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पा ण न : भाषा व ान

... बलदे वान द सागर

उप म

भगवान ् भा यकार आ दश!कराचाय# अ%वैत-)स*ा त को आधे -लोक म. बताते हुए


कहते ह2 –

-लोकाध4न कथया)म यद6


ु तं 8 थ-को ट)भः |

<=म स>यं जगि मAया जीवो <=मैव नापरः ||

अथा#त ् जो बात, करोड़ो 8 थE ने कहF है उसको म2 आधे -लोक म. कहता हूँ Iक <=म स>य
है , संसार )मAया है और जीव, <=म के )सवा और कुछ नहFं है |

भगवान ् भा यकार तो साLात ् )शवावतार ह2, वे कह सकते ह2 | म2 उनका आMय


लेकर यह कहने का साहस कर सकता हूँ Iक मेरे व6तNय वषय ‘पा ण न : भाषा व ान’ को
क)लपावनावतार गोQवामी तुलसीदासजी के MीरामचRरतमानस के म!गलाचरण के माS Tथम
-लोक से हF व-ले षत करने का वनU Tयास कर सकता हूँ | -लोक, हम सब जानते ह2-
‘वणा#नामथ#-स!घानां रसानां छ दसाम प |

म!गलानाWच क>ता#रौ व दे वाणी- वनायकौ ||’

[अथा#त ् वणZ, अथ#-समह


ू E, रसE, छ दE और मंगलE के क>ता# – वाणी तथा
वनायक का म2 व दन करता हूँ ]

इस मंगलाचरण -लोक म. गोQवामीजी ने जो वण#, वाणी और वनायक क] बात


कहF है , उसम. वण#-समा^नाय [वण#माला-माहे -वर-सूS], वाणी [भाषा] और वनायक [)ल प] का
उ_लेख भी अ त न# हत है | महामु न पा ण न के नNय-Nयाकरण का और आधु नक
भाषा व ान का वचारणीय वषय भी वण# और अथ#-समह
ू हF है |

माहे -वर सS
ू अथा#त ् )शवसS
ू -जाल

आज इ6क]सवीं शताaदF के इस दस
ू रे दशाaद म. सच
ू ना-तकनीक] ने हमारे Nयि ट और
समि ट जीवन को बहुत Tभा वत Iकया है | internet [अ तजा#ल] और electronic media

1
[वै%युदाण वक-माmयम] के कारण हम www. [व_o# वाइo वेब ् = व-व-Nया प-जाल] से घरे
हुए ह2 Iक तु भौ तक व ान %वारा न)म#त यह जाल भारत के स दयE परु ाने जाल का
अनक
ु रण-माS है |

माहे -वर सS
ू E क] Nयाqया के rप म. ‘नि दके-वरका)शका’ के २७ प%य )मलते ह2 |
इसके रच यता नि दके-वर ने अपने इस Nयाकरण और दश#न के 8 थ म. शैव अ%वैत दश#न
का वण#न Iकया है , साथ हF, माहे -वर सS
ू E क] Nयाqया भी क] है । उपम यु ऋ ष ने इस पर
'त>>व वम)श#णी' नामक टFका रची है । इनम. से अ तT)स* यह प%य ‘माहे -वर-सूSE’ के
अवतरण क] कथा सुनाता ह2 -

‘न>ृ तावसाने नटराजराजो ननाद ढ6कां नवपWचवारम ्।

उ*तक
ु# ामः सनका द)स*ानेत% वमश4 )शवसूSजालम ्॥’

... [नि दके-वरका)शका-१]

[अथा#त ् सनक, सन दन, सनातन और सन>कुमार आ द )स*E के उ*ार हे तु


दे वा{धदे व नटराजराज )शव ने ता|डव-न>ृ त के बाद नौ और पाँच [चौदह] बार डमr बजाया,
इस Tकार चौदह )शवसूSE क] mव नयE से यह )शवसS
ू -जाल [Qवर-Nयंजनrपी वण#माला]
Tकट हुयी।]

पा णनीय-Nयाकरण के इन सूSE के आ द-Tवत#क भगवान ् नटराज को माना जाता


है । ऐसी T)स * है Iक मह ष# पा ण न ने ये सूS दे वा{धदे व )शव के आशीवा#द से Tा•त Iकये
जो Iक पा णनीय संQकृत Nयाकरण के आधार बने।

