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केंद्रीय विद्यालय संगठन

चंडीगढ़ संभाग

मुख्य संरक्षक : डॉ. पी. दे वकुमार


(उपायुक्त, के.वव.एस. चंडीगढ़ संभाग)
संरक्षक : सु श्री टी.रुक्मवि
(सहायक आयुक्त, के.वव.एस. चंडीगढ़ संभाग)
संकलन एवं समायोजन : श्री संजय
(प्राचायय , के.वव. स्लाईट ल ग ं ोवाल)

सहायक सामग्री (वितीय सत्ांत परीक्षा)

कक्षा आठिी ं

विषय : वहं दी
विषय अनुक्रम
क्रम संख्या पाठ का नाम
1 कबीर की साखियााँ
2 कामचोर
3 जब वसनेमा ने बोलना सीिा
4 सुदामा चररत
5 जहााँ पवहया है
6 अकबरी लोटा
7 सूरदास के पद
8 पानी की कहानी
9 बाज और सााँप
10 टोपी
11 युगों का दौर
12 नयी समस्याएाँ
13 अंवतम दौर – एक
14 अंवतम दौर – दो
15 तनाि, दो पृ ष्ठभूवमयााँ
16 अपवठत गद्यांश
17 मुहािरे
18 अनुच्छेद लेिन
19 वक्रया
20 कारक
21 पत् ले िन
22 उपसगग, प्रत्यय
23 पयागयिाची शब्द
24 विलोम शब्द

25 अनेक शब्दों के वलए एक शब्द


1. - कबीर की साखियााँ

पद्ां श 1

वनम्नवलखित दोहों को पढ़कर वदए गए प्रश्ों के उत्तर दीवजए-

जावत न पूछो साधु की, पूछ लीवजए ज्ञान ।

मोल करो तरवारर का, पडा रहन दो म्यान ।

आवत गारी एक है , उलटत होइ अनेक।

कह कबीर नवहं उलवटए, वही एक की एक।

माला तो कर में विरै , जीवभ विरै मुि मााँ वह ।

मनुवााँ तो चहाँ वदवस विरै , यह त सुवमरन नावहं ।

i) कवव और कववता का नाम वलखिए।

ii) कवव ने साधु की जावत न पूछने के वलए क्ों कहा है ?

iii) अपशब्द का जवाब अपशब्द से क्ों नहीं दे ना चावहए?

iv) कबीर के अनुसार मनुष्य वदिावे की भखक्त वकस रूप में करता है ?

v) 'मनुवााँ तो चहाँ वदवस विरै ' का क्ा आशय है ?


पद्ां श- 2

वनम्नवलखित दोहों को पढ़कर वदए गए प्रश्ों के उत्तर दीवजए-

कबीर घास न नींवदए, जो पाऊाँ तवल होइ।

उवड पडै जब आाँ खि मैं, िरी दु हेली होइ ॥

जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय ।

या आपा को डारर दे , दया करै सब कोय।

i) सािी में वतनका वकसका प्रतीक है ?

ii) कवव घास के वतनके की भी वनंदा करने से क्ों मना करता है ?

iii) 'पाऊाँ' और 'दु हेली' शब्दों के अर्य स्पष्ट करें ।

iv) अपना मन शीतल होने से हमारे प्रवत दू सरों का व्यवहार वकस तरह प्रभाववत होता है
?

v)आपा शब्द का क्ा अर्य है ?आपा डारर दे ने का क्ा पररिाम होता है ?

प्रश्ोत्तर

प्रश्1-कवव कबीर वकस काल के कवव हैं ?

प्रश् 2कबीर की रचनाओं का संकलन वकस नाम से जाना जाता है ?

प्रश्3- कबीर के दोहों को वकस नाम से जाना जाता है ?

प्रश्4- 'माला तो कर में विरै ' पंखक्त में कर का क्ा अर्य है ?

प्रश् 5- जग में कोई वकसी का बैरी कब नही होता?

प्रश् 6- कवव ने मन (मनुवााँ ) की क्ा ववशे षता बताई है ?

प्रश् 7- बैरी शब्द के दो पयाय यवाची शब्द वलिें।

प्रश् 8- आपा और आत्मववश्वास में क्ा अंतर है ?

प्रश् 9 - वनम्नवलखित शब्दों के प्रचवलत वहं दी रूप वलखिए-

ग्यान
वजवभ

तवल

आाँ खि

सीतल

प्रश्10- कबीर के दोहों को सािी क्ों कहा जाता है ?

प्रश् 11- 'तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं- उक्त उदाहरि से कबीर क्ा
कहना चाहते हैं ? स्पष्ट कीवजए।

प्रश् 12- क्ा अपशब्द का जवाब अपशब्द से दे ना ठीक है ? यवद नहीं तो क्ों ?

प्रश् 13- कबीर वकस तरह की भखक्त को सच्ची भखक्त नहीं मानते हैं ?

प्रश् 14-घास का वतनका वकस प्रकार कष्टदायी बन सकता है ?

प्रश्15- कवव ने मनुष्य को आपा त्यागने की सीि क्ों दी है ?

उत्तर-कंु जी

पाठ कबीर की सखियााँ

उत्तर)I कवव का नाम- कबीर, कववता- कबीर की साखियााँ ।

उत्तर ii कवव के अनुसार साधु की कोई जावत नही होती। मनुष्य के वलए जावत नहीं
ज्ञान महत्वपूिय होता है , अतः साधु से हमे ज्ञान प्राप्त करना चावहए उसकी जावत नहीं
पूछनी चावहए।

उत्तर iii अपशब्द का जवाब अपशब्द से नहीं दे ना चावहए क्ोंवक इससे अपशब्द एक
से बढ़कर अनेक हो जाते हैं ।

उत्तर iv ) मनुष्य हार् में मनके की माला विराता रहता है और मुाँह से राम-राम का
उच्चारि करता है परं तु उसका चंचल मन कहीं और भटकता रहता है । इस प्रकार वह
वदिावे की भखक्त करता है ।

उत्तर v 'मनुवााँ तो चहाँ वदवस विरै ' का आशय है - मन का प्रभु भखक्त में केंवित न हो
पाना। मन भखक्त में रमने के बजाए इधर- उधर भटकता रहता है।

पद्ां श- 2

उत्तर I -सािी में घास उस कमजोर मनुष्य का प्रतीक है वजसका अपमान करने से कोई
तवनक भी नहीं डरता।
उत्तरii -कवव घास के वतनके की वनंदा करने से इसवलए मना करता है वक जमीन पर
पडा अखित्वहीन घास का वतनका भी आाँ ि में पडने से हमें पीडा पहाँ चा सकता है ।

उत्तर iii -पाऊाँ-पैर ,पााँ व

दु हेली-कष्टदायी, दु ि पहं चाने वाला।

उत्तर iv -अपना मन शीतल होने से मन का घमंड समाप्त हो जाता है , मन वनश्छल और


पववत्र हो जाता है वजससे दू सरे लोग भी हमें स्नेह और सम्मान दे ते हैं ।

उत्तर v -आपा शब्द का अर्य है अहं कार, घमंड। आपा त्याग दे ने का पररिाम यह होता
है वक संसार में कोई व्यखक्त दु श्मन नहीं रह जाता। सभी उसके वमत्र बन जाते हैं।

प्रश्ोत्तर

उत्तर1-कबीर भखक्तकाल के संत कवव हैं ।

उत्तर2- बीजक

उत्तर3- कबीर के दोहों को सािी के नाम से जाना जाता है ।

उत्तर4- हार्

उत्तर 5- जब व्यखक्त का मन शीतल होता है ।

उत्तर 6- मन खथर्र नहीं होता,यह चंचल होता है ।

उत्तर 7- बैरी - दु श्मन,अरर, ररपु ,शत्रु

उत्तर 8- आपा का अर्य है - अहं कार या घमंड

आत्मववश्वास का अर्य है स्वयं पर ववश्वास ।

उत्तर 9 ग्यान -ज्ञान

वजवभ-जीभ

तवल- तले

आाँ खि-आाँ ि

सीतल- शीतल

उत्तर10- उत्तर कबीर के दोहों को सािी इसवलए कहा जाता है , क्ोंवक सािी शब्द
साक्षी शब्द का तद्भव रूप है , वजसका अर्य है - आाँ िों दे िा हआ गवाह या गवाही। संत
कबीर ने इस दु वनया में सब सुना दे िा और सहा। उन्ोंने अपने अनुभव को दोहों के
रूप में व्यक्त वकया।
उत्तर 11-तलवार का महत्त्व होता है , म्यान का नहीं इस उदाहरि के माध्यम से कवव
कहना चाहता है वक वजस तरह तलवार की मजबूती तर्ा उसकी तीक्ष्ि धार दे िी जाती
है उसकी म्यान की सुंदरता नहीं दे िी जाती उसी प्रकार मनुष्य के वलए संतों की जावत
नहीं ज्ञान महत्वपूिय है ।

उत्तर12- हमें अपशब्द का जवाब कभी भी अपशब्द से नहीं दे ना चावहए क्ोंवक पलट
कर अपशब्द का जवाब दे ने से वह एक से अनेक हो जाता है । इस प्रकार गावलयों का
वसलवसला रुकने के बजाए बढ़ता ही जाता है ।

उत्तर 13-कबीर उस भखक्त को सच्ची भखक्त नहीं मानते हैं जब व्यखक्त हार् में मनका
घुमाता रहता है पर उसका मन एकाग्रवचत्त होने के बजाए इधर-उधर भटकता रहता है ।

उत्तर14- घास का वतनका -वजसे हम कुछ नहीं समझते जब हवा में उडकर हमारी
आाँ ि में पड जाता है तो हमारे वलए कष्टदायी बन जाता है ।

उत्तर15 -कवव ने मनुष्य को आपा त्यागने की सीि इसवलए दी है तावक लोगों में आपस
में सद्भाव िैले ।

2. – कामचोर

गद्ां श – 1

बडी दे र वाद – वववाद के बाद यह तय हआ वक सचमुच न करों को वनकाल वदया


जाए | आखिर , ये मोटे –मोटे वकस काम के हैं ! वहलकर पानी नहीं पीते | इन्ें अपना
काम िुद करने की आदत होनी चावहए | कामचोर कहीं के ! “तु म लोग कुछ नहीं | इतने
सारे हो और सारा वदन ऊधम मचाने के वसवा कुछ नहीं करते |” और सचमुच हमें ख्याल
आया वक हम आखिर काम क्ों नहीं करते ? वहलकर पानी पीने में अपना क्ा िचय
होता है ? इसवलए हमने तु रंत वहल – वहलाकर पानी पीना शु रू वकया |

वहलने में धक्के भी लग जाते हैं और हम वकसी के दबैल तो र्े नहीं वक कोई धक्का
दे , तो सह जाएाँ | लीवजए पानी के मटकों के पास ही घमासान युद्ध हो गया | सुरावहयााँ
उधर लु ढकी | मटके इधर गए | कपडे भीगे सो अलग |

प्रश्-1. ले िक व पाठ का नाम वलखिए |

प्रश्- 2. वाद-वववाद वकनके मध्य हो रहा र्ा?

प्रश्-3. अम्मा और अब्बू ने क्ा वनिय य वलया?


प्रश्-4. मोटे -मोटे शब्द का प्रयोग वकनके वलए और क्ों वकया गया है ?

प्रश्-5. बच्चों के बीच घमासान युद्ध वकसके पास शु रू हो गया?

गद्ां श – 2

घर में तूफ़ान उठ िडा हआ | ऐसा लगता र्ा जै से सारे घर में मुवगययााँ , भेडें , टू टे हए
तसले , बाखियााँ , लोटे , कटोरे और बच्चे र्े | बच्चे बाहर वकए गए | मुवगययााँ बाग़ में
हाँ काई गई | मातम – सा मनाती तरकारी वाली के आाँ सू पोंछे गए और अम्मा आगरा जाने
के वलए सामान बााँ धने लगीं | “या तो बच्चा – राज कायम कर लो या मुझे ही रि लो |
नहीं तो मैं चली मायके,” अम्मा ने चुन ती दे दी |

और अब्बा ने सबको क़तार में िडा करके पूरी बटावलयन का कोटय माशयल कर वदया
| “अगर वकसी बच्चे ने घर की वकसी चीज को हार् लगाया तो बस, रात का िाना बंद हो
जाएगा |” ये लीवजए! इन्ें वकसी करवट शाखि नहीं | हम लोगों ने भी वनश्चय कर वलया
वक अब चाहे कुछ भी हो जाए , वहल कर पानी भी नहीं वपएाँ गे |

प्रश्-1. अब्बा ने सबको कतार में िडा करके क्ा वहदायत दी?

प्रश्-2. कोटय माशयल से आप क्ा समझते हैं ?

प्रश्-3. बच्चों नें क्ा वनश्चय वकया ?

प्रश्-4. बच्चों को क्ा चेतावनी दी गई ?

प्रश्-5. अम्मा ने क्ा चुन ती दे डाली?

गद्ां श -3

सारा घर धूल से अट गया । िााँ सते-िााँ सते सब बेदम हो गए । सारी धूल जो दरी पर र्ी,
जो िशय पर र्ी, सबके वसरों पर जम गई। नाकों और आाँ िों में घुस गई। बुरा हाल हो
गया सबका । हम लोगों को तु रंत आाँ गन में वनकाला गया । वहााँ हम लोगों ने ि रन झाडू
दे ने का िैसला वकया ।

झाडू क्ोंवक एक र्ी और तनख्वाह ले नेवाले उम्मीदवार बहत, इसवलए क्षि-भर में झाडू
के पुजे उड गए। वजतनी सींके वजसके हार् पडी, वह उनसे ही उलटे -सीधे हार् मारने
लगा । अम्मा ने वसर पीट वलया । भई बुजुगय काम करने दें तो इं सान काम करे । जब
ज़रा-ज़रा सी बात पर टोकने लगे तो बस, हो चुका काम !

प्रश् 1

क) सारा घर धूल से क्ों अट गया ?

ि) धूल उडने से क्ा हआ ?


ग) बच्चों का काम करने के बारे में क्ा ववचार र्ा ?

घ) प्रिुत गद्ां श वकस पाठ से वलया गया है ?

ङ) वदए गए शब्दों के अर्य वलिो ।

1. बेदम 2. ि रन

पाठ से संबंवित प्रश्न

प्रश्-1. सोचे समझे वबना कायय करने से क्ा – क्ा हावनयााँ हो सकती हैं ?

प्रश्-2. घर से न करों को वनकालने का वनिय य क्ों वलया गया ?

प्रश्-3. काम करने के वलए बच्चों को क्ा प्रलोभन वदया गया?

प्रश्-4. झाडू के पुजे-पुजे क्ों उड गए?

प्रश्-5. बच्चे सारा वदन क्ा करते र्े ?

प्रश्-6. दरी पर पानी डालने का क्ा नतीजा हआ?

प्रश्-7. कीचड में लर्पर् बच्चों को नहलाने के वलए कहााँ से न कर बुलाए गए?

प्रश्-8. भेडों को मारने पर कैसा लगता है ?

प्रश्-9. अम्मा और अब्बा में वाद-वववाद के बाद क्ा तय हआ?

प्रश्-10. अब्बा का शाही िरमान क्ा र्ा?

प्रश्-11. बच्चों ने अंत में क्ा वनश्चय वकया?

प्रश्-12. झाडू दे ने से पहले ज़रा-सा पानी क्ों वछडक दे ना चावहए?

प्रश्-13. कहानी में अब्बा वमयााँ ने बच्चों को क्ा-क्ा काम बताए |

प्रश्-14. “जो काम नहीं करे गा, उसे रात का िाना हरवगज नहीं वमले गा |” अब्बा ने ऐसा
वकस उद्दे श्य से कहा?

प्रश्-15. पेड में पानी डालने के वलए घर के बतयनों की कैसी लू ट मची?

उत्तर-कंु जी

गद्यांश-1.

1. इस्मत चुगताई |
2. वाद-वववाद अम्मा और अब्बा के मध्य हो रहा र्ा |
3. अम्मा और अब्बा ने घर के सभी न करों को वनकालने का वनियय वलया |
4. मोटे -मोटे शब्द का प्रयोग बच्चों के वलए वकया गया क्ोंवक उनकी नजर में वें
पूियतया कामचोर है , केवल िाते -पीते व आराम करते हैं | घर का कोई काम नहीं
करते |
5. बच्चों के बीच घमासान युद्ध मटकों के पास ही शु रू हो गया |

गद्यांश-2.

1. अब्बा ने बच्चों को वहदायत दी वक कोई वकसी भी काम को हार् नहीं लगाएगा |


यवद लगाएगा तो उसे रात का िाना नहीं वदया जाएगा |
2. कोटय माशयल का अर्य है – शाही िरमान वजसका उल्लंघन नहीं वकया जा सकता |
3. बच्चों ने वनश्चय कर वलया वक अब वकसी भी काम को हार् नहीं लगाएाँ गे मेहनत
कर पानी भी नहीं वपएाँ गे |
4. बच्चों को रात
5. अम्मा ने मायके जाने की चुन ती दे डाली|

गद्यांश-3

क) बच्चों ने िशय पर वबछी दरी जो वमट्टी से सनी हई र्ी उसे झाडना शुरू वकया र्ा
इसवलए सारा घर धूल से अट गया ।

ि) धूल उङने से सारे घर में धूल ही धूल हो गई । सां स ले ना भी कवठन हो गया ।

ग) उनके काम को गलत कहा जाने लगा । ऐसे में उन्ोने कहा वक जब घर के बडे -बूढ़े
काम करने दें तो ही हम काम कर सकते हैं ।

घ) कामचोर

ङ) 1 बेदम- वनबयल 2 ि रन- तु रंत

पाठ से संबंवित प्रश्नों के उत्तर

1. जो व्यखक्त वबना सोचे-समझे कायय करता है , उसे बाद में पछताना पडता है |
ऐसा व्यखक्त काम तो वबगाडता ही है सार् ही वह हाँ सी का पात्र भी बनता है |
काम के वबगड जाने पर उसके मन को शाखि नहीं वमलती |
2. घर से न करों को वनकालने का वनियय इसवलए वलया गया तावक बच्चे अपना
काम स्वयं कर सके और उनमें काम करने की आदत का ववकास हो सके |
3. काम करने के वलए बच्चों को तनख्वाह दे ने का प्रलोभन वदया गया |
4. तनख्वाह का प्रलोभन दे ने से बच्चों के द्वारा िींचातानी से |
5. बच्चे सारा वदन ऊधम मचाने के अलावा कुछ नहीं करते र्े |
6. दरी पर पानी डालने का नतीजा यह हआ वक सारी धूल कीचड बन गई |
7. कीचड में लर्पर् बच्चों को नहलाने के वलए न कर पास के बंगलों से बुलाए
गए |
8. भेडों को मारने से ऐसा लगता है जै से रुई के तवकए को कूट रहे हो | भेड को
चोट ही नहीं लगती |
9. बडी दे र के वाद-वववाद के बाद यह तय हआ वक सचमुच न करों को वनकाल
वदया जाए |
10. अब्बा का शाही िरमान र्ा वक जो काम नहीं करे गा, उसे रात का िाना
हरवगज नहीं वमले गा |
11. बच्चों ने अंत में वनश्चय वकया वक अब चाहे कुछ भी हो वहलकर पानी भी
नहीं वपएाँ गे |
12. झाडू दे ने से पहले जरा- सा पानी वछडक दे ना इसवलए अच्छा होता है
क्ोंवक ऐसा करने से धूल नहीं उडती है |
13. अब्बा वमयााँ ने बच्चों को दरी साफ़ करना, आाँ गन में पडा कूडा िेंकना
और प धों में पानी दे ना जै से कुछ काम बताए |
14. घर के काम में सहयोग व स्वयं काम करने की आदत बच्चों में ववकवसत
करने के उद्दे श्य से अब्बा ने बच्चों को ऐसा कहा |
15. पेड में पानी डालने के वलए घर की बाखियााँ , लोटे , तसले , भगोने, पतीवलयााँ
लू ट ली गई | वजन्ें ये चीजें भी न वमली वें डोंगे, कटोरे और वगलास ही ले भागे
|

3. – जब वसनेमा ने बोलना सीिा

गद्ां श – 1

वें सभी सजीव हैं , सां स ले रहे हैं , शत – प्रवतशत बोल रहे हैं , अठहतर मुदाय इनसान
वजन्दा हो गए , उनको बोलते , बातें करते दे िो | दे श की पहली सवाक ( बोलती ) विल्म
‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर ववज्ञापन की ये पंखक्तयााँ वलिी हई र्ी | 14 माचय 1931 को
यह ऐवतहावसक तारीि भारतीय वसनेमा में बडे बदलाव का वदन र्ा | इसी वदन पहली
बार भारत के वसनेमा ने बोलना सीिा र्ा | हालााँ वक वह द र ऐसा र्ा जब मूक वसनेमा
लोकवप्रयता के वशिर पर र्ा | ‘पहली बोलती विल्म वजस साल प्रदवशयत हई , उसी साल
कई मूक विल्में भी वववभन्न भाषाओं में बनी | मगर बोलती विल्मों का नया द र शु रू हो
गया र्ा |

प्रश्-1. आलम आरा विल्म के पोस्टरों पर क्ा वलिा र्ा ?

प्रश्-2. 14 माचय 1931 को ऐवतहावसक तारीि क्ों माना जाता है ?

प्रश्-3. सवाक वफ़ल्में वकसे कहते हैं ?


प्रश्-4. सवाक विल्मों से पहले वकन विल्मों का प्रचलन र्ा?

प्रश्-5. आलम आरा विल्म में वकतने कलाकारों ने काम वकया र्ा?

गद्यांश-2.

विल्म की नावयका जु बैदा र्ी | नायक र्े ववट्ठल | वे उस द र के सवाय वधक पाररश्रवमक
पाने वाले स्टार र्े | उनके चयन को ले कर भी एक वकस्सा कािी चवचयत है | ववट्ठल को
उदू य बोलने में मुखिलें आती र्ी | पहले उनका बत र नायक चयन वकया गया मगर इसी
कमी के कारि उन्ें हटाकर उनकी जगह मेहबूब को नायक बना वदया गया | ववट्ठल
नाराज हो गए और अपना हक़ पाने के वलए उन्ोंने मुकदमा कर वदया |

उस द र में उनका मुकदमा मोहम्मद अली वजन्ना ने लडा जो तब के मशहूर वकील


हआ करते र्े | ववट्ठल मुकदमा जीते और भारत की पहली बोलती विल्म के नायक बने |
उनकी कामयाबी आगे भी जारी रही | मराठी और वहं दी विल्मों में वे लम्बे समय तक
नायक और स्टं टमैन के रूप में सविय रहे |

प्रश्-1. आलम आरा विल्म की नावयका क न र्ी?

प्रश्-2. आलम आरा विल्म के नायक क न र्े ?

प्रश्-3. मेहबूब को नायक क्ों बनाया गया र्ा?

प्रश्-4. ववट्ठल ने अपना हक़ पाने के वलए क्ा वकया?

प्रश्-5. ववट्ठल का मुकदमा वकसने लडा र्ा?

गद्ां श 3

प्रिुत गद्ां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर दीवजए ---

सवाक् वसनेमा के नए द र की शु रुआत कराने वाले वनमाय ता-वनदे शक अदे वशर इतने
ववनम्र र्े वक जब 1956 में ‘ आलम आरा ’के प्रदशय न के पच्चीस वषय पूरे होने पर उन्ें
सम्मावनत वकया गया और उन्ें भारतीय सवाक् विल्मों का वपता कहा गया तो उन्ोंने
उस म के पर कहा र्ा, मुझे इतना बडा खिताब दे ने की जरूरत नहीं है । मैंने तो दे श के
वलए अपने वहस्से का जरूरी योगदान वदया है ।

प्रश् 3

क) सवाक् विल्मों के नए द र की शु रुआत वकसने की ?

ि) अदे वशर को वकस सम्मान से सम्मावनत वकया गया ?

ग) पुरस्कृत होने पर अदे वशर ने क्ा कहा ?


घ) सवाक विल्मों से क्ा मतलब है ?

ङ) ‘आलम आरा विल्म’ कब प्रदवशयत हई ?

4.पाठ से संबंवित प्रश्न

प्रश्-1. आलम आरा विल्म के वलए आधार कहााँ से वमला?

प्रश्-2. 14 माचय 1931 की वतवर् का भारतीय वसनेमा के इवतहास में क्ा थर्ान है ?

प्रश्-3. विल्म में प्रकाश प्रिाली का जन्म कैसे हआ?

प्रश्-4. अदे वशर की कंपनी ने भारतीय वसनेमा को लगभग वकतनी वफ़ल्में बनाकर दी?

प्रश्-5. आलम आरा विल्म के नायक और नावयका के नाम वलखिए?

प्रश्-6. मेहबूब को ववट्ठल की जगह पर नायक के रूप में क्ों रिा गया?

प्रश्-7. आलम आरा विल्म को बनाने में वकतना समय लगा?

प्रश्-8. विल्म के 25 वषय पूरे होने पर अदे वशर को क्ा कहकर सम्मावनत वकया गया?

प्रश्-9. पहली बोलती विल्म बनाने के द रान विल्मकार को विल्म वनमाय ि से जुडे वकन
महत्त्वपूिय व्यखक्तयों के अभाव का सामना करना पडा?

प्रश् 10.: आलमआरा विल्म के संगीत में प्रयुक्त वाद्यंत्रों का नाम वलखिए।

प्रश् 11. : ले िक ने आलमआरा की तुलना वकस िेंटे सी विल्म से की है ?

प्रश् 12: आलमआरा विल्म को दशय कों ने क्ों पसन्द वकया, स्पष्ट कीवजए।

प्रश् 13: वसनेमा के सवाक् होने पर उसमें क्ा-क्ा पररवतय न हए?

प्रश्-14 'आलम आरा' के वनमाय ि में प्रयुक्त क न से प्रिाली आगे चलकर विल्म वनमाय ि
का जरुरी वहस्सा बनी?

प्रश्-15 दशय कों को 'आलम आरा' विल्म कैसी लगी?

प्रश् 5. नीचे वदए गए प्रश्ों को ध्यानपूवयक पढ़कर प्रश्ों के उत्तर दीवजए –

क) सवाक् शब्द से आप क्ा समझते हैं ?

ि) ‘आलम आरा ’विल्म में वकन वाद्यंत्रों का प्रयोग वकया गया ?

ग) विल्म वनमाय ता, अदे वशर की कंपनी ने लगभग वकतनी विल्मों का वनमाय ि वकया ?
घ) ‘स्टं टमैंन’ शब्द से आप क्ा समझते हैं ?

ङ) ‘आलम आरा’ विल्म कैसी र्ी ?

च) ‘आलम आरा’ विल्म के नायक-नावयका क न र्े ?

छ) िैन्टे सी शब्द से आप क्ा समझते हैं ?

ज) ‘वकरदार’ का क्ा अर्य है ?

झ) ‘िुदा की शान’ विल्म में वकस वकरदार की भूवमका र्ी ?

ञ) मूक विल्मों में कैसे अवभनेता का चयन होता र्ा ?

ट) वसनेमा ने वकस भाषा को बढ़ावा वदया गया ?

ठ) विल्मों का स्वरूप कैसे बदला ?

ड) भारतीय वसनेमा के जनक क न माने जाते हैं ?

ढ) िाल्के ने अदे वशर की वकस उपलखि को अपनाया ?

ि) विवटश सरकार सवाक् विल्मों के खिलाि क्ों र्ी ?

उत्तर-कंु जी

गद्यांश-1.

1. ‘आलम आरा विल्म के पोस्टरों पर वलिा र्ा,’ वें सभी सजीव हैं , सााँ स ले रहे हैं ,
शत – प्रवतशत बोल रहे हैं , अठहतर मुदाय इनसान वजन्दा हो गए, उनको बोलते ,
बातें करते दे िो |’
2. क्ोंवक इस वदन पहली बार भारतीय वसनेमा ने बोलना सीिा र्ा | पहली बोलने
वाली विल्म आलम आरा प्रदवशय त की गई र्ी |
3. वजन विल्मों में संवाद बोले जाते हैं , उन्ें सवाक वफ़ल्में कहा जाता है |
4. सवाक विल्मों से पहले मूक विल्मों का प्रचलन र्ा |
5. आलम आरा विल्म में अठहतर कलाकारों ने काम वकया र्ा |

गद्यांश-2.

1. आलम आरा विल्म की नावयका जु बैदा र्ी |

2. आलम आरा विल्म के नायक ववट्ठल र्े |

3. ववट्ठल को उदू य बोलनी नहीं आती र्ी इसवलए मेहबूब को नायक बनाया गया र्ा |

4. ववट्ठल ने अपना हक़ पाने के वलए मुकदमा कर वदया |


5. ववट्ठल का मुकदमा मोहम्मद अली वजन्ना ने लडा र्ा जो उस जमाने के मशहूर
वकील र्े |

गद्ां श 3

क) सवाक विल्मों के नए द र की शु रुआत वनमाय ता वनदे शक अदे वशर ने की ।

ि) अदे वशर को ‘भारतीय सवाक् विल्मों का वपता’ पुरस्कार से सम्मावनत वकया गया ।

ग) पुरस्कृत होने पर अदे वशर ने कहा – “मुझे इतना बडा खिताब दे ने की जरूरत नहीं
है । मैंने तो दे श के वलए अपने वहस्से का जरूरी योगदान वदया है ।”

घ) बोलने वाले कलाकारों की विल्म ।

ङ) ‘आलम आरा’ विल्म 1931 में प्रदवशय त हई ।

4.पाठ से संबंवित प्रश्नों के उत्तर

1. अदे वशर ने पारसी रं गमंच के लोकवप्रय नाटक को आधार बनाकर अपनी विल्म
आलम आरा की पटकर्ा का वनमाय ि वकया |
2. 14 माचय 1931 की वतवर् भारतीय वसनेमा के इवतहास में स्विय अक्षरों में वलिी
गई है | इस वदन प्रर्म सवाक विल्म आलम आरा का प्रदशय न मुंबई के
मैजेखस्टक वसनेमा हाल में हआ र्ा |
3. भारतीय इवतहास की पहली बोलती विल्म आलम आरा की शू वटं ग साउं ड के
कारि रात को करनी पडी र्ी | इसके वलए कृवत्रम प्रकाश की व्यवथर्ा करनी
पडी र्ी | यहीं से प्रकाश प्रिाली का जन्म हआ |
4. अदे वशर की कंपनी ने भारतीय वसनेमा को लगभग 150 से अवधक मूक और 100
से अवधक सवाक वफ़ल्में बनाकर दी |
5. आलम आरा विल्म के नायक ववट्ठल और नावयका जु बैदा र्ी |
6. मेहबूब को ववट्ठल की जगह पर नायक के रूप में इसवलए रिा गया क्ोंवक उन्ें
उदू य बोलने में परे शानी होती र्ी |
7. आलम आरा विल्म को बनाने में 4 महीने का समय लगा |

8. विल्म के 25 वषय पूरे होने पर अदे वशर को भारतीय सवाक विल्मों के वपता
कहकर सम्मावनत वकया गया |

9. पहली बोलती विल्म बनाने के द रान विल्मकार को विल्म वनमाय ि से जुडे


संवाद ले िक, गीतकार एवं संगीतकार जै से महत्त्वपूिय व्यखक्तयों के अभाव का सामना
करना पडा।

10. आलमआरा विल्म के संगीत में केवल तीन वाद्यंत्रों-हारमोवनयम, वायवलन एवं
तबला का प्रयोग वकया गया र्ा।
11. ले िक ने आलमआरा की तुलना ‘अरे वबयन नाइट् स’ नामक िैंटे सी विल्म से
की है ।

12. आलमआरा विल्म जब 14 माचय 1931 को मुम्बई के मैजेखस्टक वसनेमा में


प्रदवशय त हई तो यह विल्म इतनी लोकवप्रय हई वक लगातार 8 सप्ताह तक हाउसिुल
चली। इसे दे िने के वलए इतनी भीड उमडती वक भीड को वनयखित करने के वलए
पुवलस को कािी मेहनत करनी पडती। मूक वसनेमा दे िने के आदी दशय कों के वलए यह
वबलकुल ही नया अनुभव र्ा। इस विल्म की सिलता ने मूक वसनेमा के युग का अि
कर वदया।

13. वसनेमा के सवाक् होने पर सबसे पहला बदलाव यह हआ वक अब पढ़े -वलिे


अवभनेताओं-अवभनेवत्रयों की जरूरत महसूस की गई। अब उन्ें अवभनय के सार् संवाद
भी बोलना र्ा। इसी समय गायन प्रवतभा की कि बढ़ी तर्ा गायक अवभनेताओं का
आगमन हआ। इसके अलावा कृवत्रम प्रकाश व्यवथर्ा, गीत-संगीत आवद भी बेहतर रूप
में दशय कों को वमलने लगा।

14. 'आलम आरा' की शू वटं ग रात में होने के कारि इसमें कृवत्रम प्रकाश व्यवथर्ा
करनी पडी। यहीं से प्रकाश प्रिाली बनी जो आगे चल कर विल्म वनमाय ि का जरुरी
वहस्सा बनी।

15. दशयकों के वलए यह विल्म एक अनोिा अनुभव र्ी। यह विल्म 10 हज़ार िुट
लम्बी र्ी और इसे चार महीनों की कडी मेहनत से तै यार वकया गया र्ा। विल्म 8 सप्ताह
तक हाउसिुल चली और भीड इतनी उमडती र्ी वक पुवलस के वलए उसे वनयंवत्रत
करना मुखिल हो जाया करता र्ा।

प्रश्न 5.

क) यह शब्द वाक् शब्द से बना है वजसका अर्य है बोलना ‘स’ उपसगय लगने से हआ
सवाक् अर्य बोलने सवहत ।

ि) आलम आरा विल्म में तबला, हारमोवनयम और वायवलन का प्रयोग वकया गया है

ग) लगभग 150 मूक व 100 सवाक् विल्में बनाई ।

घ) ‘स्टं टमैंन’ शब्द का अर्य है करतब वदिाने वाला ।

ङ) ‘अरे वबयन नाइटस’ जै सी म ज-मिी की ।

च) नावयका जु बैदा और नायक िालके ।

छ) िैन्टसी शब्द का अर्य है म ज-मिी ।


ज) ’वकरदार’ शब्द का अर्य है भूवमका वनभाना ।

झ) िुदा की शान विल्म में महात्मा गााँ धी वकरदार की छाप र्ी ।

ञ) मूक विल्मों में पहलवान जै से शरीर वाले , करतब वदिाने वाले और उछलकूद
करने वाले ।

ट) वसनेमा ने वहन्दी-उदू य भाषा को बढ़ावा वदया ।

ठ) विल्में दै वनक व सावयजवनक जीवन का प्रवतवबंब प्रिुत करने लगी इस तरह विल्मों
का स्वरूप बदला ।

ड) भारतीय वसनेमा के जनक ‘िाल्के’ माने जाते हैं ।

ढ) िाल्के ने अदे वशर की नई उपलखि बोलते चलवचत्र को अपनाया ।

ि) सवाक् विल्मों की भाषा और वातावरि का सीधा प्रभाव जनता पर पडता र्ा


इसवलए विवटश सरकार सवाक् विल्मों के खिलाि र्ी ।

4. - सुदामा चररत

पद्ां श 1

प्रश् 1 - वनम्नवलखित पद्ां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर सही ववकल्प के आधार
पर दीवजए-

1. सीस पगा न झाँ गा तन में, प्रभु ! जाने को आवह बसे केवह ग्रामा ।

धोती िटी-सी लटी दु पटी, अरु पााँ य उपानह को नवहं सामा ॥

द्वार िडो वद्वज दु बयल एक, रह्यो चवकसों बसुधा अवभरामा ॥

पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा ॥

1. द्वारपाल श्री कॄष्ण को वकसके बारे में बताता है?


1. राज्य के बारे में
2. मंत्री के बारे में
3. सुदामा के बारे में
4. प्रजा के बारे में
2. सुदामा के वसर पर क्ा नहीं है ?
1. पगडी
2. बाल
3. चादर
4. मुकुट
3. पंखक्तयों में आए ‘बसुधा’ शब्द का क्ा अर्य है ?
1. महल
2. धोती
3. धरती
4. मनोहर
4.यहााँ दीनदयाल वकसे कहा गया है ?
1. सुदामा
2. श्री कृष्ण
3. द्वारपाल
4. मंत्री
पद्ां श 2

2- ऐसे बेहाल वबवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुवन जोए ।

हाय ! महादु ि पायो सिा, तु म आए इतै न वकतै वदन िोए ॥

दे खि सुदामा की दीन दसा, करुना कररकै करुनावनवध रोए।

पानी परात को हार् छु यो नवहं , नैनन के जल सों पग धोए ॥

1. सुदामा के पााँ वों में क्ा लगे र्े ?


1. कााँ टे
2. कंकड
3. कीडे
4. िूल
2. सुदामा वकसके सिा र्े?
1. मंत्री के
2. द्वारपाल के
3. श्री कृष्ण के
4. ग्रामवासी के
3. सुदामा की दशा दे िकर क न रोने लगा?
1. सैवनक
2. श्री कृष्ण
3. गााँ व वाले
4. द्वारपाल4श्री कृष्ण ने सुदामा के पैर वकससे धोए?
1. जल से
2. आाँ सुओं से
3. दू ध से
4. लस्सी से
1. 'पानी परात को हार् छु यो नवहं , नैनन के जल सों पग धोए' - मे क न सा अलं कार
है ?
1. अनुप्रास
2. अवतश्योखक्त
3. यमक
4. उपमा

प्रश् 3 – वनम्नवलखिवत प्रश्ो के उत्तर दीवजए-

1.
सुदामा वकस हाल में, श्री कृष्ण के पास गए र्े ?
2.
द्वारपाल ने श्री कृष्ण को क्ा बताया?
3.
सुदामा क न र्े ? वे श्री कृष्ण के पास क्ों गए र्े ?
4.
सुदामा वसुधा को चवकत होकर क्ों दे ि रहे र्े ?
5.
श्री कृष्ण ने सुदामा के पैर कैसे धोए?
6.
वकसने वकसके वलए सुदामा के माध्यम से उपहार भेजा र्ा? वह उपहार क्ा
र्ा?
7. सुदामा उस उपहार को क्ों वछपा रहे र्े ?
8. ‘चोरी की बान में ह ं जू प्रवीने’ कृष्ण ने ऐसा क्ों कहा?
9. श्री कृष्ण ने सुदामा द्वारा लाए गये उपहार को कैसा बताया?
10. सुदामा को कृष्ण और द्वारका की क न-क न सी बातें याद आ रहीं र्ी?
11. ‘कछू न जानी जात’ के माध्यम से सुदामा क्ा कहना चाहते र्े ?
12. कृष्ण के प्रवत सुदामा अपनी िीझ वकस प्रकार व्यक्त कर रहे र्े ?
13. ‘वैसोई राज-समाज कहााँ बने’ पंखक्त में ‘वैसोई’ शब्द क्ा संकेत करता है ?
14. यहााँ पाडे वकसके वलए प्रयुक्त है ? लोगों से क्ा पूछते विर रहे र्े ?
15. ‘कै पग में पनही न हती’ सुदामा वक वकस खथर्वत की ओर संकेत करती है ?
1. उत्तर-कंु जी

उत्तर-1 पद्ां श 1 – 1 (ग)


2 (क)
3 (ग)
4 (क)

पद्ां श 2- 1 (क)
2 (ग)
3 (ि)

4 (ि)
5 (ि)

उत्तर 3- 1. सुदामा के शरीर पर न कुताय र्ा और न वसर पर पगडी । उनके पैरों में जू ते
भी नहीं र्े , इसी हाल में वह श्री कृष्ण के पास पहाँ चे ।

2. द्वारपाल ने श्री कृष्ण से सुदामा की िटे हाली के बारे में बताया और विर कहा
वक दरवाजे पर िडा दु बयल िाह्मि अपना नाम सुदामा बताते हए आपका भवन पूछ
रहा है ।

3. सुदामा एक गरीब िाह्मि र्े । वे श्री कृष्ण के बचपन के वमत्र र्े जो अपनी
गरीबी से ऊबकर उनके पास कुछ मदद के वलए गए र्े ।

4. सुदामा गााँ व के रहने वाले र्े। उनके आसपास ऐसा स दं यय दु लयभ र्ा, इसवलए
वह वसुधा को चवकत हो दे ि रहे र्े ।

5. श्री कृष्ण ने सुदामा के पैरों को धोने के वलए परात के पानी को छु आ नहीं।


उन्ोंने आाँ िों से वगरते आसुओं से ही उनका पै र धो वदया।

6. सुदामा की पत्नी ने सुदामा के माध्यम से उनके वमत्र श्री कृष्ण के पास उपहार
भेजा र्ा। वह उपहार स्वरूप चावल लाए र्े।

7. सुदामा उस उपहार (चवाल) को इसवलए वछपा रहे र्े क्ोंवक कहााँ द्वारकाधीश
कृष्ण और ये सूिे चावल । उन्ें उपहार में इतनी तु च्छ विु कैसे दें ।

8. सुदामा बचपन में गुरुमाता द्वारा वदए गए चने चुपके से अकेले िा गए र्े , और
वे चावल की पोटली विर वछपा रहे र्े , इसवलए उन्ोंने ऐसा कहा।

9. कृष्ण ने सुदामा के लाए चावलों को प्रेम रुपी अमृत से सना हआ बहत ही


स्वावदष्ट बताया।

10. सुदामा को दे िते ही कृष्ण का िुशी से भर उठना, उन्ें गले लगाना,


वसंहासन पर वबठाना, पै र धोना, इतना आदर-सम्मान दे ना याद आ रहा र्ा।

11. सुदामा ने ‘कछू न जानी जात’ के माध्यम से यह कहना चहाते र्े वक श्री कृष्ण
ने ववदा करते समय यह भी ध्यान न रिा वक िाह्मि को िाली हार् ववदा नहीं करते हैं ।

12. सुदामा कह रहे र्े वक अरे यह वही कृष्ण है जो बचपन में जरा-सी दही
मााँ गता-विरता र्ा। क्ा हआ जो वह आज द्वारकाधीश बन गया है ।
13. वैसे ही राज-समाज सुदामा के गााँव में बने र्े । यह ‘वैसोई’ शब्द द्वारका जै से
राज प्रासाद, वैभव, समृखद्ध आवद की ओर संकेत करता है ।

14. यहााँ ‘पाडे ’ शब्द िाह्मि सुदामा के वलए प्रयुक्त है । वे लोगों से अपनी झोंपडी
के बारे में पूछ रहे र्े , वजसे वे िोज-नहीं पा रहे र्े ।

15. इस पंखक्त के माध्यम से सुदामा की पहले वाली ववपन्नता की ओर संकेत


वकया गया है ।

5. -जहााँ पवहया है
गद्यांश 1

प्रश् 1 – वनम्नवलखित गद्ां शों को पढ़्कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर सही ववकल्प के आधार
पर दीवजए-

साइवकल चलाना एक सामावजक आं दोलन है ? कुछ अजीब-सी बात है -है न! ले वकन


चक ं ने की बात नहीं है । पुडुकोट्टई वजले की हजारों नवसाक्षर ग्रामीि मवहलाओं के वलए
यह अब आम बात है । अपने वपछडे पन पर लात मारने, अपना ववरोध व्यक्त करने और
उन जं जीरों को तोडने का वजनमें वे जकडे हए हैं , कोई-न-कोई तरीका वनकाल ही ले ते
हैं । कभी-कभी ये तरीके अजीबो-गरीब होते हैं ।

1. पुडुकोट्टई वजले में साइवकल चलाने का कैसा आं दोलन चला?


