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8/25/2020 अंतररा ीय राजनीित का अथ, प रभाषा एवं प

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अंतररा ीय राजनीित का अथ, प रभाषा एवं प


By Bandey March 09, 2019

अनु म
अंतरा ीय राजनीित की प रभाषा
पर रागत प रभाषाएँ - 
समसामियक प रभाषाएँ - 
अंतरा ीय राजनीित का  प
अंतरा ीय राजनीित के िवकास के चरण
सामियक घटनाओं / सम ाओं का अ यन, 1919-1939
राजनैितक सुधारवाद का युग, 1939.1945
सै ा करण के ित आ ह, 1945-1991
वै ीकरण व गैर सै ा करण का युग,
ु 1991-2003

साधारण श ों म अंतरा ीय राजनीित का अथ है रा ों के म राजनीित करना। यिद राजनीित


के अथ का अ यन कर तो तीन मुख त सामने आते ह - (i) समूहों का अ ; (ii) समूहों के
बीच असहमित; तथा (iii) समूहों ारा अपने िहतों की पूित। इस आशय को यिद अंतरा ीय र

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पर आं कलन कर तो ये तीन त मु प से - (i) रा ों का अ ; (ii) रा ों के बीच संघष;


तथा (iii) अपने रा िहतों की पूित हे तु श का योग। अत: अंतरा ीय राजनीित उन ि याओं का
अ यन करना है िजसके अंतगत रा अपने रा िहतों की पूित हे तु श के आधार पर संघषरत
रहते ह। इस संदभ म रा ीय िहत अंतरा ीय राजनीित के मुख ल होते ह; संघष इसका िदशा
िनदश तय करती है ; तथा श इस उ े ा का मुख साधन माना जाता है ।

पर ु उपरो प रभाषा को हम पर रागत मान सकते ह, ोंिक आज ‘अंतरा ीय राजनीित’ का


थान इससे ापक अवधारणा ‘अंतरा ीय संबंधों’ ने ले िलया है । इसके अंतगत रा ों के पर र
संघष के साथ-साथ सहयोगा क पहलुओं को भी अब अंतरा ीय राजनीित के अंतगत अ यन
िकया जाता है । इसके अित र आज ‘रा ों’ के इलावा अ कई कारक भी अब अंतरा ीय
राजनीित के िवषय े बन गए ह। अत: इसके अंतगत आज , सं था, संगठन व कई अ
गैर-रा ईकाइयाँ भी स िलत हो गई ह। इसका वतमान आधार व िवषय े आज काफी
ापक प ले चुका है । इन सभी िवषयों पर चचा से पहले अलग-अलग िव ानों ारा दी गई
िन प रभाषाओं की समी ा करना अित अिनवाय हो जाता है -

अंतरा ीय राजनीित की प रभाषा

पर रागत प रभाषाएँ - 

इन प रभाषाओं का दायरा अित सीिमत है , ोंिक इसके अंतगत मूलत: ‘रा ों’ को ही अ रा ीय

राजनीित के कारक के प म माना गया है । यह अंतरा ीय राजनीित के प तक ही सीिमत है ।


मु प से हस जे. मारगे ाऊ, हे रा ाऊट, बोन डॉयक, था सन आिद इसके मु

समथक ह जो इनकी िन प रभाषाओं से हो जाता है -

1. हस जे. मारगे ाऊ - “अ रा ीय राजनीित श के िलए संघष है ।”


2. हे रा ाऊट - “ त रा ों के अपने-अपने उ े ों एवं िहतों के आपसी िवरोध-

ितरोध या संघष से उ उनकी िति या एवं संबंधों का अ यन अ रा ीय राजनीित


कहलाता है ।”

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3. वोन डॉयक- “अंतरा ीय राजनीित भुस ा स रा ों की सरकारों के म श


संघष है ।”

4. था सन- “रा ों के म ार ित धा के साथ-साथ उनके आपसी संबंधों को सुधारने


या खराब करने वाली प र थितयों एवं सम ाओं का अ यन अंतरा ीय राजनीित

कहलाता है ।”

समसामियक प रभाषाएँ - 

नवीन प रभाषाओं म अंतरा ीय राजनीित के ापक प अंतरा ीय संबंधों की चचा की गई है ।


इसम रा के अित र अंतरा ीय राजनीित के नवीन कारकों जैसे अंतरा ीय संगठन, दे शां तर

समूह, गैर सरकारी संगठन, अंतरा ीय सं थाय, कुछ यों आिद को भी स िलत िकया गया
है । इसके अित र इसम संघष के साथ-साथ सहयोग तथा राजनीित के साथ-साथ या

