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ज मकंु डल म ी- पु ष के अवैध संबध

ं - यवु ा यो तषी
वकास जैन

अवैध-संबध ं वो मीठा जहर है जो शर र म घस


ु कर आ मा को भी अप व कर
दे ता है अवैध संबधं का ता पय सफ शर र से ह नह ं अ पतु मन, वचन, कम
तथा र त के वारा स पण ू भतू काल, वतमानकाल और भ व यकाल को द ू षत
करने के साथ-साथ ब च एवम ् प रवार क नज़र म मनु य को तु छ बनाकर
घ ृ णत माग पर ला कर खड़ा करता ह। अवैध संबध ं के लए कोई एक दोषी
नह ं होता, ी और पु ष दोन से मलकर ह अवैध संबध ं का नमाण होता है ।
ववा हत या अ ववा हत कोई भी पु ष अथवा ी हो, जो अपने जीवनसाथी के
अलावा कसी अ य से यौन संबध ं था पत कर तो उसक गनती अवैध संबध ं
म होती है इसके लए केवल ी ह िज मेदार नह ं बि क इसम पु ष वग का
वशेष हाथ होता है क तु पु ष के अवैध संबधं के लए ी ह मह वपण ू
भू मका नभाती है , इस स य को वीकार करना आसान नह ं है य क स य
बड़ा कठोर होता है । पु ष जब कसी अ य ी से अवैध संबध ं था पत करने
के लए छल, द ु टपण ू नी तय और कु टलताओं से ी को आक षत करने क
चे टा करता ह तो ी अगर उस समय चाहे तो कोई भी संसार का पु ष उसको
उसके मन के व ध कसी अ य माग पर नह ं ले जा सकता, ये शि त नार
जा त म वतः या त है क तु इसको समझना या ना समझना ये
भ न- भ न ि य पर नभर करती ह फर भी कई बार इस तरह क
प रि थ तयां उ प न हो जाती ह क पु ष कसी दस ू र ी के स पक म चला
जाता है या ी कसी अ य पु ष का साथ चाहने लगती है इसका सीधा संबध ं
प त अथवा प नी क कामवासना, यार और सांसा रक व तओ ु ं को ा त
करने से होता है ।

अवैध संबध
ं का सीधा अथ यौन इ छा से है , प त वारा यार- ेम, मान और
स मान न मलने के कारण भी कई ि यां कसी परपु ष का संग चाहती है
ता क वो अपने मन म दबी भावनाओं को कट कर सके, इसी अवसर का लाभ
उठाकर कई द ु ट व ृ के पु ष उसके ीत व को भंग कर अवैध संबध ं बना
लेते ह। कामवासना भी शर र और जीवन का एक मह वपण ू अंग है इसक
तिृ त करना भी परमाव यक है क तु वासना क तिृ त के साथ ेम का रस
मला दे ने से वो ‘योग’ बनता है , िजससे सिृ ट का नमाण होता है इस लए प त
अथवा प नी दोन को अपने जीवनसाथी के साथ दा प य जीवन म वासना के
साथ ेम का नमाण भी करना चा हए, एक दस ू रे क वेदना और भावना को
समझना चा हए। प त अथवा प नी दोन म से कोई भी एक यौन या म
सफल ना भी हो, तो भी अगर दोन म ेम है तो उनका शु ध ेम कामवासना
पर वजय ा त कर अवैध संबध ं जैसे जहर पर अंकुश लगा सकता है ।

यो तष शा म अवैध संबध ं जैसे वषय पर भी प टता मलती है च मा


मन का कारक होता है और कामवासना मन से जागती है । ल न यि त वयं
होता है पंचम भाव े मका और स तम भाव प नी का होता है एवं शु भोग
वलास का कारक है , श न, राहू, मंगल और पंचम भाव, पंचमेश, वादश और
वादशेश का आपस म संबध ं होना जातक के ववाह पवू एवं प चात ् अवैध
संबध ं था पत करवाते ह। ज म कंु डल म स तम भाव पर श न क च मा के
साथ यु त जहां जातक को मान सक प से पी डत ़ करती है वह ं ेम संबध
ं भी
करवाती है । कुछ ऐसे यो तषीय योग का उ लेख कर रहा हूँ, िजनके ज म
कंु डल म होने से, जातक का अवैध संबधं और कामकु होने का संकेत मलता
है ः

ल न / ल नेश :

