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Subject: िहंदी

Topic: फूल और काटँ े

Std: VIII

CB/VIII/2021-22 फूल और काटँ े 1 of 6


मूलभाव
ततु किवता फूल और काटँ े किव अयो या िसंह उपा याय 'ह रऔध' ारा रिचत है । इस किवता
म उ ह ने फूल और काटँ े क तल ु ना उनके िविभ न ाकृितक ( वाभािवक) गणु के आधार पर क
है । एक ही पौधे म इन दोन का ज म एक ही थान पर होता है । पर इनके यवहा रक गणु म बहत
अंतर है । इन दोन का भरण पोषण एक ही अव था म होता ह लेिकन इनके गणु म जमीन आसमान
का फक है । काटँ े उगँ िलय म चभु ते ह । ये िकसी के बहमू य व क क मत क परवाह न करते हए
उ ह भी फाड़ देते ह । यारी और मनोहर िततिलय के पंख को काट देते ह । ये काले भ र को भी
नह छोड़ते, जो पराग (रस) पान के उ े य से फूल पर मडँ राते ह, पर काटँ े उ ह भी घायल कर देते
ह । इन सभी के िवपरीत फूल का वभाव बहत ही अ छा एवं सराहनीय होता है । फूल िततिलय को
अपनी गोद म िबठाते ह तथा भ र को अपना पराग (रस) पान कराते ह । अपने आकषक रंग से यह
सदैव दूसर को भािवत एवं आकिषत करते रहते ह । ये सवि य तथा देवताओं के शीश पर पूजा के
समय चढ़ाए जाते ह । कहने का ता पय यह है िक भले ही मनु य अ छे या ऊँचे कुल म ज मा हो पर
उसका वभाव अ छा ना हो, उनम बड़ पन के भाव नह ह तो सब यथ है । मनु य क मह ा एवं
उसक स ची पहचान उसके स णु एवं यवहार से होती है न िक ऊँचे कुल म ज म लेकर घिृ णत
काय करने से ।

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पहले समहू के िलए

• ‘फूल और काँटे’ किवता के किव कौन ह?


• फूल क कौन-सी िवशेषताए ँ ह?
• फूल और काँटा िततली और भ रे के साथ कै सा
यवहार करते ह?

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दस
ू रे समहू के िलए

• किवता म किव ने िकनके गुण क तुलना क है?


• काटँ क कौन-सी िवशेषताए ँ ह?
• मनु य क स ची पहचान कै से होती है?

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“ह जनम लेते जगह ...... ढंग उनके एक से होते नह ।।”
किव कहते ह िक फूल और काटँ ा दोन एक ही जगह ज म लेते ह और एक ही
पौधा दोन का पालन-पोषण करता है, आसमान म रहनेवाला चादँ भी दोन पर
एक जैसा चमकता है और एक जैसी ही चादँ नी डालता है । जब बा रश होती है
तो बादल भी फूल और काटँ े दोन पर एक-सा बरसते ह और हवाए ँ भी एक
जैसी ही बहती ह लेिकन हम हमेशा एक ही बात देखने िमलती है िक फूल और
काटँ े दोन म बहत अंतर होता है । उनके ढंग अलग-अलग होते ह । किव के
अनस ु ार फूल और काटँ े दोन के वभाव व यवहार म बहत अंतर होता है ।

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“छेदकर काँटा िकसी क ...... हो बड़ पन क कसर ।”

काटँ ा िकसी क भी उगँ ली म चभु जाता है और अगर िकसी के कपड़े म फँस जाए
तो कपड़े भी फट जाते ह । काटँ ा फूल पर बैठने वाली िततिलय के भी पर फाड़
देता है और भ र के काले शरीर को भी नक ु ले शरीर से घायल कर देता है और
दसू री तरफ फूल है जो िक िततिलय व भ र को अपना रस चूसने दते ा है ।
अपनी खशु बू और िनराले रगं से वह हमारे मन क काली को िखला देता है । काटँ ा
जो िक सबक आख ँ म हमेशा खटकता रहता है । फूल अपने सदाचरण से हमेशा
देवताओ ं के िसर पर सशु ोिभत होता है । िजस कार फूल म सभी अ छे गणु है
उसी कार हम मनु य वग को भी अ छे गणु अपनाने चािहए तािक हम भी फूल
क तरह अपना नाम रोशन कर सके ।

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