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2 Motivation
2 Motivation
यह विचारधारा सैछनक आदे श की तरह चलती है । इस विचारधारा के समथयक विद्िान यह मानते हैं कक व्यक्तत ‘धन
प्राक्तत’ के भलए कायय करता है । इसभलए उसे कायय से हटा दे ने की धमकी दे कर या िय ददखाकर उसे अर्धक कायय लेने
के भलए प्रेररत ककया जा सकता है । यह विचारधारा खोद्योर्गक क्राक्न्त के प्रारक्म्िक िर्षों में बड़ी कारगर भसद्ध हुई
थी तयोंकक लोगों के पास रोजगार नहीं था तथा िे िख
ू ों मरते थे ।
िैज्ञाछनक प्रबन्ध के जन्मदाता एफ.डब्ल्य.ू टे लर ने इस विचारधारा को विकभसत करने का प्रयास ककया है । उनके
अनुसार- “एक व्यक्तत को अर्धक धन दो, िह अर्धक उत्पादन करे गा ।” उनका विचार था कक व्यक्तत भमलने िाले
पुरस्कार के अनुरूप ही कायय करता है ।
यदद उसे प्रेरणात्मक मजदरू ी दी जाए तो िह अर्धक मेहनत ि लगन से कायय करे गा उनका विचार है कक अच्िी कायय
दशाएँ एिं अच्िा प्रछतफल कमयचाररयों को अभिप्रेररत करता है । टे लर के अनस
ु ार मौदिक अभिप्रेरणाएँ व्यक्तत को
कायय के प्रछत इच्िा तथा शक्तत उत्पन्न करने के भलए महत्िपण
ू य हैं ।
पीटर ड्रकर के अनुसार- “मौदिक पुरस्कारों से सन्तुष्ट होना पयायतत अभिप्रेरणा नहीं है ।” अवित्तीय साधन िी उतने
ही महत्िपूणय हैं । इसके अछतररतत अभिप्रेरणा मूल रूप में मनोिैज्ञाछनक है क्जसे इस विचारधारा में कोई स्थान नहीं
ददया गया है परन्तु आज िी अर्धकतर कमयचाररयों के भलए मजदरू ी अथिा िेतन सबसे बड़ा अभिप्रेरक है ।
मैकग्रेगर भलखते हैं कक, ‘केरट’ एिं ‘क्स्टक’ विचारधारा एक बार व्यक्तत के जीिन-छनिायह स्तर पर पहुँच जाने के बाद
कायय नहीं करती तयोंकक तब व्यक्तत उच्चतम आिश्यकताओं से अभिप्रेररत होता है । अत: यह स्पष्ट है कक यह
विचारधारा तब तक ही सफल होगी जब तक कमयचाररयों की शारीररक एिं सुरक्षा सम्बन्धी आिश्यकताएँ पूरी तरह
से सन्तुष्ट नहीं होती हैं ।
जैसे ही व्यक्ततयों की ये आिश्यकताएँ सन्तष्ु ट हो जातो हैं तिी से यह विचारधारा उपयोगी नहीं रहती है आज के
यग
ु में इस विचारधारा का महत्ि बहुत कम है तयोंकक यह विचारधारा क्जन साधनों को अभिप्रेररत करने का आधार
बनाती है िे सामाक्जक एिं मनोिैज्ञाछनक आिश्यकताओं को सन्तष्ु ट करने के भलए पयायतत नहीं हैं ।
िे दाछयत्ि लेने से डरते है । स्ििाि से पररितयनों के विरोधी तथा मन्द-बुद्र्ध होते है । अत: संगठन के उद्दे श्यों को
प्रातत करने के भलए इन व्यक्ततयों को छनयक्न्ित करना पड़ता है, तथा इन पर दबाि डालना पड़ता है । मैकग्रेगर
मानते हैं कक यह विचारधारा गलत धारणाओं पर आधाररत है । अत: ये विचारधारा अभिप्रेरणा का उर्चत साधन नहीं
बन सकती है ।
उपयत
ुय त वििेचन से स्पष्ट है कक परम्परािादी विचारधाराएँ उपरोतत िर्णयत की गई भमथ्या मान्यताओं पर
आधाररत होने के कारण व्यक्ततयों को अभिप्रेररत करने में असफल रही हैं ।
(b) आर्थयक सुरक्षा (Economic Safety) के अन्तगयत सम्पवत्त की सुरक्षा, आय की सुरक्षा तथा िद्
ृ धािस्था के भलए
उर्चत व्यिस्था करना आदद आते है एिं
