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निममला
ह द
ं ीकोश
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Nirmala
By Premchand
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ह द
ं ीकोश
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प्रेमचंद
निममला
यों तो बाबू उदयभािुलाल के पररवार में बीसों ी प्राणी थे, कोई ममेरा भाई था,
कोई फुफेरा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, लेककि य ां में उिसे कोई प्रयोजि
ि ीं, व अच्छे वकील थे, लक्ष्मी प्रसन्ि थीं और कुटुम्ब के दररद्र प्राणणयों
को आश्रय दे िा उिका कत्तव्य ी था। मारा सम्बन्ि तो केवल उिकी दोिों
कन्याओं से ै , जजिमें बडी का िाम निममला और छोटी का कृष्णा था। अभी
कल दोिों साथ-साथ गुडडया खेलती थीं। निममला का पन्द्र वां साल था, कृष्णा
का दसवां, कफर भी उिके स्वभाव में कोई ववशेष अन्तर ि था। दोिों चंचल,
णखलाडडि और सैर-तमाशे पर जाि दे ती थीं। दोिों गुडडया का िूमिाम से
ब्या करती थीं, सदा काम से जी चरु ाती थीं। मां पक
ु ारती र ती थी, पर
दोिों कोठे पर नछपी बैठी र ती थीं कक ि जािे ककस काम के ललए बुलाती
ैं। दोिों अपिे भाइयों से लडती थीं, िौकरों को डांटती थीं और बाजे की आवाज
सुिते ी द्वार पर आकर खडी ो जाती थीं पर आज एकाएक एक ऐसी
बात ो गई ै , जजसिे बडी को बडी और छोटी को छोटी बिा हदया ै । कृष्णा
य ी ै , पर निममला बडी गम्भीर, एकान्त-वप्रय और लज्जाशील ो गई ै।
इिर म ीिों से बाबू उदयभािल
ु ाल निममला के वववा की बातचीत कर र े
थे। आज उिकी मे ित हठकािे लगी ै । बाबू भालचन्द्र लसन् ा के ज्येष्ठ पुत्र
भुवि मो ि लसन् ा से बात पक्की ो गई ै । वर के वपता िे क हदया ै
कक आपकी खुशी ी द े ज दें , या ि दें , मुझे इसकी परवा ि ीं; ां, बारात
में जो लोग जायें उिका आदर-सत्कार अच्छी तर ोिा चह ए, जजसमें मेरी
और आपकी जग- ं साई ि ो। बाबू उदयभािुलाल थे तो वकील, पर संचय
करिा ि जािते थे। द े ज उिके सामिे कहठि समस्या थी। इसललए जब वर
के वपता िे स्वयं क हदया कक मुझे द े ज की परवा ि ीं, तो मािों उन् ें
आंखें लमल गई। डरते थे, ि जािे ककस-ककस के सामिे ाथ फैलािा पडे, दो-
तीि म ाजिों को ठीक कर रखा था। उिका अिम
ु ाि था कक ाथ रोकिे पर भी
बीस जार से कम खचम ि ोंगे। य आश्वासि पाकर वे खुशी के मारे फूले
ि समाये।
इसकी सच
ू िा िे अज्ञाि बललका को मंु ढांप कर एक कोिे में बबठा रखा ै।
उसके हृदय में एक ववधचत्र शंका समा गई ै , रोम-रोम में एक अज्ञात भय
का संचार ो गया ै, ि जािे क्या ोगा। उसके मि में वे उमंगें ि ीं ैं ,
जो युवनतयों की आंखों में नतरछी धचतवि बिकर, ओंठों पर मिुर ास्य
बिकर और अंगों में आलस्य बिकर प्रकट ोती ै । ि ीं व ां अलभलाषाएं ि ीं
ैं व ां केवल शंकाएं, धचन्ताएं और भीरू कल्पिाएं ैं। यौवि का अभी तक
पूणम प्रकाश ि ीं ु आ ै।
निममला - और जब मैं चली जाऊंगी तब क्या करे गी? तब ककसके साथ खेलेगी
और ककसके साथ घूमिे जायेगी, बता?
