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नवज्ञान व प्रोधोनगकी

भारि का अिंिररक्ष कायणक्रम

By - नननिन गप्त
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विज्ञान और प्रोद्योविकी : भारत का अन्तररक्ष कार्यक्रम
भारतीर् अन्तररक्ष कार्यक्रम “विक्रम साराभाई” वक सं कल्पना है, उन्हें भारतीर् अन्तररक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता
है. देश के विकास में अन्तररक्ष अनुसन्धान की महत्ता को समझते हुए. 1962 में विक्रम साराभाई की ही अध्यक्षता में
“इन्डिर्न नेशनल कवमटी फॉर स्पेस ररसर्य” का िठन वकर्ा िर्ा. न्डजसने सरकार के परमाणु उजाय विभाि के अंतियत
कार्य करना प्रारंभ वकर्ा.
िस्तुतः भारतीर् अन्तररक्ष कार्यक्रम की शुरुिात निम्बर 1963 में वतरुिनं तपुरम(के रल) स्थित सेंट मेरी
मेकडेलेन र्र्य के एक कमरे में हुई थी.
निम्बर 1963 में ही “थुम्बा” भूमध्यरेखीर् रॉके ट प्रक्षेपण कें द्र से देश के पहले “साऊन्डिंि रॉके ट” “नाइक
एपास” जो की अमेररका वनवमयत था,प्रक्षेवपत वकर्ा िर्ा. थुम्बा कें द्र को ही ितयमान में “विक्रम साराभाई अन्तररक्ष कें द्र”
के नाम से जाना जाता है.
अन्तररक्ष कार्य्यकम के महत्व को समझते हुए 1969 में भारतीर् अन्तररक्ष सं िान(इसरो) की िापना की
िर्ी.1972 में भारत सरकार ने “अंतररक्ष आर्ोि” तथा “अंतररक्ष विभाि” का िठन वकर्ा. इसरो को अन्तररक्ष विभाि
के अंतियत रखा िर्ा. इन सं िठनों के िठन के बाद भारत के अंतररक्ष कार्यक्रम को और िवत वमली. 1972 के बाद भारत
ने अन्तररक्ष कार्यक्रम में अनेक महत्वपूणय तथा िौरिशाली उपलस्थिर्ा प्राप्त कीं. कृ विम उपग्रहों के विकास,सं र्ालन तथा
प्रक्षेपण में आत्मवनभयरता प्राप्त करने के साथ साथ अंतराष्टीर् व्यापार में भी प्रिेश कर न्डलर्ा.
िर्य 1975-76 में “सेटेलाईट इं स्ट्रकसन टे लीविजन एक्सपेररमेंट(साईट) नामक कार्य्यकम र्लार्ा िर्ा,न्डजसके
अंतियत अमेररक उपग्रह “एटीएस-6” का उपर्ोि करके विकासात्मक तथा शैक्षन्डणक कार्यक्रमों की एक श्ृंखला दूरदशयन
पर र्लाई िर्ी. तथा 1977 में फ्ांस तथा जमयनी के उपग्रह की सहार्ता से “सेटेलाईट टे न्डलकम्यूवनके सन एक्सपेररमेंट
प्रोजेक्ट(स्ट्े प) नाम का कार्यक्रम र्ालार्ा िर्ा. इन कार्यक्रमों ने दूरसं र्ार के क्षेि में अन्तररक्ष अनुसन्धान की अवनिार्यता
न्डसद्ध कर दी.
10 मई 1972 को पूिय सोविर्त सं ध ि् भारत के बीर् समझौता हुआ न्डजसके तहत भारत में वनवमयत उपग्रहों के
प्रक्षेपण की व्यििा सोविर्त सं घ के प्रक्षेपण र्ानो से की िर्ी. कु छ ही समर् में भारत के प्रथम उपग्रह आर्यभट का
प्रक्षेपण 19 अप्रैल 1975 को सोविर्त सं घ के प्रक्षेपण र्ान से वकर्ा िर्ा.

भारत के अंतररक्ष कार्यक्रम के उद्दे श्य –


1. प्राथवमक उद्दे श्य – रास्ट्र ीर् विकास में अंतररक्ष विज्ञान तथा प्रोद्योविकी के प्रर्ोि को सुव्यिस्थित रूप से बढ़ािा
देना.
2. दूरसं र्ार के क्षेि में अंतररक्ष अनुसन्धान का अनुप्रर्ोि करना.
3. टे लीविजन के क्षेि में अंतररक्ष अनुसन्धान का अनुप्रर्ोि करना.
4. मौसम विभाि में अंतररक्ष अनुसन्धान का अनुप्रर्ोि करना.
5. सुदर सं िेदन सं साधनों का सिेक्षण तथा प्रबं धन में अंतररक्ष अनुसन्धान का अनुप्रर्ोि करना.
6. अन्तररक्ष प्रोद्योविकी पे आधाररत सेिाओं को उपलि कराना.

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7. उद्योिों के विकास में अंतररक्ष अनुसन्धान का अनुप्रर्ोि करना.

इस प्रकार “भारत के अन्तररक्ष कार्यक्रम का उदेश्य विकासात्मक है अन्वेर्णात्मक नही.”


िस्तुतः अन्तररक्ष विज्ञान और प्रोद्योविकी का उपर्ोि करके देश के सामान्डजक , आन्डथक
य विकास में सहर्ोि देना ही
भारत के अंतररक्ष कार्यक्रम का उदेश्य है.

भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन


भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (अंग्रेजी: Indian Space Research Organisation, सं क्षेप में 'इसरो')
भारत का राष्टरीर् अंतररक्ष सं िान है न्डजसका मुख्यालर् कनायटक प्रान्त की राजधानी बं िलुरू में है। सं िान में लिभि
17,000 कमयर्ारी एिं िैज्ञावनक कार्यरत हैं। सं िान का मुख्य कार्य भारत के न्डलर्े अंतररक्ष सं बधी तकनीक उपलि
करिाना है। अन्तररक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्दे श्यों में उपग्रहों, प्रमोर्क र्ानों, पररज्ञापी राके टों और भू-प्रणान्डलर्ों का
विकास शावमल है।
स्थापना
भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन की स्थापना 1969 में की िई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतररक्ष आर्ोि' और
'अंतररक्ष विभाि' के िठन से अंतररक्ष शोध िवतविन्डधर्ों को अवतररक्त िवत प्राप्त हुई। 'इसरो' को अंतररक्ष विभाि के
वनर्ं िण में रखा िर्ा। भारतीर् अंतररक्ष कार्यक्रम के इवतहास में 70 का दशक प्रर्ोिात्मक र्ुि था न्डजस दौरान
'आर्यभट्ट', 'भास्कर', 'रोवहणी' तथा 'एप्पल' जैसे प्रर्ोिात्मक उपग्रह कार्यक्रम र्लाए िए। इन कार्यक्रमों की सफलता
के बाद 80 का दशक सं र्ालनात्मक र्ुि बना जबवक 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज
इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं। अंतररक्ष र्ान के स्िदेश में ही प्रक्षेपण के न्डलए भारत का मजबूत
प्रक्षेपण र्ान कार्यक्रम है। र्ह अब इतना पररपक्ि हो िर्ा है वक प्रक्षेपण की सेिाएं अन्र् दे शों को भी उपलब्ध कराता
है। इसरो की व्र्ािसावर्क शाखा एं वटर क्स, भारतीर् अंतररक्ष सेिाओं का विपणन विश्ि भर में करती है। भारतीर् अंतररक्ष
कार्यक्रम की खास विशेर्ता अंतररक्ष में जाने िाले अन्र् देशों, अंतरराष्टरीर् सं िठनों और विकासशील दे शों के साथ प्रभािी
सहर्ोि है।
उद्देश्य - इसरो का उद्दे श्य है, विन्डभन्न राष्टरीर् कार्ों के न्डलए अंतररक्ष प्रौद्योविकी और उसके उपर्ोिों का विकास। इसरो ने
दो प्रमुख अंतररक्ष प्रणान्डलर्ााँ िावपत की हैं-

1. सं र्ार, दूरदशयन प्रसारण और मौसम विज्ञानीर् सेिाओं के न्डलए इन्सैट


2. सं साधन मॉनीटरन तथा प्रबं धन के न्डलए भारतीर् सुदरू सं िेदन उपग्रह (आईआरएस)।
इसरो ने इन्सैट और आईआरएस उपग्रहों को अपेन्डक्षत कक्षा में िावपत करने के न्डलए पीएसएलिी और जीएसएलिी, दो
उपग्रह प्रमोर्न र्ान विकन्डसत वकए हैं।
तदनुसार, भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) ने दो प्रमुख उपग्रह प्रणान्डलर्ााँ , र्था सं र्ार सेिाओं के न्डलए
भारतीर् राष्टरीर् उपग्रह (इन्सैट) और प्राकृ वतक सं पदा प्रबं धन के न्डलए भारतीर् सुदरू सं िेदन (आईआरएस) का, साथ ही,
आईआरएस प्रकार के उपग्रहों के प्रमोर्न के न्डलए ध्रुिीर् उपग्रह प्रमोर्न र्ान (पीएसएलिी) और इन्सैट प्रकार के

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उपग्रहों के प्रमोर्न के न्डलए भूस्थिर उपग्रह प्रमोर्न र्ान (जीएसएलिी) का सफलतापूियक प्रर्ालनीकरण वकर्ा है।
महत्त्वपूणय प्रार्ोविक परीक्षण-

साईट
उपग्रह शैक्षन्डणक दूरदशयन परीक्षण (साईट) एक मास कम्युवनके शन र्ा जन सं र्ार परीक्षण था। इसके अंतियत दे श के छह
राज्ों के 2500 िांिों में अमरीकी उपग्रह ए टी एस-6 के इस्तेमाल से न्डशक्षा, स्वास्थ्य, पररिार वनर्ोजन आवद विर्र्ों
पर ग्रामीण लोिों को टे लीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से जािरुक बनार्ा िर्ा। र्ह परीक्षण 1 जुलाई 1975 से 31
जुलाई 1976 तक र्ला।
स्ट्ेप परीक्षण
1977-79 में उपग्रह दूरसं र्ार परीक्षण पररर्ोजना के दौरान फ़्ांस और जमयनी के उपग्रह न्डसम्फोनी का प्रर्ोि वकर्ा
िर्ा। इसके माध्यम से सं र्ार के क्षेि के कई महत्त्वपूणय परीक्षण पूरे वकए िए। स्ट्े प परीक्षण ने घरे लू दूरसं र्ार के न्डलए
एक भू स्थिर उपग्रह तं ि के प्रर्ालन का मौका वदर्ा। इससे भू इन्फ्ास्ट्र क्र्र के वडजाइन में मदद वमली।
एप्पल
इसका पूरा नाम एररर्न पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट था। र्ह भारत में वनवमयत पहला सं र्ार उपग्रह था। र्ह प्रार्ोविक
सं र्ार उपग्रह था, न्डजसमें के िल सी-बैंड टर ांसपांडर थे। इसकी लॉस्थन्र्ं ि 19 जून 1981 को र्ूरोपीर् अंतररक्ष सं िा के
एररर्न राके ट से की िई। र्ह एक बेलनाकार उपग्रह था। इसका िजन 350 वकलोग्राम था। इस उपग्रह के इस्तेमाल से
टे लीविजन कार्यक्रमों के प्रेर्ण और रेवडर्ो नेटिवकिं ि जैसे सं र्ार परीक्षण वकए िए।
आर्यभट्ट उपग्रह
भारत का पहला उपग्रह था। इसका नामकरण भारत के प्रार्ीन िन्डणतज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर वकर्ा िर्ा। इसे 19 अप्रॅल
1975 को रूस के लॉस्थन्र्ं ि स्ट्े शन कपून्डस्ट्न र्ार से लॉन्र् वकर्ा िर्ा। इस उपग्रह का वनमायण एक्स रे खिोन्डलकी
िार्ुिवतकी और सौर भौवतकी पर परीक्षण करने के न्डलए वकर्ा िर्ा था।
भास्कर उपग्रह
भारतीर् अंतररक्ष कार्यक्रम के तहत भास्कर-1 और भास्कर-2 का वनमायण वकर्ा िर्ा। र्े दे श के पहले वनम्न भू कक्षा
प्रेक्षण उपग्रह थे। दोनों उपग्रहों को रूस के लॉस्थन्र्ं ि स्ट्े शन कपून्डस्ट्न र्ार से छोडा िर्ा। इन्हें क्रमश: 7 जून 1979 और
20 निं बर 1981 को छोडा िर्ा था। दोनों उपग्रहों ने समुद्र विज्ञान, जल विज्ञान आवद से जुडे कई आं कडे इकट्ठे वकए।

भास्कर-I उपग्रह भारत में वनवमयत प्रथम प्रार्ोविक सुदरू सं िेदन उपग्रह है।

• ऑनबोडय टीिी कै मरा ने प्रवतवबं ब प्रेवर्त वकर्ा न्डजनका जलविज्ञान और िावनकी में पुन:प्रर्ोि वकर्ा िर्ा।
• एसएएमआईआर ने समृद्ध िैज्ञावनक आाँ कडे प्रेवर्त वकए न्डजनका उपर्ोि सामुवद्रक अध्र्र्नों में वकर्ा िर्ा।