ये चौदह सS
ू इस Tकार ह2 –

१. अइउण ् २. ॠॡक् ३. एओ! ४. ऐऔच ्

५. हयवर† ६. लण ् ७. ञमङणनम ् ८. झभञ ्

९. घढधष ् १०. जबगडदश ् ११. खफछठथचटतव ्

१२. कपय ् १३. शषसर् १४. हल ्

इन १४ सूSE म. संQकृत भाषा के वणZ (अLरसमा- ^नाय) को एक व)श ट


Tकार से संयोिजत Iकया गया है । फलतः पा ण न को शaदE के नव#चन या नयमE म. जब

2
भी Iक हF वशेष वण# समूहE (एक से अ{धक) के Tयोग क] आव-यकता होती है, वे उन वणZ
(अLरE) को माहे-वर सS
ू E से T>याहार बनाकर संLप
े म. 8हण करते ह2। माहे -वर सS
ू E को इसी
कारण ‘T>याहार वधायक’ सूS भी कहते ह2। अ टाmयायी के अmययन के समय T>याहार
बनाने क] व{ध तथा संQकृत Nयाकरण म. उनके बहु वध TयोगE को दे खा जा सकता है ।

इन १४ सूSE म. संQकृत भाषा के समQत वणZ का समावेश Iकया गया है। Tथम ४
सूSE (अइउण ् – ऐऔच ्) म. Qवर वणZ तथा शेष १० सूSE म. Nयंजन वणZ क] गणना क] गयी
है । संLेप म. Qवर वणZ को अच ् एवं Nयंजन वणZ को हल ् कहा जाता है । अच ् एवं हल ् भी
T>याहार ह2।

Nयाकरण 6या है ?
आइए, सं“L•त )संहावलोकन से दे खते ह2 Iक वै दक वा!मय को जानने-समझने
और समझाने के )लए वेदE के छः अंगE [-)शLा, क_प, Nयाकरण, न”6त, छ द और •यो तष]
को जानना-समझना Iकतना आव-यक है | Nयाकरण वेदांग को वेद-प”
ु ष का मुख कहा जाता
है ---"मख
ु ं Nयाकरणं Qमत
ृ म ् ।" वेदांगE म. Nयाकरण का मुqय Qथान है ---"Tधानं च ष†सु
अ!गेषु Nयाकरणम ् ।" (महाभा य)

Nयाकरण के %वारा वेद और लोक के शaदE क] Nयाqया क] जाती है, इसके वना
वेद को समझना सरल नहFं है - ‘NयाI य ते Nयु>पा%य ते शaदाः अनेने त Nयाकरणम ् ।’
सव#Tथम Nयाकरण क] अनुMु त वेद म. होती है –

‘च>वाRर शंग
ृ ाQSयो अQय पादा %वे शीष4 स•त हQतासो अQय ।

—Sधा ब*ो वष
ृ भो रोरवी त महोदे वा म>या#म ् आ ववेश ।।’

(ऋ˜वेद- ४.५८.३)

[अथा#त ् इस वष
ृ भ rपी Nयाकरण के चार सींग (नाम, आqयात, उपसग# और नपात)
ह2 । इसके तीन पाद (भत
ू , व>त#मान, भ व यत ्) ह2 । इसके दो )शर (सुप ् और त!) ह2 । इसके
सात हाथ (सात वभि6तयाँ) ह2। यह उरस ्, क|ठ और मूधा# इन तीन QथानE से बँधा हुआ
शaद करता है ।]

इसके बाद वै दक Nयाकरण का सव#Tथम ववेचन Tा तशाqयE म. )मलता है िजसके


छः वषय है - (१) वण#-समा^नाय (२) पद वभाग (३) सि ध- व™छे द (४) Qवर- वचार (५)
पाठ- वचार (६) अ य उ™चारण स^ब धी वषयE का ववेचन ।

अ टाmयायी और मु न-Sयम ्

3
वै दक Nयाकरण के बाद लौIकक Nयाकरण का उदय हुआ । आ दकाNय
वा_मीIक-रामायण के Iकि क धा-का|ड म. Mीराम, Mीहनुमान ् जी के वषय म. लšमण से
कहते ह2-

‘नूनं Nयाकरणं कृ>Qनमनेन बहुधा Mत


ु म् |

बहु Nयाहरतानेन न IकिWचदपशिaदतम ् || - [Iकि क धाका|ड – ३/२९]

[अथा#त ् नि-चतrप से इसने स^पूण# Nयाकरण को भी सुना है , 6यEIक इसने


बहुत बोला पर तु कहFं भी Nयाकरण क] œि ट से एक भी अशु * नहFं हुई |]