(c) मनोिैज्ञाछनक अथिा मानभसक सुरक्षा (Psychological Safety) के अन्तगयत, विभिन्न प्रकार की
अछनक्श्चतताओं से िुटकारा जैसे न्याय तथा सहानि
ु छू त की आशा आदद ।
इनके पूरा होने पर मनुष्य में सामाक्जक मान-सम्मान, मान्यता अर्धकार ि शक्तत की आिश्यकता उत्पन्न होती है
तथा अन्त में उच्च स्तर प्रातत करने के भलए तथा कोई सज
ृ नात्मक कायय करने की आिश्यकता उत्पन्न होती है ।
इस प्रकार अगले स्तर तक जाने से पूिय स्तर की आिश्यकताएँ पूरी की जाती हैं । इस क्रम के साथ-साथ बढ़ने की
सीमा प्रत्येक व्यक्तत में अलग-अलग होती है तथा जैसे-जैसे एक व्यक्तत अक्न्तम लक्ष्य आत्मप्राक्तत की ओर बढ़ता
है, यह प्रगछत कदठनतम होती चली जाती है ।
(ii) मनुष्य की इन पाँच आिश्यकताओं का एक छनक्श्चत प्राथभमकता क्रम होता है । यद्यवप मनुष्य की इन
आिश्यकताओं का यह प्राथभमकता क्रम अटल नहीं होता कफर िी भिन्न-भिन्न पररक्स्थछतयों में तथा भिन्न-भिन्न
व्यक्ततयों में यह प्राथभमकता क्रम कुि बदल िी सकता है ।
(iv) उच्च स्तर की आिश्यकता तब तक मनुष्य के व्यिहार पर प्रिाि नहीं डाल सकती जब तक उससे छनम्न स्तर
की आिश्यकताओं की सन्तुक्ष्ट नहीं हो पाती । अथायत ् उच्च-स्तर की आिश्यकताओं के महत्िपूणय बनने से पूिय
छनम्न-स्तर की आिश्यकताओं को सन्तुष्ट करना आिश्यक होता है ।
आिोचिाएाँ (Criticism):
यह विचारधारा मानिीय सम्बन्ध के आशािादी दृक्ष्टकोण पर आधाररत है और सामान्यतया सिी को उर्चत प्रतीत
होती है ।
परन्तु अिेक विद्िािों िे अपिे अध्ययिों तथा अिुसन्धािों के आधार पर इसको गित पाया और इसकी
आिोचिाएाँ की जो कक निन्िभिखखत हैं:
(i) मास्लो द्िारा ददया गया आिश्यकता प्राथभमकता क्रम सदै ि सही नहीं उतरता ।
(ii) यह जरूरी नहीं है कक जब तक मनुष्य की छनम्न आिश्यकताएँ सन्तुष्ट न हों, उच्च आिश्यकताएँ बलबती नहीं
होंगी ।
(iii) मनष्ु य का व्यिहार केिल आिश्यकताओं द्िारा ही छनधायररत नहीं होता । आिश्यकताओं के अलािा अन्य
तत्ि िी व्यक्तत के व्यिहार को प्रिावित करते हैं ।
(iv) मनुष्य इतना दरू दशी नहीं होता है कक िह अपनी िािी आिश्यकताओं का पूिायनुमान लगा सके ।
(v) आिश्यकताओं का महत्ि भिन्न-भिन्न पररक्स्थछतयों में भिन्न-भिन्न हो सकता है तथा इसका महत्ि भिन्न-
भिन्न िी हो सकता है ।
(vii) आत्म-प्राक्तत या आत्म-विकास की आिश्यकता कोई िास्तविक आिश्यकता प्रतीत नहीं होती है । यह माि
दाशयछनक आकांक्षा है ।
(viii) आिश्यकता तथा अभिप्रेरणा के बीच कोई प्रत्यक्ष कायय-कारण सम्बन्ध (Casual Relationship) प्रतीत नहीं
होता । उदाहरण के भलए, एक ही तरह की आिश्यकताओं को पूरा करने के भलए अलग-अलग मनुष्यों को अलग-
अलग ढं ग से प्रयास करते दे खा जा सकता है ।
(ix) यह जरूरी नहीं है कक असन्तुष्ट आिश्यकताएँ मनुष्य की सकारात्मक तरीके से एक ददशा में अभिप्रेररत करें ।
िे उसे छनराशा तथा छनकम्मेपन (छनक्ष्क्रयता) की ओर िी ले जा सकती हैं ।
(x) एडिडय लालेर तथा लॉयड सटले अपने शोध अध्ययन द्िारा इस छनष्कर्षय पर पहुँचे कक उच्च स्तरीय
आिश्यकताओं की तीव्रता मनष्ु य-मनष्ु य पर भिन्न है कुि मनष्ु यों के भलए सामाक्जक आिश्यकताएँ महत्िपण
