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उप म
अथा#त ् जो बात, करोड़ो 8 थE ने कहF है उसको म2 आधे -लोक म. कहता हूँ Iक <=म स>य
है , संसार )मAया है और जीव, <=म के )सवा और कुछ नहFं है |
माहे -वर सS
ू अथा#त ् )शवसS
ू -जाल
आज इ6क]सवीं शताaदF के इस दस
ू रे दशाaद म. सच
ू ना-तकनीक] ने हमारे Nयि ट और
समि ट जीवन को बहुत Tभा वत Iकया है | internet [अ तजा#ल] और electronic media
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[वै%युदाण वक-माmयम] के कारण हम www. [व_o# वाइo वेब ् = व-व-Nया प-जाल] से घरे
हुए ह2 Iक तु भौ तक व ान %वारा न)म#त यह जाल भारत के स दयE परु ाने जाल का
अनक
ु रण-माS है |
माहे -वर सS
ू E क] Nयाqया के rप म. ‘नि दके-वरका)शका’ के २७ प%य )मलते ह2 |
इसके रच यता नि दके-वर ने अपने इस Nयाकरण और दश#न के 8 थ म. शैव अ%वैत दश#न
का वण#न Iकया है , साथ हF, माहे -वर सS
ू E क] Nयाqया भी क] है । उपम यु ऋ ष ने इस पर
'त>>व वम)श#णी' नामक टFका रची है । इनम. से अ तT)स* यह प%य ‘माहे -वर-सूSE’ के
अवतरण क] कथा सुनाता ह2 -
उ*तक
ु# ामः सनका द)स*ानेत% वमश4 )शवसूSजालम ्॥’
ये चौदह सS
ू इस Tकार ह2 –
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भी Iक हF वशेष वण# समूहE (एक से अ{धक) के Tयोग क] आव-यकता होती है, वे उन वणZ
(अLरE) को माहे-वर सS
ू E से T>याहार बनाकर संLप
े म. 8हण करते ह2। माहे -वर सS
ू E को इसी
कारण ‘T>याहार वधायक’ सूS भी कहते ह2। अ टाmयायी के अmययन के समय T>याहार
बनाने क] व{ध तथा संQकृत Nयाकरण म. उनके बहु वध TयोगE को दे खा जा सकता है ।
इन १४ सूSE म. संQकृत भाषा के समQत वणZ का समावेश Iकया गया है। Tथम ४
सूSE (अइउण ् – ऐऔच ्) म. Qवर वणZ तथा शेष १० सूSE म. Nयंजन वणZ क] गणना क] गयी
है । संLेप म. Qवर वणZ को अच ् एवं Nयंजन वणZ को हल ् कहा जाता है । अच ् एवं हल ् भी
T>याहार ह2।
Nयाकरण 6या है ?
आइए, सं“L•त )संहावलोकन से दे खते ह2 Iक वै दक वा!मय को जानने-समझने
और समझाने के )लए वेदE के छः अंगE [-)शLा, क_प, Nयाकरण, न”6त, छ द और •यो तष]
को जानना-समझना Iकतना आव-यक है | Nयाकरण वेदांग को वेद-प”
ु ष का मुख कहा जाता
है ---"मख
ु ं Nयाकरणं Qमत
ृ म ् ।" वेदांगE म. Nयाकरण का मुqय Qथान है ---"Tधानं च ष†सु
अ!गेषु Nयाकरणम ् ।" (महाभा य)
Nयाकरण के %वारा वेद और लोक के शaदE क] Nयाqया क] जाती है, इसके वना
वेद को समझना सरल नहFं है - ‘NयाI य ते Nयु>पा%य ते शaदाः अनेने त Nयाकरणम ् ।’
सव#Tथम Nयाकरण क] अनुMु त वेद म. होती है –
‘च>वाRर शंग
ृ ाQSयो अQय पादा %वे शीष4 स•त हQतासो अQय ।
—Sधा ब*ो वष
ृ भो रोरवी त महोदे वा म>या#म ् आ ववेश ।।’
(ऋ˜वेद- ४.५८.३)
[अथा#त ् इस वष
ृ भ rपी Nयाकरण के चार सींग (नाम, आqयात, उपसग# और नपात)
ह2 । इसके तीन पाद (भत
ू , व>त#मान, भ व यत ्) ह2 । इसके दो )शर (सुप ् और त!) ह2 । इसके
सात हाथ (सात वभि6तयाँ) ह2। यह उरस ्, क|ठ और मूधा# इन तीन QथानE से बँधा हुआ
शaद करता है ।]
अ टाmयायी और मु न-Sयम ्
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वै दक Nयाकरण के बाद लौIकक Nयाकरण का उदय हुआ । आ दकाNय
वा_मीIक-रामायण के Iकि क धा-का|ड म. Mीराम, Mीहनुमान ् जी के वषय म. लšमण से
कहते ह2-
वामन और जया द>य ने )मलकर अ टाmयायी के ऊपर एक विृ >त )लखी िजसका