निममला - ि ीं, मेरा घर ोता, तो कोई क्यों जबदम स्ती निकाल दे ता?
चन्दर का परू ा िाम चन्द्रभािु लसन् ा था। निममला से तीि साल छोटा और
कृष्णा से दो साल बडा।
चन्द्र - मेरे साथ घूमिे चल, तो रास्ते में सारी बातें बता दं ।ू ऐसे-ऐसे तमाशे
ोंगे कक दे खकरतेरी आंखें खल
ु जायेंगी। वा में उडती ु ई पररयां ोंगी,
सचमुच की पररयां।
कृष्णा - अच्छा चलो, लेककि ि बताओगे, तो मारूंगी।
चन्द्रभािू और कृष्णा चले गए, पर निममला अकेली बैठी र गई। कृष्णा के चले
जािे सेइस समय उसे बडा क्षोभ ु आ। कृष्णा, जजसे व प्राणों से भी अधिक
प्यार करती थी, आज इतिी निठुर ो गई। अकेली छोडकर चली गई। बात
कोई ि थी, लेककि द:ु खी हृदय दख
ु ती ुई आंख ै, जजसमें वा से भी पीडा
ोती ै । निममला बडी दे र तक बैठी रोती र ी। भाई-ब ि, माता-वपता, सभी
इसी भांनत मुझे भूल जायेंगे, सबकी आंखें कफर जायेंगी, कफर शायद इन् ें दे खिे
को भी तरस जाऊं।
बाग में फूल णखले ु ए थे। मीठी-मीठी सुगन्ि आ र ी थी। चैत की शीतल
मन्द समीर चल र ी थी। आकाश में तारे नछटके ु ए थे। निममला इन् ीं
शोकमय ववचारों में पडी-पडी सो गई और आंख लगते ी उसका मि स्वप्ि-
दे श में, ववचरिे लगा। क्या दे खती ै कक सामिे एक िदी ल रें मार र ी ै
और व िदी के ककिारे िाव की बाठ दे ख र ी ै । सन्ध्या का समय ै । अंिेरा
ककसी भयंकर जन्तु की भांनत बढता चला आता ै। व घोर धचन्ता में पडी ु ई
ै कक कैसे य िदी पार
ोगी, कैसे प ुं चूंगी! रो र ी ै कक क ीं रात ि ो
जाये, ि ीं तो मैं अकेली य ां कैसे र ूं गी। एकाएक उसे एक सुन्दर िौका घाट
की ओर आती हदखाई दे ती ै। व खश
ु ी से उछल पडती ै और ज्यो ी िाव
घाट पर आती ै, व उस पर चढिे के ललए बढती ै , लेककि ज्यों ी िाव के
पटरे पर पैर रखिा चा ती ै , उसका मल्ला बोल उठता ै - तेरे ललए य ां
जग ि ीं ै! व मल्ला की खुशामद करती ै , उसके पैरों पडती ै , रोती ै,
लेककि व य क े जाता ै , तेरे ललए य ां जग ि ीं ै। एक क्षण में िाव
खल
ु जाती ै। व धचल्ला-धचल्लाकर रोिे लगती ै । िदी के निजमि तट पर
रात भर कैसे र े गी, य सोच व िदी में कूद कर उस िाव को पकडिा
चा ती ै कक इतिे में क ीं से आवाज आती ै - ठ रो, ठ रो, िदी ग री ै,
डूब जाओगी। व िाव तुम् ारे ललए ि ीं ै, मैं आता ूं , मेरी िाव में बैठ
जाओ। मैं उस पार प ुं चा दं ग
ू ा। व भयभीत ोकर इिर-उिर दे खती ै कक
य आवाज क ां से आई? थोडी दे र के बाद एक छोटी-सी डोंगी आती हदखाई
दे ती ै । उसमें ि पाल ै , ि पतवार और ि मस्तूल। पें दा फटा ु आ ै , तख्ते