1. राष्टरीय आं दोलन
2. सामावजक आं दोलन
3. धावमयक आं दोलन
4. प्रादे वशक आं दोलन
2साइवकल चलाना ‘सामावजक आं दोलन’ क्ों बन गया?
1. समाज ने खियों को साइवकल चलाने की अनुमवत दी।
2. सभी क्षेत्रों की खियााँ साइवकल चलाने की ओर अग्रसर हई।
3. सभी क्षेत्रों को सरकार की ओर से साइवकल दी गई।
4. इनमें से कोई नहीं।
3.‘नवसाक्षर’ शब्द से क्ा तात्पयय है ?
1. नया सीिने वाला
2. न लोग सीिने वाले
3. नया पढ़ने वाला
4. नया साइवकल चलाने वाला
4. साइवकल चलाने ने यहााँ की मवहलाओं को कैसे प्रभाववत वकया?
1. अब समाज में उनका प्रभुत्व पुरुषों से बढ़ गया।
2. अब वे अपने सभी कायय स्वयं करने लगीं।
3. मवहलाओं को ऐसा लगा वक वे अपने वपछडे पन की जं जीरें तोडकर स्वच्छं दता
वक ओर बढ़ रही हैं ।
4. वे पुरुषों से आगे वनकल गईं।
5. समाज के लोग अपने तरीके क्ों वनकालते हैं ?
1. उन्नवत की ओर बढ़ने के वलए
2. नवीनीकरि को अपनाने के वलए
3. रूवढ़वावदता को अपनाने के वलए
4. वदए गए सभी।

गद्ां श 2

2- साइवकल प्रवशक्षि से मवहलाओं के अंदर आत्मसम्मान की भावना पैदा हई है यह


बहत महत्वपूिय है । िावतमा का कहना है – “बेशक, यह मामला केवल आवर्य क नहीं
है ।“ िावतमा ने यह बात इस तरह कही वजससे मुझे लगा वक मैं वकतनी मूियतापूिय ढं ग
से सोच रहा र्ा। उसने आगे कहा –“साइवकल चलाने से मेरी क न सी कमाई होती है । मैं
तो पैसे ही गाँवाती हूाँ । मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं वक मैं साइवकल िरीद सकूाँ। ले वकन हर
शाम मैं वकराए पर साइवकल लेती हूाँ तावक मैं आजादी ओर िुशहाली का अनुभव कर
सकूाँ।“ पुडुकोट्टई पहाँ चने से पहले मैंने इस ववनम्र सवारी के बारे में कभी इस तरह सोचा
ही नहीं र्ा। मैंने कभी साइवकल को आजादी का प्रतीक नहीं समझा र्ा।

1. साइवकल प्रवशक्षि मे मवहलाओं में क्ा बदलाव आया?


1. आत्मवनभयरता बढ़ गई।
2. आत्मसम्मान की भावना जागी।
3. वे स्वयं को स्वच्छं द समझने लगीं।
4. वदए गए सभी।
2. मवहलाओं के साइवकल चलाने के बारे में ले िक की क्ा सोच र्ी?
1. आवर्य क दृवष्ट से सुदृढ़ व आत्मावनभयरता होना।
2. पुरुषों से अलग रहने में भी संकोच न करना।
3. प्रभुत्व जमाना
4. इनमें से कोई नहीं।
3. िावतमा ने ले िक को क्ा कहा?
1. समाज अब िी से सुदृढ़ व आत्मवनभयरता होना।
2. मवहलाएाँ साइवकल चलाने से आवर्य क संपन्नता के सार्-सार् आजादी व
िुशहाली का अनुभव करती हैं ।
3. वे अब वनडर हो गई हैं ।
4. अब बे कभी रूवढ़वावदता की जंजीरों में नहीं बाँधेंगी।
4.ले िक की सोच में क्ा पररवतय न आया?
1. अब मवहलाएाँ पुरुषों का मुकाबला पूरी तरह से करें गी।
2. अब पुडुकोट्टई िूब उन्नवत करे गा।
3. साइवकल चलाना केवल मवहलाओं के आनंद का नहीं बखल्क आजादी का
प्रतीक है ।
4. अब इस गााँ व में आवर्यक संपन्नता आ जाएगी।
5. िावतमा साइवकल कैसे चलाती र्ी?
1.नई िरीदकर
2.वकराए पर ले कर
3.अपनी सहे वलयों से मााँ गकर
4.धीरे -धीरे डर-डर कर

प्रश् 3 – वनम्नवलखित प्रश्ों के उत्तर दीवजए-

1. इस पाठ में वकस थर्ान का विय न है और क्ों?


2. साइवकल चलाने को सामावजक आं दोलन क्ों कहा गाया है ?
3. इस पाठ के आधार पर ‘नवसाक्षर’का अर्य स्पष्ट कीवजए ।
4. यहााँ की मवहलाओं पर इस आं दोलन का क्ा प्रभाव पडा।
5. जमीला क न है ? साइवकल सीिने से उसे क्ा लाभ हआ?
6. साइवकल चलाने का लाभ वकस-वकस वगय की मवहलाएाँ उठा रही हैं ?
7 साइवकल चलाने का संबंध मवहलाओं वक व्यखक्तगत आजादी से वकस तरह जुडा है ?
8 साइवकल प्रवशक्षि वशववर दे िने को असाधारि अनुभव क्ों कहा गया है ?
9 क न-सी मवहलाएाँ और कहााँ एकवत्रत हई र्ी?
10 साइवकल चलाना सीिने से मवहलाओं को क्ा लाभ हआ?
11 ले िक ने यहााँ वकस मामले में पुरुषों की राय जाननी चाही है ?
12 मवहलाएाँ जें ट्स साइवकलें क्ों िरीदने लगीं?
13 साइवकल चलाना सीिकर मवहलाएाँ क्ा बदलाव महसूस करने लगी हैं ?
14 िावतमा हर शाम वकराए पर साइवकल क्ों ले ती र्ी?
15 ले िक को अपनी सोची क न-सी बात मूियतापूिय लगी?
1. उत्तर-कंु जी
जहां पवहया है
जहां पवहया है
उत्तर 2- गद्ां श 1- 1 (ि)
2 (ि)
3 (क)
4 (ग)
5 (घ)
गद्ां श 2 – 1 (घ)
2 (क)
3 (ि)
4 (क)
5 (ि)
उत्तर 4-1. इस पाठ में पुडुकोट्टई नामक थर्ान का विय न है क्ोंवक यहााँ की
मवहलाओं ने साइवकल चलाना सीिना शु रू कर वदया। यह थर्ान तवमलनाडु में
है ।
2. साइवकल चलाने को सामावजक आं दोलन कहा गया है क्ोंवक यहााँ की
अवधकतर मवहलाएाँ साइवकल सीिने के वलए आतु र एवं अग्रसर हो उठी।
3. यहााँ ‘नवसाक्षर’ शब्द का अर्य वे मवहलाएाँ वजन्ोंने साइवकल चलाना
अभी जल्दी में सीिा है।
4. इस आं दोलन के प्रभाव से यहााँ की मवहलाओं का वपछडापन दू र हआ
है । उनकी आजादी का दायरा बढ़ा है और उन्ोंने अपने बंधनों को तोडा है ।
5. जमीला पुडुकोट्टई की नवसाक्षर युवती है । साइवकल चलाना सीिने के
कारि अब वह कभी भी आ-जा सकती है । उसे अब बसों का इं तजार नहीं करना
पडता है ।
6. साइवकल चलाना सीिकर िेवतहर मजदू र, पत्थर िदानों में काम
करने वाली औरतें , गााँव में काम करने वाली नसें, बालबाडी काययकत्ताय , ग्राम
सेववकाएाँ और अध्यावपकाएाँ इसका लाभ उठा रही हैं ।
7. साइवकल चलाना सीिकर मवहलाएाँ कहीं भी आने-जाने को स्वतं त्र है ।
वे अपने बचे समय का उपयोग अपनी मजी से कर सकती हैं । इस प्रकार
मवहलाओं की आजादी से इसका सीधा संबंध है ।
8. साइवकल प्रवशक्षि वशववर में इतनी मवहलाओं को एक सार् इकट्ठा तर्ा
उनमें साइवकल सीिने की असाधारि उमंग वदिाई पडी जो असाधारि अनुभव
र्ा।
9. वे मवहलाएाँ वजनमें साइवकल चलाना सीिने की प्रबल अवभलाषा र्ी वे
वकलाकुरुवच गााँ व में इकट्ठी हई।
10. साइवकल चलाना सीिने से मवहलाएाँ अपनी वजं दगी के परं परागत ढं ग
को बदल सकी। इससे उनकी व्यखक्तगत आजादी बढ़ी।
11. ले िक ने यहााँ मवहलाओं के साइवकल चलाना सीिने का मामला
वकतना उवचत है , वकतना अनुवचत, इस पर पुरुषों की राय जाननी चाही है ।
12. मवहलाएाँ लेडीज साइवकल आने का इं तजार नहीं कर सकती र्ी।
उनमें सीिने की आतु रता र्ी, इसवलए वे जें टस साइवकलें िरीदने लगीं।
13. साइवकल चलाना सीिकर मवहलाएाँ आजादी का अनुभव करने लगी
है । वे कामकाज पर अवधक ध्यान दे कर आवर्यक रूप से सुदृढ़ हो गई हैं ।
14. िावतमा हर शाम वकराए पर साइवकल इसवलए लेती है वजससे वह
आजादी और िुशहाली का अनुभव कर सके।
15. ले िक सोचता र्ी वक मवहलाएाँ साइवकल चलाना सीिकर कुछ पैसे
ही तो कमाती होंगी पर जब उसने आजादी वाली बात सुनी तो उसे अपनी सोची
बात मूियतापूिय लगी।

6. अकबरी लोटा
पवठत गद्यांश
गद्यांश -1
लोटे ने दाएाँ दे िा न बाएाँ , वह नीचे गली की ओर चल पडा | अपने वेग में उल्का को
लजाता हआ वह आाँ िों से ओझल हो गया | वकसी जमाने में न्यूटन नाम के वकसी
िुरािाती ने पृथ्वी की आकषयि शखक्त नाम की एक चीज ईजाद की र्ी | कहना न होगा
वक यह सारी शखक्त इस समय लोटे के पक्ष में र्ी |
प्रश्
प्रश्१: यहााँ वकस लोटे का विय न है ?
प्रश्:२ लोटे की चाल के बारे में गद्ांश में क्ा बताया गया है ?
प्रश्३: न्यू टन क न र्ा ?
प्रश्४: न्यू टन ने क्ा िोज की र्ी ?
प्रश्५: ‘उल्का को लजाता हआ’ से क्ा तात्पयय है ?
गद्यांश -२
इसी समय प. वबलवासी वमश्र भीड को चीरते हए आाँ गन में आते वदिाई पडे | उन्ोंने
आते ही पहला काम यह वकया वक उस अंग्रेज को छोडकर ओर वजतने आदमी आाँ गन
में घुस आए र्े , सबको बाहर वनकाल वदया | विर आाँ गन में कुसी रिकर उन्ोंने साहब
से कहा – “आपके पैर में शायद कुछ चोट आ गई है | अब आप आराम से कुसी पर बैठ
जाइए|”
1. वबलवासी वमश्र क न र्े ?
2. वबलवासी वमश्र वकस समय आए ?
3. साहब वकसे कहा गया है ?
4. आते ही वबलवासी वमश्र ने क न-सा बुखद्धमानी का काम वकया?
5. वबलवासी ने साहब का िोध शां त करने के वलए क्ा वकया ?
गद्यांश 3
"आप इस लोटे को रद्दी बताते हैं ? आश्चयय ! मैं तो आपको एक ववज्ञ और सुवशवक्षत
आदमी समझता र्ा।"
"आखिर बात क्ा है , कुछ बताइए भी ।"
"जनाब यह एक ऐवतहावसक लोटा जान पडता है । जान क्ा पडता है मुझे पूरा
ववश्वास है । यह वह प्रवसद्ध अकबरी लोटा है , वजसकी तलाश में संसार भर के म्यूवजयम
परे शान हैं ।"
प्रश्
क ) गद्ां श के अनुसार यहां वकस लोटे की बात हो रही है ।
ि ) क न लोटे को रद्दी बता रहा र्ा और क्ों ?
ग) क न, वकसे ववज्ञ आदमी समझ रहा र्ा ? यह बात उन्ोंने वकस भाव से कही ?
घ ) वकसने लोटे को ऐवतहावसक कहा और क्ों?
ङ ) अकबरी लोटा कहकर लोटे की वकस ववशेषता की तरि संकेत वकया गया है ?
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश् 1.“लाला ने लोटा ले वलया , बोले कुछ नहीं , अपनी पत्नी का अदब मानते र्े ।”
प्रश् 2. “लाला झाउलाल जी ने ि रन दो और दो जोडकर खथर्वत को समझ वलया।’’
आपके ववचार से लाला झाउलाल ने क न-क न सी बातें समझ ली होंगी ?
प्रश् 3. अंग्रेज़ के सामने वबलवासी जी ने झाऊलाल को पहचानने तक से क्ों इनकार
कर वदया र्ा ? आपके ववचार से वबलवासी जी ऐसा अजीब व्यवहार क्ों कर रहे र्े ?
स्पष्ट कीवजए।
प्रश् 4. वबलवासी जी ने रुपयों का प्रबंध कहााँ से वकया र्ा ? वलखिए।
प्रश् 5. आपके ववचार में अंग्रेज ने वह पुराना लोटा क्ों िरीद वलया ? आपस में चचाय
करके वािववक कारि की िोज कीवजए और वलखिए।
प्रश् 6. वबलवासी जी के चररत्र से तु म्हें क्ा वशक्षा वमलती है ?
प्रश् 7. कहानी के आधार पर स्पष्ट कीवजए वक वववेक से हर समस्या का हल हो जाता है ।
प्रश् 8. इस कहानी के वलए 'अकबरी लोटा' शीषयक की सार्य कता पर अपने ववचार
वलखिए ।
प्रश् 9. : वजू करना क्ा है ?
प्रश् 10. यह कहानी आज के युवाओं को क्ा सन्दे श दे ती है ?

अनुमान और कल्पना

प्रश् 1 .“इस भेद को मेरे वसवाय मेरा ईश्वर ही जानता है । आप उसी से पूछ लीवजए मैं
नहीं बताऊंगा” वबलवासी जी ने यह बात वकससे और क्ों कहीं ? वलखिए।
प्रश् 2.उस वदन रावत्र में वबलवासी जी को दे र तक नींद नहीं आई।”
क्या होता यवद

प्रश् 1. अंग्रेज़ लोटा न िरीदता ?


प्रश् 2. यवद अंग्रेज़ पुवलस को बुला लेता ?
प्रश् 3. जब वबलवासी अपनी पत्नी के गले से चाबी वनकाल रहे र्े , तभी उनकी पत्नी जाग
जाती तो ?
1. उत्तर-कंु जी

अकबरी लोटा

गद्यांश -1
1. उत्तर – अकबरी लोटे का |
2. उत्तर- लोटे की चाल आकाशीय वपंड से टू टे उल्का के समान र्ी |
3. उत्तर – एक वैज्ञावनक र्ा |
4. उत्तर – पृथ्वी के गुरुत्वाकषयि शखक्त की िोज की र्ी |
5. उत्तर- उल्का (आकाशीय वपंड )की रफ़्तार से भी ते ज |
गद्यांश -2

1. उत्तर – लाला झाऊलाल के वमत्र र्े |


2. उत्तर – जब चोट िाई तो अंग्रेज गावलयााँ दे ता हआ अंदर आ गया र्ा |
3. उत्तर – अंग्रेज को |
4. उत्तर – अंग्रेज को छोडकर बाक़ी सभी को बाहर वनकाला |
5. उत्तर – उसे कुसी पर बैठाया और कहा शायद आपको कुछ चोट आ गई है |
गद्यांश 3
उत्तर क : यहां उस लोटे की बात हो रही है वजस लोटे से अंग्रेज को चोट लगी र्ी तर्ा
वजसके पानी से वह भीग गया र्ा।
उत्तर ि. लोटे को अंग्रेज रद्दी बता रहा र्ा क्ोंवक वह पुराना र्ा और बेढंगा भी र्ा ।
उत्तर ग. वबलवासी वमश्र उस अंग्रेज को ववज्ञ समझ रहे र्े । यह बात उन्ोंने व्यंग्य के
भाव से कही ?
उत्तर घ. अंग्रेज की नजर में उस लोटे को महत्व दे ने के वलए वबलवासी जी ने उसे
ऐवतहावसक कहा र्ा तावक उस अंग्रेज की नजरों में उसका महत्व बढ़ जाए।
उत्तर ड अकबरी लोटा कहकर उसके मुगल काल से संबंवधत होने के बारे में बताया
गया है । इससे उसके शाही घराने से संबंध का ज्ञान भी होता है ।

पाठ्यपुिक के प्रश्ोत्तर
1. उत्तर – लाला झाऊलाल को वह बेढंगा व बदसूरत लोटा वबलकुल पसंद नहीं
र्ा। विर भी उन्ोंने अपनी पत्नी के हार् से चुपचाप लोटा ले वलया क्ोंवक वे
अपनी पत्नी के स्वभाव से अच्छी तरह से पररवचत र्े। वो ये अच्छी तरह से जानते
र्े वक अभी तो लोटे में पानी वमला है । अगर र्ोडे से भी निरे वदिाये तो भोजन
बािी में भी करना पड सकता हैं । इसीवलए उन्ें चुप रहने में ही समझदारी
वदिी।
2. उत्तर –लोटे के गली में वगरने के र्ोडी दे र बाद ही शोर मचाती एक बडी सी भीड
लालाजी के आं गन में घुस आई र्ी और उसी भीड के सार्-सार् पानी से भीगा
हआ एक अंग्रेज अपने पैर को र्ामे , गावलयां करता हआ लाला जी के सामने
पहं च गया। उसे दे िकर लाला जी को सारी बात समझ में आ गई वक लोटा
जाकर सीधे इस अंग्रेज को लगा हैं । इसीवलए उन्ोंने चुप रहने में ही अपनी भलाई
समझी।
3. उत्तर – उस अजीब सी पररखथर्वत में भी वबलवासी जी को लालाजी की समस्या
हल करने की योजना सूझी। ऐसे में अगर वो लालाजी को अपना पररवचत बताते
तो उनकी पैसों की समस्या हल नहीं हो पाती। इसीवलए उन्ोंने अपनी योजना
के तहत ही अंग्रेज के सामने अजीब सा व्यवहार करना शु रू कर वदया। लालाजी
को अपशब्द कहने शुरू कर वदए। उनके इस नाटक से अंग्रेज को उन पर जरा
सा भी संदेह नहीं हआ और उनकी योजना भी आसानी से सिल हो गई।
4. उत्तर –वबलवासी जी ने 250/-रूपये का प्रबंध अपनी पत्नी के संदूक से चोरी कर
वकया र्ा। ले वकन योजना सिल होने के बाद जब लालाजी की समस्या हल हो
गई तो , पंवडत जी ने वो पैसे ईमानदारी से अपनी पत्नी के संदूक में वापस रि
वदए।
5. उत्तर – उस अंग्रेज ऑविसर को पुरानी व ऐवतहावसक चीजों को इकट्ठा करने का
श क तो र्ा ही , सार् में वह अपने पडोसी मेजर डगलस को भी नीचा वदिाना
चाहता र्ा। मेजर डगलस के पास एक जहां गीरी अंडा र्ा वजसे वदिाकर वह
अक्सर उस अंग्रेज पर र ब जमाता र्ा। इसीवलए अंग्रेज ने इसे अकबरी लोटा
समझकर 500/- रूपये में िरीद वलया।
6. उत्तर : वबलवासी जी के चररत्र से हमें यह वशक्षा वमलती है वक हमें मुसीबत में
िंसे वमत्र की सहायता अवश्य करनी चावहए। यवद उसके वलए हमें परे शानी
उठानी भी पडे तो भी इसकी वचंता नहीं करनी चावहए।
7. उत्तर : यह सच है की वववेक से हर समस्या का हल िोजा जा सकता है । यह
कहानी से भली-भां वत स्पष्ट हो जाता है । वबलवासी वमश्र ने समय पर अपने वववेक
का प्रयोग वकया । उन्ोंने लाला जी को न केवल र्ाने जाने से बचाया बखल्क
उनकी जरूरत से अवधक पैसों का प्रबंध भी कर वदया।
8. उत्तर : इस कहानी के वलए अकबरी लोटा शीषयक पर ववचार करने से पता चलता
है की यह कहानी बेढ़ब आकार वाले लोटे से शुरू होती है , वजसे लाला
झाऊलाल दे िना भी पसंद नहीं करते । यही लोटा एक अंग्रेज के पैर पर वगर कर
उनके वलए मुसीबत बन जाता है , तो यही लोटा ऐवतहावसक अकबरी लोटा के
नाम से वबककर लाला झाऊलाल की समस्या से अवधक पैसा वदला दे ता है |
सारी कहानी इसी ल टे के इदय -वगदय घूमती है | कहानी में जहां गीरी अंडे का भी
प्रसंग है पर वह बहत संवक्षप्त है । इस कहानी के वलए यह शीषयक
पूियतया सार्यक व उपयुक्त है ।
9. उत्तर-नमाज पढ़ने से पहले मुसलमान अपने हार् पैर धोते है वजसे वजू करना
कहते हैं |
10. उत्तर : यह कहानी सन्दे श दे ती है वक वािववकता और सच्चाई को जाने
वबना ,ववदे शी ले बल दे िकर विुओं को िरीदने के वलए लालावयत नहीं होना
चावहए अन्यर्ा उन्ें नुकसान उठाना पड सकता है |

अनुमान और कल्पना
उत्तर 1 – लाला झाऊलाल के वबलवासी जी से यह पूछने पर वक “पैसों का इं तजाम
कहााँ से वकया”।तब यह बात वबलवासी जी ने लाला झाऊलाल से कहीं र्ी। दरअसल
वबलवासी जी ने वो पैसे अपनी पत्नी के संदूक से चुराए र्े। और वो यह बात लाला जी को
नहीं बताना चाहते र्े।
उत्तर 2. – उस रात वबलवासी जी को दे र रात तक नींद नहीं आई क्ोंवक उन्ोंने अपनी
पत्नी के संदूक से 250 /- रूपये चुराए र्े और समस्या हल हो जाने के बाद वो उन पैसों
को वापस अपनी पत्नी के संदूक में रिना चाहते र्े। ले वकन संदूक की चाबी पत्नी के गले
में पडी वसगडी में बंधी र्ी । वजसे वो पत्नी के सो जाने के बाद ही वनकाल सकते र्े।
इसीवलए वे अपनी पत्नी के सोने का इं तजार कर रहे र्े । जब उनकी पत्नी सो गई तब
उन्ोंने चाबी वनकाली और संदूक िोल कर पैसे वापस उसमें रि वदए।

उत्तर 3– लालाजी की पत्नी , लालाजी की “वादा करके मुकर जाने की आदत” से अच्छी
तरह से वावकि र्ी। इसीवलए वह उन पर भरोसा नहीं कर पा रही र्ी वक लालाजी उन्ें
वािव में पैसे दें गे ही दें गे ।वह इस बार कोई धोिा नहीं िाना चाहती र्ी। इसवलए वह
इस बात को पक्का कर ले ना चाहती र्ी वक लालाजी पैसे दें गे या नहीं।

क्या होता यवद ?


उत्तर – दो बातें हो सकती हैं ।
1 . वबलवासी जी को अपनी पत्नी से चुराए हए पैसों से लाला झाऊलाल की समस्या हल
करनी पडती।
Ii . लाला झाऊलाल अपनी पत्नी को पैसे नहीं दे पाते तो , उन्ें अपनी पत्नी के सामने
बेइज्जत होना पडता ।
उत्तर2. – पूरी सम्भवना र्ी वक लाला झाऊलाल को वगरफ्तार कर वलया जाता।
उत्तर 3. उत्तर – पत्नी चोरी का इल्जाम उन पर अवश्य लगाती। और उन्ें अपनी पत्नी के
सामने शवमिंदा होना पडता और संभवत: पत्नी से मािी भी मां गनी पडती ।
7.सूरदास के पद (कविता)

काव्यां श आधाररत प्रश्ोत्तर ----

काव्ांश---1

*वनम्नवलखित काव्यां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर वलिें ---

मैया ,कबवहं बढ़े गी चोटी ?

वकती बार मोवह दू ध वपयत भई ,यह अजहूाँ है छोटी |

तू जो कहवत बल की बनी ज्यों ,ह्वे है लां बी-मोटी |

काढ़त-गुहत न्वावत जै है ,नावगनी सी भुईं लोटी |

कां चो दू ध वपयावत पवच -पवच, दे वत न मािन-रोटी |

सूर वचरजीव दोउ भैया ,हरर-हलधर की जोटी |

प्रश्—1—इस पद में क न, वकससे , क्ा पूछ रहा है ?

प्रश्-2- माता यशोदा ने कृष्ण को क्ा बताया र्ा ?

प्रश्—3-माता यशोदा बालक कृष्ण को क्ा दे ती र्ीं ?

प्रश्-4-काव्यां श में वकस जोडी की बात की गई है ?

प्रश्-5—काव्यां श वकस भाषा में वलिा गया है ?

काव्ांश -2

* वनम्नवलखित काव्यां श को पढ़कर पूछे गए प्रश्ों के उत्तर वलिें ----

ते रैं लाल मेर मािन िाय |

दु पहर वदवस जावन घर सूनो ढू ाँ वढं -ढं ढोरर आपही आय |

िोवल वकवारर ,पैवठ मंवदर मै,दू ध-दही सब सिवन िवाय |

ऊिल चवढ, सींके को लीन्ों ,अनभावत भुइं मैं ढरकाय |

वदन प्रवत हावन होवत गोरस की ,यह ढोटा क नें रं ग लाय |


सूर स्याम को हटवक न रािैं तैं ही पूत अनोिो जाय |

प्रश्-1- क न, वकसके पास ,वकसकी वशकायत लेकर गया ?

प्रश्-2- कृष्ण ने एक गोपी के घर क्ा वकया ?

प्रश् –3—गोपी ने कृष्ण पर क्ा आरोप लगाया ?

प्रश् –4—क्ा बालक कृष्ण अकेले ही सारा मािन िा जाते र्े?

प्रश्—5—‘दू ध-दही’ में क न-सा समास है ?

पाठ आधाररत प्रश् (सूरदास के पद)

प्रश्—1. बालक कृष्ण माता यशोदा से क्ा पूछते है ?

प्रश्—2.बालक कृष्ण को वकस बात पर है रानी हो रही है ?

प्रश्-3.बालक कृष्ण को क्ा िाना पसंद र्ा ?

प्रश्—4. बालक कृष्ण वकससे और क्ा वशकायत कर रहे हैं ?

प्रश्.—5 —बलराम की चोटी की समानता वकससे की गई है ?

प्रश्—6— ‘हरर -हलधर’ वकन्ें कहा गया है ?

प्रश्-7- कवव सूरदास जी ने बालक कृष्ण और बलराम को क न-सा आशीवाय द वदया ?

प्रश्—8-एक गोपी मााँ यशोदा के पास क्ा वशकायत लेकर आई र्ी ?

प्रश्—9—गोपी ने वकस पर क्ा आरोप लगाया और क्ों ?

प्रश्—10—गोपी ने मााँ यशोदा पर क्ा व्यंग्य वकया ?

प्रश्—11—बालक कृष्ण मािन कैसे चुराते र्े ?

प्रश्-12—दू सरे पद में वकस विु की हावन की बात की गई है ? इस हावन का


वजम्मेदार वकसे ठहराया गया है ?

प्रश्—13—‘अनोिा’ ववशे षि वकसके वलए प्रयुक्त हआ है और क्ों ?

प्रश्—14—आप बालक कृष्ण के बारे में क्ा धारिा रिते हैं ?

प्रश्-15—आपके ववचार से बालक कृष्ण मािन की चोरी क्ों करते होंगे ?

1. उत्तर-कंु जी
2. सूरदास के पद

काव्यां श---1

उत्तर –1—बालक कृष्ण अपनी मााँ यशोदा से अपनी चोटी न बढ़ने का कारि पूछ रहे
हैं |

उत्तर-2- माता यशोदा ने कृष्ण को बताया र्ा वक वनत्यप्रवत दू ध का सेवन करने से


उनकी चोटी भी बलराम की चोटी की तरह ही लम्बी -मोटी हो जायेगी |

उत्तर-3- मााँ यशोदा बालक कृष्ण को दू ध पीने को दे तीं र्ीं |

उत्तर—4- काव्यां श में कृष्ण और बलराम की जोडी की बात की गई हैं |

उत्तर –5—काव्यां श िज भाषा में वलिा गया है |

काव्यां श—2

उत्तर-1- गोपी मााँ यशोदा के पास बालक कृष्ण की वशकायत ले कर गई |

उत्तर-2- कृष्ण ने उसके घर में घुस कर मािन की चोरी की |

उत्तर-3- गोपी ने कृष्ण पर मािन चोरी का आरोप लगाया |

उत्तर-4-नहीं,बालक कृष्ण सब सिाओं के सार् वमलकर मािन िाते र्े |

उत्तर-5-इसमें द्वं द्व समास है |

पाठ आिाररत प्रश्न (सूरदास के पद)

उत्तर—1—बालक कृष्ण माता यशोदा से यह प्रश् पूछते हैं वक उनकी चोटी कब


बढे गी उन्ें दू ध पीते-पीते बहत दे र हो गई है , ले वकन चोटी ज्यों की त्यों छोटी है |

उत्तर—2—बालक कृष्ण को मााँ यशोदा ने यह प्रलोभन वदया र्ा वक लगातार दू ध पीने से


उनकी चोटी बडे भाई बलराम की चोटी की तरह ही लम्बी और मोटी हो जायेगी , ले वकन
चोटी बलराम भाई की चोटी की तरह न तो लम्बी हई और न ही मोटी | यही उनकी
है रानी का कारि है वक मााँ यशोदा का कर्न असत्य सावबत क्ों हो रहा है |

उत्तर—3—बालक कृष्ण को मािन-रोटी िाना पसंद र्ा |

उत्तर—4—बालक कृष्ण मााँ यशोदा से चोटी न बढ़ने की वशकायत कर रहे हैं |

उत्तर—5 – बलराम की चोटी की समानता नावगन से की गई है |

उत्तर—6—हरर -हलधर कृष्ण और बलराम को कहा गया है |


उत्तर—7—कवव सूरदास जी ने बालक कृष्ण और बलराम को वचरकाल तक जीववत
रहने का आशीवाय द वदया |

उत्तर—8—एक गोपी मााँ यशोदा के पास बालक कृष्ण की वशकायत ले कर आयी र्ी
बालक कृष्ण वनत्यप्रवत उनके घर में अपने ग्वाल सिाओं को लेकर घुस जाते और
मािन को चुरा कर िा जाते र्े | इससे उस गोपी को बहत हावन हो रही र्ी |

उत्तर—9—गोपी ने बालक कृष्ण पर मािन चोरी का आरोप लगाया | वह बालक


कृष्ण वकए जा रहे इस नुक्सान से बहत दु िी र्ी| उसने मााँ यशोदा से इसकी वशकायत
करना उपयुक्त समझा|

उत्तर—10—गोपी ने मााँ यशोदा पर यह व्यंग्य वकया वक उसने एक ऐसे वववचत्र बालक


को जन्म वदया है जो अपने घर में भरपूर मािन उपलि होने पर भी दू सरों के घरों में
मािन की चोरी करता रहता है |

उत्तर—11—बालक कृष्ण अपने बाल सिाओं के सार् गोवपयों के घरों में दोपहर के
समय जा घुसते र्े | उस समय सभी गोवपयााँ दही-मािन बेचने के वलए चली जातीं र्ीं |
कृष्ण अपने वमत्रों के सहयोग से ऊिल पर चढ़ कर छींके तक जा पहाँ चते र्े | वहााँ टं गे
हए मािन के बतय न को उतार ले ते और उसमें रिे हए मािन को सभी सिाओं के सार्
वमलकर िाते र्े |

उत्तर—12 —दू सरे पद में गोरस की हावन की बात की गई है | इस हावन का वजम्मेदार


बालक कृष्ण को ठहराया गया है |

उत्तर—13—अनोिा ववशे षि बालक कृष्ण के वलए प्रयुक्त हआ है | चूाँवक पूरे गााँ व में
कृष्ण ही एक ऐसा बालक र्ा जो अपने घर में भरपूर मािन होने पर भी दू सरों के घरों से
मािन चुराया करता र्ा |

उत्तर—14—हम बालक कृष्ण की वियाओं को बाल-सुलभ मानते हैं | बालक स्वभाव से


ही वजज्ञासु होते हैं ,इसीवलए बालक कृष्ण को हैरानी होती है वक दू ध पीते रहने के
बावजू द भी उनकी चोटी क्ों नहीं बढ़ रही है ? बालक कृष्ण को मािन वप्रय र्ा | मााँ
यशोदा उन्ें गाय का कच्चा दू ध पीने को दे ती र्ीं | मािन-रोटी कम दे ती र्ीं | हमारे
ववचार से इसीवलए बालक कृष्ण दू सरों के घर से मािन चोरी करते र्े |

उत्तर—15—हमारे ववचार से इसके दो कारि हैं - पहला यह वक मााँ यशोदा उन्ें दू ध


पीने को दे ती र्ीं ,जबवक कृष्ण को मािन िाना पसंद र्ा इसवलए वे मािन चोरी करते
होंगे | दू सरा कारि यह भी हो सकता है वक कृष्ण में स्वाभाववक बाल सुलभ चंचलता
अवधक र्ी| बच्चे अक्सर हमउम्र बच्चों के सार् वमलकर ऐसे कायय कर ले ते हैं |
8. पानी की कहानी

पाठ पर आधाररत गद्ांश –1

1. “वह जो पेड तु म दे िते हो न !” वह ऊपर ही इतना बडा नहीं है ,पृथ्वी में भी


लगभग इतना ही बडा है |उसकी बडी-बडी जडे ,छोटी जडे और जडों के रोएाँ हैं |
वे रोएाँ बडे वनदय यी होते हैं | मुझ जै से असंख्य जल-किों को वे बलपूवयक पृथ्वी में
से िींच ले ते हैं |कुछ को तो पेड एकदम िा जाते हैं और अवधकााँ श का सबकुछ
छीनकर उन्ें बाहर वनकाल दे ते हैं |”

(क)उपयुयक्त गद्ां श में वक्ता क न है ?


(ि) पृथ्वी में से असंख्य जल-किों को बलपूवयक क न िींच लेते हैं ?
(ग) पेड की जडों के रोएाँ को वनदय यी की संज्ञा वकसने दी है ?
(घ) ‘असंख्य’ और ‘अवधकााँ श’ शब्दों में से उपसगय छां वटए |
(ड.) ‘बडी-बडी’ में क न-सा समास है ?

गद्ां श –2

हम एक बार बडी ऊाँची वशिर पर से कूदे और नीचे एक चट्टान पर वगरे | बेचारा पत्थर
हमारे प्रहार से टू टकर िंड-िंड हो गया | यह जो तु म इतनी रे त दे िते हो पत्थरों को
चबा-चबा कर हमीं बनाते हैं | वजस समय हम म ज में आते हैं तो कठोर से कठोर विु
हमारा प्रहार सहन नहीं कर सकती |

(क)ऊाँची वशिर से नीचे चट्टान पर क न कूदा ?

(ि) वकसके प्रहार से पत्थर टू टकर चकनाचूर हो गए ?

(ग) पत्थरों को चबाकर रे त क न बनता है ?

(घ) ‘प्रहार’ और ‘बेचारा’ शब्दों में से उपसगय छां वटए |

(ड.)उपयुयक्त गद्ां श वकस पाठ से वलया गया है ?

पाठ पर आिाररत अभ्यास के प्रश्नोत्तर –

प्रश्-1.ले िक को ओस की बूाँद कहााँ वमली ?

प्रश्-2. ओस की बूाँद िोध और घृिा से क्ों कााँ प उठी?

प्रश्-3. हाइडरोजन और आक्सीजन को पानी ने अपना पूवयज क्ों कहा है ?

प्रश्-4. ओस की बूाँद लेिक को आप बीती सुनाते हए वकसकी प्रतीक्षा कर रही र्ी ?


प्रश्-5.पानी की कहानी और जलचि में आपको क्ा-क्ा समानता नजर आती हैं ?

प्रश्-6.समुि के तट पर बसे नगरों में अवधक ठं ड और गरमी क्ों नहीं पडती ?

प्रश्-7. पेडों की जडों से पत्तों तक पानी को पंहचाने की विया को क्ा कहते हैं ?

प्रश्-8.जल की वकतनी अवथर्ाएाँ होती हैं और उसमें क न-सी हल्की होती है ?

प्रश्-9. ओस को उडने की शखक्त वकससे वमलती है ?

प्रश्-10.ओस की बूाँद और ले िक के बीच हई प्रर्म वाताय को संवाद रूप में वलखिए |

प्रश् 11) ले िक के हार् पर बेर की झाडी से क्ा वगरा?


प्रश् 12) वसतार के तारों सी झं कार कहााँ -से उत्पन्न हई र्ी?

प्रश् 13) बूाँद वकसके समान र्ी?

प्रश् 14) ले िक ने बूाँद को क्ा आश्वासन वदया ?

प्रश् 15) प्रकाश-वपंड कैसा वदिाई पड रहा र्ा?