नाम है - का)शका । इसके ऊपर िजने Ÿबु * ने यास नामक एक Nयाqया )लखी थी ।
हरद>त)मM ने भी इसके ऊपर पदमWजरF नामक Nयाqया )लखी । महाभा य के बाद
Nयाकरण का दाश# नक 8 थ भतह
# ृ Rर ने वा6यपदFयम ् नाम से )लखा । स^पण
ू # महाभा य पर
कैयट ने TदFप नाम से एक टFका )लखी । महाभा य पर अ य अनेक टFकाएँ )लखी ग ।
उनम. से TदFप पर नागेश भ¡ ने उ%योत नाम से बह
ृ % Nयाqया )लखी है । बाद म. आगे
चलकर TI या 8 थE क] श” ु आत हुई । रामच Ÿ इसके परु ोधा थे। इस म म. भ¡ोिजदF“Lत
र{चत )स*ा तकौमद
ु F बहुत T)स* है ।
Nयाकरण का Tयोजन
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मह ष# शाकटायन ने ऋ6त S म. )लखा है Iक Nयाकरण का कथन <=मा ने
बहृ Qप त से Iकया, बह
ृ Qप त ने इ Ÿ से, इ Ÿ ने भर%वाज से, भर%वाज ने ऋ षयE से और
ऋ षयE ने <ा=मणE से Iकया । इसका उ_लेख तैि>तरFय-सं हता (६.४.७.३) म. भी )मलता है ।
पहले वाणी अNयाकृत थी ।दे वताओं क] Tाथ#ना पर सव#Tथम इ Ÿ ने इसक] Nयाqया क] –
‘बहृ Qप त-च व6ता, इ Ÿ-च अmयेता, दNयं वष#सह£मmययनकालः। अ तं च न जगाम ।"
(महाभा य)
पा ण न का T तपा%य वषय
पा ण न का सम वया>मक œि टकोण
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पा ण न ने एक Qवत S प* त तैयार क] है। फलQवrप सूSE क] अ{धकांश रचना अ>य{धक
तकनीक] और लोक Nयवहार क] भाषा से )भ न हो गई है।
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था। उसे अब लहुर कहते ह2। अपने ज मQथान के अनुसार पा ण न, शालातुरFय भी कहे गए
ह2 और अ टाmयायी म. Qवयं उ हEने इस नाम का उ_लेख Iकया है ।
पा ण न से पव
ू # वै दक सं हताओं, शाखाओं, <ा=मण, आर|यक, उप नष% आ द का जो
वQतार हो चुका था, उस वा!मय से उ हEने अपने )लये शaदसाम8ी लF, िजसका उ हEने
अ टाmयायी म. उपयोग Iकया है। दस
ू रF मह>>वपूण# बात, न”6त और Nयाकरण क] जो
साम8ी पहले से व%यमान थी उसका उ हEने सं8ह और सš
ू म अmययन Iकया। इसका Tमाण
भी अ टाmयायी म. है, जैसा Iक शाकटायन, शाक_य, भार%वाज, गा˜य#, सेनक, आ पश)ल, गालब
और Qफोटायन आ द आचायZ के मतE के उ_लेख से ात होता है ।
शाकटायन नि-चत rप से पा ण न से पव
ू # के वैयाकरण थे, जैसा Iक न”6तकार
याQक ने )लखा है । शाकटायन का मत था Iक सब सं ा-शaद धातुओं से बनते ह2। पा ण न
ने इस मत को Qवीकार Iकया Iक तु इस वषय म. कोई आ8ह नहFं रखा और यह भी कहा
Iक बहुत से शaद ऐसे भी ह2 जो लोक क] बोलचाल म. आ गए ह2 और उनसे धात-ु T>यय क]
पकड़ नहFं क] जा सकती।
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पहलF सूची ‘धातुपाठ’ क] थी िजसे पा ण न ने अ टाmयायी से अलग रखा है।
उसम. १९४३ धातुएँ ह2। धातुपाठ म. दो Tकार क] धातुएँ ह2 – एक, जो पा ण न से पहले
सा ह>य म. Tयु6त हो चक
ु ] थीं और दस
ू रF वे, जो लोगE क] बोलचाल म. उ ह. )मलF।
उनक] दस
ू रF सच
ू ी म. वेदE के अनेक आचाय# थे। Iकस आचाय# के नाम से कौन सा
चरण T)स* हुआ और उसम. पढ़नेवाले छाS Iकस नाम से T)स* थे और उन छ द या
शाखाओं के 6या नाम थे, उन सब क] न पि>त )भ न-)भ न T>यय लगाकर पा ण न ने दF
है ; जैसे एक आचाय# ति>तRर थे। उनका चरण तैि>तरFय कहा जाता था और उस ग”
ु कुल या
व%यालय के छाS एवं वहाँ क] शाखा या सं हता भी तैि>तरFय कहलाती थी।
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अपना माग# ढूँढ़ने म. क ठनाई नहFं होती है। संसार क] अनेक भाषाएं नय)मत Nयाकरण के