लौIकक Nयाकरण के Tमख


ु आचाय# ह2 - पा ण न । इनके Nयाकरण का नाम है ---
अ टाmयायी । इसम. कुल आठ अmयाय ह2 । सभी म. चार-चार पाद है , कुल ३२ पाद ह2 िजनम.
लगभग ३९९२ सूS ह2 । उनके बाद का>यायन मु न ने इसके ऊपर वा त#कE क] रचना क],
िजसक] संqया भी चार हजार के आस-पास है । मह ष# पतWज)ल ने इन वा त#कE के ऊपर
"महाभा य" क] रचना क] । इन तीनE को ‘मु नSयम ्’ और इनके शaदशाQS को "—Sमु न-
Nयाकरणम ्" कहा जाता है ।

पा ण न-Nयाकरण क] जीव त पर^परा

वामन और जया द>य ने )मलकर अ टाmयायी के ऊपर एक विृ >त )लखी िजसका
नाम है - का)शका । इसके ऊपर िजने Ÿबु * ने यास नामक एक Nयाqया )लखी थी ।
हरद>त)मM ने भी इसके ऊपर पदमWजरF नामक Nयाqया )लखी । महाभा य के बाद
Nयाकरण का दाश# नक 8 थ भतह
# ृ Rर ने वा6यपदFयम ् नाम से )लखा । स^पण
ू # महाभा य पर
कैयट ने TदFप नाम से एक टFका )लखी । महाभा य पर अ य अनेक टFकाएँ )लखी ग ।
उनम. से TदFप पर नागेश भ¡ ने उ%योत नाम से बह
ृ % Nयाqया )लखी है । बाद म. आगे
चलकर TI या 8 थE क] श” ु आत हुई । रामच Ÿ इसके परु ोधा थे। इस म म. भ¡ोिजदF“Lत
र{चत )स*ा तकौमद
ु F बहुत T)स* है ।

Nयाकरण का Tयोजन

वैसे तो शaदशाQS [Nयाकरण] के TयोजनE क] वQतार से Nयाqया क] गई है


Iक तु रLा, ऊह, आगम, ल¢वथ#म ् तथा अस दे हाथ#म ् – ये पाँच Tमुख Tयोजन माने गए ह2 ।
इसके अ तRर6त १३ अ य Tयोजन भी {गनाये गए ह2 ।

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मह ष# शाकटायन ने ऋ6त S म. )लखा है Iक Nयाकरण का कथन <=मा ने
बहृ Qप त से Iकया, बह
ृ Qप त ने इ Ÿ से, इ Ÿ ने भर%वाज से, भर%वाज ने ऋ षयE से और
ऋ षयE ने <ा=मणE से Iकया । इसका उ_लेख तैि>तरFय-सं हता (६.४.७.३) म. भी )मलता है ।
पहले वाणी अNयाकृत थी ।दे वताओं क] Tाथ#ना पर सव#Tथम इ Ÿ ने इसक] Nयाqया क] –
‘बहृ Qप त-च व6ता, इ Ÿ-च अmयेता, दNयं वष#सह£मmययनकालः। अ तं च न जगाम ।"
(महाभा य)

इसके बाद महेश ()शव) का Nयाकरण भी )मलता है जो Iक समŸ


ु के समान
वQतत
ृ था । बोपदे व ने Nयाकरण के आठ स^TदायE का उ_लेख Iकया है –

इ Ÿ-च Ÿः काशकृ>Qना पशलF शाकटायनः ।

पा ण यमरजैने Ÿाः जय >य टा दशािaदकाः ।।"

कुछ Nयाकरण ल•ु त हो गए ह2, जैसे Iक Nया¤ड का सं8ह नामक Nयाकरण ।

पा ण न का T तपा%य वषय

महामु न पा ण न का T तपा%य वषय ‘वण#’ हF है | वण# को अLर भी कहते ह2


जो Qवर-Nयंजन के rप म. पहचाने जाते ह2 | उ हE ने वणZ को NयविQथत करके पद, शaद
और वा6य क] संरचना का जो वै ा नक भाषाशाQS दया, उसका नाम है – ‘अ टाmयायी’ |
‘अ टाmयायी’ वैसे तो संQकृत-Nयाकरण का 8 थ है लेIकन —बना अ टाmयायी के अmययन के
आधु नक भाषावै ा नक भी ‘भाषा व ान’ के गूढ़ रहQयE को उ%घा टत करने म. असमथ# ह2|
इस गढ़
ू रहQय के वषय का क)लपावना- वतार गोQवामी तल
ु सीदास जी ने बहुत सो¦े-य और
गंभीरता के साथ अनुभव Iकया और MीरामचRरतमानस के म!गलाचरण के Tथम -लोक म.
इस तAय को परोLrप से व-ले षत Iकया है- ‘वणा#नामथ#-स!घानां रसानां छ दसाम प |
म!गलानाWच क>ता#रौ व दे वाणी- वनायकौ ||’- ऐसा वण#न करके |

