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शब्‍

दों‍में‍अभिव्‍
यक्ति‍की‍क्षमिा‍होिी‍है , वो‍आपको‍हँसा‍
सकिे‍हैं, रूला‍सकिे‍हैं, झकझोर‍सकिे‍हैं।‍और‍िो‍और‍
ववचार‍करने‍के‍भलए‍मजबरू ‍कर‍सकिे‍हैं।‍इसके‍भलए‍
आपके‍पास‍भसर्फ‍एक‍गण ु ‍होना‍चाहहए।‍वो‍है ‍रचनात्‍
मक‍
लेखन।
रचनात्‍मक‍लेखन
 अनच्
ु छे द‍लेखन
 पत्र-लेखन
 ववज्ञापन‍लेखन.
 चचत्र-वणफन
 संवाद-लेखन
 नारा -लेखन
 कथा‍लेखन
 संदेश लेखन
 सच
ू ना‍लेखन
 पत्र-लेखन
भलखखि‍रूप‍में ‍अपने‍मन‍के‍िावों‍एवं‍ववचारों‍को‍प्रकट‍करने‍का‍माध्यम‍'पत्र'
हैं।
दरू ‍रहने‍वाले‍अपने‍सबक्धियों‍अथवा‍भमत्रों‍की‍कुशलिा‍जानने‍के‍भलए‍िथा‍अपनी‍
कुशलिा‍का‍समाचार‍दे ने‍के‍भलए‍पत्र‍एक‍सािन‍है ।‍इसके‍अतिररतत‍अधय‍कायों‍
के‍भलए‍िी‍पत्र‍भलखे‍जािे‍है ।‍
अच्छे पत्र की विशेषताएँ
एक‍अच्छे ‍पत्र‍की‍पाँच‍ववशेषिाएँ‍है -
(1) प्रभािोत्पादकता
(2) विचारों की सस् ु पष्ठता
(3) संक्षेप और सम्पूर्त ण ा
(4) सरल भाषाशैली
(5) बाहरी सजािट
(6) शद्ु धता और स्िच्छता
(7) विनम्रता और शशष्टता
(8) सद्भािना
(9) सहज और स्िाभाविक शैली
(10) क्रमबद्धता
(11) विराम चचह्नों पर विशेष ध्यान
(12) उद्दे श्यपर्
ू ण
पत्रों के प्रकार
मुख्य रूप से पत्रों को ननम्नशलखित दो िर्गों में विभाजजत ककया जा सकता
है :
(1) अनौपचाररक-पत्र (व्यजततर्गत पत्र )
(2) औपचाररक-पत्र (प्रार्णना-पत्र/आिेदन पत्र, कायाणलयी-पत्र, व्यिसानयक-पत्र )

अनौपचाररक-पत्र का प्रारूप
प्रेषक‍का‍पिा‍
..................
...................
...................
हदनांक‍...................
संबोिन‍...................
अभिवादन‍...................
पहला‍अनच् ु छे द‍................... (कुशलक्षेम)...................
दस ू रा‍अनच् ु छे द‍...........(ववषय-वस्ि-ु क्जस‍बारे ‍में‍पत्र‍भलखना‍है )............
िीसरा‍अनच् ु छे द‍................ (समाक्ति)................
प्रापक‍के‍साथ‍प्रेषक‍का‍संबि ं ‍
प्रेषक‍का‍नाम‍................
अनौपचाररक-पत्र की प्रशजस्त, अशभिादन ि
समाजतत
(1) अपने से बड़े आदरर्ीय संबंचधयों के शलए :
प्रशजस्त - आदरणीय, पज
ू नीय, पज्
ू य, श्रद्िेय‍आहद।‍
अशभिादन - सादर‍प्रणाम, सादर‍चरणस्पशफ, सादर‍नमस्कार‍आहद।‍
समाजतत - आपका‍बेटा, पोिा, नािी, बेटी, पोिी, नातिन, ििीजा‍
आहद।‍

(2) अपने से छोटों या बराबर िालों के शलए :