टूटे ु ए, िाव में पािी भरा ु आ ै और एक आदमी उसमें से पािी उलीच र ा
ै । व उससे क ती ै , य तो टूटी ु ई ै , य कैसे पार लगेगी? मल्ला
क ता ै - तुम् ारे ललए य ी भेजी गई ै , आकर बैठ जाओ! व एक क्षण
सोचती ै - इसमें बैठूं या ि बैठूं? अन्त में व निश्चय करती ै - बैठ
जाऊं। य ां अकेली पडी र िे से िाव में बैठ जािा कफर भी अच्छा ै । ककसी
भयंकर जन्तु के पेट में जािे से तो य ी अच्छा ै कक िदी में डूब जाऊं। कौि
जािे, िाव पार प ुं च ी जाये। य सोचकर व प्राणों की मुट्ठी में ललए ु ए िाव
पर बैठ जाती ै । कुछ दे र तक िाव डगमगाती ु ई चलती ै , लेककि प्रनतक्षण
उसमें पािी भरता जाता ै । व भी मल्ला के साथ दोिों ाथों से पािी
उलीचिे लगती ै । य ां तक कक उिके ाथ र जाते ैं , पर पािी बढता ी
चला जाता ै , आणखर िाव चक्कर खािे लगती ै , मालम
ू ोती ै - अब डूबी,
अब डूबी। तब व ककसी अदृश्य स ारे के ललए दोिों ाथ फैलाती ै , िाव िीचे
जाती ै और उसके पैर उखड जाते ैं। व जोर से धचल्लाई और धचल्लाते
ी उसकी आंखें खुल गई। दे खा, तो माता सामिे खडी उसका कन्िा
पकडकर ह ला र ी थी।
***
2
रात के िौ बजे थे। उदयभािुलाल अन्दर बैठे ु ए खचम का तखमीिा लगा र े थे।
व प्राय: रोज ी तखमीिा लगते थे पर रोज ी उसमें कुछ-ि-कुछ पररवतमि
और पररविमि करिा पडता
था। सामिे कल्याणी भौं े लसकोडे ु ए खडी थी।
बाबू सा ब िे बडी दे र के बाद लसर उठाया और बोले- दस जार से कम ि ीं
ोता, बजल्क शायद और बढ जाये।
कल्याणी - तम
ु से दनु िया की कोई भी बात क ी जाती ै , तो ज र उगलिे लगते
ो। इसललए ि कक जािते ो, इसे क ीं हटकिा ि ीं ै , मेरी ी रोहटयों पर
पडी ु ई ै या और कुछ! ज ां कोई बात क ी, बस लसर ो गये, मािों मैं
घर की लौंडी ूं , मेरा केवल रोटी और कपडे का िाता ै । जजतिा ी मैं दबती
ूं , तुम और भी दबाते ो। मफ्ु तखोर माल उडायें, कोई मंु ि खोले, शराब-
कबाब में रूपये लट
ु ें , कोई जबाि ि ह लाये। वे सारे कांटे मेरे बच्चों ी के ललए
तो बोये जा र े ै।
उदयभािु - क्या तम
ु समझती ो कक तम
ु ि संभालेगी तो मेरा घर ी ि
संभलेगा? मैं अकेले ऐसे-ऐसे दस घर संभाल सकता ूं ।
कल्याणी - कौि? अगर ‘आज के म ीिे हदि लमट्टी में ि लमल जाये , तो
क िा कोई क ती थी!
उदयभािु - तब क ां जा र ी ो?
कल्याणी - तम
ु य पछ
ू िे वाले कौि ोते ो? ईश्वर की सजृ ष्ट में असंख्य
प्रावप्रयों के ललए जग ै , क्या मेरे ी ललए जग ि ीं ै?
सूयम - तुम तली दई, मुिे अतेले दर लदता था। तुम क्यों तली दई तीं, बताओ?
