You are on page 1of 12

नवाणर् मंत्र-

नवाणर् मंत्र-

मंत्र क्या है ?

मंत्र शब्द� का संचय होता है , िजससे इष्ट को प्राप्त कर सकते ह� और अ�नष्टबाधाओं को नष्ट कर सकते ह� । मंत्र इस शब्द
म� ‘मन ्’ का तात्पयर् मन औरमनन से है और ‘त्र’ का तात्पयर् शिक्त और र�ा से है ।
अगले स्तर पर मंत्र अथार्त िजसके मनन से व्यिक्त को पूरे ब्रह्मांड से उसक�एकरूपता का �ान प्राप्त होता है । इस स्तर प
र मनन भी रुक जाता है मनका लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस िस्थ�त म� व्यिक्तजन्म-
मत्ृ यु के फेरे से छूट जाता है ।
मंत्रजप के अनेक लाभ ह�, उदा. आध्याित्मक प्रग�त, शत्रु का �वनाश,अलौ�कक शिक्त पाना, पाप नष्ट होना और वाणी क�
शुद्�ध।
मंत्रजप से जो आध्याित्मक ऊजार् उत्पन्न होती है उसका �व�नयोग अच्छे अथवा बुरे कायर् के �लए �कया जा सकता है । यह
धन कमाने समान है ; धनका उपयोग �कस प्रकार से करना है , यह धन कमाने वाले व्यिक्त पर �नभर्रकरता है ।
मंत्र क� प�रभाषा
मंत्र शब्द क� �व�भन्न प�रभाषाएं ह�, जो उसके आध्याित्मक सू�म भेद� को समझाती ह� ।सामान्यत: मंत्र का अथर् है अ�र,
नाद, शब्द अथवा शब्द� का समूह; जो आत्म�ान अथवाईश ्वर�य स्वरूप का प्रतीक है । मंत्रजप से स्व-
र�ा अथवा �व�शष्ट उद्दे श्य साध्य करना संभवहोता है । मंत्र को दोहराते समय �व�ध, �नषेध तथा �नयम� का �वशेष पाल
न करना आवश्यकहोता है । यह मंत्र तथा मंत्र साधना (मंत्रयोग) का मह�वपूणर् अंग है ।

बीज मंत्र क्या है ?


एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के �व�ान को तेजी से फैलाता है । �कसीमंत्र क� शिक्त उसके बीज म� हो
ती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाल� होता है जबयोग्य बीज चन
ु ा जाए । बीज, मंत्र के दे वता क� शिक्त को जागत
ृ कर
ता है ।
प्रत्येक बीजमंत्र म� अ�र समूह होते ह� । उदाहरण के �लए – ॐ, ऐं,क्र�ं, क्ल�म ्
ॐ का रहस्य क्या है
ॐ को सभी मंत्र� का राजा माना जाता है । सभी बीजमंत्र तथा मंत्र इसीसे उत्पन्न हुए ह� । इसेकुछ मंत्र� के पहले लगाया जा
ता है । यह परब्रह्म का प�रचायक है ।
ॐ का रहस्य- �नरं तर जप का प्रभाव
ॐ इर्श्वर के �नगण
ुर् त�व से संबं�धत है । इर्श्वर के �नगण
ुर् त�व से ह� परू े सगण
ु ब्रह्मांड क��न�मर्त हुई है । इस कारण जब
कोई ॐ का जप करता है , तब अत्य�धक शिक्त �न�मर्त होतीहै । यह ॐ का रहस्य है ।
ॐ का महत्वपूणर् रहस्य यह है �क ॐ के �चन्ह का कह�ं भी �चत्रण करना, इर्श्वर से संबं�धतसांके�तक �चन्ह� के साथ �खल
वाड करना है और इससे पाप लगता है ।

