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L-1 Jagran Geeth
L-1 Jagran Geeth
सख
ु नहीं यह, नींद में सपने संजोना, दख
ु नहीं यह, शीश पर गरु
ु
भार ढोना, शलू तम
ु
जिसको समझते थे अभी
तक, फूल मैं उसको
बनाने आ रहा हूँ।
फूल को जो फूल समझे,
भल
ू है यह, शल को जो शल ू
समझे, भल ू है यह, मल ू में
अनक
ु ू ल या प्रतिकूल के
कण, धलि
ू भल
ू ों को
हटाने आ रहा हूँ।
दे खकर मझधार को
घबरा न जाना, हाथ ले
पतवार को घचरा न
जाना, मैं किनारे पर
तम्
ु हें थकने न दं ग
ू ा, पार
मैं तमु को लगाने आ रहा
हूँ। तोड़ दो मन में कसौ
सत्र शंख
ृ लाएँ तौड़ दो मन
में बसी सब संकीर्णताएँ,
बिंद ु बनकर मैं तम्ु हें ढलने
न दं गू ा, सिंधु बन तम ु को
उठाने आ रहा हूँ।
तम
ु उठो, धरती उढे , नभ
शिर उठाए, तम ु चलो गति
में , नई गति झनझनाए,
विपथ होकर मैं तम् ु हें मड़
ु ने
न दँ गू ा, प्रगति के पथ पर
बढ़ाने आ रहा हूँ। दासता
इनसान को करनी नहीं है ,
दासता भगवान को करनी
नहीं है , वंदना में मैं तम्
ु हें
झक ू ा, बंदनीय
ु ने न दं ग
तम्
ु हें बनाने आ रहा हूँ।
-सोहनलाल
दविवेदी
प्रासंगिकता
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प्रस्ततु कणिमा आज भी प्रासंगिक है वषोंकि आज हमारा जीवन धम और
भटकाव का जीवन बन गया है । यह कषिता वर्तमान पौड़ी को भटकाव और धम
के चक्र से मक्
ु त करवाती है । फेसबक
ु , ई-मेल, व्हाट्सएप की काल्पनिक दनि
ु या
के यग ु में यह कविता हमें कोर यथार्थ से अवगत करवाती है । हम अपने जीवन
में न जाने कितनी गलतियों करते हैं लेकिन उन गलतियों से कोई सीख
नहीं लेते हैं। यह कविता गलतियों से सीख लेने के लिए प्रेरित करती है और
अपक परिश्रम का संदेश दे कर अपनी प्रासंगिकता स्वयं सिदा कर दे ती है । आज
का मान भी माग को दास ना चाहता है -कभी धर्म के नाम पर, तो कभी भाषिक
आभार पर। ऐसे में यह कविता बंधनमकि ु ा का संदेश लेकर आई है ।
माइंड मैप
किनके लिए गाया गया है ? + जो आलस्य में पड़े
हैं। * जो निराशा के
अंधकार में डूबे हैं।
• जो विपरीत परिस्थितियों
में घबराए हुए हैं।
• जो रूड़ियों में जकड़े
हुए हैं।
• जो कल्पना में खोए
हुए हैं।
जागरण
गीत
कविता का भाव ड़ियों में जकड़े, निराशा में डूबे, सपनों की दनि
ु या में खोए समाज में जामति
का संचार करना।
जागरण कैसे
आएगा?
• सपने दे खना छोड़कर बास्तविकता को
स्वीकार करने से। प्रमशील बनने
से।
चन
ु ौतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ने में । परु ानी
मानसिकता और संकीर्ण विचारों
के बंधनों से मक्
ु त होकर।
• अपनी गलतियों से सीख लेकर
प्रगति के मार्ग पर आगे
बढ़ते हुए।
अभ्यास
पढ़िए 1. मानक वर्तनी एवं
वाचन (उच्चारण )
अस्ताचल, उदयाचल, संजोना, मझधार, श्रंखृ ला, संकीर्णताएँ, झनझनाए, प्रगति,
विपथ, सिंध,ु दासता, बंदनीय, हलना 2. बताइए
क. कवि बेखबर लोगों को किस प्रकार
जगाना चाहते हैं? खा. अस्ताचल और
उदयाचल से कवि का क्या आशय है ?
ग. कषि श्रम और कार्य निष्ठा से भागनेवालों को क्या
निर्देश दे रहे हैं? 3. सोचिए ( मल्
ू यपरक प्रश्न )
उन्नति और विकास के लिए किन गण ु ों का होना आवश्यक है ?
सोचकर बिंदव
ु ार (Pointwise) बनाइए। लिखिए 1. काव्यांश
पड़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए
सख
ु नहीं यह, नींद में
सपने संजोना,
शल
ु तम
ु जिसको समझते थे अभी
तक, दख
ु नहीं यह, शीश पर गुरु भार बोना,
फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ। क
व्यक्ति किसे सख
ु मान बैठता है ?
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ग. "मैंझधार' से कवि का
क्या अर्थ है ?
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3. विस्तार से उत्तर
लिखिए
क. "पार मैं तम
ु को लगाने आ रहा हूँ।'- इस पंचित्त द्वारा कवि किस
परिस्थिति में सहायक बनाने का आश्वासन
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+
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संकीर्ण
+
।।
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विलोम
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वंदनीय 2.
शब्द लिखिए
कोमल
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3. 'गरु
ु ' शब्द के दो अलग-अलग अर्थ लिखकर
वाक्य में प्रयोग कीजिए
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4. लिंग की पहचान अभ्यास और उस शब्द का कर्ता रूप में प्रयोग
करने से की जा सकती है । कर्ता (Suhjeet)
के अनस
ु ार ही क्रिया आती है । जैसे-जाता है -गल्लिग, जाती
है -स्त्रीलिंग। दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग
कीजिए और लिंग पहचानकर लिखिए नोंद -
स्त्रीलिंग खेलकर बहुत थक गया था, घर पहुँचते
ही नोंद आ गई।
धरती - ----------- शिर -
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