प्रशजस्त - वप्रय, चचरं जीव, तयारे , वप्रय‍भमत्र‍आहद।‍
अशभिादन - मिुर‍स्मतृ ियाँ, सदा‍खुश‍रहो, सुखी‍रहो, आशीवाफद‍
आहद।‍
समाजतत - िुम्हारा, िुम्हारा‍भमत्र, िुम्हारा‍हहिैषी, िुम्हारा‍शुिचचंिक‍
आहद।‍
(1) अपने पररिार से दरू रहकर नौकरी कर रहे वपता का हाल-चाल जानने के शलए पत्र
शलखिए।

20/3, रामनगर,
कानपुर।‍
हदनांक‍15 माचफ, 20XX
पज्
ू य‍वपिाजी,
सादर‍चरण-स्पशफ।‍
कई‍हदनों‍से‍आपका‍कोई‍पत्र‍प्राति‍नहीं‍हुआ।‍हम‍सब‍यहाँ‍कुशलपूवक फ ‍रहकर‍िगवान‍
से‍आपकी‍कुशलिा‍एवं‍स्वास््य‍के‍भलए‍सदा‍प्राथफना‍करिे‍हैं।‍वपिाजी, मैंने‍घर‍की‍
सारी‍क्जम्मेदाररयाँ‍सम्िाल‍ली‍हैं।‍घर‍एवं‍बाहर‍के‍अचिकांश‍काम‍अब‍मैं‍ही‍करिा‍हूँ।‍
सलोनी‍आपको‍बहुि‍याद‍करिी‍हैं।‍वह‍हर‍समय‍पापा-पापा‍की‍रट‍लगाए‍रहिी‍हैं।‍इस‍
बार‍घर‍आिे‍समय‍उसके‍भलए‍गुड़ियों‍का‍उपहार‍लेिे‍आइएगा।‍
आप‍अपनी‍सेहि‍का‍ख्याल‍रखना।‍समय‍पर‍खाना, समय‍पर‍सोना।‍यहद‍आपको‍
स्वास््य‍से‍ितनक‍िी‍गिबिी‍महसस ू ‍हो‍िो‍डॉतटर‍से‍परामशफ‍कर‍िरु ं ि‍ही‍अपना‍
उचचि‍इलाज‍करवाना।‍
आपके‍पत्र‍के‍जवाब‍के‍इधिजार‍में ।‍
आपका‍पुत्र,
ववजय‍मोहन‍
(2)औपचाररक पत्र-
प्रिानाचायफ, पदाचिकाररयों, व्यापाररयों, ग्राहकों, पुस्िक‍ववक्रेिा,
सम्पादक‍आहद‍को‍भलखे‍गए‍पत्र‍औपचाररक‍पत्र‍कहलािे‍हैं।