1. य द ल न और बारहव भाव के वामी एक हो कर क / कोण म बैठ जाएँ


या एक दसू रे से क वत हो या आपस म थान प रवतन कर रहे ह तो पवत
योग का नमाण होता है । इस योग के चलते जहां यि त भा यशाल , व या
- य ,कम शील , दानी , यश वी , घर जमीन का अ धप त होता है वह ं
अ यंत कामी और कभी कभी पर ी गमन करने वाला भी होता है ।
2. य द ल नेश स तम थान पर हो ,तो ऐसे यि त क च वपर त से स
के त अ धक होती है । उस यि त का परू ा चंतन मनन , वचार यवहार का
क बंद ु उसका य ह होता है ।

3. य द ल नेश स तम थान पर हो और स तमेश ल न म हो , तो जातक ी


और पु ष दोन म च रखता है , उसे समय पर जैसा साथी मल जाए वह
अपनी भख ू मटा लेता है । य द केवल स तमेश ल न म ि थत हो तो जातक
म काम वासना अ धक होती है तथा उसम र त या करते समय पशु व ृ त
उ प न हो जाती है और वह न ष ध थान को अपनी िज वा से चाटने लगता
है ।

4. ल नेश एकादश म ि थत हो और उस पर पाप भाव हो तो जातक


अ ाकृ तक यौन याएं क तिृ त हे तु अवैध संबध
ं बनाता है । जातक
अ ाकृ तक से स और मै टरबेशन आ द व ृ तय से सत रहता है और ये
याएँ उसे आनंद और तिृ त दान करती ह।

5. वतीय, छठे और स तम भाव के कसी भी वामी के साथ शु क यु त


ल न म होने से जातक का च र संदेहा पद होता है ।

6. मीन ल न म सय ू और शु क यु त ल न/चतथु भाव म हो या सयू शु क


यु त स तम भाव म हो और अ टम म पु ष रा श हो तो ी , ी रा श होने
पर पु ष अपनी तर क या अपना क ठन काय हल करने के लए अपने साथी
के अ त र त अ य से स ब ध था पत करते ह । सय ू और शु क यु त मीन
ल न म होने से जातक को अ यंत कामक
ु बनाती है उसका अवैध संबध
ं बनता
है तथा ऐसे जातक क कामवासना क तिृ त शी नह ं होती।

स तम भाव और तल
ु ा रा श :
1. सातव भाव म मंगल , बु ध और शु क यु त हो इस यु त पर कोई शभ

भाव न हो और गु क म उपि थत न हो तो जातक अपनी काम क पू त
अ ाकृ तक तर क से करता है ।

2. श न, मंगल और शु का काम वासना से घ न ठ संबध ं है य द ज म कंु डल


म श न और मंगल क यु त स तम भाव पर हो तो जातक
सम लंगी{होमसे सअ ु ल } होता है । अकुल न वग क म हलाओं के संपक म
रहता है । ये ह यु त य द अ टम, नवम, वादश भाव पर हो तो जातक का
अपने बड़ से अवैध संबध ं होता ह। अ टम /नवम / वादश भाव का मंगल भी
अ धक काम वासना उ प न करता है , ऐसा जातक गु प नी को भी नह छोड़
पाता है ।

3. तलु ा रा श म च मा और शु क यु त जातक क काम वासना को कई


गणु ा बड़ा दे ती है । अगर इस यु त पर राहु/मंगल क ि ट भी तो जातक अपनी
वासना क पू त के लए कसी भी हद तक जा सकता है ।

4. तल
ु ा रा श म चार या अ धक ह क उपि थ त भी पा रवा रक कलेश का
कारण बनती है । िजसके कारण जातक बाहर अवैध संबध
ं बनाता है ।

5. द ू षत शु और बु ध क यु त स तम भाव म हो तो जातक काम वासना क


पू त के लए गु त तर के खोजता है ।

6. स तम भाव म राहू और शु हो अथवा राहू और च मा क यु त हो तथा


गु वादश भाव म ि थत हो तो ववाह प चात ् कायालय म ह अवैध-संबध

बनते ह।
7. सय
ू का स तम भाव म होना जातक के वैवा हक जीवन म कलेश उ प न
करता है , इससे परे शान होकर जातक अवैध संबध
ं बनाता है ।

शु :

