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चंडीगढ़ संभाग
कक्षा आठिी ं
विषय : वहं दी
विषय अनुक्रम
क्रम संख्या पाठ का नाम
1 कबीर की साखियााँ
2 कामचोर
3 जब वसनेमा ने बोलना सीिा
4 सुदामा चररत
5 जहााँ पवहया है
6 अकबरी लोटा
7 सूरदास के पद
8 पानी की कहानी
9 बाज और सााँप
10 टोपी
11 युगों का दौर
12 नयी समस्याएाँ
13 अंवतम दौर – एक
14 अंवतम दौर – दो
15 तनाि, दो पृ ष्ठभूवमयााँ
16 अपवठत गद्यांश
17 मुहािरे
18 अनुच्छेद लेिन
19 वक्रया
20 कारक
21 पत् ले िन
22 उपसगग, प्रत्यय
23 पयागयिाची शब्द
24 विलोम शब्द
पद्ां श 1
iv) कबीर के अनुसार मनुष्य वदिावे की भखक्त वकस रूप में करता है ?
iv) अपना मन शीतल होने से हमारे प्रवत दू सरों का व्यवहार वकस तरह प्रभाववत होता है
?
प्रश्ोत्तर
ग्यान
वजवभ
तवल
आाँ खि
सीतल
प्रश् 11- 'तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं- उक्त उदाहरि से कबीर क्ा
कहना चाहते हैं ? स्पष्ट कीवजए।
प्रश् 12- क्ा अपशब्द का जवाब अपशब्द से दे ना ठीक है ? यवद नहीं तो क्ों ?
प्रश् 13- कबीर वकस तरह की भखक्त को सच्ची भखक्त नहीं मानते हैं ?
उत्तर-कंु जी
उत्तर ii कवव के अनुसार साधु की कोई जावत नही होती। मनुष्य के वलए जावत नहीं
ज्ञान महत्वपूिय होता है , अतः साधु से हमे ज्ञान प्राप्त करना चावहए उसकी जावत नहीं
पूछनी चावहए।
उत्तर iii अपशब्द का जवाब अपशब्द से नहीं दे ना चावहए क्ोंवक इससे अपशब्द एक
से बढ़कर अनेक हो जाते हैं ।
उत्तर iv ) मनुष्य हार् में मनके की माला विराता रहता है और मुाँह से राम-राम का
उच्चारि करता है परं तु उसका चंचल मन कहीं और भटकता रहता है । इस प्रकार वह
वदिावे की भखक्त करता है ।
उत्तर v 'मनुवााँ तो चहाँ वदवस विरै ' का आशय है - मन का प्रभु भखक्त में केंवित न हो
पाना। मन भखक्त में रमने के बजाए इधर- उधर भटकता रहता है।
पद्ां श- 2
उत्तर I -सािी में घास उस कमजोर मनुष्य का प्रतीक है वजसका अपमान करने से कोई
तवनक भी नहीं डरता।
उत्तरii -कवव घास के वतनके की वनंदा करने से इसवलए मना करता है वक जमीन पर
पडा अखित्वहीन घास का वतनका भी आाँ ि में पडने से हमें पीडा पहाँ चा सकता है ।
उत्तर v -आपा शब्द का अर्य है अहं कार, घमंड। आपा त्याग दे ने का पररिाम यह होता
है वक संसार में कोई व्यखक्त दु श्मन नहीं रह जाता। सभी उसके वमत्र बन जाते हैं।
प्रश्ोत्तर
उत्तर2- बीजक
उत्तर4- हार्
वजवभ-जीभ
तवल- तले
आाँ खि-आाँ ि
सीतल- शीतल
उत्तर10- उत्तर कबीर के दोहों को सािी इसवलए कहा जाता है , क्ोंवक सािी शब्द
साक्षी शब्द का तद्भव रूप है , वजसका अर्य है - आाँ िों दे िा हआ गवाह या गवाही। संत
कबीर ने इस दु वनया में सब सुना दे िा और सहा। उन्ोंने अपने अनुभव को दोहों के
रूप में व्यक्त वकया।
उत्तर 11-तलवार का महत्त्व होता है , म्यान का नहीं इस उदाहरि के माध्यम से कवव
कहना चाहता है वक वजस तरह तलवार की मजबूती तर्ा उसकी तीक्ष्ि धार दे िी जाती
है उसकी म्यान की सुंदरता नहीं दे िी जाती उसी प्रकार मनुष्य के वलए संतों की जावत
नहीं ज्ञान महत्वपूिय है ।
उत्तर12- हमें अपशब्द का जवाब कभी भी अपशब्द से नहीं दे ना चावहए क्ोंवक पलट
कर अपशब्द का जवाब दे ने से वह एक से अनेक हो जाता है । इस प्रकार गावलयों का
वसलवसला रुकने के बजाए बढ़ता ही जाता है ।
उत्तर 13-कबीर उस भखक्त को सच्ची भखक्त नहीं मानते हैं जब व्यखक्त हार् में मनका
घुमाता रहता है पर उसका मन एकाग्रवचत्त होने के बजाए इधर-उधर भटकता रहता है ।
उत्तर14- घास का वतनका -वजसे हम कुछ नहीं समझते जब हवा में उडकर हमारी
आाँ ि में पड जाता है तो हमारे वलए कष्टदायी बन जाता है ।
उत्तर15 -कवव ने मनुष्य को आपा त्यागने की सीि इसवलए दी है तावक लोगों में आपस
में सद्भाव िैले ।
2. – कामचोर
गद्ां श – 1
वहलने में धक्के भी लग जाते हैं और हम वकसी के दबैल तो र्े नहीं वक कोई धक्का
दे , तो सह जाएाँ | लीवजए पानी के मटकों के पास ही घमासान युद्ध हो गया | सुरावहयााँ
उधर लु ढकी | मटके इधर गए | कपडे भीगे सो अलग |
गद्ां श – 2
घर में तूफ़ान उठ िडा हआ | ऐसा लगता र्ा जै से सारे घर में मुवगययााँ , भेडें , टू टे हए
तसले , बाखियााँ , लोटे , कटोरे और बच्चे र्े | बच्चे बाहर वकए गए | मुवगययााँ बाग़ में
हाँ काई गई | मातम – सा मनाती तरकारी वाली के आाँ सू पोंछे गए और अम्मा आगरा जाने
के वलए सामान बााँ धने लगीं | “या तो बच्चा – राज कायम कर लो या मुझे ही रि लो |
नहीं तो मैं चली मायके,” अम्मा ने चुन ती दे दी |
और अब्बा ने सबको क़तार में िडा करके पूरी बटावलयन का कोटय माशयल कर वदया
| “अगर वकसी बच्चे ने घर की वकसी चीज को हार् लगाया तो बस, रात का िाना बंद हो
जाएगा |” ये लीवजए! इन्ें वकसी करवट शाखि नहीं | हम लोगों ने भी वनश्चय कर वलया
वक अब चाहे कुछ भी हो जाए , वहल कर पानी भी नहीं वपएाँ गे |
प्रश्-1. अब्बा ने सबको कतार में िडा करके क्ा वहदायत दी?
गद्ां श -3
सारा घर धूल से अट गया । िााँ सते-िााँ सते सब बेदम हो गए । सारी धूल जो दरी पर र्ी,
जो िशय पर र्ी, सबके वसरों पर जम गई। नाकों और आाँ िों में घुस गई। बुरा हाल हो
गया सबका । हम लोगों को तु रंत आाँ गन में वनकाला गया । वहााँ हम लोगों ने ि रन झाडू
दे ने का िैसला वकया ।
झाडू क्ोंवक एक र्ी और तनख्वाह ले नेवाले उम्मीदवार बहत, इसवलए क्षि-भर में झाडू
के पुजे उड गए। वजतनी सींके वजसके हार् पडी, वह उनसे ही उलटे -सीधे हार् मारने
लगा । अम्मा ने वसर पीट वलया । भई बुजुगय काम करने दें तो इं सान काम करे । जब
ज़रा-ज़रा सी बात पर टोकने लगे तो बस, हो चुका काम !
प्रश् 1
1. बेदम 2. ि रन
प्रश्-1. सोचे समझे वबना कायय करने से क्ा – क्ा हावनयााँ हो सकती हैं ?
प्रश्-7. कीचड में लर्पर् बच्चों को नहलाने के वलए कहााँ से न कर बुलाए गए?
प्रश्-14. “जो काम नहीं करे गा, उसे रात का िाना हरवगज नहीं वमले गा |” अब्बा ने ऐसा
वकस उद्दे श्य से कहा?
उत्तर-कंु जी
गद्यांश-1.
1. इस्मत चुगताई |
2. वाद-वववाद अम्मा और अब्बा के मध्य हो रहा र्ा |
3. अम्मा और अब्बा ने घर के सभी न करों को वनकालने का वनियय वलया |
4. मोटे -मोटे शब्द का प्रयोग बच्चों के वलए वकया गया क्ोंवक उनकी नजर में वें
पूियतया कामचोर है , केवल िाते -पीते व आराम करते हैं | घर का कोई काम नहीं
करते |
5. बच्चों के बीच घमासान युद्ध मटकों के पास ही शु रू हो गया |
गद्यांश-2.
गद्यांश-3
क) बच्चों ने िशय पर वबछी दरी जो वमट्टी से सनी हई र्ी उसे झाडना शुरू वकया र्ा
इसवलए सारा घर धूल से अट गया ।
ग) उनके काम को गलत कहा जाने लगा । ऐसे में उन्ोने कहा वक जब घर के बडे -बूढ़े
काम करने दें तो ही हम काम कर सकते हैं ।
घ) कामचोर
1. जो व्यखक्त वबना सोचे-समझे कायय करता है , उसे बाद में पछताना पडता है |
ऐसा व्यखक्त काम तो वबगाडता ही है सार् ही वह हाँ सी का पात्र भी बनता है |
काम के वबगड जाने पर उसके मन को शाखि नहीं वमलती |
2. घर से न करों को वनकालने का वनियय इसवलए वलया गया तावक बच्चे अपना
काम स्वयं कर सके और उनमें काम करने की आदत का ववकास हो सके |
3. काम करने के वलए बच्चों को तनख्वाह दे ने का प्रलोभन वदया गया |
4. तनख्वाह का प्रलोभन दे ने से बच्चों के द्वारा िींचातानी से |
5. बच्चे सारा वदन ऊधम मचाने के अलावा कुछ नहीं करते र्े |
6. दरी पर पानी डालने का नतीजा यह हआ वक सारी धूल कीचड बन गई |
7. कीचड में लर्पर् बच्चों को नहलाने के वलए न कर पास के बंगलों से बुलाए
गए |
8. भेडों को मारने से ऐसा लगता है जै से रुई के तवकए को कूट रहे हो | भेड को
चोट ही नहीं लगती |
9. बडी दे र के वाद-वववाद के बाद यह तय हआ वक सचमुच न करों को वनकाल
वदया जाए |
10. अब्बा का शाही िरमान र्ा वक जो काम नहीं करे गा, उसे रात का िाना
हरवगज नहीं वमले गा |
11. बच्चों ने अंत में वनश्चय वकया वक अब चाहे कुछ भी हो वहलकर पानी भी
नहीं वपएाँ गे |
12. झाडू दे ने से पहले जरा- सा पानी वछडक दे ना इसवलए अच्छा होता है
क्ोंवक ऐसा करने से धूल नहीं उडती है |
13. अब्बा वमयााँ ने बच्चों को दरी साफ़ करना, आाँ गन में पडा कूडा िेंकना
और प धों में पानी दे ना जै से कुछ काम बताए |
14. घर के काम में सहयोग व स्वयं काम करने की आदत बच्चों में ववकवसत
करने के उद्दे श्य से अब्बा ने बच्चों को ऐसा कहा |
15. पेड में पानी डालने के वलए घर की बाखियााँ , लोटे , तसले , भगोने, पतीवलयााँ
लू ट ली गई | वजन्ें ये चीजें भी न वमली वें डोंगे, कटोरे और वगलास ही ले भागे
|
गद्ां श – 1
वें सभी सजीव हैं , सां स ले रहे हैं , शत – प्रवतशत बोल रहे हैं , अठहतर मुदाय इनसान
वजन्दा हो गए , उनको बोलते , बातें करते दे िो | दे श की पहली सवाक ( बोलती ) विल्म
‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर ववज्ञापन की ये पंखक्तयााँ वलिी हई र्ी | 14 माचय 1931 को
यह ऐवतहावसक तारीि भारतीय वसनेमा में बडे बदलाव का वदन र्ा | इसी वदन पहली
बार भारत के वसनेमा ने बोलना सीिा र्ा | हालााँ वक वह द र ऐसा र्ा जब मूक वसनेमा
लोकवप्रयता के वशिर पर र्ा | ‘पहली बोलती विल्म वजस साल प्रदवशयत हई , उसी साल
कई मूक विल्में भी वववभन्न भाषाओं में बनी | मगर बोलती विल्मों का नया द र शु रू हो
गया र्ा |
प्रश्-5. आलम आरा विल्म में वकतने कलाकारों ने काम वकया र्ा?
गद्यांश-2.
विल्म की नावयका जु बैदा र्ी | नायक र्े ववट्ठल | वे उस द र के सवाय वधक पाररश्रवमक
पाने वाले स्टार र्े | उनके चयन को ले कर भी एक वकस्सा कािी चवचयत है | ववट्ठल को
उदू य बोलने में मुखिलें आती र्ी | पहले उनका बत र नायक चयन वकया गया मगर इसी
कमी के कारि उन्ें हटाकर उनकी जगह मेहबूब को नायक बना वदया गया | ववट्ठल
नाराज हो गए और अपना हक़ पाने के वलए उन्ोंने मुकदमा कर वदया |
गद्ां श 3
सवाक् वसनेमा के नए द र की शु रुआत कराने वाले वनमाय ता-वनदे शक अदे वशर इतने
ववनम्र र्े वक जब 1956 में ‘ आलम आरा ’के प्रदशय न के पच्चीस वषय पूरे होने पर उन्ें
सम्मावनत वकया गया और उन्ें भारतीय सवाक् विल्मों का वपता कहा गया तो उन्ोंने
उस म के पर कहा र्ा, मुझे इतना बडा खिताब दे ने की जरूरत नहीं है । मैंने तो दे श के
वलए अपने वहस्से का जरूरी योगदान वदया है ।
प्रश् 3
प्रश्-2. 14 माचय 1931 की वतवर् का भारतीय वसनेमा के इवतहास में क्ा थर्ान है ?
प्रश्-4. अदे वशर की कंपनी ने भारतीय वसनेमा को लगभग वकतनी वफ़ल्में बनाकर दी?
प्रश्-6. मेहबूब को ववट्ठल की जगह पर नायक के रूप में क्ों रिा गया?
प्रश्-8. विल्म के 25 वषय पूरे होने पर अदे वशर को क्ा कहकर सम्मावनत वकया गया?
प्रश्-9. पहली बोलती विल्म बनाने के द रान विल्मकार को विल्म वनमाय ि से जुडे वकन
महत्त्वपूिय व्यखक्तयों के अभाव का सामना करना पडा?
प्रश् 10.: आलमआरा विल्म के संगीत में प्रयुक्त वाद्यंत्रों का नाम वलखिए।
प्रश् 12: आलमआरा विल्म को दशय कों ने क्ों पसन्द वकया, स्पष्ट कीवजए।
प्रश्-14 'आलम आरा' के वनमाय ि में प्रयुक्त क न से प्रिाली आगे चलकर विल्म वनमाय ि
का जरुरी वहस्सा बनी?
ग) विल्म वनमाय ता, अदे वशर की कंपनी ने लगभग वकतनी विल्मों का वनमाय ि वकया ?
घ) ‘स्टं टमैंन’ शब्द से आप क्ा समझते हैं ?
उत्तर-कंु जी
गद्यांश-1.
1. ‘आलम आरा विल्म के पोस्टरों पर वलिा र्ा,’ वें सभी सजीव हैं , सााँ स ले रहे हैं ,
शत – प्रवतशत बोल रहे हैं , अठहतर मुदाय इनसान वजन्दा हो गए, उनको बोलते ,
बातें करते दे िो |’
2. क्ोंवक इस वदन पहली बार भारतीय वसनेमा ने बोलना सीिा र्ा | पहली बोलने
वाली विल्म आलम आरा प्रदवशय त की गई र्ी |
3. वजन विल्मों में संवाद बोले जाते हैं , उन्ें सवाक वफ़ल्में कहा जाता है |
4. सवाक विल्मों से पहले मूक विल्मों का प्रचलन र्ा |
5. आलम आरा विल्म में अठहतर कलाकारों ने काम वकया र्ा |
गद्यांश-2.
3. ववट्ठल को उदू य बोलनी नहीं आती र्ी इसवलए मेहबूब को नायक बनाया गया र्ा |
गद्ां श 3
ि) अदे वशर को ‘भारतीय सवाक् विल्मों का वपता’ पुरस्कार से सम्मावनत वकया गया ।
ग) पुरस्कृत होने पर अदे वशर ने कहा – “मुझे इतना बडा खिताब दे ने की जरूरत नहीं
है । मैंने तो दे श के वलए अपने वहस्से का जरूरी योगदान वदया है ।”
1. अदे वशर ने पारसी रं गमंच के लोकवप्रय नाटक को आधार बनाकर अपनी विल्म
आलम आरा की पटकर्ा का वनमाय ि वकया |
2. 14 माचय 1931 की वतवर् भारतीय वसनेमा के इवतहास में स्विय अक्षरों में वलिी
गई है | इस वदन प्रर्म सवाक विल्म आलम आरा का प्रदशय न मुंबई के
मैजेखस्टक वसनेमा हाल में हआ र्ा |
3. भारतीय इवतहास की पहली बोलती विल्म आलम आरा की शू वटं ग साउं ड के
कारि रात को करनी पडी र्ी | इसके वलए कृवत्रम प्रकाश की व्यवथर्ा करनी
पडी र्ी | यहीं से प्रकाश प्रिाली का जन्म हआ |
4. अदे वशर की कंपनी ने भारतीय वसनेमा को लगभग 150 से अवधक मूक और 100
से अवधक सवाक वफ़ल्में बनाकर दी |
5. आलम आरा विल्म के नायक ववट्ठल और नावयका जु बैदा र्ी |
6. मेहबूब को ववट्ठल की जगह पर नायक के रूप में इसवलए रिा गया क्ोंवक उन्ें
उदू य बोलने में परे शानी होती र्ी |
7. आलम आरा विल्म को बनाने में 4 महीने का समय लगा |
8. विल्म के 25 वषय पूरे होने पर अदे वशर को भारतीय सवाक विल्मों के वपता
कहकर सम्मावनत वकया गया |
10. आलमआरा विल्म के संगीत में केवल तीन वाद्यंत्रों-हारमोवनयम, वायवलन एवं
तबला का प्रयोग वकया गया र्ा।
11. ले िक ने आलमआरा की तुलना ‘अरे वबयन नाइट् स’ नामक िैंटे सी विल्म से
की है ।
14. 'आलम आरा' की शू वटं ग रात में होने के कारि इसमें कृवत्रम प्रकाश व्यवथर्ा
करनी पडी। यहीं से प्रकाश प्रिाली बनी जो आगे चल कर विल्म वनमाय ि का जरुरी
वहस्सा बनी।
15. दशयकों के वलए यह विल्म एक अनोिा अनुभव र्ी। यह विल्म 10 हज़ार िुट
लम्बी र्ी और इसे चार महीनों की कडी मेहनत से तै यार वकया गया र्ा। विल्म 8 सप्ताह
तक हाउसिुल चली और भीड इतनी उमडती र्ी वक पुवलस के वलए उसे वनयंवत्रत
करना मुखिल हो जाया करता र्ा।
प्रश्न 5.
क) यह शब्द वाक् शब्द से बना है वजसका अर्य है बोलना ‘स’ उपसगय लगने से हआ
सवाक् अर्य बोलने सवहत ।
ि) आलम आरा विल्म में तबला, हारमोवनयम और वायवलन का प्रयोग वकया गया है
।
ञ) मूक विल्मों में पहलवान जै से शरीर वाले , करतब वदिाने वाले और उछलकूद
करने वाले ।
ठ) विल्में दै वनक व सावयजवनक जीवन का प्रवतवबंब प्रिुत करने लगी इस तरह विल्मों
का स्वरूप बदला ।
4. - सुदामा चररत
पद्ां श 1
प्रश् 1 - वनम्नवलखित पद्ां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर सही ववकल्प के आधार
पर दीवजए-
1. सीस पगा न झाँ गा तन में, प्रभु ! जाने को आवह बसे केवह ग्रामा ।
1.
सुदामा वकस हाल में, श्री कृष्ण के पास गए र्े ?
2.
द्वारपाल ने श्री कृष्ण को क्ा बताया?
3.
सुदामा क न र्े ? वे श्री कृष्ण के पास क्ों गए र्े ?
4.
सुदामा वसुधा को चवकत होकर क्ों दे ि रहे र्े ?
5.
श्री कृष्ण ने सुदामा के पैर कैसे धोए?
6.
वकसने वकसके वलए सुदामा के माध्यम से उपहार भेजा र्ा? वह उपहार क्ा
र्ा?
7. सुदामा उस उपहार को क्ों वछपा रहे र्े ?