सय
ू म - पत
ु ालता तो ता, तम
ु थुिती ि तीं, बताओ अब तो कबी ि दाओगी।
य क कर कल्याणी सूयभ
म ािु को लेकर चारपाई पर लेटी। मां के हृदय से
ललपटते ी बालक नि:शंक ोकर सो गया, कल्याणी के मि में संकल्प-
ववकल्प ोिे लगे, पनत की बातें याद आतीं तो मि ोता - घर को
नतलांजलल दे कर चली जाऊं, लेककि बच्चों का मुं दे खती, तो वासल्य से
धचत्त गद्रगद्र ो जाता। बच्चों को ककस पर छोडकर जाऊं? मेरे इि लालों को
कौि पालेगा, ये ककसके ोकर र ें गे? कौि प्रात:काल इन् ें दि
ू और लवा
णखलायेगा, कौि इिकी िींद सोयेगा, इिकी िींद जागेगा? बेचारे कौडी के तीि
ो जायेंगे। ि ीं प्यारो, मैं तुम् ें छोडकर ि ीं जाऊंगी। तुम् ारे ललए सब कुछ
स लूंगी। निरादर-अपमाि, जली-कटी, खोटी-खरी, घुडकी-णझडकी सब
तुम् ारे ललए स ूं गी।
य ी सोचते ु ए बाबू सा ब उठे , रे शमी चादर गले में डाली, कुछ रूपये ललये,
अपिा काडम निकालकर दस ू रे कुते की जेब में रखा, छडी उठाई और चुपके से
बा र निकले। सब िौकर िींद में मस्त थे। कुत्ता आ ट पाकर चौंक पडा और
उिके साथ ो ललया।
बाबू सा ब िे डपटकर क ा - तम
ु मेरे पीछे -पीछे क्यों आ र े ो?
मतई - क्यों, ककसी को रास्ता चलिे की मिा ी ै? य गली तम्
ु ारे बाप की
ै?
बाबू सा ब जवािी में कुश्ती लडे थे, अब भी हृष्ट-पुष्ट आदमी थे। हदल के भी
कच्चे ि थे। छडी संभालकर बोले - अभी शायद मि ि ीं भरा। अबकी सात
साल को जाओगे।
मतई - मैं सात साल को जाऊंगा या चौद साल को, पर तुम् ें जजद्दा ि छोडूग
ं ा।
ां, अगर तुम मेरे पैरों पर धगरकर कसम खाओ कक अब ककसी को सजा ि
कराऊंगा, तो छोड दं ।ू बोलो मंजूर ै?
उदयभािु-तम
ु टते ो कक मैं पलु लसमैि को बल
ु ाऊं।
मतई - दो!
मतई - तीि!
***
3
भाल - बको मत, जाकर कुसी लाओ। जब कोई काम करिे की क ा गया, तो
रोिे लगता ै । कह ए पडडतजी, व ां सब कुशल ै?
मोटे राम - क्या कुशल क ूं बाबूजी, अब कुशल क ां? सारा घर लमट्टी में लमल
गया।
भाल - मैं खब
ू जािता ूं , पंडडतजी, आप मझ
ु से क्या क ते ैं। ऐसा आदमी
लाख-दो-लाख में एक ोता ै । जजतिा मैं उिको जािता था, उतिा दस ू रा ि ीं
जाि सकता। दो- ी-तीि बार की मल
ु ाकात में उिका भक्त ो गया और
मरिे दम तक र ूं गा। आप समधिि सा ब से क दीजजएगा, मुझे हदली रं ज
ै।
भालचन्द्र एक लमिट तक आंखें बन्द ककये बैठे र े , कफर एक लम्बी सांस खींच
कर बोले - ईश्वर को मंजूर ी ि था कक व लक्ष्मी मेरे घर आती, ि ीं तो
