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अध्याय १५

पुरुषोत्तम योग

दे वशेखर ववष्णु दास


भगवद गीता- अध्याय १५
परु
ु षोत्तम योग
सत्र-१४ : पुर्व
न लोकर्

भौततक गण
ु ककस प्रकार जीव को बाांधते हैं?
ववभभन्र् गण
ु ों में मत्ृ यु के बाद की गतत

गुणों के दीर्नकालीर्, मध्यकालीर् और तात्काभलक प्रभाव

गण
ु ों के परे जार्ा -गण
ु ातीत होर्ा
गुणों के परे जार्े से व्यक्तत दख
ु ो के परे जा सकता हैं |

गण
ु ातीत के तया लक्षण हैं?

आधतु र्क जगत के महार्तम उदहारण- श्रील प्रभप


ु ाद
भगवद्गीता: अध्याय १४ प्रकृतत के तीर्
गुण (सांक्षक्षप्त रूप)
भौततक जगत से आध्याक्त्मक जगत-
वैराग्य और शरणागतत के द्वारा
(श्लोक १-६)

आत्मा का स्थार्ाांतरण (श्लोक ७-११)

सांसार में कृष्ण को हमारे पालर्कतान के


रूप में दे खर्ा (श्लोक १२-१५)

वेदो और वेदाांतो का साराांश (श्लोक १६-१८)

कृष्ण को जार्र् अथानत सब कुछ जार्र्ा


(श्लोक १९-२०)
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

आध्याक्त्मक जगत -> र्दी तट के भौततक जगत- > पार्ी में उस आम


ऊपर असली आम के पेड़ की तरह हैं| के पेड़ के प्रततबबम्ब की तरह हैं|
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

❑ भौतिक जगि उल्टा अश्वत्थ वक्ष


ृ हैं|

❑ वक्ष
ृ की शाखाये ऊपर- नीचे फैली हुई हैं|

❑ प्रकृति के िीन गुणों द्वारा वक्ष


ृ का पोषण
होिा हैं|

❑ इन्द्रिय ववषय इस वक्ष


ृ की टहतनया हैं|

❑ वक्ष
ृ की जेड नीचे की ओर भी जािी है , जो
मानव समाज के सकाम कमो से बंधी हुई हैं|

यह सब बहुत भ्रभमत करर्े वला हैं, पर इससे


भ्रभमत र्हीां होर्ा हैं|
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

अर्ासक्तत की कुल्हाङी से इस वक्ष


ृ को काट दे |
भगवद गीता- अध्याय १५

तया कृष्ण और माया साथ-साथ चल


सकते हैं? र्ा
व्यावहाररक ज्ञार्

कृष्ण के साथ सम्बरध रखना जीव की वास्िववक न्द्स्थति


हैं , इसललए जीव आध्यान्द्त्मक जगि पहुंचे बबना संिुष्ट
नहीं हो सकिा |
भगवद गीता- अध्याय १५

जीव की पहचार् और सांर्षन


भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

ककस प्रकार के जीव मत्ृ यु और


भोग के सांर्षन को समझ पाते हैं?
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
व्यावहाररक ज्ञार्

जीवर् की ववषमताओां को समझ जार्े वाले शरीर से पूणन


भक्तत करते हुए दे हबद्
ु धध से तर्कलर्े का प्रयास करते हैं |
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

१५.१२- ब्रहमाांडीय व्यवस्था


भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

१५.१३- साांसाररक व्यवस्था


भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

१५.१४- शारीररक व्यवस्था


भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
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१५.१५- आध्याक्त्मक व्यवस्था


भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
व्यावहाररक ज्ञार्

भगवान ् के साथ सम्बरध, अलभधेय और प्रयोजन जान


कर जीव भन्द्ति की सवोच्च अवस्था को स्विः ही पहुंच
सकिा हैं|
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५

ज्ञार् की बत्र- श्लोकी भगवद गीता


भगवद गीता- अध्याय १५

ज्ञार् की बत्र- श्लोकी भगवद गीता


भगवद गीता- अध्याय १५

ज्ञार् की बत्र- श्लोकी भगवद गीता


भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
व्यावहाररक ज्ञार्

भगवर् स्वयां वेदो का सांकलर् कर यह ज्ञार् अर्वरत रूप


से प्राणणमात्र तक पहुांचाते हैं |
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
भगवद गीता- अध्याय १५
व्यावहाररक ज्ञार्

कृष्ण को जानने वाला सब कुछ जान जािा हैं |


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