8. ‘चोरी की बान में ह ं जू प्रवीने’ कृष्ण ने ऐसा क्ों कहा?
9. श्री कृष्ण ने सुदामा द्वारा लाए गये उपहार को कैसा बताया?
10. सुदामा को कृष्ण और द्वारका की क न-क न सी बातें याद आ रहीं र्ी?
11. ‘कछू न जानी जात’ के माध्यम से सुदामा क्ा कहना चाहते र्े ?
12. कृष्ण के प्रवत सुदामा अपनी िीझ वकस प्रकार व्यक्त कर रहे र्े ?
13. ‘वैसोई राज-समाज कहााँ बने’ पंखक्त में ‘वैसोई’ शब्द क्ा संकेत करता है ?
14. यहााँ पाडे वकसके वलए प्रयुक्त है ? लोगों से क्ा पूछते विर रहे र्े ?
15. ‘कै पग में पनही न हती’ सुदामा वक वकस खथर्वत की ओर संकेत करती है ?
1. उत्तर-कंु जी
पद्ां श 2- 1 (क)
2 (ग)
3 (ि)
4 (ि)
5 (ि)
उत्तर 3- 1. सुदामा के शरीर पर न कुताय र्ा और न वसर पर पगडी । उनके पैरों में जू ते
भी नहीं र्े , इसी हाल में वह श्री कृष्ण के पास पहाँ चे ।
2. द्वारपाल ने श्री कृष्ण से सुदामा की िटे हाली के बारे में बताया और विर कहा
वक दरवाजे पर िडा दु बयल िाह्मि अपना नाम सुदामा बताते हए आपका भवन पूछ
रहा है ।
3. सुदामा एक गरीब िाह्मि र्े । वे श्री कृष्ण के बचपन के वमत्र र्े जो अपनी
गरीबी से ऊबकर उनके पास कुछ मदद के वलए गए र्े ।
4. सुदामा गााँ व के रहने वाले र्े। उनके आसपास ऐसा स दं यय दु लयभ र्ा, इसवलए
वह वसुधा को चवकत हो दे ि रहे र्े ।
6. सुदामा की पत्नी ने सुदामा के माध्यम से उनके वमत्र श्री कृष्ण के पास उपहार
भेजा र्ा। वह उपहार स्वरूप चावल लाए र्े।
7. सुदामा उस उपहार (चवाल) को इसवलए वछपा रहे र्े क्ोंवक कहााँ द्वारकाधीश
कृष्ण और ये सूिे चावल । उन्ें उपहार में इतनी तु च्छ विु कैसे दें ।
8. सुदामा बचपन में गुरुमाता द्वारा वदए गए चने चुपके से अकेले िा गए र्े , और
वे चावल की पोटली विर वछपा रहे र्े , इसवलए उन्ोंने ऐसा कहा।
11. सुदामा ने ‘कछू न जानी जात’ के माध्यम से यह कहना चहाते र्े वक श्री कृष्ण
ने ववदा करते समय यह भी ध्यान न रिा वक िाह्मि को िाली हार् ववदा नहीं करते हैं ।
12. सुदामा कह रहे र्े वक अरे यह वही कृष्ण है जो बचपन में जरा-सी दही
मााँ गता-विरता र्ा। क्ा हआ जो वह आज द्वारकाधीश बन गया है ।
13. वैसे ही राज-समाज सुदामा के गााँव में बने र्े । यह ‘वैसोई’ शब्द द्वारका जै से
राज प्रासाद, वैभव, समृखद्ध आवद की ओर संकेत करता है ।
14. यहााँ ‘पाडे ’ शब्द िाह्मि सुदामा के वलए प्रयुक्त है । वे लोगों से अपनी झोंपडी
के बारे में पूछ रहे र्े , वजसे वे िोज-नहीं पा रहे र्े ।
5. -जहााँ पवहया है
गद्यांश 1
प्रश् 1 – वनम्नवलखित गद्ां शों को पढ़्कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर सही ववकल्प के आधार
पर दीवजए-
गद्ां श 2
6. अकबरी लोटा
पवठत गद्यांश
गद्यांश -1
लोटे ने दाएाँ दे िा न बाएाँ , वह नीचे गली की ओर चल पडा | अपने वेग में उल्का को
लजाता हआ वह आाँ िों से ओझल हो गया | वकसी जमाने में न्यूटन नाम के वकसी
िुरािाती ने पृथ्वी की आकषयि शखक्त नाम की एक चीज ईजाद की र्ी | कहना न होगा
वक यह सारी शखक्त इस समय लोटे के पक्ष में र्ी |
प्रश्
प्रश्१: यहााँ वकस लोटे का विय न है ?
प्रश्:२ लोटे की चाल के बारे में गद्ांश में क्ा बताया गया है ?
प्रश्३: न्यू टन क न र्ा ?
प्रश्४: न्यू टन ने क्ा िोज की र्ी ?
प्रश्५: ‘उल्का को लजाता हआ’ से क्ा तात्पयय है ?
गद्यांश -२
इसी समय प. वबलवासी वमश्र भीड को चीरते हए आाँ गन में आते वदिाई पडे | उन्ोंने
आते ही पहला काम यह वकया वक उस अंग्रेज को छोडकर ओर वजतने आदमी आाँ गन
में घुस आए र्े , सबको बाहर वनकाल वदया | विर आाँ गन में कुसी रिकर उन्ोंने साहब
से कहा – “आपके पैर में शायद कुछ चोट आ गई है | अब आप आराम से कुसी पर बैठ
जाइए|”
1. वबलवासी वमश्र क न र्े ?
2. वबलवासी वमश्र वकस समय आए ?
3. साहब वकसे कहा गया है ?
4. आते ही वबलवासी वमश्र ने क न-सा बुखद्धमानी का काम वकया?
5. वबलवासी ने साहब का िोध शां त करने के वलए क्ा वकया ?
गद्यांश 3
"आप इस लोटे को रद्दी बताते हैं ? आश्चयय ! मैं तो आपको एक ववज्ञ और सुवशवक्षत
आदमी समझता र्ा।"
"आखिर बात क्ा है , कुछ बताइए भी ।"
"जनाब यह एक ऐवतहावसक लोटा जान पडता है । जान क्ा पडता है मुझे पूरा
ववश्वास है । यह वह प्रवसद्ध अकबरी लोटा है , वजसकी तलाश में संसार भर के म्यूवजयम
परे शान हैं ।"
प्रश्
क ) गद्ां श के अनुसार यहां वकस लोटे की बात हो रही है ।
ि ) क न लोटे को रद्दी बता रहा र्ा और क्ों ?
ग) क न, वकसे ववज्ञ आदमी समझ रहा र्ा ? यह बात उन्ोंने वकस भाव से कही ?
घ ) वकसने लोटे को ऐवतहावसक कहा और क्ों?
ङ ) अकबरी लोटा कहकर लोटे की वकस ववशेषता की तरि संकेत वकया गया है ?
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश् 1.“लाला ने लोटा ले वलया , बोले कुछ नहीं , अपनी पत्नी का अदब मानते र्े ।”
प्रश् 2. “लाला झाउलाल जी ने ि रन दो और दो जोडकर खथर्वत को समझ वलया।’’
आपके ववचार से लाला झाउलाल ने क न-क न सी बातें समझ ली होंगी ?
प्रश् 3. अंग्रेज़ के सामने वबलवासी जी ने झाऊलाल को पहचानने तक से क्ों इनकार
कर वदया र्ा ? आपके ववचार से वबलवासी जी ऐसा अजीब व्यवहार क्ों कर रहे र्े ?
स्पष्ट कीवजए।
प्रश् 4. वबलवासी जी ने रुपयों का प्रबंध कहााँ से वकया र्ा ? वलखिए।
प्रश् 5. आपके ववचार में अंग्रेज ने वह पुराना लोटा क्ों िरीद वलया ? आपस में चचाय
करके वािववक कारि की िोज कीवजए और वलखिए।
प्रश् 6. वबलवासी जी के चररत्र से तु म्हें क्ा वशक्षा वमलती है ?
प्रश् 7. कहानी के आधार पर स्पष्ट कीवजए वक वववेक से हर समस्या का हल हो जाता है ।
प्रश् 8. इस कहानी के वलए 'अकबरी लोटा' शीषयक की सार्य कता पर अपने ववचार
वलखिए ।
प्रश् 9. : वजू करना क्ा है ?
प्रश् 10. यह कहानी आज के युवाओं को क्ा सन्दे श दे ती है ?
अनुमान और कल्पना
प्रश् 1 .“इस भेद को मेरे वसवाय मेरा ईश्वर ही जानता है । आप उसी से पूछ लीवजए मैं
नहीं बताऊंगा” वबलवासी जी ने यह बात वकससे और क्ों कहीं ? वलखिए।
प्रश् 2.उस वदन रावत्र में वबलवासी जी को दे र तक नींद नहीं आई।”
क्या होता यवद
अकबरी लोटा
गद्यांश -1
1. उत्तर – अकबरी लोटे का |
2. उत्तर- लोटे की चाल आकाशीय वपंड से टू टे उल्का के समान र्ी |
3. उत्तर – एक वैज्ञावनक र्ा |
4. उत्तर – पृथ्वी के गुरुत्वाकषयि शखक्त की िोज की र्ी |
5. उत्तर- उल्का (आकाशीय वपंड )की रफ़्तार से भी ते ज |
गद्यांश -2
पाठ्यपुिक के प्रश्ोत्तर
1. उत्तर – लाला झाऊलाल को वह बेढंगा व बदसूरत लोटा वबलकुल पसंद नहीं
र्ा। विर भी उन्ोंने अपनी पत्नी के हार् से चुपचाप लोटा ले वलया क्ोंवक वे
अपनी पत्नी के स्वभाव से अच्छी तरह से पररवचत र्े। वो ये अच्छी तरह से जानते
र्े वक अभी तो लोटे में पानी वमला है । अगर र्ोडे से भी निरे वदिाये तो भोजन
बािी में भी करना पड सकता हैं । इसीवलए उन्ें चुप रहने में ही समझदारी
वदिी।
2. उत्तर –लोटे के गली में वगरने के र्ोडी दे र बाद ही शोर मचाती एक बडी सी भीड
लालाजी के आं गन में घुस आई र्ी और उसी भीड के सार्-सार् पानी से भीगा
हआ एक अंग्रेज अपने पैर को र्ामे , गावलयां करता हआ लाला जी के सामने
पहं च गया। उसे दे िकर लाला जी को सारी बात समझ में आ गई वक लोटा
जाकर सीधे इस अंग्रेज को लगा हैं । इसीवलए उन्ोंने चुप रहने में ही अपनी भलाई
समझी।
3. उत्तर – उस अजीब सी पररखथर्वत में भी वबलवासी जी को लालाजी की समस्या
हल करने की योजना सूझी। ऐसे में अगर वो लालाजी को अपना पररवचत बताते
तो उनकी पैसों की समस्या हल नहीं हो पाती। इसीवलए उन्ोंने अपनी योजना
के तहत ही अंग्रेज के सामने अजीब सा व्यवहार करना शु रू कर वदया। लालाजी
को अपशब्द कहने शुरू कर वदए। उनके इस नाटक से अंग्रेज को उन पर जरा
सा भी संदेह नहीं हआ और उनकी योजना भी आसानी से सिल हो गई।
4. उत्तर –वबलवासी जी ने 250/-रूपये का प्रबंध अपनी पत्नी के संदूक से चोरी कर
वकया र्ा। ले वकन योजना सिल होने के बाद जब लालाजी की समस्या हल हो
गई तो , पंवडत जी ने वो पैसे ईमानदारी से अपनी पत्नी के संदूक में वापस रि
वदए।
5. उत्तर – उस अंग्रेज ऑविसर को पुरानी व ऐवतहावसक चीजों को इकट्ठा करने का
श क तो र्ा ही , सार् में वह अपने पडोसी मेजर डगलस को भी नीचा वदिाना
चाहता र्ा। मेजर डगलस के पास एक जहां गीरी अंडा र्ा वजसे वदिाकर वह
अक्सर उस अंग्रेज पर र ब जमाता र्ा। इसीवलए अंग्रेज ने इसे अकबरी लोटा
समझकर 500/- रूपये में िरीद वलया।
6. उत्तर : वबलवासी जी के चररत्र से हमें यह वशक्षा वमलती है वक हमें मुसीबत में
िंसे वमत्र की सहायता अवश्य करनी चावहए। यवद उसके वलए हमें परे शानी
उठानी भी पडे तो भी इसकी वचंता नहीं करनी चावहए।
7. उत्तर : यह सच है की वववेक से हर समस्या का हल िोजा जा सकता है । यह
कहानी से भली-भां वत स्पष्ट हो जाता है । वबलवासी वमश्र ने समय पर अपने वववेक
का प्रयोग वकया । उन्ोंने लाला जी को न केवल र्ाने जाने से बचाया बखल्क
उनकी जरूरत से अवधक पैसों का प्रबंध भी कर वदया।
8. उत्तर : इस कहानी के वलए अकबरी लोटा शीषयक पर ववचार करने से पता चलता
है की यह कहानी बेढ़ब आकार वाले लोटे से शुरू होती है , वजसे लाला
झाऊलाल दे िना भी पसंद नहीं करते । यही लोटा एक अंग्रेज के पैर पर वगर कर
उनके वलए मुसीबत बन जाता है , तो यही लोटा ऐवतहावसक अकबरी लोटा के
नाम से वबककर लाला झाऊलाल की समस्या से अवधक पैसा वदला दे ता है |
सारी कहानी इसी ल टे के इदय -वगदय घूमती है | कहानी में जहां गीरी अंडे का भी
प्रसंग है पर वह बहत संवक्षप्त है । इस कहानी के वलए यह शीषयक
पूियतया सार्यक व उपयुक्त है ।
9. उत्तर-नमाज पढ़ने से पहले मुसलमान अपने हार् पैर धोते है वजसे वजू करना
कहते हैं |
10. उत्तर : यह कहानी सन्दे श दे ती है वक वािववकता और सच्चाई को जाने
वबना ,ववदे शी ले बल दे िकर विुओं को िरीदने के वलए लालावयत नहीं होना
चावहए अन्यर्ा उन्ें नुकसान उठाना पड सकता है |
अनुमान और कल्पना
उत्तर 1 – लाला झाऊलाल के वबलवासी जी से यह पूछने पर वक “पैसों का इं तजाम
कहााँ से वकया”।तब यह बात वबलवासी जी ने लाला झाऊलाल से कहीं र्ी। दरअसल
वबलवासी जी ने वो पैसे अपनी पत्नी के संदूक से चुराए र्े। और वो यह बात लाला जी को
नहीं बताना चाहते र्े।
उत्तर 2. – उस रात वबलवासी जी को दे र रात तक नींद नहीं आई क्ोंवक उन्ोंने अपनी
पत्नी के संदूक से 250 /- रूपये चुराए र्े और समस्या हल हो जाने के बाद वो उन पैसों
को वापस अपनी पत्नी के संदूक में रिना चाहते र्े। ले वकन संदूक की चाबी पत्नी के गले
में पडी वसगडी में बंधी र्ी । वजसे वो पत्नी के सो जाने के बाद ही वनकाल सकते र्े।
इसीवलए वे अपनी पत्नी के सोने का इं तजार कर रहे र्े । जब उनकी पत्नी सो गई तब
उन्ोंने चाबी वनकाली और संदूक िोल कर पैसे वापस उसमें रि वदए।
उत्तर 3– लालाजी की पत्नी , लालाजी की “वादा करके मुकर जाने की आदत” से अच्छी
तरह से वावकि र्ी। इसीवलए वह उन पर भरोसा नहीं कर पा रही र्ी वक लालाजी उन्ें
वािव में पैसे दें गे ही दें गे ।वह इस बार कोई धोिा नहीं िाना चाहती र्ी। इसवलए वह
इस बात को पक्का कर ले ना चाहती र्ी वक लालाजी पैसे दें गे या नहीं।
काव्ांश---1
काव्ांश -2
1. उत्तर-कंु जी
2. सूरदास के पद
काव्यां श---1
उत्तर –1—बालक कृष्ण अपनी मााँ यशोदा से अपनी चोटी न बढ़ने का कारि पूछ रहे
हैं |
काव्यां श—2
उत्तर—8—एक गोपी मााँ यशोदा के पास बालक कृष्ण की वशकायत ले कर आयी र्ी
बालक कृष्ण वनत्यप्रवत उनके घर में अपने ग्वाल सिाओं को लेकर घुस जाते और
मािन को चुरा कर िा जाते र्े | इससे उस गोपी को बहत हावन हो रही र्ी |
उत्तर—11—बालक कृष्ण अपने बाल सिाओं के सार् गोवपयों के घरों में दोपहर के
समय जा घुसते र्े | उस समय सभी गोवपयााँ दही-मािन बेचने के वलए चली जातीं र्ीं |
कृष्ण अपने वमत्रों के सहयोग से ऊिल पर चढ़ कर छींके तक जा पहाँ चते र्े | वहााँ टं गे
हए मािन के बतय न को उतार ले ते और उसमें रिे हए मािन को सभी सिाओं के सार्
वमलकर िाते र्े |
उत्तर—13—अनोिा ववशे षि बालक कृष्ण के वलए प्रयुक्त हआ है | चूाँवक पूरे गााँ व में
कृष्ण ही एक ऐसा बालक र्ा जो अपने घर में भरपूर मािन होने पर भी दू सरों के घरों से
मािन चुराया करता र्ा |
गद्ां श –2
हम एक बार बडी ऊाँची वशिर पर से कूदे और नीचे एक चट्टान पर वगरे | बेचारा पत्थर
हमारे प्रहार से टू टकर िंड-िंड हो गया | यह जो तु म इतनी रे त दे िते हो पत्थरों को
चबा-चबा कर हमीं बनाते हैं | वजस समय हम म ज में आते हैं तो कठोर से कठोर विु
हमारा प्रहार सहन नहीं कर सकती |
प्रश्-7. पेडों की जडों से पत्तों तक पानी को पंहचाने की विया को क्ा कहते हैं ?
उत्तर-कंु जी
पानी की कहानी
गद्ां श –2
उत्तर1 - रात के समय ले िक जब जा रहा र्ा ,तब बेर के वृक्ष के ऊपर से एक बूाँद
आकर ले िक की हर्ेली पर वगरी | यह बूाँद मोती के सामान चमक रही र्ी | बूाँद को
दे िकर ले िक के आश्चयय का वठकाना न रहा |
उत्तर2 -क्ोवक पेड की जडें तर्ा जडों पर उगने वाले रोएाँ बडे वनदय यी होते हैं |ये असंख्य
बूंदों एवं जल किों को बलपूवयक पृथ्वी से िींच ले ते हैं |
उत्तर3 - अरबों वषय पहले हाइडरोजन और ऑक्सीजन नामक दो गैसें सूययमंडल में लपटों
के रूप में ववद्मान र्ी |वजनकी रासायवनक विया के िलस्वरूप पानी का जन्म हआ र्ा
|
२.वायुमंडल में भ्रमि कर मेघों द्वारा वषाय के रूप में धरती पर वगरती हैं |
उत्तर6 -समुि के वकनारे या समीप के वातावरि में आिय ता अवधक होती है क्ोंवक
समुि के पानी में नमक अवधक होता है | इसवलए समुि के समीप के वातावरि में न
अवधक गरमी पडती है और न अवधक सदी पडती है |
उत्तर8 -जल की दो अवथर्ाएाँ होती हैं -तरल और ठोस | ठोस तरल से हल्की होती है |
उत्तर 9 - ‘ओस’ पानी की एक बूाँद होती है |अवधक ठन्डे थर्ान पर यह जमकर बिय का
रूप धारि कर लेती है | सूयय का ताप पाकर यह ‘ओस’ भाप बनकर आकाश में उड
जाती है और सूयय से इसे उडने की शखक्त वमलती है
ओस की बूाँद :”सुनो,सुनो..........”
9.बाज और सााँप
1. “आकाश में असीम शून्यता में एक ऐसा आकषयि वछपा है | वजसके वलए बाज ने
अपने प्राि गाँवा वदए ? वह िुद तो मर गया ले वकन मेरे वदल का चैन अपने सार्
ले गया |न जाने आकाश में क्ा िजाना रिा है ?एक बार तो मैं भी वहां जाकर
उसके रहस्य का पता लगाऊंगा,चाहे कुछ दे र के वलए ही हो |कम से कम उस
आकाश का स्वाद चि लूाँ गा |”
गद्ां श –2
उत्तर-कंु जी
बाज और सााँ प
उत्तर –१
1. आकाश की असीम ऊंचाई को छूने के वलए |
2. सााँ प के वदल का चैन ले गया |
3. बाज का आकाश के प्रवत मोह दे िकर |
4. ‘अ’ और ‘आ’ |
5. बाज और सााँ प |
उत्तर २
(क) सााँ प |
(ग) क्ोंवक सााँ प रें गने वाला जीव है उसके वलए उडना प्रािों को ितरे में डालना है |
(घ)भाववाचक संज्ञा
(ड.)अव्ययीभाव समास |
10. टोपी
वनम्नवलखित पवठत गद्ांश को पढ़कर नीचे वदए गए प्रश्ों के सही ववकल्प चुवनए : -5
“टोपी तू पाएगी कहााँ से ? " गवरा बोला , “ टोपी तो आदवमयों का राजा पहनता है ।
जानती है ,एक टोपी के वलए वकतनों का टाट उलट जाता है । जरा- सी चूक हई नहीं वक
टोपी उछलते दे र नहीं लगती । अपनी टोपी सलामत रहे , इसी विि में वकतनों को टोपी
पहनानी पडती है ।...मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड ही मत ।”
गवरा र्ा तवनक समझदार , इसवलए शक्की । जबवक गवरइया र्ी वजद्दी और धुन की
पक्की| ठान वलया सो ठान वलया , उसको ही जीवन का लक्ष्य मान वलया । कहा गया -
जहां चाह ,वहीं राह । मामूल के मुतावबक अगले वदन दोनों घूरे पर चुगने वनकले । चुगते -
चुगते उसे रुई का एक िाहा वमला ।“ वमल गया ... वमल गया ... वमल गया..” गवरइया
मारे िुशी के घूरे पर लोटने लगी ।
प्रश्ः 1
4 एक वदन गवरइया को घूरे पर चुगते - चुगते क्ा वमला और उससे क्ा वकया ?