औपचाररक-पत्र का प्रारूप व्यिसानयक-पत्र


प्रधानाचायण को प्रार्णना-पत्र प्रेषक‍का‍पिा......................
प्रिानाचायफ, हदनांक‍......................
ववद्यालय‍का‍नाम‍व‍पिा............. पत्र‍प्रापक‍का‍पदनाम,
ववषय‍: (पत्र‍भलखने‍के‍कारण)। पिा......................
माननीय‍महोदय, ववषय‍: (पत्र‍भलखने‍का‍कारण)।
पहला‍अनुच्छे द‍...................... महोदय,
दस ू रा‍अनुच्छे द‍...................... पहला‍अनुच्छे द‍......................
आपका‍आज्ञाकारी‍भशष्य, दस ू रा‍अनुच्छे द‍......................
क०‍ख०‍ग०‍ िवदीय,
कक्षा...................... अपना‍नाम‍
हदनांक‍......................
अपने विद्यालय के प्रधानाचायण को पत्र शलखिए, जजसमें बीमारी के कारर् अिकाश लेने के
शलए प्रार्णना की र्गई हो।
243, प्रिाप‍नगर, ...............................(पत्र भेजने िाले का पता)
हदल्ली।‍
ददनांक 25 मई, 20XX...............................(ददनांक)
सेवा‍में ,
श्रीमान‍प्रिानाचायफ‍जी,
सवोदय‍ववद्यालय,
सी.सी.कालोनी,
हदल्ली।....................................... (पत्र प्रातत करने िाले का पता)
विषय‍बीमारी‍के‍कारण‍छुट्टी‍के‍भलए‍प्राथफना-पत्र।.................. (विषय)
महोदय,............................... (सम्बोधन)
सववनय‍तनवेदन‍यह‍हैं‍कक‍मैं‍आपके‍ववद्यालय‍की‍कक्षा‍दसवीं‍'ब' का‍छात्र‍हूँ।‍मझ ु े‍कल‍
राि‍से‍बहुि‍िेज‍ज्वर‍हैं।‍डॉतटर‍ने‍मुझे‍दो‍हदन‍आराम‍करने‍की‍सलाह‍दी‍हैं।‍इस‍
कारण‍मैं‍आज‍ववद्यालय‍में ‍उपक्स्थि‍नहीं‍हो‍सकिा।‍कृपया, मुझे‍दो‍हदन‍(25 मई‍से‍
26 मई‍20XX) का‍अवकाश‍प्रदान‍करने‍की‍कृपा‍करें ।...............(विषय िस्तु)
िधयवाद।‍...............................(अशभिादन की समाजतत)
आपका‍आज्ञाकारी‍भशष्य‍
नरे श‍कुमार‍
कक्षा-दसवीं‍'ब'
(4) भारी िषाण के कारर् हुए नुकसान से अिर्गत कराते हुए मख् ु यमन्त्त्री को सहायतार्ण प्रार्णना-पत्र
शलखिए।
16/1, रामनगर, नैनीिाल‍
उतराखण्ड।‍
ददनांक 20 अगस्ि, 20XX
सेवा‍में ,
माननीय‍मुख्यमधत्री‍महोदय,
उतराखण्ड‍सरकार,
दे हरादन ू ।‍
विषय- मुख्यमधत्री‍से‍िात्काभलक‍सहायिा‍हे िु।‍
माधयवर,
सववनय‍तनवेदन‍यह‍है ‍कक‍मैं‍रामनगर, नैनीिाल‍क्षेत्र‍का‍तनवासी‍हूँ।‍दि ु ाफग्य‍से‍इस‍वषफ‍हमारे ‍
क्षेत्र‍में ‍िारी‍वषाफ‍हुई, क्जसके‍कारण‍हमारे ‍खेिों‍में ‍महीनों‍पानी‍जमा‍रहा।‍जल‍का‍समचु चि‍
तनकास‍न‍होने‍के‍कारण‍वषाफ‍के‍इस‍पानी‍ने‍हमारी‍सारी‍र्सल‍चौपट‍कर‍दी।‍पशओ ु ‍ं के‍भलए‍
बोया‍गया‍चारा‍िी‍गलकर‍नष्ट‍हो‍गया।‍पररणामस्वरूप‍मनुष्यों‍और‍पशओ ु ‍ं दोनों‍के‍भलए‍अनाज
का‍संकट‍आन‍पिा‍है ।‍स्थान-स्थान‍पर‍पानी‍जमा‍रहने‍के‍कारण‍अनेक‍बीमाररयाँ‍िी‍र्ैल‍गई‍
हैं।‍लोग‍अपने-अपने‍घरों‍को‍छोिने‍के‍भलए‍बाध्य‍हो‍रहे ‍हैं।‍क्स्थति‍दयनीय‍और‍चचधिाजनक‍है ।
आपसे‍अनरु ोि‍है ‍कक‍शीघ्र‍ही‍इस‍क्षेत्र‍के‍तनवाभसयों‍की‍समस्याओं‍पर‍संज्ञान‍लेिे‍हुए‍उनकी‍
सहायिा‍के‍भलए‍क्जलाचिकारी‍को‍आदे श‍दें ।‍
आशा‍है ‍आप‍शीघ्र‍ही‍इस‍ओर‍ध्यान‍दें गे‍और‍उचचि‍िात्काभलक‍सहायिा‍दे कर‍यहाँ‍के‍
तनवाभसयों‍को‍संकट‍की‍इस‍क्स्थति‍से‍बचाएँगे।‍
िधयवाद।‍
िवदीय‍
हस्िाक्षर.....
ककशोर‍कमार‍
 संवाद-लेखन
बोली‍मनष्ु य‍के‍भलए‍सबसे‍बिा‍वरदान‍है ।

