You are on page 1of 62

रामायण

eISBN: 978-93-8980-757-8
© लेखकाधीन
काशक डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
सं करण : 2020
Ramayana
By - Himanshu Sharma
िवषय सूची
1. रामज म
2. िश ा एवं िववाह
3. रा यािभषेक
4. संहासन
5. वनवास
6. िक कंधा
7. वीर हनुमान
8. लंका िव वंस
9. िमलाप
10. अंत
रामज म

यह ेता युग क बात है।

सरयू नदी के तट पर यह कोशल रा य था, जो वैभवशाली और अ यंत संप था और


यहां क राजधानी का नाम अयो या था। कोशल म सूयवंशी नरे श च वत राजा
दशरथ का रा य था। राजा दशरथ अ यंत परा मी और कु शल शासक थे। उनके
रा य क जा बहत ही सुखी और समृ थी। राजा दशरथ क तीन रािनयां थी पटरानी
का नाम कौश या, बीच वाली रानी का नाम सुिम ा एवं सबसे छोटी रानी का नाम
केकैयी था।

राजा दशरथ को सभी कार के सुख ा थे िकंतु एक सुख अभी भी उनके जीवन म
नह था वह था संतान सुख। संतान ाि के लए उ ह ने बहत पूजा अनु ान िकये
लेिकन अभी तक उनक मनोकामना पूरी नह हो पाई थी। उनक उ बढ़ती ही जा
रही थी। उ ह अपनी वृ ाव था और आस मृ यु का इतना दख
ु नह था जतना इस
बात का था िक वे िनःसंतान ही मर जाएंगे और सूय वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई
नह होगा। बस वह हमेशा यही सोचते रहते थे।

इ ह घनीभूत िनराशा के ण म उ ह अपने गु विश क याद आई उ ह ने गु


विश के आ म म जाने का िनणय िकया। राजा दशरथ को अपने आ म म देखकर
गु विश ने उनसे पूछा।

‘अरे राजन आप वयं य आए म ही चला आता और आप इतने दख


ु ी िदखाई य
दे रहे ह।‘
गु देव आप जानते ह मुझे एक ही दख
ु है और वह है संतानहीनता। म अब बूढ़ा हो
चला हं और एक िदन मृ यु को भी ा हो जाऊंगा। अगर संतान नह हई तो सूयवंश
का अंत िन चत है। आप ही बताइए म या क ं ।

गु विश ने राजा दशरथ को पु काम य का अनु ान करने क सलाह दी। बस


अयो या म पु काम य क तैया रयां आरं भ हो गई और सरयू नदी के तट पर
िवशाल य वेदी का िनमाण िकया गया ऋिष ंगी को य के लए अयो या बुलाया
गया।

जस समय अयो या म राम य चल तैया रयां चल रही थी उस समय देवलोक म


एक अलग ही सम या तुित थी। देवगढ़ रावण के अ याचार से अ यंत परे शान थे।
रावण को ा से अभयदान िमला हआ था इस लए वह िनडर होकर देवताओं को
सता रहा था। स चाई तो यह थी िक देवताओं के पास भी रावण को परा जत करने का
कोई कारगर उपाय नह था।

रावण के इस बढ़ते अ याचार और अहंकार के चलते सभी देव िमलकर ा जी के


पास गए और उसके कोप से बचाने का अनुरोध िकया। ाजी बोले िनःसंदेह
दरअसल रावण ने अपनी तप या से मुझे स करके वर मांगा था उसे देव, रा स
अथवा गंधव कोई नह मार सके। िकंतु वह मानव के हाथ से नह बच सकता।

पर पृ वी पर ऐसा मानव है कौन यही एक न था इसके लए उ ह ने सभी देवगण


को िव णु जी के पास भेज िदया। देवगन िव णु जी के पास गए और अपनी सम या
बताई। िव णु जी ने िवचार िकया और बोला
ठीक है, पृ वी पर सूयवंशी नरे श राजा दशरथ संतान ाि के लए महान य कर
रहे ह वह एक अ छे एवं परा मी राजा है म उ ह के यहां पु के प म ज म लूग
ं ा
और कालांतर म रावण का वध करके तीन लोक को रावण के अ याचार से मु
क ं गा।

इधर य समाि के प चात ऋिष ंगी ने अि कुं ड म घृताहित दी और अि कुं ड से


भारी लपट के साथ एक वण कलश िनकला। ऋिष ंगी ने वण कलश राजा
दशरथ को देते हए कहा।

राजन इसम खीर है जो देवताओं ने इस य से स होकर आपके लए भेजी है आप


यह खीर अपनी रािनय को खला द उ ह अव य ही संतान ाि होगी। यह सुनकर
राजा दशरथ का खुशी का िठकाना नह रहा और वण कलश लेकर रािनय के पास
जा पहच
ं े और तीन रािनय ने खीर का पान िकया। समय आने पर तीन ही रािनयां
गभवती हो गई और चै शु ल नवमी ित थ म कक ल म कौश या ने सबसे पहले
एक संतान को ज म िदया और यही राम थे। राम सा ात भगवान का ही अवतार थे
भगवान िव णु ने ही धम क र ा के लए पृ वी पर राम के प म अवतार लया था।
इसके बाद सुिम ा को दो पु र न ा हए जो ल मण और श ु न थे और छोटी रानी
के कई ने भरत को ज म िदया।

ज दी ही यह खबर पूरे अयो या म फैल गई और पूरे अयो या म स ता क लहर


दौड़ चुक थी य िक आज सूयवंश को उनके आग भिव य के राजकु मार िमल चुके
थे।
िश ा एवं िववाह

थोड़ा व गुजरा छ: वष क आयु म चार राजकु मार का य ोपवीत सं कार हआ।


राजा दशरथ ने उ ह महिष विश के आ म म िश ा अजन के लए भेज िदया। राम,
ल मण, भरत एवं श ु न ने आ म म िनयमपूवक रहकर िव ाजन िकया और चार
राजकु मार ने समयानुसार िव ा सफलतापूवक अ जत कर ली और वे वेद, पुराण,
इितहास, शा , अ आिद के अलावा संपूण कलाओं म पारं गत हो गए। राजा दशरथ
अपने पु क यो यता व िश ा दी ा से बहत संतु थे और चार का ही यश
अ पायु म ही चार ओर फैलने लगा था।

एक िदन राजा दशरथ ने राजगु विश से कहा।

गु देव राजकु मार बड़े हो गए ह अब मेरा समय भी पूरा हो चला है बस यही इ छा है


िक राजकु मार का िववाह समारोह देख लूं।

इस पर गु देव ने उ र िदया राजन मेरी भी यही सहमित है।

तो िफर देश देर िकस बात क । राजकु मार के िववाह के लए राजा दशरथ ने
क याओं क खोज का आदेश िदया।

राजकु मार के िववाह के बारे म िवचार-िवमश चल ही रहा था िक तभी ारपाल ने


दरबार म वेश िकया एवं बताया िक महामुिन िव वािम उनसे िमलना चाहते ह।
राजा दशरथ त काल अपने आसन से उठे और वयं जाकर महिष िव वािम का
वागत िकया।
िव वािम महिष का पद ा करने से पहले एक ि य नरे श थे उनका नाम राजा
कौिशक था और िकसी कारणवश उ ह ने महिष बनने क ठानी। राजा दशरथ के
दरबार म ऋिष िव वािम को आदर पूवक लाया गया। राजा दशरथ ने िव वािम से
उनके आगमन का कारण पूछा। िव वािम बोले

राजन म एक य कर रहा हं लेिकन जब य समा होने का समय आता है तभी


मारीच और सुबाह नामक दो रा स आते ह और य वेदी पर हि यां और मांस फक
कर य को अपिव कर उसे भंग कर देते ह। यूं तो म चाहं तो उन दोन को पल भर
म शाप देकर न कर सकता हं िकंतु ऋिषय के लए ोध करना उिचत नह
इस लए म आपके पास आया हं आप राजा ह और मने सुना है िक आपका पु राम
समथ है वह चाहे तो मुझे इस क से उबार सकता है इस लए आप राजकु मार राम
को मुझे दान क जए म उसे अपने साथ लेकर जाना चाहता ह।ं

यह सुनकर राजा दशरथ अ यंत िचंितत हो गए और उ ह ने वयं िव वािम के साथ


चलने क बात कही। िकंतु िव वािम रामअवतार के रह य से प रिचत थे इस लए
उ ह राम पर पूण िव वास था। अंत म राजा दशरथ राम और ल मण को िव वािम
के साथ ले जाने पर सहमत हो गए।

िव वािम राम और ल मण को लेकर दरबार से िनकले। माग म िव वािम आगे


आगे चल रहे थे और उनका अनुसरण करते हए राम ल मण उनके पीछे । दोन के
कंध पर धनुष रखे हए थे। िव वािम ने उ ह रा ते म बला और अितबला नामक
िव ा सखाई। इन िव ाओं को जानकर मानव मा अजय तथा यश वी हो जाता है।

अगले िदन ातः दोन राजकु मार िव वािम के साथ आगे बढ़े माग म अंगदेश पड़ा
गंगा सरयू के संगम पर पहच
ं े। िव वािम के साथ दोन ने यहां कामा म म रात
िबताई और दसरे
ू िदन उनक अगली आगे क या ा आरं भ हई। इसके बाद िव वािम
राम और ल मण गंगा तट पर पहच
ं े वहां के वनवा सय ने उ ह एक नौका दी जस पर
बैठकर उ ह ने नदी पार क ।

आगे सघन वन था और वन म अनेक पशुओं का वर गूज


ं रहा था और भयानक
अंधकार छाया हआ था। राम ने िव वािम से उस वन के बारे म पूछा िव वािम ने
बताया िक आज तो यह जंगल बहत ही भयानक है लेिकन यहां पर कभी समृि देश
बसे हए थे लेिकन सुंद नामक रा क क प नी ताड़का और उसके साथ आया उसका
पु मारीच ने िमलकर इस समृ देश े को तहस-नहस कर डाला इस हरे भरे े
को तबाह कर िदया है। तुम इस तड़का को मारकर पृ वी के पाप को समा कर
सकते हो।

राम ने कहा मुिनवर आपक आ ा िशरोधाय म ताड़का को मारकर मानव मा का


अव य क याण क ं गा

राम ने अपना धनुष उठाया और ताड़का को लहलुहान कर मृ यु लोक पहच


ं ा िदया।
ताड़का के मरते ही वह सुनसान और िनजन इलाका पहले क भांित रमणीक एवं
वैभव म बन गया। इससे स होकर िव वािम ने वष ं क तप या से ा अ
श का ान राम को िदया।

तब वे स ा म पहच
ं े और िव वािम ने बताया िक मने अपना य यहां िनिव न
समा करने क बहत कोिशश क िकंतु रा स के िवरोध के कारण म इसम सफल
नह हो सका ह।ं रा स आकाश माग से आकर खून हि यां और मांसपेिशयां को
अशु कर देते ह अब तु ह ही इससे हमारी र ा करनी होगी। राम और ल मण ने यह
आ ह खुशी-खुशी वीकार िकया। ातः काल सभी तप वी य थल पहच
ं े और
ऋिष िव वािम ने य कुं ड म अि व लत क और अगले ही पल वातावरण म
पिव लोक के वर गूज
ं ने लगे। पांच रात तो िनिव न समा हो गई। जब छठी रात
आई तो आकाश म शोर गूज
ं ने लगा राम ल मण समझ गए िक यह रा स मारीच
और सुबाह अपने सा थय के साथ आ चुका है। हाथ म अपिव व तु म लेकर जैसे
ही रा स सेना िनकट पहच
ं ी तो राम और ल मण ने तीर क वषा करके रा स को
मारना शु कर िदया। राम के एक बाण से तो सुबािह जलकर भ म हो गया वह
दसरे
ू बाण से मारीच लगभग आठ सौ मील उड़ता हआ दरू जाकर िगरा। इसके
अलावा आए सम त रा स तीर क धारा म तड़प तड़प कर मर गए और य
िनिव न समा हो गया सारा वातावरण राम-ल मण क जय जयकार से गुजरने
लगा।

उस समय स ा म म यह सूचना पहच


ं ी िक िम थला नरे श राजा जनक अपनी पु ी के
िववाह के लए वयंवर अनु ान कर रहे ह। िव वािम क इ छा थी िक इस
अनु ान म राजकु मार राम भी भाग ले। उ ह ने राम को इस वयंवर म भाग लेने क
इ छा कट क । राम ने कहा, जैसी आपक आ ा मुिनवर।

महिष िव वािम ने बताया िक राजा जनक के पास एक अि तीय िशव धनुष है जो


देवताओं ने जनक के पूवज को य से स होकर िदया था। इसक िवशेषता यह है
िक इसे बली से बली ाणी भी नह उठा सकता अनेक वीर राजाओं के राजकु मार ने
धनुष उठाया उठाना चाहा िकंतु कोई सफल नह हो सका। राजा जनक क एकमा
शत यही थी जो कोई भी यह धनुष उठा लेगा उसे ही सीता पित के प म वीकार
करे गी। महिष िव वािम का शुभ मुहत पर राम और ल मण के साथ िम थला क
ओर चल पड़े एवं िम थला नगर पहच
ं गए।
यहां चार और सीता के वयंवर क चचा थी िव व के कोने-कोने से अनेक राजा
वह राजकु मार आए हए थे। य शाला म वेद पाठ के वर उ चा रत िकए जा रहे थे
पूरी िम थला फूल से सुस जत थी राजा जनक को जैसे ही िव वािम एवं दशरथ
नंदन राम एवं ल मण के आने क सूचना िमली तो वे वयं उनका आदर स कार
करने पहच
ं े एवं अपनी स ता य क िव वािम ने राम एवं ल मण का प रचय
करवाया एवं राम के बारे म क वीरता के बारे का बखान राजा जनक से िकया।

