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प्रेमचंद

निममला

ह द
ं ीकोश
www.hindikosh.in
Nirmala

By Premchand

य पुस्तक प्रकाशिाधिकार मुक्त ै क्योंकक इसकी प्रकाशिाधिकार अवधि


समाप्त ो चुकी ैं।

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has expired.

यूिीकोड संस्करण: संजय खत्री. 2012

Unicode Edition: Sanjay Khatri, 2012

आवरण धचत्र: समीरा एवं ववककपीडडया (प्रेमचंद)

Cover image: Samira and Wikipedia.org (Premchand).

ह द
ं ीकोश

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प्रेमचंद

निममला

यों तो बाबू उदयभािुलाल के पररवार में बीसों ी प्राणी थे, कोई ममेरा भाई था,
कोई फुफेरा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, लेककि य ां में उिसे कोई प्रयोजि
ि ीं, व अच्छे वकील थे, लक्ष्मी प्रसन्ि थीं और कुटुम्ब के दररद्र प्राणणयों
को आश्रय दे िा उिका कत्तव्य ी था। मारा सम्बन्ि तो केवल उिकी दोिों
कन्याओं से ै , जजिमें बडी का िाम निममला और छोटी का कृष्णा था। अभी
कल दोिों साथ-साथ गुडडया खेलती थीं। निममला का पन्द्र वां साल था, कृष्णा
का दसवां, कफर भी उिके स्वभाव में कोई ववशेष अन्तर ि था। दोिों चंचल,
णखलाडडि और सैर-तमाशे पर जाि दे ती थीं। दोिों गुडडया का िूमिाम से
ब्या करती थीं, सदा काम से जी चरु ाती थीं। मां पक
ु ारती र ती थी, पर
दोिों कोठे पर नछपी बैठी र ती थीं कक ि जािे ककस काम के ललए बुलाती
ैं। दोिों अपिे भाइयों से लडती थीं, िौकरों को डांटती थीं और बाजे की आवाज
सुिते ी द्वार पर आकर खडी ो जाती थीं पर आज एकाएक एक ऐसी
बात ो गई ै , जजसिे बडी को बडी और छोटी को छोटी बिा हदया ै । कृष्णा
य ी ै , पर निममला बडी गम्भीर, एकान्त-वप्रय और लज्जाशील ो गई ै।
इिर म ीिों से बाबू उदयभािल
ु ाल निममला के वववा की बातचीत कर र े
थे। आज उिकी मे ित हठकािे लगी ै । बाबू भालचन्द्र लसन् ा के ज्येष्ठ पुत्र
भुवि मो ि लसन् ा से बात पक्की ो गई ै । वर के वपता िे क हदया ै
कक आपकी खुशी ी द े ज दें , या ि दें , मुझे इसकी परवा ि ीं; ां, बारात
में जो लोग जायें उिका आदर-सत्कार अच्छी तर ोिा चह ए, जजसमें मेरी
और आपकी जग- ं साई ि ो। बाबू उदयभािुलाल थे तो वकील, पर संचय
करिा ि जािते थे। द े ज उिके सामिे कहठि समस्या थी। इसललए जब वर
के वपता िे स्वयं क हदया कक मुझे द े ज की परवा ि ीं, तो मािों उन् ें
आंखें लमल गई। डरते थे, ि जािे ककस-ककस के सामिे ाथ फैलािा पडे, दो-
तीि म ाजिों को ठीक कर रखा था। उिका अिम
ु ाि था कक ाथ रोकिे पर भी
बीस जार से कम खचम ि ोंगे। य आश्वासि पाकर वे खुशी के मारे फूले
ि समाये।
इसकी सच
ू िा िे अज्ञाि बललका को मंु ढांप कर एक कोिे में बबठा रखा ै।
उसके हृदय में एक ववधचत्र शंका समा गई ै , रोम-रोम में एक अज्ञात भय
का संचार ो गया ै, ि जािे क्या ोगा। उसके मि में वे उमंगें ि ीं ैं ,
जो युवनतयों की आंखों में नतरछी धचतवि बिकर, ओंठों पर मिुर ास्य
बिकर और अंगों में आलस्य बिकर प्रकट ोती ै । ि ीं व ां अलभलाषाएं ि ीं
ैं व ां केवल शंकाएं, धचन्ताएं और भीरू कल्पिाएं ैं। यौवि का अभी तक
पूणम प्रकाश ि ीं ु आ ै।

कृष्णा कुछ-कुछ जािती ै , कुछ-कुछ ि ीं जािती। जािती ै, ब ि को


अच्छे -अच्छे ग िे लमलें गे, द्वार पर बाजे बजेंगे, मे माि आयेंगे, िाच ोगा -
य जािकर प्रसन्ि ै और य भी जािती ै कक ब ि सबके गले लमलकर
रोयेगी, य ां से रो-िोकर ववदा ो जायेगी, मैं अकेली र जाऊंगी - य
जािकर द:ु खी ै , पर य ि ीं जािती कक य इसललए ो र ा ै , माताजी और
वपताजी क्यों ब ि को इस घर से निकालिे को इतिे उत्सुक ो र े ैं। ब ि
िे तो ककसी को कुछ ि ीं क ा, ककसी से लडाई ि ीं की, क्या इसी तर
एक हदि मझ
ु े भी ये लोग निकाल दें गे? मैं भी इसी तर कोिे में बैठकर
रोऊंगी और ककसी को मुझ पर दया ि आयेगी? इसललए व भयभीत भी ैं।

संध्या का समय था, निममला छत पर जािकर अकेली बैठी आकाश की और


तवृ षत िेत्रों से ताक र ी थी। ऐसा मि ोता था पंख ोते, तो व उड जाती
और इि सारे झंझटों से छूट जाती। इस समय ब ु िा दोिों ब िें क ीं सैर
करिे जाया करती थीं। बग्घी खाली ि ोती, तो बगीचे में ी ट ला करतीं,
इसललए कृष्णा उसे खोजती कफरती थी, जब क ीं ि पाया, तो छत पर आई
और उसे दे खते ी ं सकर बोली - तुम य ां आकर नछपी बैठी ो और मैं तुम् ें
ढूंढती कफरती ूं । चलो, बग्घी तैयार करा आयी ूं ।

निममला िे उदासीि भाव से क ा - तू जा, मैं ि जाऊंगी।

कृष्णा - ि ीं मेरी अच्छी दीदी, आज जरूर चलो। दे खो, कैसी ठं डी-ठं डी वा चल


र ी ै।

निममला - मेरा मि ि ीं चा ता, तू चली जा।


कृष्णा की आंखें डबडबा आई। कांपती ु ई आवाज से बोली- आज तुम क्यों ि ीं
चलतीं मुझसे क्यों ि ीं बोलतीं क्यों इिर-उिर नछपी-नछपी कफरती ो? मेरा जी
अकेले बैठे-बैठे घबडाता ै। तुम ि चलोगी, तो मैं भी ि जाऊगी। य ीं
तुम् ारे साथ बैठी र ूं गी।

निममला - और जब मैं चली जाऊंगी तब क्या करे गी? तब ककसके साथ खेलेगी
और ककसके साथ घूमिे जायेगी, बता?

कृष्णा - मैं भी तुम् ारे साथ चलूंगी। अकेले मुझसे य ां ि र ा जायेगा।

निममला मुस्कराकर बोली - तुझे अम्मा ि जािे दें गी।

कृष्णा - तो मैं भी तुम् ें ि जािे दं ग


ू ी। तुम अम्मा से क क्यों ि ीं दे ती कक मैं
ि जाउं गी।

निममला - क तो र ी ूं , कोई सुिता ै!

कृष्णा - तो क्या य तुम् ारा घर ि ीं ै?

निममला - ि ीं, मेरा घर ोता, तो कोई क्यों जबदम स्ती निकाल दे ता?

कृष्णा - इसी तर ककसी हदि मैं भी निकाल दी जाऊंगी?

निममला - और ि ीं क्या तू बैठी र े गी! म लडककयां ैं , मारा घर क ीं ि ीं


ोता।

कृष्णा - चन्दर भी निकाल हदया जायेगा?

निममला - चन्दर तो लडका ै , उसे कौि निकालेगा?

कृष्णा - तो लडककयां ब ु त खराब ोती ोंगी?


निममला - खराब ि ोतीं, तो घर से भगाई क्यों जाती?

कृष्णा - चन्दर इतिा बदमाश ै , उसे कोई ि ीं भगाता। म-तुम तो कोई


बदमाशी भी ि ीं करतीं।

एकाएक चन्दर िम-िम करता ु आ छत पर आ प ुं चा और निममला को दे खकर


बोला - अच्छा आप य ां बैठी ैं। ओ ो! अब तो बाजे बजेंगे, दीदी दल्
ु ि
बिेंगी, पालकी पर चढें गी, ओ ो! ओ ो!

चन्दर का परू ा िाम चन्द्रभािु लसन् ा था। निममला से तीि साल छोटा और
कृष्णा से दो साल बडा।

निममला-चन्दर, मुझे धचढाओगे तो अभी जाकर अम्मा से क दं ग


ू ी।

चन्द्र - तो धचढती क्यों ो तुम भी बाजे सि


ु िा। ओ ो- ो! अब आप दल्
ु ि
बिेंगी। क्यों ककशिी, तू बाजे सुिेगी ि वैसे बाजे तूिे कभी ि सुिे ोंगे।

कृष्णा - क्या बैण्ड से भी अच्छे ोंगे?

चन्द्र - ां- ां, बैण्ड से भी अच्छे , जार गि


ु े अच्छे , लाख गि
ु े अच्छे । तम
ु जािो
क्या एक बैण्ड सुि ललया, तो समझिे लगीं कक उससे अच्छे बाजे ि ीं ोते।
बाजे बजािेवाले लाल-लाल वहदम यां और काली-काली टोवपयां प िे ोंगे। ऐसे
खबूसूरत मालूम ोंगे कक तुमसे क्या
क ूं आनतशबाजजयां भी ोंगी,
वाइयां आसमाि में उड जायेंगी और व ां तारों में लगें गी तो लाल, पीले, रे ,
िीले तारे टूट-टूटकर धगरें गे। बडा बजा आयेगा।

कृष्णा - और क्या-क्या ोगा चन्दि, बता दे मेरे भैया?

चन्द्र - मेरे साथ घूमिे चल, तो रास्ते में सारी बातें बता दं ।ू ऐसे-ऐसे तमाशे
ोंगे कक दे खकरतेरी आंखें खल
ु जायेंगी। वा में उडती ु ई पररयां ोंगी,
सचमुच की पररयां।
कृष्णा - अच्छा चलो, लेककि ि बताओगे, तो मारूंगी।

चन्द्रभािू और कृष्णा चले गए, पर निममला अकेली बैठी र गई। कृष्णा के चले
जािे सेइस समय उसे बडा क्षोभ ु आ। कृष्णा, जजसे व प्राणों से भी अधिक
प्यार करती थी, आज इतिी निठुर ो गई। अकेली छोडकर चली गई। बात
कोई ि थी, लेककि द:ु खी हृदय दख
ु ती ुई आंख ै, जजसमें वा से भी पीडा
ोती ै । निममला बडी दे र तक बैठी रोती र ी। भाई-ब ि, माता-वपता, सभी
इसी भांनत मुझे भूल जायेंगे, सबकी आंखें कफर जायेंगी, कफर शायद इन् ें दे खिे
को भी तरस जाऊं।

बाग में फूल णखले ु ए थे। मीठी-मीठी सुगन्ि आ र ी थी। चैत की शीतल
मन्द समीर चल र ी थी। आकाश में तारे नछटके ु ए थे। निममला इन् ीं
शोकमय ववचारों में पडी-पडी सो गई और आंख लगते ी उसका मि स्वप्ि-
दे श में, ववचरिे लगा। क्या दे खती ै कक सामिे एक िदी ल रें मार र ी ै
और व िदी के ककिारे िाव की बाठ दे ख र ी ै । सन्ध्या का समय ै । अंिेरा
ककसी भयंकर जन्तु की भांनत बढता चला आता ै। व घोर धचन्ता में पडी ु ई
ै कक कैसे य िदी पार
ोगी, कैसे प ुं चूंगी! रो र ी ै कक क ीं रात ि ो
जाये, ि ीं तो मैं अकेली य ां कैसे र ूं गी। एकाएक उसे एक सुन्दर िौका घाट
की ओर आती हदखाई दे ती ै। व खश
ु ी से उछल पडती ै और ज्यो ी िाव
घाट पर आती ै, व उस पर चढिे के ललए बढती ै , लेककि ज्यों ी िाव के
पटरे पर पैर रखिा चा ती ै , उसका मल्ला बोल उठता ै - तेरे ललए य ां
जग ि ीं ै! व मल्ला की खुशामद करती ै , उसके पैरों पडती ै , रोती ै,
लेककि व य क े जाता ै , तेरे ललए य ां जग ि ीं ै। एक क्षण में िाव
खल
ु जाती ै। व धचल्ला-धचल्लाकर रोिे लगती ै । िदी के निजमि तट पर
रात भर कैसे र े गी, य सोच व िदी में कूद कर उस िाव को पकडिा
चा ती ै कक इतिे में क ीं से आवाज आती ै - ठ रो, ठ रो, िदी ग री ै,
डूब जाओगी। व िाव तुम् ारे ललए ि ीं ै, मैं आता ूं , मेरी िाव में बैठ
जाओ। मैं उस पार प ुं चा दं ग
ू ा। व भयभीत ोकर इिर-उिर दे खती ै कक
य आवाज क ां से आई? थोडी दे र के बाद एक छोटी-सी डोंगी आती हदखाई
दे ती ै । उसमें ि पाल ै , ि पतवार और ि मस्तूल। पें दा फटा ु आ ै , तख्ते
टूटे ु ए, िाव में पािी भरा ु आ ै और एक आदमी उसमें से पािी उलीच र ा
ै । व उससे क ती ै , य तो टूटी ु ई ै , य कैसे पार लगेगी? मल्ला
क ता ै - तुम् ारे ललए य ी भेजी गई ै , आकर बैठ जाओ! व एक क्षण
सोचती ै - इसमें बैठूं या ि बैठूं? अन्त में व निश्चय करती ै - बैठ
जाऊं। य ां अकेली पडी र िे से िाव में बैठ जािा कफर भी अच्छा ै । ककसी
भयंकर जन्तु के पेट में जािे से तो य ी अच्छा ै कक िदी में डूब जाऊं। कौि
जािे, िाव पार प ुं च ी जाये। य सोचकर व प्राणों की मुट्ठी में ललए ु ए िाव
पर बैठ जाती ै । कुछ दे र तक िाव डगमगाती ु ई चलती ै , लेककि प्रनतक्षण
उसमें पािी भरता जाता ै । व भी मल्ला के साथ दोिों ाथों से पािी
उलीचिे लगती ै । य ां तक कक उिके ाथ र जाते ैं , पर पािी बढता ी
चला जाता ै , आणखर िाव चक्कर खािे लगती ै , मालम
ू ोती ै - अब डूबी,
अब डूबी। तब व ककसी अदृश्य स ारे के ललए दोिों ाथ फैलाती ै , िाव िीचे
जाती ै और उसके पैर उखड जाते ैं। व जोर से धचल्लाई और धचल्लाते
ी उसकी आंखें खुल गई। दे खा, तो माता सामिे खडी उसका कन्िा
पकडकर ह ला र ी थी।