इसी‍कारण‍वह‍सिी‍प्राखणयों‍में‍सवफश्रेष्ठ‍है ।

बोलना‍िी‍एक‍कला‍है ।‍

अपनी‍बाि‍से‍आप‍सामने‍वाले‍को‍ककिना‍प्रिाववि‍कर‍पािे‍है
यह‍आपके‍वािाफलाप‍के‍ढं ग‍से‍सम्िव‍होिा‍है ।

दो या दो से अचधक व्यजततयों की आपस की बातचीत


को िाताणलाप या संिाद कहा जाता है ।
अच्छी संिाद-रचना के शलए ननम्नशलखित बातों का ध्यान
रिना चादहए-

(1) संवाद‍छोटे , सहज‍िथा‍स्वािाववक‍हों।‍


(2) संवादों‍में‍रोचकिा‍एवं‍सरसिा‍हो।‍
(3) इनकी‍िाषा‍सरल, स्वािाववक‍और‍बोलचाल‍के‍तनकट‍हो।‍उसमें‍
क्तलष्ट‍िथा‍अप्रचभलि‍शब्दों‍का‍प्रयोग‍न‍हो।‍
(4) संवाद‍पात्रों‍की‍सामाक्जक‍क्स्थति‍के‍अनुकूल‍हों।‍अनपढ़‍या‍ग्रामीण‍
पात्रों‍और‍भशक्षक्षि‍पात्रों‍के‍संवादों‍में‍अंिर‍रहना‍चाहहए।‍
(5) संवाद‍क्जस‍ववषय‍या‍क्स्थति‍के‍सम्बधि‍में‍हों, उसे‍क्रमशः‍स्पष्ट‍
करने‍वाले‍हों।‍
(6) प्रसंग‍के‍अनुसार‍संवादों‍में‍व्यंग्य-ववनोद‍का‍समावेश‍होना‍चाहहए।‍
(7) यथास्थान‍मुहावरों‍िथा‍लोकोक्तियों‍के‍प्रयोग‍से‍संवादों‍में‍सजीविा‍
आ‍जािी‍है ।‍
वपता और पुत्र में िाताणलाप

वपता- बेटे‍अिुल, कैसा‍रहा‍िुम्हारा‍परीक्षार्ल‍?


