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कैप्टन विक्रम बत्रा 

(09 सितम्बर 1974 - 07 जुलाई 1999) भारतीय सेना के एक अधिकारी थे


जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभत
ू पूर्व वीरता का परिचय दे ते हुए वीरगति प्राप्त की। उन्हें मरणोपरांत भारत के
सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जड़
ु वां बच्चों
का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव और कुश
रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपरु में दाखिल करवाया
गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को दे ख और पिता से दे श प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम
में स्कूल के समय से ही दे श प्रेम प्रबल हो उठा। उन्होंने सेना में जाने का परू ा मन बना लिया और सीडीएस (संयक्
ु त
रक्षा सेवा परीक्षा) की भी तैयारी शुरू कर दी। हालांकि विक्रम को इस दौरान हांगकांग में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी
मिल रही थी जिसे इनके द्वारा ठुकरा दिया गया।

विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में
ू में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6
उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी दे हरादन
दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर
नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रे निग
ं के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी
टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया
गया।

इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम
और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दश्ु मन के सफ़ाए का
कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की
हुई थी। कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर
आक्रमण करने का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतत्ृ व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में
अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर
ज़ख्म लग जाने के बावजद
ू वे रें गते हुए शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़ेके जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो
गया। सबसे आगे रहकर उन्होंने अपने साथी जवानों को एकत्र करके आक्रमण के लिए प्रेरित किया और दश्ु मन की
भारी गोलीबारी के सम्मुख एक लगभग असंभव सैन्य कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने जान की परवाह न करते
हुए अपने साथियों के साथ, जिनमे लेफ्टिनेंट अनुज नैयर भी शामिल थे, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट
उतारा। किं तु ज़ख्मों के कारण यह अफ़सर वीरगति को प्राप्त हुए।

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