उत्तर-कंु जी
पानी की कहानी

उत्तर-(क) पानी की बूाँद

ि) पेड की जडों के रोएाँ |

(ग) पानी की बूाँद ने |

(घ) ‘अ’ और ‘अवध’ |

(ड.) अव्ययीभाव समास |

गद्ां श –2

उत्तर –(क)पानी की बूंदें |

(ि) पानी की बूंदों के प्रहार से |

(ग) पानी की बूाँदें |


(घ) ‘प्र’ और ‘बे’ |

(ड.) ‘पानी की कहानी’ नामक पाठ से |

पाठ पर आिाररत प्रश्न उत्तर

उत्तर1 - रात के समय ले िक जब जा रहा र्ा ,तब बेर के वृक्ष के ऊपर से एक बूाँद
आकर ले िक की हर्ेली पर वगरी | यह बूाँद मोती के सामान चमक रही र्ी | बूाँद को
दे िकर ले िक के आश्चयय का वठकाना न रहा |

उत्तर2 -क्ोवक पेड की जडें तर्ा जडों पर उगने वाले रोएाँ बडे वनदय यी होते हैं |ये असंख्य
बूंदों एवं जल किों को बलपूवयक पृथ्वी से िींच ले ते हैं |

उत्तर3 - अरबों वषय पहले हाइडरोजन और ऑक्सीजन नामक दो गैसें सूययमंडल में लपटों
के रूप में ववद्मान र्ी |वजनकी रासायवनक विया के िलस्वरूप पानी का जन्म हआ र्ा
|

उत्तर4 -कहानी के अंत और आरम्भ को पढ़कर स्वयं यह पता चलता है वक ओस की


बूाँद लेिक को आप बीती सुनाते हए सूयय की प्रतीक्षा कर रही र्ी |

उत्तर5 -पानी की कहानी और जलचि में वनम्नवलखित समानताएं हैं -

१.पानी की बूाँद सूयय उदय के पश्चात वाखित हो जाती है |

२.वायुमंडल में भ्रमि कर मेघों द्वारा वषाय के रूप में धरती पर वगरती हैं |

उत्तर6 -समुि के वकनारे या समीप के वातावरि में आिय ता अवधक होती है क्ोंवक
समुि के पानी में नमक अवधक होता है | इसवलए समुि के समीप के वातावरि में न
अवधक गरमी पडती है और न अवधक सदी पडती है |

उत्तर7 -प्रकाश संश्लेषि विया कहते हैं |प धे सूयय के प्रकाश से क्लोरोविल को


अवशोवषत करके अपना भोजन तैयार करते हैं |

उत्तर8 -जल की दो अवथर्ाएाँ होती हैं -तरल और ठोस | ठोस तरल से हल्की होती है |

उत्तर 9 - ‘ओस’ पानी की एक बूाँद होती है |अवधक ठन्डे थर्ान पर यह जमकर बिय का
रूप धारि कर लेती है | सूयय का ताप पाकर यह ‘ओस’ भाप बनकर आकाश में उड
जाती है और सूयय से इसे उडने की शखक्त वमलती है

उत्तर 10-लेिक और ओस बूाँद के बीच संवाद वनम्न प्रकार से हए –

ओस की बूाँद :”सुनो,सुनो..........”

ले िक :मैं चुप र्ा |


ओस की बूाँद :विर आवाज आई ,”सुनो,सुनो”
ले िक :अब मुझ से न रहा गया |मेरे मुि से वनकल गया ,”कहो,कहो |”
ओस की बूाँद :ओस की बूाँद मानो प्रसन्नता से वहली और बोली –“मैं ओस
हूाँ |”
ले िक :”जनता हूाँ ”-मैंने कहा |
ओस की बूाँद:”लोग मुझे पानी कहते हैं ,जल भी |”
ले िक:”मालू म है |”

ओस की बूाँद :”मैं बेर के पेड में से आई हूाँ |”

11) ले िक के हार् पर बेर की झाडी से पानी की बूंद आकर वगरी ।


12) वसतार के तारों सी झं कार बूाँद से उत्पन्न हई र्ी I
13) बूाँद मोवतयों के समान र्ीI

14) ले िक ने उसे आश्वासन वदया वक जब तक वह ले िक के पास है तब तक कोई भी


उसे हावन नहीं पहाँ चा सकता।

15) प्रकाश-वपंड अत्यंत चमकदार वदिाई पड रहा र्ा ।

9.बाज और सााँप

पाठ पर आधाररत गद्ांश-

1. “आकाश में असीम शून्यता में एक ऐसा आकषयि वछपा है | वजसके वलए बाज ने
अपने प्राि गाँवा वदए ? वह िुद तो मर गया ले वकन मेरे वदल का चैन अपने सार्
ले गया |न जाने आकाश में क्ा िजाना रिा है ?एक बार तो मैं भी वहां जाकर
उसके रहस्य का पता लगाऊंगा,चाहे कुछ दे र के वलए ही हो |कम से कम उस
आकाश का स्वाद चि लूाँ गा |”

(क)बाज ने वकसके वलए अपने प्राि गाँवा वदए ?


(ि) बाज मरते समय वकसके वदल का चैन ले गया ?
(ग) सााँ प ने आकाश में उडने की कोवशश क्ों की ?
(घ)’असीम’ और ‘आकाश’ शब्दों में से उपसगय छां वटए |
(ड.)उपयुयक्त गद्ां श वकस पाठ से वलया गया है ?

गद्ां श –2

1. ईश्वर भला करे , मरते -मरते बच गया | अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो


गई है वक अपनी िोिल से बडा सुि और कहीं नहीं है | धरती पर रें ग लेता हूाँ ,मेरे वलए
यह बहत कुछ है | मुझे आकाश की स्वछं दता से क्ा ले ना –दे ना है ? न वहां छत है , न
दीवार हैं ,न रें गने के वलए जमीन है | मेरा तो सर चकराने लगता है वदल कााँ प-कााँ प
जाता है | अपने प्रािों को ितरे में डालना कहााँ की चतु राई है |
1. उपयुयक्त गद्ां श में वक्ता क न हैं ?
2. सााँ प ने सबसे बडा सुि कहााँ बताया है ?
3. सााँ प ने अपने प्रािों को ितरे में डालने की बात क्ों कही ?
4. ‘स्वछं दता’ व्याकरविक दृवष्ट से क्ा है ?
5. ‘मरते-मरते ’ में क न-सा समास है ?

पाठ पर आधाररत अभ्यास के प्रश्ोत्तर –

प्र 3 नीचे वलिे प्रश्नों के उत्तर पाठ के आिार पर वलिो -

1. बाज और सााँप कहानी के ले िक कौन हैं ?


2. सााँप कहााँ रहता था ?
3. अपनी गु फा में बैठा हुआ सााँप क्या दे िता रहता था ?
4. सााँप गु फा में बैठ कर अपने बारे में क्या सोचता था ?
5. गु फा में जब बाज वगरा तो उसकी दशा कैसी थी ?
6. घायल बाज को दे ि कर सााँप क्यों िुश हुआ ?
7.बाज अपनी वजन्दगी से क्यों संतुष्ट था ?
8. बाज वजन्दगी भर आकाश में उड़ता रहा घायल होने के बाद भी िह आकाश
में क्यों उड़ना चाहता था ?
9. गु फा को दे ि कर बाज के मुंह से करुणा भरी चीि क्यों फूट पड़ी ?
10. बाज ने उड़ने की कोवशश क्यों की ?
11. बाज ने वकस तरहं अपने प्राण गं िा वदए ?
12. सााँप बाज को मूिग क्यों समझता था ?
13. बाज के मरने पर लहरों ने गीत क्यों गया ?
14. इस कहानी का शीषगक ले िक ने ’ ‘बाज और सााँप’ क्यों रिा ?
1. इस कहानी से हमें क्या वशक्षा वमलती है ?

उत्तर-कंु जी

बाज और सााँ प

उत्तर –१
1. आकाश की असीम ऊंचाई को छूने के वलए |
2. सााँ प के वदल का चैन ले गया |
3. बाज का आकाश के प्रवत मोह दे िकर |
4. ‘अ’ और ‘आ’ |
5. बाज और सााँ प |
उत्तर २

(क) सााँ प |

(ि) सााँ प ने सबसे बडा सुि अपनी िोिल में बताया है

(ग) क्ोंवक सााँ प रें गने वाला जीव है उसके वलए उडना प्रािों को ितरे में डालना है |

(घ)भाववाचक संज्ञा

(ड.)अव्ययीभाव समास |

प्रश् 3 - पाठ के आधार पर प्रश्ों के उत्तर ------

1. ले िक का नाम -वनमयल वमाय


2. सााँ प समुि के वकनारे बनी एक पर्रीली गुिा में रहता र्ा |
3. अपनी गुिा में बैठा हआ सााँ प ,समुि की लहरों की गजय न,आकाश में वछपती हई
पहावडयााँ , नदी की ,गु स्से से भरी आवाजें सुना करता और अपनी गुिा को दे िा
करता र्ा
4. गुिा में बैठा हआ सााँ प यही सोच कर संतुष्ट र्ा वक वह गुिा का स्वामी है ,वह
दु वनयां की भाग द ड से दू र ,और छीना झपटी से दू र है सुिी और सुरवक्षत है |
5. गुिा में जब बाज वगरा तो वो घायल र्ा| पंि िून से सने र्े |अधमरा हो कर जोर
शोर से हां ि रहा र्ा |
6. सााँ प इसवलए िुश हआ क्ोंवक उसने सोचा वक बाज इतना घायल है वक उसे
वकसी तरह का नुकसान नहीं पहं चा सकता |
7. क्ोंवक बाज ने स्वतं त्रता से उडते हए आकाश की ऊाँचाइयों को छु आ र्ा |
8. बाज वजन्दगी भर आकाश में स्वतं त्रता से उडता रहा ,अब वो बदबूदार ,सीलन
और गंदगी से भरी गुिा में अंवतम सां से ले कर मरना नहीं चाहता. वह वहम्मत
कर के उडते हए आकाश की ऊाँचाइयों में अपने प्राि दे ना चाहता है |
9. गुिा की बदबू को महसूस कर के , गंदगी और सीलन को दे िकर ,उसने सोचा
वक क्ा उसे अपनी वजन्दगी का अंवतम समय यहााँ गुजरना पडे गा,यही सोच कर
उसके मुंह से करुिा भरी चीि वनकल गई |
10. क्ोंवक वह बदबूदार ,गंदगी और सीलन से भरी गुिा में नहीं मरना चाहता
र्ा | उडते- उडते अपने प्राि दे ना चाहता र्ा |
11. घायल बाज ने वहम्मत और साहस से उडने का प्रयास वकया परिु वह
लु डकता हआ नदी में जा वगरा ,उसने बहादु री और साहस को वदिाते हए अपने
प्राि गाँवा वदए |
12. सााँ प बाज को मूिय इसवलए मानता र्ा क्ोंवक उसने सोचा वक जब बाज
को पता र्ा वक यवद वह उडने का प्रयास करे गा तो मर जायेगा, विर भी जान
बूझ कर वह उडा और मर गया |
13. बाज के मरने पर लहरों ने उसकी बहादु री ,साहस और वनडरता पर गीत
गया वक बाज ने कायर होकर गुिा में रें ग- रें ग कर मरना कबूल नही वकया
बखल्क साहस वदिाते हए उडने का प्रयास वकया और अपने प्राि गंवा वदए|
14. इस कहानी का शीषयक बाज और सााँ प इसवलए ले िक ने रिा क्ोंवक
बाज और सााँ प ही इस कहानी के मुख्य पात्र हैं , कहानी इन दोनों के इदय वगदय
घूमती है |
15. इस कहानी से हमे यह वशक्षा वमलती है वक हमें सााँ प की तरह कायर नहीं
बाज की तरह साहसी और वनडर होना चावहए |

10. टोपी

वनम्नवलखित पवठत गद्ांश को पढ़कर नीचे वदए गए प्रश्ों के सही ववकल्प चुवनए : -5

“टोपी तू पाएगी कहााँ से ? " गवरा बोला , “ टोपी तो आदवमयों का राजा पहनता है ।
जानती है ,एक टोपी के वलए वकतनों का टाट उलट जाता है । जरा- सी चूक हई नहीं वक
टोपी उछलते दे र नहीं लगती । अपनी टोपी सलामत रहे , इसी विि में वकतनों को टोपी
पहनानी पडती है ।...मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड ही मत ।”

गवरा र्ा तवनक समझदार , इसवलए शक्की । जबवक गवरइया र्ी वजद्दी और धुन की
पक्की| ठान वलया सो ठान वलया , उसको ही जीवन का लक्ष्य मान वलया । कहा गया -
जहां चाह ,वहीं राह । मामूल के मुतावबक अगले वदन दोनों घूरे पर चुगने वनकले । चुगते -
चुगते उसे रुई का एक िाहा वमला ।“ वमल गया ... वमल गया ... वमल गया..” गवरइया
मारे िुशी के घूरे पर लोटने लगी ।

प्रश्ः 1

।. गवरइया ने क्ा इच्छा रिी र्ी ?

2 गवरा ने क्ा कहकर गवरइया को हतोत्सावहत वकया ?

3 गवरइया का स्वभाव कैसा र्ा ?

4 एक वदन गवरइया को घूरे पर चुगते - चुगते क्ा वमला और उससे क्ा वकया ?

5. टोपी उछलना मुहावरे की अर्य है ?

2 . कदम - कदम पर वमलते कामगारों के सहयोग ने गवरइया को आगे बढ़ने पर


उकसा वदया । इसके बाद वे दोनों एक बुनकर के पास गए और कहने लगे,” बुनकर
भइया, बुनकर भइया, इस कते सूत से कपडा बुन दो ।“
बुनकर इन्ें अगवग हो कर दे िने लगा,” हटते हो वक नहीं यहां से ! दे िते नहीं, अभी
मुझे राजा जी के वलए बागा बुनना है । अभी र्ोडी दे र बाद ही राजा जी के काररं दे
हावजर हो जाएं गे । साव करे भाव तो चबाव करे चाकर ।” इतना कहकर बुनकर अपने
काम में मशगूल हो गया ।

प्रश् : -

I . वकसके सहयोग से गवरइया आगे बढ़ने को तै यार हो गई ?

2 बुनकर वकसके वलए बागा बुन रहा र्ा?

3 एक टक होकर बुनकर वकसको ताक रहा र्ा?

4 राजा शब्द का िीवलं ग क्ा है ?

5 इस पाठ का नाम क्ा है ?

प्र० 3 प्रश् बैंक

। . जब गवरइया दजी के पास पहं ची तो वह वकस काम में मशगूल र्ा?

2 . ले िक ने इस कहानी में वकसके ऊपर कटाक्ष वकया है ?

3 इस कहानी से हमें क्ा सीि वमलती है ?

4 कोरी की खथर्वत कैसी र्ी ?

5 . धुवनया के व्यखक्तत्व का विय न कीवजए ।

6 तब राजा क्ा करवा रहा र्ा, जब गवरइया राजा के महल के कंगूरे पर आई हई र्ी?

7 गवरइया की टोपी कैसे बनी?

8 गवरा ने कपडे न पहनने के हक में क्ा तकय वदए?

9 दजी ने कैसी टोपी बनाई और टोपी पहनकर गवरइया को कैसा लगा ?

10 अगर राजा के राज में सभी को उवचत मेहताना वमले तो कारीगरों का व्यवहार
गवरइया के प्रवत कैसा होता?

.11 .. ग्रामीि शब्दों का सुमेल कीवजए 1

इत्ते – चमडा

चाम – इतने

हलस पंि
पिने – उल्लास

12 मुहावरो को अर्य के सार् मेल कीवजए ।

टोपी उछालना- पछताना

टोपी पहनाना - बेवकूि बनाना

ओझल होना - बेइज्जत करना

ठं डी आहें भरना - गायब होना

13 इस पाठ के आधार पर हमारा दू सरों के प्रवत कैसा रवैया होना चावहए?

14 टोपी सम्मान व इज़्ज़त का प्रतीक है कैसे ? अपने ववचार वलखिए ।

15 मानुष शब्द का पयाय यवाची वलखिए।

1. उत्तर-कंु जी

: गद्ां श :

1. टोपी पहनने की

2 टोपी तो आदवमयों का राजा पहनता है ।

3 वजद्दी ले वकन धुन की पक्की

4 रुई का िाहा वमला टोपी बन गई

5 बेइज्जती होना

गद्ां श : 2

1 कामगारों के सहयोग से

.2 राजा के वलए

3 . गवरा और गवरइया

4 रानी

5 टोपी

प्र०3 1 राजा के वलए बागा बुनने मे मशगूल र्ा।

2 ले िक ने उच्च वगय द्वारा वनम्न वगय पर वकए जाने वाले शोषि पर कटाक्ष वकया है ।
3 इस कहानी से हमें यह सीि वमलती है वक उवचत मूल्य वमलने पर कारीगर दक्षता एवं
वनपुिता के सार् कायय को पूरा करता है वह उस कायय को वदल और वदमाग दोनों से
करता है अगर उसे सही मेहताना न वदया जाए तो वह उस काम को बेमन से करता है ।

4 कोरी की कमर झुकी हई र्ी । उसने बदन पर धज्जी धज्जी हो चुका एक धुस्सा डाल
रिा र्ा वह बडी अवनच्छा से बोला ' " तुम लोग यहां से भागते हो वक नहीं , अभी मुझे
राजा जी के अचकन के वलए सूत कातने हैं मुझे िुसयत नहीं है मुफ्त में मल्लार गाने की ।

5 धुवनया बेचारा बूढ़ा र्ा जाडे का म सम र्ा उसकी दशा िराब र्ी उसके तन पर वषों
पुरानी तार तार हो चुकी एक वमजय ई पडी हई र्ी ।

6 उस वक्त राजा अपने च बारे पर टहलु ओं से िुली धूप में िुलेल की मावलश करवा
रहा र्ा । राजा उस वक्त अधनंगा बदन और नंगे वसर र्ा एक टहलुआ वसर पर चंपी कर
रहा र्ा , तो दू सरा हार् पां व की उं गवलयों िोड रहा , तो तीसरा पीठ पर मुट्ठी मार रहा
र्ा|

7 गवरइया को कूडे के ढे र से चुगते चुगते एक रुई का िाहा वमल गया वह उसे


ले कर धुवनए के पास गई । उसे धुनवा कर वह गई गोरी के पास सूट कतवाने । जब सूत
कत गया तो बुनकर की तलाश कर उसने सुंदर कपडा बनवाया ।कपडा बनकर तै यार
हआ तो उसने दजी से टोपी बनवाई । दजी ने भी उसकी टोपी में सुंदर िुाँदने टां ग कर
लाजवाब टोपी तै यार की ।

8 इससे कुदरती सुंदरता ढक जाती है इससे सुघड काया वदिाई नहीं दे ती ।

9 दजी ने पााँ च िुाँदनो वाली सुंदर टोपी वसल दी । टोपी पहनकर गवरइया प्रसन्न वचत्त हो
गई । वह डे ढ़ टााँ ग पर नाचने लगी। वह िुदक िुदक कर गवरा को टोपी वदिा रही र्ी
और कह रही र्ी - दे ि मेरी टोपी सबसे वनराली पााँ च िुाँदने वाली 1

10 अच्छा होता ।
11. इत्ते-इतने
चाम – चमडा
हलस – उल्लास
पिने – पंि
12 बेइज्जत होना

बेवकूि बनाना

गायब होना

13 वववेकानुसार

14 वववेकानुसार
15 मनुष्य या अन्य

11. - युगों का दौर

1. म यय साम्राज्य के अवसान के बाद भारत वकन खथर्वतयों से गुजरता रहा?


उत्तर:- म यय साम्राज्य के अवसान के बाद शुंग वंश प्रभुत्व में आया । उसका शासन
अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र पर र्ा । दवक्षि में बडे राज्य उभर रहे र्े । उत्तर में काबुल से
पंजाब तक भारतीय यूनानी िैल गए र्े ।

2. मेनां डर क न र्ा? वह वकस रूप में प्रवसद्ध हआ?


उत्तर:- मेनां डर भारतीय यूनावनयों का प्रमुि र्ा वजसके नेतृत्व में युद्ध लडा गया, पर
भारतीय यूनानी हार गए । भारतीय चेतना और वातावरि से प्रभाववत हो मेनांडर ब द्ध
बन गया । वह राजा वमवलं द नाम से प्रवसद्ध हआ । आख्यानों में उसे संत कहा गया है ।

3. भारत में कुषाि काल में ब द्ध धमय वकस प्रकार प्रभाववत हआ?
उत्तर:- कुषाि काल तक आते - आते ब द्ध धमय दो संप्रदायों में बाँट गया हीनयान और
महायान । इन दोनों के बीच मतभेद उठने लगे । बडी - बडी सभाओं में इन पर वववाद
आयोवजत वकया जाने लगा ।

4. नागाजुय न क न र्े ? उन्ोंने ब द्ध धमय के वलए क्ा वकया?


उत्तर:- नागाजुय न ईसा की पहली शताब्दी के वववशष्ट व्यखक्त र्े , वजनका व्यखक्तत्व महान
र्ा । वे ब द्ध शािों और भारतीय दशय न दोनों के ही बहत बडे ववद्वान र्े । उन्ीं के
कारि भारत में हीनयान की ववजय हई ।

5 ‘भारत का नेपोवलयन' वकसे कहा जाता है और क्ों?


उत्तर:- गुप्त साम्राज्य के वंशज सम्राट समुि गुप्त को ' भारत का नेपोवलयन ' कहा जाता
है । समुिगुप्त का काल अत्यंत सुसंस्कृत, शखक्तशाली और समृद्ध र्ा । इस काल में
सावहत्य और कला के क्षेत्र में भारत ने बहत उन्नवत की ।

6. दवक्षि में म यय साम्राज्य के वसमट जाने पर भी वह वकस तरह िलता - िूलता रहा ?
उत्तर:- म यय साम्राज्य के वसमट जाने पर भी दवक्षि भारत बारीक दिकारी और समुिी
व्यापार का केंि बना रहा । यहााँ दू र - दू र के दे शों से व्यापारी जहाज पर माल पहाँ चाया
करते र्े । यहााँ यूनानी बखियााँ और रोम के वसक्के पाए गए ।

7. उत्तर भारत, दवक्षि भारत जै सा ववकवसत क्ों नहीं हो पाया?


उत्तर:- भारत के उत्तरी भाग पर पवश्चमोत्तर वदशा से हमले होते रहे । इन हमलों के
कारि बहत से लोग राजगीर, वशल्पी, कारीगर आवद दवक्षि भारत में जाकर बस गए ।
इधर उत्तर भारत के लोग हमलावरों की नीवतयों, संस्कृवत तर्ा परं परा से अवधक
प्रभाववत होते रहे ।

8. ववदे शी यहााँ लंबे समय तक शासन करने में सिल क्ों रहे ?
उत्तर:- ववदे शी हमलावरों ने जब भी भारत पर हमला वकया, वे यहााँ आकर अपनी
संस्कृवत तर्ा परं पराओं तक ही वसमट कर न रह सके । उन्ोंने जल्दी ही अपने आपको
इस दे श और इसकी सां स्कृवतक परं परा में ढाल वलया, इसवलए वे लं बे समय तक शासक
बने रहे ।

9. भारत में वकन - वकन क्षेत्रों में समन्वय की भावना वदिाई पडती है ?
उत्तर:- भारत में बाहर से आने वाले वववभन्न तत्वों के बीच ही समन्वय वकया गया । यहााँ
व्यखक्त के बाहरी और भीतरी जीवन तर्ा मनुष्य और प्रकृवत के बीच भी समन्वय का
प्रयास वकया गया ।

10. भारतीय रं गमंच का मूल उद्गम कहााँ वमलता है ? उनकी शै ली क्ा र्ी?
उत्तर:- भारतीय रं गमंच का मूल उद्गम वेदों की ऋचाओं और संवादों में वमलता है ।
रामायि और महाभारत में भी नाटकों का उल्लेि वमलता है । इनकी शैली नाटकीय है

11. यूरोप को प्राचीन भारतीय नाटकों की जानकारी कब हई?


उत्तर:- यूरोप को प्राचीन भारतीय नाटकों की जानकारी 1789 में हई, जब कावलदास
कृत नाटक शकुंतला का वववलयम जोंस कृत अनुवाद प्रकावशत हआ । इस अनुवाद के
आधार पर जमयन, फ्रेंच, डे वनश और इटावलयन भाषाओं में भी इसका अनुवाद वकया गया

12 .भवभूवत क न र्े ?
उत्तर:- भवभूवत संस्कृत भाषा के प्रवसद्ध नाटककार र्े । वे सातवीं शताब्दी में नाट्य क्षेत्र
के चमकते वसतारे र्े संस्कृत सावहत्य में कावलदास के बाद इनका ही थर्ान है ।

13. “संस्कृत भाषा अद् भुत रूप से समृद्ध भाषा है ”- ऐसा क्ों कहा गया है ?
उत्तर:- “संस्कृत भाषा अद् भुत रूप से समृद्ध भाषा है ”- ऐसा इसवलए कहा गया है
क्ोंवक संस्कृत भाषा अत्यंत ववकवसत तर्ा अनेक तरह से अलं कृत भाषा है । इस भाषा
ने अपना प्रसार होने, संपन्न होने तर्ा अलंकृत होने के बाद भी अपना मूल स्वरूप नहीं
छोडा । यह अनेक आधुवनक भारतीय भाषाओं की जननी भी है ।

14. सर वववलयम जोंस ने संस्कृत के बारे में क्ा कहा र्ा- अपने शब्दों में वलखिए ।
उत्तर:- सर वववलयम जोंस ने 1784 में संस्कृत की प्रशं सा करते हए कहा है – ‘संस्कृत
भाषा वकतनी ही पुरानी हो, पर इसकी बनावट अद् भुत है । यह यूनानी भाषा से अवधक
पूिय तर्ा लातीनी के मुकाबले उत्कृष्ट है । इसके अलावा यह दोनों भाषाओं से अवधक
पररष्कृत है ।

15. भारतीय उपवनवेशों का काल कब से कब तक माना जाता है ?


उत्तर:- भारतीय उपवनवेशों का काल ईसा की पहली या दू सरी शताब्दी से शु रू होकर
पंिहवीं शताब्दी के अंत तक माना जाता है । अर्ाय त् यह समय लगभग ते रह स साल या
इससे कुछ अवधक का है ।

17. उपवनवेशों के इवतहास में भारत और चीन का प्रभाव कहााँ - कहााँ पडा?
उत्तर:- उपवनवेशों के इवतहास में चीन का प्रभाव महाद्वीप के दे शों बमाय , स्याम, और वहं द
चीन पर तर्ा भारत का प्रभाव टापुओं और मलय प्रायद्वीप पर अवधक र्ा । यहााँ भारतीय
धमय और कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दे िा जा सकता र्ा ।

18. इं डोनेवशया, जावा, बाली आवद ने भारतीय सभ्यता को वकस प्रकार बनाए रिा है ?
उत्तर:- इं डोनेवशया का प्राचीन सावहत्य भारतीय पुराकर्ाओं और गार्ाओं से भरा हआ है
। जावा और बाली के मशहूर नृत्य भारत से वलए गए हैं । बाली के छोटे से टापू पर वहं दू
धमय अब भी प्रचवलत है ।

19. प्राचीन भारतीय कला और वािुकला का प्रभाव दवक्षि - पूवी एवशया में वकस तरह
वदिाई दे ता है ?
उत्तर:- दवक्षि - पूवी एवशया में प्राचीन भारतीय कला और वािुकला का प्रभाव
अंगकोर और बोरोबुदुर की इमारतों और अद् भुत् मंवदरों पर वदिाई दे ता है । जावा में
बुद्ध की जीवन - कर्ा पत्थरों में उत्कीिय है । अनेक थर्ानों पर ववष्णु , राम और कृष्ण की
कर्ाएाँ भी अंवकत हैं ।

20. 'ववदे शों पर भारतीय कला का प्रभाव' के आधार पर भारतीय संगीत की ववशेषताएाँ
वलखिए ।
उत्तर:- 'ववदे शों पर भारतीय कला का प्रभाव' से ज्ञात होता है वक भारतीय और यूरोपीय
संगीत में वभन्नता है । भारतीय संगीत बहत ववकवसत र्ा । इसने चीन और सुदूर पूवय के
अलावा एवशयाई संगीत को बहत दू र तक प्रभाववत वकया ।

21. प्राचीन भारतीय व्यापार की क्ा खथर्वत र्ी?


उत्तर:- प्राचीन भारतीय व्यापार दू र-दू र तक िैला हआ र्ा । अपने सामानों की गुिवत्ता
के कारि बहत से ववदे शी बाज़ारों पर इसका वनयंत्रि र्ा । यह व्यापार पूवी समुिी दे शों
से भूमध्य सागर तक िैला र्ा ।

22. प्राचीन भारतीय गवित में प्रयुक्त अंक वकस तरह बेजोड र्े ?
उत्तर:- आधुवनक अंकगवित और बीजगवित की भारत में नींव पडी । काफ़ी समय तक
इसकी प्रगवत बावधत रही पर शू न्यां क वमलने पर अंकों का महत्त्व व्यवहार में बढ़ गया ।
ये अंक वचह्न दू सरे दे शों में प्रयुक्त तमाम वचहनों से वभन्न एवं बेजोड र्े ।

23. ईसवी के पहले हजार वषों में ववपरीत पररखथर्वतयों में भी भारत वकस प्रकार ववकास
करता रहा?
उत्तर:- ईसवी के पहले हजार वषों में बाहरी हमलों के बीच भी भारत अपना ववकास
करता रहा । उसने चीन, यूनानी जगत मध्य एवशया से अपना संपकय बढ़ाया । भारतीय
संस्कृवत का प्रचार-प्रसार होता रहा । गुप्तकाल में भारत की िूब उन्नवत हई ।

24. हूिों के आिमि का प्राचीन भारत पर क्ा प्रभाव पडा?


उत्तर :- पवश्चम वदशा से होने वाले हूिों के आिमि से भारत राजनैवतक एवं सैन्य दोनों
दृवष्टयों से कमजोर हो गया । उनके यहााँ बसने से लोगों में अंदरूनी पररवतय न हआ ।
उनके बबयरतापूिय व्यवहार भारतीय आदशों से वभन्न र्े ।

26. भारत की उस ववशे षता का उल्लेि कीवजए, वजसके कारि वह अपनी शखक्त एवं
ववकास पुनः पा सका ।
उत्तर:- भारत का हर क्षेत्र में भले ही ह्रास हो रहा र्ा, परं तु उसमें जीवन-शखक्त, अद् भुत
दृढ़ता, लचीलापन और अपने को प्रत्येक पररखथर्वत में ढालने जै सी आधारभूत क्षमताएाँ
बची हई र्ीं । िलस्वरूप वह नए संपकों एवं ववचारधाराओं का लाभ उठाकर
शखक्तशाली बना तर्ा ववकास करता रहा ।

12. नयी समस्याएं

प्रश् 1. भारत में वकन-वकन ववदे शी जावतयों ने अपने पााँ व पसारने चाहे ?
उत्तर- हषयवधयन के शासन के पश्चात् अरबी, तुकी व अिगानी जावतयों ने भारत में
आगमन वकया।

प्रश् 2. महमूव गज़नवी क न र्ा? उसने भारत पर आिमि कब वकया?

उत्तर- महमूद गज़नवी अिगावनिान का सुल्तान र्ा। उसने 1000 ई० के आस


पास भारत पर आिमि वकया।

प्रश् 3. महमूव गज़नवी ने भारत पर आिमि क्ों वकए?

उत्तर- महमूद गजनवी ने भारत पर कब्जा करने व इसकी धन - संपदा लू टने हे तु


भारत पर आिमि वकए।

प्रश् 4. महमूद गज़नवी ने भारत के वकन क्षेत्रों को प्रभाववत वकया?

उत्तर- महमूद गज़नवी ने भारत के उत्तरी क्षेत्रों को ही प्रभाववत वकया।

प्रश् 5. महमूद गज़नवी की मृत्यु कब हई?

उत्तर- महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ई. में हई।

प्रश् 6. भारत में मुगल साम्राज्य का नींव कव और वकसके द्वारा रिी गई?

उत्तर- भारत में मुगल साम्राज्य क नींव 1526 ई. में तु कय-मंगोल बाबर द्वारा रिी
गई।

प्रश् 7. मुगल काल में क नसी कुरीवत उभरी?

उत्तर- परदा प्रर्ा।

प्रश् 8. बाबर क न र्ा?

उत्तर- भारत में मुगल शासन की नींव रिने वाला 'बाबर' र्ा उसने भारत पर चार
वषय तक शासन वकया।

प्रश् 9. अकबर ने कब और वकसके बाद भारतीय शासन की डोर साँभाली?

उत्तर- अकबर ने 1531 में हमायूाँ के पश्चात् मुगल सत्ता की डोर संभाली।
प्रश् 10. अकबर का उद्दे श्य क्ा र्ा?

उतर- अकबर भारत का एक सिल शासक रहा। लोग उसे अत्यवधक पसंद करते
र्े । उसका उद्दे श्य र्ा अिंड भारत की थर्ापना करना, जहां राजनीवतक अिंडता
के अलावा लोगों में आपसी सबंध हो।

प्रश् 11. अकबर के व्यखक्तत्व की क्ा ववशे षता र्ी?

उत्तर- अकबर बहादु र, साहसी, वीर, योग्य सेनानायक, ववनम्र, दयालु , आदशय वादी
व कुशल प्रशासक र्ा।

प्रश् 12. मुगल शासन-काल के दो प्रमुि वहं दी कववयों के नाम बताइए।

उत्तर- मुगल शासन-काल के दो प्रमुि वहं दी कवव र्े -मवलकमोहम्मद जायसी एवं
अब्दु ल रहीम िानिाना |

प्रश् 13. मवलक मोहम्मद जायसी ने क न-से प्रमुि ग्रंर् की रचना की?

उत्तर- मवलक मोहम्मद जायसी ने प्रमुि ग्रंर् 'पद्मावत' की रचना की।

प्रश् 14. जवजया-कर क्ा र्ा?

उत्तर- जवजया-कर वह कर र्ा जो औरं गजे ब ने वहं दुओं पर धावमयक कारिों हे तु


लगाया।

प्रश् 15. औरं गजे ब की नीवतयों का क्ा पररिाम वनकला?

उत्तर- औरं गजेब को गलत नीवतयों से उत्तर में वसक्ख और पवश्चम के मराठे उसके
खिलाफ़ हो गए। वकसानों का बडा भाग व आम जनता का गरीब वगय जो
सतनावमयों के नाम से जाना जाता र्ा पूियतया उसके ववरुद्ध र्ा।

प्रश् 16. मराठों के सेनानायक क न र्े ?

उत्तर- मराठों के सेनानायक छत्रपवत वीर वशवाजी र्े।

प्रश् 17. वशवाजी वकस पद्धवत से युद्ध करते र्े ?

उत्तर- वशवाजी छापामार पद्धवत से युद्ध करते र्े

प्रश् 18. च र्-कर क्ों और वकनके द्वारा लगाया गया?

उत्तर- च र्-कर वशवाजी द्वारा अमीरों पर लगाया गया, वजसमें उन्ें अपनी
आमदनी का च र्ा भाग कर के रूप में जमा करवाना पडता र्ा तावक सैवनक
कायों हे तु धन एकवत्रत हो सके।

प्रश् 19. औरं गज़े ब की मृत्यु के पश्चात् भारत के दावेवार क न-क न र्े ?

उत्तर- औरं गज़ेब की मृत्यु के बाद भारतीयों में मराठे , है दरअली और उसका बेटा
टीपू सुल्तान और ववदे वशयों में फ्रां सीसी

और अंग्रेज़ र्े ।

प्रश् 20. इस समय पूरे भारत में क न शखक्त पा रहे र्े ?

उत्तर- इस समय पूरे भारत में मराठे शखक्त पा चुके र्े और ऐसा अनुमान लगाया
जाता र्ा वक ये ही पूरे भारत पर राज करें गे।

प्रश् 21. नावदरशाह क न र्ा? उसने वदल्ली पर आिमि क्ों वकया? इसका मुख्य
क्ा पररिाम वनकला?

उत्तर- नावदरशाह ईरान का शासक र्ा। उसने वदल्ली पर आिमि वदल्ली को


लू टने के वलए वकया। उसने वदल्ली की बेशुमार धन-द लत लू टकर, वदल्ली के
शासकों को अत्यवधक कमज़ोर बना वदया।

प्रश् 22. नावदरशाह के हमले के क्ा पररिाम वनकले ?

उत्तर- नावदरशाह के हमले के वनम्न पररिाम वनकले -

(i) मराठों का शखक्त पाना

(ii) मुगल शासकों की सत्ता का अंत

(iii) अिगावनिान से भारत का अलग होना।

प्रश् 23. जय वसंह के व्यखक्तत्व की क्ा ववशे षताएाँ र्ीं?

उत्तर- जय वसंह एक बहादु र योद्धा, कुशल राजनीवतज्ञ, चतु र, अवसरवादी, गवितज्ञ,


िगोल ववज्ञानी व नगर-वनमाय ि करने

वाला र्ा। वह इवतहास के अध्ययन में भी रुवच रिता र्ा।


प्रश् 24. जय वसंह ने वकस राज्य का वनमाय ि करवाया उसकी क्ा ववशे षता र्ी?

उत्तर- जय वसंह ने जयपुर राज्य का वनमाय ि करवाया। इस राज्य की यह ववशे षता


र्ी वक इसका वनमाय ि ववदे शी नक्ों के आधार पर वकया गया र्ा।

प्रश् 25. ईस्ट इं वडया कंपनी भारत कब आई?

उत्तर- ईस्ट इं वडया कंपनी भारत सन् 1600 में आई।

प्रश् 26. शासन सत्ता संभालने पर कंपनी ने क्ा वकया?

उत्तर- शासन सत्ता संभालने पर कंपनी का उद्दे श्य केवल धन कमाना र्ा। उन्ोंने
भारतीय माल यूरोप की मंवडयों में बेचा। उन्ोंने भारत में भी कल-कारिाने
िोलकर भारतीय अर्य तंत्र का नाश वकया व अपने िायदे हेतु कायय वकए।

प्रश् 27. ववद्वान एडम खस्मर् ने ईस्ट इं वडया कंपनी के वलए क्ा वलिा?

उत्तर-ववद्वान एडम खस्मर् ने अपनी पुिक 'द वैल्थ ऑि नेशंस' में वलिा-'एकमात्र
व्यापाररयों की कंपनी की सरकार वकसी भी दे श के वलए सबसे बुरी सरकार है ।'

प्रश् 28. यवद भारत पर इं ग्लैंड का प्रभुत्व कायम न होता तो भारत की खथर्वत क्ा
होती?