पत्र
ु - बहुि‍अच्छा‍नहीं‍रहा, वपिाजी।
वपता- तयों‍? बिाओ‍िो‍ककिने‍अंक‍आए‍हैं‍?
पत्र
ु - हहधदी‍में ‍सतर, अंग्रेजी‍में ‍बासठ, कामसफ‍में ‍अस्सी, अथफशास्त्र‍में ‍बहतर......
वपता- अंग्रेजी‍में ‍इस‍बार‍इिने‍कम‍अंक‍तयों‍हैं‍? कोई‍प्रश्न‍छूट‍गया‍था‍?
पुत्र- पूरा‍िो‍नहीं‍छूटा‍..... सबसे‍अंि‍में ‍'ऐस्से' भलखा‍था, वह‍अिूरा‍रह‍गया।
वपता- ििी‍िो...... ।‍अलग-अलग‍प्रश्नों‍के‍समय‍तनिाफररि‍कर‍भलया‍करो, िो‍यह‍नौबि‍नहीं‍
आएगी।‍खैर, गखणि‍िो‍रह‍ही‍गया।
पत्रु - गखणि‍का‍पचाफ‍अच्छा‍नहीं‍हुआ‍था।‍उसमें ‍केवल‍पचास‍अंक‍आए‍हैं।
वपता- यह‍िो‍बहुि‍खराब‍बाि‍है ।‍गखणि‍से‍ही‍उच्च‍श्रेणी‍लाने‍में ‍सहायिा‍भमलिी‍है ।
पुत्र- पिा‍नहीं‍तया‍हुआ, वपिाजी।‍एक‍प्रश्न‍िो‍मुझे‍आिा‍ही‍नहीं‍था।‍शायद‍पाठ्यक्रम‍से‍बाहर‍
का‍था।
वपता- एक‍प्रश्न‍न‍करने‍से‍इिने‍कम‍अंक‍िो‍नहीं‍आने‍चाहहए।
पत्र ु - एक‍और‍प्रश्न‍बहुि‍कहठन‍था।‍उसमें ‍शरू ु ‍से‍ही‍ऐसी‍गिबिी‍हुई‍कक‍सारा‍प्रश्न‍गलि‍हो‍
गया।
वपता- अधय‍छात्रों‍की‍तया‍क्स्थति‍है ‍?
पत्र ु - बहुि‍अच्छे ‍अंक‍िो‍ककसी‍के‍िी‍नहीं‍आए‍पर‍मझ ु से‍कई‍छात्र‍आगे‍हैं।
वपता- सब‍अभ्यास‍की‍बाि‍है ‍बेटे‍! सुना‍नहीं‍'करि‍करि‍अभ्यास‍के, जिमति‍होि‍सुजान।' िुम‍
िो‍स्वयं‍समझदार‍हो।‍अब‍वावषफक‍परीक्षाएँ‍तनकट‍है ।‍दरू दशफन‍और‍खेल‍का‍समय‍कुछ‍कम‍
करके‍उसे‍पढ़ाई‍में ‍लगाओ।
पुत्र- जी‍वपिाजी‍! मैं‍कोभशश‍करूँगा‍कक‍अगली‍बार‍गखणि‍में ‍पूरे‍अंक‍लाऊँ।
वपिा- मेरा‍आशीवाफद‍िम् ु हारे ‍साथ‍है ।
रोर्गी और िैद्य
रोर्गी- (औषिालय‍में ‍प्रवेश‍करिे‍हुए) वैद्यजी, नमस्कार!
िैद्य-‍नमस्कार! आइए, पिाररए! कहहए, तया‍हाल‍है ‍?
रोर्गी-‍पहले‍से‍बहुि‍अच्छा‍हूँ।‍बख
ु ार‍उिर‍गया‍है , केवल‍खाँसी‍रह‍गयी‍है ।‍
िैद्य-‍घबराइए‍नहीं।‍खाँसी‍िी‍दरू ‍हो‍जायेगी।‍आज‍दस ू री‍दवा‍दे िा‍हूँ।‍आप‍जल्द‍अच्छे ‍
हो‍जायेंगे।‍
रोर्गी- आप‍ठीक‍कहिे‍हैं।‍शरीर‍दब ु ला‍हो‍गया‍है ।‍चला‍िी‍नहीं‍जािा‍और‍बबछावन‍पर‍
पिे-पिे‍िंग‍आ‍गया‍हूँ।‍
िैद्य-‍चचंिा‍की‍कोई‍बाि‍नहीं।‍सख ु -दःु ख‍िो‍लगे‍ही‍रहिे‍हैं।‍कुछ‍हदन‍और‍आराम‍
कीक्जए।‍सब‍ठीक‍हो‍जायेगा।‍
रोर्गी-‍कृपया‍खाने‍को‍बिायें।‍अब‍िो‍थोिी-थोिी‍िख ू ‍िी‍लगिी‍है ।‍
िैद्य-‍र्ल‍खूब‍खाइए।‍जरा‍खट्टे ‍र्लों‍से‍परहे ज‍रखखए, इनसे‍खाँसी‍बढ़‍जािी‍है ।‍दि ू ,
खखचिी‍और‍मँग ू ‍की‍दाल‍आप‍खा‍सकिे‍हैं।‍
रोर्गी-‍बहुि‍अच्छा! आजकल‍गमी‍का‍मौसम‍है ; तयास‍बहुि‍लगिी‍है ।‍तया‍शरबि‍पी‍
सकिा‍हूँ‍?
िैद्य-‍शरबि‍के‍स्थान‍पर‍दि ू ‍अच्छा‍रहे गा।‍पानी‍िी‍आपको‍अचिक‍पीना‍चाहहए।‍
रोर्गी-‍अच्छा, िधयवाद! कल‍कर्र‍आऊँगा।‍
िैद्य-‍अच्छा, नमस्कार।‍
 अनच्
ु छे द‍लेखन
ककसी‍एक‍िाव‍या‍ववचार‍को‍व्यति‍करने‍के‍भलए‍भलखे‍गये‍सम्बद्ि‍और‍
लघु‍वातय-समूह‍को‍अनुच्छे द-लेखन‍कहिे‍हैं।