प्रश् : -
6 तब राजा क्ा करवा रहा र्ा, जब गवरइया राजा के महल के कंगूरे पर आई हई र्ी?
10 अगर राजा के राज में सभी को उवचत मेहताना वमले तो कारीगरों का व्यवहार
गवरइया के प्रवत कैसा होता?
इत्ते – चमडा
चाम – इतने
हलस पंि
पिने – उल्लास
1. उत्तर-कंु जी
: गद्ां श :
1. टोपी पहनने की
5 बेइज्जती होना
गद्ां श : 2
1 कामगारों के सहयोग से
.2 राजा के वलए
3 . गवरा और गवरइया
4 रानी
5 टोपी
2 ले िक ने उच्च वगय द्वारा वनम्न वगय पर वकए जाने वाले शोषि पर कटाक्ष वकया है ।
3 इस कहानी से हमें यह सीि वमलती है वक उवचत मूल्य वमलने पर कारीगर दक्षता एवं
वनपुिता के सार् कायय को पूरा करता है वह उस कायय को वदल और वदमाग दोनों से
करता है अगर उसे सही मेहताना न वदया जाए तो वह उस काम को बेमन से करता है ।
4 कोरी की कमर झुकी हई र्ी । उसने बदन पर धज्जी धज्जी हो चुका एक धुस्सा डाल
रिा र्ा वह बडी अवनच्छा से बोला ' " तुम लोग यहां से भागते हो वक नहीं , अभी मुझे
राजा जी के अचकन के वलए सूत कातने हैं मुझे िुसयत नहीं है मुफ्त में मल्लार गाने की ।
5 धुवनया बेचारा बूढ़ा र्ा जाडे का म सम र्ा उसकी दशा िराब र्ी उसके तन पर वषों
पुरानी तार तार हो चुकी एक वमजय ई पडी हई र्ी ।
6 उस वक्त राजा अपने च बारे पर टहलु ओं से िुली धूप में िुलेल की मावलश करवा
रहा र्ा । राजा उस वक्त अधनंगा बदन और नंगे वसर र्ा एक टहलुआ वसर पर चंपी कर
रहा र्ा , तो दू सरा हार् पां व की उं गवलयों िोड रहा , तो तीसरा पीठ पर मुट्ठी मार रहा
र्ा|
9 दजी ने पााँ च िुाँदनो वाली सुंदर टोपी वसल दी । टोपी पहनकर गवरइया प्रसन्न वचत्त हो
गई । वह डे ढ़ टााँ ग पर नाचने लगी। वह िुदक िुदक कर गवरा को टोपी वदिा रही र्ी
और कह रही र्ी - दे ि मेरी टोपी सबसे वनराली पााँ च िुाँदने वाली 1
10 अच्छा होता ।
11. इत्ते-इतने
चाम – चमडा
हलस – उल्लास
पिने – पंि
12 बेइज्जत होना
बेवकूि बनाना
गायब होना
13 वववेकानुसार
14 वववेकानुसार
15 मनुष्य या अन्य
3. भारत में कुषाि काल में ब द्ध धमय वकस प्रकार प्रभाववत हआ?
उत्तर:- कुषाि काल तक आते - आते ब द्ध धमय दो संप्रदायों में बाँट गया हीनयान और
महायान । इन दोनों के बीच मतभेद उठने लगे । बडी - बडी सभाओं में इन पर वववाद
आयोवजत वकया जाने लगा ।
6. दवक्षि में म यय साम्राज्य के वसमट जाने पर भी वह वकस तरह िलता - िूलता रहा ?
उत्तर:- म यय साम्राज्य के वसमट जाने पर भी दवक्षि भारत बारीक दिकारी और समुिी
व्यापार का केंि बना रहा । यहााँ दू र - दू र के दे शों से व्यापारी जहाज पर माल पहाँ चाया
करते र्े । यहााँ यूनानी बखियााँ और रोम के वसक्के पाए गए ।
8. ववदे शी यहााँ लंबे समय तक शासन करने में सिल क्ों रहे ?
उत्तर:- ववदे शी हमलावरों ने जब भी भारत पर हमला वकया, वे यहााँ आकर अपनी
संस्कृवत तर्ा परं पराओं तक ही वसमट कर न रह सके । उन्ोंने जल्दी ही अपने आपको
इस दे श और इसकी सां स्कृवतक परं परा में ढाल वलया, इसवलए वे लं बे समय तक शासक
बने रहे ।
9. भारत में वकन - वकन क्षेत्रों में समन्वय की भावना वदिाई पडती है ?
उत्तर:- भारत में बाहर से आने वाले वववभन्न तत्वों के बीच ही समन्वय वकया गया । यहााँ
व्यखक्त के बाहरी और भीतरी जीवन तर्ा मनुष्य और प्रकृवत के बीच भी समन्वय का
प्रयास वकया गया ।
10. भारतीय रं गमंच का मूल उद्गम कहााँ वमलता है ? उनकी शै ली क्ा र्ी?
उत्तर:- भारतीय रं गमंच का मूल उद्गम वेदों की ऋचाओं और संवादों में वमलता है ।
रामायि और महाभारत में भी नाटकों का उल्लेि वमलता है । इनकी शैली नाटकीय है
।
12 .भवभूवत क न र्े ?
उत्तर:- भवभूवत संस्कृत भाषा के प्रवसद्ध नाटककार र्े । वे सातवीं शताब्दी में नाट्य क्षेत्र
के चमकते वसतारे र्े संस्कृत सावहत्य में कावलदास के बाद इनका ही थर्ान है ।
13. “संस्कृत भाषा अद् भुत रूप से समृद्ध भाषा है ”- ऐसा क्ों कहा गया है ?
उत्तर:- “संस्कृत भाषा अद् भुत रूप से समृद्ध भाषा है ”- ऐसा इसवलए कहा गया है
क्ोंवक संस्कृत भाषा अत्यंत ववकवसत तर्ा अनेक तरह से अलं कृत भाषा है । इस भाषा
ने अपना प्रसार होने, संपन्न होने तर्ा अलंकृत होने के बाद भी अपना मूल स्वरूप नहीं
छोडा । यह अनेक आधुवनक भारतीय भाषाओं की जननी भी है ।
14. सर वववलयम जोंस ने संस्कृत के बारे में क्ा कहा र्ा- अपने शब्दों में वलखिए ।
उत्तर:- सर वववलयम जोंस ने 1784 में संस्कृत की प्रशं सा करते हए कहा है – ‘संस्कृत
भाषा वकतनी ही पुरानी हो, पर इसकी बनावट अद् भुत है । यह यूनानी भाषा से अवधक
पूिय तर्ा लातीनी के मुकाबले उत्कृष्ट है । इसके अलावा यह दोनों भाषाओं से अवधक
पररष्कृत है ।
17. उपवनवेशों के इवतहास में भारत और चीन का प्रभाव कहााँ - कहााँ पडा?
उत्तर:- उपवनवेशों के इवतहास में चीन का प्रभाव महाद्वीप के दे शों बमाय , स्याम, और वहं द
चीन पर तर्ा भारत का प्रभाव टापुओं और मलय प्रायद्वीप पर अवधक र्ा । यहााँ भारतीय
धमय और कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दे िा जा सकता र्ा ।
18. इं डोनेवशया, जावा, बाली आवद ने भारतीय सभ्यता को वकस प्रकार बनाए रिा है ?
उत्तर:- इं डोनेवशया का प्राचीन सावहत्य भारतीय पुराकर्ाओं और गार्ाओं से भरा हआ है
। जावा और बाली के मशहूर नृत्य भारत से वलए गए हैं । बाली के छोटे से टापू पर वहं दू
धमय अब भी प्रचवलत है ।
19. प्राचीन भारतीय कला और वािुकला का प्रभाव दवक्षि - पूवी एवशया में वकस तरह
वदिाई दे ता है ?
उत्तर:- दवक्षि - पूवी एवशया में प्राचीन भारतीय कला और वािुकला का प्रभाव
अंगकोर और बोरोबुदुर की इमारतों और अद् भुत् मंवदरों पर वदिाई दे ता है । जावा में
बुद्ध की जीवन - कर्ा पत्थरों में उत्कीिय है । अनेक थर्ानों पर ववष्णु , राम और कृष्ण की
कर्ाएाँ भी अंवकत हैं ।
20. 'ववदे शों पर भारतीय कला का प्रभाव' के आधार पर भारतीय संगीत की ववशेषताएाँ
वलखिए ।
उत्तर:- 'ववदे शों पर भारतीय कला का प्रभाव' से ज्ञात होता है वक भारतीय और यूरोपीय
संगीत में वभन्नता है । भारतीय संगीत बहत ववकवसत र्ा । इसने चीन और सुदूर पूवय के
अलावा एवशयाई संगीत को बहत दू र तक प्रभाववत वकया ।
22. प्राचीन भारतीय गवित में प्रयुक्त अंक वकस तरह बेजोड र्े ?
उत्तर:- आधुवनक अंकगवित और बीजगवित की भारत में नींव पडी । काफ़ी समय तक
इसकी प्रगवत बावधत रही पर शू न्यां क वमलने पर अंकों का महत्त्व व्यवहार में बढ़ गया ।
ये अंक वचह्न दू सरे दे शों में प्रयुक्त तमाम वचहनों से वभन्न एवं बेजोड र्े ।
23. ईसवी के पहले हजार वषों में ववपरीत पररखथर्वतयों में भी भारत वकस प्रकार ववकास
करता रहा?
उत्तर:- ईसवी के पहले हजार वषों में बाहरी हमलों के बीच भी भारत अपना ववकास
करता रहा । उसने चीन, यूनानी जगत मध्य एवशया से अपना संपकय बढ़ाया । भारतीय
संस्कृवत का प्रचार-प्रसार होता रहा । गुप्तकाल में भारत की िूब उन्नवत हई ।
26. भारत की उस ववशे षता का उल्लेि कीवजए, वजसके कारि वह अपनी शखक्त एवं
ववकास पुनः पा सका ।
उत्तर:- भारत का हर क्षेत्र में भले ही ह्रास हो रहा र्ा, परं तु उसमें जीवन-शखक्त, अद् भुत
दृढ़ता, लचीलापन और अपने को प्रत्येक पररखथर्वत में ढालने जै सी आधारभूत क्षमताएाँ
बची हई र्ीं । िलस्वरूप वह नए संपकों एवं ववचारधाराओं का लाभ उठाकर
शखक्तशाली बना तर्ा ववकास करता रहा ।
प्रश् 1. भारत में वकन-वकन ववदे शी जावतयों ने अपने पााँ व पसारने चाहे ?
उत्तर- हषयवधयन के शासन के पश्चात् अरबी, तुकी व अिगानी जावतयों ने भारत में
आगमन वकया।
प्रश् 6. भारत में मुगल साम्राज्य का नींव कव और वकसके द्वारा रिी गई?
उत्तर- भारत में मुगल साम्राज्य क नींव 1526 ई. में तु कय-मंगोल बाबर द्वारा रिी
गई।
उत्तर- भारत में मुगल शासन की नींव रिने वाला 'बाबर' र्ा उसने भारत पर चार
वषय तक शासन वकया।
उत्तर- अकबर ने 1531 में हमायूाँ के पश्चात् मुगल सत्ता की डोर संभाली।
प्रश् 10. अकबर का उद्दे श्य क्ा र्ा?
उतर- अकबर भारत का एक सिल शासक रहा। लोग उसे अत्यवधक पसंद करते
र्े । उसका उद्दे श्य र्ा अिंड भारत की थर्ापना करना, जहां राजनीवतक अिंडता
के अलावा लोगों में आपसी सबंध हो।
उत्तर- अकबर बहादु र, साहसी, वीर, योग्य सेनानायक, ववनम्र, दयालु , आदशय वादी
व कुशल प्रशासक र्ा।
उत्तर- मुगल शासन-काल के दो प्रमुि वहं दी कवव र्े -मवलकमोहम्मद जायसी एवं
अब्दु ल रहीम िानिाना |
प्रश् 13. मवलक मोहम्मद जायसी ने क न-से प्रमुि ग्रंर् की रचना की?
उत्तर- औरं गजेब को गलत नीवतयों से उत्तर में वसक्ख और पवश्चम के मराठे उसके
खिलाफ़ हो गए। वकसानों का बडा भाग व आम जनता का गरीब वगय जो
सतनावमयों के नाम से जाना जाता र्ा पूियतया उसके ववरुद्ध र्ा।
उत्तर- च र्-कर वशवाजी द्वारा अमीरों पर लगाया गया, वजसमें उन्ें अपनी
आमदनी का च र्ा भाग कर के रूप में जमा करवाना पडता र्ा तावक सैवनक
कायों हे तु धन एकवत्रत हो सके।
प्रश् 19. औरं गज़े ब की मृत्यु के पश्चात् भारत के दावेवार क न-क न र्े ?
उत्तर- औरं गज़ेब की मृत्यु के बाद भारतीयों में मराठे , है दरअली और उसका बेटा
टीपू सुल्तान और ववदे वशयों में फ्रां सीसी
और अंग्रेज़ र्े ।
उत्तर- इस समय पूरे भारत में मराठे शखक्त पा चुके र्े और ऐसा अनुमान लगाया
जाता र्ा वक ये ही पूरे भारत पर राज करें गे।
प्रश् 21. नावदरशाह क न र्ा? उसने वदल्ली पर आिमि क्ों वकया? इसका मुख्य
क्ा पररिाम वनकला?
उत्तर- शासन सत्ता संभालने पर कंपनी का उद्दे श्य केवल धन कमाना र्ा। उन्ोंने
भारतीय माल यूरोप की मंवडयों में बेचा। उन्ोंने भारत में भी कल-कारिाने
िोलकर भारतीय अर्य तंत्र का नाश वकया व अपने िायदे हेतु कायय वकए।
प्रश् 27. ववद्वान एडम खस्मर् ने ईस्ट इं वडया कंपनी के वलए क्ा वलिा?
उत्तर-ववद्वान एडम खस्मर् ने अपनी पुिक 'द वैल्थ ऑि नेशंस' में वलिा-'एकमात्र
व्यापाररयों की कंपनी की सरकार वकसी भी दे श के वलए सबसे बुरी सरकार है ।'
प्रश् 28. यवद भारत पर इं ग्लैंड का प्रभुत्व कायम न होता तो भारत की खथर्वत क्ा
होती?