अगले िदन वयंवर का काय म शु हआ। जनक के जे पु ने राजा क घोषणा


सुना दी िक जो भी इस िपनाक धनुष को उठाकर इस पर यंचा चढ़ाएगा उसे ही
सीता वरमाला पहनाएगी। देश-िवदेश से आए राजा एवं राजकु मार ने एक-एक करके
धनुष के पास गए एवं धनुष पर यंचा चढ़ाने क कोिशश क पर दभु ा यपूण कोई भी
राजा अथवा राजकु मार धनुष को िहला भी नह सका और सभी असफल होकर
ल जा और लािन से चुपचाप अपने अपने आसन पर सर झुकाए बैठ गए।

स खय से िघरी सीता हाथ म वरमाला लए वह पर खड़ी हई यह देख रही थी तब


िव वािम के आदेश पर राम धनुष के पास गए और उ ह ने सीता को देखा। सीता क
ि भी राम पर गई, राम मंद मंद मु काए और इसके बाद उ ह ने हाथ बढ़ाकर बड़े
ही सहज भाव से धनुष उठा लया जैसे कोई फूल हो और अगले ही पल उ ह ने धनुष
क यंचा इतनी जोर से ख ची क भयंकर गजना करता हआ धनुष बीच म ही दो
खंड म टू ट गया। धनुष के टू टते ही पृ वी कांप उठी और चार और धनुष के टू टने का
भ य धमाका गूज
ं गया।

तब स मु ा म राजा जनक अपने आसन से उठे और उप थत जन को संबो धत


करते हए बोले।
म सूयवंशी राजकु मार राम के शौय से अ यंत स हआ। सचमुच इनके रहते पृ वी
वीर से कभी वंिचत नह रह सकती। इ ह ने तो असंभव को भी संभव कर िदया आज
से सीता राम क हई। मुझे अपनी पु ी सीता के लए ऐसा सुयो य वर िमला यह मेरी
पु ी का सौभा य है। जाओ पु ी राम के गले म वरमाला डाल दो। सीता धीरे धीरे
कदम उठाती हई धनुष वैदी क ओर बढ़ी जहां राम ेम भाव से सीता को देख रहे थे।
सीता ने हाथ उठाकर राम के गले म वरमाला डाल दी और आज म उनक हो गई।

िव वािम ने दतू को अयो या भेजकर महाराज दशरथ को यह शुभ सूचना पहच


ं ाई
एवं िववाह म आने का िनमं ण भेजा। राजा दशरथ अपने जे पु के िववाह क
सूचना पाकर फूले न समाए एवं बोले

हम चलगे शी ही िम थला क या ा का सारा बंध िकया जाए। इसके बाद राजा


दशरथ िम थला पहच
ं े और अपने वागत एवं स कार को देखकर वह हैरान हो गए।
सीता का िववाह राम के साथ बड़ी धूमधाम से हआ, उसी अवसर पर सीता क छोटी
बहन उिमला ल मण को याही गई। इसके अित र महाराज जनक के भाई कु श वज
क दो पुि य मांडवी और ुितक ित का िववाह राम के शेष दो छोटे भाइय भरत तथा
श ु न के साथ संप हआ।
रा यािभषेक

राजमहल म आनंद अपने चरमो कष पर था। िववाह के प चात अयो या लौटने के


अवसर पर भरत के मामा यु ा जत भी पधारे हए थे, यु ा जत के साथ भरत एवं
श ु न निनहाल केकैयी देश चले गए।। राम को पाकर या देशवासी ब क सारी
मानवता अपने को ध य मानती थी। राम ने अपना पूण संपूण जीवन जनिहत म
समिपत कर िदया। अपने आचरण से उ ह ने सब का दय जीत लया था। राम बड़
का आदर करते थे और छोट को नेह देते थे। िव ान के ित उनके दय म असीम
स मान के भाव थे। ा ण ऋिष-मुिनय के ित पूजा भाव था, राम राजनीित म
िनपुण थे तो यु िव ा म िन णात, अ याचार के संहारक और धमा माओं के र क
थे।

ेम और अनुराग म बारह वष कैसे बीत गए इसका िकसी को पता भी ना चल सका,


राजा दशरथ वृ हो चले थे रा य काय से िनवृ होकर अब वे आराम करना चाहते
थे। अपने चार पु के ित उ ह बराबर लगाव था, हां राम के ित कु छ िवशेष
झुकाव ज र था य िक राम मेरे सारे गुण मौजूद थे जो एक यो य शासक म होने
चािहए अतः राजा दशरथ अपने बाद राम को ही कोशल नरे श बनाना चाहते थे।

एक िदन राजा दशरथ ने सभी मुख जन ऋिष-मुिनय म मंि य को बुलवाया दरबार


म सभा का आयोजन हआ और कहा,

हे गुणीजन अब तक मने अपने साम य अनुसार जा का पालन िकया अब लेिकन म


वृ हो चला हं और चाहता हं यह महत कायभार राम को स प दं ू राम समथ है,
नीितवान है, शा म पारं गत ह, सुशील है, सदाचारी ह, जा व सल है उ ह संहासन
पर िबठाना आपके िवचार से कैसा रहेगा।

दरबार म उप थत सभी लोग बहत ही स हए और सभी ने एक वर म कहा,


िन चय ही उिचत िवचार है महाराज, राम जैसा राजा पाकर तो हम ध य हो जाएंग।े
बस िफर या था रा यािभषेक का समय चै मास िन चत िकया गया। राम ने भी
राजा दशरथ क आ ा को वीकारा। अगले ही िदन राम का रा यािभषेक करना था
सो राम माताओं से आशीवाद लेकर त म लग गए। अयो या म जन मन म
असाधारण उ साह छा गया आ खर य न छाए अगले ही िदन उनके ाण ि य राम
का राजितलक जो होना था।
संहासन

अयो या म उ साह छाया हआ था सभी जगह पूरे अयो या को द ु हन क तरह सजाया


गया था कल राम का रा यािभषेक जो होना था लेिकन इस सुंदर सजी हई अयो या
को राज महल के झरोखे से देख रही थी केकैयी क प रचा रका मंथरा। वह केकैयी
क िनजी प रचा रका ही नह ब क दरू क र तेदार भी थी भला वह कैसे सहती क
कौश या के पु का राजितलक हो केकैयी का पु भी तो राजा बन सकता है।
रामराजा बना तो कौश या कह लाएगी राजमाता िफर केकैयी का या स मान रहेगा।
ऐसा सोचकर वह अगले ही पल तेज कदम से चलती हई केकैयी के कमरे म जा
पहच
ं ी और तेज वर म बोली।

वाह तुम यहां सो रही हो और उधर तु हारा भा य सोने जा रहा है तु ह कु छ पता भी है


या अनथ होने जा रहा है।

केकैयी हड़बड़ा कर उठ बैठी और संयम से बोली

या बात है मंथरा इतना तेज य चीख रही हो।

तुमने कु छ सुना कर राम का राजितलक होगा कौश या राजमाता कहलाएगी

यह तो बड़ी खुशी क बात है इसम अनथ के साथ राम तो इसके उपयु है और


कौश या क राजमाता बनने से मुझे या आप होगी। राम जस कार कौश या का
पु है वैसा ही मेरा भी है।
मंथरा बोली, िकतनी भोली हो तुम के कई तु ह या पता राम के राजा बनते ही
तु हारी ददु शा कैसी होगी म सदा तु हारा िहत ही तो चाहती हं सो यह अ याय मुझसे
देखा नह जाता देखो तो कैसा ष ं रचा गया है भरत को निनहाल भेज िदया गया
और पीछे से राम को राजा बनाया जा रहा है। तुम कौश या क दासी कहलाओगी
और भरत राम का दास चाहे कु छ भी हो कौश या है तो तु हारी सौतन ही ना। भला
वह तु ह कैसे चैन से रहने देगी अगर राजा दशरथ तु ह बहत चाहते ह तो िफर तु हारे
पु को राजा य नह बनाया जा रहा। यह सरासर धोखा है तु ह बहला-फुसलाकर
अंधरे े म रखा गया है। तु हारा भला बुरा सोचना मेरा फज है और इसी लए म यहां
तु हारे साथ आई ह।ं तुमने सोचा है क राम के राजा बनने के प चात भरत को भी
रा य से िन का सत कर िदया जाएगा और तुम भी जंदगी भर कमरे म रोती रहोगी।

बोलते बोलते मंथरा क सांस फूल गई, मंथरा बार-बार यही बात दोहराए जा रही थी
और उसने केकैयी के मन म भी संदेह का बीज फुिटत कर िदया। आ खर केकैयी
भी तो एक मां ही थी। उसने सोचा या जाने राम राजा बनने के प चात बदल जाए।
तब केकैयी बोली।

मंथरा मेरा िदल बैठा जा रहा है अब तू ही बता िक म या क ं और इस अिन से


कैसे बचा जाए।

मंथरा ने योजना बनाई और कहा

तु ह याद होगा िक राजा दशरथ शंभर नामक असुर से यु के दौरान बुरी तरह घायल
हो गए थे तब तुम ही रथ चलाकर यु भूिम से उ ह बाहर सुरि त लेकर आई थी और
तु हारी सेवा और देखभाल से ही वे व थ हो सके थे और इसके बदले म उ ह ने तु हे
दो वर दान िकए थे और तुमने कहा था िक जब मुझे ज रत होगी म वर मांग लूंगी।
आज वह समय आ गया है तुम उनसे दो वर मांग लो।

या मांगू, केकैयी बोली

मंथरा ने बताया पहला वर यह मांगो िक भरत का राजितलक हो और दसरा


ू वर यह
िक राम को चौदह वष का वनवास हो। अपने मान स मान और वैभव को बचाने
रखने का यही एकमा तरीका है। चौदह साल वनवास करने के बाद राम को सारी
जा िव मृत कर देगी और पूरे रा य म भरत क जय जयकार होगी।

केकैयी, मंथरा के बहकावे म आ गई और उसका चेहरा खुशी से चमक उठा और वह


त काल उठी और अपना राजसी ठाठ बाट उतारा और बाल को िबखेर म लन व
पहने दख
ु क साकार मूित बन कोप भवन म पहच
ं गई और उदासी क िबखेरकर वह
भूिम पर ही लेट गई।

इधर दरबार म मं णा समा हई राजा दशरथ खुशी-खुशी महल पहच


ं े और सभी को
राम के राजितलक क सूचना दी िकंतु केकैयी को अपने क म न पाकर उ ह हैरानी
हई और वह केकैयी को इधर-उधर उसे ढू ढ़ं ने लगे। ढू ढ़ं ते ढू ढ़ं ते वे कोपभवन पहच
ं े
जहां केकैयी को म लन व म लेटे देखकर वे घबराकर कांप उठे और बोले।

ाण ि य, यह या, तुम इस हालत म कोप भवन म। िकसी ने कु छ कह िदया है या


या िकसी ने तु हारा अपमान िकया है।

केकैयी बोली, नह मेरा अपमान िकसी ने नह िकया।

तो िफर इस कोपभवन म य ।
म यह तभी बताऊंगी जब आप मेरी मनोकामना पूरी करने का वचन मुझे दगे।

मने भला तु हारी कौन सी बात टाली है केकैयी। बोलो तुम या चाहती हो, म यह
वचन देता हं िक म तु हारी येक मनोकामना पूरी क ं गा।

तब केकैयी बोली।

तो सुिनए महाराज आपको याद होगा वष ं पूव आपने मुझे दो वर िदए थे। तब मने वे
वर नह मांगे थे लेिकन आज म आपसे वे मांगना चाहती ह।ं मेरा पहला वर यह है िक
जो राम का राजितलक हो रहा है बजाए राम के भरत का राजितलक हो और दसरा

यह िक राम को चौदह वष के वनवास के लए एक तप वी के वेश म भेज िदया
जाए। इसे पूण कर अपना वचन िनभाए और इसे टालकर रघुकुल क रीत को
कलंिकत न कर।

राजा दशरथ यह सुनते ही सु रहे गए केकैयी के कटु वचन गम लावे क तरह उनके
कान म घुलते जा रहे थे। उनक आंख आंसू से भर आई और वे मम आहत होकर
बोले।

केकैयी राम तो तुझ पर भी उतनी ही ा रखता है जतनी दसरी


ू माताओं पर िफर
उसके ित यह दभु ावना य । जस राम का सारा संसार गुणगान करता है तुम उसे
वनवास देने को कह रही हो। आ खर िकस अपराध म म उसे महल से िनकालूं।