नवाणर् मंत्र महत्व:-

माता भगवती जगत ् जननी दग


ु ार् जी क� साधना-
उपासना के क्रम म� , नवाणर् मंत्र एक ऐसामह�वपण
ू र् महामंत्र है | नवाणर् अथार्त नौ अ�र� का इस नौ अ�र के महामंत्र म� नौ
ग्रह� को�नयं�त्रत करने क� शिक्त है , िजसके माध्यम से सभी �ेत्र� म� पण
ू र् सफलता प्राप्त क� जासकती है और भगवती दग
ु ार्
का पूणर् आशीवार्द प्राप्त �कया जा सकता है यह महामंत्र शिक्तसाधना म� सव�प�र तथा सभी मंत्र�-
स्तोत्र� म� से एक मह�वपूणर् महामंत्र है । यह माता भगवती
दग
ु ार् जी के तीन� स्वरूप� माता महासरस्वती, माता महाल�मी व माता महाकाल� क� एकसाथ साधना का पूणर् प्रभावक बी
ज मंत्र है और साथ ह� माता दग
ु ार् के नौ रूप� का संयुक्त मंत्रहै और इसी महामंत्र से नौ ग्रह� को भी शांत �कया जा सकता है |
नवाणर् मंत्र-

|| ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुंडायै �वच्चे ||

नौ अ�र वाले इस अद्भुत नवाणर् मंत्र म� दे वी दग


ु ार् क� नौ शिक्तयांसमायी हुई है | िजसका सम्बन्ध नौ ग्रह� से भी है |

ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।


ह्र�ं = महाल�मी का बीज मन्त्र है ।
क्ल�ं = महाकाल� का बीज मन्त्र है ।

इसके साथ नवाणर् मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दग


ु ार् क� प्रथमशिक्त माता शैलपुत्री क� उपासना क� जाती है , िजस म� सू
यर् ग्रहको �नयं�त्रत करने क� शिक्त समायी हुई है |

नवाणर् मंत्र के द्�वतीय बीज ” ह्र�ं “ से माता दग


ु ार् क� द्�वतीय शिक्तमाता ब्रह्मचा�रणी
क� उपासना क� जाती है , िजस म� चन्द्र ग्रह को �नयं�त्रत करने क�शिक्त समायी हुई है |

नवाणर् मंत्र के तत
ृ ीय बीज ” क्ल�ं “ से माता दग
ु ार् क� तत
ृ ीय शिक्तमाता चंद्रघंटा क� उपासना क� जाती है , िजस म� मंगल ग्र
ह को�नयं�त्रत करने क� शिक्त समायी हुई है |
नवाणर् मंत्र के चतुथर् बीज ” चा “ से माता दग
ु ार् क� चतुथर् शिक्तमाता कुष्मांडा क�
उपासना क� जाती है , िजस म� बुध ग्रह को �नयं�त्रत करने क�शिक्त समायी हुई
है |
नवाणर् मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दग
ु ार् क� पंचम शिक्त माँस्कंदमाता क� उपासना क� जाती है , िजस म� बह
ृ स्प�त ग्रह
को�नयं�त्रत करने क� शिक्त समायी हुई है |

नवाणर् मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दग


ु ार् क� षष्ठ शिक्त माताकात्यायनी क� उपासना क� जाती है , िजस म� शुक्र ग्रह को
�नयं�त्रत करने क� शिक्त समायी हुई है |

नवाणर् मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दग


ु ार् क� सप्तम शिक्तमाता कालरा�त्र क�
उपासना क� जाती है , िजस म� श�न ग्रह को �नयं�त्रत करने क�शिक्त समायी हुई है |

नवाणर् मंत्र के अष्टम बीज ” �व “ से माता दग


ु ार् क� अष्टम शिक्तमाता महागौर� क� उपासना क� जाती है , िजस म� राहु ग्रह
को�नयं�त्रत करने क� शिक्त समायी हुई है |

नवाणर् मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दग


ु ार् क� नवम शिक्त माता�सद्धीदात्री क� उपासना क� जाती है , िजस म� केतु ग्रह
को �नयं�त्रत करने क� शिक्त समायी हुई है l

