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प्रणायाम

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प्रणायाम
प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है। अष्ांग योग में आठ प्रटियाएाँ होती हैं- यम, टनयम,
आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, तथा समाटध । प्राणायाम = प्राण + आयाम ।
इसका शाटदिक अथथ है - 'प्राण (श्वसन) को लम्बा करना' या 'प्राण (जीवनीशटि) को लम्बा
करना'। (प्राणायाम का अथथ 'स्वास को टनयटं ित करना' या कम करना नहीं है।) प्राण या श्वास
का आयाम या टवस्तार ही प्राणायाम कहलाता है। यह प्राण -शटि का प्रवाह कर व्यटि को
जीवन शटि प्रिान करता है।

हठयोगप्रिीटिका में कहा गया है-

चले वाते चलं टचत्तं टनश्चले टनश्चलं भवेत्


योगी स्थाणत्ु वमाप्नोटत ततो वायंु टनरोधयेत॥् २॥
(अथाथत प्राणों के चलायमान होने िर टचत्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के टनश्चल
होने िर मन भी स्वत: टनश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों
का टनयंिण करना चाटहये।
यह भी कहा गया है-

यावद्वायःु टस्थतो िेहे तावज्जीवनमच्ु यते।


मरणं तस्य टनष्क्िाट्तः ततो वायंु टनरोधयेत् ॥
( जब तक शरीर में वायु है तब तक जीवन है। वायु का टनष्क्िमण (टनकलना) ही मरण है। अतः
वायु का टनरोध करना चाटहये।)

प्राणायाम िो शदिों के योग से बना है- (प्राण+आयाम) िहला शदि "प्राण" है िसू रा
"आयाम"। प्राण का अथथ जो हमें शटि िेता है या बल िेता है। आयाम का अथथ जानने के टलये
इसका संटध टवच्छे ि करना होगा क्योंटक यह िो शदिों के योग (आ+याम) से बना है। इसमें
मल ू शदि '"याम" ' है 'आ' उिसगथ लगा है। याम का अथथ 'गमन होता है और '"आ" ' उिसगथ
'उलिा ' के अथथ में प्रयोग टकया गया है अथाथत आयाम का अथथ उलिा गमन होता है। अतः
प्राणायाम में आयाम को 'उलिा गमन के अथथ में प्रयोग टकया गया है। इस प्रकार प्राणायाम का
अथथ 'प्राण का उलिा गमन होता है। यहााँ यह ध्यान िेने टक बात है टक प्राणायाम प्राण के उलिा
गमन के टवशेष टिया की संज्ञा है न टक उसका िररणाम। अथाथत प्राणायाम शदि से प्राण के
टवशेष टिया का बोध होना चाटहये।

प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋटषयों ने अिने-अिने ढंग से कहा है लेटकन सभी के भाव एक
ही है जैसे ित्जटल का प्राणायाम सिू एवं गीता में टजसमें ित्जटल का प्राणायाम सिू
महत्विणू थ माना जाता है जो इस प्रकार है- तटस्मन सटत श्वासप्रश्वासयोगथटतटवच्छे ि:प्राणायाम॥
इसका टह्िी अनवु ाि इस प्रकार होगा- श्वास प्रश्वास के गटत को अलग करना प्राणायाम है। इस
सिू के अनसु ार प्राणायाम करने के टलये सबसे िहले सिू की सम्यक व्याख्या होनी चाटहये
लेटकन ितंजटल के प्राणायाम सिू की व्याख्या करने से िहले हमे इस बात का ध्यान िेना
चाटहये टक ितजं टल ने योग की टियाओ ं एवं उिायें को योगसिू नामक िस्ु तक में सिू रूि से
सक ं टलत टकया है और सिू का अथथ ही होता है -एक टनटश्चत टनयम जो गटणतीय एवं टवज्ञान
सम्मत हो। यटि सिू की सही व्याख्या नहीं हुई तो उत्तर सत्य से िरू एवं िररणाम श्ू य होगा।
यटि ितंजटल के प्राणायाम सिू के अनसु ार प्राणायाम करना है तो सबसे िहले उनके प्राणायाम
सिू तटस्मन सटत श्वासप्रश्वासयोगथटतटवच्छे ि:प्राणायाम॥ की सम्यक व्याख्या होनी चाटहये जो
शास्त्रानसु ार, टवज्ञान सम्मत, ताटकथ क, एवं गटणतीय हो। इसी व्याख्या के अनसु ार टिया करना
होगा। इसके टलये सिू में प्रयि
ु शदिों का अथथबोध होना चाटहये तथा उसमें िी गयी गटत
टवच्छे ि की टवशेष यटु ि को जानना होगा। इसके टलये ितजं टल के प्राणायाम सिू में प्रयि

शदिो का अथथ बोध होना चाटहये।

प्राणायाम प्राण अथाथत् सााँस आयाम याने िो सााँसो मे िरू ी बढाना, श्वास और टन:श्वास की
गटत को टनयिं ण कर रोकने व टनकालने की टिया को कहा जाता है।
श्वास को धीमी गटत से गहरी खींचकर रोकना व बाहर टनकालना प्राणायाम के िम में आता है।
श्वास खींचने के साथ भावना करें टक प्राण शटि, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अिं र खींची जा रही है,
छोड़ते समय यह भावना करें टक हमारे िगु थणु , िष्क्ु प्रवटृ त्तयााँ, बरु े टवचार प्रश्वास के साथ बाहर
टनकल रहे हैं। हम सााँस लेते है तो टसर्फथ हवा नहीं खीचते तो उसके साथ ब्रह्मा्ड की सारी उजाथ
को उसमे खींचते है। अब आिको लगेगा की टसर्फथ सााँस खीचने से ऐसा कै सा होगा। हम जो
सााँस फे फडो में खीचते है, वो टसर्फथ सााँस नहीं रहती उसमे सारे ब्रम्ह्ड की सारी उजाथ समायी
रहती है। मान लो जो सााँस आिके िरू े शरीर को चलाना जनती है, वो आिके शरीर को िरुु स्त
करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम टनम्न मिं (गायिी महामंि) के उच्चारण के साथ टकया
जाना चाटहये।

महत्व
प्राणायाम का योग में बहुत महत्व है। आटि शंकराचायथ श्वेताश्वतर उिटनषि िर अिने भाष्क्य में
कहते हैं, "प्राणायाम के द्वारा टजस मन का मैल धल ु गया है वही मन ब्रह्म में टस्थर होता है।
इसटलए शास्त्रों में प्राणायाम के टवषय में उल्लेख है।"[1] स्वामी टववेकानंि इस टवषय में
अिना मत व्यि करते हैं, "इस प्राणायाम में टसद्ध होने िर हमारे टलए मानो अनंत शटि का
द्वार खल
ु जाता है। मान लो, टकसी व्यटि की समझ में यह प्राण का टवषय िरू ी तरह आ गया
और वह उस िर टवजय प्राप्त करने में भी कृतकायथ हो गया , तो टफर संसार में ऐसी कौन-सी
शटि है, जो उसके अटधकार में न आए? उसकी आज्ञा से च्र-सयू थ अिनी जगह से टहलने
लगते हैं, क्षरु तम िरमाणु से वहृ त्तम सयू थ तक सभी उसके वशीभतू हो जाते हैं, क्योंटक उसने
प्राण को जीत टलया है। प्रकृटत को वशीभतू करने की शटि प्राप्त करना ही प्राणायाम की
साधना का लक्ष्य है।

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