उत्तर- यवद भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व कायम न होता तो भारत अवधक स्वतं त्र,
समृद्ध व प्रत्येक क्षेत्र में प्रगवत करने वाला होता।
13.अंवतम दौर- एक
इस प्रकार भारत की आम जनता को विटे न के अनेक िचय उठाने पडते र्े । उनमें
सेना पर वकए िचय वजसे ‘कैवपटे शन चाजय’ कहा जाता र्ा, दे ना पडता र्ा। इसके
अवतररक्त अन्य िचों का बोझ भी भारत के कंधों पर र्ा।
भारत में विवटश शासन के अंतववयरोध राममोहन राय – बंगाल में अंग्रेज़ी वशक्षा और
समाचार पत्र
बंगाल में अंग्रेज़ी वशक्षा के कई समाज सुधारक पक्ष र्े । इसके अलावे वशक्षाववद्
अंग्रेज़ प्राच्य ववद्ा ववशारद पत्रकार वमशनरी और कुछ अन्य लोगों ने पाश्चात्य
संस्कृवत को भारत में लाने के वलए काफ़ी प्रयास वकया। यद्वप अंग्रेज़ भारत में
वशक्षा का प्रचार-प्रसार नापसंद करते र्े क्ोंवक वे चाहते र्े वक वशक्षि-प्रवशक्षि के
माध्यम से क्लकय तै यार वकया जाए तावक कम वेतन पर उनसे काम कराया जा
सके। वशक्षा के माध्यम से वशवक्षत लोगों में नई चेतना जाग उठी। वे गुलामी से मुक्त
होने के वलए तडपने लगे ले वकन नई तकनीकी, रे लगाडी, छापािाना, दू सरी मशीनें
ये सब ऐसी बातें र्ीं वजसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती र्ी। ऐसे ही वक्त में 18 वीं
शताब्दी में एक सामावजक सुधारक एवं अत्यंत शखक्तशाली व्यखक्तत्व का उदय
हआ। इसका नाम र्ा-राजा राम मोहन राय। वह एक नई सोच का व्यखक्त र्ा।
भारतीय ववचारधारा और दशय न की उन्ें काफ़ी ज्ञान र्ा। उन्ें अनेक भाषाओं का
भी ज्ञान र्ा। उन्ोंने अंग्रेजी सरकार के गवनयर जनरल को गवित, भ वतकी, ववज्ञान,
रसायन, शाि, जीव-ववज्ञान और अन्य उपयोगी ववज्ञानों की वशक्षा की आवश्यकता
पर जोर वदया और अंग्रेज़ी को लागू करने के वलए भी वलिा।
राजा राम मोहन राय ईसाई व मुखस्लम दोनों धमों के संपकय में रहे और इससे वे
प्रभाववत भी रहे । वे भारतीय धावमयक कुरीवतयों व कुप्रर्ाओं से भारत को मुक्त
करवाना चाहते र्े। इसके िलस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने सती प्रर्ा पर रोक लगा
दी।
वे भारतीय पत्रकाररता के प्रवतय क भी र्े। उनका कहना र्ा वक समाचार पत्र एवं
पवत्रकाएाँ मनुष्य के ववचारों को जागरूक करने का माध्यम हैं । अतः उनके नेतृत्व में
1818 में पहली बार एक अंग्रेज़ी का समाचार पत्र वनकला वजसका संपादन
भारतीयों ने वकया र्ा। इसके अवतररक्त बंगाली में एक साप्तावहक व एक मावसक
समाचार पत्र प्रकावशत हआ। धीरे -धीरे दे श में, कलकत्ता, मिास और मुंबई में ते जी
से और भी समाचार पत्र वनकलने लगे।
उनकी सोच र्ी वक भारत में पूिय जागरि के वबना पररवतय न लाना असंभव है । बहत
से लोगों ने उनका समर्यन वकया वजनमें रवींि नार् का पररवार उनका समर्य क र्ा।
वे वदल्ली सम्राट की ओर से इं ग्लैंड गए। दु भाय ग्य से उन्नीसवीं शताब्दी की शु रुआती
वषों में विस्टल में उनकी मृत्यु हो गई।
1893 ई. में वशकागो में अंतराय ष्टरीय धमय सम्मेलन में भाग वलया। वववेकानंद ने भारत
के दवक्षिी छोर में कन्याकुमारी से वहमालय तक अपने वसद्धां तों को िैलाया।
1902 ई. में 39 वषय की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। वववेकानंद के समकालीन
रवींिनार् ठाकुर र्े। टै गोर पररवार ने बंगाल के सुधारवादी आं दोलनों में बढ़-
चढ़कर भाग वलया। उन्ोंने जवलयााँ वाला कां ड के ववरोध में अपनी ‘सर’ की उपावध
ल टा दी। वशक्षा के क्षेत्र में ‘शां वत वनकेतन’ उनकी प्रमुि दे न र्ी। वे रूसी िां वत के
प्रशं सक र्े ववशेष उसमें वशक्षा के प्रसार, संस्कृवत, स्वास्थ्य और समानता की चेतना
के। उनका मानना र्ा वक यही तत्व व्यखक्त के उसके उददे श्य की पूवतय में सहायक
होता है । टै गोर और गां धी दोनों मानवतावादी र्े । इन्ोंने लोगों को संकीिय
ववचारधाराओं से बाहर वनकालना चाहा। गां धी जी ववशे ष रूप से आम जनता के
आदमी र्े , जो भारतीय वकसान के रूप में र्े। टै गोर मूलतः ववचारक र्े और गां धी
अनवरत कमयठता के प्रतीक र्े। उस समय ऐनी बेसेंट का भी बहत प्रभाव पडा।
बहत-सी बातें मुसलमान जनता में भी समान रूप से प्रचवलत र्ीं। इन दोनों ने
अपनेअपने तरीके से जनता में नई ववचारधारा का संचार करना चाहा।
श्रीमती एनी बेसेंट आयरलैं ड की रहने वाली मवहला र्ी। उन्ोंने भारत में होम रूल
चलाया वजसका उद्दे श्य अंग्रेजों से भारतीयों को आं तररक स्वतं त्रता वदलाना र्ा।
1857 के वविोह के बाद भारतीय मुसलमान यह तय नहीं कर पा रहे र्े वक घर
जाएाँ । अंग्रेजों ने उनके सार् अत्यवधक दमनपूिय रवैया अपनाया र्ा। सन् 1870 के
बाद संतुलन बनाने के वलए अंग्रेजी सरकार अनुकूल हो गई। इसमें सर सैयद
अहमद ने महत्त्वपूिय भूवमका वनभाई र्ी। उन्ें यह ववश्वास र्ा वक विवटश सत्ता के
सहयोग से मुसलमानों की खथर्वत बेहतर हो सकती है । उन्ोंने मुसलमानों में विवटश
ववरोधी भावना कम करने की कोवशश की। सर सैयद अहमद िा का प्रभाव
मुसलमानों में उच्च वगय के कुछ लोगों तक ही सीवमत र्ा। 1912 में मुसलमानों के
दो नए साप्तावहक वनकले -उदू य में ‘अल वहलाल’ और अंग्रेज़ी में ‘कामरे ड।’ अबुल
कलाम आजाद का अलीगढ़ कॉले ज में सर सैयद िााँ से संबंध र्ा। अबुल कलाम
आजाद ने पुरातन पंर्ी और राष्टर ववरोधी भावना के गढ़ पर हमला वकया वजससे
बुजुगय नाराज हए पर युवा पीढ़ी में उत्तेजना भर चुकी र्ी।
वतलक और गोिले
ए. ओ. हयूम ने 1885 में राष्टरीय कां ग्रेस की थर्ापना की र्ी। जब 1885 में वनवमयत
नेशनल कां ग्रेस अपनी प्र ढ़ावथर्ा में आई तो इसके नेतृत्व का ढं ग बदल गया। जब
इसके संरक्षक बने र्े वे अत्यवधक आिमिकारी व अवज्ञाकारी र्े और वनम्न वगय
छात्र व युवा लोगों के प्रवतवनवध र्े । उसमें कई तरह के योग्य ओजस्वी नेता उभरकर
आए। इसके सच्चे प्रवतवनवध र्े - महाराष्टर के बालगंगाधर वतलक और गोिले र्े ।
संघषय का पूरा माह ल तैयार हो गया र्ा वजसे बचाने के वलए दादा भाई नोरोजी लाए
गए। 1907 ई. में हए संघषय में उदार दल की जीत हई ले वकन बहसंख्यक समाज के
लोग वतलक के पक्ष में र्े । इस समय बंगाल में वहं सक घटनाएं हो रही र्ीं।
गद्ां श – 1
वववेकानंद ने बहत- सी बातें कहीं ले वकन वजस एक बात के बारे में उन्ोंने अपने
ले िन और भाषिों में बराबर वलिा, वह र्ी ‘अभय’ वनडर रहो| उनके अनुसार “
अगर दु वनया में कोई पाप है तो वह दु बयलता है - हर तरह की दु बयलता से बचो’
दु बयलता पाप है ‘दु बयलता मृत्यु है | उपवनषदों की यही महान वशक्षा र्ी |”और सत्य
की कस टी है - “ कोई भी चीज जो तु म्हें शारीररक, ब खद्धक और आध्याखत्मक दृवष्ट
से कमजोर बनाती है , उसे जहर की तरह छोड दो, उसमें कोई जीवन नहीं है वह
सत्य नहीं हो सकती |
उत्तर कंु जी
गद्ां श -1
1. राजा राममोहन राय का उदय हआ |
2. राजा राममोहन राय संस्कृत, फ़ारसी, अरबी भाषाओाँ के ववद्वान र्े |
3. वे वशक्षा को आधुवनक ढााँ चे में ढालना चाहते र्े |
4. उन्ोंने गवित, भ वतक-ववज्ञान, रसायनशाि, जीव-ववज्ञान आवद की
आवश्यकता पर ज़ोर वदया |
5. राजा राममोहन राय प्राचीन सावहत्यों की ओर झुके |
गद्ां श -2
1. वववेकानंद ने जो बात वलिी वह र्ी ‘अभय’ – वनडर रहो |
2. वववेकानंद ने दु बयलता के बारे में कहा वक दु बयलता से बचो, दु बयलता पाप है ,
दु बयलता मृत्यु है |
3. कोई भी चीज़ जो तु म्हे शारीररक, ब खद्धक और आध्याखत्मक दृवष्ट से कमज़ोर
बनाती है , उसे ज़हर की तरह छोड दो |
4. सत्य मनुष्य को मजबूत बनाता है , सत्य पववत्रता है , सवयज्ञान है |
5. बुखद्ध क्षीि होने लगती है , जीवन का पतन होने लगता है |
प्रश्ों के उत्तर :
1. राजा राममोहन राय ने मुख्या रूप से ‘सती प्रर्ा’ वजसमें पवत की मृत्यु होने
पर िी भी वज़ं दा जलकर अपने प्राि दे दे ती र्ी, का अंत वकया | उन्ीं के
आं दोलन के कारि विवटश सरकार ने सती प्रर्ा पर रोक लगाई |
2. मालगुजारी व पुवलस |
3. अंग्रेज़ी सेना के प्रवशक्षि हे तु भारत की ओर से उठाया गया िचय ‘कैवपटे शन
चाजय ’ र्ा |
4. अंग्रेजी शासनकाल में ही भारत ने नई तकनीक, रे लगाडी, छापािाना, दू सरी
मशीनें व युद्ध के अवधक कारगर तरीकों का ववकास वकया |
5. नेशनल कां ग्रेस की थर्ापना सन् 1885 में हई |
6. वतलक और गोिले ने वनम्न वगय, मध्यम वगय, ववद्ार्ी व युवा वगय का
प्रवतवनवधत्व वकया | भारतीय जनसाँख्या का एक बडा जनसमुदाय उनके पक्ष
में र्ा |
7. ‘मुसवलम लीग’ की थर्ापना अलीगढ कॉलेज के उस समुदाय के माध्यम से
हई जो नए मुसलमान बुखद्धजीववयों का नेतृत्व कर रहा र्ा |
8. अबुल कलाम आज़ाद ने मुखस्लम बुवद्दजीवी समुदाय में सनसनी पैदा कर दी
और युवा पीढ़ी के वदमाग में राष्टरीयता की भावना जगाने हे तु उत्तेजना भरी |
9. रामकृष्ण वमशन की थर्ापना वववेकानंद ने की | इसकी ववशे षता यह र्ी वक
इसमें सां प्रदावयकता का भाव नहीं र्ा अर्ाय त् सभी धमों को समान समझा
जाता र्ा |
10. उन्नीसवीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहं स,
वववेकानंद, टै गोर, महात्मा गां धी, एनी बेसेंट, सर सैयद अहमद िां , अबुल
कलाम आज़ाद, गोपाल कृष्ण गोिले एवं बालगंगाधर वतलक मुख्य सुधारक
हए | इन्ोने अंग्रेजी शासन के प्रभाव के होते हए भी लोगों की ववचारधारा
को बदलना चाहा | उनमें राष्टरीयता की भावना भर, धावमयक कमय-कां डों से
उन्ें हटाना चाहा |
11. स्वामी दयानंद सरस्वती ने लोगों को अंदेश वदया वक ‘वेदों की ओर
ल टो’ अर्ायत् उनका मानना र्ा वक वेदों में ही जीवन की सत्यता है |
12. अंग्रेजों ने अपने िायदे हे तु भारतीय आम जनता व अपने बीच एक
ऐसे वगय को जन्म वदया जो उनके कहे अनुसार चले | उनमें र्े ज़मींदार,
राजा, पटवारी, गााँ व के मुखिया व ऊपर के कमयचारी | ये सरकार के
वपछलग्गू र्े , आम जनता से धन बटोरकर अपनी व सरकार की जे बें भरते र्े
|
13. मालगुजारी एक प्रकार का चुंगी कर र्ा जो गााँवों से शहरों में लाए या
ले जाए जाने वाले सामान पर सरकार की ओर से लगाया जाता र्ा |
14. भारत में सभी साधन संपन्न होने पर भी – भारत की जनता अपने ही
दे श में गरीब हो गई क्ोंवक उसे विटे न के सभी िचय उठाने पडते र्े |
15. तां त्या टोपे व लक्ष्मीबाई |
प्रश्
प्रश् 1. अंग्रेज़ी राज्य की थर्ापना के बाद भारत में कैसी व्यवथर्ा से बाँध गया?
प्रश् 2. अंग्रेज़ों का लक्ष्य क्ा र्ा?
प्रश् 3. कैवपटे शन चाजय क्ा र्ा?
प्रश् 4. वशक्षा का ववरोध करने वाले अंग्रेजों को भारत में वशवक्षत क्ों करना पडा?
प्रश् 5. सती प्रर्ा क्ा र्ी? इसे रोकने में राजा राममोहन राय ने क्ा वकया?
प्रश् 6. 1857 का वविोह असिल क्ों रहा?
प्रश् 7. तकनीकी पररवतय न और वशक्षा के प्रसार का समाज पर क्ा प्रभाव पडा?
प्रश् 8. सर सैयद अहमद िााँ ने अलीगढ़ कॉलेज की थर्ापना वकस उद्दे श्य से की?
प्रश् 9. वतलक और गोिले कैसे आं दोलनकारी र्े ?
प्रश् 10.भारत में विवटश साम्राज्य की थर्ापना के सार् घटने वाली नई घटना क्ा
र्ी?
प्रश् 11. 18वीं शताब्दी में बंगाल में वकस व्यखक्तत्व का उदय हआ?
प्रश् 12.19वीं शताब्दी के प्रमुि सुधारक का नाम वलखिए।
प्रश् 13. दयानंद सरस्वती क न र्े ? उन्ोंने समाज सुधार के क्षेत्र में क्ा-क्ा कायय
वकए?
प्रश् 14. वतलक और गोिले के बारे में संवक्षप्त विय न कीवजए।
उत्तरमाला
2. अंग्रेजों का लक्ष्य र्ा – लगान के रूप में भारतीयों से अवधक मात्रा में टै क्स वसूलना
और मुनाफ़ा कमाना।
3. इं ग्लैंड में विवटश सेना के एक वहस्से का प्रवशक्षि िचय भारत को उठाना पडता र्ा।
इसे कैवपटे शन चाजय कहा जाता र्ा।
4. अंग्रेज़ वशक्षा के प्रचार को नापसंद करते र्े । विर भी भारत में वशक्षा का प्रचार-प्रसार
करना उनकी मज़बूरी रही। वे भारत में पाश्चात्य संस्कृवत को िैलाना चाहते र्े। इसके
अवतररक्त उन्ें अपने कायों के वलए क्लकय भी तै यार करना र्ा I
5. सती प्रर्ा एक पुराने समय की कुरीवत र्ी। इस प्रर्ा में पवत की मृत्यु होने पर िी
(पत्नी) को भी वजं दा जला वदया जाता र्ा। राजा राममोहन राय ने इस प्रर्ा का अंत
अंग्रेजों की सहायता लेकर कानून बनाकर वकया। उन्ीं के प्रयासों के कारि सरकार ने
सती प्रर्ा पर रोक लगाई।
6. 1857 का वविोह असिल होने का प्रमुि कारि यह र्ा वक उसके वविोह के वलए
जो वतवर् वनवश्चत की गई र्ी उसका िुलासा समय से पहले हो गया। इससे अंग्रेज़ सतकय
हो गए, इसके अलावे दे श के ज़मीनदारों, सामंती सरदारों ने इसमें भाग नहीं वलया।
इससे भी यह वविोह कमज़ोर पड गया।
7. अंग्रेजों के आने से तकनीकी और वशक्षा के क्षेत्र में अभूतपूवय पररवतयन हआ। समाज में
सोई हई चेतना जाग उठी और नई चेतना का ववकास हआ। अंग्रेजी पढ़ने वालों का
रुझान पवश्चमी विुओं और पवश्चमी सभ्यता की गवतवववधयों पर गया तर्ा लोगों में अपने
दे श की आजादी के प्रवत लगाव पैदा हो गया।
10. भारत में विवटश साम्राज्य की थर्ापना से भारतीयों के वलए यह नई घटना र्ी वक
पहली बार वे ऐसी शासन सत्ता में आए वजसका मूल भारतीय न र्ा। इससे पूवय कई
बाहरी जावतयों ने भारत पर आिमि कर शासन सत्ता साँभाली र्ी। अवधकां श ने अपना
भारतीयकरि वकया जबवक अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृवत को नहीं अपनाया।
अब तो भारत ऐसे शासकीय संचालन में बाँध गया वजसकी बागडोर भारतीय धरती पर न
होकर लं दन की धरती पर र्ा
11. 18वीं शताब्दी में वजस सबसे प्रभावशाली व्यखक्तत्व का उदय हआ, वे र्े राजा
राममोहन राय। वे एक नई सोच के व्यखक्त र्े । उन्ें भारतीय ववचारधारा और दशय न की
गहरी जानकारी र्ी। उन्ें अनेक भाषाओं का ज्ञान र्ा। वे भारतीय समाज को पुरानी
पद्धवत से बाहर वनकालना चाहते र्े । वे एक समाज सुधारक र्े। उन्ीं के प्रयास के
कारि सती प्रर्ा पर रोक लगी।
12. 19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती रामकृष्ण परमहं स, वववेकानंद, टै गोर,
महात्मा गां धी, ऐनी बेसेंट, सर सैय्यद अहमद िााँ , अबुल कलाम आजाद, गोपाल कृष्ण
गोिले एवं बाल गंगाधर वतलक मुख्य सुधारक र्े । इन्ोंने समाज सुधारक विवटश शासन
के प्रभाव के चंगुल से बाहर वनकाल कर लोगों की ववचारधारा को बदलना चाहा। वे
उनमें राष्टरीयता की भावना भर, धावमयक कां डों से उन्ें वनकालना चाहते र्े।
13. दयानंद सरस्वती 19वीं शताब्दी के जाने-माने समाज-सुधारक र्े । उन्ोंने लोगों को
संदेश वदया वक ‘वेदों की ओर ल टो’ यानी उनका मानना र्ा वक जीवन में ही जीवन की
सत्यता है । इसका प्रसार पंजाब तर्ा संयुक्त प्रदे श के वहं दू वगय में हआ। उन्ोंने लडके-
लडवकयों को बराबरी की वशक्षा दे ने का प्रयास वकया। खियों की खथर्वत में सुधार और
दवलत जावतयों का िर ऊाँचा उठाने के वलए महत्त्वपूिय कायय वकए।
14.एक योग्य और ते जस्वी नेता के रूप में उभरे महाराष्टर के बाल गंगाधर वतलक मराठों
के महापुरुष के रूप में र्े । गोपाल कृष्ण गोिले कां ग्रेस के बुजुगय नेता र्े , वे दादा भाई
न रोजी को अपना राजनीवतक गुरु मानते र्े।
14.अंवतम दौर - दो
राष्टरीयता बनाम साम्राज्यवाद : मध्य वगय की बेबसी गां धी जी का आगमन- दू सरे ववश्वयुद्ध
की शु रुआत होने के समय कां ग्रेस की राजनीवत में उतार आया र्ा। इसका मुख्य कारि
कां ग्रेस का दो गुटों में बाँटना र्ा। वजनमें एक र्ा नरमदल और दू सरा गरम दल। ववश्व
युद्ध की समाखप्त के बाद भारत में अंग्रेजों द्वारा दमनकारी कानून और भारत में माशयल
ला लागू हआ। भारतीय जनता का शोषि लगातार बढ़ने लगा। तभी भारतीय राजनीवत
में गां धी का उदय हआ। वे करोडों की आबादी से वनकलकर आए र्े। वे जनता की भाषा
बोलने वाले और जनता के सच्चे शुभ वचंतक र्े। अतः उन्ोंने भारत में करोडों लोगों को
प्रभाववत वकया। गां धी ने पहली बार कां ग्रेस के संगठन में प्रवेश वकया। इस संगठन का
उद्दे श्य र्ा सवियता और तरीका र्ा शां वतवप्रय तरीके से। गां धी ने आते ही विवटश शासन
की बुवनयादों पर चोट की। उन्ोंने लोगों से कहा वक अपने अंदर का भय वनकाल दो
क्ोंवक आम लोगों की व्यापक दमनकारी दमघोटू भय, सेना का, पुवलस का, िुविया
ववभाग का, अिसरों, जमीनदारों, साहूकारों, बेकारी और भुिमरी का भय सताता रहता
र्ा। गां धी जी की प्रेरिा से लोगों ने भयमुक्त होकर काम करना शु रू वकया। इससे लोगों
में मनोवैज्ञावनक पररवतयन का संचालन हआ। यह पररवतय न असंख्य लोगों को प्रभाववत
कर रहा र्ा। उनकी इस प्रेरिा से सभी आम जनता में जागरुकता का वविार हआ।
ऐसे में भारत की बवल दे ना और लोकतं त्र का त्याग करना दे श के वलए अवहतकर र्ा।
अंग्रेज़ों की नीवत वहं दू और मुखस्लम एकता को कमज़ोर करना रहा। वे िूट डालो राज्य
करो की नीवत को अपनाते र्े। ऐसे में कां ग्रेस ऐसा कोई हल न ढू ाँ ढ़ सकी वजससे
सां प्रदावयक समस्या को सुलझाया जा सके।