ू य हैं
तो कुि के भलए सम्मान ि स्िाभिमान की आिश्यकता है ।
(2) हजजबगज की अभिप्रेरक तथा अिरु क्षण तत्िों की विचारधारा (Herzber’s
Motivation-Hygiene Theory):
फ्रेडररक हजयबगय तथा उनके सार्थयों ने वपट्
सबगय क्षेि के करीब 200 अभियन्ताओं एिं लेखाकारों के साक्षात्कार से
प्रातत छनष्कर्षों के आधार इस विचारधारा का विकास ककया । इसे द्वि-र्टक (Two-Factor Theory) िी कहा
जाता है ।
इस भसद्धान्त के अिस
ु ार आिश्यकताओं के दो िगज हैं:
(i) बाह्य, आरोग्य (स्िास्थ्य सम्बन्धी) कायय-सन्दिय िाले अथिा अनरु क्षण र्टक
अरोग्य (स्िास्थ्य सम्बन्धी) तत्िों से अभिप्राय उन तत्िों से है क्जनकी विद्यमानता कमयचारी को अभिप्रेररत नहीं
करती परन्तु क्जनकी अनुपक्स्थछत कमयचारी को असन्तुष्ट करती है । ये तत्ि कायय के बाह्य िातािरण से
सम्बायन्धत होते हैं तथा कायय के बाहरी िातािरण को प्रिावित करते हैं ।
आिश्यकताओं के पहले िगय को अनरु क्षण आिश्यकताएँ कहा जाता है यह िगय मास्लो को छनम्नस्तरीय
आिश्यकताओं-शारीररक तथा सरु क्षात्मक आिश्यकताओं के समान हैं । आिश्यकताओं के दस
ू रे िगय को अभिप्रेरक
कहा जाता है । यह मास्लो की उच्च स्तरीय आिश्यकताओं: सामाक्जक, स्िाभिमान और आत्मविकास की
आिश्यकताओं के समान है ।
उपयत
ुय त वििेचन से स्पष्ट है कक मनुष्यों की दो विभिन्न प्रकार की आिश्यकताएँ होती हैं जो कक एक-दस
ू रे पर
छनियर नहीं है । ये मनुष्य के व्यिहार को अलग-अलग तरीके से प्रिावित करती है । उनके अनुसार जब व्यक्तत
अपने कायों से असन्तुष्ट होते हैं तो उनकी असन्तुक्ष्ट का कारण उनके कायय का िातािरण होता है क्जसके अन्तगयत
िे कायय करते हैं ।
हजयबगय ने िातािरण को प्रिावित करने िाले र्टकों को आरोग्य तथा स्िास्थ्य सम्बन्धी तत्ि (Hygiene
Facrtors) कहा है । ये तत्ि आिश्यकताओं के प्रथम िगय में आते हैं तथा कायय के बाहरी िातािरण को प्रिावित
करते हैं । हजयबगय के अनुसार जब मनुष्य कायय से सन्तुक्ष्ट का अनुिि करते है तब ऐसी सन्तुक्ष्ट केिल कायय से ही
प्रातत की जा सकती है, िातािरण से नहीं ।
क्जसे हजयबगय ने ‘अभिप्रेरक’ (Motivators) अथिा ‘अभिप्रेरक तत्ि’ (Motivational Factors) कहा है । ये
अभिप्रेरक तत्ि मनुष्य की आिश्यकताओं के दस
ू रे िगय में आते है । ये तत्ि व्यक्तत को अर्धक कुशलता के साथ
कायय करने के भलए अभिप्रेररत करते है । इन्हें कायय के आन्तररक र्टक कहा जाता है । ये तत्ि कायय से (Job
Contents) से सम्बक्न्धत होते हैं । उन्हें कायय-तत्ि िी कहा जाता है ।
इसभलए मनष्ु यों को असन्तक्ु ष्ट से बचाने के भलए ‘स्िास्थ्य तत्िों’ पर तथा अभिप्रेररत करने के भलए ‘अभिप्रेरक
तत्िों’ पर ध्यान ददया जाना आिश्यक है ।
हजजबगज के अिुसार आिश्यकताओं के दोिों िगों में निम्िभिखखत तत्िों को शाभमि ककया जाता है :
इस विचारधारा के अनुसार व्यक्तत अनुरक्षण या आरोग्य तत्िों (Maintence of Hygiene Factors) की
उपक्स्थछत को एक आधार मान कर चलते हैं । इन तत्िों की उपक्स्थछत से अभिप्रेरणा या सकारात्मक सन्तुक्ष्ट नहीं