उत्तर- यवद भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व कायम न होता तो भारत अवधक स्वतं त्र,
समृद्ध व प्रत्येक क्षेत्र में प्रगवत करने वाला होता।

13.अंवतम दौर- एक

भारत राजनीवतक और आवर्य क दृवष्ट से पहली बार एक अन्य दे श का पुछल्ला


बनता है -
अंग्रेजी साम्राज्य की थर्ापना के बाद भारत के वलए एकदम से नई घटना र्ी। नया
पूाँजीवाद सारे ववश्व में जो बाज़ार तै यार कर रहा र्ा उससे हर हालत में भारत के
आवर्य क ढााँ चे पर प्रभाव पडा। भारत अब अंग्रेज़ी आवर्य क ढााँ चे का गुलाम बन गया
और वकसान भी उनके गुलाम बनकर रह गए। अंग्रेजों के आने से बडे ज़मीनदार
पैदा हए। उनका मुख्य उद्दे श्य लगान अवधक से अवधक मात्रा में वसूल करना र्ा।
इस तरह अंग्रेजों ने ऐसे वगय को जन्म वदया वजनके स्वार्य अंग्रेजों से वमलते -जु लते
र्े । यह वगय ये राजा, जमीनदार सरकार के वववभन्न ववभागों के पटवारी, गााँ वों के
प्रधान व उच्च अवधकारी र्े । ये वगय भी आम जनता का अंग्रेज़ों की तरह िून चूसने
वाले र्े। अंग्रेज़ों ने प्रत्येक वजले में कले क्टर की भी वनयुखक्त वकए, ये वगय आम
जनता से मुाँह-मााँ गी टै क्स वसूलकर अंग्रेज़ों का िजाना भरते र्े।

इस प्रकार भारत की आम जनता को विटे न के अनेक िचय उठाने पडते र्े । उनमें
सेना पर वकए िचय वजसे ‘कैवपटे शन चाजय’ कहा जाता र्ा, दे ना पडता र्ा। इसके
अवतररक्त अन्य िचों का बोझ भी भारत के कंधों पर र्ा।

भारत में विवटश शासन के अंतववयरोध राममोहन राय – बंगाल में अंग्रेज़ी वशक्षा और
समाचार पत्र
बंगाल में अंग्रेज़ी वशक्षा के कई समाज सुधारक पक्ष र्े । इसके अलावे वशक्षाववद्
अंग्रेज़ प्राच्य ववद्ा ववशारद पत्रकार वमशनरी और कुछ अन्य लोगों ने पाश्चात्य
संस्कृवत को भारत में लाने के वलए काफ़ी प्रयास वकया। यद्वप अंग्रेज़ भारत में
वशक्षा का प्रचार-प्रसार नापसंद करते र्े क्ोंवक वे चाहते र्े वक वशक्षि-प्रवशक्षि के
माध्यम से क्लकय तै यार वकया जाए तावक कम वेतन पर उनसे काम कराया जा
सके। वशक्षा के माध्यम से वशवक्षत लोगों में नई चेतना जाग उठी। वे गुलामी से मुक्त
होने के वलए तडपने लगे ले वकन नई तकनीकी, रे लगाडी, छापािाना, दू सरी मशीनें
ये सब ऐसी बातें र्ीं वजसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती र्ी। ऐसे ही वक्त में 18 वीं
शताब्दी में एक सामावजक सुधारक एवं अत्यंत शखक्तशाली व्यखक्तत्व का उदय
हआ। इसका नाम र्ा-राजा राम मोहन राय। वह एक नई सोच का व्यखक्त र्ा।
भारतीय ववचारधारा और दशय न की उन्ें काफ़ी ज्ञान र्ा। उन्ें अनेक भाषाओं का
भी ज्ञान र्ा। उन्ोंने अंग्रेजी सरकार के गवनयर जनरल को गवित, भ वतकी, ववज्ञान,
रसायन, शाि, जीव-ववज्ञान और अन्य उपयोगी ववज्ञानों की वशक्षा की आवश्यकता
पर जोर वदया और अंग्रेज़ी को लागू करने के वलए भी वलिा।

राजा राम मोहन राय ईसाई व मुखस्लम दोनों धमों के संपकय में रहे और इससे वे
प्रभाववत भी रहे । वे भारतीय धावमयक कुरीवतयों व कुप्रर्ाओं से भारत को मुक्त
करवाना चाहते र्े। इसके िलस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने सती प्रर्ा पर रोक लगा
दी।

वे भारतीय पत्रकाररता के प्रवतय क भी र्े। उनका कहना र्ा वक समाचार पत्र एवं
पवत्रकाएाँ मनुष्य के ववचारों को जागरूक करने का माध्यम हैं । अतः उनके नेतृत्व में
1818 में पहली बार एक अंग्रेज़ी का समाचार पत्र वनकला वजसका संपादन
भारतीयों ने वकया र्ा। इसके अवतररक्त बंगाली में एक साप्तावहक व एक मावसक
समाचार पत्र प्रकावशत हआ। धीरे -धीरे दे श में, कलकत्ता, मिास और मुंबई में ते जी
से और भी समाचार पत्र वनकलने लगे।

उनकी सोच र्ी वक भारत में पूिय जागरि के वबना पररवतय न लाना असंभव है । बहत
से लोगों ने उनका समर्यन वकया वजनमें रवींि नार् का पररवार उनका समर्य क र्ा।
वे वदल्ली सम्राट की ओर से इं ग्लैंड गए। दु भाय ग्य से उन्नीसवीं शताब्दी की शु रुआती
वषों में विस्टल में उनकी मृत्यु हो गई।

सन् 1857 की महान िां वत – जातीयतावाद


भारत के उत्तरी राज्यों को छोडकर लगभग सारा भारत अब विवटश सरकार की
सहानुभूवत चाहता र्ा। बंगाल ने विवटश सरकार से संवध की र्ी । वकसान आवर्य क
तं गी से परे शान र्े । उत्तर भारत में प्रजा में असंतोष और अंग्रेज़ी भावना िैल रही
र्ी। इसी बीच मई 1857, में मेरठ की भारतीय सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ़ बगावत
शु रू कर दी। वविोह की शु रुआत गुप्त तरीके से हई र्ी ले वकन इस योजना की
शु रुआत समय से पहले हो जाने के कारि योजना को वबगाड वदया। अब यह
केवल सैवनक वविोह होकर रह गया। इसे भारतीय स्वतं त्रता संग्राम की शु रुआत के
रूप में दे िा जाने लगा। वहं दू और मुसलमान सभी भारतीयों ने इस वविोह में
बढ़चढ़कर भाग वलया। यह सैवनक वविोह के अलावा जन आं दोलन का रूप भी
बन गया। अंग्रेज़ों ने इसका दमन भारतीयों की सहायता से वकया। इस आं दोलन में
तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने बढ़-चढ़कर भाग वलया। इस वविोह ने विवटश
शासन को वहलाकर कर रि वदया। ‘विवटश पावलय यामेंट’ ने ‘ईस्ट इं वडया कंपनी’ से
भारत को अपने हार् में ले वलया।

वहं दुओं और मुसलमानों में सुधारवादी आं दोलन


इस समय वहं दुओं और मुसलमानों के बीच कई सामावजक कुरीवतयााँ िैली हई र्ीं।
इस समय सामावजक सुधारकों में वजसमें राजा राम मोहन राय और दयानंद
सरस्वती हए। इन्ोंने वहंदू धमय में कुछ सुधारवादी आं दोलन चलाया। राजा राम
मोहन राय ने वहं दू ‘िह्म समाज’ की थर्ापना की। 19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद
सरस्वती ने महत्त्वपूिय सुधार आं दोलन की शुरुआत की। यह आयय सामावजयों का
आं दोलन र्ा। इसका नारा र्ा- ‘वेदों की ओर चलो’ आयय समाज में वेदों की एक
ववशे ष ढं ग से व्याख्या की गई। इसका प्रसार मुख्य रूप से पंजाब और संयुक्त
प्रदे श के वहं दू वगय में हआ। इस सुधारवादी आं दोलन का मुख्य उद्दे श्य र्ा लडके-
लडवकयों में समान रूप से वशक्षा के प्रसार में, खियों की खथर्वत का सुधार करने में
और दवलत जावतयों के िर को ऊाँचा उठाने में र्ा। स्वामी दयानंद के समय में
बंगाल में श्री रामकृष्ण परम हं स का व्यखक्तत्व सामने आया। उन्ोंने वहं दू धमय और
दशय न के ववववध पक्षों को आपस जोडकर जनता के सामने रिा। वे संप्रदावयकता
के ववरोधी र्े । उन्ोंने इस बात पर जोर वदया वक सभी धमय सत्य की ओर जाते हैं ।

स्वामी वववेकानंद ने गुरु- भाइयों की सहायता से रामकृष्ण वमशन की थर्ापना की।


उन्ोंने वहं दू धमय और दशय न के ववववध पक्षों को आपस में जोडकर जनता के सामने
प्रिुत वकया।

1893 ई. में वशकागो में अंतराय ष्टरीय धमय सम्मेलन में भाग वलया। वववेकानंद ने भारत
के दवक्षिी छोर में कन्याकुमारी से वहमालय तक अपने वसद्धां तों को िैलाया।
1902 ई. में 39 वषय की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। वववेकानंद के समकालीन
रवींिनार् ठाकुर र्े। टै गोर पररवार ने बंगाल के सुधारवादी आं दोलनों में बढ़-
चढ़कर भाग वलया। उन्ोंने जवलयााँ वाला कां ड के ववरोध में अपनी ‘सर’ की उपावध
ल टा दी। वशक्षा के क्षेत्र में ‘शां वत वनकेतन’ उनकी प्रमुि दे न र्ी। वे रूसी िां वत के
प्रशं सक र्े ववशेष उसमें वशक्षा के प्रसार, संस्कृवत, स्वास्थ्य और समानता की चेतना
के। उनका मानना र्ा वक यही तत्व व्यखक्त के उसके उददे श्य की पूवतय में सहायक
होता है । टै गोर और गां धी दोनों मानवतावादी र्े । इन्ोंने लोगों को संकीिय
ववचारधाराओं से बाहर वनकालना चाहा। गां धी जी ववशे ष रूप से आम जनता के
आदमी र्े , जो भारतीय वकसान के रूप में र्े। टै गोर मूलतः ववचारक र्े और गां धी
अनवरत कमयठता के प्रतीक र्े। उस समय ऐनी बेसेंट का भी बहत प्रभाव पडा।
बहत-सी बातें मुसलमान जनता में भी समान रूप से प्रचवलत र्ीं। इन दोनों ने
अपनेअपने तरीके से जनता में नई ववचारधारा का संचार करना चाहा।

श्रीमती एनी बेसेंट आयरलैं ड की रहने वाली मवहला र्ी। उन्ोंने भारत में होम रूल
चलाया वजसका उद्दे श्य अंग्रेजों से भारतीयों को आं तररक स्वतं त्रता वदलाना र्ा।
1857 के वविोह के बाद भारतीय मुसलमान यह तय नहीं कर पा रहे र्े वक घर
जाएाँ । अंग्रेजों ने उनके सार् अत्यवधक दमनपूिय रवैया अपनाया र्ा। सन् 1870 के
बाद संतुलन बनाने के वलए अंग्रेजी सरकार अनुकूल हो गई। इसमें सर सैयद
अहमद ने महत्त्वपूिय भूवमका वनभाई र्ी। उन्ें यह ववश्वास र्ा वक विवटश सत्ता के
सहयोग से मुसलमानों की खथर्वत बेहतर हो सकती है । उन्ोंने मुसलमानों में विवटश
ववरोधी भावना कम करने की कोवशश की। सर सैयद अहमद िा का प्रभाव
मुसलमानों में उच्च वगय के कुछ लोगों तक ही सीवमत र्ा। 1912 में मुसलमानों के
दो नए साप्तावहक वनकले -उदू य में ‘अल वहलाल’ और अंग्रेज़ी में ‘कामरे ड।’ अबुल
कलाम आजाद का अलीगढ़ कॉले ज में सर सैयद िााँ से संबंध र्ा। अबुल कलाम
आजाद ने पुरातन पंर्ी और राष्टर ववरोधी भावना के गढ़ पर हमला वकया वजससे
बुजुगय नाराज हए पर युवा पीढ़ी में उत्तेजना भर चुकी र्ी।

वतलक और गोिले
ए. ओ. हयूम ने 1885 में राष्टरीय कां ग्रेस की थर्ापना की र्ी। जब 1885 में वनवमयत
नेशनल कां ग्रेस अपनी प्र ढ़ावथर्ा में आई तो इसके नेतृत्व का ढं ग बदल गया। जब
इसके संरक्षक बने र्े वे अत्यवधक आिमिकारी व अवज्ञाकारी र्े और वनम्न वगय
छात्र व युवा लोगों के प्रवतवनवध र्े । उसमें कई तरह के योग्य ओजस्वी नेता उभरकर
आए। इसके सच्चे प्रवतवनवध र्े - महाराष्टर के बालगंगाधर वतलक और गोिले र्े ।
संघषय का पूरा माह ल तैयार हो गया र्ा वजसे बचाने के वलए दादा भाई नोरोजी लाए
गए। 1907 ई. में हए संघषय में उदार दल की जीत हई ले वकन बहसंख्यक समाज के
लोग वतलक के पक्ष में र्े । इस समय बंगाल में वहं सक घटनाएं हो रही र्ीं।

गद्ां श – 1

अट्ठाहरवीं शताब्दी में बंगाल में एक अत्यंत प्रभावशाली व्यखक्तत्व का उदय हआ |


यह र्े राजा राममोहन राय | वे एक नए ढं ग के व्यखक्त र्े वजनमें प्राचीन और नवीन
ज्ञान का मेल र्ा |भारतीय ववचारधारा और दशयन की उन्ें गहरी जानकारी र्ी | वे
संस्कृत िारसी और अरबी के ववद्वान र्े और उस वहं दू मुखस्लम संस्कृवत की उपज
र्े जो उस समय भारत के सुसंस्कृत वगय के लोगों पर छाई हई र्ी | उन्ोंने अंग्रेजी
और पवश्चम के धमय और संस्कृत के स्रोतों की िोज के वलए ग्रीक,लातीनी , और
इिानी भाषाएाँ सीिीं |

पवश्चमी सभ्यता के ववज्ञान और तकनीकी पक्षों ने भी उन्ें आकवषयत वकया | अपने


दाशय वनक और ववद्वतापूिय झुकाव के कारि राजा राममोहन राय अवनवायय रूप से
प्राचीन सावहत्यों की ओर झुके | तु लनात्मक धमय के अध्ययन की पद्धवत की िोज
करने वाले दु वनया के पहले उत्साही व्यखक्त र्े और वशक्षा को आधुवनक सां चे में
डालकर उसे पुराने पंवडताऊ पद्धवत के चंगुल से वनकालने के वलए बहत उत्सु क र्े
| उन्ोंने गवनयर जनरल को गवित, भ वतक –ववज्ञान , रसायन- शाि, जीव ववज्ञान
और अन्य उपयोगी ववज्ञानों की वशक्षा की आवश्यकता पर जोर दे ते हए वलिा |

गद्ां श पढ़कर प्रश्ों के उत्तर वलखिए |

1. अट्ठाहरवीं शताब्दी में बंगाल में वकस प्रभावशाली व्यखक्तत्व का उदय हआ ?


2. राजा राममोहनराय वकन भाषाओाँ के ववद्वान् र्े ?
3. वे वशक्षा को वकस ढां चे में ढालना चाहते र्े ?
4. उन्ोंने गवनयर जनरल को क न –सी वशक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दे ने
के वलए कहा ?
5. राजा राम मोहनराय क न –से सावहत्यों की ओर झुके ?
गद्ां श - 2

वववेकानंद ने बहत- सी बातें कहीं ले वकन वजस एक बात के बारे में उन्ोंने अपने
ले िन और भाषिों में बराबर वलिा, वह र्ी ‘अभय’ वनडर रहो| उनके अनुसार “
अगर दु वनया में कोई पाप है तो वह दु बयलता है - हर तरह की दु बयलता से बचो’
दु बयलता पाप है ‘दु बयलता मृत्यु है | उपवनषदों की यही महान वशक्षा र्ी |”और सत्य
की कस टी है - “ कोई भी चीज जो तु म्हें शारीररक, ब खद्धक और आध्याखत्मक दृवष्ट
से कमजोर बनाती है , उसे जहर की तरह छोड दो, उसमें कोई जीवन नहीं है वह
सत्य नहीं हो सकती |

सत्य मजबूत बनाता है , सत्य पववत्रता है ‘ सवयज्ञान है | “ अंधववश्वासों से सावधान


रहो| मैं तु म्हें अंधववश्वासी मूिय कहने की अपेक्षा कट्टर नाखिक कहना पसंद
करू
ं गा , क्ोंवक नाखिक सजीव होता है और आप उसे कुछ बना सकते हैं ले वकन
अगर अंधववश्वास घर कर ले तो वदमाग गायब हो जाता है बुखद्ध क्षीि होने लगती है ,
जीवन का पतन होने लगता है |

गद्ां श पढ़कर प्रश्ों के उत्तर वलखिए |

1. वववेकानंद ने अपने लेिन और भाषिों में क्ा बात वलिी ?


2. वववेकानंद ने दु बयलता के बारे में क्ा कहा ?
3. उपवनषदों की महान वशक्षा क्ा र्ी ?
4. सत्य मनुष्य को कैसा बनाता है ?
5. मनुष्य में अगर अन्धववश्वास घर कर ले तो क्ा होता है ?

प्रश्ों के उत्तर वलखिए |

1. राजा राममोहन राय ने प्रमुि रूप से वकस कुरीवत का अंत वकया ?


2. अंग्रेजों के समय भारत में क न से दो प्रमुि ववभाग बने ?
3. ‘कैवपटे शन चाजय’ क्ा र्ा ?
4. अंग्रेजी शासनकाल के द रान भारत ने वकस- वकस क्षेत्र में ववकास वकया ?
5. नेशनल कां ग्रेस की थर्ापना कब हई ?
6. वतलक और गोिले ने वकन-वकन वगों का प्रवतवनवधत्व वकया ?
7. ‘मुखस्लम लीग‘ की थर्ापना वकनके प्रयास से हई ?
8. अबुल कलाम आज़ाद ने क्ा ववशे ष कायय वकया ?
9. रामकृष्ण वमशन की थर्ापना वकसने की ? इस वमशन की क्ा ववशे षता र्ी ?
10. उन्नीसवीं शताब्दी में क न- क न से सुधारक हए ?
11. स्वामी दयानंद सरस्वती ने लोगों को क्ा संदेश वदया ?
12. अंग्रेजों ने अपने िायदे हे तु वकस वगय को जन्म वदया ?
13. मालगुजारी से आप क्ा समझते हैं ?
14. भारत में सभी संपन्न साधन होने पर भी भारत की जनता अपने ही
दे श में गरीब क्ों हो गई ?
15. सन् 1857 के भारतीय वविोह में क न- से दो प्रमुि नेता उभरे ?

उत्तर कंु जी

गद्ां श -1
1. राजा राममोहन राय का उदय हआ |
2. राजा राममोहन राय संस्कृत, फ़ारसी, अरबी भाषाओाँ के ववद्वान र्े |
3. वे वशक्षा को आधुवनक ढााँ चे में ढालना चाहते र्े |
4. उन्ोंने गवित, भ वतक-ववज्ञान, रसायनशाि, जीव-ववज्ञान आवद की
आवश्यकता पर ज़ोर वदया |
5. राजा राममोहन राय प्राचीन सावहत्यों की ओर झुके |

गद्ां श -2
1. वववेकानंद ने जो बात वलिी वह र्ी ‘अभय’ – वनडर रहो |
2. वववेकानंद ने दु बयलता के बारे में कहा वक दु बयलता से बचो, दु बयलता पाप है ,
दु बयलता मृत्यु है |
3. कोई भी चीज़ जो तु म्हे शारीररक, ब खद्धक और आध्याखत्मक दृवष्ट से कमज़ोर
बनाती है , उसे ज़हर की तरह छोड दो |
4. सत्य मनुष्य को मजबूत बनाता है , सत्य पववत्रता है , सवयज्ञान है |
5. बुखद्ध क्षीि होने लगती है , जीवन का पतन होने लगता है |

प्रश्ों के उत्तर :

1. राजा राममोहन राय ने मुख्या रूप से ‘सती प्रर्ा’ वजसमें पवत की मृत्यु होने
पर िी भी वज़ं दा जलकर अपने प्राि दे दे ती र्ी, का अंत वकया | उन्ीं के
आं दोलन के कारि विवटश सरकार ने सती प्रर्ा पर रोक लगाई |
2. मालगुजारी व पुवलस |
3. अंग्रेज़ी सेना के प्रवशक्षि हे तु भारत की ओर से उठाया गया िचय ‘कैवपटे शन
चाजय ’ र्ा |
4. अंग्रेजी शासनकाल में ही भारत ने नई तकनीक, रे लगाडी, छापािाना, दू सरी
मशीनें व युद्ध के अवधक कारगर तरीकों का ववकास वकया |
5. नेशनल कां ग्रेस की थर्ापना सन् 1885 में हई |
6. वतलक और गोिले ने वनम्न वगय, मध्यम वगय, ववद्ार्ी व युवा वगय का
प्रवतवनवधत्व वकया | भारतीय जनसाँख्या का एक बडा जनसमुदाय उनके पक्ष
में र्ा |
7. ‘मुसवलम लीग’ की थर्ापना अलीगढ कॉलेज के उस समुदाय के माध्यम से
हई जो नए मुसलमान बुखद्धजीववयों का नेतृत्व कर रहा र्ा |
8. अबुल कलाम आज़ाद ने मुखस्लम बुवद्दजीवी समुदाय में सनसनी पैदा कर दी
और युवा पीढ़ी के वदमाग में राष्टरीयता की भावना जगाने हे तु उत्तेजना भरी |
9. रामकृष्ण वमशन की थर्ापना वववेकानंद ने की | इसकी ववशे षता यह र्ी वक
इसमें सां प्रदावयकता का भाव नहीं र्ा अर्ाय त् सभी धमों को समान समझा
जाता र्ा |
10. उन्नीसवीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहं स,
वववेकानंद, टै गोर, महात्मा गां धी, एनी बेसेंट, सर सैयद अहमद िां , अबुल
कलाम आज़ाद, गोपाल कृष्ण गोिले एवं बालगंगाधर वतलक मुख्य सुधारक
हए | इन्ोने अंग्रेजी शासन के प्रभाव के होते हए भी लोगों की ववचारधारा
को बदलना चाहा | उनमें राष्टरीयता की भावना भर, धावमयक कमय-कां डों से
उन्ें हटाना चाहा |
11. स्वामी दयानंद सरस्वती ने लोगों को अंदेश वदया वक ‘वेदों की ओर
ल टो’ अर्ायत् उनका मानना र्ा वक वेदों में ही जीवन की सत्यता है |
12. अंग्रेजों ने अपने िायदे हे तु भारतीय आम जनता व अपने बीच एक
ऐसे वगय को जन्म वदया जो उनके कहे अनुसार चले | उनमें र्े ज़मींदार,
राजा, पटवारी, गााँ व के मुखिया व ऊपर के कमयचारी | ये सरकार के
वपछलग्गू र्े , आम जनता से धन बटोरकर अपनी व सरकार की जे बें भरते र्े
|
13. मालगुजारी एक प्रकार का चुंगी कर र्ा जो गााँवों से शहरों में लाए या
ले जाए जाने वाले सामान पर सरकार की ओर से लगाया जाता र्ा |
14. भारत में सभी साधन संपन्न होने पर भी – भारत की जनता अपने ही
दे श में गरीब हो गई क्ोंवक उसे विटे न के सभी िचय उठाने पडते र्े |
15. तां त्या टोपे व लक्ष्मीबाई |
प्रश्

प्रश् 1. अंग्रेज़ी राज्य की थर्ापना के बाद भारत में कैसी व्यवथर्ा से बाँध गया?
प्रश् 2. अंग्रेज़ों का लक्ष्य क्ा र्ा?
प्रश् 3. कैवपटे शन चाजय क्ा र्ा?
प्रश् 4. वशक्षा का ववरोध करने वाले अंग्रेजों को भारत में वशवक्षत क्ों करना पडा?
प्रश् 5. सती प्रर्ा क्ा र्ी? इसे रोकने में राजा राममोहन राय ने क्ा वकया?
प्रश् 6. 1857 का वविोह असिल क्ों रहा?
प्रश् 7. तकनीकी पररवतय न और वशक्षा के प्रसार का समाज पर क्ा प्रभाव पडा?
प्रश् 8. सर सैयद अहमद िााँ ने अलीगढ़ कॉलेज की थर्ापना वकस उद्दे श्य से की?
प्रश् 9. वतलक और गोिले कैसे आं दोलनकारी र्े ?

प्रश् 10.भारत में विवटश साम्राज्य की थर्ापना के सार् घटने वाली नई घटना क्ा
र्ी?
प्रश् 11. 18वीं शताब्दी में बंगाल में वकस व्यखक्तत्व का उदय हआ?
प्रश् 12.19वीं शताब्दी के प्रमुि सुधारक का नाम वलखिए।
प्रश् 13. दयानंद सरस्वती क न र्े ? उन्ोंने समाज सुधार के क्षेत्र में क्ा-क्ा कायय
वकए?
प्रश् 14. वतलक और गोिले के बारे में संवक्षप्त विय न कीवजए।

उत्तरमाला

1. अंग्रेज़ी राज्य की थर्ापना के बाद भारत एक ऐसी राजनीवतक और आवर्य क व्यवथर्ा


के सार् जुड गया वजसका संचालन भारत दे श के बाहर इं ग्लैंड से होने लगा।

2. अंग्रेजों का लक्ष्य र्ा – लगान के रूप में भारतीयों से अवधक मात्रा में टै क्स वसूलना
और मुनाफ़ा कमाना।

3. इं ग्लैंड में विवटश सेना के एक वहस्से का प्रवशक्षि िचय भारत को उठाना पडता र्ा।
इसे कैवपटे शन चाजय कहा जाता र्ा।

4. अंग्रेज़ वशक्षा के प्रचार को नापसंद करते र्े । विर भी भारत में वशक्षा का प्रचार-प्रसार
करना उनकी मज़बूरी रही। वे भारत में पाश्चात्य संस्कृवत को िैलाना चाहते र्े। इसके
अवतररक्त उन्ें अपने कायों के वलए क्लकय भी तै यार करना र्ा I

5. सती प्रर्ा एक पुराने समय की कुरीवत र्ी। इस प्रर्ा में पवत की मृत्यु होने पर िी
(पत्नी) को भी वजं दा जला वदया जाता र्ा। राजा राममोहन राय ने इस प्रर्ा का अंत
अंग्रेजों की सहायता लेकर कानून बनाकर वकया। उन्ीं के प्रयासों के कारि सरकार ने
सती प्रर्ा पर रोक लगाई।

6. 1857 का वविोह असिल होने का प्रमुि कारि यह र्ा वक उसके वविोह के वलए
जो वतवर् वनवश्चत की गई र्ी उसका िुलासा समय से पहले हो गया। इससे अंग्रेज़ सतकय
हो गए, इसके अलावे दे श के ज़मीनदारों, सामंती सरदारों ने इसमें भाग नहीं वलया।
इससे भी यह वविोह कमज़ोर पड गया।

7. अंग्रेजों के आने से तकनीकी और वशक्षा के क्षेत्र में अभूतपूवय पररवतयन हआ। समाज में
सोई हई चेतना जाग उठी और नई चेतना का ववकास हआ। अंग्रेजी पढ़ने वालों का
रुझान पवश्चमी विुओं और पवश्चमी सभ्यता की गवतवववधयों पर गया तर्ा लोगों में अपने
दे श की आजादी के प्रवत लगाव पैदा हो गया।

8. सर सैयद अहमद िााँ ने अलीगढ़ कॉले ज की थर्ापना अपने इस उद्दे श्य से की वक


भारतीय मुसलमान वशक्षा ग्रहि करके अंग्रेजी सरकार द्वारा योग्य न कररयााँ प्राप्त कर
सकें।

9. वतलक और गोिले आिामक व अवज्ञाकारी ववचाराधारा वाले र्े । गरम दल के


प्रभावी आं दोलनकारी नेता र्े। वे अपना मां ग अनुरोध से नहीं बखल्क छीन कर ले ना
चाहते र्े । भारतीय जनमानस का बहत बडा भाग उनके समर्य न में र्ा। सरकार भी
उनकी गवतवववधयों से डरती र्ी।

10. भारत में विवटश साम्राज्य की थर्ापना से भारतीयों के वलए यह नई घटना र्ी वक
पहली बार वे ऐसी शासन सत्ता में आए वजसका मूल भारतीय न र्ा। इससे पूवय कई
बाहरी जावतयों ने भारत पर आिमि कर शासन सत्ता साँभाली र्ी। अवधकां श ने अपना
भारतीयकरि वकया जबवक अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृवत को नहीं अपनाया।
अब तो भारत ऐसे शासकीय संचालन में बाँध गया वजसकी बागडोर भारतीय धरती पर न
होकर लं दन की धरती पर र्ा

11. 18वीं शताब्दी में वजस सबसे प्रभावशाली व्यखक्तत्व का उदय हआ, वे र्े राजा
राममोहन राय। वे एक नई सोच के व्यखक्त र्े । उन्ें भारतीय ववचारधारा और दशय न की
गहरी जानकारी र्ी। उन्ें अनेक भाषाओं का ज्ञान र्ा। वे भारतीय समाज को पुरानी
पद्धवत से बाहर वनकालना चाहते र्े । वे एक समाज सुधारक र्े। उन्ीं के प्रयास के
कारि सती प्रर्ा पर रोक लगी।

12. 19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती रामकृष्ण परमहं स, वववेकानंद, टै गोर,
महात्मा गां धी, ऐनी बेसेंट, सर सैय्यद अहमद िााँ , अबुल कलाम आजाद, गोपाल कृष्ण
गोिले एवं बाल गंगाधर वतलक मुख्य सुधारक र्े । इन्ोंने समाज सुधारक विवटश शासन
के प्रभाव के चंगुल से बाहर वनकाल कर लोगों की ववचारधारा को बदलना चाहा। वे
उनमें राष्टरीयता की भावना भर, धावमयक कां डों से उन्ें वनकालना चाहते र्े।
13. दयानंद सरस्वती 19वीं शताब्दी के जाने-माने समाज-सुधारक र्े । उन्ोंने लोगों को
संदेश वदया वक ‘वेदों की ओर ल टो’ यानी उनका मानना र्ा वक जीवन में ही जीवन की
सत्यता है । इसका प्रसार पंजाब तर्ा संयुक्त प्रदे श के वहं दू वगय में हआ। उन्ोंने लडके-
लडवकयों को बराबरी की वशक्षा दे ने का प्रयास वकया। खियों की खथर्वत में सुधार और
दवलत जावतयों का िर ऊाँचा उठाने के वलए महत्त्वपूिय कायय वकए।

14.एक योग्य और ते जस्वी नेता के रूप में उभरे महाराष्टर के बाल गंगाधर वतलक मराठों
के महापुरुष के रूप में र्े । गोपाल कृष्ण गोिले कां ग्रेस के बुजुगय नेता र्े , वे दादा भाई
न रोजी को अपना राजनीवतक गुरु मानते र्े।

14.अंवतम दौर - दो

राष्टरीयता बनाम साम्राज्यवाद : मध्य वगय की बेबसी गां धी जी का आगमन- दू सरे ववश्वयुद्ध
की शु रुआत होने के समय कां ग्रेस की राजनीवत में उतार आया र्ा। इसका मुख्य कारि
कां ग्रेस का दो गुटों में बाँटना र्ा। वजनमें एक र्ा नरमदल और दू सरा गरम दल। ववश्व
युद्ध की समाखप्त के बाद भारत में अंग्रेजों द्वारा दमनकारी कानून और भारत में माशयल
ला लागू हआ। भारतीय जनता का शोषि लगातार बढ़ने लगा। तभी भारतीय राजनीवत
में गां धी का उदय हआ। वे करोडों की आबादी से वनकलकर आए र्े। वे जनता की भाषा
बोलने वाले और जनता के सच्चे शुभ वचंतक र्े। अतः उन्ोंने भारत में करोडों लोगों को
प्रभाववत वकया। गां धी ने पहली बार कां ग्रेस के संगठन में प्रवेश वकया। इस संगठन का
उद्दे श्य र्ा सवियता और तरीका र्ा शां वतवप्रय तरीके से। गां धी ने आते ही विवटश शासन
की बुवनयादों पर चोट की। उन्ोंने लोगों से कहा वक अपने अंदर का भय वनकाल दो
क्ोंवक आम लोगों की व्यापक दमनकारी दमघोटू भय, सेना का, पुवलस का, िुविया
ववभाग का, अिसरों, जमीनदारों, साहूकारों, बेकारी और भुिमरी का भय सताता रहता
र्ा। गां धी जी की प्रेरिा से लोगों ने भयमुक्त होकर काम करना शु रू वकया। इससे लोगों
में मनोवैज्ञावनक पररवतयन का संचालन हआ। यह पररवतय न असंख्य लोगों को प्रभाववत
कर रहा र्ा। उनकी इस प्रेरिा से सभी आम जनता में जागरुकता का वविार हआ।

गां धी जी के नेतृत्व में कां ग्रेस सविय


गां धी जी ने पहली बार कां ग्रेस में प्रवेश करते ही उसके संववधान में पररवतय न ला वदया।
उन्ोंने कां ग्रेस को लोकतां वत्रक संगठन बनाया। इस संगठन का लक्ष्य और आधार र्ा
सवियता। इसके पररिामस्वरूप वकसानों ने कां ग्रेस में भाग ले ना शुरू वकया। अब
कां ग्रेस ववशाल वकसान संगठन वदिाई दे ने लगा। गां धी जी का सवियता का आह्वान
दोहरा र्ा – ववदे शी शासन को चुन ती दे ना और इसका मुकाबला करना। अपनी िुद
की सामावजक बुराइयों के ववरुद्ध लडने में भी सवियता र्ी। गां धी जी ने अंग्रेजी शासन
की बुवनयादों पर चोट की। लोगों से इसके ववरोध में मैडल और खिताब वापस करने की
अपील की। धनी लोगों ने सादगीभरा जीवन व्यतीत करना अपना वलया। गां धी जी के
अनुसार आज़ादी पाने के वलए आम जनता की भागीदारी आवश्यक है । वे हर काम को
शां वतपूिय तरीके से सही ढं ग से करते र्े । उनका मानना र्ा वक भारतीय संस्कृवत
धमयवनरपेक्ष है । यह सभी धमों का सखम्मश्रि है । गां धी जी सभी की भावनाओं का सम्मान
करते र्े । वे प्रायः लोगों की इच्छा के सामने झुक जाते र्े। कभी-कभी अपने ववरुद्ध
िैसले स्वीकार कर ले ते र्े । सन् 1920 तक कांग्रेस में शावमल और आम लोगों ने गां धी
के रािे को अपनाकर विवटश सरकार के खिलाि संघषय वकया। पहली बार नए
आं दोलन हए, सववनय अवज्ञा आं दोलन हआ, असहयोग की नीवत अपनाई गई ले वकन
यह अवहं सक आं दोलन र्ा।

अल्पसंख्यकों की समस्या-मुखस्लम लीग-मोहम्मद अली वजन्ना


भारत सदै व से धमय वनरपेक्षता का अनुसरि करता रहा और सभी धमों को एक समान
मान्यता दी। यहााँ वकसी धमय का ववरोध नहीं वकया गया। ले वकन भारत में उस समय
राजनीवतक मामलों में धमय का थर्ान सां प्रदावयकता ने ले वलया र्ा। कांग्रेस इन धावमयक
सां प्रदावयक मामलों का हल वनकालने के वलए उत्सु क और वचंवतत र्ी। कां ग्रेस की
सदस्य संख्या में अवधकां श वहं दू सदस्य र्े। कांग्रेस मुख्यतः दो बुवनयादी प्रश्ों पर अटल
रही – राष्टरीय एकता और लोकतं त्र। 1940 में कां ग्रेस ने घोषिा की वक भारत में विवटश
सरकार की नीवत ‘नव जीवन में संघषय और िूट को प्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दे ती है ।’

ऐसे में भारत की बवल दे ना और लोकतं त्र का त्याग करना दे श के वलए अवहतकर र्ा।
अंग्रेज़ों की नीवत वहं दू और मुखस्लम एकता को कमज़ोर करना रहा। वे िूट डालो राज्य
करो की नीवत को अपनाते र्े। ऐसे में कां ग्रेस ऐसा कोई हल न ढू ाँ ढ़ सकी वजससे
सां प्रदावयक समस्या को सुलझाया जा सके।

अब हर हाल में वहं दू और मुसलमानों में दीवार िडी करना चाहता र्े। वे वहं दू-मुखस्लम
के मत-भेदों को सां प्रदावयक रं ग दे ने का प्रयास करने लगा।

गद्ां श – 1

गां धी जी ने पहली बार कां ग्रेस के संगठन में प्रवेश वकया और तत्काल उसके संववधान में
पूरी तरह पररवतय न ला वदया | उन्ोंने उसे लोकतां वत्रक और लोक संगठन बनाया | अब
उसमें वकसानों ने प्रवेश वकया और अपने नए रूप में वह एक ववशाल वकसान - संगठन
वदिाई दे ने लगा, वजसमें मध्य वगय के लोग संख्या में वछतरे हए र्े ले वकन उनका ज़ोर
काफ़ी र्ा | अब उसका िेवतहर चररत्र बढ़ने लगा | औद्ोवगक मज़दू र भी उसमें आए
ले वकन अपनी व्यखक्तगत है वसयत में, अलग से संगवठत रूप में नहीं |
इस संगठन का लक्ष्य पर आधार र्ा सवियता | ऐसी सवियता वजसका आधार शां वतपूिय
पद्धवत र्ी | अब तक जो ववकल्प र्े उसमें या तो केवल बातचीत करना और प्रिाव
पाररत करना र्ा अर्वा वहं सक काययवाही करना | इन दोनों तरीकों को एक तरफ़ हटा
वदया और वहं सा की ववशे ष रूप से वनंदा की गई क्ोंवक वह कां ग्रेस की मूल नीवत के
खिलाफ़ र्ा | काम करने का एक नया तरीका वनकाला गया, जो पूरी तरह शां वतपूिय र्ा |

गद्ां श पढ़कर प्रश्ों के उत्तर वलखिए |

1. गां धी जी के कां ग्रेस में प्रवेश के बाद क्ा पररवतय न हए ?


2. उसमें वकस वगय ने प्रवेश वकया ?
3. इस संगठन का लक्ष्य और आधार क्ा र्ा ?
4. वे कां ग्रेस की क न सी नीवत के खिलाफ़ र्े ?
5. काम करने का नया तरीका कैसा र्ा ?

गद्ां श - 2

कां ग्रेस पर गां धी जी का प्रभुत्व र्ा, ले वकन यह िास वकस्म का अवधकार र्ा, क्ोंवक
कां ग्रेस एक सविय, वविोही, अनेक पक्षीय संगठन र्ा वजसमें तरह-तरह की राय होती
र्ी और उसे आसानी से इधर-उधर नहीं ले जाया जा सकता र्ा | गां धी जी अक्सर दू सरों
की इच्छा के सामने झुक जाते र्े | कभी-कभी वे अपने ववरुद्ध िैसलों को भी स्वीकार
कर लेते र्े |

इस तरह सन् 1920 में नेशनल कां ग्रेस ने और कािी हद तक दे श ने इस नए रािे को


अपनाया और विवटश सरकार के खिलाफ़ बार-बार संघषय वकया |

एक के बाद दू सरा सववनय अवज्ञा आं दोलन हआ और उसके कारि बहत कष्ट उठाने
पडे , ले वकन इन मुसीबतों को चूाँवक िुद आमंवत्रत वकया गया र्ा इसवलए उनसे शखक्त ही
वमली |

जब सववनय अवज्ञा आं दोलन जारी नहीं र्ा, तब भी भारत में विवटश सरकारी तं त्र से
असहयोग जारी र्ा, गरचे उसका आिामक चररत्र समाप्त हो गया र्ा|
गद्ां श पढ़कर प्रश्ों के उत्तर वलखिए |

1. कां ग्रेस पर वकसका प्रभुत्व र्ा ?


2. गां धी जी अक्सर वकसकी इच्छाओं के सामने झुक जाते र्े ?
3. सन 1920 तक नेशनल कां ग्रेस ने वकसकी नीवतयों को अपनाकर संघषय वकया ?
4. इसके बाद क न-सा आं दोलन हआ ?

प्रश्ों के उत्तर वलखिए |

1. ववश्व युद्ध की समाखप्त पर क्ा हआ ?


2. माशयल लॉ क्ा र्ा ?
3. इस समय लोगों की क्ा खथर्वत र्ी ?
4. गां धी जी ने लोगों को क्ा संदेश वदया ?
5. भारतीय जनता वकस-वकस के भय में जीवन जी रही र्ी ?
6. गां धी जी के संदेश ‘ डरो मत ‘ का जनता पर क्ा प्रभाव पडा ?
7. भारत में स्वतं त्रता प्राखप्त हे तु वकन दो गुटों ने जन्म वलया ?
8. गां धी जी का उद्दे श्य क्ा र्ा ?
9. गां धी जी की सवियता को दोहरा आह्वान क्ों माना गया ?
10. गां धी जी की कर्नी और करनी में मेल र्ा | कैसे ?
11. भारत में कभी जातीय सवाल क्ों नहीं उठे र्े ?
12. कां ग्रेस वकन दो ववचारों पर अवडग र्ी ?
13. मुसलमानों को अलग धावमयक गुट वनवमयत करने में वकस नेता ने पूिय
सहयोग वदया ?
14. कां ग्रेस वकस प्रयास में असिल रही ?
15. स्वतं त्रता प्राखप्त हे तु वमस्टर वजन्ना के क्ा ववचार र्े ?