भास्कर-II उपग्रह भारत में वनवमयत प्रार्ोविक सुदरू सं िेदन उपग्रह है जो भास्कर-I की तुलना में अन्डधक उन्नत नीतभार
सक्षम था।

• वमशन कालािन्डध में सफल प्रर्ालन।

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• दो ऑनबोडय कै मरा में से एक द्वारा समस्या का सामना करने के बािजूद, दो हजार से अन्डधक प्रवतवबं ब प्रेवर्त
वकए िए, न्डजनका कई अध्यर्नों में उपर्ोि वकर्ा िर्ा।

रोवहणी उपग्रह
र्ह एक उपग्रह शं खला का नाम है। इसकी लॉस्थन्र्ं ि इसरो ने ही की थी। रोवहणी प्रथम का इस्तेमाल लॉस्थन्र्ं ि र्ान
एसएलिी-3 के वनष्पादन के मापन के न्डलए वकर्ा िर्ा था। रोवहणी-2 और रोवहणी-3 उपग्रहों में लैंड माकय सं िेदक
नीतभार लिाए िए थे।
प्रमुख अन्तररक्ष र्ान – भारत के अन्तररक्ष र्ानो को वनम्नन्डलन्डखत श्ेन्डणर्ों में बांटा जा सकता है 1. सं र्ार उपग्रह –
भारतीर् राष्‍टर ीर् उपग्रह (इन्सैट) प्रणाली, भूस्थिर कक्षा में स्थावपत नौ प्रर्लनात्मक सं र्ार उपग्रहों सवहत एन्डशर्ा-
पेन्डसवफक क्षेि में सबसे बडे घरेलू सं र्ार उपग्रहों में से एक है। इन्सैट-1बी से शुरूआत करते हुए इसकी स्थापना 1983
में की िई। इसने भारत के सं र्ार क्षेि में एक महत्िपूणय क्रांवत की शुरूआत की तथा बाद में भी इसे बरकरार रखा।
ितयमान में प्रर्लनात्मक सं र्ार उपग्रह है इन्सैट-3ए, इन्सैट-3सी, इन्सैट-3ई, इन्सैट-4ए, इन्सैट-4सी.आर., जीसैट-8,
जीसैट-10 तथा जीसैट-12.
2. भू प्रेक्षण उपग्रह - िर्य 1988 के आई.आर.एस.-1ए से शुरूआत करते हुए इसरो ने कई प्रर्लनात्मक सुदरू सं िेदन
उपग्रहों का प्रमोर्न वकर्ा है। आज, भारत के पास सबसे बडी सं ख्र्ा में प्रर्ालनरत सुदरू सं िेदन उपग्रहों का समूह है।
ितयमान में, ग्र्ारह प्रर्ालनरत उपग्रह कक्षा में हैं ररसोसयसैट-1 और 2, काटोसैट-1 और 2, 2ए, 2बी, रीसैट-1 और 2,
ओशनसैट-2, मेघा-टर ावपक्स तथा सरल। देश में तथा िैस्थश्िक उपर्ोि हेतु विन्डभन्न प्रर्ोक्ता आिश्र्कताओं को पूरा करने
हेतु विविध स्थावनक, स्पैक्टर मी तथा कान्डलक विभेदनों में आिश्र्क आाँ कडा प्रदान करने हेतु विन्डभन्न उपकरणों को इन
उपग्रहों द्वारा भेजा िर्ा है। इन उपग्रहों से प्राप्त आाँ कडे का प्रर्ोि विन्डभन्न अनुप्रर्ोिों जैसे कृ वर्, जल सं साधन, शहरी
र्ोजना, ग्रामीण विकास, खवनज सं भािना, पर्ायिरण, िावनकी, समुद्री सं साधन तथा आपदा प्रबं धन में वकर्ा जाता है।
3. परीक्षणात्मक उपग्रह - इसरो ने परीक्षणात््क उद्दे श्यों्् हेतु कई छोटे उपग्रहों का प्रमोर्न वकर्ा है। आर्यभट्ट, एप्पल
आई एनएस - 1A तथा आईएनएस - 1B प्रमुख परीक्षणात्मक उपग्रह हैं. इस परीक्षण में शावमल है सुदरू सं िेदन,
िार्ुमंडलीर् अध्य र्न, नीतभार विकास, कक्षा वनर्ं िण, पुन:प्रावप्त प्रौद्योविकी आवद।

4.उपग्रह नौिहन - उपग्रह नौिहन सेिा िान्डणस्थज्क एिं सामररक अनुप्रर्ोिों की प्रणाली पर आधाररत उभरती हुई
उपग्रह प्रणाली है। इसरो, नािररक उड्डर्न आिश्र्कताओं की बढ़ती हुई मांिों को पूरा करने तथा स्ितं ि उपग्रह नौिहन
प्रणाली पर आधाररत अिस्थिवत, नौिहन एिं कालन की प्रर्ोक्ता आिश्र्कताएं पूरा करने हेतु उपग्रह आधाररत नौिहन
सेिाएं मुहैर्ा कराने के न्डलए प्रवतबद्ध है। नािररक उड्डर्न की आिश्र्कताएाँ पूरी करने हेतु इसरो जी.पी.एस. समन्डथत
य भू
सं िन्डधत
य नौिहन (ििन) प्रणाली की स्थापना करने के न्डलए भारतीर् विमानपत्तन प्रान्डधकरण (ए.ए.आई.) के साथ
सं र्ुक्त रूप से कार्य कर रहा है। स्िदेशी प्रणाली पर आधाररत अिस्थिवत, नौिहन एिं कालन सेिाओं की अिश्र्कताएं
पूरी करने हेतु, इसरो भारतीर् प्रादेन्डशक नौिहन उपग्रह प्रणाली (आई.आर.एन.एस.एस.) नामक प्रादेन्डशक उपग्रह
नौिहन प्रणाली की स्थापना कर रहा है।

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(क) जी.पी.एस. समन्डथतय भू सं िन्डधतय नौिहन (ििन): र्ह भारतीर् विमानपत्तन प्रान्डधकरण (ए.ए.आई.) के साथ
सं र्ुक्त रूप से कार्ायन्डन्वत उपग्रह आधाररत सं ियधन प्रणाली (एस.बी.ए.एस.) है। नािररक उड्डर्न अनुप्रर्ोिों हेतु
आिश्र्क पररशुद्धता एिं विश्िसनीर्ता के साथ उपग्रह आधाररत नौिहन सेिाएं मुहैर्ा कराना एिं भारतीर् िार्ु अंतररक्ष
में बेहतर िार्ु र्ातार्ात प्रबं धन मुहैर्ा कराना, ििन के मुख्र् उद्दे श्र् हैं। र्ह प्रणाली अन्र् अंतरायष्‍टर ीर् एस.बी.ए.एस.
प्रणान्डलर्ों के साथ अंतर-प्रर्ालनीर् होिी तथा प्रादेन्डशक पररन्डधर्ों में सींिनहीन नौिहन मुहैर्ा करार्ेिी। ििन न्डसग्नल-
इन-स्पेश (एस.आई.एस.) जीसैट-8 एिं जीसैट-10 के जररए उपलब्ध है।

(ख) भारतीर् प्रादेन्डशक नौिहन उपग्रह प्रणाली (आई.आर.एन.एस.एस.): नाविक र्ह क्रांवतक राष्‍टर ीर् अनुप्रर्ोिों हेतु
स्ितं ि भारतीर् उपग्रह आधाररत स्थिवत वनधायरण प्रणाली है। इसका मुख्र् उद्दे श्र् है, भारत एिं इसके पडोसी देशों में
विश्िसनीर् अिस्थिवत, नौिहन एिं कालन सेिाएं मुहैर्ा कराना तथ प्रर्ोक्ता हेतु उत्तम ढं ि से पररशुद्धता प्रदान करना।
आई.आर.एन.एस.एस. मुख्र् रूप से दो प्रकार की सेिाएं मुहैर्ा कराएिा:
1. मानक अिस्थिती सेिा (एस.पी.एस.)
2. प्रवतबं न्डधत सेिा (आर.एस.)
अंतररक्ष खण्ड में सात उपग्रह शावमल हैं, न्डजसके तीन उपग्रह भू स्थैवतक कक्षा (जी.ई.ओ.) और र्ार उपग्रह भूमध्र्रेखा
के समतल से 290 के झुकाि पर भू तुल्र्काली कक्षा (जी.एस.ओ.) में स्थित हैं। सात उपग्रहों के इस समूह को भारत
के माननीर् प्रधानमं िी, श्ी नरें द्र मोदी द्वारा ‘नाविक’ (नौिहन भारतीर् समूह) नाम वदर्ा िर्ा था और नाविक के सातिें
और अंवतम उपग्रह, आई.आर.एन.एस.एस.-1जी. के सफल प्रमोर्न के उपलक्ष पर राष्‍टर को समवपयत वकर्ा। भारतीर्
क्षेि में सभी उपग्रह एक साथ देखे जा सकें िे। नाविक के सभी सात उपग्रह, आई.आर.एन.एस.एस.-1ए, 1बी, 1सी,
1डी, 1ई, 1एफ एिं 1जी क्रमश: 02 जुलाई, 2013, 04 अप्रैल, 2014, 16 अक्तूबर, 2014, 28 मार्य, 2015, 20
जनिरी, 2016, 10 मार्य, 2015 एिं 28 अप्रैल, 2016 को सफलतापूियक प्रमोन्डर्त वकए िए थे और अपनी वनधायररत
कक्षीर् स्थिवतर्ों से सं तोर्जनक कार्य कर रहे हैं।
आई.आर.एन.एस.एस. समूह की देखभाल एिं प्रर्ालन की न्डज्मेदारी भूखण्ड पर है। र्ह समूह की
स्थिवत, कक्षीर् एिं घडी पैरामीटरों की िणना तथा नौिहन आं कडा अपलोवडं ि का मॉनीटरण मुहैर्ा कराता है। भू खण्ड
में टी.टी.सी. एिं अपन्डलंवकं ि कें द्र, अंतररक्षर्ान वनर्ं िण कें द्र, आई.आर.एन.एस.एस. कालन कें द्र, सी.डी.एम.ए. रें न्डजंि
कें द्र, नौिहन वनर्ं िण कें द्र एिं आं कडा सं र्ार न्डलंक शावमल हैं। अंतररक्ष खण्ड मानक अिस्थितीकरण सेिा
(एस.पी.एस.), एस.पी.एस. एिं आर.एस. हेतु वद्व-आिृवत्त अन्डभग्राही के न्डलए एकल आिृवत्त अन्डभग्राही के साथ
अनुकून्डलत है और बहु मोड अन्डभग्राही अन्र् जी.एन.एस.एस. प्रदाताओं के अनुकूल है।

अंतररक्ष विज्ञान एिं अन्वेर्ण – भारतीर् अंतररक्ष कार्यक्रम में खिोल विज्ञान, ताराभौवतकी, ग्रहीर् विज्ञान एिं भू विज्ञान,
िार्ुमंडलीर् विज्ञान एिं सैद्धांवतक भौवतक विज्ञान जैसे क्षेिों के अनुसंधान शावमल हैं। बलून, पररज्ञापी राके ट, अंतररक्ष
आधार और भू-आधाररत सुविधाएं इन अनुसंधान प्रर्ासों में सहार्क हैं। पररज्ञापी राके टों की श्ृंखला िार्ुमंडलीर् प्रर्ोिों
हेतु उपलिए हैं। विन्डभन्नं िैज्ञावनक उपकरण उपग्रहों पर विशेर्कर, खिोलीर् एक्सं -वकरण एिं िामा वकरण प्रस्फु िटों
को वदशा देने हेतु प्रक्षेवपत वकए िए हैं।

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एस्ट्रोसैट-एस्ट्र ोर्सैट प्रथम समन्डथत
य भारतीर् खिोलीर् वमशन है। न्डजसका लक्ष्यक एक्सम–वकरण, प्रकान्डशक एिं र्ू.िी.
स्पेरक्टर नम बैण्ों में एक साथ खिोलीर् स्रोतों का अध्य र्न करना है। इन नीतभारों में पराबैंिनी (दूर एिं समीप),
सीवमत प्रकान्डशक एिं एक्सख-वकरण क्षेि (0.3 के .ई.िी. से 100 के .ई.िी. तक) के ऊजाय बैंड शावमल हैं। एस्ट्र ोरसैट
वमशन का एक अवद्वतीर् िुण र्ह है वक र्ह एक उपग्रह के साथ विन्डभन्नथ खिोन्डलकीर् िस्तु)ओं के एक ही साथ बहु-
तरंिदैर्घ्यए प्रेक्षणों में सहार्क है। 1515 वक.ग्रा. के उत्था2पन के साथ एस्ट्र ोासैट, सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र,
श्ीहररकोटा से पी.एस.एल.िी.-सी30 द्वारा भूमध्यै रेखा से 6 वडग्री के कोण की आनवत पर 650 वक.मी. की कक्षा में
28 न्डसतं बर, 2015 को प्रमोन्डर्त वकर्ा िर्ा था। एस्ट्र ो सैट वमशन की न्यूडनतम उपर्ोिी कालािन्डध 5 िर्य है।

