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गु प्तकाल

गुप्तकालीन साहित्य

कालिदास की रचनाएँ :-

(i) मालविकाग्निमित्रम – इसमें मालविका व अग्निमित्र (पिता –पुष्यमित्र) के बीच प्रेम प्रसंग का उल्लेख मिलता है ।यह नाटक पाँच
अंकों में है ।

(ii)विक्रमोर्वशीयम :- इसमें राजा परू


ु रवा तथा उर्वशी के प्रेम प्रसंग का उल्लेख है । यह नाटक 5 अंकों में मिलता है ।

(iii)अभिज्ञान शाकुन्तलम ् – 7 अंकों में राजा दष्ु यन्त व ऋषि कण्व की पालिता पुत्री शकुन्तला के प्रेम प्रसंग का उल्लेख मिलता है ।

महाकाव्य –

(a) रघव
ु ंश – 19 सर्गों में – दिलीप से अग्निमित्र तक का इतिहास

(b) कुमार संभव - 17 सर्गों में

खण्डकाव्य – 

(a) मेघदत
ु – पूर्व एवं उत्तर

(b) ऋतुसंहार – 6 सर्गों में

अन्य रचना – क्षेमेन्द्र की वह


ृ त्त कथा मंजरी में कोन्तलेश्वर दौत्यम ् का उल्लेख मिलता है कि यह रचना कालिदास की है ।

2.विशाखदत्त – दे वीचन्द्रगप्ु तम- इसमें रामगप्ु त के स्थान पर चन्द्रगप्ु त द्वितीय द्वारा सिंहासन प्राप्त करना और चन्द्रगप्ु त
द्वितीय द्वारा शकों का उन्मुलन करने का उल्लेख मिलता है ।

3.दण्डी – दशकुमार चरित ्

4.भारवि – किरातार्जुनियम

5.वत्सभट्‌टी – रावणवध

6.अमरसिंह – अमरकोष (व्याकरण ग्रन्थ)   – संस्कृत साहित्य का विश्कोष

7.चन्द्रगोमिन – चन्द्र व्याकरण

8.बद्ध
ु घोष – विशुद्धिमग्ग
9.शुद्रक  – मच्
ृ छकटिकम (मिट्‌टी की गाड़ी)– गरीब ब्राह्मण चारूदत्त व गणिका वसन्तसेना के प्रेम प्रसंग का उल्लेख मिलता है ।–
यह प्राचीन भारत का पहला ग्रन्थ है जिसमें मख्
ु य पात्र आमजन को दर्शाया गया।

10.ईश्वर कृष्ण – सांख्य कारिका – दार्शनिक ग्रन्थ

11.दिक् नाग – प्रमाण समुच्चय – दार्शनिक ग्रन्थ

12.वात्स्यायन – कामसूत्र

13.विष्णु शर्मा – पंचतंत्र    – सर्वाधिक भाषाओं में अनुदित होने वाला एक मात्र ग्रन्थ माना जाता है ।

14.आर्यभट्‌ट – आर्यभट्‌टीय (दशमलव, शन्


ू य, त्रिभज
ु का क्षेत्रफल, π\piπ का मान, चन्द्रग्रहण, सर्य
ू ग्रहण, पथ्
ृ वी गोल है , ऋतु
परिवर्तन, दिन-रात बनना)आर्यभट्‌टीय के अध्यायाें को पाद कहा जाता है जिनकी संख्या 4 है – गोल पाद्, गणित पाद्, कालक्रिया
पाद्, दशगीतिका पाद्

15.वराहमिहिर की रचनाएँ :- पंच सिद्धान्तिका, वह


ृ त ् जातक, लघु जातक।

पंचसिद्धान्तिका में पाँच सिद्धान्त दिये गये है – पोलिस, रोमक, सूर्य, वशिष्ठ, पितामह/पेतामह(पोलिस, रोमक यन
ू ानी ज्याेतिष से
प्रभावित है ।)