परो प म इसे भािवत करने वाले अथात, सां ृ ितक, धािमक, सामािजक, िव ान एवं
तकनीिक आिद पहलुओं का भी उ ेख िकया गया है । िविभ लेखकों की प रभाषाओं से यह

आशय अित प म उजागर हो जाता है -

1. नामन डी. पामर व होवाड सी परिकंस - “अंतरा ीय संबंध म रा रा ों, अंतरा ीय

संगठनों तथा समूहों के पर र संबंधों के अित र और ब त कुछ स िलत है । यह


िविभ र पर पाये जाने वाले अ संबंधों का भी समावेश करता है जो रा रा के

ऊपरी व िनचले र पर िमलते ह। पर ु यह रा रा को ही अंतरा ीय समुदाय का के


मानता है ।”

2. े नले होफमैन- “अंतरा ीय संबंध उन त ों एवं गितिविधयों से स त है , जो उन


मौिलक ईकाईयों िजनम िव बंटा आ है , की बा नीितयों एवं श को भािवत करता

है ।”
3. ं सी राइट- “अंतरा ीय संबंध केवल रा ों के संबंधों को ही िनयिमत नहीं करता अिपतु

इसम िविभ कार के समूहों जैसे रा , रा , लोग, गठबंधन, े , प रसंघ, अंतरा ीय


संगठन, औ ोिगक संगठन, धािमक संगठन आिद के अ यनों को भी शािमल करना

होगा।”

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इस कार अंतरा ीय राजनीित का प ारं भ से वतमान तक ब त ापक हो जाता है । इसम


आज रा रा ों के साथ िविभ िव इकाइयों एवं संगठनों के अ यन का समावेश हो चुका है ।

पर ु इन सभी प रवतनों के बाद भी इन अ यनों का के िब दु आज भी रा रा ही है ।

अंतरा ीय राजनीित का  प

उपरो प रभाषाओं के आधार पर अंतरा ीय राजनीित के प के बारे म िन ष सामने आते

ह।

1. इन प रभाषाओं से एक बात िब ु ल प से कट होती है िक अंतरा ीय राजनीित

अभी भी बदलाव के दौर से गुजर रही है । इसके बदलाव की ि या अभी थाई प से


थािपत नहीं ई है । अिपतु यह अपने िवषय े के बारे म आज भी नवीन योगों एवं

िवषयों के समावेश से जुड़ी ई ह 

2. एक अ बात यह उभर कर आ रही है िक अंतरा ीय थित ब त जिटल है । इसके

अ यन हे तु ब आयामी यासों की आव कता होती है ।


3. यह िनि त है िक अंतरा ीय राजनीित के अ यन का के िब दु रा ही है , पर ु यह भी

काफी हद तक सही है िक इसके अंतगत रा ों के अित र िविभ संगठनों, समुदायों,

सं थाओं आिद का अ यन करना अित अिनवाय हो गया है ।

4. अंतरा ीय राजनीित के अ यन हे तु िविभ रों एवं आयामों का अ यन आव क है ।


अत: इस िवषय का अ यन अ त: अनुशासकीय आधार पर अिधक कुशलतापूवक हो

सकता है ।

5. इसके अ यन हे तु नवीन ि कोणों की उ ि हो रही है । जैसे-जैसे अंतरा ीय राजनीित म

बदलाव आता है उसके अ यन एवं सामा ीकरण हे तु नये उपागमों की आव कता होती
है । उदाहरण प, ि तीय िव यु के बाद जहां यथाथवाद, व थावादी, ीड़ा,

सौदे बाजी, तथा िनणयपरक उपागमों की उ पि ई, उसी कार अब उ र शीतयु युग

म उ र आधुिनकरण, िव व था, ि िटकल िस ा आिद की उ ि ई। भावी िव म

भी वै ीकरण व इससे जुड़े मु ों पर नये उपागमों के कायरत होने की ापक स ावनाएँ


ह।

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अत: अंतरा ीय राजनीित का प प रवतनशील है । जब-जब अंतरा ीय राजनीित के प रवेश,