अब हर हाल में वहं दू और मुसलमानों में दीवार िडी करना चाहता र्े। वे वहं दू-मुखस्लम
के मत-भेदों को सां प्रदावयक रं ग दे ने का प्रयास करने लगा।
गद्ां श – 1
गां धी जी ने पहली बार कां ग्रेस के संगठन में प्रवेश वकया और तत्काल उसके संववधान में
पूरी तरह पररवतय न ला वदया | उन्ोंने उसे लोकतां वत्रक और लोक संगठन बनाया | अब
उसमें वकसानों ने प्रवेश वकया और अपने नए रूप में वह एक ववशाल वकसान - संगठन
वदिाई दे ने लगा, वजसमें मध्य वगय के लोग संख्या में वछतरे हए र्े ले वकन उनका ज़ोर
काफ़ी र्ा | अब उसका िेवतहर चररत्र बढ़ने लगा | औद्ोवगक मज़दू र भी उसमें आए
ले वकन अपनी व्यखक्तगत है वसयत में, अलग से संगवठत रूप में नहीं |
इस संगठन का लक्ष्य पर आधार र्ा सवियता | ऐसी सवियता वजसका आधार शां वतपूिय
पद्धवत र्ी | अब तक जो ववकल्प र्े उसमें या तो केवल बातचीत करना और प्रिाव
पाररत करना र्ा अर्वा वहं सक काययवाही करना | इन दोनों तरीकों को एक तरफ़ हटा
वदया और वहं सा की ववशे ष रूप से वनंदा की गई क्ोंवक वह कां ग्रेस की मूल नीवत के
खिलाफ़ र्ा | काम करने का एक नया तरीका वनकाला गया, जो पूरी तरह शां वतपूिय र्ा |
गद्ां श - 2
कां ग्रेस पर गां धी जी का प्रभुत्व र्ा, ले वकन यह िास वकस्म का अवधकार र्ा, क्ोंवक
कां ग्रेस एक सविय, वविोही, अनेक पक्षीय संगठन र्ा वजसमें तरह-तरह की राय होती
र्ी और उसे आसानी से इधर-उधर नहीं ले जाया जा सकता र्ा | गां धी जी अक्सर दू सरों
की इच्छा के सामने झुक जाते र्े | कभी-कभी वे अपने ववरुद्ध िैसलों को भी स्वीकार
कर लेते र्े |
एक के बाद दू सरा सववनय अवज्ञा आं दोलन हआ और उसके कारि बहत कष्ट उठाने
पडे , ले वकन इन मुसीबतों को चूाँवक िुद आमंवत्रत वकया गया र्ा इसवलए उनसे शखक्त ही
वमली |
जब सववनय अवज्ञा आं दोलन जारी नहीं र्ा, तब भी भारत में विवटश सरकारी तं त्र से
असहयोग जारी र्ा, गरचे उसका आिामक चररत्र समाप्त हो गया र्ा|
गद्ां श पढ़कर प्रश्ों के उत्तर वलखिए |
उत्तर कंु जी
गद्ां श – 1 उत्तर
1. गां धी जी ने कां ग्रेस के संगठन में प्रवेश वकया और तत्काल उसके संववधान में पूरी
तरह पररवतय न ला वदया |
2. वकसान वगय ने प्रवेश वकया |
3. इस संगठन का लक्ष्य और आधार र्ा सवियता | ऐसी सवियता वजसका आधार
शां वतपूिय पद्धवत र्ा |
4. वह कां ग्रेस की मूल नीवत के खिलाि र्े |
5. काम करने का नया तरीका पूरी तरह शां वतपूिय र्ा |
गद्ां श – 2 उत्तर
प्रश्ों के उत्तर :
1. ववश्व युद्ध के द रान भारतीयों का इिेमाल करने के वलए सरकार ने बहत वायदे
वकए र्े और लोगों को इस बात की आशा र्ी वक अब जीवन में राहत व प्रगवत के
क्षि आएाँ गे ले वकन युद्ध समाप्त होते ही सरकार ने तो दमनकारी कानूनों का
वनमाय ि कर पंजाब में ‘ माशयल लॉ ’ भी घोवषत वकया वजससे लोगों की उम्मीदों पर
पानी विर गया |
2. माशयल लॉ विवटश सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐसा कानून र्ा वजसमें वकसी भी
व्यखक्त को वकसी भी समय वबना पुवलस व न्यायालय की इजाज़त के गोली का
वनशाना बनाया जा सकता र्ा |
3. इस समय सभी लोग वकसान, मजदू र व मध्यम वगय मुखिलों से भरा जीवन जी
रहे र्े | शोषि की प्रविया ज़ोरों पर र्ी | लोगों के प रुष को वनरं तर कुचला जा
रहा र्ा | गरीबी वनरं तर बढ़ती जा रही र्ी |
4. गां धी जी ने लोगों को सत्य का सार् दे ते हए, वनभयय होने व कमय करने का संदेश
वदया |
5. विवटश सरकार ने चारों और ि फ़नाक वातावरि बनाया र्ा, इसी कारि
भारतीय जनता व्यापक दमनकारी, दमघोंटू वातावरि, सेना का, पुवलस का,
ख़ुवफ़या ववभाग का, अफ़सरों व जमींदारों का, साहूकारों का, बेकारी व भुिमरी
के भय तले जीवन जी रही र्ी |
6. गां धी जी के संदेश ‘ डरो मत ‘ से लोगों का विवटश सरकार के प्रवत भय कम हो
गया | अब वे डरकर या वछपकर काम कम करने लगे वजससे उनमें कािी
पररवतय न आया | वे कायों की ओर अग्रसर हए | यह एक मनोवैज्ञावनक बदलाव र्ा
|
7. नरम दल और गरम दल |
8. गां धी जी का उद्दे श्य र्ा लोगों को प्रेररत करके उनमें सवियता का भाव जागृत
करना |
9. गां धी जी की सवियता को दोहरा आह्वान माना गया क्ोंवक एक ओर तो उनका
लक्ष्य र्ा ववदे शी शासन को चुन ती दे ना और दू सरी ओर सामावजक बुराइयों के
ववरुद्ध लडकर दे श की समस्याओं को हल करना व दवलत जावतयों को ऊपर
उठाने के सार् छु आछूत के अवभशाप को समाप्त करना |
10. गां धी जी की कर्नी और करनी में मेल र्ा अर्ायत् जो कहते र्े वही करके भी
वदिाते र्े | ऐसा इसवलए सत्य है क्ोंवक अपने ववचारों की शु रुआत वे स्वयं अपने
से करते र्े |
11. भारत में वहं दू, मुखस्लम, वसक्ख व इसाई सभी जावतयों के लोग समान रूप से रहते
र्े | इसवलए कभी जातीय सवाल नहीं उठे र्े |
12. कां ग्रेस राष्टरीय एकता और लोकतं त्र की भावना पर अवडग र्ी |
13. मुसलमानों को अलग धावमयक गुट वनवमयत करने में वमस्टर वजन्ना ने पूरा सहयोग
वदया | उन्ोंने ही विवटश सरकार के समक्ष दो राष्टरों भारत और पावकिान का
प्रिाव रिा |
14. कां ग्रेस ने बहत प्रयास वकया वक सां प्रदावयक तत्वों को राजनीवत में न लाया जाए
ले वकन मुखस्लम लीग ने सहयोग न वकया और कां ग्रेस राष्टरीय एकता कायम रिने
में असिल रही |
15. वमस्टर वजन्ना ने स्वतं त्रता की मााँ ग को नया मोड दे वदया | उन्ोंने अपना ववचार
वदया वक भारत में दो राष्टर हैं वहं दू और मुसलमान | इसी ववचारधारा से पावकिान
व भारत के ववभाजन की अवधारिा का ववकास हआ | वजसका पररिाम यह
वनकला वक स्वतं त्रता वमलते ही भारत दो टु कडों में बाँट गया |
प्रश्-उत्तर
उत्तरमाला
3. प्रर्म ववश्वयुद्ध के बाद दे श में आम लोगों की खथर्वत दयनीय र्ी। वकसान, मजदू र,
वगय, मध्यम वगय सभी आिां त र्े। उनका बडे पैमाने पर शोषि हो रहा र्ा। दे श में
भुिमरी और गरीबी बढ़ती जा रही र्ी।
4. ‘माशयल लॉ’ अंग्रेज़ी सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐसा कानून र्ा वजसमें वकसी भी
व्यखक्त को वकसी भी समय पुवलस व न्यायालय के आदे श के बगैर गोली का वनशाना
बनाया जा सकता र्ा।
5. गां धी जी द्वारा आम जनता को अह्वान करने पर ‘डरो मत’ वकए जाने पर लोगों में
विवटश सरकार का डर समाप्त हो गया। वे अपने कायय िुलेआम करने लगे। उनमें
हस ं ला और साहस की वृखद्ध हई और मनोवैज्ञावनक पररवतय न वदिाई पडने लगा।
6. गां धी जी ने भारतीय संस्कृवत के बारे में वलखित रूप में कहा वक “भारतीय संस्कृवत न
वहं दू है न इस्लाम, न पूरी तरह से कुछ और है । यह सबका वमलाजु ला रूप है । उन्ोंने
वहं दू धमय को सावयभ वमक यानी सबके वलए समान रूप दे ना चाहा। सत्य के घेरे में सबको
शावमल करने का प्रयास वकया I
7. कां ग्रेस ने बहत प्रयास वकया वक सां प्रदावयक तत्वों को राजनीवत में न लाया जाए
ले वकन मुखस्लम लीग ने सहयोग न वकया और राष्टरीय एकता कायम रिने में असिल
रही।
8. गां धी जी ऐसे भारत का वनमाय ि करना चाहते र्े- वजसमें गरीब-से-गरीब व्यखक्त भी
यह महसूस करे गा वक यह उसका दे श है वजसके वनमाय ि में उसका योगदान रहा है ।
एक ऐसा भारत हो वजसमें लोगों के बीच ऊाँच-नीच, अमीर-गरीब का भेद न हो। ऐसा
भारत वजसमें सभी जावतयााँ समभाव से रहें । ऐसा भारत हो वजसमें भेद-भाव से रवहत हो,
छु आछूत की जगह न हो, नशीली मवदरा और दवाइयों के अवभशाप के वलए कोई जगह
नहीं हो, वजसमें िी-पुरुषों के समान अवधकार हों, यही गां धी जी के सपनों का भारत है ।
9. प्रर्म ववश्व युद्ध की समाखप्त पर दे श में राहत और प्रगवत की बजाय दमनकारी कानून
और पंजाब में माशय ल लॉ लागू हआ। जनता में अपमान की कडवाहट और िोध िैल
गया और शोषि का बाजार गमय र्ा। इससे लोगों की आशा वनराशा में बदल गई।
10. गां धी जी की कायय प्रिाली अवहं सात्मक र्ी, उसमें वहं सा के वलए लेशमात्र की जगह
नहीं र्ी। उनके काम करने का तरीका पूियतया शां वतपूवयक र्ा ले वकन वजस बात को
गलत समझा जाता र्ा उसके आगे वसर झुकाना भी उन्ोंने कबूल नहीं वकया। उन्ोंने
लोगों को अंग्रेजों के द्वारा दी गई पदववयााँ वापस करने के वलए प्रेररत वकया। सववनय
अवज्ञा आं दोलन व असहयोग आं दोलन उन्ीं की दे ि-रे ि में भारत में चले , वजन्ोंने
अंग्रेज़ी सरकार को उिाडकर रि वदया।
15. तनाि
प्रश्- 2.. कां ग्रेस कमेटी ने वकसके सामने अपनी अपील पेश की?
प्रश् 4 भारत छोडो प्रिाव रिने का कारि स्पष्ट कीवजए। तनाव पाठ के आधार पर
बताइये।
प्रश्-5 सभापवत और गााँधीजी ने प्रिाव के बारे में क्ा वनिय य वलया? तनाव पाठ के
आधार
पर बताइए।
प्रश्-6 कां ग्रेस कमेटी ने अपने आवेदन प्रिाव में अंग्रेजों से क्ा अपील की र्ी? तनाव
पाठ के आधार पर बताइये ।
प्रश्-7 कमेटी ने भारत में अंतररम सरकार बनाने का क्ा सुझाव कर वदया और संयुक्त
राष्टर और विटे न से क्ा अपील की?
प्रश्-8 वषय 1942 में आरं भ के महीनों में भारत में तनाव का माह ल क्ों बना हआ र्ा?
उत्तर कुंजी
अपील की तर्ा गााँ धीजी के नेतृत्व में एक अवहंसक जन आं दोलन शुरू करने की मां ग
भी की।
8. वषय 1942 के आरं भ के महीनों में तनाव का माह ल इसवलए बना हआ र्ा क्ोंवक युद्ध
का समय नजदीक आता जा रहा र्ा। वद्वतीय ववश्व युद्ध चल रहा र्ा। ऐसे माह ल में भारत
के शहरों पर हवाई हमलों की संभावना बढ़ गई र्ी। इनका पररिाम क्ा होगा, क्ा
भारत और इं ग्लैंड के संबंधों में दू री बढ़ जाएगी, आवद प्रश् तनाव का वातावरि बना रहे
र्े ।
दो पृ ष्ठभूवमयााँ
1. वषय 1942 में युवा वगय तर्ा ववशे षकर ववद्ावर्ययों ने महत्वपूिय कायय वकया।
2. अकाल के द रान कलकत्ता की हालत वचंताजनक र्ी।
3. वषय 1942 का वविोह योजनाबद्ध तरीके से अंजाम नहीं वदए जाने के कारि
असिल रहा।
4. अकाल ने कलकता की आम जनता को अवधक प्रभाववत वकया, सडकों पर लोगों
की लाशें वमली र्ी और दू सरी और अवभजात्य वगय र्ा, वजस पर अकाल या लोगों
के दु ि-ददय का कोई असर ही न र्ा वह अपनी ही ववलावसता में मि र्ा।
5.1943 ई० में भारत को भीषि अकाल का सामना करना पडा र्ा। इस अकाल का
प्रभाव
6. 1942 में नेताओं की वगरफ्तारी तर्ा गोलीबारी की बात सुनकर आम जनता भडक
उठी। जनता ने सहज तर्ा वहं सक प्रदशय न वकए जनता इतनी उत्तेवजत हो गई वक चुप
नहीं बैठ सकी तर्ा तोड-िोड करने से भी नहीं चूकी।
8. नेहरू जी ने भारत की िोज लेिन में वनम्न ववचारों को थर्ान दे कर भारतीयों को प्रेररत
करने का प्रयास वकया है
भारत एक भ गोवलक व आवर्य क सत्ता है , उसकी वववभन्नता में सां स्कृवतक एकता है ।
भारत पर ववदे शी जावतयों के वकतने ही आिमि हए ले वकन उसकी आत्मा अर्ाय त्
अखित्व को कोई जीत न सका, भले ही शासन सत्ता बदलती रही।
वजस प्रकार बीज के उगने और बढ़ने के वलए म सम ववशेष नहीं, अपेवक्षत पररखथर्वतयों
का वनमाय ि जरूरी है । उसी प्रकार वकसी भी कायय में सिलता पाने के वलए बाहरी
पररखथर्वतयााँ नहीं, मन की सकारात्मक वृवत्त अवनवायय है और वह सकारात्मक वृवत्त है
हमारा संकल्प। संकल्पाः कल्पतरवः , तेजः कल्पकोद्ानम्’ अर्ाय त संकल्प ही कल्पतरु हैं
और तेज अर्वा मन उन कल्पतरुओं का उद्ान है । जै सी कल्पना वैसा उद्ान अर्ायत
जीवन की वदशा और दशा। गहन संकल्प से ही संभव है पूिय सिलता। कुछ कर गुजरने
के वलए वािव में म सम अर्वा बाहरी पररखथर्वतयााँ ही सब कुछ नहीं हैं । सबसे
महत्त्वपूिय है मन। इस संपूिय सृवष्ट के सृजन के मूल में मन ही तो है। मन हीवह अदृश्य
सूक्ष्म बीज अर्वा सत्ता है वजससे यह पृथ्वी रूपी ववशाल वट वृक्ष अखित्व में आया और
वनंरतर पल्लववत-पुखित हो रहा है । तभी तो कहा गया है । कुछ कर गुजरने के वलए
म सम नहीं मन चावहए। साधन सभी जु ट जाएाँ गे संकल्प का धन चावहए।
काशी के सेठ गंगादास एक वदन गंगा में स्नान कर रहे र्े वक तभी एक व्यखक्त नदी में
कूदा और डु बवकयााँ िाने लगा। सेठजी तेजी से तै रते हए उसके पास पहाँ चे और वकसी
तरह िींच कर उसे वकनारे ले आए। वह उनका मुनीम नंदलाल र्ा। उन्ोंने पूछा, ‘आप
को वकसने गंगा में िेंका?’ नंदलाल बोला, ‘वकसी ने नहीं, मैं तो आत्महत्या करना चाहता
र्ा। ‘सेठजी ने इसका कारि पूछा तो उसने कहा, ‘मैंने आप के पााँ च हजार रुपये चुरा
कर सट्टे में लगाए और हार गया। मैंने सोचा वक आप मुझे जेल वभजवा दें गे इसवलए
बदनामी के डर से मैंने मर जाना ही ठीक समझा।‘ कुछ दे र तक सोचने के बाद सेठजी
ने कहा, ‘तु म्हारा अपराध माि वकया जा सकता है ले वकन एक शतय है वक आज से कभी
वकसी प्रकार का सट्टा नहीं लगाओगे।’ नंदलाल ने वचन वदया वक वह अब ऐसे काम नहीं
करे गा। सेठ ने कहा, ‘जाओ माि वकया। पााँ च हजार रुपये मेरे नाम घरे लू िचय में डाल
दे ना।’ मुनीम भ च ं क्का रह गया। सेठजी ने कहा, ‘तु मने चोरी तो की है ले वकन स्वभाव से
तु म चोर नहीं हो। तु मने एक भूल की है , चोरी नहीं। जो आदमी अपनी एक भूल के वलए
मरने तक की बात सोच ले , वह कभी चोर हो नहीं सकता।
मानव जावत को अन्य जीवधाररयों से अलग करके महत्त्व प्रदान करने वाला जो एकमात्र
गुरु है , वह है उसकी ववचार-शखक्त। मनुष्य के पास बुवध है , वववेक है , तकयशखक्त है
अर्ाय त उसके पास ववचारों की अमूल्य पूाँजी है । अपने सववचारों की नींव पर ही आज
मानव ने अपनी श्रेष्ठता की थर्ापना की है और मानव-सभ्यता का ववशाल महल िडा
वकया है । यही कारि है वक ववचारशील मनुष्य के पास जब सववचारों का अभाव रहता है
तो उसका वह शून्य मानस कुववचारों से ग्रि होकर एक प्रकार से शैतान के वशीभूत हो
जाता है । मानवी बुवध जब सद्भावों से प्रेररत होकर कल्यािकारी योजनाओं में प्रवृत्त
रहती है तो उसकी सदाशयता का कोई अंत नहीं होता, वकंतु जब वहााँ कुववचार अपना
घर बना ले ते हैं तो उसकी पाशववक प्रवृवत्तयााँ उस पर हावी हो उठती हैं । वहं सा और
पापाचार का दानवी साम्राज्य इस बात का द्ोतक है वक मानव की ववचार-शखक्त, जो
उसे पशु बनने से रोकती है , उसका सार् दे ती है ।
प्रश्न
(क) मानि जावत को महत्त्व दे ने में वकसका योगदान है ?
(i) शारीररक शखक्त का
(ii) पररश्रम और उत्साह का
(iii) वववेक और ववचारों का
(iv) मानव सभ्यता का
(ि) विचारों की पूाँ जी में शावमल नही ं है
(i) उत्साह
(ii) वववेक
(iii) तकय
(iv) बुवध
(ग) मानि में पाशविक प्रिृवत्तयााँ क्यों जागृत होती हैं ?
(i) वहं साबुवध के कारि
(ii) असत्य बोलने के कारि
(iii) कुववचारों के कारि
(iv) स्वार्य के कारि
(घ ) “मनुष्य के पास बुवि है , वििेक है , तकगशखक्त है ’ रचना की दृवष्ट से उपयुगक्त
िाक्य है
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) वमश्र
(iv) जवटल
(ड.) गद्यांश का उपयुक्त शीषगक हो सकता है
(i) मनुष्य का गुरु
(ii) वववेक शखक्त
(iii) दानवी शखक्त
(iv) पाशववक प्रवृवत्त
5
उन्नीसवीं शताब्दी में यह राष्टरीय जागरि संपूिय भारत में वकसी-न-वकसी रूप में
अवभव्यक्त हो रहा र्ा, वजसमें भारतीयता के सार् आधुवनकता का संगम र्ा। स्वामी
वववेकानंद ने तो अमेररका, इं ग्लैंड आवद दे शों से भारत ल टकर पूवय और पवश्चम के श्रेष्ठ
तत्वों के सखम्मलन से भारत को आधुवनक बनाने का स्वप्न दे िा र्ा। उन्ोंने माना वक
भारत और पवश्चम की मूल गवत एवं उद्दे श्य वभन्न हैं , परं तु भारत को जागना होगा,
कुसंस्कारों एवं जावत-ववद्वे ष को त्यागना होगा, वशवक्षत होकर दे श की अवशवक्षत, गरीब
जनता को ही ‘दररिनारायि’ मानकर उनकी सेवा करनी होगी, उनका उत्थान करना
होगा। वववेकानंद का मत र्ा वक भारत में जो वजतना दररि है , वह उतना ही साधु है ।
यहााँ गरीबी अपराध एवं पाप नहीं है तर्ा दररिों की अपेक्षा धवनयों को अवधक प्रकाश
की जरूरत है । वे चाहते र्े वक हम नीच, अज्ञानी, दररि-सभी को भाई मानें और गवय से
कहें -हम सब भाई भारतवासी हैं । मनुष्य को मानव बनाना, आदमी को इं सान बनाना
आवश्यक है । हमें ऐसी वशक्षा चावहए जो हमें संस्कारी मानव, हमददय इं सान बना सके।
ववचारों में वववेकानंद गां धी से अवधक दू र नहीं र्े और ऐसे ही ववचारकों का वचंतन
उन्नीसवीं सदी में भारत को उद्वे वलत कर रहा र्ा।
प्रश्न
(क) वकस सदी में संपूणग भारत में राष्टरीय जागरण अवभव्क्त हो रहा था?
(i) उन्नीसवीं सदी में
(ii) अठारहवीं सदी में
(iii) बीसवीं सदी में
(iv) इक्कीसवीं सदी में
(ि) वििेकानंद ने क्या सपना दे िा था?
(i) ववदे शी तजय पर भारत का ववकास
(ii) पूवय व पवश्चम के तत्वों का वमलन
(iii) भारत को आधुवनक बनाना
(iv) (ि) व (ग)
(ग) वििेकानंद के अनुसार भारतीयों को कैसी वशक्षा की जरूरत है ?
(i) आदमी को आदमी बनाने वाली
(ii) अंग्रेजी पढ़ाने वाली
(iii) भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दे ने वाली
(iv) कोई नहीं
(घ) “पविम’ का विशेषण बताइए
(i) पवश्चमी
(ii) पाश्चात्य
(iii) पश्च
(iv) कोई नहीं
(ङ) वििेकानंद के अनुसार वकसे अविक प्रकाश की ज़रूरत है ?