उत्तर कंु जी
गद्ां श – 1 उत्तर

1. गां धी जी ने कां ग्रेस के संगठन में प्रवेश वकया और तत्काल उसके संववधान में पूरी
तरह पररवतय न ला वदया |
2. वकसान वगय ने प्रवेश वकया |
3. इस संगठन का लक्ष्य और आधार र्ा सवियता | ऐसी सवियता वजसका आधार
शां वतपूिय पद्धवत र्ा |
4. वह कां ग्रेस की मूल नीवत के खिलाि र्े |
5. काम करने का नया तरीका पूरी तरह शां वतपूिय र्ा |

गद्ां श – 2 उत्तर

1. कां ग्रेस पर गां धी जी का प्रभुत्व र्ा |


2. गां धीजी अक्सर दू सरों की इच्छाओं के सामने झुक जाते र्े |
3. गां धी जी की नीवतयों को अपनाकर अंग्रेजी सरकार के ववरुद्ध संघषय वकया |
4. सववनय अवज्ञा आं दोलन हआ |

प्रश्ों के उत्तर :

1. ववश्व युद्ध के द रान भारतीयों का इिेमाल करने के वलए सरकार ने बहत वायदे
वकए र्े और लोगों को इस बात की आशा र्ी वक अब जीवन में राहत व प्रगवत के
क्षि आएाँ गे ले वकन युद्ध समाप्त होते ही सरकार ने तो दमनकारी कानूनों का
वनमाय ि कर पंजाब में ‘ माशयल लॉ ’ भी घोवषत वकया वजससे लोगों की उम्मीदों पर
पानी विर गया |
2. माशयल लॉ विवटश सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐसा कानून र्ा वजसमें वकसी भी
व्यखक्त को वकसी भी समय वबना पुवलस व न्यायालय की इजाज़त के गोली का
वनशाना बनाया जा सकता र्ा |
3. इस समय सभी लोग वकसान, मजदू र व मध्यम वगय मुखिलों से भरा जीवन जी
रहे र्े | शोषि की प्रविया ज़ोरों पर र्ी | लोगों के प रुष को वनरं तर कुचला जा
रहा र्ा | गरीबी वनरं तर बढ़ती जा रही र्ी |
4. गां धी जी ने लोगों को सत्य का सार् दे ते हए, वनभयय होने व कमय करने का संदेश
वदया |
5. विवटश सरकार ने चारों और ि फ़नाक वातावरि बनाया र्ा, इसी कारि
भारतीय जनता व्यापक दमनकारी, दमघोंटू वातावरि, सेना का, पुवलस का,
ख़ुवफ़या ववभाग का, अफ़सरों व जमींदारों का, साहूकारों का, बेकारी व भुिमरी
के भय तले जीवन जी रही र्ी |
6. गां धी जी के संदेश ‘ डरो मत ‘ से लोगों का विवटश सरकार के प्रवत भय कम हो
गया | अब वे डरकर या वछपकर काम कम करने लगे वजससे उनमें कािी
पररवतय न आया | वे कायों की ओर अग्रसर हए | यह एक मनोवैज्ञावनक बदलाव र्ा
|
7. नरम दल और गरम दल |

8. गां धी जी का उद्दे श्य र्ा लोगों को प्रेररत करके उनमें सवियता का भाव जागृत
करना |
9. गां धी जी की सवियता को दोहरा आह्वान माना गया क्ोंवक एक ओर तो उनका
लक्ष्य र्ा ववदे शी शासन को चुन ती दे ना और दू सरी ओर सामावजक बुराइयों के
ववरुद्ध लडकर दे श की समस्याओं को हल करना व दवलत जावतयों को ऊपर
उठाने के सार् छु आछूत के अवभशाप को समाप्त करना |
10. गां धी जी की कर्नी और करनी में मेल र्ा अर्ायत् जो कहते र्े वही करके भी
वदिाते र्े | ऐसा इसवलए सत्य है क्ोंवक अपने ववचारों की शु रुआत वे स्वयं अपने
से करते र्े |
11. भारत में वहं दू, मुखस्लम, वसक्ख व इसाई सभी जावतयों के लोग समान रूप से रहते
र्े | इसवलए कभी जातीय सवाल नहीं उठे र्े |
12. कां ग्रेस राष्टरीय एकता और लोकतं त्र की भावना पर अवडग र्ी |

13. मुसलमानों को अलग धावमयक गुट वनवमयत करने में वमस्टर वजन्ना ने पूरा सहयोग
वदया | उन्ोंने ही विवटश सरकार के समक्ष दो राष्टरों भारत और पावकिान का
प्रिाव रिा |
14. कां ग्रेस ने बहत प्रयास वकया वक सां प्रदावयक तत्वों को राजनीवत में न लाया जाए
ले वकन मुखस्लम लीग ने सहयोग न वकया और कां ग्रेस राष्टरीय एकता कायम रिने
में असिल रही |
15. वमस्टर वजन्ना ने स्वतं त्रता की मााँ ग को नया मोड दे वदया | उन्ोंने अपना ववचार
वदया वक भारत में दो राष्टर हैं वहं दू और मुसलमान | इसी ववचारधारा से पावकिान
व भारत के ववभाजन की अवधारिा का ववकास हआ | वजसका पररिाम यह
वनकला वक स्वतं त्रता वमलते ही भारत दो टु कडों में बाँट गया |
प्रश्-उत्तर

प्रश् 1. प्रर्म ववश्वयुद्ध के समय राजनीवतक खथर्वत क्ा र्ी?


प्रश् 2. कां ग्रेस में दो दल क न-क न से र्े ?
प्रश् 3. प्रर्म ववश्वयुद्ध के बाद दे श में लोगों की क्ा खथर्वत र्ी?
प्रश् 4. माशय ल लॉ क्ा र्ा?
प्रश् 5. गां धी जी द्वारा अहवान करने पर दे श की आम जनता पर क्ा प्रभाव पडा?
प्रश् 6. भारतीय संस्कृवत के बारे में गां धी जी के क्ा ववचार र्े ?
प्रश् 7. कां ग्रेस वकस प्रयासों में असिल रही?
प्रश् 8. गां धी जी के सपनों का भारत कैसा र्ा?
प्रश् 9. प्रर्म ववश्व युद्ध का भारत पर क्ा प्रभाव पडा?
प्रश् 10.गां धी जी की काययप्रिाली क्ा र्ी?

उत्तरमाला

1. प्रर्म ववश्व युद्ध के समय राजनीवतक खथर्वत उतार पर र्ी।

2. कां ग्रेस में दो दल र्े (1) गरम दल (2) नरम दल

3. प्रर्म ववश्वयुद्ध के बाद दे श में आम लोगों की खथर्वत दयनीय र्ी। वकसान, मजदू र,
वगय, मध्यम वगय सभी आिां त र्े। उनका बडे पैमाने पर शोषि हो रहा र्ा। दे श में
भुिमरी और गरीबी बढ़ती जा रही र्ी।

4. ‘माशयल लॉ’ अंग्रेज़ी सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐसा कानून र्ा वजसमें वकसी भी
व्यखक्त को वकसी भी समय पुवलस व न्यायालय के आदे श के बगैर गोली का वनशाना
बनाया जा सकता र्ा।

5. गां धी जी द्वारा आम जनता को अह्वान करने पर ‘डरो मत’ वकए जाने पर लोगों में
विवटश सरकार का डर समाप्त हो गया। वे अपने कायय िुलेआम करने लगे। उनमें
हस ं ला और साहस की वृखद्ध हई और मनोवैज्ञावनक पररवतय न वदिाई पडने लगा।
6. गां धी जी ने भारतीय संस्कृवत के बारे में वलखित रूप में कहा वक “भारतीय संस्कृवत न
वहं दू है न इस्लाम, न पूरी तरह से कुछ और है । यह सबका वमलाजु ला रूप है । उन्ोंने
वहं दू धमय को सावयभ वमक यानी सबके वलए समान रूप दे ना चाहा। सत्य के घेरे में सबको
शावमल करने का प्रयास वकया I

7. कां ग्रेस ने बहत प्रयास वकया वक सां प्रदावयक तत्वों को राजनीवत में न लाया जाए
ले वकन मुखस्लम लीग ने सहयोग न वकया और राष्टरीय एकता कायम रिने में असिल
रही।

8. गां धी जी ऐसे भारत का वनमाय ि करना चाहते र्े- वजसमें गरीब-से-गरीब व्यखक्त भी
यह महसूस करे गा वक यह उसका दे श है वजसके वनमाय ि में उसका योगदान रहा है ।
एक ऐसा भारत हो वजसमें लोगों के बीच ऊाँच-नीच, अमीर-गरीब का भेद न हो। ऐसा
भारत वजसमें सभी जावतयााँ समभाव से रहें । ऐसा भारत हो वजसमें भेद-भाव से रवहत हो,
छु आछूत की जगह न हो, नशीली मवदरा और दवाइयों के अवभशाप के वलए कोई जगह
नहीं हो, वजसमें िी-पुरुषों के समान अवधकार हों, यही गां धी जी के सपनों का भारत है ।

9. प्रर्म ववश्व युद्ध की समाखप्त पर दे श में राहत और प्रगवत की बजाय दमनकारी कानून
और पंजाब में माशय ल लॉ लागू हआ। जनता में अपमान की कडवाहट और िोध िैल
गया और शोषि का बाजार गमय र्ा। इससे लोगों की आशा वनराशा में बदल गई।

10. गां धी जी की कायय प्रिाली अवहं सात्मक र्ी, उसमें वहं सा के वलए लेशमात्र की जगह
नहीं र्ी। उनके काम करने का तरीका पूियतया शां वतपूवयक र्ा ले वकन वजस बात को
गलत समझा जाता र्ा उसके आगे वसर झुकाना भी उन्ोंने कबूल नहीं वकया। उन्ोंने
लोगों को अंग्रेजों के द्वारा दी गई पदववयााँ वापस करने के वलए प्रेररत वकया। सववनय
अवज्ञा आं दोलन व असहयोग आं दोलन उन्ीं की दे ि-रे ि में भारत में चले , वजन्ोंने
अंग्रेज़ी सरकार को उिाडकर रि वदया।

15. तनाि

प्रश्- 1. भारत छोडो आं दोलन वकस वषय प्रारं भ हआ?

प्रश्- 2.. कां ग्रेस कमेटी ने वकसके सामने अपनी अपील पेश की?

प्रश्-3 कां ग्रेस के सभापवत क न र्े ? तनाव पाठ के आधार पर बताइये।

प्रश् 4 भारत छोडो प्रिाव रिने का कारि स्पष्ट कीवजए। तनाव पाठ के आधार पर
बताइये।
प्रश्-5 सभापवत और गााँधीजी ने प्रिाव के बारे में क्ा वनिय य वलया? तनाव पाठ के
आधार

पर बताइए।

प्रश्-6 कां ग्रेस कमेटी ने अपने आवेदन प्रिाव में अंग्रेजों से क्ा अपील की र्ी? तनाव
पाठ के आधार पर बताइये ।

प्रश्-7 कमेटी ने भारत में अंतररम सरकार बनाने का क्ा सुझाव कर वदया और संयुक्त
राष्टर और विटे न से क्ा अपील की?

प्रश्-8 वषय 1942 में आरं भ के महीनों में भारत में तनाव का माह ल क्ों बना हआ र्ा?

उत्तर कुंजी

1. भारत छोडो आं दोलन वषय 1942 में आरम्भ हआ।


2. विटे न तर्ा संयुक्त राष्टर के सामने कां ग्रेस ने अपनी अपील पेश की।
3. कां ग्रेस के सभापती ‘म लाना अबुल कलाम’ र्े ।
4. भारत छोडो प्रिाव रिने का यह कारि र्ा वक भारतीय अंग्रेजों के अत्याचारों से
पीवडत र्े। भारतीय जनता में अंग्रेजों के ववरुद्ध आिोश र्ा। इस प्रिाव में जनता
से यह अपील की गई र्ी वक अब अंग्रेजों को भारत छोड दे ना चावहए। इसमें
पुरुषों ने ही नहीं, बखल्क खियों ने भी बढ़-चढ़कर वहस्सा वलया र्ा।
5. उस समय कंग्रेस के सभापवत म लाना अबुल कलाम आजाद र्े। उन्ोंने और
गााँ धीजी ने एकमत होकर यह वनिय य वलया वक उनका अगला कदम विवटश
सरकार के प्रवतवनवध वायसराय से मुलाकात करना और संयुक्त राष्टरों के
मुख्यावधकाररयों से एक सम्मानपूिय समझ ते के वलए अपील करना है और अब
जन आं दोलन भी होकर ही रहे गा।
6. यह एक लम्बा प्रिाव र्ा। इस प्रिाव में अंतररम सरकार बनाने का आवेदन र्ा,
वजसमें भारत के सभी वगों का प्रवतवनवधत्व हो सके। इसमें वमत्र शखक्तयों के
सहयोग से भारत की सुरक्षा और अपने सारे हवर्यारबंद और अवहं सक शखक्तयों
के सार् बाहरी आिमि को रोकने का प्रिाव भी र्ा।

7. कां ग्रेस कमेटी ने 7 और 8 अगि, 1942 को बैठक कर भारत छोडो प्रिाव पर


ववचार और बहस की। इसमें स्पष्ट वकया गया र्ा वक अब अंग्रेजों को भारत
छोडने के वलए वववश करना होगा। इसी वदन इस प्रिाव को पाररत करते समय
ही इस प्रिाव में अंतररम सरकार बनाने का भी सुझाव वदया गया र्ा। ऐसी
अंतररम सरकार वजसमें सभी वगों का प्रवतवनवधत्व हो। कां ग्रेस कमेटी ने भारत
एवं संसार के सभी दे शों की आजादी के वलए विटे न और संयुक्त राष्टर से

अपील की तर्ा गााँ धीजी के नेतृत्व में एक अवहंसक जन आं दोलन शुरू करने की मां ग
भी की।

8. वषय 1942 के आरं भ के महीनों में तनाव का माह ल इसवलए बना हआ र्ा क्ोंवक युद्ध
का समय नजदीक आता जा रहा र्ा। वद्वतीय ववश्व युद्ध चल रहा र्ा। ऐसे माह ल में भारत
के शहरों पर हवाई हमलों की संभावना बढ़ गई र्ी। इनका पररिाम क्ा होगा, क्ा
भारत और इं ग्लैंड के संबंधों में दू री बढ़ जाएगी, आवद प्रश् तनाव का वातावरि बना रहे
र्े ।

दो पृ ष्ठभूवमयााँ

1. वषय 1942 में वकसने महत्वपूिय भूवमका वनभाई र्ी?


2. अकाल के द रान कलकता की हालत कैसी र्ी?
3. वषय 1942 का वविोह असिल क्ों रहा?
4. कलकत्ता में अकाल के समय कैसी खथर्वत र्ी?
5. 1943 ई० में भारत को वकस भीषि प्राकृवतक आपदा का सामना करना पडा,
इसका प्रभाव कहााँ कहााँ तक र्ा ?

6 वषय 1942 में नेताओं की वगरफ्तारी का आम जनता पर वकस तरह का प्रभाव


पडा?
7.अकाल के समय कलकत्ता की खथर्वत का अवलोकन कररए?
8. नेहरू जी ने अपने लेिन ‘भारत की िोज’ में वकन-वकन ववचारों को थर्ान दे कर
भारतीयों को कैसे प्रेररत वकया है ?
उत्तर कुंजी

1. वषय 1942 में युवा वगय तर्ा ववशे षकर ववद्ावर्ययों ने महत्वपूिय कायय वकया।
2. अकाल के द रान कलकत्ता की हालत वचंताजनक र्ी।
3. वषय 1942 का वविोह योजनाबद्ध तरीके से अंजाम नहीं वदए जाने के कारि
असिल रहा।
4. अकाल ने कलकता की आम जनता को अवधक प्रभाववत वकया, सडकों पर लोगों
की लाशें वमली र्ी और दू सरी और अवभजात्य वगय र्ा, वजस पर अकाल या लोगों
के दु ि-ददय का कोई असर ही न र्ा वह अपनी ही ववलावसता में मि र्ा।
5.1943 ई० में भारत को भीषि अकाल का सामना करना पडा र्ा। इस अकाल का
प्रभाव

बंगाल और पूवी तर्ा दवक्षि भारत की बहसंख्यक जनता पर पडा।

6. 1942 में नेताओं की वगरफ्तारी तर्ा गोलीबारी की बात सुनकर आम जनता भडक
उठी। जनता ने सहज तर्ा वहं सक प्रदशय न वकए जनता इतनी उत्तेवजत हो गई वक चुप
नहीं बैठ सकी तर्ा तोड-िोड करने से भी नहीं चूकी।

7. अकाल के समय कलकत्ता की आम जनता अवधक प्रभाववत हई सडकों पर चारों


और लोगों की लाशें वबछ गई तर्ा दू सरी तरि अवभजात्य वगय र्ा, वजसके सामावजक
जीवन पर कोई पररवतयन नहीं आया र्ा। उस पर न तो अकाल का कोई प्रभाव हआ और
न ही लोगों के दु ः ि-ददय का कोई असर र्ा। यह वगय अपनी ही ववलावसता ते मग्न र्ा।
उसका जीवन उल्लास से भरा र्ा।

8. नेहरू जी ने भारत की िोज लेिन में वनम्न ववचारों को थर्ान दे कर भारतीयों को प्रेररत
करने का प्रयास वकया है

भारत एक भ गोवलक व आवर्य क सत्ता है , उसकी वववभन्नता में सां स्कृवतक एकता है ।
भारत पर ववदे शी जावतयों के वकतने ही आिमि हए ले वकन उसकी आत्मा अर्ाय त्
अखित्व को कोई जीत न सका, भले ही शासन सत्ता बदलती रही।

भारत का अतीत सदा भारतीयों के सार् जु डा रहे गा।

16. अपवठत गद्यांश :


1

वजस प्रकार बीज के उगने और बढ़ने के वलए म सम ववशेष नहीं, अपेवक्षत पररखथर्वतयों
का वनमाय ि जरूरी है । उसी प्रकार वकसी भी कायय में सिलता पाने के वलए बाहरी
पररखथर्वतयााँ नहीं, मन की सकारात्मक वृवत्त अवनवायय है और वह सकारात्मक वृवत्त है
हमारा संकल्प। संकल्पाः कल्पतरवः , तेजः कल्पकोद्ानम्’ अर्ाय त संकल्प ही कल्पतरु हैं
और तेज अर्वा मन उन कल्पतरुओं का उद्ान है । जै सी कल्पना वैसा उद्ान अर्ायत
जीवन की वदशा और दशा। गहन संकल्प से ही संभव है पूिय सिलता। कुछ कर गुजरने
के वलए वािव में म सम अर्वा बाहरी पररखथर्वतयााँ ही सब कुछ नहीं हैं । सबसे
महत्त्वपूिय है मन। इस संपूिय सृवष्ट के सृजन के मूल में मन ही तो है। मन हीवह अदृश्य
सूक्ष्म बीज अर्वा सत्ता है वजससे यह पृथ्वी रूपी ववशाल वट वृक्ष अखित्व में आया और
वनंरतर पल्लववत-पुखित हो रहा है । तभी तो कहा गया है । कुछ कर गुजरने के वलए
म सम नहीं मन चावहए। साधन सभी जु ट जाएाँ गे संकल्प का धन चावहए।

उपरोक्त गद्यांश के आिार पर वनम्नवलखित प्रश्नो के उत्तर वलखिए-

(क) जीिन में कुछ कर गु ज़रने के वलए आिश्यक है -


(1) मन और म सम
(2) मन
(3) अनुकुल पररखथर्वतयााँ
(4) म सम
(ि) कायग में सफलता के वलए अवनिायग है -
(1) पररखथर्वतयााँ
(2) लोगों की सहायता
(3) सकारात्मक वृवत्त
(4) पयाय प्त ज्ञान
(ग) बीज के उगने और बढ़ने के वलए ज़रूरी है -
(1) अपेवक्षत पररखथर्वतयााँ
(2) म सम ववशे ष
(3) वकसान का कुशल होना
(4) उपयुयक्त सभी
(घ)हमारी सकारात्मक िृवत्त है -
(1) साहस
(2) वववेक
(3) बुखद्ध
(4) संकल्प
(ड.) गद्यांश का उवचत शीषगक हो सकता है-
(1) संकल्प का धन
(2) धन का महत्त्व
(3) कमयठता
(4) बीज की कर्ा

काशी के सेठ गंगादास एक वदन गंगा में स्नान कर रहे र्े वक तभी एक व्यखक्त नदी में
कूदा और डु बवकयााँ िाने लगा। सेठजी तेजी से तै रते हए उसके पास पहाँ चे और वकसी
तरह िींच कर उसे वकनारे ले आए। वह उनका मुनीम नंदलाल र्ा। उन्ोंने पूछा, ‘आप
को वकसने गंगा में िेंका?’ नंदलाल बोला, ‘वकसी ने नहीं, मैं तो आत्महत्या करना चाहता
र्ा। ‘सेठजी ने इसका कारि पूछा तो उसने कहा, ‘मैंने आप के पााँ च हजार रुपये चुरा
कर सट्टे में लगाए और हार गया। मैंने सोचा वक आप मुझे जेल वभजवा दें गे इसवलए
बदनामी के डर से मैंने मर जाना ही ठीक समझा।‘ कुछ दे र तक सोचने के बाद सेठजी
ने कहा, ‘तु म्हारा अपराध माि वकया जा सकता है ले वकन एक शतय है वक आज से कभी
वकसी प्रकार का सट्टा नहीं लगाओगे।’ नंदलाल ने वचन वदया वक वह अब ऐसे काम नहीं
करे गा। सेठ ने कहा, ‘जाओ माि वकया। पााँ च हजार रुपये मेरे नाम घरे लू िचय में डाल
दे ना।’ मुनीम भ च ं क्का रह गया। सेठजी ने कहा, ‘तु मने चोरी तो की है ले वकन स्वभाव से
तु म चोर नहीं हो। तु मने एक भूल की है , चोरी नहीं। जो आदमी अपनी एक भूल के वलए
मरने तक की बात सोच ले , वह कभी चोर हो नहीं सकता।

उपरोक्त गद्यांश के आिार पर वनम्नवलखित प्रश्नो के उत्तर वलखिए-


(क) सच्चे भक्त से तात्पयग है -
(1) वबना स्वार्य के पूजा करना
(2) रोज मंवदर जाना
(3) एक ही भगवान की पूजा करना
(4) अपने धमय में कट्टरता
(ि) मुनीम आत्महत्या क्यों करना चाहता था-
(1) जीवन से छु टकारा पाने के वलए
(2) सेठजी को प्रभाववत करने के वलए
(3) दु वनया को वदिाने के वलए
(4) अपराध बोध होने के कारि
(ग) हमें समाज में वकस चीज का डर सबसे ज्यादा होता है -
(1) पररवार का
(2) न करी का
(3) रुतबे का
(4) बदनामी का
(घ) सेठजी को मालूम था वक मुनीम चोर है ले वकन वफर उन्ोंने उसे छोड़ वदया
क्योंवक-
(1) बाद में उसे जीवन भर गुलाम बनाना चाहते र्े
(2) भूल सुधारने का म का दे ना चाहते र्े
(3) दु वनया को प्रभाववत करना चाहते र्े
(4) समाज में अपनी प्रवतष्ठा बढ़ाना चाहते र्े
(ङ) गद्यांश का उवचत शीषगक हो सकता है -
(1) ‘चोरी की सजा’
(2) ‘मेरा प्रि’
(3) ‘सेठजी की दयालुता’
(4) ‘मुनीम जी का दु ि’

कायय का महत्त्व और उसकी सुंदरता उसके समय पर संपावदत वकए जाने पर ही है ।


अत्यंत सुघडता से वकया हआ कायय भी यवद आवश्यकता के पूवय न पूरा हो सके तो
उसका वकया जाना वनष्फले ही होगा। वचवडयों द्वारा िेत चुग वलए जाने पर यवद रिवाला
उसकी सुरक्षा की व्यवथर्ा करे तो सवयत्र उपहास का पात्र ही बनेगा।
उसके दे र से वकए गए उद्म का कोई मूल्य नहीं होगा। श्रम का ग रव तभी है जब
उसका लाभ वकसी को वमल सके। इसी कारि यवद बादलों द्वारा बरसाया गया जल
कृषक की फ़सल को िलने-िूलने में मदद नहीं कर सकता तो उसका बरसना व्यर्य ही
है । अवसर का सदु पयोग न करने वाले व्यखक्त को इसी कारि पश्चाताप करना पडता है ।
प्रश्न
(क) जीिन में समय का महत्त्व क्यों है ?

(i) समय काम के वलए प्रेरिा दे ता है ।


(ii) समय की परवाह लोग नहीं करते ।

(iii) समय पर वकया गया काम सिल होता है ।

(iv) समय बडा ही बलवान है ।

(ि) िेत का रििाला उपहास का पात् क्यों बनता है ?


(i) िेत में प धे नहीं उगते ।
(ii) समय पर िेत की रिवाली नहीं करता।
(iii) वचवडयों का इं तजार करता रहता है ।
(iv) िेत पर म जू द नहीं रहता।।
(ग) वचवड़यों िारा िेत चुग वलए जाने पर यवद रििाला उसकी सुरक्षा की व्िस्था
करे तो सिगत् उपहास का पात् ही बनेगा। इस पदबंि का प्रकार होगा
(i) संज्ञा
(ii) सवयनाम
(iii) विया
(iv) वियाववशे षि
(घ) बादल का बरसना व्थग है , यवद
(i) गरमी शां त न हो।
(ii) फ़सल को लाभ न पहाँ चे
(iii) वकसान प्रसन्न न हो
(iv) नदी-तालाब न भर जाएाँ
(ङ) गद्यांश का मुख्य भाि क्या है ?
(i) बादल का बरसना
(ii) वचवडयों द्वारा िेत का चुगना
(iii) वकसान का पछतावा करना
(iv) समय का सदु पयोग
4

मानव जावत को अन्य जीवधाररयों से अलग करके महत्त्व प्रदान करने वाला जो एकमात्र
गुरु है , वह है उसकी ववचार-शखक्त। मनुष्य के पास बुवध है , वववेक है , तकयशखक्त है
अर्ाय त उसके पास ववचारों की अमूल्य पूाँजी है । अपने सववचारों की नींव पर ही आज
मानव ने अपनी श्रेष्ठता की थर्ापना की है और मानव-सभ्यता का ववशाल महल िडा
वकया है । यही कारि है वक ववचारशील मनुष्य के पास जब सववचारों का अभाव रहता है
तो उसका वह शून्य मानस कुववचारों से ग्रि होकर एक प्रकार से शैतान के वशीभूत हो
जाता है । मानवी बुवध जब सद्भावों से प्रेररत होकर कल्यािकारी योजनाओं में प्रवृत्त
रहती है तो उसकी सदाशयता का कोई अंत नहीं होता, वकंतु जब वहााँ कुववचार अपना
घर बना ले ते हैं तो उसकी पाशववक प्रवृवत्तयााँ उस पर हावी हो उठती हैं । वहं सा और
पापाचार का दानवी साम्राज्य इस बात का द्ोतक है वक मानव की ववचार-शखक्त, जो
उसे पशु बनने से रोकती है , उसका सार् दे ती है ।
प्रश्न
(क) मानि जावत को महत्त्व दे ने में वकसका योगदान है ?
(i) शारीररक शखक्त का
(ii) पररश्रम और उत्साह का
(iii) वववेक और ववचारों का
(iv) मानव सभ्यता का
(ि) विचारों की पूाँ जी में शावमल नही ं है
(i) उत्साह
(ii) वववेक
(iii) तकय
(iv) बुवध
(ग) मानि में पाशविक प्रिृवत्तयााँ क्यों जागृत होती हैं ?
(i) वहं साबुवध के कारि
(ii) असत्य बोलने के कारि
(iii) कुववचारों के कारि
(iv) स्वार्य के कारि
(घ ) “मनुष्य के पास बुवि है , वििेक है , तकगशखक्त है ’ रचना की दृवष्ट से उपयुगक्त
िाक्य है
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) वमश्र
(iv) जवटल
(ड.) गद्यांश का उपयुक्त शीषगक हो सकता है
(i) मनुष्य का गुरु
(ii) वववेक शखक्त
(iii) दानवी शखक्त
(iv) पाशववक प्रवृवत्त
5

उन्नीसवीं शताब्दी में यह राष्टरीय जागरि संपूिय भारत में वकसी-न-वकसी रूप में
अवभव्यक्त हो रहा र्ा, वजसमें भारतीयता के सार् आधुवनकता का संगम र्ा। स्वामी
वववेकानंद ने तो अमेररका, इं ग्लैंड आवद दे शों से भारत ल टकर पूवय और पवश्चम के श्रेष्ठ
तत्वों के सखम्मलन से भारत को आधुवनक बनाने का स्वप्न दे िा र्ा। उन्ोंने माना वक
भारत और पवश्चम की मूल गवत एवं उद्दे श्य वभन्न हैं , परं तु भारत को जागना होगा,
कुसंस्कारों एवं जावत-ववद्वे ष को त्यागना होगा, वशवक्षत होकर दे श की अवशवक्षत, गरीब
जनता को ही ‘दररिनारायि’ मानकर उनकी सेवा करनी होगी, उनका उत्थान करना
होगा। वववेकानंद का मत र्ा वक भारत में जो वजतना दररि है , वह उतना ही साधु है ।
यहााँ गरीबी अपराध एवं पाप नहीं है तर्ा दररिों की अपेक्षा धवनयों को अवधक प्रकाश
की जरूरत है । वे चाहते र्े वक हम नीच, अज्ञानी, दररि-सभी को भाई मानें और गवय से
कहें -हम सब भाई भारतवासी हैं । मनुष्य को मानव बनाना, आदमी को इं सान बनाना
आवश्यक है । हमें ऐसी वशक्षा चावहए जो हमें संस्कारी मानव, हमददय इं सान बना सके।
ववचारों में वववेकानंद गां धी से अवधक दू र नहीं र्े और ऐसे ही ववचारकों का वचंतन
उन्नीसवीं सदी में भारत को उद्वे वलत कर रहा र्ा।
प्रश्न
(क) वकस सदी में संपूणग भारत में राष्टरीय जागरण अवभव्क्त हो रहा था?
(i) उन्नीसवीं सदी में
(ii) अठारहवीं सदी में
(iii) बीसवीं सदी में
(iv) इक्कीसवीं सदी में
(ि) वििेकानंद ने क्या सपना दे िा था?
(i) ववदे शी तजय पर भारत का ववकास
(ii) पूवय व पवश्चम के तत्वों का वमलन
(iii) भारत को आधुवनक बनाना
(iv) (ि) व (ग)
(ग) वििेकानंद के अनुसार भारतीयों को कैसी वशक्षा की जरूरत है ?
(i) आदमी को आदमी बनाने वाली
(ii) अंग्रेजी पढ़ाने वाली
(iii) भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दे ने वाली
(iv) कोई नहीं
(घ) “पविम’ का विशेषण बताइए
(i) पवश्चमी
(ii) पाश्चात्य
(iii) पश्च
(iv) कोई नहीं
(ङ) वििेकानंद के अनुसार वकसे अविक प्रकाश की ज़रूरत है ?
(i) दररि
(ii) धवनकों
(iii) सामंतों
(iv) कोई नहीं
उत्तर कंु जी

अपवठत गद्यांश -1

(क) 2
(ि) 3
(ग) 1
(घ) 4
(ड.) 1

अपवठत गद्यांश -2
(क) 1
(ि) 4
(ग) 4
(घ) 2
(ड.) 3

अपवठत गद्यांश -3
(क) 3
(ि) 2
(ग) 1
(घ) 2
(ड.) 4

अपवठत गद्यांश -4
(क) 3
(ि) 1
(ग) 3
(घ) 1
(ड.) 2

अपवठत गद्यांश -5

(क) 1
(ि) 4
(ग) 1
(घ) 1
(ड.) 2

17. मुहािरा

‘मुहािरा’ शब्द अरबी भाषा का है वजसका अर्य है ‘अभ्यास होना’ या ‘आदी होना’।
इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है , क्ोंवक यह अपने सामान्य अर्य
को छोडकर असामान्य अर्य प्रकट करता है । मुहावरा संवक्षप्त होता है , परिु अपने इस
संवक्षप्त रूप में ही वकसी बडे ववचार या भाव को प्रकट करता है ।

1. इिर की उिर करना–(चुगली करके भडकाना)

मनोज की इधर की उधर करने की आदत है , इसवलए उस पर ववश्वास मत करना।

2. इन्द्र की परी–(अत्यि सुन्दर िी)

राजे न्द्र की पत्नी तो इन्द्र की परी लगती है ।

3. इन वतलों में तेल नही ं–(वकसी भी लाभ की आशा न करना)

कवपल ने कारिाने को दे ि सोच वलया इन वतलों में तेल नहीं और बैंक से ऋि लेकर
बहन का वववाह वकया।
4. ईट
ं से ईट
ं बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर दे ना)

असामावजक तत्त्व रात–वदन ईंट से ईंट बजाने की सोचा करते हैं ।

5. ईट
ं का जिाब पत्थर से दे ना–(दु ष्ट के सार् दु ष्टता करना)

दु श्मन को सदै व ईंट का जवाब पत्थर से दे ना चावहए।

6. उाँ गली पकड़ते ही पहुाँ चा पकड़ना–(अल्प सहारा पाकर सम्पूिय की

प्राखप्त हे तु उत्सावहत होना) रामचन्द्र ने न कर को एक कमरा मुफ़्त में रहने के वलए दे


वदया; र्ोडे समय बाद वह पररवार को सार् ले आया और चार कमरों को दे ने का आग्रह
करने लगा। इस पर रामचन्द्र ने कहा, तु म तो उाँ गली पकडते ही पहाँ चा पकडने की बात
कर रहे हो।

7. एक म्यान में दो तलिारें –(एक विु या पद पर दो शखक्तशाली

व्यखक्तयों का अवधकार नहीं हो सकता) ववद्ालय की प्रबन्ध–सवमवत ने दो–दो


प्रधानाचायों की वनयुखक्त करके एक म्यान में दो तलवारों वाली बात कर दी है ।

8. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना)

रमेश तु म तो अब हर बात में एक की चार लगाते हो।

9. एक पं थ दो काज–(एक कायय के सार् दू सरा कायय भी पूरा करना)

आगरा में मेरी परीक्षा है , इस बहाने ताजमहल भी दे ि लेंगे। चलो मेरे तो एक पंर् दो
काज हो जाएं गे।

10. एक और एक ग्यारह होते हैं –(संघ में बडी शखक्त है )


भाइयों को आपस में लडना नहीं चावहए, क्ोंवक एक और एक ग्यारह होते हैं ।

11. चुल्लू भर पानी में डूब मरना–(शमय के मारे मुाँह न वदिाना)

आप इतने सभ्य पररवार के होते हए भी दु ष्कमय करते हैं , आपको चुल्लू भर पानी में डूब
मरना चावहए।

12. कच्चा िा/चबा जाना–(पूरी तरह नष्ट कर दे ने की धमकी दे ना)

जब से दोनों वमत्र अशोक और नरे श की लडाई हई है , तब से दोनों एक–दू सरे को ऐसे


दे िते हैं , जै से कच्चा चबा जाना चाहते हों।

13. कब्र में पााँि लटकना–(वृद्ध या जजय र हो जाना/मरने के करीब होना)

“सुनीता के ससुर की आयु काफ़ी हो गई है । अब तो उनके कि में पााँ व लटक गए हैं ।”


सोनी ने अिसोस ज़ावहर करते हए कहा।

14. कले जे पर पत्थर रिना–(धैयय धारि करना)

गरीब और कमजोर श्यामा को गााँ व का च धरी सबके सामने िरी–िोटी सुना गया,
वजसको उसने कलेजे पर पत्थर रिकर सुन वलया।

15. कले जा ठण्डा होना–(मन को शाखि वमलना)

आशीष इन्जीवनयर बन गया, मााँ का कलेजा ठण्डा हो गया।

16. कली खिलना–(िुश होना)

बहत पुराने वमत्र आपस में वमले तो कली खिल गई।


17. कले जा मुाँह को आना–(दु ः ि होना)

घायल की चीत्कार सुनकर कलेजा मुाँह को आता हैं ।

18. कंिे से कंिा वछलना–(भारी भीड होना)

दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड र्ी वक लोगों के कंधे–से–कंधे वछल गए।

19. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना)

राजे श से वकसी बात को कहने का क्ा लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है ।

20. वकए कराए पर पानी फेरना–(वबगाड दे ना)

औरं गजे ब ने मराठों से उलझकर अपने वकए कराए पर पानी िेर वदया।

21. कान भरना–(चुगली करना)

मंर्रा ने कैकेई के कान भरे र्े।

22. कान का कच्चा–(वकसी भी बात पर ववश्वास कर ले ना)

जहााँ अवधकारी कान का कच्चा होता है वहााँ सीधे, सरल, ईमानदार कमयचाररयों को
परे शानी होती है ।

23. कच्ची गोली िेलना–अनुभवहीन होना।

तु म हमें नहीं ठग सकते, हमने भी कच्ची गोवलयााँ नहीं िेली हैं ।

24. कााँटों पर ले टना–(बेचैन होना)


दु घयटनाग्रि पुत्र जब तक घर नहीं आया, तब तक पूरा पररवार कााँ टों पर लोटता रहा।

25. कााँटा दू र होना–(बाधा दू र होना)

राजीव के दू सरे प्रकाशन में जाने से बहतों के रािे का कााँ टा दू र हो गया।

26. घाि हरा करना–(भूले दु ः ि की याद वदलाना)

मेरे अतीत को छे डकर तु मने मेरा घाव हरा कर वदया।

27. काटने दौड़ना–(वचडवचडाना/िोध करना)

ववनीता बहत कमजोर हो गई है । जरा–जरा सी बात पर काटने को द डती है ।

28. कान गरम करना–(दण्ड दे ना)

शरारती बच्चों के तो कान गरम करने पडते हैं।

29. काम तमाम करना–(मार डालना)

भीम ने दु योधन का काम तमाम कर वदया।

30. विष उगलना–(िोवधत होकर बोलना)

सामान्य बातों में ववष उगलना अच्छी बात नहीं है ।

18.अनुच्छेद-ले िन
अनुच्छेद-लेिन की पररभाषा

वकसी एक भाव या ववचार को व्यक्त करने के वलए वलिे गये सम्बद्ध और लघु वाक्-
समूह को अनुच्छेद-लेिन कहते हैं।

सरल शब्दों में- वकसी भी ववषय को संवक्षप्त एवं प्रभावपूिय ढं ग से प्रिुत करने की कला
को अनुच्छेद लेिन कहा जाता है ।

'अनुच्छेद' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Paragraph' शब्द का वहं दी पयाय य है । अनुच्छेद


'वनबंि' का संवक्षप्त रूप होता है । इसमें वकसी ववषय के वकसी एक पक्ष पर 80 से 100
शब्दों में अपने ववचार व्यक्त वकए जाते हैं।

भाषा-शैली सजीव एवं प्रभावशाली होनी चावहए। शब्दों के सही चयन के सार्
लोकोखक्तयों एवं मुहावरों के समुवचत प्रयोग से ही भाषा-शै ली में उपयुयक्त गुि आ सकते
हैं ।अनुच्छेद ले िन को लघु वनबंध भी कहा जा सकता है । इसमें सीवमत सुगवठत एवं
समग्र दृवष्टकोि से वकया जाता है । शब्द संख्या सीवमत होने के कारि वलिते समय
र्ोडी सावधानी बरतनी चावहए।

अनुच्छेद वलिते समय वनम्नवलखित बातों को ध्यान में रिना चावहए :

(1) अनुच्छेद वलिने से पहले रूपरे िा, संकेत-वबंदु आवद बनानी चावहए।

(2) अनुच्छेद में ववषय के वकसी एक ही पक्ष का विय न करें ।

(3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चावहए।

(4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएाँ ।

(5) अनावश्यक वविार से बचें, ले वकन ववषय से न हटें ।

(6) शब्द-सीमा को ध्यान में रिकर ही अनुच्छेद वलिें।

(7) पूरे अनुच्छेद में एकरूपता होनी चावहए।


(8) ववषय से संबंवधत सूखक्त अर्वा कववता की पंखक्तयों का प्रयोग भी कर सकते हैं।

महत्वपू णग अनुच्छेद

1) जीिन संघषग है , स्वप्न नही ं पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

मनुष्य का जीवन वािव में सुि-दु ः ि, आशा-वनराशा, ख़ुशी-ददय आवद का वमश्रि है।
यह न तो केवल िूलों की सेज है और न ही कााँ टों का ताज। विुतः जीवन एक अनवरत
संघषय का नाम है ।जीवन की तु लना एक प्रवाहमान नदी से की जा सकती है । वजस प्रकार
एक सररता अववरल बहती रहती है , समुि में लहरे सदा गवतशील रहती हैं , वायु एक क्षि
के वलए भी नहीं रुकती, सूयय, चन्द्रमा, तारे सभी अपने-अपने वनयत समय पर उवदत एवं
अि होते हैं , ठीक उसी प्रकार जीवन की गवत भी अववरल है । समय के सार्-सार् आगे
बढ़ते रहने की प्रबल मानवीय लालसा ही जीवन है ।

इस अववरल गवत से प्रवाहमान जीवन में अनेक ऊाँचे-नीचे रािे आते हैं , अनेक बाधाएाँ
आती हैं । इन्ीं बाधाओं से संघषय करते हए जीवन आगे बढ़ता रहता है । यही कमय है , यही
सत्य है । जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराकर रुक जाने वाला या पीछे हट जाने
वाला व्यखक्त भी सिलता प्राप्त नहीं कर सकता। जीवन सत्य हैं , जबवक स्वप्न असत्य।
स्वप्न काल्पवनक है , अयर्ार्य है । स्वप्न का महत्त्व केवल वहीं तक है , जहााँ तक वह मनुष्य
के जीवन को आगे बढ़ाने में प्रेरक है । मनुष्य स्वप्न के माध्यम से ही ऐसी कल्पनाएाँ करता
है , जो अयर्ार्य होती हैं , ले वकन उस काल्पवनक लोक को वह अपने पररश्रम, उमंग एवं
दृढ़ इच्छाशखक्त से यर्ार्य में, वािववकता में पररववतय त कर दे ता है । वािववक जीवन
एक कतय व्य पर् है , वजसके मागय में अनेक शू ल वबिरे पडे हैं , ले वकन मनुष्य की
इच्छाशखक्त या दृढ़ संकल्प उन बाधाओं और कााँ टों की परवाह नहीं करता और उन्ें
रद
ं कर आगे वनकल जाता हैं ।

जीवन संघषय की लं बी साधना है । यह संघषय तब तक बना रहता है , जब तक मनुष्य के


शरीर में सााँ स चलती रहती है , संघषय से बचा नहीं जा सकता।

2) विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकवप्रयता पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

आज के युग को ववज्ञापनों का युग कहा जा सकता है । आज सभी जगह ववज्ञापन-ही-


ववज्ञापन नजर आते हैं। बडी-बडी कंपवनयााँ एवं उत्पादक अपने उत्पाद एवं सेवा से
संबंवधत लुभावने ववज्ञापन दे कर उसे लोकवप्रयता बनाने का हर संभव प्रयास करते हैं ।
वकसी नए उत्पाद के ववषय में जानकारी दे ने, उसकी ववशे षता एवं प्राखप्त थर्ान आवद
बताने के वलए ववज्ञापन की आवश्यकता पडती है । ववज्ञापनों के द्वारा वकसी भी सूचना
तर्ा उत्पाद की जानकारी, पूवय में प्रचवलत वकसी उत्पाद में आने वाले बदलाव आवद की
जानकारी सामान्य जनता को दी जा सकती है ।