प्रातत होती है।ये तत्ि ककसी व्यक्तत की काययक्षमता, उत्पादकता एिं सन्तुक्ष्ट में िद्
ृ र्ध नहीं करने बक््क व्यक्तत में
कायय के प्रछत असन्तक्ु ष्ट उत्पन्न होने से रोकते है । इस प्रकार ये छनिारक उपाय (Preventive Measures) हैं ।
परन्तु इन तत्िों की अनप
ु क्स्थछत के कारण असन्तक्ु ष्ट अिश्य पैदा होती है । इसभलए इन तत्िों या र्टकों को
‘असन्तष्ु टक’ (Dissatisfiers) कहा गया है , अभिप्रेरक नहीं । इन तत्िों को कायय-सन्दिय या बाह्य र्टक िी कहा
जाता है । इनका सम्बन्ध िातािरण से होता है ।
र्टकों या तत्िों के दस
ू रे िगय या समह
ू में उपलक्ब्लध, मान्यता, उन्नछत, विकास तथा स्ियं-कायय शाभमल हैं ।
इन र्टकों को “असन्तष्ु टक” (Dissatisfiers) कहा गया है , अभिप्रेरक नहीं कहा गया है । इनकी अनप
ु क्स्थछत के
कारण कायय के प्रछत असन्तुक्ष्ट तो नहीं होती, लेककन इनकी उपक्स्थछत से कमयचारी अभिप्रेरणा में िद्
ृ र्ध होती है । ये
र्टक कायय सन्तुक्ष्ट को सकारात्मक रूप से प्रिावित करते हैं ।
इनकी उपक्स्थछत से व्यक्ततयों में कायय करने की इच्िा जाग्रत होती है । इन र्टकों को आन्तररक (Intrinsic) या
कायय-विर्षयिस्तु (या कायय-सन्तक्ु ष्ट) र्टक िी कहा जाता है इसका सम्बन्ध कायय के िातािरण से नहीं होता है ।
इस प्रकार हजयबगय ने पहली बार अभिप्रेरणा को प्रिावित करने िाले दो अलग-अलग र्टकों की पहचान की । इससे
पूिय लोगों की यह धारणा थी कक अभिप्रेरणा तथा अभिप्रेरणा का अिाि एक जैसे र्टकों की उपक्स्थछत ि
अनुपक्स्थछत से सम्बक्न्धत है ।
यह विचारधारा बतलाती है कक केिल स्िास्थ्य तत्िों पर ही प्रबन्धकों को ध्यान नहीं दे ना चादहए बक््क कायय को
समद्
ृ ध करने (Job Enrichment) की ओर िी ध्यान दे ना चादहए ताकक कायय रुर्चकर, अथय-पण
ू ,य चन
ु ौतीपण
ू य एिं
महत्िपण
ू य बन सके तथा व्यक्ततयों को अभिप्रेररत कर सके ।
हजयबगय की द्वि-र्टक विचारधारा प्रेरणा (Incentive) तथा अभिप्रेरणा में अन्तर करती है । प्रेरणा को बाहरी तत्ि
माना गया है , जो एक व्यक्तत दस
ू रे व्यक्तत को दे ता है । परन्तु अभिप्रेरणा एक आन्तररक तत्ि है जो व्यक्तत के
िीतर रहता है । िास्ति में प्रेरणा एक बैटरी की तरह है क्जसे बार-बार चाजय करना पड़ता है । ककन्तु अभिप्रेरणा
शक्तत उत्पन्न करने िाला यन्ि अथायत ् जेनरे टर (Generator) की तरह है क्जसे बाहरी लोगों के सहयोग की जरूरत
होती है ।
आिोचिाएाँ (Critism):
हजयबगय की द्वि-र्टक विचारधारा अपनी सरलता तथा विभशष्टता के कारण बहुत लोकवप्रय रही है तथा इसने
प्रबन्धकों को बहुत आकवर्षयत ककया है । इस विचारधारा ने कायय को समद्
ृ ध करने (Job Enrichment) की धारणा
को विकभसत ककया है । अभिप्रेरणा के इस भसद्धान्त पर आगे और शोध कायय हुए क्जसके कारण इसे उर्चत समथयन
प्रातत हुआ परन्तु कुि विद्िानों ने इसकी काफी आलोचना की है ।
(ii) यह भसद्धान्त अनरु क्षण या आरोग्य तत्ि को अभिप्रेरणा का तत्ि नहीं मानता है जो उर्चत नहीं है तयोंकक कुि
मामलों में ये र्टक या तत्ि िी कमयचाररयों को अभिप्रेररत करते हैं, जबकक कुि मामलों में अभिप्रेरक तत्ि ऐसा