केकैयी बोली, महाराज आपने मुझे वचन िदया है और यिद आपने मेरा वचन तोड़ा तो
दिु नया को यह पता चल जाएगा िक रघुवश
ं ी राजा दशरथ ने वचन भंग िकया है और
आप सभी क नजर से िगर जाओगे। आप कु छ भी किहए म अपने िवचार से जरा भी
टस से मस नह होऊंगी। म यह कभी बदा त नह कर सकती िक मेरा पु दास क
तरह जीवन यतीत कर।

राजा दशरथ फूट-फूट कर रोने लगे उ ह ने के केकैयी को मनाने का भरसक यास


िकया लेिकन वह टस से मस नह हई। राजा दशरथ समझ गए िक वह नह मानेगी।
और वे घायल प ी क तरह तड़प कर रह गए और अव कंठ से बोले।

वचन हार चुका हं केकैयी तो वही होगा जो तुम चाहती हो।

इधर राज महल म भारी चहल-पहल थी राजितलक क सारी तैया रयां पूरी हो चुक
थी। लोग उ सुकता से उस पल क ती ा कर रहे थे जब राम के म तक पर
राजमुकुट रखा जाएगा। तब विश ने मं ी सुमत
ं से कहा।

शी महाराज को दरबार म ले आओ िवलंब हो रहा है तािक शुभ मुहत से राम का


राजितलक िकया जा सके।

सुमत
ं त काल राजा दशरथ के पास पहच
ं े एवं राज अिभषेक क कायवाही म भाग
लेने को कहा। राजा दशरथ शोक क साकार ितमा बने हए सुमत
ं को देखते देखते
मूिछत हो गए। सुमत
ं एकदम से घबरा गया। तभी केकैयी पास आई और बोली।

घबराइए नह मं ी दरअसल महाराज रात भर सो नह सके और राजितलक के बारे म


ही सोचते रहे आप जाइए एवं राम को यहां भेज दी जए।

सुमत
ं राम के पास पहच
ं े एवं उ ह ने कहा
रानी केकैयी का आदेश है राजकु मार, आप तुरंत उनके को म जाइए जहां
महाराज आपसे कु छ कहना चाहते ह।

राम उसी समय राजा दशरथ के पास केकैयी के को म पहच


ं े एवं माता-िपता का
चरण पश करके बोले आ ा क जय राजा दशरथ ने नम आंख से पु क ओर
देखा और आंख से अ ु धारा बह िनकली और देर तक पु को देखने का साहस नह
कर सके। राम बोले

हे माता महाराज को या हो गया वे मुझसे बोलते य नह और इतनी दख


ु ी य हो
गए या मुझसे अनजाने म कोई अपराध हो गया है।

यही मौका था जब िक कल को चतुराई से काम लेना था। तब केकैयी बोली

महाराज ने एक बार स होकर मुझे दो वरदान िदए थे आज मने वे दोन मांग लए


तो वे पछता रहे ह यह तो रघुकुल रीत के िवपरीत है। तो तुम ही िपता क कु छ
सहायता करो तािक उन वचन उन पर वचन भंग का कलंक न लगे। मने जो दो वर
मांगे थे उनम पहला यह है िक भरत को रा य िमले और दसरा
ू यह िक तु ह चौदह वष
का वनवास और पु का एकमा कत य यही है िक िपता के यश के लए उसक
वचन र ा के लए वयं को स य माग पर समिपत कर द तो बेहतर यही है िक तुम
इसी समय इन वचन को िनभाओ।

यह सुनकर राम के चेहरे पर मु कु राहट खल गई। उ ह इस बात का तिनक भी खेद


नह हआ िक माता केकैयी ने इस कार के कटु वचन बोले ह। वे मधुर वर म बोले
हे माता बस इतनी सी बात है, मुझे आपका आदेश वीकार है, म तुरंत वनवास को
चला जाऊंगा एवं भरत का ही रा य ितलक होगा। इसम िपता को दख
ु ी होने क कोई
आव यकता नह है िपता के वचन क पूित के लए तो म एक रा य या तीन
लोक के राज को याग सकता ह।ं आप भरत को तुरंत निनहाल से बुलाएं एवं
महाराज को धम संकट से मु कर।

बेचारे दशरथ का कलेजा फटा जा रहा था िफर या कर सकते थे वचन जो हार चुके
थे राजा दशरथ से यह बदा त नह हो सका और उनके कंठ से एक गहरी सांस
िनकली और वे मूिछत हो गए । राम ने मूिछत िपता को संभाला एवं अिभवादन िकया
और को से बाहर िनकल गए। राम को इस बात का तिनक भी अफसोस नह था
िक उनके हाथ से स ा िनकल गई उनके चेहरे पर पहले जैसी ही सौ यता छाई हई थी
ब क वे तो इस बात से बहत ही स थे िक उ ह िपता के वचन को िनभाने का एक
अवसर िमला है।

राम ने कौश या को भरत का राजितलक एवं वयं का चौदह वष का वनवास के


बारे म अवगत कराया। कौश या जो राम के राजितलक का इंतजार कर रही थी
उसके स ता से दमकते चेहरे पर िवषाद क गहरी रे खाएं छा गई। वे मूिछत सी हो
गई तब राम ने आगे बढ़ कर उ ह संभाला। कौश या के अ धक मना करने के बाद
भी राम अपने वचन पर अिडग रहे तब कौश या समझ गई िक राम को अपने पद से
िवत रत करना संभव नह है। वे नम आंख से कांपते वर म बोली।

जाओ पु ई वर तु हारी र ा कर म जानती हं तुम अपने पद से नह भटक सकते तुम


अपने िपता के वचन को पूरा करने के लए कु छ भी कर सकते हो।
अपनी माता से िवदा लेकर राम सीता के को म पहच
ं े और सीता को भी अपने
वनवास जाने के बारे म अवगत कराया। सीता क बड़ी-बड़ी आंख से अ ु क बूदं
लुढ़क पड़ी और बोली

हे आयपु , मुझे छोड़कर आप वनवास भोगगे और म यहां महल म सुख से रहग


ं ी।
एक प नी पित के कम फल भुगतती है। म आपक अधािगनी हं पित क पूरक। सो
जो वनवास आपको िमला है वही मुझे भी िमलना चािहए। आप अकेले वनवास नह
जाएंगे म आपके साथ चलूंगी। महल के सुख आपके िवयोग से म मेरे लए यथ ह।

ऐसा कहकर सीता क आंख से झर झर अ ु बहने लगे। राम सीता का ऐसा अनुराग
देखकर अिभभूत हो उठे उ ह ने सीता को आ लंगन म लया और बोले।

हे सीते, तुमने तो मुझे अजीब दिु वधा म डाल िदया म तो चाहता था िक तु ह अपने
साथ वन का क न भोगने द।ं ू पर सच तो यह है िक तु हारे िबना चौदह वष ं का
वनवास काटना मेरे लए भी मु कल है। चलो यह अ छा हआ िक तुम मेरा साथ देना
चाहती हो। अब देर ना करके हम यथाशी वन क ओर चलने क तैयारी करनी
चािहए।

राम व सीता व व कल व पहने वनवास के लए जाने को उ त हए तो ल मण से


नह रहा गया और वह राम व सीता के चरण म िगर पड़े और रो-रो कर बोले।

मुझे िकसके सहारे छोड़ कर जा रहे ह आप लोग म आपको अकेले नह जाने दग


ं ू ा।
कृपया मुझे भी साथ चलने क अनुमित दी जए।
राम ने ल मण से को काफ समझाया लेिकन ल मण नह माने और उ ह ने ल मण
को भी अपने साथ आने क आ ा दी।

सारे नगर म यह बात फैल गई िक राम चौदह वष के लए वनवास जा रहे ह साथ म


जनक नंिदनी सीता एवं ाता ल मण भी है। नगर के माग ं के दोन और लोग क
भीड़ जमा हो गई चार और कोलाहल मचा हआ था सभी महाराज के इस िविच
िनणय से आ चयचिकत थे। िफर महाराज से अंितम िवदाई लेने तीन अपने महल से
िनकलकर राजमहल क ओर चल पड़े। राजा के को म अ य सभी लोग उप थत
थे जनम माताएं, संबध
ं ी, मं ीगण व गु जन थे। राजा दशरथ ने राम को देखते ही
आवेग से आगे बढ़कर पु का आ लंगन करना चाहा लेिकन वह उन तीन को ऐसी
अव था म देख कर बेहोश होकर नीचे िगर पड़े।

थोड़ी देर बाद उ ह होश आया उ ह एक पलंग पर लटाया गया तब राम ने कहा।

महाराज म वन जा रहा हं साथ म सीता व ल मण भी है। मने उ ह बहत रोकने क


कोिशश क लेिकन उनक हठ के आगे मुझे झुकना ही पड़ा। हम आशीवाद दी जए
तात ी।

दशरथ बोले, पु म लाचार हं ना चाहते हए भी तु ह वन भेजने को िववश ह।ं म तो


इस वचन म बंधा हं तुम नह । तुम चाहो तो यह वचन तोड़कर यही रह सकते हो।

राम बोले, ऐसा ना किहए िपता ी। माता िपता क आ ा मानना ही मेरा थम कत य


है।
ऐसा सुनकर राजा दशरथ क आंख से आंसू बह िनकले। उ ह एक और याल आया
और उ ह ने मं ी सुमत
ं को आदेश िदया िक वनवास को क िवहीन बना िदया जाए।
राम के साथ चतुरंिगनी सेना भेज दी जाए। अंगर क और खास िम भी चले जाएं।
उनके लए पूण यव था क जाए तािक वनवास आनंद पूवक कट सक।

उस समय केकैयी मुंह बनाकर गु से म बोली।

वाह महाराज खूब, अगर राम के साथ सेना, धनधा य, साथी सभी चले गए तो भरत
के लए यहां या रह जाएगा। ऐसा हआ तो मेरे वर का अिभ ाय ही या रह जाता
है।

तब राम मु कु रा कर बोले हे तात माता ठीक कहती ह वन म भोग िवलास क साम ी


ले जा कर या क ं गा। वहां तो मुझे तप वी के समान ही रहना है। बस हम तन
ढकने को व कल व दे दी जए।

केकैयी ने िबना समय गवाएं ही व तीन के हाथ म थमा िदए। बेचारे दशरथ या
करते वह तो अध मूिछत अव था म यह सब देख रहे थे। सीता को ऐसी अव था म
देखकर उनका िदल बैठे जा रहा था। थोड़ी ही देर म तीन ने व कल व धारण
िकए। सभी का अिभवादन िकया और वहां से बाहर िनकल आए।

रथ तैयार खड़ा था। राम, सीता व ल मण रथ पर सवार हए तो अयो या के नर नारी


ब ची बूढ़े सभी रथ के पीछे दौड़ पड़े। राजा दशरथ भी रथ के पीछे जाने को उ त हए
लेिकन थोड़ी ही देर म रथ आंख से ओझल हो गया और पीछे रह गई सफ उड़ती हई
धूल।
कई ांत व नदी नाल को पार करता हआ रथ कोशल रा य क दि णी सीमा क
ओर चला जा रहा था और नया सूरज उगने के साथ ही कोशल देश क सीमा आ
गई। राम रथ से उतरे और हाथ जोड़कर कोशल रा य क सीमा पर से रा य से िवदाई
ली। त प चात वे पुन: रथ पर सवार हए और अग य मुिन के आ म को पार करते
हए गंगा नदी के िकनारे आ पहच
ं े। गंगा तट के इस देश का राजा िनषादराज गुह था
और उसे भी राम के ित असीम ा थी उसे जब यह सूचना िमली क राम ने गंगा
तट पर डेरा डाला है तो वे अपने प रवार, मं ीगण एवं संबं धय के साथ उनके दशन
के लए वहां पहच
ं े। वह राि तीन ने उसी तट पर गुजारी िनषादराज एवं सुमत
ं भी
उ ह के साथ थे।

ातः काल राम ने िनषादराज से अंितम िवदाई ली। िनषादराज के कमचा रय ने एक


सुंदर सी नाव तैयार क । राम, सीता व ल मण नाव म सवार होने लगे तब सुमत
ं ने
नम आंख से पूछा

हे दशरथ नंदन, अब मेरे लए या आदेश है।

राम ने कहा, आपका काम समा हआ आय, अब आप अयो या लौट जाइए। नदी
पार करके हम पैदल ही आगे क या ा करगे। राजमहल पहच
ं कर माताओं के चरण
म हमारी वंदना पहच
ं ाएं और उ ह बता द िक वनवास म हम जरा भी दख
ु ी नह ह।

सुमत
ं क आंख से आंसुओं क झड़ी बह िनकली। सुमत
ं जाना तो नह चाहते थे परं तु
मु कल से अयो या जाने को राजी हए। तीन ने नौका से गंगा क तुित करते हए
इसे पार िकया। तीन नाव से उतरे तब राम ने कहा।
ल मण अब हमारा वा तिवक वनवास आरं भ होता है। वन म संकट क कमी नह ,
तो तुम आगे आगे चलो बीच म सीता और पीछे म तुम लोग क र ा करता हआ
चलूंगा।

ऐसा कहकर वे तीन आगे बढ़ चले।

राजमहल से सभी जा चुके थे। कौश या वही महाराज दशरथ के पास बैठी हई थी
तभी आधी रात को अचानक उनक आंख खुल गई और वे िफर राम को याद करने
लगे तब उ ह दख
ु पूवक कौश या से बोले।