(i) दररि
(ii) धवनकों
(iii) सामंतों
(iv) कोई नहीं
उत्तर कंु जी
अपवठत गद्यांश -1
(क) 2
(ि) 3
(ग) 1
(घ) 4
(ड.) 1
अपवठत गद्यांश -2
(क) 1
(ि) 4
(ग) 4
(घ) 2
(ड.) 3
अपवठत गद्यांश -3
(क) 3
(ि) 2
(ग) 1
(घ) 2
(ड.) 4
अपवठत गद्यांश -4
(क) 3
(ि) 1
(ग) 3
(घ) 1
(ड.) 2
अपवठत गद्यांश -5
(क) 1
(ि) 4
(ग) 1
(घ) 1
(ड.) 2
17. मुहािरा
‘मुहािरा’ शब्द अरबी भाषा का है वजसका अर्य है ‘अभ्यास होना’ या ‘आदी होना’।
इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है , क्ोंवक यह अपने सामान्य अर्य
को छोडकर असामान्य अर्य प्रकट करता है । मुहावरा संवक्षप्त होता है , परिु अपने इस
संवक्षप्त रूप में ही वकसी बडे ववचार या भाव को प्रकट करता है ।
कवपल ने कारिाने को दे ि सोच वलया इन वतलों में तेल नहीं और बैंक से ऋि लेकर
बहन का वववाह वकया।
4. ईट
ं से ईट
ं बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर दे ना)
5. ईट
ं का जिाब पत्थर से दे ना–(दु ष्ट के सार् दु ष्टता करना)
आगरा में मेरी परीक्षा है , इस बहाने ताजमहल भी दे ि लेंगे। चलो मेरे तो एक पंर् दो
काज हो जाएं गे।
आप इतने सभ्य पररवार के होते हए भी दु ष्कमय करते हैं , आपको चुल्लू भर पानी में डूब
मरना चावहए।
गरीब और कमजोर श्यामा को गााँ व का च धरी सबके सामने िरी–िोटी सुना गया,
वजसको उसने कलेजे पर पत्थर रिकर सुन वलया।
दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड र्ी वक लोगों के कंधे–से–कंधे वछल गए।
राजे श से वकसी बात को कहने का क्ा लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है ।
औरं गजे ब ने मराठों से उलझकर अपने वकए कराए पर पानी िेर वदया।
जहााँ अवधकारी कान का कच्चा होता है वहााँ सीधे, सरल, ईमानदार कमयचाररयों को
परे शानी होती है ।
18.अनुच्छेद-ले िन
अनुच्छेद-लेिन की पररभाषा
वकसी एक भाव या ववचार को व्यक्त करने के वलए वलिे गये सम्बद्ध और लघु वाक्-
समूह को अनुच्छेद-लेिन कहते हैं।
सरल शब्दों में- वकसी भी ववषय को संवक्षप्त एवं प्रभावपूिय ढं ग से प्रिुत करने की कला
को अनुच्छेद लेिन कहा जाता है ।
भाषा-शैली सजीव एवं प्रभावशाली होनी चावहए। शब्दों के सही चयन के सार्
लोकोखक्तयों एवं मुहावरों के समुवचत प्रयोग से ही भाषा-शै ली में उपयुयक्त गुि आ सकते
हैं ।अनुच्छेद ले िन को लघु वनबंध भी कहा जा सकता है । इसमें सीवमत सुगवठत एवं
समग्र दृवष्टकोि से वकया जाता है । शब्द संख्या सीवमत होने के कारि वलिते समय
र्ोडी सावधानी बरतनी चावहए।
(1) अनुच्छेद वलिने से पहले रूपरे िा, संकेत-वबंदु आवद बनानी चावहए।
महत्वपू णग अनुच्छेद
मनुष्य का जीवन वािव में सुि-दु ः ि, आशा-वनराशा, ख़ुशी-ददय आवद का वमश्रि है।
यह न तो केवल िूलों की सेज है और न ही कााँ टों का ताज। विुतः जीवन एक अनवरत
संघषय का नाम है ।जीवन की तु लना एक प्रवाहमान नदी से की जा सकती है । वजस प्रकार
एक सररता अववरल बहती रहती है , समुि में लहरे सदा गवतशील रहती हैं , वायु एक क्षि
के वलए भी नहीं रुकती, सूयय, चन्द्रमा, तारे सभी अपने-अपने वनयत समय पर उवदत एवं
अि होते हैं , ठीक उसी प्रकार जीवन की गवत भी अववरल है । समय के सार्-सार् आगे
बढ़ते रहने की प्रबल मानवीय लालसा ही जीवन है ।
इस अववरल गवत से प्रवाहमान जीवन में अनेक ऊाँचे-नीचे रािे आते हैं , अनेक बाधाएाँ
आती हैं । इन्ीं बाधाओं से संघषय करते हए जीवन आगे बढ़ता रहता है । यही कमय है , यही
सत्य है । जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराकर रुक जाने वाला या पीछे हट जाने
वाला व्यखक्त भी सिलता प्राप्त नहीं कर सकता। जीवन सत्य हैं , जबवक स्वप्न असत्य।
स्वप्न काल्पवनक है , अयर्ार्य है । स्वप्न का महत्त्व केवल वहीं तक है , जहााँ तक वह मनुष्य
के जीवन को आगे बढ़ाने में प्रेरक है । मनुष्य स्वप्न के माध्यम से ही ऐसी कल्पनाएाँ करता
है , जो अयर्ार्य होती हैं , ले वकन उस काल्पवनक लोक को वह अपने पररश्रम, उमंग एवं
दृढ़ इच्छाशखक्त से यर्ार्य में, वािववकता में पररववतय त कर दे ता है । वािववक जीवन
एक कतय व्य पर् है , वजसके मागय में अनेक शू ल वबिरे पडे हैं , ले वकन मनुष्य की
इच्छाशखक्त या दृढ़ संकल्प उन बाधाओं और कााँ टों की परवाह नहीं करता और उन्ें
रद
ं कर आगे वनकल जाता हैं ।
ववज्ञापन का उद्दे श्य जनता को वकसी भी उत्पाद एवं सेवा की सही सूचना दे ना है , ले वकन
आज ववज्ञापनों में अपने उत्पाद को सवोत्तम तर्ा दू सरों के उत्पादों को वनकृष्ट कोवट का
बताया जाता है । आजकल के ववज्ञापन भ्रामक होते हैं तर्ा मनुष्य को अनावश्यक
िरीदारी करने के वलए प्रेररत करते हैं । अतः ववज्ञापनों का यह दावयत्व बनता है वक वे
ग्राहकों को लु भावने दृश्य वदिाकर गुमराह नहीं करें , बखल्क अपने उत्पाद के सही गुिों
से पररवचत कराएाँ । तभी उवचत सामान ग्राहकों तक पहाँ चेगा और ववज्ञापन अपने लक्ष्य में
सिल होगा।
यवद मनुष्य जावत को बचाना है तो वृक्षों को बचाना होगा और हमें वृक्षारोपि का उत्सव
करना होगा। इसीवलए एक बच्चा एक वृक्ष का नारा वदया गया है । वृक्षों की 50 मीटर की
एक कतार वाहनों के शोर को 30-50 डे सीबल तक कम करती है । इसी तरह च डी पत्ती
वाले वृक्ष वातावरि में उड रही धूल को रोकते एवं वायु को शुद्ध करते हैं । वनसंरक्षि
का उद्दे श्य केवल वृक्षों को लगाना ही नहीं वरन वृक्षारोपि करने के बाद उनकी उवचत
दे िभाल भी है । वनजी क्षेत्र में स्वयंसेवी युवकों को संगठन बनाकर वृक्षारोपि का कायय
करना चावहए और वृक्षारोपि को सामूवहक समारोह के रूप में आयोवजत करना
चावहए।
जहााँ -चाह वहााँ राह प्रत्येक व्यखक्त के मन में वकसी न वकसी लक्ष्य को पाने की कामना
रहती है । वजसके मन में जो चाह या कामना होती है वह उसकी पूवतय की वदशा में कायय
करता है । मानव-जीवन में इच्छाशखक्त का अत्यंत महत्व है । व्यखक्त अपने लक्ष्य पर
पहाँ चने के वलए पररश्रम करता है । वह कमय करने में रुवच रिता है तर्ा अपने लक्ष्य को
पाने के वलए सवयस्व समवपयत करने को तैयार रहता है । ऐसे व्यखक्त के मागय में अनेक
बाधाएाँ आती हैं , परं तु वह प्रत्येक बाधा का सामना करते हए अपने पर् पर वनरं तर
अग्रसर होता है ।
कवठनाइयों के बीच में से रािा वनकालकर वनरं तर आगे बढ़ने वाले लोग ही मानव जावत
का आदशय होते हैं। जब अर्क पररश्रम के बाद हमारी इच्छाओं की पूवतय होती है । तब
हमारे भीतर स्वावभमान, संतोष, सत्य आवद जीवन मूल्यों का वास होता है । ऐसे लोगों की
राह पर चलकर ही अनेक लोग जीवन में सिलता प्राप्त करते हैं । झााँ सी की रानी
लक्ष्मीबाई भी ऐसी ही एक महान नारी र्ीं। चाह से ही राह का वनमाय ि होता है । अतः
कहा जा सकता है वक जहााँ चाह होती है वहााँ राह अपने आप बन जाती है ।
ववद्ा एवं धन की तुलना- सामान्य त र पर समाज में दो तरह की सोच रिने वाले लोग
वदिाई दे ते हैं । एक वे लोग हैं , जो वकसी भी प्रकार से धन अवजय त करके धनी बनकर
अपने को सिल एवं जीवन को सार्य क मानते हैं। दू सरे प्रकार के लोग वे हैं , जो ववद्ा एवं
ज्ञान के अजयन में अपना समय लगाते हैं । धन के कारि बना धनी व्यखक्त वािववक धनी
नहीं है , अवपतु ववद्ा रूपी धन को एकत्र करके उसे ज्ञान एवं वववेक के रूप में सहे जने
वाला ही वािववक धनी है ।
ववद्ा की श्रेष्ठता- धन संग्रह करने वाले को चोर, डाकुओं एवं ठगों द्वारा धन के चुराए
जाने का सदै व भय लगा रहता है । इसके ववपरीत ववद्ा रूपी धन ऐसा धन है , वजसे न
कोई चोर चुरा सकता हैं , न कोई दू सरा इसका उपयोग अपने संकीिय वहतों की पूवतय के
वलए कर सकता है । संस्कृत सावहत्य में ववद्ा की मवहमा का विय न करते हए कहा गया
है - 'स्वदे शे पूज्यते राजा ववद्वानं सवयत्र पूज्यते ' अर्ाय त राजा अपने दे श में पूजा जाता है ,
ले वकन ववद्वान की पूजा सभी जगहों पर होती हैं ।
ववद्ा रूपी धन का प्रभाव- ववद्ा से धन प्राप्त हो सकता है , वकंतु धन से ववद्ा नहीं प्राप्त
की जा सकती। धन िचय करने पर समाप्त होता है , वकंतु ववद्ा बााँ टने अर्ाय त व्यय करने
पर बढ़ती है । अतः यह कहा जा सकता है ववद्ा ही सवोत्तम धन है ।
ऐसा कहा जाता है वक गुलामी के पकवानों से आजादी की सूिी रोवटयााँ भली हैं ।
स्वाधीनता या स्वतं त्रता का मनुष्य के जीवन में अत्यवधक महत्त्व है । यहााँ तक वक यह
मनुष्य ही नहीं, बखल्क सृवष्ट के प्रत्येक प्रािी का जन्मवसद्ध एवं प्राकृवतक अवधकार है ।
गुलामी या पराधीनता बहत बडा अवभशाप है । पशु -पक्षी तक भी स्वतंत्र जीवन जीने के
आकां क्षी होते हैं । वहं दी के प्रवसद्ध कवव डॉ. वशवमंगल वसंह 'सुमन' की कववता में
स्वतं त्रता की आकां क्षा को पवक्षयों के माध्यम से अवभव्यक्त वकया गया है ।
स्वतं त्र रहकर पक्षी को नीम की 'कडवी िवलयााँ ' िाना भी स्वीकार है , ले वकन वपंजरे में
रहकर सोने की कटोरी में वदए गए मैदे से बना पकवान भी पसंद नहीं हैं । ज ब पशु -पक्षी
इस प्रकार की इच्छा रिते हों, तो मनुष्य परतंत्र होकर वकस प्रकार सु िी रह सकता है ?
9) समय वकसी के वलए नही ं रुकता पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।
'समय' वनरं तर बीतता रहता है , कभी वकसी के वलए नहीं ठहरता। जो व्यखक्त समय के
मोल को पहचानता है , वह अपने जीवन में उन्नवत प्राप्त करता है । समय बीत जाने पर
कायय करने से भी िल की प्राखप्त नहीं होती और पश्चात्ताप के अवतररक्त कुछ हार् नहीं
आता। जो ववद्ार्ी सुबह समय पर उठता है , अपने दै वनक कायय समय पर करता है तर्ा
समय पर सोता है , वही आगे चलकर सिलता व उन्नवत प्राप्त करता है। जो व्यखक्त
आलस में आकर समय गाँवा दे ता है , उसका भववष्य अंधकारमय हो जाता है । संतकवव
कबीरदास जी ने भी कहा है :
यानी वजस प्रकार रस्सी की रगड से कठोर पत्थर पर भी वनशान बन जाते हैं , उसी प्रकार
वनरं तर अभ्यास से मूिय व्यखक्त भी ववद्वान बन सकता है । यवद ववद्ार्ी प्रत्येक ववषय का
वनरं तर अभ्यास करें , तो उन्ें कोई भी ववषय कवठन नहीं लगेगा और वे सरलता से उस
ववषय में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे।
प्रत्येक ववद्ार्ी के वलए प्रार्य ना-सभा बहत महत्त्वपूिय होती है । प्रत्येक ववद्ालय में सबसे
पहले प्रार्य ना-सभा का आयोजन वकया जाता है। इस सभा में सभी ववद्ार्ी व अध्यापक-
अध्यावपकाओं का सखम्मवलत होना अत्यावश्यक होता है । प्रार्य ना-सभा केवल ईश्वर का
ध्यान करने के वलए ही नहीं होती, बखल्क यह हमें अनुशासन भी वसिाती है ।
हमारे ववद्ालय की प्रार्य ना-सभा में ईश्वर की आराधना के बाद वकसी एक कक्षा के
ववद्ावर्य यों द्वारा वकसी ववषय पर कववता, दोहे , ववचार, भाषि, लघु-नावटका आवद प्रिुत
वकए जाते हैं व सामान्य ज्ञान पर आधाररत जानकारी भी दी जाती है , वजससे सभी
ववद्ार्ी लाभाखन्वत होते हैं ।
कंप्यूटर वािव में, ववज्ञान द्वारा ववकवसत एक ऐसा यंत्र है , जो कुछ ही क्षिों में लािों-
करोडों गिनाएाँ कर सकता है । कंप्यूटर ने मानव जीवन को बहत सरल बना वदया है ।
कंप्यूटर द्वारा रे लवे वटकटों की बुवकंग बहत आसान और समय बचाने वाली हो गई है ।
आज वकसी भी बीमारी की जााँ च करने, स्वास्थ्य का पूरा परीक्षि करने, रक्त-चाप एवं
ह्रदय गवत आवद मापने में इसका भरपूर प्रयोग वकया जा रहा है । रक्षा क्षेत्र में प्रयुक्त
उपकरिों में कंप्यूटर का बेहतर प्रयोग उन्ें और भी उपयोगी बना रहा है । आज हवाई
यात्रा में सुरक्षा का मामला हो या यान उडाने की प्रविया, कंप्यूटर के कारि सभी जवटल
कायय सरल एवं सुगम हो गए हैं । संगीत हो या वफ़ल्म, कंप्यूटर की मदद से इनकी
गुिवत्ता को सुधारने में बहत मदद वमली है । कंप्यूटर से कुछ हावनयााँ भी हैं । कंप्यूटर पर
आवश्रत होकर मनुष्य आलसी प्रवृवत्त का बनता जा रहा है । कंप्यूटर के कारि बच्चे
आजकल घर के बाहर िेलों में रुवच नहीं लेते और इस पर गेम िेलते रहते हैं । इस
कारि उनका शारीररक ववकास ठीक से नहीं हो पाता। कंप्यूटर आज जीवन की
आवश्यकता बन गया है। अतः इसका सही ढं ग से प्रयोग कर हम अपने जीवन में प्रगवत
कर सकते हैं।
वैवश्वक तापमान यानी ग्लोबल वावमिंग आज ववश्व की सबसे बडी समस्या बन चुकी है ।
इससे न केवल मनुष्य, बखल्क पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक प्रािी त्रि है। 'ग्लोबल वावमिंग'
शब्द का अर्य है ' संपूिय पृथ्वी के तापमान में वृखद्ध होना।' हमारी पृथ्वी पर वायुमंडल की
एक परत है , जो वववभन्न गैसों से वमलकर बनी है , वजसे ओजोन परत कहते हैं । ये ओजोन
परत सूयय से आने वाली पराबैंगनी तर्ा अन्य हावनकारक वकरिों को पृथ्वी पर आने से
रोकती है । मानवीय वियाओं द्वारा ओजोन परत में वछि हो जाने के कारि सूयय की
हावनकारक वकरिें पृथ्वी के वातावरि में प्रवेश कर रही हैं ।
पररिामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में लगातार वृखद्ध हो रही है । ग्लोबल वावमिंग के कारि
कई समुिी तर्ा पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतुओं की प्रजावतयों के अखित्व पर ितरा
छाया हआ है , सार् ही मनुष्यों को भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड
रहा है । यवद समय रहते ग्लोबल वावमिंग को रोकने के उपाय नहीं वकए, तो हमारी पृथ्वी
जीवन के योग्य नहीं रह जाएगी। इसे रोकने के वलए हमें प्रदू षि को कम करना होगा।
सार् ही काबयन डाइ-ऑक्साइड सवहत अन्य गैसों के उत्सजय न में कमी तर्ा वृक्षारोपि
को बढ़ावा दे ना होगा, वजससे प्रकृवत में पयाय वरि संबंधी संतुलन बना रहे ।
(14) विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकवप्रयता पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।
ववज्ञापन का उद्दे श्य जनता को वकसी भी उत्पाद एवं सेवा की सही सूचना दे ना है , ले वकन
आज ववज्ञापनों में अपने उत्पाद को सवोत्तम तर्ा दू सरों के उत्पादों को वनकृष्ट कोवट का
बताया जाता है । आजकल के ववज्ञापन भ्रामक होते हैं तर्ा मनुष्य को अनावश्यक
िरीदारी करने के वलए प्रेररत करते हैं । अतः ववज्ञापनों का यह दावयत्व बनता है वक वे
ग्राहकों को लु भावने दृश्य वदिाकर गुमराह नहीं करें , बखल्क अपने उत्पाद के सही गुिों
से पररवचत कराएाँ । तभी उवचत सामान ग्राहकों तक पहाँ चेगा और ववज्ञापन अपने लक्ष्य में
सिल होगा।
भारत हमारी जन्मभूवम एवं कमयभूवम है । भारत सवदयों से ववश्व का मागयदशय क बना हआ
र्ा। अब भारत की प्रवतष्ठा वदनप्रवतवदन धूवमल होती जा रही है । मैं अपने दे श भारत को
पुनः ववश्व के अग्रिी राष्टर के रूप में ववश्व पटल पर अंवकत करना चाहता हूाँ । यह तभी
संभव हो सकेगा जब दे श का हर नागररक अपने दावयत्वों का भली-भााँवत वनवाय ह करे गा।
लोग अपनी वजम्मेदारी को समझें गे और भ्रष्टाचार से दे श को मुखक्त वदलाने का प्रयास
करें गे। हमारे दे श का ववकास अवरोवधत हो चुका है इसका प्रमुि कारि दे श में व्याप्त
भ्रष्टाचार है । यह हमारे दे श की बुवनयाद को िोिला कर रहा है । अतः यवद हम अपने
दे श भारत को पुनः उसकी गररमा वदलाना चाहते हैं , उसे वही ‘सोने की वचवडया बनाना
चाहते हैं , तो हमें अपने राष्टर में व्याप्त सभी बुराइयों को वमलकर वमटाना होगा तभी
हमारा दे श सुवनयोवजत रहकर अमन, चैन तर्ा िुशहाली की वमसाल बन सकेगा।’
उपयुक्त समय पर उपयुक्त कायय करना चावहए। रोगी के मर जाने पर उसे औषवध
प्रदान करने से कोई लाभ नहीं होता। विर तो वही बात होती है -“अब पछताए होत क्ा
जब वचवडयााँ चुग गईं िेत ।” अर्ायत् वकसी भी कायय को सम्पन्न करने का एक वनवश्चत
समय होता है । उस समय के वनकल जाने के बाद यवद कायय हो भी जाए तो उसकी
उपयोवगता समाप्त हो जाती है ।
आग लगने पर कुआाँ िोदने वाला व्यखक्त कभी भी, अपना घर नहीं बचा पाता। उसका
सवयनाश वनवश्चत ही होता है । जो ववद्ार्ी परीक्षा के वदनों में भी अध्ययन नहीं करता वह
परीक्षा पररिाम घोवषत होने पर आाँ सू ही बहाता है । जो समय नष्ट करता है , समय उसे
नष्ट . कर दे ता है । जो समय को बचाता है , समय का सम्मान करता है , तो समय भी उस
व्यखक्त को बचाता है , तर्ा उसे सम्मान दे ता है ।
वमत्रता एक अनमोल धन है । यह एक ऐसी धरोहर है वजसका मूल्य लगा पाना संभव नहीं
है । इस धन व धरोहर के सहारे मनुष्य कवठन से कवठन समय से भी बाहर वनकल आता
है । भगवान के द्वारा मनुष्य को पररवार वमलता है और वमत्र वह स्वयं बनाता है । जीवन के
संघषयपूिय मागय पर चलते हए उसके सार् उसका वमत्र कन्धे से कन्धा वमलाकर चलता है।
हर व्यखक्त को वमत्रता की आवश्यकता होती है । वह चाहे सुि के क्षि हों या दु ः ि के
क्षि, वमत्र उसके सार् रहता है । वकसी ववशे ष गूढ़ बात पर वमत्र ही उसे सही सलाह
दे कर उसका मागयदशय न करता है ।
वमत्र ही उसका सही अर्ों में सच्चा शु भवचंतक, मागयदशयक, शुभ इच्छा रिने वाला होता
है । सच्ची वमत्रता में प्रेम व त्याग का भाव होता है । वमत्र की भलाई दू सरे वमत्र का कत्तयव्य
होता है । सच्चा वमत्र वही होता है जो ववपवत्त के समय अपने वमत्र के सार् दृढ़ वनश्चय
होकर िडा रहता है । हमें चावहए वक जब भी वकसी को अपना वमत्र बनाएं तो सोच
ववचार कर बनाएं क्ोंवक जहााँ एक सच्चा वमत्र आपका सार् दे , आपको ऊाँचाई तक
पहाँ चा सकता है , कपटी वमत्र अपने स्वार्य के वलए आपको पतन के रािे पर भी पहाँ चा