मं िल कन्डक्षि वमशन-मं िल कन्डक्षि वमशन 80,000 वक.मी. तक 372 वक.मी. की दीघयिृत्ती र् कक्षा में मं िल ग्रह की
पररकमी करने हेतु वडजाइन वकए िए कन्डक्षि र्ान के साथ मं िल ग्रह के न्डलए प्रथम अंतरग्रहीर् वमशन है। मं िल कन्डक्षि
वमशन को क्रांवतक वमशन प्रर्ालनों एिं अंतररक्षर्ान की नोदन सं र्ार एिं अन्य बस प्रणान्डलर्ों पर महन्डत्वपूणय
आिश्यतकताओं को ध्यारन में रखते हुए र्ुनौतीपूणय प्रौद्योविकी वमशन एिं विज्ञान वमशन कहा जा सकता है। वमशन का
मुख्यत प्रेरक प्रौद्योविकी उद्दे श्यन भूवम आधाररत र्ुवि कौशल (ई.बी.एम.) मं िल ग्रहीर् अंतरण प्रक्षेपपथ (एम.टी.टी.)
एिं मं िल कक्षा अंत:क्षेपण (एम.ओ.आई.) र्रणों की क्षमता के साथ अंतररक्षर्ान की वडजाइन एिं वनमायण करना तथा
लिभि 400 वमन्डलर्न वक.मी. की दूरी पर सं िन्डधत
य िहन अंतररक्ष वमशन र्ोजना एिं सं र्ार प्रबं धन का वनमायण करना
है। स्वा्ुर्त्तर् िुवट सं सूर्न एिं पुन:प्रावप्त भी वमशन हेतु महत्वापूणय होते हैं।

र्ं द्रर्ान-1-र्ं द्रमा के न्डलए भारत का प्रथम वमशन, र्ं द्रर्ान-1 एस.डी.एस.सी. शार, श्ीहररकोटा से 22 अिूमबर, 2008
को सफलतापूियक प्रमोन्डर्त वकर्ा िर्ा था। अंतररक्षर्ान र्ं द्रमा की रसार्वनक, खवनज विज्ञानीर् एिं प्रकाश-भूविज्ञानीर्
मानन्डर्िण हेतु र्ं द्रमा की सतह से 100 वक.मी. की ऊंर्ाई पर र्ं द्रमा के र्ारों ओर पररक्रमा कर रहा था। अंतररक्षर्ान
ने भारत, र्ू.एस.ए., जमयनी, स्वी्डेन एिं बुल्गार्ररर्ा में वनवमयत 11 िैज्ञावनक उपकरणों का िहन वकर्ा।

र्ं द्रर्ान-2-र्ं द्रर्ान-2 र्ं द्रमा के न्डलए पूिय र्ं द्रर्ान-1 वमशन का उन्नलत िशयन होिा। र्ं द्रर्ान-2 को वद्व-माड्यूल प्रणाली
के रूप में सं रूवपत वकर्ा िर्ा है न्डजसमें इसरो द्वारा विकन्डसत रोिर का िहन करने िाले कन्डक्षिर्ान माड्यूल (आर.सी.)
शावमल है।

लघु उपग्रह - लघु उपग्रह पररर्ोजना का द्रुत प्रवतितयन/प्रत्ााितयन समर् में भू प्रवतवबं बन एिं िैज्ञावनक वमशनों हेतु
स्ट्ें कड-अलोन नीतभारों के न्डलए आधार मुहैर्ा कराने के न्डलए विर्ार वकर्ा िर्ा है। विन्डभन्न प्रकार के नीतभारों हेतु
बहुमुखी आधार बनाने हेतु दो प्रकार की बसों का सं रूपण एिं विकास वकर्ा िर्ा है।

भारतीर् लघु उपग्रह-1 (आई.एम.एस.-1)-आई.एम.एस.-1 बस 100 वक.ग्रा. श्ेणी की बहुमुखी बस के रूप में विकन्डसत
की िई है न्डजसमें लिभि 30 वक.ग्रा. की नीतभार क्षमता शावमल है। इस बस को विन्डभन्नक न्यूीनीकरण तकनीकों का
इस्ते3माल करते हुए विकन्डसत वकर्ा िर्ा है। आई.एम.एस.-1 श्ृंखला का प्रथम वमशन काटोसैट-2ए के साथ सह-र्ािी
के रूप में 28 मार्य, 2008 को सफलतापूियक प्रमोन्डर्त वकर्ा िर्ा था। र्ूथसैट इस श्ृंखला का वद्वतीर् वमशन है और
20 अप्रैल, 2011 को ररसोससैट-2 के साथ सफलतापिूयक प्रमोन्डर्त वकर्ा िर्ा था।

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भारतीर् लघु उपग्रह-2 (आई.एम.एस.-2) बस-आई.एम.एस.-2 बस को 400 वक.ग्रा. की श्ेणी मानक बस के रूप में
विकन्डसत वकर्ा िर्ा है न्डजसमें लिभि 200 वक.ग्रा. की नीतभार क्षमता शावमल है। आई.एम.एस.-2 विकास एक
महत्वसपूणय उपलस्थि है, क्ों््वक र्ह विन्डभन्नर प्रकार के सुदरू सं िेदन अनुप्रर्ोिों हेतु विश्वससनीर् उपग्रह बस है।
आई.एम.एस.-2 का प्रथम वमशन सरल है। सरल इसरो एिं सी.एन.ई.एस. का सहर्ोिी वमशन है , न्डजसके नीतभार
सी.एन.ई.एस. से प्राप्ति हुए हैं और अंतररक्षर्ान बस इसरो से।

भारत के प्रक्षेपण र्ान –


एसएलिी-उपग्रह प्रमोर्न र्ान (एसएलिी-3) पहला भारतीर् प्रार्ोविक उपग्रह प्रमोर्न र्ान था। 17 टन भारी ि 22
मीटर ऊंर्े एसएलिी के सभी र्ार ठोस र्रण थे तथा र्ह 40 वक.ग्रा. ििय के नीतभारों को वनम्न पृथ्वी कक्षा (एलईओ)
में िावपत करने में सक्षम था।

18 जुलाई 1980 को शार कें द्र, श्ीहररकोटा से उपग्रह प्रमोर्न र्ान-3 (एसएलिी-3), के सफल प्रमोर्न द्वारा रोवहणी
उपग्रह आरएस-1 को कक्षा में िावपत वकर्ा िर्ा और भारत अंतररक्ष क्षमता िाले खास राष्टरो ं के क्लब का 6िां सदस्य
बन िर्ा। िाहन को पूिय वनधायररत प्रक्षेप पथ पर सं र्ान्डलत करने के न्डलए इसमें सं न्डर्त अक्षनवत (वपर्) कार्यक्रम र्ुि
वििृत पाश वनदेशन का उपर्ोि वकर्ा िर्ा था। अिस्त 1979 में आर्ोन्डजत एसएलिी -3 की पहली प्रार्ोविक उडान
आं न्डशक सफल सफल रही। जुलाई 1980 में आर्ोन्डजत प्रमोर्न के अलािा, मई 1981 और अप्रैल 1983 में एसएलिी-
3 के दो और प्रमोर्न वकए िए न्डजनके द्वारा सुदरू सं िेदी सं िेदकों से र्ुि रोवहणी उपग्रहों को कक्षा में िावपत वकर्ा
िर्ा।

एसएलिी -3 पररर्ोजना ने सफलताओं की पराकाष्ठा हान्डसल की और उससे सं िन्डधत


य उपग्रह प्रमोर्न र्ान
(एएसएलिी), ध्रुिीर् उपग्रह प्रमोर्न र्ान (पीएसएलिी) तथा भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोर्न र्ान (जीएसएलिी) जैसे
उन्नत प्रमोर्न िाहनों की पररर्ोजनाओं का मािय प्रशस्त हुआ।

एएसएलिी-उत्थापन के समर् 40 टन भारी ि 23.8 मी. लं बे पांर् र्रणों िाले, पूणयतः ठोस नोदक र्ान एएसएलिी को
400 वक.मी. िृत्तीर् कक्षाओं में पररक्रमारत 150 वक.ग्रा. भारी उपग्रह श्ेणी के वमशनों के न्डलए सं रूवपत वकर्ा िर्ा था।
सं िन्डधत
य उपग्रह प्रमोर्न र्ान (एएसएलिी) को वनम्न पृथ्वी कक्षा वमशनों के न्डलए एसएलिी-3 से तीन िुनी अन्डधक, 150
वक.ग्रा. नीतभार क्षमता सं िधयन के न्डलए अन्डभकस्थल्पत वकर्ा िर्ा था। एसएलिी-3 वमशनों से अन्डजयत अनुभिों को आधार
पर बने एएसएलिी ने स्ट्रै पऑन प्रौद्योविकी, जडत्वीर् वदशावनदेशन, बल्बीर् ताप किर्, लं बित समाकलन तथा सं िृत्त
पाश वनदेशन जैसी भािी प्रमोर्न िाहनों के न्डलए आिश्यक महत्वपूणय प्रौद्योविवकर्ों के प्रदशयन और उनके िैधीकरण हेतु
कम लाित के मध्यिती र्ान के रूप में अपनी उपर्ोविता न्डसद्ध की थी।

एएसएलिी कार्यक्रम के अंतियत र्ार विकासात्मक उडानें आर्ोन्डजत की िईं। पहली विकासात्मक उडान 24 मार्य,
1987 को तथा दूसरी 13 जुलाई 1988 को सं पन्न हुई। 20 मई, 1992 को एएसएलिी-डी3 सफल प्रक्षेपण द्वारा 106

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वक.ग्रा. भारी श्ोस-सी को 255 x 430 वक.मी. कक्षा में िावपत वकर्ा िर्ा। 4 मई, 1994 को प्रमोन्डर्त एएसएलिी-
डी4 द्वारा 106 वक.ग्रा. भारी श्ोस-सी2 को कक्षा में िावपत वकर्ा िर्ा। इसमें दो नीतभार नामतः, िामा वकरण
प्रस्फोट(जीआरबी) परीक्षण तथा मं दन विभि विश्लेर्क (आरपीए) लिे थे। इस उपग्रह ने सात साल तक काम वकर्ा।

(पी.एस.एल.िी ) ध्रुिीर् उपग्रह प्रमोर्न िाहन-ध्रुिीर् उपग्रह प्रमोर्न िाहन (पीएसएलिी), विश्व के सिायन्डधक
विश्वसनीर् प्रमोर्न िाहनों में से एक है। र्ह ित 20 िर्ो से भी अन्डधक समर् से अपनी सेिाएं उपलि करा रहा है
तथा इसने र्ं द्रर्ान-1, मं िल कन्डक्षि वमशन, अंतररक्ष कै प्सूल पुनःप्रापण प्रर्ोि (स्पेस कै प्सूल ररकिरी एक्सपररमेंट),
भारतीर् क्षेिीर् वदशावनदेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) आवद जैसे अनेक ऐवतहान्डसक वमशनों के न्डलए उपग्रहों
का प्रमोर्न वकर्ा है। प्रमोर्न सेिादाता के रूप में पीएसएलिी कई सं िठनों की पहली पसं द है तथा इसने 19 देशों के
40 से अन्डधक उपग्रहों को प्रमोन्डर्त वकर्ा है। सन् 2008 में इसने एक प्रमोर्न में सिायन्डधक, 10 उपग्रहों को विन्डभन्न
वनम्न पृथ्वी कक्षा में िावपत करने का ररकाडय बनार्ा था।

िाहन की विशेर्ताऍं - ऊंर्ाई: 44 मी, व्यास: 2.8 मी, र्रणों की सं ख्या : 4,उत्थापन द्रव्यमान : 320 टन
(एक्स.एल.)
प्रकार: 3 पीएसएलिी-जी, पीएसएलिी-सीए, पीएसएलिी-एक्सएल)
पहली उडान : न्डसतं बर 20, 1993

पीएसएलिी के विन्डभन्न र्रण - प्रथम र्रण : पीएस1-पीएसएलिी में 6 ठोस स्ट्रै पऑन बूस्ट्रों द्वारा सं िन्डधत
य एस-139
ठोस रॉके ट मोटर का उपर्ोि वकर्ा जाता है ।

द्वीतीर् र्रण : पी.एस.2-पीएसएलिी के दूसरे र्रण में तरल नोदन प्रणाली के न्द्र द्वारा विकन्डसत पृथ्वी सं ग्रहणीर् तरल
रॉके ट इंजन लिा होता है न्डजसे विकास इंजन के नाम से भी जाना जाता है ।

तृतीर् र्रण : पीएस3-पीएसएलिी का तीसरा र्रण ठोस रॉके ट मोटर होती है, जो प्रमोर्न के िार्ुमंडलीर् र्रण के
पश्चात ऊपरी र्रणों को उच्च प्रणोद उपलि कराती है।

र्तुथय र्रण : पीएस4-पीएसएलिी सबसे ऊपरी र्रण पीएस4 है, इसमें दो पृथ्वी सं ग्रहणीर् तरल इंजन लिते हैं.

भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण िाहन (जी.एस.एल.िी.)-भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण िाहन (जी.एस.एल.िी.) को


मूलत: इन्सैट श्ेणी के उपग्रहों को भू-तुल्यकाली अंतरण कक्षा में प्रक्षेवपत करने के न्डलए विकन्डसत वकर्ा िर्ा था ।
जी.एस.एल.िी. को जीसैट श्ृंखला के उपग्रहों को प्रक्षेवपत करने के न्डलए प्रर्ुि वकर्ा जा रहा है। जी.एस.एल.िी. तीन
र्रणों िाला रॉके ट है न्डजसमें एक ठोस रॉके ट मोटर र्रण, एक पृथ्वी सं ग्रहणीर् तरल र्रण तथा एक क्रर्ोजवनक र्रण
का उपर्ोि होता है। जी.एस.एल.िी. की निीनतम उडान. जी.एस.एल.िी.-डी5 द्वारा जीसैट-14 को उसकी वनर्ोन्डजत
कक्षा में भेजा िर्ा । र्ह स्वदेशी क्रार्ोजवनक र्रण द्वारा भरी िई पहली सफल उडान थी। इससे पहले जी.एस.एल.िी.
द्वारा अनेक सं र्ार उपग्रहों का प्रक्षेपण वकर्ा िर्ा न्डजनमें से एडु सेट एक प्रमुख उडान थी। र्ह भारत ऐसा का पहला
उपग्रह था न्डजसे उपग्रह अधाररत दूरन्डशक्षा के न्डलए न्डशक्षाक्षेि की सेिा में समवपयत वकर्ा िर्ा ।

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िाहन की विशेर्ताएं - ऊंर्ाई: 49.13 मी, र्रणों की सं ख्या : 3,उत्थापन द्रव्यमान : 414.75 टन

पहली उडान : अप्रैल 18, 2001

जीएसएलिी के विन्डभन्न र्रण - प्रथम र्रण : जी.एस-1-जी.एस.एल.िी. प्रथम र्रण भी पी.एस.एल.िी. के पी.एस.-1
से न्डलर्ा िर्ा है। इसकी 138 टन ठोस मोटर को र्ार तरल स्ट्रै प-ऑन मोटरों द्वारा सं िन्डधत
य वकर्ा जाता है।

वद्वतीर् र्रण : जी.एस-2-जी.एस.एल.िी. दूसरे र्रण में विकास इं जन का प्रर्ोि वकर्ा जाता है। र्ह र्रण
पी.एस.एल.िी. न्डलर्ा िर्ा है जहां विकास इंजन ने पी.एस-2 के रूप में अपनी विश्वसनीर्ता न्डसद्ध की है।
तृतीर् र्रण : क्रार्ोजवनक ऊपरी र्रण (सी.र्ू.एस.)-तरल नोदन प्रणाली के न्द्र, द्वारा क्रार्ोजवनक ऊपरी र्रण पररर्ोजना
(सी.र्ू.एस.पी.) के अंतियत विकन्डसत सी.ई.-7.5 भारत का पहला क्रार्ोजवनक इंजन है। सी.ई-7.5 इंजन में प्रज्वलन
का र्रणबद्ध प्रर्ालन र्क्र होता है

वपछले कु छ िर्ो की महत्वपूणय उपलस्थिर्ां –


पीएसएलिी-17 का सफल प्रक्षेपण : 15 जुलाई, 2011-भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) ने शुक्रिार, 15
जुलाई, 2011 को पीएसएलिी सी-17 के जररए जीसैट-12 ए का श्ीहररकोटा से सफल प्रक्षेपण वकर्ा। इसरो ने इसे
भारतीर् समर्ानुसार शाम 4.48 बजे प्रक्षेवपत वकर्ा, जो अपने वनधायररत समर् में धरती की कक्षा में िावपत हो िर्ा।
जीसैट-12 सं र्ार सेटेलाइट का िजन 1410 वकलोग्राम है और इसका जीिन काल आठ सालों का होिा। समार्ार एजेंसी
के मुतावबक इसरो के प्रकाशन और जनसम्पकय वनदेशक एस. सतीश ने पहले ही इस बात की सं भािना जताई थी वक
प्रक्षेपण में कोई समस्या नहीं आएिी। र्ह उपग्रह सं र्ार के क्षेि में काफी महत्त्वपूणय सावबत होिा। इससे दूरि न्डशक्षा,
दूरि न्डर्वकत्सा और ग्राम सं साधन कें द्र को उन्नत बनार्ा जा सकता है।

पीएसएलिी सी 16 का सफल प्रक्षेपण 20 अप्रैल 2011 -भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) ने पीएसएलिी
सी-16 का श्ीहररकोटा से सफल प्रक्षेपण वकर्ा है जो तीन उपग्रहों को अंतररक्ष में िावपत करेिा.

पीएसएलिी सी-16 अपने साथ ररसोसयसैट-2, एक्ससैट और र्ूथसैट ले जा रहा है न्डजनके अलि अलि कार्य होंिे.
पीएसएलिी इन तीनों उपग्रहों को उनकी कक्षा में िावपत करे िा. प्रक्षेपण के बाद इसरो के र्ेर्रमैन के राधाकृ ष्णन ने
कहा वक र्ह भारत के इवतहास में एक बडा कदम है.राधाकृ ष्णन का कहना था, '' पीएसएलिी-सी16 ररसोसयसैट 2
वमशन सफल रहा है और मैं इसके न्डलए पूरे दे श को बधाई दे ता हं.'' इन तीनों में से एक भारतीर्, एक रुसी और और
एक न्डसंिापुर का उपग्रह है.
पीएसएलिी सी -16 का प्रक्षेपण ऐसे समर् में हुआ है जब र्ार महीने पहले ही जीएसएलिी एफ-06 का
प्रक्षेपण असफल रहा था.इस िर्य इसरो का र्ह पहला प्रक्षेपण है. श्ीहररकोटा के सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र से सुबह
10.12 वमनट पर पीएसएलिी सी -16 को छोडा िर्ा और प्रक्षेपण सफल रहा है.इस प्रक्षेपण िाहन में भारत में वनवमयत
ररसोसयसैट-2 उपग्रह है जो ररसोसयसैट 1 की जिह लेिा. ररसोसयसैट 2 की उम्र पााँ र् साल की होिी और इसका इस्तेमाल
आपदा प्रबं धन और प्राकृ वतक आपदाओं से वनपटने के न्डलए वकर्ा जाएिा.ररसोसयसैट 2 में कु छ ऐसे उपकरण भी लिाए

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िए हैं जो जहाजों पर वनिरानी रख सकें िे और उनके िान, िवत और अन्य र्ीजों के बारे में जानकारी जुटा
सकें िे.ररसोसयसैट 2 भारत की ररमोट सेंन्डसंि सीररज का ताजा उपग्रह है न्डजसे आईआरएस पी 6 के नाम से भी जाना
जाता है. इसका कार्य जमीन पर मौजूद जल सं पदा की वनिरानी करना, जं िलों और तटीर् इलाकों के बारे में आकडे
जुटाना है. र्ह उपग्रह समुद्र के बारे में भी नई जानकाररर्ां जुटा सके िा.

ररसोसयसैट के अलािा अंतररक्ष में र्ूथसैट को भी छोडा िर्ा है जो भारत और रुस ने वमलकर बनार्ा है. र्ूथसैट
में तीन छोटे छोटे पेलोड हैं न्डजसे बनाने में दो देशों के विश्वविद्यालर्ों ने सहर्ोि वकर्ा है. र्ूथसैट में आएबीआईटी और
एलआईिीएर्एसआई भारतीर् हैं जबवक तीसरा पेलोड एसओएलआरएएड रुसी है. र्े तीनों पेलोड वमलकर पृथ्वी के
ऊपरी िार्ुमंडल के बारे में अलि अलि जानकाररर्ां जुटाएं िे.पीएसएलिी सी-16 पर तीसरा उपग्रह एक्स सैट है जो
न्डसंिापुर का पहला सेटेलाइन र्ा उपग्रह होिा. इसका काम न्डसफय ररमोट सेंन्डसंि और न्डसंिापुर की नानवकं ि र्ूवनिन्डसटय ी के
शोध कें द्र के न्डलए छविर्ां जुटाने में मदद करना होिा.

मं िलर्ान (पीएसएलिी सी25) : 5 निम्बर, 2013 -भारत ने अपने पहले मं िल ग्रह पररक्रमा अन्डभर्ान (एमओएम) के
न्डलए ध्रुिीर् रॉके ट को 5 निम्बर, 2013 को सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र से सफलतापूियक प्रक्षेवपत करके इवतहास रर्
वदर्ा। र्ं द्रमा पर भेजे र्ान के बाद र्ह भारत का सबसे महत्वाकांक्षी अंतररक्ष अन्डभर्ान है। पूिी तट के करीब
श्ीहररकोटा द्वीप से रॉके ट ने सीधे आकाश की ओर उडान भरी और 44 वमनट बाद रॉके ट से अलि हो कर उपग्रह पृथ्वी
की कक्षा में आ िर्ा। र्ािा का पहला र्रण सफल रहा। भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) ने इस कार्यक्रम
के सीधे प्रसारण का भी इंतजाम वकर्ा था न्डजसके जररए भारत के इस ऐवतहान्डसक पल को लाखों लोिों ने टीिी पर
देखा। भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) के प्रक्षेपण र्ान पीएसएलिी सी25 का र्ह ऐवतहान्डसक प्रक्षेपण
अपराह्न दो बजकर 38 वमनट पर र्ेन्नई से करीब 100 वकलोमीटर दूर र्हां स्पेसपोटय से वकर्ा िर्ा।

इसरो के वनदे शक डॉ. राधाकृ ष्‍णन ने कहा - "मुझे र्ह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है वक र्ह पीएसएलिी की 25िीं
उडान है। मैं समस्त इसरो पररिार को बधाई देता हाँ , न्डजन्होंने बेहद कम िक़्त में र्ह मुमवकन कर वदखार्ा।"
लिभि 450 करोड रुपर्े के प्रोजेक्ट के तहत भारत ने मं िल ग्रह के न्डलए अपना पहला र्ान श्ीहररकोटा से
प्रक्षेवपत वकर्ा। मं िलिार को इसे छोडे जाने के बाद से इसका वनर्ं िण बैंिलोर में इसरो के िैज्ञावनकों ने अपने हाथों में
ले न्डलर्ा है। इस मं िलर्ान को पृथ्वी की कक्षा छोडने से पहले पांर् र्क्कर लिाने हैं , न्डजसके बाद र्ह 1 वदसं बर को सूर्य
की पररन्डध में प्रिेश कर जाएिा। िहां से लिभि नौ महीने बाद र्ह र्ान मं िल ग्रह तक की अपनी र्ािा पूरी कर
पाएिा। श्ीहररकोटा से मं िल वमशन की तस्वीरें देश के अंतररक्ष अन्डभर्ान के िौरिशाली इवतहास की कहानी बर्ां कर
रही हैं। पीएसएलिी सी25 (PSLV C-25) 'मासय ऑवबयटर' नाम के उपग्रह को लेकर अंतररक्ष के न्डलए रिाना हो िर्ा
है। इस कामर्ाबी के साथ ही भारत अंतररक्ष में नई इबारत न्डलखने िाला दुवनर्ा का र्ौथा दे श बन िर्ा है।

उद्देश्य - इसरो का मकसद है वक इस वमशन के जररए दूसरे ग्रहों की पडताल की घरे लू तकनीक विकन्डसत की जाए।
मं िलर्ान के न्डसतं बर 2014 तक मं िल ग्रह पर पहुंर्ने की उम्मीद है। इसके बाद पं द्रह वकलो िजन का एक ऑवबयटर

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मं िल के िातािरण में लॉन्र् होिा। ऑवबयटर पर लिे सेंसर मं िल ग्रह की वमट्टी और खवनजों और िहां मौजूद िैसों की
जांर् करेंिे।

मं िलर्ान सफल, भारत ने इवतहास रर्ा : 24 न्डसतम्बर, 2014-भारतीर् अंतररक्ष एजेंसी, इसरो का उपग्रह मं िलर्ान
मं िल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूियक प्रिेश कर र्ुका है। र्े भारत के अंतररक्ष शोध में एक कालजर्ी घटना
है। इस अन्डभर्ान की कामर्ाबी से भारत ऐसा देश बन िर्ा है न्डजसने एक ही प्रर्ास में अपना अन्डभर्ान पूरा कर न्डलर्ा।
भारत ने न्डलविड मोटर इंजन की तकनीक से मं िलर्ान को मं िल की कक्षा में िावपत वकर्ा। आमतौर पर र्ांद तक
पहुंर्ने के न्डलए इसी तकनीक का इस्तेमाल वकर्ा जाता है। लेवकन इतने लं बे वमशन पर भारत से पहले वकसी ने न्डलविड
मोटर इंजन का इस्तेमाल नहीं वकर्ा था। एक ओर मं िल वमशन इवतहास के पन्नों पर स्वर्ं को सुनहरे अक्षरों में दजय करा
रहा था िहीं दूसरी ओर र्हां स्थित भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) के कमांड कें द्र में अंवतम पल बेहद
व्याकु लता भरे थे।