***
2

बाबू उदयभािुलाल का मकाि बाजार बिा ु आ ै । बरामदे में सुिार के थौडे


और कमरे में दजी की सई ु यां चल र ी ैं। सामिे िीम के िीचे बढई
चारपाइयां बिा र ा ै । खपरै ल में लवाई के ललए भट्ठा खोदा गया ै।
मे मािों के ललए अलग एक मकाि ठीक ककया गया ै। य प्रबन्ि ककया जा
र ा ै कक रे क मे माि के ललए एक-एक चारपाई, एक-एक कुसी और एक-एक
मेज ो। र तीि मे मािों के ललए एक-एक क ार रखिे की तजवीज ो र ी
ै । अभी बारात आिे में एक म ीिे की दे र ै , लेककि तैयाररयां अभी से ो र ी
ैं। बारानतयों का ऐसा सत्कार ककया जाये कक ककसी को जबाि ह लािे का
मौका ि लमले। वे लोग भी याद करें कक ककसी के य ां बारात में गये थे।
पूरा मकाि बतमिों से भरा ु आ ै । चाय के सेट ैं, िाश्ते की तश्तररयां, थाल,
लोटे , धगलास। जो लोग नित्य खाट पर पडे ु क्का पीते र ते थे, बडी तत्परता
से काम में लगे ुए ैं। अपिी उपयोधगता लसद्ध करिे का ऐसा अच्छा
अवसर उन् ें कफर ब ु त हदिों के बाद लमलेगा। ज ां एक आदमी को जािा ोता
ै , पांच दौडते ैं। काम कम ोता
ै , ु ल्लड अधिक। जरा-जरा सी बात पर
घण्टों तकम-ववतकम ोता ै और अन्त में वकील सा ब को आकर निणमय करिा
पडता ै । एक क ता ै, य घी खराब ै , दस
ू रा क ता ै , इससे अच्छा
बाजार में लमल जाये तो टांग की रा से निकल जाऊं। तीसरा क ता ै,
इसमें तो ीक आती ै । चौथा क ता ै , तुम् ारी िाक ी सड गई ै, तुम
क्या जािो घी ककसे क ते ैं। जब से य ां आये ो, घी लमलिे लगा ै , ि ीं तो
घी के दशमि भी ि ोते थे! इस पर तकरार बढ जाती ै और वकील सा ब को
झगडा चुकािा पडता ै।

रात के िौ बजे थे। उदयभािुलाल अन्दर बैठे ु ए खचम का तखमीिा लगा र े थे।
व प्राय: रोज ी तखमीिा लगते थे पर रोज ी उसमें कुछ-ि-कुछ पररवतमि
और पररविमि करिा पडता
था। सामिे कल्याणी भौं े लसकोडे ु ए खडी थी।
बाबू सा ब िे बडी दे र के बाद लसर उठाया और बोले- दस जार से कम ि ीं
ोता, बजल्क शायद और बढ जाये।

कल्याणी-दस हदि में पांच से दस जार ु ए। एक म ीिे में तो शायद एक


लाख िौबत आ जाये।
उदयभािु - क्या करूं, जग ं साई भी तो अच्छी ि ीं लगती। कोई लशकायत ु ई
तो लोग क ें गे, िाम बडे दशमि थोडे। कफर जब व मुझसे द े ज एक पाई ि ीं
लेते तो मेरा भी कतमव्य ै कक मे मािों के आदर-सत्कार में कोई बात
उठा ि रखूं।

कल्याणी - जब से ब्रह्मा िे सजृ ष्ट रची, तब से आज तक कभी बारानतयों को


कोई प्रसन्ि ि ीं रख सकता। उन् ें दोष निकालिे और निन्दा करिे का कोई-
ि-कोई अवसर लमल ी जाता ै । जजसे अपिे घर सूखी रोहटयां भी मयस्सर
ि ीं व भी बारात में जाकर तािाशा बि बैठता ै। तेल खुशबूदार ि ीं,
साबि
ु टके सेर का जािे क ां से बटोर लाये, क ार बात ि ीं सि
ु ते, लालटे िें
िुआं दे ती ैं, कुलसमयों में खटमल ै , चारपाइयां ढीली ैं, जिवासे की जग
वादार ि ीं। ऐसी-ऐसी जारों लशकायतें ोती र ती ैं। उन् ें आप क ां तक
रोककयेगा? अगर य मौका ि लमला, तो और कोई ऐब निकाल ललये जायेंगे।
भई, य तेल तो रं डडयों के लगािे लायक ै, में तो सादा तेल चाह ए।
जिाब िे य साबि
ु ि ीं भेजा ै , अपिी अमीरी की शाि हदखाई ै, मािो
मिे साबुि दे खा ी ि ीं। ये क ार ि ीं यमदत
ू ैं , जब दे णखये लसर पर
सवार! लालटे िें ऐसी भेजी ैं कक आंखें चमकिे लगती ैं , अगर दस-पांच
हदि इस रोशिी में बैठिा पडे तो आंखें फूट जाएं। जिवासा क्या ै , अभागे
का भाग्य ै , जजस पर चारों तरफ से झोंके आते र ते ैं। मैं तो कफर
य ी क ू ं गी कक बारनतयों के िखरों का ववचार ी छोड दो।

उदयभािु - तो आणखर तुम मुझे क्या करिे को क ती ो?

कल्याणी-क तो र ी ूं , पक्का इरादा कर लो कक मैं पांच जार से अधिक ि


खचम करूंगा। घर में तो टका ै ि ीं, कजम ी का भरोसा ठ रा, तो इतिा कजम
क्यों लें कक जजन्दगी में अदा ि ो। आणखर मेरे और बच्चे भी तो ैं , उिके
ललए भी तो कुछ चाह ए।

उदयभािु - तो आज मैं मरा जाता ूं ?

कल्याणी - जीिे-मरिे का ाल कोई ि ीं जािता।


कल्याणी - इसमें बबगडिे की तो कोई बात ि ीं। मरिा एक हदि सभी को
ै। कोई य ां अमर ोकर थोडे ी आया ै । आंखें बन्द कर लेिे से तो ोिे -
वाली बात ि टलेगी। रोज आंखों दे खती ूं , बाप का दे ान्त ो जाता ै , उसके
बच्चे गली-गली ठोकरें खाते कफरते ैं। आदमी ऐसा काम ी क्यों करे ?

उदयभािु ि जलकर क ा - जो अब समझ लूं कक मेरे मरिे के हदि निकट आ


गये, य ी तुम् ारी भववष्यवाणी ै ! सु ाग से जस्त्रयों का जी ऊबते ि ीं सुिा
था, आज य िई बात मालूम ु ई। रं डापे में भी कोई सुख ोगा ी!

कल्याणी - तम
ु से दनु िया की कोई भी बात क ी जाती ै , तो ज र उगलिे लगते
ो। इसललए ि कक जािते ो, इसे क ीं हटकिा ि ीं ै , मेरी ी रोहटयों पर
पडी ु ई ै या और कुछ! ज ां कोई बात क ी, बस लसर ो गये, मािों मैं
घर की लौंडी ूं , मेरा केवल रोटी और कपडे का िाता ै । जजतिा ी मैं दबती
ूं , तुम और भी दबाते ो। मफ्ु तखोर माल उडायें, कोई मंु ि खोले, शराब-
कबाब में रूपये लट
ु ें , कोई जबाि ि ह लाये। वे सारे कांटे मेरे बच्चों ी के ललए
तो बोये जा र े ै।

उदयभािु लाल - तो मैं क्या तुम् ारा गुलाम ूं ?

कल्याणी - तो क्या मैं तुम् ारी लौंडी ूं ?

उदयभािु लाल - ऐसे मदम और ोंगे, जो औरतों के इशारों पर िाचते ैं।

कल्याणी - तो ऐसी जस्त्रयों भी ोंगी, जो मदों की जनू तयां स ा करती ैं।

उदयभािु लाल - मैं कमाकर लाता ूं , जैसे चा ूं खचम कर सकता ूं । ककसी


को बोलिे का अधिकार ि ीं।

कल्याणी - तो आप अपिा घर संभललये! ऐसे घर को मेरा दरू ी से सलाम ै,


ज ां मेरी कोई पूछ ि ीं घर में तुम् ारा जजतिा अधिकार ै , उतिा ी मेरा भी।
इससे जौ भर भी कम ि ीं। अगर तम
ु अपिे मि के राजा ो, तो मैं भी अपिे
मि को रािी ूं । तुम् ारा घर तुम् ें मुबारक र े , मेरे ललए पेट की रोहटयों की
कमी ि ीं ै । तुम् ारे बच्चे ैं, मारो या जजलाओ। ि आंखों से दे खूंगी, ि पीडा
ोगी। आंखें फूटीं, पीर गई!

उदयभािु - क्या तम
ु समझती ो कक तम
ु ि संभालेगी तो मेरा घर ी ि
संभलेगा? मैं अकेले ऐसे-ऐसे दस घर संभाल सकता ूं ।

कल्याणी - कौि? अगर ‘आज के म ीिे हदि लमट्टी में ि लमल जाये , तो
क िा कोई क ती थी!

य क ते-क ते कल्याणी का चे रा तमतमा उठा, व झमककर उठी और कमरे


के द्वार की ओर चली। वकील सा ब मुकदमें में तो खूब मीि-मेख निकालते
थे, लेककि जस्त्रयों के स्वभाव का उन् ें कुछ यों ी-सा ज्ञाि था। य ी एक ऐसी
ववद्या ै , जजसमें आदमी बूढा ोिे पर भी कोरा र जाता ै । अगर वे अब
भी िरम पड जाते और कल्याणी का ाथ पकडकर बबठा लेते, तो शायद
व रूक जाती, लेककि आपसे य तो ो ि सका, उल्टे चलते-चलते एक और
चरका हदया। बोले - मैके का घमण्ड ोगा?

कल्याणी िे द्वारा पर रूक कर पनत की ओर लाल-लाल िेत्रों से दे खा और


बबफरकर बोली - मैके वाले मेरे तकदीर के साथी ि ीं ै और ि मैं इतिी िीच
ूं कक उिकी रोहटयों पर जा पडू।ं

उदयभािु - तब क ां जा र ी ो?

कल्याणी - तम
ु य पछ
ू िे वाले कौि ोते ो? ईश्वर की सजृ ष्ट में असंख्य
प्रावप्रयों के ललए जग ै , क्या मेरे ी ललए जग ि ीं ै?

य क कर कल्याणी कमरे के बा र निकल गई। आंगि में आकर उसिे एक


बार आकाश की ओर दे खा, मािो तारागण को साक्षी दे र ी ै कक मैं इस
घर में ककतिी निदम यता से निकाली
जा र ी ूं । रात के ग्यार बज गये थे।
घर में सन्िाटा छा गया था, दोिों बेटों की चारपाई उसी के कमरे में र ती थी।
व अपिे कमरे में आई, दे खा चन्द्रभािु सोया ै , सबसे छोटा सय
ू भ
म ािु
चारपाई पर उठ बैठा ै । माता को दे खते ी व बोला - तुम त ां दई तीं
अम्मां?

कल्याणी दरू ी से खडे-खडे बोली - क ीं तो ि ीं बेटा, तुम् ारे बाबूजी के पास


गई थी।

सूयम - तुम तली दई, मुिे अतेले दर लदता था। तुम क्यों तली दई तीं, बताओ?

य क कर बच्चे िे गोद में चढिे के ललए दोिों ाथ फैला हदये। कल्याणी अब


अपिे को ि रोक सकी। मात-ृ स्िे के सि
ु ा-प्रवा से उसका संतप्त हृदय
पररप्लाववत ो गया। हृदय के कोमल पौिे, जो क्रोि के ताप से मुरझा गये
थे, कफर रे ो गये। आंखें सजल ो गई। उसिे बच्चे को गोद में उठा ललया
और छाती से लगाकर बोली - तुमिे पुकार क्यों ि ललया, बेटा?