मानव जैसा कम करता है वैसा ही फल पाता है। सच तो यह है िक एक बार


युवाव था म अनजाने म मने वृ मां बाप के एकमा पु वण कु मार को बाण से
मार डाला था। इसी लए मुझे भी पु िवयोग िमला है। अब मुझसे और अ धक नह
िदया जाएगा, मुझे मौत क पग विनयां साफ सुनाई दे रही ह, मेरा दय बैठा जा रहा
है, आंख के सामने अंधरे ा छा रहा है, हे राम, हे ल मण, हे सीते, कहां हो, हे राम, हे
राम।

इतना कहते-कहते उनक धड़कन क गई, सांस के तार टू ट गए, पु िवयोग से


शोकाकु ल राजा दशरथ के ाण पखे उड़ गए।

महाराज के देहांत क खबर पलक झपकते ही पूरे अयो या म फैल गई चार और


शोक का वातावरण छा गया। तीन माताएं कौश या एवं सुिम ा एवं अ य रािनयां
छाती पीट-पीटकर दन कर रही थी। अयो या पर यह दौरा आघात था। सारी नगरी
उजाड़ हो गई थी।
तब विश मुिन के आ ानुसार अगले िदन दरबार म मं ी व राजपु ष एक हए एवं
महाराज दशरथ के अंितम घोषणानुसार विश मुिन ने भरत को केकैयी देश से
बुलाने क बात कही। भरत एवं श ु न अपने निनहाल केकैयी देश से िवदा ली एवं
दगु म रा त को पार करते हए आठव िदन अयो या पहच
ं े।

अयो या को एक नजर से देखते ही भरत को तीत हआ िक कु छ िवपदा ज र है।


अयो या म पहले जैसी रौनक नह थी। भरत बहत घबराए और रथ से उतरे और तेजी
से महाराज दशरथ के को म पहच
ं े। उनका शयनयान खाली था तब वे माता
केकैयी के पास पहच
ं े। भरत को देखते ही केकैयी के चेहरे पर मु कु राहट छा गई वह
खुश हो उठी और पु को आ लंगन म ले कर बोली।

पु अब म बहत खुश ह।ं यहां सब कु शल मंगल है तुम िचंता ना करो।

भरत ने पूछा, लेिकन माता हआ या है। यहां तो मुझे सभी जगह उदासी िदखाई दे रही
है।

केकैयी बोली, बेटा तु हारे परम यश वी िपता हम छोड़ कर परमधाम चले गए ह।

सुनकर भरत को बहत आघात लगा। उससे रहा नह गया और वह फूट-फूट कर रोने
लगे।

केकैयी बोली। पु , यथ इतना शौक मत करो। अंितम समय म भी तु हारे िपता बस


राम, ल मण, और सीता को ही पुकारते रहे और तु हारा नाम तक नह लया।

तब भरत ने आ चय से पूछा, य वे कहां है, या वह अंितम समय िपता के समीप


नह थे।
केकैयी एक पल के लए तो खामोश रही लेिकन िफर उसने भरत को अपने वर के
बारे म एवं उनके वनवास जाने का कारण बता िदया और यह भी कहा िक अब
राजग ी पर भरत ही शासन करगे। भरत के कान को जरा भी िव वास नह हआ।
भरत का सारा शरीर ोध से कांपने लगा वह तेज वर म बोले।

मां म जानता था िक वाथ म अंधे होकर तुम ऐसा पाप करोगी। तुमने तो हमारे वंश
को ही कलंिकत कर िदया। िनःसंदेह तु हारे कारण ही महाराज का िनधन हआ। सोचो
तो माता कौश या और सुिम ा भी पु िवयोग म िकतनी तड़प रही ह गी। आज तु हारे
कारण म अनाथ हो गया मां। मुझे ऐसा रा य और स ा नह चािहए। म राम व ल मण
को वापस ले आऊंगा और उ ह ही संहासन पर िबठाऊंगा। म चला।

तब सभी िविश मं ीगण भरत के पास पहच


ं े और बोले राजकु मार महाराज क इ छा
थी िक आप ही रा य संभाले तो शी स ा संभाल कर देश का क याण कर। राजा
क मृ यु के प चात हमेशा बड़ा पु ही ग ी पर बैठता है। यही िनयम है और इसी म
वंश क मयादा भी है।

भरत बोले, मा कर म संहासन पर नह बैठ सकता। म वन जाकर राम को वापस


ले आऊंगा और वे ही कोशल के संहासन पर बैठने के अ धकारी ह। कृपया मेरे जाने
का बंध कर। म चतुरंिगनी सेना के साथ यथाशी यहां से थान करना चाहता ह।ं

बस िफर या था सभी भरत के जाने क यव था म लग गए और भरत रथ पर


सवार होकर िनकल पड़े। उनके साथ न सफ चतुरंिगनी सेना थी, ब क सम त
मं ीगण, तीन माताएं और अनेक नगर िनवासी भी थे। िनषाद ह िनषाद राज गुम को
जब यह सूचना िमली िक भरत राम को वापस लेने आए ह तािक वह राज क ग ी
संभाल सके एवं जलक जन क याण कर तो िनषादराज ने सैकड़ छोटी-छोटी
नौकाओं से भरत क सेना एवं लोग उसके साथ आए लोग को गंगा के उस पार
पहच
ं ा िदया।

राम ने िच कू ट म अपना तेरा डाला हआ था एवं वनवास काट रहे थे। भरत जैसे ही
राम से िमले तो उनके चरण पर फूट-फूटकर रोए एवं िपता क मृ यु का समाचार
सुनाया। राम अ यंत दख
ु ी हए।

भरत बोले मुझे ऐसा राजपाट नह चािहए भैया उस पर आपका अ धकार है। अयो या
चलकर संहासन संभा लए।

राम बोले मने िपता के आदेश से वन गमन िकया है एवं उनके वचन को पूरा करना
ही मेरा धम है। म वचन तोड़कर उनक आ मा को क नह पहच
ं ाना चाहता।

भरत क काफ कोिशश के बावजूद भी राम अपने िनणय से टस से मस नह हए।


भला वे अपने िपता के वन को वचन को कैसे टालते। तब भरत सभी के साथ राम
क चरण पादक
ु ा लेकर िच कू ट से िवदा हो गए। भरत ने अयो या पहच
ं कर संहासन
पर राम क चरण पादक
ु ाओं को िति त कर िदया और प रवार का उ रदािय व
श ु न को स प िदया और वयं राम क तरह तप वय का बाना धारण कर लया।
भरत ने यह ण लया िक राम वापस जब तक अयो या म नह आएंगे तब तक वे
इसी कार रहगे।
वनवास

भरत से िमलने के बाद राम उदास हो गए। उनक याद ने उ ह ऐसा घेरा िक िच कू ट
म उनका रहना दभर
ू हो गया। उ ह ने िच कू ट से अपना डेरा उठाया और ल मण एवं
सीता के साथ महावन म वेश कर गए।

दंडकार य पहच
ं ते हए वहां िवराज रा स का वध िकया। इस कार अपनी इस
वनवास या ा के दौरान उ ह ने कई रा स का वध िकया एवं ऋिष-मुिनय को उनके
आतंक से बचाया। इस तरह राम को वनवास भोगते हए लगभग 10 साल हो चुके थे।
हरी भरी राह से होते हए राम, सीता और ल मण पंचवटी क ओर चल िदए। लेिकन
अचानक रा ते म उ ह एक िवशाल प ी िदखाई िदया। तब प ी ने हाथ जोड़कर
कहा।

जब से सुना है आप दंडकार य पधारे ह। तब से आपके दशन के लए भटक रहा ह।ं


म जटायु हं राम, तु हारे िपता का िम सो मुझे भी अपना ही िम मानो और मुझे भी
अपने साथ रहने क अनुमित दो। म तु हारी मदद क ं गा।

राम ने जटायु क याचना वीकार ली और पंचवटी क राह पकड़ ली पंचवटी सचमुच


बहत ही रमणीक थल था। राम को यह थान बहत भाया ल मण ने यहां बहत अ छी
सी कु िटया बना डाली और तीन ने हवन कर कु िटया म वेश िकया। अब पंचवटी म
थित यही कु िटया उन तीन का घर थी ल मण बड़े भाई व भाभी क तन मन से सेवा
करने लगे।
हेमत
ं ऋतु थी एक िदन दोन भाई गोदावरी नदी से नहा कर वापस लौटे। तभी आ म
के पास एक रा सी आ पहच
ं ी। यह रा स राज रावण क बहन सूपनखा थी। जैसे ही
उसने राम को देखा वह उसके प पर मोिहत हो गई और राम के सम िववाह
ताव रखा और राम ारा मना करने पर अपना िवकराल प धारण कर सीता क
ओर लपक । भला यह ल मण कैसे बदा त करते राम का आदेश पाते ही उ ह ने
तलवार िनकाली और शूपणखा क नाक कान काट िदए।

सूपनखा पीड़ा के मारे झटपटाती हई वहां से भाग िनकली और अपने भाई खर के पास
पहच
ं ी। खर को यह िब कु ल नह भाया और वयं रथ पर सवार होकर राम से लोहा
लेने चल िदया और साथ म भाई दषण
ू और रा स सेना को भी लेता गया। आ म के
िनकट पहच
ं ते ही खर व उसक सेना राम बाण छोड़ने लगे। तब राम को ोध आया
और उ ह ने ताबड़तोड़ बाण छोड़ना शु कर िदया देखते ही देखते अनिगनत रा स
जमीन पर आ पड़े और पलक झपकते ही सारा े रा स क लाश से पट गया। इस
कार इस भयंकर यु म राम ने दषण
ू के दोन हाथ काट िदए और अंत म सफ खर
बचा जसे भी राम ने अग त मुिन ारा ा अ से मार डाला।

इस यु म अकंपन नामक रा स बच गया जो सीधा लंका नरे श रावण के पास


पहच
ं कर उ ह सारा वृ ांत कह सुनाया और राम क वीरता एवं शि क तारीफ क ।
ऐसे म रावण के ोध का िठकाना नह रहा। तब अकंपन ने रावण को एक उपाय
सुझाया उसने कहा।

राम क प नी सीता अ यंत पवती है और राम उसे बहत चाहते ह। अगर आप सीता
को हर लाए तो राम उसके िवयोग म घुट घुट कर मर जाएगा और आपको जहमत
उठाने क ज रत भी नह पड़ेगी।
यह उपाय रावण को भा गया और वह अपने िद य रथ पर सवार होकर आकाश माग
से सागर पार कर मारीच रा स के पास जा पहच
ं ा। यह वही मारीच था जसे राम ने
कभी िव वािम के य क र ा करते समय ऐसा तीर मारा था िक वह आघात होकर
यहां आकर िगर गया था।

रावण मारीच को दंडकार य ले गया और एक उपाय सुझाया। मारीच ने रावण के कहे


अनुसार वण मृग का प धरा और राम के आ म के पास जा पहच
ं ा। जब सीता क
नजर उस पर पड़ी तो वह उस पर मोिहत हो गई। उसने राम से कहा।

वामी देखो िकतना यारा मृग है। म इसे पालना चाहती हं आप इसे पकड़ कर लाइए।
इसे हम बाद म महल म ले चलगे और अगर यह जीिवत न पकड़ा जाए तो इसे मार
कर इसक छाला ही ले आइए।

पहले तो राम ने सीता को समझाया पर सीता वण माग पाने को किटब थी तब राम


ल मण से बोले।

म यह मृग पकड़ने जा रहा ह।ं हो सकता है यह िकसी रा स ारा हम फंसाने क


चाल हो अगर यह मायावी हआ तो मारा जाएगा परं तु पीछे से तुम यहां रहकर सीता
क र ा करना।

ऐसा कहकर राम वहां से िनकल चले। मायावी मृग कू दता फांदता हआ भाग रहा था
कभी नजर आता तो िफर कभी लु हो जाता। अंत म राम ने उस पर तीर छोड़ िदया
जो मृग क छाती पर जा लगा। बाण लगते ही वह असली प म आ गया और
झटपटाता हआ मारीच जोर से हे ल मण, हे सीते पुकार कर मर गया। राम देखते ही
समझ गए और िक यह रा स क चाल है और दोबारा कु िटया क ओर दौड़े। इधर हे
ल मण, हे सीते सुनते ही सीता ने सोचा िक राम संकट म फंस गए ह तो उ ह ने
ल मण को शी भाई क सहायता करने के लए भेजा। ल मण ने पहले तो सीता को
समझाया िक हो सकता है यह िकसी रा स क चाल हो परं तु सीता के अ धक कहने
पर ल मण ने अपना धनुष बाण संभाला और कु िटया से चल िदए।

लेिकन जाने से पहले ल मण ने कु िटया के चार और तीर से सीमा रे खा अंिकत कर


दी और सीता से कहा िक इस रे खा से बाहर बाहर ना िनकले अ यथा अनथ हो
जाएगा। रावण पास ही िछपा हआ यह सब देख रहा था। ल मण के आ म से दरू जाते
ही उसने एक साधु का वेश धारण िकया िकंतु ल मण क सीमा रे खा पार नह कर
सका। तो उसने दरू से ही आ म के पास पहच
ं कर गुहार लगाई। इस पर सीता बाहर
आई और उसने सोचा िक साधु से कैसा डर। वह िभ ा देने के लए सीमा रे खा से
बाहर िनकल आई और बाहर आते ही रावण वा तिवक प म कट हो गया। यह
देखकर सीता घबरा गई और पूछा।