कारकों व घटना म म प रवतन आयेगा, इसके अ यन करने के तरीकों व ि कोणों म भी

प रवतन अिनवाय है । इसके अित र , यह प रवतन थाई न होकर िनरं तर है । इसके साथ-साथ

िविभ कारकों, रों, आयामों आिद के कारण यह ब त जिटल है अत: इसके सुचा अ यन
हे तु ब त , तकसंगत, ापक ि कोण की आव कता होती है ।

जैसा उपरो प रभाषाओं एवं प से ात है िक अंतरा ीय राजनीित का िवषय े बढ़ता ही

जा रहा है । आज इसका िवषय े काफी ापक हो गया है िजसके अंतगत इन बातों का अ यन


िकया जाता है -

1. अंतरा ीय राजनीित के िवषय म िविभ बदलाव के बाद भी आज भी इसका मु के


िब दु रा ही है । मूलत: अंतरा ीय राजनीित रा ों के म अ : ि याओं पर ही आधा रत

होती है । ेक रा ों को अपने रा िहतों की पूित हे तु अ रा ीय राजनीित की सीमाओं म

रह कर ही काय करने पड़ते ह। पर ु इन काय के करने हे तु िविभ रा ों म संघषा क

व सहयोगा क दोनों ही कार की िति याएँ होती है । इ ीं िति याओं, इनसे जुड़े अ
पहलुओं का अ यन ही अ रा ीय राजनीित के अ यन की मुख साम ी होती है ।

2. अंतरा ीय राजनीित का दू सरा मह पूण कारक श का अ यन है । ि तीय िव यु के

उपरां त कई दशकों तक िवशेषकर शीतयु काल म, यह माना गया िक अंतरा ीय

राजनीित का मुख उ े श संघष का अ यन करना मा ही है । यथाथवादी लेखक,


िवशेषकर मारगे ाऊ, तो इस िन ष को अित मह पूण मानते ह िक”अंतरा ीय राजनीित

केवल रा ों के बीच श हे तु संघष” है । वे ‘श ’ को ही एक मा कारण मानते ह िजस

पर स ूण अंतरा ीय राजनीित अथवा पर र रा ों के संबंधों की नींव िटकी है । पर ु पूण

प से यह स नहीं है । शायद इसीिलए हम दे खते ह िक शीतयु ो र युग म श संघष


के साथ-साथ आिथक, सामािजक सां ृ ितक आिद संबंध भी उतने ही मह पूण बन गये ह

। हां इस त को भी पूण प से नहीं नकार सकते िक श आज भी अंतरा ीय राजनीित

के अ यन का एक मह पूण कारक है ।

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3. अंतरा ीय राजनीित का एक अ कारक अंतरा ीय संगठनों का अ यन भी है । आधुिनक

युग रा ों के बीच ब प ीय संबंधों का युग है । रा ों के इन ब प ीय संबंधों के संचालन म


अंतरा ीय संगठनों की भूिमका मह पूण मानी जाती है । ये अंतरा ीय संगठन रा ों के

म आिथक, सामािजक, भौगोिलक, सै , सां ृ ितक आिद ़ े म सहयोग के माग ुत

करते ह। वतमान संदभ म संयु रा के अित र िविभ अंतरा ीय एवं े ीय संगठन

जैसे िव बक, मु ा कोष, िव ापार संगठन, नाटो, यूरोपीय संघ, नाटो, द ेस, आिशयान,
रे ड ॉस, िव ा संगठन, यूने ो आिद अंतरा ीय राजनीित के अ यन का मुख

िह ा बन गए ह।

4. यु व शा की गितिविधयों का अ यन भी आज अंतरा ीय राजनीित का अिभ अंग बन

गया है । यह स है िक अंतरा ीय राजनीित न तो पूण प से सहयोग तथा न ही पूण प


से संघष पर आधा रत है । अत: मतभेद व सहमित अंतरा ीय राजनीित के सहचर ह। इन

दोनों की उप थित का अथ है यहां यु व शा दोनों की ि याएँ िव मान ह। िविभ

मु ों पर आज भी रा ों के म यु के िवक को नहीं ागा है । शीतयु के साथ-साथ

रा ों के बीच यु आज भी हो रहे ह। ब वतमान िव ान के िवकास व हिथयारों


के अित आधुिनकतम प के कारण आज यु और भी भयानक हो गए ह। यु आज

ार होने पर दो रा ों के िलए भी घातक नहीं, अिपतु, स ूण मानवता का िवनाश भी कर

सकते ह। इसीिलए यु ों को रोकने हे तु शा यासों पर भी अ िधक बल िदया जाता है ।

इसीिलए इन यु व शा के पहलुओं का अ यन करना ही अंतरा ीय राजनीित का


मुख भाग बन गया है ।

5. अंतरा ीय राजनीित वह ि या है िजसके मा म से रा अपने रा ीय िहतों का संवधन

एवं अिभ करते ह। यह ि या केवल एक समय की न होकर िनर र चलती रहती

है । इस ि या का कटीकरण रा ों की िवदे श नीितयों के मा म से होता है । अत:


अंतरा ीय राजनीित के अ यन म िवदे शी नीितयों का आकलन एक अिभ अंग बन गया

है । इसके अित र , रा ों की इन िवदे श नीितयों के प से ही अंतरा ीय राजनीित के

प म भी बदलाव आता है । इ ीं के कारण िव म शां ित व सहयोग अथवा यु की

प र थितयों को ज िमलता है । न केवल वतमान ब भावी अंतरा ीय राजनीित का

प भी इ ीं रा ों के आपसी संबंधों की गाढ़ता एवं तनाव पर िनभर करता है । अत:

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िविभ िवदे श नीितयों अ यन व आं कलन भी अंतरा ीय राजनीित का मह पूण िवषय े

है ।

6. रा ों के म सुचा , सुसंगिठत एवं सु संबंधों के िवकास हे तु कुछ िनयमावली का होना

अित आव क होता है । अत: रा ों के पर र वहार को िनयिमत करने हे तु अंतरा ीय


कानूनों की आव कता हे तु है । इसके अित र , अंतरा ीय राजनीित के सुचा प

एवं भिव के िदशा िनदश हे तु भी इनकी आव कता होती है । अंतरा ीय र पर यु ों

को रोकने, शा थािपत करने, हिथयारों की होड़ रोकने, संसाधनों का अ ािधक दोहन न

करने, भूिम, समु व आ रक को सु व थत रखने आिद िविभ िवषयों पर रा ों की


गितिविधयों को सुचा करने हे तु भी अंतरा ीय िविध का होना आव क है । अत:

अंतरा ीय राजनीित के अ यन हे तु अंतरा ीय कानूनों का समावेश भी आव क हो गया


है ।
7. रा ों की गितिविधयों म अंतरा ीय र पर आिथक मु ों का अ यन भी काफी मह पूण

रहा है । पर ु शीतयु के संघष के कारण 1945-91 तक राजनैितक मु े ादा अ णीय


रहे तथा आिथक मु े अित मह पूण हो गए है । तथा राजनैितक मु े गौण हो गए ह। वतमान
भूम लीकरण के दौर म ादातर रा आिथक सुधारों, उदारवाद, मु ापार आिद

के दौर से गुजर रहे है । ऐसी थित म आिथक गितिविधयों का अ यन अित मह पूण हो


गया है । आज संयु रा की राजनैितक ईकाइयों की बजाय िव ापार संगठन,

अंतरा ीय मु ा कोष, िव बक आिद अ ािधक मह पूण हो गए ह। अब राजनैितक


िवचारधाराओं के थान पर नए अंतरा ीय अथ था, उ र दि ण संवाद, िवकासशील
दे शों म कज की सम ा, ापार म भुगतान संतुलन, बा पूंजीिनवेश, संयु उ म,

आिथक सहायता आिद िवषय अ ािधक मह के हो गए ह। अत: अंतरा ीय राजनीित म


इन आिथक सं थाओं, संगठनों व कारकों का अ यन करना अिनवाय हो गया ह
8. अंतरा ीय राजनीित के वतमान प से यह है िक अब इस िवषय के अंतगत रा ों

के अित र गैर सरकारी संगठनों की भूिमकाएं भी मह पूण होती जा रही ह। दू सरी


अंतरा ीय राजनीित के बढ़ते िवषय े के साथ-साथ इसम कायरत सं थाओं एवं संगठनों

का िवकास भी हो रहा है । तीसरे , अब अंतरा ीय राजनीित के अंतगत कई मह पूण मु े भी


आ रहे ह, जो मानवता हे तु ानाकषण यो बन गए ह। इन सभी कारणों से अंतरा ीय

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राजनीित के अ यन का दायरा भी िवकिसत होता जा रहा है । आज इसम राजनैितक ही