क्या य वज्र धगरता? सारे मिसूबे खाक में लमल गये। फूला ि समाता था कक
व शुभ-अवसर निकट आ र ा ै, पर क्या जािता था कक ईश्वर के
दरबार में कुछ और षड्यन्त्र रचा जा र ा ै । मरिेवाले की याद ी रूलािे के
ललए काफी ै । उसे दे खकर तो जख्म और भी रा जो जायेगा। उस दशा में
ि जािे क्या कर बैठूं। इसे गुण समणझए, चा े दोष कक जजससे एक बार
मेरी घनिष्ठता ो गयी, कफर उसकी याद धचत्त से ि ीं उतरती। अभी तो
खैर इतिा ी ै कक उिकी सरू त आंखों के सामिे िाचती र ती ै , लेककि यहद
व कन्या घर में आ गयी, तब मेरा जजन्दा र िा कहठि ो जायेगा। सच
मानिए, रोते-रोते मेरीआंखें फूट जायेंगी। जािता ूं , रोिा-िोिा व्यथम ै । जो
मर गया व लौटकर ि ीं आ सकता। सब्र करिे के लसवाय और कोई उपाय
ि ीं ै , लेककि हदल से मजबूर ूं । उस अिाथ बाललका को दे खकर मेरा
कलेजा फट जायेगा।
बाबू सा ब समझ गये कक पंडडत मोटे राम कोरे पोथी के ी पंडडत ि ीं, वरि
व्यव ार-िीनत में भी चतुर ैं। बोले - पंडडतजी, लफ से क ता ूं , मुझे उस
लडकी से जजतिा प्रेम ै, उतिा अपिी लडकी से भी ि ीं ै , लेककि जब
ईश्वर को मंजूर ि ीं ै , तो मेरा क्या बस ै? व मत्ृ यु एक प्रकार की अमंगल
सूचिा ै , जो वविाता की ओर से में लमली ै। य ककसी आिेवाली मुसीबत
की आकाशवाणी ै वविाता स्पष्ट रीनत से क र ा ै कक य वववा मंगलमय
ि ोगा। ऐसी दशा में आप ी सोधचये , य संयोग क ां तक उधचत ै । आप
तो ववद्वाि आदमी ैं। सोधचए, जजस काम का आरम्भ ी अमंगल से ो,
उसका अंत अमंगलमय ो सकता ै ? ि ीं, जािबूझकर मक्खी ि ीं निगली
जाती। समधिि सा ब को समझाकर क दीजजएगा, मैं उिकी आज्ञापालि करिे
को तैयार ूं , लेककि इसका पररणाम अच्छा ि ोगा। स्वाथम के वंश में ोकर
मैं अपिे परम लमत्र की सन्ताि के साथ य अन्याय ि ीं कर सकता।
मोटे - इसका मझ
ु े कोई ववचार ि ीं।
भाल - ै तो य ी बात। छूत-छात सब ढकोसला ै । मैं स्वयं ि ीं मािता।
अरे , अभी तक कोई ि ीं आया? छकौडी, भवािी, गुरुदीि, रामगुलाम, कोई तो
बोले!
भाल - ां, क तो हदया, पर मारे संकोच के मुं से शब्द ि निकलता था। झूठ-
मूठ का ोला करिा पडता।
रं गीली - साफ बात करिे में संकोच क्या? मारी इच्छा ै , ि ीं करते। ककसी
का कुछ ललया तो ि ीं ै ? जब दस
ू री जग दस जार िगद लमल र े ैं; तो
व ां क्यों ि करूं? उिकी लडकी कोई सोिे की थोडे ी ै । वकील सा ब जीते
ोते तो शरमाते-शमाते पन्द्र -बीस जार दे मरते। अब व ां क्या रखा ै?