सय
ू म - पत
ु ालता तो ता, तम
ु थुिती ि तीं, बताओ अब तो कबी ि दाओगी।

कल्याणी - ि ीं भैया, अब ि ीं जाऊंगी।

य क कर कल्याणी सूयभ
म ािु को लेकर चारपाई पर लेटी। मां के हृदय से
ललपटते ी बालक नि:शंक ोकर सो गया, कल्याणी के मि में संकल्प-
ववकल्प ोिे लगे, पनत की बातें याद आतीं तो मि ोता - घर को
नतलांजलल दे कर चली जाऊं, लेककि बच्चों का मुं दे खती, तो वासल्य से
धचत्त गद्रगद्र ो जाता। बच्चों को ककस पर छोडकर जाऊं? मेरे इि लालों को
कौि पालेगा, ये ककसके ोकर र ें गे? कौि प्रात:काल इन् ें दि
ू और लवा
णखलायेगा, कौि इिकी िींद सोयेगा, इिकी िींद जागेगा? बेचारे कौडी के तीि
ो जायेंगे। ि ीं प्यारो, मैं तुम् ें छोडकर ि ीं जाऊंगी। तुम् ारे ललए सब कुछ
स लूंगी। निरादर-अपमाि, जली-कटी, खोटी-खरी, घुडकी-णझडकी सब
तुम् ारे ललए स ूं गी।

कल्याणी तो बच्चे को लेकर लेटी, पर बाबू सा ब को िींद ि आई उन् ें चोट


करिेवाली बातें बडी मुजश्कल से भूलती थी। उफ, य लमजाज! मािों मैं ी
इिकी स्त्री ूं । बात मंु से निकालिी मजु श्कल ै । अब मैं इिका गल ु ाम ोकर
र ूं । घर में अकेली य र ें और बाकी जजतिे अपिे बेगािे ैं , सब निकाल
हदये जायें। जला करती ैं। मिाती ैं कक य ककसी तर मरें , तो मैं अकेली
आराम करूं। हदल की बात मुं से निकल ी आती ै , चा े कोई ककतिा ी
नछपाये। कई हदि से दे ख र ा
ूं ऐसी ी जली-कटी सि ु ाया करती ैं। मैके
का घमण्ड ोगा, लेककि व ां कोई भी ि पछ ू े गा, अभी सब आवभगत करते
ैं। जब जाकर लसर पड जायेंगी तो आटे -दाल का भाव मालम
ू ो जायेगा।
रोती ु ई जायेंगी। वा रे घमण्ड! सोचती ैं - मैं ी य ग ृ स्थी चलाती ूं ।
अभी चार हदि को क ीं चला जाऊं, तो मालूम ो जायेगा, सारी शेखी ककरककरी
ो जायेगा। एक बार इिका घमण्ड तोड ी दं ।ू जरा वैिव्य का मजा भी
चखा दं ।ू ि जािे इिकी ह म्मत कैसे पडती ै कक मझ
ु े यों कोसिे लगत ैं।
मालूम ोता ै , प्रेम इन् ें छू ि ीं गया या समझती ैं, य घर से इतिा धचमटा
ु आ ै कक इसे चा े जजतिा कोसूं, टलिे का िाम ि लेगा। य ी बात ै , पर
य ां संसार से धचमटिेवाले जीव ि ीं ैं! ज न्िम
ु में जाये य घर, ज ां ऐसे
प्राणणयों से पाला पडे। घर ै या िरक? आदमी बा र से थका-मांदा आता
ै , तो उसे घर में आराम लमलता ै । य ां आराम के बदले कोसिे सि
ु िे पडते
ैं। मेरी मत्ृ यु के ललए व्रत रखे जाते ैं। य ै पचीस वषम के दाम्पत्य जीवि
का अन्त! बस, चल ी दं ।ू जब दे ख लूंगा इिका सारा घमण्ड िूल में लमल
गया और लमजाज ठण्डा ो गया, तो लौट आऊंगा। चार-पांच हदि काफी ोंगे।
लो, तुम भी याद करोगी ककसी से पाला पडा था।

य ी सोचते ु ए बाबू सा ब उठे , रे शमी चादर गले में डाली, कुछ रूपये ललये,
अपिा काडम निकालकर दस ू रे कुते की जेब में रखा, छडी उठाई और चुपके से
बा र निकले। सब िौकर िींद में मस्त थे। कुत्ता आ ट पाकर चौंक पडा और
उिके साथ ो ललया।

पर य कौि जािता था कक य सारी लीला ववधि के ाथों रची जा र ी ै।


जीवि-रं गशाला का व निदम य सूत्रिार ककसी अगम गुप्त स्थाि पर बैठा ु आ
अपिी जहटल क्रूर क्रीडा हदखा र ा ै । य कौि जािता था कक िकल असल
ोिे जा र ी ै , अलभिय सत्य का रूप ग्र ण करिे वाला ै।
निशा िे इन्द ू को परास्त करके अपिा साम्राज्य स्थावपत कर ललया था।
उसकी पैशाधचक सेिा िे प्रकृनत पर आतंक जमा रखा था। सद्रवजृ त्तयां मुं
नछपाये पडी थीं और कुवजृ त्तयां ववजय-गवम से इठलाती कफरती थीं। वि में
वन्यजन्तु लशकार की खोज में ववचार र े थे और िगरों में िर-वपशाच गललयों
में मंडराते कफरते थे।

बाबू उदयभािुलाल लपके ु ए गंगा की ओर चले जा र े थे। उन् ोंिे अपिा


कुत्ताम घाट के ककिारे रखकर पांच हदि के ललए लमजामपुर चले जािे का
निश्चय ककया था। उिके कपडे दे खकर लोगों को डूब जािे का ववश्वास ो
जायेगा, काडम कुते की जेब में था। पता लगािे में कोई हदक्कत ि ो सकती
थी। दम-के-दम में सारे श र में खबर मश ू र ो जायेगी। आठ बजते-बजते तो
मेरे द्वार पर सारा श र जमा ो जायेगा, तब दे खूं, दे वी जी क्या करती ैं?

य ी सोचते ु ए बाबू सा ब गललयों में चले जा र े थे, स सा उन् ें अपिे पीछे


ककसी दसू रे आदमी के आिे की आ ट लमली, समझे कोई ोगा। आगे बढे ,
लेककि जजस गली में व मड
ु ते उसी तरफ य आदमी भी मड
ु ता था। तब
बाबू सा ब को आशंका ु ई कक य आदमी मेरा पीछा कर र ा ै । ऐसा
आभास ु आ कक इसकी िीयत साफ ि ीं ै । उन् ोंिे तरु न्त जेबी लालटे ि
निकाली और उसके प्रकाश में उस आदमी को दे खा। एक बररष्ष्ठ मिुष्य
कन्िे पर लाठी रखे चला आता था। बाबू सा ब उसे दे खते ी चौंक पडे। य
श र का छटा ु आ बदमाश था। तीि साल प ले उस पर डाके का
अलभयोग चला था। उदयभािु िे उस मुकदमे में सरकार की ओर से पैरवी की
थी और इस बदमाश को तीि साल की सजा हदलाई थी। सभी से व इिके
खूि का प्यासा ो र ा था। कल ी व छूटकर आया था। आज दै वात ् सा ब
अकेले रात को हदखाई हदये, तो उसिे सोचा य इिसे दाव चुकािे का
अच्छा मौका ै । ऐसा मौका शायद ी कफर कभी लमले। तरु न्त पीछे ो ललया
और वार करिे की घात ी में था कक बाबू सा ब िे जेबी लालटे ि जलाई।

बदमाश जरा हठठककर बोला - क्यों बाबूजी प चािते ो? मैं ूं मतई।

बाबू सा ब िे डपटकर क ा - तम
ु मेरे पीछे -पीछे क्यों आ र े ो?
मतई - क्यों, ककसी को रास्ता चलिे की मिा ी ै? य गली तम्
ु ारे बाप की
ै?

बाबू सा ब जवािी में कुश्ती लडे थे, अब भी हृष्ट-पुष्ट आदमी थे। हदल के भी
कच्चे ि थे। छडी संभालकर बोले - अभी शायद मि ि ीं भरा। अबकी सात
साल को जाओगे।

मतई - मैं सात साल को जाऊंगा या चौद साल को, पर तुम् ें जजद्दा ि छोडूग
ं ा।
ां, अगर तुम मेरे पैरों पर धगरकर कसम खाओ कक अब ककसी को सजा ि
कराऊंगा, तो छोड दं ।ू बोलो मंजूर ै?

उदयभािु - तेरी शामत तो ि ीं आई?

मतई - शामत मेरी ि ीं आई, तुम् ारी आई ै । बोलो खाते ो कसम-एक!

उदयभािु-तम
ु टते ो कक मैं पलु लसमैि को बल
ु ाऊं।

मतई - दो!

उदयभािु - (गरजकर) ट जा बादशा , सामिे से!

मतई - तीि!

मुं से ‘तीि’ शब्द निकालते ी बाबू सा ब के लसर पर लाठी का ऐसा तुला ाथ


पडा कक व अचेत ोकर जमीि पर धगर पडे। मुं से केवल इतिा ी निकला
- ाय! मार डाला!

मतई िे समीप आकर दे खा, तो लसर फट गया था और खूि की घार निकल


र ी थी। िाडी का क ीं पता ि था। समझ गया कक काम तमाम ो गया।
उसिे कलाई से सोिे की घडी खोल ली, कुते से सोिे के बटि निकाल ललये,
उं गली से अंगूठी उतारी और अपिी रा चला गया, मािो कुछ
ु आ ी ि ीं। ां, इतिी दया की कक लाश रास्ते से घसीटकर ककिारे डाल दी।
ाय, बेचारे क्या सोचकर चले थे, क्या ो गया! जीवि, तुमसे ज्यादा असार
भी दनु िया में कोई वस्तु ै? क्या व उस दीपक की भांनत ी क्षणभंगुर ि ीं
ै , जो वा के एक झोंके से बझ
ु जाता ै! पािी के एक बुलबुले को दे खते
ो, लेककि उसे टूटते भी कुछ दे र लगती ै , जीवि में उतिा सार भी ि ीं। सांस
का भरोसा ी क्या और इसी िश्वरता पर म अलभलाषाओं के ककतिे ववशाल
भवि बिाते ैं! ि ीं जािते, िीचे जािेवाली सांस ऊपर आयेगी या ि ीं, पर
सोचते इतिी दरू की ैं, मािो म अमर ैं।

***
3

वववा का ववलाप और अिाथों का रोिा सुिाकर म पाठकों का हदल ि


दख
ु ायेंगे। जजसके ऊपर पडती ै, व रोता ै , ववलाप करता ै , पछाडें खाता
ै। य कोई ियी बात ि ीं। ां, अगर आप चा ें तो कल्याणी की उस घोर
मािलसक यातिा का अिम
ु ाि कर सकते ैं , जो उसे इस ववचार से ो र ी थी
कक मैंी अपिे प्राणािार की घानतका ूं । वे वाक्य जो क्रोि के आवेश में उसके
असंयत मुख से निकले थे, अब उसके हृदय को वाणों की भांनत छे द र े थे।
अगर पनत िे उसकी गोद में करा -करा कर प्राण-त्याग हदए ोते, तो
उसे संतोष ोता कक मैंिे उिके प्रनत अपिे कतमव्य का पालि ककया। शोकाकुल
हृदय को इससे ज्यादा सान्त्विा और ककसी बात से ि ीं ोती। उसे इस ववचार
से ककतिा संतोष ोता कक मेरे स्वामी मुझसे प्रसन्ि गये, अजन्तम समय तक
उिके हृदय में मेरा प्रेम बिा र ा। कल्याणी को य सन्तोष ि था। व
सोचती थी- ा! मेरी पचीस बरस की तपस्या निष्फल ो गई। मैं अन्त
समय अपिे प्राणपनत के प्रेम के वंधचत ो गयी। अगर मैंिे उन् ें ऐसे कठोर
शब्द ि क े ोते, तो व कदावप रात को घर से ि जाते।ि जािे उिके मि में
क्या-क्या ववचार आये ों? उिके मिोभावों की कल्पिा करके और अपिे
अपराि को बढा-बढाकर व आठों प र कुढती र ती थी। जजि बच्चों पर व
प्राण दे ती थी, अब उिकी सूरत से धचढती। इन् ीं के कारण मुझे अपिे
स्वामी से रार मोल लेिी पडी। य ी मेरे शत्रु ैं। ज ां आठों प र कच री-सी
लगी र ती थी, व ां अब खाक उडती ै। व मेला ी उठ गया। जब
णखलािेवाला ी ि र ा, तो खािेवाले कैसे पडे र ते। िीरे -िीरे एक म ीिे के
अन्दर सभी भांज-े भतीजे बबदा ो गये। जजिका दावा था कक म पािी की
जग खूि ब ािेवालों में ैं, वे ऐसा सरपट भागे कक पीछे कफरकर भी ि दे खा।
दनु िया ी दस
ू री ो गयी। जजि बच्चों को दे खकर प्यार करिे को जी चा ता
था उिके चे रे पर अब मजक्खयां लभिलभिाती थीं। ि जािे व कांनत क ां
चली गई?

शोक का आवेग कम ु आ, तो निममला के वववा की समस्या उपजस्थत ु ई।


कुछ लोगों की सला ु ई कक वववा इस साल रोक हदया जाये, लेककि
कल्याणी िे क ा- इतिी तैयररयों के बाद वववा को रोक दे िे से सब ककया-
िरा लमट्टी में लमल जायेगा और दस
ू रे साल कफर य ी तैयाररयां करिी पडेंगी,
जजसकी कोई आशा ि ीं। वववा कर ी दे िा अच्छा ै । कुछ लेिा-दे िा तो ै
ी ि ीं। बारानतयों के सेवा-सत्कार का काफी सामाि ो चुका ै , ववलम्ब करिे
में ानि- ी- ानि ै । अतएव म ाशय भालचन्द्र को शक-सूचिा के साथ य
सन्दे श भी भेज हदया गया। कल्याणी िे अपिे पत्र में ललखा-इस अिाधथिी पर
दया कीजजए और डूबती ु ई िाव को पार लगाइये। स्वामीजी के मि में बडी-
बडी कामिाएं थीं, ककं तु ईश्वर को कुछ और ी मंजरू था। अब मेरी लाज आपके
ाथ ै । कन्या आपकी ो चुकी। मैं लोगों के सेवा-सत्कार करिे को अपिा
सौभाग्य समझती ूं , लेककि यहद इसमें कुछ कमी ो, कुछ त्रुहट पडे, तो
मेरी दशा का ववचार करके क्षमा कीजजयेगा। मझ ु े ववश्वास ै कक आप इस
अिाधथिी की निन्दा ि ोिे दें गे, आहद।

कल्याणी िे य पत्र डाक से ि भेजा, बजल्क पुरोह त से क ा-आपको कष्ट तो


ोगा, पर आप स्वयं जाकर य पत्र दीजजए और मेरी ओर से ब ु त वविय के
साथ कह येगा कक जजतिे कम आदमी आयें, उतिा ी अच्छा। य ां कोई
प्रबन्ि करिेवाला ि ीं ै।

पुरोह त मोटे राम य सन्दे श लेकर तीसरे हदि लखिऊ जा प ुं च।े

संध्या का समय था। बाबू भालचन्द्र दीवािखािे के सामिे आरामकुसी पर िंग-


िडंग लेटे ु ए ु क्का पी र े थे। ब ु त ी स्थूल, ऊंचे कद के आदमी थे। ऐसा
मालम
ू ोता था कक काला दे व ै या कोई ब्शी अफ्रीका से पकडकर आया ै ।
लसर से पैर तक एक ी रं ग था-काला। चे रा इतिा स्या था कक मालूम ि
ोता था कक माथे का अंत क ां ै लसर का आरम्भ क ां। बस, कोयले की
एक सजीव मूनतम थी। आपको गमी ब ु त सताती थी। दो आदमी खडे पंखा झल
र े थे, उस पर भी पसीिे का तार बंिा ु आ था। आप आबकारी के ववभाग में
एक ऊंचे ओ दे पर थे। पांच सौ रूपये वेति लमलता था। ठे केदारों से खब

ररश्वत लेते थे। ठे केदार शराब के िाम पािी बेचें, चौबीसों घंटे दक
ु ाि खुली
रखें , आपको केवल खुश रखिा काफी था। सारा कािूि आपकी खुशी थी। इतिी
भयंकर मूनतम थी कक चांदिी रात में लोग उन् ें दे ख कर स सा चौंक पडते थे-
बालक और जस्त्रयां ी ि ीं, पुरूष तक स म जाते थे। चांदिी रात इसललए
क ा गया कक अंिेरी रात में तो उन् ें कोई दे ख ी ि सकता था- श्यामलता
अन्िकार में ववलीि ो जाती थी। केवल आंखों का रं ग लाल था। जैसे पक्का
मस
ु लमाि पांच बार िमाज पढता ै , वैसे ी आप भी पांच बार शराब पीते थे,
मुफ्त की शराब तो काजी को लाल ै , कफर आप तो शराब के अफसर ी
थे, जजतिी चा ें वपयें, कोई ाथ पकडिे वाला ि था। जब प्यास लगती शराब
पी लेते । जैसे कुछ रं गों में परस्पर स ािुभूनत ै, उसी तर कुछ रं गों में
परस्पर ववरोि ै । लाललमा के संयोग से काललमा और भी भयंकर ो जाती ै।

बाबू सा ब िे पंडडतजी को दे खते ी कुसी से उठकर क ा-अख्खा ! आप ैं?