नवाणर् मंत्र क� �सद्�ध 9 �दनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है ,परं तु आप येसेनह�ं कर सकते है तो रोज 1,3,5,7,11,21….इ
त्या�द माला मंत्र जाप भी करसकते है,इस �व�ध से सार� इच्छाये पूणर् होती है ,सारइ दख
ु समाप्त होते है औरधन क� वसूल�
भी सहज ह� हो जाती है ।
हमे शास्त्र के �हसाब से यह सोलह प्रकार
के न्यास दे खने �मलती है जैसेऋष्याद�,कर ,हृदयाद� ,अ�र ,�दड्ग,सारस्वत,प्रथम मातक
ृ ा ,द्�वतीयमातक
ृ ा,तत
ृ ीय मातक
ृ ा
,षडदे वी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,�वलोम बीज,षड,सप्तशती ,शिक्त जाग्रण न्यास और
बाक� के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से
जाने जाते है ,इन सारे न्यासो का अपना एक अलग ह� महत्व होता है ,उदाहरण के �लये शिक्त जाग्रण न्यास से माँ सुष्मरूप
से साधकोके सामने शीघ्र ह� आ जाती है और मंत्र जाप क� प्रभाव सेप्रत्य� होती
है और जब माँ चाहे �क�सभी रूप मे क्यू न आये हमार� कल्याण तो �निच्छत ह� कर दे ती है ।
मन्त्र को जाग्रत करने के �लये �सद्ध कंु िजकास्तोत्र का पाठ कर�
�व�नयोग :- ॐ अस्य श्री कुिन्जका स्त्रोत्र मंत्रस्यसदा�शव ऋ�ष:॥
अनष्ु टुपछ
ू ं दः ॥ श्री�त्रगण
ु ाित्मका दे वता ॥
ऐं बीजं ॥ ह्र�ं शिक्त: ॥ क्ल�ं क�लकं ॥
मम सवार्भीष्ट�सध्यथ� जपे �वनयोग: ॥
�शव उवाच

शण
ृ ु दे �व प्रव�या�म कंु िजकास्तोत्रम�
ु मम ्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत ्।।1।।

न कवचं नागर्लास्तोत्रं क�लकं न रहस्यकम ्।


न सूक्तं ना�प ध्यानं च न न्यासो न च वाचर्नम ्।।2।।
कंु िजकापाठमात्रेण दग
ु ार्पाठफलं लभेत ्।
अ�त गुह्यतरं दे �व दे वानाम�प दल
ु भ
र् म ्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयो�न�रव पावर्�त।


मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटना�दकम ्।
पाठमात्रेण सं�सद्ध ् येत ् कंु िजकास्तोत्रमु�मम ्।।4।।

अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्ल�ं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे ज्वल हं सं लं �ं फट्स्वाहा।''

।।इ�त मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररू�पण्यै नमस्ते मधम
ु �दर् �न।
नम: कैटभहा�रण्यै नमस्ते म�हषा�दर् न।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्�यै च �नशुम्भासुरघा�तन।।2।।

जाग्रतं �ह महादे �व जपं �सद्धं कुरुष्व मे।


ऐंकार� सिृ ष्टरूपायै ह्र�ंकार� प्र�तपा�लका।।3।।

क्ल�ंकार� कामरू�पण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।


चामुण्डा चण्डघाती च यैकार� वरदा�यनी।।4।।

�वच्चे चाभयदा �नत्यं नमस्ते मंत्ररू�पण।।5।।


धां धीं धू धज
ू ट
र् े : पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वर�।
क्रां क्र�ं क्रंू का�लका दे �वशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररू�पण्यै जं जं जं जम्भना�दनी।