दस
ू रे ‍शब्दों‍में -‍ककसी‍घटना, दृश्य‍अथवा‍ववषय‍को‍संक्षक्षति‍(कम‍शब्दों‍में)
ककधि‍ु सारगभिफि‍(अथफपण ू )फ ढं ग‍से‍क्जस‍लेखन-शैली‍में‍प्रस्िुि‍ककया‍जािा‍है ,
उसे‍अनुच्छे द-लेखन‍कहिे‍हैं।

'अनच्
ु छे द' शब्द‍अंग्रेजी‍िाषा‍के‍'Paragraph' शब्द‍का‍हहंदी‍पयाफय‍है ।‍अनच्
ु छे द‍
'तनबंि' का‍संक्षक्षति‍रूप‍होिा‍है ।‍इसमें‍ककसी‍ववषय‍के‍ककसी‍एक‍पक्ष‍पर‍
80 से‍100 शब्दों‍में‍अपने‍ववचार‍व्यति‍ककए‍जािे‍हैं।

अनच्
ु छे द‍अपने-आप‍में‍स्विधत्र‍और‍पण
ू ‍फ होिे‍हैं।‍अनुच्छे द‍का‍मुख्य‍ववचार‍
या‍िाव‍की‍कंु जी‍या‍िो‍आरम्ि‍में‍रहिी‍है‍या‍अधि‍में।‍एक‍अच्छे ‍
अनुच्छे द-लेखन‍में‍मुख्य‍ववचार‍अधि‍में‍हदया‍जािा‍है ।
अनुच्छे द के कुछ उदाहरर्
(1)समय ककसी के शलए नहीं रुकता

'समय' तनरं िर‍बीििा‍रहिा‍है , किी‍ककसी‍के‍भलए‍नहीं‍ठहरिा।‍जो‍व्यक्ति‍समय‍के‍


मोल‍को‍पहचानिा‍है , वह‍अपने‍जीवन‍में ‍सर्लिा‍प्राति‍करिा‍है ।‍समय‍बीि‍जाने‍पर‍
ककए‍गए‍कायफ‍का‍कोई‍र्ल‍प्राति‍नहीं‍होिा‍और‍पश्चािाप‍के‍अतिररति‍कुछ‍हाथ‍नहीं‍
आिा।‍जो‍ववद्याथी‍सब ु ह‍समय‍पर‍उठिा‍है , अपने‍दै तनक‍कायफ‍समय‍पर‍करिा‍है ‍िथा‍
समय‍पर‍सोिा‍है , वही‍आगे‍चलकर‍सर्ल‍व‍उधनि‍व्यक्ति‍बन‍पािा‍है ।‍जो‍व्यक्ति‍
आलस‍में ‍आकर‍समय‍गँवा‍दे िा‍है , उसका‍िववष्य‍अंिकारमय‍हो‍जािा‍है ।‍संिकवव‍
कबीरदास‍जी‍ने‍िी‍अपने‍दोहे ‍में ‍कहा‍है ‍-
''काल‍करै ‍सो‍आज‍कर, आज‍करै ‍सो‍अब।
पल‍में ‍परलै‍होइगी, बहुरर‍करे गा‍कब।।''
समय‍का‍एक-एक‍पल‍बहुि‍मूल्यवान‍है ‍और‍बीिा‍हुआ‍पल‍वापस‍लौटकर‍नहीं‍आिा।‍
इसभलए‍समय‍का‍महत्व‍पहचानकर‍प्रत्येक‍ववद्याथी‍को‍तनयभमि‍रूप‍से‍अध्ययन‍करना‍
चाहहए‍और‍अपने‍लक्ष्य‍की‍प्राक्ति‍करनी‍चाहहए।‍जो‍समय‍बीि‍गया‍उस‍पर‍विफमान‍
समय‍में ‍सोच‍कर‍और‍अचिक‍समय‍बरबाद‍न‍करके‍आगे‍अपने‍कायफ‍पर‍ववचार‍कर-
लेना‍ही‍बद्
ु चिमानी‍है ।
(3) शमत्र के जन्त्म ददन का उत्सि