भाल - एक दफा जबाि दे कर मुकर जािा अच्छी बात ि ीं। कोई मख
ु से
कुछ ि क , पर बदिामी ु ए बबिा ि ीं र ती। मगर तुम् ारी जजद से
मजबूर ूं ।
भालचन्द्र पत्िी के आंसुओं को दे ख - दे खकर सूखे जाते थे। अपिे ऊपर झल्ला
र े थे कक िा क मैंिे य खत इसे हदखाया। इसकी जरूरत क्या थी? इतिी
बडी भूल उिसे कभी ि ु ई थी। संहदग्ि भाव से बोले - शायद बैठा ो, मैंिे
तो जािे को क हदया था। रं गीली िे णखडकी से झांककर दे खा। पंडडत
मोटे राम जी बगुले की तर ध्याि लगाये बाजार के रास्ते की ओर ताक र े थे।
लालसा में व्यग्र ोकर कभी य प लू बदलते, कभी व प लू। ‘एक आिे की
लमठाई’ िे तो आशा की कमर ी तोड दी थी, उसमें भी य ववलम्ब, दारूण
दशा थी। उन् ें बैठे दे खकर रं गीलीबाई बोली - ै- ै अभी ै , जाकर क दो,
म वववा करें गे, जरूर करें गे। बेचारी बडी मुसीबत में ै।
भाल - तुम कभी-कभी बच्चों की-सी बातें करिे लगती ो, अभी उससे क
आया ूं कक मझ
ु े वववा करिा मंजरू ि ीं। एक लम्बी-चौडी भलू मका बांििी
पडी। अब जाकर य संदेश क ूं गा, तो व अपिे हदल में क्या क े गा, जरा
सोचो तो? य शादी-वववा का मामला ै। लडकों का खेल ि ीं कक अभी
एक बात तय की, अभी पलट गये। भले आदमी की बात ि ु ई, हदल्लगी ु ई।
रं गीली - अच्छा, तम
ु अपिे मंु से ि क ो, उस ब्राह्मण को मेरे पास भेज दो।
मैं इस तर समझा दं ग
ू ी कक तुम् ारी बात भी र जाये और मेरी भी। इसमें
तो तुम् ें कोई आपजत्त ि ीं ै।
भाल - तुम अपिे लसवा सारी दनु िया को िादाि समझती ो। तुम क ो या मैं
क ूं , बात एक ी ै । जो बात तय ो गयी, व ो गई, अब मैं उसे कफर ि ीं
उठािा चा ता। तुम् ीं तो बार-बार क ती थीं कक मैं व ां ि करूंगी। तुम् ारे ी
कारण मुझे अपिी बात खोिी पडी। अब तुम कफर रं ग बदलती ो। य तो
मेरी छाती पर मूंग दलिा ै । आणखर तुम् ें कुछ तो मेरे माि-अपमाि का
ववचार करिा चाह ए।
रं गीली - इस पत्र में बिावट ि ीं मालूम ोती। बिावट की बात हदल में चुभती
ि ीं। उसमें बिावट की गन्ि अवश्य र ती ै।
रं गीली - मेरी बला से, ज ां चा ो करो। क्यों, भुवि से एक बार क्यों ि ीं पूछ
लेत?
े
संयोग से ठीक इसी वक्त भुविमो ि भी आ प ुं चा। ऐसे सन् ु दर, सुडौल, बललष्ठ
युवक कालेजों में ब ु त कम दे खिे में आते ैं। बबल्कुल मां को पडा था, व ी
गोरा-धचट्टा रं ग, व ी पतले-पतले गुलाब की पत्ती के-से ओंठ, व ी चौडा,
माथा, व ी बडी-बडी आंखें, डील-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, ब्रीचेज, टाई,
बट
ू , ै ट उस पर खब
ू ल र े थे। ाथ में एक ाकी-जस्टक थी। चाल में
जवािी का गरूर था, आंखों में आमत्मगौरव।
रं गीली - क्यों?
रं गीली - तम्
ु ें ऐसी बातें मंु से निकालते शमम ि ीं आती?
भव
ु ि - इसमें शमम की कौि-सी बात ै ? रूपये ककसे काटते ैं ? लाख रूपये तो
लाख जन्म में भी ि जमा कर पाऊंगा। इस साल पास भी ो गया, तो कम-
से-कम पांच साल तक रूपये से सूरत िजर ि आयेगी। कफर सौ-दो-सौ रूपये
म ीिे कमािे लगूंगा। पांच-छ: तक प ुं चते-प ुं चते उम्र के तीि भाग बीत
जायेंगे। रूपये जमा करिे की िौबत ी ि आयेगी। दनु िया का कुछ मजा ि
उठा सकंू ग। ककसी ििी की लडकी से शादी ो जाती, तो चैि से कटती। मैं
ज्यादा ि ीं चा ता, बस एक लाख ो या कफर कोई ऐसी जायदादवाली बेवा
लमले, जजसके एक ी लडकी ो।
रं गीली - तम
ु बाप-पत
ू दोिों एक ी थैली के चट्टे -बट्टे ो। दोिों उस गरीब लडकी
के गले पर छुरी फेरिा चा ते ो।
क ार - मझ
ु े छोडकर आज तक दस
ू रा कोई हटका ि ीं, और ि हटकेगा। साल-
भर से तलब ि ीं लमली। ककसी को तलब ि ीं दे त।े ज ां ककसी िे तलब
मांगी और लगे डांटिे। बेचारा िौकरी छोडकर भाग जाता ै । वे दोिों आदमी,
जो पंखा झल र े थे, सरकारी िौकर ैं। सरकार से दो अदम ली लमले ैं ि!