करने में परू ी तरहसे अफसल हो सकते हैं ।
(iii) हजयबगय के अनुसार कायय-सन्तुक्ष्ट तथा उत्पादकता में सम्बन्ध होता है लेककन िे भसफय सन्तुक्ष्ट तथा
असन्तुक्ष्ट पर ही प्रकाश डालते हैं सन्तुक्ष्ट तथा उत्पादकता के बीच पाये जाने िाले सम्बन्ध की चचाय नहीं करते ।
(iv) यह विचारधारा बहुत सीभमत आधार पर आधाररत है । इसमें उच्च िेतनिोगी िगय के केिल 200 इंजीछनयरों
तथा लेखाकारों को शाभमल ककया गया है । इतने कम तथा इस तरह के गैर-प्रछतछनर्धक प्रछतदशय (Non-
Representative Sample) के आधार पर छनकाला गया छनष्कर्षय एक सामान्य भसद्धान्त का रूप धारण नहीं कर
सकता ।
(v) इसके द्िारा अभिप्रेरणा तथा सन्तुक्ष्ट का सम्बन्ध अत्यन्त सरल बना ददया गया है , जबकक िास्ति में ऐसा
नहीं है ।
(vi) यह विचारधारा एक छनक्श्चत विर्ध से काम करने पर ही खरी उतरती है, अन्यथा नहीं ।
(vii) यह विचारधारा आधछु नक र्टनाओं को कोई स्थान प्रदान नहीं करती है ।
मास्िो तथा हजजबगज विचारधाराओं की तुििा (Comparison of Maslow and Herzberg Theory):
मास्लो और हजयबगय दोनों ने मानिीय आिश्यकताओं की पहचान की है, उसे िगीकृत ककया है और अभिप्रेरणा का
एक सामान्य भसद्धान्त विकभसत ककया है मारो और हजयबगय दोनों ही विचारधाराओं (या भसद्धान्तों) के अिलोकन
से यह स्पष्ट होता है कक इन दोनों में इस बात को स्पष्ट करने की कोभशश की गई है कक लोगों को कौन-सी चीजें
अभिप्रेररत करती हैं । रे खार्चि से स्पष्ट है कक हजयबगय की आिश्यकताएँ मास्लो की आिश्यकता क्रमबद्धता के
ककसी एक या अन्य िगय में आ जाती हैं ।
मास्लो की शारीररक, सुरक्षात्मक और सामाक्जक आिश्यकताओं को हजयबगय ने आरोग्य र्टकों की श्रेणी में रखा है ,
जबकक आत्म-विकास की आिश्यकताओं को हजयबगय ने अभिप्रेरक कहा है । स्िाभिमान की आिश्यकताओं में जहाँ,
आत्म-सम्मान, आत्म-विश्िास, स्िायत्तता, प्रछतष्ठ, शक्तत और मान्यता को हजयबगय ने अभिप्रेरकों में शाभमल
ककया है िहीं, प्रक्स्थछत (Status) और पययिेक्षण के तकनीकी पहलू (सक्षमता ि ज्ञान) को अनुरक्षण या आरोग्य
र्टकों में शाभमल हैं । इस तरह मास्लो की स्िाभिमान आिश्यकताओं के कुि िाग अभिप्रेरकों में तथा कुि िाग
आरोग्य र्टकों में शाभमल हैं । इसे रे खार्चि में दशायया गया है ।
मास्िो और हजजबगज की विचारधाराओं में कुछ प्रमुख भिन्िताएाँ िी प्रकट होती हैं:
(i) मास्लो यह सोचते हैं कक आिश्यकताएँ क्रमबद्धता के रूप में व्यिक्स्थत होती हैं । जब छनम्नस्तरीय
आिश्यकताएँ पयायतत रूप से सन्तुष्ट हो जाती है तिी उच्चस्तरीय आिश्यकताएँ सकक्रय होती हैं, जबकक हजयबगय के
अनुसार आिश्यकताओं की ऐसी कोई क्रमबद्धता नहीं होती । सिी आिश्यकताएँ हर समय सकक्रय रहती है ।
(ii) मास्लो का तकय है कक कोई िी असन्तुष्ट आिश्यकता चाहे िह छनम्नस्तरीय हो या उच्चस्तरीय, लोगों को
अभिप्रेररत करती है । लेककन हजयबगय का कहना है कक भसफय कायय-सन्तुक्ष्ट आिश्यकताएँ, जैसे: विकास, संिद्
ृ र्ध
उपलक्ब्लध मान्यता आदद ही लोगों को अभिप्रेररत करती हैं । कायय-सन्दिय आिश्यकताओं-सगठनात्मक नीछतयों,