नहीं ब गैर-राजनीितक िवषय जैसे पयावरण, नारीवाद, मानवािधकार, ओजोन परत


ीण होना, मादक वों की त री, गैर कानूनी ापार, शरणािथयों व िव थािपतों की

सम ाएँ आिद भी मह पूण िह ा बनते जा रहे ह। इसके साथ-साथ गैर-सरकारी सं थानों


(एन.जी.ओ.) की भूिमका भी मह पूण होती जा रही है । िविभ रों पर रा ों के िविभ
मु ों से जुड़े कई थािनय या े ीय संगठन भी आज अंतरा ीय राजनीित को व परो

प से भािवत करते ह। अत: अंतरा ीय राजनीित के दायरे म मा परं परागत िवषय े


तक सीिमत न रहकर समसामियक िवषयों को भी स िलत कर िलया है । इसीिलए इन
सभी सम ाओं, संगठनों, पहलुओं आिद का अ यन भी आज अंतरा ीय राजनीित म

मह पूण हो गया है । अत: अंतरा ीय राजनीित का िवषय े आज ब त ापक व जिटल


होने के साथ-साथ िवकास की ओर अ सर है । इसके अंतगत िविभ पर रागत कारकों के

साथ-साथ गैर-पर रागत कारकों का अ यन भी मह पूण होता जा रहा है ।

अंतरा ीय राजनीित के िवकास के चरण

अंतरा ीय राजनीित के िवकास का इितहास ादा ाचीन नहीं है , ब यह िवषय बीसवीं


शता ी की उपज है । प से दे खा जाए तो वे िव िव ालय म अंतरा ीय वुडरो िव न

पीठ की 1919 म थापना से ही इसका इितहास ार होता है । इस पीठ पर थम आसीन होने


वाले िस इितहासकार ोफेसर ऐ ड िजमन थे तथा बाद म अ मुख िव ान िज ोंने इस
पीठ को सुशोिभत िकया उनम से मुख थे - सी.के. वेब र, ई.एच.कार, पी.ए. रे ना , लारस

ड ू, मािटन, टीई. ईवानज आिद। इसी समय अ िव िव ालयों एवं सं थानों म भी इसी कार
की व थाएं दे खने को िमली। अत: िपछली एक शता ी के इस िवषय के इितहास पर ि पात
कर तो इस िवषय म आये उतार-चढ़ाव के साथ-साथ इसके एक ाय िवषय म थािपत होने के

बारे म जानकारी िमलती है । इस िवषय म आये ब आयामी प रवतनों ने जहां एक ओर िवषयव ु


का संवधन, सम य तथा िवकास िकया है , वहीं दू सरी ओर िविभ िस ा ों का ितपादन करके

ब त सी जिटल सम ाओं एवं पहलुओं को समझने म सहायता दान की है ।

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केनेथ था सन ने सन् 1962 के र ू ऑफ पॉिलिट म कािशत अपने लेख म अंतरा ीय


राजनीित के इितहास को चार भागों म बां टा है , िजसके आधार पर इस िवषय का सु एवं
सुिनि त अ यन स व हो सकता है । िवकास के इन चार चरणों म शीतयु ो र युग के पां चव

चरण को भी स िलत िकया जा सकता है । इनका िव ृत वणन िन कार से है -

1. कूटनीितक इितहास का भु , ार से 1919 तक

2. सामियक घटनाओं / सम ाओं का अ यन, 1919-1939


3. राजनैितक सुधारवाद का युग, 1939-1945.
4. सै ा करण के ित आ ह, 1945-1991

5. वै ीकरण व गैर सै ा करण का युग, 1991-2003.


6. कूटनीितक इितहास का भु , ार से 1919 तक

थम िव यु से पूव इितहास, कानून, राजनीित शा , दशन शा आिद के िव ान ही


अंतरा ीय राजनीित के अलग-अलग पहलुओं पर िवचार करते थे। मु प से इितहासकार ही

इसका अ यन राजनियक इितहास तथा अ दे शों के साथ संबंधों के इितहास के प म करते


थे। इसके अंतगत कूटनीित ों व िवदे श मंि यों ारा िकए गए काय का लेखा जोखा होता था। अत:
इसे कूटनीितक इितहास की सं ा भी दी जाती है । ई.एच.कार के अनुसार थम िव यु से पूव

यु का संबंध केवल सैिनकों तक समझा जाता था तथा इसके समक अंतरा ीय राजनीित का
संबंध राजनियकों तक। इसके अित र , जातां ि क दे शों म भी पर रागत प से िवदे श नीित
को दलगत राजनीित से अलग रखा जाता था तथा चुने ए अंग भी अपने आपको िवदे शी मं लय