इसी से पडे ु ए ैं। मैं भी सोचता ूं , जैसा तेरा तािा-बािा वैसे मेरी भरिी! इस
साल कट गये ैं, साल दो साल और इसी तर कट जायेंगे।
मोटे - लवाई की दक
ू ाि में कुछ खा आया था।
भाल - अजी पूरी-लमठाई में व आिन्द क ां, जो बाटी और दाल में ै । दस-
बार आिे खचम ो गये ोंगे , कफर भी पेट ि भरा ोगा, आप मेरे मे माि ैं,
जजतिे पैसे लगे ों ले लीजजएगा।
मोटे - आप ी के लवाई की दक
ू ाि पर खाया था, व जो िुक्कड पर बैठता
ै।
भाल - भला आज तो और रह ए।
भाल - यों जाि ि बचेगी। आओं दस रूपये ववदाई के ब ािे दे दं ।ू ईश्वर कफर
इस मि ू स की सूरत ि हदखाये।
***
4
कल्याणी िे पुत्री को स्िे मयी दृजष्ट से दे खा। इिका कथि ककतिा सत्य ै?
भोले शब्दों में समस्या का ककतिा मालममक निरूपण ै ? सचमुच य ते
प्रसन्ि ोिे की बात ै कक ऐसे कुपात्रों से
सम्बन्ि ि ीं ु आ, रं ज की कोई बात ि ीं। ऐसे कुमािुसों के बीच में बेचारी
निममला की ि जािे क्या गनत ोती अपिे िसीबों को रोती। जरा सा घी दाल
में अधिक पड जाता, तो सारे घर में शोर मच जाता, जरा खािा ज्यादा पक
जाता, तो सास दनिया लसर पर उठा लेती। लडका भी ऐसा लोभी ै । बडी
अच्छी बात ु ई, ि ीं, बेचारी को उम्र भर रोिा पडता। कल्याणी य ां से उठी,
तो उसका हृदय ल्का ो गया था।
पंडडत मोटे राम को लखिऊ से लौटे पन्द्र हदि बीत चुके थे। लौटिे के बाद
दस
ू रे ी हदि से व वर की खोज में निकले थे। उन् ोंिे प्रण ककया था कक मैं
लखिऊ वालों को हदखा दं ग
ू ा कक संसार में तुम् ीं अकेले ि ीं ो, तुम् ारे ऐसे
और भी ककतिे पडे ु ए ैं। कल्याणी रोज हदि धगिा करती थी। आज
उसिे उन् ें पत्र ललखिे का निश्चय ककया और कलम-दवात लेकर बैठी ी थी
कक पंडडत मोटे राम िे पदापमण ककया।
मोटे राम - कायम क्यों ि लसद्ध ोगा? भला, य भी कोई बात ै ? पांच जग
बातचीत कर आया ूं । पांचों की िकल लाया ूं । उिमें से आप चा े जजसे
पसन्द करें । य दे णखए इस लडके का बाप डाक के सीगे में सौ रूपये म ीिे
का िौकर ै । लडका अभी कालेज में पढ र ा ै । मगर िौकरी का भरोसा ै,
घर में कोई जायदाद ि ीं। लडका ोि ार मालूम ोता ै । खािदाि भी अच्छा
ै दो जार में बात तय ो जायेगी। मांगते तो य तीि जार ैं।
कल्याणी - लडके के कोई भाई ै?