आइए-आइए। िन्य भाग! अरे कोई ै । क ां चले गये सब-के-सब, झगडू,
गुरदीि, छकौडी, भवािी, रामगुलाम कोई ै ? क्या सब-के-सब मर गये! चलो
रामगुलाम, भवािी, छकौडी, गुरदीि, झगडू। कोई ि ीं बोलता, सब मर गये!
दजमि-भर आदमी ैं, पर मौके पर एक की भी सरू त ि ीं िजर आती, ि
जािे सब क ां गायब ो जाते ैं। आपके वास्ते कुसी लाओ।

बाबू सा ब िे ये पांचों िाम कई बार द ु राये , लेककि य ि ु आ कक पंखा


झलिेवाले दोिों आदलमयों में से ककसी को कुसी लािे को भेज दे त।े तीि-चार
लमिट के बाद एक कािा आदमी खांसता ु आ आकर बोला-सरकार, ईतिा की
िौकरी मार कीि ि ोई ! क ां तक उिार-बाढी लै-लै खाई मांगत-मांगत
थेथर ोय गयेिा।

भाल - बको मत, जाकर कुसी लाओ। जब कोई काम करिे की क ा गया, तो
रोिे लगता ै । कह ए पडडतजी, व ां सब कुशल ै?

मोटे राम - क्या कुशल क ूं बाबूजी, अब कुशल क ां? सारा घर लमट्टी में लमल
गया।

इतिे में क ार िे एक टूटा ु आ चीड का सन्दक


ू लाकर रख हदया और बोला -
कुसी-मेज मारे उठाये िा ीं उठत ै ।

पंडडतजी शमामते ु ए डरते-डरते उस पर बैठे कक क ीं टूट ि जाये और कल्याणी


का पत्र बाबू सा ब के ाथ में रख हदया।
भाल - अब और कैसे लमट्टी में लमलेगा? इससे बडी और कौि ववपजत्त पडेगी?
बाबू उदयभािु लाल से मेरी पुरािी दोस्ती थी। आदमी ि ीं, ीरा था! क्या हदल
था, क्या ह म्मत थी, (आंखें पोंछकर) मेरा तो जैसे दाह िा ाथ ी कट गया।
ववश्वास मानिए, जबसे य खबर सुिी ै, आंखों में अंिेरा-सा छा गया ै।
खािे बैठता ूं , तो कौर मुं में ि ीं जाता। उिकी सूरत आंखों के सामिे
खडी र ती ै । मंु जठ ू ा करके उठ जाता ूं । ककसी काम में हदल ि ीं लगता।
भाई के मरिे का रं ज भी इससे कम ी ोता ै । आदमी ि ीं , ीरा था!

मोटे - सरकार, िगर में अब ऐसा कोई रईस ि ीं र ा।

भाल - मैं खब
ू जािता ूं , पंडडतजी, आप मझ
ु से क्या क ते ैं। ऐसा आदमी
लाख-दो-लाख में एक ोता ै । जजतिा मैं उिको जािता था, उतिा दस ू रा ि ीं
जाि सकता। दो- ी-तीि बार की मल
ु ाकात में उिका भक्त ो गया और
मरिे दम तक र ूं गा। आप समधिि सा ब से क दीजजएगा, मुझे हदली रं ज
ै।

मोटे - आपसे ऐसी ी आशा थी! आप-जैसे सज्जिों के दशमि दल


ु भ
म ैं। ि ीं तो
आज कौि बबिा द े ज के पुत्र का वववा करता ै।

भाल - म ाराज, दे ज की बातचीत ऐसे सत्यवादी पुरूषों से ि ीं की जाती।


उिसे सम्बन्ि ो जािा ी लाख रूपये के बराबर ै । मैं इसी को अपिा
अ ोभाग्य समझता ूं । ा! ककतिी उदार आमत्मा थी। रूपये को तो उन् ोंिे
कुछ समझा ी ि ीं, नतिके के बराबर भी परवा ि ीं की। बरु ा ररवाज ै ,
बे द बुरा! मेरा बस चले, तो द े ज लेिेवालों और द े ज दे िेवालों दोिों ी को
गोली मार दं ,ू ां सा ब, साफ गोली मार दं ,ू कफर चा े फांसी ी क्यों ि ो
जाय! पछ
ू ो, आप लडके का वववा करते ैं कक उसे बेचते ैं ? अगर आपको
लडके के शादी में हदल खोलकर खचम करिे का अरमाि ै , तो शौक के
खचम कीजजए, लेककि जो कुछ कीजजए, अपिे बल पर। य क्या कक कन्या के
वपता का गला रे नतए। िीचता ै , घोर िीचता! मेरा बस चले, तो इि पाजजयों
को गोली मार दं ।ू
मोटे - िन्य ो सरकार! भगवाि ् िे आपको बडी बवु द्ध दी ै। य िमम का
प्रताप ै । मालककि की इच्छा ै कक वववा
का मु ू तम व ी र े और तो उन् ोंिे
सारी बातें पत्र में ललख दी ैं। बस, अब आप ी उबारें तो म उबर सकते ैं।
इस तर तो बारात में जजतिे सज्जि आयेंगे , उिकी सेवा-सत्कार म करें गे
ी, लेककि पररजस्थनत अब ब ु त बदल गयी ै सरकार, कोई करिे-िरिेवाला
ि ीं ै । बस ऐसी बात कीजजए कक वकील सा ब के िाम पर बट्टा ि लगे।

भालचन्द्र एक लमिट तक आंखें बन्द ककये बैठे र े , कफर एक लम्बी सांस खींच
कर बोले - ईश्वर को मंजूर ी ि था कक व लक्ष्मी मेरे घर आती, ि ीं तो
क्या य वज्र धगरता? सारे मिसूबे खाक में लमल गये। फूला ि समाता था कक
व शुभ-अवसर निकट आ र ा ै, पर क्या जािता था कक ईश्वर के
दरबार में कुछ और षड्यन्त्र रचा जा र ा ै । मरिेवाले की याद ी रूलािे के
ललए काफी ै । उसे दे खकर तो जख्म और भी रा जो जायेगा। उस दशा में
ि जािे क्या कर बैठूं। इसे गुण समणझए, चा े दोष कक जजससे एक बार
मेरी घनिष्ठता ो गयी, कफर उसकी याद धचत्त से ि ीं उतरती। अभी तो
खैर इतिा ी ै कक उिकी सरू त आंखों के सामिे िाचती र ती ै , लेककि यहद
व कन्या घर में आ गयी, तब मेरा जजन्दा र िा कहठि ो जायेगा। सच
मानिए, रोते-रोते मेरीआंखें फूट जायेंगी। जािता ूं , रोिा-िोिा व्यथम ै । जो
मर गया व लौटकर ि ीं आ सकता। सब्र करिे के लसवाय और कोई उपाय
ि ीं ै , लेककि हदल से मजबूर ूं । उस अिाथ बाललका को दे खकर मेरा
कलेजा फट जायेगा।

मोटे - ऐसा ि कह ए सरकार! वकील सा ब ि ीं तो क्या, आप तो ैं। अब


आप ी उसके वपता-तुल्य ैं। व अब वकील सा ब की कन्या ि ीं, आपकी
कन्या ै । आपके हृदय के भाव तो कोई जािता ि ीं , लोग समझेंगे, वकील
सा ब का दे ान्त ो जािे के कारण आप अपिे वचि से कफर गये। इसमें
आपकी बदिामी ै । धचत्त को समझाइए और ं स -खुशी कन्या का पाणणग्र ण
करा लीजजए। ाथी मरे तो िौ लाख का। लाख ववपजत्त पडी ै , लेककि
मालककि आप लोगों की सेवा-सत्कार करिे में कोई बात ि उठा रखेंगी।

बाबू सा ब समझ गये कक पंडडत मोटे राम कोरे पोथी के ी पंडडत ि ीं, वरि
व्यव ार-िीनत में भी चतुर ैं। बोले - पंडडतजी, लफ से क ता ूं , मुझे उस
लडकी से जजतिा प्रेम ै, उतिा अपिी लडकी से भी ि ीं ै , लेककि जब
ईश्वर को मंजूर ि ीं ै , तो मेरा क्या बस ै? व मत्ृ यु एक प्रकार की अमंगल
सूचिा ै , जो वविाता की ओर से में लमली ै। य ककसी आिेवाली मुसीबत
की आकाशवाणी ै वविाता स्पष्ट रीनत से क र ा ै कक य वववा मंगलमय
ि ोगा। ऐसी दशा में आप ी सोधचये , य संयोग क ां तक उधचत ै । आप
तो ववद्वाि आदमी ैं। सोधचए, जजस काम का आरम्भ ी अमंगल से ो,
उसका अंत अमंगलमय ो सकता ै ? ि ीं, जािबूझकर मक्खी ि ीं निगली
जाती। समधिि सा ब को समझाकर क दीजजएगा, मैं उिकी आज्ञापालि करिे
को तैयार ूं , लेककि इसका पररणाम अच्छा ि ोगा। स्वाथम के वंश में ोकर
मैं अपिे परम लमत्र की सन्ताि के साथ य अन्याय ि ीं कर सकता।

इस तकम िे पडडतजी को निरुत्तर कर हदया। वादी िे य तीर छोडा था,


जजसकी उिके पास कोई काट ि थी। शत्रु िे उन् ीं के धथयार से उि पर
वार ककया था और व उसका प्रनतकार ि कर सकते थे। व अभी कोई
जवाब सोच ी र े थे, कक बाबू सा ब िे कफर िौकरों को पुकारिा शुरू ककया -
अरे , तम
ु सब कफर गायब ो गये - झगडू, छकौडी, भवािी, गरू
ु दीि,
रामगुलाम! एक भी ि ीं बोलता, सब-के-सब मर गये। पंडडतजी के वास्ते पािी-
वािी की कफक्र ै ? िा जािे इि सबों को कोई क ां तक समझये। अक्ल छू
तक ि ीं गयी। दे ख र े ैं कक एक म ाशय दरू से थके-मांदे चले आ र े ैं ,
पर ककसी को जरा भी परवा ि ीं। लाओं, पािी-वािी रखो। पडडतजी,
आपके ललए शबमत बिवाऊं या फला ारी लमठाई मंगवा दं ।ू

मोटे रामजी लमठाइयों के ववषय में ककसी तर का बन्िि ि स्वीकार करते


थे। उिका लसद्धान्त था कक घत
ृ से सभी वस्तुएं पववत्र ो जाती ैं। रसगुल्ले
और बेसि के लड्डू उन् ें
ब ु त वप्रय थे, पर शबमत से उन् ें रुधच ि थी।
पािी से पेट भरिा उिके नियम के ववरूद्ध था। सकुचाते ु ए बोले - शबमत
पीिे की तो मुझे आदत ि ीं, लमठाई खा लूंगा।

भाल - फला ारी ि?

मोटे - इसका मझ
ु े कोई ववचार ि ीं।
भाल - ै तो य ी बात। छूत-छात सब ढकोसला ै । मैं स्वयं ि ीं मािता।
अरे , अभी तक कोई ि ीं आया? छकौडी, भवािी, गुरुदीि, रामगुलाम, कोई तो
बोले!

अबकी भी व ी बूढा क ार खांसता ु आ आकर खडा ो गया और बोला -


सरकार, मोर तलब दै दीि जाय। ऐसी िौकरी मोसे ि ोई। क ां लो दौरी
दौरत-दौरत गोड वपराय लागत ै।

भाल - काम कुछ करो या ि करो, पर तलब पह ले चह ए! हदि भर पडे-पडे


खांसा करो, तलब तो तुम् ारी चढ र ी ै । जाकर बाजार से एक आिे की ताजी
लमठाई ला। दौडता ु आ जा।

क ार को य ु क्म दे कर बाबू सा ब घर में गये और स्त्री से बोले - व ां से


एक पंडडतजी आये ैं। य खत लाये ैं , जरा पढो तो।

पत्िी जी का िाम रं गीलीबाई था। गोरे रं ग की प्रसन्ि-मख


ु मह ला थीं। रूप
और यौवि उिसे ववदा ो र े थे , पर ककसी प्रेमी लमत्र की भांनत मचल-मचल
कर तीस साल तक जजसके गले से लगे र े , उसे छोडते ि बिता था।

रं गीलीबाई बैठी पाि लगा र ी थीं। बोली - क हदया ि कक में व ां ब्या


करिा मंजरू ि ीं।

भाल - ां, क तो हदया, पर मारे संकोच के मुं से शब्द ि निकलता था। झूठ-
मूठ का ोला करिा पडता।

रं गीली - साफ बात करिे में संकोच क्या? मारी इच्छा ै , ि ीं करते। ककसी
का कुछ ललया तो ि ीं ै ? जब दस
ू री जग दस जार िगद लमल र े ैं; तो
व ां क्यों ि करूं? उिकी लडकी कोई सोिे की थोडे ी ै । वकील सा ब जीते
ोते तो शरमाते-शमाते पन्द्र -बीस जार दे मरते। अब व ां क्या रखा ै?
भाल - एक दफा जबाि दे कर मुकर जािा अच्छी बात ि ीं। कोई मख
ु से
कुछ ि क , पर बदिामी ु ए बबिा ि ीं र ती। मगर तुम् ारी जजद से
मजबूर ूं ।

रं गीलीबाई िे पाि खाकर खत खोला और पढिे लगीं। ह न्दी का अभ्यास बाबू


सा ब को तो बबल्कुल ि था और यद्यवप रं गीलीबाई भी शायद ी कभी
ककताब पढती ों, पर खत-वत पढ लेती थीं। प ली ी पांनत पढकर उिकी
आंखें सजल ो गयीं और पत्र समाप्त ककया। तो उिकी आंखों से आंसू ब
र े थे - एक-एक शब्द करूणा के रस में डूबा ु आ था। एक-एक अक्षर से दीिता
टपक र ी थी। रं गीलीबाई की कठोरता पत्थर की ि ीं , लाख की थी, जो एक
ी आंच से वपघल जाती ै । कल्याणी के करूणोत्पादक शब्दों िे उिके
स्वाथम-मंडडत हृदय को वपघला हदया। रूंिे ु ए कंठ से बोली- अभी ब्राह्मण बैठा
ै ि?