अंतररक्ष िैज्ञावनकों के साथ मं िल वमशन की सफलता के साक्षी बने भारतीर् प्रधानमं िी नरेन्द्र मोदी ने कहा -
"विर्मताएं हमारे साथ रहीं और मं िल के 51 वमशनों में से 21 वमशन ही सफल हुए हैं, लेवकन हम सफल रहे।" खुशी
से फूले नहीं समा रहे प्रधानमं िी ने इसरो के अध्यक्ष के . राधाकृ ष्णन की पीठ थपथपाई और अंतररक्ष की र्ह अहम
उपलस्थि हान्डसल कर इवतहास रर्ने के न्डलए भारतीर् अंतररक्ष िैज्ञावनकों को बधाई दी। भारत के मं िल अन्डभर्ान का
वनणायर्क र्रण 24 न्डसतं बर को सुबह र्ान को धीमा करने के साथ ही शुरू हो िर्ा था। इस वमशन की सफलता उन
24 वमनटों पर वनभयर थी, न्डजस दौरान र्ान में मौजूद इंजन को र्ालू वकर्ा िर्ा। मं िलर्ान की िवत धीमी करनी थी
तावक र्े मं िल की कक्षा में िुरुत्वाकर्यण से खुद-बखुद न्डखंर्ा र्ला जाए और िहां िावपत हो जाए। इस अंतररक्ष र्ान
का प्रक्षेपण 5 निं बर, 2013 को आं ध्र प्रदे श के श्ीहररकोटा से स्वदेश वनवमयत पीएसएलिी रॉके ट से वकर्ा िर्ा था। र्ह
1 वदसं बर, 2013 को पृथ्वी के िुरूत्वाकर्णय से बाहर वनकल िर्ा था। अमेररकी अंतररक्ष सं िान 'नासा' का मं िलर्ान
'मािेन' 22 न्डसतं बर को मं िल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एम.ओ.एम. की कु ल लाित मािेन की लाित का
माि दसिां वहस्सा है। भारत ने इस वमशन पर करीब 450 करोड रुपए खर्य वकए हैं, जो बाकी देशों के अन्डभर्ानों की
तुलना में सबसे ज़्र्ादा वकफार्ती है।

सबसे भारी रॉके ट जीएसएलिी माकय -3 का सफल प्रक्षेपण : जीएसएलिी माकय -3 रॉके ट : 18 वदसम्बर, 2014

'भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन' (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉके ट जीएसएलिी-एमके 3 को आं ध्र
प्रदेश में श्ीहररकोटा स्थित सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र से प्रक्षेवपत वकर्ा है। इसरो ने इससे पहले 24 न्डसतं बर, 2014 को
मं िलर्ान को सफलतापूियक उसकी कक्षा में िावपत वकर्ा था। जीएसएलिी-एमके 3 में सी-25 इंजन लिार्ा िर्ा है।
इसकी ऊंर्ाई 43.43 मीटर है। इस र्ान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन ठोस, द्रि और क्रार्ोजवनक का इस्तेमाल
वकर्ा िर्ा है। जीएसएलिी-एमके 3 रॉके ट के वनमायण पर कु ल 140 करोड रुपर्े की लाित आई है। क्रू माड्यूल के
वनमायण पर 15 करोड रुपर्े खर्य हुए हैं। इस सबसे भारी रॉके ट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतररक्ष में ले

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जाने िाले 3.65 टन िजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। र्ह माड्यूल को रॉके ट में लिार्ा िर्ा था। इसे
पैराशूट के जररए बं िाल की खाडी में सफलतापूियक उतारा िर्ा है।

इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो वनदेशक के . राधाकृ ष्णन ने दी। इस मौके पर इसरो के पूिय वनदेशक डॉ.
कस्तूरीरंिन भी मौजूद थे। जीएसएलिी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्दे श्य इनसेट-4 जैसे भारी सं र्ार उपग्रहों के प्रक्षेपण में
भारत को पूरी तरह आत्मवनभयर बनाना है। इस सफलता के बाद भारत इनसैट-4 श्ेणी के उपग्रह प्रक्षेवपत करने में सक्षम
हो िर्ा है। इनसैट-4 श्ेणी के उपग्रह का िजन 4500-5000 वकलोग्राम तक होता है। इस श्ेणी के उपग्रहों को
अंतररक्ष में भेजने के न्डलए भारत अब तक दूसरे दे शों पर वनभयर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यािसावर्क बाजार में
भी अपनी दािेदारी मजबूत करे िा और दूसरे दे शों के इनसैट-4 श्ेणी के उपग्रह अंतररक्ष में भेज पाएिा।

भारत की अंतररक्ष में बडी कामर्ाबी: लॉन्र् वकर्ा स्वदेशी स्पेस शटल -भारतीर् अंतररक्ष शोध सं िान (ISRO) सोमिार
23 मई, 2016 को आं ध्र प्रदेश के श्ीहररकोटा स्पेस सेंटर से पूरी तरह से भारत में बने स्पेस शटल RLV-TD को
लॉन्र् वकर्ा। इसे भारत का अपना खुद का स्पेस शटल है। अमेररकी स्पेस शटल जैसा वदखने िाला र्े शटल वफलहाल
प्रर्ोि की स्थिवत में है और अपने असली साइज से 6 िुना छोटा है। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के डार्रेक्टर
के न्डसिन के अनुसार, ‘RLV-TD का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह पहुंर्ाना और वफर िार्ुमंडल में दोबारा
प्रिेश करना है। शटल को एक ठोस रॉके ट मोटर से ले जार्ा जाएिा। नौ मीटर लं बे रॉके ट का िजन 11 टन है।' इस
परीक्षण के बाद इसको पूरी तरह से तैर्ार होने में करीब दस िर्य तक का समर् लि जाएिा। ISRO के िैज्ञावनकों के
अनुसार, र्ह लाित कम करने, विश्वसनीर्ता कार्म रखने और मांि के अनुरूप अंतररक्ष में पहुंर् बनाने के न्डलए एक
साझा हल है। र्ह पहली बार है, जब इसरो ने पं खों से र्ुि वकसी र्ान का प्रक्षेपण वकर्ा है। र्ह र्ान बं िाल की खाडी
में तट से लिभि 500 वकलोमीटर की दूरी पर उतरा। भारत के प्रधानमं िी नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीट कर िैज्ञावनकों को
इसके न्डलए बधाई दी। प्रधानमं िी ने कहा भारत के पहले स्वदेशी अंतररक्ष शटल RLV-टीडी की लॉस्थन्र्ं ि हमारे
िैज्ञावनकों के मेहनती प्रर्ासों का पररणाम है। िवतशीलता और समपयण के साथ जो हमारे िैज्ञावनकों और इसरो ने वपछले
कु छ सालों में काम वकर्ा है, िह असाधारण और बहुत ही प्रेरणादार्क है।

इसरो ने अंतररक्ष में रर्ा इवतहास, लॉन्र् वकए 20 उपग्रह पीएसएलिी-C34 : 22 जून, 2016

भारतीर् अंतररक्ष एजेंसी इसरो ने 22 जून, 2016 को एक साथ 20 उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में िावपत करके एक
नर्ा कीवतयमान िावपत वकर्ा। इससे पहले 2008 में उसने एक साथ 10 उपग्रह लॉन्र् वकए थे, जो उसका अब तक
का रेकॉडय था। सं ख्या के अलािा जो एक और बात इस उपलस्थि को खास बनाती है , िह है मल्टी पॉइंट वडन्डलिरी।
इससे पहले इसरो ने जब एकान्डधक उपग्रह लॉन्र् वकए तो िे एक ही ऊंर्ाई पर छोडे िए थे। र्ानी िे एक-दूसरे से
पर्ायप्त दूरी रखते हुए कमोबेश एक जैसी ही ऑरवबट में घूमते थे। र्ह पहला मौका है जब इसरो ने पीएसएलिी-C34 के
जररए उपग्रहों को अलि-अलि ऊंर्ाई पर छोडा है। जो 20 उपग्रह छोडे िए हैं उनमें 17 कमन्डशयर्ल हैं।

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17 सैटेलाइट विदेशी, तीन स्वदेशी-पीएसएलिी-C34 की लॉस्थन्र्ं ि सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र के दूसरे लॉन्र् पैड से
श्ीहररकोटा में की िई। भारतीर् समर् के अनुसार पीएसएलिी C-34 की लॉस्थन्र्ं ि 22 जून को सुबह 9 बजकर 26
वमनट पर की िई। पीएसएलिी सी-34 के 20 सैटेलाइटों में से 17 कमन्डशयर्ल सैटेलाइट हैं। र्ानी 17 सैटेलाइट दूसरे
देशों के हैं न्डजन्हें भेजने के न्डलए इसरो ने उन देशों से फीस ली है। इसके अलािा दो सैटेलाइट देश के दो न्डशक्षा सं िानों
के हैं। इस लॉस्थन्र्ं ि में एक सैटेलाइट कॉटोसैट 2 सीरीज का इसरो का अपना है। इन 20 उपग्रहों का कु ल िजन 1288
वकलोग्राम था, लेवकन उनमें अके ले काटोसैट-2 सीरीज उपग्रह का िजन ही 727.5 वकलोग्राम है। र्ह उपग्रह दे श में
हो रहे िानस्पवतक र्ा भूिभीर् बदलािों पर बारीकी से नजर रख सके िा। वमशन को खास बनाने िाली एक और अहम
बात र्ह है वक बाकी दो सैटलाइट र्ेन्नई की सत्भामा र्ूवनिन्डसटय ी और पुणे के कॉलेज ऑफ इं न्डजवनर्ररंि के छािों ने
तैर्ार वकए हैं।

इसरो ने एक साथ ररकाडय 104 सैटेलाइट लॉन्र् करके इवतहास रर्ा-अंतररक्ष में भारत ने 15 फरिरी, 2017 बुधिार को
एक बहुत बडी कामर्ाबी हान्डसल की है। भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) के प्रक्षेपण र्ान पीएसएलिी ने
श्ीहररकोटा स्थित अंतररक्ष के न्द्र से एक एकल वमशन में ररकाडय 104 उपग्रहों का सफलतापूियक प्रक्षेपण वकर्ा। र्हां से
करीब 125 वकलोमीटर दूर श्ीहररकोटा से एक ही प्रक्षेपास्त्र के जररर्े ररकॉडय 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण सफलतापूियक
वकर्ा िर्ा। भारत ने एक रॉके ट से 104 उपग्रहों को अंतररक्ष में भेजकर इस तरह का इवतहास रर्ने िाला पहला देश
बन िर्ा है। प्रक्षेपण के कु छ दे र बाद पीएसएलिी-सी37 ने भारत के काटरेसैट-2 श्ृंखला के पृथ्वी पर्यिेक्षण उपग्रह
और दो अन्य उपग्रहों तथा 103 नैनो उपग्रहों को सफलतापूियक कक्षा में िावपत कर वदर्ा। िहीं, प्रधानमं िी नरेंद्र मोदी
ने इस सफल अन्डभर्ान को लेकर इसरो को बधाई दी है। उन्होंने कहा वक पूरे देश के न्डलए र्ह िौरि का क्षण है।
भारतीर् अंतररक्ष एजेंसी इसरो के प्रमुख एएस वकरण कु मार ने कहा वक प्रधानमं िी नरेंद्र मोदी ने 104 उपग्रहों के सफल
प्रक्षेपण पर इसरो दल को बधाई दी। प्रधानमं िी ने एक ही रॉके ट के जररए 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के न्डलए
िैज्ञावनकों की सराहना करते हुए कहा वक इस अहम उपलस्थि ने भारत को िौरिांवित वकर्ा है।

3 स्वदेशी एिं 101 विदेशी उपग्रह-प्रक्षेपण के बारे में महत्वपूणय बात र्ह है वक इतनी बडी सं ख्या में रॉके ट से उपग्रहों का
प्रक्षेपण वकर्ा िर्ा। रूसी अंतररक्ष एजेंसी की ओर से एक बार में 37 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण की तुलना में भारत एक
बार में 104 उपग्रह प्रक्षेवपत करने में सफलता हान्डसल कर इवतहास रर्ने िाला पहला देश बन िर्ा है। भारत ने इससे
पहले जून 2015 में एक बार में 23 उपग्रहों को प्रक्षेपण वकर्ा था। र्ह उसका दूसरा सफल प्रर्ास है। पीएसएलिी
पहले 714 वकलोग्राम िजनी काटरेसेट-2 श्ृंखला के उपग्रह का पृथ्वी पर वनिरानी के न्डलए प्रक्षेपण करेिा और उसके
बाद 103 सहर्ोिी उपग्रहों को पृथ्वी से करीब 520 वकलोमीटर दूर ध्रुिीर् सन न्डसंक्रोनस ऑवबयट में प्रविष्ट कराएिा
न्डजनका अंतररक्ष में कु ल िजन 664 वकलोग्राम है। इन 104 उपग्रहों में भारत के तीन और विदेशों के 101 सैटेलाइट
शावमल है। इसरो के िैज्ञावनकों ने एक्सएल िैररर्ं ट का इस्तेमाल वकर्ा है जो सबसे शविशाली रॉके ट है और इसका
इस्तेमाल महत्वाकांक्षी र्ं द्रर्ान में और मं िल वमशन में वकर्ा जा र्ुका है। इनमें 96 उपग्रह अमेररका के , पांर् क्रमश:
इसरो के अंतरराष्टरीर् ग्राहकों- इजरार्ल, कजावकस्तान, नीदरलैंड, स्थस्वट्जरलैंड, सं र्ुि अरब अमीरात के हैं।