पा ण न का सम वया>मक œि टकोण

अ टाmयायी म. आठ अmयाय ह2 | T>येक अmयाय म. चार पाद ह2। T>येक पाद


म. TQतुत वषय के अनस
ु ार कम अथवा अ{धक सूS-संqया है । कुल सूS-संqया तकरFबन चार
हज़ार ह2 | अ>य त संLेप म. कहे हुए नयम अथवा वधान को सूS कहते ह2। अ>य त
सं“L•त होना हF पा णनीय सूSE का सबसे नराला वै)श †य है। उस संLेप के )लए मह ष#

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पा ण न ने एक Qवत S प* त तैयार क] है। फलQवrप सूSE क] अ{धकांश रचना अ>य{धक
तकनीक] और लोक Nयवहार क] भाषा से )भ न हो गई है।

अ टाmयायी के सूS क] भाषा संQकृत होते हुए भी संQकृत भाषा के अ™छे


ानमाS से सS
ू ाथ# का ान अस^भव है | य%य प ‘अ टाmयायी’ से संQकृत-Nयाकरण बहुत
सं“L•त हो गया है, बि_क कुछ हद तक दब
ु ¨ध भी हो गया है, Iफर भी एक-एक सS
ू से बड़ा
शaद समूह )स* हो जाता है । यह एक बड़ा लाभ है ।

आचाय# पा ण न ने िजस Nयाकरण शाQS का Tवचन Iकया, वह न केवल


त>कालFन संQकृत भाषा का नयामक शाQS बना, अ पतु उसने आगामी संQकृत रचनाओं को
भी Tभा वत Iकया। पा ण न से पव
ू # भी Nयाकरण शाQS के अ य आचायZ ने इस वशाल
संQकृत भाषा को नयमE म. बांधने का Tयास Iकया था, पर तु पा ण न का शaदशाQS,
वQतार और गा^भीय# क] œि ट से इन सभी म. )सरमौर )स* हुआ। पा ण न ने अपनी गहन
अ तœि ट# , सम वया>मक œि टकोण, एका8ता, कुशलता, œढ़ पRरMम और वपल
ु साम8ी क]
सहायता से िजस अनठ
ू े Nयाकरण शाQS का उपदे श दया, उसे दे खकर बड़े से बड़े व%वान ्
आ-चय# चIकत होकर कहने लगे – 'पा णनीयं मह>सु वर{चतम ्' – पा ण न का शाQS महान ्,
सुNयविQथत और सु वर{चत है ; 'महती सš
ू मे“Lका वत#ते सS
ू कारQय' - उनक] œि ट अ>य त
पैनी है; 'शोभना खलु पा णनेः सS
ू Qय कृ तः' - उनक] रचना अ त सु दर है ; 'पा ण नशaदो
लोके Tकाशते' - सारे लोक म. पा ण न का नाम छा गया है, इ>या द। भा यकार मु न
पतंज)ल ने पा ण न को Tमाणभूत आचाय#, मा!ग)लक आचाय#, स«
ृ %, भगवान ् आ द वशेषणE
से स^बो{धत Iकया है । उनके अनुसार पा ण न के सूS म. एक भी शaद अनथ#क नहFं हो
सकता और पा णनीय शाQS म. ऐसा कुछ नहFं है जो नरथ#क हो। उ हEने जो सS
ू बनाए ह2,
वे बहुत हF {च तन-मनन करके बनाए गए ह2। उ हEने स«
ु % के rप म. Nयाकरण शाQS का
अ वाqयान Iकया है । रचना के समय उनक] œि ट भ व य क] ओर थी और वह दरू तर क]
बात सोचते थे। इस Tकार उनक] T त ठा ब™चे-ब™चे तक फैल गई और व%या{थ#यE म. उ हFं
का Nयाकरण सवा#{धक Tय हुआ।

पा ण न का सं“L•त जीवन पRरचय

पा ण न (५०० ई॰प॰ू ) संQकृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए ह2। पा ण न का ज म


शलातरु नामक 8ाम म. हुआ था जो त>कालFन उ>तर-पि-चम भारत के गा धार म. िQथत

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था। उसे अब लहुर कहते ह2। अपने ज मQथान के अनुसार पा ण न, शालातुरFय भी कहे गए
ह2 और अ टाmयायी म. Qवयं उ हEने इस नाम का उ_लेख Iकया है ।

