योगिक परंपरा में कई अवसरों पर मौन

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योगिक परं परा में कई अवसरों पर मौन-धारण किया जाता है , इनमें से एक है मौनी अमावस‍य

् ा। क्या है
इसका महत‍व् और कैसे धारण करें मौन बता रहे हैं सद्‌गरु
ु :

सद्‌गुरु:

मौन का अभ‍य् ास करने और मौन होने में अंतर है। अगर आप किसी चीज का अभ्यास कर रहे हैं, तो निश्चित रूप
से आप वह नहीं हैं। आप इसे कर नहीं सकते, इसे सिर्फ हुआ जाकता है।
अस्तित्व की हर वो चीज जिसको पांचों इद्रिं यों से महससू किया जा सके वह दरअसल ध्वनि की एक गंजू है। हर
चीज जिसे देखा, सनु ा, सघंू ा जा सके , जिसका स्वाद लिया जा सके या जिसे स्पर्श किया जा सके , ध्वनि या नाद
का एक खेल है। मनषु ‍य् का शरीर और मन भी एक प्रतिध्वनी या कंपन ही है। लेकिन शरीर और मन अपने आप
में सब कुछ नहीं हैं, वे तो बस एक बड़ी संभावना की ऊपरी परत भर हैं, वे एक दरवाजे की तरह हैं। बहुत से लोग
ऊपरी परत के नीचे नहीं देखते, वे दरवाजे की चौखट पर बैठकर परू ी ज़िंदगी बिता देते हैं। लेकिन दरवाजा अंदर
जाने के लिए होता है। इस दरवाजे के आगे जो चीज है, उसका अनभु व करने के लिए चपु रहने का अभ्यास ही
मौन कहलाता है स।

अग्रं ेजी शब्द ‘साइलेंस’ बहुत कुछ नहीं बता पाता है। संस्कृ त में ‘मौन’ और ‘नि:शब्द’ दो महत्वपर्णू शब्द हैं।
मौन का अर्थ आम भाषा में चपु रहना होता है-यानी आप कुछ बोलते नहीं हैं। ‘नि:शब्द’ का मतलब है जहां
शब्द या ध्वनि नहीं है – शरीर, मन और सारी सृष्टि के परे । ध्वनि के परे का मतलब ध्वनि की गैरमौजदू गी नहीं,
बल्कि ध्वनि से आगे जाना है।

अंतरतम में मौन ही है

यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि परू ा अस्तित्व ही ऊर्जा की एक प्रतिध्वनि या कंपन है। इसं ान हर कंपन को ध्वनि के
रूप में महससू कर पाता है। सृष्टि के हर रूप के साथ एक खास ध्वनि जड़ु ी होती है। ध्वनियों के इसी जटिल संगम
को ही हम सृष्टि के रूप में महससू कर रहे हैं। सभी ध्वनियों का आधार ‘नि:शब्द’ है। सृष्टि के किसी अशं का
सृष्टि के स्रोत में रूपांतरित होने की कोशिश ही मौन है। अनभु व और अस्तित्‍व की इस निर्गुण, आयामहीन और
सीमाहीन अवस‍थ् ा को पाना ही योग है। नि:शब्द का मतलब है: शन्ू यता।

ध्वनि सतह पर होती है, मौन अंतरतम में होता है। अंतरतम में ध्वनि बिल्कुल नहीं होती है।

ध्वनि सतह पर होती है, मौन अंतरतम में होता है। अंतरतम में ध्वनि बिल्कुल नहीं होती है। ध्वनि की अनपु स्थिति
का मतलब कंपन और गजंू , जीवन और मृत्य,ु यानी परू ी सृष्टि की अनपु स्थिति। अनभु व में सृष्टि के अनपु स्थित
होने का मतलब है – सृष्टि के स्रोत की व्यापक मौजदू गी की ओर बढ़ना। इसलिए, ऐसा स्थान जो सृष्टि के परे हो,
ऐसा आयाम जो जीवन और मृत्यु के परे हो, मौन या नि:शब्द कहलाता है। इसं ान इसे कर नहीं सकता, इसे सिर्फ
हुआ जा सकता है।

मौन का अभ‍य् ास करने और मौन होने में अंतर है। अगर आप किसी चीज का अभ्यास कर रहे हैं, तो निश्चित रूप
से आप वह नहीं हैं। अगर आप परू ी जागरूकता के साथ मौन में प्रवेश करने की चेष‍ट् ा करते हैं तो आपके मौन
होने की संभावना बनती है।

कालचक्र से परे जाने का एक अवसर

मौनी अमावस्या शरद-संक्रांति के बाद की दसू री या महाशिवरात्रि से पहले की अमावस्या होती है। यह बात हमारे
देश के अनपढ़ किसान भी जानते हैं कि अमावस्या के दौरान बीजों का अक ं ु रण और पौधों का विकास मदं हो
जाता है। किसी पौधे के रस को ऊपर तक पहुचं ने में बहुत मश्कि
ु ल होती है और यही सीधी रीढ़ वाले इसं ान के
साथ भी होता है। खास तौर पर इन तीन महीनों के दौरान, सक्रं ाति
ं से लेकर महाशिवरात्रि तक, उत्तरायण के पहले
चरण में, 00 से 330 उत्तर तक के अक्षांश में, पर्णि
ू मा और अमावस्या दोनों का असर बढ़ जाता है।
योगिक परंपराओ ं में प्रकृ ति से मिलने वाली इस सहायता का लाभ उठाने के लिए बहुत सी प्रक्रियाएं हैं। इनमें से
एक है, मौनी अमावस‍य् ा से लेकर महाशिवरात्रि तक मौन रखना।

योगिक परंपराओ ं में प्रकृ ति से मिलने वाली इस सहायता का लाभ उठाने के लिए बहुत सी प्रक्रियाएं हैं। इनमें से
एक है, मौनी अमावस‍य् ा से लेकर महाशिवरात्रि तक मौन रखना। उस साल इसका महत‍व् बढ़ जाता है जब यह
बारह वर्ष के सौर-चक्र को परू ा कर रहा हो और तब सभी जल राशियों और जल के भवं रों पर इसका काफी
प्रभाव होता है। यह नहीं भल ू ना चाहिए कि हमारा शरीर हमारे लिए सबसे घनिष्ठ और आत्मीय जल-भंडार है,
क्योंकि इसमें 70 फीसदी पानी है।

इसं ानी अनभु व में समय की धारणा बनि


ु यादी रूप से सर्यू और चद्रं मा की गति से ही आए हैं। यह चनु ाव हमें खदु
करना है कि हम काल-चक्र की सवारी करें या काल के अंतहीन चक्रों में फंसे रहें। यह समय और यह दिन सबके
परे जाने का एक अनपु म अवसर प्रदान करता है।

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