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र्ं द्रर्ान-1 - र्ं द्रर्ान-1, भारत का प्रथम र्ं द्र वमशन, एसडीएससी, शार, श्ीहररकोटा से 22 अक्टू बर, 2008 को
सफलतापूियक प्रमोन्डर्त वकर्ा िर्ा। अंतररक्षर्ान र्ं द्र के रासार्वनक, खवनजीर् और प्रकाश-भौवमकी मानन्डर्िण के न्डलए
र्ं द्र सतह से 100 वक.मी. की ऊाँर्ाई पर र्ं द्रमा की पररक्रमा कर रहा था। अंतररक्षर्ान भारत, सं र्ुि राष्टर अमेररका,
विटे न, जमयनी, स्वीडन और बल्गेररर्ा में वनवमयत 11 िैज्ञावनक उपकरणों को िहन करता है। सभी प्रमुख वमशन उद्दे श्यों
के सफलतापूियक समापन के बाद, मई 2009 में कक्ष को 200 वक.मी. तक सं िधयन वकर्ा िर्ा है।

वमशन: सुदरू सं िेदन, ग्रहीर् विज्ञान,भार: 1380 (उत्थापन पर द्रव्यमान),प्रमोर्न वदनांक : 22 अिूबर, 2008

प्रमोर्न िल :एसडीएससी, शार, श्ीहररकोटा, प्रमोर्न र्ान : पीएसएलिी-सी11 वमशन कालािन्डध: 2 िर्य

र्ं द्रर्ान-2 -भारत का र्ं द्रर्ान -1 के बाद दूसरा र्ं द्र अन्वेर्ण अन्डभर्ान है। न्डजसे भारतीर् अंतररक्ष अनुसन्धान सं िठन
(इसरो) ने विकन्डसत वकर्ा है। अन्डभर्ान को जीएसएलिी प्रक्षेपण र्ान द्वारा प्रक्षेपण करने की र्ोजना है। इस अन्डभर्ान
में भारत में वनवमयत एक लूनर ऑवबयटर (र्न्द्र र्ान) तथा एक रोिर एिं एक लैंडर शावमल होंिे। इस सब का विकास
इसरो द्वारा वकर्ा जार्ेिा। भारत र्ं द्रर्ान-2 को 2018 में प्रक्षेपण करने की र्ोजना बना रहा है।

इसरो के अनुसार र्ह अन्डभर्ान विन्डभन्न नर्ी प्रौद्योविवकर्ों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ 'नए' प्रर्ोिों को भी
करेिा।पवहएदार रोिर र्न्द्रमा की सतह पर र्लेिा तथा ऑन-साइट विश्लेर्ण के न्डलए वमट्टी र्ा र्ट्टान के नमूनों को
एकि करेिा। आं कडों को र्ं द्रर्ान-2 ऑवबयटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जार्ेिा। मार्लास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में
र्ं द्रर्ान-1 अन्डभर्ान को सफलतापूियक अंजाम देने िाली टीम र्ं द्रर्ान-2 पर भी काम कर रही है।

भारतीर् अन्तररक्ष कार्यक्रम की उपर्ोविता -


भू अिलोकन – भू अिलोकन हेतु इसरो भारतीर् सुदरू सं िेदन कार्यक्रम महत्वपूणय है . भारतीर् सुदरू सं िेदन कार्यक्रम
उपर्ोिकताय की जरूरतों से प्रेररत है। िास्ति में, 1970 में के रल में नाररर्ल जड-विल्ट रोि की पहर्ान करने के न्डलए
सुदरू सं िेदन आधाररत पहले पार्लट प्रोजेक्ट को वनष्पावदत वकर्ा िर्ा था । इस पार्लट पररर्ोजना से भारतीर् ररमोट
सेंन्डसंि (आईआरएस) के उपग्रहों का विकास वकर्ा िर्ा। र्े आईआरएस उपग्रह कई अनुप्रर्ोिों के न्डलए विश्वसनीर् हैं -
जैसे कृ वर्, भूवम और जल सं साधनों, िावनकी, पर्ायिरण, प्राकृ वतक आपदाओं, शहरी र्ोजना और बुवनर्ादी ढांर्े के
विकास, ग्रामीण विकास, और सं भावित मत्स्य क्षेिों की भविष्यिाणी जैसे विन्डभन्न क्षेि शावमल हैं। अच्छी तरह से बुना
नेटिकय "प्राकृ वतक सं साधन प्रबं धन प्रणाली (एनएनआरएमएस)" कें द्रीर् और राज् सरकारों, वनजी क्षेिों, न्डशक्षा और िैर-
सरकारी सं िठनों को शावमल करते हुए प्राकृ वतक सं साधनों के प्रबं धन के न्डलए ररमोट सेंन्डसंि, समकालीन तकनीकों और
पारंपररक प्रथाओं के एकीकरण को सक्षम करने के न्डलए कार्यरत है।

उपग्रह सं र्ार- सं र्ार उपग्रह श्ृंखला, जो एप्पल उपग्रह के साथ शुरू वकर्ा िर्ा, इन्सैट और जीसैट श्ृंखला में उपग्रहों
के बहुत बडे समूह में बदल िर्ा। इन उपग्रहों ने देश के तकनीकी और आन्डथक
य विकास में क्रांवत ला दी। इन्सैट उपग्रह
प्रणाली सबसे बडी घरेलू सं र्ार उपग्रह प्रणाली, जो दूरसं र्ार, व्यापार और व्यविित सं र्ार, प्रसारण और मौसम की
भविष्यिाणी और मौसम सं बं धी सेिाओं के क्षेिों में वनर्वमत रूप से सेिाएं प्रदान करने में से एक है। आज, भारत में नई

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पहल टे ली-न्डशक्षा, टे ली-मेवडन्डसन, ग्रामीण सं साधन कें द्र (िीआरसी), आपदा प्रबं धन सहार्ता (डीएमएस) आवद जैसे नए
क्षेिों के न्डलए इन्सैट उपर्ोिों का विस्तार वकर्ा िर्ा है , अंतररक्ष प्रौद्योविकी आम आदमी तक पहुाँर्ने के न्डलए सक्षम है ।
इन्सैट प्रणाली उत्तर-पूिय की तरह कम सुलभ क्षेिों ि अन्य दूर-दराज के क्षेिों और द्वीपों तक पहुंर्ने के न्डलए विस्ताररत
वकर्ा िर्ा है। भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) ने अंतररक्ष बुवनर्ादी ढांर्े के वनमायण की वदशा में उल्लेखनीर्
प्रिवत की है - समुदार् सं साधन विकास की प्रवक्रर्ा में ऊंर्ी छलांि लिाई है । इन्सैट प्रणाली के प्रमोर्न से भारत में
प्रमुख उत्प्रेरक टीिी किरेज के अलािा डीटीएर्, उपग्रह समार्ार सं ग्रहण, िीसेट, इंटरनेट सेिाओं आवद का तेजी से
विस्तार हुआ है । इन्सैट के उपर्ोि ई-ििनेंस और विकास सं र्ार अनुप्रर्ोिों के न्डलए भी तेजी से विस्तार हुआ है ।

आपदा प्रबं धन सहार्ता- आपदा प्रबं धन समथयन, अंतररक्ष आधाररत महत्वपूणय बुवनर्ादी ढांर्े और सेिाओं के मामले में,
अभी तक का समुदार् कें वद्रत प्रदेर् है। आपातकालीन सं र्ार प्रणाली के तत्वों पर अंतररक्ष आधाररत आपदा प्रबं धन
सहार्ता (डीएमएस) प्रणाली का वनमायण वकर्ा िर्ा है । इसरो/अं.वि. के डीएमएस कार्यक्रम, अंतररक्ष सं र्ार और सुदरू
सं िेदन क्षमताओं का अन्डभसरण, तकनीकी रूप से मजबूत और सं ित प्रणाली है, जो आपदा प्रबं धन की वदशा में भारत
के उपार्ों को मजबूती प्रदान करने का प्रर्ास है।

उपग्रह नेवििेशन- उपग्रह नेवििेशन सेिा िान्डणस्थज्क और सामररक अनुप्रर्ोिों के साथ उभरती हुई उपग्रह आधाररत
प्रणाली है। इसरो उपग्रह आधाररत नेवििेशन सेिाएं उपलि कराने के न्डलए नािररक उड्डर्न आिश्यकताओं के उभरते
मांिों को पूरा करने हेतु और स्थिवत, नेवििेशन और समर् स्वतं ि उपग्रह नेवििेशन प्रणाली के आधार पर उपर्ोिकताय की
आिश्यकताओं को पूरा करने के न्डलए प्रवतबद्ध है। नािररक उड्डर्न आिश्यकताओं को पूरा करने के न्डलए, इसरो जीपीएस
एडेड न्डजर्ो सं िन्डधत
य नेिीिेशन (ििन) प्रणाली िावपत करने में भारतीर् हिाई अड्डा प्रान्डधकरण(एएआई) के साथ सं र्ुि
रूप से काम कर रहा है। स्वदेशी प्रणाली पर आधाररत स्थिवत, नेवििेशन और समर् सेिाओं के उपर्ोिकताय की
आिश्यकताओं को पूरा करने के न्डलए, इसरो ने क्षेिीर् उपग्रह नेवििेशन के न्डलए भारतीर् क्षेिीर् नौिहन उपग्रह प्रणाली
(आईआरएनएसएस) नामक प्रणाली की िापना है।

जलिार्ु और पर्ायिरण- इसरो ने मौसम के मापदंडों के आधार पर भू अिलोकनों के न्डलए स्वदेशी प्रणाली का वडजाइन
और विकस वकर्ा है । इसमें शावमल हैं (i) स्वर्ान्डलत मौसम स्ट्े शन (एडब्ल्यूएस) दबाि, तापमान, आद्रय ता, िर्ाय, पिन
और दुियम क्षेिों से और दूरि विवकरण के महत्वपूणय मौसम मानकों के आधार पर प्रवत घं टे पर जानकारी प्रदान करने के
न्डलए; (ii) कृ वर् मौसमविज्ञान (कृ वर् मौसम) टािरों से वमट्टी का तापमान, वमट्टी की नमी, वमट्टी उष्मा और वनिल
विवकरण, पिन िवत, पिन वदशा, दबाि और नमी को मापने के न्डलए; (iii) बहु स्तरीर् सूक्ष्म मौसम विज्ञान अिलोकन
के साथ ही वमट्टी के तापमान और िनस्पवत सतहों की नमी पर उपसतह अिलोकनों के न्डलए फ्लक्स टॉिर; (iv) डॉपलर
मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर) र्क्रिात और भारी िर्ाय के भर्ं कर मौसम की घटनाओं के मानीटरण के न्डलए; (v) जीपीएस
सोंडे और सीमा परत न्डलडार(BLL) िार्ुमंडलीर् मापदंडों के उर्ध्ायधर प्रोफाइल के अिलोकन के न्डलए।

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कु छ महत्वपूणय वटप्पन्डणर्ा -
• इन्सैट शं खला- इन्सैट (भारतीर् राष्टरीर् उपग्रह प्रणाली) इसरो द्वारा लांर् एक बहुउद्दे शीर् भूस्थिर उपग्रहों की
श्ृंखला है। जो भारत के दूरसं र्ार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज और बर्ाि की जरूरत को पूरा करने के
न्डलए है। इसे 1983 में शुरू वकर्ा िर्ा था। इन्सैट एन्डशर्ा-प्रशांत क्षेि में सबसे बडी घरेलू सं र्ार प्रणाली है।
र्ह अंतररक्ष विभाि, दूरसं र्ार विभाि, भारत मौसम विज्ञान विभाि, ऑल इं वडर्ा रे वडर्ो और दूरदशयन का एक
सं र्ुि उद्यम है। सं पूणय समन्वर् और इनसैट प्रणाली का प्रबं धन, इनसैट समन्वर् सवमवत के सन्डर्ि स्तर के
अन्डधकारी पर वटकी हुई है।
• भारतीर् सुदरू सं िेदन उपग्रह शं खला- भारतीर् सुदरू सं िेदन उपग्रह (आईआरएस) पृथ्वी अिलोकन उपग्रह की
एक श्ृंखला है। इसे इसरो द्वारा बनार्ा, लांर् और रखरखाि वकर्ा जाता है। आईआरएस श्ृंखला देश के न्डलए
ररमोट सेंन्डसंि सेिाएं उपलि कराता है। भारतीर् सुदरू सं िेदन उपग्रह प्रणाली आज दुवनर्ा में र्ल रही
नािररक उपर्ोि के न्डलए दूरसं िेदी उपग्रहों का सबसे बडा समूह है। सभी उपग्रहों को ध्रुिीर् सूर्य समकान्डलक
कक्षा में रखा जाता है। प्रारंन्डभक सं स्करणों 1(ए, बी, सी, डी) नामकरण से बना रहे थे। लेवकन बाद के
सं स्करण अपने क्षेि के आधार पर ओशनसैट, काटोसैट, ररसोसयसैट नाम से नावमत वकर्े िए।
• राडार इमेन्डजंि सैटेलाइट-इसरो ितयमान में दो राडार इमेन्डजंि सैटेलाइट सं र्ान्डलत कर रहा है। रीसैट-1 को 26
अप्रैल 2012 को ध्रुिीर् उपग्रह प्रक्षेपण र्ान(PSLV) से सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र,श्ीहररकोटा से लांर् वकर्ा
िर्ा था। रीसैट-1 एक सी-बैंड न्डसंथेवटक एपर्यर रडार (एसएआर) पेलोड ले के िर्ा। न्डजसकी सहार्ता से वदन
और रात दोनों में वकसी भी तरह के ऑब्जेक्ट पर राडार वकरणों से उसकी आकृ वत और प्रिवत्त का पता लिार्ा
जा सकता था। तथा भारत ने रीसैट-2 जो 2009 में लांर् हुआ था। इसराइल से 11 करोड अमेररकी डॉलर में
खरीद न्डलर्ा था।
• ििन उपग्रह नेवििेशन प्रणाली- ििन अथायत् जीपीएस ऐडेड न्डजर्ो ऑिमेंवटड नैवििेशन को एर्रपोटय अथॉररटी
ऑफ इंवडर्ा और इसरो ने 750 करोड रुपर्े की लाित से वमलकर तैर्ार वकर्ा है। ििन के नाम से जाना जाने
िाला र्ह भारत का उपग्रह आधाररत हिाई र्ातार्ात सं र्ालन तं ि है। अमेररका, रूस और र्ूरोप के बाद 10
अिस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने िाला भारत विश्व का र्ौथा देश बन िर्ा। पहला ििन नेवििेशन
पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा िर्ा था। हालााँ वक जीसैट-4 कक्षा में िावपत नहीं वकर्ा जा
सका। क्ोंवक भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण र्ान डी3 वमशन पूरा नहीं हो सका। दो और ििन पेलोड बाद में जीसैट-
8 और जीसैट-10 भेजे िए।
• आईआरएनएसएस उपग्रह नेवििेशन प्रणाली-आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकन्डसत एक स्वतं ि क्षेिीर् नौिहन
उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमं िी नरें द्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछु िारों को समवपयत करते हुए नाविक रखा
है। इसका उद्दे श्य देश तथा देश की सीमा से 1500 वकलोमीटर की दूरी तक के वहस्से में इसके उपर्ोिकताय को
सटीक स्थिवत की सूर्ना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेिाओं प्रदान करेिा। (1)मानक पोन्डजशवनं ि
सेिा और (2)प्रवतबं न्डधत र्ा सीवमत सेिा। प्रवतबं न्डधत र्ा सीवमत सेिा मुख्यत: भारतीर् सेना, भारतीर् सरकार