सकता है । जो आपके मुंह पर आपका सगा बने और पीठ पीछे आपकी बुराई करे ऐसे
वमत्र को दू र से नमस्कार कहने में ही भलाई है ।
18) मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।
''मन के हारे हार है मन के जीते जीत'' सूखक्त का अवभप्राय है वक वजसका मन हार जाता
है वह बहत शखक्तशाली होने पर भी परावजत हो जाता है तर्ा वजसका मन जीत जाता है
वह शखतक्त न होते हए भी जीत जाता है । व्यखक्त के जीवन में वनराशा अवभशाप के
समान है । असिलताएाँ जीवन प्रविया का स्वाभाववक अंग होती हैं । यवद व्यखक्त
असिलताओं से वनराश होकर प्रयत्न करना छोड दें तो उसे असिलता ही वमलती है ।
इसवलए व्यखक्त को वनराश नहीं होना चावहए और प्रयत्न करते रहना चावहए। मन अनंत
शखक्त का स्रोत है , उसे हीन भावना से बचाए रिना अत्यंत आवश्यक है । मन की
अपररवमत शखक्त को भूले वबना अपनी क्षमताओं में ववश्वास रिना ही सिलता की मूल
कुंजी है । ऐसा करने से हमारे दृवष्टकोि में पररवतय न होता है तर्ा मनुष्य कायय करने के
वलए प्रेररत होता है ।प्रत्येक व्यखक्त के जीवन में आशा-वनराशा, उतार-चढ़ाव और सुि-
दु ः ि चि की भााँ वत ऊपर-नीचे होते रहते हैं । व्यखक्त की हार-जीत उसकी मानवसक
शखक्त पर वनभयर करती है , जो व्यखक्त पररखथर्वत का सामना हाँ सी-ख़ुशी करता है वह
सिलता अवश्य प्राप्त करता है । इसमें सकारात्मक सोच महत्त्वपूिय भूवमका वनभाती है ।
सकारात्मक सोच से व्यखक्त का मनोबल बढ़ता है और वह दु गुने उत्साह से अपने लक्ष्य
को प्राप्त करने का प्रयास करता है । वनष्कषय रूप से हम कह सकते हैं वक वजस कायय
को पूरे दृढ़ संकल्प के सार् करें गे, वह कायय जरूर पूरा होता है । इसवलए मनुष्य को
अपने मन को सुदृढ़ बनाकर जीवन में आगे बढ़ना चावहए।
प्लाखस्टक का अववष्कार ड्यू बोयस एवं जॉन द्वारा वकया गया र्ा। प्लाखस्टक का उपयोग
मशीन के कल-पुजों, पानी की टं वकयों, दरवाजों, खिडवकयों, चप्पल-जूतों, रे वडयों,
टे लीववजन, वाहनों के वहस्सों, आवद में वकया जाता है , क्ोंवक प्लाखस्टक से बनी विुएाँ
आसानी से िराब नहीं होतीं। यवद वकसी कारि ये टू ट-िूट जाएाँ , तो इन्ें विर से
बनाकर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है ।इनमें मनचाहा रं ग वमलाकर इन्ें अवधक
आकषयक भी बनाया जा सकता है । यही कारि है वक प्लाखस्टक से बने आकषयक रं ग-
वबरं गे िूल असली िूलों से अवधक लोकवप्रय हो रहे हैं । आज लोगों को बाजार से सामान
प्लाखस्टक से बने आकषयक र्ैलों में पैक करके वमलता है ।
इसके अनेक उपयोग के बावजूद प्लाखस्टक से बनी विुओं से पयाय वरि बुरी तरह
दु ष्प्रभाववत हो रहा है । प्लाखस्टक कभी न गलने-सडने वाला पदार्य है , वजसके कारि
भूवम, जल, पयाय वरि आवद अत्यवधक प्रदू वषत होते जा रहे हैं । अतः हमें प्लाखस्टक का
कम से कम उपयोग करना चावहए, तवक पयाय वरि को प्रदू वषत होने से बचाया जा सके।
(20) भारत में बाल मजदू री की समस्या पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।
'बाल मजदू री' से तात्पयय ऐसी मजदू री से है , वजसके अंतगयत 5 वषय से 14 वषय तक के
बच्चे वकसी संथर्ान में कायय करते हैं। वजस आयु में उन बच्चों को वशक्षा वमलनी चावहए,
उस आयु में वे वकसी दु कान, रे स्टोरें ट पटािे की िैक्टरी, हीरे तराशने की िैक्टरी, शीशे
का सामान बनाने वाली िैक्टरी अवद में काम करते है ।
भारत जै से ववकासशील दे श में बाल मजदू री के अनेक कारि हैं। अवशवक्षत व्यखक्त
वशक्षा का महत्त्व न समझ पाने के कारि अपने बच्चों को मजदू री करने के वलए भेज दे ते
हैं । जनसंख्या वृखद्ध बाल मजदू री का दू सरा सबसे बडा कारि है । वनधयन पररवार के
सदस्य पेट भरने के वलए छोटे -छोटे बच्चों को काम भेज दे ते हैं ।
भारत में बाल मजदू री को गंभीरता से नहीं वलए जाने के कारि इसे प्रोत्साहन वमलता है ।
दे श में कायय कर रही सरकारी, गैर-सरकारी और वनजी संथर्ाओं की इस समस्या के
प्रवत गंभीरता वदिाई नहीं दे ती।
बाल मजदू री की समस्या का समाधान करने के वलए सरकार कडे कानून बना सकती
है । समाज के वनधयन वगय को वशक्षा प्रदान करके बाल मजदू री को प्रवतबंवधत वकया जा
सकता है । जनसंख्या वृखद्ध पर वनयंत्रि कर भी बाल मजदू री को वनयंवत्रत वकया जा
सकता है । ऐसी संथर्ाओं को प्रोत्साहन वदया जाना चावहए, जो बाल मजदू री का ववरोध
करती हैं या बाल मजदू री करने वाले बच्चों के वलए वशक्षा से जुडे काययिम चलाती हैं ।
प्रातः कालीन भ्रमि शरीर को स्वथर् और वनरोगी रिने की शारीररक वियाओं में से एक
है । प्रातः कालीन के भ्रमि से मनुष्य को स्वच्छ वायु प्राप्त होती है , वजससे मनुष्य में एक
नवस्फूवतय और नवजीवन का संचार होता है । मनुष्य प्रकृवत के संपकय में आकर आनंद
का अनुभव करता है । प्रकृवत के मनोरम दृश्यों को दे िकर उसका मन प्रिुखल्लत ही
उठता है । प्रातः कालीन भ्रमि करने से हमारी शारीररक शखक्त के सार्-सार् मानवसक
शखक्त का भी ववकास होता है । हमारे मन से ववकार दू र हो जाते हैं । प्रातः कालीन मन
प्रसन्न होने के कारि मनुष्य का संध्या तक का समय बडी प्रसन्नता से व्यतीत होता है ।
सुबह की ठं डी वायु प्रत्येक प्रािी के वलए लाभदायक होती है । प्रातः कालीन भ्रमि से
व्यखक्त के शरीर तर्ा मन मखिष्क में तरोताजगी का संचार होता है । प्रातः कालीन भ्रमि
व्यखक्त की सेहत के वलए भी बहत उपयोगी एवं लाभदायक है । हमें प्रातः कालीन
वनयवमत रूप से भ्रमि करना चावहए, वजससे हमारा मन, बुखद्ध और शरीर शां त, प्रसन्न
एवं दृढ़ रह सके। अतः स्वथर्, वनरोगी,प्रसन्नवचत्त एवं दीघयजीवी बनने के वलए प्रातः काल
का भ्रमि सवोत्तम साधन है । वतय मान युग में तो यह एक वरदान के समान है ।
(22) आलस्य : मनुष्य का सबसे बड़ा शत्ु पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।
आलस्य दु ः ि, दररिता, रोग परतं त्रता, अवनवत आवद का जनक है। आलस्य के रहते हए
मनुष्य को ववकास और उसके ज्ञान में वृखद्ध का प्रश् ही नहीं उठता। आलस्य को राक्षसी
प्रवृवत्त की पहचान कहा जाता है । स्वास्थ्य की दृवष्ट से प्रातः काल की शुद्ध वायु अत्यंत
आवश्यक है । आलसी व्यखक्त इस हवा का आनंद भी नहीं उठा पाते और प्रातः कालीन
भ्रमि एवं व्यायाम के अभाव में उनका शरीर रोगग्रि हो जाता है । आलसी ववद्ार्ी पूरा
वषय सोकर गुजारता है । और पररिाम आने पर सबसे आाँ िें चुराता है ।
आलस्य मनुष्य की इच्छाशखक्त को कमजोर बनाकर उसे असिलता के गतय में धकेल
दे ता है । आलसी को छोटे -से-छोटा काम भी पहाड के समान कवठन लगने लगता है और
वह इससे छु टकारा पाने के वलए तरह-तरह के बहाने तलाशने लगता है।
आलस्य का त्याग करने से मनुष्य को अपने लक्ष्य को वनवश्चत समय में प्राप्त करने में
सिलता वमलती है । जीवन में वही व्यखक्त सिलता प्राप्त कर सकता है , जो आलस्य को
पूरी तरह त्यागकर कमय के वसद्धां त को अपना ले । इस प्रकार मनुष्य का सबसे बडा शत्रु
आलस्य ही है । यह मनुष्य को पतन के मागय पर ले जाता है और कुछ ही समय में मनुष्य
का नाश कर दे ता है । अतः इसका त्याग करने में ही मनुष्य का कल्याि वनवहत है ।
(24) आिु वनक जीिन में मोबाइल पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।
मोबाइल आज ववश्व में िां वत का वाहक बन गया है । वबना तारों वाला मोबाइल िोन
जगह-जगह लगे ऊाँचे टॉवरों से तरं गों को ग्रहि करते हए मनुष्य को दु वनया के प्रत्येक
कोने से जोडे रहता है ।
मोबाइल िोन सेवा प्रदान करने के वलए वववभन्न टे लीिोन कंपवनयााँ अपनी-अपनी सेवाएाँ
दे ती हैं । मोबाइल िोन बात करने, एसएमएस की सुववधा प्रदान करने के सार्-सार्
वववभन्न प्रकार के िेल, कैलकुले टर, िोनबुक की सुववधा, समाचार, चु टकुले , इं टरनेट
सेवा आवद भी उपलि कराता है । अनेक मोबाइल िोनों में इं टरनेट की सुववधा भी होती
है , वजससे ई-मेल भी वकया जा सकता है । मोबाइल िोन सुववधाजनक होने के सार् ही
नुकसानदायक भी है ।
ई-कचरा आधुवनक समय की एक गंभीर समस्या है । वतय मान समय में ववज्ञान और
प्र द्ोवगकी के क्षेत्र में कािी काम हो रहा है । इसके फ़लस्वरुप आज वनत नए-नए उन्नत
तकनीक वाले इलेक्टरॉवनक यंत्रों का उत्पादन हो रहा है । जै से ही बाजार में उन्नत
तकनीक वाला उत्पाद आता है , वैसे ही पुराने यंत्र बेकार पड जाते हैं । इसी का नतीजा है
वक आज कंप्यूटर, लै पटॉप, मोबाइल िोन, टीवी, रे वडयो, वप्रंटर, आई-पोड् स आवद के
रूप में ई-कचरा बढ़ता जा रहा है । एक अनुमान के अनुसार एक वषय में पूरे ववश्व में
लगभग 50 वमवलयन टन ई-कचरा उत्पन्न होता है । यह अत्यंत वचंता का ववषय है वक ई-
कचरे का वनपटान उस दर से नहीं हो पा रहा है , वजतनी तेजी से यह पैदा हो रहा है । ई-
कचरे को डालने या िुले में जलाने से पयाय वरि के वलए गंभीर समस्याएाँ उत्पन्न हो गई
हैं । क्ोंवक इले क्टरॉवनक यंत्रों में आसेवनक, कोबाि, मरकरी, बेररयम, वलवर्यम, कॉपर,
िोम, ले ड आवद हावनकारक अवयव होते हैं । इनसे कैंसर जै सी गंभीर बीमाररयों का
ितरा कई गुना बढ़ गया हैं ।
वकसी ने ठीक ही कहा है -वदल्ली है वदल वहं दुिान का, यह तो तीरर् है सारे जहान का।'
वदल्ली के इवतहास में अनेक उतार-चढ़ाव आए हैं । यह वकतनी ही बार उजाडी और
बसाई गई है । अनेक राजा-महाराजाओं की राजधानी रह चुकी है । वजस तरह 'दे हरी',
वजसका अर्य है ' 'द्वार का च िट' को पारकर घर में प्रवेश वकया जाता है , उसी तरह
'वदल्ली' को 'भारत की दे हरी' समझा जाता रहा है । वदल्ली को सवयप्रर्म पां डवों ने बसाया
र्ा। वचवडयाघर के पास पुराना वकला के िंडहर इसके स्वविय म अतीत के स्मारक हैं ।
तब इसका नाम इं िप्रथर् र्ा। तुगलकाबाद तु गलक वंश की अवमट वनशानी है । वदल्ली
अपने अंचल में पृथ्वीराज च हान के सत्रह युद्धों की वीरता की गार्ा भी समेटे हए है ।
वदल्ली को भव्य रूप वदया मुगल सम्राट् शाहजहााँ ने। उसका बनाया लाल वकला भारत
की शान है । अंग्रेजी राज्य में वदल्ली में अनेक आधुवनक इमारतों का वनमाय ि हआ। आज
वदल्ली दो भागों में ववभक्त है -पुरानी वदल्ली और नई वदल्ली। वदल्ली में अनेक प्राचीन,
नए, धावमयक, ऐवतहावसक भवन हैं। यहााँ अनेक संग्रहालय, स्टे वडयम, सां स्कृवतक केंि,
व्यापाररक केंि, पाकय, मनोरं जक थर्ल, पााँ च वसतारा होटल, बहमंवजली इमारतें ,
म्यूवजयम, वचवडयाघर, मैटरो लाइन आवद दशय नीय थर्ल हैं। यमुना नदी के तट पर बसी
यह अद् भुत नगरी प्राचीन और नवीन का अद् भुत संगम है |
ववद्ार्ी जीवन हमारे पूरे जीवन की नीव होती है और इसी समय हमें अपने कुछ दावयत्व
वनधाय ररत कर ले ने चावहए। ववद्ार्ी दे श और समाज के आधार हैं । ववद्ार्ी को दावयत्व
साँभालने से पहले यह ववचार कर ले ना चावहए वक दे श को वकस क्षेत्र में उनका सहयोग
चावहए। आज हमारे दे श में अवशक्षा और अस्वास्थ्य यह दो बडी समस्याएाँ हैं। इसवलए
ववद्ावर्य यों को यह दावयत्व ले ना चावहए वक वे पूरे भारत को वशवक्षत और स्वथर् बनाएाँ गे।
प्रत्येक ववद्ार्ी एक-एक अवशवक्षत को वशक्षा प्रदान करे , तो जल्दी ही दे श का प्रत्येक
व्यखक्त वशवक्षत हो जाएगा। इसी तरह दे श और समाज की अन्य समस्याओं के प्रवत लोगों
को जागरूक करना होगा | वजससे दे श और समाज की प्रगवत हो।
(31) वशक्षा
रूपरे िा-- वशक्षा के माध्यम से सफलता प्राप्त करना, वशक्षारवहत जीिन बंजर
समान है , वशक्षा मानि को निीन आलोक प्रदान करती है ।
रूपरे िा-- मनुष्य ने पवक्षयों के घोंसले पर पैर रिकर प्रगवत की, आज पवक्षयों की
समस्या कल हमारी होगी, पशु -पवक्षयों समाप्त होने से मुनष्य का जीवन ितरे में है ।
मनुष्य ने बहत प्रगवत कर ली है । ऊाँची इमारतों, ववशाल पुल, मेटरो रे ल, बडे -बडे
मॉल दे िकर अच्छा लगता है । ले वकन प्रगवत से पशु -पवक्षयों की दु वनया में भयंकर
समस्याएाँ आ गई हैं । लािों की संख्या में पेड काट वदए गए हैं और इससे पवक्षयों
का बसेरा उजड गया है । मनुष्य को उन पर ज़रा भी दया नहीं आती। पवक्षयों को
घोंसला बनाने की जगह नहीं बची, तो वे अपने अंडे कहााँ दें गे? अपने बच्चे का
पालन-पोषि कैसे करें गे? इससे पूरी प्रकृवत को नुकसान होगा। आज जो
समस्याएाँ पवक्षयों की हैं , कल यही समस्याएाँ हमारी भी हो सकती हैं । हमें सोचना
चावहए वक पेडों पर रहने वाले पक्षी व वनों में रहने वाले पशु समाप्त हो गए तो
िाद् श्रृंिला टू ट जाएगी और मनुष्य का जीवन ितरे में पड जाएगा। अत: आज
से ही हमें पवक्षयों की समस्याओं पर ध्यान दे ना चावहए।
(33) िमग और हम
रूपरे िा- धमय की प्रविया सूक्ष्म भावनात्मक, धमय मानवता, प्रेम बढ़ाता है , अनेक संतों ने
सवयधमय की ज्योवत प्रज्ववलत की।
19.वक्रया
वक्रया की पररभाषा – वजस शब्द अर्वा शब्द समूह के द्वारा वकसी कायय के होने अर्वा
करने का बोध हो, वह विया कहलाती हैं ।
जैसे –
सीता गा रही है ।
श्याम दू ध पी रहा है ।
1. सकमगक वक्रया
“वजस विया का िल कताय पर न पडकर कमय पर पडे , उसे ‘सकमयक विया’ कहते हैं ।”
अतएव, यह आवश्यक है वक वाक् की विया अपने सार् कमय लाये। यवद विया अपने
सार् कमय नहीं लाती है तो वह अकमयक ही कहलाएगी। नीचे वलिे वाक्ों को दे िें :
प्रर्म और वद्वतीय दोनों वाक्ों में ‘पढ़ना’ विया का प्रयोग हआ है ; परिु प्रर्म वाक् की
विया अपने सार् कमय न लाने के कारि अकमयक हई, जबवक वद्वतीय वाक् की वही
विया अपने सार् कमय लाने के कारि सकमयक हई।
2. अकमगक वक्रया
“वह विया, जो अपने सार् कमय नहीं लाये अर्ायत् वजस विया का िल या व्यापार कताय
पर ही पडे , वह अकमयक विया (Intransitive Verb) कहलाती है ।”
जै से-
उल्लू वदनभर सोता है ।
इस वाक् में ‘सोना’ विया का व्यापार उल्लू (जो कताय है ) ही करता है और वही सोता भी
है । इसवलए ‘सोना’ विया अकमयक हई।
कुछ वियाएाँ अकमयक सकमयक दोनों होती हैं । नीचे वलिे उदाहरिों को दे िें-
3. जी घबराता है । (अकमयक)
जैसे-
रमा हं सती है
श्याम द डता है
बच्चा रोता है
ववभा सोती है
राजे श द डता है ।
पूजा हं सती है ।
मेघनार् वचल्लाता है ।
रावि लजाता है ।
राम बचाता है ।
सीता रोती है ।
आशीष िाता है ।
सुनील चढ़ता है ।
मनीष सुनाता है ।
राकेश मारता है ।
वलवबन वहलता है ।
गाडी चलती है ।
गधा मारता है ।
घोडा द डता है ।
वछपकली कूदती है ।
पक्षी उडता है ।
शखक्तमान उडता है ।
20. कारक
कारक की पररभाषा-
कारक का अर्य होता है वकसी कायय को करने वाला। यानी जो भी विया को करने में
भूवमका वनभाता है , वह कारक कहलाता है ।
कारक के उदाहरण :
कारक के भेद
कत्ताय कारक
कमय कारक
करि कारक
सम्प्रदान कारक
अपादान कारक
संबंध कारक
अवधकरि कारक
संबोधन कारक
1. कत्ताग कारक :
जो वाक् में कायय को करता है , वह कताय कहलाता है । कताय वाक् का वह रूप होता है
वजसमे कायय को करने वाले का पता चलता है ।
उदाहरण :
(कताय कारक के बारे में गहराई से पढनें के वलए यहााँ खक्लक करें – कताय कारक –
उदाहरि, पररभाषा, वचन्)
2. कमग कारक :
वह विु या व्यखक्त वजस पर वाक् में की गयी विया का प्रभाव पडता है वह कमय
कहलाता है ।
(कमय कारक के बारे में गहराई से पढनें के वलए यहााँ खक्लक करें – कमय कारक –
उदाहरि, पररभाषा, वचन्)
3. करण कारक :
उदाहरण :
(करि कारक के बारे में गहराई से पढनें के वलए यहााँ खक्लक करें – करि कारक –
उदाहरि, पररभाषा, वचन्)
4 . संप्रदान कारक
पररभाषा
- वजसके वलए कुछ वकया जाए या वजसको कुछ वदया जाए, इसका बोध कराने वाले
शब्द के रूप को संप्रदान कारक कहते हैं ।
उदहारण :
5 . अपादान कारक
5.अपादान कारक
पररभाषा
संज्ञा के वजस रुप से वकसी विु के अलग होने का भाव प्रकट होता है उसे अपादान
कारक कहते हैं ।
"वजस शब्द में अपादान की ववभखक्त लगती है उसे वकसी दू सरे विु के पृर्क होने का
बोध होता है यहां अपादान कारक "से" से जुडा हआ है यानी यहां से दो विुओं को
आपस में जोडता है जैसे वह गाडी से घर गया यहां करता को से के माध्यम से संबोवधत
वकया।"
उदहारण :
6. संबंि कारक
पररभाषा
-संज्ञा या सवयनाम के वजस रुप से वकसी अन्य शब्द के सार् संबंध या लगाव प्रतीत हो,
उसे संबंध कारक कहते हैं ।
संबंध कारक का ववभखक्त वचन् "का" है । वचन और वलं ग के अनुसार इसकी ववकृवत 'के'
और 'की' है ।
सरल शब्दों में कहा जाए तो संबंध कारक दो शब्दों को जोडता है जैसे राम की वकताब
श्याम का घर इसमें दो अलग-अलग कताय है और इन दोनों को आपस में संबंध बनाया
गया है इसी को संबंध कारक करते हैं ।
उदहारण :
4. भारतें दु के नाटक।
5 . प्रेमचंद के उपन्यास।
7. अविकरण कारक
पररभाषा
-विया या आधार को सूवचत करने वाली संज्ञा या सवयनाम के रूप को अवधकरि कारक
कहते हैं ।
"अवधकरि कारक जब विया या आधार को सूवचत करने वाले संज्ञा या सवयनाम वनकल
कर आता है उसे अवधकरि कारक कहते हैं । जै से तु म्हारे घर पर चार आदमी है यहां
पर घर पर यानी घर में से संबंध है । दु कान पर कोई नहीं र्ा यहां दु कान में से संबंध है ।"
उदाहरण:
8. संबोिन कारक
पररभाषा
-संज्ञा के वजस रुप से वकसी के पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता है उसे
संबोधन कारक कहते हैं ।
"संबोधन कारक वकसी ववशे ष चीजों को संबोवधत करती है । जै से हे भगवान! मेरी रक्षा
करो। इसमें वकसी को पुकारना यह संकेत दे ना उनके भाव से पता चलता है इसी को
संबोधन कारक कहते हैं ।"
उदहारण :
1. हे भगवान।
2. अरे यह क्ा हो गया?