भ्रां भ्रीं भ्रंू भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दं ु ऐं वीं हं �ं
�धजाग्रं �धजाग्रं त्रोटय त्रोटय द�प्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पावर्ती पूणार् खां खीं खूं खेचर� तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती दे व्या मंत्र�सद्�धंकुरुष्व मे।।
इदं तु कंु िजकास्तोत्रं मंत्रजाग�तर्हेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गो�पतं र� पावर्�त।।


यस्तु कंु िजकया दे �वह�नां सप्तशतीं पठे त ्।
न तस्य जायते �सद्�धररण्ये रोदनं यथा।।

।इ�तश्रीरुद्रयामले गौर�तंत्रे �शवपावर्ती संवादे कंु िजकास्तोत्रं संपूणम


र् ्।
नवाणर् मंत्र साधना �वधी:-
�व�नयोग:

ll ॐ अस्य श्रीनवाणर्मन्त्रस्य ब्रह्म�वष्णुरुद्रा ऋषयःगाय�युिष्णगनुष्टुभश्छन्दा�स, श्रीमहाकाल� महाल�मी महासरस्वती


प्रीत्यथ� जपे �व�नयोगः ll

न्यास :

१. ऋष्या�दन्यास :

ब्रम्ह�वष्णुरुद्रऋ�षभ्यो नमः �शर�स।


गाय�युिष्णगनुष्टुभश्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
श्रीमहाकाल�महाल�मीमहासरस्वतीदे वताभ्यो नमःहृ�द ।
ऐं बीजाय नमः गुह्ये ।
ह्र�ं शक्तये नमः पादयो ।
क्ल�ं क�लकाय नमः नाभौ ।

ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे :- इस मूल मन्त्र से हाथधोकर करन्यास कर� ।


२. करन्यास:

ॐ ऐं अंगष्ु ठाभ्यां नमः ।


(दोन� हाथ� क� तजर्नी अँग�ु लय� से अंगठ
ू े के उद्गम स्थल को स्पशर् कर� )

ॐ ह्र�ं तजर्नीभ्यां नमः ।


( दोन� अंगूठ� से तजर्नी अँगु�लय� का स्पशर् कर� )

ॐ क्ल�ं मध्यमाभ्यां नमः ।


( दोन� अंगठ
ू � से मध्यमा अँग�ु लय� का स्पशर् कर� )

ॐ चामुण्डायै अना�मकाभ्यां नमः ।


( दोन� अंगूठ� से अना�मका अँगु�लय� का स्पशर् कर� )

ॐ �वच्चे क�निष्ठकाभ्यां नमः ।


( दोन� अंगठ
ू � से छोट� अँग�ु लय� का स्पशर् कर� )

ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे करतलकरपष्ृ ठाभ्यांनमः ।


( हथे�लय� और उनके पष्ृ ठ भाग का स्पशर् )
३. हृदया�दन्यास :

ॐ ऐं हृदयाय नमः ।
(दा�हने हाथ क� पाँच� उँ ग�लय� से ह्रदय का स्पशर् )

ॐ ह्र�ं �शरसे स्वाहा ।


(�शर का स्पशर् )

ॐ क्ल�ं �शखायै वषट् ।


(�शखा का स्पशर्)

ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम ् ।


( दा�हने हाथ क� अँगु�लय� से बाएं कंधे एवं बाएं हाथ क� अँगु�लय� से दाय� कंधे का स्पशर्)

ॐ �वच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ।


( दा�हने हाथ क� उँ ग�लय� के अग्रभाग से दोन� नेत्र� और मस्तक म� भ�ह� के मध्यभाग का स्पशर्)

ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामण्


ु डायै �वच्चे अस्त्राय फट ।
( यह मन्त्र पढ़कर दा�हने हाथ को �सर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे ले जाकर दा�हनी ओर सेआगे लाकर तजर्नी और म
ध्यमा अँग�ु लय� से बाएं हाथ क� हथेल� पर ताल� बजाएं।

४. वणर्न्यास :