भालचन्द्र पत्िी के आंसुओं को दे ख - दे खकर सूखे जाते थे। अपिे ऊपर झल्ला
र े थे कक िा क मैंिे य खत इसे हदखाया। इसकी जरूरत क्या थी? इतिी
बडी भूल उिसे कभी ि ु ई थी। संहदग्ि भाव से बोले - शायद बैठा ो, मैंिे
तो जािे को क हदया था। रं गीली िे णखडकी से झांककर दे खा। पंडडत
मोटे राम जी बगुले की तर ध्याि लगाये बाजार के रास्ते की ओर ताक र े थे।
लालसा में व्यग्र ोकर कभी य प लू बदलते, कभी व प लू। ‘एक आिे की
लमठाई’ िे तो आशा की कमर ी तोड दी थी, उसमें भी य ववलम्ब, दारूण
दशा थी। उन् ें बैठे दे खकर रं गीलीबाई बोली - ै- ै अभी ै , जाकर क दो,
म वववा करें गे, जरूर करें गे। बेचारी बडी मुसीबत में ै।

भाल - तुम कभी-कभी बच्चों की-सी बातें करिे लगती ो, अभी उससे क
आया ूं कक मझ
ु े वववा करिा मंजरू ि ीं। एक लम्बी-चौडी भलू मका बांििी
पडी। अब जाकर य संदेश क ूं गा, तो व अपिे हदल में क्या क े गा, जरा
सोचो तो? य शादी-वववा का मामला ै। लडकों का खेल ि ीं कक अभी
एक बात तय की, अभी पलट गये। भले आदमी की बात ि ु ई, हदल्लगी ु ई।
रं गीली - अच्छा, तम
ु अपिे मंु से ि क ो, उस ब्राह्मण को मेरे पास भेज दो।
मैं इस तर समझा दं ग
ू ी कक तुम् ारी बात भी र जाये और मेरी भी। इसमें
तो तुम् ें कोई आपजत्त ि ीं ै।

भाल - तुम अपिे लसवा सारी दनु िया को िादाि समझती ो। तुम क ो या मैं
क ूं , बात एक ी ै । जो बात तय ो गयी, व ो गई, अब मैं उसे कफर ि ीं
उठािा चा ता। तुम् ीं तो बार-बार क ती थीं कक मैं व ां ि करूंगी। तुम् ारे ी
कारण मुझे अपिी बात खोिी पडी। अब तुम कफर रं ग बदलती ो। य तो
मेरी छाती पर मूंग दलिा ै । आणखर तुम् ें कुछ तो मेरे माि-अपमाि का
ववचार करिा चाह ए।

रं गीली - तो मुझे क्या मालम


ू था कक वविवा की दशा इतिी ीि ो गया ै?
तुम् ीं िे तो क ा था कक उसिे पनत की सारी सम्पजत्त नछपा रखी ै और
अपिी गरीबी का ढोंग रचकर काम निकालिा चा ती ै । एक ी छं टी औरत
ै । तुमिे जो क ा, व मैंिे माि ललया। भलाई करके बुराई करिे में तो लज्जा
और संकोच ै । बरु ाई करके भलाई करिे मे कोई संकोच ि ीं। अगर तम
ु ‘ ां’
कर आये ोते और मैं ‘ि ीं’ करिे को क ती, तो तुम् ारा संकोच उधचत था।
‘ि ीं’ करिे के बाद ‘ ां’ करिे में तो अपिा बडप्पि ै।

भाल - तुम् ें बडप्पि मालूम ोता ो, मुझे तो लुच्चापि ी मालूम ोता ै।


कफर तम
ु िे य कैसे माि ललया कक मैंिे वकीलाइि में ववषय में जो बात क ी
थी, व झूठी थी! क्या व पत्र दे खकर? तुम जैसी खुद सरल ो, वैसे ी
दस
ू रे को भी सरल समझती ो।

रं गीली - इस पत्र में बिावट ि ीं मालूम ोती। बिावट की बात हदल में चुभती
ि ीं। उसमें बिावट की गन्ि अवश्य र ती ै।

भाल - बिावट की बात तो ऐसी चुभती ै कक सच्ची बात उसके सामिे


बबल्कुल फीकी मालूम ोती ै। य ककस्से -क ानियां ललखिे वाले जजिकी
ककताबें पढ-पढकर तुम घंटों रोती ो, क्या सच्ची बातें ललखते ै ? सरासर
झठ
ू का तम
ू ार बांिते ैं। य भी एक कला ै।
रं गीली - क्यों जी, तम
ु मझ
ु से भी उडते ो! दाई से पेट नछपाते ो? मैं तम्
ु ारी
बातें
माि जाती ूं , तो तुम समझते ो, इसे चकमा हदया। मगर मैं तुम् ारी
एक-एक िस प चािती ूं । तम ु अपिा ऐब मेरे लसर मढकर खुद बेदाग
बचिा च ाते ो। बोलो, कुछ झूठ क ती ूं , जब वकील सा ब जीते थे, जो
तुमिे सोचा था कक ठ राव की जरूरत ी कया ै , वे खद
ु ी जजतिा उधचत
समेझेंगे दें गे, बजल्क बबिा ठ राव के और भी ज्यादा लमलिे की आशा ोगी।
अब जो वकील सा ब का दे ान्त ो गया, तो तर -तर के ीले- वाले
करिे लगे। य भलमिसी ि ीं, छोटापि ै, इसका इलजाम भी तुम् ारे लसर
ै । मै। अब शादी-ब्या के िगीच ि जाऊंगी। तुम् ारी जैसी इच्छा ो, करो।
ढोंगी आदलमयों से मुझे धचढ ै । जो बात करो, सफाई से करो, बुरा ो या
अच्छा। ‘ ाथी के दांत खािे के और हदखािे के और’ वाली िीनत पर चलिा
तुम् ें शोभा ि ीं दे ता। बोला आब भी व ां शादी करते ो या ि ीं?

भाला - जब मैं बेईमाि, दगाबाज और झूठा ठ रा, तो मुझसे पूछिा ी


क्या! मगर खूब प चािती ो आदलमयों को! क्या क िा ै , तुम् ारी इस सूझ-
बझ
ू की, बलैया ले लें !

रं गीली - ो बडे यादार, जरा भी ि ीं शरमाते। ईमाि से क ा, मैंिे बात


ताड ली कक ि ीं?

भाल - अजी जाओ, व दस


ू री औरतें ोती ैं जो मदों को प चािती ैं। अब
तक मैं य ी समझता था कक औरतों की दृजष्ट बडी सूक्ष्म ोती ै , पर आज
य ववश्वास उठ गया और म ात्माओं िे औरतों के ववषय में जो तत्व की बाते
क ी ै , उिको माििा पडा।

रं गीली - जरा आईिे में अपिी सरू त तो दे ख आओं, तम्


ु ें मेरी कमस ै । जरा
दे ख लो, ककतिा झेंपे ु ए ो।

भाल- सच क िा, ककतिा झेंपा ु आ ूं ?

रं गीली - इतिा ी, जजतिा कोई भलामािस चोर चोरी खल


ु जािे पर झेंपता ै।
भाल - खैर, मैं झेंपा ी स ी, पर शादी व ां ि ोगी।

रं गीली - मेरी बला से, ज ां चा ो करो। क्यों, भुवि से एक बार क्यों ि ीं पूछ
लेत?

भाल - अच्छी बात ै , उसी पर फैसला र ा।

रं गीली - जरा भी इशारा ि करिा!

भाल - अजी, मैं उसकी तरफ ताकंू गा भी ि ीं।

संयोग से ठीक इसी वक्त भुविमो ि भी आ प ुं चा। ऐसे सन् ु दर, सुडौल, बललष्ठ
युवक कालेजों में ब ु त कम दे खिे में आते ैं। बबल्कुल मां को पडा था, व ी
गोरा-धचट्टा रं ग, व ी पतले-पतले गुलाब की पत्ती के-से ओंठ, व ी चौडा,
माथा, व ी बडी-बडी आंखें, डील-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, ब्रीचेज, टाई,
बट
ू , ै ट उस पर खब
ू ल र े थे। ाथ में एक ाकी-जस्टक थी। चाल में
जवािी का गरूर था, आंखों में आमत्मगौरव।

रं गीली िे क ा-आज बडी दे र लगाई तुमिे? य दे खो, तुम् ारी ससुराल से य


खत आया ै । तुम् ारी सास िे ललखा ै । साफ-साफ बतला दो, अभी सबेरा ै।
तम्
ु ें व ां शादी करिा मंजरू ै या ि ीं?

भुवि - शादी करिी तो चाह ए अम्मां, पर मैं करूंगा ि ीं।

रं गीली - क्यों?

भुवि - क ीं ऐसी जग शादी करवाइये कक खूब रूपये लमलें । और ि स ी एक


लाख का तो डौल ो। व ां अब क्या रखा ै ? वकील सा ब र े ी ि ीं, बुहढया
के पास अब क्या ोगा?

रं गीली - तम्
ु ें ऐसी बातें मंु से निकालते शमम ि ीं आती?
भव
ु ि - इसमें शमम की कौि-सी बात ै ? रूपये ककसे काटते ैं ? लाख रूपये तो
लाख जन्म में भी ि जमा कर पाऊंगा। इस साल पास भी ो गया, तो कम-
से-कम पांच साल तक रूपये से सूरत िजर ि आयेगी। कफर सौ-दो-सौ रूपये
म ीिे कमािे लगूंगा। पांच-छ: तक प ुं चते-प ुं चते उम्र के तीि भाग बीत
जायेंगे। रूपये जमा करिे की िौबत ी ि आयेगी। दनु िया का कुछ मजा ि
उठा सकंू ग। ककसी ििी की लडकी से शादी ो जाती, तो चैि से कटती। मैं
ज्यादा ि ीं चा ता, बस एक लाख ो या कफर कोई ऐसी जायदादवाली बेवा
लमले, जजसके एक ी लडकी ो।

रं गीली - चा े औरत कैसे ी लमले।

भुवि - िि सारे ऐबों को नछपा दे गा। मुझे व गाललयां भी सुिाये, तो भी चूं ि


करूं। दि
ु ारू गाय की लात ककसे बुरी मालूम ोती ै?

बाबू सा ब िे प्रशंसा-सूचक भाव से क ा- में उि लोगों के साथ स ािुभनत ै


और द:ु खी ै कक ईश्वर िे उन् ें ववपजत्त में डाला, लेककि बवु द्ध से काम लेकर
ी कोई निश्चय करिा चह ए। म ककतिे ी फटे - ालों जायें, कफर भी अच्छी-
खासी बारात ो जायेगी। व ां भोजि का भी हठकािा ि ीं। लसवा इसके कक
लोग ं सें और कोई ितीजा ि निकलेगा।

रं गीली - तम
ु बाप-पत
ू दोिों एक ी थैली के चट्टे -बट्टे ो। दोिों उस गरीब लडकी
के गले पर छुरी फेरिा चा ते ो।

भुवि -जो गरीब ै , उसे गरीबों ी के य ां सम्बन्ि करिा चह ए। अपिी


ै लसयत से बढकर.....।

रं गीली - चुप भी र , आया ै व ां से ै लसयत लेकर। तुम क ां के िन्िा-सेठ


ो? कोई आदमी द्वारा पर आ जाये , तो एक लोटे पािी को तरस जाये। बडे
ै लसयतवाले बिे ो!

य क कर रं गीली व ां से उठकर रसोई का प्रबन्ि करिे चली गयी।


भव
ु िमो ि मस्
ु कराता ु आ अपिे कमरे में चला गया और बाबू सा ब मछ ू ों
पर ताव दे ते ु ए बा र आये कक मोटे राम को अजन्तम निश्चय सुिा दें । पर
उिका क ीं पता ि था।

मोटे रामजी कुछ दे र तक तो क ार की रा दे खते र े , जब उसके आिे में ब ुत


दे र ु ई, तो उिसे बैठा ि गया। सोचा य ां बैठे-बैठे काम ि चलेगा, कुछ
उद्योग करिा चाह ए। भाग्य के भरोसे य ां अडी ककये बैठे र ें , तो भखू ों मर
जायेंगे। य ां तुम् ारी दाल ि ीं गलिे की। चुपके से लकडी उठायी और
जजिर व क ार गया था, उसी तरफ चले। बाजार थोडी ी दरू पर था, एक
क्षण में जा प ुं च।े दे खा, तो बुड्ढा एक लवाई की दक ू ाि पर बैठा धचलम पी
र ा था। उसे दे खते ी आपिे बडी बेतकल्लफ ु ी से क ा-अभी कुछ तैयार ि ीं
ै क्या म रा? सरकार व ां बैठे बबगड र े ैं कक जाकर सो गया या ताडी
पीिे लगा। मैंिे क ा-‘सरकार य बात ि ीं, बुढ्डा आदमी ै, आते ी आते
तो आयेगा।’ बडे ववधचत्र जीव ैं। ि जािे इिके य ां कैसे िौकर हटकते ैं।

क ार - मझ
ु े छोडकर आज तक दस
ू रा कोई हटका ि ीं, और ि हटकेगा। साल-
भर से तलब ि ीं लमली। ककसी को तलब ि ीं दे त।े ज ां ककसी िे तलब
मांगी और लगे डांटिे। बेचारा िौकरी छोडकर भाग जाता ै । वे दोिों आदमी,
जो पंखा झल र े थे, सरकारी िौकर ैं। सरकार से दो अदम ली लमले ैं ि!
इसी से पडे ु ए ैं। मैं भी सोचता ूं , जैसा तेरा तािा-बािा वैसे मेरी भरिी! इस
साल कट गये ैं, साल दो साल और इसी तर कट जायेंगे।

मोटे राम - तो तुम् ीं अकेले ो? िाम तो कई क ारों का लेते ै ।

क ार - व सब इि दो-तीि म ीिों के अन्दर आये और छोड-छोड कर चले


गये। य अपिा रोब जमािे को अभी तक उिका िाम जपा करते ैं। क ीं
िौकरी हदलाइएगा, चलूं?