पर अंकुश रखने म असमथ महसूस करते थे। 1919 से पूव इस िवषय के ित उदासीनता के कई
मुख कारण थे - थम, इस समय तक यही समझा जाता था िक यु व रा ों म गठबंधन उसी

कार ाभािवक है जैसे गरीबी व बेरोजगारी। अत: यु , िवदे श नीित एवं रा ों के म पर र


संबंधों को रोक पाना मानवीय साम य के वश से बाहर माना जाता था। ि तीय, थम िव यु से
पूव यु इतने भयंकर नहीं होते थे। तृतीय, संचार साधनों के अभाव म अंतरा ीय राजनीित कुछ

िगने चुने रा ों तक ही सीिमत थी।

इस कार इस युग म अंतरा ीय राजनीित के अ यन की सबसे बड़ी कमी सामा िहतों का

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िवकास रहा। इस काल म केवल राजनियक इितहास का वणना क अ यन मा ही आ।


प रणाम प, इससे न तो वतमान तथा न ही भावी अंतरा ीय राजनीित को समझने म कोई मदद

िमली। इस युग की मा उपल 1919 म वे िव िव ालय म अंतरा ीय राजनीित के अ यन


के पीठ की थापना रही।

सामियक घटनाओं / सम ाओं का अ यन, 1919-1939

दो िव यु ों के बीच के काल म दो समाना र धाराओं का िवकास अुअुआ। िजनम से थम के

अंतगत पूव ऐितहािसकता के ित भु को छोड़कर सामियक घटनाओं / सम ाओं के अ यन


पर अिधक बल िदया जाने लगा। इसके साथ साथ अब ऐितहािसक राजनीितक अ यन को

वतमान राजनैितक संदभ के साथ जोड़ कर दे खने का यास भी िकया गया। ऐितहािसक भाव के
कम होने के बाद भी अंतरा ीय राजनीित के अ यन हे तु एक सम ि कोण का अभाव अभी भी
बना रहा। इस काल म वतमान के अ यन पर तो ब त बल िदया गया, लेिकन वतमान एवं अतीत

के पार रक संबंध के मह को अभी भी पहचाना नहीं गया। इसके अित र , न ही यु ो र


राजनैितक सम ाओं को अतीत की तुलनीय सम ाओं के साथ रखकर दे खने का यास ही िकया
गया।

शायद इसीिलए इस युग म भी दो मूलभूत किमयाँ प से उजागर रहीं। थम, पहले चरण की

ही भां ित इस काल म भी अंतरा ीय राजनीित म सावभौिमक िस ा का िवकास नहीं हो सका।


ि तीय, आज भी अंतरा ीय राजनीित का अ यन अिधक सु एवं तकसंगत नहीं बन पाया। इस
कार इस चरण म अंतरा ीय राजनीित के अ यन म बल दे ने की थित म बदलाव के अित र

ब त ादा प रवतन दे खने को नहीं िमला तथा न ही इस िवषय के प से त अनुशासन


बनने की पुि ई।

राजनैितक सुधारवाद का युग, 1939.1945

अंतरा ीय राजनीित के िवकास का तृतीय चरण भी ि तीय चरण के समाना र दो िव यु ों के


बीच का काल रहा। इसे सुधारवाद का युग इसिलए कहा जाता है िक इसम रा ों ारा रा संघ की

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थापना के का म से अंतरा ीय राजनीित म सुधार की क ना की गई। इस युग म मु प से


सं थागत िवकास िकया गया। इस काल के िव ानों, राजनियकों, राजनेताओं व िच कों का मानना

था िक यिद अंतरा ीय सं थाओं का िवकास हो जाता है तो िव समुदाय के स ुख उप थत यु व


शां ित की सम ाओं का समाधान स व हो सकेगा। इस उ े हे तु कुछ कानूनी व नैितक

उपागमों की संरचनाएं की गई िजनके िन मु आधार थे।

1. शा थािपत करना सभी रा ों का सां झा िहत है , अत: रा ों को हिथयारों का योग ाग

दे ना चािहए।
2. अंतरा ीय र पर भी कानून व व था के मा म से झगड़ों को िनपटाया जा सकता है ।
3. रा की तरह, अंतरा ीय र पर भी, कानून के मा म से अनुिचत श योग को