**इस न्यास को करने से साधक सभी प्रकार के रोग� से मुक्त हो जाता है **

ॐ ऐं नमः �शखायाम ् ।
ॐ ह्र�ं नमः द��णनेत्रे ।
ॐ क्ल�ं नमः वामनेत्रे ।
ॐ चां नमः द��णकण� ।
ॐ मुं नमः वामकण� ।
ॐ डां नमः द��णनासापुटे ।
ॐ य� नमः वामनासापुटे ।
ॐ �वं नमः मुखे ।
ॐ च्च� नमः गुह्ये ।

इस प्रकार न्यास करके मल


ू मंत्र से आठ बार व्यापक न्यास (दोन� हाथ� से �शखा से लेकर पैर तकसभी अंग� का ) स्पशर् कर� ।
**अब प्रत्येक �दशा म� चट
ु क� बजाते हुए �नम्न मन्त्र� के साथ �दशान्यास कर� :**

५. �दशान्यास:

ॐ ऐं प्राच्यै नमः ।
ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः ।
ॐ ह्र�ं द��णायै नमः ।
ॐ ह्र�ं नैऋत्यै नमः ।
ॐ क्ल�ं प्रतीच्यै नमः ।
ॐ क्ल�ं वायव्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै उद�च्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे उध्वार्यै नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे भूम्यै नमः ।

६. सारस्वतन्यास :

**इस न्यास को करने से साधक क� जड़ता समाप्त हो जाती है **

ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः करतलकरपष्ृ ठाभ्यां नमः ।


ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः क�निष्ठकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः अना�मकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः तजर्नीभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः अंगष्ु ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः �शरसे स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः �शखायै वषट् ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः कवचाय हुम ् ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं नमः अस्त्राय फट ।

७. मातक
ृ ागणन्यास :

**इस न्यास को करने से साधक त्रैलोक्य �वजयी होता है **


ह्र�ं ब्राम्ह� पूवत
र् ः माँ पातु ।
ह्र�ं माहे श्वर� आग्नेयां माँ पातु ।
ह्र�ं कौमार� द��णे माँ पातु ।
ह्र�ं वैष्णवी नैऋत्ये माँ पातु ।
ह्र�ं वाराह� पिश्चमे माँ पातु ।
ह्र�ं इन्द्राणी वायव्ये माँ पातु ।
ह्र�ं चामण्
ु डे उ�रे माँ पातु ।
ह्र�ं महाल�म्यै ऐशान्यै माँ पातु ।
ह्र�ं व्योमेश्वर� उध्वर् माँ पातु ।
ह्र�ं सप्तद्वीपेश्वर� भम
ू ौ माँ पातु ।
ह्र�ं कामेश्वर� पतालौ माँ पातु ।

९. ब्रह्मा�दन्यास

**इस न्यास को करने से साधक के सभी मनोरथ पण


ू र् होते ह�**

ॐ सनातनः ब्रह्मा पादद�ना�भपयर्न्त मा पातु ।


ॐ जनादर् नः ना�भ�वर्शुद्�धपयर्न्तं मा पातु ।
ॐ रुद्रिस्त्रलोचनः �वशुद्धेब्रह्
र् मरन्ध्रांतं मा पातु ।
ॐ हं सः पदद्वयं मा पातु ।
ॐ वैनतेयः करद्वयं मा पातु ।
ॐ वष
ृ भः च�ुषी मा पातु ।
ॐ गजाननः सवार्ङ्गा�न मा पातु ।
ॐ आनंदमयो ह�रः परापरौ दे हभागौ मा पातु ।
१०. महाल�मया�दन्यास :

**इस न्यास को करने से धन-धान्य के साथ-साथ सद्ग�त क� प्रािप्त होती है **

ॐ अष्टादशभज
ु ािन्वता महाल�मी मध्यं मे पातु ।
ॐ अष्टभज
ु ो�वर्ता सरस्वती उध्व� मे पातु ।
ॐ दशभज
ु समिन्वता महाकाल� अधः मे पातु ।
ॐ �संहो हस्त द्वयं मे पातु ।
ॐ परं हंसो अ��यग्ु मं मे पातु ।
ॐ �दव्यं म�हषमारूढो यमः पादयग्ु मं मे पातु ।
ॐ चिण्डकायक्
ु तो महे शः सवार्ङ्गानी मे पातु ।
११. बीजमन्त्रन्यास :