मोटे राम - अजी, ब ु त िौकरी ै । क ार तो आजकल ढूंढे ि ीं लमलते। तुम तो


पुरािे आदमी ो, तुम् ारे ललए िौकरी की क्या कमी ै । य ां कोई ताजी
चीज? मझ
ु से क िे लगे, णखचडी बिाइएगा या बाटी लगाइएगा? मैंिे क
हदया-सरकार, बुढ्डा आदमी ै , रात को उसे मेरा भोजि बिािे में कष्ट ोगा,
मैं कुछ बाजार ी से खा लंग
ू ा। इसकी आप धचन्ता ि करें । बोले, अच्छी बात
ै , क ार आपको दक
ु ाि पर लमलेगा। बोलो सा जी, कुछ तर माल तैयार ै?
लड्डू तो ताजे मालूम ोते ैं तौल दो एक सेर भर। आ जाऊं व ीं ऊपर ि?

य क कर मोटे रामजी लवाई की दक


ू ाि पर जा बैठे और तर माल चखिे
लगे। खब
ू छककर खाया। ढाई-तीि सेर चट कर गये। खाते जाते थे और
लवाई की तारीफ करते जाते थे- शा जी, तुम् ारी दक
ू ाि का जैसा िाम
सुिा था, वैसा ी माल भी पाया। बिारसवाले ऐसे रसगुल्ले ि ीं बिा पाते,
कलाकन्द अच्छी बिाते ैं , पर तुम् ारी उिसे बुरी ि ीं, माल डालिे से अच्छी
चीज ि ीं बि जाती, ववद्या चह ए।

लवाई - कुछ और लीजजए म ाराज! थोडी-सी रबडी मेरी तरफ से लीजजए।

मोटे राम - इच्छा तो ि ीं ै , लेककि दे दो पाव-भर।

लवाई - पाव-भर क्या लीजजएगा? चीज अच्छी ै , आि सेर तो लीजजए।

खूब इच्छापूणम भोजि करके पंडडतजी िे थोडी दे र तक बाजार की सैर की और


िौ बजते-बजते मकाि पर आये। य ां सन्िाटा-सा छाया ु आ था। एक लालटे ि
जल र ी थी। अपिे चबूतरे पर बबस्तर जमाया और सो गये।

सबेरे अपिे नियमािुसार कोई आठ बजे उठे , तो दे खा कक बाबूसा ब ट ल र े


ैं। इन् ें जगा दे खकर व पालागि कर बोले-म ाराज, आज रात क ां चले
गये? मैं बडी रात तक आपकी रा दे खता र ा। भोजि का सब सामाि बडी
दे र तक रखा र ा। जब आज ि आये , तो रखवा हदया गया। आपिे कुछ
भोजि ककया था। या ि ीं?

मोटे - लवाई की दक
ू ाि में कुछ खा आया था।

भाल - अजी पूरी-लमठाई में व आिन्द क ां, जो बाटी और दाल में ै । दस-
बार आिे खचम ो गये ोंगे , कफर भी पेट ि भरा ोगा, आप मेरे मे माि ैं,
जजतिे पैसे लगे ों ले लीजजएगा।
मोटे - आप ी के लवाई की दक
ू ाि पर खाया था, व जो िुक्कड पर बैठता
ै।

भाल - ककतिे पैसे दे िे पडे?

मोटे - आपके ह साब में ललखा हदये ैं।

भाल - जजतिी लमठाइयां ली ों, मुझे बता दीजजए, ि ीं तो पीछे से बेईमािी


करिे लगेगा। एक ी ठग ै।

मोटे - कोई ढाई सेर लमठाई थी और आिा सेर रबडी।

बाबू सा ब िे ववस्फररत िेत्रों से पंडडतजी को दे खा, मािो कोई अचम्भे की बात


सुिी ो। तीि सेर तो कभी य ां म ीिे भर का टोटल भी ि ोता था और य
म ाशय एक ी बार में कोई चार रूपये का माल उडा गये। अगर एक आि
हदि और र गये , तो या बैठ जायेगी। पेट ै या शैताि की कब्र? तीि सेर!
कुछ हठकािा ै ! उद्ववग्ि दशा में दौडे ु ए अन्दर गये और रं गीली से बोले -
कुछ सुिती ो, य म ाशय कल तीि सेर लमठाई उडा गये। तीि सेर पक्की
तौल!

रं गीलीबाई िे ववजस्मत ोकर क ा - अजी ि ीं, तीि सेर भला क्या खा


जायेगा! आदमी ै या बैल?

भाल - तीि सेर तो अपिे मुं से क र ा ै । चार सेर से कम ि ोगा, पक्की


तौल!

रं गीली - पेट में सिीचर ै क्या?

भाल - आज और र गया तो छ: सेर पर ाथ फेरे गा।


रं गीली - तो आज र े ी क्यों, खत का जवाब जो दे िा दे कर ववदा करो। अगर
र े तो साफ क दे िा कक मारे य ां लमठाई मुफ्त ि ीं आती। णखचडी बिािा
ो, बिावे, ि ीं तो अपिी रा ले। जजन् ें ऐसे पेटुओं को णखलािे से मुजक्त
लमलती ो, वे णखलायें में ऐसी मुजक्त ि चाह ये!

मगर पंडडत ववदा ोिे को तैयार बैठे थे, इसललए बाबस


ू ा ब को कौशल से
काम लेिे की जरूरत ि पडी।

पूछा - क्या तैयारी कर दी म ाराज?

मोटे - ां सरकार, अब चलंग


ू ा। िौ बजे की गाडी लमलेगी ि?

भाल - भला आज तो और रह ए।

य क ते-क ते बाबूजी को भय ु आ कक क ीं य म ाराज सचमुच ि र जायें,


इसललये वाक्य को यों परू ा ककया - ां, व ां भी लोग आपका इन्तजार कर र े
ोंगे।

मोटे - एक-दो हदि की तो कोई बात ि थी और ववचार भी य ी था कक


बत्रवेणी का स्िाि करूंगा, पर बुरा ि मानिए तो क ूं , आप लोगों में ब्राह्राणों के
प्रनत लेशमात्र भी श्रद्धा ि ीं ै । मारे जजमाि ैं , जो मारा मंु जो ते र ते
ैं कक पंडडतजी कोई आज्ञा दें , तो उसका पालि करें । म उिके द्वारा प ुं च
जाते ैं, तो वे अपिा िन्य भाग्य समझते ैं और सारा घर-छोटे से बडे तक
मारी सेवा-सत्कार में मग्ि ो जाते ैं। ज ां अपिा आदर ि ीं , व ां एक क्षण
भी ठ रिा असह्राय ै । ज ां ब्रह्राण का आदर ि ीं, व ां कल्याण ि ीं ो
सकता।

भाल - म ाराज, मसे तो ऐसा अपराि ि ीं ु आ।

मोटे - अपराि ि ीं ु आ! और अपराि क ते ककसे ैं? अभी आप ी िे घर में


जाकर क ा कक य म ाशय तीि सेर लमठाई चट कर गये , पक्की तौल।
आपिे अभी खािेवाले दे खे क ां? एक बार णखलाइये तो आंखें खल
ु जायें।
ऐसे-ऐसे म ाि पुरूष पडे ैं, जो पसेरी भर लमठाई खा जायें और डकार तक
ि लें । एक-एक लमठाई खािे के ललए मारी धचरौरी की जाती ै, रूपये हदये
जाते ैं। म लभक्षुक ब्राह्राण ि ीं ैं , जो आपके द्वार पर पडे र ें । आपका
िाम सुिकर आये थे, य ि जािते थे कक य ां मेरे भोजि के भी लाले
पडेंगे। जाइये, भगवाि ् आपका कल्याण करें !

बाबू सा ब ऐसा झेंपे कक मुं से बात ि निकली। जजन्दगी भर में उि पर कभी


ऐसी फटकार ि पडी थी। ब ु त बातें बिायीं-आपकी चचाम ि थी, एक दस
ू रे ी
म ाशय की बात थी, लेककि पंडडतजी का क्रोि शान्त ि ु आ। व सब
कुछ स सकते थे, पर अपिे पेट की निन्दा ि स सकते थे। औरतों को रूप
की निन्दा जजतिी वप्रय लगती ै , उससे क ीं अधिक अवप्रय पुरूषों को अपिे पेट
की निन्दा लगती ै । बाबू सा ब मिाते तो थे; पर िडका भी समाया ु आ था
कक य हटक ि जायें। उिकी कृपणता का परदा खुल गया था, अब इसमें
सन्दे ि था। उस पदे को ढांकिा जरूरी था। अपिी कृपणता को नछपािे
के ललए उन् ोंिे कोई बात उठा ि रखी पर ोिेवाली बात ोकर र ी। पछता
र े थे कक क ां से घर में इसकी बात क िे गया और क ा भी तो उच्च स्वर
में । य दष्ु ट भी काि लगाये सुिता र ा, ककन्तु अब पछतािे से क्या ो
सकता था? ि जािे ककस
मि ू स की सूरत दे खी थी य ववपजत्त गले पडी।
अगर इस वक्त य ां से रूष्ट ोकर चला गया; तो व ां जाकर बदिाम
करे गा और मेरा सारा कौशल खल
ु जायेगा। अब तो इसका मंु बन्द कर दे िा ी
पडेगा।

य सोच-ववचार करते ु ए व घर में जाकर रं गीलीबाई से बोले - इस दष्ु ट िे


मारी-तुम् ारी बातें सुि ली। रूठकर चला जा र ा ै ।

रं गीली - जब तुम जािते थे कक द्वार पर खडा ै , तो िीरे से क्यों ि बोले?

भाल - ववपजत्त आती ै ; तो अकेले ि ीं आती। य क्या जािता था कक व


द्वार पर काि लगाये खडा ै।

रं गीली - ि जािे ककसका मुं दे ख था?


भाल - व ी दष्ु ट सामिे लेटा ु आ था। जािता तो उिर ताकता ी ि ीं। अब
तो इसे कुछ दे -हदलाकर राजी करिा पडेगा।

रं गीली - ऊं , जािे भी दो। जब तुम् ें व ां वववा ी ि ीं करिा ै , तो क्या


परवा ै ? जो चा े समझे, जो चा े क े ।

भाल - यों जाि ि बचेगी। आओं दस रूपये ववदाई के ब ािे दे दं ।ू ईश्वर कफर
इस मि ू स की सूरत ि हदखाये।

रं गीली िे ब ु त अछताते-पछताते दस रुपये निकाले और बाबू सा ब िे उन् ें ले


जाकर पंडडतजी के चरणों पर रख हदया। पंडडतजी िे हदल में क ा-ित्तैरे
मक्खीचूस की! ऐसा रगडा कक याद करोगे। तुम समझते ोगे कक दस रुपये
दे कर इसे उल्लू बिा लूंगा। इस फेर में ि र िा। य ां तुम् ारी िस-िस
प चािते ैं। रुपये जेब में रख ललये और आशीवामद दे कर अपिी रा ली।

बाबू सा ब बडी दे कर तक खडे सोच र े थे-मालूम ि ीं, अब भी मुझे कृपण ी


समझ र ा ै या परदा ढं क गया। क ीं ये रुपये भी तो पािी में ि ीं धगर
पडे।

***
4

कल्याणी के सामिे अब एक ववषम समस्या आ खडी ु ई। पनत के दे ान्त के


बाद उसे अपिी दरु वस्था का य प ला और ब ु त ी कडवा अिुभव ु आ।
दररद्र वविवा के ललए इससे बडी और क्या ववपजत्त ो सकती ै कक जवाि
बेटी लसर पर सवार ो? लडके िंगे पांव पढिे जा सकते ैं, चौका-बत्तमि भी
अपिे ाथ से ककया जा सकता ै , रूखा-सूखा खाकर निवाम ककया जा सकता
ै, झोपडे में हदि काटे जा सकते ैं , लेककि युवती कन्या घर में ि ीं बैठाई
जा सकती। कल्याणी को भालचन्द्र पर ऐसा क्रोि आता था कक स्वयं
जाकर उसके मुं में काललख लगाऊं, लसर के बाल िोच ल,ूं
क ूं कक तू
अपिी बात से कफर गया, तू अपिे बाप का बेटा ि ीं। पंडडत मोटे राम िे
उिकी कपट-लीला का िग्ि वत्ृ तान्त सुिा हदया था।

व इसी क्रोि में भरी बैठी थी कक कृष्णा खेलती ु ई आयी और बोली - कै


हदि में बारात आयेगी अम्मां? पंडडत तो आ गये।

कल्याणी - बारात का सपिा दे ख र ी ै क्या?

कृष्णा - व ी चन्दर तो क र ा ै कक दो-तीि हदि में बारात आयेगी, क्या


ि जायेगी अम्मां?

कल्याणी - एक बार तो क हदया, लसर क्यों खाती ै?

कृष्णा - सबके घर तो बारात आ र ी ै, मारे य ां क्यों ि ीं आती?

कल्याणी - तेरे य ां जो बारात लािे वाला था, उसके घर में आग लग गई।

कृष्णा - सच, अम्मां! तब तो सारा घर जल गया ोगा। क ां र ते ोंगे ? ब ि


क ां जाकर र े गी?

कल्याणी - अरे पगली! तू तो बात ी ि ीं समझती। आग ि ीं लगी। व मारे


य ां ब्या ि करे गा।
कृष्णा - य क्यों अम्मां? प ले तो व ीं ठीक ो गया था ि?

कल्याणी - ब ु त से रुपये मांगता ै । मेरे पास उसे दे िे को रुपये ि ीं ैं।

कृष्णा - क्या बडे लालची ैं, अम्मां?

कल्याणी - लालची ि ीं तो और क्या ै । पूरा कसाई निदम यी, दगाबाज।

कृष्णा - तब तो अम्मां, ब ु त अच्छा ु आ कक उसके घर ब ि का ब्या ि ीं


ु आ। ब ि उसके साथ कैसे र ती? य तो खश ु ोिे की बात ै अम्मां,
तुम रं ज क्यों करती ो?