अभाव म. या तो ल•ु त हो ग ह2, या इतनी दr
ु ह ह2 Iक उ ह. समझना हF द ु कर है , Iक तु
संQकृत भाषा के ग%य और प%य दोनE पा ण नशाQS से नय)मत होने के कारण सदा हF
सुबोध बने रहे ह2। आज भी हम पा णनीय अ टाmयायी क] सहायता से संQकृत के Tाचीनतम
सा ह>य से लेकर नवीनतम रचनाओं का रसाQवाद कर सकते ह2।
पा ण न और आधु नक भाषा व ान
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के Tसंग म. सर् व)लयम जो स ् ने हF सव#Tथम संQकृत, 8ीक और लै टन भाषा का
तुलना>मक अmययन करते हुए इस संभावना को Nय6त Iकया था Iक संभवतः इन तीनE
भाषाओं के मूल म. कोई एक भाषाrप हF आधार बना हुआ है। अतः इन तीनE भाषाओं
(संQकृत, 8ीक और लै टन) के बीच एक सूšम स^ब धसूS अव-य व%यमान है। भाषाओं का
इस Tकार का तुलना>मक अmययन हF आधुनIक भाषा- व ान के LेS का पहला कदम बना।
पा-चा>य और पौवा#>य अनेक T)स* भाषा व ा नयE ने इस LेS म. Tशंसनीय काय# Iकया है
Iक तु वQतार-भी त के कारण कुछे क नामE का हF उ_लेख स^भव है ।
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वण#ना>मक भाषा है िजसे ‘Nय6त वाक् ’ क] सं ा Tदान क] गई है । इस म. व)भ न अथZ को
Tकट करने के )लए कुछ नि-चत उ™चRरत या क{थत mव नयE का आMय )लया जाता है ।
अतः भाषा हम उन शaदE के समह
ू को कहते ह2 जो व)भ न अथZ के संकेतE से स^प न होते
ह2। िजनके %वारा हम अपने मनोभाव सरलता से दस
ू रE के T त Tकट कर सकते ह2। इस
Tकार भाषा क] पRरभाषा करते हुए हम उसे मानव-समाज म. वचारE और भावE का आदान-
Tदान करने के )लए अपनाया जाने वाला एक माmयम कह सकते ह2 जो मानव के उ™चारण
अवयवE से Tय>नपव
ू क
# नःसत
ृ क] गई mव नयE का साथ#क आधार )लए रहता है । ये mव न-
समह
ू शaद का rप तब लेते ह2 जब वे Iकसी अथ# से जुड़ जाते ह2। स^पण
ू # mव न-Nयापार
अथा#त ् शaद-समह
ू अपने अथ# के साथ एक ‘याœि™छक’ स^ब ध पर आधाRरत होता है।
‘याœि™छक’ का अथ# है पूणत
# या कि_पत। संLेप म. व)भ न अथZ म. Nय6त Iकये गए मुख से
उ™चRरत उस शaद समह
ू को हम भाषा कहते ह2 िजसके %वारा हम अपने भाव और वचार
दस
ू रE तक पहुँचाते ह2।
उपसंहार
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शaदE का अिQत>व है या नहFं, उपसग#, वाचक है या %योतक, धातु का अथ# I या है या
भाव, शaद Nयु>प न होते ह2 या अNयु>प न आ द । पा ण न, इनम. से Iकसी भी एक मत का
नराकरण नहFं करते, अ पतु वे इनके सम वय का माग# Qवीकार करते ह2। समQत
अ टाmयायी म. सम वया>मक और स तु)लत œि ट क] Tधानता है । इस कारण यह शाQS
इतनी वशाल शaद–साम8ी को समेटने, नवीन शaद–भ|डार को अपने म. Qथान दे ने और
सूSब* करने म. सफल हुआ। इसी कारण इसे लोक म. इतनी अ{धक T त ठा Tा•त हुई और
पा ण न का नाम ब™चे–ब™चे तक पहुँच गया – 'आकुमारं यशः पा णनेः'।
मेरे इस व6तNय म. अभी ऐसे अनेक —ब द ु शेष रहते ह2 िजनको उपQथा पत करके
‘पा ण न : भाषा व ान’ इस वषय को सम{ु चत याय दया जा सकता है लेIकन सी)मत
समय म. यह स^भव नहFं | इसी)लए आर^भ म. गोQवामीजी को याद करके इस वशालकाय
वषय को समेटने के )लए - ‘वणा#नामथ#-स!घानां रसानां छ दसाम प | म!गलानाWच
क>ता#रौ व दे वाणी- वनायकौ ||’- इस मंगल -लोक के माmयम से अपने इस व6तNय को
वराम दे ता हूँ | ध यवाद ! जय )सयाराम !!
अणुTैषः - baldevanand.sagar@gmail.com
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