पा ण न के गु” का नाम उपवष#, पता का नाम प णन और माता का नाम दाLी


था। पा ण न जब बड़े हुए तो उ हEने NयाकरणशाQS का गहरा अmययन Iकया। पा ण न से
पहले शaद व%या के अनेक आचाय# हो चुके थे। उनके 8 थE को पढ़कर और उनके परQपर
भेदE को दे खकर पा ण न ने न-चय Iकया Iक उ ह. NयाकरणशाQS को NयविQथत करना
चा हए।

अ टाmयायी क] उपादान [उपजीNय] साम8ी

पा ण न से पव
ू # वै दक सं हताओं, शाखाओं, <ा=मण, आर|यक, उप नष% आ द का जो
वQतार हो चुका था, उस वा!मय से उ हEने अपने )लये शaदसाम8ी लF, िजसका उ हEने
अ टाmयायी म. उपयोग Iकया है। दस
ू रF मह>>वपूण# बात, न”6त और Nयाकरण क] जो
साम8ी पहले से व%यमान थी उसका उ हEने सं8ह और सš
ू म अmययन Iकया। इसका Tमाण
भी अ टाmयायी म. है, जैसा Iक शाकटायन, शाक_य, भार%वाज, गा˜य#, सेनक, आ पश)ल, गालब
और Qफोटायन आ द आचायZ के मतE के उ_लेख से ात होता है ।

शाकटायन नि-चत rप से पा ण न से पव
ू # के वैयाकरण थे, जैसा Iक न”6तकार
याQक ने )लखा है । शाकटायन का मत था Iक सब सं ा-शaद धातुओं से बनते ह2। पा ण न
ने इस मत को Qवीकार Iकया Iक तु इस वषय म. कोई आ8ह नहFं रखा और यह भी कहा
Iक बहुत से शaद ऐसे भी ह2 जो लोक क] बोलचाल म. आ गए ह2 और उनसे धात-ु T>यय क]
पकड़ नहFं क] जा सकती।

तीसरF सबसे मह>वपूण# बात पा ण न ने यह क] Iक उ हEने Qवयं लोक को अपनी


आँखE से दे खा और ज़गह-ज़गह घूमकर लोगE के बहुमख
ु ी जीवन का पRरचय Tा•त करके
शaदE को छाना। इस Tकार से Iकतने हF सह£ शaदE को उ हEने इक-ा Iकया। शaदE का
संकलन करके उ हEने उनको वग®कृत Iकया और उनक] कई स{ू चयाँ बनाई।

आचाय# पा ण न क] चार सू{चयाँ

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पहलF सूची ‘धातुपाठ’ क] थी िजसे पा ण न ने अ टाmयायी से अलग रखा है।
उसम. १९४३ धातुएँ ह2। धातुपाठ म. दो Tकार क] धातुएँ ह2 – एक, जो पा ण न से पहले
सा ह>य म. Tयु6त हो चक
ु ] थीं और दस
ू रF वे, जो लोगE क] बोलचाल म. उ ह. )मलF।

उनक] दस
ू रF सच
ू ी म. वेदE के अनेक आचाय# थे। Iकस आचाय# के नाम से कौन सा
चरण T)स* हुआ और उसम. पढ़नेवाले छाS Iकस नाम से T)स* थे और उन छ द या
शाखाओं के 6या नाम थे, उन सब क] न पि>त )भ न-)भ न T>यय लगाकर पा ण न ने दF
है ; जैसे एक आचाय# ति>तRर थे। उनका चरण तैि>तरFय कहा जाता था और उस ग”
ु कुल या
व%यालय के छाS एवं वहाँ क] शाखा या सं हता भी तैि>तरFय कहलाती थी।

पा ण न क] तीसरF सूची "गोSE" के स^ब ध म. थी। मल


ू सात गोS वै दक युग से
हF चले आते थे। पा ण न के काल तक आते-आते उनका बहुत वQतार हो गया था। गोSE क]
कई सू{चयाँ MौतसूSE म. ह2। जैसे बोधायन MौतसूS म. िजसे महाTवर कांड कहते ह2 Iक तु
पा ण न ने वै दक और लौIकक दोनE भाषाओं के पRरवार या कुटु^ब के नामE क] एक बहुत
बड़ी सच
ू ी बनाई िजसम. आष#गोS और लौIककगोS दोनE है । अनेकE सS
ू E के साथ लगे
हुए गणE म. गोSE के अनेक नाम पा ण न के ‘गणपाठ’ नामक पRर)श ट 8 थ म. ह2।

पा ण न क] चौथी सूची भौगो)लक थी। पा ण न का ज मQथान उ>तर-पि-चम म.


