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ं - यवु ा यो तषी
वकास जैन
अवैध संबध
ं का सीधा अथ यौन इ छा से है , प त वारा यार- ेम, मान और
स मान न मलने के कारण भी कई ि यां कसी परपु ष का संग चाहती है
ता क वो अपने मन म दबी भावनाओं को कट कर सके, इसी अवसर का लाभ
उठाकर कई द ु ट व ृ के पु ष उसके ीत व को भंग कर अवैध संबध ं बना
लेते ह। कामवासना भी शर र और जीवन का एक मह वपण ू अंग है इसक
तिृ त करना भी परमाव यक है क तु वासना क तिृ त के साथ ेम का रस
मला दे ने से वो ‘योग’ बनता है , िजससे सिृ ट का नमाण होता है इस लए प त
अथवा प नी दोन को अपने जीवनसाथी के साथ दा प य जीवन म वासना के
साथ ेम का नमाण भी करना चा हए, एक दस ू रे क वेदना और भावना को
समझना चा हए। प त अथवा प नी दोन म से कोई भी एक यौन या म
सफल ना भी हो, तो भी अगर दोन म ेम है तो उनका शु ध ेम कामवासना
पर वजय ा त कर अवैध संबध ं जैसे जहर पर अंकुश लगा सकता है ।
ल न / ल नेश :
स तम भाव और तल
ु ा रा श :
1. सातव भाव म मंगल , बु ध और शु क यु त हो इस यु त पर कोई शभ
ु
भाव न हो और गु क म उपि थत न हो तो जातक अपनी काम क पू त
अ ाकृ तक तर क से करता है ।
4. तल
ु ा रा श म चार या अ धक ह क उपि थ त भी पा रवा रक कलेश का
कारण बनती है । िजसके कारण जातक बाहर अवैध संबध
ं बनाता है ।
शु :
गु :
श न / राहू
4. द ू षत श न य द चतथ
ु भाव म उपि थत हो तो जातक क वासना उसे
इ से ट क और अ सर करती है ।
7. बध
ु और श न का संबध ं स तम भाव से हो तो ऐसे जातक यौन याओं म
नीरस एवं अयो य होते ह। बध
ु और श न क यु त य द वादश भाव म हो तो
जातक शी पतन का रोगी बन जाता है और इसी योग म य द ल न, स तम
और अ टम भाव म राहू हो तो यि त अपनी जवानी को वयं न ट करता है
एवं उसका जीवनसाथी कसी अ य से शर रक तिृ त लेता है ।
8. राहू का अ टम भाव म होना जातक का अवैध संबध
ं कराता है ।
च मा :
मंगल :
t.me/Jyotishkall