | र्द्ध ु ों की भर्ानकता का संकेत उन्िोंने हदर्ा िै ममता के
उसने जलते िुए भहिष्ट्र् को हदखार्ा िै जो आज परमाणु बम के ढेर पर अपने रस के
खत्म िोने की राि देख रिा िै | अश्वत्थामा द्वारा छोड़ा गर्ा ब्रह्मास्त्र आज के क्षर् में
परमाणु बम का संकेत िै और हिरोहशमा और नागासाकी की भर्ानकता भोग जीहित और सहक्रर् िो ढूंढूंगा में बार बार
चक ु ा िै | र्े हिश्व | इसीहलए भारती जी किते िै |
लेहकन भहिष्ट्र् की र्े आस्थाए सब कुछ धल ु में हमल जाती िै क्र्ोंहक जो
र्हद र्ि लक्ष्र् हसद्ध िुआ तो नर पशु | बचा िै िि कोमल और सदंु र निीं िि हनहष्ट्क्रर् अपगं व्र्हित्ि, अमानहु षक
तो आगे आने िाली सहदर्ों तक और आत्मघाती अन्ध तो भहिष्ट्र् पर प्रश्न हचत्र लग जाता िै |
पृथ्िी पर रसमर् िनस्पहत निीं िोगी
हशशु िोंगे पैदा हिकलांग और कुण्ठाग्रस्त क्र्ा कोई सुनेगा
सारी मनष्ट्ु र् जाहत बौनी िो जाएगी जो अन्धा निीं िै और हिकृ त निीं िै और
जो कुछ ज्ञान संहचत हकर्ा िै मनष्ट्ु र्ने मानि भहिष्ट्र् को बचार्ेगा ?
सतर्गु में, त्रेता में, द्वापर में क्र्ा कोई सुनेगा ?
सदा सदा के हलए िोगा हिलीन िि | क्र्ा कोई सुनेगा ?......१२
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सदं र्ा सचू ि:


1. आधहु नक हिन्दी नार्क हमथक का प्रर्ोग और प्रभाि – डॉ. जी
कमलाधरन – पेज.नं. – ८
2. अध ं ार्गु और भारती के अन्र् नार्टर् प्रर्ोग- जर्देि तनेजा- पेज.न.ं –१८
3. अंधार्ग ु – धमािीर भारती - पेज.नं. –११-१२
4. अंधार्ग ु और भारती के अन्र् नार्टर् प्रर्ोग- जर्देि तनेजा -पेज.नं.– १९
5. अंधार्ग ु – धमािीर भारती - पेज.नं. –१३
6. अध ं ु एक सृजनात्मक उपहधध- सरु े श गौतम - पेज.न.ं –४१
ार्ग
7. अंधार्ग ु – धमािीर भारती- पेज.नं. –५७-५८
8. अंधार्ग ु और भारती के अन्र् नार्क प्रर्ोग- पेज.नं. –जर्देि तनेजा -
पेज.नं. –४७
9. अध ं ार्गु एक सृजनात्मक उपहधध – सरु े श गौतम - पेज.न.ं –४९
10. अंधार्ग ु भारती - पेज.नं. –९४-९५
11. अंधार्ग ु और भारती के अन्र् नार्टर् प्रर्ोग –जर्देि तनेजा - पेज.नं. –
३७
12. अध ं ार्गु – भारती- पेज.न.ं –१३०-१३१

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