मोटे - ि ीं, मगर तीि ब िें ैं और तीिों क्वांरी। माता जीववत ै । अच्छा अब
दस
ू री िकल हदये। य लडका रे ल के सीगे में पचास रूपये म ीिा पाता ै।
मां-बाप ि ीं ैं। ब ुत ी रूपवाि ् सुशील और शरीर से खूब हृष्ट-पुष्ट
कसरती जवाि ै । मगर खािदाि अच्छा ि ीं , कोई क ता ै , मां िाइि थी,
कोई क ता ै , ठकुराइि थी। बाप ककसी ररयासत में मुख्तार थे। घर पर
थोडी सी जमींदारी ै , मगर उस पर कई जार का कजम ै । व ां कुछ लेिा-दे िा
ि पडेगा। उम्र कोई बीस साल ोगी।
मोटे - इसकी कुछ ि पूनछए। चार जार सुिाते ैं। अच्छा य चौथी िकल
हदये। लडका वकील ै , उम्र कोई पैंतीस साल ोगी। तीि-चार सौ की आमदिी
ै । प ली स्त्री मर चुकी ै उससे तीि लडके भी ैं। अपिा घर बिवाया ै।
कुछ जायदाद भी खरीदी ै । य ां भी लेि-दे ि का झगडा ि ीं ै।
मोटे - ब ु त ी उत्तम, पुरािे रईस ैं। अच्छा, य पांचवीं िकल हदए। बाप का
छापाखािा ै । लडका पढा तो बी. ए. तक ै , पर उस छापेखािे में काम करता
ै। उम्र अठार साल की ोगी। घर में प्रेस के लसवाय कोई जायदाद ि ीं
ै , मगर ककसी का कजम लसर पर ि ीं। खािदाि ि ब ु त अच्छा ै , ि बुरा।
लडका ब ु त सन्
ु दर और सच्चररत्र ै । मगर एक जार से कम में मामला
तय ि ोगा, मांगते तो व तीि जार ैं। अब बताइए, आप कौि-सा वर
पसन्द करती ैं?
मोटे राम - आप खब
ू सोच-ववचार लें । मैं यों आपकी मजी का ताबेदार ूं । ज ां
कह एगा व ां जाकर टीका कर आऊंगा। मगर जार का मुं ि दे णखए,
छापेखािे वाला लडका रत्ि ै। उसके साथ
कन्या का जीवि सफल ो जाएगा। जैसी य रूप और गुण की पूरी ै , वैसा ी
लडका भी सुन्दर और सुशील ै।
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प ला म ीिा गज
ु रते ी तोताराम िे निममला को अपिा खजांची बिा ललया।
कच री से आकर हदि-भर की कमाई उसे दे दे त।े उिका ख्याल था कक निममला
इि रूपयों को दे खकर फूली ि समाएगी। निममला बडे शौक से इस पद का
काम अंजाम दे ती। एक-एक पैसे का ह साब ललखती, अगर कभी रूपये कम
लमलते, तो पूछती आज कम क्यों ैं। ग ृ स्थी के सम्बन्ि में उिसे खूब बातें
करती। इन् ीं बातों के लायक व उिको समझती थी। ज्यों ी कोई वविोद की
बात उिके मुं से निकल जाती, उसका मुख ललि ो जाता था।
तोताराम क्रोि से कांप उठे । बोले - तुम् ें जो लडका हदक करे , उसे पीट हदया
करो। मैं भी दे खता ूं कक लौंडे शरीर ो गये ैं। मंसाराम को तो में बोडडिंग
ाउस में भेज दं ग
ू ा। बाकी दोिों को तो आज ी ठीक ककये दे ता ूं ।
निममला अपिे कमरे से बोली - मैंिे कब क ा था कक तुम् ारे काि काट लूंगी
अभी से झठ
ू बोलिे लगे?
निममला - खडे तो ैं, पूछ लो ि, मैंिे क्या आग लगा दी? मैंिे इतिा ी क ा
था कक लडके मुझे पैसों के ललए बार-बार हदक करते ैं, इसके लसवाय जो मेरे
मुं से कुछ निकला ो, तो मेरे आंखें फूट जायें।
तोता - मैं खद
ु इि लौंडों की शरारत दे खा करता ूं , अन्िा थोडे ी ूं । तीिों
जजद्दी और शरीर ो गये ैं। बडे लमयां को तो मैं आज ी ोस्टल में भेजता ूं ।
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