िेतन, क्स्थछत, कायय की दशाओं आदद से लोगों को अभिप्रेरणा नहीं भमलती ।
इनसे अभिप्रेररत करने िाली आिश्यकताओं को सन्तष्ु ट करने के भलए िातािरण का छनमायण होता है छनष्कर्षय के रूप
में हम कह सकते हैं कक मास्लो की विचारधारा हजयबगय की तल
ु ना में अर्धक व्यािहाररक और साियिौभमक है । इसे
छनम्नस्तरीय कमयचाररयों और उच्चस्तरीय प्रबन्धकों सिी पर लागू ककया जा सकता है । आर्थयक ि सामाक्जक रूप
से अविकभसत समाज के लोगों के सन्दिय में िी मास्लो का भसद्धान्त उपयोगी है । चकू क इन समाजों में लोगों की
छनम्नस्तरीय आिश्यकताएँ पयायतत रूप से सन्तुष्ट नहीं होती इसभलये ये आिश्यकताएं उन्हें अभिप्रेररत करती है ।
मेकग्रेगर के अनुसार प्रबन्धकों का प्रत्येक छनणयय अथिा कायय प्रत्यक्ष रूप से इस बात से प्रिावित होता है कक मनुष्य
की प्रकृछत तथा व्यिहार के बारे में उनकी अपनी मान्यताएं तया हैं । मेकग्रेगर ने इन्हीं मान्यताओं को भसद्धान्त
‘एतस’ तथा भसद्धान्त ‘िाई’ के रूप में प्रस्तुत ककया है । उनके अनुसार ‘एतस’ विचारधारा प्रबन्ध के परम्परागत
दशयन (Traditional Philosophy) को स्पष्ट करती है तथा ‘िाई’ विचारधारा आधुछनक तथा मानिीय दशयन का
िणयन करती है ।
(ii) एक व्यक्तत की कायय के प्रछत स्िािाविक अरुर्च होती है और िह कायय से बचना चाहता है ।
(vii) उसमें सज
ृ नशीलता का अिाि पाया जाना है ।
उपरोतत मान्यताओं के आधार भसद्धान्त ‘एतस’ के अनुसार ऐसे लोगों से कायय करिाने तथा संगठन के लक्ष्यों को
प्रातत करने के भलए सारी क्जम्मेदारी प्रबन्धक को अपने पर लेनी चादहए । इसके भलए कमयचाररयों से कायय करिाने
के भलए उन्हें छनदे भशत ि छनयक्न्ित करना उनके साथ सख्ती बरतना उर्चत प्रछतफल ि दण्ड की व्यिस्था करना
और उनकी िूभमकाओं ि उत्तरदाछयत्िों को स्पष्ट रूप से छनधायररत करना आिश्यक हो जाता है ।
अन्त में, सार के रूप में यह कहा जा सकता है कक ितयमान पररक्स्थछतयों में यह भसद्धान्त उपयोगी नहीं है । यह
छनराशािादी दृक्ष्टकोण प्रस्तुत करता है तथा श्रभमकों का पुजाय माि मानता है इसमें मानि मू्यों का अिाि होता है
। श्रभमकों का कलेर छनयन्िण ि पययिेक्षण ककया जाता है । अतएि यह एक ऋणात्मक अभिप्रेरणा है । इसभलए
श्रभमकों से कायय करिाने के भलए भसद्धान्त ‘िाई’ को अपनाना चादहए ।
(ii) औसत कमयचारी भमलनसार तथा समझदार होते हैं, काम करना पसन्द करते है । िे उत्तरदाछयत्ि को छनिाने में
सक्ष्म होते है । लोग चतुर क्पनाशील तथा सजनात्मक होते हैं परन्तु आधुछनक जीिन की व्यिस्थाओं के कारण
इन क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग नहीं कर पाते ।
(iii) िे उर्चत िातािरण में उत्तरदाछयत्ि को स्िीकार करते हैं िे महत्िाकांक्षी होते हैं ।
उपयत
ुय त िर्णयत भसद्धान्त- ‘िाई’ ितयमान पररक्स्थछतयों में सबसे अर्धक कक्रयाशील एिं लोकवप्रय भसद्धान्त है जो
हमारे सामने आशािादी दृक्ष्टकोण प्रस्तुत करता है इससे श्रम तथा प्रबन्ध दोनों को सन्तुक्ष्ट है । अतएि यह एक
सकारात्मक अभिप्रेरणा है ।
आिोचिाएाँ (Criticisms):
इस भसद्धान्त की मुख्य आिोचिाएाँ इस प्रकार हैं:
(i) मेकग्रेगर के भसद्धान्त ककसी शोध पर आधाररत नहीं हैं । ये केिल कुि मान्यताओं पर आधाररत हैं ।
(ii) कुि आलोचक इसे अभिप्रेरणा की विचारधारा न मानकर से मानि-स्ििाि को समझने की विचारधारा मानते है
(iii) मेकग्रेगर ने शारीररक श्रम करने िाले और मानभसक श्रम करने िाले लोगों के बीच कोई अन्तर नहीं ककया है
जबकक भसद्धान्त ‘िाई’ प्रबुद्ध कमयचाररयों के भलए अर्धक प्रासंर्गक है । इसका उ्लेख इन भसद्धान्तों में नहीं
भमलता ।
अन्त में हम यह कह सकते हैं कक मेकग्रेगर के भसद्धान्त के सम्बन्ध में हमें यह नहीं मान लेना चादहये कक
भसद्धान्त ‘एतस’ बुरा है और भसद्धान्त ‘िाई’ अच्िा है । भसद्धान्त ‘िाई’ को मानने का अथय यह मानना नहीं है कक
प्रत्येक व्यक्तत पररपति है, स्िछनदे भशत है । इसके बजाय इसका यह आशय है कक अर्धकांश लोगों में स्ि-
अभिप्रेरणा और पररपतिता की सम्िािना पाई जाती है ।
िास्ति में भसद्धान्त ‘एतस’ और भसद्धान्त ‘िाई’ लोगों के प्रछत धारणाएँ हैं यद्यवप ककसी प्रबन्धक के भलए बेहतर
धारणा भसद्धान्त ‘िाई’ है , तथावप िह सदै ि इसके अनुरूप ही व्यिहार करें यह उर्चत नहीं होगा । मानिीय प्रकृछत
के बारे में भसद्धान्त ‘िाई’ की मान्यताओं को मानते हुए िी यह सम्िि है प्रबन्धक कुि समय के भलए कुि लोगों के
साथ आिश्यकतानुसार अत्यन्त छनदे शात्मक और छनयन्िात्मक तरीके से पेश आए ।
मास्िो हजजबगज तथा मेकग्रेगर की विचारधाराओं में सम्बन्ध (Relationship Between Motivational
Theories of Maslow, Herzberz and Mcgregor):
मास्िो, हजजबगज तथा मेकग्रेगर की अभिप्रेरणा की विचारधाराओं के बीच पाये जािे िािे सम्बन्ध को अग्रभिखखत
ताभिका द्िारा समझाया गया है:
उपरोतत ताभलका से स्पष्ट है कक तीनों विचारधाराएँ एक-सी हैं । मास्लो की उच्च स्तरीय आिश्यकता हजयबगय के
अभिप्रेरक तत्िों के समान हैं । मेकग्रेगर इन्हें िाई भसद्धान्त के अन्तगयत ददखाता है । ठीक इसी प्रकार मारो की
छनम्नस्तरीय आिश्यकताएँ तथा हजयबगय के अनरु क्षक या स्िास्थ्य तत्ि लगिग एक जैसे हैं । मेकग्रेगर ने इसी बात
को भसद्धान्त: ‘एतस’ के अन्तगयत प्रस्तत
ु ककया है ।
यह दृक्ष्टकोण मेकग्रेगर की “िाई” विचारधारा से कुि कदम आगे है “श्तत” विचारधारा पूणय रूप से मानिीय
व्यिहार के बाह्य छनयन्िण पर आधाररत है तथा चादय विचारधारा मुख्य रूप से स्ि-छनयन्िण एिं छनदे शन पर बल
दे ती है, जबकक मेकग्रेगर विचारधारा उद्योगों में दलीय िािना एिं समझौते पर बल दे ती है ।
सत्ता के इस नैछतक आधार के कारण ही उपक्रम तथा उसके कमयचारी एक पररिार, समुदाय एिं िंश में बदल जाते हैं ।
इस पाररिाररक िातािरण के कारण कम्पनी की नीछतयों एिं योजनाओं में पररितयन आ जाता है । यह सत्ता श्रम-
प्रबन्ध के पारस्पररक विश्िास र्छनष्ठता, प्रेरणा सहिार्गता, सहयोग तथा सन्तक्ु ष्ट पर आधाररत होती है ।
पररणामस्िरूप उत्पादकता में तेजी गछत से िद्
ृ र्ध होती है ।
(a) विश्िास;
(c) आत्मीयता ।
परन्तु इसके विपरीत जापानी संगठनों में जीिन-पययन्त रोजगार की व्यिस्था होती है । कोई िी जापानी व्यक्तत
छनयत