तुम कौन हो।

रावण बोला, म लंकापित रावण ह।ं

और वह जोर-जोर से हंसते हए उसने सीता को उठा लया और अपने रथ पर उसे


िबठाकर आकाश माग से लंका क ओर उड़ चला। रावण अ हास करता हआ जा
रहा था। वह सीता से बोला।

म ि लोक राजा ह,ं िकंतु तु हारे प के सामने म सब कु छ हार चुका ह।ं तुम मेरी
सम त रािनय म सव म हो। तु ह म महारानी बनाऊंगा, तु हारी असं य दा सया
ह गी और तुम वहां राज करोगी। सीता ने रावण से अपने आप को छु ड़ाने क बहत
कोिशश क परं तु कोई फायदा नह हआ।

रावण जोर-जोर से हंसता हआ जा रहा था। तभी जटायु ने रावण को सीता का हरण
करते हए देखा तो वह ो धत हो गया और सीता को बचाने रावण के पास जा पहच
ं ा।
जटायु का बीच म कू दना रावण को भाया नह और रावण और जटायु म आकाश म
घमासान यु िछड़ गया। परं तु जटायु बूढ़ा और अश था रावण ने ती हार कर
उसके पंख काट िदए और वह तड़पता हआ जमीन पर आ िगरा। बस उसक सांस
बची हई थी। रावण का िवमान लंका क ओर उड़े जा रहा था।

इस कार रावण वन, ांत, नदी- नाल , पवत और सागर को पार करता हआ लंका
जा पहच
ं ा और सीता को अपने महल म ले गया। सीता सो रही थी तब रावण पास
आकर बोला।

रोती य हो सीता मेरा सब कु छ तु हारा है। यह राजपाट, धन दौलत, दास दा सयां


सब तुम पर योछावर है। पटरानी बनकर तुम लंका पर शासन करो। तु ह यहां कोई
क नह होगा।

सीता बोली। नीच रावण, स यवादी और परा मी राम ही मेरे आरा य ह। म िकसी पर
पु ष क छाया भी अपने ऊपर नह पड़ने दग
ं ू ी। तुझे इसक सजा ज र िमलेगी तेरी भी
वही दशा होगी जो खर और दषण
ू क हई।

रावण को ोध आया है बोला, म चाहं तो तु ह जोर-जबद ती से भी हा सल कर


सकता हं िकंतु म तु ह एक वष देता ह।ं अगर तुमने मुझे वीकार नह िकया तो म
तु ह जंदा नह छोडू ंगा।
इतना कहकर रावण ने रा सय से कहा िक इसे अशोक वािटका म ले जाओ। सभी
रा सयां सीता को अशोक वािटका म ले गई।

इधर मारीच का वध करके राम कु िटया क ओर आए। रा ते म ल मण से िमले तो


ल मण ने उ ह सारा मामला समझाया। दोन जैसे ही कु िटया पहच
ं े तो कु िटया खाली
थी। सीता का दर-द
ू रू तक पता नह था। राम क आंख के आगे अंधरे ा छा गया वे
घबरा गए उ ह कु छ समझ नह आया िक पल भर म सीता कहां लापता हो गई।
ल मण भी परे शान हो उठे । उ ह ने चार ओर नजर दौड़ाई और सीता को आवाज
लगाई परं तु कह भी सीता का नामोिनशान नह था। राम क आंख नम हो गई और वे
परे शान हो गए तब ल मण ने उ ह सां वना दी और सीता को खोजने का सुझाव िदया।

माग म खोजते खोजते उ ह जटायु िमल गया जोिक राम क ती ा कर रहा था उसने
बताया िक रावण सीता का हरण कर ले गया है। वह बोला

म तु हारी ती ा कर रहा था राम, लंकापित रावण जानक को हर ले गए ह मने उ ह


छु ड़ाने का बहत यास िकया िकंतु मुकाबला नह कर सका। म कु छ ही पल का
मेहमान हं ऐसा कहकर जटायु ने दम तोड़ िदया। राम ने वीर जटायु का अिभवादन
कर यथािव ध अंितम सं कार िकया और लंका क ओर दि ण िदशा क ओर चल
पड़े।

खोजते खोजते वे दोन वन म काफ आगे दरू दि ण िदशा क ओर िनकल आए चार


ओर अंधकार था तभी एक बहत ही भयानक रा स ने दोन भाई को पंज म दबा
लया। राम ने तलवार से एक ही बार म उसके दोन हाथ काट डाले और वह तड़पता
हआ जमीन पर आ पड़ा। मरते मरते रा स बोला
हे राम, म कबंध ह।ं मने बहत पाप िकए थे। आज म तु हारे हाथ से पाप मु हो गया
ह।ं म तु ह सीता का उ ार का उपाय बताता ह।ं तुम यहां से सीधा ऋ यमूक पवत
चले जाओ वहां पंपापुर नामक नगर है वह वानर राज सु ीव अपने बहादरु वानर के
साथ रहते ह। उनक सेना रावण क सेना से िभड़ने म पूरी तरह समथ है। सु ीव को
उसके भाई बा ल ने उसका रा य हड़प कर उसे घर से भगा िदया है वह भी तु हारे
जैसे िम क तलाश म है। तुम उनक सहायता करो वह तु हारी करे गा। राम ने
ल मण के साथ पंपापुर क राह पकड़ी।
िक कंधा

ऋ यमूक पवत पर सु ीव अपने बचे कु चे वीर मं ी वानर व परमवीर मं ी मुख


हनुमान के साथ रहते थे। बा ल ने उसक बीवी और रा य छीन कर घर से िनकाल
िदया था अब सु ीव को डर था िक कह वह मौका पाकर उसक जान भी न लेले।
उस िदन सु ीव ने देखा िक दो परम तेज वी ब ल धनुधारी इधर ही चले आ रहे ह।
उसे शक हआ िक कह बा ल ने ही तो इ ह मुझे मारने नह भेजा। तब उसने हनुमान
को उनके पास भेजा।

सु ीव के आदेश से हनुमान ा ण िभ ुक के प म पवत से नीचे उतर आए और


राम के पास पहच
ं कर िवनीत भाव से बोले।

हे राजन आप लोग कौन ह, हमारी पृ वी आपके चरण से पिव हई। म सु ीव का


दतू हं जो इस े के वामी ह। उ ह ने आपका प रचय जानना चाहा है। मेरा नाम
हनुमान है सु ीव अपने भाई से सताया हआ है और भागकर यहां आ य लया है। वह
आपक िम ता चाहता है।

ल मण ने हनुमान को बताया। हे हनुमान सु ीव के गुण से भला कौन प रिचत नह ।


हम उसी से िमलने आए ह हम च वत नरे श राजा दशरथ के पु ह। यह ीराम और
म इनका अनुज ल मण। हम चौदह वष का वनवास भोगते हए भटक रहे ह। हमारे
साथ रामि य सीता भी थी िकंतु उ ह रावण हर ले गया। हम सु ीव क िम ता
वीकार है।
हनुमान दंग रह गए। ीराम के दशन पाकर उनक आंख नम हो गई। वे स ता से
फूले न समाए। य िक वह ीराम का काफ वष ं से इंतजार कर रहे थे वे उनके परम
भ थे। उ ह देखकर वे राम के चरण म बैठ गए और बोले।

आप लोग के दशन पाकर हम कृतकृ य हए भु।

और इतना कहकर हनुमान राम ल मण को साथ लेकर ऋ यमूक पवत क ओर चल


पड़े। यहां आकर राम एवं सु ीव क आपस म मुलाकात हई और दोन ने ही अपनी
दःु खद कहानी एक दसरे
ू को सुनाई। दोन ने एक दसरे
ू क सहायता करने का वचन
लया।

इसके बाद राम ने सु ीव को बा ल को हराने क एक योजना बताई और राम के साथ


सभी िक कंधा क ओर चल पड़े। िक कंधा के पास ही वे एक ऐसे थल पर पहच
ं े
जहां वृ के झुड
ं थे राम सभी के साथ वृ क ओट म िछप गए और सु ीव के गले
म उ ह ने एक माला डाल दी तािक वह पहचान सके िक सु ीव कौन है और बा ल
कौन। सु ीव ने बा ल को यु के लए ललकारा और दोन एक दसरे
ू से टकरा गए।
राम ने देर करना उिचत नह समझा और धनुष उठाया और तीर छोड़ िदया जो बाली
के व थल म जाकर लगा। बा ल धरती पर िगरकर अचेत हो गया और उसने दम
तोड़ िदया।

सभी को बा ल क मृ यु का अ यंत दख
ु हआ। सु ीव क आंख भर आई और बा ल
क प नी तारा भी िवलाप करने लगी। इसके बाद बा ल का िव धवत स मान पूवक
अंितम सं कार िकया गया और सु ीव को िक कंधापुरी का सह स मान राजा बनाया
गया और बा ल के पु अंगद को युवराज।
वीर हनुमान

सीता क याद बार-बार राम को घेरकर याकु ल कर देती थी। ऐसे म ल मण राम को
सां वना िदया करते थे हनुमान राम के िवयोग से पीिड़त थे राम का क उनसे देखा
नह जाता था राम के ित उनके दय म असीम ा व अपन व था।

वषा ऋतु ख म हो गई। हनुमान ने सु ीव के पास जाकर उसे अपने कत य एवं वचन
क याद िदलाई। सु ीव ने भी हनुमान को यह िव वास िदलाया िक वह अपने वचन
को भूला नह है। तब सु ीव ने अपनी पूरी सेना के साथ राम के ार पर जाने का
िन चय लया। राम के पास पहच
ं कर सु ीव ने हाथ जोड़कर िवनती क ।

हे भु म सारी तैया रयां करके आया हं अब सीता माता क खोज का काम शु होने
म िवलंब हम िब कु ल नह करगे।

राम आगे बढ़े और सु ीव को आ लंगन म लया और ध यवाद िदया।

राम ने हनुमान क ओर देखते हए कहा।

हे पवनपु तु हारे तो हर जगह पहच


ं है तु हारे जैसा पर म परा मी दसरा
ू कोई
नह । मुझे तुम पर पूरा भरोसा है म जानता हं तुम सीता क खबर अव य लाओगे।

राम को हनुमान क यो यता पर पूरा भरोसा था। राम ने एक अंगूठी हनुमान को देते
हए कहा।
सुनो कपीस, यह अंगूठी म मेरा नाम अंिकत है अगर तु ह कह सीता िमल जाए तो
उसे पहचान के लए अंगूठी दे देना तािक उसे तुम पर कोई शक ना हो।

हनुमान ने अंगूठे ली और ीराम के चरण छू कर व सु ीव से िवदा लेकर सीता क


खोज म वहां से थान कर गए।

पूरी वानर सेना सीता के अनुसध


ं ान म जुट गई। िव वास था िक अव य ही सीता को
खोज लया जाएगा िकंतु सीता अभी तक िकसी को भी नह िमल पाई। सभी
दि णावत समु तट पर आ पहच
ं े। अब तक का सारा यास यथ गया था।

तभी सभी क नजर एक बूढ़े िग क ओर गई जो वही रहता था। वह बोला

हे वानर , मने तु हारे मुख से रावण का नाम सुना। रावण ने बड़ी िनममता से मेरे भाई
जटायु को मार डाला था और म अपने भाई क मौत का बदला लेना चाहता था िकंतु
बहत बूढ़ा होने के कारण म रावण से लड़ने म असमथ ह।ं म तु हारी मदद अव य
क ं गा। सुनो रावण इसी माग से एक पवती नारी को हर ले गया था जो बार-बार
बड़ी क णा से हे राम हे ल मण पुकार रही थी। िनःसंदेह वे माता सीता ही ह गी और
वह कह और नह लंका म ही है जो यहां से चार सौ कोस दरू समु के पास थत है।
वह रा सराज रावण का रा य है बस िकसी तरह समु को पार कर सीता का पता
लगाया जा सकता है।

यह सुन सभी बहत स हए सीता का तब तक पता चल चुका था। िकंतु दर-द


ू रू
तक फैले इस िवशाल असीम सागर को कैसे बाहर िकया जाए यही एक सवाल था।
इस सागर को पार करने क िह मत पूरी वानर सेना म िकसी क नह हो पा रही थी।
तब हनुमान ने सागर पार करने क ठानी और देखते ही देखते हनुमान का आकार
वृहद हो गया और वे एक िवशाल प म आ गए और सागर के िकनारे जा पहच
ं े।
हनुमान बोले

बंधुओं, म यह एक समु तो या ऐसे अनंत समु को लांग सकता हं और ीराम के


लए तो म कु छ भी कर सकता ह।ं तुम िचंता मत करो म सीता माता को खोजकर ही
दम लूंगा और रावण को ऐसा मजा चखाऊंगा िक वह जंदगी भर याद रखेगा।