मेरे‍भमत्र‍रोहहि‍का‍जधम-हदन‍था।‍उसने‍अधय‍भमत्रों‍के‍साथ‍मुझे‍िी‍बुलाया।‍रोहहि‍के‍
कुछ‍ररश्िेदार‍िी‍आए‍हुए‍थे, ककधि‍ु अचिकिर‍भमत्र‍ही‍उपक्स्थि‍थे।‍घर‍के‍आँगन‍में ‍ही‍
समारोह‍का‍आयोजन‍ककया‍गया‍था।‍उस‍स्थान‍को‍बहुि‍ही‍सुंदर‍ढं ग‍से‍सजाया‍गया‍
था।‍हर‍जगह‍झक्ण्डयाँ‍और‍गब्ु बारे ‍थे।‍आँगन‍में ‍लगे‍एक‍पेि‍पर‍रं ग-बबरं गे‍बल्ब‍जगमग‍
कर‍रहे ‍थे।‍जब‍मैं‍पहुँचा‍िो‍मेहमान‍आने‍शरू ु ‍ही‍हुए‍थे।‍मेहमान‍रोहहि‍के‍भलए‍कोई-
न-कोई‍उपहार‍लेकर‍आिे, उसके‍तनकट‍जाकर‍बिाई‍दे िे‍और‍रोहहि‍उनका‍िधयवाद‍
करिा।‍क्रमशः‍लोग‍छोटी-छोटी‍टोभलयों‍में ‍बैठकर‍गपशप‍करने‍लगे।‍संगीि‍की‍मिरु ‍
ध्वतनयाँ‍गँजू ‍रही‍थी।‍एक-दो‍भमत्र‍उठकर‍नत्ृ य‍करने‍लगे।‍कुछ‍भमत्र‍िाभलयों‍बजा‍कर‍
अपना‍योगदान‍दे ने‍लगे।‍चारों‍ओर‍उल्लास‍का‍वािावरण‍था।

साि‍बजे‍के‍लगिग‍केक‍काटा‍गया।‍सब‍भमत्रों‍ने‍िाभलयाँ‍बजाई‍और‍भमलकर‍जधमहदन‍
की‍बिाई‍का‍गीि‍गाया।‍माँ‍ने‍रोहहि‍को‍केक‍खखलाया।‍अधय‍लोगों‍ने‍िी‍केक‍खाया।‍
कर्र‍सिी‍खाना‍खाने‍लगे।‍खाने‍में ‍अनेक‍प्रकार‍की‍भमठाइयाँ‍और‍नमकीन‍थे।‍िब‍
हमने‍रोहहि‍को‍एक‍बार‍कर्र‍बिाई‍दी, उसकी‍दीघाफय‍ु की‍कामना‍की‍और‍अपने-अपने‍
घर‍को‍चल‍हदए।‍वह‍कायफक्रम‍इिना‍अच्छा‍था‍कक‍अब‍िी‍स्मरण‍हो‍आिा‍है ।
 चचत्र-वणफन
ककसी‍चचत्र‍को‍दे खकर‍उससे‍संबंचिि‍मन‍में ‍उठने‍वाले‍िावों‍को‍अपनी‍कल्पनाशक्ति‍
के‍माध्यम‍से‍अभिव्यति‍करना‍ही‍'चचत्र-वणफन' कहलािा‍है ।

दस
ू रे ‍शब्दों‍में -‍चचत्र‍को‍दे खकर‍उसमें ‍तनहहि‍कक्रयायों, क्स्थतियों‍और‍िावों‍का‍वणफन‍
ही‍'चचत्र-वणफन' कहलािा‍है ।

सरल‍शब्दों‍में -‍हदए‍गए‍चचत्र‍को‍दे ख‍कर‍उस‍चचत्र‍को‍अपने‍शब्दों‍में ‍प्रस्िि


ु ‍करना‍
ही‍'चचत्र-वणफन' कहा‍जािा‍है ।

चचत्र-वणफन‍के‍लाि‍

(1) चचत्र-वणफन‍से‍वस्िओ
ु ‍ं या‍दृश्यों‍को‍परखने‍की‍क्षमिा‍का‍ववकास‍होिा‍है ।
(2) चचत्र-वणफन‍से‍कल्पना‍शक्ति‍का‍ववकास‍होिा‍है ।
(3) चचत्र-वणफन‍से‍अपने‍ववचारों‍को‍एक‍सत्र ू ‍में ‍वपरोकर‍भलखने‍की‍प्रतििा‍का‍ववकास‍
होिा‍है ।
(4) िाषा‍लेखन‍का‍ववकास‍होिा‍है ।
चचत्र-िर्णन के कुछ उदाहरर्