ॐ ऐं हृदयाय नमः ।
(दा�हने हाथ क� पाँच� उँ ग�लय� से ह्रदय का स्पशर् )
ॐ ह्र�ं �शरसे स्वाहा ।
(�शर का स्पशर् )
ॐ क्ल�ं �शखायै वषट् ।
(�शखा का स्पशर्)
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम ् ।
( दा�हने हाथ क� अँगु�लय� से बाएं कंधे एवं बाएं हाथ क� अँगु�लय� से दाय� कंधे का स्पशर्)
ॐ �वच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ।
( दा�हने हाथ क� उँ ग�लय� के अग्रभाग से दोन� नेत्र� और मस्तक म� भ�ह� के मध्यभाग कास्पशर्)
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे अस्त्राय फट ।
( यह मन्त्र पढ़कर दा�हने हाथ को �सर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे ले जाकर दा�हनीओर से आगे लाकर तजर्नी और म
ध्यमा अँगु�लय� से बाएं हाथ क� हथेल� पर ताल� बजाएं।
�वलोम बीज न्यास:- *इस न्यास को समस्त दःु खहतार् के नाम से भी जाना जाता है **
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ �वं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: द� नासा पट
ु े।
ॐ मंु नम: वाम कण� ।
ॐ चां नम: द� कण� ।
ॐ क्ल�ं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्र�ं नम: द� नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्र�ं नम: �शखायाम ॥
१३. मन्त्रव्यािप्तन्यास:

**इस न्यास को करने से दे वत्व क� प्रािप्त होती है **

ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे मस्तकाचरणान्तंपूवार्ङ्गे (आठ बार ) ।


ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे पादािच्छर�तमद��णाङ्गे (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे पष्ृ ठे (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे वामांगे (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे मस्तकाच्चरणात्नं (आठबार) ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे चरणात्मस्तकाव�ध(आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे ।
ध्यान मंत्र:-
खड्गमं चक्रगदे शुषुचापप�रघा�छुलं भूशुण्डीम �शर:शड्ख संदधतीं करै स्त्रीनयना
सवार्ड्ग भष
ू ावत
ृ ाम । नीलाश्मद्दत
ु ीमास्यपाददशकांसेवे
महाकाल�कां यामस्तौत्स्व�पते हरौ कमलजो हन्तंु मधक
ु ै टभम ॥
माला पज
ू न:-
जाप आरं भ करनेसे पव
ू र् ह� इस मंत्र से माला का पज
ु ा क�िजये,इस �व�ध से आपक� माला भीचैतन्य हो जाती है .
ऐं ह्र�ं अ�मा�लकायै नंम:’’
ॐ मां माले महामाये सवर्शिक्तस्वरू�पनी ।चतव
ु ग
र् स्
र् त्व�य न्यस्तस्तस्मान्मे �सद्�धदा भव ॥
ॐअ�वघ्नं कुरु माले त्वं गह
ृ नामी द��णे करे । जपकालेच �सद्ध्यथर् प्रसीद मम �सद्धये ॥
ॐअ�माला�धपतये सु�सद्�धं दे ह� दे ह�सवर्मन्त्राथर्सा�धनी साधय साधय सवर्�सद्�धंप�रकल्पय प�रकल्पय मे स्वाहा।
अब आप येसे चैतन्य माला से नवाणर् मंत्र का जाप करे -

नवाणर् मंत्र :-
ll ऐं ह्र�ं क्ल�ं चामुण्डायै �वच्चे ll
(Aing hreeng kleeng chamundayei vicche )

आदे श. आदे श

You might also like