ववज्ञापन का उद्दे श्य जनता को वकसी भी उत्पाद एवं सेवा की सही सूचना दे ना है , ले वकन
आज ववज्ञापनों में अपने उत्पाद को सवोत्तम तर्ा दू सरों के उत्पादों को वनकृष्ट कोवट का
बताया जाता है । आजकल के ववज्ञापन भ्रामक होते हैं तर्ा मनुष्य को अनावश्यक
िरीदारी करने के वलए प्रेररत करते हैं । अतः ववज्ञापनों का यह दावयत्व बनता है वक वे
ग्राहकों को लु भावने दृश्य वदिाकर गुमराह नहीं करें , बखल्क अपने उत्पाद के सही गुिों
से पररवचत कराएाँ । तभी उवचत सामान ग्राहकों तक पहाँ चेगा और ववज्ञापन अपने लक्ष्य में
सिल होगा।

(3) िृक्षारोपण का महत्त्व पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।


वतय मान वैज्ञावनक युग में जहााँ ववकास के नाम पर धरती का दोहन वकया जा रहा है तर्ा
पयाय वरि को प्रवतपल ध्वि वकया जा रहा है वहााँ वृक्षारोपि का महत्त्व स्वतः वसद्ध हो
जाता है । वृक्ष प्रकृवत की अनमोल संपदा है । मनुष्य एवं वृक्ष का अटू ट सम्बन्ध है । वृक्षों से
प्राप्त लकडी वववभन्न रूपों में मनुष्य के काम आती है । वृक्षों से हमें िल-िूल, जडी-
बूवटयााँ , औषवधयााँ आवद प्राप्त होती हैं । शु द्ध वायु एवं तपती दोपहर में छाया वृक्षों से ही
प्राप्त होती है । वृक्ष वषाय में सहायक होते हैं एवं भूवम को उवयरक बनाते हैं । वे प्रदू षि को
समाप्त कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं । वृक्ष बाढ़-सूिा एवं वमट्टी के कटान आवद
प्राकृवतक आपदाओं से हमारी रक्षा करते हैं हमारी संस्कृवत में वृक्षों को दे वता मानकर
उनकी पूजा की जाती है।

यवद मनुष्य जावत को बचाना है तो वृक्षों को बचाना होगा और हमें वृक्षारोपि का उत्सव
करना होगा। इसीवलए एक बच्चा एक वृक्ष का नारा वदया गया है । वृक्षों की 50 मीटर की
एक कतार वाहनों के शोर को 30-50 डे सीबल तक कम करती है । इसी तरह च डी पत्ती
वाले वृक्ष वातावरि में उड रही धूल को रोकते एवं वायु को शुद्ध करते हैं । वनसंरक्षि
का उद्दे श्य केवल वृक्षों को लगाना ही नहीं वरन वृक्षारोपि करने के बाद उनकी उवचत
दे िभाल भी है । वनजी क्षेत्र में स्वयंसेवी युवकों को संगठन बनाकर वृक्षारोपि का कायय
करना चावहए और वृक्षारोपि को सामूवहक समारोह के रूप में आयोवजत करना
चावहए।

4) अपनी भाषा प्यारी भाषा पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

हर दे श की अपनी भाषा होती है । भाषा के माध्यम से ही हम एक-दू सरे की बातों और


ववचारों को समझ और समझा पाते हैं । भारत दे श में वैसे तो अलग-अलग राज्यों में
अलग-अलग भाषाएाँ बोली जाती हैं पर “वहन्दी” हमारे दे श की अपनी और प्यारी भाषा
है । वहन्दी भाषा को 14 वसतम्बर के वदन दु ल्हन की तरह सजाया, धजाया और मनाया
जाता है । इस वदन प्रवतवषय हम वहन्दी वदवस मनाते हैं । वहन्दी भाषा है भावनाओं की,
भारत की संस्कृवत और परं पराओं की इसवलए यह भाषा, एक प्यारी भाषा का दजाय पाने
की हकदार है । वहन्दी अपने आप में एक वमलनसार और ववशाल हृदय वाली भाषा है ,
वजसने अन्य अनेक भाषाओं को भी व्यापक रूप में अपने शब्दकोश में समावहत वकया
हआ है । वहन्दी हमारे दे श की जन सम्पकय की भाषा है और भारतीयों के वदल में रची-
बसी भाषा है ।

गूंज उठे भारत की धरती, वहन्दी के जय गानों से।

पूवजत पोवषत पररखद्धय त हो, बालक वृद्ध जवानों से।”

5) जहााँ-चाह िहााँ राह पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

जहााँ -चाह वहााँ राह प्रत्येक व्यखक्त के मन में वकसी न वकसी लक्ष्य को पाने की कामना
रहती है । वजसके मन में जो चाह या कामना होती है वह उसकी पूवतय की वदशा में कायय
करता है । मानव-जीवन में इच्छाशखक्त का अत्यंत महत्व है । व्यखक्त अपने लक्ष्य पर
पहाँ चने के वलए पररश्रम करता है । वह कमय करने में रुवच रिता है तर्ा अपने लक्ष्य को
पाने के वलए सवयस्व समवपयत करने को तैयार रहता है । ऐसे व्यखक्त के मागय में अनेक
बाधाएाँ आती हैं , परं तु वह प्रत्येक बाधा का सामना करते हए अपने पर् पर वनरं तर
अग्रसर होता है ।

कवठनाइयों के बीच में से रािा वनकालकर वनरं तर आगे बढ़ने वाले लोग ही मानव जावत
का आदशय होते हैं। जब अर्क पररश्रम के बाद हमारी इच्छाओं की पूवतय होती है । तब
हमारे भीतर स्वावभमान, संतोष, सत्य आवद जीवन मूल्यों का वास होता है । ऐसे लोगों की
राह पर चलकर ही अनेक लोग जीवन में सिलता प्राप्त करते हैं । झााँ सी की रानी
लक्ष्मीबाई भी ऐसी ही एक महान नारी र्ीं। चाह से ही राह का वनमाय ि होता है । अतः
कहा जा सकता है वक जहााँ चाह होती है वहााँ राह अपने आप बन जाती है ।

6) विद्या सिोत्तम िन है । पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

ववद्ा एवं धन की तुलना- सामान्य त र पर समाज में दो तरह की सोच रिने वाले लोग
वदिाई दे ते हैं । एक वे लोग हैं , जो वकसी भी प्रकार से धन अवजय त करके धनी बनकर
अपने को सिल एवं जीवन को सार्य क मानते हैं। दू सरे प्रकार के लोग वे हैं , जो ववद्ा एवं
ज्ञान के अजयन में अपना समय लगाते हैं । धन के कारि बना धनी व्यखक्त वािववक धनी
नहीं है , अवपतु ववद्ा रूपी धन को एकत्र करके उसे ज्ञान एवं वववेक के रूप में सहे जने
वाला ही वािववक धनी है ।

ववद्ा की श्रेष्ठता- धन संग्रह करने वाले को चोर, डाकुओं एवं ठगों द्वारा धन के चुराए
जाने का सदै व भय लगा रहता है । इसके ववपरीत ववद्ा रूपी धन ऐसा धन है , वजसे न
कोई चोर चुरा सकता हैं , न कोई दू सरा इसका उपयोग अपने संकीिय वहतों की पूवतय के
वलए कर सकता है । संस्कृत सावहत्य में ववद्ा की मवहमा का विय न करते हए कहा गया
है - 'स्वदे शे पूज्यते राजा ववद्वानं सवयत्र पूज्यते ' अर्ाय त राजा अपने दे श में पूजा जाता है ,
ले वकन ववद्वान की पूजा सभी जगहों पर होती हैं ।

वहं दी के कवव वृंद ने भी ववद्ा रूपी धन को सवयश्रेष्ठ बताते हए कहा है वक

''सुरसवत के भंडार की बडी अपूरब बात।

ज्य ं िरचे त्य -ं त्य ं बढ़े , वबन िरचे घवट जात।''

ववद्ा रूपी धन का प्रभाव- ववद्ा से धन प्राप्त हो सकता है , वकंतु धन से ववद्ा नहीं प्राप्त
की जा सकती। धन िचय करने पर समाप्त होता है , वकंतु ववद्ा बााँ टने अर्ाय त व्यय करने
पर बढ़ती है । अतः यह कहा जा सकता है ववद्ा ही सवोत्तम धन है ।

7) स्वतं त्ता का महत्त्व पर पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

ऐसा कहा जाता है वक गुलामी के पकवानों से आजादी की सूिी रोवटयााँ भली हैं ।
स्वाधीनता या स्वतं त्रता का मनुष्य के जीवन में अत्यवधक महत्त्व है । यहााँ तक वक यह
मनुष्य ही नहीं, बखल्क सृवष्ट के प्रत्येक प्रािी का जन्मवसद्ध एवं प्राकृवतक अवधकार है ।

गुलामी या पराधीनता बहत बडा अवभशाप है । पशु -पक्षी तक भी स्वतंत्र जीवन जीने के
आकां क्षी होते हैं । वहं दी के प्रवसद्ध कवव डॉ. वशवमंगल वसंह 'सुमन' की कववता में
स्वतं त्रता की आकां क्षा को पवक्षयों के माध्यम से अवभव्यक्त वकया गया है ।

पक्षी अपने वलए स्वतं त्रता की मााँ ग करते हए कहते हैं वक

''हम पक्षी उन्मुक्त गगन के वपंजर बद्ध न गा पाएाँ गे,


कनक तीवलयों से टकराकर पुलवकत पंि टू ट जाएाँ गे।''

स्वतं त्र रहकर पक्षी को नीम की 'कडवी िवलयााँ ' िाना भी स्वीकार है , ले वकन वपंजरे में
रहकर सोने की कटोरी में वदए गए मैदे से बना पकवान भी पसंद नहीं हैं । ज ब पशु -पक्षी
इस प्रकार की इच्छा रिते हों, तो मनुष्य परतंत्र होकर वकस प्रकार सु िी रह सकता है ?

स्वतं त्रता व्यखक्त की वनिाय यक शखक्त और सजयनात्मक क्षमता के ववकास को बढ़ावा दे ती


है । अंग्रेजी की गुलामी के काल में हमारे दे श की जनता का मानवसक, शारीररक,
आवर्य क एवं सामावजक ववकास अत्यंत बावधत हो गया र्ा।

जब दे श को स्वतं त्रता प्राप्त हए, तब से हमने व्यखक्तगत, सामावजक एवं राष्टरीय िर पर


जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूवय उन्नवत की है । स्वतं त्रता सभी सुिों की जननी है ।

गोस्वामी तु लसीदास ने भी परतं त्रता को दु िदायी बताते हए कहा है वक 'पराधीन सपनेहाँ


सुि नाहीं' अर्ाय त पराधीन व्यखक्त को स्वप्न में भी सुि नहीं वमलता। इस प्रकार व्यखक्त,
समाज एवं राष्टर की उन्नवत के वलए स्वतं त्रता का महत्त्व सवाय वधक है ।

(8) भारतीय वकसान के कष्ट पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

भारत को कृवष प्रधान दे श कहा जाता है । इस दे श के वकसानों की खथर्वत अत्यंत दयनीय


है । भारतीय कृवष मानसून पर वनभयर है और मानसून की अवनवश्चतता के कारि प्रायः
अन्नदाता को कई प्रकार की कवठनाइयों का सामना करना पडता है । समय पर वसंचाई
नहीं होने के कारि भी उन्ें आशानुरूप िसल की प्राखप्त नहीं हो पाती। आवश्यक व
उपयोगी विुओं की कीमतों में वृखद्ध के कारि कृषकों की खथर्वत और भी दयनीय हो
गई है तर्ा उनके सामने दो वक्त की रोटी की समस्या िडी हो गई है । वकसान एक
कठोर वदनचयाय का पालन करता है । वह प्रातः उठता है और अपने हल व बैल ले कर
िेतों की ओर चला जाता है । वह घंटों िेत जोतता है उसके पश्चात भोजन करता है ।
िाने के बाद पुनः वह अपने काम में व्यि हो जाता है । वदन-रात कवठन पररश्रम करने
के बाद भी उसे उवचत आहार तर्ा तन ढकने के वलए समुवचत वि नसीब नहीं होता।
सदी हो या गमी, धूप हो या बरसात उसे वदन-रात िेतों में कठोर पररश्रम करना पडता
है । वकसानों की खथर्वत सुधारने के वलए सरकार ने कुछ उपाय वकए है।
'राष्टरीय कृषक आयोग' का गठन वकसानों की खथर्वत सुधारने हे तु वकया गया। राष्टरीय
कृषक आयोग की संिुवत पर भारत सरकार ने राष्टरीय कृषक नीवत 2007 की घोषिा
की। इसमें कृषकों के कल्याि एवं कृवष के ववकास के वलए कई बातों पर जोर वदया है ,
सार् ही रोजगार गारं टी योजना, वकसान िेवडट काडय आवद भी महत्त्वपूिय कदम सावबत
हए हैं । अतः कह सकते हैं वक वववभन्न प्रकार के सरकारी प्रयासों एवं योजनाओं के
कारि, आने वाले वषों में कृषक समृद्ध होकर भारतीय अर्य व्यवथर्ा को सही अर्ो में
प्रगवत की राह पर अग्रसर कर सकेंगे।

9) समय वकसी के वलए नही ं रुकता पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

'समय' वनरं तर बीतता रहता है , कभी वकसी के वलए नहीं ठहरता। जो व्यखक्त समय के
मोल को पहचानता है , वह अपने जीवन में उन्नवत प्राप्त करता है । समय बीत जाने पर
कायय करने से भी िल की प्राखप्त नहीं होती और पश्चात्ताप के अवतररक्त कुछ हार् नहीं
आता। जो ववद्ार्ी सुबह समय पर उठता है , अपने दै वनक कायय समय पर करता है तर्ा
समय पर सोता है , वही आगे चलकर सिलता व उन्नवत प्राप्त करता है। जो व्यखक्त
आलस में आकर समय गाँवा दे ता है , उसका भववष्य अंधकारमय हो जाता है । संतकवव
कबीरदास जी ने भी कहा है :

''काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।

पल में परलै होइगी, बहरर करे गा कब।।''

समय का एक-एक पल बहत मूल्यवान है और बीता हआ पल वापस ल टकर नहीं


आता। इसवलए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक ववद्ार्ी को वनयवमत रूप से
अध्ययन करना चावहए और अपने लक्ष्य की प्राखप्त करनी चावहए। जो समय बीत गया
उस पर वतय मान समय बरबाद न करके आगे की सुध ले ना ही बुखद्धमानी है ।

10) अभ्यास का महत्त्व पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।


यवद वनरं तर अभ्यास वकया जाए, तो असाध्य को भी साधा जा सकता है । ईश्वर ने सभी
मनुष्यों को बुखद्ध दी है । उस बुखद्ध का इिेमाल तर्ा अभ्यास करके मनुष्य कुछ भी सीि
सकता है । अजुय न तर्ा एकलव्य ने वनरं तर अभ्यास करके धनुववयद्ा में वनपुिता प्राप्त की।
उसी प्रकार वरदराज ने, जो वक एक मंदबुखद्ध बालक र्ा, वनरं तर अभ्यास द्वारा ववद्ा
प्राप्त की और ग्रंर्ों की रचना की। उन्ीं पर एक प्रवसद्ध कहावत बनी :

''करत-करत अभ्यास के, जडमवत होत सुजान।

रसरर आवत जात तें , वसल पर परत वनसान।।''

यानी वजस प्रकार रस्सी की रगड से कठोर पत्थर पर भी वनशान बन जाते हैं , उसी प्रकार
वनरं तर अभ्यास से मूिय व्यखक्त भी ववद्वान बन सकता है । यवद ववद्ार्ी प्रत्येक ववषय का
वनरं तर अभ्यास करें , तो उन्ें कोई भी ववषय कवठन नहीं लगेगा और वे सरलता से उस
ववषय में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे।

(11) विद्यालय की प्राथगना-सभा पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

प्रत्येक ववद्ार्ी के वलए प्रार्य ना-सभा बहत महत्त्वपूिय होती है । प्रत्येक ववद्ालय में सबसे
पहले प्रार्य ना-सभा का आयोजन वकया जाता है। इस सभा में सभी ववद्ार्ी व अध्यापक-
अध्यावपकाओं का सखम्मवलत होना अत्यावश्यक होता है । प्रार्य ना-सभा केवल ईश्वर का
ध्यान करने के वलए ही नहीं होती, बखल्क यह हमें अनुशासन भी वसिाती है ।

हमारे ववद्ालय की प्रार्य ना-सभा में ईश्वर की आराधना के बाद वकसी एक कक्षा के
ववद्ावर्य यों द्वारा वकसी ववषय पर कववता, दोहे , ववचार, भाषि, लघु-नावटका आवद प्रिुत
वकए जाते हैं व सामान्य ज्ञान पर आधाररत जानकारी भी दी जाती है , वजससे सभी
ववद्ार्ी लाभाखन्वत होते हैं ।

जब कोई त्योहार आता है , तब ववशेष प्रार्य ना-सभा का आयोजन वकया जाता है ।


प्रधानाचायाय महोदया भी ववद्ावर्य यों को सभा में संबोवधत करती हैं तर्ा ववद्ालय से
संबंवधत महत्त्वपूिय घोषिाएाँ भी करती हैं । प्रत्येक ववद्ार्ी को प्रार्य ना-सभा में पूिय
अनुशासनबद्ध होकर ववचारों को ध्यानपूवयक सुनना चावहए। प्रार्य ना-सभा का अंत राष्टर-
गान से होता है । सभी ववद्ावर्य यों को प्रार्य ना-सभा का पूिय लाभ उठाना चावहए व सच्चे,
पववत्र मन से इसमें सखम्मवलत होना चावहए।

12) कंप्यू टर:आज की जरूरत पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

कंप्यूटर वािव में, ववज्ञान द्वारा ववकवसत एक ऐसा यंत्र है , जो कुछ ही क्षिों में लािों-
करोडों गिनाएाँ कर सकता है । कंप्यूटर ने मानव जीवन को बहत सरल बना वदया है ।
कंप्यूटर द्वारा रे लवे वटकटों की बुवकंग बहत आसान और समय बचाने वाली हो गई है ।
आज वकसी भी बीमारी की जााँ च करने, स्वास्थ्य का पूरा परीक्षि करने, रक्त-चाप एवं
ह्रदय गवत आवद मापने में इसका भरपूर प्रयोग वकया जा रहा है । रक्षा क्षेत्र में प्रयुक्त
उपकरिों में कंप्यूटर का बेहतर प्रयोग उन्ें और भी उपयोगी बना रहा है । आज हवाई
यात्रा में सुरक्षा का मामला हो या यान उडाने की प्रविया, कंप्यूटर के कारि सभी जवटल
कायय सरल एवं सुगम हो गए हैं । संगीत हो या वफ़ल्म, कंप्यूटर की मदद से इनकी
गुिवत्ता को सुधारने में बहत मदद वमली है । कंप्यूटर से कुछ हावनयााँ भी हैं । कंप्यूटर पर
आवश्रत होकर मनुष्य आलसी प्रवृवत्त का बनता जा रहा है । कंप्यूटर के कारि बच्चे
आजकल घर के बाहर िेलों में रुवच नहीं लेते और इस पर गेम िेलते रहते हैं । इस
कारि उनका शारीररक ववकास ठीक से नहीं हो पाता। कंप्यूटर आज जीवन की
आवश्यकता बन गया है। अतः इसका सही ढं ग से प्रयोग कर हम अपने जीवन में प्रगवत
कर सकते हैं।

(13) ग्लोबल िावमिंग पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

वैवश्वक तापमान यानी ग्लोबल वावमिंग आज ववश्व की सबसे बडी समस्या बन चुकी है ।
इससे न केवल मनुष्य, बखल्क पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक प्रािी त्रि है। 'ग्लोबल वावमिंग'
शब्द का अर्य है ' संपूिय पृथ्वी के तापमान में वृखद्ध होना।' हमारी पृथ्वी पर वायुमंडल की
एक परत है , जो वववभन्न गैसों से वमलकर बनी है , वजसे ओजोन परत कहते हैं । ये ओजोन
परत सूयय से आने वाली पराबैंगनी तर्ा अन्य हावनकारक वकरिों को पृथ्वी पर आने से
रोकती है । मानवीय वियाओं द्वारा ओजोन परत में वछि हो जाने के कारि सूयय की
हावनकारक वकरिें पृथ्वी के वातावरि में प्रवेश कर रही हैं ।
पररिामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में लगातार वृखद्ध हो रही है । ग्लोबल वावमिंग के कारि
कई समुिी तर्ा पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतुओं की प्रजावतयों के अखित्व पर ितरा
छाया हआ है , सार् ही मनुष्यों को भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड
रहा है । यवद समय रहते ग्लोबल वावमिंग को रोकने के उपाय नहीं वकए, तो हमारी पृथ्वी
जीवन के योग्य नहीं रह जाएगी। इसे रोकने के वलए हमें प्रदू षि को कम करना होगा।
सार् ही काबयन डाइ-ऑक्साइड सवहत अन्य गैसों के उत्सजय न में कमी तर्ा वृक्षारोपि
को बढ़ावा दे ना होगा, वजससे प्रकृवत में पयाय वरि संबंधी संतुलन बना रहे ।

(14) विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकवप्रयता पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

आज के युग को ववज्ञापनों का युग कहा जा सकता है । आज सभी जगह ववज्ञापन-ही-


ववज्ञापन नजर आते हैं। बडी-बडी कंपवनयााँ एवं उत्पादक अपने उत्पाद एवं सेवा से
संबंवधत लुभावने ववज्ञापन दे कर उसे लोकवप्रयता बनाने का हर संभव प्रयास करते हैं ।
वकसी नए उत्पाद के ववषय में जानकारी दे ने, उसकी ववशे षता एवं प्राखप्त थर्ान आवद
बताने के वलए ववज्ञापन की आवश्यकता पडती है । ववज्ञापनों के द्वारा वकसी भी सूचना
तर्ा उत्पाद की जानकारी, पूवय में प्रचवलत वकसी उत्पाद में आने वाले बदलाव आवद की
जानकारी सामान्य जनता को दी जा सकती है ।

ववज्ञापन का उद्दे श्य जनता को वकसी भी उत्पाद एवं सेवा की सही सूचना दे ना है , ले वकन
आज ववज्ञापनों में अपने उत्पाद को सवोत्तम तर्ा दू सरों के उत्पादों को वनकृष्ट कोवट का
बताया जाता है । आजकल के ववज्ञापन भ्रामक होते हैं तर्ा मनुष्य को अनावश्यक
िरीदारी करने के वलए प्रेररत करते हैं । अतः ववज्ञापनों का यह दावयत्व बनता है वक वे
ग्राहकों को लु भावने दृश्य वदिाकर गुमराह नहीं करें , बखल्क अपने उत्पाद के सही गुिों
से पररवचत कराएाँ । तभी उवचत सामान ग्राहकों तक पहाँ चेगा और ववज्ञापन अपने लक्ष्य में
सिल होगा।

15) मेरे सपनों का भारत पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।


भारतवषय की पावन धरती का प्राकवतक स द
ं यय अत्यि अद् भुत है । वहमालय भारत के
मार्े का वदव्य मुकुट है । तर्ा वहं द महासागर भारत माता के चरिों को स्पशय करे धन्य
होता है । उत्तर में वहमालय तर्ा पूवय-पवश्चम । एवं दवक्षि में सागर इस महान् दे श की
रक्षा करते हैं । यहााँ के पवयत और उनसे वनकलने वाले झरने तर्ा नवदयााँ भारत की शोभा
में चार चााँ द लगाते हैं । भारत में कहीं पवयत हैं , तो कहीं मरुभूवम है , कहीं मैदान हैं , तो
कहीं पठारे । यहााँ के उपजाऊ िेतों में हरी-भरी िसलें लहलहाती हैं । यहााँ के समुिों
की छटा दे िते ही बनती है ।

भारत हमारी जन्मभूवम एवं कमयभूवम है । भारत सवदयों से ववश्व का मागयदशय क बना हआ
र्ा। अब भारत की प्रवतष्ठा वदनप्रवतवदन धूवमल होती जा रही है । मैं अपने दे श भारत को
पुनः ववश्व के अग्रिी राष्टर के रूप में ववश्व पटल पर अंवकत करना चाहता हूाँ । यह तभी
संभव हो सकेगा जब दे श का हर नागररक अपने दावयत्वों का भली-भााँवत वनवाय ह करे गा।
लोग अपनी वजम्मेदारी को समझें गे और भ्रष्टाचार से दे श को मुखक्त वदलाने का प्रयास
करें गे। हमारे दे श का ववकास अवरोवधत हो चुका है इसका प्रमुि कारि दे श में व्याप्त
भ्रष्टाचार है । यह हमारे दे श की बुवनयाद को िोिला कर रहा है । अतः यवद हम अपने
दे श भारत को पुनः उसकी गररमा वदलाना चाहते हैं , उसे वही ‘सोने की वचवडया बनाना
चाहते हैं , तो हमें अपने राष्टर में व्याप्त सभी बुराइयों को वमलकर वमटाना होगा तभी
हमारा दे श सुवनयोवजत रहकर अमन, चैन तर्ा िुशहाली की वमसाल बन सकेगा।’

(16) समय-वनयोजन पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

प्रत्येक कायय को वनयोवजत समय पर करना समय-वनयोजन कहलाता है । समय का बहत


अवधक महत्व है । समय का सदु पयोग हमारे जीवन को िुवशयों से भर सकता है और
अमूल्य क्षि नष्ट होने से बच जाते हैं। यह सिलता का प्रर्म सोपान है ।

उपयुक्त समय पर उपयुक्त कायय करना चावहए। रोगी के मर जाने पर उसे औषवध
प्रदान करने से कोई लाभ नहीं होता। विर तो वही बात होती है -“अब पछताए होत क्ा
जब वचवडयााँ चुग गईं िेत ।” अर्ायत् वकसी भी कायय को सम्पन्न करने का एक वनवश्चत
समय होता है । उस समय के वनकल जाने के बाद यवद कायय हो भी जाए तो उसकी
उपयोवगता समाप्त हो जाती है ।
आग लगने पर कुआाँ िोदने वाला व्यखक्त कभी भी, अपना घर नहीं बचा पाता। उसका
सवयनाश वनवश्चत ही होता है । जो ववद्ार्ी परीक्षा के वदनों में भी अध्ययन नहीं करता वह
परीक्षा पररिाम घोवषत होने पर आाँ सू ही बहाता है । जो समय नष्ट करता है , समय उसे
नष्ट . कर दे ता है । जो समय को बचाता है , समय का सम्मान करता है , तो समय भी उस
व्यखक्त को बचाता है , तर्ा उसे सम्मान दे ता है ।

(17) वमत्ता पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

वमत्रता एक अनमोल धन है । यह एक ऐसी धरोहर है वजसका मूल्य लगा पाना संभव नहीं
है । इस धन व धरोहर के सहारे मनुष्य कवठन से कवठन समय से भी बाहर वनकल आता
है । भगवान के द्वारा मनुष्य को पररवार वमलता है और वमत्र वह स्वयं बनाता है । जीवन के
संघषयपूिय मागय पर चलते हए उसके सार् उसका वमत्र कन्धे से कन्धा वमलाकर चलता है।
हर व्यखक्त को वमत्रता की आवश्यकता होती है । वह चाहे सुि के क्षि हों या दु ः ि के
क्षि, वमत्र उसके सार् रहता है । वकसी ववशे ष गूढ़ बात पर वमत्र ही उसे सही सलाह
दे कर उसका मागयदशय न करता है ।

वमत्र ही उसका सही अर्ों में सच्चा शु भवचंतक, मागयदशयक, शुभ इच्छा रिने वाला होता
है । सच्ची वमत्रता में प्रेम व त्याग का भाव होता है । वमत्र की भलाई दू सरे वमत्र का कत्तयव्य
होता है । सच्चा वमत्र वही होता है जो ववपवत्त के समय अपने वमत्र के सार् दृढ़ वनश्चय
होकर िडा रहता है । हमें चावहए वक जब भी वकसी को अपना वमत्र बनाएं तो सोच
ववचार कर बनाएं क्ोंवक जहााँ एक सच्चा वमत्र आपका सार् दे , आपको ऊाँचाई तक
पहाँ चा सकता है , कपटी वमत्र अपने स्वार्य के वलए आपको पतन के रािे पर भी पहाँ चा
सकता है । जो आपके मुंह पर आपका सगा बने और पीठ पीछे आपकी बुराई करे ऐसे
वमत्र को दू र से नमस्कार कहने में ही भलाई है ।

18) मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

''मन के हारे हार है मन के जीते जीत'' सूखक्त का अवभप्राय है वक वजसका मन हार जाता
है वह बहत शखक्तशाली होने पर भी परावजत हो जाता है तर्ा वजसका मन जीत जाता है
वह शखतक्त न होते हए भी जीत जाता है । व्यखक्त के जीवन में वनराशा अवभशाप के
समान है । असिलताएाँ जीवन प्रविया का स्वाभाववक अंग होती हैं । यवद व्यखक्त
असिलताओं से वनराश होकर प्रयत्न करना छोड दें तो उसे असिलता ही वमलती है ।
इसवलए व्यखक्त को वनराश नहीं होना चावहए और प्रयत्न करते रहना चावहए। मन अनंत
शखक्त का स्रोत है , उसे हीन भावना से बचाए रिना अत्यंत आवश्यक है । मन की
अपररवमत शखक्त को भूले वबना अपनी क्षमताओं में ववश्वास रिना ही सिलता की मूल
कुंजी है । ऐसा करने से हमारे दृवष्टकोि में पररवतय न होता है तर्ा मनुष्य कायय करने के
वलए प्रेररत होता है ।प्रत्येक व्यखक्त के जीवन में आशा-वनराशा, उतार-चढ़ाव और सुि-
दु ः ि चि की भााँ वत ऊपर-नीचे होते रहते हैं । व्यखक्त की हार-जीत उसकी मानवसक
शखक्त पर वनभयर करती है , जो व्यखक्त पररखथर्वत का सामना हाँ सी-ख़ुशी करता है वह
सिलता अवश्य प्राप्त करता है । इसमें सकारात्मक सोच महत्त्वपूिय भूवमका वनभाती है ।
सकारात्मक सोच से व्यखक्त का मनोबल बढ़ता है और वह दु गुने उत्साह से अपने लक्ष्य
को प्राप्त करने का प्रयास करता है । वनष्कषय रूप से हम कह सकते हैं वक वजस कायय
को पूरे दृढ़ संकल्प के सार् करें गे, वह कायय जरूर पूरा होता है । इसवलए मनुष्य को
अपने मन को सुदृढ़ बनाकर जीवन में आगे बढ़ना चावहए।

(19) प्लाखिक की दु वनया पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

प्लाखस्टक का अववष्कार ड्यू बोयस एवं जॉन द्वारा वकया गया र्ा। प्लाखस्टक का उपयोग
मशीन के कल-पुजों, पानी की टं वकयों, दरवाजों, खिडवकयों, चप्पल-जूतों, रे वडयों,
टे लीववजन, वाहनों के वहस्सों, आवद में वकया जाता है , क्ोंवक प्लाखस्टक से बनी विुएाँ
आसानी से िराब नहीं होतीं। यवद वकसी कारि ये टू ट-िूट जाएाँ , तो इन्ें विर से
बनाकर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है ।इनमें मनचाहा रं ग वमलाकर इन्ें अवधक
आकषयक भी बनाया जा सकता है । यही कारि है वक प्लाखस्टक से बने आकषयक रं ग-
वबरं गे िूल असली िूलों से अवधक लोकवप्रय हो रहे हैं । आज लोगों को बाजार से सामान
प्लाखस्टक से बने आकषयक र्ैलों में पैक करके वमलता है ।

इसके अनेक उपयोग के बावजूद प्लाखस्टक से बनी विुओं से पयाय वरि बुरी तरह
दु ष्प्रभाववत हो रहा है । प्लाखस्टक कभी न गलने-सडने वाला पदार्य है , वजसके कारि
भूवम, जल, पयाय वरि आवद अत्यवधक प्रदू वषत होते जा रहे हैं । अतः हमें प्लाखस्टक का
कम से कम उपयोग करना चावहए, तवक पयाय वरि को प्रदू वषत होने से बचाया जा सके।
(20) भारत में बाल मजदू री की समस्या पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

'बाल मजदू री' से तात्पयय ऐसी मजदू री से है , वजसके अंतगयत 5 वषय से 14 वषय तक के
बच्चे वकसी संथर्ान में कायय करते हैं। वजस आयु में उन बच्चों को वशक्षा वमलनी चावहए,
उस आयु में वे वकसी दु कान, रे स्टोरें ट पटािे की िैक्टरी, हीरे तराशने की िैक्टरी, शीशे
का सामान बनाने वाली िैक्टरी अवद में काम करते है ।

भारत जै से ववकासशील दे श में बाल मजदू री के अनेक कारि हैं। अवशवक्षत व्यखक्त
वशक्षा का महत्त्व न समझ पाने के कारि अपने बच्चों को मजदू री करने के वलए भेज दे ते
हैं । जनसंख्या वृखद्ध बाल मजदू री का दू सरा सबसे बडा कारि है । वनधयन पररवार के
सदस्य पेट भरने के वलए छोटे -छोटे बच्चों को काम भेज दे ते हैं ।

भारत में बाल मजदू री को गंभीरता से नहीं वलए जाने के कारि इसे प्रोत्साहन वमलता है ।
दे श में कायय कर रही सरकारी, गैर-सरकारी और वनजी संथर्ाओं की इस समस्या के
प्रवत गंभीरता वदिाई नहीं दे ती।

बाल मजदू री की समस्या का समाधान करने के वलए सरकार कडे कानून बना सकती
है । समाज के वनधयन वगय को वशक्षा प्रदान करके बाल मजदू री को प्रवतबंवधत वकया जा
सकता है । जनसंख्या वृखद्ध पर वनयंत्रि कर भी बाल मजदू री को वनयंवत्रत वकया जा
सकता है । ऐसी संथर्ाओं को प्रोत्साहन वदया जाना चावहए, जो बाल मजदू री का ववरोध
करती हैं या बाल मजदू री करने वाले बच्चों के वलए वशक्षा से जुडे काययिम चलाती हैं ।

(21) प्रातः कालीन भ्रमण पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

प्रातः कालीन भ्रमि शरीर को स्वथर् और वनरोगी रिने की शारीररक वियाओं में से एक
है । प्रातः कालीन के भ्रमि से मनुष्य को स्वच्छ वायु प्राप्त होती है , वजससे मनुष्य में एक
नवस्फूवतय और नवजीवन का संचार होता है । मनुष्य प्रकृवत के संपकय में आकर आनंद
का अनुभव करता है । प्रकृवत के मनोरम दृश्यों को दे िकर उसका मन प्रिुखल्लत ही
उठता है । प्रातः कालीन भ्रमि करने से हमारी शारीररक शखक्त के सार्-सार् मानवसक
शखक्त का भी ववकास होता है । हमारे मन से ववकार दू र हो जाते हैं । प्रातः कालीन मन
प्रसन्न होने के कारि मनुष्य का संध्या तक का समय बडी प्रसन्नता से व्यतीत होता है ।

सुबह की ठं डी वायु प्रत्येक प्रािी के वलए लाभदायक होती है । प्रातः कालीन भ्रमि से
व्यखक्त के शरीर तर्ा मन मखिष्क में तरोताजगी का संचार होता है । प्रातः कालीन भ्रमि
व्यखक्त की सेहत के वलए भी बहत उपयोगी एवं लाभदायक है । हमें प्रातः कालीन
वनयवमत रूप से भ्रमि करना चावहए, वजससे हमारा मन, बुखद्ध और शरीर शां त, प्रसन्न
एवं दृढ़ रह सके। अतः स्वथर्, वनरोगी,प्रसन्नवचत्त एवं दीघयजीवी बनने के वलए प्रातः काल
का भ्रमि सवोत्तम साधन है । वतय मान युग में तो यह एक वरदान के समान है ।

(22) आलस्य : मनुष्य का सबसे बड़ा शत्ु पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

आलस्य दु ः ि, दररिता, रोग परतं त्रता, अवनवत आवद का जनक है। आलस्य के रहते हए
मनुष्य को ववकास और उसके ज्ञान में वृखद्ध का प्रश् ही नहीं उठता। आलस्य को राक्षसी
प्रवृवत्त की पहचान कहा जाता है । स्वास्थ्य की दृवष्ट से प्रातः काल की शुद्ध वायु अत्यंत
आवश्यक है । आलसी व्यखक्त इस हवा का आनंद भी नहीं उठा पाते और प्रातः कालीन
भ्रमि एवं व्यायाम के अभाव में उनका शरीर रोगग्रि हो जाता है । आलसी ववद्ार्ी पूरा
वषय सोकर गुजारता है । और पररिाम आने पर सबसे आाँ िें चुराता है ।

आलस्य मनुष्य की इच्छाशखक्त को कमजोर बनाकर उसे असिलता के गतय में धकेल
दे ता है । आलसी को छोटे -से-छोटा काम भी पहाड के समान कवठन लगने लगता है और
वह इससे छु टकारा पाने के वलए तरह-तरह के बहाने तलाशने लगता है।

आलस्य का त्याग करने से मनुष्य को अपने लक्ष्य को वनवश्चत समय में प्राप्त करने में
सिलता वमलती है । जीवन में वही व्यखक्त सिलता प्राप्त कर सकता है , जो आलस्य को
पूरी तरह त्यागकर कमय के वसद्धां त को अपना ले । इस प्रकार मनुष्य का सबसे बडा शत्रु
आलस्य ही है । यह मनुष्य को पतन के मागय पर ले जाता है और कुछ ही समय में मनुष्य
का नाश कर दे ता है । अतः इसका त्याग करने में ही मनुष्य का कल्याि वनवहत है ।

(23) सावहत्य का महत्त्व पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।


सावहत्य सोते हए मनुष्य को भी जागृत करने का सामर्थ्य रिता है । सावहत्य कमजोर एवं
शोवषतों को उत्सावहत करने का कायय करता है । यह सावहत्य ही है , वजसने कई बार हारी
हई लडाइयों को भी जीतने में मदद की है । कहा भी गया है वक 'सावहत्य समाज का
दपयि' होता है । सावहत्य दे श की वािववक खथर्वत का सजीव वचत्रि करता है , वजससे
प्रभाववत होकर समाज के जागरूक लोग सामावजक बुराइयों को पहचानकर, उनका
कारि समझकर तर्ा उन्ें वमटाने के तरीके ढू ाँ ढ़कर उन्ें समाप्त कर दे ते हैं । वजस
समय भारतीय संस्कृवत और सभ्यता को दु ष्प्रभाववत करने का षड्यंत्र वकया जा रहा र्ा,
उस समय कबीरदास, तु लसीदास, भूषि, प्रेमचंद, रामधारी वसंह 'वदनकर' आवद
सावहत्यकारों ने जनता को अपनी रचनाओं के माध्यम से वशवक्षत एवं संवेदनशील बनाने
का कायय वकया। राष्टरीयता एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा करने में अनेक सावहत्यकारों का
महत्त्वपूिय योगदान रहा हैं । सावहत्यकारों ने अपने राष्टरीय एवं नैवतक दावयत्व को पहचाना
तर्ा उसी के अनुसार कायय वकया। इस प्रकार कह सकते हैं वक सावहत्यकार का
सामावजक उत्तरदावयत्व होता है । समाज के वहत की दृवष्ट से वलिा गया सावहत्य ही श्रेष्ठ
सावहत्य कहा जा सकता है ।

(24) आिु वनक जीिन में मोबाइल पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

मोबाइल आज ववश्व में िां वत का वाहक बन गया है । वबना तारों वाला मोबाइल िोन
जगह-जगह लगे ऊाँचे टॉवरों से तरं गों को ग्रहि करते हए मनुष्य को दु वनया के प्रत्येक
कोने से जोडे रहता है ।

मोबाइल िोन सेवा प्रदान करने के वलए वववभन्न टे लीिोन कंपवनयााँ अपनी-अपनी सेवाएाँ
दे ती हैं । मोबाइल िोन बात करने, एसएमएस की सुववधा प्रदान करने के सार्-सार्
वववभन्न प्रकार के िेल, कैलकुले टर, िोनबुक की सुववधा, समाचार, चु टकुले , इं टरनेट
सेवा आवद भी उपलि कराता है । अनेक मोबाइल िोनों में इं टरनेट की सुववधा भी होती
है , वजससे ई-मेल भी वकया जा सकता है । मोबाइल िोन सुववधाजनक होने के सार् ही
नुकसानदायक भी है ।

