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विषयसूची

प्रस्तावना
प्रथमामृतवृष्टिः
सामान्य मङ्गलाचरण
विशेष मङ्गलाचरण
रसस्वरूप श्रीभगवान् ब्रह्मके भी आश्रय
भक्तिदेवी स्वयं प्रकाशित है
भक्ति किसी भी कर्म के अधीन नहीं
भगवद्भक्तों की कृ पा ही भक्तिप्राप्ति का कारण
भक्त द्वारा भगवान्की कृ पाका प्रकाश
निष्काम कर्म आदि भक्तिप्राप्त करने के द्वारस्वरूप
भक्ति के बिना ज्ञान-कर्म-योगादि सब कु छ निष्फल
कर्मयोग में मन्त्र आदिके दोष से महा अनर्थ की उत्पत्ति
भक्ति द्वारा हृद्रोग कामका विनाश
मोक्षकी अपेक्षा भक्तिका श्रेष्ठत्व
भक्तिकी कृ पासे ज्ञानकी पोषकता भक्तिदेवी स्वयं पुरुषार्थशिरोमणि
द्वितीयामृतवृष्टिः
साधनभक्ति तथा उत्तमाभक्तिका स्वरूप ............८८
पाँच प्रकारके क्ले श, चार प्रकारके पाप तथा भक्तोंमें विराजमान शुभगुण
....................
अशुभ-निवृत्ति या शुभ-प्राप्ति..... ..........१०२
श्रद्धाका उदय .......
....... १०४
साधुसङ्ग ..................
......... १११
भजनक्रिया .........
उत्साहमयी भजनक्रिया.
.... ११७
घनतरला.
...... ११८
व्यूढ़विकल्पाके अन्तर्गत वर्णित (वैराग्यसे उत्पन्न भक्ति नहीं, बल्कि
भक्तिसे उत्पन्न वैराग्य ही शुद्ध).............. ..... ११९
विषयसंगरा ........
......... १२५
नियमाक्षमा .........
......... १२८
तरङ्गरङ्गिणी ................
तृतीयामृतवृष्टिः ............
.....१३३-२३०
चार प्रकारके अनर्थ तथा उनका विवरण ....... १३३
नामके बलपर पाप करना
...... १४२
भागवत धर्मके अवलम्बनसे सभी विघ्नोंका नाश............
'साधुनिन्दा'-प्रथम नामापराध ....
१५०
कृ पालुता आदि गुणोंका अभाव होनेपर भी भगवद्भक्तोंकी साधुता ......
युता ................................ १५७
महाभागवतकी श्रीचरणरज अपराध सहन नहीं करती .......
महाभागवतोंकी कृ पाकी विषयमें स्वतन्त्रता ....... १६३ नारायण आदि-
मायाके स्पर्शसे रहित ईश्वरचैतन्य तथा शिव आदि-मायाके स्पर्शको
अङ्गीकार करनेवाले ईश्वरचैतन्य........ १७१
ब्रह्मा-ईश्वरशक्ति द्वारा आविष्ट जीव ............ १७८
एक दृष्टिकोणसे तमोगुण, रजोगुणकी अपेक्षा श्रेष्ठ
..........१८०
.....१४५
......... १६१
अविद्या आवृत्त विचारमें दो प्रकारके जीवचैतन्य ...........
......... १८३
चैतन्यतत्त्व (चार्ट)
...... विष्णु और शिवमें अभेद होनेपर भी विष्णु ही उपास्य
१८६
'विष्णु ही ईश्वर है' अथवा 'शिव ही ईश्वर है'ऐसा विवाद अपराधजनक है
...................... १९०
श्रुति-शास्त्र-निन्दा-चतुर्थ नामापराध ............... १९३ भक्तिसे
उत्पन्न अनर्थ.......
............................ १९९
पाँच प्रकारकी अनर्थनिवृत्ति ......
.. २०१
चित्रके तु महाराजका अपराध वास्तवमें अपराध नहीं है तथा जय-विजयने
स्वेच्छापूर्वक प्रतिकू ल भाव अङ्गीकार किया है ...... ....... २०४
दुष्कृ तोत्थ, भक्त्योत्थ अनर्थ निवृत्तिका क्रम .... २१० चतुर्विध
अनर्थनिवृत्तिका क्रम (चार्ट)............. २१२ नामापराधीके प्रति
अप्रसन्न श्रीनामप्रभु द्वारा अपनी शक्ति गोपन करना ........
नामकी कृ पासे सभी प्रकारके अनर्थोंका नाश .. २१६
क्या नामापराधी व्यक्तिका गुरुधारण करना व्यर्थ है?.
.............. २२०
प्रारब्ध नहीं रहनेपर भी, भक्तमें दीनता तथा उत्कण्ठाकी वृद्धि करनेके
लिए भगवान् द्वारा अपने भक्तोंको दुःख प्रदान
......... २२५
चतुर्थ्यमृतवृष्टिः ................................. २३१-२४०
श्रीमद्भागवतमें वर्णित क्रमके अनुसार निष्ठिताभक्तिका वर्णन ........
......... २३१
निष्ठा तथा निष्ठाके लक्षण ...... ............. २३३
साक्षाद्-भक्तिवर्तिनी निष्ठा तथा भक्ति-अनुकू लवस्तुवर्तिनी
निष्ठा. ........... .....२३७
पञ्चम्यमृतवृष्टिः . ........
.......... २४१-२५२
रुचिका उदय तथा उसके लक्षण ................. २४१
मिश्री द्वारा पितरोग दूर होनेके समान भक्तिके अनुशीलनसे अविद्याकी
निवृत्ति तथा रुचिका उदय होना.......