ु त होते ही उस संगठन का एक अटूट दहस्सा: संगठन व्यक्तत (Organisation Man) बन जाता है क्जस प्रकार
ककसी पररिार में जन्म लेते ही भशशु उसी पररिार का अंग बन जाता है , उसी प्रकार िह व्यक्तत संगठन में आते ही
संस्था के सिी अर्धकारी ि दाछयत्िों से जुड़ जाता है अथायत ् कमयचारी तथा संस्था के बीच पूणय आसक्तत, अपतत
तथा सदस्यता की िािना उत्पन्न हो जाती है ।
इसभलए मन्दीकाल में श्रभमकों की िँ टनी नहीं की जाती है; केिल पररक्स्थछतयाँ सध
ु रने तक उनकी िेतन िद्
ृ र्धयों
पर रोक लगा दी जाती है । इस प्रकार “जैड” विचारधारा संगठनों में शक्ततशाली अनरु क्तत (Powerful
Attachment), सहिागी अनि
ु ि (Shared Experience) तथा सामदू हक काययनीछत (Collective Work Etrics)
को प्रोत्साहन दे ती है । पररिार की तरह इसमें िी एक अयोग्य कमयचारी की पण
ू य दे खिाल हो जाती है ।
(iv) धीमा मूलयांकि तथा पदोन्िनत (Slow Evaluation and Promotion):
जापानी उद्योगों में कमयचाररयों का मू्याँकन किी-किार ककया जाता है तथा पदोन्नछत की प्रणाली धीमी है ।
जापानी प्रबन्धक कमयचाररयों को कायय की जदटलताओं तथा तकनीकी पहलुओं को समझने तथा कायय पररक्स्थछतयों
के साथ समायोक्जत होने का पूरा अिसर प्रदान करते है । कायय के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलू के बारे में उन्हें जानकारी
तथा प्रभशक्षण ददया जाता है । उनके कायय ज्ञान को व्यािहाररक पररक्स्थछतयों से जोड़ा जाता है । यह विचारधारा
पदोन्नछत को र्चरकाभलक रखने पर जोर दे ती है ताकक कमयचारी के पहलपन (Initiative), प्रेरणा तथा मनोबल को
ऊँचा रखा जा सके ।
इस प्रकार ‘जेड’ विचारधारा में छनयन्िण तकनीक कायय-व्यिस्था का एक अभिन्न अंग होती है । इस तकनीक द्िारा
िुदटयों का पूिायनुमान लगाना सम्िि होता है तथा उन्हें रोका िी जा सकता है । अमेररकन छनयन्िण तकनीक
सुधारात्मक (Corrective) होती है, लेककन अन्तछनयदहत छनयन्िण तकनीक पूिायिासी (Anticipatory) प्रकृछत की
होती है तथा छनयन्िण को कायय-संस्कृछत (Work Culture) एिं कायय-शैली से जोड़ती है ।
(ix) सम्पण
ू ज व्यस्क्तत्ि पर ध्याि (Wholistic Concern):
“जैड” विचारधारा कमयचाररयों के व्यक्ततत्ि को सम्पण
ू य दृक्ष्ट से दे खती है । यह कमयचाररयों के व्यक्ततत्ि का परू ा
सम्मान करती है यह विचारधारा कमयचाररयों की सम्पण ू य समद् ृ र्ध से जड़ु ी हुई है । इस विचारधारा के अनस
ु ार
मानिीय कायय की दशाएँ, संगठन में उत्पादकता तथा लािों में िद्
ृ र्ध ही नहीं करती, बक््क कमयचाररयों का आत्म-
सम्मान िी करती है ।
सार रूप में , विभलमय आउची द्िारा प्रछतपाददत जेड विचारधारा सहिागी प्रबन्ध तथा सियसम्मत छनणययन के प्रयोग
पर बल दे ती है । भलकटय की पद्धछत प्रबन्ध व्यिस्था (चार भसस्टम) िी इसी तथ्य को उजागर करती है । प्रो. आउची
के अनुसार जापान की प्रबन्ध प्रणाली में उनकी सामाक्जक परम्पराओं धाभमयक पद्धछतयों तथा सांस्कृछतक मू्यों
का पूणय समािेश होता है । जापानी प्रबन्ध तकनीकों की लोकवप्रयता के बािजूद िी आज विश्ि के अर्धकांश राष्र
प्रबन्ध ज्ञान के भलए अमेररकी प्रबन्ध को अर्धक प्राथभमकता दे ते हैं ।