हनुमान िवदा लेकर एक भ य उछाल भरी और समु के ऊपर से उड़ चले। उ ह दरू


अनेक निदयां तट से िगरती हई समु म िदखाई दी, जहां पर घने वृ क कतार
फैली हई थी। हनुमान समझ गए िक यह लंका है जहां सोने के महल ह। हनुमान तट
के िकनारे नीचे उतरे और एक िशखर पर चढ़कर उ ह ने सोने क लंका को देखा जो
सचमुच इं पुरी के समान सुशोिभत थी। परं तु अभी उ ह यह नह पता था िक सीता
माता को कहां ढू ढ़ं ा जाए। हनुमान जानते थे िक सहज माग से नगर म वेश करना
मु कल है और वे भी नह चाहते थे िक िकसी भी रा स को उनके आगमन का जरा
भी संदेह हो।

तब उ ह ने चालाक से अपना आकार छोटा कर लया और सीधा लंका क दीवार


फांद कर नगर म वेश िकया। हनुमान सीता क खोज म इधर-उधर भटकने लगे,
अनेक बाग बगीच म सीता को ढू ढ़ं ा िकंतु सीता कह नजर नह आई। आ खरकार
हनुमान क तप या रं ग लाई और खोजते खोजते अशोक वािटका म दा खल हो गए।
वािटका बहत ही सुंदर थी। चार और वृ क कतार थी, नाना कार के पि य से
ं न हो रही थी। रं ग-िबरं गे फूल क महक आ रही थी।
वािटका गुज

यह पर सीता कैद थी। हनुमान ने चार ओर नजर घुमाई और अंत म उ ह एक वृ


के नीचे चबूतरे पर उदास व म लन एक ी देखी। जसके चार और रा सयां
मु तैदी से खड़ी थी। ऐसा लग रहा था िक उसने कई िदन से अ का एक दाना भी
मुंह म नह डाला है। चेहरे पर िचंता क गहरी रे खाएं थी। वह इस सुंदर अशोक
वािटका म जरा भी खुश नह थी। हनुमान ने सोचा िनःसंदेह यह सीता ही हो सकती ह
और कोई नह । इतनी सुंदर और शोकाकु ल नारी का इस रमणीक थान म सीता के
अलावा और कौन हो सकता है।

अनजाने म हनुमान क आंख से आंसुओं क धारा टप टप िगरने लगी। सीता माता


क यह थित हनुमान से देखी नह जा रही थी। मौका देखकर हनुमान नीचे झुके और
वृ के पास आकर सीता को संबो धत करके मृद ु वर म राम और उनके वंश का
गुणगान करते हए बोले।

हे सीता माता। म राम का दतू हं वे आपको खोजते खोजते वानर राज सु ीव के पास
पहच
ं े ह। हम उ ह क आ ा से आपको खोजते िफर रहे थे तब मुझे जटायु के भाई ने
आपका पता िदया। म अथाह समु को लांघते हए लंकापुरी पहच
ं ा ह।ं

इस िवकट थान म रा सय के पीड़ादायक स त पहरे म रावण के आतंक को सहते


हए सीता ने जब ये वचन सुने तो लगा जैसे कान म अमृत घुल गया हो। सीता को
वृ पर बैठे हनुमान िदखाई िदए। सीता बोली

तु हारा संदेश सही है वानर। म राम क सीता ही हं और रावण मुझे यहां जबरद ती
उठा लाया है। पर तुम कौन हो, कह तुम कोई मायावी तो नह । य िक इससे पहले
भी मायावी मृग ारा मुझे धोखा िमल चुका है।

हनुमान बोले, हे माता मुझ पर तिनक भी संदेह न कर म िनःसंदेह राम का दतू ही ह।ं
मेरा नाम हनुमान है।
सीता को िव वास िदलाने के लए हनुमान ने वह अंगूठी सीता को िदखाते हए कहा

हे माता यह दे खए मुि का इस पर ीराम का नाम अंिकत है। चलते समय राम ने ही


मुझे यह दी थी तािक आपको िदखाकर िव वास िदला सकूं िक म राम का ही दतू ह।ं

सीता ने अंगूठी या देखी सा ात राम के दशन कर लए और हष और आनंद से


सीता के दय का मयूर नाच उठा। पल भर म ही सीता के चेहरे से मायूसी क छाया
दरू हो गई अब उ ह हनुमान पर कोई संदेह नह रहा।

हे पवनपु , अब मुझे पूण िव वास हो गया है िक तु हे राम ने ही मेरे पास भेजा है।

हनुमान बोले, आपके दख


ु से मेरा दय फटा जा रहा है माता, अगर आप आदेश द तो
म वयं अकेले ही आपको इस कैद से मु कर सकता ह।ं आपको पीठ पर िबठाकर
इसी समय सागर पार करके ीराम के पास पहच
ं ा सकता ह।ं ये रा स मेरा कु छ नह
िबगाड़ पाएंग।े

तब सीता बोली, म जानती हं िक तुमम इतनी शि है पवन पु , िक तुम मुझे यहां से


ले जा सकते हो। परं तु मेरे लए तु हारी पीठ पर सवार होना उिचत नह । म ी राम
के अलावा िकसी पर पु ष को पश भी नह कर सकती। म तो यहां से तभी मु
होना चाहग
ं ी जब वयं राम रावण का वध कर मुझे यहां से ले जाएंग।े

तब सीता ने अपनी चूड़ामिण हनुमान को स पते हए बोली।

यह लो पवन पु , यह मेरी िनशानी राम को दे देना। इसे देखकर राम तुरंत समझ
जाएंगे िक तुम मुझसे िमल चुके हो। उनसे कहना िक सीता के अपमान का बदला
ज दी आ कर ले।
हनुमान बोले ऐसा ही होगा माता। िफर हनुमान िवदा हए।

लंका से िनकलने से पहले हनुमान ने सोचा जरा लंका क साम रक थित भी समझ
लेनी चािहए और रावण क सेना एवं उनके अ -श के भंडार के बारे म भी
जानकारी ले लेनी चािहए। िफर या, हनुमान ने अशोक वािटका म तहस-नहस करना
शु िकया। अशोक वािटका के बड़े बड़े पेड़ को झकझोर कर भूिमसाध कर िदया।
रं ग िबरं गे फूल के सम त पौध को उखाड़ फका और जानबूझकर वािटका के मु य
ार पर खड़े हो गए तािक रावण के रा स उ ह िगर तार करने आए।

तभी बहत से रा स आकर रावण हनुमान क ओर लपक पड़े हनुमान ने एक-एक


कर सभी को मौत के घाट उतार िदया पहले हनुमान ज बुमाली को मारा और इसके
बाद रावण पु अ य कु मार का भी वध कर िदया। तब जाकर मेघनाथ ने ा से
हनुमान को बांध लया और रावण के सम तुत िकया।

रावण का यि व देख हनुमान भी बहत भािवत हए। सुगिठत देह, िवशाल कंध,
बड़ी बड़ी तीखी आंख, भ य चेहरा इतना बलशाली आकषक राजा लेिकन िफर भी
इतना ू र एवं अ यायी हो सकता है हनुमान को यह िव वास नह हआ। रावण गरज
कर बोला।

अरे वानर तू कौन है िकसने भेजा है तुझे और अशोक वािटका म तूने सीता से या
बात क ।

लंकेश म िक कंधा के राजा सु ीव का दतू हं और ीराम का भ हनुमान। आप


इतने िव ान और नीितवान ह उसके बाद भी आपने पर नारी का अपहरण करके
उिचत नह िकया ऐसा करके आपने अपनी मौत वयं आमंि त क है। अभी भी उिचत
समय है आप सीता से मा मांग कर उ ह मु कर दे। राम का दय िवशाल है वह
आपको मा कर दगे नह तो आपक भी वही दशा होगी जो खर व दषण
ू आिद क हो
चुक है।

रावण को ोध के मारे थरथर कांप उठा और उसने रा क को हनुमान के शरीर के


टु कड़े-टु कड़े करके फक देने का आदेश िदया। तभी वहां दरबार म िवभीषण बैठा था
जो रावण का छोटा भाई था। वह अ यंत धािमक वृ का नीितवान दयालु राम भ
था। वह रावण से िवनीत वर म बोला।

हे राजन, इस वानर ने पहले ही बता िदया है िक वह राजा सु ीव का दतू है अतः दतू


को मारना राजनीित के िनयम अनुसार अधम है इससे आपक चार ओर बदनामी
होगी।

रावण ने सोचा िफर बोला, ठीक है िवभीषण, म इसक जान नह लूंगा लेिकन इसके
िकए क सजा अव य दग
ं ू ा। इस वानर क पूछ
ं म आग लगा दो जब यह जली हई पूछ
लेकर िक कंधा पहच
ं ेगा तो इसका खूब मजाक उड़ेगा और यह आजीवन अपने इस
कु कृ य को याद कर पछताएगा।

आदेश सुनते ही सैिनक ने हनुमान क पूछ


ं पकड़ी और उस पर तेल लगाकर आग
जला दी। हनुमान पर इसका कोई फक नह पड़ा ब क उ ह ने इसका फायदा उठाकर
जलती हई पूछ
ं को हवा म लहरा कर सैिनक पर कड़े हार िकए और कई रा स
मारे गए। जो लोग हंस रहे थे उन सभी म आतंक फैल गया। इतने म भी हनुमान को
संतोष नह हआ उ ह ने अब लंका को जलाना आरं भ िकया और लंका धू-धू कर
जलने लगी। इसके बाद हनुमान सीता माता के पास अशोक वािटका पहच
ं े और उ ह ने
हाथ जोड़कर उनसे जाने क आ ा मांगी और हनुमान लंका से थान करने करते
हए बाहर िनकल गए और सागर पार करते समय उ ह ने अपनी पूछ
ं क आग बुझा
ली।

सागर पार कर तट पर जैसे ही सभी को यह पता चला िक सीता माता िमल गई है


सभी ने हनुमान को फूल मालाओं से उनका वागत िकया और िक कंधा पुरी क
ओर थान िकया। वहां पहच
ं कर हनुमान ने सारा वृ ांत सुनाया एवं राम को सीता
क चूड़ामिण दी। राम सीता क ददु शा सुनकर कराह उठे उनक आंख से आंसू क
बूदं छलक पड़ी। वे एक टक सीता क चूड़ामिण को िनहारते रहे। वह बोले

हे सु ीव सीता क चूड़ामिण देखकर मेरा दय रो रहा है यह वही मिण है जो राजा


जनक ने िववाह के अवसर पर सीता को दी थी। तुम यथाशी अपनी तैया रयां शु
करो हम लंका िक और थान करना है। म सारी लंका को धूिमल कर दग
ं ू ा।
लंका िव वंस

लंका पर आ मण करने क तैया रयां शु हो चुक थी। सम त वीर वानर अपनी-


अपनी गुफाओं से बाहर यु म िह सा लेने आ चुके थे। एक िदन वानर सेना राम
सिहत सागर तट पर आ पहच
ं े। परं तु अब सम या यह थी िक सागर को कैसे पार
िकया जाए।

इधर लंका म रावण के ोध का अंत नह था। एक बंदर उनक उसक लंका को


आग के हवाले करके भाग चुका था। यह बात रावण बदा त नह कर पा रहा था।
उसने दरबार म अपने सभी मुख मंि य के सै य अ धका रय को बुलवाया और
कहा।

हम िकसी भी कार से अपमान का बदला लेना है यह सब उस राम के कारण ही


हआ है और इस बार यिद कोई भी वानर या अ य कोई इस लंका म वेश कर उसे
मौत के घाट उतार दो और मुझे यह बताओ िक िकस कार म सीता से िववाह क ं
और उस राम को मजा चखाऊं। तब िवभीषण रावण के आगे हाथ जोड़कर बोला।

हे लंकेश म तो कहग
ं ा जो कु छ कर सोच समझ कर कर एक ही वानर ने लंका क
जो दगु ित बना दी उससे हम सबक हा सल करना चािहए। सीता को वापस भेज दी जए
वरना राम क सेना लंका को तहस-नहस कर देगी। आप सीता को स मान पूवक यहां
से राम को लौटा दी जए राजन इसी म हमारी, आपक और लंका वा सय क भलाई
है। राम के शौय को कौन नह जानता है लंकेश। इन दरबा रय क बात मत सुनो राम
से माफ मांग लो और सीता को स प दो।
इस पर मेघनाद कसमसाया वह भी अपने िपता रावण क भांित दंभी था। उसने उपे ा
से कहा।

आप जैसा कायर हमारे कु ल म कोई पैदा नह हआ हम राम से अव य ट कर लगे।

िवभीषण क बात सुनकर रावण का गु सा सातव आसमान पर जा पहच


ं ा और उसने
सभी के सामने िवभीषण का अपमान िकया और उसे लंका से िनकल जाने का आदेश
िदया। अपमान से िवभीषण का चेहरा र वण हो गया। वह अपने आसन से उठा और
अपने चार मंि य सिहत दरबार से बाहर िनकल गया। अंततः वह सागर पार कर
सीधे वहां पहच
ं ा जहां राम अपनी सेना सिहत डेरा डाले हए थे।