मोबाइल िोन का सबसे बडा दोष यह है वक यह समय-असमय बजता ही रहता है ।


लोग सुरक्षा और वशष्टाचार भूल जाते हैं । अकसर लोग गाडी चलाते समय भी िोन पर
बात करते हैं , जो असुरवक्षत ही नहीं, बखल्क कानूनन अपराध भी है । अपराधी एवं
असामावजक तत्त्व मोबाइल का गलत प्रयोग अनेक प्रकार के अवां वछत कायों में करते
हैं । इसके अवधक प्रयोग से कानों व हृदय पर बुरा प्रभाव पडता है । अतः इन ितरों से
सावधान होना आवश्यक है ।

(25) ई-कचरा पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद वलखिए।

ई-कचरा आधुवनक समय की एक गंभीर समस्या है । वतय मान समय में ववज्ञान और
प्र द्ोवगकी के क्षेत्र में कािी काम हो रहा है । इसके फ़लस्वरुप आज वनत नए-नए उन्नत
तकनीक वाले इलेक्टरॉवनक यंत्रों का उत्पादन हो रहा है । जै से ही बाजार में उन्नत
तकनीक वाला उत्पाद आता है , वैसे ही पुराने यंत्र बेकार पड जाते हैं । इसी का नतीजा है
वक आज कंप्यूटर, लै पटॉप, मोबाइल िोन, टीवी, रे वडयो, वप्रंटर, आई-पोड् स आवद के
रूप में ई-कचरा बढ़ता जा रहा है । एक अनुमान के अनुसार एक वषय में पूरे ववश्व में
लगभग 50 वमवलयन टन ई-कचरा उत्पन्न होता है । यह अत्यंत वचंता का ववषय है वक ई-
कचरे का वनपटान उस दर से नहीं हो पा रहा है , वजतनी तेजी से यह पैदा हो रहा है । ई-
कचरे को डालने या िुले में जलाने से पयाय वरि के वलए गंभीर समस्याएाँ उत्पन्न हो गई
हैं । क्ोंवक इले क्टरॉवनक यंत्रों में आसेवनक, कोबाि, मरकरी, बेररयम, वलवर्यम, कॉपर,
िोम, ले ड आवद हावनकारक अवयव होते हैं । इनसे कैंसर जै सी गंभीर बीमाररयों का
ितरा कई गुना बढ़ गया हैं ।

अब समय आ गया है वक ई-कचरे के उवचत वनपटान और पुनः चिि पर ध्यान


वदया जाए अन्यर्ा पूरी दु वनया शीघ्र ही ई-कचरे का ढे र बन जाएगी। इसके वलए
ववकवसत दे शों को आगे आना होगा और ववकासशील दे शों के सार् अपनी
तकनीकों को साझा करना होगा, क्ोंवक ववकवसत दे शों में ही ई-कचरे का
उत्पादन अवधक होता है और वे जब-तब चोरी-वछपे ववकासशील दे शों में उसे
भेजते रहते हैं । इस समस्या से वनपटने के वलए पूरी दु वनया को एक होना होगा।
(26) भारत का मंगल ग्रह अवभयान

भारत के मंगलयान MOM ने 24 वसतम्बर 2014 को अंतररक्ष ववज्ञान में इवतहास


रचते हए प्रातः 7:11 बजे मंगल ग्रह यानी लाल ग्रह की कक्षा में सिलता पूवयक
प्रवेश वकया। इस अवभयान की शु रुआत 3 अगि 2012 को तत्कालीन
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन वसंह द्वारा की गयी और 5 नवम्बर 2013 को भारतीय
अंतररक्ष अनुसंधान केन्द्र (इसरो) द्वारा इसे कायय रूप वदया गया। इस यान ने 299
वदनों में 780 वमवलयन वकलोमीटर की दू री तय की। इस पूरे अवभयान में कुल 15
महीने का समय लगा तर्ा कुल 450 करोड रु. की लागत आयी जो वक वॉलीवुड
में बनने वाली विल्म की कुल लागत से कािी कम है , यानी लगभग 7 रु. प्रवत
वकलोमीटर। इस अवभयान ने अपने पहले ही प्रयास में सिलता अवजयत की। इसी
सिलता के सार् मंगल ग्रह अवभयानों में जु टी तीन सिल संथर्ाओं-सोववयत संघ,
नासा तर्ा यूरोवपयन स्पेस एजे न्सी के बाद भारत ने अपना च र्ा थर्ान बनाया
सार् ही मंगलयान तर्ा यह अवभयान पूिय रूप से स्वदे शी है । इसका वनयंत्रि
पूियत: भारतीय अंतररक्ष अनुसंधान केन्द्र बंगल र द्वारा वकया जा रहा है । इस
ग रवपूिय क्षि का साक्षी बनते हए वतयमान प्रधानमंत्री श्री नरे न्द्र मोदी ने इसरो के
समि वैज्ञावनकों सवहत सम्पूिय भारतवावसयों को बधाइयााँ दीं। आन्ध्र प्रदे श में
आने वाले हदहद चिवात की पूवय चेतावनी इस यान द्वारा भेजी गई सूचना का ही
पररिाम है , वजससे समय से पूवय ही राहत एवं बचाव कायों की व्यवथर्ा प्रशासन
द्वारा कर ली गयी।

(27) वदल्ली है वदल वहंदुस्तान का

वकसी ने ठीक ही कहा है -वदल्ली है वदल वहं दुिान का, यह तो तीरर् है सारे जहान का।'
वदल्ली के इवतहास में अनेक उतार-चढ़ाव आए हैं । यह वकतनी ही बार उजाडी और
बसाई गई है । अनेक राजा-महाराजाओं की राजधानी रह चुकी है । वजस तरह 'दे हरी',
वजसका अर्य है ' 'द्वार का च िट' को पारकर घर में प्रवेश वकया जाता है , उसी तरह
'वदल्ली' को 'भारत की दे हरी' समझा जाता रहा है । वदल्ली को सवयप्रर्म पां डवों ने बसाया
र्ा। वचवडयाघर के पास पुराना वकला के िंडहर इसके स्वविय म अतीत के स्मारक हैं ।
तब इसका नाम इं िप्रथर् र्ा। तुगलकाबाद तु गलक वंश की अवमट वनशानी है । वदल्ली
अपने अंचल में पृथ्वीराज च हान के सत्रह युद्धों की वीरता की गार्ा भी समेटे हए है ।
वदल्ली को भव्य रूप वदया मुगल सम्राट् शाहजहााँ ने। उसका बनाया लाल वकला भारत
की शान है । अंग्रेजी राज्य में वदल्ली में अनेक आधुवनक इमारतों का वनमाय ि हआ। आज
वदल्ली दो भागों में ववभक्त है -पुरानी वदल्ली और नई वदल्ली। वदल्ली में अनेक प्राचीन,
नए, धावमयक, ऐवतहावसक भवन हैं। यहााँ अनेक संग्रहालय, स्टे वडयम, सां स्कृवतक केंि,
व्यापाररक केंि, पाकय, मनोरं जक थर्ल, पााँ च वसतारा होटल, बहमंवजली इमारतें ,
म्यूवजयम, वचवडयाघर, मैटरो लाइन आवद दशय नीय थर्ल हैं। यमुना नदी के तट पर बसी
यह अद् भुत नगरी प्राचीन और नवीन का अद् भुत संगम है |

(28) दै ि-दै ि आलसी पु कारा


इवतहास इस बात का साक्षी है वक कमयलीन मनुष्यों ने ही अपने पुरुषार्य के बल पर
इवतहास की रचना की है तर्ा 'समय' पर शासन वकया है । यवद मनुष्य भाग्य के भरोसे
बैठा रहता, आलस्य में डूबा रहता तो आज भी वह पाषाि युग में होता। आज व्यखक्त
जल, र्ल और नाम का स्वामी है , प्रकृवत उस की चेरी है , आज सवयत्र उसी का आवधपत्य
है । वह केवल उसकी पुरुषार्य प्रवृवत्त के कारि है । पररश्रमी व्यखक्त शे र के समान होता
है और लक्ष्मी उसी के पास जाती है , सिलता उसी का वरि करती है। केवल कायर
तर्ा वनकम्मे लोग ही कहा करते हैं वक जो कुछ वमलता है भाग्य से वमलता है । मनुष्य के
शरीर में ही उसका सबसे बडा शत्रु रहता है और वह है आलस्य। मनुष्य का पुरुषार्य ही
उसके स भाग्य को िींच लाता है । अतः व्यखक्त को चावहए भाग्य के भरोसे न बैठा रहे
और पुरुषार्य करे । जो व्यखक्त पररश्रम नहीं करते , पुरुषार्य से बचने का प्रयास करते हैं , वे
ही|

(29) मजहब नही ं वसिाता आपस में िैर रिना

कमय वह है जो एक आदमी को दू सरे से वमलाए तर्ा जो व्यखक्त को असत्य से सत्य की


ओर, अज्ञान ज्ञान की ओर, पाप से पुण्य की ओर, दु गुयिों से सद् गुिों की ओर तर्ा
दानवता से मानवता की ओर ले चले। सच्चा धमय मानव की संकीियताओं को दू र करके
उनके दृवष्टकोि को वविृत बनाता है । ऐसा धमय जो मानव-मात्र से वहंसा, द्वे ष, कटु ता
तर्ा वैर-ववरोध उत्पन्न करे , धमय नहीं कहा जा सकता। वह तो 'अधमय' है । संसार में
अनेक धमय हैं। चाहे उनकी अन्य बातें अलग-अलग हों, परं तु एक बात जो सबमें सामान्य
रूप से पाई जाती है , वह है उनके उच्चादशय । संसार के सभी धमय व्यखक्त को अच्छाई की
राह पर ले जाते हैं । कोई भी धमय हमें वहं सा या ईष्याय के मागय पर अग्रसर नहीं करता।
इसीवलए इकबाल ने कहा र्ा, नहीं वसिाता आपस में वैर रिना।"

(30) विद्याथी के दावयत्व

रूपरे िा-- विद्याथी जीिन; जीिन की नी ंि है , विद्याथी दे श और समाज के आिार


हैं ,विद्याथी का दावयत्व |

ववद्ार्ी जीवन हमारे पूरे जीवन की नीव होती है और इसी समय हमें अपने कुछ दावयत्व
वनधाय ररत कर ले ने चावहए। ववद्ार्ी दे श और समाज के आधार हैं । ववद्ार्ी को दावयत्व
साँभालने से पहले यह ववचार कर ले ना चावहए वक दे श को वकस क्षेत्र में उनका सहयोग
चावहए। आज हमारे दे श में अवशक्षा और अस्वास्थ्य यह दो बडी समस्याएाँ हैं। इसवलए
ववद्ावर्य यों को यह दावयत्व ले ना चावहए वक वे पूरे भारत को वशवक्षत और स्वथर् बनाएाँ गे।
प्रत्येक ववद्ार्ी एक-एक अवशवक्षत को वशक्षा प्रदान करे , तो जल्दी ही दे श का प्रत्येक
व्यखक्त वशवक्षत हो जाएगा। इसी तरह दे श और समाज की अन्य समस्याओं के प्रवत लोगों
को जागरूक करना होगा | वजससे दे श और समाज की प्रगवत हो।

(31) वशक्षा

रूपरे िा-- वशक्षा के माध्यम से सफलता प्राप्त करना, वशक्षारवहत जीिन बंजर
समान है , वशक्षा मानि को निीन आलोक प्रदान करती है ।

मनुष्य एक वववेकशील सामावजक प्रािी है । वशक्षा प्राप्तकर वह अपनी समि


शखक्तयों का सदु पयोग करता है । वशक्षा प्राप्त करके मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र
में दक्षता और सिलता प्राप्त करना चाहता है । वशक्षारवहत जीवन बंजर भूवम के
समान है और वशवक्षत जीवन एक उपवन है , वजसकी आभा सब ओर छा जाती है ।
वशक्षा का उद्दे श्य बालक के व्यखक्तत्व का बहमुिी ववकास करना है । वशक्षा मानव
को उसके ग रवशाली अतीत से पररवचत करवाती है । वह ज्ञान अजय न कर अपनी
रुवचयों को अनेक आयाम प्रदान कर वववभन्न क्षेत्रों में प्रगवत की नवीन श्रृंिला बन
सकता है । वशक्षक बच्चों में मानवीय गुिों का ववकास करते हैं। वशवक्षत व्यखक्त
अपने अनुशासन, सदाचार, दया तर्ा अवहं सा से समाज का उत्थान करता है ।
वशक्षा मानव को नवीन आलोक प्रदान करती है। वशक्षा को मात्र पुिकीय ज्ञान से
जोडा जाना उवचत नहीं है । मानव की समि शखक्तयों के ववकास में वशक्षा का
महत्त्वपूिय योगदान है । आखत्मक व ब खद्धक ववकास का अचूक मंत्र वशक्षा है ।

(32) पवक्षयों की समस्याएाँ

रूपरे िा-- मनुष्य ने पवक्षयों के घोंसले पर पैर रिकर प्रगवत की, आज पवक्षयों की
समस्या कल हमारी होगी, पशु -पवक्षयों समाप्त होने से मुनष्य का जीवन ितरे में है ।

मनुष्य ने बहत प्रगवत कर ली है । ऊाँची इमारतों, ववशाल पुल, मेटरो रे ल, बडे -बडे
मॉल दे िकर अच्छा लगता है । ले वकन प्रगवत से पशु -पवक्षयों की दु वनया में भयंकर
समस्याएाँ आ गई हैं । लािों की संख्या में पेड काट वदए गए हैं और इससे पवक्षयों
का बसेरा उजड गया है । मनुष्य को उन पर ज़रा भी दया नहीं आती। पवक्षयों को
घोंसला बनाने की जगह नहीं बची, तो वे अपने अंडे कहााँ दें गे? अपने बच्चे का
पालन-पोषि कैसे करें गे? इससे पूरी प्रकृवत को नुकसान होगा। आज जो
समस्याएाँ पवक्षयों की हैं , कल यही समस्याएाँ हमारी भी हो सकती हैं । हमें सोचना
चावहए वक पेडों पर रहने वाले पक्षी व वनों में रहने वाले पशु समाप्त हो गए तो
िाद् श्रृंिला टू ट जाएगी और मनुष्य का जीवन ितरे में पड जाएगा। अत: आज
से ही हमें पवक्षयों की समस्याओं पर ध्यान दे ना चावहए।
(33) िमग और हम

रूपरे िा- धमय की प्रविया सूक्ष्म भावनात्मक, धमय मानवता, प्रेम बढ़ाता है , अनेक संतों ने
सवयधमय की ज्योवत प्रज्ववलत की।

धमय या मजहब अत्यंत सूक्ष्म भावनात्मक प्रविया है । यह व्यखक्तगत व भ वतक तत्वों से


ऊपर उठ आध्याखत्मक व सवयमानव कल्याि की पववत्र भावना है । कवव इकबाल ने स्पष्ट
वकया है वक धमय स्वार्य नहीं है । यह तो भाइचारे की मधुरता बताने वाला श्रेष्ठ दे श का
माध्यम है । युगों से भारत में अनेक धमों का एक सार् बढ़ना यह बताता है वक मज़हब
आपस में सद्भाव, शां वत, मानवता व प्रेम का वजससे व संदेश दे ता है । ववश्व का कोई भी
धमय, मानव-मानव में अंतर नहीं करता। संसार के सब धमयप्रचारकों ने शां वत, दया,
क्षमाशीलता व प्रेम का संचार करने की सीि दी है । महात्मा बुद्ध ने अवहं सा का मागय
वदिाया, तो ईसामसीह ने क्षमाशीलता का। सभी धमों में मानवता की सेवा की दु हाई दी
गई है । अनेक संतों ने समय-समय पर सवयधमय समभाव की ज्योवत प्रज्ववलत की है । सभी
धमों का सार एक है । धमय मानव को मानव से जोडता है । इसका बाह्य आडं बरों और
थर्ूल भ वतकताओं या कमयकां डों से कोई नाता नहीं। यह तो समि ववश्व को एक प्रेम-
सूत्र में वपरोने की सुदृढ़ कडी है । इस माला के व्यखक्तयों के रं ग भले ही वभन्न हों, वकंतु
उद्दे श्य एक ही है |

19.वक्रया

वक्रया की पररभाषा – वजस शब्द अर्वा शब्द समूह के द्वारा वकसी कायय के होने अर्वा
करने का बोध हो, वह विया कहलाती हैं ।

जैसे –

सीता गा रही है ।

श्याम दू ध पी रहा है ।

सोहन कॉले ज जा रहा है ।


तु म मेरे वलए दू ध लाओ।इन वदए गए उदाहरिों में गा रही है , पी रहा है , जा रहा है ,
लाओ, शब्द कायय करने का बोध करा रहे हैं । इनसे वकसी कायय के करने अर्वा होने का
बोध हो रहा है । अतः यह वियाएाँ हैं ।

मुख्यतः वक्रया के दो प्रकार होते हैं -

1. सकमगक वक्रया

“वजस विया का िल कताय पर न पडकर कमय पर पडे , उसे ‘सकमयक विया’ कहते हैं ।”

अतएव, यह आवश्यक है वक वाक् की विया अपने सार् कमय लाये। यवद विया अपने
सार् कमय नहीं लाती है तो वह अकमयक ही कहलाएगी। नीचे वलिे वाक्ों को दे िें :

(i) प्रवर अनू पढ़ता है । (कमय-ववहीन विया)

(ii) प्रवर अनू पुिक पढ़ता है । (कमययुक्त विया)

प्रर्म और वद्वतीय दोनों वाक्ों में ‘पढ़ना’ विया का प्रयोग हआ है ; परिु प्रर्म वाक् की
विया अपने सार् कमय न लाने के कारि अकमयक हई, जबवक वद्वतीय वाक् की वही
विया अपने सार् कमय लाने के कारि सकमयक हई।

2. अकमगक वक्रया

“वह विया, जो अपने सार् कमय नहीं लाये अर्ायत् वजस विया का िल या व्यापार कताय
पर ही पडे , वह अकमयक विया (Intransitive Verb) कहलाती है ।”

जै से-
उल्लू वदनभर सोता है ।

इस वाक् में ‘सोना’ विया का व्यापार उल्लू (जो कताय है ) ही करता है और वही सोता भी
है । इसवलए ‘सोना’ विया अकमयक हई।

कुछ वियाएाँ अकमयक सकमयक दोनों होती हैं । नीचे वलिे उदाहरिों को दे िें-

1. उसका वसर िुजलाता है । (अकमयक)

2. वह अपना वसर िुजलाता है । (सकमयक)

3. जी घबराता है । (अकमयक)

4. ववपवत्त मुझे घबराती है । (सकमयक)

5. बूंद-बूंद से तालाब भरता है । (अकमयक)

6. उसने आाँ िें भर के कहा (सकमयक)

7. वगलास भरा है । (अकमयक)

8. हमने वगलास भरा है । (सकमयक)

जब कोई अकमयक विया अपने ही धातु से बना हआ या उससे वमलता-जुलता सजातीय


कमय चाहती है तब वह सकमयक कहलाती है ।

जैसे-

वसपाही रोज एक लम्बी द ड द डता है ।

भारतीय सेना अच्छी लडाई लडना जानती है /लडती है ।

सकमगक वक्रया के उदाहरण

हरीश िुटबॉल िेलता है ।


मनीषा िाना पकाती है ।

आतं की गाडी चलाता है ।

पुि कवल को बुलाता है।

रमा चटनी बनाती है ।

रवीश वहं दी बोलता है ।

अंकुश शरीर िुजलाता है ।

राधा सब्जी बनाती है ।

रमेश सामान लाता है ।

वपंकू संतरा िाता है ।

महे श वशकार करता है।

मोहन िाना िायेगा।

सीता िाना पकाएगी।

हनुमान सीता को लाएगा।

राम रावि को मारता है।

ववकास श्याम की गाडी चलाता है ।

राम रावि के मुकुट को वगराता है ।

शु भम कालू की पत्तंग उडाता है ।

अजुय न दु योधन को पछाडता है ।

आकाश ववकास का काम करता है ।

अकमगक वक्रया के उदाहरण


गीता सो रही है

बच्चा जाग रहा है

युवक हं स रहे हैं

रमा हं सती है

श्याम द डता है

बच्चा रोता है

ववभा सोती है

राजे श द डता है ।

सााँ प रें गता है ।

पूजा हं सती है ।

मेघनार् वचल्लाता है ।

रावि लजाता है ।

राम बचाता है ।

सीता रोती है ।

आशीष िाता है ।

सुनील चढ़ता है ।

मनीष सुनाता है ।

राकेश मारता है ।

वलवबन वहलता है ।

गाडी चलती है ।

गधा मारता है ।

घोडा द डता है ।
वछपकली कूदती है ।

पक्षी उडता है ।

रमेश स्कूल जाता है ।

मनीष सुबह जल्दी उठता है ।

सुहानी रोज स्नान करती है ।

शखक्तमान उडता है ।

20. कारक

कारक की पररभाषा-

कारक का अर्य होता है वकसी कायय को करने वाला। यानी जो भी विया को करने में
भूवमका वनभाता है , वह कारक कहलाता है ।

कारक के उदाहरण :

वह रोज़ सुबह गंगा वकनारे जाता है ।

वह पहाडों के बीच में है ।

नरे श िाना िाता है ।

सूरज वकताब पढता है ।

कारक के भेद

कारक के मुख्यतः आठ भेद होते हैं :-

कत्ताय कारक

कमय कारक
करि कारक

सम्प्रदान कारक

अपादान कारक

संबंध कारक

अवधकरि कारक

संबोधन कारक

1. कत्ताग कारक :

जो वाक् में कायय को करता है , वह कताय कहलाता है । कताय वाक् का वह रूप होता है
वजसमे कायय को करने वाले का पता चलता है ।

कताय कारक का ववभखक्त वचन् ‘ने’ होता है ।

उदाहरण :

रामू ने अपने बच्चों को पीटा।

समीर जयपुर जा रहा है ।

नरे श िाना िाता है ।

ववकास ने एक सुन्दर पत्र वलिा।

(कताय कारक के बारे में गहराई से पढनें के वलए यहााँ खक्लक करें – कताय कारक –
उदाहरि, पररभाषा, वचन्)

2. कमग कारक :

वह विु या व्यखक्त वजस पर वाक् में की गयी विया का प्रभाव पडता है वह कमय
कहलाता है ।

कमय कारक का ववभखक्त वचन् ‘को’ होता है ।


उदाहरण :

गोपाल ने राधा को बुलाया।

रामू ने घोडे को पानी वपलाया।

मााँ ने बच्चे को िाना खिलाया।

मेरे दोि ने कुत्तों को भगाया।

(कमय कारक के बारे में गहराई से पढनें के वलए यहााँ खक्लक करें – कमय कारक –
उदाहरि, पररभाषा, वचन्)

3. करण कारक :

वह साधन वजससे विया होती है , वह करि कहलाता है । यावन, वजसकी सहायता से


वकसी काम को अंजाम वदया जाता वह करि कारक कहलाता है ।

करि कारक के दो ववभखक्त वचन् होते है : से और के द्वारा।

उदाहरण :

बच्चे गावडयों से िेल रहे हैं ।

पत्र को कलम से वलिा गया है ।

राम ने रावि को बाि से मारा।

अवमत सारी जानकारी पुिकों से लेता है ।

(करि कारक के बारे में गहराई से पढनें के वलए यहााँ खक्लक करें – करि कारक –
उदाहरि, पररभाषा, वचन्)

4 . संप्रदान कारक

पररभाषा
- वजसके वलए कुछ वकया जाए या वजसको कुछ वदया जाए, इसका बोध कराने वाले
शब्द के रूप को संप्रदान कारक कहते हैं ।

सम्प्रदान कारक की ववभखक्त क्ा है ?

इसका ववभखक्त "को" है ।

कमय और संप्रदान का एक ही ववभक्ती प्रत्यय है "को"पर दोनों के अर्ों में अंतर है


संप्रदान का "को" वलए अव्यय के थर्ान पर या उसके अर्य में प्रयुक्त होता है परं तु कमय
के "को" के वलए अर्य से कोई संबंध नहीं है ।

उदहारण :

1. राम मोहन को मारता है ।

2. उसके लडके को बुलाया।

3. उसने लडकों को गावलयां दी।

4. मोहन हरर को रुपए दे ता है ।

5 . अपादान कारक

5.अपादान कारक

पररभाषा

संज्ञा के वजस रुप से वकसी विु के अलग होने का भाव प्रकट होता है उसे अपादान
कारक कहते हैं ।

अपादान कारक की ववभखक्त क्ा है ?


अपादान कारक का भी ववभखक्त वचन् 'से' होता है । यहााँ ' से ' का मतलब वकसी चीज़ से
अलग होना वदिाने के वलए प्रयुक्त होता है ।

"वजस शब्द में अपादान की ववभखक्त लगती है उसे वकसी दू सरे विु के पृर्क होने का
बोध होता है यहां अपादान कारक "से" से जुडा हआ है यानी यहां से दो विुओं को
आपस में जोडता है जैसे वह गाडी से घर गया यहां करता को से के माध्यम से संबोवधत
वकया।"

उदहारण :

1. गंगा वहमालय से वनकलती है ।

2. रमेश ने घडे से पानी ढाला।

3. राम घर से बाहर आया।

4. वबल से चूहा बाहर वनकला।

6. संबंि कारक

पररभाषा

-संज्ञा या सवयनाम के वजस रुप से वकसी अन्य शब्द के सार् संबंध या लगाव प्रतीत हो,
उसे संबंध कारक कहते हैं ।

संबंध कारक की ववभखक्त क्ा है ?

संबंध कारक का ववभखक्त वचन् "का" है । वचन और वलं ग के अनुसार इसकी ववकृवत 'के'
और 'की' है ।
सरल शब्दों में कहा जाए तो संबंध कारक दो शब्दों को जोडता है जैसे राम की वकताब
श्याम का घर इसमें दो अलग-अलग कताय है और इन दोनों को आपस में संबंध बनाया
गया है इसी को संबंध कारक करते हैं ।

उदहारण :

1. श्याम का घर, राम की वकताब।

2. पां च रूपए का घी, एक रूपए का चावल।

3. सोने का गाना, चां दी की र्ाली।

4. भारतें दु के नाटक।

5 . प्रेमचंद के उपन्यास।

7. अविकरण कारक

पररभाषा

-विया या आधार को सूवचत करने वाली संज्ञा या सवयनाम के रूप को अवधकरि कारक
कहते हैं ।

अवधकरि कारक की ववभखक्त क्ा है ?

-इसकी ववभखक्त में और पर होती है ।

"अवधकरि कारक जब विया या आधार को सूवचत करने वाले संज्ञा या सवयनाम वनकल
कर आता है उसे अवधकरि कारक कहते हैं । जै से तु म्हारे घर पर चार आदमी है यहां
पर घर पर यानी घर में से संबंध है । दु कान पर कोई नहीं र्ा यहां दु कान में से संबंध है ।"
उदाहरण:

1. बाहर लडके दरवाजे- दरवाजे घूम रहे हैं ।

2. वजस समय आया र्ा, उस समय में नहीं र्ा।

3. वह दोपहर समय नदी में स्नान करता है ।

4. जब मैं गाडी में र्ा तब टर ै विक जाम र्ा।

8. संबोिन कारक

पररभाषा

-संज्ञा के वजस रुप से वकसी के पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता है उसे
संबोधन कारक कहते हैं ।

सम्बोधन कारक की ववभखक्त क्ा है ?

सम्बोधन कारक के अरे , हे , अजी आवद ववभखक्त वचन् होते हैं ।

"संबोधन कारक वकसी ववशे ष चीजों को संबोवधत करती है । जै से हे भगवान! मेरी रक्षा
करो। इसमें वकसी को पुकारना यह संकेत दे ना उनके भाव से पता चलता है इसी को
संबोधन कारक कहते हैं ।"

उदहारण :

1. हे भगवान।
2. अरे यह क्ा हो गया?

3. हाय रे हाय!

4. अजी सुनते हो!

21. पत् ले िन

पत्र ले िन एक कला है , वजसकी अपनी एक ववशे ष शैली होती है । इसी ववशे षता के
कारि पत्र संचार के साधनों में अलग और वववशष्ट थर्ान रिते है । पत्रों में जो
आत्मीयता छु पी होती है वह अन्यत्र नहीं होती ।

पत् वलिते समय ध्यान दे ने योग्य बातें

1 पत्र की भाषा सरल, सुबोध और प्रभावशाली होनी चावहए।

2 पत्र की शै ली सरस्, रोचक तर्ा उत्सु कता पैदा करने वाली होनी चावहए।

3 आधा अधूरा पत्र अपने उद्दे श्य की पूवतय नहीं कर पाता है ।

4 पत्र के सभी अंगों में संतुलन होना चावहए।

5 व्यखक्तगत पत्रों में आत्मीयता तर्ा औपचाररक पत्रों में सूचना दे ने का भाव वनवहत होना
चावहए।

पत्ों के प्रकार

1 औपचाररक पत्र

2अन पचाररक पत्र

औपचाररक पत् वलिते समय ध्यान दे ने योग्य बातें

1पत्र सदा बाईं ओर ही वलिा जाता है ।

2 सबसे ऊपर ‘सेवामें’ वलिें।उसके ठीक नीचे पत्र पाने वाले व्यखक्त के पद का नाम
और उसके नीचे संथर्ा का नाम वलिा जाता है ।

3 इससे नीचे ववषय का उल्लेि वकया जाता है ।


4 इसके नीचे पत्र पाने वाले के वलए उपयुक्त संबोधन जै से मान्यवर, महाशय, महोदय,
श्रीमान आवदका प्रयोग करना चावहए।

5 ववषयविु के नीचे पत्र वलिने वालों को स्व वनदे श और उसके नीचे अपना नाम
वलिना चावहए या हिाक्षर करना चावहए।

6 हिाक्षर के ठीक नीचे अपना पता वलिना चावहए।

7 सबसे नीचे वदनां क वलिें।

नमूना पत्

गवणत एिं विज्ञान की अवतररक्त कक्षाएं आयोवजत करने के संबंि में प्रिानाचायग
को प्राथगना पत्।

सेवा में,

प्रधानाचायय महोदय

राजकीय वररष्ठ माध्यवमक बाल ववद्ालय

लाजपत नगर , वदल्ली |

ववषय अवतररक्त कक्षाएं आयोवजत करने के संबंध में।

महोदय,

सववनय वनवेदन यह है वक मैं इस ववद्ालय की आठवीं कक्षा का छात्र हूाँ । हमारी


वावषयक परीक्षा संभव िरवरी के अंवतम सप्ताह में शु रू हो जाएगी, वकंतु गवित और
ववज्ञान ववषयों का पाठ्यिम पूरा नहीं हो सका है । हमारी कक्षा को पढ़ाने वाले इन
ववषयों के अध्यापकों की ड्यूटी चुनाव कायय मे लगाई जा चुकी है |चुनाव कायय पूिय होने
पर ही वे ववद्ालय आएं गे | ऐसी खथर्वत मे हम छात्रों के प्रश् पत्र आधे अधूरे ही हल हो
सकेंगे |

आपसे प्रार्य ना है वक गवित और ववज्ञान का पाठ्यि्म पूरा करवाने के वलए अवतररक्त


कक्षाएं आयोवजत करवाने वक व्यवथर्ा करें | हम छात्र आपके आभारी रहें गे|

सधन्यवाद

आपका आज्ञाकारी वशष्य


वैभव

कक्षा आठवीं

अनुिमां क 10

01 नवम्बर ,2021

आपके वपताजी के तबादले के कारण आपको स्कूल छोड़ना पड़ा था , परं तु अब


आपके वपताजी का पुनः तबादला उसी शहर मे हो गया और आप उसी स्कूल मे
पु नः प्रिेश पाना चाहते हैं | प्रिानाचायग को पु नः प्रिेश हे तु पत् वलिें |

सेवा में,

प्रधानाचायाय जी

केंिीय ववद्ालय

एि ॰ए ॰ डी ॰ , दप्पर |

ववषय ववद्ालय मे पुनः प्रवेश पाने के संबंध में।

महोदया ,

सववनय वनवेदन यह है वक वषय 2019 टीके मए आपके ववद्ालय की छात्रा र्ी| उस


समय जब मै आठवीं कक्षा मे र्ी तो मेरे वपताजी का तबादला मुंबई हो गया र्ा , वजस
कारि पररवार के सार् मुझे भी वहााँ जाना पडा र्ा | इसी सप्ताह मेरे वपताजी का पुनः
तबादला दप्पर हो गया है , इसवलए मै विर से आपके ववद्ालय मे दाखिला पाकर वशक्षा
अवजय त करना चाहती हूाँ | आज भी मेरे मन में अपने वशक्षकों और ववद्ालय के प्रवत
सम्मान है | अत: मेरी आपसे प्रार्य ना है वक आप मुझे पुनः ववद्ालय मे प्रवेश दे दें , वजससे
मै अपनी आगे की वशक्षा पूिय कर पाऊाँ | मै सदा आपकी आभारी रहूाँ गी |

सधन्यवाद

आपकी आज्ञाकारी वशष्या

वववध
कक्षा आठवीं

अनुिमां क 10

02 नवम्बर ,2021

आपके मोहल्ले मे सफाई की कोई व्िस्था नही ं है | हर जगह कूड़े के ढे र पड़े


रहते हैं | मोहल्ले की इस बदहाल खस्थवत की ओर ध्यान आकवषगत कराते हुए
सफाई वनरीक्षक को पत् वलखिए |

सेवा मे ,

सिाई वनरीक्षक महोदय ,

सैक्टर 08

चंडीगढ़ |

ववषय सिाई की बदहाल खथर्वत के संबंध में।

महोदय ,

वनवेदन है वक मै सेक्टर-१ का वनवासी हूाँ | इस पत्र के माध्यम से मै आपका ध्यान


अपने मोहल्ले मे सिाई की दयनीय खथर्वत की ओर आकवषयत करना चाहता हूाँ | इस
मोहल्ले मे वनयुक्त सिाईकमी प्रवतवदन नहीं आते है | वे सप्ताह में एक या दो वदन
आकर यहााँ वहााँ कूडा एकत्र करके चले जाते है | उस कूडे को कुत्ते और गाय इधर उधर
वबिरा दे ते है | सडक पर िैला कूडा बदबू मार रहा है | मोहल्ले में मखक्खयों और
मच्छरों की भरमार है | अतः आपसे प्रार्य ना है वक ऐसी बदहाल खथर्वत का आप स्वयं
वनरीक्षि करें और सिाई कवमययों को सिाई करने के वलए तु रंत आदे श दें |

सधन्यवाद

प्रार्ी

अवधेश कुमार

#42 सैक्टर 08

चंडीगढ़
01 नवम्बर 2021

आपका वमत् वकसी िेल प्रवतयोवगता मे भाग लेने के वलए विदे श यात्ा पर जा रहा
है | वमत् की मंगलकामना हे तु पत् वलखिए |

#34 , शालीमार बाग ,

वदल्ली |

21 नवम्बर ,2021

वप्रय वमत्र ,

सप्रेम नमिे !

आशा है वक तु म स्वथर् एवं प्रसन्न होंगे | मुझे आज ही तु म्हारा पत्र प्राप्त हआ है और यह


जानकार अवत प्रसन्नता हई वक तु म्हारा चयन राष्टरीय हॉकी टीम मे हो गया है , इसवलए
तु म प्रवतयोवगता हे तु कनाडा जा रहे हो | तु म स्कूल के वदनों मे भी वदन रात पररश्रम एवं
अभ्यास करते र्े , वजसका तु म्हें िल वमला है | मै तु म्हारे चयन से अवत प्रसन्न हूाँ और ईश्वर
से कामना करती हूाँ वक तु म इस िेल प्रवतयोवगता मे सिलता प्राप्त करो और दे श का
नाम रोशन करो |

मेरी शु भकामनाएं सदै व तु म्हारे सार् हें | अपने माता वपता को मेरी ओर से प्रिाम कहना
|

तु म्हारा वमत्र

क,ि, ग,

अभ्यास के वलए पत्

1 राज्य पररवहन वनगम के मुख्य प्रबन्धक को पत्र वलिकर एक बस चालक के


प्रशं सनीय व्यवहार की प्रशं सा करते हए उसे ववभाग की ओर से सम्मावनत करने का
आग्रह करें |

2 अपने ववद्ालय के पुिकालय मे वहन्दी की अवधक पुिकें माँगवाने के वलए प्राचायय जी


को प्रार्य ना पत्र वलिकर आग्रह करें |

3 अपने ववद्ालय की प्राचायय जी को छात्रवृवत के वलए आवेदन पत्र वलिें |

4 पुिक वविेता को पुिकें माँगवाने के वलए पत्र वलिें |


5 पेयजल की समस्या का विय न करते हए स्वास्थ्य अवधकारी को पत्र वलिो |

2 अनौपचाररक पत् वलिते समय ध्यान दे ने योग्य बातें |

1 आपका वमत् वकसी िेल प्रवतयोवगता मे भाग लेने के वलए विदे श यात्ा पर जा
रहा है | वमत् की मंगलकामना हेतु पत् वलखिए |

#34 , शालीमार बाग ,

वदल्ली |

21 नवम्बर ,2021

वप्रय वमत्र ,

सप्रेम नमिे !