रोमक सिद्धान्त में एक वर्ष के माप की गणना की गई

वराहमिहिर ने 12 राशियों की खोज की

वर्गमल
ू तथा घनमल
ू निकालने का सत्र
ू दिया।

ज्योतिष के क्षेत्र में भारत यन


ू ान का ऋणी माना जाता है । 

ब्रह्मगुप्त – भीनमाल का निवासी

ह्वेनसांग ने भीनमाल को पीलों भोलो कहा

कवि माघ की जन्मस्थली भीनमाल-यह वैज्ञानिक विषयों का समालोचक भी था।

रचनाएँ –

1. ब्रह्म सिद्धान्तिका – गुरुत्वाकर्षण बल का उल्लेख

2. खण्ड खाद्य 

16. आयुर्वेद संहिता – धनवन्तरी

17.पालकाव्य – हस्ति आयुर्वेद


18. हे लिस्रोत – अश्व शास्त्र

19. भास्कर प्रथम – महाभास्कर्य, लघु-भास्कर्य

20. कणाद – वैषेशिक दर्शन, अणु सिद्धान्त 

21. नागार्जुन – शन्


ू य सिद्धान्त व शन्
ू यवाद का सिद्धान्त, धातभ
ु स्म द्वारा चिकित्सा (रस चिकित्सा)

22. वाग्भट्ट – अष्टांग हृदयम ्– अष्टांग सग्रहम ्

गुप्तकालीन कला

 मूर्तिकला – गुप्त काल में मथुरा सारनाथ और पाटलीपुत्र मूर्तिकला के प्रमुख क्षेत्र थे। इस काल में पत्थर, धातु, मिट्टी की मूर्तियाँ
बनाई गई।
 सुल्तानगंज से भगवान बुद्ध की ताम्र मूर्ति मिली है जो साढ़े सात फिट ऊँची है ।
 मथुरा से खड़े बद्ध
ु की मूर्ति- सारनाथ से बैठे बुद्ध की मूर्ति
 दे वगिरी के दशावतार मंदिर में भगवान विष्णु की शेषसायी मूर्ति गुप्तकालीन सर्वश्रेष्ठ मूर्ति मानी जाती है ।
 गुप्तकाल में प्रथम बार निम्नलिखित मूर्तियाँ बनी :-
1. अर्द्धनारिश्वर रूप में शिव की मूर्ति
2. गंगा-यमन
ु ा की मूर्तियाँ
3. त्रिदे व (ब्रह्म, विष्णु, महे श की मूर्ति)
 विशेषता – व्यवहारिक दृष्टकोण, सरल व सादगी पूर्ण।
 मंदिर निर्माण कला :- भारत में प्रथम बार गुप्तकाल में ही मंदिर निर्माण के साक्ष्य मिलते हैं। 

गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर

1. दे वगढ़ का दशावतार मंदिर :- मध्यप्रदे श- पहली बार इस मंदिर में शिखर या विमान के प्रमाण मिलते है ।- इसमें भगवान विष्णु
के दस अवतारों पर मूर्तियाँ बनी है ।- इसमें  मुख्य मूर्ति शेषसायी मूर्ति है ।- ये पंचायत शैली में बना है ।
2. नचना कुठारा का पार्वती मंदिर (मध्यप्रदे श के पन्ना जिले में )
3. भूमरा का शिव मंदिर – मध्यप्रदे श के सतना जिले में
4. एरण का वराह मंदिर – मध्यप्रदे श- यहाँ भगवान विष्णु की मानव आकृति के समान वराह मूर्ति मिलती है ।
5. उदयगिरी (मध्यप्रदे श) – भगवान विष्णु की विशाल वराहमूर्ति स्थित है ।
6. भीतर गाँव (कानपरु , उत्तर प्रदे श) ईंटों का मंदिर- इसमें प्रथम बार मेहराब का प्रयोग किया गया।
7. सिरपुर का लक्ष्मण मन्दिर – छत्तीसगढ़
8.