था, िजस Tदे श को हम गांधार कहते ह2। यूनानी भग
ू ोल-लेखकE ने )लखा है Iक उ>तर-पि-चम
अथा#त ् गांधार और पंजाब म. लगभग ५०० ऐसे 8ाम थे िजनम. से T>येक क] जनसंqया दस
सह£ के लगभग थी। पा ण न ने उन ५०० 8ामE के वाQत वक नाम भी दे दए ह2 िजनसे
उनके भग
ू ोल स^ब धी गणE क] स{ू चयाँ बनी ह2। 8ामE और नगरE के उन नामE क] पहचान
क ठन है, Iक तु य द बहुत पRरMम Iकया जाय तो यह संभव है , जैसे सुनत
े और )सरसा
पंजाब के दो छोटे गाँव ह2, िज ह. पा ण न ने सुनेS और शैरFषक कहा है ।

इस शaदशाQS को शaदानुशासन भी कहा जाता है

पा ण न का Nयाकरण शaदानुशासन के नाम से व%वानE म. T)स* है , पर तु आठ


अmयायE म. वभ6त होने के कारण यहF शaदानुशासन लोक म. अ टाmयायी अथवा
पा णनीया टक के rप म. भी जाना जाता है । पा ण न ने अपनी अ टाmयायी से संQकृत भाषा
को अमरता Tदान क]। उनक] Nयाकरण क] रF त से संQकृत भाषा के सभी अ!ग आलोIकत
हो उठे । सव#शाQSोपकारक के rप म. पा णनीय अ टाmयायी क] सहायता से हम. कहFं भी

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अपना माग# ढूँढ़ने म. क ठनाई नहFं होती है। संसार क] अनेक भाषाएं नय)मत Nयाकरण के
अभाव म. या तो ल•ु त हो ग ह2, या इतनी दr
ु ह ह2 Iक उ ह. समझना हF द ु कर है , Iक तु
संQकृत भाषा के ग%य और प%य दोनE पा ण नशाQS से नय)मत होने के कारण सदा हF
सुबोध बने रहे ह2। आज भी हम पा णनीय अ टाmयायी क] सहायता से संQकृत के Tाचीनतम
सा ह>य से लेकर नवीनतम रचनाओं का रसाQवाद कर सकते ह2।

अ टाmयायी का चौथा और पाँचवा अmयाय

पा ण न ने सह£E शaदE क] Nयु>पि>त बताई जो अ टाmयायी के चौथे व पाँचव.


अmयायE म. है । <ा=मण, L—Sय, सै नक, NयापारF,Iकसान, रँगरे ज, बढ़ई, रसोइए, मोची, ˜वाले,
चरवाहे, गड़Rरये, बन
ु कर, कु^हार आ द सैकड़E पेशेवर लोगE से )मलजुलकर पा ण न ने उनके
वशेष पेशे के शaदE का सं8ह Iकया। पा ण न ने यह बताया Iक Iकस शaद म. कौन सा
T>यय लगता है । वण#माला के Qवर और Nयंजन rप जो अLर ह2, उ हFं से T>यय बनाए
गए। जैसे- वषा# से वा ष#क, यहाँ मल
ू शaद वषा# है , उससे इक् T>यय जुड़ गया और वा ष#क
अथा#त ् वषा#स^ब धी - यह शaद बन गया।

पा ण न और आधु नक भाषा व ान

आधु नक भाषा व ान म. भाषा क] उ>पि>त, Qवrप, वकास आ द का वै ा नक


एवं व-लेषणा>मक अmययन Iकया जाता है । आधु नक भाषा व ा नयE के अनुसार
भाषा व ान, Nयाकरण से )भ न है । Nयाकरण म. Iकसी भाषा का काया#>मक अmययन Iकया
जाता है जबIक भाषा व ानी भाषा का अ>य त Nयापक अmययन करता है। अmययन के
अनेक वषयE म. से आजकल भाषा- व ान को वशेष मह>>व दया जा रहा है।

अपने वत#मान Qवrप म. भाषा व ान पि-चमी व%वानE के मिQत क क] दे न कहा


जाता है । अ त Tाचीनकाल से हF भाषा-स^ब धी अmययन क] Tविृ >त संQकृत-सा ह>य म. पाई
जाती है । संQकृत-सा ह>य के दश#न एवं सा ह>यशाQSीय 8 थE म. भी हम. शaद, अथ#, रस,
भाव आ द के सूšम ववेचन के अ तग#त भाषा क] वै ा नक चचा#ओं के हF संकेत Tा•त होते
ह2 । संQकृत-सा ह>य म. यS-तS उपलaध होने वालF भाषा- वचार- वषयक साम8ी हF नि-चत
rप से वत#मान भाषा- व ान क] आधार)शला कहF जा सकती है ।