................ २४३
वस्तुवैशिष्ट्य-अपेक्षिणी तथा वस्तुवैशिष्ट्य-अनपेक्षिणी रुचि
....... २४५
जात-रुचि-व्यक्तिका आचरण ... ..................... २४७ षष्ठ्य
मृतवृष्टिः .................................. २५३-२६२ 'रुचि'-
भजनविषयक, 'आसक्ति'-भजनीयविषयक. २५३
आसक्तियुक्त भक्तका आचरण तथा उसके प्रति विभिन्न लोगोंकी धारणा
........... .............. २५६
सप्तम्यमृतवृष्टिः .............
.............. २६३-२८४
भाव द्वारा श्रीकृ ष्ण प्राकट्य ..................
......... २६३
भक्तके द्रवीभूत चित्तमें भगवान्के अङ्गोंका अनुभव .....
.............. २६७
भक्तोंका परम शुद्ध 'अहं, मम'-भाव ............. २७०
भाव-रागभक्तिसे उत्पन्न तथा वैधीभक्तिसे उत्पन्न. २७४ व्रजेन्द्रनन्दन
श्रीकृ ष्ण ही सभी रसोंके मूल आधार ......
........... २७८
अष्टम्यमृतवृष्टिः ................................ २८५-३३८ भावरूपी
पुष्पकी प्रेमरूपी फलमें परिणति ....... २८५
प्रेमके परम आस्वादनीय रसमें मत्त भक्तकी स्थिति ..............
प्रेममें युगपत् विरह-ताप और भगवान्की स्फू र्तिसे उत्पन्न शीतलता ...
विषयसूची
प्रेमसे आकर्षित होकर भगवान् द्वारा अपने भक्तको साक्षात् दर्शन प्रदान
तथा अपने माधुर्यका विस्तार .......२९५
भगवान् द्वारा अपने सौन्दर्य और सौरभका प्रकाश तथा भक्तको सान्त्वना
प्रदान ............. २९८
औदार्यका विस्तार ...................३००
'भक्तवात्सल्य' ही भगवान्के गुणोंमें सम्राट.......३०३
श्रीभगवान्में दोष भी महागुणोंमें परिणत हो जाते
है........................३०६
भगवान् द्वारा अपने भक्तकी प्रशंसा तथा भक्त द्वारा दैन्य
प्रकाश........ ............३१०
भगवान्का रूप सभी उपमाओंसे अतीत ......... ३१२
श्री हरिके अन्तर्ध्यान होनेपर भक्त द्वारा किए गए अनेक संशय तथा
अलौकिक विलाप ........... ३१६
साधककी प्रेमोत्तर फल आस्वादनकी अयोग्यता. ३२२
जीवकी बद्धदशा और उससे मुक्त होनेका उपाय ..........
ग्रन्थकार द्वारा नित्यमङ्गलकी प्रार्थना ..............
परिशिष्ट ... ३३९-३४०
सांके तिक चिह्नोंकी सूची
अ.-अन्त्यलीला
आ.-आदिलीला
उ. नी.-श्रीउज्ज्वलनीलमणि
चै. च.-श्रीचैतन्यचरितामृत
चै. भा.-श्रीचैतन्यभागवत
बृ. भा.-श्रीबृहद्भागवतामृतम्
ब्र. सं.-श्रीब्रह्मसंहिता
भ. र. सि.-श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु
म.-मध्यलीला
श्रीगी.-श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भा.-श्रीमद्भागवत
ह. भ. वि.-हरिभक्तिविलास
विषयसूची श
प्रेमसे आकर्षित होकर भगवान्‌द्वारा अपने
भक्तको साक्षात्‌दर्शन प्रदान तथा अपने
माधुर्यका विस्तार .........................----------- २९५
भगवान्‌द्वारा अपने सोन्दर्य और सौरभका
प्रकाश तथा भक्तको सान्त्वना प्रदान ............. २९८
सौरस्य और ओदाय॑का विस्तार ३००
'भक्तवात्सल्य' ही भगवानके गुणोंमें सम्राट ....... ३०३
श्रीभगवान्‌में दोष भी महागुणोंमें परिणत
भगवान्‌द्वारा अपने भक्तकी प्रशंसा तथा
भक्त द्वारा दैन्य प्रकाश ............................. ३१०
भगवान्‌का रूप सभी उपमाओंसे अतीत ......... ३१२
श्रीहरिके अन्तर्ध्यान होनेपर भक्त द्वारा किए गए
अनेक संशय तथा अलौकिक बिलाप ........... ३१६
साधककी प्रेमोत्तर फल आस्वादनकी अयोग्यता. ३२२
जीवकी बद्धदशा और उससे मुक्त
होनेका उपाय ................................-.------ ३३३
ग्रन्थकार द्वारा नित्यमड़लकी प्रार्थना .............. ३३६
परिशिष्ट ............................----०-------- रै३९-३४०
>शशिल्ि-
सांके तिक चिहोंकी सूची
अ.-अन्त्यलीला ब्र. सं.-अश्रीब्रह्मसहिता
आ.-आदिलीला भ. र. सि.-श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु
उ. नी.--श्रीउज्ज्बलनीलमणि म.-मध्यलीला
चै. च.-श्रीचैतन्यचरितामृत श्रीगी.--श्रीमद्धगवद्भीता
चै. भा.-श्रीचैतन्यभागवत श्रीमद्धा.--श्रीमद्भागवत
बृ. भा.--श्रीबृहद्भधागवतामृतम्‌ह. भ. वि.-हरिभक्तिविलास

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