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के उच्चान्डधकाररर्ों ि अवतविन्डशष्ट लोिों ि सुरक्षा सं िानों के न्डलर्े होिी। आईआरएनएसएस के सं र्ालन ि रख
रखाि के न्डलर्े भारत में लिभि 16 के न्द्र बनार्े िर्े हैं। सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र से आईआरएनएसएस-1ए
उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उडान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 वमनट बाद रॉके ट ने
आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में िावपत कर वदर्ा। ितयमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में
िावपत वकर्ा जा र्ुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की र्ोजना है।
• पररज्ञापी राके ट(sounding rocket) - पररज्ञापी राके ट एक र्ा दो र्रण िाले ठोस नोदक राके ट हैं न्डजनका
अंतररक्ष अनुसंधान हेतु ऊपरी िार्ुमंडलीर् क्षेिों के अन्िेर्ण हेतु प्रर्ोि वकर्ा जाता है। र्े प्रमोर्क र्ानों एिं
उपग्रहों के प्रर्ोि हेतु िांन्डछत नए अिर्िों एिं उपप्रणान्डलर्ों के आवदरूप की जांर् र्ा प्रमान्डणत करने के न्डलए
आसानी से िहन करने र्ोग्र् आधार के रूप में काम करते हैं। थुं बा में 1963 में, थुं बा भूमध्र्रेखीर् राके ट
प्रमोर्न कें द्र (टी.ई.आर.एल.एस.) की स्थापना के साथ, जो र्ु्बकत्ि भूमध्र्रेखा के समीप स्थित है, तब
भारत में िार्विकी एिं िार्ुमंडलीर् विज्ञानों के कार्यक्षेि में महत्िपूणय उछाल हुआ। 21 निं बर, 1963 को
वतरुिनं तरपुरम, के रल के समीप थु्बा से प्रथम पररज्ञापी राके ट के प्रमोर्न से भारतीर् अंतररक्ष कार्यक्रम की
शुरुआत हुई। पररज्ञापी राके टों ने राके ट-िावहत र्ं िीकरण का प्रर्ोि करते हुए स्िास्थाने िार्ुमंडल के अन्िेर्ण
को सं भि बनार्ा। प्रथम राके ट रूस(एम-100) एिं फ्ांस (सेंर्ौर) से आर्वतत दो र्रणों िाले राके ट थे। एम-
100, 85 वक.मी. की तुं िता पर 70 वक.ग्रा. के नीतभार का िहन कर सका और सेंर्ौर लिभि 30 वक.ग्रा.
के नीतभार को 150 वक.मी. तक पहुंर्ाने में सहार्क बना।

इसरो ने स्िदेशी रूप से बने राके टों का प्रमोर्न सन 1965 में शुरू वकर्ा और प्राप्त अनुभि ठोस नोदक
प्रौद्योविकी में महारथ हान्डसल करने में अवत महत्िपूणय था। सन 1975 में, सभी पररज्ञापी राके ट िवतविन्डधर्ां
रोवहणी पररज्ञापी राके ट (आर.एस.आर.) कार्यक्रम के तहत समेवकत की िई थीं। 75 वम.मी. के व्र्ास िाला
आर.एर्.-75 िास्ति में प्रथम भारतीर् पररज्ञापी राके ट था, न्डजसके बाद आर.एर्.-100 एिं आर-एर्.-125
राके टों का वनमायण वकर्ा िर्ा। पररज्ञापी राके ट कार्यक्रम आधारन्डशला समान था न्डजस पर इसरो में प्रमोर्नर्ान
प्रौद्योविकी रूपी इमारत का वनमायण वकर्ा जा सका। विन्डभन्न स्थानों से पररज्ञापी राके टों के एस साथ प्रमोर्न
द्वारा समन्डन्वत अन्डभर्ान आर्ोन्डजत करना सं भि हुआ है। एक वदन में कई पररज्ञापी राके ट प्रमोन्डर्त करना भी
सं भि है।

प्रर्ालनात्मक पररज्ञापी राके ट- ितयमान में, प्रर्लनात्मक राके ट के रूप में तीन रूपांतर प्रस्तावित वकए िए हैं; न्डजसमें 8 से
100 वक.ग्रा. तक के नीतभार और 80-475 वक.मी. की अपभू रेंज शावमल है।

• सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र - सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र (एस.डी.एस.सी.) दो प्रमोर्न पैड सवहत र्ैन्नई से 100
वकलोमीटर की दूरी पर उत्तर में स्थित है। र्ह एस.डी.एस.सी. शार, 'इसरो' (भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान
सं िठन) का प्रमुख कें द्र है।

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एस.डी.एस.सी. शार में उपग्रह को वन्न भू-कक्षा, ध्रुिीर् कक्षा और भू-स्थिर अंतरण कक्षा में उपग्रह प्रमोर्न
के न्डलए अपेन्डक्षत अिसं रर्ना उपलि है। प्रमोर्न पररसर िाहन समुच्चर्, ईंधन भरण, जााँ र् प्रणाली और प्रमोर्न
प्रर्ालनों के न्डलए पूणय समथयन प्रदान करता है। इनके अवतररि सतीश धिन अंतररक्ष कें द्र में पृथ्वी के िार्ुमंडल का
अध्र्र्न करने के न्डलए वनवमयत पररज्ञापी रॉके टों के प्रमोर्न की सुविधाएाँ भी उपलब्ध हैं। पररज्ञापी रॉके टों,
ए.एस.एल.िी. तथा पी.एस.एल.िी. के न्डलए प्रमोर्न सं कु लों की िापना और जी.एस.एल.िी. के न्डलए सं िन्डधत

प्रमोर्न कॉम्प्लेक्स आवद इस कें द्र की महत्त्वपूणय उपलस्थिर्ााँ हैं।

• विक्रम साराभाई अंतररक्ष कें द्र - विक्रम साराभाई अंतररक्ष कें द्र (िी.एस.एस.सी.) वतरुिनं तपुरम स्थित इसरो का
प्रमुख कें द्र है। जहााँ उपग्रहों और पररज्ञापी रॉके टों के प्रमोर्न र्ानों के विन्यास और विकास की िवतविन्डधर्ााँ
वनष्पावदत की जाती हैं और प्रमोर्न प्रर्ालनों के न्डलए तैर्ार वकए जाते हैं।

कार्य- र्ह कें द्र सम्बद्ध प्रौद्योविकी, जैसे- प्रमोर्न र्ान रर्ना, नोदक, ठोस नोदन प्रौद्योविकी, िार्ु िवतकी, िार्ु
सं रर्नात्मक और िैमावनक ऊष्माक आर्ाम, उड्डर्नकी, बहुलक और सं घटक, वनदे शन, वनर्ं िण और अनुकार, कं प्यूटर
एिं सूर्ना, र्ांविक अन्डभर्ांविकी, आं तररक्ष र्ं िािली, र्ान समेकन और परीक्षण, अंतररक्ष आर्ुध, रसार्न और पदाथों
पर अनुसंधान और विकास कार्य वनष्पावदत करता है।

अन्डभर्ांविकी और प्रर्ालनों के सभी आर्ामों की विश्वसनीर्ता और िुणित्ता आश्वासनों का अध्यर्न एिं मूल्यांकन
प्रत्ेक क्षेि में अपेन्डक्षत श्ेष्ठता स्तर तक वकर्ा जाता है। कार्यक्रम आर्ोजना और मूल्यांकन, प्रौद्योविकी अंतरण और
औद्योविक समन्वेर्, स्वदेशीकरण, मानि सं साधन विकास, सुरक्षा तथा कावमयक और सामान्य प्रशासन समूह कें द्र को
इसकी सभी िवतविन्डधर्ों में सहार्ता प्रदान करते हैं।

िवतविन्डधर्ााँ - िी.एस.एस.सी. की अंतररक्ष भौवतकी प्रर्ोिशाला िार्ुमंडलीर् विज्ञान में अध्यर्न और अनुसंधान तथा
अंतररक्ष विज्ञान सं बं धी िवतविन्डधर्ााँ वनष्पांवदत करती है। के रल के अलुिा में अमोवनर्म परक्लोरेट प्रार्ोविक सं र्ं ि
(ए.पी.ई.पी.) िी.एस.एस.सी. का एक अंि है।

कार्यक्रम - िी.एस.एस.सी. के प्रमुख कार्यक्रमों में ध्रुिीर् उपग्रह प्रमोर्न र्ानों (पी.एस.एल.िी.) की पररर्ोजनाएाँ ,
भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोर्न र्ानों (जी.एस.एल.िी. माकय -II और माकय -III), रोवहणी पररज्ञापी रॉके ट, अंतररक्ष कै प्सूल
पुनप्रायवप्त परीक्षण, पुनरुपर्ोिी प्रमोर्न र्ान और उन्नत पुनरुपर्ोिी प्रमोर्न र्ानों के न्डलए िार्ु श्वसन नोदन सस्थम्मन्डलत
हैं।

• मुख्य वनर्ं िण सुविधा (एमसीएफ), हासन - मुख्य वनर्ं िण सुविधा (एम.सी.एफ.), कनायटक में हासन और
मध्य प्रदेश में भोपाल से 'भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन' (इसरो) के सभी भू स्थिर उपग्रहों का मानीटरन
और वनर्ं िण करता है।

एम.सी.एफ., उपग्रहों की प्रारंन्डभक कक्षा में उत्थापन, कक्षा में नीतभार परीक्षण, तथा इन उपग्रहों की पूरी कालािन्डध में
कक्षा में सं र्ालन सं बं धी प्रर्ालन करता है।

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प्रर्ालनों में शावमल हैं, वनरंतर अनुितयन, दूरवमवत और आदे श दे ना, ग्रहण प्रबं धन, कें द्र का रख-रखाि, र्ुविर्ालन और
आकस्थिक क्षणों में पुनःप्रावप्त जैसे विशेर् कार्य।

उपग्रह नीतभार के प्रभािी उपर्ोि के न्डलए और विशेर् प्रर्ालन के दौरान सेिा में िडबडी कम करने के न्डलए
एम.सी.एफ. उपर्ोिकताय एजेंन्डसर्ों के साथ अन्योन्य-वक्रर्ा करता है।

मुख्य वनर्ं िण सुविधा (एमसीएफ), हासन - मुख्य वनर्ं िण सुविधा (एम.सी.एफ.), कनायटक में हासन और मध्य प्रदेश
में भोपाल से 'भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन' (इसरो) के सभी भू स्थिर उपग्रहों का मानीटरन और वनर्ं िण करता
है। एम.सी.एफ., उपग्रहों की प्रारंन्डभक कक्षा में उत्थापन, कक्षा में नीतभार परीक्षण, तथा इन उपग्रहों की पूरी
कालािन्डध में कक्षा में सं र्ालन सं बं धी प्रर्ालन करता है।

प्रर्ालनों में शावमल हैं, वनरंतर अनुितयन, दूरवमवत और आदे श दे ना, ग्रहण प्रबं धन, कें द्र का रख-रखाि, र्ुविर्ालन और
आकस्थिक क्षणों में पुनःप्रावप्त जैसे विशेर् कार्य।