आधु नक वषय के rप म. भाषा- व ान का सS


ू पात यूरोप म. सन ् १७८६ ई० म. सर्
व)लयम जो स ् नामक व%वान %वारा Iकया गया माना जाता है । संQकृत भाषा के अmययन

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के Tसंग म. सर् व)लयम जो स ् ने हF सव#Tथम संQकृत, 8ीक और लै टन भाषा का
तुलना>मक अmययन करते हुए इस संभावना को Nय6त Iकया था Iक संभवतः इन तीनE
भाषाओं के मूल म. कोई एक भाषाrप हF आधार बना हुआ है। अतः इन तीनE भाषाओं
(संQकृत, 8ीक और लै टन) के बीच एक सूšम स^ब धसूS अव-य व%यमान है। भाषाओं का
इस Tकार का तुलना>मक अmययन हF आधुनIक भाषा- व ान के LेS का पहला कदम बना।
पा-चा>य और पौवा#>य अनेक T)स* भाषा व ा नयE ने इस LेS म. Tशंसनीय काय# Iकया है
Iक तु वQतार-भी त के कारण कुछे क नामE का हF उ_लेख स^भव है ।

भाषा या न Nय6त वाणी

हमारे सभी स%8 थE और शाQSE से )मलने वाला ान भाषा पर हF नभ#र है।


महाक व द|डी ने अपने महान ् 8 थ ‘काNयादश#’ म. भाषा क] मह>ता स{ू चत करते हुए )लखा
है -

इदम धतमः कृ>Qनं जायेत भुवनSयम ्।

य द शaदा=वयं •यो तरासंसारं न दF•यते।।

[अथा#त ् यह स^पूण# भुवन [तीनE लोक] अ धकारपण


ू # हो जाता, य द संसार म. शaद-
Qवrप •यो त अथा#त ् भाषा का Tकाश न होता।] Qप ट हF है Iक यह कथन मानवभाषा को
लšय करके हF कहा गया है । पशु-पLी भावE को Tकट करने के )लए िजन mव नयE का
आMय लेते ह2 वे उनके भावE का वहन करने के कारण उनके )लए भाषा हो सकती ह2 Iक तु
मानव के )लए अQप ट होने के कारण व%वानE ने उसे ‘अNय6त वाक् ’ कहा है , जो भाषा-
व ान क] œि ट से कोई मह>>व नहFं रखती, 6यEIक ‘अNय6त वाक् ’ म. शaद और अथ# दोनE
हF अQप ट बने रहते ह2। मनु य भी कभी-कभी अपने भावE को Tकट करने के )लए अंग-
भं{गमा, ¯ू-संचालन, हाथ-पाँव-मख
ु ाकृ त आ द के संकेतE का Tयोग करते ह2 पर तु वह भाषा
के rप म. होते हुए भी ‘Nय6त वाक् ’ नहFं है । मानव भाषा क] सबसे बड़ी वशेषता यह होती है
Iक वह ‘Nय6त वाक् ’ अथा#त ् शaद और अथ# क] Qप टता )लए हुए होती है। महाभा य के
रच यता पतंज)ल के अनुसार ‘Nय6त वाक् ’ का अथ# भाषा के वण#ना>मक होने से हF है।

यह स>य है Iक कभी-कभी संकेतE और अंगभं{गमाओं क] सहायता से भी हमारे


भाव और वचारE का स^Tेषण बड़ी सरलता से हो जाता है । इस Tकार वे चे टाएँ भाषा क]
Tतीक बन जाती ह2 Iक तु मानव भावE को Tकट करने का सबसे उपय6
ु त साधन वह

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वण#ना>मक भाषा है िजसे ‘Nय6त वाक् ’ क] सं ा Tदान क] गई है । इस म. व)भ न अथZ को
Tकट करने के )लए कुछ नि-चत उ™चRरत या क{थत mव नयE का आMय )लया जाता है ।
अतः भाषा हम उन शaदE के समह
ू को कहते ह2 जो व)भ न अथZ के संकेतE से स^प न होते
ह2। िजनके %वारा हम अपने मनोभाव सरलता से दस
ू रE के T त Tकट कर सकते ह2। इस
Tकार भाषा क] पRरभाषा करते हुए हम उसे मानव-समाज म. वचारE और भावE का आदान-
Tदान करने के )लए अपनाया जाने वाला एक माmयम कह सकते ह2 जो मानव के उ™चारण
अवयवE से Tय>नपव
ू क
# नःसत
ृ क] गई mव नयE का साथ#क आधार )लए रहता है । ये mव न-
समह
ू शaद का rप तब लेते ह2 जब वे Iकसी अथ# से जुड़ जाते ह2। स^पण
ू # mव न-Nयापार
अथा#त ् शaद-समह
ू अपने अथ# के साथ एक ‘याœि™छक’ स^ब ध पर आधाRरत होता है।
‘याœि™छक’ का अथ# है पूणत
# या कि_पत। संLेप म. व)भ न अथZ म. Nय6त Iकये गए मुख से
उ™चRरत उस शaद समह
ू को हम भाषा कहते ह2 िजसके %वारा हम अपने भाव और वचार
दस
ू रE तक पहुँचाते ह2।