यहां िवभीषण राम से िमला और अपना प रचय िदया।

हे राम मेरा नाम िवभीषण है और म लंका नरे श रावण का छोटा भाई ह।ं

राम बोले तुम हमसे या चाहते हो िवभीषण।

अधिमय का िवनाश भु। रावण ा से अमरता का वर पाकर दंभी हो गया है। मुझे
रावण क शि का पूरा ान है। रावण का भाई कुं भकरण, पु मेघनाद, सेनापित व
मं ी आिद भी अ यंत बलशाली है। म चाहता हं िक आप उसका िवनाश कर लंका को
बचाएं और इस काय म जो कु छ हो सकेगा म आपक सहायता अव य क ं गा।

राम ने बढ़कर स ता से िवभीषण को आ लंगन म लया और उसे भरोसा िदलाते हए


कहा
तुम िचंता ना करो िवभीषण रावण का सवनाश कर लंका को आजाद करगे एवं लंका
के आगामी नरे श आपको बनाएंग।े

तब सभी ने िवशाल सागर को पार करने क योजना बनाई। नल व नील ने वानर


सेना के साथ प थर पर ीराम का नाम लखकर सागर पर डाला और देखते ही
देखते कु छ ही िदन म सौ योजन लंबा पुल बनकर तैयार हो गया। सु ीव क सेना
राम के नेतृ व म लंका क ओर अिभमुख हई और सागर के पार पहच
ं कर राम ने
अपना िशिवर डाल िदया।

रावण को गु चार ने इसक सूचना दी तो रावण को अ यंत ोध आया और वह


िचंता म पड़ गया। तब उसने सोच िवचार कर मायावी कारीगर से राम ल मण का
मायावी कटा हआ सर बनवाया। जसे रावण सीता को बहलाने के लए अपने साथ
ले गया और सीता से जाकर कहा।

यह देखो र रं जत सर मने राम को यु म हराकर उसे और ल मण को मार िदया है


इसे देखकर तुम कह सकती हो िक अब तु हारा राम अब इस दिु नया म नह रहा।
अब मेरी बात मानो और ज दी से मेरी बन जाओ।

कटे हए सर देखकर सीता का रो रो कर बुरा हाल हो गया। रावण को लगा अब तो


उसका यह काम हो जाएगा और सीता शोक म मूिछत हो गई और रावण वहां से चला
गया। तभी रावण के जाते ही सीता के पास रखे राम ल मण के र रं जत म तक
एकाएक िवलु हो गए िवभीषण क प नी से सीता का दख
ु देखा नह गया। रावण के
जाते ही वह सीता के पास आई और उससे बोली हे जनक दल
ु ारी होश म आओ रावण
क बात से दख
ु ी होने क ज रत नह । वह तो एक कपटी व धूत है। राम व ल मण
के जो म तक उसने िदखाई वह मायावी थे दे खए अब गायब हो चुके ह। सच तो यह
है िक रावण राम क शि से भयभीत हो चुका है। अब वह िदन दरू नह जब रावण
राम के हाथ मारा जाएगा। िवभीषण क प नी क बात सुनकर सीता क सारी िचंताएं
जाती रही।

राम जानते थे िक इस यु म लंका वा सय को भी काफ हािन होने वाली है इस लए


उ ह ने एक बार और य न कर अंगद को रावण के दरबार म शांित दतू बनाकर
भेजा। अंगद रावण के सामने जाकर बोला।

हे लंकेश म अंगद बा ल का पु हं और तु हारे भले के लए ीराम ने कहा है िक


सीता को आज ही मु कर दो वरना कल का सूरज उगते ह तुम और तु हारा वंश
यमलोक भेज िदए जाओगे। उ ह ने तु ह आ खरी मौका िदया है।

रावण भला यह य सहने वाला था। उसने अपने रा स को अंगद को िगर तार
करने का आदेश िदया परं तु कोई भी अंगद का पैर तक नह िहला सका। अंगद ने
रा स सैिनक को एक ही हार म दरू कर िदया और वयं एक ऊंचे थान पर चढ़
बैठा जो रावण से संहासन से भी ऊंचा था। रावण के रा स सैिनक म अंगद को बहत
पकड़ने क कोिशश क लेिकन वह हाथ नह आया और वहां से िनकल राम के पास
जा पहच
ं ा।

अंगद दरबार से िनकला ही था िक गु चार ने रावण को आकर सूचना दी िक पूरी


लंका को राम क वानर सेना ने घेर लया है। अब या िकया जाए रावण अंदर ही
अंदर कांप उठा। िकंतु चेहरे पर घबराहट जािहर नह होने दी। राम से ट कर लेने के
अलावा अब कोई और चारा नह रह गया था। वानर सेना यु के लए तैयार हो चुक
थी राम ने भी िबना व गवाएं सेना को लंका क चढ़ाई का आदेश िदया। िफर या
था वानर वीर ने पलक झपकते ही लंका के मु य ार को तोड़ डाला और अंदर
वेश कर भ य भवन इमारत को तोड़ने फोड़ने लगे। रा स सेना म कोलाहल मच
गया और रा स सेना ट कर लेने के लए आगे बढ़ी।

थोड़ी ही देर म वानर सेना और रा स सेना एक दसरे


ू से टकरा गई। पल भर म सारी
धरती लहलुहान हो गई। वानर व रा स वीर गित को ा होने लगे। सागर का पानी
खून से लाल हो गया।

राम के बाण से रा स चुन चुन कर धराशाई होते जा रहे थे।परं तु रावण पु इं जीत
ने धनुष से नागपाश छोड़ी जससे राम व ल मण दोन अचेत हो गए परं तु तभी
आकाश से ग ड़ िवनता का यान उतरा और उसने राम ल मण का पश िकया।
पलक झपकते ही वे होश म आ गए और वानर सेना का उ साह दोबारा लौट आया।

नील ारा रावण के मं ी व सेनापित ह त मारा गया जससे रा स सेना म खलबली


मच गई। ह त क मौत क सूचना से रावण िचंितत हो गया और ऐसे समय म उसने
कुं भकरण क याद आई कुं भकरण शॉप त था और वह छह मास सोता था और छह
माह जागता था। रा स ने कुं भकरण को जगाने के लए ढोल नगाड़े बजाए और खूब
शोर शराबा मचाया तब जाकर कुं भकरण क आंख खुली। कुं भकरण तैयार होकर
रावण से िमला और रावण ने उसे यु म राम एवं ल मण को कु चलने के लए भेज
िदया। हाथ म भयंकर श लेकर व लोह कवच धारण कर कुं भकरण यु भूिम म
पहच
ं गया और वानर सेना पर टू ट पड़ा। वानर सेना वीरगित को ा होने लगी बहत
से वानर मारे गए। चार और मारकाट मच गई।

राम के स का बांध टू ट चुका था। तब राम ने घातक बाण से कुं भकरण पर हार
िकया इससे कुं भकरण का िवशाल लोह कवच टू ट कर नीचे िगर गया। उ ह ने धनुष
क यंचा ख चकर कुं भकरण पर बाण छोड़ िदए आ खर कुं भकरण कब तक इतने
बाण को झेल पाता। कुं भकरण का सर कट कर दरू जा िगरा और शरीर के भी
अनेक टु कड़े हो गए। रा स सेना म उसक मृ यु से मातम छा गया और सभी जगह
जय ीराम क जय-जयकार से गूज
ं उठा।

रावण को कुं भकरण पर बेहद भरोसा था उसक मौत का समाचार सुनते ही वह शोक
म डू ब गया। तब रावण ने नए सरे से यु क तैयारी शु कर दी उसने अपने कु छ
जीिवत पु पृ वीराज, देवांतक, नारांतक, अितकाय आिद को यु भूिम क ओर
रवाना िकया। रावण के यह सभी पु मारे गए। इनके अलावा ढेर सारे रा स भी राम
व ल मण के बाण के आगे िटक नह सके। तब रावण को मेघनाद क याद आई।
अब रावण को इसी पु पर िवजय क सारी आशाएं कि त थी। मेघनाद ने उसी समय
रथ सजाया और यु भूिम क ओर दौड़ पड़ा।

राम ने ल मण को मेघनाद का वध करने के लए यु म भेज िदया साथ म िवभीषण,


हनुमान, जामवंत एवं वानर सेना भी गई। गु से से मेघनाद ने बाण क वषा कर दी।
वह ल मण ने भी िनशाना लगाकर मेघनाद पर बाण छोड़े। तभी मेघनाद का एक ती
बाण ल मण को जा लगा और वे मूिछत होकर जमीन पर िगर पड़े। राम को ल मण
के मूिछत होने का समाचार िमला तो वे िवलाप करने लगे। ल मण को होश म लाने
के अनेक यास िकए गए। तब हनुमान ारा लाए गए वै ने संजीवनी बूटी लाने को
कहा जससे ल मण क जान बचाई जा सके। हनुमान संजीवनी बूटी लेने ोण पवत
पर गए परं तु वहां अनेक बूिटयां थी तो उ ह यह मालूम नह था िक संजीवनी बूटी
कौन सी है। इस लए हनुमान पूरा पवत उठाकर ही यु भूिम म ले आए। वै ने ात
होने से पहले ही संजीवनी बूटी से ल मण को सचेत कर िदया और अगले ही िदन
ल मण, मेघनाद से ट कर लेने गए। लेिकन इस बार ल मण ने राम का नाम लेकर
एक अमोघ बाण मेघनाद पर छोड़ िदया। उस बाण से मेघनाद का सर धड़ से अलग
हो गया और वह मारा गया। मेघनाद के िगरते ही रावण क सेना भाग िनकली।

मेघनाथ का मरना रावण के लए बहत बड़ा आघात था। एक बेटा बचा था वह भी


मारा गया। अब वह उसक मां मंदोदरी को कैसे सां वना द। लंका म शोक छा गया।
रावण ने बचे कु चे सैिनक एवं सेनापितय को बुलाया परं तु कोई फायदा नह हआ।
रावण क िशि त सेना वानर के गु र ा यु के सामने िटक नह पाई। रावण का
ोध अपमान और शोक से बुरा हाल था उ ेजना से उसका सारा शरीर कांप रहा था।

अंत म रावण ने तय िकया िक उसे वयं ही राम से ट कर लेने यु भूिम जाना होगा।
उसने वण रथ तैयार करने का आदेश िदया और रथ पर सवार होकर रण े म आ
पहच
ं ा। उसके साथ अनेक बलशाली रा स वीर और रा स सेना थी। रावण से पहले
मुकाबला करने ल मण और रावण ने बड़ी आसानी से ल मण के बाण को
नाकामयाब कर िदया और अपना यान राम पर कि त िकया।

राम व रावण म घनघोर यु िछड़ गया। रावण ने राम पर घातक वार छोड़ जनका
राम पर कोई भाव नह पड़ा। दोन ही यु क कला म िनपुण थे। एक िदन इं ने
अपना रथ राम के लए भेजा और सारथी मात ल भी। राम ने देव क भट वीकार
क और रथ पर सवार होकर रावण से यु रत हो गए। यह भीषण यु बारह िदन
तक चला। कभी राम रावण पर भारी पड़ते तो कभी रावण राम पर। राम ने अपने
बाण से रावण के अनेक बार दस सर धड़ से अलग िकए िकंतु राम का कोई अ
रावण को नह मार पा रहा था।

उस समय िवभीषण ने राम के पास आकर रावण क नािभ पर एक बार ा छोड़ने


को कहा तब मात ल ने भी राम को ा का उपयोग करने क सलाह दी। राम ने
ा िनकाला और मं के उ चारण के साथ रावण पर छोड़ िदया। ा का वार
अचूक था उस से बच िनकलना रावण के लए मु कल था। रावण के कु छ सोचने से
पहले ही देखते ही देखते ा कवच को फोड़ कर रावण क नािभ म जा घुसा।
रावण पल भर के लए सं ाशू य हो गया। उसके ह थयार छू टकर जा िगरे वह
लड़खड़ाता हआ धरती पर आ िगरा। उसक सांस उखड़ने लगी और वह अंितम सांस
िगनने लगा।

लंका म स ाटा छा गया। मंदोदरी ने त काल रा स को साथ लया और रोती हई


रण े म पहच
ं ी। मंदोदरी के क ण िवलाप से वहां खड़े लोग का दय पसीजने लगा।
राम नीितवान थे। रावण के िगरते ही उ ह ने यु थिगत कर िदया। िवभीषण भी अपने
बड़े भाई क मृ यु पर अ यंत दख
ु ी थे य िक था तो वह रावण का भाई ही। राम ने
आगे बढ़कर िवभीषण को बांह म लया और उसके अ ु प छे और कहा

रावण वीर था तो और उसने वीरता से यु लड़ा। िन चत है िक वह मरणोपरांत वग


म थान पाएगा।

रावण ने मरने से पहले िवभीषण को राजनीित के अनेक गुर समझाएं और उसके बाद
अंितम सांस ली। अंत म समु तट पर रा स राज रावण का िव धवत अंितम सं कार
िकया गया। इस कार यु का अंत हो गया। राम ने लंका का राज िवभीषण को स प
िदया। िवभीषण का िव धवत रा यािभषेक हआ और रावण के बाद लंका के नए नरे श
िवभीषण बने।
िमलाप

राम वह ठहरे हए थे जहां लंका वेश के समय डेरा डाल रखा था। राम को सीता क
िचंता थी सीता अभी तक अशोक वािटका म ही थी। राम ने हनुमान से कहा