उपग्रह नीतभार के प्रभािी उपर्ोि के न्डलए और विशेर् प्रर्ालन के दौरान सेिा में िडबडी कम करने के न्डलए
एम.सी.एफ. उपर्ोिकताय एजेंन्डसर्ों के साथ अन्योन्य-वक्रर्ा करता है।

• भारतीर् सुदरू सं िेदन सं िान - भारतीर् सुदरू सं िेदन सं िान (आई.आई.आर.एस), 'भारतीर् अन्तररक्ष
अनुसंधान सं िठन' (इसरो), अन्तररक्ष विभाि, भारत सरकार का एक र्ूवनट है और र्ह सुदरू सं िेदन, भू-
सूर्ना, अिस्थिवत और नौिहन प्रौद्योविकी और उसके उपर्ोिों के क्षेि में क्षमता वनमायण के न्डलए प्रमुख न्डशक्षा,
प्रन्डशक्षण और अनुसंधान सं िान है। भारतीर् सुदरू सं िेदन सं िान (आई.आई.आर.एस.), पहले भारतीर्
फोटो-वनियर्न सं िान (आई.पी.आई) के नाम से जाना जाता था, न्डजसकी िापना 1996 में भारतीर् सिेक्षण
के तत्वािधान में, उभरती प्रौद्योविकी के अनुभिी लोिों के साथ विस्तृत प्रन्डशक्षण प्रदान करने के न्डलए की िर्ी
थी। इस सं िान को जुलाई, 1976 में 'राष्टरीर् सुदरू सं िेदन एजेन्सी' (एन.आर.एस.ए.) के साथ विलीन वकर्ा
िर्ा और िर्य 1980 में एन.आर.एस.ए. अन्तररक्ष विभाि (भारत सरकार) की छिछार्ा में आ िर्ी। 1
न्डसतम्बर, 2008 से आई.आई.आर.एस. को एन.आर.एस.सी. के भाि के रूप में इसरो की छिछार्ा में लार्ा
िर्ा और 1 अप्रैल, 2011 से आई.आई.आर.एस. को इसरो के एक अलि वनकार् के रूप में मान्यता वमली है।

प्रन्डशक्षण तथा पाठ्यक्रम- आई.आई.आर.एस. का प्रर्ास 'प्रौद्योविवक अंतरण' और प्रर्ोिा जािरूकता के समग्र लक्ष्य के
साथ सुदरू सं िेदन और जी.आई.एस. प्रौद्योविकी के उपर्ोि में स्नातकोत्तर स्तर पर शैन्डक्षक सं िाओं सवहत प्रर्ोिा
समुदार् से विर्र्िस्तु विशेर्ज्ञों को प्रन्डशक्षण देना रहा है। इस सं िान ने कई कार्यक्रम विकन्डसत वकर्े हैं, जो विन्डभन्न
लक्ष्य समूह के विविध आिश्यकताओं के अनुकूल हैं। आई.आई.आर.एस. नर्े स्नातकोत्तर विद्यान्डथर्
य ों सवहत विन्डभन्न
प्रर्ोिा ििय के न्डलए विविध पाठ्यक्रम र्लाता है, र्ावन एम.टे क, एम.एस.सी, स्नातकोत्तर वडप्लोमा पाठ्यक्रम,
विश्वविद्यालर् के सं कार् के न्डलए 2 महीने का एन.एन.आर.एम.एस. प्रार्ोन्डजत पाठ्यक्रम, 2 सप्ताह का मााँ ि विन्डशष्ट
पाठ्यक्रम और 1 सप्ताह का वनणयर् लेने िालों के न्डलए समग्र पाठ्यक्रम।

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सुविधाएाँ - आई.आई.आर.एस., एन्डशर्ा और अफ़्ीका के 77 देशों से 750 से अन्डधक छाि सवहत लिभि 8000 छािों
को प्रन्डशन्डक्षत वकर्ा िर्ा है। र्े छाि 'इसरो शेर्सय फेलोन्डशप कार्यक्रम', विदेश मं िालर्, भारत सरकार की
आई.टी.ई.सी/एस.सी.ए.ए.पी. फेलोन्डशप र्ोजना और अन्य फेलोन्डशप र्ोजना आवद का लाभ उठाते हैं। इसके साथ,
आई.आई.आर.एस. में सुदरू सं िेदन और जी.आई.एस. दोनों के न्डलए अत्ाधुवनक अिसं रर्ना सुविधाएाँ हैं। र्हााँ सुदरू
सं िेदन, जी.आई.एस. और जी.पी.एस. प्रौद्योविकी और उसके उपर्ोिों में अनुभिी और अंतरायष्टरीर् प्रन्डसद्ध न्डशक्षा सं कार्
सदस्य हैं। आई.आई.आर.एस. मेजबान सं िान है और साथ ही सं र्ुि राष्टरो ं के तहत् एन्डशर्ा और प्रशांत क्षेि के न्डलए
अन्तररक्ष विज्ञान और प्रौद्योविकी न्डशक्षा के न्द्र (सी.एस.एस.टी.ई-ए.पी.) का मुख्यालर् भी है। र्ह इस क्षेि में िावपत
पहला सं िान है और 1996 से प्रवत िर्य सुदरू सं िेदन और जी.आई.एस. में वनर्वमत स्नातकोत्तर और अल्पािन्डध
पाठ्यक्रम आर्ोन्डजत करता है।

मान्यता- आई.आई.आर.एस. , स्नातकोत्तर स्तर पर विश्वविद्यालर् के सं कार् को प्रवत िर्य 8 सप्ताह की अिन्डध के न्डलए
विन्डशष्ट पाठ्यक्रम आर्ोन्डजत करने के न्डलए 'राष्टरीर् प्राकृ वतक सं साधन प्रबन्धन प्रणाली' (एन.एन.आर.एम.एस.) द्वारा
मान्यता प्राप्त कर ली है, तावक िे अपने विन्डशष्ट क्षेि में सुदरू सं िेदन और जी.आई.एस. के विन्डशष्ट विर्र्ों पर न्डशक्षा
प्रदान कर सकें और अपनी सं िान में सुदरू सं िेदन और जी.आई.एस. उपर्ोि पर एम.टे क/एम.एस.सी/स्नातकोत्तर
वडप्लोमा जैसे नर्े कार्यक्रमों की शुरूआत कर सकें । आई.आई.आर.एस. ने पूरे भारत में फैले लिभि 800
विश्वविद्यालर् के सं कार् को प्रन्डशन्डक्षत वकर्ा है। कई विश्वविद्यालर् आई.आई.आर.एस. के प्रन्डशक्षण कार्यक्रमों से
लाभान्डन्वत हुए हैं और आई.आई.आर.एस. से सं िाित सहार्ता के साथ स्नतकोत्तर स्तर पर सुदरू सं िेदन और
जी.आई.एस. पाठ्यक्रम शुरू वकर्े हैं।

दूरि न्डशक्षा कार्यक्रम-आई.आई.आर.एस. ने पहली बार दूर न्डशक्षा कार्यक्रम की शुरूआत की है , र्ावन सुदरू सं िेदन,
जी.आई.एस. और जी.पी.एस. की मूलभूत जानकारी पर एडु सैट आधाररत कार्यक्रम और 4000 से अन्डधक विद्यान्डथर्
य ों
को प्रन्डशन्डक्षत करते हुए पूरे भारत में फैले स्नातकोत्तर स्तर के साठ से अन्डधक विश्वविद्यालर्ों और सं िानों के न्डलए 2007
से 2011 तक ऐसे छह कार्यक्रम (भू सूर्ना में प्रिवत पर एक विशेर् पाठ्यक्रम सवहत) आर्ोन्डजत वकर्ा। विश्वविद्यालर्
के विद्याथी, जो मूलभूत वडग्री पाने के न्डलए अपने वनजी विर्र् में स्नातक पूिय/स्नातकोत्तर न्डशक्षा ले रहे हैं, िे भी
समानान्तर में आई.आई.आर.एस. आऊटरीर् प्रमाणपि कार्यक्रम में भी भाि ले सकते है और भू सूर्ना के इस नर्े और
र्ुनौतीपूणय क्षेि में अपना कार्यक्षेि बढ़ा सकते हैं।

• वनम्नतापी रॉके ट इंजन(क्रार्ोजेवनक रॉके ट इंजन)- भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण र्ान में प्रर्ुि होने िाली द्रि ईंधन
र्ान्डलत इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है , इसन्डलए ऐसे इंजन वनम्नतापी रॉके ट इंजन र्ा
तुर्ारजवनक रॉके ट इंजन (क्रार्ोजेवनक रॉके ट इंन्डजन) कहलाते हैं। इस तरह के रॉके ट इंजन में अत्न्डधक ठं डी
और द्रिीकृ त िैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रर्ोि वकर्ा जाता है। इस इं जन में हाइडर ोजन और
ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा र्ह कई िुना शविशाली न्डसद्ध
होते हैं और रॉके ट को बूस्ट् दे ते हैं। विशेर्कर लं बी दूरी और भारी रॉके टों के न्डलए र्ह तकनीक आिश्यक होती
है।

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क्रार्ोजेवनक इंजन के थ्रस्ट् में तापमान बहुत ऊंर्ा (२००० वडग्री सेस्थल्सर्स से अन्डधक) होता है। अत: ऐसे में
सिायन्डधक प्राथवमक कार्य अत्ं त विपरीत तापमानों पर इंजन व्यििा बनाए रखने की क्षमता अन्डजयत करना होता है।
क्रार्ोजेवनक इंजनों में -२५३ वडग्री सेस्थल्सर्स से लेकर २००० वडग्री सेस्थल्सर्स तक का उतार-र्ढ़ाि होता है, इसन्डलए
थ्रस्ट् र्ैंबरों, टबायइनों और ईंधन के न्डसलेंडरों के न्डलए कु छ विशेर् प्रकार की वमश्-धातु की आिश्यकता होती है। भारतीर्
अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने िाली वमश्धातु विकन्डसत कर ली
है।

कवठनाइर्ााँ - अन्य द्रव्य प्रणोदकों की तुलना में क्रार्ोजेवनक द्रव्य प्रणोदकों का प्रर्ोि कवठन होता है। इसकी मुख्य
कवठनाई र्ह है वक र्े बहुत जल्दी िाष्प बन जाते हैं। इन्हें अन्य द्रि प्रणोदकों की तरह रॉके ट खं डों में नहीं भरा जा
सकता। क्रार्ोजेवनक इंजन के टरबाइन और पं प जो ईंधन और ऑक्सीकारक दोनों को दहन कक्ष में पहुंर्ाते हैं , को भी
खास वकि के वमश्धातु से बनार्ा जाता है। द्रि हाइडर ोजन और द्रि ऑक्सीजन को दहन कक्ष तक पहुंर्ाने में जरा सी
भी िलती होने पर कई करोड रुपए की लाित से बना जीएसएलिी रॉके ट रास्ते में जल सकता है। इसके अलािा दहन
के पूिय िैसों (हाइडर ोजन और ऑक्सीजन) को सही अनुपात में वमन्डश्त करना, सही समर् पर दहन प्रारंभ करना, उनके
दबािों को वनर्ं वित करना, पूरे तं ि को िमय होने से रोकना आवद

द्रि नोदन प्रणाली कें द्र - द्रि नोदक प्रणाली कें द्र 'इसरो' (भारतीर् अंतररक्ष अनुसंधान सं िठन) के प्रमोर्न र्ान और
अंतररक्ष-र्ान कार्यक्रमों के न्डलए द्रि नोदन के क्षेि में एक उत्कृ ष्‍ट कें द्र है। इस कें द्र की िवतविन्डधर्ााँ िन्डलर्माला
(वतरुिनं तपुरम), महेंद्रविरी और बैंिलोर में विस्ताररत हैं।

मुख्यालर्- एल.पी.एस.सी., िन्डलर्माला मुख्र्ालर् है। द्रि नोदक प्रणाली कें द्र को भूवम भण्डारण र्ोग्र् और वन्न
तापीर् नोदन पर अनुसंधान और विकास तथा इसे प्रमोर्न र्ान तथा अंतररक्ष र्ान के न्डलए इंजनों, र्रणों, स्बद्ध
वनर्ं िण प्रणान्डलर्ााँ प्रदान करने का उत्तदावर्त्ि सौंपा िर्ा है।

उपलस्थिर्ााँ

• पी.एस.एल.िी. के न्डलए द्रि रॉके ट र्रण और वनर्ं िण पॉिर सं र्ं ि


• जी.एस.एल.िी. के न्डलए द्रि र्रण
• न्डजर्ोसैट और आई.आर.एस. अंतररक्ष र्ानों के न्डलए नोदन प्रणाली
• एस.पी.ई. के न्डलए नोदन प्रणाली
• टर ांसड्यूसर विकास और उत्पादन
• एल.पी.एस.सी. ने कोिा नामक प्रशासवनक सॉफ़्टिेर्र की सुपुदयिी की है, न्डजसे वफलहाल इसरो के सभी कें द्रों
में उपर्ोि वकर्ा जा रहा है।

र्ोजनाएाँ - विकासाधीन प्रमुख पररर्ोजनाएाँ हैं- जी.एस.एल.िी. माकय -II के न्डलए वनम्न तापीर् ऊपरी र्रण, द्रि रॉके ट कोर
र्रण और जी.एस.एल.िी. माकय -III र्ान के न्डलए वनम्न तापीर् ऊपरी र्रण और अधय-वनम्नतापीर् का विकास।

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