आधु नक पा ण न – आचाय# IकशोरFदास वाजपेयी

आचाय# IकशोरFदास वाजपेयी को ' ह दF का पा ण न' कहा जाता है । अपनी


तेजिQवता व T तभा से उ हEने सा ह>यजगत ् को आलोIकत Iकया और एक महान ् भाषा
[ ह दF] के Qवrप को सु नधा#Rरत Iकया। आचाय# IकशोरFदास बाजपेयी ने ह दF को पRर कृत
rप Tदान करने म. अ>य त मह>वपूण# भू)मका नभाई है । इनसे पूव# खड़ीबोलF ह दF का
Tचलन तो हो चक
ु ा था पर उसका कोई NयविQथत Nयाकरण नहFं था। अत: आचाय# वाजपेयी
अपने अथक Tयास एवं ईमानदारF से भाषा का पRर कार करते हुए Nयाकरण का एक
सुNयविQथत rप नधा#Rरत कर भाषा का पRर कार तो Iकया हF साथ हF नये मानद|ड भी
Qथा पत Iकये। Qवाभा वक है भाषा को एक नया Qवrप )मला। अत: ह दFLेS म. आपको
‘पा ण न' सं ा से अ)भ हत Iकया जाने लगा।

उपसंहार

पा ण न ने संQकृत भाषा को एक अलौIकक एवं अ°त


ु शाQS Tदान Iकया। इस शाQS के
व{ध- वधान, पा ण न ने अ>य त वचार पूवक
# िQथर Iकए थे। ववादाQपद मतE के बीच
पा ण न सम वय और स तुलन का मmयमाग# Qवीकार करते ह2। पा ण न के काल म.
Nयाकरण–स^ब धी अनेक मत–मता तर Tच)लत थे। उदाहरणाथ# – Nयाकरण म. Qवाभा वक
या Tच)लत सं ा उ{चत है या कृ—Sम सं ा, शaद का अथ# जा त है या Nयि6त, अनक
ु रणा>मक

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शaदE का अिQत>व है या नहFं, उपसग#, वाचक है या %योतक, धातु का अथ# I या है या
भाव, शaद Nयु>प न होते ह2 या अNयु>प न आ द । पा ण न, इनम. से Iकसी भी एक मत का
नराकरण नहFं करते, अ पतु वे इनके सम वय का माग# Qवीकार करते ह2। समQत
अ टाmयायी म. सम वया>मक और स तु)लत œि ट क] Tधानता है । इस कारण यह शाQS
इतनी वशाल शaद–साम8ी को समेटने, नवीन शaद–भ|डार को अपने म. Qथान दे ने और
सूSब* करने म. सफल हुआ। इसी कारण इसे लोक म. इतनी अ{धक T त ठा Tा•त हुई और
पा ण न का नाम ब™चे–ब™चे तक पहुँच गया – 'आकुमारं यशः पा णनेः'।

मेरे इस व6तNय म. अभी ऐसे अनेक —ब द ु शेष रहते ह2 िजनको उपQथा पत करके
‘पा ण न : भाषा व ान’ इस वषय को सम{ु चत याय दया जा सकता है लेIकन सी)मत
समय म. यह स^भव नहFं | इसी)लए आर^भ म. गोQवामीजी को याद करके इस वशालकाय
वषय को समेटने के )लए - ‘वणा#नामथ#-स!घानां रसानां छ दसाम प | म!गलानाWच
क>ता#रौ व दे वाणी- वनायकौ ||’- इस मंगल -लोक के माmयम से अपने इस व6तNय को
वराम दे ता हूँ | ध यवाद ! जय )सयाराम !!

+++ +++ +++ +++ +++

***** बलदे वान द-सागरः

दरू भाष - ९८१० ५६२२ ७७

अणुTैषः - baldevanand.sagar@gmail.com

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