प्रस्िि
ु ‍चचत्र‍में‍जल-प्रदष
ु ण‍को‍प्रिाववि‍करने‍वाली‍क्स्थति‍को‍दशाफया‍
गया‍है ।‍इस‍चचत्र‍में‍एक‍व्यक्ति‍कपिे‍िो‍रहा‍है , कुछ‍जानवर‍नहा‍रहे ‍
हैं, नाले‍का‍पानी‍नदी‍में‍चगर‍रहा‍है ‍और‍कारखानों‍से‍तनकलने‍वाले‍
रसायन‍आहद‍अपभशष्ट‍पदाथफ‍िी‍नदी‍में‍चगर‍रहे ‍हैं।‍हम‍सिी‍जानिे‍हैं‍
कक‍इन‍सब‍से‍नदी‍का‍पानी‍दवू षि‍होिा‍है ।‍जल‍के‍बबना‍मनुष्यों‍का‍
जीवन‍संिव‍नहीं‍है ‍और‍नहदयों‍का‍जल‍मख् ु य‍स्त्रोि‍है ।‍नहदयों‍के‍जल‍
को‍प्रदवू षि‍होने‍से‍बचाने‍के‍भलए‍हमें‍समय‍रहिे‍अपनी‍इन‍गलतियों‍को‍
सुिारना‍होगा, अधयथा‍इसके‍दष्ु प्रिाव‍बहुि‍ियानक‍होंगे।
 ववज्ञापन‍लेखन.
विज्ञापन‍ववक्रय‍कला‍का‍एक‍तनयंबत्रि‍जनसंचार‍माध्यम‍है ‍क्जसके‍द्वारा‍उपिोतिा‍को‍
दृश्य‍एवं‍श्रव्य‍सूचना‍इस‍उद्दे श्य‍से‍प्रदान‍की‍जािी‍है ‍कक‍वह‍ववज्ञापनकिाफ‍की‍इच्छा‍से‍
ववचार‍सहमति, कायफ‍अथवा‍व्यवहार‍करने‍लगे।‍... आशय‍यह‍कक‍उत्पाहदि‍वस्ि‍ु को‍
लोकवप्रय‍बनाने‍िथा‍उसकी‍आवश्यकिा‍महसूस‍कराने‍का‍कायफ‍विज्ञापन‍करिा‍है
 नारा -लेखन
नारा, राजनैतिक, वाखणक्ज्यक, िाभमफक‍और‍अधय‍संदिों‍में, ककसी‍
ववचार‍या‍उद्दे श्य‍को‍बारं बार‍अभिव्यति‍करने‍के‍भलए‍प्रयुति‍एक‍
यादगार‍आदशफ-वातय‍या‍सूक्ति‍है ।‍
स्िच्छता पर नारे
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1)-स्िच्छता‍अपनाओ‍– स्िच्छता‍अपनाओ, अपने‍घर‍को‍सद ुं र‍


बनाओ।
•2)- अपना‍दे श‍िी‍सार्‍हो, इसमे‍हम‍सब‍का‍हाथ‍हो।
•3)-तलीन‍भसटी, ग्री भसटी, यही‍मेरी‍है ‍ड्रीम‍भसटी। न‍

•4)-स्िच्छता‍अपनाओ, समाज‍में‍खभु शयाँ‍लाओ।


•5)-स्िच्छ‍िारि, स्वस्थ‍िारि।
हम भारत के राजनीनतक नारों के इनतहास पर नज़र डालते हैं.

िारि‍में ‍राजनीतिक‍नारों‍में ‍से‍कई‍यादगार‍रहे ‍हैं. जैसे‍कक‍


"गरीबी‍हटाओ", "इंड़डया‍शायतनंग", "जय‍जवान, जय‍ककसान".
•“ करो‍या‍मरो” – महात्मा‍गांिी

प्रभसद्ि‍नारा, िुम‍मुझ‍े खन
ू ‍दो, मैं‍िुम्हें ‍आजादी‍दं ग
ू ा‍हदया।
नेिाजी‍सि
ु ाष‍चंद्र‍बोस

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