ितबंिधत िकया जा सकता है ।


4. रा ों की सीमा प रवतन का काय भी कानून या बातचीत ारा हल िकया जा सकता है ।

इ ीं आदिशक एवं नैितक मू ों पर बल दे ते ए अंतरा ीय संगठन (रा संघ) की प रक ना की


गई। इसकी थापना के उपरा यह माना गया िक अब अंतरा ीय संबंधों म रा ों के म शा
बनाने का संघष समा हो गया। नई व था के अंतगत श संतुलन का कोई थान नहीं होगा।

अब रा अपने िववादों का िनपटारा संघ के मा म से करगे। अत: इस युग म न केवल यु व


शा की सम ाओं का िववेचन िकया, अिपतु इसके दू रगामी सुधारों के बारे म भी सोचा गया।

अत: अ यनकताओं के मु िब दु भी कानूनी सम ाओं व संगठनों के िवकास के साथ-साथ


इनके मा म से अंतरा ीय राजनीित के प को बदलने वाला रहा। अ त: इस काल म
भावा क, क नाशील व नैितक सुधारवाद पर अिधक बल िदया गया है ।

पर ु िव यु ों के बीच इन उपागमों की साथकता पर हमेशा िच लगा रहा। रा संघ की


थम एक दशक (1919-1929) की गितिविधयों से जहां आशा की िकरण िदखाई दी, वहीं दू सरे

दशक (1929-1939) की यथाथवादी थित ने इस धारणा को िब ु ल समा कर िदया। बड़ी


श यों के म असहयोग व गुटब यों ने शा की थापना की बजाय श संघष व था

को ज िदया। जापान ने मंचू रया पर हमले करके जहां शां ित को भंग कर िदया वहीं इटली,
जमनी व स ने भी िववादा द थितयों म न केवल रा संघ की सद ता ही छोड़ी, ब

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ि तीय िव यु के ार होने की ि या को और ती बना िदया। इस कार शा , नैितकता, व

कानून से िव व था नहीं चल सकी, तो ई.एच.कार, शुंभा, ं सी राईट आिद लेखकों के कारण


यथाथवादी ि कोण को वैक क उपागम के प म बल िमला।

सै ा करण के ित आ ह, 1945-1991

इस चरण म अंतरा ीय राजनीित म मूलभूत प रवतनों से न केवल इसकी िवषयव ु ापक ई


ब इसम ब त जिटलताएँ भी पैदा हो गई। शीतयुगीन काल म राजनीित के प म प रवतन
तथा नये रा ों के उदय ने स ूण अंतरा ीय प रवेश को ही बदल िदया। प रणाम प नये

उपागमों, आयामों, सं थाओं व वृि यों का सजन आ िजनके मा म से अंतरा ीय संबंधों का


अ यन सुिनि त हो गया।

पूव चरणों की आदिशक, सं थागत, नैितक, कानूनी एवं सुधारवादी धाराओं की असफलताओं ने
नये उपागमों के िवकास की ओर अ सर िकया। यह नया उपगम था-यथाथवाद। वैसे तो

ई.एच.कार, ाजनबजर, ं सी राईट, शुभां आिद लेखकों ने इस ि कोण को िवकिसत िकया,


पर ु हस जे. मारगे ाऊ ने इसे एक सामा िस ा के पम ुत िकया। इस िस ा के
अनुसार रा हमेशा अपने िहतों की पूित हे तु संघषरत रहते ह। अत: अ रा ीय राजनीित को

समझने हे तु इस श संघष के िविभ आयामों को समझना अित आव क है ।

यथाथवादी ि कोण के साथ अंतरा ीय सं थाओं के सुिनि त व सु िवकास के पम

अंतरा ीय संगठन (संयु रा संघ) की भी उ ि ई। अब इस संगठन का प मा


आदशवादी व सुधारवादी न होकर, मह पूण राजनैितक संगठन के प म उभर कर आया।

इसके अंतगत मानवजाित को यु की िवभीिषका से बचाने के साथ-साथ रा ों के म संघष के


कौन-कौन से कारण ह? िव शां ित हे तु खतरे के कौन-कौन से कारक ह? शां ित की थापना कैसे हो
सकती है ? श की होड़ को कैसे रोका जा सकता है ? आिद कई कार के ों का समाधान ढू ं ढने

के यास भी िकए गए।

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उपरो दो वृि यों के साथ-साथ वहारवाद की उ ि भी इस युग की मह पूण उपल


रही। वहारवादी ि कोण के मा म से “ व था िस ा ” की उ ि कर अंतरा ीय राजनीित
को समझने का यास िकया गया। इस उपागम के अंतगत रा ों के अ यन हे तु तीन मुख

