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आदरणीय निर्णायक मण्डल एवम

ु मेररे प्रिय साथियों,


मै, राजेश कुमार वर्मा, वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, आईओसीएल अनुसंधान एवं विकास केंद्र से,
आप सबके समक्ष अपनी स्वरचित कविता जिसका शीर्षक है “गलतफहमियाँ”, प्रस्तुत करने की
आज्ञा चाहूँगा।
मै कविता पठन शुरू करूँ उससे पूर्व आप सबसे दो शब्द साझा करने की इच्छा रखता हूँ।
कविता मेरे लिए विविध मनोभावों की अभिव्यक्ति का एक साधन है । जब भी जीवन मे, किसी
परिस्थिति मे मन के भाव अपने चरम पर पहुँच जाते हैं, तब वे कविता के बोल क रूप मे
प्रस्फुटित होते हैं। यह कविता भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियों मे ही लिखी गयी थी। ऐसे ही कुछ
क्षण आपके जीवन मे भी कभी न कभी अवश्य आए होंगे। मेरी कोशिश है कि मै अपने इन
शब्दों के द्वारा आपके भावों से जड़
ु पाऊँ। यदि आप मेरे शब्दों के साथ पल भर के लिए भी
एक हो पाएँ, तो मे अपने इस प्रयास को सफल मानँग
ू ा।
शरू
ु करता हूँ...
गलतफहमियाँ

हमने यहां कुछ कहा,


वे वहां कुछ और समझ गए,
उन्होंने वहां कुछ ना कहा,
हम ना जाने क्या क्या सन
ु गए
उलझने कम थीं क्या जो ये मन उलझने को जझ
ू ता रहा,
जब यह उलझ गया, तब कुछ भी समझने लायक ना बचे

मनगढ़ं त हमारी ये मन की दनि


ु या,
गलतफहमियों की नींव पे बनती है ,
कौन सही कौन गलत,
फिर इस दनि
ु या में यह फर्क नहीं बनती है ,
क्यंकि
ू जिसकी दनि
ु या, वह सही,
और उसको फिर गलत दिखे हर कोई,
महायुद्ध छिड़ जाते हैं असल में ,
इस सही गलत की आढ़ में
जलते रिश्तों की उस चिता पे, जलता फिर हर इंसान है ,
चाहे सही हो या गलत, होता सबका नाश है
गलतफहमियाँ तो हर किसी क जीवन मे होती ही हैं, लेकिन आखिर अब किया
क्या जाये…

तो अगली कुछ पंक्तियों में उत्तर खोजते हैं...

अरे मरू ख, आंखें खोल, मन की भ्रांति दरू कर,


दो पल खद
ु में झांक, पता चलेगा कि,
तू कितना सही, कितना गलत,
दास कबीरा भी हार गए, रागते रागते एक आलाप,
मन साफ करके दे ख उसमें , सुंदर दिखेगा सब संसार

तू भी किसी बात से दख
ु ी,
और वो भी कुछ व्यथित परे शान,
दो पल जाके बैठ साथ में , बात कर,
संद
ु र मीठे लफ़्ज़ों से,
मन मुटाव को दरू करके, असलियत को ज़रा ध्यान से दे ख,
दिखेगा तुझे वो भी अपना, जिससे रखे तू परहे ज़

संयम किस प्रकार कारगर सिद्ध हो सकता है , साथ मिल कर दे खते हैं...

कोई बात दिल पे चुभे, तो संयम रख,


बड़े बड़े राज-पाठ जले हैं, केवल संयम खो कर
क्रोध वह जहर है , जो करने वाले को मारे ,
तू सोचे की वह मरे , कल कोई तेरी अर्थी ना उठा ले

गलतफहमी की दवा किसी दक


ु ान पे नहीं बंटती जनाब,
इसका हल तेरे अपनेपन में है ,
कोशिश तो करके दे ख, इलाज़ तेरे हाथों में है !!

- राजेश कुमार वर्मा


वरिष्ठ अनस
ु ंधान अधिकारी (इन्स्ट्रू॰)

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