गुप्तकालीन अभिलेख

1. मथुरा अभिलेख :- चन्द्रगुप्त द्वितीय कालीन अभिलेख है । इसमें प्रथम बार गुप्त संवत का उल्लेख किया गया।
2. उदयगिरी का शैव गुहालेख :- यह भी चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य कालीन है । इसकी रचना सांधिविग्रहक साब वीरसेन द्वारा
करवायी गयी।
3. प्रयाग प्रशस्ति – ये समद्र
ु गप्ु त के सांधिविग्रहक हरिषेण द्वारा उत्कीर्ण करवायी गई। ये संस्कृत भाषा व चंपु शैली में है
इसमें समुद्रगुप्त द्वारा अलग-अलग राज्यों के प्रति अलग-अलग नीति अपनाने का उल्लेख मिलता है ।
(i) दक्षिण के राज्यों के प्रति :- ग्रहण मुक्षानग्र
ु ह की नीति अपनाई।
(ii) उत्तरापथ/आर्यवर्त के प्रति :- प्रसभोद्धरण (जड़ मल
ू से उखाड़ फैंकना) की नीति का पालन किया गया।
(iii) वनवासी जातियों के प्रति परिचारिकृत (सेवा करवाने की) नीति का पालन किया।
(iv) पूर्वी व उत्तर पश्चिमी गणराज्यों के प्रति अपनाई गई नीति – सर्वकरदान, प्राणानुगमन
(v) विदे शी जातियों के प्रति :- आत्म निवेदन, कन्योपायदान, गरू
ु त्मंदक (अपने राज्य के लिए आदे श प्राप्त करना) 
4. बिलसद अभिलेख – कुमार गुप्त प्रथम- मन्दसौर प्रशस्ति से कुमारगुप्त प्रथम की जानकारी मिलती है ।- मन्दसौर प्रशस्ति की
रचना कुमार गुप्त द्वितीय के काल में हुई।
5. जन
ु ागढ़ और भीतरी अभिलेख – स्कंदगुप्त के बारे में जानकारी मिलती है ।
6. एरण अभिलेख (510 ई.) - यह भानुगप्ु त कालीन अभिलेख है । इसमें हमें भारत में सत्ती प्रथा का प्रथम उल्लेख मिलता है ।
7.

गुप्तकालीन सिक्के

 श्री गप्ु त के सिक्के – श्री गत


ु स्य
 चन्द्रगुप्त के सिक्के – राजा-रानी के चित्र, लिच्छवय:
 घटोत्कच के सिक्के – कच
 समद्र
ु गप्ु त के सिक्के – 6 प्रकार के सोने के सिक्के, लिच्छवय: दाेहित्र, वीणा बजाते हुए।
 कुमार गुप्त – नंदी
 समुद्रगुप्त – अश्वमेघ यज्ञ
 चन्द्रगप्ु त द्वितीय – पंजे में सर्प लिये गरुड़
 परशु प्रकार के स्वर्ण सिक्के – समुद्रगुप्त
 सर्वाधिक सिक्काें का प्रचलन – कुमार गुप्त प्रथम
 सर्वाधिक अभिलेख – कुमार गप्ु त प्रथम
 स्वर्ण सिक्कों में मिलावट सर्वाधिक – स्कन्दगुप्त
 गुप्तकाल में स्वर्ण सिक्के का अन्य नाम - दीनार 

गुप्ताकलीन गुफाएं

1. अजन्ता की गुफाएँ – (महाराष्ट्र, औरं गाबाद)


 29 गुफाएँ हैं।
 16 वीं तथा 17 वीं गुहा – गुप्तकालीन
 इनका निर्माण वाकाटक वंश के राजा पथ्
ृ वीसेन के सामन्त व्याघ्रदे व ने करवाया।
 यह गुप्ताकलीन गुहा वास्तुकला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है ।
 इन गुहाओं में स्थित गुप्तकालीन चित्रकला के विषय बौद्ध धर्म से संबंधित है ।
 16 वीं गह
ु ा – (i) मरणासन्न राजकुमारी का चित्रण तथा (ii) बद्ध
ु के मन में वैराग्य उत्पन्न करने वाले चार दृष्य चित्रित है - 
(a) वद्ध
ृ व्यक्ति(b) रोगी व्यक्ति(c) शव यात्रा(d) संन्यासी
 17 वीं गुहा – माता व शिशु का चित्र, भगवान बुद्ध के गह
ृ त्याग का चित्र। 
2. बाघ की गह
ु ाएँ  (मध्यप्रदे श)
 कुल 9 गुहाएँ
 लौकिक चित्रों की प्रधानता है ।

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