आशा है वक तु म स्वथर् एवं प्रसन्न होंगे | मुझे आज ही तु म्हारा पत्र प्राप्त हआ है और यह


जानकार अवत प्रसन्नता हई वक तु म्हारा चयन राष्टरीय हॉकी टीम मे हो गया है , इसवलए
तु म प्रवतयोवगता हे तु कनाडा जा रहे हो | तु म स्कूल के वदनों मे भी वदन रात पररश्रम एवं
अभ्यास करते र्े , वजसका तु म्हें िल वमला है | मै तु म्हारे चयन से अवत प्रसन्न हूाँ और ईश्वर
से कामना करती हूाँ वक तु म इस िेल प्रवतयोवगता मे सिलता प्राप्त करो और दे श का
नाम रोशन करो |

मेरी शु भकामनाएं सदै व तु म्हारे सार् हें | अपने माता वपता को मेरी ओर से प्रिाम कहना
|

तु म्हारा वमत्र

क,ि, ग,

2 अपने वमत् को बड़े भाई के वििाह मे सखिवलत होने का वनमंत्ण - पत् वलिो |

246, सीता ववहार

जनकपुरी , नई वदल्ली |
02 नवम्बर ,2021

वप्रय अनंत

सप्रेम नमस्कार |

तु म्हें यह जानकार िुशी होगी वक मेरे बडे भाई आवदत्य का वववाह 10 वदसम्बर को
होना वनवश्चत हआ है | बारात सुबह सात बजे बस द्वारा आगरा जाएगी | वववाह के इस
मां गवलक अवसर पर तुम भी सादर आमंवत्रत हो| कृपया वनवश्चत वतवर् से एक - दो वदन
पहले ही आने का प्रयास करना , तावक उत्सव का आनंद दु गुना हो जाए | पत्र के सार्
वववाहोत्सव का काययिम भी संलग्न है |

अंत मे सभी बडों को नमिे एवं छोटो को प्यार |

तु म्हारा अवभन्न वमत्र

पंकज

अभ्यास के वलए पत्

1 वाद वववाद प्रवतयोवगता मे प्रर्म आने की सूचना दे ते हए माता जी को पत्र वलिें |

2 साक्षारता अवभयान मे अपने योगदान का उल्लेि करते हए वमत्र को पत्र वलिें |

3 कुसंगवत से बचने की सलाह दे ते हए अपने छोटे भाई को पत्र वलिें |

4 अपने ववद्ालय की ववशे षताएाँ बताते हए अपने वमत्र को पत्र वलिें|

5 अपने वमत्र को पत्र द्वारा नव वषय की शु भकामनाएं दो |

२२.उपसगग एिं प्रत्यय

उपसगग

िे शब्दांश जो वकसी शब्द के आरं भ में यानी पहले लगकर उसके अथग में पररितग न
या विशेषता ला दे ते हैं, उपसगग कहलाते हैं |

जै से- वव+ज्ञान= ववज्ञान, अ+पराजय= अपराजय आवद |

उपसगय के मुख्यतः पााँ च भेद होते हैं :

1. संस्कृत के वहन्दी में प्रयुक्त उपसगय


2. वहन्दी के अपने उपसगय
3. उदू य और फ़ारसी से आए उपसगय
4. अंग्रेजी भाषा के उपसगय
5. उपसगय की तरह प्रयुक्त होने वाले अव्यय

1. संस्कृत के वहन्दी में प्रयुक्त उपसगग -

संस्कृत के कुल 21 उपसगय वहन्दी में अपनाए गए हैं , जो वनम्नवलखित हैं -

1. अवत:- अवत का अर्य होता है ज़्यादा या अवधक।

उदाहरण :- अवत+इं विय= अतीखन्द्रय, अवत+उखक्त= अत्युखक्त, अवत+उत्तम= अत्युत्तम,


अवत+आवश्यक= अत्यावश्यक, अवत+अवधक= अत्यवधक, अवत+अल्प= अत्यल्प,
अवत+वृवष्ट= अवतवृवष्ट, अवत+आचार= अत्याचार आवद।

2. अनु:- अनु का अर्य होता है बाद में या िम में।

उदाहरण :- अनु+रूप=अनुरूप, अनु+पात= अनुपात, अनु+चर= अनुचर,


अनु+करि= अनुकरि , अनु+सार= अनुसार, अनु+शासन=
अनुशासन, अनु+िमांक= अनुिमां क, अनु+ज= अनुज (छोटा भाई), अनु+िम=
अनुिम, आवद।

3. अ:- इसका अर्य होता है अभाव, वनषेध, नहीं, ववपरीत आवद ।

उदाहरण :- अ+र्ाह= अर्ाह, अ+ल वकक= अल वकक, अ+स्वीकार= अस्वीकार,


अ+न्याय= अन्याय, अ+वहं सा= अवहं सा, अ+पलक= अपलक, अ+टल= अटल,
अ+मर= अमर, अ+चल= अचल, अ+नार्= अनार्, अ+ववश्वास= अववश्वास, अ+धमय=
अधमय, अ+चेतन= अचेतन, अ+ज्ञान= अज्ञान आवद।

4. अप:- अप का अर्य होता है बुरा, अभाव, ववपरीत, हीनता आवद ।

उदाहरण :- अप+व्यय= अपव्यय, अप+वाद= अपवाद, अप+कषय= अपकषय,


अप+हरि= अपहरि, अप+शकुन= अपशकुन, अप+यश= अपयश, अप+मान=
अपमान, अप+शब्द= अपशब्द, अप+कार= अपकार, अप+कीवतय = अपकीवतय आवद।

5. अवभ:- अवभ का अर्य होता है सामने, पास, चारों ओर आवद ।

उदाहरण:- अवभ+नंदन= अवभनन्दन, अवभ=मुि= अवभमुि, अवभ=उत्थान=


अभ्युत्थान, अवभ+यान= अवभयान, अवभ+आगत= अभ्यागत, अवभ+शाप= अवभशाप,
अवभ+ज्ञान= अवभज्ञान, अवभ+उदय= अभ्युदय, अवभ+मान= अवभमान, अवभ+नव=
अवभनव, अवभ+भाषि= अवभभाषि, अवभ+योग= अवभयोग, अवभ+अर्ी= अभ्यर्ी,
अवभ+इष्ट= अभीष्ट, अवभ+अंतर= अभ्यंतर आवद।

6. उप:- उप का अर्य होता है वनकट, छोटा, सहायक, ग ि आवद |

उदाहरण:- उप+अध्यक्ष= उपाध्यक्ष, उप+वनवेश= उपवनवेश, उप+वेद= उपवेद,


उप+संहार= उपसंहार, उप+कार= उपकार, उप+गृह= उपग्रह, उप+मंत्री= उपमंत्री,
उप+हार= उपहार, उप+दे श= उपदे श, उप+वन= उपवन, उप+नाम= उपनाम,
उप+चार= उपचार, उप+सगय= उपसगय, उप+योग= उपयोग, उप+भोग= उपभोग,
उप+भेद= उपभेद, उप+युक्त= उपयुक्त आवद।

7. अवि:- अवध का अर्य होता है श्रेष्ठ, प्रधान, ऊपर आवद |

उदाहरण : अवध+राज= अवधराज, अवध+आत्म= अध्यात्म, अवध+वनयम= अवधवनयम,


अवध+मास= अवधमास, अवध+कृत= अवधकृत, अवध+सूचना= अवधसूचना, अवध+पवत=
अवधपवत, अवध+नायक= अवधनायक, अवध+मान= अवधमान, अवध+ग्रहि= अवधग्रहि,
अवध+वक्ता= अवधवक्ता आवद।

8. आ:- आ का अर्य होता है ओर, सीमा, तक, से, समेत आवद ।

उदाहरण : आ+मुि= आमुि, आ+रोहि= आरोहि, आ+जन्म= आजन्म, आ+यात=


आयात, आ+गमन= आगमन, आ+जीवन= आजीवन, आ+मरि= आमरि,
आ+चरि= आचरि, आ+लेि= आले ि, आ+हार= आहार, आ+भर= आभार,
आ+शं का= आशं का आवद।

9. प्रवत:- प्रवत का अर्य होता है ववरुद्ध, प्रत्येक, सामने, बराबरी, उिा, हर एक आवद ।

उदाहरण: प्रवत+वषय= प्रवतवषय, प्रवत+अपयि= प्रत्यपिय , प्रवत+द्वं द्वी= प्रवतद्वं दी,


प्रवत+शोध= प्रवतशोध, प्रवत+रोधक= प्रवतरोधक, प्रवत+घात= प्रवतघात, प्रवत+ध्ववन=
प्रवतध्वनी, प्रवत+आशा= प्रत्याशा, प्रवत+कूल= प्रवतकूल, प्रवत+कूल= प्रवतकार,
प्रवत+एक= प्रत्येक, प्रवत+वहं सा= प्रवतवहं सा, प्रवत+रूप= प्रवतरूप, प्रवत+वनवध=
प्रवतवनवध, प्रवत+ईक्षा= प्रतीक्षा, प्रवत+उत्तर= प्रत्युत्तर, प्रवत+क्षि= प्रवतक्षि, प्रवत+दान=
प्रवतदान, प्रवत+अक्ष= प्रत्यक्ष आवद।

10. उत् :- उत् का अर्य होता है श्रेष्ठ, ऊपर, ऊाँचा आवद।

उदाहरण: उत् +पीडन= उत्पीडन, उत् +कंठा= उत्कंठा, उत् +कृष्ट= उत्कृष्ट,
उत् +कषय= उत्कषय, उत्+र्ान= उत्थान आवद।

11. प्र:- प्र का अर्य होता है आगे, अवधक, ऊपर आवद |


उदाहरण: प्र+विया= प्रविया, प्र+वाह= प्रवाह, प्र+ख्यात= प्रख्यात, प्र+गवत= प्रगवत,
प्र+पंच= प्रपंच, प्र+लाप= प्रलाप, प्र+कोप= प्रकोप, प्र+दान= प्रदान, प्र+चार= प्रचार,
प्र+हार= प्रहार, प्र+प त्र= प्रप त्र, प्र+आरं भ=प्रारं भ, प्र+योग= प्रयोग, प्र+बल= प्रबल
आवद।

12. वि: वव का अर्य होता है वववशष्ट, वभन्न, हीनता, असमानता, अभाव आवद ।

उदाहरण: वव+वाद= वववाद, वव+शेष= ववशे ष, वव+स्मरि= ववस्मरि, वव+भाग=


ववभाग, वव+कार= ववकार, वव+मुि= ववमुि, वव+िल= वविल, वव+संगवत= ववसंगवत,
वव+पक्ष= ववपक्ष, वव+दे श= ववदे श, वव+कल= ववकल, वव+योग= ववयोग, वव+नाश=
ववनाश, वव+जय= ववजय, वव+ज्ञान= ववज्ञान, वव+हार= ववहार, वव+ख्यात=
ववख्यात,वव+धान= ववधान आवद |

13. सह:- सह का अर्य होता है सार्।

उदाहरण: सह+उदर= सहोदर, सह+पाठी= सहपाठी, सह+गान= सहगान, सह+चर=


सहचर, सह+योग= सहयोग, सह+मत= सहमत आवद।

14. पर:- पर का अर्य होता है अन्य आवद।

उदाहरण: पर+दे श= परदे श, पर+लोक= परलोक, पर+आधीन= पराधीन आवद।

15. सु:- सु का अर्य है अच्छा, भला आवद |

उदाहरण : सु+बोि= सुबोध, सु+पुत्र= सुपुत्र, सु+गंध= सुगंध, सु+गवत= सुगवत,


सुबोध, सुयश, सुमन, सुलभ, सुअवसर, सूखक्त, सुदूर, सुजन, सुवशवक्षत, सुपात्र, सुगवठत,
सुहाग, सुकमय, सुकृत, सुभावषत, सुकवव, सुरवभ आवद।

16. सम् उपसगय : सम् का अर्य होता है अच्छा, पूियता, संयोग, उत्तम, सार् आवद ।

उदाहरण: सम्+मान= सम्मान, सम्+कल्प= संकल्प, सम्+चय= संचय, सम्+तोष=


सिोष, सम्+गठन= संगठन, सम् +चार= संचार , सम्+हार= संहार, सम्+शय=
संशय, सम्+रक्षा= संरक्षा, सम्+कल्प= संकल्प, सम्+गृह= संग्रह, सम्+न्यास=
संन्यास, सम्+रक्षि= संरक्षि, सम्+ग्राम= संग्राम, सम्+भव= संभव, सम्+तु ष्ट= संतुष्ट,
सम्+चालन= संचालन, सम्+ताप= संताप, सम्+भावना= संभावना, सम्+योग= संयोग,
सम्+शोधन= संशोधन आवद।

17. अि:- अव का अर्य है हीन, बुरा, अनादर, पतन ।


उदाहरण: अव+नवत= अवनवत, अव+धारिा= अवधारिा, अव+गवत= अवगवत,
अव+लोकन= अवलोकन, अव+तरि= अवतरि, अव+गत= अवगत, अव+नत=
अवनत, अव+सान= अवसान, अव+रोहि= अवरोहि, अव+गिना= अवगिना,
अव+शे ष= अवशे ष, अव+गुि= अवगुि आवद।

18. परर:- परर का अर्य होता है चारों ओर, पास, आसपास।

उदाहरण: परर+माजगन= पररमाजय न, परर+हार= पररहार, परर+िमि= पररिमि,


परर+भ्रमि= पररभ्रमि, परर+धान= पररधान, परर+हास= पररहास, परर+श्रम= पररश्रम,
परर+वतय न= पररवतय न, परर+ईक्षा= परीक्षा, परर+पूिय= पररपूिय, परर+पाक= पररपाक,
परर+जन= पररजन, परर+कमाय = पररिमा, परर+पूिय= पररपूिय आवद।

19. वनर् :- वनर् का अर्य होता है वनषेध, रवहत, वबना आवद ।

उदाहरण: वनर् +आहार= वनराहार, वनर् +अक्षर= वनरक्षर, वनर् +आदर= वनरादर,
वनर् +अहं कार= वनरहं कार, वनर् +आवमष= वनरावमष, वनर् +जर= वनजय र, वनर् +धन=
वनधयन, वनर् +यात= वनयाय त, वनर् +दोष= वनदोष, वनर् +अवलंब= वनरवलम्ब, वनर् +अंजन=
वनरं जन, वनर् +आशा= वनराशा, वनर् +गुि= वनगुयि, वनर् +भय= वनभयय, वनर् +वास=
वनवाय स , वनर् +दोष= वनदोष, वनर् +जीव= वनजीव, वनर् +मूल= वनमूयल, वनर् +बल= वनबयल,
वनर् +मल= वनमयल, वनर् +जन=वनजय न, वनर् +अपराध= वनरपराध आवद।

20. कु:- कु का अर्य होता है बुरा, हीनता आवद ।

उदाहरण: कु+पुत्र= कुपुत्र, कु+रूप= कुरूप, कु+कमय= कुकमय, कु+मवत= कुमवत,


कु+योग= कुयोग, कु+कृत्य= कुकृत्य, कु+ख्यात= कुख्यात, कु+पात्र= कुपात्र आवद।

21. दु र्:- दु र् का अर्य होता है कवठन, बुरा, ववपरीत, दु ष्ट, हीन आवद।

उदारहण: दु र्+अवभसंवध= दु रवभसंवध, दु गुयि, दु दयशा, दु घयटना, दु भाय वना, दु रुह, दु रुखक्त,
दु जयन, दु गयम, दु बयल, दु लयभ, दु रावथर्ा, दु दयमनीय, दु भाय ग्य, दु राशा, दु राग्रह, दु राचार,
दु र्+अवथर्ा= दु रवथर्ा, दु र्+उपयोग= दु रुपयोग आवद।

2. वहं दी के उपसगग

वहन्दी भाषा के भी कुछ अपने उपसगय होते हैं । जो वक इस प्रकार से हैं :-

1. दु /दु र्:- दु /दु र्:- का अर्य होता है बुरा, हीन, दो, ववशे ष, कम आवद |

उदाहरण: दु जयन , दु बयल , दु साध्य, दु लत्ती, दु नाली, दु गुना आवद।

2. अि:- अध का अर्य होता है आधा।


उदाहरण: अधमरा, अधकचरा, अधजला, अधखिला, अधगला, अधनंगा आवद।

3. अन:- अन का अर्य होता है अभाव, वनषेध आवद ।

उदाहरण: अनकहा, अनदे िा, अनमोल, अनपढ़, अनहोनी, अनचाहा, अनसुना, अनदे िी
आवद।

4. उन:- उन का अर्य होता है एक कम ।

उदाहरण: उनतीस, उनचास, उनसठ, उनहत्तर, उनतालीस, उन्नीस, उन्नासी आवद ।

5. कु:- कु का अर्य होता है बुरा, हीन आवद |

उदाहरण: कुचाल, कुचि, कुसंगवत, कुकमय, कुरूप, कुपुत्र, कुरीवत, कुख्यात आवद।

6. औ:- औ का अर्य होता है हीन, वनषेध आवद ।

उदाहरण: औगुन, औघड, औतार आवद।

7. अ:- अ का अर्य होता है अभाव, वनषेध, कमी आवद ।

उदाहरण: अछु ता, अर्ाह, अटल, अचेत असफ़ल आवद ।

8. वन:- वन का अर्य होता है रवहत, अभाव, कमी आवद ।

उदाहरण: वनडर, वनहत्था, वनहाल आवद।

9. चौ:- च का अर्य होता है चार ।

उदाहरण: च पाई, च पाया, च राहा, च कन्ना, च मासा, च मुिा, च पाल आवद।

10. वत:- वत का अर्य तीन के संदभय में वलया जाता है |

वतरं गा , वतराहा , वतपाई , वतकोना , वतमाही आवद।

3. उदू ग भाषा के उपसगग :

उदू य एवं फ़ारसी के भी कुछ उपसगय हैं , जो वहन्दी में प्रयुक्त होते हैं :-

1.दर:- दर का अर्य होता है में , मध्य में आवद ।

उदाहरण: दरवकनार, दरअसल, दरकार, दरअसल आवद।


2. कम:- कम का अर्य होता है र्ोडा, हीन, अल्प।

उदाहरण: कमजोर, कमउम्र, कमअक्ल, कमवसन आवद।

3. ला:- ला का अर्य होता है नहीं, रवहत आवद ।

उदाहरण: लाइलाज, लाजवाब, लापरवाह, लापता, लावाररस, लाचार, लाजवाल आवद।

4. ब:- ब का अर्य होता है के सार्, और, अनुसार आवद ।

उदारहण: ब+ख़ूबी= बख़ूबी, बद लत, बदिूर, बगैर, बनाम, बमुखिल आवद।

5. बे:- बे का अर्य होता है वबना, रवहत आवद ।

उदाहरण: बे+नाम= बेनाम, बेपरवाह, बेईमान, बेरहम, बेहोश, बेइज्जत, बेचारा,


बेवकूि, बेबुवनयाद, बेवक्त, बेकसूर, बेनामी, बेशक आवद।

6. बा:- बा का अर्य होता है सार्, से, सवहत आवद।

उदाहरण: बा+क़ायदा= बाक़ायदा, बाइज्जत, बाअदब, बामुलावहजा आवद।

7. बद :- बद का अर्य होता है बुरा, हीनता आवद ।

उदाहरण: बदनाम, बदमाश, बदबू, बदसूरत, बदवकस्मत, बदहजमी, बदमजा,


बदहवास, बदनीयत, बदकार आवद।

8. ना:- ना का अर्य होता है अभाव।

उदाहरण: ना+लायक= नालायक, नाकारा, नाराज, नासमझ, नाबावलक, नापसंद,


नामुमवकन, नामुराद, नाकामयाब, नाकाम, ना+पाक= नापाक आवद।

9. गै र:- गैर का अर्य होता है वनषेध, नहीं आवद ।

उदाहरण: गैरकानूनी, गैरसरकारी, गैरवजम्मेदार, गैरमुल्क, गैरमुमवकन, गैरमुनावसब


आवद।

10. हम:- हम का अर्य होता है आपस में, समान, सार् वाला आवद ।

उदाहरण: हम+राज= हमराज, हम+ददय = हमददय , हमजोली, हमनाम, हमउम्र,


हमदम, हमददी, हमराह, हमसिर आवद।

11. हर:- हर का अर्य होता है सब, प्रत्येक आवद ।


उदाहरण: हरवक्त, हररोज, हरएक, हरवदन, हरबार आवद।

12. िुश:- ख़ुश का अर्य होता है अच्छा ।

उदाहरण: ख़ुशनसीब, ख़ुशवमजाज, ख़ुशहाल, ख़ुशिबरी, ख़ुशवकस्मत आवद।

13. सर:- सर का अर्य होता है मुख्य, प्रमुि, प्रधान आवद ।

उदाहरण: सर+ताज= सरताज, सरदार, सरपंच, सरकार आवद।

14. अल:- अल का अर्य होता है वनवश्चत, अंवतम, आवख़री आवद ।

उदाहरण: अलतवकया, अलसुबह, अलबत्ता, अलबेला, अलववदा आवद।

4. अंग्रेजी के उपसगग :

1. हाफ:- हाि का अर्य होता है आधा, अधूरा आवद ।

उदाहरण: हािपेंट, हािबाडी, हािवटकट हािपेंट आवद।

2. सब:- सब का अर्य होता है अधीन, नीचे, उप आवद |

उदाहरण: सब-स्टाफ़, सब इं स्पेक्टर, सबजज, सबकमेटी, सबरवजस्टर आवद।

3. चीफ:- चीि का अर्य होता है प्रमुि, प्रधान आवद |

उदाहरण: चीि इं जीवनयर, चीि सेिेटरी, चीि वमवनस्टर आवद।

4. जनरल:- जनरल का अर्य होता है प्रधान , सामान्य आवद |

उदाहरण: जनरल मैनेजर, जनरल सेिेटरी, जनरल नॉलेज आवद।

5. है ड:- है ड का अर्य होता है मुख्य, प्रधान आवद |

उदाहरण: हैडमास्टर, है डक्लकय, है डऑविस, है डकां स्टेबल, है डक्वाटर आवद।

6. वडप्टी:- वडप्टी का अर्य होता है सहायक, उप आवद |

उदाहरण: वडप्टी स्पीकर, वडप्टी कले क्टर, वडप्टी रवजस्टरार आवद।

7. िाइस:- वाइस का अर्य होता है सहायक, उप आवद |

उदाहरण: वाइस चां सलर, वाइस प्रेवजडें ट, वाइस वप्रंवसपल आवद।


प्रत्यय:- अथग और पररभाषा-

िे शब्दांश, जो वकसी शब्द के अंत में लगकर उसके अथग में पररितग न या विशेषता
ला दे ते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं |

जैसे:-

भूल+अक्कड = भुलक्कड, वमठाई+वाला= वमठाईवाला |

प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं :

1. कृत प्रत्यय
2. तखद्धत प्रत्यय

1. कृत प्रत्यय :

● ऐसे प्रत्यय जो विया (धातु रूप) के बाद लगते हैं एवं उनके लगने से दू सरे शब्दों
की रचना हो जाती है ।
● इन प्रत्ययों के लगाने (योग) से जो शब्द बनते हैं वे कृदं त शब्द कहलाते हैं ।

कृत प्रत्यय के उदाहरण:

● तै र + आक= तै राक

इस उदाहरि में हम दे ि सकते हैं वक तै र मुख्य शब्द है और आक एक प्रत्यय है । जब


मुख्य शब्द एवं प्रत्यय को एक सार् वमलाया जाता है तब यह नया शब्द तै राक बन जाता
है । इस प्रत्यय के लगने से शब्द के रूप और अर्य में पररववतयत हो रहा है ।

● लू ट + एरा= लू टेरा

इस उदाहरि में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ लू ट मुख्य शब्द है । एरा एक प्रत्यय है जो


शब्दों के बाद लगाया जाता है । जब हमने लू ट के सार् एरा प्रत्यय लगाया तो विर शब्द
बदलकर लू टेरा हो गया है , वजसका मतलब मुख्य शब्द से अलग हो गया है । प्रत्यय मूल
शब्द एवं उसके अर्य , दोनों को पररववतय त कर दे ता है ।

कृत प्रत्यय के भेद :

कृत प्रत्यय के पां च भेद होते हैं :


1. कतृय वाचक कृदं त
2. कमयवाचक कृदं त
3. करिवाचक कृदं त
4. भाववाचक कृदं त
5. वियावाचक कृदं त

1. कतृय वाचक कृदं त प्रत्यय-

ऐसा शब्द जो कृत प्रत्यय से बना हआ हो एवं उससे कताय का पता चले , ऐसे प्रत्यय
कतृय वाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते हैं । जैसे:

कतृग िाचक कृदं त प्रत्यय के उदाहरण:

● अक = लेिक, नायक, गायक, पाठक आवद |

वदए गए उदाहरिों में जै सा वक हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले शब्द र्ा लेि ले वकन
जब इस शब्द में अक प्रत्यय वमलाया गया तो यह बन गया ले िक, वजसका अर्य होता
है - वलिने वाला | इस शब्द से हमें कताय यानी कायय करने वाले का पता चल रहा है।
अतः यह कत्तुयवाचक कृदं त प्रत्यय के के रूप में मान जाएगा ।

● अक्कड = भुलक्कड, घुमक्कड, वपयक्कड


● आक = तै राक, लडाक
● आलू = झगडालू
● आकू = लडाकू
● आड़ी = खिलाडी, अगाडी, अनाडी

जै सा वक इन सभी उदाहरि में दे ि हम सकते हैं वक यहााँ पहले शब्द वभन्न होते हैं । जै से
ही इनमें ये प्रत्यय लगाए जाते हैं , इनके शब्द एवं अर्य दोनों में पररवतय न आ जाता है।
अतः ये उदाहरि कतृयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे |

● इअल = अवडयल, मररयल, सवडयल


● एरा = लू टेरा, बसेरा
● ऐया = गवैया, नचैया, िेवैया
● ओड़ा = भगोडा
● िाला = वमठाईवाला, पढनेवाला, वलिनेवाला
● हार = रािनहार, होनहार, रािनहार, पालनहार
● ता = दाता, गाता, कताय , ज्ञाता

इन सभी उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक जब वबना प्रत्यय के इन शब्दों को पढ़ा


जाता है , तब इन शब्दों का अर्य वभन्न होता है । जै से- पढ़ना शब्द हमें एक विया के बारे
में बता रहा है । हमें इससे एक विया का बोध हो रहा है । ले वकन जब इस विया शब्द
में िाला प्रत्यय लगाया जाता है , तो इसका अर्य वबलकुल वभन्न हो जाता है । अब यह शब्द
हमें पढ़ाई करने वाले के बारे में बता रहा है । इस शब्द से हमें कताय के बारे में पता चल
रहा है । अतः यह उदाहरि कतृयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएगा।

2. कमगिाचक कृदं त प्रत्यय:

वजन शब्दों में प्रत्यय लगने के बाद वह शब्द कमय का बोध हो, वह कमयवाचक कृदं त
प्रत्यय कहलाता है ।

जैसे:

● औना = वबछ ना, खिल ना

इस उदाहरि में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले जो मुख्य शब्द र्ा, वह वकसी विया
का बोध करा रहा र्ा | जै से िेलना, वबछाना आवद। जब उन शब्दों में प्रत्यय लगाए गए
तो इनका अर्य और रूप दोनों बदल गए | अब ये शब्द कमय का बोध करा रहे हैं , विया
का नहीं। अतः यह उदाहरि कमयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएगा।

● ना = सूाँघना, पढना, िाना


● नी = लेिनी, छलनी
● गा = गाना, िाना ।

इन उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले जो शब्द र्े , वे हमें वकसी ना वकसी
विया का बोध करा रहे र्े | जै से सूाँघ आवद। इनसे हमें विया का पता चल रहा र्ा।
ले वकन जै से ही हमने उन शब्दों में प्रत्यय लगाए, उनका अर्य ही बदल गया। अब ये शब्द
विया का बोध कराने के थर्ान पर कमय का बोध करा रहे हैं । अतः ये
उदाहरि कमयवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे ।

3. करणिाचक कृदं त प्रत्यय:

जब कोई प्रत्यय वकसी शब्द के सार् लग जाते हैं एवं उन शब्दों से विया को करने के
साधन अर्ाय त् करि का बोध होता है , तो ये प्रत्यय करिवाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते
हैं ।

जैसे:

● आ = भूला, झूला
इस उदारि में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले जो मुख्य शब्द र्ा, वह हमें विया का
बोध करवा रहा र्ा । जैसे:- भटक, भूल, झूल आवद। ले वकन जै से ही इन शब्दों में प्रत्यय
लगाए गए, इन शब्दों का अर्य वभन्न हो गया। जै से अब झलू का झल ू ा हो गया जो हमें
वकसी साधान अर्ाय त करि का बोध करवा रहा है । प्रत्यय लगते शब्द पररववतय त हो गए।
अतः ये उदाहरि करिवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे।

करणिाचक कृदं त प्रत्यय के कुछ अन्य उदाहरण:

● ऊ = झाडू
● ई = रे ती, िााँ सी, भारी, धुलाई
● न = बेलन, झाडन, बंधन
● नी = ध क ं नी, करतनी, सुवमरनी, छलनी, िूंकनी, चलनी

इन उदाहरिों में हमने दे िा वक यहााँ पहले शब्द हमें विया का बोध करा रहे र्े ले वकन
जब इनमें प्रत्यय लगाया गया तो विर ये पररववतय त हो गए एवं करि का बोध कराने लगे
। अतः ये उदाहरि करिवाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे ।

4. भाििाचक कृदं त प्रत्यय :

वे प्रत्यय जो वकसी शब्द में जु डने के बाद उस शब्द को भाववाचक संज्ञा में बदल दे ते हैं ,
वे भाववाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते हैं ।

जैसे:

● अन = लेिन, पठन, गमन, मनन, वमलन


● वत = गवत, रवत, मवत
● अ = जय, ववचार, मार, लू ट, तोल
● आिा = भुलावा, छलावा, वदिावा, बुलावा, चढावा
● आई = कमाई, चढाई, लडाई, वसलाई, कटाई, वलिाई
● आहट = घबराहट, वचल्लाहट, कडवाहट, टकराहट

इन सब उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक पहले जो मूल शब्द र्े , उनसे हमें वकसी
विया का बोध हो रहा र्ा। जै से कमाना, लडना, वसलना आवद। विर हमने इनमें प्रत्यय
को जोडा। जै से ही इनमें प्रत्यय को जोडा गया तो विर इन शब्दों का रूप पररववतय त हो
गया। अब ये भाववाचक संज्ञा बन गए हैं ।

जै से ले ि का ले िन, घबराना का घबराहट आवद। ये भाववाचक संज्ञा का बोध करा


रहे हैं । अतः ये उदाहरि भाववाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे |

● औती = मन ती, विर ती, चुन ती, कट ती


● अंत = वभडं त, गढ़ं त
● आिट = सजावट, बनावट, रुकावट, वमलावट
● ना = वलिना, पढना
● आन = उडान, वमलान, उठान, चढ़ान
● आि = चढ़ाव, घुमाव, कटाव
● आिट = तरावट, बनावट, सजावट, वलिावट, वमलावट

इन शब्दों में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ मूल शब्द से हमें विया का बोध हो रहा र्ा,
ले वकन जब इन शब्दों के सार् प्रत्यय जोडते हैं तो इनका नया शब्द एवं अर्य वभन्न हो गए
हैं । अब ये शब्द हमें भाववाचक संज्ञा का बोध करा रहे हैं ।

5. वक्रयािाचक कृदं त प्रत्यय :

वकसी प्रत्यय से बने हए ऐसे शब्द वजनसे हमें वकसी विया के होने का पता चले , वे
वियावाचक कृदं त प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे:

● ता = डूबता, बहता, चलता


● या = िोया, बोया
● आ = सूिा, भूला, बैठा
● ना = द डना, सोना, चलना
● कर = िाकर, आकर, जाकर, दे िकर

इन सभी उदाहरिों में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ पहले शब्द हमें विया का बोध नहीं
करा रहे हैं । मुख्य शब्द हमें पहले विया के बारे में नहीं बता रहे र्े । ले वकन जब उन
शब्दों में प्रत्यय जोडे गए, तब ये शब्द पररववतयत हो गए एवं अब ये हमें विया का बोध
करा रहे हैं । अतः ये उदाहरि वियावाचक कृदं त प्रत्यय के अंतगयत आएाँ गे।

2. तखित प्रत्यय

● जब संज्ञा, सवयनाम, ववशे षि के अंत में प्रत्यय लगते हैं तो वे तखद्धत प्रत्यय
कहलाते हैं ।
● इन तखद्धत प्रत्ययों से वमलकर जो शब्द बनते हैं , वे शब्द तखद्धतांत प्रत्यय शब्द
कहलाते हैं ।

जैसे;-

● चतु र + आई : चतु राई


इस उदाहरि में हम दे ि सकते हैं वक यहााँ मूल शब्द ववशे षि शब्द र्ा, ले वकन विर
हमने इस ववशे षि में आई प्रत्यय लगाया तो यह शब्द पररववतयत हो गया। इसवलए यह
उदाहरि तखद्धत्त प्रत्यय के अंतगयत माना जाएगा |

कुछ अन्य उदाहरण :

● पछताना, जगना, पंवडत, चतु र, ठाकुर+आइ = ठकुराई, पछताई, जगाई, चतु राई
● पखण्डत, ठाकुर + आइन = पंवडताइन, ठकुराइन आवद ।
● पंवडत, ठाकुर, लड, चतु र, च डा ,अच्छा + आई = पंवडताई, ठकुराई, लडाई,
चतु राई, च डाई , अच्छाई आवद ।
● सेठ, न कर + आनी = सेठानी, न करानी आवद ।
● बहत, पंच, अपना +आयत = बहतायत, पंचायत, अपनायत आवद ।
● लोहा, सोना+आर \आरा = लोहार, सुनार, गाँवार आवद ।
● डाका, लाठी+ऐत = डकैत, लठै त आवद ।
● अाँध, सााँ प, बहत, मामा, कााँ सा, लू ट+एरा = अाँधेरा, साँपेरा, बहते रा, ममेरा, कसेरा,
लू टेरा आवद।
● िाट, पाट, सााँ प+ओला = िटोला, पटोला, साँपोला आवद ।
● बाप, मान+औती = बप ती, मन ती आवद ।
● वबल्ला, काजर + औटा = वबल टा, कजर टा आवद ।
● धम, चम, बैठ, बाल, दशय , ढोल+क = धमक, चमक, बैठक, बालक, दशय क,
ढोलक आवद।

23. पयागयिाची शब्द

प्रश्न – पयागयिाची शब्द वकसे कहते हैं ?

उत्तर – वे शब्द जो अर्य की दृवष्ट से समान होते हैं , उन्ें पयाय यवाची शब्द कहते हैं ।
इनका अर्य आपस में वमलता-जुलता है , वकंतु ये एक दू सरे के थर्ान पर प्रयोग वकए जा
सकते हैं । कुछ शब्द और उनके पयाय यवाची शब्द वदए जा रहे हैं |

उदाहरि :-

शब्द पयागयिाची शब्द


अमृत अवमय, सुधा, पीयूष, अमी।
अवतवर् अभ्यागत, मेहमान, पाहना, आगिुक।
असुर दनुज, दानव, दै त्य, राक्षस, वनशाचर, िल, रजनीचर।
अवग्न हताशन, ववह्न, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला।
अपमान अनादर, उपेक्षा, वतरस्कार, वनरादर।।
अन्धकार तम, वतवमर, तवमस्र, तवमस, तमर, तारीक।
अश्व घोडा, वाहन, हय, बाजी, घोटक, सैंधव, तु रंग।
अहं कार अवभमान, गवय, घमण्ड, मद, दपय।
आकाश अम्बर, आसमान, व्योम, नभ, गगन।
आाँ ि दृग, लोचन, चक्षु, अवक्ष, नेत्र, नयन।।
आनन्द प्रसन्नता, हषय, उल्लास, िुशी।
आम आम्र, रसाल, सहकार, अमृतिल।
आभूषि गहना, भूषि, अलंकार, जे वर
इच्छा अवभलाषा, चाह, मनोरर्, कामना, आकां क्षा, लालसा।
इन्द्र दे वेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरपवत, पुरन्दर, दे वराज, शचीपवत।
ईश्वर ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश।
उदर पेट, जठर।
उन्नवत उदय, वृखद्ध, उत्कषय, उत्थान।
उद्ान उपवन, कुसुमाकर, बगीचा, बाग, वावटका।
कोयल वपक, कोवकल, परभृत, वसिदू त।
कमल शतदल, पुण्डरीक, उत्पल, वाररज, कोकनद, सरवसज, पद्म, नवलन,
राजीव, सरोज, पंकज, अरववन्द, अम्बुज, जलज, सरोरुह, कंज, नीरज।

कपडा वि, पट, वसन, चीर, अम्बर।।


वकनारा तट, तीर, कगार, कूल।
कृष्ण घनश्याम, मोहन, केशव, माधव, वासुदेव, वगररधर, गोपाल, मुरारर कर्ा
कहानी, आख्यान, गल्प, आख्यावयका।।
कान किय , श्रोत्र, श्रवि।
िग पक्षी, पिेरू, ववहं ग, वद्वज, वचवडया
गिेश गिपवत, भालचन्द्र, लम्बोदर, गजानन, ववनायक।
गाय ग , सुरवभ, धेनु।
घर सदन, धाम, गेह, आयतन, आलय, आगार, भवन, गृह, वनकेतन।
चााँ द वनशाकर, वहमां शु, राकेश, वनवशपवत, कलावनवध, सुधाधर, चन्द्र, चन्द्रमा,
ववधु, सोम, शवश, शशांक, मयंक, इन्दु , रजनीश।
जल पय, सवलल, पानी, जीवन, तोय, अम्बु, वारर, उदक, नीर।
झण्डा ध्वज, पताका, वनशान, केतु ।
24. विलोम शब्द

प्रश्न- विलोम शब्द वकसे कहते हैं ?

उत्तर :- परस्पर ववपरीत अर्य प्रकट करने वाले शब्द ववलोम या ववपरीतार्य क शब्द
कहलाते हैं ।

उदाहरि :-

शब्द ववलोम
नीरस सरस
मन मुिर
उपेक्षा अपेक्षा
वविार संक्षेप
प्रत्यक्ष परोक्ष
गररमा लवघमा
शाश्वत नश्वर
म खिक वलखित
अनार् सनार्
धनवान अवकंचन
सकारात्मक नकारात्मक
अवनी (धरती) अम्बर
सम्मुि ववमुि
प्रारम्भ (अर्) इवत
सामूवहक व्यखक्तगत
अंत आवद
अचर चर
अपकीवतय कीवतय
ऊसर उवयरा
ज्येष्ठ कवनष्ठ
नाखिक आखिक
पररश्रमी आलसी
प्रवतकूल अनुकूल
राजतं त्र गितं त्र
मधुर कटु
यर्ार्य आदशय
ववष अमृत
वृद्ध तरुि
सज्जन दु जयन
सपूत कपूत
सरल कवठन

25. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

1 वजजीववषा
.
A.जीवन से मुखक्त की इच्छा
B.जीवन की इच्छा
C.जीववका कमाने की इच्छा
D.वकसी चीज़ को पाने की तीव्र
उत्कंठा

2 पावर्यव
.
A.वजसका संबंध मनुष्यों से
हो
B.वजसका संबंध पृथ्वी से
हो
C.वजसका संबंध ईश्वर से हो
D.वजसका संबंध प्रर्ा से हो

3 यायावर
.
A.वजसके जीवन का कोई वनवश्चत उद्दे श्य न हो
B.वकसी भी विु को अकस्मात प्रिुत करने
वाला
C.एक थर्ान पर वटककर न रहने वाला
Dइधर-उधर वनरुद्दे श्य घूमने वाला

4 रवव “ईश्वर को न मानने वाला मनुष्य” है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.सनार्
B.पंवडत
C.आखिक
D.नाखिक

5 ईश्वर का “कोई आकार नहीं होता” है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.सरोकार
B.साकार
C.वनराकार
D.इनमें से कोई नहीं

6 “आाँ िों के सामने ” घवटत घटना पर ववश्वास तो करना ही पडे गा | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक
. शब्द का चयन कीवजए -
A.प्रत्यक्ष
B.परोक्ष
C.प्रारूपत:
D.प्रत्येक

7 भारतीय की “बुरी दशा” दे िकर गां धीजी का मन िववत हो गया | रे िां वकत वाक्ां श के वलए
. एक शब्द का चयन कीवजए -
A.दु व्ययवहार
B.दीनता
C.दु दयशा
D.दु वदय न

8 “दोपहर के समय” शालू आराम कर रही र्ी | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.पूवाय ह्न
B.मध्याह्न
C.कावलग्रह
D.अपराह्न

9 वैभव को उस ववद्ालय में “इखिहान लेने वाला” बनकर जाना है |रे िां वकत वाक्ां श के वलए
. एक शब्द का चयन कीवजए -
A.ववशेषज्ञ
B.परीक्षक
C.अध्यापक
D.समन्वयक

10 ममता “कम बोलती” है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन


. कीवजए -
A.समभाषी
B.मृतभाषी
C.वमतभाषी
D.मृदुभाषी

11 वववेक ने “श्रेष्ठ कुल में जन्म” वलया है | रे िां वकत वाक्ां श के वलए एक शब्द का चयन
. कीवजए -
A.कुलीन
B.समकालीन
C.कुलश्रेष्ठ
D.कुलभूषि

12 जो ममत्व में रवहत


. हो
A.वनरामय
B.वनमोही
C.वनमयम
D.वनष्ठु र

13 जो वकसी का वहत चाहता


. हो
A.वहतकारी
B.अवहतकारी
C.वहतैषी
D.वहतभाषी

14 जानने की इच्छा रिने


. वाला
A.ववज्ञ
B.वजज्ञासु
C.ज्ञानी
D.ऋवष
15 पलकों को वगराए
. बगैर
A.अपलक
B.उन्मीवलत
C.वनमीवलत
D.वनवनयमेष

मानक रूप

प्रश्न 1.
वर्तनी की दृष्टि से मानक शब्द है
(क) पक्का
(ख) पक्का
(ग) पकका
(घ) पका।
प्रश्न 2.
मानक शब्द है
(क) हं सना
(ख) हँसना
(ग) हसना
(घ) हसन्ना।
प्रश्न 3.
‘द्वारका’ शब्द का मानक रूप है
(क) द्वाररका
(ख) द्वररका
(ग) दवारका
(घ) द्वारका।
प्रश्न=4. ननम्न में से कौन सा शब्द मानक है ।
(अ) उन्नर्ी
(ब) ऊन्नर्ी
(स) उनन्र्ी
(द) उन्ननर्
प्रश्न=5. ननम्न में से कौन सा शब्द मानक है ।
(अ) संसाररक
(ब) सांसाररक
(स) संस्कारीक
(द) सांसारीक

प्रश्न=6. ननम्न में से कौन सा शब्द मानक है ।


(अ) एर्ीहाससक
(ब) इर्ीहाससक
(स) ऐनर्हाससक
(द) कोई नहीं

प्रश्न=7. ननम्न में से शुद्ध मानक है ?


(अ) दटु कर
(ब) दस
ु कर
(स) दश
ु कर
(द) दष
ु कर

8. प्रकाराि से मेरे कर्न का अवभप्राय आपसे वमलता


है
A.प्राकारािर
B.प्रकारािर
C.प्राकारनतर
D.प्रकाराि

9. मनुष्य वजसको सामान्य समझता है उसकी सेवा में उसे आनंद प्राप्त करता
है
A.सामान्य
B.सम्मान्य
C.समान्य
D.सम्मान्य

10 जहााँ आत्मीयता हो वहां ववचार वववनयन में उपचाररकता नहीं


. होती
A.औपचाररकता
B.उपचारीकता
C.उपचाररकता
D.औपचारीकता

11 वदन रात अध्ययन करके भी वह प्रर्म श्रे िी प्राप्त न कर


. सका
A.आध्यन
B.अध्ययन
C.अध्धय्यन
D.कोई त्रुवट नहीं

12 वदनकर राष्टरीय भावधारा के ओजस्वी कववयों में अगरगन्य


. है
A.अग्रगन्य
B.अग्रगण्य
C.अगगयन्य
D.अगयग्न्य

1 दे श सेवा के मागय पर चलते हए उन्ोंने व्यखक्तक कष्टों की वबल्कुल परवाह नहीं की


3
.
A.वैयखक्तक
B.वैयक्तीक
C.वैयकतीक
D.व्यक्तीक

उत्तर कंु जी

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द


1=ब 9= ब
2= ब 10= स
3= स 11= अ
4= ड 12= स
5=स 13= स
6= अ 14= ब
7= स 15 = अ
8= ब

मानक रूप
1= क 8= अ
2= 2 9= अ
3= 4
5= द 10 = ब
6= ब 11 = अ
7= स 12 = ड
13 = ब
14 = अ

--------------------------------समाप्त------------------------------------
धन्यवाद

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