1. य द शु व े ी ,मलू कोण रा श या अपने उ च रा श का हो कर ल न से


क म हो तो माल य योग बनता है । इस योग म यि त सु दर,गण ु ी , संप
यु त ,उ साह शि त से पण ू , सलाह दे ने या मं णा करने म नपण
ु होने के
साथ साथ पर ीगामी भी होता है । ऐसा यि त समाज म अ यंत त ठा से
रहता है तथा आपने ह तर क म हला/पु ष से संपक रखते हुए भी अपनी
त ठा पर आंच नह ं आने दे ता है । समाज भी सब कुछ जानते हुए उसे आदर
स मान दे ता रहता है ।

2. स तम भाव म शु क उपि थ त जातक को कामक


ु बना दे ती है ।

3. शु के ऊपर मंगल /राहु का भाव जातक को काफ लोग से शर रक


स ब ध बनाने के लए उकसाता है ।

4. शु तीसरे भाव म ि थत हो और मंगल से द ू षत हो , छठे भाव म मंगल क


रा श हो और च मा बारहव थान पर हो तो य भचार व ृ तयां अ धक होती
है ।

5. शु के ऊपर श न क ि ट/यु त / भाव जातक म अ या धक मै टरबेशन


क व ृ त उ प न करते ह ।
6. बध
ु और शु क यु त य द स तम भाव म हो तो जातक अवैध संबध
ं के
लए नतू न तर के अपनाता ह।

गु :

1. गु ल न/चतथ ु /स तम/दशम थान पर हो या पु ष रा श म छठे भाव म हो


या वादश भाव म हो गु पर मंगल शु का भाव और च मा पर राहू का
भाव हो तो यि त अवैध संबध
ं बनाने के लए सभी सीमाओं का उ लघंन
कर दे ता है ।

2. छठे भाव म गु य द पु ष रा श म बैठा हो तो जातक काम य होता है ।

श न / राहू

1. य द श न व े ी ,मल ू कोण रा श या अपनी उ च रा श का होकर ल न


से क वत हो तो शशः योग बनता है । ऐसा यि त राजा ,स चव, जंगल पहाड़
पर घमू ने वाला ,पराये धन का अपहरण करने वाला ,दस
ू र क कमजो रय को
जानने वाला ,दस ू र क प नी से स ब ध था पत करने क इ छा करने वाला
होता है ।कभी कभी अपने इस दरु ाचार के लए उसक त ठा कलं कत हो
सकती है , वह दस ू र क नज़र म गर सकता है और समाज म अपमा नत भी
हो सकता है ।

2. ल न म श न का होना जातक को कामवासना अ धक होती है ,पंचम भाव म


श न अपनी से बड़ी उ क ी से आकषण , स तम म होने से य भचार
व ृ त,च मा के साथ होने पर वे यागामी, मंगल के साथ होने पर ी म और
शु के साथ होने पर पु ष म कामक ु ता अ धक होती है ।
3. दशम थान का श न वरोधाभास उ प न करता है , जातक कभी कभी
ान वैरा य क बात करता है तो कभी कभी कामशा का गंभीरता से
व लेषण करता है , काम और स यास के बीच जातक झल ू ता रहता है । शु
और मंगल क यु त ज म कंु डल म कह ं पर भी हो एवं श न दशम भाव म हो
तो जातक ानवान भी होता है एवं काम वासना और अवैध संबध ं को गंभीरता
से लेता है उसका मन ि थर नह ं रह पाता, कभी ानी बन जाता है कभी अवैध
संबध
ं का दास।

4. द ू षत श न य द चतथ
ु भाव म उपि थत हो तो जातक क वासना उसे
इ से ट क और अ सर करती है ।

5. पंचम भाव म श न, शु और मंगल क यु त अवैध संबध ं का नमाण करती


है । पंचम भाव म श न होने से अपने से बड़ी ि या के त अवैध संबध
ं बनाने
के लए जातक को आक षत करता है ।

6. ज म कंु डल म श न और शु क यु त, वैवा हक जीवन म कसी अ य का


आना बताता है । श न का स तम भाव म च मा के साथ होना और मंगल क
ि ट पड़ने से जातक वे यागामी होता है इसी योग म अगर शु का संबध ं
ि ट अथवा यु त से बन जाये तो अवैध संबधं नि चत हो जाता है । श न क
च मा/शु /मंगल के साथ यु त जातक म काम वासना को काफ बड़ा दे ती है

7. बध
ु और श न का संबध ं स तम भाव से हो तो ऐसे जातक यौन याओं म
नीरस एवं अयो य होते ह। बध
ु और श न क यु त य द वादश भाव म हो तो
जातक शी पतन का रोगी बन जाता है और इसी योग म य द ल न, स तम
और अ टम भाव म राहू हो तो यि त अपनी जवानी को वयं न ट करता है
एवं उसका जीवनसाथी कसी अ य से शर रक तिृ त लेता है ।
8. राहू का अ टम भाव म होना जातक का अवैध संबध
ं कराता है ।

