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प�रष्कृत अध्यात्म आज के युग क� महती आवश्यकता है । �चंतक, �वचारक, वै�ा�नक इसक�

आवश्यकता का अनुभव करने लगे ह�।

प�रष्कृ त अध्यात्म आज के यगु क� महती आवश्यकता है। लगभग सभी िचंतक, िवचारक, वै�ािनक
और मनोवै�ािनक इसक� आवश्यकता का अनभु व करने लगे हैं, परंतु वतर्मान में अध्यात्म का जो
स्व�प है, क्या यह उस आवश्यकता क� पिू तर् कर सकता है? आज अध्यात्म संदु र शब्दों पर िटक
गया है। जो िजतना अध्यात्म के गढ़ू तत्वों को अलंकृत शैली में बोल सके वह उतना ही बड़ा
आध्याित्मक व्यि� माना जा रहा है। िफर इसके एक भी तत्व को भले ही अनभु व न िकया गया हो।
वस्ततु : अध्यात्म ऐसा है नहीं। इसे ऐसा कर िदया गया है। अध्यात्म एक वै�ािनक प्रयोग है जो पदाथर्
के स्थान पर जीवन के िनयमों को जानना, समझना, प्रयोग करना और अतं में जीवन जीने का तरीका
िसखाता है। अध्यात्म जीवन-�ि� और जीवन-शैली का समनव् य है। यह जीवन को समग्र ढंग से न
के वल देखता है, बिल्क इसे अपनाता भी है। आज कई लोग ऐसे हैं जो अध्यात्म से िनतांत अनिभ�
हैं, लेिकन वही अध्यात्म क� भाषा बोल रहे हैं। आज अध्यात्म के तत्वों क� संस्थानों और
कायर्शालाओ ं में चचार् क� जाती है।
यह कटु सत्य है िक आध्याित्मक भाषा बोलने वाले कुछ लोगों का जीवन अध्यात्म से िनतांत
अप�रिचत, परंतु भौितक साधनों और भोग-िवलासों में आकंठ डूबा ह�आ िमलता है। आज के
तथाकिथत कई अध्यात्मवे�ा भय, आशंका, संदहे , भ्रम और अिव�ास से ग्रस्त है, जबिक अध्यात्म
के प्रथम सोपान को इनका समल ू िवनाश करके ही पार िकया जाता है। वस्ततु : अध्यात्म अित
वै�ािनक तथ्य है। चेतना क� िचरंतन और नतू न खोज ही इसका प्रमख ु कायर् रहा है, परंतु चेतना के
िविभन्न आयामों को खोजने के बदले इससे जड़ु े कुछ तथाकिथत लोगों ने इसे और भी मिलन और
संकुिचत िकया है। उन्होंने इसे प्रयोगों-परी�णों से गजु ारने से इन्कार कर िदया है। अध्यात्म को वतर्मान
िस्थित से उबारने के िलए आवश्यक है िक इसे प्रयोगधम� बनाया जाए। अध्यात्म के मल ू िसद्धातं ों को
प्रयोग क� कसौटी पर कसा जाए। आध्याित्मकता के बिहरंग और अतं रंग दो तत्व जीवन में प�रलि�त
होने चािहए। संयम और साधना ये दो अंतरंग तत्व हैं और स्वाध्याय व सेवा बिहरंग हैं। अंतरंग जीवन
संयिमत हो और तप�यार् क� भट्टी में सतत गलता रहे।

[ डॉ. सुरचना ित्रवेदी ]

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