हे पवनसुत राजा िवभीषण से आदेश लेकर अशोक वािटका जाओ और सीता को


सम त समाचार सुनाओ।

हनुमान िवभीषण से अनुमित लेकर सीता के पास पहच


ं े सीता हनुमान को देखकर एवं
िवजय समाचार सुनकर खुशी से झूम उठी। सीता क आंख से खुशी के आंसू झलक
रहे थे सीता ने हनुमान से कहा िक राम से कहना िक म उनके दशन के लए तड़प
रही ह।ं सीता का यह संदेश लेकर हनुमान राम के पास वापस आए। हनुमान ने राम
को सीता क सारी बात बताई राम क आंख के सामने परम ि य सीता का सलोना
चेहरा उभर आया और िफर एकाएक न जाने या सोचकर िवचार म हो गए और
उ ह ने हनुमान से कहा।

ठीक है, शी ही म उससे िमलूंगा। उनसे कहो नहा धोकर व नए व आभूषण धारण
कर िफर मेरे पास आए।

जब सीता को यह पता चला िक उ ह पूण व व आभूषण धारण करके ही राम के


सामने आना है उसे थोड़ा अटपटा लगा। पर वे इंकार कैसे करती। उ ह ने अ छी तरह
नान िकया और नवीन व पहने और भ य आभूषण से सजकर तैयार हो गई और
एक पालक म बैठाकर सीता को राम के स मुख लाया गया।
राम वयं उनक ती ा म थे। सीता आगमन क खबर सुनकर सारे वानर उनके
दशन के लए उमड़ पड़े सीता क पालक आकर ार से लगी तो चार और वानर ने
उ ह घेर लया सीता पालक से िनकलकर राम के पास जाने लगी। चार ओर खड़े
वानर सीता के दशन पाकर कृतकृ य हो रहे थे। राम ने भी सीता के दशन से िकसी
को नह रोका।

सीता हैरान थी िक यह राम का कैसा यवहार है। मेरे पास वयं न आकर मुझे
बुलवाया और यहां मेरा खुलेआम दशन करवा रहे ह। सीता को यह पहेली समझ
नह आई। सीता ही नह ब क िकसी को भी राम का यह यवहार पसंद नह आया।
सीता धीमे कदम से राम के पास पहच
ं ी और जोर जोर से रो पड़ी। राम ने आगे
बढ़कर सीता को आ लंगन म लया और गंभीर वर म कहा।

सीते मुझे खुशी है िक मने जो ित ा क थी उसे पूरा कर सका। अब तुम कैद से


मु हो चुक हो और यह सारा कांड तु हारी वजह से हआ था। आज तुम मेरे सामने
खड़ी हो िकंतु तु ह वीकारते मेरा दय झझक रहा है। तुम इतने िदन यहां रही लोग
न जाने कैसी कैसी बात उड़ाएंग।े इस हालत म म तु ह कैसे वीकार क ं ।

सीता तो मधुर वर सुनने क आस म याकु ल थी और कहां राम के कटु वचन


िनकल रहे थे। सीता तेज वर म बोली

मने कभी सोचा भी नह था िक एक िदन मुझे आपसे ऐसे वचन सुनने पड़गे। ऐसा
लांछन सुनकर मेरा िदल टू ट चुका है। यह कौन नह जानता िक रावण मुझे यहां बल
से उठा लाया था िफर आप मुझ पर शंका कर रहे ह।
ल मण भी एक तरफ अपना ोध पाल खड़े थे। उ ह भी वयं राम से ऐसे ही यवहार
क उ मीद न थी। सीता ने कहा

ल मण सुनो अब म एक पल भी जंदा नह रहना चाहती मेरे लए अि व लत


करो म अभी आग म वेश क ं गी।

ल मण के सामने अि व लत करने के अलावा और कोई चारा नह था। ल मण


ने सोचा अ छा है ऐसा लांछन जीवन िबताने से उिचत तो यही है िक सीता माता अि
म ही िव हो जाएं। अि क वाला आकाश को छू ने लगी। सीता हाथ जोड़ पित
के चार ओर एक बार घूमी और िफर िबना िकसी क और देखे बोली।

सभी देवताओं को मेरा नमन। हे अि आज मेरी पिव ता पर संदेह िकया जा रहा है


अगर तु ह भी संदेह हो तो मुझे वीकार करो।

यह कहते ही सीता जलती हई आग म िव हो गई। तभी सारे देवता वहां उतर आए


और अचानक व लत अि से अि देव कट हए उनके साथ साथ साथ सीता
थी। वैसी ही जैसी अि म िव हई थी। अि देव ने राम को सीता स पते हए कहा-

हे राम सीता पिव है इन पर संदेह मत करो।

इतना सुनते ही राम के चेहरे पर हष छा गया। सच तो यह था िक वह आम जनता को


सीता क वा तिवकता से प रिचत कराना चाहते थे। उ ह ने आगे बढ़कर सीता को
आ लंगन म ले लया और बोले।

ि य, तुम पर मुझे कभी संदेह नह रहा, बस लोग ारा इस तरह क बात होने के डर
से मने तु हारी परी ा ली थी तािक भिव य म कभी िकसी को तुम पर शक न हो। या
म नह जानता िक तुम िकतनी पिव हो। यह मने तु हारे लए ही िकया है सीते। मेरे
वचन से तु ह जो क हआ उसका मुझे दख
ु है। सीता ध य हई। उसका सुहाग उसे
वापस िमल गया था।

राम का वनवास समा होने को था। राम को भरत क बड़ी िचंता थी न जाने भरत
अयो या म कैसा समय यतीत कर रहे ह गे। लंका म उनका काम समा हो गया था
और एक िदन उ ह ने िवभीषण से लंका से िवदा होने क अनुमित चाही। िवभीषण ने
उ ह पु पक िवमान स प िदया। राम, सीता, ल मण के अलावा सम त वानर पु पक
िवमान पर सवार हए और अयो या क ओर उड़ान भरी।

हनुमान को पहले ही अयो या भेज िदया तािक वे भरत को उनके आगमन क सूचना
दे द। इस कार सीता एवं राम का िमलाप होने के प चात उनका वनवास भी समा
हो चुका था और वे अयो या पहच
ं रहे थे।
अंत

अयो या म भरत बड़ी याकु लता से राम क ती ा कर रहे थे। उनका एक-एक िदन
राम के आने क बाट म यतीत हो जाता था। चौदह वष का वनवास पूण होने म एक
िदन शेष रह गया था। भरत यथाशी रा य क ज मेदारी राम को स प कर बरी होना
चाहते थे।

राम का आगमन हआ। पु पक िवमान नीचे उतरा, पूरा अयो या राम के जयघोष से
गूज
ं उठा। एक िदन शुभ मुहत िनकाला और राम को संहासन पर आसीन िकया गया।
राम ने रा य संभालते ही शासन क ओर िवशेष यान िदया। उनके रा य म बकरी
और संह एक घाट पर पानी पीते थे। सभी िनवासी एक दसरे
ू से िमल जुल कर रहते
थे, आपस म लड़ाई झगड़ा कोई नह करता था, दरु ाचार का तो नाम ही नह था, सभी
पाप कम ं क भावना से परे थे, सभी संप थे।

एक िदन क बात है राम को पता चला िक सीता के संबध


ं म समाज म अभी भी ऐसी
धारणा है िक सीता लंका म रहने के दौरान पिव नह रही होगी। राम को सीता क
पिव ता पर पूरा िव वास था य िक सीता ने िवशाल जनसमूह के सम वयं अि
परी ा देकर अपनी पिव ता का प रचय िदया था। पर लोग ारा यह बात नए सरे से
उठ गई। राम इस बात से बड़े परे शान हो गए। आ खर राजा थे कैसे इस आरोप को
अनसुना कर दे। तब उ ह ने ल मण को बुलाकर सीता को यागने क बात कही।
ल मण को इस बात पर बहत ोध आया परं तु वे एक राजा क यथा को समझते थे।
सीता ने भी हमेशा पित क आ ा मानना ही सीखा था वह चुपचाप राम के
िनदशानुसार अनुसार महल से िनकलकर वन क ओर चली गई। तब सीता गभवती
थी। ल मण रथ म िबठाकर सीता को दरू वन म छोड़ आए।

वन म महिष वा मीिक ने सीता को आ य िदया। सीता का शेष समय महिष वा मीिक


के आ म म ही गुजरा। सीता ने भी दख
ु से आह नह भरी, महिष वा मीिक से उ ह
िपता तु य ेम िमलता था और एक िदन सीता ने दो पु को ज म िदया। महिष
वा मीिक ने उनका नाम लव और कु श रखा।

अयो या म अ वमेध य क धूम थी। एक िदन महिष वा मीिक को भी य म आने


का िनमं ण िमला था। महिष वा मीिक य म स म लत होने अयो या आए उनके
साथ लव कु श को भी ले आए। महिष वा मीिक ने दोन बालक को रामायण कंठ थ
करा दी थी। महिष के आदेशानुसार वीणा बजाते हए लव कु श मधुर वर म रामायण
का पाठ करते जा रहे थे। राम को इन अ ुत बाल क सूचना िमली तो त काल
दरबार म बुलाया। लव कु श ने राम दरबार म पहच
ं कर राम का अिभवादन िकया और
सुरीले वर म रामायण सुनाने लगे। राम सिहत सारा दरबार उनके वर से अिभभूत
हो उठा। रामायण पाठ क समाि पर राम गदगद हो गए। राम के पूछने पर लव और
कु श ने अपना प रचय महिष वा मीिक के िश य के प म कराया और बताया िक
उ ह ने ही रामायण सखाई है। इतना सुनते ही राम को यक न हो गया िक लव कु श
उ ह के पु ह। उनक आंख नम हो गई।

राम ने महिष वा मीिक से कहा अगर सीता िन पाप है तो य मंडप पर आकर माण
तुत कर जससे सभी अयो या िनवा सय और लोग म यह बात पहच
ं े क सीता
पित ता थी। दसरे
ू िदन ात काल य मंडप म सारा नगर उमड़ आया ।बड़े-बड़े ऋिष
तप वी भी पधारे । सभी सीता के दशन करना चाहते थे। थोड़ी देर म सर झुकाए सीता
महिष वा मीिक के साथ य मंडप म पहच
ं ी। यह सीता पहले वाली सीता तो न थी
िकंतु मुख मंडल पर स च र तक वैसा ही था। सीता ने य मंडप म पहच
ं कर धरती
माता से हाथ जोड़कर िनवेदन िकया।

हे वसुंधरा, सारे िव व को तु ह ने धारण िकया है। आज मेरी लाज तु हारे हाथ है


अगर मने पित के अित र िकसी अ य पु ष का मरण मा भी िकया हो तो मुझे
अपनी गोद म थान न द।

इतना कहना था िक धरती फट गई एक दरार सी बन गई और अंदर से एक संहासन


िनकला जो हीरे मोती और र न से जड़ा था। सीता उस पर बैठ गई और अगले ही
ण संहासन सीता को लए धरती के गभ म समा गया। राम को होश न रहा, भरत,
ल मण, श ु न क आंख से आंसुओं क धारा बह उठी। लव कु श माता को जमीन म
िव होते देख कर आगे दौड़ पड़े लेिकन तब तक सीता धरती म समा चुक थी।

व गुजरा राम को रा य संभालते हए सैकड़ वष यतीत हो गए और एक िदन


यमराज मुिन के भेष म राम से िमलने पहच
ं े और बोले।

भु म यमराज हं ा जी ने कहला भेजा है िक आपने जस हेतु अवतार लया था


वह पूण हआ अब मानव देह याग कर बैकं ु ठधाम पहच
ं े।

राम बोले हे महाराज, मेरा हेतु समा हआ मुझे तो आपक ही ती ा थी आप जाइए


म तुत हो रहा ह।ं राम ने एक िदन मंि य को एक िकया और कहा िक मुझे
बैकं ु ठधाम जाना है। सारे नगर म खबर फैल गई िक राम ने महा याण का िन चय
कर लया है। िफर या था सारे अयो यावासी जैसे हाल म थे उसी हाल म दौड़ते हए
महल जा पहच
ं े। लोग का अपने पित यह यार देखकर राम कृताथ हए और बोले
अंितम समय म तुम लोग मुझसे या चाहते हो, म तुम लोग क मनोकामना पूण
क ं गा।

अयो यावासी बोले भु हमारी तो अब एक यही मनोकामना है िक हम भी आप अपने


साथ ले चल।

राम ने कहा, तथा तु।

और उनक बात वीकार कर ली। राम ने लव कु श को दरबार म बुलाया। कु श को


कोशल का रा य स पा और लव को उ र कोशल का और सभी सरयू नदी के तट
पर पहच
ं े। ल मण भी वही उनक ती ा म थे। िक कंधा पुरी से सु ीव भी प रवार
सिहत आ पहच
ं े थे। राम सिहत सभी सरयू नदी म उतर गए। मं ो चारण के साथ सभी
ने नान िकया तभी आकाश से देवताओं के भेजे िवमान आ गए। उन पर बैठकर राम
सिहत सभी लोग बैकं ु ठधाम को रवाना हो गए। चार और मंद मंद समीर बह रहा था
पु प वृि हो रही थी िवशाल िवमान धीरे -धीरे आकाश म िवलीन होता जा रहा था।

You might also like