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L1 Yog Aur Yougic Granth
L1 Yog Aur Yougic Granth
यनू िट-1
योग एवं
यौगगक ग्रन्थ
यनू िट-1: योग एवं यौगगक ग्रन्थ
योग: एक परिचय
• प्राचीनकाल से ही योग, भारतीय संस्कृतत का अभभन्न
अंग रहा है , जो हमें हमारी परम्परा से विरासत में भमला
है ।
• योग, न केिल हमारी संस्कृतत की अमल् ू य धरोहर है ,
अवपतु स्िस्थ रहने के भलए एक अनमोल उपहार है जो
मनुष्य को जीिन जीने की कला भसखाता है ।
• योग अब मात्र आश्रमों और साधस ु ंतों तक ही सीभमत नहीं
रह गया है बल्ल्क वपछले कुछ दशकों में योग ने हमारे
दै तनक जीिन में अपना स्थान बना भलया है ।
यनू िट-1: योग एवं यौगगक ग्रन्थ
महवषि पंतजभल ने अपने योग ग्रंथ- ‘पांतजल योग सत्र ू ‘ में िर्िन
ककया है कक मानि जीिन का परम लक्ष्य अपने िास्तविक
स्िरूप में ल्स्थत होना है और यही योग विद्या का ध्येय भी है ।
• योग: कमयसुकौिलम।् ।
अथाित कुशलतापि
ू क
ि कमों को करना ही योग
है ।
(श्रीमद्भगिद्गीता- 2/50)
• समत्वं योग उच्यिे।।
अथाित समत्ि ही योग है ।
(श्रीमद्भगिद्गीता- 2/48)
यनू िट-1: योग एवं यौगगक ग्रन्थ
योग का इनिहास
• योगकाइततहासबहुतपरु ानाहै ।यहपरु ातनकाल सेही
चलाआरहाहै ।
• योगविद्यामें भशिकोपहलेयोगीयाआददयोगीतथा
पहलेगुरूयाआददगुरूकेरूपमें मानाजाता है ।
• याज्ञिल्क्यस्मतृ तमें उल्लेखभमलताहै कक-
हहिण्यगभो योगस्य वतिा िान्य: पिु ािि:।
अथाित– सििप्रथमदहरण्यगभिहीयोगकेप्रथमिक्ताहुएहैं।
यनू िट-1: योग एवं यौगगक ग्रन्थ
• ऐसामहाभारतमें भीस्पष्टरूपसेकहा गयाहै
कक-
सांख्यस्यिक्ताकवपल: परमवषिसउच्यते।
दहरण्यगभोयोगस्यिक्तानान्य: पुरातन: ।।
• श्रीमद्भगिद्गीता में ज्ञानयोग, भल्क्तयोग, कमि
योगऔरराजयोगकाअदभत ु उल्लेखभमलताहै
औरअध्याय– 4 में योगकेइततहासकास्पष्ट
िर्िनभमलताहै ।
यनू िट-1: योग एवं यौगगक ग्रन्थ
वशिष्ठ सहहंिा
वशिष्ठ सहहंिा में महवषय वाशिष्ठ िे 14 िाडडयों का वणयि ककया है ।
योग की प्रमख
ु पिम्पिाएँ
योग की प्रमख
ु पिम्पिाएँ