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भगवती चरण वर्मा

जन्र् – 30 अगस्त 1903

र्त्ृ यु – 5 अक्टूबर 1981 (उम्र


– 78)
कववतम
हर् दीवमनों की क्यम हस्ती
हर् दीवमनों की क्यम हस्ती,

हैं आज यहमाँ, कल वहमाँ चले,

र्स्ती कम आलर् समथ चलम,

हर् धूल उडमते जहमाँ चले।

आए बन कर उल्लमस अभी,

आाँसू बन कर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गए, अरे ,

तुर् कैसे आए, कहमाँ चले

ककस ओर चले ? यह र्त पूछो,

चलनम है, बस इसललए चले,


जग से उसकम कुछ ललए चले,

जग को अपनम कुछ ददए चले,

दो बमत कही, दो बमत सन


ु ी।

कुछ हाँसे और किर कुछ रोए।

छककर सुख-दख
ु के घूाँटों को

हर् एक भमव से वपए चले।

हर् लभखर्ंगों की दनु नयम र्ें,

स्वच्छं द लट
ु मकर प्यमर चले,

हर् एक ननसमनी – सी उर पर,

ले असिलतम कम भमर चले।

अब अपनम और परमयम क्यम?

आबमद रहें रुकने वमले!

हर् स्वयं बाँधे थे और स्वयं

हर् अपने बाँधन तोड चले।


Written by Yash Arora
Yash Educational
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E-mail:- myyasheducational@gmail.com

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