कल्याणी िे पुत्री को स्िे मयी दृजष्ट से दे खा। इिका कथि ककतिा सत्य ै?
भोले शब्दों में समस्या का ककतिा मालममक निरूपण ै ? सचमुच य ते
प्रसन्ि ोिे की बात ै कक ऐसे कुपात्रों से
सम्बन्ि ि ीं ु आ, रं ज की कोई बात ि ीं। ऐसे कुमािुसों के बीच में बेचारी
निममला की ि जािे क्या गनत ोती अपिे िसीबों को रोती। जरा सा घी दाल
में अधिक पड जाता, तो सारे घर में शोर मच जाता, जरा खािा ज्यादा पक
जाता, तो सास दनिया लसर पर उठा लेती। लडका भी ऐसा लोभी ै । बडी
अच्छी बात ु ई, ि ीं, बेचारी को उम्र भर रोिा पडता। कल्याणी य ां से उठी,
तो उसका हृदय ल्का ो गया था।

लेककि वववा तो करिा ी था और ो सके तो इसी साल, ि ीं तो दस


ू रे साल
कफर िये लसरे से तैयाररयां करिी पडेगी। अब अच्छे घर की जरूरत ि थी।
अच्छे वर की जरूरत ि थी। अभाधगिी को अच्छा घर-वर क ां लमलता!
अब तो ककसी भांनत लसर का बोझा उतारिा था, ककसी भांनत लडकी को
पार लगािा था, उसे कुएं में झोंकिा था। य रूपवती ै , गुणशीला ै, चतुर ै,
कुलीि ै , तो ु आ करें , द े ज ि ीं तो उसके सारे गुण दोष ैं, द े ज ो तो सारे
दोष गुण ैं। प्राणी का कोई मूल्य ि ीं, केवल दे ज का मूल्य ै । ककतिी
ववषम भग्यलीला ै!
कल्याणी का दोष कुछ कम ि था। अबला और वविवा ोिा ी उसे दोषों से
मुक्त ि ीं कर सकता। उसे अपिे लडके अपिी लडककयों से क ीं ज्यादा प्यारे
थे। लडके ल के बैल ैं , भूसे खली पर प ला क उिका ै , उिके खािे से
जो बचे व गायों का! मकाि था, कुछ िकद था, कई जार के ग िे थे,
लेककि उसे अभी दो लडकों का पालि-पोषण करिा था, उन् ें पढािा-ललखािा
था। एक कन्या और भी चार-पांच साल में वववा करिे योग्य ो जायेगी।
इसललए व कोई बडी रकम द े ज में ि दे सकती थी, आणखर लडकों को भी
तो कुछ चाह ए। वे क्या समझेंगे कक मारा भी कोई बाप था।

पंडडत मोटे राम को लखिऊ से लौटे पन्द्र हदि बीत चुके थे। लौटिे के बाद
दस
ू रे ी हदि से व वर की खोज में निकले थे। उन् ोंिे प्रण ककया था कक मैं
लखिऊ वालों को हदखा दं ग
ू ा कक संसार में तुम् ीं अकेले ि ीं ो, तुम् ारे ऐसे
और भी ककतिे पडे ु ए ैं। कल्याणी रोज हदि धगिा करती थी। आज
उसिे उन् ें पत्र ललखिे का निश्चय ककया और कलम-दवात लेकर बैठी ी थी
कक पंडडत मोटे राम िे पदापमण ककया।

कल्याणी - आइये पंडडतजी, मैं तो आपको खत ललखिे जा र ी थी, कब लौटे ?

मोटे राम - लौटा तो प्रात:काल ी था, पर इसी समय एक सेठ के य ां से


निमन्त्रण आ गया। कई हदि से तर माल ि लमले थे। मैंिे क ा कक लगे ाथ
य भी काम निपटाता चलं।ू अभी उिर ी से लौटा आ र ा ूं , कोई पांच
सौ ब्रह्राणों को पंगत थी।

कल्याणी - कुछ कायम भी लसद्ध ु आ या रास्ता ी िापिा पडा।

मोटे राम - कायम क्यों ि लसद्ध ोगा? भला, य भी कोई बात ै ? पांच जग
बातचीत कर आया ूं । पांचों की िकल लाया ूं । उिमें से आप चा े जजसे
पसन्द करें । य दे णखए इस लडके का बाप डाक के सीगे में सौ रूपये म ीिे
का िौकर ै । लडका अभी कालेज में पढ र ा ै । मगर िौकरी का भरोसा ै,
घर में कोई जायदाद ि ीं। लडका ोि ार मालूम ोता ै । खािदाि भी अच्छा
ै दो जार में बात तय ो जायेगी। मांगते तो य तीि जार ैं।
कल्याणी - लडके के कोई भाई ै?

मोटे - ि ीं, मगर तीि ब िें ैं और तीिों क्वांरी। माता जीववत ै । अच्छा अब
दस
ू री िकल हदये। य लडका रे ल के सीगे में पचास रूपये म ीिा पाता ै।
मां-बाप ि ीं ैं। ब ुत ी रूपवाि ् सुशील और शरीर से खूब हृष्ट-पुष्ट
कसरती जवाि ै । मगर खािदाि अच्छा ि ीं , कोई क ता ै , मां िाइि थी,
कोई क ता ै , ठकुराइि थी। बाप ककसी ररयासत में मुख्तार थे। घर पर
थोडी सी जमींदारी ै , मगर उस पर कई जार का कजम ै । व ां कुछ लेिा-दे िा
ि पडेगा। उम्र कोई बीस साल ोगी।

कल्याणी - खािदाि में दाग ि ोता, तो मंजरू कर लेती। दे खकर तो मक्खी


ि ीं निगली जाती।

मोटे - तीसरी िकल दे णखए। एक जमींदार का लडका ै , कोई एक जार सालािा


िफा ै। कुछ खेती-बारी भी ोती ै । लडका पढ-ललखा तो थोडा ी ै , कच री-
अदालत के काम में चतरु ै । द ु ाजू
ै , प ली स्त्री को मरे दो साल ु ए।
उससे कोई संताि ि ीं, लेककि र िा-स ि, मोटा ै । पीसिा-कूटिा घर ी में
ोता ै।

कल्याणी - कुछ द े ज मांगते ैं?

मोटे - इसकी कुछ ि पूनछए। चार जार सुिाते ैं। अच्छा य चौथी िकल
हदये। लडका वकील ै , उम्र कोई पैंतीस साल ोगी। तीि-चार सौ की आमदिी
ै । प ली स्त्री मर चुकी ै उससे तीि लडके भी ैं। अपिा घर बिवाया ै।
कुछ जायदाद भी खरीदी ै । य ां भी लेि-दे ि का झगडा ि ीं ै।

कल्याणी - खािदाि कैसा ै?

मोटे - ब ु त ी उत्तम, पुरािे रईस ैं। अच्छा, य पांचवीं िकल हदए। बाप का
छापाखािा ै । लडका पढा तो बी. ए. तक ै , पर उस छापेखािे में काम करता
ै। उम्र अठार साल की ोगी। घर में प्रेस के लसवाय कोई जायदाद ि ीं
ै , मगर ककसी का कजम लसर पर ि ीं। खािदाि ि ब ु त अच्छा ै , ि बुरा।
लडका ब ु त सन्
ु दर और सच्चररत्र ै । मगर एक जार से कम में मामला
तय ि ोगा, मांगते तो व तीि जार ैं। अब बताइए, आप कौि-सा वर
पसन्द करती ैं?

कल्याणी - आपकों सबों में कौि पसन्द ै?

मोटे - मुझे तो दो वर पसन्द ैं। एक व जो रे लवई में ै और दस


ू रा जो
छापेखािे में काम करता ै।

कल्याणी - मगर प ले के तो खािदाि में आप दोष बताते ैं ?

मोटे - ां, य दोष तो ै । छापेखािे वाले को ी र िे दीजजये।

कल्याणी - य ां एक जार दे िे को क ां से आयेगा? एक जार तो आपका


अिुमाि ै , शायद व और मुं फैलाये। आप तो इस घर की दशा दे ख ी र े
ैं, भोजि लमलता जाये, य ी गिीमत ै। रूपये क ां से आयेंगे ? जमींदार
सा ब चार जार सुिाते ैं, डाक बाबू भी दो जार का सवाल करते ैं।
इिको जािे दीजजए। बस, वकील सा ब ी बच सकते ैं। पैंतीस साल की उम्र
भी कोई ज्यादा ि ीं। इन् ीं को क्यों ि रणखए।

मोटे राम - आप खब
ू सोच-ववचार लें । मैं यों आपकी मजी का ताबेदार ूं । ज ां
कह एगा व ां जाकर टीका कर आऊंगा। मगर जार का मुं ि दे णखए,
छापेखािे वाला लडका रत्ि ै। उसके साथ
कन्या का जीवि सफल ो जाएगा। जैसी य रूप और गुण की पूरी ै , वैसा ी
लडका भी सुन्दर और सुशील ै।

कल्याणी - पसन्द तो मुझे भी य ी ै म ाराज, पर रुपये ककसके घर से आयें!


कौि दे िे वाला ै!
ै कोई दािी? खािेवाले खा-पीकर चंपत ु ए। अब ककसी
की भी सूरत ि ीं हदखाई दे ती, बजल्क
और मुझसे बुरा मािते ैं कक में निकाल हदया। जो बात अपिे बस के बा र ै,
उसके ललए ाथ ी क्यों फैलाऊं? सन्ताि ककसको प्यारी ि ीं ोती? कौि उसे
सुखी ि ीं दे खिा चा ता? पर जब अपिा काबू भी ो। आप ईश्वर का िाम
लेकर वकील सा ब को टीका कर आइये। आयु कुछ अधिक ै, लेककि मरिा-
जीिा ववधि के ाथ ै । पैंतीस साल का आदमी बुढ्डा ि ीं क लाता। अगर
लडकी के भाग्य में सुख भोगिा बदा ै , तो ज ां जायेगी सुखी र े गी, द:ु ख
भोगिा ै , तो ज ां जायेगी द:ु ख झेलेगी। मारी निममला को बच्चों से प्रेम ै।
उिके बच्चों को अपिा समझेगी। आप शुभ मु ू तम दे खकर टीका कर आयें।

***
5

निममला का वववा ो गया। ससुराल आ गयी। वकील सा ब का िाम था मुंशी


तोताराम। सांवले रं ग के मोटे -ताजे आदमी थे। उम्र तो अभी चालीस से अधिक
ि थी, पर वकालत के कहठि पररश्रम िे लसर के बाल पका हदये थे।
व्यायाम करिे का उन् ें अवकाश ि लमलता था। व ां तक कक कभी क ीं
घूमिे भी ि जाते, इसललए तोंद निकल आई थी। दे के स्थूि
ु ए भी ोते
आये हदि कोई-ि-कोई लशकायत र ती थी। मंदजग्ि और बवासीर से तो उिका
धचरस्थायी सम्बन्ि था। अतएव
ब ु त फूंक-फूंककर कदम रखते थे। उिके
तीि लडके थे। बडा मंसाराम सो ल वषम का था, मंझला जजयाराम बार और
लसयाराम सात वषम का। तीिों अंग्रेजी पढते थे। घर में वकील सा ब की
वविवा बह ि के लसवा और कोई औरत ि थी। व ी घर की मालककि थी।
उिका िाम था रुकलमणी और अवस्था पचास के ऊपर थी। ससुराल में कोई ि
था। स्थायी रीनत से य ीं र ती थीं।

तोताराम दम्पनत-ववज्ञाि में कुशल थे। निममला के प्रसन्ि रखिे के ललए


उिमें जो स्वाभाववक कमी थी, उसे व उप ारों से पूरी करिा चा ते थे।
यद्यवप व ब ु ी लमतव्ययी पुरूष थे, पर निममला के ललए कोई-ि-कोई तो फा
रोज लाया करते। मौके पर िि की परवाइ ि करते थे। लडके के ललए थोडा
दि
ू आता था, पर निममला के ललए मेवे, मुरब्बे, लमठाइयां-ककसी चीज की कमी
ि थी। अपिी जजन्दगी में कभी सैर-तमाशे दे खिे ि गये थे, पर अब छुहट्टयों
में निममला को लसिेमा, सरकस, एटर, हदखािे ले जाते थे। अपिे ब ु मूल्य
समय का थोडा-सा ह स्सा उसके साथ बैंठकर ग्रामोफोि बजािे में व्यतीत
ककया करते थे।

लेककि निममला को ि जािे क्यों तोताराम के पास बै ठिे और ं सिे-बोलिे में


संकोच ोता था। इसका कदाधचत ् य कारण था कक अब तक ऐसा ी एक
आदमी उसका वपता था, जजसके सामिे व लसर-झुकाकर, दे चुराकर
निकलती थी, अब उिकी अवस्था का एक आदमी उसका पनत था। व उसे
प्रेम की वस्तु ि ीं सम्माि की वस्तु समझती थी। उिसे भागती कफरती, उिको
दे खते ी उसकी प्रफुल्लता पलायि कर जाती थी।
वकील सा ब को िके दम्पजत्त-ववज्ञाि ि लसखाया था कक युवती के सामिे
खूब प्रेम की बातें करिी चाह ये। हदल निकालकर रख दे िा चह ये , य ी उसके
वशीकरण का मुख्य मंत्र ै। इसललए वकील सा ब अपिे प्रेम-प्रदशमि में कोई
कसर ि रखते थे, लेककि निममला को इि बातों से घण
ृ ा ोती थी। व ी
बातें , जजन् ें ककसी युवक के मुख से सुिकर उिका हृदय प्रेम से उन्मत्त ो
जाता, वकील सा ब के मंु से निकलकर उसके हृदय पर शर के समाि आघात
करती थीं। उिमें रस ि था उल्लास ि था, उन्माद ि था, हृदय ि था,
केवल बिावट थी, घोखा था और शुष्क, िीरस शब्दाडम्बर। उसे इत्र
और तेल बुरा ि लगता, सैर-तमाशे बुरे ि लगते, बिाव-लसंगार भी बुरा ि
लगता था, बुरा लगता था, तो केवल तोताराम के पास बैठिा। व अपिा रूप
और यौवि उन् ें ि हदखािा चा ती थी, क्योंकक व ां दे खिे वाली आंखें ि
थीं। व उन् ें इि रसों का आस्वादि लेिे योग्य ि समझती थी। कली
प्रभात-समीर ी के सपशम से णखलती ै । दोिों में समाि सारस्य ै । निममला
के ललए व प्रभात समीर क ां था?