3. हाय रे हाय!
21. पत् ले िन
पत्र ले िन एक कला है , वजसकी अपनी एक ववशे ष शैली होती है । इसी ववशे षता के
कारि पत्र संचार के साधनों में अलग और वववशष्ट थर्ान रिते है । पत्रों में जो
आत्मीयता छु पी होती है वह अन्यत्र नहीं होती ।
2 पत्र की शै ली सरस्, रोचक तर्ा उत्सु कता पैदा करने वाली होनी चावहए।
5 व्यखक्तगत पत्रों में आत्मीयता तर्ा औपचाररक पत्रों में सूचना दे ने का भाव वनवहत होना
चावहए।
पत्ों के प्रकार
1 औपचाररक पत्र
2 सबसे ऊपर ‘सेवामें’ वलिें।उसके ठीक नीचे पत्र पाने वाले व्यखक्त के पद का नाम
और उसके नीचे संथर्ा का नाम वलिा जाता है ।
5 ववषयविु के नीचे पत्र वलिने वालों को स्व वनदे श और उसके नीचे अपना नाम
वलिना चावहए या हिाक्षर करना चावहए।
नमूना पत्
गवणत एिं विज्ञान की अवतररक्त कक्षाएं आयोवजत करने के संबंि में प्रिानाचायग
को प्राथगना पत्।
सेवा में,
प्रधानाचायय महोदय
महोदय,
सधन्यवाद
कक्षा आठवीं
अनुिमां क 10
01 नवम्बर ,2021
सेवा में,
प्रधानाचायाय जी
केंिीय ववद्ालय
एि ॰ए ॰ डी ॰ , दप्पर |
महोदया ,
सधन्यवाद
वववध
कक्षा आठवीं
अनुिमां क 10
02 नवम्बर ,2021
सेवा मे ,
सैक्टर 08
चंडीगढ़ |
महोदय ,
सधन्यवाद
प्रार्ी
अवधेश कुमार
#42 सैक्टर 08
चंडीगढ़
01 नवम्बर 2021
आपका वमत् वकसी िेल प्रवतयोवगता मे भाग लेने के वलए विदे श यात्ा पर जा रहा
है | वमत् की मंगलकामना हे तु पत् वलखिए |
वदल्ली |
21 नवम्बर ,2021
वप्रय वमत्र ,
सप्रेम नमिे !
मेरी शु भकामनाएं सदै व तु म्हारे सार् हें | अपने माता वपता को मेरी ओर से प्रिाम कहना
|
तु म्हारा वमत्र
क,ि, ग,
1 आपका वमत् वकसी िेल प्रवतयोवगता मे भाग लेने के वलए विदे श यात्ा पर जा
रहा है | वमत् की मंगलकामना हेतु पत् वलखिए |
वदल्ली |
21 नवम्बर ,2021
वप्रय वमत्र ,
सप्रेम नमिे !
मेरी शु भकामनाएं सदै व तु म्हारे सार् हें | अपने माता वपता को मेरी ओर से प्रिाम कहना
|
तु म्हारा वमत्र
क,ि, ग,
2 अपने वमत् को बड़े भाई के वििाह मे सखिवलत होने का वनमंत्ण - पत् वलिो |
जनकपुरी , नई वदल्ली |
02 नवम्बर ,2021
वप्रय अनंत
सप्रेम नमस्कार |
तु म्हें यह जानकार िुशी होगी वक मेरे बडे भाई आवदत्य का वववाह 10 वदसम्बर को
होना वनवश्चत हआ है | बारात सुबह सात बजे बस द्वारा आगरा जाएगी | वववाह के इस
मां गवलक अवसर पर तुम भी सादर आमंवत्रत हो| कृपया वनवश्चत वतवर् से एक - दो वदन
पहले ही आने का प्रयास करना , तावक उत्सव का आनंद दु गुना हो जाए | पत्र के सार्
वववाहोत्सव का काययिम भी संलग्न है |
पंकज
उपसगग
िे शब्दांश जो वकसी शब्द के आरं भ में यानी पहले लगकर उसके अथग में पररितग न
या विशेषता ला दे ते हैं, उपसगग कहलाते हैं |
9. प्रवत:- प्रवत का अर्य होता है ववरुद्ध, प्रत्येक, सामने, बराबरी, उिा, हर एक आवद ।
उदाहरण: उत् +पीडन= उत्पीडन, उत् +कंठा= उत्कंठा, उत् +कृष्ट= उत्कृष्ट,
उत् +कषय= उत्कषय, उत्+र्ान= उत्थान आवद।
12. वि: वव का अर्य होता है वववशष्ट, वभन्न, हीनता, असमानता, अभाव आवद ।
16. सम् उपसगय : सम् का अर्य होता है अच्छा, पूियता, संयोग, उत्तम, सार् आवद ।
उदाहरण: वनर् +आहार= वनराहार, वनर् +अक्षर= वनरक्षर, वनर् +आदर= वनरादर,
वनर् +अहं कार= वनरहं कार, वनर् +आवमष= वनरावमष, वनर् +जर= वनजय र, वनर् +धन=
वनधयन, वनर् +यात= वनयाय त, वनर् +दोष= वनदोष, वनर् +अवलंब= वनरवलम्ब, वनर् +अंजन=
वनरं जन, वनर् +आशा= वनराशा, वनर् +गुि= वनगुयि, वनर् +भय= वनभयय, वनर् +वास=
वनवाय स , वनर् +दोष= वनदोष, वनर् +जीव= वनजीव, वनर् +मूल= वनमूयल, वनर् +बल= वनबयल,
वनर् +मल= वनमयल, वनर् +जन=वनजय न, वनर् +अपराध= वनरपराध आवद।
21. दु र्:- दु र् का अर्य होता है कवठन, बुरा, ववपरीत, दु ष्ट, हीन आवद।
उदारहण: दु र्+अवभसंवध= दु रवभसंवध, दु गुयि, दु दयशा, दु घयटना, दु भाय वना, दु रुह, दु रुखक्त,
दु जयन, दु गयम, दु बयल, दु लयभ, दु रावथर्ा, दु दयमनीय, दु भाय ग्य, दु राशा, दु राग्रह, दु राचार,
दु र्+अवथर्ा= दु रवथर्ा, दु र्+उपयोग= दु रुपयोग आवद।
2. वहं दी के उपसगग
1. दु /दु र्:- दु /दु र्:- का अर्य होता है बुरा, हीन, दो, ववशे ष, कम आवद |
उदाहरण: अनकहा, अनदे िा, अनमोल, अनपढ़, अनहोनी, अनचाहा, अनसुना, अनदे िी
आवद।
उदाहरण: कुचाल, कुचि, कुसंगवत, कुकमय, कुरूप, कुपुत्र, कुरीवत, कुख्यात आवद।
उदू य एवं फ़ारसी के भी कुछ उपसगय हैं , जो वहन्दी में प्रयुक्त होते हैं :-
10. हम:- हम का अर्य होता है आपस में, समान, सार् वाला आवद ।
4. अंग्रेजी के उपसगग :
िे शब्दांश, जो वकसी शब्द के अंत में लगकर उसके अथग में पररितग न या विशेषता
ला दे ते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं |
जैसे:-
1. कृत प्रत्यय
2. तखद्धत प्रत्यय
1. कृत प्रत्यय :
● ऐसे प्रत्यय जो विया (धातु रूप) के बाद लगते हैं एवं उनके लगने से दू सरे शब्दों
की रचना हो जाती है ।
● इन प्रत्ययों के लगाने (योग) से जो शब्द बनते हैं वे कृदं त शब्द कहलाते हैं ।
● तै र + आक= तै राक
● लू ट + एरा= लू टेरा
ऐसा शब्द जो कृत प्रत्यय से बना हआ हो एवं उससे कताय का पता चले , ऐसे प्रत्यय
कतृय वाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते हैं । जैसे:
वदए गए उदाहरिों में जै सा वक हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले शब्द र्ा लेि ले वकन
जब इस शब्द में अक प्रत्यय वमलाया गया तो यह बन गया ले िक, वजसका अर्य होता
है - वलिने वाला | इस शब्द से हमें कताय यानी कायय करने वाले का पता चल रहा है।
अतः यह कत्तुयवाचक कृदं त प्रत्यय के के रूप में मान जाएगा ।
जै सा वक इन सभी उदाहरि में दे ि हम सकते हैं वक यहााँ पहले शब्द वभन्न होते हैं । जै से
ही इनमें ये प्रत्यय लगाए जाते हैं , इनके शब्द एवं अर्य दोनों में पररवतय न आ जाता है।
अतः ये उदाहरि कतृयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे |
वजन शब्दों में प्रत्यय लगने के बाद वह शब्द कमय का बोध हो, वह कमयवाचक कृदं त
प्रत्यय कहलाता है ।
जैसे:
इस उदाहरि में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले जो मुख्य शब्द र्ा, वह वकसी विया
का बोध करा रहा र्ा | जै से िेलना, वबछाना आवद। जब उन शब्दों में प्रत्यय लगाए गए
तो इनका अर्य और रूप दोनों बदल गए | अब ये शब्द कमय का बोध करा रहे हैं , विया
का नहीं। अतः यह उदाहरि कमयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएगा।
इन उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले जो शब्द र्े , वे हमें वकसी ना वकसी
विया का बोध करा रहे र्े | जै से सूाँघ आवद। इनसे हमें विया का पता चल रहा र्ा।
ले वकन जै से ही हमने उन शब्दों में प्रत्यय लगाए, उनका अर्य ही बदल गया। अब ये शब्द
विया का बोध कराने के थर्ान पर कमय का बोध करा रहे हैं । अतः ये
उदाहरि कमयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे ।
जब कोई प्रत्यय वकसी शब्द के सार् लग जाते हैं एवं उन शब्दों से विया को करने के
साधन अर्ाय त् करि का बोध होता है , तो ये प्रत्यय करिवाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते
हैं ।
जैसे:
● आ = भूला, झूला
इस उदारि में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले जो मुख्य शब्द र्ा, वह हमें विया का
बोध करवा रहा र्ा । जैसे:- भटक, भूल, झूल आवद। ले वकन जै से ही इन शब्दों में प्रत्यय
लगाए गए, इन शब्दों का अर्य वभन्न हो गया। जै से अब झलू का झल ू ा हो गया जो हमें
वकसी साधान अर्ाय त करि का बोध करवा रहा है । प्रत्यय लगते शब्द पररववतय त हो गए।
अतः ये उदाहरि करिवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे।
● ऊ = झाडू
● ई = रे ती, िााँ सी, भारी, धुलाई
● न = बेलन, झाडन, बंधन
● नी = ध क ं नी, करतनी, सुवमरनी, छलनी, िूंकनी, चलनी
इन उदाहरिों में हमने दे िा वक यहााँ पहले शब्द हमें विया का बोध करा रहे र्े ले वकन
जब इनमें प्रत्यय लगाया गया तो विर ये पररववतय त हो गए एवं करि का बोध कराने लगे
। अतः ये उदाहरि करिवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे ।
वे प्रत्यय जो वकसी शब्द में जु डने के बाद उस शब्द को भाववाचक संज्ञा में बदल दे ते हैं ,
वे भाववाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते हैं ।
जैसे:
इन सब उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक पहले जो मूल शब्द र्े , उनसे हमें वकसी
विया का बोध हो रहा र्ा। जै से कमाना, लडना, वसलना आवद। विर हमने इनमें प्रत्यय
को जोडा। जै से ही इनमें प्रत्यय को जोडा गया तो विर इन शब्दों का रूप पररववतय त हो
गया। अब ये भाववाचक संज्ञा बन गए हैं ।
इन शब्दों में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ मूल शब्द से हमें विया का बोध हो रहा र्ा,
ले वकन जब इन शब्दों के सार् प्रत्यय जोडते हैं तो इनका नया शब्द एवं अर्य वभन्न हो गए
हैं । अब ये शब्द हमें भाववाचक संज्ञा का बोध करा रहे हैं ।
वकसी प्रत्यय से बने हए ऐसे शब्द वजनसे हमें वकसी विया के होने का पता चले , वे
वियावाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे:
इन सभी उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले शब्द हमें विया का बोध नहीं
करा रहे हैं । मुख्य शब्द हमें पहले विया के बारे में नहीं बता रहे र्े । ले वकन जब उन
शब्दों में प्रत्यय जोडे गए, तब ये शब्द पररववतयत हो गए एवं अब ये हमें विया का बोध
करा रहे हैं । अतः ये उदाहरि वियावाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे।
2. तखित प्रत्यय
● जब संज्ञा, सवयनाम, ववशे षि के अंत में प्रत्यय लगते हैं तो वे तखद्धत प्रत्यय
कहलाते हैं ।
● इन तखद्धत प्रत्ययों से वमलकर जो शब्द बनते हैं , वे शब्द तखद्धतांत प्रत्यय शब्द
कहलाते हैं ।
जैसे;-
● पछताना, जगना, पंवडत, चतु र, ठाकुर+आइ = ठकुराई, पछताई, जगाई, चतु राई
● पखण्डत, ठाकुर + आइन = पंवडताइन, ठकुराइन आवद ।
● पंवडत, ठाकुर, लड, चतु र, च डा ,अच्छा + आई = पंवडताई, ठकुराई, लडाई,
चतु राई, च डाई , अच्छाई आवद ।
● सेठ, न कर + आनी = सेठानी, न करानी आवद ।
● बहत, पंच, अपना +आयत = बहतायत, पंचायत, अपनायत आवद ।
● लोहा, सोना+आर \आरा = लोहार, सुनार, गाँवार आवद ।
● डाका, लाठी+ऐत = डकैत, लठै त आवद ।
● अाँध, सााँ प, बहत, मामा, कााँ सा, लू ट+एरा = अाँधेरा, साँपेरा, बहते रा, ममेरा, कसेरा,
लू टेरा आवद।
● िाट, पाट, सााँ प+ओला = िटोला, पटोला, साँपोला आवद ।
● बाप, मान+औती = बप ती, मन ती आवद ।
● वबल्ला, काजर + औटा = वबल टा, कजर टा आवद ।
● धम, चम, बैठ, बाल, दशय , ढोल+क = धमक, चमक, बैठक, बालक, दशय क,
ढोलक आवद।
उत्तर – वे शब्द जो अर्य की दृवष्ट से समान होते हैं , उन्ें पयाय यवाची शब्द कहते हैं ।
इनका अर्य आपस में वमलता-जुलता है , वकंतु ये एक दू सरे के थर्ान पर प्रयोग वकए जा
सकते हैं । कुछ शब्द और उनके पयाय यवाची शब्द वदए जा रहे हैं |
उदाहरि :-
उत्तर :- परस्पर ववपरीत अर्य प्रकट करने वाले शब्द ववलोम या ववपरीतार्य क शब्द
कहलाते हैं ।
उदाहरि :-
शब्द ववलोम
नीरस सरस
मन मुिर
उपेक्षा अपेक्षा
वविार संक्षेप
प्रत्यक्ष परोक्ष
गररमा लवघमा
शाश्वत नश्वर
म खिक वलखित
अनार् सनार्
धनवान अवकंचन
सकारात्मक नकारात्मक
अवनी (धरती) अम्बर
सम्मुि ववमुि
प्रारम्भ (अर्) इवत
सामूवहक व्यखक्तगत
अंत आवद
अचर चर
अपकीवतय कीवतय
ऊसर उवयरा
ज्येष्ठ कवनष्ठ
नाखिक आखिक
पररश्रमी आलसी
प्रवतकूल अनुकूल
राजतं त्र गितं त्र
मधुर कटु
यर्ार्य आदशय
ववष अमृत
वृद्ध तरुि
सज्जन दु जयन
सपूत कपूत
सरल कवठन
1 वजजीववषा
.
A.जीवन से मुखक्त की इच्छा
B.जीवन की इच्छा
C.जीववका कमाने की इच्छा
D.वकसी चीज़ को पाने की तीव्र
उत्कंठा
2 पावर्यव
.
A.वजसका संबंध मनुष्यों से
हो
B.वजसका संबंध पृथ्वी से
हो
C.वजसका संबंध ईश्वर से हो
D.वजसका संबंध प्रर्ा से हो
3 यायावर
.
A.वजसके जीवन का कोई वनवश्चत उद्दे श्य न हो
B.वकसी भी विु को अकस्मात प्रिुत करने
वाला
C.एक थर्ान पर वटककर न रहने वाला
Dइधर-उधर वनरुद्दे श्य घूमने वाला
4 रवव “ईश्वर को न मानने वाला मनुष्य” है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.सनार्
B.पंवडत
C.आखिक
D.नाखिक
5 ईश्वर का “कोई आकार नहीं होता” है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.सरोकार
B.साकार
C.वनराकार
D.इनमें से कोई नहीं
6 “आाँ िों के सामने ” घवटत घटना पर ववश्वास तो करना ही पडे गा | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक
. शब्द का चयन कीवजए -
A.प्रत्यक्ष
B.परोक्ष
C.प्रारूपत:
D.प्रत्येक
7 भारतीय की “बुरी दशा” दे िकर गां धीजी का मन िववत हो गया | रे िां वकत वाक्ां श के वलए
. एक शब्द का चयन कीवजए -
A.दु व्ययवहार
B.दीनता
C.दु दयशा
D.दु वदय न
8 “दोपहर के समय” शालू आराम कर रही र्ी | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.पूवाय ह्न
B.मध्याह्न
C.कावलग्रह
D.अपराह्न
9 वैभव को उस ववद्ालय में “इखिहान लेने वाला” बनकर जाना है |रे िां वकत वाक्ां श के वलए
. एक शब्द का चयन कीवजए -
A.ववशेषज्ञ
B.परीक्षक
C.अध्यापक
D.समन्वयक
11 वववेक ने “श्रेष्ठ कुल में जन्म” वलया है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.कुलीन
B.समकालीन
C.कुलश्रेष्ठ
D.कुलभूषि
मानक रूप
प्रश्न 1.
वर्तनी की दृष्टि से मानक शब्द है
(क) पक्का
(ख) पक्का
(ग) पकका
(घ) पका।
प्रश्न 2.
मानक शब्द है
(क) हं सना
(ख) हँसना
(ग) हसना
(घ) हसन्ना।
प्रश्न 3.
‘द्वारका’ शब्द का मानक रूप है
(क) द्वाररका
(ख) द्वररका
(ग) दवारका
(घ) द्वारका।
प्रश्न=4. ननम्न में से कौन सा शब्द मानक है ।
(अ) उन्नर्ी
(ब) ऊन्नर्ी
(स) उनन्र्ी
(द) उन्ननर्
प्रश्न=5. ननम्न में से कौन सा शब्द मानक है ।
(अ) संसाररक
(ब) सांसाररक
(स) संस्कारीक
(द) सांसारीक
9. मनुष्य वजसको सामान्य समझता है उसकी सेवा में उसे आनंद प्राप्त करता
है
A.सामान्य
B.सम्मान्य
C.समान्य
D.सम्मान्य
उत्तर कंु जी
मानक रूप
1= क 8= अ
2= 2 9= अ
3= 4
5= द 10 = ब
6= ब 11 = अ
7= स 12 = ड
13 = ब
14 = अ
--------------------------------समाप्त------------------------------------
धन्यवाद