च मा :

1. च मा बारहव भाव म मीन रा श म हो तो जातक अनेक का उपभोग


करता है ।

3. स तम भाव म ीण च मा कसी पाप ह के साथ बैठा हो तो जातक


ववा हत ी से आक षत होता है ।

4. च मा ज म कंु डल म कह ं पर भी नीच को होकर बैठा हो और उस पर पाप


भाव हो तो जातक अपने नौकर/नौकरानी से अवैध संबध
ं बनवाता है यह ं
च मा अगर द ू षत होकर नवम भाव म ि थत हो तो जातक अपने गु /
श क /मागदशक के साथ अथवा अपने से बड़ के साथ य भचार करने के
उकसाते ह , अवैध संबध
ं बनाता है ।

5. ज म कंु डल म च मा से वतीय थान म शु हो तो ‘सन


ु फा योग’
बनता है ऐसा जातक भौ तक सखु क ाि त करता ह उसका सौ दय आकषक
होता है अ य ि य से शार रक संबध
ं क बल संभवना होती है ।

मंगल :

1. मंगल क उपि थ त 8 /9 /12 भाव म हो तो जातक कामक


ु होता है ।
2. मंगल स तम भाव म हो और उसपर कोई शभ
ु भाव न हो तो जातक
नबा लक के साथ स ब ध बनाता है ।

3. मंगल क रा श म शु या शु क रा श म मंगल क उपि थत हो तो


जातक म कामक ु ता अ धक होती है ।

4. मेष या विृ चक रा श म मंगल के साथ शु के होने से पराई ी से घ न ठा


बनती है ।

5. मंगल और राहू क यु त अथवा ि ट शु पर हो तो जातक कामक


ु होता है
एवम ् अवैध संबध
ं बनाने के लए उसका मन भटकता है ।

6. मंगल र त को दशता है ज म कंु डल म कसी पाप ह के साथ मंगल क


यु त स तम भाव म हो या सय ू स तम म और मंगल चतथ ु थान म हो अथवा
चतथ ु भाव म राहू हो या शु मंगल क रा श म ि थत होकर स तम को दे खता
हो तो यि त कामक ु ता म अंधा होकर पशु समान काय करता है ।

7. मंगल जोश और शु भोग एवं वादश भाव अवैध संबध ं म मह वपण ू


भू मका का नवाह करता है य द मंगल, शु और वादश भाव का वामी का
संबध
ं स तम भाव से हो तो यि त लंपट होता है एवं कई ि य से उसका
अवैध संबध
ं होता है । इ ह ं तीन का योग चतथ
ु या वादश भाव म हो तो
जातक अ यंत कामी होता है और अपने जीवन म मयादा याग कर अ धक
अवैध संबधं बनाता है ।
ज म कंु डल म च मा, मंगल, शु , राहू, स तम भाव, पंचम भाव और
वादश भाव अवैध संबध ं का नमाण करते है । मंगल शार रक शि त का
कारक है तथा ववाह के प चात ् जो संबध ं बनते है उसको भी दशाता है । शु तो
वयं भोग वलास है , वप रत लंग व अ य को आक षत कराता है , कामे छा
जगाता है , रोमांस दे ता है । श न वैरा य भी दे ता है , आलोचना और योग म
अवैध संबध ं के कारक का भी काय भी करता है फर भी अवैध संबध ं के योग
को दे खने से पव
ू ज म कंु डल म शभ ु ह , और अ य योग का भी नर ण
करना चा हए य क कई बार ऐसा होता है ज म कंु डल म अवैध संबध ं योग
बन रहा है क तु वह ं पर ज म कंु डल मे प त ता/एक प नी त का भी योग है
इन दोन योग म से जो योग बलवान होगा जातक वैसा ह होगा। शु और
सय
ू क यु त ल न म जहां यि त को या भचार दे ती है वह ं कसी शभ ु ह
क यु त अथवा ि ट उसके या भचार योग को न ट कर दे ती है । ऐसे ह मंगल
और शु क यु त पंचम भाव म अवैध संबध ं के थान पर ेम भी दे ती है
इस लए कंु डल का पण ू नर ण करने के प चात ् ह फलादे श करना चा हए।

t.me/Jyotishkall

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