कारकों का अ यन िकया जाना ज री माना गया। ये कारक थे -

1. िविभ दे शों की िवदे श नीितयों को भािवत करने वाले कारकों का अ यन;

2. िवदे श नीित संचालन की प ितयों का अ यन;


3. अंतरा ीय िववादों और सम ाओं के समाधान के उपायों का अ यन।

उपरो वृितयों का मु बल अंतरा ीय राजनीित म सै ा करण को बढ़ावा दे ना रहा है ।


अत: इस युग म अंतरा ीय राजनीित के सावभौिमक िस ा ों का ितपादन करना अित मह पूण
काय रहा है । िस ा िनमाण की इस ि या के प रणाम प अनेक आं िशक िस ा ों जैसे -

यथाथवाद, संतुलन का िस ा , संचार िस ा , ीड़ा िस ा , सौदे बाजी का िस ा , शा


अनुसंधान ि कोण, व था िस ा , िव व था ितमान आिद का िनमाण आ। इन
िस ा ों के ितपादन के बावजूद इस युग म िकसी एक सावभौिमक व सामा िस ा का

अभाव अभी भी बना रहा। 1990 के दशक म जय बंधोपा ाय ने अपनी पु क - जनरल ोरी
ऑफ इं टरनेशनल रलेशंज (1993) - म मािटन कापलान के व थापरक िस ा की किमयों

को दू र कर एक सावभौिमक िस ा की थापना की कोिशश की है , पर ु वह भी अभी वाद-


ितवाद के दौर म ही ह। अत: सै ा करण के मु दौर के बावजूद शीतयु कालीन युग अपनी

वैचा रक संकीणता व अलगाव के कारण िकसी एक सामा िस ा के ितपादन से वंिचत रहा।

वै ीकरण व गैर सै ा करण का युग,


ु 1991-2003

शीतयु ो र युग म सभी रा ों ारा एक आिथक व था के अंतगत जुड़ना ार कर िदया।

इसीिलए अब वै ीकरण, उदारीकरण, मु बाजार व था आिद का दौर ार हो गया। इस


संदभ म न केवल आिथक मु ों का ही मह बढ़ा, अिपतु अंतरा ीय राजनीित का मह और भी
बढ़ गया। आज रा ीयता एवं अंतरा ीय ता का िवभेद समा हो गया इसके अित र , अब
अंतरा ीय राजनीित की िवषय सूची म काफी नवीन िवषयों का समावेश हो गया जो रा ीय न

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रहकर अब मानवजाित की सम ाओं के प म उभर कर आये। वतमान िव की मुख

सम ाओं म आतंकवाद, पयावरण, ओजोन परत ीण होना, नशीले पदाथ एवं मादक ों की
त री, मानवािधकारों का हनन आिद मुख मु े उभर कर सामने आये िजनका रा ीय र या
े ीय र की बजाय अंतरा ीय र पर हल िनकालना अिनवाय बन गया है ।

सै ा क र पर भी 1945 से 1991 तक के सावभौिमक िस ा की थापना के यास को

ध ा लगा। अंतरा ीय राजनीित की इस संदभ म अब ाथिमकताएं बदल गई। उ र-


आधुिनकतावाद म (पो मोडिन ) अब सावभौिमक िस ा ों की साथकता पर िच लग
रहे ह। ऐितहािसक स भ एवं ाचीन प रवेश के भाव को भी नकारा जा रहा है । अब त मु े
अिधक मह पूण हो गए ह। वृहत् िस ा गौण हो गए ह। नए स भ म आं िशक शोध अिधक
मह पूण बन गई है । उदाहरण प नारीवाद, मानवािधकार, पयावरण आिद िवषयों पर अिधक
बल दे ने के साथ-साथ िच न भी ार हो गया है । अत: शीतयु ो र युग म अंतरा ीय राजनीित

का प, िवषय सूची एवं िवषय े पूण प से प रवितत हो गए ह। अब सामा सै ा क


थापना पर भी अिधक बल नहीं िदया जा रहा है । इसीिलए इस बदले ए प रवेश म अंतरा ीय
राजनीित मह पूण ही नहीं, अिपतु ाय ता की ओर अ सर तीत हो रही है । और िवषय की
ाय ता हे तु आशावादी संकेत िदखाई दे ते ह।

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दि ण-दि ण सहयोग ा है ?

उ र-दि ण संवाद का अथ

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