प ला म ीिा गज
ु रते ी तोताराम िे निममला को अपिा खजांची बिा ललया।
कच री से आकर हदि-भर की कमाई उसे दे दे त।े उिका ख्याल था कक निममला
इि रूपयों को दे खकर फूली ि समाएगी। निममला बडे शौक से इस पद का
काम अंजाम दे ती। एक-एक पैसे का ह साब ललखती, अगर कभी रूपये कम
लमलते, तो पूछती आज कम क्यों ैं। ग ृ स्थी के सम्बन्ि में उिसे खूब बातें
करती। इन् ीं बातों के लायक व उिको समझती थी। ज्यों ी कोई वविोद की
बात उिके मुं से निकल जाती, उसका मुख ललि ो जाता था।

निममला जब वस्त्राभूष्णों से अलंकृत ोकर आइिे के सामिे खडी ोती और


उसमें अपिे सौंन्दयम की सुषमापूणम आभा दे खती, तो उसका हृदय एक सतष्ृ ण
कामिा से तडप उठता था। उस वक्त उसके हृदय में एक ज्वाला-सी उठती।
मि में आता इस घर में आग लगा दं ।ू अपिी माता पर क्रोि आता, पर
सबसे अधिक क्रोि बेचारे निरपराि तोताराम पर आता। व सदै व इस ताप
से जला करती। बांका सवार लद्रद-ू टट्टू पर सवार ोिा कब पसन्द करे गा, चा े
उसे पैदल ी क्यों ि चलिा पडे? निममला की दशा उसी बांके सवार की-सी
थी। व उस पर सवार ोकर उडिा चा ती थी, उस उल्लासमयी ववद्यत ्
गनत का आिन्द उठािा चा ती थी, टट्टू के ह िह िािे और किौनतयां खडी
करिे से क्या आशा ोती? संभव था कक बच्चों के साथ ं सिे-खेलिे से व
अपिी दशा को थोडी दे र के ललए भूल जाती, कुछ मि रा ो जाता, लेककि
रुकलमणी दे वी लडकों को उसके पास फटकिे तक ि दे तीं , मािो व कोई
वपशाधचिी ै , जो उन् ें निगल जायेगी। रुकलमणी दे वी का स्वभाव सारे
संसार से निराला था, य पता लगािा कहठि था कक व ककस बात से खुश
ोती थीं और ककस बात से िाराज। एक बार जजस बात से खश
ु ो जाती
थीं, दस
ू री बार उसी बात से जल जाती थी। अगर निममला अपिे कमरे में बैठी
र ती, तो क तीं कक ि जािे क ां की मि ू लसि ै ! अगर व कोठे पर चढ
जाती या म ररयों से बातें करती, तो छाती पीटिे लगतीं-ि लाज ै , ि शरम,
निगोडी िे या भूि खाई! अब क्या कुछ हदिों में बाजार में िाचेगी! जब से
वकील सा ब िे निममला के ाथ में रुपये -पैसे दे िे शुरू ककये, रुकलमणी उसकी
आलोचिा करिे पर आरूढ ो गयी। उन् ें मालूम ोता था। कक अब प्रलय
ोिे में ब ु त थोडी कसर र गयी ै । लडकों को बार-बार पैसों की जरूरत
पडती। जब तक खुद स्वालमिी थीं, उन् ें ब ला हदया करती थीं। अब सीिे
निममला के पास भेज दे तीं। निममला को लडकों के चटोरापि अच्छा ि लगता
था। कभी-कभी पैसे दे िे से इन्कार कर दे ती। रुकलमणी को अपिे वाग्बाण
सर करिे का अवसर लमल जाता-अब तो मालककि ु ई ै , लडके का े को
जजयेंगे। बबिा मां के बच्चे को कौि पूछे? रूपयों की लमठाइयां खा जाते थे, अब
िेले-िेले को तरसते ैं। निममला अगर धचढकर ककसी हदि बबिा कुछ पूछे-ताछे
पैसे दे दे ती, तो दे वीजी उसकी दस
ू री ी आलोचिा करतीं-इन् ें क्या, लडके मरे
या जजयें, इिकी बला से, मां के बबिा कौि समझाये कक बेटा, ब ु त लमठाइयां
मत खाओ। आयी-गयी तो मेरे लसर जायेगी, इन् ें क्या? य ीं तक ोता,
तो निममला शायद जब्त कर जाती, पर दे वीजी तो खुकफया पुललस से लसपा ी की
भांनत निममला का पीछा करती र ती थीं। अगर व कोठे पर खडी ै , तो
अवश्य ी ककसी पर निगा डाल र ी ोगी, म री से बातें करती ै , तो
अवश्य ी उिकी निन्दा करती ोगी। बाजार से कुछ मंगवाती ै , तो अवश्य
कोई ववलास वस्तु ोगी। य बराबर उसके पत्र पढिे की चेष्टा ककया करती।
नछप-नछपकर बातें सुिा करती। निममला उिकी दोिरी तलवार से कांपती र ती
थी। य ां तक कक उसिे एक हदि पनत से क ा-आप जरा जीजी को समझा
दीजजए, क्यों मेरे पीछे पड र ती ैं?

तोताराम िे तेज ोकर क - तुम् ें कुछ क ा ै , क्या?


‘रोज ी क ती ैं। बात मुं से निकालिा मुजश्कल ै । अगर उन् ें इस बात की
जलि ो कक यमालककि क्यों बिी ु ई ै , तो आप उन् ीं को रूपये-पैसे
दीजजये, मुझे ि चाह ये, य ी मालककि बिी र ें । मैं तो केवल इतिा चा ती ूं
कक कोई मुझे तािे-मे िे ि हदया करे ।’

य क ते-क ते निममला की आंखों से आंसू ब िे लगे। तोताराम को अपिा प्रेम


हदखािे का य ब ु त ी अच्छा मौका लमला। बोले-मैं आज ी उिकी खबर
लूंगा। साफ क दं ग
ू ा, मंु बन्द करके र िा ै , तो र ो, ि ीं तो अपिी
रा लो। इस घर की स्वालमिी व ि ीं ै, तुम ो। व केवल तुम् ारी
स ायता के ललए ैं। अगर स ायता करिे के बदले तम्
ु ें हदक करती ैं , तो
उिके य ां र िे की जरूरत ि ीं। मैंिे सोचा था कक वविवा ैं , अिाथ ैं, पाव
भर आटा खायेंगी, पडी र ें गी। जब और िौकर-चाकर खा र े ैं, तो व तो
अपिी बह ि ी ै । लडकों की दे खभाल के ललए एक औरत की जरूरत भी
थी, रख ललया, लेककि इसके य मािे ि ीं कक व तुम् ारे ऊपर शासि करें ।

निममला िे कफर क ा-लडकों को लसखा दे ती ैं कक जाकर मां से पैसे मांगे,


कभी कुछ-कभी कुछ। लडके आकर मेरी जाि खाते ैं। घडी भर लेटिा मुजश्कल
ो जाता ै । डांटती ूं , तो व आखें लाल-पीली करके दौडती ैं। मुझे
समझती ैं कक लडकों को दे खकर जलती ै । ईश्वर जािते ोंगे कक मैं बच्चों
को ककतिा प्यार करती ूं । आणखर मेरे ी बच्चे तो ैं। मझ
ु े उिसे क्यों जलि
ोिे लगी?

तोताराम क्रोि से कांप उठे । बोले - तुम् ें जो लडका हदक करे , उसे पीट हदया
करो। मैं भी दे खता ूं कक लौंडे शरीर ो गये ैं। मंसाराम को तो में बोडडिंग
ाउस में भेज दं ग
ू ा। बाकी दोिों को तो आज ी ठीक ककये दे ता ूं ।

उस वक्त तोताराम कच री जा र े थे, डांट-डपट करिे का मौका ि था, लेककि


कच री से लौटते ी उन् ोंिे घर में रुजक्मणी से क ा - क्यों बह ि, तुम् ें इस
घर में र िा ै या ि ीं? अगर र िा ै , शान्त ोकर र ो। य क्या कक
दस
ू रों का र िा मजु श्कल कर दो।
रुजक्मणी समझ गयीं कक ब ू िे अपिा वार ककया, पर व दबिे वाली औरत ि
थीं। एक तो उम्र में बडी नतस पर इसी घर की सेवा में जजन्दगी काट दी थी।
ककसकी मजाल थी कक उन् ें बेदखल कर दे ! उन् ें भाई की इस क्षुद्रता पर
आश्चयम ु आ। बोलीं - तो क्या लौंडी बिाकर रखेगे? लौंडी बिकर र िा ै,
तो इस घर की लौंडी ि बिूंगी। अगर तुम् ारी य इच्छा ो कक घर में
कोई आग लगा दे और मैं खडी दे खा करूं, ककसी को बेरा चलते दे खंू; तो चप

साि लूं, जो जजसके मि में आये करे , मैं लमट्टी की दे वी बिी र ूं , तो य
मुझसे ि ोगा। य ु आ क्या, जो तुम इतिा आपे से बा र ो र े ो?
निकल गयी सारी बुवद्धमािी, कल की लौंडडया चोटी पकडकर िचािे लगी?
कुछ पूछिा ि ताछिा, बस, उसिे तार खींचा और तुम काठ के लसपा ी की
तर तलवार निकालकर खडे ो गये।

तोता - सुिता ूं , कक तुम मेशा खुचर निकालती र ती ो, बात-बात पर तािे


दे ती ो। अगर कुछ सीख दे िी ो, तो उसे प्यार से, मीठे शब्दों में दे िी
चाह ये। तािों से सीख लमलिे के बदले उलटा और जी जलिे लगता ै।

रुजक्मणी - तो तुम् ारी य मजी ै कक ककसी बात में ि बोलूं, य ी स ी, ककि


कफर य ि क िा, कक तुम घर में बैठी थीं, क्यों ि ीं सला दी। जब मेरी
बातें ज र लगती ैं , तो मुझे क्या कुत्ते िे काटा ै , जो बोल?
ूं मसल ै -
‘िाटों खेती, ब ु ररयों घर।’ मैं भी दे खूं, ब ु ररया कैसे कर चलाती ै!

इतिे में लसयाराम और जजयाराम स्कूल से आ गये। आते ी आते दोिों


बुआजी के पास जाकर खािे को मांगिे लगे।

रुजक्मणी िे क ा - जाकर अपिी ियी अम्मां से क्यों ि ीं मांगते, मुझे बोलिे


का ु क्म ि ीं ै।

तोता - अगर तुम लोगों िे उस घर में कदम रखा, तो टांग तोड दं ग


ू ा।
बदमाशी पर कमर बांिी ै।

जजयाराम जरा शोख था। बोला - उिको तो आप कुछ ि ीं क ते, मीं को


िमकाते ैं। कभी पैसे ि ीं दे तीं।
लसयाराम िे इस कथि का अिुमोदि ककया - क ती ैं, मझ
ु े हदक करोगे तो
काि काट लूंगी। क ती ै कक ि ीं जजया?

निममला अपिे कमरे से बोली - मैंिे कब क ा था कक तुम् ारे काि काट लूंगी
अभी से झठ
ू बोलिे लगे?

इतिा सुििा था कक तोताराम िे लसयाराम के दोिों काि पकडकर उठा ललया।


लडका जोर से चीख मारकार रोिे लगा।

रुजक्मणी िे दौडकर बच्चे को मंश


ु ीजी के ाथ से छुडा ललया और बोलीं - बस,
र िे भी दो, क्या बच्चे को मार डालोगे? ाय- ाय! काि लाल ो गया। सच
क ा ै , ियी बीवी पाकर आदमी अन्िा ो जाता ै । अभी से य ाल ै , तो
इस घर के भगवाि ी माललक ैं।

निममला अपिी ववजय पर मि- ी-मि प्रसन्ि ो र ी थी, लेककि जब मंश


ु ी जी
िे बच्चे का काि पकडकर उठा ललया, तो उससे ि र ा गया। छुडािे को दौडी,
पर रुजक्मणी प ले ी
प ुंच गयी थीं। बोलीं - प ले आग लगा दी, अब
बुझािे दौडी ो। जब अपिे लडके ोंगे , तब आंखें खल ु ें गी। पराई पीर क्या
जािो?

निममला - खडे तो ैं, पूछ लो ि, मैंिे क्या आग लगा दी? मैंिे इतिा ी क ा
था कक लडके मुझे पैसों के ललए बार-बार हदक करते ैं, इसके लसवाय जो मेरे
मुं से कुछ निकला ो, तो मेरे आंखें फूट जायें।

तोता - मैं खद
ु इि लौंडों की शरारत दे खा करता ूं , अन्िा थोडे ी ूं । तीिों
जजद्दी और शरीर ो गये ैं। बडे लमयां को तो मैं आज ी ोस्टल में भेजता ूं ।

रुजक्मणी - अब तक तुम् ें इिकी कोई शरारत ि सूझी थी, आज आंखें क्यों


इतिी तेज ो गयीं?

तोताराम - तुम् ीं ि इन् ें इतिा शोख कर रखा ै।


रुकलमणी - तो मैं ी ववष की गांठ ूं । मेरे ी कारण तुम् ारा घर चौपट ो र ा
ै। लो मैं जाती ूं , तुम् ारे लडके ैं, मारो चा े काटो, ि बोलूंगी।

य क कर व व ां से चली गयीं। निममला बच्चे को रोते दे खकर ववहृल ो


उठी। उसिे
उसे छाती से लगा ललया और गोद में ललए ु ए अपिे कमरे में
लाकर उसे चुमकारिे लगी, लेककि बालक और भी लससक-लससक कर रोिे
लगा। उसका अबोि हृदय इस प्यार में व मात-ृ स्िे ि पाता था, जजससे दै व
िे उसे वंधचत कर हदया था। य वात्सल्य ि था, केवल दया थी। य व वस्तु
थी, जजस पर उसका कोई अधिकार ि था, जो केवल लभक्षा के रूप में उसे दी
जा र ी थी। वपता िे प ले भी दो-एक बार मारा था, जब उसकी मां जीववत थी,
लेककि तब उसकी मां उसे छाती से लगाकर रोती ि थी। व अप्रसन्ि ोकर
उससे बोलिा छोड दे ती, य ां तक कक व स्वयं थोडी ी दे र के बाद कुछ
भूलकर कफर माता के पास दौडा जाता था। शरारत के ललए सजा पािा तो
उसकी समझ में आता था, लेककि मार खािे पार चुमकारा जािा उसकी
समझ में ि आता था। मात-ृ प्रेम में कठोरता ोती थी, लेककि मद
ृ ल
ु ता से लमली
ु ई। इस प्रेम में करूणा थी, पर व कठोरता ि थी, जो आत्मीयता का गुप्त
संदेश ै । स्वस्थ अंग की पारवा कौि करता ै ? लेककि व ी अंग जब ककसी
वेदिा से टपकिे लगता ै , तो उसे ठे स और घक्के से बचािे का यत्ि ककया
जाता ै । निममला का करूण रोदि बालक को उसके अिाथ ोिे की सूचिा दे
र ा था। व बडी दे र तक निममला की गोद में बैठा रोता र ा और रोते-रोते सो
गया। निममला िे उसे चारपाई पर सुलािा चा ा, तो बालक िे सुषुप्तावस्था में
अपिी दोिों कोमल बा ें उसकी गदम ि में डाल दीं और ऐसा धचपट गया, मािो
िीचे कोई गढा ो। शंका और भय से उसका मुख ववकृत ो गया। निममला िे
कफर बालक को गोद में उठा ललया, चारपाई पर ि सुला सकी। इस समय
बालक को गोद में ललये ु ए उसे व तजु ष्ट ो र ी थी, जो अब तक कभी ि
ु ई थी, आज प ली बार उसे आत्मवेदिा ु ई, जजसके िा आंख ि ीं खलु ती,
अपिा कत्तमव्य-मागम ि ीं समझता। व मागम अब हदखायी दे िे लगा।

***

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